मिलिए मुंबई की टॉप वेडिंग प्लानर, रिया मेहरा से, जिसकी दुनिया ग्लैमर, स्टाइल और परफेक्शन से भरपूर है। और दूसरी तरफ हैं सख्त मिज़ाज और अनुशासित पैरा कमांडो, मेजर करण प्रताप सिंह, जिनके लिए देश और ड्यूटी से बढ़कर कुछ नहीं। कहानी की शुरुआत तब होती है जब... मिलिए मुंबई की टॉप वेडिंग प्लानर, रिया मेहरा से, जिसकी दुनिया ग्लैमर, स्टाइल और परफेक्शन से भरपूर है। और दूसरी तरफ हैं सख्त मिज़ाज और अनुशासित पैरा कमांडो, मेजर करण प्रताप सिंह, जिनके लिए देश और ड्यूटी से बढ़कर कुछ नहीं। कहानी की शुरुआत तब होती है जब रिया को मेजर करण की छोटी बहन की शादी प्लान करने का कॉन्ट्रैक्ट मिलता है, जो एक आर्मी कैंटोनमेंट में होनी है। यहाँ रिया के फैशनेबल और खर्चीले आइडियाज़ की टक्कर करण के सादे और अनुशासित तौर-तरीकों से होती है। रिया के लिए जो 'ग्रैंड एंट्री' है, वो करण के लिए 'सिक्योरिटी ब्रीच' है। उनकी खट्टी-मीठी नोक-झोंक और मज़ेदार तकरार से शादी का घर गुलज़ार रहता है, जहाँ रिया "मैडम इवेंटवाली" और करण "जनरल साहब" बन जाते हैं। लेकिन धीरे-धीरे, इस तकरार के बीच वे एक-दूसरे के छिपे हुए पहलुओं को देखते हैं। रिया को सख्त मेजर के पीछे एक प्यार करने वाला भाई नज़र आता है, और करण को रिया के प्रोफेशनल रवैये के पीछे की मेहनत और लगन दिखती है। उनका रिश्ता प्यार की ओर बढ़ने लगता है, पर उन्हें यह अंदाज़ा नहीं होता कि इस जश्न के पीछे एक खतरनाक साज़िश छिपी है। कहानी में खतरनाक मोड़ तब आता है जब करण को पता चलता है कि एक मेहमान, जो रिश्तेदार बनकर आया है, असल में एक देशद्रोही है और उसका मकसद शादी का फायदा उठाकर देश की सुरक्षा से जुड़ी खुफिया जानकारी चुराना है। अब करण और रिया को मिलकर इस 'ऑपरेशन दुल्हन' को सफल बनाना है। उन्हें न सिर्फ शादी बचानी है, बल्कि देश को भी एक बड़े खतरे से बचाना है। यह कहानी है 'कोड रेड इश्क़' की, जहाँ प्यार, कॉमेडी और देशभक्ति का एक अनोखा संगम देखने को मिलेगा।
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Chapter 1
मुंबई। जुहू बीच से आती नमकीन हवा और अरब सागर की लहरों की धीमी गूँज... यहाँ एक पाँच सितारा होटल के भव्य बॉल रूम में, रिया मेहरा, जिसे वेडिंग इंडस्ट्री में "द वेडिंग डीवा" के नाम से जाना जाता था, अपनी टीम को आखिरी निर्देश दे रही थी। उसकी आँखें हर छोटे से छोटे विवरण पर गड़ी हुई थीं, जैसे कोई कुशल कलाकार अपनी मास्टरपीस को अंतिम रूप दे रहा हो। शादी का माहौल चमचमाती लाइट्स, ताज़े फूलों की खुशबू और मेहमानों की खुशनुमा चहल-पहल से भरा हुआ था।
"देव, वो सेंटरपीस थोड़ा टेढ़ा है। ठीक करो उसे! अभी!" रिया ने अपनी आवाज़ में कोई तनाव नहीं आने दिया, लेकिन उसकी आँखों में परफेक्शन की चमक थी।
देव, उसका असिस्टेंट, तुरंत भागकर गया और पल भर में सेंटरपीस को सही कर दिया। "जी मैम, ठीक कर दिया।"
रिया ने एक संतुष्टि भरी साँस ली। "गुड। और श्वेता, म्यूज़िक वॉल्यूम एकदम परफेक्ट रखो। इमोशनल गाने पर ज़्यादा लाउड न हो, और डांस वाले पर कम न हो।"
श्वेता, जो म्यूज़िक टीम की हेड थी, मुस्कुराई। "डोंट वरी, मैम। आपकी प्लेलिस्ट पूरी तरह से फ़ॉलो की जा रही है।"
आज की रात थी मिस्टर और मिसेज़ अग्रवाल की बेटी अनन्या और एक बड़े बिज़नेसमैन के बेटे राहुल की शादी। ये मुंबई की सबसे बड़ी हाई-प्रोफ़ाइल शादियों में से एक थी, और हर किसी को पता था कि अगर किसी शादी को 'मैजिकल' बनाना है, तो रिया मेहरा ही एकमात्र नाम है।
रिया ने अपने डिजाइनर लहंगे का पल्लू ठीक किया, जो उसके परफेक्शनिस्ट और स्टाइलिश व्यक्तित्व का हिस्सा था। वह भीड़ में घूमते हुए, हर चीज़ पर अपनी पैनी नज़र बनाए हुए थी। मेहमानों की प्लेट्स में खाना सही तरह से सर्व हो रहा है या नहीं, वेटर मुस्कुरा रहे हैं या नहीं, फोटो बूथ पर लाइन तो नहीं लगी... हर चीज़ उसके कंट्रोल में थी।
अनन्या की माँ, मिसेज़ अग्रवाल, रिया के पास आईं, उनकी आँखों में खुशी और कृतज्ञता थी। "रिया! माय डियर गर्ल! तुमने तो कमाल कर दिया। यह बिल्कुल वैसी ही शादी है जैसी मैंने सपने में भी नहीं सोची थी। हर चीज़ इतनी परफेक्ट है!"
रिया ने उनकी ओर मुस्कुराते हुए देखा। "थैंक यू, मिसेज़ अग्रवाल। आपकी बेटी की खुशी मेरी प्राथमिकता थी।"
मिसेज़ अग्रवाल ने रिया का हाथ पकड़ लिया। "तुम वाकई एक जादूगर हो। तुम्हारी फीस भले ही थोड़ी ज़्यादा हो, लेकिन तुम्हारा काम अनमोल है।"
रिया मुस्कुराई। उसकी फीस ज़्यादा थी, ये सच था, लेकिन वह जो अनुभव देती थी, वह किसी भी कीमत से परे था। उसके लिए, हर शादी सिर्फ एक इवेंट नहीं थी, बल्कि दो परिवारों के सपने थे, और रिया का लक्ष्य उन सपनों को हकीकत में बदलना था, बिल्कुल परफेक्शन के साथ।
थोड़ी देर बाद, जब दूल्हा-दुल्हन स्टेज पर आ गए और रस्में शुरू हो गईं, तो रिया को पहली बार थोड़ी राहत महसूस हुई। उसने अपनी टीम को एक बार फिर चेक किया और फिर एक कोने में जाकर अपनी मैनेजर मीरा के पास बैठ गई, जो अपने लैपटॉप पर कुछ देख रही थी।
"मीरा, सब ठीक है?" रिया ने पूछा, एक लंबी साँस लेते हुए।
मीरा ने लैपटॉप से नज़र हटाई और रिया की ओर देखते हुए मुस्कुराई। "ऑल क्लियर, बॉस! एक और सुपर-डुपर हिट वेडिंग। क्लाइंट्स तो जैसे सातवें आसमान पर हैं। मिस्टर अग्रवाल ने तो अभी-अभी पर्सनली फोन करके थैंक यू कहा और कहा कि अब उनके पोते-पोतियों की शादी भी तुम ही प्लान करोगी!"
रिया हँसी। "बच्चों को बड़ा तो होने दो, मीरा।" उसने एक गिलास पानी उठाया और पी लिया। "क्या थका देने वाला दिन था। अब बस एक गरम शावर और फिर सुबह तक गहरी नींद।"
मीरा ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हें लगता है कि तुम इतनी आसानी से रेस्ट कर पाओगी? तुम्हारे लिए एक नई लीड आई है, और यह काफी इंटरेस्टिंग है।"
रिया ने अपनी भौंहें चढ़ाईं। "अभी? मीरा, तुम जानती हो मैं नए क्लाइंट्स को एंड ऑफ द वीकेंड ही एंटरटेन करती हूँ। और आज तो मैंने दो बड़ी शादियाँ संभाली हैं।"
"मुझे पता है, बॉस। लेकिन यह थोड़ी अलग है," मीरा ने अपने लैपटॉप को रिया की ओर घुमाया। "यह एक फौजी परिवार की शादी है। अंबाला कैंटोनमेंट में।"
रिया ने स्क्रीन पर देखा। एक ब्रिगेडियर का नाम, एक सेना का पता, और कुछ प्रारंभिक जानकारी। उसका चेहरा थोड़ा बदल गया। "अंबाला कैंटोनमेंट? क्या मतलब? वहाँ तो शादी... सिंपल होती होगी, है न?" रिया की शादियाँ भव्यता, स्टाइल और नए ट्रेंड्स के लिए जानी जाती थीं। आर्मी की शादी का मतलब उसके लिए एकदम अलग था।
"हाँ, वही तो इंटरेस्टिंग पार्ट है," मीरा ने समझाया। "उनकी बेटी मुंबई में पढ़ी है, और उसे तुम्हारी शादियों का काम बहुत पसंद आया। उसने अपनी माँ को ज़िद करके तुम्हें हायर करने के लिए राजी किया है।"
रिया कुछ पल के लिए सोचती रही। मुंबई की चकाचौंध से दूर, एक आर्मी कैंटोनमेंट में शादी... यह बिल्कुल उसके कम्फर्ट ज़ोन से बाहर था। उसकी शादियाँ हमेशा आलीशान होटलों, प्राचीन किलों या विदेशी लोकेशन पर होती थीं। लेकिन, उसके अंदर की "चैलेंज-सीकर" वाली भावना जागृत हो रही थी।
"मीरा, क्या तुमने उनसे बात की? उनकी एक्सपेक्टेशन्स क्या हैं?" रिया की आवाज़ में उत्सुकता थी।
"उन्होंने कहा कि उन्हें 'मुंबई का टच' चाहिए। कुछ ऐसा जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा हो," मीरा ने बताया। "लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि 'अनुशासन और मर्यादा' का पूरा ध्यान रखा जाए।"
रिया ने सिर हिलाया। 'अनुशासन और मर्यादा' - ये शब्द उसके लिए नए थे। उसकी डिक्शनरी में तो सिर्फ 'भव्यता' और 'असाधारण' जैसे शब्द थे। "तो, उनके पास बजट कितना है?"
मीरा ने कुछ कागज़ पलटे। "बजट अच्छा है। वे अपनी बेटी के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं, बस उसे खुशी मिलनी चाहिए।"
रिया ने अपनी कुर्सी सीधी की। उसके दिमाग में एक पूरी नई कहानी बन रही थी। एक आर्मी कैंटोनमेंट, जहाँ हर चीज़ नियम-कानून से चलती है, और वहाँ उसे अपना जादू चलाना है। यह सिर्फ एक शादी प्लान करना नहीं था, यह एक नई दुनिया को समझना था।
"अंबाला कैंटोनमेंट... तो इसका मतलब है कि हमें अपनी वैनिटी वैन, हमारे डीजे, हमारे सारे फैंसी प्रॉप्स... सब कुछ वहाँ ले जाना होगा?" रिया ने अपनी टीम की ओर देखा, जो स्टेज के आसपास बिखरी हुई थी।
मीरा मुस्कुराई। "हाँ, बॉस। और मुझे लगता है कि यह तुम्हारे करियर का सबसे यादगार प्रोजेक्ट होगा।"
रिया ने गहरी साँस ली। "या तो सबसे यादगार, या सबसे मुश्किल।" उसने अपने मन में सोचा। उसे लगा कि यह सिर्फ एक और शादी नहीं है, यह एक 'मिशन' है। एक ऐसा मिशन जहाँ उसे अपने परफेक्शन को एक बिल्कुल नए माहौल में ढालना होगा। एक ऐसा माहौल जहाँ शायद उसका स्टाइल और दिखावा मायने न रखे। लेकिन यही तो असली चुनौती थी।
वह अपनी टीम की ओर मुड़ी, जो अब काम खत्म होने की खुशी में हल्की फुल्की गपशप कर रही थी।
"टीम!" रिया की आवाज़ ने सबका ध्यान खींचा। "सुनो सब! गुड न्यूज!"
सबने उसकी ओर देखा, उत्सुकता से।
"हमारी नई असाइनमेंट," रिया ने कहा, उसकी आँखों में एक नई चमक थी, "एक फौजी परिवार की शादी है। अंबाला कैंटोनमेंट में!"
पूरी टीम में एक पल की ख़ामोशी छा गई। वे मुंबई की लग्जरी शादियों के आदि थे। कैंटोनमेंट? यह एक अलग ही दुनिया थी।
"कैंटोनमेंट? मैम, वहाँ तो शायद हमारे मेकअप आर्टिस्ट को भी परमिशन लेनी पड़ेगी पार्लर जाने की!" रिया के कोरियोग्राफर ने मजाक किया।
रिया हँसी। "मुझे पता है कि यह बिल्कुल अलग होने वाला है। लेकिन यही तो मज़ा है! मुंबई का ग्लैमर, दिल्ली का रईसीपन, और अब अंबाला का अनुशासन! हमें उन्हें दिखाना है कि एक 'वेडिंग डीवा' किसी भी माहौल में कमाल कर सकती है।"
उसने अपने हाथों को हवा में लहराया, जैसे कोई बड़ा प्लान बना रही हो। "चलो, अब फौजियों को दिखाते हैं कि असली ग्रैंड सेलिब्रेशन क्या होता है! इस बार, हमारी शादी सिर्फ यादगार नहीं, बल्कि 'इतिहास' बनेगी!"
