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आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4

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सीज़न 1: जागृति और मित्रता "आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा" का पहला सीज़न दर्शकों को एक ऐसी दुनिया से परिचित कराता है जहाँ मानवता की शक्ति पाँच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और पौराणिक आकाश—से जुड़ी है। कहानी का केंद्र है आरव, शांतिवन गाँव का एक दयालु...

Total Chapters (100)

Page 1 of 5

  • 1. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 1

    Words: 5

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 1
    हवा में जलने और राख होने की एक तीखी गंध तैर रही थी। जहाँ कुछ क्षण पहले अग्नि गणराज्य की भव्य राजधानी अपने पूरे वैभव के साथ खड़ी थी, अब वहाँ सिर्फ़ धधकता हुआ मलबा, पिघली हुई धातुएँ और जले हुए पत्थरों के ढेर थे। एक भयानक, काली ऊर्जा की लहर पूरे दृश्य को अपनी चपेट में ले चुकी थी, सब कुछ बंजर और ऊर्जा-हीन करती हुई। ज़मीन ठंडी पड़ चुकी थी, जैसे जीवन ने उसे पूरी तरह छोड़ दिया हो। आसमान में, जहाँ कभी आग की लपटें नाचती थीं, वहाँ अब राख के कण मंद रोशनी में घूम रहे थे।

    चारों ओर सन्नाटा पसरा था, जो सिर्फ़ दूर कहीं से आती धीमी चीखों और दर्दनाक आहों से टूट रहा था। मित्र राष्ट्रों की सेना, जो कुछ ही पल पहले अपनी जीत का जश्न मनाने वाली थी, अब हताशा में डूबी थी। अग्नि सेना के बचे हुए सैनिक भी आतंकित होकर, अपने ही शहर के इस भयावह रूप को देख रहे थे। वे सब अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। उनकी तलवारें और ढालें ज़मीन पर गिर चुकी थीं, क्योंकि कोई दुश्मन नहीं बचा था, सिर्फ़ एक अथाह विनाश।

    रिया ने अपने चेहरे पर हाथ रख लिया। उसकी काली वर्दी पर अब धूल और राख की परत चढ़ चुकी थी, और उसकी आँखों में भयानक खालीपन था। वह कुछ बोल नहीं पा रही थी, सिर्फ़ थरथराते होंठों से कुछ बुदबुदा रही थी, जो सुनाई नहीं दे रहा था। उसके आस-पास खड़े उसके विद्रोही सैनिक भी उसी की तरह सुन्न थे।

    समीर, जिसकी हवा की शक्तियाँ आम तौर पर उसे हल्का और मुक्त महसूस कराती थीं, अब इतना भारी महसूस कर रहा था कि उसे लगा वह ज़मीन में धँस जाएगा। उसने ज़मीन पर घुटने टेक दिए, अपने आसपास के विनाश को देखते हुए। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी—डर और अविश्वास का मिश्रण। पवन उसके पास आकर चुपचाप खड़ा हो गया, उसका चेहरा भी सफ़ेद पड़ चुका था।

    भैरवी ने अपने हाथों से ज़मीन को छुआ। उसकी शक्ति, जो पृथ्वी को जीवन और स्थिरता देती थी, अब इस मरी हुई धरती पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी। जैसे ज़मीन ने खुद अपनी आत्मा खो दी हो। उसकी आँखों में दर्द और असीमित दुख था। उसने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा, जो कुछ दूरी पर खड़े थे, उनकी आँखें आसमान की ओर टिकी थीं। उनके चेहरे पर भी वैसा ही सदमा और निराशा थी, जैसे उन्होंने कोई ऐसी चीज़ देखी हो जिसे रोका नहीं जा सकता था।

    आरव, जो अभी कुछ क्षण पहले एक महान योद्धा था, अब एक खोया हुआ बच्चा लग रहा था। उसने अपने हाथों को अपने सामने फैलाया, जैसे अभी भी उस काली ऊर्जा की लहर को महसूस कर रहा हो। उसकी आँखों में पहले गुस्सा था, फिर भय, और अंत में सिर्फ़ खालीपन।

    "नहीं... यह... यह कैसे हो सकता है?" समीर ने थरथराते हुए कहा, उसकी आवाज़ मुश्किल से सुनाई दे रही थी।

    रिया ने धीरे से अपना चेहरा उठाया। उसकी आँखों में आँसू नहीं थे, सिर्फ़ एक सूनी सी नज़र। "मेरे पिता... उन्होंने क्या किया?" उसने खुद से पूछा, उसकी आवाज़ में गहरा दर्द था। "यह... यह क्या था?"

    अचानक, गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं और आसमान की ओर इशारा किया। "वह... वह वापस आ गया है," उन्होंने काँपते हुए कहा। उनकी आवाज़ में इतना डर था कि सुनने वाले सब चौंक गए। "कलासुर... वह शून्य का दानव..."

    सभी ने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा, फिर आसमान की ओर।

    अग्नि गणराज्य के राख और धुएँ से भरे आकाश में, एक विशाल काली आकृति धीरे-धीरे उभर रही थी। वह कोई धुआँ नहीं था, न ही कोई बादल। वह शुद्ध, घना अँधेरा था, जिसकी कोई पहचान नहीं थी, कोई रूप नहीं था, सिर्फ़ एक भयावह उपस्थिति। वह इतना विशाल था कि उसने सूरज की रोशनी को भी अपने भीतर निगल लिया था। एक पल के लिए पूरा आसमान गहरा काला हो गया, जैसे दिन अचानक रात में बदल गया हो।

    फिर, उस काली आकृति से एक भयानक, गहरी, और गूँजती हुई हँसी सुनाई दी। यह हँसी इतनी विचलित करने वाली थी कि धरती तक काँप उठी। यह हँसी विजय की नहीं, बल्कि पूर्ण और असीम विनाश के आनंद की थी। यह हँसी किसी व्यक्ति की नहीं, बल्कि समय से परे किसी प्राचीन सत्ता की लग रही थी, जिसने अब अपनी बेड़ियाँ तोड़ दी थीं।

    आरव ने अपने कानों पर हाथ रख लिए, लेकिन हँसी उसके दिमाग में घुस रही थी, उसे पागल कर रही थी। भैरवी के हाथ ज़मीन पर टिके थे, और वह दर्द से कराह रही थी, जैसे धरती खुद भी उस हँसी से ज़ख़्मी हो रही हो। समीर के घुटने और भी ज़ोर से काँप रहे थे, और रिया ने अपने मुँह पर हाथ रख लिया ताकि वह चीख न पड़े।

    "यह सिर्फ़ शुरुआत है," उस विशाल काली आकृति से एक आवाज़ गूँजी, जो हँसी जितनी ही भयानक थी। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी कंपन थी, जैसे ब्रह्मांड खुद ही बोल रहा हो। "सालों का इंतज़ार... अब खत्म हुआ। अब यह दुनिया... अपने असली स्वरूप को जानेगी... शून्य को!"

    उसकी अंतिम शब्द एक भयानक प्रतिध्वनि के साथ पूरी दुनिया में गूँजे, जिससे दूर-दूर तक के पहाड़ और नदियाँ काँप उठीं। आसमान में काली आकृति स्थिर थी, एक भयानक घोषणा की तरह, और उसकी हँसी अभी भी गूँज रही थी, यह बताती हुई कि अब खेल बदल चुका था।

    नायक, जो अभी तक अपनी जीत की उम्मीद में थे, अब एक ऐसे दुश्मन के सामने खड़े थे जिसकी कल्पना भी उन्होंने नहीं की थी। उनके चेहरे पर सिर्फ़ एक ही भाव था – असीमित भय और पूर्ण असहायता। दुनिया, जैसा कि वे जानते थे, अब हमेशा के लिए बदल चुकी थी। कलासुर आ चुका था।

  • 2. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 2

    Words: 7

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 2
    कलासुर की भयानक, गूँजती हँसी अभी भी हवा में काँप रही थी, जैसे किसी अदृश्य घाव से खून बह रहा हो। उसकी काली आकृति आकाश में स्थिर थी, एक अंतहीन अँधेरे की तरह, जो हर पल बड़ा होता जा रहा था।



    आरव ने काँपते हुए अपने दोस्तों की ओर देखा। रिया, समीर, भैरवी… सबके चेहरे पर वही दहशत थी, जो उसने अपनी आँखों में देखी थी। गुरु वशिष्ठ काँपते हुए खड़े थे, उनकी आँखों में भयानक भविष्य की झलक थी।



    “यह सिर्फ़ शुरुआत है,” कलासुर की आवाज़ फिर से गूँजी, इस बार उसमें एक अजीब सी शांति थी, जो उसके इरादों को और भी भयावह बना रही थी। “यह दुनिया, जो इतनी गंदी और विकृत हो गई है… इसे साफ़ करने की ज़रूरत है। यह ‘सफ़ाई’ है।” उसकी आवाज़ में हर शब्द के साथ, वातावरण में एक अजीब सा दबाव बढ़ रहा था, जैसे हवा भी भारी हो रही हो।



    अचानक, कलासुर की काली आकृति से पतली-पतली, काले धुएँ जैसी रेखाएँ निकलीं। वे रेखाएँ इतनी तेज़ी से फैल रही थीं कि पलक झपकते ही वे क्षितिज की ओर बढ़ने लगीं। एक रेखा पश्चिम की ओर गई, जहाँ पृथ्वी राज्य के शक्तिशाली ज्वालामुखी श्रृंखलाएँ थीं। दूसरी रेखा पूर्व की ओर, जहाँ जल साम्राज्य की महान नदियाँ बहती थीं। वे रेखाएँ किसी को पकड़ने नहीं जा रही थीं, बल्कि कुछ सोखने जा रही थीं।



    भैरवी ने दर्द से चीख मारी। वह अपने घुटनों पर गिर गई, उसके हाथ ज़मीन पर टिके थे, जैसे वह पृथ्वी के दर्द को सीधे महसूस कर रही हो। “नहीं… यह क्या कर रहा है?” उसने काँपते हुए पूछा। “ज़मीन… ज़मीन अपनी गर्मी खो रही है! मैं इसे महसूस कर सकती हूँ!”



    दूर क्षितिज पर, जहाँ पृथ्वी राज्य का सबसे बड़ा और सक्रिय ज्वालामुखी, ‘अग्निगिरी’ था, एक भयानक दृश्य दिखाई दिया। कलासुर की काली रेखा उस ज्वालामुखी के मुहाने में समा गई। एक पल के लिए, अग्निगिरी ने अपनी पूरी शक्ति से आग और धुआँ उगलने की कोशिश की, जैसे वह संघर्ष कर रहा हो। लावा का लाल-नारंगी प्रवाह एक पल के लिए और तेज़ हुआ, फिर… सब कुछ शांत हो गया।



    आग की लपटें मंद पड़ गईं। लाल-गरम लावा काला पड़ने लगा, और एक ही झटके में, वह पत्थर बन गया। धुआँ थम गया। अग्निगिरी, जो हज़ारों सालों से धरती की शक्ति का प्रतीक था, एक विशाल, ठंडा, बंजर पत्थर का ढेर बन गया। उसका जीवन, उसकी गर्मी, सब कुछ सोख लिया गया था। वह अब सिर्फ़ एक मृत पर्वत था, जिसका कोई उद्देश्य नहीं था।



    “क्या… क्या हुआ?” रिया ने अविश्वास से कहा। “ज्वालामुखी… वह ठंडा हो गया? यह कैसे मुमकिन है?” उसकी आवाज़ में एक अजीब सी खामोशी थी, जैसे उसने कुछ ऐसा देखा हो जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।



    समीर ने अपनी आँखें भींचीं। “यह सिर्फ़ एक ही जगह नहीं हो रहा है!” वह चिल्लाया। “मुझे हवा में एक कंपन महसूस हो रही है… हर जगह से ऊर्जा खींची जा रही है!”



    अचानक, धरती से सैकड़ों मील दूर, जल साम्राज्य की जीवनधारा, ‘नीलनदी’ का दृश्य सामने आया। कलासुर की एक और काली रेखा उस नदी में समा गई। नीलनदी, जो अपनी विशालता और पानी की शुद्धता के लिए जानी जाती थी, एक पल के लिए थम सी गई। उसके पानी में भयानक भँवर उठने लगे, जैसे वह अंदर से खींचा जा रहा हो। फिर, उसकी सतह पर एक अजीब सी शांति आ गई। पानी का स्तर तेज़ी से नीचे गिरने लगा, और देखते ही देखते, नीलनदी का विशाल प्रवाह सूख गया। उसकी तलहटी में सिर्फ़ सूखी, दरकती हुई मिट्टी रह गई, और उसमें पड़े लाखों जीव तड़पने लगे।



    मंत्री जलसेन, जो अपने जलधि शहर से इस विनाश को अपनी आँखों से देख रहे थे, चीख पड़े। उनके आँखों में आँसू थे, लेकिन वे आँसू भी जैसे इस भयावहता में सूख गए थे। “मेरी नदी… सूख गई! हमारी जीवनधारा… हमारी शक्ति…” वह दीवार पर हाथ मारते हुए चिल्लाए। उनके आसपास खड़े जल तत्वधारी भी अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। उनकी शक्तियाँ उन्हें छोड़ती जा रही थीं, जैसे पानी उनके शरीर से सोखा जा रहा हो।



    दुनिया के दूसरे छोर पर, वायु कुल के तैरते हुए द्वीपों पर, जहाँ पवन समीर के परिवार के साथ खड़ा था, एक भयानक अहसास फैल रहा था। द्वीपों को सहारा देने वाली तात्विक ऊर्जा कमज़ोर पड़ने लगी थी।



    पवन ने अपने हाथों से हवा को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन हवा उसकी पकड़ से छूट रही थी। “यह क्या है?” उसने घबरा कर कहा। “मेरी शक्ति… मैं इसे महसूस नहीं कर पा रहा हूँ! द्वीप… वे नीचे गिर रहे हैं!”



    वायु कुल के दूसरे तत्वधारियों ने भी अपनी शक्तियाँ खोनी शुरू कर दी थीं। वे अपने तैरते हुए घरों पर संतुलन बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे, क्योंकि वे अब स्थिर नहीं थे। उनके पैरों के नीचे की ज़मीन धीरे-धीरे हिलने लगी थी, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें नीचे खींच रही हो।



    अग्नि गणराज्य के खंडहरों में, आरव ने दर्द से कराहते हुए अपने हाथों को देखा। उसकी आकाश-शक्ति, जो अभी कुछ पल पहले इतनी प्रचंड थी, अब एक बुझती हुई लौ की तरह महसूस हो रही थी। “मैं… मैं अपनी शक्ति खो रहा हूँ!” उसने हाँफते हुए कहा। उसकी आँखें बैंगनी से हल्की पड़ने लगी थीं, और उसके शरीर में एक अजीब सी कमज़ोरी आ गई थी।



    रिया ने अपने हाथों में अपनी अग्नि-शक्ति को केंद्रित करने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ से सिर्फ़ एक कमज़ोर सी चिंगारी निकली और बुझ गई। “यह… यह कैसे हो सकता है?” उसने बुदबुदाया, उसकी आवाज़ में निराशा थी। “मेरी आग… यह जल क्यों नहीं रही?”



    भैरवी की आँखों में आँसू थे। उसने अपने हाथों से ज़मीन को फिर से छुआ। “पृथ्वी… वह मर रही है,” उसने दर्द भरी आवाज़ में कहा। “मैं उसकी आत्मा को कमज़ोर होते महसूस कर सकती हूँ।” उसकी ज़मीन की शक्ति पूरी तरह से उससे दूर होती जा रही थी। वह अब कोई "धरती की दीवार" नहीं थी, सिर्फ़ एक असहाय लड़की।



    समीर ने अपने काँपते हुए हाथों को अपने सीने पर रखा। “यह हर जगह हो रहा है,” उसने गंभीर स्वर में कहा। “दुनिया भर के तत्वधारी अपनी शक्तियाँ खो रहे हैं… यह सब एक साथ हो रहा है।”



    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें बंद कर लीं, उनके चेहरे पर एक गहरी पीड़ा थी। “यह शून्य का जादू है,” उन्होंने धीमी, गंभीर आवाज़ में कहा। “कलासुर तत्वों को नष्ट नहीं कर रहा, वह उन्हें सोख रहा है। उनकी ऊर्जा को… अपनी ऊर्जा में बदल रहा है। वह दुनिया को अपने अस्तित्व से वंचित कर रहा है।”



    कलासुर की काली आकृति अभी भी आकाश में टिकी थी, और उसकी हँसी अब एक विजयी मुस्कान में बदल गई थी, भले ही कोई चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। उसके चारों ओर का अँधेरा और भी गहरा हो गया था, और दुनिया एक नए, भयावह युग में प्रवेश कर चुकी थी। एक ऐसी दुनिया, जहाँ तत्व अब सिर्फ़ यादें बनने वाले थे।

  • 3. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 3

    Words: 7

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 3
    कलासुर की भयानक हँसी अभी भी कानों में गूँज रही थी, और उसकी काली आकृति आकाश में एक विनाशकारी निशान की तरह ठहरी हुई थी। धरती, नदियाँ और हवा—सबके तत्वों को बेरहमी से सोखा जा चुका था। हवा में अब सिर्फ़ एक अजीब सा खालीपन था, जैसे ऑक्सीजन भी कम हो गई हो। अग्नि गणराज्य के जलते हुए खंडहरों के बीच, जहाँ मित्र राष्ट्रों और अग्नि सेना के बीच कुछ पल पहले तक भीषण युद्ध चल रहा था, अब सन्नाटा पसरा हुआ था—एक ऐसा सन्नाटा, जो किसी भी चीख से ज़्यादा भयावह था।





    आरव ने अपने काँपते हाथों को देखा, उसकी बैंगनी शक्ति अब बस एक हल्की सी चमक बनकर रह गई थी। वह असहाय महसूस कर रहा था, जैसे उसकी सबसे बड़ी शक्ति उससे छीन ली गई हो। समीर ने अपने पैरों तले की ज़मीन को थपथपाया, जैसे यह सुनिश्चित करना चाहता हो कि वह अभी भी वहाँ है, लेकिन उसे महसूस हुआ कि हवा भी उसे छोड़कर जा रही है। भैरवी ज़मीन पर घुटने टेके हुए थी, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, उसकी पृथ्वी की शक्ति का कमज़ोर होना उसे अंदर से तोड़ रहा था।





    गुरु वशिष्ठ, जो अभी तक सदमे में थे, धीरे-धीरे आगे बढ़े। उनके चेहरे पर गहरी चिंता और भय के निशान थे। उन्होंने आरव के कंधे पर हाथ रखा, लेकिन उनकी नज़रें अभी भी आसमान में कलासुर की आकृति पर टिकी थीं।





    "हमने... हमने उसे मुक्त कर दिया," गुरु वशिष्ठ ने बुदबुदाया, उनकी आवाज़ में पश्चाताप था। "विक्रम सिर्फ़ एक प्यादा था... कलासुर का मकसद हमेशा से यह था कि वह दुनिया के तत्वों को सोख ले, उन्हें शून्य में बदल दे।"





    उनकी बात सुनकर आरव के अंदर एक गुस्सा उबाल मारने लगा। "विक्रम! रिया का पिता! यह सब उसकी वजह से हुआ! उसने उस सील को तोड़ा!" उसने गुस्से से चिल्लाया, और रिया की ओर मुड़ा।





    रिया, जो अभी तक सुन्न थी, आरव की बात सुनकर जैसे जाग गई। उसकी आँखों में आग थी—गुस्से की आग, अपराधबोध की आग, और शायद थोड़ी शर्म की भी। उसने अपने आस-पास देखा, उसकी अपनी अग्नि सेना के सैनिक भी उतने ही डरे हुए और टूट चुके थे जितने मित्र राष्ट्रों के। उनकी आँखों में भी सवाल थे, भय था।





    रिया ने एक गहरी साँस ली, जैसे उसे अपने अंदर बची हुई आख़िरी शक्ति को इकट्ठा करना हो। उसने अपनी वर्दी पर जमी राख को एक झटके से झाड़ा, और फिर सीधी खड़ी हो गई। उसका शरीर भले ही थक चुका था, लेकिन उसकी आँखों में अब एक नया दृढ़ संकल्प दिखाई दे रहा था। वह इस वक्त सम्राट विक्रम की बेटी नहीं थी, बल्कि अग्नि गणराज्य की बची हुई नेता थी।





    "मेरी बात सुनो!" रिया ने एक ऊँची आवाज़ में कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सा अधिकार था जो इस माहौल में भी लोगों को अपनी ओर खींच रहा था। "सभी! अग्नि सेना के सैनिक! मित्र राष्ट्रों के सैनिक! मुझे पता है तुम सब डरे हुए हो!" उसकी आवाज़ में थोड़ी कंपन थी, लेकिन वह रुक नहीं रही थी। "मैंने अपने पिता को... अपने हाथों से देखा... एक दानव में बदलते हुए! मैंने देखा कि उन्होंने इस दुनिया के लिए क्या किया है!"





    उसकी आवाज़ में दर्द था, लेकिन साथ ही एक स्पष्टता भी।





    "यह युद्ध... यह युद्ध अब खत्म हो चुका है!" रिया ने अपनी आवाज़ और ऊँची की। "हमारा दुश्मन बदल गया है! अब हमारा दुश्मन कोई सेना नहीं, कोई राज्य नहीं... अब हमारा दुश्मन वह है जो हमें एक साथ निगलने आया है!"





    रिया ने आकाश में कलासुर की आकृति की ओर इशारा किया। सभी की नज़रें ऊपर उठ गईं। काली आकृति अभी भी स्थिर थी, एक भयानक मौत की तरह जो किसी भी पल हमला कर सकती थी।





    "हम अब और लड़ नहीं सकते! हमारे पास लड़ने के लिए कुछ नहीं बचा है!" रिया ने कहा, और उसकी आवाज़ में एक सच्ची हताशा थी, जिसने सैनिकों के दिलों को छू लिया। "हमें एक होना होगा! अभी! इसी पल!"





    समीर ने अपने सिर को झटका दिया। "एक होना होगा? तुम मज़ाक कर रही हो, रिया?" उसकी आवाज़ में गुस्सा था, लेकिन डर भी। "तुम वही हो जिसने अभी तक अपने पिता का साथ दिया! तुम्हारी सेना ने हमारे वायु कुल को तबाह कर दिया! तुमने हमें...!"





    "मुझे पता है समीर!" रिया ने उसे बीच में ही काट दिया, उसकी आँखों में आँसू आ रहे थे, लेकिन उसने उन्हें ज़बरदस्ती रोक लिया। "मुझे सब पता है मैंने और मेरे पिता ने क्या किया है! लेकिन क्या तुम्हें लगता है कि अभी इन सब बातों का वक्त है?" उसने अपने हाथों को फैलाया, खंडहरों की ओर इशारा करते हुए। "देखो! देखो चारों तरफ! यह सब कौन कर रहा है? वह! वह दानव! वह कलासुर!"





    भैरवी ने अपना चेहरा उठाया, उसकी आँखों में अभी भी दर्द था, लेकिन रिया की बातें उसे छू गईं। "वह सही कह रही है, समीर," भैरवी ने धीमी आवाज़ में कहा। "हमारी शक्तियाँ... वे कमज़ोर पड़ रही हैं। हमें कुछ करना होगा... हम एक-दूसरे से लड़ते नहीं रह सकते।"





    आरव ने भी समीर की ओर देखा। "समीर, यह सही समय नहीं है पुरानी लड़ाइयों को याद करने का। हमें एक साथ काम करना होगा। अगर हम ऐसा नहीं करते, तो कुछ नहीं बचेगा। कुछ भी नहीं।" आरव की आवाज़ में एक अजीब सी गंभीरता थी, जो उसने शून्य को महसूस करने के बाद महसूस की थी।





    समीर ने रिया को घूर कर देखा। उसकी आँखों में अभी भी अविश्वास था, लेकिन एक पल के लिए उसने कलासुर की ओर देखा, जिसने अग्निगिरी को ठंडा कर दिया था और नीलनदी को सुखा दिया था। उसे पता था कि यह कोई सामान्य दुश्मन नहीं था। "यह सिर्फ़ एक चाल तो नहीं, रिया?" उसने शक भरी आवाज़ में पूछा। "हमें धोखा देने के लिए?"





    रिया ने अपना सिर हिलाया, उसकी आँखें सच्ची थीं। "तुम्हें क्या लगता है, समीर? यह आग की लपटें, ये राख... ये क्या दिखाती हैं? क्या तुम्हें लगता है कि मैं अपनी ही राजधानी को ऐसे बर्बाद होने दूंगी ताकि तुम्हें धोखा दे सकूँ?" उसकी आवाज़ में गहरी पीड़ा थी। "मैं कसम खाती हूँ, समीर! मेरे पिता मर चुके हैं! अग्नि गणराज्य खत्म हो चुका है! अब सिर्फ़ कलासुर है, जो हमें मिटाना चाहता है! मेरे पास अब लड़ने की कोई वजह नहीं बची है, सिवाय अपनी बची हुई दुनिया को बचाने के।"





    रिया ने अपनी वर्दी के अंदर से एक छोटी सी, सुनहरी अग्नि-मोहर निकाली, जो अग्नि गणराज्य के सम्राट की आधिकारिक सील थी। उसने उसे समीर के सामने, फिर भैरवी और आरव के सामने, ज़मीन पर रख दिया। "मैं... मैं अग्नि गणराज्य की ओर से तत्काल युद्धविराम की घोषणा करती हूँ। हम अपने हथियार डाल रहे हैं। हम इस नए दुश्मन से लड़ने के लिए आपके साथ खड़े हैं।"





    यह एक बड़ा कदम था। सम्राट की बेटी ने खुद अपनी शाही निशानी ज़मीन पर रख दी थी। अग्नि सेना के सैनिक, जो यह सब देख रहे थे, भी हैरान थे। उनके सेनापति, जो इस तबाही से सुन्न थे, अपनी नेता को इस तरह बदलते देखकर आश्चर्यचकित थे।





    समीर ने सील की ओर देखा, फिर रिया की आँखों में। अभी भी संदेह था, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सी गंभीरता छा गई। वह जानता था कि इस क्षण में, कोई और विकल्प नहीं था। पवन, जो उसके पीछे खड़ा था, ने समीर के कंधे पर हाथ रखा।





    “समीर… यह हमारा आख़िरी मौका है,” पवन ने धीमी आवाज़ में कहा। “मुझे पता है हमें उन पर भरोसा नहीं है, लेकिन… हम और कर भी क्या सकते हैं?”





    समीर ने एक लंबी साँस ली, जैसे वह अपनी सारी पुरानी घृणा को बाहर निकालना चाहता हो। उसने अपना सिर हिलाया। “ठीक है, रिया,” उसने कहा, उसकी आवाज़ गंभीर थी। “युद्धविराम… लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम तुम्हें माफ़ कर देंगे। विश्वास वापस पाने में वक्त लगेगा। बहुत वक्त।”





    रिया ने उसकी आँखों में देखा और धीरे से सिर हिलाया। “मुझे पता है,” उसने कहा। “लेकिन अभी हमारे पास वो वक्त नहीं है।”





    गुरु वशिष्ठ ने आगे बढ़कर, उनकी बात सुनी। उनके चेहरे पर एक हल्की सी आशा की किरण दिखाई दी, लेकिन वह बहुत ही कमज़ोर थी। “यह अच्छा है,” उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा। “लेकिन कलासुर की शक्ति का सामना करना… यह उन सभी से परे है जिसकी आपने कभी कल्पना की है। हमें एक ऐसी सेना की ज़रूरत होगी, जो सिर्फ़ तलवारों और तत्वों से नहीं, बल्कि एक संयुक्त इच्छाशक्ति से लड़े।”





    आकाश में, कलासुर की काली आकृति एक भयानक, धीमी गति से घूमने लगी। उसकी हँसी फिर से सुनाई दी, इस बार थोड़ी मंद, जैसे वह उनके इस छोटे से समझौते का मज़ाक उड़ा रहा हो। उसके लिए, यह सब बस एक खेल था।





    दुनिया के सबसे शक्तिशाली तत्वधारियों ने अभी-अभी एक-दूसरे से हाथ मिलाया था, लेकिन उनके दिलों में अविश्वास की गहरी खाई अभी भी मौजूद थी। एक नए दुश्मन के सामने, उन्हें यह सीखना था कि कैसे अपने मतभेदों को भुलाकर एक होना है—एक ऐसा सबक, जिसकी कीमत उन्हें शायद अपनी ज़िंदगी देकर चुकानी पड़ सकती थी।

  • 4. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 4

    Words: 15

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 4
    कलासुर की काली आकृति आकाश में धीरे-धीरे घूम रही थी, जैसे कोई विशाल शिकारी अपने कमज़ोर शिकार को निहार रहा हो। उसकी हँसी अब भी हवा में गूँज रही थी, लेकिन अब उसमें एक अजीब सी नीरसता थी, जैसे वह इंसानों की छोटी-मोटी कोशिशों पर हंस रहा हो। अग्नि गणराज्य के खंडहरों में, रिया की "तत्काल युद्धविराम" की घोषणा ने एक अजीब सी चुप्पी ला दी थी। अग्नि सेना के सैनिक, जो कुछ पल पहले तक मित्र राष्ट्रों से लड़ रहे थे, अब उनके बगल में खड़े थे, लेकिन उनकी नज़रों में अभी भी अविश्वास और भय था।

    रिया ने अपने आसपास देखा। उसके अपने सैनिक भी सहमे हुए थे, उनकी आँखें कलासुर पर टिकी थीं। कुछ फुसफुसा रहे थे, कुछ अपनी मुट्ठियाँ भींच रहे थे। समीर और भैरवी अभी भी आरव और गुरु वशिष्ठ के साथ खड़े थे, उनके चेहरे पर चिंता और निराशा साफ झलक रही थी।

    "यह आसान नहीं होगा," समीर ने रिया की ओर देखते हुए कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी खामोशी थी। "हमारे सैनिक... उन्होंने बहुत कुछ झेला है। उन्हें तुम पर भरोसा करने में वक्त लगेगा। शायद कभी नहीं।"

    रिया ने गहरी साँस ली। "मुझे पता है, समीर। लेकिन अब यह भरोसे की बात नहीं है। यह अस्तित्व की बात है। अगर हम अभी एक नहीं हुए, तो हमारे पास भरोसा करने के लिए कोई नहीं बचेगा।"

    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं। उनकी आँखों में थकान थी, लेकिन एक लौ अभी भी जल रही थी। "वह सही कह रही है," उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा। "हमें एकजुट होना होगा। लेकिन सिर्फ़ सैनिक नहीं... हमें दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोगों को इकट्ठा करना होगा। कलासुर कोई सामान्य दुश्मन नहीं है।"

    तभी, अग्नि गणराज्य के कुछ वरिष्ठ जनरल आगे बढ़े। वे रिया के प्रति अपनी वफ़ादारी दिखाते हुए भी कुछ हिचकिचा रहे थे। "राजकुमारी रिया," उनमें से एक ने कहा, "हमारे पास अभी भी कुछ गुरु और कमांडर हैं जो इस युद्ध से बच गए हैं। क्या हमें उन्हें इकट्ठा करना चाहिए?"

