ये कहानी है राजवीर और काव्या की । जहां राजवीर पूरे राजस्थान का होने वाला हुकुम सा था । वहीं काव्या उदयपुर की राजकुमारी थी । राजवीर लंडन से अपनी पढ़ाई खत्म कर इंडिया लौटा था । आते ही उसे शादी के बंधन में बंधने के लिए बोला गया । वहीं काव्या जो शायद मन... ये कहानी है राजवीर और काव्या की । जहां राजवीर पूरे राजस्थान का होने वाला हुकुम सा था । वहीं काव्या उदयपुर की राजकुमारी थी । राजवीर लंडन से अपनी पढ़ाई खत्म कर इंडिया लौटा था । आते ही उसे शादी के बंधन में बंधने के लिए बोला गया । वहीं काव्या जो शायद मन ही मन किसी को पसंद करती थी उसे राजवीर से शादी के लिए कहा गया । क्या राजवीर और काव्या शादी के बंधन में बंधेगे ? किसे पसंद करती है काव्या ? क्या राजवीर के जीवन में कोई और है ? कौनसा राज छुपा रहा है राजवीर? क्या ये राज राजवीर और काव्या के रिश्ते को खत्म कर देगी ? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी।
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Royal London Institute of Business and Leadership, London (काल्पनिक नाम है )
लंडन की हल्की ठंडी हवा चेहरे से टकरा रही थी, लेकिन एक लड़का अपने दोस्तों के साथ कॉलेज से बाहर आ रहा था । उस के चेहरे पर एक अलग ही सुकून था। उसने आखिरी बार अपने बिज़नेस कॉलेज की इमारत को देखा । जहाँ उसने न सिर्फ ज्ञान कमाया, बल्कि अपनी सोच को एक नई दिशा दी।
वो जैसे ही कॉलेज से बाहर निकला, उसके पीछे से एक दोस्त ज़ोर से चिल्लाया, "Finally! हमारा एग्ज़ाम खत्म हुआ । अब तो सीधा इंडिया ।"
दूसरा दोस्त हँसते हुए उस लड़के से बोलता है," और वैसे भी... राज, तेरी तो रॉयल फैमिली है ना! अब तू सीधा अपने महल जाएगा, और हम नॉर्मल लोग एयरपोर्ट से सीधे घर!"
वो लड़का हल्के से मुस्कुराया, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब-सी गंभीरता झलक रही थी ।
तो ये है राजबीर सिंह राठौड़ हमारे कहानी का मैन लीड । 25 साल का नौजवान निकलता है । हल्का गेंहुआ रंग, तेज़ और आकर्षक चेहरे के फीचर्स, जो सभी को मंत्रमुग्ध कर दे । भूरी आँखें, जो न सिर्फ आकर्षक होती हैं, बल्कि उनमें एक गहरी सोच और गंभीरता का भी इशारा करती हैं । जब वह किसी से बात करता है, तो उसकी आँखों में एक प्रकार का आकर्षण और ताकत होती है । बाल काले, घने और थोड़े सीधे, माथे तक आते हुए । कद लगभग 6 फीट, बेहद फिट और आकर्षक ।
उसके साथ उसके दो दोस्त करण और अर्जुन साथ में चल रहे थे । दोनों ही इंडिया से थे । तो उन तीनों की दोस्ती जल्दी हो गई थी ।
तभी करण चुटकी लेते हुए राजवीर से बोलता है, “अरे His Highness Raj साहब, अब अपने महल में हमारी भी तस्वीर लगवा देना ।”
अर्जुन ने हँसते हुए कहा, “तू शादी में हमें इन्वाइट करना मत भूलना! हम भी देखना चाहते हैं तेरी रॉयल दुल्हन।”
राजवीर मुस्कुरा दिया और मन ही मन कहता है, “शादी?”
फिर उसने हल्के से सिर झटकते हुए कहा ,“पहले महल में जाकर सांस तो लेने दो।”
मस्ती और ठहाकों के बीच समय कब निकल गया, किसी को पता नहीं चला । देर रात सब अपने-अपने कमरों में चले गए । कमरे की खिड़की से बाहर झांकते हुए राजवीर की नज़रों में उसका पैलेस, उसके दादा सा, उसकी माँ... और एक अनकही सी उलझन तैर रही थी । शायद राजवीर किसी सोच के डूब चुका था ।
अगला दिन
लंदन की सुबह थोड़ी धुंधली थी । लेकिन राजवीर के लिए ये सुबह बेहद साफ़ थी और स्पेशल भी क्यों कि आज इंडिया अपने राजस्थान वापसी की सुबह । जैसे ही एयरपोर्ट के प्राइवेट लाउंज के बाहर राजवीर निकला, वहां पहले से खड़ा उसका पर्सनल हेलीकॉप्टर उसकी रॉयल पहचान की झलक दे रहा था।
पायलट ने आदर से सिर झुकाया ,“Welcome back, Yuvraj Rajveer Singh Rathore.”
राजवीर अपना सर हिलाते हुए अपनी बिना भाव के चेहरे के साथ बोलता है," थैंक यू ।"
इतना बोल वो अपने शीट पर बैठ गया और आसमान की ओर देखा जैसे वो अपने आने वाले जीवन को निहार रहा हो । हेलीकॉप्टर धीरे-धीरे उड़ान भरता है और कुछ घंटों बाद राजस्थान की धूप, रेत और रॉयल हवा राजवीर का स्वागत करने को तैयार थी ।
जिसे महसूस कर राजवीर के चेहरे पर एक सुकून झलकने लगा । जो उसे london में बिल्कुल भी महसूस नहीं होता था । आखिर अपनी जन्मभूमि अपनी ही होती है । पराए देश में जा कर वो सुकून कहां जो हमे अपने जन्मभूमि में मिलती है ।
क्यू रीडर्स मैंने सच बोला न । कमेंट कर के बताना ।
राजस्थान के उदयगढ़ राजमहल में...
दोपहर की तेज़ धूप महल की संगमरमर की दीवारों से टकरा कर एक सुनहरी आभा बिखेर रही थी । लेकिन आज ये चमक सिर्फ सूरज की नहीं थी बल्कि राजवीर सिंह राठौड़ की घर वापसी का था ।
महल के चारों ओर हलचल मची हुई थी । दरबानों की कतारें, फूलों से सजे दरवाज़े, और बगीचे में रंग-बिरंगे पर्दे लहराते हुए शाही माहौल बना रहे थे ।
महल की बाहरी बालकनी में खड़ी एक औरत तेज़-तेज़ कदमों से चलती हुई हर कोने पर नज़र रख रही थी । उम्र लगभग 45 साल, चेहरे पर शालीनता और आँखों में ममता । ग्रीन कलर की राजस्थानी घाघरा चोली में वो औरत जैसे एक शाही चित्र हो ।
“अरे मनोहर, वो गुलाब की लड़ियाँ बाईं तरफ लगाओ और रसोई में आज के पकवान की लिस्ट दोबारा देखो ।”
यही हैं आरती सिंह राठौड़, राजवीर की मां । महल की रानी, पर स्वभाव से बेहद स्नेही और कोमल । पूरे घर की धड़कन, जिनकी एक मुस्कान से पूरा परिवार जुड़ा रहता है ।
तभी पीछे से एक धीमी, मगर अधिकारपूर्ण आवाज़ आई ,"बिंदणी, ये सारा इंतज़ाम मुझ पर छोड़ दे और तू जा और राज के कमरे को अच्छे से सजा दे । तू तो अच्छे से जानती है, उसे अपने कमरे में तेरे अलावा किसी का स्पर्श भी पसंद नहीं है ।”
उन की आवाज सुन आरती जी तुरंत पलटीं और हाथ जोड़कर मुस्कुराईं।
तो उन के सामने थीं - राजमाता वृंदा सिंह राठौड़, उम्र करीब 70, पर अब भी चाल में वही ठाठ और आँखों में वही शौर्य ।
येलो कलर की राजस्थानी घाघरा चोली में लिपटीं, मोतियों का हार पहने, उनकी मौजूदगी में एक सन्नाटा सा छा जाता था । पर वो सन्नाटा डर के वजह से नहीं बल्कि सम्मान के वजह से था ।
आरती ने नम्रता से कहा ,“जी मां सा, मैं अभी जाती हूँ । उसका कमरा भी उतना ही शाही होना चाहिए जितना वो खुद है ।”
इतना बोल वो राजवीर के कमरे के तरफ चली जाती है । जो सब से ऊपर फ्लोर पर था । वहां सिर्फ आरती जी का जाना ही एलाऊ था और किसी के जाने की नहीं । वहां की कमरे की साफ सफाई भी ज्यादा तर आरती जी करती थी या फिर राजवीर के रहते वो खुद । वहीं बाहर हॉल की साफ सफाई वहां की एक बूढ़ी औरत, जिसे राजवीर दाई मां पुकारता था, वो करती थी ।
आरती जी धीमे क़दमों से राजवीर के कमरे की ओर बढ़ती हैं । कमरे के दरवाज़े को हल्के से खोला । अंदर वही ख़ामोशी थी, जो पिछले दो सालों से उस कमरे की आदत बन चुकी थी । मगर आज उस ख़ामोशी में भी एक हलचल थी वो थी बेटे की वापसी की हलचल ।
सूरज की हल्की किरणें खिड़की से छन कर कमरे के फर्श पर पड़ रही थीं । आरती जी ने धीरे-धीरे कमरे के पर्दे बदले , हल्के बादामी रंग के रेशमी कॉटन, जो कमरे को गर्मी में भी सुकून दे सकें । उन्होंने बेड पर सफ़ेद सिल्क की बेडशीट बिछाई, जिस पर सुनहरे धागों से बने हुए जटिल राजस्थानी डिज़ाइन थे ।
तभी आरती जी की नजर कहीं पर जाती है । जिसे देख आरती जी के आखों में नमी आ जाती है ।
आज के लिए इतना ही
तो आप सब को क्या लगता है
आरती जी की आँखें नाम क्यों हो गई ?
ऐसा क्या देख लिया आरती जी ने?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी .....
Please अगर कहानी पसंद आ रही है तो कमेंट, लाइक और फॉलो करना मत भूलना ।
आरती जी धीमे क़दमों से राजवीर के कमरे की ओर बढ़ती हैं । कमरे के दरवाज़े को हल्के से खोला । अंदर वही ख़ामोशी थी, जो पिछले दो सालों से उस कमरे की आदत बन चुकी थी । मगर आज उस ख़ामोशी में भी एक हलचल थी वो थी बेटे की वापसी की हलचल ।
सूरज की हल्की किरणें खिड़की से छन कर कमरे के फर्श पर पड़ रही थीं । आरती जी ने धीरे-धीरे कमरे के पर्दे बदले , हल्के बादामी रंग के रेशमी कॉटन, जो कमरे को गर्मी में भी सुकून दे सकें । उन्होंने बेड पर सफ़ेद सिल्क की बेडशीट बिछाई, जिस पर सुनहरे धागों से बने हुए जटिल राजस्थानी डिज़ाइन थे ।
तभी आरती जी की निजार कहीं पर जाती है । जिसे देख आरती जी के आखों में नमी आ जाती है ।
फिर वो खिड़की के पास रखे गमले तक पहुंची । वहाँ उन्होंने धीरे से पुराने फूल निकाले और अपने साथ लाए ताज़े गुलाब, मोगरा और गेंदे के फूल सजाए ।
वो धीरे से बुदबुदाती है, “उसे फूल बहुत पसंद हैं ।" और एक हल्की मुस्कान उनके चेहरे पर आई।
उनकी आँखों के सामने अचानक एक छोटी सी छवि उभरी । छोटा राजवीर, अपने छोटे हाथों में बगीचे से फूल तोड़ कर भागते हुए आता और खुशी से चिल्लाता है ,“माँ देखो! आज मैंने फूल खुद तोड़े हैं ।”
ये देख आरती जी बोलती है," मेरे राज ने फूल क्यूं तोड़े ?"
जिसके जवाब में राजवीर बोलता है," मुझे अपने गमले में रखना है फूल । मुझे बहत पसंद है ये ।"
ये सुन आरती जी मुस्कुरा देती है । उस के बाद राजवीर एक फूल अपने मां के जुड़े (bun hairstyle) पर लगा कर बाकी का फुल ले कर अपने कमरे में भाग जाता है ।
राजवीर के विदेश जाने के बाद, आरती जी ने एक दिन भी ऐसा नहीं जाने दिया जब उस गमले में फूल ना रखे हों । यह सिर्फ फूल नहीं थे, बल्कि ये एक माँ का रोज़ का स्नेह, और उसके बेटे के इंतज़ार की ख़ुशबू थे ।
इतना सोचते हुए वो अपने ख्याल से बाहर आती है । वो पूरे कमरे को देखती है ।कमरा अब सज चुका था , रॉयल, लेकिन सादगी से भरा । ठीक वैसे ही, जैसे युवराज राजवीर सिंह राठौड़ खुद है ।
करीब दो घंटे बाद, उदयगढ़ राजमहल से कुछ दूरी पर बने शाही हेलीपैड पर एक रॉयल हेलीकॉप्टर आकर रुकता है । आसमान को चीरती उसकी आवाज़ जैसे पूरे महल को जगा देती है ।
महल के ऊपरी छज्जों और बगीचे के रास्तों से सेवक और परिवारजन बाहर की ओर दौड़ पड़ते हैं । महल के मुख्य द्वार पर खड़े दरबानों ने तुरही बजाई, जैसे सभी को सूचित कर रहे हो कि "युवराज राजवीर सिंह राठौड़ पधार रहे हैं ।"
हेलीकॉप्टर का दरवाज़ा खुलता है और धूप की हल्की रौशनी में सफेद कुर्ता और सुनहरी जैकेट पहने राजवीर सिंह राठौड़ उतरता है । उसका तेज, उसकी चाल, और आँखों में एक ठंडी, शाही सी चमक जैसे कोई राजा जन्म से नहीं, स्वभाव से होता है ।
राजवीर सबसे पहले सीधे अपने दादा सा, महाराज समर प्रताप सिंह राठौड़ के पास जाता है और झुककर उनका आशीर्वाद लेने के लिए पैर छूता है ।
समर प्रताप जी, जो एक समय में खुद तलवार थाम कर राज्य चलाते थे, अब अपने पोते को देखकर जैसे फिर से जवान हो गए हों ।
उन्होंने राजवीर के सिर पर हाथ रखते हुए कहा ,"कैसा है मेरा शेर?"
राजवीर ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया ,"अच्छा हूं, दादा सा और आप कैसे हैं?"
