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दोस्त, जंगल ओर रहस्य

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priyanka bagani

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*पात्र:* 1. *रोहन* - एक साहसी और जिज्ञासु लड़का जो आईपीएस अफसर बनना चाहता है 2. *अर्जुन* - रोहन का सबसे दोस्तों जिसे वकील बनना है 3. *करण* - एक अन्य दोस्त जो हमेशा संदेह करता है 4. *प्रिया* - एक बुद्धिमान और शांत लड़की 5. *अनु...

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Arjun

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Total Chapters (21)

Page 1 of 2

  • 1. परिचय - Chapter 1

    Words: 1113

    Estimated Reading Time: 7 min

    एक हल्की-सी सुबह थी। सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था, लेकिन आसमान पर हल्की सुनहरी रोशनी बिखरी थी। मोहल्ले की गलियों में चिड़ियों की चहचहाहट और कहीं-कहीं से आती मंदिर की घंटियों की आवाज़ माहौल को ताजगी से भर रही थी। दूधवाली की घंटी की आवाज सोसाइटी में गूज रही थी।

    सुबह के करीब 8:30

    रोहन – जिज्ञासु और साहसी

    रोहन अपने घर के छोटे-से बगीचे में पानी डाल रहा था। बगीचा उसका फेवरेट कोना था—चार गुलाब के पौधे, दो गमलों में तुलसी, और एक कोने में आम का छोटा पौधा। उसने नली से पानी देते हुए अपने मोबाइल की घंटी सुनी। स्क्रीन पर कॉल आ रहा था—अर्जुन और करण का वीडियो कॉल।

    रोहन ने नली एक तरफ रखी और कॉल रिसीव किया।

    अर्जुन: "हेलो रोहन, भाई! सुना तेरा रिजल्ट भी आ गया है। अब तूने सोचा क्या है आगे? फाइनल कर लिया?"

    रोहन: (मुस्कुराते हुए) "हाँ, मैंने तय कर लिया है—मैं आईपीएस बनना चाहता हूँ।"

    करण: "वाह, बढ़िया! तैयारी कैसी चल रही है?" क्या तेरे मां पापा मान जाएंगे ?

    रोहन: "ठीक है, लेकिन छुट्टियाँ हैं, तो सोचा थोड़ा चिल कर लूँ। उसके बाद तो बस पढ़ाई ही पढ़ाई होगी।" और सबसे मुश्किल काम तो माँ को मानना है पापा तो एक बार मन भी जाएंगे।

    कारण:- सही है यार मां प्यार अलग ही होता है

    रोहन हमेशा से साहसी और जिज्ञासु रहा था। स्कूल के दिनों से ही नई जगहों की खोज और एडवेंचर उसे पसंद था। उसके लिए जिंदगी सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि अनुभवों में भी थी।

    अर्जुन – शांत और बुद्धिमान

    अर्जुन अपने घर के बड़े से पुस्तकालय में बैठा था। लकड़ी की अलमारियों में सजी किताबों की खुशबू पूरे कमरे में फैली थी। मोटी-मोटी किताबों के बीच एक पुराना ग्लोब और नक्शे भी रखे थे।

    रोहन: "तेरा क्या हुआ, तेरे पापा मान गए क्या सिविल सर्विस में जाने के लिए?"

    अर्जुन: "हाँ, फाइनली मना लिया है। मैं भी सिविल सर्विस में जाना चाहता हूँ और पापा अब पूरी तरह सपोर्ट कर रहे हैं।" बस माँ नहीं मानी थोड़ा रोना-धोना किया बड़ी मुश्किल से मानी है वह मुझे यह शहर छोड़ कर बाहर जाने की पढ़ाई तक की इजाजत नहीं देती उनके मन में एक अजीब सा डर है पता नहीं समझ में नहीं आता क्या

    करण:  चल कोई नहीं मान जाएंगे।आंटी तुझे बहुत प्यार करती हूं "तैयारी कैसी है?"

    अर्जुन:  हा बात तो तेरी सही हा ओर पढ़ाई "अरे पूछ मत! इतना सारा सिलेबस है कि बस… पहले सोचा था मन को थोड़ा फ्रेश कर लूँ, फिर शुरू करूंगा।"

    अर्जुन हमेशा से सोच-समझकर फैसले लेने वाला था। उसकी बुद्धिमत्ता और शांत स्वभाव दोस्तों के बीच मशहूर थी।

    करण – ऊर्जा से भरा और फिटनेस का दीवाना

    करण के घर का जिम उसके पापा का सपना था, लेकिन अब वह खुद उसकी जान था। डम्बल, ट्रेडमिल, पंचिंग बैग… सब कुछ करीने से रखा हुआ। करण कसरत करते हुए वीडियो कॉल में जुड़ा।

    अर्जुन: "और करण, तेरा फॉर्म सबमिट हो गया?"

    करण: "हाँ भाई, कर दिया। तुम लोग जानते हो मैं भी आईपीएस बनना चाहता हूँ। अब तो बस ट्रेनिंग और पढ़ाई—दोनों चल रही हैं।"

    रोहन: "तेरी बॉडी तो वैसी है कि इंटरव्यू में ही पास हो जाएगा!"

    सभी हँस पड़े।

    करण का स्वभाव हमेशा से जोशीला और प्रेरणादायक रहा। वह जहां होता, माहौल में ऊर्जा आ जाती।

    प्रिया – पढ़ाकू और संतुलित सोच वाली ओर फूडी

    प्रिया अपने स्टडी रूम में बैठी थी। उसकी मेज पर नोट्स, पेन, हाईलाइटर और एक बड़ी सी कॉफी मग रखा था।

    वो भी वीडियो कॉल से जुड़ी हुई थी

    प्रिया: "मैं सिविल सर्विस में जाना चाहती हूँ, और तैयारी ठीक-ठाक चल रही है। लेकिन अभी भी बहुत कुछ बाकी है।" और घर में मां पापा तो इतनी खुश हुए यह सुनकर कि मैं सिविल में जाना चाहती हूं वह दोनों मेरे हर सपने को पूरा करना चाहते हैं वह मेरी बैक बन है ऐसा लगता है उनके रहते मेरे सारे सपने पूरे होंगे।

    अनुष्का: यह बात तो तूने सही कहा पिया मां बाप का साथ आधा तो सपना ऐसा ही पूरा हो जाता है और रिजल्ट आ चुका है त"तो फिर पढ़ाई में डूब मत जा, पहले थोड़ा घूम आते हैं।"

    प्रिया मुस्कुराई। वह हमेशा संतुलन में विश्वास रखती थी—पढ़ाई और मस्ती, दोनों बराबर जरूरी।

    अनुष्का – खुशमिजाज और कैमरा-फ्रेंडली फ्लावर लवर

    अनुष्का अपने घर के छोटे-से रीडिंग कॉर्नर में बैठी थी, जहां एक साइड वॉल कांच की थी बाहर का नजारा दिख रहा था। लेकिन किताब के बजाय कैमरे के सेटिंग्स चेक कर रही थी। उसकी प्रकृति से बहुत प्यार था वह  की फूलों की फोटो क्लिक कर रही थी। प्रकृति को एक्सप्लोर करना चाहती है

    अनुष्का: "मैं मैं तो भाई प्रकृति प्रेमी हूं और मुझे प्रकृति को एक्सप्लोर  करना है अपने कमरे से , लेकिन अभी पढ़ाई शुरू नहीं की है। पहले सोच रही हूँ थोड़ा घूम आऊँ, फिर जमकर पढ़ाई करूँगी।" और इसके लिए मेरे को अच्छा सा कॉलेज भी देखना है।

    रोहन: "तो फिर क्यों ना सब लोग जंगल में ट्रैकिंग पर चलें?"

    प्रिया: "आइडिया अच्छा है!"

    करण: "हाँ! और बारिश का मौसम है, तो मजा डबल हो जाएगा।"

    अनुष्का : कोई ऐसी जगह चले प्रकृति के करीब हो

    अर्जुन मैंने पापा की लाइब्रेरी में एक जंगल के बारे में पड़ा है और उसके बारे में पेपर में भी पड़ा है वह जंगल का नाम गुरुशिखर है।क्या हम वहां ट्रैकिंग पर चले।

    दोस्तों ने तय किया कि वे “गुरुशिखर” जाएंगे—एक खूबसूरत और चुनौतीपूर्ण जंगल, जो अपनी नदियों, पहाड़ों और घने पेड़ों के लिए मशहूर था। वहाँ का रास्ता रोमांचक और थोड़ा-सा खतरनाक भी था, लेकिन यही तो असली मजा था।

    अर्जुन ने कहा,

    अर्जुन: "मेरे पापा के पास उस जगह का पुराना नक्शा है, मैं ले आऊँगा।"

    करण: "मैं रस्सी, टॉर्च और रेनकोट लेकर आऊँगा।"

    प्रिया: "और खाने का इंतजाम मैं कर लूँगी। तुम सब तो जानते हो, मेरे पास हमेशा स्नैक्स होते हैं।"

    अनुष्का: "मैं तो कैमरा लेकर आ रही हूँ। हर एक पल कैद करूंगी।"

    कारण :- ठीक है अगर कुछ बाकी है तो मुझे बता दो मैं भी रखूंगा।

    उसमें कुछ देर बात करते रहे और फिर अपनी अपनी कमरों में जाकर सोने की तैयारी करने लगे और  कल के बारे में सोने लगेगी बहुत सालों बाद वह लोग सब मिलकर छुट्टियों के लिए जंगल में ट्रैकिंग में जा रहे हैं और यह ट्रैकिंग उनके लिए कैसा रहेगा इससे सब उत्साहित थे।

    वह जिस जगह जा रहे थे वह जगह रहस्य से भरी हुई थी और शायद उनका अतीत भी उससे जुड़ा हुआ था यह क्या था पता नहीं पर कोई बहुत खुश था तो कोई थोड़ा परेशान था। सब अपने-अपने उधर में लगे हुए थे और रात ढल के कब नया सूरज  एक नया दिन लेकर आ गया पता ही नहीं चला बच्चे इन सब से बेफिक्र होकर आराम से सो रहे थे।

  • 2. ट्रैकिंग पर जाने की तैयारी- Chapter 2

    Words: 1055

    Estimated Reading Time: 7 min

    रात का समय था। बाहर हल्की ठंडी हवा चल रही थी
    और आसमान में आधा चाँद टंगा था। रोहन अपने कमरे में बैठा बैग पैक कर रहा था। बैग में उसने स्नीकर्स, टॉर्च, पानी की बोतलें, स्नैक्स और प्राथमिक चिकित्सा किट सावधानी से रखी। जैसे ही उसने बैग का ज़िप बंद किया, बाहर से उसकी माँ की आवाज़ आई—

    माँ: "रोहन, सोने से पहले हमें भी बता दे कि कहाँ जा रहा है और किसके साथ जा रहा है।"

    रोहन मुस्कुराया, कमरे से बाहर आया और बोला,
    रोहन: "माँ, पापा, हम सब कल ट्रैकिंग पर जा रहे हैं। जगह का नाम है 'गुरुशिखर'… बहुत सुंदर जंगल है, पहाड़ हैं, नदियाँ हैं।"

    पापा ने टी बी  से नजरें उठाईं,
    पापा: "अच्छा! लेकिन सावधान रहना। जंगल में रास्ते चुनौतीपूर्ण होते हैं। और शाम होते ही वापस लौटने की कोशिश करना।"
    रोहन :- पापा शाम को नहीं हमारा 2 दिन का कैंप है।
    पापा  :- अच्छा ठीक है पर फोन लगाते रहना
    माँ ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा,
    माँ: "हाँ, और बैग में दवाई, फर्स्ट एड और खाने-पीने का सामान रखना मत भूलना।" वहां जाकर मुझे बराबर फोन लगाते रहना।

    रोहन ने हँसते हुए कहा,
    रोहन: "सब रख लिया है माँ, चिंता मत करो।" ज्यादा चिंता करती हो


    दूसरी तरफ, अर्जुन अपने पापा के स्टडी रूम में था। लकड़ी की अलमारी में रखी पुरानी किताबों के बीच से उसके पापा ने एक बड़ा-सा पेपर निकाला—एक पुराना नक्शा।

    पापा: "ये देखो, ये गुरुशिखर का असली टोपोग्राफिक मैप है। जब मैं तुम्हारी उम्र का था, तब अपने दोस्तों के साथ गया था। इसे साथ ले जाओ, और कम्पास भी।" गुरु शिखर जंगल बहुत सुंदर है तुम जैसे-जैसे गहराई में उतरोगे वैसे-वैसे यह जंगल और भी खूबसूरत होते जाएगा पर ध्यान रखना खूबसूरत चीज के साथ-साथ यहां पर बहुत से जंगली जानवर भी है। अपना ध्यान रखना और हमको बराबर फोन करते रहना वैसे तुम शाम तक लौट आओगे या फिर दो दिन का कैंप है।

    अर्जुन ने नक्शा और कम्पास बैग में रखते हुए कहा,
    अर्जुन: "वाह पापा, इससे तो रास्ता ढूँढना और भी मजेदार हो जाएगा।" हम लोगों को ज्यादा परेशानी नहीं होगी।

    माँ ने दरवाजे से आवाज लगाई,
    माँ: "भूलना मत, अपने दोस्तों का ध्यान भी रखना।"
    हर समय पर मुझे फोन लगाते रहना वरना मुझे तो मेरी चिंता लगी रहेगी।
    अर्जुन:- हम मैं आपको बराबर फोन लगाता रहूंगा और आप परेशान मत हो मैं अकेला नहीं जा रहा हूं मेरे साथ मेरे सारे दोस्ती जा रहे हैं और मैं 18 साल का हो गया हूं अब मैं बच्चा नहीं
    मां :-  मां के लिए तो एक बच्चा हमेशा बच्चा ही रहता है भले वह 50 साल का  क्यों ना हो जाए। चलो तुम्हारी  तैयारी पूरी कर ली हो तो जल्दी सो जाओ तो मैं जल्दी उठना भी है।


    उधर करण ने अपने बैग में टॉर्च, रस्सी और एक छोटा-सा मल्टी-टूल रखा था। उसके पापा की जीप बाहर पोर्च में खड़ी थी, जिसे उसने पहले ही चेक कर लिया था।

    प्रिया अपने कमरे में रंग-बिरंगे बैग में चॉकलेट, चिप्स, नाश्ते के पैकेट और इंस्टेंट नूडल्स भर रही थी। उसे खुद से ज्यादा दोस्तों के लिए खाना पैक करना अच्छा लगता था।

    अनुष्का अपने कैमरा बैग में नए DSLR कैमरे को बहुत प्यार से रख रही थी। साथ में अतिरिक्त बैटरी और मेमोरी कार्ड भी डाल दिए थे।



    रात करीब 10 बजे, सभी ने ग्रुप वीडियो कॉल की। स्क्रीन पर एक-एक कर सबके चेहरे दिखाई दिए।

    रोहन: "तो भाई, तैयारी पूरी हो गई सबकी?"

    अर्जुन: "हाँ, मैंने गुरुशिखर का मैप, कम्पास सब रख लिया है। ये पापा की लाइब्रेरी से मिला… असली एडवेंचर तब होगा जब रास्ता खुद तय करेंगे।"

    करण: "मैंने टॉर्च, रस्सी और रेनकोट रख लिए हैं। वैसे, जंगल में कभी भी बारिश हो सकती है। और प्रिया, तूने अपने बैग में सिर्फ खाना ही रखा होगा, है ना?"

    प्रिया: (मुस्कुराते हुए) "बिलकुल। तुम सबको तो पता ही है, मैं खाने के बिना नहीं रह सकती। पर टेंशन मत लो, तुम्हारे लिए भी चॉकलेट, चिप्स, नाश्ता और इंस्टेंट फूड रखा है। बोनफायर पर मजा आएगा।" और तुमने चिंता मत करो मैं तुम सब लोगों के लिए खाने का सारा सामान रख लिया।

    अनुष्का: हां हां पता है तुझे खाने के अलावा कुछ सोचता है क्या "और मैं तो कैमरा लेकर आ रही हूँ। जंगल की फोटोग्राफी का मजा ही अलग है। मेरा नया कैमरा, जो पापा ने मेरे लिए खरीदा, वो भी तैयार है।"

    रोहन: "ठीक है दोस्तों, अब सो जाओ। सुबह 6 बजे निकलना है।"

    सबने एक साथ कहा—"गुड नाइट!"


    ---

    सुबह का सीन

    सूरज की पहली किरणें खिड़की से अंदर आईं। सड़क पर हल्की ठंडी हवा बह रही थी और कहीं-कहीं पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। हल्की-फुल्की गुलाबी सी ठंडी थी।

    करण सबसे पहले जीप लेकर रोहन के घर पहुँचा। रोहन नीली टी-शर्ट और जींस में तैयार खड़ा था। उसने बैग पीछे डाला और बोला,
    रोहन: "चलो, अर्जुन को भी ले लेते हैं।"

    कुछ ही मिनटों में वे अर्जुन के घर पहुँचे। अर्जुन ग्रे टी-शर्ट और ट्रैक पैंट में बाहर खड़ा था। बैग कंधे पर था और हाथ में नक्शा।

    फिर जीप प्रिया और अनुष्का के घर की तरफ बढ़ी। वे दोनों पास-पास रहती थीं। प्रिया पीली टी-शर्ट और ट्रैक पैंट में थी जबकि अनुष्का गुलाबी टी-शर्ट और जींस में कैमरा बैग के साथ खड़ी थी।

    प्रिया: "देखो, खाने का बैग सबसे पहले रखो, ये सबसे कीमती है।"
    करण: "हाँ हाँ, मैडम, पहले खाने का इंतजाम, फिर बाकी सब।"

    सभी के बैठने के बाद जीप का इंजन गरजा और वे निकल पड़े।



    शहर की गलियों से निकलते हुए जीप मुख्य सड़क पर आ गई। सुबह-सुबह धूप सुनहरी थी और हवा में हल्की ठंडक। रास्ते में खेतों की हरियाली और दूर-दूर तक फैले पहाड़ नजर आ रहे थे। वह जंगल के रास्ते की ओर बढ़ रहे थे

    अर्जुन: "ये जो पहाड़ सामने दिख रहे हैं, वहीं से गुरुशिखर का रास्ता शुरू होता है।"

    अनुष्का: "रुको, ये नज़ारा मैं कैमरे में कैद कर लूँ।" उसने खिड़की से बाहर झुककर क्लिक किया।

    रोहन: "बस, फोटो खींचने में इतना टाइम मत लगाना कि हम लेट हो जाएँ।"

    सड़क जैसे-जैसे जंगल के करीब पहुँच रही थी, दोनों तरफ घने पेड़, बेलें और झाड़ियाँ दिखने लगीं।

    करण: "दोस्तों, अब असली एडवेंचर शुरू होने वाला है।"

    जीप जंगल के प्रवेश द्वार के पास रुकी। वहाँ एक लकड़ी का बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था—
    “गुरुशिखर ट्रेकिंग ट्रेल – प्रकृति के रहस्यों की ओर आपका स्वागत है।”

  • 3. जंगल की गोद में रात - Chapter 3

    Words: 1080

    Estimated Reading Time: 7 min

    अध्याय – जंगल की गोद में रात

    गाड़ी के टायरों की हल्की चरमराहट, इंजन की गुनगुनाहट और हवा में घुली मिट्टी की सोंधी महक – यह सब मिलकर एक नया ही सफ़र रच रहे थे। ओपन जीप में बैठे सभी दोस्तों के चेहरों पर अलग-अलग भाव थे – किसी के चेहरे पर उत्सुकता, किसी पर हल्की-सी घबराहट और कुछ पर तो बस बेफिक्र हंसी खेल रही थी।

    शहर से निकले उन्हें करीब दो घंटे हो चुके थे। अब पक्की सड़क ख़त्म हो चुकी थी और कच्चा रास्ता शुरू हो गया था। जीप के टायर छोटे-छोटे गढ्ढों और पत्थरों पर उछल रहे थे। रास्ते के दोनों ओर झाड़ियाँ, बिखरे हुए छोटे पेड़ और कभी-कभी दिख जाने वाले खेत, अब धीरे-धीरे घने जंगल के संकेत देने लगे थे।

    आगे बढ़ते-बढ़ते वे एक चौड़ी नदी के किनारे आ पहुंचे। पानी का रंग गहरा नीला था, मानो उसकी गहराई में कोई रहस्य छिपा हो। पानी की सतह पर हल्की लहरें धूप की किरणों को छोटे-छोटे सुनहरे टुकड़ों में बदल रही थीं।

    अनुष्का ने उत्सुकता से आगे झुकते हुए कहा,

    "ये नदी कितनी गहरी और शांत है! इसका नाम क्या है, तुम्हें मालूम है?"

    उसकी आँखें पानी में तैरती छोटी-छोटी मछलियों पर टिक गईं।

    "देखो, कितनी साफ है... नीचे तक दिख रही है।"

    रोहन, जो सामने की सीट पर बैठा था, मुस्कुराकर बोला,

    "हाँ, इसका नाम देव धारा है। कहते हैं, ये पानी बहुत पवित्र है। और देखो... किनारे पर कितने बड़े-बड़े पेड़ हैं, जो इसकी खूबसूरती और बढ़ा रहे हैं।"

    उसने इशारा किया – किनारे पर कतार में खड़े पीपल, बरगद और सागौन के पेड़ अपनी जड़ों और शाखाओं से जैसे नदी को आलिंगन दे रहे थे।

    जैसे ही वे नदी पार करके आगे बढ़े, जंगल ने अपने पूरे वैभव से उनका स्वागत किया। ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की छतरियाँ ऊपर से मिलकर एक हरी छत बना रही थीं, जिसमें से सूरज की किरणें छनकर सुनहरी धारियों की तरह ज़मीन पर गिर रही थीं। हवा में पत्तों की हल्की सरसराहट थी, और दूर से आती कोयल की कूक मानो जंगल की मधुर धुन थी।

    प्रिया ने गहरी सांस ली,

    "ये कितनी विविधता वाला जंगल है... यहाँ पेड़ भी कितने अलग-अलग हैं, पक्षियों की आवाज़ें भी।"

    उसके चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान थी,

    "हमारे शहर में ऐसी शांति तो कहीं नहीं मिलती।"

    अर्जुन ने चारों ओर देखते हुए कहा,

    "और यहाँ जड़ी-बूटियाँ भी बहुत मिलती हैं। कुछ तो औषधीय गुणों वाली हैं... मैंने इस जंगल के बारे में गूगल पर पढ़ा था।"

    उसकी आवाज़ में ज्ञान के साथ-साथ एक खोजी उत्साह भी था।

    रास्ते में उन्हें कई जानवर दिखे – झाड़ियों के पीछे से झाँकते हिरण, पेड़ों पर उछलते-कूदते बंदर, और रंग-बिरंगे पक्षी जिनकी चहचहाहट मानो इस जंगल की पृष्ठभूमि संगीत थी। एक बार उन्होंने ऊपर देखा तो एक विशाल चील एक पुराने, सूखे पेड़ की सबसे ऊँची शाखा पर बैठी थी, उसकी आँखें तेज़ और सतर्क।

    करण ने गर्दन उठाकर कहा,

    "वाह, ये तो पूरे जंगल पर नज़र रख सकती है।"

    चील ने जैसे उनकी बात सुन ली, वह अपने पंख फैलाकर उड़ चली – उसके पंखों की चौड़ाई और फड़फड़ाहट की आवाज़ सुनकर सबके मुँह से एक साथ "वाह!" निकल पड़ा।

    कुछ देर बाद वे एक झरने के पास पहुँचे। पहाड़ की चट्टानों से गिरता पानी दूध-सी सफेदी लिए था और गिरते समय उसकी आवाज़ एक लोरी जैसी थी। पास में काई लगी चट्टानें, गीली मिट्टी और हवा में बिखरी ठंडी नमी – सब मिलकर एक जादुई माहौल बना रहे थे।

    अनुष्का ने मुस्कुराकर कहा,

    "इसकी आवाज़ सुनो... जैसे कोई गाना गा रहा हो।"

    सबने थोड़ी देर वहीं रुककर पानी में हाथ धोए और इस ठंडक का आनंद लिया।

    आगे बढ़ते-बढ़ते रास्ता अब एक पहाड़ी की ओर मुड़ गया। वह पहाड़ी करीब 1000 मीटर ऊँची थी। चढ़ाई थोड़ी कठिन थी, लेकिन ऊपर पहुँचकर जो नज़ारा मिला, उसने सबको थका हुआ महसूस करने का मौका ही नहीं दिया। नीचे घना जंगल फैला था, बीच में से देव धारा नदी चाँदी की तरह चमकती हुई बह रही थी। सूरज अब ढलने लगा था और उसकी सुनहरी किरणें पेड़ों की चोटियों को आग जैसी चमक दे रही थीं।

    प्रिया ने हल्के स्वर में कहा,

    "ये तो जैसे पेंटिंग हो... बस आँखों में कैद कर लो।"

    धीरे-धीरे समय शाम के पाँच बजने को आया। सबने तय किया कि रात यहीं जंगल में बिताई जाएगी। उन्होंने पहाड़ी पर ही एक समतल जगह खोजी, जिसके पास नदी बह रही थी – ताकि पानी की व्यवस्था आसान रहे।

