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आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2

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सीज़न 1: जागृति और मित्रता "आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा" का पहला सीज़न दर्शकों को एक ऐसी दुनिया से परिचित कराता है जहाँ मानवता की शक्ति पाँच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और पौराणिक आकाश—से जुड़ी है। कहानी का केंद्र है आरव, शांतिवन गाँव का एक दयालु...

Total Chapters (100)

Page 1 of 5

  • 1. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 1

    Words: 16

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 1
    पंचतत्व महासंग्राम का भव्य स्टेडियम अब एक भयानक युद्ध के मैदान जैसा लग रहा था। धूल के गुबार अभी पूरी तरह से बैठे नहीं थे, और हवा में बारूद, टूटे पत्थरों और जले हुए कपड़ों की तीखी गंध भरी हुई थी। जहाँ कुछ देर पहले हर्षोल्लास की चीखें गूँज रही थीं, वहाँ अब दर्द से कराहने और सहायता के लिए पुकारने की आवाजें सुनाई दे रही थीं। अकादमी के वैद्य और उनके शिष्य घायल छात्रों और गुरुओं का उपचार कर रहे थे, उनके चेहरों पर चिंता और थकान साफ झलक रही थी। गुरु वशिष्ठ अपनी गंभीर मुद्रा में हर जगह घूम रहे थे, उनकी आँखें स्थिति का आकलन कर रही थीं, लेकिन उनके भीतर एक अनकही बेचैनी साफ दिख रही थी।

    धीरे-धीरे, इस शोरगुल से दूर, अकादमी के चिकित्सा कक्ष में, आरव की पलकें फड़फड़ाईं। उसे एक तेज सिरदर्द महसूस हुआ, जैसे कोई हथौड़ा उसके माथे पर पड़ रहा हो। उसकी आँखों ने संघर्ष करते हुए रोशनी को समझा, और फिर धीरे-धीरे कमरे की धुंधली छवियों को पहचाना। वह एक साफ-सुथरे बिस्तर पर लेटा हुआ था, हवा में औषधियों की महक थी। उसे याद आया... वह भयानक आक्रमण, काले कपड़े पहने हमलावर, भैरवी पर हमला, और फिर... वह अनियंत्रित शक्ति का विस्फोट। उसके शरीर में एक अजीब-सा खालीपन महसूस हो रहा था, जैसे उसकी रगों से कोई ऊर्जा निकल गई हो, लेकिन साथ ही एक भारीपन भी था, जैसे किसी अदृश्य बोझ तले दब गया हो।

    आरव ने करवट ली, तो उसके पास ही फर्श पर बैठी भैरवी की आँखें खुलीं। उसकी आँखों में सूजी हुई लालिमा थी, शायद वह रोई थी।

    "आरव!" भैरवी खुशी से लगभग चिल्लाई, और झट से उसके पास आ गई। उसकी आवाज में इतनी राहत थी कि आरव का दर्द कुछ कम हुआ। "तुम होश में आ गए! तुम्हें कितनी देर हो गई थी बेहोश हुए।"

    आरव ने कमजोर आवाज में पूछा, "भैरवी? सब ठीक है? तुम... तुम ठीक हो?"

    भैरवी ने सिर हिलाया, "हाँ, मैं ठीक हूँ। तुम्हें बचाने के लिए धन्यवाद, आरव। अगर तुम न होते तो..." उसकी आवाज काँप उठी।

    तभी समीर और रिया भी जाग गए। समीर, जो आरव के दूसरे बिस्तर के पास ही बैठा एक किताब पढ़ रहा था, उठ खड़ा हुआ। रिया, जो दूर एक कोने में बैठी गुस्से में कुछ सोच रही थी, अचानक मुड़ी।

    "आरव, तुम ठीक हो?" समीर ने पास आकर पूछा, उसकी आवाज में चिंता थी।

    रिया उसकी ओर आई, उसके चेहरे पर अभी भी गुस्सा था, लेकिन उसकी आँखों में आरव के लिए एक अलग सी चिंता थी। "तुम मूर्ख! क्या जरूरत थी अकेले कूदने की? तुम्हें पता भी है क्या हुआ था?"

    आरव ने दर्द से माथा सहलाया, "मुझे कुछ याद नहीं... बस इतना कि हमला हुआ था। वे कौन थे? और... मेरी शक्ति... मुझे क्या हुआ था?"

    समीर ने एक गहरी साँस ली। "वे 'निर्-तत्व' थे। काले कपड़े पहने हुए। उन्होंने तत्वों की शक्ति को सोख लिया था। गुरु भी कमजोर पड़ गए थे। और तुम्हारी शक्ति... आरव, तुमने कुछ ऐसा किया जो हमने पहले कभी नहीं देखा।"

    रिया ने अपने होंठ भींचे। "तुमने उन्हें चौंका दिया। तुम्हारी वह 'शून्य-शक्ति' जो भी थी, उसने उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।"

    "शून्य-शक्ति?" आरव ने दोहराया, उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था। उसके दिमाग में एक खालीपन था।

    भैरवी ने आरव का हाथ पकड़ा। "हाँ, तुमने उन्हें दूर धकेल दिया। लेकिन फिर तुम बेहोश हो गए। हमें बहुत डर लग रहा था।"

    "गुरु वशिष्ठ कहाँ हैं?" आरव ने पूछा।

    समीर ने जवाब दिया, "सभी गुरु एक आपातकालीन बैठक में हैं। वे इस हमले के पीछे की सच्चाई जानने की कोशिश कर रहे हैं।"

    रिया ने अचानक अपनी जेब से एक चमकता हुआ खंजर निकाला। यह वही खंजर था जो समीर को स्टेडियम में मिला था। "तुम्हें पता है सबसे बुरी बात क्या है?" उसने खंजर को घुमाते हुए कहा, "हमें एक सबूत मिला है। ऐसा सबूत जो हमें उस दिशा में ले जाता है, जहाँ हमें यकीन नहीं होता।"

    आरव ने खंजर को देखा। "यह क्या है?"

    समीर ने थोड़ी झिझक के साथ कहा, "यह वही खंजर है जो एक निर्-तत्व के पास से मिला था। और इस पर अग्नि गणराज्य का शाही चिह्न बना हुआ है।"

    रिया का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। "यह बकवास है!" वह चिल्लाई। "मेरे पिता... सम्राट विक्रम... वह ऐसा कभी नहीं कर सकते! यह एक जाल है! कोई हमें गुमराह करने की कोशिश कर रहा है!"

    "तो फिर यह शाही चिह्न यहाँ क्या कर रहा है, रिया?" समीर ने धैर्य से पूछा। "यह एक साधारण चिह्न नहीं है। यह शाही मुहर है, जिसे केवल आपके परिवार के सदस्य ही इस्तेमाल करते हैं।"

    "कोई भी इसे चुरा सकता है! कोई भी इसे जाली बना सकता है!" रिया ने खंजर को फेंकते हुए कहा। वह इतनी गुस्से में थी कि उसकी मुट्ठी भींच गई।

    भैरवी ने धीरे से कहा, "रिया, हम बस अपनी चिंता बता रहे हैं। हालात बहुत अजीब हैं।"

    "चिंता?" रिया ने उपहास किया। "यह चिंता नहीं, यह शक है! और वह भी मेरे पिता पर! मेरे पिता जिन्होंने अग्नि गणराज्य को इतनी ऊँचाइयों पर पहुँचाया है, वे ऐसे नीच हमलावरों से हाथ क्यों मिलाएँगे? उन निर्-तत्वों से जिनकी कोई विचारधारा नहीं, कोई वफादारी नहीं?"

    "हो सकता है कि उनकी विचारधारा हो," समीर ने कहा। "तुम्हारे पिता की ताकत असीमित है, रिया। हो सकता है कि वह और भी शक्ति चाहते हों। इस हमले से पूरी अकादमी हिल गई है। यह उनके रास्ते में आने वाले किसी भी व्यक्ति को कमजोर कर देगा।"

    रिया ने घूर कर समीर को देखा। "तुम मेरे पिता के बारे में बात कर रहे हो, समीर! मेरे पिता! क्या तुम्हें सच में लगता है कि वह इस तरह के गंदे खेल खेलेंगे?"

    "हमें तथ्यों को देखना होगा, रिया," समीर ने दृढ़ता से कहा। "खंजर मिला, हमलावरों ने तत्व शक्ति सोखी, और वे अचानक पीछे हट गए जब आरव की शक्ति जागृत हुई। यह एक खतरनाक खेल है, और तुम्हारे पिता का नाम इसमें सामने आ रहा है।"

    आरव ने उनकी बहस सुनी, उसके दिमाग में बहुत सारे सवाल घूम रहे थे। शाही चिह्न? निर्-तत्व? शक्ति सोखना? उसका अपना अजीब अनुभव? सब कुछ एक उलझी हुई पहेली जैसा था।

    "मैं नहीं मानती!" रिया ने लगभग चिल्लाते हुए कहा। "मैं कभी नहीं मानूँगी कि मेरे पिता इस तरह के अपराध में शामिल हो सकते हैं। मैं इसे साबित करूँगी।"

    तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। एक युवा शिष्य ने अंदर आकर विनम्रता से कहा, "गुरु वशिष्ठ ने आप चारों को अपने कक्ष में बुलाया है।"

    शिष्य की बात सुनकर चारों एक दूसरे को देखने लगे। रिया का चेहरा अभी भी तना हुआ था, जबकि समीर और भैरवी के चेहरों पर चिंता साफ दिख रही थी। आरव के अंदर एक अजीब सी घबराहट पैदा हुई। इस रात, कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाला था। क्या गुरु वशिष्ठ भी सम्राट विक्रम पर शक कर रहे थे? और वे उनसे क्या चाहते थे?

    आरव बिस्तर से उठकर खड़ा हुआ। उसके पैर अभी भी कमजोर महसूस हो रहे थे, लेकिन उसने खुद को सीधा किया। वे चारों धीरे-धीरे गुरु वशिष्ठ के कक्ष की ओर चल पड़े, उनके कदम तनावपूर्ण माहौल में सन्नाटे को चीर रहे थे। हवा में एक नई बेचैनी थी, एक आने वाले तूफान की आहट।

  • 2. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 2

    Words: 16

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 2
    गुरु वशिष्ठ के कक्ष की ओर जाते हुए गलियारे में सन्नाटा पसरा हुआ था। सिर्फ उनके कदमों की आवाज़ गूँज रही थी, और उस सन्नाटे को रिया की तेज़ साँसों और समीर की शांत, लेकिन दृढ़ प्रतिक्रियाएँ तोड़ रही थीं। रिया अभी भी उस खंजर वाली बात से गुस्से में थी।

    "मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि तुम सच में ऐसा सोच सकते हो, समीर!" रिया ने फुसफुसाते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज में ज्वालामुखी की गर्मी थी। "मेरे पिता... जिन्होंने इतनी निष्ठा से गणराज्य की सेवा की है, जो इतने शक्तिशाली और न्यायप्रिय हैं, वे... वे निर्-तत्वों के साथ मिलकर हमला करेंगे? यह तर्कहीन है!"

    समीर ने एक गहरी साँस ली। "रिया, हम तथ्यों को अनदेखा नहीं कर सकते। खंजर वहाँ था। आक्रमण रहस्यमय था। और तुम्हारे पिता का नाम... वह ऐसे समय में सबसे शक्तिशाली शासक हैं। शक्ति कभी-कभी अंधेपन का कारण बन जाती है।"

    "क्या तुम उन्हें भ्रष्ट कह रहे हो?" रिया रुक गई, उसकी आँखों में आग थी। "सावधान रहना, समीर! तुम एक सम्राट पर आरोप लगा रहे हो!"

    "मैं आरोप नहीं लगा रहा," समीर ने शांति से कहा। "मैं सिर्फ संभावनाओं की बात कर रहा हूँ। हर चीज़ पर संदेह करना हमारी जिम्मेदारी है, खासकर ऐसे संकट के समय में।"

    "यह संदेह मेरे पिता पर है!" रिया ने मुट्ठी भींच ली। "तुमने उनसे कभी मिला भी नहीं है! तुम उन्हें जानते भी नहीं हो! तुम्हें क्या पता कि वह किस तरह के इंसान हैं?"

    "मुझे पता है कि वह एक राजा हैं," समीर ने सीधा जवाब दिया। "और राजा अपने साम्राज्य के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अच्छा या बुरा।"

    "बस करो, तुम दोनों!" भैरवी ने उनके बीच आते हुए कहा, उसकी आवाज़ में थोड़ी घबराहट थी। "अभी लड़ने का समय नहीं है। हम गुरु वशिष्ठ से मिलने जा रहे हैं। हमें एकजुट रहना होगा।"

    आरव चुपचाप उन सब की बातें सुन रहा था। उसके दिमाग में एक अलग ही उथल-पुथल चल रही थी। उसने अपनी कलाई पर हाथ फेरा, जहाँ उसे कुछ देर पहले तक अपनी शक्ति की ऊर्जा महसूस होती थी। उसने आँखें बंद कीं और ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की। वह उस 'शून्य-क्षेत्र' को फिर से महसूस करना चाहता था, उस अनियंत्रित विस्फोट को। उसने सोचा कि शायद वह उसे फिर से सक्रिय कर सके।

    आरव ने एक गहरी साँस ली, अपनी मुट्ठी भींचकर अपनी आंतरिक ऊर्जा को खींचने की कोशिश की। उसने अपनी नसों में कुछ हलचल महसूस करने की उम्मीद की, एक झुनझुनी, एक गर्माहट... कुछ भी। लेकिन वहाँ कुछ नहीं था। बिल्कुल खालीपन।

    उसने फिर से कोशिश की, थोड़ा और जोर लगाया। उसने सोचा कि क्या वह एक छोटा-सा प्रकाश का गोला बना सकता है, या हवा को हिला सकता है। कुछ भी! लेकिन उसकी हथेलियाँ ठंडी रहीं। उसकी नसों में कोई हलचल नहीं हुई। वह पहले जैसा ही था – तत्वहीन। उस रात जो हुआ था, वह सिर्फ एक भ्रम था? या एक मौका?

    आरव का माथा सिकुड़ गया। एक हताशा की लहर उसे छूकर गुज़री। यह खालीपन उसे अंदर तक खाये जा रहा था। उसे लगा जैसे उसने अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि खो दी हो, बिना उसे जाने।

    भैरवी ने आरव के चेहरे पर उदासी देखी। "आरव, क्या हुआ?" उसने हल्के से पूछा।

    आरव ने अपना हाथ नीचे कर लिया। "कुछ नहीं," उसने धीमी आवाज में कहा। "बस... मैं कुछ सोच रहा था।" वह नहीं चाहता था कि वे जानें कि वह अपनी 'शून्य-शक्ति' को खोजने की कोशिश कर रहा था और असफल रहा था। उसे लगा कि वह उनके लिए एक बोझ बन जाएगा, एक बार फिर।

    रिया ने उनकी बात सुनी, लेकिन उसका ध्यान अभी भी समीर पर था। "तो तुम सच में मानते हो कि मेरे पिता हमलावर हैं? और यह खंजर उनका सबूत है?"

    "मुझे नहीं पता, रिया," समीर ने ईमानदारी से कहा। "मैं सिर्फ इतना जानता हूँ कि यह बहुत अजीब है, और हमें सच्चाई का पता लगाना होगा।"

    "मैं भी पता लगाऊँगी!" रिया ने कसम खाते हुए कहा। "और मैं साबित करूँगी कि तुम सब गलत हो।" उसकी आवाज में एक अजीब सी दृढ़ता थी, जो केवल उसके पिता के लिए उसकी गहरी वफादारी से पैदा हो सकती थी।

    उनके बीच तनाव बढ़ता जा रहा था। गलियारे में गुरुओं के कक्ष तक पहुँचते-पहुँचते उन्हें एक लंबी दूरी तय करनी पड़ी। हर कदम के साथ, उनके मन में चिंता और अनिश्चितता का बोझ बढ़ता जा रहा था। रात का सन्नाटा उनके भीतर के शोर को और भी बढ़ा रहा था।

    अंततः वे गुरु वशिष्ठ के कक्ष के विशाल, लकड़ी के दरवाजे के सामने पहुँचे। द्वार पर कोई पहरा नहीं था, लेकिन उस पर एक रहस्यमय चमक थी, जो संकेत दे रही थी कि अंदर कोई शक्तिशाली ऊर्जा मौजूद है।

    समीर ने हिम्मत करके दरवाज़े पर दस्तक दी। लकड़ी पर उंगलियों की आवाज तेज़ और गूँजती हुई लगी।

    अंदर से एक शांत, गंभीर आवाज आई, "अंदर आ जाओ, बच्चों।"

    यह गुरु वशिष्ठ की आवाज थी। उसकी आवाज़ में हमेशा की तरह गंभीरता थी, लेकिन आज उसमें एक अनकहा बोझ भी महसूस हो रहा था।

    समीर ने धीरे से दरवाजा खोला। अंदर का कक्ष रोशनी से भरा हुआ था, जो केंद्र में जल रहे एक तात्विक-दीपक से निकल रही थी। दीपक से नीले रंग की लौ उठ रही थी, और कमरे में एक शांत, लेकिन गहन ऊर्जा महसूस हो रही थी।

    गुरु वशिष्ठ अपनी बड़ी, लकड़ी की मेज के पीछे बैठे थे। उनके चेहरे पर हमेशा की तरह शांति थी, लेकिन उनकी आँखों में एक गहरी चिंता और थकान साफ झलक रही थी। उनके बाल कुछ और सफेद लग रहे थे, और उनके माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गई थीं। उनके साथ कुछ अन्य गुरु भी बैठे थे, जिनमें वायु कुल के मुखिया भी थे, जो समीर के पिता थे। उनकी नज़रें गुरु वशिष्ठ पर टिकी हुई थीं।

    जब आरव, रिया, समीर और भैरवी अंदर दाखिल हुए, तो कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। सभी गुरुओं की नज़रें उन पर थीं, विशेषकर आरव पर। आरव को अचानक लगा कि वे उसकी "शून्य-शक्ति" के बारे में जानते हैं, और उसे शर्मिंदगी महसूस हुई।

    रिया ने देखा कि उसके पिता, कुल के मुखिया, भी वहाँ बैठे हैं, और उसके होंठ भींच गए। समीर के पिता ने एक पल के लिए समीर को देखा, उनकी आँखों में एक जटिल भावना थी - चिंता, शायद थोड़ी नाराजगी भी।

    गुरु वशिष्ठ ने अपने सामने फैले हुए नक्शे और कुछ टूटे हुए उपकरणों को देखा। उन्होंने धीरे से सिर उठाया और चारों को देखा। उनकी आँखें एक पल के लिए आरव पर टिकीं, जैसे वह उसके भीतर कुछ खोज रहे हों।

    "बैठो, बच्चों," गुरु वशिष्ठ ने अपनी गंभीर आवाज़ में कहा। उनकी आवाज़ में न तो गुस्सा था और न ही सहानुभूति, बल्कि एक तरह की उदास गंभीरता थी।

    चारों छात्र एक लंबी, खाली बेंच पर बैठ गए। कमरे में फिर से खामोशी छा गई, सिर्फ दीपक की लौ की हल्की फड़फड़ाहट सुनाई दे रही थी। हर कोई एक-दूसरे को देख रहा था, यह जानने के लिए उत्सुक कि गुरु वशिष्ठ उनसे क्या कहना चाहते थे। तनाव इतना घना था कि उसे काटा जा सकता था। आरव को लगा जैसे उसकी साँसें भी रुक रही हों।

    गुरु वशिष्ठ ने एक गहरी साँस ली, और फिर अपनी बात शुरू की, "तुम जानते हो कि आज रात जो कुछ भी हुआ, वह कोई सामान्य हमला नहीं था।" उनकी आवाज़ में एक अजीब सी गंभीरता थी जो सीधे दिल में उतरती थी। "यह अकादमी पर केवल एक आक्रमण नहीं था... यह हमारे देश के भविष्य पर एक हमला था।" उनके शब्द गंभीर और भारी थे, जैसे वे आने वाली तबाही की चेतावनी दे रहे हों।

  • 3. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 3

    Words: 21

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 3
    गुरु वशिष्ठ ने एक गहरी साँस ली, और फिर अपनी बात शुरू की, "तुम जानते हो कि आज रात जो कुछ भी हुआ, वह कोई सामान्य हमला नहीं था। यह अकादमी पर केवल एक आक्रमण नहीं था... यह हमारे देश के भविष्य पर एक हमला था।" उनकी आवाज़ में एक अजीब सी गंभीरता थी जो सीधे दिल में उतरती थी। "हमलावरों को 'निर्-तत्व' कहा जाता है, और उनकी क्षमता, तत्वों को सोखने की, हमने पहले कभी नहीं देखी।"



    गुरु वशिष्ठ ने एक पल के लिए रुककर उन चारों पर नज़र डाली। उनकी आँखें स्थिर थीं, और उनमें एक गहन विचार था। "उन्होंने हमारे सबसे शक्तिशाली गुरुओं को भी कमजोर कर दिया। यह केवल शक्ति का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि एक चेतावनी थी।"



    "लेकिन वे कौन थे, गुरुदेव?" समीर ने पूछा, उसकी आवाज़ में उत्सुकता थी। "उनका इरादा क्या था?"



    गुरु वशिष्ठ ने अपनी उंगली मेज़ पर पड़े खंजर की ओर इशारा किया, जिसे समीर ने पाया था। खंजर अभी भी वहीं पड़ा था, उसकी चमक नीली लौ की रोशनी में भयावह लग रही थी। "समीर ने जो खंजर खोजा है, वह बहुत कुछ कहता है।"



    रिया का चेहरा तुरंत तना हुआ हो गया। वह पहले ही समीर से इस विषय पर बहस कर चुकी थी और अब गुरु वशिष्ठ के मुँह से यह सुनकर वह अंदर ही अंदर उबल रही थी।



    "उस पर अग्नि गणराज्य का शाही चिह्न बना हुआ है," गुरु वशिष्ठ ने शांत स्वर में कहा। "एक ऐसा चिह्न जिसे कोई भी साधारण चोर या जासूस आसानी से जाली नहीं बना सकता।"



    "पर इसका मतलब यह नहीं है कि मेरे पिता..." रिया ने बात काटने की कोशिश की, लेकिन गुरु वशिष्ठ ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया।



    "रुको, रिया," गुरु वशिष्ठ ने कहा, उनकी आवाज़ में अब एक हल्की सख्ती थी। "मैं जानता हूँ कि यह तुम्हारे लिए मुश्किल है, लेकिन हमें सभी संभावनाओं पर विचार करना होगा। कुछ सालों से, सम्राट विक्रम की महत्वाकांक्षाएँ बढ़ती जा रही हैं। उन्होंने अपनी सेना का विस्तार किया है, और हाल ही में अन्य राज्यों के साथ उनके संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं।"



    समीर के पिता, जो पास ही बैठे थे, ने गुरु वशिष्ठ की बात पर सहमति में सिर हिलाया। "हाँ, वायु कुल में भी यह चर्चा चल रही है। उन्होंने कई समझौतों को तोड़ा है।"



    रिया ने मुँह बनाकर कहा, "वह सिर्फ अपने गणराज्य को मजबूत कर रहे हैं! इसमें गलत क्या है? वह अपने लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं।"



    "सुरक्षा और सत्ता का लालच, इन दोनों के बीच की रेखा बहुत पतली होती है, रिया," गुरु वशिष्ठ ने गंभीर स्वर में कहा। "निर्-तत्वों का अचानक प्रकट होना, उनकी अजीबोगरीब तकनीक जो तत्वों की शक्ति को सोख लेती है... और फिर यह खंजर। यह सब एक बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा कर रहा है।"



    आरव चुपचाप सुन रहा था। उसे उस रात का खालीपन याद आया, जब उसकी अपनी शक्ति निष्क्रिय हो गई थी। क्या यह वही तकनीक थी? क्या उसके भीतर कुछ ऐसा था जिसे वे सोख नहीं सकते थे?



    "हमें शक है कि सम्राट विक्रम निर्-तत्वों के साथ मिलकर कुछ बहुत बड़ा और खतरनाक करने की योजना बना रहे हैं," गुरु वशिष्ठ ने अपनी बात जारी रखी। "वे तत्वधारियों को कमजोर करना चाहते हैं, शायद पूरे देश पर अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते हैं।"



    "यह असंभव है!" रिया ने झटके से कहा, "मेरे पिता कभी भी देश को नुकसान नहीं पहुँचाएँगे!"



    "हम भी यही उम्मीद करते हैं, रिया," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "लेकिन हमें सच्चाई जाननी होगी। और हमें सबूत चाहिए। ऐसे सबूत जो निर्विवाद हों।"



    उन्होंने मेज़ पर एक पुराना, मुड़ा हुआ नक्शा फैलाया। नक्शे पर कई जगहों को चिह्नित किया गया था। "इसीलिए, मैंने तुम चारों को एक बहुत ही संवेदनशील और गुप्त मिशन पर भेजने का फैसला किया है।"



    चारों छात्रों की आँखें चौड़ी हो गईं। एक मिशन? वे?



    "तुम्हारा काम होगा उन जगहों पर जाना जहाँ हमें निर्-तत्वों की गतिविधि या सम्राट विक्रम के संदिग्ध इरादों की जानकारी मिली है।" गुरु वशिष्ठ ने नक्शे पर एक बिंदु पर उंगली रखी। "तुम्हें सबूत इकट्ठा करने होंगे। ऐसे सबूत जो सम्राट को इस हमले से जोड़ सकें।"



    भैरवी ने थोड़ी घबराहट से पूछा, "गुरुदेव... लेकिन... हम अभी भी छात्र हैं। और यह... यह तो बहुत खतरनाक लग रहा है।"



    "तुम अकेले नहीं हो, भैरवी," गुरु वशिष्ठ ने विश्वास दिलाते हुए कहा। "तुम चारों ने श्रापित वन में यह साबित किया है कि तुम एक साथ काम कर सकते हो, और तुममें बुद्धिमत्ता है। खासकर आरव... उसकी तत्वहीनता ने उसे कुछ ऐसा दिया है जो हमें समझ नहीं आता, लेकिन वह शायद इस लड़ाई में हमारी सबसे बड़ी ताकत साबित हो सकता है।"



    आरव ने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा, उसकी आँखों में थोड़ा आश्चर्य था। उसकी 'तत्वहीनता' ताकत? यह तो वही गुरु थे जिन्होंने उसे इस आधार पर अकादमी में प्रवेश दिया था।



    रिया ने अचानक कहा, "मैं नहीं जाऊँगी।" उसका चेहरा दृढ़ था। "मैं अपने पिता के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने नहीं जाऊँगी।"



    गुरु वशिष्ठ ने धैर्य से उसकी ओर देखा। "रिया, अगर तुम्हारे पिता निर्दोष हैं, तो तुम ही उन्हें बचाने वाली पहली व्यक्ति हो सकती हो। अगर तुम इस मिशन पर जाती हो, तो तुम उनके नाम को साफ कर सकती हो। लेकिन अगर तुम मना करती हो, तो क्या तुम कभी अपने मन को समझा पाओगी कि तुमने सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की?"



    रिया की आँखें झुकी हुई थीं। वह इस बात पर विचार कर रही थी। उसके भीतर का स्वाभिमान और उसके पिता के प्रति वफादारी उसे खींच रही थी। वह अपने पिता को गलत साबित नहीं होने देना चाहती थी। लेकिन अगर वह सही थे, तो इस आरोप को गलत साबित करने के लिए उसे खुद ही आगे आना होगा।



    उसने धीरे से सिर उठाया, उसकी आँखों में अभी भी गुस्सा था, लेकिन अब उसमें एक नई दृढ़ता भी थी। "ठीक है!" उसने कहा, उसकी आवाज़ में चुनौती थी। "मैं जाऊँगी। मैं जाऊँगी और यह साबित करूँगी कि तुम सब गलत हो। मेरे पिता निर्दोष हैं, और मैं इसे साबित करके रहूँगी।"



    गुरु वशिष्ठ ने हल्का-सा मुस्कुराया। "यही भावना मुझे तुमसे चाहिए थी, रिया। सच्चाई जो भी हो, उसे जानने की इच्छा।"



    उन्होंने नक्शे पर फिर से उंगली रखी। "तुम्हारा पहला लक्ष्य होगा जल साम्राज्य 'जलधि'। हमें खबर मिली है कि वहाँ के मंत्री जलसेन पर हाल ही में बहुत दबाव है, और कुछ अजीबोगरीब गतिविधियाँ हो रही हैं। हमें शक है कि निर्-तत्वों ने वहाँ भी घुसपैठ की है।"



    समीर ने अपनी भौंहें चढ़ाईं। "जलधि? लेकिन वह इतनी दूर है। और वह पूरी तरह से पानी के नीचे का साम्राज्य है। हम वहाँ कैसे जाएँगे? हम जल-तत्वधारी नहीं हैं।"



    "मैं तुम्हें विशेष उपकरण प्रदान करूँगा," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "तुम्हें भेष बदलना होगा। तुम छात्र नहीं होगे, बल्कि आम व्यापारी बनोगे जो जलधि में व्यापार के लिए जा रहे हैं। तुम्हारी असली पहचान गुप्त रहनी चाहिए।"



    आरव ने अपनी हथेलियाँ देखीं। तत्वहीन। वह क्या कर सकता था? लेकिन गुरु वशिष्ठ की बातों से उसे एक अजीब सी उम्मीद मिली थी।



    "तुम कोई बल प्रयोग नहीं करोगे जब तक कि बिल्कुल जरूरी न हो," गुरु वशिष्ठ ने चेतावनी दी। "तुम्हारा काम जासूसी करना है, लड़ना नहीं। अगर तुम पकड़े गए, तो यह अकादमी और बाकी राज्यों के लिए एक बड़ा राजनीतिक संकट पैदा कर सकता है। तुम्हें बहुत सावधानी से काम करना होगा।"



    भैरवी ने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ पूछा, "तो... हमें कब निकलना है?"



    गुरु वशिष्ठ ने सीधे भैरवी की आँखों में देखा। "आज रात।"



    चारों छात्र एक दूसरे को देखने लगे। इतनी जल्दी? इतनी रात में?



