मिलिए मेजर अर्जुन खन्ना से, जो मिलिट्री इंटेलिजेंस के एक खामोश और सीक्रेट ऑफिसर हैं और एक खुफिया मिशन के तहत शहर में एक आम आदमी की ज़िंदगी जी रहे हैं। और दूसरी तरफ हैं उनकी नई पड़ोसन, माया वर्मा, एक ज़िंदादिल और ड्रामेबाज़ स्ट्रगलिंग एक्ट्रेस, जिसके लिए... मिलिए मेजर अर्जुन खन्ना से, जो मिलिट्री इंटेलिजेंस के एक खामोश और सीक्रेट ऑफिसर हैं और एक खुफिया मिशन के तहत शहर में एक आम आदमी की ज़िंदगी जी रहे हैं। और दूसरी तरफ हैं उनकी नई पड़ोसन, माया वर्मा, एक ज़िंदादिल और ड्रामेबाज़ स्ट्रगलिंग एक्ट्रेस, जिसके लिए पूरी दुनिया एक स्टेज है। जब माया अपने डायलॉग और डांस की प्रैक्टिस से पूरी बिल्डिंग सिर पर उठा लेती है, तो अर्जुन का खुफिया मिशन खतरे में पड़ जाता है। यहीं से शुरू होती है उनकी मज़ेदार 'पड़ोसी-वॉर', जिसमें कभी अर्जुन माया का वाई-फाई बंद कर देता है, तो कभी माया उसे "मिस्टर हिटलर" कहकर चिढ़ाती है। उनकी यह नोक-झोंक सोसाइटी में कॉमेडी का ज़बरदस्त तड़का लगाती है। लेकिन इस रोज़-रोज़ की लड़ाई के पीछे, वे एक-दूसरे का वह रूप देखते हैं जो दुनिया से छिपा है। जब माया बीमार पड़ती है, तो यही 'मिस्टर हिटलर' उसकी मदद के लिए सबसे पहले पहुँचता है। वहीं, माया को भी लगने लगता है कि उसका यह रूखा पड़ोसी उतना भी बुरा नहीं है, जितना वह दिखावा करता है। उनके बीच एक अनकहा रिश्ता पनपने लगता है। कहानी में रोमांचक मोड़ तब आता है जब अर्जुन को पता चलता है कि एक बेहद कीमती सीक्रेट डिवाइस, जिसे एक खतरनाक जासूस ढूंढ रहा है, असल में माया के ही घर में छिपी है। अब अर्जुन का मिशन सिर्फ देश को बचाना नहीं, बल्कि अपनी पड़ोसन को भी बचाना है। क्लाइमेक्स में, जब माया को बंदी बना लिया जाता है, तब वह अपनी एक्टिंग स्किल्स का इस्तेमाल कर दुश्मन को गुमराह करती है और अर्जुन को उसे पकड़ने का मौका मिल जाता है। यह कहानी है एक अनोखे मिशन की, जहाँ दो अलग दुनिया के लोग मिलकर प्यार और देशभक्ति की एक नई मिसाल कायम करते हैं।
Page 1 of 6
Chapter 1
मुंबई शहर अपनी भागदौड़ और सपनों की रौशनी में नहाया हुआ था। लाखों लोगों की तरह, माया वर्मा भी अपने कंधों पर एक छोटा-सा बैग और आँखों में ढेरों सपने लिए इस चमकती हुई माया नगरी में उतर चुकी थी। यह उसका नया आगाज़ था, एक ऐसा आग़ाज़ जिसके लिए उसने अपनी छोटी सी दुनिया और पुरानी पहचान को पीछे छोड़ दिया था।
टैक्सी से उतरते हुए उसकी नज़रें सामने खड़ी एक आम सी इमारत पर पड़ीं। "आशा अपार्टमेंट्स।" नाम पढ़ते ही उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। आशा... उम्मीद। ठीक यही तो उसे चाहिए थी इस शहर में। एक छोटी सी उम्मीद, एक छोटी सी जगह जहाँ से वह अपनी उड़ान भर सके।
किराए पर लिया गया उसका यह फ्लैट कोई शानदार बंगला नहीं था, न ही किसी फिल्म स्टार के घर जैसा विशाल। यह एक आम मध्यमवर्गीय अपार्टमेंट था, जहाँ की दीवारें अभी भी नए पेंट की खुशबू से महक रही थीं। अंदर घुसते ही उसे एक अजीब सी ख़ामोशी महसूस हुई। वह ख़ामोशी, जो किसी नए घर में कदम रखने पर होती है, जो आपको बताती है कि यह जगह अभी तक बेजान है, उसे अपनी साँसों, अपने सपनों और अपनी ज़िंदादिली से भरना बाकी है।
माया ने अपने कंधे से बैग उतारा और उसे ज़मीन पर रख दिया। उसकी नज़रें कमरे के चारों ओर घूम रही थीं – एक छोटा सा लिविंग रूम, उससे लगा हुआ एक और छोटा सा बेडरूम और एक कॉम्पैक्ट किचन। सच कहूँ तो, यह उसके बचपन के सपनों से बहुत छोटा था। बचपन में उसने हमेशा बड़े घरों की कल्पना की थी, जहाँ पर एक कमरा सिर्फ उसकी रिहर्सल के लिए हो और एक बालकनी जहाँ वह खड़े होकर अपने फैंस को देख सके। पर मुंबई में ऐसी कल्पनाएँ सिर्फ कल्पनाएँ ही रहती हैं, खासकर जब आपके पास जेब में गिनी-चुनी बचत और आँखों में ढेरों महत्वाकांक्षाएँ हों।
उसकी आँखों में एक पल को थोड़ी उदासी आई, लेकिन वह तुरंत ही मुस्कुरा दी। "ठीक है, माया," उसने खुद से कहा, "बड़े महल एक दिन में नहीं बनते। ये तो बस तुम्हारी जर्नी का पहला कदम है।" उसने गहरी साँस ली और हवा में फैले नए पेंट की महक को अंदर लिया। यह महक उसे एक अजीब सा सुकून दे रही थी – एक नएपन की, एक ताज़गी की।
उसने अपना बैग खोला। अंदर उसके संघर्ष के दिनों की कुछ बेहद यादगार चीज़ें थीं। सबसे पहले उसने एक पुराने, मुरझाए हुए थिएटर प्ले का पोस्टर निकाला। उस पोस्टर पर उसकी तस्वीर लगी थी – एक युवा, उत्साह से भरी लड़की, जो उस समय लोकल थिएटर में एक छोटा सा रोल करती थी। उसने धीरे से उस पोस्टर पर हाथ फेरा। "याद है, उस दिन लोग कैसे सीटियों और तालियों से हॉल गूँज रहे थे? वो सब वापस आएगा," उसने खुद को याद दिलाया।
फिर उसने एक छोटा सा लकड़ी का अवार्ड निकाला। वह अवार्ड उसके कॉलेज के दिनों में एक नाटक प्रतियोगिता में मिला था। 'सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री' का अवार्ड। उस अवार्ड को देखते ही उसकी आँखों में चमक आ गई। "ये तो बस एक शुरुआत थी," वह बड़बड़ाई। उसने अवार्ड को सावधानी से उठाया और अपनी नज़रें कमरे में घुमाईं, यह सोचने के लिए कि इसे कहाँ रखा जाए जहाँ यह उसे हमेशा प्रेरित करता रहे। अंततः उसने उसे लिविंग रूम में रखी एक छोटी सी खाली शेल्फ पर रख दिया, जहाँ वह हर रोज़ उसकी नज़रों के सामने रहे।
माया अपनी चीज़ें खोलते हुए खुद से बातें कर रही थी, कभी गुनगुना रही थी तो कभी किसी डायलॉग की लाइनें बोल रही थी। उसने अपने कपड़े अलमारी में रखे, किताबें शेल्फ पर सजाईं, और फिर एक छोटी सी ट्रंक से कुछ और चीज़ें निकालीं। एक पुरानी डायरी, जिसमें उसने अपने सारे सपनों और एक्टिंग के लिए अपने जुनून को लिखा था। एक रंगीन स्कार्फ, जिसे उसकी माँ ने बुना था – उसकी माँ का प्यार और आशीर्वाद हमेशा उसके साथ रहे, यही सोचकर वह उसे अपने साथ लाई थी। इन छोटी-छोटी चीज़ों में उसका पूरा अतीत, उसके परिवार का प्यार और उसका भविष्य छिपा हुआ था।
"आज से ये घर सिर्फ चार दीवारें नहीं हैं," उसने कहा और कमरे के बीचो-बीच खड़ी होकर अपनी बाहें फैला दीं। "आज से ये घर मेरे सपनों की नर्सरी है। यहीं से मेरी उड़ान शुरू होगी। यहीं से मैं मुंबई की माया नगरी में अपनी पहचान बनाऊँगी।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी ऊर्जा थी, एक दृढ़ संकल्प। वह जानती थी कि यह रास्ता आसान नहीं होगा, लेकिन उसने कभी हार मानना सीखा ही नहीं था।
उसने अपने छोटे से म्यूज़िक सिस्टम को ऑन किया और अपनी पसंदीदा धुन बजाई – एक तेज़ और जोशीला गाना। संगीत की धुन पर वह थिरकने लगी। उसके पैर अपने आप उठ रहे थे, हाथों से एक्टिंग के भाव बन रहे थे। यह उसकी रोज़ की आदत थी – संगीत और नृत्य के ज़रिए अपनी अंदर की ऊर्जा को बाहर निकालना। उसे लगता था कि हर दिन की शुरुआत इसी उत्साह से करनी चाहिए, ताकि कोई भी नकारात्मकता उसे छू भी न सके।
नाचते-नाचते वह अचानक रुक गई। उसकी नज़र दरवाज़े पर पड़ी। उसने सोचा, "नया घर, नए लोग... पड़ोसियों से तो मिलना ही चाहिए। अगर मिलनसार न बनूँगी तो फिर इस शहर में घुल-मिल कैसे पाऊँगी?" उसके दिमाग में तुरंत ये ख्याल आया कि पड़ोसियों को तो परिवार की तरह होना चाहिए। ये उसके छोटे शहर की सीख थी, जहाँ हर पड़ोसी सुख-दुख में साथ खड़ा होता था। उसने सोचा, मुंबई में भी यही माहौल बनाना होगा।
वह नाचती हुई दरवाज़े तक गई और दरवाज़े पर लगा पीपहोल चेक किया। बाहर कोई नहीं था। उसने दरवाज़ा खोला और सामने के कॉरिडोर पर देखा। कॉरिडोर बिल्कुल शांत था। "शायद अभी सब अपने-अपने काम में व्यस्त होंगे," उसने सोचा।
उसने अपने बगल वाले फ्लैट की ओर देखा। दरवाज़े पर कोई नाम प्लेट नहीं थी, लेकिन वह साफ और व्यवस्थित लग रहा था। उसे लगा कि यहीं से शुरुआत करनी चाहिए। "सबसे पहले अपने अगले दरवाज़े के पड़ोसी से मिलो," उसकी दादी ने हमेशा यही सिखाया था।
उसने अपनी बिखरी हुई जुल्फें ठीक कीं, चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान सजाई और बगल वाले फ्लैट के दरवाज़े पर हाथ रखा। उसने एक बार नहीं, बल्कि दो-तीन बार नॉक किया।
पहली बार नॉक करते हुए उसने कहा, "हेलो! कोई है क्या?" उसकी आवाज़ में उत्साह और थोड़ी सी घबराहट थी। कोई जवाब नहीं आया।
उसने थोड़ी देर इंतज़ार किया और फिर दूसरी बार नॉक किया, इस बार थोड़ा तेज़। "हेलो... मैं नई पड़ोसन हूँ। माया वर्मा।" उसने मुस्कुराने की कोशिश की, जैसे सामने कोई खड़ा हो और उसे देख रहा हो। लेकिन दरवाज़े के पीछे से कोई आवाज़ नहीं आई, कोई खड़खड़ाहट नहीं, कोई आहट नहीं।
उसने कान लगाकर सुनने की कोशिश की। अंदर बिलकुल ख़ामोशी थी। इतनी ख़ामोशी कि उसे अपने दिल की धड़कनें सुनाई दे रही थीं। "अजीब बात है," उसने सोचा, "शायद कोई घर पर नहीं है। या फिर इतने ख़ामोश लोग हैं कि आवाज़ ही नहीं करते?"
उसने फिर एक बार कोशिश की, इस बार और तेज़, लगभग दरवाज़े पर मुक्का मारते हुए। "कोई है क्या? मैं माया हूँ, बगल वाले फ्लैट में शिफ्ट हुई हूँ।" लेकिन फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
उसने अपना हाथ दरवाज़े से हटा लिया और एक गहरी साँस ली। उसकी मुस्कान थोड़ी फीकी पड़ गई थी। "लगता है इस बिल्डिंग में सारे लोग सुबह-सुबह काम पर निकल जाते हैं," उसने बड़बड़ाया। उसे थोड़ी निराशा हुई, लेकिन उसकी सकारात्मकता ने उसे ज़्यादा देर उदास नहीं रहने दिया।
"कोई बात नहीं, माया," उसने फिर खुद को समझाया। "आज नहीं तो कल तो मिलेंगे ही। आख़िरकार, पड़ोसी तो पड़ोसियों से मिलते ही हैं। और तब मैं इन्हें बताऊँगी कि माया वर्मा सिर्फ एक कलाकार ही नहीं, बल्कि एक अच्छी पड़ोसन भी है।" उसने वापस अपने फ्लैट की ओर देखा, जो अब उसके सामान और उसके सपनों से भरा हुआ महसूस हो रहा था।
उसने दरवाज़ा बंद किया और वापस अपने लिविंग रूम में आ गई। उसने फिर से म्यूज़िक ऑन किया और इस बार वह एक इमोशनल सीन की प्रैक्टिस करने लगी। "नहीं! तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकते!" वह चिल्लाई, उसकी आवाज़ में दर्द और गुस्सा दोनों था। "मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूँगी! कभी नहीं!" वह अपनी पूरी जान लगाकर एक्टिंग कर रही थी, अपनी आवाज़ को ऊँचा और नीचा करती हुई। उसे नहीं पता था कि उसकी इस तेज़ आवाज़ ने दीवार के दूसरी तरफ किसी और की दुनिया में कैसा भूचाल ला दिया था। फिलहाल, माया अपने नए घर में अपने सपनों की दुनिया बसाने में पूरी तरह मग्न थी, आने वाले तूफानों से बेखबर।
Chapter 2
दीवार के दूसरी तरफ, फ्लैट नंबर 302 में, माहौल बिल्कुल अलग था। वहाँ की हवा में कोई नई पेंट की खुशबू नहीं थी, न ही कोई चुलबुला संगीत। वहाँ एक अजीब सी ख़ामोशी थी, इतनी गहरी कि आपको अपनी धड़कनें भी साफ़ सुनाई दे जाएँ। कमरा व्यवस्थित था, हर चीज़ अपनी जगह पर करीने से रखी हुई। लिविंग रूम के एक कोने में, एक छोटी सी स्टडी टेबल पर, तीन-चार लैपटॉप और कुछ अजीबोगरीब दिखने वाले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स रखे थे, जिनकी नीली-हरी लाइटें कमरे में एक अलग ही आभा बिखेर रही थीं। टेबल के ठीक ऊपर, दीवार पर एक बड़ा सा मॉनिटर लगा था, जिस पर लगातार कुछ कोड्स और नक्शे फ्लैश हो रहे थे।
मेज पर झुका हुआ एक शख्स, मेजर अर्जुन खन्ना, पूरी एकाग्रता से एक हाई-टेक हेडसेट पहने हुए था। हेडसेट इतना बारीक था कि अगर आप उसे ध्यान से न देखें तो वह नज़र भी न आता। उसकी आँखें मॉनिटर पर टिकी थीं, लेकिन उसका पूरा ध्यान हेडसेट से आ रही आवाज़ पर था। वह आवाज़ एक पुरुष की थी, शांत लेकिन गंभीर।
"अर्जुन, घोस्ट की हलचल बढ़ गई है," दूसरी तरफ से आवाज़ आई, जिसमें एक अर्जेंसी थी। "हमारे इनपुट के अनुसार, वह मुंबई में किसी बड़ी चीज़ की तलाश में है। एक ऐसी चीज़, जो अगर गलत हाथों में पड़ गई तो देश के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकती है।"
अर्जुन ने बिना पलक झपकाए मॉनिटर पर कुछ नंबर्स टाइप किए। उसकी उंगलियाँ तेज़ी से कीबोर्ड पर चल रही थीं, जैसे कोई प्रशिक्षित पियानो वादक अपने सुर साध रहा हो। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, सिर्फ़ एक गहरी गंभीरता और असाधारण एकाग्रता। वह बाहर से बिलकुल एक साधारण आईटी प्रोफेशनल जैसा दिखता था – सफेद टी-शर्ट और नीली जीन्स में। लेकिन उसकी आँखें, उसकी आँखें एक सैनिक की थीं – पैनी, सतर्क और हमेशा खतरे को भाँपने वाली।
"मैं समझ रहा हूँ, सर," अर्जुन ने अपनी भारी आवाज़ में कहा। उसकी आवाज़ में एक ठोसपन था, जो उसकी विश्वसनीयता को दर्शाता था। "हमें क्या इनपुट मिला है उसकी तलाश के बारे में?"
"हमें अभी तक उसकी पहचान और उसकी तलाश की चीज़ दोनों के बारे में कोई ठोस लीड नहीं मिली है," हैंडलर की आवाज़ में हल्की सी झुंझलाहट थी। "वह बहुत चालाक है, अर्जुन। एक ऐसा भूत, जिसे कोई देख नहीं पाता, लेकिन उसकी मौजूदगी हर जगह महसूस होती है।"
अर्जुन ने अपनी कुर्सी पर हल्का सा एडजस्ट किया। उसके बगल में एक कप कॉफ़ी रखी थी, जिसे उसने छुआ तक नहीं था। उसका पूरा ध्यान मिशन पर था। उसकी ज़िंदगी में इस वक़्त सिर्फ एक ही मकसद था – देश की सुरक्षा। उसके लिए पर्सनल स्पेस, शांति और गोपनीयता सबसे ऊपर थी। यही कारण था कि उसने यह शांत सा अपार्टमेंट चुना था, जहाँ उसे उम्मीद थी कि कोई उसे डिस्टर्ब नहीं करेगा।
तभी, अर्जुन को अपनी दाहिनी ओर से, यानी दीवार के उस पार से, एक हल्की सी आवाज़ सुनाई दी। "हेलो! कोई है क्या?" आवाज़ में एक चुलबुलापन था, जिसे अर्जुन ने तुरंत पहचान लिया – किसी नए पड़ोसी की आवाज़ थी। उसका माथा हल्का सा सिकुड़ गया, लेकिन उसने तुरंत उसे अनदेखा कर दिया। उसके लिए यह सब बस एक अनावश्यक व्यवधान था। उसके मिशन की तुलना में यह आवाज़ कुछ भी नहीं थी।
दूसरी तरफ से हैंडलर की आवाज़ फिर आई, "अर्जुन, तुम्हें अपनी सर्विलांस को और तेज़ करना होगा। हमें हर उस शख्स पर नज़र रखनी होगी, जो इस शहर में संदिग्ध लग रहा है। खास कर उस पुराने एजेंट के नेटवर्क पर, जो पिछले महीने गायब हो गया था। हमें शक है कि घोस्ट का कनेक्शन उसी से हो सकता है।"
"सर, मैं उस एंगल पर काम कर रहा हूँ," अर्जुन ने जवाब दिया। उसने एक फाइल खोली जिसमें कुछ पुराने चेहरों की तस्वीरें थीं। वे सब अंडरकवर एजेंट थे, जो पिछले कुछ समय में रहस्यमय तरीके से गायब हो गए थे। यह घोस्ट का तरीका था – अपने दुश्मन को बिना कोई निशान छोड़े गायब कर देना।
"हेलो... मैं नई पड़ोसन हूँ। माया वर्मा।" दीवार के उस पार से फिर एक आवाज़ आई, इस बार थोड़ी तेज़। अर्जुन ने अपने हेडसेट को हल्का सा कान पर दबाया, जैसे उस आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रहा हो। उसके चेहरे पर हल्की सी चिढ़न दिखाई दी। वह सोच रहा था, "कौन है ये? सुबह-सुबह क्या ड्रामा शुरू कर दिया है।" लेकिन उसने अपनी एकाग्रता नहीं तोड़ी। वह जानता था कि एक छोटी सी गलती, एक पल की लापरवाही उसके मिशन को खतरे में डाल सकती है।
उसका कमरा उसकी शख्सियत का आईना था – न्यूनतम, व्यवस्थित, और बेहद कार्यात्मक। कोई फालतू की चीज़ नहीं, कोई अनावश्यक सजावट नहीं। सिर्फ़ वही चीज़ें जो उसके काम आती थीं – उच्च-स्तरीय एन्क्रिप्शन उपकरण, कम्युनिकेशन डिवाइसेस, डिजिटल मैप्स, और कुछ सेल्फ-डिफेंस के गैजेट्स जो बड़ी चतुराई से कमरे में छिपाए गए थे। हर एक चीज़ सेना के अनुशासन और उसके मिशन की गंभीरता को दर्शाती थी।
उसकी आँखें मॉनिटर पर तेज़ी से स्क्रॉल हो रहे कोड्स पर दौड़ रही थीं। एक जटिल एल्गोरिथम किसी डेटा को डिक्रिप्ट कर रहा था। यह डेटा 'द घोस्ट' के संभावित ठिकाने या उसकी अगली चाल से जुड़ा हो सकता था। अर्जुन के लिए हर सेकेंड कीमती था। वह इस वक्त किसी भी बाहरी चीज़ से डिस्टर्ब नहीं होना चाहता था।
"कोई है क्या? मैं माया हूँ, बगल वाले फ्लैट में शिफ्ट हुई हूँ।" तीसरी बार आवाज़ आई, इस बार थोड़ी और तेज़ और हताश। अर्जुन ने एक लंबी साँस ली और अपनी उंगलियाँ मेज पर थपथपाईं। वह उस आवाज़ को अनदेखा करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था। उसके दिमाग में सिर्फ एक ही तस्वीर थी – 'द घोस्ट', एक ऐसा दुश्मन जो देश के लिए खतरा बन चुका था।
"अर्जुन, हमें तुम्हारी पूरी रिपोर्ट चाहिए आज शाम तक," हैंडलर ने कहा, "यह मिशन तुम्हारी प्राथमिकता है। कोई भी ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।"
"सर, निश्चिंत रहिए," अर्जुन ने दृढ़ता से जवाब दिया, "मैं जानता हूँ मेरी प्राथमिकता क्या है। घोस्ट को जल्द ही पकड़ा जाएगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ।"
उसने कॉल काट दी और हेडसेट को मेज़ पर रख दिया। उसकी आँखें अभी भी स्क्रीन पर टिकी हुई थीं, जहाँ कोड्स और नंबर्स तेज़ी से चल रहे थे। उसका दिमाग पूरी तेज़ी से काम कर रहा था। वह हर एक जानकारी को प्रोसेस कर रहा था, हर एक संभावना पर विचार कर रहा था। उसकी पूरी दुनिया इस वक़्त इस कमरे के अंदर सिमटी हुई थी, एक गोपनीय मिशन की उलझनों और खतरों से भरी हुई।
उसने दीवार की ओर देखा, जहाँ से अभी कुछ देर पहले माया की आवाज़ आई थी। उसके चेहरे पर हल्की सी झुंझलाहट थी। "नई पड़ोसन? अब ये कौन सा नया ड्रामा शुरू होगा मेरी ज़िंदगी में?" उसने मन ही मन सोचा। उसे शांति चाहिए थी, गोपनीयता चाहिए थी, लेकिन ऐसा लगता था कि उसकी शांति भंग करने का पूरा इंतज़ाम हो चुका था। वह बस इतना चाहता था कि ये नई लड़की उसे डिस्टर्ब न करे। उसे नहीं पता था कि यह "नई पड़ोसन" उसकी दुनिया को किस कदर बदलने वाली थी, और उसका यह "शांत सा अपार्टमेंट" जल्द ही एक युद्धक्षेत्र बनने वाला था।
फिलहाल, अर्जुन का पूरा ध्यान 'द घोस्ट' पर था। वह अपने मिशन में इतना डूबा हुआ था कि उसे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि जिस खतरे की तलाश में वह पूरा शहर छान रहा था, वह खतरा शायद दीवार के उस पार से भी आ सकता था, या शायद उसकी बगल वाली दीवार के भीतर ही कहीं छिपा हुआ था। वह अपनी सीट से उठा और मॉनिटर पर बड़ा करके शहर का एक नक्शा देखा। उस नक्शे पर कुछ लाल बिंदु चमक रहे थे, जो संभावित खतरों को दर्शा रहे थे। अर्जुन की आँखें उन बिंदुओं पर तेज़ी से घूम रही थीं, एक-एक करके हर संभावना को टटोलते हुए। यह बस शुरुआत थी। असली खेल अभी बाकी था।
Chapter 3
Chapter 3
अगले कुछ दिन माया के लिए बेहद व्यस्त और उत्साह भरे रहे। वह अपने नए घर में पूरी तरह से बसने में लगी हुई थी। उसने फर्नीचर को अपनी पसंद से सजाया, दीवारों पर कुछ तस्वीरें और पेंटिंग्स लगाईं जो उसकी कलात्मकता को दर्शाती थीं, और अपने छोटे से फ्लैट को एक असली घर का रूप दे दिया। उसे लगा कि अब यह जगह उसकी ऊर्जा और सपनों से पूरी तरह से भर चुकी है। और जब कोई कलाकार अपने नए आशियाने में आता है, तो एक गृह-प्रवेश पार्टी तो बनती ही है!
शाम होते ही, माया का छोटा सा फ्लैट दोस्तों के हँसी-मज़ाक और संगीत से गूँजने लगा। उसने अपने थिएटर के कुछ ख़ास दोस्तों को बुलाया था – वे लोग जो उसके मुंबई के संघर्ष में उसके साथ थे, जो उसके हर सुख-दुःख के साक्षी थे। वहाँ रिया थी, जो एक बेहतरीन डांसर थी, और समीर था, जो हर पार्टी की जान था अपनी कॉमेडी से। उनके साथ कुछ और साथी कलाकार भी आए थे, जिनके चेहरे पर भी माया जैसी ही उम्मीदें और संघर्ष की कहानियाँ लिखी हुई थीं।
माया ने अपने हाथों से कुछ पकवान बनाए थे और बाज़ार से भी कुछ नाश्ता मंगवाया था। उसने एक बड़ा सा स्पीकर लगाया था और उस पर अपनी पसंदीदा प्लेलिस्ट बजाई थी – बॉलीवुड के वो गाने जिन पर हर कोई थिरकने को मजबूर हो जाए। "मुन्नी बदनाम हुई," "बदतमीज़ दिल," और "काला चश्मा" जैसे गाने बज रहे थे और उनकी धुन पर पूरा फ्लैट झूम रहा था।
"यार माया, क्या बात है! तुम्हारा यह नया घर तो बड़ा कमाल का है!" रिया ने तालियाँ बजाते हुए कहा, उसके चेहरे पर सच्ची ख़ुशी थी। "मुझे तो लगा था मुंबई में छोटी सी डिबिया मिलेगी, पर तुमने तो इसे महल बना दिया!"
माया मुस्कुराई और रिया को गले लगा लिया। "डिबिया ही है रिया, पर मेरी उम्मीदें इस डिबिया से बहुत बड़ी हैं। यह तो बस मेरी उड़ान का पहला रनवे है!" उसकी आँखों में चमक थी। "और बिना दोस्तों के कोई भी रनवे अधूरा है। वेलकम, मेरी जान!"
समीर ने अपने हाथ में पकड़ी समोसे की प्लेट को एक तरफ़ रखा और कहा, "और इस रनवे पर अगर संगीत न हो, तो फिर उड़ान कैसे भरोगे? यह तुमने बिल्कुल सही किया माया! फुल वॉल्यूम! पार्टी हो तो ऐसी हो!"
माया ज़ोर से हँसी। "हाँ समीर, मुंबई में अगर अपनी आवाज़ नहीं पहुँचाई, तो फिर क्या किया? यह शोर नहीं, मेरे सपनों की धुन है!"
संगीत तेज़ था, लोग नाच रहे थे, हँस रहे थे और एक-दूसरे के साथ पुरानी कहानियाँ साझा कर रहे थे। माया पूरी तरह से पार्टी की जान बनी हुई थी। वह कभी रिया के साथ डांस कर रही थी तो कभी समीर के साथ मज़ेदार चुटकुले सुना रही थी। वह अपने दोस्तों के साथ हँस-बोल रही थी, उनके स्ट्रगल की कहानियाँ सुन रही थी और अपनी कहानियाँ भी सुना रही थी।
"बस अब एक बड़ा ब्रेक मिल जाए," एक दोस्त ने कहा। "फिर तो हर शाम ऐसी पार्टी होगी। और तब ये फ्लैट नहीं, पूरा बंगला होगा।"
माया ने हँसते हुए कहा, "बड़े सपने हैं, बड़े सपने! लेकिन उसके लिए हमें और मेहनत करनी होगी। और हाँ, हमेशा मिलनसार रहना होगा। मिलनसारता ही तो हमारी सबसे बड़ी ताक़त है।"
उसकी बात सुनकर समीर ने सिर हिलाया। "हाँ, बिलकुल! मिलनसार होना चाहिए। मैं तो सोच रहा हूँ कि अगले वाले शो में सारे पड़ोसियों को बुलाऊँ। क्या कहते हो?"