    रोहन ने कहा,

    "ये जगह सही है, यहाँ से सब तरफ नज़र रखी जा सकती है और पास में पानी भी है।"

    अर्जुन ने सहमति जताई,

    "हाँ, और यहाँ टेंट लगाने की भी जगह है।"

    फैसला हुआ कि लड़के लकड़ियाँ लाएँगे और लड़कियाँ टेंट तैयार करेंगी। रोहन और करण पास के सूखे पेड़ों से लकड़ियाँ लेने निकल गए। पेड़ों के बीच से गुजरते हुए उन्हें जगह-जगह गिरे हुए पत्तों की मोटी परत मिली, जो उनके पैरों के नीचे दबते ही सरसराने लगी।

    करण ने चारों ओर देखते हुए कहा,

    "यहाँ बहुत सूखी लकड़ियाँ हैं... इन्हें काटने में ज्यादा मेहनत नहीं लगेगी।"

    रोहन ने हाँ में सिर हिलाया,

    "चलो जल्दी से ले चलते हैं, वरना अँधेरा हो जाएगा।"

    उधर प्रिया और अनुष्का ने टेंट की रस्सियाँ बाँधना शुरू कर दिया। हवा में अब हल्की ठंडक घुलने लगी थी और आसमान में लाल, नारंगी और बैंगनी रंग की लकीरें उभरने लगी थीं।

    कुछ देर बाद लकड़ियाँ आ गईं। फायर कैंप तैयार हुआ। अर्जुन ने खाना बनाने का जिम्मा लिया और जल्दी ही मैगी और कॉफी की खुशबू चारों तरफ फैल गई।

    रोहन ने हंसते हुए कहा,

    "वाह अर्जुन, तू तो जंगल में भी शेफ बन गया।"

    सबने खाना खाया, हंसी-मजाक किया और फिर रोहन ने अर्जुन को गिटार बजाने का आग्रह किया। जंगल की ठंडी रात, तारों से भरा आसमान, और आग की लपटों की गर्मी – इन सबके बीच अर्जुन का गाना एकदम जादू जैसा लग रहा था।

    लेकिन इस खूबसूरत माहौल में भी एक अजीब-सी खामोशी छुपी थी। जैसे-जैसे रात गहराने लगी, जंगल की आवाज़ें बदलने लगीं – दिन के चहकते पक्षियों की जगह अब दूर से आती भेड़ियों की हुंकार, झाड़ियों में कुछ सरकने की आहट, और अनजाने कीटों की तीखी आवाज़।

    अनुष्का ने धीरे से कहा,

    "ये रात बहुत सुंदर है... लेकिन मुझे लगता है अँधेरे में ये जंगल थोड़ा डरावना भी है।"

    प्रिया ने सिर हिलाया,

    "हाँ, मुझे भी... लग रहा है कोई हमें देख रहा हो।"

    तभी –

    एक तेज और खौफनाक चीख ने रात की खामोशी चीर दी।

    आवाज़ इतनी अचानक और तेज़ थी कि सब चौंककर खड़े हो गए। फायर की लपटें भी हवा से झिलमिलाने लगीं।

  • 4. रोमांस डर भयानक आवाज - Chapter 4

    Words: 1270

    Estimated Reading Time: 8 min

    तेज़ चीख के बाद माहौल में कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया। सबके चेहरे पर हल्की-सी घबराहट थी, लेकिन अर्जुन ने तुरंत स्थिति संभालने की कोशिश की।

    वह आग के पास बैठा और शांत स्वर में बोला,

    "दोस्तों, हम जंगल के काफ़ी अंदर हैं… यहाँ ऐसे आवाज़ें आना सामान्य है। हो सकता है किसी जानवर की आवाज़ हो या बस हवा में पेड़ों के हिलने से कोई भ्रम। चिंता मत करो — आग जल रही है और हम ऊँचे स्थान पर हैं, यहाँ जंगली जानवर कम आते हैं।"

    उसकी बातें सुनकर सबके चेहरे पर थोड़ी राहत आई। माहौल को हल्का करने के लिए अर्जुन ने गिटार उठाया। उसने तार छेड़े और एक धीमी, दिल को छू लेने वाली धुन बजाई। आंखें बंद करके उसके हाथ के तार पर थिराकने रखने लगे।

    उसकी आवाज़ धीमे-धीमे आग की चटखाहट और ठंडी हवा के बीच घुलने लगी —

    "तेरी हँसी में है जो बात,

    वो किसी शाम में नहीं…

    तेरी आँखों का जो नूर है,

    वो किसी आसमान में नहीं…"

    गाना सुनते-सुनते सबका डर कहीं पीछे छूटने लगा। आग की लपटों की रोशनी में उनके चेहरे चमक रहे थे, और ऊपर आसमान में तारे मानो इस छोटे-से ग्रुप को चुपचाप देख रहे थे।

    गाना खत्म होते ही सब ने ताली बजाई।

    रोहन :- अर्जुन तेरा गाना की बात हुँ कुछ लगा हैं मजा आ गया।

    फिर

    अनुष्का ने शरारती अंदाज़ में कहा,

    "चलो अब हम लोग गेम खेलते हैं… Truth and Dare!"

    बाकी सब हंस पड़े और मान गए।

    प्रिया बोली साथ में मैगी भी हो जाये

    रोहन :- अभी तो डिनर किया हैं।

    प्रोया हा तो उस बात को २ घंटे हो गया

    अर्जुन :- चलो में ओर प्रिया मैग्गी बनाते हैं तुम लोग गेम रेडी करो।

    करण ने बैग से एक खाली बोतल निकाली, और सब गोल बनाकर बैठ गए।

    अर्जुन ने मैग्गी बने बिरयानी सबके बॉल में डाली और सबको पकड़ा दिया सब आपके गोल में बैठ गए फिर

    प्रिया ने बोतल गुमाई

    बोतल घूमी और पहली बार अर्जुन की बारी आई।

    "Truth or Dare?" — अनुष्का ने मुस्कुराकर पूछा।

    "Truth," अर्जुन ने तुरंत जवाब दिया।

    रोहन ने हंसते हुए पूछा,

    "तुम्हारी लाइफ का सबसे बड़ा डर क्या है?"

    अर्जुन ने कुछ पल सोचकर कहा,

    "अपनों को खो देना… यही मेरा सबसे बड़ा डर है।"

    सब चुप हो गए, जवाब गंभीर था, लेकिन गेम आगे बढ़ा।

    इस बार अर्जुन ने बोतल घुमाई और र

    करण पे आई। उसने Dare चुना।

    प्रिया ने हंसते हुए कहा,

    "ठीक है, वो सामने वाला पेड़ देख रहे हो? उसके ऊपर चढ़ना है और ऊपर से उस अजीब से फूल तोड़कर लाना है।" और उसमें जो सबसे ऊंचाई वाला है वहां पर उसने इशारा किया।

    करण ने बिना सोचे-समझे हां कर दी और कुछ ही मिनटों में वह पेड़ पर चढ़कर फूल लेकर आ गया। सब हंस पड़े।

    प्रिया का मुंह बन गया तुमने इतनी जल्दी कर भी लिया।

    सब हंसने लगे की आपको देखकर आप कारण ने बोतल घुमाई

    और रोहन की बारी आई।

    अनुष्का ने हल्की शरारत से पूछा,

    "Truth or Dare?"

    "Truth," रोहन ने कहा।

    अनुष्का ने सीधे-सीधे सवाल दाग दिया,

    "रोहन, तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है क्या?"

    सवाल सुनते ही प्रिया का दिल जैसे रुक-सा गया। उसकी निगाहें रोहन पर टिक गईं। वह अपने हाथ एक से दूसरे को हाथ मसलने लगी।

    रोहन ने दो सेकंड नहीं, पूरे दो मिनट तक चुप्पी साधी… आग की लपटें उसकी आँखों में झिलमिला रही थीं।

    फिर उसने गहरी सांस लेकर कहा,

    "हाँ… है।"

    प्रिया ने निगाहें झुका लीं। उसकी आँखों में नमी तैरने लगी। वह चाहकर भी कुछ कह नहीं पा रही थी। अजीब सा हो रखा था उसका मन समझा नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया।

    तभी रोहन ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखों में एक अलग चमक थी।

    वह धीरे-धीरे उठकर प्रिया के सामने आया, हाथ बढ़ाया और सबके सामने कहा,

    "और… वो तुम हो, प्रिया।"

    प्रिया का दिल जैसे धड़कना भूल गया। उसकी आँखें नीचे झुक गईं, होंठ हल्के-से कांपे।

    लेकिन तभी रोहन ने अपने कदम आगे बढ़ाए, उसके सामने आकर धीरे-धीरे एक घुटने पर बैठ गया।

    उसने चारों ओर देखा — पास में गुलाब तो नहीं था, लेकिन उसके हाथ एक छोटा-सा लाल-भूरा पत्ता लग गया, जो आग की रोशनी में चमक रहा था।

    वह पत्ता उसने दोनों हाथों से ऐसे पकड़ा, मानो कोई अनमोल चीज़ हो, और मुस्कुराकर बोला,

    "फूल नहीं है मेरे पास… पर ये पत्ता है, जो इस जंगल का हिस्सा है। जैसे मैं चाहता हूँ, तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा बनो। प्रिया… Will you be mine?"

    प्रिया की आँखों में आंसू और मुस्कान एक साथ आ गए। उसने हाथ बढ़ाकर पत्ता लिया और धीमे से कहा,

    "Yes, Rohaan… I am yours."

    रोहन ने धीरे-से उसका हाथ पकड़ा, खड़ा हुआ, और उसकी आँखों में देखते हुए हल्की-सी लाइट किस उसके माथे पर दी।

    बाकी सबने तालियों की गड़गड़ाहट से माहौल भर दिया।

    सबके हाथ एक साथ उठ और जोर से हूटिंग करने लगे , हंसी और खुशी में सबका मन जैसे बच्चे-सा हो गया।

    कारण:*

    "अर्जुन, अब तेरी बारी… एक अच्छा सा रोमांटिक गाना सुना दे, ताकि ये मोमेंट हमेशा याद रहे।"

    अर्जुन ने गिटार उठाया, तार छेड़े, और धीमी आवाज़ में गाना शुरू किया —

    "तेरे बिना जीना क्या है,

    तेरी धड़कन में मेरा जहां है…

    तू पास हो, तो हर पल मेरा है,

    तू दूर हो, तो बस इंतज़ार है…"

    रोहन और प्रिया ने एक-दूसरे की आँखों में देखते हुए धीमे-धीमे कदम बढ़ाए और डांस करना शुरू किया।

    चारों ओर सिर्फ आग की चटक, गिटार की धुन, और दो दिलों की धड़कन थी।

    चाँद ऊपर से जैसे उन पर अपनी रोशनी बरसा रहा था, और हल्की हवा पत्तों को सरसराकर एक और मधुर संगीत बना रही थी।

    गाना खत्म होते ही बाकी सबने ताली बजाई, कुछ ने सीटियां भी मारी।

    प्रिया ने मुस्कुराकर कहा,

    "ये रात कभी भूलने लायक नहीं है।"

    लेकिन तभी —

    दूर से एक और भी भयानक, गहरी गुर्राहट सुनाई दी।

    इस बार आवाज़ के साथ टहनियों के टूटने और पत्तों के रगड़ने की तेज़ सरसराहट भी थी, जैसे कुछ बड़ा और भारी उनके पास आ रहा हो।

    छाया में, पेड़ों के बीच, जैसे किसी विशाल परछाईं की हलचल दिखाई दी…

    अर्जुन का चेहरा गंभीर हो गया,

    "ये कुछ अलग है… यहाँ खतरा हो सकता है।"

    सब एक-दूसरे की तरफ देखने लगे, डर और जिज्ञासा उनकी आँखों में साफ दिख रहा था। सब एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया

    आग की लपटें हवा से और तेज़ कांपने लगीं, और ठंडी हवा में एक अजीब-सी गंध घुलने लगी — जैसे मिट्टी और खून का मिश्रण।

    रोहन ने प्रिया का हाथ और कसकर थाम लिया…

    और सबको अहसास हो गया — ये रात अब वैसी नहीं रहेगी जैसी शुरू हुई

    दूर से एक और भी भयानक, खुरदुरी आवाज़ आई।

    इस बार वो चीख नहीं थी… बल्कि किसी बड़े जानवर की गुर्राहट जैसी थी, जिसके साथ पेड़ों के बीच सरसराहट और शाखाओं के टूटने की आवाज़ें भी आ रही थीं।

    उसी पल आसमान में बादल गरजने लगे —

    गड़गड़-गड़गड़!

    बिजली की चमक ने एक पल के लिए पूरे जंगल को सफेद रोशनी में नहला दिया, और फिर अंधेरा और भी गहरा हो गया।

    बारिश शुरू नहीं हुई थी, लेकिन बादलों की गड़गड़ाहट रात को और डरावना बना रही थी।

    सब एक-दूसरे को देखने लगे — उनकी आँखों में अब रोमांस की जगह चिंता ने ले ली थी।

    अर्जुन ने गंभीर स्वर में कहा,

    "मुझे यहाँ खतरा लग रहा है… हमें सतर्क रहना होगा।"

    सबने सहमति में सिर हिलाया।

    रोहन ने प्रिया का हाथ और कसकर थाम लिया, जैसे कह रहा हो — मैं यहाँ हूँ, तुम्हें कुछ नहीं होगा।

    आग की लपटें अब हवा से कांप रही थीं, और जंगल… अब पहले से ज्यादा रहस्यमय और खतरनाक लगने लगा था।

    और फिर

  • 5. ये सामने कौन आ गया?- Chapter 5

    Words: 1014

    Estimated Reading Time: 7 min

    घना जंगल… हवा में नमी थी, लेकिन वह किसी बरसात की नहीं, बल्कि किसी अनजाने डर की नमी लग रही थी।
    पेड़ों की ऊँचाई मानो आसमान को छू रही थी, और उनकी शाखाएँ हवा में अजीब तरीके से हिल रही थीं। जैसे कोई अदृश्य हाथ उन्हें छेड़ रहा हो।

    वे सभी आवाज की ओर देखने लगे, लेकिन वहां कोई नहीं था।
    सन्नाटा ऐसा था कि पत्तियों की सरसराहट भी अब खतरनाक लग रही थी।

    अचानक, उनके आसपास की हवा में एक अजीब-सी ऊर्जा महसूस होने लगी — इतनी घनी, कि साँस लेना भारी हो रहा था।
    सभी ने एक-दूसरे को देखा… उनकी आँखों में डर की एक नई परत थी।

    प्रिया (धीरे से, लगभग फुसफुसाते हुए): "ये कौन है? और… ये हमें क्या कहना चाहता है?"

    उसी पल, वह आवाज फिर से गूंजी — गहरी, भारी और अजीब-सी गूँज के साथ, जैसे किसी गुफा से आ रही हो:
    आवाज़: "तुम कहां जा रहे हो? तुम यहां से नहीं जा सकते…"

    सारे शरीर में ठंडक उतर गई।
    रोहन ने अपने हाथ की पकड़ अर्जुन के कंधे पर और कस ली।

    करण (तेज फुसफुसाहट में): "ये… इंसान की आवाज की है या किसी और की कितनी भयानक आवाज है है।"

    अब पेड़ों की शाखाएँ और ज्यादा हिलने लगीं। जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उन्हें घेरने का फैसला कर लिया हो।
    पत्तों के बीच से अचानक ठंडी हवा का झोंका आया, और ऐसा लगा जैसे किसी ने गर्दन के पास फूंक मारी हो।

    रोहन (तेज़ स्वर में): "हमें यहां से निकलना होगा! ये जगह सुरक्षित नहीं है। चलो जल्दी से सभी दूसरे का हाथ पकड़ो और भागो "
    प्रिया :- हां चलो जल्दी चलो।

    वे मुड़े ही थे कि रास्ते में एक बड़ा, गहरे रंग का पत्थर खड़ा था, जो पहले वहां नहीं था।
    उस पर अजीब, लाल रंग से कुछ लिखा था —

    "मत जाओ… यहीं रहो। तुम यहां से कहीं नहीं जा सकते हो "

    सभी पत्थर को देखने लगे।
    दिल की धड़कनें कानों तक सुनाई देने लगीं।

    अनुष्का (काँपते स्वर में): "ये… किसने लिखा? और… क्यों?"
    प्रिया ने डर के रोहन का हाथ पकड़ लिया
    कारण:- जो भी है यह सही नहीं है हमें यहां से निकलना होगा।

    अर्जुन (दाँत भींचते हुए): "जो भी है, हमें डराने की कोशिश कर रहा है। हम यहां रुकेंगे तो फँस जाएंगे।"

    लेकिन जैसे ही उन्होंने आगे बढ़ने की कोशिश की, उनके आसपास की दुनिया बदलने लगी।

    पेड़ों की शाखाएं और तेजी से हिलने लगीं, पत्तियां किसी अदृश्य भँवर में फंसकर उड़ने लगीं।
    हवा में एक अजीब सी, ताजा खून जैसी गंध आने लगी…
    ऐसा लग रहा था, जैसे आसपास कहीं ताजा खून गिरा हो।

    प्रिया (नाक ढकते हुए): "ये… गंध क्या है?"
    अनुष्का " पता नहीं पर मैं सांस नहीं ले पा रही "

    उन्हें अब साफ पता था — वे अकेले नहीं हैं।
    और वो “कुछ” उनसे मिलने के लिए करीब आ रहा है।

    एक दूसरे का हाथ पकड़ा और वहां से निकले भागे।

    करीब दो मिनट के भारी सन्नाटे के बाद, उन्होंने उसे देखा।

    एक छाया — पहले धुंधली, फिर और साफ होती हुई।
    वह प्राणी सामने आ गया…

    वह न तो जानवर था, न इंसान।
    उसका शरीर लंबा, असामान्य रूप से टेढ़ा-मेढ़ा, नीली त्वचा पर काले धब्बों से भरा हुआ।
    उसके लाल, उलझे हुए बाल चेहरे पर लटक रहे थे, और गहरी नीली आँखें अंधेरे में जल रही थीं।
    उसके होंठों के कोनों से ताज़ा खून टपक रहा था, जो गीली मिट्टी पर गिरते ही गहरा लाल फैल रहा था। उसके हाथों की और पैरों के बड़े-बड़े नाखून लाल गहरी आंखें खूब बड़ा सर एक अजीब सा जानवर ----

    प्रिया (साँस रोकते हुए): "ओह माय गॉड… ये… ये क्या है?"

    रोहन (आँखें चौड़ी करते हुए): "ये कोई जानवर या इंसान नहीं है… ये कुछ और है। और… ये अभी-अभी शिकार करके आया है। क्यों मुंह से टपकता हुआ खून बता रहा है "

    उसके नाखून लंबे और तेज़ थे — इतने बड़े कि एक ही वार में इंसान का गला चीर दें।
    उसके पैरों की उंगलियां भी पंजों जैसी नुकीली थीं।
    वह धीरे-धीरे, लेकिन बहुत सोच-समझकर उनकी ओर बढ़ रहा था।

    अर्जुन (गंभीर स्वर में): "अगर हम खड़े रहे तो ये हमें मार डालेगा। हमें भागना होगा।"

    लेकिन पैरों में जैसे ताकत ही नहीं बची थी।
    प्राणी के हर कदम के साथ, उसके शरीर से आने वाली गड़गड़ाहट हवा को हिला रही थी।

    अनुष्का (थरथराते हुए): "न… नहीं… ये हमें नहीं मार सकता… हम… हम कुछ करेंगे…"

    उसी समय — आसमान में तेज बिजली कड़की।
    बिजली की चमक में उस प्राणी का चेहरा पूरी तरह साफ दिखाई दिया —
    लार और खून से लथपथ, और आँखें… जैसे किसी को निगलने की भूख में जल रही हों।

    बारिश अचानक शुरू हो गई।
    बूंदें चेहरे पर पड़ते ही ठंडी चुभन दे रही थीं।
    लेकिन उनके दिल की धड़कन उस ठंड से भी ज्यादा तेज थी।

    करण (घबराकर): "ये… ये बहुत भयानक है… अगर हम यहीं खड़े रहे तो… हम सब खत्म हो जाएंगे!"

    वे सब काँपने लगे — सिर्फ ठंड से नहीं, बल्कि उस प्राणी की मौजूदगी से।


    ---

    और तभी…
    वह उनके बिलकुल करीब आ गया।
    इतना पास कि उसकी साँस की गंध उनके चेहरे से टकराने लगी — सड़ी हुई, खून और मिट्टी के मिश्रण जैसी।

    वह पल…
    कानों में सिर्फ बारिश और उस प्राणी की भारी साँसों की आवाज़ थी।

    लेकिन अगले ही सेकंड —
    तेज बिजली कड़की, आँखें चकाचौंध हो गईं, और…
    सब कुछ शांत।

    बारिश थम गई।
    हवा रुक गई।
    और… वह प्राणी गायब था।

    प्रिया (हैरानी में): "ये… क्या हुआ? वो कहाँ गया?"

    रोहन (हांफते हुए): "मुझे नहीं पता… लेकिन भगवान का शुक्र है कि वो चला गया।"

    सभी ने इधर-उधर देखा — पेड़ वही थे, जमीन वही थी, लेकिन वह डर… अब भी हवा में मौजूद था।

    अर्जुन (दृढ़ स्वर में): "ये जगह बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। हमें यहाँ से निकलना होगा।"

    अनुष्का: "हाँ… मैं यहाँ एक पल भी नहीं रहना चाहती।"

    वे निकलने लगे — लेकिन तभी…
    वही आवाज़ फिर से गूंजी:

    आवाज़: "तुम कहां जा रहे हो?"

    वे सब जम गए।
    धीरे-धीरे पीछे मुड़े —
    कोई नहीं था।

    हवा फिर से भारी हो गई।
    और सभी को एहसास हो गया —
    ये अभी खत्म नहीं हुआ है…

  • 6. भेड़िया या आदमी - Chapter 6

    Words: 1060

    Estimated Reading Time: 7 min

    रात का समय था। जंगल में चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ था। सिर्फ़ हवा की सरसराहट और कभी-कभी दूर से किसी जंगली पक्षी की डरावनी आवाज़ सुनाई दे रही थी। ऊपर काले बादलों का जमघट था, जिनके बीच चाँद कभी-कभी झलक दिखा कर फिर ओझल हो जाता। पेड़ों की लंबी-लंबी छायाएँ ज़मीन पर ऐसे फैल रही थीं, जैसे कोई अदृश्य प्राणी उन्हें धीरे-धीरे सरका रहा हो।

    तभी…
    पत्तों के बीच हल्की आहट हुई।
    वे सभी — अर्जुन, करण, प्रिया, अनुष्का और रोहन — एक साथ रुक गए।

    अर्जुन (धीरे से) – "तुम लोगों ने भी सुना?"
    करण – "हाँ… ये कदमों की आवाज़ है… कोई हमारे पीछे आ रहा है।"
    अनुष्का – "शायद कोई जानवर होगा। चलो, जल्दी से बोनफायर वाली जगह लौट चलते हैं।"
    ()सभी लोग दौड़ते हुए बोनफायर से थोड़े दूर आ गए थे अब उन्हें लग रहा था क्यों नहीं वापस में आ जाना चाहिए)

    वे पलटने ही वाले थे कि… अंधेरे से एक आकृति उभरी।
    एक आदमी… लेकिन उसका चेहरा और चाल सामान्य नहीं थी।

    वह धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ रहा था।
    पूरे काले कपड़े, लंबे काले बाल, बड़ी-बड़ी घनी मूंछें, और हाथ में एक मोटा डंडा। उसकी आँखें, आधी रोशनी में भी, अजीब सी चमक रही थीं — जैसे किसी शिकारी की। शरीर पूरी काली जो कि अंधेरे में और भी काली दिख रही थी उसके हाथ में एक मशाल थी जिसकी रोशनी में उसका चेहरा हल्का सा दिख रहा था।

    प्रिया (कंपकंपाती आवाज़ में) – "मुझे… मुझे अच्छा महसूस नहीं हो रहा। आदमी कुछ अजीब सा है "
    करण – "हाँ… हमें यहाँ से निकलना चाहिए… अभी। चलो सभी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर भागो "

    वे सब पलट कर तेज़-तेज़ कदमों से वापस चलने लगे।
    लेकिन तभी…

    कड़क!!!
    आसमान में बिजली इतनी तेज़ी से कड़की कि पूरा जंगल एक पल के लिए सफ़ेद रोशनी से नहा गया। उस रोशनी में वे साफ़ देख पाए… वह आदमी अब और पास आ चुका था… और उसका चेहरा पहले से भी ज़्यादा डरावना लग रहा था। और ज्यादा डबरा अपना दिख रहा था उसके बॉडी से अजीब सी जानवरों की स्मेल आ रही थी

    बारिश की पहली बूंदें टप-टप गिरने लगीं।

    अनुष्का – "बारिश शुरू होने वाली है! टेंट तक पहुँचना होगा… वरना—"
    अर्जुन – " अनुष्का सही कह रही है अपनी पूरी ताकत लगाओ बिना कोई बहाना नहीं! भागो!"

    वे सब एक-दूसरे का हाथ पकड़कर दौड़ने लगे बोलो कुछ तो दूर दौड़े ही थे ।
    लेकिन…

    पीछे से एक भयंकर गुर्राहट सुनाई दी।
    उन्होंने पलटकर देखा — वह आदमी अब दौड़ रहा था… और अचानक उसका शरीर बदलने लगा!

