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इश्क़ है तुमसे

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जब एक आग और एक पानी आमने-सामने हों, तो क्या सिर्फ टकराव होगा या जन्म होगा इश्क़ का? पार्थ बिरला — एशिया की टॉप इंडस्ट्री का CEO, सख़्त, शांत और दिल से बिल्कुल खाली। प्रिया अग्निवंशी — खूबसूरत, बातूनी, अपनों से जुड़ी एक सीधी-सादी लड़की। पर अनजा...

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. इश्क़ है तुमसे - Chapter 1

    Words: 1344

    Estimated Reading Time: 9 min

    मालाबार हिल्स, मुंबई

    अरब सागर की ठंडी हवाओं से घिरा एक शानदार विला था। उसकी बाहरी दीवारों पर उकेरे गए नक्काशीदार पत्थर और करीने से कटी हरियाली इस बात का संकेत देते थे कि यह कोई आम घर नहीं, बल्कि रुतबे और शानो-शौकत की मिसाल है। विला के गेट पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था—"बिरला मैनशन"।

    अंदर की हवा में अगरबत्तियों की खुशबू और ताज़े गुलाब की भीनी महक घुली हुई थी। विशाल डाइनिंग हॉल में एक भव्य टेबल पर बिरला परिवार नाश्ते में व्यस्त था। सफेद झक पर्दे, कीमती झूमर की रोशनी और कीमती क्रॉकरी इस सुबह को और भी शाही बना रही थी।

    इसी बीच, लकड़ी की सीढ़ियों से तेज़ कदमों की आवाज़ आई। फर्स्ट फ्लोर से एक लंबा-सा नौजवान, काले ब्लेज़र को हाथ में थामे, जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ उतरते हुए बाहर की ओर बढ़ रहा था। उसकी उम्र लगभग 25-26 साल रही होगी। चेहरे पर हल्की दाढ़ी, बाल सलीके से पीछे जमे हुए, आँखों में गंभीरता और चाल में आत्मविश्वास।

    तभी पीछे से एक मधुर, पर हल्की चिंतित आवाज़ आई—

    "पार्थ, रुको ना बेटा... नाश्ता तो करके जाओ!"

    यह आवाज़ पायल बिरला की थी—पार्थ की माँ, उम्र लगभग 38 साल, साड़ी में लिपटी, सज्जन और सौम्य महिला। उनकी आँखों में बेटे की चिंता साफ़ झलक रही थी।

    पार्थ ने चलते-चलते पलटकर कहा,

    "मोम, पहले ही लेट हो चुका हूँ। ब्रेकफास्ट ऑफिस में कर लूंगा।"

    पायल कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी टेबल के एक कोने से सख़्त आवाज़ आई—

    "देखा माँ, आपका पोता अब मेरी भी नहीं सुनता।"

    पायल चुप हो गईं, लेकिन उनकी आँखों में एक हल्की शिकायत तैर रही थी।

    पास ही बैठीं शोभा बिरला, उम्र 75, पार्थ की दादी और पायल की सास—सफेद बालों में पिन फँसी हुई, माथे पर बड़ी लाल बिंदी, रेशमी साड़ी में लिपटी, पूजा-पाठ में विश्वास रखने वाली एक दयालु लेकिन सख़्त महिला—उन्होंने धीमी मुस्कान के साथ कहा,

    "सही कहा तुमने, पायल बहू... पार्थ अब हफ़्ते में चार दिन मुश्किल से हमारे साथ नाश्ता करता है।"

    और फिर थोड़ा मुँह बनाकर नाराज़ी जताई।

    पार्थ मुस्कराते हुए बोला,

    "ऐसा कुछ नहीं है दादी... आज एक बहुत ही इंपॉर्टेंट मीटिंग है बस।"

    दादी भौंहें चढ़ाते हुए बोलीं,

    "क्या इंपॉर्टेंट मीटिंग? कभी अपनी माँ की बात को भी इंपॉर्टेंस दो!"

    "दादी यार..." पार्थ ने थोड़ा झेंपते हुए कहा।

    "क्या 'दादी यार'? अब इस घर में मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है!"

