सीज़न 1: जागृति और मित्रता "आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा" का पहला सीज़न दर्शकों को एक ऐसी दुनिया से परिचित कराता है जहाँ मानवता की शक्ति पाँच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और पौराणिक आकाश—से जुड़ी है। कहानी का केंद्र है आरव, शांतिवन गाँव का एक दयालु... सीज़न 1: जागृति और मित्रता "आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा" का पहला सीज़न दर्शकों को एक ऐसी दुनिया से परिचित कराता है जहाँ मानवता की शक्ति पाँच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और पौराणिक आकाश—से जुड़ी है। कहानी का केंद्र है आरव, शांतिवन गाँव का एक दयालु लड़का, जिसे "तत्वहीन" होने के कारण समाज से बहिष्कृत किया जाता है। उसका जीवन तब बदल जाता है जब एक तात्विक-जानवर के हमले के दौरान वह अनजाने में अपनी छिपी हुई, रहस्यमयी शक्ति का प्रदर्शन करता है। इस घटना को दिव्य ज्ञान पीठ अकादमी के रहस्यमयी गुरु वशिष्ठ महसूस कर लेते हैं और आरव को अपने साथ ले जाते हैं। अकादमी में, आरव की मुलाकात तीन प्रतिभाशाली छात्रों से होती है जो उसके भविष्य को हमेशा के लिए बदल देंगे: अग्नि गणराज्य की घमंडी और शक्तिशाली राजकुमारी रिया; वायु कुल का शांत और बुद्धिमान रणनीतिकार समीर; और पृथ्वी राज्य की दयालु और अटूट रक्षक भैरवी। अपनी तत्वहीनता के कारण संघर्ष करते हुए, आरव गुरु वशिष्ठ के विशेष प्रशिक्षण के तहत अपनी आंतरिक क्षमताओं को खोजना शुरू करता है। एक खतरनाक मिशन पर, यह अप्रत्याशित चौकड़ी आपसी मतभेदों को दूर कर एक-दूसरे पर भरोसा करना सीखती है और एक अटूट टीम बन जाती है। सीज़न का समापन भव्य पंचतत्व महासंग्राम में होता है, जहाँ आरव अपनी चतुराई से सबको आश्चर्यचकित करता है और रिया का सम्मान जीतता है। लेकिन जीत के जश्न के बीच, स्टेडियम पर "निर्-तत्व" नामक रहस्यमयी हमलावरों का आक्रमण होता है, जो तत्व-शक्ति को सोख लेते हैं। इस अराजकता के बीच, आरव अपने दोस्तों को बचाने के लिए अपनी शक्ति का एक और विनाशकारी प्रदर्शन करता है। सीज़न एक रोमांचक क्लिफहैंगर पर समाप्त होता है, जहाँ एक बड़े षड्यंत्र का पर्दाफाश होना बाकी है और नायकों की असली यात्रा अभी शुरू हुई है।
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Chapter 1
एक महीने से अधिक समय बीत चुका था। हवा में अब सिर्फ बारूद और जलती हुई मिट्टी की गंध थी। सूरज हर सुबह एक नए कत्लेआम का गवाह बनने के लिए निकलता और शाम ढलते ही लाल आसमान में धुएँ के बादल छा जाते। अग्नि गणराज्य की सेनाएँ किसी बहते लावा की तरह लगातार आगे बढ़ रही थीं, जहाँ से गुजरतीं, सिर्फ राख छोड़ जातीं।
पश्चिमी मोर्चे पर, पृथ्वी राज्य की सीमा पर भयानक लड़ाई चल रही थी। विशाल मैदानों में हर दिन हजारों सैनिक एक-दूसरे से भिड़ते, तलवारें टकरातीं और तत्वों की शक्तियाँ एक-दूसरे को काटतीं। जहाँ पहले हरे-भरे जंगल थे, अब सिर्फ जले हुए ठूंठ और गहरी खाइयाँ थीं। एक युद्ध-ग्रस्त शहर के बाहरी इलाके में, टूटी हुई दीवारों और मलबे के बीच, सैनिक साँस लेने की भी मोहलत बिना लड़ रहे थे।
एक जीर्ण-शीर्ण गढ़ के अंदर, जहाँ दीवारें बमों से छलनी थीं, एक थका हुआ लेकिन अनुभवी पृथ्वी-सैनिक, कमांडर धीरज, अपने जवानों की ओर मुड़ा। उसके चेहरे पर कालिख लगी थी और उसकी आवाज़ खुरदरी थी।
"बस थोड़ा और, जवानों!" धीरज ने चिल्लाते हुए कहा, उसकी आँखों में संकल्प था। "हमें यह मोर्चा थामे रखना है! अगर यह गिरा, तो उनका अगला कदम हमारे गाँवों की ओर होगा!"
एक युवा सैनिक, जिसकी उम्र बमुश्किल बीस साल थी, अपनी खून से लथपथ बाजू पकड़े हुए था। वह दीवार के सहारे नीचे खिसक गया। "कमांडर... वे बहुत ज़्यादा हैं। उनकी आग... यह हमें जलाकर राख कर रही है!" उसकी आँखों में डर स्पष्ट था।
धीरज उसकी ओर बढ़ा और उसने युवा सैनिक के कंधे पर हाथ रखा। "जानता हूँ, बेटे। जानता हूँ। लेकिन याद रख, हमारी मिट्टी, हमारी धरती... यह हमें तब तक नहीं छोड़ेगी जब तक हम उसे नहीं छोड़ देते।" उसने अपने हाथ से जमीन पर थाप दी। "इस धरती ने हमें पाला है, अब हमारी बारी है इसे बचाने की।"
तभी, अग्नि-सेना के कुछ सैनिक एक टूटी हुई दीवार से अंदर घुसने में सफल हो गए। उनकी तलवारें हवा में चमकीं।
"घेरो उन्हें!" धीरज चिल्लाया, और पृथ्वी-सैनिकों ने एक साथ वार किया। उनकी ढालें टकराईं, और जमीन थरथरा उठी जब कुछ पृथ्वी-नियंत्रकों ने अपने पैरों के नीचे से नुकीली चट्टानों को ऊपर उठाया, दुश्मनों को भेदते हुए। लड़ाई फिर से तेज़ हो गई। हर हमला एक संकल्प था, हर बचाव एक प्रार्थना। यह एक ऐसी लड़ाई थी जहाँ हार स्वीकार करने का कोई विकल्प नहीं था।
वहीं, ऊँचाई पर, दूर उत्तर में, वायु कुल के तैरते हुए द्वीपों पर भी हमला हो चुका था। वे अपनी फुर्ती और ज्ञान के लिए जाने जाते थे, लेकिन अग्नि गणराज्य की संख्या और आधुनिक हथियारों ने उन्हें भारी नुकसान पहुँचाया था। अब वे छिपकर लड़ रहे थे, छापामार युद्ध उनकी एकमात्र रणनीति थी।
एक छोटी गुफा में, जो बादलों के बीच छिपी थी, समीर अपने कुछ सबसे भरोसेमंद योद्धाओं के साथ बैठा था। उनके चेहरे पर थकान थी, लेकिन उनकी आँखों में दृढ़ता बनी हुई थी।
"हमने उनके पूर्वी आपूर्ति मार्ग पर सफलतापूर्वक हमला किया है," समीर ने शांत स्वर में कहा, उसके हाथ में एक नक्शा था। "हमने उनके तीन युद्ध-गुब्बारों को नष्ट कर दिया और उन्हें एक हफ्ते के लिए रसद से वंचित कर दिया।"
एक बूढ़ा वायु-योद्धा, जिसकी मूंछें बर्फ़ जैसी सफ़ेद थीं, सिर हिलाया। "यह अच्छा है, समीर। लेकिन हर बार, हमें नुकसान उठाना पड़ता है। हमने आज तीन अच्छे लड़ाके खो दिए।" उसकी आवाज़ में दर्द था।
"मुझे पता है, गुरुजी," समीर ने कहा, उसकी आँखों में दर्द की एक झलक थी। "लेकिन यह युद्ध की सच्चाई है। हम सीधी लड़ाई में उनका मुकाबला नहीं कर सकते। उनकी सेना विशाल है। हमें उनकी जड़ों पर हमला करना होगा, उन्हें थकाना होगा, उन्हें तोड़ना होगा।"
एक युवा लड़की, जो एक तेज हवा की लड़ाका थी, ने पूछा, "क्या हमें अपने भाइयों से कोई खबर मिली? पवन भाई कहाँ हैं?"
समीर ने गहरी साँस ली। "पवन अग्रिम पंक्ति में लड़ रहा है। उसकी वायु-सेना सबसे ज्यादा दबाव झेल रही है। उसने संदेश भेजा है कि वह मेरी रणनीति का सम्मान करता है... और कहता है कि हमें बस हार नहीं माननी है।" समीर ने नक्शे पर उंगली फेरी। "हमारी अगली चाल... उनके पश्चिमी खेमे पर एक त्वरित हमला होगी। हमें रात के अंधेरे में उड़ना होगा।"
बूढ़े योद्धा ने माथे पर हाथ फेरा। "यह जोखिम भरा है, मेरे बच्चे। वे अब और सतर्क हो गए होंगे।"
"जितना हम जोखिम नहीं लेंगे, उतना ही हम हारेंगे," समीर ने दृढ़ता से कहा। "अगर हम उड़ना बंद कर देंगे, तो हम मर जाएंगे। हमारी पहचान हवा में है। और हम मरते दम तक उड़ते रहेंगे।" उसने अपनी मुट्ठी भींच ली। "हमें जीतना होगा।"
जबकि पृथ्वी और वायु के राज्य युद्ध की विभीषिका में जल रहे थे, जल साम्राज्य "जलधि" अपनी नौसैनिक शक्ति के कारण अभी भी सुरक्षित था। पानी के नीचे बसा उनका भव्य शहर, विशाल मूंगा दीवारों से घिरा, एक शांत स्वर्ग जैसा लगता था, लेकिन सतह पर चल रहे युद्ध का तनाव धीरे-धीरे गहरे पानी में भी रिस रहा था।
राजधानी के केंद्रीय कक्ष में, जहाँ चारों ओर नीली रोशनी और पानी के बुलबुले थे, जलधि के शासक, रानी नीला और उनके मुख्य सलाहकार, जलंधर, एक मानचित्र पर झुके हुए थे। मानचित्र पर अग्नि गणराज्य के हमलों को लाल रेखाओं से दर्शाया गया था, जो धीरे-धीरे उनके तटों की ओर बढ़ रही थीं।
"उनकी नवीनतम नौसैनिक गश्त हमारे पश्चिमी तट के करीब तक पहुँच गई है, रानी," जलंधर ने चिंता से कहा। "उन्होंने हमारे सीमा रक्षकों को उकसाने की कोशिश की, लेकिन हमने जवाबी कार्रवाई नहीं की।"
रानी नीला, जिसकी आँखें नीले मोतियों जैसी थीं, ने ठंडी सांस ली। "समझदारी का काम किया, जलंधर। हम युद्ध नहीं चाहते। हम तटस्थ रहना चाहते हैं।"
"लेकिन कितने समय तक, रानी?" जलंधर ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक स्पष्ट संदेह था। "पृथ्वी राज्य और वायु कुल लगातार हार रहे हैं। अगर वे गिर गए, तो हम अकेले रह जाएंगे। क्या हमें उन्हें सहायता नहीं भेजनी चाहिए? कम से कम रसद, या कुछ चिकित्सा दल?"
रानी नीला ने समुद्र की ओर देखा, जहाँ पानी की गहराइयों में उनका शहर फैला हुआ था। "हमारे पास अपने लोग हैं, जलंधर। हमारे पास अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी है। अगर हम युद्ध में कूद पड़े, तो हमारे शहर को भी वही भाग्य भुगतना पड़ सकता है जो अचल-गढ़ का हुआ।"
"लेकिन रानी... आरव की वापसी के बाद भी, क्या हमें कुछ नहीं करना चाहिए?" जलंधर ने हिचकिचाते हुए पूछा। "उसने अग्नि-वज्र को रोका और ज्वालामुख को कैद कर लिया। यह एक चमत्कार था! क्या हमें इस चमत्कार का उपयोग नहीं करना चाहिए?"
रानी नीला ने अपनी आँखें बंद कर लीं। "एक व्यक्ति, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, पूरे युद्ध का रुख नहीं बदल सकता। आरव ने बेशक एक बड़ी जीत दिलाई, लेकिन युद्ध अभी भी जारी है। विक्रम की सेना विशाल है, और उसका इरादा क्रूर है। हम खतरे में हैं, चाहे हम कुछ भी करें।"
एक पल के लिए सन्नाटा छा गया, केवल पानी के हल्के प्रवाह की आवाज़ सुनाई दे रही थी। जलंधर ने सिर झुका लिया।
"तनाव बढ़ रहा है," रानी ने धीमी आवाज़ में कहा, जैसे वह अपने आप से बात कर रही हो। "और मुझे डर है कि यह लहरें जल्द ही हमारे दरवाज़े तक पहुँच जाएंगी।"
पानी के ऊपर, हवा में, और धरती पर... युद्ध अपने चरम पर था। हर राज्य अपनी लड़ाई लड़ रहा था, लेकिन सभी को एक ही दुश्मन का सामना करना था: सम्राट विक्रम का बढ़ता अंधकार। और इस अंधकार के बीच, कुछ टूटी हुई आशाएँ अभी भी जल रही थीं... जलने का इंतज़ार कर रही थीं।
Chapter 2
और इस अंधकार के बीच, कुछ टूटी हुई आशाएँ अभी भी जल रही थीं... जलने का इंतज़ार कर रही थीं।
पृथ्वी राज्य के पश्चिमी मोर्चे पर, जहाँ कभी हरे-भरे खेत थे, अब सिर्फ़ सूखी, लाल मिट्टी थी जो खून से लथपथ थी। हवा में बारूद और जले हुए मांस की बदबू घुली हुई थी। दोपहर का सूरज भी युद्ध की गर्मी को कम नहीं कर पा रहा था। ऐसे ही एक मैदान में, जहाँ लगातार तोपों के गोले गिर रहे थे और अग्नि-सैनिक आगे बढ़ रहे थे, भैरवी अकेली खड़ी थी। उसके हाथ मिट्टी से सने थे, माथे पर पसीने की बूंदें थीं, लेकिन उसकी आँखें किसी प्राचीन देवी जैसी दृढ़ थीं।
वह अपनी पूरी शक्ति का उपयोग कर रही थी। उसके हर इशारे पर, ज़मीन हिलती थी, मिट्टी ऊपर उठती थी, और कुछ ही पलों में विशाल, अभेद्य दीवारें आकाश को छूने लगती थीं। उसके पैरों के नीचे की ज़मीन फटती थी और गहरी खाइयाँ बन जाती थीं, जो अग्नि-सेना के मार्च को रोकने के लिए बनाई गई थीं। वह पृथ्वी-सैनिकों के लिए ढाल बन गई थी, एक चलती-फिरती, साँस लेती हुई क़िला।
एक पल को, उसने अपने ठीक सामने एक तोप का गोला गिरते देखा। धमाका इतना ज़ोरदार था कि ज़मीन हिल गई, लेकिन भैरवी अपने स्थान से नहीं हिली। उसने अपने हाथों को आगे बढ़ाया, और ज़मीन से तुरंत एक मोटी चट्टानी ढाल ऊपर उठी, जिसने उसे और उसके पीछे खड़े सैनिकों को बचते हुए अग्नि-सेना के हमले से बचा लिया।
"भैरवी!" एक थका हुआ सैनिक हाँफते हुए उसके पास आया। "पश्चिमी तरफ़... वे हमारे बचाव को तोड़ रहे हैं! एक बड़ा दस्ता शरणार्थी शिविर की ओर बढ़ रहा है!"
भैरवी का दिल एक पल के लिए धक से रह गया। शरणार्थी शिविर? वे निहत्थे लोग थे, महिलाएँ, बच्चे और बूढ़े जो युद्ध से भाग रहे थे। उसकी आँखों में एक नई दृढ़ता आई। "मैं जाती हूँ!" उसने कहा, और बिना किसी को दूसरा मौका दिए, वह उस दिशा में भागी जहाँ से हमला आने की ख़बर थी।
वह भागती हुई टूटे हुए घरों और जलते हुए पेड़ों के बीच से निकली। दूर से उसे शरणार्थी शिविर दिखाई दिया—कपड़े और लकड़ी के अस्थाई टेंटों का एक समूह, जहाँ सैकड़ों लोग आश्रय लिए हुए थे। और उनके ठीक सामने, तलवारें चमकाते और आग के गोले फेंकते हुए, अग्नि-सेना का एक क्रूर दस्ता बढ़ रहा था। उनकी आँखों में दया का कोई निशान नहीं था।
"भागो!" एक शरणार्थी ने चिल्लाते हुए कहा, बच्चों को अपने सीने से चिपकाते हुए। भगदड़ मच गई।
तभी, भैरवी वहाँ पहुँच गई। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं, लेकिन उसकी शक्ति पूरी थी। वह अग्नि-सैनिकों और शरणार्थियों के बीच खड़ी हो गई, उसके हाथ हवा में उठे।
"यहाँ से आगे एक भी कदम नहीं!" उसने अपनी आवाज़ में पृथ्वी की पूरी शक्ति भरते हुए गरजकर कहा। उसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी कि ज़मीन तक हिल गई।
अग्नि-सैनिकों ने उसे देखा, पहले तो हैरान हुए। उनका कमांडर, एक भारी कवच वाला व्यक्ति, हँसा। "एक अकेली लड़की? क्या तुम्हें लगता है कि तुम हमें रोक सकती हो, पृथ्वी-कन्या?"
भैरवी ने जवाब नहीं दिया। उसने अपने हाथों को नीचे किया और ज़मीन कांपने लगी। उसके ठीक सामने, एक गहरी और चौड़ी खाई खुल गई, जिसने अग्नि-सैनिकों और शरणार्थियों के बीच एक भयानक बाधा बना दी। कई सैनिक संतुलन खोकर उसमें गिर गए, उनकी चीखें गूँज उठीं।
कमांडर ने क्रोधित होकर कहा, "उस पर हमला करो!"
अग्नि-सैनिकों ने आग के गोले फेंके, तलवारें चलाईं। भैरवी ने अपने पैरों को ज़मीन पर जमा लिया। "तुम मेरी मिट्टी पर हो!" उसने चिल्लाया। एक विशाल, नुकीली चट्टानों की दीवार ज़मीन से ऊपर उठी, जिसने सभी हमलों को रोक दिया। वह दीवार चमक रही थी, एक अजेय ढाल की तरह।
अग्नि-सैनिकों ने कई बार कोशिश की, लेकिन हर बार, भैरवी की शक्ति उन्हें रोक देती थी। वह दीवार को मजबूत करती रही, उसे और ऊँचा उठाती रही, ताकि वे उसे पार न कर सकें। उसने अपनी शक्ति का उपयोग करके खाई के किनारों को और नुकीला बना दिया, ताकि कोई भी बाहर न निकल सके।
पीछे खड़े शरणार्थियों ने अपनी आँखों पर हाथ रख लिए। कुछ बच्चे रो रहे थे, लेकिन फिर उन्होंने अपनी माँओं के कपड़ों में छिपकर भैरवी को देखा। कुछ देर बाद, सैनिकों का कमांडर समझ गया कि वे इस तरह भैरवी को नहीं हरा सकते।
"पीछे हटो!" उसने गुस्से में चिल्लाया। "यह लड़की नहीं, यह पहाड़ है! यहाँ से हटो!"
अग्नि-सैनिकों ने अनिच्छा से पीछे हटना शुरू कर दिया। वे दूर होते गए, जब तक कि उनकी आकृतियाँ धुएँ में घुल नहीं गईं।
भैरवी ने गहरी साँस ली और धीरे-धीरे दीवार को नीचे कर दिया। उसकी आँखों में थकान थी, लेकिन एक संतोष की चमक भी। शरणार्थी उसके पास आए, उनकी आँखों में कृतज्ञता थी। एक बूढ़ी महिला ने उसके हाथ पकड़ लिए और रोने लगी। "देवी... देवी तुम हो! तुमने हमें बचा लिया!"
कुछ पृथ्वी-सैनिक जो पीछे से आए थे, उन्होंने भी यह सब देखा। उनमें से एक ने धीरे से कहा, "वह सचमुच धरती की दीवार है।" दूसरे ने सहमति में सिर हिलाया। "हाँ... 'धरती की दीवार'। वह हमें कभी गिरने नहीं देगी।"
कुछ दिनों बाद, यह नाम पूरे मोर्चे पर फैल गया। हर सैनिक, हर नागरिक भैरवी को "धरती की दीवार" कहने लगा। वह जहाँ भी जाती, लोगों की उम्मीदों की किरण बन जाती। लेकिन यह सब उसे थका रहा था।
एक शाम, युद्ध-विराम के एक संक्षिप्त पल में, भैरवी एक टूटी हुई दीवार के सहारे बैठी थी। उसके कपड़े फटे हुए थे, उसके चेहरे पर धूल और खरोंचें थीं। उसकी पीठ में दर्द हो रहा था, और उसकी हड्डियाँ भीग गई थीं। उसने अपनी उंगलियों को मिट्टी में गाड़ा। मिट्टी ठंडी और शांतिपूर्ण थी, लेकिन उसके ऊपर चल रहा युद्ध इतना क्रूर था कि वह शांति भी छिप जाती थी।
उसने अपनी आँखों में आँसू भरने की कोशिश की, लेकिन वे आए नहीं। वह बहुत थक चुकी थी। कितने लोग मर चुके थे? कितने घर जल चुके थे? यह अंतहीन लग रहा था। उसे अपने दोस्तों की याद आई—आरव, समीर, रिया। वे कहाँ होंगे? क्या वे भी इसी तरह लड़ रहे होंगे? क्या वे सुरक्षित होंगे?
"काश तुम सब यहाँ होते," उसने फुसफुसाते हुए कहा, जैसे मिट्टी से बात कर रही हो। "मुझे तुम्हारी ज़रूरत है।"
एक पल के लिए, उसे हार मानने का मन किया। यह युद्ध कभी खत्म नहीं होगा। लेकिन फिर, उसे उन बच्चों के चेहरे याद आए जिन्हें उसने बचाया था। उन बूढ़े लोगों की आँखों में दिखी उम्मीद याद आई। उसकी ज़मीन, उसकी मिट्टी, उसे पुकार रही थी।
उसने गहरी साँस ली, अपनी थकी हुई मुट्ठी को भींचा। "नहीं," उसने धीमी लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा। "मैं हार नहीं मान सकती। जब तक मुझमें एक भी साँस है... मैं अपनी धरती को नहीं गिरने दूँगी।"
उसकी आँखों में फिर से संकल्प की चमक लौट आई। वह उठी, अपनी चोटों की परवाह किए बिना, और उसने फिर से हथियार उठा लिए। रात अभी बाकी थी, और कल एक और युद्ध का इंतज़ार कर रहा था।
Chapter 3
रात अभी बाकी थी, और कल एक और युद्ध का इंतज़ार कर रहा था।
ठीक उसी समय, बादलों के ऊपर, जहाँ केवल हवा का राज था, वायु कुल के तैरते हुए द्वीप एक युद्ध से घिरे हुए थे। अग्नि गणराज्य की विशाल सेना ने उन्हें घेर लिया था, लेकिन वायु योद्धा अपनी फुर्ती और चालाकी से अब भी उनका मुकाबला कर रहे थे। उनका मुख्य हथियार अब सीधा हमला नहीं, बल्कि "हिट एंड रन" रणनीति थी—दुश्मन पर बिजली की गति से हमला करना और इससे पहले कि वे जवाब दें, हवा में गायब हो जाना।
वायु कुल के सबसे बड़े, सबसे ऊँचे द्वीप पर, एक प्राचीन गुफा के भीतर, जो हमेशा बादलों से घिरी रहती थी, समीर अपने प्रतिरोध आंदोलन का नेतृत्व कर रहा था। उसके आस-पास उसके सबसे वफादार लड़ाके बैठे थे, उनके चेहरे पर धूल और थकान थी, लेकिन उनकी आँखों में एक चमक थी जो कभी बुझती नहीं थी। समीर के सामने एक विशाल नक्शा फैला हुआ था, जिस पर अग्नि-सेना की आपूर्ति रेखाएँ और सैन्य चौकियाँ चिह्नित थीं। उसने एक छोटे से निशान पर उंगली रखी।
"पिछली रात हमने उनके पश्चिमी मोर्चे पर एक और आपूर्ति काफिले को बाधित किया है," समीर ने शांत स्वर में कहा, उसकी आवाज़ में थकान नहीं, बल्कि दृढ़ता थी। "दस युद्ध-रथ, पंद्रह हथियार गाड़ियाँ... सब नष्ट हो गए। उनके सैनिक अब हफ्तों तक अपने बाहरी मोर्चों पर रसद के लिए तरसेंगे।"
एक युवा वायु-योद्धा, जिसका नाम लिआन था और जो समीर का सबसे तेज़ उड़ने वाला लड़ाका था, मुस्कुराया। "हाँ, कमांडर। उनकी आँखों में गुस्सा देखने लायक था। उन्हें समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ। हम हवा से आए और हवा में ही घुल गए!" उसने अपनी मुट्ठी हवा में उठाई।
एक बूढ़ा लेकिन मजबूत योद्धा, जिसका नाम अज़ीम था और जिसने कई युद्ध देखे थे, ने धीरे से सिर हिलाया। "तुम्हारी रणनीति, समीर... यह काम कर रही है। पहले तो मुझे संदेह था। हम हमेशा सीधी लड़ाई में विश्वास करते थे। लेकिन तुम सही थे। हम सीधे युद्ध में उनकी संख्या का मुकाबला नहीं कर सकते।"
समीर ने गहरी साँस ली। "अज़ीम गुरु, हम सीधी लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं। हम इस युद्ध को एक अलग तरीके से लड़ रहे हैं। हम उनकी रीढ़ तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। वे विशाल हैं, लेकिन अगर उनकी नसें कट जाएं, तो वे कितनी देर तक खड़े रह सकते हैं?" उसने नक्शे पर कुछ और निशान बनाए। "हमारी अगली चाल... उनके उत्तरी सैन्य शिविर के बाहरी गोदामों पर होगी। उनकी तोपों के लिए गोला-बारूद वहीं जमा होता है।"
लिआन ने उत्सुकता से पूछा, "तो क्या हम फिर से उड़ान भरेंगे, कमांडर?"