    उसके बाल और लंबे, मोटे हो गए, हाथों और पैरों में बड़े-बड़े नुकीले नाखून निकल आए। उसकी पीठ से एक लंबी पूँछ फूट पड़ी, और मुँह से दो विशाल दाँत बाहर झाँकने लगे। उसकी आँखें गहरे लाल रंग में चमकने लगीं उसके हाथ पैर में बदलने लगे उसका सामने का मुंह अधिक तरीके से परिवर्तन होने लगा ।

    कुछ ही सेकंड में… वह आदमी एक विशालकाय काले भेड़िए में बदल चुका था।

    उसकी घुर्राने की आवाज़ से पूरा जंगल काँप उठा। पेड़ों की टहनियाँ हवा में ऐसे हिलने लगीं, जैसे वे भी डर के मारे भागना चाहती हों।

    अनुष्का (चीखते हुए) – "आआआह्ह! यह… यह क्या है??"

    कारण :- मेरी आंखों का धोखा है या तुम सपने भी दिखा यह पहले इंसान था और फिर यह भेडियो में बदल गया।

    रोहन :- नहीं..... यह नहीं हो सकता!

    प्रिया – "भेड़िया… या… आदमी? मैं समझ नहीं पा रही! क्या तुम लोगों को भी यह भेड़िया दिख रहा है या आदमी दिख रहा है "
    अर्जुन – " भेड़िया हो या आदमी समझने का वक्त नहीं! भागो हमें अपनी जान बचाने है !!!"

    वे पूरी ताकत से भागने लगे। लेकिन भेड़िया उनसे कई गुना तेज़ था। उसकी भारी साँसें और ज़मीन पर उसके नाखूनों की खरोंच — दोनों, उनकी रूह तक हिला रहे थे।
    उसकी दौड़ने की आवाज पंजू की आवाज से पूरा जंगल चरमरा रहा था। ऐसा लग रहा था की धरती कांप रही है भूकंप आने वाला है....

    प्रिया (भागते हुए) – "कोई है! प्लीज़ हमें बचाओ!!!"

    अर्जुन – "इस जंगल में कोई नहीं आएगा! अपनी जान खुद बचानी होगी!"
    करण :- हां हमें कोई नहीं बचाने वाला हमें अपनी रक्षा खुद ही करनी होगी बस भागते जो बिल्कुल मत रुकना....

    अचानक, करण पीछे मुड़कर देख रहा था और उसका पैर एक बड़े पत्थर से टकरा गया।
    धप्प!!!
    वह ज़मीन पर गिर पड़ा।

    रोहन – "करण! उठो!"
    लेकिन इससे पहले कि वे उसे उठा पाते…

    भेड़िया उस पर झपट पड़ा और अपने तेज़ दाँत उसके हाथ में गड़ा दिए।

    करण – "आआआह्ह्ह!!!" (दर्द से चीख)

    खून बहने लगा। अर्जुन ने चारों ओर देखा और एक मोटी लकड़ी उठाकर पूरी ताकत से भेड़िए की आँख पर मारी।

    धाड़!!!
    भेड़िया पीछे हट गया, जोर से गुर्राया, और करण की पकड़ ढीली हो गई ।

    अर्जुन – "दूर हो जा, कमीने! मेरे दोस्तों से दूर रहो"

    अर्जुन ने करण के घाव पर अनुष्का की चुन्नी बाँधी, खून रोकने की कोशिश की, और सबको फिर दौड़ने का इशारा किया।

    वे फिर से दौड़ पड़े… लेकिन भेड़िया एक बार फिर उठ खड़ा हुआ और और भी गुस्से में जोर से दहाड़ा और उनका पीछा करने लगा।

    बारिश अब तेज़ हो चुकी थी। कीचड़ से पैर फिसल रहे थे। ऊपर बिजली की चमक के साथ आसमान गरज रहा था, जैसे खुद प्रकृति भी इस रात से डर रही हो।

    आगे एक पहाड़ी थी। वे चढ़ते गए… लेकिन चोटी पर पहुँचकर देखा — सामने सिर्फ़ गहरी खाई।

    प्रिया – "ये… रास्ता खत्म हो गया!"
    रोहन – "हमें वापस जाना होगा—"

    वे पलटे… और भेड़िया वहाँ खड़ा था।
    लाल आँखें, खून से सना मुँह, और गुर्राहट इतनी गहरी कि उनके दिल की धड़कनें उसके साथ ताल मिला रही थीं।

    करण (कमज़ोर आवाज़ में) – "अब… क्या करें?"
    अनुष्का :- मुझे लगता है अब हमें कोई नहीं बचा सकता यह भेड़िया हमें अपना शिकार बना कर रहेगा।

    पीछे खाई… आगे भेड़िया…
    एक कदम इधर या उधर, और मौत उनका इंतज़ार कर रही थी।

    बारिश और तेज़ हो गई, हवा चीख रही थी, और बिजली की चमक में भेड़िया का विशाल साया खाई के किनारे उन्हें घेर रहा था। बिजली की चमक से वह भेड़िया इतना डरावना दिख रहा था कि वह सब लोग कांप रहे थे उन लोगों को लग रहा था कि अब वह नहीं बचेंगे तुमने अपनी आंखें कस के बंद कर ली और भगवान को याद करने लगे
    की तभी .....

  • 7. रक्षक - Chapter 7

    Words: 1024

    Estimated Reading Time: 7 min

    वे सभी आंखें बंद कर लेते हैं।

    अनुष्का - अब हमारा आखरी समय आ गया है हम तो मरने वाले हैं। अनुष्का यह बात बहुत डरते हुए बोलती है

    प्रिया :- तुम सही कह रही हो मेरा इतना सारा खान जो मे लेकर आई थी हम खा ही नहीं पाए मैं बिना खाना मर जाऊंगी। जोर-जोर से रोने लगती है

    रोहन :- प्रिया तुम्हें अभी भी मजाक सोच रहा है। तुम जानती हो क्या सिचुएशन है हमारे सामने

    प्रिया :- हां हाँ पता है पर तुम बताओ मैं क्या करूं मेरा खाना

    और जोर-जोर से रोने लगती है

    अर्जुन :-चुप हो जो तुम सब भेड़िया हमारी तरफ चलते हुए आ रहा है

    वह सब लोग अपनी आंखें बंद कर लेते हैं

    फिर एकदम शांति छा जाती है और मध्यम हवा बहने की आवाज चलती रहती है वह लोग सो 5 मिनट तक वैसे ही खड़े रहते

    करण :-धीरे से बोलता है हम पर भेड़िये ने हमला नहीं किया क्या

    रोहन :- हां लग तो ऐसा ही रहा है हम अभी जिंदा है।

    धीरे से सब अपनी आँखे खोलते हैं। जब वे सामने देखते हैं, तो उन्हें एक अद्भुत दृश्य दिखाई देता है।

    प्रिया :-( पूछती है) "क्या मैं स्वर्ग में पहुंच गई हूं?" क्या हम सभी मर गए? क्या हो रहा है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।

    " हां शायद पर मैं इतनी जल्दी नहीं मरना चाहता था अभी तुम्हारी शादी भी नहीं हुई ," रोहन कहता है। "मुझे नहीं लगता कि यह स्वर्ग है। लेकिन यह जगह बहुत सुंदर है।"

    अनुष्का :- कहती है, "मैं समझ नहीं पा रही हूं कि यह क्या हो रहा है। "

    करण :- कहता है, "नहीं, हमें नहीं लगता कि हम मर गए हैं। लेकिन यह जगह बहुत अजीब है।"

    तभी अर्जुन कहता है, "अरे, सामने देखो।"

    वे सभी सामने देखते हैं और उन्हें एक अद्भुत दृश्य दिखाई देता है।  काले भेड़िया उनके बीच में एक सफेद भेड़िया खड़ा है। सफेद भेड़िये की आंखें नीली बड़ी बड़ी हैं और वह बहुत सुंदर लग रहा है। उस का पुरे शरीर सफेद ओर सुनहरे बालो का बना था। बहुत सुंदर दिख रहा था उसके आसपास पॉजिटिव एनर्जी आ रही थी।

    "वाह," प्रिया कहती है। "यह सफेद भेड़िया बहुत सुंदर है।"

    "हां," रोहन कहता है। "यह बहुत अद्भुत है।" मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा।

    काले भेड़ियों में  जिसका नाम वेदा है, आगे बढ़ता है और सफेद भेड़िये की ओर देखकर उसको अपने आगे के दोनों पैरों सर झुका के प्रणाम करता है  वेदा की आंखों में एक अजीब सी भावना है, जैसे कि वह सफेद भेड़िये का सम्मान कर रहा हो। साथ ही साथी शयद वो नाराज भी लग रही था जैसे उसे पसंद नहीं आया हो उन मनुष्य और उस के बीच में सफेद भेड़िया का खड़ा हो गया। थोड़ा नाराज भी लग रहा था।

    ---

    "यह क्या है?" अनुष्का पूछती है। "क्या यह सफेद भेड़िया किसी तरह का राजा है?" और काला भेड़िय उसका शायद सम्मान कर रहा है

    करण :- कहता है, "मुझे नहीं पता, लेकिन यह बहुत दिलचस्प है।"

    काला भेड़िया (वेदा) :- गुर्राता है और कहता है, "मैं उनको मारूंगा। वह मनुष्य है और उन्हें इसके लिए कीमत चुकानी होगी।"

    सफेद भेड़िया(युवराज) :- वेदा, शांति हो जाओ, "नहीं, तुम उनको नहीं मारोगे। उन्होंने जंगल का कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है।" और वह अच्छे इंसान है अगर ये सब मुझे देख सकते हैं तो तुम समझ सकते हो कि वह अच्छे इंसान।

    काला भेड़िये :- ( वेदा) कहता है, "लेकिन उन्होंने हमारे इलाके में आकर हंगामा किया है। उन्हें इसके लिए सजा मिलनी चाहिए।" वैसे भी मनुष्य जाति का कोई भरोसा नहीं कब क्या कर जाए।

    सफेद भेड़िये :- ( युवराज) कहता है, "हमारे बीच में संधि हुई थी कि हम लोगों को डराएंगे और धमकाएंगे ताकि वे जंगल को आकर खराब न करें। लेकिन किसी को मारेंगे नहीं, और वह भी उन लोगों को तो बिलकुल भी जो जंगल को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं।"

    काला भड़िया (वेदा)  :- गुर्राता है, "लेकिन मैं कहता हूं कि उन्होंने जंगल को नुकसान पहुंचाया है। उन्हें इसके लिए कीमत चुकानी होगी।"

    सफेद भेड़िया (युवराज) :- शांति से कहता है, "मैं तुम्हारी बात समझता हूं, वेदा। लेकिन हमें अपने नियमों का पालन करना होगा। हमें इन लोगों को नहीं मारना है।"

    वेदा कहता है :- "तो फिर हमें क्या करना चाहिए? उन्हें जाने देना चाहिए?"

    युवराज कहता है, :- "हां, हमें उन्हें जाने देना चाहिए। लेकिन पहले मुझे यह देखना होगा कि लोग मेरे को देख कैसे सकते हैं तुम जानते हो कोई भी मनुष्य मुझे नहीं देख सकता और उनके चेहरे से लग रहा है कि यह मुझे देख सकते है" यह बात की युवराज में अपनी भाषा में बोली ताकि रोहन और उसके दोस्तों को ये बात ना समझ सके।

    वेदा :- तो क्या आप हम इन लोगों को हमारे जंगल में लेकर जाओगे। अपने वहां नहीं ले जा सकते कि हमारा कानून के खिलाफ है कोई भी मनुष्य उसे उसे जगह पर नहीं जा सकता।

    युवराज :- वेदा मैं जानता हूं लेकिन यह लोग मुझे दिख सकते हैं मतलब यह बहुत बड़ी बात है मैं इनको भी गुफा में लेकर जा रहा हूं इसे दोस्ती करूंगा और पता लगाने की कोशिश करूंगा कि यह लोग मुझे देख सकते हैं तो इनका कहीं कोई संबंध तो नहीं है हम लोगों के साथ में या फिर यह हमारी उस दिव्या पुस्तक तक पहुंचने में मदद करेंगे क्या.....

    वेदं :- युवराज को प्रणाम करता है और कहता है जैसी आपकी इच्छा पर मैं आपके आसपास ही रहूंगा मुझे इन मनुष्यों पर बिल्कुल विश्वास नहीं है।

    युवराज :- जैसी तुम्हारी इच्छा तो मेरी बात मानोगे तो नहीं

    युवराज और वेद के बीच में बातचीत जारी रहती है, और वे दोनों अपने निर्णय पर पहुंचने की कोशिश करते हैं। और उनकी बातें इंसानों के जैसी थी और पांचों दोस्त उनकी बातों को समझ रहे थे लोगों को समझ में नहीं आ रहा तो वह किस बारे में बात कर रहे थे पर समझने की कोशिश कर रहे थे कुछ समझ आ रहा था कुछ उनके ऊपर से जा रहा था कि आज के जमाने में भी ऐसा कुछ होता है जिनके पल्ले नहीं पड़ रहा था

    बने रहिए साथ में मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टर में

    अब आगे क्या.........

  • 8. हम दोस्तों हैं- Chapter 8

    Words: 1021

    Estimated Reading Time: 7 min

    वेद युवराज को प्रणाम करके और मुड़ के जंगल में चला जाता है

    यह सारा नजारा सब लोग अपने आंखों से दिखते हैं

    प्रिया - क्या आप सफेद भेड़िया हम लोगों को खा जाएगा पता नहीं यहां क्या-क्या हो रहा है हमको बहुत भूख लगी है और लोग मुझे ही खाने को रेडी है मैं क्या करूं?

    अनुष्का - प्रिया चुप कर तेरे को खाने का सिवा कुछ और नहीं दिखता है क्या

    अनुष्का की बात की प्रिया मुंह बना लेती है

    रोहन - सभी लोग दौड़ने के लिए भागने के लिया तैयार रहना पता नहीं यह सफेद बढ़िया हमारी मदद करेगा या हमें का जाएगा।

    अर्जुन - मुझे लगता है अब हम सुरक्षित है।

    करण - हां अर्जुन मुझे भी यही लगता है। चलो देखते हैं क्या होता है।

    वह सभी लोग आपस में बात कर रहे थे इतने में सफेद भेड़िया युवराज उनकी तरफ मुड़ता है।

    युवराज -आप सभी लोग कौन है और अपना परिचय मुझे दीजिए। और विश्वास कीजिए मैं आप सभी लोगों को यह जंगल से बाहर सुरक्षित छोडूंगा।

    प्रिया कुछ बोलने के लिए मुंह खोल की करूं उसको चुप कर देता है

    कारण - हम तुम्हें अपना परिचय दे पर क्या गारंटी है कि तुम हमको सुरक्षित थी जंगल से बाहर छोड़ोगे।

    युवराज- आपको मेरे ऊपर विश्वास करने के अलावा आपके पास कोई और रास्ता नहीं है।

    अर्जुन -सभी का परिचय देता है।

    युवराज - ( इन लोगों की बातों से तो मुझे कुछ विशेष नजर नहीं आ रहा मन में सोते हुए )चलिए मैं आप सभी लोगों को जंगल की सैर करता हूं। और फिर आपको सुरक्षित जंगल के बाहर छोड़ दूंगा।

    प्रिया -पर क्या पहले हमें कुछ खाने को मिल सकता है मुझे बहुत भूख लगी है ऐसा लग रहा है मैं भूखे मारे मर जाऊंगी।

    युवराज -जी चलिए मैं आपको जंगल के एक बहुत ही खूबसूरत स्थान पर ले जाता हूं जहां आपको बहुत मीठे फल खाने को मिलेंगे।

    अर्जुन - नहीं पहले आप हम में वहां ले चलिए जहां हमारा कैंप लगा हुआ है वहां से हमारे पास में दवाइयां है जो कि

    कारण के हाथ में लगाने के लिए बहुत जरूरी है उसके बाद ही हम कहीं निकल पाएंगे कारण को बहुत तकलीफ है उसका बाद खून बह गया है।

    युवराज (करण का घाव दिखता है) आप मेरे साथ चलिए मैं आपको औषधि भी लगा दूंगा जिससे आपको दर्द भी काम होगा और खून भी नहीं बहेगा आपकी लाई हुई दवा कुछ काम नहीं आएंगे इस जख्म पर।

    सभी लोग एक साथ मुंह में हिलाते कहलाते हैं ठीक है हम चलते हैं।

    युवराज आप सभी लोग मेरे पीठ पर बैठ जाएंगे ताकि हम जल्दी पहुंच सके और सब लोग कस के पकड़ लीजिएगा ताकि गिरे ना।

    अनुष्का- क्या हम पांच लोग आपके ऊपर बैठ सकते हैं मेरे कहने मतलब है कि हम हमारा इतना वजन और आप.....

    युवराज - आप चिंता मत कीजिए बस आप सब मेरे ऊपर सवार हो जाइए।

    वह सभी लोग युवराज के ऊपर बैठते हैं सबसे आगे अर्जुन और सबसे पीछे रोहन उसके बीच में कारण अनुष्का और प्रिया बैठे हैं।

    युवराज - सभी लोग कस के पकड़ लीजिए अब हम मैं आपको ले चलूंगा जंगल के अद्भुत नजारे दिखाने

    सभी लोग युवराज को युवराज के बड़े-बड़े बालों को कस के पकड़ लेते हैं और फिर युवराज जोर से आवाज गर्जना करता हुए दौड़ने लगता है।

    सभी लोग आसपास का नजारा देखकर एकदम आश्चर्यचकित हो जाते हैं बड़े-बड़े झाड़ एक साइड बहती हुई नदी जिसका स्वच्छ पानी उगता हुआ सूरज उदय की सुबह की लाली पंछियों की की आवाज़ चारों तरफ हरियाली घास रंग बिरंगी फूल बहुत ही मनोरम में दृश्य था सभी का मन प्रफुल्लित हो गया था रात के इतने भयावन दृश्य के बाद में जंगल इतना सुंदर भी लग सकता है यह लोगों ने सोचा नहीं था।

    करीब 10 मिनट दौड़ने के बाद में युवराज एक जगह पर रुकता है और सभी को नीचे उतरने का बोलता हैं।

    वह सभी लोग नीचे उतरते हैं और आसपास देखते हैं तो यहां पर बहुत अलग-अलग तरीके के अलग-अलग रंग-बिरंगे झाड़ लगे हुए थे इस युवराज एक झाड की पत्तियों को तोड़कर लाता है और करण के हाथ और कंधे पर लगता है दिखते ही दिखते 5 मिनट के अंदर कारण का पूरा घाव भर जाता है और उसकी स्किन पहले के जैसी हो जाती है।

    सभी लोग वह देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं।

    इतने में ही अर्जुन बोलता है क्या इस औषधि का नाम दर्द निवारक है क्या?

    युवराज हां तुम्हें कैसे पता?

    अर्जुन- क्योंकि यह औषधि हमारे बगीचे में है और मुझे जब भी चोट लगती है तो मां इसकी एक पत्ती तोड़कर लगा देती है। और मेरा घाव जल्द ही भर जाता है।

    युवराज - तुम्हारी मां का नाम क्या है?

    प्रिया- तुम इसकी मां का नाम बाद में पूछ लेना पहले मुझे कुछ खाने को भी दे दो और अपने पेट पर हाथ रखकर बोलती है मुझे बहुत जोर की भूख लगी हुई है।

    युवराज - हा हा हा ..... चलो वापस मेरी पीठ पर सवार हो जाओ अब मैं तुम्हें फलों के बगीचे में ले चलता हूं।

    फिर एक बार वह लोग सब उसके पीठ पर सवार होके जंगल की सैर करने लगते हैं।

    करीब 5 मिनट बाद में वह लोग एक बगीचे के अंदर आकर रुकते हैं जहां बहुत सुंदर झाड़ और बहुत सारे फल लगे हुए थे। सभी इतने नीचे लगे हुए थे कि छोटा बच्चा भी उनको पकड़ तोड़कर खा सकता है ये देखकर तो प्रिया बहुत खुश हो गई।

    प्रिया - डांस करने लगी अरे वह क्या बात है यहां तो बहुत सारे फल लगे हुए हैं समझ ही नहीं आ रहा क्या।

    करण - चलो कम से कम तू कुछ तो देख कर खुश हुई।

    युवराज - चलिए हम आपको बहुत मीठे-मीठे फल बताते हैं और तोड़ कर लाते हैं आप आराम से बैठकर यहां पर खाये।

    सभी लोग वहां पर बैठकर फलों का आनंद लेते हैं।

    वहीं युवराज कुछ चिंतन में था उसे समझ में नहीं आ रहा क्या किया जाए आगे फिर एकदम से उसे कुछ याद आया और वह आंखें बंद करके कुछ मन में बोलने लगा........

    आगे कहानी में क्या होगा इसके लिए जुड़े रहिए

    मेरे साथ

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  • 9. अब क्या - Chapter 9

    Words: 1053

    Estimated Reading Time: 7 min

    युवराज आंखें बंद करके आवाज लगता है मन ही मन में गुरुदेव आचार्य आनंद गुरुदेव आचार्य आनंद क्या आप मुझे सुन सकते हैं

    कहीं बहुत दूर घने जंगलों में ऊंचे ऊंचे पहाड़ है वहां की पहाड़ की एक छोटी के ऊपर एक दिव्या इंसान सफेद वस्त्र धारण करके बैठा हुआ है उसकी सफेद लंबी दाढ़ी है बड़े-बड़े बाल है कुछ बालों को उसमें कर के ऊपर जटाओं के रूप में धारण करके रखा हुआ है हाथों में रुद्राक्ष की माला है माथे पर बड़ा लाल टीका है आंखें बंद करके ध्यान में ली है चारों तरफ एकदम शांति है शीतल हवा बह रही है एकदम बहुत ही अद्भुत नजारा है एक तरफ से बहुत ऊंचा से झरना बह रहा है उसकी मध्य ध्वनि पंछियों की काश मधुर गीत वहां पर गुरु आचार्य आनंद ध्यान में बैठे हुए हैं।

    तभी उन्हें युवराज की आवाज सुनाई देती है।

    आचार्य आनंद आज हमें युवराज ने कैसे याद किया लगता है वह किसी कठिन समस्या से जूझ रहे हैं हमें उनकी समस्या का समाधान करने के लिए उनसे बात करनी चाहिए।

    गुरु आचार्य आनंद - युवराज कहिए कैसे याद किया?

    युवराज- प्रणाम महागुरु आनंद आचार्य....

    महागुरु - यशस्वी भव.. कहिए

    युवराज - आप तो हमारी समस्या से भली भांति परिचित है महागुरु

    महागुरु- हां बस उसी का समाधान खोज रहे हैं जैसे ही हमारी साधना पूरी होती है हम विश्व के महागुरु वेशवाचार्य से बात कर सकेंगे और वह हमारी समस्या का समाधान जरूर निकालेंगे। अभी आपने हमें कैसे याद किया।

    युवराज - एक नई समस्या आई है जंगल में

    महागुरु - विस्तार से बताएं

    युवराज - अर्जुन और उसके चारों दोस्तों के बारे में महागुरु को सब बताते हैं।

    महागुरु - आप जानते हैं ना युवराज अगर किसी मनुष्य ने आपको देखा है इसका क्या अर्थ है।

    युवराज- मैं समझता हूं कि पर अगर वैसे मुझे देख सकते हैं इसका मतलब है कि वह हमारे आने वाले भविष्य में उनका बहुत अहम किरदार होने वाला है।

    महागुरु - समस्या क्या है?

    युवराज - क्या मैं इन्हें अपने क्षेत्र में ले जाओ या ना ले जाऊं क्या यह हमारे सहयोगी होंगे या विपक्ष में काम करेंगे इसी बारे में विचार विमर्श करने के लिए आपसे सहयोग चाहता हूं।

    महागुरु - यह तो बड़ी विषम परिस्थिति है कि यह हमारे पक्ष में होगी या विपक्ष में क्या तुम्हें इनमें से किसी से नेगेटिव वाइब्रेशन आती है। या कुछ ऐसा है जो तुमको नकारात्मक लग रहा हो।

    युवराज- नेगेटिव वाइब्रेशन तो कुछ नहीं आ रही है मेरे को एक पॉजिटिविटी ही आ रही है और जिसमें अर्जुन का हमारे औषधि के बारे में पता होना यह एक पॉजिटिव साइन है

    महागुरु (कुछ मिनट विचार करने के बाद) युवराज अगर तुम्हें इसे कुछ भी नकारात्मक नहीं लग रहा है तो तुम अपने हाथ सीधे हाथ के पंजे को अर्जुन के दिल पर रखकर उसे हमारा क्या संबंध है या भूतकाल में वह किसी तरह से हमारे से जुड़ा हुआ है यह पता कर सकते हो पर इतना याद रखना कि तुम जबरदस्ती नहीं कर सकते।

    युवराज -धन्यवाद महागुरु शायद इससे हमारे कुछ समस्या लग जाए प्रणाम महागुरु

    इसके बाद महागुरु की आवाज युवराज को सुनाई नहीं देती

    युवराज अपनी आंखें खुलना है तो दिखता है अर्जुन और उसके ४ दोस्त उसको घर के देख रहे हैं।

    युवराज (थोड़ा सा हड़बड़ा जाता है ) आप सब मुझे ऐसे क्यों देख रहे हैं?