टीम ने एक दूसरे की ओर देखा, फिर धीरे-धीरे उनमें उत्साह भरने लगा। रिया की ऊर्जा संक्रामक थी।
"मैम, आप कहेंगी तो हम बॉर्डर पर भी शादी करा देंगे!" देव ने जोश में कहा।
रिया ने मुस्कुराकर देव की पीठ थपथपाई। "यही जोश चाहिए! अब जाओ, अपना सामान पैक करो। हमें नए मिशन की तैयारी करनी है।"
वह वापस अपनी कुर्सी पर बैठी और मीरा के लैपटॉप पर फिर से नज़र डाली। उसने खुद अपना लैपटॉप खोला। उसकी उंगलियाँ तेज़ी से कीबोर्ड पर चलने लगीं। उसने एक नया फोल्डर बनाया। उसका नाम रखा: "मिशन: सिंह वेडिंग"।
रिया ने फोल्डर पर क्लिक किया, और अंदर एक खाली स्पेस दिखाई दिया। यह स्पेस भरने वाला था नए आइडियाज़ से, नई चुनौतियों से, और शायद एक ऐसी कहानी से जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। उसकी आँखों में एक नई दुनिया को जीतने का दृढ़ संकल्प था। यह सिर्फ एक शादी नहीं थी, यह एक नया अध्याय था।
Chapter 2
उत्तरी भारत का सुदूर, पथरीला इलाका। सूरज की तपती किरणें पत्थरों पर ऐसे पड़ रही थीं जैसे उन्हें पिघला देंगी। यहाँ, रेगिस्तान और पहाड़ियों के बीच, भारतीय सेना के एलीट पैरा कमांडो का एक तीव्र प्रशिक्षण अभ्यास चल रहा था। हवा में धूल और पसीने की गंध घुली हुई थी।
मेजर करण प्रताप सिंह, अपनी फौजी वर्दी में, धूल में सने जूते पहने, अपनी टीम के सबसे आगे चल रहा था। उसके चेहरे पर सख्त अनुशासन और अदम्य इच्छाशक्ति साफ झलक रही थी। उसकी आँखें लक्ष्य पर केंद्रित थीं, जैसे एक शिकारी अपने शिकार पर नज़र गड़ाए हो। उसके लिए, हर कदम, हर साँस, एक मिशन का हिस्सा थी। पीछे उसके कमांडो थे, जो अपने लीडर की हर हरकत को कॉपी कर रहे थे, उनके चेहरे पर भी वही दृढ़ संकल्प था।
"फॉरवर्ड! मूव! कोई पीछे नहीं रहेगा!" करण की बुलंद आवाज़ चट्टानों से टकराकर वापस लौटती थी। वह खुद पत्थरों पर फुर्ती से चढ़ रहा था, राइफल उसके कंधे पर थी, और पीठ पर भारी बैकपैक।
पूरा अभ्यास एक युद्ध की तरह था – दुश्मन के इलाके में घुसपैठ, सूचना एकत्र करना, और सुरक्षित वापसी। करण ने हर चुनौती को कुशलता और सटीकता से संभाला। उसकी टीम बिना किसी शिकायत के उसके हर आदेश का पालन कर रही थी। वे जानते थे कि मेजर करण प्रताप सिंह गलतियाँ नहीं करते, और न ही गलतियाँ करने देते हैं।
कई घंटों की कड़ी मशक्कत और नकली गोलीबारी के बाद, करण ने अपनी टीम को एक सुरक्षित स्थान पर इकट्ठा किया। "मिशन सक्सेसफुल!" उसकी आवाज़ में जीत का संतोष था। "वेल डन, कमांडोज़। तुम सबने शानदार काम किया। अब रेस्ट!"
थके हुए लेकिन गर्व से भरे कमांडोज़ ने एक-दूसरे को देखा और हल्के से मुस्कुराए। उन्होंने अपनी वर्दी के बटन खोले और पानी की बोतलें निकालीं। करण ने अपनी आँखें बंद कीं और गहरी साँस ली। उसका शरीर भले ही थका हुआ था, लेकिन दिमाग पूरी तरह शांत और संतुष्ट था।
तभी, उसकी सैटेलाइट फोन की घंटी बजी। उसने आँखें खोलीं और फोन उठाया। स्क्रीन पर 'कर्नल साहब' का नाम चमक रहा था।
"जय हिंद, सर!" करण ने फोन उठाया।
"जय हिंद, मेजर करण," दूसरी तरफ से कर्नल की भारी आवाज़ आई। "तुम्हारा अभ्यास कैसा रहा?"
"सफलतापूर्वक संपन्न हुआ, सर। टीम पूरी तरह तैयार है।"
"बहुत अच्छे। मेजर, तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है।" कर्नल साहब ने कहा। "तुम्हारी छुट्टी मंजूर हो गई है। अगले दो दिन में तुम घर के लिए निकल सकते हो।"
करण की आँखें चमक उठीं। उसने इस छुट्टी के लिए बहुत इंतज़ार किया था। "थैंक यू, सर।"
"अपनी छोटी बहन की शादी एंजॉय करना, मेजर," कर्नल ने मुस्कुराते हुए कहा। "और हाँ, ज्यादा सख्ती मत दिखाना। यह एक पारिवारिक समारोह है, कोई मिशन नहीं।"
करण के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई, जो अक्सर उसके कठोर चेहरे पर दिखाई नहीं देती थी। "जी सर, कोशिश करूँगा।" उसने फोन काट दिया।
एक कमांडो, हवलदार रमेश, जो पास में बैठा था, बोला, "क्या बात है, सर? छुट्टी मिल गई?"
करण ने सिर हिलाया, उसके चेहरे पर कठोरता की जगह अब एक नरम भाव था। "हाँ, रमेश। बहन की शादी है।"
रमेश ने छेड़ते हुए कहा, "तो अब आप मिशन दुल्हन पर जा रहे हैं, सर?"
करण मुस्कुराया। "हाँ, रमेश। और तुम्हें पता है, शादी भी एक मिशन से कम नहीं होती। खासकर जब बहन की हो।" उसकी आवाज़ में अपनेपन का भाव था, जो उसके साथियों ने कम ही सुना था।
वह उठा और अपना बैकपैक ठीक करने लगा। "चलो, बेस कैंप चलते हैं। घर जाने की तैयारी करनी है।"
कुछ ही घंटों में, करण अपनी वर्दी और हथियारों को छोड़कर, एक साधारण कपड़ों में अंबाला कैंटोनमेंट स्थित अपने घर के लिए निकल गया। रास्ते भर उसके दिमाग में अपनी बहन शालू की बातें घूम रही थीं। शालू उसकी छोटी और लाड़ली बहन थी, और वह उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता था।
जब उसकी ट्रेन अंबाला छावनी स्टेशन पर पहुँची, तो उसने शालू को फोन लगाया।
"हेलो! शालू?"
दूसरी तरफ से शालू की उत्साहित आवाज़ आई। "भैया! आप आ गए? मैं कितनी मिस कर रही थी आपको! मेरी शादी की तैयारी कैसी चल रही है?"
"मैं अभी-अभी स्टेशन पहुँचा हूँ, शालू। तुम्हारी कैसी तैयारी चल रही है?" करण ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"मेरी तैयारी? अरे भैया, कमाल की चल रही है! मैंने आपको बताया था न, मैंने मुंबई की बेस्ट वेडिंग प्लानर को हायर किया है! रिया मेहरा! उन्हें 'द वेडिंग डीवा' कहते हैं। वह आ चुकी हैं और उन्होंने तो घर में धमाल मचा रखा है!" शालू ने खुशी से बताया।
करण के माथे पर हल्की सी शिकन आई। 'द वेडिंग डीवा'? 'धमाल'? उसे यह सब सुनकर थोड़ा असहज महसूस हुआ। वह एक अनुशासित व्यक्ति था, जिसे हर चीज़ व्यवस्थित और शांत पसंद थी। 'धमाल' शब्द उसकी डिक्शनरी में फिट नहीं बैठता था।
"मुंबई की वेडिंग प्लानर? इतनी क्या ज़रूरत थी, शालू? पापा ने तो कहा था कि लोकल टेंट वाला सब संभाल लेगा," करण ने अपनी आवाज़ को शांत रखते हुए कहा।
"अरे भैया! आप समझते नहीं। ये आज का ज़माना है। मुझे अपनी शादी परफेक्ट और स्टाइलिश चाहिए। रिया मैम सब कुछ हैंडल कर रही हैं। आप देखना, जब आप घर पहुँचेंगे तो पहचान भी नहीं पाएंगे। हर चीज़ बिल्कुल फैशनेबल और ग्रैंड होगी!" शालू ने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा।
करण ने गहरी साँस ली। फैशनेबल? ग्रैंड? उसके दिमाग में अपने घर की सादगी घूम रही थी। उसे लगा जैसे उसकी दुनिया में कोई तेज़ हवा चलने वाली है। उसने मन ही मन सोचा कि शायद अब घर में शांति कम और शोर-शराबा ज़्यादा होगा।
"ठीक है, शालू। मैं घर पहुँचता हूँ," करण ने कहा, उसकी आवाज़ में हल्की सी चिंता थी। उसने फोन काट दिया और टैक्सी का दरवाज़ा खोला।
टैक्सी कैंटोनमेंट के गेट की ओर बढ़ रही थी, और करण के मन में 'द वेडिंग डीवा' का नाम घूम रहा था। उसे नहीं पता था कि यह 'डीवा' उसकी जिंदगी में कितना 'धमाल' मचाने वाली है, और उसकी दुनिया को कैसे बदलने वाली है। यह शादी उसके लिए सिर्फ एक मिशन नहीं, बल्कि एक अनदेखी चुनौती बनने वाली थी।
Chapter 3
अंबाला कैंटोनमेंट। शहर के शोरगुल से दूर, यहाँ की हवा में एक अजीब सी शांति और अनुशासन घुला हुआ था। चौड़ी, साफ सड़कें, हरे-भरे पेड़ों की कतारें और हर तरफ़ एक व्यवस्थित माहौल। सुबह के वक़्त, जब रिया मेहरा और उसकी टीम का काफिला कैंटोनमेंट के मुख्य गेट पर पहुँचा, तो उन्हें लगा जैसे वे किसी और ही दुनिया में आ गए हों। मुंबई की कभी न सोती सड़कों और यहाँ की शांति में ज़मीन-आसमान का अंतर था।
उनके काफिले में तीन चमचमाती एसयूवी और एक बड़ी सी वैनिटी वैन थी, जिस पर 'द वेडिंग डीवा' का लोगो बड़े अक्षरों में चमक रहा था। ये गाड़ियाँ कैंटोनमेंट के प्रवेश द्वार पर मौजूद दो सख्त संतरियों के लिए किसी एलियन स्पेसशिप से कम नहीं थीं। संतरियों की वर्दी इस्त्री की हुई, जूते पॉलिश किए हुए और चेहरे पर अनुशासन का भाव था।
पहली एसयूवी गेट के सामने रुकी। संतरी, हवलदार राम सिंह, आगे बढ़ा। उसकी आँखों में इन अजीबोगरीब गाड़ियों और उनके स्टाइलिश ऑक्युपेंट्स को देखकर हैरानी और संशय का मिश्रण था।
"रुकिए! कहाँ जाना है?" राम सिंह ने अपनी राइफल को थोड़ा ऊपर करते हुए पूछा, उसकी आवाज़ में वही सख्त लहजा था जो सेना के हर जवान में होता है।
रिया ने अपनी फैशनेबल सनग्लासेज़ उतारे और अपनी खूबसूरत आँखें राम सिंह की ओर घुमाईं। उसकी आँखों में आत्मविश्वास था, लेकिन आज पहली बार उसे महसूस हुआ कि यह कॉन्फिडेंस एक अलग दुनिया में कितना अलग लग सकता है। उसने अपने होठों पर हल्की सी मुस्कान लाई।
"गुड मॉर्निंग, हवलदार साहब," रिया ने अपनी आवाज़ को शांत और स्पष्ट रखते हुए कहा। "हम सिंह साहब की बेटी शालिनी की शादी के लिए आए हैं। मैं रिया मेहरा हूँ, 'द वेडिंग डीवा'।"
राम सिंह ने रिया को ऊपर से नीचे तक देखा। उसका स्टाइलिश जंपसूट, उसके हाथों में पकड़ा महंगा फोन, और उसकी टीम के मॉडर्न कपड़े। ये लोग फौजी शादी के लिए तो बिलकुल नहीं लग रहे थे।
"शादी?" राम सिंह ने अपनी भौंहें चढ़ाईं। "यहाँ तो सिर्फ प्रमाणित व्यक्ति ही अंदर आ सकते हैं। आपके पास कोई आई-कार्ड या परमिशन लेटर है?"
रिया की मैनेजर मीरा ने तुरंत एक लिफाफा निकाला और राम सिंह को पकड़ा दिया। "यह ब्रिगेडियर प्रताप सिंह जी का निमंत्रण और हमारी कंपनी का अधिकृत लेटर है।"
राम सिंह ने लेटर लिया और उसे ध्यान से पढ़ा। ब्रिगेडियर प्रताप सिंह का नाम देखकर उसकी गंभीरता थोड़ी कम हुई। उसने अपनी वॉकी-टॉकी उठाई। "गेट पर एक वेडिंग प्लानर टीम आई है, ब्रिगेडियर साहब की बेटी की शादी के लिए। परमिशन है, सर?"
