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Forced by destiny

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Aarya Rai

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Description

वो दुल्हन बनी थी किसी और की... ख्वाब आँखों में थे, मगर किस्मत ने कुछ और ही लिखा था। और ठीक उसी वक़्त जब उसकी दुनिया बनने वाली थी — किस्मत ने एक ऐसा खेल खेला, जिससे सबकुछ बदल गया। जिसका कोई कसूर नहीं था, उसे किसी ऐसे इंसान के साथ बाँध दिय...

Total Chapters (386)

Page 1 of 20

  • 1. Forced by destiny - Chapter 1 Intro

    Words: 719

    Estimated Reading Time: 5 min

    शांतनु मल्होत्रा The Famous Director and Producer. उसका खुद का प्रोडक्शन हाउस चलता है। जिसका नाम है, "STAR ANGEL MEDIA HOUSE" 

    इंडिया के बेस्ट Directors में से एक जो किसी जमाने में खुद एक उम्दा कलाकार हुआ करता था, उसकी एक्टिंग के चर्चे पूरे देश में मशहूर थी। कमाल की पर्सनैलिटी है उसकी जो किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित करने का हुनर जानता है।

    वो कुछ सालों पहले खुद एक सक्सेस्फुल actor था, हैंडसम चेहरा, उसपर उसकी ग्रे आँखे उफ्फ सामने वाले का कतल ही करने को राजी रहती थी, लड़कियों जैसे पतले गुलाबी होंठ जो किसी वक़्त पर जब मुस्कुराया करते थे, तो लड़कियां उन पर अपना दिल हार जाया करती थी।

    उसकी कातिल मुस्कान उनके दिलों पर बिजली बनकर गिरती थी पर आखिरी बार वो कब मुस्कुराया था ये तो शायद अब वो खुद भी नही जानता था उसकी बॉडी भी कमाल की है। उसकी एक झलक देखने के लिए लड़कियां दीवानी बनी उनके आगे पीछे घूमती है। मीडिया से उसकी शायद दुश्मनी है, जो वो उनके सामने जाने को कभी तैयार नहीं होता।

    आखिरी बार जब उनका मीडिया से आमना-सामना हुआ था। तब वो एक Director नहीं बल्कि एक्टर हुआ करता था। उसने आखिरी बार एक प्ले में काम किया था जो पूरे भारत में बहुत फेमस हुआ था, उसके बाद ऐसा क्या हुआ कि उसने एक्टिंग करना बिल्कुल ही बंद कर दिया ये एक राज़ है आज भी जिसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता।

    उसकी ज़िंदगी सबके लिए एक अनसुलझी पहेली जैसी है, हाँ उसके बारे में एक बात हर इंसान जानता है। वो ये उनका दिलफेक नेचर, लोगों के सामने उसकी छवि एक कैसानोवा की है पर फिल्म लाइन में ये नॉर्मल है।

    जब कभी इस बात को लेकर उनके Character पर सवाल उठाया गया तो उनके तरफ से बस एक ही ट्यूट आता था कि "खूबसूरत लड़कियों का दिल तोड़ना उसे पसंद नहीं है, इसलिए उन्हें खुश करने के लिए अपने बिजी शेड्यूल से कुछ वक़्त निकालकर उसे उन हसीनाओं के नाम कर देता है "

    Movies, Serials के अलावा उन्होंने ड्रामा और प्ले में भी सिर्फ इंडिया में ही नहीं बल्कि बाहर के देशों में भी खूब नाम कमाया है, वो भी बस पांच सालों में जो यंग्स्टर्स के लिए एक इंस्पिरेशन है।

    Mr शांतनु मल्होत्रा को लड़कियां टाइम पास लगती है। उन्हें प्यार शादी जैसे शब्दों पर विश्वास नही है, अब ऐसा क्यों है ये जानने के लिए आपको कहानी को आगे भी पढ़ना होगा।

    अब हमारे हीरो के बारे में बातें बाद मे करेंगे ज़रा अपनी हीरोइन को जान लेते है।

    आरवी, एक सीधी सादी मिडिल क्लास गर्ल।  पर उसकी खूबसूरती अद्वितीय है, जैसे भगवान ने स्वर्ग से किसी अप्सरा को नीचे उतार दिया हो। दूध सा गोरा रंग, बड़ी बड़ी सुनहरी आंखें, भरे भरे से लाल टमाटर जैसे गाल , पतले गुलाबी गुलाब की पंखुड़ियों से कोमल लब।

    बिल्कुल हुस्न की मल्लिका है, वो पर अपनी खूबसूरती पर घमंड नहीं करती वो। पापा नही है बस माँ है और उसकी ज़िंदगी का मकसद है कि वो जल्दी से जल्दी अपनी पढ़ाई पूरी करके जॉब करने लगे ताकि अपनी मां की मदद कर सके। उसकी मां घर चलाने के लिए पास ही के प्राइवेट स्कूल मे पढ़ाती है और आरवी कॉलेज के बाद ट्यूशन पढ़ा कर उसका हाथ बंटाती है साथ मे डांस क्लास भी जाती है क्योंकि उसे डांस का क्रेज़ है । प्यार के लिए इनकी ज़िंदगी में भी कोई जगह नहीं है, क्योंकि उसकी जिंदगी तो उन्होंने अपनी माँ को समर्पित की हुई है।

    वो बस अपनी माँ के साथ एक सीधी सादी जिंदगी बिताना चाहती है, सुकून भरी जिंदगी जिसके लिए वो दिन रात मेंहनत करती है। कॉलेज में कई लड़के उन्हें प्रपोज कर चुके है पर वो कभी किसी लड़के को भाव नहीं देती। आत्मनिर्भर लड़की जो बेवजह किसी के आगे झुकना पसंद नही करती, गलत काम उससे बर्दाश्त नहीं है।

    उसने अपने सिद्धांत है जिस पर वो चलती है। हा एक और खास बात है, उनके अंदर वो अपनी माँ की कोई बात नही टालती, उनके मुंह से निकली बात उनके लिए पत्थर की लकीर है जिसे वो किसी कीमत पर पार नही कर सकती। रिश्तों को गहराई से समझती है, और पूरी ईमानदारी से उसे निभाने में विश्वास रखती है।

    अब बाकी बातें आपको कहानी के साथ आगे पता चलती जाएंगी। चलिए अब शुरु करते है हमारी कहानी। 



    To be continued...

  • 2. Forced by destiny - Chapter 2 मुझे शादी नही करनी

    Words: 2851

    Estimated Reading Time: 18 min

    मालाबार हिल्स, मुंबई

    मुंबई के इस पॉश इलाके में बना संगमरमर का एक सुंदर सा मेंशन जो सफेद रंग से सराबोर था, और किसी बड़े से रियासत के शाही महल जैसा लग रहा था। जिसके बाहर के बड़े से ब्लैक गेट के दाएं तरफ ब्लैक नेम प्लेट लगी थी, जिसपर लिखा था, "शांतिवन"।

    उस बड़े से गेट से शुरू होता गलियारा अंदर वाले गेट पर जाकर खत्म होता था। गलियारे के दोनों तरफ बड़े-बड़े गार्डन बने हुए थे जिनमें अलग-अलग तरह के पेड़ पौधे लगे थे जो उस जगह की खूबसूरती को बढ़ाने का काम कर रहे थे।

    अंदर के गेट से दाएं तरफ पार्किंग एरिया था, जहाँ कई सारी महंगी-महंगी गाड़ियाँ खड़ी थीं, सब चमचमाती गाड़ियाँ एकदम नई लग रही थीं। गेट के सामने ही सुंदर और बड़ा सा फाउंटेन बना हुआ था। उस बड़े से महल में अंदर बने पूजा घर में एक औरत पूजा कर रही थी, लगभग 45-50 की उम्र लग रही थी, उनकी रेशमी साड़ी, जूड़े में बंधे बाल चेहरे पर अलग ही चमक और लबों पर प्यारी सी मुस्कान लिए वो बड़े दिल से भगवान का ध्यान कर रही थी। शायद कुछ खास मांग रही थी।

    उसी घर में एक कमरे में एक आदमी जिनकी उम्र भी उनके आस-पास की लग रही थी, वो भावहीन सा खड़ा था और सामने देख रहा था, जहाँ एक और उन्हीं की उम्र का आदमी बेड पर लेटा हुआ था, वो रूम कम और हॉस्पिटल रूम ज्यादा लग रहा था। वही पास में एक नर्स खड़ी थी। वो दोनों आदमी दिखने में एक जैसे ही लग रहे थे।

    जो आदमी खड़ा था, वो नम आँखों से दूसरे आदमी को देख रहा था। इसी घर के सबसे बड़े कमरे में एक 25 साल के आस-पास का लड़का अपने रूम में लगे बड़े से शीशे के सामने खड़ा था, और भावहीन सा अपने अक्ष को देख रहा था। दूध सा गोरा रंग, बड़ी-बड़ी काली गहरी आँखे जिनमें जाने कौनसा राज़ कैद था।

    इतनी गहरी आँखे की अगर कोई उसमें झांकने की कोशिश करे तो, बस डूबता ही चला जाए। उन काली गहरी आँखों में एक अनकहा सा दर्द और नफरत झलक रही थी।

    पतले-पतले गुलाबी लब जिसे उसने गुस्से से भिन्चा हुआ था, उस गोरे हैंडसम चेहरे पर पसीने की बुँदे ओस की बूंदों के तरह चमक रहे थे, मजबूत माश्पेशियाँ गठीला बदन जो पसीने से तर था, बहुत ही आकर्षक लग रहा था वो पर बेहद गुस्से मे भी लग रहा था, उसने ऊपर से कुछ नही पहना हुआ था, बस नीचे ब्लैक लोवर डाला हुआ था और उसकी बॉडी बड़ी ही कमाल की लग रही थी, एकदम फिट, बिल्कुल किसी एक्शन हीरो के तरह।

    जो लड़की उसे अभी देख ले वो उसपर मर मिटे इतना दिलकश लग रहा था, वो उसका किलर लुक उसपर सूट कर रहा था, जैसे ये रौब उसके लिए ही बना हो। वो खुदको एकटक शीशे में देख रहा था। तभी उसके कानों में अचानक ही एक मीठी सी आवाज़ पड़ी, "डैडी।"

    उस मिश्री सी मीठी आवाज़ के कानों में पड़ते ही उस शक्स के भाव एकदम से बदल गए, जो चेहरा अभी तक गुस्से से तमतमा रहा था, अब उसपर एक सुकून नज़र आने लगा था।

    उसके भींचे हुए लब अब हल्के से खिंच गए थे, उसने बैड पर से टॉवल उठाया और उसके अपने गर्दन पर से घुमाते हुए कंधे पर डाला और जैसे ही पीछे पलटा किसी की छोटी-छोटी बाहों ने उसके पैरों को जकड़ लिया। इसके साथ ही लड़के के लबों पर गहरी मुस्कान खेल गयी।

    उसने सर झुकाकर नीचे देखा तो एक छोटी सी नीली आँखों वाली बच्ची अपना सर उठाकर उसे ही देख रही थी। उसके जैसा ही गोरा रंग, गहरी नीली-नीली आँखे जो इस वक़्त मुस्कुरा रही थी, पतले गुलाबी प्यारे-प्यारे लब जिसपर सौम्य सी मुस्कान ठहरी हुई थी, घुटनों तक की सुंदर सी फ्रॉक पहने वो बच्ची एक सुन्दर सी परी लग रही थी।

    इतनी क्यूट की उसे देखकर किसी को भी उसपर प्यार लुटाने का जी करने लगे। वो उस आदमी के पैरों से लिपटी हुई थी, और सर उठाकर उसे बड़े प्यार से देख रही थी। उस आदमी, मतलब लड़के ने नीचे झुककर उसको अपनी गोद में उठा लिया, और प्यार से उसके गाल को चूमते हुए बोला, "गुड मॉर्निंग बच्चे।"

    "गुड मॉर्निंग डैडी," उस छोटी सी परी ने एक बार फिर अपनी खनकती आवाज़ में उसे विश किया।

    "बस गुड मॉर्निंग, आप डैडी को गुड मॉर्निंग किस्सी नही देंगी?" उस लड़के ने मुह फुलाते हुए कहा तो वो बच्ची खिलखिलाकर हंस पड़ी। उसकी निश्छल हंसी उस लड़के के लबों पर मुस्कान बनकर ठहर गयी।

    बच्ची जो की चार से पांच साल की लग रही थी, उसने उस लड़के के गाल पर किस्सी दी फिर मुस्कुराकर बोली, "अंशु ने डैडी को लव किया अब डैडी को अंशु की विश पूरी करनी होगी।"

    "बताइये क्या चाहिए हमारी प्रिंसेस को?" उस लड़के ने मुस्कुराकर सवाल किया, बदले में वो बच्ची ने सौम्य सी मुस्कान के साथ उसको देखते हुए कहा, "मम्मा।"

    उसके इतना कहते ही लड़के की मुस्कान कही गायब सी हो गयी। वो एकदम से गंभीर हो गया। वो बच्ची अपनी छोटी-छोटी आँखों को टिमटिमाते हुए बड़े आस से उसे देख रही थी, जबकि लड़के का चेहरा अब गुस्से से तमतमा उठा था, उसने लगभग चिल्लाते हुए कहा, "डैडी ने आपको कितनी बार कहा है, ना की आपके डैडी भी वही है, और मम्मा भी वही है। फिर क्यों आप बार-बार यही मांगती है। आपकी मम्मा नही है, और वो अब कभी वापिस नही आ सकती, इसलिए भूल जाइये उन्हें।"

    "क्यों मम्मा वापिस नही आएंगी? सब बच्चों की मम्मा होती है, फिर अंशु की मम्मा कहाँ है? वो बेबी के साथ क्यों नही रहती। बेबी को मम्मा चाहिए। जब तक मम्मा नही आएंगी बेबी किसी से बात नही करेगी, खाना भी नही खाएंगी और आपकी बात भी नही सुनेगी, पढ़ाई भी नही करेगी, और बहुत शरारत करेगी, सबको परेशान करेगी, और बैड गर्ल बन जाएगी," अब उस बच्ची ने भी गुस्से मे ज़िद करते हुए कहा और उसकी गोद से उतरने की कोशिश करने लगी तो लड़का तेज़ आवाज़ मे चीखा, "छाया।"

    वो इतनी तेज़ चीखा की वो बच्ची सहम गयी, उसकी नीली-नीली आँखों मे आँसू भर गए वो आँसुओं से भरी आँखों से उसे देखने लगी। कुछ ही देर मे एक 22-23 साल की लड़की दौड़ती हुई अंदर आई और घबराकर बोली, "जी भैया, क्या हुआ आप इतने गुस्से मे क्यों है?"

    "तुम्हे यहाँ इस घर मे क्यों रखा गया है?" एक बार फिर उस लड़के ने गुस्से मे सवाल किया। उसका गुस्सा देखकर छाया ने सर झुकाकर धीरे से कहा, "अंशु बेबी की देखभाल के लिए।"

    "ऐसे ख्याल रखती हो तुम उसका, वो अकेली यहाँ कैसे आई और तुम कहाँ थी?" एक बार फिर उस लड़के ने गुस्से मे सवाल किया तो माया ने सहमते हुए धीमी आवाज़ मे कहा, "मैं बड़ी माँ के साथ पूजा करवा रही थी और बेबी सो रही थी मुझे नही पता चला वो कब उठकर यहाँ आ गयी। माफ कर दीजिये भैया आगे से ऐसी गलती दोबारा कभी नही होगी।"

    "यही अच्छा होगा तुम्हारे लिए वरना मुझे तुम्हे बाहर का रास्ता दिखाने मे वक़्त नही लगेगा। याद रहे तुम यहाँ अंशु की देखभाल करने के लिए हो तो वही करो, अगर तुम्हारे काम मे ज़रा भी कमी नज़र आई तो वो दिन तुम्हारा इस घर मे आखिरी दिन होगा," छाया ने सर झुकाए हुए ही हामी भर दी तो उस लड़के ने आगे कहा,

    "अब यहाँ खड़ी-खड़ी क्या कर रही हो? लेकर जाओ अंशु को और तैयार करके लाओ इन्हे।" छाया ने हाँ मे सर हिला दिया और अंशु को लेने लगी तो अंशु आँसुओं से भरी आँखों से उसे देखने लगी।

    लड़के ने उसपर ध्यान नही दिया। छाया उसे लेकर वहाँ से निकल गयी। अंशु नम आँखों से बस पीछे खड़े अपने डैडी को देखती ही रह गयी। रूम से बाहर निकलते ही अंशु छाया के सीने से लगकर सिसकने लगी तो छाया ने एक माँ की तरह उसे अपने सीने से लगाकर पुचकारते हुए बड़े प्यार से कहा,

    "बस बेबी इतना नही रोते। आपको कितनी बार कहा है भैया के सामने वो बात मत किया कीजिये। फिर क्यों आप हर बार उनसे वही कहती है, हर बार वो आपकी मम्मा का ज़िक्र होते ही गुस्सा हो जाते है और फिर आप रोने लगती है।"

    "आंटी डैडी मम्मा के बारे मे बोलने पर इतना गुस्सा क्यों करते है?" अंशु ने सिसकते हुए ही सवाल किया जिसे सुनकर छाया खामोश रह गयी आखिर क्या जवाब देती उस बच्ची को उसके सवाल का? जब वो खुद वजह नही जानती थी कि जिस बच्ची मे उसके भैया की जान बसती है उसकी माँ का ज़िक्र होते ही वो इतना नाराज़ क्यों हो जाते है। वो बस अंशु को चुप करवाने लगी।

    वो लड़का अब भी गुस्से मे वही खड़ा था। उसने अपनी आँखे बन्द की तो उसकी कानों मे एक आवाज़ गूंजने लगी, "मुझे ये बच्चा नही चाहिए। न मेरा तुमसे कोई रिश्ता है और न ही इस बच्चे से। मैं तुम्हारे लिए अपनी ज़िंदगी बर्बाद नही कर सकती इसलिए तुमसे दूर जा रही हूँ। रही बात इस बच्चे की तो इसे मैं इस दुनिया मे लाकर अपनी लाइफ, अपना फ्यूचर बर्बाद नही कर सकती इसलिए इसे मैं अबोर्ट करवा दूँगी।"

    उस लड़के के कान गुस्सेसे लाल हो गए, उसने अपनी मुट्ठिया कस ली, आँखे खोली तो वो लावे के तरह धधक रही थी। उसने गुस्से मे दांत पीसते हुए कहा, "तुम जैसी घटिया और गिरी हुई औरत की परछाई भी मैं अपनी बेटी पर नही पड़ने दूंगा। वो मेरी बेटी है... शांतनु मल्होत्रा की बेटी अंशिका शांतनु मल्होत्रा, उसका तुमसे कोई रिश्ता नही है। मैं तुम्हे कभी उसतक पहुँचने नही दूंगा।"

    "कब तक रोक सकेंगे आप उन्हें? उस औरत से आपको नफरत है और आपके पास उसकी वजह भी है, हम आपके फैसले से सहमत भी है कि वो इस लायक नही की उन्हें अंशिका की असलियत पता चले। पर आप उनके गुनाहों की सज़ा उस मासूम सी बच्ची को क्यों दे रहे है? जो हुआ उसमे उनकी क्या गलती है?

    क्यों वो मासूम सी बच्ची इतनी सी उम्र मे इतनी बड़ी सज़ा भूगत रही है? आप तो उनपर अपनी जान छिड़कते है फिर उनकी आँखों मे आँसू देखकर भी पत्थर बने कैसे रह जाते है? क्या आपको उनकी उदासी नज़र नही आती? भले ही आप उनसे बहुत प्यार करते है लेकिन आप कभी उनकी ज़िंदगी मे उनकी माँ की कमी को पूरा नही कर सकते। क्योंकि एक माँ की जगह कोई नही ले सकता।

    आप उस औरत से कोई सम्बन्ध नही रखना चाहते पर उनके लिए एक अच्छी सी माँ लाने के बारे मे तो सोच सकते है न? हमने आपको इतनी बार कहा कि अब तो शादी कर लीजिये पर आप कभी हमारी सुनते ही नही है। हमारे लिए न सही अंशु के लिए ही शादी कर लीजिये, हमें बहु और उन्हें माँ मिल जाएगी।"

    ये अर्पिता जी है। शांतनु की बड़ी माँ जो पूजा कर रही थी पर उसके चिल्लाने की आवाज़ सुनकर ऊपर आ गयी थी। उनकी आवाज़ सुनकर शांतनु ने उन्हें देखा पर उसके भाव नही बदले। जैसे ही वो चुप हुई शांतनु ने गुस्से मे कहा,

    "आप जानती है बड़ी माँ मैं कभी शादी नही कर सकता। अब मुझे प्यार शादी जैसे शब्दों पर विश्वास नही है, ये शब्द बस एक धोखा है। मेरी ज़िंदगी मे किसी धोखेबाज़ लड़की के लिए कोई जगह नही है। आज कल की लड़कियों का कोई ईमान होता ही नही है जहाँ पैसा मिले वो उसी की बाहों मे समाने को तैयार हो जाती है।

    कोई रिश्ते की बंदिश उन्हें रोक नही सकती। मुझे ऐसी किसी लड़की को अपनी ज़िंदगी मे शामिल करके अपनी ज़िंदगी बर्बाद करने का कोई शौक नही है। और रही बात अंशु के लिए माँ लाने की तो जब जिस औरत ने उसे जन्म दिया वही उसकी माँ नही बन सकी तो कोई और औरत अगर इस घर मे आ भी जाती है तो क्या गैरेन्टी है कि वो अंशु की ज़िंदगी मे माँ की कमी को पूरा कर पाएगी।

    आज मैं जहाँ हूँ, कोई भी लड़की मुझसे शादी करने को तैयार हो जाएगी पर वो सिर्फ मेरे लूकस और मेरे पैसों के लिए मुझसे जुड़ेगी। मैं आज आपसे भी आखिरी बार कह रहा हूँ, दोबारा शादी करने की बात मत कीजियेगा मुझसे।"

    वो अब मुड़कर जाने लगा। वो बाथरूम मे जाने ही वाला था कि अर्पिता जी ने पीछे से कहा, "आपकी ये सोच बदलने के लिए कोई न कोई लड़की ज़रूर बनाई होगी भगवान ने जो आपको इस बात का एहसास दिलाएगी की दुनिया मे सभी लड़कियाँ राधिका जैसी धोखेबाज नहीं होती और खून के रिश्तों से ज्यादा ज़रूरी दिल के रिश्ते होते है।

    बहुत जल्द ऐसी लड़की आपकी ज़िंदगी मे आएगी। हमें अपने भगवान पर पूरा विश्वास है, वो जल्दी ही इस घर मे ऐसी बहु भेजेंगे जो आपके दिल से इस नफरत को निकालकर आपको फिरसे प्यार करना सिखा देती। जो अंशु को माँ का प्यार देंगी जिसके लिए वो आज तक तरसती आ रही है। वही वो लड़की होंगी जो हमारे घर को एक बार फिर खुशियों के रंगो से सजा देगी।"

    "ख्वाब अच्छा है बड़ी माँ पर ये कभी हकीकत नही बन सकता। लड़कियाँ सिर्फ घरों को तोड़ने के लिए होती है और मैं ऐसी किसी लड़की को कभी इस घर मे नही आने दूंगा जो एक बार फिर मेरे परिवार को बिखेरकर रख दे। सालों पहले एक लड़की ने इस परिवार को टुकड़ों मे तोड़ दिया था जिन्हें आजतक मैं जोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ।

    ज़िंदगी मे औरत नाम की चीज़ से इतने धोखे खाए है कि अब औरत शब्द से भी मुझे नफरत है। अगर आप नही होती तो शायद औरत के सबसे सम्मानीय रूप से भी मुझे नफरत हो चुकी होती। इस दुनिया मे औरत का हर रूप सिर्फ और सिर्फ मर्द को धोखा देने के लिए ही बना है।

    चाहे वो प्रेमिका बने या पत्नी वो सिर्फ मर्द को तोड़ने का काम करती है। यहाँ तक कि माँ के रूप मे वो अपने स्वार्थ की पूर्ति ही करती है और अपनी खुशी के लिए ऐसे हर रिश्ते तो तोड़कर जाने से पहले वो एक बार भी नही सोचती। औरत के हर रूप से धोखा खा चुका हूँ मैं अब वही गलती दोबारा कभी नही करूँगा। आपको अपने भगवान पर विश्वास है और मुझे खुदपर।

    अब जो शान आपके सामने खड़ा है वो पांच साल पहले वाला शान नही है। जिसकी अच्छाई का फ़ायदा उठाकर लोग उसे छोड़ जाया करते थे। अब जो शान आपके सामने खड़ा है उसको धोखा देने की हिम्मत किसी के अंदर नही है और अब मुझे लोगों के धोखो से बचना भी आता है और ऐसे धोखेबाज लोगों को सबक सिखाना भी आता है।"

    इतना कहकर वो बाथरूम मे घुस गया। अर्पिता जी नम आँखों से बाथरूम के बंद गेट को देखते हुए बोली, "कैसे समझाए हम आपको कि पांचो उंगलियाँ बराबर नही होती। एक बार आपको धोखा मिला इसका मतलब ये नही कि आप किसी को अपनी ज़िंदगी मे आने ही ना दे। अकेले ज़िंदगी नही काटी जाती बेटा।

    आप भले ही कुछ भी कहे पर हमे हमारे भगवान पर पूरा विश्वास है। उन्होंने आपके लिए ऐसी लड़की ज़रूर बनाई होगी जो आपको फिरसे जीना सिखा सकेगी, जो आपके दिल से इन कड़वी यादों को मिटाकर उन्हें अपने प्यार के मीठे एहसासों से भर देगी। बस अब महादेव जल्दी से आपकी ज़िंदगी मे उस लड़की को भेज दे जो आपको और अंशु को संभाल ले।"

    वो भगवान से प्रार्थना करते हुए वहाँ से चली गयी। कुछ देर बाद शान ऑफिस जाने के लिए तैयार होकर नीचे पहुँचा। वाइट शर्ट पर ब्लैक थ्री पीस सूट, गले मे टाई, कलाई पर उसकी परस्नैलिटि के पर सूट करती महँगी ब्रैंडेड वॉच, पैरों मे बुट्स, सलीके से सेट किये बाल और रौबदार चेहरा, उसका औरा ही कुछ अलग था।

    कमाल की परस्नैलिटि थी उसकी और अब तो एकदम बिज़नेसमैन के रूप मे वो और भी ज्यादा हैंडसम लग रहा था। वो डाइनिंग एरिये मे पहुँचा तो वहाँ एक आदमी पहले ही बैठे हुए थे वो भी एकदम फिट थे। शान को देखकर वो मुस्कुराए, शान भी मुस्कुराकर उनके सामने वही चेयर पर बैठते हुए बोला, "गुड मॉर्निंग बड़े पापा।"

    "गुड मॉर्निंग बेटा जी। बड़े दिनों बाद नज़र आ रहे हो, सब ठीक है? और आपका काम कैसा चल रहा है?" उन्होंने मुस्कुराकर सवाल किया बदले मे शान ने भी बड़े आराम से अदब से जवाब दिया, "जी बड़े पापा कुछ वक़्त से काम का लोड बढ़ा हुआ था, न्यू प्रोजेक्ट शुरू करना है उसी की कास्टिंग और बाकी सबकी तैयारी में लगा हुआ था।

    आप बताइये आपका सोशल वर्क कैसा चल रहा है। जल्दी ही मेयर के इलेक्शन होने वाले है और मैं चाहता हूँ की इस बार टिकट आपको मिले और जीत भी आपकी हो, मेरे सबसे बड़े दुश्मन की हार के लिए आपका जीतना बहुत ज़रूरी है।"

    वो अब एकदम गंभीर लग रहा था। उसकी बात सुनकर सुयश जी ने भी गंभीरता से जवाब दिया, "हमारी सालों की मेहनत अब रंग लाने वाली है। सालों से समाज की सेवा के मे लगे हुए है, पार्टी मे भी हमारी अच्छी पहचान बन गयी है इस बार टिकट भी हमें मिलेगा और जीत भी हमारी होगी, आप इस बात से निश्चिंत रहिये।"

    उनकी बात सुनकर शान के लबों पर शातिर मुस्कान फैल गयी।

    To be continued...

    आगे की स्टोरी नेक्स्ट चैप्टर में। तब तक कॉमेंट करके बताइये की शुरुआत कैसी लगी आपको?

  • 3. Forced by destiny - Chapter 3 मम्मा चाहिए

    Words: 2869

    Estimated Reading Time: 18 min

    शान अब एकदम गंभीर लग रहा था। उसकी बात सुनकर सुयश जी ने भी गंभीरता से जवाब दिया, "हमारी सालों की मेहनत अब रंग लाने वाली है। सालों से समाज की सेवा के में लगे हुए है, पार्टी में भी हमारी अच्छी पहचान बन गयी है इस बार टिकट भी हमें मिलेगा और जीत भी हमारी होगी, आप इस बात से निश्चिंत रहिये।"

    शान के लबों पर शातिर मुस्कान फैल गयी। ठीक इसी वक़्त वहाँ अर्पिता जी ने कदम रखा तो दोनों चुप हो गए।

    अर्पिता जी ने शान को घूरते हुए कहा, "आपने उन्हें डाँटा अब जाकर मनाइये उन्हें। नाराज़ है आपसे और अब न यहाँ आने को तैयार है, न ही खाने के तैयार है। ज़िद पर अड़ी हुई है, कह रही है कि जब तक उनके डैडी उनकी मम्मा को नही ले आते, वो न तो कुछ खाएंगे न ही किसी से बात करेंगी।"

    "आप डैड को देख लीजिये, उन्हें खाना खिलाकर दवाई खिला दीजिये, हमारी प्रिंसेस को कैसे मनाना है ये हम देख लेंगे।" शान उठकर खड़ा हो गया।

    अर्पिता जी तो उनसे नाराज़ थी उन्होंने मुँह बनाते हुए हामी भरी तो शान वहाँ से उठकर चला गया। अब अर्पिता जी ने सुयश जी के तरफ निगाहें घुमाई और नाराज़गी से बोली, "आप उन्हें कुछ समझाते क्यों नही है? वो तो ज़िद पर अड़े हुए है की अपनी ज़िंदगी बर्बाद करके ही रहेंगे और आप भी उनका साथ देते है, उनको रोकने के जगह उनको बढ़ावा देते है।

    क्या मिलेगा इस दुश्मनी को निभाकर? सालों पहले जो हुआ उसके बाद हमने बड़ी मुश्किल से अपने परिवार को संभाला है, हम इसे दोबारा बिखरते नही दे सकते। वो इस दुश्मनी मे खुदको भुलाए बैठे है, आज भी उनकी ज़िंदगी वही अटकी हुई है यहाँ आर्यन उन्हें छोड़कर गए थे। ऐसे तो वो अपनी सारी ज़िंदगी इस दुश्मनी को निभाने मे ही बर्बाद कर देंगे। उन्हें तो न अपनी ज़रूरत दिखती है न ही उस मासूम सी बच्ची के आँसू नज़र आते है।

    हम तो उन्हें कह कहकर थक गए है पर वो हमारी सुनते ही नही है, एक बार आप कहिये न उनसे की शादी करले, उन्हें एक साथी मिल जाएगा जो उन्हें जीना सिखा देगी और अंशिका को एक मां मिल जाएगी। हम सारी ज़िंदगी तो नही रहेंगे उनके साथ, अभी तो हम संभाल लेते है अंशिका को पर अगर कल को हमें कुछ हो गया तो कौन संभालेगा हमारी बच्ची को?"

    अर्पिता जी की आँखे झिलमिला गयी, गला भर आया तो वो खामोश हो गयी। माहौल गंभीर हो गया था। सुयश जी खड़े हुए और उन्हें चेयर पर बिठाते हुए बोले, "आप बेवजह ही परेशान हो रही है। जानती है न वो कितने ज़िद्दी है, बचपन से ही तो ऐसे है जब तक वो जो करना चाहते है वो कर न ले वो पीछे नही हटते और वो कुछ गलत नही कर रहे तो हम उनका साथ ज़रूर देंगे और फिर वो किसी गलत रास्ते पर भी नही चल रहे है। अन्याय के खिलाफ लड़ना गलत तो नही है।

    आप उनकी चिंता छोड़ दीजिये, हमें महादेव पर पूरा विश्वास है वो उनके लिए एक सुलझी हुई समझदार लड़की भेजेंगे जो उन्हें फिरसे जीना सिखा देगी और उन्हें जब शान की ज़िंदगी मे आना होगा वो खूद ब खूद ही उन तक पहुँच जाएंगी और हमें पता भी नही चलेगा, तब तक के लिए हम तो है ही उनके पास।

    अभी अगर हम उन्हें शादी के लिए कहते भी है तब भी वो नही मानेंगे इसलिए हमने सब वक़्त पर छोड़ा हुआ है क्योंकि वक़्त से बलवान और कोई नही है। जब जो होना होता है हो ही जाता है उसे कोई रोक नही सकता। चलिए अब रोना बन्द कीजिये और पानी पीजिये।"

    उन्होंने उन्हें पानी पिलाया, अब वो कुछ शांत हो गयी थी। अर्पिता जी ने ट्रे मे खाने की प्लेट और जूस का ग्लास रखा और वहाँ से चली गयी। सुयश जी अब शान के आने का इंतज़ार करने लगे।

    वही शान वहाँ से निकलकर उपर वाले फ्लोर पर पहुँचा, उसके कमरे के बगल वाले कमरे के गेट पर पहुँचकर उसके कदम रुक गए। उसने कुछ सेकंड बाद दरवाजा खोला और अंदर बढ़ गया।

    अंदर जाकर देखा तो अंशिका बेड पर मुँह फुलाए बैठी थी पर वो अब भी बेहद क्यूट लग रही थी, उसके सुनहरे कर्ली बाल खुले हुए थे और कमर तक लहरा रहे थे जिनमें से कुछ छोटे-छोटे बाल उसके प्यारे से चेहरे पर आकर उनकी खूबसूरती को बढ़ा रही थी। दोनों गाल गुब्बारे जैसे फुले हुए थे और वो आलती पालती मारकर बेड के बीचों बीच बैठी हुई थी, दोनों हथेलियों को अपने गालों पर रखा हुआ था। उसके बगल मे ही छाया बैठी थी और परेशान सी उसे कुछ समझा रही थी।

    शान को देखते ही वो चुप हो गयी, वही अंशिका ने उसे देखकर नाराज़गी से मुँह घुमा लिया।

    "भैया मैंने बहुत समझाया पर अंशु नही मान रही, ज़िद पर..... " छाया ने शान को देखकर इतना कहा ही था कि शान ने उसके तरफ नज़रें घुमाई और आँखों से ही बाहर जाने का इशारा कर दिया तो वो बाहर चली गयी।

    शान आकर अंशिका के पास बैठ गया पर अंशिका ने उसे देखा तक नही, यूँही मुँह फुलाए बैठी रही। शान ने उसके गाल पर से उसकी हथेली हटाई तो उसने वापिस रख लिया। उसने दो तीन बार यूँही किया पर अंशिका नही मानी तो शान ने उसको घूरते हुए कहा, "तो आप नही मानेंगी?"

    "नही," अंशिका ने तुरंत ही अकड़ते हुए जवाब दिया, आखिर वो थी तो अपने डैडी की ही बेटी हर मामले मे उसी पर गयी थी। उसकी अदा पर शान मुस्कुरा उठा, उसने उसको उठाकर अपनी गोद मे बिठा लिया तो अंशिका उससे छूटने के लिए छटपटाने लगी पर शान ने उसको कसके अपनी बाहों मे भरते हुए कहा, "हमारी प्रिंसेस तो आज कुछ ज्यादा ही नाराज़ हो गयी अपने डैडी से।"

    "हाँ बेबी डैडी से Too Much Angry है। डैडी बेबी को डांटते है, बेबी की विश भी पूरी नही करते। बेबी को मम्मा चाहिए, सब बेबी की मम्मा होती है बस अंशु की मम्मा नही है। अंशु को भी मम्मा चाहिए पर डैडी मम्मा को नही लाते इसलिए बेबी डैडी से नाराज़ है और अब बेबी डैडी से तब तक नाराज़ रहेगी जब तक डैडी मम्मा को लेकर नही आते। बेबी डैडी से बात भी नही करेगी," अंशिका ने मुँह फुलाए हुए ही कहा और उसकी गोद से उतरने लगी तो शान ने उसके गाल पर अपने चेहरे को रगड़ते हुए कहा, "अच्छा तो आप सच मे डैडी से नाराज़ है? दोबारा कहिये तो ज़रा, कितना नाराज़ है आप डैडी से?"

