सीज़न 1: जागृति और मित्रता "आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा" का पहला सीज़न दर्शकों को एक ऐसी दुनिया से परिचित कराता है जहाँ मानवता की शक्ति पाँच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और पौराणिक आकाश—से जुड़ी है। कहानी का केंद्र है आरव, शांतिवन गाँव का एक दयालु... सीज़न 1: जागृति और मित्रता "आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा" का पहला सीज़न दर्शकों को एक ऐसी दुनिया से परिचित कराता है जहाँ मानवता की शक्ति पाँच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और पौराणिक आकाश—से जुड़ी है। कहानी का केंद्र है आरव, शांतिवन गाँव का एक दयालु लड़का, जिसे "तत्वहीन" होने के कारण समाज से बहिष्कृत किया जाता है। उसका जीवन तब बदल जाता है जब एक तात्विक-जानवर के हमले के दौरान वह अनजाने में अपनी छिपी हुई, रहस्यमयी शक्ति का प्रदर्शन करता है। इस घटना को दिव्य ज्ञान पीठ अकादमी के रहस्यमयी गुरु वशिष्ठ महसूस कर लेते हैं और आरव को अपने साथ ले जाते हैं। अकादमी में, आरव की मुलाकात तीन प्रतिभाशाली छात्रों से होती है जो उसके भविष्य को हमेशा के लिए बदल देंगे: अग्नि गणराज्य की घमंडी और शक्तिशाली राजकुमारी रिया; वायु कुल का शांत और बुद्धिमान रणनीतिकार समीर; और पृथ्वी राज्य की दयालु और अटूट रक्षक भैरवी। अपनी तत्वहीनता के कारण संघर्ष करते हुए, आरव गुरु वशिष्ठ के विशेष प्रशिक्षण के तहत अपनी आंतरिक क्षमताओं को खोजना शुरू करता है। एक खतरनाक मिशन पर, यह अप्रत्याशित चौकड़ी आपसी मतभेदों को दूर कर एक-दूसरे पर भरोसा करना सीखती है और एक अटूट टीम बन जाती है। सीज़न का समापन भव्य पंचतत्व महासंग्राम में होता है, जहाँ आरव अपनी चतुराई से सबको आश्चर्यचकित करता है और रिया का सम्मान जीतता है। लेकिन जीत के जश्न के बीच, स्टेडियम पर "निर्-तत्व" नामक रहस्यमयी हमलावरों का आक्रमण होता है, जो तत्व-शक्ति को सोख लेते हैं। इस अराजकता के बीच, आरव अपने दोस्तों को बचाने के लिए अपनी शक्ति का एक और विनाशकारी प्रदर्शन करता है। सीज़न एक रोमांचक क्लिफहैंगर पर समाप्त होता है, जहाँ एक बड़े षड्यंत्र का पर्दाफाश होना बाकी है और नायकों की असली यात्रा अभी शुरू हुई है।
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Chapter 1
शांतिवन गाँव की सुबह हमेशा की तरह ताज़गी भरी थी। सूरज की सुनहरी किरणें, खेतों में उगी हरी-भरी फसलों पर मोती-सी चमकती ओस की बूंदों को चमका रही थीं। ठंडी, मद्धम हवा में मिट्टी और ताज़ी पत्तियों की महक घुली हुई थी। गाँव के बीच से बहती शांत नदी, धीरे-धीरे गुनगुनाती हुई अपनी राह पर बह रही थी।
लेकिन इस शांति और ताज़गी के बीच, गाँव के चौक पर कुछ बच्चों की आवाज़ें गूँज रही थीं। कोई बच्चा अपनी छोटी हथेलियों में मुट्ठी भर मिट्टी लेकर उसे हवा में उछाल रहा था, और मिट्टी ऊपर जाकर एक छोटी-सी चिड़िया का आकार ले लेती, फिर धीरे से वापस नीचे आ जाती। दूसरे बच्चे, हँसी-खुशी अपनी उंगलियों से हवा में छोटे-छोटे बवंडर बना रहे थे, जो पास रखे सूखे पत्तों को क्षण भर के लिए नचाते, और फिर शांत हो जाते। कुछ और बच्चे, नदी के किनारे खड़े, अपनी उंगलियों से पानी की सतह पर छोटे-छोटे लहरें बना रहे थे, जैसे पानी उनसे बात कर रहा हो।
इन सभी बच्चों से कुछ दूरी पर, एक पुराना बरगद का पेड़ था। पेड़ की विशाल जड़ों पर बैठा एक दुबला-पतला लड़का, आरव, अपनी सूनी आँखों से इस सब को देख रहा था। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, बस एक गहरी उदासी की परत बिछी हुई थी। उसके हाथ मिट्टी से सने हुए नहीं थे, न उसकी उंगलियाँ हवा में कोई कला दिखा रही थीं, और न ही वह पानी से कोई खेल खेल रहा था। वह बस देख रहा था, जैसे किसी और ग्रह का प्राणी हो।
तभी, मिट्टी से चिड़िया बनाने वाले लड़के, जिसका नाम करुण था, की आवाज़ गूँजी। वह अपनी बनाई चिड़िया को हवा में नचाते हुए हँस रहा था।
"देखो! शून्य आ गया!" करुण ने ऊँची आवाज़ में कहा, और उसकी उंगली आरव की तरफ उठी।
पास खड़े बच्चे हँसने लगे। एक और लड़का, जो हवा में छोटे-छोटे भंवर बना रहा था, जिसका नाम विनय था, उसने भी अपने होंठों पर व्यंग्यपूर्ण मुस्कान लाई।
"हाँ! उसे तो सिर्फ हवा ही आती है... खाली हवा!" विनय ने आरव की ओर इशारा करते हुए कहा और अपनी उंगलियों से एक छोटा-सा भंवर बनाकर करुण की ओर फेंका। करुण ने मुँह बनाकर उससे बचाव किया और फिर दोनों हँसने लगे।
आरव के सीने में एक दर्द-सा उठा। उसने अपनी मुट्ठी भींच ली। यह शब्द, 'शून्य', उसे हर दिन, हर पल सुनने को मिलता था। उसे याद नहीं था कि कब से उसे इस नाम से पुकारा जाने लगा था। जैसे ही उसकी उम्र बढ़ी और दूसरे बच्चों में उनके तत्व प्रकट होने लगे, वैसे ही आरव की 'शून्यता' भी साफ़ होती गई। उसे पता था कि वह अलग है, लेकिन यह जानना और दूसरों से यह सुनना, दो बिल्कुल अलग बातें थीं। हर बार जब कोई उसे 'शून्य' कहता, तो उसके अंदर एक खालीपन और भी गहरा हो जाता।
"अरे! तुम यहाँ क्या कर रहे हो, शून्य? जाओ, जाकर मिट्टी पर बैठकर ध्यान करो, शायद कुछ बन जाओ!" करुण ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा। उसकी आवाज़ में उपहास साफ झलक रहा था।
विनय भी मुस्कुराया। "तुम तो एक पत्ता भी हवा में नहीं उड़ा सकते, शून्य। फिर क्यों हर सुबह हमें ऐसे देखते रहते हो, जैसे तुम भी हमारे जैसे हो?"
आरव ने अपनी नज़रें झुका लीं। उसके गाल लाल हो गए थे, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। वह जानता था कि कोई जवाब देने का कोई फायदा नहीं है। वे उसकी बात नहीं समझेंगे। वे उसकी भावनाओं को नहीं समझेंगे। उन्हें तो बस यह मज़ाक लगता था।
एक पल के लिए, उसकी आँखें नम हो गईं, लेकिन उसने खुद को सँभाला। उसे पता था कि उसे कमजोर नहीं दिखना है। अगर वह रोएगा, तो वे और भी ज्यादा मज़ाक उड़ाएँगे। वह धीरे से उठा। उसके शरीर में एक अजीब-सी भारीपन थी, जैसे उसके हर कदम पर उसकी शून्यता का बोझ पड़ा हो।
"जाओ ना, शून्य! शायद तुम अपनी खुद की परछाई बना लो, अगर उसमें भी कोई तत्व न हो!" करुण ने फिर से कहा, और इस बार बच्चों की हँसी और भी तेज़ हो गई।
आरव ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह जानता था कि उनके चेहरे पर क्या भाव होंगे। उपहास। दया। या शायद बस अनदेखी। वह चुपचाप, कदमों को खींचते हुए गाँव के बाहरी हिस्से की ओर चला गया, जहाँ से नदी का किनारा शुरू होता था।
नदी किनारे की मिट्टी थोड़ी नम और ठंडी थी। आरव ने अपने पसंदीदा पत्थर पर बैठकर अपने घुटनों को छाती से लगा लिया। यह उसकी अपनी जगह थी। यहाँ कोई उसे 'शून्य' नहीं कहता था। यहाँ केवल नदी की आवाज़ थी, हवा की सरसराहट थी, और पेड़ों की शांति थी।
उसने अपने हाथ पानी में डाले। ठंडे पानी का स्पर्श उसकी उंगलियों से होकर गुजरा, लेकिन उसके अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कोई छोटी-सी लहर नहीं उठी, न ही पानी में कोई चमक पैदा हुई। यह बस पानी था। सिर्फ पानी।
"क्या मैं सचमुच शून्य हूँ?" उसने खुद से फुसफुसाया। उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि हवा भी शायद उसे नहीं सुन पाई होगी।
उसने पास पड़े एक कंकड़ को उठाया और उसे पानी में फेंक दिया। एक छोटी-सी लहर उठी और किनारे पर आकर घुल गई। "कितनी आसानी से यह कंकड़ पानी में लहरें बना देता है, और मैं..." वह रुक गया। उसके मन में एक कसक थी, जो शब्दों में बयाँ नहीं की जा सकती थी।
जब दूसरे बच्चे अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते, तो आरव को लगता था जैसे वे किसी जादुई खेल में हों, और वह बाहर खड़ा सिर्फ दर्शक हो। वे हवा को अपने इशारों पर नचाते, मिट्टी को मनचाहा आकार देते, पानी में जीवन भर देते। वे सब एक-दूसरे से जुड़े हुए लगते थे, एक अदृश्य ऊर्जा के धागे से बंधे हुए। और वह? वह उन धागों के बीच का खालीपन था।
उसने अपनी उंगलियों को देखा। पतली, साधारण उंगलियाँ। कोई चमक नहीं, कोई आभा नहीं, कोई शक्ति नहीं। जब वह अपनी मुट्ठी भींचता, तो उसे कोई ऊर्जा महसूस नहीं होती थी। उसे बस अपने खून की धड़कन महसूस होती थी, और उसके साथ बहती हुई निराशा।
आरव को याद आया, जब वह छोटा था, तो उसकी माँ ने उसे बताया था कि हर इंसान में एक तत्व होता है। किसी में अग्नि, किसी में जल, किसी में वायु, किसी में पृथ्वी, और किसी में आकाश। यह तत्व ही उसकी पहचान होती है, उसकी शक्ति का स्रोत होता है। लेकिन आरव में कुछ नहीं था। उसके माता-पिता भी इस बात से चिंतित रहते थे। वे उसे कभी 'शून्य' नहीं कहते थे, लेकिन उनकी आँखों में एक अनकहा दुख और चिंता साफ झलकती थी।
"क्या मेरी किस्मत में हमेशा खाली रहना ही लिखा है?" उसने फिर से खुद से पूछा। इस बार उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी निराशा थी। उसे लगा जैसे उसकी आत्मा भी खाली हो गई हो, उसमें कोई ऊर्जा न बची हो।
वह नदी के बहते पानी को देखता रहा। पानी लगातार बह रहा था, अपना रास्ता बनाता हुआ, कभी रुकता नहीं। पानी को अपना तत्व नहीं खोजना पड़ता था, वह तो स्वयं एक तत्व था। आरव की आँखों में एक अनकही प्यास थी - खुद को जानने की, खुद की पहचान खोजने की प्यास।
कई बार वह रात में उठकर छत पर जाता और आसमान में चमकते तारों को देखता। वे तारे दूर से कितने शांत और शक्तिशाली लगते थे। वह सोचता था कि क्या कभी उसे भी ऐसी कोई शक्ति मिलेगी, जो उसे इस खालीपन से बाहर निकाल सके? क्या कभी कोई उसे 'शून्य' कहना बंद करेगा?
वह जानता था कि शांतिवन गाँव में, एक तत्वहीन व्यक्ति का कोई भविष्य नहीं था। उसे कभी सम्मान नहीं मिलेगा, न उसे कोई महत्वपूर्ण काम मिलेगा। वह हमेशा दूसरों पर निर्भर रहेगा, हमेशा उपहास का पात्र बना रहेगा। यह सोचकर उसके सीने में एक अजीब-सी घुटन होने लगती थी।
"काश... काश मैं भी..." उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। वह कुछ और कहने की कोशिश कर रहा था, कुछ ऐसी इच्छा जो उसके दिल की गहराई में दबी थी, लेकिन शब्द उसके होंठों पर आकर जम गए। वह क्या चाहता था? शक्ति? पहचान? सम्मान? या बस यह कि वह अकेला न हो?
उसने अपनी उंगलियों को फिर से पानी में डुबोया। पानी उसके हाथों से सरक गया, जैसे वह उसे पकड़ ही न सके। आरव को लगा, जैसे दुनिया की हर चीज़ उसे धकेल रही हो, उससे दूर जा रही हो। वह एक खाली बर्तन की तरह था, जिसमें कुछ भी नहीं भरा जा सकता था।
सूरज धीरे-धीरे ऊपर चढ़ रहा था। बच्चों की आवाज़ें अब दूर से आ रही थीं, लेकिन वे अब भी उसके कानों में 'शून्य', 'शून्य' की प्रतिध्वनि कर रही थीं। आरव बस वहीं बैठा रहा, शांत और अकेला। उसकी आँखों में एक अनकहा सवाल था - क्या इस खालीपन का कोई अंत है? क्या कोई ऐसी जगह है जहाँ वह खुद को भर पाए? या यह शून्य ही उसकी नियति थी?
एक गहरी साँस लेकर, उसने अपनी आँखें खोलीं। उसके चेहरे पर उदासी की छाया अभी भी बनी हुई थी। वह नहीं जानता था कि आगे क्या होगा, लेकिन एक बात तय थी - यह खालीपन उसे अंदर ही अंदर खोखला कर रहा था। और उसे इस खालीपन से बाहर निकलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। वह बस वहाँ बैठा रहा, अपने विचारों में खोया हुआ, नदी के किनारे... एकदम अकेला।
Chapter 2
आरव नदी किनारे यूँ ही अपने ख्यालों में खोया बैठा था, जब एक जानी-पहचानी आवाज़ ने उसकी उदासी तोड़ी।
"आरव! ओ आरव!"
उसने सिर उठाया। नदी के घुमावदार रास्ते से भागता हुआ एक लड़का उसकी ओर आ रहा था। वह मयंक था। मयंक, जिसके कंधे थोड़े चौड़े थे और जिसकी आँखों में हमेशा एक शरारती-सी चमक रहती थी। उसके बाल बिखरे हुए थे और साँस फूल रही थी, जैसे वह काफी दूर से दौड़ता हुआ आया हो।
"क्या हुआ? इतनी देर से कहाँ गायब हो गया था?" मयंक ने आरव के पास पहुँचते ही कहा, उसकी आवाज़ में चिंता साफ़ झलक रही थी। वह आरव के बगल में ही धम्म से बैठ गया, उसकी साँसें अभी भी तेज़ी से चल रही थीं।
आरव ने धीरे से उसकी तरफ देखा, और फिर वापस नदी की ओर अपनी नज़रें गड़ा लीं। उसके चेहरे पर अभी भी वही उदासी थी।
मयंक ने उसके चेहरे पर उदासी देख ली। उसने धीरे से आरव के कंधे पर हाथ रखा। "फिर वही सब हुआ ना? करुण और विनय?" उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी कोमलता थी, जिसे आरव केवल मयंक के साथ ही महसूस करता था।
आरव ने सिर हिलाया। एक शब्द भी नहीं बोला। उसे पता था कि मयंक सब समझ गया है।
"उनका काम ही वही है। तुम उनकी बातों पर ध्यान क्यों देते हो?" मयंक ने झिड़कते हुए कहा, लेकिन उसकी आँखों में सहानुभूति थी। "वे तो बस दूसरों को नीचा दिखाकर खुद को बड़ा समझते हैं। उनकी बातों में कोई दम नहीं होता।"
"दम नहीं होता?" आरव ने फुसफुसाया, पहली बार बोला। उसकी आवाज़ में कसक थी। "मयंक, वे सही तो कहते हैं। मैं 'शून्य' हूँ। मुझमें कुछ भी नहीं है। मैं एक पत्ता भी नहीं हिला सकता। तुम पानी को अपनी मुट्ठी में कैद कर सकते हो, समीर हवा को अपने इशारों पर नचा सकता है, भैरवी मिट्टी से कुछ भी बना सकती है... और मैं?" उसने अपने खाली हाथों की ओर देखा। "मैं बस खाली हूँ।"
मयंक ने गहरी साँस ली। वह जानता था कि आरव को इस दर्द से कैसे निकालना है। "तुम खाली नहीं हो, मेरे दोस्त। तुम... तुम अलग हो। अलग होना बुरा नहीं होता।"
"अलग होना बुरा नहीं होता? जब हर कोई तुम्हें 'शून्य' कहकर बुलाए, तुम्हें अकेला छोड़ दे, तुम्हारे साथ खेलना भी पसंद न करे... तब भी अलग होना बुरा नहीं होता?" आरव की आवाज़ थोड़ी तेज़ हुई। उसकी आँखों में एक चमक थी, जो दुःख और हताशा से भरी थी।
"मैं हूँ ना तुम्हारे साथ।" मयंक ने दृढ़ता से कहा, और आरव की ओर देखा। उसकी आँखों में ईमानदारी थी। "मैं कभी तुम्हें अकेला नहीं छोडूंगा। और मैं उन सबसे कहूँगा... जब वे तुम्हें 'शून्य' कहते हैं, तो वे खुद की ही बेवकूफ़ी दिखाते हैं। उन्हें क्या पता कि तुम क्या हो।"
आरव ने पहली बार मयंक की तरफ पूरा देखा। उसके दोस्त की आँखों में जो विश्वास था, वह आरव को हमेशा एक अलग-सी हिम्मत देता था। "तुम... तुम क्यों करते हो मेरे लिए ये सब?"
मयंक मुस्कुराया। "दोस्त इसीलिए होते हैं, आरव। और मुझे याद है, जब मैं छोटा था और नदी में गिर गया था, तो किसने मुझे बचाया था? जब सब हँस रहे थे, तो किसने मुझे किनारे तक खींचा था?"
आरव को वो दिन याद आया। उस वक्त मयंक बहुत छोटा था और पानी में उसकी शक्ति अभी पूरी तरह से प्रकट नहीं हुई थी। आरव ने ही दौड़कर उसे पकड़ा था, और जब वह बीमार पड़ा, तो आरव ने ही उसकी देखभाल की थी।
"वो तो... वो तो दोस्ती थी।" आरव ने कहा।
"हाँ! और यह भी दोस्ती है।" मयंक ने आरव की पीठ थपथपाई। "मेरी जान, तुम सिर्फ अपनी कमियों पर ध्यान देते हो। तुमने कभी अपनी ताकत पर ध्यान ही नहीं दिया। तुम्हारी फुर्ती, तुम्हारा दिमाग... तुमने देखा, पिछले साल दौड़ में तुमने करुण को कैसे हराया था? बिना किसी तत्व के!"
"वो बस एक दौड़ थी।" आरव ने कंधे उचकाए।
"लेकिन तुम जीते थे!" मयंक ने जोर दिया। "यह बताता है कि तुम्हारे अंदर कुछ खास है। कुछ अलग।"
फिर मयंक ने गहरी साँस ली, और एक रहस्यमयी मुस्कान उसके चेहरे पर आई। "अच्छा, छोड़ो ये सब। मैंने तुमसे कुछ बात करने के लिए बुलाया था। कुछ खास।"
आरव की आँखों में उत्सुकता जागी। "क्या?"
"तुम्हें याद है, हम कहाँ जाना चाहते हैं?" मयंक ने कहा, उसकी आवाज़ में एक चमक थी। "वहाँ... जहाँ सब कुछ बदल सकता है।"
आरव के चेहरे पर पहली बार एक हल्की-सी मुस्कान आई। "राजधानी में... दिव्य ज्ञान पीठ अकादमी।"
मयंक का चेहरा चमक उठा। "हाँ! वही! मैंने आज सुबह फिर से सोचा। हमें वहाँ जाना ही होगा।"
"लेकिन मयंक... वो तो... वो बहुत बड़ी जगह है। और उसमें सिर्फ वही लोग जा सकते हैं, जिनमें शक्तियाँ हों। महान शक्तियाँ!" आरव की आवाज़ में फिर से निराशा झलकने लगी। "मैं तो... मैं तो..."
"तुम भी चलोगे!" मयंक ने बीच में ही बात काटी। "अगर मैं जा रहा हूँ, तो तुम भी मेरे साथ चलोगे। कैसे भी करके।"
मयंक ने उठकर नदी के पानी में पैर डाले। उसकी उंगलियाँ पानी में हल्की-सी हिलायीं और पानी की सतह पर एक छोटी-सी लहर उठने लगी, जो धीरे-धीरे बड़ी होती गई। "वहाँ मैं महान जल-योद्धा बनूंगा। मैं अपनी शक्तियों को इतना बढ़ाऊँगा कि कोई भी मुझे छू भी न पाए। मैं पानी को अपनी मुट्ठी में लेकर... बड़े-बड़े तूफ़ान पैदा करूँगा।"
मयंक ने अपनी आँखों में चमक के साथ कहा। वह कल्पना कर रहा था, जैसे उसकी आँखें उस भव्य अकादमी को देख रही हों। "मैं नदी के बहाव को रोक सकूँगा, मैं समुद्र की लहरों पर राज करूँगा। सोचो, आरव! कितनी शक्ति होगी!"
आरव उसे सुन रहा था। मयंक की आवाज़ में जो उत्साह था, वह संक्रामक था। "और मैं... मैं क्या करूँगा वहाँ?" आरव ने फुसफुसाया।
मयंक मुड़ा और आरव के पास आया। उसने फिर से आरव के कंधे पर हाथ रखा। "तुम... तुम अपनी पहचान ढूंढोगे। मुझे लगता है, वहाँ बड़े-बड़े गुरु हैं। वे तुम्हें बताएँगे कि तुम 'शून्य' नहीं हो, तुम कुछ और हो। कुछ ऐसा जो हम अभी समझ नहीं पा रहे हैं।"
"सच में?" आरव की आँखों में हल्की-सी उम्मीद जगी। यह उम्मीद वह खुद को कभी नहीं देता था, लेकिन मयंक जब कहता, तो उसे सच लगता था।
"बिल्कुल सच में!" मयंक ने कहा। "मैंने सुना है कि दिव्य ज्ञान पीठ अकादमी में ऐसे-ऐसे गुरु हैं, जिन्होंने तत्वों के हर रहस्य को समझा है। वे तुम्हारी मदद ज़रूर करेंगे। वे तुम्हें सिखाएँगे कि तुम्हारी यह... शून्यता... शायद एक बहुत बड़ी शक्ति हो।"
आरव कल्पना करने लगा। एक ऐसी जगह, जहाँ उसे 'शून्य' नहीं कहा जाएगा। जहाँ उसे सिखाया जाएगा। जहाँ उसे शायद अपनी पहचान मिल जाएगी। यह विचार ही उसके मन को शांति दे रहा था।
"पर वहाँ तक पहुँचना..." आरव ने गहरी साँस ली। "वो बहुत मुश्किल है, मयंक। परीक्षा होती है, और उसमें सिर्फ सबसे अच्छे लोग ही चुने जाते हैं।"
"तो क्या हुआ? हम कोशिश करेंगे!" मयंक ने दृढ़ता से कहा। "मैं अपनी जल-शक्ति पर इतनी मेहनत करूँगा कि वे मुझे मना नहीं कर पाएंगे। और तुम... तुम अपनी फुर्ती पर काम करो, अपने दिमाग पर काम करो। तुमने आज तक अपनी चतुराई से कितने ही लोगों को चौंकाया है। कौन जानता है, शायद वे अकादमी में सिर्फ ताकत ही नहीं, बुद्धिमत्ता भी देखते हों।"
"क्या सच में?" आरव के चेहरे पर थोड़ी रौनक लौटी।
"हाँ!" मयंक ने कहा। "और अगर किसी ने कुछ कहा भी... तो मैं हूँ ना। मैं अपनी जल-शक्ति से उनकी बोलती बंद कर दूँगा।" मयंक ने अपनी मुट्ठी भींचकर दिखाई, जैसे वह अभी से किसी से लड़ने को तैयार हो।
आरव मुस्कुराया। यह पहली बार था जब उसने आज सुबह मुस्कुराया था। "तुम अजीब हो।"
"और तुम शून्य!" मयंक ने छेड़ा।
आरव हँसा। यह हंसी सच्ची थी। मयंक के साथ आरव को हमेशा खुद को हल्का महसूस होता था। मयंक कभी उसे अकेला नहीं छोड़ता था, चाहे कोई कुछ भी कहे।
"सोचो, आरव," मयंक ने अपनी आवाज़ धीमी की, "जब हम उस अकादमी में होंगे, राजधानी में। वहाँ के बड़े-बड़े शहर, ऊँची-ऊँची इमारतें... मैंने सुना है, वहाँ हर जगह तत्व की ऊर्जा महसूस होती है। हवा में, सड़कों पर, लोगों में... वहाँ हम इस छोटे से गाँव से निकलकर एक नई दुनिया देखेंगे। हम सिर्फ शांतिवन के बच्चे नहीं रहेंगे, हम देश के महानतम तत्वधारियों में गिने जाएँगे!"
"लेकिन... हम कैसे जाएँगे वहाँ?" आरव ने पूछा। "अकादमी में जाने के लिए बहुत कुछ लगता है। गाँव से कौन हमें भेजेगा?"