दूसरी तरफ से एक भारी आवाज़ आई। "हाँ, राम सिंह। उन्हें अंदर आने दो। लेकिन उनकी गाड़ियों की पूरी चेकिंग होगी।"
राम सिंह ने वॉकी-टॉकी नीचे रखा। "ठीक है, मैम। आप अंदर जा सकती हैं, लेकिन आपकी सभी गाड़ियों की सुरक्षा जाँच होगी। यह आर्मी एरिया है, यहाँ के नियम बहुत सख्त हैं।"
रिया ने धैर्य से सिर हिलाया। "बिल्कुल। हम समझते हैं।"
गाड़ियाँ एक-एक करके चेकिंग एरिया में गईं। रिया की टीम के लोग, जो आमतौर पर एयरपोर्ट पर भी लाइन में लगने से बचते थे, अब संतरियों के सामने चुपचाप खड़े थे, उनके सामान की तलाशी ली जा रही थी। उनका मेकअप आर्टिस्ट, जो अक्सर अपने फैंसी मेकअप किट के लिए परेशान रहता था, अब अपनी किट को इतनी बारीकी से चेक होते देख हैरान था।
"मैम, ये लोग तो मेरे हेयर स्प्रे को भी सूंघ रहे हैं!" रिया के हेयर स्टाइलिस्ट ने फुसफुसाते हुए कहा।
रिया ने उसे चुप रहने का इशारा किया। यह उनके लिए एक कल्चर शॉक था। मुंबई की भागदौड़, जहाँ लोग एक-दूसरे को नज़रअंदाज़ करके चलते थे, और यहाँ हर चीज़ एक नियम के दायरे में थी।
जैसे ही उनकी गाड़ियाँ कैंटोनमेंट के अंदर आईं, माहौल और भी शांत और हरा-भरा होता गया। रिया की टीम ने देखा कि चारों ओर साफ-सुथरी बैरकों, सजे हुए क्वार्टर्स और दौड़ते हुए सैनिक थे। हर कोई एक निश्चित अनुशासन में था। यहाँ कोई हॉर्न की आवाज़ नहीं थी, न ट्रैफिक का शोर।
"बॉस, यह जगह तो किसी हिल स्टेशन जैसी है," देव ने अपनी खिड़की से बाहर झाँकते हुए कहा। "कोई बिल्डिंग नहीं, कोई मॉल नहीं।"
रिया ने मुस्कुराया। "हाँ, देव। यह फौजियों की दुनिया है। यहाँ सब कुछ अलग होता है।"
उनकी गाड़ी कुछ देर बाद सिंह निवास के सामने रुकी। यह एक बड़ा, सुंदर, लेकिन पारंपरिक भारतीय घर था। सामने एक छोटा सा लॉन था, जिसमें करीने से कटे हुए पौधे थे। घर की दीवारें सादी थीं, लेकिन साफ-सुथरी। यहाँ कोई चमकदार लाइटिंग या फैंसी पेंट नहीं था, जिसकी रिया को आदत थी।
"मीरा, क्या यह वही घर है?" रिया ने हल्की सी हैरानी से पूछा। उसके दिमाग में एक बड़ा बंगला था, जिसे वह पूरी तरह से बदल सकती थी। यह घर तो... बहुत ही 'घरेलू' था।
मीरा ने अपने फोन पर पता चेक किया। "हाँ, बॉस। यही है। ब्रिगेडियर प्रताप सिंह का निवास।"
रिया ने अपनी वैनिटी वैन से उतरकर चारों ओर देखा। उसे लगा जैसे उसकी कल्पनाओं को एक झटका लगा हो। यह जगह उसकी 'ग्रैंड सेलिब्रेशन' की अवधारणा से बिल्कुल अलग थी।
तभी घर का दरवाज़ा खुला और एक अधेड़ उम्र की महिला, जो एक पारंपरिक सूती साड़ी पहने थीं, बाहर निकलीं। यह पुष्पा बुआ थीं, करण की ड्रामा क्वीन बुआ। उनकी आँखों में वही उत्सुकता और हल्का सा संशय था जो आर्मी कैंटोनमेंट के लोगों में रिया के फैशनेबल काफिले को देखकर था।
रिया ने उनकी ओर बढ़कर हाथ जोड़े। "नमस्ते, बुआ जी। मैं रिया मेहरा हूँ। शालिनी की वेडिंग प्लानर।"
पुष्पा बुआ ने रिया को ऊपर से नीचे तक देखा। रिया ने एक स्टाइलिश, वेस्टर्न जंपसूट पहना हुआ था, जिसमें थोड़ी चमक थी। बुआ जी ने अपने होठों को दबाया, उनकी भौंहें हल्की सी ऊपर उठीं।
"नमस्ते, बेटी। आओ, आओ अंदर आओ।" पुष्पा बुआ ने कहा, उनकी आवाज़ में थोड़ी मीठास थी, लेकिन आँखों में रिया के 'मॉडर्न' पहनावे को लेकर स्पष्ट disapproval था। "तुम ही हो वह 'वेडिंग डीवा' जिसके बारे में शालू ने इतना शोर मचा रखा है? मुझे तो लगा था कि कोई सादी-सी बच्ची होगी।"
रिया ने एक हल्की सी मुस्कान दी। "जी, मैं ही हूँ। और यह मेरी टीम है।" उसने अपनी टीम की ओर इशारा किया, जो अब अपनी गाड़ियों से सामान निकालने में व्यस्त थी – बड़े-बड़े बक्से, फैंसी प्रॉप्स, और लाइटिंग इक्विपमेंट्स।
पुष्पा बुआ ने टीम को देखा, उनके चेहरे पर और भी ज़्यादा हैरानी थी। "इतना सामान? बेटी, यह कोई फिल्म की शूटिंग थोड़ी है। यह हमारे घर की शादी है। सादगी से हो जाती है।"
रिया ने मन ही मन सोचा, 'सादगी? मेरे डिक्शनरी में यह शब्द है ही नहीं।' उसने एक गहरी साँस ली और मुस्कुराई। "बुआ जी, हम शादी को यादगार बनाने आए हैं। और आजकल यादगार शादियों के लिए थोड़ी तैयारी करनी पड़ती है।"
वे सब घर के अंदर आए। घर के अंदर का माहौल भी वैसा ही था – साफ-सुथरा, व्यवस्थित, लेकिन रिया के मानकों के हिसाब से बहुत ही 'सादा'। दीवारों पर पुरानी तस्वीरें लगी थीं, फर्नीचर पारंपरिक था और कमरों में कोई 'थीम' या 'स्टेटमेंट पीस' नहीं था।
रिया के मेकअप आर्टिस्ट, रवि, ने फुसफुसाते हुए रिया से कहा, "मैम, यहाँ तो हम कहाँ मेकअप करेंगे? लाइटिंग भी नहीं है सही। और यह घर तो इतना..." वह कोई शब्द नहीं ढूँढ पाया।
रिया ने उसकी ओर देखा और आँखों से उसे चुप रहने का इशारा किया। उसने तुरंत अपना फोन निकाला और नोट्स लेने लगी।
'घर को बहुत काम की ज़रूरत है। एंट्रेंस पर डेकोरेशन, लिविंग रूम को मॉडर्न टच, डाइनिंग एरिया में थीम लाइटिंग...' उसके दिमाग में आइडियाज़ घूमने लगे।
"बुआ जी, क्या मुझे एक बार पूरा घर देखने को मिल सकता है? मुझे देखना है कि हम डेकोरेशन कहाँ से शुरू कर सकते हैं," रिया ने पूछा।
पुष्पा बुआ ने उसे हैरानी से देखा। "पूरा घर? बेटी, यह कोई होटल थोड़ी है। यह हमारा घर है। जो चीज़ जहाँ है, वो वहीं रहेगी। तुम बस मंडप और टेंट का देख लो।"
रिया ने धैर्य से समझाया। "बुआ जी, एक पूरी शादी सिर्फ मंडप से नहीं बनती। मेहमानों का स्वागत, उनके बैठने की जगह, खाना खाने का एरिया... हर चीज़ को एक साथ सुंदर दिखना चाहिए।"
"अच्छा! हमें तो पता ही नहीं था," पुष्पा बुआ ने ताना मारा, उनके चेहरे पर चिड़चिड़ाहट साफ थी। रिया के मॉडर्न तौर-तरीके उन्हें रास नहीं आ रहे थे। "और तुम यह सब अपने फोन में क्या लिख रही हो? क्या तुम हमारे घर को पूरी तरह बदल दोगी?"
रिया ने मुस्कुराने की कोशिश की। "बुआ जी, मैं बस अपनी प्लानिंग्स नोट कर रही हूँ। ताकि कोई कमी न रहे। शालिनी की शादी है, आखिर।"
पुष्पा बुआ ने नाखुशी से सिर हिलाया। "हमें तो लग रहा है कि तुमने बहुत ज़्यादा नाटक शुरू कर दिया है। इतनी सादगी भी कहाँ अच्छी नहीं लगती। और बेटी, तुम इतनी छोटे कपड़े क्यों पहनती हो? यह फौजियों का इलाका है, यहाँ सब संस्कारी होते हैं।"
रिया ने गहरी साँस ली। उसे एहसास हो गया था कि यह प्रोजेक्ट वाकई उसकी कल्पना से कहीं ज़्यादा मुश्किल होने वाला है। एक तरफ 'द वेडिंग डीवा' का अपना स्टाइल और परफेक्शन था, और दूसरी तरफ 'फौजियों का अनुशासन' और 'पारंपरिक संस्कार'। यह तो अभी शुरुआत थी। उसे नहीं पता था कि उसका सामना अभी घर के असली 'जनरल साहब' से होना बाकी था, जो उसके सारे 'ग्रैंड सेलिब्रेशन' के आइडियाज़ को एक झटके में हवा में उड़ा सकते थे। रिया ने अपने फोन पर एक नया नोट लिखा: 'बुआ जी मैनेजमेंट - मोस्ट डिफिकल्ट क्लाइंट एवर।'
Chapter 4
अंबाला कैंटोनमेंट की शांत और अनुशासित हवा में अचानक एक अजीब सी हलचल घुल गई थी। सिंह निवास, जो आमतौर पर अपनी सादगी और शांति के लिए जाना जाता था, अब एक व्यस्त इवेंट साइट जैसा दिख रहा था। सुबह से ही रिया मेहरा की टीम ने मोर्चा संभाल लिया था। घर के बाहर बड़े-बड़े लोहे के फ्रेम खड़े कर दिए गए थे, जिन पर रंगीन कपड़े और झालरें लटकाई जा रही थीं। लॉन में कुछ लोग तारों के रोल लेकर भाग रहे थे, तो कुछ अजीबोगरीब प्रॉप्स को करीने से लगा रहे थे। घर के अंदर भी काम चल रहा था, रिया की टीम के सदस्य हर कमरे में जाकर संभावित सजावट के लिए माप ले रहे थे। संगीत के उपकरण, बड़ी-बड़ी लाइटें, और फूलों के बंडल हर कोने में रखे थे।
पुष्पा बुआ, जो अभी भी रिया के 'मॉडर्न' तौर-तरीकों को पचा नहीं पा रही थीं, बीच-बीच में आकर कुछ न कुछ बोलतीं। "अरे, यह तार यहाँ मत बिछाओ! कोई गिर जाएगा।", "यह इतना बड़ा स्पीकर यहाँ क्यों रखा है? क्या हमें बहरा करना चाहते हो?", "इतने फूल कौन लगाता है? यह तो बर्बादी है!" लेकिन रिया और उसकी टीम, अपने काम में मगन, उनकी बातों को अनसुना कर देती, या बस मुस्कुरा कर टाल देती।
दोपहर होते-होते, जब काम अपनी रफ़्तार पकड़ चुका था, मेजर करण प्रताप सिंह अपनी टैक्सी से सिंह निवास के मुख्य द्वार पर उतरे। उम्मीद थी कि घर में वही पुरानी शांति मिलेगी, लेकिन उसकी जगह सामने जो दृश्य था, उसे देखकर करण कुछ पल के लिए ठिठक गया। उसके माथे पर गहरी शिकन आ गई। यह उसका घर था या कोई फिल्म सेट? उसे लगा जैसे किसी ने उसके शांत और व्यवस्थित जीवन में एक झटके से रंगीन बम फोड़ दिया हो।
लॉन में दौड़ते लोग, अजीबोगरीब लाइट्स, और एक बड़ी सी वैनिटी वैन, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में 'द वेडिंग डीवा' लिखा था – यह सब करण की कल्पना से परे था। उसके दिमाग में एक 'टेंट वाला' था, जो सादे शामियाने लगाएगा और कुछ कुर्सियाँ बिछा देगा। यह 'डीवा' तो उसके घर को सर्कस में बदल रही थी।
वह टैक्सी वाले को पैसे देकर सीधा घर के अंदर बढ़ा। अंदर का माहौल और भी अराजक था। उसके पिता, ब्रिगेडियर प्रताप सिंह, अपने लिविंग रूम में बैठे थे, और उनके सामने एक युवा लड़की, जो बेहद स्टाइलिश कपड़ों में थी, अपना लैपटॉप और कुछ रंगीन ब्रोशर पकड़े हुए थी। यह रिया मेहरा थी। वह बड़े आत्मविश्वास से ब्रिगेडियर साहब को एक डिजिटल प्रेजेंटेशन दिखा रही थी।
रिया की आवाज़ करण के कानों में पड़ी। "और देखिए अंकल, संगीत के लिए हम लेज़र लाइटिंग और स्मोक मशीन का इस्तेमाल करेंगे, जो बिलकुल ग्रैंड लुक देगी। फिर दुल्हन की एंट्री स्मोक बॉम्ब इफ़ेक्ट के साथ होगी, जिससे वह बिल्कुल परियों जैसी लगेगी..."