    उसकी हल्की बियर्ड्स थी जिसके चुभने पर अंशिका उससे दूर हटते हुए बोली, "नो डैडी... आपकी दाढ़ी बेबी को चुभ रही है।"

    "पहले बोलिये कितना नाराज़ है आप डैडी से?" शान ने अब उसके पेट पर अपने सर को रगड़ते हुए सवाल किया तो अंशिका गुदगुदी होने से खिलखिलाकर हँसने लगी और हँसते हुए बोली, "नो डैडी That's चीटिंग।"

    "Everything is fair in love and war My love ," शान ने उसको गुदगुदी करते हुए कहा तो अंशिका ने लंबी लंबी साँसे लेते हुए कहा, "Please डैडी नो।"

    "पहले कहिये अब भी आप डैडी से नाराज़ है?" शान का सवाल सुनकर अब अंशिका ने हँसते हुए कहा, "नो डैडी...बेबी डैडी से नाराज़ नही है।"

    उसके इतना कहते ही शान ने उसे छोड़ दिया, अंशिका बेड पर पड़ गयी और गहरी गहरी साँसे लेने लगी तो शान ने उसको अपनी गोद मे बिठाया फिर उसको पानी पिलाने लगा।

    कुछ देर मे अंशिका नॉर्मल हुई तो उसने फिरसे मुँह फुलाकर कहा, "डैडी cheater है। बेबी डैडी से बात नही करेगी।"

    "जान डैडी आपसे बहुत प्यार करते है। आप जानती है आपसे ज्यादा ज़रूरी उनके लिए और कुछ भी नही है पर डैडी आपकी ये विश पूरी नही कर सकते। आपके डैडी आपसे इतना प्यार करते है फिर भी आपको मम्मा चाहिए होती है। आपको डैडी से बिल्कुल भी प्यार नही है न? आपको अपनी मम्मा के पास जाना है पर अगर आपको मम्मा मिलेगी तो डैडी नही मिलेंगे। अब बोलिये क्या आपको अब भी मम्मा चाहिए?" शान अब एकदम गंभीर हो गया था।

    अंशिका नम आँखों से उसे देखने लगी, वो उसकी बातों से इतना तो समझ गयी थी कि अगर मम्मा मिलेगी तो वो डैडी को खो देगी। वो शान के सीने से जा लगी और सुबकते हुए बोली, "नो डैडी बेबी को मम्मा नही चाहिए। बेबी को डैडी के साथ रहना है। बेबी डैडी से बहुत सारा लव करती है, अबसे बेबी कभी मम्मा को लाने नही कहेंगी, बस आप बेबी को छोड़कर मत जाना।"

    "आप तो डैडी की जान है, आपको छोड़कर डैडी कहा जाएंगे? चलिए चुप हो जाइये आप तो ब्रेव डैडी की ब्रेव daughter है न। चलिए रोना बंद करिये, आपके दादू आपका इंतज़ार कर रहे है।" उसने बड़े प्यार से उसके आँसुओं को साफ किया फिर उसे गोद मे उठाकर बाथरूम मे चला गया।

    कुछ देर मे उसका मुँह धुलवाकर बाहर लाया और नीचे चला गया। नीचे के फ्लोर पर सीढ़ियों के बाद के दो कमरे छोड़कर जो कमरा था दोनों वहाँ पहुँचे जैसे ही उन्होंने अंदर कदम रखा अर्पिता जी पर उनकी नज़र चली गयी जो वही लगे बैड के पास खड़ी थी।

    वहाँ एक आदमी बेड पर बैठे हुए थे बिल्कुल शान जैसी शक्ल सूरत बस थोड़ा रंग मलीन (डाउन) हो गया था, थोड़े कमज़ोर लग रहे थे। जैसे सालों से बीमार हो।

    ये सुभाष जी है शान के डैड और सुयश जी के छोटे भाई। सालों पहले एक कार एक्सीडेंट मे उनका आधा शरीर पैरालाइज् हो गया था, कमर से नीचे का हिस्सा काम नही करता था, खुदसे उठ बैठ नही पाते थे, इसलिए ज्यादातर उनके पास नर्स और एक नौकर रहा करता था। शान ने उनके इलाज मे कोई कमी नही छोड़ी थी पर कभी कोई इंप्रुवमेंट ही नही हुई उनकी हालत मे। उनका इलाज घर पर ही होता था बड़े से बड़े डॉक्टर घर आते थे।

    वो ज्यादातर इसी कमरे मे रहते थे, कही भी बाहर जाने से इंकार कर देते थे। उदास से बैठे रहते थे, किसी से ज्यादा बात नही करते थे, खामोश रहते थे जैसे दिल मे बहुत बड़ा दर्द जफ्त किया हुआ हो, जीने की इच्छा ही बाकी नही थी उनमे पर शान के लिए ज़िंदा थे। एक अंशिका ही थी जिसके साथ वो खुश हो जाया करते थे।

    ज्यादातर अंशिका उनके साथ ही रहती थी, वो अंशिका को ड्राविंग करवाते, स्टोरीज सुनाते, इसी बीच वो नॉर्मल रहते थे जिससे सबको सुकून मिलता था। शान उनसे मिले बिना घर से बाहर नही जाया करता था। उनको खुद ही खाना खिलाता फिर दवाई खिलाता क्योंकि वो किसी और से दवाई नही खाते थे।

    आज भी यही हो रहा था। अर्पिता जी ने उन्हें खाना खिलाया पर दवाई के नाम पर सुभाष जी ने दवाई खाने से इंकार कर दिया। शान के वहाँ आते ही अर्पिता जी ने उसे देखते हुए कहा, "अच्छा हुआ तुम आ गए। भैया दवाई नही खा रहे अब तुम ही देखो इन्हें।"

    शान उनके पास आ गया। उनके हाथ से दवाई ली और ग्लास लेकर दवाई सुभाष जी के आगे बढ़ा दिया तो उन्होंने चुपचाप दवाई ली और खाकर ग्लास वापिस उसे दे दिया।

    अर्पिता जी ये देखकर मुस्कुरा कर बोली, "तुम्हे देखकर ही भैया ने दवाई खा ली। चलो अच्छा है किसी की तो सुनते है भैया। अब तुम इनसे बात करो, मैं खाना लगाती हूँ, जल्दी बाहर आ जाना।"

    शान ने हाँ मे सर हिला दिया, वो बाहर चली गयी। शान ने अंशिका को नीचे उतारा तो वो बेड पर चढ़ गयी और जाकर उनकी गोद मे बैठ गयी। उसे देखकर सुभाषजी हल्का सा मुस्कुरा दिये। शान ने अब उनके पास बैठते हुए कहा, "डैड आप क्यों किसी से दवाई नही लेते? ऐसे आप कैसे ठीक हो पाएंगे?"

    उसकी आवाज़ मे उनके लिए परवाह और फिक्र झलक रही थी। उसकी बात सुनकर सुभाष जी ने उसे देखा और मायूस होकर बोले, "हम जीकर क्या करेंगे बेटा? हमारे जीने की वजह तो सालों पहले हमें छोड़कर जा चुकी है अब तो बस इंतज़ार है कि इस देह से और इस संसार के बंधनों से हमें आज़ादी मिल जाए।"

    "आप ऐसी बातें क्यों करते है डैड? क्या मैं आपका कुछ नही लगता? क्या आप मेरी खुशी के लिए ठीक नही हो सकते? सब डॉक्टर यही कहते है कि आप ठीक होना ही नही चाहते। जबतक आपकी इच्छा शक्ति साथ नही देगी आपका ठीक होना नामुमकिन है। मैं अपने डैड को फिरसे उनके पैरों पर खड़े होते, बिना सहारे के चलते देखना चाहता हूँ। क्या आप अपने बेटे के लिए इतना नही कर सकते? मेरी खुशी के लिए ठीक हो जाइये।"

    शान की आँखों मे नमी तैर गयी थी जिसे उसने अंदर ही सुखा लिया। उसकी बातों से सुभाष जी भावुक हो उठे उन्होंने भारी गले से कहा,

    "हम बहुत बुरे बाप है न? जब बाप बेटे को संभालता है तबसे आप हमें संभाल रहे है। हमने अपनी किस्मत के दुखो को आपके नसीब से जोड़ दिया। पर हम क्या करे, हम आपके लिए कुछ नही कर सकते। आप चाहते है की हम फिरसे पहले जैसे हो जाए पर बेटा ये नामुमकिन है, हमारी ज़िंदगी थी और अपने साथ साथ वो हमारे जीने की चाह को भी ले गयी। अब ये जीवन बोझ लगता है हमें।"

    "आप फिरसे वही बात लेकर बैठ गए, भूल जाइये न सब। जिनके लिए आप अपनी ज़िंदगी कुर्बान कर रहे है वो तो आपको सालों पहले छोड़ गयी, अब तो वो सुकून से अपनी ज़िंदगी बिता रही होंगी।... वो मेरी माँ नही थी डैड जिन्होंने मेरे डैड को धोखा दिया अपने आठ साल के बच्चे को छोड़कर चली गयी, किसलिए सिर्फ पैसों के लिए, वो मेरी क्या किसी की भी माँ कहलाने के लायक नही है।

    जब वो आपको भुलाकर अपनी ज़िंदगी जी रही है तो आप क्यों उनकी याद मे आज तक खुदको तड़पा रहे है? वो हमारी कोई नही लगती। मेरे लिए आप है और आपके लिए आपका बेटा। मेरे लिए ठीक हो जाइये please" शान का चेहरा दर्द से सराबोर था, वही सुभाष जी की आँखों मे नमी तैर गयी थी उन्होंने अंशिका को गोद से उतारते हुए कहा, "बाहर जाइये हमें अकेला रहना है।"

    वो खुदसे ही लेटने लगे तो शान ने उन्हें अच्छे से लिटाया फिर अंशिका को देखा जो अपनी नीली नीली आँखों से उसे ही देख रही थी क्योंकि उसे तो कुछ समझ ही नही आ रहा था।

    शान ने उसे अपनी गोद मे उठा लिया, सुभाष जी को देखा जो उसके तरफ पीठ किये लेटे थे और फिर मायूस होकर बाहर निकल गया।

    डाइनिंग एरिये मे जाकर वो खामोशी से अपनी चेयर पर बैठ गया। उसने अंशिका को खाना खिलाया पर एक शब्द नही बोला तो दोनों समझ गए कि अंदर क्या हुआ होगा। क्योंकि हरकुछ दिनों मे यही होता था। जब भी इस बात पर सुभाष जी और शान की बात होती तो यही होता था। उसका मूड ठीक करने के लिए अर्पिता जी ने मुस्कुराकर कहा, "हम आप दोनों को कुछ बताना तो भूल ही गए।"

    "क्या बताना भूल गयी आप? हमें भी पता चले कि ऐसी कौनसी बात है जिसे बताते वक़्त आप इतना खुश हो गयी है," सुयश जी ने मुस्कुराकर सवाल किया तो अर्पिता जी ने शान को देखा वो भी उन्हें भी देख रहा था। अब उन्होंने आगे कहा,

    "कल हम छाया के साथ मार्केट गए थे। वहाँ हमें हमारी कॉलेज की फ्रेंड मिली। उनकी बेटी की शादी है चार दिन बाद और उन्होंने हमें सह परिवार आमंत्रित किया है। हम तो सोच रहे है बहुत अच्छा मौका है।

    सालों बाद हमें हमारी दोस्त मिली है तो हम तो शादी के हर फंक्शन मे शामिल होना चाहते है इसी बहाने अपनी दोस्त के साथ वक़्त भी बिता लेंगे और उसकी मदद भी करवा देंगे। वो अकेली है ना, उसके पति की एक हादसे मे मौत हो गयी है है, तो उसे सब अकेले संभालना पड़ रहा है। हम रहेंगे तो उन्हें सहारा मिल जाएगा। आप दोनों क्या कहते है?"

    अब उन्होंने दोनों को देखा तो सुयश जी ने मुस्कुराकर कहा, "ये तो आपने बहुत अच्छा सोचा है, बेटी की शादी है तो बहुत काम होगा, उन्हें आपकी मदद की ज़रूरत होगी। हम तो कहते है आप कुछ नौकरों को भी ले जाइयेगा और अगर पैसों की ज़रूरत हो तो भी उनकी मदद कर दीजियेगा। वैसे कबकी है शादी?"

    "कल हल्दी है, फिर अगले दिन मेहंदी और लेडिज़ संगीत और फिर शादी। हम सोच रहे थे की शादी मे हम सब चलेंगे उसे अच्छा लगेगा," अर्पिता ने मुस्कुराकर जवाब दिया।

    शान अब तक बिना किसी भाव के सब सुन रहा था अब उसने उनकी बात खत्म होते ही झट से कहा, "बड़ी माँ आप और बड़े चले जाइयेगा।

    मेरे पास वक़्त नही है और वैसे भी मैं वहाँ जाकर क्या करूँगा? मैं अंशिका के साथ रुक जाऊंगा। मैं नही चाहता अभी वो दुनिया की नजर मे आए इसलिए वो कही बाहर नही जाएगी।"

    "ठीक है बेटा पर आप कब तक उन्हें घर मे रखेंगे? वो अब बड़ी हो गयी है उन्हें स्कूल तो जाना होगा। क्या आप उनका एडमिशन नही करवाएंगे?" अब सुयश जी ने उससे सवाल किया तो शान ने अंशिका को देखते हुए कहा, "अभी एडमिशन मे टाइम है मैं तब तक कुछ सोच लूंगा। आप दोनों खाना खाइये, मेरी फाइनेंशियर्स के साथ मीटिंग है तो मुझे जाना होगा।" इतना कहकर शान ने अंशिका के माथे के चूम लिया, उसे ध्यान रखने का कहा फिर छाया को कुछ इशारा किया और वहाँ से निकल गया।


    To be continued...

    आगे की स्टोरी अगले चैप्टर में।

  • 4. Forced by destiny - Chapter 4

    Words: 2283

    Estimated Reading Time: 14 min

    शान बात को टालकर वहाँ से चला गया। कुछ देर मे सुयश जी भी निकल गए। छाया अंशिका को लेकर सुभाष जी के कमरे मे चली गयी।


    अंशिका उनके पास जाकर बैठ गयी और अपनी मीठी मीठी आवाज़ मे बड़े प्यार से बोली, "दादू बेबी आई है। बेबी को स्टोरी सुननी है आप बेबी को स्टोरी सुनाएंगे?"

    उसकी आवाज़ मे ऐसी मोहनी थी कि कोई भी उसके तरफ खिंचा चला आए। सुभाष जी के कानों मे जैसे ही उसकी मीठी सी आवाज़ पड़ी उन्होंने अपनी आँखे खोल दी। आँखे खोलते ही आँखों के सामने उसका प्यारा सा चेहरा आ गया तो उनके लब मुस्कुरा उठे।

    "आ गयी हमारी गुड़िया। दादू आपका ही इंतज़ार कर रहे थे। आज दादू आपको एक स्पेशल कहानी सुनाएंगे।"

    उनकी बात सुनकर अंशिका एकसाइटेड हो गयी। नर्स ने उन्हें बिठाया तो अंशिका उनकी गोद मे बैठ गयी और वो बड़े प्यार से उसे कहानी सुनाने लगे। छाया वही बैठी लबों पर मुस्कुरा सजाए उन्हें देख रही थी।

    अंशिका इस घर के हर शक्स की जान थी, सबको मुस्कुराने की वजह दे दिया करती थी, खासकर सुभाष जी, जो कभी मुस्कुराते नही थे वो उसे देखकर खुश हो जाया करते थे।

    अर्पिता जी ने छाया को यहाँ अंशिका और सुभाष जी का ध्यान रखने को कहा और खुद निकल गयी अपनी दोस्त के घर के लिए।


    बांद्रा वेस्ट मुंबई

    इसी एरिये मे एक घर था, थ्री बेड रूम और टू फ्लोर का वो घर ना तो ज्यादा बड़ा था, ना ही ज्यादा छोटा था, और फिल्हाल उसे बड़ी ही खूबसूरती से सजाया गया था। पूरा घर मेहमानों से भरा हुआ था सजावट का काम चल रहा था। एक तरफ हलवाई मिठाईयाँ बनाने मे लगे थे।

    घर के आंगन को पीले और हरे रंग के पर्दों और पीले फूलों से बड़ी ही खूबसूरती से सजाया गया था। सीढ़ियों के दाएं तरफ दीवान से स्टेज जैसा बनाया गया था, जिसके ऊपर फूलों से बना झूमर लटक रहा था, फूलों की लड़ियों से सजा वो स्टेज बेहद खूबसूरत लग रहा था, उसके दाएं तरफ ढोलकी वाली ढोलक बजा रही थी। साथ ही हल्की के गीत गाए जा रहे थे। स्टेज के पर ही दीवान के सामने एक टेबल लगाया हुआ था उसपर हल्दी मे प्रयोग की जाने वाली सभी सामग्री बड़े ही सलीके से रखी हुई थी।

    मेहमान यहाँ से वहाँ काम कर रहे थे उन्ही के बीच एक औरत जिसने सफेद रंग की साड़ी पहनी हुई थी वो यहाँ से वहाँ भागते हुए सब काम देख रही थी। सीढ़ियों से ऊपर जाने पर दाएं तरफ जो कमरा था उसमें इस वक़्त एक पीले फ्लोरल प्रिंट के लहंगे चोली को पहने एक लड़की बैठी थी। दूध सा गोरा रंग उसपर पीला रंग बहुत खिल रहा था, कमर तक लहराते कर्ली सुनहरे बाल, जिनकी कुछ कर्ली लटें उसके गालों पर अटखेलियाँ दिखा रहे थे।

    काजल से सनी भूरि भूरि आँखें जिसमे एक अजीब सा खालीपन और उदासी छाई हुई थी। गुलाबी रंग मे रंगे पतले पतले गुलाब की पंखुड़ियों जैसे लब। माथे पर छोटी सी येल्लो बिंदी उसके ठीक ऊपर लटकता फूलों का बना मांगतिका, कानों मे भी फूलों के बने इयरिंगस्, उसका पूरा शृंगार फूलों से किया गया था और पीले रंग से सजी वो लड़की खुद खिला हुआ सूरजमुखी का फूल लग रही थी बस चेहरे पर अजीब सा दर्द और उदासी छाई हुई थी, वो भूरि भूरि आँखे कुछ बयाँ कर रही थी पर उनकी भाषा समझने वाला वहाँ कोई नही था।

    उसके आस पास कई सारी लड़कियाँ बैठी हंसी मज़ाक कर रही थी पर उनके बीच बैठी वो लड़की एकदम खामोश थी जैसे कुछ सुन ही न रही हो या वो वहाँ होकर भी वहाँ नही थी बस एकटक ज़मीन को देखे जा रही थी।

    कुछ देर बाद नीचे एक लड़की आई जो ऊपर वाली लड़की की उम्र की ही लग रही थी मतलब 20-22 की लग रही थी। उन आंटी को देखकर वो उनके तरफ बढ़ गयी और मुस्कुराकर बोली, "नमस्ते आंटी।"

    उसकी आवाज़ सुनकर वो आंटी उसकी तरफ मुड़ी और उसे देखकर मुस्कुरा दी, "नमस्ते बेटा। अच्छा हुआ आप आ गयी, जाइये आरवी के पास जाइये। जब लड़कों वालों के वहाँ से हल्दी आ जाएगी तो हम आपको बता देंगे तब आप उन्हें नीचे ले आईयेगा।"

    "जी आंटी मैं उसके पास ही जा रही थी, पर पहले आप बता दीजिये अगर कोई काम हो जो मैं कर सकूँ।" लड़की ने सौम्य सी मुस्कान के साथ उनसे पूछा तो उन्होंने प्यार से उसके गाल को छूकर कहा, "बहुत प्यारी है आप, अगर हमें कोई काम होगा तो हम आपको बता देंगे अभी तो आप जाकर आरवी को देख लीजिये वो ढंगसे तैयार हुई भी है या नही। और आपकी मम्मी कहाँ है? वो नही आई?"

    "ऐसे कैसे नही आएंगे हम। हमारी प्रिय दोस्त की बेटी की शादी का फंक्शन है, हमारे बिना फंक्शन पूरा कहाँ होगा?" उनके सवाल करते ही पीछे से आवाज़ आई, तो दोनों ने पीछे देखा तो पीली रेशमी साड़ी पहने और लबों पर मुस्कान सजाए एक औरत उनके तरफ ही बढ़ रही थी। उन्हें देखकर पहले वाली लेडी मतलब अनुपमा जी मुस्कुराई फिर उनके तरफ बढ़ गयी।

    "ये वक़्त है तुम्हारे आने का? कहती हो कि हम तुम्हारी प्रिय सखी है और मेहमानों के तरह आ रही हो," अनुपमा जी ने शिकायती लहज़े मे कहा तो रजनी जी मतलब रश्मि की मम्मी ने मुह बनाते हुए कहा,

    "रहने दो, शिकायत तो हमें करनी चाहिए थी। इतनी भी क्या जल्दी थी आरवी को भगाने की जो चट मंगनी और पट ब्याह कर रही हो? कोई तैयारी भी नही हो पा रही है, थोड़ा वक़्त तो दिया होता।"

    "तुम तो जानती हो रजनी, मुझे आरवी के भविष्य की कितनी चिंता रहती है। भगवान की कृपा से एक बड़ा अच्छा परिवार खुद रिश्ता लेकर आया। लड़का भी हीरा है, मुझे घर परिवार सब पसन्द आया तो सोचा रिश्ता पक्का कर दूँ। उन्होंने जल्दी ही शादी करने को कहा तो कही इतना अच्छा रिश्ता हाथ से न निकल जाए यही सोचकर मैंने हाँ बोल दिया।

    फिर एक न एक दिन तो शादी करनी ही थी, आरवी को अच्छा घर परिवार मिल जाए तो मेरी सारी चिंता खत्म हो जाएगी। तुम तो समझो, आसान नही मेरे लिए अकेले सब संभालना पर आरवी मेरी ज़िम्मेदारी है उसे सही घर मे भेजना मेरा सपना है बस इसलिए जल्दी जल्दी सब करना पड़ा।"

    अनुपमा जी ने अपनी सारी दुविधा उनके सामने रख दी ठीक इसी वक़्त अर्पिता जी ने वहाँ कदम रखा। उन्होंने उनकी सारी बातें सुन ली थी। वो जैसे ही चुप हुई अर्पिता जी ने मुस्कुराकर कहा, "तुम अब अकेली नही हो, तुम्हारी दोस्त है न तुम्हारे साथ, देखना तुम्हारी बेटी की शादी कितनी धूमधाम से करवाते है हम।"

    उनकी आवाज़ सुनकर दोनों औरतों ने पीछे मुड़कर देखा। अनुपमा जी उनकी बात सुनकर मुस्कुरा उठी।

    "ये कौन है? पहले कभी इन्हें यहाँ नही देखा," रजनी जी ने अर्पिता जी को देखकर सवाल किया तो अनुपमा जी ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "हमारे कॉलेज की दोस्त है। बहुत गहरी दोस्ती है हमारी। शादी के बाद अलग हो गए थे, कल ही मार्केट मे फिरसे मुलाकात हुई तो हमने उन्हें शादी मे बुला लिया। बहुत अमीर है ये, हमें लगा नही था कि हमारे कहने पर आएगी पर ये आ गयी ये देखकर हमें खुशी हुई।"

    "अरे ऐसे कैसे नही आती। मेरी दोस्त की बेटी की शादी है, अमीर हूँ तो क्या हुआ तुम्हारी दोस्त भी तो हूँ तो मुझे तो यहाँ आना ही था। और अब तुम सब चिंता छोड़कर अपनी बेटी की शादी की रस्मों को देखो। इस शादी की सारी ज़िम्मेदारी हमारी हुई। ऐसे धूमधाम से शादी करवाएंगे कि लोग देखते रह जाएंगे।"

    अर्पिता जी ने उनके पास आते हुए मुस्कुराकर कहा तो दोनों औरतें मुस्कुरा उठी। अर्पिता जी के साथ कुछ नौकर भी आए थे वो सभी एक तरफ खड़े हो गए।

    अनुपमा जी ने रजनी जी को अर्पिता जी से मिलवाया फिर अर्पिता जी ने अनुपमा जी को देखकर मुस्कुराकर कहा, "मेरी कोई बेटी नही है पर तुम्हारी बेटी मतलब मेरी बेटी। मैं अपने साथ कुछ नौकरों को लाई हूँ अगर तुम्हे बुरा न लगे तो वो यहाँ का सब काम संभाल लेंगे तुम बस उन्हें बता दो क्या करना है। मैं तुम्हारी मदद करना चाहती हूँ क्या तुम मुझे ये हक दोगी?"

    "आरवी तुम्हारी भी बेटी है, तुम जो चाहे वो कर सकती हो," अनुपमा जी की आँखे छलक आई थी उनकी बात सुनकर। अर्पिता जी ने उन्हें गले से लगाकर कहा, "अब तुम्हे चिंता करने की ज़रूरत नही है। आरवी की शादी मे कोई कमी नही रहने देंगे हम।"

    रश्मि, आरवी की दोस्त जिसकी मम्मी है रजनी जी, वो तबसे उनकी बातें सुन रही थी। अब उसने तीनों को देखकर मुस्कुराकर कहा, "आप तीनों दोस्त बातें कीजिये मैं अपनी दोस्त को देखकर आती हूँ।"

    वो सीढ़ियों के तरफ बढ़ गयी। कुछ ही देर मे वो उस कमरे के बाहर खड़ी थी, जिसमे वो उदास लड़की बाकी लड़कियों के साथ बैठी थी।

    रश्मि की मुस्कान गायब हो चुकी थी। उसने गहरी सांस छोड़ी और दरवाजा खोलकर अंदर जाते हुए बोली, "आप सबको नीचे नाचने गाने के लिए बुलाया जा रहा था।"

    उसके इतना कहते ही सभी लड़कियाँ वहाँ से भाग गयी। रश्मि ने पलटकर दरवाजा बंद कर लिया और उस उदास लड़की के तरफ बढ़ गयी जो अब भी किसी बेजान पुतले के तरह वही बैठी ज़मीन को देखे जा रही थी।

    रश्मि उसके सामने आकर खड़ी हो गयी पर उस लड़की ने अपनी नज़रें नही उठाई। रश्मि कुछ पल खामोशी से उसके उदास चेहरे को देखती रही, उसकी उदास आँखे देखकर उसकी आँखों मे नमी तैर गयी उसने धीमी आवाज़ मे उसे पुकारा, "आरवी।"

    जैसे ही उसने नाम पुकारा आरवी की पलकें झपकी इसके साथ ही आँसू की कुछ बुँदे उसके गालों पर लुढ़क गए। पर उसने नज़रें उठाकर उसे देखा तक नही। जब उसने कोई जवाब नही दिया तो रश्मि ने फिरसे कहा, "आरवी मेरी तरफ देख। क्या अब तू मुझसे भी अपना दर्द अपनी तकलीफ छुपाएगी।

    बता क्यों नही देती मुझे क्यों कर रही है ये शादी? तू जानती है विहान कैसा है, उससे शादी करके तेरी ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी। बता मुझे आखिर ऐसी क्या मजबूरी है तेरी जो तू सब जानते हुए अपनी ज़िंदगी नर्क बनाने को तैयार है? तूने कॉलेज मे एक बार भी उसपर ध्यान नही दिया फिर अचानक ऐसा क्या हो गया की कॉलेज खत्म होते ही तूने उससे शादी करने के लिए हाँ कह दिया?"

    उसके सवालों को सुनकर आरवी के आँखों से अश्रु धारा बहने लगी, उसने बेबसी से अपनी आँखे भींच ली ज़ुबान से एक शब्द नही निकला। उसको यूँ रोता देखा रश्मि ने उसे अपने गले से लगाकर भारी गले से कहा, "आरु अभी भी वक़्त है इंकार कर दे इस शादी से, वो इंसान नही हैवान है वो तेरी ज़िंदगी को नर्क से बदत्तर बना देगा। मत कर यार अपने साथ ये।"

    इतना कहकर वो खुद भी रो पड़ी। आरवी उसके गले लगे रोती रही, कुछ देर बाद उसने खुदको संभाला, उससे अलग हुई और अपने आँसुओं को साफ करते हुए बोली, "अब कुछ नही हो सकता रश्मि। सब खत्म हो गया। अब मुझे ये शादी करनी ही होगी। मैं मजबूर हूँ, नही बता सकती तुझे कुछ भी।

    और न ही शादी से इंकार कर सकती हूँ। जानती हूँ वो मुझे हासिल करना चाहता है, मैं उसकी ज़िद हूँ और उसे पूरा करने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है।

    मैं कुछ नही कर सकती। सब जानकर भी मुझे इस नर्क मे कूदना ही होगा। और कोई रास्ता नही है मेरे पास। फिर माँ भी तो इस शादी से खुश है, मैं उनका दिल नही तोड़ सकती। शादी के बाद तो बस बर्बाद होना ही है कम से कम कुछ दिन तो मैं अपनी माँ को सुकून से जीने दूँ।"

    ये कहते हुए वो बिलखकर रो पड़ी। रश्मि की आँखों से भी आँसू बहने लगे दोनों बचपन की दोस्त है जिनका रिश्ता बहनों से भी ज्यादा गहरा है। दोनों रो रही थी की गेट नॉक हुआ साथ ही बाहर से आवाज़ आई, "आरवी दीदी को बड़ी माँ ने नीचे बुलाया है, लड़के वालों के यहाँ से हल्दी आ गयी है।"

    आरवी ने अपने मुह को अपनी हथेली से दबा लिया और फफक कर रो पड़ी। रश्मि ने खुदको संभालाते हुए जवाब दिया, "बस दो मिनट मे ला रही हूँ उसे नीचे।"

    उसकी बात सुनकर वो लड़की चली गयी। आरवी ने खुदको संभाला और उठकर खड़ी हो गयी। वो जाने के लिए मुड़ी तो रश्मि ने उसकी कलाई पकड़कर उसे रोक दिया। आरवी ने बिना उसे देखे ही कहा, "please रश्मि मुझे जाना ही होगा।"

    उसकी आवाज़ मे बेबसी और मजबूरी झलक रही थी। रश्मि ने भारी गले से कहा, "नही रोक रही तुझे। इतना जानती हूँ तुझे अगर तूने इतना बड़ा फैसला लिया है तो इसके पीछे कोई बहुत बड़ी वजह होगी।

    मैं तुझे फोर्स नही करूँगी बस इंतज़ार करूँगी की कब तू अपना दर्द मुझसे बांटेगी और अब मैं तुझे कुछ नही कहूंगी, कहूंगी उस भगवान को जिसने हम सबको जन्म दिया है कि अगर वो सचमे है और सब देख रहे है तो उस राक्षस से तुझे वो बचाएंगे और अगर उन्होंने ऐसा नही किया और मेरी दोस्त की ज़िंदगी बर्बाद हुई तो मैं उनसे हमेशा के लिए मुँह मोड लूँगी।

    कहते है अच्छों के साथ हमेशा अच्छा होता है अब ये उनकी परीक्षा है कि क्या सच में वो अच्छों पर अपना आशीर्वाद बनाए रखते है या वो भी सिर्फ बुरों का साथ देते है। मैं तो बस तुझे रोक रही थी क्योंकि अगर तू ऐसे नीचे गयी तो आंटी परेशान हो जाएंगी।"

    उसकी बात सुनकर आरवी नम आँखों से कंफ्यूज सी उसे देखने लगी। रश्मि ने मेकअप किट उठाया और उसका मेकअप ठीक करते हुए बोली, "उनकी खुशी के लिए तेरी उदासी छुपाना ज़रूरी है।"

    उसकी बात सुनकर आरवी के लबों पर दर्द भरी मुस्कान फैल गयी। दोनों दोस्त अपने दिल मे दर्द को दफन करके नीचे चली गयी।


    To be continued...

    आगे की स्टोरी नेक्स्ट चैप्टर में।

  • 5. Forced by destiny - Chapter 5

    Words: 2692

    Estimated Reading Time: 17 min

    आरवी को लेकर रश्मि जैसे ही सीढ़ियों से नीचे उतरी, अर्पिता जी उसके पास चली गयीं। उन्होंने प्यार से उसके गाल को छूकर मुस्कुराकर कहा, "बहुत प्यारी लग रही हो।"

    "हमने आप तक पहुँचने में देर कर दी, अगर हम पहले आपसे मिले होते तो आपकी शादी अपने बेटे से करवाकर आपको अपने घर की बहू बना लेते। कितनी प्यारी है आप और उतनी ही ज़्यादा खूबसूरत भी। हमारी बच्ची को किसी की नज़र ना लगे।"

    उन्होंने अपनी आँखों से काजल निकालकर उसके कान के पीछे लगा दिया। आरवी उन्हें जानती नहीं थी, उनकी बात सुनकर वो उन्हें हैरानी से देखने लगी। वहीं रश्मि ने झट से कहा, "आंटी अभी भी देर नहीं हुई है, मैं तो कहती हूँ इतनी अच्छी लड़की को अपने हाथों से जाने देने की ज़रूरत ही क्या है? शादी तो हो ही रही है, बस लड़का बदल देते हैं, आपके बेटे से शादी करवा देते हैं, आपकी इच्छा भी पूरी हो जाएगी और मेरी दोस्त की ज़िंदगी भी बर्बाद होने से बच जाएगी।"

    आखिरी बात उसने धीरे से कहा जिससे अर्पिता जी सुन ना सकीं, पर आरवी उसकी बात सुनकर उसको हैरानी से देखने लगी थी।

    अर्पिता जी ने उसकी पूरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया और मुस्कुराकर बोलीं, "अब तो हमने देर कर दी। इस प्यारी सी बच्ची को वरने कोई राजकुमार पहले से तैयार बैठा है।"

    "राजकुमार नहीं, राक्षस है वो," रश्मि ने उनकी बात सुनकर फिरसे धीरे से कहा पर आरवी ने फिरसे उसकी बात सुन ली। अब उसने अर्पिता जी को देखते हुए पहचानने की कोशिश करते हुए कहा, "आंटी मैंने आपको पहले कभी नहीं देखा, आप कौन हैं?"