    शोभा बिरला ने जैसे ही ऊँची आवाज़ में कहा, पूरा डाइनिंग हॉल कुछ सेकंड के लिए ठहर गया।

    सबके चेहरे पर हल्की मुस्कान तैर गई, और सबने एक-दूसरे को देख कर चुपचाप नाश्ता जारी रखा।

    पार्थ ने भी मुस्कराते हुए शांत भाव से कुर्सी खींची और कुछ निवाले खाकर, फिर जल्दी से उठ खड़ा हुआ।

    "चलता हूँ, दादी... मोम... बाय!"

    और वह तेज़ी से विला के बाहर निकल गया—एक नई सुबह, एक नया दिन, और एक नई कहानी का आगाज़...

    बांद्रा, मुंबई

    एक और आलीशान विला था। अंदर एक बड़ा कमरा था जिसकी खिड़कियों पर से सुनहरी धूप पर्दों को चीरती हुई अंदर आ रही थी। कमरे की दीवारों पर हल्का पिंक और व्हाइट शेड था, दीवारों पर कुछ मोटिवेशनल कोट्स और हैंडमेड मंडला आर्ट लटक रहे थे।

    सफेद रज़ाई में लिपटी एक लड़की बड़ी ही मासूमियत से सो रही थी। तभी अलार्म की आवाज़ गूंजती है। नींद में करवट लेती वह लड़की धीरे-धीरे आँखें खोलती है, चेहरे पर नींद की मासूमियत और होंठों पर हल्की मुस्कान। यह थी—प्रिया अग्निवंशी।

    प्रिया अग्निवंशी, उम्र 23 साल, काली आँखें, गोरा रंग, गुलाबी होंठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे, height 5 फीट 5 इंच है, होंठों के नीचे काला तिल। प्रिया की मुस्कराहट देखते ही कोई भी कायल हो जाए। प्रिया ने अभी कॉलेज पूरा किया था। उसका एक ही सपना था—एक अच्छी नौकरी और अपने परिवार को उनके ऊपर गर्व हो।

    नींद भरी आँखों से मोबाइल बंद किया, और बाथरूम की ओर बढ़ गई। कुछ ही देर में तैयार होकर वह नीचे उतरती है जहाँ पूरा परिवार ब्रेकफास्ट टेबल पर बैठा हुआ है।

    "गुड मॉर्निंग एवरीवन!"

    कहते हुए वह मुस्कुराकर सबको विश करती है और कुर्सी खींचकर बैठ जाती है।

    "लाडो, आराम से खाओ... खाना कहीं भागा नहीं जा रहा!"

    यह रणविजय अग्निवंशी थे—प्रिया के दादाजी, उम्र 77, रौबदार आवाज़ वाले लेकिन दिल से बेहद स्नेही व्यक्ति। वे अपने परिवार को समेट कर रखते हैं। सभी उनकी एक आवाज़ से डरते हैं। वे अग्निवंशी ग्रुप ऑफ इंडस्ट्री से रिटायर हो चुके हैं और घर पर आराम कर रहे हैं।

    प्रिया मुँह बनाते हुए कहती है,

    "दादू, आज मेरा पहला दिन है ऑफिस का... लेट नहीं होना!"

    इतना कहकर वह जल्दी-जल्दी नाश्ता करती है।

    बगल में बैठे उसके पापा मुस्कुराकर बोले,

    "बेटा, आराम से खाओ... ड्राइवर तुम्हें सही समय पर कंपनी पहुँचा देगा।"

    यह थे प्रिया के पापा, राजवीर अग्निवंशी, उम्र 39 साल, अग्निवंशी ग्रुप ऑफ इंडस्ट्री के मालिक। वे एक ईमानदार और शांत स्वभाव के व्यक्ति हैं और अपने परिवार और काम को बहुत प्यार करते हैं। प्रिया में उनकी जान बसती है।

    प्रिया मुस्कुराते हुए बोली,

    "नहीं पापा, मैं खुद स्कूटी से जाऊँगी। रास्ते में सिया मिलेगी, हम दोनों साथ चलेंगे।"

    राजवीर थोड़ा परेशान होकर बोले,

    "लेकिन जब हमारी अपनी कंपनी है, तो तुम्हें दूसरी जगह नौकरी करने की क्या ज़रूरत?"