    "तुम्हें चुपचाप निकलना होगा," गुरु वशिष्ठ ने आगे कहा। "किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि तुम कहाँ जा रहे हो या क्यों। तुम्हें भेष बदलने के लिए कपड़े, जाली पहचान पत्र और कुछ सिक्के मिलेंगे। मैं तुम्हें एक विशेष संचार उपकरण भी दूँगा जिससे तुम सीधे मुझसे संपर्क कर सको।"



    समीर ने सिर हिलाया। "हम तैयार हैं, गुरुदेव।"



    रिया अभी भी दुविधा में थी, लेकिन उसकी आँखों में एक आग थी। वह सच्चाई जानने और अपने पिता को निर्दोष साबित करने के लिए दृढ़ थी।



    "ठीक है," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "तुम तीनों, यहाँ से जाओ और अपनी तैयारी करो। आरव, तुम एक पल के लिए रुकना।"



    समीर, रिया और भैरवी उठ खड़े हुए। रिया ने आरव को एक संक्षिप्त, गंभीर नज़र से देखा, जैसे वह कह रही हो, 'मुझे गलत साबित करने में मेरी मदद करना।' समीर ने आरव के कंधे पर हाथ रखा, और भैरवी ने उसे एक हल्की, चिंतित मुस्कान दी।



    जैसे ही वे तीनों कक्ष से बाहर निकले, दरवाजा धीरे से बंद हो गया, जिससे आरव और गुरु वशिष्ठ अकेले रह गए। आरव के दिल की धड़कन बढ़ गई। गुरु वशिष्ठ उससे व्यक्तिगत रूप से क्या कहना चाहते थे? क्या वह उसकी 'शून्य-शक्ति' के बारे में जानना चाहते थे? क्या वह उससे पूछेंगे कि उसे क्या हुआ था?



    गुरु वशिष्ठ ने आरव की ओर देखा, उनकी आँखों में एक गहरी, समझदार चमक थी। उन्होंने आरव को पास आने का इशारा किया। आरव ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और गुरु वशिष्ठ के सामने खड़ा हो गया, उसके मन में हजारों सवाल थे। वह अपनी तत्वहीनता और उस अनियंत्रित शक्ति के बीच के रहस्य को समझना चाहता था।



    गुरु वशिष्ठ ने धीमी, लेकिन गंभीर आवाज़ में कहा, "आरव, तुममें कुछ ऐसा है जो इस दुनिया में बहुत दुर्लभ है। तुमने अपने भीतर एक ऐसी शक्ति को जगाया है जिसे हमने सदियों से नहीं देखा है।" उनकी आवाज़ में न केवल ज्ञान था, बल्कि एक अजीब सी उदासी भी थी। "यह शक्ति तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत हो सकती है, लेकिन यह उतनी ही खतरनाक भी है।"



    आरव ने पूछा, "गुरुदेव, मुझे क्या हुआ था? मैं अपनी शक्ति को महसूस क्यों नहीं कर पा रहा हूँ? मुझे लगा कि वह चली गई है।"



    गुरु वशिष्ठ ने आरव के कंधे पर अपना हाथ रखा। "वह गई नहीं है, आरव। वह केवल सोई हुई है। वह इतनी विशाल और अनियंत्रित है कि तुम्हारा शरीर अभी उसे पूरी तरह से संभाल नहीं सकता। तुमने उसे तभी जगाया जब तुम्हारा जीवन और तुम्हारे दोस्तों का जीवन खतरे में था। यह तुम्हारी इच्छाशक्ति और भावनात्मक ऊर्जा का परिणाम था।"



    "लेकिन मैं उसे कैसे नियंत्रित करूँ?" आरव ने बेचैनी से पूछा। "मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।"



    "यह यात्रा तुम्हें उस शक्ति के करीब ले जा सकती है," गुरु वशिष्ठ ने रहस्यमय ढंग से कहा। "तुम्हें अपने भीतर के खालीपन को समझना होगा, आरव। यह खालीपन तुम्हारी कमजोरी नहीं, बल्कि तुम्हारी असीमित क्षमता का स्रोत है।"



    आरव ने उन्हें देखा, उसके दिमाग में अनगिनत सवाल थे, लेकिन उसे लगा कि गुरु वशिष्ठ शायद अभी उन्हें पूरी तरह समझा नहीं सकते थे, या शायद वह नहीं चाहते थे।



    गुरु वशिष्ठ ने मेज़ से एक छोटा, धातु का उपकरण उठाया और आरव के हाथ में रख दिया। यह एक छोटा-सा संचार यंत्र था, जिसे उन्होंने रिया, समीर और भैरवी को भी देने का वादा किया था। "इसे अपने पास रखना। यह तुम्हें मुश्किल में मुझसे संपर्क करने में मदद करेगा, अगर तुम मेरी सीमा में हो।" उन्होंने एक नक्शे को मोड़कर आरव को दिया। "यह तुम्हें तुम्हारे पहले पड़ाव का रास्ता दिखाएगा।"



    "याद रखना, आरव," गुरु वशिष्ठ ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा, उनकी आवाज़ में गंभीरता थी। "तुम अकेले नहीं हो। तुम्हारे दोस्त तुम्हारे साथ हैं। उन पर भरोसा रखना। और सबसे महत्वपूर्ण... अपने भीतर की आवाज पर भरोसा रखना। यही तुम्हें सही रास्ता दिखाएगी। जाओ, और अपनी तैयारी करो। तुम्हें आज रात ही निकलना होगा।"



    आरव ने सिर हिलाया। उसने गुरु वशिष्ठ के हाथ में यंत्र को देखा, फिर मुड़ा और कमरे से बाहर निकल गया, उसके मन में एक नया उद्देश्य और एक अज्ञात चुनौती का बोझ था। रात के अंधेरे में एक खतरनाक मिशन पर निकलने के लिए।

  • 4. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 4

    Words: 26

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    Chapter 4
    आरव गुरु वशिष्ठ के कक्ष से बाहर निकला, उसके कानों में गुरु के अंतिम शब्द गूँज रहे थे – "अपने भीतर के खालीपन को समझना होगा, आरव। यह खालीपन तुम्हारी कमजोरी नहीं, बल्कि तुम्हारी असीमित क्षमता का स्रोत है।" उसके कदम अनिश्चित थे, जैसे वह अपने ही मन के बोझ तले दब रहा हो। उसने अपनी कलाई पर फिर से हाथ फेरा, वहाँ कोई ऊर्जा नहीं थी। यह 'असीमित क्षमता' कहाँ थी? उसे तो बस शून्य ही महसूस हो रहा था।

    वह गलियारे में कुछ कदम चला ही था कि उसने देखा रिया, समीर और भैरवी एक छोटे, सुनसान कक्ष के पास उसका इंतजार कर रहे थे। कक्ष का दरवाज़ा आधा खुला था और अंदर से कुछ कपड़ों और चमड़े की थैलियों की आवाज़ आ रही थी। वे तीनों पहले से ही अपनी-अपनी चीज़ें देख रहे थे, जो उनके मिशन के लिए तैयार की गई थीं।

    "तो, गुरुदेव ने तुम्हें कुछ और बताया?" रिया ने आरव को देखते ही पूछा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उत्सुकता थी, जैसे वह जानना चाहती हो कि गुरु ने आरव को कोई विशेष रहस्य तो नहीं बताया।

    आरव ने सिर हिलाया। "नहीं... बस वही सब जो हम जानते हैं। और... उन्होंने कहा कि मुझे अपनी शक्ति पर भरोसा रखना होगा।" उसकी आवाज़ में थोड़ी झिझक थी।

    "शक्ति?" रिया ने व्यंग्य से कहा, "कौन सी शक्ति? शून्य की शक्ति?" उसने आरव की ओर तिरछी निगाहों से देखा, उसकी आँखों में अभी भी गुस्सा था, जैसे वह उस रात के अनुभव पर विश्वास नहीं कर पा रही थी।

    "रिया!" भैरवी ने उसे टोकते हुए कहा, उसकी आवाज़ में चेतावनी थी। "बस करो। गुरुदेव ने कहा है कि आरव विशेष है।"

    समीर ने बीच-बचाव करते हुए कहा, "छोड़ो ये सब। हमें तैयारी करनी है।" उसने इशारा किया कि अंदर आ जाएँ।

    चारों छात्र उस छोटे कक्ष में दाखिल हुए। कमरा सामान्य रूप से एक खाली क्लासरूम जैसा था, लेकिन अब वहाँ मेज़ पर ढेर सारे साधारण कपड़े, चमड़े की थैलियाँ, पानी की बोतलें और कुछ अन्य उपकरण रखे थे। एक सहायक गुरु, जिसका नाम रवि था, वहाँ पहले से ही मौजूद था। उसने उन्हें देखकर विनम्रता से सिर झुकाया।

    "गुरु वशिष्ठ के आदेश अनुसार, यह तुम्हारी वेशभूषा और यात्रा का सामान है," रवि ने एक ढेर की ओर इशारा करते हुए कहा। "तुम्हें व्यापारियों के रूप में यात्रा करनी है। तुम्हारी पहचान गुप्त रहनी चाहिए। यह तुम्हारे लिए जाली पहचान पत्र हैं।" उसने चार छोटे, मुड़े हुए चमड़े के दस्तावेज़ उनकी ओर बढ़ाए।

    रिया ने एक कपड़े का टुकड़ा उठाया, जो मोटा और खुरदुरा था। "ये... ये क्या है? क्या ये सच में हमें पहनना होगा?" उसने कपड़े को ऐसे देखा जैसे वह कोई जहरीला साँप हो। रिया, जो हमेशा अग्नि गणराज्य के बेहतरीन रेशम और चमकते गहनों में सजी रहती थी, के लिए यह एक बड़ा झटका था।

    "तुम्हारी पुरानी वेशभूषा तुम्हें तुरंत उजागर कर देगी, राजकुमारी," रवि ने शांति से कहा। "जलधि में तुम्हें आम लोगों की तरह घुलना-मिलना होगा।"

    रिया ने मुँह बनाकर कपड़े को देखा, लेकिन कुछ कहा नहीं। उसने उसे समीर की ओर फेंक दिया, जैसे कह रही हो, 'देखो कितना बेकार है!'

    भैरवी ने अपने हिस्से के कपड़े उठाए। वे गहरे भूरे और हरे रंग के थे, जो पृथ्वी राज्य के लोगों के बीच आम थे। उसने तुरंत उन्हें ओढ़ लिया, उसकी मज़बूत काया उन कपड़ों में भी प्रभावशाली लग रही थी। "ये ठीक हैं," उसने कहा। "यात्रा के लिए आरामदायक रहेंगे।"

    समीर ने अपने कपड़े उठाए, जो हल्के नीले और सफेद रंग के थे, वायु कुल के व्यापारियों के बीच लोकप्रिय। उसने अपने बालों को बांधा और चेहरे को थोड़ा झुका लिया, जिससे उसकी पहचान थोड़ी बदल गई। वह उन कपड़ों में भी शांत और कुशल लग रहा था। "पहचान छिपाना ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति होगी, रिया। जितनी कम ध्यान आकर्षित करेंगे, उतना ही बेहतर होगा।"

    आरव ने अपने हिस्से के कपड़े उठाए। वे हल्के भूरे रंग के थे, जो एक साधारण गाँव के व्यापारी के लिए उपयुक्त थे। उसने उन्हें ओढ़ा, और उसे लगा कि वह सच में अपने पुराने, तत्वहीन आरव जैसा ही दिख रहा है, कोई खास या असाधारण नहीं। यह भावना उसे अंदर तक कचोट गई। उसने खुद को आइने में देखा - एक साधारण चेहरा, साधारण कपड़े। क्या यही उसकी 'असीमित क्षमता' थी?

    "और ये हैं जलधि के लिए विशेष उपकरण," रवि ने एक छोटी सी चमड़े की थैली से चार धातु के गोले निकाले। वे छोटे थे, उसकी मुट्ठी में समाने वाले। "इन्हें 'जल-श्वास' कहते हैं। जब तुम पानी के अंदर जाओ, तो इन्हें अपने मुँह में रखना। यह तुम्हें जल-तत्वधारियों की तरह पानी के अंदर साँस लेने में मदद करेंगे। इनका प्रभाव सीमित समय के लिए होता है, इसलिए सावधानी से उपयोग करना।"

    समीर ने एक गोला उठाया। "यह तकनीक तो बहुत नई है। मैंने पहले कभी ऐसी किसी चीज़ के बारे में नहीं सुना।"

    "यह गुरु वशिष्ठ के व्यक्तिगत आविष्कार हैं," रवि ने रहस्यमय ढंग से कहा। "उन्होंने इसे विशेष रूप से तुम लोगों के लिए बनाया है।"

    रिया ने अपने जल-श्वास को उठाया, उसकी भौंहें चढ़ी हुई थीं। "तो हम पानी के अंदर भी जा सकते हैं? यह सब कितना अजीब है।"

    जब वे कपड़े बदल रहे थे और अपना सामान तैयार कर रहे थे, भैरवी ने चुपके से आरव को देखा। उसे आरव के चेहरे पर एक अजीब सी उदासी और चिंता दिखाई दी। उसका रंग थोड़ा पीला लग रहा था, और उसकी आँखें थकी हुई थीं। वह समझ गई कि आरव उस रात की घटना से अंदर से हिल गया था।

    भैरवी आरव के पास गई और धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा। "आरव, तुम ठीक हो?" उसने चिंतित स्वर में पूछा। "तुम कुछ शांत लग रहे हो।"

    आरव ने मुँह बनाकर कहा, "हाँ, मैं ठीक हूँ।" वह अपनी आंतरिक उथल-पुथल को छुपाने की कोशिश कर रहा था। उसे अपनी "असफलता" के बारे में बात करने की शर्म महसूस हो रही थी।

    "मुझे पता है तुम ठीक नहीं हो," भैरवी ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा। "तुम्हारी आँखें बता रही हैं। क्या तुम्हें चोट लगी है? क्या तुम्हारी शक्ति के कारण तुम्हें कोई परेशानी हो रही है?" उसकी आवाज़ में एक माँ जैसी चिंता थी।

    आरव ने नज़रें झुका लीं। "बस थोड़ा थका हुआ हूँ। इतनी सारी चीज़ें एक साथ हो गईं।" उसने अपनी कलाई को पकड़ा, जैसे वह उस खालीपन को महसूस कर रहा हो।

    रिया ने उनकी बात सुनी और पास आकर कहा, "अरे, क्या हो गया है? हम मिशन पर जा रहे हैं, आरव। कोई छुट्टी मनाने नहीं। तुम्हें मज़बूत रहना होगा।" उसकी आवाज़ में थोड़ी कठोरता थी, लेकिन उसके शब्द चिंता की बजाय अपने मिशन पर ध्यान केंद्रित करने की बात कर रहे थे। वह शायद आरव को कमजोर नहीं देखना चाहती थी, क्योंकि उसे अभी भी उसकी क्षमताओं पर संदेह था, और वह खुद को मज़बूत बनाए रखना चाहती थी।

    समीर ने बीच में आकर कहा, "चिंता मत करो, भैरवी। आरव शक्तिशाली है, वह ठीक हो जाएगा। अभी हमारा ध्यान मिशन पर होना चाहिए।" उसने आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में एक मूक समर्थन था।

    आरव ने सिर हिलाया। उसे पता था कि उन्हें अपने मिशन पर ध्यान देना होगा, लेकिन उसके अंदर का खालीपन उसे परेशान कर रहा था।

    रवि ने उन्हें इकट्ठा किया। "तुम्हारे पास एक संचार यंत्र भी होगा," उसने कहा, जैसा गुरु वशिष्ठ ने आरव को बताया था। उसने चार छोटे, गोल यंत्र निकाले, जो आरव को दिए गए यंत्र जैसे ही थे। "यह तुम्हें एक-दूसरे से और मुझसे या गुरु वशिष्ठ से संपर्क करने में मदद करेगा। लेकिन याद रखना, इसका उपयोग बहुत संयम से करना। दुश्मन इसे ट्रैक कर सकते हैं।"

    उन्होंने सभी आवश्यक चीज़ें अपनी-अपनी थैलियों में डाल लीं। उनके कंधे पर चमड़े के थैले लटक रहे थे, और उनके पैरों में मज़बूत जूते थे। उनके चेहरे अब साधारण व्यापारियों जैसे दिख रहे थे, लेकिन उनकी आँखों में अभी भी दिव्य ज्ञान पीठ के छात्रों की दृढ़ता और बुद्धिमत्ता झलक रही थी।

    रवि ने उन्हें अंतिम निर्देश दिए। "तुम अकादमी के पिछले द्वार से निकलोगे। वहाँ पर कोई पहरा नहीं होगा। तुम्हें चुपचाप शहर से बाहर निकलना होगा। किसी से बात नहीं करनी है। सुबह होने से पहले तुम्हें शहर की सीमा से काफी दूर निकल जाना चाहिए।"

    "हम समझ गए," समीर ने कहा। वह टीम का सबसे रणनीतिक और अनुशासित सदस्य था।

    "शुभकामनाएँ, बच्चों," रवि ने कहा, उसकी आवाज़ में थोड़ी चिंता थी। "यह यात्रा आसान नहीं होगी। लेकिन तुम इस देश की उम्मीद हो।"

    चारों छात्र एक दूसरे को देखने लगे। उनके मन में अलग-अलग विचार थे - रिया अपने पिता की बेगुनाही साबित करना चाहती थी, समीर सच्चाई जानना चाहता था और अपने कुल की सुरक्षा के लिए चिंतित था, भैरवी अपने दोस्तों की सुरक्षा के लिए चिंतित थी और आरव अपनी रहस्यमय शक्ति को समझना चाहता था। लेकिन एक बात समान थी - वे सब जानते थे कि वे एक ऐसे मिशन पर निकल रहे थे जो उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल देगा।

    वे धीरे-धीरे कक्ष से बाहर निकले, रवि ने दरवाज़ा बंद कर दिया। अकादमी का गलियारा रात के अंधेरे में सन्नाटे में डूबा हुआ था। सिर्फ उनके कदमों की आवाज़ गूँज रही थी। वे बिना किसी बात के पिछले द्वार की ओर बढ़े। हर कदम के साथ, वे अपने छात्र जीवन को पीछे छोड़ रहे थे।

    पिछला द्वार, जो आमतौर पर एक मजबूत लोहे का दरवाज़ा था, आज खुला हुआ था। बाहर सिर्फ अँधेरा था और हवा की हल्की सरसराहट। उन्होंने एक-एक करके अकादमी की दीवारों को पार किया।

    रिया ने एक पल के लिए पीछे मुड़कर अकादमी की भव्य इमारत को देखा, जो चाँदनी में एक विशाल छाया की तरह दिख रही थी। उसे लगा जैसे वह अपने घर को, अपनी सुरक्षा को पीछे छोड़ रही हो। उसके मन में एक अजीब सी टीस उठी।

    समीर ने भी एक पल के लिए देखा, उसके मन में अपने परिवार और अपने कुल के लिए चिंता थी।

    भैरवी ने आरव का हाथ थामा, एक मूक समर्थन दिया, जैसे वह कह रही हो, 'हम साथ हैं।'

    आरव ने सिर्फ आगे देखा। उसके लिए यह कोई वापसी नहीं थी, बल्कि एक नई शुरुआत थी, एक ऐसी यात्रा जहाँ उसे अपनी पहचान और अपनी शक्ति का पता लगाना था।

    चारों छात्र रात के अँधेरे में घुल मिल गए, शहर की सड़कों पर कदम रखते हुए, अनिश्चित भविष्य की ओर बढ़ते हुए। उनकी यात्रा अभी शुरू ही हुई थी, और खतरा हर कदम पर उनका इंतज़ार कर रहा था।

  • 5. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 5

    Words: 17

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 5
    रात के सन्नाटे में, दिव्य ज्ञान पीठ की ऊँची दीवारें उनके पीछे छूट गईं। शहर की सड़कें सुनसान थीं, चाँदनी में चमकती हुई। आरव, रिया, समीर और भैरवी – चारों, अब साधारण व्यापारियों के वेश में, चुपचाप कदम बढ़ा रहे थे। हवा में एक अजीब सी ठंडक थी, जो केवल मौसम की नहीं, बल्कि उनके मिशन की गंभीरता की वजह से भी थी। हर कदम के साथ, अकादमी की सुरक्षा का कवच उनसे दूर होता जा रहा था, और उन्हें यह एहसास हो रहा था कि वे एक अज्ञात और खतरनाक दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं।


    "हमें जल्द से जल्द शहर से बाहर निकलना होगा," समीर ने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी आँखें लगातार आसपास का जायज़ा ले रही थीं। "इससे पहले कि सुबह हो जाए और कोई हमें पहचान ले।"


    रिया ने अपने मोटे कपड़े ठीक किए। "यह सब कितना असहज है," उसने बुदबुदाया, जैसे वह किसी दुर्गम स्थान पर फँस गई हो। "क्या यह सच में ज़रूरी था कि हम ऐसे कपड़े पहनें?"


    भैरवी ने हल्का सा मुस्कुराया। "रिया, हम जितना सामान्य दिखेंगे, उतना ही सुरक्षित रहेंगे। अकादमी के छात्र होने का पता चला, तो मुसीबत बढ़ सकती है।"


    आरव चुपचाप सुन रहा था। उसके दिमाग में गुरु वशिष्ठ के शब्द गूँज रहे थे – 'तुम्हें अपने भीतर के खालीपन को समझना होगा।' उसे उस रात की घटना याद आई जब उसकी शक्ति अचानक सक्रिय हुई थी और फिर उतनी ही तेज़ी से गायब हो गई थी। वह अभी भी अपने अंदर वही खालीपन महसूस कर रहा था, जैसे वह एक बंद डिब्बा हो जिसमें कुछ बहुत शक्तिशाली कैद हो, लेकिन वह उसे खोलना नहीं जानता।


    वे शहर के बाहरी इलाकों से होते हुए आगे बढ़े। कुछ झोपड़ियाँ दिखाई दे रही थीं, जहाँ से कभी-कभार किसी कुत्ते के भौंकने या दूर से किसी पहरेदार की धीमी आवाज़ सुनाई देती थी। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए, सड़कें कच्ची होती गईं और अंततः वे शहर के मुख्य द्वार पर पहुँच गए। द्वार पर कोई पहरेदार नहीं था, शायद इतनी रात में सभी सो रहे थे।


    वे बिना किसी दिक्कत के द्वार से निकल गए। शहर की रोशनी अब पीछे छूट चुकी थी, और सामने केवल अँधेरा रास्ता फैला हुआ था। हवा और भी ठंडी हो गई थी, और दूर पेड़ों के पत्तों की सरसराहट सुनाई दे रही थी।


    "अब हमें कुछ नियमों पर सहमत होना होगा," समीर ने कहा, जो अब पूरी तरह से यात्रा के मोड में आ चुका था। उसकी आवाज़ में एक निश्चितता थी। "सबसे पहले, हम किसी भी स्थिति में अपनी तात्विक शक्तियों का प्रदर्शन नहीं करेंगे। हमारा कवर व्यापारी है, और व्यापारी इतनी शक्ति नहीं रखते। अगर हम पकड़े गए, तो यह मिशन खतरे में पड़ जाएगा।"


    "लेकिन अगर हम पर हमला हुआ?" रिया ने तुरंत पूछा। "क्या हम केवल अपने हाथों से लड़ेंगे?"


    "हम चतुराई से लड़ेंगे," समीर ने जवाब दिया। "हमारी शारीरिक क्षमताएँ और हमारा दिमाग हमारी सबसे बड़ी ताकत हैं। अगर हमें लड़ना पड़ा, तो हम अपनी elemental power को छुपाते हुए ही लड़ेंगे।"


    "यह मुश्किल होगा, समीर," भैरवी ने कहा। "खासकर तुम्हारे लिए, रिया। तुम्हारी अग्नि शक्ति तुम्हें हमेशा उत्तेजित करती है।"


    रिया ने मुँह बनाकर कहा, "मैं खुद पर नियंत्रण रख सकती हूँ, भैरवी। तुम मुझे इतना कमजोर क्यों समझती हो?"


    "दूसरा नियम," समीर ने उनकी बात पर ध्यान न देते हुए जारी रखा, "हम हर रात पहरा देंगे। दो-दो घंटे की शिफ्ट में। हर कोई इसमें हिस्सा लेगा। भैरवी, तुम मिट्टी के कंपन से खतरों को महसूस कर सकती हो, इसलिए तुम्हारी पहली शिफ्ट अक्सर महत्वपूर्ण होगी।"


    भैरवी ने सिर हिलाया। "ठीक है।"


    "और तीसरा," समीर ने आरव की ओर देखते हुए कहा, "हमें एक टीम के रूप में काम करना होगा। कोई भी अकेला कदम नहीं उठाएगा, चाहे वह कितना भी साहसी क्यों न लगे।" उसने इस बात पर विशेष ज़ोर दिया, जैसे वह आरव को चेतावनी दे रहा हो। आरव ने बस सिर हिला दिया, उसकी आँखें रात के अंधेरे में खोई हुई थीं।


    वे घंटों तक चलते रहे। रात गहरी होती जा रही थी। उनके कदम थके हुए महसूस होने लगे थे। सुबह होने में अभी भी काफी समय था। सड़क सुनसान थी, और सिर्फ हवा की आवाज़ सुनाई दे रही थी।


    अचानक, भैरवी रुक गई। उसने अपनी आँखें बंद कीं और ज़मीन पर अपना हाथ रखा। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।


    "क्या हुआ, भैरवी?" आरव ने फुसफुसाते हुए पूछा।


    भैरवी ने धीरे से आँखें खोलीं। "मुझे कंपन महसूस हो रहा है... कुछ लोग हमारी तरफ आ रहे हैं।"


    समीर ने तुरंत अपनी वायु शक्ति का हल्का उपयोग करते हुए हवा में एकाग्रता बढ़ाई। "कितने लोग?"


    "शायद... पाँच या छह," भैरवी ने कहा, उसकी आवाज़ में थोड़ी घबराहट थी। "और वे बहुत तेज़ी से आ रहे हैं। उनके कदम... बड़े और भारी लग रहे हैं।"


    रिया ने अपनी कमर पर हाथ रखा। "डाकू।" उसने कहा, उसकी आवाज़ में गुस्सा था। "इस रास्ते पर हमेशा कुछ न कुछ परेशान करने वाले मिलते ही हैं।"


    "छिपाओ अपनी शक्ति," समीर ने कहा। "याद है नियम?"


    कुछ ही मिनटों में, अँधेरे से कुछ परछाइयाँ उभरने लगीं। वे लोग थे, मज़बूत कद-काठी के, हाथों में मोटे डंडे और कुछ के पास छोटी तलवारें भी थीं। उनकी वेशभूषा फटी-पुरानी थी और उनके चेहरे पर क्रूरता साफ दिख रही थी।


    वे उनके सामने आकर रुक गए, रास्ते को रोकते हुए। उनके नेता, एक भारी-भरकम आदमी जिसकी दाढ़ी घनी थी, ने एक डंडा ज़मीन पर पटका। "ओए यात्रियों! इतनी रात में कहाँ जा रहे हो?" उसकी आवाज़ मोटी और धमकाने वाली थी।


    समीर ने तुरंत आगे बढ़कर कहा, "नमस्ते, भाई। हम जलधि के व्यापारी हैं। कुछ ज़रूरी सामान बेचने जा रहे थे। रास्ते में रात हो गई, तो सोचा रात भर चलकर जल्दी पहुँच जाएँ।"


    डाकू हँस पड़ा। उसके साथी भी उसके साथ हँसने लगे, उनकी हँसी रात के सन्नाटे में गूँज रही थी। "व्यापारी? इतनी रात में? हमें बेवकूफ मत समझो! तुम्हारे पास जो कुछ भी कीमती है, चुपचाप निकालो, वरना..." उसने अपना डंडा उठाया।


    रिया ने अपने मुँह के कोने से फुसफुसाया, "मैं इन मूर्खों को एक पल में राख कर सकती हूँ।"


    "नहीं, रिया!" समीर ने धीमी, दृढ़ आवाज़ में कहा। "याद है नियम?"


    डाकू का नेता आरव की ओर बढ़ा। "और यह पतला सा लड़का? इसके पास क्या है? इसकी आँखें तो ऐसी हैं जैसे इसने कुछ देखा ही न हो।"


    आरव ने अंदर ही अंदर अपनी मुट्ठी भींच ली। उसे अपमान महसूस हुआ। लेकिन उसे याद था कि वह अपनी शक्ति का उपयोग नहीं कर सकता था। उसे कुछ और सोचना होगा।


    "अरे, क्यों परेशान हो रहे हो?" आरव ने अचानक कहा, उसकी आवाज़ थोड़ी काँप रही थी, जैसे वह सच में डरा हुआ हो। डाकुओं ने उसे देखा। "हम गरीब व्यापारी हैं। हमारे पास कुछ नहीं है। बस ये पुराना सामान है। तुम चाहो तो ले लो।"


    उसने अपनी चमड़े की थैली खोली और उसमें से एक टूटा हुआ, पुराना दीपक निकाला। "यह लो। यह मेरे दादाजी का है। इसकी रोशनी बहुत अच्छी है।"


    डाकू का नेता और उसके साथी हँसने लगे। "क्या? एक टूटा हुआ दीपक? तुम हमें बेवकूफ बना रहे हो?"


    "अरे नहीं, भाई!" आरव ने और भी डरने का नाटक किया। "यह दीपक विशेष है। यह हर मुश्किल में रास्ता दिखाता है। अगर आप इसे ले लेंगे, तो आपके जीवन से सारी परेशानियाँ दूर हो जाएँगी। यह एक जादूई दीपक है, बस इसे रगड़ने से..."


    "चुप कर, मूर्ख!" डाकू का नेता गुस्से से दहाड़ा। "हम ऐसे झूठ में नहीं फँसते। हमें पैसे चाहिए!"


    उसने आरव की ओर डंडा उठाया। लेकिन इससे पहले कि वह आरव को मार पाता, समीर बिजली की तेज़ी से आगे बढ़ा। उसने वायु शक्ति का उपयोग किए बिना, केवल अपनी गति और फुर्ती का उपयोग करके डाकू के डंडे को पकड़ लिया।


    "अरे! तुम तेज़ हो!" डाकू नेता ने कहा, हैरान होकर।


    समीर ने डाकू का डंडा एक अजीब कोण पर मोड़ दिया, जिससे डाकू का संतुलन बिगड़ गया। डाकू लड़खड़ाया।


    इसी बीच, भैरवी ने आगे बढ़कर एक डाकू को, जो रिया पर झपट रहा था, हल्के से धक्का दिया। वह धक्का इतना सधा हुआ था कि डाकू हवा में कलाबाजी खाता हुआ ज़मीन पर गिर पड़ा। भैरवी की ताकत उसके पृथ्वी तत्व से आती थी, लेकिन उसने उसे इतनी सूक्ष्मता से इस्तेमाल किया था कि किसी को यह पता न चले कि उसने कोई शक्ति इस्तेमाल की है। वह बस एक "मज़बूत" महिला लग रही थी।



    रिया को गुस्सा आ गया। उसने अपने हाथों से आग निकालने की जगह, एक चालाकी का सहारा लिया। उसने ज़मीन से एक मुट्ठी धूल उठाई और उसे डाकू नेता की आँखों में फेंक दिया।



    "आह!" डाकू नेता चिल्लाया, अपनी आँखों को मलते हुए।


    आरव ने इस मौके का फायदा उठाया। उसने तुरंत अपने कंधे पर लटकी थैली से एक छोटी सी पत्थर की गुलेल निकाली, जो उसने बचपन में पक्षियों को भगाने के लिए इस्तेमाल की थी। उसने एक छोटा पत्थर उठाया और उसे डाकू नेता के सिर के ऊपर से इतनी सटीकता से निकाला कि वह एक पेड़ की डाली से टकराया और एक अजीब सी आवाज़ हुई, जैसे कोई जानवर भाग रहा हो।


    "जंगल से... कुछ आ रहा है!" एक डाकू घबराकर चिल्लाया।


    डाकू नेता ने अपनी आँखें खोलीं, उसकी आँखों में पानी था। उसने आस-पास देखा और आवाज़ सुनी। "क्या है वो?" उसने डरते हुए पूछा।


    "मुझे लगता है कि हमने किसी जंगली जानवर को जगा दिया है!" आरव ने अपनी आवाज़ में डर का पुट डालते हुए कहा। "वह दीपक अगर तुम्हारे पास नहीं है, तो तुम सब मारे जाओगे!"


