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एक्शन-कट-लव

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एक दुनिया है फ़िल्मी चकाचौंध की, जहाँ हर इमोशन एक 'परफेक्ट शॉट' है और हर पल में ड्रामा है। इसी दुनिया की रानी है रिया रॉय, एक जुनूनी फिल्म डायरेक्टर जो अपनी वॉर-फिल्म को हकीकत बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। और दूसरी दुनिया है सरहद की कठोर हकीक...

Total Chapters (100)

Page 1 of 5

  • 1. एक्शन-कट-लव - Chapter 1

    Words: 15

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 1
    (मुंबई के एक आलीशान प्रोडक्शन हाउस में सुबह का वक़्त है। बड़ा सा कॉन्फ्रेंस रूम, दीवारों पर फिल्मों के पोस्टर लगे हैं। बीच में एक विशालकाय टेबल पर कई स्क्रिप्ट्स, लैपटॉप्स, और चाय-कॉफी के कप बिखरे पड़े हैं। रिया रॉय, तीस की उम्र की एक तेज़-तर्रार और जुनूनी डायरेक्टर, अपनी टीम के साथ बैठी है। उसकी आँखों में गहरी चमक है, जैसे कोई सपना जी रही हो। उसके सामने उसकी फिल्म 'सरहद' का बड़ा सा पोस्टर लगा है।)

    रिया ने अपनी कुर्सी सीधी करते हुए, चेहरे पर गंभीर भाव लाकर कहा, “देखो दोस्तों, यह सिर्फ एक फिल्म नहीं है, यह मेरे दादाजी की विरासत है। ‘सरहद’ को सिर्फ कहानी नहीं बनना है, इसे एक एहसास बनना है।”

    राहुल, जो उसका चीफ असिस्टेंट डायरेक्टर है, थोड़ा घबराते हुए बोला, “रिया, मैं समझता हूँ। यह तुम्हारा ड्रीम प्रोजेक्ट है, लेकिन... बॉर्डर पर शूटिंग? क्या तुम सच में जानती हो वहाँ कितनी मुश्किलें हैं?”

    रिया ने उसकी बात काटकर, ज़ोर देकर कहा, “मुश्किलें? राहुल, मेरी फिल्म का नाम ‘सरहद’ है। सरहद पर मुश्किलें नहीं होंगी तो कहाँ होंगी? हम कोई ‘कॉफ़ी-शॉपी लव स्टोरी’ नहीं बना रहे!”

    स्नेहा, जो प्रोडक्शन हेड है, अपनी चश्मे को ठीक करते हुए बोली, “रिया, यह क्रिएटिविटी की बात नहीं है, यह लॉजिस्टिक्स की बात है। वहाँ परमिशन, सुरक्षा, इक्विपमेंट, स्टाफ की रहने की जगह… यह सब बहुत मुश्किल है। हमें लगता है कि मुंबई के आसपास के किसी सेट पर हम वैसी ही फील दे सकते हैं।”

    रिया ने सिर हिलाया, "नहीं! बिलकुल नहीं! नकली बंकर उड़ाकर, नकली मिट्टी दिखाकर, नकली वर्दी पहनाकर तुम दर्शकों को क्या महसूस करवाओगे? क्या एक सोल्जर का दर्द, उसका जुनून, उसकी कुर्बानी? यह सब पर्दे पर नकली लगेगा। मुझे वह मिट्टी की खुशबू चाहिए, हवा में वह सरहद का तनाव चाहिए, जहाँ हर साँस में देश बसता हो। जब तक मिट्टी की खुशबू कैमरे में कैद नहीं होगी, इमोशन कैसे आएगा?”

    राहुल ने गहरी साँस ली, “ठीक है, मिट्टी की खुशबू। लेकिन, उस मिट्टी में गोलीबारी भी होती है, रिया! यह कोई पिकनिक स्पॉट नहीं है। आर्मी की परमिशन मिलना भी बहुत टेढ़ा काम है। और अगर मिल भी गई, तो उनके अपने कायदे-कानून होंगे। तुम्हें अपनी क्रिएटिविटी को बहुत रोकना पड़ेगा।”

    रिया ने उसकी आँखों में देखा, “तो रोकने दो! अगर मेरी क्रिएटिविटी को थोड़ी देर के लिए रुककर, मुझे असली ज़िंदगी जीने का मौका मिलता है, तो मैं तैयार हूँ। मुझे असली फौजी चाहिए, असली बर्फ़ चाहिए, असली डर चाहिए। मेरी फिल्म में हीरो को नकली बंदूक नहीं, असली AK-47 चलानी है, भले ही उसमें कारतूस न हों, लेकिन उसका वज़न तो असली होना चाहिए न!”

    स्नेहा ने हाथ जोड़े, “रिया, प्लीज़ प्रैक्टिकल सोचो। हमारे सुपरस्टार आरव कपूर की बात भी तो है। वह कहाँ एडजस्ट करेगा? उसे एसी चाहिए, मिनरल वाटर चाहिए, जिम चाहिए… वह सरहद पर रेत और धूल में कैसे रहेगा?”

    रिया ने हँसते हुए आरव की तस्वीर की तरफ इशारा किया, “उसे भी एडजस्ट करना होगा। अगर उसे एक फौजी का किरदार निभाना है, तो उसे फौजी की ज़िंदगी भी थोड़ी जीनी पड़ेगी। उसे पता चलना चाहिए कि असली फौजी क्या खाते हैं, क्या पीते हैं और कैसे सोते हैं। शायद तभी वह सिक्स-पैक एब्स के अलावा कुछ असली भाव भी दिखा पाएगा।”

    अमित, जो उसका राइटिंग पार्टनर है, मुस्कुराया, “रिया, तुम हमेशा से ऐसी ही ज़िद्दी रही हो। पर इस बार मामला बहुत बड़ा है। फिल्म का बजट भी है, और समय भी। हम इतना रिस्क नहीं ले सकते।”

    रिया ने मेज़ पर हाथ मारा, “रिस्क? अमित, रिस्क लेना ही तो क्रिएटिविटी है। मेरे दादाजी ने रिस्क लेकर ही देश के लिए जान दी थी। मैं तो बस एक फिल्म बना रही हूँ, उनकी कहानी को दुनिया तक पहुँचा रही हूँ। अगर इसमें थोड़ा रिस्क है, तो कोई बात नहीं।”

    स्नेहा ने सिर खुजाया, “एक बात बताओ रिया, अगर आर्मी ने परमिशन नहीं दी, तो क्या?”

    रिया ने आत्मविश्वास से कहा, “तो मैं उन्हें मनाऊँगी। मैं उन्हें बताऊँगी कि यह सिर्फ एक फिल्म नहीं है, यह देश के उन वीर जवानों को श्रद्धांजलि है, जिनके लिए सरहद सिर्फ एक नक्शे पर खींची लकीर नहीं, बल्कि उनकी कर्मभूमि है।”

    राहुल ने उदास होकर कहा, “और अगर उन्होंने मना ही कर दिया, तब?”

    रिया ने एक गहरी साँस ली, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। “तब… तब मैं अपनी कहानी की आत्मा को कहीं और ढूंढूँगी। लेकिन मेरा पहला और आखिरी ऑप्शन सरहद ही है। जब तक मैं वहाँ की मिट्टी को महसूस नहीं कर लेती, मुझे नहीं लगेगा कि मैंने अपने दादाजी की कहानी को न्याय दिया है।”

    स्नेहा ने एक रजिस्टर खोला, “ठीक है। हम परमिशन के लिए अप्लाई करते हैं। लेकिन अगर कुछ भी गड़बड़ हुई, तो इसकी सारी ज़िम्मेदारी तुम्हारी होगी। हम इतने महंगे इक्विपमेंट और इतने बड़े क्रू को खतरे में नहीं डाल सकते।”

    रिया ने हाथ ऊपर उठाए, “स्वीकार है! सारी ज़िम्मेदारी मेरी होगी। अब बताओ, प्रोडक्शन का क्या स्टेटस है?”

    स्नेहा ने कुछ पेपर्स उसके सामने खिसकाए, “इक्विपमेंट ऑलमोस्ट पैक हो गया है। क्रू लिस्ट फ़ाइनल है। सिर्फ आरव कपूर का थोड़ा इश्यू है। वह कह रहा है कि वह अपने पर्सनल शेफ और जिम ट्रेनर को भी साथ लेकर जाएगा। और उसे स्पेशल सिक्योरिटी चाहिए।”

    रिया ने माथा पकड़ा, “हे भगवान! उसे अभी से दिक्कतें शुरू हो गईं। ठीक है, उसे बोलो वह जो मर्ज़ी करे। एक बार वह सरहद पर पहुँच जाए, फिर देखते हैं उसका शेफ और जिम ट्रेनर क्या करते हैं। वहाँ उसे सिर्फ आर्मी के जवान और उनके खाने की आदत डालनी होगी।”

    राहुल मुस्कुराया, “रिया, मुझे डर है कि तुम राजवीर शेखावत से मिलोगी, तो क्या होगा?”

    रिया ने भौंहें चढ़ाई, “राजवीर शेखावत कौन है?”

    स्नेहा ने फ़ोन में एक तस्वीर दिखाते हुए कहा, “वह उस एरिया का मेजर है जहाँ तुम शूटिंग करना चाहती हो। सुना है वह बहुत सख्त है। उसे फिल्म-फिल्मी बातें बिलकुल पसंद नहीं हैं। वह कहता है कि फौजियों की ज़िंदगी ड्रामा नहीं, हकीकत होती है।”

    रिया ने तस्वीर देखी। एक लंबा, चौड़ा कंधों वाला आदमी, जिसने सख्त चेहरा बना रखा था। उसकी आँखों में कोई भाव नहीं थे। रिया ने मुस्कुराकर कहा, “ओह, तो यह हैं ‘मिस्टर नो-ड्रामा’। ठीक है, मुझे उनसे मिलकर उन्हें ‘ड्रामा’ की पावर समझानी होगी। आखिर मेरी फिल्म का हीरो भी तो फौजी है। उन्हें बताना होगा कि हमारी फिल्में भी सच्ची कहानियाँ ही दिखाती हैं।”

    राहुल ने सिर खुजाया, “रिया, मुझे नहीं लगता तुम उन्हें कुछ समझा पाओगी। वह बहुत अक्खड़ स्वभाव के हैं।”

    रिया ने आत्मविश्वास से कहा, “देख लेना! दुनिया में हर इंसान को कहानी पसंद होती है। बस उसे सही तरीके से सुनाने वाला चाहिए। और मैं एक डायरेक्टर हूँ, कहानियाँ सुनाना मेरा काम है। अब काम पर लग जाओ सब। मुझे अगले दो हफ़्तों में बॉर्डर पर होना है।”

    स्नेहा ने अपने लैपटॉप पर टाइप करना शुरू किया, “ठीक है। हम परमिशन की सारी कार्यवाही शुरू करते हैं। देखते हैं किस्मत हमारा कितना साथ देती है।”

    रिया अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुई, उसकी आँखों में एक नया संकल्प था। उसने अपने दादाजी की तस्वीर को देखा जो उसके ऑफिस के कोने में लगी थी।

    रिया मन ही मन बड़बड़ाई, “दादाजी, मैं आपकी कहानी को ज़िंदा करूँगी। इसे पूरी दुनिया देखेगी। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, यह आपका सम्मान है।”

    उसने फिर से टीम की तरफ देखा। “एवरीबडी! यह प्रोजेक्ट हमारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। इसमें कोई कमी नहीं होनी चाहिए। एक-एक डिटेल परफेक्ट होनी चाहिए। और याद रखना, हम जहाँ जा रहे हैं, वह कोई स्टूडियो नहीं है। वह सरहद है। वहाँ हर साँस में देश की मिट्टी की खुशबू होती है। हमें उसे अपनी फिल्म में महसूस कराना है।”

    राहुल ने थोड़ा संशय से कहा, “रियलिटी शो की तरह, है न?”

    रिया ने मुँह बनाकर कहा, “रियलिटी से भी ज़्यादा रियल। तुम्हें पता है, मेरा एक सीन है जहाँ हीरो एक बर्फीली रात में बिना किसी सहारे के दुश्मन की चौकी पर हमला करता है। मैं चाहती हूँ कि मेरे एक्टर को वह ठंड महसूस हो, वह डर महसूस हो।”

    स्नेहा ने सिर हिलाया, “यह सब तो ठीक है, रिया। पर आरव कपूर को तुम बर्फ़ में कैसे रखोगी? वह तो एक घंटे में ही बीमार पड़ जाएगा।”

    रिया हँसी, “देखते हैं! या तो वह एक्टर बनेगा, या घर वापस जाएगा। मैं अपनी फिल्म के साथ कोई समझौता नहीं करूँगी। मुझे हर चीज़ असली चाहिए, तभी फिल्म दर्शकों के दिलों तक पहुँच पाएगी।”

    अमित ने कहा, “रिया, मैं तुम्हारी इस लगन की दाद देता हूँ। मुझे उम्मीद है कि तुम सफल होगी।”

    रिया ने मुस्कुराकर कहा, “उम्मीद नहीं, यकीन रखो। जब तक मैं खुद उस मिट्टी पर खड़ी नहीं हो जाती, जहाँ मेरे दादाजी ने अपने कदम रखे थे, मुझे चैन नहीं मिलेगा। अब, चलो, काम पर लग जाओ सब। लाइट्स, कैमरा… और बस ‘एक्शन’ बाकी है।”

    पूरी टीम अपने-अपने काम में लग गई। रिया अपने केबिन में जाकर अपनी दादाजी की एक पुरानी फोटो उठा लेती है। फोटो में एक युवा फौजी, मुस्कुराते हुए अपनी वर्दी में खड़ा है। रिया ने फोटो पर धीरे से हाथ फेरा।

    रिया ने फुसफुसाते हुए कहा, “डियर दादाजी, आपकी बहादुरी की कहानी अब पर्दे पर आएगी। और इस बार, यह पूरी तरह से असली होगी, आपकी तरह।”

    उसकी आँखों में चमक थी, एक ऐसी चमक जो जुनून और सपने से भरी थी। उसे पता था कि रास्ता मुश्किल है, लेकिन वह किसी भी चुनौती का सामना करने को तैयार थी। उसके लिए यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक मिशन था। उसे अभी मेजर राजवीर शेखावत जैसे ‘मिस्टर नो-ड्रामा’ से मिलना था, और उन्हें अपनी दुनिया का ‘ड्रामा’ समझाना था। मुंबई की भाग-दौड़ भरी सुबह में, एक डायरेक्टर अपनी ड्रीम प्रोजेक्ट ‘सरहद’ को हकीकत में बदलने का सपना देख रही थी, बिना इस बात से वाकिफ हुए कि सरहद पर उसका इंतज़ार एक ऐसी ‘हकीकत’ कर रही थी, जो किसी भी फिल्मी कहानी से कहीं ज़्यादा ‘एक्शन’ और ‘ड्रामा’ से भरी होने वाली थी।

  • 2. एक्शन-कट-लव - Chapter 2

    Words: 9

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 2
    (हजारों किलोमीटर दूर, भारत-पाक सीमा पर, सुबह का धुंधलका अभी पूरी तरह छटा नहीं था। आर्मी पोस्ट पर कड़कड़ाती ठंड और सख्त अनुशासन का माहौल था। दूर से कुछ गाड़ियों के चलने और वायरलेस पर फुसफुसाहट की आवाज़ें आ रही थीं। एक बड़े से खुले मैदान में, मेजर राजवीर शेखावत, अपनी यूनिफॉर्म में एकदम चुस्त-दुरुस्त, अपने जवानों को ट्रेनिंग दे रहे थे। उसकी आवाज़, जो कमांड देती थी, हवा में गूँजती थी। उसका चेहरा सख्त था, उसकी चाल में फौलादी आत्मविश्वास झलकता था। उसके लिए, यह सरहद कोई घूमने की जगह नहीं थी, बल्कि उसका घर, उसकी ज़िम्मेदारी थी।)



    राजवीर ने अपनी आवाज़ तेज़ करते हुए कहा, “फॉरवर्ड मार्च! पेस बनाओ! याद रखो जवानों, यहाँ हर कदम, हर साँस का हिसाब है। दुश्मन एक छोटी सी गलती का भी फायदा उठा सकता है। अपनी ज़िंदगी दाँव पर है, अपने देश की इज्ज़त दाँव पर है!”



    जवानों की टुकड़ी एक साथ, अनुशासित तरीके से, दौड़ रही थी। राजवीर एक-एक जवान की चाल को परख रहा था। उसकी आँखें हर सिपाही की मुद्रा, उसके हाव-भाव को भाँप रही थीं। तभी, उसके वायरलेस पर एक अजीब सी टोन बजी। राजवीर ने रुकने का इशारा किया और कान से वायरलेस लगाया।



    “जय हिन्द, मेजर शेखावत! लेफ्टिनेंट जनरल सूरी बात कर रहा हूँ।” सामने से एक सख्त आवाज़ आई।



    राजवीर ने तुरंत सीधा होकर कहा, “जय हिन्द, सर! आदेश दें!”



    जनरल सूरी ने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ कहा, “मेजर, मुझे तुम्हें एक बेहद अजीब और ज़रूरी ज़िम्मेदारी सौंपनी है।”



    राजवीर ने भौंहें चढ़ाईं, “सर? अजीब?”



    “हाँ, अजीब। एक फिल्म यूनिट को तुम्हारे एरिया में शूटिंग की इजाज़त मिली है। एक बड़ी प्रोडक्शन कंपनी है, ‘सरहद’ नाम की फिल्म बना रहे हैं। तुम्हें उनकी सुरक्षा, निगरानी और सुविधा का ध्यान रखना है।” जनरल सूरी की आवाज़ में हल्की सी झुंझलाहट थी।



    राजवीर के चेहरे पर तुरंत गुस्सा और अविश्वास के भाव आ गए। उसने अपनी मुट्ठी भींच ली। “क्या, सर? फिल्म यूनिट? यहाँ? इस जगह पर?”



    जनरल सूरी ने कहा, “मुझे पता है मेजर, यह तुम्हारे लिए एक सरदर्द है। लेकिन आदेश ऊपर से आए हैं। रक्षा मंत्रालय की तरफ से स्पेशल परमिशन मिली है। उनका कहना है कि यह फिल्म सेना के जवानों की बहादुरी और देशप्रेम को समर्पित है, इसलिए हमें सहयोग करना चाहिए।”



    राजवीर ने गहरी साँस ली, “सर, यहाँ असली गोली और असली बारूद है। यहाँ एक पल की लापरवाही भी भारी पड़ सकती है। ये फिल्मी लोग, जिन्हें ड्रामा और हकीकत में फर्क नहीं पता… इन्हें कैसे संभालेंगे हम?”



    “मुझे पता है मेजर, मुझे पता है। लेकिन कोई चारा नहीं है। तुम्हें उन्हें सहयोग करना होगा। मेक श्योर कि वे किसी संवेदनशील इलाके में न जाएँ, कोई भी ख़ुफ़िया जानकारी लीक न हो, और सबसे ज़रूरी, उनकी सुरक्षा में कोई कमी न आए। यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।” जनरल सूरी ने अपनी बात ख़त्म की।



    राजवीर ने अनमने ढंग से कहा, “जी सर। आदेश का पालन होगा।”



    वायरलेस कट गया। राजवीर ने वायरलेस कमर पर लगाया और अपने जूनियर, सूबेदार बलवंत सिंह की तरफ मुड़ा, जो कुछ दूर खड़ा ट्रेनिंग को सुपरवाइज़ कर रहा था। बलवंत सिंह ने राजवीर के चेहरे पर बदले हुए भाव देखे और तुरंत समझ गया कि कुछ तो गड़बड़ है।



    बलवंत सिंह राजवीर के पास आया, “मेजर साहब, सब ठीक है?”



    राजवीर ने कड़े स्वर में कहा, “ठीक? क्या ठीक है सूबेदार साहब? अब हम इन फिल्मी ड्रामेबाज़ों को भी संभालेंगे। जिन्हें असली गोली और नकली गोली में फर्क नहीं पता।”



    बलवंत सिंह ने हैरानी से पूछा, “फिल्मी ड्रामेबाज़? यहाँ? सरहद पर?”



    राजवीर ने झुंझलाकर कहा, “हाँ, सूबेदार साहब! एक फिल्म यूनिट आ रही है। ‘सरहद’ नाम की फिल्म बना रहे हैं। सोचो ज़रा, हमारी सरहद को ये लोग फिल्म का सेट बना देंगे। यहाँ जहां हम खून-पसीना बहाते हैं, रातों को जागकर पहरा देते हैं, वहाँ ये लोग नाच-गाना करेंगे, नकली गोलियाँ चलाएँगे, और बोलेंगे ‘एक्शन, कट’!”



    बलवंत सिंह ने अपना सिर खुजाया, “लेकिन सर, ये लोग तो देश के बारे में ही फिल्म बना रहे होंगे। हमारे बारे में।”



    राजवीर ने तिरस्कार से कहा, “हमारे बारे में? इन्हें क्या पता हमारे बारे में? इन्हें लगता है, फौजी का मतलब सिक्स-पैक एब्स और स्मार्ट यूनिफॉर्म। अरे, फौजी का मतलब है 24 घंटे अलर्ट रहना, ठंडी बर्फ़ में बिना सोए पहरा देना, परिवार से दूर रहना, और हर पल मौत को सामने देखना। यह कोई ‘इमोशन’ नहीं, यह हकीकत है! और ये लोग उसे ‘कहानी’ बनाकर दिखाएँगे।”



    राजवीर ने मैदान में ट्रेनिंग ले रहे जवानों की तरफ देखा, जो पसीने से तरबतर थे। “अब हमें इनकी निगरानी करनी होगी। मेक श्योर कि ये लोग हमारे ऑपरेशन में कोई दखल न दें। कोई ख़ुफ़िया जानकारी बाहर न जाए। और सबसे ज़रूरी, ये लोग अपनी ‘कलाकारी’ के चक्कर में किसी मुश्किल में न पड़ें, क्योंकि अगर कुछ हुआ, तो जवाब हमें ही देना पड़ेगा।”



    बलवंत सिंह ने पूछा, “कब तक पहुँचेंगे ये लोग, सर?”



    राजवीर ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा, “जितनी जल्दी हो सके। जनरल साहब ने कहा है कि उनकी डायरेक्टर को ‘असली’ लोकेशन चाहिए। उसे लगता है कि यहाँ की मिट्टी में ही ‘इमोशन’ है।” राजवीर ने ‘इमोशन’ शब्द पर ज़ोर देते हुए व्यंग्य किया। “जैसे हम यहाँ कोई इमोशनल ड्रामा करते हों।”



    बलवंत सिंह ने अपनी हँसी रोकी, “तो सर, हमें उनकी आवभगत भी करनी पड़ेगी?”



    राजवीर ने कड़े स्वर में कहा, “आवभगत नहीं, सूबेदार साहब! हमारी ड्यूटी! हम यहाँ मेहमान नवाज़ी करने के लिए नहीं बैठे हैं। हम यहाँ देश की सुरक्षा के लिए बैठे हैं। ये फिल्म वाले हमारे लिए एक और ज़िम्मेदारी हैं, और कुछ नहीं। बस, ये लोग अपने ‘शॉट्स’ लें और जितनी जल्दी हो सके, ‘पैक-अप’ करके निकलें।”



    राजवीर ने फिर से जवानों की तरफ देखा। “आज से हर जवान की अतिरिक्त ड्यूटी है। कैंप के बाहर कोई भी अनजान व्यक्ति नहीं जाएगा। कोई भी ख़ुफ़िया बात यूनिट वालों से शेयर नहीं की जाएगी। उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखी जाएगी। मुझे नहीं चाहिए कि कोई भी ‘फिल्मी ड्रामा’ हमारी सरहद की शांति भंग करे। समझ गए सब?”



    बलवंत सिंह ने सलाम ठोका, “जी मेजर साहब! समझ गए।”



    राजवीर ने आसमान की तरफ देखा। सुबह की ठंडी हवा चल रही थी। उसके मन में एक ही बात घूम रही थी – ये शहरी, फिल्मी लोग यहाँ आकर क्या करेंगे? क्या उन्हें पता भी है कि सरहद पर ज़िंदगी का मतलब क्या होता है? उसे अपनी पोस्ट पर एक फिल्म यूनिट की निगरानी की ज़िम्मेदारी एक बड़े सरदर्द से कम नहीं लग रही थी। वह अपनी आँखों में झुंझलाहट लिए हुए, एक नए तूफान के आने का इंतज़ार करने लगा, जिसे रिया रॉय और उसकी ‘असली’ लोकेशन पर बनने वाली फिल्म ‘सरहद’ लेकर आ रही थी।

  • 3. एक्शन-कट-लव - Chapter 3

    Words: 37

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 3
    (भारत-पाक सीमा पर स्थित आर्मी कैंटोनमेंट में सुबह की पहली किरणें पहाड़ों से झाँक रही थीं। ठंडी, शुष्क हवा में मिट्टी और डीज़ल की मिली-जुली गंध थी, जो एक फौजी छावनी की पहचान होती है। दूर से जवानों के ट्रेनिंग की धीमी-धीमी आवाज़ें आ रही थीं, एक अनुशासित, लयबद्ध धुन की तरह। इसी शांति और अनुशासन को भंग करती हुई, धूल उड़ाती हुई दो-तीन चमचमाती गाड़ियाँ और एक बड़ी बस, जिसमें फिल्म यूनिट का सामान और क्रू था, कैंटोनमेंट के मुख्य गेट पर आकर रुकीं।)



    गेट पर तैनात संतरी ने अपनी राइफल सीधी करते हुए उन्हें अंदर आने का इशारा किया। गाड़ियाँ और बस धीरे-धीरे अंदर दाखिल हुईं। बस के अंदर बैठी मुंबई की चकाचौंध वाली फिल्म टीम, कैंटोनमेंट का सादा, अनुशासित माहौल देखकर थोड़ी असहज हो गई। कुछ लोग फुसफुसा रहे थे, कुछ खिड़की से बाहर झाँककर हैरान हो रहे थे।



    "यार, ये क्या जगह है? ऐसा लग रहा है किसी मिलिट्री स्कूल में आ गए हों!" एक लाइटमैन ने मुँह बनाकर कहा।



    एक मेकअप आर्टिस्ट ने अपने पाउडर का डिब्बा निकालते हुए कहा, "हे भगवान! यहाँ तो हवा में भी अनुशासन है। मेरा मेकअप पिघल जाएगा इस धूप और धूल में।"



    राहुल, जो असिस्टेंट डायरेक्टर था, ने बस से उतरते हुए चारों ओर देखा। "देखो, मैंने कहा था न, यह जगह वैसी नहीं है जैसी तुम फिल्मों में देखते हो।"



    तभी, रिया रॉय, एक हल्की जैकेट और कैजुअल कपड़ों में, अपनी एसयूवी से उतरी। उसकी आँखों में चमक थी, चेहरे पर एक रोमांचक मुस्कान। उसने चारों ओर देखा और एक गहरी साँस ली, जैसे इस हवा को अपने अंदर भर लेना चाहती हो। यह जगह उसके लिए सिर्फ एक लोकेशन नहीं, बल्कि उसके सपने की हकीकत थी।



    "असली! बिलकुल असली! राहुल, देखो यहाँ की मिट्टी, यहाँ की हवा! यही तो चाहिए था मेरी फिल्म को।" रिया ने खुशी से कहा।



    स्नेहा, जो प्रोडक्शन हेड थी, उसके पीछे उतरते हुए बोली, "रिया, ज़रा संभलकर। यह कोई फिल्म सिटी नहीं है। हमें पहले मेजर राजवीर शेखावत से मिलना होगा। वही हमारे होस्ट हैं, और वही इंचार्ज भी।"



    रिया ने उत्साह से कहा, "हाँ, हाँ! कहाँ हैं वह मिस्टर नो-ड्रामा? मुझे उनसे तुरंत मिलना है। मेरे दिमाग में एक बहुत ज़रूरी शॉट है, जिसके लिए मुझे उनकी परमिशन चाहिए।"



    स्नेहा ने समझाया, "रिया, ज़रा आराम से। पहले सामान उतार लेते हैं, सबको एडजस्ट होने दो।"



    "नहीं! टाइम नहीं है। हमें हर मिनट का फायदा उठाना है। मेरी फिल्म का एक अहम सीन है, जिसके लिए आज ही बात करनी होगी।" रिया ने तुरंत जवाब दिया। वह किसी भी इंतज़ार के मूड में नहीं थी। उसके लिए, हर पल उसकी फिल्म के लिए कीमती था।



    रिया अपनी टीम को पीछे छोड़कर आगे बढ़ी। कुछ ही देर में उसे मेजर राजवीर शेखावत दिखाई दिए। वह अपने ऑफिस के बाहर खड़े थे, कुछ जवानों को निर्देश दे रहे थे। उनका शरीर एकदम कसा हुआ था, उनकी यूनिफॉर्म पर एक भी सिकुड़न नहीं थी। चेहरा गंभीर और आँखें पैनी थीं, जैसे हर चीज़ को स्कैन कर रही हों। रिया को लगा कि वह ऐसे इंसान से मिलने जा रही है जो भावनाओं से नहीं, बल्कि सिर्फ नियमों से चलता है।



    रिया मुस्कुराते हुए उनके पास गई। "मेजर राजवीर शेखावत? मैं रिया रॉय हूँ, फिल्म ‘सरहद’ की डायरेक्टर।" उसने हाथ बढ़ाने के लिए अपना हाथ उठाया।



    राजवीर ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखों में कोई भाव नहीं था। उसने रिया के हाथ की तरफ नहीं देखा, बस अपने जवानों को दूर जाने का इशारा किया। फिर उसने सपाट आवाज़ में कहा, "हाँ। मुझे सूचना मिल गई थी। वेलकम टू द कैंटोनमेंट, मैडम डायरेक्टर।" उसके स्वर में ‘वेलकम’ से ज़्यादा, ‘यहाँ क्या कर रही हो’ का भाव था।



    रिया ने अपना हाथ वापस खींच लिया, थोड़ी असहज हो गई। "थैंक यू, मेजर। मुझे खुशी है कि हमें यहाँ आने की परमिशन मिली। यह मेरे लिए बहुत ख़ास प्रोजेक्ट है।"



    राजवीर ने सीधे उसकी आँखों में देखा, "मैं जानता हूँ, मैडम। मुझे बताया गया है कि यह फिल्म सेना के सम्मान में बन रही है। लेकिन यहाँ कुछ नियम हैं, जिनका आपको पालन करना होगा।"



    "जी, बिलकुल। हम नियमों का पूरा पालन करेंगे। लेकिन मेजर, मुझे आपसे एक बहुत ज़रूरी सीन के लिए परमिशन चाहिए।" रिया ने तुरंत अपने एजेंडे पर बात करनी शुरू कर दी। उसके चेहरे पर वही जुनून आ गया था, जो उसे एक बेहतरीन डायरेक्टर बनाता था।



    राजवीर ने अपनी बाँहें मोड़ लीं, "बताइए।"



    रिया ने गहरी साँस ली, "मेरी फिल्म के क्लाइमेक्स में एक बहुत ही पावरफुल सीन है। जिसमें हमारा हीरो दुश्मन के बंकर को उड़ाता है। यह सीन फिल्म का टर्निंग पॉइंट है। मैं चाहती हूँ कि हम यहाँ पर एक नकली बंकर बनाएँ और उसे असली धमाके के साथ उड़ाएँ। मतलब, धमाका असली लगे, ताकि दर्शक हिल जाएँ। वह विस्फ़ोट, वह आग, वह धुआँ... बिलकुल रियल।"



    राजवीर ने उसकी बात बड़े ध्यान से सुनी, लेकिन उसके चेहरे पर कोई बदलाव नहीं आया। जैसे वह कोई कविता नहीं, बल्कि मौसम का हाल सुन रहा हो। रिया अपनी बात खत्म कर, राजवीर के जवाब का इंतज़ार करने लगी, उसकी आँखों में उम्मीद भरी थी।



    राजवीर ने एक पल का विराम लिया, फिर अपनी गंभीर आवाज़ में कहा, "मैडम, यह फिल्म का सेट नहीं है। यह असली सरहद है। यहाँ नकली बंकर भले ही बन जाए, लेकिन उसमें असली बारूद इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं मिलेगी। यहाँ असली बारूद है, और उसे उड़ाने की इजाज़त नहीं मिलेगी।" उसकी आवाज़ में न कोई गुस्सा था, न कोई भावना, बस एक स्पष्ट और अटल इनकार।



    रिया चौंक गई। उसके चेहरे से सारी मुस्कान गायब हो गई। "क्या? लेकिन मेजर... यह तो मेरी फिल्म का सबसे अहम शॉट है। मुझे वह रियलिस्टिक फील चाहिए। दर्शक को लगना चाहिए कि यह असली है।"



    राजवीर ने अपना सिर हिलाया, "मैडम, दर्शक को जो महसूस कराना है, वह आपकी कलाकारी है। लेकिन यहाँ हकीकत कुछ और है। यहाँ एक छोटा सा भी धमाका, चाहे वह कितना भी 'फिल्मी' क्यों न हो, दुश्मन को गलत संदेश दे सकता है। हमारी सुरक्षा के प्रोटोकॉल्स हैं। हम किसी फिल्मी शॉट के लिए अपने जवानों की जान जोखिम में नहीं डाल सकते। और न ही यहाँ के संवेदनशील माहौल को बिगाड़ सकते हैं।"



    रिया ने गुस्से से कहा, "लेकिन सर, हम तो सिर्फ... हम अपनी फिल्म से जवानों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। और हमें यह रियलिस्टिक बनाना है। हम कोई खतरा पैदा नहीं करेंगे। हम आपकी पूरी निगरानी में काम करेंगे।"



    "मैडम, आप नहीं समझ रही हैं। यह सरहद है। यहाँ एक छोटी सी चिनगारी भी बड़ी आग लगा सकती है। हम अपनी आर्टिलरी को 'फिल्मी' धमाके के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते। और असली बारूद तो छोड़िए, यहाँ कोई भी अनियंत्रित विस्फ़ोट नहीं होगा।" राजवीर ने अपनी बात पर अड़िग रहते हुए कहा, उसकी आवाज़ में अब हल्का सा झुंझलाहट आ गई थी।



    रिया ने आँखें तरेरीं। "तो क्या... तो क्या मेरी फिल्म में एक्शन नहीं होगा? मैं अपने दर्शकों को क्या दिखाऊँगी? एक नकली, बेकार सा धमाका?"