करण का माथा ठनका। स्मोक बॉम्ब? परियों जैसी? उसे लगा जैसे वह कोई युद्ध रणनीति की बात नहीं कर रही, बल्कि किसी साइंस फिक्शन फिल्म की स्क्रिप्ट सुना रही है। वह अपने जूते उतारकर अंदर आया, उसके चेहरे पर साफ तौर पर नाराज़गी थी।
ब्रिगेडियर साहब ने करण को देखा और मुस्कुराए। "अरे, करण! आ गए बेटा। कब से इंतज़ार कर रहे थे। आओ, आओ।"
रिया ने मुड़कर देखा। उसकी नज़र एक मजबूत, लंबे आदमी पर पड़ी, जो सेना की कटिंग और अनुशासन के साथ खड़ा था। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, और चेहरे पर हल्की सी चिड़चिड़ाहट। उसे पता नहीं था कि यह मेजर करण प्रताप सिंह है, जिसे वह 'जनरल साहब' कहकर चिढ़ाने वाली थी।
करण ने रिया को एक नज़र देखा, फिर उसके लैपटॉप और ब्रोशर पर। "यह सब क्या ड्रामा है, पापा? यह शादी हो रही है या कोई फिल्म की शूटिंग?" उसकी आवाज़ में वही कठोरता थी, जो उसने अपने कमांडोज़ के लिए इस्तेमाल की थी।
रिया को इस तरह के सीधे टकराव की आदत नहीं थी। वह हमेशा अपने क्लाइंट्स से सम्मान और प्रशंसा पाती थी। उसने अपनी आइब्रो ऊपर उठाई। "एक्सक्यूज़ मी? मैं अपना काम कर रही हूँ। और अगर आपको कोई शिकायत है, तो आप अपने पिता से बात कर सकते हैं।" उसकी आवाज़ में गुस्सा और प्रोफेशनल प्राइड था।
करण ने गुस्से से उसकी ओर देखा। "आपका काम? यह मेरे घर में चल रहा है। और मुझे लगता है कि यह ज़रूरत से ज़्यादा है। यह एक फौजी परिवार की शादी है, कोई बॉलीवुड की रेड कार्पेट इवेंट नहीं।"
रिया अपनी कुर्सी से उठी। "और मुझे लगता है कि आपको थोड़ी और जानकारी की ज़रूरत है, 'साहब'। मैं मुंबई की नंबर 1 वेडिंग प्लानर हूँ। लोग मुझे 'द वेडिंग डीवा' कहते हैं। और मेरा काम हर शादी को यादगार बनाना है, चाहे वो फौजी परिवार की हो या किसी और की।"
करण मुस्कुराया, लेकिन उसकी मुस्कान में व्यंग्य था। "अच्छा? 'द वेडिंग डीवा'? मुझे तो लगा था कि हमने एक वेडिंग प्लानर हायर की है, कोई बॉलीवुड की हिरोइन नहीं। मैडम इवेंटवाली, मुझे लगता है आपको समझना चाहिए कि हम किसी स्टार की शादी नहीं कर रहे।"
रिया की आँखें गुस्से से सिकुड़ गईं। 'मैडम इवेंटवाली'? उसने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई उसे ऐसे बुलाएगा। वह पलटकर बोली, "और मुझे लगता है कि 'जनरल साहब' को थोड़ा कम ओवर-रिएक्ट करना चाहिए। यह कोई युद्ध का मैदान नहीं है, जहाँ आप सबको ऑर्डर देंगे। यह शादी है, जश्न है।"
दोनों एक-दूसरे को घूर रहे थे, उनके बीच हवा में तनाव साफ महसूस किया जा सकता था। ब्रिगेडियर प्रताप सिंह और पुष्पा बुआ, जो उनके पीछे खड़ी थीं, दोनों को हैरानी से देख रहे थे।
तभी शालू दौड़ी-दौड़ी वहां आई। "भैया! आप आ गए! मैंने आपको कितना मिस किया!" वह करण को गले लगाने के लिए बढ़ी।
करण ने शालू को कसकर गले लगाया, उसकी आँखों में प्यार था, लेकिन उसकी नज़रें अभी भी रिया पर थीं।
शालू ने दोनों के बीच तनाव महसूस किया। उसने मुस्कुराकर रिया की ओर देखा। "रिया मैम, ये मेरे बड़े भाई मेजर करण प्रताप सिंह हैं। भैया, ये हैं रिया मेहरा, मेरी वेडिंग प्लानर।"
करण ने रिया की ओर देखा, उसकी आँखों में अभी भी वही सख्त भाव था। "तो आप हैं 'द वेडिंग डीवा'?"
रिया ने एक गहरी साँस ली, उसने अपनी आवाज़ को शांत करने की कोशिश की। "जी, मेजर साहब। मैं ही हूँ।" उसकी आवाज़ में अभी भी हल्की सी चुनौती थी।
शालू उनके बीच खड़ी मुस्कुरा रही थी, इस बात से अनजान कि उनके बीच पहली ही मुलाक़ात में इतनी बड़ी जंग छिड़ चुकी है। "आप दोनों को मिलकर काम करना है। रिया मैम मेरी शादी को बेस्ट बनाना चाहती हैं, और भैया मेरी हर खुशी का ध्यान रखते हैं।"
करण ने रिया को एक तिरछी नज़र डाली। 'बेस्ट' और 'खुशी'? उसे नहीं पता था कि 'द वेडिंग डीवा' की 'बेस्ट' और उसकी 'खुशी' में कितना फर्क होने वाला है। लेकिन एक बात तय थी – यह शादी अब उतनी सादी नहीं रहने वाली थी, जितनी उसने सोची थी। यह तो बस शुरुआत थी।
Chapter 5
अगले दिन सुबह, सिंह निवास के बड़े से डाइनिंग हॉल में पहली ऑफिशियल वेडिंग प्लानिंग मीटिंग बुलाई गई। टेबल के एक छोर पर ब्रिगेडियर प्रताप सिंह और पुष्पा बुआ बैठे थे, उनके सामने शालिनी बैठी थी, जिसकी आँखों में अपनी ड्रीम वेडिंग के सपने तैर रहे थे। दूसरे छोर पर, रिया मेहरा, अपनी टीम की मैनेजर मीरा के साथ बैठी थी, उसका लैपटॉप खुला था और कुछ रंगीन कैटलॉग उसके सामने रखे थे। और उनके ठीक सामने, एक कुर्सी पर मेजर करण प्रताप सिंह बैठे थे, जिनके चेहरे पर कल रात वाली नाराज़गी अभी भी साफ़ झलक रही थी। उनकी बाहें मुड़ी हुई थीं, और उनकी आँखों में रिया के हर आइडिया को 'ऑब्जेक्टिवली' जांचने का इरादा था।
रिया ने एक गहरी साँस ली, उसने खुद को शांत किया और अपनी पेशेवर मुस्कान लाई। "गुड मॉर्निंग, एवरीवन," उसने अपनी आवाज़ को स्पष्ट और उत्साह से भरते हुए कहा। "तो, जैसा कि आप सब जानते हैं, हम शालिनी और राहुल की शादी को यादगार बनाने के लिए यहाँ हैं। और जैसा कि मेरा मोटो है, 'हर शादी एक कहानी होती है, और हम उसे सबसे खूबसूरत बनाते हैं', हम इस शादी को भी एक ऐसा भव्य रूप देंगे, जो अंबाला में किसी ने नहीं देखा होगा।"
करण ने फुफकारा, "हमें युद्ध स्मारक नहीं बनाना, मैडम। बस एक शादी करनी है।"
रिया ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। उसने अपने लैपटॉप पर एक बटन दबाया और दीवार पर एक प्रोजेक्टर से तस्वीरें आनी शुरू हो गईं। "तो, सबसे पहले डेकोरेशन। मैंने वेडिंग वेन्यू के लिए 'सिल्क एंड सैंड' थीम सोची है। इसमें हल्के रंग के सिल्क के पर्दे, दुबई से मंगाए गए खास तरह के फूल और क्रिस्टल के हैंगिंग लाइट्स होंगे, जो एक बहुत ही एलिगेंट और रॉयल लुक देंगे।"
पुष्पा बुआ ने अपने मुँह पर हाथ रखा। "दुबई से फूल? अरे, हमारे अंबाला में गेंदा, गुलाब और चमेली कम पड़ गए क्या? यह तो सरासर फिजूलखर्ची है, बेटी।"
शालू ने तुरंत कहा, "नहीं, बुआ जी! रिया मैम के आइडियाज़ बहुत अच्छे होते हैं। मैंने उनकी वेबसाइट पर देखा है।"
रिया ने मुस्कुराकर शालू की ओर देखा, फिर करण की ओर, जो अपनी भौंहें चढ़ाकर प्रेजेंटेशन देख रहा था।
"फिर आता है संगीत का वेन्यू," रिया ने अगली स्लाइड दिखाते हुए कहा। "उसके लिए हम एक ओपन-एयर स्टेज बनाएंगे, जिसमें एलईडी स्क्रीन होगी, जिस पर शालिनी और राहुल की लव स्टोरी की विज़ुअल्स चलेंगे। और डीजे के लिए, मैंने मुंबई से इंटरनेशनल डीजे आकाश को बुलाया है, जिनके बीट्स पर हर कोई झूम उठेगा।"
"डीजे आकाश?" करण ने अविश्वास से सिर हिलाया। "हमें कोई नाइट क्लब नहीं खोलना, मैडम। यह घर की शादी है। ढोल-नगाड़े और शहनाई ही काफी हैं। हमारे यहाँ मेहमानों को पारंपरिक संगीत पसंद है।"
पुष्पा बुआ ने तुरंत करण का समर्थन किया। "बिल्कुल! हमारे यहाँ तो ढोल पर नाचते हैं, न कि उस ऊटपटांग गाने पर। आजकल के बच्चे भी क्या-क्या सुनते हैं।"
शालू ने मायूस होकर कहा, "लेकिन भैया, आजकल तो हर शादी में डीजे होता है। और डीजे आकाश बहुत फेमस हैं।"
रिया ने बीच-बचाव करते हुए कहा, "शालिनी सही कह रही है। आजकल की शादियों में यंगस्टर्स के लिए डीजे बहुत ज़रूरी होता है।"
करण ने अपनी आँखें सिकोड़ीं। "ज़रूरी? मुझे नहीं लगता। जो चीज़ हमारे कल्चर से मेल न खाए, उसकी कोई ज़रूरत नहीं। वैसे भी, कैंटोनमेंट में रात 10 बजे के बाद ज़्यादा शोर करना मना है। यह आपके 'इंटरनेशनल डीजे' के लिए परेशानी बन सकता है।"
रिया ने अपने लैपटॉप पर कुछ टाइप किया। उसे पहली बार लगा कि यह जगह उसके नियमों से नहीं, बल्कि किसी और के नियमों से चलती है।
"खाने की बात करें तो," रिया ने अगली स्लाइड पर बढ़ते हुए कहा, "हमने एक मल्टी-क्यूज़ीन मेन्यू प्लान किया है। इसमें इटालियन, कॉन्टिनेंटल, और इंडियन की सभी मशहूर डिशेज़ होंगी। मुंबई से हमने एक खास शेफ को बुलाया है, जो इंटरनेशनल डिशेज़ में माहिर हैं।"
ब्रिगेडियर साहब ने अपनी दाढ़ी सहलाई। "इंटरनेशनल? रिया बेटी, हमारे मेहमानों को घर का बना खाना, खासकर पंजाबी खाना ज़्यादा पसंद आएगा। दाल मखनी, शाही पनीर, छोले भटूरे... यह सब।"
"और गरमा गरम जलेबी और लड्डू!" पुष्पा बुआ ने बीच में ही कहा। "वह सब इटालियन-विटेलियन कौन खाएगा? हमारे यहाँ तो रोटी-सब्जी खाने वाले लोग हैं।"
करण ने अपनी आवाज़ को और सख्त किया। "और बजट का क्या, मैडम इवेंटवाली? यह सब 'इंटरनेशनल' और 'डिजाइनर' चीज़ें काफी महंगी होंगी। हमें अपनी चादर देखकर पैर फैलाने चाहिए।"
रिया ने आत्मविश्वास से कहा, "बजट की चिंता मत कीजिए, मेजर साहब। हमारे पास हर तरह के बजट के लिए प्लान्स हैं। और यह सब शालिनी की खुशी के लिए है।"
शालू ने उत्साहित होकर कहा, "मुझे इटालियन बहुत पसंद है!"
करण ने शालू की ओर देखा। "शालू, इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी जड़ों को भूल जाएं। हमारी शादियाँ अपनेपन और सादगी के लिए जानी जाती हैं, न कि दिखावे के लिए।"
रिया ने अपनी उंगलियाँ टेबल पर थपथपाईं। उसे लग रहा था जैसे वह एक दीवार से बात कर रही है। उसके हर ग्रैंड आइडिया को करण 'सादगी', 'बजट' और 'अनुशासन' की तलवार से काट रहा था। और पुष्पा बुआ उसकी हाँ में हाँ मिला रही थीं।
"तो, संक्षेप में," करण ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा, "मुझे लगता है कि हमें चीज़ों को थोड़ा ज़्यादा व्यावहारिक रखना चाहिए। सुरक्षा, मेहमानों का आराम और भारतीय परंपराएँ हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। वह सब 'स्मोक बॉम्ब' और 'इंटरनेशनल डीजे' सिर्फ बेवजह का खर्च और शोर-शराबा है।"
रिया ने अपना लैपटॉप बंद किया। उसके चेहरे पर निराशा साफ दिख रही थी। "तो, क्या आप यह कहना चाहते हैं कि मेरे सारे आइडियाज़ बेकार हैं, मेजर साहब?" उसकी आवाज़ में अब गुस्सा छिपा हुआ था।
"मैं बस यह कह रहा हूँ कि हमें अपनी ज़रूरतें समझनी चाहिए," करण ने शांति से कहा, लेकिन उसकी आँखों में कोई नरमी नहीं थी।
ब्रिगेडियर प्रताप सिंह ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की। "देखो बच्चों, बात सिर्फ यह है कि हमें बीच का रास्ता निकालना होगा। रिया बेटी, तुम्हारे आइडियाज़ बहुत अच्छे हैं, लेकिन हमें यहाँ के माहौल और लोगों की पसंद का भी ध्यान रखना होगा। और करण, बेटा, थोड़ा खुला दिमाग रखो।"
शालू ने उदासी से कहा, "तो फिर मेरी शादी कैसी होगी?"