    प्रिया - क्या तुम सो गए थे हम सब को सवारी करते-करते तुम थक गए।

    अनुष्का - अगर तुम्हारा आराम हो गया हो तो तुम हमें जंगल के बाहर छोड़ आओगे हमें यहां से रास्ता नहीं समझ में आ रहा है।

    युवराज (जल्दी से खड़ा होता है) नहीं नहीं आप सब लोग कहीं नहीं जा सकते।

    रोहन (थोड़ा सा कंफ्यूज हो जाता हैं )क्यों क्यों नहीं जा सकते हम अगर तुम हमें बाहर तक नहीं छोड़ सकते तो हम अपना रास्ता खुद ढूंढ लेंगे।

    अर्जुन - तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद हमारी मदद करने के लिए पर अब हमें लगता है कि हमें यहां से चलना चाहिए।

    करण - हां अब हमें चलना चाहिए चलो चलते हैं।

    युवराज - नहीं अभी रुको अभी तो मैं तुम्हें जंगल की सैर नहीं कराई है कि जंगल बहुत ही सुंदर है मैं तुमको जंगल की सैर करता हूं और मैं तुम्हारे साथ हूं तो तुम्हें बिल्कुल भी तकलीफ नहीं होगी।

    करण - बात तो तुम्हारी सही है पर यह जंगल सुंदर होने के साथ बहुत भयानक है रात होने से पहले हम इस जंगल से बाहर निकल जाना चाहते हैं।

    रोहन - हां कारण सही बोल रहा है रात होने के पहले हमें सड़क तक पहुंच जाना चाहिए।

    युवराज - आप लोग चिंता मत करो शाम तक के मैं तुम्हें जंगल के बाहर सड़क तक पहुंचा दूंगा पर हम दोस्त है ना तो मैं तुम्हें जंगल की सैर करना चाहता हूं।

    प्रिया - हम कब दोस्त हो गए।

    युवराज- हां आप सही कह रही है हम अभी दोस्त नहीं है मैं आप सभी से दोस्ती का हाथ बढ़ाता हूं क्या आप सभी मेरे दोस्त बनेंगे।

    वह सभी लोग एक दूसरे को देखते हैं और फिर अर्जुन अपना हाथ बढ़ाता है

    अर्जुन - हां युवराज हम दोस्त बन सकते हैं तुमने हमारी बहुत मदद की है।

    प्रिया- हां तुमने बहुत अच्छे और मीठे फल खिलाए अगर हम जंगल की सैर करोगे तो और अच्छे फल खाने को मिलेंगे क्या

    अनुष्का - प्रिया तेरा कुछ नहीं हो सकता किसी ने तेरे को कुछ खाने को दिया तो उसको अपना दोस्त बना लेंगे

    प्रिया- हा हा हा पर इतनी हमारी मदद भी बहुत की है।

    रोहन - बात तो तुम्हारी सही है चलो आज से हम दोस्त हुए तुम अपना नाम बताओ कि हमें

    युवराज - हां मेरा नाम युवराज है आप सभी लोग भी अपने बारे में बताइए ना।

    अर्जुन -( अपने मन में कुछ सोचते हुए ) युवराज हो क्या तुम और वह काला जो भेड़िया था वह भी तुम्हारे आगे झुक गया था। तुम हमारे दोस्त बनोगे तो पहले अपने बारे में बताओ फिर हम हमारे बारे में बताएंगे।

    युवराज - जो कल आपको काला भेड़िया मिला उसका नाम वेदा है और मैं भेडियोका सरदार हूं अब तो आपको मुझ पर विश्वास हो गया होगा। हम लोग यहां पर जंगल की सुरक्षा के लिए हमेशा तात्पर्य रहते हैं।

    कल होगा हमारे दोस्तों का परिचय तब पता चलेंगे आगे के राज तो बने रहिए इस कहानी के साथ.......

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  • 10. मां-बाप की परेशानी 10

    Words: 1019

    Estimated Reading Time: 7 min

    अर्जुन के घर

    अर्जुन के माँ ( लीला)- क्या आपकी बात हुई अर्जुन से उसका फोन आया क्या मैं फोन लगा रही हूं तो उसका फोन लग नहीं रहा है दो दिन हो गया मेरी उससे बात नहीं हुई।

    अर्जुन के पापा ( विवेक) - नहीं, मेरी कोई बात नहीं हुई है पर वह लोग ट्रैकिंग के लिए गए हैं। वहां नेटवर्क नहीं मिल रहा होगा इसलिए तुम्हारा फोन नहीं लग रहा है। चिंता मत करो बच्चे मजे कर रहे होंगे।

    अर्जुन की मां - आप तो जानते ही हैं,सब वह जंगल कैसा है मेरा बिल्कुल मन नहीं था।वह अर्जुन को भेजने का पर आपकी वजह से मैंने उसको वहां भेजा है। अगर मेरे बच्चे को कुछ भी हुआ तो मैं आपसे कभी बात नहीं करूंगी।

    अर्जुन के पापा - आप चिंता मत करो उस साल उसे बात को बहुत साल हो गए हैं,कुछ नहीं होगा अर्जुन को।

    अर्जुन की मां - आप एक बार रोहन के पापा को फोन लगा कर पूछे उनकी बात हुई क्या। अर्जुन नहीं है तो घर बहुत खाली खाली लग रहा है।

    अर्जुन के पापा - आप चिंता करके अपना बीपी मत बढ़ाओ। मैं अभी रोहन के पापा से बात करता हूं। उनकी बात हुई क्या बच्चों से।

    अर्जुन के पापा अपने फोन से रोहन के पापा को फोन लगाते हैं

    रोहन के पापा (नमन) - हेलो हां बोलिए विवेक जी क्या हाल-चाल।

    विवेक - नमन सब बढ़िया तुम सुनाओ क्या तुम्हारी बच्चों से बात हुई मेरा फोन नहीं लग रहा है। लीला जी को भी बहुत टेंशन हो रही है कि बच्चों से बात नहीं हुई।

    नमन- नहीं विवेक मेरी बच्चों से तो कोई बात नहीं हुई है यहां भी वही हाल है। रमा का मन ही नहीं लग रहा है। बच्चों से बात नहीं हुई तो वह भी बहुत परेशान है।

    विवेक- चलो फिर ठीक है तुम्हारी बात होगी तो बताना।

    नमन - हां ठीक है वैसे मैं राहुल अनुष्का और प्रिया के पापा से भी बात करिए लोगों की भी बच्चों से बात नहीं हुई है। शाम तक देखते हैं।नहीं तो फिर सोचते हैं क्या करना है।

    विवेक- चलो ठीक है एक काम करो सबके पेरेंट्स को बोल देते हैं शाम को मिलते हैं सब बगीचे में फिर दिखते हैं क्या करना है।

    विवेक- चलो ठीक है फिर।

    जंगल में

    युवराज की बात सुनकर सारे दोस्त कुछ देर तक के सोचते हैं।

    रोहन- चलो ठीक है हम तुमसे दोस्ती कर लेते हैं पर पहले तुम हमें जंगल घुमाओ। मैंने सुना है यहां की नदी बहुत बड़ी और गहरी है पानी बहुत साफ है। हमें वह नदी भी देखनी है

    अर्जुन- हां यह बात सही है आज से हम दोस्त हुए क्या तुम हमें जंगल की सैर सर करोगे मुझे सूर्य उदय और सूर्यास्त दोनों देखना है।क्या यहां पर कुछ ऐसा पॉइंट है जहां पर हमने देख सकते हैं।

    युवराज - खुश होकर हां हां हमारे जंगल में बहुत ही सुंदर सूर्योदय होता है और सूर्य अस्त की तो बात ही एकदम निराली है तो फिक्र मत करो मैं तुम सबको दिखाऊंगा।

    प्रिया- फिर तुम बहुत मजा आएगा और ऐसे ही मीठे-मीठे फल और खिलाओगे।

    अनुष्का- प्रिया तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता चलो अब हम लोग जंगल की सैर करके जाएंगे मुझे तो लगा था कल रात के बाद हमको जंगल घूमने को नहीं मिलेगा मुझे जंगली बहुत पसंद है। और यहां पर बहुत सुंदर और रंग-बिरंगे फूलों से भारी कुछ जगह हो तुम वह भी हमें दिखाना मुझे फूल बहुत पसंद है।

    करण - चलो हम सब तुम्हारी सवारी करते हैं। यह जंगल बहुत घना है और यहां की जो पेड़ है वह बहुत ऊंचे और पुराने हैं ऐसा हमने सुना है क्या तुम हमें वहां भी ले चलोगे मैंने तो यह भी सुना है कि यहां पर एक पेड़ ऐसा है जो 4000 साल पुराना है । तुम हमें यह सभी जगह घूमना और हम रास्ते में ही अपना परिचय भी देते जाएंगे। क्यूंकि मेरे ओर देर नहीं रुक सकता ये सब देखने के लिए।

    युवराज- हाँ हाँ क्यों नहीं आप जो जो जगह बोलेंगे मैं आप सब लोगों को वह सब जगह की सैर करूंगा। पर इतना सब शेयर करने के लिए आपको दो-तीन दिन तो इस जंगल में रहना ही होगा यह जंगल इतना बड़ा है कि एक दिन में आप सब लोगों की पसंद की जगह नहीं जाया जा सकता।

    अर्जुन- कोई बात नहीं हम दो दिन और रुक जाएंगे वैसे भी हम ट्रैकिंग के लिए 4 दिन के लिए आए थे।

    प्रिया - वह सब तो ठीक है अर्जुन पर हमारे पास हमारे फोन नहीं है हमारे पेरेंट्स परेशान हो रहे होंगे।

    अनुष्का - हां इस बारे में तो हमने सोचा ही नहीं हम इतने दिन रुकेंगे तो हमारे पेरेंट्स तो और परेशान हो जाएंगे और फोन भी नहीं है कि हम उनको इन्फॉर्म कर दे कि हम सब ठीक।

    कारण - एक काम करते हैं जहां हमने गया था पहले वहां चलते हैं अपना सामान लेते हैं और फोन में अगर नेटवर्क है तो अपने पेरेंट्स को फोन लगा कर बता देते हैं कि हम लोग ठीक है।

    रोहन- हां कारण तुम्हारा यह आइडिया सही है से हम लोग अपने पसंद की जगह भी घूम लेंगे और हमारे पेरेंट्स भी परेशान नहीं हो होंगे।

    अर्जुन -युवराज पहले तुम हमें उसे पहाड़ी पर ले सकते हो क्या जहां हमने टेंट लगाया था।हमें तो पता ही नहीं है वहां का रास्ता कहां है।

    युवराज- आप चिंता मत करें मैं आपको वहां ले चलता हूं। आप सभी लोग मेरे पीठ पर सवार हो जाए और जोर से पकड़ ले।

    सब लोग युवराज के पीठ पर सवार हो जाते हैं सबसे आगे अर्जुन रहता है फिर रोहन बीच में दोनों लड़कियां और फिर कारण और निकल पड़ते हैं एक बार वह सब फिर एक अनोखे और अद्भुत सफर पर आगे क्या होने वाला है इसके बारे में उनको भी नहीं पता क्या यह उनका सफर दो या तीन दिन में खत्म हो जाएगा या फिर.......

    मिलते हैं अगले भाग में मैं आपको कराएंगे हम जंगल की सैर और देखेंगे अद्भुत नजारा सूर्य अस्त का और शायद हमारी एक दोस्त का परिचय भी हो जाएगा उसमें.....

    तुम बने रहिए स्टोरी के साथ में

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  • 11. जंगल की सेर/ एक राज खुलाने को - Chapter 11

    Words: 1325

    Estimated Reading Time: 8 min

    सभी लोग युवराज के पीठ पर सवार हो गए । वह लोग फिर चले जहाँ उन्होंने कैंप लगाया था। इस बार उनका रास्ता कुछ अलग था।आसपास हरियाली और ज्यादा बढ़ गई थी बहुत घने और लंबे विशाल झाड़ पेड़ घुमावदार रास्ते से होता हुआ उनका रास्ता आगे बढ़ रहा था। शायद कहीं बारिश हुई थी, जिसकी खुशबू आ रही थी और......

    घने जंगलों में से छुप छुप के अलग-अलग ओर विचित्र तरह जानवर जो उन्हें देख रहे थे। और वह सभी लोग महसूस भी कर रहे थे, कि कोई उन्हें देख रहा है। सभी जानवर जंगलों में छुपे हुए थे इसलिए उन्हें दिख नहीं रहे थे। सिर्फ उनकी घूरती हुई निगाहे महसूस हो रही थी।

    अर्जुन :- मुझे ऐसा लग रहा है कि कोई हमें देख रहा है क्या सबको भी ऐसा लग रहा है?

    अनुष्का :- मुझे भी ऐसा महसूस हो रहा है, पर मैंने बोला नहीं मुझे लगा तुम सब लोग विश्वास करोगे या नहीं क्योंकि हमें दिखे तो कोई नहीं रहा है।

    करण :- पिछले दो दिन में हमारे साथ जो भी हो रहा है।अब कुछ भी नया होगा तो उसमें कोई आश्चर्य की बात तो नहीं होगी।

    उनकी बात सुनकर युवराज मन में सोचता है अभी तो तुमने कुछ नहीं देखा है जब तुम हमारे क्षेत्र में कदम रखोगे तो तुम विश्वास ही नहीं करोगी कि क्या सच है और क्या मिथ्या ?

    प्रिया अपनी पकड़ राहुल की कमर पर कश्ती है,और बोलती है यह तो कार से लॉन्ग ड्राइव में जाने से भी अच्छा हैं मैं बहुत खुश हूं......

    रोहन :- युवराज से युवराज क्या हम सब जो महसूस कर रहे हैं वह सच में है या हमारा बहम है?

    युवराज :- नहीं आपका कुछ भी महसूस कर रहे हैं। वह सच है कि लोग आपको देख रहे हैं पर वह लोग आपके सामने नहीं आएंगे।आप उन्हें लोग नहीं बोल सकते।आपकी नजरों में वह जानवर पशु पक्षी है। मेरे नजर में वह मेरे लोग हैं,पर आप लोग फिकर ना करें। सब लोग आपको कुछ नहीं करेंगे। उनके लिए एक अजूबा है, कि मैं अपने पीठ पर कुछ इंसानों को ले कर जंगल की सैर कर रहा हूं, और वह भी खुशी-खुशी, क्योंकि हम सब की नजरों में इंसान विश्वास के पात्र नहीं।

    अर्जुन :ऐसा क्या कर दिया इंसानों ने?

    युवराज :-आप तो अभी ही है धीरे-धीरे सब समझ जाएंगे

    अर्जुन :- बातों को गोल घूमना कोई तुमसे सीखे

    चलो वो छोड़ो यह बताओ । तुम हम पर विश्वास कैसे कर सकते हो? हम भी तो इंसान ही हैं।

    युवराज :- तुम्हें तुम्हारे सारे सवालों के जवाब धीरे-धीरे मिल जाएंगे वह कहते हैं ना इंसानों में सब्र का फल मीठा होता है

    रोहन :- तुम इंसानों के बारे में बहुत कुछ जानते हो

    युवराज :- हां मैं मैं इच्छाधारी भेड़िया हूं।जो मनुष्य का रूप भी धारण कर सकता हूं।और उनके बीच में जाकर रह भी सकता हूं।

    कारण :- क्या आज ऐसा कुछ होता है?

    युवराज :- आपके सामने हूं। आप विश्वास कर सकते हैं। आपने वेदा को इंसान से भेड़िए में बदलते हुए देखा ही है।

    प्रिया :- हां यह तो हम भूल गए थे। इसलिए कुछ घंटे में इतना कुछ हो गया है कि कुछ याद ही नहीं रहा।

    अनुष्का :- क्या बात है मतलब हम इच्छाधारी भेड़िए की सवारी कर रहे हैं।क्या इंसानों को खाते हो?

    युवराज :- हां..... सभी लोग डर जाते हैं।फिर युवराज बोलता है। सिर्फ वह इंसान जो जंगल को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।तुम लोग डरो नहीं मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा।

    शहर में

    शाम के समय सभी के पेरेंट्स लोग अर्जुन के घर एकत्रित हुए।

    (लीला जी ओर विवेक ) अर्जुन के माता-पिता

    ( नमन और पूजा) रोहन के माता-पिता

    ( विजय और लता) अनुष्का के माता-पिता

    ( सुनील और शीतल ) प्रिया के माता-पिता

    ( राज और वीणा ) कारण के माता - पिता

    लीला जी सभी से चाय और कॉफी का पूछता है, और सभी लेडिस रसोई में जाकर चाय नाश्ते का इंतजाम करती है।

    सभी जेंट्स हाल में बैठकर बच्चों के बारे में डिस्कशन करते हैं। बच्चों का अता-पता नहीं है। आगे क्या किया जाना चाहिए ?

    विवेक :- मुझे लगता है, हमें जंगल में जाकर बच्चों को ढूंढना चाहिए?

    नमन :- विवेक की बात सुनकर थोड़े से हड़बड़ा जाते हैं। और फिर कहते हैं,की सबको जाने की क्या जरूरत है। ऐसा करते हैं, कोई दो जा कर बच्चों को ले आयगे। और अभी तो बच्चों को गए 2 दिन ही हुए हैं। तो मुझे लगता है,हमें सुबह तक इंतजार करना चाहिए। और ऐसा कहते हुए वह अनुष्का के पिता को कुछ इशारा करते हैं आंखों से....

    उनका इशारा समझते ही

    विजय जी :-कहते हैं हां हां ऐसा करते हैं। मैं और नमन कल सुबह ही जंगल की ओर निकल जाते हैं। जो भी खबर वहां जाकर मिलेगी आप लोगों को फोन करके बताएंगे।और बच्चों को सुरक्षित ले आएंगे।

    सभी लेडी से चाय लेकर बाहर आ जाती है। सभी लोग चाय नाश्ता करते हैं। फिर डिसाइड होता है, कि दूसरे दिन नमन और विवेक बच्चों को ढूंढने के लिए जाएंगे अगर कल सुबह तक बच्चों का फोन नहीं आया तो । फिर वह सभी लोग अपने घर की ओर निकल जाते हैं।

    रोहन के घर

    पूजा :- नमन से आपको क्या लगता है, क्या वह लोग वहां पहुंच गए होंगे जहां उन्हें होना चाहिए था?

    नमन :- तुम चिंता मत करो तुम तो जानती हो यहां हमारी शक्तियां थोड़ी सी कमजोर हो जाती है। जैसे ही मैं जंगल के पास पहुंचूंगा मुझे पता लग जाएगा बच्चे कहां है, कैसे हैं। और मैं उन्हें सुरक्षित ले आऊंगा पर तुम भी जानती हो बच्चे वहां से जब तक नहीं आ सकते जब तक हमारा कार्य पूरा नहीं हो जाता।

    पूजा :- हां नमन तुम सही कह रहे हो अब वक्त आ गया है। बच्चों को अपनी हकीकत के बारे में पता हो जाना चाहिए। नमन क्या मैं भी तुम्हारे साथ चलूं ?

    नमन :- सोचा तो मैं भी यही रहा हूं। एक बार विजय से बात कर लेता हूं । अगर वह कहता है तो फिर तुम और लता भी चलना , लेकिन यह बात किसी को मत बताना खासकर लता और नमन को वह बहुत डरे हुए भी हैं। उन्हें हमारे बारे में कुछ नहीं पता है।

    अनुष्का के घर

    विजय :- लता कल सुबह ही मुझे निकलना होगा जंगल की ओर अब समय आ ही गया है कि बच्चों सब बताने का समय आ गया है। मुझे लगता है, तुम्हें भी हमारे साथ चलना चाहिए।एक बार मैं नमन से बात कर लेता हू।

    लता :- हां तुम सही कह रहे हो अब तो वक्त आ ही गया है। जिसका हमें बहुत समय से इंतजार थ।

    विजय नमन को फोन लगता है

    नमन :- हां....विजय बोलो मैं तुम्हें ही फोन लगाने वाला था।

    विजय :- मुझे लगता है, लता और पूजा को भी साथ ले चलना चाहिए। हमें वहां काफी समय लगने वाला है।

    और जितने लोग होंगे उतनी तक हमारे पास होगी क्योंकि हमें हमारे लक्ष्य बहुत बड़ा है। जीतनी शक्ति ओर लोग हमारे पास होगी उतना अच्छा है।

    नमन :- हां तुम मैं भी तुमसे यही बात करने के लिए फोन लगाने वाला था तुम तो जानते हो यहां हमारी शक्तियों काम ही नहीं करती है तो हमें इंसानों के जैसा व्यवहार करना पड़ता। अफसोस के साथ बोलता है।

    विजय :- ठीक है मैं फोन रखता हूं लेकिन हमें लीला और विवेक को भी समझाना पड़ेगा। उनसे क्या कहेंगे सोचा है क्या तुमने?

    नमन :- हाँ मैं सोच रहा हूं कि हम जंगल के करीब जाकर उससे फोन करके कह देंगे। बच्चे हमें मिल गए हैं। सभी सही सलामत है और बच्चे यहां कुछ दिन और ट्रैकिंग करना चाहते हैं।

    विजय :- नमन तुम सही कह रहे हो चलो ठीक है फिर कल सुबह मिलते हैं साथ में ही चलेंगे

    नमन :- चलो ठीक है फिर आज आराम कर लेते हैं कल से तो हमें अपने लक्ष्य की ओर एक कदम बढ़ाना है।

    मिलते हैं कल.......

    आप सभी को सॉरी में जल्दी-जल्दी चैप्टर नहीं दे पा रही हूं बच्चों के एग्जाम चालू है कोशिश करुंगी कि नेक्स्ट चैप्टर जल्दी आए

  • 12. एक नया दिन - Chapter 12

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    नमन के घर

    नमन :- पूजा क्या कर रही हो जल्दी-जल्दी करो हमें निकलना भी है। तुम तो ऐसे घर साफ कर रही हो जैसे हमें फिर वापस यहां आना है।

    पूजा :- बस आखरी बार एक बार इस घर को देख रही हूं। पता नहीं अब इस घर में आना होता है कि नही! बहुत से यादें जुड़ गई है। इस घर में तो मैं रोहन को भी जन्म दिया है। तुम तो सब जानते ही हो। अपनी आंखों से नमन की और दिखती है

    नमन :- हां पूजा इस घर में हमारी बहुत सी यादें हैं। पर तुम फ़िक्र मत करो जब भी हमेशा में मिलेगा हम यहां के अपनी अच्छी यादों को ताजा कर लेंगे।अभी हमें अपने लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए। उसके आंखों से आ रहे हैं आंसू को पोछा कर अपने गले लगा लेता हैं।

    पूजा :- चलो चलो हो गया। तुमको तो बस कहीं पर भी बस रोमांस सोचने लगता है। क्या तुमने विजय भैया से बात कर ली विजय और लता रेडी है ?

    नमन :- मेरी बात हो गई है वह लोग भी बस निकल ही रहे हैं। सब लोग सीधे विवेक के घर पहुंचेंगे हमें भी विवेक के घर निकालना है चलो चलते हैं।

    पूजा :- आज मैं बहुत खुश हूं कि आज हम बहुत सालों बाद अपने असली घर जा रहें हैं। पर दुख भी हो रहा है इस घर को छोड़ने का।

    विजय के घर

    विजय :- लता अब हमें निकालना ही चाहिए।

    लता :- हां बस आ ही रही हूं अच्छी यादें अपनी आंखों में समेट लो फिर यहां आने को मिलेगा नहीं।

    विजय :- ऐसी बातें क्यों बोल रही हो हम यहां जरूर आएंगे। छुट्टियां मनाने के लिए ही सही। चलो अब देर हो रही है। हम लोग निकालते हैं। यहां से हम सीधे जाएंगे अर्जुन के घर । फिर हम सब से मिलकर निकालते हैं।अपने नए सफर की ओर।
    सभी लोग अर्जुन के घर के लिए निकलते हैं उनके घर में ज्यादा दूध नहीं है 5-10 मिनट के अंतराल में एक दूसरे के घर हैं एक ही कॉलोनी के अंदर में रहते हैं सभी लोग
    ---
    अर्जुन के घर ---

    विवेक :- लीला सभी के लिए चाय रास्ते का इंतजाम हो गया। कुछ रह गया हो तो बता दो मैं अभी बाजार से ला देता हूं। सब आते ही होंगे । मेरा भी बहुत मन है जाने का, पर नमन उसका कहना है कि मैं उस पर विश्वास करता होगा तो साथ नहीं चलुगा। फिर माँ भी आ रही हैं। आज इसलिए इस के साथ नहीं जा रहा हुँ।

    लीला:- हां अच्छा आप नहीं जा रहें। अगर माँजी को पता चला की अर्जुन का कुछ पता नहीं चल रही तो वो अपनी तबियत ख़राब कर लेगी। मेर अकेले सब नहीं कर सकती।

    नमन भैया पर विश्वास है। वो अर्जुन को और बाकी सब बच्चों को सही सलामत वापस ले आएंगे। सभी का नास्ता रेडी हैं। कब तक आ रहें हैं सब?