समीर मुस्कुराया। "हाँ, लिआन। आज रात। हमें तूफान का इंतज़ार करना होगा। जब हवा सबसे तेज़ होगी, तब हम उड़ेंगे। उनकी आँखें बादलों में हमें नहीं देख पाएंगी।"
तभी, गुफा के प्रवेश द्वार पर एक छाया दिखाई दी। सभी योद्धा तुरंत अपने हथियार तैयार करने लगे, लेकिन जब उन्होंने आने वाले व्यक्ति को देखा, तो उनके चेहरे पर राहत फैल गई। यह समीर का बड़ा भाई, पवन था। वह कालिख और खून से सने हुए था, उसके उड़ने वाले ग्लाइडर पर कई जगह क्षति के निशान थे, लेकिन उसकी आँखें पहले की तरह ही तेज़ थीं। वह सीधे समीर की ओर बढ़ा।
"पवन भाई!" समीर उत्साह से खड़ा हो गया। "तुम यहाँ कैसे? मैंने सुना था तुम अग्रिम पंक्ति में थे।"
पवन ने थकी हुई मुस्कान के साथ कहा, "मैं अभी वहीं से आया हूँ। कुछ देर के लिए मोर्चा संभाला है। मैं तुम्हारे पास एक ज़रूरी संदेश के साथ आया हूँ।" उसकी नज़र समीर के फैले हुए नक्शे पर पड़ी। उसने नक्शे पर समीर द्वारा लगाए गए नए निशानों को देखा। "मैंने सुना तुम्हारे 'छापामार' हमले सफल हो रहे हैं।" उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी गंभीरता थी।
समीर ने उम्मीद और थोड़ी घबराहट से उसे देखा। उन्हें हमेशा से अपने संबंधों में तनाव रहा था। पवन ने हमेशा समीर को अनुभवहीन और लापरवाह समझा था।
पवन ने एक गहरी साँस ली। "समीर... मोर्चे पर, सैनिक तुम्हारी बात कर रहे हैं। पहले वे हंसते थे, सोचते थे कि तुम बच्चों का खेल खेल रहे हो। लेकिन अब... वे तुम्हें 'हवा का भूत' कहते हैं।" पवन ने समीर के कंधे पर हाथ रखा। उसकी पकड़ मजबूत थी। "वे कहते हैं कि तुम्हारी रणनीतियों ने हमें कुछ साँस लेने का मौका दिया है। उन आपूर्ति काफिलों को नष्ट करना... यह हमें एक नई ताकत दे रहा है।" उसकी आँखों में एक नई, अप्रत्याशित चमक थी। "तुम अच्छा काम कर रहे हो, छोटे भाई।"
समीर की आँखें कुछ पल के लिए नम हो गईं। यह पहली बार था जब उसके बड़े भाई ने, जिसने हमेशा उस पर संदेह किया था, उसकी खुले तौर पर प्रशंसा की थी। "धन्यवाद, पवन भाई। इसका मतलब... इसका मतलब बहुत कुछ है।"
पवन ने सिर हिलाया। "इसका मतलब यह है कि तुम्हें यह करते रहना होगा। हमें अपनी हर चाल से उन्हें हैरान करते रहना होगा। लेकिन... यह संदेश किसी अच्छी खबर के साथ नहीं आया है।" पवन का चेहरा गंभीर हो गया। "मैंने मोर्चे पर कुछ भयानक सुना है। कुछ अग्नि-सैनिक पकड़े गए थे। पूछताछ के दौरान, उन्होंने एक भयानक हथियार के बारे में बताया है।"
समीर और बाकी योद्धा गंभीर हो गए। "क्या है, पवन भाई?" लिआन ने पूछा।
पवन ने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे वह उस भयावह चीज़ की कल्पना कर रहा हो। "वे एक नया, उड़ने वाला युद्धपोत बना रहे हैं।" उसने अपनी आँखें खोलीं और समीर की ओर देखा। "यह एक साधारण युद्धपोत नहीं है। यह एक तैरता हुआ किला है। उन्होंने इसे 'अग्नि-वज्र' नाम दिया है।"
समीर का माथा सिकुड़ गया। "अग्नि-वज्र? क्या यह... युद्ध-गुब्बारों से भी बड़ा है?"
"बहुत बड़ा," पवन ने गंभीर स्वर में कहा। "पकड़े गए सैनिकों ने बताया कि यह एक पूरा शहर हवा में उठा सकता है। यह हजारों तोपों से लैस है, और कहा जाता है कि इसमें एक ऐसी ऊर्जा ढाल है जिसे भेदा नहीं जा सकता। उनका मानना है कि यह अजेय होगा।"
अज़ीम गुरु ने साँस ली। "एक तैरता हुआ किला? यह असंभव है! इतनी विशाल संरचना को हवा में कैसे रखा जा सकता है?"
"मुझे नहीं पता, गुरुजी," पवन ने कहा। "लेकिन उन सैनिकों ने इसकी विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने इसकी क्षमता के बारे में बताया... यह एक ही हमले में एक पूरे सैन्य टुकड़ी को नष्ट कर सकता है। अगर यह सच है, तो यह युद्ध का रुख मोड़ देगा। अगर उनके पास यह अजेय युद्धपोत आ गया, तो हमारी 'हिट एंड रन' रणनीति भी बेकार हो जाएगी। वे सीधे हमारे द्वीपों पर हमला कर सकते हैं, बिना किसी डर के।"
समीर चुपचाप नक्शे को देख रहा था। उसके दिमाग में पवन की बातें घूम रही थीं। एक तैरता हुआ किला... एक अजेय ढाल... यह उनके लिए एक नया, कहीं अधिक भयानक खतरा था। अब तक, वे अपनी गति और छिपने की क्षमता पर निर्भर थे। लेकिन अगर दुश्मन के पास एक ऐसा हथियार आ गया जो सीधे उनके ऊपर उड़ सकता था और उन्हें कुचल सकता था, तो उनकी हवा में रहने की पूरी अवधारणा खतरे में पड़ जाएगी।
लिआन ने धीरे से पूछा, "कमांडर... हम इसका मुकाबला कैसे करेंगे? हम हवा में उनके बराबर नहीं हैं।"
समीर ने गहरी साँस ली। उसके चेहरे पर चिंता की रेखाएँ थीं, लेकिन उसकी आँखों में वही दृढ़ संकल्प था जो भैरवी की आँखों में था। "हमें इसे रोकना होगा।" उसने नक्शे पर अपनी मुट्ठी रखी। "इससे पहले कि यह पूरी तरह से तैयार हो जाए, इससे पहले कि वे इसे युद्ध के मैदान में उतारें, हमें इसे नष्ट करना होगा।"
पवन ने समीर की ओर देखा। "यह आत्मघाती मिशन होगा, समीर। अगर यह सच में अजेय है..."
समीर ने अपने भाई की बात बीच में ही काट दी। "आत्मघाती या नहीं, पवन भाई, हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है। अगर अग्नि-वज्र उड़ान भरता है, तो वायु कुल खत्म हो जाएगा। और अगर वायु कुल खत्म हो गया, तो मित्र राष्ट्रों की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो जाएगी।" उसने अपने योद्धाओं की ओर देखा, फिर वापस पवन की ओर। "हमें इस उड़ते हुए किले को आसमान से नीचे गिराना होगा। किसी भी कीमत पर।"
उसके शब्दों में एक ऐसी शक्ति थी जिसने पूरी गुफा में सन्नाटा कर दिया। हवा में एक नया, भयानक लक्ष्य तैर रहा था, और समीर को पता था कि यह उनकी सबसे बड़ी लड़ाई होने वाली थी। अगली रात, तूफान में उड़ने की तैयारी, अब कहीं ज़्यादा मायने रखती थी। उनका भविष्य इस एक खतरे पर टिका था।
Chapter 4
उनका भविष्य इस एक खतरे पर टिका था।
ठीक उसी समय, अग्नि गणराज्य के एक बड़े सीमावर्ती शहर, ज्वाला-पुर में, गलियों में एक अजीब-सी खामोशी छाई हुई थी। हालाँकि यह शहर युद्ध से दूर था, लेकिन हर चेहरा तनाव और डर से भरा था। दुकानें खुली थीं, लेकिन ग्राहकों की भीड़ कम थी। हर जगह अग्नि-सेना के सैनिक गश्त लगा रहे थे, उनकी कठोर आँखें हर आने-जाने वाले पर टिकी थीं। रात का अंधेरा अभी पूरी तरह से नहीं छाया था, लेकिन रोशनी कम थी, जैसे शहर खुद ही अपनी चमक खो चुका था।
शहर के एक पुराने, भीड़-भाड़ वाले बाजार में, जहाँ मसालों और कपड़ों की तेज़ गंध हवा में तैर रही थी, रिया भेष बदलकर चल रही थी। उसने एक साधारण भूरे रंग की मोटी शॉल ओढ़ रखी थी, जिससे उसका चेहरा लगभग ढका हुआ था। उसके चेहरे पर सामान्य मुस्कान नहीं थी, बल्कि एक गंभीर और चौकस भाव था। उसकी तेज़ आँखें लगातार चारों ओर घूम रही थीं, हर सैनिक, हर नागरिक की प्रतिक्रिया को पढ़ रही थीं। वह यहाँ एक गुप्त मिशन पर थी, अपने पिता के साम्राज्य के भीतर ही उनके खिलाफ़ विद्रोह की चिंगारी जलाने।
एक तंग गली से गुजरते हुए, उसे दो सैनिक आपस में फुसफुसाते हुए सुनाई दिए।
"मुझे समझ नहीं आता, हम यह युद्ध क्यों लड़ रहे हैं?" एक सैनिक ने धीमी आवाज़ में कहा। "हमारे अपने ही लोग भूखे मर रहे हैं, जबकि सम्राट नए हथियार बनाने पर अरबों खर्च कर रहा है।"
दूसरा सैनिक उसकी बात पर सिर हिलाया। "चुप रहो, तुम पागल हो गए हो क्या? अगर किसी ने सुन लिया तो तुम्हें सीधे काल-कोठरी में डाल दिया जाएगा। तुम्हें पता है सम्राट कैसा है... वह किसी असंतोष को बर्दाश्त नहीं करेगा।"
रिया वहीं रुक गई, उनकी बातें ध्यान से सुनने लगी। उसकी आँखें थोड़ी चमक उठीं। ये वही लोग थे जिनकी वह तलाश कर रही थी। असंतुष्ट सैनिक।
उसने अपनी चाल धीमी की, और जब सैनिक आगे बढ़े, तो उसने उनके पीछे-पीछे चलना शुरू कर दिया। वे एक छोटी-सी सराय में घुसे। रिया ने कुछ देर इंतज़ार किया, फिर उसने भी हिम्मत करके अंदर कदम रखा। सराय के अंदर माहौल गरम था। कुछ सैनिक शराब पी रहे थे, कुछ अपनी बातें कर रहे थे, और माहौल में एक भारीपन था। रिया ने एक कोने में जगह ढूंढी और बैठ गई, जहाँ से वह उन सैनिकों की बातचीत सुन सके।
"हम एक महीने से इस बेकार युद्ध में फँसे हुए हैं," पहले सैनिक ने कहा। "मैंने अपने पाँच दोस्तों को खो दिया है। किस लिए? बस सम्राट की महत्वाकांक्षा के लिए?"
"शांत हो जाओ, देव!" दूसरे सैनिक ने उसे टोकते हुए कहा। "तुम्हारी बातें बहुत खतरनाक हैं। हम सैनिक हैं, हमें बस आदेश का पालन करना है।"
देव नाम का सैनिक हँसा, एक कड़वी हँसी। "आदेश? क्या अंधा होकर मरना आदेश है? हमें बताया गया था कि हम न्याय के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन अब हमें केवल निर्दोषों को मारना पड़ रहा है! मैंने अपनी आँखों से देखा है कि ज्वालामुख ने कैसे उन गाँववालों को जलाया जो सिर्फ़ भागना चाहते थे। क्या यह न्याय है?"
उसकी आवाज़ थोड़ी ऊँची हो गई थी। सराय में कुछ लोगों ने उनकी तरफ़ देखा।
"चुप हो जाओ, देव!" उसके दोस्त ने उसे फिर से चेतावनी दी। "तुम शराब के नशे में कुछ भी बक रहे हो।"
रिया ने उन्हें एक बार फिर ध्यान से देखा। वह जानती थी कि उसे ऐसे लोगों की तलाश है जो विद्रोह करने की हिम्मत करें, लेकिन वह यह भी जानती थी कि डर बहुत गहरा था। सम्राट विक्रम ने एक ऐसा माहौल बना रखा था जहाँ विरोध का मतलब मौत थी।
उसने अगले कुछ दिनों तक शहर में घूमना जारी रखा। वह व्यापारियों से मिलती, भिखारियों से बात करती, और कभी-कभी जानबूझकर ऐसी बातें छेड़ देती जिससे लोगों की असली भावनाएँ बाहर आएं। उसने महसूस किया कि देव अकेला नहीं था। कई लोग सम्राट के तरीकों से असहमत थे। उन्हें युद्ध की निरर्थकता दिख रही थी, लेकिन वे डरते थे। वे इतनी ज़्यादा संख्या में थे कि अगर वे एकजुट हो जाएं तो एक ताकत बन सकते हैं, लेकिन उन्हें एकजुट करने वाली एक चिंगारी की ज़रूरत थी।
यह काम मुश्किल था। रिया को पता था कि एक गलत कदम उसे सीधे काल-कोठरी में डाल देगा, या इससे भी बुरा, मौत के मुँह में। उसे हर कदम बहुत सावधानी से उठाना था। वह ऐसे लोगों की तलाश में थी जो केवल असंतुष्ट न हों, बल्कि जिनके पास कुछ शक्ति भी हो – ऐसे अधिकारी या सैनिक जो नेतृत्व कर सकें।
एक दिन, रिया एक सैन्य प्रशिक्षण मैदान के पास से गुज़र रही थी। वहाँ एक युवा कप्तान अपने सैनिकों को प्रशिक्षित कर रहा था। उसकी आवाज़ तेज़ और स्पष्ट थी, और उसके आदेशों में एक अजीब-सी करुणा थी। उसने देखा कि कप्तान अपने सैनिकों को केवल शारीरिक रूप से ही नहीं, बल्कि नैतिक रूप से भी प्रशिक्षित कर रहा था। वह उन्हें न्याय, कर्तव्य और नागरिकों की सुरक्षा के बारे में सिखा रहा था, जो कि सम्राट के वर्तमान शासन में एक दुर्लभ बात थी।
"एक सैनिक का असली सम्मान उसके दुश्मनों को हराने में नहीं है, बल्कि अपने लोगों की रक्षा करने में है!" उसने अपने सैनिकों से कहा। "अगर तुम्हें अपने लोगों को चुनना पड़े और अपने आदेशों को, तो हमेशा अपने लोगों को चुनो! हमारा राजा कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, वह केवल तभी तक राजा है जब तक हम उसकी रक्षा करते हैं। लेकिन हम कौन हैं? हम वही हैं जो इन साधारण लोगों की रक्षा के लिए खड़े होते हैं।"
रिया वहीं रुक गई। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। इस तरह की बात कोई भी अधिकारी खुले तौर पर कैसे कह सकता था? वह कप्तान अलग था। वह युवा था, लेकिन उसकी बातों में एक आदर्शवादी आग थी।
उसने सैनिकों से उसका नाम पूछा। उन्होंने उसे "कप्तान अर्जुन" बताया।
रिया ने अर्जुन को कई दिनों तक दूर से देखा। उसने देखा कि वह अपने सैनिकों के साथ घुलमिल कर रहता था, उनके दुख-दर्द सुनता था। वह युद्ध के मोर्चे से लौटे घायल सैनिकों से मिलता था और उनकी देखभाल सुनिश्चित करता था। वह उन कुछ अधिकारियों में से था जो अभी भी मानवीय थे। रिया को लगा कि उसे अपना पहला सहयोगी मिल गया है।
एक शाम, अर्जुन सराय में बैठा था, अकेले। उसके सामने एक गिलास पानी था, और उसकी आँखें उदास थीं। रिया ने मौका देखा। उसने हिम्मत जुटाई, अपनी शॉल को और कसकर लपेटा, और उसके पास गई।
"क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ, कप्तान?" उसने धीमी आवाज़ में पूछा।
अर्जुन ने सिर उठाया, उसकी आँखों में थोड़ी हैरानी थी। उसने रिया को देखा, उसकी आँखों में कोई लालच नहीं था, केवल एक अजीब-सी गंभीरता। "हाँ, बिलकुल," उसने कहा।
रिया बैठ गई। कुछ देर तक दोनों चुप रहे। सराय का शोरगुल उनके बीच की खामोशी को और गहरा कर रहा था।
आखिरकार, रिया ने धीरे से कहा, "मैंने तुम्हें कई बार देखा है, कप्तान अर्जुन। तुम अलग हो।"
अर्जुन ने थोड़ा चौंककर उसे देखा। "अलग? मेरा मतलब?"
"तुम न्याय की बात करते हो," रिया ने कहा। "तुम लोगों की बात करते हो। जबकि बाकी सब केवल आदेशों और जीत की बात करते हैं।"
अर्जुन ने गहरी साँस ली। उसने अपना गिलास उठाया, और एक घूँट पिया। "न्याय... इस युद्ध में न्याय जैसी कोई चीज़ बची ही नहीं है। केवल अंधाधुंध हिंसा है।" उसकी आवाज़ में एक दर्द था। "मैं अपने सैनिकों को कैसे बताऊँ कि हम क्यों लड़ रहे हैं, जब मुझे खुद नहीं पता? मैं उन्हें कैसे बताऊँ कि हमारे हाथ खून से क्यों सने हुए हैं, जब हमें केवल निर्दोषों को मारना पड़ रहा है?"
रिया ने अपनी शॉल थोड़ी हटाई, ताकि उसका चेहरा थोड़ा दिख सके। उसकी आँखों में एक चमक थी। "क्या तुम सच में मानते हो कि यह युद्ध गलत है, कप्तान?"
अर्जुन ने मेज पर हाथ मारा, उसकी आँखें लाल हो गईं। "गलत? यह एक पाप है! सम्राट की महत्वाकांक्षा ने पूरी दुनिया को नरक बना दिया है। और हम... हम उसके मोहरे हैं। हम उसके लिए इस गंदगी में धँसते जा रहे हैं।" उसकी आवाज़ नीची थी, लेकिन उसमें गुस्सा भरा था। "लेकिन हम क्या कर सकते हैं? वह अजेय है। वह किसी भी विरोध को कुचल देता है। जो कोई भी उसके खिलाफ़ जाता है, वह अगले दिन मर जाता है या गायब हो जाता है।"
"लेकिन अगर पर्याप्त लोग उसके खिलाफ़ खड़े हो जाएं तो?" रिया ने धीरे से कहा। "अगर पर्याप्त सैनिक, अधिकारी, नागरिक... सभी एक साथ आवाज़ उठाएं तो?"
अर्जुन ने उसे घूरकर देखा। "तुम क्या कहना चाहती हो?"
रिया ने अपनी शॉल पूरी तरह से हटा दी। अर्जुन ने उसकी आँखों में देखा और एक पल के लिए चौंक गया। एक जानी-पहचानी-सी चमक... यह आँखें उसने कहीं देखी थीं।
"मैं सम्राट विक्रम की बेटी हूँ, रिया," उसने फुसफुसाते हुए कहा।
अर्जुन की आँखें चौड़ी हो गईं। वह तुरंत उठ खड़ा हुआ, उसका कुर्सी पीछे गिर गई। "क्या... क्या कह रही हो तुम? राजकुमारी?"
रिया ने उसे बैठने का इशारा किया। "शांत हो जाओ, कप्तान। मुझे यहाँ पहचानना खतरनाक हो सकता है।"
अर्जुन बैठ गया, उसका चेहरा सफेद पड़ गया था। "लेकिन... तुम यहाँ क्या कर रही हो? तुम्हारे पिता..."
"मेरे पिता अब केवल सम्राट नहीं हैं," रिया ने कड़वाहट से कहा। "वह एक राक्षस बन गए हैं, जिसने अपनी शक्ति की प्यास में सब कुछ दाँव पर लगा दिया है। मैं यहाँ उसे रोकने के लिए हूँ, कप्तान। मैं उसे और इस युद्ध को खत्म करने के लिए हूँ।" उसकी आँखों में एक दृढ़ संकल्प था। "लेकिन मुझे मदद की ज़रूरत है। मुझे ऐसे लोगों की ज़रूरत है जो मेरे साथ खड़े हों। ऐसे लोग जो डर से ज़्यादा न्याय को महत्व देते हों।"
अर्जुन ने एक पल के लिए सोचा। राजकुमारी, अपने ही पिता के खिलाफ़? यह अविश्वसनीय था। यह पागलपन था। लेकिन उसकी आँखों में जो सच्चाई थी, वह उसे नकार नहीं सका। उसने अपनी पूरी ताकत से लड़ने का संकल्प किया था, लेकिन वह केवल एक छोटी सी चिंगारी था। रिया उसे एक आग में बदल सकती थी।
उसने रिया की आँखों में देखा। "तुम अकेली हो?" उसने पूछा।
"अभी के लिए," रिया ने कहा। "लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरे दोस्त भी कहीं न कहीं लड़ रहे होंगे। और जब वे वापस आएंगे, तो हमें एक मजबूत आधार की ज़रूरत होगी। हमें भीतर से एक प्रतिरोध आंदोलन खड़ा करना होगा।"
अर्जुन ने गहरी साँस ली। उसने अपना सिर हिलाया। "मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि मैं यह कह रहा हूँ... लेकिन तुम सही हो। हम अब और चुप नहीं रह सकते।" उसने अपना हाथ रिया की ओर बढ़ाया। "कप्तान अर्जुन, तुम्हारी सेवा में, राजकुमारी। मैं तुम्हारे साथ हूँ।"
रिया ने उसका हाथ पकड़ा। उसकी पकड़ मजबूत थी। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई, पहली बार जब वह इस शहर में आई थी। उसे अपना पहला सहयोगी मिल गया था। एक युवा, आदर्शवादी कप्तान जो सम्राट के खिलाफ़ खड़े होने की हिम्मत रखता था। यह एक छोटी सी शुरुआत थी, लेकिन एक बहुत महत्वपूर्ण शुरुआत। उसे पता था कि यह रास्ता मुश्किल होगा, लेकिन अब वह अकेली नहीं थी।
और इस विश्वास के साथ, रिया ने अपने मिशन को एक नई दिशा दी। उन्हें अब केवल गुप्त रूप से असंतुष्टों को नहीं ढूंढना था, बल्कि उन्हें एक साथ लाना था। विद्रोह की चिंगारी जल चुकी थी, और रिया उसे एक बड़ी आग में बदलने के लिए तैयार थी, ठीक सम्राट के अपने गढ़ के भीतर। अगली रात, उसका लक्ष्य एक ऐसे कमांडर से संपर्क करना था जो एक बड़े सैन्य अड्डे की कमान संभालता था, जिसके बारे में उसे पता चला था कि वह सम्राट के नए "अत्याधुनिक हथियार" बनाने की योजना से असहमत था। उसका यह "अत्याधुनिक हथियार" कहीं समीर के "अग्नि-वज्र" से जुड़ा तो नहीं था... यह रिया को अभी पता नहीं था। लेकिन उसे अब बस एक कदम आगे बढ़ना था।
Chapter 5
रिया ने अपने मिशन को एक नई दिशा दी। उन्हें अब केवल गुप्त रूप से असंतुष्टों को नहीं ढूंढना था, बल्कि उन्हें एक साथ लाना था। विद्रोह की चिंगारी जल चुकी थी, और रिया उसे एक बड़ी आग में बदलने के लिए तैयार थी, ठीक सम्राट के अपने गढ़ के भीतर। अगली रात, उसका लक्ष्य एक ऐसे कमांडर से संपर्क करना था जो एक बड़े सैन्य अड्डे की कमान संभालता था, जिसके बारे में उसे पता चला था कि वह सम्राट के नए "अत्याधुनिक हथियार" बनाने की योजना से असहमत था। उसका यह "अत्याधुनिक हथियार" कहीं समीर के "अग्नि-वज्र" से जुड़ा तो नहीं था... यह रिया को अभी पता नहीं था। लेकिन उसे अब बस एक कदम आगे बढ़ना था।
ठीक उसी समय, दुनिया के एक बिल्कुल अलग कोने में, बर्फीले पहाड़ों की विशाल और निर्मम चोटियाँ आकाश को छू रही थीं। यहाँ केवल बर्फ़ की खामोशी थी, और ठंडी, तेज़ हवा जो हड्डियों तक जमने वाली थी। सूरज की रोशनी भी यहाँ फीकी और बेजान लगती थी, और रात में तो सब कुछ एक विशाल, बर्फीले रेगिस्तान जैसा प्रतीत होता था।
इस विशाल, सफ़ेद विस्तार में, आरव अकेले यात्रा कर रहा था। उसके शरीर पर मोटे ऊनी कपड़े थे, लेकिन फिर भी ठंड उसके रोम-रोम में घुस रही थी। उसकी साँसों से भाप निकल रही थी, और हर कदम उठाना एक चुनौती थी। वह पिछले कई दिनों से चल रहा था, बिना रुके, आकाश-शिखर की तलाश में। गुरु वशिष्ठ ने उसे बताया था कि यह पर्वत ही उसके पूर्वजों का घर है, जहाँ उसे अपनी शक्तियों को समझना और नियंत्रित करना सीखना होगा। लेकिन गुरु ने यह नहीं बताया था कि रास्ता इतना कठिन होगा।
उसकी आँखों के सामने हर दिशा में केवल सफ़ेद बर्फ़ थी और नुकीली, बर्फीली चोटियाँ थीं जो आसमान में विलीन हो रही थीं। कोई रास्ता नहीं था, कोई निशान नहीं था। बस एक अंतहीन सफ़ेदपन।
वह एक बर्फ़ीली ढलान पर चढ़ रहा था, उसका हाथ एक चट्टान पर टिका था जो बर्फ़ से ढकी हुई थी। उसके जूते बर्फ़ में धँस रहे थे, और हर साँस दर्द दे रही थी। वह अपनी आकाश-शक्ति को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा था, ताकि ठंड से कुछ राहत मिल सके, या अपने शरीर को थोड़ा हल्का कर सके, लेकिन इस कठोर वातावरण में यह और भी मुश्किल था। उसकी शक्ति अभी भी उसके नियंत्रण में नहीं थी, और थोड़ी सी भी चूक उसे गंभीर खतरे में डाल सकती थी।
"यह ठंड... इतनी ज़्यादा क्यों है?" उसने अपने आप से फुसफुसाया, उसकी आवाज़ हवा में खो गई। उसने अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ा, लेकिन उनमें जान नहीं आ रही थी। "अगर मैं अपनी ऊर्जा का उपयोग करता हूँ, तो यह मुझे और थका देती है... लेकिन अगर मैं नहीं करता, तो मैं जम जाऊंगा।"
उसने अपनी आकाश-शक्ति का एक छोटा सा प्रदर्शन करने की कोशिश की। उसने अपने चारों ओर की हवा को थोड़ा गर्म करने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ से बस एक हल्की सी नीली चमक निकली और ठंड ने उसे तुरंत निगल लिया। यह एक बेकार की कोशिश थी, और उसे एहसास हुआ कि इस ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए उसे बहुत ज़्यादा एकाग्रता की ज़रूरत थी, जो इस ठंड में मुश्किल थी।
वह आगे बढ़ा, एक कदम के बाद दूसरा। भूख और प्यास भी उसे सता रही थी। उसके पास जो खाने का सामान था, वह लगभग खत्म हो चुका था। पानी तो हर जगह बर्फ़ के रूप में था, लेकिन उसे पिघलाने के लिए आग चाहिए थी, और इस जगह पर आग जलाना लगभग असंभव था।
चलते-चलते उसकी नज़र दूर एक पहाड़ पर पड़ी। उसे लगा जैसे कुछ हिल रहा था। वह तुरंत सावधान हो गया। बर्फीले पहाड़ों में खतरनाक जानवर भी होते थे, भेड़ियों के झुंड या विशाल हिम-भालू। उसने अपनी मुट्ठी भींच ली, अगर उसे लड़ना पड़ा तो वह तैयार था। लेकिन वह सिर्फ़ एक हवा का झोंका था जिसने बर्फ़ को उड़ाया था।
वह एक बर्फीले टीले के पीछे बैठ गया, हवा से बचने के लिए। उसकी पीठ पर भारी बस्ता था, जिसमें उसकी कुछ किताबें और खाने का सामान था। उसने अपनी मुट्ठी से बर्फ़ उठाई और उसे मुँह में रखा, जिससे उसे थोड़ी राहत मिली।
"काश... काश तुम लोग यहाँ होते," उसने फुसफुसाया, उसकी आँखों में उदासी थी। "रिया... समीर... भैरवी..."