    रिया ने सिर हिलाया। "हाँ! अभी! जितना जल्दी हो सके! उन्हें बताओ कि हमारा दुश्मन बदल गया है। उन्हें बताओ कि हमें उनकी ज़रूरत है।"

    कुछ ही घंटों में, अग्नि गणराज्य के बचे हुए संचार टावरों के ज़रिए, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में संदेश भेजे गए। संदेश साफ था: "शून्य का दैत्य आ गया है। दुनिया खतरे में है। सबसे शक्तिशाली तत्वधारी और गुरु तुरंत अग्नि गणराज्य के खंडहरों में इकट्ठा हों। यह मानवता का आख़िरी मौका है।"

    धीरे-धीरे, आसमान में कुछ आकृतियाँ दिखाई देने लगीं। सबसे पहले, वायु कुल के कुछ उड़ने वाले जहाज, जो किसी तरह कलासुर के पहले हमले से बच गए थे, दिखाई दिए। उनमें समीर का भाई पवन भी था, जो कुछ बचे हुए वायु तत्वधारियों के साथ आया था। उनके चेहरे पर भी वही आतंक और हताशा थी जो दूसरों में थी।

    फिर, पृथ्वी राज्य से, कुछ शक्तिशाली पृथ्वी गुरु और सेनापति पहुँचे, जो अपनी बची हुई शक्ति को बचाने में कामयाब रहे थे। उनके साथ कुछ ऐसे तत्वधारी भी थे जिनकी शक्तियाँ पहले कलासुर ने सोख ली थीं, और अब वे शक्तिहीन होकर भी लड़ने की इच्छा रखते थे।

    यहाँ तक कि जल साम्राज्य से भी कुछ प्रतिनिधि पहुँचे, हालाँकि वे अब केवल अपने जलीय शरीर को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे, क्योंकि उनकी शक्तियाँ कमज़ोर हो चुकी थीं। वे भयानक और बदहवास दिख रहे थे, लेकिन फिर भी लड़ने को तैयार थे।

    इन सबके बीच, कुछ ऐसे तत्वधारी भी थे जिनकी पहचान किसी राज्य से नहीं थी। वे दुनिया के कोने-कोने में फैले हुए गुरु थे, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी तत्वों का अध्ययन करने में बिताई थी। वे अब अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे थे।

    लगभग बीस सबसे शक्तिशाली तत्वधारी और जनरलों का एक समूह, जिसमें रिया, समीर, भैरवी और आरव भी शामिल थे, गुरु वशिष्ठ के सामने इकट्ठा हुआ। उनके चेहरे पर चिंता और दृढ़ संकल्प का मिश्रण था। कलासुर अभी भी आकाश में मंडरा रहा था, एक भयानक काले बादल की तरह।

    "स्वागत है, वीरों," गुरु वशिष्ठ ने कहा, उनकी आवाज़ में थकान थी, लेकिन एक अधिकार भी। "हमारा दुश्मन, कलासुर, हमारी कल्पना से परे है। उसने दुनिया के तत्वों को सोखना शुरू कर दिया है। हमारी शक्तियाँ कमज़ोर पड़ रही हैं। लेकिन हमें लड़ना होगा। अगर हम नहीं लड़े, तो कुछ नहीं बचेगा।"

    एक वरिष्ठ पृथ्वी गुरु, जिसका नाम गुरु ध्रुव था, आगे बढ़े। उनकी दाढ़ी लंबी और सफेद थी, और उनकी आँखें ज्ञान से भरी थीं। "गुरु वशिष्ठ, हम समझते हैं। हमने सुना है कि वह अग्निगिरी और नीलनदी को सोख गया है। उसकी शक्ति अकल्पनीय है। लेकिन हम भी हज़ारों सालों से इस दुनिया के रक्षक रहे हैं। हमारे पास अभी भी हमारी संयुक्त शक्ति है। अगर हम सब अपनी बची हुई शक्ति को एक साथ मिलाकर एक निर्णायक हमला करें, तो शायद हम उसे कमज़ोर कर सकें। उसे पीछे हटने पर मजबूर कर सकें।"

    दूसरे गुरुओं और जनरलों ने भी अपनी सहमति में सिर हिलाया। उनमें से एक, वायु कुल की सबसे तेज़ उड़ने वाली लड़ाका, 'तूफानी' नाम की एक महिला जनरल थी। उसने कहा, "हमें उसे रोकना होगा। हम अपनी दुनिया को शून्य में बदलते हुए नहीं देख सकते।"

    समीर ने आरव और भैरवी की ओर देखा। "हमारे पास कोई और रास्ता नहीं है," उसने धीमी आवाज़ में कहा। "हमें कोशिश करनी होगी।"

    गुरु वशिष्ठ ने सहमति में सिर हिलाया। "ठीक है। हम एक संयुक्त हमला करेंगे। अपनी बची हुई सारी शक्ति को एक ही वार में केंद्रित करो। याद रखो, कलासुर शून्य की ऊर्जा का उपयोग करता है। वह तत्वों का दुश्मन है। शायद हमारी संयुक्त तात्विक शक्ति उसे हिला सके।"

    सभी शक्तिशाली तत्वधारी एक बड़े घेरे में खड़े हो गए, उनके चेहरे पर दृढ़ संकल्प था। रिया, अपनी बची हुई अग्नि शक्ति को इकट्ठा करते हुए, सामने खड़ी थी। समीर उसके बगल में था, अपनी हवा को अपनी मुट्ठियों में केंद्रित कर रहा था। भैरवी ने अपनी आँखें बंद कर लीं, धरती की सबसे छोटी कंपन को महसूस करने की कोशिश कर रही थी, हालाँकि वह कमज़ोर थी। गुरु ध्रुव और तूफानी जैसे अन्य गुरुओं ने भी अपनी-अपनी तात्विक ऊर्जाओं को केंद्रित करना शुरू कर दिया।

    आरव भी उनके साथ था, लेकिन उसकी आकाश-शक्ति अब बहुत कमज़ोर हो गई थी। वह जानता था कि इस हमले में उसका योगदान ज़्यादा नहीं होगा, लेकिन उसने अपनी सारी बची हुई ऊर्जा को लगा दिया।

    "एक... दो... तीन!" गुरु वशिष्ठ ने धीमी आवाज़ में गिनती शुरू की।

    जैसे ही उन्होंने 'तीन' कहा, बीसों तत्वधारियों ने एक साथ अपनी सारी बची हुई शक्ति कलासुर की ओर छोड़ दी।

    रिया के हाथों से एक विशाल, सुनहरा अग्नि गोला निकला, जो सीधे कलासुर की ओर बढ़ा। समीर ने एक प्रचंड बवंडर बनाया, जिसमें बिजली की कड़कड़ाहट थी, और उसे भी कलासुर की ओर भेज दिया। भैरवी ने ज़मीन से विशाल, नुकीले पत्थर के शूल निकाले और उन्हें हवा में उठाकर कलासुर की ओर तेज़ी से फेंका। गुरु ध्रुव ने पृथ्वी के क्रोध को उजागर किया, जिससे ज़मीन से एक विशाल ऊर्जा लहर निकली। तूफानी ने हवा के ब्लेड का एक तूफान बनाया। जल गुरुओं ने अपनी बची हुई शक्ति से पानी की धार छोड़ी, हालांकि वह बहुत कमज़ोर थी।

    यह एक विनाशकारी तात्विक हमला था, जो दुनिया के सबसे शक्तिशाली तत्वों को एक साथ मिला रहा था। पूरा आकाश इन ऊर्जाओं से भर गया, जैसे एक इंद्रधनुषीय बवंडर कलासुर की ओर बढ़ रहा हो। यह हमला इतना शक्तिशाली था कि आसपास की ज़मीन भी काँप उठी, और हवा में एक ज़बरदस्त दबाव महसूस हुआ।

    लेकिन कलासुर… कलासुर पर कोई असर नहीं हुआ।

    जैसे ही सारी ऊर्जा उस तक पहुँची, कलासुर की काली आकृति एक पल के लिए और गहरी हो गई। उसने कोई हरकत नहीं की, कोई बचाव नहीं किया, कोई शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया। वह बस वहाँ खड़ा रहा, शांत और स्थिर।

    सारी ऊर्जा उस तक पहुँची, और जैसे ही वह उसे छूने वाली थी, वह गायब हो गई। नहीं, वह गायब नहीं हुई। वह कलासुर के शरीर में समा गई, जैसे एक विशाल स्पंज पानी को सोख लेता है। सुनहरी आग, प्रचंड हवा, नुकीले पत्थर, बिजली की कड़कड़ाहट, पानी की धार… सब कुछ कलासुर के काले शरीर में विलीन हो गया।

    एक पल के लिए, सन्नाटा छा गया। हमलावर तत्वधारी अपनी साँस रोके हुए थे, उनकी आँखों में अविश्वास था।

    कलासुर ने धीरे-धीरे, अपनी काली आकृति को एक अजीब सी संतुष्टि में हिलाया। उसकी हँसी अब पहले से कहीं ज़्यादा गहरी और भयावह हो गई।

    "धन्यवाद," कलासुर की आवाज़ गूँजी, इस बार उसमें एक अजीब सी प्रसन्नता थी, जैसे किसी ने उसे एक स्वादिष्ट भोजन परोसा हो। "इस ऊर्जा के लिए। मुझे इसकी ज़रूरत थी।"

    फिर, कलासुर ने धीरे से अपना एक हाथ उठाया, हालाँकि कोई हाथ दिखाई नहीं दे रहा था, बस एक काली आकृति का विस्तार। उसने उस हाथ को एक झटके से नीचे गिराया, जैसे किसी धूल को झाड़ रहा हो।

    एक पल के लिए, कुछ नहीं हुआ।

    फिर, एक भयानक ऊर्जा लहर कलासुर के शरीर से निकली। यह कोई तात्विक हमला नहीं था, बल्कि शून्य की शुद्ध, विनाशकारी ऊर्जा थी। यह ऊर्जा लहर किसी ध्वनि या प्रकाश के बिना, एक अदृश्य सुनामी की तरह फैल गई।

    यह लहर उन सभी तत्वधारियों तक पहुँची जिन्होंने अभी-अभी उस पर हमला किया था।

    रिया चीखी, जब शून्य की ऊर्जा ने उसकी बची हुई अग्नि शक्ति को पूरी तरह से सोख लिया। वह लड़खड़ाकर गिर गई, उसकी आँखों में दर्द और निराशा थी।

    समीर को लगा जैसे उसके फेफड़ों से हवा खींच ली गई हो। वह ज़मीन पर गिर गया, साँस लेने के लिए संघर्ष कर रहा था, उसकी वायु-शक्ति एक पल में पूरी तरह से लुप्त हो गई थी।

    भैरवी के शरीर में एक अजीब सी सुन्नता आ गई। उसे लगा जैसे उसका शरीर भी पत्थर बन रहा हो, उसकी पृथ्वी की शक्ति पूरी तरह से कलासुर ने छीन ली थी। वह ज़मीन पर बेजान होकर गिर गई।

    गुरु ध्रुव और तूफानी, और अन्य सभी शक्तिशाली गुरु और जनरल, एक-एक करके शून्य की उस लहर के सामने ढह गए। उनकी शक्तियाँ पूरी तरह से सोख ली गईं, और वे शक्तिहीन, बेजान शरीर के रूप में ज़मीन पर गिर गए। उनमें से कुछ के शरीर से एक हल्की सी काली लपट निकली और फिर वे राख में बदल गए।

    एक ही झटके में, दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोग, जो अपनी उम्मीदों के साथ आए थे, पूरी तरह से हार गए थे। वे शक्तिहीन हो गए थे, या मिट गए थे।

    आरव, जो थोड़ा पीछे था और जिसकी अपनी शक्ति पहले से ही कमज़ोर थी, इस भयानक दृश्य को देखकर सदमे में था। उसके दोस्त… उसके गुरु… सब बेजान पड़े थे। कलासुर अभी भी आकाश में स्थिर था, और उसकी भयानक, विजयी हँसी पूरी दुनिया में गूँज रही थी।

    आरव के कानों में उस हँसी की गूँज पड़ रही थी, और उसके दिल में एक भयानक दर्द उठ रहा था। उसने अपने दोस्तों की ओर देखा, फिर आकाश में कलासुर की ओर, और उसे एहसास हुआ कि वे किसी ऐसे दुश्मन का सामना कर रहे हैं, जो उनकी कल्पना से भी ज़्यादा शक्तिशाली था। यह सिर्फ़ एक लड़ाई नहीं थी, यह अस्तित्व का प्रश्न था, और वे हार रहे थे।

  • 5. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 5

    Words: 11

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 5
    कलासुर की भयानक हँसी अभी भी गूँज रही थी, और उसकी काली, विजयी आकृति आकाश में एक भयानक निशान की तरह ठहरी हुई थी। एक ही झटके में, दुनिया के सबसे शक्तिशाली तत्वधारी, गुरु और सेनापति ज़मीन पर ढेर हो चुके थे – कुछ राख में बदल गए थे, कुछ बेजान पड़े थे, उनकी शक्तियाँ पूरी तरह से सोख ली गई थीं। अग्नि गणराज्य के खंडहरों में अब केवल चीखें और सिसकियाँ गूँज रही थीं। धूल और राख का गुबार धीरे-धीरे छंट रहा था, और उसके नीचे छिपे विनाश का भयावह दृश्य सामने आ रहा था।


    आरव वहीं, जहाँ खड़ा था, एक पत्थर की मूर्ति की तरह जम गया। उसकी आँखें खुली की खुली थीं, और वह अपने सामने इस अकल्पनीय हार को देख रहा था। उसके दोस्त—रिया, समीर, भैरवी—ज़मीन पर बेजान पड़े थे। गुरु वशिष्ठ, जो अब तक अपने पैरों पर थे, अचानक घुटनों के बल गिर गए, उनके शरीर से जैसे सारी शक्ति खींच ली गई हो। उनकी आँखें आकाश में कलासुर पर टिकी थीं, जिनमें गहरा आतंक और निराशा थी।


    "गुरुदेव!" आरव ने चीखकर कहा, उसकी आवाज़ में डर और दर्द था। वह उनकी ओर लपका, उनके कंधे को थामने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ काँप रहे थे।


    गुरु वशिष्ठ ने बड़ी मुश्किल से अपना सिर उठाया, उनकी साँसें तेज़ चल रही थीं। "वह... वह अजेय है, आरव," उन्होंने बुदबुदाया, उनकी आवाज़ इतनी कमज़ोर थी कि वह मुश्किल से सुनाई दे रही थी। "उसने हमारी सारी ऊर्जा को... सोख लिया है। हमारे पास अब लड़ने के लिए कुछ नहीं बचा है।"


    आरव ने अपने दोस्तों की ओर देखा। रिया, समीर, भैरवी… तीनों ज़मीन पर स्थिर पड़े थे। वह रिया के पास दौड़ा, उसके शरीर को हिलाया। "रिया! रिया, उठो!"


    रिया ने एक दर्दनाक कराह के साथ अपनी आँखें खोलीं। उसकी आँखें खाली थीं, जैसे उनमें से सारी चमक छीन ली गई हो। "आरव... मेरी शक्ति... वह चली गई है," उसने धीमी, काँपती आवाज़ में कहा। "मुझे कुछ महसूस नहीं हो रहा... जैसे मेरे अंदर कुछ बचा ही नहीं।"


    समीर ने भी अपनी आँखें खोलीं, उसकी साँसें उखड़ रही थीं। "हवा... हवा मेरा साथ नहीं दे रही," उसने खाँसते हुए कहा। "जैसे... जैसे मेरे फेफड़ों में अब हवा ही नहीं जा रही।" उसका चेहरा नीला पड़ रहा था।


    भैरवी की आँखें नम थीं। वह बस चुपचाप लेटी रही, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। "मेरी धरती... मुझसे दूर हो गई," उसने फुसफुसाया। "मैं... मैं कुछ नहीं कर सकती।" उसके शरीर में किसी भी तरह की प्रतिक्रिया नहीं थी। वह सिर्फ़ एक निर्जीव पत्थर की तरह लग रही थी।


    आरव ने अपने हाथ में अपनी आकाश-शक्ति को केंद्रित करने की कोशिश की, लेकिन उसे महसूस हुआ कि वह भी कमज़ोर पड़ गई है। उसकी बैंगनी आभा अब बस एक हल्की सी चमक बनकर रह गई थी, जो कभी भी बुझ सकती थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। वह असहाय महसूस कर रहा था, अपने दोस्तों को इस हालत में देखकर उसके दिल में एक तीखा दर्द उठ रहा था।


    तभी, एक अग्नि सैनिक, जिसने किसी तरह अपनी जान बचाई थी, दौड़ा हुआ आया। उसकी वर्दी फटी हुई थी, और उसके चेहरे पर मौत का डर साफ दिख रहा था। "भागो! यहाँ से भागो!" उसने ज़ोर से चिल्लाया। "वह सब कुछ नष्ट कर देगा! वह हमें छोड़ देगा!"


    उसके साथ ही, कुछ और सैनिक भी भागने लगे। जो गुरु और जनरल कलासुर के हमले से बेजान होकर गिरे थे, उनमें से कुछ के शरीर से एक काली ऊर्जा निकली और वे पूरी तरह से राख में बदल गए। यह दृश्य देखकर बाकियों में और भी दहशत फैल गई।


    कलासुर ने आकाश से धीरे-धीरे नीचे उतरना शुरू किया, उसकी काली आकृति धीरे-धीरे एक भयानक, काले भंवर का रूप ले रही थी। उसकी हँसी अब एक भयानक फुसफुसाहट में बदल गई थी, जो हर जगह गूँज रही थी।


    "यह... यह खत्म नहीं हुआ है," गुरु वशिष्ठ ने बड़ी मुश्किल से कहा, उनके चेहरे पर एक दर्दनाक अभिव्यक्ति थी। "यह केवल शुरुआत है।"


    उनकी बात सच साबित हुई। कुछ ही घंटों में, इस भयानक हार की खबर बिजली की गति से दुनिया भर में फैल गई। जो संचार टावर अभी तक काम कर रहे थे, उन्होंने इस आतंक को हर कोने तक पहुँचा दिया। हवाई जहाजों और समुद्री जहाजों के ज़रिए भी संदेश भेजे गए, लेकिन ज़्यादातर लोग पहले ही इस विनाश को अपनी आँखों से देख चुके थे।


    दूर-दूर के गाँवों में, लोग अपनी शक्तियों को कमज़ोर पड़ते हुए महसूस करने लगे। पृथ्वी तत्वधारी अपनी फसलों को सूखते हुए देख रहे थे, वायु तत्वधारी हवा के रुख को बदलते हुए महसूस कर रहे थे, और जल तत्वधारी नदियों को सूखते हुए देख रहे थे। हर तत्वधारी को अपनी शक्ति का कमज़ोर पड़ना एक व्यक्तिगत झटका था, जैसे उनके शरीर का कोई हिस्सा उनसे छीन लिया गया हो।


    कुछ जगहों पर, लोग अपने घरों से बाहर निकल आए, आसमान की ओर देखते हुए। कलासुर की काली छाया हर जगह दिखाई दे रही थी, और उसकी भयानक हँसी हवा में घुली हुई थी। भय ने लोगों को अंधा कर दिया था। कुछ ने सोचा कि यह कोई नई आपदा है, कुछ ने सोचा कि यह कोई दैवीय प्रकोप है, और कुछ ने... कुछ ने उसे ही देवता मान लिया।


    एक दूरदराज के गाँव में, जहाँ अभी तक कलासुर का सीधा असर नहीं हुआ था, लोग घुटनों के बल बैठ गए। एक बूढ़ी औरत, जिसकी आँखें आँसुओं से भरी थीं, आसमान की ओर हाथ जोड़कर बोली, "हमें बचाओ, हे शून्य के स्वामी! हम तुम्हारे दास हैं! हमें इस पीड़ा से मुक्ति दो!"


    धीरे-धीरे, कलासुर की पूजा करने वाले छोटे-छोटे समूह बनने लगे। उन्होंने कलासुर को एक ऐसे देवता के रूप में देखना शुरू कर दिया जो उन्हें अस्तित्व के दर्द और संघर्ष से मुक्त कर देगा, उन्हें शून्य की शांति में विलीन कर देगा। उनकी यह प्रतिक्रिया, नायकों की आँखों के सामने, एक और दर्दनाक सच्चाई थी—कि हार इतनी बड़ी थी कि कुछ लोग लड़ने की बजाय, हार स्वीकार करने और अपने दुश्मन की पूजा करने को तैयार थे।


    आरव, समीर, रिया और भैरवी को अग्नि गणराज्य के खंडहरों से किसी तरह एक अस्थायी ठिकाने पर ले जाया गया। वे एक छोटे से तहखाने में छिपे हुए थे, जो एक पुराने, बचे हुए किले के नीचे था। उनकी चोटें बाहरी रूप से गंभीर नहीं थीं, लेकिन उनकी शक्तियाँ पूरी तरह से समाप्त हो चुकी थीं। वे हर पल खुद को कमज़ोर महसूस कर रहे थे।


    समीर एक कोने में बैठा था, उसका चेहरा पीला पड़ चुका था। वह बार-बार अपने हाथों को हवा में घुमाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन हवा उसकी आज्ञा नहीं मान रही थी। उसकी आँखों में गुस्सा था, लेकिन उस गुस्से से भी ज़्यादा गहरी निराशा थी। "हम... हम इतने कमज़ोर कैसे हो सकते हैं?" उसने अपनी मुट्ठी ज़मीन पर पटकते हुए कहा, उसकी आवाज़ में दर्द था। "यह... यह संभव नहीं है। हमारे गुरु... वे सबसे शक्तिशाली थे!"


    भैरवी ने अपना सिर उठाया, उसकी आँखों में सूनी नज़र थी। "वे... वे सब खत्म हो गए," उसने बुदबुदाया। "गुरु ध्रुव... तूफानी... सब कुछ।" उसकी आवाज़ में गहरा शोक था। "हमें क्या करना चाहिए, आरव? हम... हम क्या कर सकते हैं? हम शक्तिहीन हैं।"


    रिया, जो दीवार से सटी बैठी थी, ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। "मुझे… मुझे कभी इतनी असहाय महसूस नहीं हुई," उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी खामोशी थी। "यह... यह मेरे पिता की गलती है। यह सब उन्हीं की वजह से हुआ।" उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, अपराधबोध और बदले की भावना का मिश्रण।


    आरव ने उन्हें देखा। उसके अंदर भी वही निराशा थी। उसकी आकाश-शक्ति, जो कभी उसकी सबसे बड़ी ताकत थी, अब बस एक स्मृति बनकर रह गई थी। उसने खुद को कलासुर के सामने एक बच्चे की तरह महसूस किया था। उस भयावह क्षण को याद करके ही उसकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ जाती थी। "मुझे... मुझे नहीं पता," आरव ने धीमी आवाज़ में कहा, उसकी आवाज़ में दर्द था। "मैंने... मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसी कोई शक्ति मौजूद हो सकती है। वह हमें... आसानी से खत्म कर सकता है।"


    गुरु वशिष्ठ, जो तहखाने के एक अंधेरे कोने में बैठे थे, उनकी आँखें बंद थीं। उनकी साँसें अभी भी भारी थीं। उन्होंने धीरे से अपनी आँखें खोलीं और आरव की ओर देखा। "कलासुर... वह केवल दुनिया को नष्ट नहीं करना चाहता, आरव," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ में एक गहरी चेतावनी थी। "वह इसे शून्य में विलीन करना चाहता है। यह अस्तित्व का अंतिम अंत है।"


    "लेकिन हम क्या करें, गुरुदेव?" समीर ने हताश होकर पूछा। "हम शक्तिहीन हैं! हम उससे कैसे लड़ेंगे? हम उसे एक खरोंच तक नहीं लगा सके!"


    गुरु वशिष्ठ ने एक गहरी साँस ली। "हमारे पास अभी भी कुछ है, मेरे बच्चों," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ में एक हल्की सी उम्मीद थी, जो इस निराशा के बीच एक चमत्कार से कम नहीं थी। "हमारी बुद्धि... हमारा संकल्प... और सबसे महत्वपूर्ण, हमारा एक-दूसरे पर विश्वास।"


    लेकिन उस पल में, उन चारों दोस्तों के लिए, यह सब खोखला लग रहा था। वे हार चुके थे, पूरी तरह से हार चुके थे। दुनिया टूट रही थी, लोग कलासुर की पूजा कर रहे थे, और उनके पास लड़ने के लिए कुछ नहीं बचा था। यह एक ऐसी निराशा थी, जिसने उनके दिलों को पूरी तरह से जकड़ लिया था। उन्हें नहीं पता था कि आगे क्या होगा, या वे कैसे बचेंगे।

  • 6. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 6

    Words: 16

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 6
    अग्नि गणराज्य के पुराने किले के तहखाने में, हवा में भारीपन और निराशा घुली हुई थी। रिया, समीर, भैरवी और आरव, चारों एक-दूसरे से दूर बैठे थे, जैसे उनकी शारीरिक दूरी उनके मन की दूरी को दर्शा रही हो। समीर दीवार से सटा बैठा था, उसकी आँखें लाल थीं। वह कभी-कभी हवा में अपने हाथ उठाता, कुछ फुसफुसाता, जैसे किसी अदृश्य शक्ति को जगाने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन उसके हाथों से हवा की हल्की सी भी लहर नहीं उठती। उसकी हताशा इतनी गहरी थी कि उसे देखकर आरव का दिल कचोटता।

    भैरवी एक कोने में घुटनों पर बैठी थी, उसने अपने चेहरे को अपने हाथों से छिपा रखा था। उसके शरीर से मिट्टी की हल्की-हल्की गंध आ रही थी, लेकिन वह भी कमज़ोर पड़ गई थी। वह कभी-कभी एक दर्दनाक आह भरती, जैसे उसकी धरती माँ उसे छोड़कर चली गई हो। उसके आँसू लगातार बह रहे थे, और ज़मीन पर एक छोटा सा गीला धब्बा बना रहे थे।

    रिया बेचैनी से तहखाने में घूम रही थी, उसके कदम तेज़ थे, लेकिन उनमें कोई लक्ष्य नहीं था। उसकी आँखों में आग का कोई निशान नहीं था, सिर्फ़ एक सूनी नज़र थी। वह कभी-कभी अपनी उँगलियों को अपनी कलाइयों पर घुमाती, जैसे वह अभी भी अपनी अग्नि-शक्ति को महसूस करने की कोशिश कर रही हो, लेकिन वहाँ केवल ठंडी, खाली त्वचा थी। "सब खत्म हो गया," उसने धीमी, लगभग टूटी हुई आवाज़ में कहा। "हम क्या करेंगे? वह हमें... एक-एक करके मार डालेगा।"

    आरव ने अपने हाथ में अपनी आकाश-शक्ति को महसूस करने की कोशिश की। उसकी उंगलियों के बीच एक बहुत हल्की सी बैंगनी चमक दिखाई दी और फिर तुरंत बुझ गई। यह उसे और भी ज़्यादा असहाय महसूस करा रहा था। उसने अपने दोस्तों की तरफ देखा, उनके चेहरे पर एक ही भावना थी – पूर्ण निराशा।

    गुरु वशिष्ठ अब भी एक कोने में बैठे थे, उनकी आँखें बंद थीं। उनकी साँसें धीरे-धीरे सामान्य हो रही थीं, लेकिन उनके चेहरे पर दर्द की रेखाएँ गहरी हो चुकी थीं। वह जानते थे कि कलासुर की शक्ति अकल्पनीय है, लेकिन उन्होंने यह उम्मीद नहीं की थी कि वह इतनी आसानी से दुनिया की सबसे शक्तिशाली शक्तियों को सोख लेगा।

    "कलासुर... वह दुनिया के तत्वों को सोख रहा है," गुरु वशिष्ठ ने धीमी आवाज़ में कहा, उनकी आँखें अभी भी बंद थीं। "यह उसकी शक्ति का एक हिस्सा है। वह दुनिया को शून्य में बदलना चाहता है। तत्वों का विनाश... उसकी जीत की दिशा में पहला कदम है।"

    तभी, तहखाने में एक हल्की सी कंपन महसूस हुई। यह कोई भूकंप नहीं था, बल्कि दूर से आ रही किसी चीज़ की गूँज थी। यह कंपन धीरे-धीरे तेज़ होती गई, और फिर एक भयानक, धीमी गर्जना की आवाज़ आई, जो पूरी दुनिया में गूँज रही थी। यह आवाज़ कलासुर की थी, लेकिन इस बार उसकी हँसी नहीं थी। यह एक अजीब सी, खिंचाव भरी आवाज़ थी, जैसे वह किसी विशाल चीज़ को खींच रहा हो।

    "यह क्या है?" समीर ने अपनी आँखें खोलीं, उसकी आवाज़ में डर था।

    रिया ने अपने कदमों को रोक दिया और हवा में कान लगा दिए। "यह... यह उसकी आवाज़ है," उसने फुसफुसाया। "वह... वह फिर कुछ कर रहा है।"

    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं। उनकी आँखों में एक भयानक सच्चाई थी। "वह... वह जल साम्राज्य की ओर बढ़ रहा है," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ में दुख था। "वह जलधि... पानी के नीचे के शहर पर हमला कर रहा है।"

    यह सुनकर सभी हिल गए। जलधि! वह दुनिया के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक था, जो समुद्र की गहराई में एक विशाल, पारदर्शी कांच के गुंबद के नीचे बसा था। वह पानी की शक्ति का प्रतीक था।

    बाहर से, एक कमज़ोर संचार सिग्नल तहखाने के पुराने रिसीवर तक पहुँचा। यह एक फटा हुआ, बाधित संदेश था, लेकिन शब्दों को सुना जा सकता था। "कलासुर... जलधि पर हमला... गुंबद... टूट रहा है... पानी... शहर में घुस रहा है... मंत्री जलसेन... खाली करो..."