    नमन :- गेट से ही भाभी हम लोग आ गए। आप के हाथ का गरम गगरम नास्ता करने।

    लीला जी :- नमस्ते भईया।

    सभी लोग मिल कर नास्ता करते हैं। फिर नमन पूजा - विजय ओर लता सब से मिल कर जंगल की ओर निकल जाते हैं।

    जंगल मे---

    सभी लोग युवराज की पीठ पर सवार होकर जंगल घूमते हुए आपस में बातचीत करते हुए आगे बढ़ रहे थे.....

    रोहन:- हमें यह जानवरों को क्यों नहीं देख सकते हैं?

    युवराज:- जब तक के जानवरों को तुम पर विश्वास नहीं हो जाता वह तुम्हें नहीं दिखेंगे। खैर.....

    छोड़ो चलो आगे चलते हैं। पहले हम पूरब की ओर चलते हैं वृंदा के पास जहां तुम्हारा समान है।

    वृंदा यह वृंदा कौन है?? अर्जुन ने कहा :-

    युवराज :- जिस पहाड़ी पर तुम लोगों ने अपना स्थाई निवास बनाया हुआ हैं। उसे पहाड़ी का नाम वृंदा है।

    प्रिया :- तो क्या यहां पर हर पहाड़ी,नदी, सबके नाम है?

    युवराज :- क्यों आपके यहां सब के नाम नहीं होते हैं क्या? हमारे अभी ऐसे ही सबके नाम है।

    प्रिया :- बात तो आपकी सही है युवराज... पर हम कितने समय में पहुंचेंगे मुझे बहुत भूख लग रही है।

    अनुष्का :- फिर से नहीं प्रिया कितना खाती हो तुम....

    प्रिया :- रोहन देखो ना इसको यह जब देखो जब मेरा खाना ही दिखती रहती है। इसको यह नहीं दिखता कि मैं 3 घंटे से कुछ नहीं खाया है ।अजीब से मुंह बनाने लगती है। और अपने पैर पर हाथ पेट आने लगती जैसे उसे बहुत तेज भूख लगी हो।

    रोहन :- प्रिया के बालों को सहलाते हुए अनुष्का तुम भी जानती हो क्यों परेशान कर रही हो उसको।

    अनुष्का :- हां हां मजाक कर रही हूं। मैं हम जैसी वृंदा पहाड़ी पर पहुंचेंगे सबसे पहले तुम मैगी खाना और चिप्स खाना तो तुम्हारा मन भर जाएगा। तभी तो तेरे को शांति मिलेगी

    प्रिया :- हां युवराज थोड़ा जल्दी चलो किसी को मेरी परवाह नहीं है। सिवाय रोहन के...

    अर्जुन :- युवराज हमें कितना समय लगेगा वहां तक पहुंचने में।

    युवराज :- बस कुछ ही पल में हम वहां पहुंच जाएंगे।

    कारण :- हां जल्दी चलो हमें घर पर अपने सभी को अपने-अपने माता-पिता से बात करनी है। सब परेशान हो रहे होंगे हमने कल सुबह से उनका फोन नहीं लगाया है 24 घंटे से ऊपर हो गए किसी की बात नहीं हुई है।

    अनुष्का :- हां सही बात है।चलो थोड़ा जल्दी चलो युवराज।

    युवराज :- आप सभी लोग मुझे कस के पकड़ लीजिए मैं वह बहुत तेज दौड़ने वाला हूं।

    सब लोग उस के बालों को जोर से पकड़ लेते हैं। युवराज चीते की तरह तेज दौड़ते हुए वृंदा पहाड़ी पर उनको ले जाता हैं। वहां जाकर वह दिखाते हैं। तो वहां का नजारा देखकर वह लोग सब लोग अचंभा में हो जाते हैं ? यह सब क्या हुआ? कैसे हुआ ? ऐसा नहीं होना चाहिए था। युवराज भी बहुत जगह देखकर एक पल के लिए तो आश्चर्यचकित हो जाता है कि यह सब किसने किया......

    तो दोस्तों आप सब लोग को क्या लगता है क्या हुआ होगा वहां पर जो भी होगा वह हम पता करेंगे अगले चैप्टर में तो तब तक bye

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  • 13. रहस्यमई दीवाल - Chapter 13

    Words: 1155

    Estimated Reading Time: 7 min

    स्थान – वृंदा पहाड़ी

    (सभी युवराज की पीठ पर सवार होकर तेज़ी से दौड़ते हुए वृंदा पहाड़ी पर पहुँचते हैं)

    रोहन (आश्चर्य से): अरे... यह जगह तो पूरी तरह बदल चुकी है!

    (सामने फैला एक सुनसान, बेजान-सा मैदान। पहले जहां फूलों से भरी घाटियाँ थीं, वहां अब बंजर ज़मीन और टूटी-फूटी झाड़ियाँ थीं। पक्षियों की चहचहाहट भी कहीं सुनाई नहीं दे रही थी। हवा में एक अजीब सी गंध और नीरवता फैली थी।)

    प्रिया (धीरे से): यह सब... इतना शांत क्यों है? और... ये हवा... कुछ अजीब-सी लग रही है ना?

    अनुष्का (चारों ओर देखकर): हां, जैसे कुछ गड़बड़ हो... यह वो जगह नहीं लग रही जहां हम हर बार आराम से डेरा डालते थे।

    अर्जुन: युवराज, तुमने कहा था हमारा सारा सामान यहीं रखा होगा... लेकिन यहां तो कुछ भी नहीं है।

    (युवराज चारों ओर घू्म-घूमकर ज़मीन और पेड़ों को देख रहा होता है। उसका चेहरा गंभीर और आँखें सतर्क हो जाती हैं। वह ज़मीन के पास झुकता है, मिट्टी को हाथ में लेकर सूंघता है।)

    युवराज (गंभीर लहज़े में): यह मिट्टी... यह बदली हुई है। और ये पेड़ों की छाल पर जो निशान हैं, वो... यह किसी बड़े खतरे के संकेत हैं।

    (सभी चौंककर एक-दूसरे को देखते हैं।)

    कारण : क्या हुआ है यहां युवराज? साफ़-साफ़ बताओ, डराओ मत हमें।

    युवराज (धीरे से): यहां कोई आया था। कोई ऐसा जिसे यहां नहीं होना चाहिए था... और उसने इस जगह को अपवित्र कर दिया।

    (सबका दिल धड़क उठता है। पूजा रोहन को पास खींचकर कसकर पकड़ लेती है।)

    पूजा: लेकिन हमारा सामान? वह कहां गया?

    युवराज: वही सोच रहा हूं। मैं इस जगह को जानता हूं। यहां की हवा, पेड़, मिट्टी... सब बोलते हैं। लेकिन अब जैसे सब चुप हो गए हैं। यह ख़ामोशी खतरनाक है।

    (तभी युवराज की नज़र एक झाड़ी के पीछे किसी चमकते हुए टुकड़े पर पड़ती है। वह झट से दौड़कर उसे उठाता है – वह ()लता ओर विजय अनुष्का के मां पापा )की शादी की तस्वीर है, जिसमें पूरा परिवार एक साथ था। तस्वीर की किनारी थोड़ी जली हुई है।)

    अनुष्का ( अक्की बाकी रह जाती है): यह तो... हमारी तस्वीर है! हमारे सामान के साथ ही थी ये! यह मेरे मन पापा की तस्वीर है जिसे मैं अपने साथ लाई थी

    अर्जुन (गुस्से में): किसी ने हमारा सामान चुराया?

    युवराज (धीरे-धीरे): नहीं अर्जुन... ये चोरी नहीं... ये चेतावनी है।

    रोहन: क्या मतलब?

    (युवराज कुछ पल चुप रहता है, फिर गहरी सांस लेते हुए सबकी ओर देखता है।)

    युवराज: हमें यहां एक पल भी नहीं रुकना चाहिए। यह जगह अब हमारे लिए सुरक्षित नहीं है।

    प्रिया: पर क्यों? और हमारा सामान?

    युवराज (तेज स्वर में): सवाल मत करो। अब मेरे पीछे-पीछे चलो। मैं तुम सबको एक जगह ले जा रहा हूं – वहां जहां यह नकारात्मकता नहीं पहुंच सकती।

    अनुष्का : पर मम्मा की फोटो?

    (युवराज धीरे से तस्वीर को अनुष्का के हाथ में देता है।)

    युवराज: उसे संभालकर रखो। यह सिर्फ़ तस्वीर नहीं... यह तुम्हारी ऊर्जा है।

    (फिर युवराज सभी को इशारे से एक संकरे रास्ते पर ले चलता है। रास्ता झाड़ियों से ढका है। करीब 20 मिनट की चुपचाप यात्रा के बाद वे एक लंबी-सी चट्टान के पास पहुँचते हैं। चट्टान के बीच में एक दीवार खड़ी है, जो देखने में साधारण लगती है – पर जैसे जैसे वे पास जाते हैं, उसमें से एक हल्का नीला प्रकाश निकलने लगता है।)

    अनुष्का (धीरे से): यह क्या है? दीवार चमक रही है!

    अर्जुन: क्या ये कोई जादू है?

    युवराज: इसे आदर्श दीवार कहते हैं। यह केवल उन्हीं को रास्ता देती है जिनके इरादे साफ़ हैं और दिलों में डर नहीं।
    प्रिया (संदेह से): और अगर डर हो तो?

    युवराज (मुस्कुराकर): तो दीवार तुम्हें वही लौटा देगी जहां से आए हो।

    (युवराज दीवार की ओर बढ़ता है, और हाथ बढ़ाकर एक चांदी जैसी रेखा खींचता है। रेखा बनते ही दीवार के बीच में एक द्वार खुलता है, जो नीली रोशनी से जगमगा रहा है।)

    युवराज: सब मेरे पीछे चलो। किसी का हाथ मत छोड़ना।

    (सब एक-एक कर उस द्वार से गुजरते हैं। जैसे ही वे दूसरी ओर पहुँचते हैं, एक अलग ही संसार खुलता है – यहां की हवा साफ़ है, पेड़ चमकीले हैं, फूल बोलते हुए से प्रतीत हो रहे हैं। यहां का वातावरण पूरी तरह सकारात्मक और शांत है।)

    प्रिया (खुशी से): वाह! यह जगह तो जादुई है!

    रोहन: देखो, वह तो बोलते हुए फूल हैं!

    पूजा (हैरानी से): यह सब तो... सपने जैसा है।

    अनुष्का (युवराज से): यह कौन सी जगह है?

    युवराज: यह तृप्ति वन है – एक ऐसा जंगल जो केवल उनके लिए खुलता है जिनका मन संतुलित और उद्देश्य साफ़ हो।

    राहुल: और क्या यहां हम रह सकते हैं?

    युवराज (गंभीर होकर): अभी नहीं। यहां तुम्हें कुछ समय के लिए ही रुकने दिया जाएगा। लेकिन यही वह जगह है जहां से तुम्हें अपना अगला रास्ता मिलेगा... अर्जुन के बारे में भी यहीं से संकेत मिलेंगे।

    (तभी हवा में घंटियों जैसी मधुर ध्वनि गूंजती है। एक प्रकाश पुंज उनके सामने प्रकट होता है, और धीरे-धीरे उसमें से एक वृद्ध महिला की आकृति बनती है – लहराते सफेद बाल, नीली आंखें और चेहरे पर दिव्यता। सभी सिर झुका देते हैं।)

    वृद्धा (मुस्कुराकर): स्वागत है। मैंने तुम्हारा इंतज़ार किया है।

    अर्जुन: आप कौन हैं?

    वृद्धा: मुझे यहां विभा माया कहा जाता है। यह वन मेरा है। युवराज मेरे शिष्य हैं। मुझे सब कुछ पता है... और मैं जानती हूं, तुम सब क्यों आए हो।

    अर्जुन (अचानक बोल पड़ता है): क्या... आप मेरे के बारे में कुछ जानती हैं?

    विभा माया (धीरे से): जानती हूं... पर हर उत्तर समय पर मिलेगा। पहले तुम्हें खुद को उस ऊर्जा से बचाना होगा जो वृंदा को निगल गई।

    अनुष्का (डरी हुई आवाज़ में): क्या हम को भी उस जगह ने...?

    विभा माया: नहीं, पर आप लोगे रास्ते में है। मार्ग कठिन है, पर रोशनी की ओर है।

    युवराज: विभा माया, हम आगे कैसे बढ़ें?

    विभा माया: आज रात तुम सब यहां विश्राम करो। सुबह जब सूरज तीन बार चमकेगा, तब तुम्हें अगला मार्ग मिलेगा – एक और जंगल, एक और दीवार... और शायद अर्जुन की कोई निशानी।

    (सब एक दूसरे की ओर देखते हैं – डर, आशा और थकावट के भाव के साथ। लेकिन अब उन्हें पता है कि यात्रा अभी शुरू हुई है...)
    जंगल के मुख्य द्वार पर
    नमन पूजा विजय और लता पहुंचते हैं और वहां से अर्जुन के मां पापा विवेक को लीला को फोन लगाकर बोलते हैं कि बच्चे सभी ठीक है हम लोगों को मिल गए हैं और बच्चे अभी एक-दो दिन यहां और रहना चाहते हैं उसकी बात सुनकर विवेक और लीला को संतुष्टि मिलती है और वह कहते कि अर्जुन से बात करो तब नमन थोड़ा सा हड़बड़ा जाता है और विवेक नमन से फोन लेकर अर्जुन की आवाज में विवेक को बोलता है कि हम यहां ठीक है पापा आज दो-चार दिन में जल ही घर लौट आएंगे (विवेक बहुत अच्छी मिमिक्री करता है इसलिए वह फोन पर अर्जुन की आवाज निकाल कर अर्जुन के पापा से बात करता है )
    मिलते हैं अगले पाठ में प्लीज डू लाइक कमेंट और शेयर

  • 14. पुराने दोस्त फिर मिल गए- Chapter 14

    Words: 1080

    Estimated Reading Time: 7 min

    दोपहर का समय, हल्की हवा चल रही है)

    गुरु शिखर जंगल के अंदर

    (नमन, पूजा, विजय और लता – चारों एक गाढ़ी झाड़ी के पास खड़े हैं। वृंदा जंगल के मुख्य द्वार के पास। सभी चिंतित हैं लेकिन एक-दूसरे की मौजूदगी उन्हें साहस देती है।)

    पूजा (धीरे से, नमन की ओर देखती है):

    नमन... मैं जानती हूं, ये जंगल हमसे कुछ कहना चाहता है।

    (संकोच करती है)

    क्या... क्या तुम ज़रा इस धरती को महसूस कर सकते हो?

    नमन (गंभीर होकर):

    पूजा... क्या तुम भी...? बस इस जंगल को छोडूंगा और यह मेरी शक्तियों को वापस से जागृत कर देगी।

    विजय :- हां हम सब लोगों को बस इस भूमि को छूना है और हमें अपनी अपनी शक्तियां वापस मिल जाएंगे।

    लता:- तो फिर देर किस बात की है चलो चलो

    सभी लोग जंगल के अंदर अपना कदम रखते हैं

    (कुछ पलों की चुप्पी के बाद वह ज़मीन पर बैठ जाता है। हाथ फैलाकर धरती को छूता है, उसकी उंगलियाँ मिट्टी में धँस जाती हैं।)

    विजय:

    (धीरे से) शुरू हो गया...

    (नमन की आँखें बंद होती हैं। उसके माथे पर पसीना छलकता है। उसके चारों ओर की मिट्टी में हल्का कंपन शुरू होता है। हवा एकदम रुक जाती है। सब शांत हो जाते हैं। नमन धरती से जुड़ रहा है।)

    नमन (धीरे से बुदबुदाता है):

    गहराई... कंपन...

    हां... मैं देख रहा हूं... वो सब... दीवार के पार...

    नीली रोशनी... फूलों की महक...

    अनुष्का... अर्जुन... रोहन... प्रिया... राहुल...सब सुरक्षित हैं।

    मगर... एक ऊर्जा है वहां, जो उनको पुकार रही है...

    लता (आश्चर्य से):

    क्या तुम सच में... देख सकते हो?

    नमन (आँखें खोलते हुए): नमन हंसते हुए लता तुम मजाक कर रही हो क्या तुम जानती हो हमारी शक्तियों के बारे में

    देख नहीं... महसूस करता हूं।

    जैसे धरती मुझसे बात कर रही हो... और कह रही हो – जल्दी करो।

    पूजा (हाथ फैलाकर हवा में कुछ महसूस करती है):

    हवा भी कुछ फुसफुसा रही है...

    (धीरे से) एक रास्ता... पीछे की झाड़ियों से होकर... और एक परछाईं जो हमारी ओर बढ़ रही है...

    विजय (पास के पेड़ के तने पर हाथ रखता है):

    पेड़ कह रहे हैं – “वो हमारे बच्चे हैं... उन्हें बुलाओ... वो लौट आएंगे।”

    (उसकी हथेली से हल्की सी हरियाली निकलती है और पेड़ का तना चमकने लगता है)

    लता (हैरान):

    विजय... यह क्या?

    विजय (हंसकर):

    अब शायद समय आ गया है... ये सब बताने का।

    पूजा:

    हम सब में... कुछ ना कुछ खास है। लेकिन हमने इसे छुपाकर रखा... क्योंकि हम दूसरी दुनिया में थे और अब हम अपनी दुनिया में वापस आ गए हैं तो हमारी शक्तियां भी हमें वापस मिलती है।

    नमन (धीरे से): हां अब हमें चलना चाहिए बच्चों के पास उनके मन में बहुत से सवाल होंगे।हमें उनके सभी सवालों के जवाब देना ही होगा

    चलो...

    (चारों अब धीरे-धीरे झाड़ियों में घुसते हैं। नमन सबसे आगे है, हवा और पेड़ उनका रास्ता साफ़ करते जाते हैं। कुछ देर बाद वे एक खुली जगह पर पहुँचते हैं जहां नीले प्रकाश से एक दीवार चमक रही है – वही “आदर्श दीवार”)

    लता (धीरे से):

    अपना घर अपना ही होता है जो सुकून यहां आती है वह कहीं नहीं। ......

    विजय (दीवार की ओर देखते हुए):

    हमारे बच्चों ने इसे पार किया है। अब हमारी बारी है।

    पूजा:

    पर दीवार केवल उन्हीं को रास्ता देती है जिनके मन में डर नहीं।

    नमन (मुस्कुराकर):

    हमारे दिलों में डर नहीं... केवल प्रेम है। ये हम सब जानते हैं

    (नमन आगे बढ़कर दीवार पर हाथ रखता है। एक चमकीली रेखा बनती है और द्वार खुलता है। चारों अंदर प्रवेश करते हैं।)

    ---

    स्थान बदलता है – तृप्ति वन

    (जैसे ही नमन, पूजा, विजय और लता भीतर आते हैं – सामने फूलों की घाटी, झरने की मधुर आवाज़ और बोलते हुए पेड़ हैं। हवा में सकारात्मकता है। सामने ही उनके बच्चे – अर्जुन, रोहन, राहुल, प्रिया, अनुष्का – बैठे हुए विभा माया की बातें सुन रहे हैं।)

    अनुष्का (आश्चर्य से):

    मम्मा?!

    पापा!!

    रोहन:

    क्या... ये सपना है?

    राहुल (हंसकर):

    नहीं... लगता है आंटी कल अंकल सच में पीछे-पीछे आ गए!

    (सभी भागकर अपने माता-पिता से लिपट जाते हैं। कई आंखों में आंसू आ जाते हैं।)

    विभा माया (मुस्कुराकर):

    प्रेम की शक्ति सबसे बड़ी शक्ति होती है... और आज वो शक्ति द्वार को पार कर यहां तक आई है।

    अर्जुन (हैरान होकर):

    पर आप सबको कैसे पता था हम यहां हैं?

    नमन (हौले से):

    धरती ने मुझे बताया।

    तुम सबने जो ऊर्जा छोड़ी थी... वो इस जंगल में गूंज रही थी।

    पूजा:

    और हवा ने हमें रास्ता बताया। विजय ने पेड़ों से रास्ता पूछ लिया।

    प्रिया:

    पर... ये सब तो... मतलब... क्या आप सब...?

    विजय (धीरे से): से भी यह जगह हमारे लिए नई नहीं है

    हम सबमें विशेष शक्तियाँ हैं... और तुम सबमें भी हैं।

    पर जब समय आएगा, वो खुद सामने आएंगी।

    (सभी बच्चे एक-दूसरे की ओर देखते हैं। अब उनकी आंखों में नए सवाल हैं।)

    ---

    युवराज (जो अब दूर खड़ा है, और धीरे से बोलता है):

    सब आ गए...

    राहुल (उसकी ओर देखता है):

    युवराज... क्या तुम भी...?

    (युवराज की आंखों में चमक आती है, और धीरे-धीरे उसके शरीर से एक हल्का नीला प्रकाश निकलता है। पलभर में वह एक भव्य सफेद भेड़िये में बदल जाता है – उसकी आंखें नीली, शरीर चमकीला और चाल में गरिमा। फिर वह वापस मानव रूप में आ जाता है।)

    प्रिया (साँस रोकते हुए):

    त... तुम...? अपना रूप बदलने से पहले एक बार बताया तो करो पता है मैं कितना डर जाती हूं......

    युवराज (शांत स्वर में):

    हां... मैं एक रक्षक हूं।

    भेड़िया – जो अपने झुंड की रक्षा करता है।

    और तुम सब... मेरे झुंड का हिस्सा हो।

    नमन (हँसते हुए):

    लगता है बच्चों को अकेले नहीं छोड़ा जा सकता था...

    विभा माया (गंभीर स्वर में):

    अब जबकि सब एक साथ हैं...

    अगली यात्रा शुरू होगी – जहाँ सच्चाई, शक्ति और अतीत के रहस्य मिलेंगे।

    पर आज... केवल विश्राम।

    कल सूरज जब दूसरी बार चमकेगा, तब मैं तुम्हें अगला संकेत दूँगी।

    (चंद्रमा की हल्की रोशनी तृप्ति वन को रोशन कर रही होती है। सब एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, बातें करते हैं। डर पीछे छूट गया है – अब केवल एकता और विश्वास साथ है।)

    अर्जुन :- आप सब तो आए हैं मेरे प्रिया और रोहन के ओर माँ पापा नहीं आए क्या?

    नमन :- बाकी सब की और देखता है फिर कहता है बेटा कुछ बातें ऐसी है जो हम तुम्हें भी बताने जा रहे हैं तुम सब उन बातों को ध्यान से सुनो और समझो जो तुम तुम सबके पास्ट और प्रेजेंट और फ्यूचर तीनों से रिलेटेड है।

    अब कुछ २/४ पार्ट पास्ट की स्टोरी चलेगी.....

  • 15. अतीत की राहे Chapter 15

    Words: 1515

    Estimated Reading Time: 10 min

    स्टोरी पास्ट में चलेगी नमन सबको बता रहा है और बताते बताते हो उसे समय में खो जाता है

    पच्चीस साल पहले…

    गुरु शिखर जंगल की सुबह हमेशा की तरह सुनहरी थी। हवा में हरे पत्तों की महक, झरनों की दूर से आती कल-कल, और पक्षियों का कोरस जंगल को एक जीवित कविता बना देता था।

    उस सुबह, एक विशाल बरगद के नीचे पाँच दोस्त खड़े थे – नमन, पूजा, विजय, लता और अनंत।

    नमन को बीच में रख कर अर्जुन पूछता है अंकल अनंत कौन

    तो नमन अर्जुन को घुरा के दिखता है और बोलता है अगर तुम बिन बोले चुपचाप शांति से सुनोगे तो मैं तुम्हें बताऊंगा नहीं तो मैं नहीं बताऊंगा

    अर्जुन चुप हो जाता है और फिर नमन अपनी यादों में खो जाता है

    नमन – चौड़े कंधे, गेहुँआ रंग, माथे पर हल्की-सी मिट्टी की लकीरें जैसे धरती ने खुद उसे चिन्हित कर दिया हो। उसके कपड़े सादे थे – भूरे रंग की बिना सिली कमीज़ और घुटनों तक का धोती जैसा वस्त्र। पैरों में कभी चप्पल नहीं, क्योंकि वह धरती को सीधे महसूस करना पसंद करता था।

    पूजा – लंबे, खुले बाल जिनमें कभी-कभी हवा खुद खेलती थी। हरे और हल्के नीले रंग का मिला-जुला परिधान, पतली-सी कमर पर बंधा कपड़े का बेल्ट। उसकी चाल में एक अजीब-सी लय थी, जैसे हवा के साथ तालमेल बैठा हो।

    विजय – चौड़ी मुस्कान वाला, आँखों में जंगल की हरियाली समेटे हुए। गहरे हरे रंग की कमीज़, जिस पर पत्तियों के पैटर्न थे, और भूरे रंग का ढीला पाजामा। उसके हाथ हमेशा पेड़ों की छाल को छूने के लिए बेचैन रहते थे।

    लता – सबसे कोमल, लेकिन फूलों की तरह ही अपनी खुशबू और रंग में असरदार। उसने गुलाबी और सफेद रंग का लंबा कुर्ता पहना था, जिसकी किनारी पर छोटे-छोटे फूलों की कढ़ाई थी। उसके कानों में छोटे-से कली के आकार के झुमके थे।

    अनंत – जंगल का राजा। लंबा कद, चौड़ी छाती, आँखों में एक ऐसी गहराई जो सामने वाले को उसकी सच्चाई तक देख ले। गहरे नीले रंग का लंबा चोगा, कमर पर चमड़े की बेल्ट, और गले में एक पुराना ताबीज – जो पीढ़ियों से जंगल के राजाओं के पास रहा था। अनंत के पास सबसे बड़ी शक्ति थी – सब को नियंत्रित करने की।

    वो पाँचों बचपन से जंगल में ही पले-बढ़े थे। इंसानों के बारे में उन्होंने सिर्फ जंगल में आने वाले यात्रियों से सुना था – उनकी अजीब बोली, उनके रंग-बिरंगे कपड़े, और शहरों की रोशनी। सब कुछ उन्हें शहर की तरफ आकर्षित करती थी।

    एक दिन,

    विजय ने हँसते हुए कहा,

    विजय: "क्यों न हम भी एक बार इंसानों की बस्ती में चलें? बिना अपनी शक्तियाँ दिखाए… बस जैसे वो जीते हैं, वैसे जीकर देखें।"

    पूजा (आँखें चमकाते हुए): "मुझे तो हमेशा से जानने का मन था… हवा कहती है कि उनकी दुनिया में खुशबुओं और आवाज़ों का अलग ही मेल है।"

    नमन: "धरती के कंपन वहाँ भी अलग होंगे। मैं महसूस करना चाहता हूँ।"

    लता (मुस्कुराकर): "और फूल? क्या इंसानों के बाग़ सच में उतने ही सुंदर होते हैं जितना कहते हैं?"

