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तुझ संग प्रीत लगाई

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Archana

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कहानी समय और प्रतीक्षा की! कहते हैं प्रतीक्षा हमेशा ही जुड़ी होती है समय से, जिसने सही समय तक, समय की प्रतीक्षा की प्रतिष्ठा उसी का मुकद्दर बनी। कभी-कभी आसान से दिखने वाली राह पर भी हजारों मुश्किल होती है और इन मुश्किलों का पता तब चलता है जब इ...

Total Chapters (21)

Page 1 of 2

  • 1. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 1

    Words: 1113

    Estimated Reading Time: 7 min

    समय मल्होत्रा, उम्र 27 साल हाइट 6 फीट 2 इंच! मल्होत्रा इंडस्ट्रीज का अगला वारिस। पर पूत के पांव पालने में ही पहचाने जाते हैं।  समय ने अपने पिता राजीव मल्होत्रा का पूरा बिजनेस समय से ही संभाल लिया था।  बस ऑफीशियली अनाउंसमेंट बाकी थी। मिस्टर राजीव मल्होत्रा अपने इस बेटे की काबिलियत पर हमेशा नाज करते थे। क्योंकि समय ने हर समय उन्हें इसके लिए एक ठोस वजह दी थी वह जिस भी काम में हाथ लगाता था उसे पूरा कर कर ही दम लेता था इंपॉसिबल और ना जैसे शब्द उसके डिस्कनरी में नहीं थे। आज भी वह लगभग इंपॉसिबल समझी जाने वाली एक डील को कंफर्म करके लगभग 1 महीने के बाद वापस अपने देश  लौट रहा था हालांकि इसके पहले भी वो कई बार इस तरह के दौरे पर जा चुका था लेकिन इस बार सफल कुछ लंबा ही हो गया था। यह डील सच में बहुत ही मुश्किल थी। राजीव जी ने यहां तक कहा था कि अगर ना हो सके तब भी खुद को परेशान करने की कोई जरूरत नहीं है।  हम कुछ दूसरा देख लेंगे लेकिन समय अपने धुन का पक्का था।  समय ने दिन रात मेहनत करके इस डील को अपने नाम लिखवाया था। और एक असंभव काम को संभव करके दिखा दिया था। डील कंफर्म होने का की सूचना उसने पहले ही फोन पर अपने डैड को दे दी थी और इस जीत को लेकर वह बहुत खुश थे।  पर समय सच में इस बार बहुत थक चुका था। और अभी तो इस प्रोजेक्ट पर काम करना बाकी ही था जो कि अपने देश में होने वाला था।   अपने देश की सर जमीं पर पैर रखते ही उसे एक सुकून का एहसास हुआ और एक खूबसूरत मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आ गई थी। तीखे नाक नक्स, मरदानी गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आंखों पर घनी पलकों के साए! हल्की सेट की हुई बियरड के बीच जब यह खूबसूरत गुलाबी होंठ मुस्कुराए तो उन्होंने न जाने कितने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था। कितनी लड़कियों का दिल उसके लिए धड़क चुका था और यहां पर मौजूद लड़कियां तो बस ठंडी आह भर के रह गई थी। क्योंकि एयरपोर्ट से निकलते ही जिस तरह से सिक्योरिटी गार्ड्स ने उसके आसपास घेरा बनाया था।  सबको समझ में आ चुका था कि यह इंसान उनकी पहुंच से ऊपर की चीज है। और उसमें भी मीडिया की फ्लैशलाइट!! जो कि उससे संबंधित एक छोटी से छोटी न्यूज़ भी लेने के लिए बेसब्र हो रहे थे। मीडिया के सवाल लगातार जारी थे, पर सिक्योरिटी गार्ड किसी को भी उसे तक पहुंचने नहीं दे रहे थे। इन सभी चीजों को इग्नोर करते हुए समय ने अपने चेहरे की मुस्कुराहट अपने कोल्ड एक्सप्रेशन में दबाई और सधे हुए कदम बढ़ाते हुए अपनी गाड़ी के सामने आया।  ड्राइवर गाड़ी लेकर पहले ही खड़ा था और सिक्योरिटी गार्ड ने तुरंत उसके लिए दरवाजा खोल दिया।  गाड़ी में बैठते ही समय ने एक गहरी सांस छोड़ी और अपनी घड़ी की तरफ देखा।   इस समय शाम के 6:00 बज रहे थे। ऑफिस का टाइम लगभग समाप्त ही हो गया था। समय के बैठते ही दूसरी तरफ से उसका असिस्टेंट आकर गाड़ी में बैठा। " कंग्रॅजुलेशन सर!" उसने एक फूलों का बुके समय की तरफ बढ़ते हुए कहा। थैंक यू कहते हुए समय ने एक उड़ती हुई नजर असिस्टेंट के हाथ में लिए हुए बुके पर डाली।  असिस्टेंट की हिम्मत भी नहीं हुई कि वह बुके समय को दे सके।  तभी ड्राइवर ने पूछा ,"सर आप किधर चलेंगे?" उसके इस सवाल पर समय ने अपनी एक भौह टेढ़ी की।  बैक मिरर से देखता हुआ ड्राइवर चुप हो गया। लेकिन कुछ देर के बाद उसने हिम्मत करके कहा। " वह बड़े साहब ने कहा है कि आपकी जैसी मर्जी हो वैसा ही!" " हूं... डैड कहां है इस वक्त?" समय ने अपने साथ बैठे हुए अपने असिस्टेंट से पूछा। " सर तो फिलहाल ऑफिस में हीं आपका इंतजार कर रहे हैं।  पर उन्होंने कहा है कि अगर आप घर जाना चाहे तो वह घर में ही आपसे मिलना ज्यादा पसंद करेंगे। " असिस्टेंट ने जवाब दिया। " ठीक है! तो घर की तरफ ले लो।  मैं डैड से बात कर लेता हूं। " असिस्टेंट से जवाब मिलने के बाद समय ने कहा। ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी और समय में अपना फोन निकलते हुए अपने असिस्टेंट की तरफ देखा। " तुमको भी मेरे साथ मेरे घर चलना है क्या?" डरते हुए असिस्टेंट में तेजी से न में सर हिलाया और अपनी तरफ का दरवाजा खोलकर उतरने लगा। " डैड को तुम्हें फोन करके बोल दो कि मैं घर जा रहा हूं और यह बुके लिए कहां जा रहे हो?" समय ने उसके हाथों को देखते हुए पूछा।  असिस्टेंट की सांस तो ऊपर की ऊपर नीचे के नीचे रह गई थी। " जब यह मेरे लिए लेकर आए थे तो इसे यही छोड़ जाओ। " समय ने कहा। " यस सर, थैंक यू फॉर एक्सेप्टिंग ईट।" असिस्टेंट ने बहुत सावधानी से समय के पास वाली सीट पर वह फूलों का खूबसूरत गुलदस्ता रखा और खुद वहां से निकल कर अपनी दूसरी गाड़ी में बैठ गया।  ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। असिस्टेंट के जाने के बाद समय ने धीरे से इस फूलों के गुलदस्ते को छुआ।  जिसमें खूबसूरत खिले हुए लाल गुलाब लगे हुए थे।  इन गुलाब की पंखुड़ियां को देखकर उसे किसी के गुलाबी होंठ याद आए। उन होठों का याद आना था कि उसने समय के होठों पर मुस्कुराहट ला दी। एक साया आंखों के आगे लहराया और एक खूबसूरत गुलाबी आंचल!!  जिसने कड़ी धूप में ठंडी छांव की अनुभूति दे दी। " बस अब बहुत हो गया! अब जल्दी मैं मॉम डैड से बात कर तुम्हें हमेशा हमेशा के लिए अपना बना लूंगा। अपनी प्रीत का जो अंदाज मैंने तुमसे आज तक नहीं कहा। अब समय आ गया है कि मैं वह सब कुछ तुमसे कह डालूं, आखिर इन पर तुम्हारा हक है। " अपने मन में यह सोचकर समय मुस्कुरा दिया। उसके दिमाग में आने वाले दिनों का ताना-बाना बन रहा था। यह एक तरफा चाह थी, जो न जाने कितने सालों से उसके दिलों में पल रही थी।  अपनी मोहब्बत की राह में कोई भी रुकावट नहीं दिख रही थी। पर कभी-कभी आसान से दिखने वाली राह पर भी हजारों मुश्किल होती है और इन मुश्किलों का पता तब चलता है जब इंसान इन राहों का मुसाफिर बन जाता है और अंत अंत तक मंजिल के लिए भटकता ही रह जाता है।   यह प्रीत इतनी ही आसान होती तो किशन को राधा से अलग क्यों होना पड़ता? यह आखें ख्वाब दिखाती हैं, उस हसीं के मुझे। जो देखती भी नहीं है, निगाह भर के मुझे । जाने क्या दिल में मेरे है समाई जो मैंने!!! तुझ संग प्रीत लगाई। हर हर महादेव 🙏

  • 2. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 2

    Words: 1048

    Estimated Reading Time: 7 min

    गाड़ी अपने गंतव्य की तरफ बढ़ती चली जा रही थी। गाड़ी जैसे ही उसके बंगले की स्ट्रीट की तरफ दाखिल हुई।  ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी। " क्या हुआ?" समय ने पूछा उसका घर स्ट्रीट में चौथे नंबर पर था। " सर ,वो बाहर। " ड्राइवर समय के गुस्से से अच्छी तरह से परिचित था इसलिए कुछ बोलने से पहले इस भीड़ को हटाना चाहता था ड्राइवर हॉर्न पर हॉर्न दिए जा रहा था पर सामने जो कोई भी था शायद वह हटाने का नाम नहीं ले रहा था। बेहद कोफ्त के साथ समय ने अपने साइड की खिड़की का शीशा नीचे किया और सामने का मंजर देखकर उसका मूड एकदम ऑफ हो गया। बिल्कुल सामने प्रीत रोड पर अपने ही उम्र के साथ लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने में मगन थी।  उस लड़की को बिल्कुल भी होश नहीं था कि वह कहां है? समय ने एक उड़ती हुई नजर उसके हुलिए पर डाली।  उसका हुलिया तो पहले ही उसका जी जलाता था। एक ऐसी लड़की जिसे खुद को लड़की करने से भी इनकारी थी और उसी का नमूना सामने दिख रहा था।   लड़कों वाली शर्ट और जींस! वो भी  घुटनों तक कटी हुई, जिससे कि उसके गोरे-गोरे पैर बाहर दिखाई पड़ रहे थे।  पांव में केवल धूल और मिट्टी के कारण अपना रंग छोड़ चुके ब्रांडेड जूते। खुद से भी बेपरवाह, कंधों से नीचे तक आते हुए बाल जिन्हें की एक रबर बैंड से ढीली पोनी के रूप में पीछे बांधा गया था पर फिर भी बाल इतने छोटे थे कि वह आगे निकलकर उसके चेहरे पर झूल रहे थे। इतनी तेज गर्मी में उसका गोरा रंग बिल्कुल लाल हुआ था और पसीने से शर्ट आधी भीगी हुई थी।  अपने हाल से बिल्कुल बेहाल हुई इस बात से भी बेपरवाह थी कि वह कौन है और क्या कर रही है? इस समय जो प्रीत का हुलिया था वह उसके स्टेटस से बिल्कुल मैच नहीं खा रहा था। "समझ में नहीं आ रहा है कि यह लड़की सच में इसी मोहल्ले की है या फिर किसी और दूसरे ग्रह से आई है!" समय प्रीत को देखकर यही सोचता था। और उसका सोचना भी किसी भी एंगल से गलत नहीं था।  जहां पर कि उसकी उम्र की लड़कियां अपने पहनने ओढ़ने से लेकर अपने ऊपर हजार ध्यान देती थी।  वहां प्रीत इस मामले में बिल्कुल अलग थी।  शायद इस लड़की को खुद लड़की करने से भी इनकार थी और समय को यह चीज बहुत चिढ़ मचाती थी।  समय ने बहुत मुश्किल से अपने ऊपर जप्त लगाया था। वह रोड की खाली होने का इंतजार कर रहा था ताकि आगे अपने मंजिल तक जा सके लेकिन इधर क्रिकेट का मैच भी अपने आखिरी रोमांचक पड़ाव पर था जिसके कारण इतना तेज शोर था कि किसी ने भी ड्राइवर के लगातार बजाते हुए हॉर्न पर भी ध्यान देना जरूरी नहीं समझा था।  ऊपर से फिल्डिंग कर रहे एक लड़के ने तो बाकायदा ड्राइवर को हाथ ऊपर करके रुकने का इशारा किया। " क्यों हमारा सारा खेल बर्बाद करना चाहते हो?"लड़के ने पूछा। यह समय का छोटा चचेरा भाई आयुष था। जिसने बोलने के बाद गाड़ी पर नजर डाली और नजर गाड़ी पर नजर पड़ते ही उसके आधे शब्द मुंह में ही रह गए थे। " हे भगवान! समय भाई की एंट्री हमेशा गलत समय पर क्यों होती है?" आयुष की हिम्मत तो समय के ऊपर नजर डालने की भी नहीं हुई थी।  वह जहां खड़ा था, वही चुपचाप खड़ा रह गया। पर अब तो समर का समय का जप्त भी जवाब देती दिया। वह तेजी से अपनी तरफ का दरवाजा खोलकर बाहर निकाला। समय को बाहर निकलते देखकर सबसे पहले आयुष को होश आया , वह उल्टे पांव वहां से भाग निकला और देखते ही देखते उस साइड का पूरा रोड खाली हो गया था। लेकिन ठीक उसी वक्त एक तेज बाल उसकी तरफ आई समय ने हाथ बढ़ाकर उसे गेंद को अपने हाथ में ले लिया अगर थोड़ा सा भी ध्यान इधर-उधर रहता तो गेंद अब तक उसके चेहरे का नक्शा बिगाड़ गया रहता। "अरे क्या कर रहा है आयुष? ढंग से फील्डिंग भी नहीं हो सकता तुझसे ?हम इस छक्के के कारण मैच हार गए। " यह बोलने वाला समय का छोटा भाई साहिल था लेकिन उसके भी आधे शब्द उसके मुंह के अंदर ही रह गए थे जब उसकी नजर समय के हाथ में पड़ी हुई गेंद पर गई। समय ने एक कड़ी निगाह साहिल के ऊपर डाली।  साहिल वही स्टैचू सर झुका कर खड़ा हो गया और बाकी के सारे लड़के समय को सामने देखकर पतली गली से निकल गए थे।   अब रोड पर केवल प्रीत और समय ही बचे थे। समय ने गुस्से से बैटिंग कर रही प्रीत की तरफ देखा।  अब चेहरे का एंगल बिगड़ने की बारी प्रीत की थी।  जिसकी चेहरे पर बेचारगी के भाव थे।  यह अंतिम बॉल थी जिस पर उसे चार रन चाहिए थे और उसने छक्का मारा था। अपने इस जबरदस्त छक्के पर वह उछलकर कूदने वाली थी, पर बीच में ही समय के हाथों उसकी गेंद कैच हो जाने के कारण मुकाबला ना हारा गया था नहीं जीता गया था।  बीच में ही रह गया।   " इस जिन्न को भी बिना चिराग के इसी वक्त प्रकट होना था। इस अंतिम गेंद के बाद नहीं प्रकट हो सकते थे ? " उसने बेहद अफसोस के साथ अपना सर हिलाया लेकिन समय ने गुस्से में एक जलती हुई नजर प्रीत के ऊपर डाली और गेंद में हाथ लिए हुए बड़े-बड़े कदम उठाता हुआ सामने प्रीत के घर की तरफ चल पड़ा। " ओह नो!!" समय को घर के अंदर जाते हुए देखकर प्रीत के प्राण बीच में ही रुक गए थे।  अब तो जबरदस्त क्लास लगने वाली थी। " खैर, जो भी होता है! अच्छा ही होता है और अच्छे के लिए ही होता है।  अच्छा ही हुआ घर के अंदर चले गए   वरना बीच रोड पर तो अपनी इज्जत का जनाजा मुझे भी मुझे भी अपने मासूम कंधों पर उठाते हुए बर्दाश्त नहीं होता। " अफसोस से सर हिलाते हुए प्रीत ने अपने कंधे उसका दिए।  तभी उसकी नजर साहिल पर पड़ी जो कि दांत दिखा रहा था। " ज्यादा दांत मत दिखाओ।  मेरे बाद तुम्हारा ही नंबर आने वाला है। " कह कर प्रीत बैट वहीं पर छोड़कर अंदर घर की तरफ चल पड़ी।  जहां किसी भी वक्त उसके नाम की पुकार लग सकती थी। हर हर महादेव 🙏