माया की आँखों में एक विचार आया। उसने अपने बगल वाले दरवाज़े की तरफ़ देखा। वही दरवाज़ा जिसे उसने सुबह खटखटाया था और जहाँ से कोई आवाज़ नहीं आई थी। "सही कहा समीर! पड़ोसियों को भी तो बुलाना चाहिए। आख़िरकार, पड़ोसी तो परिवार की तरह होते हैं," उसने खुद से कहा। "और खासकर जब आप किसी नए शहर में हों, तो पड़ोसियों का साथ बहुत ज़रूरी होता है।"
उसे लगा कि शायद सुबह वह पड़ोसी घर पर नहीं था, लेकिन अब तो शाम हो चुकी थी। पार्टी चल रही थी, संगीत ज़ोरों पर था। कोई भी घर पर होता तो यह संगीत उसे सुनाई दे रहा होता। उसने सोचा, "शायद वे लोग थोड़े शाही होंगे। या फिर उन्हें शोर पसंद नहीं होगा।" लेकिन उसकी परवरिश में यह नहीं था कि पड़ोसियों को नज़रअंदाज़ किया जाए।
"मैं अभी आती हूँ," माया ने अपने दोस्तों से कहा। "मैं पड़ोसियों को भी बुलाकर आती हूँ। क्या पता वे भी कुछ हँस-बोल लें।"
रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम भी न माया! तुम्हें हर किसी को अपने साथ शामिल करना होता है। जाओ, बुलाकर आओ। शायद कोई अच्छा दोस्त बन जाए।"
माया मुस्कुराई और अपने फ्लैट से बाहर निकली। बगल वाले दरवाज़े के सामने आकर उसने फिर से गहरी साँस ली और चेहरे पर एक विनम्र मुस्कान लाई। उसने धीरे से दरवाज़ा खटखटाया, इस बार बहुत प्यार से, ताकि अगर कोई सो रहा हो तो अचानक न जागे।
टक-टक।
उसने इंतज़ार किया। कोई जवाब नहीं आया। अंदर से कोई आवाज़ नहीं, कोई चहल-पहल नहीं। उसे थोड़ी हैरानी हुई। सुबह भी यही हाल था।
उसने फिर से खटखटाया, इस बार थोड़ा तेज़। "हेलो... कोई है क्या? मैं माया हूँ, बगल वाले फ्लैट से। मैंने गृह-प्रवेश की छोटी सी पार्टी रखी है, तो सोचा आपको भी बुला लूँ।" उसकी आवाज़ में वही उत्साह था, जो उसके स्वभाव का हिस्सा था। वह दरवाज़े पर कान लगाकर सुनने की कोशिश कर रही थी। उसे उम्मीद थी कि अंदर से कम से कम कोई आहट तो आएगी।
लेकिन वहाँ पर मौत जैसी ख़ामोशी थी। इतना तेज़ संगीत बज रहा था उसके फ्लैट में, फिर भी इस फ्लैट से कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। यह बात उसे थोड़ी अजीब लगी। क्या ये लोग घर पर नहीं हैं? या क्या वे जानबूझकर दरवाज़ा नहीं खोल रहे हैं?
"शायद काम पर होंगे," उसने फिर खुद को समझाया। "या बहुत थके हुए होंगे।" पर उसके मन में हल्का सा शक पैदा हो चुका था। उसने सोचा, "मुंबई में ऐसे भी पड़ोसी होते हैं, जो इतनी तेज़ संगीत पर भी दरवाज़ा नहीं खोलते? यह तो बहुत ही अजीब है।"
उसने एक और बार दरवाज़ा खटखटाने की सोची, लेकिन फिर रुक गई। "नहीं, अगर उन्हें आना होता तो अब तक दरवाज़ा खुल जाता," उसने मन ही मन कहा। "और अगर वे इतने शाही हैं कि इतनी ख़ुशी के मौके पर भी दरवाज़ा नहीं खोलना चाहते, तो फिर रहने दो।"
उसने एक हल्की सी झुंझलाहट के साथ अपना हाथ दरवाज़े से हटा लिया। उसे उस अशिष्टता पर थोड़ी निराशा हुई। उसके शहर में, पड़ोसी घर में घुसकर मदद करते थे, पार्टी में शरीक होते थे, और यहाँ कोई दरवाज़ा तक नहीं खोल रहा था। "ठीक है, मिस्टर ख़ामोश पड़ोसी," उसने मन ही मन कहा। "अगर आप नहीं आना चाहते, तो न सही। मुझे क्या।"
माया ने कंधे उचकाए। उसकी ऊर्जा वापस आ चुकी थी। वह यह छोटी सी निराशा अपने उत्साह पर हावी नहीं होने दे सकती थी। "अपनी पार्टी क्यों खराब करूँ?" उसने खुद से कहा। वह वापस अपने फ्लैट की ओर मुड़ी, जहाँ से ज़ोर-ज़ोर से संगीत की आवाज़ आ रही थी और दोस्तों की हँसी गूँज रही थी।
जैसे ही वह अपने फ्लैट में वापस आई, उसके चेहरे पर फिर से एक बड़ी सी मुस्कान आ गई। "अरे माया! कहाँ रह गई थी?" समीर ने पूछा। "हम तो तुम्हारे बिना पार्टी फीकी महसूस कर रहे थे।"
"कहीं नहीं, बस पड़ोसियों को बुलाने गई थी," माया ने कहा। "पर लगता है वे लोग आज घर पर नहीं हैं। या फिर इतने ख़ामोश हैं कि उन्हें मेरी आवाज़ पसंद नहीं आई।" उसने आँखों पर हाथ रखकर ड्रामा करते हुए कहा।
रिया ने हँसते हुए कहा, "लगता है तुम्हें कोई सरकारी बाबू पड़ोसी मिला है, जिसे शोर पसंद नहीं। छोड़ो, हम तो हैं न!"
"सही कहा!" माया ने कहा। "तो फिर क्या! जब अपने दोस्त साथ हों, तो फिर और क्या चाहिए!" उसने संगीत को और तेज़ कर दिया। "अब और मज़े करते हैं!"
और फिर से पूरा फ्लैट संगीत और हँसी के शोर से गूँजने लगा। माया पूरी तरह से अपनी पार्टी में मग्न हो गई। वह अपने दोस्तों के साथ नाच रही थी, गा रही थी, और अपने नए घर के इस नए अध्याय को पूरी तरह से जी रही थी। वह नहीं जानती थी कि दीवार के दूसरी तरफ, उसका "सरकारी बाबू" पड़ोसी, उसकी इस "खुशी की धुन" से किस कदर परेशान हो चुका था। उसे बस इतना पता था कि यह मुंबई है, और यहाँ हर कोई अपने सपनों के लिए शोर मचाने को तैयार है, चाहे किसी को पसंद आए या न आए। यह पार्टी आधी रात तक चली, और उसका शोर पूरी इमारत में गूँजता रहा, खासकर फ्लैट नंबर 302 की दीवार के पार। माया अपनी जीत पर खुश थी, अपने दोस्तों के साथ अपनी नई शुरुआत का जश्न मना रही थी। उसे लगा कि उसने अपने नए जीवन का एक शानदार आगाज़ किया है।
Chapter 4
Chapter 4
दीवार के उस पार, फ्लैट नंबर 302 में, माहौल किसी ज्वालामुखी के अंदर की तरह तनावपूर्ण हो चुका था। जहाँ एक तरफ़ माया के फ्लैट में 'मुन्नी बदनाम हुई' और 'काला चश्मा' जैसी धुनें ज़ोर-ज़ोर से बज रही थीं, वहीं दूसरी तरफ़ मेजर अर्जुन खन्ना का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था।
अर्जुन अपनी मेज पर झुका हुआ था, एक बेहद ही संवेदनशील और गोपनीय कम्युनिकेशन लाइन पर अपने हैंडलर के साथ जुड़ा हुआ था। उसके कान में लगा हाई-टेक हेडसेट हर बारीक से बारीक जानकारी को उसके दिमाग तक पहुँचा रहा था। इस वक्त वे 'द घोस्ट' से जुड़ी एक महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी पर चर्चा कर रहे थे। हैंडलर की आवाज़ में गंभीरता थी, "अर्जुन, हमें पता चला है कि 'द घोस्ट' ने अपनी टीम के कुछ नए सदस्य सक्रिय किए हैं। वे शहर में किसी ख़ास 'ऑब्जेक्ट' की तलाश में हैं, जिसके बारे में हमारी ख़ुफ़िया एजेंसियों को अभी तक पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है। तुम्हें अपनी पूरी सर्विलांस उस पुराने एजेंट के नेटवर्क पर केंद्रित करनी होगी, जिसके बारे में हमने कल बात की थी।"
अर्जुन अपनी आँखें मॉनिटर पर जमाए हुए था, जहाँ कुछ एन्क्रिप्टेड डेटा तेज़ी से डिक्रिप्ट हो रहा था। यह एक अहम लीड थी, जो उन्हें 'द घोस्ट' के क़रीब पहुँचा सकती थी। "सर, मैं समझ रहा हूँ," अर्जुन ने गंभीरता से कहा, "मैंने उस नेटवर्क के सभी संभावित लिंक्स को ट्रेस करना शुरू कर दिया है। हमें जल्द ही कुछ ठोस मिलेगा।"
तभी, अचानक उसके हेडसेट में एक ज़ोरदार और बेस-भरी आवाज़ गूँजी। 'मुन्नी बदनाम हुई' का बेस इतना तेज़ था कि अर्जुन के कान में दर्द होने लगा। उसकी गोपनीय कॉल की लाइन पूरी तरह से बाधित हो गई। हैंडलर की आवाज़ बिल्कुल दब गई थी, और अब उसे सिर्फ़ बॉलीवुड के गाने की शोर सुनाई दे रहा था। उसके माथे पर गहरी शिकन उभर आई।
"अर्जुन? क्या हुआ? आवाज़ कट रही है!" हैंडलर की घबराई हुई आवाज़, जो अब मुश्किल से सुनाई दे रही थी, उसके कानों में आई। अर्जुन ने हेडसेट को कसकर पकड़ लिया, जैसे उसे ठीक करने की कोशिश कर रहा हो। वह गुस्सा और चिढ़ दोनों महसूस कर रहा था।
"मुन्नी बदनाम हुई, डार्लिंग तेरे लिए...!" संगीत तेज़ होता जा रहा था, और अर्जुन की एकाग्रता टूट रही थी। एक महत्वपूर्ण जानकारी का टुकड़ा उसके हाथ से निकल रहा था। वह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि मुंबई में कोई इतनी ज़ोर से संगीत बजा सकता है, वह भी रात के इस समय! वह तो इस जगह को एक शांत, गुप्त ठिकाना समझता था।
उसका चेहरा धीरे-धीरे गुस्से से लाल होता गया। उसकी भौंहें चढ़ गईं और उसकी मुट्ठियाँ भिंच गईं। उसकी रगों में एक सैनिक का अनुशासन और मिशन के प्रति उसकी ज़िम्मेदारी दौड़ रही थी। यह कोई मामूली डिस्टर्बेंस नहीं था, यह उसके ऑपरेशन में सीधा हस्तक्षेप था।
"यह क्या बकवास है!" अर्जुन ने गुस्से में फुसफुसाया। उसने एक झटके में हेडसेट को अपने कान से उतारा और उसे मेज पर पटका। हेडसेट मेज पर एक हल्की सी खड़खड़ाहट के साथ उछला। उसकी आँखें गुस्से से भरी हुई थीं। उसे लगा जैसे किसी ने जानबूझकर उसके मिशन को चौपट करने की कोशिश की हो।
वह अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। उसका पूरा शरीर तनाव में था। रात भर की मेहनत और जिस महत्वपूर्ण जानकारी के वह इतना क़रीब था, वह सब इस बेस-भरे संगीत की वजह से ज़ाया हो रहा था। उसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात थी – इस शोर को तुरंत बंद करना होगा।
उसने अपने फ्लैट की खिड़की से बाहर झाँका। रात गहरी हो चुकी थी, लेकिन बगल वाले फ्लैट से आ रहा संगीत पूरी बिल्डिंग में गूँज रहा था। अर्जुन ने देखा कि उसके सामने वाले अपार्टमेंट की कुछ खिड़कियाँ खुली थीं, और वहाँ से भी संगीत की आवाज़ आ रही थी। उसे महसूस हुआ कि यह शोर सिर्फ़ उसके लिए नहीं, बल्कि पूरी बिल्डिंग के लिए एक परेशानी था।
उसकी आँखों में एक संकल्प था। वह तुरंत उस स्रोत का पता लगाने के लिए अपने फ्लैट से बाहर निकला। उसके कदम तेज़ी से और दृढ़ता के साथ दरवाज़े की ओर बढ़े। वह दरवाज़े तक पहुँचा और उसे खोला।
जैसे ही वह बाहर निकला, संगीत की आवाज़ और तेज़ हो गई। यह उसके कान के पर्दे फाड़ रही थी। वह दरवाज़े से बाहर निकला और पाया कि यह शोर बिल्कुल बगल वाले फ्लैट से आ रहा था, वही फ्लैट जहाँ सुबह एक चुलबुली आवाज़ "हेलो! मैं नई पड़ोसन हूँ, माया वर्मा" कह रही थी। अर्जुन को गुस्सा आया। तो ये है वो लड़की!
उसने देखा कि माया के फ्लैट का दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था, और अंदर से रंगीन लाइट्स की चमक बाहर आ रही थी। लोगों के हँसने-बोलने और नाचने की आवाज़ें आ रही थीं। यह कोई सामान्य संगीत की आवाज़ नहीं थी, यह एक फुल-ऑन पार्टी का शोर था।
अर्जुन ने अपने दाँत पीसे। उसकी आँखें सुलग रही थीं। उसे अपनी रात की नींद, अपनी एकाग्रता और सबसे महत्वपूर्ण, अपने मिशन की परवाह थी। वह किसी भी क़ीमत पर इस शोर को रोकना चाहता था। उसके चेहरे पर अब कोई धैर्य नहीं बचा था, सिर्फ़ शुद्ध गुस्सा और एक फौजी का अटल निश्चय था।
वह माया के दरवाज़े की ओर बढ़ा। उसके कदम भारी थे और उसके इरादे स्पष्ट थे। उसे नहीं पता था कि अंदर कौन है, लेकिन वह जानता था कि इस शोर को बंद करना ही होगा, हर हाल में। उसकी रगों में एड्रेनालाईन दौड़ रहा था। वह अपने दुश्मन 'द घोस्ट' को ट्रैक कर रहा था, और यहाँ उसके बगल में ही एक और 'दुश्मन' (जिसे वह उस वक़्त एक दुश्मन ही मान रहा था) उसके मिशन में बाधा डाल रहा था।
अर्जुन ने एक गहरी साँस ली, जैसे किसी तूफ़ान से पहले की खामोशी हो। फिर उसने अपना हाथ उठाया और माया के दरवाज़े पर ज़ोर-ज़ोर से पीटना शुरू कर दिया। उसकी दस्तक इतनी तेज़ थी कि फ्लैट के अंदर बज रहा संगीत भी उसके सामने कमज़ोर लगने लगा। वह अब किसी भी शिष्टाचार या औपचारिकता की परवाह नहीं करता था। उसका मकसद सिर्फ एक था – इस शोर को ख़त्म करना। और वह नहीं जानता था कि इस एक दस्तक से, उसकी और माया की "पड़ोसी-वॉर" का बिगुल बज चुका था।
Chapter 5
Chapter 5
अर्जुन का दरवाज़े पर पीटते हुए हाथ अभी भी हवा में था। उसकी आँखें गुस्से से लाल थीं और उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं। अंदर से 'बदतमीज़ दिल' गाने का शोर अभी भी कानों को चीर रहा था। उसे लगा जैसे उसका सिर फट जाएगा। एक और ज़ोरदार दस्तक देने के लिए उसने हाथ उठाया ही था कि अचानक दरवाज़े की कुंडी खुली और दरवाज़ा अंदर की ओर खुल गया।
एक पल के लिए अर्जुन वहीं जम गया। दरवाज़े के ठीक सामने एक छोटी सी, लेकिन ऊर्जा से भरपूर लड़की खड़ी थी – वही लड़की जिसकी आवाज़ उसने सुबह सुनी थी। माया वर्मा। उसके चेहरे पर अभी भी पार्टी की ख़ुशी और एक हल्की सी हैरत थी कि दरवाज़े पर कौन इतनी ज़ोर से दस्तक दे रहा था। उसके बाल खुले हुए थे, जिनमें कुछ लटें इधर-उधर लटक रही थीं और उसके कपड़े भी थोड़े ढीले थे, शायद उसने नाचने के लिए आरामदायक कपड़े पहने थे। उसकी आँखों में चमक थी, जो अभी तक गुस्से से अनजान थी।
माया ने उसे एक बार ऊपर से नीचे तक देखा – एक लंबा, मज़बूत आदमी, जिसका चेहरा गुस्से से तना हुआ था। उसने सोचा कि यह कोई पड़ोसी होगा, जिसे शायद इनविटेशन नहीं मिला। उसके होंठों पर अभी भी एक दोस्ताना मुस्कान थी।
"अरे! आप?" माया ने हैरानी से कहा, उसकी आवाज़ में थोड़ी उलझन थी। "गुड इवनिंग! मैं माया वर्मा। आप ही हैं क्या बगल वाले फ्लैट में?" उसने यह बात बिल्कुल दोस्ताना अंदाज़ में पूछी, जैसे किसी मेहमान का स्वागत कर रही हो।
अर्जुन ने एक पल भी नहीं लगाया, उसने माया की बात को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया। उसकी आँखों में आग थी। उसका दिल गुस्से से धड़क रहा था। उसे लगा जैसे उसकी पूरी मेहनत और उसका महत्वपूर्ण मिशन इस लड़की के शोर की वजह से चौपट हो गया था।
"यह शोर बंद करो!" अर्जुन ने गरजते हुए कहा, उसकी आवाज़ में कोई विनम्रता नहीं थी, सिर्फ़ आदेश और कठोरता थी। उसके शब्दों में इतना वज़न था कि माया एक पल के लिए घबरा गई। उसकी मुस्कान कहीं गायब हो गई।
माया ने पलकें झपकाईं। उसे यक़ीन नहीं आया कि कोई उससे इस तरह से बात कर सकता है, ख़ासकर उसके अपने घर के दरवाज़े पर। वह इतनी बेअदबी की उम्मीद नहीं कर रही थी। उसने सोचा था कि शायद वह उसे पार्टी में बुलाएगा, या कम से कम नमस्ते कहेगा। लेकिन यह आदमी तो सीधे हमला कर रहा था।
"क्या? शोर?" माया ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में अभी भी थोड़ी नरमी थी। वह उसे समझना चाहती थी। "अरे, यह तो मेरी गृह-प्रवेश की पार्टी है। मैं..."
"मुझे कोई मतलब नहीं कि यह किसकी पार्टी है!" अर्जुन ने उसे बीच में ही काट दिया, उसका गुस्सा और भी तेज़ हो गया था। "यह बिल्डिंग है, कोई डीजे नाइटक्लब नहीं! यह सब बंद करो, अभी!" उसकी आवाज़ में धमकी थी।
माया की आँखों में अब हैरानी की जगह गुस्सा आने लगा। उसके चेहरे का रंग बदलने लगा। वह अपनी पार्टी के बीच में थी, अपने दोस्तों के साथ ख़ुश थी, और यह अजनबी उसे इस तरह डांट रहा था? उसने सोचा कि यह आदमी तो बिल्कुल तमीज़ ही नहीं जानता।
"आप हैं कौन?" माया ने थोड़ी तेज़ आवाज़ में पूछा, अब उसकी आवाज़ में भी तेज़ी आ गई थी। "आप मेरे घर पर आकर मुझे ऐसे आदेश नहीं दे सकते! कम से कम बात करने का सलीक़ा तो सीख लीजिए!"
अर्जुन ने एक गहरी साँस ली, जैसे वह अपनी हताशा पर काबू पाने की कोशिश कर रहा हो। "मैं आपका पड़ोसी हूँ, और मैं आपको यह बता रहा हूँ कि यह शोर मुझे मेरे काम पर ध्यान केंद्रित नहीं करने दे रहा है। मुझे शांति चाहिए! इस बिल्डिंग में रहने के कुछ नियम होते हैं, आपको पता है?"
माया ने अपनी कमर पर हाथ रखे। उसकी अदाकारी का अंदाज़ अब उसके असली गुस्से के साथ जुड़ रहा था। "नियम? और आप मुझे नियम सिखाने आए हैं? आप तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे मैं कोई अपराधी हूँ! मैं कोई चोरी नहीं कर रही, कोई दंगा नहीं कर रही, बस अपनी ख़ुशी मना रही हूँ! और वैसे भी, थोड़ी देर की तो बात है। सब दोस्त हैं।" उसने अंदर अपने दोस्तों की ओर इशारा किया जो नाचते हुए मुस्कुरा रहे थे।
अर्जुन ने एक ठंडी नज़र से अंदर देखा। उसे अंदर का दृश्य देखकर और भी चिढ़ हुई। लोग बेपरवाह होकर नाच रहे थे, जबकि उसका मिशन खतरे में था। "थोड़ी देर? यह पिछले एक घंटे से चल रहा है! मेरा एक ज़रूरी काम चल रहा था, और आपके इस शोर ने सब चौपट कर दिया! मुझे नहीं पता आप क्या कर रहे हैं, लेकिन यह मेरे लिए बहुत बड़ी समस्या है।"
"ओह! समस्या?" माया ने तंज़ कसते हुए कहा। "तो मिस्टर... मिस्टर क्या नाम है आपका?" उसने पूछा, जैसे उसे कोई दिलचस्पी न हो।
अर्जुन ने अपने दाँत पीसे। "मेजर अर्जुन खन्ना।" उसने अपना पूरा नाम बता दिया, उसकी आदत में था।
"मेजर?" माया ने अपनी आँखें बड़ी कीं, जैसे उसे कोई अजूबा दिख गया हो। "तो मिस्टर मेजर अर्जुन खन्ना! आपको क्या लगता है? हर कोई आपकी तरह बस फ़ाइलों में सिर घुसाए बैठा रहेगा? यह मुंबई है, सर! यहाँ लोग सपने देखने आते हैं, और उन सपनों को जीने के लिए थोड़ा जोश तो दिखाना ही पड़ता है!" उसने अपने हाथों से ड्रामा करते हुए कहा।
"मुझे आपके जोश या आपके सपनों से कोई लेना-देना नहीं है!" अर्जुन ने लगभग चिल्लाते हुए कहा। "मुझे सिर्फ़ शांति चाहिए! मैं यहाँ किसी ख़ास काम से हूँ, और मुझे अपनी एकाग्रता चाहिए। अगर यह शोर बंद नहीं हुआ, तो मुझे मजबूरन पुलिस को बुलाना पड़ेगा!" उसकी आवाज़ में अब सीधी धमकी थी।
यह सुनकर माया की आँखों में आग आ गई। पुलिस? यह आदमी उसे पुलिस की धमकी दे रहा था, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वह अपने घर में पार्टी कर रही थी? यह उसकी हद थी।
"पुलिस?" माया हँसी, लेकिन उसकी हँसी में अब गुस्सा था। "क्या बात है! क्या बात है मिस्टर मेजर! आपको क्या लगता है? पुलिस मेरे घर में घुसकर मेरी पार्टी बंद कर देगी? मैं कोई ग़लत काम नहीं कर रही हूँ! यह मेरा घर है, मेरी पार्टी है, और मैं अपने दोस्तों के साथ ख़ुशी मना रही हूँ!"
"यह आपका घर हो सकता है, लेकिन यह बिल्डिंग भी है, और इसमें और भी लोग रहते हैं जिन्हें शांति का अधिकार है!" अर्जुन ने पलटवार किया। "अगर आपको इतना ही शोर करना है, तो किसी क्लब में जाइए! यह कोई बाज़ार नहीं है!"
"बाज़ार?" माया ने सिर हिलाते हुए कहा, अब उसका ड्रामा चरम पर था। "आप तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे मैं किसी जंगल में रह रही हूँ! यह मेरा घर है! मैं यहाँ अपनी मर्ज़ी से रहूँगी! और आप कौन होते हैं मुझे यह बताने वाले कि मैं कहाँ रहूँ और क्या करूँ? आप तो बिल्कुल हिटलर जैसे लग रहे हैं! जी हाँ, बिल्कुल हिटलर!"
अर्जुन का माथा तन गया। हिटलर? उसे आज तक किसी ने ऐसे संबोधन से नहीं बुलाया था। वह एक अनुशासित और गंभीर सैन्य अधिकारी था, और यह लड़की उसे 'हिटलर' कह रही थी। उसे लगा जैसे उसकी इज़्ज़त पर हमला हुआ हो।
"क्या बकवास कर रही हो तुम!" अर्जुन ने दाँत पीसते हुए कहा। उसकी आवाज़ में गहरी झुंझलाहट थी।
"मैं बकवास नहीं कर रही हूँ, मिस्टर हिटलर!" माया ने अपनी आवाज़ और तेज़ की, मानो जानबूझकर उसे चिढ़ा रही हो। "आप ऐसे हैं! आपको सिर्फ़ अपना काम दिखता है, अपनी फ़ाइलें दिखती हैं। दूसरों की ख़ुशी, उनका मज़ा, उनकी पार्टी – आपको कुछ नहीं दिखता! आप तो बिल्कुल खड़ूस हो! जी हाँ, खड़ूस! मिस्टर खड़ूस हिटलर!" उसने मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन उसकी मुस्कान में अब व्यंग्य था।
अर्जुन को लगा जैसे किसी ने उसके मुँह पर पानी फेंक दिया हो। 'खड़ूस हिटलर'? वह उसकी तरफ़ घूर रहा था, उसकी आँखों में उस समय के लिए कुछ भी नहीं था सिर्फ़ क्रोध के सिवा। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसे अपनी ज़िंदगी में इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ेगा। यह उसके गुप्त मिशन से कहीं ज़्यादा मुश्किल लग रहा था।
"बस बहुत हो गया!" अर्जुन ने कहा, उसकी आवाज़ अब धीमी, लेकिन बेहद खतरनाक थी। "यह शोर बंद करो, अभी! वरना, जो होगा, उसके ज़िम्मेदार तुम ख़ुद होगे!" उसने उसे धमकी दी, उसकी आँखें माया की आँखों में सीधी देख रही थीं।
माया एक पल के लिए सहमी, लेकिन फिर उसने अपने अंदर की अभिनेत्री को जगाया। "मुझे धमकी दे रहे हैं? वाह! कमाल है! आप मुझे नहीं डरा सकते, मिस्टर खड़ूस हिटलर! और मैं यह शोर तब तक बंद नहीं करूँगी, जब तक मुझे ख़ुद मन न करे!" उसने चुनौती दी।
अर्जुन ने एक गहरी साँस ली, जैसे वह अपने आप को काबू करने की कोशिश कर रहा हो ताकि वह कोई और ग़लत क़दम न उठा ले। उसे पता था कि उसे यहाँ से जाना होगा, वरना बात और बिगड़ जाएगी। उसने अपनी मुट्ठी भींची और बिना एक और शब्द कहे, पीछे मुड़ा और अपने फ्लैट की ओर बढ़ गया। उसके कदम तेज़ थे, और उसका गुस्सा उसके हर क़दम में झलक रहा था।
माया उसे जाते हुए देखती रही। जब वह अपने फ्लैट में वापस चला गया और दरवाज़ा बंद कर लिया, तो माया ने एक गहरी साँस छोड़ी। उसके होंठों पर एक अजीब सी मुस्कान थी। "मिस्टर खड़ूस हिटलर!" उसने बुदबुदाया। "आज तो मेरा सामना एक अजूबे से हो गया।"
उसने दरवाज़ा बंद किया और अंदर वापस आ गई। उसके दोस्त उसे घूर रहे थे। रिया ने पूछा, "क्या हुआ माया? कौन था?"
माया ने हँसते हुए कहा, "कोई नहीं, बस मेरा नया पड़ोसी। मिस्टर खड़ूस हिटलर! उन्हें मेरी पार्टी पसंद नहीं आई।" उसने अपनी आँखें घुमाईं। "और उन्होंने मुझे पुलिस की धमकी दी।"
समीर ने हँसते हुए कहा, "पुलिस? पार्टी में? अरे, तुम तो कमाल हो माया! लगता है तुम्हें एक नया एंटरटेनमेंट मिल गया है।"
"एंटरटेनमेंट नहीं, मुसीबत!" माया ने मुँह बनाते हुए कहा। "पर कोई बात नहीं। मैं भी देखूँगी कि यह मिस्टर खड़ूस हिटलर क्या कर सकते हैं।" उसने संगीत को और तेज़ कर दिया। "लेट्स डांस! और भी ज़ोर से! आज तो मज़ा आएगा!"