    "अरे बेटा ये मेरी कॉलेज की दोस्त है, कल ही मार्केट में मिली तो मैंने बुला लिया। तुमसे मिलवाने ही वाली थी।" अनुपमा जी ने वहाँ आते हुए कहा तो आरवी उन्हें देखने लगी। अब अर्पिता जी ने अनुपमा जी को देखते हुए मुस्कुराकर कहा,

    "तेरी बेटी तो साक्षात माता पार्वती की छाया लगती है, कितनी मोहिनी है उसके चेहरे पर, सादगी में भी इतनी खूबसूरत लग रही है। उसपर मिश्री से मीठी बोली। काश मैं तुझसे पहले मिली होती तो मैं इस परी को अपने घर की बहू बना लेती। इतनी प्यारी बच्ची है तेरी, ये जिस घर में जाएगी उस घर को खुशियों से भर देगी।"

    उनकी बात सुनकर अनुपमा जी मुस्कुराने लगीं। उन्होंने आरवी के माथे को प्यार से चूम लिया, फिर अपने आँखों की नमी को पोंछते हुए बोलीं, "सही कहा तुमने, बहुत प्यारी बेटी है मेरी और अब जल्दी ही ये किसी और घर की होने वाली है।"

    उनकी नम आँखें देखकर आरवी की आँखें भी भर आई तो उसने अपनी नज़रें झुका लीं। अब रजनी जी ने वहाँ आते हुए कहा, "देखा रूला दिया ना बच्ची को? तभी कहती हूँ तुझे बात बात पर रोया मत कर, बच्ची को भी रूला दिया। चल अब हल्दी की रस्म शुरू करने का मुहूरत हो गया है।"

    अनुपमा जी ने हाँ में सर हिलाया और सब स्टेज के तरफ बढ़ गए। आरवी को दीवान पर बिठाया गया, फिर अनुपमा जी ने अर्पिता जी को देखकर मुस्कुराकर कहा, "अर्पिता मेरी तरफ से मेरी बेटी की हल्दी की शुरुआत तू कर दे।"

    उनकी बात सुनकर आरवी ने नज़रें उठाकर उन्हें देखा तो उन्होंने अपनी उदासी छुपाते हुए कहा, "ऐसे शुभ काम में विधवा की छाया पड़ना अभिशगुन होता है बेटा।"

    "माँ," आरवी ने भारी गले से कुछ कहना चाहा, उससे पहले ही अर्पिता जी ने मुस्कुराकर कहा, "गलत कहा तूने अनु। दुनिया की किसी माँ की छाया उसके बच्चे के लिए अभिशगुन हो ही नहीं सकती। आरवी तेरी बेटी है, तूने पाला है उसे, उसको सबसे पहले हल्दी लगाने का हक तेरा है। जो तूने कहा अब वो बात बहुत पुरानी हो गयी है, वक़्त के साथ इन दक्कियानुसी विचारधारा को भी बदला जाना चाहिए।"

    उनकी बात सुनकर वहाँ कानाफूसी शुरू हो गयी, पड़ोस की एक औरत से हल्के गुस्से से कहना शुरू किया, "माफ कीजियेगा बहन जी पर हम आपकी बात से सहमत नहीं है। आप यहां की नहीं लगतीं, हमने पहले कभी आपको देखा भी नहीं है, पहनावे से तो आप बड़े घर की लगती हैं इसलिए शायद आप ऐसी बातें कर रही हैं।

    आपके यहां इन बातों का कोई मतलब नहीं होगा पर हमारे यहां इन बातों की बहुत मान्यता है। आपको नहीं पता विधवा का साया भी अगर किसी शुभ काम पर पड़ जाए तो कितना बड़ा अनर्थ हो जाता है।"

    "सही कहा आपने, मैं यहाँ की नहीं हूँ। बड़े घर से आई हूँ इसलिए शायद आपके जैसी छोटी सोच नहीं रखती। एक बेटी की रस्मों से उसकी माँ को ये कहकर दूर रखना की वो विधवा है इसलिए उसकी छाया उसकी बेटी के लिए अभिशगुन है, दुनिया का सबसे बड़ा पाप है।

    जिस माँ ने उसे जन्म दिया, सब तकलीफों को सहकर उसे पाला आज उसकी छाया उसकी औलाद के लिए मनहूसियत कैसे ला सकती है? विधवा होना या सुहागन रहना इंसान के नहीं भगवान के हाथ में है। दोष उनका है तो सज़ा औरत को क्यों? एक माँ की दुआओं से ज्यादा प्रभावशाली और कुछ नहीं होता।

    एक माँ की दुआ और उसका आशीर्वाद ही है जो उसके बच्चों को हर मुसीबत से बचाता है। जिस माँ ने अपने सब दुखों को छुपाकर अपनी बेटी को अकेले पाला, आज जब खुशी का पल आया तो उसे उससे दूर रखना घोर पाप है।

    अनुपमा माँ है आरवी की तो वो उसके हर रस्म में शामिल होगी। उसे कुछ कहने से पहले एक बार खुदको उसकी जगह रखिये। अगर उसके अगर आप होते और आपकी बेटी की शादी के रस्मों से आपको ये कहकर दूर रखा जाता कि आप उसके लिए अभिशगुन है तो क्या करती आप? कैसा लगता आपको?"

    उनके इस सवाल पर सब औरतों के मुँह बंद हो गए। वो मुँह बनाकर चुप हो गए तभी एक औरत ने आगे आकर कहा, "बहन जी आप बात तो बहुत बड़ी बड़ी कर रही पर अगर आपकी इस विचार की वजह से शादी में कोई गलत होता है उसकी ज़िम्मेदारी लेंगी आप? भगवान न करे अगर एक विधवा की छाया पड़ने से ये शादी टूट गयी तो कौन करेगा उस बच्ची से शादी? क्या आप लेंगी इसकी ज़िम्मेदारी?"

    उनका सवाल सुनकर सबकी नज़रें अर्पिता जी पर टिक गयीं। वो कुछ पल खामोश रहीं फिर उन्होंने अनुपमा जी की हथेली अपनी हथेली में थामते हुए कहा, "मेरा विश्वास करो ऐसा कुछ नहीं होगा। ये सब बहुत पुरानी बातें है उनमें कोई तर्क है ही नहीं।"

    "और अगर तर्क हुआ तो? पुराने लोगों ने जो भी नियम बनाए है उनके पीछे कोई न कोई वजह होती है। अगर आपके वजह से ये शादी टूट गयी तो क्या आप लेंगी इसकी ज़िम्मेदारी?"

    दूसरी औरत ने फिरसे वही सवाल दोहराया तो अब अर्पिता जी को गुस्सा आ गया उन्होंने सबकी तरफ देखा और गुस्से से बोलीं, "आप सब रूढ़िवादी सोच के नीचे दबे हुए है इसलिए आपको और कुछ नजर नहीं आता। पर मैं इन बातों को नहीं मानती....

    हाँ लेती हूँ मैं ज़िम्मेदारी। अगर मेरी वजह से इस शादी में कोई भी रुकावट आई तो उसकी ज़िम्मेदारी मेरी है। वैसे तो ऐसा होगा नहीं अगर फिर भी अगर किसी भी कारण से ये शादी टूटती है तो आरवी की शादी मैं अपने बेटे से करवाऊँगी, मैं लूँगी उसकी ज़िम्मेदारी और उसे खुशी खुशी अपने घर की बहू बनाकर पूरे सम्मान से उसे अपने घर लेकर जाऊँगी। क्या अब भी आप लोगों के दिल में कोई शक या कोई सवाल है?"

    उनकी बात ने सबकी ज़ुबान बंद कर दी। रश्मि ने अब धीरे से कहा, "मैं सच कहूँ, वैसे तो मैं इन बातों को मानती नहीं हूँ पर फिर भी आज मैं चाहती हूँ कि कुछ ऐसा हो जाए जिससे ये शादी टूट जाए। फिर अपने वादे को पूरा करने के लिए अर्पिता आंटी तेरी शादी अपने बेटे से करवा देतीं, उस चपड़गंजू से तेरा पीछा हमेशा हमेशा के लिए छूट जाएगा।"

    रश्मि ने इतना एक्साइटेड होते हुए कहा कि आरवी उसे हैरानी से देखने लगी, "पागल हो गयी है क्या? ये क्या बकवास कर रही है, जानती भी है कौन है उनका बेटा? विहान से मुझे बचाने के लिए क्या तू किसी भी ऐसे गैरे लड़के से मेरी शादी करवा देगी?"

    "चल पागल किसी एरे गैरे से थोड़े ना करवाऊँगी। आंटी को देख अमीर लगती है और इतनी सुंदर है तो इनका बेटा भी हैंडसम होगा और आंटी का दिल भी बहुत साफ है मतलब लड़का अच्छा ही होगा। और वैसे भी वो कोई भी क्यों ना हो उस सुअर से शादी करने से तो अच्छा ही होगा ना कि तेरी शादी आंटी के बेटे से हो जाए।"

    रश्मि ने झट से जवाब दिया और उसे अपनी बातों पर ज़रा भी पछतावा करता ना देख आरवी ने अपना सर झटका और अनुपमा जी को देखकर बोली, "माँ प्लीज़ आप इन सब बातों के बारे मे मत सोचिये। आप मेरी माँ भी है और मेरे पापा भी है, आप मेरे लिए मेरे भगवान है और भगवान का आशीर्वाद कभी किसी का अहित नहीं करता। मैं आपकी बेटी हूँ मुझे हल्दी लगाने का पहला हक आपका है, अगर आप हल्दी नहीं लगाएंगी तो ये हल्दी की रस्म होगी ही नहीं।"

    उसकी बात सुनकर अनुपमा जी परेशान हो गयीं, वहीं आरवी की बात सुनकर अर्पिता जी ने मुस्कुराकर कहा, "आप सच मे बहुत समझदार है, हमें नाज़ है की आप अनु की बेटी है।"

    उन्होंने अब अनुपमा जी का हाथ पकड़ा और उन्हें आरवी के पास लेकर चली गयीं। आरवी ने उनकी हथेली को थामते हुए कहा, "प्लीज़ माँ मेरे लिए, आपके बिना मेरी कोई खुशी कभी पूरी नहीं हो सकती।"

    "आरवी ठीक कह रही है अनु। ये सब दकियानुसी बातें है इनमें कोई तर्क ही नहीं होता। अब सब बात छोड़ और आरवी को हल्दी लगाकर हल्दी की रस्म का श्री गणेश कर।" अर्पिता जी ने अनुपमा जी को आरवी को हल्दी लगाने के लिए कहा, वो कुछ हिचकिचाई पर फिर आरवी ने भी रिक्वेस्ट की तो उन्होंने दुभि को हल्दी में डुबोया और उसके पैर, घुटने और कंधे पर हल्दी लगाते हुए हल्दी की रस्म को शुरू किया।

    उनके बाद अर्पिता जी ने फिर रजनी जी ने आरवी को हल्दी लगाई, उसे आशीर्वाद भी दिया। उसके बाद रिश्तेदारों और मोहल्ले की औरतों ने भी आगे आकर उसे हल्दी लगाई। थोड़े नाटक के बाद ही सही पर हल्दी की रस्म पूरी हुई। उसके बाद आरवी को वापिस रूम मे लेकर जाया गया। नहाकर तैयार होने के बाद उसे पास के गौरी मंदिर मे लेकर जाया गया।

    इन्ही सब में शाम हो गयी। अर्पिता जी नौकरों को वही छोड़ गयीं और अनुपमा जी को कह दिया कि उन्हें कुछ करना नहीं है बस ऑर्डर देना है तो उन्होंने भी हामी भर दी। नौकरों के आने से उन्हें आराम मिल गया था, वरना सब मेहमानों के बीच वही एक टांग पर यहाँ से वहाँ भागा दौड़ी कर रही थी क्योंकि मेहमान तो बस दो काम करने आते है पहला खाने और ऑर्डर चलाने तो दूसरा कमियां निकालकर ताने मारने मे उन्हें महारथ हासिल होती है।

    आरवी ये देखकर खुश थी, वही रश्मि तो भगवान को सेट करने मतलब मनाने में लगी थी कि कुछ भी करके ये शादी टूट जाए।

    आज की रात आरवी की बेचैनी से कटी, आखिर उसकी आज़ादी का एक दिन खत्म हो गया था। वही हो रहा था जो वो नहीं चाहती थी। पर कर भी क्या सकती थी। रश्मि यही रुक गयी थी।

    वहीं दूसरी तरफ अर्पिता जी घर पहुँची तो अंशिका आकर उनके पैरो से लिपट गयी और भारी गले से बोली, "दादी आप बेबी को छोड़कर कहाँ चली गयी थी? अंशु ने आपको बहुत मिस किया।"

    अर्पिता जी ने उसे अपनी गोद मे उठा लिया, उसका मासूम सा चेहरा देखकर जाने क्यों उन्हें आरवी का चेहरा याद आ गया उन्होंने मन ही मन कहा, "काश की आरवी से हम पहले मिले होते तो हम कुछ भी करके उनकी शादी शान से करवा देते फिर आपको माँ मिल जाती। आरवी बिल्कुल वैसी ही है जैसी बहू की तलाश हमें है। जैसी माँ हम आपके लिए चाहते है वो सब गुण उनके अंदर मौजूद है पर हमने उन तक पहुँचने मे देर हो गयी, अब तो उनका रिश्ता किसी और से जुड़ गया है।"

    ये सोचते हुए वो उदास हो गयीं। वो इन्ही ख्यालों मे खोई हुई थी जब उन्होंने कुछ नहीं कहा तो अंशु ने फिरसे कहा, "दादी आप कुछ कह क्यों नहीं रही?"

    उसने बड़ी ही मासूमियत से सवाल किया। उसकी आवाज़ सुनकर अर्पिता जी अपने ख्यालों से बाहर आई और उसके गाल को प्यार से छूते हुए बोलीं, "सोर्री बेटा दादी किसी काम से गयी थी। आप दादू के साथ थे इसलिए आपको नहीं बताया। पर अब दादी आपके पास ही रहेंगी। चलिए दादी आपके लिए अपने हाथों से खाना बनाती है तब तक दादी और अंशु ढेर सारी बातें भी करेंगे।"

    अंशु खुश हो गयी। अर्पिता जी ने खुदसे उसके लिए और बाकी सबके लिए खाना बनाया। कुछ देर मे सुयश जी और शान भी आ गए।

    शान ने फ्रेश होकर पहले सुभाष जी को खाना और दवाई खिलाई, फिर उसने अंशु को खाना खिलाया। उसके बाद जब वो खुद खाना खाकर उठने लगा तो अंशु उसकी गोद मे चढ़कर बैठ गयी। शान ने हैरानी से उसे देखा तो अंशु ने क्यूट सी शक्ल बनाकर कहा, "डैडू आज बेबी आपके पास सो जाए?"

    उसकी क्यूट सी शक्ल देखकर शान को उसपर इतना प्यार आया की उसने उसे अपनी गोद मे उठा लिया और प्यार से उसके गाल को चूमते हुए मुस्कुराकर बोला, "चलिए आज डैडी अपनी प्रिंसेस को स्टोरी सुनाकर सुलाएंगे।"

    उसकी बात सुनकर अंशिका भी खुश हो गयी। उसने अपनी छोटी छोटी बाहों को उसकी गर्दन के इर्द गिर्द लपेट दिया और उसके कंधे पर अपना सर रख दिया।

    शान की मुस्कान गहरी हो गयी वही उन दोनों को खुश देखकर अर्पिता जी और सुयश जी भी मुस्कुरा दिये। शान ने छाया को सोने को कह दिया कि आज वो अंशिका के साथ रहेगा और खुद उसे लेकर अपने कमरे मे चला गया।

    अंशिका उसके साथ बहुत कम सोती थी वजह थी शान का काम। वो रात रात भर स्टडी रूम मे काम करता रहता तो अंशिका उसके साथ नहीं सो पाती थी पर जब कभी उसका बहुत मन करता तो वो ऐसे ही क्यूट सी हरकत करती जिससे शान को उसपर खूब प्यार आता। आज भी वही हुआ।

    शान उसे लेकर रूम मे पहुँचा फिर उसे लेकर बेड पर लेट गया। अंशिका उसके सीने पर सर रखकर लेट गयी। शान उसे परियों की कहानी सुनाने लगा तो जल्दी ही अंशिका गहरी नींद मे सो गयी। शान ने उसको अच्छे से सुलाया फिर उसको अपनी बाहों मे भरते हुए उसके पास खुद भी लेट गया। उसने प्यार से उसके माथे को चूमते हुए अपनी आँखे बन्द कर लीं।

    वही अर्पिता जी ने सुयश जी को आज जो हुआ सब बताया फिर आखिरी मे मायूस होकर बोलीं, "पता है मेरा दिल आ गया है उस बच्ची पर, अगर उसका रिश्ता पक्का नहीं हुआ होता तो मैं कुछ भी करके उसे अपने घर की बहू बना लेती। बहुत प्यारी बच्ची है वो अंशिका की ज़िंदगी मे माँ की कमी को पूरा कर सकती है, साथ ही शान के दिल से नफरत मिटाकर उसमे प्यार भर सकती है पर अब उसका रिश्ता पक्का हो चुका है।"

    वो अपने मे ही बोली जा रही थी जबकि सुयश जी तो किसी और ही सोच मे गुम थे जब उन्होंने कोई रिस्पोंस नहीं दिया तो अर्पिता जी ने उन्हें देखकर नाराज़गी से कहा, "क्या हुआ आप कहाँ खोए हुए है?"

    उनकी आवाज़ सुनकर सुयश जी ने उन्हें देखा और गहराई से कुछ सोचते हुए बोले, "हम सोच रहे है अगर सच मे शादी मे कोई अड़चन आई तो आप क्या करेंगी। आप कह तो आई कि अपने बेटे से उनकी शादी करवा देंगी पर आप ये जानती है की शान इसके लिए कभी नहीं मानेंगे।"

    "ऐसा कुछ नहीं होगा वो बाते सच थोड़े न होती है। और अगर गलती से ऐसा हो गया तो शान को कैसे राज़ी करना है ये हमें पता है। पर हम नहीं चाहते कि उस बच्ची का रिश्ता टूटे। भले ही हमें वो शान के लिए पसंद है पर उनका रिश्ता किसी और से जुड़ चुका है और उसमे आरवी की मर्ज़ी शामिल है। हम तो बस इतना चाहते है कि उस प्यारी सी बच्ची को दुनिया की हर खुशी मिले। वो जहाँ रहे खुश रहे।" उनकी बात सुनकर सुयश जी मुस्कुरा दिये।


    To be continued...

  • 6. Forced by destiny - Chapter 6

    Words: 1475

    Estimated Reading Time: 9 min

    अगला दिन भी यूँही शुरू हुआ। शान के घर में सब खाना खाकर अपने-अपने काम पर निकल गए। आज फिर अंशिका सुभाष जी के साथ थी, और दोनों कलरिंग कर रहे थे। अर्पिता जी उसको बताकर आरवी के घर के लिए निकल गयीं। दूसरी तरफ आरवी के घर पर सुबह से काफी चहल-पहल थी।

    आज उसकी मेहंदी थी, और उसके लिए रश्मि उसको तैयार कर रही थी। हालांकि दोनों दोस्तों का दिल नहीं था, पर मजबूरी थी।

    कुछ देर में सब तैयारियां हो गयीं। नीचे गाना बजाना, ढोलक की थाप पर नाचना शुरू हो चुका था। अर्पिता जी की वजह से यहाँ से सारा काम आराम से संभल गया था। अर्पिता जी भी वहाँ पहुँच गयीं और मेहंदी का फंक्शन शुरू हुआ।

    रश्मि तो अपना दिल मारे वहाँ बैठी हुई थी, पर वो इतने गुस्से में थी कि उसने मेहंदी लगवाने से साफ इंकार कर दिया। वहीं आरवी नम आँखों से अपनी हथेली पर मेहंदी लगते देख रही थी। जैसे ही मेहंदी वाली ने इससे उसके होने वाले पति का नाम पूछा वो सोच में पड़ गयी।

    पति शब्द सुनकर उसको कुछ अजीब फील होने लगा जैसे वो किसी पिंजरे में कैद होने वाली हो, जहाँ से उसका बाहर निकल पाना असंभव हो, उसका दम घुटने लगा।

    उसने कोई जवाब नहीं दिया, पर रश्मि ने झट से कहा, "S लिखिये, S से शुरू होता है मेरे जीजू का नाम।" जैसे ही आरवी के कानों में उसकी आवाज़ पड़ी उसने हैरानी से उसे देखा तो रश्मि ने चिढ़कर धीमी आवाज़ में कहा, "मैं उस हरामखोर को तेरे इर्द गिर्द भी बर्दाश्त नहीं कर सकती फिर उसका नाम तेरी हथेली पर लिखने कैसे दे सकती हूँ।

    इसलिए, तेरी हथेली पर S लिखेगा शिव के नाम का S, वैसे भी तू उन्हें बहुत मानती है, तो उनकी के नाम की मेहंदी लगवा ले शायद वो तेरे लिए अपना ही प्रतिबिंब भेज दे।"

    आरवी ने अपनी नज़रें उसपर से हटा लीं। रश्मि सारा वक़्त उसके साथ रही उसके खाने पीने का ध्यान रखती रही। धीरे धीरे सबको मेहंदी लग गयी। शाम होते होते सब लेडिज़ संगीत की तैयारी में लग गए। अर्पिता जी कल आने का कहकर वहाँ से निकल गयीं।

    रात का समय था, आज सुयश जी नजर नहीं आ रहे थे, बस अर्पिता जी, अंशिका और शान ही मौजूद थे वहाँ। शान अंशिका को खाना खिला रहा था, तभी उसके कानों में अर्पिता जी की आवाज़ पड़ी,

    "शान आप तुम्हारे चाचा जी को पार्टी के काम से जाना पड़ा, वो कल नहीं आ सकेंगे और कल शादी है। अगर कल भी हम अकेले जाएंगे तो शायद अच्छा न लगे तो क्या आप थोड़ा वक़्त निकालकर हमारे साथ आ सकते है? बस थोड़े देर के लिए।"

    उनकी बात सुनकर शान के आगे बढ़े हाथ जहाँ थे वही रुक गए। उसने हैरानी से उन्हें देखा, "मैं वहाँ जाकर क्या करूँगा बड़ी माँ?"

    "बेटा चल लीजिये न हमारे साथ, हमें कल भी वहाँ अकेले जाना अच्छा नहीं लगेगा। बस गिफ्ट देकर घर वापिस आ जाएंगे। हमारे लिए चल लीजिये।" उन्होंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा जो कि शान को अच्छा नहीं लगा उसने विनम्रता से कहा, "मैं आपकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ बड़ी माँ। आपको रिक्वेस्ट करने की ज़रूरत नहीं। आपके लिए मैं कल आपके साथ चलूँगा पर बस थोड़े देर के लिये। फिर मैं वापिस आ जाऊंगा वरना अंशिका को अकेले रहना पड़ेगा।"

    अर्पिता जी बेहद खुश हो गयीं। अगले दिन शान शामको जल्दी आने वाला था, आखिर शादी शाम की ही थी। वहीं आरवी के घर पर आज बहुत चहल-पहल थी। सुबह से शादी की तैयारियां और छोटी मोटी रस्मों को निपटाने का काम चल रहा था। दोपहर के बाद ब्युटिशियन भी आ गयी थी और आरवी को उसकी शादी के लिए तैयार करने का काम शुरू हो गया था।

    रश्मि भी वही थी और अब उसका दिल घबरा रहा था। शाम के 7 बज रहे थे, मेहमान तैयार होने मे बिज़ी थे, कुछ तो वैन्यु पर पहुँच चुके थे खासकर आदमी। रश्मि तैयार हो गयी थी और नीचे अनुपमा जी की मदद करवा रही थी। हालांकि वो अब भी चाहती थी कि किसी तरह ये शादी टूट जाए पर उसको कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। उपर से आरवी ने उसको अपनी कसम दे दी थी कि वो कुछ हंगामा नहीं करेगी।

    इसलिए बेचारी मजबूरी में शांति से अपनी दोस्त की ज़िंदगी को नर्क बनते देख रही थी। आरवी ने तो अपने आँसुओं को कैसा रोका था ये वही जानती थी, क्योंकि अभी उसका मन कर रहा था कि खूब रोए, पर मजबूर थी कि रो भी नही सकती थी।

    अनुपमा जी आज बहुत खुश थी आखिर उनकी एकलौती बेटी की शादी थी जिनके उन्होंने बहुत से सपने सजाए थे। बारात 10 बजे आने वाली थी।


    मुंबई में ही जुहू बीच के पास बने एक बड़े से बंगले को दुल्हन की तरह सजाया गया था, खूब सारे लोग वहाँ मौजूद थे। बारात के निकलने की तैयारी शुरू हो चुकी थी। आशिमा जी मतलब विहान की माँ ने एक आंटी को ऊपर भेजकर उसे बुलाने को कहा तो वो बुजुर्ग औरत ऊपर चली गयी।

    उन्होंने दरवाजा नॉक किया पर अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई। उन्होंने दो तीन बार दरवाजा खटखटाया पर कोई आवाज़ नहीं आई। अब उन्होंने दरवाजा को हल्के से अंदर के तरफ धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया। आंटी ने अंदर सब जगह देखा, पर वो कही नहीं मिला। उसके बाद ये खबर एक आग का तरह फैलाने लगी "लड़का गायब है"।

    वहीं आरवी के घर मे बारात के स्वागत की लगभग सभी तैयारियां हो चुकी थी। आरवी अकेली कमरे मे बैठी थी। अचानक ही एक तेज रफ्तार गाड़ी उनके घर के तरफ तेज़ी से बढ़ने लगी। वो गाड़ी उसके घर के गेट के पास आकर झटके से रुकी और एक लड़के ने उस गाड़ी से बाहर कदम रखा।

    उसने लाइट येल्लो कलर की शेरवानी पहन रखी थी, हथेली पर मेहंदी लगी हुई थी और गोरा चेहरा गुस्से से एकदम लाल हो गया था, आँखों मे गुस्से की ज्वाला धधक रही थी और उसने अपने हाथों की मुट्ठियों को कसा हुआ था।

    वो गाड़ी से बाहर निकला और तेज़ कदमों से गेट के तरफ बढ़ गया। वो लड़का वहाँ से गुस्से मे दनदनाते हुए सीढ़ियों के तरफ बढ़ गया, वहाँ मौजूद औरतें हक्की बक्की ये देखती ही रह गयीं।

    कुछ ने उसे रोकना चाहा पर उसके गुस्से के आगे कोई टिक न सका वो आरवी के रूम के बाहर पहुँचा ठीक इसी वक़्त किचन से रश्मि और अनुपमा जी ने बाहर कदम रखा।

    सभी औरतें बातें करते हुए आरवी के कमरे के तरफ देख रही थी तो उन दोनों की भी नज़रें उस तरफ घूम गयी। रश्मि ने जैसे ही लड़के के बेक व्यू को देखा, उसके मुह से धीरे से निकला "विहान।"

    उसकी आँखे हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गयीं, वही अनुपमा जी ने नीचे से ही आवाज़ लगाई, "विहान बेटा आप .............." उन्होंने इतना कहा ही था कि विहान ने गुस्से मे उस दरवाजे पर ज़ोरदार लात दे मारी जिससे अनुपमा जी के साथ-साथ बाकी औरतें भी थरथरा गयीं, वो घबराई हुई सी उसे देखने लगीं पर विहान ने तो शायद उनकी बात सुनी तक नहीं थी।

    वो अंदर घुसा और उसने झटके से दरवाजा बन्द कर लिया। ये देखकर रश्मि अनुपमा जी सीढ़ियों के तरफ दौड़ पड़ीं। बाकी औरतें भी इकट्ठा होने लगीं और उनके बीच तरह तरह की बातें उठने लगीं।

    वही दरवाजे पर लात मारने की आवाज़ सुनकर अंदर रूम मे मौजूद आरवी घबरा उठी और उठकर खड़ी हो गयी। जब उसने विहान को अंदर आते देखा तो उसका जिस्म डर से काँप उठा, उसपर जब विहान ने दरवाजा बन्द किया तो वो और भी ज्यादा घबरा उठी और अपने थरथराते लबों से उसने हैरानी से सवाल किया, "विहान तुम यहाँ, तुम इस वक़्त यहाँ क्या कर रहे हो?"

    उसका सवाल सुनकर विहान उसके तरफ मुड़ा और उसको गुस्से से घूरते हुए बोला, "क्यों मेरे जगह किसी और को यहां आना चाहिए था क्या?... या तुमने अपने किसी यार को यहाँ बुलाया हुआ था और उसके जगह मैं आ गया इसलिए तुम्हे हैरानी हो रही है।"

    "ये कैसी बातें कर रहे हो तुम। तुम जानते हो मेरा किसी लड़के से कभी कोई रिश्ता नही रहा है। मैं हैरान हूँ क्योंकि मुझे तुम्हारे यहां आने की उम्मीद नही थी। मैं किसी और लड़के के बारे मे सोच भी नही सकती हूँ। मेरी शादी तुमसे होने वाली है फिर तुम मेरे बारे मे इतनी घटिया बातें सोच भी कैसे सकते हो?"

    उसके घटिया इलजामों को सुनकर आरवी भी गुस्से मे भड़की। उसका गुस्सा देखकर विहान के लबों पर टेढ़ी मुस्कान फैल गयी उसने उसके तरफ बढ़ते हुए कहा,

    "उफ्फ तुम्हारी यही अदा तो मुझे तुम्हारा दीवाना बनाती है।"

    उसकी बात सुनकर आरवी ने उसको नफरत से देखते हुए अपना चेहरा घुमा लिया, उसकी इस हरकत को देखकर विहान का चेहरा एक बार फिर गुस्से से तमतमा उठा वो उसके पास पहुँच चुका था। उसने गुस्से से उसकी बाँह पकड़कर उसको अपने तरफ खींच लिया तो आरवी ने घबराकर उसे देखा।


    To be continued...

  • 7. Forced by destiny - Chapter 7

    Words: 1859

    Estimated Reading Time: 12 min

    आरवी ने उसको नफरत से देखते हुए अपना चेहरा घुमा लिया, उसकी इस हरकत को देखकर विहान का चेहरा एक बार फिर गुस्से से तमतमा उठा वो उसके पास पहुँच चुका था। उसने गुस्से से उसकी बाँह पकड़कर उसको अपने तरफ खींच लिया तो आरवी ने घबराकर उसे देखा।

    विहान ने उसे गुस्से से घूरते हुए दांत पीसते हुए कहा, "अपना ये गुमान जाकर किसी और को दिखाना समझी। और ये जो मासूमियत का नाटक तुम करती फिरती हो न अब उसे करने की भी ज़रूरत नही है क्योंकि तुम्हारा असली चेहरा अब मेरे सामने आ चुका है। जान गया हूँ मैं कि तुम कितनी घटिया और गिरी हुई लड़की हो।"

    उसकी बातें सुनकर आरवी को गुस्सा आने लगा उसने उसके हाथ से अपना कलाई छुड़ाने की कोशिश की पर विहान अपनी पकड़ मजबूत करते हुए चिल्ला उठा, "क्या हुआ, मेरा छूना पसन्द नही आ रहा? स्वीटहार्ट हमारी आज शादी होने वाली है अब तो तुम्हे मेरी छुअन की आदत डाल लेनी चाहिए।"

    आरवी ने घिन से उसके तरफ से मुह घुमा लिया और उससे दूर हटने की कोशिश करने लगी तो विहान ने उसकी कमर पर अपनी बाँह लपेटते हुए उसको अपने करीब कर लिया और गुस्से से बोला, "इतनी घिन हो रही है मेरी बातो और मेरी छुअन से?"

    "विहान छोड़ो मुझे, चले जाओ यहाँ से। मुझे मेरे घर मे कोई तमाशा नही चाहिए, नीचे सब है क्या सोचेंगे वो मेरे बारे मे," आरवी उसके हाथ को अपनी कमर पर से हटाने कहने लगी लेकिन विहान ने उसकी कमर को कसके अपने पंजे से पकड़ लिया जिससे उसके नाखून आरवी की नाज़ुक कमर पर जा लगे। आरवी की आह्ह निकल गयी पर फर्क किसे पड़ना था।

    विहान ने उसको और भी कसके पकड़ते हुए दांत पीसते हुए कहा, "देखने दो उन्हें और सोचने दो जो सोचना हो, मुझे किसी से कोई फर्क नही पड़ता और वैसे भी ज्यादा से ज्यादा क्या होगा उनके सामने भी तुम्हारा असली चेहरा आ जाएगा जैसे आज मेरे सामने आ गया है, कही तुम इसीलिए ही तो नही घबरा रही की अब सब जान जाएंगे कि उस भोले से चेहरे की पीछे एक बेहूदा और चालबाज़ लड़की छुपी है।"

    आरवी की आँखे हैरानी से बड़ी बड़ी हो गयीं। उसने हैरानी से कहा, "तुम कहना क्या चाहते हो, साफ साफ कहो मैंने ऐसा क्या किया है जो तुम मेरे बारे मे इतनी घटिया बातें बोल रहे हो? कौनसा असली चेहरा तुम्हारे सामने आ गया है जो तुम गुस्से मे पागल हुए जा रहे हो।"

    अब आरवी ने भी हल्के गुस्से मे सवाल किया। विहान ने उसकी बाँह पकड़कर उस्को अपने करीब करते हुए गुस्से से गरजते हुए कहा,"सही कहा तुमने, हो गया हूँ मैं पागल। तुम्हारे धोखे ने मुझे गुस्से से पागल होने पर मजबूर कर दिया है।"

    "किया क्या है मैंने," आरवी ने उसको खुदसे दूर करने की कोशिश करते हुए गुस्से मे सवाल किया। अगले ही पल विहान ने उसे झटके से ज़मीन पर धकेल दिया और गुस्से से बोला, "क्या किया है तुमने। तुम बताओ क्या गुल खिला रही हो तुम मेरे पीठ पीछे, शादी का नाटक मेरे सामने और अय्याशी किसी और के साथ कर रही हो।"

    उसके गुस्से को देखकर आरवी सहम गयी। गिरने से उसके हाथ और कोहनी पर चोट लग गयी थी उसने डबडबाई आँखों से उसे देखते हुए भारी गले से कहा "ये तुम क्या कर रहे हो, तुम जानते हो मेरा कभी किसी लड़के से कोई रिलेशन नही रहा है फिर ऐसी बातें क्यों कर रहे हो मेरे बारे मे।"

    उसने रुआसि होकर सवाल किया। विहान व्यंग्य भरी मुस्कान लिए उसके तरफ बढ़ने लगा तो आरवी सहमी हुई सी पीछे सरहते हुए बोली, "विहान देखो मुझे नही पता तुम किस बारे मे बात कर रहे हो, मैं तुम्हारे अलावा किसी लड़के को नही जानती। हमारी शादी होने वाली है आज, तुम मेरे बारे मे ऐसा कैसे सोच सकते हो? ज़रूर तुम्हे कोई गलतफहमी हुई है मैंने तो कुछ भी नही किया है।"

    अब तक विहान उसके पास आ गया था, आरवी सरकते हुए दीवार से जा लगी थी। विहान उसके सामने बैठ गया तो आरवी खुदमे सिमटने लगी। उसने गुस्से मे आरवी की कलाई पकड़ी और उसकी हथेली को खोलते हुए गुस्से से गरजा, "अच्छा तो तुम्हारी हथेली पर ये किसका नाम लिखा है मेरा नाम तो V से शुरू होता है तो ये किसके नाम का S अपनी हथेली पर लिखवाकर घूम रही हो।"

    उसकी बात सुनकर आरवी की आँखे बड़ी बड़ी हो गयीं। मुँह से शब्द ही नही निकले। उसकी चुप्पी विहान के गुस्से से बढ़ाने का काम कर गई। ठीक इसी वक़्त बाहर से गेट खटखटाने की आवाज़ आई साथ ही रश्मि की भी आवाज़ आई,"आरवी अंदर क्या हो रहा है? दरवाजा खोल आंटी बहुत परेशान हो रही है और ये कैसी आवाजे आ रही है बाहर। तू दरवाजा खोल।"

    उसकी बात सुनकर आरवी घबरा गयी उसने विहान को देखकर धीरे से कहा, "मेरा विश्वास करो मेरा किसी लड़के के साथ कोई चक्कर नही चल रहा है। बाहर सब है, अभी यहाँ से चले जाओ प्लीज़।"

    उसने मिन्नत करते हुए कहा पर विहान टस से मस् नही हुआ। ठीक इसी वक़्त बाहर से फिरसे आवाज़ आई,"आरु बेटा दरवाजा खोलो, विहान बेटा आप दरवाजा खोल दीजिये, हमारा दिल घबरा रहा है अगर कोई बात है तो हम मिलकर बात करते है न बेटा दरवाजा खोलिए।"

    बाहर अब अच्छी खासी भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी, अनुपमा जी परेशान हो गयी थी, रश्मि भी घबरा रही थी।

    अनुपमा जी की परेशानी भरी आवाज़ सुनकर आरवी ने खुदको संभालते हुए कहा, "माँ आप शांत हो जाइये। विहान को मुझसे कुछ बात करनी थी हम अभी दरवाजा खोलते है।" उसने उठते की कोशिश की पर विहान ने उसको वापिस ज़मीन पर धक्का दे दिया।

    उसकी चूड़ियाँ टूटकर उसकी कलाई मे घुस गयी तो उसकी दर्द से अह्ह निकल गयी अगले ही पल विहान ज़ोर से चीख उठा, "ये दरवाजा तब तक नही खुलेगा जब तक मुझे मेरे सवालों के जवाब नही मिल जाते। कौन है वो जिसके साथ तुम गुलछर्रे उड़ा रही हो, किसके साथ मिलकर तुम मुझे धोखा दे रही हो।

    शायद तुम भूल गयी हो कि मैं तुम्हारे साथ क्या कर सकता हूँ। मेरे सवालों का जवाब दो वरना शादी से पहले तुम्हारे साथ सुहागरात मनाऊंगा और फिर छोड़ जाऊंगा तुम्हे, देखता हूँ उसके बाद तुम्हारा यार तुम्हे कैसे अपनाता है।"

    उसकी बात सुनकर बाहर मौजूद अनुपमा जी का दिल बैठ गया, वो घबराकर दरवाजा पीटते हुए दरवाजा खोलने को कहने लगी वही रश्मि भी घबरा गयी। आरवी की आँखे फटी की फटी रह गयीं। बाहर लोग बातें बनाने लगे। आरवी के मुह से कुछ निकला ही नही तो विहान ने उसके दोनों गालों को पकड़कर दबाते हुए कहने लगता है

    "तुम ऐसे नही मानोगी, अब तो मुझे तुम्हे दिखाना ही पड़ेगा की मैं कौन हूँ और तुम्हारे साथ क्या क्या कर सकता हूँ। मुझे धोखा देकर किसी और की होना चाहती थी न, अब देख मैं तेरा क्या हश्र करता हूँ। सारी दुनिया थुकेगी तुझपर और तेरा वो यार भी तुझे छोड़ देगा तब देखता हूँ क्या करेगी तू।"

    आरवी अब उसके इरादों को समझकर अंदर तक काँप उठी आँखों से आँसू बहने लगे उसने बमुश्किल खुदको संभालते हुए कहना शुरू किया,"तुम मुझे गलत ............मैंने तुम्हे धोखा नही वो S गलती ................मैंने तुम्हे धोखा नही छोड़ दो मुझे ..............."