तो उन्होंने मुस्कुराते हुए बोलते है," अब अच्छा हूँ बेटा… तू आ गया, यही सबसे बड़ी बात है।"
ये सुन राजवीर हल्के से मुस्कुरा देता है ।
वहीं पीछे खड़ी आरती जी की आँखों में नमी थी, लेकिन चेहरा मुस्कराहट से खिला हुआ था । माँ और बेटे की आँखें मिलीं, और बिना शब्दों के ही दोनों ने सब कह दिया ।
राजवीर दादा सा से आशीर्वाद लेने के बाद सीधे राजमाता वृंदा देवी के पास गया । उन्होंने उसे सीने से लगाया और कहा, "अब पूरा महल जीवंत लग रहा है, बेटा।"
फिर राजवीर ने अपने पिता महाराजा विजय सिंह के पैर छुए । विजय सिंह ने उसका कंधा थपथपाया और गंभीर स्वर में बोले, "राजघराने का वारिस बनना आसान नहीं होता, बेटा । अब समय है जिम्मेदारी निभाने का ।"
राजवीर ने सिर झुका कर कहा, "हाँ पिताजी, मैं तैयार हूँ और वैसे भी आप तो है ही मेरे साथ ।"
ये सुन विजय जी हल्के से मुस्कुरा देते है ।
राजवीर की माँ आरती जी ने उसे गले लगाया और ऐसा लगा जैसे सालों की दूरी एक पल में मिट गई हो ।
उन्होंने भर्राई आवाज़ में कहा, "बस तू ठीक सलामत आया, यही बहुत है मेरे लिए ।"
फिर उसने अपनी बहन इशिता को देखा, जो दौड़कर उससे लिपट गई और बोलती है, "भैया! Finally आप आ गए ।"
राजवीर ने उसके माथे पर हाथ रखा, "अब कभी इतना लंबा नहीं जाऊंगा, पगली ।"
फिर राजवीर एक-एक कर अपने चाचा देवेंद्र सिंह राठौड़, चाची नीलिमा सिंह राठौड़, कज़िन अर्जुन सिंह राठौड़, तृषा सिंह राठौड़, बुआ गौरी देवी चौहान, फूफा रतन सिंह चौहान, कजिन रिया और साहिल सिंह चौहान से मिला । हर एक रिश्ते में अपनापन था, रॉयल माहौल के बावजूद एक गर्माहट थी ।
उसके बाद आरती जी पूजा की थाली लेकर राजवीर की नज़र उतारती हैं ।
वो धीमे स्वर में कहती हैं, "तेरे माथे की ये चमक, तुझ पर बुरी नजर कभी न लगे मेरे लाल ।"
और नज़र उतार कर उन्होंने हल्की सी आरती की और थाली एक ओर रखकर उसका हाथ पकड़ घर के अंदर ले गईं ।
महल की सजावट देखकर राजवीर की आंखों में हल्की-सी चमक आ गई ।
चारों ओर महकते फूल जैसे हर एक फूल उसकी वापसी का जश्न मना रहा हो ।
वो कुछ नहीं बोला, बस हल्के से मुस्कुराया ।
दादी वृंदा जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "देखा, फूलों का जादू अब भी काम करता है इस पर ।"
राजवीर चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ा । कमरे का दरवाज़ा खोलते ही सामने वही गुलाब के फूलों से भरा गमला रखा था । जिसे वो बचपन में खुद सजाया करता था । उसकी मुस्कान गहरी हो गई ।
उसने फूलों को हल्के से छूते हुए कहा, "माँ, तुम अब भी रोज़ फूल रखती हो?"
तभी पीछे से आरती जी की आवाज़ आई, "जब तक में हूं , ये आदत नहीं जाएगी ।"
दूसरे तरफ,
उदयपुर, राजस्थान,
एक राजमहल में,
एक लड़की की मधुर संगीत सुनाई दे रही थी । उसके पीछे सभी हाथ जोड़ कर उस संगीत में और प्रार्थना में खोए हुए थे ।
तो आप सब को क्या लगता है
कौन होगी ये लड़की ?
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दूसरी तरफ,
उदयपुर, राजस्थान में,
सूरज की सुनहरी किरणें अरावली की पहाड़ियों से निकलकर एक भव्य राजमहल की दीवारों पर पड़ रही थीं । ये महल — "सिसोदिया निवास" — पुराने समय की वास्तुकला का जीता-जागता उदाहरण था । संगमरमर की जालियों से छनती धूप, बड़े-बड़े आंगन, फव्वारों की मधुर कलकल, और हर कोने में रॉयल्टी की छाप । राजमहल के चारों ओर घना बगीचा फैला हुआ था — गुलाब, मोगरा, चमेली की महक से भरा । महल का प्रवेशद्वार ऊँचा और नक्काशीदार था, और उस पर एक सुनहरा नाम उकेरा गया था " देव निवास"।
जैसे ही महल के भीतर आते हैं, हॉल में सफेद संगमरमर की ज़मीन पर सुंदर रंगोली बनी हुई थी ।
वहीं एक और से एक मधुर संगीत सुनाई दे रही थी । संगीत ऐसा था जो रूह को छू जाए ।
वो आवाज़ किसी और की नहीं, बल्कि महाराज रूद्रप्रताप सिंह सिसोदिया की छोटी बेटी राजकुमारी काव्या की थी ।
वह मंदिर में आरती कर रही थी । सफेद और गोल्डन बॉर्डर वाली अनारकली में, माथे पर छोटी सी बिंदी और चेहरे पर श्रद्धा की रोशनी लिए वो बेहद सौम्य लग रही थी ।
उसके पीछे खड़े थे ,
महाराज रणधीर सिंह सिसोदिया (दादा सा) – जो अपने गहरे अनुभव और गरिमा के साथ सबको आशीर्वाद देते दिख रहे थे ।
राजमाता विमला देवी (दादी सा) – जिनकी आँखों में अपनी पोती के लिए ढेर सारा स्नेह था ।
महाराज रूद्रप्रताप सिंह सिसोदिया (पिताजी) – एक अनुशासित, राजसी व्यक्तित्व, जिनका ध्यान पूरे विधि-विधान पर था ।
महारानी पद्मिनी देवी (माँ) – जिनकी मुस्कान में काव्या के लिए गर्व और ममता झलक रही थी ।
अभिराज सिंह (बड़ा भाई) – जो शांत और सधे कदमों से खड़े थे, और काव्या को देख कर उनकी आँखों में भावुकता थी ।
काव्या जैसे ही आरती कर पीछे मुड़ती है, तो देखती है कि सभी आँखें बंद कर प्रार्थना में लीन हैं । उनके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ जाती है । वह चारों दिशा में आरती देती है और फिर प्रेम से सबको आरती देती है ।
आरती के बाद सभी एक-दूसरे की ओर मुस्कराते हैं और अपने-अपने कामों की ओर बढ़ जाते हैं ।
दूसरी तरफ,
उदयगढ़ में,
थोड़ी देर बाद राजवीर फ्रेश होकर नीचे आया । परिवार के सभी सदस्य डाइनिंग एरिया में इकट्ठा हो चुके थे ।
भव्य डाइनिंग टेबल पर आज खास इंतज़ाम था , दाल बाटी चूरमा, गट्टे की सब्ज़ी, बेसन का हलवा, केसरिया दूध और राजवीर का फेवरेट कढ़ी-चावल ।
मेड ने विनम्रता से खाना सर्व करना शुरू किया । राजवीर ने पहली बाइट ली और आँखें बंद कर लीं और उसने मुस्कुराते हुए कहा ,"घर का खाना... इसका कोई मुकाबला नहीं ।"
सभी ने एक-दूसरे की ओर देखा , ये लम्हा, ये साथ, और घर के खाने की महक
सब कुछ जैसे एक खुशहाल परिवार की तस्वीर बन गया था ।
खाना खत्म होने के बाद सभी लोग हॉल में बैठे हुए थे ।आरती जी और नीलिमा जी चाय बनवाने के लिए किचन की ओर गईं थीं । राजवीर अपने दादा सा समर प्रताप सिंह राठौड़ के पास बैठा था, और बाकी परिवार पास ही आराम से बैठा था ।
कुछ समय की शांति के बाद, समर जी ने अपनी छड़ी एक ओर रखी और गला खंखारते हुए बोले, "राजवीर..."
पूरा हॉल जैसे एक पल को शांत हो गया ।
राजवीर ने तुरंत जवाब दिया, "जी दादा सा।"
समर जी ने राजवीर की आँखों में देखा , वो नज़रों से उसके अंदर की गहराई तक पढ़ लेते थे ।
वो राजवीर के आखों में ही देखते हुए बोलते है, "अब तू 25 का हो गया है । तेरा फर्ज़ बनता है कि तू अपने नाम के साथ-साथ इस राजघराने की परंपराओं को भी निभाए ।"
उन्होंने नर्म लेकिन दृढ़ स्वर में कहा ,"मैं चाहता हूँ अब तेरी शादी हो जाए, बेटा ।"
राजवीर थोड़ी देर चुप रहा । सबकी निगाहें अब उसी पर थीं । दादी वृंदा जी मुस्कुरा रही थीं, जैसे उन्हें पहले से पता था कि अब ये बात होगी ।
राजवीर ने हल्की सांस ली और धीमे स्वर में कहा, "दादा सा, मुझे थोड़ा वक्त दीजिए... अभी मैं... तैयार नहीं हूँ । शादी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है । मैं कुछ वक्त चाहता हूँ सोचने के लिएn।"
जिसके जवाब में समर प्रताप सिंह राठौड़ (दादा सा) कहते हैं, "ठीक है राजवीर, तुझे तीन दिन का वक्त देता हूँ । सोच ले अच्छे से । ये फैसला सिर्फ परिवार का नहीं, तेरे पूरे जीवन का है ।"
राजवीर सिर झुका कर आदर से कहता है, "जी दादासा" और हल्की सी मुस्कान के साथ वहां से अपने कमरे की ओर चला जाता है ।
उसके जाते ही बाकी सभी भी एक-दूसरे की ओर देख कर धीरे-धीरे हॉल से उठ कर अपने-अपने कमरों में चले जाते हैं । महल फिर से अपने सन्नाटे में लौट जाता है । पर अब उसमें एक इंतज़ार की आहट है।
उदयपुर,
शाम का समय था । उदयपुर के भव्य महल की रौशनी धीरे-धीरे सुनहरी होती जा रही थी । महल के बड़े हॉल में परिवार के सभी सदस्य एकत्र थे । आरामी कुर्सियों पर बैठे, चाय की चुस्कियों और हल्की बातचीत का दौर चल रहा था ।
तभी रणधीर सिंह सिसोदिया (काव्या के दादा सा) अपनी गंभीर आवाज में कहते हैं, "हमारी गुड़िया के लिए उदयगढ़ से रिश्ता आया है ।"
सुनते ही हॉल में एक पल को सन्नाटा छा जाता है — जैसे हवा भी रुक गई हो । सभी एक-दूसरे की ओर देखने लगे । काव्या चौंक कर अपने दादा सा की ओर देखती है, उसके चेहरे पर एक अनकही सी बेचैनी उभर आती है, लेकिन वह खुद को संभालती है ।
अभिराज (उसका बड़ा भाई) तुरंत बोल उठता है, "पर दादासाहब, अभी तो काव्या सिर्फ इक्कीस की है। ये सब कुछ जल्दी नहीं हो रहा?"
रणधीर सिंह मुस्कराते हुए, लेकिन ठोस स्वर में कहते हैं, "हमारे ज़माने में लड़कियों की शादी अठारह की होते ही तय हो जाती थी । काव्या अब बड़ी हो गई है और उसकी पढ़ाई भी अब लगभग पूरी हो चुकी है । समय आ गया है कि वो अपने जीवन के नए अध्याय की ओर बढ़े ।"
फिर वो काव्या की ओर मुखातिब होते हैं ,"बोलो बेटा, तुम्हारा क्या कहना है इस रिश्ते के बारे में?"
काव्या कुछ क्षण के लिए चुप रहती है । उसके मन में कई सवाल, कई उलझनें चल रही होती हैं ।
आप सब को क्या लगता है
क्या बोलेगी काव्या इस रिश्ते के लिए ?
क्या काव्या शादी के लिए राजी होगी ?
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रणधीर सिंह मुस्कराते हुए, लेकिन ठोस स्वर में कहते हैं, "हमारे ज़माने में लड़कियों की शादी अठारह की होते ही तय हो जाती थी । काव्या अब बड़ी हो गई है और उसकी पढ़ाई भी अब लगभग पूरी हो चुकी है । समय आ गया है कि वो अपने जीवन के नए अध्याय की ओर बढ़े ।"
फिर वो काव्या की ओर मुखातिब होते हैं ,"बोलो बेटा, तुम्हारा क्या कहना है इस रिश्ते के बारे में?"
काव्या कुछ क्षण के लिए चुप रहती है । उसके मन में कई सवाल, कई उलझनें चल रही होती हैं ।
फिर वह धीरे से बोलती है, "दादासाहब... मुझे थोड़ा वक्त चाहिए सोचने के लिए।"
रणधीर सिंह सिर हिलाते हैं, "ठीक है बेटा, तीन दिन का समय है तुम्हारे पास । सोच समझ कर जवाब देना ।"
काव्या आदर से सिर झुकाती है, और फिर चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है । पीछे से उसकी माँ पद्मिनी देवी उसकी आँखों में छुपी हल्की नमी को देख लेती हैं, लेकिन कुछ कहती नहीं बस उसे जाते हुए देखती रहती हैं ।
हॉल में एक बार फिर शांति छा जाती है, लेकिन इस बार वो शांति किसी तूफान से पहले की थी...
रात को,
रात का सन्नाटा छाया हुआ था । डिनर के बाद पूरा महल नीम रोशनी में डूबा हुआ था । पर काव्या के कमरे में बेचैनी का माहौल था । वो हल्के रेशमी कुर्ते में, नंगे पाँव कमरे में इधर से उधर टहल रही थी । उसकी आंखों में एक उलझन साफ़ झलक रही थी ।
तभी दरवाज़ा खटखटाए बिना ही, रणधीर सिंह (दादासाहब) कमरे में दाखिल होते हैं । उनकी चाल धीमी, पर आवाज़ वही पुरानी ठहराव वाली ।
वो धीमे से कहते हैं, "गुड़िया मैं जानता हूँ । अचानक ये रिश्ता सुन कर तू परेशान हो गई होगी । लेकिन लड़का बहुत अच्छा है । लंदन से पढ़ाई पूरी कर के आया है । खुद का बिज़नेस भी है और जिम्मेदार भी ।"
वो एक पल रुकते हैं, फिर आगे कहते हैं, "और सबसे खास बात ये कि वो कोई और नहीं, तेरी भाभी के मामा का बेटा है । मतलब हमारे जान-पहचान का ही है ।"
काव्या कुछ कहती नहीं, बस उनकी बात ध्यान से सुनती है ।
रणधीर जी थोड़ा नरम स्वर में पूछते हैं, "अगर तू किसी को पसंद करती है, किसी के लिए मन में कुछ है । तो निःसंकोच बता सकती है बेटा । हम तेरी मर्ज़ी के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे ।"
काव्या हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाती है, "नहीं दादू... ऐसा कुछ नहीं है ।"
रणधीर जी उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहते हैं, "तो फिर ऐसा कर । बस एक बार उस लड़के और उसके परिवार से मिल ले । अगर अच्छा लगे, तो हम रिश्ता आगे बढ़ाएँगे । नहीं तो नहीं । डिसीजन पूरी तरह से तेरे हाथ में है, बेटा ।"
इतना कहकर वो कमरे से चले जाते हैं । काव्या धीरे-धीरे बालकनी की ओर बढ़ती है । वहां खड़ी होकर चांद को निहारती है । हवा में हल्की ठंडक थी, और चारों ओर सन्नाटा ।
अचानक उसकी आंखों के सामने एक चेहरा उभरता है , किसी की हल्की सी मुस्कान, जो शायद किसी की मदद कर रहा था । किसी की आंखें, जिनमें उसने कुछ अपने जैसा देखा था ।
काव्या अपने आप से बुदबुदाती है, "शायद आप हमारे नसीब में नहीं थे । इतनी बार आपके शहर आए, लेकिन आपसे कभी मिल नहीं पाए ।"
वो गहरी सांस लेती है, जैसे कोई सपना अधूरा रह गया हो । कुछ देर और चांद को देखने के बाद, वो चुपचाप कमरे में लौट आती है । दरवाज़ा बंद करती है और धीरे से लाइट्स बुझा देती है । बस एक टेबल लैम्प की मद्धम रौशनी कमरे में रह जाती है । जैसे उसके मन की उलझनों की परछाई हो ।
धीरे-धीरे वक्त गुजरता है, और राजवीर और काव्या को दिए गए तीन दिन का वक्त खत्म हो जाता है।
दोनों परिवारों के लिए यह एक निर्णायक पल था, क्योंकि अब इंतजार खत्म होने वाला था। अब समय आ चुका था जब दोनों को अपनी अपनी पसंद और फैसले का खुलासा करना था।
उदयपुर के राजमहल में, डाइनिंग टेबल पर सभी परिवारवाले एकत्रित थे।
टेबल पर सन्नाटा था, जैसे पूरे महल में किसी बड़ी बात की आहट हो। रणधीर जी ने अपनी सख्त नजरें काव्या पर डालीं और धीरे से पूछा,
"तो गुड़िया, क्या तुम्हारा फैसला हो गया है?"