और फिर से माया अपने दोस्तों के साथ नाचने लगी, लेकिन इस बार उसके मन में मिस्टर खड़ूस हिटलर की छवि और उसकी दी हुई धमकियों की गूँज थी। वह नहीं जानती थी कि यह तो बस शुरुआत थी, और यह "पड़ोसी-वॉर" अभी बहुत आगे जाने वाली थी। उसे यह भी नहीं पता था कि उसकी इस "पड़ोसी-वॉर" का तमाशा, सोसाइटी की गॉसिप क्वीन, शर्मा आंटी, अपनी बालकनी से बैठकर देख रही थीं, और उनके दिमाग में तो कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी।
Chapter 6
Chapter 6
रात काफी गहरी हो चुकी थी, लेकिन सोसाइटी में अभी भी हलचल थी। फ्लैट नंबर 302 से उठने वाले संगीत और लड़ाई की आवाज़ें, जो कुछ देर पहले अर्जुन के फ्लैट से सुनाई दे रही थीं, अब पूरे फ़्लोर पर गूँज रही थीं। ठीक उसी समय, फ्लैट नंबर 304 की बालकनी में, सोसाइटी की सर्वे-सर्वा और गॉसिप क्वीन, शर्मा आंटी, अपनी कुर्सी पर आराम से बैठी हुई थीं। उनके हाथ में गरमा गरम चाय का कप था, और उनकी आँखें बगल वाले फ़्लैट की ओर जमी हुई थीं।
शर्मा आंटी ने अभी-अभी अपनी रात की पूजा समाप्त की थी और अब वह अपनी पसंदीदा हर्बल चाय की चुस्कियाँ ले रही थीं। उन्हें शांति और सुकून पसंद था, लेकिन उससे भी ज़्यादा उन्हें सोसाइटी की "लाइव अपडेट्स" पसंद थीं। उन्होंने दरवाज़े पर ज़ोर-ज़ोर से होने वाली दस्तक की आवाज़ सुनी थी, और फिर कुछ तेज़ आवाज़ में बहस। उनकी छठी इंद्रिय ने उन्हें बताया कि कुछ तो "मज़ेदार" हो रहा है।
उन्होंने चाय का एक घूँट लिया और अपनी आँखों को थोड़ा और सिकोड़कर देखा। माया के फ़्लैट का दरवाज़ा अभी भी थोड़ा खुला हुआ था, और उन्होंने देखा कि अर्जुन, जो उनके पसंदीदा 'सरकारी बाबू' थे, गुस्से में अपनी मुट्ठियाँ भींचकर माया के फ्लैट से बाहर आ रहे थे। माया दरवाज़े पर ही खड़ी थी, और उसके चेहरे पर अब गुस्सा और चुनौती साफ़ झलक रही थी।
"हे भगवान! ये क्या हो रहा है!" शर्मा आंटी ने अपने मुँह पर हाथ रखते हुए धीमी आवाज़ में कहा, लेकिन उनके चेहरे पर एक उत्सुकता भरी मुस्कान थी। उन्होंने देखा कि अर्जुन कितनी तेज़ी से अपने फ्लैट की ओर बढ़े और गुस्से में दरवाज़ा पटका। फिर माया ने भी अपना दरवाज़ा बंद कर लिया। संगीत अब भी बज रहा था, लेकिन पहले से थोड़ा धीमा लग रहा था, जैसे लड़ाई के बाद की शांति।
शर्मा आंटी ने अपनी कुर्सी से उठकर बालकनी की रेलिंग के पास जाकर और झुककर देखा। उन्हें माया का फ्लैट नंबर 303 और अर्जुन का फ्लैट नंबर 302, दोनों ही साफ़ दिखाई दे रहे थे। उन्होंने मन ही मन सोचा, "अरे वाह! अपनी सोसाइटी में तो आज पहला एपिसोड ही इतना धमाकेदार हो गया! नया मसाला आ गया!" उनकी आँखों में चमक थी। उन्हें सोसाइटी के नए ड्रामे की शुरुआत देखकर ख़ुशी हो रही थी।
"ये तो बिल्कुल टीवी सीरियल जैसा लग रहा है," उन्होंने सोचा। "एक तरफ वो शांत और गंभीर मेजर साहब, और दूसरी तरफ ये नई, चुलबुली लड़की। सुबह ही मैंने कहा था कि कुछ तो तूफ़ान आने वाला है।" उन्हें याद आया कि माया जब सुबह मिलने आई थी, तब कितनी प्यारी और बातूनी थी। और अर्जुन? वह तो हमेशा से ही अपने काम में डूबे रहने वाले और चुपचाप रहने वाले इंसान थे।
"मेजर साहब का चेहरा तो गुस्से से लाल हो रखा था," शर्मा आंटी ने याद किया। "और वो लड़की? उसने तो पलटकर जवाब दे दिया! बड़ा हिम्मत वाली है! मुझे लगा था कि मेजर साहब की आवाज़ सुनकर ही सहम जाएगी, लेकिन नहीं। उसने तो उन्हें 'खड़ूस हिटलर' तक कह दिया! हे भगवान! इतनी बेअदबी! लेकिन मज़ा आ गया!" वह मन ही मन मुस्कुराईं। उन्हें इस नोकझोंक में एक अलग ही मज़ा आ रहा था।
उन्होंने सोचा, "मेजर अर्जुन खन्ना... कितना शरीफ़ और संस्कारी बच्चा है। हमेशा मुस्कुराकर नमस्ते करता है। चुपचाप रहता है। सब कहते हैं कि थोड़ा खड़ूस है, लेकिन मुझे तो हमेशा अच्छा लगा है। और ये नई लड़की, माया... कितनी ज़िंदादिल है। शोर थोड़ा ज़्यादा करती है, लेकिन दिल की बुरी नहीं लगती। अपनी उम्र में तो सब ऐसे ही होते हैं।"
शर्मा आंटी ने फिर से अपनी चाय का एक घूँट लिया। उनके दिमाग में एक नया विचार कौंधा। "ये दोनों बिल्कुल अलग हैं," उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा। "एक आग है, तो दूसरा पानी। और कहते हैं न, आग और पानी का मेल बड़ा कमाल का होता है।" उनके चेहरे पर एक शैतानी-सी मुस्कान आ गई। उन्हें अपने 'मैचमेकिंग' स्किल्स पर हमेशा से गर्व रहा था। उन्होंने सोसाइटी में कई जोड़ियों को अपनी 'सलाह' से बनवाया था, और कई को तोड़ने से भी बचाया था।
"ये अर्जुन बेटा वैसे तो बड़ा काम का है, लेकिन थोड़ा अपनी दुनिया में ही खोया रहता है। कोई दोस्त नहीं, कोई बाहर घूमना-फिरना नहीं। सिर्फ़ लैपटॉप और फाइलें। और ये माया बिटिया? इतनी चुलबुली है, इसे भी एक ऐसा चाहिए जो इसे ज़मीन पर रखे, और इसे भी थोड़ा प्यार करे। और अर्जुन को भी तो कोई चाहिए जो उसे हँसना सिखाए।"
उनके मन में अब सिर्फ एक ही धुन थी: "अगर इन दोनों की शादी हो जाए तो कितनी अच्छी जोड़ी बनेगी!" यह एक अजीब सा विचार था, लेकिन शर्मा आंटी का दिमाग तेज़ी से काम करने लगा था। उन्हें लगा कि यह भगवान का ही इशारा है कि ये दोनों उनके पड़ोस में आए हैं।
"मुझे इस मामले में दखल देना ही पड़ेगा," उन्होंने गंभीरता से सोचा। "यह मेरा कर्तव्य है। आख़िर मैं इस सोसाइटी की सेक्रेटरी हूँ। और एक माँ भी तो हूँ! मुझे इन बच्चों को सही रास्ता दिखाना होगा। इन्हें ये 'पड़ोसी-वॉर' छोड़कर 'प्यार वाली बात' करनी चाहिए।" वह ख़ुद से ही हँस पड़ीं।
उन्होंने प्लान बनाना शुरू किया। "सबसे पहले तो सुबह मैं माया से मिलने जाऊँगी। उससे पूछूँगी कि रात में क्या हुआ था। उसे समझाऊँगी कि मेजर साहब अच्छे हैं, बस थोड़े शांत रहते हैं। और उसे कहूँगी कि थोड़ा शोर कम करे।" उन्होंने सिर हिलाया। "हाँ, शांति बनाए रखना भी तो ज़रूरी है।"
फिर उन्होंने अर्जुन के बारे में सोचा। "और फिर मैं मेजर साहब के पास जाऊँगी। वो तो दरवाज़ा भी मुश्किल से खोलते हैं। उन्हें समझाना पड़ेगा कि ये लड़की नई है, थोड़ी नादान है। और थोड़ी हेल्पिंग हैंड भी चाहिए। उन्हें भी तो एडजस्ट करना चाहिए। आख़िर दोनों को अब एक ही फ़्लोर पर रहना है।"
उनके दिमाग में पूरा नक़्शा तैयार हो गया था। उन्हें लगा कि इस झगड़े को सुलझाना तो बस एक बहाना होगा। असली मक़सद तो कुछ और ही था। "अगर मैंने इन दोनों को एक साथ ला दिया, तो कितनी बड़ी बात होगी!" उन्होंने महसूस किया कि यह उनके लिए एक नया 'मिशन' था। "मिशन: अर्जुन और माया की जोड़ी बनाओ!"
शर्मा आंटी ने अपनी चाय का ख़ाली कप मेज पर रखा और अपनी कुर्सी से उठीं। उन्होंने बालकनी के दरवाज़े बंद किए, लेकिन उनके मन में अभी भी अर्जुन और माया के झगड़े की गूँज थी। उन्होंने मन ही मन कहा, "देखो, मिस्टर हिटलर और ड्रामा क्वीन! तुम्हारी कहानी की स्क्रिप्ट तो अब मैं लिखूँगी!"
वह मुस्कुराईं और अपने बेडरूम की ओर बढ़ गईं। आज रात उन्हें सुकून की नींद आने वाली थी, क्योंकि उनके पास सोचने और प्लान बनाने के लिए बहुत कुछ था। उन्हें यक़ीन था कि कल का दिन बहुत रोमांचक होने वाला था, और वह उसके लिए पूरी तरह से तैयार थीं। उनकी आँखों में कल के 'सोसाइटी ड्रामे' की झलक अभी से दिखाई दे रही थी, और वह उस ड्रामा को अपनी मनचाही दिशा देने के लिए बेताब थीं।
Chapter 7
Chapter 7
अगली सुबह, मुंबई की हमेशा की तरह भागदौड़ भरी सुबह शुरू होने वाली थी। सूरज की हल्की किरणें बालकनी से झाँक रही थीं, और चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। लेकिन फ्लैट नंबर 303 में, चिड़ियों से भी ज़्यादा तेज़ और नाटकीय आवाज़ें गूँज रही थीं।
माया वर्मा, अपने छोटे से लिविंग रूम के बीचों-बीच खड़ी थी। उसने अपनी आँखें बंद की हुई थीं, चेहरे पर एक गंभीर भाव था। उसके हाथ मुट्ठी में बँधे थे और उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं। वह अपने आने वाले ऑडिशन की तैयारी कर रही थी, और उसके लिए वह अपनी पूरी जान लगा रही थी।
अचानक, उसने अपनी आँखें खोलीं और एक ही साँस में बोलना शुरू किया, उसकी आवाज़ में दर्द, क्रोध और बेबसी का मिश्रण था।
"नहीं! तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकते! तुमने वादा किया था! तुमने कहा था कि तुम हमेशा मेरे साथ रहोगे! फिर क्यों? क्यों तुम मुझे ऐसे बीच मझधार में छोड़कर जा रहे हो?" उसकी आवाज़ ऊँची होती गई, जैसे वह किसी अदृश्य व्यक्ति से बहस कर रही हो।
उसने ज़ोर से मुट्ठी भींचकर ज़मीन पर पाँव पटका और फिर से चिल्लाई, "यह झूठ है! मैं ये सब नहीं मानती! तुम ज़िंदा हो! तुम्हें ज़िंदा रहना होगा! मेरे लिए! हमारे प्यार के लिए! नहीं! नहीं!" उसकी आवाज़ अब सिसकियों में बदल गई थी, और वह ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गई, जैसे सच में कोई गहरी पीड़ा सह रही हो।
उसकी यह तेज़, भावुक आवाज़ पतली दीवारों को पार करती हुई, ठीक बगल वाले फ्लैट, अर्जुन खन्ना के घर में गूँज रही थी।
अर्जुन, जो रात भर ठीक से सो नहीं पाया था – माया की पार्टी के शोर और अपने मिशन की चिंता के कारण – अपनी आँखें मीचकर बिस्तर पर लेटा हुआ था। उसे सुबह से ही अपने हैंडलर के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक करनी थी, और वह उस पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश कर रहा था।
अचानक, दीवार के पार से ज़ोरदार चिल्लाने और रोने की आवाज़ें उसके कानों में पड़ीं। "नहीं! तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकते!"
अर्जुन की आँखें तुरंत खुल गईं। वह झटके से उठ बैठा। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने सोचा, "यह क्या हो रहा है? इतनी सुबह-सुबह कौन चिल्ला रहा है?"
फिर उसने सुना, "यह झूठ है! मैं ये सब नहीं मानती!" और उसके बाद ज़ोर से रोने और सिसकने की आवाज़ें। आवाज़ इतनी भावुक और दर्दनाक थी कि अर्जुन को एक पल के लिए लगा कि उसकी पड़ोसन पर सच में कोई हमला कर रहा है, या कोई उसे प्रताड़ित कर रहा है। उसकी ट्रेनिंग ने उसे तुरंत अलर्ट मोड पर ला दिया।
एक प्रशिक्षित सैन्य अधिकारी होने के नाते, उसका दिमाग तुरंत एक्शन प्लान बनाने लगा। उसके कानों में 'नहीं! नहीं!' की आवाज़ें लगातार गूँज रही थीं। उसे लगा जैसे कोई बेबस लड़की सच में मदद के लिए गुहार लगा रही हो। उसकी सारी चिढ़ और गुस्सा एक पल के लिए गायब हो गया। अब उसके मन में सिर्फ़ चिंता और एक सैनिक का कर्तव्य था।
उसने अपने बिस्तर से कूदकर अपने पाँवों में स्लिपर डाले। "क्या हो रहा है यहाँ?" उसने बुदबुदाया, उसकी आवाज़ में घबराहट साफ़ झलक रही थी। उसे लगा कि कल रात की पार्टी के बाद, कहीं किसी ने उस लड़की पर हमला तो नहीं कर दिया? या कहीं वह किसी गंभीर समस्या में तो नहीं फँस गई?
"मुझे पुलिस को बुलाना चाहिए? या पहले ख़ुद देखना चाहिए?" उसके दिमाग में ये सवाल कौंध रहे थे। एक तरफ उसकी गोपनीयता का मिशन था, तो दूसरी तरफ एक लड़की की जान का ख़तरा। एक सैनिक के तौर पर वह किसी को ऐसे खतरे में नहीं छोड़ सकता था।
उसने एक और ज़ोरदार सिसकने की आवाज़ सुनी, "मुझे ज़िंदा रहना होगा! मेरे लिए!"
अर्जुन का चेहरा और भी गंभीर हो गया। उसकी आँखों में अब चिंता और तेज़ हो गई थी। उसे लगा कि शायद किसी आपातकालीन स्थिति में माया को मदद की सख़्त ज़रूरत है। उसने तुरंत अपने फ़ोन की तरफ़ हाथ बढ़ाया, लेकिन फिर रुक गया। उसे लगा कि पहले ख़ुद जाकर देखना चाहिए कि मामला कितना गंभीर है। क्या पता, पुलिस बुलाने से बात बिगड़ जाए और उसे ख़ुद ही हस्तक्षेप करना पड़े।
वह अपने कमरे से बाहर निकला और दरवाज़े की तरफ़ तेज़ी से बढ़ा, उसकी हर हरकत में एक सैनिक की तेज़ी और सतर्कता थी। उसका पूरा शरीर तनाव में था, और वह किसी भी संभावित खतरे का सामना करने के लिए तैयार था। उसे लगा कि वह एक और गुप्त मिशन पर जा रहा है, लेकिन इस बार का दुश्मन अदृश्य था, और ख़तरा बहुत क़रीब। उसकी साँसें अटक सी गई थीं। दरवाज़े के पास पहुँचते ही उसने एक और गहरी साँस ली, किसी भी अप्रत्याशित स्थिति के लिए ख़ुद को तैयार किया, और हाथ बढ़ाकर दरवाज़े का हैंडल पकड़ा।
Chapter 8
अर्जुन अपने फ्लैट के दरवाज़े के पास पहुँचा। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। रात भर की नींद अधूरी थी और अब सुबह-सुबह यह नया "ड्रामा" शुरू हो गया था। एक सैनिक के तौर पर, उसकी पहली प्रवृत्ति हमेशा मदद करने की होती थी, खासकर जब किसी महिला की चीख़ें उसके कानों में पड़ें। उसने दरवाज़े का हैंडल पकड़ा, लेकिन फिर रुक गया। उसकी ट्रेनिंग ने उसे सिखाया था कि बिना पूरी जानकारी के कोई भी कदम उठाना ख़तरनाक हो सकता है।
उसने अपना कान दरवाज़े पर सटाया। दीवार की पतली परत के पार से माया की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी, लेकिन अब उसमें थोड़ा बदलाव आ गया था।
"नहीं! नहीं! मैं तुम्हें यूँ जाने नहीं दूँगी! मेरा प्यार... मेरा संघर्ष... सब बेकार हो जाएगा! मैंने तुम्हारे लिए क्या कुछ नहीं किया! क्या तुम नहीं जानते कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ? हर सुबह, हर शाम, मेरा दिल सिर्फ़ तुम्हारे लिए धड़कता है, और तुम... तुम मुझे ऐसे अकेला छोड़कर जा रहे हो?"
अर्जुन का माथा सिकुड़ गया। यह लाइनें कुछ जानी-पहचानी सी लग रही थीं। उसे लगा कि उसने ऐसी बातें कहीं सुनी हैं, शायद किसी फ़िल्म या सीरियल में। उसकी भौंहें चढ़ गईं। उसकी आँखों में अब चिंता की जगह एक हल्की सी झुंझलाहट आने लगी थी। उसने एक गहरी साँस ली और अपना कान और क़रीब किया।
माया की आवाज़ फिर आई, इस बार थोड़ी और नाटकीय। "अगर तुम गए, तो मैं भी... मैं भी मर जाऊँगी! मेरी दुनिया ख़त्म हो जाएगी! मैं तुम्हारे बिना कैसे जीऊँगी? कैसे साँस लूँगी? कैसे हर सुबह उठकर मुस्कुराऊँगी?" उसके शब्दों में अब एक ओवर-द-टॉप ड्रामा था, जो किसी पेशेवर अभिनेत्री की नकल लग रही थी।
अर्जुन की आँखें बड़ी हो गईं। एक पल के लिए वह पूरी तरह से स्तब्ध रह गया। 'मैं भी मर जाऊँगी!' यह लाइन सुनकर उसे यक़ीन हो गया कि यह कोई वास्तविक संकट नहीं है। यह तो... यह तो एक्टिंग की प्रैक्टिस है!
"तो ये था इनका सुबह का ड्रामा?" अर्जुन ने अपने दाँत भींचते हुए बुदबुदाया। उसके चेहरे पर अब गुस्सा साफ़ झलक रहा था। जो चिंता उसके चेहरे पर थी, वह अब एक गहरी चिढ़ में बदल गई थी। "मैं यहाँ अपनी जान हथेली पर रखकर तैयार बैठा हूँ कि शायद किसी ने उन पर हमला कर दिया, और ये मोहतरमा यहाँ अपनी डायलॉग प्रैक्टिस कर रही हैं?"
वह गुस्से में दरवाज़े से दूर हटा। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, लेकिन अब डर या चिंता की वजह से नहीं, बल्कि बेइंतहा गुस्से की वजह से। "क्या ये लड़की मुझे पागल कर देगी?" उसने अपने सिर को हल्के से हिलाया, जैसे यक़ीन न हो रहा हो कि कोई इतनी सुबह-सुबह इतना शोर कैसे कर सकता है।
उसे याद आया कि कल रात भी इस लड़की ने कितनी शांति भंग की थी। एक टॉप-सीक्रेट कॉल चल रही थी, जो देश की सुरक्षा से जुड़ी थी, और इस मोहतरमा ने 'मुन्नी बदनाम हुई' से उसका पूरा मिशन चौपट कर दिया था। अब सुबह-सुबह यह 'भावनात्मक टॉर्चर'।
"अगर ये एक्टिंग प्रैक्टिस थी, तो कम से कम धीरे तो कर सकती थीं?" अर्जुन ने मन ही मन बुदबुदाया। उसे लगा कि उसकी पड़ोसन को बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं है कि उसके बगल में एक इंसान रहता है जिसे शांति और गोपनीयता की सख़्त ज़रूरत है। उसका मन किया कि वह अभी जाए और उस दरवाज़े को तोड़कर अंदर घुस जाए, और उसे बताए कि उसकी यह 'कलाकारी' दूसरों के लिए कितनी परेशानी खड़ी कर रही है।
उसने अपने हाथों को मुट्ठी में भींचा और अपनी उंगलियों को कसकर मोड़ा, जैसे कि वह अपने गुस्से को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा हो। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी—गुस्से की, निराशा की, और थोड़ी सी निराशा की भी। उसे लगा कि इस बिल्डिंग में रहना उसके लिए कितना मुश्किल होने वाला है।
"यह ड्रामा क्वीन! इसे पता नहीं कि मेरा काम कितना संवेदनशील है!" अर्जुन ने फिर से सोचा। "रात भर ठीक से सोया नहीं, और सुबह-सुबह इसने मेरे दिमाग का दही कर दिया। ये क्या समझती है ख़ुद को? और ये किस तरह की एक्टिंग है? इससे अच्छा तो कोई भी अनाड़ी कर ले।" उसने अपनी झुंझलाहट में माया की एक्टिंग को भी नीचा दिखाने की कोशिश की।
वह अपने कमरे में वापस गया और बिस्तर पर धड़ाम से बैठ गया। उसने अपने हाथों से अपना सिर पकड़ लिया। "शांत, अर्जुन। शांत रहो।" उसने ख़ुद को समझाया। "यह सिर्फ़ एक लड़की है। ये नहीं जानती कि तुम कौन हो और क्या कर रहे हो।" लेकिन उसका दिल इस बात को मानने को तैयार नहीं था। उसकी शांति भंग हो चुकी थी। उसके दिमाग में अभी भी 'नहीं! तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकते!' की गूँज थी।
उसने सोचा, "मुझे इस लड़की से छुटकारा पाना होगा। या तो ये शांत रहे, या फिर मुझे कोई और रास्ता ढूँढना होगा।" उसे पता था कि उसका मिशन बहुत बड़ा था और वह ऐसी छोटी-मोटी चीज़ों से भटक नहीं सकता था, लेकिन माया की मौजूदगी और उसकी आदतें उसके लिए एक बड़ी बाधा बनती जा रही थीं।
उसने अपने लैपटॉप की तरफ़ देखा। उसे अपने हैंडलर से बात करनी थी। कुछ महत्वपूर्ण अपडेट्स लेने थे। लेकिन उसका दिमाग अब भी माया के ड्रामे में उलझा हुआ था। "एक ख़ुफ़िया एजेंट को ऐसी 'पड़ोसन' नहीं मिलनी चाहिए।" उसने व्यंग्यात्मक रूप से सोचा। "ये तो मेरे मिशन से ज़्यादा बड़ी चुनौती है।"
उसकी आँखों में अब एक नई चमक थी – बदला लेने की। उसे लगा कि माया को सबक सिखाना ही पड़ेगा। उसे पता चलेगा कि अर्जुन खन्ना से पंगा लेना कितना महंगा पड़ सकता है। कल रात उसने पार्टी बंद करवाई, लेकिन यह सिर्फ़ शुरुआत थी।
"ठीक है, मिस माया वर्मा," अर्जुन ने धीमी, लेकिन गंभीर आवाज़ में कहा, जैसे माया सुन रही हो। "तुमने सुबह-सुबह मेरा मूड ख़राब किया है। अब तुम्हें पता चलेगा कि 'मिस्टर हिटलर' का मूड जब ख़राब होता है, तो क्या होता है।" उसके चेहरे पर एक कठोर निश्चय झलक रहा था।
उसने अपने बिस्तर से उठकर खिड़की की तरफ़ देखा, जहाँ से माया के फ्लैट की बालकनी दिखाई दे रही थी। माया अभी भी अंदर थी, और शायद अब कोई और सीन की प्रैक्टिस कर रही थी। अर्जुन की आँखों में एक ठंडी चमक थी। उसे लगा कि ये लड़की उसे सच में पागल कर देगी, या फिर वह उसे अपने तरीक़े से शांत करना सीख जाएगा।
उसने फिर से अपने फ़ोन की तरफ़ देखा। उसे अपनी सुबह की बैठक के लिए तैयार होना था। लेकिन उसका ध्यान अब भी भंग था। वह जानता था कि इस नई 'पड़ोसन-वॉर' को उसे जीतना ही होगा। उसका मिशन देश के लिए महत्वपूर्ण था, और वह इस छोटे से 'ड्रामा' को अपने रास्ते में नहीं आने देगा। वह जानता था कि अब उसे कुछ ऐसा करना होगा जिससे माया को उसकी 'एक्टिंग' के साइड इफेक्ट्स का अंदाज़ा हो जाए।
"ये लड़की मुझे चैन से जीने नहीं देगी," उसने फिर से बुदबुदाया, उसकी आवाज़ में अब एक हल्की सी हँसी थी, लेकिन वह हँसी गुस्से और झुंझलाहट से भरी थी। उसे लगा कि अब उसे शांत रहने का नाटक छोड़ना पड़ेगा। उसने अपनी आँखों को बंद करके कुछ गहरी साँसें लीं। उसे अपने आप को शांत करने की कोशिश करनी थी, ताकि वह अपने काम पर वापस लौट सके। लेकिन माया की आवाज़ें अब भी उसके दिमाग में गूँज रही थीं, और उसने अपने दिल में एक नई 'दुश्मनी' पाल ली थी।
Chapter 9
शर्मा आंटी के घर में सुबह से ही गहमागहमी थी। उनके किचन से चाय की खुशबू आ रही थी, लेकिन उनका ध्यान आज नाश्ते पर नहीं, बल्कि सोसाइटी में फैले नए ‘ड्रामा’ पर था। बालकनी में खड़ी होकर, उन्होंने चाय की चुस्की ली और मुस्कुराते हुए सामने माया के फ्लैट और अर्जुन के फ्लैट को देखा। उनके मन में कल रात का झगड़ा और सुबह की ‘चीख-पुकार’ घूम रही थी। शर्मा आंटी सोसाइटी की अनऑफिशियल न्यूज़ चैनल थीं, और उन्हें अपने आस-पास होने वाली हर घटना पर पूरी अपडेट चाहिए होती थी।
"अरे! ये क्या! कल रात तो ख़ूब हल्ला-गुल्ला हुआ, और सुबह होते ही ये लड़ाई-झगड़ा शुरू हो गया। मुझे तो लगा था ये दोनों कब से शांत रहेंगे। लेकिन नहीं, ये तो और तेज़ हो गए।" उन्होंने ख़ुद से बुदबुदाया, उनके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी।
उन्हें लगा कि अब उन्हें इस मामले में दखल देना ही होगा। "भला, सोसाइटी में शांति कौन बनाए रखेगा? मैं ही तो हूँ, इनकी शर्मा आंटी!" उन्होंने अपनी धोती के पल्लू को ठीक किया और सिर पर हल्के से एक चादर ओढ़ ली। उन्होंने अपनी चाय ख़त्म की और कप सिंक में रख दिया।
"चलो, सबसे पहले नई लड़की से मिलते हैं। ख़ुशमिज़ाज लगती है।" शर्मा आंटी ने मन ही मन सोचा और अपने मिशन पर निकल पड़ीं।
वह माया के फ्लैट के दरवाज़े पर पहुँचीं। दरवाज़े पर सुंदर सी नेम प्लेट लगी थी – "माया वर्मा"। उन्होंने धीरे से दरवाज़ा खटखटाया।
अंदर से माया की आवाज़ आई, "कौन?"
शर्मा आंटी ने अपनी आवाज़ को मीठा करते हुए कहा, "बेटा, मैं शर्मा आंटी, तुम्हारे पड़ोस से।"
कुछ ही पलों में दरवाज़ा खुला। माया सामने खड़ी थी, चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान थी। उसने सुबह के रंगीन नाइटी पहनी हुई थी और उसके बाल अभी भी थोड़े बिखरे हुए थे।
"अरे, गुड मॉर्निंग आंटी! वेलकम, वेलकम! आइए ना, अंदर आइए।" माया ने तुरंत दरवाज़े से हटकर उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया। उसकी आवाज़ में वही ज़िंदादिली थी।
शर्मा आंटी अंदर आईं, उनकी आँखें पूरे लिविंग रूम को स्कैन कर रही थीं। बिखरा हुआ सामान, कुछ फ़िल्म के पोस्टर, और एक बड़ा सा पोर्टेबल स्पीकर कोने में रखा था। "वाह, बेटा! सुबह-सुबह ही इतनी एनर्जी?" शर्मा आंटी ने मुस्कुराते हुए कहा।
माया हँसी। "हाँ आंटी! मैं तो ऐसी ही हूँ। मुंबई में आकर अगर ज़िंदादिली नहीं रखी, तो क्या रखा! बस एक्टिंग के लिए थोड़ी प्रैक्टिस कर रही थी।"
"अच्छा, एक्टिंग? इसीलिए इतनी तेज़ आवाज़ में बात कर रही थी?" शर्मा आंटी ने जानबूझकर छेड़ते हुए पूछा, और फिर मुस्कुरा दीं।
माया का चेहरा हल्का सा उतर गया। "अरे आंटी, आप भी सुन रही थीं? वो... वो एक्चुअली मेरे डायलॉग्स थोड़े इमोशनल थे, तो मैं पूरी फील में आ गई थी। माफ़ी चाहती हूँ अगर आपको डिस्टर्ब हुआ हो।" उसने मासूमियत से कहा।
शर्मा आंटी ने हाथ हिलाया। "नहीं, नहीं, कोई बात नहीं बेटा। अपनी-अपनी प्रैक्टिस होती है। बस, कभी-कभी थोड़ी ज़्यादा हो जाती है।" उन्होंने अर्जुन की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"हाँ, ज़्यादा तो होती है," माया ने आँखें घुमाते हुए कहा। "खासकर जब मेरा पड़ोसी इतना चिढ़ने वाला हो।"
शर्मा आंटी ने तुरंत इस मौके को लपक लिया। "अच्छा, तुम्हारे पड़ोसी की बात कर रही हो? मिस्टर खन्ना की?"