उसे रिया का चेहरा याद आया, उसकी मुस्कान और उसकी आँखों की चमक। उसे समीर की हंसी और उसकी हवा में उड़ने की गति याद आई। उसे भैरवी का शांत, स्थिर चेहरा याद आया, उसकी धरती जैसी दृढ़ता। वे सब एक साथ थे, एक-दूसरे का सहारा थे। और यहाँ वह बिल्कुल अकेला था, एक ऐसी जगह पर जहाँ केवल खामोशी और ठंड थी।
"मुझे पता है तुम सब भी लड़ रहे होगे," उसने अपने आप से कहा, जैसे वे उसे सुन सकते हों। "मुझे पता है कि तुम लोग भी मुश्किल में होगे। और मैं यहाँ... मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ?"
गुरु वशिष्ठ ने कहा था कि उसे अपनी शक्ति को समझना होगा, कि केवल वही कलासुर से लड़ सकता है। लेकिन यहाँ वह बस जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहा था। उसे लगा जैसे वह बहुत दूर आ गया है, अपने दोस्तों से, अपनी दुनिया से। उसे डर था कि कहीं वह उन्हें निराश न कर दे। यह डर ठंड से भी ज़्यादा भयानक था।
उसने अपनी आँखों को कसकर बंद कर लिया। उसे अकादमी में अपमान याद आया, जब सब उसे कमज़ोर समझते थे। उसे पंचतत्व महासंग्राम पर हमला याद आया, जब वह कुछ नहीं कर पाया था। और फिर भैरवी का घायल होना... वह दृश्य उसकी आँखों में फिर से घूम गया। वह शक्तिहीन था। और अब, इस अकेली यात्रा पर, उसे फिर से वही शक्तिहीनता महसूस हो रही थी।
"मुझे और मजबूत होना होगा," उसने खुद से कहा, उसकी आवाज़ में एक नया दृढ़ संकल्प था। "मुझे उनके लिए मजबूत होना होगा। मुझे इस शिखर तक पहुँचना होगा।"
वह उठा, उसकी माँसपेशियाँ दर्द कर रही थीं। सूरज ढल रहा था, और रात का अंधेरा तेज़ी से बढ़ रहा था। उसे रात बिताने के लिए कोई सुरक्षित जगह ढूंढनी थी, इससे पहले कि बर्फ़ीला तूफ़ान उठे या कोई बर्फीला शिकारी उसे अपना शिकार बनाए। उसने अपने चारों ओर देखा, उसकी निगाहें एक छोटी सी गुफा या एक चट्टानी दरार की तलाश में थीं। उसे अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना था, और हर कदम एक चुनौती थी। लेकिन उसे यह करना ही था। अपने दोस्तों के लिए। दुनिया के लिए। और अपने लिए।
उसने अपनी शक्तियों को फिर से सक्रिय करने की कोशिश की, इस बार और ज़्यादा ध्यान से, यह सोचकर कि अगर वह अपने शरीर के चारों ओर एक हल्का ऊर्जा क्षेत्र बना सके, तो शायद ठंड से थोड़ी राहत मिल सकती है। उसकी उंगलियों के सिरे नीले रंग में चमक उठे, और एक बेहद हल्की गर्मी उसके चारों ओर फैलने लगी। यह नाकाफी थी, लेकिन यह एक शुरुआत थी। उसने धीरे-धीरे उस हल्के ऊर्जा क्षेत्र को अपने चारों ओर फैलाना शुरू कर दिया, जैसे एक अदृश्य, पतली चादर। यह बेहद थका देने वाला था, लेकिन ठंड से लड़ने का यह एकमात्र तरीका था। उसे यह भी उम्मीद थी कि यह उसकी उपस्थिति को बर्फीले जानवरों से छिपाने में मदद करेगा।
जैसे ही वह आगे बढ़ा, दूर एक तेज़ हवा का झोंका आया, जिससे बर्फ़ के कण उसके चेहरे पर आकर लगे। उसके सामने एक विशाल, ढकी हुई घाटी थी, जहाँ से उसे एक धीमी, गड़गड़ाहट की आवाज़ सुनाई दे रही थी, जैसी किसी हिमस्खलन से आती है। आरव को पता था कि उसे सतर्क रहना होगा, क्योंकि एक गलत कदम उसे अनंत बर्फ़ की कब्र में दफ़्न कर सकता था।
Chapter 6
जैसे ही वह आगे बढ़ा, दूर एक तेज़ हवा का झोंका आया, जिससे बर्फ़ के कण उसके चेहरे पर आकर लगे। उसके सामने एक विशाल, ढकी हुई घाटी थी, जहाँ से उसे एक धीमी, गड़गड़ाहट की आवाज़ सुनाई दे रही थी, जैसी किसी हिमस्खलन से आती है। आरव को पता था कि उसे सतर्क रहना होगा, क्योंकि एक गलत कदम उसे अनंत बर्फ़ की कब्र में दफ़्न कर सकता था। उसे अपनी शक्तियों को समझना होगा, ताकि वह ऐसी किसी भी स्थिति से बच सके और अपने दोस्तों के पास वापस जा सके।
उसी समय, धरती के दूसरे छोर पर, पृथ्वी गणराज्य के पश्चिमी मोर्चे पर एक गहरा संकट मंडरा रहा था। अचल-गढ़ का विशाल किला, जो सदियों से पृथ्वी राज्य की ढाल रहा था, अब युद्ध की विभीषिका झेल रहा था। इसकी ऊँची, मजबूत पत्थर की दीवारें भी अब थकान और निराशा की कहानियाँ सुना रही थीं। अग्नि सेना की लगातार बमबारी और हमलों ने किले के कई हिस्सों को क्षतिग्रस्त कर दिया था, और हर तरफ़ मलबे के ढेर लगे थे। मिट्टी और धूल हवा में तैर रही थी, और दूर से आती तोपों की आवाज़ें दिल दहला रही थीं।
सैनिकों के चेहरे पर निराशा और थकावट साफ़ झलक रही थी। वे हफ़्तों से बिना रुके लड़ रहे थे, अपने घर, अपनी धरती की रक्षा कर रहे थे। लेकिन दुश्मन की संख्या बहुत ज़्यादा थी, और उनके पास लगातार नई आपूर्ति आ रही थी। पृथ्वी गणराज्य के जनरल और कमांडर भी थके हुए और हताश दिख रहे थे। अचल-गढ़ का पतन पृथ्वी राज्य की राजधानी के लिए सीधा खतरा था, और वे जानते थे कि अगर यह किला गिर गया, तो उनका पूरा राज्य असुरक्षित हो जाएगा।
किले के एक प्रमुख गढ़ पर, जहाँ से दूर तक का मैदान दिखाई देता था, भैरवी खड़ी थी। उसके शरीर पर अभी भी पिछली लड़ाई के निशान थे, उसके माथे पर एक पट्टी बंधी थी, और वह अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई थी। लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी, एक दृढ़ता जो किसी भी चोट से ज़्यादा गहरी थी। उसने अपनी भारी, भूरे रंग की पृथ्वी गणराज्य की पोशाक पहन रखी थी, जो उसके दृढ़ संकल्प को और बढ़ा रही थी। उसके चारों ओर सैनिक एक छोटे से समूह में इकट्ठे थे, उनकी निगाहें नीचे झुकी हुई थीं।
"कमांडर भैरवी," एक बूढ़े जनरल ने उदासी से कहा। "अग्नि सेना किसी भी वक्त फिर से हमला कर सकती है। हमारी आपूर्ति कम हो रही है, और सैनिकों का मनोबल टूट रहा है।"
भैरवी ने अपनी नज़र मैदान से हटाई और सैनिकों पर डाली। उनकी उदासी उसे महसूस हो रही थी, जैसे धरती का दर्द उसे महसूस होता था। उसकी आँखें थोड़ी देर के लिए बंद हो गईं, जैसे वह धरती की नब्ज़ सुन रही हो।
"मनोबल टूटा नहीं है, जनरल," भैरवी ने धीमी लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा। "बस थक गए हैं। और थकावट को आराम और विश्वास से दूर किया जा सकता है।"
जनरल ने सिर हिलाया। "लेकिन कमांडर, हम अचल-गढ़ को कितने समय तक रोक पाएंगे? यह केवल समय की बात है जब वे इसे तोड़ देंगे।"
भैरवी ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "नहीं, जनरल। यह किला नहीं गिरेगा। कभी नहीं।" उसने अपनी आवाज़ थोड़ी ऊँची की ताकि सभी सैनिक सुन सकें। "यह सिर्फ़ एक किला नहीं है। यह पृथ्वी राज्य का हृदय है। अगर अचल-गढ़ गिर गया, तो हमारी राजधानी, हमारे घर, हमारी संस्कृति... सब कुछ खतरे में पड़ जाएगा।"
एक युवा सैनिक ने हिम्मत करके पूछा, "हम क्या कर सकते हैं, कमांडर? उनकी संख्या हमसे कहीं ज़्यादा है। और उनके पास वह दैत्य है... ज्वालामुख।" सैनिक के मुँह से ज्वालामुख का नाम सुनकर कुछ सैनिक सहम गए।
भैरवी ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में कोई डर नहीं था। "हम वह करेंगे जो एक सैनिक को करना चाहिए। हम लड़ेंगे। हम अपनी धरती के लिए लड़ेंगे। अपने लोगों के लिए लड़ेंगे।" उसने अपने हाथ फैलाए और अपनी पृथ्वी-शक्ति का आह्वान किया। उसके हाथों के नीचे की ज़मीन काँपने लगी, और पत्थर उसकी ऊर्जा से चमकने लगे।
"हमें इस किले को और मजबूत करना होगा," उसने कहा। "हमें इसे ऐसा बनाना होगा जिसे कोई तोड़ न सके।"
जनरल ने चौंककर कहा, "लेकिन कमांडर, हमारे पास इंजीनियरिंग टीमें नहीं हैं जो इतनी जल्दी इतने बड़े किले को मजबूत कर सकें।"
भैरवी ने एक हल्की मुस्कान दी। "हमें उनकी ज़रूरत नहीं है।"
उसने अपनी आँखों को कसकर बंद कर लिया, और उसकी शक्ति पूरे किले में फैल गई। ज़मीन के नीचे, विशाल चट्टानें और धरती की नसें काँपने लगीं। वह अपनी पूरी ऊर्जा और एकाग्रता को एक साथ केंद्रित कर रही थी। उसकी भूरे रंग की ऊर्जा उसकी मुट्ठियों से बाहर निकलकर किले की दीवारों में समाने लगी।
आश्चर्यजनक रूप से, सैनिकों ने देखा कि किले की क्षतिग्रस्त दीवारें खुद ही ठीक होने लगी थीं। दरारें भरने लगीं, और टूटे हुए पत्थर अपनी जगह वापस आने लगे। किले की नींव और गहरी होने लगी, और दीवारें और मोटी होती जा रही थीं, जैसे पृथ्वी स्वयं अपनी रक्षा के लिए खड़ी हो गई हो। भैरवी के माथे पर पसीना आने लगा, लेकिन उसने अपनी शक्ति को रोके रखा। यह एक विशाल काम था, उसकी शक्ति की सीमाओं को धक्का देना। लेकिन उसे पता था कि यह ज़रूरी है।
कुछ ही मिनटों में, जो दीवारें क्षतिग्रस्त और कमजोर दिख रही थीं, वे अब पहले से कहीं ज़्यादा मजबूत दिख रही थीं, जैसे वे एक ही अखंड चट्टान से बनी हों। यह एक जादुई दृश्य था, जिसने सैनिकों में एक नई आशा जगाई। वे एक-दूसरे की ओर देखने लगे, उनकी आँखों में चमक थी।
भैरवी ने अपनी आँखें खोलीं। वह थक चुकी थी, लेकिन संतुष्ट थी। "ये दीवारें अब और मजबूत हैं," उसने हाँफते हुए कहा। "लेकिन दीवारें केवल पत्थर होती हैं। असली शक्ति तो तुम लोग हो।"
उसने सैनिकों की ओर देखा। "मैं जानती हूँ तुम थक गए हो। मैं जानती हूँ तुम डरे हुए हो। हर कोई डरता है। लेकिन डर हमें लड़ने से नहीं रोक सकता।" उसकी आवाज़ में जुनून था। "हमारा कर्तव्य इन दीवारों से भी बड़ा है। हमारा कर्तव्य हर उस बच्चे के लिए है जो यहाँ सो रहा है। हर उस माँ के लिए है जो अपने बेटों का इंतज़ार कर रही है। हर उस पेड़ के लिए है जो हमारे खेतों में उगता है।"
उसने अपनी मुट्ठी उठाई। "यह धरती हमारी माँ है। और कोई भी अपनी माँ को दुश्मन के हाथों में नहीं छोड़ता! हम इस किले की रक्षा करेंगे! हम अपनी हर साँस के साथ लड़ेंगे! हम उन्हें दिखा देंगे कि पृथ्वी गणराज्य के सैनिक किस मिट्टी से बने हैं!"
सैनिकों में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। उनकी उदासी दूर हो गई, और उनकी आँखों में लड़ने की आग चमक उठी। कुछ सैनिकों ने अपनी तलवारें हवा में लहराईं, और एक सैनिक ने चिल्लाकर कहा, "अचल-गढ़ अमर रहे! पृथ्वी गणराज्य अमर रहे!"
उसके पीछे-पीछे सभी सैनिकों ने अपनी तलवारें उठाईं और पूरे किले में "अचल-गढ़ अमर रहे!" के नारों की गूँज फैल गई। भैरवी ने एक हल्की मुस्कान दी। उसने उनका मनोबल बढ़ाया था। उसे पता था कि असली लड़ाई अभी शुरू होनी बाकी है, लेकिन अब उनके पास लड़ने की एक वजह थी, और एक नेता जो उन्हें प्रेरित कर सके। वह खुद जानती थी कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन उसने भी हार न मानने का संकल्प कर लिया था। क्योंकि वह सिर्फ़ ज़मीन की नहीं, बल्कि इस धरती पर रहने वाले लोगों की भी रक्षा कर रही थी।
उसने अपने हाथों को उठाया और किले के पश्चिमी गेट के पास की भूमि को और मजबूत किया। उसने एक अदृश्य ऊर्जा तरंग भेजी, जिससे जमीन और गहरी, और ठोस हो गई, एक ऐसा आधार बन गया जिसे कोई तोड़ नहीं सकता था। वह जानती थी कि ज्वालामुख जैसा दुश्मन केवल बल का उपयोग करेगा, और उसे रोकने के लिए उन्हें उससे भी ज़्यादा मजबूत होना पड़ेगा। वह जानती थी कि जल्द ही वह यहाँ आएगा, और जब वह आएगा, तो उसे एक ऐसी दीवार मिलेगी जो उसकी कल्पना से कहीं ज़्यादा मजबूत होगी।
Chapter 7
पृथ्वी गणराज्य के पश्चिम में जहाँ धरती की अटल दीवारें खड़ी थीं, वहीं दूर, बादलों के बीच, वायु कुल के तैरते हुए द्वीप हवा में झूल रहे थे। यहाँ युद्ध का शोर कम था, लेकिन तनाव हर साँस में महसूस होता था। ये द्वीप अपनी गति और ऊँचाई के कारण अभी भी सुरक्षित थे, लेकिन अग्नि गणराज्य की बढ़ती शक्ति एक लगातार मंडराता खतरा थी। हवा में हमेशा एक हल्की फुसफुसाहट रहती थी, जो योद्धाओं की प्रार्थनाओं और युद्ध की आशंकाओं से भरी थी। चमकीले नीले आकाश के नीचे, वायु-योद्धा अपने ग्लाइडरों पर अभ्यास कर रहे थे, अपनी गति और चपलता का सम्मान कर रहे थे, जो उनकी सबसे बड़ी ताकत थी।
समीर, अपने पैतृक घर 'वायु-महल' के मुख्य अवलोकन डेक पर खड़ा था। उसकी आँखें दूर क्षितिज पर टिकी थीं, जहाँ से अग्नि गणराज्य की सीमाएँ शुरू होती थीं। उसके बगल में, कुछ वायु-जासूसों के नेता खड़े थे, जो अभी-अभी अपनी एक गुप्त सूचना लेकर लौटे थे। समीर ध्यान से उनकी बातें सुन रहा था।
"कमांडर समीर," जासूसों के मुखिया ने सम्मान से झुकते हुए कहा। "हमें एक महत्वपूर्ण जानकारी मिली है। अग्नि गणराज्य एक बहुत बड़ा आपूर्ति काफिला भेज रहा है।"
समीर ने अपनी भौंहें चढ़ाईं। "आपूर्ति काफिला? किस तरह का? सिर्फ़ भोजन और हथियार?"
"नहीं, कमांडर," मुखिया ने गंभीर स्वर में कहा। "यह सामान्य काफिला नहीं है। इसमें भारी सैन्य उपकरण, इंजीनियरिंग के पुर्जे और... कुछ बहुत बड़े, गुप्त बक्से भी हैं।"
"गुप्त बक्से?" समीर की आँखों में जिज्ञासा चमक उठी। "और यह कहाँ जा रहा है?"
"उत्तर की ओर, कमांडर। हमारे अनुमान के अनुसार, यह अग्नि गणराज्य के सबसे बड़े और सबसे सुरक्षित सैन्य ठिकानों में से एक 'काल-गढ़' की ओर बढ़ रहा है। वह ठिकाना हमारी वायु सीमा से बहुत अंदर है।" जासूस ने अपनी उंगली एक बड़े नक्शे पर रखी। "यहाँ देखिए। काफिला इस रास्ते से जाएगा, जो हमारे क्षेत्र के करीब है, लेकिन फिर भी बहुत दूर है।"
समीर ने नक्शे को ध्यान से देखा। काल-गढ़ अग्नि गणराज्य के भीतर एक दुर्गम क्षेत्र था, जहाँ भारी सुरक्षा और जासूसी के कड़े इंतज़ाम थे। वहाँ तक पहुँचने का मतलब था दुश्मन के दिल में घुसना। लेकिन अगर यह काफिला इतना महत्वपूर्ण था...
"यह हमारे लिए एक अवसर है," समीर ने अचानक कहा।
जासूस मुखिया ने चौंककर समीर की ओर देखा। "अवसर? कमांडर, यह काफिला बहुत भारी सुरक्षा में होगा। इसमें कई तोपें होंगी, और उनके हवाई गश्ती दल भी सक्रिय होंगे। हम उन पर हमला करने की सोच भी नहीं सकते।"
"हम हमला नहीं करेंगे," समीर ने एक रहस्यमय मुस्कान के साथ कहा। "हम उन्हें नष्ट करेंगे।"
जासूसों के मुखिया और अन्य अधिकारी एक-दूसरे की ओर देखने लगे। समीर की बातें हमेशा सीधी और साहसी होती थीं, लेकिन यह कुछ ज़्यादा ही थी।
"कमांडर, यह आत्मघाती मिशन होगा," एक अधिकारी ने कहा। "काल-गढ़ के इतने करीब... हम पकड़े जाएँगे, या मारे जाएँगे।"
"या हम उन्हें इतनी बुरी तरह से नुकसान पहुँचाएँगे कि वे कभी सोच भी नहीं पाएँगे कि ऐसा हुआ कैसे," समीर ने आत्मविश्वास से कहा। "अगर हम उनकी आपूर्ति लाइन को तोड़ दें, तो उनके उत्तरी मोर्चे को भारी नुकसान होगा। यह युद्ध का रुख बदल सकता है।"
तभी पवन, समीर का बड़ा भाई, अवलोकन डेक में दाखिल हुआ। उसने सारी बातचीत सुन ली थी। पवन का चेहरा गंभीर था, और उसकी आँखों में चिंता थी।
"समीर," पवन ने शांत लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा। "तुम क्या करने की सोच रहे हो? मैंने सुना, तुम किसी काफिले को उड़ाने की बात कर रहे हो, जो काल-गढ़ जा रहा है?"
समीर अपने भाई की ओर मुड़ा। "हाँ, पवन भाई। यह एक महत्वपूर्ण काफिला है। मुझे लगता है कि यह कुछ बहुत बड़ा ले जा रहा है। अगर हम इसे नष्ट कर देते हैं, तो हम उनके पूरे उत्तरी सैन्य अभियान को धीमा कर देंगे।"
पवन ने उसके कंधे पर हाथ रखा। "समीर, मुझे पता है तुम साहसी हो, लेकिन यह बहुत जोखिम भरा है। तुम दुश्मन के इलाके में बहुत अंदर जा रहे हो। काल-गढ़ उनकी सबसे मजबूत गढ़ों में से एक है। वहाँ से कोई वापस नहीं आता।"
"यही तो बात है, पवन भाई," समीर ने अपने भाई की आँखों में देखा। "वे उम्मीद नहीं करेंगे कि हम इतने अंदर तक आएँगे। वे सोचेंगे कि हम उनकी सीमा पर ही रुक जाएँगे। यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है - अप्रत्याशितता।"
"और अगर तुम पकड़े गए, तो क्या होगा?" पवन की आवाज़ में दर्द था। "अगर तुम पकड़े गए, तो वायु कुल ने अपना सबसे बहादुर योद्धा खो दिया होगा। हम यह जोखिम नहीं उठा सकते, भाई।"
समीर ने पवन के हाथ से अपना कंधा छुड़ाया और एक कदम आगे बढ़ा। "जीतने के लिए कुछ जोखिम तो लेने ही होंगे, पवन भाई। तुम जानते हो, हम हार रहे हैं। भैरवी की सेनाएँ अचल-गढ़ में दबाव में हैं। रिया अग्नि गणराज्य के अंदर है, लेकिन वह अभी भी अपनी पूरी ताकत नहीं दिखा पा रही होगी। आरव कहाँ है, हमें पता नहीं। हमें कुछ बड़ा करना होगा। कुछ ऐसा जो उन्हें झकझोर दे।"
पवन ने एक गहरी साँस ली। वह अपने भाई के दृढ़ संकल्प को जानता था। वह जानता था कि समीर जब कुछ ठान लेता था, तो उसे रोकना असंभव था।
"यह आत्मघाती मिशन है, समीर," पवन ने फिर कहा। "एक छोटा सा दल, दुश्मन के दिल में... तुम कैसे उन्हें हराओगे?"
"हम उन्हें मारेंगे नहीं, पवन भाई," समीर ने एक आत्मविश्वास भरी मुस्कान के साथ कहा। "हम उनकी आपूर्ति लाइनों को काटेंगे। हम उनके उपकरणों को नष्ट करेंगे। हम उनमें अराजकता पैदा करेंगे। हम 'हिट एंड रन' रणनीति का उपयोग करेंगे। हम तेजी से हमला करेंगे और उतनी ही तेजी से गायब हो जाएँगे।"
"लेकिन अगर वे तुम पर जाल बिछा दें?" पवन ने पूछा। "अगर यह जानकारी ही तुम्हें फँसाने के लिए थी?"