काव्या की नजरें थोड़ी झुकी हुई थीं, लेकिन उसमें एक अनजाना सा आत्मविश्वास था। उसने सिर हिलाया और हल्की सी मुस्कान के साथ बोला,
"हां दादू, मुझे लगता है कि ये सही होगा।"
यह सुनते ही पूरे कमरे में खुशियों की लहर दौड़ गई। सभी की चेहरे पर राहत और खुशी की झलक थी। काव्या के फैसले ने मानो सभी की उम्मीदों को पंख दे दिए थे।
काव्या की माँ और पिता, महाराज रूद्रप्रताप और महारानी पद्मिनी, एक दूसरे को देखा और नज़रें भर आईं।
काव्या का हां कहना उनके लिए एक नए अध्याय की शुरुआत थी, और उनका दिल खुशियों से भर गया था। काव्या ने अपने परिवार को वो विश्वास दिलाया था जिसकी उन्हें जरूरत थी।
रणधीर जी ने मुस्कुराते हुए काव्या से कहा,
"अच्छा किया, गुड़िया। अब हम सब मिलकर इस रिश्ते को आगे बढ़ाएंगे।"
काव्या के जाने के बाद, रणधीर जी ने सभी को लड़के के बारे में बताया, जिस पर सभी खुश हो गए थे।
"लड़का अच्छा है," उन्होंने कहा, "लंदन से पढ़ाई कर के आया है, और खुद का बिजनेस भी है। उसका परिवार भी बहुत अच्छा है।"
यह सुनकर सभी को न केवल राहत मिली, बल्कि उन्होंने इस रिश्ते को अपनाया। लड़का सभी को पसंद आया था, और अब बस एक फॉर्मल मीटिंग और फिर सब कुछ तय हो जाने वाला था।
रणधीर जी ने औरों से कहा,
"अब हम सब इस रिश्ते को पक्का करेंगे। और यह काव्या का फैसला है, तो हम उसकी इच्छाओं का सम्मान करेंगे।"
इस फैसले के साथ ही, पूरे महल में एक नई खुशी का माहौल बन गया था। काव्या और राजवीर के रिश्ते की नींव अब मजबूत हो चुकी थी, और दोनों परिवारों का दिल एक साथ धड़कने लगा था।
आज के लिए इतना ही
क्या राजवीर लड़की देखने जाने के लिए तैयार होगा ?
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Chapter 5 राजवीर के घर वाले काव्या के घर पर
वहीं उदयगढ़ में, डाइनिंग टेबल पर सभी परिवारवाले बैठे हुए थे।
राजवीर कमरे में प्रवेश करता है और सबकी नजरें उसकी तरफ मुड़ जाती हैं। वह कुछ पल शांत खड़ा रहता है, और फिर अपने दादा समर जी की तरफ देखता है।
समर जी ने मुस्कुराते हुए पूछा,
"राजवीर, शादी के बारे में क्या सोचा है?"
राजवीर थोड़ी देर चुप रहता है, फिर धीरे से सिर हिलाता है, यह संकेत देता है कि उसने शादी के बारे में सोचा है और फैसला किया है।
यह सुनकर समर जी के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ जाती है।
"अच्छा किया, राजवीर।"
समर जी की बातों से सभी के चेहरों पर राहत और खुशी दिखाई देती है।
उसके बाद सभी एक साथ निर्णय लेते हैं,
"हम संडे को लड़की देखने जाएंगे।"
राजवीर और परिवार के सभी सदस्य इस बात पर सहमत होते हैं।
खाने के बाद, समर जी ने सभी को बताया,
"हम संडे को लड़की वालों से मिलने जाएंगे। यह समय दोनों परिवारों के बीच एक मुलाकात का है।"
राजवीर के परिवार में इस निर्णय पर खुशी का माहौल बन गया। सभी को उम्मीद थी कि यह मुलाकात सफल होगी और रिश्ते की नई शुरुआत होगी।
संडे को,
राठौड़ परिवार के सभी सदस्य नीचे हॉल में बैठे हुए थे, और राजवीर का इंतजार कर रहे थे। माहौल में एक हलका सा उत्साह था, क्योंकि यह पहली बार था जब परिवार लड़की को देखने के लिए जा रहा था। समर जी, वृंदा जी, आरती जी, विजय जी, और सभी छोटे-बड़े सदस्य सभी तैयार थे।
कुछ देर बाद, राजवीर आता है। उसे देखकर बृंदा जी खड़ी हो जाती हैं और अपनी पारंपरिक तरह से उसकी नजर उतारने लगती हैं। यह एक रॉयल परिवार की आदत थी, जो किसी भी यात्रा या महत्वपूर्ण अवसर से पहले की जाती थी।
"राजवीर, ध्यान रखना। यह एक नई शुरुआत है।"
बृंदा जी ने उसकी नजर उतारने के बाद उसे आशीर्वाद दिया। राजवीर सिर झुका कर उनका आभार व्यक्त करता है और फिर सब मिलकर कार में बैठने के लिए चलते हैं।
समर जी, जो पूरे परिवार के मार्गदर्शक थे, ने इस पूरे पल को बहुत गंभीरता से लिया। वह जानते थे कि यह एक महत्वपूर्ण कदम था, और उनका परिवार इस रिश्ते को लेकर बहुत उम्मीदें लगाए बैठा था।
फिर सब एक साथ, राठौड़ परिवार के सदस्य, राजवीर के साथ अपनी मंजिल की ओर चल पड़ते हैं। रास्ते में, हल्की बातचीत होती है, लेकिन सभी की नज़रें इस मुलाकात की ओर थीं, जहां भविष्य का फैसला होना था।
उदयपुर, सिसोदिया निवास में,
सुबह का समय था और सिसोदिया निवास में सब कुछ व्यवस्थित था। घर के चारों ओर हलचल थी, नौकर अपने-अपने काम में व्यस्त थे, और घर के अंदर पद्मिनी जी खाने की तैयारी कर रही थीं।
10 बजे,
एक साथ आठ गाड़ियां सिसोदिया महल के सामने आ कर रुकती हैं। गाड़ियों के रुकते ही, हर किसी की नजरें उत्सुकता से उस ओर लग जाती हैं।
पहली कार से समर जी, बृंदा जी, विजय जी और आरती जी निकलते हैं। वे सभी एक साथ परिवार के सबसे अहम सदस्य के रूप में बाहर निकलते हैं। उनकी उपस्थिति से घर का माहौल और भी गरिमामय हो जाता है। समर जी की गंभीर और सम्मानित शख्सियत, बृंदा जी की मातृत्व और धैर्य से भरी उपस्थिति, विजय जी का राजा जैसा अनुशासन, और आरती जी की स्नेहभावना – सभी एक साथ इस महत्वपूर्ण दिन में शामिल होते हैं।
दूसरी कार से देवेंद्र जी, नीलिमा जी, गौरी जी और रतन जी उतरते हैं। ये सभी परिवार के सदस्यों की उपस्थिति महल में एक शानदार ऊर्जा भर देती है। रतन जी और देवेंद्र जी की समझदारी, नीलिमा जी की स्नेहभावना और गौरी जी की पारंपरिक भावनाएं परिवार के पारिवारिक स्नेह को और भी मजबूत करती हैं।
तीसरी कार से राजवीर और साहिल उतरते हैं। राजवीर की शांत और गंभीर मुद्रा, साहिल का चुलबुला और मस्तमौला स्वभाव, दोनों के बीच एक अद्भुत संतुलन दिखता है। वे दोनों जैसे ही बाहर निकलते हैं, एक हल्का उत्साह घर में फैलता है।
चौथी कार से रिया, अर्जुन और तृषा उतरते हैं। रिया का शांत स्वभाव, अर्जुन का अनुशासन और तृषा की समझदारी, ये तीनों मिलकर सिसोदिया परिवार के रिश्तों को एक नया आयाम देते हैं। उनके आने से माहौल और भी ऊर्जावान हो जाता है।
बाकी की कारों से बॉडीगार्ड्स उतरते हैं। उनका काम केवल सुरक्षा देना था, लेकिन उनकी उपस्थिति ने पूरे माहौल को गंभीर और रॉयल बना दिया।
सभी सदस्य, बड़े धैर्य और गरिमा के साथ एक-दूसरे से मिलते हैं और घर के अंदर जाते हैं।
सिसोदिया निवास में आज एक अहम दिन था – एक दिन जो राजवीर और काव्या के रिश्ते की ओर एक कदम और बढ़ने वाला था। सभी के चेहरों पर एक हल्की सी उम्मीद और उत्साह था, लेकिन साथ ही सभी जानते थे कि इस रिश्ते का फैसला इस मुलाकात के बाद होगा।
सिसोदिया निवास, उदयपुर
गाड़ियों की आवाज सुनकर, सिसोदिया परिवार के सदस्य उत्सुकता से घर से बाहर आ जाते हैं। हर कोई स्वागत के लिए तैयार था। जैसे ही गाड़ियाँ रुकती हैं, सभी सदस्य एक साथ बाहर आते हैं।
समर जी अपने दादी की तरह गंभीर मुद्रा में, बृंदा जी मुस्कुराते हुए, और विजय जी ने अपनी परंपरागत गरिमा बनाए रखी। आरती जी ने हर किसी का स्नेहपूर्वक स्वागत किया और फिर देवेंद्र जी, नीलिमा जी, गौरी जी और रतन जी ने भी सभी को आदरपूर्वक प्रणाम किया।
जब सभी सदस्य बाहर आकर एक दूसरे से मिलते हैं और हालचाल पूछते हैं, तो वातावरण हल्का और सजीव हो जाता है।
इसके बाद, समर जी और विजय जी मिलकर पूरे परिवार को अंदर ले जाते हैं। सभी परिवार के लोग एक साथ बैठे होते हैं और थोड़ी देर के लिए आपस में बातें करते हैं। इस दौरान, राजवीर और साहिल एक-दूसरे से बातचीत कर रहे होते हैं, जबकि बाकी लोग एक-दूसरे से बधाई और शुभकामनाएं देते हैं।
फिर, समर जी ने कहा, "अब काव्या को लाने का समय है।"
क्या राजवीर और काव्या शादी के लिए तैयार होंगे ?
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सिसोदिया निवास, उदयपुर
गाड़ियों की आवाज सुनकर, सिसोदिया परिवार के सदस्य उत्सुकता से घर से बाहर आ जाते हैं। हर कोई स्वागत के लिए तैयार था। जैसे ही गाड़ियाँ रुकती हैं, सभी सदस्य एक साथ बाहर आते हैं।
समर जी अपने दादी की तरह गंभीर मुद्रा में, बृंदा जी मुस्कुराते हुए, और विजय जी ने अपनी परंपरागत गरिमा बनाए रखी। आरती जी ने हर किसी का स्नेहपूर्वक स्वागत किया और फिर देवेंद्र जी, नीलिमा जी, गौरी जी और रतन जी ने भी सभी को आदरपूर्वक प्रणाम किया।
जब सभी सदस्य बाहर आकर एक दूसरे से मिलते हैं और हालचाल पूछते हैं, तो वातावरण हल्का और सजीव हो जाता है।
इसके बाद, समर जी और विजय जी मिलकर पूरे परिवार को अंदर ले जाते हैं। सभी परिवार के लोग एक साथ बैठे होते हैं और थोड़ी देर के लिए आपस में बातें करते हैं। इस दौरान, राजवीर और साहिल एक-दूसरे से बातचीत कर रहे होते हैं, जबकि बाकी लोग एक-दूसरे से बधाई और शुभकामनाएं देते हैं।
फिर, समर जी ने कहा, "अब काव्या को लाने का समय है।"
कुछ ही देर में, काव्या को घर में लाने के लिए आदेश दिया गया, और जैसे ही काव्या को बुलाया गया, पूरा वातावरण और भी रोमांचक हो गया।
काव्या धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे आ रही थी। आज वह बिल्कुल अलग ही रूप में नजर आ रही थी। सफेद रंग के सूट में, जिस पर लाल रंग का दुपट्टा खूबसूरती से सजा हुआ था। उसके घने, काले बाल कमर तक खुले हुए थे, और वह हर कदम पर जैसे खुद एक मिसाल बनती जा रही थी। कानों में छोटे-छोटे झुमके झिलमिलाते हुए, उसके चेहरे पर गुलाब जैसी लाल लिप्स और हेजल आँखें उसकी मासूमियत और आकर्षण को और भी बढ़ा रही थीं। उसकी आँखों में एक हया थी, जैसे वह शर्म और सादगी के बीच एक नयापन ले कर आ रही हो।
जब काव्या नीचे आई, तो सबकी नजरें उस पर थम गईं। राजवीर की नजरें सबसे पहले काव्या पर ठहर गईं, और वह उसकी सुंदरता और रूप पर मंत्रमुग्ध हो गया। लेकिन काव्या ने अपनी नजरे उठाने की हिम्मत नहीं की । उसे बहत बेचैनी हो रही थी । वो अपनी दोस्त के साथ नीचे आई और बड़ों के पास जाकर प्रणाम कर दी।
साहिल ने ये सब देखा, और मन ही मन मुस्कुराया। वह बाखूबी जानता था कि राजवीर, जो कभी किसी लड़की को सर उठा कर नहीं देखता था, आज अपनी होने वाली भाभी को इतनी गहरी नजरों से देख रहा था। साहिल का दिल खिल उठा और वह सोचने लगा, "लगता है अब मुझे पक्का भाभी मिलने वाली है। अब ये तो दिलचस्प होगा।"
काव्या का शांत और सलीके से किया गया प्रणाम पूरे कमरे में एक सजीव माहौल बना देता है। लेकिन सभी की नजरें काव्या और राजवीर के बीच कुछ खास ढूंढने लगीं।
काव्या के कमरे से बाहर आते ही, समर जी और बृंदा जी ने उसकी सराहना की थी, लेकिन अब जब वे सब डाइनिंग हॉल में बैठे थे, तो आरती जी ने अपनी भावना व्यक्त की।
"मुझे तो काव्या बहुत पसंद है," आरती जी ने धीरे से अपने बगल में बैठी अपनी सास वृंदा जी को देखकर कहा और एक सवाल किया, "क्यू मैंने सही कहा न मां सा ?"
वृंदा जी, जो सदैव परंपराओं की धनी रही हैं, थोड़ा मुस्कुराईं और फिर बोलीं, "हां, मुझे भी वह बहुत पसंद है। वह एक अच्छी लड़की है, और मुझे पूरा विश्वास है कि वो हमारे राजवीर के लिए परफेक्ट रहेगी और हुकुम रानी सा बनने के लिए भी ।"
ये सुन आरती जी मुस्कुरा देती है।
इसके बाद समर जी ने दोनों परिवारों को एक दूसरे से मिलने का अवसर देने की बात की।
समर जी ने कहा, "अगर आप चाहें, तो वे कुछ वक्त अकेले बिता सकते हैं, एक दूसरे से और जानने का समय मिलेगा ।"
यह सुनकर सभी ने सहमति जताई।
विमला जी ने आगे बढ़ते हुए काव्या को कहा, "काव्या, तुम राजवीर को गार्डन में ले जाओ, कुछ समय आराम से बात करने का मौका मिलेगा।"
काव्या ने एक हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया और फिर राजवीर की ओर बढ़ी। वह उसे गार्डन में ले जाने के लिए तैयार हो गई।
राजवीर और काव्या दोनों गार्डन की ओर बढ़ते हुए, एक दूसरे के पास आ गए। वातावरण में हल्की सी ठंडक और फूलों की महक थी, जो गार्डन को रोमांटिक बना रहा था।
दोनों वहां पड़े हुए चेयर पर बैठें थे, लेकिन दोनों के बीच में एक अजीब सी खामोशी फैली हुई थी। राजवीर का ध्यान लगातार काव्या पर था, उसकी हर हलचल पर उसकी नजरें गड़ी हुई थीं। काव्या को उसकी नजरें महसूस हो रही थीं । जिस से वो ओर नर्वस हो रही थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे राजवीर उसकी छोटी-छोटी हरकतें भी ध्यान से देख रहा हो। वह अपने दुपट्टे के छोर से खेल रही थी। लेकिन राजवीर की नजरें इतनी तीव्र थीं कि वह हरकत भी उस पर पकड़ी जा रही थी।
करीब 10 मिनट तक की खामोशी के बाद, राजवीर को यह अहसास हो गया कि काव्या किसी भी सवाल या बातचीत की शुरुआत नहीं करेगी, तो उसने खुद ही बोलने का मन बना लिया। धीरे से, बिना किसी पूर्व चेतावनी के, राजवीर ने खामोशी तोड़ते हुए पूछा, "क्या आपको कोई और पसंद है, या फिर आप किसी से मोहब्बत करती हैं?"