"जी आंटी, वही मिस्टर हिटलर!" माया ने मुँह बनाते हुए कहा। "समझ नहीं आता कौन से ज़माने से आए हैं। ना कोई हँसी, ना कोई बात। बस हमेशा गुस्से में रहते हैं। मैंने तो कल रात उन्हें पार्टी में बुलाया था, लेकिन उन्होंने तो उल्टे मुझे लेक्चर दे डाला।"
शर्मा आंटी ने हल्के से माया के कंधे पर हाथ रखा। "अरे बेटा, ऐसा नहीं है। मिस्टर खन्ना तो बहुत शरीफ और शांत सरकारी बाबू हैं।"
"सरकारी बाबू?" माया ज़ोर से हँसी। "आंटी, उन्हें देखकर तो लगता है जैसे किसी आर्मी कैंप के जनरल हों, सरकारी बाबू नहीं। हमेशा टाइट मुँह और गुस्से में। मैंने तो उन्हें 'हिटलर' का नाम दे रखा है।"
शर्मा आंटी ने माया को देखा और मुस्कुराईं। "देखो बेटा, अर्जुन, मतलब मिस्टर खन्ना, थोड़े शांत स्वभाव के हैं। उन्हें ज़्यादा शोर-शराबा पसंद नहीं। और उनका काम भी ऐसा है कि उन्हें दिमागी शांति चाहिए होती है।"
"कौन सा काम है आंटी, जो इतना दिमागी शांति वाला है? क्या वो किसी लाइब्रेरियन की जॉब करते हैं?" माया ने चुटकी ली। "मुझे तो लगता है वो बोरियत के मारे हर किसी पर गुस्सा निकालते हैं।"
"नहीं बेटा, ऐसा नहीं है। वो... वो बहुत मेहनती हैं। और आजकल ना, सभी को थोड़े एडजस्टमेंट करने पड़ते हैं।" शर्मा आंटी ने उसे समझाया। "देखो, तुम नई हो इस सोसाइटी में, और वो भी अकेले रहते हैं। कल रात तुमने पार्टी की, वो अचानक से शोर हो गया, तो शायद उन्हें थोड़ा परेशानी हुई होगी।"
"परेशानी? परेशानी तो मुझे हुई जब उन्होंने मेरी पार्टी बंद करवा दी! अरे, पड़ोसियों का तो हक़ होता है ना! मैंने सोचा नए पड़ोसी हैं, उन्हें भी शामिल करूँ, लेकिन वो तो..." माया ने अपनी बात पूरी नहीं की, और मुँह फुला लिया।
"देखो बेटा, तुम्हें थोड़ा शांत रहने की कोशिश करनी चाहिए। ख़ासकर सुबह के समय। और वो जो कल तुमने चिल्ला-चिल्लाकर प्रैक्टिस की ना..." शर्मा आंटी ने मुस्कुराते हुए कहा।
माया को अपनी गलती का एहसास हुआ। "अरे, वो तो इमोशनल सीन था आंटी! उसमें तो आवाज़ निकलती ही है।"
"हाँ बेटा, लेकिन दीवारें पतली हैं ना। आवाज़ आर-पार जाती है।" शर्मा आंटी ने उसे धीरे से समझाया। "बस, थोड़ा ध्यान रखना। बड़े-बूढ़े हैं, शांत रहना पसंद करते हैं। और मिस्टर खन्ना तो बड़े सीधे-सादे इंसान हैं।"
"सीधे-सादे?" माया फिर हँसी। "आंटी, अगर वो सीधे-सादे हैं, तो दुनिया में कोई टेढ़ा इंसान बचा ही नहीं।"
"देखो बेटा, तुम्हें शांत रहना होगा। और दोनों को मिलकर रहना होगा। सोसाइटी में शांति बहुत ज़रूरी है।" शर्मा आंटी ने उसे सलाह दी। "मैं ख़ुद अर्जुन से बात करूँगी। तुम टेंशन मत लो। बस, अपना ध्यान रखो और अपने काम पर फ़ोकस करो।"
"ठीक है आंटी। अगर आप कहती हैं तो मैं कोशिश करूँगी।" माया ने कहा, लेकिन उसके चेहरे पर अभी भी 'मिस्टर हिटलर' के प्रति नाराज़गी साफ़ झलक रही थी।
"बस बेटा, यही तो अच्छी बात है। तुम बहुत अच्छी लड़की हो।" शर्मा आंटी ने माया के गाल थपथपाए। "चलो, अब मैं चलती हूँ। मुझे मिस्टर खन्ना से भी तो बात करनी है।"
"ओह, आप उनसे भी मिलने जा रही हैं?" माया ने उत्सुकता से पूछा। "उनसे बात करना आसान नहीं होगा आंटी। वो तो अपना दरवाज़ा भी ठीक से नहीं खोलते।"
शर्मा आंटी मुस्कुराईं। "चिंता मत करो बेटा, शर्मा आंटी को सब पता है कि किससे कैसे बात करनी है।" वह माया से विदा लेकर बाहर निकलीं और सीधे अर्जुन के फ्लैट की तरफ़ बढ़ीं।
अर्जुन के फ्लैट के दरवाज़े पर पहुँचकर शर्मा आंटी ने एक गहरी साँस ली। वह जानती थीं कि माया को समझाना तो आसान था, लेकिन अर्जुन को मनाना पहाड़ तोड़ने जैसा था। उन्होंने धीरे से दरवाज़ा खटखटाया।
अंदर कोई आवाज़ नहीं आई।
शर्मा आंटी ने फिर खटखटाया, इस बार थोड़ा ज़ोर से।
"कौन?" अर्जुन की आवाज़ अंदर से आई, रूखी और बेरुख़ी भरी।
"बेटा, मैं शर्मा आंटी।" उन्होंने अपनी आवाज़ को जितना हो सके, उतना सौम्य रखा।
कुछ देर की चुप्पी। फिर दरवाज़े के पीछे से एक हल्की सी आवाज़ आई, जैसे अर्जुन पीपहोल से देख रहा हो।
"क्या काम है?" अर्जुन ने पूछा, दरवाज़ा अभी भी बंद था।
"बेटा, दरवाज़ा तो खोलो। ऐसे दरवाज़े के पीछे से बात नहीं करते।" शर्मा आंटी ने थोड़ा ज़ोर देकर कहा। उन्हें अर्जुन का यह रुख़ापन पसंद नहीं आया।
कुछ और पल की चुप्पी के बाद, दरवाज़ा धीरे से खुला। अर्जुन सामने खड़ा था, उसने घर के कपड़े पहने हुए थे और उसके चेहरे पर वही पुरानी चिढ़ थी। उसकी आँखें अभी भी थकी हुई थीं।
"गुड मॉर्निंग बेटा। क्या हुआ, अभी तक सो रहे थे क्या?" शर्मा आंटी ने जानबूझकर छेड़ा।
"जी नहीं। मैं काम कर रहा था।" अर्जुन ने बेमन से जवाब दिया, दरवाज़ा अभी भी आधा खुला था।
"काम? सुबह-सुबह कौन सा काम?" शर्मा आंटी ने मुस्कुराते हुए कहा। "बेटा, अंदर तो बुलाओगे?"
अर्जुन हिचकिचाया। उसे किसी भी तरह की दखलंदाज़ी पसंद नहीं थी, खासकर शर्मा आंटी की। लेकिन वह उन्हें दरवाज़े पर खड़ा भी नहीं रख सकता था। उसने बेमन से दरवाज़े को और खोला और शर्मा आंटी अंदर आ गईं।
अर्जुन के घर में कदम रखते ही शर्मा आंटी की आँखें चौड़ी हो गईं। फ्लैट व्यवस्थित तो था, लेकिन उसमें कोई रौनक नहीं थी। सारा फर्नीचर न्यूनतम था, और एक दीवार पर बड़ा सा नक्शा लगा हुआ था, जिस पर कुछ कोड्स और अजीबोगरीब चित्र बने थे। मेज़ पर कुछ कंप्यूटर के उपकरण और किताबें रखी थीं।
"अरे वाह! कितना साफ-सुथरा घर है तुम्हारा बेटा! लेकिन ये सब क्या है? कोई नक्शा? तुम क्या करते हो बेटा?" शर्मा आंटी ने उत्सुकता से पूछा, उनकी आदत थी हर चीज़ में घुसने की।
अर्जुन तुरंत अलर्ट हो गया। "जी, कुछ नहीं आंटी। मैं... मैं लेखक हूँ। अपनी नई किताब के लिए रिसर्च कर रहा हूँ।" उसने वही बहाना दोहराया जो उसने हमेशा से बनाया था।
"लेखक?" शर्मा आंटी मुस्कुराईं। "वाह! क्या बात है! तभी तो इतने शांत और गंभीर रहते हो।"
"जी।" अर्जुन ने बस इतना ही कहा।
"देखो बेटा, मैं तुमसे एक बहुत ज़रूरी बात करने आई हूँ।" शर्मा आंटी ने गंभीरता का नाटक किया। "तुम्हें पता है ना, सोसाइटी में सभी को मिल-जुलकर रहना चाहिए। कल रात का शोर, और सुबह की वो आवाज़ें... ये सब अच्छा नहीं लगता।"
अर्जुन ने गहरी साँस ली। "आंटी, अगर आप उस लड़की के बारे में बात करने आई हैं, तो मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी।"
"ऐसी बात नहीं बेटा!" शर्मा आंटी ने तुरंत बीच में टोका। "वह नई बच्ची है। अकेली रहती है। उसे अभी सोसाइटी के नियम-क़ायदे नहीं पता। उसे थोड़ा एडजस्ट करने में टाइम लगेगा।"
"मुझे कोई एडजस्टमेंट नहीं चाहिए आंटी। मुझे बस शांति चाहिए।" अर्जुन ने साफ़ कहा।
"अरे बेटा, शांति तो सबको चाहिए। लेकिन थोड़े-बहुत शोर से क्या हो जाता है? और वो तो एक्टिंग करती है। अपनी प्रैक्टिस करती है।" शर्मा आंटी ने माया का पक्ष लिया। "सुबह-सुबह जो वो चिल्ला रही थी, वो उसकी एक्टिंग की प्रैक्टिस थी।"
अर्जुन ने मुँह बनाया। "मुझे पता है आंटी।" उसकी आवाज़ में व्यंग्य था। "उसी की वजह से मैं आज सुबह-सुबह दरवाज़ा खोलकर बाहर भागा था, सोचा किसी मुसीबत में है। और वो... वो तो अपना ड्रामा कर रही थी।"
शर्मा आंटी ने हँसी दबा ली। "देखो बेटा, अब तुम्हें पता चल गया ना। तुम्हें गुस्सा नहीं करना चाहिए। वो भोली बच्ची है। उसने सोचा नहीं होगा कि उसकी आवाज़ तुम्हें परेशान करेगी।"
"परेशान नहीं करेगी? आंटी, मेरे मिशन पर असर पड़ रहा है उसकी इन हरकतों से।" अर्जुन ने लगभग बुदबुदाया, लेकिन फिर उसने ख़ुद को संभाला। "मतलब, मेरे... मेरे लिखने के काम पर असर पड़ रहा है।" उसने बात बदली।
"देख बेटा, यह अच्छी बात नहीं है। सोसाइटी में झगड़ा अच्छा नहीं लगता।" शर्मा आंटी ने अपने लहजे में थोड़ा कठोरता लाईं। "और तुम, तुम भी तो थोड़ी बहुत एडजस्ट कर सकते हो ना? वो लड़की, वो माया, बहुत अच्छी है। सीधी-सादी है। थोड़ी नॉटी है, लेकिन दिल की बुरी नहीं है।"
"जी।" अर्जुन ने बस सिर हिला दिया। उसे इस बातचीत से छुटकारा पाना था।
"देखो अर्जुन, सोसाइटी के कुछ नियम होते हैं। हम सब एक परिवार की तरह रहते हैं। तुम्हें उस नई बच्ची के साथ सहयोग करना होगा।" शर्मा आंटी ने लगभग आदेश के लहजे में कहा। "उसकी मदद करनी होगी। अकेली लड़की है मुंबई में। किसी को तो देखना पड़ेगा।"
"मैं कोई मदद नहीं कर सकता आंटी। मेरा अपना काम है।" अर्जुन ने साफ़ कहा।
"ये क्या बात हुई बेटा? पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है। तुम इतने खड़ूस क्यों बने रहते हो?" शर्मा आंटी ने हल्की सी डाँट लगाई। "तुम्हें थोड़े सोशलाईज़ होना चाहिए। हँसना चाहिए। वो लड़की तुम्हें हँसाना चाहती है, और तुम उस पर गुस्सा करते हो।"
"मुझे किसी को हँसाने या किसी के साथ सोशलाईज़ होने की ज़रूरत नहीं है आंटी।" अर्जुन ने कड़े शब्दों में कहा। "मेरा काम ही ऐसा है कि मैं अकेले रहना पसंद करता हूँ।"
"अरे वाह! तो क्या तुम अकेले ही रहोगे ज़िंदगी भर? शादी-वादी नहीं करनी? कोई लड़की नहीं चाहिए?" शर्मा आंटी ने तुरंत अपना नया एंगल शुरू कर दिया।
अर्जुन चौंक गया। "आंटी! ये क्या बातें कर रही हैं आप?"
"क्या बातें कर रही हूँ? सही तो बोल रही हूँ। अब तुम इतने बड़े हो गए हो। शादी कर लो। एक बीवी आएगी, घर में रौनक आएगी। तुम्हें भी कोई देखने वाला होगा।" शर्मा आंटी ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा। "और देखो, अगर तुम्हें लड़की चाहिए, तो वो माया लड़की भी तो अकेली है। अच्छी लड़की है।"
अर्जुन का मुँह खुला रह गया। "आंटी!" उसने लगभग चीख़ते हुए कहा। "प्लीज़!"
शर्मा आंटी ज़ोर से हँसीं। "ठीक है, ठीक है। गुस्सा मत हो। मैं बस मज़ाक कर रही थी।" उन्होंने कहा, लेकिन उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी। उन्हें अर्जुन और माया का यह "टॉम एंड जेरी" वाला रिश्ता पसंद आ रहा था।
"देखो बेटा, बस मैं इतना कहने आई थी कि थोड़ा एडजस्ट करो। सोसाइटी में शांति रखो। और उस बच्ची को परेशान मत करो। उसका ध्यान रखो। तुम बड़े हो।" शर्मा आंटी ने अपनी बात ख़त्म की।
"ठीक है आंटी।" अर्जुन ने बस सिर हिला दिया। उसे लगा कि जितनी जल्दी शर्मा आंटी यहाँ से जाएँगी, उतना ही अच्छा होगा।
शर्मा आंटी उठ खड़ी हुईं। "चलो, अब मैं चलती हूँ। मुझे बहुत काम है। और हाँ, ख़याल रखना। उस बच्ची से झगड़ा मत करना।" उन्होंने अर्जुन को एक और बार चेतावनी दी, और फिर मुस्कुराते हुए दरवाज़े की तरफ़ बढ़ीं।
जैसे ही शर्मा आंटी दरवाज़े से बाहर निकलीं, अर्जुन ने राहत की साँस ली। उसने तुरंत दरवाज़ा बंद कर दिया और माथे पर हाथ रख लिया। "हे भगवान! अब ये शर्मा आंटी मेरे पीछे पड़ गईं। ये क्या समझती हैं? कि मेरा काम इन सब फालतू के ड्रामे के लिए है?"
उसने गुस्से में अपनी आँखें बंद कर लीं। उसे लगा कि उसका यह "आम इंसान" का भेष उसे बहुत भारी पड़ रहा है। एक तरफ ख़ुफ़िया मिशन की चिंता, दूसरी तरफ यह माया का ड्रामा, और अब शर्मा आंटी की दखलंदाज़ी।
"मुझे कुछ करना होगा," उसने मन ही मन कहा। "ये लड़की मुझे चैन से जीने नहीं देगी। और अगर मुझे शांति नहीं मिली, तो मेरा मिशन ख़तरे में पड़ जाएगा।" उसकी आँखों में एक नई चमक थी, इस बार बदला लेने की। उसे लगा कि अब उसे माया को अपने तरीक़े से चुप कराना होगा। यह सब उसकी शांति भंग कर रहा था, और एक सैन्य अधिकारी के लिए शांति ही सबसे ज़रूरी थी।
Chapter 10
शर्मा आंटी के जाने के बाद, अर्जुन ने अपने फ्लैट का दरवाज़ा तेज़ी से बंद किया। उसके माथे पर बल पड़े हुए थे और उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं। वह अपनी जगह पर कुछ देर तक खड़ा रहा, अपनी मुट्ठियाँ भींचता हुआ। उसे लगा कि उसका यह "आम आदमी" का भेष उसे हर तरह की मुसीबतों में फँसा रहा है। एक तरफ देश की सुरक्षा से जुड़ा एक हाई-प्रोफ़ाइल मिशन, और दूसरी तरफ उसकी नई पड़ोसन माया वर्मा, जो उसके लिए एक चलते-फिरते डिस्टर्बेंस पैकेज से कम नहीं थी।
"ये क्या हो रहा है मेरे साथ?" उसने बुदबुदाया, उसकी आवाज़ में गहरी झुंझलाहट थी। "एक टॉप-सीक्रेट मिशन पर हूँ, मुझे पूरी शांति और गोपनीयता चाहिए, और यहाँ ये लड़की मेरा जीना हराम कर रही है। पहले रात भर का शोर, फिर सुबह का ड्रामा, और अब ये शर्मा आंटी की पंचायत!"
उसने अपने बाल नोंचे, जैसे इस उलझन से मुक्ति पा रहा हो। "शांत सरकारी बाबू? भोली बच्ची? अगर ये सब भोली बच्ची के लक्षण हैं, तो मैं अपना मिशन छोड़कर हिमालय चला जाऊँगा!" उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी – गुस्सा और हार न मानने का दृढ़ निश्चय।
उसे याद आया शर्मा आंटी का वो डायलॉग – 'तुम्हें उस नई बच्ची के साथ सहयोग करना होगा।' 'सहयोग? मुझे?' अर्जुन को हँसी आ गई, लेकिन यह हँसी कड़वी थी। "हाँ, सहयोग तो मैं ज़रूर करूँगा, लेकिन अपने तरीक़े से।" उसके दिमाग में एक नया ख़याल कौंधा।
वह अपने कमरे में गया और अपनी टेबल पर रखी अपनी सीक्रेट डिवाइसेज़ को देखा। उसके पास देश के दुश्मनों से निपटने के लिए अत्याधुनिक उपकरण थे, लेकिन आज उसे उनसे भी ज़्यादा मुश्किल चुनौती का सामना करना था – अपनी पड़ोसन।
"मुझे इसे सबक सिखाना ही होगा। कोई ऐसा तरीक़ा, जिससे उसे पता भी न चले कि यह किसने किया, लेकिन उसकी अक़्ल ठिकाने आ जाए।" अर्जुन ने सोचा। उसने अपने दिमाग में कई योजनाएँ बनाईं – क्या उसे बिल्डिंग मैनेजमेंट से शिकायत करनी चाहिए? नहीं, वह बहुत लंबा प्रोसेस होगा। क्या उसे सीधा जाकर दोबारा झगड़ा करना चाहिए? नहीं, शर्मा आंटी का लेक्चर फिर सुनने को मिलेगा, और वह अपने मिशन के लिए किसी तरह के सार्वजनिक विवाद से बचना चाहता था।
तभी उसे एक शैतानी ख़याल आया। एक ऐसा तरीक़ा जो सीधा और तुरंत असरदार होगा, और सबसे ज़रूरी बात, जिसमें उसकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं दिखेगी।
उसने अपने कमरे में टहलना शुरू किया, उसके दिमाग में यह योजना धीरे-धीरे आकार ले रही थी। 'जब बिजली जाएगी, तो शोर भी बंद हो जाएगा, और कोई उसे दोष भी नहीं दे पाएगा कि मैंने यह किया है।' एक मुस्कान उसके चेहरे पर धीरे-धीरे फैलने लगी, एक ऐसी मुस्कान जो केवल एक शातिर दिमाग का मालिक ही दे सकता था।
कुछ ही देर बाद, अर्जुन ने माया के फ्लैट से फिर से शोर की आवाज़ सुनी। इस बार 'ढोल बाजे' जैसा कोई तेज़ गाना बज रहा था, और साथ में थिरकने की आवाज़ें भी आ रही थीं।
"ओह, तो अब डांस क्लास शुरू हो गई?" अर्जुन ने आँखें घुमाते हुए कहा। उसकी झुंझलाहट अपने चरम पर थी। "नहीं, अब और नहीं! यह मेरे सहनशक्ति से बाहर है।"
वह तुरंत अपने कमरे से बाहर निकला, अपने दरवाज़े पर कान लगाकर सुना। माया की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी, वह गाने के साथ-साथ कुछ स्टेप्स कर रही थी, और कभी-कभी ख़ुद से बात भी कर रही थी।
"हाँ, हाँ! कमर ऐसे! हाथ ऊपर! वाह माया, क्या मूव्स हैं!" माया की ख़ुद की तारीफ़ साफ़ सुनाई दे रही थी।
अर्जुन के चेहरे पर एक ठंडी, कठोर मुस्कान आ गई। "ठीक है, मिस ड्रामा क्वीन। अब आपकी एक्टिंग और डांसिंग का यह स्टेज अँधेरे में ही चमकेगा।"
वह बिना किसी आवाज़ के अपने फ्लैट से बाहर निकला। उसने गलियारे में देखा, कोई नहीं था। लिफ्ट का इंतज़ार न करते हुए, वह सीढ़ियों की तरफ़ मुड़ा। बिल्डिंग का मेन पावर सप्लाई रूम ग्राउंड फ़्लोर पर था। वह जानता था कि वहाँ अक्सर कोई नहीं होता।
अर्जुन चुपचाप सीढ़ियाँ उतरने लगा। उसकी हर हरकत सधी हुई थी, जैसे कोई गुप्त मिशन पर हो। उसकी आँखें लगातार इधर-उधर देख रही थीं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई उसे देख न ले। जैसे-जैसे वह नीचे उतर रहा था, माया के फ़्लैट से आ रहे म्यूज़िक की आवाज़ धीमी होती जा रही थी, लेकिन अर्जुन के कानों में अभी भी उसकी गूँज थी।
ग्राउंड फ़्लोर पर पहुँचकर, उसने बिल्डिंग के पिछले हिस्से की तरफ़ देखा। एक छोटा सा दरवाज़ा था, जिस पर 'इलेक्ट्रिकल रूम' लिखा हुआ था। दरवाज़े पर एक बड़ा सा ताला लगा था, लेकिन अर्जुन को पता था कि सोसाइटी के पास इसकी एक मास्टर चाबी होती है जो अक्सर किसी झाड़ी में या दरवाज़े के पास छिपी होती है, ताकि इमरजेंसी में उसका इस्तेमाल किया जा सके। एक जासूस होने के नाते, वह इन छोटी-मोटी चीज़ों को आसानी से पहचान जाता था।
उसने दरवाज़े के पास की झाड़ी में हाथ डाला और तुरंत उसे चाबी मिल गई। उसने मुस्कुराते हुए ताला खोला और अंदर चला गया। अंदर, बिजली के मीटर और स्विचबोर्ड का एक बड़ा सा पैनल था। हर फ़्लोर और हर फ़्लैट के लिए अलग-अलग स्विच थे। अर्जुन ने जल्दी से अपनी मंज़िल वाले फ़्लोर के स्विच को पहचाना। यह एक मोटा सा, लाल रंग का स्विच था।
उसने अपने हाथ में एक छोटी सी टॉर्च निकाली और उसे ऑन किया। उसकी नज़र स्विच पर पड़ी। 'हाँ, यही है।' उसके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आई। उसने बिना आवाज़ किए स्विच को नीचे की तरफ़ दबाया।
"क्लिक!" एक हल्की सी आवाज़ हुई।
...
माया अपने फ़्लैट में पूरी मस्ती में डांस कर रही थी। "ढोल बाजे" गाने की तेज़ धुन पर वह अपनी कमर हिला रही थी, अपने हाथ ऊपर-नीचे कर रही थी। उसकी एक्टिंग और डांसिंग स्किल्स का प्रदर्शन चरम पर था। वह अपने आप में मगन थी। "ये स्टेप! ये एक्सप्रेशन! वाह माया! अब तुझे कोई नहीं रोक सकता!" वह ख़ुद से बातें कर रही थी, जब अचानक...
"धप्प!"
पूरे फ़्लैट की बत्तियाँ बुझ गईं। म्यूज़िक सिस्टम बंद हो गया। पंखा रुक गया। पूरा कमरा एक पल में अँधेरे में डूब गया। माया बीच डांस में ही जम गई।
"क्या हुआ?" वह हैरान होकर बोली। उसने चारों तरफ देखा, कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। "लाइट गई क्या?"
उसने अपना फ़ोन उठाया और उसकी टॉर्च ऑन की। पूरे फ़्लैट में अँधेरा था। बाहर से भी कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। इसका मतलब था कि सिर्फ़ उसके फ़्लैट की बिजली गई थी।
"अरे यार! ये क्या हो गया?" वह झुंझलाई। गर्मी भी तेज़ी से बढ़ने लगी थी। "अरे, अभी तो मैंने बस मूड बनाया था!"
उसने तुरंत मीटर बॉक्स की तरफ़ देखा, जो दरवाज़े के पास लगा था। उसने उसे खोला। "अरे! ये क्या! मेरा मेन स्विच बंद है!" उसकी आँखें बड़ी हो गईं। "अपने आप कैसे बंद हो सकता है?"
उसने स्विच को ऊपर करने की कोशिश की, लेकिन वह नीचे की तरफ़ अटका हुआ था। उसे धक्का देना पड़ा। जब उसने स्विच ऊपर किया, तो "क्लिक" की आवाज़ के साथ लाइट वापस आ गईं। पंखा चलने लगा, म्यूज़िक सिस्टम ऑन हो गया।
"हाँ! आ गई लाइट!" माया मुस्कुराई। "चलो, अब फिर से डांस करते हैं!" उसने गाना फिर से बजाया, लेकिन कुछ ही सेकंड बाद, "धप्प!" फिर से लाइट चली गई।
माया के हाथ में टॉर्च फिर से आ गई। उसका चेहरा अब लाल हो गया था। "ये क्या मज़ाक है? कोई मेरे साथ मज़ाक कर रहा है क्या?"
उसने फिर से मीटर बॉक्स खोला। स्विच फिर से नीचे था। "मुझे पता है यह किसका काम है!" माया ने गुस्से में फुसफुसाया। "ये उसी हिटलर का काम है! कल रात पार्टी बंद करवाई, और अब सुबह-सुबह मेरी बिजली काट रहा है! इसका तो कोई इलाज करना पड़ेगा!"
उसके चेहरे पर गुस्सा साफ़ झलक रहा था। "उसे लगता है कि मैं डर जाऊँगी? मैं हार मान लूँगी? वो माया वर्मा है, ऐसे हार नहीं मानती!"
उसने ज़ोर से स्विच को ऊपर किया और लाइटें वापस आ गईं। उसने तुरंत अपने म्यूज़िक सिस्टम को बंद किया। अब उसे डांस की नहीं, बल्कि बदले की सूझ रही थी।
"मैं भी देखती हूँ मिस्टर हिटलर, तुम कितने शांत रहते हो!" माया ने दाँत भींचते हुए कहा। उसकी आँखों में आग थी। उसे तुरंत समझ आ गया कि यह हरकत जानबूझकर की गई थी, और इसे करने वाला उसका बगल वाला पड़ोसी अर्जुन ही हो सकता है।
उसने अपने फ़्लैट में चारों तरफ देखा, जैसे कोई हथियार ढूँढ रही हो। उसकी नज़र रसोई में रखी केले की टोकरी पर पड़ी, जिसमें एक पका हुआ केला रखा था। उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई। "हाँ... यही सही रहेगा।"
माया ने अपने मोबाइल में कुछ तस्वीरें लीं – उसके फ़्लैट में अँधेरा, उसका म्यूज़िक सिस्टम बंद पड़ा हुआ। वह अर्जुन के ख़िलाफ़ सबूत इकट्ठा कर रही थी, ताकि ज़रूरत पड़ने पर शर्मा आंटी या सोसाइटी में उसे बेनक़ाब कर सके। लेकिन वह जानती थी कि सिर्फ़ शिकायत करने से बात नहीं बनेगी। उसे अपने तरीक़े से जवाब देना होगा।
...
इधर, अर्जुन बिजली के कमरे से बाहर निकल चुका था। उसने चाबी को वापस झाड़ी में छुपाया और दरवाज़े को बंद कर दिया। उसके चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान थी।
"तो, मिस माया वर्मा, अब आपको पता चलेगा कि शोर करने का क्या अंजाम होता है।" अर्जुन ने मन ही मन कहा। उसे यक़ीन था कि अब माया शांत हो जाएगी, कम से कम कुछ समय के लिए।
वह चुपचाप अपने फ़्लैट की तरफ़ वापस चला गया। उसने अपनी बालकनी से झाँककर माया के फ़्लैट की बालकनी को देखा। वहाँ शांति थी, कोई म्यूज़िक नहीं बज रहा था।
"लगता है सबक सीख लिया।" अर्जुन ने गर्व से कहा। उसे लगा कि उसने अपनी समस्या का समाधान कर लिया है, बिना किसी झगड़े के। उसे नहीं पता था कि यह तो सिर्फ़ शुरुआत थी।
उसने सोचा कि अब वह शांति से अपने काम पर ध्यान दे पाएगा। अपने सीक्रेट मिशन की फ़ाइलों को निकालने के लिए वह अपनी टेबल की तरफ़ बढ़ा, जब अचानक उसके कान में एक अजीब सी आवाज़ पड़ी।
"कौन है वहाँ? मैं तुम्हें छोड़ूँगी नहीं!" यह माया की आवाज़ थी, लेकिन इस बार वह चिल्ला नहीं रही थी, बल्कि फुसफुसा रही थी, और उसके लहजे में धमकी साफ़ थी।
अर्जुन ठिठक गया। "क्या?"
उसने फिर से बालकनी से झाँका। माया अपने फ़्लैट की बालकनी में खड़ी थी, फ़ोन पर बात कर रही थी, और उसका चेहरा गुस्से से लाल था। वह शायद किसी दोस्त को बता रही थी कि उसके साथ क्या हुआ है।
"हाँ! मैं भी देखती हूँ वो कितना हिटलर है! मैं भी उसे सबक सिखाकर रहूँगी! मेरी बिजली काटेगा? मैं भी उसे मज़ा चखाऊँगी!" माया की आवाज़ अर्जुन के कानों में साफ़ पड़ रही थी।
अर्जुन के चेहरे की मुस्कान ग़ायब हो गई। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। "नहीं! इसे कैसे पता चला कि ये मैंने किया है?" उसने बुदबुदाया। उसे लगा कि उसकी योजना बेकार हो गई थी।
उसे लगा कि अब माया और भी ज़्यादा गुस्से में होगी, और वह चुप बैठने वालों में से नहीं थी। "शायद यह बदला लेने की तैयारी कर रही है।" अर्जुन को एक अजीब सी घबराहट हुई। उसका "शांतिपूर्ण समाधान" अब एक नए युद्ध की शुरुआत बन चुका था।
उसने अपनी फ़ाइलें वापस रख दीं। अब वह अपने मिशन पर फ़ोकस नहीं कर सकता था। उसका पूरा ध्यान अपनी पड़ोसन पर केंद्रित हो गया था। उसे लगा कि अब उसे और ज़्यादा सावधान रहना होगा, क्योंकि माया वर्मा हार मानने वाली नहीं थी। उसके दिमाग में एक ही बात घूम रही थी – "ये लड़की मुझे पागल कर देगी! या शायद... मैं ही इसे पागल कर दूँगा।"
Chapter 11
माया अपने फ़्लैट की बालकनी में खड़ी, फ़ोन पर अपनी सहेली प्रिया से बात कर रही थी। उसकी आवाज़ में गुस्सा और निराशा साफ़ झलक रही थी। "यार प्रिया, तू सोच भी नहीं सकती! पहले कल रात की मेरी गृह-प्रवेश पार्टी ख़राब की उस हिटलर ने, और अब सुबह-सुबह मेरी बिजली काट दी! बीच डांस में! मेरा मूड ही ख़राब हो गया।"
"क्या? बिजली काट दी? अरे, ये क्या बदतमीज़ी है?" प्रिया ने फ़ोन पर हैरानी से पूछा।
"वही तो! मैंने चेक किया, मेरा मेन स्विच डाउन था। ये उसी का काम है! मुझे पता है!" माया ने दाँत भींचते हुए कहा। "उसे लगता है कि मैं डर जाऊँगी? मैं चुप बैठ जाऊँगी? वो मुझे अभी जानता नहीं है, प्रिया!"
प्रिया हँसी। "अरे, बस कर माया! इतनी ड्रामा क्वीन मत बन। हो सकता है ग़लती से हो गया हो। या मीटर में कुछ प्रॉब्लम हो।"
"ग़लती से? कभी नहीं!" माया ने तपाक से कहा। "और प्रॉब्लम? क्या प्रॉब्लम? जब मैंने स्विच ऑन किया तो लाइट आ गई, और फिर जब मैंने गाना बजाया तो फिर से चला गया। ये साफ़-साफ़ उसी खड़ूस का काम है। वो नहीं चाहता कि मैं अपने आर्ट की प्रैक्टिस करूँ।"
"अच्छा, अब तू इसे आर्ट की प्रैक्टिस कह रही है?" प्रिया ने छेड़ा।
"हाँ! बिलकुल आर्ट! और वो मेरी आर्ट को रोक रहा है! अब मुझे भी उसे मज़ा चखाना पड़ेगा। मैं उसे शांति से रहने नहीं दूँगी।" माया की आवाज़ में प्रतिशोध का भाव था।
"तू कुछ भी कर सकती है, माया। लेकिन देख, कहीं उल्टा भारी न पड़ जाए।" प्रिया ने चेतावनी दी।
"उल्टा भारी? नहीं! इस बार मैं उसे ऐसा सबक सिखाऊँगी कि वो याद रखेगा कि माया वर्मा कौन है!" माया ने फ़ोन रखा और अपने फ़्लैट में टहलने लगी। उसकी आँखों में चमक थी, जैसे कोई शैतानी योजना बना रही हो।
उसने अपने कमरे में घूमते हुए अपने लैपटॉप पर कुछ सर्च करना शुरू किया। "कोई ऐसा तरीक़ा, जिससे उसे सीधा नुकसान न पहुँचे, लेकिन उसकी इज़्ज़त का फ़ालूदा हो जाए।" उसके दिमाग में कई ख़याल आ रहे थे। क्या उसके दरवाज़े पर गंदा पानी डाल दूँ? नहीं, बहुत मैसी होगा। क्या उसके जूते छिपा दूँ? नहीं, वो ख़ुद ही दूसरा जूता पहन लेगा।
तभी उसकी नज़र मेज़ पर रखे एक केले पर पड़ी, जिसे उसने अभी-अभी खाया था। उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई। "हाँ! यही सही रहेगा!"