रिया ने शालू की ओर देखा, फिर करण की ओर। यह प्रोजेक्ट जितना सोचा था, उससे कहीं ज़्यादा मुश्किल था। उसे नहीं पता था कि एक वेडिंग प्लानर को एक फौजी के कठोर अनुशासन और एक बुआ जी के पारंपरिक संस्कारों से कैसे निपटना है। मीटिंग बिना किसी ठोस नतीजे के खत्म हुई। रिया और करण दोनों ही निराश थे, लेकिन उनके चेहरे पर एक ही भाव था – यह लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है। रिया ने मन ही मन सोचा, 'देखते हैं, जनरल साहब। आपकी फ़ौज के नियम जीतते हैं या मेरी 'वेडिंग डीवा' की प्लानिंग।' करण ने भी सोचते हुए कहा, 'मैडम इवेंटवाली, आपको अनुशासन का असली मतलब अभी पता चलेगा।'
Chapter 6
अगले दिन की सुबह रिया मेहरा के लिए किसी दुःस्वप्न से कम नहीं थी। मुंबई में, उसकी दिनचर्या देर रात तक काम करने और दोपहर तक उठने की थी। लेकिन अंबाला कैंटोनमेंट में सुबह चार बजे बिगुल बज जाता था! पहली सुबह जब बिगुल बजा, रिया बिस्तर से उछल पड़ी, उसे लगा जैसे कोई इमरजेंसी हो गई हो। उसने अपनी मैनेजर मीरा को जगाया, "मीरा! क्या हुआ? क्या कोई हमला हुआ है?" मीरा ने नींद में ही करवट बदली, "क्या मैडम? यह तो बिगुल है, फौजियों का सुबह का अलार्म।" रिया ने अपना सिर पीट लिया।
पुष्पा बुआ ने रिया की 'शहरी आदतों' को नोटिस कर लिया था। उन्होंने फैसला कर लिया था कि इस 'मॉडर्न इवेंटवाली' को थोड़े 'संस्कार' सिखाने पड़ेंगे। उन्हें लगा कि रिया के पास सिर्फ इवेंट प्लान करने का हुनर है, 'घर चलाने' का नहीं।
"ओह रिया बिटिया! उठ गई?" पुष्पा बुआ ने अगली सुबह रिया के कमरे का दरवाज़ा खटखटाते हुए कहा। रिया अभी भी अपनी आँखों को मल रही थी, "हाँ, बुआ जी। गुड मॉर्निंग।"
"गुड मॉर्निंग नहीं, बेटी! सुबह पाँच बज चुके हैं। इतनी देर से सोते हैं क्या? आओ, नहा धोकर पूजा में बैठो। यह फौज का घर है, यहाँ सुबह-सुबह भगवान का नाम लेते हैं।" बुआ की आवाज़ में कोई नरमी नहीं थी।
रिया, जो पूजा सिर्फ त्योहारों पर ही करती थी, अनिच्छा से उठी। उसने जल्दी से तैयार होकर नीचे देखा, तो पूरा परिवार पहले से ही पूजा में बैठा था। आरती की थाली में दिए की लौ कांप रही थी और ब्रिगेडियर साहब भजन गा रहे थे। रिया ने हाथ जोड़कर जैसे-तैसे पूजा निपटा ली।
पूजा के तुरंत बाद, पुष्पा बुआ ने उसे किचन में बुलाया। "आओ बेटी, किचन में मेरी मदद कराओ। यह सब तुम्हारे दिल्ली-मुंबई का रेस्टोरेंट वाला खाना नहीं चलेगा। घर पर नाश्ता बनाने में हाथ बटाओ।"
रिया ने अपनी ज़िन्दगी में सिर्फ अपनी माँ को किचन में देखा था, और उसने कभी खाना नहीं बनाया था, सिवाय कभी-कभार इंस्टेंट नूडल्स के। "बुआ जी, मैं... मैं तो बस इवेंट्स प्लान करती हूँ। खाना बनाना मुझे आता नहीं।" उसने मासूमियत से कहा।
पुष्पा बुआ ने कमर पर हाथ रखकर कहा, "कोई बात नहीं। फौज की बहू को सब आना चाहिए। आओ, रोटी बनाना सिखाती हूँ। यह सबसे ज़रूरी है।"
रिया की आँखों में डर था, लेकिन वह मना नहीं कर पाई। पुष्पा बुआ ने उसे आटे का एक छोटा सा पेड़ा दिया और कहा, "लो, इसे गोल बेलना है। बिल्कुल गोल, थाली जैसा।"
रिया ने बेलन पकड़ा और बड़ी सावधानी से पेड़े को बेलना शुरू किया। पहली रोटी बेली, तो उसका आकार भारत के नक्शे जैसा बन गया। बुआ जी ने देखकर अपना माथा पीट लिया। "यह क्या बनाया है, बेटी? यह रोटी है या दुनिया का नक्शा? इसे खाएगा कौन?"
रिया ने शरमाते हुए कहा, "बुआ जी, मैंने अपनी ज़िन्दगी में पहली बार रोटी बेली है।"
"मुझे पता है," बुआ ने कहा। "तुम जैसी लड़कियाँ तो पार्लर और शॉपिंग में ही रहती हो। लेकिन एक दिन तो तुम्हें घर संभालना ही पड़ेगा।" उन्होंने एक और पेड़ा दिया। "चलो, फिर से कोशिश करो।"
रिया ने दूसरी रोटी बेली, वह अमेरिका के नक्शे जैसी बन गई। तीसरी बेली तो अफ्रीका जैसी। पुष्पा बुआ एक तरफ हँस रही थीं और दूसरी तरफ परेशान थीं। करण, जो अपनी चाय पीने किचन में आया था, यह सब देखकर मुस्कुरा रहा था। उसने रिया की परेशानी का मज़ा लिया।
"लगता है मैडम इवेंटवाली को 'रोटी इवेंट' में थोड़ी दिक्कत आ रही है," करण ने ताना मारते हुए कहा।
रिया ने गुस्से से उसकी ओर देखा। "मेजर साहब, आप अपने कमांडो मिशन पर ध्यान दें। यह मेरा काम नहीं है।"
पुष्पा बुआ ने करण को कोहनी मारी। "तू जा यहाँ से! लड़की को सीखने दे। हर बात में टांग अड़ाता है।"
नाश्ता करते समय, रिया ने अपनी बनाई हुई टेढ़ी-मेढ़ी रोटियाँ देखीं। पुष्पा बुआ ने उसे ज़बरदस्ती एक रोटी खाने को कहा। रिया ने किसी तरह उसे निगला।
बाद में, रिया परेशान होकर अपने कमरे में गई और अपनी मैनेजर मीरा को फोन किया। "मीरा! मुझे इस प्रोजेक्ट से छुट्टी चाहिए! मुझे वापस मुंबई आना है!"
मीरा ने हैरानी से पूछा, "क्या हुआ मैडम? क्लाइंट से दिक्कत है?"
"क्लाइंट से नहीं, उसकी बुआ से! यहाँ क्लाइंट से ज़्यादा उसकी बुआ मुझे मैनेज कर रही हैं! सुबह चार बजे उठा देती हैं, पूजा में बिठाती हैं, और आज तो उन्होंने मुझे रोटी बेलना सिखाया! मीरा, मेरी रोटी भारत का नक्शा बन गई!" रिया ने अपनी भड़ास निकाली।
मीरा फोन पर हँसने लगी। "मैडम, आप भी मज़ा ले रही होंगी।"
"मज़ा? मीरा, यह टॉर्चर है! मेरी ब्यूटी स्लीप, मेरा वर्क शेड्यूल, सब बर्बाद हो गया है।" रिया ने ड्रामा करते हुए कहा। "लगता है इस बार 'द वेडिंग डीवा' को कोई और ही डीवा मिल गई है, और वो हैं पुष्पा बुआ!"
मीरा ने उसे समझाया, "मैडम, यह आपके लिए एक नया अनुभव है। आपने हमेशा ग्लैमरस शादियाँ की हैं। अब आपको भारतीय परिवारों की सादगी और परंपराओं को भी समझना होगा।"
रिया ने फोन रखा। उसने आईने में देखा। उसकी नींद पूरी नहीं हुई थी, बाल थोड़े बिखरे थे, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। वह स्वीकार करना नहीं चाहती थी, लेकिन इन 'संस्कार क्लासेज़' के बावजूद, उसे परिवार के साथ एक अजीब सा जुड़ाव महसूस होने लगा था। पुष्पा बुआ की डांट में उसे अब अपनेपन की एक झलक दिखने लगी थी। वह जानती थी कि बुआ जो भी करती हैं, वह उसके भले के लिए करती हैं, या शायद इसलिए क्योंकि उन्हें रिया पसंद आने लगी थी। यह सब उसकी दुनिया से बहुत अलग था, लेकिन शायद यही वह बदलाव था जिसकी उसे ज़रूरत थी।
Chapter 7
पुष्पा बुआ की 'संस्कार क्लासेज़' के बाद रिया को एक अजीब सी शांति महसूस हो रही थी। भले ही वह सुबह जल्दी उठने और 'गोल रोटी' बेलने के संघर्ष से जूझ रही थी, लेकिन उसे लग रहा था कि वह इस परिवार के साथ कुछ हद तक घुलमिल रही है। हालाँकि, मेजर करण प्रताप सिंह के साथ उसकी नोक-झोंक अभी भी जारी थी। वह अपनी हरकतों से रिया को चिढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था, और रिया भी उसे जवाब देने में पीछे नहीं रहती थी।
अगले दिन सुबह के नाश्ते पर, जब रिया अपने लैपटॉप पर शादी की नई डिज़ाइन देख रही थी, करण उसके पास आया। उसके हाथ में एक कप कॉफी थी, और उसका चेहरा हमेशा की तरह गंभीर था।
"मैडम इवेंटवाली," करण ने अपनी आवाज़ में हल्की कठोरता लाते हुए कहा। "आज सुबह आपके लिए एक नया 'मिशन' है।"
रिया ने अपनी भौंहें उठाईं। "मिशन? अब क्या है, मेजर साहब? क्या मुझे किसी और बुआ जी को 'मेकओवर' देना है, या किसी और 'नक्शे' वाली रोटी बनानी है?" उसने जानबूझकर चिढ़ाने वाले अंदाज़ में कहा।
करण के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आई, जो तुरंत गायब हो गई। "नहीं। आज मैं आपको इस कैंटोनमेंट के नियमों और विनियमों से अवगत कराऊँगा। यह आपके लिए ज़रूरी है, ताकि आप यहाँ काम करते हुए कोई सुरक्षा चूक न करें।"
रिया ने ऊबकर कहा, "क्या ज़रूरत है, मेजर साहब? मैं एक वेडिंग प्लानर हूँ, कोई आतंकवादी नहीं। मुझे बस शादी करनी है।"
"यह आपके लिए सिर्फ एक शादी होगी, लेकिन हमारे लिए यह हमारा घर और हमारी सुरक्षा है," करण ने सख्ती से कहा। "तो, तैयार हो जाइए। दस मिनट में मैं बाहर इंतज़ार करूँगा।"
करण बिना किसी और बात के चला गया। रिया ने गहरी साँस ली और अपना लैपटॉप बंद कर दिया। "लगता है आज फिर कोई 'आर्मी ड्रिल' होने वाली है," उसने अपनी मैनेजर मीरा से कहा, जो उसकी हर बात पर मुस्कुरा रही थी।
दस मिनट बाद, रिया बाहर आ गई। उसने एक स्टाइलिश जीन्स और टॉप पहना हुआ था, और उसके कंधे पर उसका छोटा सा डिज़ाइनर बैग लटका था। करण पहले से ही बाहर इंतज़ार कर रहा था, उसने एक सादा आर्मी टी-शर्ट और कार्गो पैंट पहनी थी।
"चलो," करण ने रिया को इशारा करते हुए कहा।
वे कैंटोनमेंट की सड़कों पर चलने लगे। कैंटोनमेंट वाकई में बहुत अलग था। मुंबई की भीड़भाड़, शोर और भागदौड़ के विपरीत, यहाँ हर तरफ हरियाली थी। सड़कें साफ थीं, पेड़ कतार में लगे थे, और इमारतें अनुशासित ढंग से बनी हुई थीं। यहाँ तक कि हवा में भी एक अलग सी शांति थी।
"तो, पहला नियम," करण ने बात शुरू की। "यहाँ आपको किसी भी सार्वजनिक स्थान पर तेज़ आवाज़ में बात करने या संगीत बजाने की अनुमति नहीं है। यह शांतिपूर्ण क्षेत्र है।"
रिया ने चारों ओर देखा। "मतलब, मेरी टीम को अपना म्यूजिक सिस्टम यहाँ नहीं चलाना चाहिए, और ना ही मेरे लाउडस्पीकर वाले अनाउंसमेंट्स चलेंगे?" उसने व्यंग्य से पूछा।
"बिल्कुल नहीं। किसी को भी डिस्टर्ब नहीं करना है," करण ने जवाब दिया। "और रात दस बजे के बाद कोई भी बाहरी व्यक्ति बिना अनुमति के बाहर नहीं निकल सकता।"