राजवीर का यह अचानक सवाल काव्या को चौंका देता है। उसकी आंखों में हलका सा आश्चर्य और संकोच आ जाता है। वो उसे देखती है, और जब उसकी नजरें राजवीर के चेहरे पर पड़ती हैं, तो उसके दिमाग में एक सन्नाटा सा छा जाता है। राजवीर की गहरी, गंभीर और कुछ सवालिया नजरें उसकी आँखों में घुसकर उसे चुप करा देती हैं। उसके दिल की धड़कन अचानक तेज हो जाती है, और एक पल के लिए वह खुद को खो देता है। काव्या की आँखों में एक अलग सी गहराई थी, जो उसे पूरी तरह से खींच लेती थी। वह दो पल तक एक-दूसरे की आँखों में खोये रहते हैं, जैसे वक्त थम सा गया हो।
करीब 5 मिनट तक दोनों ऐसे ही चुप रहे, जैसे दोनों की दुनिया एक दूसरे में समा गई हो। फिर अचानक काव्या को कुछ महसूस होता है, जिससे वह थोड़ा चौक जाती है।
तो आप सब को क्या लगता है
ऐसा क्या महसूस हुआ काव्या को जिस से वो चौक गई ?
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राजवीर की गहरी, गंभीर और कुछ सवालिया नजरें उसकी आँखों में घुसकर उसे चुप करा देती हैं । उसके दिल की धड़कन अचानक तेज हो जाती है, और एक पल के लिए वह खुद को खो देता है । काव्या की आँखों में एक अलग सी गहराई थी, जो उसे पूरी तरह से खींच लेती थी । वह दो पल तक एक-दूसरे की आँखों में खोये रहते हैं, जैसे वक्त थम सा गया हो ।1
करीब 5 मिनट तक दोनों ऐसे ही चुप रहे, जैसे दोनों की दुनिया एक दूसरे में समा गई हो । फिर अचानक काव्या को हलकी सी गुदगुदी महसूस होती है, जिससे वह थोड़ा चौक जाती है ।
उसकी नजर अपनी पालतू बिल्ली पर जाती है, जो उसके पैरों के पास बैठी थी । वह जल्दी से उसे अपनी गोद में उठा लेती है, जैसे उसकी हल्की असहजता को छिपाने का कोई तरीका ढूंढ रही हो । उसकी आँखों में हलका सा तनाव था, लेकिन जब उसने अपनी बिल्ली को गोद में लिया, तो उसकी मुस्कान वापस लौट आई ।
राजवीर की नजरें काव्या पर थीं, लेकिन अब वह कुछ और नहीं कहता । वो बस चुप चाप काव्या की उस मनमोहक मुस्कान को देख रहा था । तभी वो होश में आता है और उसने फिर से पूछा, "क्या आप किसी और से मोहब्बत करती हैं?"
राजवीर के सवाल ने काव्या को चौंका दिया । वह कुछ पल के लिए चुप रही, फिर धीरे से उसकी नजरें उसकी तरफ उठीं । उसकी आँखों में कोई गुस्सा नहीं था, बस एक हलका सा आश्चर्य था, और उसने जवाब दिया, "ऐसा कुछ नहीं है । पर आपको ऐसा क्यों लगा?"
राजवीर का चेहरा गंभीर था, और उसने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा, "आप जब से नीचे आई हैं, एक बार भी मेरी तरफ आँखें उठाकर नहीं देखा । इसका मतलब तो यही है, ना कि आप इस शादी के लिए तैयार नहीं हैं?"
काव्या को यह सुनकर एक पल के लिए विश्वास ही नहीं हुआ । उसे समझ में नहीं आया कि पहली मुलाकात में ही कोई उसे इतना अच्छे से समझने लग जाएगा । वह उसकी नज़रों के बीच की उलझन को महसूस कर सकती थी ।
लेकिन फिर भी, खुद को संभालते हुए, उसने धीरे से जवाब दिया, "जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं है ।" और फिर हल्की मुस्कान के साथ उसने कहा, "आप जो भी पूछना चाहें, पूछ सकते हैं ।"
काव्या का शांत और आत्मविश्वास से भरा जवाब राजवीर को थोड़ी राहत दे गया । उसने देखा कि काव्या ने अपनी भावनाओं को बहुत अच्छे से छिपा लिया था, लेकिन फिर भी वह पूरी तरह से सहज नहीं लग रही थी । राजवीर ने अपनी बात को थोड़ा और मुलायम किया और अगले सवाल के लिए अपनी नजरें काव्या की आँखों में डाले बिना इंतजार करने लगा ।
राजवीर काव्या की मुस्कान में खो सा गया था, जैसे समय रुक सा गया हो । उसकी आँखों में एक गहरी शांति और आकर्षण था, लेकिन जल्द ही वह होश में आया और धीरे से खुद से पूछा, "क्या ये सही है?"
फिर, उसने खुद को संभालते हुए काव्या से उसकी पढ़ाई और भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछ लिया । काव्या ने धीरे-धीरे अपने भविष्य के सपनों और योजनाओं को साझा करना शुरू किया, जिससे दोनों के बीच एक सहज संवाद शुरू हो गया । यह छोटी सी बातचीत दोनों को और करीब लाती जा रही थी ।
इसी बीच, साहिल अंदर से उन्हें बुलाने के लिए आता है । दोनों अन्दर की ओर बढ़ते हैं । हॉल में सभी लोग बैठ चुके थे, और राजवीर उनके पास जाकर बैठता है । वहीं काव्या की मां, पद्मिनी जी, उसे लेकर कमरे में चली जाती हैं ।
कमरे में, पद्मिनी जी काव्या से धीरे से शादी के बारे में पूछती हैं, और काव्या शरमाती हुई सिर हिलाकर हां कह देती है । पद्मिनी जी की आँखों में खुशी की चमक आ जाती है, और वह काव्या को आराम करने के लिए कह देती हैं । फिर, खुशी के साथ वह हॉल में आकर सभी को यह खुशखबरी देती हैं कि काव्या शादी के लिए राजी हैं ।
यह सुनकर पूरे परिवार में खुशी का माहौल बन जाता है ।
उसके बाद राजवीर से उसका डिसीजन पूछा जाता है । तो राजवीर बोलता है," आप सब की इच्छा । अगर आप सब को ये रिश्ता पसंद है । तो में भी तैयार हूं शादी के लिए ।"
ये सुन पूरे परिवार में खुशी का माहौल बन जाता है और हर किसी के चेहरे पर मुस्कान फैल जाती है । सब लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं, और घर में उत्सव सा माहौल बन जाता है ।
सभी खुशियाँ मनाते हुए विमला जी मिठाई लाने के लिए कह देती हैं । थोड़ी देर में मिठाई आ जाती है, और सब लोग खुशी खुशी मिठाई खाते हैं । लेकिन इस खुशी के बीच, कोई एक व्यक्ति बड़ी बेचैनी से ऊपर की ओर देख रहा था । उसकी बेचैनी को ध्यान में रखते हुए, वृंदा जी और विमला जी ने एक-दूसरे को आंखों ही आंखों में कुछ इशारा किया ।
तभी विमला जी अभिराज से कहती हैं, "बेटा, तुम बच्चों को घर घुमा दो ।" यह सुनकर सभी बच्चे बहुत एक्साइटेड हो जाते हैं और अभिराज के पीछे-पीछे चलते हैं । धीरे-धीरे सभी लोग घर के विभिन्न हिस्सों का भ्रमण करने लगते हैं । अभिराज बच्चों को उनके कमरे और घर के अन्य हिस्सों के बारे में बता रहा था ।
लेकिन अचानक, राजवीर की नजर एक साइड के बल्कुनी पर पड़ती है, जहां खूबसूरत फूलों का गमला रखा हुआ था । यह देख कर वह आकर्षित हो जाता है और उसके कदम वहीं की ओर बढ़ने लगते हैं । लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता, क्योंकि सभी से पीछे वह धीरे-धीरे आ रहा था ।
राजवीर धीरे-धीरे चारों तरफ की खूबसूरती को निहारते हुए आगे बढ़ रहा था । हवेली की दीवारों पर बनी नक्काशी, झरोखों से आती हल्की धूप, और फूलों की महक – सब कुछ उसे कहीं और ही ले जा रहा था । लेकिन तभी, उसकी नजर एकाएक एक बल्कनी के कोने पर रुक गई ।
तो आप सब को क्या लगता है
ऐसा क्या देख राजवीर ने ?
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राजवीर धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहा था, मानो हर एक पल को संजोना चाहता हो। बल्कुनी के कोने में खड़ी काव्या अपनी बिल्ली से कुछ बेहद प्यार भरी बात कर रही थी, जैसे वो उसकी सबसे अच्छी दोस्त हो। उसके चेहरे पर एक अलग ही सुकून था, और उसकी मासूमियत राजवीर के दिल को छू गई।
हल्की हवा काव्या के बालों को चेहरे पर उड़ा रही थी, जिसे वो बार-बार अपने हाथ से पीछे कर रही थी। राजवीर एक पल के लिए वहीं ठिठक गया। उसके चेहरे पर मुस्कान और आँखों में एक अलग ही चमक थी — जैसे किसी ने उसे अचानक कोई अधूरी चीज़ लौटा दी हो।
कुछ देर तक यूँ ही खड़ा रहने के बाद, उसने धीरे से कदम आगे बढ़ाए। उसकी चाल में न कोई हड़बड़ी थी, न ही कोई घबराहट… बस एक सहज आकर्षण, जो उसे काव्या की ओर खींच रहा था।
जैसे ही वह काव्या के पास पहुँचा, काव्या ने उसकी आहट को महसूस किया और पलट कर देखा। उसकी आँखों में हल्की सी हैरानी थी, पर अगले ही पल वो एक नर्म मुस्कान में बदल गई।
राजवीर हल्के से मुस्कराते हुए बोलता है, "आपकी बातें सुनकर लग रहा था कि आपकी बिल्ली आपसे ज़्यादा समझदार है।"
काव्या थोड़ा हँसी और बोलती है ,"शायद है भी… कम से कम मेरी बातों को बिना टोके सुन तो लेती है।"
ये सुन राजवीर काव्या में खोए हुए बोलता है," कभी हमे भी आजमा लेना। हम भी आप की बातें बिना टोके सुन लेंगे।"
ये सुन काव्या की धड़कने बढ़ जाती है। वो एक नजर राजवीर को देखती है और फिर से अपनी नजरे नीचे कर लेती है।
उसे ऐसे देख राजवीर पूछता है," वैसे आप अपनी बिल्ली से क्या बात कर रही थी, जरा हमे भी तो बताइए। "
ये सुन काव्या कुछ कहती उस से पहले वहां बाकी सब यॉन्ग जनरेशन आ गए ।
साहिल जैसे ही बालकुनी के पास पहुंचा, राजवीर और काव्या को साथ खड़े देख उसकी आंखों में शरारत की चमक आ गई। वो धीरे से पास आया और थोड़ी जोर से बोला, "ओहो… यहां तो कोई बहुत जल्दी घुल मिल गया है।"
साहिल की आवाज़ सुन बाकी सब भी धीरे-धीरे वहां आ गए। सबने जैसे ही राजवीर और काव्या को साथ देखा, चेहरे पर मुस्कान आ गई। किसी ने कुछ कहा नहीं, लेकिन सबकी नजरों में वही चिढ़ाने वाली हंसी थी।
साहिल फिर बोला, "भाभी जी को पहले ही पता था शायद कि आप यहीं आएंगे, तभी तो पहले से स्टैंडबाय मोड में थीं।"
ये सुनकर सब जोर-जोर से हंस पड़े। पर उस हंसी में दो लोग शामिल नहीं थे, एक राजवीर और दूसरी काव्या।
राजवीर ने बिना कुछ कहे, बेहद शांत चेहरा बना कर साहिल को घूर कर देखा। वो नजर ऐसी थी कि साहिल ने हंसते-हंसते अपनी गर्दन झुका ली और धीरे से बोला, "अरे भाई, मजाक था… इतना सीरियस मत हो जाया कर।"
वहीं काव्या शर्म से एकदम चुपचाप खड़ी रही। उसका चेहरा हल्का गुलाबी हो गया था और नजरें ज़मीन से उठ नहीं पा रही थीं। उसका दुपट्टा उसकी उंगलियों के बीच मुड़ता जा रहा था। वो पल, उस मुस्कान और उस खामोशी में ही बहुत कुछ कह गया।
तभी अभिराज हँसते हुए सबको संबोधित करता है, "चलो चलो सब नीचे, बहुत देर हो गई। बड़े लोग हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे। अगर और देर की तो डांट पड़ जाएगी। "
उसकी बात सुन कर राजवीर भी एक बार फिर काव्या की तरफ नजर डालता है। उसकी नजरों में एक अजीब सी गहराई होती है। जैसे कुछ कहना चाहता हो, पर शब्दों में ढल नहीं पा रहा हो। काव्या अब भी शर्माई सी, नजरें झुकाए खड़ी होती है। उनके बीच कोई शब्द नहीं होता, पर वो एक नज़दीकी जरूर महसूस होती है।
राजवीर बिना कुछ कहे, हल्की सी मुस्कान के साथ नीचे की ओर बढ़ जाता है। उसके पीछे बाकी सब भी नीचे चले जाते हैं। मतकोई कंधा टकराते हुए, कोई बातें करते हुए, और कोई अब भी साहिल के मज़ाक पर हँसता हुआ।
बालकुनी में अब सिर्फ काव्या बची थी। वो हल्के से मुस्कुराई, फिर अपनी बिल्ली को गोद में उठाकर धीरे से फुसफुसाते हुए बोलती है," वो मुझे कितनी जल्दी समझ गए न !"
इतना बोल वो मुस्कुराने लगती है।
वहीं नीचे, हॉल का माहौल अब पूरी तरह शांत और गंभीर था। पंडित जी अपनी मोटी ऐनक ठीक करते हुए सामने खुली हुई दोनों कुंडलियों पर गहरी नजरें गड़ाए बैठे थे। उनके पास एक मोटा सा पंचांग और लाल रंग की कलम रखी थी, जिससे वो बीच-बीच में कुछ बिंदुओं पर निशान भी लगा रहे थे।
जैसे ही राजवीर और बाकी बच्चे नीचे पहुँचे, उन्होंने भी माहौल की गंभीरता को महसूस किया और चुपचाप अपने-अपने स्थान पर बैठ गए।
कुछ पल पहले तक जो वातावरण हँसी-ठिठोली से भरा था, अब उसमें सन्नाटा पसर गया था।
पंडित जी के माथे पर बल और चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ झलक रही थीं। उनकी भौंहें सिकुड़ रही थीं, और बार-बार वो कुंडली में कुछ देखकर सिर हिला रहे थे।
इसे देख कर समर सिंह ने हल्के स्वर में पूछा, "क्या बात है पंडित जी? आप कुछ परेशान लग रहे हैं…"
पंडित जी ने धीरे से सिर उठाया, फिर थोड़ा रुक कर बोले, " ज्यादा चिंता की बात नहीं है। पर अब से कुछ दिनों तक राजवीर बेटे के ऊपर मृत्यु के दोष दिख रहे है। "
ये सुन कर सभी घरवाले परेशान हो जाते है। वृंदा जी और विमला जी ने एक-दूसरे की ओर चिंता से देखा, और आरती जी की मुस्कान हल्की सी ढीली पड़ गई। पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया।
पंडित जी की बातों का असर पूरे हॉल में साफ दिख रहा था। उनके शब्दों की गूंज जैसे सबके दिलों में उतर गई हो।
समर सिंह की मुट्ठियाँ खुद-ब-खुद भींच गई थीं, उनकी आँखों में चिंता की हल्की परछाईं थी, पर चेहरा अब भी स्थिर था। देवेंद्र सिंह की नजरें ज़मीन पर टिकी थीं, जैसे वो इस जानकारी को समझने की कोशिश कर रहे हों।
रूद्रप्रताप सिंह ने भारी आवाज़ में पूछा, "पंडित जी, क्या कोई उपाय नहीं है इसका ?"