उसे याद आया कि एक बार उसने अर्जुन को सुबह-सुबह लिफ़्ट का इंतज़ार करते हुए देखा था। उसने ध्यान दिया था कि अर्जुन रोज़ सुबह ठीक 6 बजे जॉगिंग के लिए निकलता है। वह हमेशा अपने स्पोर्ट्स्वियर में होता है और उसके चेहरे पर एक अलग ही तरह की गंभीरता होती है। वह कभी आस-पास किसी से बात नहीं करता, बस अपने ख्यालों में खोया हुआ लगता है।
"सुबह 6 बजे। जॉगिंग। एकदम परफेक्ट!" माया ने मन ही मन सोचा। "उसे अपनी सेहत का बहुत ख़याल रहता है ना? अब मैं उसकी सुबह की शुरुआत ही ख़राब कर दूँगी।"
शाम तक, माया की योजना पूरी तरह तैयार हो चुकी थी। रात हुई। माया अपने काम से वापस आई और रात के खाने के बाद उसने अपने फ़्लैट के सभी लाइट बंद कर दिए। उसने अपने फ़ोन की टॉर्च ऑन की और चुपचाप अपने दरवाज़े की तरफ़ बढ़ी।
उसने एक पका हुआ केला लिया, उसे छीला और उसका छिलका अपने हाथ में ले लिया। उसने दरवाज़े की कुंडी पर कान लगाया। अर्जुन के घर से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। शायद वह सो चुका था या अपने किसी 'लेखक' वाले काम में बिज़ी था।
माया ने धीरे से अपना दरवाज़ा खोला। गलियारे में अँधेरा था। उसने सावधानी से बाहर झाँका। कोई नहीं था। उसे अर्जुन के दरवाज़े तक जाना था, जो उसके ठीक बगल में था। उसने एक गहरी साँस ली और अपने कदम बढ़ाए।
वह अर्जुन के दरवाज़े के पास पहुँची। उसने ध्यान से देखा कि कहीं कोई सीसीटीवी कैमरा तो नहीं लगा है, लेकिन बिल्डिंग में केवल लिफ़्ट के पास ही कैमरा था। उसने सुनिश्चित किया कि कोई उसे देख नहीं रहा है।
माया ने अपने हाथ में पकड़े हुए केले के छिलके को दरवाज़े के ठीक बाहर, मैट के ऊपर, सावधानी से रख दिया। उसने सुनिश्चित किया कि वह छिलका बिलकुल सपाट रहे, ताकि कोई उसे आसानी से देख न सके। एक पल के लिए उसने सोचा कि क्या यह बहुत बचकाना बदला है, लेकिन फिर उसे सुबह की बिजली जाने का गुस्सा याद आया।
"ये तो ट्रेलर है मिस्टर हिटलर। फ़िल्म अभी बाकी है।" उसने मन ही मन बुदबुदाया और एक शैतानी मुस्कान के साथ वापस अपने फ़्लैट में आ गई। उसने दरवाज़ा बंद किया और बिस्तर पर जाकर लेट गई। उसे नींद नहीं आ रही थी। वह सुबह 6 बजे का इंतज़ार कर रही थी, जब उसकी योजना कामयाब होगी। उसके चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान थी।
...
अगली सुबह, ठीक 5 बजकर 50 मिनट पर, अर्जुन की नींद खुली। उसकी अलार्म क्लॉक ठीक 6 बजे की लगी थी, लेकिन उसकी फ़ौजी ट्रेनिंग उसे हमेशा समय से पहले उठा देती थी। वह बिस्तर से उठा, तुरंत फ़्रेश हुआ और अपने जॉगिंग के कपड़े पहने। उसने अपनी स्पोर्ट्स शूज़ उठाईं और उन्हें पहनना शुरू किया।
आज रात उसे अपने हैंडलर से एक अहम अपडेट मिलने वाली थी, और उसे 'द घोस्ट' के बारे में कुछ और जानकारी मिली थी। उसका दिमाग पूरी तरह से अपने मिशन पर केंद्रित था। उसे पिछली रात माया द्वारा किए गए 'अंधेरे के हमले' पर भी गुस्सा था, लेकिन उसने उसे अभी के लिए एक तरफ़ रख दिया था। उसे बस सुबह की जॉगिंग करनी थी ताकि उसका दिमाग साफ़ हो सके।
उसने अपनी स्मार्टवॉच को एडजस्ट किया और अपने कानों में वायरलेस हेडफ़ोन लगाए। उसमें उसने अपना पसंदीदा मोटिवेशनल पॉडकास्ट लगाया। वह हर सुबह उसे सुनकर ही जॉगिंग पर जाता था।
ठीक 6 बजे, अर्जुन अपने फ्लैट के दरवाज़े पर आया। उसने दरवाज़े की कुंडी पर हाथ रखा और दरवाज़ा खोला। उसका दिमाग पॉडकास्ट की बातों में उलझा हुआ था – 'एक लीडर कभी हार नहीं मानता', 'हर चुनौती का सामना डटकर करो।'
वह दरवाज़े से बाहर निकला। उसका दायाँ पैर ज़मीन पर पड़ा, और फिर...
"छपाक!"
एक नर्म और चिपचिपी चीज़ पर उसके पैर पड़े। उसका पैर हवा में उछला और उसका शरीर असंतुलित हो गया।
"आह!" अर्जुन के मुँह से हल्की सी आवाज़ निकली।
वह गिरते-गिरते बचा। उसका संतुलन बिगड़ा, और वह लगभग ज़मीन पर आ ही गया था। लेकिन उसकी फ़ौजी ट्रेनिंग ने उसे बचा लिया। उसने अपने हाथों से सामने की दीवार को पकड़ा और अपने शरीर को गिरने से रोका। उसका दायाँ पैर केले के छिलके से फिसल गया था और अब वह छिलका उसके जूते पर चिपका हुआ था।
अर्जुन ने गुस्से में नीचे की तरफ़ देखा। उसके दरवाज़े के ठीक बाहर, उसके मैट पर, एक चमकदार पीला केले का छिलका पड़ा था। उसका जूता पूरी तरह से केले के गूदे से सना हुआ था।
उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसकी आँखों में आग आ गई। उसने उस छिलके को घूरा, जैसे वह कोई ख़तरनाक दुश्मन हो। उसका पॉडकास्ट अभी भी बज रहा था – 'हर चुनौती का सामना डटकर करो!'
"ये क्या है?" उसने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ में सिर्फ़ गुस्सा था।
उसे एक पल भी नहीं लगा यह समझने में कि यह किसका काम था। उसका दिमाग तुरंत माया की तरफ़ घूम गया। 'उस ड्रामा क्वीन की ये शैतानी हरकत है!'
उसे याद आया सुबह उसकी बिजली जाना, और फिर माया का बालकनी से चिल्लाना – 'मैं भी उसे मज़ा चखाऊँगी!'
"ओह, तो यह था तेरा 'सबक'?" अर्जुन ने दाँत भींचते हुए कहा। उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं। "केले का छिलका? तुम मुझे इतना बच्चा समझती हो?"
उसकी सुबह की जॉगिंग का मूड पूरी तरह ख़राब हो चुका था। उसका सारा ध्यान अपने मिशन से हटकर अब इस बचकानी हरकत पर आ गया था। उसे लगा कि उसकी इज़्ज़त का फ़ालूदा हो गया था। शुक्र है कि अभी कोई आस-पास नहीं था, वर्ना वह किसी को मुँह नहीं दिखा पाता।
अर्जुन ने गुस्से में उस केले के छिलके को पैर से रगड़कर हटाना चाहा, लेकिन वह उसके जूते से चिपक गया था। उसने गुस्से में अपना जूता पटका और छिलके को झाड़ा। छिलका गलियारे में चिपक गया।
"मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगा माया वर्मा!" अर्जुन ने धीमी, लेकिन गुस्से भरी आवाज़ में कहा। उसकी आँखों में प्रतिशोध की भावना साफ़ झलक रही थी। वह अब और बर्दाश्त करने वाला नहीं था। उसे लगा कि यह लड़की जानबूझकर उसे तंग कर रही थी, उसके काम में बाधा डाल रही थी, और अब तो उसने उसकी सुबह भी ख़राब कर दी थी।
वह अपने घर के अंदर गया, अपने जूतों से चिपके छिलके को साफ़ किया, और फिर अपना चेहरा पानी से धोया। उसकी आँखों में अभी भी वही गुस्सा था। "उसे लगता है कि यह खेल मज़ेदार है? अब मैं उसे दिखाऊँगा कि असली खेल कैसा होता है!"
अर्जुन ने जॉगिंग पर जाने का ख़याल छोड़ दिया। अब उसके दिमाग में सिर्फ़ एक ही बात थी – माया को सबक सिखाना। वह जानता था कि अब यह "पड़ोसी-वॉर" एक नया मोड़ ले चुकी थी। यह सिर्फ़ शोर या बिजली काटने का मामला नहीं रहा था। यह एक व्यक्तिगत जंग बन गई थी, और अर्जुन खन्ना, एक मिलिट्री इंटेलिजेंस ऑफ़िसर, कभी कोई जंग नहीं हारता था।
Chapter 12
अगली सुबह की शुरुआत अर्जुन के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थी। केले के छिलके पर पैर फिसलने से वह गिरते-गिरते बचा था, लेकिन उसकी इज़्ज़त और सुबह की शांति का फ़ालूदा ज़रूर हो गया था। उसने गुस्से में उस छिलके को झाड़ा और अपने जूते को साफ़ किया, लेकिन उसके दिमाग में माया के लिए गुस्सा और प्रतिशोध भर गया था। वह अपनी जॉगिंग पर नहीं गया, बल्कि वापस अपने फ़्लैट में आ गया, उसके दिमाग में बस माया को मज़ा चखाने की धुन थी।
दूसरी तरफ, माया अपने फ़्लैट में बिस्तर पर लेटी, सुबह 6 बजे का इंतज़ार कर रही थी। उसे यक़ीन था कि अर्जुन अब तक बाहर निकला होगा और उसकी योजना कामयाब हो चुकी होगी। उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी। वह चाहती थी कि उसे अर्जुन की प्रतिक्रिया देखने को मिले, लेकिन वह जानती थी कि वह अपने फ़्लैट से बाहर नहीं निकलेगी। उसे बस इतना पता था कि उसे 'सबक' मिल चुका होगा।
"कैसे हो मिस्टर हिटलर? आज की सुबह कैसी रही?" उसने मन ही मन पूछा। "मज़ा आया मेरे केले के छिलके का स्वाद चखकर?"
यह घटना सोसाइटी में आग की तरह फैल गई। किसी ने अर्जुन को सुबह-सुबह दरवाज़े पर गुस्से में कुछ बुदबुदाते और अपने जूते साफ़ करते देखा था। कुछ देर बाद, बिल्डिंग के सफ़ाईकर्मी को दरवाज़े के बाहर एक चिपका हुआ केले का छिलका मिला। सोसाइटी में अर्जुन और माया की "पड़ोसी-वॉर" पहले से ही चर्चा का विषय थी, लेकिन यह "केले का छिलका कांड" एक नया अध्याय बन गया। लोग चाय की चुस्कियों के साथ इस घटना पर चर्चा कर रहे थे, मज़े ले रहे थे।
"सुना तुमने? सुबह मेजर साहब फिसलते-फिसलते बचे!" एक पड़ोसन ने दूसरी से कहा।
"हाँ हाँ! मैंने भी सुना। कह रहे हैं कि किसी ने जानबूझकर केले का छिलका रखा था। और वो नई वाली लड़की, माया, है ना, उसी का काम होगा।" दूसरी ने आँखों पर हाथ फेरते हुए कहा।
"अरे बाबा रे! ये लोग तो हद कर रहे हैं। पहले रात को शोर, फिर दिन में झगड़ा, और अब ये सब! लगता है शर्मा आंटी को ही कुछ करना पड़ेगा।"
और शर्मा आंटी, जो सोसाइटी की गॉसिप क्वीन और सेक्रेटरी दोनों थीं, भला इस मामले में कैसे पीछे रहतीं? वह अपने फ्लैट की बालकनी से यह सब देख और सुन रही थीं। उनके चेहरे पर एक जिज्ञासु मुस्कान थी, लेकिन मन ही मन वह थोड़ी परेशान भी थीं। उनका मानना था कि सोसाइटी में शांति और सद्भाव बनाए रखना उनकी ज़िम्मेदारी है। लेकिन साथ ही, इस ड्रामे से उन्हें मज़ा भी आ रहा था। उनके दिमाग में एक ख़याल आया। 'लगता है अब मुझे आधिकारिक तौर पर इसमें दखल देना ही पड़ेगा।'
शर्मा आंटी ने तुरंत एक 'सोसाइटी मीटिंग' बुलाने का फ़ैसला किया। उन्होंने सोसाइटी के नोटिस बोर्ड पर एक बड़ा सा नोटिस चिपकाया:
**"अत्यंत आवश्यक: सोसाइटी मीटिंग"**
**विषय: पड़ोसियों के बीच शांति और सद्भाव बनाए रखने पर चर्चा।**
**स्थान: सोसाइटी कॉमन हॉल**
**समय: आज शाम 7:00 बजे**
**सभी निवासियों से अनुरोध है कि वे इस महत्वपूर्ण बैठक में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहें।**
**सचिव,**
**श्रीमती सुनीता शर्मा**
हर कोई जानता था कि यह मीटिंग सिर्फ़ और सिर्फ़ अर्जुन और माया के लिए थी। इस नोटिस को देखकर सोसाइटी के बाकी निवासी मुस्कुराने लगे। शाम 7 बजे का इंतज़ार सभी को था।
शाम 7 बजे, सोसाइटी का कॉमन हॉल लोगों से भरा हुआ था। कुछ लोग चेयर्स पर बैठे थे, कुछ दीवार के सहारे खड़े थे। हॉल के बीच में एक छोटी सी मेज़ थी, जिस पर शर्मा आंटी ने अपनी डायरी और एक पेन रखा हुआ था। उनका चेहरा गंभीर था, लेकिन उनकी आँखों में एक अलग सी चमक थी।
अर्जुन, अपने हमेशा के औपचारिक और गंभीर अंदाज़ में, एक कोने में जाकर बैठ गया। उसका चेहरा शांत था, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी सुबह वाले केले के छिलके का गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था। वह बस इस मीटिंग के ख़त्म होने का इंतज़ार कर रहा था ताकि वह अपने मिशन पर वापस जा सके।
तभी, माया अपने तेज़-तर्रार अंदाज़ में हॉल में दाखिल हुई। उसने एक कैज़ुअल टॉप और जींस पहनी थी, और उसके चेहरे पर आत्मविश्वास और थोड़ी सी चिढ़न साफ़ दिखाई दे रही थी। वह अर्जुन को देखकर हल्की सी मुस्कुराई, जैसे उसे छेड़ रही हो। अर्जुन ने उसे देखा और उसकी मुस्कान को देखकर उसकी आँखें और तेज़ हो गईं।
माया भी एक खाली कुर्सी पर जाकर बैठ गई, जो अर्जुन से थोड़ी दूर थी, लेकिन इतनी दूर नहीं कि वे एक-दूसरे को देख न सकें।
शर्मा आंटी ने अपने गले को साफ़ किया और अपनी डायरी खोली। "गुड इवनिंग, एवरीवन!" उन्होंने गंभीर आवाज़ में कहा। "आज हम सब यहाँ एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं।"
कुछ लोगों ने फुसफुसाहट में एक-दूसरे की तरफ़ देखा। शर्मा आंटी ने अपनी बात जारी रखी, "जैसा कि आप सभी जानते हैं, हमारी सोसाइटी हमेशा से एक शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण जगह रही है। हम सब एक परिवार की तरह रहते हैं।" उन्होंने मुस्कुराते हुए अर्जुन और माया की तरफ़ देखा, जो एक-दूसरे को तिरछी नज़रों से देख रहे थे।
"लेकिन, पिछले कुछ दिनों से, कुछ ऐसी घटनाएँ हो रही हैं, जिससे सोसाइटी का माहौल ख़राब हो रहा है। हम सब यहाँ शांति और सुकून के लिए आते हैं, झगड़ों के लिए नहीं।" शर्मा आंटी ने अपनी आवाज़ थोड़ी ऊँची की। "और मुझे लगता है कि अब इस मामले में थोड़ी गंभीरता दिखाने की ज़रूरत है।"
उन्होंने सीधे अर्जुन की तरफ़ देखा। "मेजर अर्जुन खन्ना जी, आप हमारे नए सदस्य हैं, और आप एक सरकारी विभाग में काम करते हैं। आप एक गंभीर और शांत व्यक्ति हैं।"
अर्जुन ने सिर हिलाया, लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।
फिर शर्मा आंटी ने माया की तरफ़ देखा। "और माया वर्मा जी, आप भी नई आई हैं। आप एक बहुत ही टैलेंटेड बच्ची हैं, एक्ट्रेस हैं। आपकी आवाज़ में दम है।"
माया ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया।
शर्मा आंटी ने फिर दोनों की तरफ़ देखा। "लेकिन, मुझे अफ़सोस है कि मुझे कहना पड़ रहा है कि आप दोनों के बीच जो कुछ चल रहा है, उससे बाक़ी पड़ोसियों को परेशानी हो रही है।"
"चल क्या रहा है?" माया ने तुरंत कहा। "आंटी, कुछ चल नहीं रहा है। बस ये..."
"हाँ, वही! मैं जानती हूँ।" शर्मा आंटी ने उसे बीच में ही टोक दिया। "तो, मिस्टर अर्जुन, आप अपनी बात रखिए। आपको माया जी से क्या शिकायत है?"
अर्जुन ने गहरी साँस ली, जैसे वह अपने गुस्से को कंट्रोल कर रहा हो। "देखिए, शर्मा आंटी। मुझे बस शांति चाहिए। मैं अपने काम के लिए यहाँ आया हूँ, और मुझे काम करने के लिए एक शांत माहौल चाहिए। लेकिन मैडम, जब से आई हैं, रोज़ कोई न कोई ड्रामा होता रहता है। पहले दिन ही उनकी पार्टी ने मेरे काम में खलल डाला।"
"खलल?" माया ने तुरंत कहा। "वो मेरा गृह-प्रवेश था! मैं अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर रही थी। क्या एक आदमी अपनी ख़ुशी भी नहीं मना सकता? और आपने तो बिना पूछे ही मेरी पार्टी बंद करवा दी! वो भी तब जब मैं अपने दोस्तों से मिल रही थी!"
"आपकी ख़ुशी से मुझे कोई ऐतराज़ नहीं, माया जी।" अर्जुन ने ठंडी आवाज़ में कहा। "लेकिन आपके संगीत की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि मेरे कान के परदे फट रहे थे। और मैं एक बहुत ज़रूरी कॉल पर था।"
"ओह! ज़रूरी कॉल?" माया ने आँखें घुमाईं। "हाँ, हाँ! मुझे पता है। सरकारी बाबू वाली ज़रूरी कॉल! आपको तो लगता है जैसे पूरी दुनिया आपके इशारे पर चले। मैंने आपको पार्टी में बुलाया भी था, लेकिन आप आए नहीं। आप तो बस चाहते हैं कि सब आपकी बात सुनें।"
"आपकी पार्टी में आकर मैं क्या करता? नाचता?" अर्जुन ने ताना मारा। "मेरा काम अलग है, मैडम। मैं कोई एंटरटेनर नहीं हूँ।"
"ओह! तो क्या मैं एंटरटेनर हूँ?" माया ने गुस्से में कहा। "मैं एक एक्ट्रेस हूँ! और अपनी प्रैक्टिस ज़ोर-ज़ोर से करती हूँ। जैसे कल सुबह! मुझे अपनी आवाज़ पर काम करना होता है। और आपको लगता है कि मैं मज़ाक कर रही हूँ? आपको लगता है कि मैं जानबूझकर आपको तंग कर रही हूँ?"
"जानबूझकर ही तो कर रही हैं!" अर्जुन ने लगभग चिल्लाते हुए कहा। "सुबह-सुबह रोना-चिल्लाना! कोई भी सुनेगा तो यही समझेगा कि किसी पर हमला हो रहा है। मेरी नींद हराम हो जाती है!"
"वो मेरी एक्टिंग प्रैक्टिस थी!" माया ने पलटवार किया। "क्या एक एक्ट्रेस को अपनी प्रैक्टिस करने की भी आज़ादी नहीं है? क्या आप चाहते हैं कि मैं चुपचाप दीवार से लगकर प्रैक्टिस करूँ?"
शर्मा आंटी ने हाथ उठाया। "शांत, शांत! ऐसे बात नहीं करते। देखिए, आप दोनों शांति से अपनी बात रखिए।"
एक और पड़ोसन ने बीच में कहा, "हाँ, माया जी। आपकी आवाज़ थोड़ी तेज़ है। सुबह-सुबह थोड़ी दिक्कत तो होती है।"
"हाँ! बिलकुल! आप तो बिलकुल सही कह रहे हैं।" अर्जुन ने उस पड़ोसन का समर्थन किया।
"अरे! तो फिर आप क्यों नहीं कहते मिस्टर अर्जुन को कि वो मेरी बिजली क्यों काटते हैं?" माया ने अचानक कहा। "कल सुबह इन्होंने ही मेरी बिजली काटी थी। मेरा म्यूज़िक बंद कर दिया था।"
यह सुनकर हॉल में फुसफुसाहट शुरू हो गई। लोग हैरान हो गए। अर्जुन का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। उसे लगा कि उसकी योजना पूरी तरह से चौपट हो गई थी।
"ये क्या बकवास है?" अर्जुन ने गुस्से में कहा। "मैंने कोई बिजली नहीं काटी। शायद कोई फ़ॉल्ट होगा।"
"फ़ॉल्ट? हाँ! बिलकुल फ़ॉल्ट!" माया हँसी। "तो फिर कैसे जब मैंने गाना दोबारा बजाया, तो तुरंत फिर से बिजली चली गई? और जब मैंने मीटर चेक किया, तो मेरा मेन स्विच जानबूझकर नीचे किया हुआ था! आपको क्या लगता है, मैं पागल हूँ?"
"आप हर चीज़ को ड्रामा क्यों बना देती हैं?" अर्जुन ने गुस्से में कहा। "मैं कोई बच्चों वाली हरकत नहीं करता।"
"ओह! आप नहीं करते?" माया ने व्यंग्य किया। "तो फिर आज सुबह आपके दरवाज़े के बाहर वो केले का छिलका अपने आप आया था क्या? क्या वो जादू से वहाँ आ गया था? आप फिसलते-फिसलते बचे थे, मैंने देखा था!"
अब हॉल में पूरी तरह से सन्नाटा छा गया। सबने एक-दूसरे की तरफ़ देखा। केले का छिलका वाला मामला सभी को पता था, लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि माया ख़ुद इस तरह से मान लेगी कि यह उसी का काम था। शर्मा आंटी का मुँह खुला का खुला रह गया।
अर्जुन की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। "तो ये आपकी हरकत थी? आप जानबूझकर मुझे परेशान कर रही हैं?"
"हाँ! बिलकुल!" माया ने कहा। "आप करेंगे तो बदले में आपको भी मिलेगा! आपने मेरी बिजली काटी, मैंने आपको मज़ा चखाया। अब आगे क्या? आप मुझे मारेंगे?"
"बस करो!" शर्मा आंटी ने तेज़ आवाज़ में कहा। "ये क्या मज़ाक है? आप दोनों एक-दूसरे पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं! ये सोसाइटी मीटिंग है, कोई कोर्ट नहीं!"
"आंटी! ये हिटलर ही है जो..." माया ने शुरू किया।
"मैडम, आप अपनी हद में रहिए!" अर्जुन ने गुस्से में कहा। "मुझे लगता है कि आपको यहाँ रहना ही नहीं चाहिए।"
"आपको क्या लगता है? आप कौन होते हैं मुझे बताने वाले कि मैं कहाँ रहूँगी और कहाँ नहीं?" माया ने आँखें तरेरीं।
हॉल में हंगामा मच गया। कुछ लोग हँस रहे थे, कुछ अपनी सीट पर असहज महसूस कर रहे थे। शर्मा आंटी ने अपनी डायरी मेज़ पर पटकी।
"बस! बहुत हो गया!" शर्मा आंटी ने लगभग चिल्लाते हुए कहा। "मुझे समझ नहीं आता कि आप दोनों को क्या चाहिए। आप दोनों बड़े हो चुके हैं, बच्चे नहीं हैं!"
"अगर ये बच्चे नहीं होते, तो ऐसी हरकतें भी नहीं करते!" एक बूढ़े अंकल ने पीछे से टिप्पणी की।
शर्मा आंटी ने एक गहरी साँस ली। "देखिए, मैं आप दोनों से हाथ जोड़कर कहती हूँ। आप दोनों शांत रहिए। अर्जुन जी, आप अपना काम शांति से कीजिए। और माया जी, आप अपनी प्रैक्टिस ऐसी आवाज़ में कीजिए जिससे किसी को परेशानी न हो।"
"लेकिन आंटी, ये तो..." अर्जुन ने शुरू किया।
"कोई लेकिन नहीं!" शर्मा आंटी ने उसे रोका। "आप दोनों को समझौता करना पड़ेगा। मैं नहीं चाहती कि हमारी सोसाइटी का नाम ख़राब हो। मैं आप दोनों से उम्मीद करती हूँ कि आज के बाद आप दोनों के बीच कोई झगड़ा नहीं होगा।"
माया और अर्जुन ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा। उनकी आँखों में गुस्सा अभी भी बरकरार था।
"ठीक है, आंटी।" माया ने reluctantly कहा। "मैं कोशिश करूँगी।"
"और आप, मिस्टर अर्जुन?" शर्मा आंटी ने पूछा।
अर्जुन ने गहरी साँस ली। "ठीक है, शर्मा आंटी। मैं भी कोशिश करूँगा।" उसे पता था कि यह सिर्फ़ एक औपचारिकता थी। उनके बीच का झगड़ा सुलझने वाला नहीं था।
मीटिंग ख़त्म हुई। लोग धीरे-धीरे हॉल से बाहर निकलने लगे। माया और अर्जुन भी उठे। वे एक-दूसरे से दूर-दूर रहे, लेकिन उनकी आँखें एक-दूसरे पर टिकी हुई थीं। उन्हें लगा कि शर्मा आंटी ने उन्हें और भी ज़्यादा चिढ़ा दिया था। यह मीटिंग झगड़ा सुलझाने के बजाय, एक और बड़े झगड़े की शुरुआत बन गई थी।
जैसे ही वे हॉल से बाहर निकले, शर्मा आंटी ने अर्जुन को रोका। "अर्जुन जी! मुझे लगता है कि आप दोनों को एक-दूसरे को समझने की ज़रूरत है। माया जी बहुत अच्छी लड़की है, बस थोड़ी... ज़िंदादिल है।" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
अर्जुन ने सिर हिलाया, उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। "ठीक है, आंटी।"
माया भी पास से गुज़री। शर्मा आंटी ने उसे भी रोका। "माया बेटा! अर्जुन जी भी बहुत अच्छे हैं। बस थोड़े शांत रहते हैं। तुम दोनों की जोड़ी... मतलब, तुम दोनों को दोस्ती कर लेनी चाहिए।"
माया और अर्जुन ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा। दोस्ती? उनका दिमाग चकरा गया। दोस्ती तो दूर, वे तो एक-दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते थे। शर्मा आंटी के चेहरे पर एक आशावादी मुस्कान थी, जैसे उन्होंने कोई बड़ा तीर मार लिया हो। लेकिन माया और अर्जुन को पता था कि यह 'पड़ोसी-वॉर' अभी दूर तक जाने वाली थी।
Chapter 13
सोसाइटी मीटिंग ख़त्म हो चुकी थी। शर्मा आंटी ने भले ही शांति और सद्भाव का पाठ पढ़ाया हो, लेकिन माया और अर्जुन के बीच की खाई और गहरी हो चुकी थी। वे दोनों एक-दूसरे से दूर-दूर रहते हुए, गुस्से में हॉल से बाहर निकले। उनके चेहरे पर वही पुरानी चिढ़न साफ़ दिखाई दे रही थी।
"ये क्या मीटिंग थी? बस मेरा टाइम बर्बाद किया।" माया ने हॉल से बाहर निकलते ही बड़बड़ाया। "और वो हिटलर... उसे तो जैसे कुछ सुनना ही नहीं है।"
अर्जुन ने उसकी बात सुनी, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह बस तेज़ी से लिफ़्ट की ओर बढ़ा। उसका दिमाग अब भी सुबह वाले केले के छिलके और माया की खुली चुनौती पर अटका हुआ था। 'ये लड़की तो जानबूझकर मुझे तंग कर रही है।' उसने मन ही मन सोचा। 'और मेरी ज़रूरी मीटिंग से ध्यान हटा रही है। मुझे ‘द घोस्ट’ पर ध्यान केंद्रित करना है, न कि इस ड्रामा क्वीन पर।'
लिफ़्ट का दरवाज़ा खुला। अर्जुन अंदर जाने ही वाला था कि तभी माया भी तेज़ी से चलकर वहाँ पहुँच गई। एक पल के लिए दोनों रुके, एक-दूसरे को घूरा। लिफ़्ट में केवल वही दोनों थे। अर्जुन को लगा जैसे यह कोई क़ैदखाना हो, और माया उसकी सबसे बड़ी सज़ा।
अर्जुन ने एक गहरी साँस ली और लिफ़्ट के अंदर चला गया। माया भी उसके बाद अंदर आई। उसने बटन दबाया – अपने और अर्जुन, दोनों के फ्लोर के लिए। लिफ़्ट का दरवाज़ा बंद हो गया। लिफ़्ट में एक अजीब सी चुप्पी छा गई, जो उनके बीच की खामोश जंग को और भी बढ़ा रही थी।
माया ने अर्जुन की तरफ़ देखा। वह सीधा खड़ा था, उसकी नज़रें सामने वाले दरवाज़े पर टिकी थीं, जैसे कि माया वहाँ मौजूद ही न हो। उसका चेहरा हमेशा की तरह गंभीर और भावहीन था। माया के दिमाग में एक शैतानी विचार आया। 'मीटिंग में तो मैं उसकी शिकायत कर नहीं पाई, लेकिन अब! इसे और परेशान करती हूँ। ये बड़ा ही बोरिंग और असामाजिक इंसान है। देखता हूँ हँसेगा कैसे नहीं!'