"क्या? मतलब यह जगह एक जेल है!" रिया ने चौंककर कहा। "मैं तो कभी भी अपने होटल या वेन्यू से बाहर नहीं निकल पाती थी, कभी शॉपिंग के लिए, कभी घूमने के लिए।"
"यह कोई फाइव-स्टार होटल नहीं है, मैडम। यह एक सैन्य छावनी है। यहाँ नियम होते हैं और उनका पालन करना होता है," करण ने बेपरवाही से कहा।
वे एक पार्किंग एरिया के पास से गुज़रे। "आप अपनी गाड़ियाँ सिर्फ निर्धारित पार्किंग स्थानों पर ही पार्क कर सकती हैं। गलत जगह पर पार्क करने पर जुर्माना लगेगा और गाड़ी जब्त भी हो सकती है," करण ने बताया।
रिया ने अपने होंठ सिकोड़े। "मेरी टीम तो बिना किसी जगह देखे, अपनी वैनिटी वैन कहीं भी पार्क कर देती थी। यहाँ तो हर कदम पर नियम हैं।"
"और यह केवल शुरुआत है," करण ने मुस्कुराते हुए कहा। "यह अनुशासन ही हमें सुरक्षित रखता है।"
वे आगे बढ़ते रहे। तभी उन्हें दूर से ड्रमों की आवाज़ सुनाई दी। "लगता है सुबह की परेड शुरू हो गई है," करण ने कहा। "चलो, मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि हमारे जवान कैसे ट्रेनिंग करते हैं।"
रिया ने अनिच्छा से उसका पीछा किया। एक बड़े से मैदान में, सैकड़ों सैनिक कतार में खड़े थे, और एक कमांडिंग ऑफिसर के आदेश पर मार्च कर रहे थे। उनकी चाल में एक अजीब सी शक्ति और तालमेल था। उनके जूते ज़मीन पर एक साथ पड़ते थे, जिससे एक गंभीर ध्वनि निकलती थी।
रिया ने यह सब कुछ पल तक देखा। "इतनी मेहनत तो मैं अपनी सबसे बड़ी शादी के लिए भी नहीं करती," उसने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में व्यंग्य नहीं, बल्कि थोड़ी हैरानी थी।
करण ने उसकी ओर देखा। "यह सिर्फ मेहनत नहीं है, रिया। यह समर्पण है। यह देश के प्रति वफ़ादारी है।"
"लेकिन यह सब इतनी बोरिंग क्यों लगता है? हर रोज़ एक ही तरह की ड्रिल, एक ही तरह का रूटीन," रिया ने कहा। "मेरी दुनिया में हर दिन नया होता है, नया क्लाइंट, नया वेन्यू, नया चैलेंज।"
करण ने एक गहरी साँस ली। "हमारा चैलेंज हर दिन अपने देश की रक्षा करना है। यह आपको बोरिंग लग सकता है, लेकिन इसी की वजह से आप मुंबई में अपने 'इंटरनेशनल डीजे' और 'दुबई के फूलों' के साथ शादियाँ प्लान कर सकती हैं, सुरक्षित रहकर।"
रिया चुप हो गई। उसने करण की बात पर गौर किया। उसने कभी इस तरह से नहीं सोचा था। उसने हमेशा फौजियों को फिल्मों में या टीवी पर देखा था, लेकिन उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी और उनके समर्पण को कभी समझा नहीं था।
"हम यहाँ सिर्फ बंदूक चलाने वाले लोग नहीं हैं, रिया," करण ने अपनी आवाज़ को थोड़ा नर्म करते हुए कहा। "हमारा काम सिर्फ बॉर्डर पर दुश्मन से लड़ना नहीं है। हमारा काम अपने देश के लोगों को सुरक्षित रखना है, उन्हें शांति से जीने देना है। यह वर्दी सिर्फ कपड़ा नहीं है, यह एक ज़िम्मेदारी है।"
रिया ने करण की ओर देखा। उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी, गर्व की, सम्मान की। वह पहली बार उसे सिर्फ एक गुस्सैल 'मेजर साहब' के रूप में नहीं, बल्कि एक गौरवान्वित सैनिक के रूप में देख रही थी। उसके चेहरे पर अब वह कठोरता नहीं थी, बल्कि एक गहरा भाव था।
"अच्छा, तो यह सब जो आप कर रहे हैं, यह भी एक तरह का 'इवेंट मैनेजमेंट' है क्या?" रिया ने धीरे से पूछा।
करण मुस्कुराया। "हाँ, एक तरह से। एक बहुत बड़ा इवेंट, जिसमें ज़रा सी भी गलती 'कोड रेड' का कारण बन सकती है।"
"और आप इस 'इवेंट' के 'वेडिंग डीवा' हैं?" रिया ने चिढ़ाते हुए कहा, लेकिन इस बार उसकी आवाज़ में पहले जैसी तल्खी नहीं थी।
"शायद," करण ने जवाब दिया। "और आप यहाँ हमारी 'ब्रांड एंबेसडर' बनने आई हैं, ताकि हमारे लोग भी 'आधुनिकता' के साथ कदम से कदम मिला सकें।"
उनकी नोक-झोंक जारी थी, लेकिन इस बार उसमें एक-दूसरे की दुनिया को समझने की एक छोटी सी कोशिश भी शामिल थी। रिया ने महसूस किया कि करण का अनुशासन केवल उसकी आदत नहीं थी, बल्कि उसके पेशे का एक अभिन्न अंग था, और उसके पीछे एक गहरा देशभक्ति का जज़्बा था। उसने कैंटोनमेंट के नियमों को 'जेल' समझना बंद कर दिया था, और अब उसे उसमें एक पैटर्न, एक व्यवस्था दिख रही थी।
जब करण ने उसे कैंटोनमेंट के अस्पताल और स्कूल दिखाए, तो रिया ने देखा कि करण कैसे वहाँ के बच्चों और लोगों से बात कर रहा था। वह उनके साथ सहज था, और उसके चेहरे पर एक अलग ही नरमी थी जो उसने पहले कभी नहीं देखी थी। वह एक सख्त कमांडो ज़रूर था, लेकिन उसके अंदर एक संवेदनशील इंसान भी था, जो अपने लोगों की परवाह करता था।
टूर खत्म होने के बाद, वे वापस सिंह निवास की ओर लौटने लगे। रिया बहुत थक गई थी, लेकिन उसके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था।
"तो, कैसा लगा हमारा 'अनुशासन टूर'?" करण ने पूछा।
रिया ने एक गहरी साँस ली। "थकाऊ। लेकिन दिलचस्प।" उसने करण की ओर देखा। "आपने अपनी दुनिया बहुत अच्छे से दिखाई, मेजर साहब।"
करण ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। रिया ने पहली बार देखा कि जब वह मुस्कुराता है, तो उसकी आँखों में एक चमक आती है। उनके बीच की बर्फीली दीवार में एक छोटी सी दरार पड़ चुकी थी। रिया को एहसास हुआ कि इस सख्त मेजर के पीछे एक बहुत ही देशभक्त, ज़िम्मेदार और शायद एक ऐसा इंसान छिपा है जिसे वह अभी पूरी तरह से जानती नहीं थी। यह 'मिशन' उसके लिए सिर्फ एक शादी को प्लान करने का नहीं रह गया था, यह कुछ और ही बनता जा रहा था।
Chapter 8
Chapter 8
अंबाला कैंटोनमेंट में रिया की दिनचर्या अब थोड़ी बदल चुकी थी। सुबह की परेड और पुष्पा बुआ की 'संस्कार क्लासेज़' के बाद, वह दोपहर में शालू और ब्रिगेडियर सिंह के साथ शादी की तैयारियों में जुट जाती थी। करण के साथ उसकी नोक-झोंक तो कम नहीं हुई थी, लेकिन अब उसमें एक आपसी समझ और एक अजीब सा खिंचाव महसूस होने लगा था। वह करण को 'जनरल साहब' कहकर चिढ़ाती थी और करण उसे 'मैडम इवेंटवाली' बुलाता था, लेकिन अब इन नामों में पहले जैसी कड़वाहट नहीं थी।
आज का दिन काफी व्यस्त था। दूल्हे का परिवार अंबाला पहुँचने वाला था, और सिंह निवास में उनकी अगवानी की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। रिया ने अपनी टीम को मेहमानों के स्वागत के लिए ख़ास फूलों की सजावट और पारंपरिक रंगोली बनाने का निर्देश दिया था। वह चाहती थी कि मुंबई के साथ-साथ अंबाला के पारंपरिक रंग भी इस शादी में दिखें।
सुबह से ही सिंह निवास में चहल-पहल थी। पुष्पा बुआ ने नाश्ते में ख़ास तरह के पराठे और सब्ज़ियाँ बनाई थीं। शालू बहुत उत्साहित थी, क्योंकि वह अपने होने वाले पति, रोहित, और उसके परिवार से मिलने वाली थी।
"रिया दीदी, सब कुछ परफेक्ट होना चाहिए," शालू ने रिया से कहा, उसकी आँखों में चमक थी। "रोहित की बुआ बहुत ट्रेडिशनल हैं, और उनकी एक चाचा जी हैं मिस्टर वर्मा, जो बहुत ख़ास हैं। रोहित कहता है कि वह उनके मुँह-बोले चाचा हैं, लेकिन उनके बिना रोहित कोई काम नहीं करता।"
रिया मुस्कुराई। "चिंता मत करो, शालू। जब 'द वेडिंग डीवा' यहाँ है, तो सब कुछ परफेक्ट ही होगा।" उसने शालू के गाल पर प्यार से हाथ फेरा।
तकरीबन दोपहर के समय, कई गाड़ियाँ सिंह निवास के सामने रुकीं। दूल्हे का परिवार पहुँच गया था। ब्रिगेडियर सिंह और पुष्पा बुआ उनके स्वागत के लिए मुख्य द्वार पर खड़े थे। करण, अपनी आर्मी ड्रेस में, थोड़ा दूर खड़ा था, आने वाले मेहमानों को परख रहा था। उसके लिए, यह सिर्फ एक पारिवारिक मिलन नहीं था, बल्कि एक सुरक्षा मूल्यांकन भी था। उसकी कमांडो ट्रेनिंग उसे हर जगह सतर्क रहने की सीख देती थी।
गाड़ियों से सबसे पहले रोहित उतरा, उसके पीछे उसके माता-पिता और अन्य रिश्तेदार थे। रोहित ने आकर शालू को देखा और दोनों के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई। तभी एक गाड़ी से एक अधेड़ उम्र का आदमी उतरा। वह सादे लेकिन महंगे कपड़े पहने हुए था, उसके चेहरे पर हमेशा एक मीठी सी मुस्कान रहती थी। उसके बाल करीने से संवरे हुए थे और उसकी आँखें बेहद तेज़ थीं।
"नमस्ते, नमस्ते!" उस आदमी ने हाथ जोड़कर कहा। वह रोहित के माता-पिता के पीछे खड़ा था, लेकिन उसने तुरंत सबसे आगे आकर ब्रिगेडियर सिंह और पुष्पा बुआ के चरण छुए। "मैं रमेश वर्मा, रोहित का मुँह-बोला चाचा। आपकी मेहमाननवाज़ी के क्या कहने! इतनी हरियाली और इतनी शांति... वाह!"
पुष्पा बुआ, जो थोड़ी संकोची स्वभाव की थीं, उनकी विनम्रता से तुरंत प्रभावित हो गईं। "अरे अरे! आशीर्वाद! आइए वर्मा जी, अंदर आइए।"
वर्मा तुरंत घर के अंदर आ गया। उसकी नज़रें हर कोने में घूम रही थीं, जैसे वह किसी चीज़ का आकलन कर रहा हो। रिया ने उसे देखा, उसे लगा कि यह आदमी कुछ ज़्यादा ही मिलनसार है। वह अपनी टीम को निर्देश दे रही थी कि मेहमानों को नाश्ता कैसे परोसना है, तभी वर्मा उसके पास आया।
"आप ही हैं रिया मेहरा जी, 'द वेडिंग डीवा'?" वर्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, उसकी आवाज़ में मक्खन लगा था। "मैंने आपकी बहुत तारीफ सुनी है। मुंबई में तो आप धूम मचा देती हैं। और यहाँ भी... वाह! यह सजावट, यह रंगोली... आप तो जादूगर हैं, बिटिया!"