    संदेश फिर कट गया, लेकिन जो सुनाई दिया था, वह किसी भी बात से ज़्यादा भयानक था।

    "नहीं!" भैरवी चीखी, उसकी आवाज़ में दर्द था। जलधि जल साम्राज्य का हृदय था, और भैरवी, पृथ्वी तत्वधारी होने के नाते, तत्वों के बीच के संतुलन को समझती थी। जलधि का पतन... यह संतुलन का टूटना था।

    समीर ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। "जलसेन... वह बहुत पुराना और शक्तिशाली था। अगर वह भी नहीं रोक पाया..." उसकी बात अधूरी रह गई, क्योंकि वह जानता था कि इसका मतलब क्या था।

    बाहर से, फिर एक और ज़बरदस्त गर्जना की आवाज़ आई, जो पिछले वाले से भी ज़्यादा भयानक थी। इस बार, यह गर्जना के बाद एक अजीब सी चीखने की आवाज़ आई, जैसे पानी के विशालकाय शरीर को फाड़ा जा रहा हो।

    समुद्र के भीतर, जलधि शहर की कल्पना करो। एक विशाल, चमकता हुआ कांच का गुंबद, जिसके भीतर रंग-बिरंगी मछलियाँ तैर रही थीं, समुद्री घास धीरे-धीरे हिल रही थी, और जल तत्वधारियों के सुंदर घर बने हुए थे। यह शांति और सुंदरता का प्रतीक था। लेकिन अब, कलासुर उस गुंबद के ऊपर एक भयानक, काले भंवर की तरह मंडरा रहा था। वह केवल अपनी शून्य की शक्ति का उपयोग कर रहा था, बिना किसी तत्व के, बस अस्तित्व को मिटा रहा था।

    कलासुर ने अपने चारों ओर से शून्य की ऊर्जा को केंद्रित किया और उसे गुंबद के ठीक केंद्र पर फेंक दिया। यह कोई धमाका नहीं था, बल्कि एक अजीब सी खामोशी थी, जो गुंबद के उस हिस्से को छू गई।

    और फिर, धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, गुंबद के उस विशाल कांच में दरारें पड़ने लगीं। पहले वे पतली थीं, फिर चौड़ी होती गईं, जैसे मकड़ी का जाला फैल रहा हो। पानी के अंदर होने के बावजूद, उन दरारों से एक अजीब सी, कुचलने वाली आवाज़ निकली, जो पूरे शहर में गूँज उठी।

    जलधि के लोग घबरा गए। वे जल तत्वधारी थे, पानी उनका घर था, लेकिन शून्य की यह ऊर्जा इतनी भयावह थी कि उसने उन्हें भी डरा दिया। कुछ लोग अपने घरों से बाहर निकल आए, उनकी आँखों में आतंक था।

    मंत्री जलसेन, जल साम्राज्य के सबसे सम्मानित और अनुभवी नेताओं में से एक, अपने महल के केंद्र में खड़ा था। उसका चेहरा सफेद पड़ चुका था। उसने अपनी पूरी शक्ति का उपयोग करके गुंबद को ठीक करने की कोशिश की, लेकिन शून्य की ऊर्जा इतनी शक्तिशाली थी कि वह उसकी पानी की शक्ति को पल भर में सोख गई।

    "यह... यह संभव नहीं है!" जलसेन ने चीखकर कहा, उसकी आवाज़ पानी के अंदर गूँज रही थी। "शून्य... यह हमारे तत्व को खा रहा है!"

    गुंबद की दरारें और बड़ी होती गईं। पानी के तेज़ दबाव के साथ, एक हिस्सा ढह गया। एक विशाल, क्रूर जलधारा शहर के अंदर घुस आई, अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को बहा ले गई। घर टूट गए, मछलियाँ भाग गईं, और जल तत्वधारी, जो अपने जीवन में कभी पानी से डरे नहीं थे, अब अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे।

    "शहर खाली करो! तुरंत!" मंत्री जलसेन ने अपनी अंतिम शक्ति का उपयोग करके चिल्लाया। "जितने लोग भाग सकते हैं, भागो! गहरे समुद्र में जाओ! कलासुर यहाँ नहीं पहुँच पाएगा!"

    लेकिन भागना आसान नहीं था। पानी का दबाव, ढहते हुए ढांचे, और शून्य की ऊर्जा जो जल तत्वधारियों की शक्तियों को छीन रही थी, सब मिलकर एक भयावह अराजकता पैदा कर रहे थे। कुछ जल तत्वधारी, जिनकी शक्तियाँ पूरी तरह से सोख ली गई थीं, अपने ही तरल वातावरण में डूबने लगे, क्योंकि वे अब पानी में साँस नहीं ले पा रहे थे।

    दूर तहखाने में, आरव और उसके दोस्त इस विनाश को महसूस कर रहे थे। आरव ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। "हम... हम कुछ नहीं कर सकते?" उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा। "हम उन्हें कैसे बचाएँगे?"

    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें बंद कर लीं। "हम इस क्षण में कुछ नहीं कर सकते, मेरे बच्चे," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ में भारीपन था। "कलासुर ने दिखाया है कि वह कितना शक्तिशाली है। हमारी सभी शक्तियाँ उसके लिए सिर्फ़ भोजन हैं।"

    समीर ने गुस्से में अपनी दीवार पर मुट्ठी मारी। "तो हम क्या करेंगे? बस बैठे रहेंगे और दुनिया को नष्ट होते देखेंगे? अपने लोगों को मरते देखेंगे?"

    रिया ने अपना सिर उठाया, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। "हम बस बैठ नहीं सकते, समीर। हमें कुछ करना होगा। हमें... हमें कलासुर को रोकना होगा। लेकिन कैसे, मुझे नहीं पता।" उसकी आवाज़ में दृढ़ता थी, लेकिन उसके पीछे छिपी हताशा भी साफ झलक रही थी।

    भैरवी ने अपनी नम आँखें खोलीं और आरव की ओर देखा। उसकी आँखों में एक अजीब सी उम्मीद की किरण थी, लेकिन वह इतनी कमज़ोर थी कि कभी भी बुझ सकती थी। "आरव... तुम आकाश-तत्वधारी हो। क्या तुम्हारे पास... कोई रास्ता नहीं है?"

    आरव ने उन्हें देखा, और फिर से अपनी आकाश-शक्ति को जगाने की कोशिश की। लेकिन उसकी हथेली में केवल एक हल्की सी झिलमिलाहट उठी, जो तुरंत ही बुझ गई। वह जानता था कि उसकी वर्तमान शक्ति कलासुर के सामने कुछ भी नहीं थी। उसके पास कोई जवाब नहीं था, सिर्फ़ अपने भीतर एक भारी असहायता थी। जलधि का पतन… यह सिर्फ़ एक शहर का पतन नहीं था, यह उनकी अंतिम उम्मीद का पतन था।

  • 7. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 7

    Words: 20

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 7
    जलधि का पतन… यह सिर्फ़ एक शहर का पतन नहीं था, यह उनकी अंतिम उम्मीद का पतन था। तहखाने की हवा और भी भारी हो गई थी, जैसे कोई अदृश्य हाथ उनके सीने पर दबाव डाल रहा हो। समीर का चेहरा पूरी तरह से उतर गया था। जलधि के बारे में सुनते ही, उसके दिल में एक नया दर्द उठ खड़ा हुआ था – अपने लोगों का डर। जल साम्राज्य, वायु कुल का सबसे करीबी सहयोगी था। यदि जलसेन जैसा शक्तिशाली नेता भी नहीं बचा सका, तो वायु कुल का क्या होगा? यह विचार उसके दिमाग में घूम रहा था।


    रिया दीवार से सिर टिकाए बैठी थी, उसकी आँखें सूनी थीं। "यह खत्म कब होगा?" उसने धीमी आवाज़ में कहा, जैसे खुद से पूछ रही हो। "वह सब कुछ नष्ट कर देगा। एक-एक करके।"


    भैरवी ने अपना सिर उठाया। उसकी आँखें अभी भी नम थीं, लेकिन उनमें एक नई तरह की दृढ़ता थी। "हमें... हमें कुछ करना होगा," उसने कहा, उसकी आवाज़ काँप रही थी, लेकिन उसमें एक हल्की सी प्रतिध्वनि थी। "हम ऐसे ही हार नहीं मान सकते।"


    आरव चुपचाप सुन रहा था। उसने अपने हाथ में अपनी आकाश-शक्ति को फिर से आज़माने की कोशिश की, लेकिन इस बार कोई चमक नहीं थी। उसकी शक्ति पूरी तरह से बुझ चुकी थी। वह कलासुर की उस विशाल शक्ति के सामने अपनी तुच्छता महसूस कर रहा था, जिसने पल भर में सब कुछ राख कर दिया था। उसके दिमाग में गुरु वशिष्ठ के शब्द गूँज रहे थे: 'कलासुर... वह केवल दुनिया को नष्ट नहीं करना चाहता, आरव। वह इसे शून्य में विलीन करना चाहता है।'


    तभी, एक और तेज़ कंपन महसूस हुई। यह कंपन पहले वाली से भी ज़्यादा भयानक थी, जैसे ज़मीन काँप रही हो, भले ही वे ऊपर हवा में नहीं थे। एक तेज़, गूँजती हुई आवाज़ तहखाने की दीवारों से टकराई, जैसे विशालकाय पत्थर आसमान से गिर रहे हों।


    समीर तुरंत खड़ा हो गया, उसकी आँखें दहशत से फैल गईं। वह जानता था यह किस तरह की आवाज़ थी। "नहीं... नहीं!" वह चीखा। "यह... यह वायु कुल है! वह मेरे द्वीपों पर हमला कर रहा है!" उसकी आवाज़ में ऐसा आतंक था, जैसा आरव ने पहले कभी नहीं सुना था।


    वायु कुल के द्वीप आकाश में तैरते थे, जो शुद्ध वायु-शक्ति द्वारा समर्थित थे। वे न केवल समीर के घर थे, बल्कि वायु-तत्वधारियों की शक्ति का प्रतीक भी थे। यदि वे गिर गए, तो इसका मतलब वायु कुल का अंत था।


    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं, उनके चेहरे पर दुख और चिंता साफ झलक रही थी। "वह तत्वों को उनके स्रोत पर निशाना बना रहा है," उन्होंने धीमी, थकी हुई आवाज़ में कहा। "जलधि के बाद, वायु कुल। फिर पृथ्वी, और अंत में अग्नि।"


    समीर ने पागलपन में दरवाज़े की ओर दौड़ना चाहा। "मुझे जाना होगा! मुझे अपने लोगों को बचाना होगा!"


    रिया ने तुरंत उसे पकड़ लिया। "तुम कहाँ जाओगे, समीर? तुम्हारे पास शक्ति नहीं है! तुम बस अपनी जान गँवा दोगे!"


    "मुझे फर्क नहीं पड़ता!" समीर चिल्लाया, उसकी आँखों में आँसू थे। "मेरे लोग... मेरा भाई पवन... वे खतरे में हैं! मैं उन्हें ऐसे मरने नहीं दे सकता!" उसने रिया के हाथों से खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन वह कमज़ोर पड़ गया था।


    बाहर से आ रही आवाज़ें और तेज़ होती गईं। अब केवल गर्जना नहीं थी, बल्कि हवा में एक भयानक चीखने की आवाज़ थी, जैसे विशालकाय चट्टानों को फाड़ा जा रहा हो। यह आवाज़ हर गुजरते पल के साथ और भी नज़दीक आती जा रही थी।


    एक पुरानी, छोटी रेडियो-घड़ी जो तहखाने में पड़ी थी, अचानक आवाज़ करने लगी। यह वायु कुल की आपातकालीन आवृत्ति थी। हवा में घबराई हुई आवाज़ें तैर रही थीं।


    "द्वीप 3 का पतन! गुरुत्वाकर्षण नियंत्रण विफल! लोग... लोग गिर रहे हैं!"


    "अग्नि-वज्र अभी भी है? बचाव दल कहाँ हैं?"


    "कोई शक्ति नहीं... हम अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं!"


    और फिर, एक परिचित आवाज़ सुनाई दी। यह पवन की आवाज़ थी, समीर का भाई। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी खामोशी थी, जो आतंक से भी ज़्यादा डरावनी थी। "कलासुर... वह यहाँ है। वह... वह हमारी वायु-शक्ति को सोख रहा है। द्वीपों का आधार... वह नष्ट हो रहा है।"


    "पवन!" समीर ने चीखकर कहा, जैसे वह रेडियो में घुसकर अपने भाई तक पहुँचना चाहता हो।


    "भागो! भागो, समीर! यहाँ से दूर रहो!" पवन की आवाज़ आई, और फिर एक तेज़ धमाके की आवाज़ आई, और रेडियो शांत हो गया।


    समीर ज़मीन पर घुटनों के बल गिर गया, उसका चेहरा अपने हाथों में छिपा हुआ था। "नहीं... पवन!" वह ज़ोर से रो पड़ा। उसकी आँखें लाल थीं, और उसके शरीर में कंपन हो रही थी। उसका भाई, उसका कुल... सब कुछ खत्म हो रहा था।


    आरव ने उसे देखा, उसके दिल में एक अजीब सी कसक उठी। वह समीर का दर्द महसूस कर सकता था। उसे पता था कि समीर के लिए उसका कुल और उसका भाई सब कुछ थे। और अब, वह उन्हें अपनी आँखों के सामने खो रहा था, असहाय होकर।


    वायु कुल के तैरते हुए द्वीप, जिन्हें सदियों से वायु-तत्व की शुद्ध ऊर्जा ने आकाश में थाम रखा था, अब धीरे-धीरे नीचे की ओर झुक रहे थे। कलासुर एक विशाल, काली आकृति के रूप में द्वीपों के केंद्र में खड़ा था। उसके चारों ओर एक अदृश्य, शून्य-आधारित ऊर्जा का घेरा था, जो वायु-तत्व को सोख रहा था।


    वायु-तत्वधारी, जो कभी अपनी गति और चपलता के लिए जाने जाते थे, अब अपनी शक्तियों को खोते हुए, घबराए हुए इधर-उधर भाग रहे थे। कुछ ने अपने पंख फैलाने की कोशिश की, लेकिन हवा ने उनका साथ छोड़ दिया। वे अपने ही तत्वों में डूब रहे थे।


    पवन, समीर का बड़ा भाई, जिसने हमेशा अपने छोटे भाई को डांटा था, लेकिन मन ही मन उससे प्यार करता था, एक टूटे हुए द्वीप के किनारे पर खड़ा था। उसका चेहरा दृढ़ था, भले ही उसकी आँखें दर्द से भरी थीं। उसने अपनी पूरी बची हुई वायु-शक्ति को केंद्रित किया, एक विशाल हवा का घेरा बनाने की कोशिश की ताकि कुछ लोगों को नीचे गिरने से बचाया जा सके।


    "भागो!" उसने अपने लोगों पर चिल्लाया। "जितने लोग पृथ्वी राज्य तक पहुँच सकते हो, भागो! मैं तुम्हें कुछ समय दूँगा!"


    कलासुर ने पवन की ओर देखा, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी, क्रूर मुस्कान आई। "तुम कितने मूर्ख हो, छोटे जीव," उसने अपनी भयानक, गूँजती हुई आवाज़ में कहा। "क्या तुम्हें लगता है कि तुम शून्य को रोक सकते हो?"


    उसने एक हाथ उठाया, और पवन द्वारा बनाया गया हवा का घेरा पल भर में बिखर गया। पवन ज़मीन पर गिर गया, उसके शरीर से सारी ऊर्जा खींच ली गई। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।


    कलासुर ने अपनी शून्य की शक्ति को और बढ़ाया। वायु कुल के द्वीपों को सहारा देने वाली प्राथमिक ऊर्जा-धाराएँ सूखने लगीं, जैसे एक विशाल पेड़ की जड़ें सूख रही हों। द्वीपों का संतुलन पूरी तरह से बिगड़ गया।


    एक विशालकाय द्वीप, जिसमें वायु कुल का सबसे पुराना मंदिर था, आसमान से नीचे की ओर झुकना शुरू कर दिया। उसकी विशालकाय चट्टानें टूटकर गिरने लगीं, और हवा में एक दर्दनाक चीख गूँज उठी, जैसे स्वयं वायु कुल रो रहा हो।


    मंदिर के भीतर से, सैकड़ों वायु-तत्वधारी नीचे गिर रहे थे, उनकी चीखें हवा में गूँज रही थीं, जो हर गुजरते पल के साथ और भी कमज़ोर होती जा रही थीं। उनका जीवन, उनकी सभ्यता, एक पल में नष्ट हो रही थी।


    पवन ने अपनी पूरी ताकत से अपना सिर ऊपर उठाया, और अपनी अंतिम साँस के साथ उसने अपने भाई का नाम लिया। "समीर..." उसकी आवाज़ हवा में विलीन हो गई।


    तहखाने में, समीर को यह महसूस हुआ। वह जानता था कि उसके भाई ने उसे आखिरी बार याद किया था। एक तेज़, तीखा दर्द उसके दिल में उठा, जिससे उसकी साँस थम सी गई।


    रिया ने समीर को कसकर पकड़ लिया, उसकी आँखों में भी आँसू थे। वह उसका दर्द समझ सकती थी।


    भैरवी ने अपना सिर हिलाया, उसकी आँखों में गहरी उदासी थी। "वायु कुल... वे भी चले गए।"


    आरव ने एक गहरी साँस ली। वह अब और नहीं देख सकता था। जलधि, वायु कुल... और अब उसकी अपनी शक्ति भी नहीं थी। लेकिन इस निराशा के बीच, एक अजीब सी आग उसके भीतर जलने लगी। यह गुस्सा था, हताशा थी, और एक अदम्य इच्छा थी कि वह इस राक्षस को रोके, चाहे कुछ भी हो जाए। लेकिन कैसे? यह सवाल उसके दिमाग में गूँज रहा था। उन्हें कलासुर को रोकना होगा, लेकिन उनके पास कोई शक्ति नहीं थी, कोई रास्ता नहीं था।


    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं और आरव की ओर देखा। "आरव," उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, "यह निराशा का समय है। लेकिन यह केवल शुरुआत है।" उनके चेहरे पर एक अजीब सी गंभीरता थी, जैसे वह कुछ ऐसा देख रहे थे जो बाकी कोई नहीं देख रहा था। "जब सब कुछ चला जाता है, तभी असली शक्ति का जन्म होता है।" उन्होंने आरव की ओर देखा, जैसे उसमें कुछ ऐसा देख रहे थे, जो अभी तक किसी ने नहीं देखा था।


    लेकिन आरव को उस पल में सिर्फ़ अंधेरा दिख रहा था। दुनिया एक-एक करके टूट रही थी, और वह असहाय होकर देख रहा था। क्या गुरुदेव का मतलब था कि कोई उम्मीद अभी भी बाकी थी? या यह सिर्फ़ सांत्वना के शब्द थे? वह नहीं जानता था। उसे बस इतना पता था कि उसे कुछ करना होगा, इससे पहले कि कलासुर सब कुछ निगल जाए। लेकिन क्या? और कैसे?

  • 8. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 8

    Words: 3

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 8
    लेकिन आरव को उस पल में सिर्फ़ अंधेरा दिख रहा था। दुनिया एक-एक करके टूट रही थी, और वह असहाय होकर देख रहा था। क्या गुरुदेव का मतलब था कि कोई उम्मीद अभी भी बाकी थी? या यह सिर्फ़ सांत्वना के शब्द थे? वह नहीं जानता था। उसे बस इतना पता था कि उसे कुछ करना होगा, इससे पहले कि कलासुर सब कुछ निगल जाए। लेकिन क्या? और कैसे?


    समीर अभी भी ज़मीन पर घुटनों के बल बैठा था, उसकी साँसें तेज़ थीं, और उसका शरीर काँप रहा था। रिया ने उसे कसकर पकड़ रखा था, और भैरवी उसके बगल में बैठी थी, उसका हाथ समीर के कंधे पर था। तीनों की आँखें सूनी थीं, उनमें अब कोई आँसू नहीं थे, सिर्फ़ एक खालीपन था। वायु कुल का पतन... यह उनके लिए एक व्यक्तिगत क्षति थी, और एक अकल्पनीय खतरा भी। अब कोई सुरक्षित स्थान नहीं बचा था।


    आरव ने दीवार की ओर देखा, जैसे वहाँ कोई जवाब ढूंढ रहा हो। कलासुर की शक्ति इतनी असीम थी कि वह उसे समझ नहीं पा रहा था। वह कैसे लड़ता उससे, जब उसकी अपनी शक्तियाँ भी लगभग गायब हो चुकी थीं? गुरु वशिष्ठ ने कहा था, "जब सब कुछ चला जाता है, तभी असली शक्ति का जन्म होता है।" लेकिन यह शक्ति कहाँ थी? उसे तो बस चारों ओर तबाही ही तबाही दिख रही थी।


    गुरु वशिष्ठ ने गहरी साँस ली, उनकी आँखें अभी भी बंद थीं। उनकी आवाज़ धीमी और थकी हुई थी। "कलासुर... वह दुनिया के तत्वों को व्यवस्थित रूप से नष्ट कर रहा है। पहले जल, फिर वायु... अब पृथ्वी।"


    उनकी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि तहखाने की ज़मीन में एक भयानक कंपन शुरू हो गई। यह सिर्फ़ एक कंपन नहीं थी, बल्कि एक असहनीय गर्जना थी, जैसे स्वयं पृथ्वी फट रही हो। दीवारों से धूल और प्लास्टर गिरने लगा। पुराने किले की संरचना चरमराने लगी।


    "यह क्या है?" रिया चीखी, उसका चेहरा पीला पड़ गया था।


    भैरवी तुरंत उठ खड़ी हुई, उसकी आँखें दहशत से फैल गईं। "नहीं! यह... यह पृथ्वी है!" उसकी आवाज़ में ऐसा दर्द था, जैसे कोई उसकी आत्मा को चीर रहा हो। पृथ्वी तत्वधारी होने के नाते, वह पृथ्वी के साथ एक गहरा जुड़ाव महसूस करती थी। वह उसके दर्द को, उसके फटने को महसूस कर सकती थी। यह दर्द शारीरिक नहीं था, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा गहरा, भावनात्मक था।


    तहखाने की छत से एक बड़ा पत्थर टूटकर गिरा, जो उनके पास से गुज़रा और ज़मीन पर बिखर गया। बाहर से आ रही गर्जना की आवाज़ असहनीय हो गई, जैसे एक लाख ज्वालामुखी एक साथ फट रहे हों। यह आवाज़ इतनी ज़बरदस्त थी कि उनकी हड्डियों तक को हिला रही थी।


    "वह क्या कर रहा है?" समीर ने अपने कानों पर हाथ रखते हुए चिल्लाया।


    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं, उनके चेहरे पर एक नई पीड़ा थी। "वह पृथ्वी के हृदय को विभाजित कर रहा है," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ में उदासी थी। "वह ज़मीन में एक विशाल खाई बना रहा है, जो पृथ्वी राज्य को दो भागों में बाँट देगी। यह... यह एक ऐसा घाव है जो कभी नहीं भरेगा।"


    बाहर से, एक और भयानक धमाके की आवाज़ आई, और इस बार तहखाने की दीवारें वास्तव में हिल गईं। ऊपर से धूल का एक बड़ा बादल उनके ऊपर गिर पड़ा।


    भैरवी ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। उसकी आँखों में बेबसी थी, लेकिन फिर एक पल के लिए एक अजीब सी चमक दिखाई दी – एक अंतिम प्रयास करने की इच्छा। "मुझे... मुझे कुछ करना होगा!" वह चीखी। "मेरे लोग... वे पृथ्वी राज्य में हैं! मैं उन्हें ऐसे मरने नहीं दे सकती!"


    उसने दरवाज़े की ओर दौड़ने की कोशिश की, लेकिन रिया ने उसे रोक लिया। "भैरवी, रुको! तुम कुछ नहीं कर पाओगी! तुम्हारी शक्ति कमज़ोर पड़ गई है!"


    "मुझे फर्क नहीं पड़ता!" भैरवी ने अपने हाथों से रिया को धकेलने की कोशिश की। "मैं पृथ्वी हूँ! मैं अपनी माँ को ऐसे मरने नहीं दे सकती! मुझे जाना होगा! मुझे उन गाँवों को बचाना होगा! लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना होगा!"