    राजवीर ने थोड़ी खामोशी के बाद कहा, "मैडम, आपकी फिल्म में एक्शन होगा या नहीं, यह आपकी क्रिएटिविटी है। लेकिन यहाँ, जहाँ हम खड़े हैं, यहाँ एक्शन रोज़ होता है। वह असली एक्शन होता है, बिना किसी कैमरे या 'एक्शन, कट' के। और उस एक्शन में, जान जाती है। हम उसका मज़ाक नहीं उड़ा सकते।"



    रिया का पारा चढ़ गया। उसे लगा यह आदमी उसकी कला को समझ ही नहीं रहा है। "आप मुझे मज़ाक उड़ाने वाली क्यों समझ रहे हैं? मैं बहुत गंभीर हूँ अपनी फिल्म को लेकर। यह मेरे दादाजी, कर्नल अभय रॉय को श्रद्धांजलि है, जो इसी सरहद पर लड़े थे!"



    राजवीर के चेहरे पर पहली बार एक हल्का सा बदलाव आया, एक पल के लिए। "कर्नल अभय रॉय?" उसने पूछा, जैसे नाम सुना हो। लेकिन फिर तुरंत अपने सख्त भाव पर वापस आ गया। "चाहे वह कोई भी हो, नियम सबके लिए समान हैं। नो एक्सप्लोजन। क्लियर है?"



    रिया के लिए यह एक सीधा 'नो' था, जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। उसने मुँह बनाकर कहा, "क्लियर, मेजर। बहुत क्लियर।" उसकी आवाज़ में कड़वाहट थी। "मुझे समझ आ गया कि आप हैं 'मिस्टर नो-ड्रामा'।"



    राजवीर ने उसकी बात को अनदेखा किया। "कोई और सवाल?"



    रिया ने गुस्से में अपना सिर हिलाया, "नहीं। फ़िलहाल नहीं।" वह तेज़ी से पीछे मुड़ी और अपनी टीम की तरफ बढ़ने लगी, जो दूर खड़ी यह सब देख रही थी।



    राहुल उसके पास आया। "क्या हुआ रिया? हो गई बात?"



    रिया ने चिढ़कर कहा, "बात क्या होती? वह आदमी पत्थर का बना है, राहुल। मैंने उसे अपने सबसे अहम शॉट के बारे में बताया, और उसने एक झटके में 'नो' कह दिया। बिलकुल रूखेपन से। जैसे मैं कोई बच्चों का खेल खेलने आई हूँ।"



    स्नेहा ने कहा, "मैंने कहा था न। वह बहुत सख्त है।"



    "सख्त नहीं, अमानवीय है! उसे नहीं पता कि एक डायरेक्टर के लिए एक परफेक्ट शॉट कितना ज़रूरी होता है।" रिया ने गुस्से से कहा। उसकी आँखों में अब उस सख्त मेजर के लिए कोई सम्मान नहीं था, केवल झुंझलाहट थी। "उसे सिर्फ 'हकीकत' चाहिए। वह भूल रहा है कि 'कहानी' भी हकीकत को ही दिखाती है।"



    दूसरी तरफ, राजवीर ने अपने पास खड़े सूबेदार बलवंत सिंह की तरफ देखा।



    "सूबेदार साहब, मुझे लगता है यह मैडम हमें रोज़ एक नया 'ड्रामा' दिखाएंगी।" राजवीर ने व्यंग्य किया। "इन्हें बंकर उड़ाना है। नकली वाला। अरे! असली से तो इन्हें डर लगता है, और नकली से ही ड्रामा करेंगे।"



    बलवंत सिंह ने हँसते हुए कहा, "जी मेजर साहब। लगता है अब हमें शूटिंग के अलावा, एक्टिंग भी सीखनी पड़ेगी।"



    राजवीर ने गंभीर होकर कहा, "नहीं सूबेदार साहब। हम एक्टिंग नहीं करेंगे। हम अपनी ड्यूटी करेंगे। और इन्हें दिखाएंगे कि असली सरहद क्या होती है। इन्हें पता चलना चाहिए कि यहाँ हर चीज़ असली होती है। कोई ‘एक्शन’ और ‘कट’ नहीं।"



    रिया ने दूर खड़े राजवीर को गुस्से से देखा। उसने मन ही मन उस आदमी को 'मिस्टर नो-ड्रामा' नाम दिया। यह उनके बीच 'कहानी' और 'हकीकत' की पहली और सबसे बड़ी टक्कर थी। एक ऐसी टक्कर, जिसने यह तय कर दिया था कि आने वाले दिन कितने मुश्किल और दिलचस्प होने वाले थे। एक डायरेक्टर अपनी दुनिया का 'ड्रामा' लिए आई थी, और एक फौजी अपनी दुनिया की 'हकीकत' से उसे रूबरू कराने को तैयार था।

  • 4. एक्शन-कट-लव - Chapter 4

    Words: 22

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 4
    (आर्मी कैंटोनमेंट में रिया रॉय और मेजर राजवीर शेखावत के बीच पहली नोक-झोंक हुए कुछ ही घंटे बीते थे। हवा में अभी भी उस तकरार की हल्की सी खटास घुली हुई थी। रिया अपनी टीम के साथ अपने टेंट सिटी की तरफ जा रही थी, मन ही मन 'मिस्टर नो-ड्रामा' को कोस रही थी। तभी अचानक एक तेज़ इंजन की आवाज़ ने पूरे माहौल को चीर दिया। दूर से, धूल का गुबार उड़ाती हुई एक चमकदार काली रेंज रोवर, जिसके शीशे पूरी तरह से काले थे, कैंटोनमेंट के मुख्य गेट की तरफ आती दिखाई दी। उसके पीछे कुछ और गाड़ियाँ भी थीं। यह साफ़ था कि कोई वीआईपी मेहमान आ रहा है।)





    कुछ जवानों ने तुरंत हरकत में आकर गेट पर पोजीशन ले ली। मेजर राजवीर शेखावत, जो अपने ऑफिस के पास खड़े थे, ने भी सिर उठाकर उस तरफ देखा। उनके चेहरे पर पहले ही फिल्म यूनिट को लेकर झुंझलाहट थी, और अब इस नई आमद ने उनकी परेशानी और बढ़ा दी। गाड़ियाँ गेट से अंदर आईं और ठीक बीच मैदान में, जहाँ फिल्म यूनिट के टेंट लगे थे, आकर रुक गईं।





    रिया की टीम ने भी गाड़ियों को देखा और सब उत्सुकता से उस तरफ बढ़ने लगे। "कौन आ रहा है? कोई और बड़ा अधिकारी?" राहुल, असिस्टेंट डायरेक्टर ने पूछा।





    स्नेहा, प्रोडक्शन हेड ने मुस्कुराते हुए कहा, "नहीं, राहुल। यह कोई अधिकारी नहीं है। लगता है हमारा सुपरस्टार हीरो आ गया है। आरव कपूर।"





    रिया ने अपनी आँखें सिकोड़ लीं। "आरव? अभी से? उसकी तो कल आने की बात थी। हमेशा अपने टाइम पर नहीं आता।" उसके स्वर में हल्की सी चिढ़ थी, क्योंकि उसे आरव के नखरों की अच्छी जानकारी थी।





    काली रेंज रोवर का शीशा धीरे से नीचे हुआ। अंदर से एक धूप का चश्मा लगाए, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए आरव कपूर ने अपना चेहरा बाहर निकाला। उसके बाल परफेक्टली सेट थे, जैकेट ब्रांडेड थी, और उसकी हर अदा में 'मैं सुपरस्टार हूँ' वाला घमंड साफ़ दिख रहा था। उसने अपने चश्मे को नीचे खिसकाते हुए चारों तरफ देखा। उसकी आँखों में चमक नहीं, बल्कि एक तरह की निराशा थी।





    "हे भगवान! ये क्या जगह है? यहाँ तो ठीक से नेटवर्क भी नहीं आ रहा होगा!" आरव ने अपनी असिस्टेंट से कहा, जिसने तुरंत एक कोल्ड ड्रिंक की बॉटल उसके हाथ में पकड़ा दी।





    वह गाड़ी से उतरा, और जैसे ही उसके पैर मिट्टी पर पड़े, उसने मुँह बना लिया। "उफ़्फ़! डस्ट! मेरी न्यू स्नीकर्स! क्या ये लोग यहाँ की मिट्टी हटा नहीं सकते थे?" उसने पैर पटकते हुए कहा।





    उसका पर्सनल ट्रेनर, मैनेजर और दो बॉडीगार्ड भी उसके पीछे-पीछे उतर गए। आरव ने कैंटोनमेंट की सादगी को देखा – सैनिकों के टेंट, साधारण बैरक, और धूल भरी ज़मीन। उसकी उम्मीदें, जो मुंबई के एयरकंडीशन्ड स्टूडियो से थीं, टूटती नज़र आईं।





    "वेलकम, आरव!" स्नेहा ने दौड़कर उसके पास आकर कहा। "कैसी रही जर्नी?"





    आरव ने मुँह बनाकर कहा, "जर्नी? पूछो मत, स्नेहा। रास्ता इतना खराब था कि मेरी रीढ़ की हड्डी में दर्द हो गया। और ये कौन सी जगह है? यहाँ तो फाइव स्टार होटल दूर की बात, ढंग का गेस्ट हाउस भी नहीं है।"





    स्नेहा ने सफाई दी, "आरव, यह आर्मी कैंटोनमेंट है। यहाँ सब कुछ बहुत बेसिक होता है। हमें यहाँ टेंट मिले हैं रहने के लिए।"





    "टेंट? मैं टेंट में रहूँगा? सीरियसली? क्या तुम मेरा मज़ाक कर रही हो?" आरव की आवाज़ में हैरानी और गुस्सा दोनों था। "मेरे कॉन्ट्रैक्ट में क्लियरली लिखा है कि मुझे लक्ज़री अकोमोडेशन चाहिए। मैं कोई पिकनिक मनाने नहीं आया हूँ। मैं एक सुपरस्टार हूँ, स्नेहा! मेरी इमेज है।"





    तभी रिया उसके पास आई। "आरव, वेलकम। शांत हो जाओ। हमें यहाँ एडजस्ट करना होगा। यह फिल्म की डिमांड है।"





    आरव ने रिया की तरफ देखा, उसकी बात सुनकर और भड़क गया। "फिल्म की डिमांड? रिया, तुम्हारी फिल्म के लिए मैं अपनी हेल्थ और कम्फर्ट क्यों कॉम्प्रोमाइज़ करूँ? मुझे तुरंत वाई-फाई चाहिए। हाई स्पीड! मेरे लिए मिनरल वाटर का स्टॉक कहाँ है? और मेरा पर्सनल जिम इक्विपमेंट कहाँ है? मुझे अपनी सिक्स-पैक एब्स मेंटेन करनी है। कल से मेरी ट्रेनिंग शुरू होनी है, फौजी वाले रोल के लिए।"





    रिया ने गहरी साँस ली, "आरव, वाई-फाई यहाँ नहीं मिलेगा। यह बॉर्डर एरिया है। मिनरल वाटर जितना है, उतना मिलेगा। और जिम... यहाँ आर्मी का जिम है, लेकिन..."





    "आर्मी का जिम? मतलब पुराने, जंग लगे वेट्स और कोई मॉडर्न इक्विपमेंट नहीं?" आरव ने घिनौनी सूरत बनाई। "रिया, तुम जानती हो मेरा फिटनेस रूटीन कितना स्ट्रिक्ट है। मैं कैसे परफॉर्म करूँगा? बिना वाई-फाई के मैं सोशल मीडिया कैसे अपडेट करूँगा? मेरे फैन्स इंतज़ार कर रहे होंगे।"





    उसकी इन बचकानी बातों ने पूरी टीम को परेशान कर दिया। राहुल ने बगल में खड़े लाइटमैन से फुसफुसाकर कहा, "इसे फौजी का रोल दिया है, ये तो 5 मिनट भी धूप में खड़ा नहीं हो सकता।"





    दूर से मेजर राजवीर शेखावत यह सारा ड्रामा देख रहे थे। उनके बगल में सूबेदार बलवंत सिंह खड़ा था।





    "देख सूबेदार साहब! आ गया 'हीरो'।" राजवीर ने व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ कहा। "यह बनेगा फौजी? यह तो 5 मिनट भी धूप में खड़ा नहीं हो सकता। इसकी बॉडी और इसकी अकड़ देखकर लगता है, यह असली दुश्मन को तो क्या, मच्छरों को भी नहीं भगा पाएगा।"





    बलवंत सिंह ने हँसी दबाते हुए कहा, "लगता है मेजर साहब, इनके लिए हमें फाइव स्टार होटल का इंतज़ाम करना पड़ेगा।"





    राजवीर ने अपना सिर हिलाया। "इनके लिए यहाँ सिर्फ एक ही इंतज़ाम है – अनुशासन। और उस अनुशासन के आगे कोई सुपरस्टार नहीं, कोई फाइव स्टार होटल नहीं। ये यहाँ फौजी का किरदार निभाने आए हैं, तो इन्हें फौजी की तरह रहना सीखना होगा। चाहे वह पसंद करें या न करें।"





    आरव अभी भी अपनी माँगों पर अड़ा था। "रिया, मुझे अपने रूम में एसी चाहिए। यहाँ इतनी गर्मी है।"





    रिया ने अपना माथा पीट लिया। "आरव, यहाँ बिजली भी मुश्किल से आती है। एसी कहाँ से लाएँगे? और यह अभी मार्च का महीना है, कहाँ गर्मी है?"





    "गर्मी है! मैं सेंसिटिव हूँ। मुझे रैशेस हो जाते हैं।" आरव ने बच्चों की तरह शिकायत की। "मैं शूटिंग नहीं करूँगा अगर मुझे बेसिक कम्फर्ट नहीं मिला।"





    राजवीर ने उसकी बातें सुनीं और एक गहरी साँस ली। वह धीरे-धीरे आरव की तरफ बढ़ने लगा। उसके चेहरे पर वही सख्त और बेपरवाह भाव था। रिया और उसकी टीम ने राजवीर को अपनी तरफ आते देखा और सब चुप हो गए। आरव ने भी देखा कि कोई यूनिफॉर्म में उसकी तरफ आ रहा है।





    राजवीर आरव से कुछ ही दूरी पर रुका। उसने अपनी नज़रें आरव के महंगे स्नीकर्स से लेकर उसके चमकते बालों तक घुमाईं।





    "कपूर साहब?" राजवीर ने अपनी भारी, ठोस आवाज़ में कहा।





    आरव ने थोड़ा अकड़ते हुए कहा, "जी, मैं आरव कपूर। फिल्म का हीरो।" उसने अपना धूप का चश्मा हटाकर राजवीर की तरफ देखा।





    राजवीर ने हल्का सा सिर हिलाया। "मेजर राजवीर शेखावत। मैं यहाँ आपकी और आपकी टीम की सुरक्षा का ज़िम्मेदार हूँ।" उसकी आवाज़ में कोई सम्मान नहीं था, बस एक तथ्य था। "मुझे बताया गया है कि आपको कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।"





    आरव ने तुरंत शिकायतों की लिस्ट शुरू कर दी, "हाँ, मेजर। बहुत सारी समस्याएँ हैं। मुझे वाई-फाई चाहिए, मिनरल वाटर चाहिए, एसी चाहिए, और मेरा पर्सनल जिम..."





    राजवीर ने उसे बीच में ही रोक दिया। "कपूर साहब, यह कोई फिल्म का प्रीमियर नहीं है जहाँ रेड कार्पेट बिछेगा और आपके लिए सारी सुविधाएँ होंगी।" उसकी आवाज़ में अब हल्की सी गंभीरता थी। "यह आर्मी कैंटोनमेंट है, जो देश की सरहद पर है। यहाँ जो सुविधाएँ हमारे जवानों को मिलती हैं, वही आपको मिलेंगी। और वह भी सिर्फ इसलिए, क्योंकि आप हमारे मेहमान हैं।"





    आरव का मुँह खुला रह गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि कोई उससे इस तरह बात करेगा। "लेकिन मेजर... मैं एक सुपरस्टार हूँ। मेरे फैन्स..."





    राजवीर ने उसे फिर से टोका। "कपूर साहब, यहाँ सिर्फ एक ही सुपरस्टार है – भारतीय सेना का जवान। जिसके लिए कोई एसी नहीं होता, कोई मिनरल वाटर नहीं होता। उसे 24 घंटे अलर्ट रहना होता है, चाहे माइनस में टेम्प्रेचर हो या 45 डिग्री की गर्मी। उसे बर्फ में भी अपनी पोस्ट पर खड़े रहना होता है, बिना वाई-फाई के, बिना अपने परिवार से बात किए, बस देश की सुरक्षा के लिए।"





    राजवीर ने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा, "आपको सिक्स-पैक एब्स चाहिए? अच्छी बात है। लेकिन असली फौजी के पास सिर्फ सिक्स-पैक नहीं, बल्कि फौलादी इरादे और अटूट हौसला होता है। और वह यहाँ की धूल और मिट्टी में लिपटकर भी कभी शिकायत नहीं करता।"





    आरव की सारी अकड़ हवा हो गई। रिया और उसकी टीम भी हैरान थी। किसी ने राजवीर को आरव से इस तरह बात करते हुए नहीं देखा था। आरव को पहली बार किसी ने इतने सीधे और बेबाक तरीके से उसकी हकीकत दिखाई थी। वह शर्मिंदा हो गया, उसका चेहरा लाल पड़ गया।





    "अब अगर आपकी सारी शिकायतें ख़त्म हो गई हों, तो आप अपने टेंट में जा सकते हैं। और हाँ, यहाँ रात को 10 बजे के बाद कोई शोर-शराबा नहीं होगा। हमें आराम करना होता है।" राजवीर ने अपनी बात ख़त्म की और आरव की तरफ से मुड़ गया।





    आरव कुछ बोल नहीं पाया। वह चुपचाप अपनी असिस्टेंट की तरफ मुड़ा, जिसने उसे लगभग घसीटते हुए उसके टेंट की तरफ ले जाना शुरू कर दिया। रिया ने राजवीर की तरफ देखा। उसे लगा कि यह आदमी न सिर्फ उसे, बल्कि उसके सुपरस्टार हीरो को भी 'हकीकत' का पाठ पढ़ाने पर तुला हुआ है। आरव का घमंड और शहरी रवैया, इस कैंटोनमेंट के अनुशासित माहौल में एक अजीब और मज़ेदार कंट्रास्ट पैदा कर रहा था, और यह तो अभी सिर्फ शुरुआत थी। राजवीर के चेहरे पर एक हल्की सी विजय की मुस्कान थी, जैसे उसने अपनी पहली जंग जीत ली हो, बिना एक भी गोली चलाए।

  • 5. एक्शन-कट-लव - Chapter 5

    Words: 28

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 5
    (मेजर राजवीर शेखावत द्वारा आरव कपूर को उसकी 'सुपरस्टार' वाली अकड़ दिखाने के कुछ ही देर बाद, पूरे कैंटोनमेंट में एक अजीब सी चुप्पी छा गई थी। आरव, जो कभी अपनी आवाज़ के जादू से लाखों दिलों पर राज करता था, अब अपने टेंट में चुपचाप बैठा, दीवारों को घूर रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी 'स्टार पावर' यहाँ क्यों काम नहीं कर रही थी। उधर, रिया रॉय और उसकी टीम भी राजवीर के सख्त रवैये से परेशान थी। उन्हें लगने लगा था कि यह जगह उनके सपनों की शूटिंग लोकेशन कम, एक मिलिट्री जेल ज़्यादा है।)





    रिया ने अपनी टीम को इकट्ठा किया। "यह आदमी हमें काम करने ही नहीं देगा! पहले बंकर का धमाका मना किया, अब आरव पर चढ़ गया। मुझे समझ नहीं आ रहा, हम यहाँ फिल्म बनाने आए हैं या उनकी ट्रेनिंग लेने?" उसकी आवाज़ में निराशा और गुस्सा दोनों था।





    स्नेहा ने कहा, "रिया, हमें शांत रहना होगा। यह उनका एरिया है, और यहाँ उनकी मर्जी चलेगी।"





    "उनकी मर्जी चलेगी? मतलब हम अपनी क्रिएटिविटी को ताक पर रख दें?" रिया ने अपनी बात पर ज़ोर दिया।





    तभी, एक जवान रिया के पास आया। "मैडम, मेजर साहब ने पूरी फिल्म यूनिट को अभी कॉन्फ्रेंस हॉल में बुलाया है। कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं।"





    रिया ने राहुल की तरफ देखा, "लगता है अब हमें लेक्चर मिलने वाला है। चलो, देखते हैं 'मिस्टर नो-ड्रामा' और क्या ज्ञान देने वाले हैं।" वह अपनी टीम के साथ भारी कदमों से कॉन्फ्रेंस हॉल की तरफ बढ़ी।





    कॉन्फ्रेंस हॉल, एक सादा, लेकिन बड़ा कमरा था, जिसमें लंबी-लंबी लकड़ी की मेज़ें और कुर्सियाँ थीं। हॉल के एक छोर पर एक बड़ा नक्शा लगा था और दूसरी तरफ कुछ सैन्य सम्मान चिन्ह। जब फिल्म यूनिट के लोग अंदर आए, तो हॉल में पहले से ही कुछ फौजी जवान और अधिकारी बैठे थे, जिनमें सूबेदार बलवंत सिंह भी शामिल थे।





    जैसे ही फिल्म यूनिट ने अपनी जगह ली, मेजर राजवीर शेखावत हॉल में दाखिल हुए। उनके आने से एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया। उन्होंने किसी की तरफ नहीं देखा, सीधे हॉल के सामने खड़े होकर, मेज़ पर रखे कागज़ों के ढेर को उठाया। उनकी चाल में वही अनुशासन और रौब था जो एक फौजी की पहचान होती है।





    "गुड इवनिंग, एवरीवन।" राजवीर ने अपनी भारी, गंभीर आवाज़ में कहा, जिसमें कोई गर्मजोशी नहीं थी। "मैं मेजर राजवीर शेखावत हूँ। आप सब यहाँ 'सरहद' फिल्म की शूटिंग के लिए आए हैं।"





    किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। सब चुपचाप उसकी बात सुन रहे थे, जैसे किसी स्कूल के बच्चे अपने हेडमास्टर को सुन रहे हों।





    राजवीर ने अपनी बात जारी रखी, "मैं आपको यहाँ आने की वजह और आपकी सुरक्षा से जुड़े कुछ ज़रूरी नियमों के बारे में बताने आया हूँ।" उसने कागज़ों का ढेर मेज़ पर रखा। "मैं उम्मीद करता हूँ कि आप सभी इन नियमों का गंभीरता से पालन करेंगे। यह कोई फिल्म सेट नहीं है, यह एक संवेदनशील बॉर्डर एरिया है। यहाँ हर छोटी-छोटी बात का बड़ा मतलब हो सकता है।"





    रिया ने फुसफुसाकर राहुल से कहा, "ये क्या बोल रहे हैं? हमें क्या नर्सरी के बच्चे समझते हैं?"





    राजवीर ने अपनी पहली शर्त रखी, "सबसे पहला नियम, और सबसे महत्वपूर्ण – रात 10 बजे के बाद इस कैंटोनमेंट में किसी भी तरह का शोर-शराबा वर्जित है। रात 10 बजे के बाद सभी को अपने अलॉटेड टेंट में रहना होगा और आराम करना होगा। यहाँ जवान दिन-रात ड्यूटी करते हैं, उन्हें रात में पर्याप्त आराम चाहिए होता है।"





    फिल्म टीम के कुछ सदस्यों ने मुँह बनाकर एक-दूसरे की तरफ देखा। उन्हें देर रात तक शूटिंग करने और पार्टी करने की आदत थी।





    "दूसरा नियम," राजवीर ने जारी रखा, "आपको कैंटोनमेंट के किसी भी प्रतिबंधित या संवेदनशील क्षेत्र में जाने की इजाज़त नहीं है, चाहे वह दिन हो या रात। बिना हमारी परमिशन के, आप किसी भी पोस्ट, बंकर या कम्युनिकेशन टॉवर के पास नहीं जाएंगे। अगर आपको किसी खास लोकेशन पर शूटिंग करनी है, तो उसके लिए पहले से लिखित परमिशन लेनी होगी।"





    रिया की आँखों में झुंझलाहट साफ़ दिख रही थी। उसे लग रहा था कि यह तो उसकी क्रिएटिविटी की हत्या है।





    "तीसरा नियम, और इसे ध्यान से सुनिए," राजवीर ने अपनी आवाज़ थोड़ी और गंभीर की। "कैंटोनमेंट के अंदर या उसके आसपास किसी भी आर्मी इंस्टॉलेशन, हथियार, या हमारे जवानों की तस्वीरें या वीडियो लेना सख्त मना है। आप केवल वही शूट कर सकते हैं जिसकी आपको परमिशन मिली है। अगर कोई भी व्यक्ति इसका उल्लंघन करता पाया गया, तो उसका कैमरा जब्त कर लिया जाएगा और उसे तुरंत यहाँ से वापस भेज दिया जाएगा। आपकी पूरी फुटेज की स्क्रूटनी होगी।"





    आरव कपूर, जो अब तक चुपचाप बैठा था, उसने अपने कान खड़े कर लिए। उसे अपनी 'फौजी' वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट करनी थीं।





    "चौथा, और यह सभी के लिए है," राजवीर ने आगे कहा। "यहाँ गंदगी फैलाना बिलकुल मना है। अपने खाने-पीने का सारा वेस्ट डस्टबिन में ही डालें। पानी बर्बाद न करें। और किसी भी फौजी इक्विपमेंट को न छुएँ, न ही उसे नुकसान पहुँचाएँ।"





    एक मेकअप आर्टिस्ट ने फुसफुसाकर कहा, "लगता है हम वापस स्कूल में आ गए।"





    "कोई भी बाहरी व्यक्ति, खासकर स्थानीय गाँव के लोग, बिना हमारी अनुमति के कैंटोनमेंट के अंदर नहीं आ सकते। और आप उनके साथ किसी भी तरह की संवेदनशील जानकारी साझा नहीं करेंगे," राजवीर ने कहा। "आप यहाँ से बाहर निकलते समय भी हमारे जवानों को सूचित करेंगे। और हाँ, यहाँ शराब या किसी भी तरह के मादक पदार्थ का सेवन सख्त मना है। यह एक फौजी छावनी है, कोई पार्टी ज़ोन नहीं।"





    उसने एक गहरी साँस ली, "और आखिरी और सबसे ज़रूरी बात। अगर आपको कोई भी संदिग्ध गतिविधि दिखाई देती है, चाहे वह कोई व्यक्ति हो या कोई वस्तु, तो तुरंत हमारे जवानों को सूचित करें। यहाँ हर हरकत पर हमारी नज़र होती है, लेकिन आपकी सतर्कता भी ज़रूरी है।"





    राजवीर ने अपनी बात ख़त्म की और मेज़ पर रखे कागज़ रिया की तरफ बढ़ाए। "यह इन नियमों की पूरी लिस्ट है। मैं उम्मीद करता हूँ आप इसे अपनी पूरी टीम को समझा देंगी। अगर इनमें से किसी भी नियम का उल्लंघन होता है, तो हमें तुरंत शूटिंग रोकने और आपको यहाँ से वापस भेजने का अधिकार होगा। इसमें कोई बातचीत नहीं होगी।"





    रिया ने कागज़ लिए, लेकिन उसके चेहरे पर गुस्सा और निराशा साफ़ थी। "मेजर शेखावत!" उसने सीधे राजवीर की आँखों में देखते हुए कहा। उसकी आवाज़ में विरोध था।





    राजवीर ने अपनी भौंहें चढ़ाईं, "जी, मैडम डायरेक्टर?"