"हम खुद जाएँगे।" मयंक ने कहा। "हम मेहनत करेंगे, आरव। हम अपनी शक्तियों को इतना चमकाएँगे कि गाँव वाले खुद हमें भेजें। उन्हें गर्व होगा हम पर। या फिर... अगर वे नहीं भेजेंगे, तो हम खुद किसी तरह पहुँचेंगे। मैंने सुना है कि हर साल एक 'योग्यता परीक्षा' होती है। अगर हम उसमें पास हो गए, तो कोई हमें रोक नहीं पाएगा।"
आरव के मन में एक नई उम्मीद की किरण जगी। यह सपना सिर्फ मयंक का नहीं था, यह उसका भी सपना था। एक सपना जो उसे इस खालीपन से बाहर निकाल सकता था, उसे एक पहचान दे सकता था।
"तो फिर... आज से ही तैयारी शुरू?" आरव ने मयंक की ओर देखते हुए कहा। उसकी आवाज़ में दृढ़ संकल्प था।
"आज से ही!" मयंक ने खुशी से कहा। "मैं तुम्हें सिखाऊँगा कि कैसे अपने शरीर को और फुर्तीला बनाना है, ताकि तुम मेरी जल-लहरों से भी तेज़ भाग सको। और तुम मुझे सिखाना कि कैसे... कैसे हर बात को धैर्य से समझना है। मेरा दिमाग कभी-कभी बहुत तेज़ चलता है।"
दोनों दोस्त एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए। नदी का पानी शांत बह रहा था, और सूरज की किरणें अब और तेज़ हो गई थीं। उनके आसपास की हवा में एक नई ऊर्जा थी, जो सिर्फ उनकी दोस्ती से नहीं, बल्कि उनके साझा सपने से पैदा हो रही थी।
"हमें वहाँ पहुँचना ही है, मयंक। कैसे भी करके।" आरव ने कहा। उसकी आँखों में अब उदासी की जगह एक नई चमक थी।
"हाँ! पहुँचना ही है!" मयंक ने कहा, और अपनी उंगलियों से पानी में एक छोटी-सी जल-छवि बनाई, जो पल भर में मिट गई। "और जब हम पहुँच जाएँगे, तो किसी को कहने की हिम्मत नहीं होगी कि तुम 'शून्य' हो। तब सब देखेंगे कि तुम क्या हो। मैं खुद दिखाऊँगा।"
आरव ने सिर हिलाया। उसे मयंक पर पूरा भरोसा था। यह सपना ही उनकी दोस्ती की नींव था, एक ऐसी नींव जो उन्हें इस गाँव के छोटेपन से, उपहास से, और खालीपन से ऊपर उठा सकती थी। वे दोनों वहीं बैठे रहे, नदी की ओर देखते हुए, उनके मन में दूर राजधानी में स्थित उस महान अकादमी के सुनहरे सपने तैर रहे थे। उन्हें नहीं पता था कि यह रास्ता कितना कठिन होगा, लेकिन एक बात निश्चित थी - वे इस सफ़र पर अकेले नहीं थे। कम से कम अभी तो नहीं।
"तुम्हें पता है, आरव," मयंक ने अचानक कहा, उसकी आवाज़ में थोड़ी गंभीरता आ गई थी, "अगले महीने ही तो वार्षिक तत्व-उत्सव है। गाँव वाले इसमें अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करेंगे। शायद यह हमारे लिए एक अच्छा मौका हो, अपनी तैयारी शुरू करने का। कम से कम अपनी क्षमता दिखाने का।"
आरव ने मयंक की ओर देखा। "तत्व-उत्सव? लेकिन... लेकिन उसमें तो सिर्फ तत्वधारी भाग लेते हैं..." उसकी आवाज़ में फिर से एक हिचकिचाहट थी।
मयंक ने तुरंत उसे टोक दिया। "पर हम देख तो सकते हैं ना! और सीख सकते हैं। और कौन जानता है, शायद इस बार... शायद इस बार कुछ अलग हो।" उसने आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में उम्मीद थी, लेकिन आरव के मन में एक अनकहा डर फिर से उठने लगा था। तत्व-उत्सव... यह उत्सव आरव के लिए हमेशा एक कड़वी याद बनकर ही रहा था।
Chapter 3 "पर हम देख तो सकते हैं ना! और सीख सकते हैं। और कौन जानता है, शायद इस बार... शायद इस बार कुछ अलग हो।" मयंक ने आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में उम्मीद थी, लेकिन आरव के मन में एक अनकहा डर फिर से उठने लगा था। तत्व-उत्सव... यह उत्सव आरव के लिए हमेशा एक कड़वी याद बनकर ही रहा था। "मुझे नहीं लगता, मयंक," आरव ने धीरे से कहा। उसकी आवाज़ में वो उत्साह नहीं था जो मयंक के पास था। "हर साल वही होता है। सब अपनी शक्तियाँ दिखाते हैं, और मैं बस किनारे खड़ा देखता हूँ। फिर वही... 'शून्य'।" उसने कंकड़ को पानी में उछाल दिया और एक छोटी-सी लहर उठी। मयंक ने आरव के कंधे पर फिर से हाथ रखा। "इस बार तुम मेरे साथ रहोगे। हम दोनों एक साथ देखेंगे। और कौन जानता है, शायद इस बार तुम कुछ सीख सको... कुछ ऐसा जो सिर्फ तुम कर सको।" मयंक की आँखों में आरव के लिए हमेशा एक अटूट विश्वास रहता था, एक ऐसा विश्वास जो आरव को खुद पर भी नहीं था। "ठीक है," आरव ने मयंक की बात मान ली। "देखते हैं।" उसके मन में अभी भी एक उम्मीद की हल्की-सी लौ जल रही थी, भले ही वह उसे खुद से स्वीकार न करना चाहता हो। अगले कुछ दिनों तक, शांतिवन गाँव में वार्षिक तत्व-उत्सव की धूम मच गई। गाँव की हवा में एक अजीब-सा उत्साह घुल गया था। हर घर को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जा रहा था। पेड़ों पर सजे मिट्टी के छोटे-छोटे दीपक शाम होते ही चमक उठते थे, और हवा में उनकी मंद-मंद रोशनी नाचती थी। गाँव का मुख्य चौक, जहाँ हर साल उत्सव का आयोजन होता था, पूरी तरह से साफ़ कर दिया गया था और रंगीन कपड़े और फूलों की मालाओं से सजाया जा रहा था। छोटे बच्चे, जिनमें अभी तक उनके तत्व पूरी तरह से विकसित नहीं हुए थे, भी इस तैयारी में कूद पड़े थे। वे एक-दूसरे पर पानी के छींटे मार रहे थे, या धूल के छोटे-छोटे भंवर बनाकर हँस रहे थे। आरव और मयंक भी इस माहौल को महसूस कर रहे थे। मयंक को उत्साह था, और आरव को, हमेशा की तरह, एक अजीब-सा खिंचाव महसूस हो रहा था। वह इस उत्सव का हिस्सा बनना चाहता था, भले ही सिर्फ एक दर्शक के रूप में। उसे देखना अच्छा लगता था कि कैसे लोग अपनी शक्तियों का उपयोग करके इतनी अद्भुत चीजें कर सकते हैं। मयंक हर दिन अपने जल-तत्व का अभ्यास कर रहा था। वह नदी के किनारे घंटों बिताता, अपनी उंगलियों से पानी में तरह-तरह के आकार बनाता। कभी वह पानी की एक छोटी-सी गेंद बनाता और उसे हवा में नचाता, कभी पानी के छोटे-छोटे फुहारों से पेड़ों को सींचता। आरव उसे चुपचाप देखता रहता। एक शाम, जब सूरज ढल रहा था, मयंक ने आरव को अपने पास बुलाया। "देखो, आरव!" उसने उत्साहित होकर कहा। "आज मैंने कुछ नया सीखा।" मयंक ने अपनी उंगलियों को नदी के पानी में डुबोया। इस बार, उसने पानी को ऊपर उठाया, लेकिन सिर्फ एक छोटी-सी गेंद के रूप में नहीं, बल्कि एक पतली, चमकती हुई रस्सी की तरह। वह रस्सी उसके हाथ में नाच रही थी, जैसे किसी अदृश्य धागे से बंधी हो। फिर उसने उस रस्सी को एक छोटे से फूल का आकार दिया। वह फूल पानी से बना था, लेकिन उसकी पंखुड़ियाँ इतनी नाज़ुक लग रही थीं जैसे वह असली हो। आरव की आँखें फैल गईं। "यह तो... यह तो अद्भुत है, मयंक!" उसने कहा। उसकी आवाज़ में सच्ची प्रशंसा थी। "हाँ!" मयंक ने गर्व से कहा। "गुरु जी ने कहा था कि पानी सिर्फ बहता नहीं, उसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है। बस ध्यान चाहिए।" उसने वह पानी का फूल आरव की ओर बढ़ाया। "यह तुम्हारे लिए।" आरव ने धीरे से वह पानी का फूल अपनी हथेली में लिया। वह ठंडा था, और उसकी उंगलियों के बीच से पानी की कुछ बूँदें टपक रही थीं। कुछ ही देर में वह फूल बूँदों में बिखर गया। आरव ने उस पानी को अपनी उंगलियों पर देखा, और फिर मयंक की ओर देखा। "काश मैं भी..." "तुम भी कुछ कर सकते हो, आरव," मयंक ने तुरंत कहा। "तुम्हें बस अपनी चीज़ ढूंढनी है।" गाँव के दूसरे युवा तत्वधारी भी अपनी क्षमताओं को निखारने में लगे थे। सुबह-सुबह गाँव के बड़े मैदान में वे अपनी शक्तियों का अभ्यास करते। समीर, वायु-तत्वधारी, हवा में इतनी तेज़ी से दौड़ता कि मुश्किल से दिखाई देता। वह हवा के छोटे-छोटे झोंके बनाता, जो पत्तों को दूर उड़ा देते, और कभी-कभी तो छोटी-छोटी धूल भरी आंधियां भी खड़ी कर देता। उसकी गति इतनी अद्भुत थी कि कोई भी उसे पकड़ नहीं पाता था। एक दिन, समीर अपनी गति का प्रदर्शन कर रहा था। उसने मैदान के एक छोर से दूसरे छोर तक आँख झपकते ही पहुँचने का अभ्यास किया। बच्चे उसे देखकर तालियाँ बजा रहे थे। "कितनी तेज़ है समीर!" एक बच्चे ने कहा। "मुझे लगता है, वह इस बार दौड़ में ज़रूर जीतेगा।" आरव वहीं पास में खड़ा देख रहा था। उसे समीर की गति देखकर थोड़ी ईर्ष्या होती थी, लेकिन साथ ही एक अचंभा भी होता था। वह सोचता था कि अगर उसके पास भी इतनी गति होती, तो शायद उसे कभी 'शून्य' नहीं कहा जाता। "आरव, तुम क्या सोच रहे हो?" मयंक ने उससे पूछा, जो उसके बगल में खड़ा था। "बस यही सोच रहा था कि समीर कितना भाग्यशाली है," आरव ने कहा। "वह हवा को अपने इशारों पर नचाता है। काश मैं भी..." "पर तुम भी कम नहीं हो, आरव," मयंक ने टोका। "तुमने देखा, समीर कैसे थोड़ा सा संतुलन खो रहा था जब उसने इतनी तेज़ दौड़ लगाई? अगर तुममें थोड़ी भी शक्ति होती, तो तुम अपनी चतुराई से उसे हरा सकते थे।" आरव ने मयंक की ओर देखा। "शायद," उसने कहा, लेकिन उसके मन में एक शंका थी। भैरवी, पृथ्वी-तत्वधारी, भी अपने अभ्यास में लगी थी। वह मैदान के एक कोने में खड़ी थी, और अपनी शक्तियों से मिट्टी को आकार दे रही थी। कभी वह मिट्टी से एक मज़बूत दीवार बनाती, तो कभी एक छोटा-सा किला। उसकी बनाई हुई मिट्टी की आकृतियाँ इतनी मज़बूत होती थीं कि बच्चे उन पर चढ़ने की कोशिश करते, लेकिन वे हिलती भी नहीं थीं। भैरवी शांत स्वभाव की थी, लेकिन उसकी शक्तियाँ बहुत ही शक्तिशाली और दृढ़ थीं। उसकी बनाई दीवारें इतनी मज़बूत होती थीं कि उन पर कोई भी हमला असर नहीं करता था। "भैरवी की रक्षा शक्ति तो कमाल की है!" मयंक ने आरव से कहा। "कोई भी उसे भेद नहीं सकता।" "हाँ," आरव ने सहमति में सिर हिलाया। "उसकी बनाई दीवारें पत्थरों जैसी मज़बूत होती हैं।" "इस बार तत्व-उत्सव में कुछ नई प्रतियोगिताएँ भी रखी गई हैं," मयंक ने उत्साहित होकर कहा। "सिर्फ शक्ति प्रदर्शन नहीं, कुछ बाधा-दौड़ भी है, और निशाना लगाने की प्रतियोगिता भी।" आरव की आँखों में एक चमक आई। "बाधा-दौड़?" उसने पूछा। उसे अपनी फुर्ती पर थोड़ा भरोसा था। शायद, अगर कोई ऐसी प्रतियोगिता हो, जिसमें सिर्फ शक्ति का नहीं, बल्कि गति और चतुराई का भी इस्तेमाल हो... "हाँ!" मयंक ने कहा। "मुझे लगता है, यह तुम्हारे लिए एक मौका हो सकता है, आरव। तुम अपनी फुर्ती से सबको चौंका सकते हो।" आरव के मन में एक नया विचार पनपने लगा। क्या यह सचमुच एक मौका हो सकता है? एक मौका, जहाँ वह अपनी 'शून्यता' को छोड़कर, अपनी किसी दूसरी क्षमता का प्रदर्शन कर सके? उसके दिल की धड़कन थोड़ी तेज़ हो गई। जैसे-जैसे उत्सव का दिन नज़दीक आता गया, गाँव में उत्साह का माहौल और भी बढ़ता गया। घरों को मिट्टी के दीयों और फूलों से सजाया गया था। गाँव के मुखिया ने घोषणा की थी कि इस बार का उत्सव पिछले सभी उत्सवों से बड़ा होगा, क्योंकि कई वर्षों के बाद यह पूर्ण चंद्र की रात में पड़ रहा था, जिससे तत्वों की ऊर्जा और भी प्रबल होगी। उत्सव से एक दिन पहले, आरव और मयंक गाँव के चौक पर खड़े थे। चौक की सजावट पूरी हो चुकी थी। हवा में पकवानों की महक और धूप की खुशबू घुली हुई थी। हर तरफ़ लोग उत्साहित दिख रहे थे। बच्चे दौड़ रहे थे, हँस रहे थे। "कितना सुंदर लग रहा है सब कुछ!" आरव ने कहा। उसकी आवाज़ में एक हल्की-सी खुशी थी। यह खुशी उसने काफी समय बाद महसूस की थी। "हाँ!" मयंक ने सहमति दी। "काश ये हमेशा ऐसे ही रहता।" तभी आरव ने देखा, प्रतियोगिता की सूची और नियमों वाला एक बड़ा पोस्टर चौक के बीच में लगा था। लोग उसके चारों ओर जमा थे और उत्सुकता से पढ़ रहे थे। "चलो, आरव! देखते हैं क्या-क्या है इस बार," मयंक ने आरव का हाथ पकड़ा और उसे भीड़ की ओर खींचा। वे दोनों पोस्टर के पास पहुँचे। पोस्टर पर प्रतियोगिता के नाम लिखे थे: 'जल-शक्ति प्रदर्शन', 'वायु-वेग दौड़', 'पृथ्वी-रक्षा चुनौती', 'अग्नि-दीप्ति', और सबसे नीचे, 'तत्वधारी बाधा-दौड़'। आरव ने 'तत्वधारी बाधा-दौड़' पढ़ा। उसकी आँखें उस नाम पर टिक गईं। यह दौड़, जिसमें फुर्ती और रणनीति की आवश्यकता थी। उसने मयंक की ओर देखा। "मयंक, क्या मैं इसमें भाग ले सकता हूँ?" उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी उम्मीद थी। मयंक ने पोस्टर पर लिखे नियम पढ़े। 'केवल तत्वधारियों के लिए', नियम में स्पष्ट रूप से लिखा था। मयंक का चेहरा उतर गया। उसने आरव की ओर देखा। "आरव... इसमें भी 'तत्वधारी' लिखा है।" आरव का चेहरा फिर से बुझ गया। उसकी आँखों में चमक आई उम्मीद की किरण तुरंत बुझ गई। "ओह... हाँ।" उसने फुसफुसाया। उसे फिर से उस 'शून्यता' का एहसास हुआ, जो उसे हर जगह रोक देती थी। मयंक ने आरव के कंधे पर हाथ रखा। "पर तुम देख तो सकते हो ना! और हम सीख सकते हैं। अगले साल के लिए।" उसने आरव को दिलासा देने की कोशिश की, लेकिन आरव जानता था कि अगले साल भी यही होगा। वह हमेशा एक दर्शक ही रहेगा। आरव ने एक गहरी साँस ली। "कोई बात नहीं," उसने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में दर्द था। वह जानता था कि उसके लिए यह एक नई अस्वीकृति नहीं थी, बल्कि पुरानी कहानी का ही एक और अध्याय था। उसने चुपचाप वहाँ से मुड़ना शुरू किया। भीड़ के बीच में, रोशनी और उत्सव के माहौल में भी, आरव को फिर से अकेलापन महसूस होने लगा था। वह एक बार फिर उस खालीपन के दायरे में आ गया था, जहाँ से उसे निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। यह उत्सव, जो सबके लिए खुशी का प्रतीक था, उसके लिए एक बार फिर सिर्फ एक दुखद reminder था, उसकी 'शून्यता' का। वह धीरे-धीरे भीड़ से बाहर निकला, उसकी नज़रें ज़मीन पर थीं। उसका उत्साह, जो अभी कुछ पल पहले जगा था, अब पूरी तरह से बुझ चुका था। वह बस वहाँ से चला जाना चाहता था, जहाँ कोई उसे देख न सके, और उसे उसकी शून्यता याद न दिला सके। वह नहीं जानता था कि वह कहाँ जा रहा था, बस कहीं दूर, इस उत्सव और इस गाँव से दूर।
Chapter 4
मयंक ने तुरंत आरव का हाथ पकड़ लिया, इससे पहले कि वह भीड़ में कहीं गुम हो जाता। "अरे! कहाँ चले, आरव?" उसने पूछा, उसकी आवाज़ में हैरानी और चिंता दोनों थीं। "ऐसे कैसे हार मान रहे हो? एक बार पूछ तो सही! क्या पता, वे मान जाएँ?"
आरव ने बिना मुड़े, ज़मीन पर देखते हुए कहा, "क्या पूछना है, मयंक? साफ़-साफ़ लिखा है। 'तत्वधारी'। मैं तत्वधारी नहीं हूँ।" उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी निराशा थी, जैसे उसने अपनी किस्मत पहले ही लिख दी हो।
"लिखा है, तो क्या हुआ? नियम तो बदलते भी हैं! और तुम्हारी फुर्ती! क्या वह किसी तत्व से कम है? चलो, कम से कम मुखिया जी से पूछ तो सही।" मयंक ने आरव का हाथ कसकर पकड़े रखा। उसकी आँखों में एक नई उम्मीद थी, जो आरव की आँखों में नहीं थी। "एक बार कोशिश तो करते हैं ना? अगर तुम इसमें भाग ले पाए, तो कितना अच्छा होगा! शायद यह अकादमी में जाने के लिए हमारा पहला कदम हो!"
मयंक की बात सुनकर आरव के मन में फिर से एक हिचकिचाहट हुई। अकादमी का सपना... क्या यह वाकई एक मौका हो सकता है? उसकी फुर्ती... क्या वह सच में इतनी खास थी कि लोग उसकी 'शून्यता' को नज़रअंदाज़ कर दें? उसके मन में एक हल्की-सी उम्मीद की किरण फिर से जगी। मयंक का विश्वास हमेशा उसे थोड़ा आगे बढ़ने की ताकत देता था।
आरव ने धीरे से सिर उठाया। उसकी नज़रें पोस्टर से हटकर मुखिया के घर की ओर गईं, जहाँ से मुखिया जी अक्सर उत्सव की तैयारियों का निरीक्षण करते थे। "पर... क्या फायदा?" उसने फुसफुसाया।
"फायदा या नुकसान, वह बाद में देखेंगे! पहले पूछेंगे तो सही!" मयंक ने आरव को लगभग खींचते हुए मुखिया के घर की ओर बढ़ा। "चलो!"
आरव हिचकिचाता हुआ मयंक के पीछे-पीछे चलने लगा। उसके कदम भारी थे, लेकिन मयंक की दृढ़ता उसे आगे बढ़ा रही थी। मुखिया का घर गाँव के चौक से थोड़ा हटकर था, लेकिन वहाँ भी उत्सव की चहल-पहल कम नहीं थी। कई गाँव वाले मुखिया से कुछ बातें करने या अपनी तैयारियाँ दिखाने आए हुए थे।
वे मुखिया के घर के पास पहुँचे। मुखिया, जो एक वृद्ध और शांत स्वभाव के व्यक्ति थे, कुछ अन्य बुजुर्गों के साथ खड़े होकर बात कर रहे थे। उनके चेहरे पर ज्ञान और अनुभव की झुर्रियाँ थीं, और उनकी आँखों में गाँव के प्रति गहरा स्नेह था।
मयंक ने साहस करके आगे बढ़कर उन्हें प्रणाम किया। "मुखिया जी! प्रणाम।"
मुखिया ने मुस्कुराकर उनकी ओर देखा। "प्रसन्न रहो, बच्चों। क्या बात है? उत्सव की तैयारी कैसी चल रही है?"
"सब बढ़िया चल रहा है, मुखिया जी।" मयंक ने कहा, और फिर आरव की ओर इशारा किया। "हम... हम आपसे एक बात पूछने आए थे।"
मुखिया ने अपनी भौंहें थोड़ी उठाईं। "कहो, क्या बात है?"
मयंक ने हिम्मत बटोरी। "मुखिया जी, यह आरव है। आप तो जानते हैं, वह बहुत फुर्तीला है। उसकी गति... उसकी गति तो हवा-तत्वधारियों से भी तेज़ है। और वह बहुत समझदार भी है।" मयंक ने आरव की ओर देखा, उसे प्रोत्साहित करने के लिए। आरव ज़मीन में गड़ा हुआ था, उसके हाथ पसीने से भीग रहे थे।
"हाँ, आरव! मैं तुम्हें जानता हूँ। एक अच्छा बालक है।" मुखिया ने आरव की तरफ देख कर कहा। उनकी आवाज़ में कुछ स्नेह था, लेकिन साथ ही एक दूरी भी।
"मुखिया जी, उत्सव में जो बाधा-दौड़ प्रतियोगिता है... क्या आरव उसमें भाग ले सकता है?" मयंक ने अपनी बात रखी। "पोस्टर पर 'तत्वधारी' लिखा है, लेकिन क्या... क्या उसकी फुर्ती को एक तत्व नहीं माना जा सकता? वह अपनी चतुराई से भी तो जीत सकता है!"
मयंक की बात सुनकर मुखिया के बगल में खड़े एक बुजुर्ग ने अपनी दाढ़ी खुजाई। "मयंक, तुम जानते हो कि तत्व-उत्सव केवल तत्वधारियों के लिए है। यह हमारे गाँव की परंपरा है। यह उन शक्तियों का सम्मान है, जो हमें प्रकृति से मिली हैं।"
मुखिया ने भी सिर हिलाया। उन्होंने आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में वही उदासी और उम्मीद का मिश्रण देखकर उन्हें थोड़ी दया आई। "देखो, मयंक, और तुम भी, आरव। मैं तुम्हारी भावनाओं को समझता हूँ। आरव एक बहुत अच्छा और फुर्तीला बच्चा है, इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन तत्व-उत्सव के नियम बहुत पुराने हैं। यह केवल उन बच्चों के लिए है जिनमें तत्वों की शक्ति जागृत हो चुकी है।"
"लेकिन मुखिया जी..." मयंक ने फिर से कुछ कहना चाहा।
"नहीं, मयंक।" मुखिया ने उसे बीच में ही रोक दिया, उनकी आवाज़ में अब थोड़ी दृढ़ता आ गई थी। "यह केवल शक्ति प्रदर्शन का उत्सव नहीं है, यह हमारे तत्व-बंधन का उत्सव है। हम उन शक्तियों का जश्न मनाते हैं जो हमें दूसरे जीवों से अलग बनाती हैं। अगर कोई तत्वधारी नहीं है, तो वह इस उत्सव का हिस्सा कैसे बन सकता है? यह नियमों के विरुद्ध होगा, और हमारी परंपरा का अपमान होगा।"
आरव का दिल डूब गया। ये शब्द उसके कानों में हथौड़े की तरह बज रहे थे। 'अगर कोई तत्वधारी नहीं है, तो वह इस उत्सव का हिस्सा कैसे बन सकता है?' यह सीधी, स्पष्ट अस्वीकृति थी। कोई बहाना नहीं, कोई घुमावदार बात नहीं। बस एक ठंडा, कठोर सत्य।
"आरव की फुर्ती अच्छी है, उसकी बुद्धिमत्ता भी अच्छी है," एक अन्य बुजुर्ग ने कहा। "लेकिन इस उत्सव में... नहीं। यह संभव नहीं है।"
आरव ने धीरे से अपना सिर नीचे कर लिया। उसकी आँखों में जो हल्की-सी चमक जगी थी, वह पूरी तरह से बुझ चुकी थी। उसे लगा जैसे उसके पेट में एक गहरा खालीपन पसर गया हो। वह जानता था कि यही होगा, लेकिन जब यह बात उसके मुँह पर कही गई, तो दर्द और भी गहरा था। वह 'शून्य' था, और यह दुनिया उसे बार-बार इसी बात की याद दिलाती रहती थी।
मयंक ने आरव के कंधे पर हाथ रखा, उसे महसूस हुआ कि आरव का शरीर काँप रहा था। मयंक ने मुखिया और अन्य बुजुर्गों की ओर देखा। उनके चेहरे पर कोई दुर्भावना नहीं थी, केवल नियमों का पालन करने की दृढ़ता थी। मयंक समझ गया कि यहाँ और बहस करने का कोई फायदा नहीं।
"ठीक है, मुखिया जी," मयंक ने धीरे से कहा। "हम आपकी बात समझते हैं। धन्यवाद।" उसने आरव को धीरे से पीछे की ओर खींचा।
आरव बिना कुछ कहे, बिना किसी की ओर देखे, बस वहाँ से मुड़ गया। उसके कदम पहले से भी ज़्यादा भारी थे। उत्सव की रंग-बिरंगी रोशनी और पकवानों की सुगंध अब उसे और भी ज़्यादा चुभ रही थी। हर हँसता हुआ चेहरा, हर तत्वधारी बच्चा जो अपनी शक्ति का अभ्यास कर रहा था, उसे अपनी 'शून्यता' का अहसास दिला रहा था।
"आरव... रुक जाओ।" मयंक ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन आरव ने अपना हाथ छुड़ा लिया और तेज़ी से चलने लगा। वह बस वहाँ से दूर जाना चाहता था, जहाँ कोई उसे देख न सके।
मयंक उसके पीछे भागा। "आरव! सुनो तो! मैं तुम्हारे साथ हूँ!"
आरव ने कोई जवाब नहीं दिया। वह दौड़ने लगा, भीड़ से बाहर निकलने के लिए, गाँव के अंतिम छोर तक पहुँचने के लिए। उसकी आँखों में अब आँसू भर आए थे, लेकिन वह उन्हें रोकने की पूरी कोशिश कर रहा था। यह पहली बार नहीं था कि उसे अस्वीकार किया गया था, लेकिन इस बार उसे इतनी शिद्दत से महसूस हुआ कि इस दुनिया में बिना शक्ति के उसकी कोई जगह नहीं है। उसके पास फुर्ती थी, उसके पास दिमाग था, उसके पास दोस्ती थी... लेकिन उसके पास कोई 'तत्व' नहीं था। और इसी एक कमी ने उसे इस समाज में हमेशा के लिए एक बाहरी व्यक्ति बना दिया था।
वह भागता रहा, जब तक कि वह गाँव की सीमा से थोड़ी दूर, एक छोटे से टीले पर न पहुँच गया। वहाँ कोई नहीं था। हवा तेज़ी से चल रही थी, और पेड़ों की पत्तियाँ ज़ोर-ज़ोर से हिल रही थीं, जैसे वे भी उसके दर्द को महसूस कर रही हों। आरव वहीं बैठ गया, अपने घुटनों में सिर छिपाकर। उसकी पीठ हिल रही थी, और उसके कंधे काँप रहे थे।
मयंक कुछ ही देर में उसके पास पहुँच गया। उसने आरव को वैसे ही बैठे देखा, और उसका दिल टूट गया। वह धीरे से आरव के बगल में बैठ गया और अपना हाथ आरव के पीठ पर रखा। "आरव... मत रो।" उसकी आवाज़ भर्राई हुई थी।
"मैं क्यों नहीं कर सकता, मयंक?" आरव की आवाज़ भीगी हुई थी। "मैं क्यों नहीं किसी तत्व का इस्तेमाल कर सकता? मुझे ऐसा क्यों बनाया गया? मैं बस खाली हूँ... बिल्कुल खाली।"
"तुम खाली नहीं हो, मेरे दोस्त," मयंक ने धीरे से कहा। "तुम... तुम बहुत कुछ हो। और यह दुनिया... यह दुनिया तुम्हारी कद्र नहीं करती। पर मैं करता हूँ। मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोडूंगा, आरव। कभी नहीं।"
मयंक ने आरव को धीरे से अपनी ओर खींचा और उसे गले लगा लिया। आरव रोता रहा, अपने दोस्त के कंधों पर अपना सिर रखकर। मयंक उसे चुप कराता रहा, उसकी पीठ थपथपाता रहा। हवा में उत्सव की धीमी आवाज़ अभी भी आ रही थी, लेकिन यहाँ, इस टीले पर, केवल आरव के सिसकने की आवाज़ थी।
कुछ देर बाद, जब आरव थोड़ा शांत हुआ, तो मयंक ने उससे पूछा, "क्या... क्या करें अब? तुम्हें इतना उदास नहीं देख सकता मैं।"
आरव ने अपनी आँखें पोंछीं। उसके चेहरे पर अभी भी दर्द था, लेकिन अब उसमें थोड़ी-सी दृढ़ता आ गई थी। "कुछ नहीं कर सकते," उसने धीरे से कहा। "बस यही है। हमें यह मानना ही होगा।"
मयंक ने आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में गहरी सहानुभूति थी। "लेकिन अकादमी का सपना... क्या उसे छोड़ देंगे?"