    प्रिया की आँखों में आत्मविश्वास था। उसने धीरे से कहा,

    "पापा, मुझे अपनी पहचान खुद बनानी है... मैं नहीं चाहती कि लोग कहें—‘राजवीर अग्निवंशी की बेटी कुछ खुद नहीं कर पाई।’ मुझे खुद के दम पर कुछ बनना है, और जब मैं कुछ हासिल करूँगी, तो आप सबको मुझ पर गर्व होगा।"

    पूरे परिवार की आँखों में गर्व की चमक थी।

    रणविजय जी के बगल वाली कुर्सी पर सुनीता अग्निवंशी बैठी थीं, प्रिया की दादी जी, उम्र 75 साल। वे खूब दयालु और पूजा पाठ में विश्वास रखती हैं।

    उनके सामने वाली कुर्सी पर, राजवीर जी के बगल में रिद्धि अग्निवंशी बैठी थीं, प्रिया की माँ, उम्र 37 साल। वे एक दयालु और समझदार औरत हैं और घर जोड़कर रखती हैं। अपने बच्चों को बहुत प्यार करती हैं।

    उनके बगल वाली कुर्सी पर प्रिया के बड़े भाई, कृष अग्निवंशी बैठे थे, उम्र 25 साल। वे अग्निवंशी ग्रुप ऑफ इंडस्ट्री के सीईओ हैं। वे बिजनेस में व्यस्त रहते हैं, काली आँखें, सिल्की बाल, होंठों पर मुस्कान, लेकिन जब गुस्सा आता है तो कोई नहीं सुनता।

    तो यह है हमारी प्यारी नायिका का परिवार।

    बाहर गेट पर

    सिया स्कूटी पर इंतज़ार कर रही थी। गॉगल्स लगाए, बाल खुले, होंठों पर हल्की लिपस्टिक और चेहरे पर झुँझलाहट।

    "अरे यार! कहाँ रह गई ये? कब से वेट कर रही हूँ!"

    यह थी—सिया सिंघानिया—प्रिया की बेस्ट फ्रेंड। चुलबुली, नटखट, और सच्ची दोस्त। उम्र 23 साल, हल्का गोरा रंग, लंबे बाल, होंठ बिल्कुल गुलाबी, चुलबुली सी नटखट। सिंघानिया परिवार की बेटी। इनका एक छोटा बिजनेस है।

    "आ रही हूँ यार!" प्रिया दौड़ती हुई आती है।

    "तुझे पता है ना आज हमारा पहला दिन है? और ईशा कब से राह देख रही है!"

    "पता है बाबा... चल जल्दी!"

    "एक तो तू खुद लेट होती है, ऊपर से मुझे डाँटती है!"

    "हाँ हाँ, बहुत सुना लिया तूने!"

    "चोरी ऊपर से सीना जोरी!"

    दोनों हँसते-झगड़ते ऑफिस के लिए रवाना हो जाती हैं।

    दूसरी ओर—बिरला ग्रुप ऑफ कंपनी का हेड ऑफिस

    एक बड़ी कॉर्पोरेट बिल्डिंग थी, शीशे की दीवारें, लॉबी में लगे ऑर्किड्स और सफाई का सख़्त इंतज़ाम। अचानक पूरे ऑफिस में सन्नाटा छा गया। लोग अपनी सीटों की तरफ भागने लगे। हर कोई एकदम अनुशासन में आ गया।

    जूते की खटखट की आवाज़ गूंजने लगी। सबने एक लंबी साँस खींची और देखा—दरवाज़े से पार्थ बिरला अंदर आ रहा था। चेहरे पर तेज़, चाल में आत्मविश्वास, आँखों में जुनून—पार्थ, CEO के रुतबे से ज़्यादा अपने अनुशासन और कठोर नियमों के लिए जाना जाता था।

    "मैनेजर, फाइल लेकर मेरे ऑफिस में आओ!"

    कहते हुए वह अपने केबिन की ओर बढ़ गया।

    एक नई जॉइनर ने बगल में बैठी लड़की से धीरे से पूछा,

    "इनसे सब इतना डरते क्यों हैं?"

    लड़की बिना आँख उठाए बोली—

    "अभी नई हो ना... दो दिन में समझ आ जाएगा। काम करो, नहीं तो पहले ही दिन रिज़ाइन देने की नौबत आ जाएगी!"

    कौन है यह लड़की? प्रिया और सिया की जॉब कहाँ लगी है? क्या प्रिया अपने बलबूते पर काम कर सकेगी? जानने के लिए बने रहिए मेरे इस कहानी के साथ।