    "ये नियम... ये बहुत सख्त हैं! हमारी क्रिएटिविटी पर इसका असर पड़ेगा।" रिया ने ज़ोर देकर कहा। "फिल्म बनाना सिर्फ एक्शन और कट करना नहीं होता, यह एक कला है। इसके लिए माहौल चाहिए, आज़ादी चाहिए। अगर हमें हर चीज़ के लिए परमिशन लेनी होगी, हर कदम पर सोचना होगा, तो हम अपनी कहानी को कैसे जी पाएँगे? हम एक फिल्म बना रहे हैं, कोई मिलिट्री ड्रिल नहीं।"





    राजवीर ने एक पल के लिए रिया को देखा, जैसे उसे समझने की कोशिश कर रहा हो। फिर उसने सपाट आवाज़ में कहा, "मैडम, आप जो कह रही हैं, वह आपकी दुनिया की बात है। मेरी दुनिया में, यहाँ की सरहद पर, हर कदम सोच-समझकर उठाना पड़ता है। एक छोटी सी गलती भी देश को भारी पड़ सकती है। यहाँ की 'आज़ादी' हमारे जवानों की जान की कीमत पर आती है।"





    उसने अपनी आवाज़ में थोड़ा और भार डाला, "आपकी क्रिएटिविटी से ज़्यादा ज़रूरी यहाँ देश की सुरक्षा है। यह कोई फाइव स्टार होटल या स्टूडियो का सेट नहीं है, जहाँ आप देर रात पार्टी करें या मनचाही तस्वीरें खींचें। यह एक फौजी छावनी है, और यहाँ अनुशासन ही सबसे ऊपर है। अगर आपको यहाँ काम करना है, तो आपको इस माहौल के हिसाब से ढलना होगा। नहीं तो, आपके लिए मुंबई वापस जाने के रास्ते खुले हैं।"





    राजवीर की बात सुनकर रिया का चेहरा गुस्से से तमतमा गया। उसकी आँखों में आँसू लगभग आ गए थे, लेकिन उसने उन्हें वापस धकेल दिया। उसे लगा कि यह आदमी न सिर्फ उसकी कला को, बल्कि उसकी भावनाओं को भी रौंद रहा है।





    राहुल ने रिया के कंधे पर हाथ रखा, "रिया, शांत हो जाओ।"





    "नहीं, राहुल! मैं कैसे शांत हो जाऊँ? ये तो हमारी पूरी प्लानिंग बर्बाद कर देंगे।" रिया ने गुस्से में कहा।





    आरव कपूर ने भी मुँह बनाकर अपनी असिस्टेंट से कहा, "ये आदमी तो डायरेक्टर से भी ज़्यादा ड्रामा कर रहा है। इसे खुद एक्टिंग करनी चाहिए।"





    राजवीर ने आरव की तरफ देखा, उसकी आवाज़ सुनकर। आरव ने तुरंत अपनी नज़रें नीचे कर लीं।





    "मुझे लगता है कि मैंने अपनी बात स्पष्ट कर दी है।" राजवीर ने अपनी बात ख़त्म की। "यह कैंटोनमेंट है। यहाँ के नियम पत्थर की लकीर हैं। उम्मीद करता हूँ, आप सब इन्हें याद रखेंगे।" उसने हॉल से बाहर निकलने के लिए मुड़ गया।





    रिया ने अपने दाँत भींचे। उसे लगा जैसे उसने एक ज्वालामुखी को जगा दिया हो। यह उसके लिए सिर्फ नियमों की लड़ाई नहीं थी, बल्कि उसके जुनून और उसके दादाजी को श्रद्धांजलि देने के उसके सपने की लड़ाई थी। 'मिस्टर नो-ड्रामा' ने पहली बार उसे इतना असहाय महसूस कराया था। वह समझ गई थी कि आने वाले दिन उसके लिए किसी भी फिल्मी सेट से ज़्यादा चुनौतीपूर्ण होने वाले थे। यह युद्ध अब उसके और मेजर राजवीर शेखावत के बीच था – 'कहानी' बनाम 'हकीकत' का युद्ध।

  • 6. एक्शन-कट-लव - Chapter 6

    Words: 18

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 6
    (रात के नियमों और अनुशासन के लेक्चर के बाद, पूरी फिल्म यूनिट खुद को एक अजीब से शिकंजे में फंसा महसूस कर रही थी। रिया रॉय, अपने टेंट में बैठी, माथे पर हाथ रखे सोच रही थी कि इस आदमी से कैसे निपटा जाए। एक तरफ उसे अपनी फिल्म को असली बनाना था, और दूसरी तरफ उसे अपनी यूनिट को इस सख्त माहौल में ढालना था। सबसे बड़ी चुनौती थी उसका 'सुपरस्टार' हीरो आरव कपूर, जिसे देखकर तो लगता था कि वह 5 मिनट भी धूप में खड़ा नहीं हो सकता। रिया को एहसास हुआ कि उसकी फिल्म का हीरो, जो पर्दे पर एक बहादुर फौजी का किरदार निभाने वाला था, असल में उस किरदार की आत्मा को बिलकुल भी नहीं समझता था।)







    अगली सुबह, रिया ने चाय का कप उठाते हुए स्नेहा से कहा, "मुझे लगता है, आरव को असली फौजी वाली फील देनी होगी। वह सिर्फ अपनी बॉडी दिखा रहा है, किरदार में घुस नहीं पा रहा।"







    स्नेहा ने गहरी साँस ली, "रिया, आरव को संभालना ही अपने आप में एक फिल्म बनाने जैसा है। अब उसे ट्रेनिंग कौन देगा? हम तो कर नहीं सकते।"







    रिया की नज़र दूर राजवीर के ऑफिस की तरफ गई। उसके मन में एक विचार आया, जो उसे बिलकुल पसंद नहीं था, लेकिन यह ज़रूरी था। "हमें मेजर राजवीर शेखावत की मदद लेनी होगी।"







    "उनकी? वह तो मानेंगे ही नहीं! और आरव उनके साथ काम करेगा? कल ही उन्होंने उसकी इतनी बेइज़्ज़ती की है।" स्नेहा ने हैरानी से कहा।







    रिया ने कप मेज़ पर रखा। "हाँ, मुझे पता है। लेकिन यह फिल्म के लिए ज़रूरी है। अगर आरव एक फौजी की तरह दिखेगा नहीं, तो लोग फिल्म क्यों देखेंगे? और मेजर को 'हकीकत' बहुत पसंद है न? मैं उनसे यही कहूँगी कि हम फिल्म को असली बनाना चाहते हैं।"







    उसने हिम्मत जुटाई और मेजर राजवीर के ऑफिस की तरफ चल पड़ी। ऑफिस के बाहर एक जवान पहरा दे रहा था। रिया ने उससे पूछा, "क्या मैं मेजर साहब से मिल सकती हूँ?"







    जवान ने सैल्यूट किया। "मेजर साहब अंदर ही हैं, मैडम। आप जा सकती हैं।"







    रिया ने दरवाजा खोला। राजवीर अपनी मेज़ पर बैठा, कुछ कागज़ात देख रहा था। उसके चेहरे पर वही सख्त और गंभीर भाव था। उसने सिर उठाकर रिया की तरफ देखा। "जी, मैडम डायरेक्टर? कोई और नियम तोड़ दिया क्या?" उसकी आवाज़ में वही रूखापन था।







    रिया ने एक पल के लिए अपनी झुंझलाहट को दबाया। "नहीं, मेजर। मैं किसी नियम को तोड़ने नहीं आई हूँ। मैं तो आपकी मदद मांगने आई हूँ।"







    राजवीर ने अपनी भौंहें चढ़ाईं। "मेरी मदद? किस चीज़ में?"







    रिया थोड़ी हिचकिचाई, फिर बात शुरू की। "देखिए, मेजर। हमारी फिल्म एक फौजी की कहानी है। और मेरे हीरो आरव कपूर को पर्दे पर एक असली फौजी की तरह दिखना है।" उसने आरव का ज़िक्र करते हुए थोड़ी झिझक महसूस की।







    राजवीर ने कुर्सी की पीठ से टेक लगाया। "तो? उसमें मैं क्या कर सकता हूँ? उसके सिक्स-पैक तो पहले से ही हैं।" उसके स्वर में हल्का सा व्यंग्य था।







    रिया ने कहा, "सिक्स-पैक से फौजी नहीं बनता, मेजर। यह तो आपने ही सिखाया है।" उसने तुरंत अपनी बात पर ज़ोर दिया, "उसे असली फौजी की तरह चलना, बात करना, और सबसे ज़रूरी, महसूस करना सीखना होगा। उसकी चाल में, उसके शरीर की भाषा में वह अनुशासन और मज़बूती होनी चाहिए। और मुझे लगता है, आपसे बेहतर उसे कोई नहीं सिखा सकता। आप उसे थोड़ी ट्रेनिंग दे सकते हैं?"







    राजवीर ने एक गहरी साँस ली, जैसे उसे किसी बड़ी मुसीबत में डाल दिया गया हो। "ट्रेनिंग? मैडम, मैं कोई एक्टिंग स्कूल का इंस्ट्रक्टर नहीं हूँ। मेरे पास अपने जवानों को ट्रेनिंग देने के लिए बहुत काम है। और वैसे भी, मुझे नहीं लगता कपूर साहब उस तरह की ट्रेनिंग के लिए बने हैं। वह 5 मिनट भी धूप में खड़ा नहीं हो सकता।" उसकी आँखों में मज़ाक साफ़ दिख रहा था।







    रिया ने हिम्मत नहीं हारी। "प्लीज़, मेजर। यह फिल्म सिर्फ मेरी नहीं है, यह देश के उन जवानों को श्रद्धांजलि है जो सरहद पर अपनी जान देते हैं। मेरे दादाजी भी एक युद्ध-नायक थे। मैं चाहती हूँ कि यह फिल्म बिलकुल असली लगे। अगर हीरो नकली लगा, तो यह हमारे दादाजी और देश के सभी फौजी जवानों की बेइज़्ज़ती होगी।" उसने जानबूझकर भावुक होकर कहा, ताकि राजवीर के अंदर का फौजी जाग जाए।







    राजवीर ने रिया की आँखों में देखा। उसे उसकी बात में सच्चाई और जुनून दोनों दिखे। उसे अपनी ड्यूटी पर तैनात एक फौजी की इज़्ज़त की बात पसंद आई। वह थोड़ा नरम पड़ा, लेकिन अपने सख्त स्वभाव को नहीं छोड़ा। "ठीक है, मैडम। मैं ट्रेनिंग दूंगा। लेकिन मेरी एक शर्त है।"







    रिया के चेहरे पर उम्मीद की एक किरण जागी। "क्या शर्त है?"







    "कपूर साहब को मेरा हर आदेश मानना होगा, बिना किसी सवाल के। कोई नखरा नहीं, कोई बहाना नहीं। और मैं उसे कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं दूंगा। जैसे मेरे जवान ट्रेनिंग करते हैं, वैसे ही उसे करनी होगी। अगर वह बीच में छोड़ देता है, तो मेरी कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी।" राजवीर ने अपनी बात पर ज़ोर दिया। "और मैं उसे तब तक ही ट्रेनिंग दूंगा, जब तक मुझे लगेगा कि वह कुछ सीख रहा है। अगर मुझे लगा कि वह अपना और मेरा वक़्त बर्बाद कर रहा है, तो मैं तुरंत बंद कर दूंगा।"







    रिया ने ख़ुशी से सिर हिलाया। "डील, मेजर। मैं आरव को समझा दूंगी। थैंक यू सो मच।"







    राजवीर ने हाथ हिलाकर उसे जाने का इशारा किया। "सुबह 5 बजे। स्पोर्ट्स ग्राउंड पर। अपने पूरे गियर में। और हाँ, पानी की बोतल साथ लाना मत भूलना।" उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी, जैसे वह जानता हो कि यह आरव के लिए एक बहुत मुश्किल सुबह होने वाली है।







    अगली सुबह, अभी सूरज पूरी तरह से निकला भी नहीं था और कैंटोनमेंट की हवा में हल्की सी ठंडक थी। स्पोर्ट्स ग्राउंड पर मेजर राजवीर शेखावत अपने कुछ चुनिंदा जवानों के साथ खड़े थे। सभी जवान अपनी ट्रेनिंग यूनिफॉर्म में थे – चुस्त-दुरुस्त, अनुशासन में बंधे हुए। उनके चेहरे पर सुबह की ठंडी हवा और आने वाले मुश्किल अभ्यास का कोई डर नहीं था। राजवीर खुद भी अपनी यूनिफॉर्म में, कमांडिंग पोस्चर में खड़ा था।







    रिया और राहुल भी कोने में खड़े यह सब देख रहे थे। रिया थोड़ी चिंतित थी कि आरव टाइम पर आएगा या नहीं। तभी दूर से एक आवाज़ आई, "उफ़्फ़! ये कौन लोग हैं जो इतनी सुबह उठ जाते हैं?"







    आरव कपूर, अपनी महंगी, चमकदार स्पोर्ट्सवियर में, जो जिम में पहनने के लिए बनी थी, हाँफता हुआ आता दिखा। उसके पैरों में ब्रांडेड, एकदम नए स्नीकर्स थे। उसने सिर पर एक स्टाइलिश कैप लगा रखी थी और गले में एक महंगा हेडफोन लटक रहा था। उसकी आँखों में नींद भरी थी और चेहरे पर साफ़ चिढ़ दिख रही थी। उसके पीछे उसकी असिस्टेंट पानी की बॉटल और एक छोटा तौलिया लिए भागती आ रही थी।







    वह राजवीर के सामने आकर खड़ा हुआ, लेकिन उसकी बॉडी लैंग्वेज में कोई अनुशासन नहीं था। "गुड मॉर्निंग, मेजर। आप तो बहुत जल्दी बुला लेते हैं।" उसकी आवाज़ में शिकायत थी।







    राजवीर ने अपनी कलाई घड़ी देखी। "गुड मॉर्निंग, कपूर साहब। 5 बज कर 15 मिनट हो गए हैं। फौज में 5 बजे का मतलब 4 बज कर 55 मिनट होता है।" उसकी आवाज़ में कोई नरमी नहीं थी। "और यह 'जल्दी' नहीं है, यह हमारा रूटीन है।"







    आरव ने चारों तरफ देखा। "यहाँ कोई जिम इक्विपमेंट नहीं है? सिर्फ खाली ग्राउंड?"







    राजवीर ने उसकी तरफ तिरछी नज़र से देखा। "कपूर साहब, असली फौजी के लिए उसका शरीर ही उसका जिम है। और यह ग्राउंड ही उसका ट्रेनिंग एरिया।" उसने अपनी बात पर ज़ोर दिया। "आज हम 5 किलोमीटर की दौड़ से शुरुआत करेंगे। मेरे जवानों के साथ।"







    आरव का मुँह खुला का खुला रह गया। "5 किलोमीटर? इतनी सुबह? मेजर, मेरे पर्सनल ट्रेनर ने कहा है कि मुझे पहले वार्म-अप करना होगा, फिर स्ट्रेचिंग... और मेरा स्टैमिना अभी इतना नहीं है।"







    राजवीर ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने अपने जवानों की तरफ देखा। "सावधान! दौड़ के लिए तैयार!"







    सभी जवानों ने तुरंत पोजीशन ले ली। आरव भी हिचकिचाते हुए उनकी नकल करने की कोशिश की।







    "शुरू करो!" राजवीर ने आदेश दिया।







    जवानों ने तुरंत दौड़ना शुरू कर दिया, उनके कदम बिलकुल एक लय में थे। आरव भी उनके पीछे भागा, लेकिन पहले ही कुछ कदम पर वह हाँफने लगा। उसकी साँस फूलने लगी, और उसकी चाल लड़खड़ाने लगी।







    राजवीर और उसके जवान आसानी से दौड़ रहे थे, जैसे यह उनके लिए कोई बड़ी बात न हो। राजवीर ने एक पल के लिए पीछे मुड़कर देखा। आरव मुश्किल से 500 मीटर दौड़ा होगा, और उसकी हालत खराब हो चुकी थी। वह ज़मीन पर हाथ टेककर, कमर पर हाथ रखे, बुरी तरह खाँस रहा था। उसका चेहरा लाल पड़ गया था और पसीने से भीगा हुआ था। उसके महंगे स्नीकर्स धूल से भर गए थे।







    "बस... बस करो... मैं नहीं दौड़ पा रहा..." आरव ने हाँफते हुए कहा। "मेरी असिस्टेंट... पानी लाओ... मैं गिर जाऊँगा।"







    उसकी असिस्टेंट तुरंत पानी लेकर भागी, लेकिन राजवीर ने उसे रोक दिया।







    राजवीर आरव के पास आया। उसके चेहरे पर कोई सहानुभूति नहीं थी, सिर्फ एक व्यंग्यात्मक मुस्कान थी। वह आरव के सामने झुका, ताकि वह उसकी बात सुन सके।







    "क्या हुआ, कपूर साहब? 500 मीटर में ही आपका स्टैमिना ख़त्म हो गया?" राजवीर ने धीमी, लेकिन कटाक्ष भरी आवाज़ में कहा। "आपको याद है, आप फौजी का किरदार निभा रहे हैं? दुश्मन गोली चलाने से पहले यह नहीं पूछेगा कि आपका स्टैमिना खत्म हो गया है या नहीं। वह बस गोली चलाएगा।"







    उसने अपनी बात पर ज़ोर दिया, "असली फौजी, चाहे कितना भी थका हुआ हो, चाहे उसे कितनी भी चोट लगी हो, वह तब तक नहीं रुकता जब तक उसका फर्ज़ पूरा न हो जाए। क्योंकि उसे पता होता है कि उसकी एक पल की कमज़ोरी पूरे देश को भारी पड़ सकती है।"







    आरव ने शर्मिंदगी से सिर झुका लिया। उसे लगा जैसे ज़मीन फट जाए और वह उसमें समा जाए। रिया और उसकी टीम भी यह सब देख रही थी। राहुल ने बगल में खड़े लाइटमैन से कहा, "ये तो फ़िल्मी हीरो नहीं, कार्टून लग रहा है।"







    राजवीर ने अपनी बात जारी रखी, "आप सोचते हैं कि सिक्स-पैक एब्स और महंगे ट्रैकसूट से फौजी बनते हैं? नहीं, कपूर साहब। फौजी बनते हैं इस मिट्टी में लिपटकर, इस हवा में साँस लेकर, और हर सुबह अपनी जान हथेली पर रखकर मैदान में उतरकर। यहाँ कोई नकली सेट नहीं होता, कोई रीटेक नहीं होता। यहाँ जो होता है, वह असली होता है।"







    उसने अपनी बात ख़त्म की और आरव को घूरते हुए कहा, "मुझे लगता है, आज के लिए आपकी ट्रेनिंग काफी है। आप अपने टेंट में जाकर आराम कर सकते हैं।" राजवीर ने मुड़कर अपने जवानों को आदेश दिया, "आप लोग दौड़ जारी रखें।"







    जवानों ने बिना एक पल रुके अपनी दौड़ जारी रखी। आरव कपूर, अपमानित और थका हुआ, अपनी असिस्टेंट के सहारे मुश्किल से उठा। वह रिया की तरफ देखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया। यह सीन पूरी फिल्म यूनिट के लिए हंसी का पात्र बन गया, लेकिन रिया के लिए यह एक कड़वी सच्चाई थी। उसे एहसास हुआ कि उसकी फिल्म का हीरो अभी असली हीरो बनने से बहुत दूर था। राजवीर ने बिना कोई गोली चलाए, सिर्फ अपने शब्दों और अपनी हकीकत से, एक और 'फिल्मी ड्रामा' को धराशाई कर दिया था। रिया को लगा कि उसका 'मिस्टर नो-ड्रामा' सिर्फ नियम नहीं बनाता, वह उन्हें बखूबी निभाना भी जानता था। और अब उसे यह पता था कि आरव के किरदार में जान डालने के लिए उसे राजवीर से और भी बहुत कुछ सीखना होगा।

  • 7. एक्शन-कट-लव - Chapter 7

    Words: 24

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 7
    Chapter 7

    (आरव कपूर की 'फौजी ट्रेनिंग' का मज़ेदार किस्सा पूरे कैंटोनमेंट में तेज़ी से फैल गया था। फिल्म यूनिट के सदस्य हों या आर्मी के जवान, हर कोई उस सुबह की घटना पर दबी हुई हँसी हँस रहा था। आरव, शर्मिंदा होकर अपने टेंट में दुबका हुआ था, और रिया रॉय, अपने हीरो की इस 'असली' सच्चाई को देखकर हैरान थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी फिल्म को 'असली' बनाने की कोशिश में कहाँ फंस गई थी। लेकिन अब उसे सिर्फ अपने हीरो को ही नहीं, बल्कि पूरी यूनिट को इस नए, सख्त माहौल में ढालना था। फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले, अभी भी कई ज़रूरी इंतज़ाम करने बाकी थे, और उन्हीं में से एक था एक भरोसेमंद स्थानीय गाइड की तलाश।)

    रिया अपनी टीम के साथ प्रोडक्शन ऑफिस में बैठी थी। "हमें एक स्थानीय गाइड की सख्त ज़रूरत है। कोई ऐसा जो इस एरिया को जानता हो, जो हमें सही लोकेशन्स बता सके और रोज़मर्रा के सामान की सप्लाई में मदद कर सके।" उसने राहुल की तरफ देखा। "राहुल, तुमने किसी से बात की?"

    राहुल ने सिर खुजाया। "रिया, यहाँ सब कुछ आर्मी की निगरानी में है। ऐसे ही किसी को भी यूनिट में शामिल नहीं कर सकते। और यहाँ बाहर के लोग भी बहुत कम आते हैं। मुझे एक-दो लोगों का पता चला है, लेकिन वो बहुत महंगे हैं और भरोसेमंद भी नहीं लगते।"

    प्रोडक्शन मैनेजर सुरेश ने कहा, "यहाँ तो पानी तक मुश्किल से मिलता है। मुंबई में तो एक फ़ोन पर सब आ जाता है। यहाँ कैसे काम चलेगा?"

    तभी, ऑफिस के दरवाजे पर एक विनम्र खटखटाहट हुई। रिया ने देखा, एक सादे कपड़ों में, औसत कद-काठी का आदमी खड़ा था। उसकी उम्र लगभग 40-45 साल रही होगी। उसके चेहरे पर एक सादगी थी और आँखों में चमक। उसने हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए कहा, "नमस्कार, मैडम। मैं शंकर। यहाँ का ही हूँ। सुना है आपको किसी गाइड और सप्लायर की ज़रूरत है?"

    रिया ने सुरेश और राहुल की तरफ देखा। सुरेश ने कंधे उचकाए।

    "आप कौन हैं?" रिया ने पूछा।

    शंकर ने बड़े आत्मविश्वास से जवाब दिया, "मैडम, मैं यहीं पास के गाँव का हूँ। नाम मेरा शंकर है। पुश्तैनी यहीं के हैं। इस पूरे इलाके की नस-नस से वाकिफ हूँ। कौन सी पहाड़ी पर कब धूप आती है, कहाँ पानी मिलता है, कहाँ से सामान सस्ता और ताज़ा मिलता है, सब पता है मुझे। और आर्मी वालों से भी मेरी अच्छी बनती है। सालों से इन पहाड़ियों पर भटक रहा हूँ।"

    "आपको हमारे बारे में कैसे पता चला?" रिया ने पूछा।

    "अरे मैडम! आप तो इतनी बड़ी फिल्म बनाने आए हैं यहाँ। खबर तो जंगल की आग की तरह फैलती है इस छोटे से गाँव में। मैंने सोचा, क्यों न अपने लोगों की मदद करूँ? आप तो मेहमान हैं हमारे।" शंकर ने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी आवाज़ में एक सहजता और मिलनसारिता थी, जिससे सुनकर कोई भी उस पर भरोसा कर ले।

    रिया थोड़ी सोचने लगी। उसे एक भरोसेमंद आदमी की ज़रूरत थी। "आप पहले भी किसी फिल्म यूनिट के साथ काम कर चुके हैं?"

    शंकर ने हंसकर कहा, "अरे मैडम! यहाँ कहाँ फिल्में बनती हैं? मैं तो बस अपने गाँव वालों के लिए कुछ छोटा-मोटा काम करता हूँ। दूध, सब्ज़ियाँ पहुँचाना, कभी चरवाहों के साथ भेड़ें चराना। लेकिन हाँ, मैं मेहनती हूँ और एक बार जो काम लेता हूँ, उसे पूरा करता हूँ। आप एक बार मौका तो दीजिए। अगर काम पसंद न आए तो पैसे मत देना।"

    उसकी यह बेबाकी रिया को पसंद आई। "ठीक है, शंकर। हमें कुछ ज़रूरी सामान चाहिए – ताज़ी सब्ज़ियाँ, अंडे, कुछ किराना का सामान। और हाँ, कल के शूट के लिए हमें एक ऐसी लोकेशन चाहिए जहाँ सुबह की पहली किरणें पहाड़ों से आती हुई दिखें।"

    "अरे, ये तो बच्चों का खेल है, मैडम!" शंकर की आँखों में चमक आ गई। "आप बस लिस्ट दीजिए। मैं अभी जाता हूँ और आधे घंटे में आपको सब बताता हूँ। और सुबह की किरणें? मेरे पास एक ऐसी जगह है, जहाँ से सूरज निकलता हुआ देखेंगे तो आप बोलेंगे, 'वाह! क्या बात है!'" उसने हाथ फैलाकर एक नाटकीय अंदाज़ में कहा।

    राहुल और सुरेश एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए। यह आदमी तो बड़ा फ़िल्मी निकला।

    रिया ने कहा, "ठीक है, शंकर। तुम लिस्ट ले लो।"

    सुरेश ने तुरंत एक लंबी लिस्ट थमा दी। शंकर ने लिस्ट देखी और मुस्कुराते हुए कहा, "यह तो कुछ भी नहीं, मैडम। आप बस टेंशन मत लीजिए। आपका काम हो जाएगा।" वह सैल्यूट करके चला गया।

    कुछ ही घंटों में, शंकर वापस आया। उसके साथ दो-तीन स्थानीय लोग थे, जो पीठ पर भारी-भारी बोरे उठाए हुए थे। बोरे ताज़ी सब्ज़ियों, फलों और अन्य ज़रूरी सामान से भरे हुए थे। "मैडम, यह रहा आपका सारा सामान। एकदम ताज़ा, सीधे खेत से। और रेट भी मैंने कम लगवाए हैं, क्योंकि आप हमारे मेहमान हैं।" शंकर ने बड़े गर्व से कहा।

    सुरेश ने सामान चेक किया। वाकई, सामान बहुत अच्छा और ताज़ा था, और दाम भी बाज़ार से कम थे। "वाह, शंकर! तुमने तो कमाल कर दिया। इतनी जल्दी और इतना अच्छा सामान!"

    "अरे सर जी! यह तो बस शुरुआत है। आप देखिए, मैं आपको क्या-क्या करा के दिखाता हूँ। आपकी फिल्म को मैं यहाँ का सबसे बड़ा हिट बना दूंगा।" शंकर ने अपने अंदाज़ में कहा।

    उसने रिया की तरफ देखकर कहा, "और मैडम, उस लोकेशन का मैंने पता कर लिया है। यहाँ से बस थोड़ी दूरी पर एक छोटी सी पहाड़ी है। वहाँ से सुबह की पहली किरणें बिलकुल सीधी कैमरे पर आएंगी, और नज़ारा इतना खूबसूरत होगा कि आप 'एक्शन-कट' भूल जाएंगी।"

    रिया उसकी बातों से प्रभावित हुई। "ठीक है, शंकर। कल सुबह तुम हमें उस लोकेशन पर ले चलना।"

    अगले कुछ दिनों में, शंकर ने अपनी उपयोगिता और वफादारी साबित कर दी। वह फिल्म यूनिट के हर छोटे-बड़े काम में सबसे आगे रहता। अगर किसी को पानी चाहिए, तो शंकर हाज़िर। किसी को रास्ता पूछना है, शंकर बताएगा। किसी को खाने में कुछ स्पेशल चाहिए, शंकर इंतज़ाम करेगा। उसने आरव कपूर के लिए भी मिनरल वाटर और खास प्रोटीन बार का इंतज़ाम किया, जिससे आरव भी उससे खुश रहने लगा।

    एक दिन, आरव कपूर ने शंकर से कहा, "शंकर भाई, तुम तो बड़े काम के आदमी हो। मुंबई में होते तो मैं तुम्हें अपना पर्सनल असिस्टेंट बना लेता।"

    शंकर ने हाथ जोड़कर कहा, "अरे सर जी! यह तो आपका बड़प्पन है। मैं तो बस छोटा सा आदमी हूँ। लेकिन हाँ, आपकी सेवा करके मुझे बहुत खुशी मिलती है।" उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।

    वह टीम के हर सदस्य से दोस्ती करने की कोशिश करता। लाइटमैन से पूछता, "भाई साहब, यह लाइट कैसे काम करती है? बड़ी तेज़ रोशनी है।" साउंड रिकॉर्डिस्ट से पूछता, "यह माइक तो बहुत दूर से आवाज़ पकड़ लेता है। हमारी बातें तो नहीं सुनता?" उसकी बातें इतनी सामान्य और जिज्ञासु लगती थीं कि किसी को शक नहीं होता था।

    रिया भी शंकर से बहुत खुश थी। एक दिन उसने शंकर से कहा, "शंकर, तुम तो बहुत अच्छे आदमी हो। तुम्हारी वजह से हमारा काम बहुत आसान हो गया है।"

    शंकर ने मुस्कुराकर कहा, "मैडम जी, यह तो मेरा फ़र्ज़ है। आप यहाँ आए हैं, हमारे गाँव का नाम रोशन कर रहे हैं। मेरी भी तो कुछ ज़िम्मेदारी बनती है। और वैसे भी, मुझे फिल्म वालों की दुनिया बड़ी दिलचस्प लगती है। इतनी रंगीन! हमारी दुनिया तो बस पत्थर और धूप की है।"

    रिया मुस्कुरा दी। उसे लगा कि शंकर की सादगी और उसकी ईमानदारी ही उसे इतना खास बनाती है।

    एक शाम, जब यूनिट का काम ख़त्म हो गया था, शंकर राजवीर के ऑफिस के पास से गुज़र रहा था। राजवीर अपने कुछ जवानों के साथ बाहर खड़ा था और उन्हें कुछ इंस्ट्रक्शन दे रहा था। शंकर ने देखा कि राजवीर के पास कुछ नए वायरलेस सेट थे।

    शंकर रुक गया और राजवीर की तरफ हाथ जोड़कर नमस्कार किया। "जय हिंद, मेजर साहब!"

    राजवीर ने सिर उठाकर देखा। "शंकर? सब ठीक है?"

    "जी मेजर साहब, सब ठीक है। बस अपनी फिल्म वालों की सेवा कर रहा हूँ। ये लोग बड़े अच्छे हैं।" शंकर ने मुस्कुराते हुए कहा। "आप बताइए, सब खैरियत है बॉर्डर पर? सुना है, आजकल थोड़ा तनाव बढ़ गया है?"