आरव ने आसमान की ओर देखा, जहाँ चाँद की हल्की-सी रोशनी दिखाई दे रही थी। "शायद वही एक रास्ता है," उसने फुसफुसाया। "अगर इस गाँव में मेरी कोई जगह नहीं है, तो शायद उस अकादमी में... शायद वहाँ कोई मुझे समझे। कोई मुझे बताए कि मैं क्या हूँ।"
"हाँ!" मयंक ने तुरंत कहा। "और हम वहाँ पहुँचेंगे, आरव! किसी भी कीमत पर। अगर वे हमें यहाँ स्वीकार नहीं करते, तो हम एक ऐसी जगह बनाएँगे जहाँ हमें स्वीकार किया जाएगा।"
आरव ने मयंक की ओर देखा। उसके दोस्त की आवाज़ में जो दृढ़ संकल्प था, वह आरव को फिर से हिम्मत दे रहा था। लेकिन इस अस्वीकृति ने आरव के अंदर एक अजीब-सी बेचैनी पैदा कर दी थी। वह चाहता था कि वह इस दर्द से बाहर निकले, इस खालीपन से।
"क्या तुम्हें लगता है... क्या तुम्हें लगता है कि मैं कभी भी किसी भी चीज़ में फिट नहीं हो पाऊँगा?" आरव ने पूछा, उसकी आवाज़ में अभी भी एक दुख था।
"कभी नहीं, आरव," मयंक ने तुरंत कहा, "तुम फिट नहीं होगे, तुम अलग होगे। और वह अलग होना ही तुम्हें खास बनाता है।" मयंक ने अचानक आरव का हाथ पकड़ा और उसे खींचा। "चलो, आरव।"
"कहाँ?" आरव ने पूछा, हैरान होकर।
"अंधकार-वन!" मयंक ने कहा, उसकी आँखों में एक शरारती चमक थी। "मैं तुम्हें वहाँ की सीमा तक ले जाऊँगा। तुम्हें याद है, हम बचपन में कितनी बार वहाँ जाने की सोचते थे? शायद वहाँ कुछ ऐसा हो जो तुम्हें यह अहसास दिलाए कि तुम कितने खास हो।"
आरव की आँखों में आश्चर्य था। अंधकार-वन... वह गाँव के पास का प्रतिबंधित जंगल था, जिसके बारे में अनगिनत कहानियाँ प्रचलित थीं। कहानियाँ डरावनी थीं, रहस्यमयी थीं। आरव जानता था कि वहाँ जाना खतरे से खाली नहीं। लेकिन मयंक की आवाज़ में जो रोमांच था, और अपने दर्द से भागने की जो चाहत आरव के अंदर थी, उसने उसे मयंक की बात मानने पर मजबूर कर दिया। "अंधकार-वन? तुम... तुम पागल तो नहीं हो?" आरव ने कहा, लेकिन उसके चेहरे पर अब डर के साथ-साथ एक हल्की-सी उत्सुकता भी थी। यह कुछ नया था, कुछ ऐसा जो उसे उसके मौजूदा दर्द से दूर ले जा सकता था।
मयंक मुस्कुराया। "थोड़ा-सा पागलपन तो ज़रूरी है, आरव। खासकर तब, जब दुनिया तुम्हें समझा रही हो कि तुम क्या नहीं हो। चलो! बस सीमा तक ही जाएँगे, वादा करता हूँ।" मयंक ने आरव का हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा और वे गाँव के पीछे की ओर, अंधकार-वन की दिशा में चल पड़े। आरव को नहीं पता था कि मयंक उसे कहाँ ले जा रहा था, लेकिन इस वक्त उसे इस गाँव और अपनी 'शून्यता' के अहसास से दूर कहीं भी जाना मंज़ूर था। उनके सामने अंधेरे में लिपटा, रहस्यमयी अंधकार-वन इंतज़ार कर रहा था।
Chapter 5
"अंधकार-वन? तुम... तुम पागल तो नहीं हो?" आरव ने पूछा, लेकिन उसके चेहरे पर अब डर के साथ-साथ एक हल्की-सी उत्सुकता भी थी। यह कुछ नया था, कुछ ऐसा जो उसे उसके मौजूदा दर्द से दूर ले जा सकता था।
मयंक मुस्कुराया। "थोड़ा-सा पागलपन तो ज़रूरी है, आरव। खासकर तब, जब दुनिया तुम्हें समझा रही हो कि तुम क्या नहीं हो। चलो! बस सीमा तक ही जाएँगे, वादा करता हूँ।" मयंक ने आरव का हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा और वे गाँव के पीछे की ओर, अंधकार-वन की दिशा में चल पड़े। आरव को नहीं पता था कि मयंक उसे कहाँ ले जा रहा था, लेकिन इस वक्त उसे इस गाँव और अपनी 'शून्यता' के अहसास से दूर कहीं भी जाना मंज़ूर था। उनके सामने अंधेरे में लिपटा, रहस्यमयी अंधकार-वन इंतज़ार कर रहा था।
वे गाँव की अंतिम झोपड़ियों से गुज़रते हुए एक पतली पगडंडी पर चल पड़े। पीछे गाँव में उत्सव की धीमी आवाज़ें अभी भी आ रही थीं, लेकिन जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए, वे आवाज़ें फीकी पड़ती गईं। सूरज ढल चुका था, और आसमान में गहरे नीले रंग की चादर फैल रही थी। पेड़, जो पहले खुले मैदानों में फैले हुए थे, अब घने होने लगे थे। उनकी शाखाएँ आपस में गुंथकर एक छतरी सी बना रही थीं, जिससे नीचे ज़मीन पर अंधेरा और गहरा होता जा रहा था।
"मयंक... यह बहुत अंधेरा हो रहा है," आरव ने कहा, उसकी आवाज़ में एक हल्की-सी घबराहट थी। उसने अपने चारों ओर देखा। हवा में एक अजीब-सी ठंडक महसूस होने लगी थी, जो गाँव की गर्म और उत्सव भरी हवा से बिल्कुल अलग थी।
"डर मत, आरव," मयंक ने कहा, उसने आरव का हाथ और कसकर पकड़ लिया। "हम बस सीमा तक ही जाएँगे। तुम्हें याद है, बचपन में हम कितनी कहानियाँ सुनते थे इस जंगल के बारे में? तात्विक जानवरों की, छिपे हुए खजानों की..."
आरव ने ठिठुरते हुए कहा, "और डरावने राक्षसों की भी! यह जंगल प्रतिबंधित है, मयंक। गाँव के बड़े कहते हैं कि यहाँ जाना सुरक्षित नहीं है।"
"इसीलिए तो मज़ा है ना!" मयंक ने हँसते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में भी एक हल्की-सी घबराहट थी। "अगर सुरक्षित होता, तो सब जाते। और फिर यह हमें खास कैसे बनाता? और वैसे भी, हम सिर्फ़ सीमा तक ही जा रहे हैं। कोई अंदर नहीं घुस रहा।"
वे चलते रहे। पगडंडी अब और भी संकरी होती जा रही थी। पेड़ों की जड़ें ज़मीन पर साँप की तरह फैली हुई थीं, और हर कदम पर उन्हें ठोकर लगने का डर था। जंगल का प्रवेश द्वार अब उनके सामने था। यह कोई दीवार या बाड़ नहीं थी, बल्कि पेड़ों का एक घना समूह था, जो इतना ऊँचा और आपस में जुड़ा हुआ था कि अंदर का रास्ता ढका हुआ लगता था। जंगल के प्रवेश द्वार पर कुछ पुराने, सूखे हुए पत्ते बिखरे पड़े थे, जिन पर अजीब से निशान बने हुए थे, जैसे किसी जानवर के पंजों के निशान हों, लेकिन वे बहुत बड़े थे।
"यह रहा अंधकार-वन," मयंक ने फुसफुसाया। उसकी आवाज़ में awe और डर का मिश्रण था।
आरव ने जंगल के अंदर झाँका। वहाँ घुप अंधेरा था। पेड़ों के बीच से सूरज की कोई किरण अंदर नहीं पहुँच पा रही थी। हवा एकदम शांत थी, लेकिन उसे लग रहा था जैसे कोई उसे अंदर खींच रहा हो।
"यहाँ से अजीब-सी महक आ रही है," आरव ने अपनी नाक सिकोड़ते हुए कहा। यह महक मिट्टी और सड़ी हुई पत्तियों की थी, लेकिन उसमें कुछ और भी था—एक तीखी, अपरिचित गंध, जैसे किसी जंगली जानवर की।
तभी, जंगल के अंदर से एक धीमी, गहरी गर्जना सुनाई दी। यह किसी सामान्य जानवर की आवाज़ नहीं थी। यह ऐसी आवाज़ थी जो धरती को कंपकंपा दे।
आरव उछल पड़ा। "क्या था वो?" उसने फुसफुसाया, उसकी आँखें डर से फैल गईं।
मयंक भी थोड़ा सहम गया। "पता नहीं... लगता है कोई बड़ा जानवर है।" उसकी आवाज़ में अब bravado नहीं, बल्कि वास्तविक भय था।
गर्जना फिर से हुई, इस बार थोड़ी और तेज़। उसके साथ-साथ कुछ पत्तियों के सरसराने की और शाखाओं के टूटने की आवाज़ें भी आईं।
"मयंक, हमें वापस चलना चाहिए," आरव ने कहा, उसका गला सूख रहा था। "यह सुरक्षित नहीं है। मुखिया जी सही कहते थे।"
"एक मिनट रुक, आरव," मयंक ने कहा। उसने अपना हाथ हवा में उठाया, जैसे वह कुछ महसूस कर रहा हो। "तुम्हें कुछ महसूस हो रहा है?"
आरव ने ध्यान से महसूस करने की कोशिश की। हवा ठंडी थी, लेकिन अब उसमें एक अजीब-सी सिहरन थी। जैसे बिजली का कोई तार पास से गुज़र रहा हो, और उससे एक सूक्ष्म ऊर्जा निकल रही हो। यह वैसा नहीं था जैसा तत्वों को इस्तेमाल करते हुए महसूस होता था, यह कुछ अलग था, ज़्यादा कच्चा, ज़्यादा जंगली।
"हाँ... एक अजीब-सी ठंडक है," आरव ने कहा। "और... और कुछ अजीब-सा लग रहा है। जैसे हवा में कोई भारीपन हो।"
"हाँ!" मयंक ने धीरे से कहा। "यह किसी तत्व की ऊर्जा नहीं है... यह कुछ और है। मैंने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया।" मयंक, जो जल-तत्व को महसूस कर सकता था, के लिए यह एक बिलकुल नया अनुभव था।
एक और अजीब-सी आवाज़ आई, इस बार कुछ खुरचने जैसी, और फिर एक तेज़ दहाड़, जो पहले वाली से भी ज़्यादा भयानक थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई विशाल जानवर ज़मीन खोद रहा हो।
आरव काँपने लगा। "चलो, मयंक! हमें वापस चलना चाहिए!" उसने मयंक का हाथ पकड़ा और उसे खींचने की कोशिश की।
मयंक अपनी जगह से हिला नहीं। उसकी नज़रें जंगल के अंदर गड़ी हुई थीं। उसके चेहरे पर डर था, लेकिन साथ ही एक गहरी जिज्ञासा भी। "क्या तुम्हें लगता है... क्या वहाँ सच में कोई तात्विक जानवर रहते हैं?" उसने फुसफुसाया।
"मुझे नहीं पता, और मैं जानना भी नहीं चाहता!" आरव ने कहा, उसकी आवाज़ में लगभग रोने जैसा स्वर था। "चलो यहाँ से! मैं डर गया हूँ, मयंक।"
मयंक ने आरव की बात सुनी। उसने एक गहरी साँस ली, और फिर आरव की ओर मुड़ा। "ठीक है, आरव। हम चलते हैं।" उसने कहा, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी जंगल की गहराई की झलक थी। "पर... यह जगह अजीब है, है ना?"
आरव ने डरते हुए सिर हिलाया। "हाँ... बहुत अजीब।"
वे धीरे-धीरे पीछे हटने लगे। हर कदम पर आरव को लग रहा था जैसे कोई अदृश्य आँख उन्हें देख रही हो। जंगल की हवा में वही अपरिचित ऊर्जा अभी भी घुली हुई थी।
"कभी सोचा नहीं था कि जंगल इतना डरावना हो सकता है," आरव ने कहा, जब वे कुछ दूरी पर पहुँच गए।
"और रोमांचक भी," मयंक ने कहा। "सोचो, अगर हम कभी अंदर जा पाए तो? क्या-क्या मिल सकता है वहाँ?"
आरव ने मयंक की ओर देखा। "मयंक! तुम अभी भी अंदर जाने की सोच रहे हो? हम अभी-अभी अपनी जान बचाकर आए हैं!"
मयंक हँसा, एक हल्की, डरी हुई हँसी। "पता नहीं, आरव। बस सोच रहा था। यह जगह... यह जगह बहुत कुछ छिपाए हुए है।" उसने एक और गहरी साँस ली। "पर... तुम्हें कैसा लगा?"
आरव ने सोचा। दर्द, निराशा, डर... ये सब तो था ही। लेकिन उसके साथ-साथ, एक अजीब-सा रोमांच भी था। एक अज्ञात का आकर्षण। जब वह उस अपरिचित ऊर्जा को महसूस कर रहा था, तो उसे लगा जैसे वह किसी ऐसी चीज़ के करीब आ गया हो जिसे उसने पहले कभी नहीं जाना था। "मुझे... मुझे डर लगा," आरव ने स्वीकार किया। "पर... मुझे यह भी लगा कि वहाँ कुछ ऐसा है, जिसके बारे में हमें नहीं पता। कुछ बहुत शक्तिशाली।"
"हाँ!" मयंक की आँखें चमक उठीं। "बिल्कुल! क्या पता वहाँ कुछ ऐसा हो जो तुम्हारी... तुम्हारी इस 'शून्यता' को समझ सके।"
आरव ने कुछ नहीं कहा। वह जानता था कि मयंक उसे फिर से हिम्मत देने की कोशिश कर रहा था। लेकिन इस बार, उसके मन में सिर्फ़ डर नहीं था। उस जंगल की रहस्यमयी ऊर्जा ने, उन अजीब आवाज़ों ने, उसके अंदर एक नई जिज्ञासा जगा दी थी। एक ऐसी जिज्ञासा जो उसके 'शून्य' होने के दर्द से भी ज़्यादा प्रबल थी।
वे दोनों चुपचाप गाँव की ओर वापस लौट रहे थे। रात का अंधेरा अब और गहरा हो चुका था, और तारे आसमान में चमक रहे थे। पीछे, अंधकार-वन चुपचाप खड़ा था, अपने रहस्यों को अपनी गहरी छाँव में छिपाए हुए। आरव के मन में एक नया सवाल उठ रहा था: क्या वह जंगल सचमुच इतना रहस्यमयी था, या उसके अंदर कुछ ऐसा था जो उसे वहाँ बार-बार खींच रहा था? और वह अपरिचित ऊर्जा क्या थी? क्या उसका 'शून्य' होना किसी तरह उस जंगल के रहस्यों से जुड़ा था? उसे नहीं पता था, लेकिन एक बात तय थी: वह अंधकार-वन, और उसमें छिपी हुई ताकत, अब उसके मन में घर कर गई थी। उसने एक गहरी साँस ली, उसे अभी भी उस अजीब गंध और ऊर्जा का अहसास हो रहा था। उसे नहीं पता था कि यह अनुभव उसकी जिंदगी में क्या बदलाव लाने वाला था, लेकिन उसे लग रहा था कि अब कुछ भी पहले जैसा नहीं रहेगा।
Chapter 6
अगली सुबह, शांतिवन गाँव हमेशा की तरह अपनी धीमी, शांत गति से जाग रहा था। सूरज की सुनहरी किरणें धीरे-धीरे पेड़ों की पत्तियों से छनकर ज़मीन पर पड़ रही थीं, और हवा में ताज़ी मिट्टी और फूलों की मीठी सुगंध घुली हुई थी। चिड़ियाँ चहचहा रही थीं, और दूर कहीं से गायों के रंभाने की आवाज़ आ रही थी। गाँव के लोग अपने दैनिक कार्यों में लग गए थे। कुछ किसान अपने खेतों की ओर जा रहे थे, जिनमें फसलें हरे-भरे कालीन की तरह बिछी थीं। कुछ औरतें कुओं पर पानी भरने जा रही थीं, और बच्चे खेल के मैदान में इकट्ठा होने लगे थे।
आरव भी अभी-अभी उठा था। उसकी आँखों में अभी भी रात के अंधकार-वन का रहस्य और डर घुला हुआ था। उसे उस रात की अजीब ऊर्जा और उन डरावनी आवाज़ों की याद आ रही थी। वह अपने बिस्तर पर बैठा था, खिड़की से बाहर चमकते सूरज को देख रहा था, लेकिन उसका मन कहीं और था। क्या वह जंगल सचमुच इतना रहस्यमयी था? क्या वहाँ सच में कोई अज्ञात शक्ति थी? उसने एक गहरी साँस ली। कल की अस्वीकृति का दर्द अभी भी उसके सीने में था, लेकिन अंधकार-वन के अनुभव ने उसे एक अजीब-सी बेचैनी दी थी, जैसे किसी बड़े रहस्य के खुलने से पहले की बेचैनी।
उसने अपने कपड़े पहने और घर से बाहर निकला। गाँव में अभी भी उत्सव की तैयारी की थोड़ी-बहुत चहल-पहल थी, लेकिन आज लोग अपने काम पर ज़्यादा ध्यान दे रहे थे। आरव ने मयंक के घर की ओर देखा। शायद मयंक भी उठ गया होगा। उसे कल रात के बारे में मयंक से बात करनी थी, यह समझना था कि उन्होंने क्या महसूस किया था।
आरव अभी गाँव के चौक की ओर बढ़ ही रहा था कि अचानक, एक तेज़, भीषण गर्जना से पूरी धरती काँप उठी। यह वैसी आवाज़ नहीं थी जैसी उसने रात को सुनी थी, यह उससे कई गुना ज़्यादा शक्तिशाली और डरावनी थी। यह ऐसी आवाज़ थी जो सीधे हड्डी में घुस जाए। गाँव की चिड़ियाँ डरकर आसमान में उड़ गईं, गायें बिदक गईं, और जो बच्चे खेल रहे थे, वे वहीं जहाँ के तहाँ रुक गए।
आरव का दिल एक पल के लिए रुक गया। यह आवाज़... यह आवाज़ उस अंधकार-वन से आ रही थी! वह तुरंत उस दिशा में मुड़ा, जहाँ से आवाज़ आई थी।
और फिर उसने देखा।
जंगल की घनी सीमा से एक विशालकाय आकृति बाहर निकली। वह कोई साधारण जानवर नहीं था। वह एक भयानक तात्विक-वराह था, जिसका शरीर चट्टानों और मिट्टी से बना हुआ लगता था। उसकी त्वचा खुरदुरी और कठोर थी, जिस पर गहरे भूरे और काले रंग के धब्बे थे। उसकी आँखें लाल अंगारों की तरह दहक रही थीं, उनमें क्रोध और उन्माद साफ दिखाई दे रहा था। उसके नुकीले दाँत, जो हाथी के दाँतों से भी बड़े थे, बाहर निकले हुए थे, और उसकी नाक से भाप निकल रही थी। जब वह ज़मीन पर कदम रखता, तो धरती सचमुच काँपती थी, और उसके पैरों के नीचे की ज़मीन धँसती चली जाती थी।
आरव की साँस रुक गई। यही वह था... यही वह था जिसकी आवाज़ उसने रात को सुनी थी। लेकिन उसने कभी नहीं सोचा था कि यह इतना विशाल और भयानक होगा। यह जानवर कई हाथियों जितना बड़ा था, और उसकी एक ही चाल से ऐसा लग रहा था जैसे पूरी ज़मीन हिल रही हो।
वराह ने एक और दहाड़ मारी, और इस बार वह सीधा गाँव के हरे-भरे खेतों की ओर दौड़ा। वह पागल हो चुका था। उसकी गति अविश्वसनीय थी, और उसका आकार खेतों के लिए किसी चलती हुई दीवार जैसा था। किसान, जो सुबह अपने खेतों में काम करने आए थे, उन्होंने जैसे ही उस दैत्य को देखा, उनकी आँखें भय से फैल गईं।
"भागो!" एक किसान ने चिल्लाया, उसकी आवाज़ में शुद्ध आतंक था। "भागो! तात्विक-वराह! वह खेतों को तबाह कर रहा है!"
वराह बिना रुके, बिना किसी परवाह के, खेतों में घुस गया। उसकी हर चाल के साथ, महीनों की मेहनत से उगाई गई गेहूँ और धान की फसलें कुचलती चली गईं। हरे-भरे खेत कुछ ही पलों में धूल और टूटे हुए पौधों के ढेर में बदल गए। उसकी सूँड और नुकीले दाँत हवा में तेज़ी से हिल रहे थे, जैसे वह सब कुछ नष्ट कर देना चाहता हो।
गाँव में चारों तरफ चीख-पुकार मच गई।
"वराह आ गया!"
"हमारे खेत! हमारी फसलें!"
"भागो! अपनी जान बचाओ!"
लोग अपनी-अपनी झोपड़ियों से बाहर निकल आए थे, उनकी आँखों में भय और निराशा थी। औरतें अपने बच्चों को कसकर सीने से लगा रही थीं, और पुरुष अपनी लाठियाँ और छोटे-मोटे औज़ार लेकर बाहर आ रहे थे, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि इस विशालकाय दैत्य का सामना कैसे किया जाए।
आरव वहीं खड़ा था, पूरी तरह सुन्न। उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था। उसके सामने उसके गाँव की जीविका, उसके लोगों की मेहनत पल भर में नष्ट हो रही थी। जिस जंगल के रहस्य ने उसे कल रात आकर्षित किया था, वही अब उसके गाँव पर कहर बनकर टूट पड़ा था। उसके दिल में एक अजीब-सा भय और असहायता का मिश्रण था। वह बस देख रहा था, कैसे वह वराह, जिसका शरीर चट्टान जैसा कठोर था, धरती को रौंद रहा था और फसलों को तबाह कर रहा था।
"आरव! आरव! यहाँ आओ!" मयंक की आवाज़ सुनाई दी। वह आरव की ओर दौड़ रहा था, उसके चेहरे पर भी वही आतंक था। "हमें अंदर जाना होगा! यह बहुत खतरनाक है!"
आरव ने मयंक की ओर देखा, उसकी आँखों में एक अजीब-सी खालीपन थी। "यह... यह सब क्या है, मयंक?" उसने फुसफुसाया, जैसे उसे विश्वास न हो रहा हो कि यह सब सच है।
"पता नहीं! पर हमें कुछ करना होगा!" मयंक ने आरव का हाथ पकड़ा, लेकिन आरव अपनी जगह से हिल नहीं रहा था।
वराह ने एक बार फिर दहाड़ मारी, और इस बार वह गाँव के ज़्यादा करीब आ गया था। उसकी दहाड़ से हवा में ज़ोरदार कंपन हुआ, और गाँव के घरों की छतें हिलने लगीं। कुछ घरों से मिट्टी के बर्तन गिरकर टूट गए। गाँव में भगदड़ मच गई। लोग बेतहाशा भाग रहे थे, एक-दूसरे से टकराते हुए, अपनी जान बचाने के लिए कहीं भी जगह खोजते हुए।
कई युवा और साहसी तत्वधारी, जिनमें वायु-तत्वधारी और पृथ्वी-तत्वधारी भी शामिल थे, अपनी शक्तियों को इकट्ठा करते हुए वराह की ओर बढ़े। उनके चेहरों पर दृढ़ संकल्प था, भले ही उनके अंदर डर भी था। वे गाँव के रक्षक थे, और उन्हें अपनी भूमि की रक्षा करनी थी।
"उसे रोको!" एक व्यक्ति ने चिल्लाया। "उसे गाँव के अंदर मत आने दो!"
आरव और मयंक ने देखा, कैसे वे तत्वधारी अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने लगे थे। कुछ ने हवा के तेज़ झोंके वराह की ओर फेंके, तो कुछ ने मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले। लेकिन वराह के शरीर पर उनका कोई असर नहीं हो रहा था। वह ऐसे खड़ा था जैसे उस पर कुछ हुआ ही न हो। उसकी आँखें और भी लाल हो गईं।
यह दृश्य आरव को हिला गया। जिस शक्ति को गाँव में सबसे ऊपर माना जाता था, वह इस वराह के सामने इतनी कमज़ोर क्यों पड़ रही थी? यह वराह किस तत्व से बना था, जो किसी भी तत्व के हमले का सामना कर सकता था? उसके मन में सवाल उठ रहे थे, लेकिन डर और अराजकता का माहौल इतना ज़्यादा था कि वह कुछ भी सोच नहीं पा रहा था।
वराह ने अपने नुकीले दाँत हवा में उछाले और एक विशालकाय चट्टान को हवा में फेंक दिया। वह चट्टान सीधी गाँव के एक घर की ओर जा रही थी। आरव ने अपनी आँखें बंद कर लीं, लेकिन इससे पहले कि वह घर से टकराती, एक पृथ्वी-तत्वधारी ने अपनी शक्ति से एक मोटी दीवार खड़ी कर दी, जिसने चट्टान को रोक लिया। लेकिन उस टक्कर से दीवार में दरारें पड़ गईं, और पृथ्वी-तत्वधारी ज़मीन पर गिर पड़ा, उसके शरीर से ऊर्जा का धुँआ निकल रहा था।
यह सिर्फ शुरुआत थी। वराह अपनी विनाशकारी शक्ति का पूरी तरह से इस्तेमाल कर रहा था। आरव ने देखा, कैसे उसके गाँव के सबसे बहादुर लोग उस दैत्य के सामने कमजोर पड़ने लगे थे। गाँव की सबसे बड़ी उम्मीदें भी उस दैत्य के सामने फीकी पड़ रही थीं। खतरा बड़ा था, और किसी को नहीं पता था कि इसे कैसे रोका जाए।
Chapter 7
शांतिवन में अब तक भगदड़ और चीख-पुकार का माहौल था। विशाल तात्विक-वराह अपने हर कदम से धरती को रौंदता हुआ, खेतों को तबाह कर रहा था। गाँव के सबसे अनुभवी और बहादुर तत्वधारी, जिनमें मुखिया का बेटा, पवन भी शामिल था, आगे बढ़े। उनके चेहरों पर भय के बावजूद एक दृढ़ संकल्प था – उन्हें अपने गाँव को बचाना था।
"उसे रोको! गाँव के अंदर मत आने दो!" मुखिया ने अपनी आवाज़ में जितना हो सके उतनी शक्ति भरकर चिल्लाया। उनकी आँखों में अपने लोगों के लिए चिंता और अपने खेतों के लिए दुख था।
सबसे पहले पृथ्वी-तत्वधारी आगे आए। उन्होंने अपनी शक्तियों से ज़मीन से बड़े-बड़े पत्थर और मिट्टी के गोले उठाकर वराह की ओर फेंके। एक शक्तिशाली पृथ्वी-तत्वधारी ने तो ज़मीन को ऊपर उठाकर एक खाई बनाने की कोशिश की, ताकि वराह उसमें गिर जाए।
"प्रहार करो!" एक वृद्ध पृथ्वी-तत्वधारी ने ज़ोर से कहा, उसकी आवाज़ में दर्द था क्योंकि वह अपने उजड़ते खेत देख रहा था।
पत्थर वराह के शरीर से टकराए, लेकिन वे ऐसे लग रहे थे जैसे कंकड़ किसी पहाड़ से टकरा रहे हों। वराह की चट्टान जैसी खाल पर उनका कोई असर नहीं हुआ। कुछ पत्थर तो उछलकर वापस आ गए, जिससे हमला करने वाले तत्वधारी को ही चोट लगी।
फिर वायु-तत्वधारी सामने आए। पवन ने अपनी पूरी शक्ति से हवा का एक तेज़ बवंडर वराह के चारों ओर बनाने की कोशिश की, ताकि उसे रोक सके या उसकी गति कम कर सके। कुछ और वायु-तत्वधारियों ने हवा के तीखे झोंके वराह की आँखों की ओर फेंके।
"घुमा दो उसे!" पवन ने चिल्लाया, उसके माथे पर पसीना चमक रहा था।
लेकिन वराह अपनी विशालकाय शक्ति से उस बवंडर को चीरता हुआ आगे बढ़ता रहा। हवा के झोंके उसकी आँखों से टकराए तो ज़रूर, लेकिन उसने अपनी आँखें भी नहीं झपकीं। बल्कि, इससे वह और भी क्रोधित हो गया। उसकी लाल आँखें अब और भी ज़्यादा दहक रही थीं, और उसकी नाक से निकलने वाली भाप ज़्यादा तीखी हो गई थी।
"उस पर कोई असर नहीं हो रहा!" एक युवक वायु-तत्वधारी ने चीखते हुए कहा, जब वराह ने अचानक एक तेज़ झटके से उसे अपनी सूँड से उड़ा दिया। वह लड़का दर्द से कराहता हुआ पास की एक झोपड़ी की दीवार से जा टकराया और बेहोश हो गया।
अब जल-तत्वधारी और अग्नि-तत्वधारी भी मैदान में कूद पड़े। जल-तत्वधारियों ने पानी की तेज़ धारें वराह की ओर फेंकीं, उम्मीद थी कि वह फिसल जाएगा या उसकी खाल नरम पड़ जाएगी। अग्नि-तत्वधारियों ने छोटे-छोटे अग्नि-गोले उस पर बरसाए।
"उसे जलाओ!" एक अग्नि-तत्वधारी ने चिल्लाया।
लेकिन पानी की धारें वराह की मोटी, खुरदुरी खाल से फिसल गईं, जैसे पानी चट्टान पर से बहता है। अग्नि-गोले उसके शरीर पर टकराए तो ज़रूर, लेकिन उनसे धुँआ उठने के बजाय, वे बस बुझ गए, जैसे किसी गीली लकड़ी पर आग लगाई गई हो। वराह की त्वचा पर उनका कोई निशान नहीं पड़ा।
आरव और मयंक थोड़ी दूरी पर खड़े यह सब देख रहे थे। आरव के मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही थी। वह अपनी आँखों से देख रहा था कि जिस शक्ति को उसने हमेशा सबसे बड़ा माना था, वह कितनी कमज़ोर पड़ रही थी। गाँव के सबसे बहादुर और शक्तिशाली तत्वधारी, जो हमेशा से उसके आदर्श रहे थे, इस एक दैत्य के सामने बेबस लग रहे थे।
मयंक ने अपना हाथ आरव के कंधे पर रखा, उसके हाथ काँप रहे थे। "वह रुक नहीं रहा, आरव! कुछ भी काम नहीं कर रहा!" उसकी आवाज़ में निराशा थी।
वराह ने एक बार फिर एक भयानक दहाड़ मारी। उसकी आवाज़ में अब सिर्फ क्रोध नहीं, बल्कि एक अजेय आत्मविश्वास था। उसने पलटवार करना शुरू कर दिया। उसने अपने नुकीले दाँतों से ज़मीन को चीरा और ज़मीन के बड़े-बड़े टुकड़े उठाकर हवा में उछाल दिए। ये टुकड़े किसी तोप के गोले की तरह गाँव वालों की ओर आ रहे थे।
"बचो!" एक किसान ने चिल्लाया, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।
एक बड़ा चट्टान का टुकड़ा सीधे एक वायु-तत्वधारी के पैर पर आकर गिरा, जिससे उसकी हड्डी टूटने की भयानक आवाज़ आई। वह दर्द से चीखता हुआ गिर पड़ा। दूसरे ने खुद को बचाने की कोशिश में अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया, लेकिन वराह ने अपनी सूँड से एक विशालकाय पेड़ को जड़ से उखाड़कर उनकी ओर फेंका। पेड़ कई रक्षकों को कुचलता हुआ ज़मीन पर गिरा, जिससे कई और लोग घायल हो गए।
चारों तरफ चीखें, कराहें और भगदड़ और तेज़ हो गई। गाँव के लोग अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे थे, लेकिन कुछ बहादुर अभी भी लड़ने की कोशिश कर रहे थे, भले ही उनके शरीर जवाब दे रहे थे। उन्हें लग रहा था कि यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे वे जीत नहीं सकते।
मुखिया, जो अब खुद भी घायल हो चुके थे, दर्द से कराहते हुए उठे। उन्होंने अपने चारों ओर देखा। उनके सबसे अच्छे लड़ाके ज़मीन पर पड़े थे, घायल या बेहोश। फसलें पूरी तरह से नष्ट हो चुकी थीं, और गाँव खतरे में था। उनकी आँखों में निराशा और हार साफ दिखाई दे रही थी। "यह... यह कैसे हो सकता है?" उन्होंने फुसफुसाया, जैसे उन्हें विश्वास ही न हो रहा हो।
वराह अब गाँव के केंद्र की ओर बढ़ रहा था, जहाँ घर और मंदिर थे। उसकी चाल में कोई हिचकिचाहट नहीं थी, जैसे वह जानता हो कि उसे कोई नहीं रोक सकता। उसके लाल आँखें और खुरदरी खाल मौत का पैगाम दे रही थीं।
आरव और मयंक अभी भी अपनी जगह पर खड़े थे, पूरी तरह से स्तब्ध। उन्हें पता नहीं था कि क्या किया जाए। आरव ने अपने चारों ओर देखा – गाँव की सबसे बड़ी उम्मीदें भी उस दैत्य के सामने कमज़ोर पड़ रही थीं। उसका दिल डर से ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। उसे लगा कि यह उनका अंत है।
तभी, भगदड़ के बीच, कुछ दूरी पर, मयंक का पैर एक उखड़ी हुई जड़ में फँस गया। वह असंतुलित होकर ज़मीन पर गिर पड़ा। उसकी आँखों में एक पल के लिए घबराहट आई। वह उठने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसका पैर बुरी तरह मुड़ गया था।
और उसी पल, विशाल तात्विक-वराह ने उसे देखा। उसकी लाल आँखों में एक नई, क्रूर चमक आई। उसने एक और भयानक दहाड़ मारी, और अपनी पूरी ताकत से मयंक की ओर दौड़ पड़ा। उसका लक्ष्य स्पष्ट था: वह अब मयंक पर हमला करने जा रहा था।
आरव का दिल जैसे रुक गया। उसका सबसे अच्छा दोस्त मौत के मुँह में था, और वह कुछ नहीं कर सकता था...