आज के लिए इतना ही
तो आप सब को क्या लगता है
क्या राजवीर ये जानते हुए कि उसके ऊपर खतरा है वो काव्या से शादी करेगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी ......
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समर सिंह की मुट्ठियाँ खुद-ब-खुद भींच गई थीं, उनकी आँखों में चिंता की हल्की परछाईं थी, पर चेहरा अब भी स्थिर था। देवेंद्र सिंह की नजरें ज़मीन पर टिकी थीं, जैसे वो इस जानकारी को समझने की कोशिश कर रहे हों।
रूद्रप्रताप सिंह ने भारी आवाज़ में पूछा, "पंडित जी, क्या कोई उपाय नहीं है इसका या फिर ये रिश्ता टाल देना सही रहेगा?"
पंडित जी ने सिर हिलाया और बोले, "रिश्ता टालने से कुछ नहीं होगा। क्यों कि ये दोनों के ही भाग्य का खेल है। अलग होने पर भी दोनों को अपने अपने जीवनसाथी के साथ ये घटना होगी ही। "
फिर कुछ पल के शांति और चिंतन के बाद बोलते है," उपाय है लेकिन शर्त यही है कि शादी 5 दिन बाद रामनवमी के दिन होना होगा। तो दोनों के कुंडली का ये दोष भगवान राम के कृपा से थोड़ा कम हो जाएगा और इस वजह से दोनों के जीवन पर खतरा नहीं होगा। पर वो घटनाएं तो अवश्य होंगी ।"
ये सुन कर सभी घर वाले थोड़ा घबरा गए । पर होनी को कौन टाल सकता है। इतना सोच कर सभी थोड़ा शांत हुए और शादी के लिए 5 दिन बाद का डेट फिक्स कर दिया । वहीं पद्मिनी जी काव्या के कमरे के तरफ चल देती है । उसे ये खबर देने के लिए ।
पद्मिनी जी ने धीरे से दरवाज़ा खोला, काव्या खिड़की के पास बैठी चुपचाप बाहर देख रही थी। उसके चेहरे पर शांत भाव था, पर उसकी आंखें बहुत कुछ कह रही थीं। पद्मिनी जी ने पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखा। काव्या पीछे मूड कर देखती है ।
तो पद्मिनी जी को देख वो बोलती है," क्या हुआ मां आप यहां ?"
ये सुन पद्मिनी जी उस के बगल में धीरे से बैठ गईं और बोलती है, "काव्या पंडित जी ने कुछ कहा है । कुछ ऐसा जो हम सबको मिल कर करना होगा तुम्हारे लिए और राजवीर के लिए ।"
काव्या ने ध्यान से देखा, "क्या कहा पंडित जी ने माँ?"
पद्मिनी जी ने एक गहरी साँस ली और कहा, "तुम दोनों की कुंडली में मृत्यु दोष है। पर साथ होने से वो दोष कम हो सकता है। पंडित जी बोले हैं कि अगर तुम दोनों की शादी रामनवमी के दिन हो यानी पाँच दिन बाद। तो खतरा तो पूरी तरह नहीं टलेगा। पर तुम दोनों की जान बच सकती है। "
काव्या की सांस अटक सी गई। उसने आश्चर्य से कहा, "पाँच दिन…!"
फिर अपने आप से मन में बोलती है," क्या में इस शादी के लिए इतनी जल्दी तैयार हो सकूंगी ? क्या शादी के बाद के सारे जिम्मेदारियों को में सही से निभा पाऊंगी ?"
वो ये सब सोच रही थी कि पद्मिनी जी ने उसकी हथेली थामती है और बोलती है, "हां बेटा हमें जल्दी करनी होगी। हम सब तैयार हैं, बस तुम्हारी हाँ चाहिए।"
काव्या कुछ देर तक चुप रही, उसकी आँखों में अब भी हल्का डर था। पर अपनी मां की आँखों में विश्वास देख कर वो धीरे से बोलती है, "अगर आप सब खुश है । तो में इस शादी के लिए तैयार हूं ।"
ये सुन पद्मिनी जी की आँखों में नमी आ गई। उन्होंने अपनी बेटी को सीने से लगा लिया। उनका दिल जैसे हल्का हो गया। उन्होंने तुरंत हॉल में जाकर सबको ये खबर सुनाई, "काव्या तैयार है… वो रामनवमी के दिन शादी के लिए राजी है।"
ये सुनते ही पूरे हॉल में एक सुकून की लहर दौड़ गई। वृंदा जी ने भगवान का नाम लिया, "जय श्रीराम… भगवान राम ही दोनों बच्चों की रक्षा करेंगे।"
समर सिंह ने गहरी साँस लेकर कहा, "तो फिर तय रहा पाँच दिन बाद, रामनवमी को, हमारे बच्चों का विवाह होगा।"
विजय जी ने सिर हिलाते हुए समर्थन दिया,"हाँ… अब कोई देरी नहीं करनी चाहिए। जितनी जल्दी तैयारियाँ शुरू हों, उतना अच्छा।"
आरती जी मुस्कराईं, "हमारी बहू आएगी, तो पूरे घर में रौनक ही रौनक होगी।"
वहीं रतन सिंह बोले, "पंडित जी, आप शुभ मुहूर्त बताइए… ताकि हम सब रस्मों की योजना बना सकें।"
पंडित जी ने पंचांग खोला, तिथि और समय गिनने लगे। फिर बोले, "रामनवमी वाले दिन सुबह 11:45 से दोपहर 1:15 तक का मुहूर्त उत्तम है। उसी समय विवाह कराना सर्वोत्तम रहेगा।"
सभी ने एक स्वर में कहा, "तो तय रहा राजवीर और काव्या की शादी रामनवमी के दिन दोपहर होगी।"
लेकिन साथ ही अब पाँच दिन में शादी की सारी तैयारियाँ पूरी करनी थीं, और इतने बड़े घरानों की शादी ऐसे ही थोड़ी न होती है।
विमला जी ने सबसे पहले स्वर उठाया, “तो फिर चलिए, सारी रस्मों की तारीख तय कर लेते हैं। वक्त कम है, और काम बहुत।”
वृंदा जी ने सिर हिलाया, “सही कहा । सब कुछ सुचारू रूप से हो इसके लिए हर दिन की प्लानिंग होनी चाहिए।"
थोड़ा रुककर उन्होंने आगे कहा, "तो फिर कल और परसों, यानि पहले दो दिन शादी और बाकी रस्मों के लिए खरीदारी कर लेंगे, साथ ही डेकोरेशन, कार्ड्स और बाकी तैयारियाँ भी।"
आरती जी ने प्रस्ताव रखा, “तीसरे दिन सगाई की रस्में रख लेते हैं। सभी रिश्तेदार और खास मेहमान भी आ जाएंगे तब तक।"
गौरी जी ने झट से बोलती है, “फिर चौथे दिन सुबह को मेहंदी और शाम को घर में संगीत भी रखेंगे, थोड़ा नाच-गाना भी हो जाएगा। ”
रतन सिंह बोले, “चौथे दिन हल्दी रख सकते हैं। "
समर सिंह ने निर्णयात्मक लहजे में कहा, "और शाम को गणेश पूजन ।"
विजय जी बोले:
“और फिर पाँचवें दिन रामनवमी के पावन दिन पर, दिन के शुभ मुहूर्त में शादी।”
सब एक-दूसरे की ओर देख मुस्कराए। उत्साह सबके चेहरों पर दिख रहा था।
पद्मिनी जी धीरे से बोलीं, “अब बस भगवान की कृपा बनी रहे, और हमारे बच्चों का जीवन खुशियों से भर जाए।”
सभी रस्मों और तय तारीखों के बाद, राजवीर के घरवाले सब से बिदा लेकर अपने घर के लिए निकल पड़े। गाड़ियों का काफिला धीरे-धीरे हवेलीनुमा महल से दूर होता गया।
घर पहुँचते ही राजवीर सबसे चुपचाप नमस्ते कर सीधा अपने कमरे में चला गया। कमरे का दरवाज़ा बंद करते ही जो ठहराव अब तक उसके चेहरे पर था, वह पिघलने लगा। धीरे-धीरे उसके होंठों पर एक बड़ी सी मुस्कान खिल गई — वही मुस्कान जिसे वह अब तक सबसे छुपा रहा था।
आखिर आए भी क्यों न हमारे राजवीर बाबू को पहली नजर वाला प्यार हो गया था। एक ऐसा एहसास जो उसके चेहरे के हर कोने पर साफ झलक रहा था। पर अभी राजवीर को उसका एहसास कहां था। देखते हैं कब राजवीर को उसके प्यार का एहसास होता है।
वह सीधा जाकर खिड़की के पास खड़ा हो गया, और बाहर अंधेरे आसमान की ओर देखते हुए एक गहरी सांस ली। दिल बहत तेजी से धड़क रहा था, बिल्कुल वैसे जैसे किसी छोटे बच्चे को उसकी सबसे प्यारी चीज़ मिलने वाली हो। आखिरकार, आज पहली बार जब उसने काव्या को देखा था। उसकी मासूमियत, उसकी झुकी नजरें, और वो हलकी सी मुस्कान सब कुछ उसके दिल में उतर गया था।
वो हल्की हँसी के साथ खुद से ही बड़बड़ाया, " पता नहीं ये कैसा एहसास है जो आप को देखने के बाद से ही इस दिल को महसूस हो रहा है। इस दिल पर आपकी मासूमियत ने ऐसा जादू किया है। की एक पल के लिए आपकी वो खूबसूरत आँखें और निष्छल मुस्कान मेरे आंखों से जा ही नहीं रही।"
फिर बिस्तर पर लेटते हुए छत को देखते-देखते न जाने कब उसकी आँखों में काव्या की मुस्कुराती तस्वीरें तैरने लगीं और वो मीठे ख्वाबों में खो गया।
दूसरे तरफ,
सिसोदिया निवास में,
काव्या का कमरा,
डिनर कर काव्या अपने कमरे में वापस आ गई थी और कपड़े चेंज कर उसने एक शॉर्ट और क्रॉप टॉप पहन लिया था। (दरसल काव्या को रात को हल्की फुल्की ड्रेस पहन कर सोने की आदत है। इस लिए वो सिर्फ अपने कमरे में ही ऐसे छोटे कपड़े पहन कर रहती थी।)
वो बालकुनी में खड़े हो कर चांद को देखते हुए बोलती है," मैंने कभी सोचा नहीं था मेरा ये सपना, ये ख्वाब कभी सच होगा। मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दिया था। पर थैंक यू राम जी आप ने मेरी ये ख्वाब पूरा कर दिया।"
इतना बोल वो अपने कमरे में सोने के लिए चली गई।
आज के लिए इतना ही
आप सब को क्या लगता है
किस ख्वाब के बारे में काव्या बात कर रही थी?
क्या राजवीर अपने दिल की बात पहचान पाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी "Royal Arranged Marriage" ......
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दूसरे तरफ,
सिसोदिया निवास में,
काव्या का कमरा,
डिनर कर काव्या अपने कमरे में वापस आ गई थी और कपड़े चेंज कर उसने एक शॉर्ट और क्रॉप टॉप पहन लिया था। (दरसल काव्या को रात को हल्की फुल्की ड्रेस पहन कर सोने की आदत है। इस लिए वो सिर्फ अपने कमरे में ही ऐसे छोटे कपड़े पहन कर रहती थी।)
वो बालकुनी में खड़े हो कर चांद को देखते हुए बोलती है," मैंने कभी सोचा नहीं था मेरा ये सपना, ये ख्वाब कभी सच होगा। मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दिया था। पर थैंक यू राम जी आप ने मेरी ये ख्वाब पूरा कर दिया।"
काव्या चाँद को देखते हुए धीमे स्वर में बोली, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि आपका रिश्ता इस तरह मेरे लिए आएगा। जब मैंने आपको पहली बार देखा था, तभी से आप मेरे दिल में बस चुके थे। पहले तो मुझे लगा था कि शायद मैं आपको बस पसंद करती हूँ... आप मेरे क्रश हैं। लेकिन जब आपसे मुलाक़ात हुई, तो समझ ही नहीं आया कि कैसे रिएक्ट करूँ। आपकी वो नज़रें... जैसे मुझे अंदर तक बेचैन कर रही थीं। लेकिन आप से मिलने के बाद, मैं समझ ही नहीं पाई कि मुझे क्या करना चाहिए।"
काव्या चाँद को देखते हुए, मुस्कुराते हुए सोचती है, "मैं आपसे मोहब्बत करने लगी हूँ। पर पता नहीं, कभी आपसे अपनी फीलिंग्स बयां कर भी पाऊंगी या नहीं।"
(फ़्लैशबैक — तीन साल पहले)
तीन साल पहले की बात है। दिल्ली की हलचल भरी दोपहर,
काव्या दिल्ली में अपने एक आर्ट कंपटीशन के लिए गई थी। कंपटीशन खत्म होने के बाद वह एयरपोर्ट के लिए रवाना हो रही थी। तभी रास्ते में अचानक तेज ट्रैफिक के कारण उनकी कार रुक गई।
काव्या यूं ही समय काटने के लिए खिड़की से बाहर देखने लगी। तभी उसकी नजर एक लड़के पर पड़ी। वो लड़का एक बूढ़ी अम्मा की मदद कर रहा था। बड़े प्यार से उनका हाथ पकड़कर उन्हें सड़क पार करवा रहा था। उनके भारी थैले भी उसी ने उठाए हुए थे। इस दृश्य को देखकर काव्या की नजरें ठहर गईं।
आजकल की इस तेज़-तर्रार दुनिया में ऐसा इंसान मिलना मुश्किल था और शायद इसीलिए काव्या उस अनजाने लड़के को देखती रह गई। काव्या की धड़कन एक पल के लिए थम-सी गई। उसे कुछ समझ नहीं आया, बस उसकी आँखें उस लड़के पर जम गईं।
ऐसा लगा मानो भीड़ में वक़्त थम गया हो बस वो लड़का और उसकी सादगी बाकी रह गई थी। अचानक कार फिर से चल पड़ी। पर काव्या का दिल वहीं ठहर गया था। उसने मुड़-मुड़कर उस अनजाने को तब तक देखा, जब तक वह उसकी नज़रों से गायब नहीं हो गया। दिल में एक अनकही कसक रह गई थी — कोई ऐसा जिसे वो जानती नहीं थी, फिर भी दिल उसे पहचानना चाहता था।
आप सब समझ ही गए होंगे — वो लड़का और कोई नहीं, बल्कि राजवीर था।
फ़्लैशबैक समाप्त)
चाँद की ठंडी रोशनी कमरे में बिखरी हुई थी। काव्या अपने ख्यालों में खोई-खोई अपने कमरे में गई और बिस्तर पर लेटते ही गहरी नींद में डूब गई।
अगले दिन सुबह,
सुबह की हल्की रोशनी कमरे में फैल रही थी। हल्की हलचल के साथ पद्मिनी जी कमरे में आईं।
उन्होंने प्यार से काव्या के सिर पर हाथ फेरते हुए आवाज़ लगाई, "काव्या, उठ जा बेटा... सुबह के सात बज गए हैं।"
काव्या ने उनींदी आँखों से उन्हें देखा, फिर मुस्कुराते हुए उनके गोद में सर टिकाकर मासूमियत से बोली, "बस पाँच मिनट और, मम्मा..."