  • 3. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 3

    Words: 1398

    Estimated Reading Time: 9 min

    Enjoy reading समय ने गुस्से से एक भरी नजर प्रीत के ऊपर डाली और उसी गुस्से में दनदनाते हुए शेरगिल हाउस में आया। सारे क्रिकेट के खिलाड़ी जो कि समय को देखकर आसपास छुप गए थे समय के हटते ही वह सारे प्रकट हो गए और उन सब की निगाहें अब प्रीत के ऊपर थी सब की आंखों में प्रीत के लिए अफसोस था।  प्रीत ने अफसोस से अपना सर हिलाते हुए आंखें बंद कर ली थी। शेरगिल हाउस प्रीतम शेरगिल का घर,  जहां प्रीतम शेरगिल अपनी मां और अपनी दो बेटियां प्रीति और प्रीति के साथ रहते थे। अंदर ड्राइंग रूम में ही प्रीत की दादी निर्मला जी मिल गई।  इतने दिनों के बाद समय को देखकर उनके चेहरे पर एक खूबसूरत मुस्कुराहट आ गई थी। " कैसे हो समय! कब आए तुम? " वह बहुत ही सौम्य मुस्कुराहट के साथ समय का स्वागत करने के लिए अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई लेकिन उसके गुस्से से तमतमाय हुए चेहरे को देखकर वह कुछ सोच में पड़ गई लेकिन जब उनकी नजर समय के हाथ में लिए हुए गेंद पर पड़ी तो उन्हें भी सारा माजरा समझ में आ गया था।   अब तो उनसे कुछ बोला ही नहीं जा रहा था लेकिन उन्होंने बात संभालने के लिए समय को बैठने का इशारा किया। " इतना बड़ा कांटेक्ट लेकर आने के बाद तुम्हारा बहुत-बहुत स्वागत है।  आओ बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं। " इधर समय निर्मला जी के शांत व्यवहार को देखकर उनसे कुछ नहीं कह सका। गेंद हाथ में लिए ही उसने निर्मला जी के आगे अपने दोनों हाथ जोड़ दिए। " नमस्ते दादी मां! मैं बस अभी-अभी आ रहा हूं और आते ही आते जबरदस्त स्वागत हुआ है। " अब तो निर्मल जी जो उससे उसके ट्रिप के बारे में पूछना चाहती थी कुछ बोल भी नहीं सकी।  तब तक समय ने वहीं पर काम कर रहे नौकर को आवाज दी। " मोहन मोहन!" " यस सर!" मोहन हाथ बांधकर खड़ा हुआ। " जाओ प्रीत को  बाहर से बुलाकर लाओ। "   इसके पहले की मोहन बाहर निकलता खुद प्रीत अंदर आ चुकी थी पर सामने खड़ी दादी मां और समय को देखकर वह समझ चुकी थी कि अब आगे क्या होने वाला था? " अब तक तो अच्छी खासी चुगली लग चुकी होगी। हे भगवान! बस आज भर बचा लेना।  अगली बार से वादा करती हूं कि जब इस जिन्न के आने का समय होगा, तब मैं कभी भी सड़क पर क्रिकेट नहीं खेलूंगी। " प्रीत में बहुत बेचारगी से अपने मन में सोचा लेकिन उसके हिलते हुए होठ समय को अच्छी तरह से बता रहे थे की प्रीत मन ही मन उसे कोस रही है। समय की जलती हुई नजर अपनी तरफ देखकर प्रीत ने अपनी जीभ तेजी से दबाते हुए  अपनी आंखें जोर से बंद कर ली। " हो गया सियाप्पा!!" वह किसी भी पल इस मंजर से गायब होना चाहती थी। लेकिन कमरे तक भी कैसे जाए ऊपर उसके कमरे की तरफ जाने वाली सीडीओ का रास्ता ड्राइंग हॉल से होकर था और ड्राइंग हॉल के बीचों बीच सोफे पर समय बैठा हुआ था। " हे भगवान! तुम्हें मुझ मासूम पर तरस नहीं आता।  अगर मेरे मोहल्ले में इस अलादीन के जिन्न को रखना था तो मुझे भी एक सुलेमानी अंगूठी या सुलेमानी चादर दे देते।  इस समय मेरे पास कोई ऐसी जादुई अंगूठी होती जिससे कि मैं पलक झपकते यहां से गायब हो जाती! तो कम से कम लेक्चर सुनने से बच जाती। " लेकिन अफसोस! उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं था। वह बहुत ख़ामोशी से दबे पांव वहां से निकलना चाहती थी लेकिन समय ने उसकी अगली चाल समझ ली थी वह सीधे उसके सामने जाकर खड़ा हुआ।  अब तो प्रीत के पास भगाने के लिए कोई रास्ता भी नहीं था सिवाए खामोशी से उसका लंबा चौड़ा लेक्चर सुनने के!! अभी वह अपने दिल में अपने भगवान से अपने लिए इसकी हिम्मत मांग रही थी कि अचानक से समय की तेज आवाज उसके कानों में पड़ी। " कितनी बार समझाया है तुम्हें! बाहर सड़क पर निकाल कर लड़कों के साथ मत खेला करो। और वह भी नौकरों के बच्चों के साथ।  आखिर तुम्हारी समझ में कोई बात आती क्यों नहीं है ?" " क्यों नौकरों के बच्चे इंसान नहीं होते हैं क्या?" प्रीत की तरफ से तुरंत जवाब आया। जिस जवाब का निर्मला जी ने उसे घूर कर देखा और प्रीत को होठों पर उंगली रखने का इशारा किया। प्रीत ने चुपचाप अपना सर जब झुका लिया और अपनी जीभ को दांतों तले दबा ली। " मेरा ही दिमाग खराब रहता है।  यह बात जानती हूं कि अगर मैं एक बोली तो यह सौ सुनाएंगे तो फिर उस एक को मुंह से निकलने से रोक क्यों नहीं पाती?" प्रीत जवाब देना चाहती नहीं थी लेकिन समय की बात पर जबान फिसल ही जाती थी। "बिल्कुल होते हैं इंसान!! पर वह एकेडमी एफोर्ड नहीं कर सकते इसलिए वह रोड पर खेलते हैं लेकिन तुम एकेडमी एफोर्ड कर सकती हो। अगर खेलने का इतना ही शौक है तो अपनी एकेडमी में प्रेक्टिस किया करो।  रोड गाड़ियों के आने जाने के लिए बनी है।  तुम्हारी गेम के प्रैक्टिस के लिए नहीं। " वह गुस्से में चिल्लाते हुए बोल रहा था। पर प्रीत का मन तो सीधा उसका गला दबाने का ही हो रहा था। लेकिन सामने दादी मां खड़ी थी जो की अपनी आंखों से घूर रही थी कि कोई बदतमीजी मत करना। तो प्रीत में भी उन्हें आंखों से ही जवाब दिया कि इन्हें रोक लीजिए वरना.... मुझे सुनाएंगे तो सुनेंगे भी। " छोड़ दो बेटा मैंने हीं उसे रोड पर जाने के लिए कहा था।  वरना घर के सारे गमले तो इसके क्रिकेट के भेंट चढ़ गए हैं। " निर्मला जी ने बीच बचाव करते हुए कहा लेकिन इसको सुनकर तो समय का पारा और गर्म हो गया। " कभी एक फूल या पौधा अपने हाथों से लगाया नहीं होगा लेकिन उनको बर्बाद करने में सबसे आगे रहती हो आखिर कब समझोगी तुम यह सब!!" समय की बात सुनकर तो प्रीत का मुंह हैरत से खुला रह गया। "सारे गमले मैंने ही लगाए थे और मैं ही खरीद कर लाई थी !" प्रीत के होठों पर जवाब था पर अब वह बोलकर अपने लिए कोई मुसीबत नहीं खड़ी करनी चाहती थी।  इधर समय बोलते बोलते रुक गया था।  अगले कुछ पलों तक समय की कोई आवाज नहीं आई थी तो प्रीत को कुछ हैरानी सी हुई। " क्या हुआ बोलते बोलते सो गए या फिर इन के सारे शब्द खत्म हो गए?," प्रीत का झुका हुआ सर तेजी से ऊपर उठा। सामने खड़ा समय समय को भूलकर प्रीत के पीछे देख रहा था और इस तरह से देख रहा था जैसे की वहां रखी हुई चीज को उसने पहले कभी नहीं देखा इस समय समय के चेहरे पर एक अलग ही भाव था पर प्रीत के दिमाग में कुछ खटका सा हुआ। " ऐसा क्या देख लिया इन्होंने मेरे पीछे? जो की यह बोलना तो दूर अपना मुंह बंद करना भी भूल गए।  ऐसा क्या है मेरे पीछे?"   समय की नजरों का पीछा करते हुए जब प्रीत ने अपनी गर्दन उस तरफ घुमाई तो अपने कमरे से निकलती हुई प्रीति पर उसकी नजर गई। प्रीति, प्रीत की बड़ी बहन थी और वह समय की ही हम उम्र थी।  प्रीत के होठों पर मुस्कराहट आ गई और उसने अपना सर हिला दिया। इधर  प्रीति पर नजर पड़ते ही समय प्रीत का सारा गुस्सा भूल गया था।  क्या कहने वाला था और क्या करने आया था? उसे अब कुछ याद ही नहीं था।  यहां तक की यह भी याद नहीं था कि वह खुद कहां पर खड़ा है?  प्रीति उसके हवासों पर इसी तरह से अपना कब्जा डालती थी और इतना समय प्रीत के लिए यहां से निकलने के लिए काफी था।  उसने अपनी एक थैंक्यू से भरी नजर अपनी बड़ी बहन की तरफ डाली और झटके से वहां से निकलने लगी पर जाते-जाते एक अफसोस से भरी मुस्कुराती हुई नजर नजर समय पर डालना भी नहीं भूली थी। "भगवान जाने इस मोहब्बत का क्या अंजाम होना है? लेकिन ऊपर वाला जो भी करता है।  वह बेहतरीन करता है।  जैसे इस समय उसने प्रीती दीदी को भेज कर मेरे हक में बेहतर ही किया है। " अपनी जीत की खुशी मनाते हुए प्रीत वहां से नौ दो ग्यारह हो गई। और समय!! उसका तो दिमाग प्रीति को देखकर गायब हो चुका था लेकिन दिल की धड़कन भी रुक कर अपने ना होने का एहसास दे रही थी। हर हर महादेव 🙏

  • 4. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 4

    Words: 1061

    Estimated Reading Time: 7 min

    मल्होत्रा हाउस आज मल्होत्रा हाउस में बहुत ही हलचल थी समय की इस दिल के कंफर्म करने के कारण मल्होत्रा हाउस में एक पार्टी हो रही थी। जिस मे की प्रीतम शेरगिल भी अपने पूरे परिवार के साथ आने वाले थे। एक लंबे टूर से आने के बाद समय का मन इस पार्टी के लिए बिल्कुल नहीं था लेकिन अपने डैड राजीव जी के कारण आज उसे इस पार्टी का केवल हिस्सा ही नहीं बनना था बल्कि सेंटर आफ अट्रैक्शन वही था। सही समय पर मेहमानों का आना-जाना शुरू हो गया था।  राजीव जी अपनी पत्नी रीमा जी के साथ खुशी-खुशी सारे मेहमानों का स्वागत कर रहे थे तो साहिल अपने दोस्तों के साथ बातें कर रहा था। साथ में एक सबसे अच्छा मेजबान भी बना हुआ था। नीचे लॉन में आकर समय ने पूरी नजर अपने परिवार वालों पर डाली थी।  सब के सब व्यस्त थे और आज सबको समय से ही मिलना था, पर समय मन मारते हुए जबरदस्ती की मुस्कान होठों पर सजाए हुए एक-एक करके सबसे मिल रहा था।    इधर रीमा जी को तो अपनी किटी की सहेलियों में बिजी थी।  एक सहेली का बेटा इतना ग्रेटर अचीवमेंट लेकर आया था तो अब सभी को अपनी शादी की योग्य बेटियों के लिए दूल्हा उसमें दिख रहा था पर यह दूल्हा अपनी दुल्हन के इंतजार में खड़ा था। उसके अलावा समय का मन किसी के साथ लगना भी नहीं था। " अरे समय इधर आओ।  देखो मिसेज मेहता तुमसे मिलना चाहती हैं। " रीमा जी ने आवाज लगाई। समय अपने आसपास से खड़े लोगों को देखा।  यहां पर खड़ा होकर भी तो बोर हो रहा था।  वहां जाकर और होना था।  पर यहां से निकलने का इसके अलावा कोई अच्छा मौका नहीं मिलने वाला था।  अपने साथी दोस्तों को एक्सक्यूज मी कहते हुए समय वहां से आगे बढ़ गया। उम्मीद के मुताबिक ही मिसेज मेहता को उसे नहीं मिलना था बल्कि मिसेज मेहता ने अपनी बेटी से मिलवाने के लिए उसे वहां बुलाया था। पर शायद उनकी बेटी को समय से मिलने की और भी ज्यादा जल्दी थी।  समय के इधर आते ही उनकी बेटी निशा समय के गले से लग गई।  " यह लड़की गले मिल रही है या फिर जबरदस्ती गले पड़ रही है?"  अपने मन में सोचते हुए समय ने आसपास के माहौल का ध्यान रखते हुए धीरे से उसे अपने से अलग किया। लेकिन इन मैडम को तो जैसे अपनी बॉन्डिंग दिखानी थी।  उन्होंने समय का एक हाथ पकड़ा और अपने दोनों हाथों में पकड़ कर दबा लिया जैसे कि अब छोड़ेंगी ही नहीं! "यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे स्टाइल में! " थोड़ा दूर रहकर भी खड़ी हो सकती हो। मैं कोई फेविकोल नहीं जो तुम चिपकी जा रही। " समय ने हल्के से दांतों को दबाते हुए निशा से कहा। " हां तुम ऐसा कह सकते हो क्योंकि पहले मुझे भी ऐसा ही लगता था।  पर आज तो पर्सनैलिटी ही तुम्हारी दूसरी है।"  निशा की आंखों में प्रसन्नता के साथ-साथ प्रशंसा के भाव थे लेकिन समय की आंखें आग उगल रही थी।  उसे भी यह चिपको आंदोलन और यह चिपको प्रकृति वाले लोग बिल्कुल पसंद नहीं आते थे। " क्यों मैं बदल गया हूं या फिर मेरी पर्सनालिटी बदल गई है?" " तुम तो बिल्कुल नहीं बदले लेकिन हां पर्सनैलिटी काफी पहले से निकल गई है।" यह निशा मैडम भी कम नहीं थी। अभी समय और कुछ चिढ़ कर जवाब देता कि बीच में बोलने की आवाज सुनाई पड़ी। "लगता है कि दोनों बच्चे पहले से एक दूसरे को पहचानते हैं मिल चुके हो क्या तुम दोनों?" मिसेज मेहता बोली। मन में अंगारे चबाते हुए खाली होठों से समय मुस्कुरा दिया। " मैं निशा को बहुत पहले से जानता हूं आंटी। " "हां तो और अच्छे से जानो पहचानो ना! हम भी तो यही चाहते हैं कि तुम दोनों एक दूसरे को अच्छे से पहले और अभी भी समझ लो। " समय के शब्दों में उसका गुस्सा समझकर बात संभालते हुए रीमा जी ने कहा। समय ने एक बोरिंग सा चेहरा बनाते हुए अपनी मम्मी की तरफ देखा जो कि अपनी आंखें छोटी करते हुए उसे निशा को अपने साथ ले जाने के लिए बोल रही थी। " मुझे एक जरूरी काम है, डैड से। मैं मिलकर आता हूं। " अब समय ने यहां से भी बहाना बनाकर निकलने की कोशिश की। रीमा जी अभी उसे रोकती और मिसेज मेहता ने भी अपना मुंह खोला ही था कि वह कुछ बोले, उसके पहले ही समय उल्टे पांव वहां से निकल पड़ा। वहां से निकलते ही उसने एक साइड में जमी महफिल पर नजर डाली।  इसके सेंटर आफ अट्रैक्शन उसके दोनों भाई थे। एक उसका छोटा भाई साहिल और दूसरा उसके चाचा का बेटा आरुष। यह दोनों प्रीत के हम उम्र थे और उसी के साथ ही इस साल इन दोनों का भी एमबीए कंप्लीट हुआ था। न जाने किस बात पर इतनी फुलझड़ियां छूट रही थी कि समय के कलेजे में आग ही लग रही थी। समय ने गुस्से से भरी एक नजर उन दोनों के ऊपर डाली। " वैसे तो इन दोनों की बातें और इन दोनों का कोई भी काम प्रीत के बिना पूरा नहीं होता, जाने कैसे आज महफिल जमा कर बैठे हैं?" समय में अपने आसपास नजर घुमाई। कहने के लिए तो उसके सारे दोस्त ही यहां पर इनवाइटेड थे।  पर वह दोस्त कौन थे? यह समय अच्छे से जानता था। वैसे भी अब बचपन के दोस्त यहां रह कहां गए थे? सारे के सारे बिजनेस फ्रेंड थे और बिजनेस फ्रेंड केवल कहने के लिए फ्रेंड होते हैं।  "मुख में राम बगल में छुरी!"  जाहिर ही सब तो उसकी खुशी में शामिल होने आए थे लेकिन सबके मन में जो चल रहा था।  समय इससे अनजान नहीं था। एक मौका! और सब उसे बिजनेस में टेकओवर करने के लिए आस लगाए थे और शायद यही वजह से की समय का मन इस बिजनेस पार्टी में बिल्कुल नहीं लग रहा था। उसकी नजर दरवाजे पर जमी हुई थी।  बड़े से लोन में पार्टी का इंतजाम किया था और समय गेट की तरफ टकटकी लगाकर देख रहा था कि कब उसके दिल की मेहमान गेट से एंट्री ले। पर जाने क्यों आज देर हो रही थी! वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं जबकि मैं भी यह जानता हूं कि अभी हक नहीं मेरा उस पर। फिर भी, जाने क्या सोच कर मैंने! तुझ संग प्रीत लगाई। हर हर महादेव

  • 5. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 5

    Words: 1183

    Estimated Reading Time: 8 min

    शेरगिल हाउस प्रीतम शेरगिल का राजीव मल्होत्रा के साथ बिजनेस में कॉरपोरेशन था। 10 साल पहले उनकी पत्नी का ब्लड कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से देहांत हो गया था।  उनके इलाज में काफी पैसा भी लगा था और उसके बाद प्रीतम जी के दिल को एक अफसोस ने घेर लिया था धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा था।  स्वास्थ्य सही नहीं रहने के कारण प्रीतम जी बिजनेस में ज्यादा ध्यान नहीं लगते थे।  जिसके कारण उनके परसेंटेज लगातार गिरते जा रहे थे दोस्ती तो उनकी राजीव जी के साथ अच्छी थी पर धीरे-धीरे वह आर्थिक रूप से पिछड़ते जा रहे थे। प्रीतम जी की दो बेटियां थी।  प्रतीक्षा और प्रतिष्ठा। जो की प्रीति और प्रीत के नाम से पुकारी जाती थी। बड़ी बेटी प्रीति जिसने की पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर की डिग्री लेने के बाद और भी कई सारी डिग्रियां अपने पास जोड़ी थी और फिलहाल में गवर्नमेंट जॉब कर रही थी। वह एक अच्छे कॉलेज में लेक्चरर के पोस्ट पर थी।  उसका बिज़नेस से कोई रिलेशन नहीं था। और वही छोटी वाली प्रीत ने इसी साल अपना एमबीए कंप्लीट किया था। इसमें कोई शक नहीं था कि उनकी दोनों बेटियां सुंदर और होने के साथ-साथ प्रतिभाशाली भी थी लेकिन दोनों दो दिशाएं थी।  प्रीति जहां अपने पहने पढ़ने से लेकर चलने बोलने और अपने हर काम को करने के सलीके के लिए सबकी पसंदीदा थी तो प्रीत इस मामले में बिल्कुल लापरवाह थी।  " जो जैसा डिजर्व करता है,  उसको वैसा ही ट्रीटमेंट दो।"   प्रीत के जीवन का यही फंडा था जबकि प्रीति अपने सोच समझ कर बोलने वाले और कम बोलने वाले व्यवहार के कारण सबकी गुड बुक में थी तो प्रीत मुंह पर जैसे को तैसा सुना कर निकल लेती थी। बाकी पीछे से कोई उसे कोसते रहे तो कोसते रहे। आधी दुनियां के लोग तो भगवान को भी कोसते हैं, इंसान क्या चीज है? रंग रूप में भी दोनों बहनों का यही हाल था।  प्रीति जहां पर सबके लिए एक आइडियल साबित होती थी तो प्रीत के नंबर इस मामले में भी अलग ही थे।  रंग रूप देने में ऊपर वाले ने दोनों बहनों को कमी नहीं की थी। खूबसूरत रंग और तराशे हुए नैन नक्श! तो दोनों बहनों को विरासत में एक जैसे ही मिलते जुलते ही मिले थे लेकिन प्रीति जहां अपने इस रंग रूप को अपनी मेहनत से निखार लेती थी तो प्रीत लापरवाह थी।  प्रीति के बाल लंबे खूबसूरत और चमकदार थे।  शरीर के एक-एक अंग को कैसे संवार कर रखना है? उसे आता था तो प्रीत के बाल कंधे तक आते थे जो कि हमेशा एक ढीली पोनी के रूप में ऊपर बंधे रहते थे।  आवारा लटें चेहरे पर झूलती रहती थी तो कपड़ों के मामले में जींस शर्ट और नाइक के जूते के अलावा उसे कुछ पसंद ही नहीं आता था। " क्या बात है लड़कियों आज जाना नहीं है क्या? यहीं पर सुबह करने का इरादा है?" हॉल में आकर निर्मला जी ने प्रीति और प्रीत को आवाज लगाते हुए कहा।  प्रीतम शेरगिल पहले से ही वहां बैठे हुए थे। " मैं तैयार हूं दादी मां! जो देर करती है, उनसे पूछिए।" कहते हुए प्रीत आकर प्रीतम जी के पास खड़ी हो गई।  उसके एक हाथ में उनकी मेडिसिन थी तो दूसरे हाथ में पानी का गिलास लेकिन प्रीत के हुलिए को तो देखकर निर्मला जी ने अपना सर पीट लिया। " आज भी इस लड़की को ढंग के कपड़े नहीं मिले।" डार्क ब्लू जीनियस की जींस और उसके ऊपर जयपुरिया शॉर्ट कुर्ता! जिसके गले के आसपास खूब सुंदर एंब्रॉयडरी की हुई थी। शुक्र बस इतना था कि पोनी नहीं बनी थी, बाल इस वक्त कंधे पर झूल रहे थे। उन्होंने कुछ कहने के लिए मुंह खोला था। " मैं भी आ चुकी हूं, दादी मां। " ठीक उसी समय प्रीति की आवाज सुनाई पड़ी। निर्मला जी ने एक नजर उसके ऊपर भी डाली।  लॉन्ग घेरदार पार्टी ग्राउन पहने हुए प्रीति इस समय सुंदरता की मूरत लग रही थी। अपने लंबे बाल उसने खोल रखे थे और चेहरे पर भी हल्का मेकअप किया हुआ था। हल्की ज्वेलरी के साथ ओवरऑल कांबिनेशन बहुत खूबसूरत लग रहा था। जबकि प्रीत के होठों पर बस नेचुरल कलर का लिप ग्लॉस था। और कानों में छोटे-छोटे बुंदे! जो की न जाने कब उसकी मां ने ही बनवा कर जबर्दस्ती कान में डाले थे।  अब तो निर्मला जी के गुस्से के बादल प्रीत के ऊपर फटने के लिए तैयार थे। " अब चलिए भी! कुछ देर पहले तक देरी का शोर मचा रही थी और अब जैसे जाना ही नहीं है।  मैंने चाबी ले ली है।" प्रीतम जी को दवा देकर अपनी उंगलियों में चाबी घूमाते हुए प्रीत बोली। " इसी हुलिए में जाओगी?" ना चाहते हुए भी बोल ही पड़ी। यह भी जानती थी कि इसका प्रीत पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। " हां तो इसमें क्या खराबी है?" प्रीत ने मुंह बनाते हुए अपने पापा की तरफ देखा। वह भी जानती थी कि अब तुरंत दादी मां का जो लेक्चर शुरू होगा वह नॉनस्टॉप पार्टी में पहुंचने तक चालू ही रहेगा। प्रीतम जी भी प्रीत की नजरों का इशारा समझ कर मुस्कुरा दिए और तब तक निर्मला जी की बातें शुरू हो गई। " क्या मजाल है जो यह लड़की कभी लड़कियों की तरह रह ले। कुछ देख लो! कुछ सीख लो ,अपनी बड़ी बहन से। " "रहने दीजिए मां।  हमारी दोनों बेटियां ऐसे ही प्यारी लगती है। बस नजर नजर का अंतर है। वैसे भी जो दुनिया की रीत से चले तो वह प्रीत कहां?" अंतिम बात को शुरू होने से पहले ही प्रीतम जी ने खत्म करने के लिए कहा और यहीं पर प्रीत को अपने फेवर में एक सपोर्ट मिल गया था। " वही तो पापा समझाइए दादी मां को! प्रीत न जाने दुनिया की रीत!" पापा को अपने पेपर में बोलते हुए देखकर प्रीत बहुत खुश हो गई लेकिन उसकी एक खुशी तुरंत निर्मला जी ने आसमान से उठाकर जमीन पर पटक डाली। " हां तुम दुनिया की उलटी रीत चलाना। यहां पर तो सही है पर अपने घर जाओगी तो क्या करोगी? कह रही हूं प्रीतम! अपनी बेटी को अभी भी संभाल लो।  वरना इनके जो लक्षण है ना! जिस दरवाजे से जाएंगी , उसी दरवाजे से वापस भी आना हो जाएगा। " निर्मला जी प्रीत पर गुस्सा करते हुए बोली। " अब रहने भी दीजिए दादी मां।  वह छोटी है।  समय आने पर समझ जाएगी। " प्रीति बीच बचाव करते हुए बोली। " छोटी-छोटी कह कर तो तुमने तुम दोनों ने इसका दिमाग और सर पर चढ़ा रखा है।  पूरे 22 साल की हो गई लेकिन अक्ल 20 पैसे भर की नहीं आई है। भगवान जाने यह लड़की कब खुद को बदलेगी?" " जो बदल जाए हम वह जमाना नहीं! जमाना हमसे है हम जमाने से नहीं।" कहते हुए प्रीत ने खड़े करके दांत दिखा दिए। सबके चेहरे पर हल्की-हल्की मुस्कुराहट फैल गई थी।  पर इधर समय था।  जिसकी बेचैनी! अब उसे जबरदस्ती मुस्कुराने भी नहीं दे रही थी।   आंखें तो उस के इंतजार में ठहर गई थी, जिसकी की शख्सियत में ही ठहराव था। हमें भी आज ही करना था इंतजार उनका, और उन्हें भी आज ही सारे वादे भूल जाने थे! हर हर महादेव 🙏