रिया, जो तारीफ की आदी थी, थोड़ी असहज हुई। उसे वर्मा का यह अचानक ज़्यादा तारीफ करना अजीब लगा। "थैंक यू, अंकल जी," उसने बस इतना कहा।
"अरे! अंकल जी नहीं, चाचा जी कहो," वर्मा ने हँसते हुए कहा। "अब तो हमारा पारिवारिक रिश्ता जुड़ने वाला है। आप तो हमारी होने वाली बहू की सहेली जैसी हैं।"
उसने रिया के काम की और भी तारीफें कीं, रिया को अपनी योजनाओं और डिज़ाइनों के बारे में बताने के लिए प्रोत्साहित किया। रिया ने भी सोचा कि यह एक अच्छा और सपोर्टिव क्लाइंट है, और उसने उसे अपनी कुछ ख़ास डिज़ाइन के बारे में बताया। वर्मा ध्यान से उसकी हर बात सुन रहा था, और बीच-बीच में हाँ में हाँ मिला रहा था, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वह कुछ और ही ढूंढ रहा हो।
करण दूर से यह सब देख रहा था। उसे मिस्टर वर्मा का व्यवहार थोड़ा ज़्यादा ही मीठा और दिखावटी लग रहा था। फौजियों की ट्रेनिंग उसे सिखाती थी कि हर चीज़ पर शक करो, खासकर जब कोई ज़रूरत से ज़्यादा अच्छा बनने की कोशिश करे। करण ने देखा कि वर्मा की आँखें सिर्फ सजावट पर नहीं, बल्कि घर के हर दरवाज़े, खिड़की और यहाँ तक कि बिजली के स्विचबोर्ड पर भी ठहर रही थीं।
थोड़ी देर बाद, जब मेहमान नाश्ता कर रहे थे, वर्मा शालू के पास गया। "तो, बिटिया रानी, कैसी चल रही है शादी की तैयारियाँ? यहाँ कैंटोनमेंट में मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। इतनी सुरक्षा है यहाँ, लगता है चींटी भी अंदर नहीं आ सकती।" उसने हंसते हुए कहा।
शालू मुस्कुराई। "हाँ, चाचा जी! यहाँ सुरक्षा बहुत कड़ी है। पापा और भैया, दोनों ही बहुत सख्त हैं इस मामले में। मेन गेट से लेकर हर बिल्डिंग तक, सब कुछ स्कैन होता है।"
"अच्छा, सच में? तो फिर यहाँ के सर्वर रूम वगैरह कहाँ हैं? इतनी बड़ी छावनी है, तो कंप्यूटर नेटवर्क भी बहुत मज़बूत होगा," वर्मा ने कैज़ुअल अंदाज़ में पूछा।
शालू ने अज्ञानता से जवाब दिया, "मुझे नहीं पता, चाचा जी। भैया बताते हैं कि उनका ऑफिस बहुत हाई-सिक्योरिटी ज़ोन में है, और वहाँ सिर्फ कुछ ही लोगों को जाने की इजाज़त है।"
वर्मा ने सिर हिलाया, जैसे वह सिर्फ सामान्य जानकारी इकट्ठा कर रहा हो। "बेशक, बेशक! देश की सुरक्षा का मामला है। बहुत अच्छी बात है।" उसने फिर से मुस्कुराया और शालू के सिर पर हाथ फेरा। "चलो, अब नाश्ता करो।"
करण, जो पास से गुज़र रहा था, उनकी बातचीत का एक हिस्सा सुन लेता है। 'सर्वर रूम? कम्युनिकेशन नेटवर्क?' करण के दिमाग में घंटी बजने लगती है। एक मुँह-बोला चाचा इतना तकनीकी सवाल क्यों पूछ रहा है, खासकर एक ऐसे परिवार से जिसका सीधा संबंध सेना से है? करण को वर्मा का यह व्यवहार बेहद अजीब लगता है।
उसने अपनी फौजी प्रवृत्ति के कारण तुरंत सतर्क हो जाता है। हालाँकि, उसके पास शक करने का कोई ठोस कारण नहीं होता, क्योंकि वर्मा ने बहुत मीठे और मिलनसार तरीके से सवाल पूछे थे। वह कोई जासूस नहीं लग रहा था, बस एक जिज्ञासु रिश्तेदार। लेकिन करण की छठी इंद्री उसे कुछ गड़बड़ होने का संकेत दे रही थी।
उसने वर्मा पर दूर से नज़र रखने का फैसला किया। वह चुपचाप उसकी हर गतिविधि को देखने लगा। वर्मा मेहमानों से बात करता, हंसी-मज़ाक करता, लेकिन उसकी आँखें हमेशा घर के नक्शे, दरवाज़ों की पोजीशन और सुरक्षा कैमरों की ओर घूम जाती थीं। करण ने नोटिस किया कि वर्मा ने कुछ बार अपनी जेब से एक छोटा सा डिवाइस निकाला, जैसे वह कुछ नोट कर रहा हो, लेकिन वह उसे तुरंत छिपा लेता था।
रात को खाना खाने के बाद, जब सब मेहमान आराम कर रहे थे, करण ने अपने लैपटॉप पर कुछ सर्च करना शुरू किया। उसने रोहित के परिवार की पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी निकाली, लेकिन मिस्टर वर्मा के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिली। 'मुँह-बोला चाचा' की अवधारणा इतनी अस्पष्ट थी कि उसे कुछ खास हाथ नहीं लगा।
करण ने सोचा कि शायद वह ज़रूरत से ज़्यादा सोच रहा है। 'शायद वह सिर्फ एक जिज्ञासु नागरिक है, जो फौज के बारे में जानना चाहता है।' लेकिन एक कमांडो के तौर पर वह किसी भी 'शायद' पर भरोसा नहीं करता था। उसके लिए, हर छोटी सी विसंगति एक बड़े खतरे का संकेत हो सकती थी।
सोने से पहले, करण अपने कमरे की बालकनी में खड़ा था। उसकी नज़रें रात के अंधेरे में भी कैंटोनमेंट की सुरक्षा पर थीं। उसे याद आया कि जब वह छोटा था, तब उसके पिता ब्रिगेडियर सिंह भी ऐसे ही रात में बाहर खड़े होकर कैंटोनमेंट की सुरक्षा का जायज़ा लेते थे। आज उसे वही ज़िम्मेदारी महसूस हो रही थी।
उसने अपनी जेब से अपना फोन निकाला और अपने एक विश्वसनीय संपर्क को मैसेज किया: "एक व्यक्ति के बारे में जानकारी चाहिए - रमेश वर्मा। रोहित सिंह का मुँह-बोला चाचा। अंबाला कैंटोनमेंट में है। जल्द से जल्द पूरी डिटेल चाहिए।"
करण ने मैसेज भेज दिया और फोन को अपनी जेब में रख लिया। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी यह फौजी वृत्ति उसे क्या इशारा कर रही है, लेकिन वह किसी भी कीमत पर अपनी बहन की शादी और अपने परिवार की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं कर सकता था। उसके लिए, यह शादी अब सिर्फ एक पारिवारिक समारोह नहीं रह गई थी, बल्कि एक अनकहा 'मिशन' बन चुकी थी, जिसका नाम था 'मिशन: अननोन थ्रेट'। और मिस्टर वर्मा उस मिशन का पहला और सबसे संदिग्ध 'टारगेट' था।
Chapter 9
अगली सुबह, अंबाला कैंटोनमेंट में सूरज की पहली किरण के साथ ही सिंह निवास में फिर से रौनक लौट आई थी। पुष्पा बुआ सुबह से ही किचन में लग गई थीं, तरह-तरह के नाश्ते बन रहे थे, क्योंकि आज दूल्हे के परिवार को पूरे दिन यहीं रुकना था। रिया, जो अब सुबह जल्दी उठने की थोड़ी आदी हो चुकी थी, अपने लैपटॉप पर बैठी, संगेत की थीम को लेकर रिसर्च कर रही थी। करण, हमेशा की तरह, अपनी सुबह की दौड़ पूरी करके लौटा था और जिम में पसीना बहाकर नाश्ते की मेज़ पर बैठा था। उसकी आँखें बीच-बीच में मिस्टर वर्मा को ढूँढ रही थीं, जो अभी तक दिखे नहीं थे। करण को अभी भी कल रात का उसका व्यवहार और कैंटोनमेंट के बारे में उसके अजीब सवाल खटक रहे थे।
"अरे रिया बिटिया! आ जाओ नाश्ता कर लो," पुष्पा बुआ ने प्यार से कहा। "आजकल तो तुम बिल्कुल घर की बेटी जैसी लगती हो।"
रिया मुस्कुराई और नाश्ते की मेज़ पर आ गई। "गुड मॉर्निंग बुआ जी। आपके हाथ का नाश्ता तो अब मेरी आदत बन चुका है।"
शालू भी नाश्ते के लिए आ चुकी थी, उसके चेहरे पर शादी की खुशी साफ झलक रही थी। "गुड मॉर्निंग एवरीवन! भैया, आप भी नाश्ता कर लो, आज संगेत की मीटिंग है, और मुझे बहुत एक्साइटमेंट हो रहा है!"
करण ने एक नज़र रिया पर डाली। "मुझे तो लग रहा है, आज की मीटिंग में 'तूफ़ान' आने वाला है।"
रिया ने अपनी भौंहें चढ़ाईं। "मेजर साहब, आपके लिए हर चीज़ 'तूफ़ान' क्यों होती है? यह एक शादी है, कोई युद्ध का मैदान नहीं।"
"मेरे लिए तो सब कुछ एक 'मिशन' है, जिसमें परफेक्ट प्लानिंग और 'कोड ऑफ़ कंडक्ट' ज़रूरी होता है," करण ने जानबूझकर कहा।
"और मेरी प्लानिंग हमेशा 'सुपर-डुपर हिट' होती है," रिया ने पलटवार किया।
पुष्पा बुआ ने उनके बीच हो रही नोक-झोंक को अनदेखा करते हुए कहा, "चलो, चलो! झगड़ा बाद में करना। पहले नाश्ता कर लो, फिर मीटिंग के लिए सबको बुलाते हैं।"
नाश्ते के बाद, सिंह परिवार के सभी सदस्य, दूल्हे का परिवार और रिया अपनी टीम के साथ, लिविंग रूम में संगेत की प्लानिंग मीटिंग के लिए इकट्ठे हुए। मिस्टर वर्मा भी वहीं मौजूद थे, उनके चेहरे पर हमेशा की तरह मीठी सी मुस्कान थी। करण की नज़रें एक पल के लिए उन पर ठहरीं, लेकिन फिर उसने अपना ध्यान मीटिंग पर केंद्रित कर लिया।
रिया ने अपने टैबलेट पर कुछ स्लाइड्स खोलते हुए कहा, "तो, इस संगेत को हम अब तक का सबसे यादगार इवेंट बनाएंगे! मैंने एक बॉलीवुड-मीट्स-ग्लोबल थीम सोची है। इसमें लेटेस्ट बॉलीवुड हिप-हॉप नंबर्स होंगे, साथ में कुछ इंटरनेशनल फ्यूजन म्यूजिक भी, जो युवाओं को बहुत पसंद आएगा।"
शालू की आँखें चमक उठीं। "वाह! यह तो बहुत कूल है रिया दीदी! मुझे तो अभी से डांस करने का मन कर रहा है।"
रिया मुस्कुराई। "जी, बिल्कुल! और मैंने मुंबई के मशहूर डीजे ज़ेवियर को बुक करने का सोचा है। उनके पास लेटेस्ट साउंड सिस्टम और लाइटिंग इफ़ेक्ट्स हैं। स्टेज पर स्मोक मशीन और लेज़र लाइट का भी इस्तेमाल होगा, जो एक नाइटक्लब जैसा माहौल देगा।"
जैसे ही रिया ने 'डीजे ज़ेवियर', 'स्मोक मशीन' और 'नाइटक्लब' का ज़िक्र किया, करण का माथा ठनक गया। उसने अपनी कुर्सी पीछे सरकाई और आवाज़ को सख्त करते हुए बोला, "एक्सक्यूज़ मी, मैडम इवेंटवाली। यह कोई नाइटक्लब या डिस्कोथेक नहीं है। यह एक सैन्य छावनी है, और यह एक परिवार की शादी है। यहाँ हमें सादगी और परंपरा बनाए रखनी है।"
रिया ने करण की ओर मुँह बनाकर देखा। "सादगी अच्छी है, मेजर साहब, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम बोरिंग हो जाएँ। आज के ज़माने में युवाओं को थोड़ा ग्लैमर और मज़ा भी चाहिए। डीजे ज़ेवियर की धुन पर सब डांस करेंगे और एक शानदार पार्टी होगी।"
"शानदार पार्टी?" करण ने तेज़ आवाज़ में कहा। "हमारे मेहमानों को ढोल-नगाड़े, लोकगीत और भजन ज़्यादा पसंद आएँगे। हम कोई बेवजह की फिजूलखर्ची नहीं करेंगे। डीजे का क्या काम है यहाँ?"
पुष्पा बुआ ने तुरंत करण का साथ दिया। "बिल्कुल सही कह रहा है करण! हमारी संस्कृति में संगेत का मतलब होता है, मिल-जुलकर भजन गाना, लोकगीत पर नाच करना। ये डीजे और वेस्टर्न गाने, ये सब तो आजकल के बच्चों का फालतू ड्रामा है। अपनी परंपराओं को भूलना नहीं चाहिए, बिटिया।"
रिया ने गहरी साँस ली। "बुआ जी, आज का युवा बॉलीवुड के गाने और डीजे पर नाचना चाहता है। अगर हम पुराने ढोल-नगाड़े और भजन ही बजाते रहे, तो मेहमान बोर हो जाएँगे और डांस फ्लोर खाली रहेगा।"
"अरे, तो क्या हुआ? शादी है, नाच-गाना ही सब कुछ थोड़ी है!" पुष्पा बुआ ने हाथ हिलाते हुए कहा। "हमारी बारात में तो सारे लोग ढोल पर नाचते हुए आते हैं, और शादी में भी सब मिल-जुलकर खुशी मनाते हैं। इन डीजे-वीजे की कोई ज़रूरत नहीं है।"
करण ने भी अपनी बात आगे बढ़ाई। "और सुरक्षा का क्या? यह कैंटोनमेंट है, मैडम। ज़ोरदार संगीत, धुआँ और लेज़र लाइटें सुरक्षा के लिए खतरा हो सकती हैं। आप सुरक्षा नियमों को जानते हुए भी ऐसी चीज़ों का सुझाव कैसे दे सकती हैं?"