"जोखिम तो है," समीर ने स्वीकार किया। "लेकिन हमें यह जोखिम उठाना होगा। मेरे पास एक योजना है। हमें बस कुछ सबसे तेज़, सबसे भरोसेमंद योद्धाओं की ज़रूरत है। जो मेरे साथ दुश्मन के क्षेत्र में गहराई तक जाने के लिए तैयार हों।"
पवन ने अपने भाई के चेहरे को देखा। समीर की आँखों में वही चमक थी जो उनके पिता की आँखों में होती थी जब वे कोई बड़ा युद्ध जीतने की योजना बनाते थे। पवन जानता था कि वह समीर को रोक नहीं पाएगा।
"ठीक है," पवन ने आखिरकार कहा, उसकी आवाज़ में अभी भी चिंता थी, लेकिन अब स्वीकृति भी थी। "लेकिन मैं तुम्हें अकेले नहीं जाने दूँगा। तुम मेरी टीम चुनो, और हम योजना बनाएंगे। हर छोटे से छोटे विवरण पर काम करेंगे। और मैं तुम्हारे साथ रहूँगा, चाहे कुछ भी हो।"
समीर की आँखों में चमक आ गई। "धन्यवाद, पवन भाई।"
"अभी धन्यवाद मत कहो," पवन ने उदासी से मुस्कुराया। "पहले वापस आओ। अब, अपनी टीम चुनो। सबसे अच्छे, सबसे तेज़। जिन्हें तुम आँखें बंद करके भरोसा कर सकते हो।"
समीर ने सिर हिलाया। उसने पहले से ही कुछ नाम सोच रखे थे। उसके सबसे भरोसेमंद लड़ाके, जो उसके साथ हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार थे। वह जानता था कि यह मिशन आसान नहीं होगा, लेकिन यह वायु कुल की उम्मीदों का आखिरी धागा हो सकता है।
उसने अपने चारों ओर देखा, जहाँ वायु-योद्धा अपने ग्लाइडरों पर अभ्यास कर रहे थे। उसने अपनी टीम के लिए कुछ नामों पर विचार किया। "मुझे 'गरुड़', 'तूफ़ान', और 'बादल' चाहिए," समीर ने अपने अधिकारियों से कहा। "और हमें कुछ सबसे अनुभवी जासूसों की भी ज़रूरत होगी। यह एक छोटी टीम होगी, लेकिन यह सबसे शक्तिशाली होगी। हम एक छोटी सी चिंगारी होंगे जो पूरे जंगल को जला सकती है।" उसने अपने भाई की ओर देखा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। पवन जानता था कि यह मिशन न केवल दुश्मन के लिए, बल्कि उनके लिए भी एक बड़ा जुआ था। वे अब युद्ध के मैदान में एक नया अध्याय लिखने वाले थे।
Chapter 8
वायु कुल के तैरते हुए द्वीपों से बहुत दूर, अग्नि गणराज्य के भीतर, रिया अपनी गुप्त गतिविधियों को अंजाम दे रही थी। राजधानी से दूर, एक सीमावर्ती शहर, 'दहनपुर' में, रिया एक साधारण व्यापारी के भेष में घूम रही थी। दहनपुर एक व्यस्त लेकिन तनावग्रस्त शहर था, जहाँ युद्ध का सीधा असर महसूस किया जा रहा था। सैनिक हर नुक्कड़ पर तैनात थे, उनकी वर्दी पर अग्नि गणराज्य का प्रतीक चमक रहा था। शहर के चौक में, एक बड़ा होर्डिंग लगा था जिस पर सम्राट विक्रम का चेहरा था और लिखा था, "विजय हमारी है! विश्वासघातियों को कोई जगह नहीं!" हवा में चिंता और असंतोष की धीमी फुसफुसाहट थी, लेकिन कोई भी खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं करता था।
एक पुरानी, भीड़भाड़ वाली सराय के अंधेरे कोने में, जहाँ सिपाही अपनी थकान मिटाने आते थे, रिया कैप्टन अर्जुन से मिली। अर्जुन, एक युवा लेकिन आदर्शवादी सैनिक, अपनी वर्दी में भी थका हुआ दिख रहा था, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब-सी ईमानदारी थी। वह पहले ही रिया के विद्रोह का पहला सहयोगी बन चुका था, और अब वे अपनी गुप्त योजना को आगे बढ़ा रहे थे।
रिया ने अपने सामने रखी चाय का कप उठाया और धीरे से पूछा, "क्या तुमने किसी और से बात की, अर्जुन? क्या कोई और है जो सम्राट की क्रूरता से थक गया हो?"
अर्जुन ने इधर-उधर देखा, यह सुनिश्चित करते हुए कि कोई उन्हें सुन न रहा हो। "हाँ, रिया। मैंने कुछ लोगों से बात की है। कुछ सैनिक हैं जो सिर्फ़ युद्ध से थक चुके हैं। कुछ अधिकारी हैं जो सम्राट के निरंकुश शासन से नाराज़ हैं। लेकिन वे डरे हुए हैं। बहुत डरे हुए।"
"डरना स्वाभाविक है," रिया ने उसकी ओर देखकर कहा। "लेकिन हमें उन्हें विश्वास दिलाना होगा कि हम अकेले नहीं हैं। कि एक बेहतर भविष्य संभव है।"
"कुछ लोगों ने तुम्हारी बातें सुनी हैं," अर्जुन ने कहा। "खासकर लेफ्टिनेंट करन और सार्जेंट प्रिया। वे दोनों अपने-अपने मोर्चे पर युद्ध की क्रूरता देख चुके हैं, और वे अब और बर्दाश्त नहीं कर सकते। वे कल रात तुमसे मिलना चाहते हैं, पुराने गोदाम के पास।"
रिया के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आई। "अच्छी खबर है। जितने ज़्यादा लोग हमारे साथ होंगे, हमारी आवाज़ उतनी ही मज़बूत होगी।"
अगली रात, दहनपुर के बाहरी इलाके में, एक पुराने, सुनसान गोदाम में, रिया और अर्जुन लेफ्टिनेंट करन और सार्जेंट प्रिया से मिले। करन एक अनुभवी सैनिक था जिसकी आँखों में युद्ध की कड़वी सच्चाई साफ दिख रही थी, जबकि प्रिया एक युवा लेकिन निडर सार्जेंट थी, जिसकी ईमानदारी उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी।
"तुम्हारा स्वागत है," रिया ने गर्मजोशी से कहा। "मुझे पता है कि तुम लोग किस खतरे का सामना कर रहे हो। लेकिन यह खतरा तभी सार्थक होगा जब हम एक साथ खड़े होंगे।"
"हम सम्राट के तरीकों से असहमत हैं," करन ने गंभीर स्वर में कहा। "लेकिन विद्रोह... यह मौत का बुलावा हो सकता है।"
"या आज़ादी का," प्रिया ने दृढ़ता से कहा। "मैंने अपनी आँखों से निर्दोष लोगों को मरते देखा है। इस युद्ध का कोई मतलब नहीं है।"
"यही कारण है कि हमें इसे रोकना होगा," रिया ने कहा। "सम्राट को किसी भी कीमत पर। अगर हम एक साथ काम करें, तो हम अग्नि गणराज्य के भीतर से ही बदलाव ला सकते हैं।"
अगले कुछ हफ्तों में, रिया का विद्रोही नेटवर्क तेजी से बढ़ने लगा। कैप्टन अर्जुन के माध्यम से, वे धीरे-धीरे और भी असंतुष्ट सैनिकों, अधिकारियों और यहां तक कि कुछ सरकारी कर्मचारियों को अपने साथ मिलाते गए। उनकी गुप्त बैठकें शहर के अंधेरे कोनों, सुनसान दुकानों और भूमिगत सुरंगों में होती थीं। वे हर बात कोडवर्ड में करते थे, और हर नए सदस्य को शपथ दिलाते थे कि वह उनकी पहचान गुप्त रखेगा।
"हमारे पास अब तक आठ अधिकारी और बीस से ज़्यादा सैनिक हैं," अर्जुन ने एक दिन रिया को बताया, जब वे एक गुप्त भूमिगत मार्ग में मिले थे। "उनमें से कुछ तो हथियार डिपो के भी प्रभारी हैं।"
"यह बहुत अच्छा है," रिया ने उत्साह से कहा। "इसका मतलब है कि हम कुछ महत्वपूर्ण कर सकते हैं।"
"हाँ," अर्जुन ने पुष्टि की। "हमने पहले ही एक छोटा सा हथियारों का जखीरा इकट्ठा कर लिया है। पुराने डिपो के नीचे, जहाँ कोई नहीं जाता। कुछ रायफ़लें, बारूद और विस्फोटकों के कुछ पैकेट।"
"उत्कृष्ट," रिया ने मुस्कुराते हुए कहा। "अब हमारे पास न केवल लोग हैं, बल्कि हम कुछ कार्रवाई भी कर सकते हैं। यह सम्राट को एक संदेश देगा कि उसके अपने ही लोग उसके खिलाफ़ हैं।"
हालांकि, जैसे-जैसे उनका नेटवर्क बड़ा होता गया, वैसे-वैसे उन्हें और भी चिंताजनक खबरें मिलने लगीं। एक दिन, लेफ्टिनेंट करन, जो एक खुफिया इकाई में काम कर रहा था, रिया के पास आया, उसका चेहरा पीला पड़ गया था।
"रिया," करन ने हाँफते हुए कहा। "मुझे एक भयानक खबर मिली है।"
रिया ने उसकी घबराहट महसूस की। "क्या हुआ, करन? सब ठीक तो है?"
"नहीं," उसने सिर हिलाया। "सम्राट... सम्राट ने निर्-तत्वों को अपनी सेना में शामिल करना शुरू कर दिया है।"
रिया को विश्वास नहीं हुआ। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। "क्या? निर्-तत्व? तुम सुनिश्चित हो?"
"हाँ," करन ने अपने हाथों में पकड़े हुए कुछ कागजात दिखाए। "मैंने कुछ गुप्त संदेशों को इंटरसेप्ट किया है। उनमें साफ लिखा है कि सम्राट ने निर्-तत्वों के कुछ प्रमुख सरगनाओं के साथ एक समझौता किया है। वे उसकी सेना के लिए काम करेंगे, और बदले में, सम्राट उन्हें राज्य के कुछ हिस्सों में स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति देगा।"
रिया के अंदर एक ठंडी लहर दौड़ गई। निर्-तत्व... वे क्रूर, अराजक और बिना किसी नैतिकता के थे। उनका सामना वह पहले ही जल साम्राज्य में कर चुकी थी। उसे याद आया कि कैसे उन्होंने जलसेन की बेटी का अपहरण किया था। उन्हें सेना में शामिल करना सिर्फ़ युद्ध को और क्रूर बना देगा, और निर्दोष लोगों के लिए खतरा बढ़ा देगा।
"लेकिन... यह कैसे हो सकता है?" रिया ने गुस्से में पूछा। "निर्-तत्व... वे हमारे दुश्मन हैं! वे अराजकता फैलाते हैं! मेरा पिता, वह ऐसा कैसे कर सकता है?" उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी निराशा और घृणा थी। उसके पिता ने अपने ही राज्य को कितना नीचे गिरा दिया था? उसे लगा कि उसके पिता की सारी मानवता खत्म हो गई है।
"मुझे नहीं पता, रिया," करन ने कहा। "लेकिन संदेश साफ हैं। वे अब अग्नि गणराज्य की वर्दी पहनेंगे, और उन्हें 'विशेष बल' का दर्जा दिया जाएगा। वे किसी भी नियम का पालन नहीं करेंगे।"
रिया ने अपनी मुट्ठी भींच ली। उसका चेहरा सख्त हो गया। पहले उसे सम्राट विक्रम पर संदेह था, फिर उस पर विश्वास टूट गया था। लेकिन अब, यह खबर उसके दिल में बची हुई आखिरी उम्मीद को भी कुचल रही थी कि शायद उसके पिता में कहीं थोड़ी सी भी अच्छाई बची हो। यह समझौता उसके लिए अंतिम झटका था।
"यह... यह तो नरसंहार है," उसने बुदबुदाया। "वह सिर्फ़ युद्ध नहीं लड़ रहा है, वह हर मर्यादा तोड़ रहा है।"
"हमें और सतर्क रहना होगा," अर्जुन ने गंभीर स्वर में कहा। "अगर निर्-तत्व अब सेना में हैं, तो हमारी गतिविधियों का पता चलने का खतरा और बढ़ जाएगा। वे बिना किसी दया के काम करते हैं।"
रिया ने गहरी साँस ली। उसकी आँखों में एक नई आग जल रही थी। यह गुस्सा था, और एक दृढ़ संकल्प था। "हाँ, हमें सतर्क रहना होगा। लेकिन अब हमें और भी तेज़ी से काम करना होगा। मेरे पिता ने एक ऐसी लकीर पार कर दी है जिसे अब पीछे नहीं खींचा जा सकता। उसे अब रोका जाना चाहिए। हर कीमत पर।"
यह खबर उसे अंदर तक हिला गई थी। उसे एहसास हुआ कि अब वह केवल मित्र राष्ट्रों के लिए नहीं, बल्कि अपने ही पिता के अंधेरे मार्ग को रोकने के लिए लड़ रही थी। वह जानती थी कि यह उसका सबसे कठिन संघर्ष होगा। लेकिन उसे यह भी पता था कि उसके पास अब पीछे हटने का कोई विकल्प नहीं बचा था। यह लड़ाई अब सिर्फ़ युद्ध नहीं थी, यह बुराई के खिलाफ़ मानवता की लड़ाई थी।
Chapter 9
अग्नि गणराज्य के दहनपुर शहर के व्यस्त और तनावग्रस्त माहौल से बहुत दूर, आरव बर्फीले पहाड़ों की क्रूर और निर्दयी दुनिया में अकेला भटक रहा था। आकाश-शिखर की तलाश में उसकी यात्रा अब अपने सबसे कठिन दौर में थी। जहाँ एक पल पहले सब कुछ शांत और जमा हुआ था, वहीं अगले ही पल, आकाश में काले बादल छा गए, और हवा में एक भयानक गर्जना गूँज उठी। यह एक बर्फीला तूफ़ान था, जो अपनी क्रूरता के लिए जाना जाता था, और उसने आरव को बिना किसी चेतावनी के अपनी चपेट में ले लिया।
हवा इतनी तेज़ थी कि आरव को मुश्किल से साँस लेने का मौका मिल रहा था। बर्फीले कण उसके चेहरे से ऐसे टकरा रहे थे जैसे कोई नुकीले पत्थर हों। उसकी आँखें बंद होने लगीं, और उसके शरीर में ठंड तेज़ी से घुसने लगी। चारों ओर की सफ़ेद चादर इतनी घनी हो गई थी कि वह मुश्किल से अपने हाथों को देख पा रहा था। हर कदम पर बर्फ़ उसके घुटनों तक धँस जाती थी, जिससे चलना और भी मुश्किल हो जाता था।
"मुझे... मुझे कहीं सहारा लेना होगा!" आरव ने अपने आप से कहा, उसकी आवाज़ तूफ़ान में खो गई। उसकी आकाश-शक्ति, जो आमतौर पर उसे गर्मी देती थी, अब ठंड से बेअसर हो रही थी। उसने अपनी ऊर्जा को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन बर्फीली हवा इतनी प्रबल थी कि वह अपनी शक्ति को केंद्रित नहीं कर पा रहा था। उसकी नसें जमने लगी थीं, और उसके शरीर में झुनझुनी होने लगी थी। उसे लग रहा था जैसे उसकी शक्ति उसके हाथों से फिसल रही हो, और उसका हर कण ठंड से सिकुड़ रहा हो।
कई घंटों तक वह तूफ़ान में भटकता रहा, जब तक कि उसकी उम्मीद टूटने लगी। वह जानता था कि अगर उसे जल्द ही कोई पनाह नहीं मिली, तो वह यहीं बर्फ़ में दब जाएगा। तभी, अपनी अंतिम ऊर्जा का उपयोग करते हुए, उसने एक विशाल चट्टान के नीचे एक छोटी सी दरार देखी। यह मुश्किल से एक गुफा थी, बस एक संकीर्ण उद्घाटन जो उसे हवा और बर्फ़ से थोड़ी सी सुरक्षा प्रदान कर सकता था।
अंतिम शक्ति लगाकर, आरव उस दरार में घुस गया। गुफा इतनी छोटी थी कि वह मुश्किल से अंदर बैठ पाया, अपने घुटनों को अपनी छाती से चिपकाए हुए। बर्फीली हवा अभी भी अंदर घुस रही थी, लेकिन कम से कम वह सीधे तूफ़ान के प्रकोप से बच गया था। बाहर, तूफ़ान और भी ज़ोर से गरज रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे पर्वत ख़ुद गुस्से में हो।
आरव ने अपने हाथ अपने चेहरे पर रखे, लेकिन वे इतने ठंडे थे कि उसे कुछ महसूस नहीं हुआ। उसकी ऊर्जा, जो उसने यात्रा के दौरान सावधानी से बचाकर रखी थी, अब लगभग समाप्त हो चुकी थी। आकाश-शक्ति के उपयोग के लिए गर्मी और स्थिरता की आवश्यकता होती थी, और इस हड्डी जमा देने वाली ठंड में उसे अपनी ऊर्जा को नियंत्रित करना असंभव लग रहा था। उसे लगा कि उसके भीतर का हर कण जम रहा है, उसकी शक्ति का प्रवाह धीमा हो रहा है, जैसे कोई नदी सर्दियों में जम जाती है।
वह पूरी तरह से अकेला था। इस विशाल, निर्जन बर्फीले रेगिस्तान में उसके अलावा कोई नहीं था। उसे अपने दोस्तों की याद आई। भैरवी की गर्मजोशी, समीर की चपलता, और रिया की दृढ़ता। वे सब उसके साथ होते, तो शायद यह स्थिति इतनी असहनीय नहीं होती। उन्हें बचाने के लिए ही उसने इस खतरनाक यात्रा का फ़ैसला किया था, इस उम्मीद में कि वह आकाश-शक्ति के रहस्य को उजागर कर पाएगा और सम्राट विक्रम को रोक पाएगा। लेकिन इस पल में, वह असहाय महसूस कर रहा था।
"मुझे... मुझे हार नहीं माननी है," उसने बुदबुदाया, उसके होंठ ठिठुर रहे थे। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, और अपने दिमाग में अपने दोस्तों के चेहरों को फिर से जगाने की कोशिश की।
उसे भैरवी का चेहरा याद आया, जब वह अचल-गढ़ की रक्षा के लिए संकल्पित खड़ी थी, उसकी आँखें दृढ़ता से भरी हुई थीं। उसे समीर का चेहरा याद आया, जब वह हवाई युद्ध में अपने वायु-योद्धाओं का नेतृत्व कर रहा था, उसकी मुस्कान में आत्मविश्वास था। और फिर, रिया... उसका चेहरा, उसकी आँखों में वह आग, जब उसने अपने पिता की बेगुनाही साबित करने की कोशिश की थी, और फिर जब उसे पता चला था कि वह कितना बदल गया है।
ये यादें, भले ही कुछ क्षणों के लिए, उसे थोड़ी सी गर्मी दे रही थीं। उसने कल्पना की कि वे सब उसे देख रहे हैं, उसे प्रोत्साहित कर रहे हैं।
'तुम अकेले नहीं हो, आरव। हम सब तुम्हारे साथ हैं।'
वह जानता था कि यह सिर्फ़ उसकी कल्पना थी, लेकिन यह उसे जीवित रहने की प्रेरणा दे रही थी। उसने अपनी सारी बची हुई ऊर्जा को अपने दिल में केंद्रित करने की कोशिश की, एक छोटी सी चिंगारी जलाने के लिए, जो उसे इस बर्फीली रात से लड़ने में मदद कर सके। उसकी मांसपेशियाँ दर्द कर रही थीं, और उसकी उंगलियाँ सुन्न पड़ चुकी थीं। भूख और प्यास उसे सता रही थी, लेकिन ठंड सबसे बड़ी दुश्मन थी।
तूफ़ान बाहर से बिना रुके गरज रहा था। गुफा के मुहाने पर बर्फ़ जमा हो रही थी, और लग रहा था जैसे वह अंदर भी बंद हो जाएगा। आरव ने अपनी बाँहों को कसकर अपने चारों ओर लपेट लिया, अपनी अंतिम ऊर्जा को बचाते हुए। वह नहीं जानता था कि तूफ़ान कब थमेगा, या वह कितना और झेल पाएगा। लेकिन एक बात निश्चित थी: उसे हार नहीं माननी थी। उसे अपने दोस्तों के लिए जीवित रहना था, और उस आकाश-शिखर तक पहुँचना था। भले ही इसका मतलब इस गुफा में मर जाना क्यों न हो। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और भैरवी के मुस्कुराते हुए चेहरे की कल्पना की, जो उसे साहस दे रहा था।
Chapter 10
आरव अभी भी बर्फीली गुफा में ठंड से ठिठुर रहा था, अपने दोस्तों की यादों से हिम्मत बटोर रहा था, लेकिन मीलों दूर, वायु कुल के युद्धग्रस्त क्षेत्रों में, समीर की धड़कनें किसी और ही वजह से तेज़ हो रही थीं। सुबह का धुंधलका अभी छँटा नहीं था, जब समीर और उसके सबसे भरोसेमंद लड़ाकों की छोटी टीम, वायु कुल के पहाड़ियों के बीच छिपी हुई थी। उनके नीचे, घाटी में, अग्नि गणराज्य का एक विशाल आपूर्ति काफिला धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। अनाज, हथियार और गोला-बारूद से लदी हुई बैलगाड़ियाँ और घोड़े धीमी गति से चल रहे थे, हर कुछ दूर पर सशस्त्र सैनिक पहरा दे रहे थे। समीर ने अपनी दूरबीन से नीचे देखा, उसकी आँखें लक्ष्य पर केंद्रित थीं। उसने अपने सबसे अच्छे लड़ाकों की एक छोटी टीम चुनी थी—पवन की सलाह के बावजूद, यह एक खतरनाक, लगभग आत्मघाती मिशन था।
"देखो, समीर," उसके बगल में खड़ा 'झेन', एक अनुभवी वायु-योद्धा, फुसफुसाया। "वे अपनी उम्मीद से ज़्यादा सतर्क हैं।"
समीर ने दूरबीन हटाई और अपनी टीम की ओर मुड़ा। "सतर्क तो होंगे ही, झेन। यह उनके लिए जीवन रेखा है। अगर यह काफिला राजधानी तक पहुँच गया, तो उनका युद्ध और लंबा चलेगा। हमें इसे रोकना होगा। यहीं, अभी।"
"योजना वही है?" 'काशा', एक युवा लेकिन शक्तिशाली वायु-योद्धा, ने पूछा, उसकी आवाज़ में हल्का-सा तनाव था।
"वही," समीर ने दृढ़ता से कहा। "तेज़ और निर्णायक। हम उन्हें भ्रमित करेंगे, उनके रैंक तोड़ेंगे, और फिर मुख्य लक्ष्य पर हमला करेंगे। याद रखो, हम सीधे लड़ाई के लिए नहीं बने हैं। हम हवा हैं। हम आते हैं, चोट पहुँचाते हैं, और उड़ जाते हैं।"
झेन ने अपने वायु-ग्लाइडर को कसकर पकड़ा। "लेकिन अगर हम पकड़े गए?"
समीर ने उसकी आँखों में देखा। "तो हम लड़ते हुए मरेंगे। लेकिन हम पकड़े नहीं जाएँगे। वायु कुल कभी घुटने नहीं टेकता।" उसने अपनी आँखें बंद कीं, एक गहरी साँस ली, और अपने भीतर की वायु-शक्ति को महसूस किया। फिर उसने एक पल के लिए अपने भाई पवन की आवाज़ सुनी, उसे चेतावनी देते हुए, और फिर अपने पिता की आवाज़, उस पर विश्वास जताते हुए। यह उसे एक नया बल दे गया।
"तैयार हो जाओ," उसने आदेश दिया। "जैसे ही मैं संकेत दूँ।"
कुछ ही मिनटों बाद, काफिला एक संकीर्ण दर्रे से गुज़र रहा था, जहाँ से बचना मुश्किल था। समीर ने एक ऊँची चोटी से छलांग लगाई, उसका वायु-ग्लाइडर हवा को चीरता हुआ नीचे आया। उसके पीछे उसकी टीम थी, जैसे शिकारी पक्षी अपने शिकार पर झपट रहे हों।
"हवा का वार!" समीर चिल्लाया, और उसने अपनी हथेली से एक शक्तिशाली हवा का झोंका नीचे की ओर फेंका।
ज़मीन पर, काफिले के बीचों-बीच, अचानक एक धूल भरी बवंडर उठी, जिसने सैनिकों की आँखें और साँसें रोक दीं। घोड़े बिदकने लगे, और गाड़ियाँ इधर-उधर डगमगाने लगीं। यह समीर की वायु-शक्ति का पहला प्रहार था, जिसने एक पल में भ्रम पैदा कर दिया।
"क्या हो रहा है?!" एक अग्नि सैनिक चिल्लाया, अपनी आँखों को मलते हुए।
इससे पहले कि वे संभल पाते, समीर और उसकी टीम ने दूसरा हमला किया। वे तेज़ी से ग्लाइड करते हुए नीचे आए, अपने तेज़ हवा के झोंकों से सैनिकों को गिराते हुए, और फिर तुरंत ऊपर उड़ गए। वे एक जगह से दूसरी जगह जा रहे थे, कभी नीचे, कभी ऊपर, अग्नि सैनिकों को यह समझने का मौका भी नहीं दे रहे थे कि हमला कहाँ से आ रहा है। यह हवा का हमला था, अदृश्य और घातक।
"उन्हें मारो!" एक अग्नि कमांडर ने चिल्लाया, अपने धनुष को हवा में निशाना साधते हुए। लेकिन वायु-योद्धा इतने तेज़ थे कि उन पर निशाना साधना लगभग असंभव था।
"मुख्य गाड़ियों पर निशाना लगाओ!" समीर ने चिल्लाकर झेन और काशा को आदेश दिया।
काशा और झेन दो सबसे बड़ी गाड़ियों की ओर तेज़ी से बढ़े, जो अनाज और हथियारों से भरी हुई थीं। अग्नि सैनिक उन पर गोलियाँ चला रहे थे, लेकिन वायु-योद्धा अपनी फुर्ती से उनसे बच रहे थे।
एक अग्नि सैनिक ने झेन के ग्लाइडर पर एक तीर मारा। झेन लड़खड़ाया, लेकिन उसने खुद को संभाला। "मैं ठीक हूँ! आगे बढ़ो!" उसने चिल्लाया।
समीर ने देखा कि दुश्मन सैनिक इकट्ठा होने लगे हैं। उसे पता था कि उन्हें विभाजित करना होगा। उसने अपनी शक्ति को फिर से केंद्रित किया, और एक विशाल, तेज़ हवा का झोंका दो बड़े समूहों के बीच से गुजारा। हवा की इतनी तेज़ लहर थी कि वह सैनिकों को दोनों ओर धकेल गई, जिससे उनके बीच एक गैप बन गया।
"अब!" समीर ने चिल्लाया। "बीच से घुसो! उन्हें अलग करो!"