    "ऐसे कैसे छोड़ दूँ तुझे। बहुत बढ़ गयी है तेरी हिम्मत मुझे धोखा देने चली है। अब तो तुझे दिखाना ही पड़ेगी की विहान बजाज को धोखा देने की क्या सज़ा मिलती है। मैं तो तुझे इज़्ज़त से अपनी बीवी बनाकर तुझे अपने पास रखना चाहता था पर अब ऐसा नही करूँगा। बहुत शौक है न तुझे अय्याशी करने का। नए नए लड़कों को अपनी खूबसूरती और मासूमियत के जाल मे फंसाने का तो आज मैं तेरी खूबसूरती पर ऐसा दाग लगाऊंगा की दोबारा कोई लड़का तेरी तरफ देखेगा भी नही।

    तेरा वो यार भी मेरी जूंठन को अपनाने से इंकार कर देगा। तब समझ आएगा तुझे की मुझसे टकराकर तूने कितनी बड़ी गलती की है। शादी तो अब मैं तुझसे करूँगा नही पर तुझ जैसी खूबसूरती कली को खिला हुआ फूल तो मैं ही बनाऊंगा। तेरी जवानी का रस चूसने की मेरी इच्छा आज पूरी होकर ही रहेगी और उसके बाद छोड़ जाऊंगा मैं तुझे इस दुनिया के ताने सुनने के लिए। उस शाम जो हुआ वो नशे मे हुआ था अब तेरे पूरे होशो हवास मे तुझे अपना बनाऊंगा।"

    वो हैवानीयत भरी निगाहों से आरवी को देखते हुए उसके करीब आने लगा आरवी पीछे कहा जाती वो खुदमे सिकुडी हुई उसको विश्वास दिलाने की कोशिश करती रही कि उसने कुछ नही किया। बाहर से रश्मि रजनी जी दरवाजा पीटते हुए उसे खोलने को कहते रहे अनुपमा जी की हालत खराब हो गयी थी उनकी आँखों के सामने उनकी दुनिया उजड़ने वाली थी।

    उन्हें चक्कर आने लगे तो रश्मि ने उन्हें संभाला। सब दरवाजा खोलने को कह रहे थे पर विहान को ना बाहर से किसी की आवाज़ सुनाई दे रही थी और न ही आरवी की मिन्नतों का उसपर कोई असर हो रहा था। वो आरवी के ऊपर झुकते हुए उसके चेहरे उसके गालों को अपनी उंगलियों से सहलाने लगा तो आरवी ये बर्दाश नही कर सकी।

    उसने उसको अपनी पूरी तागत लगाकर उसको खुदसे दूर धक्का दिया और उठकर भागने लगी। विहान दूसरी तरफ लुढ़क गया था पर जैसे ही आरवी कुछ कदम आगे बढ़ी उसने उसकी चुन्नी पकड़कर उसको पीछे खींच लिया, आरवी के मुह से चीख निकल गयी। "माँ"

    इसके साथ ही अनुपमा जी की आँखों से आँसू बह चले, वो दरवाजा पीटते हुए कहने लगी, "विहान बेटा आरवी को छोड़ दो, जैसा तुम सोच रहे हो वैसा नही है, मेरी बेटी ऐसी नही है, भगवान के लिए हमपर तरस खाओ, छोड़ दो मेरी बच्ची को।"

    वो गिड़गीड़ाते हुए उसे आरवी को छोड़ने को कहने लगी पर विहान पर कोई असर नही हुआ। उसके खींचने से आरवी मुह से बल ज़मीन पर जा गिरी उसने फिर उठने की कोशिश की पर विहान ने उसको अपनी तरफ खींच लिया और खुद उसके ऊपर आ गया।

    आरवी छटपटाने लगी तो विहान ने शैतानी मुस्कान के साथ कहा,"इतने मे ही छटपटाने लगी। अभी तो मैंने कुछ किया ही नही है। जितना छटपटाना हो छटपटा ले पर आज तुझे मुझसे कोई नही बचा सकता। वैसे भी मैं ये शादी का नाटक बस तुझे हासिल करने के लिए कर रहा था पर अब तेरी असलियत जानने के बाद मैंने अपना इरादा बदल दिया। अब तो मैं बिना तुझसे शादी किये ही तेरे साथ सुहागरात मनाऊंगा।"

    उसने आरवी को चुनरी को उसके ऊपर से हटा दिया और बेतरतिबि से उसके चेहरे को उसके होंठों को अपनी हथेली से छूने लगा। आरवी छटपटाती रही उसको छोड़ने को कहती रही पर उसपर कोई असर ही नही हुआ। वो उसके चेहरे के तरफ झुकने लगा।

    ठीक इसी वक़्त नीचे गेट के पास आकर एक गाड़ी रुकी पीछे से अर्पिता जी तो आगे से शान उतरा। शान का चेहरा गुस्से मे तमतमा रहा था आखिर उसे जबरदस्ती यहाँ लाया गया था। वो उनके पीछे पीछे चलने लगा।

    अर्पिता जी के लबों पर मुस्कान फैली हुई थी पर जैसे ही उन्होंने चौखट के अंदर कदम रखा वहाँ का शोर शराबा चीख पुकार सुनकर उनके दिल दहल उठा। कदम जहाँ थे वही रुक गए और मुस्कान एक झटके मे गायब हो गयी।


    To be continued...

    आगे की स्टोरी नेक्स्ट चैप्टर में।

  • 8. Forced by destiny - Chapter 8

    Words: 1994

    Estimated Reading Time: 12 min

    विहान आरवी के कमरे मे घुस गया था और उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था। उसने आरवी की चुनरी को उसके ऊपर से हटा दिया और बेतरतीबी से उसके चेहरे को, उसके होंठों को अपनी हथेली से छूने लगा। आरवी छटपटाती रही, उसको छोड़ने को कहती रही पर उसपर कोई असर ही नही हुआ। वो उसके चेहरे के तरफ झुकने लगा।

    ठीक इसी वक़्त नीचे गेट के पास आकर एक गाड़ी रुकी, पीछे से अर्पिता जी तो आगे से शान उतरा। शान का चेहरा गुस्से मे तमतमा रहा था, आखिर उसे जबरदस्ती यहाँ लाया गया था। वो उनके पीछे पीछे चलने लगा।

    अर्पिता जी के लबों पर मुस्कान फैली हुई थी पर जैसे ही उन्होंने चौखट के अंदर कदम रखा वहाँ का शोर शराबा, चीख पुकार सुनकर उनके दिल दहल उठा।

    कदम जहाँ थे वही रुक गए और मुस्कान एक झटके मे गायब हो गयी। उनका दिल किसी अनहोनी का सोचकर घबराने लगा, उन्होंने सीढ़ियों के तरफ कदम बढ़ा दिये, वही शान भी बिना किसी भाव के उनके पीछे चला गया।

    अर्पिता जी सीढ़ियों पर से दौड़ती हुई ऊपर पहुँची और फिर वहाँ जमी भीड़ को देखकर बोली, "क्या हो रहा है यहाँ?"

    उनकी आवाज़ सुनकर सबने उनके तरफ देखा और सामने से हटने लगे। उनकी आवाज़ सुनते ही अनुपमा जी उनके तरफ घूम गयी। उन्हें अपने सामने देखकर उन्होंने रोते हुए कहा, "अर्पिता मेरी बेटी को बचा ले, कुछ भी करके मेरी बेटी को उस हैवान से बचा ले।"

    वो फुट फुटकर रो पड़ी। उनकी बात सुनकर अर्पिता जी हैरान हो गयी, पर उनके आँसुओं को देखकर उन्होंने खुदको संभाला और उनके आँसू पोंछते हुए बोली, "अनु तू चुप हो जा, मुझे आराम से बता की क्या हुआ है? मैं हूँ न मैं आरवी को कुछ नही होने दूँगी।"

    "आंटी बातें बादमे पूछ लीजियेगा अभी कुछ भी करके हमें ये दरवाजा तोड़ना होगा वरना आज यहाँ अनर्थ हो जाएगा।" रश्मि ने रोते हुए कहा। उनकी बात सुनकर और अंदर से आती चीखों की आवाज़ सुनकर वो समझ गयी कि कुछ बहुत बुरा होने वाला है। उन्होंने अनुपमा जी को समझाते हुए कहा, "तू चिंता मत कर, कुछ नही होगा आरवी को मैं कुछ करती हूँ।"

    वो भागते हुए सीढ़ियों के पास पहुँची तो शान वही खड़ा था। उन्हें परेशान देखकर शान ने भी परेशान होकर कहा, "क्या हुआ बड़ी मां, आप इतनी परेशान क्यों लग रही है?"

    "शान क्या आप अपनी बड़ी मां की ज़रा भी इज़्ज़त करते है?" उन्होंने अपने आँसुओं को रोकते हुए सवाल किया तो शान ने उनके आँसुओं को पोंछते हुए कहा, "बड़ी मां आप ये कैसा सवाल कर रही है? आप बहुत अच्छे से जानती है कि मैं आपकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ।"

    "अगर ये सच है तो बिना कोई सवाल किये हमारी एक बात मानेंगे?" उनका सवाल सुनकर शान ने झट से कहा, "कहिये बड़ी माँ आपकी आज्ञा मेरे लिए पत्थर की लकीर है।"

    अब अर्पिता जी ने कुछ नही कहा, उसकी कलाई पकड़ी और उसे लेकर आरवी के कमरे के तरफ बढ़ गयी। शान को आता देख जहाँ सभी औरतों की आँखे बड़ी बड़ी हो गयी क्योंकि वो बहुत ही हैंडसम लग रहा था वही रश्मि की नम आँखों मे चमक आ गयी।

    अर्पिता जी उसे लेकर आरवी के कमरे के बाहर पहुँची, और बंद दरवाजे को देखते हुए बोली, "आज हमारी इज़्ज़त आपके हाथों मे है। अंदर एक लड़की के साथ गलत हो रहा है, और आपके कुछ भी करके उन्हें बचाना है। समझ लीजिये, यही आपकी बड़ी माँ की आज्ञा है।"

    "आपकी आज्ञा मेरे सर आँखों पर। अब उस लड़की को मेरे होते कोई हाथ नही लगा सकता" शान ने गुस्से मे कहा और अगले ही पल एक ज़ोरदार किक मारकर उसने दरवाजे को तोड़ दिया और सीधे अंदर के तरफ बढ़ गया। उसके पीछे पीछे रश्मि, अर्पिता जी, रजनी जी, अनुपमा जी भी अंदर घुस गए तो वहाँ का नज़ारा देखकर उनके कदम गेट पर ही रुक गए।

    आरवी ज़मीन पर पड़ी थी, उसकी चुनरी दूसरी तरफ पड़ी हुई थी, और वो बिलखकर रोते हुए विहान को खुदसे दूर करने की कोशिश कर रही थी, जबकि विहान उसके जिस्म को चूमने की कोशिश कर रहा था।

    शान ने जैसे ही ये नज़ारा देखा उसकी आँखों मे खून उतर आता वो गुस्से मे उनके तरफ बढ़ गया और उसका कॉलर पकड़कर उसको झटके से आरवी के ऊपर से उठाकर दूसरी तरफ फेंक दिया।

    आरवी ने अपनी आँखे खोलकर देखा, अगले ही पल उसके चेहरे और बदन पर उसकी चुनरी आकर गिरी। शान ज़ोर से चीखा, "बड़ी मां इसे यहाँ से लेकर जाइये इस हरामखोर को तो मैं देखता हूँ, हिम्मत कैसे हुई इसकी किसी लड़की के साथ जबरदस्ती करने की।"

    उसकी बात सुनकर अर्पिता जी और रश्मि जी आरवी के तरफ दौड़ पड़ी वही अनुपमा जी वही बैठ गयी, अपनी बेटी कि ये हालत देख उनके आँसू नही रुक रहे थे। रश्मि ने आरवी को उठाकर उसको कवर किया, आरवी बुरी तरह रो रही थी। अर्पिता जी ने उसे अपने सीने से लगा लिया तो वो उनसे लिपटकर रो पड़ी।

    शान गुस्से मे विहान के तरफ बढ़ा तब तक वो भी संभल चुका था, उसने शान को देखकर गुस्से से चिल्लाकर कहा, "कौन है तू और हमारे बीच मे आने की हिम्मत कैसे हुई तेरी।"

    "जैसे तेरी हिम्मत हुई उस लड़की की मर्ज़ी के बिना उसके साथ ये सब करने की। और मैं कौन हूँ ये जानने की औकात नही है तेरी साले। अकेली लड़की पर अपनी हिम्मत दिखाकर खुदको मर्द समझ रहा है अब मुझसे जीतकर दिखा।" शान गुस्से मे गर्जा और उसके मुह पर एक ज़ोरदार पंच दे मारा।

    विहान के होंठ के किनारों पर खून की बुँदे उभर आई। उसने गुस्से मे उसके तरफ देखते हुए कहा, "तू कौन होता है हमारे बीच आने वाला, वो मेरी होने वाली बीवी है, मैं जो चाहूँ करूँगा उसके साथ मुझे कोई नही रुक सकता।"

    "होने वाली पत्नी है तेरी अभी तक शादी हुई नही है, और शादी होने से भी किसी लड़के को किसी लड़की के मर्ज़ी के खिलाफ उसके पास जाने का हक नही होता। इतना ही शौक था तो शादी के बाद करता जो करना था। कोई नही रोकता तुझे पर यहाँ मेरे होते हुए तो मैं तुझे उस लड़की को हाथ भी नही लगाने दूंगा।"

    शान गुस्से मे गरजा और उस पर धुआँधार मुक्कों और लातों की बारिश करने लगा। विहान संभल तक नही पा रहा था, शान के सामने उसके लिए टिक पाना नामुमकिन था।

    शान ने उसको ज़मीन पर अटक दिया तो विहान उस तरफ जा गिरा जहाँ आरवी खड़ी थी, अर्पिता जी से लिपटी हुई। उसके चेहरे पर गुस्से के भाव उभर आए वो उठकर खड़ा हुआ और आरवी की बाँह पकड़कर उसको अपनी तरफ खींचते हुए बोला " तो यही है तेरा यार जिसके लिए तूने मुझे धोखा दिया। तुझे क्या लगता है, ये तुझे मुझसे बचा लेगा, बिल्कुल नही।"

    वो इससे आगे कुछ कहता की अर्पिता जी ने एक ज़ोरदार तमाचा उसके गाल पर दे मारा और आरवी की बाँह उससे छुड़ाते हुए गुस्से से गरजी, "सोचना भी मत इसे हाथ लगाने के बारे मे वरना मेरा बेटा तुम्हे जान से मार देगा। तुम्हारे जैसे घटिया सोच के आदमी को मैं अपनी बेटी के आस पास भी नही आने दूँगी।"

    "ए बुढ़िया दूर रह हमारे मामले से वरना," उसने गुस्से मे अर्पिता जी को धमकाते हुए इतना कहा ही था एक ज़ोरदार पंच उसके मुह पर आकर लगा इसके साथ ही शान की गुस्से भरी आवाज़ वहाँ गूंज उठी, "दूर रह मेरी बड़ी माँ से। अगर उन्हें एक खरोंच भी आई तो आज यहाँ से तेरी लाश वापिस जाएगी।"

    वो गुस्से मे गरजा और एक बार फिर उसपर टूट पड़ा। अब अनुपमा जी ने अपने आँसू पोंछे और उसके तरफ बढ़ गयी। उन्होंने शान को पीछे रहने को कहा फिर पिटाई खाकर अधमरे हो चुके विहान के कॉलर को पकड़कर उसको खड़ा किया।

    सबकी नज़रें उन्ही पर टिकी हुई थी। उन्होंने एक के बाद उसके गालों पर दस बारह ज़ोरदार तमाचे दे मारे और गुस्से से चिल्लाकर बोलीं, "हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मेरी बेटी को हाथ लगाने की। मैंने तो सोचा की तुम एक अच्छे लड़के हो मेरी बेटी तुम्हारी साथ खुश रहेगी पर नही, मैं गलत थी।

    अब मुझे एहसास हो रहा है कि मैं अपनी बेटी को अपने ही हाथों किस नर्क मे धकेलने जा रही थी। अच्छा हुआ जो शादी से पहले ही तुम्हारा असली चेहरा मेरे सामने आ गया और मेरी बेटी की ज़िंदगी बर्बाद होने से बच गयी। अगर ये शादी हो जाती तो मैं खुदको कभी माफ नही कर पाती। तुम मेरी बेटी के लायक ही नही हो, तुम क्या उसके चरित्र पर उंगली उठा रहे हो जब तुम्हारी खुदकी सोच इतनी घटिया और गिरी हुई है।"

    उन्होंने एक बार फिर एक ज़ोरदार तमाचा उसके गाल पर रसीदते हुए गुस्से से चिल्लाकर कहा "मेरी बेटी को छूने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी निकल जाओ मेरे घर से अभी इसी वक़्त वरना मुझे नही पता की मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगी।"

    वो बेहद गुस्से मे लग रही थी। विहान उनके तरफ बढ़ा पर शान उसके आगे आकर खड़ा हो गया और गुस्से से उसको घूरने लगा। विहान ने पीछे खड़ी अनुपमा जी और आरवी को देखा। आरवी उनसे लिपटकर रो रही थी। उसने नफरत से दोनों को देखा और धमकी भरे लहज़े मे बोला,

    "तुम दोनों को तो मै छोडूंगा नही। इस इंसल्ट का बदला मैं लेकर रहूँगा, दोनों माँ बेटी की ज़िंदगी बर्बाद न कर दिया तो मेरा नाम भी विहान खुराना नही। मैं भी देखता हूँ कब तक बचाता है ये लड़का तुम दोनों को मुझसे।"

    उसने शान को घूरते हुए कहा और लड़खड़ाते कदमों से वहाँ से जाने लगा तभी रश्मि उसके सामने आकर खड़ी हो गयी, वो बेहद गुस्से मे लग रही थी विहान कुछ समझ पाता उससे पहले हि रश्मि ने उसके गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा दे मारा और गुस्से से चिल्लाई, "ये मेरी दोस्त पर बुरी नजर डालने के लिए," फिर एक और चांटा उसके दूसरे गाल पर जमाते हुए बोली, "ये उसको छूने के लिए उसे इतना दर्द देने के लिए। अब निकल जाओ यहाँ से।"

    शान के होते हुए विहान जीत नही सकता था ये बात वो जानता था इसलिए उससे जलील होकर वो जहर के घूँट पीकर उसको गुस्से से घूरते हुए वहाँ से चला गया।

    शान ने अपने कॉलर के बटन को खोलते हुए गहरी सांस छोड़ते हुए सबको देखकर कहा, "यहां कोई तमाशा नही चल रहा जो आप सब उसका मज़ा ले रहे है। हटिये यहाँ से।"

    वो उसको हटाते हुए वहाँ से जाने लगा फिर रुककर अर्पिता जी को देखकर बोला, "मैं बाहर आपका इंतज़ार कर रहा हूँ।"

    इतना कहकर वो तेज़ कदमों से वहाँ से चला गया। आरवी ने अनुपमा जी के गले लगे हुए ही रोते हुए कहा, "माँ मैंने कुछ नही किया। मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नही चल रहा।"

    अनुपमा जी ने उसे खुदसे अलग किया और उसके आँसुओं को पोंछते हुए बोली, "हमें अपनी बेटी पर पूरा विश्वास है। आपको कुछ कहने की ज़रूरत नही है हम जानते है हमारी बेटी कभी ऐसा कुछ नही कर सकती जिससे उनके माँ बाप का सर किसी के आगे शर्म से झुके। और आप रो क्यों रही है, हमें तो खुश होना चाहिए की समय रहते हमें विहान की सच्चाई पता चल गयी और हमारी बच्ची की ज़िंदगी बर्बाद होने से बच गयी।"

    "ज़िंदगी तो अब बर्बाद होगी। लड़का जो कुछ कहकर गया है दुनिया उसे ही सच मानेगी और अब हमें नही लगता कि अभी जो यहाँ हुआ उसके बाद वो बारात लेकर इस दरवाजे पर आने वाला है। सब तैयारी होने के बाद अगर बारात नही आई तो क्या इज़्ज़त रह जाएगी आरवी की। कौन शादी करेगा ऐसी लड़की से जिसके होने वाले पति ने उसे बदचलन कहकर उसको ठुकरा दिया हो।" उनमे से एक औरत ने कहा तो उनकी बात सुनकर अर्पिता जी गुस्से से गरजी, "एक औरत होकर आप ये कैसी बातें कर रही है? जो हुआ उसमे आरवी का तो कोई दोष नही है।"

    "हा बहन जी जो हुआ उसमें उसकी नही आपकी गलती है।"

    अब दूसरी औरत ने आगे आते हुए कहना शुरु किया तो अर्पिता जी उन्हें हैरानी से देखनी लगी।


    To be continued...

  • 9. Forced by destiny - Chapter 9 राज़

    Words: 1906

    Estimated Reading Time: 12 min

    "हा बहन जी जो हुआ उसमें उसकी नही आपकी गलती है।" (अब दूसरी औरत ने आगे आते हुए कहना शुरु किया तो अर्पिता जी उन्हें हैरानी से देखनी लगी। उस औरत ने अब आगे कहा) "हाँ आपकी वजह से टूटी है ये शादी। हमने कहा था विधवा का साया भी अगर किसी शुभ काम पर पड़ जाए तो बहुत बड़ा अभशगुण होता है पर आपने हमारी नही सुनी। देख लीजिये अपनी करनी का फल। बेचारी बच्ची की शादी शादी वाले दिन टूट गयी और जो बदनामी हुई सो अलग। अब कौन करेगा इस बच्ची से शादी"

    "हाँ हाँ सब आपकी वजह से हुआ है। अपने तर्कों से आपने हमें निरुत्तर कर दिया था पर आज हम चुप नही रहेंगे। आपकी वजह से इस बच्ची की ज़िंदगी बर्बाद हो गयी। उसकी शादी टूट गयी उसके चरित्र पर दाग लग गया। अब कौन अपनाएगा इस बच्ची को कौन जोड़ेगा इस घर से रिश्ता?" एक और औरत ने पहली औरत का समर्थन किया अब एक और औरत आगे आते हुए बोली,

    "हाँ बताइये अब कौन थामेगा इस बच्ची का हाथ। उस दिन तो बड़े गुरुर से कह रही थी आप कि अगर इस शादी मे कोई भी अड़चन आएगी तो उसकी ज़िम्मेदारी आप लेंगी।

    अगर रिश्ता टूटा तो आप आरवी की शादी अपने बेटे से करवाएंगी, उसे अपनी बहु बनाएंगी। अब क्या कहेंगी आप? आज जब आपके वजह से ये शादी टूट गयी तो आप अपनी बात से मुकर कर बचकर यहाँ से निकलना चाहती है।

    दूसरों का बहुत भाषण देती है न आप कि ये सही है ये गलत है तो अब आप क्या कर रही है? बोलना बहुत आसान होता है पर जब बात करने की आए तो सब पीछे हट जाते है जैसे आज आप पीछे हट रही है क्योंकि एक ऐसी लड़की जिसकी शादी अभी अभी टूटी है और जिसके साथ अभी अभी जबरदस्ती की गयी है उसे आप अपने घर की बहु कैसे बना सकती है?

    कहिये क्या अब लेंगी आप इन सबकी ज़िम्मेदारी, करवाएंगी अपने बेटे की शादी आरवी से? दर्जा दे पाएंगी उसे अपने घर की बहु होने का?"

    उनकी बातें सुनकर अर्पिता जी सोच मे पड़ गयी। सबकी नज़रें उन्ही पर टिकी हुई थी। अनुपमा जी भी नम आँखों से उन्हें ही देख रही थी।

    कुछ पल बाद वो आरवी के तरफ बढ़ गयी। उन्होंने उसको अनुपमा जी से अलग किया तो आरवी नम आँखों से उन्हें देखने लगी।

    अर्पिता जी ने प्यार से उसके गाल को छूते हुए कहना शुरु किया, "आप बहुत प्यारी है और हमें आपपर पूरा विश्वास है की जो भी बातें वो कह रहा था वो सब झूठ थी क्योंकि आपकी जैसी मासूम बच्ची वो सब कभी कर ही नही सकती। आप आज भी गंगा जल के तरह पवित्र है। और हमें खुशी होगी अगर आप जैसी प्यारी बच्ची बहु बनकर हमारे घर आए तो, पर हम आपके साथ कोई जबरदस्ती नही करेंगे। अगर आपकी हाँ हो तभी हम आपका रिश्ता अपने बेटे से जोड़ेंगे।"

    आरवी नम आँखों से अनुपमा जी को देखने लगी तो अब अर्पिता जी ने उसकी हथेली को अपनी हथेली मे थामते हुए कहा, "अनु मुझे माफ कर दे, शायद आज जो हुआ वो मेरी वजह से हुआ है।"

    "ऐसा मत कह अर्पिता, तेरी इसमें कुछ गलती नही" अनुपमा जी ने उनकी बात बीच मे काटते हुए कहा तो अर्पिता जी ने अब आगे कहा,

    "अनु हम बचपन के दोस्त है। तेरी बेटी मुझे पहली नजर मे ही अपने बेटे के लिए पसन्द आ गयी थी पर उसका रिश्ता तय हो गया था तो मैंने तुझसे कुछ कहा नही पर अब जब वो रिश्ता टूट गया है तो मैं तुझसे ये कहना चाहती हूँ कि मैं तेरी बेटी को अपने घर की बहु बनाना चाहता हूँ, उसे अपने बेटे की पत्नी बनाकर पूरे इज़्ज़त और मान सम्मान के साथ अपने घर लेकर जाना चाहती हूँ।"

    अनुपमा जी कुछ परेशान हो गयी तो उन्होंने आगे कहा, "तू चिंता मत कर मैंने उसे अपनी बेटी माना है तो उसे अपनी बेटी के तरह ही रखूंगी। उसे कभी वहाँ कोई तकलीफ नही होगी। मैं जानती हूँ जो आज हुआ वो नही होना चाहिए था पर जो हुआ उसे बदला नही जा सकता। अच्छा हुआ जो समय पर उस लड़के का असली चेहरा हमारे सामने आ गए और आरवी की ज़िंदगी बर्बाद होने से बच गयी।

    तू मेरे बेटे को देख चुकी है उसका गुस्सा थोड़ा खराब है पर दिल का बहुत अच्छा है, लड़कियों की इज़्ज़त करता है। अगर तेरी हाँ हो तो मैं आरवी को अपनी बहु बनाना चाहती हूँ। आज उसी मुहूरत पर दोनों की शादी करवाकर हमारी दोस्ती को रिश्तेदारी मे बदलना चाहती हूँ।"

    "मैं तेरा एहसान कभी नही भूलूंगी। तूने मेरी बच्ची को अपने घर की बहु बनाने का फैसला लेकर मुझपर बहुत बड़ा उपकार किया है।" अनुपमा की आँखों से आँसू बहने लगे उन्होंने उनके आगे हाथ जोड़ दिये।

    "मैंने तुझपर कोई एहसान नही किया है बल्कि एहसान तो तेरा होगा मुझपर जो तू अपनी इतनी प्यारी बेटी को मुझे दे देगी।" उन्होंने उनके हाथ को नीचे करते हुए कहा फिर आगे बोली, "पर तेरे कुछ भी फैसला करने से पहले मुझे अपने बेटे के बारे मे तुझे कुछ बताना है।"

    उन्होंने रजनी जी को देखा तो उन्होंने सब औरतों को देखते हुए कहा, "अब आप सबका यहाँ कोई काम नही है। देख लिया न आप सबने तमाशा अब जाकर तैयार हो जाइये क्योंकि आज शादी उसी मंडप और उसी मुहूरत पर होगी।"

    उन्होंने सबको बाहर निकाला फिर खुद भी जाने लगी तो अर्पिता जी ने उन्हें रोकते हुए कहा, "आप रुक सकती है आप भी तो अनु की दोस्त है उनका परिवार है।"

    अब उस कमरे मे अर्पिता जी, रश्मि आरवी अनुपमा जी और रजनी जी थी। सबकी नज़रे अनुपमा जी पर टिकी हुई थी। उन्होंने अब कहना शुरु किया, "मेरे बेटे का नाम शांतनु मल्होत्रा है। नाम सुना होगा तुमने।"

    अनुपमा जी ने तो इंकार कर दिया पर रश्मि झट से बोली, "वही शांतनु मल्होत्रा जो फेमस डिरेक्टर और प्रोड्यूसर है और थियेटर मे ही उनका बहुत नाम है। जिनकी एक झलक देखने के लिए लड़कियाँ दीवानी बनी फिरती है?"

    उसने बेहद एकसाइटमेंट के साथ कहा, तो उन्होंने मुस्कुराकर हा मे सर हिला दिया और आगे कहा, "हमारी एक प्यारी सी गुड़िया है मतलब शान की एक छोटी सी बेटी है जिनमें उनकी जान बसती है, पर उनकी ज़िंदगी मे कोई दूसरी लड़की नही है, हम ज्यादा कुछ तो नही जानते पर इतना विश्वास दिलाते है कि उनकी ज़िंदगी मे अभी बस एक लड़की है।

    और वो है उनकी बेटी। हमें अपने बेटे के लिए एक समझदार पत्नी और उस बच्ची के लिए एक माँ चाहिए जो उन दोनों को संभाल सके और हमें पूरा विश्वास है कि आरवी ये कर सकती है। बस यही सच्चाई है जो हमें तुम्हे बतानी थी। अगर ये जानने के बाद भी तुम्हारी इस रिश्ते के लिए हाँ है तो हम खुशी खुशी आरवी को अपनी बहु बनाकर उन्हें अपने साथ लेकर जाना चाहेंगे।"

    "हमें ये जानकर अच्छा लगा की तुमने हमें धोखे मे नही रखा और ये जानने के बाद भी हमें ये रिश्ता मंज़ूर है। अगर हमारी आरवी एक बच्ची की ज़िंदगी मे माँ की कमी को पूरा कर सके तो ये तो बहुत अच्छी बात होगी। हमारी हाँ है बस एक बार आरवी से पूछ ले।"

    अर्पिता ने मुस्कुराकर हामी भर दी। अर्पिता जी अब बाहर चली गयी। अनुपमा जी ने आरवी को बेड पर बिठाया फिर उसके सामने खुद बैठ गयी। आरवी ने अपनी नज़रें झुकाई हुई थी। उन्होंने प्यार से उसके गाल को छूकर कहना शुरु किया।

    "Sorry बेटा अपनी माँ ने आपके लिए एक गलत फैसला ले लिया। हम अंजाने मे अपनी बेटी को उस नर्क मे धकेलने वाले थे पर भगवान ने सही वक़्त पर हमारी आँखे खोल दी। अब हम अपनी गलती को सुधारना चाहते है। अर्पिता को हम बचपन से जानते है वो बहुत अच्छी है हमें पूरा विश्वास है की उनका बेटा आपके लिए बिल्कुल सही रहेगा।

    हमने देखा वो औरतों की कितनी इज़्ज़त करता है, वो आपको हर बुरी नजर से बचाकर रखेंगे। हाँ हम मानते है कि वो माहौल आपके लिए नया होगा वहाँ जाकर एक बहु एक पत्नी के साथ आपको एक माँ होने का फ़र्ज़ भी निभाना पड़ेगा पर हमें अपनी बच्ची पर पूरा विश्वास है की वो इन रिश्तों को बहुत अच्छे से संभाल लेंगी। हमारी इस रिश्ते के लिए हा पर ज़िंदगी आपको बितानी है उनके साथ इसलिए आखिरी फैसला आपका ही होगा। कहिये क्या आपको ये रिश्ता मंज़ूर है?"

    आरवी ने नज़रें झुकाते हुए धीमी आवाज़ मे कहा, "अगर आपको ये रिश्ता मंज़ूर है तो मुझे भी मंज़ूर है।"

    अनुपमा जी ने उसे अपने गले से लगा लिया। आरवी ने नज़रें उठाकर एक नजर रश्मि को देखा फिर वापिस अपनी नज़रें झुका ली। अनुपमा जी तो खुश थी।

    उन्होंने उसे ढेरों आशीर्वाद दिये फिर अर्पिता जी को भी बता दिया कि उसकी हा है। वो अंदर आई और आरवी के पास चली आई। उन्होंने अपने हाथों से सोने के कड़े निकालकर उसकी कलाई मे कड़े पहनाते हुए कहा,

    "ये हमारे तरफ से हमारी बहु को नेग। आजसे आप हमारे घर की इज़्ज़त है। अब जो हुआ उसे भूल जाइये और इस नई ज़िंदगी मे खुशी खुशी कदम रखिये। आज हम आपको पूरे सम्मान के साथ अपने घर की बहु बनाकर अपने साथ ले जाएंगे। चलिए अब आप तैयार हो जाइये हम मंडप पर आपका इंतज़ार करेंगे।"

    उन्होंने प्यार से उसके माथे मे चूम लिया फिर अनुपमा जी को कुछ कहकर वहाँ से चली गयी। रजनी जी ने अब अनुपमा जी के पास आकर मुस्कुराकर कहा, "चलो बेटी की शादी की तैयारियां भी करनी है।"

    "बेटा आप आरवी को तैयार कर दीजिये, कुछ देर मे मुहूरत हो जाएगा हम तैयारी देख लेते है। " अनुपमा जी ने रश्मि से कहा तो उसने हा मे सर हिला दिया। अब दोनों वहाँ से चली गयी।

    रश्मि ने दरवाजा बंद किया और आरवी के पास आ गयी। आरवी अब भी यूँही बैठी हुई थी और कुछ परेशान लग रही थी। रश्मि ने उसके पास बैठते हुए कहा, "तुझे क्या हुआ। अच्छा हुआ ना उस कमीने से तेरा पीछा छूट गया। फिर तू क्यों परेशान है? कही उनके बच्चे के बारे मे सोचकर तो परेशान नही है तु?"