    आरव ने भैरवी के चेहरे पर देखा। उसकी आँखों में एक पागलपन भरी दृढ़ता थी, जो हार मानने को तैयार नहीं थी। वह जानता था कि भैरवी के लिए पृथ्वी सिर्फ़ एक तत्व नहीं थी, बल्कि उसका जीवन, उसकी पहचान थी। उसे रोकना असंभव था।


    "भैरवी, संभलकर!" आरव ने चिल्लाया, लेकिन वह तब तक दरवाज़े से बाहर निकल चुकी थी, भूकंप से काँपते हुए गलियारे में भाग रही थी।


    "हमें उसे रोकना चाहिए!" समीर ने कहा।


    "हम नहीं रोक सकते उसे," गुरु वशिष्ठ ने धीमी आवाज़ में कहा। "उसकी पृथ्वी के प्रति निष्ठा उसे खींच रही है। और शायद... शायद यही उसे चाहिए।"


    बाहर की दुनिया में, पृथ्वी राज्य के हरे-भरे मैदान अब चीर रहे थे। कलासुर आकाश में एक विशाल, काली आकृति के रूप में मंडरा रहा था, और उसके नीचे, ज़मीन में एक भयानक दरार पैदा हो रही थी। यह कोई सामान्य भूकंप नहीं था। कलासुर शून्य की ऊर्जा का उपयोग करके पृथ्वी के क्रस्ट को फाड़ रहा था, उसे शाब्दिक रूप से दो हिस्सों में विभाजित कर रहा था।


    विशालकाय पहाड़ टूटकर गिर रहे थे, उनकी चट्टानें धूल के बादलों में बदल रही थीं। नदियाँ अपने किनारों से उछलकर सूख रही थीं, जैसे पृथ्वी का रक्त बह रहा हो। गाँव और शहर, जो कभी शांति से बसे थे, अब धरती के गर्भ में समा रहे थे। मकान ताश के पत्तों की तरह ढह रहे थे, और लोगों की चीखें हवा में गूँज रही थीं, लेकिन वे चीखें भी विशालकाय दरार की गर्जना में दब रही थीं।


    भैरवी उस भयानक दृश्य के बीच भाग रही थी। वह अपनी बची हुई शक्ति को केंद्रित करने की कोशिश कर रही थी। उसने अपने हाथों को ज़मीन की ओर बढ़ाया, और उसके हाथों से मिट्टी की एक हल्की सी चमक निकली। उसने अपनी पूरी शक्ति का उपयोग करके एक छोटे से गाँव के लोगों को बचाने की कोशिश की, जो एक पहाड़ी के किनारे पर था और नीचे गिर रहा था।


    "नहीं! रुको! रुको!" वह चिल्लाई, अपनी शक्ति से धरती को थामने की कोशिश कर रही थी। उसने एक विशाल मिट्टी की दीवार बनाने की कोशिश की ताकि गाँव के लोगों को दरार से बचाया जा सके। उसकी शक्ति कमज़ोर थी, लेकिन उसकी इच्छाशक्ति अदम्य थी।


    एक पल के लिए, मिट्टी की दीवार उठने लगी, और गाँव के कुछ लोग उस पर चढ़ने लगे। लेकिन कलासुर ने ऊपर से एक नज़र डाली, और भैरवी की शक्ति को तुरंत सोख लिया। दीवार थरथराई, और फिर एक तेज़ धमाके के साथ ढह गई, अपने साथ गाँव के लोगों और भैरवी की उम्मीदों को भी ले गई।


    भैरवी ज़मीन पर गिर गई, उसकी साँसें तेज़ थीं, और उसकी आँखों में आँसू थे। वह अपनी धरती को बचाने में असहाय थी। वह अपनी शक्ति की सीमाओं को महसूस कर रही थी। वह इतनी कमज़ोर कभी नहीं हुई थी। उसके चारों ओर विनाश था, और वह कुछ नहीं कर सकती थी। उसकी आँखें दर्द और असहायता से भरी थीं।


    उसने अपने सामने देखा – पृथ्वी राज्य एक विशाल, गहरी खाई द्वारा दो भागों में बंटा हुआ था। यह एक ऐसा घाव था जो कभी नहीं भरेगा। और कलासुर, उस विशालकाय घाव के ऊपर मंडरा रहा था, एक विजेता की तरह मुस्कुरा रहा था।


    आरव और उसके दोस्त, तहखाने में उस भयानक गर्जना को सुन रहे थे, और वे जानते थे कि पृथ्वी राज्य भी चला गया था। समीर ने अपना सिर उठाया, उसकी आँखों में सूनापन था। "तो... अब कुछ नहीं बचा?" उसने फुसफुसाते हुए कहा। "सब खत्म हो गया।"


    रिया ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखों में भी निराशा थी। "हमें क्या करना चाहिए, गुरुदेव?" उसने गुरु वशिष्ठ से पूछा। "हर चीज़ खत्म हो रही है। और हम... हम बस देख रहे हैं।"


    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं, उनके चेहरे पर एक गहरी सोच थी। "नहीं, मेरे बच्चों," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ में एक अजीब सी दृढ़ता थी। "यह खत्म नहीं हुआ है। जब सब कुछ नष्ट हो जाता है, तभी असली चुनौती शुरू होती है।" उन्होंने आरव की ओर देखा, "जब लड़ने के लिए कुछ नहीं बचता, तब जीने के लिए कुछ बचता है। और उसे बचाने के लिए तुम्हें वो करना होगा, जो अब तक किसी ने नहीं किया।"


    आरव ने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा, उसकी आँखों में सवाल थे। वह क्या कह रहे थे? और उनके पास अब क्या बचा था, जब सब कुछ छिन गया था? यह सवाल उसके दिमाग में गूँज रहा था।

  • 9. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 9

    Words: 6

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 9
    आरव ने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा, उसकी आँखों में सवाल थे। वह क्या कह रहे थे? और उनके पास अब क्या बचा था, जब सब कुछ छिन गया था? यह सवाल उसके दिमाग में गूँज रहा था। समीर अभी भी ज़मीन पर बैठा, लगभग अचेत अवस्था में था। भैरवी, जो कुछ देर पहले दरवाज़े से बाहर भागी थी, अब तक वापस नहीं आई थी। बाहर से पृथ्वी के चीखने की आवाज़ अब धीमी पड़ गई थी, लेकिन उसने जो तबाही मचाई थी, उसकी गूँज अभी भी हवा में थी।

    रिया ने समीर के कंधे पर हाथ रखा, लेकिन समीर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उसकी आँखों में एक अजीब सी शून्यता थी, जैसे वह अब इस दुनिया में था ही नहीं। रिया ने एक गहरी साँस ली। उसका मन भी दर्द से भर गया था, लेकिन वह जानती थी कि अब रोने का समय नहीं था। उसके पिता के अत्याचारों ने दुनिया को पहले ही एक युद्ध में धकेल दिया था। अब कलासुर उसे पूरी तरह से नष्ट कर रहा था। वह इस सब में शामिल थी, कम से कम अपने पिता के माध्यम से। उसे कुछ करना होगा।

    "गुरुदेव," रिया ने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा, उसकी आवाज़ में एक नई दृढ़ता थी, जो पहले कभी नहीं थी। "आप क्या कहना चाहते हैं? क्या अब भी कोई उम्मीद है?"

    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं और रिया की ओर देखा। "उम्मीद हमेशा रहती है, मेरे बच्चे। जब तक जीवन है, तब तक उम्मीद है। कलासुर शून्य की बात करता है, लेकिन शून्य का अर्थ पूर्ण विनाश नहीं है। इसका अर्थ है... संतुलन का अभाव। और संतुलन को फिर से स्थापित किया जा सकता है।"

    "संतुलन?" समीर ने धीरे से अपना सिर उठाया, उसकी आवाज़ में अभी भी दर्द था। "जब दुनिया का हर तत्व नष्ट हो रहा हो? जब मेरा भाई... मेरा कुल... सब कुछ चला गया हो?"

    रिया ने उसकी बात सुनी, लेकिन उसका दिमाग अब एक अलग दिशा में सोच रहा था। उसने अपने आस-पास देखा – आरव, जिसकी शक्ति कलासुर ने सोख ली थी; समीर, जो अपने दुःख में डूबा हुआ था; भैरवी, जो शायद अब तक पृथ्वी के घावों को भरने की असफल कोशिश कर रही होगी। और बाहर, बाकी दुनिया, जो डर और अराजकता में डूबी होगी।

    अचानक, रिया के मन में एक विचार कौंधा। एक जंगली, लेकिन शायद एकमात्र विचार। "हमें एकजुट होना होगा," उसने धीमी आवाज़ में कहा।

    आरव, समीर और गुरु वशिष्ठ तीनों ने उसकी ओर देखा।

    "क्या मतलब?" आरव ने पूछा।

    रिया ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। "कलासुर एक अकेला दुश्मन है, जो हम सबको एक-एक करके खत्म कर रहा है। अग्नि गणराज्य, जल साम्राज्य, वायु कुल, पृथ्वी राज्य... हम सब। हम अब दुश्मन नहीं रह सकते। हमें... हमें एक साथ आना होगा।"

    समीर हँसा, एक कड़वी, सूखी हँसी। "एक साथ? रिया, क्या तुम पागल हो गई हो? अग्नि गणराज्य ने ही हम पर हमला किया था! तुम्हारे पिता ने सब कुछ शुरू किया!"

    रिया का चेहरा कठोर हो गया। "मेरे पिता ने किया था। लेकिन मेरे पिता अब नहीं रहे। कलासुर ने उन्हें इस्तेमाल किया, और फिर उन्हें नष्ट कर दिया। वह मेरे लिए कोई पिता नहीं था, समीर। वह एक राक्षस था, और मैं उसे कभी माफ नहीं करूँगी। लेकिन अब... अब हम सभी एक ही नाव में हैं।"

    उसने अपनी बात जारी रखी। "अग्नि सेना बिखरी हुई है। उनमें से कई मेरे पिता के अत्याचारों से तंग आ चुके थे। वे मेरे साथ आए थे, कलासुर को रोकने के लिए, जब वह विक्रम के शरीर में था। वे अब भी वहीं हैं, डरे हुए, लेकिन लड़ने को तैयार। और बाकी दुनिया के लोग... वे भी डरे हुए हैं। उन्हें एक उम्मीद चाहिए।"

    "उम्मीद?" भैरवी की आवाज़ दरवाज़े से आई। वह वापस आ गई थी, उसका चेहरा मिट्टी और धूल से सना हुआ था, और उसकी आँखों में भयानक दर्द था। "कैसी उम्मीद, रिया? मैंने देखा। पृथ्वी रो रही है। मैंने अपनी शक्ति का उपयोग करने की कोशिश की, लेकिन वह... वह कुछ नहीं बचा सका। मैं इतनी असहाय कभी नहीं थी।" वह दीवार से खिसक कर ज़मीन पर बैठ गई।

    रिया उसके पास गई और उसके कंधे पर हाथ रखा। "तुमने कोशिश की, भैरवी। तुमने अपने लोगों को बचाने की कोशिश की। और यही मायने रखता है। लेकिन अब, अकेले कोई कुछ नहीं कर सकता। हमें एक साथ आना होगा। सभी तत्वों को।"

    समीर ने सिर हिलाया। "यह नामुमकिन है, रिया। सालों की दुश्मनी है। अविश्वास इतना गहरा है कि कोई भी हम पर विश्वास नहीं करेगा, खासकर तुम पर।"

    "मुझे पता है!" रिया ने चिल्लाया, उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उसकी आवाज़ में गुस्सा भी था। "मुझे पता है कि यह मुश्किल है! लेकिन हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है! क्या हम बस बैठे रहें और कलासुर को एक-एक करके हमें खत्म करते हुए देखें? या हम कम से कम कोशिश करें? एक साथ लड़ने की कोशिश करें?"

    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं और रिया की ओर देखा। "रिया सही कह रही है," उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा। "नफरत और अविश्वास हमें कहीं नहीं ले जाएगा। कलासुर इसी पर पनपता है। उसे रोकने का एकमात्र तरीका एकता है।"

    आरव ने रिया की ओर देखा। उसे उसकी हिम्मत देखकर हैरानी हुई। एक राजकुमारी, जिसने अपना सब कुछ खो दिया था, अब एक ऐसे गठबंधन की बात कर रही थी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। "लेकिन हम यह कैसे करेंगे?" उसने पूछा। "हम दुनिया से संपर्क कैसे करेंगे? कौन हम पर भरोसा करेगा?"

    रिया ने अपनी मुट्ठी खोली, और उसके हाथ में एक छोटा सा, पुराना संचार यंत्र था। यह उसके पिता के निजी संचार यंत्रों में से एक था, जिसे उसने अपने विद्रोह के दौरान हासिल कर लिया था। "यह दुनिया के हर बचे हुए संचार नेटवर्क से जुड़ सकता है," उसने कहा। "यह पुराना है, लेकिन काम करता है। मैं... मैं एक संदेश प्रसारित करूँगी। सभी के लिए।"

    समीर और भैरवी एक-दूसरे की ओर देखने लगे। उनके चेहरे पर अभी भी संशय था, लेकिन रिया की दृढ़ता में कुछ ऐसा था जिसने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया।

    "तुम क्या कहोगी?" समीर ने पूछा।

    रिया ने एक गहरी साँस ली। "मैं युद्धविराम की घोषणा करूँगी। मैं बताऊँगी कि असली दुश्मन कौन है। मैं सबसे गुज़ारिश करूँगी कि वे अपने मतभेद भुलाकर एक साथ आएं।"

    "क्या तुम्हें लगता है कि कोई सुनेगा?" भैरवी ने धीरे से पूछा।

    "अगर वे नहीं सुनेंगे, तो हम सब मारे जाएंगे," रिया ने सीधे कहा। "यह हमारा एकमात्र मौका है।"

    अगले कुछ घंटे तनाव और अनिश्चितता से भरे थे। रिया ने संचार यंत्र को ठीक किया, उसे चार्ज किया, और फिर एक खाली दीवार के सामने खड़ी हो गई। आरव, समीर और भैरवी उसे चुपचाप देख रहे थे। गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं, जैसे प्रार्थना कर रहे हों।

    रिया ने गहरी साँस ली, और फिर उसने यंत्र को सक्रिय किया। उसकी आवाज़, थोड़ी काँपते हुए, लेकिन दृढ़ता से, हवा में फैल गई। "यह... यह अग्नि गणराज्य की राजकुमारी रिया है।"

    एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। फिर, कुछ दूर से, कुछ ख़ामोश प्रतिक्रियाएँ आईं, जैसे कुछ लोग चौकन्ने हो गए हों।

    "मैं जानती हूँ कि आप में से कई मुझे एक दुश्मन के रूप में देखते हैं," उसने अपनी बात जारी रखी। "और मेरा परिवार... मेरे पिता... उन्होंने जो किया, उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। लेकिन अब, वह युद्ध खत्म हो गया है।" उसकी आवाज़ ऊँची होती गई। "हमारा दुश्मन बदल गया है। वह सम्राट विक्रम नहीं था, वह कभी नहीं था। असली दुश्मन... कलासुर है।"

    उसने कलासुर द्वारा की गई तबाही का वर्णन किया – जलधि का पतन, वायु कुल का विनाश, पृथ्वी राज्य का घाव। उसने अपनी आवाज़ में दर्द और ईमानदारी लाई, ताकि लोग उसकी बात पर विश्वास कर सकें।

    "वह दुनिया को नष्ट कर रहा है, एक-एक करके," उसने कहा। "वह किसी को नहीं छोड़ रहा है। न अग्नि गणराज्य को, न जल साम्राज्य को, न वायु कुल को, न पृथ्वी राज्य को। हम सब उसके लिए केवल ऊर्जा के स्रोत हैं।"

    "अब हमारे पास एक विकल्प है," रिया ने कहा। "हम आपस में लड़ते रहें, और कलासुर को हमें आसानी से खत्म करने दें। या... हम अपने मतभेद भुला दें। अपनी नफरत को एक तरफ रख दें। और एकजुट होकर लड़ें। एक ही दुश्मन के खिलाफ।"

    "मैं अग्नि गणराज्य की बची हुई सेना की ओर से, तत्काल युद्धविराम की घोषणा करती हूँ। मैं सभी तत्वधारियों से, सभी लोगों से, सभी बचे हुए नेताओं से आह्वान करती हूँ कि वे हमारे साथ आएं। अब दुश्मनी का समय नहीं है। अब एकता का समय है। यदि हम जीवित रहना चाहते हैं, तो हमें एक साथ खड़ा होना होगा। या हम सब शून्य में विलीन हो जाएंगे।"

    उसने यंत्र बंद कर दिया। तहखाने में गहरी चुप्पी थी। समीर ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं, भैरवी का चेहरा अभी भी उतरा हुआ था, और आरव उसे देख रहा था, उसके चेहरे पर एक अजीब सी आशा की किरण थी।

    "अब हमें बस इंतजार करना होगा," रिया ने कहा, उसकी आवाज़ में थकान थी, लेकिन एक संतोष भी था। उसने जो करना था, कर दिया था।

    कुछ ही मिनटों बाद, यंत्र में कुछ हलचल हुई। एक घबराई हुई आवाज़ आई। "यह... यह सत्य है। कलासुर ने मेरे गाँव को नष्ट कर दिया। मैंने अपनी आँखों से देखा।"

    फिर एक और आवाज़ आई, जल साम्राज्य से लगती हुई। "हमें विश्वास नहीं होता। अग्नि गणराज्य की राजकुमारी... हमसे बात कर रही है?"

    "हमें... हमें क्या करना चाहिए?" एक तीसरी आवाज़ ने पूछा, यह आवाज़ एक सैनिक की लग रही थी। "हम डरे हुए हैं। हम नहीं जानते कि किस पर भरोसा करें।"

    समीर ने सुना, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी अभिव्यक्ति थी। "देख रहे हो, रिया?" उसने कहा, "वे डरे हुए हैं। वे तुम पर भरोसा नहीं कर सकते।"

    रिया ने सिर हिलाया। "मुझे पता है। अविश्वास गहरा है। लेकिन उन्हें भी एहसास होगा कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं है। हम सब एक ही स्थिति में हैं।"

    बाहर की दुनिया में, रिया के संदेश ने एक अजीब सी हलचल मचा दी थी। कुछ लोग उस पर विश्वास नहीं कर रहे थे। सालों की दुश्मनी इतनी आसानी से नहीं मिट सकती थी। कुछ सैनिक अभी भी अग्नि गणराज्य के पुराने आदेशों का पालन कर रहे थे, और मित्र राष्ट्रों के सैनिकों से लड़ रहे थे, भले ही दोनों पक्ष कलासुर से जूझ रहे थे। लेकिन कई, जिन्होंने अपनी आँखों से कलासुर के विनाश को देखा था, वे हिचकिचा रहे थे। उनके दिमाग में एक नई उम्मीद और एक गहरा डर एक साथ घूम रहा था।

    शरणार्थी अपने बचे हुए सामान के साथ सड़कों पर घूम रहे थे, डरे हुए और भूखे। हर नया दिन कलासुर के एक और विनाश की खबर लेकर आता था।

    इसी अराजकता के बीच, रिया के संदेश ने एक छोटी सी चिंगारी जलाई। एक छोटी सी उम्मीद, भले ही वह बहुत नाजुक थी, कि शायद, बस शायद, एक साथ मिलकर लड़ने का कोई रास्ता था। लेकिन अविश्वास और भय अभी भी बहुत गहरा था, और कलासुर का अगला कदम अभी आना बाकी था। यह सिर्फ़ एक शुरुआत थी, एक बहुत ही मुश्किल शुरुआत।

  • 10. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 10

    Words: 8

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 10
    रिया ने यंत्र बंद कर दिया। तहखाने में गहरी चुप्पी थी। समीर ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं, भैरवी का चेहरा अभी भी उतरा हुआ था, और आरव उसे देख रहा था, उसके चेहरे पर एक अजीब सी आशा की किरण थी।

    "अब हमें बस इंतजार करना होगा," रिया ने कहा, उसकी आवाज़ में थकान थी, लेकिन एक संतोष भी था। उसने जो करना था, कर दिया था।

    कुछ ही मिनटों बाद, यंत्र में कुछ हलचल हुई। एक घबराई हुई आवाज़ आई। "यह... यह सत्य है। कलासुर ने मेरे गाँव को नष्ट कर दिया। मैंने अपनी आँखों से देखा।"

    फिर एक और आवाज़ आई, जल साम्राज्य से लगती हुई। "हमें विश्वास नहीं होता। अग्नि गणराज्य की राजकुमारी... हमसे बात कर रही है?"

    "हमें... हमें क्या करना चाहिए?" एक तीसरी आवाज़ ने पूछा, यह आवाज़ एक सैनिक की लग रही थी। "हम डरे हुए हैं। हम नहीं जानते कि किस पर भरोसा करें।"

    समीर ने सुना, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी अभिव्यक्ति थी। "देख रहे हो, रिया?" उसने कहा, "वे डरे हुए हैं। वे तुम पर भरोसा नहीं कर सकते।"

    रिया ने सिर हिलाया। "मुझे पता है। अविश्वास गहरा है। लेकिन उन्हें भी एहसास होगा कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं है। हम सब एक ही स्थिति में हैं।"

    बाहर की दुनिया में, रिया के संदेश ने एक अजीब सी हलचल मचा दी थी। कुछ लोग उस पर विश्वास नहीं कर रहे थे। सालों की दुश्मनी इतनी आसानी से नहीं मिट सकती थी। कुछ सैनिक अभी भी अग्नि गणराज्य के पुराने आदेशों का पालन कर रहे थे, और मित्र राष्ट्रों के सैनिकों से लड़ रहे थे, भले ही दोनों पक्ष कलासुर से जूझ रहे थे। लेकिन कई, जिन्होंने अपनी आँखों से कलासुर के विनाश को देखा था, वे हिचकिचा रहे थे। उनके दिमाग में एक नई उम्मीद और एक गहरा डर एक साथ घूम रहा था।

    शरणार्थी अपने बचे हुए सामान के साथ सड़कों पर घूम रहे थे, डरे हुए और भूखे। हर नया दिन कलासुर के एक और विनाश की खबर लेकर आता था।

    इस सब के बावजूद, दुनिया के कुछ हिस्सों में, रिया के संदेश ने एक ऐसी चिंगारी जलाई, जो बुझी नहीं थी। कुछ ऐसे लोग भी थे, जो सत्ता में थे, जो तत्वधारियों के नेता थे, जो कलासुर की बढ़ती शक्ति को असहाय होकर देख रहे थे। उन्हें लग रहा था कि यह अब बर्दाश्त से बाहर है। उन्हें लगा कि रिया की बात सही थी – अगर वे एक-एक करके खत्म होते रहे, तो कुछ नहीं बचेगा। लेकिन एकता की बात उनके गले नहीं उतर रही थी। उन्हें लगा कि उन्हें पहले खुद कुछ करना चाहिए। अपनी पुरानी शक्ति और सम्मान को बचाने के लिए।

    दूर-दूर के राज्यों से, बचे हुए कुछ सबसे शक्तिशाली गुरु, तत्वधारी जनरलों और जादूगरों ने गुप्त रूप से एक जगह इकट्ठा होने का फैसला किया। यह कोई सामान्य स्थान नहीं था, बल्कि एक प्राचीन वेधशाला थी, जो पहाड़ों की चोटियों के बीच छिपी हुई थी। यहाँ तत्विक ऊर्जा इतनी शुद्ध थी कि इसे किसी भी बड़े खतरे से बचा जा सकता था। वे अलग-अलग राज्यों से थे – एक जल साम्राज्य का अनुभवी सेनापति, जिसके पास पानी पर असीम नियंत्रण था; एक वायु कुल का वृद्ध गुरु, जिसकी हवा की शक्ति किसी बवंडर से कम नहीं थी; पृथ्वी राज्य का एक शक्तिशाली संरक्षक, जिसकी चट्टानों को हिलाने की क्षमता अद्भुत थी; और अग्नि गणराज्य का एक निपुण जादूगर, जो अब सम्राट विक्रम के अधीन नहीं था, लेकिन जिसकी ज्वालाएं अभी भी अत्यंत विनाशकारी थीं।

    "हम अब और इंतज़ार नहीं कर सकते," जल साम्राज्य के सेनापति, जिनका नाम नीरेश था, ने अपनी दाढ़ी सहलाते हुए कहा। उनकी आँखों में चिंता थी। "रिया की बात में कुछ सच्चाई है, लेकिन एकता... वह दूर की कौड़ी है। जब तक हम कोई बड़ी मिसाल कायम नहीं करते, तब तक लोग हमारी बात नहीं सुनेंगे। हमें कलासुर का सामना करना होगा।"

    वायु कुल के गुरु, जिनका नाम ज़ेन था, ने सहमति में सिर हिलाया। "नीरेश सही कह रहे हैं। हमने उसे हर दिन मजबूत होते देखा है। हमें उसे रोकने की कोशिश करनी चाहिए, इससे पहले कि वह दुनिया के हर तत्व को सोख ले।"

    अग्नि गणराज्य के जादूगर, कश्यप, ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। "कलासुर ने मेरे सम्राट को सिर्फ एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया। मैं उसे माफ नहीं करूँगा। और अब वह अपनी शक्ति से दुनिया को तबाह कर रहा है। उसे रोकना होगा।"

    पृथ्वी राज्य के संरक्षक, जिसने अपना नाम बस "मिट्टी" बताया था, ने एक भारी आवाज़ में कहा, "कलासुर ने हमारी धरती को चीर दिया है। हमें उसे रोकना होगा, या हम सब मिट्टी में मिल जाएंगे।"

    उन्होंने अपनी योजना बनाई। वे जानते थे कि कलासुर को हराना लगभग असंभव था, लेकिन वे उसे कमज़ोर करने की उम्मीद कर रहे थे, या कम से कम उसे एक संदेश देने की कि दुनिया अभी भी लड़ रही है। उन्होंने फैसला किया कि वे कलासुर पर एक संयुक्त, समन्वित हमला करेंगे, अपनी सारी बची हुई तात्विक ऊर्जा का उपयोग करके।

    उन्होंने कलासुर को ढूंढा। वह अब भी पृथ्वी राज्य के खंडहरों पर मंडरा रहा था, जैसे अपने काम पर गर्व कर रहा हो। उसकी काली, धुएँदार आकृति आकाश में एक भयानक निशान थी।

    "कालासुर!" गुरु ज़ेन ने अपनी पूरी शक्ति से चिल्लाया, उनकी आवाज़ हवा में गूँज उठी। "बहुत हो गया! हम तुम्हें और विनाश नहीं करने देंगे!"

    कलासुर ने नीचे देखा, उसकी आँखों में एक अजीब सी, निर्जीव चमक थी। उसने गुरुओं और जनरलों को देखा, जो अब अपनी सारी ऊर्जा इकट्ठा कर रहे थे। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान फैल गई, जो किसी शैतान की मुस्कान से कम नहीं थी।

    "अरे," कलासुर की आवाज़ हवा में गूँजी, "छोटे-छोटे कीड़े अभी भी लड़ने की कोशिश कर रहे हैं? दिलचस्प।"

    "हम कोई कीड़े नहीं हैं!" नीरेश ने चिल्लाया। "हम दुनिया के संरक्षक हैं! और हम तुम्हें रोकेंगे!"

    सभी गुरुओं और जनरलों ने एक साथ अपनी शक्ति को केंद्रित किया। जल, वायु, पृथ्वी और अग्नि – चारों तत्वों की ऊर्जा एक साथ मिल गई, एक चमकदार, घूमता हुआ बवंडर बनाती हुई। नीरेश ने अपने हाथों को ऊपर उठाया, और एक विशालकाय, ज्वार की लहर कलासुर की ओर बढ़ी, जो सैकड़ों फ़ीट ऊँची थी और नीले रंग में चमक रही थी। गुरु ज़ेन ने एक ही झटके में उस लहर के चारों ओर एक तूफानी बवंडर पैदा कर दिया, जिससे उसकी गति और शक्ति कई गुना बढ़ गई। मिट्टी ने अपनी मुट्ठियाँ भींचीं, और बवंडर के अंदर से विशालकाय चट्टानें कलासुर की ओर लॉन्च होने लगीं, जैसे तोप के गोले। और कश्यप ने अपने हाथों से एक विशाल, सफेद-गर्म ज्वाला का गोला फेंका, जो बवंडर के बीच से निकलकर कलासुर की ओर तेज़ी से बढ़ा।

    यह एक अविश्वसनीय, विनाशकारी हमला था। चार तत्वों की संयुक्त शक्ति एक साथ कलासुर की ओर बढ़ रही थी, इतनी तेज़ी से कि किसी भी सामान्य प्राणी के लिए बच निकलना असंभव था। आसपास का वातावरण चमक उठा, और हवा में एक अजीब सी ऊर्जा महसूस हुई।

    कलासुर बस खड़ा रहा। उसने अपने हाथ भी नहीं उठाए। उसने अपनी आँखें भी नहीं झपकाईं। जैसे ही वह विशालकाय, तत्विक बवंडर उसके करीब आया, उसकी काली आकृति और भी गहरी होती गई। और फिर, एक पल में, उसने उस पूरे हमले को अपने शरीर में सोख लिया।

    कोई धमाका नहीं हुआ। कोई विस्फोट नहीं हुआ। बस एक अजीब सी खामोशी थी। ज्वार की लहर, तूफानी बवंडर, उड़ती हुई चट्टानें और विशालकाय ज्वाला का गोला... सब कुछ कलासुर के काले शरीर में समा गया, जैसे वह एक अंतहीन शून्य हो।

    गुरु, जनरल और जादूगर हैरान रह गए। उनके चेहरे पर पूर्ण सदमा था। उनकी सारी शक्ति, उनका सारा प्रयास, एक पल में गायब हो गया था, जैसे कभी था ही नहीं।

    कलासुर ने अपनी आँखें खोलीं, और उसके चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान थी। "धन्यवाद," उसने धीमी, लेकिन शक्तिशाली आवाज़ में कहा, जो हवा में गूँज उठी। "इस ऊर्जा के लिए। मुझे इसकी ज़रूरत थी।"

    और फिर, एक भी पल गंवाए बिना, कलासुर ने अपना एक हाथ उठाया, और एक काली, पतली ऊर्जा की किरण उसकी उंगली से निकली। वह किरण इतनी तेज़ थी कि उसे देखा नहीं जा सकता था, सिर्फ़ उसकी भयानक शक्ति महसूस की जा सकती थी। उसने नीरेश की ओर इशारा किया, और नीरेश का शरीर हवा में उछला, और फिर एक अदृश्य बल से कुचल दिया गया, जैसे वह कोई कागज़ का पुतला हो। वह ज़मीन पर गिरा, उसका शरीर अचेत था।

    कलासुर ने दूसरा हाथ उठाया, और इस बार, उसके हाथ से एक विशाल, काले रंग का ऊर्जा-गोला निकला, जो सीधे गुरु ज़ेन और कश्यप की ओर बढ़ा। वे बचने की कोशिश भी नहीं कर पाए। गोला उनसे टकराया, और वे दोनों एक ही पल में ऊर्जाहीन हो गए, उनके शरीर राख में बदल गए, और हवा में बिखर गए।

    मिट्टी, पृथ्वी का संरक्षक, अपनी शक्तियों का उपयोग करके ज़मीन के अंदर घुसने की कोशिश कर रहा था, लेकिन कलासुर ने अपना पैर उठाया और ज़मीन पर हल्के से मारा। एक पल में, मिट्टी का शरीर ज़मीन से बाहर खींच लिया गया, और वह कलासुर के सामने हवा में अटका रहा। कलासुर ने उसकी ओर देखा, और मिट्टी का शरीर धीरे-धीरे सूखने लगा, उसकी पृथ्वी की शक्ति कलासुर में समा गई। कुछ ही सेकंड में, मिट्टी का शरीर सिर्फ़ धूल का एक ढेर बनकर ज़मीन पर गिर गया।

    सब कुछ कुछ ही पलों में खत्म हो गया था। दुनिया के सबसे शक्तिशाली योद्धा और गुरु, जिन्होंने एक साथ आकर कलासुर का सामना करने की कोशिश की थी, वे एक ही झटके में हार गए थे। कलासुर बिना किसी खरोंच के खड़ा था, पहले से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली महसूस कर रहा था।

    "अब और कोई विरोध नहीं करेगा," कलासुर ने हवा में फुसफुसाते हुए कहा। "अब केवल... शून्य।"

    दूर, गुरु वशिष्ठ के गुप्त तहखाने में, रिया के संचार यंत्र में एक भयानक शोर सुनाई दिया। एक घबराई हुई आवाज़ चीख रही थी। "गुरु... गुरु ज़ेन... नीरेश... सब खत्म हो गए! कलासुर ने उन्हें... उन्हें एक ही झटके में हरा दिया! कोई नहीं बचा!"