    "भागो!" डाकू नेता चिल्लाया। "ये लोग कुछ अजीब हैं! और यहाँ कुछ है!"


    डाकू, जो पहले से ही समीर की फुर्ती और भैरवी की ताकत से थोड़े घबराए हुए थे, अब आरव की बात और उस अजीब आवाज़ से पूरी तरह डर गए। उन्होंने बिना कुछ और सोचे, अपने डंडे और तलवारें फेंक कर अंधेरे में भागना शुरू कर दिया। वे अपनी जान बचाने के लिए जितनी तेज़ी से भाग सकते थे, भागे।


    चारों छात्र वहीं खड़े रहे, उनकी साँसें तेज़ चल रही थीं।


    रिया ने डाकुओं को भागते हुए देखा और फिर आरव की ओर मुड़ी। उसकी आँखों में अभी भी गुस्सा था, लेकिन उसमें एक हल्की सी हैरानी भी थी। "तो... वह टूटा हुआ दीपक और वह आवाज़... क्या यह तुम्हारी चाल थी?" उसने कहा, उसकी आवाज़ में थोड़ी सी प्रशंसा थी।


    आरव ने हल्का सा मुस्कुराया। "उन्हें विश्वास दिलाना ज़रूरी था कि भागना ही उनका एकमात्र विकल्प है।"


    समीर ने सिर हिलाया। "बहुत अच्छा काम किया, आरव। तुमने उन्हें अपनी शक्ति का उपयोग किए बिना ही भगा दिया। यह चतुराई थी।"


    भैरवी ने खुशी से आरव का हाथ थामा। "मुझे लगा था कि हम बुरी तरह फँस गए हैं! लेकिन तुमने उन्हें डरा दिया।"


    रिया ने एक पल के लिए आरव की ओर देखा। वह आमतौर पर उसे 'शून्य' कहकर बुलाती थी, या उसे कमजोर समझती थी। लेकिन आज उसने कुछ ऐसा किया था जिसने उन्हें बिना किसी बड़े टकराव के बचाया था। उसने आरव को कभी इतना चतुर नहीं देखा था।


    "ठीक है, शून्य," रिया ने कहा, लेकिन इस बार उसके लहजे में वह पुरानी घृणा नहीं थी, बल्कि एक हल्की, लगभग न के बराबर, स्वीकार्यता थी। "लगता है कि तुम्हारी मूर्खता भी कभी-कभी काम आ जाती है।"


    आरव ने उसकी ओर देखा। रिया ने उसकी चाल को सराहा था। यह एक छोटा सा पल था, लेकिन आरव को लगा जैसे उसके अंदर का कुछ हल्का हो गया हो। उसे रिया की इस बात में एक अजीब सी संतुष्टि मिली। शायद वह सच में इतना 'शून्य' नहीं था।


    समीर ने गंभीर होकर कहा, "ठीक है, हम सुरक्षित हैं। लेकिन यह एक चेतावनी है। आगे का रास्ता और भी खतरनाक हो सकता है। हमें और भी सतर्क रहना होगा।"


    वे अपने रास्ते पर फिर से चल पड़े। अब उनके कदम पहले से कहीं अधिक सधे हुए थे, और उनकी सतर्कता बढ़ गई थी। सुबह की पहली किरणें पूरब में फूटने लगी थीं, और उनके सामने एक नया दिन और नई चुनौतियाँ थीं। जलधि की ओर उनकी यात्रा अभी शुरू ही हुई थी।

  • 6. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 6

    Words: 22

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 6
    सुबह की पहली किरणें क्षितिज पर फूटने लगी थीं, और टीम के सामने एक नया दिन और नई चुनौतियाँ थीं। डाकुओं से बच निकलने के बाद उनके कदमों में एक नई ऊर्जा आ गई थी, लेकिन थकान भी हावी हो रही थी। समीर ने आगे बढ़ते हुए कहा, "हमें सुबह होने से पहले कोई सुरक्षित जगह ढूंढनी होगी। खुले में रुकना खतरे से खाली नहीं होगा।"



    रिया ने अपने बालों को हटाया जो उसके माथे पर चिपक गए थे। "मुझे किसी नदी या तालाब के पास रुकना है। इस धूल भरी यात्रा से मेरी त्वचा रूखी हो रही है।"



    भैरवी ने मुस्कुराते हुए कहा, "थोड़ी देर में हम किसी गाँव तक पहुँच जाएँगे। वहाँ हम थोड़ा आराम कर सकते हैं और कुछ खाना भी मिल जाएगा।"



    आरव चुपचाप चल रहा था, उसके दिमाग में अभी भी डाकुओं को भगाने की अपनी चाल चल रही थी। रिया की "तुम्हारी मूर्खता भी कभी-कभी काम आ जाती है" वाली बात उसे याद आई। यह अपमानजनक था, लेकिन इसमें एक अजीब सी स्वीकार्यता भी थी। उसे लगा कि वह अपनी शून्य शक्ति के बावजूद कुछ तो कर सकता था। यह सोच उसके लिए एक नई उम्मीद की किरण थी।



    लगभग एक घंटे और चलने के बाद, उन्होंने दूर एक छोटी सी बस्ती देखी। कच्चे घरों और पेड़ों के झुरमुट के बीच, एक पतली सी नदी बह रही थी। समीर ने कहा, "यह 'अरण्यपुर' गाँव है। यह जलधि के रास्ते में है। यहाँ हम कुछ समय के लिए रुक सकते हैं।"



    जैसे ही वे गाँव में दाखिल हुए, उन्होंने देखा कि कुछ लोग सुबह के काम में लगे हुए थे। कुछ औरतें नदी से पानी भर रही थीं, और कुछ पुरुष अपने खेतों की ओर जा रहे थे। गाँव छोटा और शांत था।



    उन्होंने एक छोटे से चाय की दुकान पर रुकने का फैसला किया, जहाँ एक बूढ़ा आदमी धीमी आंच पर चाय बना रहा था। दुकान के बाहर लकड़ी के कुछ बेंच लगे थे।



    "नमस्ते, काका," समीर ने बूढ़े आदमी से कहा। "क्या हमें यहाँ रात बिताने के लिए कोई जगह मिल सकती है? हम दूर के व्यापारी हैं और बहुत थके हुए हैं।"



    बूढ़े आदमी ने उन्हें ध्यान से देखा, उसकी आँखों में थोड़ी हैरानी थी। "हाँ, हाँ, बेटा। मेरे पास एक छोटा सा कमरा है, तुम लोग वहाँ रुक सकते हो। आजकल वैसे भी यात्री कम आते हैं। लेकिन किराया देना होगा।"



    "हमें मंज़ूर है," रिया ने तुरंत कहा, वह बस आराम करना चाहती थी।



    वे कमरे में गए, जो छोटा लेकिन साफ़ था। उसमें चार साधारण बिस्तर थे। रिया ने तुरंत खुद को सबसे साफ बिस्तर पर फेंक दिया। "उफ़, आखिरकार! मैं तो सोच रही थी कि मैं कभी यहाँ पहुँच ही नहीं पाऊँगी।"



    भैरवी ने अपना सामान रखा और खिड़की से बाहर झाँका। "गाँव शांत है, लेकिन मुझे कुछ अजीब लग रहा है।"



    "क्या मतलब?" आरव ने पूछा, अपनी पीठ पर लगी चोट को सहलाते हुए।



    "पता नहीं," भैरवी ने कहा, उसकी आँखें दूर क्षितिज को देख रही थीं। "बस एक अजीब सा तनाव महसूस हो रहा है, जैसे कुछ ठीक नहीं है।"



    समीर ने उनकी बात सुनी और फिर उसने सुझाव दिया, "हमें यहाँ ज़्यादा देर नहीं रुकना चाहिए। आज शाम तक ही निकलना बेहतर होगा।"



    थोड़ी देर बाद, वे बाहर चाय पीने और नाश्ता करने के लिए बैठे। चाय की दुकान पर कुछ और लोग भी थे, जो गाँव के ही लगते थे। वे आपस में बातें कर रहे थे, और टीम ने ध्यान से सुनना शुरू किया।



    "लगता है फिर से कोई नया कानून आ गया है," एक किसान ने दूसरे से कहा। "मैंने सुना है अग्नि गणराज्य के सैनिक पूरे देश में फैल रहे हैं।"



    "हाँ," दूसरे ने पुष्टि की। "हमारे गाँव के बाहर भी एक नई चौकी बनी है। उन्होंने कहा कि वे 'शांति और व्यवस्था' बनाए रखने आए हैं, लेकिन मुझे तो लगता है कि वे हमें दबाना चाहते हैं।"



    एक महिला ने हस्तक्षेप किया, "मेरे भाई ने जलधि से बताया, वहाँ भी अग्नि के सैनिक आ रहे हैं। पानी के अंदर भी! कहते हैं, वे जल साम्राज्य के समुद्री मार्गों को 'सुरक्षित' कर रहे हैं।"



    रिया ने यह सब सुना, और उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं। वह जानती थी कि उसके पिता की महत्वाकांक्षाएं क्या थीं, लेकिन वह यह मानने को तैयार नहीं थी कि वह निर्दोष लोगों को नुकसान पहुँचाएगा। "यह सब बकवास है," उसने फुसफुसाते हुए कहा। "मेरे पिता ऐसा कभी नहीं करेंगे। वे सिर्फ सुरक्षा बढ़ा रहे होंगे।"



    समीर ने अपनी आँखें सिकोड़ीं। "सुरक्षा? जलधि में समुद्री मार्गों को 'सुरक्षित' करने की क्या ज़रूरत है? यह तो सीधे-सीधे घुसपैठ है।"



    भैरवी ने गंभीर स्वर में कहा, "यह स्थिति हमारे लिए और मुश्किल पैदा कर सकती है। अगर हर जगह अग्नि के सैनिक हैं, तो हमें छिपकर आगे बढ़ना और भी मुश्किल होगा।"



    आरव ने अपनी चाय का कप नीचे रखा। उसे लगा जैसे हवा में तनाव बढ़ रहा था। अग्नि गणराज्य के सैनिकों की बढ़ती उपस्थिति कोई अच्छी खबर नहीं थी। यह उनके मिशन को और जटिल बना रहा था।



    उन्होंने दिन में थोड़ा आराम किया और शाम को फिर से यात्रा शुरू करने का फैसला किया। कमरे में आरव लेटा हुआ था, उसकी आँखें बंद थीं। वह थका हुआ था, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी। डाकुओं से सामना करने के बाद, उसके मन में कुछ चल रहा था। उसे लगा कि उसके पास सच में कोई शक्ति नहीं है, लेकिन वह अपने दिमाग और अपनी चतुराई से कुछ तो कर सकता था। यह एक नया विचार था, लेकिन उसे अभी भी अपनी शून्य-शक्ति का रहस्य समझ नहीं आ रहा था।



    धीरे-धीरे उसे नींद आने लगी। और जैसे ही वह गहरी नींद में गया, उसके सपने बदल गए।



    वह फिर से स्टेडियम में था। चारों ओर अराजकता थी। चीखें, धुँआ, और काले कपड़े पहने निर्-तत्व। उनके चेहरों पर नकाब थे, लेकिन आरव उनकी खाली, ठंडी आँखों को साफ देख सकता था। वे उसकी ओर बढ़ रहे थे, उनके हाथ उठे हुए थे, जैसे उसकी शक्ति को सोखना चाहते हों। उसे फिर से वही असहनीय दर्द महसूस हुआ, जैसे उसकी आत्मा को निचोड़ा जा रहा हो। फिर भैरवी की चीख सुनाई दी – "आरव!"



    उसने देखा कि एक निर्-तत्व भैरवी पर हमला कर रहा था। आरव भागना चाहता था, लेकिन उसके पैर ज़मीन से चिपके हुए थे। वह चीखा, "नहीं!" और उसके अंदर से फिर वही शून्य-क्षेत्र फटा। वह क्षेत्र सब कुछ निगल गया, निर्-तत्वों को, उनकी शक्ति को, और फिर... सब कुछ अँधेरा हो गया।



    आरव की साँस तेज़ी से चल रही थी। उसे लगा जैसे वह अभी भी उस अँधेरे में फँसा हुआ है। उसे वह खालीपन महसूस हुआ, जो उसे अंदर से खा रहा था। वह पसीने से भीगा हुआ था। वह उठकर बैठ गया, उसकी आँखों में डर साफ दिख रहा था।



    उसने चारों ओर देखा। समीर अपने बिस्तर पर सो रहा था, उसकी साँसें धीमी थीं। भैरवी भी शांति से सो रही थी। रिया... वह गुस्से में अपनी करवट बदल रही थी, जैसे नींद में भी किसी से लड़ रही हो।



    आरव ने धीरे से अपने सीने पर हाथ रखा। वह खालीपन। क्या यह वही था जिसे गुरु वशिष्ठ 'असीमित क्षमता' कह रहे थे? या यह सिर्फ उसका डर था, उसकी कमजोरी? वह नहीं जानता था। उसने चाँदनी से रोशन खिड़की की ओर देखा, उसकी आँखें खुली थीं, नींद अब उससे कोसों दूर थी।



    उसी समय, बाहर, समीर पहरा दे रहा था। वह गाँव के बाहर एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठा था, जहाँ से उसे दूर तक का रास्ता दिखाई दे रहा था। हवा ठंडी थी और तारे आसमान में चमक रहे थे। समीर ने अपनी वायु-शक्ति का उपयोग करके हवा के छोटे-छोटे झोंकों को अपने चारों ओर फैलाया था, जिससे उसे दूर की आवाज़ें और कंपन आसानी से महसूस हो सकें।



    उसकी आँखें हर दिशा में घूम रही थीं। उसकी ट्रेनिंग उसे हर पल सतर्क रहना सिखाती थी।



    कुछ समय बाद, उसकी आँखें एक बिंदु पर टिक गईं। दूर, पेड़ों के झुरमुट के पास, उसे कुछ हलचल महसूस हुई। बहुत हल्की, लगभग अदृश्य। वह जानता था कि वहाँ कोई जानवर नहीं था। जानवरों के चलने का तरीका अलग होता है।



    वह अपनी साँस रोककर और भी ध्यान से देखने लगा। अँधेरे में, उसे कुछ काली परछाइयाँ दिखाई दीं। वे पेड़ से पेड़ की ओर सरक रही थीं, बहुत धीमी गति से, जैसे छिपने की कोशिश कर रही हों। उनकी संख्या... दो या तीन हो सकती है। वे गाँव की ओर ही आ रही थीं, लेकिन सीधे रास्ते से नहीं, बल्कि पेड़ों के बीच से।



    समीर की भौंहें सिकुड़ गईं। ये कौन हो सकते हैं? डाकू इतने चुपचाप नहीं चलते। और अग्नि गणराज्य के सैनिक इतनी रात में, ऐसे छिपकर क्यों चलेंगे? उसे लगा कि ये लोग उनका पीछा कर रहे थे। पिछले डाकुओं के साथ की घटना के बाद, उसे लगा कि किसी ने उन पर नज़र रखना शुरू कर दिया है।



    उसने तुरंत अपना संचार यंत्र निकालने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन फिर रुक गया। अभी सभी सो रहे थे। उन्हें परेशान करने का कोई मतलब नहीं था, जब तक कि खतरा पक्का न हो जाए। उसने उन परछाइयों की गतिविधियों पर नज़र रखी। वे धीरे-धीरे गाँव के पास आ रही थीं।



    समीर ने अपनी मुट्ठी भींच ली। अगर ये वही लोग थे जिन्होंने अकादमी पर हमला किया था, तो यह बहुत बड़ी मुसीबत थी। वह जानता था कि उन्हें यहाँ से जल्द से जल्द निकलना होगा। वह अगले ही पल कमरे में वापस जाने के लिए उठा, ताकि टीम को जगा सके। वह जानता था कि उन्हें अब देर नहीं करनी चाहिए। उन्हें अब किसी भी कीमत पर उन संदिग्ध परछाइयों से बचना था।

  • 7. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 7

    Words: 10

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 7
    समीर तेजी से कमरे की ओर भागा। उसके कदम इतने हल्के थे कि उसने सोते हुए टीम के सदस्यों को ज़रा भी डिस्टर्ब नहीं किया, लेकिन उसके दिमाग में खतरा स्पष्ट था। उसने रिया के कंधे पर हल्के से हाथ रखा, फिर भैरवी और आरव पर।


    रिया गहरी नींद में थी। उसने करवट बदली और बुदबुदाई, "क्या है?" उसकी आवाज़ में चिड़चिड़ाहट थी।


    "जागो!" समीर ने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी आवाज़ में अर्जेंसी थी। "जल्दी उठो, बिना कोई आवाज़ किए।"


    आरव की नींद हल्की थी। वह तुरंत उठकर बैठ गया। उसने देखा कि समीर का चेहरा गंभीर था। "क्या हुआ?" उसने फुसफुसाया।


    भैरवी भी अब उठ चुकी थी। उसकी सहज प्रकृति उसे खतरों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती थी। उसने समीर की ओर देखा, उसकी आँखों में चिंता थी।


    "हमें कोई पीछा कर रहा है," समीर ने धीमी, लेकिन स्पष्ट आवाज़ में कहा। "मैंने बाहर देखा। दो-तीन काली परछाइयाँ गाँव की तरफ आ रही हैं। वे बहुत चुपचाप चल रहे हैं, डाकू नहीं लगते।"


    रिया अब पूरी तरह से जाग चुकी थी। उसकी आँखें खुली थीं। "पीछा कर रहा है? कौन? कहीं वो डाकू तो नहीं लौटे?"


    "नहीं," समीर ने सिर हिलाया। "ये अलग हैं। उनकी चाल में एक अनुशासन है, जैसे सैनिक हों। और वे बहुत सतर्क हैं।"


    आरव को अपने बुरे सपने याद आ गए। निर्-तत्व। क्या वे ही थे? उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। "क्या... क्या वे अकादमी के हमलावर हो सकते हैं?" उसने हिचकिचाते हुए पूछा।


    समीर ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "मैं निश्चित रूप से नहीं कह सकता। लेकिन जो भी हैं, वे हमें चाहते हैं।"


    भैरवी ने अपने होठों को दबाया। "तो हमें क्या करना चाहिए?"


    "हमें तुरंत यहाँ से निकलना होगा," समीर ने कहा। "इससे पहले कि सुबह हो और वे हमें खोज लें। वे इतने चुपचाप चल रहे थे कि उन्हें शायद अभी हमारी उपस्थिति का पता नहीं चला है।"


    रिया ने अपने हथियार वाले बेल्ट को कस लिया। "लेकिन हम किधर जाएँगे? अगर वे हमारे पीछे हैं, तो भागना कितना सुरक्षित होगा?"


    "अभी भागना ही सबसे अच्छा विकल्प है," समीर ने तर्क दिया। "हमें उन्हें धोखा देना होगा। हम मुख्य रास्ते से नहीं जाएँगे। गाँव के पीछे से कोई दूसरा रास्ता ढूंढना होगा।"


    "यह रास्ता हम नहीं जानते," भैरवी ने कहा। "और रात में..."


    "मेरे पास एक नक्शा है," आरव ने याद दिलाया। "गुरु वशिष्ठ ने आपातकाल के लिए एक गुप्त रास्ता चिह्नित किया था।" उसने अपनी थैली से मुड़ा हुआ नक्शा निकाला।


    समीर ने नक्शे को ध्यान से देखा। "यह एक अच्छा विचार है। यह रास्ता हमें मुख्य सड़क से दूर ले जाएगा और सीधे जलधि की ओर नहीं जाएगा, लेकिन हम उनसे बच सकते हैं।"


    "तो फिर क्या इंतज़ार है?" रिया ने गुस्से में कहा। "चलो चलते हैं। मुझे यह सब छिप-छिपाकर चलना बिलकुल पसंद नहीं है।"


    वे चुपचाप अपने बिस्तर से उठे, अपने सामान को समेटा। कमरे से बाहर निकलते समय, उन्होंने बूढ़े दुकानदार को जगाया और कहा कि उन्हें आपातकाल में जल्दी निकलना पड़ रहा है, और किराए का भुगतान कर दिया। बूढ़ा आदमी अभी भी नींद में था और उसने ज़्यादा सवाल नहीं पूछे।


    वे गाँव के पिछले हिस्से से गुज़रे, जहाँ खेत थे। खेतों की पगडंडियाँ अँधेरे में मुश्किल से दिखाई दे रही थीं। आरव ने नक्शे को पकड़ रखा था, और समीर अपने वायु तत्व की हल्की-फुल्की मदद से हवा के प्रवाह को समझ रहा था, जिससे उन्हें रास्ते में आसानी हो रही थी। भैरवी अपनी मिट्टी-संवेदनशीलता का उपयोग करके ज़मीन की बनावट और आगे के रास्तों का अनुमान लगा रही थी। रिया, अपने अग्नि स्वभाव के विपरीत, पूरी तरह चुप थी, उसकी आँखें चारों ओर सतर्कता से घूम रही थीं।


    वे घंटों तक चलते रहे, सुबह की हल्की रोशनी अब धीरे-धीरे फैल रही थी। पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत किसी में नहीं थी, लेकिन हर कोई जानता था कि उनके पीछा करने वाले अभी भी वहीं हो सकते हैं। समीर बार-बार हवा के प्रवाह को महसूस करता, यह समझने की कोशिश करता कि क्या कोई उन्हें फॉलो कर रहा है।


    "मुझे कुछ महसूस हो रहा है," भैरवी ने अचानक कहा, उसके माथे पर शिकन पड़ गई थी। उसने ज़मीन पर अपना हाथ रखा, अपनी आँखों को बंद कर लिया। "पीछे से... कंपन आ रहा है। वे अभी भी हमारे पीछे हैं।"


    रिया ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "तो हम कितनी देर तक भागते रहेंगे?" उसकी आवाज़ में निराशा थी। "यह तो पागलपन है।"


    "सही कह रही हो, रिया," समीर ने सहमति व्यक्त की। "हम उन्हें हमेशा के लिए धोखा नहीं दे सकते। यह खुला इलाका है, और वे तेज़ हो सकते हैं।"


    "उनकी संख्या कितनी है, भैरवी?" आरव ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी दृढ़ता थी। उसने अपने अंदर की बेचैनी को दबाने की कोशिश की।


    भैरवी ने अपनी आँखें खोलीं। "इस बार... सात हैं। उनके कदम हल्के हैं, लेकिन उनके कवच और हथियारों का भारीपन मुझे महसूस हो रहा है।"


    "सात?" रिया ने आँखें बड़ी कीं। "ये तो डाकुओं से भी ज़्यादा हैं। और सैनिक हैं, तुमने कहा।"


    समीर ने अपना चेहरा पोंछा। "सात सशस्त्र सैनिक। यह मुश्किल होगा। हम चार हैं, और हमें अपनी शक्तियों का उपयोग भी नहीं करना है।"


    आरव ने चारों ओर देखा। वे अब एक खुले मैदान में थे, जिसके एक तरफ छोटी पहाड़ियाँ और दूसरी तरफ जंगल शुरू हो रहा था। "अगर हम लगातार भागते रहेंगे, तो वे हमें थका देंगे और फिर घेर लेंगे," आरव ने धीमी आवाज़ में कहा। "हमें उन्हें उलझाना होगा।"


    "उलझाना?" रिया ने पूछा। "क्या मतलब?"


    "हमें उन्हें सीधे तौर पर लड़ना नहीं है, बल्कि उन्हें भ्रमित करना है," आरव ने कहा। "हमने कल डाकुओं के साथ भी यही किया।"


    समीर ने आरव की ओर देखा। उसकी आँखों में एक पल के लिए प्रशंसा की चमक आई। "तुम सही हो, आरव। अगर वे सैनिक हैं, तो वे व्यवस्थित रूप से हमला करेंगे। हम उनकी उम्मीदों को तोड़ सकते हैं।"


    भैरवी ने समीर की ओर देखा। "तो क्या हम जाल बिछाने की सोच रहे हैं?"


    समीर ने सिर हिलाया। "हाँ। लेकिन कहाँ? हमें ऐसी जगह चाहिए जहाँ हम उन्हें फँसा सकें और फिर सुरक्षित निकल सकें।"


    रिया ने एक गहरी साँस ली। उसकी आँखों में एक नई चमक थी। यह एक चुनौती थी, और वह चुनौतियों को पसंद करती थी। "मेरे पास एक विचार है," उसने कहा, उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आई। "मुझे लगता है कि मैंने एक अच्छी जगह देखी है।"


    उसने दूर सामने की ओर इशारा किया। "देखो, वहाँ सामने एक संकरी घाटी है। वह दो पहाड़ियों के बीच एक पतला सा रास्ता है। अगर हम उन्हें वहाँ तक खींच लें..."


    समीर ने तुरंत रिया के सुझाव पर विचार किया। "एक संकरी घाटी... यह सही जगह हो सकती है। वे एक साथ हमला नहीं कर पाएँगे, और उनके numbers का फायदा कम हो जाएगा।"


    "और हम उन्हें वहाँ से निकलने का रास्ता भी बंद कर सकते हैं," भैरवी ने कहा, उसकी आँखों में चमक आ गई। "हम ऊपर से चट्टानें गिरा सकते हैं, या रास्ता अवरुद्ध कर सकते हैं।"


    "बस यही चाहिए," रिया ने कहा, उसके चेहरे पर दृढ़ संकल्प था। "हम उन्हें वहाँ फँसाएँगे और उनसे जानकारी निकालेंगे कि वे कौन हैं और हमें क्यों ढूंढ रहे हैं। फिर हम उन्हें बांधकर निकल लेंगे।"


    आरव ने घाटी की ओर देखा। यह एक खतरनाक योजना थी, लेकिन उनके पास कोई और विकल्प नहीं था। भागने से बेहतर था कि वे उनका सामना करें, अपनी शर्तों पर। "यह जोखिम भरा होगा," उसने कहा। "हमें बहुत सावधानी से काम करना होगा।"


    "सावधानी तो बरतनी होगी," समीर ने सहमति व्यक्त की। "लेकिन रिया का विचार अच्छा है। हमें उन्हें अपने जाल में खींचना होगा।"


    उन्होंने घाटी की ओर बढ़ना शुरू किया। सूरज अब पूरी तरह निकल चुका था, और दिन की गर्मी बढ़ने लगी थी। पीछे से, ज़मीन में कंपन और हवा में परछाइयों की आहट तेज होती जा रही थी। वे जानते थे कि उनके पास ज़्यादा समय नहीं था। उन्हें जाल जल्दी और कुशलता से बिछाना होगा। वे घाटी के मुहाने पर पहुँचे, और समीर ने अपनी वायु-शक्ति का उपयोग करके घाटी के नक्शे को अपने दिमाग में बनाया। रिया ने चारों ओर देखा, उसकी आँखों में एक खतरनाक चमक थी, जैसे वह शिकार पर जाने को तैयार हो। भैरवी ने ज़मीन की बनावट को महसूस करना शुरू किया, और आरव ने अपने दिमाग में संभावित योजनाएँ बनाना शुरू किया। उनकी अगली चाल, उनका अगला कदम, अब इस घाटी में तय होना था।

  • 8. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 8

    Words: 17

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 8
    पहाड़ियों के बीच की संकरी घाटी का मुहाना उनके सामने था। सुबह की धूप अब तेज हो चुकी थी, लेकिन यहाँ, दो ऊँची चट्टानों के बीच, अभी भी एक हल्की ठंडी हवा बह रही थी। घाटी का रास्ता लगभग दस फीट चौड़ा था, और दोनों ओर की दीवारें ऊँची, खुरदुरी चट्टानों से बनी थीं। यह जगह सचमुच जाल बिछाने के लिए एकदम सही थी।

    "ठीक है," समीर ने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी नज़रें घाटी के अंदर और बाहर दोनों ओर घूम रही थीं। "रिया, तुम और भैरवी यहाँ, ऊपर की तरफ जाओ। वहाँ कुछ ढीली चट्टानें हैं। ज़रूरत पड़ने पर उन्हें नीचे गिरा देना। बस ध्यान रहे, वे हमारे ऊपर न गिरें।"

    रिया ने अपनी गर्दन ऊपर उठाई, ऊपर की चट्टानों की ओर देखा। "ठीक है। मैं देख लेती हूँ।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उत्तेजना थी। उसे लड़ाई पसंद थी, भले ही वह चुपचाप हो।

    भैरवी ने चट्टानों पर नज़र डाली, अपनी भू-संवेदनशीलता का उपयोग करते हुए। "ये चट्टानें बहुत पुरानी हैं। इन्हें थोड़ा सा धकेलने से भी काम हो जाएगा।" वह समीर की बात पर सहमत थी।

    आरव ने अपनी आँखें सिकोड़ीं, घाटी के अंदरूनी हिस्से का अनुमान लगा रहा था। "और समीर, तुम... तुम बीच में रहोगे। हवा का इस्तेमाल करके उनकी चालों को भ्रमित कर सकते हो।"

    समीर ने सिर हिलाया। "हाँ। और मैं कोशिश करूँगा कि उनका ध्यान तुम्हारे ऊपर से हटा सकूँ।"

    "और मैं?" आरव ने पूछा।

    "तुम," रिया ने आरव को देखा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। "तुम पीछे रहोगे। तुम्हारा काम है उनका ध्यान भटकाना। और अगर हमें मदद की ज़रूरत हुई, तो तुम अपनी उस 'अप्रत्याशित मूर्खता' का इस्तेमाल करना।" उसने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, लेकिन उसकी बात में अब पहले जैसी चिड़चिड़ाहट नहीं थी।