Chapter 8
भगदड़ के बीच, मयंक का पैर एक उखड़ी हुई जड़ में फँस गया और वह असंतुलित होकर ज़मीन पर गिर पड़ा। एक तेज़ दर्द उसके टखने में कौंध गया, और उसके मुँह से एक छोटी-सी चीख निकल गई। वह तुरंत उठने की कोशिश करने लगा, हाथ-पैर मारता हुआ, लेकिन उसका टखना बुरी तरह मुड़ चुका था। वह दर्द से कराह उठा और फिर से ज़मीन पर गिर पड़ा। उसकी आँखों में एक पल के लिए घबराहट आई, फिर भय से फैल गईं जब उसने अपने सामने की ओर देखा।
विशाल तात्विक-वराह, जिसकी आँखें खून की तरह लाल दहक रही थीं, अब पूरी तरह से उसकी ओर मुड़ चुका था। उसकी खुरदुरी, चट्टानी देह पर मिट्टी और सूखे पत्तों के टुकड़े चिपके हुए थे, जो उसकी गति के साथ झड़ रहे थे। उसकी नासिका से क्रोध की भाप निकल रही थी, और उसके नुकीले दाँत, जो अब मिट्टी से सने हुए थे, और भी भयावह लग रहे थे। वराह ने एक भयानक, थर्राने वाली दहाड़ मारी, और बिना एक पल रुके, अपनी पूरी ताकत से मयंक की ओर दौड़ पड़ा। उसके भारी-भरकम कदम जब ज़मीन पर पड़ते, तो धरती काँपती थी, और हर कदम के साथ धूल का एक बड़ा गुबार उठता था। हवा में एक अजीब-सी गर्मी और धातु जैसी गंध फैल गई थी, जैसे कोई अदृश्य तूफान उनके करीब आ रहा हो।
आरव की आँखों के सामने यह सब एक पल में घटित हुआ। उसका दिल जैसे धड़कना ही भूल गया। "मयंक!" उसके गले से एक सिसकारी निकली, लेकिन आवाज़ उसके होंठों पर ही अटक कर रह गई। उसका शरीर पूरी तरह से सुन्न पड़ गया था। पैर ज़मीन से चिपक गए थे, हाथ ढीले पड़ गए थे, और दिमाग पूरी तरह से खाली हो गया था। उसके अंदर बस एक चीख गूँज रही थी – *नहीं!*
वह देखना नहीं चाहता था। वह अपनी आँखें बंद करना चाहता था, लेकिन उसकी पलकें भी जैसे जम गई थीं। वह सब कुछ साफ-साफ देख रहा था: वराह का हर बढ़ता कदम, मयंक का दर्द से कराहता चेहरा, उसकी आँखों में बढ़ता हुआ आतंक। मयंक ने एक बार फिर उठने की असफल कोशिश की, लेकिन उसके पैर में तेज़ दर्द हुआ और वह हताश होकर फिर से ज़मीन पर गिर गया। उसने डर से आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में एक मूक पुकार थी, एक ऐसी पुकार जो कह रही थी – *बचाओ!*
आरव ने मयंक की पुकार सुनी, उसने उसे महसूस किया, लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रहा था। वह हिल नहीं पा रहा था। उसका शरीर पूरी तरह से उसकी इच्छा के विरुद्ध था। उसके दिमाग में एक भयानक तड़प उठी – *कुछ कर! कुछ भी कर!* उसने अपने हाथों को हिलाने की कोशिश की, लेकिन वे जैसे किसी अदृश्य बंधन में बँधे थे। उसने अपने पैरों को उठाने की कोशिश की, लेकिन वे भी टस से मस नहीं हुए। यह असहायता का एक नया और भयानक रूप था, जिससे वह पहले कभी परिचित नहीं हुआ था।
"मयंक! भागो!" आरव ने अपने पूरे बल से चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उसकी आवाज़ एक कमज़ोर, दबी हुई फुसफुसाहट से ज़्यादा कुछ नहीं थी। उसके फेफड़े जल रहे थे, उसका गला सूख चुका था।
वराह अब और करीब आ चुका था। उसकी तेज़ साँसों की आवाज़ आरव को साफ सुनाई दे रही थी। उसकी आँखें, किसी भयानक सपने की तरह, सीधे मयंक पर टिकी थीं। उसका विशाल शरीर, जो चट्टानों और मिट्टी का एक चलता हुआ पहाड़ लग रहा था, अब मयंक के ऊपर एक विशालकाय छाया बना रहा था। मयंक ने दर्द से अपने हाथों से ज़मीन को खुरचते हुए पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन वह घायल था, और वराह की गति उसके लिए बहुत ज़्यादा थी।
आरव के दिमाग में एक के बाद एक विचार कौंध रहे थे – *मैं उसे नहीं खो सकता! वह मेरा इकलौता दोस्त है!* उसे याद आया कैसे मयंक ने उसे हमेशा बचाया था, कैसे वह हमेशा उसके लिए ढाल बनकर खड़ा रहता था। अब, जब मयंक को उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, आरव पूरी तरह से बेकार था। उसके पास कोई शक्ति नहीं थी, कोई क्षमता नहीं थी, कुछ भी नहीं था जिससे वह अपने दोस्त को बचा सके। उसकी तत्वहीनता, जिस पर वह जीवन भर शर्मिंदा रहा था, अब उसे मौत के मुँह में धकेल रही थी।
उसका दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि उसे लगा कि वह उसकी पसलियाँ तोड़कर बाहर आ जाएगा। उसके माथे पर पसीने की बूँदें फूट पड़ी थीं, भले ही हवा में एक अजीब-सी ठंडक थी। उसके शरीर का हर अंग काँप रहा था, लेकिन वह हिल नहीं पा रहा था। यह एक भयानक विरोधाभास था – अंदरूनी तौर पर वह चीख रहा था, चिल्ला रहा था, भागना चाहता था, लड़ना चाहता था, लेकिन बाहर से वह एक पत्थर की मूर्ति की तरह खड़ा था, असहाय और बेबस।
गाँव के दूसरे लोग अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे या घायल तत्वधारियों की मदद करने में व्यस्त थे। किसी ने मयंक को गिरते हुए नहीं देखा था, या अगर देखा भी था, तो वे खुद इतने डरे हुए और अस्त-व्यस्त थे कि किसी की मदद करने की स्थिति में नहीं थे। आरव और मयंक उस पल में पूरी तरह अकेले थे, वराह के इस अंधाधुंध हमले के सामने।
वराह ने अपना विशाल सिर नीचे किया। उसके नुकीले दाँत, जो किसी भी चीज़ को चीर सकते थे, अब मयंक से बस कुछ ही फुट दूर थे। मयंक ने अपनी आँखें बंद कर लीं, उसके होंठों पर एक बुदबुदाहट थी – शायद आरव का नाम, शायद कोई प्रार्थना। उसकी साँसें अटक गईं।
आरव ने एक गहरी, भयानक लहर महसूस की – डर, निराशा और अपने दोस्त को बचाने की अदम्य इच्छा का मिश्रण। यह एक ऐसी भावना थी जो उसके पूरे अस्तित्व को हिला रही थी। वह अपनी आँखें मयंक से हटा नहीं पा रहा था, जो अब वराह के विशाल, क्रोधित मुँह के सामने था। वह जानता था कि अगले ही पल क्या होने वाला है। एक भयानक, असहनीय लाचारी उसके दिल में उतर गई।
उसका दोस्त मर रहा था, और वह... वह बस देख रहा था। उसके पास कोई शक्ति नहीं थी, कोई बचाव नहीं था... वह शून्य था। वह पूरी तरह शून्य था। और यही शून्य उसे अब तक के सबसे भयानक दर्द से भर रहा था...
Chapter 9
उसका दोस्त मर रहा था, और वह... वह बस देख रहा था। उसके पास कोई शक्ति नहीं थी, कोई बचाव नहीं था... वह शून्य था। वह पूरी तरह शून्य था। और यही शून्य उसे अब तक के सबसे भयानक दर्द से भर रहा था।
मयंक ज़मीन पर पड़ा था, दर्द से कराह रहा था, अपनी आँखों में भयानक डर लिए। वराह, मौत का साक्षात रूप, अपनी पूरी ताकत से उसकी ओर दौड़ा आ रहा था। उसके भारी कदम धरती को थर्रा रहे थे, और उसकी तेज़ साँसों की आवाज़ आरव के कानों में गूँज रही थी, जैसे मृत्यु का उद्घोष हो। वराह का विशाल मुँह, जिसमें नुकीले दाँत साफ दिख रहे थे, अब मयंक से बस कुछ ही इंच दूर था। मयंक ने अपनी आँखें कसकर बंद कर ली थीं, उसके होंठ धीरे से हिल रहे थे, मानो वह कोई अंतिम प्रार्थना बुदबुदा रहा हो या आरव का नाम ले रहा हो।
आरव के अंदर सब कुछ रुक गया था। उसका दिमाग काम करना बंद कर चुका था। वह चिल्लाना चाहता था, भागना चाहता था, कुछ भी करके अपने दोस्त को बचाना चाहता था, लेकिन उसका शरीर उससे दूर हो चुका था। वह पत्थर की एक मूर्ति बन चुका था, असहायता की एक जीती-जागती तस्वीर। उसकी आँखों के सामने जीवन का सबसे भयानक दृश्य साकार हो रहा था – मयंक, उसका इकलौता दोस्त, उसका सहारा, उसका परिवार... मौत के मुँह में।
उसकी यादों में एक पल के लिए फ्लैशबैक कौंधा। मयंक, जब वह छोटा था और गाँव के बच्चे उसे 'शून्य' कहकर चिढ़ाते थे, तब मयंक कैसे उसके लिए ढाल बनकर खड़ा हो गया था। 'अरे, उसे परेशान मत करो!' मयंक की आवाज़ उसके कानों में गूँजी। 'आरव मेरा दोस्त है! तुम सब को शर्म आनी चाहिए!' मयंक ने कितनी बार उसे उन बच्चों से बचाया था, जो उसमें कोई तत्व न होने का मज़ाक उड़ाते थे। कितनी बार मयंक ने उसे अकेलापन महसूस नहीं होने दिया था। कितनी बार उसने उसे सपना देखने की हिम्मत दी थी – दिव्य ज्ञान पीठ अकादमी जाने का सपना।
और अब, जिस मयंक ने उसे हमेशा संभाला था, वह खुद संकट में था, और आरव कुछ नहीं कर पा रहा था। यह अहसास कि उसकी अपनी शून्य-तत्वहीनता उसके सबसे प्यारे दोस्त की जान ले रही है, एक जलते हुए अंगारे की तरह उसके सीने में उतर गया। उसने हमेशा सोचा था कि उसकी तत्वहीनता सिर्फ उसके लिए शर्मिंदगी का कारण है, एक व्यक्तिगत बोझ। लेकिन आज, यह एक घातक अभिशाप बन गया था जो मयंक को निगलने वाला था।
उसके शरीर का हर कण काँप रहा था, जैसे भीतर ही भीतर कोई भयानक भूकंप आ रहा हो। उसके गले में एक गाँठ थी जो उसे साँस लेने से रोक रही थी। उसकी मुट्ठियाँ कस गईं, उसके नाखून उसकी हथेलियों में चुभ गए, लेकिन उसे दर्द महसूस नहीं हुआ। उसके दिमाग में सिर्फ एक विचार था: *नहीं! यह नहीं हो सकता! मयंक को कुछ नहीं हो सकता!*
यह डर, यह भयानक लाचारी, यह अपने प्रियजन को खोने का दर्द, और अपनी ही शक्तिहीनता पर उबलता हुआ क्रोध... ये सब भावनाएँ उसके भीतर एक साथ उमड़ पड़ीं। यह सिर्फ दिमाग का डर नहीं था, यह आत्मा का दर्द था। यह उसके अस्तित्व का कोर था, जो अब टूट रहा था। उसके भीतर की हर कोशिका, हर तंत्रिका, हर साँस इस दर्द से चीख रही थी। वह अपनी आँखें बंद नहीं कर सकता था, वह अपनी नज़र हटा नहीं सकता था। वह मयंक को बचाने की अपनी पूरी अदम्य इच्छा के बावजूद, खुद को रोक नहीं पा रहा था।
उसने अपने भीतर एक भयानक दबाव महसूस किया, जैसे उसके अंदर कुछ उबल रहा हो, कोई अज्ञात ऊर्जा जो अब तक दबी हुई थी, वह अब अपनी सीमाएँ तोड़ रही थी। यह एक दर्द था जो शारीरिक नहीं था, लेकिन उससे भी ज़्यादा गहरा। यह दर्द मयंक के प्रति उसके प्रेम का था, उसकी अपनी विफलता का था, उसके जीवन भर के उपहास का था। यह उस शून्य का दर्द था, जिसे अब लग रहा था कि वह सच में सबसे बुरा शून्य है, क्योंकि वह अपने दोस्त को नहीं बचा सकता था।
और ठीक उसी पल, जब वराह का मुँह मयंक के शरीर को छूने वाला था, जब मौत की छाया मयंक को पूरी तरह से निगलने वाली थी, आरव की आत्मा से एक चीख निकली। यह कोई साधारण आवाज़ नहीं थी जो उसके गले से निकली हो। यह एक गहरी, आदिम चीख थी, जो उसके पूरे अस्तित्व से, उसकी रग-रग से, उसके भीतर के हर खालीपन से फूट पड़ी थी। यह उसकी हताशा की चीख थी, उसके अनकहे दर्द की पुकार थी, मयंक के प्रति उसके अनमोल प्यार की चरम अभिव्यक्ति थी। यह इतनी तीव्र और अदम्य थी कि यह केवल एक ध्वनि नहीं थी, बल्कि एक शुद्ध भावना का विस्फोट था, एक आंतरिक तड़प जो अब बाहर निकल रही थी।
जैसे ही वह चीख उसके अंदर से निकली, उसके शरीर से एक शक्तिशाली, अदृश्य ऊर्जा की लहर निकली। यह लहर इतनी अप्रत्याशित और तीव्र थी कि उसके चारों ओर की हवा सचमुच काँप गई। हवा में एक अजीब-सी सिहरन फैल गई, जैसे अदृश्य लहरें पूरे वातावरण को हिला रही हों। वहाँ कोई तेज़ आवाज़ नहीं थी, कोई बिजली नहीं कड़की, कोई रंग नहीं दिखा, लेकिन एक गहरा, गूढ़ कंपन था जिसे हर कोई महसूस कर सकता था, अगर वे उस पर ध्यान देते।
यह ऊर्जा किसी भी ज्ञात तत्व जैसी नहीं थी – न अग्नि की गर्मी, न जल की नमी, न पृथ्वी की ठोसता, न वायु की गति, न ही बिजली की चमक। यह कुछ और ही थी। यह शुद्ध थी, अनियंत्रित थी, और सबसे बढ़कर, यह अदृश्य थी। यह किसी रंग या रूप में नहीं थी, लेकिन इसकी उपस्थिति इतनी सशक्त थी कि इसे महसूस किया जा सकता था। जैसे एक अदृश्य बल, एक अज्ञात तरंग, आरव के भीतर से फूटकर बाहर की ओर फैल गई।
हवा में एक अजीब-सा दबाव महसूस हुआ, जैसे किसी ने अचानक सारे ऑक्सीजन को एक पल के लिए खींच लिया हो। धूल के कण, जो वराह के कदमों से ऊपर उठे थे, उस अदृश्य लहर से अचानक हिलने लगे और एक अजीब पैटर्न में घूमने लगे। घास के तिनके और छोटे पौधे भी अपनी जगह पर काँपने लगे, जैसे किसी अज्ञात हवा के झोंके ने उन्हें छुआ हो।
वराह, जो अपनी पूरी गति से मयंक पर झपटने वाला था, उस अदृश्य ऊर्जा को महसूस करके एक पल के लिए ठिठक गया। उसकी लाल आँखें जो पहले केवल क्रोध से भरी थीं, अब उनमें एक अजीब-सा भ्रम और कुछ हद तक भय दिखाई दिया। उसने कभी ऐसी शक्ति का अनुभव नहीं किया था – एक ऐसी शक्ति जो अदृश्य थी, लेकिन उसकी विशाल देह के आर-पार हो रही थी, उसके भीतर तक सिहरन पैदा कर रही थी। उसकी रोंगटे खड़े हो गए। उसका हमला, जो बस एक पल में मयंक को कुचलने वाला था, हवा में ही रुक-सा गया, उसकी गति धीमी पड़ गई, जैसे वह किसी अदृश्य दीवार से टकरा गया हो...
Chapter 10
आरव से निकली उस अदृश्य ऊर्जा की लहर, एक अनदेखी दीवार की तरह, वराह के विनाशकारी हमले के ठीक सामने आ गई। यह किसी ठोस अवरोध की तरह नहीं थी, बल्कि एक अदृश्य, घना, खिंचाव-भरा क्षेत्र था। वराह का विशाल सिर, जो अपने नुकीले दाँतों के साथ मयंक पर झपटने वाला था, उस अदृश्य क्षेत्र से टकराया। एक अविश्वसनीय, लगभग असंभव दृश्य घटित हुआ।
जो हमला मयंक से बस कुछ ही इंच दूर था, जो उसे कुचलने के लिए पूरी गति से आ रहा था, वह हवा में रहस्यमयी तरीके से मुड़ गया। जैसे किसी अदृश्य हाथ ने वराह को बीच हवा में धकेल दिया हो, उसकी दिशा अचानक बदल गई। वह दाहिनी ओर मुड़ा, और उसकी पूरी शक्ति, जो मयंक के लिए थी, अब सीधे पास की एक विशाल चट्टान से जा टकराई।
"धमाक!" एक भयानक, कान फाड़ देने वाली आवाज़ हुई। वराह का पूरा बल उस चट्टान पर पड़ा। चट्टान पर एक गहरी दरार पड़ गई, और उसके कुछ टुकड़े ज़मीन पर बिखर गए। वराह खुद भी इस अप्रत्याशित झटके से असंतुलित हो गया। वह कुछ पल के लिए लड़खड़ाया, उसके भारी पैर ज़मीन पर फिसलते रहे, और वह मुश्किल से गिरने से बचा।
मयंक ने अपनी आँखें खोलीं, और उसने देखा कि वराह उसके ठीक बगल से, बस एक बाल बराबर दूरी से गुज़रा था। हवा का तेज़ झोंका और वराह के शरीर से निकलती गर्मी उसके चेहरे पर पड़ी। वह सन्न रह गया। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और उसने विश्वास न कर पाने वाली नज़रों से वराह को देखा जो अब उस टूटी हुई चट्टान के पास खड़ा था।
वराह, जो पहले क्रोध और विनाश से भरा हुआ था, अब पूरी तरह से भ्रमित और भयभीत था। उसकी लाल आँखें चारों ओर दौड़ रही थीं, जैसे वह उस अदृश्य शक्ति के स्रोत को ढूँढ रहा हो जिसने उसके हमले को नाकाम कर दिया था। उसने आरव को देखा, जो अभी भी मयंक के पास खड़ा था, उसके चेहरे पर एक अजीब-सा खालीपन था, जैसे वह भी नहीं समझ पा रहा हो कि क्या हुआ। वराह ने एक और कमज़ोर, भयभीत-सी दहाड़ मारी। उसकी पूँछ, जो पहले सीधे खड़ी थी, अब नीचे झुक गई थी, और उसके पूरे शरीर में एक अज्ञात डर की सिहरन दौड़ गई थी।
उसकी स्वाभाविक आक्रामकता अचानक गायब हो चुकी थी। जो वराह कुछ पल पहले तक अजेय लग रहा था, वह अब सहमा हुआ और डरा हुआ था। उसने पलटा और बिना एक पल रुके, वापस अंधकार-वन की ओर भाग गया। उसके कदम अब पहले की तरह भारी और दृढ़ नहीं थे, बल्कि उनमें एक जल्दबाज़ी और घबराहट थी। वह अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा था, जैसे किसी अदृश्य शिकारी ने उसका पीछा किया हो। जंगल की घनी झाड़ियों में घुसते ही, वह ओझल हो गया, और उसके भागने की आवाज़ धीरे-धीरे शांत हो गई।
पूरे गाँव में, जहाँ पहले चीख-पुकार और भगदड़ मची थी, अब एक भयानक खामोशी छा गई थी। लोग अपनी जगह पर थम गए थे, उनकी आँखें फटी की फटी रह गई थीं। उन्होंने देखा था – एक विशाल, अजेय वराह का हमला, एक तत्वहीन लड़के के सामने, कैसे हवा में ही मुड़ गया और नष्ट हो गया। यह असंभव था! उन्होंने अपने जीवन में ऐसा कुछ नहीं देखा था।
गाँव के मुखिया, जिनकी उम्र लगभग सत्तर साल थी और जिन्होंने कई युद्ध और प्राकृतिक आपदाएँ देखी थीं, वे भी स्तब्ध थे। उनकी लाठी उनके हाथों से लगभग छूट गई थी। उन्होंने अपनी काँपती हुई उंगलियों से अपनी आँखें मलीं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उन्होंने जो देखा वह सच था।
"यह... यह कैसे हुआ?" एक बूढ़े व्यक्ति ने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ में गहरा अविश्वास था।
"मैंने... मैंने कुछ नहीं देखा," एक और महिला ने कहा, उसके चेहरे पर भय और विस्मय का मिलाजुला भाव था। "वह हमला तो सीधे उस बच्चे पर जा रहा था... और फिर... वह बस मुड़ गया?"
गाँव के सबसे शक्तिशाली तत्वधारी, जो वराह के सामने अपनी सारी शक्ति आज़मा कर थक चुके थे, वे भी अपनी जगह पर खड़े रह गए। उनके चेहरे पर पसीना था, और उनकी आँखें हैरान थीं। उन्होंने अपनी तरफ से हर संभव प्रयास किया था, लेकिन कुछ नहीं कर पाए थे। और एक तत्वहीन लड़का, जिसने कुछ नहीं किया, वह कैसे इस राक्षस को भगा सका?