    राजवीर ने उसकी तरफ देखा। "सब ठीक है, शंकर। तुम अपने काम पर ध्यान दो।"

    शंकर ने कहा, "अरे, मेजर साहब! आप तो हमारे रक्षक हैं। आपकी वजह से ही हम सब चैन से सोते हैं। मैं तो बस यूँ ही पूछ रहा था। ये नए वायरलेस सेट कब आए? बड़े हाई-टेक लग रहे हैं।" उसकी नज़र वायरलेस सेट पर टिकी थी।

    राजवीर ने बिना कोई भाव दिखाए कहा, "यह फौज का काम है, शंकर। तुम्हें इसकी चिंता करने की ज़रूरत नहीं।"

    "हाँ, हाँ, बिलकुल सही कह रहे हैं मेजर साहब। आप जानें और आपका काम। हम जैसे छोटे लोग क्या समझेंगे इन सब बातों को?" शंकर ने तुरंत बात बदल दी। "बस, आप अपना ख्याल रखिएगा। आप हैं तो हम हैं।"

    वह मुस्कुराया और फिर चला गया। राजवीर ने उसकी तरफ देखा, उसे शंकर का सवाल पूछना थोड़ा अजीब लगा, लेकिन उसने इसे एक आम नागरिक की जिज्ञासा मानकर टाल दिया। शंकर ने कभी कोई ऐसी हरकत नहीं की थी जिससे उस पर शक हो। वह हमेशा आर्मी के प्रति सम्मान दिखाता था और एक सामान्य, मेहनती ग्रामीण की तरह ही व्यवहार करता था। वह एक ऐसा किरदार बन गया था जिस पर कोई आसानी से भरोसा कर सकता था – एक बहुत ही मददगार और भरोसेमंद गाइड। लेकिन क्या वह सिर्फ इतना ही था, या उसकी मुस्कान के पीछे कोई और इरादा छिपा था? यह कोई नहीं जानता था।

  • 8. एक्शन-कट-लव - Chapter 8

    Words: 43

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 8
    (शंकर, अपनी मिलनसार और मददगार छवि के साथ, फिल्म यूनिट का एक अभिन्न अंग बन चुका था। रिया रॉय उसकी efficiency से बेहद प्रभावित थी और उस पर पूरी तरह भरोसा करने लगी थी। हालांकि, राजवीर की नज़र में उसकी थोड़ी ज़्यादा दिलचस्पी थोड़ी अजीब लगी थी, लेकिन फिलहाल उसे कुछ और ज़रूरी बातों पर ध्यान देना था। फिल्म की शूटिंग की तैयारियां तेज़ी से चल रही थीं, लेकिन रिया अपने दिमाग में एक सीन को लेकर उलझी हुई थी। एक ऐसा सीन, जो उसकी फिल्म की जान था, और जिसके लिए उसे असली इमोशन की ज़रूरत थी।)

    सुबह का वक़्त था। रिया अपने टेंट के अंदर अपनी स्क्रिप्ट पर झुकी हुई थी। उसके माथे पर हल्की सी शिकन थी। उसके सामने एक सीन लिखा था – 'एक फौजी अपने साथी को खो देता है। वह अकेला खड़ा है। उसकी आँखों में उदासी और एक अजीब सी खालीपन है।' रिया ने बार-बार वो लाइन्स पढ़ीं, लेकिन उसे वो 'फील' नहीं मिल रही थी। वह अपने लैपटॉप पर कुछ तस्वीरें देख रही थी, जंग की, फौजी जवानों की, लेकिन कुछ अधूरा सा लग रहा था।

    उसकी राइटर, जो उसी टेंट में बैठी थी, ने देखा रिया परेशान है। "क्या हुआ, रिया? इस सीन में कुछ गड़बड़ है?"

    रिया ने लैपटॉप बंद किया और सिर उठाया। "पता नहीं यार, कुछ मिसिंग है। मैं लिख तो रही हूँ कि फौजी उदास है, उसकी आँखों में खालीपन है, लेकिन मैं उस दर्द को महसूस नहीं कर पा रही हूँ। उस हकीकत को नहीं पकड़ पा रही हूँ।" उसने एक गहरी साँस ली। "हम फिल्मों में दिखाते हैं कि हीरो रोता है, चीखता है, लेकिन क्या असल में ऐसा होता है? एक फौजी... जो इतना मज़बूत होता है, वो कैसे रिएक्ट करता है?"

    राइटर ने उसे दिलासा दिया। "रिया, हम तो कहानी लिख रहे हैं। हम इमोशंस को अपने अंदाज़ में दिखाते हैं।"

    "नहीं!" रिया की आवाज़ में जुनून था। "यह सिर्फ कहानी नहीं है। यह मेरे दादाजी की कहानी है। यह उन हौजियों की कहानी है जो रोज़ सरहद पर लड़ते हैं। मैं नहीं चाहती कि मेरी फिल्म में कुछ भी नकली लगे। मुझे असली दर्द चाहिए, असली जज़्बात। लेकिन मैं कैसे जानूँगी? मैंने कभी ऐसा कुछ महसूस नहीं किया।" वह परेशान दिख रही थी।

    उसने टेंट के बाहर देखा, जहाँ राजवीर और उसके जवान ड्रिल कर रहे थे। एक विचार उसके दिमाग में कौंधा। 'अगर कोई मुझे यह बता सकता है कि एक फौजी क्या महसूस करता है, तो वो सिर्फ मेजर राजवीर शेखावत हैं। चाहे वह कितने भी 'नो-ड्रामा' हों, लेकिन वह एक फौजी हैं, और उन्होंने ये सब देखा होगा।'

    "मुझे पता है मुझे किससे बात करनी होगी," रिया ने खुद से कहा।

    राइटर ने हैरानी से पूछा, "कौन?"

    रिया ने उठते हुए कहा, "मेजर राजवीर शेखावत। उनसे ज़्यादा 'असली' इस पूरी दुनिया में कोई नहीं है।"

    राइटर ने अपनी आँखें चौड़ी कर लीं। "क्या? तुम मेजर साहब से इमोशंस के बारे में पूछने जा रही हो? वो तुम्हें एक लेक्चर और दे देंगे।"

    रिया ने अपने मन में सोचा, 'हाँ, शायद। लेकिन कोशिश तो करनी पड़ेगी।'

    वह टेंट से बाहर निकली और राजवीर की तरफ चल पड़ी। राजवीर उस वक़्त अपने जवानों के साथ एक मुश्किल ड्रिल में व्यस्त था। वह उन्हें किसी विशेष ट्रेनिंग पर निर्देश दे रहा था, उसकी आवाज़ बुलंद और कमांडिंग थी। हर जवान उसकी बात पर ध्यान से सुन रहा था, उनके चेहरे पर पसीना था लेकिन कोई थकान नहीं।

    रिया थोड़ा दूर खड़ी हो गई, इंतज़ार करने लगी कि राजवीर की ड्रिल ख़त्म हो जाए। उसे लगा शायद कुछ देर में वह फ्री होंगे, लेकिन राजवीर का ध्यान पूरी तरह अपने जवानों और उनके अभ्यास पर केंद्रित था। उसकी तरफ देखने का उसके पास वक़्त ही नहीं था।

    रिया ने देखा कि जवान कैसे हर बाधा को पार कर रहे थे, कैसे उनकी आँखों में एक संकल्प था। 'ये लोग तो मशीन हैं', उसने सोचा। 'लेकिन क्या मशीनें महसूस नहीं करतीं?'

    काफी देर इंतज़ार करने के बाद, रिया ने हिम्मत की और राजवीर के पास गई। "मेजर!" उसने थोड़ा ज़ोर से कहा ताकि उसकी आवाज़ ड्रिल के शोर में दब न जाए।

    राजवीर ने एक पल के लिए अपनी नज़रें रिया की तरफ कीं। "जी, मैडम डायरेक्टर? कोई दिक्कत है?" उसकी आवाज़ में वही सूखापन था, जैसे वह रिया की किसी भी परेशानी को एक 'ड्रामा' ही समझता हो।

    "नहीं, दिक्कत नहीं है।" रिया ने बात शुरू की। "मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ, अगर आप फ्री हों तो।"

    राजवीर ने अपने कलाई की घड़ी देखी। "मैं फ्री नहीं हूँ, मैडम। मैं अपने जवानों के साथ एक ज़रूरी ड्रिल में हूँ। आपको क्या पूछना है?" उसके चेहरे पर धैर्य की कोई निशानी नहीं थी।

    रिया ने एक गहरी साँस ली। 'अब जब मौका मिला है तो पूछ ही लेती हूँ।' "मेजर, मेरी फिल्म में एक सीन है। एक फौजी अपने साथी को खो देता है। उसका दोस्त, उसका भाई। ऐसे में एक फौजी क्या महसूस करता है? क्या उसे रोना आता है? क्या वह टूट जाता है? या वह सिर्फ अपना फर्ज़ पूरा करता है?" उसकी आवाज़ में एक गंभीरता थी। वह राजवीर की आँखों में देख रही थी, उम्मीद कर रही थी कि शायद वह उसकी भावनाओं को समझेगा।

    राजवीर ने उसकी बात सुनी, बिना अपनी ड्रिल रोके, बिना अपनी आँखों में कोई भाव लाए। वह अपने जवानों को देख रहा था जो एक रस्सी पर चढ़ रहे थे। उसने रिया की तरफ देखे बिना, रूखेपन से जवाब दिया।

    "हम सोचते नहीं हैं, मैडम।" उसकी आवाज़ सपाट थी। "हम बस अपना फर्ज़ पूरा करते हैं।"

    रिया चौंक गई। "सोचते नहीं हैं? मतलब?"

    "मतलब," राजवीर ने अब उसकी तरफ देखा, लेकिन उसकी आँखों में कोई नरमी नहीं थी। "जब गोली चलती है, जब बम फटता है, जब सामने दुश्मन होता है, तब सोचने का वक़्त नहीं होता। तब सिर्फ एक्शन होता है। हम हर दिन अपने साथी को खोने के लिए तैयार रहते हैं। यह हमारी ज़िंदगी का हिस्सा है। हम हर सुबह जानते हैं कि हो सकता है यह हमारी आखिरी सुबह हो।"

    उसने फिर अपने जवानों की तरफ मुड़ गया, जैसे रिया का सवाल एक बेमानी सवाल हो। "जब कोई साथी चला जाता है, तो दुःख होता है। लेकिन हम उसे अपने दिल में दबा लेते हैं। क्योंकि अगर हम रोने बैठ गए, अगर हम टूटने लगे, तो हमारा अगला साथी भी खतरे में पड़ जाएगा। हमारा दुश्मन हमारा इंतज़ार नहीं करेगा। हम तब तक नहीं रुकते जब तक मिशन पूरा न हो जाए। यह हमारी ट्रेनिंग है, मैडम। यह हमारी ज़िंदगी है।"

    उसने अपनी बात खत्म की और फिर से अपनी ड्रिल पर ध्यान केंद्रित कर लिया। "आगे बढ़ो, जवानों! तेज़! तेज़!"

    रिया खड़ी की खड़ी रह गई। उसे लगा जैसे किसी ने उसके चेहरे पर ठंडा पानी डाल दिया हो। 'हम सोचते नहीं हैं, मैडम। हम बस अपना फर्ज़ पूरा करते हैं।' ये शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे। उसे यह जवाब बहुत ठंडा, बहुत अधूरा और भावनाओं से बिलकुल खाली लगा।

    वह थोड़ी देर वहीं खड़ी रही, राजवीर को देखती रही। वह पूरी तरह से अपने काम में डूबा हुआ था, जैसे उसने रिया से कभी बात की ही न हो। रिया को लगा जैसे राजवीर भावनाओं को समझता ही नहीं। उसे लगा कि वह सिर्फ एक कठोर, अनुशासन-प्रिय फौजी है, जिसके पास दिल या भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं।

    'मिस्टर नो-ड्रामा', रिया ने मन ही मन सोचा। 'तुम सचमुच कोई ड्रामा या इमोशन नहीं समझते। तुम्हारी दुनिया बस हकीकत और फर्ज़ की है। लेकिन मेरी दुनिया तो भावनाओं के बिना अधूरी है।'

    उसने निराश होकर राजवीर के पास से हटी और अपने टेंट की तरफ चल पड़ी। उसके अंदर एक अजीब सी खालीपन थी। वह अपनी फिल्म को असली बनाना चाहती थी, लेकिन उस हकीकत में भावनाएँ कहाँ थीं? क्या फौजी सचमुच इतना कठोर होते हैं?

    टेंट में लौटकर, उसने फिर से उस सीन को पढ़ा – 'एक फौजी अपने साथी को खो देता है।' अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इसे कैसे लिखेगी। राजवीर के शब्दों ने उसके दिमाग को खाली कर दिया था। उसने आरव कपूर के लिए लिखा गया 'दुखी' फौजी का सीन फाड़ दिया। 'नहीं, आरव रो नहीं सकता। वह राजवीर की तरह दिखेगा। लेकिन कैसे? उसकी आँखों में खालीपन कैसे लाऊँगी, जब मुझे खुद नहीं पता कि वह खालीपन क्या है?'

    उसने अपनी राइटर को देखा, जो उससे पूछ रही थी, "क्या कहा मेजर साहब ने?"

    रिया ने माथे पर हाथ फेरा। "उन्होंने कहा... 'हम सोचते नहीं हैं, हम बस अपना फर्ज़ पूरा करते हैं।' " उसकी आवाज़ में निराशा थी। "तुम्हें पता है? मुझे लगता है वह भावनाओं को समझता ही नहीं। उसके लिए सब कुछ बस ड्यूटी है। लेकिन एक इंसान बिना भावनाओं के कैसे जी सकता है?"

    राइटर ने कहा, "हो सकता है, रिया, उनकी दुनिया इतनी सख्त है कि उन्हें भावनाओं को दबाना पड़ता हो। क्या पता उनके अंदर कितने तूफ़ान चल रहे हों, जो हमें दिखाई न दें।"

    रिया ने सिर हिलाया। "शायद। लेकिन एक डायरेक्टर के तौर पर, मैं उस तूफ़ान को दिखाना चाहती हूँ। और मुझे समझ नहीं आ रहा कि कैसे दिखाऊँ। उन्होंने मेरे सीन को और भी मुश्किल बना दिया।"

    उसने फिर से अपनी स्क्रिप्ट उठाई। सीन अभी भी वहीं था, लेकिन अब उस पर काम करना और भी चुनौती भरा लग रहा था। रिया को लगा कि राजवीर ने भले ही उसे कोई फिल्मी सलाह न दी हो, लेकिन अनजाने में ही उसने उसे एक ऐसी हकीकत से रूबरू करा दिया था, जिसने उसके अंदर एक नया सवाल पैदा कर दिया था। क्या वाकई भावनाओं को छिपाना ही बहादुरी होती है? या उस छुपी हुई भावना में ही असली बहादुरी छिपी होती है? यह सवाल उसके दिमाग में गूँजता रहा, जब तक वह थककर अपनी कुर्सी पर नहीं गिर गई। उसे लगा कि राजवीर की 'नो-ड्रामा' दुनिया ने उसे एक ऐसे मुश्किल इम्तिहान में डाल दिया था, जिसका जवाब उसे खुद ही ढूंढना था।

  • 9. एक्शन-कट-लव - Chapter 9

    Words: 68

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 9
    (राजवीर के रूखे जवाब ने रिया को अंदर तक झकझोर दिया था। उसके शब्दों ने एक फौजी की ज़िंदगी की कठोर सच्चाई को इतनी नग्नता से सामने रखा था कि रिया, एक डायरेक्टर होने के नाते, खुद को भावनात्मक रूप से खाली महसूस कर रही थी। 'हम सोचते नहीं, बस अपना फर्ज़ पूरा करते हैं।' ये शब्द एक दीवार की तरह उसके और उस भावनात्मक सच्चाई के बीच खड़े हो गए थे, जिसे वह अपनी फिल्म में कैद करना चाहती थी। उसने अपनी स्क्रिप्ट के पन्ने उलटते हुए एक गहरी साँस ली। वह जानती थी कि यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक श्रद्धांजलि थी, और एक श्रद्धांजलि में 'असली' की जगह 'नकली' की कोई जगह नहीं थी। चाहे जितना भी मुश्किल हो, उसे इस चुनौती का सामना करना था। अब, समय था कैमरे के पीछे जाकर, अपने जुनून को हर शॉट में उड़ेलने का। आज शूटिंग का पहला दिन था।)

    सुबह के सूरज की पहली किरणें सरहद की पथरीली ज़मीन पर बिखर रही थीं। कैंटोनमेंट में सुबह से ही हलचल थी। आर्मी के जवान अपनी दिनचर्या में लगे थे – मार्चिंग, ड्रिलिंग, और अपनी पोस्ट की निगरानी। वहीं, दूसरी तरफ, फिल्म यूनिट का माहौल बिल्कुल अलग था। बड़े-बड़े टेंट खड़े हो गए थे, केबल बिछाए जा रहे थे, लाइट्स के स्टैंड लगाए जा रहे थे और कैमरे अपनी जगह ले रहे थे। हवा में धूल और ताज़ा पेंट की मिली-जुली गंध थी, जिसके साथ जवानों के बूटों की आवाज़ और क्रू मेंबर्स की बातचीत का शोर गूँज रहा था।

    रिया रॉय अपने 'मॉनिटर' के सामने खड़ी थी, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। कल रात राजवीर से हुई बातचीत के बाद, उसे लगा था कि वह शायद हकीकत के इस कठोर चेहरे को कभी नहीं समझ पाएगी। लेकिन अब, जब उसका कैमरा सामने था, तो रिया रॉय एक अलग ही इंसान बन चुकी थी। वह कोई भ्रमित लड़की नहीं, बल्कि एक जुनूनी डायरेक्टर थी, जिसकी रग-रग में कहानियाँ दौड़ती थीं। उसकी दादाजी की तस्वीर, जो उसने अपने लैपटॉप पर लगा रखी थी, उसे लगातार प्रेरणा दे रही थी। 'दादाजी, मुझे आपकी कहानी को सच बनाना है। चाहे कितनी भी मुश्किल आए, मैं उसे कैमरे में उतार कर रहूँगी।' उसने खुद से कहा।

    प्रोडक्शन टीम ने शूटिंग के लिए पहला सेट तैयार कर लिया था – एक अस्थाई मेडिकल टेंट, जहाँ घायल जवानों का इलाज होता था। यह एक छोटा, लेकिन भावनात्मक सीन था। एक जवान घायल पड़ा है, और उसका साथी उसे दिलासा दे रहा है। सीन बहुत मुश्किल नहीं था, लेकिन रिया इसे 'परफेक्ट' बनाना चाहती थी।

    "लाइट्स रेडी?" रिया ने अपनी कमांडिंग आवाज़ में पूछा, जो अब तक कैंट में उतनी सुनी नहीं गई थी।

    लाइटमैन ने थम्स-अप दिखाया। "रेडी, मैम!"

    "कैमरा?"

    डीओपी (डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी) ने अपने कैमरे से आँख हटाकर इशारा किया। "ओके, रिया!"

    रिया ने अपनी डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठकर एक गहरी साँस ली। यह कुर्सी उसके लिए सिर्फ एक सीट नहीं, बल्कि उसका 'सिंहासन' थी, जहाँ से वह अपनी दुनिया को नियंत्रित करती थी। उसने माइक उठाया। "ओके टीम, लिसन केयरफुली! यह सीन सिर्फ दो जवानों के बारे में नहीं है। यह उनके अटूट रिश्ते के बारे में है। दर्द है, लेकिन हिम्मत ज़्यादा है। माय एक्टर," उसने आरव कपूर की तरफ देखा, जो अपने मेकअप और वर्दी में तैयार खड़ा था। "आरव, तुम्हें यहाँ सिर्फ एक्टिंग नहीं करनी है, तुम्हें महसूस करना है। सोचो, यह तुम्हारा भाई है। दर्द में है, लेकिन तुम उसे उम्मीद दे रहे हो। तुम्हारे चेहरे पर एक दर्द भरी मुस्कान होनी चाहिए। समझ रहे हो?"

    आरव ने सिर हिलाया, अभी भी थोड़ा नर्वस था।

    "ठीक है," रिया ने फिर माइक पर कहा। "सब अपनी-अपनी जगह। कोई एक्स्ट्रा नॉइज़ नहीं। हमें माहौल चाहिए।"

    सेट पर सन्नाटा छा गया। हवा में एक अजीब सा तनाव और उत्साह दोनों था। यह आर्मी का माहौल था, जहाँ अनुशासन पहले से था, लेकिन अब इस अनुशासन में फिल्ममेकिंग की रचनात्मक अराजकता भी घुल-मिल गई थी।

    रिया ने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कीं, सीन को अपने दिमाग में विज़ुअलाइज़ किया। उसने अपनी आँखें खोलीं और कहा, "फर्स्ट टेक। रोलिंग!"

    डीओपी ने 'रोलिंग' कहा, साउंड रिकॉर्डिस्ट ने 'स्पीड' कहा, और असिस्टेंट डायरेक्टर ने क्लैपबोर्ड मारा। "सीन 1, टेक 1, एक्शन!"

    आरव ने सीन शुरू किया। उसने अपने साथी जवान के पास जाकर उसे सहारा दिया। उसकी आँखों में दर्द दिखाने की कोशिश थी, लेकिन रिया को वो 'असली' फील नहीं आ रही थी।

    "कट!" रिया ने तुरंत चिल्लाया। "आरव, नहीं! यह फिल्मी लग रहा है। तुम्हें दर्द दिखाने की ज़रूरत नहीं, तुम्हें उसे महसूस करना है। और तुम्हारे चेहरे पर वो उम्मीद होनी चाहिए। एक फौजी कभी हार नहीं मानता, चाहे कुछ भी हो जाए।" उसने कुर्सी से उठकर आरव के पास जाकर समझाया। "यह दर्द तुम्हारी आवाज़ में होना चाहिए, तुम्हारी आँखों में नहीं। तुम्हारी आँखें मज़बूत होनी चाहिए। एक ऐसी मज़बूती जो डर को भी हरा दे।"

    आरव ने ध्यान से उसकी बात सुनी। रिया अपने एक्टर को इतनी गहराई से समझा रही थी, जैसे वह उसकी आत्मा में घुस जाना चाहती हो। वह बार-बार शॉट लेती, हर छोटे से छोटे एक्सप्रेशन पर ध्यान देती। एक बार लाइट सही नहीं थी, दूसरी बार एक्टर की टोन सही नहीं थी, तीसरी बार कैमरा एंगल सही नहीं था। वह हर चीज़ में 'परफेक्ट शॉट' ढूंढ रही थी। उसकी आवाज़ कभी बुलंद होती, कभी नर्म, लेकिन हमेशा उसमें एक दृढ़ता होती।

    कुछ दूर, मेजर राजवीर शेखावत अपनी रूटीन पेट्रोलिंग पर था। वह अपने जवानों के साथ कैंट के बाहरी हिस्से का मुआयना कर रहा था। उसकी आँखें हमेशा चौकस रहती थीं, हर हरकत पर उसकी पैनी नज़र थी। उसे 'फिल्मी लोगों' की इन हरकतों से चिढ़ थी। उसके लिए यह सब 'ड्रामा' था, बेफ़िजूल का। 'यहाँ असली जंग चल रही है, और ये लोग नकली गोलियाँ चला रहे हैं,' वह मन ही मन सोचता।

    लेकिन आज, जब शूटिंग शुरू हुई, तो उसकी नज़रें अपने आप उस तरफ खींचने लगीं जहाँ रिया रॉय खड़ी थी। उसने सुना रिया की आवाज़, जो कभी ऊँची होती थी, कभी धीमी, लेकिन हमेशा कमांडिंग थी। वह देखता था कि कैसे एक छोटी सी लड़की (उसके लिए रिया अब भी 'मैडम डायरेक्टर' थी) इतने सारे लोगों को नियंत्रित कर रही थी, और हर कोई उसकी बात मान रहा था।

    राजवीर अपनी जगह पर रुका और दूर से ही उन्हें देखने लगा। रिया की कुर्सी, उसके सामने लगे बड़े-बड़े लाइट्स और कैमरे, आरव कपूर का वह 'फौजी' वाला गेटअप... यह सब उसके लिए एक अजीब सा तमाशा था। लेकिन तमाशे से ज़्यादा, वह रिया को देख रहा था।

    वह देखता था कि कैसे रिया अपने मॉनिटर को इतने ध्यान से देखती थी, जैसे उसकी आँखों में कोई माइक्रोस्कोप लगा हो। वह छोटे से छोटे फ्रेम पर भी 'कट' बोल देती थी। "आरव, तुम्हारी बाईं आँख में वो चमक नहीं है जो मैं चाहती हूँ!" वह चिल्लाती। "डीओपी, थोड़ा और क्लोज! मुझे उस जवान की हथेलियों पर पसीना देखना है!"

    राजवीर ने देखा कि रिया का चेहरा पसीने से भीगा हुआ था। बाल बिखरे हुए थे। उसकी यूनिफॉर्म वाली सख्त दुनिया से यह कितनी अलग थी। यहाँ सब कुछ अव्यवस्थित लग रहा था, फिर भी एक अजीब सा तालमेल था।

    उसने सोचा, 'इतनी मेहनत क्यों कर रही है यह लड़की? ये तो सिर्फ एक फिल्म है। नकली दुनिया।' लेकिन फिर भी, रिया की लगन उसे चौंका रही थी। उसने कभी किसी को एक 'नकली' दुनिया के लिए इतनी शिद्दत से काम करते नहीं देखा था। उसके लिए, हर काम का एक मकसद होता था – देश की सुरक्षा, मिशन को पूरा करना। लेकिन इस 'फिल्म' का मकसद क्या था? सिर्फ मनोरंजन?

    राजवीर ने देखा रिया एक जवान के पास गई, जिसने सीन में एक छोटा सा रोल किया था। वह उस जवान से उसके अनुभव पूछ रही थी, उसकी वर्दी के बारे में, उसकी ज़िंदगी के बारे में। रिया अपनी फिल्म को और 'असली' बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही थी। वह सिर्फ स्क्रिप्ट नहीं पढ़ रही थी, वह हर भावना को निचोड़ लेना चाहती थी।

    'इतनी ज़िद किसलिए?' राजवीर के दिमाग में एक सवाल उठा। यह सवाल उसके लिए नया था। वह हमेशा ज़िद को एक कमजोरी मानता था, खासकर उन लोगों में जो हकीकत से दूर रहते थे। लेकिन रिया की ज़िद में एक अजीब सी ताकत थी। वह उसकी आँखों में देखता था, वहाँ उसे पागलपन नहीं, बल्कि एक गहरा, गंभीर जुनून दिखाई देता था।

    वह अब भी इस सब को 'ड्रामा' ही समझ रहा था, लेकिन वह रिया की मेहनत और लगन को नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रहा था। वह लड़की, जो कुछ दिन पहले एक बंकर उड़ाने की इजाज़त माँग रही थी और जिसे उसने 'नकली बारूद' का लेक्चर दिया था, वही लड़की अब हर शॉट में अपनी जान लगा रही थी। उसके काम में एक समर्पण था, जो उसने पहले कभी किसी फिल्म वाले में नहीं देखा था।

    राजवीर ने एक गहरी साँस ली। सूरज ऊपर चढ़ रहा था, और धूल के कण हवा में नाच रहे थे। उसने देखा कि रिया ने फाइनली एक शॉट पर 'ओके' बोला। "परफेक्ट! यही चाहिए था मुझे!" उसकी आवाज़ में एक जीत का भाव था।

    वह अपनी टीम को शाबाशी दे रही थी। उसके चेहरे पर एक अलग ही तरह की संतुष्टि थी, जो राजवीर ने अपने जवानों के चेहरे पर मिशन पूरा होने के बाद देखी थी। यह सिर्फ एक फिल्म का सीन नहीं था, यह रिया के लिए कुछ और था।

    राजवीर ने बिना कोई भाव दिखाए अपना रास्ता मोड़ लिया। उसे अपने काम पर वापस जाना था। लेकिन उसके मन में वह सवाल अब भी गूँज रहा था – 'इतनी ज़िद किसलिए?' उसे पता नहीं था कि यह ज़िद ही उसे रिया की दुनिया के करीब ले जाएगी, और वह खुद इस 'ड्रामा' का एक अहम हिस्सा बन जाएगा, एक ऐसे ड्रामा का, जो उसकी दुनिया की हकीकत को हमेशा के लिए बदल देगा। वह अभी भी इस फिल्म को सिर्फ एक तमाशा मानता था, लेकिन रिया की मेहनत ने उसके दिमाग में एक छोटा सा, अनचाहा बीज बो दिया था। यह बीज, जो धीरे-धीरे अंकुरित होने वाला था, उसे यह सोचने पर मजबूर करेगा कि शायद 'कहानी' और 'हकीकत' के बीच की रेखा उतनी स्पष्ट नहीं है जितनी वह सोचता था।

  • 10. एक्शन-कट-लव - Chapter 10

    Words: 33

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 10
    (रिया रॉय ने अपनी फिल्म के पहले दिन की शूटिंग में अपनी जान लगा दी थी। उसकी मेहनत और जुनून देखकर राजवीर शेखावत के मन में भले ही एक छोटा सा सवाल उठा हो कि 'इतनी ज़िद किसलिए?', लेकिन वह अभी भी उसे 'ड्रामा' ही समझता था। रिया ने अपने शॉट पर 'ओके' कह दिया था और उसे एक संतुष्टि मिली थी कि उसने एक मुश्किल सीन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था। लेकिन सरहद पर सिर्फ देशभक्ति और अनुशासन ही नहीं था, वहाँ 'शहरी नखरे' भी अपना रंग दिखा रहे थे, खासकर जब बात आती है फिल्म के सुपरस्टार आरव कपूर की।)



    शूटिंग का पहला दिन जारी था। सुबह का इमोशनल सीन शूट करने के बाद, अब एक एक्शन सीक्वेंस की तैयारी हो रही थी। सीन था - आरव कपूर, जो फिल्म में एक कमांडो का किरदार निभा रहा था, उसे एक दुश्मन के बंकर पर हमला करते हुए, धूल और मिट्टी में रेंगते हुए आगे बढ़ना था। यह सीन बहुत ज़रूरी था क्योंकि इसमें आरव की 'फौजी' वाली इमेज को मज़बूत करना था।



    रिया ने माइक पर अपनी टीम को निर्देश दिए। "ओके टीम, यह बहुत इम्पोर्टेंट सीन है। आरव, तुम्हें यहाँ पूरी ताकत दिखानी होगी। यह कोई डांस सीक्वेंस नहीं है। तुम्हें मिट्टी में घुलना होगा, पसीना बहाना होगा। यह सीन तुम्हारी वर्दी को असली इज़्ज़त देगा। समझ रहे हो?" उसकी आवाज़ में वही जुनून और दृढ़ता थी।



    आरव कपूर, जो अब अपने लिए एक अलग महंगी डिजाइनर जैकेट पहनकर आया था, थोड़ा असहज दिख रहा था। उसने अपने आस-पास देखा - हर तरफ पथरीली ज़मीन और लाल मिट्टी थी, जिस पर उसे रेंगना था। उसका महंगा ट्रैकसूट और चमचमाते जूते इस माहौल में बिलकुल बेमेल लग रहे थे।



    "मैम," आरव ने हल्की हिचकिचाहट के साथ कहा। "यह सीन... क्या हम इसे थोड़ा अलग तरीके से नहीं कर सकते? मतलब, क्या मुझे वाकई इस धूल में रेंगना पड़ेगा?" उसकी आवाज़ में एक अजीब सा नखरा था।



    रिया ने उसकी तरफ देखा। "आरव, क्या मतलब है तुम्हारा? यह एक वॉर-फिल्म है, तुम एक फौजी का किरदार निभा रहे हो। फौजी धूल, मिट्टी, पसीना... इन सब में ही तो रहता है। इसी में तो उसकी इज़्ज़त है।"



    आरव ने अपने हाथ में पकड़ी टिश्यू पेपर से अपने चेहरे से धूल का एक छोटा सा कण साफ किया। "लेकिन मैम, मेरी यह जैकेट... यह लेटेस्ट इंटरनेशनल ब्रांड की है। और यह ट्रैकसूट... बहुत एक्सपेंसिव है। अगर यह खराब हो गया तो? और वैसे भी, स्किन एलर्जी का इशू हो सकता है। यह धूल... इसमें कीटाणु होंगे।"



    रिया को गुस्सा आ गया। "आरव!" उसकी आवाज़ में झुंझलाहट थी। "तुम्हें पता है हम कहाँ हैं? यह असली सरहद है, कोई एयर कंडीशनर स्टूडियो नहीं। यहाँ के जवान इसी मिट्टी में खाते हैं, सोते हैं और देश के लिए अपनी जान तक दे देते हैं। और तुम्हें अपनी जैकेट की पड़ी है?"