  • 6. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 6

    Words: 1062

    Estimated Reading Time: 7 min

    समय प्रीति का इंतजार करते-करते थक चुका था। आए हुए मेहमान बार-बार उसकी तरफ देखकर उसे इधर आने का इशारा कर रहे थे।  ऐसे में ज्यादा देर तक यहां पर खड़ा रहना भी उचित नहीं था। बहुत उदासी के साथ उसने अपनी नम होती हुई आंखों को पलक झपक कर भींगने से रोका था। जरूरी नहीं की हर रास्ते को मंजिल मिल जाए। कभी-कभी सफ़र अधूरा ही रह जाता है।   वापस जाने के लिए मुड़ा ही था की उधर से उसका छोटा भाई साहिल तेजी से उसकी तरफ आ रहा था। " धन्य भाग हमारे, जो आप पधारे।" समय अपनी आंखें छोटी करके साहिल की तरफ देखा लेकिन साहिल उसको इग्नोर करके उससे भी आगे बढ़ गया। "किसके पीछे जा रहा है यह लड़का? इसको किसका इंतजार था?" देखने के लिए समय जैसे ही वापस पीछे की तरफ मुड़ा।  समय तो मानो ठहर सा गया था और खुद इस समय को भी अपना होश नहीं रहा। "कहां रह गई थी तू? कब से कॉल कर रहे थे तुझको?" साहिल ने प्रीत से पूछा। " अरे यार! तुमको तो पता ही है पापा को पहले खाने से पहले भी दवा देनी होती है।  बस वही सोच रही थी कि उनकी दवाई के सारे डोज पूरे कर लेती हूं, तब इधर को निकलती हूं। " प्रीत ने देर से आने का कारण बताया। "चल कोई बात नहीं। अभी भी कोई ज्यादा देर नहीं हुई। सब तेरा ही इंतजार कर रहे हैं।" साहिल प्रीत को लेकर आगे बढ़ने लगा।  तभी प्रीत और साहिल वहां तक पहुंचे जहां की समय खड़ा था। "आज लगता है कि गेटकीपर की ड्यूटी में मिली हुई है। जितना ही इस आदमी के सामने आने से बचना चाहती हूं।  उतना ही हर रास्ते पर यह खड़े मिलते हैं।  क्या करूं भगवान? आप को बिना मुसीबत में मुझे डाले हुए चैन नहीं मिलता। इन्हीं के लिए तो आज की पार्टी ऑर्गेनाइज की गई है।  अगर इग्नोर करके आगे बढ़ती हूं।  तब भी सही नहीं है और अगर बोलकर कुछ आगे जाती हूं। तब भी इस बंदे ने हमेशा उल्टा ही जवाब देना है।" प्रीत ने अपने मन में भगवान को याद करते हुए कहा। " चलो बोल ही देती हूं।  कुछ बोल कर अगर डांट सुनो तो मन में यह रिग्रेट नहीं होगा कि बिना कुछ किए ही लेक्चर सुनना पड़ा। बाकी भगवान जी आप मुझे सब्र और हौसला दीजिएगा की कम से कम इस टाइम में इस इंसान का लेक्चर बिना किसी उलटे जवाब के सुन सकूं। " प्रीत ने पीछे मुड़कर देखा प्रीतम जी अपनी मां के साथ धीरे-धीरे आ रहे थे अभी दादी मां बहुत दूर थी लेकिन उनकी नसीहत दिमाग में घूम रही थी जो कि उन्होंने यहां आने के समय भी घुट्टी की तरह पिलाई थी। "कम से कम आज के दिन अब समय से मत उलझना। " "दादी मां मैं नहीं उलझती।" प्रीत ने मुंह बनाया। "तुम नहीं उलझती लेकिन कुछ ऐसा जरूर कर जाती हो।  जिससे उसे गुस्सा आ जाता है।  आज उसका स्पेशल डे है। कम से कम कुछ ऐसा मत करना जिससे कि उसे कुछ बोलना पड़े। " इस तरह से अपने मन में विचार करके प्रीत ने बोल ही दिया।  "कंग्रॅजुलेशंस!" पर समय वहां पर पूरी तरह से मौजूद होता तब तो वह प्रीत के इस कंग्रॅजुलेशन का जवाब देता वह तो प्रीत के पीछे आ रही प्रीति को देखकर इस कदर उसमें गुम हुआ था कि आसपास क्या हो रहा है? इसका भी उसे होश नहीं था। घेरदार अनारकली कुर्ता और उस पर लिया हुआ सलीके से वन साइड दुपट्टा! दूसरी तरफ उसके खुले लंबे बाल लहरा रहे थे।  कपड़ों से जब नजर ऊपर गई तो खूबसूरत चमकदार गहरे लाल होंठ, खूबसूरत लंबी सी नाक जिस पर हीरे का लॉन्ग चमक रहा था। बड़ी-बड़ी आंखें जिन पर बड़ी-बड़ी पलकों का पहरा था।  समय बेखुद सा देखता चला गया।  धीरे-धीरे एक-एक कदम बढ़ाती हुई वह जब समय की तरफ आ रही थी तो समय को उसके हर एक कदम अपने दिल पर महसूस हो रहे थे। समय को तो ऐसा लग रहा था जैसे कि सारी पार्टी की रौनक सिर्फ एक इस एक चेहरे के कारण धीमी पड़ गई थी।  पर अगर कोई दूसरा इस समय, समय को देखता तो वह यही कहता कि पूरे पार्टी की रौनक से भी ज्यादा चमक इस वक्त समय के चेहरे पर फैली हुई थी।  शायद इतनी खुशी उसे यह प्रोजेक्ट हासिल करके नहीं हुई थी, जितना प्रीति को इस वक्त आते हुए देखकर हो रही थी। " यह क्या हो गया? यह बोल क्यों कुछ क्यों नहीं रहे हैं?" प्रीत के उसके ना बोलने पर हैरानी हुई। " कंग्रॅजुलेशन!" दोबारा करते हुए उसकी तरफ देखा जबकि साहिल प्रीत को देखकर अब आसपास कहीं दीवार देख रहा था ताकि अपना सर उस पर मार सके। " इसको कहते हैं आ बैल मुझे मार! यह लड़की जानती है कि भाई इसको देखकर ही आउट ऑफ कंट्रोल हो जाएंगे लेकिन नहीं! इसे तो अपना सर दीवार से लड़ाना है।" लेकिन जब उसने देखा की प्रीत के दो बार कंग्रॅजुलेशन करने पर भी समय ने कोई जवाब नहीं दिया तो उसने प्रीत का हाथ पकड़ा और उसे खींच कर आगे की तरफ लेकर बढ़ गया। "अरे यार मुझे उन्हें कंग्रॅजुलेशन करना था।" " किया ना तुमने!" " पर उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया।" " इतना कम है कि उन्होंने तुम्हें कुछ जवाब नहीं दिया।" साहिल ने बराबर उसे उसका जवाब लौटाते हुए कहा। जिस पर प्रीत ने अपनी आंखें छोटी करके साहिल की तरफ देखा। " अब क्या चाहती हो कि शाम की तरह एक और लेक्चर यहां सबके सामने मिले? वह तो भगवान का शुक्र बना की भाई का दिमाग ठीक था। जो सीधे तेरे घर पहुंच गए थे। पर अभी?" साहिल ने लड़ाका लड़कियों के अंदाज में कमर पर हाथ रखते हुए पूछा। " बात तो सही है तुम्हारी।" "मैं हमेशा सही बात ही करता हूं। पहले तुम यह मुझे बताओ कि तुमको क्या हो गया है? क्यों जानते समझते शेर के मुंह में उसके दांत गिनने के लिए हाथ डाल रही हो?" साहिल ने पूछा। प्रीत ने अपनी आंखें छोटी करके उसकी तरफ देखा। "ओ हेलो! मुझे शेर के दांत गिनने का कोई शौक नहीं चढ़ा और एक बार के लिए तो असली शेर के दांत गिनने के बारे में सोच भी लूं लेकिन तुम्हारे भाई के मुंह में उंगली डालने के बारे में मैं कभी नहीं सोचती।" वह इग्नोर करते हैं ऐसे मुझको। टाटा स्काई चैनल में, जैसे हम दूरदर्शन को। हर हर महादेव 🙏

  • 7. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 7

    Words: 1220

    Estimated Reading Time: 8 min

    Enjoy reading "जब मैं कुछ करती रहती हूं तो पता नहीं कहां से उनकी आंखें चमक जाती है और सामने से तो ऐसे इग्नोर करते हैं कि जैसे मैं यहां मौजूद ही नहीं हूं।" "तो फिर बार-बार उनसे क्या बात कर रही थी?" साहिल ने पूछा। " अरे कुछ नहीं! आज के फंक्शन के हीरो है इसलिए मैं उन्हें कंग्रॅजुलेशन करना चाह रही थी।" "अरे रहने दे! काहे को बोलना। अगर गलती से भी हम सामने नजर आए  तो सारे अगले पिछले हिसाब किताब यही खड़े पूरे कर देंगे मैंने तो सोचा था कि आज मैं भी गया लेकिन तेरे घर से आने के बाद भाई का मूड फ्रेश हो गया था। और दूसरे में, मैं उनकी नजरों के सामने भी नहीं आया जिससे मैं भी बच गया।  अब फिर से तू उनके सामने पड़ेगी तो जो रही सही कसर बाकी बची है।  वह भी पूरी हो जाएगी।  अपना नहीं तो कम से कम मेरी रेपुटेशन का तो ख्याल कर ले।" साहिल ने प्रीत के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा। "हां हां! ठीक है। नहीं देती तुम्हारे खड़ूस भाई को बधाई! इसी बहाने मेरा एक कंग्रॅजुलेशन तो बच जाएगा, दो बेकार में ही खर्च दिए। लेकिन एक बात बताओ। आज तुम्हारे भाई को हो क्या गया है?" " एक खूबसूरत रोग!" साहिल का जवाब सुनकर प्रीत ने फिर मुंह बनाया तो साहिल ने उसे आंखों से आगे की तरफ देखने का इशारा किया जहां की अब प्रीति समय के सामने आकर खड़ी हुई थी। "इस उपलब्धि की बहुत-बहुत बधाई हो।" प्रीति ने बहुत ही धीरे से समय को बधाई देते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया किसी से हाथ न मिलाने वाले समय ने तेजी से आगे बढ़कर बढ़कर प्रीति का हाथ थाम लिया था। " बहुत-बहुत धन्यवाद।" इस दृश्य को देखकर साहिल और प्रीत दोनों की आंखें बड़ी हो गई थी। लेकिन अगले ही पल प्रीत ने मुंह बनाते हुए इसे इग्नोर मार दिया। "अब समझ में आया तेरे कंग्रॅजुलेशन का थैंक यू भाई ने किस लिए बचा कर रखा था?" साहिल ने प्रीत की तरफ देखते हुए पूछा। " नॉट फेयर! हर लाख खता इस दुनिया की, इस एक खता से बेहतर है।" "यह प्यार नहीं एक रोग सही! पर यह दर्द दवा से बेहतर है।" साहिल ने प्रीत की अगली लाइन पुरी की। " बेकार की बात!" प्रीत में मुंह बनाया। " अरे मैडम! आपको यह बेकार की बात लगती होगी लेकिन जरा हमारे भाई साहब से पूछिए। अब तो दिल में एक ही लाइन बज रही होगी बस चैन की नींद आ जाए जो! बेचैन तबीयत हो जाए!" साहिल ने प्रीत को हाई-फाई दिया " हम लुट जाए दिल खो जाए बस आज कयामत हो जाए!" दोनों ने एक साथ सुर से सुर मिलना शुरू किया लेकिन जैसे ही यह सुर तार सप्तक की तरफ बढ़ा कि दोनों ने एक दूसरे को देखते हुए अपने होठों पर उंगली रख दी। इससे पहले की समय के ताल इन दोनों के सुर को बिगाड़ते, दोनों ने चुपचाप यहां से निकलने में ही भलाई समझी थी। इधर प्रीति और समय के बीच में बिल्कुल शांति फैली हुई थी। ऐसा अक्सर हीं होता था। समय सोचता था कि वह प्रीति से बहुत सारी बातें करेगा लेकिन प्रीति जिस कदर उसके सामने खामोश होती थी कि वह उलझ जाता था। कभी भी दो-चार औपचारिक बातों के अलावा उन दोनों में बातें नहीं हुई थी। समय बात करने की कोशिश भी करता था लेकिन बातों में बात जोड़ते हुए भी उसे बात आगे बढ़ने का मौका मिलता ही नहीं था क्योंकि दूसरी तरफ से केवल हां और ना में जवाब मिलता था।  कभी-कभी तो सर हिला कर ही काम चला लिया जाता था।  समझ में नहीं आता था कि यह उसकी हया है या फिर कम बोलने की आदत! पर जो भी हो, समय कोई यही चीज पसंद आई थी।  दोनों को चुपचाप एक साथ खड़े हुए देखकर काफी मेहमानों की नजर उधर गई।  कुछ लोगों के नजरों के कोण बिगड़े तो कुछ लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट आई। " दोनों साथ में अच्छे लगते हैं!" एक ने राजीव मल्होत्रा से कहा। " कौन दोनों?" राजीव जी ने पूछा। उन्होंने आंखों से समय और प्रीति की तरफ देखने का इशारा किया। राजीव जी ने कुछ गहरी नजर से इन दोनों की तरफ देखा।  तब तक प्रीतम जी अपनी मां निर्मला जी के साथ समय और प्रीति के पास पहुंचे। " बहुत-बहुत बधाई हो यंग बॉय!" एक खूबसूरत मुस्कान होठों पर सजाए हुए प्रीतम जी ने समय से मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया। " थैंक यू अंकल!" समय ने झुक कर उनके पैर छुए तो प्रीतम जी ने उसे गले से लगा लिया। " कहां रह गए थे आप लोग?" राजीव जी इन लोगों की तरफ आए। "कुछ नहीं! आप तो जानते हैं कि हमारी दवाइयां चलती हैं बस.." प्रीतम जी ने हल्के से कहा। " चलो कोई बात नहीं! अब तबीयत कैसी है?" राजीव जी ने पूछा " ठीक हूं। और इस डील के कंफर्म होने की खबर सुनकर पहले से और ज्यादा अच्छा हो गया हूं।" प्रीतम जी हल्के से मुस्कुराए। "अच्छा है ना! जल्दी से अच्छे हो जाओ।  बच्चों ने अपना काम कर दिया।  अब हम लोगों को इस पर मेहनत करनी है।" राजीव जी बोले। "बिल्कुल!"प्रीतम जी भी उनकी बात से सहमत थे। " आईये ना आंटी!" राजीव जी ने एक अच्छे मेजबान की तरह निर्मला जी को अंदर आने का इशारा किया।  तब तक रिया जी भी पहुंच गई थी  "बहुत प्यारी लग रही हो आज!" निर्मला जी से मिलने के बाद उन्होंने प्रीति के सर पर हाथ रखते हुए कहा।  प्रीति हल्के से मुस्कुराई। " और वह हमारी छोटी वाली गुड़िया नहीं दिख रही?" प्रीत की निगाह तलाश में उन्होंने आसपास नजरे दौड़ाई। "वह तो हम लोगों से पहले ही आ चुकी है। अभी यहीं पर तो थी।" प्रीति बोली। " होगी! अपने दोस्तों के साथ।" निर्मला जी ने समय की तरफ देखते हुए कहा।  वह जानती थीं कि समय को उसकी यही आदत पसंद नहीं! लेकिन वह भी क्या कर सकती थी? इतना समझाया था इस लड़की को की साथ रहना, पर वह अपने दोस्तों में पहुंच चुकी थी। " गुड़िया है या फिर आफत की पुड़िया है?" समय ने मुंह बनाते हुए अपने मन में सोचा। फिर अचानक से उसे प्रीत का ध्यान आया और उसने प्रीत की तलाश में अपनी नज़रें आसपास दौड़ाई। तुरंत ही नजरों के रास्ते को अपनी मंजिल मिल गई थी। प्रीत अपने हम उम्र ग्रुप के साथ एक किनारे बैठी हुई बातें करने में  मशगूल थी।  आयुष का हाथ प्रीत के कंधे पर था तो मोहित, प्रीत के कानों की तरफ झुक कर कुछ बता रहा था।  प्रीत के हाथों में जूस का गिलास था।  जो कि अभी-अभी साहिल ने उसे उसका मूड ठीक करने के लिए दिया था। "सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन कैसे बन जाता है? इस लड़की को अच्छे से पता है।" समय में चिढ़ते हुए अपने मन में सोचा। इसी समय प्रीत की निगाहें समय से मिली और उसके चेहरे को देखकर ही उसके दिल का हाल वो समझ गई थी। "क्या सोचते हैं आप? अगर आप मुझसे बात नहीं कीजिएगा।  तो मुझे बात करने वाला नहीं मिलेगा?" उस ने तुरंत फुल एटीट्यूड के साथ अपने कंधे उसका दिए। राज तो हमारा हर जगह है, पसंद करने वालों के दिल में भी, और नापसंद करने वालों के दिमाग में भी। प्रीत का एटीट्यूड देखकर तो अब समय का पारा हाई हो चुका था। हर हर महादेव 🙏