    आरव ने हल्का सा मुस्कुराया। उसे पता था कि रिया उसे अब पहले से थोड़ा ज़्यादा स्वीकार करने लगी थी। "ठीक है," उसने कहा। "मैं उनकी अगली चाल का अनुमान लगाने की कोशिश करूँगा।"

    वे सब अपने-अपने स्थानों पर जाने लगे। भैरवी और रिया चट्टान की दीवारों पर चढ़ने लगीं, उनकी गति बहुत तेज थी, जैसे वे हवा में उड़ रही हों। भैरवी ने अपनी मजबूत पकड़ से खुद को ऊपर खींचा, और रिया अपनी अग्नि-शक्ति को दबाकर भी असाधारण रूप से फुर्तीली थी। वे ऊपर एक छिपी हुई जगह पर पहुँच गईं, जहाँ से घाटी का पूरा रास्ता दिखाई दे रहा था।

    समीर ने घाटी के बीच में एक पेड़ के पीछे छिपकर जगह बनाई। उसने अपनी वायु-शक्ति का उपयोग करके घाटी में हवा के प्रवाह का अध्ययन करना शुरू किया। वह जानता था कि वह छोटी-छोटी हवा की तरंगों से ध्वनि को विकृत कर सकता है, या उनकी सुनवाई को भ्रमित कर सकता है।

    आरव, सबसे पीछे, एक बड़ी चट्टान के पीछे छिपा हुआ था। उसने अपने शरीर को समेटा, अपनी साँसें धीमी कीं। उसे अपने दिल की धड़कन साफ सुनाई दे रही थी। वह जानता था कि ये डाकू नहीं थे। ये प्रशिक्षित सैनिक थे, और वे खतरनाक हो सकते थे।

    एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। केवल हवा की सरसराहट और दूर से आती चिड़ियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।

    फिर, भैरवी ने ऊपर से फुसफुसाया, "वे आ रहे हैं। मैं ज़मीन में कंपन महसूस कर सकती हूँ। सात लोग। उनकी गति बहुत तेज़ है।"

    समीर ने एक गहरी साँस ली। "तैयार हो जाओ।"

    कुछ ही पलों में, घाटी के मुहाने पर सात आकृतियाँ दिखाई दीं। वे काले, हल्के कवच पहने हुए थे, और उनके चेहरे नकाबों से ढके थे, जैसे अकादमी पर हमला करने वाले निर्-तत्वों के थे। उनके हाथों में नुकीले खंजर और तलवारें थीं। उनकी चाल शांत और सटीक थी, जैसे प्रशिक्षित शिकारी हों।

    एक पल के लिए, उनमें से एक रुका, अपनी आँखें सिकोड़कर चारों ओर देखा। ऐसा लग रहा था कि वह कुछ महसूस कर रहा था।

    "वे रुक गए हैं!" समीर ने नीचे से फुसफुसाया। "वे सावधान हैं।"

    रिया ने ऊपर से हल्की सी आवाज़ में कहा, "शायद उन्हें एहसास हो गया है कि यहाँ कुछ गड़बड़ है।"

    आरव ने देखा कि वे सातों सैनिक एक सीधी लाइन में आगे बढ़ रहे थे, उनकी आँखें हर छोटी सी चीज़ पर थीं। उन्हें ऐसे चुपके से हमला करने की ट्रेनिंग मिली थी। आरव के दिमाग में एक विचार आया।

    "समीर!" आरव ने फुसफुसाते हुए कहा। "घाटी के बीच में एक छोटा सा वायु-भंवर बनाओ! ऐसा कि जैसे कोई जानवर वहाँ से अभी-अभी भागा हो।"

    समीर को आरव का मतलब समझ में आ गया। उसने तुरंत अपनी वायु-शक्ति का उपयोग किया। घाटी के बीच में, जहाँ समीर छुपा था, एक हल्की सी धूल का भंवर उठा और फिर तुरंत गायब हो गया, जैसे कोई छोटा जानवर तेज़ी से भागा हो।

    सैनिकों का नेता वहीं रुक गया। उसने ध्यान से उस जगह को देखा जहाँ धूल उड़ी थी। उसने अपने साथियों को रुकने का इशारा किया।

    "उन्हें लगा कि कोई जानवर भागा है," आरव ने मुस्कुराते हुए कहा। "वे अब आश्वस्त हो गए हैं।"

    नेता ने आगे बढ़ने का इशारा किया, लेकिन इस बार वे और भी सतर्क थे। वे धीरे-धीरे घाटी में आगे बढ़ने लगे। जब वे लगभग बीच में पहुँचे, तो आरव ने अपने स्थान से एक पत्थर को खिसकाया, जिससे एक हल्की सी आवाज़ हुई।

    सैनिकों ने तुरंत उस दिशा में देखा। "वहाँ कौन है!" नेता ने चिल्लाया, उसकी आवाज़ मोटी और सख्त थी।

    और तभी, रिया ऊपर से कूद पड़ी! वह एक बिजली की तरह नीचे आई, और उसने अपने एक पैर से सबसे पीछे वाले सैनिक के सिर पर निशाना साधा। सैनिक अनियंत्रित होकर ज़मीन पर गिर पड़ा। उसकी हेलमेट उछलकर दूर जा गिरा।

    "चलो!" रिया ने ज़ोर से चिल्लाया।

    समीर पेड़ के पीछे से निकला, उसकी गति हवा के साथ घुलमिल गई थी। वह एक पल में एक सैनिक के पास पहुँचा, और अपनी तेज़ी से उसके हाथ से तलवार छीन ली। तलवार हवा में घूमती हुई दूर जा गिरी।

    भैरवी ऊपर से उतरी, उसके कदम इतने मजबूत थे कि ज़मीन में हल्की सी कंपन हुई। उसने तुरंत एक सैनिक को अपनी बाहों में जकड़ लिया, उसकी ताकत इतनी ज़्यादा थी कि सैनिक चीख उठा।

    आरव भी अपनी चट्टान के पीछे से निकला। उसने एक छोटे पत्थर को उठाकर दूसरे सैनिक के कंधे पर मारा, जिससे उसका ध्यान भटक गया।

    यह एक तीव्र, छोटी लड़ाई थी। सैनिकों को उम्मीद नहीं थी कि उन्हें इतने छोटे दल से इतनी तेज़ी से और व्यवस्थित हमले का सामना करना पड़ेगा। वे प्रशिक्षित थे, लेकिन उनकी संख्यात्मक श्रेष्ठता का फायदा नहीं उठा पा रहे थे क्योंकि वे घाटी में फँसे हुए थे।

    रिया अपनी फुर्ती का इस्तेमाल कर रही थी। वह सैनिकों के हमलों से बचती, और फिर उनके कमजोर बिंदुओं पर हमला करती। वह अपनी आग का उपयोग नहीं कर रही थी, लेकिन उसकी हर हरकत में अग्नि-गणराज्य की ताकत झलक रही थी। उसने एक सैनिक को एक जोरदार मुक्का मारा, जिससे वह दीवार से जा टकराया।

    समीर हवा में घूमता, कभी एक सैनिक के पीछे आता, तो कभी दूसरे के सामने। वह उनकी तलवारों को हवा के हल्के झोंकों से मोड़ देता, या उनके कदमों को हवा से भ्रमित कर देता। वह एक सैनिक को उलझा रहा था, जिससे वह अपने ही साथियों से टकरा रहा था।

    भैरवी अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रही थी। उसने एक सैनिक को ज़मीन पर गिराया और उसकी पीठ पर घुटने टेक दिए। दूसरे सैनिक ने उस पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन भैरवी ने एक बड़ी चट्टान को ज़मीन से उठाकर उसके रास्ते में डाल दिया।

    आरव भी खाली नहीं बैठा था। वह लगातार आवाज़ें करता, पत्थर फेंकता, और सैनिकों का ध्यान भटकाता। एक बार तो उसने एक सैनिक की ओर भागा और फिर अचानक पीछे हट गया, जिससे सैनिक संतुलन खो बैठा और समीर ने उसे आसानी से पकड़ लिया।

    कुछ ही मिनटों में, लड़ाई ख़त्म हो गई। सातों सैनिक अब ज़मीन पर पड़े थे, उनके हथियार बिखरे हुए थे, और उनके चेहरे पर चोट के निशान थे। उन्हें बाँधने के लिए उनके ही बेल्ट का इस्तेमाल किया गया।

    "इन्हें देखो," रिया ने एक सैनिक का नकाब हटाया। "यह तो अग्नि गणराज्य का शाही चिह्न है।" नकाब के नीचे एक सैनिक का चेहरा था, जिसकी वर्दी पर अग्नि गणराज्य का प्रतीक बना हुआ था।

    समीर ने दूसरे सैनिक का नकाब हटाया। "तुम लोग कौन हो और हमें क्यों पीछा कर रहे हो?" उसकी आवाज़ में गुस्सा था।

    सैनिक ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में कोई डर नहीं था। वह कुछ नहीं बोला।

    भैरवी ने एक सैनिक को उठाया। "सच बताओ! किसने भेजा है तुम्हें? सम्राट विक्रम ने?"

    सैनिक ने केवल एक अजीब सी, शुष्क हँसी हँसी। वह अपना मुँह बंद रखे हुए था।

    "बात करो!" रिया ने गुस्से में कहा। उसने अपने हाथ में एक छोटी सी अग्नि-ज्योति बनाई, उसकी आँखों में खतरा साफ दिख रहा था। "या मैं तुम्हें सचमुच जला दूँगी।"

    जैसे ही रिया ने अपनी शक्ति का थोड़ा सा प्रदर्शन किया, सैनिक की आँखों में एक पल के लिए घबराहट आई। लेकिन फिर, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आई, जैसे उसने कोई फैसला कर लिया हो।

    अचानक, सैनिक के शरीर में एक अजीब सी ऐंठन हुई। उसके मुँह से झाग निकलने लगा। वह गिर पड़ा, और उसकी साँसें तेज़ी से रुकने लगीं। एक पल में, वह शांत हो गया।

    "यह क्या हुआ?" आरव ने चौंककर कहा।

    समीर ने तुरंत दूसरे सैनिक के पास जाकर उसके मुँह को खोलने की कोशिश की। "उन्होंने ज़हर खा लिया है!" उसने गुस्से में कहा। "इनकी जुबान में ज़हर की गोलियाँ छिपाई गई थीं।"

    एक के बाद एक, सभी सैनिक अजीब सी ऐंठन के साथ ज़मीन पर गिरते गए, उनके मुँह से झाग निकल रहा था। वे सब, एक साथ, पलक झपकते ही मर गए।

    टीम ने एक-दूसरे की ओर देखा, उनके चेहरे पर सदमा और निराशा थी। उनके सारे प्रयास व्यर्थ हो गए थे। उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली।

    रिया ने गुस्से में अपना हाथ ज़मीन पर पटका। "यह क्या बकवास है! वे मरने को तैयार थे, लेकिन कुछ बताने को नहीं!"

    समीर ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "यह वही तकनीक है जो निर्-तत्व इस्तेमाल करते हैं। आत्मघाती जहर। वे किसी भी कीमत पर जानकारी बाहर नहीं आने देना चाहते।"

    भैरवी ने मृत सैनिकों की ओर देखा, उसके चेहरे पर दुख और चिंता थी। "इसका मतलब है कि यह कोई साधारण मामला नहीं है। यह बहुत बड़ा षड्यंत्र है।"

    आरव ने जमीन पर पड़े खंजर को देखा, जिस पर अग्नि गणराज्य का शाही चिह्न था। फिर उसने मृत सैनिकों की ओर देखा। उसकी आँखों में एक अजीब सा खालीपन था। यह सब उसकी उम्मीद से कहीं ज़्यादा खतरनाक था। वे अब और भी ज़्यादा मुश्किल में थे। उन्हें अब अंदाज़ा हो गया था कि उनका सामना किससे था। अब उन्हें और भी खतरनाक रास्ते अपनाने होंगे, क्योंकि यह स्पष्ट था कि मुख्य रास्ते उनके लिए सुरक्षित नहीं थे।

  • 9. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 9

    Words: 6

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 9
    सैनिकों के शव घाटी की पथरीली ज़मीन पर बेजान पड़े थे। ज़हर ने अपना काम इतनी तेज़ी से किया था कि टीम को कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला। हवा में एक अजीब सी खामोशी छा गई थी, जो अब तक की लड़ाई के शोर से कहीं ज़्यादा डरावनी लग रही थी।

    रिया ने गुस्से से ज़मीन पर थूक दिया। "कमबख्त! बात करने के बजाय मरना पसंद किया! यह साफ़ ज़ाहिर करता है कि ये लोग कितने खतरनाक हैं।" उसकी आवाज़ में गुस्सा और निराशा साफ झलक रही थी।

    समीर ने एक गहरी साँस ली, अपने माथे पर हाथ फेरा। "इसका मतलब है कि सम्राट विक्रम ने अपने जासूसों को इस तरह से प्रशिक्षित किया है कि वे पकड़े जाने पर कोई भी जानकारी बाहर न आने दें। यह कोई मामूली खेल नहीं है, रिया। यह एक बहुत बड़ा और सुनियोजित षड्यंत्र है।"

    भैरवी ने एक मृत सैनिक की वर्दी पर बने अग्नि गणराज्य के चिह्न को छुआ। "अग्नि गणराज्य के सैनिक। सम्राट विक्रम ने हमें ढूंढने के लिए इतनी दूर तक अपने लोगों को भेजा है। और अगर वे हमें यहाँ तक ट्रैक कर सकते हैं, तो मुख्य रास्ते अब हमारे लिए बिल्कुल सुरक्षित नहीं हैं।"

    आरव ने चुप्पी तोड़ी। "वह सही कह रही है। अगर हमने मुख्य रास्ते से यात्रा जारी रखी, तो वे हमें फिर से ढूंढ लेंगे। और अगली बार, शायद हम इतने भाग्यशाली न हों।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी गंभीरता थी, जैसे उसने अचानक कई पुरानी और भयानक सच्चाइयों को समझ लिया हो।

    रिया ने चारों ओर देखा। "तो क्या करें? कहाँ जाएँ? जलधि पहुँचने के लिए केवल वही एक रास्ता है, जिसे हमने अब तक लिया है।"

    समीर ने अपने नक्शे को फिर से निकाला। उसकी उंगलियाँ नक्शे पर घूमने लगीं, वह विभिन्न रास्तों पर विचार कर रहा था। "एक और रास्ता है," उसने धीमी आवाज़ में कहा। "लेकिन वह बहुत खतरनाक है। बहुत कम लोग उसका इस्तेमाल करते हैं।"

    आरव ने तुरंत पूछा, "कौन सा रास्ता?"

    समीर ने नक्शे पर एक गहरे हरे रंग का निशान दिखाया, जो एक विशाल, घने जंगल से होकर गुज़र रहा था। "यह 'विस्मृत वन' है। यह रास्ता जलधि के तट तक पहुँचने का सबसे छोटा रास्ता है, लेकिन इसमें कई खतरे हैं। जंगली जानवर, जहरीले पौधे, और कहा जाता है कि कुछ अजीबोगरीब तात्विक-आत्माएँ भी यहाँ रहती हैं।"

    भैरवी का चेहरा थोड़ा पीला पड़ गया। "विस्मृत वन? मैंने उसके बारे में सुना है। लोग कहते हैं कि जो एक बार उसमें घुसता है, वह कभी वापस नहीं आता।" उसकी आवाज़ में डर साफ था।

    "यह सबसे तेज़ रास्ता भी है," रिया ने तर्क दिया, हालांकि उसकी आँखों में भी थोड़ी हिचकिचाहट थी। "अगर हम मुख्य सड़क से जाते हैं, तो हम आसानी से पकड़े जा सकते हैं। कम से कम जंगल में हमें छिपने के लिए जगह तो मिलेगी।"

    "लेकिन वहाँ का रास्ता कैसा है? क्या हमें जलधि तक पहुँचने में बहुत समय लगेगा?" आरव ने पूछा।

    समीर ने सिर हिलाया। "यह मुख्य रास्ते से लगभग आधा समय बचा सकता है, अगर हम इसे सुरक्षित रूप से पार कर सकें। लेकिन रास्ते में कोई गाँव नहीं होगा, कोई आबादी नहीं। हमें हर चीज़ का इंतज़ाम खुद करना होगा।"

    "और हम अपनी शक्तियों का उपयोग भी नहीं कर सकते," भैरवी ने याद दिलाया। "जंगल में, यह और भी मुश्किल होगा।"

    "हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है," आरव ने दृढ़ता से कहा। "अगर सम्राट विक्रम इतना दृढ़ है कि वह अपने सैनिकों को जान लेने का आदेश देता है, तो वह हमें हर कीमत पर रोकेगा। हमें जोखिम लेना होगा।"

    रिया ने आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में थोड़ा सम्मान था। "वह सही कह रहा है। हम डरकर भाग नहीं सकते। हमें इस जंगल से गुज़रना होगा।"

    समीर ने नक्शे को मोड़कर अपनी थैली में रखा। "ठीक है, तो विस्मृत वन। लेकिन हमें तैयारी करनी होगी। हमें खाना, पानी और कोई भी चीज़ जिसकी हमें ज़रूरत पड़ सकती है, सब इकट्ठा करना होगा।"

    "यहाँ पास में कोई नदी है?" भैरवी ने पूछा। "हमें ताज़ा पानी चाहिए होगा।"

    "हाँ," समीर ने सिर हिलाया। "गाँव से थोड़ी दूरी पर एक छोटी नदी है। हम वहाँ से पानी भर सकते हैं। और कुछ खाने का सामान भी जुटाना होगा।"

    उन्होंने तय किया कि वे अपने मृत पीछा करने वालों के कपड़ों को मिट्टी और पत्थरों से ढक देंगे ताकि वे जल्दी से दिखाई न दें। फिर वे घाटी से बाहर निकले और गाँव की ओर वापस मुड़े, लेकिन गाँव में प्रवेश करने के बजाय, उन्होंने उसके बाहरी किनारे से होते हुए नदी की ओर बढ़ने का फैसला किया।

    नदी के किनारे पहुँचकर, उन्होंने अपनी-अपनी बोतलों और मटकों में पानी भरा। समीर ने अपनी वायु-शक्ति का उपयोग करके हवा से पानी को साफ किया, ताकि वे सुरक्षित पानी पी सकें। भैरवी ने आसपास के क्षेत्र को स्कैन किया, यह देखने के लिए कि क्या वहाँ कोई खाने योग्य फल या जड़ें हैं। उसे कुछ जंगली जामुन और एक प्रकार की कंद मिली जो खाने योग्य थी।

    रिया ने अपने खंजर से कुछ झाड़ियों को काटा और उनके रेशों से अस्थायी रस्सियाँ बनाने की कोशिश की, जो ज़रूरत पड़ने पर काम आ सकें। आरव ने अपनी थैली में जो कुछ बचा था, उसे देखा, कुछ सूखे मेवे और एक सूखी रोटी का टुकड़ा। उसे पता था कि यह पर्याप्त नहीं होगा।

    "हमें सतर्क रहना होगा," आरव ने कहा, जब वे वापस जंगल के मुहाने की ओर जा रहे थे। "जंगल में हर कदम पर खतरा हो सकता है।"

    जैसे ही वे विस्मृत वन के घने प्रवेश द्वार के पास पहुँचे, आरव को एक अजीब सी ऊर्जा महसूस हुई। यह कोई तात्विक ऊर्जा नहीं थी, बल्कि कुछ और ही थी। यह शून्य जैसी थी, लेकिन इतनी शक्तिशाली कि उसकी रूह तक कांप उठी। यह एक भयानक और डरावनी शांति थी, जैसे जंगल साँस ले रहा हो, और उसकी साँसों में एक प्राचीन रहस्य छिपा हो। उसे लगा जैसे जंगल की हर पत्ती, हर टहनी, उसे देख रही है।

    उसने अपनी आँखें बंद कीं और उस ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की। यह एक अदृश्य भार था, जो हवा में लटका हुआ था। यह उसकी अपनी शक्ति की प्रतिध्वनि नहीं थी, बल्कि कुछ ऐसा था जो उसकी शक्ति के ठीक विपरीत था, या शायद उसका ही एक विकृत रूप था।

    "आरव, क्या हुआ?" भैरवी ने देखा कि आरव अचानक रुक गया है, और उसका चेहरा थोड़ा पीला पड़ गया है।

    आरव ने अपनी आँखें खोलीं। "कुछ नहीं... बस... इस जंगल में कुछ अजीब सा है। एक अजीब सी ऊर्जा। जैसे यह जगह खुद ही जीवित हो और हमें महसूस कर रही हो।"

    रिया ने अपने कंधे उचकाए। "हाँ, हाँ। जंगल हमेशा से ही अजीब होते हैं। बस अपनी आँखें खुली रखना।"

    समीर ने आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में एक पल के लिए चिंता दिखी। वह आरव की अजीब सी संवेदनशीलता को जानता था। "यह जंगल पुराना और रहस्यमयी है। हमें अपनी इंद्रियों का पूरा इस्तेमाल करना होगा।"

    वे सब विस्मृत वन के मुहाने पर खड़े थे। सूरज की किरणें अब मुश्किल से घने पत्तों के बीच से नीचे आ पा रही थीं। अंदर से एक अजीब सी नमी और मिट्टी की गंध आ रही थी। यह एक भूलभुलैया जैसा लग रहा था, जहाँ हर मोड़ पर एक नया खतरा इंतज़ार कर रहा था। उन्हें पता था कि एक बार अंदर जाने के बाद, बाहर निकलने का रास्ता इतना आसान नहीं होगा। यह एक ऐसी यात्रा थी जो उन्हें और भी करीब लाएगी, या उन्हें हमेशा के लिए अलग कर देगी। वे एक गहरे और अज्ञात खतरे की ओर बढ़ रहे थे।

  • 10. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 10

    Words: 42

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 10
    विस्मृत वन का प्रवेश द्वार किसी विशाल, हरे-भरे मुँह की तरह लग रहा था, जो उन्हें अंदर निगलने को तैयार था। पत्तों की घनी छतरी इतनी गहरी थी कि सूरज की किरणें भी मुश्किल से ज़मीन तक पहुँच पा रही थीं, जिससे अंदर एक अजीब सी, हल्की-फुल्की रोशनी बनी हुई थी। हवा में मिट्टी, गीली पत्तियों और कुछ अनजानी, तीखी वनस्पतियों की गंध घुली हुई थी।

    आरव ने एक गहरी साँस ली। वह ऊर्जा, जो उसे बाहर महसूस हुई थी, अब और भी स्पष्ट थी। यह कोई भौतिक चीज़ नहीं थी, बल्कि एक एहसास था – एक अजीब सी शांति, जो किसी तूफान से पहले की खामोशी जैसी थी। उसकी रूह तक सिहर उठी।

    "यह जंगल... बहुत अजीब है," उसने फुसफुसाते हुए कहा।

    "हाँ," समीर ने उसके बगल में चलते हुए कहा, उसकी आँखें हर दिशा में घूम रही थीं। उसकी वायु-इंद्रियाँ हवा में तैरते हर छोटे कण को महसूस कर रही थीं। "शांत, लेकिन खतरनाक। हमें बहुत सावधान रहना होगा।"

    भैरवी आगे चल रही थी, उसके पैर ज़मीन को धीरे से छू रहे थे, जैसे वह मिट्टी से बात कर रही हो। उसकी भू-संवेदनशीलता उसे रास्ते में आने वाली हर छोटी-बड़ी चीज़ के बारे में बता रही थी। "ज़मीन में कुछ अनजाना सा कंपन है। यह सामान्य नहीं है।" उसने अपनी आवाज़ में हल्की चिंता के साथ कहा।

    रिया उनके पीछे-पीछे चल रही थी, उसकी आँखें हर छाया में छिपे खतरे को तलाश रही थीं। "बस ज़हर न हो। मुझे ज़हरीले पौधे और कीड़े-मकोड़े बिल्कुल पसंद नहीं।" वह हल्की सी मुँह बनाकर बोली।

    जैसे ही वे जंगल में और अंदर घुसे, रास्ता और भी संकरा होता गया। घनी बेलें और झाड़ियाँ हर तरफ से उन्हें घेर रही थीं। पेड़ों की जड़ें ज़मीन के ऊपर साँप की तरह फैल रही थीं, जिससे चलना और भी मुश्किल हो रहा था।

    "यहाँ देखो," भैरवी अचानक रुक गई। उसने एक चमकदार, लाल रंग के मशरूम की ओर इशारा किया। "यह 'मूर्च्छा मशरूम' है। इसकी गंध से ही कोई भी कुछ घंटों के लिए बेहोश हो सकता है। इसे बिल्कुल मत छूना।"

    आरव ने मशरूम को ध्यान से देखा। वह कितना खूबसूरत और धोखेबाज़ लग रहा था। "शुक्रिया, भैरवी। मुझे तो यह बिल्कुल सुरक्षित लग रहा था।"

    "यह जंगल ऐसे ही खतरों से भरा है, आरव," समीर ने कहा। "तुम्हें हर कदम पर अपनी इंद्रियों पर भरोसा करना होगा।"

    वे आगे बढ़े। समीर अपनी वायु-शक्ति का उपयोग करके हवा में एक हल्की सी लहर पैदा करता, जिससे कुछ छोटे कीड़े और मकड़ियाँ उनके रास्ते से हट जातीं। रिया अपने खंजर को हाथ में पकड़े हुए थी, रास्ते में आने वाली कुछ घनी बेलों को काटती हुई चल रही थी।

    "लगता है हम सही रास्ते पर हैं," समीर ने कहा। "नक्शा हमें इस दिशा में संकेत दे रहा है।"

    आरव को लगातार वह अजीब सी ऊर्जा महसूस हो रही थी। कभी-कभी वह इतनी तीव्र हो जाती कि उसे सिर में हल्का सा दर्द होने लगता, जैसे उसके दिमाग पर कोई अदृश्य दबाव डाल रहा हो। उसने महसूस किया कि यह ऊर्जा जंगल के अंदर गहरे से आ रही थी।

    "तुम्हें कैसा महसूस हो रहा है, आरव?" भैरवी ने उसकी ओर मुड़कर पूछा, उसकी आवाज़ में हमदर्दी थी। उसने आरव का हाथ थामा, और आरव को तुरंत अपनी ऊर्जा में एक स्थिरता महसूस हुई। भैरवी की पृथ्वी-शक्ति उसे सहारा दे रही थी।

    "मैं ठीक हूँ," आरव ने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में थोड़ी झिझक थी। "बस... मुझे लगता है कि यह जंगल कुछ छुपा रहा है। कुछ बहुत पुराना और शक्तिशाली।"

    रिया ने एक पेड़ की शाखा को अपने रास्ते से हटाते हुए कहा। "तुम्हें हमेशा ही कुछ अनसुना महसूस होता रहता है। बस यह सुनिश्चित करो कि यह हमें मुसीबत में न डाले।" उसकी आवाज़ में हल्की चिड़चिड़ाहट थी, लेकिन अब उसमें पहले जैसी कड़वाहट नहीं थी।

    वे दिन भर चलते रहे। जैसे-जैसे शाम ढलने लगी, जंगल और भी गहरा और डरावना होता गया। पक्षियों की चहचहाहट बंद हो गई थी, और केवल कुछ अजीबोगरीब जानवरों की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं, जो उन्हें डराने के लिए काफी थीं।

    "हमें जल्द ही कहीं रुकना होगा," समीर ने कहा। "रात में यहाँ चलना सुरक्षित नहीं है।"

    भैरवी ने आसपास देखा। "हाँ। मैं एक जगह ढूंढ सकती हूँ जहाँ ज़मीन थोड़ी समतल हो। और हम वहाँ आग भी जला सकते हैं, ताकि जंगली जानवर दूर रहें।"

    वे एक छोटी सी पहाड़ी पर पहुँचे, जहाँ पेड़ों की संख्या थोड़ी कम थी और ज़मीन अपेक्षाकृत समतल थी। भैरवी ने अपनी पृथ्वी-शक्ति का उपयोग करके कुछ ढीली चट्टानों को इकट्ठा किया और एक छोटी सी जगह को साफ किया। समीर ने कुछ सूखी लकड़ी इकट्ठा की, और रिया ने अपने हाथ में एक छोटी सी अग्नि-ज्योति जलाकर आग लगाई। आग की गर्माहट और रोशनी ने तुरंत वातावरण को थोड़ा आरामदायक बना दिया।

    "क्या यह सुरक्षित है?" रिया ने पूछा, उसकी आँखें लगातार जंगल की ओर देख रही थीं।

    "जितना हो सकता है, उतना सुरक्षित है," समीर ने कहा, अपनी तलवार को साफ करते हुए। "आज रात हमें पहरा देना होगा। दो-दो घंटे की बारी।"

    आरव ने अपनी आँखें आग की लपटों पर टिका दीं। उसे वह शून्य ऊर्जा और भी ज़्यादा महसूस हो रही थी। अब यह सिर्फ एक एहसास नहीं था, बल्कि एक ठंडापन था जो हवा में घुला हुआ था। वह अपने दोस्तों को देख रहा था। उन्हें यहाँ लेकर आना उसकी गलती थी। यह सब उसकी वजह से हुआ था।

    भैरवी ने उसे देखा, उसकी आँखों में चिंता थी। उसने आरव के कंधे पर हाथ रखा। "चिंता मत करो, आरव। हम सब साथ हैं। हम इससे भी निकल जाएंगे।"

    आरव ने मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन मुश्किल हुई। "तुम बहुत अच्छी हो, भैरवी।"

    पहला पहरा समीर का था। उसने आग के पास बैठकर अपनी आँखें बंद कर लीं, लेकिन उसकी इंद्रियाँ खुली हुई थीं। रिया उसके बाद थी, फिर भैरवी, और अंत में आरव।

    रात जैसे-जैसे गहरी होती गई, जंगल में और भी अजीब आवाज़ें आने लगीं। पत्तों की सरसराहट, कुछ जानवरों के फुसफुसाने की आवाज़, और दूर से आती एक अजीब सी चीख, जिसने हर किसी को सचेत कर दिया।

    रिया अपने पहरे पर थी। उसकी आँखें जंगल के अंधेरे में घूम रही थीं। उसे कुछ अजीब सा एहसास हुआ। हवा में एक अजीब सी गंध थी, जो पहले नहीं थी। और फिर, उसने एक हल्की सी सरसराहट सुनी, जैसे कोई विशाल चीज़ पत्तियों के ऊपर से रेंग रही हो।

    वह तुरंत अपनी तलवार लेकर खड़ी हो गई। "समीर! जागो! कुछ आ रहा है!" उसने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उत्तेजना थी।

    समीर तुरंत उठ गया, उसकी आँखें तुरंत सतर्क हो गईं। उसने हवा में अपनी इंद्रियों को फैलाया। "हाँ... मैं महसूस कर रहा हूँ। कई। वे ज़मीन के ऊपर चल रहे हैं।"

    भैरवी और आरव भी उठ गए। भैरवी ने अपनी भू-संवेदनशीलता का उपयोग किया। "वे बड़े हैं... बहुत बड़े... और उनकी संख्या भी कम नहीं है।"

    अंधेरे से, पेड़ों के बीच से, कुछ विशालकाय आकृतियाँ प्रकट होने लगीं। वे विशालकाय मकड़ियाँ थीं, जो भेड़ियों के आकार की थीं, उनकी आठ-आठ चमकदार आँखें अंधेरे में चमक रही थीं। उनके शरीर पर घने, काले बाल थे, और उनके पैरों से एक चिपचिपी, हरी चीज़ टपक रही थी। उनकी चाल तेज़ और चुपचाप थी, जैसे वे ज़मीन पर तैर रही हों।

    रिया ने तुरंत अपनी अग्नि-शक्ति पर ध्यान केंद्रित किया। उसके हाथों में आग की लपटें नाचने लगीं। "विशालकाय मकड़ियाँ! मुझे इनसे नफरत है!"