वायु-योद्धाओं ने इसका फ़ायदा उठाया। वे दोनों समूहों के बीच से ग्लाइड करते हुए अंदर घुसे, जहाँ अब सैनिक एक-दूसरे से दूर हो गए थे। यह रणनीति काम कर गई। अग्नि सैनिकों का समन्वय टूट गया, और वे अब अलग-अलग वायु-योद्धाओं से लड़ने की कोशिश कर रहे थे। कुछ ने अपने तलवारें निकालीं, कुछ ने अपने धनुषों से हवा में तीर चलाए।
एक भयंकर लड़ाई शुरू हो गई। वायु-योद्धा हवा में उड़ते हुए सैनिकों को मार गिरा रहे थे, जबकि ज़मीन पर सैनिक हताशा में उन पर हमला करने की कोशिश कर रहे थे। समीर ने अपनी शक्ति का उपयोग करके एक के बाद एक हवा के झोंके फेंके, जिससे दुश्मन के वार बेकार हो गए। उसने एक बड़े हथियार डिपो की गाड़ी को निशाना बनाया। अपनी सारी शक्ति का उपयोग करके, उसने उस गाड़ी के ऊपर एक छोटा सा बवंडर बनाया, जिससे उसके पहिये ज़मीन से ऊपर उठने लगे। फिर, उसने एक और तेज़ हवा का वार करके उसे पास की चट्टान से टकरा दिया।
"धमाका!" एक ज़ोरदार विस्फोट हुआ। हथियार डिपो की गाड़ी फट गई, और उसके साथ-साथ आसपास की कुछ और गाड़ियाँ भी आग की लपटों में घिर गईं। यह एक चेन रिएक्शन था। आग और धुएँ का गुबार आसमान में उठा।
"शाबाश!" काशा ने चिल्लाया। "लक्ष्य भेद दिया!"
लेकिन जीत सस्ती नहीं थी। जैसे ही वे काफिले को नष्ट करने में सफल हुए, कुछ अग्नि सैनिकों ने अपनी अंतिम ऊर्जा का उपयोग करके उन पर जवाबी हमला किया। एक अग्नि सैनिक ने एक जलते हुए तीर को झेन की ओर फेंका। तीर झेन के कंधे पर लगा, और वह दर्द से कराह उठा, उसका ग्लाइडर ज़मीन की ओर गिरने लगा।
"झेन!" समीर चिल्लाया, और वह उसकी ओर तेज़ी से बढ़ा। उसने अपनी वायु-शक्ति का उपयोग करके झेन को ज़मीन पर गिरने से पहले पकड़ लिया, लेकिन तीर की चोट गहरी थी।
"हमारा मिशन पूरा हो गया है, समीर!" झेन ने दर्द से हाँफते हुए कहा। "अब वापस चलो!"
समीर ने जलते हुए काफिले की ओर देखा। अनाज और हथियार जलकर राख हो रहे थे, और अग्नि सैनिकों में भगदड़ मची हुई थी। उन्होंने काफिले को नष्ट करने में सफलता पाई थी, लेकिन उन्हें कुछ नुकसान भी हुआ था। झेन की चोट, और कुछ अन्य मामूली चोटें।
"पीछे हटो! अब!" समीर ने अपनी टीम को आदेश दिया। वे ज़ख्मी झेन को लेकर हवा में फिर से उड़ गए, जलते हुए काफिले को पीछे छोड़ते हुए। समीर के चेहरे पर जीत की खुशी नहीं थी, बल्कि युद्ध की थकान थी। यह एक छोटी जीत थी, लेकिन इसकी कीमत चुकानी पड़ी थी। वह जानता था कि यह सिर्फ़ एक शुरुआत है, और असली लड़ाई अभी बाक़ी है।
Chapter 11
समीर और उसकी टीम भले ही अग्नि गणराज्य के काफिले को ध्वस्त कर चुके थे, लेकिन युद्ध का भयावह नज़ारा अभी भी चारों ओर फैला हुआ था। जलते हुए वाहनों का धुआँ वायु कुल के आसमान में एक काली चादर फैला रहा था। और इसी युद्ध के बीच, पृथ्वी राज्य की सीमा पर, भैरवी एक अलग ही मोर्चे पर जूझ रही थी। अचल-गढ़ के किले के पतन के बाद, पृथ्वी राज्य का मनोबल टूट चुका था, और अग्नि सेना बिना किसी बाधा के आगे बढ़ रही थी, अपने रास्ते में आने वाले हर छोटे गाँव को रौंदते हुए।
भैरवी, जो अभी भी अपनी पुरानी चोटों से पूरी तरह उबरी नहीं थी, लोगों को बचाने के लिए अथक प्रयास कर रही थी। उसका चेहरा मिट्टी और कालिख से सना हुआ था, और उसकी आँखें थकान से लाल थीं, लेकिन उनमें एक अदम्य दृढ़ता चमक रही थी। वह अपनी धरती की शक्ति का उपयोग करके लगातार गाँवों को अग्नि सेना के हमलों से बचा रही थी, अस्थायी दीवारें खड़ी कर रही थी और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचा रही थी।
आज सुबह, वह 'शांतिपुर' नामक एक छोटे से गाँव की ओर भागी। इस गाँव में ज़्यादातर बूढ़े, महिलाएँ और बच्चे थे, जो युद्ध की क्रूरता से अनभिज्ञ थे और अपने घरों में छिपे हुए थे। अग्नि सेना की एक टुकड़ी, जो यहाँ लूटपाट के इरादे से आई थी, गाँव में घुस चुकी थी।
जैसे ही भैरवी गाँव के बाहरी हिस्से में पहुँची, उसने देखा कि एक युवा सैनिक एक बुज़ुर्ग महिला को उसके घर से खींच रहा था, और उसका सामान छीनने की कोशिश कर रहा था। महिला डर के मारे चीख रही थी। भैरवी का ख़ून खौल उठा। उसकी आँखों में आग आ गई।
"छोड़ो उसे!" भैरवी चिल्लाई, उसकी आवाज़ में पृथ्वी की शक्ति का कंपन था।
सैनिक चौंक गया और मुड़ा। उसने भैरवी को देखा, उसके हाथों से पृथ्वी-शक्ति की आभा निकल रही थी। "कौन हो तुम?" उसने अविश्वास से पूछा।
भैरवी ने अपना हाथ उठाया, और सैनिक के पैरों के नीचे की ज़मीन हिलने लगी। एक पल में, एक विशाल चट्टानी हाथ ज़मीन से उठा और सैनिक को पकड़ लिया, उसे हवा में उठा लिया। सैनिक ने डर से चिल्लाया।
"यह पृथ्वी का क्रोध है," भैरवी ने ठंडी आवाज़ में कहा। "और तुम इसे महसूस करोगे, अगर तुमने इन निर्दोष लोगों को नुकसान पहुँचाया।"
गाँव में घुसे बाकी अग्नि सैनिकों ने भी भैरवी को देख लिया था। उन्होंने एक-दूसरे को देखा, कुछ झिझके, लेकिन फिर उन्होंने अपनी तलवारें खींच लीं और भैरवी की ओर दौड़े।
भैरवी ने अपनी पृथ्वी-शक्ति का आह्वान किया। उसके पैरों के नीचे की ज़मीन एक शक्तिशाली लहर की तरह उठी, और गाँव को चारों ओर से घेर लिया। यह एक तात्कालिक सुरक्षात्मक दीवार थी, जो सैनिकों को बाहर ही रोक रही थी। जो सैनिक अंदर थे, वे अब फंस गए थे।
"पीछे हटो! यहाँ कुछ नहीं मिलेगा!" भैरवी ने गरजते हुए कहा, और उसने अपनी शक्ति से ज़मीन में दरारें पैदा कीं, जिससे कुछ सैनिक अनियंत्रित रूप से डगमगा गए।
सैनिकों ने हार मान ली और भागने लगे, उनमें से कुछ को भैरवी ने अपनी चट्टानी दीवारों से बाहर धकेल दिया। उसने जानबूझकर उन्हें मारा नहीं, बस उन्हें दूर धकेला। वह अभी भी लोगों की जान लेने से कतराती थी, भले ही वे दुश्मन क्यों न हों।
धीरे-धीरे, बुज़ुर्ग महिला अपनी डरी हुई आँखों से भैरवी की ओर देखती रही। भैरवी ने चट्टानी हाथ को नीचे किया, और सैनिक ज़मीन पर गिरकर भाग खड़ा हुआ।
"आप सुरक्षित हैं, माई," भैरवी ने महिला से कहा, उसकी आवाज़ अब नरम थी।
महिला की आँखों में आँसू थे। उसने धीरे से सिर हिलाया, कुछ बोल नहीं पाई।
गाँव के लोग धीरे-धीरे अपने घरों से बाहर निकलने लगे, अपनी आँखों में डर और राहत दोनों लिए हुए। उन्होंने भैरवी को देखा, जो उनके बीच एक पहाड़ी की तरह खड़ी थी, उनकी रक्षक।
"हमने सोचा था कि कोई नहीं आएगा," एक युवा लड़का बोला, उसकी आवाज़ में कंपन था।
भैरवी ने उन्हें मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसके चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी। उसने देखा कि युद्ध ने इन निर्दोष लोगों पर कितना कहर बरपाया है। उनके घर टूटे हुए थे, उनकी फसलें जली हुई थीं, और उनकी आँखों में अनिश्चितता थी। बच्चे अपनी माताओं के आँचल से चिपके हुए थे, डरे हुए।
उसने अपने हाथों में मिट्टी को महसूस किया। यह वही धरती थी जिसकी वह रक्षा करती थी। लेकिन अब उसे एहसास हुआ कि यह केवल मिट्टी नहीं थी। यह इन लोगों का घर था, उनकी जीविका थी, उनकी दुनिया थी। वह केवल सीमाओं की रक्षा नहीं कर रही थी, बल्कि उन जिंदगियों की रक्षा कर रही थी जो इन सीमाओं के भीतर बसती थीं।
"आप सब सुरक्षित रहें," भैरवी ने कहा, उसकी आवाज़ अब थोड़ी थक चुकी थी। "मैं कुछ देर यहाँ रुकूंगी।"
गाँव के एक कोने से, एक छोटी सी बच्ची, शायद पाँच साल की, धीरे-धीरे उसकी ओर आई। उसके हाथों में एक छोटा, खिलता हुआ जंगली फूल था—एक नीला फूल, जो बर्फ़ीली हवाओं के बावजूद खिला था। बच्ची का चेहरा मासूम था, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी समझदारी थी। वह बिना कुछ बोले, धीरे से भैरवी के पास पहुँची।
भैरवी उसकी ओर झुकी। "क्या हुआ, बेटी?" उसने पूछा, उसकी आवाज़ में असीम कोमलता थी।
बच्ची ने अपना छोटा सा हाथ बढ़ाया, जिसमें वह नीला फूल था। "यह आपके लिए है, धरती माँ," उसने फुसफुसाया। "आपने हमें बचाया।"
भैरवी को एक पल के लिए अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। 'धरती माँ?' यह नाम, यह सम्मान, उस बच्ची की मासूमियत... यह उसके दिल को छू गया। उसकी आँखों में नमी आ गई। युद्ध की सारी थकान, सारा दर्द, एक पल के लिए गायब हो गया। उसने धीरे से फूल अपने हाथ में लिया, उसकी पंखुड़ियाँ मुलायम थीं। फूल में एक अजीब सी शांति और सुंदरता थी, युद्ध की भयावहता के विपरीत।
"थैंक यू, बेटी," भैरवी ने कहा, उसकी आवाज़ भर्राई हुई थी। उसने बच्ची के सिर पर प्यार से हाथ फेरा।
उस छोटे से फूल ने भैरवी के संकल्प को और मजबूत कर दिया। उसे एहसास हुआ कि उसकी लड़ाई सिर्फ़ पहाड़ों, नदियों या ज़मीन के टुकड़ों के लिए नहीं थी। यह इन मासूम चेहरों के लिए थी, इन डरे हुए लोगों के लिए थी, उनकी आशा और उनके भविष्य के लिए थी। वह केवल एक योद्धा नहीं थी, वह उनकी रक्षक थी। वह धरती की शक्ति थी, और धरती केवल मिट्टी नहीं थी, वह जीवन थी।
"मुझे और लड़ना होगा," उसने खुद से कहा, फूल को अपनी मुट्ठी में कसते हुए। उसकी थकान अब एक नई ऊर्जा में बदल गई थी। वह जानता थी कि भले ही उसे अकेले ही लड़ना पड़े, वह पीछे नहीं हटेगी। यह फूल, इस बच्ची का विश्वास, उसे हर चुनौती का सामना करने की शक्ति देगा। वह अपने दोस्तों को याद करती है—आरव, समीर, रिया—और यह भी जानती है कि वे भी कहीं न कहीं इसी उम्मीद के लिए लड़ रहे होंगे। वह लोगों की रक्षा करेगी, भले ही उसे अपनी जान क्यों न गंवानी पड़े। युद्ध अभी लंबा चलेगा, और उसे अपनी 'धरती माँ' होने की ज़िम्मेदारी निभानी होगी।
Chapter 12
बच्ची के दिए उस फूल ने भैरवी के अंदर एक नई ऊर्जा भर दी थी, उसे यह एहसास दिला दिया था कि वह केवल ज़मीन नहीं, बल्कि लोगों की रक्षा कर रही है। उसी क्षण, सैकड़ों मील दूर, अग्नि गणराज्य के एक सीमावर्ती शहर में, युद्ध की आग एक नए रूप में धधक रही थी। रिया, जिसका नाम अब 'राज़ी' था, एक पुरानी, धूल भरी सराय के एक अँधेरे कोने में बैठी थी। उसके सामने कप्तान अर्जुन था, उसका चेहरा मोमबत्ती की पीली रोशनी में गंभीर दिख रहा था। उनकी मेज़ पर एक पुराने नक्शे का कुछ हिस्सा फैला हुआ था, जिस पर कुछ निशान बने थे।
रिया ने धीरे से कप में बची हुई चाय का आखिरी घूँट पिया और फिर कप्तान अर्जुन की ओर देखा। "सब तैयार है, कप्तान?" उसकी आवाज़ शांत थी, लेकिन उसमें एक हल्की सी बेचैनी थी।
कप्तान अर्जुन ने सिर हिलाया। "हाँ, 'राज़ी'। तुम्हारे बताए गए सभी लोग अपनी-अपनी जगहों पर पहुँच गए हैं। लेकिन क्या तुम वाकई निश्चित हो? यह एक बड़ा जोखिम है।" उसकी आवाज़ में चिंता थी, जो उसके दृढ़ चेहरे पर साफ झलक रही थी।
रिया ने नक्शे पर उंगली रखी। "यह जोखिम तो है, लेकिन यह ज़रूरी भी है। देखो, इस संचार टावर को। यह पूरे पश्चिमी मोर्चे का दिल है। अगर इसे गिरा दिया जाए, तो कम से कम कुछ घंटों के लिए, इस पूरे क्षेत्र में अग्नि गणराज्य का संचार ठप हो जाएगा।"
"लेकिन क्यों? यह केवल एक अस्थायी जीत होगी। वे इसे फिर से खड़ा कर देंगे," अर्जुन ने तर्क दिया।
रिया ने मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसकी मुस्कान में दर्द था। "सही कहा, कप्तान। वे इसे फिर से खड़ा कर देंगे। लेकिन यह सिर्फ़ संचार ठप करने के लिए नहीं है। यह एक संदेश है।" उसने अपनी उंगलियों को कस लिया। "यह संदेश है कि सम्राट विक्रम अब इस देश के हर व्यक्ति का समर्थन नहीं करते। यह संदेश है कि भीतर से विद्रोह पनप रहा है। यह संदेश है कि हम अकेले नहीं हैं।"
अर्जुन ने कुछ देर सोचा। "तुम सही हो। लोगों को आशा की ज़रूरत है। उन्हें यह जानने की ज़रूरत है कि कोई है जो उनके लिए खड़ा है।" उसने अपनी तलवार की मूठ को छुआ। "तो, योजना वही है? आधी रात को।"
"हाँ," रिया ने अपनी बात दोहराई। "आधी रात को। जब सुरक्षा सबसे ढीली होती है। हम एक छोटी टीम ले जाएँगे। हमें टावर के नीचे तक पहुँचना है, और फिर..." उसने अपनी मुट्ठी खोली और एक छोटी सी अग्नि-लौ उसकी हथेली में झिलमिलाने लगी। "...फिर मैं अपना काम करूँगी।"
कप्तान अर्जुन ने उस लौ को देखा, उसकी आँखों में विश्वास था। "तुम्हारी शक्ति अद्भुत है, 'राज़ी'। मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।"
रिया ने उसकी आँखों में देखा। "मुझे पता है, कप्तान। और मुझे तुम पर पूरा भरोसा है।"
रात आधी ढल चुकी थी। शहर पर खामोशी छाई हुई थी, केवल दूर से गश्त करते सैनिकों के कदमों की आवाज़ आ रही थी। रिया और कप्तान अर्जुन, साथ में चार और विद्रोही सैनिक, शहर के बाहरी इलाके में स्थित संचार टावर की ओर रेंग रहे थे। टावर एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ था, जिसके चारों ओर कटीले तारों की बाड़ और कुछ संतरी चौकियाँ थीं।
"सेंसर ठीक हैं?" रिया ने फुसफुसाते हुए अर्जुन से पूछा।
"हाँ, 'राज़ी'। हमारे आदमी ने उन्हें कुछ देर के लिए निष्क्रिय कर दिया है। हमारे पास दस मिनट हैं," अर्जुन ने जवाब दिया।
वे बाड़ के एक कटे हुए हिस्से से अंदर घुसे, अपनी साँसें थामे हुए। रिया ने अपनी अग्नि-शक्ति का उपयोग करके खुद को और अपनी टीम को अँधेरे में छिपा लिया, जिससे उनकी परछाइयाँ और भी गहरी हो गईं। वे टावर के आधार की ओर चुपचाप आगे बढ़े, हर कदम पर सतर्क थे।
अचानक, एक संतरी की आवाज़ सुनाई दी। "कौन है वहाँ?"
रिया और अर्जुन तुरंत पास की झाड़ियों में छिप गए। संतरी, अपनी मशाल से रोशनी फैलाता हुआ, उनकी ओर आ रहा था। रिया ने अपनी साँस रोक ली। उसे पता था कि अगर वे पकड़े गए, तो यह न केवल उनके मिशन का अंत होगा, बल्कि उनके पूरे विद्रोही नेटवर्क के लिए खतरा बन जाएगा।
"सिर्फ़ हवा थी," अर्जुन ने फुसफुसाते हुए रिया से कहा। "वह चला जाएगा।"
और वाकई, संतरी ने कुछ और देर देखा, कंधे उचकाए और अपनी गश्त जारी रखी। रिया ने राहत की साँस ली।
जैसे ही संतरी दूर हुआ, वे फिर से आगे बढ़े और टावर के आधार तक पहुँच गए। यह एक विशाल, धातु की संरचना थी, जो तारों और जटिल मशीनों से बनी थी।
"मैं अंदर से इसका कोर नष्ट करूँगी," रिया ने फुसफुसाया। "तुम लोग बाहर के सपोर्ट बीम पर ध्यान देना।"
अर्जुन और उसके साथी सैनिकों ने अपनी छोटी-छोटी विस्फोटक सामग्री निकाली और उन्हें टावर के मुख्य सपोर्ट बीम पर सावधानी से लगाया। रिया ने टावर के अंदर जाने का रास्ता खोजा। वहाँ एक छोटा सा सेवा द्वार था, जिस पर एक पुराना ताला लगा हुआ था। उसने अपनी अग्नि-शक्ति का उपयोग करके ताले को धीरे से पिघला दिया, बिना कोई आवाज़ किए।
वह अंदर घुस गई। अंदर अँधेरा था और मशीनों की हल्की गुंजन सुनाई दे रही थी। उसने मुख्य ऊर्जा कोर को पहचान लिया—एक बड़ा, चमकता हुआ क्रिस्टल जो पूरे टावर को शक्ति दे रहा था। रिया ने अपना हाथ उठाया, और उसकी उंगलियों से शुद्ध अग्नि-ऊर्जा की किरणें निकलने लगीं, जो सीधे क्रिस्टल की ओर बढ़ीं।
क्रिस्टल ने रिया की अग्नि-शक्ति को सोखना शुरू कर दिया, और फिर एक तेज़ चमक के साथ, वह चकनाचूर हो गया। टावर की सभी मशीनें एक झटके में शांत हो गईं। रिया तेज़ी से बाहर भागी।
"हो गया!" उसने बाहर निकलते ही अर्जुन से कहा।
"हमारा भी," अर्जुन ने जवाब दिया। "बाहर निकलो!"
वे तेज़ी से बाड़ के रास्ते से बाहर निकले और शहर के अँधेरे कोनों में गायब हो गए। उनके पीछे, संचार टावर की विशाल संरचना पहले तो खामोश रही, फिर कुछ मिनटों बाद, टावर के निचले हिस्सों से धमाकों की आवाज़ें आने लगीं, जो अर्जुन के लगाए विस्फोटकों के कारण हुई थीं। टावर लड़खड़ाया, और एक भयानक, धीमी गर्जना के साथ, वह एक तरफ झुक गया और ज़मीन पर धड़ाम से गिर पड़ा। एक धूल और धातु के मलबे का बादल आसमान में उठा।
कुछ ही देर में, पूरे सैन्य क्षेत्र में हड़कंप मच गया। सायरन बजने लगे, सैनिक इधर-उधर भागने लगे। संचार ठप हो गया था। कोई आदेश नहीं, कोई रिपोर्ट नहीं, केवल अराजकता। रिया और उसकी टीम, सुरक्षित दूरी से, इस तबाही को देख रही थी। यह एक छोटी लेकिन प्रतीकात्मक जीत थी।
सुबह होने से पहले, इस तोड़फोड़ की खबर सम्राट विक्रम तक पहुँच गई। वह अपने महल के सिंहासन कक्ष में बैठा था, अपने सेनापतियों से युद्ध की रिपोर्ट ले रहा था, जब एक घबराया हुआ संदेशवाहक अंदर भागा।
"महाराज! पश्चिमी मोर्चे पर... संचार टावर नष्ट हो गया है! हमारे सभी संपर्क टूट गए हैं!" संदेशवाहक हाँफते हुए बोला।
सम्राट विक्रम का चेहरा एक पल में बदल गया। उसकी आँखें क्रोध से लाल हो गईं। उसने अपनी मुट्ठी इतनी ज़ोर से भींची कि उसके नाखून उसकी हथेली में धंस गए। "यह क्या बकवास है?!" उसने गरजते हुए कहा, उसकी आवाज़ में ऐसा गुस्सा था कि सिंहासन कक्ष की दीवारें कांप गईं। "टावर कैसे नष्ट हो सकता है? किसने किया यह दुस्साहस?!"
"हमें नहीं पता, महाराज! कोई हमलावर नहीं देखा गया। लगता है... यह भीतर से किया गया है," एक सेनापति ने हिम्मत करके कहा।
"भीतर से?!" विक्रम दहाड़ा, और अपने सिंहासन से खड़ा हो गया। "गद्दार! मेरे ही लोग मुझे धोखा दे रहे हैं?!" उसकी आवाज़ में भयानक ठंडक थी। "मुझे तुरंत पता लगाओ! एक-एक गद्दार को ढूँढ़ो! उन्हें पकड़ो, उन्हें प्रताड़ित करो, और उन्हें फाँसी दो! हर एक को! मैं उन्हें दिखाऊँगा कि सम्राट विक्रम के साथ गद्दारी करने का क्या अंजाम होता है!"