    "मैम, आप मेरी प्रॉब्लम समझिए। यह मेरी इमेज का सवाल है। मेरे फैंस मुझे ऐसे गंदे कपड़ों में... मतलब... यह हीरो वाला लुक नहीं है।" आरव टस से मस नहीं हो रहा था। उसने अपने मैनेजर की तरफ देखा, जैसे वह उसकी बात का समर्थन करेगा।



    रिया ने अपना सिर पकड़ा। यह उसका रोज़ का सिरदर्द था। आरव की यह हरकतें उसे अपनी फिल्म के 'असली' होने के लक्ष्य से दूर कर रही थीं। "आरव, तुम्हें अपनी इमेज बनानी है तो घर बैठो। यहाँ तुम एक फौजी हो, और फौजियों की इमेज धूल और पसीने से बनती है!"



    सेट पर मौजूद बाकी क्रू मेंबर्स चुपचाप यह सब देख रहे थे। कुछ मुस्कुरा रहे थे, कुछ अपनी आँखें घुमा रहे थे। उन्हें आरव के नखरों की आदत हो चुकी थी।



    मेजर राजवीर शेखावत, अपनी कुछ पेट्रोलिंग टीम के साथ, पास से ही गुज़र रहे थे। उनका ध्यान इस तरफ तब गया जब उन्होंने रिया की ऊँची आवाज़ सुनी। उन्होंने देखा कि रिया, आरव के सामने हाथ फैलाकर उसे समझा रही थी और आरव मुँह बनाकर खड़ा था।



    राजवीर के चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान आई। 'क्या ड्रामा चल रहा है अब?' वह अपने एक साथी जवान, हवलदार रमेश से फुसफुसाया। "देखो रमेश, यह बनेगा फौजी? जिसने धूल देखी नहीं, उसे एलर्जी होने लगी।"



    रमेश भी मुस्कुराया। "सर, यह तो फाइव स्टार होटल वाले फौजी हैं।"



    राजवीर ने अपनी टीम को रुकने का इशारा किया और खुद धीरे-धीरे आरव और रिया के पास पहुँच गया। वह चुपचाप उनकी बातचीत सुनता रहा।



    "आरव, प्लीज! तुम्हें यह सीन करना ही होगा। यह फिल्म की जान है!" रिया अब लगभग गिड़गिड़ा रही थी।



    "नहीं मैम, मैं इतना कॉम्प्रोमाइज नहीं कर सकता। आप कुछ और सोचिए।" आरव ने घमंड से कहा।



    राजवीर अब उनके ठीक पीछे आ खड़ा हुआ था। उसने बिना कुछ कहे, ज़मीन से एक मुट्ठी भर धूल उठाई। वह लाल-भूरी मिट्टी, जिसमें छोटे-छोटे कंकड़ और घास के तिनके थे, उसके हाथ में थी।



    उसने अपनी आवाज़ में कोई भाव नहीं आने दिया और बिल्कुल सपाट तरीके से आरव से कहा, "कपूर साहब।"



    आरव और रिया दोनों ने चौंककर राजवीर की तरफ देखा।



    राजवीर ने अपनी मुट्ठी में पकड़ी मिट्टी को आरव के सामने किया। "यह मिट्टी नहीं, इस देश की इज़्ज़त है।" उसकी आवाज़ में एक भारीपन था, जो आरव के नखरों से बिलकुल उलट था।



    आरव ने हैरानी से उस मिट्टी को देखा, जैसे वह कोई ज़हर हो।



    राजवीर ने अपनी बात जारी रखी, उसकी आँखें सीधी आरव की आँखों में थीं। "हमारे जवान इसी में लिपटकर घर आते हैं। इसी मिट्टी में उनका पसीना बहता है, इसी में उनका खून मिलता है। वे अपनी वर्दी को इसी मिट्टी से सानकर गर्व महसूस करते हैं।" उसने अपनी मुट्ठी को थोड़ा खोला, और कुछ मिट्टी नीचे गिरी। "आपको इससे एलर्जी है?" उसकी आवाज़ में एक गहरा व्यंग्य था, जो सीधे आरव के अहंकार पर वार कर रहा था।



    आरव का चेहरा पीला पड़ गया। वह राजवीर की आँखों में देख रहा था, जहाँ कोई गुस्सा नहीं था, लेकिन एक ऐसी गंभीरता थी जो उसे अंदर तक शर्मिंदा कर रही थी। उसने राजवीर की आँखों में एक सच्चा फौजी देखा था, और अपने अंदर एक नकली हीरो।



    रिया भी राजवीर की बात सुनकर हैरान थी। यह पहली बार था जब उसने राजवीर को इस तरह किसी से बात करते देखा था। उसके शब्दों में न सिर्फ डांट थी, बल्कि एक ऐसी सच्चाई थी जो सीधे दिल में उतर रही थी।



    राजवीर ने अपनी मुट्ठी बंद की। "जब एक फौजी दुश्मन से लड़ता है, तो वह यह नहीं सोचता कि उसकी वर्दी गंदी हो जाएगी, या उसे एलर्जी हो जाएगी। वह बस देश के लिए लड़ता है।" उसने रिया की तरफ देखा। "मैडम डायरेक्टर, अगर इन्हें फौजी का किरदार निभाना है, तो इन्हें पहले यह मिट्टी की इज़्ज़त करना सीखना होगा।"



    यह कहकर, राजवीर ने कोई और बात नहीं की। वह अपनी मुट्ठी में मिट्टी लिए ही, चुपचाप वापस अपनी टीम के पास चला गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। उसने न आरव को डांटा था, न रिया को कुछ कहा था। बस उसने एक सच्चाई सामने रख दी थी, इतनी सीधी और सरल कि उसे और कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं थी।



    आरव कपूर, जो थोड़ी देर पहले अपने नखरों में खोया हुआ था, अब ज़मीन पर गड़ी अपनी नज़रों से चुपचाप खड़ा था। राजवीर के शब्दों ने उसे अंदर तक हिला दिया था। उसे एहसास हुआ कि जिस किरदार को वह सिर्फ 'सिक्स-पैक एब्स' और 'स्टाइलिश वर्दी' तक सीमित समझता था, उसकी हकीकत कितनी गहरी थी।



    रिया ने आरव की तरफ देखा। आरव ने अपनी नज़रें उठाईं और पहली बार बिना किसी नखरे के, लगभग धीमी आवाज़ में कहा, "मैम... मैं तैयार हूँ।"



    रिया ने उसे देखा। आरव के चेहरे पर शर्मिंदगी थी, लेकिन साथ ही एक नई समझ भी। उसने अपनी महंगी जैकेट उतारी और साइड में रख दी। "मैं ये सीन करूँगा। मुझे बताओ क्या करना है।"



    रिया ने उसके कंधे पर हाथ रखा। "ठीक है, आरव। कैमरा रेडी करो!"



    आरव बिना कुछ कहे, सेट पर चला गया। उसने ज़मीन पर लेटकर धूल और मिट्टी में रेंगना शुरू किया। इस बार, उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। वह हर बार की तरह अपने डायलॉग नहीं बोल रहा था, बल्कि वह सचमुमुच उस फौजी के दर्द और हिम्मत को महसूस करने की कोशिश कर रहा था।



    राजवीर दूर से यह सब देख रहा था। उसके चेहरे पर अब कोई व्यंग्यात्मक मुस्कान नहीं थी। उसने देखा कि आरव कैसे मिट्टी में लिपटा हुआ था, जैसे वह सच में एक फौजी हो। यह सीन पूरी यूनिट के लिए सिर्फ एक फिल्म का हिस्सा नहीं था, यह आरव कपूर के लिए एक सबक था, और राजवीर के लिए एक मज़ेदार, और थोड़ा सा हैरान करने वाला, अनुभव। राजवीर ने अपनी आँखें घुमाईं। 'लगता है मेरी 'नो-ड्रामा' बातें भी कभी-कभी काम आ जाती हैं,' उसने सोचा, और अपनी ड्यूटी पर वापस चला गया।

  • 11. एक्शन-कट-लव - Chapter 11

    Words: 47

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 11
    (आरव कपूर ने मेजर राजवीर शेखावत के शब्दों के बाद अपनी सारी नखरेबाजी छोड़ दी थी। उसने बिना किसी शिकायत के, धूल और मिट्टी में रेंगते हुए अपना सीन पूरा किया, जिससे रिया रॉय बेहद खुश हुई थी। उसके लिए यह सिर्फ एक शॉट नहीं था, बल्कि उसके हीरो का एक छोटा सा लेकिन महत्वपूर्ण बदलाव था। सेट पर अब भी काम जारी था, लेकिन आज का दिन रिया के लिए एक और अनोखी चुनौती लेकर आने वाला था, एक ऐसी चुनौती जो 'कहानी' और 'हकीकत' के बीच की खाई को एक बार फिर सामने ला देगी।)

    शाम ढल रही थी। सूरज की सुनहरी किरणें सरहद की पहाड़ियों पर बिखर रही थीं, जिससे पूरा परिदृश्य एक जादुई पेंटिंग जैसा लग रहा था। दिन भर की शूटिंग के बाद, सेट पर थोड़ी थकान और संतुष्टि दोनों थी। आरव कपूर ने धूल-मिट्टी वाला सीन ख़त्म कर लिया था और रिया ने उसकी तारीफ में कुछ शब्द कहे थे, जिससे वह भी थोड़ी राहत महसूस कर रहा था।

    "आरव, बहुत बढ़िया काम किया आज! मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इतनी जल्दी एडजस्ट कर पाओगे।" रिया ने मुस्कुराते हुए कहा।

    आरव ने हल्का सिर झुकाया। "थैंक यू, मैम। मेजर साहब की बातें... वो असर कर गईं।" उसकी आवाज़ में अब पहले वाला घमंड नहीं था।

    रिया ने देखा कि आरव में सचमुच कुछ बदलाव आया था। उसे खुशी हुई कि उसकी फिल्म का हीरो कम से कम अब 'फौजी' की ज़िंदगी को थोड़ा समझ पा रहा था।

    "ओके टीम, अब हमें एक और मुश्किल सीन शूट करना है," रिया ने माइक पर घोषणा की। "यह एक रोमांटिक गाना है। 'वतन की मिट्टी' नाम से। इसमें एक फौजी और उसकी प्रेमिका को दिखाया गया है, जो सरहद पर एक-दूसरे से मिलते हैं। सीन की डिमांड है कि बारिश हो रही हो। एक हल्की, रोमांटिक बारिश।"

    सेट पर मौजूद क्रू मेंबर्स एक-दूसरे को देखने लगे। बाहर आसमान बिलकुल साफ़ था, एक भी बादल का टुकड़ा नहीं था। हवा में हल्की ठंडक थी, लेकिन बारिश का कोई संकेत नहीं था।

    प्रोडक्शन मैनेजर सुरेश ने सिर खुजाते हुए कहा, "मैम, बारिश तो होनी ही नहीं है आज। मौसम विभाग की रिपोर्ट में भी क्लियर स्काई है।"

    रिया ने अपनी भौंहें चढ़ाईं। "मुझे पता है, सुरेश। इसीलिए तो हमें इसका इंतज़ाम करना होगा। यह सीन फिल्म का बहुत इमोशनल पॉइंट है। बारिश के बिना वो फील नहीं आएगी।" उसकी आवाज़ में वही दृढ़ता थी, जो उसे हर मुश्किल को हल करने के लिए प्रेरित करती थी।

    "लेकिन मैम, यहाँ कृत्रिम बारिश का इंतज़ाम कैसे होगा? मुंबई में तो वॉटर टैंकर और शॉवर सिस्टम मिल जाते हैं, यहाँ तो...?" सुरेश असमंजस में था।

    रिया ने अपने चारों ओर देखा। आर्मी कैंटोनमेंट में सब कुछ व्यवस्थित था, हर तरह के संसाधन उपलब्ध थे। उसकी नज़रें घूमते-घूमते राजवीर शेखावत के टेंट की तरफ गईं, जहाँ कुछ बड़े-बड़े पानी के टैंकर खड़े थे। उसकी आँखों में एक चमक आई। 'आर्मी के पास तो सब होता है!' उसने सोचा।

    उसने तुरंत सुरेश से कहा, "सुरेश, तुम चिंता मत करो। मैं देखती हूँ। तुम्हें बस सेट तैयार रखना है। मुझे परफेक्ट बारिश चाहिए।"

    रिया ने अपनी कुर्सी से उठकर सीधे मेजर राजवीर शेखावत के ऑफिस की तरफ चलना शुरू कर दिया। उसके असिस्टेंट ने उसे रोकने की कोशिश की। "मैम, आप कहाँ जा रही हैं? मेजर साहब... उनसे बात करना इतना आसान नहीं।"

    रिया ने मुड़कर देखा। "मुझे पता है, लेकिन कोई और रास्ता नहीं है। यह सीन मेरी फिल्म की जान है। मुझे बारिश चाहिए, और यहाँ सिर्फ मेजर साहब ही इंतज़ाम कर सकते हैं।" उसकी आवाज़ में अब एक अजीब सी मासूमियत थी, जो उसके डायरेक्टर वाले आत्मविश्वास के साथ मिल गई थी।

    वह मेजर राजवीर के ऑफिस के सामने पहुँची। राजवीर अपने डेस्क पर कुछ दस्तावेज़ देख रहा था। उसके चेहरे पर हमेशा की तरह गंभीरता थी।

    रिया ने दरवाज़े पर हल्के से दस्तक दी। "मेजर... क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?"

    राजवीर ने सिर उठाकर देखा। रिया को देखकर उसके माथे पर हल्की सी शिकन आई। 'अब क्या नया ड्रामा है?' उसने सोचा। "हाँ, मैडम। आइए।"

    रिया अंदर आई और उसके सामने खड़ी हो गई। उसने देखा कि राजवीर के ऑफिस में भी वही अनुशासन और सादगी थी जो पूरी आर्मी कैंट में थी। कोई एक्स्ट्रा सजावट नहीं, बस ज़रूरी सामान।

    "मेजर, मुझे आपसे एक बहुत ज़रूरी बात करनी है," रिया ने हल्की उत्तेजना के साथ कहा।

    राजवीर ने अपनी कलम नीचे रखी। "जी, मैडम। फरमाइए।" उसकी आवाज़ में वही बेफिक्री थी।

    "मेजर, हमारी फिल्म में एक रोमांटिक गाना है। बहुत खूबसूरत। उसमें हीरो और हीरोइन को बारिश में दिखाना है। गाने का नाम है 'वतन की मिट्टी'... बहुत ही इमोशनल। लेकिन आप तो जानते हैं, मौसम बिलकुल साफ़ है।" रिया ने अपनी बात शुरू की।

    राजवीर ने उसे ध्यान से सुना, उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।

    "तो..." रिया ने एक गहरी साँस ली, जैसे वह अपनी माँग रखने से पहले खुद को तैयार कर रही हो। "मेजर, क्या आप आर्मी वाले नकली बारिश का इंतज़ाम कर सकते हैं? आपके पास तो बड़े-बड़े पानी के टैंकर हैं, और वो फायर ब्रिगेड जैसी गाड़ियाँ भी होती होंगी, जो पानी की तेज़ धार छोड़ सकती हैं?" उसकी आँखों में एक उम्मीद थी, जैसे वह राजवीर को एक जादूगर मान रही हो, जो उसकी हर इच्छा पूरी कर सकता है।

    राजवीर का चेहरा देखने लायक था। उसकी आँखें थोड़ी चौड़ी हुईं, और उसका माथा सिकुड़ गया। उसे एक पल के लिए समझ नहीं आया कि वह हँसे या गुस्सा करे। उसकी ज़िंदगी में कभी किसी ने उससे ऐसी बेतुकी माँग नहीं की थी। आर्मी के टैंकरों का इस्तेमाल दुश्मनों के ख़िलाफ़, आग बुझाने के लिए, और जवानों के लिए पीने का पानी पहुँचाने के लिए होता था। और यह लड़की उनसे 'रोमांटिक गाने' के लिए 'नकली बारिश' माँग रही थी?

    "मैडम..." राजवीर ने अपनी आवाज़ को यथासंभव शांत रखने की कोशिश की, लेकिन उसके शब्दों में एक कड़वाहट आ गई थी। "आपको अंदाज़ा भी है कि आप क्या कह रही हैं?"

    रिया ने मासूमियत से जवाब दिया, "हाँ, मेजर। मुझे पता है। यह बहुत ज़रूरी है। मेरी फिल्म की आत्मा है यह सीन।"

    राजवीर ने गहरी साँस ली, जैसे वह अपनी हँसी या गुस्से को रोक रहा हो। "मैडम, हमारे टैंकर आग बुझाने के काम आते हैं। वे सूखे इलाकों में जवानों और गाँव वालों तक पानी पहुँचाते हैं। और कभी-कभी, जब हालात बिगड़ते हैं, तो उनका इस्तेमाल दुश्मन के ठिकानों पर पानी की तेज़ धार फेंकने के लिए भी होता है।" उसकी आवाज़ अब थोड़ी सख्त हो गई थी।

    "मुझे पता है मेजर," रिया ने बीच में बोलने की कोशिश की। "लेकिन..."

    राजवीर ने अपना हाथ उठाया। "नहीं, मैडम। मेरी बात पूरी होने दीजिए। हमारे पास बड़े-बड़े टैंकर हैं, सही कहा आपने। लेकिन वे किसी फिल्मी गाने में 'रोमांस' करवाने के लिए नहीं हैं। वे देश की सुरक्षा के लिए हैं, लोगों की जान बचाने के लिए हैं। पानी यहाँ एक बहुत कीमती संसाधन है। हम उसे यूँ ही बर्बाद नहीं कर सकते, खासकर ऐसे बेमतलब के कामों के लिए।"

    रिया का चेहरा उतर गया। उसकी आँखों में जो चमक थी, वह धीरे-धीरे बुझने लगी थी। उसे लगा जैसे राजवीर ने उसकी रचनात्मकता पर पानी फेर दिया था।

    "लेकिन मेजर, इमोशन कैसे आएगा?" रिया ने लगभग उदास आवाज़ में पूछा। "फौजी का दर्द, उसका अपनी प्रेमिका से बिछड़ना... बारिश उस दर्द को बढ़ाती है। दर्शक उसे फील कर पाते हैं।"

    राजवीर ने अपने डेस्क पर अपनी उँगलियों से हल्की थाप दी। "मैडम, असली फौजी का दर्द नकली बारिश से नहीं आता। उसका दर्द आता है अपने परिवार से दूर रहने से, अपने दोस्तों को खोने से, और हर पल मौत के साये में जीने से। उस दर्द को दिखाने के लिए आपको किसी टैंकर की ज़रूरत नहीं। आपको शायद हकीकत को समझना होगा।" उसकी आवाज़ में अब थोड़ी नरमी थी, लेकिन उसकी बात उतनी ही सीधी थी।

    "पर... पर..." रिया के पास शब्द नहीं थे। उसे लगा जैसे उसकी पूरी कल्पना टूटकर बिखर गई हो।

    "मैडम," राजवीर ने हल्की आवाज़ में कहा। "आप यहाँ एक फिल्म बनाने आई हैं, हम यहाँ सरहद की रक्षा करने आए हैं। हमारे पास अपने संसाधनों का इस्तेमाल करने के लिए कुछ प्राथमिकताएँ होती हैं, और आपके फिल्मी रोमांटिक सीन उन प्राथमिकताओं में फिट नहीं बैठते।"

    रिया ने एक गहरी साँस ली। उसकी उम्मीद टूट चुकी थी। वह राजवीर की हकीकत वाली दुनिया को समझने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसकी फिल्मी दुनिया अभी भी बीच में आ रही थी।

    "ओके, मेजर," उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा। "मैं समझ गई।" उसकी आवाज़ में निराशा थी। "सॉरी, मैंने आपका वक़्त बर्बाद किया।"

    राजवीर ने अपनी कलम उठाई। "कोई बात नहीं, मैडम। बस अगली बार कुछ भी माँगने से पहले सोच लीजिएगा कि हम कहाँ और किस लिए मौजूद हैं।"

    रिया ने सिर झुका लिया और धीरे से पलटकर ऑफिस से बाहर निकल गई। उसके कंधे झुके हुए थे। वह अपनी टीम के पास वापस आई, जो बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहे थे।

    सुरेश ने पूछा, "क्या हुआ मैम? मेजर साहब ने क्या कहा? टैंकर रेडी हैं?"

    रिया ने बस अपना सिर हिला दिया। "नहीं, सुरेश। कोई नकली बारिश नहीं होगी।" उसकी आवाज़ में थकान थी। "हमें सीन को बिना बारिश के ही शूट करना होगा।"

    सुरेश और बाकी क्रू मेंबर्स एक-दूसरे को देखने लगे। उन्हें पता था कि रिया को 'परफेक्शन' पसंद था, और बारिश के बिना वह कैसे संतुष्ट होगी।

    रिया अपनी कुर्सी पर बैठ गई। उसने माइक उठाया, लेकिन उसकी आवाज़ में पहले जैसी ऊर्जा नहीं थी। "ओके टीम, हम सीन को थोड़ा बदल रहे हैं। बारिश नहीं होगी। आरव, तुम्हें अब अपनी आँखों में वो दर्द और जुदाई दिखानी होगी, बारिश के बिना। अब सब कुछ तुम्हारे एक्सप्रेशन पर निर्भर करेगा।"

    आरव ने सिर हिलाया। वह भी राजवीर की बातें सुन चुका था, और उसे एहसास हो गया था कि इस बार मेजर साहब के पास कोई 'फिल्मी' जवाब नहीं था।

    राजवीर अपने ऑफिस में बैठा हुआ था। उसने देखा रिया कैसे उदास होकर वापस जा रही थी। उसे थोड़ा अजीब लगा। वह जानता था कि वह थोड़ी रूखी थी, लेकिन उसके लिए सच्चाई ही सब कुछ थी। 'यह लड़की, हर चीज़ को ड्रामा क्यों समझती है?' उसने सोचा। 'यहां असली लड़ाइयाँ होती हैं, मैडम। नकली बारिश नहीं।' लेकिन फिर भी, उसे लगा कि रिया की मासूमियत में एक अजीब सा आकर्षण था, जो उसे कभी-कभी सोचने पर मजबूर कर देता था कि 'ये लोग भी कितने अजीब होते हैं!' वह यह नहीं जानता था कि यह 'मासूमियत' और 'अजीबपन' ही धीरे-धीरे उसके सख्त दिल में अपनी जगह बना लेगा।

  • 12. एक्शन-कट-लव - Chapter 12

    Words: 27

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 12
    (रिया रॉय ने पिछली घटना के बाद अपनी 'नकली बारिश' की माँग से समझौता कर लिया था। उसे एहसास हुआ था कि सरहद पर 'हकीकत' ही सब कुछ है और उसकी 'फिल्मी दुनिया' वहाँ काम नहीं कर सकती। अब फिल्म की टीम को अपनी शूटिंग के लिए स्थानीय मदद की ज़रूरत महसूस हो रही थी, क्योंकि हर दिन वे नए लोकेशन्स की तलाश में थे और उन्हें सामान की भी ज़रूरत पड़ती थी। यह ज़रूरत ही थी जिसने कहानी के असली खलनायक को उनके करीब ला दिया।)



    अगले दिन, सुबह की शूटिंग शुरू होने से पहले, फिल्म यूनिट का माहौल थोड़ा बदला हुआ था। रिया ने बीती रात का पूरा सीन, बिना बारिश के, केवल कलाकारों के भावों के ज़रिए शूट किया था, और वह खुद भी उस सीन से संतुष्ट थी। उसे धीरे-धीरे एहसास हो रहा था कि असली कहानियों में नकली सहारा नहीं, बल्कि सच्चा एहसास ही सबसे ज़रूरी होता है।



    प्रोडक्शन मैनेजर सुरेश, अपनी टीम के साथ टेंट के बाहर एक लिस्ट पर माथापच्ची कर रहे थे। उन्हें शूटिंग के लिए कुछ स्थानीय प्रॉप्स (सामान), स्थानीय खाना और कुछ ऐसे रास्ते चाहिए थे, जिनके बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी।



    "यार, ये तो मुश्किल है। यहाँ लोकल गाइड कहाँ मिलेगा? और जो भी मिलेगा, उस पर भरोसा कैसे करें?" सुरेश ने अपने असिस्टेंट से कहा।



    "यहाँ के लोग तो ज़्यादातर आर्मी वाले हैं, या फिर गाँव वाले। फिल्म लाइन का कोई एक्सपीरियंस ही नहीं होगा।" असिस्टेंट ने अपनी निराशा ज़ाहिर की।



    तभी, एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति, जिसने सादे कपड़े पहने थे और उसके चेहरे पर एक गहरी मुस्कान थी, उनके पास आया। उसके हाव-भाव बहुत मिलनसार थे। वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।



    "नमस्ते साहब, नमस्ते मैडम," उसने आवाज़ दी। उसकी हिंदी में हल्का स्थानीय लहजा था, लेकिन वह साफ़ थी। "मैं शंकर हूँ, इसी गाँव का रहने वाला। मैंने सुना आप लोगों को कुछ मदद चाहिए?"



    सुरेश ने उसे देखा। "कौन हो तुम?"



    शंकर ने अपनी छाती पर हाथ रखा। "जी, मैं शंकर। यहाँ आस-पास के सभी रास्तों को जानता हूँ, गाँव-गाँव की ख़बर रखता हूँ। खेती-बाड़ी का काम करता हूँ, और छोटे-मोटे सप्लाई का भी। मैंने सुना था कि आप लोग यहाँ फिल्म बनाने आए हैं। और आपको एक गाइड की ज़रूरत है।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी विनम्रता थी, जो तुरंत भरोसा पैदा करती थी।



    रिया, जो पास से ही गुज़र रही थी, रुक गई और उसने शंकर की तरफ देखा। उसे लगा कि इस आदमी की आँखों में एक अजीब सी चमक है, लेकिन उसके चेहरे पर ईमानदारी भी दिख रही थी।



    "हाँ, हमें एक गाइड की ज़रूरत है," रिया ने कहा। "तुम्हें इस इलाके के बारे में कितनी जानकारी है?"



    शंकर की आँखों में चमक आ गई। "मैडम जी, इस मिट्टी के कण-कण को जानता हूँ मैं। यहाँ की हर पहाड़ी, हर नदी, हर झरना... सब मेरी उँगलियों पर हैं। कौन सा रास्ता कब खुलता है, कहाँ जाना सेफ है, कहाँ नहीं... सब जानता हूँ। मैं यहाँ आर्मी के कुछ जवानों के साथ भी छोटा-मोटा काम करता रहता हूँ, सामान पहुँचाने का वगैरह।" उसने आर्मी का नाम लेकर एक तरह से रिया का भरोसा जीतना चाहा।



    सुरेश ने रिया की तरफ देखा। "मैम, यह ठीक लग रहा है। हमें वाकई एक लोकल आदमी की ज़रूरत है। इसके पास आर्मी का भी रेफरेंस है।"



    रिया ने शंकर की तरफ देखा। "ठीक है, शंकर। हमें कुछ लोकेशंस देखनी हैं आज, और कुछ लोकल प्रॉप्स भी चाहिए। क्या तुम मदद कर सकते हो?"



    "क्यों नहीं मैडम जी! यह तो मेरे लिए खुशकिस्मती की बात है! आप बस बताइए, और काम हो जाएगा।" शंकर ने तुरंत जवाब दिया। उसके चेहरे पर एक संतुष्टि थी, जैसे उसने कोई बड़ा जैकपॉट जीत लिया हो।



    शंकर तुरंत काम पर लग गया। पहले दिन ही उसने अपनी योग्यता साबित कर दी। उसे स्थानीय स्तर पर मिलने वाला बेहतरीन ताज़ा खाना पता था, उसने यूनिट के लिए कुछ मिट्टी के बर्तन और पारंपरिक कपड़े ढूँढकर दिए जो स्क्रिप्ट में चाहिए थे, और तो और, उसने यूनिट के लिए पानी के कुछ स्रोत भी खोजे जो दूर थे। उसकी मदद से प्रोडक्शन का काम काफी आसान हो गया था।



    आरव कपूर, जो हमेशा अपने नखरों में रहता था, उसे भी शंकर ने इंप्रेस कर लिया। आरव को सुबह के नाश्ते में एक खास तरह का फ्रूट जूस चाहिए था, जो उस इलाके में मिलना लगभग नामुमकिन था। लेकिन शंकर ने गाँव के किसी घर से कुछ ताज़े फल ढूंढकर, उन्हें पीसकर वो जूस तैयार करवा दिया।



    "शंकर भाई, कमाल कर दिया यार!" आरव ने मुस्कुराते हुए कहा। "तुम्हें तो मुंबई में होना चाहिए। वहाँ तुम्हें कोई काम की कमी नहीं होगी।"



    शंकर मुस्कुराया। "नहीं साहब, मेरा दिल तो इस मिट्टी में है। और आप लोगों की सेवा करके मुझे बहुत खुशी मिल रही है।" उसकी विनम्रता में एक चालाकी थी, जो कोई पकड़ नहीं पा रहा था।



    कुछ दिनों के भीतर ही शंकर फिल्म यूनिट का एक भरोसेमंद हिस्सा बन गया था। वह हर किसी के साथ घुल-मिल गया था। वह कभी किसी के लिए चाय ले आता, तो कभी कैमरा क्रू के लिए इक्विपमेंट उठाने में मदद करता। उसका व्यवहार इतना सहज था कि कोई उस पर शक नहीं करता था।



    एक दोपहर, शंकर राजवीर शेखावत के ऑफिस के पास से गुज़र रहा था। राजवीर अपने कुछ जवानों के साथ बाहर खड़ा था और उन्हें पेट्रोलिंग के रास्ते के बारे में कुछ निर्देश दे रहा था।



    शंकर उनके पास रुका, जैसे उसे कोई ज़रूरी काम हो। उसने सम्मान से राजवीर को सलाम किया। "जय हिंद, मेजर साहब!"



    राजवीर ने उसकी तरफ देखा। "जय हिंद, शंकर। सब ठीक?"