    "उनकी आँखें देखो," आरव ने कहा। "वे हमें घेर रहे हैं।"

    मकड़ियाँ गोलार्ध में फैल गईं, उन्हें पूरी तरह से घेरने लगीं। उनकी सरसराहट की आवाज़ अब और भी तेज़ हो गई थी, और उनकी आँखें शिकार पर टिकी हुई थीं।

    "वे चिपचिपा जाल फेंकती हैं!" भैरवी ने चेतावनी दी। "ध्यान रखना कि तुम उसमें न फँसो!"

    एक मकड़ी ने उन पर हमला किया। वह अपनी पूरी तेज़ी से उनकी ओर लपकी, उसके बड़े फंग्स खुले हुए थे।

    "हट जाओ!" समीर ने चिल्लाया। उसने अपनी वायु-शक्ति से एक तेज़ हवा का झोंका मारा, जिससे मकड़ी एक तरफ गिर गई। लेकिन तुरंत दूसरी मकड़ी ने हमला किया।

    रिया ने बिना सोचे समझे अपनी अग्नि-शक्ति का उपयोग किया। उसने एक विशालकाय अग्नि-ज्वाला मकड़ी की ओर फेंकी। अग्नि-ज्वाला ने मकड़ी को छूते ही उसे जलाना शुरू कर दिया। मकड़ी दर्द से चीखी और पीछे हट गई, उसके शरीर से जलने की गंध आ रही थी।

    "रुको, रिया!" समीर ने कहा। "उन्हें जलाने की ज़रूरत नहीं है! आग उन्हें दूर रखेगी!"

    रिया को उसकी बात समझ में आ गई। उसने अपनी अग्नि-ज्वाला को नियंत्रित किया। अब उसने मकड़ियों पर सीधा हमला करने के बजाय, अपने और मकड़ियों के बीच एक अग्नि-दीवार बनाई। यह एक गरमाती हुई लपटों की दीवार थी, जो मकड़ियों को पास आने से रोक रही थी। मकड़ियाँ उस दीवार के सामने रुकीं, उनकी चमकदार आँखें रिया की ओर थीं, लेकिन वे आग के डर से आगे नहीं बढ़ पा रही थीं।

    "ठीक है!" रिया ने कहा, उसके माथे पर पसीना था, लेकिन उसकी आवाज़ में दृढ़ता थी। "यह उन्हें कुछ देर के लिए रोके रखेगी।"

    लेकिन मकड़ियाँ हटने को तैयार नहीं थीं। वे अग्नि-दीवार के चारों ओर घूमना शुरू कर दीं, एक-दूसरे को धकेलती हुई, कोई कमजोर बिंदु तलाश रही थीं।

    "यहाँ से निकलो!" भैरवी ने चिल्लाया। "वे हमें थका देंगे।"

    समीर ने तुरंत रास्ता तलाशना शुरू किया। उसने अपनी वायु-शक्ति से आसपास के पत्तों और शाखाओं को हटाना शुरू किया, एक नया रास्ता बना रहा था। "इस तरफ! तेज़ी से!"

    आरव ने अपनी आँखें खोलीं। वह जानता था कि उसकी शक्ति का उपयोग करने का यह सही समय नहीं था, लेकिन उसे कुछ करना होगा। उसने अपने आसपास की हवा में उस शून्य ऊर्जा को महसूस करने की कोशिश की। यह अजीब था, जैसे वह ऊर्जा इन मकड़ियों के पास आने से और भी ज़्यादा तीव्र हो गई हो।

    "रिया, तुम अपनी अग्नि-दीवार को छोटा कर सकती हो?" आरव ने पूछा। "हमें एक रास्ता बनाना होगा।"

    "कोशिश करती हूँ," रिया ने अपनी साँस रोकी। उसने अपनी अग्नि-शक्ति को केंद्रित किया, और अग्नि-दीवार धीरे-धीरे सिकुड़ने लगी, जिससे मकड़ियों के लिए उनके पास आने की जगह कम होती जा रही थी। लेकिन साथ ही, उसने एक छोटी सी जगह छोड़ी जहाँ से वे निकल सकें।

    "अब!" समीर ने चिल्लाया।

    वे सब उस छोटी सी जगह से एक के बाद एक भागे, रिया सबसे आखिरी में थी, अपनी अग्नि-दीवार को धीरे-धीरे पीछे खींचती हुई। जैसे ही वे निकले, अग्नि-दीवार पूरी तरह से टूट गई, और मकड़ियाँ उनके पीछे दौड़ने लगीं।

    "तेज़ भागो!" भैरवी ने कहा, उसकी साँसें फूल रही थीं।

    वे जंगल के अंदर और गहरे भागे, मकड़ियों की तेज़ सरसराहट उनके पीछे आ रही थी। रिया ने हर कुछ दूरी पर आग के छोटे-छोटे गोले फेंके, जिससे मकड़ियाँ डरकर पीछे हट जातीं, लेकिन फिर से उनके पीछे आ जातीं।

    आरव ने अपनी पीठ पीछे देखा। मकड़ियाँ बहुत करीब आ रही थीं। वह अपनी शक्ति को महसूस करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वह अभी भी अनियंत्रित थी।

    "मुझे एक और रास्ता मिल गया है!" समीर ने चिल्लाया। "एक छोटा सा नाला! हम उससे पार हो सकते हैं, लेकिन मकड़ियाँ नहीं आ पाएंगी!"

    वे सब नाले की ओर भागे, जो एक गहरी खाई जैसा था। वे एक-एक करके उसमें कूद गए। नाले के दूसरी ओर चढ़ने के लिए उन्हें थोड़ी मेहनत करनी पड़ी, लेकिन वे सफल रहे।

    जैसे ही वे नाले के दूसरी ओर पहुँचे, समीर ने अपनी वायु-शक्ति का उपयोग करके नाले के ऊपर एक छोटा सा वायु-भंवर बनाया, जिससे मकड़ियों को पार करना मुश्किल हो जाए। मकड़ियाँ नाले के किनारे रुक गईं, उनकी आँखें चमक रही थीं, लेकिन वे पार नहीं कर पा रही थीं।

    टीम ने एक-दूसरे की ओर देखा, उनकी साँसें फूल रही थीं और उनके कपड़े मिट्टी और पसीने से सने हुए थे। वे सुरक्षित थे, कम से कम कुछ समय के लिए।

    "वाह!" रिया ने अपने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा। "वह तो कुछ ज़्यादा ही रोमांचक था।"

    "लेकिन हम अभी भी जंगल में हैं," भैरवी ने कहा, उसकी आवाज़ में थकान थी। "और अभी सुबह भी नहीं हुई है।"

    आरव ने जंगल के अंधेरे में देखा। वह अजीब सी ऊर्जा अभी भी वहाँ थी, उसे बुला रही थी। उसे लग रहा था कि यह जंगल सिर्फ खतरनाक जानवरों का घर नहीं है, बल्कि कुछ और भी है। कुछ ऐसा जो बहुत पुराना और बहुत शक्तिशाली है। उन्हें जल्द से जल्द इस जंगल से बाहर निकलना होगा, इससे पहले कि कोई और चीज़ उन्हें अपनी चपेट में ले ले।

  • 11. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 11

    Words: 9

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 11
    नाले को पार करने के बाद, टीम ने एक पल के लिए राहत की साँस ली। मकड़ियाँ अभी भी नाले के किनारे से उन पर गुर्रा रही थीं, उनकी चमकती आँखें गुस्से से लाल थीं, लेकिन वे पार करने की हिम्मत नहीं कर रही थीं।

    "यह कितनी देर तक हमें रोके रखेगा?" आरव ने हाँफते हुए पूछा।

    समीर ने हवा में एक और भंवर बनाया, जिससे नाले के ऊपर की वायु और भी अशांत हो गई। "कुछ घंटों के लिए, शायद। लेकिन हमें यहाँ से निकलना होगा। वे हार मानेंगे नहीं।"

    रिया ने अपनी अग्नि-शक्ति से अपनी तलवार को गर्म किया, और फिर उसे ठंडी हवा में बुझाया, जिससे एक तेज़ 'फिश' की आवाज़ आई। "तो, आगे क्या? और कितनी दूर है यह जंगल?"

    भैरवी ने अपनी भू-इंद्रियों से ज़मीन को महसूस किया। "मुझे नहीं पता। यह जंगल बहुत विशाल है। लेकिन मुझे लगता है कि हम सही दिशा में हैं। बस हमें अपनी गति बनाए रखनी होगी।"

    उन्होंने रात के बाकी घंटे और अगले दिन भी लगातार यात्रा जारी रखी। जंगल की चुनौती केवल विशालकाय मकड़ियाँ या ज़हरीले पौधे नहीं थे। वहाँ हवा में लगातार एक अजीब सी नमी थी, जो कपड़ों को नम रखती थी, और पेड़ों की घनी छतरी इतनी विशाल थी कि सूरज की रोशनी मुश्किल से ही नीचे पहुँच पाती थी। इससे दिशा का ज्ञान रखना और भी मुश्किल हो जाता था।

    आरव को लगातार वह शून्य ऊर्जा महसूस होती रहती थी। कभी-कभी यह इतनी तीव्र हो जाती कि उसके कानों में एक धीमी, गुनगुनाती आवाज़ गूँजने लगती, जैसे कोई बहुत दूर से उसे बुला रहा हो। वह ऊर्जा अजीब थी – न अच्छी, न बुरी, बस खाली और असीम। वह अपनी मुट्ठी भींचता और उसे अनदेखा करने की कोशिश करता।

    "और कितना?" रिया ने एक पेड़ के तने पर झुकते हुए पूछा। उसके चेहरे पर धूल और पसीने की परत जमी थी, और उसके कपड़े जगह-जगह से फटे हुए थे। "मुझे लगता है कि मैं अब और चल नहीं सकती।"

    "बस थोड़ा और," समीर ने कहा, उसकी आवाज़ में भी थकान थी, लेकिन वह अभी भी अपनी गति बनाए हुए था। "नक्शे के अनुसार, हमें अब तट के करीब होना चाहिए।"

    भैरवी ने अपने सिर पर बँधा कपड़ा उतारा और अपने माथे से पसीना पोंछा। "मेरे पैर अब जवाब दे रहे हैं। हमें कुछ देर आराम करना होगा।"

    वे एक बड़े पेड़ के नीचे बैठ गए, उनकी साँसें तेज़ चल रही थीं। उनके पास पानी और भोजन की मात्रा बहुत कम बची थी। कुछ सूखे मेवे और जंगली कंद जो भैरवी ने ढूंढे थे, वे लगभग खत्म हो चुके थे।

    आरव ने अपने थैले में झाँका। एक अकेला सूखा टुकड़ा बचा था। उसने उसे तोड़कर भैरवी, समीर और रिया को दिया। "हमें यह बचाकर रखना चाहिए।"

    "नहीं, आरव," भैरवी ने तुरंत कहा। "तुम्हें इसकी ज़्यादा ज़रूरत है। तुमने अपनी शक्ति का उपयोग नहीं किया, लेकिन तुम भी थके हुए हो।"

    "हम सब थके हुए हैं," रिया ने कहा। "बस इसे खाओ, आरव। हमें तुम्हारी ज़रूरत है।"

    आरव ने अनिच्छा से वह टुकड़ा ले लिया और उसे चबाने लगा। उसकी आँखों में अपराधबोध था। वे सब उसकी वजह से इस मुसीबत में थे। अगर वह सम्राट विक्रम के खिलाफ सबूत खोजने की कोशिश न करता, तो वे अकादमी में सुरक्षित होते।

    अगले दिन, सुबह होते ही, समीर ने उन्हें फिर से चलने के लिए कहा। "मुझे हवा में एक अलग गंध महसूस हो रही है। नमकीन। मुझे लगता है कि हम समुद्र के करीब हैं।"

    उनकी आँखों में तुरंत एक नई उम्मीद की चमक आ गई। उन्होंने अपनी सारी बची हुई ताकत बटोरी और आगे बढ़ना शुरू किया। हर कदम भारी था, लेकिन समुद्र की गंध उन्हें खींच रही थी।

    आरव को उस शून्य ऊर्जा का एहसास कम होता जा रहा था, जैसे-जैसे वे जंगल से बाहर निकल रहे थे। यह कुछ राहत देने वाला था, लेकिन साथ ही उसे एक अजीब सी बेचैनी भी हो रही थी। जैसे वह कुछ पीछे छोड़ रहा हो।

    और फिर, अचानक, पेड़ों की घनी दीवार खत्म हो गई। उनकी आँखों के सामने एक विशालकाय, नीले रंग का दृश्य फैला हुआ था। समुद्र! असीम, नीला समुद्र, जो क्षितिज तक फैला हुआ था। लहरों की आवाज़ उनके कानों में किसी संगीत की तरह लग रही थी। नमकीन हवा उनके चेहरों से टकराई, और उन्होंने एक साथ गहरी साँसें लीं।

    "समुद्र!" रिया ने लगभग चिल्लाते हुए कहा, उसकी आँखों में चमक थी। "हम यहाँ हैं! हम यहाँ हैं!"

    भैरवी ने खुशी से अपनी मुट्ठी भींच ली। "हमें लगा था कि हम कभी नहीं निकलेंगे।"

    समीर के चेहरे पर एक मुस्कान थी। "मैं जानता था कि हम कर लेंगे।"

    वे सब एक साथ समुद्र तट की ओर भागे, जैसे किसी सपने से जाग उठे हों। उन्होंने अपने जूते उतारे और अपने पैरों को ठंडे, रेतीले पानी में डुबोया। यह एक ऐसा पल था जहाँ सारी थकान, सारा डर, कुछ देर के लिए गायब हो गया था।

    दूर, समुद्र के किनारे, एक छोटा सा शहर दिखाई दे रहा था। उसके घर लकड़ी और मूंगे से बने थे, और कुछ नावें तट पर खड़ी थीं। हवा में मछली और नमक की गंध घुली हुई थी। यह जलधि के तट पर स्थित एक छोटा सा बंदरगाह शहर था।

    "अब क्या?" आरव ने पूछा, जब वे थोड़ा शांत हुए। "हम जलधि में कैसे प्रवेश करेंगे?"

    समीर ने शहर की ओर देखा। "हमें जलधि के अंदर जाना होगा। यह पानी के नीचे एक विशाल शहर है, जो कांच के गुंबदों में बना है।"

    रिया ने आँखें चौड़ी कीं। "पानी के नीचे? लेकिन हम वहाँ साँस कैसे लेंगे?"

    समीर ने अपने सिर पर हाथ फेरा। "वही समस्या है। हम सब तत्वधारी हैं, लेकिन हमें पानी के नीचे साँस लेने के लिए विशेष उपकरण की ज़रूरत होगी। जल-तत्वधारी अपनी शक्ति से साँस ले सकते हैं, लेकिन हम नहीं।"

    भैरवी ने कहा, "मैंने सुना है कि ऐसे उपकरण बहुत दुर्लभ होते हैं। और बहुत महंगे भी। हमें कहाँ मिलेंगे?"

    आरव को भी यह सुनकर चिंता हुई। उन्हें यहाँ तक पहुँचने के लिए इतनी मेहनत करनी पड़ी थी, और अब एक नई चुनौती उनके सामने खड़ी थी।

    समीर ने थोड़ी देर सोचा। उसकी आँखें चमक उठीं, जैसे उसे कुछ याद आया हो। "एक तरीका है। मुझे याद आया! मेरा एक पुराना दोस्त है, जो इसी शहर में रहता है। वह एक आविष्कारक है। उसका नाम ज्ञानू चाचा है।"

    रिया ने संदेह से उसकी ओर देखा। "एक आविष्कारक? क्या वह हमें ऐसे उपकरण दे पाएगा?"

    "हाँ!" समीर ने आत्मविश्वास से कहा। "ज्ञानू चाचा बहुत प्रतिभाशाली हैं। वह हमेशा नई चीज़ें बनाते रहते हैं। मुझे विश्वास है कि उनके पास कुछ ऐसा होगा जो हमारी मदद कर सके। वह मुझे बचपन से जानते हैं।"

    भैरवी ने मुस्कुराई। "यह अच्छी खबर है, समीर। एक दोस्त से बेहतर कोई मदद नहीं होती।"

    "हमें तुरंत उनसे मिलना चाहिए," आरव ने कहा। "जितनी जल्दी हम जलधि में प्रवेश करेंगे, उतनी जल्दी हम विक्रम के षड्यंत्र का पता लगा पाएंगे।"

    समीर ने समुद्र की ओर देखा, उसकी आँखों में एक नई दृढ़ता थी। "ठीक है। चलो चलते हैं। ज्ञानू चाचा का कार्यशाला इसी बंदरगाह शहर के बाहरी इलाके में है।"

    वे सब अपने गीले पैरों से रेत पर चलते हुए उस छोटे बंदरगाह शहर की ओर बढ़े। सूरज की सुनहरी किरणें समुद्र के पानी पर चमक रही थीं, और हवा में एक नई उम्मीद का संचार हो रहा था। लेकिन उन्हें पता था कि उनका मिशन अभी खत्म नहीं हुआ था। यह बस एक नए चरण की शुरुआत थी। पानी के नीचे की दुनिया, जहाँ उनके लिए एक और खतरा इंतज़ार कर रहा था।

  • 12. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 12

    Words: 14

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 12
    समुद्र तट के किनारे बसा वह छोटा सा बंदरगाह शहर किसी चलती-फिरती तस्वीर जैसा लग रहा था। हवा में मछली और समुद्री नमक की एक तीखी गंध तैर रही थी, जो हर साँस के साथ उनके फेफड़ों में भर जाती थी। छोटी-छोटी रंगीन नावें किनारे पर बँधी थीं, और मछुआरे अपने जालों की मरम्मत कर रहे थे। कुछ बच्चे रेत पर दौड़ रहे थे, लहरों के साथ खेलते हुए। यहाँ का माहौल जंगल की घुटन और खतरे से बिल्कुल विपरीत था, एक नई ऊर्जा और आशा से भरा हुआ।

    रिया ने एक गहरी साँस ली। "कितनी ताज़ा हवा है। जंगल से बाहर आकर सच में अच्छा लग रहा है।" उसकी आवाज़ में वर्षों बाद मिली आज़ादी का सुख था।

    "हाँ," भैरवी ने कहा, उसकी आँखों में चमक थी। "यहाँ का माहौल बहुत अलग है।"

    समीर आगे चल रहा था, उसकी आँखें सड़कों पर ज्ञानू चाचा की कार्यशाला को तलाश रही थीं। "ज्ञानू चाचा का कार्यशाला इसी इलाके में होनी चाहिए। वह यहाँ सालों से रह रहे हैं।"

    वे शहर की संकरी गलियों से गुज़रे, जहाँ लकड़ी और मूंगे से बने छोटे-छोटे घर थे। हर घर के बाहर समुद्री शैल से बनी सजावट और सूखे हुए जाल लटके हुए थे। कुछ दुकानें थीं जहाँ ताज़ी मछली और समुद्री रत्न बेचे जा रहे थे। लोग उन्हें उत्सुकता से देख रहे थे, शायद उनके अस्त-व्यस्त कपड़ों और धूल-मिट्टी से सने चेहरों की वजह से।

    "देखो, वो रही उनकी कार्यशाला!" समीर ने अचानक कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उत्तेजना थी। उसने एक पुरानी, लेकिन मजबूत लकड़ी की इमारत की ओर इशारा किया, जिसके बाहर कुछ अजीबोगरीब धातु के पुर्जे और अधूरी मशीनें पड़ी थीं। कार्यशाला के अंदर से कुछ खटपट करने की और धातु पर हथौड़ा मारने की आवाज़ें आ रही थीं, जैसे कोई लगातार किसी नई चीज़ पर काम कर रहा हो।

    रिया ने मुँह बनाकर उस इमारत की ओर देखा। "यह तो किसी कबाड़खाने जैसी लग रही है। क्या सच में यहाँ हमें कुछ मिलेगा?" उसकी आवाज़ में हल्की सी चिड़चिड़ाहट थी, लेकिन उसकी आँखों में उत्सुकता साफ झलक रही थी।

    भैरवी ने रिया के कंधे पर हाथ रखा। "दिखने पर मत जाओ, रिया। ज़रूरी यह है कि हमें मदद मिले।"

    आरव ने इमारत की ओर देखा। उसे यहाँ भी एक हल्की सी ऊर्जा महसूस हो रही थी, लेकिन वह जंगल वाली शून्य ऊर्जा से बहुत अलग थी। यह एक रचनात्मक ऊर्जा थी, जैसे किसी कारीगर के हाथों से निकलती हुई। "चलो, जल्दी करते हैं। समय नहीं है।" उसने अपने मन में मिशन की गंभीरता को दोहराया।

    समीर ने दरवाज़े पर धीरे से दस्तक दी। खटपट करने की आवाज़ तुरंत बंद हो गई। कुछ पल की चुप्पी के बाद, अंदर से एक भारी, थोड़ी ऊँची आवाज़ आई, "कौन है? इस समय मुझे परेशान मत करो, मैं एक ज़रूरी काम में लगा हूँ!"

    समीर ने हल्की सी हँसी के साथ कहा, "ज्ञानू चाचा! मैं समीर हूँ! आपका समीर!"

    अंदर फिर से कुछ देर की खामोशी छा गई, जैसे आवाज़ के मालिक ने अपनी बात पर गौर किया हो। फिर, दरवाज़ा एक चरमराहट के साथ खुला। एक अधेड़ उम्र का आदमी दरवाज़े पर खड़ा था, जिसके बाल बिखरे हुए थे, आँखों पर एक बड़ा सा चश्मा था जो उसकी नाक पर टिका हुआ था, और उसके हाथों पर तेल और धातु की धूल लगी हुई थी। उसकी आँखें छोटी, लेकिन बहुत तेज और बुद्धिमान थीं।

    ज्ञानू चाचा ने समीर को देखा। उनकी आँखों में पहले हैरानी थी, फिर एक अजीब सी पहचान की चमक आई, और फिर एक चौड़ी मुस्कान उनके चेहरे पर फैल गई। "समीर बेटा! तुम यहाँ? अरे मेरी आँखें मुझे धोखा तो नहीं दे रही हैं?" वह तुरंत दरवाज़े से बाहर आए और समीर को गले लगा लिया। "इतने सालों बाद! तुम तो बिल्कुल बदल गए हो! लेकिन आवाज़ अभी भी वही है।"

    समीर ने उन्हें कसकर गले लगाया। "हाँ चाचा! मैं ही हूँ।" उसकी आवाज़ में राहत और प्यार था।

    ज्ञानू चाचा ने समीर को अपने से अलग किया और फिर बाकी टीम की ओर देखा। उनकी आँखें रिया, भैरवी और आरव पर रुक गईं। उन्होंने उनके अस्त-व्यस्त कपड़ों, थके हुए चेहरों और उनकी आँखों में दिख रही चिंता को तुरंत भांप लिया। उनके चेहरे की मुस्कान थोड़ी कम हुई और उनकी जगह एक गंभीर अभिव्यक्ति आ गई। "क्या हुआ है, बेटा? तुम सब इतने परेशान क्यों लग रहे हो? क्या कोई मुसीबत है?" उनकी आवाज़ में तुरंत चिंता घुल गई थी।

    समीर ने एक गहरी साँस ली। "हाँ, चाचा। बहुत बड़ी मुसीबत है। और हमें आपकी मदद चाहिए।" उसने अपनी बात को संक्षिप्त रखने की कोशिश की, ताकि ज्ञानू चाचा को अनावश्यक विवरणों से बचाया जा सके। "यह बहुत ज़रूरी काम है। हमें जलधि के अंदर जाना है, लेकिन हम पानी में साँस नहीं ले सकते। हमें ऐसे उपकरण चाहिए जो हमें पानी के नीचे जाने में मदद करें।"

    ज्ञानू चाचा की भौंहें सिकुड़ गईं। उन्होंने अपनी ठुड्डी पर हाथ फेरा, उनकी आँखों में विचार थे। "जलधि? क्या बात है? आजकल वहाँ का माहौल ठीक नहीं है। जलसेन, जो नया मंत्री है, वह कुछ ज़्यादा ही सख्ती बरत रहा है। और अफवाहें हैं कि... खैर छोड़ो।"

    रिया ने आगे बढ़कर कहा, "यह सब बहुत गोपनीय है, चाचा। हम अभी सब कुछ नहीं बता सकते। बस यह समझें कि दुनिया खतरे में है। और हम उस खतरे को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी गंभीरता थी, जो ज्ञानू चाचा को प्रभावित कर गई।

    भैरवी ने सहमति में सिर हिलाया। "हाँ, चाचा। बहुत लोग आप पर निर्भर करते हैं। हम पर निर्भर करते हैं। हमें आपकी मदद की बहुत सख्त ज़रूरत है।"

    आरव ने चुपचाप, लेकिन पूरी ईमानदारी से ज्ञानू चाचा की आँखों में देखा। उसकी आँखों में एक अजीब सी, शांत दृढ़ता थी। "हम आपकी मदद के बिना यह नहीं कर सकते, चाचा। हम फँस जाएंगे।" उसकी आवाज़ में एक अनकही अपील थी।

    ज्ञानू चाचा ने बारी-बारी से चारों युवा चेहरों को देखा। उन्हें समीर पर पूरा भरोसा था, और इन तीनों युवाओं की आँखों में उन्हें किसी बड़ी, गंभीर समस्या की झलक दिख रही थी। उन्हें यह भी महसूस हुआ कि यह सिर्फ एक व्यक्तिगत मुसीबत नहीं थी, बल्कि कुछ बड़ा था। उन्होंने एक गहरी साँस ली और मुस्कुराए।

    "ठीक है, ठीक है," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ में एक नया आत्मविश्वास था। "समीर, तुम मेरे बेटे जैसे हो। और जब तुम इतनी गंभीर बात कह रहे हो, तो मैं कैसे मना कर सकता हूँ? खासकर जब तुम्हारी ये दोस्त भी इतनी ज़िद पर अड़ी हैं।" उन्होंने रिया की ओर देखा और हल्की सी आँख मारी।

    वह तुरंत कार्यशाला के अंदर चले गए, उनके पीछे-पीछे समीर और बाकी टीम भी थी। कार्यशाला उपकरणों, औज़ारों, अधूरी मशीनों और अजीबोगरीब धातुओं के पुर्जों से भरी हुई थी। हर तरफ़ नट, बोल्ट, तार और शीशे के टुकड़े बिखरे पड़े थे। बीच में एक बड़ी सी मेज थी जिस पर एक आधी बनी हुई, चमकती हुई मशीन रखी थी। हवा में धातु और तेल की एक अजीब सी गंध थी।

    ज्ञानू चाचा ने एक बड़े से बक्से के पास जाकर उसे खोला। उसमें से कुछ खनकने और सरकने की आवाज़ें आईं। वह अंदर हाथ डालकर कुछ तलाशने लगे, बीच-बीच में बुदबुदाते हुए, "कहाँ गया... कहाँ गया... हाँ, यह रहा!"