  • 8. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 8

    Words: 1066

    Estimated Reading Time: 7 min

    Enjoy reading रात का फंक्शन बहुत अच्छे से बीता था और इस वक्त सुबह नाश्ते की टेबल पर पूरा परिवार जमा था। और इस पूरे परिवार में मात्र चार लोग थे। राजीव जी उनकी पत्नी रिया जी और दो बच्चे समय और साहिल। डाइनिंग टेबल पर बिल्कुल शांति फैली हुई थी।  केवल कभी-कभी किसी के सांस लेने की आवाज सुनाई पड़ती थी।  कुछ साल पहले तक इस घर में बड़ी रौनके होती थी क्योंकि राजीव जी के तीनों भाई का परिवार इकट्ठा रहता था। पर समय के साथ-साथ सब लोगों ने अपना अपना बसेरा अलग कर लिया था। एक ही बिजनेस था और एक ही जगह बच्चों के स्कूल, कॉलेज से लेकर हर एक काम इसलिए कहीं दूर नहीं गए थे।  इसी मोहल्ले में काफी जमीन थी।  जिस पर उन लोगों ने अपनी अपनी इमारतें खड़ी की थी। बिजनेस में भी सबकी हिस्सेदारी अलग-अलग तय हो गई थी पर मेन स्ट्रीम का बोर्ड एक ही था "मल्होत्रा कंस्ट्रक्शन।" पर अलग होने के बाद समय ने कंस्ट्रक्शन के बिजनेस के साथ-साथ शॉपिंग मॉल और होटल में भी इन्वेस्ट करना शुरू किया था।  मेहनती तो वह था लेकिन साथ में उसके लिए वह फैसले भी अधिकतर सही साबित होते थे। जिसके कारण उसका कारोबार बहुत ज्यादा ही बढ़ गया था। फिलहाल में मार्केट में कई ऐसे स्टेम थे, जिस्म की समय ने हाथ आजमाना शुरू किया था और धीरे-धीरे सफलता की ऊंचाइयों पर चढ़ रहा था। पर बाकी के उसके दोनों चाचा का बिजनेस बस कंस्ट्रक्शन तक ही सीमित था। "तब फिर आगे क्या सोचा है?" अपना नाश्ता खत्म करके राजीव जी ने समय की तरफ देखा। " ऑफिस के लिए निकलूंगा।" समय ने कहा। "आज के दिन तो आराम कर लेते!" रिया जी तेजी से बोली। समय ने कुछ हैरानी से उनकी तरफ देखा। " आज कुछ खास है क्या?" " नहीं वह!" रिया जी कुछ बोलने के लिए सोच रही थी। " मॉम ने आपके लिए लड़कियां देख रखी हैं।  अब चाहती हैं कि आप उनमें से एक कोई फाइनल करके उसे मेरी भाभी बना दीजिए।" रिया जी को अटकते हुए देखकर साहिल ने उनकी मुश्किल आसान कर दी थी। साहिल के इस जवाब पर समय में घूर कर उसकी तरफ देखा। " मैं नहीं कह रहा!" साहिल ने तुरंत अपने दोनों हाथ खड़े कर दिए। " यह बात मॉम कह रही हैं।" इसके पहले की समय का गुस्सा साहिल के ऊपर निकलता, साहिल ने बड़ी सफाई के साथ रिया जी की तरफ इशारा कर दिया था। "क्यों मॉम खुद से नहीं बोल सकती क्या?" समय ने पूछा। साहिल ने अपना सर झुका लिया। " दूसरों की बात कंप्लीट करने में तो सबसे आगे रहते हो।  वह समय कब आएगा? जब तुम खुद अपनी बात कहने लायक बन जाओगे? जब देखो तब गली में लड़के और लड़कियों के साथ क्रिकेट खेलते रहते हो।  धमा कचौड़ी मचाते रहते हो।  पढ़ाई भी पूरी हो चुकी है। अब तो अपने फ्यूचर को लेकर सीरियस हो जाओ। जब तक कुछ करने को नहीं है, ऑफिस क्यों नहीं ज्वाइन करते?" समय ने कुछ गुस्से से साहिल से पूछा। " हां करूंगा!" साहिल ने सर झुकाए हुए जवाब दिया। " करूंगा नहीं बल्कि आज से करो और मैं तो कहता हूं कि मेरे साथ ही चलो।" समय ने उसे ऑर्डर देने वाले अंदाज में कहा। "कल प्रीत को मैं सलाह दे रहा था और आज खुद मेरा दिमाग घास चरने गया था।  जो मैंने शेर के मुंह में उसके दांत गिनने के लिए उंगली डाली।"साहिल ने मुंह बनाते हुए अपने मन में सोचा और रिया जी की तरफ कुछ नाराज नजरों से देखा आंखों ही आंखों में जताया कि आपकी बात कहने में मुझे इतनी बड़ी सजा मिल गई है। " वह ऑफिस चला जाएगा लेकिन तुम बताओ अपने बारे में क्या तुमने सोचा है?" "सोचना क्या है मॉम? अब तो करना है।  आपको तो पता ही है कि मैं इतनी बड़ी डील लेकर आया हूं।  अभी मुझे उसे पर बहुत सारा काम करना है।"समय का अंदाज बात को टालने वाला था। "काम सारी जिंदगी होता रहेगा समय! लेकिन शादी ब्याह की उम्र भी होती है।" रिया जी आज फरार होने का कोई मौका देने वाली नहीं थी। "ऐसी मेरी कौन सी उमर निकलती जा रही है जो आप इतना चिंता कर रही हैं? आप तो ऐसे बोल रही है जैसे कि मैं 50 साल का हो गया हूं।" " 50 के नहीं हुए हो लेकिन 27 के हो गए हो और यही उम्र है शादी की!" रिया जी बोली। इस बार समय ने कुछ जवाब नहीं दिया।  वह अपना नाश्ता कंप्लीट कर रहा था। " समय मेरी बात सुनो! मैंने दो-तीन लड़कियों को देखा है। "बात जब निकल ही गई थी तो रिया जी भी आज इसे फाइनल करने के मूड में थी। " हां देखा है मैंने! उनमें से एक से कल आपने मुझे मिलवाया भी था। " समय का इशारा समझ कर रिया की सुलग गई। " ठीक है वह पसंद नहीं तो कोई और पसंद! किसी और को पसंद कर लो।" " पर मॉम पसंद ही क्यों करना है?" समय ने पूछा। "अगर वह अभी शादी नहीं करना चाहता है तो क्यों दबाव डाल रहे हैं इस बार राजीव जी ने बीच में कहा आपको तो हमेशा मैं ही गलत दिखती हूं लेकिन  मैं क्या गलत कह रही हूं? आप तो जानते हैं कि इसकी उम्र के सारे इसके दोस्तों की लगभग शादी हो गई है।  हद हाल यह है कि कमल जी (समय के बड़े चाचा) उनके बेटे अनिल की भी शादी हो गई है। जो कि इससे छोटा है।  अब तो कुछ दिनों में हमें उधर से गुड न्यूज़ भी मिलने वाली है और यह आपके लाडले! शादी से भी इनकार कर रहे है। " रिया जी का गुस्सा बढ़ रहा था। "क्या मॉम आप भी!" समय ने अफसोस से सर हिलाया।  " वो गलत नहीं कह रही समय! अगर तुम किसी को पसंद करते हो तो बोलो।  वरना उनको अपनी पसंद की बहू लाने दो।" राजीव जी ने कुछ गहरी नजर से समय की तरफ देखते हुए कहा। समय का दिल धक से धड़क गया। वह एक अच्छा मौका देखकर प्रीति के बारे में बात करना चाहता था। पर वह अपनी मम्मी को भी अच्छे से जानता था जिन्हें गाड़ी भर कर दहेज़ चाहिए था और साथ में परियों की शहजादी! काश कोई मम्मी को समझा देता! होती नहीं है मोहब्बत सूरत से, मोहब्बत तो दिल से होती है, सूरत उनकी खुद-ब-खुद लगती है प्यारी, कदर जिनकी दिल में होती है। हर हर महादेव 🙏

  • 9. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 9

    Words: 1121

    Estimated Reading Time: 7 min

    Enjoy reading राजीव जी की बात सुनकर समय का दिल धक से धड़क गया था वह एक अच्छा मौका देकर प्रीति के बारे में बात करना चाहता था पर अब वह सोच रहा था कि उसे प्रीति के बारे में बता ही देना चाहिए लेकिन कुछ भी बोलने से पहले वह अपनी मां का चेहरा देख रहा था।  तभी उसके पहले ही राजीव जी बोल पड़े," क्या तुम प्रीति को पसंद करते हो?" राजीव जी के सवाल पर समय ने चौंकते हुए उनकी तरफ देखा। जबकि राजीव जी भी उसी की तरफ देख रहे थे। अब तो रिया जी की भी पूरी तवज्जो इन दोनों के ऊपर हो गई थी। " मैं वह!" समय ने बोलने के लिए शब्द जोड़ने शुरू किया। " लड़की अच्छी है।  इसमें कोई शक नहीं।  अगर तुम्हें पसंद है तो बोलो हम उसी से तुम्हारी शादी की बात करते हैं। पर अब शादी कर लो। घर पर से भी तुम्हारे दादाजी की कॉल बार-बार आ रही है।  उनके सबसे बड़े पोते हो और वह अपनी जिंदगी में तुम्हारी शादी देखना चाहते हैं।" राजीव जी ने कहा।  राजीव जी के पिता पंजाब रहते थे।  उनके वहां पर ढेर सारी जमीन थी और वह वहीं पर रहकर खेती देखते थे।  दिल्ली शहर का एनवायरमेंट उन्हें पसंद नहीं आता था।  इस कारण बेटों का आशियाना काफी समय से यहां होने के बावजूद भी यहां रहने के लिए नहीं आते थे। "हां समय! तुम तो उनकी आदत जानते ही हो। अब तो उन्होंने सीधे-सीधे अनाउंस कर दिया है कि वह घर की संपत्ति का भी बंटवारा करेंगे लेकिन उसके पहले वह तुम्हारी शादी देखना चाहते हैं।  अगर तुम्हें प्रीति पसंद है तो हम लोगों को कोई एतराज नहीं।" रिया जी ने कहा। समय अपने आप में अपने पेरेंट्स की बात सुनकर हैरान रह गया था। डैड का तो वह जानता था कि उन्हें ऑब्जेक्शन नहीं होगा लेकिन मॉम इतनी जल्दी मान जाएगी।  उसका इसे कोई अंदाजा नहीं था।  दिल की दुआएं इतनी जल्दी कबूल होती हैं, ऐसा तो उसने कभी सोचा भी नहीं था। " जैसा आप लोग सही समझे!" धीर गंभीर अंदाज में कहकर समय वहां से उठ गया। उसके वहां से उठते ही राजीव जी और रिया जी के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आकर चिपक गई थी। " अब तो अपने घर में भी शहनाइयां बजेंगी।  मैं तो नगाड़े पर जबरदस्त डांस करने वाला हूं।" साहिल खुशी से चहकते हुए बोला। " चुपचाप तैयार होकर बाहर आओ। मैं गाड़ी के पास तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं वरना तुम्हारे शरीर पर नगाड़ा बजाते मुझे देर नहीं लगेगी।" साहिल के सारे एकसाइनमेंट पर पानी फेरते हुए समय कह कर आगे बढ़ गया। " जाओ जाओ जल्दी जाओ वरना इसका मूड बदलते देर नहीं लगेगी।" रिया जी समय के तैयार होने के बाद अब कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। वरना गुस्से में उसके मुड़ के बदलते देर नहीं लगती। " हां! मैं तो जा ही रहा हूं! पर ऊपर वाले ने भी क्या जबरदस्त जोड़ी बनाने को सोचा है। दूल्हा भी है लाजवाब और दुल्हन भी लाजवाब! दोनों ही एक ही कैटेगरी के हैं।" साहिल ने मुंह बनाते हुए कहा जबकि अपने कमरे की तरफ जाते हुए समय के कदम साहिल की बात सुनकर रुक गए थे और उसके चेहरे पर एक दिलफरेब मुस्कुराहट आ गई थी। राजीव जी अपनी पत्नी की तरफ देख रहे थे जो कि अब नाश्ता करके उठने वाली ही थी उन्होंने साहिल के जाने का इंतजार किया और साहिल के जाते ही रिया जी से पूछा। " आपको प्रीति के साथ शादी करने में कोई एतराज नहीं है?" "नहीं! मेरा बेटा तैयार है तो भला मुझे क्या एतराज हो सकता है? कौन सा मुझे शादी करनी है जब खुद शादी करनी थी तो किसी ने पसंद भी नहीं पूछी थी!" रिया जी ने जवाब दिया। "बड़ा जुल्म किया था आपके पिताजी ने आपके साथ लेकिन एक बार फिर से सोच लीजिए। मिसेज मेहता की तरह प्रीतम ढेर सारा दहेज नहीं देगा।" उन्होंने जैसे चिढ़ाते हुए कहा। " प्रीतम भाई साहब को दो बेटियां ही हैं।  उनका जो कुछ भी है उनकी बेटियों का ही है।  दहेज तो आप जैसे कह रहे हैं कि मैं लेकर जाऊंगी और उसमें भी दूसरी बात!" कहते हुए रिया जी राजीव जी के बिल्कुल नजदीक आ गई  जैसे कितनी बड़ी राज की बात बता रही हों। " अगर समय ने शादी से इनकार कर दिया तो दूसरे से दहेज मिलना तो दूर की बात, आपके पापा जी हमें हमारी संपत्ति में ही हिस्सा नहीं देंगे। वह तो पहले ही सब कुछ उस अनिल के नाम लिखने को तैयार है।" कहते हुए उन्होंने मुंह बनाया। राजीव जी का ठहाका गूंज उठा।  जिस पर रिया जी ने अपनी आंखें छोटी करके उनकी तरफ देखा। राजीव जी ने मुस्कुराते हुए हाथ खड़े कर दिए। "मैं कुछ नहीं कह रहा।  मैं बस इतना कह रहा हूं कि आज शाम को तैयार रहेगा। शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए। हम आज शाम को प्रीतम की तरफ चलेंगे।" "सही कह रहे हैं आप।  ना जाने कैसे आज शादी के लिए मान भी गया है।  वरना यह कब किस करवट बैठेगा, कोई नहीं जानता! जल्दी से बात फाइनल कर देते हैं। आप टाइम से घर चले आइएगा, मैं सारी तैयारी करके रखूंगी।" रिया जी तो बिल्कुल तैयार बैठी थी। तैयार होकर जैसे ही समय बाहर आया। साहिल अपनी बाइक निकाल रहा था। "बाइक से क्यों जा रहे हो? चलो मेरी गाड़ी से।" समय ने कहा। " नहीं मैं तो बाइक से ही जाता हूं!" पहले तो साहिल हड़बड़ाया लेकिन अगले ही पल उसने कॉन्फिडेंस में जवाब दिया। " जाता हूं का क्या मतलब है?" समय ने अपनी आंखें छोटी की। "कॉलेज नहीं जाना है, ऑफिस जाना है।" समय ने याद दिलाया। " तुम जितने दिन तक यहां नहीं थे, तब तक इसी ने संभाल लिया है।" जवाब पीछे से आते हुए राजीव जी की तरफ से आया। "चलो कहीं तो तुम्हें अपनी जिम्मेदारियां का एहसास हुआ।" एक खुश गवार हैरत को अपने मन में छुपाते हुए समय ने कहा।  साहिल ने अपनी बाइक में चाबी लगा दी और निकल गया। समय का दिल तो इस समय खुशी से उछल रहा था।  भाई को जिम्मेदारियां का एहसास हो गया था और मॉम डैड ने बिना कुछ कहे ही उसकी पसंद को समझ लिया था।  इससे अधिक जिंदगी में क्या चाहिए था? सुना है हर चीज मिल जाती है दुआ से, एक दिन तुम्हें मांग कर देखेंगे खुदा से! और आज तो लग रहा था जैसे कुछ मांगने की भी जरूरत नहीं पड़ने वाली थी। दिल में एक एहसास में शिद्दत से कर उठाया कि काश कि वह इस समय, प्रीति को देख सकता। उसे ने अपनी घड़ी में देखा इसी समय प्रीति अपने कॉलेज के लिए निकलती थी। प्रीति की एक झलक पाने के लिए उसने अपनी गाड़ी में चाबी लगा दी। हर हर महादेव 🙏

  • 10. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 10

    Words: 1147

    Estimated Reading Time: 7 min

    Enjoy reading ❤️ समय और राजीव जी एक साथ ऑफिस के लिए निकल रहे थे।  उनकी गाड़ी जैसे ही गली के मोड़ के पास शेरगिल हाउस की तरफ आई तो वहीं उन्होंने साहिल की बाइक को लगे हुए देखा। " इसको ऑफिस जाना था तो यह यहां पर क्या कर रहा है?" समय ने अपने साइड का शीशा नीचे करते हुए देखा। ठीक उसी समय प्रीति की गाड़ी शेरगिल हाउस के गेट से निकली।  समय बेखुद सा उसे देख रहा था। दिल की तमन्ना पूरी हो चुकी थी।  प्रीति खुद गाड़ी ड्राइव कर रही थी। इस वक्त उसने कुर्ती प्लाजो डाल रखा था और हमेशा की तरह एक सौम्य मेकअप समय के आंखों को सुकून पहुंच रहा था। गाड़ी बहुत आराम से उसके सामने से निकल गई पर समय उसे देखता ही रह गया। तुमको देख कर सब कुछ ठहर सा गया है। न जाने यह मेरे एहसास है या फिर यह समय! शायद समय कुछ और देर तक ठहर जाता, तभी अचानक से उसे प्रीत की आवाज सुनाई पड़ी। "ओ चिरकुट! देखता ही रहेगा या फिर अब चलेगा भी!" जो कि अपने गेट से बाहर निकाल कर साहिल के सर पर मारते हुए कह रही थी।  इस वक्त उसने एक जींस के साथ कुर्ती डाल रखी थी।  बाल हमेशा की तरह ऊंची पोनी के शक्ल में ऊपर बंधे हुए थे और पैरों में नाइक के जूते! चेहरा बिना मेकअप के बिल्कुल सादा था। अपने मन में मुंह बनाते हुए समय ने वापस अपना ध्यान प्रीति की गाड़ी की तरफ करना चाहा तो वह अब तक नजरों से ओझल हो चुकी थी।  न जाने प्रीति के निकल जाने का गुस्सा था या फिर प्रीत को देखकर आया हुआ गुस्सा था। समय, साहिल को कुछ बोलने वाला था।  उसके पहले ही प्रीत में बिलकुल लड़को के स्टाइल में दोनों तरफ पैर किया और साहिल के पीछे बैठ गई। "यह लड़की अपने आप को लड़कों से कम नहीं समझती है। सारी हरकतें इसके लड़कों वाली है।  भगवान जाने लड़की है भी कि नहीं!" समय चुपचाप एक कोने पर गाड़ी खड़ा किए हुए साहिल और प्रीत को देख रहा था। राजीव जी ने उसे एक दो बार चलने के लिए भी कहा लेकिन उसने धीरे से रुकने का इशारा किया ताकि इन दोनों को देख सके।  राजीव जी उसकी अपने भाई के प्रति भावनाएं समझते थे इसलिए चुपचाप बैठे थे। उन के चेहरे पर हल्की-हल्की मुस्कुराहट थी। " अब चल!" प्रीत ने अपने दोनों हाथ साहिल के कंधों पर जमा दिए।  साहिल ने भी अपनी बाइक स्टार्ट की और तेजी से उसे समय की गाड़ी के आगे से निकालते हुए लेकर निकल गया। समय की गाड़ी को सामने देखकर साहिल ने उसे पर नजर डाल भी सही नहीं समझा था लेकिन ठीक उसी समय समय और प्रीत की नजरे मुश्किल से 2 सेकंड के लिए मिली थी।  समय जहां आंखों में अंगारे उगलते हुए प्रीत की तरफ देख रहा था तो प्रीत ने लापरवाही से उसकी तरफ देखा। समय को इस तरह से देखा हुआ प्रकार प्रीत को कुछ अटपटा सा लगा कि कहीं वह बुरी तो नहीं लग रही है। लेकिन पीछे चिकने घड़े जैसे दिल दिमाग पर भला यह बात 2 मिनट से ज्यादा कहां रुकने वाली थी।  अपनी नजरों में काफी अच्छी हूँ मै, दूसरों की नज़रों का ठेका नहीं ले रखा मैंने। "तुम्हारे भाई की गाड़ी हमारे तो घर के दरवाजे के आगे क्यों लगी थी?" कुछ दूर आगे बढ़ने पर प्रीत ने साहिल से पूछा। " वह मुझे देख रहे थे कि मैं ऑफिस जा तो रहा हूं ना!" साहिल ने बताया। पीछे मुड़कर साहिल ने प्रीत की तरफ देखते हुए अपनी एक आंख दबा दी थी। "तू फिर आज उधर जाने का सोच रहा है?" प्रीत में अपनी आंखें छोटी करते हुए पूछा। जवाब में साहिल ने हंसते हुए दांत दिखा दिए। " सुधर जा साहिल! जिस दिन तेरे भाई को तेरी हरकतों के बारे में पता चलेगा। अदरक की तरह तुझे कूट देंगे।" प्रीत ने उसे डरवाते हुए कहा। " और उन्हें बताएगा कौन?" साहिल ने पूछा। साहिल के सवाल पर प्रीत कुछ सोच में पड़ गई थी। "इस मामले में तेरे अलावा मेरा कोई राजदार नहीं और तू तो उनसे बताने वाली नहीं!" साहिल के ओवर कॉन्फिडेंस की बुलंदी थी। "और अगर बता दिया तो?" प्रीत में अपनी आंखें छोटी करते हुए पूछा। " शौक से बता दे!" साहिल ने गाड़ी रोक दी। "डर नहीं है क्या?" उसकी इस हरकत पर तो प्रीत हैरान रह गई थी। "ना! प्यार करने वाले कभी डरते नहीं, जो डरते हैं वह प्यार करते नहीं।" साहिल बिल्कुल लापरवाही से जवाब दिया था उसके इस ओवर कॉन्फिडेंस पर प्रीत ने धीरे से उसके बांह पर मारा। "अरे ओ मजनू के बाप! एक बार भी समय भाई को तेरे इस हरकत की खबर लगी तो बोलते बोलते तेरे सर से आशिकी का भूत उतार देंगे।" "और तुझे लगता है कि वह तेरी बात पर विश्वास करेंगे? किस दुनिया में गुम हो मैडम!" प्रीत का मजाक उड़ाते हुए साहिल ने हंस कर फिर से बाइक स्टार्ट की और आगे बढ़ गया। "मेरे सर से आशिकी का तो भूत बाद में भाई उतारेंगे लेकिन अगर तू उनके सामने कुछ बोलने गई ना! तो फिर तेरा तो उपर वाला ही हाफिज है, क्योंकि नीचे वालों की तो उनके सामने खड़े होने की भी औकात नहीं।" " बात में पॉइंट है!"प्रीत ने समझते हुए सर हिलाया। " ऐसा लगता है जैसे मैंने ना जाने इनका कौन सा खेत काट लिया है जो हाथ में धोकर यह मेरे पीछे पड़े रहते हैं और इसमें यह भी नहीं समझ पाते की कोई इनकी जेब काट रहा है।" प्रीत ने बुरा सा मुंह बनाया। "तो कटने दे ना! कौन सा तेरी गर्दन कट रही है, जो इतनी परेशान हो रही है?" " गर्दन तो तेरी कटेगी बच्चू! आज से अंकल भी ऑफिस में होंगे और अगर कहीं उन्होंने समय भाई की मदद के लिए तुझे भेज दिया तो फिर सोच लेना तेरा क्या होगा!" "क्यों डरे जिंदगी में क्या होगा? कुछ नहीं होगा तो तजुर्बा होगा!" साहिल ने हंसते हुए प्रीत की तरफ देखा। " मेरी लाइन मुझ पर ही दोहरा दी?" " क्या करें? संगत का असर है!" साहिल ने दांत दिखा दिए। "एक बात बताऊं? अगर  ने मेरी ड्यूटी समय भाई के ऑफिस में लगाई ना! तो अपने साथ-साथ तुझे भी लेकर जाऊंगा।" " ना भई ना! मुझे माफ कर।  मैं यहीं पर ठीक हूं।  दिन रात ड्रैगन के सामने मैं काम नहीं कर सकती।  क्या पता उसके मुंह से निकलने वाली लपटें कब मुझे मासूम को भस्म कर दे!" साहिल की गाड़ी सीधे जाकर मल्होत्रा कंस्ट्रक्शन के पास लगी।  साहिल अभी अपनी गाड़ी स्टैंड पर लगा ही रहा था कि उसका फोन बजा। फोन राजीव जी की तरफ से था। " प्रीत को लेकर मल्होत्रा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के दफ्तर में आओ।" यह आर्डर था या फिर बम! जो कि इन दोनों के सर पर फोड़ा गया था।  दोनों ने आंखें छोटी करके एक दूसरे की तरफ देखा। हर हर महादेव 🙏