    अनंत चुपचाप सबको देख रहा था। फिर धीमे से बोला,

    अनंत: "अगर हम गए… तो याद रखो, हमारी पहचान कोई नहीं जान पाए। हम इंसानों की तरह जीएंगे।"

    सबने सहमति में सिर हिलाया। और इसी के साथ, उनकी यात्रा की तैयारी शुरू हो गई।

    इस बात से अनजान की यह बदलाव इंसानी दुनिया में जाने का उनकी जिंदगी में क्या बदलाव लाता है वह सब जाने को थे

    सभी ने अपने-अपने माता-पिता को यह बात बताई और उनके माता-पिता ने उनको आघा किया कि तुम इंसानों की बस्ती में जाओ लेकिन तुम्हारी शक्तियों का प्रयोग तुम वहां नहीं कर सकते हो ।तुम्हें बहुत सावधान रहना होगा सभी ने की बात का मान रखा और चल पड़े. तुम ज्यादा दिन वहां नहीं रह सकते नहीं तो तुम्हारी शक्तियों का स्रोत यह जंगल हैं तुमसे ज्यादा दिन दूर रहोगे होगा और तुम्हें शक्तियां काम होते जाएगी।

    सभी लोग अपने माता-पिता की बात का मान रखते हैं उनको प्रणाम करते हैं और निकल जाते हैं जंगल से बाहर शहर की ओर ----

    जंगल छोड़ने से पहले, पाँचों ने अपने कपड़े और हावभाव बदलने का फैसला किया।

    नमन ने साधारण सूती कुर्ता-पायजामा पहना, सफेद रंग का, ताकि वह खेतों में काम करने वाले इंसानों जैसा लगे।

    पूजा ने हल्का पीला सलवार-कुर्ता चुना, जिस पर छोटे-छोटे फूलों का प्रिंट था। उसने पहली बार अपने बाल चोटी में बाँधे।

    विजय ने नीली जींस और आधी बाँहों वाली चेकदार शर्ट पहनी – जो उसने जंगल में आने वाले एक व्यापारी से ली थी।

    लता ने आसमानी रंग की साड़ी पहनी, बालों में गजरा लगाया। वह एक साधारण गाँव की औरत जैसी लग रही थी।

    अनंत ने सफेद धोती और हल्की नीली कमीज़ पहनी, सिर पर पगड़ी बाँधी। अब वह किसी भी गाँव के प्रभावशाली किसान जैसा दिख रहा था।

    गुरु शिखर जंगल से निकलते हुए, उन्होंने पहली बार मिट्टी की पगडंडियों के बाद कच्ची सड़क देखी। थोड़ी दूर पर एक गाँव था – मिट्टी के घर, छप्पर की छतें, और लोग अपने-अपने काम में व्यस्त।

    गाँव में पहुँचते ही एक बुज़ुर्ग ने पूछा,

    बुज़ुर्ग: "कहाँ से आए हो बेटा?"

    अनंत ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया,

    अनंत: "यहीं पास के इलाके से… कुछ दिन यहाँ रहकर काम करना चाहते हैं।"

    गाँव वालों ने उनका स्वागत किया। उन्होंने एक खाली पड़ी कुटिया में ठिकाना बना लिया। दिन में खेतों में काम, शाम को चौपाल पर बातें – पाँचों जल्दी ही गाँव का हिस्सा बन गए।

    एक शाम, जब सूरज ढल रहा था, अनंत पानी लेने कुएँ पर गया। वहाँ एक लड़की खड़ी थी – गेहुँआ रंग, बड़े-बड़े बादामी आँखें, माथे पर हल्का-सा पसीना, और बालों में चमेली के फूल। उसने हल्की गुलाबी साड़ी पहनी थी, जिस पर सुनहरे किनारे की कढ़ाई थी।

    वह पानी खींच रही थी, लेकिन रस्सी फिसल गई। अनंत ने आगे बढ़कर रस्सी पकड़ ली।

    अनंत: "संभाल कर… ये कुआँ गहरा है।"

    लड़की ने हल्का-सा मुस्कुराकर कहा,

    अवनी: "धन्यवाद। आप नए हैं गाँव में, है ना?"

    अनंत: "हाँ… और आप?"

    अवनी: "मेरा नाम अवनी है। मैं यहाँ की हूँ।"

    उनकी आँखें एक पल को टकराईं… और फिर जैसे समय धीमा हो गया।

    अगले कुछ दिन में, अनंत और अवनी अक्सर कुएँ, खेत, या गाँव के मेले में मिलते। अवनी हँसते हुए बातें करती, और अनंत चुपचाप उसकी हर बात सुनता। वह नहीं जानता था कि इंसानी दुनिया में उसे इतना सुकून मिलेगा।

    एक दिन, मेले में अवनी ने अनंत से कहा,

    अवनी: "आपमें कुछ अलग है… जैसे आप… बाकी सब जैसे नहीं हैं।"

    अनंत के होंठों पर हल्की मुस्कान आई, लेकिन उसने बस इतना कहा,

    अनंत: "शायद…पता नहीं

    अनंत अवनी को पहली नजर में ही पसंद करने लगा था

    लेकिन अनंत के मन में एक डर था – अगर अवनी को पता चला कि वह जंगल का राजा है, जिसके पास सत्य को नियंत्रित करने की शक्ति है, तो क्या वह उससे डर जाएगी? वह इंसानों की बस्ती में नहीं रह सकता ज्यादा दिन वह उसका असली घर जंगल है जहां उसे रहना है और अपने लोगों की सुरक्षा भी करनी है।

    वहीं, नमन, पूजा, विजय और लता भी इंसानी जिंदगी का आनंद ले रहे थे – खेतों में काम, त्योहार, बारिश में भीगना, और रात को ढोलक की थाप पर नाचना। लेकिन वे सब जानते थे कि यह जीवन हमेशा के लिए नहीं है।

    हाथी साहब सब जानते थे कि अर्जुन अम्मी को पसंद करने लगा है मैं अर्जुन को कई बार धोखा भी की यह सही नहीं है तुम जानते हो ना अवनी के लिए ना हमारे लिए पर दिल कब किसकी सुनता है। नमन और पूजा तो बचपन से ही एक दूसरे को पसंद करते थे और वह दोनों मिलकर इंसानी बस्ती के में रहकर कुछ अनमोल पलों को जी रहे थे और लता और विजय भी।

    एक रात, चाँदनी में, अनंत और अवनी गाँव के बाहर पुराने पीपल के पेड़ के नीचे बैठे थे।

    अवनी: "अगर एक दिन… आपको इस गाँव से जाना पड़े… तो क्या आप लौटकर आएंगे?"

    अनंत ने उसकी आँखों में देखा।

    अनंत: "चाहे मुझे किसी भी दुनिया में क्यों न जाना पड़े… मैं लौटूंगा।"

    अवनी की मुस्कान में विश्वास और हल्की चिंता दोनों थे।

    जैसे-जैसे दिन बीतते गए, पाँचों का इंसानों से लगाव बढ़ता गया। लेकिन जंगल भी उन्हें पुकार रहा था। एक दिन, विजय ने कहा,

    विजय: "शायद समय आ गया है लौटने का… वरना हमारी दो दुनियाओं के बीच की दूरी टूट जाएगी।"

    अनंत ने अवनी को अलविदा कहा, लेकिन उसके दिल में यह वादा था कि यह कहानी यहीं खत्म नहीं होगी। दोनों ने एक दूसरे को इज़हार नहीं किया था पर आखिरी आंखों में एक दूसरे को पसंद करते थे और दिल भी जानता था कि यह दिल मिल चुके हैं पर अब नहीं रहा दिख रही थी कि अर्जुन कब उससे कह लेकिन अर्जुन की कुछ जिम्मेदारी आती है जिससे वह पीछे नहीं है सकता था और उसने अपने और अवनी के बारे में कुछ भी फैसला लेने से पहले अपने मां-बाप से पूछना जरूरी समझा एक बार वह अपने पिता से सलाह ले उसके बाद ही वह अपने दिल की बात अभी को बताया।

    और यही वह पल जब वह लोग अलग हो गए हमेशा के लिए तो नहीं पर कुछ समय के लिए

  • 16. अनंत और अवनी की कहानी Chapter 16

    Words: 1602

    Estimated Reading Time: 10 min

    राजमहल की ऊँची दीवारों के बीच, पूर्व दिशा की ओर खुलती बड़ी-बड़ी खिड़कियों वाला एक कक्ष था—अनंत का शयनकक्ष। कमरे की छत सुनहरे डिज़ाइन से सजी थी, जिन पर मोमबत्तियों की हल्की-हल्की रोशनी झिलमिला रही थी। संगमरमर का फर्श, कोनों में रखी चाँदी की दीपधारियाँ, और बीच में बिछा गाढ़े नीले रंग का रेशमी गलीचा—सब कुछ राजसी वैभव बिखेर रहा था। बिस्तर चौड़े चारपाई के रूप में था, जिस पर गहरे लाल रंग की मखमली चादर और रेशम के तकिए रखे थे। खिड़की के पार रात का आकाश तारों से सजा था, और दूर से आती मंदिर की घंटियों की आवाज़ एक अनोखा सन्नाटा पैदा कर रही थी।

    अनंत गहरी नींद में था। तभी उसके सपनों में एक परिचित चेहरा आया—अवनी।

    उसकी आँखें थकी हुई, होंठ सूखे, और आवाज़ काँप रही थी।

    "अनंत..."

    वह धीमे से पुकार रही थी, जैसे किसी गहरी दूरी से।

    "मुझे... तुम्हारी बहुत याद आ रही है... मेरी तबीयत... पता नहीं क्या हो गया है बस एक बार तुम्हारा चेहरा देखना चाहती हूं मरने से पहले"

    सपने में, वह सफेद साड़ी में थी, बाल खुले, माथे पर हल्की-सी पसीने की बूंदें, और पीछे जंगल के मंदिर का धुँधला दृश्य। उसकी आँखों में दर्द था, लेकिन उसके भीतर एक अजीब-सी दृढ़ता भी।

    अनंत ने सपने में ही उसका नाम पुकारा—"अवनी!"

    वह दौड़ने की कोशिश करता है, लेकिन जैसे पैर जमीन में धँस गए हों। अवनी का चेहरा धुंधला होने लगा और वह पानी में गिर पड़ी।

    अनंत अचानक पसीने से तर-बतर उठ बैठा। दिल तेज़ी से धड़क रहा था। खिड़की से आती ठंडी हवा भी उसके भीतर के भय को शांत नहीं कर पा रही थी।

    ---

    अगले दिन सुबह

    सुबह की पहली किरणें महल की सुनहरी दीवारों पर पड़ीं। अनंत ने बिना समय गंवाए नमन के महल की ओर रुख किया। नमन महल का सबसे समझदार और जादुई कलाओं में दक्ष मित्र था। नमन के पास धरती की शक्ति थी धरती जैसा धीर और समझदार.....

    "नमन..." अनंत ने गंभीर स्वर में कहा, "मैंने अवनी को सपने में देखा है। उसकी हालत खराब है, और वह जंगल के मंदिर में है।"

    नमन की आँखें चौकन्नी हो गईं। "क्या तुम निश्चित हो कि यह सपना ही था? या..."

    "नहीं," अनंत ने बीच में कहा, "यह कोई संकेत है। मुझे पता है, वह मुझे पुकार रही थी।"

    तभी विजय भी वहाँ आ गया। "क्या हुआ? इतनी सुबह-सुबह तुम दोनों क्यों चिंतित हो?"

    नमन ने अनंत की ओर देखते हुए कहा, "अनंत को लगता हैं की अवनी खतरे में है। हमें तुरंत उसके गाँव जाना होगा।"

    विजय:- अनंत कहिए दुश्मनों की चाल तो नहीं? जंगल से बाहर निकालने की तुम जानते हो जंगल से बाहर जाती है हमारी शक्तियों थोड़ी कम हो जाती है।

    अनंत:- नहीं विजय मुझे ऐसा लग रहा है कि सच में अपनी मुझे याद कर रही है

    विजय ने सिर हिलाया, "तो फिर देर क्यों? हम जादू से जंगल की सीमा तक पहुँच सकते हैं।"

    नमन:- विजय तुम हमारे साथ नहीं चलोगे तुम्हें पता है अवनी कहां रहती है अगर हम 15 दिन में नहीं आए तो तुम अपने कुछ लोगों को ले वहां पहुंचे ताकि अगर यह कोई जान हो तो तुम हमें बचा सकते।

    विजय :- ठीक है पूजा और अनुष्का को बताया क्या?

    अनंत :- नहीं तुम बता देना हम लोग निकालते हैं मेरा यहां बिल्कुल मन नहीं लग रहा जब तक मैं अपनी को देखने लेट मेरे को मन चैन नहीं आएगा

    महल के पिछवाड़े एक प्राचीन द्वार था—‘अग्निद्वार’। कहा जाता था कि यह केवल शुद्ध उद्देश्य वाले दिल के लिए खुलता है। नमन ने दोनों हाथ आसमान की ओर उठाए, मंत्र पढ़े—

    "धरा से नभ, नभ से पवन, पवन से अग्नि, अग्नि से पथ..."

    द्वार पर सुनहरी रेखाएँ चमकने लगीं और अचानक एक उजला चक्र घूमने लगा। अनंत, नमन और उसमें प्रवेश करते ही जंगल की सीमा पर आ पहुँचे। हवा में मिट्टी और पत्तों की महक थी, और दूर से पक्षियों की आवाज़ें आ रही थीं।

    ---

    वहाँ से नमन ने दूसरा मंत्र पढ़ा, और वे सीधे अवनी के गाँव के बाहर प्रकट हुए। गाँव छोटा लेकिन सुंदर था—कच्चे मकान, मिट्टी की गलियाँ, और चारों ओर हरे-भरे खेत। गाँववाले आश्चर्य से उन्हें देखने लगे, लेकिन कोई कुछ बोल नहीं पाया।

    अवनी का घर गाँव के बीचोंबीच था। वहाँ उसके माता-पिता और उसकी बहन लीला बैठे थे।

    अवनी की माँ ने घबराकर पूछा, "तुम अनंत हो न?"

    "हाँ, माँजी," अनंत ने आदर से झुकते हुए कहा, "अवनी कहाँ है?"

    पिता ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "बेटा, अवनी ने जंगल के गोराजी मंदिर में मन्नत माँगी थी। वह उसी को पूरा करने गई है। लेकिन उसकी तबीयत ठीक नहीं थी। पर उस ने किसे की सुनी ही नहीं।"

    नमन :-क्या वो अकेली गई हैं?

    अवनि की माँ की आँखों में आँसू आ गए। "नहीं साथ में उस की छोटी बहन छोटी भी गई हैं, वह पानी पीने में भी मुश्किल महसूस कर रही थी उस की हालत बहुत ज्यादा ख़राब हैं । मैंने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी। तो हम ले छोटी को साथ में भेज दिया "

    ---

    नमन और अनंत सीधा जंगल के गोरजी मंदिर पहुँचे। मंदिर के चारों ओर घना जंगल था, और एक झील किनारे मंदिर की सीढ़ियाँ उतरती थीं। मंदिर पुराना लेकिन भव्य था—पत्थरों पर नक्काशी, ऊँचे शिखर, और चारों ओर जलते दीपक।

    अवनी मंदिर के पास बैठी थी, उसका चेहरा पीला, होंठ सूखे, और साँसें तेज़। ओर देवीमाँ के सामने बैठ कर बस अनंत को जल्दी भेज भी नहीं बोल रही थी।

    अनंत ने दौड़कर उसके पास बैठते हुए उसका हाथ पकड़ा।

    "अवनी... मैं आ गया।"

    अवनी की आँखों में हल्की चमक आई, "मुझे पता था... तुम आओगे।ई कुछ से तुम्हारी रहा देखना रही थी "

    अनंत ने अपना हाथ आगे बढ़कर उसके सिर पर हाथ रखा। एक हल्की नीली रोशनी उसके हाथ से निकलकर अवनी के शरीर में फैल गई। उसकी साँसें धीरे-धीरे सामान्य होने लगीं।

    "अब तुम ठीक हो जाओगी," अनंत ने मुस्कुराते बोला।

    अनंत ने अवनी का हाथ थामकर कहा, "अवनी, में तुम से बहुत प्यार करता हुँ अगर तुम तैयार हो ओर मुझ पे विश्वास हैं ... मैं अभी, इसी मंदिर में, तुम्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहता हूँ।"

    अवनी की आँखों में आँसू आ गए। " में भी आप से बहुत प्यार करतो हुँ मैं भी यही चाहती हूँ।"

    नमन :- अनंत रुक जरा इधर आ

    अनंत :- हा बोल....

    नमन :- क्या या ठीक होगा? क्या महाराज मानेगे?

    अनंत :- तू ओर मेरे दोस्तों साथ हैं तो सब मान जायगे ओर तू अवनि की जनता भी हा की वो नेकदिल हैं।

    नमन अनंत लो गले लगा कर बधाई देता हैं मैं तेरे लिए बहुत खुश हो।

    अनंत :- चल सब को बता दे....

    नमन :- ठीक हैं ओर मन ही मन आपने दोस्तों को सब बाते बता देता हैं सारे दोस्तों तक बात पहुंच जाती हैं सब बहुत ख़ुश होते हैं।

    आनंद ने तुरंत मंदिर के पुजारी को बुलाया। दीपक जलाए गए, मंत्र गूँजे, और अनंत ने अवनी के गले में अपना ताबीज पहनता हैं । सात फेरे लिए गए, और वचन बोले गए।

    शादी के बाद सब लोग गाँव लौटे। २-३ दिन रुक कर नमन ओर अनंत का जाने समय आया। अवनी ने अनंत का हाथ कसकर पकड़ा, "तुम वादा करो, तुम मुझे लेने आओगे।"

    अनंत ने गंभीर स्वर में कहा, "मैं वादा करता हूँ, अग्नि की साक्षी में—मैं तुम्हें लेने ज़रूर आऊँगा।"

    ---

    महल लौटकर, अनंत ने महाराज को सब बताया।

    विशाल सिंहासन पर बैठे पिताजी महाराज का चेहरा कठोर था।

    महाराज: "अनंत … तुमने ये निर्णय सोच-समझकर लिया है? शहर वालों को अपने जीवन में लाना आसान नहीं।"

    अनंत : "पिताजी, वहाँ सिर्फ इंसान नहीं है… वहाँ रिश्ते हैं, विश्वास है। अवनि सिर्फ मेरी नहीं, पूरे राज्य के लिए एक नई शुरुआत है।"

    महाराज ने उसकी आँखों में देखा, फिर गहरी साँस ली।

    महाराज: "तुम्हारा निर्णय मुझे मंज़ूर है… लेकिन दरबार में सभी को ये समझाना आसान नहीं होगा

    दूसरे दिन महाराज ने यह बात दरबारी के बीच में रखें.....

    कुछ वरिष्ठ दरबारी आगे बढ़े।

    पहला दरबारी: "महाराज, ये नियमों के खिलाफ है।"

    दूसरा: "हमने कभी बाहरी लोगों को राजपरिवार में शामिल नहीं किया।"

    तभी अनंत बीच में आया।

    अनंत : "परंपरा तब तक सुंदर है जब तक वह इंसानियत को बाँध न दे। अवनि इस राज्य की दुश्मन नहीं, उसकी बेटी है। और इंसान भी हमारी तरह ही भावनाएं रखते हैं।"

    फिर अनंत और उसके दोस्तों ने एक-एक करके सभी से बात की।

    नमन ने जंगल में हुए बलिदानों की कहानियाँ सुनाईं,

    पूजा ने बताया कि कैसे अवनि ने उसकी जान बचाई थी, विजय ने पेड़ों की गवाही दी, और

    विजय ने कहा —

    "अगर हम भरोसा नहीं करेंगे तो ये राज्य कभी आगे नहीं बढ़ेगा।"

    एक दरबारी :- ने कहा इंसान हो भरोसे लायक नहीं है।

    अनंत :- भरोसे तो कुछ जानवर पे भी नहीं है लेकिन जहां विश्वास है वही सब सही है।

    पूजा :- वैसे भी मन अच्छा होना चाहिए।

    धीरे-धीरे सबके चेहरे बदलने लगे। विरोध की जगह सहमति ने ले ली।

    अगले दिन महल में बड़ी तैयारी शुरू हुई। लेकिन तभी खबर आई—जंगल की सीमा पर किसी ने अदृश्य प्राणियों को देखा है।

    नमन ने गंभीर होकर कहा, "शायद यह हमें रोकने की कोशिश है..."

    पूजा :- अनंत में काम करो तुम निकले हम यहां देखते हैं

    अनंत:- यह वही लोग तो नहीं जिन इसके पहले भी हम पर हमला करने की कोशिश की थी तुम्हें पता है ना जंगल की सुरक्षा हमारा पहला उत्तरदायित्व है

    पूजा :- पर अनंत अवनी तुम्हारी राह दिख रही होगी?

    अनंत :- अवनी रुक सकती है पूजा पर मेरा कर्तव्य नहीं रख सकता मैं यहां का राजा हूं और जंगल की सुरक्षा करना और तुम सब की सलामती रखना यह मेरा पहला धर्म है

    और फिर

    कुछ नहीं मिलते हैं अगले भाग में

  • 17. युद्ध जीत या????- Chapter 17

    Words: 1912

    Estimated Reading Time: 12 min

    जंगल की सीमा पर हल्की धुंध छा रही थी। पेड़ों की शाखाएँ हवा में काँप रही थीं और अजीब-सी सिहरन पूरे वातावरण में फैल गई थी। अचानक, महल का एक सिपाही हाँफता हुआ अंदर आया और सिंहासन कक्ष में झुक गया।

    सिपाही: "महाराज! सीमा पर… अदृश्य प्राणी हमला कर रहे हैं। आधे इंसान, आधे जानवर—कभी मानव चेहरा, कभी दरिंदे का रूप। वे जंगल की गहराई से कुछ खोज रहे हैं। हमें तुरंत मदद चाहिए।"

    अनंत की आँखें चौकन्नी हो गईं।
    अनंत: "हम इंतजार नहीं कर सकते। यह जंगल हमारा है, इसकी सुरक्षा हमारा धर्म है। नमन, विजय, पूजा—हम सब सीमा पर चलेंगे।"

    नमन ने सिर झुकाकर हामी भरी। विजय ने अपनी तलवार म्यान से बाहर निकाली और पूजा ने दोनों हाथ जोड़कर मंत्र पढ़े। एक पल में पूरा महल गूँज उठा। लता भी अपने अस्त्र के साथ तैयार थी और महल के सारे सैनिक भी तैयार थे।

    महल के प्रांगण में घोड़े सजाए गए। कुछ साथी अपने असली रूप में लौट आए—किसी के पंख थे, किसी की आँखों में आग, किसी की त्वचा पर लोहे जैसी परत। सेना तैयार हुई कोई आधे घोड़े और आधे इंसान के रूप में थे सांप,घोड़े,हाथी, शेर, हिरण जंगल का छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा अद्भुत जानवर है कुछ इंसानी जानवर सब सजे थे युद्ध के लिए। अनंत अपने घोड़े पर सवार होकर गरजा—

    अनंत: "चलो… दुश्मनों को बताना होगा कि जंगल की संतान हम है कोई भी हमारे जंगल को नुकसान नहीं पहुंचा सकता और हमारी धरोहर को नुकसान नहीं पहुंचा सकता
    "

    घोड़ों की टापें गूँज उठीं और सेना जंगल की सीमा की ओर बढ़ी।


    ---

    युद्ध का दृश्य भयावह था। पेड़ों के पीछे से अदृश्य परछाइयाँ अचानक वार करतीं। किसी के पंजे इंसानी बाजुओं पर पड़ते, तो किसी का विषैला दाँत घोड़े को गिरा देता।

    नमन: "सावधान! ये रूप बदलने वाले हैं। तलवार के वार से पहले मंत्र बोलो, तभी असली रूप सामने आएगा।"

    विजय ने दोनों हाथ फैलाकर चिल्लाया—
    विजय: "वृक्षों! हमें रक्षा दो!"