सम्राट विक्रम का क्रोध पूरे महल में फैल गया, जैसे एक घातक आग। रिया ने वह संदेश भेज दिया था, और वह जानता थी कि अब उसकी तलाश तेज़ी से शुरू होगी। यह सिर्फ़ शुरुआत थी। युद्ध अब और भी व्यक्तिगत हो गया था, और रिया अपने पिता के ही बनाए साम्राज्य में एक 'छाया में विद्रोह' शुरू कर चुकी थी, जो अब और भी खतरनाक होता जा रहा था।
Chapter 13
आरव बर्फीले पहाड़ों में अपनी अकेली यात्रा पर था, आकाश-शिखर की तलाश में। सुबह से ही आसमान में बादलों का जमघट लगा हुआ था, और दोपहर ढलते-ढलते, वे बादल बर्फ़ीले तूफ़ान में बदल गए थे। हवा इतनी तेज़ थी कि हड्डियों तक को चीर रही थी, और बर्फ़ के फ़ाहे इतने घने थे कि सामने कुछ भी साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। आरव अपने भारी ऊनी कपड़ों में भी काँप रहा था। उसके होंठ नीले पड़ चुके थे और उसके हाथ-पैर सुन्न हो रहे थे।
"और कितना...?" उसने खुद से फुसफुसाया, उसकी आवाज़ हवा में ही खो गई। उसके जूते बर्फ़ में धँसते जा रहे थे, और हर कदम उठाना एक मुश्किल चुनौती थी। ऊर्जा, जो आकाश-तत्व के प्रशिक्षण के लिए ज़रूरी थी, अब उसके शरीर को गर्म रखने में ही खर्च हो रही थी। उसने कोशिश की कि अपनी शक्ति का थोड़ा सा इस्तेमाल करके खुद को गर्म कर सके, लेकिन ठंडी हवा और तूफ़ान उसके हर प्रयास को विफल कर रहे थे। उसकी एकाग्रता टूट रही थी।
उसकी आँखें चारों ओर एक छोटी सी गुफा या किसी तरह की शरण की तलाश कर रही थीं। पर्वत की ढलानें पूरी तरह से बर्फ़ से ढकी हुई थीं, और बर्फ़ीले पत्थरों के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। उसने अपने शरीर को आगे बढ़ने के लिए मजबूर किया, जानता था कि अगर वह यहीं रुका तो शायद जम जाएगा।
थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर, उसे एक बड़ी चट्टान दिखाई दी, जिसके नीचे एक छोटी सी गुफा जैसी जगह बन रही थी। वह अपनी बची हुई शक्ति को इकट्ठा करके उस ओर बढ़ा। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, और फेफड़ों में ठंडी हवा एक दर्द पैदा कर रही थी।
गुफा में घुसने पर, उसे थोड़ी राहत मिली। यहाँ हवा का सीधा हमला नहीं था, लेकिन ठंड अभी भी वैसी ही थी। उसने अपनी पीठ गुफा की बर्फीली दीवार से टिका ली और ज़मीन पर बैठ गया। उसके शरीर में कंपन हो रहा था, और उसकी उंगलियाँ इतनी सुन्न थीं कि वह उन्हें हिला भी नहीं पा रहा था।
"अब क्या...?" उसने खुद से पूछा। उसके पास खाने के लिए कुछ सूखे मेवे थे, लेकिन उन्हें खाने की भी हिम्मत नहीं थी। उसकी ऊर्जा लगभग समाप्त हो चुकी थी। आकाश-शक्ति, जिसका वह यहाँ अभ्यास करने आया था, अब उसे धोखा दे रही थी। वह उसे गर्माहट नहीं दे पा रही थी, या शायद वह इतनी कमज़ोर थी कि इस तूफ़ान का मुकाबला नहीं कर पा रही थी।
उसकी आँखें बंद होने लगीं। नींद उसे अपनी ओर खींच रही थी, एक ऐसी नींद जो शायद कभी खत्म न हो। लेकिन उसे पता था कि उसे जागते रहना होगा। उसे जिंदा रहना होगा।
उसने अपने दोस्तों के बारे में सोचना शुरू किया। भैरवी। उसकी मज़बूत और स्थिर उपस्थिति। उसकी पृथ्वी-ढाल, जो उन्हें हर खतरे से बचाती थी। वह सोचता था कि इस समय भैरवी कहाँ होगी। क्या वह भी ऐसे ही किसी तूफ़ान में फँसी होगी? या वह कहीं युद्ध के मैदान में होगी, अपने लोगों की रक्षा करते हुए? भैरवी का चेहरा, उसकी आँखों में दृढ़ संकल्प, उसे एक अजीब सी शक्ति दे गया।
फिर उसे समीर याद आया। समीर की फुर्ती, हवा में उसकी कलाबाज़ियाँ, उसकी हंसी। वह हमेशा टीम में एक हल्की-फुल्की भावना बनाए रखता था, भले ही स्थिति कितनी भी गंभीर क्यों न हो। आरव को याद आया कि कैसे समीर एक बार अभ्यास के दौरान हवा में उड़ते हुए उसके ऊपर गिर गया था और वे दोनों बर्फ़ में धंस गए थे। समीर की शरारती आँखें, उसकी मुस्कान... आरव को लगा जैसे गुफा में थोड़ी गर्माहट आ गई हो। समीर की ऊर्जा, उसकी जिंदादिली, उसे सहारा दे रही थी।
और फिर रिया। रिया का नाम सोचते ही उसके दिल में एक अजीब सी कसक उठी। उसकी अग्नि-शक्ति जितनी तेज़ थी, उसका दिमाग उतना ही तेज़ था। उसकी आँखें, जो कभी-कभी इतनी ठंडी दिखती थीं, लेकिन उनमें एक गहरा दर्द छुपा होता था। आरव को वो पल याद आए जब रिया को अपनी आँखों में आँसू लिए, अपने पिता के विश्वासघात का सामना करना पड़ा था। उसने उस समय उसे गले लगाया था, और उसकी गर्माहट महसूस की थी। रिया की उपस्थिति, उसका साथ, उसे हमेशा एक अजीब सा सुकून देता था। उसे पता था कि रिया इस समय अग्नि गणराज्य के अंदर होगी, अपने तरीके से लड़ रही होगी। उसे उम्मीद थी कि वह सुरक्षित होगी। उसकी यादों ने उसके दिल में एक छोटी सी अग्नि-लौ जला दी, जो उसे अंदर से गर्म कर रही थी।
"मैं अकेला नहीं हूँ," उसने फुसफुसाया। "मैं उनके लिए यहाँ हूँ। इस शक्ति को खोजने के लिए, ताकि मैं उन्हें बचा सकूँ। ताकि हम सब मिलकर इस युद्ध को खत्म कर सकें।"
उसने अपनी आँखें खोलीं। गुफा का अँधेरा अभी भी गहरा था, और तूफ़ान अभी भी बाहर चिल्ला रहा था, लेकिन उसके अंदर एक नई आग जल रही थी। यह आग उसके दोस्तों की यादों की थी, उनके साथ बिताए पलों की थी, और उनके भविष्य की आशा की थी।
उसने धीरे-धीरे अपनी उंगलियाँ हिलाईं। उनमें हल्की सी सनसनाहट महसूस हुई। उसने एक गहरी साँस ली और अपनी आकाश-शक्ति को केंद्रित करने की कोशिश की। उसने अपने आसपास के वातावरण से ऊर्जा खींचने की कोशिश की, उसे अपने शरीर में प्रवाहित किया। ठंड अभी भी थी, लेकिन वह अब उतनी घातक नहीं लग रही थी।
वह जानता था कि उसकी यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है। शिखर अभी भी बहुत दूर था, और रास्ते में और भी बाधाएँ होंगी। लेकिन उसके दोस्त, उनकी यादें, उसकी सबसे बड़ी शक्ति थीं। वे उसे अकेले नहीं छोड़ेंगे, भले ही वे भौतिक रूप से उसके पास न हों। वह उनकी यादों से खुद को गर्म रखता रहा, बाहर बर्फीला तूफान अभी भी जारी था, और अंदर आरव का संकल्प और भी मजबूत होता जा रहा था। उसे जिंदा रहना था, और उसे इस शिखर तक पहुंचना था। यह सिर्फ़ उसके लिए नहीं था, यह उन सबके लिए था।
Chapter 14
जिस समय आरव बर्फीले तूफ़ान में अपनी साँसों को थामे बैठा था, उसी समय, वायु कुल के तैरते हुए द्वीपों से मीलों दूर, एक ख़ामोश युद्ध क्षेत्र में समीर घूम रहा था। उसकी टीम ने कुछ दिन पहले ही एक बड़े अग्नि गणराज्य के आपूर्ति काफिले को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया था, लेकिन यह जीत उन्हें इस ख़ामोश नरसंहार के पास ले आई थी।
यह कोई ताज़ा युद्ध का मैदान नहीं था, जहाँ गोलियों की आवाज़ें और चीखें अभी भी गूँज रही हों। यह वह जगह थी जहाँ युद्ध कुछ दिन पहले खत्म हो चुका था, और अब वहाँ केवल भयावह शांति थी। समीर अपने सबसे भरोसेमंद लड़ाकों की एक छोटी सी टुकड़ी के साथ एक ऊँची पहाड़ी से नीचे उतरा। धूल और राख से ढका हुआ मैदान जहाँ तक नज़र जा रही थी, लाशों और मलबे से अटा पड़ा था।
"संभल कर, सर," उसके एक सिपाही ने फुसफुसाया, जिसका नाम प्रकाश था। प्रकाश की आवाज़ में एक अजीब सी निराशा थी।
समीर ने सिर हिलाया। उसकी आँखें चौड़ी हो गई थीं, जब उसने पहला शव देखा - एक युवा अग्नि सैनिक, जिसका चेहरा अभी भी सदमे और दर्द से विकृत था। उसके हाथ में उसकी आधी टूटी हुई तलवार कसकर पकड़ी हुई थी। समीर ने आगे देखा, और फिर और... हज़ारों की संख्या में सैनिक, दोनों तरफ़ के, ज़मीन पर बिखरे पड़े थे, जैसे किसी क्रूर देवता ने अपने मोहरे फेंक दिए हों।
हवा में एक अजीब सी गंध थी - खून, मिट्टी और धातु की, एक साथ मिलकर एक ऐसी गंध बना रही थी जो दिल को मरोड़ रही थी। आकाश में कोई पक्षी नहीं उड़ रहा था, कोई जानवर नहीं दौड़ रहा था। सिर्फ़ भयावह खामोशी थी, टूटे हुए हथियारों की निशानी, और कभी न खत्म होने वाली लाशों की पंक्तियाँ।
समीर ने अपने बचपन में, वायु कुल के कहानियों में युद्ध के बारे में सुना था। उन्हें वीरता, रणनीति और बलिदान के बारे में बताया जाता था। उन्हें सिखाया जाता था कि युद्ध एक ज़रूरी बुराई है, जो न्याय के लिए लड़ी जाती है। उसने खुद भी कई बार कल्पना की थी कि वह कैसे हवा में उड़कर दुश्मनों को हराएगा, अपने कुल का नाम रोशन करेगा। लेकिन इस समय, इस मैदान पर, उसे वीरता या न्याय का कोई निशान नहीं दिख रहा था। उसे सिर्फ़ विनाश, बर्बादी और निरर्थकता दिख रही थी।
उसकी आँखें एक युवा पृथ्वी सैनिक के शव पर टिकीं, जिसकी वर्दी अभी भी हरे रंग की थी, लेकिन वह खून से लाल हो चुकी थी। उसकी उम्र शायद समीर जितनी ही रही होगी। उसकी जेब से एक लकड़ी का खिलौना आधा बाहर निकला हुआ था - शायद उसके बच्चे का, या किसी छोटे भाई-बहन का। समीर के सीने में एक दर्द उठा, इतना गहरा कि उसने अपनी साँस रोक ली। इस जवान ने किसके लिए अपनी जान दी? क्या उसके परिवार को पता होगा कि वह यहाँ है, इस बंजर मैदान पर अकेला पड़ा हुआ है?
"इन सब का क्या मतलब है, प्रकाश?" समीर ने अचानक पूछा, उसकी आवाज़ खुरदरी थी।
प्रकाश ने अपने हेलमेट को थोड़ा नीचे किया। "हम लड़ रहे हैं, सर। अपने लोगों के लिए, अपनी ज़मीन के लिए। सम्राट विक्रम के अत्याचार के खिलाफ़।"
"लेकिन यह सब...? क्या यह वाकई ज़रूरी है?" समीर ने अपने हाथ से एक सूखे हुए पत्ती को कुचला। "ये लोग... इन्होंने किसी का क्या बिगाड़ा था? अग्नि सैनिक भी तो किसी के बेटे, भाई, पति थे। क्या उनकी जान की कोई कीमत नहीं थी?"
प्रकाश चुप रहा। वह जानता था कि समीर क्या महसूस कर रहा है। हर सैनिक जिसने असली युद्ध देखा था, उसे एक न एक दिन इस सवाल का सामना करना पड़ता था।
समीर ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसे शांति का समय याद आया। अकादमी के दिन। आरव के साथ उसकी पहली उड़ान, जब वे दोनों हवा में हँसते हुए बेफ़िक्र होकर उड़ रहे थे। भैरवी की शांत, मज़बूत आवाज़, जब वह उन्हें मुश्किल पहेलियों को हल करना सिखाती थी। रिया की शांत उपस्थिति, उसकी आँखों में छिपी हुई अग्नि। वे सब एक साथ, बिना किसी चिंता के, हँसते और सीखते थे। वे भविष्य के सपने देखते थे, जहाँ तत्व एक साथ शांति से रहते थे।
क्या वह सपना अब हमेशा के लिए खो गया था? क्या युद्ध ने सब कुछ निगल लिया था?
उसे याद आया कि कैसे बचपन में उसके पिता उसे वायु कुल के सबसे ऊँचे पर्वत पर ले गए थे, जहाँ से पूरी दुनिया एक नीले और हरे कैनवास की तरह दिखती थी। "देखो, समीर," पवन ने कहा था, "यह हमारा घर है। यह सुंदर है, और इसे सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है।" उस समय, समीर को यह सब बहुत आसान लगता था। कर्तव्य सिर्फ़ अभ्यास करने और मज़बूत बनने तक सीमित था। लेकिन अब, वह समझ रहा था कि 'सुरक्षा' कितनी कीमत पर आती है।
वह ज़मीन पर घुटने टेक कर बैठ गया, एक मृत सैनिक के बाजू में। उसने अपनी मुट्ठी भींच ली, उसके नाखून उसकी हथेली में धंस गए। उसे अपने अंदर एक अजीब सी कड़वाहट महसूस हुई। यह क्रोध नहीं था, न ही डर। यह एक दुख था, एक बोझ था, जो उसके युवा कंधों पर आ पड़ा था। युद्ध ने उसे एक ऐसे पहलू से रूबरू कराया था जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था। यह सिर्फ़ मारना या मरना नहीं था। यह लोगों की आत्माओं को कुचलना था, उम्मीदों को जलाना था।
"सर?" प्रकाश ने धीरे से पूछा, जब समीर देर तक खामोश रहा।
समीर ने अपनी आँखें खोलीं। उनकी गहराई अब बदल चुकी थी। उनमें अब वह बचपन की चंचलता नहीं थी, बल्कि एक नई गंभीरता, एक नई परिपक्वता थी। उसने गहरी साँस ली, और अपने अंदर के दर्द को स्वीकार किया। "हमें आगे बढ़ना है, प्रकाश," उसने कहा, उसकी आवाज़ अब दृढ़ थी, लेकिन उसमें कोई उत्साह नहीं था। "हमें यह सब देखना होगा, और यह याद रखना होगा। ताकि... ताकि ऐसा दोबारा कभी न हो।"
उसने खड़े होने के लिए खुद को मजबूर किया। उसके कदम अब पहले से ज़्यादा भारी थे, लेकिन अब वे बिना किसी झिझक के थे। वह जानता था कि उसे लड़ना होगा, उसे अपनी शक्ति का उपयोग करना होगा। लेकिन अब वह किसी गौरव या वीरता के लिए नहीं लड़ेगा। वह लड़ेगा ताकि यह नरसंहार खत्म हो सके, ताकि भविष्य में कोई और सैनिक इस तरह के मैदान में न पड़े।
समीर ने एक आखिरी नज़र उस भयानक युद्ध के मैदान पर डाली, जहाँ मौत ने अपना तांडव किया था। उसने महसूस किया कि यह पल उसे हमेशा के लिए बदल देगा। अब वह केवल एक प्रतिभाशाली वायु-योद्धा नहीं था। वह एक ऐसा इंसान बन गया था जिसने युद्ध की असलियत देखी थी, और जिसने यह तय कर लिया था कि इस बर्बादी को रोकना उसकी ज़िम्मेदारी है। वह आगे बढ़ा, उसके जूते सूखी हुई मिट्टी पर क्रंच करते रहे, और उसके कंधों पर युद्ध का भारी बोझ था, लेकिन उसके अंदर एक नया, और अधिक गंभीर संकल्प था।
Chapter 15
जिस समय समीर युद्ध की निरर्थकता को देखकर परिपक्व हो रहा था, उसी समय पृथ्वी राज्य की उत्तरी सीमा पर स्थित, अचल-गढ़ का दुर्ग अपनी दीवारों के पीछे सांसें रोककर बैठा था। दूर क्षितिज पर, धूल का एक विशाल बादल उठ रहा था, जो धीरे-धीरे पास आता जा रहा था। दुर्ग के ऊँचे बुर्जों से, सैनिक अपनी दूरबीनों से उस आते हुए खतरे को देख रहे थे। हवा में एक अजीब सी खामोशी थी, सिर्फ़ हवा की सरसराहट और सैनिकों की दबी हुई फुसफुसाहटें।
भैरवी, जिसने इस दुर्ग की रक्षा का जिम्मा अपने कंधों पर ले रखा था, मुख्य द्वार के पास खड़ी थी। उसके हाथ में उसकी भारी गदा थी, और उसके चेहरे पर दृढ़ता थी। उसने अपने सैनिकों को शांत रहने का इशारा किया, हालाँकि उसके अपने दिल की धड़कनें भी तेज़ थीं। अचल-गढ़, पृथ्वी राज्य की सबसे महत्वपूर्ण रक्षा रेखाओं में से एक था। अगर यह गिर जाता, तो राजधानी का रास्ता साफ हो जाता।
"वे आ गए," एक युवा सैनिक ने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ में कंपन था।
भैरवी ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में कोई डर नहीं था। "डरने की कोई बात नहीं, सिपाही," उसने शांत स्वर में कहा। "यह दुर्ग पृथ्वी की आत्मा से बना है। इसे तोड़ना आसान नहीं होगा।"
धूल का बादल और पास आया, और अब अग्नि गणराज्य के सैनिकों के चमचमाते कवच और उनके लाल बैनर दिखाई देने लगे थे। वे एक व्यवस्थित टुकड़ी थे, जो सैकड़ों की संख्या में थे। उनकी चाल में आत्मविश्वास था, जैसे वे पहले ही जीत चुके हों। उनके आगे उनके कमांडर, एक विशाल, क्रूर दिखने वाला आदमी, अपने घोड़े पर बैठा हुआ था।
"तैयार हो जाओ!" भैरवी ने ज़ोर से चिल्लाया, उसकी आवाज़ दुर्ग की दीवारों पर गूँज उठी। "धैर्य रखो! उन्हें करीब आने दो।"
सैनिक अपनी-अपनी स्थिति में आ गए। तीरंदाजों ने अपने धनुष तान लिए, उनके तीर आसमान की ओर इशारा कर रहे थे। पत्थर-फेंकने वाली मशीनें (कैटापुल्ट्स) तैयार थीं, उनके गोले दुश्मन पर बरसाने के लिए बेताब थे। भैरवी ने अपनी आँखें बंद कीं और ज़मीन से जुड़ी। उसने पृथ्वी की ऊर्जा को महसूस किया, उसकी नस-नस में प्रवाहित होती हुई। यह दुर्ग सिर्फ़ पत्थरों और ईंटों से नहीं बना था; यह उस भूमि का हिस्सा था जिसकी वह रक्षा कर रही थी।
अग्नि सेना दुर्ग के करीब आ गई। उनके कमांडर ने एक बार फिर अपने सैनिकों को आगे बढ़ने का आदेश दिया। वे दौड़ते हुए दुर्ग की ओर बढ़े, उनके नारों से हवा गूँज उठी।
"अब!" भैरवी की कड़क आवाज़ ने आदेश दिया।
और अगले ही पल, दुर्ग की दीवारों के पीछे से पत्थरों और तीरों की बौछार हुई। कैटापुल्ट्स ने विशाल चट्टानी गोले बरसाए, जो अग्नि सेना की पंक्तियों में गिरकर तबाही मचाने लगे। तीरंदाजों के तीर हवा को चीरते हुए दुश्मन सैनिकों के कवच से टकराए।
अग्नि सैनिक चौंक गए। उन्होंने शायद उम्मीद नहीं की थी कि दुर्ग इतनी तेज़ी से और इतनी ताकत से प्रतिक्रिया देगा। उनकी पहली पंक्ति लड़खड़ा गई। कई सैनिक पत्थरों के नीचे दब गए, और कई तीरों से घायल होकर गिर गए।
भैरवी ने अपनी पृथ्वी-शक्ति का उपयोग किया। उसने दीवारों को और मजबूत किया, और दुर्ग के ठीक सामने की ज़मीन को थोड़ा ऊपर उठाया, जिससे एक छोटी सी, लेकिन प्रभावी बाधा बन गई। कुछ अग्नि सैनिक उस बाधा से टकराकर गिर गए, और उन्हें पीछे से आ रहे उनके ही साथी सैनिकों ने रौंद डाला।
"आगे बढ़ो! पीछे मत हटो!" अग्नि कमांडर दहाड़ा, लेकिन उसकी आवाज़ में थोड़ी झिझक थी।
लेकिन उनके सैनिक, जो इस अप्रत्याशित हमले से डर गए थे, पीछे हटने लगे। उनकी पहली योजना विफल हो गई थी। वे एक अप्रत्याशित प्रतिरोध का सामना कर रहे थे।
"और तीर! कैटापुल्ट्स! उन्हें भागने मत दो!" भैरवी ने आदेश दिया।
दुर्ग के सैनिकों ने एक और दौर के हमले किए, जिसने अग्नि सेना को पूरी तरह से तितर-बितर कर दिया। हताश होकर, अग्नि कमांडर ने अपनी सेना को पीछे हटने का आदेश दिया। वे अपनी जान बचाकर भागने लगे, उनकी लाल वर्दी धूल में सनी हुई थी।
दुर्ग के अंदर, सैनिकों में खुशी की लहर दौड़ गई। "हम जीत गए!" एक सैनिक ने चिल्लाया। "हमने उन्हें भगा दिया!"
पूरे दुर्ग में जयकारे लगने लगे। सैनिकों ने अपनी ढालों को पीटा और हवा में अपनी तलवारें लहराईं। उन्होंने अपनी पहली जीत हासिल की थी, और उनके चेहरे पर गर्व था।
भैरवी ने अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश की, लेकिन वह पूरी तरह से खुश नहीं थी। उसने अपनी आँखें क्षितिज पर डालीं, जहाँ धूल का बादल धीरे-धीरे कम हो रहा था। यह सिर्फ़ एक छोटी सी टुकड़ी थी। यह सिर्फ़ पहला हमला था। असली खतरा अभी आना बाकी था।
"शांत हो जाओ, सैनिकों!" उसने ज़ोर से कहा। उसकी आवाज़ अभी भी दृढ़ थी, और सैनिक तुरंत शांत हो गए। "यह एक अच्छी शुरुआत है। तुमने बहादुरी दिखाई है, और तुमने दुर्ग की रक्षा की है।"
सैनिकों ने गर्व से अपनी छातियाँ फुला लीं।
"लेकिन," भैरवी ने चेतावनी भरे लहजे में कहा, "यह सिर्फ़ पहला कदम था। अग्नि गणराज्य की सेना बहुत बड़ी है। वे और भी बड़ी संख्या में, और भी अधिक ताकत के साथ वापस आएंगे।"
एक सैनिक ने धीरे से कहा, "क्या हम उन्हें रोक पाएंगे, कमांडर?"
भैरवी ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में हल्की सी चिंता थी। "हम रोकेंगे," उसने दृढ़ता से कहा, हालाँकि उसके अंदर एक छोटा सा डर था। "जब तक मेरे शरीर में एक भी साँस है, और जब तक यह पृथ्वी मेरे पैरों के नीचे है, तब तक कोई भी इस दुर्ग को पार नहीं कर पाएगा।"
उसने अपनी मुट्ठी भींच ली। वह जानती थी कि यह सिर्फ़ एक छोटी सी जीत थी। दुश्मन ने अभी अपनी असली ताकत दिखाई भी नहीं थी। यह हमला सिर्फ़ एक आज़माइश थी, यह देखने के लिए कि दुर्ग कितना मज़बूत है। और अब, जब उन्हें पता चल गया था कि यहाँ प्रतिरोध है, तो वे और भी बड़े पैमाने पर हमला करेंगे।
भैरवी ने दुर्ग की दीवारों का मुआयना किया। कुछ जगह पर पत्थरों पर दरारें पड़ गई थीं, लेकिन कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ था। उसने अपने इंजीनियरों और सैनिकों को मरम्मत का काम तुरंत शुरू करने का आदेश दिया। रात भर काम करने के लिए तैयार रहने के लिए कहा।
जब रात हुई, तो दुर्ग में एक अजीब सी चुप्पी छा गई थी। हवा में जीत का उत्साह कम हो गया था, और उसकी जगह एक भारी anticipation ने ले ली थी। सैनिक अपनी-अपनी चौकियों पर तैनात थे, उनकी आँखें अँधेरे में चमक रही थीं, आने वाले बड़े हमले का इंतज़ार कर रही थीं।
भैरवी अपने कमांड सेंटर में अकेली बैठी थी। उसने अपने सामने एक नक्शा फैलाया था, जिस पर अचल-गढ़ और उसके आसपास के इलाके बने हुए थे। उसकी उंगलियाँ नक्शे पर टिकीं, जैसे वह आने वाले दुश्मन को महसूस करना चाहती हो। उसे आरव, रिया और समीर की याद आई। वे कहाँ होंगे? क्या वे जानते होंगे कि यहाँ क्या हो रहा है?
पिछली हार, जब ज्वालामुख ने उसे हराया था, अभी भी उसके मन में ताज़ा थी। वह जानती थी कि ज्वालामुख कोई साधारण दुश्मन नहीं था। उसकी लावा-शक्ति भयानक थी, और उसने भैरवी की पृथ्वी-ढाल को चकनाचूर कर दिया था। अगर ज्वालामुख खुद यहाँ आ गया, तो क्या वह इस दुर्ग को बचा पाएगी? यह सवाल उसके मन में घूम रहा था।
"मुझे मज़बूत रहना होगा," उसने खुद से कहा, उसकी आवाज़ कमरे की खामोशी में गूँज उठी। "मुझे अपने सैनिकों के लिए एक मिसाल कायम करनी होगी।"
वह जानती थी कि असली लड़ाई अभी शुरू होनी बाकी थी। यह दुर्ग उसकी ज़िम्मेदारी था, और वह इसे किसी भी कीमत पर बचाएगी। चाहे दुश्मन कोई भी हो, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो। उसे पता था कि आने वाले दिन उसके जीवन की सबसे कठिन परीक्षा होगी। और वह उस परीक्षा के लिए तैयार थी। वह दुर्ग की दीवारों पर बैठी रही, रात के अँधेरे में दूर अग्नि सेना के शिविरों में जलती हुई आग की लपटों को देखती रही, जो उसे आने वाले भयानक युद्ध का संकेत दे रही थीं।
Chapter 16
अचल-गढ़ के दुर्ग पर सुबह की पहली किरणें पड़ीं, और रात भर की खामोशी के बाद एक नई, भारी सुबह का आगमन हुआ। रात के काम के बाद सैनिक थके हुए थे, लेकिन उनकी आँखों में अभी भी चौकसी थी। भैरवी ने मुख्य बुर्ज से नीचे देखा, जहाँ मरम्मत का काम तेज़ी से चल रहा था। पत्थर-फेंकने वाली मशीनों को फिर से लोड किया जा रहा था, और तीरंदाजों के तरकश तीरों से भर दिए गए थे। पहली छोटी जीत ने उन्हें एक रात की राहत दी थी, लेकिन उन्हें पता था कि तूफान आने वाला है।
सुबह का नाश्ता करते समय भी, सैनिक फुसफुसाते रहे, उनकी नज़रें दूर क्षितिज पर टिकी थीं। अग्नि सेना ने रात भर कोई हमला नहीं किया था, लेकिन उनकी चुप्पी और भी डरावनी थी। यह तूफान से पहले की खामोशी जैसी थी।
तभी, दुर्ग के प्रवेश द्वार पर हलचल हुई। एक अश्वारोही सैनिक, जिसकी वर्दी धूल और खून से सनी थी, तेज़ी से घोड़े पर सवार होकर अंदर आया। उसका घोड़ा हाँफ रहा था, और सैनिक का चेहरा पीला पड़ चुका था। वह सीधा भैरवी के कमांड सेंटर की ओर भागा, जहाँ भैरवी अपने कुछ उच्च अधिकारियों के साथ अगली रणनीति पर चर्चा कर रही थी।
"कमांडर भैरवी!" सैनिक हाँफते हुए बोला, वह अपने घुटनों पर गिर पड़ा। "माफ़ी चाहता हूँ, लेकिन मेरे पास भयानक खबर है!"