  • 11. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 11

    Words: 1132

    Estimated Reading Time: 7 min

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    "तब अंकल ज्यादा काम रेडी है?" समय ने प्रीतम जी से पूछा। ऑफिस आने के साथ ही उसने प्रीतम जी को अपनी केबिन में बुला लिया था। मल्होत्रा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज में प्रीतम जी बैठ रहे थे और मल्होत्रा कंस्ट्रक्शन का काम फिलहाल में प्रीत देख रही थी।
    "हां बेटा! काम तो लगभग सब रेडी ही है लेकिन क्या आज से ही शुरू करना है?" प्रीतम जी ने पूछा।
    समय उनका चेहरा देखने लगा।



    " नहीं मेरा कहने का मतलब है कि अभी आए हो। इतनी मुश्किल दिल की क्रैक की है। थके होगे दो-तीन दिन आराम कर लो। फिर उसके बाद पूरे उत्साह से काम में लग जाना। वैसे भी ये प्रोजेक्ट काफी लंबा, थकाओ और टाइम टेकिंग है। एक बार इसमें हाथ लगा दिया तो फिर समय नहीं मिल पाएगा।
    पर अभी दो-चार दिन रुक कर भी काम शुरू करोगे। तो समय से काम हो जाएगा प्रोजेक्ट लेट नहीं होगा। " प्रीतम जी ने अपनी बात क्लियर की।



    " इसी लिए तो समय नहीं है अंकल! जो आराम करते हैं उनकी जिंदगी हराम हो जाती है। जिस काम को एक बार मैंने अपने में ले लिया तो फिर वह जब तक पूरा नहीं हो जाता। मुझे खुद से आराम नहीं मिलता।" प्रीतम जी की बात सुनकर समय हल्के से मुस्कुराया। प्रीतम जी आगे कुछ नहीं बोल सके। उन्होंने फाइल समय के आगे कर दी। वह जानते थे कि समय शुरू से ही ऐसा है अपना काम हमेशा ही समय से पहले कर के उसे देने की आदत है।


    इसी कारण तो उसके साथ वाले अभी पीछे थे और "समय" सफलता की लगातार कई सीढ़ियां चढ़ चुका था।
    पर प्रॉब्लम यहां पर उनको खुद फंस रही थी। उनकी सेहत समय के साथ दौड़ने के इजाजत उन्हें दे नहीं रही थी इसलिए वह समय से कुछ समय चाहते थे।



    " काम तो पूरा रेडी हो चुका है!" समय ने एक कृतज्ञता भरी मुस्कराहट प्रीतम जी के चेहरे पर डालते हुए कहा। प्रीतम जी की सेहत का अंदाजा उसको पहले से ही था और वह जानता था कि उनका काम धीरे-धीरे होगा इसलिए उसने सबसे पहले उनको ही लगाया था ताकि उनके काम में मदद कर सके। मल्होत्रा इंडस्ट्रीज के पुराने एम्पलाई होने के कारण या फिर प्रीति के पापा होने के कारण वह उनकी बहुत इज्जत करता था। वरना कोई उनकी जगह कोई दूसरा होता तो अब तक समय उसे बाहर कर चुका होता। समय का सिद्धांत काम के मामले में अलग ही था।



    "जो तुम्हारे साथ कदम से कदम मिलाकर चल ना सके। जिसकी वजह से तुम्हें रुकना पड़े या फिर तुम खुद लेट हो जाओ। उसे साथ लेकर चलने का कोई औचित्य ही नहीं बनता।"
    यही कारण था कि मल्होत्रा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के दफ्तर में पुराने एम्पलाई नाम मात्र के थे। अधिक तो खुद नौकरी छोड़कर चले गए और जो बचे! उन्होंने कंस्ट्रक्शन का दफ्तर ज्वाइन कर लिया था। वहां पर काम राजीव जी देखते थे।

    न जाने क्यों? प्रीतम जी को ही उसने कंस्ट्रक्शन के दफ्तर में जाने से रोक लिया था।
    पर, प्रीतम जी इस बात को समझते थे। इस कारण समय के साथ काम करने में बहुत ही झिझकते थे।


    अभी प्रीतम जी ने संतोष से अपनी आंखें बंद कर ली और मन ही मन भगवान के साथ-साथ प्रीत का धन्यवाद किया जो कि उनका काम हल्का करने के लिए कंस्ट्रक्शन के साथ-साथ ग्रुप का इंडस्ट्रीज का भी काम देखने लगी थी।
    "काम तो अपने समय से पहले और मेरी उम्मीद से भी ज्यादा अच्छा कर रखा है। तो फिर आपको क्यों समय की चाहत थी?" समय ने सवालिया निगाहों से प्रीतम जी की तरफ देखते हुए पूछा जैसे उनके चेहरे से ही उनके दिल का हाल समझ गया था।



    "बस तुम्हारे लिए ही कह रहा था!" प्रीतम जी ज्यादा कुछ बोल नहीं सके। अब क्या बताते? बात बात में सिर्फ एक बार प्रीत से इस मैटर का जिक्र किया था प्रीत ने खुद जल्दी से उनकी मुश्किल आसान कर दी थी।
    "तो फिर साइट पर चलते हैं! सारे मटेरियल देख लेते हैं।" फाइल के पन्ने पलटते हुए समय ने कहा लेकिन तभी उसकी उंगली एक पन्ने पर रुक गई।


    " यह सारे काम भी पूरे हो चुके हैं?" समय की आंखें हैरत से बाहर होने की थी।
    प्रीतम जी जो अपनी सोच में उलझे हुए थे उन्होंने सर उठाया।
    " यह सीमेंट! ट्रांसपोर्ट सरिया इन सब पर ब्लू टिक किया हुआ है। क्या इनके टेंडर पास भी हो चुके? अब बस केवल काम लगाना है? ये कुछ ज्यादा ही फास्ट काम नहीं हो गया?" समय ने प्रीतम जी से पूछा।


    "1 मिनट फाइल दो!" प्रीतम जी खुद समझ नहीं पाए थे कि समय किस बारे में बोल रहा था उन्होंने फाइल लेने के लिए आगे हाथ किया। मन ही मन उन्हें अपनी हालत और प्रीत की हरकत पर बड़ा अफसोस आया। " यह लड़की समय से भी एक कदम आगे चलती है!"
    समय ने फाइल उनके आगे कर दी तो इस पन्ने पर वह पहुंचे।


    " बेटा यह रफ करके लिखा हुआ है कि इतनी सारी चीजों का हमारे पास पहले से टेंडर स्टॉक मौजूद है या फिर हमारे पुराने साथी इसको प्रोवाइड कर सकते हैं इसलिए इन सब चीजों की टेंडर निकालने की हमें जरूरत नहीं!"


    " पर अंकल! हमारे पुराने साथियों का रवैया आपको पता ही है। अगर हम पुराने वालों के साथ ही इतना बड़ा प्रोजेक्ट करेंगे तो क्या वह समय पर हमें इतने सारे मटेरियल दे सकेंगे?"
    "इसीलिए तो रॉफ पेपर पर अलग-अलग लिख रखा है। डिसीजन वही फाइनल होगा जो कि तुम कहोगे। तो फिर तुम ऐसा क्यों नहीं करते! एक बार खुद जाकर देख लो। अगर तुम्हारे मन लायक चीज ना हुई तो कैंसल कर देना। पर ऐसे किसी को अपने काम से बाहर निकाल देना! वह भी बिना कोई वाजिब वजह दिए हुए, सही नहीं होगा। मार्केट में हमारी साख भी गिरेगी। " प्रीतम जी बोले।


    " ठीक है तो चलते हैं!" समय अपनी जगह से उठकर खड़ा हुआ पर प्रीतम जी वहीं बैठे रहे।
    " क्या हुआ अंकल? तबीयत ठीक नहीं लग रही क्या?" उनको बैठा हुआ देखकर समय तेजी से उनके पास आया।
    " नहीं मैं ठीक हूं। पर तुम प्रीत को साथ में लेकर जाओ!" प्रीतम जी बोले।
    "प्रीत को?" प्रीत का नाम सुनकर समय की दोनों भौहें आपस में जुड़ गई थी।


    " हां प्रीत को क्योंकि आजकल मार्केट और मार्केटिंग से जुड़े सारे काम वही देख रही है। यह फाइल भी उसने ही रेडी की है।" प्रीतम जी बोले।
    अब तो समय की है रानी का गाना नहीं था लेकिन तुरंत उसने कंस्ट्रक्शन के ऑफिस में कॉल कर दिया की प्रीत आकर उससे फर्नेस ऑफिस के पास मिले।
    मुंह बनाती हुई प्रीत वहां पहुंच तो गई पर समय अपने समय से 15 मिनट लेट था। एक तो ट्रैफिक ने उसका दिमाग खराब किया था और दूसरे में!!!

    सोचो क्या हो सकता है अगला भाग थोड़ी देर में।
    हर हर महादेव 🙏

  • 12. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 12

    Words: 1125

    Estimated Reading Time: 7 min

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    "चल भैया जल्दी से निकल ले वरना समय ने तेरा समय खराब कर देना है।" समय की तरफ से इनफॉरमेशन मिलते ही प्रीत ऑफिस से निकलने को हुई। वहां तक जाने के लिए उसने साहिल की मोटरसाइकिल उधार मांगी क्योंकि साहिल इस वक्त ऑफिस में ही काम कर रहा था। हमेशा काम छोड़कर बाहर भगाने का मौका ढूंढने वाला साहिल! इस मौके को कैसे छोड़ सकता था? उसने जाने की पेशकश भी साथ में रखी।


    " ठीक है चलो! वहां पर तेरे समय भाई आ रहे हैं। अगर उन्होंने पूछा कि तू इस समय यहां पर क्या कर रहा है तो फिर इसका भी जवाब सोच लो। वरना मेरा तो जो समय खराब हुआ है उन्होंने तेरा भी समय खराब कर देना है।" प्रीत लापरवाही से बोली

    मुंह बनाते हुए साहिल ने प्रीत के हाथों में अपनी मोटरसाइकिल की चाबी रख दी। " रहन दे! मुझे मेरा समय बड़ा प्यारा है। तू ही जा! पर जरा अपने स्टाइल में जाना। पापा की परी बनकर नहीं क्योंकि मुझे मेरी गाड़ी भी बड़ी प्यारी है।"



    " तो फिर तो अपनी प्यारी को लेकर साथ चलो।" साहिल का बना हुआ चेहरा प्रीत को मजा दे रहा था।

    " रहने दे यार! मैं यहीं पर सही हूं। पर तू खैरियत से जइयो खैरियत अय्यो। आल द बेस्ट! " जंग पर जाती हुई अपनी सहेली को गाड़ी की चाबी के साथ-साथ शुभकामनाएं देना! साहिल ने बहुत जरूरी समझा था।



    अब प्रीत ईंटों की भट्टी पर बैठकर समय का इंतजार कर रही थी। दूर-दूर तक ढेर सारी उन उपजाऊ जमीन थी जिस पर की मिट्टी के बड़े-बड़े ढेर पहाड़ के रूप में रखे हुए थे और कहीं-कहीं पर ईंटों के ढेर लगे हुए थे इसमें से कुछ पक रही थी , कुछ सूख रही थी तो कहीं पर बनाने का काम लगा हुआ था।


    प्रीत वहां मौजूद एक इकलौते पेड़ के नीचे अपनी बाइक से टेक लगा समय का इंतजार कर रही थी। जब समय को आने में देर हुई तो उसने अपने कानों में ब्लूटूथ लगा लिया और चुपचाप गाने सुनने लगी। गाने सुनते-सुनते उसे हल्की सी नींद भी आ गई थी।
    समय जब यहां पर पहुंचा तो प्रीत को आराम से सुकून की सांस लेते हुए देखकर उसका दिमाग खराब हो गया।


    एक तो शहर से निकलने में ट्रैफिक ने दिमाग खराब किया था और दूसरे में इस चिलचिलाती धूप ने! उस में भी उसे अपनी गाड़ी मेंन रोड पर ही छोड़नी पड़ी थी। आगे का रास्ता ऐसा नहीं था कि वह अपनी चार पहिया गाड़ी लेकर चले। कुल मिला कर समय यहां तक पहुंचने में बिल्कुल परेशान हो गया था। और उसमें भी जब प्रीत पर उसकी नजर पड़ी तो सर पर आग उगल रहे सूरज की गर्मी सीधे तलवों पर आकर बुझी थी।
    जैसे की सारी गलती प्रीत की थी।
    प्रीत उसको देखकर कुछ आगे आई थी।


    " हम यहां से काम करेंगे?" ना कोई दुआ ना कोई सलाम ना कोई बात सीधे-सीधे समय प्रीत पर गरजा। प्रीत को तो उसका सवाल भी समझ में नहीं आया। " यहां से काम करेंगे क्या मतलब? हम यहां पर काम करने के लिए नहीं आए! हम यहां से सामान लेकर वाले हैं।"
    समय घूर कर उसे देख रहा था। जिसके कारण वह कुछ गड़बड़ गई थी घर की बात होती तो उल्टा का उल्टा जवाब दे देती पर कितना भी तो था! यहां पर समय उसका बॉस था इसलिए उसने बड़ी ही समझदारी से काम लिया।


    "आपको नहीं लेना तो मत लीजिए! पर मल्होत्रा कंस्ट्रक्शन का के लिए सारी ईंटें यहीं से जाती हैं। बिल्कुल ए ग्रेड की नंबर वन और टिकाऊ और सबसे बड़ी बात है की मार्केट से किफायत रेट पर भी मिलती है।" प्रीत जल्दी-जल्दी बोलने लगी जबकि समय का उसे घूर कर देखना बिल्कुल भी कम नहीं हुआ था।
    अब तो प्रीत को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था।


    " क्या हुआ सर ! कोई प्रॉब्लम है क्या?"
    " हम यहीं पर मीटिंग करेंगे क्या?" दांत पिस्ते हुए समय ने पूछा।
    "नो सर! ऑफिस जरा अंदर की साइड में है। बस मैं आपके लिए खड़ी थी। चलते हैं।" प्रीति तेजी से आगे बढ़ने लगी और समय उसके पीछे-पीछे! वह दूर-दूर तक आंख दौड़ा कर देख रहा था लेकिन उसे सच में मीटिंग करने लायक कोई जगह नहीं मिल रही थी। दूर-दूर तक तो केवल ईंटों के ढेर और मिट्टी ही दिखाई पड़ रही थी और ऑफिस ? उसका तो कहीं भी नाम हो निशान नहीं था।



    इसके पहले मल्होत्रा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की तरफ से उसने बिल्डिंग बनवाई थी उनके टेंडर उसने अपनी ऑफिस से पास किए थे और सारी मीटिंग ऑफिस से हुई थी। और उसमें भी रो मटेरियल से रिलेटेड चीज तो सीधे मलहोत्रा कंस्ट्रक्शन वालों को ट्रांसफर कर दिए गए थे इसलिए उसे इन सब चीजों का पता नहीं था कि ईंटें कहां से आ रही हैं?


    पर समय तो समय था! समय का असली कद्रदान! ऑफिस से निकलते वक्त ही उसने बहुत सारी एजेंसी के मार्केट प्राइस देख लिए थे। जो कि उसके ऑफिस के आसपास से ही थे। पहले तो समय को समझ ही में नहीं आया था की प्रीत ने सिटी को छोड़कर यह आउटर एरिया सप्लाई के लिए क्यों चुना? पर फिर प्राइस ने इस चीज को स्पष्ट कर दिया था कि यह मार्केट से सस्ता है लेकिन उसके बावजूद भी प्राइस के नीचे की तरफ एरो का निशान बना था। मतलब कि यह अभी और भी घट सकता है जबकि कुछ महीनो में बरसात आने वाली थी और उस समय ईंट के दाम आसमान पर जाने वाले थे। यही चीज वह समय को यहां पर आने के लिए मजबूर कर गया था। अब यहां का मार्केट प्राइस देखकर कंफर्म करना था।
    यहां की हालत देखकर समय ने बेहद अफसोस के साथ अपना सर हिलाया


    "मिस प्रीत शेरगिल! हम माल बनाने के लिए ईंटें ले जाने वाले हैं। मड़ाई बनाने के लिए नहीं।"
    "सर! ईंट तो ईंट होती है। अब आप उस मॉल बनाए! या मड़ई! मंदिर बनाए चाहे गुरुद्वारा! उसकी इंपॉर्टेंस तो केवल उसके टिकाऊ पन से है और इसकी में पूरी आपको गारंटी देती हूं कि यहां से सस्ती और टिकाऊ आईटी आपको कहीं नहीं मिलेगी। चाहे तो सामने रखी ईंट पर अपना सर लड़ा कर देख सकते हैं। Testing free of cost है। " प्रीत तो प्रीत थी। ना चाहते हुए भी उसकी जुबान चल ही गई थी।


    "मिस प्रीत! आपका सर फोड़ दूंगा!"
    समय गुस्से में चिल्लाते हुए बोला। प्रीत जो अभी तक अपनी जीभ को दांतो तले दबाते हुए खुद को डांट रही थी। समय की बात सुनकर उसका ध्यान अपने जीभ पर से हट गया और फिर जबान पड़ी थी।


    "कोई बात नहीं सर! आप चाहे तो मुझ पर भी टेस्ट कर सकते हैं। मल्होत्रा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज से एम्पलाई की मेडिकल फैसिलिटी फ्री ऑफ कास्ट है। मैं वहां से एडवांटेज ले लूंगी। "





    हर हर महादेव 🙏

  • 13. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 13

    Words: 1002

    Estimated Reading Time: 7 min

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    प्रीत की बात सुनकर समय कि सर पर लगी हुई आग अब जूते के अंदर तलवों को भी जला रही थी।
    "आर यू आउट ऑफ़ माइंड?" समय अपनी आंखें छोटी करके प्रीत की तरफ देखा जैसे उसे सच में लग रहा था की प्रीत का दिमाग गायब हो चुका है।



    " मैं पूछ भी किस से रहा हूं? जिसका मुझे पहले से पता है!" समय ने गुस्से में खा जाने वाली नजरों से प्रीत की तरफ देखा।



    " मैं सही कह रही हूं ....." प्रीत हल्के से मिनिमाइ। "विश्वास ना हो तो सच में आजमा कर देख लीजिए!" दिमाग में तुरंत ख्याल आया था लेकिन दिमाग से होठों पर आने से पहले ही इस बार उसने रोक लिया था। वो बोल कुछ और सेंस में रही थी लेकिन समय उसे किसी और वे में ले रहा था। ईंट सच में टिकाऊ मजबूत थे। आज तक कभी भी कंप्लेंट नहीं आई थी क्योंकि मल्होत्रा कंस्ट्रक्शन इस भट्टे का रेगुलर कस्टमर था।  पर समय के सामने हमेशा की तरह जबान दाहिने चलने को होती थी तो बाय फिसलती थी।  सीधी तो आती नहीं थी इसलिए अब कुछ बोलकर वह अपने लिए मुश्किल नहीं पैदा करना चाहती थी।



    जब ऑफिस से फोन आया था तो उसके बाद प्रीतम जी ने भी प्रीत को कॉल करके ढेरों हिदायतें दी थी। अभी तक उसके दिमाग में चल रही थी। घर के खर्च और पिता की दवाइयां! दादी मां का रेगुलर चेकअप! सब कुछ उसके दिमाग में चल रहा था। केवल यह नौकरी ही नहीं, प्रीत के लिए इंपॉर्टेंट थी बल्कि यह प्रोजेक्ट भी प्रीत के लिए इंपॉर्टेंट था क्योंकि अगर प्रोजेक्ट में फायदा हुआ तो मल्होत्रा ग्रुप का इंडस्ट्रीज का भले ही 10% के शेयर के मालिक होने के कारण शेरगिल परिवार को इसका लाखों का फायदा मिलता।


    जहां कुछ फायदा नहीं था, वहां पर यह रकम! बहुत बड़ा आसरा थी।  प्रीत ने तो समय के लिए एस्टीमेट फाइल तैयार करते समय ही यह सोच भी लिया था कि इन पैसों के हाथ में आते ही घर को रिनोवेट करवाएगी और अपने पापा जी को हमेशा हमेशा के लिए ऑफिस के काम से मुक्त करके घर पर एक छोटा सा वर्कशॉप खोल कर दे देगी। 



    और इन सब चीजों के लिए फिलहाल में, मुंह बंद रखना सबसे ज्यादा जरूरी था।  समय के साथ आज उसका इस प्रोजेक्ट काम का पहला दिन था।  अगर गुस्सा जाता तो अपने साथ उसे इस प्रोजेक्ट में रखता नहीं और फिर प्रीतम जी के कंधों पर कुछ ज्यादा ही दबाव पड़ जाता! जो की प्रीत को किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था इसलिए चुपचाप उसने अपने होठों पर उंगली रख ली थी।
    पर तब तक समय ने उसकी बात कैच कर ली थी।