    आवाज़ कट गई। तहखाने में एक भयानक सन्नाटा छा गया। आरव, समीर, भैरवी और गुरु वशिष्ठ – सभी की आँखें चौड़ी थीं। इस हार की खबर ने उन पर किसी वज्रपात की तरह असर किया था। यह केवल एक लड़ाई नहीं थी, यह एक उम्मीद की मौत थी। दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोग हार गए थे, इतनी आसानी से।

    समीर का सिर फिर से झुक गया। भैरवी ने अपना मुँह ढँक लिया, उसकी आँखों से खामोश आँसू बह रहे थे। रिया का चेहरा पीला पड़ गया था, और उसके हाथ काँप रहे थे।

    आरव ने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा, उसकी आँखों में गहरी निराशा थी। "गुरुदेव," उसने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सा डर था। "अगर वे भी उसे नहीं रोक पाए... तो हम क्या करेंगे?"

    कलासुर की अजेय शक्ति ने एक बार फिर साबित कर दिया था कि वह सामान्य नियमों से परे था। और अब, दुनिया के बचे हुए लोगों पर निराशा का एक नया, भारी बादल छाने वाला था। यह हार सिर्फ़ कुछ व्यक्तियों की हार नहीं थी, बल्कि पूरे विश्व की सामूहिक भावना की हार थी।

  • 11. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 11

    Words: 13

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 11
    रिया ने यंत्र बंद कर दिया। तहखाने में गहरी चुप्पी थी। आरव, समीर, भैरवी और गुरु वशिष्ठ – सभी की आँखें चौड़ी थीं। इस हार की खबर ने उन पर किसी वज्रपात की तरह असर किया था। यह केवल एक लड़ाई नहीं थी, यह एक उम्मीद की मौत थी। दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोग हार गए थे, इतनी आसानी से।



    समीर का सिर फिर से झुक गया। भैरवी ने अपना मुँह ढँक लिया, उसकी आँखों से खामोश आँसू बह रहे थे। रिया का चेहरा पीला पड़ गया था, और उसके हाथ काँप रहे थे।



    आरव ने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा, उसकी आँखों में गहरी निराशा थी। "गुरुदेव," उसने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सा डर था। "अगर वे भी उसे नहीं रोक पाए... तो हम क्या करेंगे?"



    गुरु वशिष्ठ ने गहरी साँस ली, और उनकी पुरानी, बुद्धिमान आँखों में भी दुख और चिंता की एक झलक थी। "कलासुर... वह किसी भी तत्व की ऊर्जा को सोख सकता है। वह सिर्फ उसे खत्म नहीं करता, बल्कि उसे अपनी शक्ति में बदल लेता है। वह अकल्पनीय है।"



    "तो फिर हम क्या करें?" समीर ने अपनी आँखें खोलीं, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उदासीनता थी। "हम... हम बस इंतज़ार करें कि कब वह हमें भी सोख ले? कब वह इस पूरी दुनिया को शून्य में बदल दे?" उसके शब्दों में एक भयानक, ठंडी सच्चाई थी।



    भैरवी ने अपना सिर उठाया, उसकी आँखों में लाल डोरे थे। "गुरु ज़ेन... मिट्टी... नीरेश... वे सब चले गए। जिन्होंने हमेशा हमें सिखाया कि कैसे लड़ना है, कैसे अपनी शक्ति का उपयोग करना है... वे भी हार गए।" उसके होंठ काँप रहे थे। "कोई उम्मीद नहीं है, है ना?"



    रिया ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। "नहीं! ऐसा मत कहो!" उसकी आवाज़ में गुस्सा था, लेकिन वह खुद अंदर से टूट रही थी। "हमें कोई रास्ता खोजना होगा! हम हार नहीं मान सकते!"



    लेकिन उसके शब्द खोखले लग रहे थे, यहाँ तक कि उसे भी। उसने खुद अपने पिता के पतन को देखा था। उसने कलासुर की अजेय शक्ति देखी थी। और अब, दुनिया के सबसे शक्तिशाली तत्वधारी भी उसके सामने रेत के टीले की तरह ढह गए थे।



    इस बीच, तहखाने के बाहर, पूरी दुनिया में गुरुओं और जनरलों की हार की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। बचे हुए संचार यंत्रों, अफवाहों और डरे हुए शरणार्थियों के माध्यम से यह दुखद सच्चाई हर कोने तक पहुँच गई। जिन लोगों ने अभी भी थोड़ी सी आशा बचा रखी थी, जिन्होंने सोचा था कि शायद ये शक्तिशाली तत्वधारी कलासुर को रोक सकते हैं, उनकी उम्मीदें भी अब पूरी तरह से टूट गईं।



    शहरों में, गाँवों में, भूमिगत बंकरों में, और तैरते हुए द्वीपों के खंडहरों में – हर जगह लोगों के चेहरे पर निराशा की एक गहरी छाया थी। हवा में एक अजीब सा, डरावना सन्नाटा छा गया था, जिसे कभी-कभी दूर से आ रही किसी इमारत के ढहने की आवाज़ या किसी तत्वधारी की चीख से तोड़ा जाता था।



    "उन्होंने अपनी सारी शक्ति लगाई," एक बुजुर्ग महिला ने अपने बेटे से कहा, उसकी आवाज़ में काँप थी। "और वह... वह बस खड़ा रहा। उसने उसे सोख लिया। वह कोई साधारण दुश्मन नहीं है। वह एक देवता है। विनाश का देवता।"



    धीरे-धीरे, इस असीम शक्ति और अजेयता को देखकर, कुछ लोग कलासुर को केवल एक दुश्मन के रूप में नहीं, बल्कि एक अजेय, सर्वशक्तिमान अस्तित्व के रूप में देखने लगे। डर और असहायता ने उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।



    "यह उसका न्याय है," एक धर्मगुरु ने अपने बचे हुए अनुयायियों से कहा, उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी। "हमारा संसार भ्रष्ट हो गया था। कलासुर उसे शुद्ध करने आया है। हमें उसका विरोध नहीं करना चाहिए। हमें उसे स्वीकार करना चाहिए।"



    दूर-दूर के गाँवों में, जहाँ कलासुर के विनाश का सीधा असर देखा गया था, लोगों ने कलासुर की काली आकृति के छोटे-छोटे मंदिर बनाना शुरू कर दिए। वे उससे प्रार्थना करते थे, उससे दया की भीख मांगते थे, यह सोचकर कि शायद ऐसा करने से वह उनके गाँव को बख्श देगा। यह निराशा का चरम था, जब लोग अपने ही विनाशक की पूजा करने लगे थे।



    और तत्वधारियों के लिए, स्थिति और भी खराब होती जा रही थी। जैसे-जैसे कलासुर दुनिया के तत्वों को सोखता जा रहा था, वैसे-वैसे तत्वधारियों की शक्तियाँ भी कमजोर पड़ती जा रही थीं। एक अग्नि-तत्वधारी ने अपनी उंगलियों से आग निकालने की कोशिश की, लेकिन केवल एक कमजोर सी चमक निकली और फिर बुझ गई। एक जल-तत्वधारी ने पानी के एक छोटे से घूँट को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन पानी उसकी उंगलियों से फिसल गया। पृथ्वी-तत्वधारी अब पहाड़ों को हिलाने की क्षमता नहीं रखते थे, और वायु-तत्वधारी हवा में उड़ने की शक्ति खो रहे थे।



    "मेरी शक्ति... यह चली गई है," एक जवान वायु-तत्वधारी ने अपनी माँ से कहा, उसकी आँखों में आँसू थे। "मैं अब उड़ नहीं सकता।"



    यह सिर्फ़ शारीरिक कमजोरी नहीं थी, बल्कि मानसिक भी थी। अपनी पहचान खोने का दर्द, अपनी शक्ति खोने का डर, और अपने ही तत्व को कलासुर द्वारा निगलते हुए देखना – यह सब तत्वधारियों को तोड़ रहा था। वे असहाय थे, और उनकी शक्तियाँ उनके ही खिलाफ इस्तेमाल हो रही थीं, जब कलासुर उन्हें सोख लेता था।



    गुरु वशिष्ठ के तहखाने में, आरव ने यह सब सुना, उसके दिल में एक गहरा छेद हो गया था। उसकी खुद की आकाश-शक्ति कलासुर ने सोख ली थी, और अब बाकी सब भी अपनी शक्तियाँ खो रहे थे। वह अब और भी ज़्यादा शक्तिहीन महसूस कर रहा था। उसकी आँखों में एक अजीब सी शून्यता थी।



    "गुरुदेव," आरव ने फुसफुसाते हुए कहा, "क्या... क्या सच में कोई उम्मीद नहीं बची?" उसकी आवाज़ में बचपन का डर था, जो उसने तब महसूस किया था जब वह पहली बार अकेला पड़ा था।



    समीर ने आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में दर्द और खालीपन था। "शायद यही हमारा अंत है, आरव। शायद कलासुर को रोका नहीं जा सकता।"



    भैरवी ने अपना सिर उठाया और तीनों दोस्तों को देखा। उसकी आँखों में अब कोई आँसू नहीं थे, सिर्फ़ एक सूनी सी निराशा थी। "अगर वह हर तत्व को सोख रहा है... तो हम कब तक बचेंगे? हमारी ताकत क्या है, जब कलासुर सब कुछ ले चुका है?"



    वे चारों एक छोटे से कमरे में बंद थे, बाहर की दुनिया से कटे हुए, लेकिन दुनिया का दर्द उनके भीतर गूँज रहा था। उन्हें लग रहा था जैसे वे एक ऐसी लहर से घिरे हुए हैं जिसे रोका नहीं जा सकता, और वे बस इंतजार कर रहे थे कि वह लहर कब उन्हें भी निगल लेगी। उनके पास अब कोई योजना नहीं थी, कोई उम्मीद नहीं थी, और सबसे बढ़कर, कोई ताकत नहीं बची थी।



    कलासुर ने अपनी अजेयता को साबित कर दिया था, और दुनिया अब बस अपने अंतिम दिनों का इंतजार कर रही थी।

  • 12. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 12

    Words: 11

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 12
    "गुरुदेव," आरव ने फुसफुसाते हुए कहा, "क्या... क्या सच में कोई उम्मीद नहीं बची?" उसकी आवाज़ में बचपन का डर था, जो उसने तब महसूस किया था जब वह पहली बार अकेला पड़ा था।





    समीर ने आरव की ओर देखा, उसकी आँखों में दर्द और खालीपन था। "शायद यही हमारा अंत है, आरव। शायद कलासुर को रोका नहीं जा सकता।"





    भैरवी ने अपना सिर उठाया और तीनों दोस्तों को देखा। उसकी आँखों में अब कोई आँसू नहीं थे, सिर्फ़ एक सूनी सी निराशा थी। "अगर वह हर तत्व को सोख रहा है... तो हम कब तक बचेंगे? हमारी ताकत क्या है, जब कलासुर सब कुछ ले चुका है?"





    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे वह उस अकल्पनीय बोझ को महसूस कर रहे हों। उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, "कलासुर की शक्ति अनंत प्रतीत होती है। वह केवल भौतिक संसार को नहीं, बल्कि हमारे विश्वास और हमारी आत्मा को भी नष्ट कर रहा है।" उनकी आवाज़ में एक दर्द था, जो उन्होंने पहले कभी नहीं दिखाया था।





    तहखाने में एक भारी चुप्पी छा गई, केवल हवा में एक अजीब सी उदासी गूँज रही थी। रिया ने उठने की कोशिश की, लेकिन उसके पैर काँप रहे थे। "हमें... हमें कुछ तो करना होगा," उसने बुदबुदाया, लेकिन उसके शब्दों में कोई conviction नहीं था।





    बाहर की दुनिया में, कलासुर की काली छाया हर कोने में फैल रही थी। तत्वधारियों के पतन और आम जनता में बढ़ती निराशा से उत्साहित होकर, कलासुर ने अपने अगले, और भी भयावह, कदम की ओर रुख किया। उसकी आँखें जल साम्राज्य पर टिकी थीं। जल साम्राज्य, जो हमेशा अपनी शांति और समृद्धि के लिए जाना जाता था, अब खतरे में था।





    कलासुर ने आकाश में एक काली आकृति के रूप में उड़ना शुरू किया, उसकी ओर से एक भयानक ऊर्जा निकल रही थी। वह समुद्र की ओर बढ़ा, जहाँ जल साम्राज्य की राजधानी, जलधि, स्थित थी। जलधि कोई सामान्य शहर नहीं था। यह समुद्र की गहराई में, एक विशाल, पारदर्शी कांच के गुंबद के नीचे बना हुआ था, जहाँ लोग समुद्री जीवन के साथ सद्भाव में रहते थे। रंगीन मूंगे, चमकती हुई मछलियाँ, और प्राचीन समुद्री जीव गुंबद के चारों ओर तैरते थे, और अंदर, जल-तत्वधारियों की सभ्यता फल-फूल रही थी। उनके घरों की दीवारें तरल ऊर्जा से बनी थीं, और उनके बाज़ार में समुद्र के मोती और चमकदार शैवाल बेचे जाते थे। यह शांति और सुंदरता का एक नखलिस्तान था।





    गुंबद के भीतर, मंत्री जलसेन, एक अनुभवी जल-तत्वधारी, अपनी परिषद के साथ बैठे थे। उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं। उन्होंने कलासुर के बारे में सुना था, लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि उनकी पानी के नीचे की दुनिया सुरक्षित रहेगी।





    "बाहर की स्थिति गंभीर है," एक युवा सलाहकार ने कहा। "वायु कुल के द्वीप गिर गए हैं, और पृथ्वी राज्य दो हिस्सों में बंटा हुआ है। हमें लगता है कि कलासुर हमारी ओर बढ़ रहा है।"





    मंत्री जलसेन ने गहरी साँस ली। "हम तैयार हैं। जलधि ने हमेशा खुद को बचाने का रास्ता खोजा है। हमारे गुंबद अभेद्य हैं।"





    लेकिन उनकी बातें अभी खत्म भी नहीं हुई थीं कि एक विशाल, भयानक छाया गुंबद के ऊपर से गुज़री। यह कलासुर था, जो समुद्र की सतह पर मंडरा रहा था। उसने गुंबद को देखा, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी, आनंदमयी मुस्कान फैल गई।





    "आह, जलधि," कलासुर की आवाज़ समुद्र के ऊपर गूँजी, और उसकी प्रतिध्वनि गुंबद के अंदर तक सुनाई दी। "इतनी सारी ऊर्जा... बस इंतज़ार कर रही है कि उसे सोख लिया जाए।"





    कलासुर ने अपने हाथों को ऊपर उठाया, और एक विशालकाय, काली, शोषक ऊर्जा की धारा उसकी हथेलियों से निकली। वह सीधे गुंबद की ओर बढ़ी, उसे छूते ही उसे सोखने लगी। गुंबद, जो अब तक अभेद्य लग रहा था, काँच की तरह चमक उठा, लेकिन यह चमक दर्द की थी।





    शहर के अंदर, लोगों ने एक भयानक गूँज महसूस की। गुंबद की दीवारों पर, सूक्ष्म दरारें उभरने लगीं, जो धीरे-धीरे बड़ी होती जा रही थीं। पानी में रहने के आदी होने के बावजूद, जल-तत्वधारियों को एक अजीब सा, भयानक दबाव महसूस होने लगा। उन्हें लगा जैसे उनकी अपनी शक्तियाँ उनसे छीनी जा रही हों।





    "गुंबद... गुंबद में दरारें आ रही हैं!" एक सैनिक ने चिल्लाया, उसकी आवाज़ में आतंक था। "वह पानी को सोख रहा है! हमारी रक्षा ढालें ​​काम नहीं कर रही हैं!"





    कलासुर समुद्र की ऊर्जा को सोख रहा था, और उसके साथ ही, गुंबद को घेरे हुए पानी का दबाव भयानक रूप से बढ़ रहा था। कुछ ही मिनटों में, एक बड़ी दरार गुंबद के ऊपरी हिस्से में फैल गई, और खारे पानी की एक तेज़ धार अंदर आने लगी, जो तुरंत शहर की गलियों में भरने लगी।





    मंत्री जलसेन का चेहरा सफेद पड़ गया। "खाली करो! तुरंत शहर खाली करो!" उन्होंने अपनी पूरी शक्ति से चिल्लाया। "जितने लोग गुफाओं और गहरे चैनलों में जा सकते हैं, उन्हें भेजो! हमें इस हमले से बचना होगा!"





    पूरे शहर में भगदड़ मच गई। जल-तत्वधारी और नागरिक अपने घरों को छोड़कर भागने लगे, लेकिन पानी तेज़ी से ऊपर आ रहा था। कई लोग अपनी समुद्री-साँस लेने की शक्ति खो रहे थे, क्योंकि उनके तत्व की ऊर्जा कलासुर द्वारा सोखी जा रही थी। वे घबरा कर एक-दूसरे से चिपक रहे थे, बचने की कोशिश कर रहे थे।





    यह विनाश केवल भौतिक नहीं था, बल्कि अस्तित्वगत था। कलासुर ने जलधि को सिर्फ़ नष्ट नहीं किया, बल्कि उसकी आत्मा को भी निचोड़ लिया।





    गुरु वशिष्ठ के तहखाने में, रिया का संचार यंत्र फिर से शोर करने लगा। इस बार, यह एक हताश, पानी में डूबी हुई आवाज़ थी। "यह... यह जलसेन बोल रहा हूँ... कलासुर ने... उसने जलधि पर हमला किया है! गुंबद टूट रहा है... पानी भर रहा है... हम डूब रहे हैं... हमारी शक्तियाँ... ओहो!" आवाज़ कट गई, और फिर सिर्फ़ पानी में डूबने की भयानक आवाज़ें सुनाई देने लगीं।





    रिया ने यंत्र को पकड़ रखा था, उसके हाथ काँप रहे थे। उसकी आँखों में दर्दनाक वास्तविकता थी। "वह... वह जलधि पर हमला कर रहा है।" उसने मुश्किल से कहा, जैसे उसका गला घुट रहा हो।





    समीर ने अपना सिर उठाया, उसके चेहरे पर एक खालीपन था। भैरवी की आँखें अब सूखी थीं, लेकिन उनमें एक गहरा, स्थिर दुख था। आरव ने देखा, उसकी आँखों में फिर से वह भयानक असहायता थी।





    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उन्होंने सुना था। उन्होंने महसूस किया था। दुनिया एक-एक करके खत्म हो रही थी, और वे यहाँ, इस छोटे से तहखाने में, कुछ नहीं कर पा रहे थे। कलासुर हर गुजरते पल के साथ और भी शक्तिशाली होता जा रहा था, और दुनिया एक धीमे, असहनीय अंत की ओर बढ़ रही थी।

  • 13. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 13

    Words: 20

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 13
    "वह... वह जलधि पर हमला कर रहा है।" रिया ने मुश्किल से कहा, जैसे उसका गला घुट रहा हो। उसके हाथों से संचार यंत्र लगभग गिर गया था।

    समीर ने अपना सिर उठाया, उसके चेहरे पर एक खालीपन था। भैरवी की आँखें अब सूखी थीं, लेकिन उनमें एक गहरा, स्थिर दुख था। आरव ने देखा, उसकी आँखों में फिर से वह भयानक असहायता थी।

    "बस करो, रिया," समीर ने शांत आवाज़ में कहा, जो उसकी निराशा को और बढ़ा रही थी। "और सुनने की ज़रूरत नहीं है। हम जानते हैं कि क्या हो रहा है।"

    रिया ने अपने होंठ भींचे। "लेकिन समीर... वह अब... कहाँ जाएगा?" उसकी आवाज़ में एक डरावना सवाल था।

    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं। उनकी निगाहें दूर, जैसे कुछ देखने की कोशिश कर रही हों, टिक गईं। "वह तत्वधारियों के हर स्रोत को सुखा रहा है। पृथ्वी और जल हो चुका है... अब वह वायु कुल की ओर बढ़ेगा।"

    उनकी भविष्यवाणी डरावनी रूप से सच साबित हुई।

    कलासुर, जलधि के विनाश के बाद, एक पल भी नहीं रुका। जैसे ही समुद्र में पानी का स्तर घटने लगा और जलधि काँच के मलबे और खारे पानी में बदल गया, कलासुर ने अपना ध्यान आसमान की ओर मोड़ लिया। उसकी काली, भयानक आकृति बादलों को चीरती हुई ऊपर उठी। उसकी नज़र वायु कुल के तैरते द्वीपों पर थी।

    वायु कुल के द्वीप कोई सामान्य भूमि नहीं थे। वे हजारों वर्षों से आकाश में तैर रहे थे, वायु-तत्वधारियों की शुद्ध शक्ति और प्राचीन तकनीकों द्वारा हवा में थामे हुए थे। ये द्वीप विशाल, हरियाली से भरे और बादलों से ढके हुए थे। उनके नीचे झरनों का पानी बहता था, और उन पर छोटे-छोटे गाँव और शांत शहर बसे थे, जहाँ वायु-तत्वधारी अपनी कला और ज्ञान का अभ्यास करते थे। हवा महल और उड़ने वाले पुल इन द्वीपों को एक-दूसरे से जोड़ते थे। ये द्वीप वायु कुल के अस्तित्व का प्रतीक थे, उनकी स्वतंत्रता और उनकी शक्ति का।

    पवन, समीर का भाई, मुख्य द्वीप, वायु-दुर्गा के शीर्ष पर खड़ा था। उसने अभी-अभी जलधि के पतन की खबर सुनी थी, और उसके चेहरे पर एक गहरी चिंता थी। उसके बगल में कुछ अनुभवी वायु-योद्धा खड़े थे, उनकी आँखें आसमान में टिकी थीं। पवन, अपनी रणनीतिक प्रतिभा के बावजूद, जानता था कि कलासुर को रोकना असंभव हो सकता है।

    "हमारी ऊर्जा ढालें ​​पूरी तरह से चालू हैं, पवन," एक योद्धा ने कहा। "हमने उन्हें अधिकतम शक्ति पर सेट कर दिया है। कोई भी बाहरी हमला..."

    तभी, वायु-दुर्गा के ऊपर आकाश अचानक काला पड़ने लगा। हवा में एक अजीब सा दबाव महसूस हुआ, जैसे कोई विशाल अदृश्य हाथ हवा को निचोड़ रहा हो। कलासुर आसमान में एक बिंदु से तेज़ी से बड़ा होता हुआ दिखाई दिया, उसकी काली ऊर्जा एक भयानक तूफान की तरह द्वीपों की ओर बढ़ रही थी।

    पवन की आँखों में आतंक था। "यह रहा वह!" उसने चिल्लाया। "सभी को तैयार रहने का आदेश दो! नागरिकों को भूमिगत कक्षों में ले जाओ!"

    कलासुर ने द्वीपों के ऊपर मंडराना शुरू कर दिया। उसने किसी भी प्रकार का हमला नहीं किया, कोई आग नहीं, कोई तूफान नहीं, कोई पानी नहीं। उसने बस अपने हाथों को फैलाया, और एक गहरी, शोषक शक्ति उसकी हथेलियों से निकलकर सीधे द्वीपों को थामे हुए तात्विक ऊर्जा की ओर बढ़ी।

    वायु-तत्वधारियों को तुरंत पता चल गया कि क्या हो रहा है। उनकी शक्ति, जो इन द्वीपों को हवा में बनाए रखती थी, उनसे छीनी जा रही थी। वे अपने अंदर एक अजीब सा खिंचाव महसूस करने लगे, जैसे उनकी जीवन-शक्ति को निचोड़ा जा रहा हो। द्वीपों को घेरे हुए ऊर्जा ढालें ​​कमज़ोर पड़ने लगीं, और फिर चमकने के बाद धीरे-धीरे लुप्त हो गईं, जैसे हवा में घुल रही हों।

    मुख्य द्वीप, वायु-दुर्गा, एक भयानक चीख़ के साथ काँप उठा। हवा में उसकी स्थिति अस्थिर हो गई। उसके नीचे, छोटे द्वीप पहले से ही डगमगाने लगे थे, और कुछ तो धीरे-धीरे नीचे की ओर फिसलने भी लगे थे।

    "वह हमारी ऊर्जा सोख रहा है!" एक योद्धा ने चिल्लाया, उसकी आवाज़ में शुद्ध भय था। "द्वीपों को थामे रखने वाली ऊर्जा खत्म हो रही है!"

    पवन ने अपनी पूरी शक्ति से अपनी वायु-ऊर्जा को केंद्रित करने की कोशिश की, ताकि कम से कम मुख्य द्वीप को गिरने से रोक सके। उसके शरीर से नीली रोशनी निकली, और उसने हवा को अपनी इच्छानुसार मोड़ने की कोशिश की। लेकिन कलासुर की शक्ति अजेय थी। वह सिर्फ़ ऊर्जा को सोख नहीं रहा था, बल्कि उसे निष्क्रिय कर रहा था, उसे शून्य में बदल रहा था।

    "हम... हम गिर रहे हैं!" एक महिला ने चिल्लाया, और उसकी आवाज़ हवा में खो गई।

    द्वीपों के नीचे से एक डरावनी गूँज सुनाई दी, जैसे विशाल पत्थर के पहाड़ टूट रहे हों। वायु-दुर्गा धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, आसमान से नीचे की ओर झुकने लगा। उसके साथ जुड़े छोटे द्वीप तेज़ी से गिरने लगे, उनके नीचे बने गाँव और संरचनाएँ टूट कर बिखरने लगीं।

    पवन ने देखा कि दूर से एक वायु-यान तेज़ी से उसकी ओर आ रहा है। यह समीर था, जिसने अपने छोटे प्रतिरोध दल के साथ वहाँ पहुँचने की कोशिश की थी। समीर को पता था कि उसके भाई और उसके लोग खतरे में हैं।

    "पवन!" समीर ने वायु-यान से कूदते हुए चिल्लाया, हवा में अपनी पूरी शक्ति लगाकर कूदते हुए द्वीप पर उतरा। "तुम ठीक हो?"

    पवन ने उसे देखा, उसके चेहरे पर धूल और थकान थी। "समीर! तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तुम्हें वापस जाना चाहिए था!"

    "मैं अपने लोगों को ऐसे मरते हुए नहीं देख सकता!" समीर ने दृढ़ता से कहा। "हमें इन्हें बचाना होगा! कोई रास्ता है...?"

    पवन ने सिर हिलाया, उसकी आँखों में निराशा थी। "हमारी ऊर्जा खत्म हो रही है, समीर। द्वीप गिर रहे हैं। हम इन्हें रोक नहीं सकते। हमें लोगों को खाली करना होगा... लेकिन कहाँ? कहाँ जाएँगे हम?"