    तुरंत पेड़ हिलने लगे, उनकी शाखाएँ साँपों की तरह दुश्मनों पर लिपट गईं। लेकिन तभी आसमान में एक काली परछाई छा गई। घने बादल गरजे, और हवा में बिजली-सी लकीर दौड़ गई।
    लता :- अपने मंत्र में फूलों को की ऐसा ऐसे त् रस छिड़कों की यह लोग बेहोश हो जाए और अपनी शक्ति को अपने दोनों हाथ से बाहर निकलती है

    वह परछाई धीरे-धीरे आकार लेने लगी। उसका चेहरा कोई नहीं देख पा रहा था, लेकिन उसके वस्त्र गहरे काले, आँखें लाल धुंध-सी, और आवाज़... मानो हजारों आत्माओं की चीख एक साथ निकल रही हो।

    काला साया: "अनंत… तुम्हारा वंश खत्म होना चाहिए। आज जंगल का भविष्य मेरी मुट्ठी में होगा। आज मैं वह अदृश्य और दिव्या किताब हासिल करूंगा उसके लिए पहले मुझे जंगल के राजा यानी की अनंत तुम्हें खत्म करना होगा और उसके साथ बढ़ेगा मेरा साम्राज्य"
    बोल के वह काला साया बहुत जोर से चिल्लाने लगा
    करोड़ से काले काले बादल गिरा रहे थे जैसे कि आज प्रकृति भी युद्ध में है किसकी जीत होगी सत्य की या सत्य की दोनों ही बहुत ही भयानक युद्ध लड़ रहे थे

    अनंत ने तलवार उठाई।
    अनंत: "जंगल का भविष्य किसी दानव की मुट्ठी में नहीं, उसके बेटों के दिल में होता है!"

    भीषण युद्ध छिड़ गया। सेना और राक्षसी प्राणी भिड़ गए। घोड़ों की टापें, तलवारों की टकराहट, मंत्रों की गूँज और प्राणियों की चीखें पूरे वातावरण में भर गईं।
    काला साया देख रहा था कि धीरे-धीरे उसके लोग खत्म होते जा रहे हैं और उसकी हार निश्चित होते जा रही है।

    अचानक काला साया —अनंत के सबसे नजदीकी योद्धा—की ओर लपका। उसकी लंबी बाँह ने धुंध में से निकलकर अनंत की पीठ पर वार किया।

    अर्जुन: "आह्ह!"

    वह घोड़े से गिर पड़ा। पर उसी क्षण उसने पलटकर अपनी तलवार सीधी चलाई। तलवार उस साये के हाथ पर पड़ी और उसकी चीख से आसमान काँप उठा।

    काला साया: "आआआआह्ह्ह! तुमने मेरी शक्ति को छू लिया… ये गलती तुम्हें भारी पड़ेगी… यह तुमने क्या कर दिया हां हां करते-करते वह काला साया ओर "

    उसका कटा हुआ हाथ धुएँ में बदल गया और वह अचानक गायब हो गया। बादल छँट गए। हवा शांत हो गई। चारों तरफ शांति फैलने लगी काले बादल छठ के और चारों ओर खुशियां जाने लगी लेकिन अनंत ज़मीन पर गिरा रहा था।

    पूरी सेना ने विजय की गर्जना के साथ नारा लगाया—
    "हम जीत गए! हमने दुश्मनों को भगा दिया!"

    लेकिन जीत अधूरी थी।
    नमन ने देखा की अनंत बेहोश होके जमीन पर गिर रहा है। मां तुरंत जोर से चीका अनंत और उसकी और भाग विजय ने भी आनंद की और देखा और अपने दोनों हाथ आगे किया और पेड़ों की शाखाएं निकाल के आनंद को अपनी गोद में ले लिया वह जमीन पर नहीं गिर पाया वे सभी लोग आनंद को लेकर महल की ओर निकल गए।


    अनंत को उठाया गया। उसका शरीर ठंडा था, साँसें कमजोर। आँखें बंद और होंठों पर केवल एक नाम—

    अनंत :- (बेहोशी में बड़बड़ाते हुए): "अवनी… अवनी…"

    सैनिकों :- ने तुरंत उसे महल वापस पहुँचाया। महल के अर्जुन कमरे में वैद्य और गुरु इकट्ठे हुए। जड़ी-बूटियाँ, मंत्र, औषधियाँ—सब प्रयत्न किए गए, लेकिन अनंत को होश नहीं आया।

    महाराज का चेहरा चिंता से कठोर हो गया।
    महाराज: "नमन, पूजा… केवल अवनी ही अनंत को जगा सकती है। तुम तुरंत उसे यहाँ लाओ।"

    नमन और पूजा ने प्राचीन मंत्रों का उच्चारण किया। अग्निद्वार खुला और वे पलक झपकते ही अवनी के गाँव पहुँचे।



    गाँव में अवनी घर के बाहर बैठी थी। उसकी आँखें लगातार रास्ते पर टिकी थीं। जैसे उसे भीतर से पता हो कि कोई बुलाने आने वाला है।

    नमन: "अवनी बहन… अनंत तुम्हें पुकार रहा है। उसकी हालत गंभीर है।"

    अवनी घबरा गई।
    अवनी: "क्या हुआ उसे? चलो, अभी… अभी मुझे ले चलो।"

    माँ ने रोका।
    माँ: "अवनी! अकेली मत जा। छुटकी भी तेरे साथ जाएगी।"

    छुटकी (वीना) ने तुरंत हाथ पकड़ लिया।
    छुटकी: "दीदी जहाँ जाएगी, मैं वहीं रहूँगी।"

    नमन और पूजा ने एक-दूसरे को देखा। लेकिन अंततः उन्होंने हामी भर दी।

    पूजा: "ठीक है। दोनों बहनें साथ रहेंगी। हम तुम्हारी रक्षा करेंगे।"

    मंत्र पढ़ते ही सब महल पहुँचे।


    ---
    जंगल के अंदर पहुंचती ही
    अवनि :- यह क्या हुआ हम एकदम से यहां कैसे आ गए
    छुटकी ने भी डर के मारे अपनी दीदी का हाथ पकड़ लिया
    पूजा :- ने कहा अपनी शांत रहो हम तुम्हें सब बता देंगे पर सबसे पहले हमें आनंद के पास पहुंचना है मेरा हाथ पकड़ो और अपने आप को शांत रखो
    वह लोग महल के मुख्य द्वार पहुंच गए थे महल के द्वारा को देखकर एक बार तो अपनी थोड़ी सी आशा चक्की थोड़ी पर जैसी उसे अनंत का ध्यान आया उसने तुरंत
    बोली :- यह कहां लिया है चलो जल्दी चलो मुझे अनंत के पास जाना है।
    महल में अवनी ने जैसे ही अनंत को देखा, उसका दिल काँप उठा।
    वह उसके पास भागी और उसकी गोद में सिर रखकर रो पड़ी।

    अवनी: "अनंत… उठो। देखो मैं आ गई हूँ। तुमने वादा किया था, मुझे अकेला नहीं छोड़ोगे। उठो!"

    अचानक अनंत की उँगलियाँ हिलीं, होंठ काँपे। लेकिन आँखें अब भी बंद थीं।

    अवनी उसके सीने पर झुक गई और आँसुओं में डूबकर बुदबुदाई—

    अवनी: "अगर तुम मुझे सचमुच प्यार करते हो, तो उठ जाओ… मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ।"

    बोलते ही अपनी बेहोश हो गई और

    पूरा महल सन्न रह गया। वैद्य भी ठिठक गए।

    महाराज (आश्चर्य से): "क्या…? अवनी… माँ बनने वाली है?"
    वेदराज :- ने जल्दी से अवनी को देखा ओर बोले
    हां महाराज महारानी अवनी मां बनने वाली है

    पूजा ने उसका हाथ पकड़कर कहा—
    पूजा: "हाँ महाराज। ये सच है।"

    महल में अचानक शंखनाद गूँज उठा। खुशी और हैरानी दोनों भाव एक साथ। कुछ तो थे की मां अवनी मां बनने वाली है पर आनंद की हालत में कोई भी सुधार नहीं था


    ---


    अवनी और छुटकी (वीना) महल में ठहर गईं। धीरे-धीरे सबने उन्हें स्वीकार कर लिया। इस बीच, विजय और लता का विवाह हुआ, नमन और पूजा का भी।
    राज नाम का एक युवक, जो इंसानों की बस्ती से आया था, जंगल और इंसानी दुनिया के बीच सेतु का करता था के पूर्वज भी इसी काम में लगे हुए थे उनके पास शक्तियां कम थी पर हौसला बहुत था वह थे तो जानवर ही पर इंसानों की बस्ती में रहकर उनके बारे में खोज खबर पहुंचते थे जंगल वासिओ को कि इंसान कैसे हैं क्या है ।

    वीना (छुटकी) और राज भी एक-दूसरे को पसंद करने लगे और विवाह कर लिया।

    समय बीतता गया। महल में खुशियों की बहार आई।

    अवनी ने अनंत के एक पुत्र को जन्म दिया— जिस नाम अर्जुन रखा गया ।

    नमन और पूजा के घर बेटा हुआ — जिस का नाम रोहन।

    विजय और लता को बेटी मिली — जिस का नाम अनुष्का।

    राज और वीना को बेटा हुआ— जिस का नाम कारण।

    ( अवनी ने नौ महीने में जन्म दिया जबकि पूजा और लता ने चार महीने में बच्चों को जन्म दिया कारण सबसे छोटा था जो की अर्जुन, रोहन और अनुष्का से 9 महीने छोटा )

    महल में चारों ओर उत्सव का माहौल था। बच्चे हँसी-खुशी से पलने लगे। परंतु, अनंत अब भी बेहोशी में था। अवनी हर दिन उसके पास बैठी रहती, उसे कहानियाँ सुनाती, उसका हाथ थामे रहती, मानो उसके हृदय में जीवन वापस बुला रही हो।


    ---

    ४. १ साल बाद – काला साया लौट आया

    समय बीता। बच्चे बड़े हो गए। उनकी आँखों में वही चमक, वही शक्तियों के बीज पनपने लगे। लेकिन जंगल में दुश्मन भी चुप नहीं बैठा।

    काला साया वापस लौटा। अब उसका लक्ष्य साफ था—
    काला साया: "अर्जुन… अनंत का बेटा… वही मेरी शक्ति की कुंजी है। अगर वह जिंदा रहा, तो मैं सदा अधूरा रहूँगा।"

    सीमा पर फिर हलचल हुई। दरबार में खबर पहुँची।

    सिपाही: "महाराज! साया फिर लौट आया है। वह अर्जुन की तलाश में है।"

    महाराज ने कठोर स्वर में आदेश दिया—
    महाराज: "नमन, पूजा, विजय, लता! बच्चों को तुरंत जंगल से बाहर ले जाओ। उन्हें इंसानी दुनिया में पनपने दो। जब तक वे अपने पैरों पर खड़े होकर इस राज्य की रक्षा करने योग्य न बनें, तब तक वापसी मत करना।"

    अवनी रो पड़ी।
    अवनी: "लेकिन महाराज… अर्जुन को मैं कैसे दूर भेज दूँ?"

    महाराज ने उसके कंधे पर हाथ रखा।

    महाराज: "कभी-कभी माँ का प्यार त्याग बनकर ही बच्चे की ढाल बनता है।"

    चारों परिवार आँसुओं में डूबकर अग्निद्वार से निकले। बच्चों को गोद में लेकर वे इंसानी बस्ती में चले गए।


    ---

    जंगल में युद्ध जारी रहा। पर काली छाया में शक्ति कम थी इसलिए वह युद्ध बहुत बड़े स्तर पर नहीं था छोटे-मोटे युद्ध होते रहते थे काला साया इंसानों को पहले फुला के जंगल में भेजता था जंगल में कुछ ढूंढ रहा था अर्जुन के अलावा भी उसे कुछ चाहिए था जंगल से। महल पर छाया का साया गहराता गया। लेकिन दूसरी ओर, इंसानी बस्ती में चार बच्चे बड़े हो रहे थे—

    अर्जुन, अनंत और अवनी का बेटा—सबसे दृढ़ और साहसी। उसमें अपार शक्ति थी जंगल की शक्ति सारी शक्तियों को अपने बस में करने की शक्ति।

    रोहन, नमन और पूजा का बेटा—धरती जैसी शक्ति से भरा।

    अनुष्का, विजय और लता की बेटी—फूलों की आत्मा वाली।

    कारण, राज और वीना का पुत्र — इंसानी दुनिया का सबसे चतुर। इंसानों और जानवरों को दोनों को समझने की शक्ति उनके बीच में सामंजस्य बैठाना उनके मन की बात पता करना।


    सब एक-दूसरे के साथ बड़े हुए। उन्हें नहीं पता था कि उनका अतीत कितना महान और ख़तरनाक है। लेकिन किस्मत ने उन्हें पहले से चुन रखा था।

    आप सबके मन में भी बहुत सारे क्वेश्चंस होंगे मेरे डियर रीडर्स जिनमें सभी सवालों के जवाब एक दो एपिसोड में मिल जाएंगे पढ़ते रहिए.......

  • 18. चांदनी रात और सवालों की गूंज - Chapter 18

    Words: 1487

    Estimated Reading Time: 9 min

    जंगल में घुप्प अंधेरा छाया हुआ था। केवल चाँदनी की दूधिया रौशनी पेड़ों की चोटियों से छनकर नीचे आ रही थी। नदी का जल कलकल बहता हुआ गूँज पैदा कर रहा था। दूर कहीं उल्लू की हूट सुनाई देती, कभी पत्तियों की सरसराहट, कभी झाड़ियों में छिपे जानवरों की कराह जैसी ध्वनि।

    नमन ने जैसे ही अपनी लंबी कथा पूरी की, उसकी आँखों से आँसू बह निकले। आंखें पूरी लाल हो गई जैसे कुछ बहुत गहरा जख्म उसके आंखों में उभर आया हो। उसकी आवाज़ भारी हो चुकी थी। गला रूंध गया था। वह बस नदी की ओर देखता रह गया।

    उसकी साँसें भारी हो रही थीं। विजय ने कंधे पर हाथ रखा।
    विजय (धीरे से): “भाई… अब और मत कहो। तुम्हें खुद को सँभालना होगा। बच्चे सब सुन चुके हैं।”

    पूजा ने आँचल से नमन के आँसू पोंछे और धीरे से कहा—

    पूजा: “तुम्हारा दर्द हमारा भी है नमन… लेकिन बच्चों के सामने इतनी टूटन मत दिखाओ। उन्हें ताक़त चाहिए, तुम्हारे आँसू नहीं।”

    लता भी पास आकर बोली—
    लता: “हाँ नमन… हमें मजबूत दिखना होगा। वरना ये मासूम डर जाएंगे।”

    नमन ने कोई जवाब नहीं दिया। बस सिर झुकाकर खुद को शांत करने की कोशिश कर रहा था। अतीत का जख्म इतना गहरा था कि उसको थोड़ा समय तो लगा ही था।

    और उसी पल जंगल में एक अजीब-सी खामोशी छा गई।

    ⏳ लगभग 5 मिनट तक कोई कुछ नहीं बोला।

    सिर्फ पत्तों की सरसराहट, नदी की धारा, रात की ठंडी हवा और जानवरों की हल्की-सी आवाजें।

    बच्चों ने बार-बार एक-दूसरे को देखा। उनके चेहरे पर सवालों की आँधी थी, लेकिन होंठ सील गए थे। कुछ गुस्सा नाराज की उन्हें खुद समझ में नहीं आ रहा था कि क्या सच है क्या झूठ क्या उनकी पहचान ही पूरी धूमिल हो गई है या उन्हें नहीं पहचान मिलेगी बस इसी कशमकश में आखिरकार सबसे पहले चुप्पी तोड़ी रोहन ने।


    ---


    रोहन (धीरे से, आँखें झुकाकर):
    “पापा … क्या सच में हमारे अंदर शक्तियाँ हैं? आप कहते हैं कि हम सब खास हैं, लेकिन हमें तो कुछ महसूस ही नहीं होता। अगर हममें शक्ति है… तो कहाँ है वो?”

    नमन ने रोहन की ओर देखा, लेकिन होंठ नहीं खोले।

    अर्जुन (तेज़ आवाज़ में, थोड़ा गुस्से से) :-
    “और मेरा सवाल… क्या मेरे जन्म देने वाले और पालने वाले माँ-बाप अलग-अलग हैं? अगर हाँ… तो क्यों? मुझे क्यों छुपाया गया? क्या मुझे सच में छोड़ दिया गया था? मेरा तो पूरा वजूद ही हिल गया है मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं यह सब चीज तो मेरे से बर्दाश्त ही नहीं हो रही है ऐसा नहीं हो सकता”

    अर्जुन की आवाज़ काँप रही थी। उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं।

    अनुष्का (धीरे-धीरे बोलते हुए, रोने जैसी आवाज़ में) :-
    “तो क्या मेरी माँ… लता माँ… सच में फूलों की आत्मा हैं ? और मैं? मेरे भीतर कौन-सी शक्ति है? मैं क्यों अलग महसूस करती हूँ? क्या आप लोग जो बोल रहे हैं वह सच है!”

    प्रिया (जिज्ञासा से, लगभग हकलाते हुए) :-
    “लेकिन… मेरा क्या? मेरे माँ-बाप का नाम तक आपने नहीं लिया। क्या मैं भी… किसी का बच्चा हूँ? या मैं… अकेली हूँ? मेरा इस सब से क्या रिश्ता है?”

    कारण (सबसे शांत, लेकिन गहरी आवाज़ में):
    “अगर हमारे भीतर शक्तियाँ हैं… तो वे दिख क्यों नहीं रहीं? क्या हममें इतना साहस नहीं? या फिर… किसी ने जानबूझकर हमारी शक्तियाँ छीन ली हैं?”
    अर्जुन :- आप लोग तो बोल रहे हैं कि 25 साल पुरानी बातें पर हम लोगों की उम्र तो सिर्फ 18 ही साल है।

    कारण :- जो कुछ भी है हमें बताइए हम क्या सच माने और क्या झूठ माने।
    रोहन :- आप सब की बातों पर विश्वास करने का तो मन करता है पर उसका कोई आधार तो बताएं हमें बहुत कुछ हमने जंगल में आकर देखा है पर हमें हमारे अंदर तो ऐसा कुछ विशेष समझ में नहीं आ रहा है।

    सब के पास सवाल बहुत थे।और जब आप सिर्फ उनकी माता-पिता के पास में था। पर कोई भी अभी जवाब देने की हालत में नहीं था।सभी बड़ों की हालत खराब थी। उनका अतीत था ही इतना भयानक। उनका सबसे अजीज दोस्त अनंत अवनी वह उनकी हालत की कल्पना भी नहीं कर सकते थे।

    ---

    सवालों की झड़ी लग गई।

    बच्चों की आँखों में आँसू, गुस्सा और डर सब मिला हुआ था। वे सब एक साथ नमन की ओर देख रहे थे।

    लेकिन नमन बस मौन रहा। उसकी आँखें भीग चुकी थीं। गला भर आया था। वह जवाब देना चाहता था, पर शब्द गले में अटक गए।

    वह ज़मीन पर बैठ गया। दोनों हाथों से चेहरा ढक लिया। उसके कंधे काँप रहे थे।ऐसा लग रहा था वह अपना अतीत की कर वापस आया हो और वह इतना भयानक था।


    ---

    😢 नमन का टूटना

    पूजा ने नमन को सँभालने की कोशिश की।
    पूजा: “बस करो बच्चों… तुम लोग समझ क्यों नहीं रहे?

    नमन ने अपनी जान पर खेलकर तुम्हें सच बताया है। हर सवाल का जवाब अभी नहीं मिल सकता।”

    विजय ने गंभीर स्वर में कहा—
    विजय: “हाँ। सब कुछ एक साथ जानना सुरक्षित नहीं है। सही समय आएगा… तब सब पता चलेगा। लेकिन अभी नमन को मत तोड़ो।”

    लता ने अर्जुन के सिर पर हाथ रखा।

    लता: “बेटा… सब्र रखो। हम तुम्हें सच से दूर नहीं रखेंगे। लेकिन तुम्हारी शक्तियों को जागने का समय अभी नहीं आया।”

    लेकिन बच्चे शांत नहीं हो रहे थे। उनके दिल में आग जल रही थी।
    कारण :- (थोड़ी गुस्से में चिल्लाते हुए )समय समय समय कब आएगा इस समय बस सबसे एक ही बात पूछ सुनने को मिल रही तुम समय आएगा तब तुम्हें बताएंगे समय आएगा तब तुम्हें बताएंगे।



    अचानक… पास के अंधेरे से एक तेज़ भेड़िये की दहाड़ गूँजी।

    “आऊऊऊऊउउउउउउउउउ!!!”

    पूरा जंगल काँप उठा। नदी की लहरें हिल गईं। पंछी डरकर उड़ गए।

    युवराज—वह विशाल भेड़िया—अंधेरे से निकलकर चाँदनी में आ गया। उसकी आँखें आग की तरह लाल चमक रही थीं। उसके दाँतों की चमक डर पैदा कर रही थी।

    वह गरजा—

    युवराज:
    “बस! चुप रहो सब!! क्या लगाकर रखा है? हर कोई सवाल पर सवाल कर रहा है।”

    बच्चे डरकर पीछे हट गए।

    युवराज ने अपनी भारी आवाज़ में कहा—

    “तुम सबको जवाब चाहिए… हाँ, मिलेगा। लेकिन अभी नहीं। सच का सामना करने की ताक़त चाहिए। और वो ताक़त तुममें अभी नहीं है।
    सब्र रखो… समय आएगा, और तुम्हारी शक्तियाँ खुद तुम्हें पुकारेंगी। तब सवाल नहीं करना पड़ेगा, जवाब खुद सामने होगा।
    सुबह का फल हमेशा मीठा होता है… और तुम सब अभी रात के अंधेरे में हो। इंतज़ार करो।”

    युवराज की आवाज़ ऐसी थी कि बच्चे काँप गए। अर्जुन ने मुट्ठी भींच ली, लेकिन कुछ नहीं बोला।

    रोहन, अनुष्का, कारण और प्रिया सब धीरे-धीरे शांत हो गए।
    युवराज :- चलो आधी रात हो गई यह सब लोग सोने चलो बाकी की बातें कल होगी।

    बच्चे नदी के किनारे जाकर बैठ गए। चाँदनी लहरों पर चमक रही थी। हल्की ठंडी हवा बह रही थी।

    रोहन (धीरे से):
    “हमने सोचा था कि हमारी ज़िंदगी सामान्य होगी। लेकिन देखो… सब उल्टा है।”

    अनुष्का:
    “हाँ… सच जानने की चाहत अब और बढ़ गई है। पर दिल में डर भी है।”

    प्रिया (आँखों में आँसू लेकर):
    “मेरा तो कोई नहीं है… शायद।”

    अर्जुन (गुस्से में):
    “हम सबके साथ खेल हुआ है। लेकिन अब और छुपाया गया तो बर्दाश्त नहीं करूँगा।”

    कारण (धीमे स्वर में, पर दृढ़):
    “सवालों के जवाब हमें खुद ढूँढने होंगे। किसी के बताने से पहले हमें अपनी शक्तियाँ जगानी होंगी। तभी सच्चाई सामने आएगी।”
    रोहन :- मुझे लगता है हमें थोड़ा सा भी रखना चाहिए पापा सब बता देंगे बस थोड़ा उनको भी समझो।

    अनुष्का :- रोहन सही बोल रहा है हमें थोड़ा खुद को शांत रखना होगा।

    बच्चों ने एक-दूसरे की ओर देखा। उनके चेहरों पर डर, दर्द और जिद सब साफ था।



    उधर दूसरी ओर, नमन अब भी रो रहा था।

    पूजा ने उसे गले लगाया।
    पूजा: “नमन plz … टूटो मत। बच्चों के लिए तुम्हें मज़बूत रहना होगा।”

    विजय: “नमन… तुम्हारे आँसू देखकर दुश्मन खुश होगा। याद रखो, हमारी अगली पीढ़ी को हमें तैयार करना है।”

    लता ने कहा—
    लता: “युवराज सही कहता है। समय आएगा, और बच्चे खुद जानेंगे। तब तक हमें इन्हें बचाना है।”

    युवराज ने भारी स्वर में कहा—
    “हम सबने बहुत खोया है। अब और खोने का वक्त नहीं है। ये बच्चे ही आने वाले समय की ढाल हैं। इन्हें अभी मज़बूत बनाओ, वरना काला साया इन्हें निगल जाएगा।”

    नमन ने आँसू पोंछे। उसकी आँखों में दृढ़ता लौटी।
    नमन: “हाँ… तुम सब सही कहते हो। मैं अब नहीं टूटूँगा। मैं अपने बच्चों को सच के लिए तैयार करूँगा।”


    🌙 चाँदनी रात अब और गहरी हो गई थी।
    नदी बह रही थी।
    पेड़ों की शाखाएँ हवा में डोल रही थीं।
    और आने वाले कल का डर सबके दिलों में बैठ चुका था।

    पर एक बात साफ थी—
    अब बच्चों का सफ़र शुरू हो चुका था।
    और बच्चों को अपने सवालों के जवाब ढूंढने के लिए एक नहीं रहा निकाल ली थी और जल ही उन्हें अपने सवालों के जवाब मिलने वाले थे और शुरू होने वाली थी एक नई जंग........ .....