    "जी मेजर साहब, सब ठीक। बस यही फिल्म वालों का काम चल रहा है। बड़े अच्छे लोग हैं। मैंने सोचा आपसे पूछ लूँ... आज शाम की शूटिंग के लिए मैडम रिया एक नई लोकेशन देखने वाली हैं। वो पास वाली पहाड़ी पर, जहाँ पुराना मंदिर है।" शंकर ने बात शुरू की, और फिर थोड़ा रुककर, जैसे अचानक उसे याद आया हो, बोला, "मैंने सुना है उस तरफ से आपकी कोई पेट्रोलिंग पार्टी भी जाती है, क्या वह रास्ता आज सेफ रहेगा? फिल्म वालों की सिक्योरिटी का सवाल है।"



    राजवीर ने शंकर को एक पल के लिए देखा। उसे शंकर का यह 'एक्स्ट्रा' कंसर्न थोड़ा अजीब लगा, लेकिन उसने इसे उसकी काम के प्रति लगन समझा। "हाँ, शंकर। वह रास्ता सेफ है। हमारी एक पार्टी रोज़ शाम को उस तरफ से जाती है। तुम चिंता मत करो, तुम्हारी फिल्म यूनिट पूरी तरह सेफ रहेगी।"



    "शुक्रिया मेजर साहब! बस इसीलिए पूछा। आप लोग यहाँ हैं तो हमें कोई डर नहीं।" शंकर ने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी जब उसने राजवीर से आर्मी की पेट्रोलिंग के बारे में जानकारी ली। वह जानता था कि इस जानकारी का इस्तेमाल कैसे करना है।



    थोड़ी देर बाद, शंकर रिया के पास गया, जो अगले शॉट की तैयारी कर रही थी।



    "मैडम जी," शंकर ने रिया को आवाज़ दी। "मुझे पता चला है कि आप आज शाम को मंदिर वाली पहाड़ी पर शूटिंग के लिए जा रही हैं। मैंने मेजर साहब से बात की है, उन्होंने कहा है कि वह रास्ता बिलकुल सेफ है। वहाँ शाम को आर्मी की पेट्रोलिंग पार्टी भी रहती है, तो कोई डर नहीं।"



    रिया मुस्कुराई। "बहुत अच्छे, शंकर। तुमने तो मेरा काम आसान कर दिया। थैंक यू।"



    "यह तो मेरा फर्ज़ है मैडम जी।" शंकर ने झुककर कहा। "आप बताइए, आज रात अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो? जैसे, रात में शूटिंग में रोशनी कम पड़े तो क्या हम लोकल जनरेटर का इंतज़ाम कर सकते हैं? वैसे तो आर्मी के पास भी बड़े-बड़े लाइट्स होंगे।" उसने एक बार फिर आर्मी के संसाधनों के बारे में जानने की कोशिश की।



    रिया ने सोचा, 'कितना मददगार है यह आदमी!' उसने जवाब दिया, "नहीं, शंकर। हमें जनरेटर की ज़रूरत नहीं है। आर्मी हमें कुछ लाइट्स प्रोवाइड कर रही है। और वैसे भी, रात में हमें ज़्यादा डीप में जाकर शूटिंग नहीं करनी है, सिर्फ कुछ ही देर का काम है।"



    शंकर ने सिर हिलाया। "जैसी आपकी मर्जी, मैडम जी। बस मैं चाहता हूँ कि आपका काम आसान हो।"



    वह वहाँ से चला गया, उसके चेहरे पर एक हल्की, लगभग अदृश्य मुस्कान थी। उसने रिया और राजवीर, दोनों से ही कुछ ज़रूरी जानकारी हासिल कर ली थी—आर्मी की पेट्रोलिंग का समय और उनकी लाइटिंग की व्यवस्था। ये छोटी-छोटी जानकारियाँ ही उसके असली 'मिशन' के लिए बेहद ज़रूरी थीं।



    किसी को शंकर पर कोई शक नहीं हुआ। वह इतना मिलनसार, इतना मददगार और इतना सहज लगता था कि उसकी हर हरकत एक आम आदमी की जिज्ञासा लगती थी। फिल्म यूनिट को लगा कि उन्हें एक बेहतरीन स्थानीय गाइड मिल गया है, जो उनका काम बहुत आसान बना रहा था। राजवीर भी, जिसने एक-दो बार शंकर की बातों में एक अजीब सी उत्सुकता नोटिस की थी, उसने इसे बस एक स्थानीय आदमी की 'क्यूरियोसिटी' समझकर टाल दिया था। आखिर, कोई सोच भी कैसे सकता था कि इतनी बड़ी फिल्म यूनिट की आड़ में कोई इतना बड़ा खतरा छिपा हो सकता है? शंकर ने सबका दिल जीत लिया था, और ठीक इसी बात का फायदा उठाकर, वह अपने असली मंसूबों को अंजाम देने की फिराक में था।

  • 13. एक्शन-कट-लव - Chapter 13

    Words: 38

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 13
    (शंकर, फिल्म यूनिट के लिए एक भरोसेमंद और मददगार स्थानीय गाइड बन चुका था, जिसकी चालाकी भरी उत्सुकता किसी की नज़र में नहीं आई थी। उसकी हर छोटी-बड़ी मदद यूनिट के सदस्यों को भा रही थी, लेकिन कोई नहीं जानता था कि यह मदद किसी बड़े मंसूबे का हिस्सा है। इसी बीच, सरहद की ज़मीन पर एक छोटा सा वाकया होने वाला था, जो रिया रॉय की फौजियों के प्रति धारणा को हमेशा के लिए बदल देगा, उसे एहसास कराएगा कि 'सख्त' होने का मतलब 'इंसानियत' से खाली होना नहीं होता।)



    अगले दिन, सूरज की तेज़ रोशनी के बीच 'सरहद' फिल्म की शूटिंग ज़ोरों पर थी। सुबह से ही सेट पर चहल-पहल थी। लाइटें लगाई जा रही थीं, कैमरे सेट हो रहे थे, और एक्टर आरव कपूर अपने डायलॉग्स की रिहर्सल कर रहा था। रिया रॉय अपनी डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठी, हर चीज़ पर पैनी नज़र रखे हुए थी। उसकी आवाज़, "लाइट्स एडजस्ट करो!", "कैमरा थोड़ा टिल्ट करो!", "आरव, एक्सप्रेशन और चाहिए!" – पूरे सेट पर गूँज रही थी।



    आज एक एक्शन सीक्वेंस की शूटिंग थी, जिसमें कुछ नकली धमाकों और भाग-दौड़ का सीन था। इसके लिए सेट पर बड़े-बड़े लाइट स्टैंड और रिफ्लेक्टर लगाए गए थे। लाइटमैन और क्रू के बाकी सदस्य लगातार दौड़-भाग कर रहे थे, ताकि सब कुछ समय पर तैयार हो जाए।



    "थोड़ा और ऊपर करो! हाँ, बस वहाँ!" एक लाइटमैन ने अपने साथी से कहा, जो एक भारी लाइट स्टैंड को ऊँचाई पर एडजस्ट करने की कोशिश कर रहा था। वह खुद भी एक छोटी सी सीढ़ी पर खड़ा था।



    तभी, अचानक ज़मीन पर बिछी एक ढीली तार में उसका पैर फँस गया। संतुलन बिगड़ा और वह "ओह!" की हल्की सी आवाज़ के साथ लड़खड़ाकर नीचे गिर पड़ा। लाइट स्टैंड भी उसके हाथ से छूटकर ज़मीन पर गिरा, जिससे एक हल्की सी खनक की आवाज़ आई।



    "अरे! क्या हुआ?" सेट पर कुछ आवाज़ें आईं।



    रिया ने चौंककर देखा। लाइटमैन ज़मीन पर बैठा था, उसके हाथ की कलाई मुड़ गई थी और उस पर एक गहरा खरोंच आ गया था, जिससे हल्का खून रिसने लगा था। वह दर्द से कराह रहा था।



    प्रोडक्शन मैनेजर सुरेश तुरंत उसकी तरफ भागा। "अरे महेश! क्या हो गया? ठीक हो?"



    "सर, कलाई मुड़ गई है... और छिल भी गया है," महेश ने दर्द से मुँह बनाते हुए कहा।



    "जल्दी फर्स्ट-एड बॉक्स लाओ!" सुरेश ने अपने असिस्टेंट को आवाज़ दी। "देखो, चोट ज़्यादा गहरी तो नहीं है?"



    असिस्टेंट तुरंत दौड़ा और एक पीले रंग का फर्स्ट-एड बॉक्स ले आया। सुरेश ने बॉक्स खोला, उसमें से एक एंटीसेप्टिक ट्यूब और पट्टी निकाली। वह महेश की कलाई को साफ़ करने वाला था। फिल्म यूनिट में ऐसे छोटे-मोटे हादसों के लिए हमेशा फर्स्ट-एड की सुविधा रहती थी, और वे आदी थे इन चीज़ों के।



    तभी, एक सख्त, लेकिन अनुभवी आवाज़ ने उन्हें रोका। "ठहरो!"



    सबने मुड़कर देखा। मेजर राजवीर शेखावत वहाँ खड़ा था, उसके साथ उसका भरोसेमंद सूबेदार बलवंत सिंह भी था। राजवीर ने अपनी वर्दी पहनी हुई थी, और उसके चेहरे पर हमेशा की तरह गंभीरता थी, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी सतर्कता थी। वह अपनी रोज़ की ड्यूटी पर था, लेकिन जैसे ही उसने लाइटमैन को गिरते देखा, वह तुरंत उनकी तरफ आ गया था।



    राजवीर ने महेश की तरफ देखा, उसकी चोट का अंदाज़ा लगाया। फिर उसने बलवंत सिंह की तरफ देखा। बलवंत ने तुरंत बिना कुछ कहे, अपनी कमर में टंगी हुई छोटी सी हरे रंग की आर्मी फर्स्ट-एड किट निकाली। यह किट उन फर्स्ट-एड बॉक्स से बहुत अलग थी जो फिल्म यूनिट के पास होते थे। यह ज़्यादा व्यवस्थित और पेशेवर थी।



    बलवंत सिंह घुटनों के बल महेश के पास बैठ गया। "दिखाओ बेटा, क्या हुआ?" उसकी आवाज़ में एक पिता जैसी नरमी थी।



    महेश ने अपनी कलाई आगे बढ़ाई। बलवंत ने पहले अपनी किट से एक जोड़ी दस्ताने निकाले, उन्हें पहना, और फिर एक छोटी सी बोतल में से एक तरल पदार्थ निकालकर घाव पर लगाया। वह एक तेज़ एंटीसेप्टिक था, जिससे महेश को थोड़ी जलन हुई, और वह हल्का सा चीख़ पड़ा।



    "थोड़ा जलेगा, बेटा। बस एक मिनट," बलवंत ने कहा और फिर एक छोटे से स्प्रे से उस पर कुछ स्प्रे किया, जिससे जलन तुरंत शांत हो गई। उसने बड़े ध्यान से घाव को साफ़ किया, फिर एक विशेष प्रकार की पट्टी निकाली जो चिपकने वाली थी और काफी मज़बूत दिख रही थी। उसने कलाई पर उसे बड़ी सफाई से लपेट दिया, जिससे कलाई को सहारा मिल गया।



    पूरी फिल्म यूनिट, यहाँ तक कि रिया भी, यह सब हैरान होकर देख रही थी। उन्होंने कभी फौजियों को इस तरह से लोगों की मदद करते नहीं देखा था। उनकी छवि सिर्फ लड़ने वाले, कड़े अनुशासन वाले और भावहीन इंसानों की थी। लेकिन बलवंत सिंह का यह काम, उसकी तेज़ी, सफाई और नरमी, उन्हें चौंका रही थी।



    "हो गया बेटा। ज़्यादा हिलाना मत। अब ठीक लगेगा," बलवंत ने महेश के कंधे पर हल्के से थपथपाया।



    महेश ने अपनी कलाई को हिलाकर देखा। दर्द काफी हद तक कम हो गया था, और उसे आराम महसूस हो रहा था। "थैंक यू सर! बहुत-बहुत थैंक यू।"



    सुरेश भी हैरान था। "अरे वाह! सूबेदार साहब, आपने तो कमाल कर दिया। हमारे पास भी फर्स्ट-एड बॉक्स था, लेकिन यह... यह तो बहुत बढ़िया रहा।"



    बलवंत सिंह मुस्कुराया। "हम फौजियों को हर चीज़ में परफेक्ट होना पड़ता है, साहब। छोटी सी चोट भी बड़ी बन सकती है सरहद पर। इसीलिए इसकी ट्रेनिंग बहुत अहम है।"



    राजवीर यह सब थोड़ी दूरी पर खड़ा देख रहा था। उसके चेहरे पर कोई खास भाव नहीं था, लेकिन उसकी आँखों में एक हल्की सी चमक थी। उसने महेश को ठीक होते देखा, और फिर बलवंत सिंह को एक हल्का सा इशारा किया, जैसे कह रहा हो, 'वेल डन।'



    रिया यह सब देख रही थी। उसकी आँखें मेजर राजवीर पर आकर टिक गईं, जो अभी भी चुपचाप सब देख रहा था, जैसे यह सब उसके लिए बिलकुल सामान्य हो। उसके मन में विचारों का एक बवंडर उठ गया था।



    'ये लोग...' उसने सोचा। 'इन्हें मैं कितना गलत समझती थी। मैं सोचती थी कि ये सिर्फ सख्त होते हैं, लड़ना जानते हैं, और इनकी ज़िंदगी में इमोशन नहीं होता।' उसे याद आया जब उसने राजवीर से फौजी के इमोशन के बारे में पूछा था और उसने जवाब दिया था, "हम सोचते नहीं, करते हैं।" आज उसने उस बात का मतलब समझा था। वे सचमुच सोचते नहीं, वे करते हैं। बिना किसी दिखावे के, बिना किसी ड्रामे के, वे बस अपना फर्ज़ पूरा करते हैं, चाहे वह देश की रक्षा हो या किसी चोटिल लाइटमैन की मदद।



    महेश अब धीरे-धीरे खड़ा हो गया था। राजवीर ने उसकी तरफ देखा। "अपना ध्यान रखो। और एहतियात बरतो। यह जगह खतरनाक हो सकती है।"



    "जी मेजर साहब!" महेश ने सिर हिलाया।



    राजवीर फिर से अपनी ड्यूटी पर चला गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। उसने न तो कोई प्रशंसा स्वीकार की, न ही किसी की तरफ ध्यान दिया। वह बस एक फौजी था, जिसने अपना फर्ज़ निभाया था।



    रिया ने राजवीर को दूर जाते हुए देखा। उसकी आँखों में अब सिर्फ आश्चर्य नहीं, बल्कि एक गहरा सम्मान था। उसे एहसास हुआ कि फौजियों की ज़िंदगी सिर्फ युद्ध और अनुशासन की नहीं होती, बल्कि उनमें एक गहरी इंसानियत भी छिपी होती है, जो उनकी सख्त वर्दी के नीचे होती है। यह एक छोटी सी घटना थी, लेकिन इसने रिया के दिल पर एक गहरा असर छोड़ा था। उसे लगा कि वह अपनी फिल्म में इन जवानों की सच्ची कहानी को और बेहतर तरीके से दिखा पाएगी। वह अब सिर्फ एक डायरेक्टर नहीं थी, बल्कि एक ऐसी इंसान थी जो सरहद पर 'हकीकत' के मायने समझ रही थी। उसकी आँखें राजवीर पर ही टिकी रहीं, जो अब पहाड़ियों की तरफ देख रहा था, अपनी ड्यूटी में लीन। रिया ने मन ही मन सोचा, 'मिस्टर नो-ड्रामा... आप सिर्फ सख्त नहीं हैं, मेजर। आप एक असली इंसान हैं।'



    यह पल रिया और राजवीर के रिश्ते में एक अनकहा मोड़ था। रिया की नज़र में राजवीर की छवि अब सिर्फ एक 'सख्त फौजी' की नहीं रह गई थी, बल्कि उसमें 'इंसानियत' और 'जिम्मेदारी' जैसे गहरे रंग भी जुड़ गए थे।

  • 14. एक्शन-कट-लव - Chapter 14

    Words: 8

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 14
    (पिछला अध्याय रिया रॉय के दिल में फौजियों, खासकर मेजर राजवीर शेखावत के प्रति एक नई समझ और सम्मान के साथ खत्म हुआ था। उसने देखा था कि उनके सख्त बाहरी कवच के नीचे भी इंसानियत और परवाह का अथाह सागर छिपा था। अब कहानी एक ऐसे मोड़ पर आने वाली थी, जहाँ रिया एक नई मुसीबत में फंसेगी और राजवीर एक बार फिर अपनी खामोश परवाह का सबूत देगा।)





    सुबह की शूटिंग तेज़ी से चल रही थी। महेश, लाइटमैन, अब ठीक महसूस कर रहा था, उसकी कलाई पर बँधी पट्टी राजवीर और बलवंत सिंह की खामोश मदद की गवाह थी। रिया अपने डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठी हुई थी, लेकिन उसका ध्यान बार-बार मेजर राजवीर की तरफ जा रहा था, जो अपने जवानों के साथ दूर पहाड़ी पर किसी ट्रेनिंग ड्रिल में व्यस्त था। उसे याद आ रहा था कि कैसे उस सख्त दिखने वाले फौजी ने एक पल में महेश की मदद की, बिना किसी ड्रामे या दिखावे के। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी, एक नई समझ की मुस्कान।





    वह अपने असिस्टेंट शालिनी से बात कर रही थी। "शालिनी, अगला सीन कौन सा है? मुझे लगता है कि आज हम वो वाला सीन कर सकते हैं, जिसमें आरव अपने घर की चिट्ठी पढ़ता है। मैंने उसमें कुछ बदलाव किए हैं, जो मेरे दादाजी की डायरी से हैं।"





    "हाँ मैम, मैंने तैयारी कर ली है। स्क्रिप्ट के वो पन्ने कहाँ हैं? आपने कहा था कि आप उन्हें खुद चेक करेंगी," शालिनी ने पूछा।





    "हाँ, मैंने उन्हें अपने टेंट में रखा था। कल रात उस पर कुछ नोट्स लिखे थे," रिया ने कहा। "ज़रा जाओ, उन्हें लेकर आओ। वही हैं मेरी फिल्म की जान।"





    शालिनी तुरंत रिया के टेंट की तरफ भागी। कुछ देर बाद, वह वापस लौटी, लेकिन उसके चेहरे पर परेशानी साफ दिख रही थी।





    "मैम... मैम, वो पन्ने नहीं मिल रहे हैं," शालिनी ने घबराई हुई आवाज़ में कहा।





    रिया चौंक गई। "क्या? मज़ाक मत करो! मैंने उन्हें ठीक वहीं रखा था जहाँ मेरी दादाजी की तस्वीर है। अच्छी तरह से देखो!"





    "मैम, मैंने पूरा टेंट छान मारा है। बैग देखा, कुर्सी देखी, बेड देखा... कहीं नहीं हैं वो पन्ने," शालिनी ने लगभग रोते हुए कहा। उसे पता था कि रिया के लिए वे पन्ने कितने ज़रूरी थे।





    रिया अपनी कुर्सी से उछल पड़ी। "ये क्या बकवास है! वे पन्ने कहाँ जा सकते हैं? उनमें मेरे दादाजी की लिखी हुई बहुत ख़ास बातें हैं! अगर वे खो गए तो मैं वो सीन कैसे शूट करूंगी? वो सिर्फ स्क्रिप्ट नहीं है, वो मेरी फिल्म की आत्मा है!" उसकी आवाज़ में गुस्सा और परेशानी दोनों थे। वह अपनी भावनाओं को छिपाने की कोशिश नहीं कर रही थी।





    प्रोडक्शन मैनेजर सुरेश भी उनकी तरफ आ गया। "क्या हुआ रिया? क्यों इतना हंगामा?"





    "सुरेश! मेरी स्क्रिप्ट के वो ख़ास पन्ने खो गए हैं! जिन पर मेरे दादाजी के नोट्स थे! कहीं नहीं मिल रहे हैं!" रिया ने परेशान होकर बताया। उसकी आँखों में आंसू आ गए थे। यह उसके लिए सिर्फ स्क्रिप्ट के पन्ने नहीं थे, यह उसके दादाजी की विरासत थी, जिसे वह अपनी फिल्म के ज़रिए दुनिया के सामने लाना चाहती थी।





    "अरे! शांत हो जाओ रिया। शायद कहीं रख दिए होंगे। अभी ढूंढ लेते हैं," सुरेश ने उसे दिलासा देने की कोशिश की। "पूरी यूनिट को लगाओ ढूंढने में।"





    पूरी फिल्म यूनिट को यह खबर मिली और सब पन्नों को ढूंढने में लग गए। किसी को टेंट में देखा गया, कोई आसपास की झाड़ियों में देख रहा था, कोई ज़मीन पर गिरी हुई चीज़ों पर नज़र दौड़ा रहा था। लेकिन पन्ने कहीं नहीं मिल रहे थे।





    रिया खुद अपने टेंट में घुस गई और हर एक चीज़ को दोबारा पलटना शुरू कर दिया। "यहाँ थे! मुझे यकीन है यहाँ थे!" वह अपने आप से बुदबुदा रही थी। उसकी आवाज़ में एक बेबसी थी। "दादाजी... अगर ये खो गए तो मैं अपनी फिल्म कैसे पूरी करूंगी?"





    दूर से, राजवीर शेखावत ने यह सब देखा। वह अपनी ड्रिल खत्म कर चुका था और अपने जवानों के साथ आराम कर रहा था। उसने देखा कि फिल्म यूनिट में एक अजीब सी हलचल है और रिया बहुत परेशान दिख रही है। उसने अपने कान लगाए और बातों को सुनने की कोशिश की।





    "अरे यार, वो मैडम रिया तो बिलकुल पागल हो गई हैं," एक लाइटमैन ने दूसरे से कहा। "कह रही हैं, उनकी स्क्रिप्ट के कुछ पन्ने खो गए हैं। जिस पर उनके दादाजी के कुछ नोट लिखे थे। कह रही हैं, वो सीन सबसे ज़रूरी है।"





    "दादाजी के नोट? बाप रे! वो तो बहुत इमोशनल होंगी," दूसरा बोला। "इतनी मेहनत कर रही हैं अपनी फिल्म के लिए, ऊपर से ये सब।"





    राजवीर ने उनकी बातें सुनी। 'दादाजी के नोट्स...' उसके दिमाग में ये शब्द गूँज उठे। उसे याद आया कि रिया ने उसे बताया था कि यह फिल्म उसके दादाजी को श्रद्धांजलि है, जो एक युद्ध-नायक थे। उसके सख्त चेहरे पर एक पल के लिए चिंता की एक छोटी सी लकीर उभरी। वह जानता था कि रिया के लिए यह फिल्म सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि एक बहुत ही निजी और भावनात्मक यात्रा थी।





    वह बिना कुछ कहे, चुपचाप अपनी जगह से उठा। उसके जवानों ने उसकी तरफ देखा, लेकिन वह सीधा चलने लगा, जैसे उसे कोई ज़रूरी काम हो। वह फिल्म यूनिट से थोड़ी दूरी पर गया और पहाड़ी की तरफ बढ़ने लगा, जहाँ दिन में शूटिंग हुई थी।





    जैसे-जैसे शाम ढलने लगी, ठंड बढ़ती जा रही थी। सूरज पहाड़ियों के पीछे छिप रहा था और हवा तेज़ हो रही थी। रिया अभी भी टेंट के बाहर खड़ी थी, उसकी आँखों में आंसू थे। "नहीं मिल रहे हैं, सुरेश। कहीं नहीं मिल रहे।"





    "कोई बात नहीं रिया। हम रात में टॉर्च लेकर फिर से ढूंढेंगे। शायद हवा से कहीं उड़ गए हों," सुरेश ने कहा।





    राजवीर अपने जीप में बैठा। उसने अपनी टॉर्च उठाई और ड्राइवर को इशारा किया। "चलो, उस जगह पर जहाँ आज सुबह शूटिंग हुई थी।"





    ड्राइवर ने हैरत से देखा। "लेकिन मेजर साहब, वहाँ अंधेरा हो रहा है... और वो रास्ता अब इतना सुरक्षित नहीं है रात में।"





    "मैं जानता हूँ, ड्राइवर," राजवीर की आवाज़ में कोई झिझक नहीं थी। "लेकिन जाना ज़रूरी है। मुझे लगता है कुछ काम है वहाँ।" उसने कोई बहाना नहीं बनाया, बस अपनी बात कह दी। वह नहीं चाहता था कि कोई समझे कि वह रिया के लिए कुछ कर रहा है।





    जीप धीमी गति से आगे बढ़ने लगी, धूल भरे और ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर। राजवीर की नज़रें सड़क के दोनों किनारों पर टिकी हुई थीं। वह जानता था कि एक छोटे से कागज़ के पन्ने को रात के अँधेरे में ढूंढना लगभग नामुमकिन था, खासकर उस तेज़ हवा में जो आज शाम चल रही थी। लेकिन वह कोशिश करना चाहता था।





    उसे रिया की आँखों में देखी बेबसी याद आ रही थी। एक डायरेक्टर, जो इतनी सख्त और ज़िद्दी थी, लेकिन अपने दादाजी के नाम पर बनी फिल्म के लिए इतनी भावुक थी। राजवीर को एहसास हुआ कि उसकी "नो-ड्रामा" वाली इमेज के पीछे भी एक गहरी संवेदना थी, जिसे वह कभी ज़ाहिर नहीं करती थी। आज उसकी आँखों में जो दर्द था, वह राजवीर को अंदर तक छू गया था।





    जीप उस लोकेशन पर पहुँची जहाँ दिन में शूटिंग हुई थी। चाँदनी रात में पहाड़ियाँ और भी रहस्यमयी लग रही थीं। राजवीर जीप से उतरा और अपनी शक्तिशाली टॉर्च जलाई। वह पत्थरों के पीछे, झाड़ियों के बीच, हर उस जगह को देखने लगा जहाँ हवा से पन्ने उड़कर जा सकते थे।





    ठंड हवा चल रही थी और पत्तों की सरसराहट के अलावा कोई आवाज़ नहीं थी। राजवीर ने अपनी वर्दी को कसकर पकड़ा और अपनी खोज जारी रखी। वह जानता था कि यह कोई फौजी मिशन नहीं था, लेकिन यह रिया के लिए ज़रूरी था, और उसके लिए जो रिया के लिए ज़रूरी था, वह उसके लिए भी ज़रूरी हो गया था। यह उसकी खामोश परवाह का एक और सबूत था, जिसे वह कभी ज़ाहिर नहीं करता था। वह बस ढूंढता रहा, बिना किसी से कुछ कहे, उस अँधेरे में, एक लड़की के खोए हुए सपनों को।

  • 15. एक्शन-कट-लव - Chapter 15

    Words: 12

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 15
    रात का अँधेरा तेज़ हवा के साथ कैंटोनमेंट के ऊपर गहराता जा रहा था। दिन की सारी चहल-पहल शांत हो चुकी थी। सिर्फ कुछ दूर से सैनिकों के बैरक से आती धीमी आवाज़ें और संतरी की गश्त की हल्की आहट ही सुनाई दे रही थी। रिया रॉय अपने टेंट में बैठी, माथा पकड़े हुए थी। उसकी आँखों में अभी भी नमी थी। दादाजी के नोट्स वाले वो पन्ने उसके लिए सिर्फ कागज़ नहीं थे, वे उसकी पहचान थे, उसकी प्रेरणा थे। उन्हें खो देने का ख़याल ही उसे अंदर तक डरा रहा था। वह बार-बार शालिनी से पूछ रही थी, "तुमने ठीक से देखा था ना? कहीं गलती से किसी कचरे में तो नहीं फेंक दिए गए?" शालिनी बस सिर हिला रही थी, उतनी ही परेशान।

    दूसरी तरफ, मेजर राजवीर शेखावत की जीप पहाड़ी रास्तों पर तेज़ी से आगे बढ़ रही थी, उसकी हेडलाइट्स अँधेरे को चीरती हुई दूर तक रौशनी फैला रही थीं। ड्राइवर ने कुछ और बोलने की हिम्मत नहीं की थी, क्योंकि राजवीर के चेहरे पर जो दृढ़ता थी, उसे देखकर कोई भी सवाल पूछना मुमकिन नहीं था। राजवीर की नज़रें लगातार सड़क के दोनों ओर, और उससे भी आगे, पहाड़ियों की तलहटी और झाड़ियों की तरफ स्कैन कर रही थीं। हवा और भी तेज़ हो चुकी थी, ठंडी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, लेकिन उसे इसकी परवाह नहीं थी। उसका सारा ध्यान उन खोए हुए पन्नों पर था।

    "यहीं कहीं होंगे...," वह मन ही मन बुदबुदाया। उसने अंदाज़ा लगाया कि दिन भर की शूटिंग के दौरान, या तो वे पन्ने हवा के तेज़ झोंके से उड़ गए होंगे, या रिया ने गलती से कहीं रख दिए होंगे और फिर भूल गई होगी। लेकिन हवा ने उन्हें दूर तक पहुँचाया होगा, उसे यकीन था।

    जीप को उसने उस जगह से थोड़ी दूर रोका जहाँ सुबह का एक्शन सीन फिल्माया गया था। यह इलाका ऊबड़-खाबड़ पत्थरों और कंटीली झाड़ियों से भरा था। रात के इस समय, यहाँ जंगली जानवरों का भी खतरा था, लेकिन राजवीर को इसकी कोई परवाह नहीं थी। वह अपनी जीप से उतरा, अपनी कमर पर टिकी शक्तिशाली टॉर्च को हाथ में लिया और उसकी तेज़ रोशनी से आसपास के इलाके को भेदना शुरू किया।

    "शुरू करते हैं," उसने सोचा। वह जानता था कि यह सुई को ढेर में ढूंढने जैसा था। कागज़ के कुछ पन्ने, जो शायद मिट्टी के रंग में रंग गए होंगे या पत्तों के ढेर में छिप गए होंगे, उन्हें ढूंढना लगभग असंभव था। लेकिन रिया की आँखों में जो दर्द और बेबसी उसने देखी थी, वह उसे हार मानने नहीं दे रहा था। उसके लिए, यह सिर्फ कागज़ नहीं थे; यह रिया के जुनून का, उसके दादाजी के प्रति सम्मान का प्रतीक थे। उसे रिया की वो बात याद आई, "यह फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं, मेरे दादाजी को श्रद्धांजलि है।" राजवीर के लिए भी, यह श्रद्धांजलि अब मायने रखने लगी थी। एक फ़ौजी होने के नाते, वह उन भावनाओं को समझ सकता था जो देश और विरासत से जुड़ी हों।

    राजवीर ने एक योजना बनाई। वह जानता था कि हवा का रुख किधर था। उसने उसी दिशा में चलना शुरू किया, अपनी टॉर्च को ज़मीन से लेकर झाड़ियों तक हर जगह घुमाते हुए। उसकी बूटों की आवाज़ पत्थरों पर हल्की सी खड़खड़ाहट पैदा कर रही थी। वह कभी झुका, कभी किसी झाड़ी के पीछे देखा, कभी छोटे पत्थरों के ढेर को हटाया। उसकी आँखें हर एक अस्वाभाविक चीज़ पर टिकी हुई थीं।

    ठंड बढ़ती जा रही थी, लेकिन राजवीर के माथे पर पसीने की हल्की बूंदें थीं। यह सिर्फ शारीरिक परिश्रम नहीं था, यह मानसिक एकाग्रता भी थी। वह अपने फ़ौजी जीवन में ऐसे ही मुश्किल मिशनों पर काम करता था, जहाँ एक छोटी सी गलती जानलेवा हो सकती थी। यहाँ जान का खतरा नहीं था, लेकिन भावनात्मक मूल्य बहुत बड़ा था।

    लगभग आधे घंटे की तलाश के बाद, उसे कुछ नहीं मिला। निराशा की एक हल्की सी लहर उसके मन में उठी, लेकिन उसने उसे तुरंत झटक दिया। 'फौजी हार नहीं मानते,' उसने खुद को याद दिलाया। वह और आगे बढ़ा, एक छोटी सी ढलान पर नीचे उतरा, जहाँ कुछ ऊँची झाड़ियाँ थीं। हवा अक्सर ऐसी जगहों पर चीज़ों को धकेल कर ले जाती थी।

    वह झाड़ियों के करीब पहुँचा, टॉर्च की रोशनी को उनके घने पत्तों के बीच घुसाया। उसकी नज़र एक छोटे से चमकीले सफेद कोने पर पड़ी। 'क्या वो है?' उसका दिल तेज़ धड़कने लगा। उसने सावधानी से उस झाड़ी को हटाया, जैसे कोई कीमती चीज़ ढूंढ रहा हो। और वहाँ, पत्तों और धूल के बीच, कुछ मुड़े-तुड़े, लेकिन साफ पन्ने पड़े थे।