    " क्या सही कह रही हो? इसी तरह से काम किया जाता है, हम यहां पर अपना मुनाफा देखने आए हैं! ना की नुकसान करवाने। ईंट किसी के भी सर पर पड़े! पैसे Malhotra group के जेब से ही जाएंगे।


    खैर! यह सब बातें तुम्हारी समझ में भी नहीं आएगी। जो लड़की अपने क्रिकेट का शौक पूरा करने के लिए घर के वॉल ग्लास गमले सब तोड़ डालें! " आगे अपने आप को कुछ भी कड़ा कहने से रोकते हुए समय ने एक गहरा धुआं मुंह से छोड़ा। क्योंकि बोलते बोलते कल शाम की स्ट्रीट क्रिकेट याद आ गई थी। वहां पर जिसके दर्शन उसे हुए थे उसने समय के गुस्से को झाग की तरह दबा दिया था।


    " चलो काम के लिए आए हैं! वह करें। "
    "भगवान जाने आंटी ने इन्हें मिर्ची खाकर पैदा किया या खाने के लिए केवल मिर्ची ही देती है क्या? हर वक्त मिर्च चबाते रहते हैं और उसकी दुआ मुंह से छोड़ते हैं। क्या सोचकर मैं इनके साथ आई? जबकि मैं भी यह जानती हूं कि इनका और मेरा एक साथ काम करना, उतना ही मुश्किल है।  जितना की पृथ्वी का पूरब से पश्चिम की तरफ घूमना! " प्रीत का मन सच में इस वक्त उस ईंट से अपना सर फोड़ने का हो रहा था इसलिए जाते-जाते पीछे मुड़कर बार-बार उसकी ईंट की तरफ देख रही थी।


    " क्या हुआ? ईंट से सर फोड़ने का मन कर रहा है। आराम से फोड़ सकती हो! मैं मना नहीं करूंगा लेकिन कंपनी से इलाज के पैसे भी देने नहीं दूंगा।" समय जो आगे बढ़ने के लिए प्रीत की तरफ देख रहा था उसने प्रीत को ईंट की तरफ देखते हुए पाकर  कहा।
    " आपका ही ना फोड़ दूं!" प्रीत गुस्से में अपने मन में भुनभुनाई। मुंह बनाते हुए मन में न जाने कितनी गालियां उसे दे डाली।



    "क्या बोल रही हो?" समय की आंखें छोटी हुई वैसे भी प्रीत से कुछ अच्छे की उम्मीद तो उसको थी नहीं!
    " कुछ नहीं !बस आप आगे चलिए, मैं आ रही हूं।"  समय के आगे बढ़ते ही प्रीत ने गुस्से में अपने दाहिने हाथ को इस कदर मोड जैसे कि उसके हाथ में एक पत्थर है और पीछे से बॉलिंग स्टाइल पर समय के सर का निशाना मार कर चला दिया।  जैसे सच में समय के सर पर पत्थर मार रही हो।
    अब कहीं जाकर प्रीत के दिल को ठंडक मिली थी।


    "अब पीछे ही खड़े रहोगी या फिर मलिक के केबिन का रास्ता भी बताओगी?" वैसे तो यह काफी बड़ा ग्राउंड था ना जाने कितने एकड़ में फैला हुआ लेकिन पूरे रास्ते ईंट पत्थर मिट्टी के पहाड़ इस तरह से सजे हुए थे कि भूल भुलैया में समय को आगे का रास्ता ही नहीं समझ में आ रहा था।
    "आ रही हूं सर। बस यही!"
    प्रीत उसे एक मिट्टी के बहुत बड़े पहाड़ के पास लेकर गई थी।

    "मतलब कि हम यहां बैठकर मीटिंग करेंगे?" समय को अब सच में प्रीत की दिमागी हालत पर शक होने लगा था।
    " यस सर!  इधर से!" वहां पर एक दरवाजा लगा हुआ था।  प्रीत ने दरवाजा खोलते हुए कहा।
    " मिट्टी के पहाड़ में दरवाजा? यह पता नहीं किस इंजीनियर का कंस्ट्रक्शन है?" समय बहुत बुरी तरह से चढ़ा था लेकिन अगले ही पल उसकी चिढ़ हैरत में बदल गई थी। 

    "यह लड़की सच में केवल झटका देना ही जानती है।"



    हर हर महादेव 🙏

  • 14. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 14

    Words: 1137

    Estimated Reading Time: 7 min

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    " अब पता नहीं इस दरवाजे से कौन सा अलादीन का जिन्न प्रकट होने वाला है?" समय बहुत बुरी तरह से चढ़ा था लेकिन अगले ही पल उसकी चिढ़ हैरत में बदल गई थी।
    "सर! जिन्न नहीं जिन्नी! "
    जैसे ही दरवाजा खुला समय को एक ठंडी हवा के झोंके ने छुआ। जितनी बाहर करने की उतनी ही उतना ही अंदर से ठंडी हवा आ रही थी।
    "यह लड़की सच में केवल झटका देना ही जानती है।"


    समय प्रीत के साथ अंदर चला आया। बाहर से यह मिट्टी का दिखने वाला पहाड़! अंदर में एक बहुत बड़ा हॉल नुमा कमरा था। पूरी तरह से आधुनिक सुख सुविधाओं से सुसज्जित कमरा जिसमें कि बैठने कर मीटिंग करने, आराम करने की जगह के साथ-साथ ए सी भी लगाया हुआ था।
    और सच में वहां जिन की जगह जिनी प्रकट हुई थी एक मुश्किल से पंद्रह साल की गोरी चिट्टी प्यारी सी लड़की! जिसने की दो चोटी बनाई हुई थी। वहीं बैठकर अपनी पढ़ाई कर रही थी।


    "ए छोटी! राजन अंकल को बोल दो की सर आ गए हैं।" प्रीत ने उस लड़की से कहा।
    " मतलब कि तुमने अभी तक अपॉइंटमेंट भी नहीं लिया है?" ऐ सी की ठंडक से कुछ दिमाग शांत हुआ था। वह प्रीत की इस बात को सुनकर और सुलग गया।


    "अब यहां पर आकर अपॉइंटमेंट लेने की क्या जरूरत थी? जब पता है कि अंकल यहीं पर मौजूद होंगे! कौन सा हमने प्राइम मिनिस्टर के साथ मीटिंग करनी है?" प्रीत ने उसके सुलगने को किसी भाव में नहीं लाया और आराम से अपनी चेयर टीवी की तरफ मोड़ दी और उस पर आ रही न्यूज़ को देखने लगी।
    समय घूर कर उसे देख रहा था लेकिन तब तक लड़की ने अपनी फूर्ती दिखाते हुए तुरंत अपने पापा को फोन भी कर दिया और समय प्रीत के सामने वहीं मौजूद फ्रिज में से निकलकर कोल्ड ड्रिंक की बोतल भी रख दी थी।



    "कैसी है पुत्तर !" राजन जी ने आते हुए प्रीत से पूछा।
    आवाज सुनकर समय एक नजर राजन जी के हुलिया पर डाली। ओवर साइज़ शर्ट के साथ और एक ढीली डाली लूंगी! सर पर बड़ी सी पगड़ी! बात करने के अंदाज से समय समझ गया कि इस भट्टे के मालिक यही है। लेकिन यह आदमी किसी भी अंदाज से उसके साथ मीटिंग करने लायक नहीं लग रहा था। मुंह बनाते हुए उसने प्रीत की तरफ देखा जो कि अब तक राजन जी के सम्मान में अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई थी, तो वह भी अपनी जगह से खड़ा हो गया।



    " सत् श्री अकाल ताऊ!" प्रीत ने अभिवादन में हाथ जोड़ दिए थे। देखा देखी समय ने भी जोड़ दिए।
    " सत् श्री अकाल पुत्तर! बैठ जा! बैठ जा! तब कैसी है तू और हमारे प्रीतम प्यारे का क्या हाल-चाल है?" राजन जी बहुत खुश दिली से बात कर रहे थे।
    " बस सब वाहेगुरु की मेहर चल रही है!"
    " बस उसी की मेहर रहनी चाहिए!" सरदार जी ने दोनों हाथ ऊपर करते हुए कहा।
    "ताऊ हमारे ही गांव के हैं। यह और हमारे पापा जी एक साथ दिल्ली आए थे!" प्रीत ने सबसे पहले सरदार जी का परिचय कराया और फिर सरदार जी की तरफ देखते हुए बोली।


    "यह समय मल्होत्रा है हमारी कंपनी के मालिक!"
    "तो तुम राजीव के बेटे हो!" सरदार जी ने समझने वाले अंदाज में सर हिलाया। सरदार जी के द्वारा इस तरह से अपने पापा का नाम लिया जाना समय को अच्छा नहीं लगा था। पर वह कुछ बोला नहीं।
    "अभी मेरी बात प्रीतम प्यारे से हुई थी। बेटा जी! जितना ईट तुम चाह रहे हो उतनी ईट तो मैं दे दूंगा लेकिन एक बार में इतना दे पाना मुश्किल होगा।" राजन जी ने प्रीत की तरफ देखते हुए कहा।


    इतना सुनने की देरी थी कि समय का गुस्सा फिर चढ़ गया। " जब काम पूरा यहां होना नहीं था! तो यहां लेकर आने का क्या मतलब है?" वह आंखों में प्रीत को जता रहा था लेकिन प्रीत ने उसे फुली इग्नोर करते हुए सरदार जी से कहा।
    " कोई बात नहीं ताऊ जी! आप किस्तों में ही दे देना। जितनी जरूरत होगी, हम उतनी यहां से ले जाएंगे और बाकी तुम बनाते रहना। आखिर हमारा प्रोजेक्ट भी तो 1 साल तक चलने वाला है। एक साल में तो इतनी बन जाएगी ना?"


    " आराम से बेटा जी!" सरदार जी ने लापरवाही से कहा। " हम 6 महीने में ही बना बना कर दे देंगे। "
    "तब हम कीमतों पर चर्चा करें? कितनी पेमेंट आपको अभी चाहिए और कितनी कम पूरी होने पर?" प्रीत ने पूछा।
    अब तो समय से बर्दाश्त नहीं हुआ! यह लड़की आगे आगे सारा काम कर रही थी। पर कोई भी काम ढंग का नहीं कर रही थी। उसने घूरते हुए ईसारे से प्रीत को अपनी तरफ बुलाया। " जब यह हमें एक बार में पूरी ईंट नहीं दे सकते तो यहां से लेने का क्या फायदा? मैटेरियल के अभाव में क्या हम अपने मजदूर को बैठाकर पेमेंट देंगे?"


    " सर! क्या आप एक ही दिन में पूरी बिल्डिंग बना लोगे?" प्रीत ने मजाक उड़ाने वाले अंदाज में समय से सवाल किया। समय ने अपनी आंखें छोटी करके प्रीत की तरफ देखा।
    प्रीत ने एक गहरी सांस छोड़ी। जैसे कि ना जाने किस बेवकूफ से उसका पाला पड़ा है? "बिजनेस की एबीसीडी के समझ नहीं और चले हैं डील क्रैक करने!" प्रीत होठों में ही बोली लेकिन उसके अंदाज़ ने समय को उसके दिल की बात समझा दी थी अब तो समय का पारा हाई हो रहा था लेकिन वह कुछ बोलता ! उसके पहले ही प्रीत ने उसकी तरफ झुक कर धीरे से कहा," अगर एक ही बार में सारा का सारा आर्डर ले लेंगे तो उसको रखेंगे कहां? जहां भी हम स्टोर करेंगे। उस स्टोर की कीमत हमें देनी पड़ेगी। फिर उसे स्टोर से साइट पर ले जाने तक का खर्चा भी हमें उठाना पड़ेगा।


    ऐसे में अगर जरूरत के समय जितनी ईंटें हमें चाहिए। सीधे हम साइट पर मांगे तो स्टोर का और फिर स्टोर से साइट तक ले जाने का खर्चा हमारा बच जाएगा क्योंकि यहां पर डिलीवरी फ्री आफ कॉस्ट है। अब आप यह सोच लो कि आपको क्या करना है? अपने खर्चों में यह एक्स्ट्रा खर्च जोड़ना है या फिर नहीं? फैसला जरा जल्दी लेना। ईट की क्वालिटी फ्री ऑफ टेस्ट है। डिलीवरी फ्री ऑफ़ कॉस्ट है लेकिन समय बड़ा कीमती है। " प्रीत अपने होठों को गोल करते हुए बोली। समय की बात पर समय ने उसे अपनी आंखें छोटी करके देखा। " क्या वह उसको ताना मार रही है?"


    " मैं टाइम की बात कर रही हूं ताऊ जी को जरा जल्दी है। अपना काम छोड़कर यहां आए हैं।
    और साथ में मैं मुझे भी! क्योंकि मैं उधार पर मोटरसाइकिल लेकर यहां आई हूं। उस के पैसे कंपनी की तरफ से नहीं मेरे जेब से जाने वाले हैं। " प्रीत अपनी दांत दिखाते हुए बोली।




    हर हर महादेव 🙏

  • 15. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 15

    Words: 1084

    Estimated Reading Time: 7 min

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    समय को प्रीत की बात समझ में आ गई थी लेकिन फिर भी उस ने अपना फोन निकाल और एक एस्टीमेट कैलकुलेट किया।
    प्रीत की बात सही थी इस तरह से उसके लाखों रुपए बच रहे थे।


    "डन!"
    50% से भी ज्यादा फायदे में यह डील क्रेक हो चुकी थी। जब बात आगे बढ़ने लगी तो सरदार जी ने अपने कुछ और सोर्स के बारे में प्रीत से बात की। समय की आंखें हैरत से उल्टने लगी थी। जिस लड़की को वह इतना लापरवाह और गैर जिम्मेदार समझ रहा था बिजनेस के मामले में उसका दिमाग बहुत तेज चलता था। यह लोग बात कर रहे थे। समय अपने फोन पर कैलकुलेशन निकल रहा था।

    अंततः अपनी अकड़ पीछे छोड़कर समय ने इस बातचीत में हिस्सा लेना शुरू किया। आधे से अधिक बिल्डिंग मटेरियल और उनके रखरखाव की जितनी जानकारी सरदार जी के पास थी। वह फिलहाल में समय के पास नहीं थी। बरसात का मौसम तुरंत आ रहा था। उसमें मटेरियल को रखना, सबसे बड़ी प्रॉब्लम थी। और बरसात के बाद सबके दाम बढ़ जाने वाले थे।



    सरदार जी ने उसे अच्छे-अच्छे डीलर्स के बारे में बताया। जो की उसे कम लागत पर अच्छा माल महया कर सकते थे। लगे हाथ सरदार जी ने एक दो को फोन भी कर दिया। अब तो आधे घंटे की मीटिंग तीन-चार घंटे लेकर खत्म हुई और इस ने समय का आधा सर दर्द खत्म कर दिया था।


    करीब शाम को 5:00 बजे वहां से निकलने के बाद समय बिल्कुल फ्रेश था।


    "मैं जितना इन सब चीजों को डिफिकल्ट समझ रहा था। उतने आसानी से मेरा एक प्रॉब्लम सॉल्व हो गया। अब एक सबसे मेन काम आर्किटेक्चर और सिविल इंजीनियर के साथ मीटिंग है। वह भी एक दो-चार दिन में फाइनल हो जाएगी।" समय खुश था। इधर कम बजट में कम होने के कारण, बाकी बचे हुए पैसों को वह उधर के बजट को बढ़ाकर भी काम कर सकता था।


    " हां तो काम को सर पर सवार करने से केवल सर में दर्द होता है लेकिन जब काम पर सवार हो जाओ तो काम खुद होने लगता है।" प्रीत अपनी बाइक में चाबी लगाते हुए बोली।
    "तुम इससे जाओगी?" समय ने चिढ़ कर उसकी तरफ देखा। यही सब टॉम बाय वाली कुछ आदतें प्रीत की ऐसी थी। जो समय के दिल के अंदर चिढ़ मचाती थी। जबकि प्रीति इस मामले में उसके लिए आइडियल थी। प्रीत जितने आराम से हैवी से हैवी ट्रैफिक में भी अपनी बाइक निकाल ले जाने का हुनर रखती थी। वही प्रीति बाइक के पर बैठने से भी डरती होगी! ऐसा समय को लगता था।



    " जाहिर सी बात है! इसको लेकर आई हूं तो इसी को लेकर जाऊंगी।" प्रीत ने हेलमेट सही करते हुए कहा।
    " और इस बाइक को तुमने उधार ली है?" यह साहिल की बाइक थी और समय इसे अच्छे से पहचानता था।
    "इस बाइक का किराया कितना है?" समय ने गहरी नजरों से प्रीत की तरफ देखते हुए पूछा।
    "मारे गए गुलफाम!" प्रीत ने अपनी जीभ दांतो तले दबाई।


    जब सर पर काम का बोझ कम हो तो दिल का मौसम अच्छा हो जाता है। समय को इस समय प्रीत कुछ ज्यादा बुरी नहीं लगी थी और उसमें भी उसका झेंपा हुआ चेहरा! उसको ज्यादा मजा दे रहा था।


    " जहां तक मुझे पता है कि इस बाइक का पेट्रोल और इसकी मेंटेनेंस का खर्चा कंपनी ही उठती है तो फिर बाइक के मालिक ने कितना चार्ज किया है?" समय ने कुछ मजाकिया अंदाज में प्रीत से पूछा।

    "कुछ ज्यादा नहीं! आप बाइक के मालिक से पूछ लेना।" प्रीत ने सच्ची मोतियों वाले मुस्कान को पास करते हुए कहा।

    " अच्छा! अब आप चले जाएं। मैं ऑफिस जा रही हूं। मुझे बाइक रिटर्न करनी है।" साहिल और प्रीत की दोस्ती तो जग जाहिर थी। क्या मजाक की बात थी कि कोई एक दूसरे के सीक्रेट दोनों से अलग-अलग भी, अपने सामने उगलवाले?

    "गाड़ी ले लो!" प्रीत को मोटरसाइकिल स्टार्ट करते हुए देखकर समय ने इस बार कुछ ठहरे हुए अंदाज में कहा।
    " गाड़ी क्या कंपनी के खर्चे पर मिलेगी?" प्रीत ने बहुत ही दिलचस्प के साथ अपनी आंखों को चमकाते हुए पूछा।
    "सिर्फ कंपनी के खर्चे पर ही नहीं मिलेगी बल्कि उसकी मेंटेनेंस का खर्चा भी कंपनी उठाएगी। जब तुम्हारे जैसा बोझ कंपनी उठा सकती है तो गाड़ी कौन सी चीज है?" समय ने चीड़ कर जवाब दिया और लंबे-लंबे डग भरते हुए अपनी गाड़ी तक पहुंच गया था।


    "कंजूस कहीं के!" पीछे से समय को देखकर प्रीत ने बुरा सा मुंह बनाया।
    " सुनता है मुझे! मैं कंजूस नहीं हूं लेकिन अपनी मेहनत से कमाए हुए पैसे बचाता हूं। तुम दोनों की तरह अपने-अपने पापा की कमाई हुई दौलत उड़ा कर शाह खर्च बनने का मेरा कोई इरादा भी नहीं है।
    पर इस बाइक के उधार की लेनदेन में जो तुम लोग की डील है ना! एक दिन अगर हाथ लग गई तो उसके बाद सोच लेना! क्या अंजाम होगा?" समय ने चेतावनी देने वाले अंदाज में कहा।


    प्रीत की आंखें हैरत से बड़ी हो गई थी "ठीक कहता है साहिल! ऊपर वाले ने इन्हें दो आंखें पीछे भी दी है! लेकिन सामने वाली आंखों के साथ-साथ दिमाग के भी अंधे हैं। सामने की चीज दिखती नहीं! पीछे का ध्यान रखते हैं!" अगले ही पल उसने मुंह बनाते हुए कंधे उसका दिए थे।
    " मेरी छोड़ अपनी फिक्र कीजिए।
    "मोहब्बतें आगाज में ये हाल है तुम्हारा,
    लोग कहते हैं अंजाम बुरा होगा।" वाह ! वाह!" प्रीत ने खुद शायरी कहीं और खुद ही खुद को दाद दे दी।
    " क्या मतलब तुम्हारा?" समय कुछ समझ नहीं पाया था।



    "अब मतलब तो मुझे खुद नहीं पता! आप खुद पता कर लीजिएगा। मेरा मतलब है इस बाइक के मालिक से!" इतना कह कर प्रीत तेजी से अपनी बाइक लेकर वहां से निकल पड़ी। पर समय उसकी बातों में कुछ देर उलझ कर रह गया था।
    " कहीं इशारा प्रीति को लेकर तो नहीं है या फिर कोई और बात है?" प्रीत उसे सोचने के लिए बहुत कुछ छोड़ गई थी लेकिन हमेशा की तरह उसने प्रीत की बातों को हवा में उड़ा दिया


    " जो जी में आया! खुद को बचाने के लिए बोलकर चली गई। इसकी बात पर इतना ध्यान देने की जरूरत नहीं है।" लापरवाही से मन में सोचते हुए समय अपनी गाड़ी में बैठा और उसने राजीव जी को कॉल लगा दिया। आज वह लोग प्रीति के घर रिश्ते की बात करने जाने वाले थे।

    लेकिन इधर राजीव जी अपने घर पहुंच कर अपनी बीवी की बातों को सुनने के बाद दोनों हाथों से सर थाम कर बैठे थे।