मयंक, जो अभी भी ज़मीन पर पड़ा था, धीरे-धीरे उठा। उसके टखने में अभी भी दर्द था, लेकिन वह दर्द अब पीछे छूट गया था। उसकी आँखें आरव पर टिक गईं। आरव का चेहरा पीला पड़ गया था, और वह अभी भी थोड़ा काँप रहा था। मयंक ने विश्वास न कर पाने वाली नज़रों से उसे देखा।
"आरव... तुमने... तुमने यह कैसे किया?" मयंक ने काँपती आवाज़ में पूछा। उसकी आवाज़ में एक अजीब-सा सम्मान और भय का मिश्रण था, जो उसने आरव के प्रति कभी महसूस नहीं किया था।
आरव ने अपनी आँखें झपकाईं, जैसे वह गहरी नींद से जागा हो। उसने मयंक को देखा, फिर चट्टान के टूटे हुए टुकड़ों को, और फिर उस दिशा को जहाँ वराह भाग गया था। उसके चेहरे पर भी उतनी ही हैरानी थी जितनी मयंक के चेहरे पर थी। वह भी नहीं जानता था कि क्या हुआ था। उसे बस इतना याद था कि मयंक खतरे में था, और फिर उसके अंदर कुछ टूट गया।
"मुझे... मुझे नहीं पता, मयंक," आरव ने धीमी, अस्पष्ट आवाज़ में कहा। उसकी आवाज़ में अभी भी एक अजीब-सा ठहराव था। "मुझे... मुझे कुछ याद नहीं।"
मयंक उसके पास घुटनों के बल बैठ गया, दर्द भूलकर। "तुम... तुम ठीक हो?" उसने पूछा, और फिर आरव को गले लगा लिया। "तुमने... तुमने मेरी जान बचाई, आरव। तुमने मुझे बचाया।"
आरव ने धीरे से मयंक को गले लगाया। उसकी आँखें बंद थीं। उसे मयंक की साँसों की गर्मी महसूस हुई। वह जानता था कि वह बच गया है, लेकिन कैसे... यह सवाल उसके दिमाग में गूँज रहा था। यह एक रहस्य था, एक ऐसा रहस्य जो उसने खुद ही रच दिया था, लेकिन जिसे वह खुद भी नहीं समझ पा रहा था।
गाँव वाले धीरे-धीरे आरव और मयंक के पास आने लगे। उनकी फुसफुसाहटें अब स्पष्ट होने लगी थीं।
"वह शून्य नहीं है," एक ने कहा।
"उसमें ज़रूर कोई छिपी हुई शक्ति है," दूसरे ने कहा।
"गुरु वशिष्ठ को इस बारे में पता होना चाहिए," एक और ने सुझाव दिया।
गाँव का मुखिया, जिसने खुद को संभाला था, आरव के पास आया। उसने आरव के माथे पर हाथ रखा। आरव की त्वचा ठंडी थी, लेकिन उसकी आँखें गहरी और विचारशील थीं। मुखिया ने आरव की आँखों में कुछ ऐसा देखा जो उसने पहले कभी नहीं देखा था – एक गहरा, अनजाना शून्य जो अब किसी शक्ति की प्रतिध्वनि जैसा लग रहा था।
"बेटे," मुखिया ने धीमे से कहा, उसकी आवाज़ में सम्मान था। "तुमने आज हमें बचाया। तुमने आज हमारे गाँव को बचाया।"
आरव ने बस उसे देखा, कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह अभी भी उस घटना के सदमे में था। उसके अंदर एक अजीब-सी शांति थी, जैसे एक तूफान थम गया हो, लेकिन तूफान के निशान अभी भी मौजूद थे। उसने अपनी आँखें बंद कीं और अंदर ही अंदर कुछ महसूस करने की कोशिश की, लेकिन उसे कुछ नहीं मिला। वह उतना ही खाली महसूस कर रहा था जितना पहले करता था।
लेकिन गाँव वाले अब आरव को पहले जैसी नज़रों से नहीं देख रहे थे। उनकी आँखों में उपहास नहीं था, बल्कि जिज्ञासा और कुछ हद तक श्रद्धा थी। आरव, जो हमेशा 'शून्य' कहलाता था, अब उनके लिए एक अनजाना चमत्कार बन गया था। उन्होंने अपने जीवन में कई तत्वधारी देखे थे, कई शक्तियों को महसूस किया था, लेकिन यह जो अभी हुआ था, वह किसी भी ज्ञात नियम से परे था। यह एक ऐसी घटना थी जिसने उनके सारे ज्ञान और समझ को चुनौती दे दी थी।
दूर, पहाड़ों के बीच, गुरु वशिष्ठ अपने ध्यान में बैठे थे। उनके आसपास की हवा शांत और स्थिर थी। लेकिन अचानक, उन्हें एक तीव्र हलचल महसूस हुई। यह कोई साधारण ऊर्जा का प्रवाह नहीं था। यह एक ऐसी लहर थी जो उनकी आत्मा तक को छू रही थी, एक ऐसी प्रतिध्वनि जो उनके सदियों के ज्ञान को झकझोर रही थी। यह किसी भी ज्ञात तत्व की ऊर्जा नहीं थी – न पृथ्वी की, न जल की, न अग्नि की, न वायु की। यह उनसे परे थी। यह... शून्य की प्रतिध्वनि थी। एक ऐसा शून्य जो पूर्ण था, जो अदृश्य था, लेकिन जिसका प्रभाव अत्यधिक था।
उनकी आँखें अचानक खुल गईं। उनकी गहरी, बुद्धिमान आँखों में एक तीव्र जिज्ञासा थी, एक ऐसी खोज की चाह थी जो उन्होंने लंबे समय से महसूस नहीं की थी। उन्होंने अपने हाथ जोड़े, और उस दिशा में देखा जहाँ से वह ऊर्जा आई थी।
"यह क्या था?" उन्होंने फुसफुसाया, उनकी आवाज़ में आश्चर्य और कुछ हद तक उत्साह था। "यह तो... असंभव है।"
उन्हें पता था कि यह कोई साधारण घटना नहीं थी। यह कुछ ऐसा था जो इस दुनिया के संतुलन को बदल सकता था। उन्हें उस ऊर्जा के स्रोत को खोजना ही होगा। उन्हें उस बच्चे को खोजना होगा जिसने ऐसी अद्भुत, अज्ञात शक्ति का प्रदर्शन किया था। उनका ध्यान भंग हो चुका था, और उनके दिमाग में अब केवल एक ही विचार था: शांतिवन। उन्हें शांतिवन जाना होगा। और बिना एक पल गँवाए, गुरु वशिष्ठ अपने पर्वत शिखर से उठे, और उस अनजाने, लेकिन शक्तिशाली शून्य की खोज में निकल पड़े। यह एक ऐसी यात्रा थी जो केवल एक बच्चे को खोजने के लिए नहीं थी, बल्कि एक ऐसी शक्ति को समझने के लिए थी, जो शायद इस ब्रह्मांड के सबसे गहरे रहस्यों में से एक थी।
Chapter 11
दूर, पहाड़ों के बीच, गुरु वशिष्ठ अपने ध्यान से उठे। उनकी आँखें अब पूरी तरह से खुली थीं, उनमें सदियों की समझ और एक नए रहस्य को जानने की तीव्र उत्सुकता भरी थी। उनके होठों पर एक हल्की, रहस्यमय मुस्कान तैर रही थी। वह सामान्य रूप से नहीं चले, बल्कि हवा में कुछ इंच ऊपर उठते हुए, अदृश्य रूप से आगे बढ़ने लगे। उनका शरीर, जो बरसों से कठोर ध्यान में लीन था, अब वायु की तरह हल्का और जल की तरह प्रवाहमय था। उनके हर कदम में एक शांत दृढ़ता थी, एक महान उद्देश्य की ओर बढ़ता हुआ तेज।
पहाड़ों की चोटियों से नीचे उतरते हुए, उन्होंने चारों ओर फैले घने जंगलों को पार किया। उनकी गति अविश्वसनीय थी, जैसे वे समय और स्थान की सीमाओं से परे हों। उनके भगवा वस्त्र हवा में धीमे-धीमे लहरा रहे थे, और उनके लंबे सफेद बाल उनके चेहरे पर शांत भावों को और भी निखार रहे थे। दिन का उजाला धीरे-धीरे पेड़ों के बीच से छनकर नीचे आ रहा था, और हवा में फूलों और गीली मिट्टी की ताज़ी खुशबू फैली थी। लेकिन वशिष्ठ का ध्यान इन सब पर नहीं था। उनका मन केवल उस अदृश्य ऊर्जा पर केंद्रित था, जिसने उनके भीतर एक नई जिज्ञासा जगा दी थी।
जैसे-जैसे वे शांतिवन की ओर बढ़ रहे थे, उनके मस्तिष्क में उस घटना का विश्लेषण चल रहा था जो उन्होंने दूर से महसूस की थी। उन्होंने अपने जीवन में अनेकों तत्वधारियों को देखा था – अग्नि के प्रचंड योद्धा, जल के शांत चिकित्सक, पृथ्वी के दृढ़ संरक्षक, और वायु के तेज़ दूत। उन्होंने बिजली की चमक, बर्फीले तूफ़ान, और लावा के प्रहार देखे थे। लेकिन जो ऊर्जा उन्होंने आज महसूस की थी, वह इन सबसे अलग थी। यह किसी चीज़ का निर्माण नहीं कर रही थी, और न ही सीधे तौर पर किसी चीज़ को नष्ट कर रही थी। यह तो... बस *मोड़* रही थी। *निरस्त* कर रही थी। *शून्य* कर रही थी।
"यह आकाश-तत्व की प्रतिध्वनि है," उन्होंने अपने मन में दोहराया, उनकी आवाज़ भीतर ही भीतर गूँज रही थी। "पर यह तो इतनी शुद्ध और तीव्र है... जैसे कोई नया जन्म हो।" उन्होंने ब्रह्मांड के पाँच तत्वों के बारे में गहन अध्ययन किया था: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। आकाश-तत्व को हमेशा सबसे गूढ़ और अदृश्य माना गया था – वह शून्य जो हर चीज़ को धारण करता है, जो तत्वों के बीच का खालीपन है, जो ध्वनि और प्रकाश को अपने भीतर समाहित करता है। लेकिन इसका उपयोग कभी किसी भौतिक हमले को इस तरह से रोकने या मोड़ने के लिए नहीं किया गया था। यह तो एक अलग ही स्तर की शक्ति थी।
उन्हें याद आया कि प्राचीन ग्रंथों में आकाश-तत्व के कुछ ऐसे संदर्भ थे, जहाँ इसे 'शून्य का नियंत्रक' या 'अंतरिक्ष का स्वामी' कहा गया था। लेकिन समय के साथ, इस ज्ञान को या तो भुला दिया गया था, या इसे केवल दार्शनिक अवधारणा के रूप में देखा जाता था, न कि एक व्यावहारिक शक्ति के रूप में। अगर किसी ने इस शक्ति को वास्तव में प्रकट किया था, तो यह एक युग-परिवर्तनकारी घटना हो सकती थी।
"जो बालक इस शक्ति को धारण करता है, वह साधारण नहीं हो सकता," उन्होंने सोचा। "उसे 'तत्वहीन' कहा जाता होगा, क्योंकि उसकी शक्ति इतनी सूक्ष्म है कि उसे देखा या समझा नहीं जा सकता। लेकिन वास्तव में, वह किसी भी तत्वधारी से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली हो सकता है... यदि उसे सही मार्गदर्शन मिले।" उनके भीतर एक गहरी उम्मीद जग उठी। यह सिर्फ एक बच्चे को खोजने की यात्रा नहीं थी, यह एक नई संभावना की खोज थी, एक ऐसे तत्व की खोज थी जिसे शायद मानवता ने सदियों पहले खो दिया था।
कई घंटों की यात्रा के बाद, जब सूरज ढलने लगा और शाम की लालिमा आसमान पर छा गई, गुरु वशिष्ठ शांतिवन गाँव के बाहरी किनारे पर पहुँचे। गाँव की सीमा पर, कुछ बच्चे अभी भी खेल रहे थे, और कुछ महिलाएं अपने घर के बाहर बैठी बातें कर रही थीं। जैसे ही गुरु वशिष्ठ का शांत, तेजस्वी रूप उनकी दृष्टि में आया, बच्चों ने अपना खेल रोक दिया और महिलाएँ अपनी बातें भूल गईं।
गाँव में अचानक एक अजीब-सी शांति छा गई। हवा में एक पवित्र ऊर्जा का संचार हुआ, जिसे हर कोई महसूस कर सकता था, चाहे वह तत्वधारी हो या नहीं। गुरु वशिष्ठ के चेहरे पर ज्ञान और शांति का तेज था, उनकी आँखों में एक गहरी चमक थी जो किसी को भी अपनी ओर खींच लेती थी। उनके सफेद दाढ़ी और बाल, उनकी शांत चाल, और उनके आसपास की दिव्य आभा... यह सब इतना प्रभावशाली था कि गाँव वाले अपनी जगह पर जड़वत् खड़े रह गए।
एक छोटा बच्चा, जो अपनी माँ के पास खड़ा था, उसने अपनी माँ की उंगली पकड़ी और फुसफुसाया, "माँ, वह कौन हैं?"
उसकी माँ ने डर और सम्मान के मिले-जुले भाव से बच्चे को देखा और धीमी आवाज़ में कहा, "चुप रहो, बेटे। यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। मुझे लगता है... यह कोई महान ऋषि हैं।"
धीरे-धीरे, गाँव के लोग अपने घरों से बाहर निकलने लगे। किसी ने अपने पड़ोसी को आवाज़ दी, "देखो, कौन आए हैं!" किसी ने हाथ जोड़ लिए, तो किसी ने भय और सम्मान में अपना सिर झुका लिया। उन्होंने कभी अपने छोटे से गाँव में इतने महान और तेजस्वी व्यक्ति को नहीं देखा था। गाँव के मुखिया, जो अभी भी वराह की घटना से उबर रहे थे, वे भी अपने घर से बाहर आए। उनकी आँखें गुरु वशिष्ठ पर टिक गईं, और उनके चेहरे पर गहरा आश्चर्य और सम्मान छा गया।
गुरु वशिष्ठ ने गाँव के मुखिया को देखा और उनके होठों पर एक हल्की मुस्कान आई। उन्होंने धीरे से अपना हाथ उठाया, जैसे सभी को शांत रहने का संकेत दे रहे हों। उनकी आवाज़ शांत थी, लेकिन उसमें एक गहरी गूँज थी जिसने हर किसी के दिल को छू लिया।
"शांति बनाए रखें, ग्रामवासियों," उन्होंने कहा। "मैं गुरु वशिष्ठ हूँ। आप सब पर मेरा आशीर्वाद है।"
उनकी आवाज़ सुनकर लोग और भी प्रभावित हुए। उनमें से कुछ ने हिम्मत करके उनके सामने झुककर प्रणाम किया। गाँव का मुखिया उनके पास आया, उसके चेहरे पर अभी भी विस्मय का भाव था।
"गुरुवर!" मुखिया ने कहा, उसकी आवाज़ में सम्मान और थोड़ा डर था। "हमारे छोटे से गाँव में आपका स्वागत है। यह हमारा सौभाग्य है कि आपने हमारे गाँव में अपने पवित्र कदम रखे। लेकिन... हम यह जानने का साहस कर सकते हैं कि आपके आगमन का क्या कारण है?"
मुखिया के सवाल ने पूरे गाँव की उत्सुकता को और बढ़ा दिया था। हर कोई गुरु वशिष्ठ की ओर देख रहा था, उनकी आँखें सवालों से भरी थीं। वे नहीं समझ पा रहे थे कि एक महान ऋषि, जिसने अपना जीवन ध्यान और ज्ञान में व्यतीत किया है, अचानक उनके साधारण से गाँव में क्यों आया है। क्या यह वराह की घटना से जुड़ा था? क्या कोई नया खतरा मंडरा रहा था? या कोई और गहरा रहस्य था? गुरु वशिष्ठ ने सभी को देखा, उनकी आँखों में एक गहरी, शांत समझ थी। उन्होंने एक पल के लिए अपनी नज़रें आरव की तरफ़ घुमाईं, जो मयंक के साथ एक कोने में खड़ा, सहमा हुआ सा उन्हें देख रहा था। उनकी आँखों में कुछ क्षणों के लिए एक चमक आई, लेकिन उन्होंने तुरंत उसे छिपा लिया।
"मेरा आगमन एक महत्वपूर्ण खोज के लिए हुआ है," गुरु वशिष्ठ ने धीमे से कहा, उनकी आवाज़ में एक अनकहा रहस्य था। "एक ऐसी खोज, जो शायद आप सबके भविष्य से जुड़ी हुई है।"
गाँव वाले एक-दूसरे को देखने लगे। उनकी उत्सुकता अब चरम पर थी। गुरु वशिष्ठ ने अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं किया था, लेकिन उनके शब्दों में एक ऐसा भार था जिसने हर किसी के मन में अनगिनत सवाल खड़े कर दिए थे। वह जानते थे कि उनकी उपस्थिति ने गाँव में एक नई लहर पैदा कर दी है। अब अगला कदम क्या होगा? यह रहस्य जानने के लिए हर कोई बेचैन था। गुरु वशिष्ठ ने एक गहरी साँस ली, और उनकी आँखें एक बार फिर गाँव के चारों ओर घूमीं, मानो वे किसी अदृश्य निशान को खोज रहे हों...
Chapter 12
"मेरा आगमन एक महत्वपूर्ण खोज के लिए हुआ है," गुरु वशिष्ठ ने धीमे से कहा, उनकी आवाज़ में एक अनकहा रहस्य था। "एक ऐसी खोज, जो शायद आप सबके भविष्य से जुड़ी हुई है।"
गाँव वाले एक-दूसरे को देखने लगे। उनकी उत्सुकता अब चरम पर थी। गुरु वशिष्ठ ने सभी की आँखों में फैली इस उत्सुकता को देखा, और एक गहरी, शांत साँस ली।
"ग्राम-मुखिया," गुरु वशिष्ठ ने गाँव के मुखिया की ओर मुड़ते हुए कहा। उनकी आवाज़ में अब एक स्पष्टता थी। "मैंने कुछ समय पहले, यहाँ से बहुत दूर, एक ऐसी ऊर्जा का प्रवाह महसूस किया, जो किसी भी ज्ञात तत्व से भिन्न है। यह अप्रत्याशित थी, तीव्र थी, और इसमें एक अजीब-सा... शून्य था। मैं उसी ऊर्जा के स्रोत की तलाश में यहाँ आया हूँ।"
गाँव वाले फुसफुसाने लगे। "शून्य? कैसी ऊर्जा?" एक बूढ़े व्यक्ति ने अपने बगल वाले से पूछा।
मुखिया ने सम्मानपूर्वक हाथ जोड़े। "क्षमा करें, गुरुवर, पर हमें आपकी बात ठीक से समझ नहीं आ रही। हमारे गाँव में सभी तत्वधारी अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं। अगर आप किसी विशेष शक्ति की तलाश में हैं, तो हमें बताइए। हम आपकी मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे।"
गुरु वशिष्ठ ने अपना सिर हिलाया। "यह शक्ति ऐसी नहीं है जिसे आसानी से समझा या देखा जा सके। यह सूक्ष्म है, लेकिन इसका प्रभाव गहरा है। मैं चाहूँगा कि आप अपने गाँव के सभी तत्वधारियों को एकत्रित करें, विशेषकर उन युवाओं को, जिनमें अभी-अभी शक्ति विकसित हुई है। मैं उन्हें स्वयं परखना चाहता हूँ।"
मुखिया ने बिना एक पल की देरी किए आदेश दिया। "सुमति! जाओ, सारे गाँव में घोषणा कर दो। सभी तत्वधारी, युवा और अनुभवी, तुरंत गाँव के मैदान में एकत्रित हों। गुरु वशिष्ठ स्वयं उन्हें परखेंगे!"
कुछ ही पलों में, पूरे गाँव में हलचल मच गई। हर घर से लोग बाहर निकलने लगे। युवाओं के चेहरे पर उत्साह था, तो बड़ों के चेहरे पर चिंता और उत्सुकता का भाव। सभी गाँव के बीच स्थित बड़े मैदान की ओर बढ़ने लगे। आरव और मयंक भी भीड़ के साथ-साथ चल रहे थे। मयंक बार-बार आरव को देख रहा था, जैसे वह उससे कुछ कहना चाहता हो, लेकिन कुछ कह नहीं पा रहा हो।
"क्या हुआ, मयंक?" आरव ने फुसफुसाया।
मयंक ने सिर हिलाया। "कुछ नहीं, बस... मुझे उम्मीद है कि गुरु वशिष्ठ को वह मिल जाए जिसकी वह तलाश कर रहे हैं।" उसकी आँखें आरव पर टिकी हुई थीं, उनमें एक अजीब-सा भाव था, जैसे वह कुछ जानता हो, लेकिन उसे ज़ाहिर करने से डर रहा हो।
मैदान में धीरे-धीरे भीड़ बढ़ती गई। गाँव के मुखिया ने एक छोटी-सी चौकी पर गुरु वशिष्ठ के लिए आसन लगवाया। गुरु वशिष्ठ उस पर विराजे, उनकी आँखें शांत थीं, लेकिन वे हर चेहरे को गौर से देख रहे थे।
"अब, एक-एक करके, अपने-अपने तत्वों का प्रदर्शन करें," गुरु वशिष्ठ ने शांत आवाज़ में निर्देश दिया।
सबसे पहले, कुछ युवा अग्नि-तत्वधारी आगे आए। एक लड़के ने अपने हाथ से एक छोटी-सी आग की लपट निकाली, जिसे उसने हवा में घुमाया। "अग्नि-पुत्र सुरेश," मुखिया ने गर्व से घोषणा की।
गुरु वशिष्ठ ने ध्यान से देखा, और अपनी उंगलियाँ हल्के से हिलाईं, जैसे वे उस ऊर्जा को महसूस कर रहे हों। "ठीक है," उन्होंने बस इतना ही कहा।
फिर एक जल-तत्वधारी आगे आया। उसने पास की एक पानी की बाल्टी से पानी को हवा में उठाया और उसे कई आकारों में ढाला। "जल-पुत्र केशव," मुखिया ने कहा।
गुरु वशिष्ठ ने वही प्रतिक्रिया दी। "ठीक है।"
एक के बाद एक, पृथ्वी-तत्वधारी आए, जिन्होंने मिट्टी और पत्थरों से छोटे-छोटे खिलौने बनाए, और वायु-तत्वधारी आए, जिन्होंने हवा के छोटे-छोटे भंवर बनाए। हर किसी ने अपनी-अपनी क्षमता का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, यह उम्मीद करते हुए कि गुरु वशिष्ठ को उनकी शक्ति में वह 'अनोखी ऊर्जा' मिल जाए जिसकी वह तलाश कर रहे थे।
गाँव के सबसे अनुभवी तत्वधारी भी आगे आए। एक बूढ़े अग्नि-तत्वधारी ने अपने हाथों से आग का एक बड़ा गोला बनाकर दिखाया, जो किसी भी युवा तत्वधारी से ज़्यादा प्रभावशाली था।
"मैं अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसी शक्ति को महसूस नहीं कर पाया," उन्होंने अपनी शक्ति को वापस खींचते हुए कहा।
गुरु वशिष्ठ ने अपने माथे पर हल्की-सी शिकन महसूस की। उन्होंने हर शक्ति को परखा, हर ऊर्जा को महसूस किया, लेकिन उन्हें वह विशेष 'शून्य की प्रतिध्वनि' कहीं नहीं मिली। उन्होंने एक-एक करके लगभग सभी तत्वधारियों को परख लिया था। उनके चेहरे पर थोड़ी निराशा झलकने लगी थी, लेकिन उनकी आँखों में अभी भी एक उम्मीद की किरण थी।
गाँव वाले भी धीरे-धीरे निराश होने लगे। "लगता है गुरु जी को यहाँ कुछ नहीं मिलेगा," एक औरत ने फुसफुसाया।
"शायद उन्होंने गलत गाँव चुन लिया," दूसरे ने कहा।
मुखिया भी चिंतित हो गया। "गुरुवर," उन्होंने विनम्रता से पूछा, "क्या आपको वह ऊर्जा मिल पाई?"
गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें बंद कीं, और एक गहरी साँस ली। उन्होंने उस ऊर्जा को फिर से महसूस करने की कोशिश की, उसकी प्रतिध्वनि को, उसकी सूक्ष्म उपस्थिति को। जब उन्होंने अपनी आँखें खोलीं, तो उनकी नज़र मैदान के एक कोने में बैठी बच्चों की भीड़ पर पड़ी। बच्चे अभी भी उत्सुकता से बड़े-बुजुर्गों को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते देख रहे थे। कुछ बच्चे आपस में खेल रहे थे, अनजाने में एक-दूसरे को छूते हुए, उनकी छोटी-छोटी ऊर्जाएँ आपस में टकरा रही थीं।
गुरु वशिष्ठ की आँखें उन बच्चों के बीच से गुज़रती गईं। उन्होंने हर बच्चे के भीतर की ऊर्जा को महसूस करने की कोशिश की। अचानक, उनकी नज़र एक शांत, गुमसुम से लड़के पर पड़ी। वह बाकी बच्चों से थोड़ा अलग बैठा था, उसकी आँखें ज़मीन पर थीं, जैसे वह किसी और ही दुनिया में हो। वह किसी खेल में शामिल नहीं था, किसी से बात नहीं कर रहा था। उसके चारों ओर एक अजीब-सा खालीपन था, एक अकेलापन।
यह आरव था।
गुरु वशिष्ठ की आँखें उस पर टिक गईं। उन्होंने आरव के भीतर कुछ महसूस किया – कुछ ऐसा जो बाकी किसी में नहीं था। वह कोई ऊर्जा नहीं थी, बल्कि ऊर्जा का *अभाव* था, एक गहरा *शून्य*। लेकिन यह शून्य, जैसा कि उन्हें पता था, वास्तव में कुछ और था। यह वह 'आकाश' था जिसे वह खोज रहे थे।
आरव ने अपनी नज़रें उठाईं। उसकी आँखें गुरु वशिष्ठ से मिलीं। उन आँखों में एक अजीब-सा सूनापन था, एक गहरा शून्य, जो गुरु वशिष्ठ को उस रात जंगल के पास महसूस हुई ऊर्जा की प्रतिध्वनि जैसा लगा। वही खालीपन, वही गहरा अंतर्द्वंद। आरव की आँखों में कोई चमक नहीं थी, कोई तत्व की शक्ति नहीं थी, केवल एक गहरा, अनंत खालीपन था।
गुरु वशिष्ठ के होठों पर एक हल्की-सी मुस्कान तैर गई। उनकी आँखों में वह चमक आ गई जो इतनी देर से गायब थी। उन्हें अपनी खोज का अंत मिल गया था।
मुखिया ने गुरु वशिष्ठ का ध्यान आरव की ओर केंद्रित होते देखा। उन्हें थोड़ी हैरानी हुई। "गुरुवर? क्या आप... किसी बच्चे को देख रहे हैं?"
गुरु वशिष्ठ ने अपनी नज़रें आरव पर से नहीं हटाईं। "हाँ, मुखिया," उन्होंने शांत आवाज़ में कहा। "मुझे लगता है कि मेरी खोज पूरी होने वाली है।"
मुखिया ने आरव को देखा और उसके चेहरे पर अविश्वास का भाव आ गया। "आरव? वह... वह तो शून्य है, गुरुवर। उसमें कोई शक्ति नहीं है।" उसके शब्दों में एक सूक्ष्म उपहास था, जो आरव को जीवन भर मिलता रहा था।
गाँव वाले भी हैरान थे। "शून्य? गुरु जी को उस तत्वहीन लड़के में क्या मिल सकता है?" एक ने फुसफुसाया।
"वह तो आज तक एक घास का तिनका भी हिला नहीं पाया," दूसरे ने कहा।
मयंक ने यह सब सुना। उसके दिल की धड़कन बढ़ गई। वह जानता था कि आरव ने क्या किया था, लेकिन वह यह भी जानता था कि कोई उस पर विश्वास नहीं करेगा। उसने आरव की ओर देखा, जो अब गुरु वशिष्ठ की सीधी निगाहों का सामना कर रहा था, उसका चेहरा थोड़ा पीला पड़ गया था।
गुरु वशिष्ठ ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। उनकी पूरी एकाग्रता आरव पर थी। उनके लिए, आरव अब सिर्फ एक लड़का नहीं था, वह एक रहस्य था, एक ऐसी पहेली जिसका समाधान उन्हें खोजना था। उन्होंने अपनी उंगली से आरव की ओर इशारा किया।
"उस बालक को यहाँ ले आओ," गुरु वशिष्ठ ने दृढ़ता से कहा, उनकी आवाज़ में अब कोई संदेह नहीं था। "मेरी खोज उसी के साथ समाप्त होगी।"
मुखिया और गाँव वाले एक-दूसरे को देखने लगे। गुरु वशिष्ठ का विश्वास आरव में था, वह लड़का जिसे वे सब 'शून्य' कहकर बुलाते थे। यह एक ऐसा पल था जिसने पूरे गाँव को हिलाकर रख दिया। आरव खुद भी हैरान था, उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गई थीं। उसके अंदर डर और एक अजीब-सी उम्मीद का मिश्रण उमड़ रहा था। क्या गुरु वशिष्ठ को उसमें कुछ ऐसा दिख रहा था, जिसे वह खुद कभी नहीं देख पाया था? यह एक ऐसा सवाल था जो उसके पूरे अस्तित्व को चुनौती दे रहा था। अब क्या होगा? यह रहस्य जानने के लिए सभी की साँसें अटकी हुई थीं।
Chapter 13
"उस बालक को यहाँ ले आओ," गुरु वशिष्ठ ने दृढ़ता से कहा, उनकी आवाज़ में अब कोई संदेह नहीं था। "मेरी खोज उसी के साथ समाप्त होगी।"
मुखिया और गाँव वाले एक-दूसरे को देखने लगे। गुरु वशिष्ठ का विश्वास आरव में था, वह लड़का जिसे वे सब 'शून्य' कहकर बुलाते थे। यह एक ऐसा पल था जिसने पूरे गाँव को हिलाकर रख दिया। आरव खुद भी हैरान था, उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गई थीं। उसके अंदर डर और एक अजीब-सी उम्मीद का मिश्रण उमड़ रहा था।
मुखिया ने reluctantly कुछ गाँव वालों को आरव को लाने का इशारा किया। दो-तीन लोग आरव की ओर बढ़े, उनके चेहरे पर अभी भी अविश्वास का भाव था। आरव, जो अपनी जगह पर जम सा गया था, उन्हें अपनी ओर आते देख और भी घबरा गया। मयंक ने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की, जैसे उसे दिलासा दे रहा हो, लेकिन आरव ने अपना हाथ छुड़ा लिया। वह जानता था कि अब उसे अकेले ही इस अजीब स्थिति का सामना करना होगा।
जैसे ही आरव उन लोगों के साथ गुरु वशिष्ठ की ओर बढ़ा, गाँव वालों की फुसफुसाहटें और तेज़ हो गईं।
"देखो, शून्य चल पड़ा गुरु जी के पास!" एक ने मज़ाक उड़ाया।
"वह क्या कर पाएगा? आज तक कभी कुछ नहीं किया इसने," दूसरे ने कहा।
"गुरु जी ने गलती कर दी। यह लड़का किसी काम का नहीं।"
आरव के माता-पिता, जो भीड़ में खड़े थे, चिंतित हो उठे। उनकी आँखों में भी संदेह था, लेकिन अपने बेटे के प्रति एक गहरा प्यार भी। वे नहीं जानते थे कि क्या उम्मीद करें। आरव को गुरु वशिष्ठ के सामने लाया गया। उसने अपना सिर झुका लिया, उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं। उसे लगा जैसे हज़ारों आँखें उसे भेद रही हैं, उसके शून्यपन का मज़ाक उड़ा रही हैं।
गुरु वशिष्ठ ने आरव को देखा। उनकी आँखों में कोई निर्णय नहीं था, केवल एक गहरी समझ और शांति थी। उन्होंने आरव को पास आने का इशारा किया। आरव धीरे से उनके सामने खड़ा हो गया, उसकी नज़रें अभी भी ज़मीन पर थीं।
"आरव," गुरु वशिष्ठ ने शांत आवाज़ में कहा। उनकी आवाज़ में एक अजीब-सा जादू था, जिसने आरव के डर को थोड़ा कम किया। आरव ने धीरे से अपनी नज़रें उठाईं और गुरु वशिष्ठ की ओर देखा। उनकी आँखें इतनी शांत और गहरी थीं कि आरव को लगा जैसे वे उसकी आत्मा के भीतर तक देख रही हों।
"तुमने कल क्या किया था?" गुरु वशिष्ठ ने सीधे सवाल पूछा।
आरव घबरा गया। उसे नहीं पता था कि वह किस बारे में बात कर रहे हैं। क्या वे वराह के बारे में बात कर रहे थे? उसे लगा कि अगर उसने कुछ गलत कहा, तो उसे और ज़्यादा उपहास का सामना करना पड़ेगा। "मैंने... मैंने कुछ नहीं किया, गुरुवर," उसने धीमी, डरी हुई आवाज़ में कहा। "मैं... मैं तत्वहीन हूँ। मैं कुछ नहीं कर सकता।"
गाँव वाले फिर से फुसफुसाए, "देखा? मैंने कहा था ना!"