    उसकी बात सुनकर आरवी नज़रें उठाकर उसे देखा और परेशान होकर बोली, "मैं बच्चे के बारे मे सुनकर परेशान नही हूँ। तूने सुना नही उनके बेटे का नाम शांतनु मल्होत्रा है वही जिनके बारे मे रोज़ नई खबरें आती रहती है। हर दिन एक अलग लड़की के साथ होता है वो, वो एक नंबर का लड़की बाज़ है।"

    "पागल न्यूज़ मे तो कुछ भी दिखाते रहते है। उन्हें बस सुर्खियां चाहिए होती है, सीधी सी न्यूज़ मे भी नमक मसाला मारकर उसे लोगों के सामान पेश करते है और आज तक कभी कोई सबूत दिखाया है उन्होंने? वैसे भी इन बड़े आदमियों के लिए किसी के साथ बैठकर ड्रिंक वगैरह करना बहुत आम बात होती है और फिर पहले उनकी ज़िंदगी मे कोई लड़की भी तो नही थी।

    जब तेरी जैसी खूबसूरत बीवी मिलेगी तो औरों की तो उन्हें याद भी नही आएगी। और आज तूने देखा नही वो लड़कियों की कितनी इज़्ज़त करते है, मुझे नही लगता की जो भी न्यूज़ मे उनके बारे मे कहते है उसमे ज़रा भी सच्चाई है। इसलिए तू ये सब सोचना छोड़ और अपनी नई ज़िंदगी के बारे मे सोच। चल मैं तुझे तैयार कर दूँ" आरवी ने अब कुछ नही कहा, रश्मि उसको वापिस तैयार करने लगी। साथ ही उसके ज़ख़्मों पर बैंडेड भी करने लगी और उस विहान को जी भरकर कोसती भी रही।


    To be continued...

    आगे की स्टोर नेक्स्ट चैप्टर में।

  • 10. Forced by destiny - Chapter 10 अनचाही शादी

    Words: 2508

    Estimated Reading Time: 16 min

    अर्पिता जी सीधे घर से बाहर निकल गयी। शान गाड़ी से पीठ टिकाए खड़ा था, उन्हें देखकर वो सीधे खड़ा हो गया। उसने गेट खोलते हुए कहा, "बहुत वक़्त बर्बाद हो गया अब जल्दी चलिए, मुझे मीटिंग भी अटेंड करनी है।"

    "हम अभी नही जा सकते बेटा," उन्होंने गेट बंद करते हुए कहा तो शान उन्हें असमंजस मे देखने लगा, "अब शादी तो होगी नही फिर क्यों नही जाएंगी आप घर?"

    "क्योंकि शादी आज ही होगी।" उन्होंने फिरसे बिना किसी भाव के जवाब दिया तो शान उन्हें हैरानी से देखते हुए बोला, "वो लड़का दुल्हा ही था न? और उसने जो किया उसके बाद भी आप शादी होने देंगी?"

    "शादी उनसे नही हो रही बल्कि किसी और लड़के से हो रही है।" उनके चेहरे पर अब भी कोई भाव नही थे। उन्होंने शान के आगे कुछ कहने से पहले ही आगे बोलने लगी, "हमें आपसे बहुत ज़रूरी बात करनी है अंदर बैठिये।"

    वो बहुत गंभीर लग रही थी तो शान ने कोई सवाल नही किया और अंदर बैठ गया। अर्पिता जी भी अंदर बैठ गयी। अब शान ने उन्हें देखते हुए कहा, "कहिये बड़ी माँ क्या बात करनी है आपको मुझसे?"

    "बेटा हम जानते है आप हमारी बहुत इज़्ज़त करते है और आप कभी हमारी कोई बात नही टालते। आज हमने आपकी ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा फैसला लिया है और हम उम्मीद करते है की आप हमारे फैसले का मान रखेंगे। हमारे सर को सबके सामने झुकने नही देंगे। (वो कुछ कहने को हुआ तो अर्पिता जी ने आगे कहा) नही बेटा पहले आप शांति से हमारी बात सुनिये।"

    उनके कहने पर शान शांत हो गया। अब उन्होंने परसो यहाँ जो हुआ सब उसे बता दिया, उनकी बातों के साथ साथ शान के चेहरे के भाव भी बिगड़ते जा रहे थे। अब उन्होंने आज लोगों ने जो कहा और उन्होंने जो फैसला किया वो उसे बता दिया और आगे बोली, "हम जानते है कि आप शादी नही करना चाहते पर अब हम ज़ुबान दे चुके है।

    अगर आप इंकार करते है तो आपकी बड़ी माँ सिर सबके सामने शर्म से झुक जाएगा। जो हुआ उसमें उस बच्ची की कोई गलती नही है, आप अपनी बड़ी माँ पर विश्वास कर सकते है हम कभी आपके लिए कोई गलत फैसला नही लेंगे। आरवी हर तरह से आपके और हमारे घर के लिए सही है वो अंशिका को माँ का प्यार दे सकती है, बहुत प्यारी बच्ची है।

    हमारे लिए उनका हाथ थाम लीजिये वरना उनकी ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी। अपनी बड़ी माँ की ज़ुबान का मान रख लीजिये बेटा, बस इतना कर दीजिये हमारे लिए उसके बाद हम कभी आपसे कुछ नही मांगेंगे।"

    इतना कहकर वो चुप हो गयी। शान ने अब उन्हें देखकर नाराज़गी से कहा, "आप सब जानमुचकर कर रही है न? मुझे इमोशनल ब्लैकमेल करके आप मुझसे अपनी बात मनवाना चाहती है। आप जानती थी मैं कभी शादी नही करूँगा इसलिए आपने ये रास्ता चुना अपनी बात मनवाने का।"

    "नही बेटा, ऐसा नही है। हमें आरवी पहली नजर मे आपके लिए पसन्द थी ये बात सच है पर उनका रिश्ता हो चुका था तो हमने इस ख्याल को छोड़ दिया। उस दिन सबके सवाल करने पर हमने वो कहा क्योंकि हम जानते थे कि ऐसा कुछ नही होगा। पर आज जो हुआ उसके बाद हमें मजबूरन ये करना पड़ा।

    हमने ज़िम्मेदारी ली थी इस शादी की तो अगर इसमें कुछ गलत हुआ है तो उसकी ज़िम्मेदारी हमारी ही है। हम आपको फोर्स नही कर रहे बस बता रहे है कि आपकी बड़ी माँ ने ज़ुबान दी है कि वो अपने बेटे से उस बच्ची की शादी करवाएंगी। अगर आप इंकार करते है तो हम सबके सामने झूठे बन जाएंगे पर कोई बात नही। आपका जो फैसला होगा हमें मंज़ूर होगा, पर अगर आज इस बच्ची की ज़िंदगी हमारी वजह से बर्बाद हो गयी तो हम खुदको नज़रों मे गिर जाएंगे और हो सकता है हमारा ये गिल्ट हमें जीने ना दे और आप अपनी बड़ी माँ को हमेशा के लिए खो.... "

    उन्होंने इतना कहा ही था की शान ने उनकी बात काटते हुए कहा, "नही बड़ी माँ, ऐसा मत कहिये। आपको कुछ नही होगा, आप चाहती है कि मैं ये शादी करूँ तो ठीक है मैं ये शादी करूँगा पर सिर्फ आपके लिए लेकिन मैं आपको एक बात साफ साफ बता रहा हूँ।

    ये नाम की शादी आपके लिए कर रहा हूँ तो मुझसे बदले मे कोई उम्मीद मत रखियेगा। वो लड़की उस घर मे आपकी बहु बनकर रहेगी पर उसका मुझसे कोई रिश्ता नही होगा और आप दोबारा मुझे किसी बात के लिए मजबूर भी नही करेंगी। अगर इसके बाद भी आपको ये शादी करवानी हो तो करवा दीजिये मुझे उससे कोई फर्क नही पड़ेगा।"

    उसकी बात सुनकर अर्पिता जी सोच मे पड़ गयी उन्होंने खुदसे ही कहा, "हमें अपने महादेव पर पूरा विश्वास है अगर उन्होंने आप दोनों को मिलवाया है तो वही आप दोनों के बीच सब ठीक करेंगे। आरवी इतनी अच्छी है की उनके साथ रहने के बाद भी आप उनसे मुह फेरकर रह सके ये संभव नही है। अभी आप दोनों इस बंधन मे बंध जाए यही बहुत है हमारे लिए।"

    अब उन्होंने शान को देखते हुए कहा, "ठीक है हम कभी आपको किसी बात के लिए मजबूर नही करेंगे, पर आपको भी वादा करना होगा की आप आरवी की इज़्ज़त करेंगे।"

    शान ने बेमन से हा मे सर हिला दिया। अर्पिता जी अनुपमा जी से बात करने के बाद शान के साथ वहाँ से निकल गयी

    करीब 2 घंटे बाद शादी के वैन्यु पर शान की गाड़ी आकर रुकी। घर के पास वाले मैरिज हॉल मे ही शादी की तैयारी की गयी थी। वहाँ बस घर के कुछ रिश्तेदार ही मौजूद थे, बारात आई नही थी और आस पड़ोस के लोग खाना खाकर जा चुके थे। शादी सिंपल तरीके से करने का फैसला लिया गया था क्योंकि ये शान की डिमांड थी।

    अनुपमा जी और रजनी जी ने आगे आकर शान की नज़र उतारी फिर उसकी आरती उतारकर उसका स्वागत किया। शान तो सब मजबूरी मे कर रहा था तो उसके चेहरे पर कोई भाव नही थे पर अर्पिता जी बहुत खुश थी। हर शादी के तरफ इस शादी मे भी आरवी की कज़न सिस्टर्स ने आगे आकर शान का रास्ता रोक दिया और मुस्कुराकर बोली, "जीजू इतनी भी क्या जल्दी है? अंदर जाने की पहले नेग निकालिए तभी अंदर जाने को मिलेगा।"

    अनुपमा जी ने उन्हें हटाना चाहा वही शान उन्हें घूरकर देख रहा था। अर्पिता जी ने मन ही मन कहा, "ये लड़का भी न ऐसे देख रहा था जैसे इन्हे कच्चा ही खा जाएगा। अब हमें ही सब संभालना पड़ेगा।"

    उन्होंने झट से अपने पर्स से पैसे निकालकर उन लड़कियों की हथेली पर रख दिया, तो वो खुश होकर एक तरफ हो गयी। शान को लेकर अर्पिता जी अंदर आई। दोनों स्टेज पर चले गए, कुछ देर मे रश्मि के साथ आरवी ने वहां कदम रखा। सुर्ख लाल रंग का जोड़ा उसके गोरे बदन पर बहुत खिल रहा था।

    बालों को जुड़े मे बाँधा हुआ था जिसपर लगे गहरे की महक वहाँ अपनी खुशबू फैला रही थी। मांग मे सोने का माँगतिका, उसके नीचे माथे पर छोटी सी लाल बिंदी, लाइट ब्राइडल मेकअप, नाक मे बड़ी सी नथ जिसने उसके गुलाबी लबों को आधा ढक दिया था, काजल से सने भूरि भूरि आँखे जिन्हे पलकों का बादल ने ढका हुआ था।

    लब हल्के से काँप रहे थे जो उसकी नर्वसनेस को दिखा रहे थे। कानों मे बड़े बड़े सोने के झुमके, गले मे हार ये सब गहने और यहाँ तक का शादी का ये जोड़ा भी अर्पिता जी ने उसे दिया था, जो उन्होंने अपनी बहु के लिए बनवाए थे।

    पैरों मे पहनी भारी पायल की छन छन की आवाज़ वहाँ मधुर संगीत के तरह गूंज रही थी। आरवी के साथ और भी लड़कियाँ थी, जो उसे देखता बस देखता ही रह जाता आखिर वो लग ही इतनी सुंदर रही थी कि उसकी तारीफ के लिए शब्द कम पड़ जाए पर हमारे दुल्हे मियां ने तो एक नजर उसे देखा तक नही था।

    आरवी स्टेज के पास पहुँच गयी पर शान आगे नही आया तो अर्पिता जी आगे आ गयी उन्होंने प्यार से उसके गाल को छूकर कहा, "बिल्कुल आसमान मे चमकते चाँद जैसी खूबसूरत लग रही है आप।" उनकी बात सुनकर आरवी हल्का सा मुस्कुरा दी। अर्पिता जी उसे स्टेज पर लेकर गयी और शान के आगे खड़ा कर दिया।

    आरवी की हिम्मत नही हुई की नज़रे उठाकर एक बार उस शक्स को देख ले जिसकी दुल्हन बने वो उसके सामने खड़ी थी। रश्मि वरमाला ले आई तो अर्पिता जी ने शान को देखकर मुस्कुराकर कहा, "बेटा वरमाला पहनाइये।"

    उनके कहने पर शान ने बिना किसी भाव के वरमाला ली और उसके गर्दन मे डाल दी, सबने तालियां बजाई। अनुपमा जी के कहने पर आरवी ने भी वरमाला पहना दी, सबने उनपर फूल डाले तालियां बजाई उसके बाद जहाँ शान को मंडप पर लेकर चले गए वही आरवी को वही बने एक कमरे मे ले गए। शान ने फिल्हाल शेरवानी पहनी हुई थी।

    पंडित ना मंत्र शुरु किये साथ ही छोटी मोटी रस्में भी होने लगी जो लड़के को करनी थी। वही दूसरी तरफ आरवी उस रूम मे चुप सी बैठी थी तभी रश्मि ने कुछ सोचते हुए कहा, "आरु मुझे तो लगता है तू जीजू के लिए ही बनी है।" उसकी बात सुनकर आरवी उसे हैरानी से देखने लगी तो उसने मुस्कुराकर आगे कहा "देख कल मैंने यूँही तेरी मेहंदी पर s लिख दिया था और जीजू का नाम भी s से शुरु होता है।

    आज जो हुआ उसके बाद मैं भी डर गयी थी पर फिर भगवान ने जीजू को भेज दिया और उन्होंने उस कमीने को क्या धोया है.... हाए मुझे तो मज़ा ही आ गया।"

    उसने खुश होते हुए आगे कहा, "जब तेरा उनसे कोई रिश्ता नही था तब वो तेरे लिए भिड़ गए अब तो तू उनकी पत्नी बन जाएगी, सोच कितना ध्यान रखेंगे वो तेरा, पर एक बात है वो न थोड़े खडूस लग रहे है तो तुझे उन्हें सुधारने मे थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, पर ओवर ऑल वो ठीक लगे मुझे बाकी तो तू उनके साथ रहेगी तो तुझे पता चल ही जाएगा। बस अब तू पुरानी बातों को भूलकर इस रिश्ते को दिल से अपना लेना। नई खुशियाँ तेरा इंतज़ार कर रही है।"

    वो यूँही उससे बात करती रही पर आरवी कुछ और ही सोच रही थी। कुछ देर बाद उसे मंडप मे बुलाया गया। मंत्र शुरु हुए, उसके हाथ पीले किये गए उसके बाद अनुपमा जी ने आगे आकर कन्यादान की रस्म पूरी की इस घडी मे आरवी की आँखे नम हो गयी थी वही अनुपमा जी की आँखे भी बहने लगी। धीरे धीरे मंत्रों के बीच शादी की रस्में पूरी होती चली गयी। सब वही बैठे इस शादी को एंजॉय कर रहे थे, रिश्तेदारों मे जो महिलाएं थी वो ब्याह के गीत गा रही थी।

    शान किसी रोबोट के तरह सब किये जा रहा था पर बिना किसी भाव के। रात के अंधेरे को पार करके सूरज की किरणें वहाँ बिखरकर सवेरे का आगाज़ करने लगी। पंडित जी के कहने पर दोनों ने फेरे लेते हुए वचनों को दोहराया, जहाँ शान बस फॉर्मेलिटि निभा रहा था वही आरवी दिल से सभी वचनों को दोहरा रही थी, शादी चाहे जिन हालातों मे क्यों ना हो रही हो पर उसकी शादी हो रही थी यही उसके लिए सबसे बड़ी सच्चाई थी।

    और अब उसने दिल से इस रिश्ते को अपना लिया था। सात फेरों के पूरे होने के बाद शान ने उसे मंगलसूत्र पहनाया और उसकी मांग को सुर्ख लाल रंग के सिंदूर से सजा दिया। आरवी ने अपनी आँखे बन्द कर ली और उसकी आँखों से दो बूँद आँसू उसके गालों पर लुढ़क गए।

    इस बात की खुशी थी कि उसकी मांग मे जिसके नाम का सिंदूर सजा है, वो विहान नही है। शादी संपन्न हुई अर्पिता जी के कहने पर शान ने आरवी के साथ बिना और नाटक किये चुपचाप पहले पंडित जी के फिर अनुपमा जी के पैर छुए। उन्होंने दोनों को ढेरों आशीर्वाद दिये फिर शान के आगे हाथ जोड़ते हुए भारी गले से बोली, "बहुत बहुत आभार बेटा जो आपने हमारी बेटी का हाथ इस परिस्थिति मे थामा। हम आपका ये एहसान कभी भूल नही पाएंगे।"

    शान ने जाने क्या सोचकर उनकी हथेली को पकड़कर नीचे करते हुए विनम्रता से कहा, "आपको मेरे आगे हाथ जोड़ने की ज़रूरत नही है। आप मुझसे बड़ी है ऐसे अच्छा नही लगता। वैसे भी हमने आपपर कोई एहसान नही किया है। बड़ी मां ने आपको वचन दिया था और मैंने उसी वचन को निभाया है।"

    "भगवान आप जैसा बेटा सबको दे।" उन्होंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा तो अब अर्पिता जी ने आगे आकर मुस्कुराकर कहा, "बस बस अपने इन आँसुओं को बचाकर रख अपनी बेटी की विदाई मे बहाइयो और अब खुश हो जा तुझे भी भगवान ने एक बेटा दे दिया। अबसे शान तेरा भी बेटा है।"

    उनकी बात सुनकर अनुपमा जी मुस्कुरा दी। अब शान और आरवी ने अर्पिता जी के पैर छुए तो उन्होंने भी उन्हें आशीर्वाद दिया। उसके बाद जहाँ आरवी को घर लेजाया गया वही शान वही रुक गया।

    कुछ देर बाद विदाई का मुहूरत था। सब तैयारियां की गयी अब तक शान भी अर्पिता जी के साथ आरवी के घर पहुँच गया था। दोनों ने आरवी के पिता की तस्वीर के आगे हाथ जोड़कर उनका आशीर्वाद भी ले लिया था।

    आरवी का समान कार मे रखा जा चुका था और शान एक तरफ खड़ा अपने गुस्से को किसी तरह कंट्रोल करने की कोशिश करते हुए सबके सवालों के जवाब दे रहा था, वहाँ आरवी के रीलेटिव के सभी मेल मेंबर्स मौजूद थे और उनके उल्टे सीधे सवालों से शान इरिटेट् हो रहा था।

    अर्पिता जी अंदर थी। कुछ देर मे आरवी को लेकर सभी औरतें वहाँ पहुँची, आरवी पहले रश्मि के गले लगे रो रही थी। अनुपमा जी रजनी जी के साथ उसके पीछे जाकर खड़ी हो गयी बाकी औरतों ने भी अपना आँचल फैला दिया। आरवी ने अपनी हथेली मे खील और बताशों को भरते हुए उसे पीछे के तरफ उछाल दिया।

    उसकी आँखों से अश्रुधारा बह रही थी, अनुपमा जी भी रो रही थी। तीन बार ऐसा करने के बाद आरवी पलटकर अपनी माँ के सीने से लगकर रो पड़ी। काफी देर तक वो उनसे लिपटकर रोती रही, सबने उसे उनसे अलग की कोशिश की पर वो उन्हें छोड़ नही रही थी।

    अर्पिता जी ने आगे आकर उसे उनसे अलग किया और अपने गले से लगाकर बोली, "हम आपसे वादा करते है कि कभी आपको अपनी माँ की कमी महसूस नही होगी हम आपको अपनी बेटी बनाकर रखेंगे।"

    आरवी अब भी सुबकती रही। अर्पिता जी के कहने पर शान ने आगे आकर अनुपमा जी के पैर छुए फिर गाड़ी मे बैठ गया। अर्पिता जी ने आरवी को पीछे की सीट पर बिठाया फिर अनुपमा जी को शांत करने के बाद खुद उसके साथ बैठ गयी।

    कुछ ही सेकंड्स मे गाड़ी वहाँ से आगे बढ़ गयी इसके साथ ही आरवी का मायका उसकी माँ उससे पीछे छूटते चले गए और ये सब सोचते हुए उसके आँसुओं की रफ्तार बढ़ती चली गयी। अर्पिता जी उसे संभालने लगी वही शान बिना किसी भाव के गाड़ी ड्राइव कर रहा था और कार अपनी रफ्तार से अपनी मंज़िल के तरफ बढ़ती चली जा रही थी।



    To be continued...

  • 11. Forced by destiny - Chapter 11 मैं नही मानता इस शादी को...

    Words: 1190

    Estimated Reading Time: 8 min

    हमने अभी तक पढ़ा कि शान और आरवी शादी के बंधन में बंध गए थे, जहाँ शान सब मजबूरी में बस नाम के लिए कर रहा था, वहीं आरवी ने दिल से इस शादी को अपना लिया था, ये सोचकर कि शायद उसकी किस्मत में यही लिखा होगा, तभी तो इन हालातों में भी उसका रिश्ता शान से जुड़ गया।

    दोनों की शादी के बाद उन्होंने आरवी के घर जाकर उसके पापा के आगे हाथ जोड़कर उनका आशीर्वाद लिया, और शान ये सब बस अर्पिता जी के लिए खामोशी से कर रहा था।

    विदाई की घड़ी आई तो आरवी के आँसू रोके नहीं रुक रहे थे, आखिर रुकते भी कैसे? जिस माँ ने उसे जन्म दिया, सब दुख और तकलीफों को सहते हुए भी इतनी अच्छी परवरिश की, उसे इतना पढ़ाया-लिखाया, वही तो उनकी सब कुछ थी, दोनों माँ-बेटी का एक-दूसरे के अलावा और सहारा ही क्या था?

    अब उसे अपनी उन्हीं माँ को छोड़कर जाना था, किसी अनजान जगह, जहाँ वो किसी को जानती नहीं थी। हाँ, अर्पिता जी को जानती थी, पर माँ तो माँ होती है, और माँ को छोड़कर जाने का दुख सिर्फ एक बेटी ही समझ सकती है, कोई दलील उस पल उसके दुख को कम नहीं कर सकती।

    यही हाल अनुपमा जी का भी था, आखिर उनकी जान से प्यारी बेटी अब उनसे दूर जाने वाली थी, हमेशा के लिए। अब वो किसी और के घर की हो गयी थी, अब वो अकेली रह गयी थी वहाँ, यही सोचकर दोनों माँ-बेटी आँसू बहा रहे थे।

    जैसे-तैसे कलेजे पर पत्थर रखकर उन्होंने आरवी को खुद से अलग कर दिया, उसकी विदाई हो गयी, और जैसे-जैसे गाड़ी उस आंगन से दूर जा रही थी, वैसे-वैसे आरवी के आँखों से बहते आँसुओं की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी, वो बुरी तरह रो रही है, और अर्पिता जी उसे संभाल रही थी। दूसरी तरफ रश्मि और रजनी जी अनुपमा जी को संभालते हुए अंदर ले गयीं।

    अर्पिता ने आरवी को अपने सीने से लगाया हुआ था, और वो उनके सीने से लगे बुरी तरह सुबक रही थी। अर्पिता जी उसे संभालने में लगी थीं, और शान बिना किसी भाव के खामोशी से कार ड्राइव कर रहा था।

    गाड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रही थी। रोते-रोते आरवी की पलकें भारी हो गयीं, वो कई दिनों से ढंग से सोई नहीं थी, और शादी की वजह से थक भी बहुत गयी थी, तो वो नींद की आगोश में चली गयी।

    करीब एक घंटे बाद गाड़ी मल्होत्रा मेंशन के बड़े से गेट से होते हुए अंदर के गेट के सामने जाकर रुकी। शान ने पीछे मुड़कर अर्पिता जी को देखा तो उन्होंने बड़े प्यार से आरवी के सर को सहलाते हुए कहा, "आरवी बेटा, हम पहुँच गए।"

    आरवी गहरी नींद में नहीं थी, बस उसको आँख लग गयी थी, जैसे ही उसके कानों में अर्पिता जी की आवाज़ पड़ी, उसने झटके से अपनी आँखे खोल दीं और अचकचाकर नीचे सीधे बैठते हुए बोली, "सॉरी, वो पता नहीं कैसे आँख लग गयी।"

    उसने नज़रे झुकाते हुए इतना कहा ही था कि अर्पिता जी ने प्यार से उसके गाल को छुआ, तो वो उन्हें घबराई नज़रों से देखने लगी।

    अर्पिता जी ने सौम्य सी मुस्कान के साथ कहा, "कोई बात नहीं बेटा, आपको घबराने या हमसे माफी मांगने की ज़रूरत नहीं है, हम जानते हैं शादी की रस्मों में आप थक गयी होंगी, इसलिए आँख लग गयी होगी। कोई बात नहीं, चलिए हम अपनी बहु का स्वागत करना चाहते हैं उनके घर में।"

    उनकी बात सुनकर आरवी की नज़रे झुक गयीं, उसने अपने कपड़े ठीक किये, फिर उनके साथ बाहर निकल गयी। शान पहले ही आगे बढ़ गया, तो अर्पिता जी ने पीछे से उसे देखते हुए कहा, "शान, रुकिए।"

    उनकी आवाज़ जैसे ही शान के कानों में पड़ी, उसके कदम रुक गए, उसने उनकी तरफ मुड़ते हुए अजीब नज़रों से उन्हें देखते हुए आँखों से ही सवाल किया कि क्यों रोका है उसे। उसके सवाल को समझते हुए उन्होंने मुस्कुराकर कहा, "आज पहली बार हमारी बहु पहली बार अपने घर में कदम रखने जा रही है तो वो आपके साथ आपकी अर्धांगिनी के रूप में इस घर में प्रवेश करेंगी।"

    "बड़ी माँ, आपकी इज़्ज़त की बात थी, इसलिए मैंने ये नाम की शादी की है, पर मैंने आपको पहले ही कहा था, आप इस घर में अपनी बहु को लाएंगी, मेरी पत्नी को नहीं। मेरे लिए ये शादी सिर्फ एक नाटक था जो मैंने आपकी खुशी के लिए किया था, इसलिए ये आज से आपकी बहु बनकर इस घर में रह सकती है।

    पर इससे ज्यादा और कुछ नहीं। न मेरे लिए इस शादी का कोई मतलब है, न ही इस लड़की से मेरा कोई रिश्ता है, आप जैसे चाहे इसका वेलकम कर सकती हैं, पर इन सब में मुझे घसीटने के बारे में सोचिएगा भी मत, क्योंकि मैं अब आपके किसी नाटक में भाग नहीं लेने वाला। वैसे भी मेरे पास इन बकवास चीजों के लिए वक़्त नहीं है, वैसे ही कल का सारा दिन बर्बाद हो गया है।" शान ने दो टूक जवाब दिया और अंदर की तरफ बढ़ गया।

    उसकी बातें सुनकर अर्पिता जी का चेहरा उतर गया, वही आरवी के कानों में तो शान के कहे शब्द शीशे जैसे चुभने लगे थे। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि जो अभी-अभी उसने सुना वो सच था। उसके सारे सपने एक झटके में उसकी आँखों के सामने टूटकर बिखर गए थे, बड़ी-बड़ी भूरि आँखों में आँसू की मोटी-मोटी बूँदे भर आईं। ऐसा लगा जैसे किसी ने बड़ी ही बेदर्दी से उसके दिल पर वार किया हो।

    अर्पिता जी ने खुद को संभाला, फिर प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "उनकी बातों का बुरा मत मानना बेटा, वक़्त दीजिये उन्हें और हम पर विश्वास कीजिये, वो भले ही अभी इस शादी को मानने से इंकार कर रहे हों, पर बहुत जल्द वो इस रिश्ते को दिल से अपना लेंगे, आपको अपनी पत्नी होने का दर्जा भी देंगे, और वो प्यार भी देंगे जिस पर आपका हक है।

    अभी हम आपको कुछ ज्यादा नहीं बता सकते, बहुत कुछ है जो आपको जानना है, पर वो हम आपको बाद में बताएंगे, अभी के लिए इतना समझ लीजिये कि आप ही उनकी पत्नी हैं और अब आपको ही उन्हें और इस घर को संभालना है, हमें आप पर पूरा विश्वास है कि आप ये कर पाएंगी। चलिए अंदर, आपका नया घर आपके आने की राह देख रहा है।"

    आरवी की आँखे झलक आईं, पर उसने एक शब्द नहीं कहा, खामोशी से उनके साथ आगे बढ़ गयी। घर के चौखट पर अर्पिता जी ने उसे रुकने को कहा, तब तक छाया आरती की थाल लेकर आ गयी।

    आरवी के कानों में अब भी शान के कहे शब्द गूंज रहे थे, वो उन्हीं में खोई हुई थी कि अचानक ही उसके कानों में एक मीठी सी आवाज़ पड़ी, "मम्मा........."

    इस आवाज़ में इतनी मिठास थी कि आरवी अपने ख्यालों से बाहर आ गयी और नज़रे अनायास ही आवाज़ की दिशा में घूम गयीं, पर घूँघट के वजह से उसे कुछ नज़र नहीं आया। वो कुछ समझ पाती उससे पहले ही किसी की नन्ही बाँहों ने उसके पैरों को जकड़ लिया और एक बार फिर उसके कानों में वही खनकती हुई आवाज़ पड़ी, "मम्मा, आप आ गयीं!"


    To be continued...

  • 12. Forced by destiny - Chapter 12

    Words: 1649

    Estimated Reading Time: 10 min

    "मम्मा!"

    इस आवाज़ में इतनी मिठास थी कि आरवी अपने ख्यालों से बाहर आ गयी और नज़रे अनायास ही आवाज़ की दिशा में घूम गयीं, पर घूँघट के वजह से उसे कुछ नज़र नहीं आया। वो कुछ समझ पाती उससे पहले ही किसी की नन्ही बाँहों ने उसके पैरों को जकड़ लिया और एक बार फिर उसके कानों में वही खनकती हुई आवाज़ पड़ी, "मम्मा, आप आ गयीं।"

    आरवी ने सर झुकाकर नीचे देखा, पर वो कुछ करती उससे पहले ही शान की गुस्से भरी आवाज़ वहाँ गूंज उठी, "अंशिका!" आवाज़ इतनी तेज़ थी की अंशिका डर से काँप उठी, आरवी भी डर गयी, अर्पिता जी ने भी आवाज़ की दिशा में देखा, शान उनके सामने ही खड़ा था और गुस्से से लाल आँखों से अंशिका और आरवी को घूरे जा रहा था।

    वो कुछ समझ पाती तब तक शान आरवी के पास पहुँच गया, अंशिका ने आरवी को कसके पकड़ा हुआ था, शान ने उसको जबरदस्ती उससे दूर करते हुए गुस्से से कहा, "कितनी बार डैडी ने आपको कहा है कि आपकी मम्मा नहीं है और वो कभी नहीं आएंगी, फिर आप यूँही किसी को भी मम्मा कैसे कह सकती हैं।"

    "बड़ी दादी ने कहा कि वो बेबी की मम्मा को लाएंगी, अंशु को मम्मा के पास जाना है डैडी। मम्मा आ गयी हैं, अब अंशिका कभी उन्हें जाने नहीं देगी।" अंशिका ने उसकी गोद से उतरने की कोशिश करते हुए रोते हुए कहा, उसकी बात सुनकर शान का गुस्सा बढ़ गया, उसने उसको गुस्से में डपट दिया, "वो आपकी मम्मा नहीं हैं, सुना आपने।"

    "नहीं, वो अंशु की मम्मा है, बड़ी दादी ने कहा है कि वो अंशु की मम्मा को लाई हैं।" वो बिलखकर रोने लगी, शांतनु आगे कुछ कहता उससे पहले ही अर्पिता जी ने उसके गोद से अंशु को ले लिया और उसे चुप करवाते हुए बड़े प्यार से बोलीं, "आप रोने क्यों लगीं? दादी ने कहा था न आज डैडी हमारी प्रिंसेस के लिए मम्मा लेकर आ रहे हैं, देखिये हम आपकी मम्मा को ले आए हैं।"

    "बड़ी माँ," शांतनु ने उनकी बात सुनकर नाराज़गी से कुछ कहना चाहा, पर उन्होंने उसे घूरते हुए उसकी बात काटकर कहा, "बहुत हो गयी आपकी मनमानी, अपनी ज़िद के लिए हमारी मासूम सी बच्ची का तो दिल मत तोड़िये। देखा नहीं था आपने कितनी खुश थी वो, और आप हैं की बेवजह गुस्सा करके उन्हें रुला दिया, एक बात आप अपने ज़हन में जितनी जल्दी बिठा लेंगे उतना ही अच्छा होगा आपके लिए, क्योंकि आपके मानने या न मानने से ये सच्चाई नहीं बदल जाएगी कि अब आपकी शादी हो गयी है, आरवी आपकी पत्नी है, और अबसे अंशिका की माँ भी वही है।"

    उनकी बात सुनकर शांतनु कुछ कहना तो चाहता था पर अंशिका को देखकर वो चुप रह गया और गुस्से में दनदनाते हुए वहाँ से चला गया।

    अर्पिता जी ने अंशिका को देखकर मुस्कुराकर कहा, "आपके डैडी भी न छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाते हैं, चलिए छोड़िये, उन्हें हम बाद में समझा लेंगे, पहले आपको आपकी मम्मा से मिलवा देते हैं।"

    वो उसे लेकर आरवी के तरफ बढ़ गयीं, जिसकी आँखे आँसुओं से लबालब भरी हुई थीं, उसे अभी-अभी पता चला था की शांतनु ये शादी नहीं मानता, जबकि जब शांतनु ने उसकी मांग में सिंदूर भरा था, इसके साथ ही उसने खुद को उसे समर्पित कर दिया था। उसे दिल से अपना पति मान बैठी थी।

    और अब उसे पता चला था की जिसके लिए उसने अपना घर अपनी माँ को छोड़ा वो तो उसे कुछ मानता ही नहीं है। उपर से जिस लड़के से उसकी शादी हुई है उसकी पहले से एक बेटी है, वो भी इतनी बड़ी, ये उसके लिए किसी सदमे से कम भी नहीं था। उसे ये तो पता था कि उसका एक बच्चा है, पर इतनी बड़ी बेटी होगी ये उसने नहीं सोचा था।

    अर्पिता जी उसके सामने जाकर खड़ी हो गयीं। फिर उन्होंने उसके घूँघट को देखते हुए मुस्कुराकर कहा, "चलिए आज आपको हमारे घर के सबसे इंपॉर्टेंट इंसान से मिलवाते हैं, ये है हमारी जान हमारी पोती, अंशिका, जो अबसे आपकी बेटी है और आपको एक माँ के जैसे इन्हे प्यार से पालना है।

    पिछले कुछ दिनों में आपको इतना तो जान गए हैं कि आपका दिल बहुत साफ है, हर किसी के लिए उसमे सिर्फ प्यार ही प्यार है, बस यही वजह है की हमने आपको अपनी बहु बनाने से पहले एक बार नहीं सोचा

    हमें उम्मीद है कि आपके आने से हमारी मासूम सी बच्ची जो अपनी माँ के प्यार के लिए अब तक तरसती आ रही है, उनके जीवन की ये सबसे बड़ी कमी अब पूरी हो जाएगी। हमें विश्वास है आप पर की आप इन्हें माँ का प्यार ज़रूर देंगी। एक बार अपना घूँघट हटाकर अपनी बेटी को देखिये तो सही जो जाने कितनी देर से आपके आने का इंतज़ार कर रही है।"

    उन्होंने बड़े प्यार से अपनी बात कही, उनकी बात सुनकर आरवी ने खुद को संभाला, तभी उसके कानों में एक बार फिर वही खनकती आवाज़ पड़ी, "मम्मा आप भी अंशु से नाराज़ हैं?"

    उसकी आवाज़ में उदासी थी, आरवी ने तुरंत ही अपना घूँघट उठाकर सामने देखा तो उस बच्ची पर उसकी नज़रें ठहर गयीं। गोरा चाँद सा सुंदर मुखड़ा, मासूम सी झील की तरह गहरी नीली आँखे, पतले-पतले से गुलाबी होंठ, घुँघरेले कंधे से नीचे तक के बाल जिनमें आगे से दो छोटे-छोटे जुड़े वाला हेयर स्टाइल किया हुआ था जिसकी कुछ लटें उसके चेहरे पर आ रही थीं और इसके वजह से वो और भी प्यारी लग रही थी।

    इतना मासूम चेहरा था कि किसी को भी उसे देखकर उस पर प्यार आ जाए। गोरा बदन उस पर घुटनों तक की ब्लैक सुंदर सी ड्रेस उस पर बहुत खिल रही थी। वो अपनी नीली-नीली पर उदास आँखों से उसे देख रही थी। उसे देखकर आरवी को उस पर इतना प्यार आया कि उसने मुस्कुराकर कहा, "भला कोई अपनी इतनी प्यारी बेटी से नाराज़ होता है?"