    "मिल गए!" उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान उभरी, जिसे देखने वाला कोई नहीं था। यह जीत की मुस्कान थी, लेकिन एक खामोश जीत की। उसने बड़े इत्मीनान से पन्नों को उठाया, उन पर लगी धूल को झाड़ा और उन्हें सीधा किया। वे वही पन्ने थे, जिन पर रिया के दादाजी के कुछ हाथ से लिखे नोट्स थे। उन्हें देखकर राजवीर को एक अजीब सी संतुष्टि हुई।

    उसने पन्नों को बड़े ध्यान से अपनी वर्दी की अंदरूनी जेब में रखा ताकि वे सुरक्षित रहें। अब उसका अगला मिशन था इन्हें रिया तक पहुँचाना, बिना उसे यह बताए कि उन्हें किसने ढूंढा है। वह नहीं चाहता था कि रिया को लगे कि वह उस पर मेहरबान हो रहा है, या उसकी परवाह कर रहा है। उसकी परवाह हमेशा खामोश और अनकही ही रहती थी।

    वह चुपचाप अपनी जीप की तरफ लौटा, अपने कदमों को तेज़ करते हुए। जीप में बैठकर उसने ड्राइवर को कैंटोनमेंट लौटने का इशारा किया। ड्राइवर ने हैरत से देखा कि मेजर साहब इतनी जल्दी कैसे लौट आए, लेकिन उसने कुछ नहीं पूछा।

    कैंटोनमेंट में पहुँचकर, राजवीर ने जीप को रिया के टेंट से थोड़ी दूरी पर रोका। रात और गहरी हो चुकी थी और लगभग सभी सो चुके थे। सिर्फ संतरी ही अपनी गश्त कर रहा था। राजवीर ने इंतज़ार किया, जब तक संतरी दूसरी तरफ न मुड़ जाए। वह अपनी वर्दी में था, इसलिए किसी को शक नहीं होता अगर उसे कोई देख भी लेता, लेकिन वह कोई जोखिम नहीं लेना चाहता था। यह उसका निजी मिशन था।

    जब उसे लगा कि रास्ता साफ है, तो वह जीप से उतरा और रिया के टेंट की तरफ बढ़ा, उसके कदम किसी शिकारी की तरह खामोश थे। वह टेंट के पास पहुँचा। रिया के टेंट की लाइट्स बंद थीं, जिसका मतलब था कि वह सो रही थी।

    राजवीर टेंट के ठीक बाहर रुका। उसने अपनी जेब से वे पन्ने निकाले। फिर उसने आसपास देखा। टेंट के पास एक बड़ा सा पत्थर पड़ा था। यह एक अच्छा ठिकाना था। उसने पन्नों को बड़े प्यार से मोड़ा और उस पत्थर के नीचे ऐसे रखा कि वह बारिश या हवा से खराब न हों, लेकिन सुबह आसानी से दिख जाएं। उसने एक आखिरी नज़र पन्नों पर डाली, जैसे उन्हें अलविदा कह रहा हो।

    फिर वह बिना कोई आवाज़ किए, चुपचाप वापस अपनी जीप की तरफ मुड़ गया। उसकी पीठ पर हल्की ठंड लग रही थी, लेकिन उसके मन में एक अजीब सी गर्मी थी। उसने जीप में बैठकर एक गहरी साँस ली। उसका मिशन पूरा हो चुका था। किसी को पता नहीं चला था कि 'मिस्टर नो-ड्रामा' ने रात के अँधेरे में किस चीज़ की खोज की थी, और रिया को कभी नहीं पता चलेगा कि उसके दादाजी के पन्ने किसने ढूंढे थे। लेकिन राजवीर को पता था। और उसके लिए, यही काफी था। उसका काम सिर्फ देश की सरहद पर पहरा देना नहीं था, बल्कि उन कहानियों की भी रक्षा करना था, जो इस सरहद की मिट्टी से जुड़ी थीं। उसने अपनी खामोश परवाह का एक और सबूत दे दिया था।

  • 16. एक्शन-कट-लव - Chapter 16

    Words: 17

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 16
    अगली सुबह, पहली किरण अभी-अभी पहाड़ियों के ऊपर से झाँकनी शुरू हुई थी कि कैंटोनमेंट में हलचल शुरू हो गई। चिड़ियों की आवाज़ और दूर से जवानों के ड्रिल की हल्की-फुल्की आवाज़ सुनाई देने लगी थी। रिया रॉय, अभी भी नींद से बोझिल और रात भर की चिंता से थकी हुई, अपने टेंट में करवटें बदल रही थी। उसके दिमाग में अभी भी वही एक बात घूम रही थी—उसके दादाजी के नोट्स वाले वो ख़ास पन्ने कहाँ गए? नींद में भी उसे लग रहा था जैसे कोई ज़रूरी चीज़ उससे हमेशा के लिए बिछड़ गई हो।



    शालिनी, जो रिया की असिस्टेंट थी, अपने काम में लगी हुई थी। वह रिया के लिए सुबह की चाय बनाने की तैयारी कर रही थी और साथ ही, टेंट के बाहर रिया के जूतों को साफ़ कर रही थी। उसका चेहरा भी उदास था, क्योंकि उसे पता था कि रिया कितनी परेशान है। तभी उसकी नज़र टेंट के ठीक बाहर पड़े एक पत्थर पर पड़ी। पत्थर के ठीक नीचे, कुछ दबा हुआ था।



    उसने उत्सुकता से पत्थर को हटाया। और उसकी आँखें फ़ैल गईं। वहाँ, कुछ मुड़े-तुड़े, धूल से सने हुए पन्ने पड़े थे। यह वही पन्ने थे, जिन्हें वे रात भर से ढूंढ रहे थे। शालिनी की आँखें खुशी से चमक उठीं। उसने बिना एक पल गंवाए, उन पन्नों को उठाया और दौड़ती हुई टेंट के अंदर घुस गई।



    "मैम! मैम! उठिए!" शालिनी की आवाज़ में एक अजीब सी ख़ुशी थी, "देखिए मुझे क्या मिला!"



    रिया ने आँखें मसलीं, अभी भी पूरी तरह जागी नहीं थी। "क्या हुआ शालिनी? क्यों इतनी सुबह-सुबह शोर कर रही हो?"



    शालिनी ने अपने हाथों में थामे पन्ने रिया की तरफ बढ़ा दिए। "मैम, ये देखिए! आपके स्क्रिप्ट के पन्ने! मिल गए!"



    रिया की आँखें अचानक पूरी तरह से खुल गईं। उसने एक पल के लिए अविश्वास से उन पन्नों को देखा, फिर उन्हें शालिनी के हाथों से लगभग झपट लिया। उसने उन्हें सीधा किया, अपनी उँगलियों से उन पर लगी धूल को झाड़ा। ये वही पन्ने थे, जिन पर उसके दादाजी की हैंडराइटिंग में लिखे हुए मार्मिक नोट थे।



    "ये... ये कहाँ मिले?" रिया की आवाज़ में ख़ुशी और आश्चर्य दोनों थे। उसकी आँखों में एक चमक आ गई थी, जो रात भर की उदासी के बाद अब साफ़ दिख रही थी।



    "टेंट के बाहर, मैम। उस बड़े पत्थर के नीचे पड़े थे," शालिनी ने मुस्कुराते हुए बताया। "लगता है हवा से उड़कर वहाँ चले गए होंगे।"



    रिया उन पन्नों को सीने से लगाए बैठी रही। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे, लेकिन इस बार ये ख़ुशी के आँसू थे। उसने उन पन्नों को एक-एक करके देखा, जैसे किसी खोए हुए खज़ाने को देख रही हो। "हे भगवान! मैं तो सोच रही थी कि ये हमेशा के लिए खो गए।" वह अपनी आवाज़ में ख़ुशी छिपा नहीं पा रही थी।



    उसका दिमाग तेज़ी से सोचने लगा। 'टेंट के बाहर? पत्थर के नीचे? हवा से उड़कर?' यह बात उसे कुछ अजीब लगी। रात में इतनी तेज़ हवा चल रही थी कि अगर पन्ने उड़ते, तो वे शायद बहुत दूर, शायद घाटी में कहीं चले जाते। और उन्हें पत्थर के नीचे किसने रखा होगा, ताकि वे उड़ें नहीं? यह किसी हवा का काम नहीं हो सकता था।



    रिया ने अपनी आँखें बंद कीं और सोचने लगी। रात में कौन बाहर निकला होगा? कौन इतनी रात को उन पन्नों को ढूंढने की जहमत उठाएगा, और फिर उन्हें इस तरह सुरक्षित रखेगा? फिल्म यूनिट के लोग तो थककर चूर हो चुके थे, और सुरेश ने तो साफ़ कह दिया था कि रात में नहीं ढूंढेंगे।



    तभी उसे एक फ्लैशबैक हुआ। कल शाम, जब वह अपनी परेशानी बता रही थी, उसने राजवीर को दूर से उसे देखते हुए देखा था। उसका चेहरा हमेशा की तरह सख्त था, लेकिन रिया को लगा था कि उसने उसकी परेशानी को महसूस किया है। फिर उसे याद आया कि राजवीर की जीप रात में एक बार बाहर गई थी, यह बात उसने ड्राइवर से सुनी थी। और फिर, राजवीर की वह खामोश परवाह, जब लाइटमैन को चोट लगी थी, और जब उसने महेश की मदद की थी।



    'क्या ये... क्या ये मेजर राजवीर का काम हो सकता है?' उसके दिल में एक आवाज़ गूँजी। 'मिस्टर नो-ड्रामा? जो कहता है कि हम सोचते नहीं, बस करते हैं? क्या वो मेरे लिए इतनी दूर अँधेरे में पन्ने ढूंढने गया होगा?' इस ख़याल से उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। यह एक ऐसा ख़याल था, जो उसे अंदर तक खुश कर रहा था।



    "मैम, अब क्या करना है? शूटिंग शुरू करें?" शालिनी ने पूछा।



    रिया ने पन्नों को ध्यान से समेटा और अपनी मेज़ पर रखा। "हाँ, बिलकुल करेंगे। आज का दिन बहुत ख़ास होने वाला है।" उसकी आवाज़ में एक नई ऊर्जा थी। "लेकिन उससे पहले... मुझे कहीं जाना है।"



    वह जल्दी से तैयार हुई और अपने टेंट से बाहर निकली। सुबह का समय था और मेजर राजवीर अक्सर इसी समय अपने जवानों के साथ ड्रिल करता था। उसने दूर से राजवीर को देखा, वह अपने जवानों को आदेश दे रहा था, उसकी यूनिफार्म एकदम परफेक्ट थी, उसका चेहरा हमेशा की तरह सख्त और अनुशासित था।



    रिया धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ने लगी। उसके दिल में एक अजीब सी भावना थी—कृतज्ञता, सम्मान, और कुछ और भी, जिसे वह अभी नाम नहीं दे पा रही थी। वह राजवीर के पास पहुँची और थोड़ी दूरी पर रुक गई। राजवीर ने अपनी ड्रिल खत्म की और अपने जवानों को कुछ निर्देश दिए। फिर उसने मुड़कर रिया को देखा। उसकी निगाहों में वही तटस्थता थी, जो हमेशा रहती थी।



    "गुड मॉर्निंग, मेजर," रिया ने कहा, उसकी आवाज़ में हल्की सी मिठास थी।



    राजवीर ने सिर झुकाया। "गुड मॉर्निंग, मैडम डायरेक्टर। सब ठीक है?" उसकी आवाज़ भी हमेशा की तरह सपाट थी, जैसे वह बस अपनी ड्यूटी निभा रहा हो।



    रिया ने एक पल के लिए अपनी नज़रें झुकाईं, फिर सीधी उसकी आँखों में देखा। वह जानती थी कि वह सीधे-सीधे उससे नहीं पूछ सकती थी, न ही वह उसे धन्यवाद दे सकती थी। राजवीर ने जिस खामोशी से यह काम किया था, उसका सम्मान करना ज़रूरी था।



    वह बस मुस्कुराई। एक सच्ची, दिल से निकली हुई मुस्कान। "हाँ, मेजर। अब सब बिलकुल ठीक है।" उसकी मुस्कान में एक अनकहा धन्यवाद था, एक गहरा सम्मान था, और एक स्वीकार्यता थी कि उसने उसके लिए कुछ ऐसा किया है, जो शायद कोई और नहीं करता।



    राजवीर की आँखों में एक पल के लिए एक हल्की सी चमक आई, जिसे रिया शायद ही देख पाती। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आया, लेकिन उसके होंठों के कोनों पर एक सूक्ष्म, लगभग अदृश्य सी संतुष्टि की रेखा उभरी। उसने अपनी नज़रें रिया से हटाईं और सामने ड्रिल कर रहे जवानों की तरफ देखने लगा। "अच्छा है।" उसकी आवाज़ में वही उदासीनता थी, लेकिन रिया को पता था कि यह एक जवाब था।



    वे दोनों कुछ देर तक चुपचाप खड़े रहे। सूरज की रोशनी पहाड़ियों के ऊपर से फ़ैल रही थी, वातावरण शांत और निर्मल था। उनके बीच कोई शब्द नहीं बोले गए, लेकिन इस खामोशी में ही, उनके दिलों ने एक-दूसरे से बात कर ली थी। रिया को एहसास हुआ कि राजवीर की सख्ती के पीछे एक ऐसा इंसान है, जो परवाह करना जानता है, भले ही वह उसे ज़ाहिर न करे। और राजवीर को भी शायद रिया की भावनाओं की गहराई का एक नया अंदाज़ा लगा था।



    यह उनके बीच का पहला अनकहा संवाद था, जो शब्दों से कहीं ज़्यादा गहरा था। इस पल ने उनके रिश्ते को एक नई दिशा दे दी थी—एक-दूसरे के लिए सम्मान, एक खामोश समझ, और एक ऐसी परवाह, जो दिखती नहीं थी, लेकिन महसूस होती थी। रिया जानती थी कि आज उसकी फिल्म का सीन सिर्फ एक कहानी नहीं बनेगा, बल्कि उसमें एक सच्चे हीरो की खामोश परवाह की भावना भी शामिल होगी। वह राजवीर की तरफ एक आखिरी नज़र डालती है, एक लंबी साँस लेती है, और एक नई ऊर्जा के साथ अपने काम की तरफ मुड़ जाती है। उसे पता था कि आज का शूट अब और भी खास होने वाला है।

  • 17. एक्शन-कट-लव - Chapter 17

    Words: 26

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 17
    सुबह का समय था। सूरज की किरणें कैंटोनमेंट के खुले मैदान पर हल्की धूप बिखेर रही थीं। दूर, राइफल चलाने की आवाज़ें और जवानों के कड़े अभ्यास की गूँज सुनाई दे रही थी। मेजर राजवीर शेखावत अपने जवानों के साथ रोज़ाना की तरह ड्रिल में व्यस्त थे। उनकी आँखें पैनी थीं, हर एक जवान की हरकत पर उनकी पैनी नज़र थी। उनके लिए अनुशासन ही सब कुछ था।

    उसी मैदान के एक किनारे पर, जहाँ कुछ प्रशासनिक टेंट लगे हुए थे, दो महिला अधिकारी, कैप्टन नीलम वर्मा और लेफ्टिनेंट प्रिया सिंह, अपने काम में मगन थीं। कैप्टन नीलम के हाथ में एक बड़ा-सा नक्शा था और वह लेफ्टिनेंट प्रिया को कुछ समझा रही थीं। उनकी आवाज़ गंभीर थी और उनके चेहरे पर काम की गंभीरता साफ़ झलक रही थी। वे दोनों अपनी वर्दी में बिलकुल चुस्त और पेशेवर लग रही थीं।

    फिल्म के सुपरस्टार आरव कपूर, जो सुबह के हल्के व्यायाम के लिए अपने टेंट से बाहर निकले थे, उनकी नज़र इन दोनों महिला अधिकारियों पर पड़ी। आरव ने पलकें झपकीं। मुंबई में तो हर दूसरी लड़की उसके पीछे पागल रहती थी, लेकिन यहाँ, इस फौजी माहौल में, महिलाएँ भी इतनी स्मार्ट और सख्त हो सकती हैं, यह उसके लिए एक नई बात थी। उनके चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था, कोई फिल्मी चकाचौंध नहीं थी, बस वर्दी का रुतबा और आत्मविश्वास था।

    "वाह!" आरव ने अपने असिस्टेंट से फुसफुसाया, "ये तो हॉलीवुड की एक्शन हीरोइन जैसी लग रही हैं।" उसका असिस्टेंट बस मुस्कुरा दिया, क्योंकि वह आरव के ऐसे नखरों का आदी था।

    आरव ने तुरंत अपनी टी-शर्ट के कॉलर को ठीक किया, अपने बालों में हाथ फेरा और अपने सिक्स-पैक एब्स को थोड़ा फुलाने की कोशिश की, जैसे कोई मॉडल रैंप पर चल रहा हो। उसने एक गहरी साँस ली और आत्मविश्वास से भरा हुआ, उनके पास जाने लगा। वह चाहता था कि वे उसे देखें और पहचानें—बॉलीवुड का सुपरस्टार आरव कपूर।

    कैप्टन नीलम और लेफ्टिनेंट प्रिया अपने नक्शे पर झुकी हुई थीं, अपनी बातचीत में व्यस्त। "देखिए, प्रिया, यह पॉइंट थोड़ा संवेदनशील है। हमें यहाँ रात की गश्त बढ़ानी होगी," कैप्टन नीलम ने कहा।

    "यस मैम," लेफ्टिनेंट प्रिया ने जवाब दिया, एक छोटे से नोटपैड पर कुछ लिखते हुए।

    तभी, आरव उनके पास पहुँचा। उसने अपना सबसे charmful अंदाज़ अपनाया, जिसमें थोड़ी फ़िल्मी गंभीरता भी थी।

    "हेलो, लेडीज़!" आरव ने अपनी आवाज़ को थोड़ा गहरा करते हुए कहा, जैसे किसी फिल्मी सीन का पहला डायलॉग बोल रहा हो, "यहाँ इतनी सुबह ही एक्शन चल रहा है, लगता है।" उसने एक हल्की सी मुस्कान दी, जिसे वह 'किलर स्माइल' कहता था।

    कैप्टन नीलम और लेफ्टिनेंट प्रिया ने एक साथ सिर उठाया। उन्होंने आरव को देखा। उनके चेहरे पर न तो कोई पहचान थी, न कोई उत्साह। बस एक सामान्य, पेशेवर भाव था।

    "गुड मॉर्निंग, सर," कैप्टन नीलम ने सीधे से जवाब दिया। "हम अपने रूटीन ड्यूटी पर हैं।"

    लेफ्टिनेंट प्रिया ने बस सिर हिलाया। वे वापस अपने नक्शे पर झुकने लगीं। आरव को यह रिएक्शन बिलकुल पसंद नहीं आया। मुंबई में तो उसकी एक झलक पाने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती थी, और यहाँ ये उसे 'सर' कहकर टाल रही थीं?

    आरव ने हार नहीं मानी। उसने सोचा, 'शायद इन्हें मेरे फौजी किरदार के बारे में नहीं पता।' वह अपने सीने को और फुलाते हुए बोला, "मैं आरव कपूर हूँ। आप जानते होंगे, मेरी फिल्म 'सरहद' की शूटिंग यहीं हो रही है। मैं उसमें एक आर्मी ऑफिसर का रोल निभा रहा हूँ।" उसने अपनी आवाज़ में थोड़ा गर्व घोला।

    कैप्टन नीलम ने नक्शे से अपनी आँखें हटाईं। उन्होंने आरव को ऊपर से नीचे तक एक सरसरी निगाह से देखा। "हाँ, हमने सुना है," उन्होंने सपाट आवाज़ में कहा। "वेलकम टू द कैंटोनमेंट, सर।"

    लेफ्टिनेंट प्रिया ने अपनी नोटबुक में कुछ लिखा और फिर कैप्टन की तरफ देखने लगी, जैसे इशारा कर रही हो कि काम पर वापस लौटें।

    आरव को लगा जैसे उसे अनदेखा किया जा रहा है। 'ये क्या हो रहा है?' उसने सोचा। उसने फिर से कोशिश की, इस बार थोड़ा ज़्यादा драматиक अंदाज़ में।

    "आपकी दुनिया बहुत अलग है, है ना?" आरव ने एक फ़िल्मी अंदाज़ में कहा, "गोली और बारूद के बीच... मौत और ज़िंदगी के इस खेल में... एक सैनिक को कैसा महसूस होता है?" उसने अपनी आँखों में एक गहरा, संजीदा भाव लाने की कोशिश की, जैसा वह अपनी फिल्मों में करता था।

    कैप्टन नीलम ने सीधे आरव की आँखों में देखा। उनकी आवाज़ में हल्की सी झुंझलाहट थी, जिसे उन्होंने बड़ी मुश्किल से छिपाया था। "सर, यह कोई खेल नहीं है। यह ज़िंदगी है। और हमारी भावनाएँ हमारी ड्यूटी का हिस्सा हैं। हमें अपने काम पर ध्यान देना होता है, महसूस करने का वक़्त नहीं होता।"

    लेफ्टिनेंट प्रिया ने अपनी कलम पकड़ी और एक नोटपैड पर तेज़ी से कुछ लिखने लगी। वह आरव की बातों पर बिलकुल ध्यान नहीं दे रही थीं।

    आरव को लगा जैसे उसे ज़ोर का झटका लगा हो। 'ये तो मेरी एक्टिंग पर कमेंट कर रही हैं?' उसने सोचा। उसने अपने कंधे उचकाए। "ओह! तो आप लोग इमोशनल नहीं होते? मतलब, देश के लिए कुर्बान होने की भावना... वो सब...?"

    कैप्टन नीलम ने एक हल्की सी साँस ली। "देश के लिए कुर्बान होने की भावना हर फ़ौजी की रग-रग में होती है, सर। उसे दिखाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। वह हमारे काम में दिखती है।" उन्होंने फिर से अपने नक्शे पर ध्यान दिया।

    आरव ने देखा कि वे बिलकुल भी इंप्रेस नहीं हो रही थीं। वह थोड़ा परेशान हो गया। उसने इधर-उधर देखा। मेजर राजवीर थोड़ी दूरी पर खड़े थे, अपने जवानों के साथ कुछ बात कर रहे थे। आरव को लगा कि अगर वह उनके सामने कुछ बड़ा करेगा, तो शायद ये महिलाएँ इंप्रेस हो जाएँ।

    "तो... मैं कुछ हेल्प कर सकता हूँ आपकी?" आरव ने एक हीरो की तरह मदद का हाथ बढ़ाते हुए पूछा, "शायद किसी कठिन ऑपरेशन में? मैं फौजी का किरदार निभा रहा हूँ, तो मैंने थोड़ी बहुत रिसर्च की है।"

    कैप्टन नीलम ने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कीं, जैसे कोई गहरी साँस ले रही हों। "नहीं, थैंक यू, सर," उन्होंने बड़ी विनम्रता से कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में कोई उत्साह नहीं था। "हमारे काम के लिए हमें किसी एक्टर की नहीं, सिर्फ ट्रेंड कमांडोज की ज़रूरत होती है।"

    लेफ्टिनेंट प्रिया ने अपने होठों पर एक हल्की सी मुस्कान दबाई। उन्होंने आरव को एक पल के लिए देखा, जैसे पहली बार देखा हो, फिर अपना काम जारी रखा।

    आरव पूरी तरह से deflate हो चुका था। उसकी सारी कोशिशें बेकार हो गई थीं। वह अपना फ़िल्मी चार्म, अपने सिक्स-पैक, अपने डायलॉग्स, सब हार गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह बस चुपचाप खड़ा रह गया।

    दूर से मेजर राजवीर यह सब देख रहे थे। उनके होंठों पर एक हल्की सी व्यंग्यात्मक मुस्कान थी, जिसे उन्होंने बड़ी मुश्किल से छिपाया हुआ था। उन्होंने अपने पास खड़े सूबेदार बलवंत सिंह की तरफ देखा।

    "सूबेदार साहब," राजवीर ने धीमी आवाज़ में कहा, "लगता है बॉलीवुड की चमक यहाँ थोड़ी फीकी पड़ रही है।"

    सूबेदार बलवंत सिंह मुस्कुराए। "जी मेजर साहब। यहाँ तो बस वर्दी और अनुशासन की चमक ही चलती है।"

    राजवीर ने एक गहरी साँस ली और आरव की तरफ बढ़ने लगा। उन्हें लगा कि अब इस फ़िल्मी ड्रामे का 'कट' करने का वक़्त आ गया है। वह सीधा कैप्टन नीलम और लेफ्टिनेंट प्रिया के पास पहुँचे, आरव को अनदेखा करते हुए।

    "कैप्टन नीलम, लेफ्टिनेंट प्रिया," राजवीर ने सामान्य आवाज़ में कहा, "रिपोर्ट ठीक से तैयार हो गई है ना? इसे तुरंत हेडक्वार्टर भेजिए। हमें आज शाम तक कन्फर्मेशन चाहिए।"

    "यस सर, बिलकुल तैयार है," कैप्टन नीलम ने तुरंत जवाब दिया, उनके चेहरे पर गंभीरता लौट आई।

    राजवीर ने एक पल के लिए आरव की तरफ देखा, जो अभी भी शर्मिंदा सा खड़ा था। राजवीर के चेहरे पर कोई भाव नहीं था, लेकिन उनकी आँखों में एक हल्की सी चमक थी।

    "और कपूर साहब," राजवीर ने आरव की तरफ पलटते हुए कहा, उनकी आवाज़ में एक हल्की सी कठोरता थी, "मुझे लगता है कि आपको अपने ट्रेनिंग एरिया में वापस जाना चाहिए। अनुशासन यहाँ सबसे ऊपर है।"

    आरव ने सिर झुकाया। "जी... जी मेजर।"

    राजवीर ने एक कदम आगे बढ़ाया और आरव के कंधे पर हाथ रखा, जैसे उसे कोई गुप्त बात बता रहे हों, लेकिन उनकी आवाज़ इतनी थी कि कैप्टन नीलम और लेफ्टिनेंट प्रिया भी उसे सुन सकें।

    "कपूर साहब," राजवीर ने कहा, उनकी आवाज़ में अब एक स्पष्ट व्यंग्य था, "मुझे लगता है कि आपने अब तक यहाँ की सबसे ज़रूरी बात नहीं सीखी है।"

    आरव ने उत्सुकता से सिर उठाया। "क्या, मेजर साहब?"

    राजवीर ने मुस्कुराया, लेकिन यह एक चेतावनी भरी मुस्कान थी। "यहाँ, इस सरहद पर, मैडम," उन्होंने कैप्टन नीलम और लेफ्टिनेंट प्रिया की तरफ इशारा करते हुए कहा, "वर्दी की इज़्ज़त होती है। सिक्स-पैक एब्स की नहीं।"

    आरव का चेहरा पल भर में लाल हो गया। वह पूरी तरह से शर्मिंदा हो चुका था। उसे समझ नहीं आया कि वह क्या जवाब दे। कैप्टन नीलम और लेफ्टिनेंट प्रिया ने एक-दूसरे की तरफ देखा, और उनके होठों पर एक हल्की सी, लगभग न के बराबर, मुस्कान तैर गई। उन्होंने अपनी नज़रें तुरंत अपने काम पर केंद्रित कर लीं, लेकिन आरव जानता था कि उन्होंने सब सुन लिया था।

    राजवीर ने आरव के कंधे से अपना हाथ हटाया और कैप्टन नीलम की तरफ मुड़े। "अपनी रिपोर्ट भेजिए, कैप्टन।"

    "जी सर।"

    राजवीर वापस अपनी ड्रिल की तरफ चल दिए, उनके चेहरे पर वही सख्त अनुशासन था, जैसे कुछ हुआ ही न हो। आरव कपूर को लगा जैसे किसी ने उसका सारा ग्लैमर छीन लिया हो। वह चुपचाप, बिना कोई नखरा किए, अपने टेंट की तरफ लौट गया, उसका सिर झुका हुआ था। आज उसे समझ आया था कि फ़िल्मी दुनिया और असली दुनिया में कितना फर्क होता है। और यहाँ, उसकी सिक्स-पैक एब्स और डायलॉग्स की कोई कीमत नहीं थी। यहाँ सिर्फ फ़र्ज़ और इज़्ज़त की बात होती थी। वह एक बार फिर शर्मिंदा था, लेकिन इस बार शर्मिंदगी के साथ एक नई सीख भी मिली थी।

  • 18. एक्शन-कट-लव - Chapter 18

    Words: 26

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 18
    रात के अँधेरे ने अपनी चादर पूरी तरह ओढ़ ली थी। चाँद बादलों के पीछे छिपा था और ठंडी हवा हड्डियों तक को कंपा रही थी। सरहद का यह इलाका दिन में जितना शांत और खूबसूरत लगता था, रात में उतना ही ख़ामोश और डरावना हो जाता था। दूर, निगरानी टॉवर से हल्की रोशनी टिमटिमा रही थी, और कभी-कभी किसी जंगली जानवर की आवाज़ सुनाई दे जाती थी, जो रात की ख़ामोशी को और गहरा बना देती थी।

    फिल्म 'सरहद' की शूटिंग आज देर रात तक खिंच गई थी। एक इमोशनल सीन की शूटिंग चल रही थी, जिसमें आरव कपूर को अपने परिवार की याद में भावुक होना था। रिया रॉय, अपनी डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठी, हर शॉट को अपनी आँखों से तोल रही थी। उसकी आँखें मॉनिटर पर टिकी थीं, लेकिन उसका शरीर ठंड से काँप रहा था।

    "आरव, इमोशन कहाँ है? मुझे तुम्हारी आँखों में वो दर्द चाहिए! वो अकेलापन!" रिया चिल्लाई। उसकी आवाज़ में थकान और ठंड दोनों की वजह से हल्की-सी कंपकंपी थी।

    आरव कपूर, अपने फौजी लिबास में, कैमरे के सामने खड़ा हाँफ रहा था। दिन भर की शूटिंग और ठंडी हवा ने उसका बुरा हाल कर दिया था। "मैम, ठंड बहुत ज़्यादा है। डायलॉग्स भूल रहा हूँ," उसने मुँह बनाते हुए कहा।

    रिया ने अपना सर पीटा। "कम ऑन, आरव! यह एक फौजी की ज़िंदगी है! ठंड और गर्मी से ऊपर! फिर से! एक्शन!"