पद्मिनी जी उसकी मासूमियत पर मुस्कुराए बिना नहीं रह सकीं। धीरे से उसके बालों को सहलाते हुए वहीं बैठ गईं, जैसे उसकी नींद में भी ममता का पहरा दे रही हों।
5 मिनट बाद उन्होंने उसके बालों में उंगलियाँ फेरते हुए प्यार से कहा, "अरे, ये बचपन की आदत अभी तक नहीं गई तेरी। कुछ ही दिनों में तेरी शादी है। वहाँ भी ऐसे ही 'पाँच मिनट' बोलकर सोती रहेगी क्या?"
काव्या ने आँखें बंद किए ही हल्की मुस्कान दी और धीरे से बड़बड़ाई, "वहाँ भी तो कोई मम्मा जैसा चाहिए जो गोदी दे दे सोने के लिए। "
पद्मिनी जी का दिल भर आया। उन्होंने झुककर उसके माथे पर एक प्यार भरा चुम्बन दिया और मुस्कुराते हुए बोलीं, "पगली कहीं की..."
पद्मिनी जी काव्या के माथे को चूमते हुए मुस्कुरा रही थीं, पर उनकी आँखों में हल्की नमी झलक गई। बेटी को यूं अपनी गोद में सुलाए देख, उनके दिल में हज़ारों भाव उमड़ आए। कुछ ही दिनों में उनकी नन्ही-सी गुड़िया किसी और की दुनिया में जाने वाली थी।
उन्हें इमोशनल होते देख काव्या ने तुरंत सिर उठाया और उनकी आँखों में नमी देखकर फिक्रमंद होकर बोली, "प्लीज़ मम्मा, ऐसे इमोशनल मत हो। वरना मुझे भी रोना आ जाएगा। और फिर मैं नहीं करूंगी शादी।"
ये सुनकर पद्मिनी जी ने तुरंत खुद को संभाला और उसकी नाक पकड़कर हंसते हुए बोलीं, "ऐसा कोई बोलता है क्या? चल अब, नाटक बंद कर और जल्दी तैयार हो जा। सब नीचे तेरा इंतजार कर रहे हैं पूजा के लिए।"
काव्या मुस्कुराते हुए उठी और अपनी मम्मा को प्यार से गले लगा लिया। फिर चुपके से आँसू पोंछते हुए बुदबुदाई, "मम्मा... आप सबसे बेस्ट हो।"
पद्मिनी जी मुस्कुराती हुई काव्या के सर पर एक प्यार भरा चुम्बन देती हैं और फिर धीरे-धीरे कमरे से बाहर चली जाती हैं। उनके जाते ही काव्या के दिल में दबे हुए जज़्बात बाहर फूट पड़ते हैं। उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
मगर वो खुद को जल्दी से संभालती है, गहरी साँस लेती है और खुद को समझाते हुए बुदबुदाती है, "नहीं... मम्मा को और परेशान नहीं कर सकती।"
वो उठती है, आँखें पोंछती है और फ्रेश होने चली जाती है।
आधा घंटा बाद,
पूरे घर में एक अलग ही पवित्र माहौल था। दीये की रौशनी में सब कुछ चमक रहा था। कव्या स्वच्छ कपड़े पहनकर आ चुकी थी और भक्ति-भाव से पद्मिनी गा रही थी। उसकी आवाज़ में एक अनजानी मिठास और सुकून था।
सामने, विमला जी पूजा की थाल घुमा रही थीं, पूरे श्रद्धा भाव से पद्मिनी कर रही थीं। उनके पीछे परिवार के बाकी सभी सदस्य हाथ जोड़कर श्रद्धा से खड़े थे। सबके चेहरों पर भक्ति, खुशी और थोड़ा सा भावुकपन भी झलक रहा था। घंटी की मधुर ध्वनि और काव्या की मीठी आवाज़ से घर का कोना-कोना जैसे पवित्र हो उठा था।
पद्मिनी समाप्त होने के बाद, घर में सब अपने-अपने कामों में लग गए। पद्मिनी जी और काव्या दोनों मिलकर रसोई में खाना बनाने चली गईं।
करीब एक घंटे बाद,
पूरा घर खाने की महक से भर गया था। सभी लोग डाइनिंग टेबल पर बैठ चुके थे। हँसी-मज़ाक और हल्की-फुल्की बातचीत के बीच माहौल बहुत खुशनुमा था। काव्या और पद्मिनी जी रसोई से एक-एक कर सारे व्यंजन लेकर टेबल पर रख रही थीं — गरमा-गरम पराठे, आलू की सब्ज़ी, दही, अचार, और मिठाई भी।
सब कुछ सजा कर रखते ही काव्या ने प्यार से पद्मिनी जी का हाथ पकड़ते हुए कहा, "मम्मा, अब आप भी बैठ जाइए। मैं सबको सर्व कर दूंगी।"
पद्मिनी जी मुस्कुरा कर बैठ गईं। काव्या ने मुस्कुराते हुए सभी के प्लेट में खाना परोसना शुरू कर दिया। उसके चेहरे पर हल्की सी थकान थी। पर उससे ज़्यादा संतोष और अपनेपन की चमक थी। सबके चेहरों पर काव्या के लिए एक अलग ही प्यार और गर्व दिखाई दे रहा था।
कुछ देर बाद, सभी ने खाना खत्म कर लिया। हँसी-मज़ाक के बीच काव्या मुस्कुराते हुए बोली, "मैं मिठाई लेकर आती हूँ।"
इतना कहकर वह उठी और रसोई की तरफ चली गई। किचन से मिठाई की थाली संभालते हुए वह बाहर आ ही रही थी कि। अचानक किसी ने पीछे से आकर उसे कसकर गले लगा लिया!
काव्या एकदम चौंक गई। उसके हाथ से मिठाई की प्लेट तो गिरते-गिरते बची और उसके मुँह से जोर से निकला, "मम्मा!!"
पूरा हॉल काव्या की आवाज़ से गूंज उठा। सभी चौंककर उसकी तरफ देखने लगे।
काव्या का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। वो झट से पलटी और सामने जो चेहरा देखा, उसे देख उसकी हैरानी और भी बढ़ गई ।
आज के लिए इतना ही
आप सब को क्या लगता है
क्या काव्या राजवीर को अपने दिल की बात बता पाएगा?
कौन ऐसे पीछे से आ कर काव्या को डरा दिया?
क्या राजवीर अपने दिल की बात पहचान पाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी ......
अगर ये कहानी आप को पसंद आ रही है । तो प्लीज कमेंट देना मत भूलना और मुझे फॉलो करना मत भूलना। अगर मेरे साथ बात करना चाहते है, तो instagram और WhatsApp का लिंक मेरे प्रोफाइल में है। उसके जरिए आप मुझसे बात कर सकते है।
काव्या जैसे ही किचन से बाहर निकली, अचानक कोई आकर जोर से उससे लिपट गया। अचानक हुए इस स्पर्श से काव्या की हल्की सी चीख निकल गई।
उसकी धड़कनें तेज हो गईं। तभी सामने वाला भी घबराकर जल्दी से पीछे हटा। वो एक मासूम सी लड़की थी, जिसकी आँखों में पछतावे की झलक थी।
"सॉरी भाभी!" वह जल्दी से बोली, "मैं बस आपको देखने के लिए बहुत एक्साइटेड हो गई थी... इसलिए अचानक आकर गले लग गई।"
काव्या उसकी मासूमियत देखकर हल्का मुस्कुरा दी, और उसका डर भी धीरे-धीरे उतरने लगा।
वो नरम आवाज़ में बोली, "कोई बात नहीं इशिता।"
फिर थोड़ा हैरानी से पूछा, "इतनी सुबह-सुबह तुम यहाँ?"
यह सुनकर इशिता ने छोटे बच्चों की तरह मुंह फुलाते हुए कहा, "भाभी, आपको याद नहीं है? आज हमें शॉपिंग के लिए जाना है न!"
काव्या उसकी मासूमियत पर मुस्कुराई और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। काव्या ने अपनी हथेली से हल्के से अपने सिर पर चपत लगाई और शर्माते हुए बोली, "सॉरी... मैं तो बिलकुल भूल ही गई थी।"
फिर उसने आसपास नजर घुमाई और जिज्ञासा से पूछा, "वैसे, तुम अकेली ही आई हो?"
इशिता ने शरारत भरी मुस्कान के साथ काव्या को चिढ़ाते हुए कहा, "नहीं भाभी, भला मैं अकेली कैसे आ सकती हूँ? भैया भी आए हैं मेरे साथ।"
काव्या का दिल अचानक तेज़ी से धड़कने लगा। इशिता उसकी हल्की सी घबराहट भांपते हुए हँसी और उसका हाथ पकड़कर बोली, "चलिए, चलिए! बाहर चलिए... आप उनसे मिल लीजिए। वो वहीं बैठे हैं, आपका इंतजार कर रहे हैं।"
काव्या का चेहरा हल्की सी लाज से गुलाबी हो गया। लेकिन खुद को संभालते हुए वो मुस्कुरा कर बोली, "आप बहुत ज़्यादा बोलने नहीं लगी हो इशिता?"
इशिता ये सुनकर हंस दी, उसकी हँसी में एक भोली-सी शरारत थी।
काव्या ने बात बदलते हुए कहा, "अच्छा छोड़ो, चलो पहले नाश्ता कर लो... फिर शॉपिंग पर चलेंगे।"
लेकिन इशिता ने तपाक से जवाब दिया, "पर भाभी, हम सब तो खाना खाकर ही आए हैं।"
फिर वो उत्साह से बोली, "आप बस जल्दी से तैयार हो जाइए, हम घूमने चलेंगे!"
काव्या उसकी ऊर्जा देखकर मुस्कुरा दी और मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा ठीक है पर एक शर्त है। पहले तुम मेरे हाथ की बनी रसगुल्ला खाओगी!"
ये सुनते ही इशिता के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई।
वो बच्चों जैसी उत्साह से बोली, "हाँ हाँ भाभी! क्यों नहीं! मुझे तो मिठाई बहुत पसंद है। जल्दी चलिए ना।"
इतना कहते ही इशिता ने बिना काव्या का जवाब सुने ही उसका हाथ पकड़कर खींच लिया और बाहर की ओर चल पड़ी। काव्या भी उसके पीछे-पीछे हल्के से मुस्कुराते हुए चल दी।
हॉल के सोफे पर सब लोग आराम से बैठे हुए थे। जैसे ही काव्या वहां पहुँची, सबकी निगाहें एक साथ उस पर टिक गईं। इतने सारे लोगों का ध्यान खुद पर महसूस कर काव्या थोड़ी नर्वस हो गई। उसके हाथों की उंगलियां हल्के से कांपने लगीं, लेकिन उसने खुद को संभाला। गहरी साँस लेते हुए वो धीरे-धीरे सबके पास पहुँची।
हिम्मत जुटाकर काव्या ने अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ सबको रसगुल्ला सर्व करना शुरू किया। उसकी आँखों में झिझक थी, लेकिन दिल में अपनापन भी। घर के सभी सदस्य उसके हाथों से बना मीठा रसगुल्ला देखकर खुश हो गए थे।
इधर एक कोने में बैठा राजवीर भी चुपचाप उसे देख रहा था। उसकी सादगी और मासूमियत में खोया हुआ था। वहीं काव्या को भी उसकी नजरे महसूस हो रही थी। जिस से उसकी धड़कन सामान्य गति से तेज दौड़ रहा था। पर उस की हिम्मत नहीं थी अपनी नजरे उठा कर राजवीर को देखने की।
आखिर में काव्या रसगुल्ले की प्लेट लेकर राजवीर के पास पहुँची। थोड़ी झिझक के साथ उसने प्लेट आगे बढ़ाई। राजवीर ने भी बिना कुछ कहे हाथ बढ़ाया। रसगुल्ला लेते समय अनजाने में दोनों की उंगलियाँ हल्के से एक-दूसरे को छू गईं।
छोटे से इस स्पर्श ने जैसे दोनों के दिलों की धड़कनों को तेज कर दिया। उनकी नज़रे अनजाने में एक-दूसरे से टकराईं और कुछ पल के लिए वहीं ठहर गईं। जैसे वक्त कुछ सेकंड के लिए थम सा गया हो।
लेकिन फिर दोनों ही अचानक होश में आ गए। थोड़ी झेंप और हल्की शर्माहट उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी। काव्या ने जल्दी से नजरें चुराई और सबको रसगुल्ला देने के बाद पद्मिनी जी के पास जाकर बैठ गई।
उसके दिल की धड़कन अब भी काबू में नहीं आ रही थी, और राजवीर भी वहीं चुपचाप अपनी जगह बैठा, हल्की मुस्कान के साथ इधर उधर देख रहा था।
सब लोग रसगुल्ला खा रहे थे और हर किसी के चेहरे पर मिठास और खुशी साफ झलक रही थी।
इशिता ने रसगुल्ला का स्वाद लेते हुए मुस्कुराकर कहा, "वाह भाभी! आपकी मिठाई तो कमाल की टेस्टी है। वैसे भाभी, आपको और कौन-कौन सी मिठाइयाँ बनानी आती हैं?"
काव्या हल्के से मुस्कुराई और बोली, "मुझे लगभग दस तरह की मिठाइयाँ बनानी आती हैं — जैसे रसगुल्ला, गुलाब जामुन, रबड़ी, मालपुआ, बेसन के लड्डू, कलाकंद, जलेबी, खीर, मोदक और गुझिया।"
ये सुनकर इशिता खुशी से चहक उठी। वो बच्चों जैसी उत्सुकता से बोली, "भाभी! क्या आप मुझे भी ये सब बनाना सिखाएंगी?"
काव्या ने प्यार भरी मुस्कान के साथ हाँ में सिर हिलाया। इशिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, और पूरे घर में एक हल्का सा मीठा माहौल फैल गया था।
थोड़ी देर बाद सबने तय किया कि अब शॉपिंग के लिए निकलना चाहिए। घर के सारे यांग जनरेशन बड़े उत्साह के साथ तैयार हो गए।
काव्या भी जल्दी से तैयार होकर बाहर आई। जैसे ही वो में गेट के पास पहुँची, उसका कदम अचानक रुक गया। उसके सामने खड़ा नज़ारा देख वो आश्चर्यचकित रह गई।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या देखा होगा काव्या जो वो आश्चर्य हो गई ?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी ........