मयंक, जो भीड़ में खड़ा था, अपने नाखूनों को काट रहा था। वह आरव के बचाव में कुछ कहना चाहता था, लेकिन गुरु वशिष्ठ की उपस्थिति में उसकी हिम्मत नहीं हुई।
गुरु वशिष्ठ ने मुस्कुराया। उनकी मुस्कान से आरव को थोड़ा अजीब लगा। क्या वे उसका मज़ाक उड़ा रहे हैं?
"डरने की कोई बात नहीं, बालक," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "मैं जानता हूँ कि तुममें वह शक्ति नहीं है जिसे सब देखना चाहते हैं। लेकिन कभी-कभी, सबसे बड़ी शक्ति अदृश्य होती है।" उन्होंने अपने बगल से एक सेवक को इशारा किया, जो तुरंत एक छोटा सा लकड़ी का तिपाई और उस पर रखा एक पानी का भरा हुआ गिलास ले आया। गिलास में पानी बिल्कुल शांत था।
गुरु वशिष्ठ ने गिलास को आरव के सामने रखा। "यह देखो, आरव," उन्होंने कहा। "यह पानी का गिलास है। मैं चाहता हूँ कि तुम इसे गिरा दो।"
आरव ने हैरान होकर गिलास को देखा। "बिना छुए?" उसने पूछा।
"हाँ, बिना छुए," गुरु वशिष्ठ ने पुष्टि की। "किसी भी तत्व का उपयोग किए बिना। बस अपनी एकाग्रता से। इसे गिराने की कोशिश करो।"
गाँव वाले एक-दूसरे को देखने लगे। यह कैसा परीक्षण था? अगर वह तत्वहीन है, तो वह कैसे पानी के गिलास को बिना छुए गिरा सकता है? यह तो असंभव था। कुछ लोगों ने हल्की-सी हँसी भी दी।
आरव ने गिलास की ओर देखा। उसने अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी किसी चीज़ को अपनी शक्ति से हिलाया नहीं था। वह जानता था कि वह हवा नहीं बना सकता, न ही पानी को नियंत्रित कर सकता है, न ही धरती को हिला सकता है। उसके पास कोई शक्ति नहीं थी। लेकिन गुरु वशिष्ठ की आँखों में विश्वास की एक हल्की-सी झलक थी, जिसने उसे हिम्मत दी।
उसने अपनी आँखें बंद कीं। उसने अपनी पूरी एकाग्रता गिलास पर लगाई। उसने गहरी साँसें लीं और बाहर छोड़ीं। उसके मन में एक ही विचार था: *गिरा दो, इसे गिरा दो।* उसने अपने भीतर की सारी शक्ति को, जो वह जानता था कि उसके पास नहीं है, इकट्ठा करने की कोशिश की। उसके माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं। उसका चेहरा लाल पड़ गया था। उसकी मुट्ठियाँ कस गईं। वह इतना ध्यान केंद्रित कर रहा था कि उसे अपने आसपास की आवाज़ें भी सुनाई नहीं दे रही थीं।
एक मिनट बीत गया। दो मिनट बीत गए। गिलास टस से मस नहीं हुआ। पानी की सतह पर एक भी लहर नहीं उठी। वह वैसे ही शांत खड़ा था, जैसे आरव के जन्म से लेकर अब तक उसकी ज़िंदगी रही थी – निष्क्रिय और अपरिवर्तित।
गाँव वालों की हँसी तेज़ हो गई। "मैंने कहा था ना!" एक औरत ने ज़ोर से कहा। "यह कुछ नहीं कर पाएगा।"
"कैसा मज़ाक है ये!" दूसरे ने कहा। "गुरु जी को किसी और को देखना चाहिए था।"
आरव ने अपनी आँखें खोलीं। उसकी साँसें भारी थीं, लेकिन गिलास वहीं का वहीं था। उसने कोशिश की थी, अपनी पूरी कोशिश की थी, लेकिन वह फिर से असफल हो गया था। उसके चेहरे पर निराशा और अपमान का गहरा भाव छा गया। उसे लगा कि एक बार फिर उसने खुद को और गुरु वशिष्ठ को शर्मिंदा किया है। उसकी आँखों में हल्की नमी आ गई।
उसने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा, यह सोचकर कि अब वे उसे भी उपहास भरी नज़र से देखेंगे। लेकिन गुरु वशिष्ठ की आँखों में कोई निराशा नहीं थी। इसके विपरीत, उनके होठों पर एक हल्की, रहस्यमय मुस्कान तैर रही थी। उन्होंने आरव को देखा, फिर गिलास को, और फिर आरव को। उनकी आँखों में एक चमक थी, जैसे उन्होंने वह देख लिया हो जिसकी उन्हें तलाश थी। लेकिन गाँव वाले, जो आरव की असफलता पर हँस रहे थे, गुरु वशिष्ठ की इस मुस्कान का मतलब नहीं समझ पा रहे थे। वे हैरान थे। क्या गुरु जी पागल हो गए हैं? आरव असफल हो गया है, फिर भी वह मुस्कुरा रहे हैं?
Chapter 14
गुरु वशिष्ठ की आँखों में कोई निराशा नहीं थी। इसके विपरीत, उनके होठों पर एक हल्की, रहस्यमय मुस्कान तैर रही थी। उन्होंने आरव को देखा, फिर गिलास को, और फिर आरव को। उनकी आँखों में एक चमक थी, जैसे उन्होंने वह देख लिया हो जिसकी उन्हें तलाश थी। लेकिन गाँव वाले, जो आरव की असफलता पर हँस रहे थे, गुरु वशिष्ठ की इस मुस्कान का मतलब नहीं समझ पा रहे थे। वे हैरान थे। क्या गुरु जी पागल हो गए हैं? आरव असफल हो गया है, फिर भी वह मुस्कुरा रहे हैं?
"यह क्या हो रहा है?" एक गाँव वाले ने बगल वाले से पूछा, उसकी आवाज़ में खुसुर-पुसुर थी।
"लगता है गुरु जी की आँखों को धोखा हो गया है," दूसरे ने जवाब दिया, "इस लड़के में तो कुछ भी नहीं है।"
"देखो तो, कितना पसीना आ गया है इसे। बेचारगी और असफलता की निशानी।" एक बूढ़ी औरत ने मुँह बनाते हुए कहा।
मुखिया ने भी अपनी भौंहें चढ़ा लीं। उसे उम्मीद थी कि गुरु वशिष्ठ कोई महान शक्ति खोजेंगे, कोई ऐसा योद्धा जो गाँव का नाम रोशन करे, लेकिन उन्हें यह तत्वहीन बच्चा मिला? मुखिया ने गुरु वशिष्ठ के सामने झुककर विनम्रता से कहा, "गुरुवर, क्षमा करें, पर जैसा कि आप देख सकते हैं... यह बालक किसी भी तत्व को प्रभावित नहीं कर सकता। पानी का गिलास टस से मस नहीं हुआ।" उसके शब्दों में आरव के लिए एक स्पष्ट निराशा और उपहास छिपा हुआ था।
आरव ने अपनी आँखें झुका लीं। उसके अंदर एक गहरी उदासी छा गई थी। उसे लगा कि वह फिर से सबका मज़ाक बन गया है। गुरु वशिष्ठ ने चाहे जो भी देखा हो, उसने तो कुछ नहीं किया था। उसे लगा कि यह उसका हमेशा का भाग्य है – असफल होना, उपहास का पात्र बनना। उसके मन में वह वराह वाला पल कौंध गया, जब उसने सोचा था कि शायद उसने कुछ किया, लेकिन अब उसे लग रहा था कि वह सब केवल उसकी कल्पना थी, या शायद कोई संयोग। वह बस एक शून्य है, और हमेशा शून्य ही रहेगा। उसकी आँखों में आँसू छलकने को थे, पर उसने उन्हें रोकने की पूरी कोशिश की।
गुरु वशिष्ठ ने आरव की ओर देखा, फिर गाँव वालों की ओर। उनकी मुस्कान गहरी हो गई। उन्होंने अपनी उंगली हल्के से हिलाई और चौकी पर रखा पानी का गिलास हिलने लगा। फिर वह टेढ़ा हुआ और उसमें से पानी छलक कर नीचे गिरा। गिलास फिर से सीधा हो गया, जैसे गुरु वशिष्ठ ने दिखाना चाहा हो कि अगर वह चाहते तो आसानी से गिलास को गिरा सकते थे।
"शांत हो जाओ, बच्चों," गुरु वशिष्ठ ने अपनी शांत, पर दृढ़ आवाज़ में कहा। उनकी आवाज़ इतनी शक्तिशाली थी कि पूरा मैदान शांत हो गया। फुसफुसाहटें थम गईं। सबकी नज़रें गुरु वशिष्ठ पर टिक गईं।
"मैं समझ सकता हूँ कि आप सब भ्रमित हैं," उन्होंने आगे कहा। "आप सबने वही देखा जो आपकी आँखें देखना चाहती थीं – एक ऐसा बालक, जो तत्वों को नियंत्रित नहीं कर सका। लेकिन मैंने वह देखा जो आपकी आँखें नहीं देख सकीं, क्योंकि वह इतना सूक्ष्म था कि उसे केवल महसूस किया जा सकता था।"
गाँव वाले उत्सुकता से एक-दूसरे को देखने लगे। 'सूक्ष्म?' यह कैसी बात थी?
गुरु वशिष्ठ ने आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में एक गहरी समझ थी। "आरव, जब तुम अपनी पूरी शक्ति से गिलास को गिराने की कोशिश कर रहे थे, तो गिलास नहीं हिला। लेकिन... उसके चारों ओर के स्थान में एक अद्भुत खिंचाव पैदा हुआ।"
उनके शब्द सुनकर आरव और गाँव वाले दोनों हैरान रह गए। खिंचाव? यह क्या था?
"मैंने वह खिंचाव महसूस किया," गुरु वशिष्ठ ने समझाया। "वह किसी अग्नि-तत्व की गर्मी नहीं थी, न ही जल-तत्व की शीतलता। वह वायु का झोंका नहीं था, न ही पृथ्वी का कंपन। वह एक अलग ही प्रकार की ऊर्जा थी, जो तत्वों को प्रभावित नहीं करती, बल्कि उनके बीच के शून्य को प्रभावित करती है।"
गाँव वाले एक-दूसरे की ओर देखकर अपने कंधे उचकाने लगे। 'शून्य को प्रभावित करती है?' यह तो और भी रहस्यमयी बात थी।
मुखिया ने हिम्मत करके पूछा, "क्षमा करें, गुरुवर, पर हम आपकी बात समझ नहीं पा रहे। शून्य तो शून्य होता है, उसमें क्या प्रभाव पड़ सकता है?"
गुरु वशिष्ठ ने एक गहरी साँस ली। "आप ठीक कहते हैं, मुखिया। आम लोगों के लिए शून्य का अर्थ 'कुछ नहीं' होता है। लेकिन ब्रह्मांड में, शून्य ही सब कुछ का आधार है। यह वह खालीपन है जो सभी तत्वों को जोड़ता है। यह वह स्थान है जहाँ सभी तत्व मौजूद हैं, और जहाँ से वे उत्पन्न होते हैं। यह आकाश-तत्व है।"
यह शब्द सुनकर गाँव वाले और भी हैरान हो गए। आकाश-तत्व? उन्होंने तो कभी इस तत्व के बारे में सुना भी नहीं था, सिवाय कहानियों में। पाँच तत्व थे – अग्नि, जल, पृथ्वी, वायु, और... बस। आकाश का जिक्र तो केवल प्राचीन ग्रंथों में मिलता था, और उसे एक मिथक माना जाता था।
"आकाश-तत्व?" मुखिया ने हैरानी से पूछा। "परंतु गुरुवर, यह तो केवल किंवदंतियों में है! हमारे ग्रंथों में केवल चार प्रमुख तत्वों का वर्णन है, जो सभी जीवित प्राणियों में मौजूद हैं।"
गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें बंद कर लीं और फिर खोलीं। उनकी आवाज़ में अब एक गंभीरता थी। "हाँ, मुखिया। सदियों से, आकाश-तत्व को एक मिथक माना गया है। इसकी शक्ति इतनी सूक्ष्म और इतनी दुर्लभ है कि इसे पहचानना लगभग असंभव है। यह तत्वों को पैदा नहीं करता, उन्हें नष्ट नहीं करता, बल्कि उनके बीच के संबंधों को प्रभावित करता है। यह वह आधार है जिस पर सभी तत्व टिके हुए हैं।"
उन्होंने आरव की ओर देखा। "आरव ने गिलास को नहीं हिलाया, क्योंकि उसकी शक्ति सीधे तत्वों को प्रभावित नहीं करती। लेकिन उसने उस गिलास के चारों ओर के स्थान को, उसके 'शून्य' को, एक क्षण के लिए मोड़ा था, खींचा था। यही कारण था कि वराह का हमला भी उसके दोस्त को छूए बिना ही मुड़ गया था। वह किसी तत्व से नहीं, बल्कि शून्य से आया था।"
आरव ने अपनी नज़रें उठाईं। उसकी आँखें गुरु वशिष्ठ की बातों से चमक उठी थीं। वराह का हमला... तो वह सच था! उसने कुछ किया था! उसकी आँखों में डर की जगह अब एक अजीब-सी रोशनी थी, एक उम्मीद की किरण। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसके भीतर ऐसी कोई चीज़ हो सकती है, जो उसे दूसरों से अलग बनाती हो।
"यह बालक, आरव," गुरु वशिष्ठ ने पूरे मैदान में अपनी आवाज़ गूँजाते हुए कहा, "यह तत्वहीन नहीं है। यह विशेष है। इसमें आकाश-तत्व की प्रतिध्वनि है। इसकी शक्ति तत्वों को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि उनके बीच के शून्य को साधना है। यह एक ऐसी क्षमता है जो युगों में एक बार ही प्रकट होती है।"
पूरा मैदान सन्न था। कोई फुसफुसाहट नहीं, कोई हँसी नहीं। केवल सन्नाटा। जिस लड़के को वे जीवन भर 'शून्य' कहकर बुलाते रहे, जिसे वे अयोग्य मानते रहे, जिसे वे मज़ाक का पात्र बनाते रहे, वह विशेष निकला? उसमें एक ऐसी शक्ति थी जिसका नाम उन्होंने कभी सुना भी नहीं था? यह बात उनके दिमाग में बैठ नहीं रही थी।
आरव के माता-पिता की आँखों में आँसू आ गए। ये आँसू दुख के नहीं, बल्कि गर्व और राहत के थे। उनका बेटा 'शून्य' नहीं था! वह विशेष था!
मयंक ने आरव की ओर देखा। उसकी आँखों में खुशी और अचरज का मिश्रण था। उसने हमेशा आरव पर भरोसा रखा था, और अब गुरु वशिष्ठ ने उसके विश्वास को सच साबित कर दिया था।
गुरु वशिष्ठ ने आरव का हाथ पकड़ा, उसकी आँखों में देखा। आरव को उनकी उंगलियों की गर्मी महसूस हुई, जैसे वह उसकी आत्मा को छू रही हो। "आरव," गुरु वशिष्ठ ने कहा, उनकी आवाज़ में प्यार और मार्गदर्शन था, "यह शक्ति बहुत बड़ी है, और इसे समझना और नियंत्रित करना आसान नहीं है। लेकिन अगर तुम इसे सीख जाओ, तो तुम ब्रह्मांड के सबसे शक्तिशाली तत्वधारियों में से एक बन सकते हो।"
उन्होंने आरव का हाथ थामा रहा और फिर पूरे मैदान की ओर देखा। उनकी आवाज़ अब और भी बुलंद हो गई, एक घोषणा की तरह। "इसलिए, मैं इस बालक को अपने साथ राजधानी ले जाना चाहता हूँ। मैं इसे दिव्य ज्ञान पीठ अकादमी में प्रशिक्षित करूँगा, जहाँ इसे अपनी इस अनूठी शक्ति को समझने और उसे सही दिशा में विकसित करने का अवसर मिलेगा।"
यह सुनकर मैदान में एक बार फिर हलचल मच गई, लेकिन इस बार यह फुसफुसाहटों से ज़्यादा हैरानी और विस्मय की थी। राजधानी? दिव्य ज्ञान पीठ? जिस अकादमी में जाने का सपना मयंक और आरव देखते थे, वहाँ जाने का मौका आरव को मिल रहा था? और वह भी गुरु वशिष्ठ के साथ? यह तो अविश्वसनीय था!
आरव ने अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके गुरु वशिष्ठ को देखा। उसके कानों को अपने शब्दों पर विश्वास नहीं हो रहा था। यह सपना था या हकीकत? जिस सपने को उसने दूर से देखा था, जिसे उसने कभी अपना नहीं माना था, वह अब उसके सामने था, गुरु वशिष्ठ के निमंत्रण के रूप में। उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई। यह सिर्फ एक अकादमी में जाने का निमंत्रण नहीं था, यह उसकी पूरी ज़िंदगी को बदलने वाला पल था, एक नए सफर की शुरुआत। लेकिन इस नए सफर के साथ कई सवाल भी थे – अपने गाँव को छोड़कर जाना, अपने माता-पिता और मयंक को छोड़ना... क्या वह इसके लिए तैयार था?
Chapter 15
आरव ने अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके गुरु वशिष्ठ को देखा। उसके कानों को अपने शब्दों पर विश्वास नहीं हो रहा था। यह सपना था या हकीकत? जिस सपने को उसने दूर से देखा था, जिसे उसने कभी अपना नहीं माना था, वह अब उसके सामने था, गुरु वशिष्ठ के निमंत्रण के रूप में। उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई। यह सिर्फ एक अकादमी में जाने का निमंत्रण नहीं था, यह उसकी पूरी ज़िंदगी को बदलने वाला पल था, एक नए सफर की शुरुआत। लेकिन इस नए सफर के साथ कई सवाल भी थे – अपने गाँव को छोड़कर जाना, अपने माता-पिता और मयंक को छोड़ना... क्या वह इसके लिए तैयार था?
मैदान में एक अजीब-सा सन्नाटा छा गया था, जो जल्द ही तीव्र फुसफुसाहटों में बदल गया। गाँव वाले एक-दूसरे की ओर देख रहे थे, उनकी आँखों में अविश्वास और ईर्ष्या का मिश्रण था।
"दिव्य ज्ञान पीठ?" एक अधेड़ उम्र के किसान ने लगभग चीखते हुए कहा। "उस शून्य को? जिसने एक गिलास पानी भी नहीं गिराया?"
एक महिला ने अपने बच्चे को अपनी ओर खींचते हुए कहा, "गुरु जी का दिमाग घूम गया है। वह एक मिथक, आकाश-तत्व की बात कर रहे हैं। और वह भी इस लड़के में?"
"हमारी आँखें झूठ नहीं बोलतीं!" एक बूढ़े ने अपनी लाठी ज़मीन पर पटकते हुए कहा। "वह तत्वहीन है! गुरु जी ने कोई गलती की है।"
मुखिया, जो अभी भी गुरु वशिष्ठ के सामने खड़ा था, ने बड़ी मुश्किल से अपनी भावनाओं को नियंत्रित किया। उसके चेहरे पर साफ़ असंतोष दिख रहा था। उसने विनम्रता से कहा, "गुरुवर, हम आपके ज्ञान पर कभी संदेह नहीं कर सकते, लेकिन... यह बात हमारी समझ से परे है। आरव ने कभी कोई शक्ति नहीं दिखाई। उसे हमेशा से ही... अलग समझा गया है।" उसकी आवाज़ में 'अलग' शब्द पर ज़ोर था, जिसका सीधा मतलब 'कमज़ोर' या 'अयोग्य' था।
गुरु वशिष्ठ ने मुखिया की बात सुनी और मुस्कुराए। "मुखिया, सत्य अक्सर वही होता है जो हमारी आँखों को दिखाई नहीं देता। जो चीज़ दुर्लभ होती है, उसे पहचानना भी कठिन होता है।"
"परंतु गुरुवर," एक जवान तत्वधारी ने आगे बढ़कर कहा, उसकी आवाज़ में जलन थी। यह वही था जिसने आरव पर पहले पत्थर फेंके थे। "हमने अपनी पूरी ज़िंदगी तत्वों का अभ्यास किया है। हमने कभी आकाश-तत्व के बारे में नहीं सुना। और यह बालक, जो कभी किसी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सका, इसे अकादमी में भेजा जाएगा? यह सरासर अन्याय है!"
कई और आवाज़ें उस युवा तत्वधारी के समर्थन में उठने लगीं। "हाँ! यह अन्याय है!" "हम वर्षों से अभ्यास कर रहे हैं!" "वह क्या सीखेगा वहाँ?"
आरव ने अपनी आँखें झुका लीं। उसके कानों में ये आवाज़ें तीर की तरह चुभ रही थीं। उसे लगा जैसे उसका सपना, इससे पहले कि वह सच हो पाता, फिर से टूट रहा है। वह जानता था कि ये लोग उसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। क्या दिव्य ज्ञान पीठ में भी उसे इसी तरह के उपहास का सामना करना पड़ेगा? यह सोचकर ही उसे डर लगने लगा।
आरव के माता-पिता भीड़ में से अपने बेटे को देख रहे थे। उनकी आँखें डबडबाई हुई थीं। उनकी बेटी वर्षों के अपमान के बाद, आज पहली बार किसी ने उनके बेटे को 'विशेष' कहा था। उनके लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। लेकिन साथ ही, एक डर भी था। राजधानी... दिव्य ज्ञान पीठ... यह उनके छोटे से गाँव से बहुत दूर था। क्या उनका बेटा वहाँ सुरक्षित रहेगा? क्या वह इतना बड़ा बदलाव संभाल पाएगा?
आरव की माँ ने अपने पति का हाथ पकड़ा, उसकी आवाज़ में चिंता थी, "स्वामी... हमारा लाल... इतनी दूर?"
उसके पिता ने उसकी ओर देखा, उनकी आँखों में भी अनिश्चितता थी, लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं। गुरु वशिष्ठ की उपस्थिति में वे भला क्या कह सकते थे?
मयंक, जो भीड़ के बीच खड़ा था, अपने दोस्त की ओर बढ़ा। उसके चेहरे पर खुशी और गर्व था। उसने आरव का हाथ पकड़ा और उसे कसकर दबाया। "आरव! तुमने सुना? गुरु जी ने क्या कहा? तुम... तुम विशेष हो!" उसकी आवाज़ में एक बच्चे जैसी खुशी थी, जो अपने दोस्त की जीत पर सबसे ज़्यादा खुश होता है। "तुम अकादमी जा रहे हो! हमारा सपना!"
आरव ने मयंक की ओर देखा। मयंक की आँखों में चमक थी, लेकिन आरव को उसकी आँखों के पीछे एक हल्की-सी उदासी भी दिखी। मयंक भी अकादमी जाना चाहता था, लेकिन अब सिर्फ आरव ही जा रहा था। यह एक कड़वी-मीठी भावना थी।
"मयंक..." आरव ने धीरे से कहा, उसका गला रुँधा हुआ था। वह अपने दोस्त को इस खुशी के पल में छोड़कर कैसे जा पाएगा? मयंक ही था जिसने हमेशा उसका साथ दिया था, जब कोई और नहीं था।
मयंक ने आरव के कंधे पर हाथ रखा। "अरे! यह उदास होने का समय नहीं है! यह जश्न का समय है! तुम वहाँ जाओगे, और एक महान तत्वधारी बनोगे! मैं जानता हूँ!" उसने आरव की ओर देखकर मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसकी अपनी आँखों में भी नमी आ गई थी। उसे पता था कि आरव के जाने का मतलब उनके सालों की दोस्ती में एक बड़ा बदलाव होगा।
गुरु वशिष्ठ ने इन सभी दृश्यों को देखा। उन्होंने गाँव वालों की ईर्ष्या, माता-पिता की चिंता, और दोस्तों के बीच की उदासी को महसूस किया। उन्होंने आरव की ओर देखा, जिसने अभी भी कोई जवाब नहीं दिया था।
"आरव," गुरु वशिष्ठ ने फिर कहा, उनकी आवाज़ में धैर्य था। "यह तुम्हारे लिए एक बड़ा निर्णय है। मैं तुम्हें कोई दबाव नहीं डाल रहा। लेकिन जान लो, तुम्हारी यह शक्ति तुम्हारे लिए एक बोझ बन सकती है अगर इसे सही मार्गदर्शन न मिले। या फिर, यह तुम्हें वह पहचान दे सकती है जिसकी तुम्हें हमेशा तलाश रही है।"
आरव ने गहरी साँस ली। उसकी आँखों के सामने उसकी पूरी ज़िंदगी घूम गई – बचपन से लेकर अब तक, हर कदम पर उपहास, अकेलापन, और यह एहसास कि वह किसी काम का नहीं है। उसने मयंक को बचाने की घटना को याद किया, वह शक्ति जो उसके अंदर से निकली थी, जिसने वराह को भगा दिया था। वह क्षण, जब उसने पहली बार खुद को उपयोगी महसूस किया था। क्या यह वाकई एक मौका था? एक ऐसा मौका जिससे वह अपनी पहचान बना सके?
लेकिन फिर उसे अपने माता-पिता याद आए, उनका प्यार और उनका संघर्ष। उसे शांतिवन गाँव याद आया, जहाँ उसने अपना पूरा जीवन बिताया था। उसे मयंक याद आया, उसका एकमात्र दोस्त, जिसने कभी उसका साथ नहीं छोड़ा। क्या वह इन सबको छोड़कर जा पाएगा?
"गुरुवर..." आरव ने आवाज़ में हिचकिचाहट के साथ कहा। वह क्या कहे? 'हाँ' कहने का मतलब था सब कुछ पीछे छोड़ देना। 'ना' कहने का मतलब था इस दुर्लभ अवसर को खो देना, और शायद हमेशा के लिए एक 'शून्य' बनकर रह जाना।
उसका मन दुविधा में था। एक तरफ एक अज्ञात भविष्य का वादा था, अपनी क्षमता को समझने और विकसित करने का अवसर। दूसरी तरफ, familiar (परिचित), हालांकि दुखद, comfort zone (आरामदायक क्षेत्र) था।
गुरु वशिष्ठ ने आरव के चेहरे पर तैरते इन भावों को पढ़ा। उन्होंने जानते थे कि यह निर्णय कितना कठिन था। "तुम्हें सोचने के लिए समय चाहिए, आरव," उन्होंने कहा। "आज रात इस पर विचार करो। कल सुबह, तुम मुझे अपना जवाब देना। लेकिन याद रखना, कभी-कभी हमें अपने सबसे बड़े डर का सामना करना पड़ता है ताकि हम अपनी सबसे बड़ी क्षमता को पा सकें।"
गुरु वशिष्ठ ने यह कहकर आरव के कंधे पर हाथ रखा, फिर भीड़ की ओर एक नज़र डाली। उनकी आँखों में एक समझदारी भरी चमक थी। उन्होंने संकेत दिया कि अब उन्हें अकेले छोड़ा जाए, और धीरे-धीरे भीड़ पीछे हटने लगी। आरव वहीं खड़ा रह गया, उसके दिमाग में गुरु वशिष्ठ के शब्द गूँज रहे थे। एक रात... केवल एक रात में उसे अपनी पूरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फैसला लेना था। क्या वह हिम्मत कर पाएगा? क्या वह अपनी 'शून्य' की पहचान को छोड़कर एक अनजाने भविष्य की ओर कदम बढ़ा पाएगा? यह सवाल हवा में तैर रहा था, जिसका जवाब केवल आने वाला कल ही दे सकता था।
Chapter 16
आरव वहीं खड़ा रह गया, उसके दिमाग में गुरु वशिष्ठ के शब्द गूँज रहे थे। एक रात... केवल एक रात में उसे अपनी पूरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फैसला लेना था। क्या वह हिम्मत कर पाएगा? क्या वह अपनी 'शून्य' की पहचान को छोड़कर एक अनजाने भविष्य की ओर कदम बढ़ा पाएगा? यह सवाल हवा में तैर रहा था, जिसका जवाब केवल आने वाला कल ही दे सकता था।
सूरज ढल चुका था और शांतिवन गाँव में रात का अँधेरा धीरे-धीरे फैल रहा था। उत्सव का माहौल अब गमगीन और अजीब-सा लग रहा था। हर कोई अपने घरों को लौट रहा था, और आरव को महसूस हुआ कि सबकी निगाहें उस पर टिकी हैं। उनमें से कुछ निगाहें हैरानी की थीं, कुछ ईर्ष्या की, और कुछ अभी भी अविश्वास की। वह किसी तरह अपने घर पहुँचा।
उसके माता-पिता घर के आँगन में उसका इंतज़ार कर रहे थे। आरव की माँ दौड़कर उसके पास आई और उसे गले लगा लिया। उसकी आँखों में आँसू थे। "मेरे बच्चे," उसने सिसकते हुए कहा, "तुम्हें सच में... सच में कोई शक्ति है? गुरु वशिष्ठ ने कहा... तुम विशेष हो?"