    उसकी टीम के चेहरे पर भी थकान साफ़ दिख रही थी। लाइटमैन अपनी लाइटें संभालते हुए, स्पॉटबॉय सामान उठाते हुए—सब ठिठुर रहे थे। रिया ने अपनी मोटी जैकेट कसकर पकड़ी हुई थी, लेकिन ठंडी हवा उसके अंदर तक घुस रही थी। उसके होंठ हल्के नीले पड़ने लगे थे और वह रह-रहकर अपने हाथों को आपस में रगड़ रही थी ताकि उन्हें गर्म कर सके। उसे लग रहा था जैसे उसके पैरों में जान ही नहीं बची हो। वह अपने काम में इतनी मगन थी कि उसे अपनी ठंड का पूरा एहसास नहीं था, लेकिन उसका शरीर जवाब दे रहा था। वह कुर्सी पर थोड़ी सिकुड़कर बैठी हुई थी, उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं।

    मेजर राजवीर शेखावत, हमेशा की तरह, सेट के एक किनारे पर खड़े थे। उनकी नज़रें पूरे इलाके पर थीं, यह सुनिश्चित करते हुए कि सब कुछ सुरक्षित हो। हालाँकि उन्हें यह 'फिल्मी ड्रामा' बिलकुल पसंद नहीं था, और आरव कपूर के नखरों से तो उन्हें चिढ़ ही हो गई थी, लेकिन वे अपनी ड्यूटी को बहुत गंभीरता से लेते थे। एक सैनिक के तौर पर, उन्हें अपनी निगरानी में मौजूद हर शख्स की सुरक्षा और सुविधा का ध्यान रखना था। उनकी नज़र अनायास ही रिया पर पड़ी। उन्होंने देखा कि वह कितनी मेहनत कर रही है, हर शॉट को परफेक्ट बनाने के लिए अपनी जान लगा रही है, और साथ ही, ठंड से कितनी काँप रही है। उन्होंने उसे देखा, उसकी उँगलियों को देखा, जो काँप रही थीं, और उसके चेहरे पर ठंड की वजह से आई लालिमा को भी।

    राजवीर ने एक गहरी साँस ली। उसका मन नहीं था कि वह इस फिल्मी दुनिया के लोगों के लिए कुछ ख़ास करे, खासकर उस 'ड्रामा क्वीन' रिया रॉय के लिए। लेकिन एक सैनिक होने के नाते, वह किसी को इतनी ठंड में मुश्किल में नहीं देख सकता था। उनके दिमाग में अपनी माँ की याद आई, जो हमेशा कहती थीं, 'बेटा, मौसम कितना भी खराब हो, एक कप गरमागरम चाय हमेशा राहत देती है।' उनके गाँव में, जब भी कोई बीमार होता या ठंड से काँपता, तो उनकी माँ तुरंत चूल्हे पर चाय चढ़ा देती थीं। वह चाय सिर्फ एक पेय नहीं थी, बल्कि परवाह और ममता का प्रतीक थी।

    उन्होंने बिना किसी को बताए, धीरे से अपने टेंट की तरफ कदम बढ़ाए। उनके टेंट में एक छोटा सा कैम्प स्टोव था, जिस पर वे कभी-कभी अपने लिए चाय बना लेते थे। उन्होंने चुपचाप चाय पत्ती निकाली, चीनी डाली, और पानी को गर्म होने रखा। कुछ ही मिनटों में, चाय की भीनी-भीनी खुशबू हवा में घुलने लगी। उन्होंने दो स्टील के कपों में चाय डाली, यह सुनिश्चित करते हुए कि दोनों कप ऊपर तक भरे हों।

    कुछ मिनटों बाद, राजवीर वापस लौटा। उसके हाथों में दो स्टील के कप थे, जिनसे गर्म भाप निकल रही थी और चाय की मनमोहक खुशबू फैल रही थी। वह रिया के पास पहुँचा, जहाँ वह अभी भी मॉनिटर पर झुकी हुई थी, अपनी नाक सिकुड़कर।

    "कट! आरव, आज पैकअप करते हैं। तुम्हारी हालत खराब हो रही है," रिया ने हार मानते हुए कहा। उसकी आवाज़ में निराशा थी।

    तभी उसकी नज़र अपने सामने खड़े राजवीर पर पड़ी। वह हैरान रह गई। उसके हाथों में दो कप थे, जिनमें से भाप निकल रही थी। 'मेजर? चाय?' रिया ने सोचा। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

    "मेजर?" रिया ने पूछा, उसकी आवाज़ में आश्चर्य था। उसने अपनी नज़रें राजवीर के चेहरे से कप पर और कप से फिर उसके चेहरे पर घुमाईं।

    राजवीर के चेहरे पर वही सख्त भाव था, जैसे उसने कुछ भी असाधारण न किया हो। उसने एक कप रिया की तरफ बढ़ा दिया। "ठंड बहुत बढ़ गई है, मैडम। इसे पी लीजिए। आराम मिलेगा।" उसकी आवाज़ सपाट थी, लेकिन उसमें एक हल्की सी परवाह थी, जिसे रिया ने पकड़ लिया।

    रिया ने धीरे से कप अपने हाथों में लिया। कप की गर्माहट उसके ठंडे हाथों को तुरंत राहत दे रही थी। उसने कप में देखा। चाय का रंग गहरा था, और उसमें अदरक और इलायची की हल्की खुशबू आ रही थी। यह वैसी चाय नहीं थी, जो उनकी यूनिट में बनती थी। यह किसी गाँव की चाय की तरह लग रही थी, जिसमें घर जैसा स्वाद था। उसने एक घूँट लिया। चाय मीठी और गरमागरम थी, जो सीधे उसके गले से उतरकर उसके अंदर तक गर्माहट पहुँचा रही थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आई।

    "थैंक यू, मेजर," रिया ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में कृतज्ञता थी। उसे लगा कि वह यह सब सपने में देख रही है। 'मिस्टर नो-ड्रामा मेरे लिए चाय लेकर आए हैं? और ऐसी स्वादिष्ट चाय?'

    राजवीर उसके पास से थोड़ी दूरी पर, एक खाली लकड़ी के बक्से पर बैठ गया। उसने भी अपने कप से एक घूँट लिया और दूर अँधेरे में देखने लगा। उसकी नज़रें रात की ख़ामोशी को भेद रही थीं, जैसे वह अभी भी अपनी ड्यूटी पर हो।

    दोनों के बीच एक अजीब सी खामोशी छा गई। यह वो खामोशी नहीं थी, जिसमें असहजता हो, बल्कि एक सुकून भरी खामोशी थी। दिन भर की नोक-झोंक, बहस और ड्रामे के बाद, यह पल उन्हें एक-दूसरे के साथ सहज महसूस करा रहा था। कोई डायलॉग नहीं था, कोई एक्शन नहीं था, कोई कैमरा रोल नहीं कर रहा था, बस दो इंसान थे जो उस ठंडी रात में गर्म चाय के साथ एक-दूसरे की मौजूदगी को महसूस कर रहे थे।

    रिया ने चुपचाप राजवीर की तरफ देखा। अँधेरे में भी, उसकी सख्त प्रोफाइल साफ़ दिख रही थी। वह आदमी, जो उसे हमेशा एक रोबोट जैसा लगता था, जिसने कहा था कि 'हम सोचते नहीं, करते हैं', वह आज उसके लिए चाय लेकर आया था। यह छोटी सी हरकत उसके दिल को छू गई। उसे एहसास हुआ कि राजवीर की सख्ती सिर्फ उसकी वर्दी का हिस्सा थी, उसके अंदर एक संवेदनशील इंसान भी था, जो परवाह करना जानता था, भले ही वह उसे ज़ाहिर न करे। उसकी आँखें नम हो गईं। यह चाय सिर्फ गर्माहट नहीं दे रही थी, बल्कि उसके दिल को भी छू रही थी।

    राजवीर ने भी महसूस किया कि रिया ने उसके इस खामोश इशारे को समझ लिया था। उसे अजीब सा लगा, क्योंकि वह अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करना पसंद नहीं करता था, लेकिन बुरा नहीं लगा। उसे पसंद नहीं था कि लोग उसकी परवाह को देखें या उस पर कोई एहसान समझें, लेकिन रिया की चुप्पी और उसकी आँखों में जो हल्का सा सम्मान था, वह उसे अच्छा लगा। यह वो सम्मान था, जो फिल्मी चमक-धमक से नहीं, बल्कि एक असली इंसानियत से जुड़ा था।

    धीरे-धीरे, चाय खत्म हो गई। कप खाली हो चुके थे, लेकिन उनके दिलों में एक नई गर्माहट भर चुकी थी। रात की ठंडी हवा अब उतनी तीखी नहीं लग रही थी।

    राजवीर उठा। उसने अपने कप को हाथ में लिया। "अब आप आराम कीजिए, मैडम।" उसकी आवाज़ फिर से वैसी ही सख्त हो गई थी, जैसे वह अपने आप को याद दिला रहा हो कि वह एक फौजी है। "गुड नाइट।"

    रिया ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। "गुड नाइट, मेजर।"

    राजवीर चला गया, उसका लंबा कद अँधेरे में घुलता चला गया। लेकिन उसकी परवाह की खुशबू हवा में घुल गई थी, और रिया उसे साफ़ महसूस कर पा रही थी। रिया ने एक लंबी साँस ली। आज रात उसे अच्छी नींद आने वाली थी। यह एक नया एहसास था, जो उसे इस सरहद पर मिल रहा था। उसे लगा कि यहाँ सिर्फ कहानी ही नहीं बन रही, बल्कि कुछ और भी बन रहा है, जो शायद कहानी से भी ज़्यादा खूबसूरत है। वह उठकर अपने टेंट की तरफ बढ़ी, उसके कदम में हल्की सी थकावट थी, लेकिन दिल में एक सुकून था।

  • 19. एक्शन-कट-लव - Chapter 19

    Words: 21

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 19
    रात का दूसरा पहर था। कैंटोनमेंट में लगभग पूरी ख़ामोशी छाई हुई थी। बस दूर से कभी-कभी किसी निगरानी करने वाले जवान के कदमों की हल्की आवाज़ या किसी जंगली जानवर की पुकार सुनाई दे जाती थी। फिल्म यूनिट के ज़्यादातर लोग अपने टेंटों में आराम कर रहे थे। देर रात तक शूटिंग करने के बाद, सब थककर चूर हो चुके थे। हालाँकि, शंकर, जो अब फिल्म यूनिट का एक अभिन्न और भरोसेमंद हिस्सा बन चुका था, अभी भी बाहर था। वह अपने मोबाइल पर किसी से बात कर रहा था, लेकिन उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि आसपास कोई सुन न सके। उसका चेहरा अँधेरे में भी सतर्क और चौकन्ना दिख रहा था।



    शंकर की गतिविधियाँ पिछले कुछ दिनों से थोड़ी बदल गई थीं। पहले वह सिर्फ फिल्म यूनिट के काम में ही लगा रहता था – लोकेशन्स दिखाना, सामान का इंतज़ाम करना, या छोटी-मोटी मदद करना। लेकिन अब, वह बातों-बातों में आर्मी के जवानों से घुलने-मिलने की कोशिश करता था। वह उनसे उनके रूटीन, उनकी पेट्रोलिंग, और उनकी पोस्ट्स के बारे में सामान्य जिज्ञासा की तरह सवाल पूछता था। उसकी आवाज़ हमेशा विनम्र और चेहरे पर एक भोली-भाली मुस्कान होती थी, जिससे किसी को उस पर शक नहीं होता था। वह इतना मिलनसार और मददगार था कि प्रोडक्शन टीम से लेकर स्पॉटबॉय तक, हर कोई उसे पसंद करने लगा था।



    आज रात भी कुछ ऐसा ही हुआ। मेजर राजवीर शेखावत की एक पेट्रोलिंग टीम, जिसमें चार जवान थे, रात की गश्त पूरी करके वापस लौट रही थी। वे थककर चूर थे, लेकिन उनके चेहरे पर अपने फ़र्ज़ को पूरा करने की संतुष्टि थी। वे अपने हथियारों को सावधानी से पकड़े हुए थे और अँधेरे में एक-दूसरे को सहारा देते हुए चल रहे थे।



    शंकर ने उन्हें दूर से ही देख लिया। उसने तुरंत अपनी बातचीत खत्म की और फोन को अपनी जेब में डाल लिया। वह उनके रास्ते में आया, जैसे इत्तेफ़ाक से वहीं खड़ा हो।



    "जय हिंद, जवानों!" शंकर ने मुस्कुराते हुए कहा, उसके चेहरे पर नकली सम्मान और चिंता का भाव था। उसने अपनी जैकेट ठीक की और थोड़ा आगे बढ़कर उनके पास गया। "इतनी देर हो गई। सब ठीक है ना बॉर्डर पर? मौसम भी आज बहुत खराब था।" उसकी आवाज़ में वही चिर-परिचित नम्रता थी, लेकिन उसकी आँखें हरेक जवान के चेहरे को स्कैन कर रही थीं, जैसे वह किसी खास जानकारी की तलाश में हो।



    एक जवान, सिपाही रवि, जो उम्र में सबसे छोटा और थोड़ा अनुभवहीन था, उसने एक लंबी साँस ली। वह थकान से चूर था और उसे लगा कि शंकर सचमुच उनकी परवाह कर रहा है।



    "अरे, क्या बताएं, भाईसाहब," सिपाही रवि ने सिर खुजाते हुए कहा। "मौसम ने तो आज हालत ही खराब कर दी। तेज़ हवा चल रही थी और बर्फबारी भी हुई।"



    शंकर ने सहानुभूति से सिर हिलाया। "हाँ, हाँ, मैंने देखा। ऐसी ठंड में ड्यूटी करना कितना मुश्किल होता होगा। लेकिन सब ठीक-ठाक रहा न?" उसकी आँखें उम्मीद से चमक रही थीं।



    "बस एक दिक्कत हुई," सिपाही रवि ने कंधे उचकाए। "वही, जो पहाड़ी के उस पार हमारा निगरानी टॉवर है न, पॉइंट नंबर 23 का? वहाँ का कैमरा कुछ घंटों के लिए खराब हो गया था, मौसम की वजह से।" उसने लापरवाही से कह दिया, जैसे यह कोई बड़ी बात न हो। "शायद बर्फ जम गई थी लेंस पर या तार में कुछ दिक्कत आ गई थी। हमारे अफसर भी परेशान थे।"



    जैसे ही रवि ने यह कहा, शंकर की आँखों में एक हल्की सी चमक आई, जिसे उसने तुरंत छुपा लिया। उसके होंठों पर वही भोली मुस्कान बनी रही, लेकिन उसके दिमाग में यह जानकारी तेज़ी से घूम रही थी। 'निगरानी टॉवर का कैमरा कुछ घंटों के लिए बंद था?' यह उसके लिए सोने की तरह कीमती जानकारी थी। यह एक ऐसा मौका था, जिसका उन्हें इंतज़ार था।



    "अरे बाप रे!" शंकर ने नकली चिंता जताते हुए कहा। "तो फिर कैसे संभाला? बहुत खतरा रहता होगा ऐसी जगह पर?"



    "नहीं, नहीं," टीम का लीडर, हवलदार रमेश, जो रवि से ज़्यादा अनुभवी था, उसने बात संभाली। उसने रवि को एक हल्की सी कोहनी मारी। "हम अपनी आँखों से निगरानी करते हैं, भाईसाहब। फौजियों की आँखें कैमरे से भी तेज़ होती हैं।" उसने शंकर की आँखों में देखा, जैसे उसे चेतावनी दे रहा हो कि ज़्यादा पूछताछ न करे। "बस, अब हम अपनी पोस्ट पर जा रहे हैं। आप भी सो जाइए। गुड नाइट।"



    हवलदार रमेश को शंकर की यह ज़्यादातर दिलचस्पी थोड़ी अजीब लगी, लेकिन वह उसे एक स्थानीय नागरिक की सामान्य उत्सुकता समझकर टाल गया। उन्हें लगा कि शंकर शायद फिल्म वालों के लिए जानकारी जुटा रहा होगा, या बस ऐसे ही बातें कर रहा होगा।



    "जी, जी, गुड नाइट, हवलदार साहब," शंकर ने हाथ जोड़कर कहा। उसने मुस्कुराते हुए उन्हें जाते देखा। जैसे ही वे दूर हुए, शंकर के चेहरे से सारी भोली मुस्कान गायब हो गई। उसकी आँखों में एक खतरनाक चमक थी। उसने तुरंत अपनी जेब से एक छोटा सा नोटबुक और पेंसिल निकाली। अँधेरे में ही, उसने तेज़ी से कुछ कोड-वर्ड में लिखा – "पॉइंट 23, कैमरा डाउन, कुछ घंटे।" यह जानकारी उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी। यह बताता था कि दुश्मन कब और कैसे अपने ऑपरेशन को अंजाम दे सकते हैं।



    उसने नोटबुक वापस अपनी जेब में रखी और एक लंबी साँस ली। उसका प्लान धीरे-धीरे आकार ले रहा था। फिल्म यूनिट की शूटिंग की आड़ में, जिस अफरा-तफरी और आवाजाही से वह परिचित हो गया था, वह उसे अपने मकसद को पूरा करने में मदद कर रही थी।



    ठीक उसी समय, मेजर राजवीर शेखावत, जो अपने टेंट से बाहर खड़े थे और रात की पेट्रोलिंग टीम के वापस आने का इंतज़ार कर रहे थे, उन्होंने दूर से शंकर को जवानों से बात करते हुए देखा। उनकी नज़रें शंकर पर टिकी हुई थीं। उन्होंने शंकर को हवलदार रमेश और सिपाही रवि से बातें करते देखा। हालाँकि वे उनकी बातें साफ सुन नहीं पा रहे थे, लेकिन शंकर की जिज्ञासा और जवानों से उसकी करीबी राजवीर को थोड़ी अजीब लगी।



    'यह आदमी इतनी रात को क्या कर रहा है?' राजवीर ने अपने मन में सोचा। 'और जवानों से इतनी पूछताछ क्यों? वैसे तो यह बहुत मददगार और भरोसेमंद दिखता है, लेकिन...'



    राजवीर ने अपनी आँखें सिकोड़ीं। वह शंकर को पहले भी जवानों से बातें करते देख चुके थे, लेकिन उन्हें कभी इतनी गहराई से उस पर शक नहीं हुआ था। आज रात, जिस तरह से शंकर पेट्रोलिंग टीम का इंतज़ार कर रहा था और जिस तरह से वह उनसे सवाल पूछ रहा था, वह राजवीर के दिमाग में एक छोटी सी चेतावनी की घंटी बजा गया। यह सिर्फ एक हल्की सी घंटी थी, एक अस्पष्ट सा शक, जिसे उन्होंने अभी पूरी तरह से समझा नहीं था, लेकिन यह बीज उनके दिमाग में बोया जा चुका था।



    राजवीर ने उस जगह से अपनी आँखें हटाईं, जहाँ शंकर खड़ा था। उन्होंने अपने पास खड़े एक और जवान को देखा, जो अपनी ड्यूटी पर था। "आज की रात ज़्यादा ठंडी है, सतर्क रहना," उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा।



    "जी, मेजर साहब," जवान ने जवाब दिया।



    राजवीर ने एक गहरी साँस ली और रात के अँधेरे में देखने लगे। उनके दिमाग में एक विचार कौंधा, 'क्या यह फिल्म यूनिट हमारे लिए सुरक्षा का खतरा तो नहीं बन रही है?' उन्हें लगा कि उन्हें शंकर पर थोड़ी और गहरी नज़र रखनी होगी, भले ही अभी कोई ठोस कारण न हो। उनकी फौजी प्रवृत्ति उन्हें सचेत कर रही थी। उन्हें नहीं पता था कि सिपाही रवि की लापरवाही से दी गई जानकारी, उनके ही सुरक्षा घेरे में एक सेंध लगाने का काम कर रही थी। यह उस बड़े खतरे की पहली, लगभग अनदेखी, निशानी थी, जो धीरे-धीरे इस सरहद पर मंडरा रहा था।

  • 20. एक्शन-कट-लव - Chapter 20

    Words: 11

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 20
    अगली सुबह, कैंटोनमेंट में सूरज की सुनहरी किरणें फैल चुकी थीं। आसमान साफ़ था, और हवा में एक हल्की सी ख़ुशगवार ठंडक थी। रात भर की थकान के बावजूद, फिल्म यूनिट अपने काम में जुट चुकी थी। आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण और भावनात्मक सीन शूट होना था – एक ऐसा सीन जो रिया के लिए सिर्फ फिल्म का हिस्सा नहीं, बल्कि उसके दादाजी और उनके जैसे हज़ारों जवानों की आत्मा का प्रतिनिधित्व करता था।





    सीन कुछ ऐसा था: एक जवान, सरहद पर अपनी पोस्ट पर बैठा है। उसे उसके परिवार की तरफ से आई एक पुरानी चिट्ठी मिलती है। चिट्ठी में उसके घर-परिवार की बातें लिखी हैं, उसके बच्चों की मासूमियत, उसकी पत्नी का इंतज़ार, उसके बूढ़े माँ-बाप का प्यार। जवान चिट्ठी पढ़ता है और उसे अपने परिवार की याद आती है। रिया चाहती थी कि इस पल में जवान की आँखों में आँसू आएं, उसका दर्द ज़ाहिर हो, उसका अकेलापन दिखाई दे। यह सीन फिल्म के भावनात्मक कोर को छूने वाला था।





    कैमरा सेट था। लाइट्स लगी हुई थीं। आरव कपूर, फौजी की वर्दी में, एक नकली बंकर के अंदर बैठा था। उसके हाथ में एक लिफाफा था, जिसे वह खोलकर पढ़ने की कोशिश कर रहा था। रिया अपनी डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठी थी, उसकी नज़रें मॉनिटर पर थीं, लेकिन उसके दिमाग में वही एक सवाल घूम रहा था: 'एक फौजी असल में क्या महसूस करता है जब वह ऐसी चिट्ठी पढ़ता है?' वह चाहती थी कि सीन बिलकुल सच्चा लगे, नकली न हो।





    "आरव, रेडी? लाइट! कैमरा... एक्शन!" रिया ने माइक पर कहा।





    आरव ने चिट्ठी पढ़नी शुरू की। उसने कोशिश की कि उसके चेहरे पर उदासी आए, उसकी आँखें नम हों। उसने कुछ पल सोचा, फिर अपनी आँखों में आँसू लाने की कोशिश की। लेकिन सीन में वो 'फील' नहीं आ रही थी, वो दर्द नहीं दिख रहा था, जिसे रिया चाहती थी। उसकी कोशिश नकली लग रही थी, जैसे वह एक्टिंग कर रहा हो, न कि महसूस कर रहा हो।





    "कट!" रिया ने माइक पर चिल्लाया। उसकी आवाज़ में खीझ थी। वह अपनी कुर्सी पर से उठ खड़ी हुई। "आरव, क्या कर रहे हो? ये इमोशन कहाँ है? ये सिर्फ़ एक चिट्ठी नहीं है, ये एक जवान का पूरा परिवार है! उसकी ज़िंदगी है! मुझे तुम्हारी आँखों में आँसू चाहिए, वो दर्द चाहिए जो एक फौजी महसूस करता है, जब वो अपने परिवार से मीलों दूर होता है!"





    आरव ने अपने माथे पर हाथ फेरा। "मैम, मैं कोशिश कर रहा हूँ। लेकिन... मुझे समझ नहीं आ रहा कि वो क्या फील करता होगा। मैं रोने की कोशिश कर रहा हूँ, पर वो आ नहीं रहा।"





    "नहीं, रोने की कोशिश नहीं करनी! महसूस करना है!" रिया ने पैर पटका। वह अपनी जगह पर बेचैन होकर घूमने लगी। उसने कई बार यह सीन आरव को समझाया था, उसके दादाजी की कहानियाँ सुनाई थीं, लेकिन आरव उस गहराई को पकड़ नहीं पा रहा था। रिया को लगा कि वह खुद भी कहीं अटक रही है। उसे फौजी के इमोशन की गहराई नहीं मिल पा रही थी।





    "ठीक है, ठीक है, एक और बार करते हैं। आरव, याद करो जब तुम किसी अपने को मिस करते हो। याद करो जब तुम अकेले होते हो।" रिया ने फिर से कोशिश की।





    "लाइट! कैमरा... एक्शन!"





    आरव ने फिर से कोशिश की। इस बार उसने अपने चेहरे पर कुछ उदासी लाने की कोशिश की, उसकी आवाज़ थोड़ी लड़खड़ाई। लेकिन आँसू नहीं आए, और वो असली दर्द भी नहीं दिखा। रिया ने मॉनिटर पर देखा, और फिर से निराश हो गई।





    "कट!" रिया की आवाज़ में अब निराशा साफ़ झलक रही थी। उसने माइक को किनारे रख दिया। "ये नहीं हो रहा है! मैं चाहती हूँ कि दर्शक उस जवान के साथ रोएँ, उसके दर्द को महसूस करें! लेकिन तुम बस एक्टिंग कर रहे हो! कहाँ है वो फील? मैं खुद नहीं समझ पा रही कि वो असल में क्या फील करता है!"





    पूरी यूनिट चुपचाप खड़ी थी। उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि इस सीन को कैसे जीवंत किया जाए। आरव भी शर्मिंदा था। वह जानता था कि वह अपनी डायरेक्टर को निराश कर रहा है।





    मेजर राजवीर शेखावत, जो अपने सुबह के ड्रिल के बाद, सेट के पास से गुज़र रहे थे, रुक गए। उन्होंने दूर से यह सब देखा। रिया की निराशा, आरव की बेबसी, और उस सीन को जीवंत करने की उसकी बेचैनी। उन्हें याद आया कि एक दिन पहले ही रिया ने उनसे फौजियों के इमोशन्स के बारे में पूछा था, और उन्होंने रूखेपन से जवाब दिया था, "हम सोचते नहीं, करते हैं।" उन्हें लगा कि उनका जवाब रिया के लिए अधूरा था। उन्हें रिया की आँखों में वो जुनून दिख रहा था, वो अपने दादाजी की कहानी को सही तरीके से दुनिया को दिखाने की लगन। उन्हें एहसास हुआ कि यह लड़की सिर्फ ड्रामा नहीं कर रही, बल्कि कुछ सच्चा दिखाने की कोशिश कर रही है।





    राजवीर धीरे-धीरे रिया की तरफ बढ़े। उनकी वर्दी की रगड़ाहट और बूटों की आवाज़ सुनकर रिया ने मुड़कर देखा। उसकी आँखों में अभी भी वही निराशा थी।





    "मेजर," रिया ने हल्की सी आवाज़ में कहा, जैसे उसे उम्मीद नहीं थी कि राजवीर इस 'फिल्मी ड्रामा' में दिलचस्पी लेंगे।





    राजवीर उसके पास आए और रुके। उन्होंने आरव की तरफ देखा, जो अभी भी बैठा अपनी लाइन्स को दोहरा रहा था। फिर उन्होंने रिया की तरफ देखा। उनके चेहरे पर वही गंभीरता थी, लेकिन उनकी आवाज़ में इस बार एक हल्की सी नरमी थी, जो रिया ने शायद ही कभी महसूस की थी।





    "मैडम डायरेक्टर," राजवीर ने धीमी, गंभीर आवाज़ में कहा। "आप चाहती हैं कि आपका हीरो रोए, है ना?"





    रिया ने सिर हिलाया। "हाँ, मेजर। मुझे लगता है कि एक फौजी जब अपने परिवार से दूर होता है, अपने लोगों की चिट्ठी पढ़ता है, तो उसका दिल टूट जाता होगा। वो रोता होगा।"





    राजवीर ने एक गहरी साँस ली, जैसे वह किसी बहुत पुरानी याद में खो गया हो। उसकी आँखें दूर पहाड़ियों पर टिकी थीं, जैसे वहाँ उसे अपने जवाब मिल रहे हों। "नहीं, मैडम," उसने कहा, उसकी आवाज़ अब और भी धीमी हो गई थी, जैसे वह किसी राज की बात कर रहा हो। "एक फौजी जब अपने घर की चिट्ठी पढ़ता है, तो वो रोता नहीं है।"





    रिया चौंक गई। "लेकिन... क्यों नहीं? वो भी तो इंसान है।"





    राजवीर ने उसकी आँखों में देखा। "क्योंकि अगर वो रोएगा, तो टूट जाएगा। और अगर वो टूट गया, तो इस सरहद को कौन संभालेगा? कौन अपने परिवार को, अपने देश को महफूज़ रखेगा?" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी सच्चाई और दर्द था। "एक फौजी जब चिट्ठी पढ़ता है, तो रोता नहीं है, मैडम। वो मुस्कुराता है।"





    रिया की आँखें बड़ी हो गईं। "मुस्कुराता है?" उसने धीरे से पूछा। उसे यह बात बिलकुल अजीब लगी।





    "हाँ," राजवीर ने सिर हिलाया। "वो मुस्कुराता है, क्योंकि उसे पता होता है कि वो यहाँ है, इस बर्फीली ठंड में, इस तपती धूप में, इन गोलियों के बीच... ताकि उसका परिवार घर पर महफूज़ रहे। उसकी वजह से उसके बच्चे चैन से स्कूल जा सकें, उसकी माँ सुकून से नींद ले सके, उसकी पत्नी बेफ़िक्र होकर अपना काम कर सके।" राजवीर की आवाज़ में एक गहरा भाव था, जो उसकी आँखों में भी झलक रहा था। "उसका दर्द उसकी मुस्कान के पीछे छिपा होता है, मैडम। वो दर्द उसके दिल में होता है, लेकिन उसके चेहरे पर सिर्फ ख़ुशी होती है कि उसके अपनों की ज़िंदगी उसकी वजह से सुरक्षित है। उसकी हर साँस, हर गोली, हर कदम उनके लिए होता है।"





    राजवीर ने बात खत्म की और फिर से दूर देखने लगा, जैसे उसने अपने दिल का एक हिस्सा खोलकर रख दिया हो। रिया अवाक रह गई। उसे लगा जैसे किसी ने उसके सीन की आत्मा को सामने लाकर रख दिया हो। यह वह गहराई थी, जो वह ढूंढ रही थी, लेकिन उसे मिल नहीं रही थी। यह सिर्फ एक्टिंग नहीं थी, यह एक फ़ौजी की असलियत थी, उसका त्याग था। आरव, जो दूर बैठा यह सब सुन रहा था, वह भी शांत हो गया। उसे मेजर की बात में एक अजीब सी सच्चाई महसूस हुई।





    "उसकी आँखों में आँसू नहीं होते, मैडम," राजवीर ने फिर कहा, उसकी आवाज़ अब थोड़ी हल्की हो गई थी। "उसकी आँखों में एक चमक होती है – गर्व की चमक। और एक उम्मीद की चमक। कि एक दिन वो वापस लौटेगा, और ये सब उसके अपनों के लिए किया गया एक छोटा सा बलिदान होगा।"





    रिया की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन इस बार ये उसके अपने थे, उसके सीन के लिए नहीं। ये आँसू राजवीर की बातों की सच्चाई से थे, उन भावनाओं से थे, जिन्हें वह आदमी इतनी आसानी से छिपाए रखता था। उसे लगा कि राजवीर ने सिर्फ उसके सीन को नहीं, बल्कि उसके दिल को भी छू लिया था। उसे अपनी फिल्म के लिए एक असली इमोशन, एक असली फौजी का दर्द और गर्व, दोनों मिल गए थे। वह राजवीर को देखती रही, उसके चेहरे पर अब कोई निराशा नहीं थी, बल्कि एक गहरा सम्मान था। उसे लगा कि राजवीर ने उसे सिर्फ एक सीन का इनपुट नहीं दिया, बल्कि जिंदगी का एक बड़ा सबक दिया था।





    "मुझे... मुझे अपनी कहानी की आत्मा मिल गई, मेजर," रिया ने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी आवाज़ गले में अटक रही थी। "थैंक यू।"





    राजवीर ने उसकी तरफ देखा, और फिर बिना कुछ कहे, धीमी गति से वहाँ से चला गया, जैसे वह कभी आया ही न हो। उसकी चाल में वही सख्त अनुशासन था, लेकिन रिया जानती थी कि उसने अभी-अभी एक सैनिक का दिल खोलकर रख दिया था, और वह दिल सिर्फ फर्ज़ से नहीं, बल्कि गहरी भावनाओं से भी भरा था।





    रिया ने एक गहरी साँस ली। उसने तुरंत अपनी टीम की तरफ देखा। "ओके एवरीवन! फिर से! आरव, तैयार हो जाओ! इस बार, कोई आँसू नहीं। सिर्फ वो दर्द भरी मुस्कान चाहिए। वो गर्व वाली चमक!" उसकी आवाज़ में एक नई ऊर्जा, एक नया विश्वास था। उसे एहसास हुआ कि यह सिर्फ एक फिल्म नहीं है, यह एक देश की कहानी है, और उसे इसे पूरी ईमानदारी से दिखाना होगा।