    "आप बेबी से एंग्री नहीं हैं जैसे डैडी थे?" अंशिका ने मासूमियत से पलकें झपकाई

    "नहीं बेटा आपने ऐसा कुछ किया ही कहा है। (फिर कुछ रुककर उसने आगे कहा) मम्मा आपसे बिल्कुल भी एंग्री नहीं हैं और डैडी भी आपसे एंग्री नहीं थे, वो तो मम्मा से एंग्री है (ये कहते हुए उसके चेहरे पर उदासी नजर आने लगी पर उसने उसे अपनी मुस्कान के पीछे छुपाते हुए मुस्कुराकर कहा) अच्छा चलिए ये बताइये इस लिटल प्रिंसेस का नाम क्या है?"

    "अंशिका पर सब बेबी को अंशु कहते हैं। मम्मा भी बेबी को अंशु बुलाएंगी तो बेबी को अच्छा लगेगा।" अब उसने अपनी प्यारी सी मुस्कान अपने चेहरे पर बिखेरते हुए उसे देखकर कहा, तो मुस्कुराने से उसके दोनों गालों पर डिंप्लस उभर आए, अब तो वो और भी क्यूट लगने लगी। उसकी प्यारी सी शक्ल देखकर आरवी मुस्कुरा उठी, "मम्मा आपको अंशु ही बुलाएंगी, पर उसके लिए पहले आपको मम्मा को लव करना होगा।"

    उसने अपना गाल उसके तरफ कर दिया तो उसने झट से उसके गाल पर किस कर दिया, फिर उसकी गर्दन में बांह फंसाकर लटक गयी तो अर्पिता जी और आरवी दोनों मुस्कुरा उठे।

    आरवी ने उसे अपनी गोद में लेकर बड़े प्यार से उसके घुँघरेले बालों को माथे पर से हटाते हुए उसके माथे को चूम लिया, तो अंशिका ने उसकी गर्दन में अपना सर छुपाते हुए कहा, "बेबी ने आपको बहुत मिस किया। अब दोबारा कभी बेबी को अकेले छोड़कर मत जाइयेगा, बेबी को अच्छा नहीं लगता आपके बिना।"

    वो एक बार फिर सिसकने लगी तो आरवी ने उसे खुद से दूर किया और बड़े ही प्यार से उसके आंसुओं को साफ करने लगी, "उहु, अब मम्मा कभी आपको छोड़कर कहीं नहीं जाएंगी। हमेशा आपके साथ रहेंगी और आपको ढेर सारा प्यार भी करेंगी।"

    अंशिका वापिस उसके सीने से जा लगी। आज वो अंशु से पहली बार मिली थी, पर जाने क्यों उसे उससे बहुत लगाव फील हो रहा था, जैसे वो उसी की बेटी हो। उस छोटी सी बच्ची का अपनी माँ के लिए तड़प देख उसके दिल मे टीस सी उठी, उससे उसके आँसू देखे नहीं गए। वो उसे एक माँ के तरह अपने सीने से लगाए दुलार कर रही थी। अब अर्पिता जी ने प्यार से आरवी के सर पर हाथ रखा तो वो नजर उठाकर उन्हें देखने लगी।

    उन्होंने अब मुस्कुराकर कहा, "आपने हमारे विश्वास को सच साबित कर दिया। हम सही थे, इस घर के लिए आपसे बेहतर बहु और अंशिका के लिए आपसे बेहतर माँ हम कभी ढूंढ नहीं पाते। हमें आपको बहुत कुछ बताना है, जानते है बहुत से सवाल उठ रहे होंगे आपके दिल में, सबके जवाब मिलेंगे आपको पर अभी नहीं। रात भर शादी चली है आप थक गयी होंगी तो चलकर पहले फ्रेश हो जाइये फिर आपको आपके नए परिवार से मिलवाना भी है और बहुत कुछ बताना भी है। चलिए हम आपको आपका रूम दिखा देते हैं।"

    आरवी बहुत कुछ पूछना चाहती थी, पर उनकी बात सुनकर वो चुप रह गई। और अंशिका को अपने गोद में उठाए चुपचाप उनके पीछे चलने लगी। उन्होंने नौकरों को उसका समान लाने को कह दिया था।

    अर्पिता जी उसे शांतनु के कमरे में लेकर चली गयीं, तब तक उसका समान भी वहाँ आ गया। उन्होंने आरवी को देखकर मुस्कुराकर कहा, "ये है आपका कमरा, अब आप फ्रेश हो जाइये, हम कुछ देर में आते है, अगर आपको किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो हमें बुला लीजियेगा। तीन रूम छोड़कर ही हमारा कमरा है।"

    "ओके आंटी," आरवी ने बड़े ही अदब से कहा, उसकी बात सुनकर अब उन्होंने मुस्कुराकर आगे कहा, "हम पहले आपकी आंटी थे, अब तो आपकी सास हैं, पर आप हमारे लिए हमारी बेटी हैं, इसलिए अबसे आप हमें माँ कहेंगी।"

    "जी माँ, मैं आगे से ध्यान रखूंगी," आरवी ने मुस्कुराकर कहा तो वो उसके माथे को चूमकर फ्रेश होने का कहकर वहाँ से चली गयीं, साथ मे अंशिका को भी ले गयीं कि दोनो मिलकर उसकी मम्मा के लिए खाना बनाएंगे, जिसे सुनकर वो भी खुशी खुशी वहाँ से चली गयी। इतने वक़्त बाद उसे उसकी मम्मा मिली थी, तो उसे भी उनकी लिए कुछ स्पेशल करना था।

    To be continued...

  • 13. Forced by destiny - Chapter 13

    Words: 1208

    Estimated Reading Time: 8 min

    आरवी पूरे रूम को नज़रे घुमाकर देखने लगी। कितना बड़ा और आलीशान रूम था वो! एक से एक एंटीक चीजों से सजाया गया, गेट के सामने ही बड़ा सा किंग साइज बेड रखा हुआ था, जिस पर वाइट बेड शीट और कुछ वाइट पिलो सलीके से सेट किये हुए थे।

    बेड के दोनों तरफ छोटा सा टेबल था जिस पर लैंप रखा हुआ था, बेड के पीछे की दीवार पर खूबसूरत सी पेंटिंग बनी हुई थी जिसके ऊपर काफी सारी तस्वीरें लगाई गयी थीं। राइट हैंड साइड दो वुड्स एल्मीरा रखे हुए थे, जो काफी बड़े और सुंदर लग रहे थे, उसके साइड में एक डोर था और उसके बाद काँच का डोर भी था जो बालकनी में खुलता था जिसके दूसरी तरफ पूल था। उसके चारों ओर छोटे-छोटे पौधों को लगाया गया था वो नज़ारा भी कमाल का था।

    बेड के दाएं तरफ वॉशरूम था और उसके बगल में चेंजिंग रूम मतलब वॉक इन कैबिनेट था। बेड के सामने कुछ दूरी पर काँच का टेबल रखा हुआ था, उसके साइड मे बड़ा सा सोफा सेट लगाया हुआ था।

    सब कुछ था उस कमरे मे, देखने पर ही पता चल रहा था कि यहाँ रहने वाले की रैपोटेशन क्या है। आरवी पहली बार ये सब देख रही थी, वो ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर खड़ी हो गयी। वहाँ ऐसी-ऐसी चीजें रखी थीं जिसका नाम तक वो नहीं जानती थी। वो कुछ पल खामोशी से खुद को शीशे मे देखती रही।

    दुल्हन का लाल जोड़ा, मांग मे भरा सिंदूर, गले मे पहना मंगलसूत्र उसे चीख-चीखकर ये बता रहा था कि अब वो किसी और की हो गयी है, किसी की पत्नी है, पर किसकी? उस शक्स की जिसने तो इस शादी को मानने से ही इंकार कर दिया है। जिसके लिए न ही उसका कोई अस्तित्व है, न ही इस रिश्ते का कोई मोल है।

    उसके कानों मे शान के कहे शब्द गूंज उठे, आँखे नम हो गयीं, पर फिर उसने अपने आँसुओं को पोंछ लिया, आँखों के सामने आंशिका का मासूम सा चेहरा आ गया।

    उसका इतने प्यार से उसे मम्मा कहना जिसे सुनकर एक पल को उसे भी लगा जैसे वो उसकी माँ ही हो। उसने अपने आँसुओं को पोंछते हुए खुद से कहा, "तू हार नहीं मान सकती, जानती तो है तेरी खुशी मे ही तेरी माँ की खुशी है, तुझे उनके लिए जीना होगा, लड़ना होगा।

    अपनी किस्मत से, अगर ये रिश्ता जुड़ा है तो तुझे इसे निभाना होगा, अगर वो तुझे अपनी पत्नी होने का दर्जा नही देते तो क्या हुआ, तू अब भी आंशिका की माँ है और तुझसे इस रिश्ते को कोई नही छीन सकता। तू अब उसके लिए यहाँ रहेगी, आज से अभी से तेरी ज़िंदगी का बस यही मकसद है कि तुझे उस पर अपनी सारी ममता लुटानी है, उस मासूम को माँ का प्यार देना है, जाने कबसे वो इस प्यार के लिए तरस रही है, उसने तुझे अपनी माँ का दर्जा दिया है और अब तेरी बारी है उसे बेटी का प्यार देने की।"

    अब वो उस तरफ चली गयी जहाँ उसके बैग्स रखे थे। फिर उसने अपना बैग उठाकर उसे बैड पर रख दिया। कपड़े वगैरह निकाले और बाथरूम मे चली गयी। कुछ देर बाद वो नहाकर आई और ड्रेसिंग टेबल क तरफ बढ़ गयी। अपने छोटे वाले बैग से कुछ समान निकाला और तैयार होने लगी। कुछ देर मे वो तैयार हो गयी थी।

    उसने एक बार फिर खुद को शीशे मे देखा, लाइट रेड कलर का अंब्रैला सूट उस पर येल्लो लेगी और रेड एंड येल्लो कंबिनेशन का दुपट्टा जिसको गर्दन से चिपकाकर डाला हुआ था। उसके नीचे से गले मे पहना मंगलसूत्र झांक रहा था। मांग मे हल्का सा सिंदूर लगाया हुआ था।

    घुँघरेले बालों को एक चुटिया मे बांधा हुआ था, हाथों मे दो चार चूड़ियाँ डाली हुई थी, एकदम सिंपल थी वो और कुछ नही किया हुआ था, पर उसकी खूबसूरती का कोई जवाब नही था, वो इतने मे ही कयामत ढा रही थी। वो जैसे ही पलटी उसके रूम का दरवाजा खुल गया सामने छोटी सी अंशिका खडी थी, लबों पर प्यारी सी मुस्कान और आँखों मे चमक लिए वो आरवी को देख रही थी।

    उसे देखते ही आरवी के लबों पर भी मुस्कान ठहर गयी उसने उसके तरफ बढ़ते हुए कहा, "वहाँ क्या कर रही है आप? इधर आइये।"

    "मम्मा दादी ने आपको नीचे बुलाया है।" अंशिका ने मुस्कुराकर कहा। आरवी ने उसको अपनी गोद मे उठा लिया और वहाँ से बाहर चली गयी। उसके वहाँ से निकलते ही ड्रेसिंग टेबल के बगल वाले रूम का दरवाजा खुला और शान ने बाहर कदम रखा।

    उसके चेहरे पर कोई भाव नही थे, पर जैसे ही उसकी नज़रे ड्रेसिंग टेबल पर रखे गहनों और आरवी के समान पर गयी उसका चेहरा गुस्सा से लाल हो उठा। आँखे लावे जैसे धधकने लगी, वो गुस्से मे उस तरफ बढ़ा जहाँ आरवी के बैग्स रखे थे, वो उन्हें उठाकर फेंकने ही वाला था कि तभी उसके दिमाग मे कुछ आया और उसने समान वही पटक दिया। कबर्ड से अपने कपड़े लिए और बाथरूम मे घुस गया।

    वही दूसरी तरफ आरवी अंशिका के साथ नीचे चली गयी। अर्पिता जी नीचे हॉल मे ही उसका इंतज़ार कर रही थी। आरवी उनके सामने जाकर खड़ी हो गयी, फिर झुककर उनके पैर छूने लगी तो उन्होंने उसको रोक दिया और प्यार से उसके गाल को छूकर बोलीं, "महादेव आपको दुनिया की हर खुशी दे। सदा सुहागन रहो और यूँही मुस्कुराती अपनी मुस्कान से हमारे घर को महकाती रहो।"

    उनकी बात सुनकर आरवी हल्के से मुस्कुरा दी। अब उन्होंने उसको ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा, "ये क्या बेटा? आपने तो न गले मे कुछ पहना है, न ही कान में? हाथ भी कैसे सुने लग रहे है, पैर भी खाली है। नई नवेली दुल्हन है आप, आपको देखकर पता चलना चाहिए न कि आप हमारे घर की बहु हैं।"

    "बड़ी माँ, मुझे इन सबकी आदत नहीं है। मां ने कहा था शादी के बाद एक लड़की को कभी भी सिंदूर और मंगलसूत्र नहीं छोड़ना चाहिए, हाथ खाली नही रहने चाहिए तो मैंने कुछ चूड़ियाँ डाल लीं, मंगलसूत्र पहना हुआ है और सिंदूर भी लगाया हुआ है, इससे ज्यादा करूँगी तो मैं कम्फर्टेबल नही रह पाऊँगी। अगर फिर भी आप कहेंगी तो मैं सब पहन लेती हूँ।"

    उसने इतने प्यार से और मासूमियत से अपनी बात कही कि अर्पिता जी मुस्कुराए बिना न रह सकीं। उन्होंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "नही बेटा अगर आपको ठीक नही लग रहा तो रहने दीजिये, हम आपको फोर्स नही करेंगे। आप जैसी है वैसे ही बहुत अच्छी लग रही है। सही कहा था अनु ने और आपने उनकी बात और इस रिश्ते का मान रखा है।

    आपकी समझदारी देखकर आप हमें और भी ज्यादा पसंद आ गयी हैं, अब तो हमें और भी विश्वास हो गया है कि आप हमारी उम्मीदों पर खरी उतरेंगी। बस एक काम कर लीजियेगा इन चूड़ियों के साथ उन कंगनों को भी पहन लीजियेगा जो हमने शादी के वक़्त आपको पहनाए थे। वो हमारे खानदानी कंगन है और हम चाहते है कि हमारी बहु उन्हें हमेशा पहनकर रखे।"

    "मैं अभी पहनकर आती हूँ।" आरवी ने इतना कहकर जाने के लिए कदम उठाया, पर अर्पिता जी ने उसे रोकते हुए कहा, "बाद में पहन लीजियेगा, अभी हमारे साथ चलिए, हमें आपको बहुत कुछ बताना है और किसी से मिलवाना भी है।"


    To be continued...

  • 14. Forced by destiny - Chapter 14

    Words: 2191

    Estimated Reading Time: 14 min

    आरवी उनकी बात सुनकर रुक गयी। अंशु को उन्होंने पहले ही सुभाष जी के पास भेज दिया था, अब वहाँ सिर्फ़ वो और आरवी ही थीं।

    अर्पिता जी उसे लेकर आगे बढ़ते हुए बोलीं, "चलिए, अब हम आपको अपने परिवार के बारे में बताते हैं जो अब से आपका भी परिवार है। हमारे घर में बस पाँच लोग रहते हैं - अंशिका, शान और हमसे तो आप मिल चुकी हैं और ये भी समझ गयी होंगी कि हम शान की माँ नहीं, बड़ी माँ हैं।

    अब आपके दिमाग़ में सवाल आ रहा होगा कि उनकी माँ कहाँ हैं, तो हम आपको इस बारे में बाद में सही वक़्त आने पर बता देंगे। अभी आप इतना जान लीजिए कि हमने ही शान को पाला है और आपको ग़लती से भी शान के सामने कभी उनकी माँ का ज़िक्र नहीं करना है। ये समझ लीजिए कि उनको अपनी माँ से नफ़रत है, वजह अभी हम आपको नहीं बता सकते।

    अंशु की माँ का ज़िक्र भी मत कीजिएगा उनके सामने। आज तक हम भी नहीं समझ पाए कि अंशिका की माँ कौन है, पर हम इतना जानते हैं कि अंशु में शान की जान बसती है, उनकी एक छींक पर वो सब छोड़कर उनके पास पहुँच जाते हैं। आज अगर शान ज़िंदा है तो शायद सिर्फ़ अंशिका की वजह से। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ देखा है, इसलिए वो इतने सख़्त हो गए हैं।

    औरत के हर रूप से इन्हें कड़वी यादें मिली हैं, इसलिए अब इन रिश्तों पर उन्हें विश्वास नहीं है, पर हमें विश्वास है कि जल्दी ही आप उनके दिल में अपने लिए जगह बना लेंगी, उनके दिल में जो ज़हर भरा है औरतों को लेकर उसे अपने प्यार से मिठास में बदल देंगी। उन्हें रिश्तों के मायने समझाएँगी। हर औरत धोखेबाज़ नहीं होती इसलिए सिर्फ़ आप उन्हें विश्वास दिला सकती हैं।

    आपको उनके लिए से सभी बुरी यादों को मिटाना होगा, ये आसान नहीं होगा पर हमें विश्वास है कि आप ये कर लेंगी, फिर हम तो हैं ही आपके साथ। अब तो आपको यहीं रहना है तो हम धीरे-धीरे आपको सब बता देंगे, अभी हम आपको आपके ससुर जी से मिलवाने लेकर जा रहे हैं। आपके बड़े पापा तो काम से बाहर गए हैं, कल तक आएँगे। अभी आपको भाई साहब से मिलवा देते हैं।"

    इन्हीं बातों में वो उस कमरे तक पहुँच गयीं, जहाँ सुभाष जी रहते थे। आरवी के दिमाग़ में बहुत कुछ चल रहा था, बहुत सी उलझनें, सवाल पर अभी वो खामोशी से उनके साथ चलती रही। उन्होंने दरवाज़ा खोला और उसे लेकर अंदर चली गयीं। अंदर सुभाष जी अंशिका के साथ बात कर रहे थे।

    जब दरवाज़े के खुलने की आवाज़ उनके कानों में पड़ी तो उन्होंने सर घुमाकर देखा। अर्पिता जी के पीछे आती आरवी पर जैसे ही उनकी नज़र पड़ी वो उसके चेहरे को बड़े ग़ौर से देखने लगे, जैसे उसे पहचानने की कोशिश कर रहे हों।

    आरवी तो नज़रें झुकाए उनके पास आ रही थी। जैसे ही अर्पिता जी उनके पास पहुँचीं, सुभाष जी ने आरवी को देखते हुए उनसे सवाल किया, "भाभी ये बच्ची कौन है? आज से पहले तो इन्हें कभी नहीं देखा।"

    "अभी बताते हैं, पहले आप बताइए आपको ये कैसी लगी?" अर्पिता जी ने बदले में उन्हीं से सवाल कर दिया तो उन्होंने आरवी को ग़ौर से देखा फिर मुस्कुराकर बोले, "बहुत प्यारी बच्ची है, ऐसा लग रहा है जैसे सालों पहले की सावित्री हमारे सामने आकर खड़ी हो गयी हो। वही भोलापन, वही सादगी और उन्हीं के जैसी सुंदर।"

    उनके चेहरे पर अलग ही चमक थी और लब के साथ साथ आँखें भी खुशी से मुस्कुरा रहे थे। आरवी उन्हें असमंजस में देखने लगी तो अब अर्पिता जी ने उसकी तरफ़ घूमते हुए कहा, "आरवी बेटा, अपने ससुर जी मतलब डैड के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लो।"

    आरवी उनके कहने पर चुपचाप उनकी बात मान गयी और झुककर उनके पैर छू लिए, पर वापस सीधी खड़ी नहीं हुई क्योंकि सुभाष जी ने अब तक उसे आशीर्वाद नहीं दिया था। वो तो अर्पिता जी की बात सुनकर हैरान परेशान से उन्हें देखने लगे थे। उनकी आँखों में झलकते सवाल को समझकर अर्पिता जी ने मुस्कुराकर कहा,

    "आपके शान की पत्नी है ये, आपकी बहू। शादी अजीब हालातों में हुई, समझ लीजिए कि ये हीरा किसी और के घर का होने वाला था पर नसीब ने इन्हे हमारी बहू बना दिया। कल रात को शादी हुई थी, बस हम और शान ही थे वहाँ।

    आप तो जानते है अपने बेटे को कितना सख़्त बनाया हुआ है उन्होंने खुदको। वो तो अभी इस शादी को मानते भी नहीं पर हमें पूरा विश्वास है कि जल्दी ही वो दिल से इस रिश्ते को अपना लेंगे। बहुत प्यारी बच्ची है पल में सबका मन मोह लेती है, हमें उम्मीद है की आपको अपनी बहु पसंद आई होगी। देखिएगा जब आप इन्हें जानने लगेंगे तो आपको भी इनसे प्यार हो जाएगा। अब अपनी बहू को आशीर्वाद दीजिये कि वो इस घर को और आपके खडूस बेटे को संभाल सके।"

    "येस दादू मम्मा न बहुत अच्छी है, अंशु को बहुत लव करती है पर डैडी न मम्मा से नाराज़ है इसलिए वो मम्मा से बात नहीं कर रहे पर मम्मा बहुत नाइस है। आप मम्मा से बात करेंगे न?" उनके चुप होते ही अंशिका ने आरवी की सिफ़ारिश कर दी तो अर्पिता जी मुस्कुरा उठीं।

    सुभाष जी ने पहले अंशु को देखा और आँखों में चमक लिए उन्हें देख रही थी फिर उन्होंने आरवी को देखा जिसने अब भी उनके पैर छुए हुए थे। उन्होंने धीरे से अपना हाथ उठाकर उसके सर पर रख दिया और मुस्कुराकर बोले,

    "सदा खुश रहो। हमें भाभी पर पूरा विश्वास है अगर उन्होंने आपको हमारे शान के लिए चुना है तो आप उनके लिए बिल्कुल सही जीवनसाथी होंगी। शान दिल के बुरे नहीं है, उनके अंदर जो कड़वाहट भरी है उसकी वजह हम हैं, उनका अतीत है, हमें उम्मीद है कि आप उनके दिल से इस कड़वाहट को हमेशा के लिए मिटा देंगी।

    महादेव हमेशा आप का साथ दे। आप बिल्कुल सावित्री की परछाई है, उन्होंने हमारी ज़िंदगी में आकर उसे खुशियों से भर दिया था फिर जब गयी तो अपने साथ साथ हमारी सारी खुशियाँ और जीने की वजह भी ले गयी पर आप हमसे वादा कीजिये कि आप हमारे बेटे का साथ कभी नहीं छोड़ेंगी।"

    उन्होंने अपना हाथ उसके आगे बढ़ा दिया। आरवी उनकी बातों को बड़े ग़ौर से सुन रही थी और समझने की कोशिश कर रही थी। उन्होंने उससे प्रॉमिस करने को कहा तो आरवी उनकी हथेली को देखते हुए सोच में पड़ गयी।

    अर्पिता जी ने उसे खामोश देखा तो उसके कंधे पर हाथ रख दिया। आरवी ने सर घुमाकर उन्हें देखा फिर सुभाष जी को देखा जिनकी आँखों में अजीब सा सूनापन और दर्द झलक रहा था और वो उसी को देख रहे थे।

    आरवी ने अब उनकी हथेली पर अपनी हथेली रखते हुए कहा, "मैं आपसे वादा करती हूँ कि मैं कभी उनका साथ नहीं छोड़ूँगी। अब से ये घर और ये परिवार ही मेरा सबकुछ है, मैं हर रिश्ते को अपनी आख़िरी साँस तक दिल से निभाऊँगी।"

    उसकी बात सुनकर सुभाष जी और अर्पिता जी मुस्कुराने लगे। आरवी खामोशी से खड़ी कुछ सोचती रही फिर उसने कुछ देर रुककर कहा, "डैड आपसे कुछ पूछूँ?"

    "पूछो बेटा, आपने हमें डैड कहा है, आज से आप हमारी बहू के साथ साथ हमारी बेटी भी है और आपको हमसे कुछ भी पूछने की हक़ है उसके लिए आपको परमिशन की ज़रूरत नहीं है।" सुभाष जी ने मुस्कुराकर उसको सवाल पूछने को कह दिया।

    आरवी कुछ पल सोचती रही फिर उसने सवाल किया, "डैड आप यहाँ इस कमरे में क्यों बैठे है? मतलब आप बाहर क्यों नहीं आए और यहाँ इतनी मशीनें क्यों रखी है, क्या आप बीमार है?"

    उसने उनके बेड के पास रखी मशीनों और दवाइयों को देखकर सवाल किया। उसके सवाल को सुनकर सुभाष जी का चेहरा मायूस हो गया उन्होंने भारी गले से कहा, "हम बीमार है बेटा, एक ऐसी बीमारी है हमें जिसका कोई इलाज नहीं है, हम तो मरना चाहते है पर शान के लिए खुद को ज़िंदा रखे हुए है और जी रहे हैं किसी तरह ये ज़िंदगी जो हम पर बोझ बन गयी है। हमारी तो जीने की इच्छा कब की हमारा साथ छोड़ गयी है पर हमारे प्राण हमारे देह को जीवन के इस माया जाल से मुक्त ही नहीं करते।"

    "आप ऐसे क्यों कह रहे है डैड? आप तो इतने अच्छे है, इतना अच्छा परिवार आपके पास है जो आपको बहुत प्यार करते है फिर आप जीना क्यों नहीं चाहते? जानते है बहुत जन्मों के बाद इंसान का जन्म मिलता है उसे यूँ बर्बाद नहीं करना चाहिए। चाहे कितनी ही बड़ी प्रॉब्लम क्यों न आए पर इंसान को कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।

    भगवान तो हमारी परीक्षा लेते ही रहते है इसका मतलब ये तो नहीं कि हम ज़िंदगी को जीना ही छोड़ दे। मुझे तो आप कही से बीमार नहीं लगते। ज़रूर आप खुद को इस कमरे में बंद रखते है न और ऐसी ऐसी बातें सोचते है तभी आप खुद को बीमार लगते होंगे। अब मैं आ गयी हूँ ना देखना कैसे मैं आपको ठीक कर देती हूँ, आप मेरे साथ बाहर चलेंगे, ठंडी हवा को महसूस करेंगे तो ये सब नेगेटिव बातें आपके दिमाग से बाहर निकल जाएँगी।" आरवी ने उनकी फ़िक्र जताते हुए उन्हें समझाया। उसकी बात सुनकर सुभाष जी ने मुस्कुराकर कहा, "हम चल नहीं सकते बेटा।"

    उनकी बात सुनकर तो जैसे आरवी को झटका सा लगा, वो हैरानी से पहले उन्हें फिर अर्पिता जी को देखने लगी तो अर्पिता जी ने मायूस होकर कहा, "हाँ बेटा, भाई साहब चल नहीं सकते। उनकी कमर के नीचे का भाग पैरालाइज् है, शान ने बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखाया, सालों से इलाज चल रहा है पर अभी तक कोई इम्प्रूवमेंट नहीं आई है।

    एक कार हादसे में भाई साहब ने अपने चलने फिरने की शक्ति खो दी उसके बाद से उन्होंने खुदको इस कमरे में कैद कर लिया, बहुत कोशिश की हम सबने पर वो कभी बाहर जाने को तैयार ही नहीं हुए।"

    आरवी खामोशी से उनकी बात सुनती रही। अर्पिता जी चुप हुई तो आरवी ने सुभाष जी को देखकर गंभीरता से सवाल किया, "डैड क्या आप मुझे अपनी बेटी मानते है?"

    "इसमें मानने वाली क्या बात है बेटा। आप हमारे शान की पत्नी है, हमारी बहु है। हम आपको अपनी बेटी नहीं मानेंगे तो और क्या मानेंगे? हम तो बहुत खुश है पहले बस अंशु थी जिनसे हम बात कर लिया करते थे पर अब तो हमें एक प्यारी सी बेटी भी मिल गयी है।" उन्होंने मुस्कुराकर उसके गाल को छुआ।

    आरवी ने अब उनकी दोनों हथेलियों को थाम लिया और आगे बोली, "डैड मुझे नहीं पता कि क्या हुआ है पहले? क्यों आप जीना नहीं चाहते, कुछ भी नहीं जानती मैं और जब तक आप खुद मुझे नहीं बताते मैं आपसे कुछ पूछूँगी भी नहीं, पर डैड अगर आप मुझे सच में अपनी बेटी मानते है तो क्या मेरी एक बात मानेंगे?"

    "कहिये बेटा" उन्होंने उसको आगे कहते को कहा। आरवी कुछ देर खामोश रही फिर उसने आगे कहना शुरू किया, "अब से मैं जो भी कहूँगी आपको वो सब करना होगा, मरने का ख़याल भी आप अपने दिल में नहीं लाएँगे। मैं एक बार अपने पापा को खो चुकी हूँ, इतने सालों बाद मुझे फिरसे पापा का प्यार महसूस करने का मौका मिला है और मैं इस प्यार को या आपको खोना नहीं चाहती।

    जानती हूँ मैं आपसे अभी अभी मिली हूँ पर मुझे आप बहुत अच्छे लगे। बिल्कुल मेरे पापा जैसे है आप बस वो इतने नेगेटिव नहीं थे पर कोई बात नहीं अब मैं आ गयी हूँ ना देखना बहुत जल्द आप अपने पैरों पर खड़े भी होंगे और आपके दिमाग से ये सारी गंदी बातें भी निकल जाएँगी। एक बार आपके दिमाग़ से ये बातें निकल गयी तो आप जल्दी ही एकदम ठीक हो जाएँगे और अंशिका के साथ दौड़ दौड़कर खेलेंगे भी। बताइये मानेंगे न अपनी बेटी की बात?"

    वो आस भरी नज़रों से उन्हें देखने लगी। सुभाष जी के लबों पर मुस्कान फैली हुई थी उन्होंने प्यार से उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा, "जब हमारी बेटी इतने प्यार से हमसे कुछ मांग रही है तो हम उनका नाज़ुक दिल कैसे तोड़ सकते है? हम आपकी सारी बातें मानेंगे बेटा। आप बिल्कुल सावित्री की परछाई है, हम चाहकर भी कभी आपको दुखी नहीं कर सकते। अब तो हम भी जीना चाहते है, अपने बेटे को खुशी से जीवन जीते देखना चाहते है।"

    "ये हुई न बात, देखिएगा मैं आपकी इतनी सेवा करूँगी कि आप जल्दी ही एकदम ठीक हो जाएँगे।" आरवी का चेहरा खिल उठा उनकी बात सुनकर वही अर्पिता जी उसको गर्व भर मुस्कान के साथ बोलीं, "आप अपने व्यवहार से हमारे विश्वास को और भी पक्का करती जा रही है कि हमने आपको इस घर कि बहु बनाकर और शान की ज़िंदगी में शामिल करके बिल्कुल सही फ़ैसला लिया है।"

    उनकी बात सुनकर कंचन हल्का सा मुस्कुरा दी। अब रूम का दरवाजा खुला और नर्स ने अंदर कदम रखा तो अर्पिता जी ने उसे देखते हुए कहा, "आप इनका ध्यान रखिये हम अभी आते है।"

    वो आरवी और अंशु को अपने साथ ले गयीं। आरवी को उन्होंने अब उन कंगनों को पहनने के लिए उसे कमरे में भेज दिया और खुद खाने का इंतज़ाम देखने चली गयीं, साथ में अंशिका भी थी।


    To be continued...

  • 15. Forced by destiny - Chapter 15 characterless

    Words: 1889

    Estimated Reading Time: 12 min

    आरवी कमरे में आ गयी। उसने कंगन उठाए और उन्हें पहनने के बाद जाने के लिए मुड़ गयी, ठीक इसी वक़्त एक बाद फिर ड्रेसिंग टेबल के बगल वाला डोर खुला, मतलब स्टडी रूम का डोर खुला और शान ने कमरे में कदम रखा। आरवी को वहाँ देखते ही उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गयीं और वो गुस्से से दाँत पीसते हुए बोला,

    "बड़ी माँ के कह देने से खुद को अंशिका की माँ समझने की भूल कभी मत करना, वो मेरी बेटी है, कोई रिश्ता नहीं है उससे तुम्हारा, तो उससे दूर रहो, यही तुम्हारे लिए अच्छा होगा।"

    उसने गुस्से में उसे वार्निंग दी। उसकी आवाज़ जैसे ही आरवी के कानों में पड़ी उसके बढ़ते कदम रुक गए। उसकी दिल तोड़ने वाली बात सुनकर उसे बाहर कही कड़वी बातें भी याद आ गयी थीं। उसने खुद को संभाला और पीछे मुड़कर देखा तो शान उसे ही गुस्से से घूर रहा था।

    आरवी ने अब आराम से जवाब दिया, "जानती हूँ ये रिश्ता आपकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जुड़ा है, सच मानिए अगर मुझे ये पहले पता होता तो मैं कभी आपसे शादी नहीं करती, चाहे मुझे कुछ भी क्यों न सहना पड़ता। लेकिन अब शादी हो गयी है फिर भी मैं आपसे एक पत्नी होने का कोई हक़ नहीं माँगती पर अब से मैं अंशिका की माँ हूँ और ये सच आप भी नहीं बदल सकते। अगर वो आपकी बेटी है तो अब से मेरा भी उसपर बराबर हक़ है और मैं उससे दूर बिल्कुल नहीं रहूँगी। उसे उसकी माँ की ज़रूरत है और मैं हर हाल में उसकी ज़िंदगी की इस कमी को पूरा करके ही रहूँगी।"

    उसकी आवाज़ में एक कॉन्फ़िडेंस था। उसकी बात सुनकर शान के लबों पर तिरछी मुस्कान फैल गयी, उसने व्यंग्य भरे लहज़े में कहना शुरू किया, "बहुत अच्छा नाटक कर लेती हो। इतनी शरीफ़ तुम हो नहीं जितना दिखाने की कोशिश कर रही हो। मुझे तो शक है ज़रूर तुम्ही ने उस लड़के को वो सब करने को मजबूर किया होगा, शादी से पहले कितनों के साथ रात गुज़ार चुकी हो जो सच जानने के बाद वो तुम्हें मंडप पर छोड़ गया वो भी उस हाल में?"