आरव ने अपनी माँ को कसकर पकड़ लिया। उसे खुद भी यकीन नहीं हो रहा था। "मुझे नहीं पता, माँ," उसने धीरे से कहा, "गुरु जी ने ऐसा ही कहा।"
उसके पिता उसके कंधे पर हाथ रखकर खड़े थे। उनके चेहरे पर राहत थी, लेकिन एक गहरी चिंता की लकीर भी थी। "हमेशा से तुझे 'शून्य' बुलाया गया, बेटा। हमने भी सोचा... पर आज... आज गुरु जी ने सब बदल दिया।" उनकी आवाज़ में गर्व था, लेकिन फिर वह मंद पड़ गई। "पर राजधानी... दिव्य ज्ञान पीठ... वह बहुत दूर है, बेटा। और तुम अकेले..."
आरव ने अपने माता-पिता की ओर देखा। उन्हें छोड़कर जाने का ख्याल उसके दिल को निचोड़ रहा था। उसने कभी गाँव से बाहर कदम नहीं रखा था। उसकी पूरी दुनिया यही छोटा सा शांतिवन था, जहाँ उसका बचपन बीता था, जहाँ उसकी यादें थीं।
"मुझे नहीं पता, पिताजी," आरव ने कहा। "मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ।"
"गुरु जी ने तुम्हें सोचने के लिए रात भर का समय दिया है," उसकी माँ ने कहा। "खाना खा लो, और फिर आराम से सोचो। जो भी फैसला होगा, हम तुम्हारे साथ हैं।"
आरव ने अनिच्छा से खाना खाया, लेकिन उसके गले से निवाला उतर नहीं रहा था। उसका दिमाग विचारों के बवंडर में फँसा था। जैसे ही उसने खाना खत्म किया, दरवाज़े पर हल्की-सी दस्तक हुई।
मयंक था। उसके चेहरे पर चिंता की झलक थी। "अरे, तुम ठीक हो, आरव?" उसने पूछा, फिर आरव के माता-पिता की ओर देखा। "काका, काकी, नमस्ते।"
आरव के माता-पिता ने सिर हिलाया और उन्हें अकेला छोड़ दिया, यह समझते हुए कि दोस्तों को बात करने के लिए जगह चाहिए।
मयंक ने आरव को अपने साथ बाहर चलने का इशारा किया। वे धीरे-धीरे नदी के किनारे उस पसंदीदा जगह पर पहुँचे, जहाँ वे अक्सर बैठते थे और अपने सपने बुनते थे। चाँदनी रात थी और नदी का पानी शांत बह रहा था।
"तो... क्या सोचा है?" मयंक ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा। उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी उदासी थी।
आरव ने एक गहरी साँस ली। "मुझे नहीं पता, मयंक। एक तरफ तो यह सपना है... दिव्य ज्ञान पीठ... गुरु वशिष्ठ खुद मुझे बुला रहे हैं। यह मेरी पहचान का सवाल है। मैं 'शून्य' नहीं हूँ, मयंक! मैंने हमेशा यही चाहा था!" उसकी आवाज़ में उत्साह था, पर वह तुरंत फीका पड़ गया। "पर दूसरी तरफ... तुम हो। मेरे माता-पिता हैं। यह गाँव है। मैं इन सबको छोड़कर कैसे जा सकता हूँ?"
मयंक ने अपने घुटनों को पकड़कर बैठा, और नदी में पत्थर फेंकने लगा। "हाँ, यह मुश्किल है," उसने कहा, उसकी आवाज़ धीमी थी। "हमने हमेशा साथ में अकादमी जाने का सपना देखा था। मैंने सोचा था कि हम दोनों साथ जाएंगे, साथ सीखेंगे... और मैं एक महान जल-योद्धा बनूँगा, और तुम... तुम्हें भी कुछ मिल जाएगा।" उसकी आवाज़ में एक कसक थी।
आरव ने मयंक के कंधे पर हाथ रखा। "मुझे पता है, मयंक। मैं जानता हूँ कि तुम भी जाना चाहते थे। तुम्हें भी बहुत अभ्यास किया है।"
मयंक ने सिर हिलाया। "हाँ, मैंने किया है। पर गुरु जी ने तुम्हें चुना है, आरव। उन्होंने मुझमें वह नहीं देखा जो उन्होंने तुममें देखा।" वह रुका, फिर आरव की ओर देखा। उसकी आँखों में अब उदासी के बजाय दृढ़ता थी। "देखो, आरव, मैं तुम्हें उदास नहीं देखना चाहता। यह तुम्हारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मौका है। तुम हमेशा से इस गाँव के ताने सुनते रहे हो। 'शून्य, शून्य' कहकर तुम्हें चिढ़ाया गया है।"
"हाँ," आरव ने कड़वाहट से कहा। "और आज भी, जब गुरु जी ने मुझे 'विशेष' कहा, तो भी लोगों ने मुझ पर अविश्वास किया, मुझ पर हँसे।"
"बिल्कुल!" मयंक ने उत्साह से कहा। "तो तुम्हें यह साबित करना होगा! तुम्हें जाना होगा, आरव। तुम्हें यह साबित करना होगा कि तुम विशेष हो। तुम्हें अपनी शक्ति को समझना होगा। यह सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं है, यह उन सब लोगों के लिए है जिन्होंने तुम्हें कभी समझा नहीं।"
आरव ने मयंक की बात सुनी। उसके शब्दों में सच्चाई थी। यह सिर्फ अकादमी जाने की बात नहीं थी, यह खुद को साबित करने की बात थी। लेकिन डर अभी भी था।
"पर अगर मैं वहाँ भी असफल हो गया तो?" आरव ने पूछा, उसकी आवाज़ में भय था। "अगर मैं वह शक्ति नहीं सीख पाया तो? मैं वापस लौटकर कहाँ जाऊँगा?"
मयंक ने आरव के कंधे पर हाथ रखा। "तुम असफल नहीं होगे, आरव। मुझे तुम पर भरोसा है। हमेशा से रहा है। याद है, जब बचपन में कोई तुम्हें खेलने नहीं देता था, तो मैं हमेशा तुम्हारे साथ होता था? और जब वराह आया... तुमने मुझे बचाया था, आरव। तुमने कुछ किया था, जो कोई और नहीं कर सका।"
उस पल, आरव को वराह वाली घटना साफ याद आ गई। वह भयानक पल, जब मयंक मौत के मुँह में था और आरव ने सोचा कि वह उसे खो देगा। उसके अंदर से निकली वह अनजानी ऊर्जा, जिसने वराह के हमले को मोड़ दिया था। गुरु वशिष्ठ ने कहा था कि वह 'शून्य-खिंचाव' था, आकाश-तत्व की प्रतिध्वनि। क्या यह सच में था? क्या उसमें ऐसी कोई शक्ति थी?
मयंक की आँखों में चमक थी। "तुम मुझे बचा सकते हो, आरव। तुम कुछ भी कर सकते हो। तुम्हें बस खुद पर भरोसा करना है।"
आरव ने गहरी साँस ली। मयंक की बातें उसके दिल को छू गईं। उसका दोस्त, जिसने हमेशा उस पर भरोसा किया था।
"ठीक है, आरव," मयंक ने एक लंबी साँस लेते हुए कहा। "तुम्हें जाना होगा। यह तुम्हारी किस्मत है। और मैं वादा करता हूँ... मैं भी यहाँ अपनी जल-शक्ति का अभ्यास करूँगा। मैं भी मजबूत बनूँगा। ताकि जब तुम वापस आओ, तो हम फिर से साथ हों।"
मयंक के शब्दों में एक अजीब-सी परिपक्वता थी। वह अपने दोस्त के लिए अपनी इच्छाओं को त्याग रहा था। आरव को उसकी आँखों में नमी दिखी, और उसने भी अपनी आँखों में आए आँसुओं को रोका।
"थैंक यू, मयंक," आरव ने कहा, उसकी आवाज़ भारी थी। "तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो। हमेशा।"
वे कुछ देर तक शांत बैठे रहे, सितारों को देखते रहे, नदी की आवाज़ सुनते रहे। फिर मयंक उठा। "ठीक है, अब जाओ। सो जाओ। तुम्हें सुबह एक बड़ा फैसला लेना है।"
मयंक चला गया, लेकिन उसकी बातें आरव के दिल में गूँजती रहीं। आरव रात भर सो नहीं पाया। उसने बार-बार गुरु वशिष्ठ के शब्दों को दोहराया – "तुम्हें अपने सबसे बड़े डर का सामना करना पड़ता है ताकि तुम अपनी सबसे बड़ी क्षमता को पा सको।" और मयंक के शब्द – "तुम असफल नहीं होगे, आरव। मुझे तुम पर भरोसा है।"
अगली सुबह, सूरज की पहली किरणें शांतिवन गाँव पर पड़ रही थीं। आरव ने अपनी आँखें खोलीं। उसके चेहरे पर अब कोई उलझन नहीं थी, बल्कि एक दृढ़ संकल्प था। उसे पता था कि उसे क्या करना है।
वह उठा और अपने माता-पिता के पास गया, जो आँगन में इंतज़ार कर रहे थे। "माँ, पिताजी," उसने कहा, उसकी आवाज़ शांत पर दृढ़ थी। "मैंने फैसला कर लिया है।"
उसके माता-पिता ने उसकी ओर देखा, उनके चेहरों पर चिंता थी।
"मैं जा रहा हूँ," आरव ने घोषणा की। "मैं दिव्य ज्ञान पीठ जा रहा हूँ। मैं गुरु वशिष्ठ के साथ जा रहा हूँ।"
आरव की माँ की आँखों में आँसू आ गए, और उसके पिता ने एक लंबी साँस ली। उन्हें पता था कि उनका बेटा बड़ा हो रहा है, और उसे अपनी किस्मत का रास्ता खुद तय करना होगा। उन्होंने आरव को गले लगा लिया। यह एक दुखद लेकिन गर्व का क्षण था।
कुछ देर बाद, आरव अपने घर से निकला। उसके पीछे उसके माता-पिता खड़े थे, उनकी आँखों में नमी थी। गुरु वशिष्ठ गाँव के मैदान में खड़े उसका इंतज़ार कर रहे थे। उनके पास एक साधारण-सा थैला था, और वह आरव को देख रहे थे।
आरव ने एक गहरी साँस ली। उसका दिल धड़क रहा था। उसे लगा जैसे वह एक नए जीवन की दहलीज पर खड़ा है। उसने अपने गाँव की ओर आखिरी बार देखा। उसके दोस्त मयंक भी वहाँ खड़ा था, उसकी आँखों में आँसू थे, पर उसने आरव को देखकर मुस्कुराया और अंगूठा दिखाया, जैसे कह रहा हो, 'तुम कर सकते हो!'
आरव ने मयंक को देखकर सिर हिलाया, फिर गुरु वशिष्ठ की ओर मुड़ा।
"मैं तैयार हूँ, गुरुवर," आरव ने कहा, उसकी आवाज़ में एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास था। "मैं सीखने के लिए तैयार हूँ।"
गुरु वशिष्ठ ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। "चलो, आरव," उन्होंने कहा। "तुम्हारी यात्रा अभी शुरू हुई है।"
और फिर, बिना किसी और बात के, गुरु वशिष्ठ और आरव ने शांतिवन गाँव को पीछे छोड़ दिया। वे धीरे-धीरे गाँव से बाहर निकलते गए, एक नए सफर पर, एक ऐसी दुनिया की ओर जहाँ आरव को अपनी असली पहचान और अपनी अद्भुत आकाश-शक्ति को खोजना था। गाँव के लोग उन्हें जाते हुए देखते रहे, उनकी आँखें हैरानी से और कुछ अनिश्चितता से भरी थीं। उन्हें अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि जिस लड़के को वे 'शून्य' कहकर बुलाते थे, वह अब किसी महान नियति की ओर बढ़ रहा था। आरव ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा, क्योंकि वह जानता था कि उसका भविष्य अब उसके सामने था, और वह उसे पाने के लिए तैयार था।
Chapter 17
आरव ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा, क्योंकि वह जानता था कि उसका भविष्य अब उसके सामने था, और वह उसे पाने के लिए तैयार था। गुरु वशिष्ठ के शांत कदमों के साथ आरव धीरे-धीरे शांतिवन गाँव से दूर होता जा रहा था। सुबह की ताज़ी हवा चल रही थी, लेकिन गाँव के भीतर एक अजीब-सा तनाव और असंतोष फैला हुआ था।
गाँव के लोग अपने-अपने दरवाज़ों पर और गलियों में खड़े थे, उनकी आँखें आरव और गुरु वशिष्ठ पर टिकी थीं, जब तक कि वे गाँव की सीमा से बाहर नहीं निकल गए। उनके चेहरों पर हैरानी, अविश्वास और कुछ हद तक ईर्ष्या के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।
जैसे ही दोनों गाँव की नज़रों से ओझल हुए, गाँव में एक फुसफुसाहट शुरू हुई, जो जल्द ही तेज़ आवाज़ों में बदल गई।
"मैंने कहा था न! गुरु जी से कोई गलती हो गई है!" एक बूढ़ी औरत ने अपने बगल में खड़ी दूसरी औरत से कहा, उसकी आवाज़ में जीत की खुशी थी, जैसे उसकी भविष्यवाणी सच हो गई हो। "वह लड़का... 'शून्य' आरव! भला उसे अकादमी में क्या सिखाएँगे?"
"हाँ, यह सरासर पागलपन है!" एक जवान आदमी ने सहमति में सिर हिलाया। यह वही था जिसने आरव पर पत्थर फेंका था और हमेशा उसे नीचा दिखाया था। उसके चेहरे पर अब ईर्ष्या साफ़ दिख रही थी। "हम सालों से पसीना बहा रहे हैं, अपनी शक्तियों को निखार रहे हैं, और वह... वह जिसने कभी कोई तत्व नहीं दिखाया, उसे सीधे राजधानी बुलाया जा रहा है?"
"उसे कौन-सी शक्ति मिली? एक गिलास पानी तक नहीं गिरा सका!" एक और ने व्यंग्य किया, और कुछ लोग हँस पड़े। यह हँसी आरव के माता-पिता के कानों में चुभ रही थी, जो अभी भी अपने घर के दरवाज़े पर खड़े थे, उनके चेहरों पर दुख और चिंता के भाव थे।
"क्या ये लोग कभी नहीं बदलेंगे?" आरव की माँ ने धीरे से कहा, उसकी आँखों में आँसू थे। "मेरा बच्चा चला गया है, और ये अभी भी उस पर हँस रहे हैं!"
आरव के पिता ने अपनी पत्नी के कंधे पर हाथ रखा। "इन्हें कहने दो, प्रिया। गुरु वशिष्ठ ने जो कहा है, वह सच होगा। हमारा आरव विशेष है।" उनकी आवाज़ में दृढ़ता थी, लेकिन उनके दिल में भी डर था।
गाँव का मुखिया, जो गुरु वशिष्ठ के जाने के बाद से ही चुप था, अब आगे आया। उसने अपनी गंभीर आवाज़ में कहा, "शांत हो जाओ, सब! गुरु वशिष्ठ के फैसले पर सवाल उठाना हमारी परंपरा नहीं है।"
"पर मुखिया जी!" वही जवान तत्वधारी आगे आया, उसकी आवाज़ में चुनौती थी। "यह हमारी समझ से परे है! हम सब जानते हैं कि आरव कैसा है। अगर हर तत्वहीन को अकादमी में बुलाने लगें, तो फिर हमारे अभ्यास का क्या मतलब?"
एक और व्यक्ति ने कहा, "कहीं यह किसी चाल का हिस्सा तो नहीं? कोई तो वजह होगी कि गुरु जी ने उस लड़के को चुना है, जिसने कभी कोई शक्ति नहीं दिखाई। कहीं ऐसा तो नहीं कि वह हमें कोई पाठ पढ़ाना चाहते हों, या उसकी अयोग्यता साबित करना चाहते हों?"
गाँव में कई लोगों ने इस बात पर सोचा। उन्हें लगा कि शायद गुरु वशिष्ठ आरव को इसलिए ले गए हैं ताकि यह साबित हो सके कि तत्वहीन कभी कुछ नहीं बन सकते, और बाद में उसे वापस भेज दिया जाएगा। यह विचार सुनकर कई लोगों के चेहरे पर एक अजीब-सी संतुष्टि आ गई।
"अगर ऐसा है," एक महिला ने कहा, "तो इससे हमारे बच्चों को सबक मिलेगा कि अपनी शक्तियों को हल्के में न लें।"
मुखिया ने गहरी साँस ली। वह इन बातों को पसंद नहीं करता था, लेकिन वह जानता था कि लोगों के मन में अविश्वास बैठ गया था। "जो भी हो," उसने कहा, "हमें गुरु वशिष्ठ पर विश्वास रखना होगा। उनके ज्ञान को हम नहीं समझ सकते।"
तभी, मयंक, जो एक कोने में खड़ा था और चुपचाप सब कुछ सुन रहा था, आगे आया। उसके चेहरे पर गुस्सा था। "आप सब क्यों नहीं समझते?!" उसने लगभग चीखते हुए कहा। उसकी आवाज़ में दर्द और निराशा थी। "आरव 'शून्य' नहीं है! उसने मुझे बचाया था! उस वराह के हमले से! आप सबने अपनी आँखों से देखा था! उसने कुछ किया था!"
मयंक की बात सुनकर गाँव वाले एक पल के लिए शांत हो गए। उन्हें वराह वाली घटना याद आ गई थी, लेकिन उन्होंने उस घटना को एक चमत्कार या संयोग मान लिया था, आरव की शक्ति नहीं।
"वह बस संयोग था, बच्चे," एक बूढ़े ने कहा। "वराह डर गया होगा, या कुछ और हुआ होगा। आरव ने कुछ नहीं किया।"
"नहीं!" मयंक ने ज़ोर दिया। "गुरु वशिष्ठ ने खुद कहा है! आरव विशेष है! वह आकाश-तत्व की प्रतिध्वनि है! आप लोग क्यों नहीं चाहते कि वह सफल हो? आप लोग क्यों हमेशा उसे नीचा दिखाना चाहते हैं?" मयंक की आँखों में आँसू आ गए थे। उसे अपने दोस्त के लिए इतनी नफरत और अविश्वास देखकर दुख हो रहा था।
"बच्चे, तुम्हारी दोस्ती है," मुखिया ने धीरे से कहा। "इसलिए तुम भावुक हो रहे हो। लेकिन हमें यथार्थवादी होना होगा।"
"यथार्थवादी?" मयंक हँसा, एक कड़वी हँसी। "यथार्थवादी वह है जो अपनी आँखों के सामने हो रहे बदलावों को देख सके! आप लोग अपने पूर्वाग्रहों में इतने अंधे हो गए हैं कि आप सच को भी देख नहीं पा रहे!"
मयंक इतना गुस्से में था कि उसने कुछ और नहीं कहा और आरव के माता-पिता की ओर मुड़ा। "काका, काकी," उसने कहा, "आप लोग चिंता मत कीजिए। आरव ज़रूर कामयाब होगा। मैं जानता हूँ।"
आरव की माँ ने मयंक का हाथ पकड़ा। "धन्यवाद, बेटे," उसने कहा, उसकी आवाज़ में कृतज्ञता थी। "तुम ही हो जो हमेशा उसके साथ खड़े रहे।"
मुखिया ने इस बात को सुनकर अपनी नज़रें घुमा लीं। वह जानता था कि मयंक की बातें कुछ हद तक सही थीं, लेकिन उसे गाँव के लोगों के सामने अपनी गरिमा भी बनाए रखनी थी। उसने भीड़ की ओर देखा। "अब सब अपने-अपने काम पर लौटें! यह बहस करने का समय नहीं है!"
धीरे-धीरे, गाँव के लोग बड़बड़ाते हुए अपने घरों की ओर लौटने लगे, लेकिन उनके चेहरों पर अभी भी संदेह और अविश्वास के भाव थे। आरव के माता-पिता और मयंक ही थे जो उसे जाते हुए देख रहे थे, उनकी आँखों में आशा और थोड़ी उदासी थी। उन्हें उम्मीद थी कि आरव एक दिन लौटकर आएगा और इन सभी लोगों को गलत साबित करेगा।
उधर, गाँव से कुछ दूर, गुरु वशिष्ठ और आरव अब एक पहाड़ी रास्ते पर चल रहे थे। आरव ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा था, लेकिन वह जानता था कि गाँव के लोगों ने क्या कहा होगा। उसके कानों में उनके ताने और अविश्वास अभी भी गूँज रहे थे।
गुरु वशिष्ठ ने आरव की ओर देखा, उनकी आँखों में एक समझदारी भरी चमक थी। "क्या तुम चिंतित हो, आरव?" उन्होंने पूछा।
आरव ने सिर हिलाया। "गाँव वाले... वे कभी नहीं बदलेंगे, गुरुवर। वे हमेशा मुझे 'शून्य' ही कहेंगे।" उसकी आवाज़ में थोड़ी कड़वाहट थी।
गुरु वशिष्ठ मुस्कुराए। "तुम्हारे गाँव वाले उन लोगों की तरह हैं जो एक बंद कमरे में रहते हैं। वे केवल वही देखते हैं जो उनकी दीवारों के भीतर है। वे यह नहीं देख सकते कि बाहर एक विशाल दुनिया है, और उस दुनिया में तुम एक रोशनी हो, आरव।"
"रोशनी?" आरव ने हैरत से पूछा। "मैं तो बस... एक साधारण लड़का हूँ, गुरुवर।"
"साधारण?" गुरु वशिष्ठ ने कहा। "तुमने अपने अंदर उस शून्य को धारण किया है जो सभी तत्वों को जोड़ता है। तुमने बिना किसी तत्व के एक वराह को भगा दिया। यह साधारण नहीं है, आरव। यह असाधारण है।" उन्होंने रुककर आरव की ओर देखा। "यह रास्ता आसान नहीं होगा। तुम्हें बहुत कुछ सीखना होगा, बहुत कुछ सहना होगा। लेकिन तुम्हें याद रखना होगा, तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत वह नहीं है जो तुम्हें दिखाई देती है, बल्कि वह है जो अदृश्य है, जो तुम्हें दूसरों से अलग बनाती है।"
आरव ने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा, उनकी बातों में एक गहरा अर्थ था। उसे लगा जैसे गुरु जी उसे न केवल तत्वों के बारे में सिखा रहे थे, बल्कि जीवन के बारे में भी। उसके मन में एक नया आत्मविश्वास जागृत हो रहा था। यह गाँव का अविश्वास ही था जिसने उसे और अधिक दृढ़ बना दिया था। उसे अब उन लोगों को गलत साबित करना था, न केवल अपने लिए, बल्कि मयंक और अपने माता-पिता के लिए भी।
"मैं तैयार हूँ, गुरुवर," आरव ने कहा, उसकी आवाज़ में दृढ़ता थी। "मैं सीखूँगा। मैं अपनी पहचान बनाऊँगा।"
गुरु वशिष्ठ ने संतोष भरी मुस्कान दी। "उत्तम। अब चलो, आरव। तुम्हारी यह यात्रा लंबी है, और यह सिर्फ शारीरिक यात्रा नहीं है, बल्कि आत्मा की यात्रा भी है। इस यात्रा में तुम खुद को जानोगे, अपनी असली क्षमता को समझोगे।"
वे दोनों फिर से आगे बढ़े, शांतिवन गाँव अब उनकी आँखों से पूरी तरह ओझल हो चुका था। उनके सामने अब एक लंबा, अनजाना रास्ता था, जो उन्हें राजधानी और दिव्य ज्ञान पीठ की ओर ले जा रहा था। आरव के मन में अब कोई संदेह नहीं था, केवल एक नया संकल्प था। उसने अपने अतीत को पीछे छोड़ दिया था, और वह अपने भविष्य की ओर बढ़ रहा था।
Chapter 18
वे दोनों फिर से आगे बढ़े, शांतिवन गाँव अब उनकी आँखों से पूरी तरह ओझल हो चुका था। उनके सामने अब एक लंबा, अनजाना रास्ता था, जो उन्हें राजधानी और दिव्य ज्ञान पीठ की ओर ले जा रहा था। आरव के मन में अब कोई संदेह नहीं था, केवल एक नया संकल्प था। उसने अपने अतीत को पीछे छोड़ दिया था, और वह अपने भविष्य की ओर बढ़ रहा था।
लेकिन हर कदम के साथ, आरव को महसूस हो रहा था कि वह केवल ज़मीन पर नहीं चल रहा है, बल्कि अपने जीवन के एक हिस्से को पीछे छोड़ रहा है। हवा में, जो सुबह की ठंडक ला रही थी, उसे अपने घर की महक, अपनी माँ के हाथ के खाने की खुशबू और मयंक की हँसी की गूँज महसूस हो रही थी। उसका शरीर आगे बढ़ रहा था, लेकिन उसका मन बार-बार गाँव की ओर खिंच रहा था।
जैसे-जैसे गाँव की अंतिम झलकियाँ भी पेड़ों के पीछे छिपने लगीं, आरव की आँखों के सामने पिछली रात के दृश्य घूमने लगे। उसे याद आया जब उसने अपने माता-पिता को बताया था कि वह जा रहा है।
"मैं जा रहा हूँ," उसने कहा था, उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी स्थिरता थी जो खुद उसे हैरान कर रही थी।
उसकी माँ ने एक छोटी-सी सिसकी भरी थी और उसकी ओर भागी थी, उसे कसकर गले लगा लिया था। "मेरे लाल," उसने कहा था, उसके होंठ आरव के माथे पर थे, "ध्यान रखना अपना। खाना समय पर खाना, और किसी से लड़ाई मत करना।" उसकी आवाज़ भावनाओं से भरी थी, और आरव को महसूस हुआ था कि उसकी माँ का शरीर काँप रहा है। उसने अपनी माँ की पीठ पर हाथ रखा था, उसकी आँखों में भी नमी आ गई थी। यह पहली बार था जब वह उनसे इतने समय के लिए दूर हो रहा था।
उसके पिता ने उनके पास आकर धीरे से कहा था, "आरव, हमें तुम पर गर्व है। जाओ, और वह सब हासिल करो जिसके तुम हकदार हो। लेकिन याद रखना, यह घर हमेशा तुम्हारा इंतज़ार करेगा।" उनके चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान थी, लेकिन उनकी आँखों में एक अनकही उदासी थी। आरव ने उन्हें गले लगाया था, और महसूस किया था कि उसके पिता का हाथ उसके कंधे पर कितनी मजबूती से टिका था। वह हाथ सिर्फ एक स्पर्श नहीं था, बल्कि आशीर्वाद और विश्वास का प्रतीक था।
और फिर आया था मयंक। वह सुबह-सुबह ही उसके घर के बाहर खड़ा था, उसकी आँखें लाल थीं, जैसे वह पूरी रात सोया न हो। आरव को देखते ही मयंक दौड़कर उसके पास आया था और उसे कसकर गले लगा लिया था।
"जाओ, आरव," मयंक ने फुसफुसाया था, उसकी आवाज़ भरी हुई थी। "जाओ और उन सबको गलत साबित करो। तुम 'शून्य' नहीं हो। तुम सबसे अलग हो। मुझे पता है।"
आरव ने मयंक को अपने से दूर किया था, उसकी आँखों में आँसू थे। "तुम भी अपना ध्यान रखना, मयंक। और अपनी जल-शक्ति का अभ्यास करते रहना। मैं जब वापस आऊँगा, तो हम दोनों मिलकर और भी बड़े सपने देखेंगे।"
"ज़रूर!" मयंक ने एक झूठी मुस्कान लाने की कोशिश की थी, लेकिन उसके गाल पर आँसुओं की एक लकीर बह रही थी। "मैं इंतज़ार करूँगा। और मैं वादा करता हूँ... मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूँगा।"
आरव ने उसके कंधे पर हाथ रखा था। "मैं भी नहीं, मेरे दोस्त। कभी नहीं।"
उस पल, आरव को लगा था जैसे वह अपने जीवन के एक हिस्से को मयंक के पास छोड़कर जा रहा है। मयंक उसका सबसे अच्छा दोस्त नहीं था, वह उसका परिवार था, उसका सहारा था, उसकी हिम्मत था। उसे छोड़कर जाना उसके लिए अपने ही एक हिस्से को खो देने जैसा था। यह विदाई उसके दिल पर एक गहरे बोझ की तरह बैठ गई थी।
आरव के विचारों की श्रृंखला गुरु वशिष्ठ की शांत आवाज़ से टूटी। "क्या हुआ, आरव? तुम अचानक मौन हो गए।"
आरव ने सिर उठाया और गुरु वशिष्ठ की ओर देखा। "कुछ नहीं, गुरुवर... बस... गाँव की याद आ रही है। माँ, पिताजी... और मयंक।" उसकी आवाज़ में दर्द था।
गुरु वशिष्ठ ने कुछ देर तक उसे देखा, फिर बोले, "यह स्वाभाविक है, आरव। जहाँ तुम्हारा बचपन बीता है, जहाँ तुम्हारी यादें हैं, उन जगहों और लोगों को छोड़कर जाना कभी आसान नहीं होता।"
"पर यह बहुत मुश्किल है, गुरुवर," आरव ने स्वीकार किया। "लगता है जैसे मैं उन्हें धोखा दे रहा हूँ। या उन्हें अकेला छोड़ रहा हूँ।"
"धोखा?" गुरु वशिष्ठ ने धीरे से कहा। "नहीं, आरव। तुम उन्हें धोखा नहीं दे रहे हो। तुम अपने भविष्य की ओर बढ़ रहे हो, अपनी नियति को खोजने। यह उनका आशीर्वाद है कि तुम यह कर सको।"
"पर मयंक... वह भी अकादमी जाना चाहता था। और अब... मैं अकेला जा रहा हूँ," आरव ने कहा, उसके चेहरे पर अपराधबोध था।
गुरु वशिष्ठ मुस्कुराए। "तुम्हारे दोस्त की आँखें मैंने देखी थीं, आरव। उसमें तुम्हारे लिए ईर्ष्या नहीं थी, केवल प्रेम और विश्वास था। सच्चा मित्र वही होता है जो तुम्हारे लिए सबसे अच्छा चाहता है, भले ही उसे खुद कुछ न मिले। मयंक तुम्हारे लिए खुश है, आरव। तुम्हारी सफलता उसकी भी सफलता होगी।"
"लेकिन मुझे नहीं पता कि मैं सफल हो पाऊँगा या नहीं," आरव ने कहा, उसकी आवाज़ में फिर से डर उभर आया था। "अगर मैं वहाँ जाकर भी 'शून्य' ही रहा तो?"