उसने अपने चेहरे पर एक शरारती मुस्कान लाई और अर्जुन की तरफ़ मुड़कर बोली, "मिस्टर हिटलर, आप जानते हैं, आज मीटिंग में मुझे एक बात का बड़ा अफ़सोस हुआ।"
अर्जुन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह बस आँखें गड़ाए सामने देखता रहा।
माया ने अपनी बात जारी रखी, "मुझे लगा था कि आप कम से कम आज तो मुस्कुराएँगे, या अपनी बात रखेंगे। लेकिन आप तो बस अपनी पुरानी सीडी ही चला रहे थे – 'मुझे शांति चाहिए, मुझे काम करना है।' उफ़्फ़! कितनी बोरिंग लाइफ़ है आपकी!"
अर्जुन ने एक पल के लिए उसे देखा, उसकी आँखों में वही पुरानी चिढ़न थी, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं।
माया ने जानबूझकर अपनी आवाज़ थोड़ी ऊँची की। "ख़ैर, आपको हँसते हुए देखना तो असंभव है। लेकिन मैं आपको एक बात बताऊँ? हँसना सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है।"
अर्जुन ने अपनी आँखें हल्की सी घुमाईं, जैसे कह रहा हो – 'अब यह क्या शुरू हो गया?'
माया ने अपनी बात को और नाटकीय बनाते हुए कहा, "सुनिए! आपको एक चुटकुला सुनाऊँ? मेरा पसंदीदा! मेरे थिएटर ग्रुप में भी सब इसे सुनकर हँस-हँसकर लोटपोट हो जाते हैं।"
अर्जुन ने उसे एक ठंडी, बेअसर नज़र से देखा, जैसे वह किसी मशीन से बात कर रही हो।
माया ने हार नहीं मानी। उसने अपनी आवाज़ में उत्साह भरा। "अच्छा, तो सुनो! एक बार एक आदमी की शादी होने वाली होती है। वो बड़ा परेशान होता है, क्योंकि उसे अपने बाल बिलकुल पसंद नहीं होते। गंजा हो रहा होता है। वो अपने दोस्त से कहता है, 'यार, मैं अपनी शादी में कैसे जाऊँगा? मेरे तो बाल ही नहीं हैं। लोग क्या कहेंगे?'"
माया रुकी, अर्जुन की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगी। अर्जुन अभी भी उसी भावहीन चेहरे के साथ खड़ा था, जैसे उसने कुछ सुना ही न हो।
माया थोड़ी झुँझलाई, लेकिन फिर उसने अपने गले को साफ़ किया और आगे बोली, "तो उसका दोस्त कहता है, 'अरे, इसमें क्या परेशानी है? तुम तो कह देना कि तुम तो बस 'बाल-बाल' बच गए थे शादी से!'"
माया ने अपना मुँह खोला और ज़ोर से हँसी। उसकी हँसी की आवाज़ लिफ़्ट की दीवारों में गूँज उठी। "हा हा हा! देखा? 'बाल-बाल' बच गए! है न मज़ेदार?"
अर्जुन ने उसे एक पल के लिए देखा। उसकी आँखों में कोई चमक नहीं थी, न ही उसके होंठों पर कोई मुस्कान। वह बस उसे एक अजीब से प्राणी की तरह देख रहा था, जिसने अभी-अभी कोई बहुत ही बेवकूफ़ाना हरकत की हो। उसकी तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई – न हँसी, न मुस्कान, न गुस्सा, बस एक खाली, ठंडी नज़र।
माया की हँसी धीरे-धीरे फीकी पड़ गई। "क्या हुआ? हँसे नहीं आप? ये इतना मज़ेदार चुटकुला है।"
अर्जुन ने पलकें झपकीं, जैसे वह अब भी इंतज़ार कर रहा हो कि उसे इस चुटकुले का मर्म समझ आए। "चुटकुला था?" उसने धीमी, लगभग मोनोटोन आवाज़ में कहा।
"हाँ! बिलकुल चुटकुला था!" माया झुँझलाई। "आपको हँसी नहीं आई? क्या बात है? आपके सेंस ऑफ ह्यूमर को क्या हो गया है? या आप जानबूझकर हँस नहीं रहे हैं?"
अर्जुन ने सिर हिलाया। "मुझे हँसी नहीं आई।" उसकी आवाज़ सपाट थी।
माया ने अपने सिर पर हाथ मारा। "हे भगवान! आप तो पत्थर हैं! आपको क्या कोई इमोशन भी है? क्या आप कभी हँसते हैं? क्या आप कभी दुखी होते हैं? या बस एक ही एक्सप्रेशन के साथ घूमते रहते हैं?"
अर्जुन ने उसे देखा। "मुझे अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना होता है। मेरे पास इन 'इमोशन' के लिए समय नहीं है।"
"ओह माय गॉड! आप इतने बोरिंग कैसे हो सकते हैं?" माया ने लगभग चिल्लाते हुए कहा। "क्या आप जानते हैं कि हँसने के कितने फ़ायदे होते हैं? नहीं जानते होंगे। मुझे ही बताना पड़ेगा, क्योंकि आप तो किसी डॉक्टर के पास भी नहीं जाते होंगे।"
अर्जुन ने उसे एक और ठंडी नज़र दी। वह इस लिफ़्ट से जितनी जल्दी हो सके बाहर निकलना चाहता था। उसे लगा कि वह किसी टॉर्चर चेंबर में फँस गया है। उसकी आँखों के सामने 'द घोस्ट' की फ़ाइलें और मिशन की रणनीतियाँ घूम रही थीं, और यहाँ ये लड़की उसे हँसने के फ़ायदे बता रही थी!
माया ने अपनी बात शुरू की, बिलकुल एक लेक्चर की तरह। "देखिए मिस्टर हिटलर, हँसना एक थेरेपी है। ये साइंटिफ़िकली प्रूव्ड है।" उसने अपने हाथों को हिलाते हुए कहा, जैसे कोई प्रोफेसर लेक्चर दे रहा हो। "जब आप हँसते हैं ना, तो आपके शरीर में एंडोर्फिन रिलीज़ होते हैं। ये हार्मोन आपके मूड को अच्छा करते हैं, आपको ख़ुश महसूस कराते हैं।"
अर्जुन ने लंबी साँस ली और लिफ़्ट के नंबरों को देखने लगा। 'चौथी मंज़िल, चौथी मंज़िल, जल्दी आ जा।'
"सिर्फ़ एंडोर्फिन ही नहीं, हँसना आपके स्ट्रेस को कम करता है।" माया ने अपनी बात जारी रखी। "आप तो हमेशा इतने तनाव में रहते हैं। आपको तो दिन में कम से कम दस बार हँसना चाहिए। पता है, एक स्टडी में पाया गया है कि जो लोग ज़्यादा हँसते हैं, उनकी उम्र लंबी होती है। आप तो लगता है जल्दी बुढ़ापे की तरफ़ बढ़ रहे हैं।"
अर्जुन ने उसे एक तिरछी नज़र से देखा। उसकी आँखों में एक पल के लिए झुँझलाहट आई, लेकिन उसने उसे तुरंत कंट्रोल कर लिया।
"और हाँ! हँसना आपके इम्यून सिस्टम को भी मज़बूत करता है।" माया ने उँगली उठाई। "आपकी बॉडी की डिज़ीज़ फ़ाइटिंग सेल्स बढ़ जाती हैं। मतलब, आप कम बीमार पड़ते हैं। अब आपको हर छोटी-मोटी बीमारी के लिए अस्पताल भागना नहीं पड़ेगा।"
अर्जुन ने मन ही मन सोचा, 'अगर यह लड़की रोज़ सुबह मुझ पर हमले करती रही, तो मुझे हर दिन अस्पताल भागना पड़ेगा। उसके हँसने से मेरे शरीर में कुछ नहीं बढ़ने वाला, सिर्फ़ मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ेगा।'
"सामाजिक रूप से भी हँसना बहुत ज़रूरी है।" माया ने अब अपनी आवाज़ में थोड़ा और ज्ञान भरा। "जब आप हँसते हैं, तो लोग आपसे कनेक्ट करते हैं। आपकी पर्सनैलिटी ख़ुशनुमा लगती है। आप ऐसे बोरिंग से मुँह बनाकर घूमेंगे, तो कोई आपसे बात भी नहीं करेगा। क्या आपको दोस्त बनाने का मन नहीं करता? क्या आप सोशल नहीं होना चाहते?"
अर्जुन के लिए यह सब एक टॉर्चर जैसा था। उसे लगा कि उसके कान से ख़ून निकल जाएगा। एक मिलिट्री इंटेलिजेंस ऑफ़िसर को एक संघर्षरत एक्ट्रेस हँसने के फ़ायदे बता रही थी, वो भी एक लिफ़्ट में! उसके काम में कभी 'हँसी' या 'सोशल होना' जैसे शब्द नहीं आते थे। उसे सिर्फ़ मिशन, गोपनीयता और ख़तरा पता था।
"एक रिसर्च में ये भी कहा गया है कि हँसने से ब्रेन पावर बढ़ती है।" माया ने अपनी बात ख़त्म की। "आपको तो लगता है कि आप बहुत स्मार्ट हैं, लेकिन अगर आप हँसेंगे तो और भी स्मार्ट हो जाएँगे। शायद तब आपको ये भी समझ में आएगा कि मेरा म्यूज़िक क्यों ज़रूरी है और मेरा ड्रामा क्यों ज़रूरी है।"
ठीक उसी पल, लिफ़्ट "डिंग!" की आवाज़ के साथ उनके फ्लोर पर रुक गई। लिफ़्ट का दरवाज़ा खुला।
अर्जुन ने एक सेकंड भी बर्बाद नहीं किया। जैसे ही दरवाज़ा खुला, वह तेज़ी से बाहर निकला, जैसे किसी जाल से आज़ाद हुआ हो। वह बिना एक पल रुके, अपने फ़्लैट की ओर भागा।
माया मुस्कुराई। "भाग गए मिस्टर हिटलर! अभी तो मैंने आपको हँसने का पूरा कोर्स भी नहीं करवाया था!"
अर्जुन ने अपने फ़्लैट का दरवाज़ा खोला और अंदर घुस गया। उसने दरवाज़ा बंद किया और दीवार से टेक लगाकर खड़ा हो गया। उसने एक लंबी साँस ली, जैसे वह अभी-अभी किसी ख़तरनाक मिशन से लौटा हो। 'इससे तो अच्छा था कि 'द घोस्ट' से सीधी लड़ाई हो जाती।' उसने मन ही मन सोचा। 'ये लड़की मुझे पागल कर देगी!'
माया अपने फ़्लैट के दरवाज़े पर खड़ी थी, उसके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान थी। उसने अर्जुन के भागने का मज़ा लिया। उसे इस बात से संतुष्टि मिली कि उसने अर्जुन को कम से कम थोड़ा सा तो परेशान किया। उसकी नज़र अब भी अर्जुन के दरवाज़े पर थी, जो अब बंद हो चुका था। वह जानती थी कि यह 'पड़ोसी-वॉर' अभी और मज़ेदार होने वाली है।
Chapter 14
अर्जुन अपने फ़्लैट में घुसकर दरवाज़ा बंद कर चुका था, लेकिन लिफ़्ट में माया के "हँसने के फ़ायदे" वाले लेक्चर की गूँज अभी भी उसके कानों में थी। उसने दीवार से टेक लगा रखी थी, अपनी आँखें बंद कर ली थीं, जैसे वह अपने अंदर के तूफ़ान को शांत करने की कोशिश कर रहा हो। उसका माथा सिकुड़ा हुआ था। 'इतना शोर, इतना ड्रामा... ये लड़की मुझे चैन से काम करने नहीं देगी,' उसने मन ही मन सोचा। 'मेरा मिशन, मेरी प्राथमिकताएँ... और ये सब उस पर भारी पड़ रहा है।'
उसने गहरी साँस ली और अपने स्टडी टेबल की तरफ़ बढ़ा। मेज़ पर उसके लैपटॉप के पास एक सुरक्षित संचार उपकरण (secure communication device) रखा हुआ था। यह कोई साधारण लैपटॉप नहीं था, बल्कि मिलिट्री इंटेलिजेंस के लिए ख़ासतौर पर डिज़ाइन किया गया एक उच्च-तकनीकी गैजेट था, जिससे वह अपने हैंडलर से सीधे संपर्क में रह सकता था। उसे अब ख़ुद को शांत करना था, क्योंकि उसका अगला काम बेहद महत्वपूर्ण था। 'भावनाएँ एक सैनिक का सबसे बड़ा दुश्मन होती हैं,' उसने ख़ुद को याद दिलाया, 'और इस मिशन में मुझे पूरी तरह से भावना-रहित होना होगा।'
उसने लैपटॉप खोला, अपनी उँगलियों से तेज़ी से कुछ कोड्स टाइप किए, और स्क्रीन पर एक सुरक्षित लिंक सक्रिय हो गया। कुछ ही पल में, उसके हैंडलर, कर्नल विक्रम का चेहरा स्क्रीन पर दिखाई दिया। कर्नल का चेहरा गंभीर था, उनकी आँखों में चिंता साफ़ झलक रही थी।
"जय हिंद, मेजर।" कर्नल विक्रम ने सीधे मुद्दे पर आते हुए कहा। उनकी आवाज़ में तेज़ी और गंभीरता थी।
"जय हिंद, सर।" अर्जुन ने सम्मानपूर्वक जवाब दिया। "कोई अपडेट है, सर?"
"हाँ, मेजर। एक बहुत ही महत्वपूर्ण अपडेट है, और ख़ुशक़िस्मती से नहीं।" कर्नल ने अपनी मेज़ पर रखी कुछ फ़ाइलों को देखा। "हमें इंटेल मिला है कि 'द घोस्ट' फिर से सक्रिय हो गया है। और इस बार, वह पहले से कहीं ज़्यादा बेताब है।"
अर्जुन के चेहरे पर तनाव और गहरा हो गया। 'द घोस्ट' उनका सबसे मुश्किल टारगेट था। एक चालाक और निर्दयी विदेशी जासूस, जिसकी पहचान अभी तक किसी को नहीं पता थी। वह पिछले कुछ महीनों से उनकी नाक के नीचे से काम कर रहा था, और अब वह एक बहुत ही ख़तरनाक डिवाइस की तलाश में था।
"उसकी हलचलें बढ़ गई हैं, मेजर। लगता है उसे किसी तरह पता चल गया है कि हमारी खोई हुई डिवाइस मुंबई में ही कहीं है।" कर्नल विक्रम ने स्क्रीन पर एक मैप दिखाया, जिस पर मुंबई के कुछ इलाक़े लाल घेरे में थे। "हमें शक है कि वह शहर में घुस चुका है और अब सीधे उस डिवाइस की तलाश में है।"
अर्जुन ने मैप को ध्यान से देखा। 'द घोस्ट' द्वारा खोजी जा रही डिवाइस कोई साधारण चीज़ नहीं थी। वह एक अत्याधुनिक एन्क्रिप्शन पेन ड्राइव थी, जिसमें देश की कुछ सबसे महत्वपूर्ण ख़ुफ़िया जानकारी थी। अगर वह 'द घोस्ट' के हाथ लग जाती, तो देश की सुरक्षा को गंभीर ख़तरा हो सकता था। अर्जुन का मिशन सिर्फ़ 'द घोस्ट' को पकड़ना नहीं था, बल्कि उस डिवाइस को उससे पहले सुरक्षित करना था।
"हमें उस पेन ड्राइव की सटीक लोकेशन नहीं पता, सर। हमारे पिछले एजेंट, जो इस केस पर काम कर रहे थे, वे पकड़े जाने से पहले बस इतना ही बता पाए थे कि उन्होंने उसे मुंबई में कहीं सुरक्षित जगह पर छिपा दिया है।" अर्जुन ने कहा, उसकी आवाज़ में चिंता थी।
"हाँ, मेजर। यही हमारी सबसे बड़ी चुनौती है।" कर्नल ने कहा। "हमें शक है कि उसने उसे किसी आम जगह पर छिपाया होगा, ताकि किसी को शक न हो। तुम्हारा काम है उसे 'द घोस्ट' से पहले ढूंढना। और 'द घोस्ट' की हर हरकत पर नज़र रखना। हमें उसे रंगे हाथों पकड़ना होगा।"
"मेरी सर्विलांस टीम और उपकरण तैयार हैं, सर। मैं शहर के हर कोने पर नज़र रख रहा हूँ।" अर्जुन ने कहा, लेकिन उसके दिमाग में लिफ़्ट वाला चुटकुला और माया की बेवक़ूफ़ाना बातें घूम रही थीं। उसे लगा जैसे उसका ध्यान बँट रहा था।
कर्नल ने उसे देखा। "मेजर, यह एक हाई-स्टेक मिशन है। तुम्हें पूरी तरह से केंद्रित रहना होगा। कोई भी लापरवाही, कोई भी डिस्ट्रैक्शन भारी पड़ सकता है।"
"जी सर। मैं समझता हूँ।" अर्जुन ने कहा, लेकिन उसे पता था कि वह अपनी बात पर कितना खरा उतर रहा था। माया की मौजूदगी उसके लिए एक बहुत बड़ा डिस्ट्रैक्शन बन चुकी थी।
"ठीक है, मेजर। तुम्हें अपने सर्विलांस उपकरण को अपग्रेड करने की ज़रूरत होगी। 'द घोस्ट' बहुत चालाक है। तुम्हें अपनी आँखों और कानों को और तेज़ करना होगा। हम तुम्हें कुछ नए उपकरण भेज रहे हैं। वे आज रात तक तुम्हारे पास पहुँच जाएँगे।" कर्नल ने निर्देश दिए।
"ओके, सर। मैं तैयार हूँ।" अर्जुन ने कहा।
"अच्छा, मेजर। गुड लक। कॉल एंड कर रहा हूँ।" कर्नल ने कहा और स्क्रीन पर उनका चेहरा ग़ायब हो गया।
स्क्रीन पर सिर्फ़ अर्जुन का अपना अक्स दिखाई दे रहा था। उसने एक लंबी साँस ली, लैपटॉप बंद किया, और उठकर अपने कमरे में टहलने लगा। 'द घोस्ट' वापस आ गया था, और अब वह उसकी नाक के नीचे ही कहीं होगा। उसे अपनी हर इंद्रिय को सक्रिय रखना था। उसे हर छोटी से छोटी चीज़ पर ध्यान देना था, हर आवाज़ को सुनना था, हर हलचल को नोटिस करना था। लेकिन कैसे? जब उसकी पड़ोसन ही उसकी पूरी दुनिया में भूचाल ला चुकी थी।
उसे याद आया कि कल सुबह माया ने कैसे 'नहीं! तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकते!' कहकर उसे डरा दिया था। फिर कैसे उसने जानबूझकर केले का छिलका रखा। और अभी लिफ़्ट में कैसे वह उसे हँसने के फ़ायदे बता रही थी! अर्जुन की आदत थी हर चीज़ को नियंत्रित करने की, हर स्थिति को अपने हिसाब से चलाने की। लेकिन माया नाम की यह लड़की उसके नियंत्रण से पूरी तरह बाहर थी। वह तो एक अनियंत्रित तूफ़ान थी, जो उसकी शांति को हर पल भंग कर रहा था।
उसे अपने सर्विलांस उपकरण को अपग्रेड करना था, ताकि वह 'द घोस्ट' की हर चाल को पकड़ सके। लेकिन अगर उसकी अपनी ही बिल्डिंग में इतना शोर-शराबा होगा, अगर उसकी पड़ोसन ही उसकी हर रात की नींद और दिन के चैन को हराम कर देगी, तो वह अपना काम कैसे कर पाएगा? उसे हर समय सतर्क रहना था, लेकिन माया की मौजूदगी उसे हमेशा अपने गार्ड को नीचे करने पर मजबूर कर रही थी।
अर्जुन बालकनी की ओर गया। शाम ढल रही थी। सूरज ढलने से पहले की नारंगी रोशनी आसमान में फैल रही थी। उसने अपनी बालकनी से नीचे देखा। सोसाइटी के बच्चे खेल रहे थे। कुछ पड़ोसी शाम की चाय पी रहे थे। और फिर उसकी नज़र बगल वाली बालकनी पर पड़ी।
माया वहाँ खड़ी थी। उसने एक पुराना सा टी-शर्ट और पजामा पहन रखा था। वह अपने छोटे-छोटे गमलों में पानी दे रही थी। वह पानी डालते हुए धीरे-धीरे गुनगुना रही थी, उसके होंठ हिल रहे थे। कोई पुराना फ़िल्मी गाना था। उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन अर्जुन उसे साफ़ सुन सकता था। वह बिलकुल बेफ़िक्र थी, जैसे उसे किसी चीज़ की परवाह ही न हो। उसके बाल थोड़े बिखरे हुए थे, और सूरज की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी, जिससे वह और भी ज़्यादा बेफ़िक्र और ख़ुश लग रही थी। वह कभी किसी फूल को छूती, कभी किसी पत्ती को सहलाती, और गुनगुनाती रहती। उसकी आँखें चमक रही थीं।
अर्जुन उसे देखता रहा। 'यह लड़की, यह ड्रामा क्वीन, जो हर पल कुछ न कुछ नया करती रहती है, यह मेरे मिशन के लिए एक बड़ा ख़तरा बनती जा रही है।' उसने सोचा। पहले तो वह सिर्फ़ एक झुँझलाहट थी, लेकिन अब उसे डर लगने लगा था कि उसकी ये हरकतें कहीं उसके कवर को एक्सपोज न कर दें। उसका 'आई.टी. प्रोफ़ेशनल' वाला कवर बहुत नाज़ुक था, और माया जैसी ज़िंदादिल और बेफ़िक्र लड़की उसे कभी भी तोड़ सकती थी।
अगर 'द घोस्ट' को ज़रा भी शक हो गया कि अर्जुन कोई आम आदमी नहीं है, तो वह सतर्क हो जाएगा, और उसे पकड़ना और भी मुश्किल हो जाएगा। और माया की हर हरकत, उसका हर शोर, उसकी हर बातचीत, उसके हर इमोशन का प्रदर्शन, इस ख़तरे को और बढ़ा रहा था। अर्जुन को पता था कि उसे इस समस्या से निपटना होगा। उसे माया को शांत करना होगा, या कम से कम उसे अपने मिशन से दूर रखना होगा। लेकिन कैसे? यह लड़की तो 'शांत' होने का नाम ही नहीं लेती थी!
अर्जुन ने एक गहरी साँस ली, उसकी आँखों में एक नई चिंता और दृढ़ता थी। 'यह लड़की सिर्फ़ एक पड़ोसन नहीं है। यह मेरे मिशन के लिए एक बड़ा ख़तरा बन सकती है। मुझे इस पर नज़र रखनी होगी, और इसे अपने रास्ते से दूर रखना होगा। यह अब सिर्फ़ एक 'पड़ोसी-वॉर' नहीं रही, यह मेरे मिशन का एक बड़ा हिस्सा बन चुकी है।' उसकी मुट्ठियाँ कस गईं।
Chapter 15
अर्जुन अपने फ़्लैट के अंदर आ चुका था, लेकिन उसकी आँखों के सामने अभी भी बगल वाली बालकनी पर खड़ी माया का अक्स घूम रहा था। वह अपने छोटे-छोटे पौधों को पानी दे रही थी, गुनगुना रही थी, बिलकुल बेफ़िक्र। अर्जुन ने उसे अपने मिशन के लिए एक बड़ा ख़तरा माना था, एक ऐसा तूफ़ान जो उसके हर पल को भंग कर रहा था। लेकिन उस पल, उसे उसमें एक अजीब सी शांति दिखी थी, एक ऐसी शांति जो उसकी खुद की ज़िंदगी में दुर्लभ थी। यह शांति ही उसे और ज़्यादा परेशान कर रही थी। ‘ये लड़की कभी शांत नहीं हो सकती। ये ज़रूर कोई नया ड्रामा कर रही होगी,’ उसने सोचा था, लेकिन कहीं न कहीं उसके मन में एक हल्का सा संदेह था।
वह अपने काम में लौट गया था। देर रात तक उसने अपने उपकरणों को अपग्रेड किया, 'द घोस्ट' की हर संभावित चाल का विश्लेषण किया। उसकी नींद कम हुई थी, लेकिन उसकी सतर्कता बढ़ गई थी। उसकी हर नस में मिशन की ऊर्जा दौड़ रही थी। उसे पता था कि 'द घोस्ट' कहीं आस-पास ही मंडरा रहा था, और उसे हर पल चौकन्ना रहना था। इस चौकन्नेपन में माया का बेवजह का शोर और ड्रामा उसके लिए एक घातक डिस्ट्रैक्शन बन सकता था।
अगली सुबह, हमेशा की तरह, अर्जुन अपने फ़्लैट में अपने रूटीन में व्यस्त था। वह अपनी सुबह की रिपोर्ट तैयार कर रहा था, अपने हेडक्वार्टर से आने वाले संदेशों को डीकोड कर रहा था। तभी, दीवार के पार से, उसे एक दबी हुई सी चीख़ सुनाई दी।
"यस! ओहो हो हो हो! यस!"
अर्जुन का हाथ कीबोर्ड पर थम गया। उसने आँखें सिकोड़ीं। 'फिर से शुरू हो गई ये ड्रामा क्वीन।' उसने सोचा। पिछली रात की थकावट और आने वाले ख़तरे के तनाव के बीच, यह आवाज़ उसके धैर्य की अंतिम परीक्षा ले रही थी। वह उठने वाला था कि तभी माया की आवाज़ फिर आई, इस बार थोड़ी और साफ़।
"मैं... मैं... विश्वास नहीं कर सकती! सच में? यह सच है?"
उसकी आवाज़ में इस बार गुस्सा या ड्रामा नहीं, बल्कि एक अजीब सा उत्साह और ख़ुशी थी। अर्जुन ने कान लगाए।
"सर, आप मज़ाक तो नहीं कर रहे? सीरियसली?" माया की आवाज़ उत्साहित थी। "राजवर्धन फ़िल्म्स? और आप मेरा नाम ले रहे हैं? ओहो! थैंक यू, थैंक यू सो मच, सर! हाँ, हाँ, मैं बिलकुल आऊँगी। कब? आज ही? अरे वाह! आज ही दोपहर में? ओके, सर, डन! आई विल बी देयर। थैंक यू, सर! बहुत-बहुत थैंक यू!"
फोन कटने की आवाज़ आई, और उसके बाद माया के फ़्लैट से एक तेज़ चीख़ गूँजी, "यसsssss!" यह ख़ुशी की चीख़ थी, इतनी ज़ोर की कि अर्जुन को लगा जैसे उसकी दीवार में दरार आ जाएगी।
अर्जुन ने सिर हिलाया। 'अब क्या मिल गया इसे?' वह फिर से अपने काम में लगने वाला था, लेकिन अंदर से माया के उछलने-कूदने की आवाज़ें आ रही थीं। 'पागल लड़की!' उसने सोचा।
माया ख़ुशी से हवा में उछल रही थी। उसे अपनी कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। राजवर्धन फ़िल्म्स! मुंबई के सबसे बड़े प्रोडक्शन हाउसेस में से एक! और उन्होंने उसे ऑडिशन के लिए बुलाया था! यह उसके लिए सिर्फ़ एक ऑडिशन नहीं था, यह उसका सपना था, उसकी मेहनत का फल था, उसके संघर्ष का इनाम था।
"ओह माय गॉड! ओह माय गॉड!" वह पूरे कमरे में कूदती रही। उसने अपने पुराने, घिसे हुए सोफ़े पर छलाँग लगाई, फिर वहाँ से उतरी, और अपने आईने के सामने जा खड़ी हुई।
"माया वर्मा! क्या तू सच में इतनी लकी है?" उसने ख़ुद से पूछा, उसकी आँखों में आँसू थे – ख़ुशी के। "यह मौका... यह मेरी ज़िंदगी बदल देगा। यह तो मेरा करियर का सबसे बड़ा मौका है!"
वह हँसी। "मम्मी! डैडी! देख रहे हो? तुम्हारी बेटी ने कर दिखाया! राजवर्धन फ़िल्म्स! अब कोई नहीं कहेगा कि मैं सिर्फ़ मोहल्ले की नुक्कड़ नाटकों में एक्टिंग करती हूँ।" उसकी आवाज़ भर्राई हुई थी। उसने अपनी आँखों से आँसू पोंछे, और फिर अपने चेहरे पर एक बड़ा सा स्माइल लाई।
"ओके, ओके, माया! चिल! अब एक्टिंग स्किल्स दिखाने का टाइम है, नाटक करने का नहीं!" उसने ख़ुद को समझाया। "शांत हो जा। अब तैयारी करनी है।"
वह तुरंत अपने छोटे से बग़ल वाले कमरे में भागी, जहाँ उसने अपने सारे थिएटर के पोस्टर और कुछ पुराने अवॉर्ड्स लगा रखे थे। वह चीज़ें उसके संघर्ष के दिनों की याद दिलाती थीं, और उसे हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती थीं। उसने अपनी अलमारी खोली।
"आज क्या पहनूँ?" वह बड़बड़ा रही थी। "कुछ ऐसा, जो प्रोफेशनल लगे, लेकिन मेरी पर्सनैलिटी को भी दिखाए। कुछ ऐसा जो कहे – मैं यहाँ हूँ, और मैं सुपरस्टार बनने आई हूँ!"