    कुछ पलों बाद, वह चार अजीब दिखने वाले उपकरण लेकर बाहर आए। वे छोटे थे, लगभग एक बड़ी हथेली के आकार के। वे चमकीली धातु और कुछ पारदर्शी सामग्री से बने थे, और बीच में एक छोटा सा नीला क्रिस्टल चमक रहा था। उनमें से कुछ तार और पट्टियाँ निकली हुई थीं, जो उन्हें शरीर से जोड़ने के लिए थीं।

    "ये क्या हैं?" रिया ने उत्सुकता से पूछा।

    "ये मेरे कुछ नए प्रोटोटाइप हैं," ज्ञानू चाचा ने गर्व से कहा, उनके चेहरे पर एक आविष्कारक की चमक थी। "मैंने इन्हें जल-तत्वधारियों के लिए नहीं, बल्कि आम इंसानों के लिए बनाया था, ताकि वे भी पानी के नीचे जा सकें। ये अभी तक पूरी तरह से परखे नहीं गए हैं, लेकिन मुझे विश्वास है कि ये काम ज़रूर करेंगे। मैंने इनमें एक खास वायु-उत्पादक प्रणाली लगाई है, जो पानी में घुलित ऑक्सीजन को साँस लेने योग्य हवा में बदलती है।"

    समीर की आँखों में राहत की चमक थी। "ज्ञानू चाचा! आप हमारे लिए भगवान बनकर आए हैं।" उसने एक उपकरण उठाया और उसे ध्यान से देखने लगा।

    "यह तो कमाल है!" रिया ने उपकरण को हाथ में लिया, उसकी हैरानी साफ दिख रही थी। "मुझे लगा था कि ऐसी चीज़ें केवल कहानियों में होती हैं।"

    भैरवी ने सिर हिलाया। "धन्यवाद, चाचा। आपने हमारी जान बचाई। यह हमारे लिए अनमोल है।"

    ज्ञानू चाचा ने मुस्कुराते हुए उन्हें बताया कि उन्हें इनका उपयोग कैसे करना है। "इन्हें अपने गले में पहनो, और ये पट्टियाँ तुम्हारी छाती के चारों ओर कस जाएंगी। नीला क्रिस्टल सक्रिय होने पर हल्का चमकेगा, जिसका मतलब है कि यह काम कर रहा है। लेकिन याद रखना, ये प्रोटोटाइप हैं, इसलिए बहुत गहरे या लंबे समय तक उपयोग करने से बचें। और इन्हें किसी भी तरह के झटके से बचाना।"

    उन्होंने बारी-बारी से सभी को उपकरण दिए। आरव ने उसे हाथ में लिया। वह हल्का और ठंडा था, लेकिन उसमें एक मजबूत और विश्वसनीय एहसास था।

    ज्ञानू चाचा ने फिर से अपना गंभीर चेहरा बना लिया। "एक बात सुनो, बच्चों। मैंने पहले भी कहा था, जलधि में आजकल माहौल ठीक नहीं है। मंत्री जलसेन बहुत सख्ती बरत रहे हैं। कर बढ़ा दिए गए हैं, और लोग बहुत परेशान हैं। कुछ दिनों से तो अफवाहें हैं कि कुछ रहस्यमयी लोग भी शहर में घूम रहे हैं, जो आम लोगों से बात नहीं करते और अजीबोगरीब हरकतें करते हैं। मुझे लगता है कि कुछ बड़ा चल रहा है। तुम सब बहुत सावधान रहना।"

    समीर ने ज्ञानू चाचा की आँखों में देखा और धीरे से सिर हिलाया। "हम सावधान रहेंगे, चाचा। हम आपके भरोसे को टूटने नहीं देंगे।"

    "हमें इन चीज़ों का उपयोग कैसे करना है?" आरव ने पूछा, उसके मन में अब सिर्फ जलधि में प्रवेश करने की चिंता थी।

    ज्ञानू चाचा ने उन्हें संक्षिप्त में बताया, "बस इन्हें पहनकर पानी में कूद जाओ। नीला क्रिस्टल अपने आप सक्रिय हो जाएगा। यह स्वचालित है। पानी का दबाव ही इसे काम करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा देगा।"

    टीम ने एक-दूसरे की ओर देखा। उनके पास अब अपने मिशन का पहला असली उपकरण था।
    "तो, हम कब निकल रहे हैं?" रिया ने पूछा, उसकी आँखों में एक नई उत्सुकता थी, जो चुनौती का सामना करने को तैयार थी।

    "जितनी जल्दी हो सके," समीर ने कहा। "अंधेरा होने से पहले, हम समुद्र में प्रवेश कर लेंगे।"

    ज्ञानू चाचा ने उन्हें विदाई दी, उनकी आँखों में चिंता और गर्व का मिश्रण था। उन्हें उम्मीद थी कि ये बच्चे सुरक्षित रहेंगे और जो भी मिशन वे कर रहे हैं, उसमें सफल होंगे। टीम ने उन्हें धन्यवाद दिया और कार्यशाला से बाहर निकल गई, उनके मन में जलधि के रहस्य और पानी के नीचे की दुनिया की चुनौती थी। वे जानते थे कि उनका अगला कदम उन्हें एक ऐसी जगह ले जाएगा जहाँ उन्होंने पहले कभी पैर नहीं रखा था।

  • 13. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 13

    Words: 18

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 13
    ज्ञानू चाचा की कार्यशाला से बाहर निकलते ही, टीम ने एक-दूसरे की ओर देखा। उनके पास अब पानी के नीचे साँस लेने के उपकरण थे, जो उनके मिशन की सफलता की पहली सीढ़ी थी। सूरज ढल रहा था और आकाश में नारंगी और बैंगनी रंग की लकीरें फैल रही थीं। हवा में समुद्र की ताज़ी गंध पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ हो गई थी।



    "हमें कहीं शांत जगह पर जाना होगा," समीर ने कहा। "जहाँ कोई हमें पानी में कूदते हुए न देखे। इस बंदरगाह पर बहुत भीड़ है।"



    रिया ने सहमति में सिर हिलाया। "हाँ, हमें कोई खतरा नहीं उठाना चाहिए। खासकर अब जब हमारे पास यह सब है।" उसने अपने हाथ में उपकरण को कसकर पकड़ा हुआ था।



    वे शहर के किनारे-किनारे चलने लगे, जहाँ से मछुआरों की बस्ती शुरू होती थी। यहाँ छोटी-छोटी झोपड़ियाँ थीं और नावों की मरम्मत की जा रही थी। धीरे-धीरे, भीड़ कम होती गई और वे एक सुनसान, चट्टानी तट पर पहुँच गए। लहरें चट्टानों से टकराकर एक धीमी, लयबद्ध आवाज़ कर रही थीं।



    "यह जगह ठीक है," भैरवी ने कहा। "यहाँ कोई नहीं है।"



    समीर ने उन्हें ज्ञानू चाचा के बताए अनुसार उपकरण पहनने का तरीका समझाया। "इसे ऐसे गले में पहनना है और पट्टियों को कसना है। नीला क्रिस्टल सक्रिय होने पर चमकेगा।"



    रिया ने उपकरण को गले में पहना, उसकी धातु त्वचा पर ठंडी लग रही थी। "यह थोड़ा अजीब लग रहा है। क्या यह सच में काम करेगा?" उसकी आवाज़ में अभी भी संदेह था, लेकिन उसकी आँखों में उत्सुकता भी थी।



    आरव ने भी अपना उपकरण पहना। जैसे ही उसने पट्टियों को कसा, उसे एक हल्की सी गुनगुनाती हुई कंपन महसूस हुई, जैसे अंदर कोई छोटी सी मशीन चल रही हो। नीला क्रिस्टल हल्का सा चमकने लगा, लेकिन बहुत फीका।



    भैरवी ने अपना उपकरण पहना और एक गहरी साँस ली। "चलो देखते हैं।"



    "तैयार हो?" समीर ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उत्तेजना थी। उसने पहले ही अपना उपकरण पहन लिया था और नीला क्रिस्टल अब पहले से थोड़ा अधिक चमक रहा था। "एक... दो... तीन!"



    और वे चारों एक साथ चट्टान से पानी में कूद गए।



    एक पल के लिए, सब कुछ धुंधला हो गया। ठंडे पानी का तेज़ झटका उनके शरीर से टकराया, और उनके कानों में एक तेज़ 'वूश' की आवाज़ गूँज उठी। आरव ने अपनी आँखें बंद कर लीं, लेकिन जब उसने उन्हें खोला, तो वह एक बिल्कुल नई दुनिया में था।



    पानी के नीचे का दृश्य कल्पना से कहीं ज़्यादा अद्भुत था। सूरज की ढलती किरणें पानी में घुसकर एक जादुई चमक पैदा कर रही थीं, जिससे हर चीज़ सुनहरी और नीली लग रही थी। उनके चारों ओर, रंगीन मछलियाँ छोटे-छोटे झुंडों में तैर रही थीं, जैसे पानी में उड़ते हुए रत्न हों। नीचे, मूंगे के जंगल थे, जो हर आकार और रंग में फैले हुए थे – लाल, गुलाबी, बैंगनी, हरे। कुछ मूंगे तो ऐसे दिख रहे थे जैसे किसी ने पानी के नीचे पूरा शहर बना दिया हो।



    आरव को एहसास हुआ कि वह साँस ले पा रहा है! उसके फेफड़े हवा से भर रहे थे, जैसे वह ज़मीन पर हो। उपकरण के अंदर का नीला क्रिस्टल अब और भी तेज़ चमक रहा था, जिससे उसके चारों ओर एक हल्की सी नीली आभा फैल रही थी। यह एक अद्भुत अहसास था – जैसे प्रकृति के एक रहस्य को सुलझा लिया गया हो।



    उसने अपने चारों ओर देखा। रिया के चेहरे पर हैरानी और खुशी का मिश्रण था। वह अपने हाथों को पानी में हिला रही थी, जैसे तैरना सीखने वाला बच्चा हो। "यह... यह अविश्वसनीय है!" उसके मुँह से कोई आवाज़ नहीं निकली, लेकिन उसकी आँखों ने यह सब कह दिया।



    भैरवी की आँखों में विस्मय था। वह अपने हाथों से पानी में तैरती हुई मछली को छूने की कोशिश कर रही थी, जैसे वह किसी सपने में हो। "मैं कभी नहीं सोचा था कि ऐसी कोई चीज़ संभव होगी।" उसकी आँखों से खुशी के आँसू बह रहे थे, जो पानी में घुल गए।



    समीर, जो वायु-तत्वधारी था, पानी में सबसे अधिक सहज लग रहा था। वह अपने शरीर को आसानी से घुमा रहा था, जैसे वह तैरना जानता हो। उसने आरव और बाकी टीम की ओर देखा और मुस्कुराया। उसकी मुस्कान पानी के नीचे भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। उसने हाथ के इशारे से उन्हें अपने पीछे आने को कहा।



    उन्होंने धीरे-धीरे पानी में तैरना शुरू किया। शुरुआत में यह थोड़ा मुश्किल था। उनके कपड़े भारी हो गए थे और पानी का दबाव अजीब लग रहा था। लेकिन धीरे-धीरे, वे सहज होने लगे। आरव को महसूस हुआ कि उसकी तत्वहीनता यहाँ भी एक फायदा बन रही थी; उसे किसी तत्व की सीमा का अनुभव नहीं हो रहा था। वह बस पानी में घुलमिल गया था, जैसे वह स्वयं जल का हिस्सा हो।



    जैसे-जैसे वे आगे बढ़े, पानी के नीचे की दुनिया और भी भव्य होती गई। उन्हें विशालकाय समुद्री शैवाल के जंगल दिखाई दिए, जो ऊपर से नीचे तक लहरों के साथ झूल रहे थे, जैसे किसी हरे-भरे महल की दीवारें हों। उनके पास से कुछ बड़े, चमकते हुए मछली के झुंड गुज़रे, जो एक साथ तैरते हुए एक अद्भुत पैटर्न बना रहे थे।



    फिर, आरव ने देखा। एक विशाल, काला साया उनके ऊपर से गुज़रा। यह इतना बड़ा था कि उसने कुछ देर के लिए सूरज की रोशनी रोक दी। आरव ने ऊपर देखा। एक विशालकाय कछुआ, जिसका कवच एक छोटे पहाड़ जैसा लग रहा था, धीरे-धीरे पानी में तैर रहा था, उसकी आँखें किसी प्राचीन ज्ञान से भरी हुई थीं। वह इतना शांत और विशाल था कि आरव को लगा जैसे वह समय के एक अंश को देख रहा हो।



    उसके बाद, एक और विशाल आकृति उनके पास से गुज़री – एक विशालकाय व्हेल, जो अपने विशाल पंखों को धीरे-धीरे हिला रही थी। उसकी त्वचा पर चमकते हुए नीले और हरे रंग के पैटर्न थे, और उसके पास से एक धीमी, गहरी गुनगुनाती हुई आवाज़ आ रही थी, जो पानी में गूँज रही थी। टीम एक पल के लिए रुक गई, उनके मुँह खुले रह गए, पूरी तरह से विस्मय में डूबे हुए थे।



    रिया ने आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में डर और रोमांच दोनों थे। उसने एक हाथ से आरव की बाँह पकड़ी, जैसे खुद को आश्वस्त कर रही हो कि यह सब वास्तविक था।



    समीर ने उन्हें फिर से आगे बढ़ने का इशारा किया। उन्हें पता था कि वे यहाँ केवल देखने के लिए नहीं आए थे। उनके पास एक मिशन था।



    जैसे-जैसे वे आगे बढ़े, पानी थोड़ा गहरा होता गया। सूरज की रोशनी कम हो गई, और उनके चारों ओर का पानी एक गहरा नीला रंग लेने लगा। फिर, दूर, एक हल्की सी चमक दिखाई दी। शुरुआत में, वह सिर्फ एक बिंदु था, लेकिन जैसे-जैसे वे करीब आए, वह चमक बढ़ती गई, एक विशाल, पारदर्शी गुंबद का रूप लेने लगी।



    यह जलधि का पहला दृश्य था। शहर के ऊपर चमकता हुआ कांच का गुंबद, जिसके अंदर से सैकड़ों रोशनीयाँ फैल रही थीं, जैसे पानी के नीचे तारों का एक झुंड चमक रहा हो। वह किसी सपने जैसा लग रहा था, एक ऐसा शहर जो इंसानों ने पानी के भीतर ही बना लिया था।



    रिया ने अपनी उंगली से उस गुंबद की ओर इशारा किया। उसकी आँखों में एक नई उम्मीद की चमक थी। "वहाँ... वो रहा जलधि।"



    समीर ने सिर हिलाया। "हाँ। हम पहुँच गए।"



    भैरवी ने गहरी साँस ली, "कितना बड़ा है!"



    आरव ने भी उस अद्भुत दृश्य को देखा। यह एक ऐसा पल था जब उन्हें लगा कि वे कुछ असंभव हासिल कर रहे हैं। लेकिन वह यह भी जानता था कि यह सिर्फ शुरुआत थी। इस चमकते हुए गुंबद के अंदर, सम्राट विक्रम का अंधेरा षड्यंत्र इंतज़ार कर रहा था, और उन्हें उसे उजागर करने के लिए और भी गहरे पानी में गोता लगाना था। वे धीरे-धीरे उस चमकते हुए शहर की ओर तैरते रहे, उनके मन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने का दृढ़ संकल्प था।

  • 14. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 14

    Words: 19

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 14
    वे तैरते हुए जलधि के द्वार की ओर बढ़े। जैसे-जैसे वे करीब आते गए, गुंबद का विशालकाय आकार और उसकी पारदर्शी चमक और भी प्रभावशाली होती गई। वह सिर्फ एक कांच का ढाँचा नहीं था, बल्कि एक जीवित, चमकता हुआ महल लग रहा था, जिसके अंदर रोशनी के झरने बह रहे थे। प्रवेश द्वार एक भव्य मेहराब के आकार का था, जो उन्हीं चमकीले, पारदर्शी पदार्थ से बना था जिससे पूरा गुंबद बना था। द्वार के दोनों ओर, जल-तत्वधारी रक्षक तैनात थे। उनकी नीली और हरे रंग की वर्दी थी, और वे अपने हाथों में चमकते हुए जल-भाले लिए हुए थे। उनके चेहरे गंभीर थे और उनकी आँखें पैनी थीं, जो हर आने-जाने वाले पर नज़र रख रही थीं।

    समीर ने टीम की ओर देखा। "याद रखना, हम व्यापारी हैं। अनाज के। हम यहाँ एक बड़े सौदे के लिए आए हैं।" उसकी आवाज़ पानी के अंदर थोड़ी गूँज रही थी, लेकिन स्पष्ट थी।

    रिया ने एक गहरी साँस ली, जो उपकरण की बदौलत संभव हो पाई थी। "ठीक है, 'व्यापारी'।" उसकी आवाज़ में एक हल्की सी चुटकी थी, लेकिन उसकी आँखों में दृढ़ संकल्प था।

    भैरवी ने अपना सिर हिलाया। "हमें स्वाभाविक दिखना होगा।"

    आरव ने सिर्फ सिर हिलाकर अपनी सहमति दी। उसे अंदर एक अजीब सी घबराहट महसूस हो रही थी, लेकिन उसने उसे छुपाए रखा।

    जैसे ही वे द्वार के करीब पहुँचे, दो रक्षक उनके पास तैरकर आए। उनके शरीर पर पानी के तत्व का हल्का सा आवरण था, जिससे वे पानी में और भी तेज़ी से घूम सकते थे। उनमें से एक, जो सबसे लंबा और अधिक अधिकारिक लग रहा था, रुका और अपनी जल-भाले को उनके सामने कर दिया।

    "रुकें! आप कौन हैं और यहाँ क्या कर रहे हैं?" रक्षक की आवाज़ पानी के अंदर भी स्पष्ट थी, जैसे वह सीधे उनके दिमाग में बोल रहा हो। उसकी आवाज़ में कोई नरमी नहीं थी।

    समीर ने आगे बढ़कर, जितना हो सके उतना विनम्र भाव से कहा, "शुभकामनाएँ, रक्षक। हम शांतिवन के व्यापारी हैं। हमारे पास अनाज का एक बड़ा शिपमेंट है जिसे हम मंत्री जलसेन को बेचना चाहते हैं। हमारे पास हमारे दस्तावेज़ हैं।" समीर ने अपनी कमर में बँधे एक जलरोधी थैले में से कागजात निकाले और उन्हें रक्षक की ओर बढ़ाया।

    रक्षक ने समीर के हाथ से दस्तावेज़ लिए। उसने उन्हें ध्यान से देखा, उसकी आँखें एक-एक शब्द पर ठहर गईं। उसने फिर रिया, भैरवी और आरव की ओर देखा, उसकी निगाहें एक-एक पर ठहर रही थीं, जैसे वह उनके चेहरे पर कोई झूठ खोजने की कोशिश कर रहा हो। आरव को उसकी आँखों में एक अजीब सी कठोरता महसूस हुई, जैसे वह किसी मशीन की आँखें हों।

    रिया ने महसूस किया कि रक्षक की नज़रें उस पर कुछ ज़्यादा देर तक टिकी थीं। उसने अपने चेहरे पर एक शांत, उदासीन भाव बनाए रखने की कोशिश की, जैसे वह सिर्फ एक थकी हुई व्यापारी हो। लेकिन उसे अंदर ही अंदर एक अजीब सी बेचैनी महसूस हुई। इन रक्षकों के व्यवहार में एक अजीब सी सख्ती थी, जो उसने पहले जल-तत्वधारियों में कभी नहीं देखी थी। वे आमतौर पर शांत और सहज होते थे, लेकिन इन लोगों के हाव-भाव बहुत कठोर थे।

    "शांतिवन?" दूसरे रक्षक ने पूछा, उसकी आवाज़ में संदेह था। "हमें शांतिवन से किसी व्यापारी शिपमेंट की सूचना नहीं मिली है।"

    समीर ने तुरंत जवाब दिया, "यह एक विशेष सौदा है, महोदय। मंत्री जलसेन से सीधे बात हुई है। हमें देर हो गई है, और हम जानते हैं कि वह अधीर होंगे।" उसने एक हल्की सी मुस्कान देने की कोशिश की, जो थोड़ी तनावपूर्ण लग रही थी।

    पहला रक्षक अभी भी दस्तावेज़ों को उलट-पुलट कर देख रहा था। उसने अपने साथी की ओर देखा और एक पल के लिए अपनी आँखों से कुछ इशारा किया। उसका साथी फिर उनकी ओर थोड़ा और करीब आया, जैसे उन्हें और करीब से देखना चाहता हो। उसने आरव को ऊपर से नीचे तक घूरा, उसकी तत्वहीनता को भांपने की कोशिश कर रहा हो। आरव को अंदर एक सिहरन हुई, लेकिन उसने अपनी आँखों को स्थिर रखा।

    भैरवी ने अपनी साँस धीमी कर ली, उसके हाथ हल्के से काँप रहे थे। उसे लगा कि वे पकड़े जाने वाले हैं।

    रक्षक ने फिर से समीर की ओर देखा। "आप अपनी यात्रा के बारे में विस्तार से बता सकते हैं?" उसकी आवाज़ में चुनौती थी।

    समीर ने एक लंबी कहानी शुरू कर दी, जैसा कि उन्होंने रास्ते में अभ्यास किया था। "हाँ, महोदय। हम शांतिवन से निकले, पहले उत्तर की ओर व्यापारिक मार्ग पर चले, फिर हमें एक तूफान के कारण अपना रास्ता बदलना पड़ा। हमने सोचा था कि हम जल्दी पहुँच जाएंगे, लेकिन रास्ते में हमें डाकुओं का सामना करना पड़ा..." उसने अपनी आवाज़ को यथासंभव विश्वसनीय बनाने की कोशिश की। वह जानता था कि एक अच्छी कहानी में सच्चाई का पुट होना चाहिए, भले ही वह पूरी न हो।

    रिया ने समीर की ओर देखा, उसकी बुद्धिमत्ता से प्रभावित हुई। वह कितनी आसानी से कहानी बना रहा था, और कितनी दृढ़ता से वह उसे सुना रहा था।

    रक्षक ने उसे बीच में ही रोक दिया। "ठीक है, ठीक है। बहुत लंबी कहानी है।" उसने दस्तावेज़ों को समीर को वापस कर दिया। "हमें किसी भी विशेष व्यापारिक सौदे के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है, लेकिन आपके दस्तावेज़ ठीक लगते हैं। प्रवेश की अनुमति है। लेकिन किसी भी तरह की परेशानी पैदा करने की कोशिश मत करना। जलधि में आजकल नियम बहुत सख्त हैं।" उसकी आवाज़ में एक चेतावनी थी।

    समीर ने तुरंत सिर हिलाया। "बिल्कुल नहीं, महोदय। हम केवल अपना व्यापार करने आए हैं।"

    रक्षक ने अपने भाले को उठाया और एक इशारा किया। द्वार का एक बड़ा, पारदर्शी खंड धीरे-धीरे ऊपर की ओर खिसकना शुरू हो गया, जिससे उनके लिए रास्ता खुल गया। एक हल्की सी गूँज हुई, जो पानी में भी साफ सुनी जा सकती थी।

    "अंदर जाओ," रक्षक ने कहा। उसकी आँखें अभी भी उनके ऊपर थीं।

    टीम ने एक-दूसरे की ओर देखा। वे सफल हो गए थे। समीर ने आगे बढ़ना शुरू किया, और बाकी टीम उसके पीछे हो ली। वे धीरे-धीरे उस खुले हुए द्वार से अंदर तैरते रहे।

    जैसे ही वे द्वार से गुज़रे, आरव को एक अजीब सा अहसास हुआ। ऐसा लगा जैसे पानी का तापमान बदल गया हो, या उसमें एक हल्की सी ऊर्जा की परत हो। यह एक अदृश्य अवरोध था, जो उन्हें बाहरी दुनिया से अलग कर रहा था।

    और फिर, वे जलधि के अंदर थे।

    पानी के अंदर का शहर उनकी कल्पना से भी कहीं ज़्यादा भव्य था। उनके चारों ओर, विशालकाय, रंगीन मूंगे के भवन थे, जो अलग-अलग आकारों और ऊँचाइयों में बने हुए थे। कुछ भवन तो इतने ऊँचे थे कि उनकी छतें गुंबद के ऊपरी हिस्से को छू रही थीं। हर भवन के अंदर से एक कोमल, चमकती हुई रोशनी निकल रही थी, जो पानी को एक जादुई, चमकीली चमक से भर रही थी।

    "वाह..." भैरवी के मुँह से फुसफुसाहट निकली, जो पानी में भी स्पष्ट सुनाई दी। उसकी आँखें विस्मय से चौड़ी हो गई थीं।

    शहर की गलियाँ भी पारदर्शी थीं, और उनके नीचे से पानी के जीव तैर रहे थे, जैसे वे हवा में उड़ रहे हों। सड़कों पर भी लोग थे, जो यहाँ-वहाँ तैर रहे थे, अपने दैनिक काम कर रहे थे। कुछ जल-तत्वधारी बच्चे मूंगे के पास खेल रहे थे, अपनी शक्तियों का उपयोग करके पानी के बुलबुले बना रहे थे।

    रिया ने अपने चारों ओर देखा, उसकी आँखों में एक नई चमक थी। "यह अविश्वसनीय है।" उसके चेहरे पर अब कोई संदेह नहीं था, केवल शुद्ध विस्मय था।

    समीर ने उन्हें इशारा किया कि वे एक तरफ हट जाएं, ताकि वे द्वार के सामने न रहें। "हमें एक सराय ढूंढनी होगी। और फिर हमें यह पता लगाना होगा कि मंत्री जलसेन कहाँ है।" उसकी आवाज़ में अब मिशन की गंभीरता साफ झलक रही थी।

    आरव ने अपने चारों ओर देखा। यह शहर कितना भी खूबसूरत क्यों न हो, उसे अभी भी उस रक्षक की आँखों में दिखी कठोरता याद थी। ज्ञानू चाचा की चेतावनी भी उसके कानों में गूँज रही थी: "जलधि में आजकल माहौल ठीक नहीं है।"

    वह जानता था कि इस चमकती हुई सुंदरता के नीचे, कुछ गहरा और बुरा छिपा हो सकता है। वे अब शहर के अंदर थे, लेकिन उनका असली काम अभी शुरू होना बाकी था। उन्हें उस अंधेरे को उजागर करना था, जो शायद इस खूबसूरत शहर के हर कोने में फैला हुआ था।

  • 15. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 15

    Words: 30

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 15
    जलधि शहर की भव्यता और उसकी पानी के नीचे की अनूठी वास्तुकला ने आरव और उसके दोस्तों को पूरी तरह से मंत्रमुग्ध कर दिया था। वे धीरे-धीरे शहर की मुख्य "सड़क" पर तैर रहे थे, जो पानी में बने पारदर्शी मार्गों का एक जटिल जाल था। ऊपर और नीचे, हर दिशा में, समुद्री जीव और जल-तत्वधारी मनुष्य अपने-अपने काम में व्यस्त थे। ऐसा लग रहा था जैसे पूरा शहर एक विशाल मछलीघर हो, जिसमें हर चीज़ जीवित और गतिशील थी।



    "यह तो किसी सपने जैसा है," भैरवी ने कहा, उसकी आँखें चारों ओर चमकते हुए मूंगा भवनों और तैरते हुए बगीचों को देखकर चौड़ी हो गईं। कुछ बगीचों में रंगीन समुद्री पौधे थे, जो पानी की धाराओं में धीरे-धीरे झूल रहे थे।



    रिया भी विस्मय में थी। उसने अपने चारों ओर देखा, उसकी चमकती हुई आँखें हर नए विवरण को सोख रही थीं। "मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि पानी के नीचे इतना कुछ हो सकता है। अग्नि गणराज्य में, हम हमेशा भूमि पर रहते हैं... यह दुनिया बिल्कुल अलग है।"



    समीर, जो जलधि में पहले भी आ चुका था, उन्हें दिशा निर्देश दे रहा था। "यह शहर सदियों से बसा हुआ है। हर तत्वधारी कुल ने अपनी वास्तुकला में अपना स्पर्श दिया है, लेकिन यहाँ जल-तत्व का प्रभाव सबसे ज़्यादा है।" उसने एक विशाल, सर्पिल भवन की ओर इशारा किया, जो एक विशाल शंख जैसा लग रहा था। "वह जल-ज्ञान केंद्र है।"



    वे देखते रहे कि लोग कैसे पानी के नीचे रहते और काम करते थे। कुछ जल-तत्वधारी अपने हाथों से पानी की धाराओं को मोड़ रहे थे, जिससे पानी के अंदर छोटी-छोटी दुकानें बन रही थीं, जहाँ वे समुद्री रत्न और रंगीन शैवाल बेच रहे थे। दूसरे लोग विशालकाय मछलियों पर सवार होकर एक जगह से दूसरी जगह जा रहे थे, जैसे ज़मीन पर घोड़ों पर सवारी करते हों। एक जगह, कुछ कारीगर पानी के अंदर ही एक नया भवन बना रहे थे, जिसमें वे पानी के तत्वों को ठोस आकार दे रहे थे। यह सब देखकर आरव को अपनी तत्वहीनता का एहसास एक बार फिर हुआ, लेकिन इस बार निराशा से नहीं, बल्कि एक नए प्रकार की उत्सुकता से। वह इस दुनिया को एक बाहरी व्यक्ति के रूप में देख रहा था, और यह उसे एक अलग ही दृष्टिकोण दे रहा था।



    "हमें एक ऐसी जगह चाहिए जहाँ हम छिप सकें और स्थानीय लोगों से बात कर सकें," समीर ने कहा, उसकी आवाज़ में अब मिशन की गंभीरता लौट आई थी। "एक सराय सबसे अच्छी जगह होगी।"



    उन्होंने थोड़ी देर और शहर में तैरते हुए एक ऐसी सराय ढूंढी, जो बहुत बड़ी या बहुत छोटी न हो, और जहाँ ज़्यादा भीड़ न हो। अंत में, उन्हें एक जगह मिली जिसका नाम था "गहराई का विश्रामगृह"। यह एक साधारण, गोल भवन था, जिसके चारों ओर चमकदार समुद्री शैवाल लटके हुए थे, जो रोशनी दे रहे थे।



    वे अंदर गए। सराय के अंदर भी पानी था, लेकिन वहाँ हवा के कुछ बड़े बुलबुले थे जहाँ लोग बैठकर बातें कर सकते थे। बीच में एक बड़ा, चमकता हुआ क्रिस्टल था जो एक मेज जैसा काम कर रहा था। कुछ जल-तत्वधारी लोग वहाँ बैठे थे, समुद्री भोजन खा रहे थे और समुद्री पेय पी रहे थे। उनकी बातें पानी के अंदर थोड़ी मद्धम सुनाई दे रही थीं, लेकिन अगर कोई ध्यान से सुने तो समझ सकता था।



    सराय का मालिक, एक मोटा और हंसमुख दिखने वाला जल-तत्वधारी, अपनी मोटी मूंछों पर हाथ फेरते हुए उनकी ओर तैरकर आया। "स्वागत है, यात्रियों! लगता है आप दूर से आए हैं।" उसकी आवाज़ में एक गर्मजोशी थी।



    समीर ने आगे बढ़कर विनम्रता से कहा, "हाँ, महोदय। हम शांतिवन से हैं, व्यापार के सिलसिले में आए हैं। क्या हमें यहाँ कुछ दिनों के लिए जगह मिल सकती है?"



    "शांतिवन?" मालिक की मूंछें ऊपर उठीं। "बहुत दूर है। हाँ, आपको जगह मिल जाएगी। आजकल वैसे भी ग्राहक कम हैं। ज़्यादातर लोग कहीं नहीं जाते।" उसकी आवाज़ में एक हल्की सी उदासी थी।



    "क्यों, मालिक?" भैरवी ने जिज्ञासा से पूछा। "क्या कोई परेशानी है?"



    मालिक ने एक गहरी साँस ली, जिससे उसके फेफड़े हवा से भर गए। "परेशानी? परेशानी ही परेशानी है, बच्ची। आजकल हर चीज़ महँगी हो गई है। मंत्री जलसेन के नए आदेशों के कारण कर इतने बढ़ गए हैं कि लोगों का जीना मुश्किल हो गया है।" उसने अपने हाथों को हवा में लहराया, जैसे अपनी हताशा व्यक्त कर रहा हो।



    आरव ने समीर की ओर देखा। यही वह जानकारी थी जिसकी उन्हें तलाश थी।



    रिया ने अपने चेहरे पर उदासीनता का भाव बनाए रखा। "कर? लेकिन जलधि तो हमेशा से एक समृद्ध साम्राज्य रहा है। ऐसा क्या हुआ?"



    मालिक अपने चेहरे पर निराशा लेकर बोला, "क्या बताएँ! पहले हम अपनी कमाई का दसवाँ हिस्सा देते थे, अब वह बीसवाँ हो गया है! और मंत्री का कहना है कि यह सब 'सुरक्षा' के लिए है। लेकिन हमें कौन सा खतरा है? जलधि हमेशा से सुरक्षित रहा है। यह बस गरीब लोगों को निचोड़ने का एक बहाना है।" उसने एक समुद्री फल का एक टुकड़ा लिया और उसे चबाने लगा, उसकी आँखें दूर किसी बिंदु पर टिकी हुई थीं।



    "सुरक्षा?" समीर ने पूछा। "किस चीज़ की सुरक्षा? क्या शहर पर कोई खतरा है?"