जब सब शॉपिंग के लिए निकलने लगे, तो घर के सारे यंगस्टर्स आपस में शरारत से मुस्कुराए। बिना कुछ कहे सबने एक प्लान बना लिया — काव्या और राजवीर को अकेला छोड़ने का।
सबने जल्दी-जल्दी दूसरी गाड़ियों में बैठकर वहां से निकलना शुरू कर दिया। काव्या को लगा कि सब लोग एक साथ जाएंगे। पर जब वो बाहर आई, तो देखा — पूरा आँगन खाली था, बस एक गाड़ी खड़ी थी और उसके पास राजवीर चुपचाप खड़ा था।
ये देखकर काव्या एक पल को हैरान रह गई। उसका दिल हल्का सा धड़का।
अपने दुपट्टे के कोने से खेलती हुई वो धीमे कदमों से आगे बढ़ने लगी। हल्की हवा उसके बालों को उड़ा रही थी और उसका चेहरा शर्म से हल्का गुलाबी हो गया था।
राजवीर भी चुपचाप उसे आता देख रहा था। उसकी आँखों में एक नरम सी मुस्कान तैर गई थी, जो कहे बिना भी बहुत कुछ कह रही थी।
काव्या थोड़ी झिझकते हुए राजवीर के पास आकर खड़ी हो गई। राजवीर, जो अब तक घरवालों की मौजूदगी के कारण काव्या को खुलकर देख नहीं पा रहा था,
अब जब दोनों अकेले थे, तो बस काव्या को एकटक निहार रहा था। बिलकुल किसी सड़कछाप रोमियो की तरह, बिना पलक झपकाए।
काव्या ने उसकी तीव्र नज़रें अपने ऊपर महसूस कीं, जिससे उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। वो हल्के से घबराई, पर फिर भी धीमे कदमों से उसकी ओर बढ़ने लगी। हर कदम के साथ उसकी घबराहट और शर्म और भी बढ़ रही थी।
उधर राजवीर तो जैसे किसी और ही दुनिया में खोया हुआ था। उसके लिए उस पल सिर्फ काव्या थी। उसके मासूम चेहरे की हल्की शर्म, उसकी साड़ी की लहराती झालरें, और उसका नज़रे झुकाना।
काव्या उसके बिल्कुल पास आ गई, लेकिन राजवीर को तो जैसे होश ही नहीं था।
वो अब भी उसे उसी तरह देखते जा रहा था गहरी, ठहरी हुई नजरों से।
काव्या के दिल की धड़कनें तेज़ हो गई थीं। राजवीर की गहरी नज़रों में खुद को खोया पाकर उसे अच्छा भी लग रहा था और एक अनकही शर्म भी उसके गालों पर गुलाबी रंग बिखेर रही थी। उसने हल्के से अपनी नज़रे झुका लीं, फिर भी राजवीर की नजरें उस पर से हटने का नाम नहीं ले रही थीं।
लेकिन तभी, माहौल को भंग करता हुआ राजवीर का फोन बज उठा। फोन की आवाज़ से राजवीर जैसे अचानक अपनी दुनिया से बाहर आया। थोड़ी झेंप के साथ उसने जल्दी से जेब से मोबाइल निकाला और स्क्रीन पर देखा साहिल का कॉल आ रहा था।
राजवीर ने एक पल के लिए नज़र उठाकर काव्या को देखा एक नर्म मुस्कान उसकी आँखों में तैर गई थी। फिर उसने जल्दी से कार का दरवाज़ा खोला, कॉल रिसीव करते हुए, हाथ के इशारे से काव्या को कार में बैठने का इशारा किया।
काव्या, जो अब तक दुपट्टे के कोने से खेलती हुई खड़ी थी, धीरे से मुस्कुराई और अपना दुपट्टा ठीक करते हुए गाड़ी में बैठ गई।
वहीं राजवीर फोन कान से लगाए साहिल की बातें सुन रहा था। साहिल मजाकिया अंदाज में कह रहा था, "भाई, ज्यादा वक्त साथ में बर्बाद मत कर देना, आज ही तुम्हें दोनों के लिए सारा शॉपिंग कंप्लीट करना है!"
राजवीर ने बस हल्के से "हूं" करते हुए जवाब दिया और बिना कुछ बोले कॉल काट दिया। फिर वो अपनी तरफ आकर बैठ गया। ड्राइवर ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट कर दी, और कार सड़क पर आगे बढ़ने लगी।
पीछे की सीट पर दोनों के बीच एक नर्म-सी दूरी बनी हुई थी। काव्या खिड़की से बाहर के नज़ारे देख रही थी, उसकी आँखों में एक अजीब सी मासूमियत और हल्की सी बेचैनी थी। वो अपने दुपट्टे के किनारे से खेलते हुए बाहर देखती रही,
जैसे खुद को राजवीर की मौजूदगी से सहज करने की कोशिश कर रही हो।
राजवीर ने भी बाहर से शांत बनने का नाटक किया। उसने अपना लैपटॉप खोला,
जैसे कोई बेहद जरूरी काम करना हो, पर असल में उसका ध्यान काम पर नहीं था। वो चुपके-चुपके लैपटॉप के पीछे से काव्या को निहार रहा था। उसकी लहराती जुल्फें, उसके गालों की हल्की गुलाबी आभा, और उसका मासूम सा चेहरा।
हर बार जब काव्या जरा भी उसकी तरफ देखती, राजवीर जल्दी से अपनी नज़रें लैपटॉप स्क्रीन पर गड़ा लेता। और काव्या भी जानती थी... कि कोई उसे देख रहा है। लेकिन वो बस हल्के से मुस्कुराकर फिर बाहर देखने लगती थी।
कार के भीतर एक मीठी सी खामोशी फैल गई थी। जहाँ शब्दों की कोई ज़रूरत नहीं थी, बस धड़कनों की आहट थी।
करीब आधे घंटे की यात्रा के बाद, कार एक भव्य और आलीशान शॉपिंग मॉल के सामने आकर रुकी। यह मॉल राजस्थान के सबसे फेमस मॉल्स में से एक था —
शानदार इमारत, ऊँचे चमकते हुए ग्लास के दरवाजे, और चारों ओर एक रॉयल माहौल था, जैसे मॉल खुद बयां कर रहा हो कि यह किसी आम इंसान की नहीं, बल्कि किसी राजा की मेहनत का नतीजा है।
काव्या कार से उतरते हुए चारों तरफ हैरानी से देखने लगी। उसके चेहरे पर साफ़ लिखा था — "वाह!"
तभी बाकी सब भी, जो पहले से वहाँ पहुँचे हुए थे, मुस्कुराते हुए उनकी ओर बढ़े। जैसे ही राजवीर और काव्या मॉल के अंदर गए, सभी एक साथ हँसते-बोलते एंट्रेंस से अंदर चले गए।
तभी इशिता उसे कुछ कहती है जिसे सुन कर काव्या के चेहरे पर एक शॉकिंग एक्सप्रेशन आ जाते है।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या कहा होगा इशिता ने काव्या को ?
करीब आधे घंटे की यात्रा के बाद, कार एक भव्य और आलीशान शॉपिंग मॉल के सामने आकर रुकी। यह मॉल राजस्थान के सबसे फेमस मॉल्स में से एक था —
शानदार इमारत, ऊँचे चमकते हुए ग्लास के दरवाजे, और चारों ओर एक रॉयल माहौल था, जैसे मॉल खुद बयां कर रहा हो कि यह किसी आम इंसान की नहीं, बल्कि किसी राजा की मेहनत का नतीजा है।
काव्या कार से उतरते हुए चारों तरफ हैरानी से देखने लगी। उसके चेहरे पर साफ़ लिखा था — "वाह!"
तभी बाकी सब भी, जो पहले से वहाँ पहुँचे हुए थे, मुस्कुराते हुए उनकी ओर बढ़े। जैसे ही राजवीर और काव्या मॉल के अंदर गए, सभी एक साथ हँसते-बोलते एंट्रेंस से अंदर चले गए।
तभी इशिता उसे कुछ कहती है जिसे सुन कर काव्या के चेहरे पर एक शॉकिंग एक्सप्रेशन आ जाते है।
तभी इशिता काव्या से बोलती है," पता है भाभी इस मॉल की सबसे खास बात क्या है?"
ये सुन काव्या न में सर हिला देती है । तो इशिता बोलती है," ये पूरा मॉल खुद राजवीर भाई का है। उन्होंने लंदन में पढ़ाई के दौरान ही इसकी प्लानिंग की थी,
और वहीं से अपनी कड़ी मेहनत से इसे खड़ा किया था। इस सफर में उसका सबसे बड़ा साथ दिया था साहिल भाई और विक्रम भाई ने। दोनों ने भाई के सपनों को हकीकत में बदलने में उनका कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया था। आज यह मॉल न सिर्फ बिज़नेस में एक बड़ा नाम था, बल्कि राजवीर भाई के संघर्ष, उनकी मेहनत और उनके सपनों की जीती-जागती पहचान भी है।"
काव्या जब ये सब जानती है, तो उसके दिल में राजवीर के लिए और भी इज़्जत और अपनापन भर जाता है। जिसे वह अपनी शर्माई हुई मुस्कान में छुपाने की कोशिश करती है। वो एक नजर राजवीर को देखती है। जो साहिल और विक्रम के साथ कुछ बात कर रहा था। फिर अपनी नजरे इशिता पर कर देती है।
चलिए में विक्रम के बारे में थोड़ा बता देती हूं। विक्रम राजवीर का न सिर्फ पर्सनल बॉडीगार्ड था, बल्कि उसका सबसे भरोसेमंद दोस्त भी।
उनकी दोस्ती की कहानी बड़ी ही खास थी। कई साल पहले, जब राजवीर महज चौदह-पंद्रह साल का था, एक दिन वो सड़क से गुजर रहा था। तभी उसकी नज़र एक दुबले-पतले से लड़के पर पड़ी, जो फटे-पुराने कपड़ों में, बिना किसी सहारे के, सड़क के किनारे बैठा था।
उस लड़के की आँखों में ग़रीबी की मजबूरी तो थी, पर साथ ही थी एक जिद, एक हिम्मत, और खुद्दारी।
राजवीर ने बिना एक पल सोचे उस लड़के के पास जाकर उससे पूछा, "मेरा नाम राजवीर है... क्या तुम मेरे साथ चलोगे? तुम्हें एक घर मिलेगा, पढ़ाई मिलेगी... और एक परिवार भी।"
लड़का पहले तो थोड़ा झिझका, लेकिन राजवीर की आँखों में जो सच्चाई थी, उसे देखकर वो मान गया। बाद में जब राजवीर ने उसके माता-पिता से बात की, तो वो भी खुशी-खुशी तैयार हो गए , क्योंकि वो जानते थे कि उनका बेटा एक अच्छे भविष्य के रास्ते पर जा सकता है।
तब से लेकर आज तक, विक्रम सिर्फ राजवीर का बॉडीगार्ड नहीं, बल्कि उसका साया बन गया था। हर ख़ुशी, हर दुख में, हर मुश्किल और हर जश्न में विक्रम ने राजवीर का साथ कभी नहीं छोड़ा। विक्रम के लिए राजवीर सिर्फ एक बॉस नहीं था, बल्कि एक भाई, एक दोस्त, और उसका सबसे बड़ा परिवार था।
चलिए अब चलते है कहानी में वापस ......
सभी शॉपिंग के लिए मॉल के अंदर प्रवेश करते हैं। मॉल की रंग-बिरंगी रोशनी, ब्रांडेड स्टोर्स की चमक और लोगों की भीड़ से चारों ओर रौनक फैली हुई थी। जैसे ही सब अंदर आते हैं, सभी एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं। उनके चेहरों पर शरारत साफ नजर आती है, मानो उन्होंने पहले से ही कुछ प्लान कर रखा हो।
एक-एक कर सभी बारी-बारी से बोलना शुरू करते हैं –
"काव्या भाभी, आप अपने लिए ड्रेस सिलेक्ट कर लीजिए, मैं अपने लिए देखती हूँ," रिया ने मुस्कुराते हुए कहा और आंखों से इशारा किया।
"हाँ भाभी, अब आपकी बारी है अकेले भैया के साथ शॉपिंग करने की," तृषा ने हँसते हुए अपनी कोहनी रिया की तरफ मारी।
"हम सब तो यहीं हैं, लेकिन थोड़ी देर के लिए आप दोनों को अकेला छोड़ देते हैं," अर्जुन ने मज़ाकिया लहजे में कहा।
इतना कहकर सभी हँसते हुए एक-एक कर के वहाँ से चुपचाप खिसक जाते हैं, मानो किसी रोमांटिक फिल्म का सीन क्रिएट कर रहे हों।
राजवीर और काव्या जब पलट कर देखते हैं, तो पाते हैं कि बाकी सभी अचानक गायब हो चुके हैं।
काव्या थोड़ी हड़बड़ा जाती है। उसकी आँखों में हल्की सी घबराहट उभर आती है। वह बेचैनी से इधर-उधर देखने लगती है, मानो कोई परिचित चेहरा ढूँढ़ रही हो। भीड़ में खुद को अकेले पाकर वह असहज हो जाती है।
राजवीर एक कोने में खड़ा होकर ध्यान से कुछ ड्रेस देख रहा होता है।
काव्या धीरे-धीरे अपने दुपट्टे के सिरे को पकड़ कर उससे खेलने लगती है – कभी उसे मोड़ती, कभी खोलती, कभी अपनी उंगलियों में लपेटने लगती। उसकी उंगलियों की हरकतें उसकी बेचैनी को बयां कर रही थीं। उसके चेहरे पर हल्की सी लज्जा, संकोच और असहजता की परछाई साफ देखी जा सकती थी।
नई जगह, नई परिस्थिति और राजवीर के साथ अकेलापन – यह सब मिलकर काव्या को थोड़ा घबरा देता है।
उसकी नज़रें कभी राजवीर की ओर जातीं तो कभी दरवाज़े की तरफ, मानो सोच रही हो – क्या ये सब जानबूझ कर किया गया है? लेकिन कहीं अंदर एक मीठी सी जिज्ञासा और मासूम सी मुस्कान भी उसके होंठों के किनारे पर आकर ठहर जाती है।
काव्या को इतना नर्वस देख राजवीर थोड़ा मुस्कराया। वह उसकी झिझक को महसूस कर रहा था और उसे सहज कराने के इरादे से आगे बढ़ा।
उसने धीरे से कहा, "चलिए, आपके लिए शादी की सारी रस्मों के लिए कपड़े देख लेते हैं।"
काव्या ने चुपचाप सिर हिला दिया, उसकी नज़रे अब भी नीचे झुकी हुई थीं।
जिसे देख राजवीर कुछ कहता है। जिसे सुन काव्या हैरानी से उसे देखने लगती है।
तो आप सब को क्या लगता है ऐसा क्या कहा होगा राजवीर ने जिस से काव्य हैरानी से उसे देखने लगी?
जानने के लिए अगला चैप्टर पढ़ते रहिए......
PLEASE FRIENDS अगर आप सब को कहानी अच्छी लग रही है तो please लाइक कर देना। अगर कोई suggestion देना हो तो कमेंट में देना या फिर मेरे इंस्टाग्राम की id प्रोफाइल me है contact कर सकते हो।
नई जगह, नई परिस्थिति और राजवीर के साथ अकेलापन – यह सब मिलकर काव्या को थोड़ा घबरा देता है।
उसकी नज़रें कभी राजवीर की ओर जातीं तो कभी दरवाज़े की तरफ, मानो सोच रही हो – क्या ये सब जानबूझ कर किया गया है? लेकिन कहीं अंदर एक मीठी सी जिज्ञासा और मासूम सी मुस्कान भी उसके होंठों के किनारे पर आकर ठहर जाती है।
काव्या को इतना नर्वस देख राजवीर थोड़ा मुस्कराया। वह उसकी झिझक को महसूस कर रहा था और उसे सहज कराने के इरादे से आगे बढ़ा।
उसने धीरे से कहा, "चलिए, आपके लिए शादी की सारी रस्मों के लिए कपड़े देख लेते हैं।"
काव्या ने चुपचाप सिर हिला दिया, उसकी नज़रे अब भी नीचे झुकी हुई थीं।
राजवीर ने उसके इस व्यवहार को देखा तो थोड़ी हैरानी के साथ मुस्कुराते हुए बोला, "यार, आप मुझसे इतनी नर्वस क्यों हो जाती हैं? मैं आपका होने वाला पति हूँ और आपको मेरे साथ पूरी ज़िंदगी बितानी है।"
वह थोड़ी देर रुका, फिर थोड़े चुटीले अंदाज़ में बोला, "अगर आप शादी के लिए तैयार नहीं हैं तो चलिए अभी घर चलते हैं और सबसे कह देते हैं कि आप मना कर रही हैं।"
काव्या की नज़रे तुरंत ऊपर उठ गईं, उसकी आँखों में आश्चर्य और हल्की घबराहट झलक गई। शायद पहली बार उसने राजवीर के लहजे में शरारत के साथ अपनापन महसूस किया था। उसके होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान भी आ गई, जो उसके भीतर पिघलती झिझक की निशानी थी।
राजवीर की बात सुनकर काव्या थोड़ी हिचकिचाई। उसकी आँखें झुकी हुई थीं, और स्वर धीमा लेकिन सच्चा था।
"ऐसा कुछ नहीं है... हमें आपसे शादी करनी है," उसने धीरे से कहा, "बस हम जल्दी अजनबियों से घुल-मिल नहीं पाते... इसलिए..."