    ठीक उसी क्षण, वायु-दुर्गा एक और भयानक गड़गड़ाहट के साथ नीचे झुका। कुछ और संरचनाएँ टूट गईं, और एक पूरा गाँव अपने निवासियों के साथ हजारों फीट नीचे की ओर गिरने लगा।

    समीर ने देखा। उसकी आँखों में दुख था, लेकिन उसके अंदर कुछ जागृत हुआ। उसने अपने भाई को देखा, और उसके चेहरे पर एक शांत दृढ़ संकल्प आया। "हमें कम से कम कुछ लोगों को बचाना होगा," उसने कहा। "हमें उन्हें यहाँ से दूर करना होगा। जल्दी करो, पवन! अपनी पूरी शक्ति लगाओ! मैं हवा के बहाव को नियंत्रित करने की कोशिश करता हूँ, तुम बाकी लोगों को यानों में भेजो!"

    पवन ने समीर की ओर देखा। निराशा के बीच, उसे अपने भाई की आँखों में एक नई उम्मीद की किरण दिखाई दी। "हमेशा की तरह, समीर," उसने कहा, और दोनों भाई एक साथ काम करने लगे, अपनी सारी बची हुई शक्ति का उपयोग करके अपने लोगों को इस विनाश से बचाने के लिए एक हताश प्रयास कर रहे थे। द्वीप तेजी से नीचे गिरते जा रहे थे, और उनके पास समय बहुत कम था।

  • 14. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 14

    Words: 25

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 14
    "हमेशा की तरह, समीर," पवन ने कहा, और दोनों भाई एक साथ काम करने लगे, अपनी सारी बची हुई शक्ति का उपयोग करके अपने लोगों को इस विनाश से बचाने के लिए एक हताश प्रयास कर रहे थे। द्वीप तेजी से नीचे गिरते जा रहे थे, और उनके पास समय बहुत कम था।

    समीर ने अपनी पूरी ताक़त से हवा को अपने इशारों पर नचाने की कोशिश की। उसके चारों ओर एक नीली आभा चमक उठी, और उसने विशालकाय वायु-बवंडर बनाने शुरू कर दिए, ताकि गिरने वाले द्वीपों की गति को धीमा किया जा सके। उसकी आँखों में दर्द और दृढ़ संकल्प का मिश्रण था। उसने देखा कि लोग किस तरह भयभीत होकर इधर-उधर भाग रहे थे, कुछ अपनी जान बचाने के लिए, कुछ अपने प्रियजनों को ढूंढने के लिए। उसने अपने अंदर की हर बूँद शक्ति निचोड़ दी, उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और उसके शरीर पर पसीना छूटने लगा।

    पवन, जो हमेशा रणनीतिक और冷静 रहता था, अब अपने हाथों से लोगों को एयर-शिप्स में धकेल रहा था। "तेज़ चलो! जगह लो! एक-दूसरे को खींचो!" वह चिल्ला रहा था, उसकी आवाज़ हवा में तेज़ तूफान के कारण मुश्किल से सुनाई दे रही थी। "समीर! हम और कितने लोगों को बचा सकते हैं?"

    "जितने ले जा सको, पवन!" समीर ने हाँफते हुए जवाब दिया। "मैं... मैं और देर तक इन्हें रोक नहीं पाऊँगा!"

    एक विशालकाय द्वीप, जिसके नीचे एक पूरा शहर बसा हुआ था, एक भयानक गड़गड़ाहट के साथ हवा में हिल गया और फिर एक तरफ झुक गया। उसकी विशाल संरचनाएँ टूट गईं, और कई वायु-यान जो वहाँ से भागने की कोशिश कर रहे थे, मलबे की चपेट में आ गए। पवन ने देखा कि कैसे लोग, अपने वायु-तत्व की शक्ति खोकर, हवा में असहाय होकर गिर रहे थे। यह एक दिल दहला देने वाला दृश्य था।

    कलासुर, आसमान में एक काली, विशाल आकृति के रूप में, इस विनाश को शांति से देख रहा था। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, जैसे वह केवल एक अनिवार्य कार्य को पूरा कर रहा हो। उसे वायु कुल के दुख और पीड़ा से कोई फर्क नहीं पड़ता था। जैसे ही उसने देखा कि अंतिम कुछ एयर-शिप्स किसी तरह बचकर नीचे की ओर सुरक्षित स्थानों की ओर जा रहे हैं, उसने वायु-दुर्गा से अपनी शोषक शक्ति हटा ली।

    वायु-दुर्गा, अब पूरी तरह से अपनी तात्विक ऊर्जा से वंचित, एक भयानक चीख़ के साथ पूरी तरह से गिर गया। वह आसमान से ज़मीन की ओर तेज़ी से गिरने लगा, एक विशाल, टूटते हुए पर्वत की तरह। उसके साथ, वायु कुल का अस्तित्व, उसकी सदियों पुरानी सभ्यता, एक ही झटके में समाप्त हो गई। समीर और पवन ने कुछ बचे हुए लोगों के साथ एक छोटे से वायु-यान में किसी तरह जान बचाई, उनकी आँखों में अपने खोए हुए घर का दुख था। वे जानते थे कि उनका कुल अब बिखर गया है।

    कलासुर ने एक पल के लिए भी आराम नहीं किया। उसकी काली, भयानक आँखें अब पृथ्वी राज्य पर टिक गईं। पृथ्वी राज्य, हमेशा से स्थिर, दृढ़ और अचल। वह पहाड़ों, गहरे जंगलों, और चट्टानी किलों का देश था, जहाँ पृथ्वी-तत्वधारी अपनी जड़ता और शक्ति के लिए जाने जाते थे। भैरवी ने ही तो "धरती की दीवार" का खिताब जीता था, क्योंकि उसने अपने लोगों की रक्षा के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी। लेकिन अब, यही दृढ़ता उसके लिए एक अभिशाप बन सकती थी, क्योंकि कलासुर का अगला हमला सीधे दुनिया के 'आधार' पर था।

    भैरवी, अचल-गढ़ के मुख्य केंद्र में खड़ी थी, जो पृथ्वी राज्य के सबसे मजबूत किलों में से एक था। उसके चारों ओर, सैनिक और नागरिक तैयार खड़े थे, लेकिन उनकी आँखों में डर स्पष्ट था। वायु कुल के पतन की खबर उन तक पहुँच चुकी थी, और वे जानते थे कि अब उनकी बारी थी।

    "हमें अपनी रक्षा ढालों को मजबूत करना होगा!" भैरवी ने दृढ़ता से कहा, हालाँकि उसके दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी। "हर पृथ्वी-तत्वधारी अपनी पूरी शक्ति लगाओ! हम अपनी ज़मीन की रक्षा करेंगे!"

    तभी, दूर क्षितिज पर, आसमान अचानक से गहरा काला पड़ने लगा। एक विशालकाय काली परछाई पृथ्वी राज्य की ओर तेज़ी से बढ़ रही थी। यह कलासुर था, जो एक प्रचंड तूफान की तरह आ रहा था। लेकिन इस बार, उसने आग नहीं उगली, न ही पानी का प्रहार किया, न ही हवा का तूफान लाया।

    कलासुर पृथ्वी राज्य के ठीक ऊपर आकर रुका, और उसने अपने दोनों हाथों को धीरे-धीरे नीचे की ओर किया। उसके हाथों से कोई ऊर्जा बीम नहीं निकली, बल्कि एक अदृश्य, भयानक खिंचाव पैदा हुआ। धरती, जो सदियों से स्थिर थी, काँपने लगी। पहले सूक्ष्म कंपन, फिर तेज़ी से बढ़ते हुए झटके।

    "यह क्या है?" एक सैनिक ने डरते हुए पूछा। "यह कोई साधारण भूकंप नहीं है!"

    सही कहा उसने। यह भूकंप नहीं था। यह उससे भी बुरा था। कलासुर धरती के तत्व को सोख नहीं रहा था, बल्कि उसे 'तोड़' रहा था। एक भयानक, चीरने वाली आवाज़ हवा में गूँजी, जैसे धरती की हड्डियाँ टूट रही हों।

    अचानक, अचल-गढ़ से कुछ मील दूर, ज़मीन में एक विशाल दरार पड़नी शुरू हो गई। यह एक पतली रेखा से शुरू हुई, लेकिन तेज़ी से फैलती गई, चौड़ी होती गई, और गहरी होती गई। यह एक विशाल खाई थी, जो पृथ्वी राज्य को दो भागों में विभाजित करती हुई, पहाड़ों को चीरती हुई, नदियों को निगलती हुई, और शहरों को अपने अंदर समाती हुई आगे बढ़ती जा रही थी।

    "यह... यह संभव नहीं है!" भैरवी ने चिल्लाया, उसकी आँखों में शुद्ध सदमा था। उसने अपनी पूरी पृथ्वी-शक्ति लगाई, अपने हाथों को ज़मीन पर टिकाया, और ज़मीन को जोड़ने की कोशिश की। उसकी आँखों से पीली ऊर्जा निकली, और उसने चट्टानों को ऊपर उठाने की कोशिश की, ताकि खाई को भरा जा सके।

    लेकिन कलासुर की शक्ति अजेय थी। खाई उससे भी तेज़ गति से फैल रही थी, उसकी इच्छाशक्ति को धता बताते हुए। कई गाँव और शहर, जो खाई के रास्ते में आए, बस एक पल में ज़मीन में समा गए, कोई आवाज़ नहीं, कोई निशान नहीं। हज़ारों लोग अपने घरों के साथ उस अनंत खाई में गिर गए, कभी वापस न आने के लिए।

    भैरवी ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी। उसके शरीर से ऊर्जा की लहरें निकलीं, और उसने कुछ स्थानों पर ज़मीन को स्थिर करने की कोशिश की, कुछ गाँवों को बचाने के लिए धरती की दीवारें खड़ी कीं। उसने लोगों को खींचकर सुरक्षित स्थानों पर ले जाने की कोशिश की, लेकिन तबाही इतनी बड़ी थी कि उसकी शक्ति बहुत कम पड़ रही थी। वह अपनी आँखों के सामने अपने लोगों को गिरते हुए देख रही थी, और वह कुछ नहीं कर पा रही थी।

    "नहीं! नहीं!" उसने चिल्लाया, उसके गले से एक दर्दनाक आवाज़ निकली। उसने धरती को बचाने की कोशिश की, उसे फिर से जोड़ने की कोशिश की, लेकिन कलासुर की शक्ति ने उसे लगातार धकेला। उसकी ऊर्जा कम हो रही थी, और उसे पहली बार अपनी शक्ति की सीमाओं का एहसास हुआ। वह, 'धरती की दीवार', अब खुद टूट रही थी। उसने देखा कि खाई अंतहीन रूप से फैल चुकी थी, और उसका देश अब दो विशालकाय, कटे हुए हिस्सों में विभाजित हो चुका था। यह केवल एक भौतिक घाव नहीं था, बल्कि पृथ्वी की आत्मा पर एक गहरा, स्थायी निशान था।

    गुरु वशिष्ठ के तहखाने में, संचार यंत्र फिर से शोर करने लगा। इस बार, यह भैरवी की अपनी आवाज़ थी, लेकिन वह बहुत कमज़ोर और हताश थी, और उसके साथ ज़मीन के फटने और लोगों के चिल्लाने की आवाज़ें आ रही थीं।

    "गुरुदेव... आरव... रिया... समीर..." उसकी आवाज़ कट-कट कर आ रही थी। "वह... वह पृथ्वी को चीर रहा है... एक विशाल खाई... सब कुछ निगल रही है... मेरी शक्ति... मेरी शक्ति काफ़ी नहीं है! मैं... मैं उन्हें बचा नहीं पा रही हूँ!"

    आवाज़ में इतना दर्द और निराशा थी कि आरव का दिल दहल गया। समीर ने अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे वह उस आवाज़ को सुनना ही नहीं चाहता था। रिया ने मुट्ठी भींच ली, लेकिन उसके चेहरे पर भी असहायता थी।

    गुरु वशिष्ठ ने अपना सिर हिलाया। "मैंने सुना है, मेरी बेटी," उन्होंने फुसफुसाया, उनकी आवाज़ में थकान थी। "मैं सुन रहा हूँ।"

    भैरवी की आवाज़ फिर से आई, अब और भी टूटी हुई, और फिर अचानक कट गई, सिर्फ़ एक भयानक, लंबी गड़गड़ाहट की आवाज़ रह गई, जैसे धरती खुद रो रही हो।

    पूरे तहखाने में गहरी चुप्पी छा गई। आरव ने देखा, उसके दोस्तों के चेहरे पर निराशा की परछाई थी, और उसने अपने दिल में एक खालीपन महसूस किया। कलासुर दुनिया को एक-एक करके खत्म कर रहा था, और वे यहाँ छिपे हुए, बस उसके विनाश को देख रहे थे। वे जानते थे कि अब दुनिया का कोई भी कोना सुरक्षित नहीं था।

  • 15. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 15

    Words: 10

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 15
    पूरे तहखाने में गहरी चुप्पी छा गई। आरव ने देखा, उसके दोस्तों के चेहरे पर निराशा की परछाई थी, और उसने अपने दिल में एक खालीपन महसूस किया। कलासुर दुनिया को एक-एक करके खत्म कर रहा था, और वे यहाँ छिपे हुए, बस उसके विनाश को देख रहे थे। वे जानते थे कि अब दुनिया का कोई भी कोना सुरक्षित नहीं था।



    रिया ने धीरे से अपने हाथ में पकड़े संचार यंत्र को मेज पर रखा। उसकी आँखें लाल थीं, लेकिन उनमें अब आँसू नहीं थे। उसके चेहरे पर दुख का एक अजीब सा भाव था, जो कठोरता में बदलता जा रहा था। उसने एक गहरी साँस ली, और फिर सीधे गुरु वशिष्ठ की ओर देखा।



    "गुरुदेव," रिया की आवाज़ शांत थी, लेकिन उसमें एक नई दृढ़ता थी। "हमें यहाँ छिपकर और नहीं बैठ सकते।"



    गुरु वशिष्ठ ने आँखें बंद कर लीं। "मैं जानता हूँ, मेरी बच्ची।"



    आरव ने पहली बार कुछ कहा। "लेकिन हम क्या कर सकते हैं, रिया? तुम देख रही हो? कलासुर को कोई नहीं रोक सकता। गुरुदेव, मेरी शक्ति... वह उसके सामने कुछ भी नहीं है। हम... हम असहाय हैं।" उसकी आवाज़ में कड़वाहट थी।



    समीर ने भी सिर हिलाया। "उसने पवन और मेरे वायु कुल को खत्म कर दिया। भैरवी का राज्य... पृथ्वी का घाव... यह सब कुछ खत्म कर देगा।"



    रिया खड़ी हो गई। उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी, जो उसके अंदर के उथल-पुथल को छिपा रही थी। "शायद हम उसे रोक नहीं सकते," उसने कहा, अपनी मुट्ठी भींचते हुए। "शायद हमारी शक्ति उसके सामने कम है। लेकिन हम उसे यूँ ही सब कुछ खत्म करते हुए नहीं देख सकते।" उसकी नज़र आरव और समीर पर टिकी। "तुम दोनों अपने-अपने लोगों के साथ थे, जब कलासुर ने हमला किया। मैंने भी... मैं भी वहाँ थी।"



    एक फ्लैशबैक रिया के मन में कौंध गया। सम्राट विक्रम के सिंहासन कक्ष में, कलासुर के उदय के बाद। उस भयानक क्षण में जब विक्रम का शरीर कलासुर में बदल गया, और कलासुर ने अपनी शक्ति का पहला प्रदर्शन करते हुए राजधानी को नष्ट कर दिया। रिया, जो विद्रोहियों के साथ महल में घुसी थी, उस विनाश के बीच फंस गई थी। उसकी आँखों के सामने अग्नि गणराज्य की भव्य राजधानी, जिसकी दीवारों को कभी अभेद्य माना जाता था, रेत के महल की तरह ढह रही थी। उसके अपने सैनिक, जो उसके साथ खड़े थे, एक पल में राख में बदल गए। उसकी जान बस किस्मत से बची थी, जब एक पुराने वफादार सेनापति ने उसे खींचकर एक भूमिगत मार्ग में धकेल दिया था।



    वह याद अभी भी ताज़ा थी, लेकिन अब उसने रिया को कमज़ोर नहीं किया, बल्कि उसे मजबूत किया। उसे याद आया कि कैसे वह अपने सैनिकों के साथ, दहशत में, मलबे और राख से भरी सड़कों से भाग रही थी। हर तरफ मौत और निराशा थी। लेकिन उस अराजकता के बीच भी, कुछ लोग थे जो मदद के लिए पुकार रहे थे, कुछ सैनिक थे जो अभी भी अपने साथी नागरिकों को बचाने की कोशिश कर रहे थे।



    रिया ने आँखें खोलीं। "मैं उस विनाश के बीच थी," उसने शांत आवाज़ में कहा। "लेकिन मैंने देखा... मैंने देखा कि मेरे पिता के अत्याचारों से तंग आए लोग, जो कभी हमारे दुश्मन थे, अब एक साथ लड़ रहे थे। अग्नि सैनिक और मित्र राष्ट्र के बचे हुए लोग... वे एक-दूसरे को बचा रहे थे।"



    उसने गुरु वशिष्ठ की ओर देखा। "गुरुदेव, मुझे वहाँ वापस जाना होगा। मुझे अपनी बची हुई सेना का नेतृत्व करना होगा। और मुझे एक युद्धविराम की घोषणा करनी होगी।"



    समीर और आरव दोनों हैरान रह गए। "युद्धविराम?" समीर ने पूछा, जैसे उसे विश्वास न हो रहा हो। "रिया, तुम किस बारे में बात कर रही हो? हम सालों से एक-दूसरे से लड़ रहे हैं!"



    "अब दुश्मन बदल गया है, समीर!" रिया ने दृढ़ता से कहा। "अब दुश्मन हम नहीं हैं। अब वह कलासुर है, जो पूरी दुनिया को नष्ट कर रहा है। अग्नि गणराज्य की सेना बिखर चुकी है, पृथ्वी राज्य टूट चुका है, वायु कुल गिर चुका है, जलधि डूब चुका है। हम अब एक-दूसरे से लड़ने का जोखिम नहीं उठा सकते। हमें एकजुट होना होगा।"



    गुरु वशिष्ठ ने धीरे से अपनी पलकें उठाईं। उनके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी, जो अनुमोदन का संकेत दे रही थी। "रिया सही कह रही है," उन्होंने फुसफुसाया। "यह एक ऐसा समय है जब सभी पुरानी शत्रुताएँ निरर्थक हो गई हैं। अस्तित्व ही खतरे में है।"



    रिया ने समीर और आरव को देखा। "यह आसान नहीं होगा। अविश्वास गहरा है। भय और भी गहरा है। लेकिन कोई और रास्ता नहीं है।"



    उसने अपने हाथों में संचार यंत्र उठाया। "मुझे संपर्क साधना होगा। मुझे बचे हुए जनरलों को ढूंढना होगा, चाहे वे कहीं भी हों। उन्हें पता होना चाहिए कि अब हम एक ही नाव में हैं।"



    कुछ ही देर में, रिया अग्नि गणराज्य के एक गुप्त भूमिगत बंकर में थी, जो राजधानी के बाहर स्थित था। यह बंकर अभी भी चालू था, और कुछ अग्नि सेना के वरिष्ठ अधिकारी यहाँ शरण लिए हुए थे। उनके चेहरे पर अभी भी सदमे और निराशा के बादल थे, और बंकर में एक उदास चुप्पी छाई हुई थी। जब रिया वहाँ पहुँची, तो हर कोई उसे देखकर हैरान रह गया।



    "राजकुमारी रिया!" एक बूढ़ा सेनापति फुसफुसाया, जैसे उसे विश्वास न हो रहा हो। "आप... आप जीवित हैं?"



    रिया ने सिर हिलाया। उसके शरीर पर अभी भी धूल और मलबे के निशान थे, लेकिन उसकी आँखों में एक नई आग थी। "मैं जीवित हूँ, जनरल। और मैं यहाँ इसलिए हूँ क्योंकि हमें कोई रास्ता निकालना होगा।"



    उसने बंकर के मुख्य कमरे में प्रवेश किया, जहाँ एक विशाल होलोग्राफिक मानचित्र दुनिया की वर्तमान स्थिति दिखा रहा था—लाल रंग में कलासुर के विनाश के क्षेत्र चिह्नित थे, और हरे रंग में बची हुई सेनाओं के अंतिम गढ़। यह मानचित्र एक डरावनी कहानी बयां कर रहा था।



    "हमें तुरंत सभी संचार चैनलों को सक्रिय करना होगा," रिया ने आदेश दिया। उसकी आवाज़ में वह शाही अधिकार था, जो सम्राट विक्रम के साथ भी मुकाबला कर सकता था। "मुझे मित्र राष्ट्रों के बचे हुए जनरलों से बात करनी है। विशेषकर पृथ्वी और वायु कुल के बचे हुए नेताओं से।"



    सेनापतियों में से एक ने विरोध किया। "राजकुमारी, आप क्या कह रही हैं? वे हमारे दुश्मन हैं! उन्होंने ही राजधानी पर हमला किया था!"



    रिया ने उस सेनापति की ओर देखा, उसकी आँखें तेज़ थीं। "अब कोई दुश्मन नहीं है, जनरल। केवल कलासुर है। उसने हमारे राज्य को नष्ट कर दिया है। उसने हमारी राजधानी को राख कर दिया है। उसने हमारे लोगों को मार दिया है। वह रुकने वाला नहीं है। अगर हमें जीवित रहना है, तो हमें एक होना होगा। यह एक तत्काल युद्धविराम है। हम सभी को एक साथ लड़ना होगा, या हम सब मारे जाएँगे।"



    कमरे में एक भारी चुप्पी छा गई। सैनिक और अधिकारी एक-दूसरे को देखने लगे। उनके मन में अविश्वास था, पुरानी शत्रुता का जहर अभी भी उनके खून में था, लेकिन कलासुर का भय उस जहर से भी बड़ा था। उन्होंने देखा कि राजकुमारी रिया, जो कभी उनके गौरवशाली सम्राट की बेटी थी, अब एक टूटे हुए साम्राज्य का नेतृत्व करने के लिए खड़ी थी, और वह एक रास्ता सुझा रही थी, जो असंभव लग रहा था, लेकिन जिसके बिना शायद कोई उम्मीद ही नहीं थी।



    एक युवा अधिकारी ने धीरे से कहा, "लेकिन राजकुमारी... क्या वे हमें सुनेंगे? क्या वे विश्वास करेंगे?"



    रिया ने मानचित्र की ओर देखा, जहाँ कलासुर की काली शक्ति बढ़ती जा रही थी। "उन्हें करना होगा," उसने कहा। "क्योंकि अगर वे नहीं करते, तो कलासुर हम में से किसी को भी नहीं बख्शेगा। यह हमारी आखिरी उम्मीद है।" उसकी आवाज़ में दृढ़ता थी, लेकिन उसके अंदर, वह भी जानती थी कि यह सिर्फ़ एक शुरुआत थी। अविश्वास और भय की दीवार इतनी आसानी से नहीं टूटेगी।



    उधर गुरु वशिष्ठ के गुप्त स्थान पर, आरव, समीर और भैरवी भी रिया के निर्णय से स्तब्ध थे। भैरवी अभी भी सदमे में थी, उसकी आँखें दूर अंतरिक्ष में केंद्रित थीं, जैसे वह अपने देश के विनाश को फिर से देख रही हो। समीर ने अपने माथे पर हाथ रखा। "युद्धविराम... एक साथ लड़ना... यह तो किसी सपने जैसा लगता है।"



    आरव चुप था, लेकिन उसके मन में एक ही विचार घूम रहा था - क्या रिया सफल होगी? और अगर वह सफल होती भी है, तो क्या यह कलासुर को रोकने के लिए पर्याप्त होगा? उस दैत्य की शक्ति ने उसे असहाय महसूस कराया था, और अब वह जान गया था कि उसकी वर्तमान शक्ति उस खतरे के सामने कुछ भी नहीं थी।



    रिया ने संचार यंत्रों को सक्रिय किया, और उसकी आवाज़, एक तत्काल युद्धविराम की घोषणा करते हुए, दुनिया के कोने-कोने तक जाने लगी, उन सभी बची हुई सेनाओं और नेताओं तक, जो अभी भी जीवित थे। उसे नहीं पता था कि कितने लोग सुनेंगे, कितने विश्वास करेंगे। लेकिन यह उसकी पहली चाल थी, अराजकता के बीच एकजुट होने की एक हताश कोशिश।



    कमरे में सिर्फ़ संचार यंत्रों की हल्की गूँज और बंकर की दीवारों की खामोशी थी। सभी की आँखें रिया पर टिकी थीं, यह देखने के लिए कि क्या यह असंभव गठबंधन बन पाएगा या नहीं।

  • 16. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 16

    Words: 19

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 16
    कमरे में सिर्फ़ संचार यंत्रों की हल्की गूँज और बंकर की दीवारों की खामोशी थी। सभी की आँखें रिया पर टिकी थीं, यह देखने के लिए कि क्या यह असंभव गठबंधन बन पाएगा या नहीं।

    रिया ने अपने सामने के संचार कंसोल पर हाथ रखा। "राजकुमारी रिया यहाँ से बोल रही है," उसकी आवाज़ में दृढ़ता और अधिकार दोनों थे। "अग्नि गणराज्य की बची हुई सेना की ओर से, मैं सभी मित्र राष्ट्रों—जल साम्राज्य, वायु कुल, पृथ्वी राज्य—और किसी भी अन्य जीवित बल के लिए एक तत्काल और बिना शर्त युद्धविराम की घोषणा करती हूँ।"

    बंकर के अधिकारी फुसफुसा रहे थे, उनकी आँखों में संदेह था, लेकिन रिया ने उन्हें अपनी एक तीव्र नज़र से शांत कर दिया।

    "हमारा एक नया दुश्मन है," रिया ने अपनी बात जारी रखी, उसकी आवाज़ अब केवल अग्नि गणराज्य के बंकर तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि रेडियो तरंगों के माध्यम से दुनिया के हर कोने तक पहुँच रही थी। "कलासुर। उसने हमारे राज्य को नष्ट कर दिया है, और वह पूरी दुनिया को शून्य में बदलने वाला है। अब हमारे पास एक-दूसरे से लड़ने का समय नहीं है। हमें एकजुट होना होगा, या हम सब मारे जाएँगे।"

    **गुरु वशिष्ठ के गुप्त ठिकाने में:**

    आरव, समीर और भैरवी एक बड़ी होलोग्राफिक स्क्रीन के सामने बैठे थे, जिस पर दुनिया का मानचित्र और सक्रिय संचार चैनलों का जाल दिखाई दे रहा था। रिया की आवाज़ साफ़ और स्पष्ट आ रही थी।

    "वह क्या कर रही है?" भैरवी ने धीरे से पूछा, उसकी आवाज़ में अभी भी अपने देश के विनाश का सदमा था। "क्या... क्या कोई उस पर विश्वास करेगा?"

    समीर ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "हमें करना होगा, भैरवी। कोई और रास्ता नहीं है।" उसकी आँखों में एक नई चमक थी, जो निराशा के बावजूद आशा की एक किरण दिखा रही थी। "रिया सही कह रही है। अगर हमें जीवित रहना है, तो हमें एक साथ खड़ा होना होगा।"

    तभी, स्क्रीन पर एक हरा बिंदु चमकने लगा, जो दर्शाता था कि किसी ने रिया के संदेश का जवाब दिया है।

    "यह... यह जल साम्राज्य से है!" समीर ने हैरान होकर कहा। "मंत्री जलसेन का व्यक्तिगत कोड!"

    रिया की आवाज़ एक पल के लिए रुक गई, और फिर उसने जारी रखा, "जलसेन! क्या तुम मुझे सुन रहे हो?"

    स्क्रीन पर मंत्री जलसेन का चेहरा दिखाई दिया। उनका चेहरा थका हुआ और उदास था, उनकी त्वचा सामान्य से अधिक नीली लग रही थी, जैसे कि वे लंबे समय से पानी के गहरे दबाव में रह रहे हों। "राजकुमारी रिया," जलसेन ने शांत आवाज़ में कहा, "मैंने आपकी घोषणा सुनी। मैं... मैं आपकी बात समझता हूँ। जलधि... जलधि अब डूब रहा है। हमारे पास लड़ने के लिए और कुछ नहीं बचा है।"

    एक गहरी साँस लेते हुए जलसेन ने कहा, "हम सहमत हैं। अगर हम अपने लोगों को बचाना चाहते हैं, तो हमें अपनी पुरानी शत्रुता को भूलना होगा। जल साम्राज्य... जल साम्राज्य युद्धविराम के लिए तैयार है।"

    समीर के चेहरे पर एक राहत भरी मुस्कान फैली। "जलसेन ने हाँ कर दी!"

    भैरवी ने अपना सिर हिलाया। "लेकिन पृथ्वी राज्य का क्या?"