    मालिक ने सिर हिलाया। "नहीं, कोई खतरा नहीं। कम से कम, ऐसा कुछ हमें बताया तो नहीं गया। बस 'बाहरी खतरों' की बात करते हैं। कुछ महीनों से ही यह सब शुरू हुआ है। जब से मंत्री जलसेन ने कुछ नए 'सलाहकारों' को अपने पास रखा है।" उसकी आवाज़ धीमी हो गई, जैसे वह किसी गुप्त बात का ज़िक्र कर रहा हो।



    आरव की आँखों में एक चमक आई। 'नए सलाहकार'? यह संदिग्ध लग रहा था।



    "ये सलाहकार कौन हैं?" भैरवी ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक हल्की सी चिंता थी।



    मालिक ने चारों ओर देखा, जैसे सुनिश्चित कर रहा हो कि कोई सुन तो नहीं रहा। "मुझे नहीं पता। वे हमेशा काले कपड़े पहनते हैं और अपनी पहचान छिपाते हैं। वे सीधे मंत्री से बात करते हैं। कुछ कहते हैं कि वे अग्नि गणराज्य से हैं, लेकिन मुझे विश्वास नहीं होता। अग्नि गणराज्य के लोग सीधे और स्पष्ट होते हैं, लेकिन ये सलाहकार बहुत रहस्यमयी हैं। उनकी वजह से ही मंत्री का व्यवहार भी बदल गया है।"



    रिया ने अपनी मुट्ठी कस ली। 'काले कपड़े'? 'अग्नि गणराज्य से?' उसे तुरंत निर्-तत्वों की याद आई। यह सब उसके पिता की चाल लग रही थी। उसका चेहरा हल्का लाल हो गया, लेकिन उसने खुद को शांत रखा।



    "तो, मंत्री जलसेन पर क्या प्रभाव पड़ा है?" आरव ने पूछा, उसकी आवाज़ में उत्सुकता थी।



    मालिक ने अपने सिर को निराशा में हिलाया। "वह बदल गया है। पहले वह हमारे लोगों की सुनता था, वह दयालु था। अब वह बस आदेश देता है, और वह हमेशा गुस्से में रहता है। वह महल से बाहर भी बहुत कम निकलता है। लोग कहते हैं कि वह किसी चीज़ से डरा हुआ है।"



    यह जानकारी उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी। मंत्री डरा हुआ था। इसका मतलब था कि उसे मजबूर किया जा रहा था।



    "धन्यवाद, मालिक," समीर ने कहा। "यह जानकारी हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।"



    "कोई बात नहीं, मेरे बच्चे," मालिक ने हाथ हिलाया। "कम से कम कोई मेरी बात तो सुन रहा है।"



    उन्होंने एक छोटा सा कक्ष किराए पर लिया और अपनी चीज़ें अंदर रखीं। कक्ष के अंदर भी पानी था, लेकिन एक बड़ा वायु-क्षेत्र था जहाँ वे बैठकर आराम कर सकते थे।



    "तो," रिया ने कहा, जैसे ही वे अंदर आए और चारों ओर देखने के बाद, "मंत्री जलसेन दबाव में है। और उसके 'सलाहकार' निर्-तत्व हो सकते हैं।" उसकी आवाज़ में गुस्सा और दृढ़ संकल्प था।



    "इससे पता चलता है कि विक्रम का हाथ कितना दूर तक पहुँच चुका है," समीर ने चिंता से कहा। "उसने जल साम्राज्य में भी घुसपैठ कर ली है।"



    भैरवी ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "हमें उसे रोकना होगा। मंत्री की मदद करनी होगी।"



    आरव ने सिर हिलाया। "सबसे पहले, हमें मंत्री का महल देखना होगा। और यह पता लगाना होगा कि वे 'सलाहकार' कौन हैं।"



    उन्हें पता था कि वे एक खतरनाक खेल में उतर रहे थे। जलधि की यह चमकती हुई सतह, उसके नीचे छिपे अंधेरे को छिपा रही थी। और उन्हें उस अंधेरे में गोता लगाना था, भले ही इसका मतलब कितना भी जोखिम क्यों न हो। उनका मिशन अब और भी स्पष्ट हो गया था – मंत्री को बचाना और सम्राट विक्रम के षड्यंत्र का पर्दाफाश करना।

  • 16. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 16

    Words: 20

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 16
    अगले दिन, सुबह होते ही टीम ने मंत्री जलसेन के महल की ओर अपना रास्ता बनाया। सराय के मालिक से मिली जानकारी के बाद, उन्हें पता था कि उनका पहला लक्ष्य महल ही होना चाहिए। वे व्यापारी के भेष में ही थे, और इस बात का ध्यान रख रहे थे कि वे किसी का ध्यान अपनी ओर न खींचें। जलधि की सुबह भी उतनी ही शांत और चमकदार थी जितनी रात। पानी की किरणें गुंबद से छनकर अंदर आ रही थीं, जिससे पूरा शहर एक नरम, चमकीली रोशनी से नहाया हुआ था।





    शहर के केंद्र में स्थित, मंत्री जलसेन का महल एक शानदार दृश्य था। यह सिर्फ एक भवन नहीं, बल्कि मूंगे और समुद्री रत्नों से बना एक विशाल, जटिल ढाँचा था। उसके टॉवर नीले, हरे और सुनहरे रंगों में चमक रहे थे, और उनके शीर्ष पर बड़े, पारदर्शी क्रिस्टल थे जो सूरज की रोशनी को सोखकर उसे पूरे महल में बिखेर रहे थे। महल के चारों ओर विशालकाय समुद्री शैवाल के बगीचे थे, जिनमें रंगीन मछलियाँ तैर रही थीं। लेकिन इस सुंदरता के बीच भी, कुछ ऐसा था जो तुरंत आँखों को खटक रहा था।





    "देखो," समीर ने फुसफुसाया, उसने अपने हाथ से महल की ओर इशारा किया। "सुरक्षा।"





    रिया, भैरवी और आरव ने देखा। महल के हर प्रवेश द्वार पर, हर खिड़की के पास, और यहाँ तक कि उसकी दीवारों पर भी, जल-तत्वधारी रक्षकों की एक मोटी परत थी। वे सादे वर्दी में नहीं थे, बल्कि भारी कवच पहने हुए थे जो समुद्री कछुओं के कठोर कवच से बना लग रहा था। उनके जल-भाले पहले से कहीं ज़्यादा बड़े और चमकते हुए थे। कुछ रक्षक तो विशेष रूप से प्रशिक्षित विशाल समुद्री जीवों पर भी सवार थे, जो महल के चारों ओर गश्त लगा रहे थे।





    "इतनी सुरक्षा?" भैरवी ने हैरानी से कहा। "यह तो किसी किले जैसा लग रहा है।"





    "मालिक सही था," रिया ने गंभीर स्वर में कहा। "मंत्री डरा हुआ है। यह उसकी अपनी सुरक्षा के लिए नहीं है, बल्कि शायद उसे किसी चीज़ से बचाने के लिए है... या किसी को अंदर जाने से रोकने के लिए।" उसकी आँखों में एक गहरी सोच थी। वह जानती थी कि उसके पिता भी इसी तरह की सुरक्षा का इस्तेमाल करते थे जब वह कुछ छिपाना चाहते थे।





    आरव ने महल के चारों ओर अपनी नज़रें घुमाईं। "हमें करीब जाना होगा। इस सुरक्षा में कोई न कोई कमज़ोरी तो होगी।"





    समीर ने अपने सिर को धीरे से हिलाया। "सीधे अंदर जाना असंभव है। हमें दूर से ही उस पर नज़र रखनी होगी। शायद हमें कोई गुप्त प्रवेश द्वार मिल जाए, या कोई ऐसा तरीका जिससे हम बिना पकड़े गए अंदर जा सकें।"





    उन्होंने महल से थोड़ी दूरी पर तैरना शुरू किया, जैसे वे शहर के सामान्य आगंतुक हों। वे आस-पास के भवनों का सर्वेक्षण कर रहे थे, यह देखने के लिए कि क्या कोई ऐसी जगह थी जहाँ से वे महल पर बेहतर नज़र रख सकें। कुछ समय बाद, उन्हें महल के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में एक पुरानी, खाली इमारत मिली। यह कभी एक भव्य घर रहा होगा, लेकिन अब वह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था। उसकी खिड़कियों पर धूल जम गई थी और उसके कुछ मूंगे के स्तंभ टूट गए थे।





    "देखो वह इमारत," आरव ने इशारा किया। "वह महल से उतनी दूर नहीं है, लेकिन उतनी करीब भी नहीं कि हम तुरंत पकड़े जाएँ। और वह खाली लग रही है।"





    समीर ने उसे ध्यान से देखा। "ठीक है। वह एक अच्छा अस्थायी ठिकाना हो सकती है। हमें अंदर जाकर यह सुनिश्चित करना होगा कि वह वास्तव में खाली है।"





    वे चुपचाप उस इमारत की ओर तैरते रहे। इमारत के प्रवेश द्वार पर कुछ समुद्री शैवाल और कचरा जमा था। समीर ने धीरे से दरवाजा खोला, जो एक हल्की सी गूँज के साथ खुला। वे एक-एक करके अंदर घुसे।





    अंदर, इमारत बहुत पुरानी और धूल भरी थी, जैसा कि आरव ने अनुमान लगाया था। फर्नीचर या किसी भी व्यक्तिगत सामान का कोई निशान नहीं था। पानी में पुरानी धूल के कण तैर रहे थे, और दीवारों पर समुद्री काई जम गई थी। यह एक परित्यक्त जगह थी।





    "यह एकदम सही है," भैरवी ने कहा, उसने एक पुरानी खिड़की से महल की ओर झाँका। "यहाँ से हमें अच्छी नज़र मिलेगी, और हम किसी को दिखाई भी नहीं देंगे।"





    उन्होंने इमारत के अंदर सबसे अच्छी जगह चुनी, जहाँ से वे महल के मुख्य प्रवेश द्वार और कुछ बड़ी खिड़कियों पर नज़र रख सकें। उन्होंने अपने छोटे से वायु-बुलबुले वाले उपकरण को सक्रिय किया ताकि वे अंदर थोड़ी देर आराम कर सकें।





    "ठीक है," समीर ने अपनी आँखों से महल को स्कैन करते हुए कहा। "अब हमें धैर्य रखना होगा। मंत्री जलसेन बाहर कब आता है, या कौन उससे मिलने आता है, यह देखना होगा। और खासकर, उन 'सलाहकारों' पर नज़र रखनी होगी।"





    रिया ने एक गहरी साँस ली। "काश, हम सीधा अंदर घुस सकते।"





    "धैर्य रखना ही बुद्धिमत्ता है, रिया," आरव ने शांति से कहा। "बिना सोचे-समझे घुसने से हम पकड़े जा सकते हैं और फिर सब खत्म हो जाएगा।" उसकी आवाज़ में एक नई परिपक्वता थी, जो उसने अकादमी में सीखी थी।





    रिया ने उसकी ओर देखा, और इस बार उसने कोई व्यंग्य नहीं किया। "तुम सही हो, शून्य। यह जल्दबाज़ी का समय नहीं है।"





    उन्होंने महल पर नज़र रखना शुरू कर दिया। दिन काफ़ी समय उन्होंने इसी तरह बिताया। वे चुपचाप बैठते, महल की हर गतिविधि को देखते, और कभी-कभी एक-दूसरे से फुसफुसाते हुए अपनी टिप्पणियाँ साझा करते। महल के चारों ओर रक्षकों की आवाजाही लगातार बनी हुई थी, जिससे समीर को यह विश्वास हो गया कि सुरक्षा में कोई ढील नहीं दी जाएगी।





    दोपहर ढलने लगी, और पानी में रोशनी का रंग हल्का होने लगा। आरव ने देखा कि महल के अंदर कुछ खिड़कियों पर रोशनी जलने लगी थी, जैसे अंदर बैठकें चल रही हों। उसने कल्पना की कि अंदर क्या हो रहा होगा।





    जैसे-जैसे शाम गहरी होती गई, महल के पास हलचल थोड़ी कम होने लगी। रक्षकों की गश्त धीमी हो गई, हालांकि उनकी संख्या कम नहीं हुई। भैरवी ने उबासी ली। "यह इंतज़ार करना बहुत थकाऊ है।"





    "हमें धैर्य रखना होगा," समीर ने दोहराया। "बड़ी मछलियाँ अक्सर रात में ही आती हैं।"





    आरव ने महसूस किया कि इस खाली इमारत में भी, हवा में एक अजीब सी ऊर्जा का कंपन था। यह बहुत हल्का था, लगभग न के बराबर, लेकिन उसकी इंद्रियों को कुछ बता रहा था। उसे लगा कि वह सिर्फ महल की ऊर्जा नहीं है, बल्कि कुछ और है, जो अदृश्य है, लेकिन मौजूद है। यह एक सूक्ष्म एहसास था, जो उसे उसकी अज्ञात शक्तियों के जागृत होने के बाद से ज़्यादा महसूस होने लगा था।





    रात और गहरी हो गई। जलधि अब पहले से कहीं ज़्यादा शांत लग रहा था, केवल दूर से समुद्री जीवों की आवाज़ें आ रही थीं। अचानक, समीर ने अपनी वायु-शक्ति का उपयोग करके महल के मुख्य द्वार के पास से आने वाली आवाज़ों को सुनने की कोशिश की। पानी में आवाज़ों को सुनना मुश्किल था, लेकिन वह जानता था कि उसे सूक्ष्म से सूक्ष्म कंपन को पकड़ना होगा।





    "मुझे कुछ सुनाई दे रहा है," समीर ने फुसफुसाया। उसकी आँखें महल के एक बड़े, रोशनी वाले कक्ष की ओर टिकी थीं, जो महल के ठीक बीच में था। वह कक्ष स्पष्ट रूप से मंत्री का कार्यालय या बैठक कक्ष था। "लगता है अंदर कोई बहस चल रही है।"





    रिया और भैरवी उसकी ओर झुक गए, ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगे। आरव भी एकाग्रचित्त होकर उस दिशा में देखने लगा।





    "आवाज़ें साफ नहीं आ रही हैं," समीर ने कहा, उसकी भौंहों पर शिकन थी। "पानी की वजह से... लेकिन मैं सुन सकता हूँ कि मंत्री जलसेन की आवाज़ बहुत तेज़ है। वह चिल्ला रहा है। और कोई और भी है, जिसकी आवाज़ नीची है, लेकिन उसमें एक अधिकार है।"





    "चिल्ला रहा है?" भैरवी ने धीरे से पूछा। "क्या वह गुस्से में है?"





    समीर ने थोड़ी देर और ध्यान से सुना, फिर अपने सिर को हिलाया। "नहीं... यह गुस्से की आवाज़ नहीं है। यह... डर की आवाज़ है। वह डरा हुआ लग रहा है, और वह किसी को जवाब दे रहा है।"





    भैरवी ने रिया की ओर देखा, उसकी आँखों में दुख था। "मालिक सही था। मंत्री डरा हुआ है।"





    आरव ने महसूस किया कि समीर के शब्दों के साथ ही, उस क्षेत्र में एक अजीब सी "शून्य" ऊर्जा की उपस्थिति बढ़ गई थी। यह वह ऊर्जा थी जो उसने तब महसूस की थी जब निर्-तत्वों ने अकादमी पर हमला किया था। यह एक अप्रिय, ठंडी और खाली ऊर्जा थी, जैसे वह आसपास के तत्वों को सोख रही हो। यह उसके अंदर एक चेतावनी की घंटी बजा रही थी।





    उसने धीरे से कहा, "मुझे यहाँ एक अजीब सी ऊर्जा महसूस हो रही है। यह... निर्-तत्वों जैसी है। यह बहुत हल्की है, लेकिन वहाँ है। यह महल के अंदर से आ रही है।" उसकी आवाज़ गंभीर थी।





    रिया और समीर ने एक-दूसरे की ओर देखा। आरव की यह नई क्षमता, ऊर्जा को महसूस करने की, उनके लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन रही थी।





    "तो, वे अंदर हैं," रिया ने अपनी मुट्ठी कसते हुए कहा। "वे मंत्री को ब्लैकमेल कर रहे हैं। हमें उन्हें पकड़ना होगा।"





    समीर ने सिर हिलाया। "हमें और इंतज़ार करना होगा। शायद रात में ही वे बाहर निकलें, या मंत्री खुद किसी से मिले। हमें बस तैयार रहना होगा।"





    वे महल पर अपनी नज़रें गड़ाए बैठे रहे, अंधेरे में छिपी उम्मीद और चिंता के साथ। उन्हें पता था कि वे एक खतरनाक खेल के केंद्र में थे, और मंत्री जलसेन केवल एक मोहरा था। असली दुश्मन कहीं और छिपा था, और उन्हें उसे उजागर करना था। महल के अंदर से आती मंत्री की डरी हुई आवाज़ और आरव द्वारा महसूस की गई 'शून्य' ऊर्जा, यह साबित कर रही थी कि वे सही रास्ते पर थे, और खतरा बहुत करीब था।

  • 17. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 17

    Words: 26

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 17
    रात गहरी होती जा रही थी। "गहराई का विश्रामगृह" नामक सराय के पास बनी उस पुरानी, परित्यक्त इमारत में आरव, रिया, समीर और भैरवी ने घंटों बिना पलक झपकाए महल पर नज़र रखी थी। उनके शरीर पानी में लगातार तैरने के कारण थके हुए थे, लेकिन उनका मन सतर्क था। समीर ने अपनी वायु-शक्ति का उपयोग करके अपने आसपास एक छोटा सा वायु-क्षेत्र बना रखा था ताकि वे पानी के नीचे भी आराम कर सकें, लेकिन तनाव उन्हें सोने नहीं दे रहा था।





    रिया ने अपनी आँखें मलते हुए फुसफुसाया, "मुझे लगता है हम यहाँ पूरी रात बैठे रहेंगे।" उसकी आवाज़ में थोड़ी झुंझलाहट थी। "यह इंतज़ार करना मुझे किसी अग्नि-परीक्षण से भी ज़्यादा मुश्किल लग रहा है।"





    "धैर्य रखो, रिया," भैरवी ने धीमे स्वर में कहा। "शायद यह रात ही कुछ दिखाए।" उसकी आँखों में भी थकान थी, लेकिन वह अभी भी आशावान थी।





    आरव चुपचाप बैठा था, उसकी आँखें महल के मुख्य द्वार पर टिकी हुई थीं। उसके अंदर वह 'शून्य' ऊर्जा का अजीब सा एहसास धीरे-धीरे बढ़ रहा था, जैसे कोई अदृश्य तरंग महल के अंदर से लगातार फैल रही हो। यह ऊर्जा ठंडी थी, और उसे एक अजीब सी बेचैनी दे रही थी। वह जानता था कि इसका मतलब है कि निर्-तत्व कहीं पास ही हैं।





    "देखो!" समीर ने अचानक कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उत्तेजना थी। उसने अपनी उंगली महल के एक छोटे, साइड के दरवाज़े की ओर उठाई, जो मुख्य द्वार से दूर और कम रोशनी वाले इलाके में था।





    उनकी आँखें तुरंत उस ओर मुड़ गईं। उन्होंने देखा कि दरवाज़ा धीरे से खुला, और उसमें से एक आकृति निकली। आकृति ने सादे, भूरे कपड़े पहने हुए थे, जो जलधि के आम नागरिकों जैसे थे। उसने अपना चेहरा एक बड़े कपड़े से ढका हुआ था, और वह बहुत तेज़ी से और घबराकर आगे बढ़ रहा था। वह कोई रक्षक नहीं था।





    "वह मंत्री जलसेन है!" आरव ने फुसफुसाया, उसे एक पल में पहचान लिया। भले ही उसका चेहरा ढका था, लेकिन उसकी चाल, उसका कद, और जिस तरह से वह घबराया हुआ था, वह सब मंत्री जैसा ही लग रहा था।





    "वह भेष बदलकर बाहर निकला है," रिया ने कहा। "हमें उसका पीछा करना होगा।"





    "हाँ, लेकिन बहुत सावधानी से," समीर ने चेतावनी दी। "वह बहुत सतर्क लग रहा है। हमें उससे पर्याप्त दूरी रखनी होगी ताकि वह हमें देख न सके, लेकिन इतनी भी दूर नहीं कि हम उसे खो दें।"





    उन्होंने तुरंत कार्रवाई की। वे चुपचाप इमारत से बाहर निकले और मंत्री के पीछे-पीछे तैरने लगे। रात के पानी में उनकी चाल बहुत धीमी और चुपचाप थी, जैसे वे खुद पानी का हिस्सा हों। जलधि की रात में कुछ समुद्री जीव चमक रहे थे, जो पानी को एक जादुई चमक दे रहे थे, लेकिन टीम का ध्यान मंत्री पर था।





    मंत्री गलियों से होते हुए आगे बढ़ रहा था, जैसे कोई डरपोक चोर। वह बार-बार पीछे मुड़कर देखता था, जैसे उसे डर हो कि कोई उसका पीछा कर रहा है। उसकी हर चाल में एक अजीब सी बेचैनी थी।





    वे संकरी गलियों से गुज़रे, जहाँ पुरानी, टूटी हुई इमारतें और खाली समुद्री उद्यान थे। शहर की चहल-पहल वाली जगहों से दूर, यह इलाका शांत और उजाड़ था। आरव को महसूस हुआ कि 'शून्य' ऊर्जा का दबाव बढ़ता जा रहा था। यह एक संकेत था कि वे सही दिशा में जा रहे थे।





    कुछ देर पीछा करने के बाद, मंत्री ने उन्हें शहर के एक पुराने, परित्यक्त औद्योगिक क्षेत्र में पहुँचाया। यह इलाका शहर के बाकी हिस्से से बिल्कुल अलग था। यहाँ मूंगे के भव्य भवन नहीं थे, बल्कि जंग लगे धातु के ढांचे, टूटी हुई मशीनें और बड़े-बड़े पाइप थे जो पानी में नीचे की ओर जा रहे थे। कभी यहाँ बड़ी-बड़ी समुद्री मशीनें चलती होंगी, लेकिन अब सब कुछ शांत और वीरान था। पानी में भी यहाँ ज़्यादा रोशनी नहीं थी, जिससे यह जगह और भी डरावनी लग रही थी।





    "यह जगह..." भैरवी ने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ में थोड़ी घबराहट थी। "यह तो किसी भूतिया जगह जैसी है।"





    रिया ने सहमति में सिर हिलाया। "हाँ, एक डरावनी जगह। ऐसी जगह जहाँ कोई भी अपने बुरे काम को छिपा सके।"





    मंत्री एक विशाल, टूटी हुई मशीन के पीछे रुक गया। वह चारों ओर देखने लगा, उसकी हर हरकत में हड़बड़ी थी। वह किसी का इंतज़ार कर रहा था। टीम ने पास के एक बड़े, जंग लगे पाइप के पीछे छिपकर उसे देखा।





    आरव की 'शून्य' ऊर्जा अब बहुत तेज़ हो चुकी थी। वह लगभग भौतिक रूप से उसे महसूस कर सकता था, जैसे वह उसके फेफड़ों को जकड़ रही हो। यह ठंडक उसके अंदर तक पहुँच रही थी। यह निर्-तत्वों की उपस्थिति का स्पष्ट संकेत था।





    मंत्री बेचैनी से इंतजार कर रहा था, अपने हाथों को मलता हुआ। वह बार-बार उस औद्योगिक क्षेत्र के गहरे, अंधेरे हिस्सों की ओर देखता था, जहाँ रोशनी और भी कम थी।





    फिर, अंधेरे में से, कुछ आकृतियाँ उभरने लगीं। वे चुपचाप तैर रही थीं, जैसे पानी में कोई परछाईं हो। एक, दो, तीन… पाँच आकृतियाँ। सभी ने गहरे, काले कपड़े पहने हुए थे, जो पानी में लगभग अदृश्य थे। उनके चेहरे हुड से ढके हुए थे, जिससे उनकी पहचान करना असंभव था। उनकी हर चाल में एक भयानक शांति थी, जो उनकी ताकत और इरादे को दर्शाती थी।





    जैसे ही वे करीब आए, मंत्री जलसेन और भी ज़्यादा डर गया। उसका शरीर कांपने लगा, हालांकि उसने खुद को स्थिर रखने की कोशिश की।





    "निर्-तत्व!" रिया ने फुसफुसाया, उसकी आँखों में गुस्सा और घृणा थी। "मैं जानती थी!"





    समीर ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "तो वे यहीं छिपे थे।"





    आरव ने उन्हें देखा। 'शून्य' ऊर्जा इतनी प्रबल थी कि वह उसे लगभग देख सकता था, जैसे अंधेरे में एक अदृश्य कोहरा हो। यह ऊर्जा उस समूह से निकल रही थी, जिससे उन्हें यह भी पुष्टि हो गई कि ये वही हमलावर थे जिन्होंने अकादमी पर हमला किया था।





    निर्-तत्वों का नेता, जो सबसे लंबा और सबसे प्रभावशाली लग रहा था, मंत्री जलसेन के ठीक सामने आकर रुका। उसकी हुड वाली आँखों से कोई रोशनी नहीं दिख रही थी, लेकिन उसकी उपस्थिति ही धमकी भरी थी। मंत्री ने सिर झुका लिया, जैसे कोई छोटा बच्चा अपने माता-पिता के सामने खड़ा हो।





    वे टीम से थोड़ी दूर थे, लेकिन पानी में आवाज़ थोड़ी साफ़ आ रही थी। अब वे उनकी बातचीत सुन सकते थे। मंत्री और निर्-तत्वों के बीच की बातचीत, जो अगले ही पल शुरू होने वाली थी, उनके मिशन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ होने वाली थी। टीम ने अपनी साँसें रोक लीं, हर शब्द सुनने के लिए तैयार। यह स्पष्ट था कि मंत्री जलसेन एक गहरी मुसीबत में था, और निर्-तत्व उसे पूरी तरह से नियंत्रित कर रहे थे।

  • 18. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 18

    Words: 17

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 18
    Chapter 18
    मंत्री जलसेन के सामने खड़ा निर्-तत्वों का नेता एक काली, सघन छाया जैसा लग रहा था। उसकी हुड वाली आँखों से कोई भाव नहीं दिख रहे थे, लेकिन उसकी उपस्थिति ही इतनी भारी थी कि मंत्री थरथरा रहा था। टीम, जंग लगे पाइप के पीछे छिपी हुई, अपनी साँसें रोककर उनकी बातचीत सुन रही थी। 'शून्य' ऊर्जा का दबाव अब इतना ज़्यादा था कि आरव के सिर में हल्का दर्द होने लगा था, जैसे उसके आसपास की हवा भी उस नकारात्मक ऊर्जा से भर गई हो।







    "मंत्री जलसेन," निर्-तत्व नेता की आवाज़ ठंडी और सपाट थी, उसमें कोई मानवीय भावना नहीं थी। वह पानी के नीचे एक गूँज की तरह लग रही थी। "तुम देर से आए हो। क्या काम पूरा हो गया?"







    मंत्री जलसेन ने सिर उठाया, उसकी आँखों में डर स्पष्ट था। उसने हिम्मत जुटाकर कहा, "क्षमा करें, महानुभाव। नहीं... नहीं, अभी नहीं।" उसकी आवाज़ काँप रही थी। "मुझे... मुझे और समय चाहिए। यह इतना आसान नहीं है। जलधि के लोग... वे सवाल कर रहे हैं।"







    "सवाल?" नेता की आवाज़ में खतरा बढ़ गया। "तो तुमने हमारे आदेशों का पालन नहीं किया?"







    "नहीं! नहीं, ऐसा नहीं है!" मंत्री ने जल्दी से सफाई दी। "मैंने सभी आदेश दिए हैं। कर बढ़ा दिए गए हैं, सभी पुराने व्यापार मार्ग बंद कर दिए गए हैं, और बाहरी लोगों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। लेकिन लोगों में असंतोष बढ़ रहा है। वे भूख से मर रहे हैं। मैं... मैं बस और तेज़ी से नहीं कर सकता। अगर मैंने और दबाव डाला, तो विद्रोह हो जाएगा।" उसकी आवाज़ में विनती थी।







    निर्-तत्व नेता कुछ पल के लिए शांत रहा। यह शांति मंत्री के लिए किसी बर्फीली धार से कम नहीं थी। टीम भी पाइप के पीछे से सब कुछ सुन रही थी, और उन्हें मंत्री की बेबसी साफ महसूस हो रही थी। रिया की मुट्ठियाँ कस गईं, उसके चेहरे पर गुस्सा था।







    "विद्रोह?" नेता ने धीरे से कहा, जैसे वह इस शब्द का स्वाद ले रहा हो। "हमें तुम्हारी इन छोटी-छोटी समस्याओं में कोई दिलचस्पी नहीं है, मंत्री। सम्राट विक्रम को सिर्फ परिणाम चाहिए। वह पूरी दुनिया को एक करना चाहते हैं, और जलधि उनमें से पहली कड़ी है।"







    "मैं समझता हूँ," मंत्री जलसेन ने जल्दी से कहा। "और मैं वचन देता हूँ कि मैं जल्द से जल्द काम पूरा करूँगा। बस... बस थोड़ा और समय।"







    निर्-तत्व नेता मंत्री के करीब आया, उसकी काली परछाई उस पर पड़ रही थी। "समय एक ऐसी चीज़ है जो हमारे पास नहीं है, मंत्री। तुम इसे कितनी आसानी से माँगते हो।" उसने अचानक अपनी आवाज़ नीची कर ली, लेकिन उसमें ज़हर भरा था। "याद है, मंत्री? याद है तुम्हारी बेटी, मीना?"







    मंत्री जलसेन का चेहरा, जो पहले से ही पीला था, अब पूरी तरह से सफेद पड़ गया। उसकी आँखें फैल गईं, और वह थरथराने लगा। "मीना... मेरी मीना... उसे कुछ मत करना!" उसकी आवाज़ एक फुसफुसाहट में बदल गई, जैसे सारी हवा निकल गई हो।







    रिया की साँस रुक गई। "तो यह है!" उसने फुसफुसाते हुए कहा, उसके चेहरे पर झटका था। "उसके पिता ने उसे बंधक बना लिया है!" उसका गुस्सा और भी भड़क गया। यह ठीक वैसा ही था जैसे विक्रम अपने विरोधियों को मजबूर करता था।







    "यह दुष्टता है!" भैरवी ने फुसफुसाया, उसकी आँखों में आँसू थे। "एक पिता अपनी ही बेटी को...?"