उसने अपनी सारी ड्रेस उलट-पलट दीं। एक नीली फ़्रॉक, एक लाल साड़ी, कुछ टॉप और जीन्स। नहीं! यह सब कुछ ख़ास नहीं लग रहा था। यह उसके लिए एक बहुत बड़ा मौका था, वह कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती थी। आख़िरकार, उसकी नज़र एक हल्की बैंगनी रंग की कॉटन की साड़ी पर पड़ी। यह साड़ी उसकी मम्मी ने उसे दी थी जब वह मुंबई आ रही थी। "ये तुम्हारा लकी चार्म है, बेटी," मम्मी ने कहा था।
"यस! ये सही है!" उसने ख़ुशी से साड़ी उठाई। "यही पहनूँगी। ये सिर्फ़ कपड़ा नहीं, ये मेरी मम्मी का आशीर्वाद है।"
उसने तुरंत साड़ी निकाली, और उसे बेड पर रख दिया। फिर वह अपने डायलॉग्स की फ़ाइलें निकालने लगी। रात भर की तैयारी करनी थी। कोई कमी नहीं। उसने अपने अभिनय गुरु के सारे नोट्स निकाले।
"ओके, सीन नंबर 3," उसने ख़ुद से कहा। "एग्रेसिव, लेकिन वल्नरेबल। अंदर से टूटी हुई, लेकिन बाहर से मज़बूत।"
उसने आईने के सामने खड़े होकर डायलॉग्स की प्रैक्टिस शुरू की। इस बार उसकी आवाज़ थोड़ी धीमी थी, लेकिन उसके इमोशंस उतने ही तेज़ थे।
"तुमने मुझे धोका दिया! मैंने तुम पर इतना भरोसा किया था... और तुमने!" उसकी आँखें भर आईं। फिर उसने तुरंत अपने एक्सप्रेशन बदले। "नहीं! मैं रोऊँगी नहीं! मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं! मैं ख़ुद को साबित करूँगी!"
वह एक के बाद एक सीन की प्रैक्टिस करती रही। कभी वह हँसती, कभी रोती, कभी चिल्लाती, कभी फुसफुसाती। उसका फ़्लैट एक थिएटर स्टेज में बदल चुका था। उसे खाने-पीने की सुध भी नहीं थी। उसके दिमाग में सिर्फ़ ऑडिशन घूम रहा था। उसे लगा जैसे उसकी पूरी ज़िंदगी इस एक ऑडिशन पर टिकी थी।
देर रात हो गई थी। अर्जुन अपने कमरे में 'द घोस्ट' की हरकतों पर नज़र रख रहा था। उसने अपने सर्विलांस सिस्टम को अपग्रेड कर लिया था। अब वह अपनी बालकनी से नीचे भी नज़र रख सकता था, और बिल्डिंग के CCTV फुटेज भी देख सकता था। तभी उसे माया के फ़्लैट से धीमी-धीमी आवाज़ें सुनाई दीं। वह एक डायलॉग बोल रही थी, और फिर कुछ गुनगुना रही थी।
'अब ये क्या कर रही है?' अर्जुन ने सोचा। उसे लगा कि वह रात के इस पहर में भी उसे परेशान करना नहीं छोड़ रही थी। लेकिन जब उसने ध्यान से सुना, तो उसे माया के डायलॉग में एक अजीब सी शिद्दत महसूस हुई। यह उसके रोज़ वाले ड्रामे जैसा नहीं था। इसमें एक गहराई थी, एक जुनून था।
उसने अपने सिस्टम पर माया के फ़्लैट का ऑडियो फीड एक्टिवेट किया। माया की आवाज़ और साफ़ सुनाई दी। वह एक इमोशनल सीन की प्रैक्टिस कर रही थी, और उसकी आवाज़ में दर्द, उम्मीद और दृढ़ता का अजीब मिश्रण था। अर्जुन को पहली बार लगा कि यह लड़की सिर्फ़ ड्रामा नहीं करती, यह एक्टिंग को जीती है। उसे याद आया कि कैसे उसने लिफ़्ट में उसे हँसने के फ़ायदे बताए थे, और कैसे उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी जब वह अपने चुटकुले सुना रही थी।
अर्जुन ने माया की तरफ़ देखा। उसकी बालकनी की लाइट जल रही थी। माया वहाँ खड़ी होकर कुछ डांस मूव्स की प्रैक्टिस कर रही थी, उसके चेहरे पर एकाग्रता थी। वह थकी हुई नहीं लग रही थी, बल्कि ऊर्जा से लबरेज थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे उसे किसी चीज़ का इंतज़ार हो। अर्जुन को यह समझ नहीं आ रहा था कि एक रात पहले तक जो लड़की उसे 'हिटलर' कह रही थी, वह आज इतनी गंभीर और केंद्रित कैसे हो सकती है। उसने एक पल के लिए अपनी आँखों में हल्की सी उत्सुकता देखी, जिसे उसने तुरंत दबा दिया।
सुबह हुई। अर्जुन अपनी रूटीन पर था। उसने चाय बनाई और बालकनी में आकर खड़ा हो गया। उसकी आदत थी सुबह की ख़ामोशी का आनंद लेने की, लेकिन आज उसकी नज़रें माया के फ़्लैट पर टिकी थीं। उसे लगा जैसे आज कुछ अलग होने वाला था।
कुछ देर बाद, माया अपने फ़्लैट से निकली। अर्जुन उसे देखता रह गया। वह आज बिलकुल अलग लग रही थी। उसने वही मम्मी वाली बैंगनी साड़ी पहन रखी थी, जो उस पर ख़ूब फब रही थी। उसके बाल हल्के से कर्ल किए हुए थे, और उसने बहुत हल्का मेकअप कर रखा था, जो उसके चेहरे की ख़ूबसूरती को और बढ़ा रहा था। वह हमेशा की तरह तेज़-तर्रार नहीं दिख रही थी, बल्कि उसके चेहरे पर एक गंभीरता थी, एक आत्मविश्वास था। उसके कदमों में एक अलग ही तेज़ थी, एक ऐसा जुनून जो उसकी आँखों में साफ़ झलक रहा था। उसकी आँखें चमक रही थीं, उनमें एक अजीब सी उम्मीद थी, जैसे वह किसी बड़े युद्ध पर जा रही हो, जिसे वह जीतने के लिए पूरी तरह से तैयार थी।
यह 'ड्रामा क्वीन', 'शोर मचाने वाली पड़ोसन' नहीं थी। यह एक महत्वाकांक्षी कलाकार थी, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी-जान लगा रही थी। अर्जुन ने उसे पहले कभी इस तरह नहीं देखा था। हमेशा शोर, मज़ाक, या शिकायत करती हुई। लेकिन आज उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी, एक ऐसी चमक जो सिर्फ़ सच्ची उम्मीद और दृढ़ संकल्प से आती है। अर्जुन ने उसे बिल्डिंग से बाहर जाते हुए देखा। उसकी हर चाल में एक आत्मविश्वास था, एक विश्वास था कि आज उसका दिन था। अर्जुन के चेहरे पर एक अनाम भाव आया – न झुँझलाहट, न गुस्सा, बल्कि कुछ और, जिसे वह पहचान नहीं पाया। शायद, पहली बार, उसे माया के लिए कोई अलग भावना महसूस हुई थी – सिर्फ़ एक पड़ोसी वाली नहीं, बल्कि एक इंसान वाली, जो अपने सपनों के लिए संघर्ष कर रहा था। वह उसे तब तक देखता रहा जब तक वह बिल्डिंग से ओझल नहीं हो गई।
Chapter 16
माया अपने करियर के सबसे बड़े मौके के लिए पूरे आत्मविश्वास के साथ बिल्डिंग से बाहर निकली थी। सुबह की ताज़ी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, और उसके दिल में सपनों का एक तूफ़ान उमड़ रहा था। बैंगनी रंग की कॉटन की साड़ी में, वह सिर्फ़ एक संघर्षरत कलाकार नहीं, बल्कि एक भविष्य की सितारा लग रही थी। उसने एक ऑटो रिक्शा रोका और 'राजवर्धन फ़िल्म्स' के पते पर जाने को कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उत्तेजना थी। ऑटोवाला भी उसके चेहरे की चमक देखकर मुस्कुरा दिया।
ऑटो की खिड़की से बाहर देखते हुए, माया ने अपने सपने को फिर से जिया। मुंबई की ये सड़के, उसकी ऊँची-ऊँची इमारतें, हमेशा उसे कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित करती थीं। आज, उसे लग रहा था कि उसका इंतज़ार ख़त्म होने वाला था। उसके मन में अपने माता-पिता के चेहरे घूम रहे थे, उनकी उम्मीदें घूम रही थीं। 'आज मैं उन्हें गर्व महसूस कराऊँगी,' उसने ख़ुद से कहा। 'आज माया वर्मा सिर्फ़ एक एक्ट्रेस नहीं बनेगी, आज वह एक पहचान बनाएगी।'
राजवर्धन फ़िल्म्स का ऑफ़िस एक भव्य इमारत में था। माया ने ऑटो से उतरते ही उस ऊँची बिल्डिंग को देखा। शीशे की बनी वह इमारत उसके सपनों जितनी ऊँची लग रही थी। उसने एक गहरी साँस ली और अंदर चली गई। रिसेप्शन पर एक लड़की बैठी थी। माया ने अपना नाम बताया।
"माया वर्मा? ऑडिशन के लिए? हाँ, मैम, आपका नाम लिस्ट में है। प्लीज़, वेटिंग एरिया में बैठिए," रिसेप्शनिस्ट ने उसे एक मुस्कुराते हुए चेहरे से कहा और एक लिफ़्ट की ओर इशारा किया।
माया लिफ़्ट में घुस गई। लिफ़्ट की शीशे की दीवार से उसे पूरा वेटिंग एरिया दिखाई दे रहा था। वहाँ पहले से ही दर्जनों लड़कियाँ बैठी थीं, सब उसी की तरह अपने सपनों को आँखों में लिए। कुछ मॉडल जैसी दिख रही थीं, कुछ थिएटर बैकग्राउंड की थीं, कुछ बिलकुल फ्रेशर। हर चेहरे पर उम्मीद और घबराहट का मिश्रण था। माया को एक पल के लिए घबराहट हुई। 'इतनी कॉम्पिटिशन! क्या मैं इतनी लड़कियों के बीच अपनी जगह बना पाऊँगी?' लेकिन उसने तुरंत इस विचार को झटका दिया। 'नहीं, माया! तू यहाँ सिर्फ़ अपनी जगह बनाने नहीं आई है, तू यहाँ छाने आई है।'
उसने वेटिंग एरिया में एक ख़ाली कुर्सी तलाशी और बैठ गई। अपनी फ़ाइल खोली और अपने डायलॉग्स को फिर से पढ़ने लगी। उसे हर शब्द, हर इमोशन को फिर से महसूस करना था। उसने अपनी आँखों में दृढ़ता लाई। उसने अपने अभिनय गुरु के शब्द याद किए: 'एक्टिंग सिर्फ़ बोलना नहीं है, माया। एक्टिंग महसूस करना है। अगर तुम महसूस करोगी, तो दर्शक भी महसूस करेंगे।'
घंटे बीतते चले गए। एक-एक करके लड़कियाँ अंदर जातीं और कुछ देर बाद बाहर आतीं। कुछ के चेहरे पर मुस्कान होती, कुछ के चेहरे पर उदासी। माया को अपनी बारी का इंतज़ार था। उसका दिल तेज़ धड़क रहा था। उसने एक बोतल से पानी पिया और अपनी साँसों को नियंत्रित करने की कोशिश की।
"माया वर्मा!" एक असिस्टेंट ने दरवाज़े से झाँक कर आवाज़ दी।
माया ने एक गहरी साँस ली। "यस!" उसने कहा और उठ खड़ी हुई। उसके पैरों में थोड़ी सी कमज़ोरी महसूस हुई, लेकिन उसने उसे अनदेखा कर दिया। उसने मुस्कुराते हुए असिस्टेंट की तरफ़ देखा और अंदर चली गई।
अंदर एक बड़ा सा कमरा था। कमरे के एक कोने में एक बड़ी सी कैमरा लगी थी, और उसके सामने एक मेज़ पर दो लोग बैठे थे। एक अधेड़ उम्र के आदमी थे, जो कास्टिंग डायरेक्टर लग रहे थे, और उनके बगल में एक युवा असिस्टेंट बैठी थी, जो नोट्स ले रही थी। कास्टिंग डायरेक्टर का चेहरा गंभीर था, उनकी आँखों में कोई भावना नहीं थी। वह सिर्फ़ एक दर्शक की तरह बैठे थे, जो सैकड़ों कलाकारों को देख-देखकर थक चुके थे।
"आइए, माया। बैठिए," कास्टिंग डायरेक्टर ने अपनी उँगली से सामने रखी कुर्सी की ओर इशारा किया। उनकी आवाज़ में कोई उत्साह नहीं था।
माया ने एक विनम्र मुस्कान दी और बैठ गई। "नमस्ते, सर। नमस्ते, मैम।"
"तो, माया वर्मा," कास्टिंग डायरेक्टर ने अपनी फ़ाइल पर नाम पढ़ा। "आपने कौन सा सीन तैयार किया है?"
"सर, मैंने सीन नंबर थ्री, जो मुझे भेजा गया था, उसे तैयार किया है," माया ने कहा, उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास था। "यह एक बहुत ही इमोशनल और शक्तिशाली सीन है, जिसमें एक लड़की अपने पार्टनर के धोखे से टूट जाती है, लेकिन फिर ख़ुद को मज़बूत बनाकर खड़ी होती है।"
"ठीक है," डायरेक्टर ने सिर हिलाया। "शुरू कीजिए।"
माया ने एक गहरी साँस ली। उसने अपनी आँखें बंद कीं, और उस किरदार में डूब गई। उसने अपने अंदर के हर दर्द को बाहर आने दिया। उसकी आवाज़ में पहले हल्की सी हिचक थी, फिर वह पूरी तरह से किरदार में उतर गई।
"तुमने मुझे धोखा दिया! मैंने तुम पर इतना भरोसा किया था... अपनी ज़िंदगी से भी ज़्यादा!" उसकी आवाज़ भर्राई हुई थी, आँखों में आँसू थे, लेकिन वे आँसू उसके चेहरे पर नहीं गिरे, क्योंकि वह उन्हें रोकने की कोशिश कर रही थी। "और तुमने... तुमने मेरी सारी उम्मीदों को... एक पल में तोड़ दिया?" उसकी आवाज़ में दर्द था, लेकिन साथ ही एक करारापन भी था।
डायरेक्टर ने उसे ध्यान से देखा। माया ने अपने एक्सप्रेशंस बदले। उसकी आँखों में अब दर्द के साथ-साथ एक दृढ़ता आ गई थी।
"नहीं!" उसने एक गहरी साँस ली, "मैं रोऊँगी नहीं! मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं! मैं रोऊँगी नहीं... मैं ख़ुद को साबित करूँगी! दुनिया को दिखाऊँगी कि मैं क्या हूँ! मैं अपने सपनों को ख़ुद पूरा करूँगी, तुम्हारे बिना!" उसकी आवाज़ अब ज़ोरदार थी, उसमें एक विद्रोह था, एक आत्मविश्वास था। उसने अपनी मुट्ठियाँ कस लीं, उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं। उसके होंठ काँप रहे थे, उसकी आँखें लाल थीं, लेकिन उसकी आँखों में अब आँसू नहीं, बल्कि एक आग थी।
उसने सीन ख़त्म किया, उसकी साँसें अभी भी तेज़ थीं। वह कुछ पल के लिए किरदार में ही रही, फिर धीरे-धीरे अपने आप में वापस आई। उसने आँखें खोलीं और डायरेक्टर की तरफ़ देखा। उसके चेहरे पर पसीना था, उसकी पूरी ऊर्जा उस सीन में लग चुकी थी। उसे लगा जैसे उसने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था।
कास्टिंग डायरेक्टर ने कुछ देर तक उसे घूरा, फिर अपनी असिस्टेंट की तरफ़ देखा और कुछ फुसफुसाया। माया के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। उसे लगा कि डायरेक्टर कुछ अच्छा ही कहने वाले होंगे।
"ठीक है, माया," डायरेक्टर ने कहा, उनकी आवाज़ अभी भी वैसी ही सपाट थी। "आपने अच्छा किया।"
माया के चेहरे पर एक मुस्कान आई। "थैंक यू, सर।"
"लेकिन..." डायरेक्टर ने कहा, और यह 'लेकिन' माया के लिए एक वज्रपात जैसा था। "हमें एक शांत और सूक्ष्म (subtle) चेहरे की ज़रूरत है। हमें एक ऐसा चेहरा चाहिए, जो कम बोलकर ज़्यादा कहे।"
माया के चेहरे पर ख़ुशी की मुस्कान पल भर में ग़ायब हो गई। उसकी आँखें थोड़ी बड़ी हो गईं। "सर?"
"आपका चेहरा... आपका चेहरा बहुत ज़्यादा एक्सप्रेसिव है," डायरेक्टर ने कहा, उनकी आवाज़ में कोई नरमी नहीं थी। "आपकी हर भावना, हर सोच आपके चेहरे पर साफ़ दिखाई देती है। यह कुछ किरदारों के लिए अच्छा है, लेकिन हमें इस रोल के लिए कुछ अलग चाहिए। हमें एक ऐसा चेहरा चाहिए, जो अपने अंदर भावनाओं को छुपा सके।"
माया का दिल टूट गया। 'बहुत ज़्यादा एक्सप्रेसिव?' उसे यह सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके अंदर की हर उम्मीद को रौंद दिया हो। 'यही तो मेरी ताक़त है! मैं अपनी हर भावना को बाहर निकालती हूँ!'
"पर सर... एक्टिंग तो भावनाओं को व्यक्त करना ही होता है," माया ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ अब पहले जैसी कॉन्फिडेंट नहीं थी।
"हाँ, होता है। लेकिन हर किरदार की अपनी ज़रूरत होती है," डायरेक्टर ने कहा, अब उनकी आवाज़ में थोड़ी सी झुँझलाहट थी। "और इस किरदार के लिए, हमें एक शांत और थोड़ा रहस्यमय चेहरा चाहिए। आपका चेहरा बहुत खुला हुआ है। सब कुछ साफ़ दिख जाता है।"
माया को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे। उसकी आँखों में आँसू आने लगे थे, लेकिन उसने उन्हें रोकने की पूरी कोशिश की। उसे लगा जैसे उसकी पूरी मेहनत, उसकी पूरी तैयारी, उसके सारे सपने, एक पल में चकनाचूर हो गए थे। यह सिर्फ़ एक रिजेक्शन नहीं था, यह उसके अस्तित्व पर एक सवाल था। 'मैं इतनी एक्सप्रेसिव हूँ... तो क्या मैं अच्छी एक्ट्रेस नहीं हूँ?' उसके दिमाग में यह सवाल कौंधा।
"ठीक है, माया। आप जा सकती हैं। हम आपसे संपर्क करेंगे अगर कुछ और सूटेबल होगा," डायरेक्टर ने कहा, और अपनी फ़ाइल में कुछ लिखने लगे, जैसे उनका काम ख़त्म हो गया हो।
माया की आँखों में आँसू थे। उसने उठने की कोशिश की, उसके पैर काँप रहे थे। "थैंक यू, सर," उसने धीरे से कहा। उसकी आवाज़ में अब कोई उत्साह नहीं था, सिर्फ़ एक टूटन थी। वह बिना कुछ और कहे, दरवाज़े की तरफ़ मुड़ी और बाहर निकल गई।
वेटिंग एरिया की लड़कियाँ उसे आते-जाते देख रही थीं, उनके चेहरों पर सवाल थे। माया ने किसी की तरफ़ नहीं देखा। वह बस लिफ़्ट की तरफ़ भागी। लिफ़्ट के अंदर घुसते ही, उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली। उसने अपने होंठ कसे ताकि कोई आवाज़ न निकले, लेकिन उसके अंदर का दर्द उसे निचोड़ रहा था। उसकी मम्मी की दी हुई साड़ी, जो उसका लकी चार्म थी, अब उसे भारी लग रही थी।
'बहुत ज़्यादा एक्सप्रेसिव... शांत और सूक्ष्म चेहरा...!' डायरेक्टर के शब्द उसके दिमाग में हथौड़े की तरह बज रहे थे। उसे लगा जैसे उसने अपना सब कुछ दे दिया था, और बदले में उसे सिर्फ़ यह सुनने को मिला कि वह उस किरदार के लिए 'बहुत ज़्यादा' थी।
वह बिल्डिंग से बाहर निकली। बाहर चमकदार धूप थी, लेकिन माया की दुनिया में अँधेरा छा चुका था। उसने एक ऑटो रोका, और अपने अपार्टमेंट का पता दिया, उसकी आवाज़ इतनी दबी हुई थी कि ऑटो वाले को दो बार पूछना पड़ा।
ऑटो में बैठकर, वह सिर्फ़ खिड़की से बाहर देखती रही, उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। मुंबई की गगनचुंबी इमारतें, उसकी भागती-दौड़ती भीड़, सब उसे अब बेमानी लग रहा था। उसकी सारी उम्मीदें, जो कुछ घंटे पहले उसके चेहरे पर चमक रही थीं, अब आँसुओं में धुलकर बह रही थीं। उसे लगा जैसे वह एक हार गई थी, एक ऐसी हार जो उसके सपनों को भी ले डूबी थी। उसका दिल भारी हो चुका था, और उसके चेहरे पर मायूसी साफ़ झलक रही थी। वह सिर्फ़ घर पहुँचना चाहती थी, जहाँ वह ख़ुद को समेट सके, जहाँ कोई उसे न देख पाए, जहाँ वह अपने आँसुओं को बहा सके। उसका करियर का सबसे बड़ा मौका, एक पल में चकनाचूर हो चुका था।
Chapter 17
अर्जुन अपने फ़्लैट में शांत होकर बैठा था। उसकी मेज़ पर बिखरे हुए दस्तावेज़, कंप्यूटर स्क्रीन पर चलते कोड्स और हेडसेट से आती हल्की फुसफुसाहटें – ये सब उसकी दुनिया का हिस्सा थीं। वह 'द घोस्ट' की हर चाल पर पैनी नज़र रखे हुए था। दिमाग में मिशन की गंभीरता और उससे जुड़ी हर जानकारी घूम रही थी। उसके काम में भावनाएँ या निजी रिश्ते के लिए कोई जगह नहीं थी। वह एक दीवार था, एक ख़ामोश निगरानी तंत्र। लेकिन फिर भी, कहीं गहरे अंदर, सुबह माया के चेहरे पर देखी गई उम्मीद की चमक उसके ज़हन में कौंध रही थी। उसने उसे बिल्डिंग से बाहर जाते देखा था, एक अलग ही आत्मविश्वास और चमक के साथ। उसे लगा था कि आज कुछ अच्छा होने वाला है उसके लिए। 'अच्छा ही होगा,' उसने मन ही मन सोचा था, और फिर अपने काम में डूब गया था।
शाम ढल चुकी थी। बाहर अँधेरा गहराने लगा था, और अर्जुन अपने कमरे की हल्की रोशनी में काम कर रहा था। तभी, उसके कानों में कुछ सुनाई दिया। लिफ़्ट के खुलने की आवाज़, और फिर दरवाज़े पर धीरे से कदमों की आहट। यह आवाज़ जानी-पहचानी थी, लेकिन इस बार उसमें सुबह वाली तेज़ी नहीं थी। कोई भाग-दौड़ नहीं, कोई उछल-कूद नहीं। सिर्फ़ धीमी, भारी क़दमों की आहट। अर्जुन ने अपनी नज़रें कंप्यूटर स्क्रीन से हटाईं, और अनजाने में ही उसके कान दरवाज़े की तरफ़ हो गए।
वह आम तौर पर अपने पड़ोसियों की आवाजों पर ध्यान नहीं देता था, बल्कि उन्हें नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करता था। लेकिन आज, इस ख़ामोशी में भी एक अलग सी बेचैनी थी। उसे लगा जैसे कुछ सही नहीं था। माया के फ़्लैट का दरवाज़ा खुला और फिर धीरे से बंद हो गया। कोई ज़ोर की आवाज़ नहीं, कोई चहचहाहट नहीं। सिर्फ़ एक दबी हुई खामोशी। यह असामान्य था। माया वर्मा और खामोशी, यह तो बिलकुल उल्टा था! अर्जुन को लगा कि ज़रूर कुछ तो हुआ था।
एक प्रशिक्षित अधिकारी होने के नाते, उसकी प्रवृत्ति थी हर चीज़ का विश्लेषण करना, हर असामान्य हरकत पर ध्यान देना। उसने धीरे से अपनी कुर्सी से उठने की कोशिश की, जैसे कोई शिकार पर निकल रहा हो। वह अपने दरवाज़े के पास आया, और अपने पीपहोल से देखने लगा। हालाँकि अब दरवाज़ा बंद हो चुका था, लेकिन उसे पता था कि माया अभी-अभी अंदर गई थी।
उसने अपने हाथ में हेडसेट रखा, और अपने सिस्टम पर अपने बगल के फ़्लैट की ऑडियो फीड एक्टिवेट की। उसे लगा कि शायद उसे कुछ सुनाई देगा। आमतौर पर, माया के फ़्लैट से या तो संगीत की तेज़ आवाज़ आती थी, या उसके डायलॉग्स की बुलंद आवाज़, या फिर उसके दोस्तों का शोर। लेकिन आज, सब कुछ शांत था। इतनी खामोशी कि अर्जुन को अपनी ही साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी। फिर, एक हल्की सी आवाज़ आई। एक सिसकी।
एक और सिसकी। और फिर, एक धीमी, दबी हुई रुलाई की आवाज़।
अर्जुन चौंक गया। यह माया थी। वह रो रही थी। यह उस ड्रामा क्वीन की आवाज़ नहीं थी जो डायलॉग बोलने के लिए रोने का नाटक करती थी। यह एक सच्ची, गहरी, दर्द भरी रुलाई थी। उसकी आवाज़ में एक टूटन थी, एक ऐसी बेबसी थी जिसे वह पहले कभी नहीं सुन पाया था।
अर्जुन का कठोर चेहरा थोड़ा सा ढीला पड़ा। उसने अपनी आँखें बंद कीं और उस आवाज़ पर ध्यान केंद्रित किया। वह आवाज़ कमज़ोर थी, जैसे कोई अपनी सारी शक्ति लगाकर रोने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन फिर भी अपनी आवाज़ को दबा रहा हो। उसे लगा कि माया शायद अकेले रोना चाहती थी, बिना किसी को अपनी कमज़ोरी दिखाए।
उसके दिमाग में सुबह का नज़ारा घूम गया। माया का आत्मविश्वास भरा चेहरा, उसकी आँखों में चमक, उसकी बैंगनी साड़ी, और उसका यह कहना, "मेरा करियर का सबसे बड़ा मौका है।" उसे याद आया कि कैसे वह बिल्डिंग से बाहर जाते हुए एक सुपरस्टार जैसी लग रही थी। और अब... यह टूटी हुई आवाज़।
अर्जुन ने अपना हेडसेट उतारा और उसे मेज़ पर रख दिया। उसकी आँखों में एक अजीब सा भाव था। यह वह माया नहीं थी जिसे वह जानता था – शोर मचाने वाली, झगड़ालू, हमेशा खुश रहने का दिखावा करने वाली। यह एक ऐसी माया थी जो टूट चुकी थी, जो अकेली थी, और जो दर्द में थी।
उसकी परवरिश, उसका प्रशिक्षण – सबने उसे सिखाया था कि भावनाओं से दूर रहना है, ख़ासकर दूसरों की भावनाओं से। एक सैनिक को कभी कमज़ोर नहीं पड़ना चाहिए। लेकिन इस पल में, वह सिर्फ़ एक सैनिक नहीं था। वह एक इंसान था, जो दीवार के पार से एक और इंसान का दर्द महसूस कर रहा था।
उसे याद आया कि कैसे वह उसे 'मिस्टर हिटलर' कहती थी, कैसे वह उसके कामों में अड़ंगा डालती थी, कैसे वह जानबूझकर शोर करती थी। उसने उसे हमेशा एक दुश्मन की तरह देखा था, एक बाधा की तरह। लेकिन अब, उस सिसकी की आवाज़ में, उसे अपनी सारी झुँझलाहट बेमानी लगने लगी।
'क्या हुआ होगा इसे?' अर्जुन ने सोचा। उसे लगा कि ज़रूर ऑडिशन अच्छा नहीं रहा होगा। 'रिजेक्ट हो गई होगी।' यह ख़्याल आते ही उसे एक अजीब सी बेचैनी हुई। उसने कभी नहीं सोचा था कि अपनी 'दुश्मन' के लिए उसे बुरा लगेगा।
उसका दिमाग तेज़ी से काम करने लगा। वह एक सैनिक था, और सैनिकों को सिखाया जाता है कि हर परिस्थिति में मदद के लिए तैयार रहना चाहिए, ख़ासकर जब कोई मुसीबत में हो। लेकिन यहाँ तो कोई सैनिक कार्यवाही नहीं थी। यह सिर्फ़ एक इंसान का दर्द था।
वह धीरे से अपने कमरे में टहलता रहा। उसे अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना था, लेकिन माया की रुलाई की आवाज़ उसके कानों में गूँजती रही। उसे लगा जैसे उसकी आवाज़ में सिर्फ़ रिजेक्शन का दर्द नहीं था, बल्कि सपनों के टूटने का दर्द था, उम्मीदों के बिखरने का दर्द था। वह समझ रहा था कि एक कलाकार के लिए उसका काम कितना मायने रखता है, और कैसे एक बड़ा मौका हाथ से निकल जाने पर वह कितना टूट सकता है।
उसे लगा कि वह इस लड़की को जानता नहीं था, बस उसके शोर से वाकिफ़ था। उसने कभी उसके अंदर की इंसानियत को समझने की कोशिश नहीं की थी। वह हमेशा एक कठोर कवच में लिपटा रहा था, लेकिन आज, उस कवच में एक छोटी सी दरार पड़ गई थी।
माया की आवाज़ अब धीमी पड़ चुकी थी, जैसे वह थककर सो गई हो, या शायद अब उसके पास रोने की ताक़त न बची हो। अर्जुन कुछ देर तक खामोश खड़ा रहा। उस रात की ख़ामोशी में, उसे माया का शोर ज़्यादा पसंद आने लगा था। कम से कम तब वह ज़िंदादिली से भरी तो थी।
उसका कठोर दिल, जो मिशन के तनाव और अकेलेपन के कारण और भी सख़्त हो गया था, इस पल में थोड़ा पिघला। यह एक ऐसी भावना थी जिसे उसने बरसों से महसूस नहीं किया था – सहानुभूति। वह कुछ करने के बारे में सोचने लगा। कुछ ऐसा जो माया को बताए कि वह अकेली नहीं थी, भले ही वह उसे 'हिटलर' कहती हो। वह जानता था कि सीधे जाकर पूछना उसकी प्रकृति में नहीं था, और न ही माया इसे स्वीकार करती। उसे कुछ ऐसा करना था जो खामोश हो, लेकिन असरदार हो।