    कुछ ही क्षणों बाद, एक और हरा बिंदु चमका। यह पृथ्वी राज्य के एक जीवित सेनापति का कोड था, जो एक दूर के पहाड़ी किले में छिपा हुआ था। "राजकुमारी रिया... मैं आपको सुन रहा हूँ। हम... हमने बहुत कुछ खो दिया है। हमारी धरती फट चुकी है। लेकिन हम अभी भी लड़ना चाहते हैं।" उसकी आवाज़ में दर्द था, लेकिन एक दृढ़ता भी थी। "अगर अग्नि गणराज्य और जल साम्राज्य तैयार हैं, तो हम भी तैयार हैं। हम अपनी धरती को बचाने के लिए कुछ भी करेंगे।"

    एक-एक करके, छोटे-छोटे प्रतिरोध समूह, बिखरी हुई सेनाएँ, और हताश नेता रिया के युद्धविराम के आह्वान का जवाब दे रहे थे। कुछ अभी भी अविश्वास में थे, कुछ शर्त लगा रहे थे, लेकिन अंततः, कलासुर के भय ने उन्हें एक साथ खींच लिया।

    "मुझे विश्वास नहीं होता," आरव ने फुसफुसाया। "रिया ने यह कर दिखाया। उसने उन्हें एकजुट कर दिया।"

    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं। "भय एक शक्तिशाली प्रेरक है, मेरे बेटे। और जब अस्तित्व ही खतरे में हो, तो लोग अकल्पनीय काम कर सकते हैं।"

    कुछ दिनों बाद, दुनिया के एक प्राचीन, गुप्त स्थान पर—एक विशाल भूमिगत गुफा, जिसे "एकता की गुफा" कहा जाता था—दुनिया के बचे हुए सबसे शक्तिशाली गुरुओं और जनरलों का एक समूह इकट्ठा हुआ। यह एक अजीबोगरीब दृश्य था: अग्नि गणराज्य के गर्वित सेनापति, जल साम्राज्य के शांत तत्वधारी, पृथ्वी राज्य के मज़बूत योद्धा, और वायु कुल के बचे हुए हवाई योद्धा, सब एक ही मेज पर बैठे थे। रिया, समीर, और भैरवी भी वहाँ मौजूद थे, हालांकि आरव और गुरु वशिष्ठ गुप्त ठिकाने में ही थे, स्थिति पर नज़र रख रहे थे।

    वातावरण में अभी भी तनाव था, लेकिन एक साझा दुश्मन के सामने, पुरानी दुश्मनी को दरकिनार करना पड़ा।

    "राजकुमारी रिया," जल साम्राज्य के मंत्री जलसेन ने अपनी शांत आवाज़ में कहा। "हमने युद्धविराम को स्वीकार किया है। अब सवाल यह है कि हम कलासुर का सामना कैसे करेंगे। उसकी शक्ति अकल्पनीय है।"

    रिया ने समीर और भैरवी की ओर देखा। "हमने उसे अपनी आँखों से देखा है। वह हर तत्व को सोख लेता है। हमारी पारंपरिक युद्ध रणनीतियाँ उस पर काम नहीं करेंगी।"

    समीर ने आगे बढ़कर कहा, "कलासुर की शक्ति उसे अजेय बनाती है। हमें उसे रोकने के लिए एक अभूतपूर्व शक्ति की आवश्यकता होगी। हमारी सारी शक्ति को एक साथ जोड़ना होगा।"

    पृथ्वी राज्य के एक वृद्ध सेनापति ने सिर हिलाया। "मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी धरती की रक्षा में बिताई है। लेकिन मैंने कभी ऐसी विनाशकारी शक्ति नहीं देखी। हमें अपनी सारी बची हुई ऊर्जा को एक साथ लाना होगा। एक 'महा-सामूहिक प्रहार'।"

    कई घंटे की बहस के बाद, एक योजना बनी। दुनिया के सबसे शक्तिशाली जीवित तत्वधारियों का एक दल, जिसमें हर राज्य के प्रतिनिधि शामिल थे, कलासुर का सामना करने जाएगा। वे अपनी सारी शक्ति को एक साथ जोड़कर एक संयुक्त, विनाशकारी तात्विक हमला करेंगे। यह एक अंतिम, हताश प्रयास था।

    "कौन जाएगा?" एक वायु कुल के बचे हुए कमांडर ने पूछा।

    रिया ने दृढ़ता से कहा, "मैं जाऊँगी। मैं अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करूँगी।"

    भैरवी ने बिना झिझके कहा, "मैं पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करूँगी।"

    समीर ने आगे बढ़कर कहा, "मैं वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करूँगा।"

    जलसेन ने भी कहा, "मैं जल तत्व का प्रतिनिधित्व करूँगा।"

    उनके साथ, कई और शक्तिशाली जनरल और तत्वधारी भी शामिल हो गए, जिन्होंने अपने जीवन भर अपने तत्वों की महारत हासिल की थी। यह एक ऐसी सेना थी जो पहले कभी नहीं देखी गई थी - विविधता में एकता, एक अंतिम आशा की किरण।

    **कुछ दिनों बाद, कलासुर के विनाश के ठीक बीच में, जहाँ कभी अग्नि गणराज्य की राजधानी खड़ी थी।**

    यह स्थान अब केवल राख, मलबे और शून्य ऊर्जा का एक विशाल, बंजर रेगिस्तान था। आसमान काला था, हवा में धूल और मौत की गंध थी। इस भयानक परिदृश्य के बीच, कलासुर एक काली, अजेय आकृति के रूप में खड़ा था, जो अपने हाथों को फैलाए हुए था, जैसे दुनिया से अंतिम ऊर्जा को सोख रहा हो।

    तभी, क्षितिज पर, प्रकाश के पाँच अलग-अलग स्तंभ दिखाई दिए। ये प्रकाश के स्तंभ कलासुर की ओर तेज़ी से बढ़ रहे थे - लाल अग्नि की चमक, नीला जल की लहर, हरा पृथ्वी की दृढ़ता, सफेद वायु की गति, और उनके बीच एक बैंगनी चमक जो आकाश-तत्व की उपस्थिति का संकेत थी, हालाँकि आरव वहाँ नहीं था। यह संयुक्त दल था।

    रिया, भैरवी, समीर, जलसेन, और उनके साथ अन्य शक्तिशाली तत्वधारी हवा में तैरते हुए कलासुर के सामने आ गए। उनके चेहरे पर दृढ़ संकल्प था, लेकिन आँखों में भय की एक हल्की सी छाया भी थी।

    "कलासुर!" रिया ने चिल्लाया, उसकी आवाज़ इस विशाल शून्य में गूँज उठी। "तुम रुकोगे! तुम इस दुनिया को नष्ट नहीं कर सकते!"

    कलासुर ने अपनी आँखें उठाईं। उसकी काली, शून्य भरी आँखों में कोई भाव नहीं था, केवल एक अजीब सी शून्यता थी। उसने उन्हें देखा, जैसे वे मात्र कीड़े हों।

    "अस्तित्व के ये छोटे-मोटे झगड़े," कलासुर की आवाज़ गूँजी, जो सीधे उनके दिमाग में प्रवेश कर रही थी। "निरर्थक। हर चीज़ को अंततः शून्य में विलीन होना है। मैं केवल प्रक्रिया को तेज़ कर रहा हूँ।"

    "हमारी दुनिया को नष्ट करने के लिए नहीं!" भैरवी ने गरजकर कहा।

    "हम तुम्हें नहीं बख्शेंगे!" समीर ने जोड़ा।

    रिया ने अपने हाथों में एक विशाल, भयंकर अग्नि-गोला तैयार किया, जो शुद्ध, जलती हुई ऊर्जा से बना था। "यह अग्नि गणराज्य की अंतिम ज्वाला है!"

    भैरवी ने ज़मीन से एक विशालकाय चट्टानी हाथ ऊपर उठाया, जो कलासुर को कुचलने के लिए तैयार था। "यह धरती का क्रोध है!"

    समीर ने अपने चारों ओर एक विशालकाय बवंडर पैदा किया, जिसमें हवा की धारें तेज़ धार वाली ब्लेडों की तरह नाच रही थीं। "यह वायु कुल का अंतिम प्रहार है!"

    जलसेन ने अपने हाथों में समुद्र की विशाल ऊर्जा को केंद्रित किया, जिससे एक सुनामी जैसी लहर पैदा हुई, जो कलासुर को निगलने के लिए तैयार थी। "यह जल साम्राज्य का रोष है!"

    सभी ने एक साथ अपनी पूरी शक्ति का उपयोग किया। लाल, नीली, हरी, और सफेद ऊर्जा की किरणें एक साथ मिलीं, एक विशाल, इंद्रधनुषी, विनाशकारी प्रहार बनाते हुए, जो सीधे कलासुर की ओर बढ़ा। यह एक ऐसा हमला था, जिसे दुनिया ने कभी नहीं देखा था - हर तत्व की शक्ति का मिलन, एक ही लक्ष्य के साथ।

    गुरु वशिष्ठ के गुप्त ठिकाने में, आरव ने यह सब होलोग्राफिक स्क्रीन पर देखा। उसकी साँसें रुक गई थीं। "यह... यह काम करना चाहिए," उसने फुसफुसाया। "यह उसकी शक्ति से भी ज़्यादा है..."

    लेकिन स्क्रीन पर जो हुआ, उसने आरव और गुरु वशिष्ठ दोनों को सदमे में डाल दिया।

    महा-सामूहिक प्रहार कलासुर से टकराया। एक जबरदस्त विस्फोट हुआ, जिससे पूरी दुनिया काँप उठी। प्रकाश इतना तीव्र था कि आँखों को चकाचौंध कर रहा था। लेकिन जब प्रकाश कम हुआ, तो जो दृश्य सामने आया, वह दिल दहला देने वाला था।

    कलासुर अभी भी वहाँ खड़ा था। बिना हिला-डुले। उस पर एक खरोंच भी नहीं थी। उसके चारों ओर, तत्वों की वह विनाशकारी ऊर्जा, जो उस पर फेंकी गई थी, अब उसके शरीर में विलीन हो रही थी, जैसे एक विशालकाय, काला छेद हर चीज़ को निगल रहा हो।

    कलासुर ने धीरे-धीरे अपने हाथों को ऊपर उठाया, जैसे वह एक स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले रहा हो। उसकी आवाज़ फिर से उनके दिमाग में गूँजी, इस बार एक अजीब, शांत कृतज्ञता के साथ, लेकिन जिसमें एक भयानक उपहास भी छिपा था।

    "धन्यवाद," कलासुर ने कहा, उसकी आवाज़ में एक हल्की सी हँसी थी। "इस ऊर्जा के लिए। मुझे इसकी ज़रूरत थी।"

    और फिर, बिना किसी चेतावनी के, कलासुर ने अपने हाथों को ज़ोर से नीचे की ओर किया। उसके शरीर से एक काली ऊर्जा की लहर निकली, जो पहले की सभी तात्विक ऊर्जाओं से कहीं अधिक तीव्र और केंद्रित थी। यह ऊर्जा लहर सीधे रिया, समीर, भैरवी, जलसेन और उनके साथ खड़े सभी शक्तिशाली तत्वधारियों पर पड़ी।

    एक पल में, सब कुछ खत्म हो गया। कोई चीख़ नहीं, कोई संघर्ष नहीं। वे सभी, एक पल में, राख के ढेरों में बदल गए, उनकी तात्विक ऊर्जा पूरी तरह से कलासुर द्वारा सोख ली गई। उनकी आशा, उनका संघर्ष, उनकी शक्ति - सब कुछ एक पल में शून्य में विलीन हो गया।

    होलोग्राफिक स्क्रीन पर, आरव ने देखा कि कैसे प्रकाश के वे सभी बिंदु एक-एक करके बुझ गए। रिया, समीर, भैरवी... जलसेन... सभी। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वे जम गए थे। उसके दोस्त, जो इतनी मुश्किल से एक साथ आए थे, एक पल में खत्म हो गए थे।

    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उनके चेहरे पर गहरी पीड़ा थी। "नहीं..." उन्होंने फुसफुसाया।

    आरव के मन में एक गहरा, ठंडा भय छा गया। यह कोई युद्ध नहीं था। यह नरसंहार था। कलासुर अजेय था। वे सब हार चुके थे। दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोग एक झटके में खत्म हो गए थे। अब क्या? अब कौन बचा था?

  • 17. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 17

    Words: 10

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 17
    होलोग्राफिक स्क्रीन पर, आरव ने देखा कि कैसे प्रकाश के वे सभी बिंदु एक-एक करके बुझ गए। रिया, समीर, भैरवी... जलसेन... सभी। कलासुर की काली ऊर्जा ने उन्हें निगल लिया था, और वे एक पल में अदृश्य हो गए, जैसे वे कभी वहाँ थे ही नहीं। उनकी तात्विक ऊर्जा पूरी तरह से कलासुर द्वारा सोख ली गई थी। आरव की आँखों में आँसू थे, लेकिन वे जम गए थे। उसके दोस्त, जो इतनी मुश्किल से एक साथ आए थे, एक पल में खत्म हो गए थे।



    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उनके चेहरे पर गहरी पीड़ा थी। "नहीं..." उन्होंने फुसफुसाया। उनकी आवाज़ में इतना दर्द था, जैसे उन्होंने अपने ही बच्चों को खो दिया हो।



    आरव के मन में एक गहरा, ठंडा भय छा गया। यह कोई युद्ध नहीं था। यह नरसंहार था। कलासुर अजेय था। वे सब हार चुके थे। दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोग एक झटके में खत्म हो गए थे। अब क्या? अब कौन बचा था?



    वह कुर्सी से गिर पड़ा, उसके घुटने ज़मीन से टकराए। उसका सिर होलोग्राफिक स्क्रीन की ओर झुका हुआ था, जहाँ अब सिर्फ़ कलासुर की काली आकृति दुनिया के खंडहरों के बीच अकेली खड़ी थी। उसके अंदर का सारा साहस, सारी शक्ति, एक पल में बह गई थी।



    "गुरुदेव..." आरव की आवाज़ मुश्किल से निकल पाई। "वे... वे सब चले गए। रिया... समीर... भैरवी..." उसकी आँखों के सामने उनके चेहरे घूम रहे थे - रिया की दृढ़ता, समीर की समझदारी, भैरवी की शांत शक्ति। वे सब चले गए थे। "उसने... उसने उन्हें निगल लिया। यह कैसे हो सकता है? उनकी शक्ति... वह सब एक साथ...!"



    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं। उनकी आँखों में भी दर्द था, लेकिन एक पुरानी, गहरी समझ भी थी। "कलासुर... वह किसी भी तत्व की ऊर्जा को सोख सकता है, मेरे बेटे। वह स्वयं शून्य का प्रतीक है। अस्तित्व में जो कुछ भी है, वह उसे अनस्तित्व में बदल सकता है।"



    आरव ने अपना सिर उठाया, उसकी आँखों में निराशा थी। "तो फिर... क्या कोई उम्मीद नहीं है? हम क्या कर सकते हैं? हम सब हार गए?" उसकी आवाज़ में एक बच्चे जैसी लाचारी थी, जो अपने सबसे बड़े डर का सामना कर रहा था।



    गुरु वशिष्ठ ने एक गहरी साँस ली। "उम्मीद हमेशा होती है, आरव। भले ही वह कितनी ही छोटी क्यों न लगे। लेकिन यह सत्य है कि हमारी वर्तमान समझ और शक्ति उसके सामने कुछ भी नहीं है।"



    उसी पल, गुप्त ठिकाने के संचार यंत्रों पर दहशत भरी आवाज़ें गूँजने लगीं। दुनिया भर से संदेश आ रहे थे - टूटे हुए, बिखरे हुए, दहशत से भरे हुए।



    "कलासुर ने... उसने सभी को हरा दिया!" एक आवाज़ चीख़ी। "अग्नि गणराज्य की राजधानी... वह पूरी तरह से नष्ट हो गई है! कोई नहीं बचा!"



    "मंत्री जलसेन... वे भी नहीं रहे!" दूसरी आवाज़ ने कहा। "जलधि पर हमला... उसने सब कुछ सोख लिया! समुद्र का पानी काला हो गया है!"



    "वायु कुल के लड़ाके... वे भी नहीं बच पाए!" एक और आवाज़, जो कभी समीर के एक सैनिक की थी, अब टूट चुकी थी। "कोई आशा नहीं बची है!"



    दुनिया भर में, इस विनाशकारी हार की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। हर तरफ से दहशत और निराशा की लहरें उठने लगीं। लोग अपने घरों से भाग रहे थे, शहरों को खाली कर रहे थे, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि कहाँ जाएँ। कलासुर की शक्ति का पहला प्रदर्शन ही इतना भयानक था कि उसने सारी आशा को कुचल दिया था।



    बाहर की दुनिया में, जहाँ कभी विशाल शहर और जीवंत गाँव थे, अब सिर्फ़ उजाड़ और डर का राज था। लोग आसमान की ओर देख रहे थे, जहाँ कलासुर की काली छाया कभी-कभी दिखाई देती थी, और डर के मारे काँप उठते थे।



    कुछ क्षेत्रों में, जहाँ लोग हमेशा से शक्ति के आगे झुकते थे, एक अजीबोगरीब घटना होने लगी। कुछ हताश लोग, कलासुर की अजेय शक्ति को देखकर, उसे एक देवता मानने लगे।



    एक दूरदराज के गाँव में, एक भीड़ खाली मैदान में इकट्ठा हो गई थी। एक बूढ़ा आदमी, जो कभी एक साधारण किसान था, अब अपने घुटनों पर झुका हुआ था, आसमान की ओर हाथ जोड़े हुए। "दया करो, कलासुर!" वह चीख़ा। "हमें बख्श दो! हम तुम्हारे सेवक हैं! हमें शून्य में विलीन मत करो!"



    उसके पीछे खड़े लोग भी उसके साथ दोहरा रहे थे, "दया करो! हमें बख्श दो!" उनकी आवाज़ों में भय था, लेकिन एक अजीब सी भक्ति भी थी, जैसे वे अपनी जान बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हों। उन्हें लगा कि अगर वे कलासुर की पूजा करेंगे, तो शायद वह उन्हें बख्श देगा। यह उनकी निराशा की चरम सीमा थी।



    "राजकुमारी रिया ने हमें धोखा दिया!" एक औरत ने रोते हुए कहा। "उसके पिता ने ही इस दैत्य को जगाया था! अब वह हम सब को ले जाएगा!"



    "शून्य ही अंत है," एक दूसरा आदमी फुसफुसाया। "हम उसके खिलाफ नहीं लड़ सकते। हमें उसे स्वीकार करना होगा।"



    सबसे दुखद बात यह थी कि कलासुर के उदय और उसके द्वारा तात्विक ऊर्जा के लगातार सोखने से, दुनिया भर के तत्वधारी अपनी शक्तियों को कमजोर महसूस करने लगे।



    एक जल-तत्वधारी, जो कभी एक छोटी नदी को मोड़ सकता था, अब एक गिलास पानी को मुश्किल से हिला पा रहा था। उसकी आँखों में दहशत थी। "मेरी शक्ति... यह कम हो रही है! मैं... मैं अब कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ!"



    एक युवा अग्नि-तत्वधारी, जो कभी अपनी मुट्ठी से आग के गोले निकालता था, अब एक छोटी सी लौ को भी मुश्किल से जला पा रहा था। उसका हाथ काँप रहा था। "यह... यह संभव नहीं है! हमारी शक्तियाँ... कहाँ जा रही हैं?"



    पृथ्वी-तत्वधारी अपनी ज़मीन को महसूस नहीं कर पा रहे थे, वायु-तत्वधारी हवा पर नियंत्रण खो रहे थे। कलासुर हर गुजरते पल के साथ दुनिया की तात्विक ऊर्जा को सोख रहा था, जिससे तत्वधारी केवल साधारण मनुष्यों की तरह होते जा रहे थे, असहाय और कमज़ोर। यह उनकी पहचान का अंत था।



    गुरु वशिष्ठ के ठिकाने में वापस, आरव संचार चैनलों से आ रही उन आवाज़ों को सुन रहा था। उसके चेहरे पर गहरा दर्द था। उसने अपने हाथों को देखा, फिर उन्हें भींच लिया। उसकी आकाश-शक्ति, जो कभी असीमित लगती थी, अब उसे भारी महसूस हो रही थी। वह जानता था कि वह उसके सामने कितना कमज़ोर है।



    "यह सब खत्म हो रहा है, गुरुदेव," आरव ने कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी खामोशी थी। "कलासुर हमारी दुनिया को मार रहा है। और मैं... मैं कुछ नहीं कर सकता। मैंने रिया, समीर और भैरवी को खो दिया। मैं उन्हें बचाने के लिए भी कुछ नहीं कर पाया।" उसने खुद को दोषी ठहराया, उसकी आँखों में खुद के प्रति घृणा थी।



    गुरु वशिष्ठ ने अपना हाथ आरव के कंधे पर रखा। "आरव, यह तुम्हारी गलती नहीं है, मेरे बेटे। तुमने अपनी पूरी कोशिश की। तुम अकेले कलासुर का सामना नहीं कर सकते।"



    "तो फिर क्या करें?" आरव ने अपने माथे पर हाथ रखा। "हम यहीं बैठे रहें और उसे सब कुछ नष्ट करते हुए देखें? जब तक वह हमें भी शून्य में विलीन न कर दे?"



    गुरु वशिष्ठ ने उदासी से आरव की ओर देखा। "नहीं, हम ऐसा नहीं करेंगे। हम कभी हार नहीं मानेंगे।" उनकी आवाज़ में एक पुरानी दृढ़ता थी, जो इतनी निराशा के बाद भी कायम थी। "हमारे पास अभी भी कुछ समय है। और इस समय का उपयोग हमें करना होगा।"



    आरव ने उन्हें देखा। "समय? किस लिए? जब हमारे सारे दोस्त चले गए हों, और कलासुर अजेय हो?"



    गुरु वशिष्ठ ने धीरे से सिर हिलाया। "कलासुर अजेय है... हमारी वर्तमान समझ से। लेकिन हर चीज़ की एक कमजोरी होती है, आरव। और मुझे लगता है कि मैं जानता हूँ कि हमें उसे कहाँ खोजना है।" उन्होंने धीरे से अपनी उंगली उठाई और छत की ओर इशारा किया, जहाँ एक पुराना, धूल भरा झूमर लटका हुआ था। "इस मठ में... इस जगह की दीवारों में सदियों के रहस्य छिपे हैं। रहस्य जो कलासुर के उदय से भी पहले के हैं।"



    आरव ने झूमर की ओर देखा, फिर गुरु वशिष्ठ की ओर, उसकी आँखों में एक हल्की सी जिज्ञासा थी। क्या गुरुदेव के पास कोई छिपा हुआ रास्ता था? क्या इतनी बड़ी हार के बाद भी, कोई उम्मीद की किरण थी?



    "गुरुदेव... आप क्या कहना चाहते हैं?" आरव ने पूछा, उसकी आवाज़ में अभी भी निराशा की परत थी, लेकिन एक सूक्ष्म आशा भी जाग रही थी। "क्या कोई... कोई तरीका है?"



    गुरु वशिष्ठ के चेहरे पर एक शांत, दृढ़ भाव था। "हाँ, मेरे बेटे। एक तरीका है। लेकिन यह रास्ता बहुत खतरनाक है। यह तुम्हें ऐसे ज्ञान की ओर ले जाएगा, जिसकी कल्पना भी करना मुश्किल है। और यह तुम्हें कलासुर से भी गहरे शून्य के करीब ले जाएगा।"



    आरव उनकी बात समझ नहीं पाया, लेकिन उसके दिल में एक नई धड़कन उठी। उसे लगा, शायद, बस शायद, अभी भी कुछ बचा था जिसके लिए लड़ा जा सकता था। लेकिन उसे नहीं पता था कि यह रास्ता उसे कहाँ ले जाएगा, और क्या वह उस रास्ते पर अकेला होगा।

  • 18. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 18

    Words: 28

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 18
    आरव उनकी बात समझ नहीं पाया, लेकिन उसके दिल में एक नई धड़कन उठी। उसे लगा, शायद, बस शायद, अभी भी कुछ बचा था जिसके लिए लड़ा जा सकता था। लेकिन उसे नहीं पता था कि यह रास्ता उसे कहाँ ले जाएगा, और क्या वह उस रास्ते पर अकेला होगा।

    गुरु वशिष्ठ ने आरव के कंधे पर अपना हाथ रखा, उसे धीरे से उठाया और एक पुरानी बेंच पर बिठाया। कमरे की हवा में एक अजीब सी चुप्पी थी, जो अभी भी दुनिया भर से आ रही दहशत भरी आवाज़ों से टूटी हुई थी। संचार यंत्र अभी भी फुसफुसा रहे थे, लेकिन आरव ने उनकी ओर देखना बंद कर दिया था। उसकी नज़रें ज़मीन पर टिकी थीं, जैसे वह अपने अंदर की खाली जगह को देख रहा हो।

    "आरव," गुरु वशिष्ठ ने शांत, लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा। "क्या तुम जानते हो कि मैं तुम्हें इस मठ में क्यों लाया हूँ?"

    आरव ने धीरे से सिर उठाया, उसकी आँखों में कोई भाव नहीं था। "मुझे नहीं पता, गुरुदेव। मैं... मैं अब कुछ नहीं समझ पा रहा हूँ। सब कुछ खत्म हो गया है।"

    "नहीं, मेरे बेटे," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। जब तक साँसें चल रही हैं, तब तक उम्मीद है।" उन्होंने अपनी पुरानी, झुर्रियों वाली उंगली से कमरे की दीवारों की ओर इशारा किया। "यह मठ, जिसे 'ज्ञान-गुफा' के नाम से जाना जाता है, केवल एक गुप्त ठिकाना नहीं है। यह मेरे जीवन का उद्देश्य है।"

    आरव ने मठ की दीवारों की ओर देखा। वे पत्थर की बनी थीं, उन पर प्राचीन नक्काशियाँ थीं जो धूमिल पड़ चुकी थीं। हवा में मिट्टी और पुरानी किताबों की गंध थी। यह जगह शांत थी, कलासुर के विनाश से अछूती लगती थी, जैसे एक समय का बुलबुला हो। लेकिन क्या यह वास्तव में उन्हें बचा सकता था?

    "सदियों से," गुरु वशिष्ठ ने अपनी बात जारी रखी, उनकी आवाज़ में एक दूर की स्मृति का दुख था। "मेरे पूर्वजों, और मैंने खुद, इस अंधेरे के वापस आने की संभावना का अध्ययन किया है। हम जानते थे कि एक दिन 'शून्य का दैत्य' फिर से आज़ाद हो सकता है। यह कलासुर, जिसे तुम देख रहे हो, कोई नई शक्ति नहीं है। वह एक प्राचीन अस्तित्व है, जिसे पहली बार आकाश-वंशियों ने ही सील किया था।"

    आरव की आँखें चौड़ी हो गईं। "क्या? पहली बार?"

    "हाँ," गुरु वशिष्ठ ने सिर हिलाया। "लाखों साल पहले, जब दुनिया अभी अपनी प्राथमिक अवस्था में थी, कलासुर ने पहली बार अस्तित्व को चुनौती दी थी। वह अराजकता का अवतार था, जो हर चीज़ को शून्य में विलीन करना चाहता था। आकाश-वंशियों ने, जो उस समय सबसे शक्तिशाली तत्वधारी थे, उसे एक साथ मिलकर सील किया था।"

    "तो फिर वह वापस कैसे आया?" आरव ने पूछा, उसके अंदर एक नई जिज्ञासा जाग रही थी, जो उसके दुख को थोड़ी देर के लिए किनारे कर रही थी।

    गुरु वशिष्ठ के चेहरे पर उदासी छा गई। "समय के साथ, वह सील कमजोर होती गई। और अस्तित्व का दर्द... नकारात्मक ऊर्जा... घृणा, भय, मृत्यु... यह सब उस सील के लिए भोजन बन गया। तुम्हारे पिता, सम्राट विक्रम, अनजाने में... या जानबूझकर... उस ऊर्जा को चरम पर ले गए। उन्होंने युद्ध छेड़ा, नफरत फैलाई, और उस सील को तोड़ने के लिए कलासुर के लिए रास्ता बना दिया।"

    आरव ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "तो यह सब... सब मेरे पिता की वजह से हुआ?" उसके अंदर क्रोध की एक लहर उठी, लेकिन वह जानता था कि अब यह सब व्यर्थ था।

    "केवल उनकी वजह से नहीं," गुरु वशिष्ठ ने सुधार किया। "यह एक सदियों पुरानी प्रक्रिया थी। वे केवल अंतिम मोहरा थे। लेकिन अब, आरव, हमें उस सील को फिर से बनाना होगा। और इस बार, हमें उसे इतना शक्तिशाली बनाना होगा कि वह कभी न टूटे।"

    "लेकिन कैसे?" आरव ने निराशा से पूछा। "गुरुदेव, आपने देखा। उसने रिया, समीर, भैरवी... सबको एक पल में खत्म कर दिया। मेरी शक्ति... मेरी आकाश-शक्ति भी उसके सामने कुछ भी नहीं है।"

    गुरु वशिष्ठ मुस्कुराए, उनकी मुस्कान में एक अजीब सी शांति थी। "तुम्हारी शक्ति, मेरे बेटे, अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुई है। और तुम्हें कलासुर को हराने के लिए केवल आकाश-शक्ति की नहीं, बल्कि उससे भी कुछ गहरे की आवश्यकता होगी।" वह अपनी बेंच से उठे और कमरे के एक हिस्से की ओर इशारा किया, जहाँ एक विशालकाय पत्थर की दीवार थी, जिस पर कोई दरवाज़ा दिखाई नहीं दे रहा था। "यहाँ, इस मठ के ठीक नीचे, एक पुस्तकालय है। यह ऐसा ज्ञान रखता है जो दुनिया से सदियों से छिपा हुआ है। वह ज्ञान जो कलासुर को समझने और उसे हराने की कुंजी है।"

    आरव धीरे से उठा और दीवार की ओर बढ़ा। उसने पत्थर पर हाथ रखा, लेकिन उसे कोई दरार या हैंडल महसूस नहीं हुआ। "यह कहाँ है, गुरुदेव?"