गुरु वशिष्ठ रुक गए। उन्होंने आरव के सामने खड़े होकर उसके कंधों पर हाथ रखा। उनकी आँखों में असीम करुणा थी। "आरव, याद रखना, बंधन और बोझ में एक फर्क होता है। जो लोग तुम्हें प्यार करते हैं, वे तुम्हारा बंधन होते हैं – एक ऐसी डोर जो तुम्हें खींचती है, तुम्हें सहारा देती है। लेकिन जब तुम उनके प्यार को अपने ऊपर एक बोझ समझने लगते हो, तब तुम कमज़ोर पड़ जाते हो।"
आरव ने ध्यान से सुना।
"तुम्हारे माता-पिता और मयंक का प्यार तुम्हारा बोझ नहीं है, आरव। वह तुम्हारी ताकत है। जब भी तुम्हें लगे कि तुम थक गए हो, या हार मान रहे हो, तो उन्हें याद करना। उनकी उम्मीदें, उनका विश्वास – वह तुम्हें आगे बढ़ने की शक्ति देगा। तुम उनके लिए ही नहीं, बल्कि खुद के लिए भी यह करोगे। तुम साबित करोगे कि तुम कौन हो।" गुरु वशिष्ठ ने उसे समझाया।
आरव ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसने अपने माता-पिता के चेहरे याद किए, मयंक की मुस्कुराती हुई आँखें याद कीं। उसने महसूस किया कि गुरु जी सही कह रहे थे। उनका प्यार बोझ नहीं था। यह एक गर्म कंबल था जो उसे भीतर से मजबूत बना रहा था।
"और 'शून्य' की बात," गुरु वशिष्ठ ने अपनी बात जारी रखी। "आज तुमने एक बहुत बड़ा फैसला लिया है, आरव। तुमने उस डर का सामना किया है जिसे तुम सबसे ज़्यादा महसूस करते थे – अपने प्रियजनों को छोड़कर अकेले आगे बढ़ने का डर। यही पहली सीढ़ी है, बेटा। यह सिर्फ तत्वों की शक्ति सीखने की बात नहीं है। यह खुद को जानने, खुद की क्षमताओं को स्वीकार करने की यात्रा है।"
आरव ने अपनी आँखें खोलीं। उसके चेहरे पर अब दुख नहीं, बल्कि एक गहरी समझ थी। "मुझे समझ आ रहा है, गुरुवर," उसने कहा। "यह मुश्किल है... पर यह ज़रूरी भी है। उनके लिए भी, और मेरे लिए भी।"
गुरु वशिष्ठ ने संतोष से सिर हिलाया। "उत्तम। अब तुम्हें सिर्फ आगे देखना है। यह रास्ता तुम्हें बहुत कुछ सिखाएगा। तुम्हें खुद को नए सिरे से परिभाषित करना होगा। और तुम्हारी यात्रा के हर कदम पर, तुम्हारे गाँव के लोगों का अविश्वास, और तुम्हारे प्रियजनों का विश्वास, दोनों तुम्हारे साथ चलेंगे।"
वे फिर से चलना शुरू कर दिया। रास्ता अब गाँव से और भी दूर निकल चुका था, और उनके सामने एक नया परिदृश्य खुलने लगा था। पेड़ अब ऊँचे होते जा रहे थे और रास्ता पहाड़ी होने लगा था। आरव ने अपने कंधे पर अपना छोटा सा थैला ठीक किया। उसके अंदर सिर्फ कुछ कपड़े और मयंक की दी हुई एक छोटी सी लकड़ी की गुड़िया थी – उनकी दोस्ती का प्रतीक।
वह जानता था कि विदाई का दर्द अभी उसके साथ रहेगा। वह आसानी से नहीं जाएगा। लेकिन अब उसके पास एक उद्देश्य था, एक नई दिशा थी। वह अपने माता-पिता के लिए, मयंक के लिए, और उन सभी के लिए जो उसे 'शून्य' कहते थे, खुद को साबित करेगा। यह सिर्फ एक अकादमी की यात्रा नहीं थी, यह खुद को खोजने की यात्रा थी, एक शून्य से एक नायक बनने की यात्रा।
जैसे-जैसे सूरज आसमान में ऊपर चढ़ रहा था, आरव को महसूस हुआ कि उसकी पुरानी दुनिया धीरे-धीरे पीछे छूटती जा रही है। उसके सामने एक विशाल, अनजानी दुनिया थी, चुनौतियों से भरी, लेकिन संभावनाओं से भी भरी। उसे पता था कि उसे अकेले ही इस रास्ते पर चलना होगा, कम से कम अभी के लिए। उसकी आँखों में अब दूर एक चमक थी, जो आने वाले समय की उम्मीद और दृढ़ संकल्प को दर्शा रही थी।
Chapter 19
अगले कई घंटों तक आरव और गुरु वशिष्ठ चलते रहे। शांतिवन गाँव अब सिर्फ उनकी यादों में था, मीलों पीछे छूट चुका था। गाँव के हरे-भरे खेत और चिर-परिचित रास्ते अब पथरीली पगडंडियों, घने जंगलों और ऊपर उठती पहाड़ियों में बदल चुके थे। हवा में मिट्टी की सौंधी खुशबू की जगह अब जंगल की नमी और अनजाने फूलों की महक थी। यह बदलाव सिर्फ बाहरी नहीं था, आरव के भीतर भी कुछ बदल रहा था।
शुरुआती घंटों में उसके मन में विदाई का दर्द और गाँव की यादें हावी थीं। हर कदम के साथ, उसे मयंक के आँसू और माँ-पिताजी की चिंता याद आती थी। लेकिन जैसे-जैसे रास्ता और परिदृश्य बदलते गए, आरव ने महसूस किया कि उसके मन से भारीपन धीरे-धीरे कम हो रहा है। उसकी आँखें अब सिर्फ पीछे मुड़कर नहीं देख रही थीं, बल्कि सामने खुलने वाले नए संसार को उत्सुकता से निहार रही थीं।
वे एक छोटी पहाड़ी पर चढ़ रहे थे, जहाँ से नीचे एक गहरी घाटी का नज़ारा दिखाई दे रहा था। घाटी के उस पार और भी पहाड़ियाँ थीं, जो दूर क्षितिज पर धुंधली दिख रही थीं। आरव ने लंबी साँस ली। हवा ठंडी और ताज़गी भरी थी।
"यह कितनी अलग दुनिया है, गुरुवर," आरव ने कहा, उसकी आवाज़ में विस्मय था। "गाँव में हमने कभी सोचा भी नहीं था कि दुनिया इतनी बड़ी होगी।"
गुरु वशिष्ठ ने उसकी ओर देखा, उनके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी। "शांतिवन एक छोटा तालाब है, आरव। सुंदर, शांत, लेकिन सीमित। यह दुनिया एक महासागर है, गहरा, विशाल, और अनंत संभावनाओं से भरा।"
आरव ने फिर घाटी की ओर देखा। "अनंत संभावनाएँ... क्या मुझे भी अपनी संभावनाएँ मिलेंगी, गुरुवर?" उसने धीरे से पूछा, उसकी आवाज़ में अभी भी हल्की-सी हिचकिचाहट थी।
गुरु वशिष्ठ ने चलने के लिए इशारा किया। "मिलेंगी, आरव। हर जीव अपनी संभावनाओं के साथ जन्म लेता है। प्रश्न यह है कि क्या वह उन्हें पहचान पाता है, और क्या उनमें निखार लाने की हिम्मत रखता है।"
वे फिर से चलना शुरू हुए। रास्ता अब थोड़ा ज़्यादा ऊबड़-खाबड़ था, और आरव को अपने कदमों पर ध्यान देना पड़ रहा था।
"गुरुवर, क्या अकादमी में सब लोग मुझ पर हँसेंगे?" आरव ने कुछ देर बाद पूछा, उसकी पुरानी असुरक्षा फिर से उभर आई थी। "जैसे गाँव वाले हँसते थे... कि मैं तत्वहीन हूँ?"
गुरु वशिष्ठ ने धीरे से कहा, "अकादमी में ज्ञान की तलाश की जाती है, उपहास की नहीं। हाँ, तुम्हें कुछ लोगों से संदेह या अविश्वास का सामना करना पड़ सकता है। यह मानव स्वभाव है। जो लोग अज्ञात को नहीं समझते, वे उस पर अविश्वास करते हैं।"
"तो मुझे क्या करना होगा?" आरव ने पूछा।
"तुम्हें सीखना होगा, आरव। तुम्हें खुद को साबित करना होगा। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम्हें खुद पर विश्वास रखना होगा। जब तुम खुद पर विश्वास करते हो, तो दूसरों का अविश्वास तुम्हें प्रभावित नहीं कर सकता।" गुरु वशिष्ठ ने समझाया।
आरव ने कुछ देर सोचा। "क्या मैं सीख पाऊँगा?"
"तुम्हारे अंदर सीखने की तीव्र इच्छा है, आरव। और यही सबसे महत्वपूर्ण तत्व है," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "तुमने अपने अंदर उस शून्य को धारण किया है जो सभी तत्वों को जोड़ता है। यह एक दुर्लभ क्षमता है, और इसे समझने और नियंत्रित करने के लिए गहरी एकाग्रता और धैर्य की आवश्यकता होगी।"
"शून्य...?" आरव ने दोहराया। "मुझे अभी भी यह समझ नहीं आता, गुरुवर। यह कैसे काम करता है? यह बाकी तत्वों से कैसे अलग है?"
गुरु वशिष्ठ ने एक गहरी साँस ली। "हम इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे, आरव। आज का दिन तुम्हारी शारीरिक यात्रा का पहला पड़ाव है, लेकिन तुम्हारी ज्ञान यात्रा का भी आरंभ है। हर प्रश्न का उत्तर समय के साथ मिलेगा, जब तुम उसके लिए तैयार होगे।"
वे दोपहर तक चलते रहे, जब सूरज ठीक उनके सिर पर आ गया। गुरु वशिष्ठ ने एक छोटे झरने के पास रुकने का संकेत दिया। "चलो, यहाँ कुछ देर विश्राम करते हैं।"
आरव ने राहत की साँस ली। उसका शरीर थक गया था, लेकिन उसका मन अब उत्सुकता से भरा था। उसने अपने छोटे से थैले से पानी की बोतल निकाली और झरने के ताज़े पानी से भर ली।
गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें बंद कर लीं और ध्यान में लीन हो गए। आरव ने चुपचाप अपनी गुड़िया निकाली, मयंक की याद में उसे देखा। उसे याद आया मयंक ने कितनी उम्मीद से उसे विदा किया था। 'तुम ज़रूर कामयाब होगे, आरव।' मयंक के शब्द उसके कानों में गूँजे।
एक गहरी साँस भरकर आरव ने गुड़िया को वापस थैले में रखा। अब उसकी आँखों में उदासी नहीं थी, बल्कि एक नया संकल्प था। उसे याद था गुरु वशिष्ठ ने क्या कहा था - 'उनका प्यार तुम्हारा बोझ नहीं, तुम्हारी ताकत है।'
गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं। "क्या सोच रहे हो, आरव?"
"मयंक के बारे में, गुरुवर," आरव ने ईमानदारी से कहा। "और माँ-पिताजी के बारे में। मुझे लगता है कि मैं उनके लिए यह सब कर रहा हूँ। उन्हें गलत साबित करने के लिए जो मुझे 'शून्य' कहते थे।"
"यह एक अच्छी शुरुआत है," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "लेकिन अंततः, तुम्हें यह अपने लिए करना होगा। तुम्हारी अपनी पहचान, तुम्हारी अपनी क्षमताएँ – वे तुम्हारे अंदर हैं, किसी और की राय में नहीं।"
"अपनी पहचान..." आरव ने धीरे से कहा। "मुझे अभी भी नहीं पता कि मैं कौन हूँ।"
"तुम खुद को जानोगे, आरव। यह यात्रा तुम्हें वही सिखाएगी," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "तुम्हें सिखाएगी कि तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत वह नहीं है जिसे तुम देख या छू सकते हो, बल्कि वह है जिसे तुम महसूस करते हो, जो अदृश्य है, और जो सब कुछ संभव बनाता है।"
उन्होंने आरव को एक सेब दिया। "यह लो। ऊर्जा की आवश्यकता होगी।"
आरव ने सेब लिया और खाना शुरू कर दिया। "गुरुवर, राजधानी कैसी है? क्या वहाँ बहुत बड़े-बड़े घर हैं? क्या सारे तत्वधारी बहुत शक्तिशाली होते हैं?" उसकी आँखों में बच्चे जैसी उत्सुकता थी।
गुरु वशिष्ठ मुस्कुराए। "राजधानी एक विशाल और जीवंत शहर है। वहाँ तुम्हें हर तत्व के शक्तिशाली योद्धा मिलेंगे, हर प्रकार की कलाएँ और विज्ञान मिलेंगे। यह हमारे राष्ट्र का हृदय है।"
"और दिव्य ज्ञान पीठ?"
"दिव्य ज्ञान पीठ तत्वों के ज्ञान का मंदिर है, आरव। वहाँ तुम न केवल अपनी शक्ति को पहचानोगे, बल्कि उसे नियंत्रित करना और उसे सही दिशा देना भी सीखोगे। वहाँ तुम्हें केवल शक्तियों का उपयोग करना नहीं सिखाया जाएगा, बल्कि उनके पीछे के सिद्धांतों को भी समझाया जाएगा।" गुरु वशिष्ठ की आवाज़ में सम्मान था।
आरव ने उत्साह से सिर हिलाया। उसे लगा जैसे उसका सपना अब एक हकीकत बनने वाला था। "मैं सीखने के लिए तैयार हूँ, गुरुवर।"
"और सीखने के लिए, तुम्हें सबसे पहले देखना सीखना होगा, आरव," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "सिर्फ आँखों से नहीं, बल्कि अपने मन से। अपने चारों ओर देखो। यह जंगल, ये पहाड़, यह झरना... सब कुछ तुम्हें कुछ सिखा रहा है। प्रकृति तत्वों का सबसे बड़ा गुरु है।"
आरव ने गुरु वशिष्ठ की बात सुनकर अपने चारों ओर देखा। पहले वह सिर्फ रास्ते को देख रहा था। अब उसने ध्यान से देखा। पेड़ों की शाखाएँ कैसे हवा में झूल रही थीं, पत्थर कितने सख्त थे, पानी कैसे लगातार बह रहा था, और मिट्टी में कैसी खुशबू थी। उसे पहली बार महसूस हुआ कि ये सब अलग-अलग होते हुए भी एक साथ थे, एक-दूसरे पर निर्भर थे।
"मैं समझ गया, गुरुवर," आरव ने कहा, उसकी आँखों में एक नई चमक थी। "मुझे देखना सीखना होगा।"
गुरु वशिष्ठ ने संतोष भरी मुस्कान दी। "उत्तम। अब चलो। यह रास्ता तुम्हें बहुत कुछ दिखाएगा। और तुम्हारा पहला पाठ यहीं से शुरू होता है।"
वे फिर से उठे और चलना शुरू किया। आरव के कदम अब पहले से अधिक ऊर्जावान थे। उसने अपने पुराने डर, अपने उपहास, और अपनी 'शून्य' की पहचान को पीछे छोड़ दिया था। हर कदम के साथ, वह अपनी असाधारण नियति की ओर बढ़ रहा था। यह सिर्फ एक गाँव से शहर की यात्रा नहीं थी, यह एक लड़के की अपनी आत्मा को खोजने और एक नई दुनिया को समझने की यात्रा थी। सूरज ढलने लगा था, और उसकी किरणें पहाड़ों पर सुनहरी रोशनी बिखेर रही थीं, मानो उसे उसके नए जीवन में चमकने का संकेत दे रही हों। रात होने वाली थी, और उन्हें अभी भी बहुत आगे जाना था। यह यात्रा लंबी थी, लेकिन आरव अब इसे पूरा करने के लिए तैयार था।
Chapter 20
रात होने वाली थी, और उन्हें अभी भी बहुत आगे जाना था। यह यात्रा लंबी थी, लेकिन आरव अब इसे पूरा करने के लिए तैयार था।
जैसे-जैसे सूरज पहाड़ों के पीछे डूब रहा था, आसमान नारंगी और बैंगनी रंगों से भर गया। हवा ठंडी होने लगी और आरव को लगा कि उसके पैर अब थकने लगे हैं। उसने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा, जो बिना किसी थकान के आगे बढ़ रहे थे। उनकी चाल में एक शांत स्थिरता थी।
"गुरुवर, क्या हम आज रात यहीं रुकेंगे?" आरव ने पूछा, उसकी आवाज़ में हल्की सी आशा थी।
गुरु वशिष्ठ ने सामने एक सपाट जगह की ओर इशारा किया, जहाँ कुछ घने पेड़ थे। "हाँ, आरव। यह जगह सुरक्षित लगती है। हम यहीं रात बिताएँगे।"
आरव ने राहत की साँस ली और गुरु वशिष्ठ के पीछे-पीछे उस जगह तक पहुँचा। गुरु जी ने अपनी छोटी सी पोटली खोली और उसमें से एक पतला कंबल और एक छोटी सी दियासलाई निकाली। उन्होंने कुछ सूखी लकड़ियाँ इकट्ठा कीं और एक छोटी सी आग जलाई, जो तुरंत ही आसपास की जगह को गर्म और रोशन कर गई।
"बैठो, आरव," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "शरीर को आराम दो।"
आरव आग के पास बैठ गया, उसकी पीठ लकड़ियों से बने ढेर से टिकी हुई थी। आग की लपटों को देखते हुए उसे गाँव में बिताई अपनी ज़िंदगी याद आई। वहाँ वह कभी आग नहीं जलाता था। वह हमेशा दूसरों की बनाई आग से ही खुद को गर्म करता था। आज वह अपनी खुद की यात्रा पर था, और यह पहला कदम था।
कुछ देर खामोशी रही, जिसमें सिर्फ आग की चटकने और जंगल की रात की आवाज़ें थीं। फिर गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं और आरव की ओर देखा। उनकी आँखों में एक गहरी चमक थी।
"आरव," उन्होंने धीरे से कहा, "तुमने पूछा था कि राजधानी कैसी है, और दिव्य ज्ञान पीठ क्या है। लेकिन इन सबसे पहले, तुम्हें यह समझना होगा कि यह पूरा ब्रह्मांड कैसे कार्य करता है।"
आरव सीधा हो गया, उसकी सारी थकान अचानक गायब हो गई। "ब्रह्मांड?"
"हाँ। इस पूरी सृष्टि का आधार पाँच तत्व हैं – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश।" गुरु वशिष्ठ ने अपनी उंगलियों पर गिनती की। "ये तत्व न केवल हमारे चारों ओर हैं, बल्कि ये हमारे भीतर भी हैं। हमारा शरीर पृथ्वी से बना है, हमारे रक्त में जल है, हमारी आंतरिक गर्मी अग्नि है, हमारी साँसें वायु हैं..."
आरव ने ध्यान से सुना। उसे यह सब पहले भी थोड़ा-बहुत पता था, लेकिन गुरु वशिष्ठ के मुँह से सुनकर यह कहीं ज़्यादा गहरा लग रहा था।
"और पाँचवाँ तत्व?" आरव ने उत्सुकता से पूछा। "आकाश-तत्व?"
गुरु वशिष्ठ मुस्कुराए। "यही वह तत्व है जिसे लोग सबसे कम समझते हैं, और जो सबसे दुर्लभ भी है। आकाश वह शून्य है, वह खालीपन है जो हर वस्तु के बीच मौजूद है। यह वह स्थान है जहाँ सभी तत्व एक-दूसरे से जुड़ते हैं, और जहाँ से सभी नए तत्व उत्पन्न होते हैं।"
आरव भौंचक्का रह गया। "शून्य...?"
"हाँ। जब तुम कहते हो कि तुम 'शून्य' हो, तो तुम शायद अनजाने में अपने सबसे बड़ी ताकत का वर्णन करते हो," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "तुम तत्वहीन नहीं हो, आरव। तुम आकाश-तत्व की प्रतिध्वनि हो। तुम उस शून्य को प्रभावित कर सकते हो जो हर चीज को जोड़ता है।"
आरव ने अपनी हथेलियाँ देखीं। "तो... यह मुझे कैसे मदद करेगा? मैं तो कुछ भी बना नहीं सकता, न हवा, न आग...?"
"सृजन सिर्फ बनाने में नहीं है, आरव। यह जोड़ने में भी है। यह संतुलन में भी है," गुरु वशिष्ठ ने गंभीरता से कहा। "कई लोग शक्ति को केवल विनाश में देखते हैं। वे सोचते हैं कि जो सबसे बड़ा अग्नि गोला फेंके, या सबसे तेज़ तूफान लाए, वही सबसे शक्तिशाली है।"
उन्होंने आग की लपटों की ओर इशारा किया। "यह आग विनाशकारी हो सकती है, एक जंगल को राख कर सकती है। लेकिन यही आग तुम्हें गर्म रखती है, खाना पकाती है, अंधेरे में रोशनी देती है। सच्ची शक्ति विनाश में नहीं, बल्कि सृजन और संतुलन में है।"
आरव ने अपनी आँखें गुरु वशिष्ठ पर गड़ा दीं। यह उसके लिए एक बिल्कुल नया विचार था। उसने हमेशा यही देखा था कि जो सबसे ताकतवर हमला करता है, वही विजेता होता है।
"मान लो, एक वायु-तत्वधारी और एक पृथ्वी-तत्वधारी लड़ रहे हैं," गुरु वशिष्ठ ने समझाया। "वायु-तत्वधारी अपनी गति से पृथ्वी को परेशान कर सकता है, और पृथ्वी-तत्वधारी अपनी दृढ़ता से वायु को रोक सकता है। वे एक-दूसरे को नष्ट करने की कोशिश करेंगे। लेकिन अगर वे एक-दूसरे की शक्तियों को समझते हुए, उन्हें संतुलित करना सीख जाएँ... तो क्या होगा?"
आरव ने सोचा। "तो वे शायद एक साथ कुछ बड़ा कर सकते हैं?"
"बिल्कुल! वायु पेड़ के बीज को दूर ले जा सकती है, और पृथ्वी उसे पोषण दे सकती है। अग्नि पानी को भाप बना सकती है, जो बादल बनकर बारिश बरसाती है, जिससे पृथ्वी पर जीवन आता है। ये सब तत्व एक-दूसरे पर निर्भर हैं। वे अकेले पूर्ण नहीं हैं।" गुरु वशिष्ठ ने एक शांत मुस्कान दी।
"तो आकाश-तत्व क्या करता है?" आरव ने पूछा, उसका मन जिज्ञासा से भर गया था।
"आकाश-तत्व वह खाली जगह है जो उन्हें एक साथ रखती है। वह अदृश्य धागा है जो हर चीज़ को बांधे रखता है। सोचो, अगर यह शून्य न हो तो क्या होगा? अगर सब कुछ एक-दूसरे से जुड़ा हो, बिना किसी जगह के? न कोई हलचल होगी, न कोई विकास। आकाश-तत्व ही गति को, बदलाव को, और नए सृजन को संभव बनाता है।"
आरव की आँखें बड़ी हो गईं। उसे याद आया जब उसने वराह के हमले को मोड़ा था। वह उसे नष्ट नहीं कर पाया था, बस उसके रास्ते को बदल दिया था। क्या वह आकाश-तत्व ही था?
"जब तुमने उस तात्विक-वराह के हमले को मोड़ा था, आरव," गुरु वशिष्ठ ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, मानो उन्होंने उसके विचार पढ़ लिए हों, "तब तुमने अनजाने में अपनी आकाश-शक्ति का उपयोग किया था। तुमने हमले की ऊर्जा को सोखा नहीं, बल्कि उसके मार्ग को मोड़ा, उसे एक नए 'शून्य' में धकेल दिया जहाँ वह अस्तित्व में नहीं रहा।"
आरव को अपने रोंगटे खड़े होते महसूस हुए। तो वह सचमुच तत्वहीन नहीं था! उसके पास वास्तव में एक शक्ति थी!
"तो मैं चीजों को मोड़ सकता हूँ? उन्हें... गायब कर सकता हूँ?" आरव ने उत्तेजित होकर पूछा।
गुरु वशिष्ठ ने सिर हिलाया। "उन्हें 'गायब' नहीं कर सकते, बल्कि उन्हें 'प्रभावित' कर सकते हो। तुम उनके बीच के स्थान को प्रभावित कर सकते हो। यह बहुत सूक्ष्म है, लेकिन इसका प्रभाव बहुत गहरा हो सकता है। यह शक्ति विनाशकारी नहीं है, आरव। यह रचनात्मक भी है। यह संतुलन बनाने वाली है। यह शक्ति तुम्हें केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि एक संतुलन बनाने वाला बना सकती है।"
आरव के मन में विचार घूम रहे थे। यह सिर्फ ताकतवर होने के बारे में नहीं था, बल्कि समझदार होने के बारे में था। यह विनाश के बारे में नहीं, बल्कि सृजन के बारे में था। यह सब कुछ कितना अलग था जो उसे आज तक सिखाया गया था।
"क्या मैं यह सब सीख पाऊँगा, गुरुवर?" आरव ने पूछा, उसकी आवाज़ में आशा और थोड़ी घबराहट दोनों थी।
"यदि तुम सीखने की इच्छा रखते हो, और यदि तुम खुद पर विश्वास करते हो," गुरु वशिष्ठ ने आश्वासन दिया। "तुम्हारी यात्रा अभी शुरू हुई है, आरव। यह केवल शारीरिक यात्रा नहीं है, बल्कि मन और आत्मा की यात्रा भी है। दिव्य ज्ञान पीठ तुम्हें इस मार्ग पर चलने में मदद करेगा, लेकिन वास्तविक शिक्षक तुम्हारे अंदर है।"
रात और गहरी हो गई थी। तारे आसमान में झिलमिला रहे थे, और जंगल में खामोशी छा गई थी, सिर्फ आग की धीमी आवाज़ सुनाई दे रही थी। आरव ने आग की लपटों को देखा, और फिर ऊपर आसमान में फैले अनगिनत तारों को। उसे लगा जैसे वे सब तारे, वह आग, वह हवा, वह पृथ्वी – सब एक-दूसरे से जुड़े थे, एक अदृश्य धागे से बंधे हुए थे, जिसे 'शून्य' कहते थे।
उस रात आरव को नींद नहीं आई। वह गुरु वशिष्ठ की बातों के बारे में सोचता रहा। उसकी 'शून्य' की पहचान। तत्वों का संतुलन। सच्ची शक्ति का अर्थ। यह सब उसके लिए एक नया संसार खोल रहा था। यह सिर्फ एक गाँव से शहर की यात्रा नहीं थी, बल्कि एक साधारण लड़के की अपनी असाधारण नियति को खोजने की यात्रा थी। हर कदम के साथ, वह अपने पुराने डर और अपनी पुरानी पहचान को पीछे छोड़ रहा था। उसे लगा जैसे वह एक नया आरव बन रहा था, एक ऐसा आरव जिसकी पहचान 'शून्य' नहीं, बल्कि 'आकाश' थी, वह आकाश जो सब कुछ जोड़ता है, सब कुछ संभव बनाता है।
अगली सुबह, सूरज की पहली किरणें पहाड़ों पर फैलीं। आरव और गुरु वशिष्ठ फिर से अपनी यात्रा पर निकल पड़े। रास्ता अभी भी लंबा था, लेकिन आरव के अंदर अब एक नई ऊर्जा थी। उसका मन अब सिर्फ गाँव की यादों से नहीं घिरा था, बल्कि नए ज्ञान और संभावनाओं से भरा था। उसने एक नया अध्याय शुरू कर दिया था, जहाँ उसे खुद को खोजना था, और दुनिया को भी। वह अब शून्य नहीं था, वह आकाश था। और आकाश अनंत था।
उनकी यात्रा के अगले पड़ाव पर, उन्हें एक बड़ी नदी पार करनी थी। नदी का पानी तेज़ी से बह रहा था, और सामने कोई पुल नहीं दिख रहा था। आरव ने नदी की ओर देखा, फिर गुरु वशिष्ठ की ओर। यह उनके लिए एक नई चुनौती थी, और आरव के मन में एक नया सवाल था – क्या उसका आकाश-तत्व उसे इस पानी को पार करने में मदद करेगा? या गुरु वशिष्ठ कोई और तरीका बताएँगे?