    शान ने जैसे ही ये कहा आरवी का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। वो आगे कुछ कह पाता उससे पहले ही आरवी ने उसकी बात काटते हुए बेहद गुस्से से कहा, "मिस्टर मल्होत्रा, आगे एक और शब्द नहीं। अगर आप कुछ जानते नहीं है तो आपको कोई हक़ नहीं मेरे चरित्र पर कीचड़ उछालने का और मुझे कुछ कहने से पहले अपने दामन में झाँक कर देख लीजिए।

    एक इतनी बड़ी बच्ची के बाप होते हुए भी रोज़ किसी नई लड़की के साथ रात गुज़ारते है, मुझे तो लगता है ज़रूर आपकी इन्हीं अय्याशियों से तंग आकर अंशिका की माँ आपको छोड़कर चली गयी होंगी, उन्हें तो अंशिका को भी अपने साथ ले जाना चाहिए था।" आरवी बेहद गुस्से में थी आख़िर शान ने उसके चरित्र उंगली उठाई थी तो वो ये इल्ज़ाम कैसे बर्दाश्त करती। गुस्से में उसके मुँह में जो आया उसने कह दिया, वही उसने ग़लती से शायद शान की दुखती रग पर हाथ रख दिया था जिससे शान गुस्से से तिलमिला उठा और चीख़कर बोला, "Shut up......अगर एक और शब्द कहा तो जान से मार दूँगा तुम्हें।"

    "क्यों जब बात खुद के चरित्र पर आई तो गुस्से से बौखला उठे और जब बिना सच्चाई जाने मुझे अपने जिस्म का धंधा करने वाली वैश्या क़रार दिया था, तब क्यों नहीं काँपी आपकी ज़ुबान, आपकी इज़्ज़त इज़्ज़त और दूसरों की इज़्ज़त खेल। ऐसे दोगले इंसान होंगे आप ये मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

    मुझे तो लगा था कि जो इंसान एक लड़की की इज़्ज़त बचाने के लिए उससे शादी कर ले वो भगवान का अवतार होगा, एक पल में मैंने न्यूज़ में दिखाई जाने वाली सभी बातों को नकार दिया की आप वैसे हो ही नहीं सकते पर नहीं, आप उससे भी बुरे हैं। बाहर वाली लड़कियों के साथ इंसान जैसे मर्ज़ी रहे पर कम से कम अपनी पत्नी की तो वो इज़्ज़त करता है पर आपने तो मेरी इज़्ज़त को तार-तार करके रख दिया।

    अगर इतनी ही बुरी लगती थी मैं, अगर विश्वास ही नहीं था मुझ पर, इतनी ही गंदगी भरी हुई थी मेरे लिए आपके दिल में तो क्यों की मुझसे शादी, जीती या मरती अपने हाल पर रहती, यूँ घुट-घुट कर जीने से तो मर ही जाती तो अच्छा होता।

    मुझे कहते है कि मेरा कोई character नहीं, जानते ही क्या है आप मेरे बारे में? कोई फ़र्क़ नहीं आप में और उस विहान में, वो तो मुझे पाना चाहता था और मुझी को रुसवा कर गया सारी दुनिया के सामने पर आप तो उससे भी बुरे निकले, सबके सामने मेरा हाथ थामकर भी मुझे अपनी ही नज़रों में गिराकर छोड़ दिया।

    क्यों की मुझसे शादी, नहीं करनी थी न..... मुझे लगा आप मेरे लिए फ़रिश्ता बनकर आए है पर आपने तो ये शादी करके मुझे ज़िंदगी भर के लिए एक नर्क से बदतर ज़िंदगी दे दी। बहुत बड़ा एहसान किया आपने मुझ पर, अब ना तो आपके किसी और एहसान को सहने की हिम्मत है मुझमें और न ही कोई आरज़ू ही ज़िंदा बची है। बहुत-बहुत शुक्रिया आपका मुझे मौत से बदत्तर जिल्लत भरी ज़िंदगी देने के लिए, आपका ये एहसान मैं ज़िंदगी भर नहीं भूलूँगी।

    ग़लती से ही सही पर दो अच्छे काम कर गए आप, उनकी अभागन बेटी से शादी करके मेरी माँ को नई ज़िंदगी दे दी, और मुझे इस घर में लाकर मुझे जीने की वजह दे दी। बहुत-बहुत शुक्रिया आपका इससे ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत नहीं आपको। नहीं मानते न आप इस शादी को तो अब मैं आपसे कहती हूँ कि आप जैसे घटिया और गिरी हुई सोच वाले आदमी को मैं कभी अपना पति नहीं मान सकती। आज से और अभी से मैं आपसे जुड़े इस रिश्ते को तोड़ती हूँ, ना अब आपका मुझ पर कोई हक़ है न ही मुझे किसी हक़ की चाह है।

    नहीं हूँ न आपके लायक तो यही सही, अब दूर रहिएगा मुझसे, कोई हक़ नहीं आपका मुझपर। और भूल से भी मुझे उन लड़कियों की तरह समझने की ग़लती मत कीजिएगा जो आपकी बाहों में आने के लिए मरती रहती है, ज़िंदगी में एक बार ग़लती की थी उसकी सज़ा आज तक भुगत रही हूँ दोबारा किसी आदमी को अपनी मर्ज़ी के बिना खुद को छूने भी नहीं दूँगी। इसलिए अगर आपने मेरी मर्ज़ी के बिना मुझे छूने की कोशिश भी की तो जान से मार दूँगी आपको या खुद मर जाऊँगी।

    नहीं हक़ किसी का मेरे शरीर पर तो अब मुझसे दूर रहिएगा और एक बात आपने मुझसे शादी करके खुद मुझे उसकी माँ होने का दर्जा दे दिया और अब ये हक़ मुझसे कोई छीन नहीं सकता, खुद आप भी नहीं। वो मेरी बेटी है और मैं किसी को भी मुझे उससे अलग नहीं करने दूँगी। आपकी पत्नी कहलाने का शौक़ न मुझे पहले कभी था न ही आज है और न ही आगे कभी ऐसा होगा, मैं अंशिका की मम्मा बनकर ही खुश और संतुष्ट हूँ इससे ज़्यादा की चाह नहीं मुझे......

    और एक बात आपने तो मुझे चरित्रहीन क़रार ही दिया है फिर भी आपको इतना बता देती हूँ कि इस चरित्रहीन लड़की की बुरी छाया कभी आपकी बेटी पर नहीं पड़ेगी, उसे सिर्फ़ प्यार दूँगी उससे ज़्यादा कुछ नहीं करूँगी तो आप निश्चिंत रहे। आपकी बेटी को माँ के प्यार की ज़रूरत है वही मिलेगा उसे, उसे आपसे दूर करने की कोशिश नहीं करूँगी क्योंकि बच्चे के लिए पिता कितने ज़रूरी होते है ये मैं बहुत अच्छे से जानती हूँ।

    हो सके तो आगे से मेरे सामने मत आईयेगा और मेरे बारे में कुछ कहने की तो सोचियेगा भी मत, शादी ज़रूर की है आपने मुझसे पर ग़ुलाम नहीं बनी हूँ आपकी जो आपकी हर बकवास को सर झुकाए सह जाऊँ, ग़लत के ख़िलाफ़ सर उठाना आता है मुझे, झुकना नहीं सीखा मैंने, ख़ासकर अगर कोई मेरे स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ करे तो वो मुझे किसी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं। एक बार चुप रहने की ग़लती की थी दोबारा नहीं करूँगी, अगर आपने दोबारा अपने मुँह से मेरे लिए ऐसी अनाब शनाब बातें निकाली तो याद रखियेगा कि मैं भी चुप नहीं रहूँगी।"

    वो बेहद गुस्से में थी, आँखें नम थीं पर चेहरा गुस्से से लाल था। वो दनदनाते हुए वहाँ से चली गयी, उसके जाने के बाद कहीं जाकर शांतनु को होश आया और उसकी बातें याद करके उसका चेहरा गुस्से से तमतमा उठा, वो भी दनदनाते हुए कमरे में चला गया और उसने कमरे से बाहर जाती आरवी की बाँह पकड़कर उसे दीवार से लगा दिया और गुस्से से दाँत पीसते हुए बोला, "समझती क्या हो खुद को? क्या औक़ात है तुम्हारी? हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मुझसे ऐसे बात करने की।"

    अभी तक आरवी उसकी पकड़ से अपनी बाँह को आज़ाद करवाने की कोशिश कर रही थी पर उसकी बात सुनकर उसने पलकें उठाकर उसकी आँखों से आँखें मिलाते हुए जवाब दिया, "जो हूँ वही समझती हूँ और रही बात मेरी हिम्मत की तो अभी वो आपने देखी ही कहाँ है। अभी तो बस ट्रेलर ही दिखाया है इतने में ही तिलमिला उठे। अगर दोबारा मेरे चरित्र पर उँगली उठाई तो जो मैं करूँगी वो आपने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा।

    मुझे कमज़ोर समझने की ग़लती भूल से भी मत कीजिएगा, बचपन से अपने लिए खुद लड़ती आई हूँ, अपने स्वाभिमान की रक्षा करना बहुत अच्छे से आता है मुझे और उससे भी बेहतर तरीके से आप जैसी घटिया सोच वाले आदमी को लाइन पर लाना आता है मुझे। इतना जो अकड़ दिखा रहे है न मुझे उसे अपनी जेब में रखिये वरना अगर मैं अपनी पर उतर आई तो आप बर्दाश्त नहीं कर पाएँगे।

    आइंदा से मेरी इजाज़त के बिना मुझे छूने की सोचियेगा भी नहीं वरना हाथ तोड़कर मुँह में दे दूँगी।"

    उसने गुस्से से उसका हाथ झटक दिया, उसे पीछे धक्का देकर सीधे गेट से बाहर निकल गयी और ज़ोर से दरवाज़ा उसके मुँह पर दे मारा तो वो खिसियाकर उनके पीछे भागा पर बाहर कुछ कदम बढ़ने के बाद ही उसके कदम रुक गए। सामने अंशिका खड़ी थी और और आरवी उसके सामने घुटनों के बल बैठी उससे बात कर रही थी।

    उसकी मुस्कान देखकर शांतनु ने अपने गुस्से को पी लिया, तभी अंशिका की नज़र उस पर चली गयी तो उसने मोहिनी मुस्कान के साथ उसे देखते हुए कहा, "डैडी चलिए दादी ने आपको और मम्मा को खाने के लिए बुलाया है। आज सब साथ में लंच करेंगे। बिग दादू भी आए है।"

    उसकी बात सुनकर शांतनु ने आगे आकर उसे अपनी गोद में उठा लिया और मुस्कुराकर आगे बढ़ते हुए बोला, "चलिए डैडी अपनी प्रिंसेस को अपने हाथों से खाना खिलाते है।"

    "नो डैडी आज अंशु को मम्मा के हाथों से खाना खाना है। " उसने आँखें मटकाते हुए बड़ी ही मासूमियत से कहा, उसकी बात सुनकर शान का गुस्सा बढ़ गया जिसे उसकी शक्ल देखते ही आरवी भी समझ गयी, उसने उसके कुछ कहने से पहले ही कहना शुरू कर दिया, "नहीं बेटा अभी आप डैडी के हाथों से लंच कर लीजिए, मम्मा आपको बाद में खुद अपने हाथों से खाना बनाकर अपने ही हाथों से खिलाएगी।"

    उसने उसे समझाते हुए कहा तो समझदार अंशिका ने okay कह दिया। शान ने एक नज़र उसे घूरा तो बदले में उसने भी उस पर से नज़रें न हटाते हुए उसे घूरा, शान ने अब उस पर से नज़रें फेर ली और अंशिका के साथ आगे बढ़ गया तो वो भी उसके पीछे चल दी।


    To be continued...

  • 16. Forced by destiny - Chapter 16

    Words: 1129

    Estimated Reading Time: 7 min

    शान अंशु को लेकर नीचे चला गया। आरवी भी उसके पीछे चल दी। तीनों डाइनिंग एरिया में पहुँचे तो वहाँ अर्पिता जी के साथ साथ सुयश जी भी मौजूद थे। उन्हें देखते ही अंशु ने बड़ी सी मुस्कान के साथ उन्हें देखते हुए कहा,

    "बिग दादू आप आ गए। आप कहाँ गए थे, पता है डैडी मम्मा को वापिस ले आए अब मम्मा कभी अंशु को छोड़कर नहीं जाएँगी। बेबी ने मम्मा से प्रॉमिस ले लिया, अब मम्मा हमेशा बेबी के पास रहेंगी।"

    उसकी मासूमियत भरी बातें सुनकर और खुशी से खिला हुआ चेहरा देखकर सुयश जी हल्का सा मुस्कुरा दिए पर उनका सारा ध्यान शान के चेहरे पर था जो इस वक़्त बेहद गुस्से में लग रहा था। उसके गुस्से को देखते हुए सुयश जी ने मुस्कुराकर अंशु को देखकर कहा, "आपको मम्मा पसंद आई?"

    "Yes बिग दादू, मम्मा न बहुत nice है और बहुत pretty भी है बिल्कुल बेबी की स्टोरी वाली प्रिंसेस के तरह और मम्मा अंशु को बहुत लव भी करती है। बेबी को मम्मा बहुत पसंद आया अब बेबी उन्हें हमेशा अपने पास रखेगी।" आज अंशिका की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था और उसकी खुशी ये बताने के लिए काफ़ी थी कि वो किस हद तक अपनी मम्मा को मिस करती है। अब सुयश जी ने शान को देखकर कहा, "Good morning बेटा कैसे हो?"

    "Good morning बड़े पापा, मैं ठीक हूँ आप बताइए जिस काम से गए थे वो अच्छे से हो गया?" शान ने किसी तरह अपने गुस्से को काबू किया हुआ था। जैसे ही वो चुप हुआ ठीक इसी वक़्त आरवी ने वहाँ कदम रखा तो अर्पिता जी ने उसे देखा फिर मुस्कुराकर बोलीं,

    "बस, काम की बात बाद में कीजिएगा। अभी तो हम आपको अपनी बहू से मिलवाना चाहते है।" (फिर उन्होंने आरवी को अपने पास आने का इशारा करते हुए कहा) "बेटा आप वहाँ क्यों खड़ी है? इधर आइये हमारे पास।"

    आरवी बहुत पीछे खड़ी थी। उनके बुलाने पर वो उनके पास आ गयी तो अब उन्होंने सुयश जी की तरफ़ घूमकर मुस्कुराकर कहा, "यही है वो लड़की जिनके बारे में आपको बताया था। आरवी और अब से ये हमारे घर की बहू है।"

    उनकी बात सुनकर आरवी ने झुककर सुयश जी के चरण स्पर्श कर लिए तो सुयश जी ने अर्पिता जी को देखा और वो मुस्कुरा दी। अब सुयश जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ रखा और मुस्कुराकर बोले, "सदा खुश रहो, महादेव आपको दुनिया की हर खुशी दे।"

    आरवी अब उठकर खड़ी हो गयी, उसके लबों पर हल्की सी मुस्कान फैली हुई थी। सुयश जी ने मुस्कुराकर आगे कहा, "जितना हमने सुना था आप उससे कहीं ज़्यादा प्यारी और समझदार है। अब से आप इस घर कि बहू है तो आराम से यहाँ रहिये, इस घर पर आपका भी उतना ही हक़ है जितना शान का है। आप जैसे चाहे यहाँ रह सकती है, जो चाहे कर सकती है। बस हम आपसे इतना कहेंगे कि इस घर और इन रिश्ते को संभालना अब से आपकी ज़िम्मेदारी है और हमें उम्मीद है कि आप इन ज़िम्मेदारी को बहुत अच्छे से निभाएंगी।"

    "चलिए अब बाकी बातें बाद में होंगी पहले बैठिये और हमारे साथ खाना खाइये।"

    उनकी बात सुनकर आरवी ने धीरे से कहा, "मैं अभी खाना नहीं खा सकती, पहले डैड को खाना और दवाई खिला दूँ उसके बाद मैं खा लूँगी, आप सब खा लीजिये।"

    उसने बड़ी सौम्यता से अपनी बात कही। उसकी बात सुनकर जहाँ सुयश जी और अर्पिता जी मुस्कुराने लगे वहीं शान उसे हैरानी से देखने लगा। पर वो कुछ कह पाता उससे पहले ही अर्पिता जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "जाइये बेटा, आप भाई साहब को खाना खिलाकर आइये हम आपका इंतज़ार करते है।"

    "नहीं बड़ी माँ, आप सब खा लीजिये मैं बाद में खा लूँगी, आप सब क्यों मेरी वजह से परेशान होंगे?" आरवी ने उन्हें मना करना चाहा पर अबकी बार सुयश जी ने उसे देखकर मुस्कुराकर कहा, "इसमें परेशान होने वाली क्या बात है बेटा? आप हमारे घर की सदस्य है और आज आपका यहाँ पहला दिन है तो आज सारा परिवार साथ में ही खाना खाएगा।"

    "बड़ी माँ मैं सोच रही थी डैड को यहीं ले आऊँ? सब साथ में खाना खाएंगे तो अच्छा लगेगा।" आरवी ने थोड़ा हिचकिचाते हुए अपनी बात कही। उसकी बात सुनकर सुयश जी हैरान हो गए, शान आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगा, वही अर्पिता जी ने एक बार फिर मुस्कुराकर कहा, "अगर आप ये कर सके तो हमसे ज़्यादा खुशी किसी को नहीं होगी। हमने तो उन्हें बहुत समझाया पर वो अपने कमरे से बाहर आने को तैयार ही नहीं होते अगर आप उन्हें मना पाए तो जाइये ले आइये उन्हें।"

    आरवी के लब मुस्कुरा उठे उसने चाहकते हुए कहा, "मैं बस अभी उन्हें लेकर आती हूँ।"

    वो मुस्कुराकर वहाँ से चली गयी। अर्पिता जी सुयश जी के पास बैठ गयीं तो उन्होंने एकदम गंभीर होकर कहा, "आपने उन्हें जाने क्यों दिया? आप जानती है न सुभाष कभी अपने कमरे से बाहर आने को नहीं मानेगा, आज तक उसने हमारी बात नहीं मानी जबकि वो हमारी इस बात को छोड़कर और कोई बात नहीं टालता, फिर आरवी को यहाँ आए हुए वक़्त ही कितना हुआ है? वो आने के लिए नहीं मनेगा और बेवजह उस बच्ची का दिल टूट जाएगा।"

    वो परेशान नज़र आने लगे। उनकी परेशानी समझकर अर्पिता जी सौम्य सी मुस्कान के साथ बोलीं, "आप चिंता मत कीजिये उनका दिल नहीं टूटेगा। उस बच्ची में ऐसी मोहिनी है कि वो हर किसी को पल में अपना बना लेती है। कुछ देर पहले हमने उन्हें भाई साहब से मिलवाया था और वो उन्हें बहुत पसंद आई।

    भाई साहब किसी से ज़्यादा बात नहीं करते पर आरवी से वो बड़े प्यार से बात कर रहे थे। उन्होंने तो आरवी को अपनी बेटी मान लिया है और उनसे वादा भी किया है कि वो उनकी हर बात मानेंगे। अगर हमारा उन पर विश्वास पक्का है तो आज हमारा सारा परिवार सालों बाद साथ में खाना खाएगा वो भी सिर्फ़ उनकी वजह से।"

    उनकी बात सुनकर सुयश जी के मन में भी एक उम्मीद की किरण जागी और उन्होंने मुस्कुराकर कहा, "आपका विश्वास सही साबित हो, अगर सुभाष बाहर आने को मान गया तो हमसे ज़्यादा खुशी और किसी को नहीं होगी। एक बार वो उस चार दिवारी से बाहर निकल जाए उसके बाद वो जल्दी ही ठीक हो जाएगा और हमें हमारा वही भाई मिल जाएगा जिसे हमने सालों पहले खो दिया था।"

    दोनों की बात सुनकर शान खामोशी से बैठा रहा, उसके दिमाग में तूफ़ान उठ रहा था, आरवी से उसकी चिढ़ और भी बढ़ती जा रही थी और अब वो भी देखना चाहता था कि उसके डैड जो कभी उसके कहने पर अपने कमरे से बाहर नहीं आए वो आज उस लड़की के वजह से यहाँ आएँगे या नहीं जिसको आए मुश्किल से दो घंटे भी नहीं हुए थे।


    To be continued...

  • 17. Forced by destiny - Chapter 17

    Words: 1629

    Estimated Reading Time: 10 min

    आरवी सुभाष जी के कमरे में चली गयी। श्यामु जो कि उनका केयरटेकर है वो उनके पास बैठा था और उन्हें खाना खिलाने जा ही रहा था कि आरवी ने वहाँ कदम रखा और तेज़ आवाज़ में बोली, "रुकिए।"

    उसकी आवाज़ सुनकर श्यामु के हाथ हवा में रुक गए उसके साथ साथ सुभाष जी ने भी आवाज़ की दिशा में देखा तो आरवी उनके तरफ़ बढ़ गयी और सुभाष जी को देखकर मुस्कुराकर बोली,

    "अब से आप यहाँ अकेले खाना नहीं खाएंगे बल्कि बाहर चलकर अपने पूरे परिवार के साथ खाना खाएंगे। और आप मुझे मना नहीं कर सकते, आपने मुझे अपनी बेटी कहा था और वादा भी किया था कि आप मेरी सारी बातें मानेंगे। आज मेरा इस घर में पहला दिन है और मैं सबके साथ बैठकर खाना खाना चाहती हूँ। चलिए मेरे साथ बाहर चलिए।" (फिर उसने श्यामु को देखकर कहा) "भैया ज़रा मेरी मदद कर दीजिये, डैड को व्हीलचेयर पर बिठाने में।"

    श्यामु ने सुभाष जी को देखा क्योंकि वो आरवी को जानता नहीं था। उसकी आँखों में दिखते सवाल को देखकर सुभाष जी ने मुस्कुराकर कहा, "हमारी बेटी है ये, शान की पत्नी इनकी कोई नहीं टालनी। हमें व्हीलचेयर पर बिठा दीजिये हम आज सबके साथ ही नाश्ता करेंगे।"

    "सिर्फ़ नाश्ता ही नहीं। अब से आपका ब्रेकफ़ास्ट लंच डिनर सब अपने परिवार के साथ होगा, मैं खुद आपका ध्यान रखूँगी और देखना जल्दी ही आप फिर से अपने पैरों पर चलने लगेंगे। अब आपको ठीक करने की ज़िम्मेदारी मेरी हुई।" आरवी ने बेहद विश्वास के साथ कहा और श्यामु की मदद से उन्हें व्हीलचेयर पर बिठाने के बाद श्यामु को देखकर मुस्कुराकर बोली, "भैया मैं डैड को लेकर जा रही हूँ आप इनकी दवाइयाँ ले आइये और मुझे समझा भी दीजियेगा कि कौनसी दवाई कब और कैसा खिलानी है।"

    उसकी बात सुनकर श्यामु ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "जी मैडम।"

    "मैडम नहीं आरवी कहिये मैं आपसे छोटी हूँ।"

    "नहीं मैम आप शान सर की वाइफ है तो मैडम ही ठीक रहेगा।" श्यामु ने सहज भाव से अपनी बात कही तो आरवी ने आगे कुछ नहीं कहा और सुभाष जी को लेकर गेट के तरफ़ बढ़ गयी।

    बाहर मौजूद तीनों की नज़रें उसी तरफ़ थी जहाँ से आरवी गयी थी और अंशिका बस अपनी छोटी छोटी आँखों से तीनों को देखकर समझने की कोशिश कर रही थी कि यहाँ हो क्या रहा है?

    करीब 10 मिनट बाद आरवी वहाँ से आती नज़र आई और साथ में व्हीलचेयर पर बैठे सुभाष जी भी दिखे जिनके लबों पर हल्की सी मुस्कान फैली हुई थी। उन्हें वहाँ देखकर जहाँ अर्पिता जी और सुयश जी खुश हो गए वहीं शान आँखें बड़ी बड़ी करके हैरानी से उन्हें देखने लगा।

    अगले ही पल उसकी नज़र उनके साथ आती आरवी पर पड़ी जो मुस्कुरा रही थी। उसे देखते ही शान की आँखें गुस्से से छोटी छोटी हो गयीं। वो खा जाने वाली नज़रों से उसे घूरने लगा, आरवी के लिए उसकी चिढ़ और नफ़रत अब और भी ज़्यादा बढ़ गयी थी।

    आरवी उन्हें लेकर वहाँ आई और सुयश जी के बगल वाली चेयर हटाकर वहाँ उनकी व्हीलचेयर लगा दी और उसको थोड़ा ऊपर उठा दिया जिससे वो डाइनिंग टेबल के बराबर हो गए।

    "अब आप आराम से खाना खा सकेंगे।" आरवी ने मुस्कुराकर कहा, वो जैसे ही चुप हुई उसके कानों में अंशु की आवाज़ पड़ी, "मम्मा दादू भी हमारे साथ ब्रेकफ़ास्ट करेंगे?"

    उसके आँखों में अभी अलग ही चमक है। उसकी बात सुनकर आरवी ने उसे देखा और मुस्कुराकर बोली, "बिल्कुल अब से आपके दादू आपके साथ खाना भी खाएंगे, खेलेंगे भी और बाहर घूमने भी चलेंगे।"

    "सच्ची" अंशिका ने आँखों में चमक और लबों पर गहरी मुस्कान लाते हुए सवाल किया। अबकी बार अर्पिता जी ने मुस्कुराकर कहा, "बिल्कुल बेटा। अब से आपके दादू हम सबके साथ खाना भी खाएंगे, आपके साथ खेलेंगे भी और बाहर घूमने भी चलेंगे।"

    "Yes दादू अंशु ना आपको गार्डेन भी दिखाएगी पता है वहाँ ने सो many trees है और flowers भी है। बेबी आपके साथ प्ले भी करेगी और ढेर सारी मस्ती भी करेगी। अब तो मम्मा भी आ गयी है तो मम्मा भी हमारे साथ खेलेंगी।" उसकी खुशी देखने लायक थी, सब उसको खुश देखकर मुस्कुरा रहे थे।

    "आप सच में बहुत ख़ास है, कुछ तो है आपमें जो आपको औरों से अलग बनाता है। हम बहुत खुशनसीब है जो हमे जैसी सुंदर सुशील और संस्कारी बहू मिली है। आपने तो आते ही हमारे सालों से बिखरे परिवार को जोड़ दिया। जिस भाई को आज तक हम कितनी ही कोशिश करने के बावजूद उन चार दिवारी से बाहर नहीं ला सके उन्हें आप इतनी आसानी से उन अंधेरों से निकालकर ले आई। हमें आप पर गर्व है बेटा और हमें पूरा विश्वास है कि आप हमारे घर को खुशियों से भर देंगी।" उनकी बात सुनकर आरवी हल्का सा मुस्कुराकर बोली,

    "मैंने कुछ नहीं किया है बड़े पापा। डैड ने मुझे अपनी बेटी कहा है फिर मैं उन्हें उस चार दिवारी में क़ैद कैसे रहने दे सकती हूँ। मैंने तो बस कोशिश कि है कि डैड को फिर से जीना सिखा सकूँ।"

    सब मुस्कुरा दिए। अब तो शान और भी ज़्यादा चिढ़ गया पर अंशिका के सामने कुछ बोल न सका। आरवी सबको खाना सर्व करने के लिए बढ़ी तो अर्पिता जी न उसे रोकते हुए कहा, "बेटा रहने दीजिये आपको ये सब करने की ज़रूरत नहीं है।" (फिर उन्होंने छाया और राजू को देखकर कहा) "आप खाना सर्व करिये।"

    उनके कहने पर दोनों ने खाना सर्व किया तो सबने खाना शुरू किया, शान ने भी बाइट लेकर पहले अंशिका को खिलाया फिर खुद खाने लगा। आरवी एक तरफ़ खड़ी सबको देख रही थी जब वो बैठी नहीं तो अर्पिता जी ने उसे देखकर कहा, "बेटा अब आप भी शान के पास बैठ जाइये और खाना शुरू कीजिये।"

    उनके इतना कहते ही शान ने खाना बीच में ही छोड़ दिया और काम पर जाने का बोलकर बिना किसी के रिएक्शन की परवाह किये वहाँ से निकल गया जिससे आरवी का चेहरा उतर गया। उसके उदास चेहरे को देखकर अर्पिता जी ने मुस्कुराकर कहा, "आप परेशान मत होइये ये तो उनका रोज़ का है काम के बीच किसी चीज़ को आने नहीं देते, वो वही खा लेंगे आप बैठिये और नाश्ता कीजिये।"

    आरवी फीका सा मुस्कुराई और बैठते हुए मन ही मन बोली, "इतनी नफ़रत है मुझसे की मेरे आते ही आधा खाना छोड़कर चले गए। जाने कैसे काट पाऊँगी मैं अपनी ज़िंदगी, इतने दुख को छुपाकर कैसे मुस्कुरा पाऊँगी। एक के हाथों ज़िंदगी बर्बाद होने से तो आपने बचा लिया पर ये जिल्लत भरी ज़िंदगी क्यों दे दी मुझे।"

    उसने ऊपर देखते हुए कहा फिर अपने भावों को छुपाकर बुझे मन से पराठे की बाइट तोड़ी पर वो उसे अपने मुँह में डालती उससे पहले ही उसके कानों में अंशिका की मीठी सी आवाज़ पड़ी, "मम्मा पहले बेबी को खिलाइये न।"

    आवाज़ सुनकर आरवी ने उसकी तरफ़ देखा तो वो मुँह खोले उसे ही देख रही थी उसका प्यारी सी चमकती आँखें और क्यूट सा चेहरा देखकर आरवी के लब मुस्कुरा उठे, उसने उसे वो निवाला खिला दिया तो उसका चेहरा खिल उठा। उसने भी आरवी को खिलाया तो उसने भी मुस्कुराकर खा लिया।

    दोनों अब एक दूसरे को खिलाने लगे उनको देखकर अर्पिता जी ने मन ही मन कहा, "यही प्यार आपके रिश्ते को मज़बूत बनाएगा, शान चाहे आपसे कितनी ही बेरुखी क्यों न दिखाए पर अंशिका आप दोनों के बीच की वो कड़ी है जो आपको इस रिश्ते में बाँधकर भी रखेगी और एक दूसरे के तरफ़ कदम बढ़ाने की वजह भी बनेंगी। बस महादेव आप तीनों को हमेशा खुश रखे।" उन्होंने मन ही मन उनकी बलाएँ ले लीं, लबों पर मुस्कान सजाए उन्हें देखते हुए खाने लगीं।

    सुयश जी और सुभाष जी शान के लिए कुछ परेशान थे क्योंकि दोनों ही जानते थे कि शान इतनी आसानी से मानेगा नहीं और आरवी के लिए ये सफ़र बिल्कुल भी आसान नहीं होगा पर वो दोनों भी खामोशी से खाना खाने लगे। सबने ब्रेकफ़ास्ट किया तब तक श्यामु सुभाष जी कि दवाइयाँ लेकर वहाँ आ गया। उसने उन्हें दवाइयाँ खिलाई फिर आरवी को सब समझाने लगा सुयश जी अपने काम से चले गए। राजू और श्याम ने मिलकर सब बर्तन हटाए और काम में लग गए।

    अर्पिता जी आरवी सुभाष जी और अंशिका के साथ हॉल में बैठी थी। अंशिका उसे अपनी बनाई ड्राविंग्स दिखा रही थी और साथ ही सुभाष जी और उससे बातें भी कर रही थी पर आरवी के चेहरे पर एक उदासी नज़र आ रही थी जिसे वो अपनी मुस्कान के पीछे छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

    ऐसे ही दोपहर हो गयी। घर पर बस आरवी अर्पिता जी, अंशिका और सुभाष जी ही थे। उन्होंने लंच किया फिर सुभाष जी को श्याम आराम करने के लिए ले गया अर्पिता जी ने देखा आरवी भी बहुत थकी थकी सी लग रही थी तो उन्होंने उसके पास आकर कहा, "अब आप जाकर कुछ देर आराम कर लीजिये जबसे आई है आपने एक पल भी आराम नहीं किया है। शादी में थक गयी होंगी जाइये कुछ देर आराम कीजियें।"

    आरवी सच में बहुत थकी हुई थी उसने हामी भरी और उठकर खड़ी हो गयी तो अंशिका ने उसका दुपट्टा पकड़ लिया जिससे आरवी आगे नहीं बढ़ सकी उसने सर झुकाकर नीचे देखा तो अंशिका ने क्यूट सी शक्ल बनाकर कहा, "अंशु को भी मम्मा के साथ जाना है।"

    आरवी ने उसकी बात सुनकर अर्पिता जी को देखा तो उन्होंने मुस्कुराकर कहा, "इतना क्या सोच रही है? अब से आप माँ है उनकी, उनके बारे में कोई भी फ़ैसला लेने के लिए स्वतंत्र है आपको किसी की परमिशन की ज़रूरत नहीं है।"

    आरवी खुश हो गयी और उसने अंशिका को अपनी गोद में उठाते हुए मुस्कुराकर कहा, "चलिए आज मम्मा अंशिका के साथ सोएंगी।"

    अंशिका उसकी बात सुनकर खुश हो गयी। आरवी उसे लेकर शान के कमरे में चली गयी। मन तो नहीं था यहाँ रुकने का पर जाती भी तो कहाँ इसलिए मजबूरन यहाँ आ गयी।


    To be continued...

  • 18. Forced by destiny - Chapter 18

    Words: 1456

    Estimated Reading Time: 9 min

    शान शाम को वापिस आया और अपने रूम में बेधड़क सा घुसा, आदत जो थी तो आज भी वो सीधा अपने कमरे में चला गया पर जैसे ही उसने कमरे का दरवाज़ा खोलकर अंदर कदम रखा, उसके कदम जहाँ थे वहीं ठहर गए, नज़रें बैड पर जाकर ठहर गयीं।

    वहाँ आरवी सो रही थी, हर बात से अनजान वो बड़े सुकून से सो रही थी। उसके चाँद से चेहरे पर खिड़की के काँच से छनकर आती सूर्य की हल्की हल्की किरणें पड़ रही थीं जिससे उसका खूबसूरत मुखड़ा दमक रहा था, चेहरे पर उसके लंबे सुनहरे बाल फैले हुए थे और उन घुँघरेले बालों के सुनहरे रेशमी बादल से बाहर उसका चाँद सा चेहरा झाँक रहा था।

    वो बेहद हसीन थी इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं थी पर अभी उसकी खूबसूरती का जादू ही कुछ अलग था, अलग ही कशिश थी उसके चेहरे में जो शान को अपनी तरफ़ आकर्षित कर रही थी।

    कुछ पल को शान भी एकटक उसके चेहरे को देखता रहा, उसके सीने से लगकर हमारी सी क्यूट सी छोटी सी अंशिका सोई हुई थी। आरवी ने उसे अपनी बाहों के घेरे में लिया हुआ था, उन्हें देखकर कोई कह नहीं सकता था की बस कुछ घंटे पहले ही वो एक दूसरे से मिले है। बिल्कुल माँ बेटी लग रहे थे वो साथ में। वही गोरा बदन, सुनहरे घुँघरेले बाल।

    दोनों को देखकर कोई कह नहीं सकता था कि उनका खून का रिश्ता नहीं है। शान कुछ पल ठहरकर उसे देखता रहा फिर उसकी दोपहर वाली बातें याद करके उसकी भौंहे तन गयीं वो गुस्से से उसके तरफ़ बढ़ा फिर उससे लगकर सोई अंशिका को देखकर उसके कदम रुक गए।

    उसने नफ़रत से उन पर से नज़रें फेर लीं और बाथरूम में घुस गया। कुछ देर में फ़्रेश होकर बाहर आया, अभी उसने नीचे टॉवल लेपटा हुआ था और कंधे पर रखे टॉवल से अपने गीले बालों को पोछते हुए ड्रेसिंग टेबल के तरफ़ बढ़ रहा था। ना चाहते हुए भी नज़रें आरवी के मासूम के चेहरे पर पड़ ही जा रही थी। पर उसने उसे पूरी तरह से इग्नोर किया, बालों को ड्राई किया फिर चेंजिंग रूम में चला गया।

    आरवी हर बात से बेखबर बड़े सुकून से सो रही थी। कुछ देर बाद शान कपड़े पहनकर बाहर आया। अब उसने ब्लैक टीशर्ट और वाइट कार्गो पेंट पहनी हुई थी जो उस पर बहुत जच रहा था, उस टीशर्ट में उसकी माश्पेशीयां और बॉडी उभरकर सामने आ रही थी। चौड़े मजबूत कंधे बाइसेप्स, वो बेहद आकर्षक लग रहा था इस वक़्त।

    शान ने नफ़रत से एक नज़र आरवी को देखा और स्टडी रूम में चला गया उसके जाते ही आरवी ने अपनी आँखें खोल दीं, उठ तो तभी गयी थी जब चेंजिंग रूम के दरवाज़े को खोलने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी थी। पर जैसे ही उसने आँखें खोली तो सामने शान को देखकर उसने झट से अपनी आँखें बन्द कर ली थीं।

    आरवी अब उठकर बैठ गयी और अपने सीने पर हाथ रखकर गहरी साँसे लेते हुए बोली, “बच गयी आज तो तू, पहले ही इतना सुना चुके है अगर फिरसे उनके हाथ लग जाती फिर उनका पुराण शुरू हो जाता। चल बेटा आरु जल्दी से यहाँ से निकल इससे पहले ही वो ड्रैगन फिरसे यहाँ आ जाए और अपनी बातों की आग से तुझे झुल्साकर राख कर दे, तुझे यहाँ से चले जाना चाहिए।"

    वो झट से उठकर खड़ी हो गयी और गेट के तरफ़ बढ़ गयी पर जैसे ही उसने कमरे से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाया किसी ने उसकी कलाई को कसके पकड़कर उसको अंदर के तरफ़ खींच लिया।

    आरवी की साँसे थम गयीं, उसने बेबसी से अपनी आँखें बन्द कर लीं। ये कोई और नहीं बल्कि शान था जो कुछ फाइल लेने बाहर आया था और तभी उसने आरवी को यहाँ से जाते देख लिया था।

    शान ने उसकी कलाई पकड़ी और उसे लगभग खींचते हुए पूल साइड ले आया। आरवी अपनी हथेली उससे छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहती रही, “छोड़िये मुझे, ये क्या कर रहे है आप, हाथ छोड़िये मेरा।"

    वो उससे हाथ छोड़ने को कहती रही पर शान पर कोई असर नहीं पड़ा उसने उसको दीवार से लगाकर उसके दोनों हाथों को ऊपर करके पकड़ लिया और उसको गुस्से से घूरते हुए कहा, “मैंने तुम्हें सुबह ही कहा था ना मुझसे, मेरी बेटी से और मेरी चीज़ों से दूर रहना फिर तुम मेरे कमरे में मेरे बेड पर मेरी बेटी के साथ क्या कर रही थी?"