भैरवी उसकी ओर मुड़ी। "क्या हुआ, सिपाही? इतनी घबराहट क्यों है?" उसकी आवाज़ में धैर्य था, लेकिन उसके मन में एक चिंता पैदा हो गई थी।
सैनिक ने अपना सिर ऊपर उठाया, उसकी आँखें डर से भरी हुई थीं। "ज्वालामुख... सेनापति ज्वालामुख! वह आ गया है, कमांडर! उसने उत्तर मोर्चे की कमान संभाली है।"
जैसे ही उसने यह नाम लिया, पूरे कमांड सेंटर में सन्नाटा छा गया। अधिकारियों के चेहरे पर खौफ छा गया। कुछ सैनिकों के हाथों से उनके हथियार छूट गए। ज्वालामुख का नाम पृथ्वी राज्य के हर सैनिक के लिए एक आतंक का पर्याय बन चुका था। वह सिर्फ़ एक सेनापति नहीं था; वह एक जीवित आपदा था, लावा और विनाश का अवतार।
भैरवी का दिल एक पल के लिए धड़कना बंद हो गया। उसका दिमाग पिछली हार के उस भयावह दृश्य में वापस चला गया, जब ज्वालामुख ने उसकी पृथ्वी-ढाल को चकनाचूर कर दिया था, और उसे लगभग मार डाला था। उसकी शक्ति... वह इतनी असीम और क्रूर थी कि भैरवी को लगा था कि वह कभी उसे हरा नहीं पाएगी। उसके शरीर में एक कंपकंपी दौड़ गई।
"तुम निश्चित हो, सिपाही?" एक अधिकारी ने कांपती हुई आवाज़ में पूछा।
"हाँ, सर!" सैनिक ने जवाब दिया। "मैंने उसे अपनी आँखों से देखा है। उसकी सेनाएँ हमारे पीछे लगी थीं, लेकिन मैं किसी तरह यहाँ तक पहुँचने में कामयाब रहा। उसकी शक्ति... वह अविश्वसनीय है। उसने रास्ते में एक छोटे से गढ़ को एक ही झटके में राख कर दिया।"
भैरवी ने अपनी आँखें बंद कीं और गहरी साँस ली। उसका डर वास्तविक था, वह इसे छिपा नहीं सकती थी। पिछली बार, वह अपरिचित थी उसकी शक्ति से। इस बार, वह जानती थी कि वह कितनी भयानक है। उसके मन में अपने घायल होने का दर्द, हार का अपमान, और अपने दोस्तों की चिंता सब कुछ उमड़ आया। उसने आरव को मरते हुए देखा था, समीर और रिया को असहाय महसूस किया था, जब ज्वालामुख ने उन पर हमला किया था। वह जानती थी कि वह सिर्फ़ एक सैनिक नहीं, बल्कि उनके बुरे सपने का प्रतीक था।
"ज्वालामुख..." एक बूढ़े जनरल ने फुसफुसाया। "ईश्वर हमारी रक्षा करे।"
भैरवी ने अपनी आँखें खोलीं। उसने देखा कि उसके सैनिकों और अधिकारियों के चेहरे पर हताशा और डर साफ झलक रहा था। उनके लिए, ज्वालामुख का आगमन युद्ध का अंत था, उनकी हार की पुष्टि। अगर वह उन्हें इस पल में टूटने देती, तो सब कुछ खत्म हो जाता।
उसे अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाना होगा। उसे खुद अपने डर पर काबू पाना होगा।
वह धीरे से उस सिपाही के पास गई जिसने यह खबर दी थी, और उसे उठने में मदद की। "तुमने बहादुरी दिखाई, सिपाही," उसने कहा, उसकी आवाज़ अब शांत और दृढ़ थी। "तुम्हें आराम करने की ज़रूरत है।"
फिर वह अपने अधिकारियों की ओर मुड़ी। "ज्वालामुख आ गया है," उसने दोहराया, लेकिन अब उसकी आवाज़ में कोई डर नहीं था, सिर्फ़ एक ठंडी दृढ़ता थी। "लेकिन यह अच्छी खबर है।"
अधिकारी एक-दूसरे की ओर देखने लगे, भ्रमित। "अच्छी खबर, कमांडर?" एक ने पूछा।
"हाँ," भैरवी ने कहा, उसकी आँखों में एक नई चमक थी। "इसका मतलब है कि सम्राट विक्रम अब अपनी असली ताकत दिखा रहा है। इसका मतलब है कि वह इस दुर्ग को कितना महत्वपूर्ण मानता है। और इसका मतलब यह भी है कि हम उसे यहीं रोक सकते हैं।"
उसने अपने गदा को ज़मीन पर ज़ोर से पटका, जिससे एक भारी गूँज पैदा हुई। "ज्वालामुख की ताकत भयानक है, मैं मानती हूँ। मैंने खुद उसका सामना किया है। लेकिन वह अमर नहीं है। वह अजेय नहीं है। वह सिर्फ़ एक मोहरा है, और हम इस मोहरे को यहीं पर रोक देंगे।"
उसकी आवाज़ में ऐसा दृढ़ विश्वास था कि कुछ सैनिकों ने अपनी नज़रें उठाईं, उनके चेहरे पर थोड़ी सी उम्मीद वापस आने लगी।
"हम अचल-गढ़ की रक्षा करेंगे!" भैरवी ने ज़ोर से घोषणा की। "हम इस पृथ्वी की रक्षा करेंगे! हम अपने लोगों की रक्षा करेंगे! चाहे दुश्मन कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, हम उसे अपनी ज़मीन पर पैर रखने नहीं देंगे!"
उसके शब्दों में एक ऐसी शक्ति थी जिसने सैनिकों में नई ऊर्जा भर दी। उनके डर ने एक नई संकल्पना का रूप लेना शुरू कर दिया। उनके हथियारों की पकड़ कस गई।
भैरवी ने महसूस किया कि उसका दिल अभी भी तेज़ धड़क रहा था, लेकिन यह डर का धड़कना नहीं था। यह एक योद्धा के दिल की धड़कन थी, जो आने वाली लड़ाई के लिए तैयार था। उसने अपने अतीत की हार को याद किया, लेकिन इस बार, उसने उसे एक प्रेरणा के रूप में इस्तेमाल किया। पिछली बार, वह unprepared थी। इस बार, वह तैयार थी। वह जानती थी कि ज्वालामुख क्या करने में सक्षम है, और वह जानती थी कि उसे अपनी पूरी ताकत से लड़ना होगा।
उसने अपने अधिकारियों को विस्तृत आदेश देने शुरू कर दिए। "मुख्य द्वार को मज़बूत करो! कैटापुल्ट्स के लिए और बड़े पत्थर लाओ! तीरंदाज़ों को ऊपर की चौकियों पर तैयार रखो! मैं दुर्ग की दीवारों को अपनी शक्ति से और मज़बूत करूँगी।"
उसकी आँखों में अब कोई झिझक नहीं थी। उसने अपने डर का सामना कर लिया था, और उसे एक हथियार में बदल दिया था। वह जानती थी कि उसके सामने एक भयानक लड़ाई थी, शायद उसके जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई। लेकिन वह अकेली नहीं थी। उसके सैनिक उसके साथ थे, और वह उन्हें टूटने नहीं देगी।
कुछ ही घंटों बाद, दूर क्षितिज पर, एक विशाल सेना का समूह दिखाई देने लगा, जो किसी बहते हुए लावा की नदी जैसा लग रहा था। उनके आगे, एक विशाल, क्रूर आकृति हवा में तैरती हुई दिखाई दी – स्वयं सेनापति ज्वालामुख। उसकी उपस्थिति ने हवा को भारी कर दिया, और दुर्ग के सैनिकों को एक बार फिर डर का अनुभव हुआ।
"वह आ गया है!" एक सैनिक ने डरते हुए कहा।
भैरवी ने उसे देखा। उसके चेहरे पर शांति थी, लेकिन उसकी आँखें जल रही थीं। उसने अपने गदा को कसकर पकड़ा और अपनी पृथ्वी-शक्ति को अपने चारों ओर केंद्रित किया। वह तैयार थी। वह जानती थी कि ज्वालामुख को हराना या रोकना आसान नहीं होगा, लेकिन वह भी अब पहले जैसी नहीं थी।
"तैयार हो जाओ, अचल-गढ़!" भैरवी ने ज़ोर से चिल्लाया, उसकी आवाज़ में एक नया संकल्प था। "यह लड़ाई है जो सब कुछ तय करेगी!"
उसकी आवाज़ हवा में गूँज उठी, दुर्ग की दीवारों से टकराकर वापस लौट आई, और हर सैनिक के दिल में एक नई ऊर्जा भर गई। ज्वालामुख की लावा-नदी धीरे-धीरे दुर्ग की ओर बढ़ने लगी, और अचल-गढ़ का दुर्ग एक नई, और शायद अंतिम, परीक्षा के लिए तैयार था।
Chapter 17
अचल-गढ़ के दुर्ग के चारों ओर एक डरावनी खामोशी छाई हुई थी। सामने मैदान में, अग्नि सेना की विशाल टुकड़ी फैल चुकी थी, और उनके बीच में, एक चमकती हुई, लाल आकृति हवा में तैर रही थी - ज्वालामुख। उसकी उपस्थिति से हवा में गर्मी बढ़ गई थी, और लावा की गंध आने लगी थी। दुर्ग के सैनिकों के चेहरे पर डर साफ झलक रहा था, लेकिन भैरवी की दृढ़ता ने उन्हें संभाले रखा था।
ज्वालामुख ने एक पल के लिए दुर्ग को निहारा, उसकी आँखें लाल अंगारों की तरह चमक रही थीं। उसके होंठों पर एक क्रूर मुस्कान फैली। उसने अपनी विशाल भुजा उठाई, और जैसे ही उसने उसे नीचे किया, धरती काँप उठी।
दुर्ग के ठीक सामने की ज़मीन में दरारें पड़ने लगीं, और उन दरारों से तरल, चमकता हुआ लावा बाहर निकलने लगा। यह लावा किसी नदी की तरह दुर्ग की ओर बहने लगा, सीधे उसकी नींव की ओर। यह कोई सामान्य घेराबंदी नहीं थी। ज्वालामुख पारंपरिक तोपों या घेराबंदी इंजनों का उपयोग नहीं कर रहा था; वह सीधे अपने लावा-तत्व से दुर्ग की जड़ों को नष्ट करने की कोशिश कर रहा था।
"लावा! लावा आ रहा है!" एक सैनिक घबराकर चिल्लाया।
भैरवी ने अपनी आँखें बंद कीं और ज़मीन से जुड़ी। उसने उस तीव्र गर्मी को महसूस किया, जो पृथ्वी के भीतर घुसने की कोशिश कर रही थी। "शांत रहो!" उसने ज़ोर से कहा, उसकी आवाज़ में एक अटल शक्ति थी। "यह पृथ्वी हमारी रक्षा करेगी!"
उसने अपनी पूरी पृथ्वी-शक्ति को केंद्रित किया। दुर्ग की नींव के चारों ओर, ज़मीन हिलने लगी। विशाल चट्टानी अवरोध धीरे-धीरे ज़मीन से बाहर आने लगे, एक दीवार की तरह, जो बहते हुए लावा को रोकने की कोशिश कर रहे थे। लावा उन चट्टानों से टकराया, और हवा में गर्म भाप और राख फैल गई। चट्टानें लाल होने लगीं, लेकिन वे टिकी रहीं।
"देखते रहो, कीड़े!" ज्वालामुख गरज उठा, उसकी आवाज़ में उपहास था। "तुम पत्थरों से मेरी आग को नहीं रोक सकते! यह आग तुम्हारे गढ़ को पिघला देगी, तुम्हारी हड्डियों को राख कर देगी!"
उसने एक और हाथ उठाया, और इस बार, लावा की एक नहीं, बल्कि कई धाराएँ ज़मीन से फूटने लगीं, जो दुर्ग को कई दिशाओं से घेरने की कोशिश कर रही थीं। दुर्ग के सैनिक डर से पीछे हटने लगे। उन्हें लगा कि उनकी दीवारें और खाईयाँ किसी काम की नहीं हैं जब दुश्मन खुद ज़मीन के नीचे से हमला कर रहा हो।
"पीछे मत हटो!" भैरवी ने चिल्लाया। "ज़मीन हमारी माँ है! हम उसे जलने नहीं देंगे!"
वह दुर्ग के निचले हिस्सों की ओर दौड़ी, जहाँ लावा की धाराएँ सबसे तेज़ थीं। उसने अपने हाथों को ज़मीन पर रखा, और उसकी पूरी ऊर्जा पृथ्वी में प्रवाहित होने लगी। ज़मीन थर्राने लगी, और लावा के सामने एक और, विशाल चट्टानी बाधा ऊपर उठने लगी। यह बाधा सिर्फ़ एक दीवार नहीं थी, बल्कि एक मोटी, ठोस संरचना थी, जो लावा को एक नाले की तरह मोड़ने लगी, उसे दुर्ग से दूर भेज रही थी।
"कमांडर, यह बहुत ज़्यादा है!" एक इंजीनियर ने हाँफते हुए कहा। "आपकी ऊर्जा खत्म हो जाएगी!"
"जब तक मैं साँस ले रही हूँ, तब तक यह दुर्ग खड़ा रहेगा!" भैरवी ने जवाब दिया, उसकी आँखों में दृढ़ता थी। उसकी रगों में पृथ्वी-शक्ति का संचार हो रहा था, लेकिन वह महसूस कर रही थी कि यह कितनी ज़ोरदार लड़ाई है। उसे लावा की गर्मी अपने शरीर में महसूस हो रही थी, जैसे वह उसकी त्वचा को झुलसा रही हो।
ज्वालामुख ने एक और हमला किया। उसने दुर्ग की बाहरी दीवारों पर सीधे लावा के गोले फेंकने शुरू कर दिए। ये गोले पत्थरों से टकराकर फट रहे थे, जिससे दीवारें काली पड़ रही थीं और दरारें पड़ रही थीं।
"सुरक्षित रहो, सैनिकों!" एक अधिकारी ने चिल्लाया। "दीवारों के पीछे रहो!"
भैरवी ने अपनी गदा को उठाया और उसे ज़मीन में गाड़ दिया। एक विशाल, पारदर्शी पृथ्वी-ढाल, जो पहले उसने आरव के हमले से बचाव के लिए बनाई थी, इस बार दुर्ग की सबसे कमज़ोर दीवारों के सामने प्रकट हुई। यह ढाल ज्वालामुख के लावा-गोलों को रोक रही थी, जिससे वे टकराकर छिटक रहे थे।
"यह कितनी देर तक चलेगा?" एक सैनिक ने कांपते हुए पूछा, जैसे ही एक और लावा-गोला ढाल से टकराया, जिससे पूरे दुर्ग में कंपन हुआ।
"जब तक हम हार नहीं मानते!" भैरवी ने जवाब दिया, उसकी आवाज़ में कोई झिझक नहीं थी। "यह दुर्ग हमारी अंतिम आशा है। अगर यह गिरा, तो पृथ्वी राज्य गिर जाएगा। हम ऐसा नहीं होने देंगे!"
उसने देखा कि कुछ सैनिक, जो पहले डर रहे थे, अब उसके शब्दों से प्रेरित होकर अपनी स्थिति में लौट रहे थे। उन्हें अपनी कमांडर में एक अदम्य दृढ़ता दिखाई दे रही थी, जिसने उनके अपने संकल्प को मजबूत किया।
ज्वालामुख ने अपनी पूरी शक्ति से हमला करना जारी रखा। उसने हवा में कई लावा के गोले बनाए और उन्हें एक साथ दुर्ग पर फेंक दिया। वे एक उल्का वर्षा की तरह लग रहे थे, जो दुर्ग को तबाह करने के लिए आ रहे थे।
भैरवी ने अपनी सारी शक्ति को केंद्रित किया। उसने पृथ्वी-ढाल को और मजबूत किया, और दुर्ग के चारों ओर की ज़मीन से विशाल चट्टानी हाथ ऊपर उठने लगे, जो लावा के गोलों को हवा में ही पकड़ने और मोड़ने की कोशिश कर रहे थे। कुछ गोले टकराकर छिटक गए, लेकिन कुछ ने ढाल को भेद दिया और दुर्ग की दीवारों से टकराए, जिससे और नुकसान हुआ।
"क्षति की रिपोर्ट करो!" भैरवी ने आदेश दिया, उसका चेहरा तनावग्रस्त था, लेकिन उसकी आँखें अभी भी केंद्रित थीं।
"मुख्य बुर्ज पर दरारें पड़ गई हैं, कमांडर! और दक्षिणी दीवार को नुकसान हुआ है!" एक अधिकारी ने सूचना दी।
भैरवी ने सिर हिलाया। वह जानती थी कि यह सिर्फ़ शुरुआत थी। ज्वालामुख की शक्ति को रोक पाना लगभग असंभव था, लेकिन उसे रोकना ही था। उसे अपनी हर बूँद ऊर्जा का उपयोग करना होगा, जब तक कि उसका शरीर जवाब देना बंद न कर दे। वह इस दुर्ग को गिरने नहीं देगी।
उसने महसूस किया कि उसकी मांसपेशियों में दर्द हो रहा था, उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, लेकिन वह पीछे नहीं हटी। वह जानती थी कि उसके सैनिकों का मनोबल उस पर निर्भर था। अगर वह टूटती, तो सब टूट जाता। वह अचल-गढ़ की दीवार पर खड़ी रही, एक अकेली महिला, जो लावा के समुद्र के सामने पृथ्वी की ढाल बनी हुई थी। उसकी लड़ाई अभी शुरू ही हुई थी, और वह जानती थी कि यह तब तक नहीं रुकेगी जब तक एक पक्ष पूरी तरह से तबाह न हो जाए।
Chapter 18
अचल-गढ़ के दुर्ग पर सूरज ढल रहा था, और लाल होते आकाश ने पूरे युद्ध के मैदान को एक भयावह रंग दे दिया था। अग्नि सेना का लावा-हमला लगातार जारी था। दुर्ग की दीवारें, जो पहले भूरी और मज़बूत दिखती थीं, अब जगह-जगह से काली पड़ चुकी थीं, और कुछ हिस्सों में दरारें स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। हवा में पिघले हुए पत्थर और जलती हुई लकड़ी की गंध फैली हुई थी।
भैरवी ने अपनी पृथ्वी-ढाल को मज़बूत रखने के लिए अपनी अंतिम ऊर्जा को निचोड़ रही थी। उसकी साँसें तेज़ी से चल रही थीं, और उसका माथा पसीने से लथपथ था। उसके हाथ काँप रहे थे, लेकिन उसने उन्हें ज़मीन पर कसकर रखा हुआ था, अपनी शक्ति को एक क्षण के लिए भी कम नहीं होने दे रही थी। वह जानती थी कि अगर ढाल टूटी, तो दुर्ग के अंदर के सभी सैनिक और नागरिक लावा की इस आग में जल जाएँगे।
"कमांडर! दक्षिणी दीवार पर एक और बड़ा प्रहार हुआ है!" एक अधिकारी चिल्लाया। "मरम्मत दल वहाँ नहीं पहुँच पा रहा है, लावा बहुत पास है!"
भैरवी ने अपनी आँखें खोलीं और उस दिशा में देखा। उसने देखा कि लावा की एक और धारा दुर्ग की नींव के बहुत करीब पहुँच गई थी। "मैं अभी आती हूँ!" उसने हाँफते हुए कहा, और अपनी ढाल को वहीं स्थिर करके उस तरफ दौड़ी।
दुर्ग के सैनिक हताश होते जा रहे थे। उनकी आँखें थक चुकी थीं, और उनके हथियार भारी लग रहे थे। कई घंटे हो गए थे जब ज्वालामुख ने अपना हमला शुरू किया था, और ऐसा लग रहा था कि यह कभी खत्म नहीं होगा। वे दीवारों से अपनी तोपें दाग रहे थे, तीर चला रहे थे, लेकिन ज्वालामुख की शक्ति के आगे यह सब बेकार लग रहा था। वह सिर्फ़ अपने लावा से दुर्ग को पिघला रहा था, बिना किसी सेना को जोखिम में डाले।
तभी, सैनिकों के एक समूह के बीच फुसफुसाहट शुरू हुई। उनकी नज़रें एक-दूसरे पर थीं, फिर दुर्ग के अंदर मौजूद बच्चों और बूढ़ों की ओर। उनकी आँखों में हताशा के साथ-साथ एक नया संकल्प भी था – एक आत्मघाती संकल्प।
एक युवा सैनिक, जिसका नाम विक्रम था, ने अपना हाथ उठाया। "हम कब तक ऐसे ही बैठे रहेंगे?" उसने ज़ोर से पूछा, उसकी आवाज़ में गुस्सा था। "वह हमें अंदर से खा रहा है! अगर हम अभी नहीं लड़े, तो हम सब यहीं जल जाएँगे!"
"लेकिन हम क्या कर सकते हैं, विक्रम?" एक बूढ़े सैनिक ने कहा। "बाहर मौत है। ज्वालामुख को हम रोक नहीं सकते।"
"हम एक मौका ले सकते हैं!" विक्रम ने कहा। "अगर हम बाहर निकलें, और उसके सैनिकों पर हमला करें, तो शायद उसका ध्यान भटकेगा। हम उसे मजबूर कर सकते हैं अपनी सेना को आगे लाने के लिए। तब हम भी लड़ सकते हैं, आमने-सामने!"
यह एक हताश योजना थी, लगभग पागलपन भरी। ज्वालामुख की लावा-नदियाँ दुर्ग के चारों ओर बह रही थीं, और उसके सैनिक दुर्ग से काफी दूरी पर थे, हमला करने के लिए बिलकुल तैयार। लेकिन कुछ सैनिकों को इसमें एक उम्मीद दिखी। बैठे-बैठे जलने से बेहतर था, खड़े होकर लड़ना और मरना।
"हमला करने का आदेश किसने दिया?" एक अधिकारी ने सुना और उनके पास आया। "यह आत्मघाती होगा! कमांडर भैरवी ने अभी कोई आदेश नहीं दिया है!"
"हम आदेश का इंतज़ार नहीं कर सकते, सर!" विक्रम ने कहा। "हमारी जान जा रही है, और हमारी जान बचाने के लिए कोई नहीं आ रहा है! हमें कुछ करना होगा!"
कुछ ही मिनटों में, करीब पचास सैनिकों का एक छोटा समूह, अपनी तलवारें और ढालें थामे हुए, दुर्ग के एक छोटे, गुप्त द्वार पर इकट्ठा हो गया। उनके चेहरे पर दृढ़ संकल्प के साथ-साथ डर भी था। वे जानते थे कि वे शायद कभी वापस नहीं आएँगे।
भैरवी अभी भी दक्षिणी दीवार पर लावा को मोड़ने में व्यस्त थी जब उसे मुख्य द्वार के पास से एक अजीब सी हलचल महसूस हुई। उसने मुड़कर देखा, और उसके होश उड़ गए। उसने देखा कि वह छोटा द्वार खुल रहा था, और कुछ सैनिक बाहर निकल रहे थे, सीधे ज्वालामुख की सेना की ओर।
"नहीं!" भैरवी चिल्लाई। "रुक जाओ! यह क्या कर रहे हो?"
लेकिन सैनिक पहले ही निकल चुके थे। वे दुर्ग से बाहर निकले, सीधे लावा के करीब, जहाँ अग्नि सेना के सैनिक इंतजार कर रहे थे। वे अपनी तलवारें लहराते हुए "पृथ्वी राज्य की जय!" चिल्लाते हुए आगे बढ़े। यह एक अंतिम, हताश प्रयास था।
ज्वालामुख, जो हवा में तैर रहा था, ने उन्हें देखा। उसकी आँखों में एक पल के लिए आश्चर्य था, फिर एक क्रूर मुस्कान फैल गई। "ओह, कीड़े!" उसने उपहास किया। "तुम अपने बिलों से बाहर आ गए! तुम्हें लगता है कि तुम मुझे चुनौती दे सकते हो?"
उसने अपनी एक विशाल भुजा उठाई, और इस बार, उसने लावा के गोले नहीं फेंके। उसकी हथेली से एक विशाल, चमकती हुई आग की लहर निकली, जो सीधे उन सैनिकों की ओर गई। लहर इतनी तेज़ थी कि सैनिकों को प्रतिक्रिया करने का भी समय नहीं मिला।
भैरवी ने अपनी आँखों के सामने यह भयानक दृश्य देखा। "नहीं! रुको!" वह चिल्लाई, अपनी पूरी शक्ति लगाकर एक पृथ्वी-ढाल बनाने की कोशिश कर रही थी, जो उन सैनिकों को बचा सके। लेकिन वे उससे बहुत दूर थे, और ज्वालामुख का हमला इतना तेज़ था।
आग की लहर उन सैनिकों से टकराई। एक पल के लिए, वे चीखे, और फिर, वे धूल और राख में बदल गए। उनकी तलवारें ज़मीन पर गिर गईं, और उनकी ढालें जल गईं। एक ही झटके में, वह पूरा समूह खत्म हो गया। वहाँ केवल जलती हुई राख का ढेर बचा था।
दुर्ग में सन्नाटा छा गया। सैनिक अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। उनकी उम्मीद, जो कुछ पल पहले जगी थी, एक ही झटके में राख हो गई थी। उनकी बहादुरी का कोई मतलब नहीं था।
भैरवी वहीं खड़ी थी, उसके हाथ काँप रहे थे। उसकी आँखों में आँसू भर आए। वह उन्हें बचाना चाहती थी, उसने अपनी पूरी कोशिश की थी, लेकिन वह विफल रही थी। उसकी शक्ति अपर्याप्त थी। ज्वालामुख बहुत शक्तिशाली था। उसने अपनी सीमाओं को इतनी क्रूरता से कभी महसूस नहीं किया था। वह सिर्फ़ ज़मीन और पत्थरों को ही नहीं, बल्कि अपने सैनिकों को भी नहीं बचा पा रही थी। यह अहसास उसके दिल को चीर रहा था।
"देखो, कीड़े!" ज्वालामुख गरज उठा, उसकी आवाज़ में जीत की खुशी थी। "यह तुम्हारे छोटे से प्रतिरोध का अंजाम है। तुम मुझसे नहीं बच सकते। तुम्हारा दुर्ग भी नहीं बचेगा। तुम सब जलोगे!"