  • 19. शहर की तरफ वापसी ?????? - Chapter 19

    Words: 1492

    Estimated Reading Time: 9 min

    सुबह का समय था। जंगल की हवा अब कुछ हल्की-सी ठंडी महसूस हो रही थी। रात भर की घटनाओं और नमन की दर्द भरी कहानी ने सबके दिलों को भारी कर दिया था। पेड़ों की पत्तियाँ धीरे-धीरे हिल रही थीं, पक्षियों की चहचहाहट वातावरण में गूँज रही थी। लेकिन बच्चों की आँखों में अभी भी बेचैनी और सवालों का तूफ़ान चल रहा था।

    नमन नदी किनारे बैठा चुपचाप पत्थर पर अपनी हथेलियाँ रगड़ रहा था। पूजा और विजय पास में थे, लेकिन उनके चेहरे पर भी गहरी थकान और दुःख साफ झलक रहा था। बच्चे धीरे-धीरे उसके आस-पास इकट्ठे हो गए।

    ---

    बच्चों के सवाल

    रोहन (संकोच से): “पापा … कल रात आपने जो सब बताया, उससे मेरे मन में और भी सवाल उठ गए हैं। ये शक्तियाँ… आखिर हमें मिली ही हमें महसूस नहीं हो रही क्यों?”

    अर्जुन (कुछ झुंझलाते हुए): “हाँ! और हमारे माता-पिता ने हमें इसके बारे में कभी क्यों नहीं बताया? अगर ये सब पहले से पता होता तो हम इतने डरे हुए नहीं रहते।”

    प्रिया (धीरे से): “क्या हम भी उसी खतरे का हिस्सा हैं, जिससे आप सब इतने सालों से लड़ रहे हो?”

    अनुष्का (गला रुंधते हुए): “मेरा तो मन करता है भाग जाऊँ… लेकिन अब लग रहा है कि कोई रास्ता ही नहीं बचा।”

    पूजा (गुस्से में): “सच बताइए अंकल, क्या मेरे पापा-मम्मी को सब पता है? या वो भी बस सामान्य इंसानों की तरह हैं?”

    ---

    नमन बच्चों को सुन रहा था, लेकिन उसकी आँखें कहीं दूर अतीत में अटकी हुई थीं। उसकी उँगलियाँ बार-बार काँप रही थीं। पूजा ने उसका कंधा दबाया और धीरे से बोली –

    पूजा: “कुछ मत बोलो अभी। तुम्हारे ज़ख्म अभी ताज़ा हैं।”

    विजय: “बच्चो, तुम्हें सब कुछ सही समय पर पता चलेगा। अभी सब्र रखो।”

    युवराज की दहाड़

    तभी अचानक पास के जंगल से एक गहरी, भयावह आवाज़ गूँजी। पेड़ हिल उठे, हवा में सन्नाटा छा गया।

    युवराज (गहरी आवाज़ में): “बस! सवालों की बारिश अभी बंद करो। जिस समय पर जो जानना होगा, तब सब मिलेगा। सब्र सीखो। ये लड़ाई तुम्हारे बचपने के लिए नहीं है। रात भी वही सब था। सुबह होते ही फिर चालू हो गए सब्र ही नहीं है

    ये बच्चों में क्या ही यह जंगल का भविष्य लिखेंगे”

    बच्चे डरकर चुप हो गए। युवराज का चेहरा आधा इंसानी और आधा भेड़िये का था। उसकी आँखों से अजीब-सी चमक निकल रही थी।

    अर्जुन (धीरे से, काँपते हुए): “हम… हम सिर्फ़ जानना चाहते थे…”

    युवराज (कड़क आवाज़ में): “जानना चाहते हो? तो जान लो – तुम्हारा सफ़र अभी शुरू ही हुआ है। लेकिन अगर डर गए, तो यही सफ़र तुम्हें निगल जाएगा। इसलिए चुपचाप तैयारी करो और भरोसा रखो। सब्र करोगे तभी काम होगा परेशान होंगे तो खुद भी तकलीफ में रहोगे और हमें भी तकलीफ में होगी ओर तुम लोग कुछ नहीं कर पाओगे ”

    पूरी टोली पर गहरा सन्नाटा छा गया। सिर्फ़ नदी का कलकल बहना और पेड़ों की सरसराहट सुनाई दे रही थी।

    ---

    नमन ने धीरे-धीरे साँस ली और बच्चों की तरफ देखा।

    नमन: “अब वक़्त आ गया है कि तुम सब अपने-अपने घर जाओ। अपने माता-पिता से मिलो। उन्हें बताओ कि हम से जंगल से लौट आए हैं। पर ध्यान रहे – अपनी शक्तियों और असली सफ़र की बात किसी से मत कहना। यह जंगल रहस्य बहुत बड़ा है।”

    रोहन:- ( थोड़े गुस्से में ) यह क्या बात हुई पापा आप तो कह रहे थे कि हमें एक नई जंग लड़नी है।

    पूजा :- रोहन बहुत हो गया अब पापा से तरीके से बात करो इस तरह से गुस्सा होने से कुछ नहीं होगा।

    प्रिया: “तो… अब हम वापस नहीं आएँगे क्या ?”

    अर्जुन :- ( पूरा झुंझलाकर )"अंकल आप बताइए क्या करना है कुछ समझ नहीं आ रहा है कभी आप कहते हैं कि यह जंगल ही हमारा असली घर है कभी आप अब आप कह रहे हैं कि हम अपने घर वापस जाएं।'

    कारण :- (अपने सर पर हाथ रखकर ) मेरा तो सर घूम रहा है कुछ समझ में नहीं आ रहा है कभी कुछ बोलते कभी-कभी बोलते हैं। "

    अंकल :- "क्या हम जंगल वापस आएंगे?"

    नमन: “ तुम सबके सवालों का जवाब है अभी नहीं अभी हम सिर्फ वापस शहर जा रहे हैं”

    अर्जुन :- " तो क्या हम अभी यहां से जा रहे हैं फिर इस जंगल की रक्षा और मेरे असली माता-पिता का क्या होगा"

    विजय:- " अर्जुन शांत रहो और नमन जो बोल रहा है वह सुनो बहुत हो गया तुम लोगों का सवाल और बहुत हो गए तुम लोगों की बातें"

    कारण :- " ठीक है"

    अपने दोस्तों को लेकर एक साइड चल जाता है और कहता है और वह लोग आपस में बातें करते हैं।

    करण:- " मुझे नहीं लगता यह लोग हमें कुछ बताएंगे।"

    प्रिया :- " हां कारण तुम सही कह रहे हो "

    अर्जुन :- ( अफसोस में अपनी गर्दन हिलाते हुए )" तो अब क्या करें ? क्या हम शांत बैठ जाए ?अगर इन्होंने हमें कुछ बताना ही नहीं था तो फिर यह सब क्यों बताया?"

    अनुष्का :- " अभी हमारे पास उनकी बातें मानने के अलावा कोई और उपाय नहीं है इसलिए मुझे लगता है जैसा नमन अंकल कर रहा है हमें वैसा करना चाहिए "

    रोहन :- " मैं भी अनुष्का की बात से सहमत हूं पापा अगर हमें कुछ नहीं बता रहे हैं तो हो सकता है समय आने पर बताएं इसलिए अब हमें अपने आप को शांत करना चाहिए और जैसा वह बोल रहे हैं वैसा करना चाहिए"

    वहीं दूसरी तरफ जहां सब बड़े बैठ कर बात कर रहे थे।

    नमन:- " क्या मुझे बच्चों को उनके सवालों के जवाब देना चाहिए?"

    पूजा :- " नमन तुम परेशान मत हो और अभी समय नहीं आया पहले हमें उन्हें तैयार करना है।"

    विजय :- " पूजा सही कह रही है अभी वक्त है और तुमने देखा नहीं बच्चे कितने ज्यादा उतावले हो रहे हैं सब जानने के लिए सबसे पहले तो उन्हें धीरज करना सीखना होगा"

    लता :- ' युवराज क्या तुमने भी बच्चों को नहीं पहचाना'

    सब लोग लता की बात सुनकर युवराज की और देखने लगते हैं।

    युवराज :- " सही बताओ तो दिल तो कर रहा था कि यह आपने ही कोई है। पर दिमाग कर रहा था, कि यह कैसे हो सकता है। तुमको तो पता है सब बच्चों पर जादू किया हुआ था "

    नमन :- (हां मैं गर्दन हिलाते हुए ) तुम तो जानते हो जादू किसने किया था और थोड़ा सा मुस्कुरा देता है।

    पूजा :- चलो तुम कुछ तो नॉर्मल हुए नमन।

    विजय :- अब हमें चलने की तैयारी करनी चाहिए।

    नमन :- "आज नहीं चल चलेंगे आज बच्चों को थोड़ा सा शांत हो जाने दो और जंगल के मजे लेने दो।"

    लता :- (सब बच्चों की और आकर बोलता है ) बच्चे लोग हम लोग कल जंगल से वापस शहर की ओर रवाना होंगे आज तुम जंगल का मजा ले लो।

    सब बच्चे सहमति में सिर हिलाने लगे।

    थोड़ी देर में सभी लोग पास की नदी में स्नान करके रेडी हो जाते हैं। जंगल के एक दिन के सफर के लिए उन को पता था कि कल सुबह होते ही उनको वापस शहर जाना है और पता नहीं वह आगे क्या होने वाला है?

    नमन, पूजा, विजय, लता युवराज सभी बच्चों के पास आकर बैठ गए।

    विजय :- लगता है बच्चे लोग हमसे नाराज है।

    अनुष्का,:- ( घूर के अपने पापा को देखते हैं )" आप ही बताइए ना पापा नहीं होना चाहिए क्या नाराज।"

    विजय:- ( उसका को गले लगा के ) " आप तो मेरी राजकुमारी है ना चलिए उदास मत हुए आज हम आपको जंगल की सैर करेंगे "

    अनुष्का:- ( खुश होते हुए ) " पापा फिर हम यही जंगल में रहेंगे हम शहर वापस नहीं जाएंगे"

    विजय:- ( अपने बालों पर हाथ फेरते हुए ) " बेटा सिर्फ आज के लिए जंगल घूमना है कल हमें शहर वापस जाना है"

    अनुष्का :- (थोड़ा नाराज होते हुए) पापा मुझे जंगल को और नजदीक से देखना है यहां के बारे में जादू के बारे में सब कुछ सीखना है।

    लता ( अनुष्का के गालों पर हाथ फिरते हुए ) " हां बेटा हम जानते हैं तुमको सब सीखना है पर सीखने के लिए थोड़ा समय है। क्या तुम्हें अपने माता-पिता पर विश्वास नहीं है हम कभी तुम्हारा बुरा नहीं चाहेंगे।"

    अनुष्का :-( अपने दोनों हाथों से अपने दोनों कानो को पकड़ते हुए) आई एम सॉरी माँ आपसे आप सही कह रही है आप हमसे ज्यादा हमारा भला चाहते हैं।

    और यह बात के सभी बच्चे कान पकड़ लेते हैं और उनसे माफी मांगते हैं।

    करुण :-( खुश हो कर ) चलो कम से कम एक दिन तो हम जंगल घूमेंगे ही।

    प्रिया:-( अपने पेट पर हाथ रखते हुए) पहले पेट पूजा हो जाए फिर जंगल घूमेंगे।

    प्रिया को देखकर हंसने लगते हैं युवराज बहुत सारे फल लेकर आ जाता है जिससे सभी लोग फल कहते हैं और फिर निकलते हैं जंगल के सेर के लिए।

    क्या वाकई में की लोग एक दिन बाद शहर चले जाएंगे?

    भविष्य की करने छुपा है कोई राज.......

    यह तो पता चलेगा आपको नेक्स्ट एपिसोड में

  • 20. जादूई जंगल - Chapter 20

    Words: 1536

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुबह की सुनहरी धूप अब पेड़ों की शाखाओं पर उतर आई थी। ओस की बूँदें पत्तियों पर चमक रही थीं, मानो किसी ने छोटे-छोटे हीरे टाँक दिए हों। नदी के किनारे सबने फल खाकर थोड़ा आराम किया और अब नमन ने बच्चों की तरफ मुस्कुराकर देखा।

    नमन (धीरे से): “आज का दिन खास होगा। कल हमने बहुत भारी बातें कीं, लेकिन आज मैं चाहता हूँ कि तुम सब अपनी आँखों से उस जादू को देखो जो हमारे भीतर है, और इस जंगल की असली खूबसूरती को महसूस करो।”

    बच्चे उत्सुक हो उठे। अर्जुन की आँखों में हल्की चमक आई, रोहन ने तुरंत कान खड़े कर दिए मानो अभी कोई बड़ा रोमांच होने वाला हो। अनुष्का और प्रिया एक-दूसरे का हाथ कसकर पकड़कर खड़ी थीं, जबकि कारण बार-बार इधर-उधर झाँक रहा था। जैसे देखा रहा हो की कहाँ हैं जादू ........

    🌍 नमन का धरती का जादू :-

    नमन ने अपनी हथेली ज़मीन पर रखी। उसकी आँखें बंद हो गईं और अचानक पूरे जंगल की धरती में हल्का कंपन होने लगा। बच्चे डरकर पीछे हटे।

    प्रिया (घबराकर): “भूकंप आ रहा है क्या?”

    नमन (मुस्कुराते हुए): “नहीं बेटा… ये भूकंप नहीं, धरती का संगीत है।”

    धीरे-धीरे ज़मीन पर हरी-हरी बेलें उग आईं। वे बेलें बच्चों के पैरों के पास से लिपटती हुई ऊपर उठीं और पलभर में उन्होंने एक ऊँचा, हरा-भरा मंच बना दिया। बच्चे आश्चर्य से उस पर चढ़ गए।

    जैसे ही वे ऊपर पहुँचे, धरती हिलकर और ऊपर उठ गई। अब वे पेड़ों की ऊँचाई से भी ऊपर थे। सामने पूरा जंगल फैला था—कहीं झरने, कहीं पहाड़, तो कहीं हरे-भरे मैदान।

    अर्जुन (आश्चर्य से): “वाह! ये तो जैसे पूरा नज़ारा किसी नक्शे की तरह खुल गया है!”

    अनुष्का (खुशी से उछलते हुए): “इतने सारे रंग! मैंने तो सोचा था जंगल बस पेड़ों से भरा होगा, पर ये तो किसी सपनों की जगह जैसा है।”

    नमन ने धीरे से बच्चों से कहा—

    नमन: “याद रखो, ये धरती सिर्फ़ मिट्टी और पत्थर नहीं है। ये जीवित है, धड़कती है। अगर तुम इससे जुड़ना सीख जाओगे तो ये तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेगी। तुम इस कोई मान दोगे तो तुम कोई बहुत सारा प्यार देगी ”

    धरती ने अचानक बच्चों के सामने अलग-अलग रूप दिखाने शुरू कर दिए। कहीं पर खेत जैसे हरे मैदान, कहीं चमकती गुफाएँ, तो कहीं लाल मिट्टी के पहाड़ कही घास की मैदान तो कही शहर की झलक।

    प्रिया :- "वो देखो कितना सारा खाना धारी पे।"

    अनुष्का:-( एक तरफ हाथ दिखाते हुए ) " नहीं, वो देखो फूलो क बगीचा।"

    कारण :-( कंधे उचकाते हुए ) " मुझे तो मैदान दिखा रहा हैं कसरत के लिए "

    अर्जुन :-"तुम सब कुछ भी बोल राहे हो मुझे तो बहुत ही शानदार महल दिखा रहा हैं। "

    रोहन (उत्साहित होकर): “पापा! क्या ये धरती हमसे बात कर रही है? जैसे हम जो सोच रहा हुँ मुझे वो दिखा रहा हैं ”

    नमन: “हाँ रोहन। अगर तुम दिल से सुनो तो धरती हर सवाल का जवाब देती है। जो तुम सोचो के वहाँ नकाशा दिखा देती हैं ”

    अर्जुन :- " मतलब अभी हम जहाँ चाहे जा सकता हैं इस तरह?"

    नमन :- ( ना मेँ सर हिलाते हुए )"अर्जुन ऐसे नहीं होता तुम इस जो देखा राहे हैं इस क कारण मेँ हुँ मेरी सकती की कारण तुम सब ये देखा सकते हो "

    कारण :- ( परेशान होते हुए )" मतलब समझ नहीं आया "

    नमन :- आज तुम सब लोग जो भी जादू देखोगे उस के श्रोत हम लोग हैं हम चाहते हैं की तुम लोग देखो पर तुम लोग दुशरों की शक्ति से ज्यादा देर तक नहीं देखा सकते उस के लोया तुम लोग के पास अपनी शक्ति होना चाहिए।

    अर्जुन :- ( खुश हो कर ) कब मिलेगी हम कोई।

    नमन :- अभी नहीं।।.।

    सब बच्चे मायूस हो जाते हैं।

    पूजा :- या सब छोड़ो भविष्य के लिए प्रेजेंट को क्यों खराब करना।

    विजय :- चलो इस पल कोई जिओ......

    सब बच्चे हाँ हैं सर हिलाकर देखने लगाते हैं

    इतने सुन्दर नज़ारे देख बच्चे मंत्रमुग्ध हो गए। थोड़ी देर बाद नमन ने हाथ उठाया और धरती का कंपन थम गया। मंच धीरे-धीरे नीचे आकर सामान्य हो गया।

    ---

    🌬️ पूजा की हवा का जादू

    अब पूजा आगे बढ़ी। उसने मुस्कुराते हुए बच्चों की तरफ देखा।

    पूजा: “तुमने धरती को देखा, अब आसमान से मिलने का समय है।”

    उसने आँखें बंद कीं और अपने हाथ आसमान की ओर फैलाए। अचानक ठंडी, सुगंधित हवा का झोंका आया। बच्चों के कपड़े और बाल उड़ने लगे। हवा ने धीरे-धीरे बच्चों को ऊपर उठाना शुरू कर दिया।

    प्रिया (चीखते हुए): “अरे! मैं उड़ रही हूँ!”

    करण (डरकर): “अरे पकड़ो मुझे… गिर जाऊँगा!”

    पूजा (हँसते हुए): “मत डरना… हवा तुम्हारी दोस्त है।”

    अब सब बच्चे आसमान में उड़ रहे थे। नीचे पूरा जंगल खिलौनों की तरह छोटा लग रहा था। दूर पहाड़, चमकते झरने और राजपूती किले जैसे पुराने खंडहर साफ दिखाई दे रहे थे।

    अर्जुन (रोमांच से): “ये देखो! वो किला तो बिल्कुल कहानियों वाला लग रहा है।”

    अनुष्का (हवा में घूमते हुए): “ये तो किसी सपने से भी खूबसूरत है।”

    पूजा ने बच्चों को और ऊपर उठाया। अब बादल उनके पास थे। एक सफ़ेद बादल में हाथ डालते ही प्रिया हँस पड़ी।

    प्रिया: “ये तो रूई जैसी है! कितनी मुलायम।”

    रोहन: “मुझे लग रहा है मैं पक्षी बन गया हूँ।”

    पूजा ने धीरे-धीरे सबको नीचे उतार दिया। लेकिन बच्चों की आँखों में आसमान की वो सैर हमेशा के लिए छप गई थी।

    ---

    🌳 विजय की पेड़ों की दुनिया

    अब विजय आगे आया। उसकी आँखों में अपनापन और गर्व दोनों थे।

    विजय: “अब बारी है तुम्हें जंगल के असली मालिकों से मिलवाने की—पेड़।”

    उसने अपने हाथ से पास खड़े एक विशाल बरगद के पेड़ को छुआ। अचानक पेड़ की जड़ें हिलने लगीं और उसकी शाखाएँ नीचे झुककर बच्चों के सामने आ गईं।

    अनुष्का (डरी हुई): “ये… ये पेड़ हिल कैसे रहा है?”

    विजय (मुस्कुराते हुए): “क्योंकि ये सुन रहा है तुम्हें।”

    पेड़ ने अपनी शाखाओं से बच्चों को धीरे-धीरे ऊपर खींच लिया। अब बच्चे शाखाओं पर झूल रहे थे जैसे झूले हों। चारों तरफ रंग-बिरंगे फल लटक रहे थे।

    प्रिया (फल तोड़कर खाते हुए): “म्म्म… ये तो शहद जैसा मीठा है!”

    करण: “वाह! ये पेड़ तो हमारी भाषा समझते हैं।”

    विजय ने समझाया—

    विजय: “पेड़ सिर्फ़ ऑक्सीजन नहीं देते। ये हमारी रक्षा करते हैं, हमारी कहानियाँ याद रखते हैं। अगर तुम ध्यान से सुनो तो इनके पत्तों की सरसराहट में भी ज्ञान छिपा होता है।”

    अचानक पास का बांस का जंगल हवा से गुनगुनाने लगा। बच्चों को लगा जैसे कोई बाँसुरी बज रही हो।

    अनुष्का (आँखें फैलाकर): “पापा , ये… ये संगीत है?”

    विजय: “हाँ बेटा। जंगल का संगीत।”

    बच्चे मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे।

    ---

    🌸 लता की फूलों की जादुई बगिया

    अब लता धीरे-धीरे बच्चों के बीच आई। उसके हाथ में एक छोटी-सी कलिका थी।

    लता (प्यार से): “अब मैं तुम्हें दिखाऊँगी कि सुंदरता में भी जादू होता है।”

    उसने कलिका को बच्चों के सामने रखा और फूँक मारी। अचानक उसके चारों तरफ़ असंख्य फूल खिल उठे—गुलाब, कमल, चंपा, गेंदा, ऐसे फूल जिनके रंग बच्चों ने कभी देखे ही नहीं थे।

    फूलों ने धीरे-धीरे मिलकर एक बगिया बना दी। चारों तरफ़ इतनी खुशबू फैल गई कि बच्चे खो से गए।

    अनुष्का (आँखें चमकाते हुए): “वाह माँ! ये तो किसी परियों की दुनिया जैसी है।”

    प्रिया (खुशबू में साँस भरते हुए): “मुझे लग रहा है मैं उड़ रही हूँ।”

    लता ने हाथ फैलाए और अचानक फूलों ने आकार बदलकर अलग-अलग आकृतियाँ बना दीं—कभी तितलियाँ, कभी मोर, कभी हंस। बच्चे ताली बजाकर हँस पड़े।

    करण (हैरानी से): “ये तो खिलौनों जैसा है… पर असली!”

    लता: “हाँ बेटा। फूल सिर्फ़ सुंदर नहीं होते, ये हमें सिखाते हैं कि जीवन खुशबू और रंगों से भरा है।”

    ---

    🐺 युवराज की बारी

    जैसे ही बच्चे मस्ती में डूबे थे, अचानक झाड़ियों से कुछ सरसराहट हुई। बच्चे चौंक गए। तभी युवराज अपने आधे-भेड़िये वाले रूप में सामने आया।

    सब बच्चे डर गए

    प्रिया :- जोर से चीला कर रोहन की गले लोग गई।

    अनुष्का:- डर से काँप रही थी।

    अर्जुन ओर कारण के चौक गए थे। की

    युवराज (गरजती आवाज़ में): “डरो मत… मैं हूँ।”

    उसकी आँखें चमक रही थीं।

    अर्जुन (धीरे से): “युवराज अंकल… आप ऐसे क्यों दिख रहे हैं?”

    युवराज: “क्योंकि इस जंगल में खूबसूरती के साथ-साथ खतरे भी हैं। तुम्हें दोनों का सामना करना सीखना होगा। याद रखो, जादू सिर्फ़ खेल नहीं है। ये ज़िम्मेदारी है।”

    बच्चे चुप हो गए। रोमांच के बीच उन्हें एहसास हुआ कि यह सफ़र आसान नहीं होने वाला।

    ---

    पूरा दिन हँसी, मस्ती और जादुई अनुभवों में बीता। शाम होते-होते सब नदी किनारे लौट आए। आकाश लाल और सुनहरा हो चुका था।

    प्रिया (थकी लेकिन खुश आवाज़ में): “आज का दिन… मेरी ज़िंदगी का सबसे सुंदर दिन था।”

    अर्जुन (गंभीर होकर): “हाँ… लेकिन अब समझ में आया कि हमें मज़े से ज़्यादा ज़िम्मेदारी निभानी है।”

    अनुष्का: “मुझे लगता है हम सब धीरे-धीरे इस जादुई दुनिया का हिस्सा बन रहे हैं।”

    रोहन: “और मैं वादा करता हूँ कि मैं अब सवालों से ज़्यादा सब्र करूँगा।”

    करण (मुस्कुराते हुए): “हाँ… लेकिन कल और एडवेंचर होना चाहिए।”

    सब हँस पड़े।

    नमन ने बच्चों को देखा और संतोष की साँस ली।

    नमन: “शाबाश बच्चों। यही असली शुरुआत है। पर कल बापसी जी

    हैं।”

    बच्चे उदास हो गए पर उनके दिलों में आज का जादुई दिन हमेशा के लिए छप गया।......

    अभी रात बाकि हैं..........

    plz follow me