    आरवी ने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए दृढ़ता से जवाब दिया, "कायदे से ये घर, ये कमरा उतना ही मेरा भी है जितना की आपका पर मैंने पहले ही कहा था मुझे न ही आपकी ज़िंदगी में कोई जगह चाहिए, न ही आपकी चीज़ों पर मुझे हक़ जमाने का कोई शौक़ है।

    बड़ी माँ ने यहाँ भेजा तो मैं उन्हें मना नहीं कर सकी और कोई जगह मुझे मालूम भी नहीं था जहाँ मैं जा सकती इसलिए मजबूरी में मुझे यहाँ आना पड़ा, मैं बस आंशिका को सुला रही थी थकान के वजह से मेरी आँख लग गयी मुझे पता ही नहीं चला पर आगे से मैं ध्यान रखूँगी की ना आपके कमरे में कदम रखूं, न ही आपकी चीज़ों को हाथ लगाऊं पर एक बात मैं आपकी नहीं मानूँगी, अंशिका से अब मुझे कोई दूर नहीं कर सकता।

    हर रिश्ता झुठला दिया मैंने पर अब से मैं उसकी माँ हूँ इस बात को कोई नहीं झुठला सकता, खुद आप भी नहीं क्योंकि अग्नि के सामने सात फेरे लेकर मेरी माँग में अपने नाम का सिंदूर भरकर और मुझे मंगलसूत्र पहनाकर आपने ये हक़ मुझे खुद दिया है।"

    उसकी बात सुनकर शान की भौंहे तन गयीं उसने दाँत पीसते हुए कहा, "वो शादी शादी नहीं सिर्फ़ एक नाटक था…"

    "आपके लिए होगा वो नाटक पर मेरे लिए शादी का पवित्र बंधन है। मैं आपसे पत्नी होने का कोई अधिकार नहीं माँग रही पर आप इस रिश्ते का यूँ अपमान तो मत कीजिये। चाहे आपने ये शादी मजबूरी में की हो पर मैंने तो आपको पूरे दिल से अपना पति माना है। अगर आपको अब भी लगता है की शादी में जो हुआ उसमे मेरी ग़लती थी तो विश्वास कीजिये मेरा मैंने कुछ ग़लत नहीं किया है। मेरा किसी लड़के के साथ कोई रिश्ता नहीं है मैंने पूरी तरह से खुद को इस रिश्ते में समर्पित कर दिया है विश्वास कीजिये मेरा।"

    ये सब बोलते हुए आरवी की आँखें झिलमिला गयीं, उसका गला भर आया तो वो खामोश हो गयी। वही उसकी बात सुनकर शान के लबों पर तीखी मुस्कान फैल गयी उसने व्यंग्य भरे लहज़े में कहा,

    “विश्वास वो भी तुम पर, मुझे अब दुनिया की किसी लड़की पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं है और न ही कभी हो सकता है। तुम लड़कियों का कोई ईमान होता ही कहाँ है? प्यार के दावे किसी के साथ करती हो और अगर कोई उससे ज़्यादा हैंडसम लड़का मिल जाए तो उसे देखकर तुम्हारी नीयत बिगड़ जाती है, अगर उससे ज़्यादा पैसों वाला कोई मुर्गा हाथ लग जाए तो उसके साथ हमबिस्तर होने से भी तुम्हे कोई परहेज़ नहीं रहता।

    सारे कसमे वादे सब महज़ मज़ाक बनकर रह जाते है, सूरत और पैसों के आगे तुम्हे कुछ नज़र ही नहीं आता, वफ़ा शब्द से तुम्हारा दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं होता। बस दगा देना जानती हो तुम लड़कियाँ, किसी को पहले अपने प्यार मे पागल करके कैसे बाद में उसे मौत के घाट उतारा जाता है ये तुम लड़कियों से बेहतर कौन जान सकता है, तुम्हारी तो रगों में खून के जगह धोखा और फ़रेब बहता है।

    किसी को कैसे अपना दीवाना बनाना है और काम निकल जाने पर कैसे उसे अपनी ज़िंदगी से निकाल फेंकना है ये तुम जैसी लड़कियों को बहुत अच्छे से आता है। जो अपने फायदे के लिए अपने बच्चे का फ़ायदा उठाने और उसे मारने तक से पीछे नहीं रहती उनका भला क्या ईमान? और क्यों करूँ मैं उस इंसान पर भरोसा जिसकी फ़िदरत ही दूसरों को धोखा देने की हो।"

    "आप ग़लत कर रहे है मेरे साथ, मुझे नहीं पता कि आपके दिल में लड़कियों को लेकर इतनी नफ़रत क्यों है? क्यों आप उन्हें भरोसे के लायक नहीं समझते। पर मैं एक बात जानती हूँ पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती, अगर किसी एक ने आपको धोखा दिया इसका मतलब ये नहीं की हर रिश्ते से आपको धोखा ही मिले। अगर एक लड़की आपका विश्वास तोड़कर चली गयी तो इसका मतलब ये नहीं कि पूरी लड़की जात को ही विश्वासघाती क़रार दे, उनके चरित्र पर उंगली उठाए।"

    आरवी उसे समझाने की कोशिश कर रही थी कि शान ने गुस्से मे उसको गेट के तरफ़ धकेल दिया, "मुझे तुम्हारे लैक्चर की कोई ज़रूरत नहीं है चुपचाप मेरे कमरे से दफ़ा हो जाओ और दोबारा कभी मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना।" शान के ऐसे बर्ताव से आरवी की आँखें नम हो गयीं पर वो चुपचाप वहाँ से चली गयी।


    To be continued...

  • 19. Forced by destiny - Chapter 19

    Words: 1930

    Estimated Reading Time: 12 min

    आरवी के कोमल दिल को शान की बातें गहरा ज़ख़्म दे गयी थी उसके आँखों में आँसू भर आए थे पर शान ने बिना किसी बात की परवाह किये उसे कमरे से बाहर धक्का दे दिया तो उसने अपने आँसुओं को पोंछा और एक बार उदास नम आँखों से बंद दरवाज़े को देखने के बाद वहाँ से चली गयी।

    ये जगह उसके लिए एकदम नई थी एक शान का रूम जानती थी तो दूसरा सुभाष जी का कमरा पता था, इन्ही दो जगहो पर तो गयी थी वो अभी तक। शान के कमरे से तो धक्के मारकर निकाली जा चुकी थी तो सुभाष जी के कमरे के तरफ बढ़ गयी।

    शाम के छः बज गए थे उनके कमरे के बाहर पहुँचकर उसने अपनी मुस्कान के पीछे अपनी उदासी को छुपाया और कमरे के अंदर चली गयी।

    सुभाष जी पलंग पर बैठे कोई बुक पढ़ रहे थे पास ही श्याम बैठा था और उनके पैरों की मालिश कर रहा था। दरवाज़े के खुलने की आवाज़ सुनकर दोनों ने दरवाज़े के तरफ देखा तो आरवी को देखते ही सुभाष जी के लबों पर मुस्कान फैल गयी।

    “अरे बेटा आप वहाँ क्या कर रही है? अंदर आइये।”

    आरवी ने उनके पास आते हुए सवाल किया, “मैंने आपको डिस्टर्ब तो नहीं किया न डेड?"

    उसके ऐसा पूछने पर सुभाष जी ने उसे अपने पास बैठने का इशारा करते हुए मुस्कुराकर कहा, “अपनी बेटी के आने पर किसी बाप को डिस्टर्ब हो सकता है भला? वैसे भी हमें काम ही क्या होता है जो हम डिस्टर्ब होंगे? खाली बैठे रहते है सारा दिन, जब अंशिका होती है तो मन लगा रहता है पर जब वो सो जाती है तो अकेले तन्हा बेठे बैठे किताबें पढ़ लेते है। अभी भी वही कर रहे है अब आप आ गयी है तो आपसे बात करेंगे।"

    आरवी उनकी बात सुनकर कुछ परेशान हो गयी, "आपने आराम नहीं किया जब से कमरे मे आए है बुक ही पढ़ रहे है?"

    सुभाष जी ने उसे समझाते हुए कहा, "नही बेटा हम तो सोए थे कुछ देर पहले ही उठे, खाली बैठे हुए थे तो बुक पढ़कर अपना दिल बहलाने लगे। आप परेशान मत होइये हम सारा दिन तो आराम ही करते है।"

    उनकी बात मे एक उदासी थी जिसे आरवी पल में भांप गयी और उठकर खड़ी होते हुए बोली, “hmm सही कहा आपने आप सारा दिन यही बैठे रहते है आपको थोड़ा बहुत खुली हवा मे भी घूमना चाहिए उससे आपको अच्छा फील होगा, चलिए मैं आपको गार्डेन मे घुमाने लेकर चलती हूँ, मैं भी सुबह से खाली बैठे बैठे बोर हो रही हूँ मेरा भी मन बहल जाएगा। आप वही खुले मे बैठकर अपनी किताब पढ़ लीजियेगा और मैं आपके पैरों की मालिश कर दूँगी।"

    सुभाष जी ने साफ़ इंकार करते हुए कहा, "नही बेटा आप क्यों करेंगी?"

    “क्यों क्या आपकी बेटी होने के नाते मेरा आप पर इतना भी हक़ नहीं कि मैं आपकी थोड़ी सी सेवा कर सकूँ? अगर मेरी जगह आपकी अपनी बेटी होती तो आप उसे भी ऐसे ही मना कर देते? शायद आपने मुझे अपनी बेटी माना ही नहीं है अगर आपके जगह मेरे पापा होते तो मैं उनके लिए भी ये करती क्योंकि मैंने आपको दिल से अपने पिता का दर्जा दिया है पर आपने मुझे अपनी बेटी नहीं माना है ना इसलिए मना कर रहे है।"

    आरवी ने उदास चेहरा बनाकर कहा तो उसकी उदासी सुभाष जी को अच्छी नही लगी, आरवी ने अब आगे बढ़ते हुए कहा, “ठीक है जब आप मुझे अपनी बेटी मानते ही नहीं है तो मुझे यहाँ आने का भी कोई हक़ नहीं है, मैं अभी ही यहाँ से चली जाती हूँ और दोबारा कभी आपको परेशान करने यहाँ आऊँगी भी नहीं।”

    उसने जाने के लिए कदम बढ़ाया तो सुभाष जी ने पीछे से कहा, “बहुत शैतान है आप, अपनी बात मनवाने के लिए हमें इमोशनल कर रही है?”

    आरवी की आँखें हैरानी से फैल गयी, उसने अपनी जीभ को दाँतों तले दबा लिया और क्यूट सा मासूम सा चेहरा बनाकर उन्हें देखने लगी तो सुभाष जी ने श्याम को देखकर मुस्कुराकर कहा, “हमें व्हीलचेयर पर बिठा दीजिये आज हम बाहर गार्डन मे बैठकर किताब पढ़ेंगे साथ ही अपनी बहु से थोड़ी सेवा भी करवा लेंगे।"

    उन्होंने आरवी को देखते हुए कहा फिर आगे बोले, “अब तो आप खुश है?”

    आरवी ने मुस्कुराकर हामी भरी और उनके पास चली गयी। श्याम के मदद से उसने उन्हें व्हीलचेयर पर बिठाया फिर उसे किताब और तेल लाने का बोलकर उन्हें लेकर बाहर निकल गयी। वो गार्डन में पहुची तो अर्पिता जी वही एक तरफ़ खड़ी माली से काम करवा रही थी, सुभाष जी को वहाँ देखकर वो थोड़ी हैरान हुई पर अगले ही उनका चेहरा खुशी से दमक उठा।

    आरवी को देखकर उन्हें बेहद खुशी हो रही थी कि उसने इतनी जल्दी इस घर के और शान से जुड़े हर रिश्ते को दिल से अपना लिया था। आरवी सुभाष जी को लेकर उनके तरफ़ बढ़ गयी, उन्होंने प्यार से उसके गाल को छूकर कहा, “आप उठ गयी? नींद ठीक से आई आपको?"

    "जी बड़ी माँ अभी ही उठी थी तो डैड के पास चली गयी। सुबह से खाली बैठे बैठे बोर हो रही थी, डैड भी सारा दिन अंदर थे तो सोचा थोड़े देर बाहर ले आऊँ इन्हें, फ़्रेश हवा लेंगे तो इनकी सेहत पर अच्छा असर पड़ेगा और मेरा भी मन बहल जाएगा।" सब बताते हुए वो थोड़ी डरी हुई थी कि उनसे बिना पूछे ही वो उन्हें लेकर बाहर आ गयी थी, यहाँ आए हुए उसे कुछ घंटे ही तो हुए थे क्या पता उसका यूँ घुलना मिलना बाहर आ जाना उन्हें पसंद आएगा या नही?

    अर्पिता जी उसकी उलझन बखूबी समझ रही थी, आरवी ने अपनी नज़रें झुका ली थी और सफ़ाई भी पेश कर चुकी थी अब शायद उसे इंतज़ार था उनके कुछ कहने का।

    अर्पिता जी ने उसका परेशान चेहरा देखा तो बड़े प्यार से बोली, “हम समझते है बेटा अभी आपके दिल में क्या चल रहा है। आप यहाँ नई है किसी को ढंगसे जानती नहीं है, अभी तक तो आपने अपना घर भी ठीक से नही देखा है। पर बेटा हमने आपको पहले ही कहा था और अब फिर से कह रहे है अब से ये घर आपका है आप बिना हिचकिचाए कहीं भी जा सकती है जो दिल करे वो कर सकती है आप पूरी तरह से आज़ाद है चाहे तो कमरे मे रहे या यहाँ आ जाए इतना ही नहीं अगर आपको बाहर कहीं जाना हो तब भी आप स्वतंत्र है।

    हम आपको अपनी बेटी बनाकर इस घर में लाए है तो आप इसे अपना ही घर समझे और खुलकर रहे बिल्कुल वैसे जैसे आप अपने घर पर रहती थी। धीरे धीरे आप हम सबको जानने लगेंगी तो हमारे साथ घुलमिल जाएँगी और हमें तो पूरा विश्वास है की आपका जैसा व्यक्तित्व है आप जल्दी ही उस माहौल मे घुलमिल जाएँगी।

    आपको किसी भी बात के लिए डरने या सफ़ाई देने की ज़रूरत नहीं है, हमें अच्छा लगता है जब आप वो करती है जो आपका दिल करता है, जब आप हक़ से भाई साहब के बारे में सोचती है तो गर्व होता है हमें अपनी पसंद पर। आपने तो बहुत आसानी से इन रिश्तों को अपना लिया और ये तो अच्छी बात है। चलिए अब हमें मुस्कुराकर दिखाइये।”

    आरवी कुछ रिलेक्स हुई और मुस्कुराकर उन्हें देखा तो उन्होंने प्यार से उसके माथे को चूम लिया। और आगे बोली, “हमेशा यूँही मुस्कुराते रहा कीजिये। आपको नही पता आपने हमें कितनी बड़ी खुशी दी है। हम इसी बात को लेकर चिंतित थे कि पता नहीं आप इस माहौल मे कैसे रह पाएंगी, इन रिश्तों को अपना पाएंगी या नहीं। पर आपने तो हमारी सारी परेशानी सी हल कर दी।

    जो हम सालों मे नहीं कर पाए वो आपने कुछ ही घंटों मे कर दिया, भाई साहब को उन चार दिवारी से बाहर निकाल लाई आप हमें पूरा विश्वास है कि जैसे आप भाई साहब को उस कमरे की क़ैद से आज़ाद करवाकर उन्हें खुली हवा में ले आई है वैसे ही जल्दी ही आप शान को भी उनके मन के अंधेरों से बाहर ले आएंगी। हाँ ये थोड़ा मुश्किल होगा आपके लिए पर आप ये कर सकेंगी ये विश्वास है हमारा। चलिए वहाँ साथ मे बैठते है।"

    उन्होंने अपनी बात कही और उस तरफ़ बढ़ गयी जहाँ पर कुछ कुर्सियाँ और टेबल रखा हुआ था। आरवी उनकी बात सुनकर कुछ उदास हो गयी थी आख़िर शान ने उसे चोट ही ऐसी पहुँचाई कि वो उसे भूल नहीं पा रही थी उसने उनके पीछे चलते हुए मन ही मन कहा,

    “डर लगता है की कहीं आपका विश्वास न तोड़ दूँ, डैड तो बहुत अच्छे है इसलिए मैं इतनी जल्दी उनसे जुड़ गयी उनपर अपना हक़ जताकर उनसे वो करवा लेती हूँ जो उनके लिए ठीक है पर आपके बेटे को तो मुझसे नफ़रत है वो तो मुझे अपनी पत्नी भी नहीं मानते, मेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहते।

    दो बार बात हुई है हमारी और दोनों बार उन्होंने मुझ पर कीचड़ ही उछाला है, मेरे चरित्र पर उँगली उठाई है, मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुँचाई है ऐसे इंसान से मैं खुद कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती। नहीं रहना चाहती उनके साथ पर क़िस्मत ने मुझे उनसे एक ऐसे रिश्ते मे बाँध दिया है जिसे मैं चाहकर भी झुठला नहीं पा रही।

    उन्होंने तो कह दिया कि उनके लिए न इस शादी के कोई मायने है और न ही मेरे लिए उनकी ज़िंदगी में कोई जगह है पर मेरा क्या, जहाँ मेरी कोई इज़्ज़त नहीं मैं चाहकर भी वहाँ से जा नहीं सकती। उनसे नफ़रत करना चाहती हूँ पर उनकी उन कड़वी बातों मे जो दर्द, जो तड़प महसूस करती हूँ वो मुझे उनसे नफ़रत भी नहीं करने दे रही।

    उनकी औरतों के लिए इतनी नफ़रत यूँही तो नहीं होगी कोई तो वजह है उनकी इस नफ़रत के पीछे। पर किसी और की ग़लती की सज़ा मुझे क्यों दे रहे है, कहा तो मैंने कि नहीं माँगूँगी उनसे उनकी पत्नी होने का कोई हक़ बस मुझे अंशिका की माँ होने का दर्जा तो दे दे, प्यार न सही पर थोड़ी इज़्ज़त ही दे दे मुझे। उनके अंदर औरतों को लेकर जो कड़वाहट भरी हुई है उसे निकालना नामुमकिन है।

    मुझसे नहीं हो पाएगा ये, मैं अपने स्वाभिमान को और ठेस पहुँचते नही देख सकती इसलिए अब से मैं उनके कमरे मे जाऊँगी ही नहीं, कहीं भी रह लूँगी, इतना बड़ा घर है पर उनके सामने नहीं जाऊंगी।”

    आरवी ने घर की तरफ देखते हुए आगे सोचा, “उन्हें मुझसे नफ़रत है तो ठीक है करे मुझसे नफ़रत, नहीं देखना चाहते मेरा चेहरा तो ठीक है नहीं दिखाऊँगी मैं उन्हें अपना चेहरा, अब दोबारा उन्हें अपने दिल को ठेस पहुँचाने का मौक़ा नहीं दूँगी मैं उन्हें।

    बहुत सह लिया, बहुत कुछ कह गए वो मेरे बारे मे, मैं वैसी नहीं हूँ जैसा उन्होंने मुझे माना है पर मुझे उन्हें ये समझाना ही नहीं है कि मैं वैसी नहीं हूँ, वो जो सोचते है सोचते रहे मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। मैं यहाँ अंशिका के लिए हूँ तो उसे माँ का प्यार दूँगी, डैड ने मुझे अपनी बेटी माना है तो फ़र्ज़ निभाऊँगी मैं उनकी बेटी होने का। जिन लोगों ने मुझे अपनाया है उन्हें खुश रखने की हर संभव कोशिश करूँगी पर आपसे दूर रहूँगी।”

    उनसे मन ही मन निश्चय कर लिया आख़िर हिम्मत नहीं थी उसमे उसकी घटिया बातों को बर्दाश करने की तो उसने उससे दूर रहना ही ठीक समझा।

    अर्पिता जी चेयर पर बैठ गयी तो आरवी ने टेबल खिसकाकर उस पर सुभाष जी के पैर को रखा और तेल लगाकर उनकी मालिश करने लगी। श्याम अंदर चला गया। अर्पिता जी आरवी को देख रही थी जिसका पूरा ध्यान सुभाष जी की मालिश करने पर था वही सुभाष जी भी लबों पर् मुस्कान सजाए उसे ही देख रहे थे।


    To be continued...

  • 20. Forced by destiny - Chapter 20

    Words: 1941

    Estimated Reading Time: 12 min

    आरवी ने सुभाष जी के पैरों की मालिश की फिर उनके पास ही बैठ गयी और वो उसे उस बुक की स्टोरी सुनाने लगे जो वो पढ़ रहे थे। वही शान बेहद गुस्से में था।

    उसने एक नज़र सोती हुई अंशिका को देखते हुए मन ही मन कहा, "आप क्यों उसके करीब जा रही है, वो आपको बस मोहरा बना रही है मुझ तक पहुँचने के लिए और मैं आपके प्यार के आगे इतना मजबूर हूँ की आपको उससे दूर भी नहीं रख पा रहा हूँ।

    एक ही दिन मे आप उसे इतना चाहने लगी है कि आप उसके साथ सो भी गयी वरना आप छाया के साथ भी नही सोती है।............... शायद एक माँ की कमी सच मे कोई पूरी नहीं कर सकता, पर जब आपको इस दुनिया मे लाने वाली ही आपकी माँ नहीं बन सकी तो ये आपकी मां कैसे बन सकती है? ................

    जानती ही कितना है ये आपको, बस कह देने से तो कोई किसी बच्चे की माँ नहीं बन जाती उसके लिए दिल मे प्रेम और मातृत्व का होना ज़रूरी है, ये बात मैं भी मानता हूँ कि जन्म देने से ही मां बच्चे का रिश्ता नही बनता, उनका बंधन दिल से और प्यार से जुड़ा होता है पर वो आपकी माँ नहीं है और न ही कभी बन सकती है।

    वो जानती है कि आप मेरी कमज़ोरी है और वो उसी का फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रही है, अपने मक़सद मे कामयाब होने के लिए आपका सहारा ले रही है, आपको ढाल बना रही है ताकि मुझ तक पहुँच सके और आप ये बात समझने के लिए अभी बहुत छोटी है।

    इस दुनिया मे कोई रिश्ता बिना मिलावट का नही होता, हर इंसान का कोई न कोई स्वार्थ छुपा होता है उसके हर काम मे मान बचपन से माँ के प्यार के लिए तरसी है इसलिए जब आपको एक आशा की किरण दिखी और वो आपकी ज़िंदगी मे आई तो आप उनमे अपनी माँ ढूँढने लगी पर बेटा जैसे आपके डैड की किस्मत मे माँ का प्यार नही था वैसे ही आपके नसीब मे भी माँ की ममता नही है।

    मत आने दीजिये उसको अपने करीब, मत बाँधिये कोई झूठी उम्मीद जिस दिन ये उम्मीद टूटेगी आप भी टूट जाएँगी पर आपके डैड कभी आपको टूटने नहीं देंगे। आपको उससे दूर रहना ही होगा।"

    शान ने मन ही मन निश्चय किया और फिर बाथरूम मे चला गया। दिमाग़ पहले ही जवालामुखी मुखी जैसे फट रहा था तो वो शॉवर के नीचे खड़ा हो गया। खुद को शांत करने की नाकामियाब कोशिश करने लगा। उसे शॉवर के नीचे खड़े खड़े आधे घंटे से ऊपर का वक़्त हो गया तो उसने शॉवर ऑफ़ किया और टॉवल लपेटकर और दूसरे टॉवल से अपने गीले बालों को पोंछते हुए बाहर निकला तो देखा अंशिका उठकर बैठी हुई थी और मुँह ऐसे बनाया हुआ था जैसे बस रो ही देगी।

    शान तुरंत उसके तरफ़ दौड़ा और उसे अपनी बाहों मे उठाते हुए पुचकारते हुए बोला "हमारी अंशु को क्या हुआ आप रो क्यों रही है?"

    अंशिका ने आँसुओं से भरी आँखों से उसे देखा और मुँह बिचकाते हुए बोली "मम्मा फिरसे अंशु को छोड़कर चली गयी। आपने उनसे फ़ाइट की ना इसलिए मम्मा एंग्री होकर चली गयी। अब वो वापिस नहीं आएँगी बेबी के पास। ................. डैडू बेबी को मम्मा चाहिए, मम्मा को ले आइये न, बेबी मम्मा के बिना नहीं रहेगी।............. मम्मा बहुत अच्छी है, अंशु को लव भी करती है, लोरी भी सुनाती है। Please डैडू मम्मा को वापिस ले आईये न।"

    उसकी प्यारी प्यारी आँखों से आँशु की बुँदे बहने लगीं, वो उसकी गोद में बैठी सुबकने लगी, कुछ पल तक शान खामोश सा उसे देखता रहा फिर उसने उसके आँसुओं को साफ़ करते हुए बड़े प्यार से कहा "आपकी मम्मा कही नहीं गयी है बच्चे वो आपकी बड़ी दादी के पास है अभी वापिस आ जाएँगी। बस आप रोना बन्द कीजिये।"

    उसकी बात सुनकर अंशिका ने नम आँखों से उसे देखते हुए सवाल किया "मम्मा बेबी को छोड़कर नहीं गयी है?"

    "नहीं बेटा मम्मा हमारी प्रिंसेस को छोड़कर कहा जाएँगी वो तो यही है नीचे दादी के पास।"

    शान ने एक बार फिर उसको बड़े प्यार से बताया तो अंशिका ने मासूमियत से कहा "आपने मम्मा को सॉरी बोल दिया? आपने सुबह उन पर गुस्सा किया था ना अगर मम्मा एंग्री होकर बेबी को छोड़कर चली गयी तो?"

    शान ने अब झूठ मुठ का मुँह फुलाते हुए कहा "मम्मा कही नहीं जाएँगी ये आपके डैडू का प्रोमिस है अपनी प्रिंसेस है। पर डैडू आज अंशु से एंग्री है।"

    उसकी बातों से ऐसा लग रहा था जैसे सच में उससे नाराज़ हो। अंशिका ने उसकी बात सुनी तो बड़ी ही मासूमियत से बोली"डैडू बेबी से एंग्री क्यों है? आज तो बेबी ने कुछ शरारत नहीं कि, छाया दीदी को तंग भी नहीं किया, आज बेबी मम्मा के साथ थी तो एकदम नाइस गर्ल बन गयी थी फिर डैडू अंशु से एंग्री क्यों है?"

    उसके सवाल को सुनकर शान ने नाराज़गी से कहा "जबसे आपकी मम्मा आई है आप अपने डैडू को भूल गयी है इसलिए डैडू आपसे नाराज़ है।"

    अंशिका ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया "नो डैडू अंशु न मम्मा और डैडू दोनों को इक्वल लव करती है बेबी डैडू को भूली नही है।"

    उसका प्यारा सा चेहरा इस वक़्त और भी प्यारा लग रहा था। शान को उस पर ढेर सारा प्यार आ रहा था। लबों पर मुस्कान फैलने को तैयार थी पर उसने उसे रोका और अब भी नाराज़गी से बोला "अच्छा अगर आप डैडू और मम्मा से इक्वल लब करती है तो आपको प्रूफ करना होगा। अब सुबह से अपनी मम्मा के साथ थी अब आपको डैडू के साथ रहना होगा उनसे बातें करनी होगी, उनके साथ प्ले करना होगा।"

    उसने इतना कहा था की अंशिका ने एकसाइटेड होकर उसकी गर्दन मे अपनी छोटी छोटी बाहों को लपेट दिया और अपनी मोहिनी मुस्कान अपने लबों पर बिखेरते हुए बोली, "okay डैडू अब अंशु डैडू के साथ खूब सारा प्ले करेगी और बहुत सारी बातें भी करेंगी। पता है आज मम्मा ने बेबी को थ्री थ्री स्टोरी सुनाई बहुत नाइस स्टोरी थी अंशु डैडू को भी सुनाएगी।"

    शान ने तो अंशिका का दिल बहलाने के लिए सब नाटक किया था ताकि उसके दिमाग से आरवी का ख़याल निकल जाए पर अंशिका ने एक बार फिर आरवी को बीच में लाकर खड़ा कर दिया था जिस वजह से शान चिढ़ गया था पर अभी उसके लिए अपनी बेटी के साथ वक़्त बिताना ज़्यादा ज़रूरी था इसलिए उसने उस बात को जाने दिया।

    उसने मुस्कुराकर अपने सर को हिलाना शुरू करते हुए कहा "अच्छा तो बेबी डैडू को स्टोरी सुनाएंगी चलिए सुनाइये डैडू सुन रहे है।"

    उसके गीले बालों का पानी अंशिका के चेहरे पर गिरने लगा। अंशिका ने तुरंत अपनी आँखें बन्द कर लीं और सर पीछे करते हुए बोली "नो डैडू बेबी वैट हो जाएगी।"

    "कोई बात नही डैडू बेबी की ड्रेस चेंज कर देंगे पर अभी तो डैडू को अंशु के साथ ढेर सारी मस्ती करनी है।"

    ये कहते हुए उसने चेहरे को अंशिका के पेट पर रगड़ा तो वो खिलखिलाकर हंस पड़ी, उसने शान के बालों को बिगाड़ दिया इसके बाद शुरू हुई दोनों की मस्ती दोनों पूरे रूम मे भाग रहे थे, जो हाथ मे आता वही दूसरे पर फेंक देते, शान उस पर पिलो फेंकता तो अंशिका भी उसको पिलो से मारती और खिलखिलाकर हंस देती तो शान मुस्कुरा देता।

    कुछ ही देर मे उन्होंने पूरे कमरे को युद्ध का मैदान बना दिया था। शान उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भाग रहा था और अंशिका फुल स्पीड में दौड़े जा रही थी, आधे घंटे से भी ज्यादा देर तक उनकी मस्ती चलती रही आख़िर मे शान ने उसकी कमर पकड़कर उसको उठा लिया और बेड पर बिठाया तो अंशिका हँसते हुए फिरसे भागने लगी पर शान ने उसको पकड़ लिया।

    एक बाद फिर अंशिका ने पिलो उठाकर उसके साथ फ़ाइट शुरू कर दी। शान कुछ वक़्त तक यूँही उसके साथ खेलता रहा फिर उसको अपनी गोद में उठा लिया और उसको जी भरकर प्यार करने लगा, यही वो पल था जिसका इंतज़ार अंशिका सुबह से करती थी जब शान फ़्री होकर उसके साथ खेलता था उसे ढेर सारा प्यार करता था। वो बेहद खुश थी। घंटो उनकी मस्ती चलती रही।

    नीचे आरवी कुछ देर तो शांति से स्टोरी सुनती रही पर फिर उसे अंशिका की चिंता होने लगी कि अगर वो उठ गयी और वो उसे उसके पास नही मिली तो वो कही रोने ना लगे। सोते वक़्त भी अंशिका ने बहुत बार उससे पूछा था कि उसके सोने के बाद वो उसे छोड़कर तो नही चली जाएगी।

    उस छोटी सी बच्ची के अंदर उसे खोने का कितना डर था यही ये बताने के लिए काफ़ी था कि उसे अपनी मम्मा की कमी कितनी खलती थी। आरवी ने बड़ी मुश्किल से उसे सुलाया था पर अब उसे चिंता हो रही थी। शाम भी गहरा गयी थी, शाम के सात बज गए थे, बाहर अंधेरा हो गया था तो सभी अंदर आ गए।

    आरवी की नज़रें रह रहकर सीढ़ियों के तरफ़ घूम रही थी जिसे अर्पिता जी नोटिस कर रही थी और शायद वो उसकी परेशानी और उलझन दोनों ही समझ रही थी। आख़िर में उन्होंने उसे देखकर मुस्कुराकर कहा "बेटा आप एक बार जाकर अंशिका को देख आइये, अगर जाग गयी और आप उन्हें नही मिली तो रो रोकर सारा घर सर पर उठा लेंगी।"

    उनके इतना कहते ही आरवी झट से उठकर खड़े होते हुए बोली "जी बड़ी माँ।"

    वो तुरंत आगे बढ़ गयी क्योंकि चाहती तो वो भी वही थी। कुछ कदम चलने के बाद उसे एहसास हुआ कि कुछ देर पहले कैसे शान ने उसको धकके मारकर अपने कमरे से बाहर निकाला था। ये याद आते ही उसके कदम रुक गए। उसको खड़े देख अर्पिता जी ने पीछे से कहा "क्या हुआ बेटा आप रुक क्यों गयी?"

    उनकी आवाज़ सुनकर आरवी ने खुद को संभाला फिर उनके तरफ़ मुड़ते हुए बोली "मुझे नहीं जाना है उसके साथ मिस्टर मल्होत्रा है वो उन्हें संभाल लेंगे।"

    अर्पिता जी सब समझ रही थी उन्होंने आगे कहा "अगर वो है भी तो क्या हुआ? वो उसके पिता है और आपकी उसकी माँ, जाकर देखिये वो उठी या नही? आज बहुत देर हो गयी हमने अपनी प्रिंसेस को देखा नही है, जाइये उन्हें लेकर आइये।"

    उनकी बात सुनकर अब आरवी अपने दिल को मज़बूत करके आगे बढ़ गयी। उसे उस कमरे मे जाने मे अजीब लग रहा था। पर अर्पिता जी की बात काट भी तो नहीं सकती थी। वो रूम के बाहर पहुँची तो दरवाज़ा खुला होने के वजह से नज़रें अंदर चली गयी, जहाँ शान बेड पर लेटा हुआ था, अंशिका उसके पैर पर बैठी हुई थी और शान उसको झूला झूला रहा था साथ ही अंशिका उसको कहानी सुना रही थी, दोनों के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैली हुई थी।

    आरवी दरवाज़े पर ही रुक गयी, उसने पूरे दिन मे पहली बार शान के लबों पर मुस्कान देखी थी या ये कहे कि पहली बार उसने ध्यान दिया था कि वो सच मे कितना हैंडसम है, उसकी मुस्कान मे चुम्बकीय प्रभाव था शायद तभी इतनी लड़कियाँ उसके पीछे पागल थी। आरवी बड़े ग़ौर से उसे अंशिका के साथ मस्ती करते देख रही साथ ही मन ही सोच रही थी

    "कितने खुश है आप अंशिका के साथ, बहुत प्यार करते है न आप अंशु से? शायद आपकी मुस्कान सिर्फ़ उसी के लिए है। आप इंसान कैसे है मैं नहीं जानती अभी तक आपको समझने का मौक़ा ही नही मिला है। पति कैसे बनेंगे ये भी नही मालूम फ़िलहाल तो आज इस रिश्ते को मानते ही नहीं है फिर पति कैसे बन सकते है मेरे पर आज मैं एक बात पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूँ कि आप पिता बहुत अच्छे है।"

    आरवी लबों पर प्यारी सी मुस्कान सजाए दोनों को देखने लगी।



    To be continued...