भैरवी ने अपने गदा को कसकर पकड़ा, उसके नख सफेद पड़ गए थे। उसका गुस्सा उबल रहा था, लेकिन वह जानती थी कि गुस्सा उसे कुछ नहीं देगा। उसे अपने सैनिकों को बचाना होगा। उसे इस दुर्ग को बचाना होगा।
"पीछे हटो, सभी!" भैरवी ने आदेश दिया, उसकी आवाज़ में दर्द था लेकिन दृढ़ता भी। "जो हुआ, सो हुआ। हमें अब अपने बचे हुए साथियों को बचाना होगा। किसी को भी बिना आदेश के दुर्ग से बाहर नहीं जाना चाहिए।"
सैनिकों ने उसके आदेश का पालन किया, लेकिन उनकी चालों में निराशा थी। उन्होंने अपनी आँखों के सामने अपने साथियों को राख होते देखा था। उन्हें लगा कि उनके पास कोई उम्मीद नहीं बची है।
भैरवी ने अपने सिर को उठाया और एक बार फिर ज्वालामुख को देखा। उसकी शक्ति... वह वास्तव में एक दैत्य थी। लेकिन भैरवी ने हार नहीं मानी थी। वह जानती थी कि यह सिर्फ़ एक दौर था। उसे कोई और रास्ता खोजना होगा। उसे अपने दोस्तों को याद किया – आरव, समीर, रिया। वे कहाँ थे? उन्हें उसकी मदद की ज़रूरत थी। उसे उन्हें जीवित रखना होगा।
वह जानती थी कि दुर्ग की दीवारें अब बहुत देर तक टिक नहीं पाएंगी। ज्वालामुख की क्रूरता ने उन्हें अंदर से तोड़ना शुरू कर दिया था। उसे एक योजना बनानी होगी, एक ऐसी योजना जो सिर्फ़ रक्षा की नहीं, बल्कि अस्तित्व की हो। रात गहरी हो रही थी, और दुर्ग का भाग्य अधर में लटका हुआ था।
Chapter 19
अचल-गढ़ के दुर्ग पर काली रात अपनी पूरी भयावहता के साथ छाई हुई थी। ज्वालामुख का लावा-हमला बिना रुके जारी था। दुर्ग की दीवारें, जो कई घंटों से लगातार हमले झेल रही थीं, अब बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी थीं। जगह-जगह से पत्थर टूटकर गिर रहे थे, और ज़मीन से निकलती लावा की धाराएँ दुर्ग की नींव को अंदर तक पिघला रही थीं। हवा में जलते हुए पत्थर और सल्फर की तीखी गंध भरी हुई थी। सैनिकों की आँखें लाल हो चुकी थीं, और उनकी मांसपेशियाँ दर्द से कराह रही थीं। वे अपनी अंतिम साँसों तक लड़ रहे थे, लेकिन निराशा उन पर हावी होती जा रही थी।
भैरवी दुर्ग की मुख्य दीवार पर खड़ी थी, उसके चेहरे पर धूल और कालिख लगी थी, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी एक दृढ़ चमक थी। उसने अपने हाथों को ज़मीन पर टिका रखा था, और उसकी पूरी शक्ति पृथ्वी में प्रवाहित हो रही थी, जिससे वह दुर्ग की बची हुई ढालों को मज़बूत रखने की कोशिश कर रही थी। हर कंपन, हर दरार उसे अंदर तक महसूस हो रही थी। वह जानती थी कि दुर्ग अपनी अंतिम साँसें ले रहा था।
"कमांडर! बाहरी दीवार का पतन हो रहा है!" एक घबराया हुआ अधिकारी चिल्लाया। "हम इसे और देर तक नहीं रोक सकते!"
भैरवी ने अपनी नज़रें उठाईं और क्षितिज पर देखा। अग्नि सेना का मुख्य शिविर दूर तक फैला हुआ था, और उसके बीच में, ज्वालामुख की विशाल आकृति हवा में तैर रही थी, जैसे कि वह खुद मौत का एक अग्रदूत हो। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो बता रही थी कि अब वह अपनी शक्ति की अंतिम चाल चलने वाला था।
तभी, लावा की धाराएँ रुक गईं। दुर्ग में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया, जिससे सैनिकों को कुछ उम्मीद हुई। क्या हमला रुक गया था? क्या वे बच गए थे?
लेकिन उनकी उम्मीदें एक ही पल में टूट गईं। ज्वालामुख ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए, और दुर्ग के मुख्य द्वार की ओर केंद्रित किया। उसके हाथों से लाल ऊर्जा की दो विशाल धाराएँ निकलीं, जो बिजली की गति से मुख्य द्वार की ओर बढ़ीं।
"मुख्य द्वार!" भैरवी चिल्लाई। "सब रक्षा करो!"
उसने अपनी बची हुई सारी शक्ति को केंद्रित करके एक मोटी, चट्टानी ढाल बनाने की कोशिश की, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। ज्वालामुख की ऊर्जा ने द्वार से सीधे संपर्क किया। एक भयानक विस्फोट हुआ, जिससे पूरा दुर्ग हिल गया। लकड़ी के विशाल तख़्त, लोहे की भारी सलाखें, और पत्थर के मज़बूत बीम एक ही झटके में हवा में बिखर गए, जैसे वे कागज़ के बने हों। धूल और मलबे का एक विशाल बादल उठा, और जब वह छँटा, तो दुर्ग का मुख्य द्वार अब केवल खंडहर था – एक खुला घाव।
सैनिकों ने आतंक में पीछे हटना शुरू कर दिया। उनकी आँखों में पूर्ण निराशा थी। द्वार टूट गया था। अब कुछ भी उन्हें नहीं बचा सकता था।
धूल के बादल के बीच से, एक विशाल आकृति ने कदम रखा। ज्वालामुख, अब और भी बड़ा और अधिक भयानक लग रहा था, दुर्ग के अंदर प्रवेश कर रहा था। उसके कदमों से ज़मीन काँप रही थी, और उसकी आँखों से लाल रोशनी निकल रही थी। उसके पीछे अग्नि सेना के कुछ विशेष दस्ते, लावा-भेड़ियों पर सवार होकर, अंदर आने लगे।
"तुमने बहुत अच्छा किया, कीड़े!" ज्वालामुख गरज उठा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी खुशी थी। "तुमने मुझे एक रात तक रोके रखा। लेकिन अब, तुम्हारा अंत आ गया है!"
सैनिकों ने अपनी तलवारें उठाईं, लेकिन उनके हाथ काँप रहे थे। उन्होंने ज्वालामुख पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन वह बस एक हाथ हिलाता, और वे सभी लावा की लहर से उड़ जाते। वह केवल एक मोहरा नहीं था, वह स्वयं युद्ध था।
भैरवी ने इस भयानक दृश्य को देखा। उसके सैनिक, जो इतनी बहादुरी से लड़े थे, अब असहाय थे। वह जानती थी कि अगर ज्वालामुख ऐसे ही आगे बढ़ता रहा, तो वह पूरे दुर्ग को नष्ट कर देगा, एक भी आत्मा को नहीं बख्शेगा। उसे कुछ करना होगा। उसे उसे रोकना होगा।
उसने अपने गदा को कसकर पकड़ा, उसके हाथ अभी भी काँप रहे थे, लेकिन एक नई दृढ़ता ने उसकी थकान पर काबू पा लिया था। उसने अपनी आँखें बंद कीं, और अपने दिल में, उसने पृथ्वी की ऊर्जा को महसूस किया – उसकी माँ, उसकी ताकत। उसने उन सैनिकों के चेहरे याद किए जो बाहर जलकर राख हो गए थे। उसने आरव, समीर, और रिया के चेहरे याद किए – उसके दोस्त, जिनके लिए उसे जीवित रहना था।
एक गहरी साँस लेते हुए, उसने अपनी आँखें खोलीं। उनकी आँखों में अब कोई डर नहीं था, केवल एक शांत, अटल संकल्प था। वह अपने सैनिकों की ओर मुड़ी।
"पीछे हटो, सभी!" उसने ज़ोर से कहा, उसकी आवाज़ पूरे दुर्ग में गूँज उठी। "जितने भी नागरिक और सैनिक घायल हैं, उन्हें गुप्त सुरंगों से बाहर निकालो! बचे हुए लोग मेरा आदेश मानें!"
सैनिकों ने उसे देखा, भ्रमित और डरे हुए।
"यह एक आदेश है!" भैरवी ने अपनी आवाज़ और ऊँची की। "जितनी जल्दी हो सके, सुरक्षित स्थान पर जाओ! इस दुर्ग को बचाना अब मेरा काम है!"
वह उन्हें छोड़कर, अकेले ही ज्वालामुख की ओर बढ़ने लगी। उसके पीछे से कुछ अधिकारी चिल्लाए। "कमांडर! नहीं! वह बहुत शक्तिशाली है! आप अकेले नहीं लड़ सकतीं!"
लेकिन भैरवी ने उनकी एक न सुनी। वह जानती थी कि यह एक आत्मघाती कदम हो सकता है, लेकिन यह एकमात्र तरीका था अपने लोगों को समय देने का।
ज्वालामुख ने उसे अपनी ओर आते देखा। उसने एक और विशाल सैनिक को लावा के गोले से उड़ाया और फिर भैरवी की ओर मुड़ा। "ओह, तुम फिर आ गई, छोटी चट्टान!" उसने उपहास किया। "मुझे लगा था कि मैंने तुम्हें अचल-गढ़ के बाहर ही तोड़ दिया था। क्या तुम मौत से नहीं डरती?"
भैरवी ने अपनी गदा को कसकर पकड़ा। "मैं मौत से डरती हूँ, ज्वालामुख," उसने शांत आवाज़ में कहा, उसकी आँखों में ज्वालामुख की छवि थी। "लेकिन मैं तुमसे ज़्यादा डरती हूँ कि अगर मैंने कुछ नहीं किया, तो क्या होगा। तुम सोचते हो कि तुमने मुझे तोड़ दिया है, लेकिन तुम गलत हो। मैं टूटने वाली नहीं हूँ।"
ज्वालामुख हँसा, एक गहरी, गूँजती हुई हँसी जो हड्डियों तक काँप उठी। "हाहाहा! तुम पागल हो गई हो, लड़की! तुमने अभी-अभी अपने साथियों को मेरी आग में जलते देखा है! तुम्हारी दीवारों ने मेरा सामना नहीं किया, और तुम सोचती हो कि तुम अकेली करोगी?"
"मेरा शरीर थका हुआ हो सकता है," भैरवी ने जवाब दिया, उसने अपने गदा को ज़मीन में गाड़ दिया। "लेकिन मेरी आत्मा नहीं थकी है। यह पृथ्वी मेरी है। और जब तक मैं जीवित हूँ, तुम इस पर एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकते।"
ज्वालामुख का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने भैरवी के शब्दों को अपमान के रूप में लिया। "तो फिर मर जाओ!" वह गरज उठा, और अपनी विशाल मुट्ठी से लावा का एक और गोला भैरवी की ओर फेंका।
लेकिन इस बार, भैरवी अलग थी। वह पहले की तरह सिर्फ़ ढाल नहीं बना रही थी। उसकी आँखों में एक नई चमक थी, एक नई एकाग्रता। उसने अपने हाथों को उठाया, और इस बार, उसने लावा के गोले को सीधे रोका नहीं। बल्कि, उसने गोले के ठीक सामने की ज़मीन को ऊपर उठाया, एक तेज़ गति से, जिससे गोला एक पल के लिए हवा में रुका और फिर अपनी दिशा बदलकर बगल से निकल गया, जिससे पास की एक दीवार में धमाका हुआ।
ज्वालामुख की आँखें चौड़ी हो गईं। वह हैरान था। यह एक छोटी सी हरकत थी, लेकिन यह दिखा रही थी कि भैरवी ने अपनी शक्ति को कितनी कुशलता से उपयोग करना सीख लिया था, भले ही वह थकी हुई थी। उसने अपनी ऊर्जा को बर्बाद करने के बजाय, उसे सटीक रूप से उपयोग किया था।
"तो तुम सीख गई हो, है ना?" ज्वालामुख ने कहा, उसकी आवाज़ में अब थोड़ी गंभीरता थी। "लेकिन यह पर्याप्त नहीं होगा। मैं तुम्हें अभी भी राख कर दूंगा!"
उसने अपने लावा-हथियार को उठाया, और भैरवी की ओर भागा। भैरवी भी तैयार थी। उसने अपनी गदा को कसकर पकड़ा, और उसकी आँखों में अब केवल ज्वालामुख का चेहरा था। उसकी दूसरी लड़ाई, उसकी अंतिम लड़ाई, अब अचल-गढ़ के खंडहरों में शुरू हो चुकी थी। वह पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत और केंद्रित थी, क्योंकि अब उसे पता था कि वह किसके लिए लड़ रही थी – सिर्फ़ एक दुर्ग के लिए नहीं, बल्कि अपने लोगों, अपने दोस्तों, और इस भूमि के लिए। उसकी रगों में पृथ्वी का क्रोध बह रहा था।
Chapter 20
अचल-गढ़ के दुर्ग के खंडहरों में आधी रात का अंधेरा और भी घना हो गया था। टूटे हुए द्वार से घुसते ही ज्वालामुख का विशालकाय शरीर और भी भयावह लग रहा था। उसकी आँखों से लाल रोशनी निकल रही थी, और उसके शरीर से गर्म हवा के झोंके उठ रहे थे, जिससे आसपास की बची हुई लकड़ियाँ चटकने लगी थीं। सैनिकों की आहटें धीरे-धीरे दूर हो रही थीं, वे गुप्त सुरंगों से बचे हुए नागरिकों को निकालने में लगे थे, जैसा कि भैरवी ने आदेश दिया था। दुर्ग में अब केवल ज्वालामुख का भयानक गर्जन और भैरवी की तेज़ साँसों की आवाज़ गूँज रही थी।
"तुम अकेली हो!" ज्वालामुख हँसा, उसकी आवाज़ महल की दीवारों से टकराकर लौट रही थी। "तुम्हें लगता है कि तुम अकेली मुझे रोक सकती हो? अपनी आँखों से देखो, तुम्हारी पृथ्वी कहाँ है? यह जल रही है! यह पिघल रही है!"
भैरवी ने अपने गदा को कसकर पकड़ा। उसकी आँखें ज्वालामुख पर टिकी थीं। "यह पृथ्वी कभी नहीं जलती, ज्वालामुख!" उसने शांत स्वर में कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में एक अनकही शक्ति थी। "यह बदलती है! यह टूटेगी, लेकिन यह फिर से बनेगी! और तुम इसे तोड़ोगे, उससे पहले तुम्हें मुझे तोड़ना होगा!"
ज्वालामुख का गुस्सा बढ़ गया। वह इस 'छोटी सी लड़की' की हिम्मत से चिढ़ गया था। "तुम अभी भी नहीं समझी, कीड़े!" उसने गरजकर कहा। "मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि असली शक्ति क्या होती है!"
उसने अपनी एक मुट्ठी ज़मीन पर मारी। एक भयानक कंपन हुआ, और लावा की एक विशाल लहर, एक सुनामी की तरह, सीधे भैरवी की ओर दौड़ी। यह इतनी बड़ी थी कि यह पूरे सिंहासन कक्ष को अपनी चपेट में ले सकती थी, जहाँ वे अब खड़े थे।
लेकिन भैरवी ने इस बार अलग तरीके से प्रतिक्रिया दी। उसने अपनी आँखें बंद कीं, अपने अंदर की पृथ्वी-शक्ति से जुड़ी। उसने महसूस किया कि लावा की लहर कहाँ से आ रही है, और उसकी ऊर्जा का केंद्र कहाँ है। उसने ज़मीन से जुड़ते हुए अपनी भुजाओं को फैलाया, जैसे कि वह पूरे दुर्ग को अपने अंदर समा रही हो।
"पृथ्वी का क्रोध!" वह फुसफुसाई, और उसकी आवाज़ के साथ ही, ज़मीन हिलने लगी। लावा की लहर के ठीक रास्ते में, दो विशालकाय चट्टानी हाथ ज़मीन से उठे, जैसे कि पृथ्वी स्वयं जाग उठी हो। वे लावा की लहर को सीधा नहीं रोक रहे थे, बल्कि उसे दोनों ओर से धकेल रहे थे, उसे संकरा कर रहे थे और उसकी गति को कम कर रहे थे।
लावा की लहर उन चट्टानी हाथों के बीच से ज़ोरदार तरीके से गुज़री, लेकिन उसकी शक्ति बहुत कम हो गई थी। भैरवी ने फिर उन हाथों को तेज़ी से ऊपर उठाया, जिससे लावा ऊपर की ओर उछला और दुर्ग की दीवारों से टकराया, बजाय भैरवी को सीधे हिट करने के। दीवारें चटक गईं, लेकिन भैरवी सुरक्षित थी।
ज्वालामुख की आँखों में आश्चर्य साफ दिख रहा था। "क्या?" उसने फुसफुसाया। "तुमने... तुमने उसे redirect किया?"
भैरवी ने अपनी आँखें खोलीं। उसके माथे पर पसीने की बूँदें थीं, और वह हाँफ रही थी, लेकिन उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी। "मैं सिर्फ़ दीवारें नहीं बना सकती, ज्वालामुख," उसने कहा। "मैं पृथ्वी को समझती हूँ। और पृथ्वी सिर्फ़ रक्षा नहीं करती, वह पलटवार भी करती है।"
उसने अपने हाथों को ज़मीन पर पटका। एक भयानक गड़गड़ाहट हुई, और ज्वालामुख के ठीक पैरों के नीचे ज़मीन में एक विशाल दरार पड़ गई। लावा की धाराएँ उस दरार से नीचे गिर गईं, जिससे ज्वालामुख को एक पल के लिए अपना संतुलन खोना पड़ा।
"तुम!" ज्वालामुख चिल्लाया, और उसने अपने हाथों से भैरवी पर लावा के छोटे-छोटे गोले बरसाने शुरू कर दिए। ये गोले पहले के हमलों से छोटे थे, लेकिन उनकी संख्या बहुत ज़्यादा थी, जैसे कि आग की बारिश हो रही हो।
भैरवी ने अपने गदा को उठाया और अपनी चारों ओर एक तेज़ी से घूमती हुई चट्टानी ढाल बनाई। यह ढाल एक भँवर की तरह घूम रही थी, लावा के गोलों को टकराकर हवा में वापस उछाल रही थी। कुछ गोले ढाल से टकराकर फूट रहे थे, जिससे भैरवी के शरीर पर गरमाहट महसूस हो रही थी, लेकिन कोई भी उसे सीधा नुकसान नहीं पहुँचा पा रहा था।
"यह कब तक चलेगा, छोटी?" ज्वालामुख उपहास करता रहा। "तुम अपनी ऊर्जा बर्बाद कर रही हो! और मैं... मैं कभी नहीं थकता!"
"तुम थकोगे!" भैरवी ने चिल्लाया। "तुम हारोगे! क्योंकि तुम सिर्फ़ विनाश के लिए बने हो! लेकिन मैं रक्षा के लिए बनी हूँ! मैं पृथ्वी हूँ! मैं कभी हार नहीं मानूंगी!"
यह कहते हुए, भैरवी ने अपनी शक्ति को और केंद्रित किया। उसने अपने गदा को ऊपर उठाया, और फिर उसे ज़मीन में गाड़ दिया। एक भयानक कंपन हुआ, और दुर्ग के भीतर की सभी पत्थर की संरचनाएँ, जो अभी भी खड़ी थीं, हिलने लगीं। सिंहासन कक्ष की दीवारों पर, दरारें और गहरी हो गईं, लेकिन वे दरारें अब सिर्फ़ टूटने की नहीं, बल्कि बदलने की भी थीं।
ज्वालामुख ने अपनी आँखें चौड़ी कीं। उसे एहसास हुआ कि कुछ बड़ा होने वाला है। "तुम क्या कर रही हो?" उसने पूछा, उसकी आवाज़ में थोड़ी चिंता थी।
भैरवी ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने अपनी आँखों को बंद किया और अपनी पूरी ऊर्जा को एक बिंदु पर केंद्रित कर रही थी। उसकी नसों में पृथ्वी की ऊर्जा बह रही थी, और उसके चारों ओर की हवा में एक अजीब सा दबाव महसूस हो रहा था। दुर्ग की टूटी हुई दीवारें उसके चारों ओर काँप रही थीं, जैसे कि वे भैरवी की ही शक्ति का हिस्सा हों।
"तुम्हारा अंत!" ज्वालामुख गरज उठा। उसने समझा कि भैरवी कुछ बड़ा करने वाली है, और वह उसे रोकना चाहता था। उसने अपनी पूरी शक्ति से एक और लावा का गोला बनाया, जो पहले से भी बड़ा और अधिक चमकीला था। यह गोला एक छोटे से ग्रह जैसा लग रहा था, और वह उसे सीधे भैरवी की ओर फेंकने वाला था।
"यह पृथ्वी का क्रोध है!" भैरवी चिल्लाई, उसकी आवाज़ इतनी शक्तिशाली थी कि वह ज्वालामुख के गर्जन को भी दबा गई।
उसने अपने हाथों को ऊपर उठाया, और दुर्ग के भीतर की सारी पृथ्वी-शक्ति उसकी ओर आकर्षित होने लगी। दीवारों के पत्थर, फर्श की चट्टानें, यहाँ तक कि उसके नीचे की ज़मीन भी, उसकी ओर खिचने लगी। एक विशाल, चमकती हुई पृथ्वी-ऊर्जा की लहर उसके चारों ओर केंद्रित हो गई। यह सिर्फ़ एक ढाल नहीं थी; यह एक आक्रमण था।
ज्वालामुख ने अपने लावा के गोले को फेंका, और भैरवी ने भी उसी क्षण अपनी केंद्रित पृथ्वी-ऊर्जा को ज्वालामुख की ओर भेज दिया। दोनों शक्तियाँ हवा में टकराईं – आग और पृथ्वी, विनाश और प्रतिरोध।
एक भयानक विस्फोट हुआ, जिससे पूरा दुर्ग थर्रा उठा। ध्वनि इतनी तीव्र थी कि सैनिकों को जो दूर गुप्त सुरंगों से निकल रहे थे, उनके कान सुन्न हो गए। महल की छत टूट गई, और आस-पास की दीवारें अंदर की ओर गिर गईं। धूल और मलबे का एक विशाल बादल उठा, जिससे कुछ पल के लिए कुछ भी दिखाई नहीं दिया।
जब धूल छँटी, तो दृश्य भयावह था। सिंहासन कक्ष अब लगभग पूरी तरह से नष्ट हो चुका था। दीवारें गिर चुकी थीं, और छत का एक बड़ा हिस्सा गायब था। बीच में, ज्वालामुख खड़ा था, उसका शरीर अभी भी चमक रहा था, लेकिन वह पहले से थोड़ा छोटा और कम शक्तिशाली दिख रहा था। उसके शरीर पर दरारें पड़ गई थीं, और उनमें से लावा टपक रहा था। वह क्रोधित था, लेकिन हैरान भी था। उसे उम्मीद नहीं थी कि भैरवी इतनी शक्ति से पलटवार करेगी।
और भैरवी? वह ज़मीन पर गिरी हुई थी, उसका शरीर काँप रहा था। उसके कपड़े फटे हुए थे, और उसके हाथों और पैरों से खून बह रहा था। उसके सिर से भी खून निकल रहा था। उसकी गदा उसके पास गिरी हुई थी। वह अभी भी जीवित थी, लेकिन वह बुरी तरह घायल थी, और उसकी शक्ति लगभग समाप्त हो चुकी थी। उसके चेहरे पर दर्द था, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी एक चमक थी, एक हारी हुई लड़ाई में भी एक अंतिम जीत की चमक।
"तुम..." ज्वालामुख ने हाँफते हुए कहा। "तुमने... मुझे घायल कर दिया... तुमने एक इंसान होकर मुझे घायल कर दिया!" उसकी आवाज़ में गुस्सा था, लेकिन उसमें एक अजीब सा सम्मान भी था।
भैरवी ने खुद को उठने की कोशिश की, लेकिन उसके शरीर ने उसका साथ नहीं दिया। वह फिर से ज़मीन पर गिर गई। वह जानती थी कि यह उसका अंत है। वह और लड़ नहीं सकती थी।
तभी, उसके कानों में सैनिकों की फुसफुसाहट सुनाई दी – वे गुप्त सुरंगों से निकल रहे थे। वह जानता था कि उन्हें समय चाहिए। और वह समय उसे ही खरीदना था, अपनी अंतिम साँसों तक।
उसकी आँखों में आँसू भर आए। यह एक दर्दनाक निर्णय था। उसे अपने लोगों को छोड़ना होगा। उसे इस दुर्ग को छोड़ना होगा। उसे अपनी हार स्वीकार करनी होगी। लेकिन यह एक हार नहीं थी, अगर उसके लोग बच गए।
"ठीक है, ज्वालामुख..." भैरवी ने फुसफुसाया, उसके चेहरे पर एक फीकी मुस्कान थी, खून और धूल में सनी हुई। "तुमने यह दुर्ग जीत लिया... लेकिन तुम मेरे लोगों को नहीं जीतोगे।"
ज्वालामुख उसकी ओर बढ़ने लगा, अपने अगले हमले के लिए तैयार। वह इस 'छोटी सी चट्टान' को हमेशा के लिए तोड़ना चाहता था।
भैरवी ने अपनी बची हुई ऊर्जा को निचोड़ा। वह जानती थी कि उसे एक अंतिम दीवार बनानी होगी, एक ऐसी दीवार जो उसके लोगों को सुरक्षित बाहर निकलने का समय दे सके, भले ही इसकी कीमत उसकी अपनी जान ही क्यों न हो। यह एक दर्दनाक निर्णय था, लेकिन वह अपनी आत्मा के लिए, अपने दोस्तों के लिए, और अपने लोगों के लिए यह अंतिम त्याग करने को तैयार थी।