उसके शब्दों में संकोच तो था, पर उनमें सच्चाई की मिठास भी थी। राजवीर उसकी बात ध्यान से सुन रहा था। फिर उसने हल्के से सिर हिलाया और मुस्कुराते हुए कहा,
"ठीक है, पर आपको भी कंफर्टेबल होने की कोशिश करनी होगी।"
फिर उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और थोड़े हल्के-फुल्के अंदाज़ में बोला, "क्या हम दोस्त बन सकते हैं?"
काव्या ने पहले कुछ क्षणों तक राजवीर का चेहरा देखा – उसकी आँखों में ईमानदारी थी, चेहरे पर अपनापन। फिर उसने धीरे से मुस्कुराते हुए अपना हाथ उसके हाथ में रख दिया।
एक अनकहा सा रिश्ता उन दोनों के बीच बनता जा रहा था – दोस्ती की शुरुआत के साथ एक नए सफर की नींव रखी जा रही थी।
राजवीर काव्या से हाथ मिलाकर मुस्कुरा उठा। उसकी आँखों में अब एक नई चमक थी, एक सुकून कि उन्होंने एक नई शुरुआत कर ली थी।
"अब तो हम फ्रेंड्स बन गए हैं," राजवीर हल्के-फुल्के अंदाज़ में बोला, "इसलिए आप जितनी जल्दी हो सके, खुद को मेरे साथ नॉर्मल कर लीजिए। और ये मत सोचिए कि आपके कुछ कहने या करने से मैं आपको जज करने लगूंगा।"
उसकी आवाज़ में आत्मीयता थी, और लहजे में भरोसा।
"आप जैसी हैं, मुझे वैसी ही चाहिए।"
ये शब्द सुनकर काव्या के दिल में एक मीठा सा एहसास जागा। उसे दिल ही दिल में अच्छा लगने लगा कि उसका होने वाला जीवनसाथी इतना समझदार, विनम्र और अपनाने वाला है।
राजवीर की बातें उसके मन में हल्की-सी लहर की तरह फैल गईं – आत्मविश्वास, सम्मान और एक विश्वास की नींव डालती हुईं। काव्या की आँखों में अब एक हल्की चमक थी, और होठों पर वो मुस्कान जो दिल से आती है।
दोनों एक साथ कपड़े देखने लगे। पहले तो राजवीर ने काव्या के लिए कुछ खूबसूरत ड्रेसेज़ सुझाई, लेकिन काव्या के चेहरे पर संतुष्टि का कोई भाव नहीं था। हर ड्रेस को देखकर वह हल्की सी नाक सिकोड़ लेती। आखिरकार उसने थोड़े झुंझलाते हुए कहा,
"मुझे इनमें से कुछ भी पसंद नहीं आ रहा है।"
उसकी आवाज़ में एक मासूमियत थी – ठीक वैसे जैसे कोई छोटा बच्चा अपना पसंदीदा खिलौना न मिलने पर कहता है। उसके चेहरे पर आई उस मासूम सी नाराज़गी को देखकर राजवीर का दिल जैसे पिघल गया।
वह अपने आप को रोक नहीं पाया। मुस्कुराता हुआ वह आगे बढ़ा और काव्या के गाल खींचते हुए बोला, "You are sooo cute."
राजवीर की आवाज़ में प्यार और चंचलता थी। उसकी बात सुनकर काव्या हँस पड़ी, और हँसते ही जैसे उसे होश आया कि वह राजवीर के सामने बच्चों की तरह बर्ताव कर रही थी। उसे एक क्षण के लिए शर्म भी आई। उसने झेंपते हुए कहा,
"सॉरी... वो... मुझसे होश में नहीं था।"
राजवीर ने तुरंत उसके गाल पर हाथ रख कर मुस्कुराते हुए कहा,
"शू श....... शांत रहिए। कुछ नहीं हुआ है। आप जैसे मेरे साथ व्यवहार कर रही हैं, वो बिल्कुल ठीक है। मैं आपका होने वाला पति हूँ और अब तो दोस्त भी। इसलिए मेरे सामने खुद को किसी पिंजरे में बंद चिड़िया की तरह मत समझिए। Feel free to talk with me. Okay, काव्या?"
राजवीर की आँखें उस समय पूरी ईमानदारी और स्नेह से भरी थीं। उसका स्पर्श, उसकी बातें — सब कुछ काव्या के दिल को छू गए।
तभी कुछ ऐसा होता है जिस से दोनों हड़बड़ा जाते है।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या हुआ ऐसा जिस से राजवीर और काव्या दोनों हड़बड़ा गए?
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दोनों ही एक-दूसरे की आँखों में खोए हुए थे। माहौल कुछ ऐसा था जैसे वक्त थम सा गया हो। काव्या की आँखों में मासूमियत थी, तो राजवीर की नज़रों में अपनापन और प्रशंसा।
उनकी ये खामोश बातचीत चल ही रही थी कि अचानक राजवीर का फोन बज उठा। रिंगटोन की आवाज़ ने जैसे इस खूबसूरत पल को तोड़ दिया। दोनों हँस पड़े – वो हँसी जिसमें थोड़ी झिझक थी, थोड़ी शरारत।
राजवीर ने मुस्कुराते हुए खुद से कहा, "पता नहीं क्या दुश्मनी है इन लोगों की मुझसे... हमेशा ऐन वक्त पर कॉल आ जाता है। कितनी हसीन थीं उनकी आँखें..."
वो फिर से काव्या की आँखों में डूबने ही वाला था कि फोन दोबारा बज उठा। इस बार थोड़ी चिढ़ के साथ उसने फोन उठाया, लेकिन उससे पहले काव्या की तरफ मुड़कर कहा, "Excuse me," और फोन कान से लगाते हुए थोड़ी दूर चला गया।
काव्या वहीं खड़ी थी, पर अब उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान थी, और दिल में अजीब सी गुदगुदी – किसी के खास होने का एहसास।
काव्या की नज़रें अनायास ही उसकी ओर टिक गईं। वो सोचने लगी, "कितनी गहरी आँखें हैं इनकी... मन करता है, डूबती ही जाऊँ... पर शायद किस्मत को ये मंज़ूर नहीं था। तभी तो इनका फोन बज उठा।"
इतना सोचते हुए उसने अपनी नज़रें हटाईं और कपड़े देखने में व्यस्त हो गई।
करीब पंद्रह मिनट बाद राजवीर वापस आया और हल्की मुस्कान के साथ बोला, "वो मेरे ऑफिस से कॉल था।"
उसने देखा कि काव्या के हाथों में कुछ कपड़े थे। वो उत्सुकता से पूछ बैठा, "आपने कपड़े चुन लिए?"
काव्या ने धीरे से कहा, "हाँ, मैंने शादी के बाद पहनने के लिए कुछ साड़ियाँ और हल्दी-मेहंदी के लिए लहंगे ले लिए हैं। बस शादी, संगीत और रिसेप्शन के लिए ड्रेस बाकी हैं... पर इनमें से कुछ भी पसंद नहीं आ रहा।"
यह सुनकर राजवीर ने मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, आप ये कपड़े यहीं रख दीजिए..."
"मैं इन सबको पैकिंग के लिए बोल देता हूँ," राजवीर ने सहज अंदाज़ में कहा।
काव्या ने उसकी ओर देखकर 'हूँ' में सिर हिलाया और धीरे-धीरे सारे कपड़े एक जगह पर रख दिए। उसकी आँखों में थोड़ी सी थकान थी, लेकिन मन में एक अनकही सी राहत भी थी कि अब सब कुछ संभल रहा है।
राजवीर ने तुरंत एक अटेंडेंट को बुलाया और सख्त लेकिन शांत स्वर में कहा, "इन कपड़ों को अच्छे से पैक कर दो और कार तक पहुँचा दो।"
इसके बाद वह बिना कुछ कहे काव्या की ओर मुड़ा, उसका हाथ थामते हुए बोला, "चलो, तुम्हें कुछ खास दिखाना है।"
काव्या चुपचाप उसके साथ चल पड़ी। वह उसे महल के सबसे ऊपरी फ्लोर पर लेकर गया। जैसे ही लिफ्ट से बाहर निकले, वहाँ का माहौल बिल्कुल अलग था—शांति से भरा हुआ, जैसे हर दीवार में रॉयल्टी बसी हो। इक्का-दुक्का लोग ही दिख रहे थे, जो अपने-अपने काम में व्यस्त थे।
काव्या ने चारों ओर नजरें दौड़ाईं और धीरे से पूछा, "यहाँ कोई दिखाई क्यों नहीं दे रहा?"
राजवीर मुस्कुराया और बोला, "क्योंकि यहाँ सिर्फ हमारे फैमिली मेंबर्स और कुछ चुनिंदा डिज़ाइनर्स को ही आने की अनुमति है।"
"क्यों?" काव्या ने उत्सुकता से पूछा।
"क्योंकि यह जगह खास है। यहाँ सिर्फ रॉयल वेडिंग्स और फंक्शन्स के लिए ड्रेस डिज़ाइन किए जाते हैं। हर एक सिलाई में परंपरा और हर एक धागे में गरिमा होती है।" राजवीर की आवाज़ में गर्व साफ झलक रहा था।
काव्या की आँखें चमक उठीं। उसने बच्चों जैसी मासूमियत से पूछा, "क्या मैं डिज़ाइनर्स को काम करते हुए देख सकती हूँ?"
राजवीर ने हल्के से सिर हिलाया, "हाँ, बिल्कुल।"
जैसे ही वे अंदर दाखिल हुए, काव्या की आँखें हर कोने को उत्सुकता से देख रही थीं—दीवारों पर सजी हुई पुराने समय की रॉयल वेडिंग्स की तस्वीरें, बड़े-बड़े शेल्व्स में रखे रेशमी और भारी कढ़ाई वाले फैब्रिक्स, और एक कोने में अपने काम में मग्न डिज़ाइनर्स।
उसे देखकर राजवीर के चेहरे पर एक सुकूनभरी मुस्कान आ गई। वह उसके पास आकर धीमे स्वर में बोला, "अब चलिए, आपकी शादी और रिसेप्शन के लिए आउटफिट्स देखने हैं।"
काव्या ने सहमति में सिर हिलाया। दोनों एक प्राइवेट रूम की ओर बढ़े, जहाँ उन्हें अकेले में सारी ड्रेसेस दिखाई जानी थीं।
जैसे ही वे अंदर पहुँचे, कमरे का माहौल ही बदल गया। बड़ी-बड़ी शीशे की अलमारियों में हैंगर पर लटकती रॉयल ड्रेसेस, हर एक ड्रेस जैसे कोई कहानी कह रही हो। बारीक कढ़ाई, रेशमी कपड़े, और पारंपरिक लुक में ढले मॉडर्न डिज़ाइन।
काव्या के मुँह से अनायास ही निकल पड़ा,
"वाह... कितना सुंदर है ये सब! जैसे कोई सपना हो…"
राजवीर ने उसकी ओर देखा और धीमे से मुस्कुराया—शायद पहली बार उसे काव्या की आँखों में सच्ची खुशी नजर आई थी।
राजवीर और काव्या, दोनों अब तक काव्या की शादी के लिए परफेक्ट आउटफिट ढूँढने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन मुश्किल यह थी कि जो ड्रेस काव्या को पसंद आ रही थी, वह राजवीर को कुछ खास नहीं लग रही थी। और जो राजवीर को पसंद आ रही थी, वह काव्या के दिल को नहीं छू रही थी।
कभी काव्या कहती, "ये वाला लहंगा बहुत क्लासी है,"
तो राजवीर सिर हिलाकर जवाब देता, "नहीं, तुम्हारी पर्सनैलिटी से मेल नहीं खा रहा।"
तो कभी राजवीर कोई ब्राइट रेड लहंगा निकालकर कहता, "ये वाला बिल्कुल परफेक्ट है,"
और काव्या उसका चेहरा देखती हुई कहती, "इतना ज़्यादा चमकदार? मैं इसमें खो जाऊंगी!"
इस उलझन में काव्या ने अब तक 10 लहंगे ट्राय कर लिए थे। हर बार नए जोश के साथ उठती, तैयार होती, और फिर मायूसी से वापस आती।
अब वह 10वाँ लहंगा पहनने ट्रायल रूम की ओर जा रही थी। चेहरे पर थकान साफ नजर आ रही थी, लेकिन वह फिर भी मुस्कराने की कोशिश कर रही थी।
उधर, राजवीर अब भी हार मानने को तैयार नहीं था। वह रैक के पास खड़ा, गहरी नजरों से हर ड्रेस को देख रहा था। उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे एक बेज और गोल्डन कलर के लहंगे तक पहुँचीं। उस लहंगे में कुछ खास बात थी—सादगी में शाहीपन, और रंगों में गरिमा।
उसने वह लहंगा निकाला, उसके चारों तरफ घूम-घूमकर हर एम्ब्रॉयडरी को गौर से देखा, और खुद से बुदबुदाया,
"शायद ये… शायद ये वही है जो उसे भी पसंद आए… और मुझे भी।"
उसी वक्त ट्रायल रूम से काव्या बाहर आई। चेहरा थोड़ा फीका पड़ा था। वह राजवीर के पास आई और धीरे से बोली, "राजवीर… ये भी कुछ खास नहीं लगा।"
राजवीर ने मुस्कुराते हुए उसके हाथ में वह बेज-गोल्डन लहंगा दिया और कहा,
"एक आखिरी कोशिश और कर लो… सिर्फ मेरे लिए।"
काव्या ने उसकी आँखों में देखा—थोड़ी सी जिद, और बहुत सारा प्यार। उसने बिना कुछ कहे लहंगे को पकड़ा और ट्रायल रूम की ओर बढ़ गई।
कुछ ही देर बाद, ट्रायल रूम का दरवाज़ा धीरे से खुलता है।
हल्की सी झिझक के साथ काव्या बाहर निकलती है। उसने वही बेज और गोल्डन रंग का लहंगा पहना हुआ है जो राजवीर ने चुना था। उसकी चाल थोड़ी धीमी थी, लेकिन जैसे ही वो लाइट के नीचे आई—पूरा कमरा जैसे थम गया।
लहंगे की सिल्वर-गोल्ड ज़री की कढ़ाई, सॉफ्ट नेट की डबल लेयर, और उस पर पेस्टल शेड की हल्की चमक, सबकुछ एक सपने जैसा लग रहा था। उसका दुपट्टा हल्के से उसके कंधों पर लहरा रहा था, और झुमकों की हल्की खनक उसकी मासूमियत को और उभार रही थी।
राजवीर की आँखें उस पर ही टिक गईं।
वो बस कुछ पल खामोश रहा, फिर धीमे से बोला—
"काव्या... अब मुझे लग रहा है कि मैंने अपनी दुल्हन को देख लिया है।"
काव्या का चेहरा लाल हो गया। उसने हल्के से मुस्कराकर नज़रें झुका लीं।
"तुम्हें सच में पसंद आया?" उसने धीमे से पूछा।
राजवीर दो कदम आगे बढ़ा, और एकदम दिल से बोला,
"इतना कि अब कोई और ड्रेस इससे बेहतर हो ही नहीं सकती।"
तभी राजवीर कुछ कहता है जिसे सुन कर काव्या की आँखें बड़ी बड़ी हो जाती है।
तो आप सब को क्या लगता है क्या कहा होगा राजवीर ने?
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