    हर हर महादेव 🙏

  • 16. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 16

    Words: 1128

    Estimated Reading Time: 7 min

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    "आजकल कुछ लोग मुझे देखकर,
    बैंगन जैसा मुँह बना लेते हैं,
    मुझे समझ नहीं आता की
    भरता बना दूँ उनका, या रहने दूँ।"
    प्रीत का मूड बड़ा उखड़ा हुआ था और इस उखड़े हुए मूड से उसने कुछ-कुछ बातें यश को बताई


    "तुमने यह सारी बातें भाई के मुंह पर कर डाली?" यश को तो जैसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था।
    " हां! तो इसमें इतना चौंकने वाली कौन सी बात है?" प्रीत को समझ में नहीं आया था।  दोनों इस वक्त ऑफिस में बैठे हुए थे। धीरे-धीरे सारे एम्पलाई जब जा रहे थे।  मालिक लोग पहले ही निकल चुके थे।  चाहे वह राजीव जी हो या फिर प्रीतम जी तो ऑफिस अपनी निगरानी में बंद करवाने की जिम्मेदारी इन दोनों के ऊपर दी गई थी।



    " नहीं! सही कह रही है तू! बस मेरा ही रिएक्शन कुछ तेजी से आ जाता है।" यश समझदारी से सर हिलाते हुए बोला।
    "तेरा रिएक्शन तेजी से नहीं बल्कि बहुत देरी से तुझे समझ में आता है।  वरना मैं हमेशा ही सही बोलती हूं। मन तो किया कि सीधे-सीधे कह डालूं।
    जवाब देना तो हमें भी आता है,
    लेकिन आप इस काबिल नहीं।" प्रीत ने बड़े शान से उसकी बात का जवाब दिया।



    " बिल्कुल! सही बोलना और मुंह पर बोलना तो कोई तुझ से सीखे!" यश ने शाबाशी वाले अंदाज में कहा लेकिन उसके चेहरे का एक्सप्रेशन और उसकी बातें एक दूसरे से बिल्कुल भी मिल नहीं खा रही थी।

    "किसी और को तो बाद में सीखने की जरूरत है।  सबसे पहले तो तू ही सीख ले! बोल कुछ रहा है और तेरे चेहरे से कुछ और दिख रहा है। "
    "क्योंकि यह बात में जानता हूं कि सही बोलना और मुंह पर बोलना दोनों दो अलग-अलग चीज हैं लेकिन ऊपर वाले ने यह बेहतरीन टैलेंट तेरे अंदर रखा है और मैं बहुत खुश नसीब हूं।  जो तू मेरी दोस्त है।" कहते हुए साथ यश ने अपने दोनों हाथ जोड़कर प्रीत के सामने सर नवा दिया।


    " यह तारीफ थी या फिर ताना।" प्रीत की आंखें छोटी हुई।
    " अब यह तो मुझे भी नहीं पता! मैंने तो तेरी तारीफ ही की है पर इसके एवज में भाई साहब से तुझे क्या ताने मिलेंगे? उसका मुझे कुछ पता नहीं!" यश ने प्रीत को अंजाम से खबरदार किया लेकिन प्रीत पर ना कोई असर पड़ा था, ना पड़ने वाला था।
    "मिल चुका है!" वह बहुत आराम से बबलगम से बात हुई बोली।


    " क्या?" यश की आंखें बड़ी हो गई।
    " तो तुझे क्या लगा था? मेरा दिमाग खराब हुआ है जो मैं तेरे उस बिगड़ैल सांड जैसे भाई को लाल झंडा दिखाने गई थी या फिर मेरे सर में खुजली मच रही थी कि मैं कहती आ बैल मुझे मार!" प्रीत चिढ़ते हुए यश की टेबल पर चढ़कर बैठ गई थी और वही यश बिल्कुल हैरान अपनी दोनों आंखें बड़ी किए हुए उसकी बात सुन रहा था।



    " जानता है उन्होंने मुझे क्या चेतावनी दी है?" प्रीत ने यश की तरफ हल्के से अपना सर झुकाया।   यश ने बेहद मासूमियत के साथ इनकार में सर हिला दिया।
    " जब तक तू बताएगी नहीं! तब तक मुझे पता कैसे चलेगा? ऐसा कर! तू मुझे शुरू से बात बता की आज वहां क्या-क्या हुआ?"
    " अरे! वैसे ठीक कह रहा है तू मैं तुझे शुरू से बात बताती हूं।  तब तुझे अच्छे से समझ में आएगा। वैसे भी तुझे बातें देरी से समझ में आती है।" प्रीत ने जैसे एहसान करते हुए कहा और अच्छे से आलथी पालथी मार कर टेबल पर बैठ गई थी।


    " वह मुझसे ईंट की क्वालिटी के बारे में पूछ रहे थे।  तो मैं भी कह दिया।   हाथ कंगन को आरसी क्या? पढ़े-लिखी को फारसी क्या? सामने पड़ा हुआ है।  फ्री ऑफ कॉस्ट टेस्टिंग ले लीजिए।  पता चल जाएगा कि आपका सर मजबूत है या फिर ईंट!"
    सुनकर यश ने अपने सर पर हाथ रख लिया।


    " ऐसे क्या कर रहा है? लग तो रहा जैसे मैंने वह ईट उठाकर तेरे सर पर ही चला दी है।  मेरे सर पर तो नहीं पर भाई सा ने तेरे सर पर नहीं चलाई यही गनीमत है।" यश ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकते हुए कहा।


    "तब मैंने कौन सा उन्हें छोड़ देना था? मेरा तो पूरा दिन उनके सर पर चलने का हो रहा था लेकिन तेरे भाई को मल्होत्रा अंपायर के पैसे दिख रहे थे। टेस्टिंग कहीं भी हो मेडिक्लेम के पैसे तो मल्होत्रा अंपायर की जेब से जाएंगे!" प्रीत ने समय की नकल उतारते हुए कहा।


    " फिर आते वक्त क्या बोलते हैं? पता है??
    तुम्हारे और यश के बीच जो यह उधार की लेनदेन हो रही है ना! किसी दिन हाथ पड़े जो दोनों तो उसके बाद में तुम लोगों को बताता हूं। मन तो किया कि उन्हें इस वक्त सुना दूं।
    इतना मुझे अपना Attitude ना दिखा
    जब मैं School में थी न,
    तब तेरे जैसे लड़को से तो
    मैं अपना Homework करवाती थी।
      अब बता! हम दोनों क्या करते हैं? जो वह हमारे पीछे नहा धोकर पड़े हुए हैं?"
    " तू जिन लड़कों से अपना होमवर्क करवाती थी ना! वह समय भाई जैसा नहीं थे वैसे भी वो तेरे पीछे नहीं! मेरे पीछे पड़े हुए हैं।  उनका कहने का मतलब है कि मैं पूरी तरह से ऑफिस के लिए डेडिकेट हो जाऊं।  जैसे कि वह हो चुके हैं।  पर यार! मैं उनके जैसा नहीं हूं।  मेरा अपना पैशन है।  तू तो जानती है ना!" यश ने बहुत बेचारगी के साथ कहा।


    " बिल्कुल मैं जानती हूं और अपने शौक को तो बिल्कुल मरने नहीं देना चाहिए। शौक ही ऐसी चीज है जो कि इंसान को जिंदा रखती है।  वरना वह तेरे समय भाई की तरह "समय सारिणी" बन जाएगा।"

    उसी समय प्यून सारे ऑफिस के केबिन को लॉक करके वहां आया और उसने चाबियां यश के टेबल पर रख दी।
    " सब कुछ अच्छे से बंद कर दिया है?" प्रीत ने पूछा।
    "यस मेम! सब हो गया है।" प्यून बोला।
    "तो फिर अब ऑफिस भी बंद कर देते हैं। आज घर जल्दी जाना होगा।" यश वहां से निकलने को तैयार हुआ।
    "क्या हुआ आज रात को तेरा कोई कंसर्ट है क्या या फिर कहीं प्रैक्टिस के लिए जाना है ?" प्रीत ने  यश की तेजी की तेजी देखते हुए पूछा
    " अरे नहीं! आज बड़ा खास दिन है।  मॉम डैड तेरे घर समय भाई और प्रीति दीदी की शादी की बात करने जाने वाले थे।  अब तक तो वह पहुंच भी गए होंगे। शायद बात भी फाइनल हो चुकी होगी।" यश ने खुश होते हुए बताया।


    " क्या?" प्रीत को तो ऐसा लगा जैसे की सौ बिछुओं ने एक साथ डंक मारा हो!



    "घायल करने के लिए लोग हथियार चलाते हैं।
    मेरी तो जबान ही काफी है। 
    मैं तो बस चिंगारी लगाती हूँ,
    आग अपने आप लग जाती है।"  प्रीत के होठों से निकला।


    हर हर महादेव 🙏

  • 17. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 17

    Words: 1121

    Estimated Reading Time: 7 min

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    "क्या हुआ ऐसे क्यों रिएक्शन दे रही है?" यश नहीं समझा था।

    " तू सच कह रहा है?" प्रीत को तो अभी भी जैसे कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था।

    "अब इसमें झूठ बोलने वाली कौन सी बात है? आज सुबह नाश्ते के समय बात हो रही थी कि डैड और मॉम तेरे घर जाएंगे। क्या तुझे इस मैटर में कुछ नहीं पता?" अब हैरान होने की बारी यश की थी। प्रीत ने इनकार में सर हिलाया।

    "अच्छा हां? तू तो यहां पर नहीं थी। जब डैड ने प्रीतम अंकल से कहा था कि वह घर जा रहे हैं। और तेरे घर जाने का भी प्रोग्राम रखते हैं।" कुछ देर के बाद अपने दिमाग पर खुद जोर डालकर यश ने बता दिया।

    " और इसीलिए पापा जी ने मेरा इंतजार नहीं किया। घर के लिए निकल गए। " प्रीत को अब चीजें क्लियर हो रही थी।

    " हां पर तेरे इंतजार के लिए मुझे तो बिठा दिया है ना! चलो घर चलते हैं।" यश बोल।

    " क्या तेरे भाई ने मेरी दीदी से बात कर ली है?" प्रीत ने पूछा। पर उसका हाथ अपने सीने पर था जैसे कि अगला झटका सदमा झेलने को खुद को तैयार कर रही हो।

    " मुझे क्या पता?" यश ने लापरवाही से कंधे उसका दिए।

    प्रीत ने अपना मुंह बना दिया था। " इन दोनों का कुछ समझ में नहीं आता। तेरे भाई अपनी तरफ से प्रीती दीदी को कुछ बोलते नहीं है और प्रीति दीदी तो शुरू की ऐसी है। अपने आप में सिमटी हुई लड़की! ऐसे में इन दोनों के नाव खींच खासकर पेरेंट्स को ही पार लगानी है। तो अच्छा है ना! इस तरीके से बात फाइनल हो जाएगी।"

    " और अगर पेरेंट्स से पार नहीं लगी तो!" यश ने पूछा।

    " तो फिर हम दोनों है ना?" प्रीत ने यश के हाथ पर ताली देते हुए कहा।

    "हम दोनों हम दोनों क्या आनंद कारज करवाने वाले हैं?" यश ने कुछ गिरते हुए पूछा शादी विवाह के नाम पर उसे जबरदस्ती बिल्कुल भी नहीं भाती थी और खुद भी वह इसके लिए चढ़ता था।

    "ओह हेलो! ज्यादा भाव खाने की जरूरत नहीं है अगर चाहता है कि तेरे शौक जिंदा रहे तो तुझे यह करवाना ही पड़ेगा। इसमें तेरा भी फायदा है।" प्रीत ने भौहों को उछलते हुए यश को जमीन पर पटका था।

    " मेरे शौक से भाई की शादी का क्या बनता है?" यश कुछ ना समझते हुए बोला। प्रीत हैरानी से उसका चेहरा देख रही थी। जैसे कि यह कुछ इसको कुछ समझ क्यों नहीं आता?"

    "देख! प्रीती दीदी के मेरे घर पर मेरी भाभी बनकर आ जाने से मेरे घर में रौनक हो जाएगी। यह बात तो मैं समझता हूं। और दूसरे में आजकल की दुनिया को देखकर मैं इस चीज से भी बहुत निश्चित रहूंगा कि प्रीती दीदी मेरी भाभी है। कम से कम नीले पीले ड्रम और टाइल्स के नीचे से तो मुक्ति रहेगी!

    पर मेरे शौक का इसे क्या लेना देना?" यश अभी भी उलझा था। प्रीत ने अफसोस से सर हिलाते हुए उसकी तरफ देखा और बाहर के लिए अपने कदम बढ़ा दिए थे।

    "अरे जवाब तो देती जा! पर अब तू यह मत कहना कि भाई की शादी हो जाएगी तो लोग तेरी शादी के लिए रुक जाएंगे तो तुझे अच्छा खासा समय मिल जाएगा। ऐसा कुछ नहीं होने वाला समय भाई की शादी होते हैं सब मेरे पीछे पड़ जाएंगे। इससे तो अच्छा है ना कि समय की भाई की शादी है कुछ लेट से हो ताकि मुझे कुछ समय मिल जाए।" प्रीत के पीछे दौड़ते हुए यश ने कहा।

    "हे वाहेगुरु! किस कम दिमाग से मेरा पाला पड़ा है! अपने मोहल्ले की आंटियों की तरह तेरी सोच शादी से शुरू होकर शादी पर ही खत्म हो जाती है!"प्रीत ने जैसे यश की अकल पर मातम मनाते हुए कहा। " पर इस दुनिया में शादी के अलावा भी बहुत सारे गम है सोच यार सोच! इस तरफ सोच! अब हम यहां से घर जाकर क्या करने वाले थे ?" प्रीत ने कुछ इंटरेस्ट के साथ पूछा।

    " पतंग उड़ाने वाले थे।" वैसे ही 2 दिन पहले से ही उन लोगों ने पतंग मांझी वगैरा खरीद कर रखा था। और आज इन लोगों का पतंग का कंपटीशन भी होने वाला था। समय स्थान सब मुकर्रर करके रखा हुआ था। यहां तक की मोहल्ले के बच्चे बच्चे ने एक दूसरे को इस कंपटीशन को देखने के लिए नेवता भी दे रखा था।

    मोहल्ले के सारे बच्चे अब तो इन दोनों की पतंग बाजी का मुकाबला देखने के लिए एक्साइटिड मोड पर गली में जमा भी हो चुके थे। पर समय के आने की वजह से सब कुछ खटाई में पड़ गया था। इन दोनों को ऑफिस से फुर्सत नहीं मिली तो पतंग क्या उड़ाते? पूरी बात याद आते-आते यश का मुंह बन गया था।

    यहां से निकल कर कितनी भी तेजी में घर को जाते! तब भी आधे घंटे लगने हीं थे। सारे काम को छोड़कर पतंग उड़ाते तब भी मुश्किल से आधा घंटा ही समय मिलता। अब आधे घंटे में पतंग ही आसमान में अच्छी तरह से अपनी सैर को निकलती। तो मुकाबला क्या खाक होने वाला था?"

    "ओ ख्वाबचंद! ज्यादा ख्वाबों के आसमान पर उड़ने की जरूरत नहीं है! अभी अपने पतंग की डोर अपने हाथ में ही रख क्योंकि तेरे ख्वाबों की पतंग जितनी आसमान में उड़ेगी। उतना ही किसी और का गुस्सा भी खाए जाता है!" प्रीत में यश के कंधे पर हाथ थपकते हुए कहा जैसे उसके अरमानों को थपकी देकर सुला रही है।

    " बात तो सही कह रही है।" यश ने बड़ा ही बुरा सा मुंह बनाया। जैसे बेचारे की सल्तनत उजड़ गई हो। उसके समय भाई की गलत समय पर एंट्री हमेशा ही उसके सारे अरमानों पर पानी फेर जाती थी।

    "ठंड रख भई ठंड रख! इसीलिए तो कहती हूं कि यह एक शादी हमारी सारी समस्याओं का अंत कर देगी। अगर तेरे भाई की शादी प्रीती दीदी से हो जाती है तो हम दोनों को अपने पीछे बचाने वाला परमानेंट मिल जाएगा। "प्रीत ने अपनी मुस्कुराहट दबाते हुए कहा।

    " ठीक कह रही है तू! भाई की तो आवाज भी भाभी के सामने नहीं निकलती उनके जिंदगी के पतंग की डोर भाभी के हाथ में रहती है। तब तो हमारी पतंग आसमान में कितनी भी उड़ेगी! क्या मजाक है कि उनके गुस्से का कोई एक हवा का झोंका भी उसे छू जाए?" यश ने प्रीत को ताली देते हुए कहा।

    अब जल्दी-जल्दी दोनों घर के लिए निकले।

    इधर समय भी घर के लिए निकल चुका था लेकिन असली मुश्किल तो रागिनी जी थी जो कि अभी तक कोप भवन में बैठी हुई थी।

    कम से कम 50 कमेंट तो प्रीमियम और सब्सक्राइबर मिल कर किया कीजिए। 50 से कम कमेंट पर तो लिखने का भी मन नहीं होता।

    हर हर महादेव 🙏

  • 18. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 18

    Words: 1066

    Estimated Reading Time: 7 min

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    राजीव जी आज समय से पहले ही ऑफिस से निकल गए थे और ऑफिस से निकलने से पहले उन्होंने प्रीतम जी को हल्के हल्के इशारों में बता दिया कि आज वह अपने परिवार के साथ उनके घर आने वाले हैं।  प्रीतम जीवन का चेहरा देखते हुए रह गए थे।


    " क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो! क्या हमारा आना अच्छा नहीं लग रहा है?"
    " नहीं! वह बात नहीं है।" प्रीतम जी कुछ उलझ रहे थे।
    " अब तुमको अच्छा लगे या ना लगे! हमें तो आना ही है।  मैं तो बस तुमसे इसलिए बता रहा था ताकि तुम बाद में यह शिकायत ना करो कि ऑफिस से निकले और मेरे ही घर आने वाले थे तो मुझे बताया क्यों नहीं?" राजीव जी गहरी मुस्कुराहट के साथ बोले।


    "नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।  आपका घर है।  आप जब चाहे आज सकते हैं।" जाहिर में प्रीतम जी बोले लेकिन दिल तो  हो रहा था कि वह पूछे कि ऐसी कोई बात है क्या? अगर कोई बात है तो वह बात ऑफिस में भी हो सकती है।  घर पर आने की क्या जरूरत है लेकिन जब खुद के अच्छे दोस्त आगे बढ़कर घर आना चाह रहे थे तो रोकते हुए और उसका कारण पूछते हुए भी अच्छा नहीं लग रहा था। पर समझ में भी नहीं आ रहा था कि क्या कारण हो सकता है? अभी कल ही तो पूरे परिवार के साथ एक दूसरे से मिलना मिलाना हुआ था।  समय की पार्टी में! तो फिर ऐसा कौन सा जरूरी काम आज पड़ा था?