अर्जुन अपने कमरे के बीच में खड़ा था, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। यह चमक न तो गुस्से की थी, न ही चिंता की, बल्कि एक नई समझ की थी। 'आज ये ड्रामा नहीं कर रही थी,' उसने मन ही मन सोचा। 'आज ये सच में टूट गई थी।' उसे लगा कि यह लड़की जितनी ऊपर से ख़ुद को मज़बूत दिखाती है, अंदर से उतनी ही नाज़ुक है। और इस पल में, उसे उसकी नाज़ुकी साफ़ दिखाई दे रही थी। उसे लगा कि उसे कुछ करना चाहिए, कुछ ऐसा जिससे उसे लगे कि कोई है जो उसके साथ खड़ा है, भले ही वह उसे पता चले या न चले। यह पहली बार था जब अर्जुन ने माया को एक इंसान के रूप में देखा था, न कि सिर्फ़ एक पड़ोसन या एक बाधा के रूप में। और यह अहसास उसके लिए, एक निपुण लेकिन भावनात्मक रूप से बंद सैनिक के लिए, एक नया अनुभव था।
उसने अपने आस-पास देखा, कुछ खोजने की कोशिश की। कुछ ऐसा जो बिना बोले, बिना नाटक किए, अपना संदेश पहुँचा सके। उसके दिमाग में एक विचार कौंधा। एक ऐसा विचार जो उसे अपनी मिशन की किताबों में कभी नहीं मिला था, लेकिन जो उसके दिल से निकला था।
Chapter 18
Chapter 18
अर्जुन अपने कमरे में खड़ा था, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। दीवार के पार से आ रही माया की सिसकियों की धीमी, दबी हुई आवाज़ अभी भी उसके कानों में गूँज रही थी। यह आवाज़ अब पहले से भी ज़्यादा धीमी थी, शायद वह थककर सो गई थी, या उसका रोना अब आँसुओं से ज़्यादा बेबसी में बदल गया था। अर्जुन को लगा कि इस पल में उसे माया के पास जाना चाहिए था, उसे दिलासा देना चाहिए था। लेकिन उसकी प्रवृत्ति उसे रोक रही थी। एक फ़ौजी और एक इंटेलिजेंस ऑफ़िसर के रूप में, उसे हमेशा अपने आप को दूसरों से दूर रखने की आदत थी, ख़ासकर भावनात्मक रूप से। और माया... वह तो उसकी घोषित दुश्मन थी, उसकी शांति भंग करने वाली पड़ोसन थी। लेकिन आज, वह सिर्फ़ एक दुश्मन नहीं, बल्कि एक अकेली, टूटी हुई इंसान लग रही थी।
उसका दिमाग तेज़ी से काम करने लगा। वह जानता था कि सीधे जाकर दरवाज़ा खटखटाना या उसे दिलासा देना अजीब लगेगा। माया भी इसे स्वीकार नहीं करती। वह शायद उसे और भी ज़्यादा चिढ़ाती या फिर उसके इरादों पर शक करती। उसे कुछ ऐसा करना था जो खामोश हो, गुप्त हो, लेकिन अपना संदेश पहुँचा सके। एक ऐसा संदेश जो कहे, 'मैं तुम्हारे साथ हूँ, भले ही मैं तुम्हें परेशान करता हूँ।'
वह कमरे में धीरे-धीरे टहलने लगा। उसकी निगाहें मेज़ पर रखे कागज़ों पर, फिर दीवार पर लगे मानचित्रों पर पड़ीं। उसका मिशन, 'द घोस्ट', देश की सुरक्षा... सब कुछ उसके दिमाग में घूम रहा था। लेकिन इस पल में, वह सब कुछ पीछे हट गया था। उसके सामने सिर्फ़ माया की रुलाई थी।
'क्या करूँ?' उसने मन ही मन सोचा। 'क्या उसे एक नोट लिख कर दरवाज़े के नीचे से डाल दूँ?' नहीं, यह बहुत ही अजीब और बचकाना लगेगा। 'क्या कुछ खाने का सामान दे दूँ?' हाँ, खाने का सामान...।
अचानक, उसके दिमाग में एक ख़्याल कौंधा। उसे याद आया, एक बार, कुछ हफ़्ते पहले, जब वह अपनी बालकनी में फ़ोन पर बात कर रही थी। उस दिन माया अपने दोस्तों के साथ फ़ोन पर बात करते हुए बहुत तेज़-तेज़ हँस रही थी, और शायद किसी को अपनी पसंद के बारे में बता रही थी।
उसने अपने कानों पर ज़ोर डाला, उस दिन की आवाज़ों को याद करने की कोशिश की। माया ज़ोर-ज़ोर से कह रही थी, "अरे यार! मुझे तो बस चॉकलेट चिप आइसक्रीम चाहिए! वो दुनिया की सबसे बेस्ट चीज़ है। जब भी मैं दुखी होती हूँ, या जब भी मैं ख़ुश होती हूँ... मेरा तो पहला प्यार है चॉकलेट चिप आइसक्रीम!" उसकी आवाज़ में एक अजीब सा उत्साह था, जो किसी बच्चे जैसा लगता था।
हाँ! चॉकलेट चिप आइसक्रीम! अर्जुन को यह याद आते ही एक हल्की सी मुस्कान आई, जो उसके चेहरे पर शायद ही कभी आती थी। उसे लगा कि यह बिलकुल सही चीज़ थी। यह ऐसी चीज़ थी जो बिना बोले, बिना नाटक किए, अपना संदेश पहुँचा सकती थी। यह एक छोटी सी ख़ुशी थी, जो किसी को भी मुश्किल समय में थोड़ी राहत दे सकती थी।
उसने तुरंत अपनी वॉलेट उठाई। उसने अपनी घड़ी देखी। रात के ग्यारह बज चुके थे। बिल्डिंग के नीचे वाली दुकान बंद हो चुकी होगी। लेकिन बिल्डिंग से थोड़ी दूरी पर एक 24/7 चलने वाला स्टोर था। वह जानता था कि वहाँ उसे ज़रूर मिल जाएगा।
अर्जुन ने बिना देर किए एक जैकेट पहनी। दरवाज़े के पास जाकर, उसने एक बार फिर कान लगाकर माया के फ़्लैट की ओर सुना। आवाज़ बिलकुल शांत थी। 'शायद सो गई हो,' उसने सोचा। यह और भी बेहतर था। उसे अपना काम चुपचाप करना था, बिना माया को पता चले।
वह धीरे से अपना दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला। कॉरिडोर में हल्की रोशनी थी। उसने लिफ़्ट का इंतज़ार नहीं किया, बल्कि सीढ़ियों से नीचे उतरने का फ़ैसला किया। वह नहीं चाहता था कि लिफ़्ट में किसी से मुलाक़ात हो, ख़ासकर शर्मा आंटी से, जो हमेशा गॉसिप के लिए तैयार रहती थीं।
वह बिल्डिंग से बाहर निकला। रात का माहौल शांत था। मुंबई की सड़कें भी इस समय थोड़ी शांत हो जाती थीं। वह तेज़ी से उस स्टोर की ओर बढ़ा। रास्ते में, वह अपने इस असामान्य बर्ताव पर ख़ुद भी थोड़ा हैरान था। 'एक फ़ौजी, एक इंटेलिजेंस ऑफ़िसर, आधी रात को आइसक्रीम खरीदने जा रहा है एक ड्रामा क्वीन के लिए, जिसने उसकी ज़िंदगी नरक बना रखी है,' उसने मन ही मन सोचा। लेकिन उसके दिल में एक अजीब सी संतुष्टि थी। उसे लगा कि वह कुछ सही कर रहा था।
वह स्टोर पर पहुँचा। वहाँ एक-दो लोग ही थे। उसने सीधा फ़्रीज़र सेक्शन में जाकर चॉकलेट चिप आइसक्रीम का एक बड़ा टब उठाया। बिल का भुगतान किया और तेज़ी से वापस बिल्डिंग की ओर चल पड़ा। उसके दिमाग में सिर्फ़ एक ही विचार था – यह काम चुपचाप होना चाहिए।
वह वापस सीढ़ियों से ऊपर चढ़ा, उसके हाथों में ठंडी आइसक्रीम का टब था। जैसे ही वह अपने फ़्लोर पर पहुँचा, उसकी दिल की धड़कन थोड़ी तेज़ हो गई। माया का दरवाज़ा अभी भी बंद था। उसके फ़्लैट से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी।
वह माया के दरवाज़े के पास आया। उसने धीरे से आइसक्रीम का टब एक पॉलीथिन बैग में डाला, ताकि वह ठीक से टिका रहे। फिर, उसने उस बैग को माया के दरवाज़े के हैंडल पर सावधानी से लटका दिया। उसने यह सुनिश्चित किया कि बैग हैंडल पर कसकर बंधा हो, ताकि वह रात भर गिरे नहीं।
एक पल के लिए, वह वहाँ रुका। उसने दरवाज़े पर अपनी उँगली उठाई, जैसे वह खटखटाने वाला हो। लेकिन फिर, उसने अपना हाथ नीचे कर लिया। नहीं। यह खामोश जेस्चर था, और इसे खामोश ही रहना चाहिए था। माया को पता नहीं चलना चाहिए था कि यह किसने किया। उसे बस यह एहसास होना चाहिए था कि कोई है जो उसकी परवाह करता है।
उसने एक आख़िरी नज़र उस आइसक्रीम के पैकेट पर डाली। फिर, धीरे से मुड़ा और अपने फ़्लैट की ओर चल पड़ा। उसने अपना दरवाज़ा खोला, अंदर गया और उसे धीरे से बंद कर लिया।
वह अपनी मेज़ पर वापस आया। अब उसका काम करने का मन नहीं था। उसने अपनी जैकेट उतारी और चेयर पर बैठ गया। उसके दिमाग में अब मिशन की जानकारी की जगह माया का रोता हुआ चेहरा और आइसक्रीम का टब घूम रहा था। उसे लगा जैसे उसके कंधे से एक बोझ उतर गया था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। यह शांति उस शोर से ज़्यादा गहरी थी जो वह अपने मिशन के लिए ढूंढता था। यह एक मानवीय संतोष था, एक ऐसा भाव जो उसे पहले कभी महसूस नहीं हुआ था।
उसने अपनी आँखें बंद कीं और एक गहरी साँस ली। उसे नहीं पता था कि सुबह माया की क्या प्रतिक्रिया होगी जब वह दरवाज़ा खोलेगी और वहाँ आइसक्रीम का पैकेट देखेगी। वह क्या सोचेगी? क्या उसे अंदाज़ा होगा कि यह किसने किया? या वह इसे किसी बच्चे की शरारत समझेगी? अर्जुन को लगा कि इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। उसने जो करना था, वह कर दिया था। उसने एक ऐसी लड़की के लिए कुछ किया था जिससे वह हमेशा चिढ़ा रहता था, लेकिन जिसके दर्द ने उसे छू लिया था।
उस रात, अर्जुन ने अपनी रोज़मर्रा की फाइलों और रिपोर्ट्स को एक तरफ रख दिया। उसने महसूस किया कि उसका मिशन सिर्फ़ दुश्मनों को पकड़ना या देश को बचाना ही नहीं था, बल्कि कभी-कभी अनजाने में, एक पड़ोसी के लिए एक छोटी सी ख़ुशी का पल बनाना भी था। यह एक नया 'मिशन' था, और उसे लगा कि शायद उसे यह मिशन पसंद आ रहा था। उसके दिल में एक हल्की सी, अजीब सी भावना पनप रही थी – शायद एक नए रिश्ते की शुरुआत, जो 'पड़ोसी-वॉर' से कहीं ज़्यादा गहरा था। वह जानता था कि सुबह जब माया उसे देखेगी, तो फिर से वही 'मिस्टर हिटलर' वाला बर्ताव करेगी, लेकिन आज रात, अर्जुन के लिए, वह सिर्फ़ एक अकेली लड़की थी जिसे एक आइसक्रीम की ज़रूरत थी। और वह उसे दे चुका था।
Chapter 19
सुबह के क़रीब सात बज रहे थे। माया वर्मा ने करवट बदली। उसकी पलकें भारी थीं, जैसे उन पर कोई वज़न रखा हो। पिछली रात की रुलाई का असर अभी भी आँखों में नमी बनकर जमा था, और सिर में हल्की-हल्की टीस उठ रही थी। आँखों में वह सूनापन था जो तब आता है जब सारे सपने एक झटके में टूट जाते हैं। उसने धीरे से अपनी आँखें खोलीं। कमरा अँधेरे में डूबा हुआ था, और बाहर से आ रही हल्की रोशनी भी उसे और उदास कर रही थी।
वह बिस्तर पर ही कुछ देर लेटी रही, छत को घूरती हुई। उसे पिछली शाम का हर पल याद आ रहा था – ऑडिशन के लिए जाते समय की ख़ुशी, आत्मविश्वास से भरी एंट्री, फिर उस कास्टिंग डायरेक्टर के ठंडे, निर्मम शब्द... "आपका चेहरा बहुत ज़्यादा एक्सप्रेसिव है... हमें एक शांत और सूक्ष्म चेहरे की ज़रूरत है।" उन शब्दों ने उसके अंदर कुछ तोड़ दिया था। वह एक कलाकार थी, और उसका चेहरा, उसकी भावनाएँ ही उसकी सबसे बड़ी पूँजी थीं। और जब उन्हीं को 'बहुत ज़्यादा' कह दिया जाए, तो भला इंसान क्या करे?
उसे लगा जैसे उसकी सारी मेहनत, सारे सपने, एक पल में चकनाचूर हो गए थे। रात भर वह बस रोती रही थी। तकिया आँसुओं से भीग गया था। अब उसके पास रोने के लिए भी आँसू नहीं बचे थे। बस एक गहरी, खाली उदासी थी। पेट में एक अजीब सी ऐंठन हो रही थी, शायद खाली पेट होने की वजह से, या फिर तनाव और दुःख के कारण।
वह किसी तरह बिस्तर से उठी। शरीर में जान नहीं थी। आज उसका मन कुछ भी करने को नहीं कर रहा था। न कोई डायलॉग प्रैक्टिस, न कोई डांस स्टेप। बस ख़ामोशी। उसे लगा कि वह सिर्फ़ एक बेजान पुतला बन गई है।
किचन में जाकर उसने एक गिलास पानी पिया। पानी उसके गले से उतरते ही नहीं बन रहा था, जैसे गला सूख गया हो। तभी उसकी नज़र किचन में रखे कचरे के डिब्बे पर पड़ी। रात के टिश्यू पेपर्स, ऑडिशन की स्क्रिप्ट के टुकड़े, और कुछ बेतरतीब सामान भरा पड़ा था। उसे लगा कि यह कचरा भी उसकी ज़िंदगी की तरह बिखरा हुआ था।
"इसे फेंकना ही होगा," उसने बुझे हुए मन से सोचा। वह नहीं चाहती थी कि यह कचरा उसे बार-बार पिछली रात की याद दिलाए। उसने कचरे का बैग उठाया, उसे बांधा और धीरे से अपने फ़्लैट के दरवाज़े की ओर बढ़ी।
दरवाज़ा खोलने से पहले उसने एक गहरी साँस ली। जैसे वह दुनिया का सामना करने से पहले ख़ुद को तैयार कर रही हो। उसने दरवाज़े का हैंडल पकड़ा, और धीरे से उसे मोड़कर दरवाज़ा खोला।
सुबह की हल्की रोशनी कॉरिडोर में फ़ैली हुई थी। हवा में एक ताज़गी थी, लेकिन माया के मन में कोई ताज़गी नहीं थी। उसने कचरे का बैग बाहर रखने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी उसकी नज़र दरवाज़े के हैंडल पर पड़ी।
वहाँ कुछ था। एक पॉलीथिन बैग, जो उसके दरवाज़े के हैंडल पर लटका हुआ था। यह कोई छोटा-मोटा फ़्लायर नहीं था, और न ही कोई अख़बार। यह एक मोटा सा, सफ़ेद रंग का पॉलीथिन बैग था, जो किसी चीज़ से भरा हुआ लग रहा था।
माया की भौंहें तन गईं। "ये क्या है?" उसने फुसफुसाया। वह एक पल के लिए रुकी। क्या यह किसी और का सामान था, जो गलती से यहाँ लटका दिया गया था? लेकिन उसने कोई डिलीवरी ऑर्डर नहीं किया था। और ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।
उसने धीरे से कचरे का बैग ज़मीन पर रखा और पॉलीथिन बैग की ओर हाथ बढ़ाया। उसने उसे छुआ। यह ठंडा था। बहुत ठंडा। उसकी उँगलियों पर हल्की सी ठंडक महसूस हुई। अंदर कोई ठंडी चीज़ थी।
एक अजीब सी उत्सुकता उसके मन में जागी। वह ख़ुद को रोक नहीं पाई। उसने पॉलीथिन बैग को हैंडल से उतारा, और उसे अंदर खींच लिया। दरवाज़ा बंद किया, और किचन की मेज़ पर लाकर उस बैग को रखा।
उसने बैग का मुँह खोला। अंदर एक बड़ा सा टब रखा था। सफ़ेद रंग का, जिस पर एक जानी-पहचानी कंपनी का लोगो था। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।
यह आइसक्रीम थी।
और उस टब पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था: "चॉकलेट चिप आइसक्रीम"।
"चॉकलेट चिप आइसक्रीम?!" माया के मुँह से अविश्वास में निकला। उसकी आवाज़ में हैरानी थी। यह उसकी पसंदीदा आइसक्रीम थी! दुनिया में सबसे ज़्यादा पसंद की जाने वाली चीज़! जब भी वह दुखी होती, या ख़ुश होती, या बस यूँ ही, उसे हमेशा चॉकलेट चिप आइसक्रीम चाहिए होती थी।
उसने टब को उठा लिया, उसे घूरती रही। यह कैसे मुमकिन है? किसने रखा होगा यह यहाँ? और क्यों? उसके दिमाग में एक साथ कई सवाल कौंधे।
उसने तुरंत टब को मेज़ पर रखा और दरवाज़े की ओर दौड़ी। उसने दरवाज़ा खोला और कॉरिडोर में झाँका। बाईं ओर, दाईं ओर। सीढ़ियों की तरफ़, लिफ़्ट की तरफ़। लेकिन कोई नहीं था। कॉरिडोर बिल्कुल ख़ाली था। दूर-दूर तक कोई इंसान नहीं दिख रहा था।
"कौन होगा?" उसने फुसफुसाया। क्या उसके किसी दोस्त ने यह किया होगा? लेकिन क्यों? वे हमेशा या तो फ़ोन करते, या बेल बजाते। और उन्हें कैसे पता कि वह दुखी थी? नहीं, यह तो बिलकुल ही अजीब था। कोई दोस्त इतनी ख़ामोशी से, इतनी रात को यह सब नहीं करता।
उसे याद आया कि उसने यह बात सिर्फ़ अपने एक-दो बेहद क़रीबी दोस्तों को बताई थी, और एक बार फ़ोन पर बात करते हुए ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर कहा था कि उसे चॉकलेट चिप आइसक्रीम कितनी पसंद है। "दुनिया की सबसे बेस्ट चीज़!" उसने कहा था।
'क्या किसी ने सुन लिया होगा?' यह ख़्याल आते ही उसका दिमाग तेज़ी से काम करने लगा। इस बिल्डिंग में और कौन था जो उसकी हर बात सुनता था? जो उसके शोर से इतना परेशान रहता था कि उसे उसकी हर बात सुनाई देती थी? जो उसकी बालकनी के बगल में रहता था?
उसके दिमाग में एक नाम कौंधा। मेजर अर्जुन खन्ना। उसका खड़ूस पड़ोसी। मिस्टर हिटलर!
माया ने तुरंत इस ख़्याल को अपने दिमाग से झटक दिया। "नहीं! वो? कभी नहीं!" उसने अपना सिर तेज़ी से हिलाया। "वो हिटलर? वो खड़ूस? असमाजिक इंसान? उससे तो उम्मीद भी नहीं कर सकते कि वो किसी के लिए एक गिलास पानी भी दे दे! आइसक्रीम तो दूर की बात है।"
यह ख़्याल इतना हास्यास्पद था कि माया को एक पल के लिए हँसी आ गई। एक हल्की सी, टूटी हुई हँसी। जिस आदमी ने उसकी ज़िंदगी नरक बना रखी थी, जो हमेशा उससे झगड़ा करता था, क्या वह इतनी मीठी, इतनी विचारशील हरकत कर सकता था? नहीं! यह तो उसकी इमेज के ख़िलाफ़ था! अर्जुन का व्यक्तित्व उसकी आँखों में इतना कठोर और निर्दयी था कि वह इस तरह की कोमलता की कल्पना भी नहीं कर सकती थी।
"उससे ऐसी उम्मीद करना तो सूरज को पश्चिम से निकलने जैसा है," उसने मुँह बनाकर कहा। "वो तो ख़ुद ही आइसक्रीम की जगह कड़वी दवा खाता होगा।"
तो फिर कौन था? कोई रहस्यमयी शुभचिंतक? कोई ऐसा जो उसे चुपचाप समर्थन देना चाहता था? यह सब उसे किसी जासूसी फ़िल्म की कहानी जैसा लग रहा था। यह एक अनकहा, अज्ञात दान था, जिसने उसके दुखी मन में एक अजीब सी गुदगुदी पैदा कर दी थी।
वह वापस किचन में आई, जहाँ आइसक्रीम का टब मेज़ पर रखा था। उसने उसे फिर से उठाया, और इस बार, उसने उसे एक अजीब सी नज़र से देखा। यह सिर्फ़ एक आइसक्रीम नहीं थी। यह एक संदेश था। एक रहस्यमयी संदेश।
उसने टब खोला। अंदर से ठंडी-ठंडी चॉकलेट चिप आइसक्रीम की ख़ुशबू आई। उसने एक चम्मच उठाई, और पहली बाइट ली। उसका स्वाद मीठा और ताज़ा था, और जैसे ही वह उसके मुँह में पिघली, माया को लगा जैसे उसके अंदर की सारी उदासी थोड़ी देर के लिए पिघल गई हो। यह सिर्फ़ आइसक्रीम नहीं थी; यह आराम था, यह दिलासा था, और सबसे बढ़कर, यह एक अनकही हमदर्दी थी।
उसने अपनी आँखें बंद कीं और उस स्वाद का मज़ा लिया। दिल का बोझ थोड़ा हल्का हुआ। उसे नहीं पता था कि यह किसने किया था, लेकिन इस छोटे से, रहस्यमयी काम ने उसे यह एहसास कराया था कि वह पूरी तरह अकेली नहीं थी। कोई था, कहीं तो था, जो उसकी परवाह करता था। भले ही वह "मिस्टर हिटलर" न हो, लेकिन कोई तो था।
माया ने मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसकी मुस्कान अधूरी रह गई। उसके दिमाग में अभी भी यह सवाल घूम रहा था, "कौन है तू, रहस्यमयी पड़ोसी?" यह एक सवाल था जिसका जवाब वह ढूंढना चाहती थी। लेकिन फ़िलहाल, उसने आइसक्रीम का लुत्फ़ उठाने का फ़ैसला किया। यह एक ऐसा पल था जब उसे लगा कि शायद ज़िंदगी में अभी भी कुछ अच्छा बचा था, भले ही उसके सपने टूट गए हों। और उस छोटी सी आशा ने उसे थोड़ा सहारा दिया। उस रात की ख़ामोशी और उदासी अब आइसक्रीम की ठंडक और मिठास में बदल गई थी, जिसने उसे एक नई सुबह की उम्मीद दी।
Chapter 20
रात गहरा चुकी थी। मुंबई की भाग-दौड़ भरी सड़कें अब शांत हो चुकी थीं, और ऊँची-ऊँची इमारतों में भी रोशनी धीरे-धीरे मद्धिम पड़ रही थी। माया वर्मा के फ्लैट में भी एक अजीब सी ख़ामोशी छाई थी। वह दिन भर आइसक्रीम खाकर और अपने दिल को बहलाने की कोशिश करके थक चुकी थी। ऑडिशन में रिजेक्शन का दर्द अभी भी ताज़ा था, लेकिन उस रहस्यमयी आइसक्रीम ने उसे थोड़ी राहत दी थी। हालांकि, उसके दिमाग में अभी भी यह सवाल घूम रहा था कि आख़िर वह आइसक्रीम किसने रखी थी। अर्जुन के अलावा कोई और उसे उस तरह से चिढ़ाता नहीं था, और अर्जुन ऐसा कुछ कर नहीं सकता था, इसलिए यह और भी बड़ा रहस्य बन गया था।
शाम को उसने अपनी कुछ पुरानी फ़िल्में देखीं, यह सोचकर कि शायद उनसे कुछ प्रेरणा मिल जाए। लेकिन प्रेरणा तो दूर, नींद भी नहीं आ रही थी। वह अपनी डायरी में कुछ लिखने बैठी, लेकिन शब्द बन ही नहीं रहे थे। उसका मन पूरी तरह खाली था।
रात के लगभग डेढ़ बज रहे थे। माया बिस्तर पर लेटी थी, करवटें बदल रही थी। उसे नींद नहीं आ रही थी। उसकी आँखें छत पर टिकी थीं, और दिमाग में दिन भर की घटनाएँ घूम रही थीं। तभी, उसके पेट में एक अजीब सी ऐंठन शुरू हुई। पहले तो उसे लगा कि शायद यह बस गैस की वजह से हो, या शायद ज़्यादा आइसक्रीम खा ली हो। उसने इसे नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की।
लेकिन कुछ ही देर में, वह ऐंठन तेज़ होने लगी। पेट में मरोड़ उठने लगीं, जैसे किसी ने अंदर कुछ निचोड़ दिया हो। माया ने दर्द से करवट बदली। "उफ़! ये क्या हो रहा है?" उसने फुसफुसाया। वह उठकर बैठी। उसे लगा जैसे उसे वॉशरूम जाना चाहिए।
वह बिस्तर से उतरी और वॉशरूम की ओर बढ़ी। लेकिन जैसे ही वह उठी, उसे अपने शरीर में एक अजीब सी कमज़ोरी महसूस हुई। उसके पैर लड़खड़ा रहे थे, और सिर में चक्कर आने लगा था। वॉशरूम से आने के बाद भी उसे कोई राहत नहीं मिली। पेट में दर्द बढ़ता ही जा रहा था, और अब उसे तेज़ बुख़ार भी महसूस होने लगा था। उसका माथा तप रहा था, और शरीर में कंपन हो रही थी।
"ओह गॉड! ये क्या हो गया मुझे?" माया ने दर्द से मुँह बनाते हुए कहा। उसकी आवाज़ काँप रही थी। उसे लगा कि शायद उसे फूड पॉइजनिंग हो गई है। उसने अपने पेट पर हाथ रखा, दर्द से ज़मीन पर ही बैठ गई।
उसे डॉक्टर को बुलाना था, या कम से कम किसी दोस्त को फ़ोन करना था। उसने अपने फ़ोन की ओर देखा, जो बेडसाइड टेबल पर पड़ा था। वह फ़ोन उठाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाती है, लेकिन उसका हाथ काँप रहा था। बड़ी मुश्किल से उसने फ़ोन को उठाया। स्क्रीन पर कोई लाइट नहीं थी।
"अरे नहीं! ये क्या हुआ?" उसने घबराते हुए कहा। उसने फ़ोन का पावर बटन दबाया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। बैटरी का सिंबल नहीं दिख रहा था। फ़ोन पूरी तरह से डेड हो चुका था। "चार्जिंग पे लगाया ही नहीं था," उसे याद आया। दिन भर की उदासी में वह फ़ोन चार्ज करना भूल गई थी। अब उसे अपनी इस लापरवाही पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
"शिट! शिट! शिट!" उसने हताश होकर फ़ोन को फिर से टेबल पर रख दिया। अब क्या करे? रात के इस पहर में किसे बुलाए? उसके सारे दोस्त इतनी रात को सो रहे होंगे। और कोई भी पास नहीं रहता था।
पेट में दर्द अब असहनीय हो चुका था। उसे उल्टियाँ भी होने लगी थीं। शरीर में पानी की कमी महसूस हो रही थी, जिससे उसे और ज़्यादा कमज़ोरी आ रही थी। उसका गला सूख रहा था। वह उठी और किचन की ओर जाने लगी, यह सोचकर कि शायद थोड़ा पानी पी ले। लेकिन उसके पैर जवाब दे रहे थे। उसकी नज़र धुंधलाने लगी थी।
"पानी... पानी..." उसने फुसफुसाया। वह एक कदम बढ़ाती, और फिर उसे लगता जैसे ज़मीन उसके पैरों के नीचे से खिसक रही है। किचन तक पहुँचने से पहले ही, उसके घुटनों ने जवाब दे दिया। वह ज़मीन पर गिर पड़ी। उसकी आवाज़ दर्द से एक हल्की सी कराह में बदल गई।
उसने ज़मीन पर लेटे-लेटे अपने आप को समेटने की कोशिश की। दर्द की एक तेज़ लहर उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। उसकी साँसें तेज़ हो गईं। उसका शरीर पसीने से भीग गया था। उसे लगा जैसे उसका शरीर उसका साथ छोड़ रहा है। वह अपनी आँखें खुली रखने की कोशिश करती है, लेकिन पलकें भारी हो रही थीं।
"कोई है...?" उसने बेहद धीमी आवाज़ में, लगभग फुसफुसाते हुए कहा। उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि शायद वह ख़ुद भी मुश्किल से सुन पा रही थी। यह आवाज़ दीवार के पार तो बिलकुल नहीं जा सकती थी। उसकी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा। शरीर की सारी ऊर्जा ख़त्म हो रही थी।
उसने आख़िरी कोशिश में अपना हाथ आगे बढ़ाने की कोशिश की, जैसे किसी को छूना चाहती हो, किसी से मदद मांगना चाहती हो। लेकिन उसका हाथ ज़मीन पर ही लुढ़क गया। उसकी साँसें उखड़ रही थीं। तेज़ दर्द और कमज़ोरी के कारण उसकी आँखें पूरी तरह से बंद हो गईं। उसका शरीर शिथिल होकर ज़मीन पर पसर गया।
maya ke chehre par bejaan sukoon tha, jo ghere dard ke baad aata hai. uska sharir shant tha, lekin uski rooh abhi bhi madad ke liye tadap rahi thi. flat mein ab bilkul khamoshi chha gai thi. bas uski bejaan saanson ki halke-halke aawaaz hi thi, jo dhire-dhire aur bhi dhimi hoti ja rahi thi. uski siskariyon ki aawaaz ab puri tarah se band ho chuki thi. vah dard se karahate hue zamin par gir jati hai. uski aawaaz bahut dhimi hoti hai.
फर्श पर पड़ी माया, बेसुध, अकेली। उसके आस-पास कोई नहीं था। उसे बचाने वाला कोई नहीं था। या ऐसा उसे लग रहा था। यह उसके जीवन का सबसे अकेला और दर्दनाक पल था। उस पल में, उसे लगा जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया हो। जीवन की सारी उम्मीदें, सारे सपने... सब कुछ। वह बस एक खालीपन में डूबती जा रही थी। उसकी ख़ामोश, बेसुध देह ही उसकी आख़िरी आवाज़ थी, एक आवाज़ जिसे कोई सुन नहीं सकता था, कम से कम उसे यही लग रहा था।