    गुरु वशिष्ठ ने अपनी हथेली दीवार पर रखी। उनकी आँखों से एक हल्की नीली रोशनी निकली, और कुछ ही क्षणों में, पत्थर की दीवार धीरे-धीरे खुलने लगी। एक गहरी, पुरानी गंध बाहर आई, और एक अंधेरी सुरंग दिखाई दी, जो नीचे की ओर जा रही थी।

    "यह 'शून्य-पुस्तकालय' है," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "यहाँ, तुम्हें आकाश-तत्व के सबसे गहरे रहस्यों और शून्य की ऊर्जा के बारे में ज्ञान मिलेगा। तुम्हें कलासुर के इतिहास और उसकी कमजोरियों के बारे में पता चलेगा।"

    आरव ने सुरंग के अंदर देखा। यह गहरी और डरावनी लग रही थी, लेकिन उसमें एक अजीब सा आकर्षण भी था। यह एक नया रास्ता था, एक नया उद्देश्य। उसके खोए हुए दोस्तों का बदला लेने का, और दुनिया को बचाने का एक मौका।

    वे सुरंग में नीचे उतरने लगे। सीढ़ियाँ बहुत पुरानी थीं, और उनके पैरों तले धूल की परत जम गई थी। हवा ठंडी और स्थिर थी, जैसे सैकड़ों साल से कोई वहाँ नहीं गया हो।

    अंततः, वे एक विशाल, गोलाकार कक्ष में पहुँचे। यह एक विशाल पुस्तकालय था, जिसकी दीवारों पर छत तक किताबें ही किताबें थीं। हजारों प्राचीन ग्रंथ, चर्मपत्र, और पत्थर की गोलियाँ अलमारियों में करीने से रखी हुई थीं। यहाँ कोई खिड़की नहीं थी, और प्रकाश केवल कुछ चमकते हुए क्रिस्टल से आ रहा था, जो दीवारों में लगे हुए थे, जिससे एक रहस्यमय, नीली रोशनी फैल रही थी।

    "यह सब क्या है?" आरव ने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ में विस्मय था।

    "यह ज्ञान है, मेरे बेटे," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "ज्ञान जो इस दुनिया में कुछ ही लोगों के पास है। कलासुर को सील करने के लिए, तुम्हें सबसे पहले उसे समझना होगा। तुम्हें समझना होगा कि वह क्या है, वह क्यों है, और वह क्या चाहता है।"

    आरव ने एक पुरानी, धूल भरी किताब उठाई। उसके कवर पर अजीब से प्रतीक बने हुए थे। उसने उसे खोला, और अंदर के पन्ने पीले पड़ चुके थे, लेकिन लिखावट अभी भी स्पष्ट थी।

    "तुम यहाँ तब तक अध्ययन करोगे जब तक तुम्हें जवाब न मिल जाए," गुरु वशिष्ठ ने कहा। "मुझे पता है कि तुम थक चुके हो, लेकिन हमारे पास समय नहीं है।"

    आरव ने सिर हिलाया। उसने किताब को वापस रखा और दूसरी उठाई, फिर तीसरी। उसकी निराशा अभी भी गहरी थी, उसके दोस्तों के खोने का दर्द उसे साल रहा था, लेकिन उसके अंदर एक नई दृढ़ता पैदा हो रही थी। वह रिया, समीर और भैरवी की कुर्बानी को व्यर्थ नहीं जाने देगा।

    घंटों बीत गए। आरव एक के बाद एक ग्रंथ पढ़ता रहा। गुरु वशिष्ठ एक कोने में चुपचाप बैठे ध्यान कर रहे थे, अपनी उपस्थिति से आरव को सहारा दे रहे थे।

    आरव को जल्द ही पता चला कि कलासुर को 'मारा' नहीं जा सकता। वह कोई जीवित प्राणी नहीं था जिसे नष्ट किया जा सके। वह 'शून्य' का एक अवतार था, अनस्तित्व की एक शक्ति। उसे केवल 'सील' किया जा सकता था, उसे फिर से उस आयाम में बंद किया जा सकता था जहाँ से वह आया था।

    "गुरुदेव!" आरव ने अचानक चिल्लाया, एक बड़े चर्मपत्र को पढ़ते हुए। "यहाँ लिखा है कि कलासुर को मारा नहीं जा सकता! उसे केवल सील किया जा सकता है!"

    गुरु वशिष्ठ ने अपनी आँखें खोलीं। "हाँ, मेरे बेटे। मैंने तुम्हें बताया था। वह अस्तित्व का विरोधी है। तुम अनस्तित्व को कैसे मार सकते हो? उसे केवल सीमित किया जा सकता है।"

    आरव ने चर्मपत्र को नीचे रखा, उसकी भौहें चढ़ी हुई थीं। "लेकिन यहाँ यह भी लिखा है कि नई सील बनाने के लिए पुरानी से कहीं अधिक शक्ति की आवश्यकता होगी। और यह भी कि... कि पहली सील ने दुनिया की तात्विक ऊर्जा को असंतुलित कर दिया था।"

    गुरु वशिष्ठ ने धीरे से सिर हिलाया। "सही पढ़ा तुमने। जब आकाश-वंशियों ने कलासुर को सील किया, तो उन्होंने अपनी सारी शक्ति का उपयोग किया। यह एक ऐसा कार्य था जिसने स्वयं दुनिया की संरचना को बदल दिया। इस प्रक्रिया ने तात्विक ऊर्जा को अव्यवस्थित कर दिया, जिससे समय के साथ तत्वधारियों की शक्ति कमजोर होती गई और आकाश-तत्व लगभग गायब हो गया।"

    "तो कलासुर का अस्तित्व ही दुनिया के दर्द का एक कारण है," आरव ने फुसफुसाया, यह एक चौंकाने वाली सच्चाई थी। "उस असंतुलन के कारण ही हमारे तत्व कमजोर हुए, और मेरे पिता जैसे लोग शक्तिशाली हुए, क्योंकि वे उस असंतुलन का फायदा उठा सकते थे।"

    "बिल्कुल," गुरु वशिष्ठ ने पुष्टि की। "और अब, हमें उस असंतुलन को ठीक करना होगा। हमें न केवल कलासुर को सील करना होगा, बल्कि दुनिया की तात्विक ऊर्जा को भी संतुलन में लाना होगा। यह एक बहुत बड़ा कार्य है, और इसमें अद्वितीय शक्ति और समझ की आवश्यकता होगी।"

    आरव ने एक क्षण के लिए आँखों को बंद किया। उसके दिमाग में घूम रहे थे रिया के पिता, सम्राट विक्रम की बातें - 'मैंने पर्याप्त नकारात्मक ऊर्जा पैदा की है ताकि एक प्राचीन सील को तोड़ा जा सके।' अब उसे समझ आया कि विक्रम केवल कलासुर को जगाने का एक माध्यम था, एक प्यादा।

    उसने अपने चारों ओर फैली किताबों की ओर देखा। कलासुर की उत्पत्ति, आकाश-वंशियों का इतिहास, शून्य की प्रकृति... यह सब एक विशाल पहेली का हिस्सा था। वह जानता था कि उसके सामने एक लंबा और कठिन रास्ता था। उसके दोस्त अब नहीं थे, और उस पर दुनिया को बचाने का पूरा बोझ आ गया था। उसे अपनी वर्तमान शक्ति की अपर्याप्तता का एहसास हो रहा था, लेकिन वह यह भी जानता था कि उसके पास पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं था।

    "मुझे यह समझना होगा," आरव ने गुरु वशिष्ठ से कहा, उसकी आवाज़ में एक नई, शांत दृढ़ता थी। "मुझे यह सब कुछ समझना होगा। भले ही मुझे शून्य के सबसे गहरे रहस्यों में जाना पड़े।"

    गुरु वशिष्ठ ने मुस्कुराया। "यही भावना है, मेरे बेटे। अब तुम्हें पता है कि तुम्हारी अगली यात्रा कहाँ शुरू होती है।"

    आरव ने फिर से किताबों को उठाना शुरू कर दिया, उसकी आँखों में अब केवल ज्ञान की प्यास थी, निराशा का अंधकार धीरे-धीरे कम हो रहा था, उसकी जगह एक नया, भयावह लेकिन महत्वपूर्ण उद्देश्य ले रहा था। उसे शून्य को समझना था, उसे अपने अंदर समाहित करना था, ताकि वह कलासुर का सामना कर सके। लेकिन वह यह भी जानता था कि यह एक ऐसी यात्रा थी, जो उसे हमेशा के लिए बदल सकती थी।

  • 19. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 19

    Words: 34

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 19
    आरव ने फिर से किताबों को उठाना शुरू कर दिया, उसकी आँखों में अब केवल ज्ञान की प्यास थी, निराशा का अंधकार धीरे-धीरे कम हो रहा था, उसकी जगह एक नया, भयावह लेकिन महत्वपूर्ण उद्देश्य ले रहा था। उसे शून्य को समझना था, उसे अपने अंदर समाहित करना था, ताकि वह कलासुर का सामना कर सके। लेकिन वह यह भी जानता था कि यह एक ऐसी यात्रा थी, जो उसे हमेशा के लिए बदल सकती थी।

    पुस्तकालय की नीली रोशनी में, आरव ने दिन-रात एक कर दिया। वह एक के बाद एक ग्रंथ पढ़ता रहा, उसकी उंगलियाँ धूल भरे पन्नों पर फिरती रहीं। गुरु वशिष्ठ ने उसे भोजन और पानी लाकर दिया, लेकिन आरव का ध्यान इतना गहरा था कि उसे इसकी परवाह भी नहीं थी। उसकी दुनिया अब उन प्राचीन ग्रंथों के पन्नों में सिमट गई थी, जहाँ से उसे कलासुर को हराने की कुंजी मिल सकती थी।

    उसने 'आकाश-तत्व' पर लिखे गए सबसे पुराने ग्रंथों को पढ़ना शुरू किया। ये ग्रंथ इतने रहस्यमयी थे कि उन्हें समझना किसी पहेली को सुलझाने जैसा था। पहले, उसने हमेशा आकाश-तत्व को सर्वोच्च और असीमित शक्ति के रूप में देखा था। लेकिन जैसे-जैसे वह गहराई में उतरता गया, उसे कुछ ऐसा पता चला जो उसकी पूरी समझ को बदल रहा था।

    एक चर्मपत्र पर बने एक जटिल चित्र ने उसका ध्यान खींचा। उसमें एक गोला था, जिसके बीच में एक बिंदु था, और उसके चारों ओर एक अनंत विस्तार था। नीचे, एक प्राचीन भाषा में लिखा था: "अस्तित्व शून्य से जन्म लेता है, और शून्य में विलीन होता है। आकाश शून्य का विरोधी नहीं, बल्कि उसका एक संतुलित रूप है। आकाश अस्तित्व का प्रतीक है, शून्य अनस्तित्व का। एक को नियंत्रित करने के लिए, दूसरे को समझना होगा।"

    आरव ने चर्मपत्र को नीचे रखा, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। "तो... तो आकाश-तत्व केवल अस्तित्व का प्रतिनिधित्व नहीं करता," उसने फुसफुसाया। "यह शून्य के साथ संतुलन बनाता है। यह अस्तित्व को बनाए रखता है, उसे शून्य में विलीन होने से रोकता है।"

    उसने शून्य पर लिखे ग्रंथों को देखना शुरू किया। ये ग्रंथ बहुत कम थे, और उन पर अजीबोगरीब चेतावनी के निशान बने हुए थे। उन्हें पढ़ने का मतलब था, स्वयं अस्तित्व के खिलाफ जाना। लेकिन आरव ने हिचकिचाहट नहीं की। उसने एक काले चमड़े की किताब उठाई, जिस पर कोई शीर्षक नहीं था। अंदर, पन्ने इतने पुराने थे कि वे छूने पर ही टूटने लगते थे।

    "शून्य... वह न तो अच्छा है और न ही बुरा," उसने एक पृष्ठ पर पढ़ा। "वह सिर्फ 'कुछ नहीं' है। वह पूर्ण शांति है, पूर्ण विस्मृति। यह वह जगह है जहाँ सब कुछ समाप्त होता है, और जहाँ से सब कुछ शुरू होता है। कलासुर शून्य का एक सेवक है, जो अस्तित्व के दर्द से इतना थक चुका है कि वह सभी को उसी शांति में ले जाना चाहता है।"

    आरव ने अपने आप को इस विचार में खो दिया। कलासुर बुराई नहीं था, वह केवल 'कुछ नहीं' का अवतार था। वह दुनिया को 'नष्ट' नहीं करना चाहता था, वह उसे 'शून्य' में विलीन करना चाहता था, ताकि सब कुछ शांतिपूर्ण विस्मृति में चला जाए। आरव को एक क्षण के लिए उसके लिए एक अजीब सी सहानुभूति महसूस हुई। अस्तित्व सचमुच दर्दनाक हो सकता है। दुःख, हानि, युद्ध... इन सब से मुक्ति पाना कितना आसान होगा, अगर कोई बस 'कुछ नहीं' बन जाए?

    यह विचार खतरनाक था। शून्य की शांति इतनी मोहक लग रही थी कि आरव को लगा कि वह खुद उसमें डूब जाएगा। लेकिन तभी, उसके मन में रिया की आवाज़ गूँजी, "हम तुम्हारे साथ हैं!" समीर की मुस्कान, भैरवी की शांत शक्ति, गुरु वशिष्ठ का विश्वास... ये सभी उसके अस्तित्व के लंगर थे, जो उसे शून्य के अथाह सागर में डूबने से रोक रहे थे।

    उसे एहसास हुआ कि आकाश-तत्व केवल ऊर्जा का नियंत्रण नहीं था, बल्कि यह अस्तित्व और अनस्तित्व के बीच संतुलन बनाए रखने की शक्ति थी। पहली बार, उसने अपनी आकाश-शक्ति को सिर्फ लड़ने के एक हथियार के रूप में नहीं देखा, बल्कि जीवन के एक मौलिक सिद्धांत के रूप में देखा।

    लेकिन कलासुर को सील करने के लिए, केवल संतुलन को समझना पर्याप्त नहीं था। उसे 'नई सील' बनाने के लिए, अपनी शक्ति को उस स्तर तक बढ़ाना था जहाँ वह शून्य को नियंत्रित कर सके, उसे अपने अंदर समाहित कर सके, बिना खुद शून्य बने।

    आरव ने एक और ग्रंथ उठाया, जिस पर 'आकाश-पुरुष' शब्द लिखा हुआ था। उसने उसे पढ़ना शुरू किया। यह एक प्राचीन विधि थी, जिसके द्वारा एक आकाश-तत्वधारी अपनी चेतना को शून्य के सागर में भेज सकता था, उसे समझ सकता था, और फिर उससे एक नई, असीम शक्ति के साथ लौट सकता था। लेकिन यह अत्यंत खतरनाक था। इसमें अपनी पहचान खोने, या शून्य में हमेशा के लिए विलीन हो जाने का खतरा था।

    'शून्य में खुद को डुबोना...' आरव ने मन ही मन सोचा। 'और फिर उससे लौटना... एक नए रूप में।'

    उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई। यह एक खतरनाक विचार था, एक ऐसा विचार जो उसे अपनी मानवता से परे ले जा सकता था। लेकिन यह एकमात्र रास्ता था। रिया, समीर और भैरवी की मृत्यु, दुनिया का विनाश... यह सब व्यर्थ नहीं जाना चाहिए था। उसे यह करना था। उसे 'शून्य' को समझना था, उसे नियंत्रित करना था, ताकि वह कलासुर का सामना कर सके।

    आरव ने किताब बंद की। उसने फैसला कर लिया था। वह इस खतरनाक रास्ते पर चलेगा। लेकिन वह जानता था कि इस योजना को किसी और के साथ साझा करने से पहले उसे और गहराई से समझना होगा। उसके दोस्त अब नहीं थे, और गुरु वशिष्ठ पर उसने पहले से ही बहुत बोझ डाल दिया था। यह उसका बोझ था, उसका निर्णय।

    वह गुरु वशिष्ठ की ओर मुड़ा, जो अभी भी शांत मुद्रा में ध्यान कर रहे थे। आरव ने उन्हें कुछ नहीं बताया। उसकी आँखों में एक नई दृढ़ता थी, लेकिन उसके विचारों का तूफान अभी भी उसके अंदर घूम रहा था। उसे लगा कि वह अपनी ही नियति के साथ एक समझौता कर रहा है, एक ऐसा समझौता जिसकी कीमत बहुत भारी हो सकती थी।

    (संक्रमणकालीन दृश्य: बाहर की दुनिया में कलासुर का कहर जारी है। एक विशालकाय ज्वालामुखी, जो कभी पृथ्वी राज्य की शक्ति का प्रतीक था, अब एक ठंडा, राख का ढेर बन चुका है। उसकी सारी ऊर्जा सोख ली गई है। दूर से, धुआँ उठ रहा है, जो बताता है कि कहीं और भी कलासुर का विनाश जारी है। लोग अपनी बची-खुची जिंदगी को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बिना यह जाने कि उनके लिए कोई आशा बची है या नहीं। पुस्तकालय के अंदर, आरव ज्ञान की गहराइयों में खोया हुआ है, दुनिया के बाहर के विनाश से अनजान, या शायद, जानबूझकर उसे नज़रअंदाज़ कर रहा है।)

  • 20. आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा S-4 - Chapter 20

    Words: 21

    Estimated Reading Time: 1 min

    Chapter 20
    आरव ने फिर से किताबों को उठाना शुरू कर दिया, उसकी आँखों में अब केवल ज्ञान की प्यास थी, निराशा का अंधकार धीरे-धीरे कम हो रहा था, उसकी जगह एक नया, भयावह लेकिन महत्वपूर्ण उद्देश्य ले रहा था। उसे शून्य को समझना था, उसे अपने अंदर समाहित करना था, ताकि वह कलासुर का सामना कर सके। लेकिन वह यह भी जानता था कि यह एक ऐसी यात्रा थी, जो उसे हमेशा के लिए बदल सकती थी।



    पुस्तकालय की नीली रोशनी में, आरव ने घंटों बिता दिए। उसने 'आकाश-पुरुष' बनने की खतरनाक विधि के बारे में पढ़ा था, और शून्य को अपने भीतर समझने की अपनी योजना बना ली थी। उसके दिमाग में एक तूफान चल रहा था, और वह खुद को उन प्राचीन ग्रंथों में पूरी तरह से डुबो चुका था। उसे अपने आसपास की किसी चीज़ का कोई होश नहीं था, यहाँ तक कि समय का भी नहीं।



    तभी, उसने अपने कंधे पर एक हाथ महसूस किया। आरव चौंककर ऊपर उठा। गुरु वशिष्ठ उसके सामने खड़े थे, उनके चेहरे पर एक शांत, दयालु मुस्कान थी।



    "आरव," गुरु वशिष्ठ ने धीमी आवाज़ में कहा। "बहुत देर हो चुकी है। तुम्हें आराम की ज़रूरत है।"



    आरव ने अपनी आँखों को रगड़ा। "नहीं, गुरुदेव। मेरे पास समय नहीं है। मुझे कलासुर को समझना है। मुझे यह जानना है कि उसे कैसे हराया जाए। रिया... समीर... भैरवी... वे सब... मैं उन्हें निराश नहीं कर सकता।" उसकी आवाज़ में अभी भी दर्द और दृढ़ता का मिश्रण था।



    गुरु वशिष्ठ ने उसके कंधे पर फिर से हाथ रखा और उसे धीरे से दबाया। "तुम्हारे दोस्त... वे तुम्हें निराश नहीं करेंगे, मेरे बेटे। और न ही तुमने उन्हें निराश किया है।"



    आरव ने उनकी ओर देखा, भ्रमित। "आप क्या कह रहे हैं, गुरुदेव? वे... वे चले गए हैं।" उसके मन में अभी भी वह भयानक दृश्य घूम रहा था जब कलासुर ने राजधानी को नष्ट कर दिया था, और उसके दोस्त कहाँ गए, इसका कोई पता नहीं चला था। उसने मान लिया था कि वे मारे गए हैं।



    गुरु वशिष्ठ की मुस्कान और गहरी हुई। "नहीं, आरव। वे जीवित हैं। मैंने अपनी बची हुई शक्ति का उपयोग करके उन्हें अंतिम क्षण में कलासुर के विनाश से बचाया था। वे गंभीर रूप से घायल थे, लेकिन जीवित। मैंने उन्हें मठ के एक गुप्त कक्ष में रखा था जहाँ वे ठीक हो रहे थे। अब वे बेहतर महसूस कर रहे हैं।"



    आरव की आँखें चौड़ी हो गईं। वह अविश्वास में अपनी जगह से उछल पड़ा। "क्या? वे... वे जीवित हैं?" उसकी आवाज़ में एक झटके में खुशी और सदमा उमड़ आया। वह लगभग लड़खड़ा गया। "मुझे... मुझे उनसे मिलना है! कहाँ हैं वे?"



    गुरु वशिष्ठ ने उसे रोका। "शांत हो जाओ, आरव। वे अब तुम्हारे पास ही आ रहे हैं। उन्हें तुम्हारे बारे में बताया गया है, और वे भी तुम्हें देखने के लिए बेताब हैं।"



    जैसे ही गुरु वशिष्ठ ने यह कहा, पुस्तकालय के प्रवेश द्वार से तीन परिचित आकृतियाँ अंदर आईं। रिया, समीर और भैरवी। वे तीनों अभी भी थोड़े कमज़ोर लग रहे थे, उनके कपड़ों पर धूल और चोटों के निशान थे, लेकिन उनकी आँखों में एक जीवित चमक थी।



    आरव उन्हें देखकर स्तब्ध रह गया। कुछ पलों के लिए, उसे लगा जैसे यह एक सपना हो। वह उनके पास दौड़ा, उसकी आँखों में पानी भर आया।



    "रिया! समीर! भैरवी!" उसने उनकी ओर बढ़ते हुए फुसफुसाया। "तुम... तुम ठीक हो?"



    रिया की आँखों में भी आँसू थे। उसने अपना हाथ आरव की ओर बढ़ाया। "आरव! तुम ठीक हो! हमें लगा... हमें लगा कि हम तुम्हें खो चुके हैं।" उसकी आवाज़ अभी भी काँप रही थी।



    समीर ने एक कमजोर मुस्कान दी। "हमने कभी हार नहीं मानी, दोस्त। तुम्हें जीवित देखकर बहुत खुशी हुई।"



    भैरवी ने सिर्फ सिर हिलाया, उसकी आँखों में शांत राहत थी। उसने आरव का हाथ थामा, और उसे लगा जैसे उसकी धरती की शक्ति उसके हाथों से उसके अंदर आ रही हो, उसे सहारा दे रही हो।



    चारों दोस्त एक-दूसरे के गले लग गए, उनके आँसू खुशी और राहत के आँसू थे। गुरु वशिष्ठ एक तरफ खड़े मुस्कुरा रहे थे, उनकी आँखों में एक अजीब सी संतुष्टि थी। उन्हें पता था कि इस एकजुटता की इस समय कितनी सख्त ज़रूरत थी।



    कुछ देर बाद, जब वे सब शांत हुए, तो गुरु वशिष्ठ ने उन्हें पुस्तकालय में बैठने का इशारा किया।



    "आरव ने इस जगह में कलासुर और शून्य के बारे में बहुत कुछ सीखा है," गुरु वशिष्ठ ने समझाया। "और अब, हम सभी को मिलकर इस पहेली को सुलझाना होगा।"



    रिया, समीर और भैरवी ने जिज्ञासा से चारों ओर देखा। उन्होंने पहले कभी ऐसा पुस्तकालय नहीं देखा था।



    "कलासुर को मारा नहीं जा सकता," आरव ने गहरी साँस लेते हुए कहा। "वह शून्य का अवतार है। उसे केवल सील किया जा सकता है।" उसने उन्हें 'आकाश-पुरुष' बनने की खतरनाक विधि के बारे में नहीं बताया था, लेकिन उसने उन्हें वह सब कुछ बताया जो उसने कलासुर और पहली सील के बारे में सीखा था।



    "तो हम उसे कैसे सील करेंगे?" समीर ने पूछा, हमेशा की तरह व्यावहारिक। "हमारी शक्तियाँ उसके सामने कुछ भी नहीं हैं।"



    "और उस पुरानी सील ने दुनिया की तात्विक ऊर्जा को असंतुलित कर दिया था," भैरवी ने उदासी से कहा। "इसीलिए हम इतने कमज़ोर हो गए।"



    रिया ने अपनी आँखें एक प्राचीन ग्रंथ पर टिकाईं, जो एक कुरसी पर रखा हुआ था। वह उसकी ओर बढ़ी और उसे पढ़ना शुरू किया। पन्ने पुराने और पीले थे, लेकिन उसने ध्यान से एक-एक शब्द पढ़ा।



    "यहाँ लिखा है..." रिया ने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी चमक थी। "नई सील बनाने के लिए, सभी पाँचों तत्वों की संयुक्त, सामंजस्यपूर्ण ऊर्जा की आवश्यकता है।"



    आरव, समीर और भैरवी उसकी ओर मुड़े।



    रिया ने पढ़ना जारी रखा, "यह केवल एक तत्वधारी द्वारा निर्देशित किया जा सकता है जो 'सभी' तत्वों को समझता है, और जो 'शून्य' को संतुलित कर सकता है।" उसने सिर उठाया और आरव की ओर देखा। "यहाँ लिखा है... उसे 'आकाश-तत्वधारी' होना चाहिए। एक ऐसा आकाश-तत्वधारी जो न केवल आकाश पर, बल्कि शून्य पर भी नियंत्रण रखता हो।"



    पुस्तकालय में एक अजीब सी चुप्पी छा गई। समीर, भैरवी और यहाँ तक कि गुरु वशिष्ठ की निगाहें भी आरव पर टिक गईं। आरव के अंदर एक अजीब सी लहर उठी। उसने अभी तक अपनी 'आकाश-पुरुष' बनने की खतरनाक योजना किसी के साथ साझा नहीं की थी, लेकिन रिया ने जो पढ़ा था, वह सीधे उसी बात की ओर इशारा कर रहा था।



    उस पर अचानक एक भारी बोझ आ गया। उसे पता था कि यह रास्ता कितना खतरनाक था, और अब, उसके दोस्तों ने भी उस पर अपनी सारी उम्मीदें टिका दी थीं। वह जानता था कि इस विशाल कार्य को पूरा करने के लिए उसे अपनी जान जोखिम में डालनी होगी, और शायद अपनी मानवता भी।



    आरव ने एक गहरी साँस ली, उसकी आँखों में एक नया दृढ़ संकल्प था। वह जानता था कि उसके पास कोई विकल्प नहीं था। उसे यह करना होगा। दुनिया के लिए, अपने दोस्तों के लिए, और उन सभी के लिए जिन्होंने अपनी जान गंवाई थी।



    "यह... यह संभव है," आरव ने कहा, उसकी आवाज़ में एक शांत दृढ़ता थी। "मैंने इसके बारे में पढ़ा है। लेकिन यह... यह बहुत खतरनाक है।"



    समीर ने आगे बढ़कर उसका हाथ थामा। "हम तुम्हारे साथ हैं, आरव। चाहे कुछ भी हो।"



    भैरवी ने सिर हिलाया, उसकी आँखों में अटूट विश्वास था। "हम तुम्हें अकेला नहीं छोड़ेंगे।"



    रिया ने उसकी आँखों में देखा, "हम यह साथ मिलकर करेंगे। हमें बस रास्ता खोजना होगा।"



    आरव ने अपने दोस्तों की ओर देखा। उनकी आँखों में वही उम्मीद थी जो उसके अंदर थोड़ी देर पहले बुझने वाली थी। अब वे वापस आ गए थे, और उनके साथ, आशा की एक नई किरण भी आ गई थी। लेकिन उसे पता था कि यह एक ऐसी लड़ाई थी जिसके लिए वे सभी को अपनी सीमाओं से परे जाना होगा। और सबसे पहले, आरव को अपनी सबसे खतरनाक यात्रा शुरू करनी होगी: शून्य के अंदर की यात्रा।