    "ठीक है! आप निकलिए। मैं भी घर के लिए निकलता हूं।" प्रीतम जी हल्के से मुस्कुराते हुए बोले।
    राजीव जी कुछ उम्र में भी बड़े थे और मल्होत्रा अंपायर के जाहिर तौर पर मलिक वही थे इसलिए प्रीतम जी उनका रिस्पेक्ट किया करते थे। अब घर पर जाकर उन्हें घर की तैयारी भी देखनी थी।  बीवी तो थी नहीं कि जिस पर सब कुछ डालकर निश्चित हो जाते। निर्मला जी थी।  वह परेशान हो जाती।


    प्रीत तो पहले ही साइट पर गई हुई थी और प्रीति के कॉलेज से आने का कोई भी टाइम निश्चित नहीं था और अब तो खुद दिल में हलचल मच रही थी की बात क्या है?
    पर जो भी बात होती! घर पर स्पष्ट हो ही जाती।


    जैसे ही राजीव जी की गाड़ी घर के लिए निकली उसके पीछे प्रीतम जी की भी गाड़ी निकली।  राजीव जी मार्केट में रुक गए क्योंकि प्रीति के घर जाने से पहले वह फल मिठाई वगैरा खरीदना चाहते थे।  जबकि रास्ते में प्रीतम जी की नजर मिठाई की दुकान पर खड़े राजीव जी पर पड़ी थी।  अब तो और दिमाग में शोर सा मचने लगा था कि कहीं आज किसी का कोई बर्थडे वगैरह तो नहीं है? पर पूरी तारीख उन्होंने रिवर्स रूप में याद की।  कुछ भी ऐसा नहीं दिख रहा था।  तो जब अगला बंदा अच्छी तैयारी के साथ आ रहा था तो वह भी घर आकर तैयारी देखने लगे।


    अभी दोनों बेटियों में से कोई भी घर नहीं आई थी तो नौकरों के साथ मिलकर अपनी मां के साथ वह खुद इसकी तैयारी कर रहे थे।


    "इतनी तैयारी की क्या जरूरत है? हमारे घर वह पहली दफा तो आ नहीं रहा!" निर्मला जी नाराज हुई।
    " तुम नहीं समझोगी मम्मी जी! मैं उनसे 5 मिनट के बाद निकला पर मैंने मार्केट में उसे मिठाइयां पैक करते हुए देखा है।  जो कि वह निश्चित हमारे घर लेकर आने के लिए ही पैक कर रहा था।" प्रीतम जी तेजी से पालक पनीर की सब्जी चलाते हुए बोले।
    " ओ!" निर्मला जी अब बहुत कुछ समझ गई थी।


    पंजाबी वैसे ही खाने खिलाने के बहुत शौकीन होते हैं। प्रीतम जी कुकिंग में बहुत एक्सपर्ट थे और यह हुनर उन्होंने अपनी बेटियों को भी दिया था।  अब इतने दिनों के बाद राजीव जी घर पर आ रहे थे।  वह भी शाम के समय! तो प्रीतम जी का दिल उनके पूरे परिवार का खाना आज अपने ही घर पर बनाने का था।


    "एक तो पहले ही उन के घर पर लगभग हर महीने कोई ना कोई पार्टी होती रहती है।  जिसमें वह हमें पूरे परिवार के साथ इनवाइट करते हैं।  कभी उनकी एनिवर्सरी होती है! तो कभी बर्थडे! तो कभी सक्सेस पार्टी! पर हमारे घर में तो पम्मी जी के जाने के बाद जैसे यह सब बंद ही हो गया है।  दूसरे में मेरी सेहत भी एलाऊ नहीं करती।  जिसके चलते बच्चियां भी अपना जन्मदिन बस छोटे में मना लेती है।


    आज सोच रहा हूं कि अगर वह आ रहे हैं तो उनके पूरे परिवार को खाने पर इनवाइट कर लो।" जल्दी-जल्दी दाल में भी तड़का लगाने के लिए प्याज काटते हुए प्रीतम जी बोले जा रहे थे।


    " ठीक ही सोचा है तुमने! अब कौन सा उनके घर में कोई बड़ा परिवार है? दोनों पति-पत्नी आ ही रहे हैं तो बचे, दोनों बच्चे ही ना!" निर्मला जी जल्दी से गैस पर कढ़ाई बिठाने लगी।
    " पर मम्मी जी! एक बात समझ में नहीं आई कि उनके अचानक हमारे घर आने का प्रोग्राम कैसे बना?" अपने दिल की उलझन कढ़ाई में प्याज डालते डालते प्रीतम जी ने मां से कह डाली थी।


    " अरे इसमें इतना सोचना क्या है? घर में बेरी का पेड़ है तो पत्थर आएंगे ही!" निर्मला जी आराम से कलछी चलाती हुई बोली।
    " मतलब?  हमने कब बेर का पेड़ लगाया? लोन में तो बस दो आम के और दो अमरूद के पेड़ हैं और वह भी प्रीत ने लगाए हैं।  आम का सीजन इस वक्त है नहीं और अमरुद तो बरसात में होंगे।" प्रीतम जी अभी भी नहीं समझे थे।


    " बिल्कुल गधा है तू!" निर्मला जी ने एक हाथ प्रीतम जी के सर पर हल्के से मारते हुए कहा।
    " मैं लोन में लगे हुए तेरे बगीचे की बात नहीं कर रही बल्कि तेरे घर गिरहस्ती के बगीचे की बात कर रही हूं।  माता रानी ने तुझे दो बेटियां दी है।  तेरी दोनों बेटियां तेरी नजर में अभी बच्चियां हैं, पर दुनिया की नजरों में बड़ी हो चुकी है।
    जहां तक मैं समझ पा रही हूं वह निश्चित समय के लिए प्रीति का हाथ मांगने के लिए आ रहे हैं।" निर्मला जी ने बताया।


    प्रीतम जी हैरत से बड़ी आंखें खोले हुए अपनी मां को देखे गए।  इधर प्याज भून चुका था।
    " अब देख क्या रहा है? जल्दी से टमाटर डाल वरना प्याज जल जाएगी।" निर्मला जी तेजी से बोली।
    " हां हां!" प्रीतम की तेजी से टमाटर डालने लगे।


    हर हर महादेव 🙏

  • 19. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 19

    Words: 1167

    Estimated Reading Time: 8 min

    In previous chapter, you saw that राजीव जी, प्रीतम जी को बता कर उनके घर आने वाले हैं। प्रीतम जी हैरान है कि राजीव जी को अचानक क्या काम पड़ गया। राजीव जी फल मिठाई लेकर प्रीतम जी के घर पहुँचने वाले है और प्रीतम जी और निर्मला जी उनके स्वागत की तैयारी कर रहे हैं। निर्मला जी को लगता है कि राजीव जी प्रीति का हाथ मांगने आ रहे हैं।

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    " मैं तो कहती हूं कि अगर वह खुल कर सामने से बात करें तो फिर इंकार मत करना बस वाहेगुरु की मेहर हो तो यह रिश्ता अच्छे से मुकाम पा जाए।
    जल्दी से प्रीति के हाथ पीले हो तो मैं प्रीत के बारे में भी सोचूं। पम्मी पुतरा तो अपनी जिम्मेदारी हम दोनों के ऊपर डालकर जा चुकी है।  तेरी सेहत का वही हाल है और मैं ठहरी पकी हुई आम! कब गिर जाऊंगी? कोई भरोसा नहीं! पर जब तक हाथ पर चल रहे हैं।  सांसे बाकी है, उन्हीं दिनों में अगर दोनों अपने-अपने घर की हो जाए तो इससे ज्यादा खुशी की बात क्या होगी?" निर्मला जी की अपनी चिंता थी।


    "बात तो सही हो मत कह रही हो मम्मी जी! समय अपना बच्चा है। देखा भाला है। अगर प्रीति की शादी समय से हो जाती है तो फिर प्रीत के लिए भी चिंता बहुत कम हो जाएगी।  हमारे ना रहने पर भी प्रीत को कभी भी मायके की कमी ना खलेगी।  राजीव पाजी और रागिनी भाभी दोनों बड़े अच्छे हैं प्रीत को संभाल लेंगे।" प्रीतम जी भी अब इस रिश्ते के बारे में सोच रहे थे।  सोचने के लिए तो वह प्रीति के लिए काफी समय से सोच रहे थे।  पर घर बैठे बिठाये इस तरह से रिश्ता आएगा! यह उन्होंने सोचा नहीं था!!
    और उसमें भी ऐसा रिश्ता!! बिल्कुल घर के जैसा।


      पर इधर राजीव जी को घर जाते ही इस मुसीबत का सामना करने पड़ेगा, यह तो उन्होंने भी नहीं सोचा था।


    पूरे घर में बिल्कुल शांति का साम्राज्य था।  शायद नौकर अपना काम खत्म करके सर्वेंट क्वार्टर जा चुके थे और रागिनी जी का कुछ आता पता नहीं था।
    " क्या हुआ? यह औरत आज फिर किसी की पार्टी में तो नहीं निकल गई है?" राजीव जी एक के बाद एक कमरे की तरफ देखते हुए सोचते जा रहे थे।


      नीचे का ड्राइंग रूम गेस्ट और साथ में किचन भी उन्होंने देख लिया था।  कहीं भी नहीं मिली।  अब अंतिम बचा था! अपना बेडरूम!! संभल कर सीढियां चढ़ते जा रहे थे।
    " हो सकता है! तैयारी में लगी होगी! वह क्या कहते हैं जो काला पीला अपने पूरे मुंह पर थोपती है। वहीं मुंह पर लगाकर बैठी होगी। हां! फेस मास्क! वही लगाया होगा।  तभी जवाब नहीं दे रही!" दो चार आवाज लगाने पर भी जवाब नहीं आया तो यही मन में सोचा लेकिन दरवाजा खोलते ही उनकी यह थिंकिंग भी गायब हो गई।  रागिनी जी आराम से बेड पर बैठकर अपना फोन चला रही थी।
    चेहरा पूरी तरह से नुकसूक से तैयार था। बाल भी बने हुए थे लेकिन कपड़ों के नाम पर उन्होंने घर पर पहनने वाला ग्राउंन डाल रखा था।


    "  क्या हुआ तुम अभी तक तैयार नहीं हुई? जाना नहीं है क्या?" राजीव जी ने पूछा।
    "कहां जाना है?" रागिनी जी ने अपने फोन पर ही अपना ध्यान लगाए हुए पूछा।  वह फोन पर अपनी ही फोटो जूम करके देख रही थी।  इसमें कोई शक नहीं थी की तस्वीर बड़ी सुंदर आई थी। कल की  पूरी पार्टी में वह अलग ही पहचान में आ रही थी और इसका उन्हें बड़ा ही घमंड था। बड़ी इतराई हुई फिर रही थी।


    दांतों से एक एक रुपए पकड़ने वाली रागिनी जी! कल रात के खर्चे को सुनकर इन सदमे में चली गई थी और उस में भी! कल तो उनके हाथों से भी बहुत खर्चा हो चुका था। लाखों रुपए ब्यूटीशियन को दिए थे और लाखों का ही ड्रेस ज्वेलरी वगैरा उन्होंने पहन रखा था।  अब इन फोटो को देखने के बाद उन्हें अपने ऊपर किया हुआ यह खर्च कुछ फायदे का सौदा लग रहा था।  
    फोन देखते हुए जो उनके चेहरे पर एक्सप्रेशन आ रहे थे।  राजीव जी को गुस्से में सुलगा रहे थे।


    " अभी तो रब की मेहर से तुम पूरी की पूरी जवान हो! बुढ़िया भी नहीं हुई।  इतनी जल्दी तुम्हारी याददाश्त चली गई? याद नहीं है कि आज हमें प्रीतम के घर जाना है।" राजीव जी ने कुछ ठहरे हुए अंदाज में कहा।  मन तो था की सुलग कर ताना मारे! जिसको सुनते ही रागिनी जी का तन-बदन सुलग जाए और वह झटके से उठकर खड़ी हो जाएं लेकिन समय की नजाकत और अपने समय की फरमाइश! उसकी दिल की इच्छा! इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए शांति से काम लिया था।  वरना क्या पता? इसी ताने का बहाना लेकर बीवी उन पर झपट पड़ती।  तो हो गया रहता काम तमाम !!


    " पर जाना ही क्यों है?" सवाल के बदले सवाल आया था।
    " मतलब?" राजीव जी की आंखें छोटी हुई।
    "देखो जी! तुम बड़े नासमझ हो।"
    "चलो तुम्हें समझ तो आया कि मैं नासमझ हूं।  वरना अब तक तो तुम्हारे मुंह से अपने लिए शातिर हीं सुनता आया हूं। जैसी तुम्हारी मां बुड्ढी शातिर थी। तुम भी उसी की तरह हो एक पल भी चैन से बैठे हुए नहीं देख सकते।  मरते मरते उसने अपने सारे गुण घुट्टी की तरह तुम्हें पिला दिए हैं।" रागिनी जी की कहीं हुई पुरानी बातों ने दिमाग पर हथौड़े की तरह चोट की। 
    बचा लो वाहेगुरु! यह मेरे दिमाग में क्या आ रहा है? पर आ ही क्यों रहा है? कहीं तेरा कोई ईसारा तो नहीं है।  वाहेगुरु बचा ले!" अपने मन में अपने भगवान को मनाते हुए राजीव जी बड़े ही लचर निगाहों से अपनी बीवी की तरफ देख रहे थे।


    इस वक्त उनके चेहरे पर ऐसे एक्सप्रेशन थे जैसे सामने खड़ी बिल्ली चूहे को पुचकारते हुए नहला रही हो! "आजा तुझको साफ करूं, तू बड़ा गंदा लग रहा है!"
    पर चूहा भी जान रहा था कि यह तारीफ इसलिए हुई है की खाने से पहले बिल्ली अपना भोजन साफ कर रही है। बाकी चूहे की सफाई और गंदगी से जैसे बिल्ली को कोई लेना देना नहीं! इस तरह से पति की समझ या नासमझ से बीवी को भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला! लेकिन कुछ कहा नहीं!!


    दिमाग अलग शोर मचा रहा था पर आंखें बीवी के चेहरे को देखकर कुछ अलग ही उसके चेहरे पर खोज रही थी और कान तो पूरी तरह से बीवी की बातों पर ही लगे हुए थे।  भगवान जाने अगला कौन सा बम ब्लास्ट होने वाला था।  वो बहुत ध्यान से उनकी बात सुन रहे थे।  वैसे भी बीवी की बातें हर पति ध्यान से ही सुनता है वरना सावधानी हटी और दुर्घटना घटी! तीसरे वर्ल्ड वॉर का खतरा सर पर नंगी तलवार की तरह लटकते रहता है।


    कमरे में इतना सस्पेंस फुल एनवायरमेंट क्रिएट हो गया था की उत्सुकता के मारे अब राजीव जी की नसे कुलबुलाने लगी थी।






    अगला भाग भी अगर आज ही चाहिए तो कम से कम 50 कमेंट इस पर कर देना।


    हर हर महादेव 🙏

  • 20. तुझ संग प्रीत लगाई - Chapter 20

    Words: 1145

    Estimated Reading Time: 7 min

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    "बच्चों को बच्चों की तरफ बहलाया जाता है ना कि उसके हाथ में उसका मनपसंद खिलौना रखा जाता है।" अबकी बार रागिनी की अपना फोन बिस्तर पर रखकर राजीव जी की तरफ देखते हुए बोली।
    "रब दी मेहर से आपका बच्चा 27 साल का नौजवान है!" हमेशा की तरह रागिनी जी की यह बात भी राजीव जी के सर के ऊपर से चली गई थी।


    "पर है तो हमारा बच्चा ही ना! बच्चे तो अपने जिद में आसमान के चांद सितारे मांगते हैं तो क्या हम उसको तोड़ कर दे देते हैं?""
    " नहीं!! नहीं तोड़ कर दे सकते क्योंकि वह हमारी पहुंच के और औकात के बाहर होते हैं!" राजीव जी थमते हुए बोले। फिलहाल तो पता करना था कि उनकी बीवी किस स्टेशन पर चल रही है? जिसकी ऑटो ट्यून उनको मिल नहीं रही!


    "एक्जेक्टली! यही बात मैं भी आपको कहना चाह रही थी कि अगर वह हमारी औकात के बाहर हो तो नहीं तोड़ कर दे सकते। लेकिन जो चीज हमारी औकात में हो पर हमारे बच्चे के लिए अच्छी ना हो! तो क्या वह चीज हम दे देंगे?" रागिनी जी ने बात को घुमाते हुए पूछा।


    " कहना क्या चाहती हो साफ-साफ बोलो ना!" अब तो राजीव जी का सब्र जवाब दे चुका था।
    "मैं तो साफ-साफ कह रही हूं बस आप समझ नहीं पा रहे हैं। अगर मान लीजिए चाबी वाली गुड़िया की चाबी नुकीली हो तो क्या वह अपने बच्चों को आप खेलने के लिए दे देंगे?" रागिनी जी को भला कहां कुछ समझ में आने वाला था। उन्होंने फिर घूम कर पूछा। राजीव जी ने इनकार में सर हिला दिया।


    " इसलिए दे दूंगा ताकि वह उसे अपना हाथ लहू लुहान कर बैठे?" उन्होंने भी इस बार कुछ तीखे ही पूछा।
    " एक्जेक्टली मैं यही बात आपसे समझाना चाह रही थी और इसीलिए आपका इंतजार कर रही थी!"रागिनी की बोली।
    "तो तुम्हारा कहने का यह मतलब है की प्रीति हमारे समय को कुछ नुकसान पहुंचा सकती है?" राजीव जी अपना सर खुजलाते हुए पूछे। पंजाबी से बात है की इतनी बड़ी सी बात फिर उनके सर के ऊपर से गुजर गई थी।


    " नहीं? यह बात नहीं? वह लड़की एक मच्छर नहीं मार सकती हमारे बेटे को क्या नुकसान पहुंचाएगी?" रागिनी जी नाक पर से मक्खी उड़ाते हुए बोली। राजीव जी ने बेहद अफसोस से उनकी तरफ देखा जाहिर सी बात है कि उनके पाले कुछ नहीं पड़ा था।
    " रागिनी जी अगर आप अपनी बातें खुलकर मेरे से बताओगी तो शायद मैं आपकी बात समझ पाऊं!" राजीव जी ने जैसे हथियार डालते हुए कहा
    अब तो रागिनी जी को मौका मिल गया था। उन्होंने तुरंत राजीव जी का दोनों हाथ पकड़ा और उन्हें अपने पास बेड पर बिठाया।


    " सुनो जी! मैं कह रही थी कि हमें प्रीति से समय की शादी करने की क्या जरूरत है?"
    " क्योंकि वह तुम्हारे हमारे बेटे की पसंद है!" राजीव जी ने साफ कहा।
    "वही तो मैं भी बता रही हूं कि बेटे को तो पसंद बहुत चीज आएगी तो क्या हर चीज उसकी जिंदगी में ला दोगे या फिर बाजार में तो रौनके पसरी हुई है? क्या हर चीज से घर सजाया जाता है?"


    " रागिनी जी! प्रीति की तुलना बाजार में बिक रही चीज से मत करो! साफ-साफ कहो कि कहना क्या चाहती हो तुम। " राजीव जी को अब गुस्सा आ रहा था।
    "मैं तो बस इतना ही कहना चाहती हूं कि मुझे समय के लिए प्रीति नहीं पसंद!" रागिनी जी ने भी राजीव जी के गुस्से को बिना किसी खाते में लाए हुए साफ कह दिया।


    " क्या?" राजीव जी की आंखें छोटी हुई। " पर सुबह तक तुम इस रिश्ते के लिए तैयार थी?"
    " हां सुबह तक के लिए मैं तैयार थी लेकिन सुबह के बाद अभी तक 7 घंटे बीत चुके हैं। 7 मिनट में तो तुम करोड़ों की डील क्रैक कर लेते हो तो क्या मैं अपना करोड़ का फायदा नुकसान नहीं देख सकती? इतना गणित तो मेरा भी कमजोर नहीं है!" रागिनी जी ठुनकते हुए बोली।


    " रिश्तो में अगर गणित का हिसाब लगाया तो फिर समझो कुछ ना पाया! केवल खोया ही खोया!" राजीव जी उनकी अकल पर मातम मनाते हुए बोले।
    " अजी! अपने कहावतें अपने पास रखो। तुम्हारी यह कहावतें, हमारे बेटे और पोते पोतियो को खाने के लिए ना दे देगी।
    उनको अपनी जिंदगी बिताने के लिए ढेर सारे रुपए पैसे और लग्जरियस चीजों की जरूरत पड़ेगी।" रागिनी जी ने बहुत ही अकल मंदी से अपनी बात समझाते हुए कहा।


    " तो फिर इस चीज की हमारे घर में क्या कमी है?" राजीव जी बोर हो रहे थे।


    " हमारे घर में कमी नहीं है पर किसी चीज की अधिकता भी तो नहीं है? आज जानते हो क्या हुआ है?" रागिनी जी मुंह टेढ़ा करते हुए बोली।

    " नहीं जब तक तुम बताओगी नहीं! तब तक मुझे पता कैसे चलेगा? कोई अंतर्यामी त्रिकालदर्शी तो हूं नहीं!" राजीव जी ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।


    " तुम और समय अपनी गाड़ी लेकर निकल गए। फिर बाद में तुमने अपनी गाड़ी को भी ड्राइवर के साथ ऑफिस में मंगा लिया। उधर मिसेज मेहता के घर आज किटी पार्टी थी। मैंने भी सोचा कि सुबह के समय किटी पार्टी में चल जाती हूं आखिर शाम को तो हमें प्रीति के घर जाना है। पर जाऊं कैसे? घर में कोई गाड़ी नहीं थी।


    तुम तो जानते हो की किटी पार्टी की आधी जिम्मेदारी मेरे सर पर रहती है। मिसेज मेहता बार-बार मुझे फोन कर रही थी कि चली आओ! चली आओ! अब कैसे बताती कि मेरे पास आने के लिए गाड़ी नहीं है! तो फिर मुझे बहाना बनाना पड़ा कि मेरी गाड़ी सर्विसिंग पर गई हुई है। फिर उनकी बेटी निशा मेरे लिए अपनी गाड़ी लेकर आई। गाड़ी क्या थी?? सच में इतनी अच्छी गाड़ी मैंने आज तक नहीं देखी!" रागिनी जी की अभी भी जैसे स्वप्न लोक के हिंडोले में झूल रही थी।


    " जरूरत क्या थी उनकी बेटी को बुलाने की? कैब करके चली जाती!" राजीव जी झल्लाते हुए बोले। अपनी बीवी की तुरंत इंप्रेस हो जाने वाली तबीयत से वह वाकिफ थे। और ऊपर से मिसेज मेहता की इस इनायत का कारण भी वह समझ रहे थे। रागिनी जी ने जो बातें उनसे नहीं कही थी, उन बातों को भी वह अब तक समझ गए थे की किटी पार्टी में क्या-क्या हुआ होगा और क्यों रागिनी जी का दिमाग अब प्रीति को छोड़कर निशा की तरफ घुस रहा है?


    " अरे मेरी कोई रेपुटेशन है कि नहीं?" रागिनी जी ने भी उसी झल्लाहट के साथ जवाब दिया।
    " तो तुम्हें नई गाड़ी चाहिए?" राजीव जी ने पूछा।
    " हां चाहिए तो! मुझे इस टाइम मार्केट की सबसे न्यू लेटेस्ट मॉडल चाहिए। लेकिन..."
    "लेकिन क्या?"
    "मुझे तुम्हारे पैसों से नहीं बल्कि दहेज में चाहिए!" रागिनी जी ने साफ कहा।
    अब तो राजीव जी के सर पर हैरतों का पहाड़ टूट पड़ा था।
    अब यह बीवी ने कौन सी नई जिद पकड़ ली थी??

    हर हर महादेव 🙏