    आरव ने समीर की ओर देखा। समीर का चेहरा भी कठोर हो गया था। यह उनकी सबसे बुरी आशंका से भी ज़्यादा बुरा था।







    निर्-तत्व नेता की आवाज़ जारी थी, जैसे वह मंत्री के दिल में सुई चुभा रहा हो। "वह बहुत अच्छी है, मंत्री। बहुत आज्ञाकारी है। लेकिन तुम जानते हो, अगर उसके पिता हमारी बात नहीं सुनते, तो हमारी आज्ञाकारिता की कोई सीमा नहीं रहती।"







    "नहीं! नहीं, कृपया!" मंत्री जलसेन ने हाथ जोड़े। "मैं सब करूँगा! जो कहोगे, वह करूँगा! बस मेरी बेटी को छोड़ दो। मैं कसम खाता हूँ, मैं सब कर दूँगा। मुझे बस एक आखिरी मौका दो।"







    "तुम हमें निराश नहीं कर सकते, मंत्री," नेता ने चेतावनी दी। "तुम्हारे पास दो दिन हैं। दो दिनों के भीतर, जलधि पूरी तरह से हमारे नियंत्रण में होनी चाहिए। और कोई सवाल नहीं, कोई विद्रोह नहीं। समझ गए?"







    मंत्री ने कांपते हुए सिर हिलाया। "हाँ... हाँ, मैं समझ गया। दो दिन। मैं करूँगा।"







    "अच्छा," नेता ने कहा। "और अब जाओ। हमें तुम्हारे यहाँ खड़े रहने की कोई ज़रूरत नहीं है।"







    मंत्री जलसेन ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह तेज़ी से उसी रास्ते से वापस तैर गया जिससे वह आया था, उसकी चाल में अब और भी ज़्यादा दहशत थी। जैसे ही वह आँखों से ओझल हो गया, निर्-तत्व नेता अपने बाकी साथियों की ओर मुड़ा।







    टीम ने उन्हें छिपकर देखा। नेता ने अपने एक साथी से फुसफुसाते हुए कुछ कहा, लेकिन उनकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि टीम उन्हें सुन नहीं पाई। फिर, वे सभी उसी अंधेरे, औद्योगिक क्षेत्र के और भी गहरे, अज्ञात हिस्सों में तैर गए। वे इतनी खामोशी से गायब हुए कि एक पल के लिए लगा जैसे वे कभी थे ही नहीं।







    जब सब शांत हो गया, तो समीर ने धीरे से इशारा किया। "वे चले गए।"







    रिया गुस्से से काँप रही थी। "विश्वास नहीं हो रहा! मेरे पिता... वह ऐसे तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं! यह एक निर्दोष परिवार को तोड़ने जैसा है!" उसके चेहरे पर गहरी निराशा और क्रोध था। उसे इस बात का अहसास हो रहा था कि विक्रम की क्रूरता कितनी दूर तक जा सकती है।







    भैरवी ने मंत्री जलसेन के लिए सहानुभूति महसूस की। "उस बेचारे मंत्री की बेटी को बंधक बना लिया है। वह मजबूर है।"







    "तो यह है असली खेल," आरव ने गहरी आवाज़ में कहा। "वे जलधि को अंदर से कमज़ोर कर रहे हैं, ताकि बाद में उस पर आसानी से कब्ज़ा कर सकें। और मंत्री जलसेन उनका मोहरा है।"







    समीर ने अपनी दाढ़ी खुजाई। "हमारी प्राथमिकता अब साफ है। हमें मीना को बचाना होगा। तभी मंत्री जलसेन आज़ाद हो पाएगा और हमें सही जानकारी दे पाएगा।"







    रिया ने सहमति में सिर हिलाया। "हाँ! और हमें उन निर्-तत्वों को भी सबक सिखाना होगा।" उसकी आँखों में आग थी, जो उसके नाम को सही ठहरा रही थी।







    "लेकिन कहाँ से शुरू करें?" भैरवी ने पूछा। "वे इस बड़े औद्योगिक क्षेत्र में कहीं भी हो सकते हैं।"







    आरव ने चारों ओर देखा, अपनी इंद्रियों को 'शून्य' ऊर्जा के स्रोत पर केंद्रित किया। वह अभी भी एक हल्की सी ठंडी ऊर्जा महसूस कर सकता था, जैसे वे अभी भी आस-पास हों। "मुझे लगता है कि वे यहीं कहीं आस-पास छिपे हैं। यह ऊर्जा अभी भी यहीं पर है, थोड़ी कम हुई है, लेकिन पूरी तरह से गायब नहीं हुई है।"







    समीर ने आरव के कंधे पर हाथ रखा। "ठीक है, आरव। तुम्हारी इंद्रियाँ हमें रास्ता दिखाएंगी। हमें इस औद्योगिक क्षेत्र को खंगालना होगा। हर कोने, हर मशीन, हर पाइप को देखना होगा।"







    "लेकिन हम अकेले नहीं जा सकते," रिया ने कहा। "यह बहुत बड़ा इलाका है, और अगर वे अंदर छिप गए हैं, तो हमें उनकी संख्या का अंदाज़ा नहीं होगा।"







    "हमें पहले मंत्री जलसेन से मिलना होगा," आरव ने सुझाव दिया। "वह हमें बता सकता है कि मीना को कहाँ रखा गया है। अगर हमें सही ठिकाना पता चल जाए, तो हमें इस पूरे इलाके को छानने की ज़रूरत नहीं होगी।"







    समीर ने सोचा। "तुम सही कह रहे हो। लेकिन उससे मिलना आसान नहीं होगा। वह अभी बहुत डरा हुआ होगा, और शायद हमसे बात भी न करना चाहे।"







    "हमें उसे विश्वास दिलाना होगा कि हम उसकी मदद करने आए हैं, दुश्मन नहीं," भैरवी ने कहा। "उसे यह समझना होगा कि उसकी बेटी को बचाने का यही एकमात्र रास्ता है।"







    रिया ने एक गहरी साँस ली, उसके गुस्से के बावजूद, अब उसके चेहरे पर एक दृढ़ संकल्प था। "ठीक है। हम उससे मिलेंगे। उसे अपनी बेटी के लिए लड़ने की हिम्मत देनी होगी। और फिर, हम मीना को बचाने और इन निर्-तत्वों को जड़ से खत्म करने के लिए उनकी जगह पर हमला करेंगे।"







    उन्होंने फैसला किया कि वे वापस उसी परित्यक्त इमारत में जाएंगे जहाँ वे छिपे थे, और सुबह का इंतज़ार करेंगे। मंत्री जलसेन से मिलने की योजना बनाना होगा। यह एक जोखिम भरा कदम था, लेकिन मीना को बचाना ही उनकी पहली प्राथमिकता थी। उनके सामने अब एक स्पष्ट लक्ष्य था: मंत्री की बेटी को आज़ाद कराना और सम्राट विक्रम के षड्यंत्र की इस कड़ी को तोड़ना।

  • 19. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 19

    Words: 12

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 19
    सुबह की पहली किरणें पानी में छनकर जलधि की सड़कों पर पड़ रही थीं, जिससे मूंगे के भवन और भी ज़्यादा चमक रहे थे। टीम ने रात परित्यक्त इमारत में ही बिताई थी, और अब वे एक नई, जोखिम भरी योजना पर विचार कर रहे थे। मंत्री जलसेन से मिलना ही उनकी अगली चाल थी, लेकिन कैसे? वह महल में था, कड़ी सुरक्षा के बीच, और डरा हुआ था।







    "मुझे लगता है कि मैं उससे संपर्क कर सकता हूँ," समीर ने कहा, उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास था। "वायु कुल के राजनयिकों के पास हर राज्य में कुछ गुप्त संपर्क होते हैं, खासकर ऐसे मामलों के लिए जहाँ सीधे हस्तक्षेप की ज़रूरत हो।" उसने अपनी कलाई पर बंधी एक छोटी सी तात्विक घड़ी को देखा। "मैं एक गुप्त संकेत भेजने की कोशिश करूँगा। अगर वह जवाब देता है, तो हम एक सुरक्षित मुलाकात की जगह तय कर सकते हैं।"







    "सुरक्षित मुलाकात," रिया ने हल्के से कहा, "लेकिन क्या वह हम पर भरोसा करेगा? हम अग्नि गणराज्य की राजकुमारी और वायु कुल के छात्र हैं। उसे लगेगा कि हम भी उसके दुश्मन हैं।"







    भैरवी ने कहा, "हमें उसे यह विश्वास दिलाना होगा कि हम उसकी बेटी को बचाना चाहते हैं। एक बाप अपनी बेटी के लिए कुछ भी करेगा, चाहे कोई भी सामने हो।"







    "और आरव की 'शून्य' ऊर्जा," समीर ने आरव की ओर देखा। "अगर हम उसे निर्-तत्वों की जगह के बारे में कुछ बता सकें, तो शायद वह हमारी बात मान जाए।"







    आरव ने सहमति में सिर हिलाया। वह अभी भी अपने अंदर उस शून्य ऊर्जा का अजीब सा खिंचाव महसूस कर रहा था, जो उसे उन काले कपड़ों वाले हमलावरों के करीब होने का एहसास दिलाता था।







    समीर ने अपनी आँखें बंद कीं और अपनी वायु-शक्ति पर ध्यान केंद्रित किया। उसने अपनी तात्विक घड़ी पर कुछ पैटर्न बनाए, हवा में कुछ अदृश्य तरंगें भेजीं जो केवल विशिष्ट तात्विक उपकरणों द्वारा ही पकड़ी जा सकती थीं। इंतज़ार तनावपूर्ण था। कुछ मिनट बाद, घड़ी से एक हल्की सी बीप की आवाज़ आई।







    "उसने जवाब दिया!" समीर की आँखों में चमक थी। "वह हमसे मिलने को तैयार है, लेकिन अकेले। आज रात, औद्योगिक क्षेत्र के बाहरी किनारे पर, जहाँ पिछली रात वे मिले थे।"







    "अकेले?" रिया ने भौंहें चढ़ाईं। "यह खतरनाक हो सकता है। वह हमें धोखे से फँसा भी सकता है।"







    "वह इतना डरा हुआ है कि धोखे के बारे में सोचेगा भी नहीं," आरव ने कहा। "उसे बस एक उम्मीद की किरण चाहिए। हम चारों जाएंगे, लेकिन केवल मैं और समीर उससे बात करेंगे। तुम दोनों कवर दोगी।"







    भैरवी और रिया ने सहमति दी। रात होते ही, वे फिर से उसी औद्योगिक क्षेत्र की ओर तैरने लगे। यह जगह दिन के उजाले में भी डरावनी थी, रात में तो और भी ज्यादा। टूटी हुई मशीनें और जंग लगे पाइप पानी में काले कंकालों जैसे दिख रहे थे।







    वे पिछली रात वाली जगह पर पहुँचे। समीर और आरव सामने आए, जबकि रिया और भैरवी बड़े-बड़े ढाँचों के पीछे छिप गईं, अपनी इंद्रियों को सतर्क किए हुए।







    कुछ ही देर में, मंत्री जलसेन दिखाई दिया। वह भी पिछली रात जैसे ही सादे कपड़ों में था, और उसका चेहरा कपड़े से ढका हुआ था। वह बहुत घबराया हुआ लग रहा था, उसकी आँखें चारों ओर घूम रही थीं। जैसे ही उसने समीर और आरव को देखा, वह थोड़ा पीछे हट गया।








    "तुम... तुम कौन हो?" मंत्री ने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ डर से भर्राई हुई थी। "तुमने मुझे क्यों बुलाया?"









    समीर ने शांति से कहा, "हम मित्र हैं, मंत्री जलसेन। हम वही हैं जिन्होंने तुम्हें महल में पहली बार देखा था। हम जानते हैं कि तुम मुसीबत में हो।"









    मंत्री जलसेन ने अविश्वास से उन्हें देखा। "तुम कैसे...? किसने भेजा तुम्हें?"









    "हमें किसी ने नहीं भेजा," आरव ने कहा, उसकी आवाज़ में ईमानदारी थी। "हमने पिछली रात तुम्हें निर्-तत्वों से बात करते देखा था। हमने सुना कि उन्होंने तुम्हारी बेटी, मीना, को बंधक बना लिया है।"









    मंत्री का चेहरा पीला पड़ गया। उसकी आँखें डर और हैरानी से फैल गईं। "तुम... तुमने सब सुना? लेकिन... तुम कौन हो? अगर तुम अग्नि गणराज्य के लोग हो, तो..."









    "हम अग्नि गणराज्य के लोग नहीं हैं, कम से कम उन लोगों में से नहीं जो तुम्हारी बेटी को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं," समीर ने हस्तक्षेप किया। "हम दिव्य ज्ञान पीठ के छात्र हैं। हम सम्राट विक्रम की इस साज़िश को रोकना चाहते हैं। और तुम्हारी बेटी को बचाना चाहते हैं।"









    मंत्री ने उन दोनों को संदेह से देखा। "दिव्य ज्ञान पीठ के छात्र? तुम... तुम कैसे मेरी मदद कर सकते हो? वे बहुत शक्तिशाली हैं। उनके पास मेरी बेटी है। अगर मैंने उनकी बात नहीं मानी, तो वे..." उसकी आवाज़ टूट गई। उसकी आँखों में बेबसी साफ दिख रही थी।









    "हमें पता है कि तुम डर रहे हो," आरव ने धीमे स्वर में कहा। "लेकिन सोचो, अगर तुम उनकी बात मानते रहे, तो वे तुम्हें और तुम्हारी बेटी को कभी नहीं छोड़ेंगे। वे तुम्हें तब तक इस्तेमाल करेंगे जब तक तुम्हारी ज़रूरत होगी, और फिर तुम्हें फेंक देंगे। क्या तुम अपनी बेटी को ज़िंदगी भर गुलाम देखना चाहते हो?"









    मंत्री काँप गया। आरव के शब्द उसके दिल में उतर गए थे। उसने सिर झुका लिया। "तो... तुम क्या कर सकते हो? मेरे पास कोई विकल्प नहीं है।"









    "हम तुम्हारी बेटी को बचा सकते हैं," समीर ने कहा। "हमें बस यह जानना है कि उन्होंने उसे कहाँ रखा है। अगर तुमने हमें यह बताया, तो हम उसे आज़ाद कर देंगे और तुम उनके चंगुल से बाहर निकल पाओगे।"









    मंत्री ने सिर उठाया, उसकी आँखों में एक नई, छोटी सी उम्मीद की किरण थी। "तुम सच कह रहे हो? तुम... तुम सच में मेरी मदद करोगे?"









    "हम तुम्हें एक आज़ाद पिता बनते देखना चाहते हैं, मंत्री," आरव ने कहा। "हम भी इस युद्ध को रोकना चाहते हैं।"









    मंत्री ने गहरी साँस ली, जैसे कोई भारी बोझ उसके कंधों से उतर रहा हो। "ठीक है... ठीक है। मैं तुम पर भरोसा करता हूँ। मेरे पास कोई और विकल्प नहीं है।" उसने अपनी आवाज़ नीची की। "उन्होंने मीना को... एक पुरानी पानी के नीचे की गुफा में रखा है। यह औद्योगिक क्षेत्र के ठीक पीछे है, जहाँ से गहरे समुद्र की ओर जाने वाले पानी के प्रवाह शुरू होते हैं। यह एक परित्यक्त रास्ता है, और वहाँ सिर्फ एक ही रक्षक है।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी खामोशी थी, जैसे वह उस जगह के बारे में बताते हुए भी डर रहा हो।









    "एक गुफा?" समीर ने दोहराया। "क्या तुम हमें उसका सटीक स्थान बता सकते हो?"









    मंत्री ने विस्तृत निर्देश दिए, पानी के अंदर के भूभाग और कुछ विशिष्ट संरचनाओं का उल्लेख किया जो गुफा के प्रवेश द्वार की पहचान थीं। "यह गुफा बहुत पुरानी है, सैकड़ों साल पहले इसे एक रहस्यमयी शक्ति के लिए इस्तेमाल किया जाता था। अब यह सिर्फ एक भूलभुलैया है।"









    "क्या तुमने अंदर जाने की कोशिश की?" आरव ने पूछा।









    "नहीं... वे मुझे अंदर जाने नहीं देते," मंत्री ने कहा। "वे मुझे धमकी देते हैं कि अगर मैंने ऐसा किया, तो वे उसे तुरंत मार देंगे। वे जानते हैं कि यह मेरी कमजोरी है।"









    "ठीक है, मंत्री जलसेन," समीर ने कहा। "तुम वापस जाओ। हम तुम्हारी बेटी को बचाएंगे।"









    "धन्यवाद... तुम लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद," मंत्री ने कहा, उसकी आँखों में कृतज्ञता के आँसू थे। वह एक पल भी नहीं रुका और तेज़ी से वापस महल की ओर चला गया।









    जैसे ही मंत्री आँखों से ओझल हुआ, रिया और भैरवी अपनी जगह से बाहर आ गईं। "तो एक पुरानी गुफा?" रिया ने पूछा। "और केवल एक रक्षक?"









    "यह बहुत आसान लगता है," भैरवी ने कहा, उसकी आवाज़ में थोड़ा संदेह था। "कहीं यह एक जाल तो नहीं?"









    "हो सकता है," समीर ने स्वीकार किया। "लेकिन मंत्री इतना डरा हुआ था कि मुझे नहीं लगता कि वह झूठ बोल रहा था। यह भी हो सकता है कि निर्-तत्व इतने आश्वस्त हों कि उन्हें ज़्यादा सुरक्षा की ज़रूरत न लगे।"









    "या वे यह दिखाना चाहते हैं कि हम उनसे दूर नहीं रह सकते," आरव ने कहा। "शून्य ऊर्जा अभी भी उस दिशा से आ रही है जो मंत्री ने बताई है।"









    "तो हम क्या करेंगे?" रिया ने पूछा, उसकी आँखों में एक नई चमक थी। "हम हमला कब करेंगे?"









    "आज रात," समीर ने तुरंत कहा। "जितनी जल्दी हो सके। मंत्री ने कहा कि उसके पास सिर्फ दो दिन हैं। हमें मीना को जल्द से जल्द आज़ाद करना होगा। हम रात के अंधेरे का फायदा उठाएंगे। यह हमारा आखिरी मौका हो सकता है।"









    भैरवी ने गहरी साँस ली। "ठीक है। हम तैयार हैं।"









    उन्होंने गुफा के रास्ते का मानसिक नक्शा बनाया और अपनी शक्तियों का उपयोग करने के लिए सबसे अच्छी रणनीति पर चर्चा की। रिया की आग पानी के नीचे सीमित थी, लेकिन समीर अपनी हवा और भैरवी अपनी पृथ्वी शक्ति का उपयोग कर सकते थे। आरव की 'शून्य' शक्ति अभी भी रहस्यमय थी, लेकिन वह महसूस कर सकता था कि यह उसे उन निर्-तत्वों के खिलाफ एक फायदा दे सकती है।









    "याद रखना," रिया ने कहा, उसकी आवाज़ दृढ़ थी, "हमें मीना को नुकसान पहुँचाए बिना उसे बचाना है।"









    आरव ने सहमति में सिर हिलाया। अब उनके पास एक स्पष्ट मिशन था, एक निर्दोष जीवन को बचाने का मिशन। रात गहरा रही थी, और जलधि की गहराई में एक बचाव अभियान शुरू होने वाला था। यह उनकी टीम के लिए पहली बड़ी परीक्षा होगी, जहाँ उन्हें न केवल अपनी शक्तियों का उपयोग करना था, बल्कि अपनी चतुराई और एकता का भी प्रदर्शन करना था।

  • 20. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-2 - Chapter 20

    Words: 32

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    Chapter 20
    रात की गहराई में, जलधि के मूंगे के भवन अब दूर चमकते हुए तारे जैसे दिख रहे थे। टीम, अपने जल-श्वसन उपकरण पहने हुए, मंत्री जलसेन द्वारा बताए गए औद्योगिक क्षेत्र के बाहरी किनारे की ओर तैर रही थी। पानी का बहाव तेज़ था, और उनके चारों ओर तैरती हुई मशीनरी की जंग लगी संरचनाएँ किसी भयानक, डूबे हुए जंगल का अहसास दिला रही थीं। पानी ठंडा था, और हर साँस के साथ एक अजीब सी खामोशी उनके कानों में गूँज रही थी, जिसे केवल उनके उपकरणों से आती हुई हल्की फुसफुसाहट और उनके अपने दिल की धड़कन तोड़ रही थी।









    "यहाँ से बाएँ," समीर ने अपनी आँखों से इशारा किया, जो पानी के नीचे चमक रही थीं। उसने अपने एक हाथ से इशारा किया। "मंत्री ने कहा था कि यह एक परित्यक्त मार्ग है, लेकिन हमें सतर्क रहना होगा।"









    रिया ने सहमति में सिर हिलाया। उसकी आँखों में भी दृढ़ता थी। "एक रक्षक का मतलब है कि वे अभी भी हमें हल्के में ले रहे हैं। यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।"









    आरव ने अपने चारों ओर 'शून्य' ऊर्जा की हल्की सी उपस्थिति महसूस की। यह अब उतनी तीव्र नहीं थी जितनी पिछली रात निर्-तत्व नेता के पास थी, लेकिन यह एक अदृश्य निशान की तरह थी जो उसे गुफा की ओर खींच रही थी। "मुझे यह महसूस हो रहा है," आरव ने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ पानी में थोड़ी दब गई थी। "ऊर्जा उस दिशा से आ रही है।"









    वे चुपचाप, जितना हो सके उतना कम हलचल करते हुए तैरते रहे। कुछ मिनट बाद, उनके सामने एक विशाल चट्टानी दीवार दिखाई दी, जिसके बीच में एक गहरी दरार थी। दरार का प्रवेश द्वार विशालकाय समुद्री शैवाल से ढका हुआ था, जो पानी के बहाव में लहरा रहे थे, जैसे वे गुफा के लिए एक प्राकृतिक पर्दा हों। यह जगह बेहद शांत और सुनसान थी।









    भैरवी ने शैवाल की ओर देखा। "यह बहुत घना है। हमें इसे काटना होगा या कोई रास्ता ढूंढना होगा।"









    "इंतज़ार करो," समीर ने फुसफुसाया। "वहाँ एक रक्षक है।" उसने शैवाल के बीच से झाँका। वाकई, एक जल-तत्वधारी सैनिक प्रवेश द्वार के पास पहरा दे रहा था। वह पत्थरों के एक छोटे से ढेर पर बैठा हुआ था, और उसके हाथ में एक भाला था। वह सुस्त लग रहा था, शायद उसे भी नहीं पता था कि उसे क्यों इतनी देर तक इस सुनसान जगह पर पहरा देना पड़ रहा है।









    "केवल एक," रिया ने बुदबुदाया। "हम उसे आसानी से निष्क्रिय कर सकते हैं।"









    "नहीं," समीर ने कहा। "कोई लड़ाई नहीं। हम चाहते हैं कि उन्हें पता न चले कि हम अंदर आ गए हैं। हम चुपके से अंदर जाएँगे।" उसने अपनी वायु-शक्ति पर ध्यान केंद्रित किया। उसने अपनी उंगलियों से पानी में कुछ अदृश्य पैटर्न बनाए, और कुछ ही सेकंड में, प्रवेश द्वार से थोड़ी दूर, शैवाल के दूसरी तरफ, पानी में छोटे-छोटे हवा के बुलबुले बनने लगे।









    बुलबुले तेज़ी से ऊपर की ओर उठने लगे, एक छोटे से भंवर का निर्माण करते हुए, और उनसे एक हल्की सी, अजीब सी आवाज़ निकलने लगी, जो पानी के माध्यम से फैल गई। रक्षक ने तुरंत सिर उठाया। उसकी सुस्त आँखें चौड़ी हो गईं, और उसने बुलबुले के स्रोत की ओर देखा, अपना भाला उठा लिया।









    "यह क्या है?" उसने फुसफुसाया, और अपनी जगह से उठकर बुलबुले की ओर तैरने लगा, यह देखने के लिए कि वहाँ क्या हो रहा था। उसका ध्यान पूरी तरह से उस रहस्यमय भंवर पर था।









    समीर ने टीम की ओर इशारा किया। "अब!"









    जैसे ही रक्षक थोड़ा दूर हुआ, समीर ने अपनी वायु-शक्ति से शैवाल में एक छोटा सा, अदृश्य मार्ग बना दिया। शैवाल कुछ सेकंड के लिए अलग हो गए, बस इतना कि एक व्यक्ति मुश्किल से अंदर जा सके।









    आरव सबसे पहले अंदर गया, उसके बाद रिया और भैरवी आईं। समीर सबसे आखिर में था, और जैसे ही वह अंदर आया, उसने धीरे से अपनी शक्ति का उपयोग करके शैवाल को वापस बंद कर दिया, ताकि कोई भी सुराग पीछे न रहे। अब वे गुफा के अंधेरे, अनजाने हिस्से में थे।









    अंदर, पानी का रंग गहरा नीला था, और दूर से आती हुई नीली रोशनी के अलावा कोई प्रकाश नहीं था। गुफा की दीवारें खुर्दरी थीं और अजीब सी समुद्री वनस्पतियों से ढकी हुई थीं। हवा और नमी का मिश्रण था, और उनके जल-श्वसन उपकरण के बावजूद, उन्हें एक अजीब सी, घुटन भरी गंध महसूस हुई।









    "यह बहुत बड़ा है," रिया ने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ गूँज रही थी।









    भैरवी ने अपनी पृथ्वी-शक्ति का उपयोग करके दीवारों पर हाथ फेरा। "यह प्राचीन लगता है। इसमें सैकड़ों साल की ऊर्जा है।"









    आरव ने एक बार फिर 'शून्य' ऊर्जा को महसूस किया। यह यहाँ ज़्यादा स्पष्ट थी, लेकिन एक विशिष्ट स्थान से नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र में फैली हुई थी, जैसे कि निर्-तत्वों ने इस जगह को अपने डेरे के रूप में इस्तेमाल किया हो। "मुझे लगता है कि हम सही जगह पर हैं," उसने कहा। "यह ऊर्जा यहाँ बहुत मजबूत है।"









    समीर ने अपने छोटे तात्विक लालटेन को जलाया, और उसकी रोशनी में, उन्हें गुफा के अंदर का विशाल और जटिल नेटवर्क दिखाई दिया। यह सिर्फ एक सुरंग नहीं थी, बल्कि सुरंगों, कक्षों और खंभों का एक भूलभुलैया था। पानी के बहाव से पत्थरों पर अजीबोगरीब नक्काशी बन गई थी, जिससे यह जगह और भी रहस्यमय लग रही थी।









    "अब हम मीना को कैसे ढूंढेंगे?" भैरवी ने पूछा। "यह एक भूलभुलैया है।"









    "आरव की 'शून्य' ऊर्जा हमें रास्ता दिखाएगी," समीर ने कहा। "और हमें बहुत शांत रहना होगा। अगर मंत्री ने कहा कि केवल एक रक्षक बाहर है, तो अंदर और भी हो सकते हैं।"









    आरव ने आँखें बंद कीं और अपनी इंद्रियों को और भी गहरा किया। 'शून्य' ऊर्जा का खिंचाव अब उसे एक विशिष्ट दिशा में खींच रहा था, जैसे कोई अदृश्य धागा उसे खींच रहा हो। उसने उस दिशा में इशारा किया। "मुझे लगता है कि वह रास्ता उस छोर पर है।"









    वे आरव के पीछे-पीछे चलने लगे, उनकी हर हरकत सोच-समझकर की जा रही थी। पानी की चुप्पी में केवल उनके जल-श्वसन उपकरणों की धीमी आवाज़ सुनाई दे रही थी, और कभी-कभी, दूर से आती हुई, अजीब सी, रहस्यमय गूँज। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए, आरव को 'शून्य' ऊर्जा का एहसास तेज़ होता गया। यह इस बात का संकेत था कि वे अपने लक्ष्य के करीब पहुँच रहे थे। वे एक लंबी, घुमावदार सुरंग से गुज़रे, और अचानक, आरव रुक गया।









    "यहाँ से है," उसने फुसफुसाया, और एक छोटे से मोड़ की ओर इशारा किया।









    मोड़ से निकलते ही, उन्होंने खुद को एक बड़े, गोलाकार कक्ष में पाया। यह कक्ष प्राकृतिक रूप से बना था, लेकिन इसके बीच में एक अजीब सी, लोहे की संरचना थी। और उस संरचना के अंदर, एक पिंजरे में... एक लड़की बैठी हुई थी। वह दुबली-पतली थी, उसके बाल उलझे हुए थे, और उसकी आँखें उदास थीं। मीना।









    "मीना!" भैरवी ने फुसफुसाया, उसके चेहरे पर दर्द था।









    पिंजरे के पास, कोई निर्-तत्व नहीं था, जिससे उन्हें थोड़ी राहत मिली। लेकिन यह राहत ज़्यादा देर नहीं टिकी।









    "वह अकेली है," रिया ने फुसफुसाया। "चलो उसे बाहर निकालते हैं!"









    वे पिंजरे की ओर बढ़ने लगे। आरव सबसे आगे था, उसकी आँखें मीना पर टिकी थीं। वह जितना करीब आया, 'शून्य' ऊर्जा उतनी ही तेज़ होती गई, जिससे आरव को एक अजीब सी बेचैनी महसूस हुई। जैसे ही आरव ने पिंजरे का दरवाज़ा खोलने के लिए हाथ बढ़ाया, अचानक...









    गुफा रोशन हो गई।









    कक्ष के चारों ओर छिपे हुए तात्विक लालटेन एक साथ जल उठे, जिससे पूरी जगह चमक उठी। और उस रोशनी में, दीवारों के हर कोने से, चट्टानों के पीछे से, और यहाँ तक कि छत से भी, काले कपड़े पहने हुए निर्-तत्व बाहर निकलने लगे। वे टीम को घेर रहे थे, उनकी संख्या किसी भी अनुमान से कहीं ज़्यादा थी।









    "हा हा हा!" एक ठंडी, रोबोटिक हँसी गूँज उठी। निर्-तत्वों का नेता, वही जो पिछली रात मंत्री से मिला था, एक ऊँची चट्टान पर खड़ा था, उसकी काली परछाई उन पर पड़ रही थी। "तुम्हारा स्वागत है, प्यारे तत्वधारियों। मुझे पता था कि तुम आओगे।" उसकी आवाज़ में जीत की झलक थी। "यह एक जाल था।"









    टीम को झटका लगा। वे चारों ओर देखते रहे, निर्-तत्वों की बढ़ती संख्या को देखकर स्तब्ध रह गए। मीना ने पिंजरे के अंदर से डरकर उन्हें देखा, उसकी आँखों में आँसू थे।









    रिया ने मुट्ठी भींची। "धोखा!"









    "तैयार हो जाओ!" समीर ने चिल्लाया, उसकी आवाज़ में अब कोई शांतता नहीं थी, बस युद्ध का आह्वान था।









    चारों दोस्तों को एहसास हुआ कि वे एक गहरे जाल में फँस चुके थे। और अब, पानी के नीचे, एक भयानक लड़ाई शुरू होने वाली थी।