"सुरक्षा? मेजर साहब, यह सिर्फ लाइटिंग और साउंड है। यह कोई बम या गोला-बारूद नहीं है," रिया ने झुंझलाते हुए कहा। "और अगर आपको सुरक्षा की इतनी ही चिंता है, तो हम अपनी टीम से इस पर ख़ास ध्यान रखने के लिए कहेंगे।"
दूल्हे के पिता, मिस्टर सिंह, जो अब तक चुपचाप सब सुन रहे थे, बोले, "देखिए, हम सब चाहते हैं कि शालू की शादी यादगार हो। रिया जी के आइडियाज़ बहुत मॉडर्न और अच्छे हैं, लेकिन हमें परिवार के बड़े-बुजुर्गों की भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिए।"
शालू, जो रिया और करण के बीच फँसी हुई थी, उसकी आँखों में निराशा झलक रही थी। वह दोनों को खुश करना चाहती थी, लेकिन वे दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़े थे। "प्लीज़, आप दोनों लड़ो मत," शालू ने धीरे से कहा। "मुझे दोनों चीज़ें पसंद हैं। मुझे डीजे पर डांस करना भी पसंद है, और बुआ जी के लोकगीत भी बहुत अच्छे लगते हैं।"
करण और रिया दोनों ने शालू की ओर देखा, उनके चेहरे पर थोड़ी शर्मिंदगी थी। वे दोनों नहीं चाहते थे कि शालू उदास हो।
"अच्छा," शालू ने एक पल सोचा, फिर उसकी आँखों में एक विचार आया। "तो क्यों न हम दोनों का मिक्स करें? एक घंटा आपका, रिया दीदी, जिसमें डीजे और लेटेस्ट गाने होंगे, और एक घंटा भैया का, जिसमें ढोल-नगाड़े और बुआ जी के पसंद के भजन होंगे।"
शालू की यह बात सुनकर सब एक पल के लिए शांत हो गए। यह एक अच्छा समाधान था, जिससे दोनों पक्षों को अपनी बात रखने का मौका मिल रहा था।
रिया ने एक पल सोचा, फिर धीरे से कहा, "ठीक है। यह एक अच्छा समझौता है। कम से कम युवाओं को थोड़ी देर तो अपनी पसंद का संगीत मिलेगा।" उसने करण की ओर देखा, उसकी आँखों में एक चुनौती थी।
करण भी थोड़ी देर के लिए हिचकिचाया। उसे रिया के साथ कोई भी समझौता करना पसंद नहीं था, लेकिन शालू की बात में दम था। वह अपनी बहन की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता था। "ठीक है, लेकिन एक घंटे से ज़्यादा नहीं। और ध्वनि का स्तर निर्धारित सीमा के भीतर होना चाहिए।" उसने एक चेतावनी भरे स्वर में कहा।
रिया ने मुस्कुराकर कहा, "नो प्रॉब्लम, जनरल साहब! मैं हर चीज़ का ध्यान रखूँगी। आपको अपने 'कानों पर पट्टी' बांधने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।"
करण ने एक हल्की सी आवाज़ में बुदबुदाया, "मुझे अपनी 'आँखें' खुली रखनी पड़ेंगी, मैडम।"
इस समझौते के बाद भी, उनके बीच की स्पर्धा खत्म नहीं हुई थी। अब यह "डीजे बनाम ढोल" की प्रतियोगिता में बदल गया था। रिया अपनी टीम से कहती रही कि उन्हें डीजे वाले एक घंटे में ऐसा समा बांधना है कि लोग दूसरा घंटा भूल जाएँ। वहीं, करण ने पुष्पा बुआ के साथ मिलकर कुछ पुराने आर्मी गाने और पारंपरिक लोकगीत चुने थे, यह साबित करने के लिए कि असल मज़ा तो देसी नाच में ही आता है।
मिस्टर वर्मा ने यह सब देखा और मुस्कुराया। उनकी आँखों में कुछ और ही चल रहा था। उन्हें लगा कि करण और रिया का यह 'पर्सनल वॉर' उनके लिए एक अच्छा मौका साबित हो सकता है। वे इस व्यस्त माहौल में, अपने काम को और आसानी से अंजाम दे सकते थे, जबकि सब एक-दूसरे से लड़ने में व्यस्त होंगे। उन्होंने चुपचाप अपनी योजना पर काम करने का फैसला किया।
मीटिंग खत्म होने के बाद, रिया अपनी टीम के साथ बाहर निकली। "तो, अब तुम्हें पता है, क्या करना है," उसने अपनी टीम के हेड को कहा। "डीजे ज़ेवियर को तैयार रखना। हमें यह साबित करना है कि मॉडर्न इज़ बेटर। हम इस कैंटोनमेंट को 'डिज्नीलैंड' में बदल देंगे!"
दूसरी तरफ, करण ने पुष्पा बुआ के पास आकर कहा, "बुआ जी, हमें अपने पुराने ढोल वाले को बुलाना होगा। और कुछ और ढोल-नगाड़े भी अरेंज करने होंगे। हमें दिखाना होगा कि असली ऊर्जा और मस्ती हमारे पारंपरिक संगीत में है।"
पुष्पा बुआ ने हाँ में हाँ मिलाई। "बिलकुल! मैं अभी से महिलाओं को भजन गाने के लिए तैयार करती हूँ। दिखा देंगे इस 'डीवा' को कि हमारे संस्कार ही हमारी असली शान हैं!"
करण ने एक नज़र दूर खड़ी रिया पर डाली। रिया ने भी उसकी ओर देखा और दोनों के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी। यह संगेत अब सिर्फ एक रस्म नहीं थी, बल्कि दो विपरीत सोच वाले लोगों के बीच का एक अनकहा 'शोडाउन' था – 'डीजे बनाम ढोल'। और दोनों ही अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते थे। अगले कुछ दिन इसी तैयारी में बीतने वाले थे, जिसमें हर कोई अपनी-अपनी जीत के लिए पूरी जान लगा देगा। यह सिर्फ संगेत नहीं, बल्कि उनके बीच की जंग का एक और अध्याय था, जो अब और भी मज़ेदार होने वाला था।
Chapter 10
संगीत की रात आ चुकी थी। अंबाला कैंटोनमेंट का विशाल ग्राउंड, जहाँ आमतौर पर फौजी ड्रिल करते थे, अब रिया मेहरा की 'वेडिंग डीवा' टीम के जादू से पूरी तरह बदल चुका था। रंग-बिरंगी लाइट्स, फूलों के मंडप, चमचमाती सजावट और एक विशाल स्टेज, सब कुछ ऐसा था, मानो किसी शाही महल में जश्न मनाया जा रहा हो। रिया ने करण की 'सादगी' की शर्त का सम्मान करते हुए पारंपरिक भारतीय मोटिफ्स का इस्तेमाल किया था, लेकिन उसमें अपने मॉडर्न और भव्य स्टाइल का तड़का भी लगा दिया था। रोशनी ऐसी थी कि अंधेरे में भी हर फूल, हर धागा चमक रहा था। खाने के स्टॉल पर तरह-तरह के पकवानों की खुशबू फैल रही थी, और मेहमानों की चहल-पहल से पूरा माहौल गुलज़ार था।
मीटिंग में तय हुए समझौते के अनुसार, पहला घंटा पुष्पा बुआ और उनके जैसे परंपरावादी लोगों के लिए समर्पित था। स्टेज पर ढोल-नगाड़े वाले अपनी ताल पर थिरक रहे थे और महिलाएं मिलकर पारंपरिक लोकगीत गा रही थीं। कुछ बुजुर्ग मेहमान भजन भी गुनगुना रहे थे। माहौल में एक सहज, घर जैसा अपनापन था। पुष्पा बुआ रिया की ओर देखकर मुस्कुरा रही थीं, जैसे कह रही हों, "देखा, असली मज़ा तो इसी में है!" रिया ने भी एक पल के लिए इस सादगी का आनंद लिया, लेकिन उसका दिमाग अपने अगले 'ग्रांड प्लान' में व्यस्त था।
करण, अपनी काली शेरवानी में, कैंटोनमेंट के कुछ सीनियर ऑफिसर्स से बात कर रहा था। उसकी नज़रें लगातार माहौल का जायज़ा ले रही थीं। हालाँकि यह एक शादी का जश्न था, उसके कमांडो दिमाग के लिए यह किसी भी संभावित खतरे का मूल्यांकन करने का एक और मौका था। उसने देखा कि सब कुछ व्यवस्थित था, और रिया की टीम अपना काम बखूबी कर रही थी। हालांकि, उसे अभी भी रिया के 'मॉडर्न' आइडियाज़ पर पूरा भरोसा नहीं था। खासकर, 'स्मोक बॉम्ब' वाली बात उसके दिमाग में घूम रही थी।
"मेजर साहब, क्या हाल है?" एक सीनियर ऑफिसर ने हँसते हुए पूछा। "आपकी बहन की शादी है, थोड़ा मुस्कुराइए। आज तो आप भी कमांडो मूड में लग रहे हैं।"
करण हल्का सा मुस्कुराया। "सर, आदत है। वैसे भी, कैंटोनमेंट में कोई भी बड़ी गैदरिंग हो, तो सतर्क रहना ज़रूरी है।"
ठीक इसी पल, पुष्पा बुआ के लोकगीतों का सेशन ख़त्म हुआ। रिया ने अपनी टीम के वॉकी-टॉकी पर निर्देश दिया, "ओके टीम, इट्स टाइम! शालू की एंट्री को यादगार बनाना है। गेट के पास सब तैयार हो जाओ।"
जैसे ही रिया की टीम के सदस्य गेट की ओर बढ़े, डीजे ज़ेवियर ने अपना इक्विपमेंट तैयार कर लिया था। रिया ने अपनी मैनेजर को आखिरी निर्देश दिया। "याद रखना, स्मोक बॉम्ब्स एक साथ ऑन होने चाहिए, और म्यूजिक बिल्कुल एंट्री के साथ सिंक होना चाहिए।"
"यस मैम, हो जाएगा!" मैनेजर ने उत्साह से कहा।
शालू, जो स्टेज पर जाने के लिए तैयार थी, ने रिया से पूछा, "रिया दीदी, एंट्री कैसे होगी? आपने मुझे बताया नहीं।"
रिया ने उसकी आँख मारी। "सरप्राइज! बस तैयार रहना। यह सबसे बेहतरीन एंट्री होगी, जो तुमने कभी देखी होगी!"
शालू उत्साहित थी। उसे रिया के क्रिएटिव आइडियाज़ पर पूरा भरोसा था।
जैसे ही संगीत बदलता, डीजे ने धमाकेदार बॉलीवुड गाने की शुरुआत की। माहौल तुरंत बदल गया। युवा मेहमान डांस फ्लोर पर आने लगे। तभी, स्टेज के पीछे से, जहाँ से शालू को एंट्री करनी थी, रिया की टीम ने "टेस्ट" के नाम पर पहला स्मोक बॉम्ब एक्टिवेट किया।
एक ही पल में, रंगीन धुआँ तेजी से चारों तरफ फैलने लगा – पहले नीला, फिर गुलाबी, फिर हरा। यह बहुत ज़्यादा धुआँ था, जो पूरे एरिया को अपनी चपेट में ले रहा था। यह धुआँ इतना घना था कि कुछ देर के लिए सामने कुछ दिखना भी मुश्किल हो गया।
करण, जो कुछ ही दूरी पर अपने सीनियर से बात कर रहा था, ने अचानक इस धुएं को देखा। उसका दिमाग तुरंत "अलर्ट" मोड में आ गया। धुआँ, शोर, अचानक बदली हुई स्थिति... उसके लिए यह स्पष्ट रूप से एक सुरक्षा खतरे का संकेत था। उसका कमांडो दिमाग किसी भी "सरप्राइज" या "इवेंट इफ़ेक्ट" के लिए प्रशिक्षित नहीं था। उसके लिए, धुआँ मतलब खतरा।
"क्या हुआ ये?" एक ऑफिसर ने घबराकर पूछा।
करण के चेहरे पर तुरंत कठोरता आ गई। "कोड रेड! कोड रेड! इमीडिएट एक्शन!" उसकी आवाज़ बिजली की तरह कड़कती थी। उसने तुरंत अपनी कमर से वॉकी-टॉकी उठाया और अपनी टीम को निर्देश देने लगा, "चारों तरफ से घेर लो! गेट्स पर सुरक्षा बढ़ाओ! यह कोई मॉक ड्रिल नहीं है, यह असली खतरा है!"
उसने चिल्लाकर अपने पास खड़े सैनिकों से कहा, "मूव! मूव! चारों तरफ से कवर करो!"
सैनिक, जो करण के हर आदेश का पालन करने के लिए प्रशिक्षित थे, तुरंत हरकत में आ गए। उन्होंने तुरंत अपनी पोजीशन ले ली, कुछ मेहमानों की तरफ अपनी राइफलें तान दीं (हालाँकि भरी नहीं थीं), और कुछ ने चिल्लाना शुरू कर दिया, "बाहर निकलो! सुरक्षित जगह पर जाओ!"
पूरे समारोह में हड़कंप मच गया। जो मेहमान नाच रहे थे, वे घबरा गए। कुछ बच्चे डर के मारे रोने लगे। पुष्पा बुआ ने चिल्लाना शुरू कर दिया, "क्या हो गया? कौन हमला कर रहा है?"
रिया, जो स्टेज के पास खड़ी थी और अपनी टीम को शालू की एंट्री के लिए तैयार कर रही थी, उसने जब यह सब देखा, तो उसका दिल मुँह को आ गया। "क्या? अरे नहीं!" उसने चिल्लाया।
वह भागती हुई करण की तरफ आई, जो धुएँ के बीचों-बीच खड़ा था और सैनिकों को निर्देश दे रहा था। "मेजर साहब! रुको! यह मेरी एंट्री का पार्ट है!" वह चिल्लाई, उसकी आवाज़ करण के गुस्से भरे आदेशों में दब गई।
करण ने उसकी आवाज़ सुनी। उसने घूमकर देखा, रिया उसके सामने खड़ी थी, चिल्ला रही थी, और उसके पीछे रंगीन धुआँ अभी भी निकल रहा था। करण की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। उसने रिया का हाथ पकड़ा और उसे थोड़ा खींचते हुए एक तरफ ले गया।
"आप पागल हो गई हैं, मैडम इवेंटवाली?" करण ने लगभग चीखते हुए कहा, उसकी आवाज़ में गुस्सा और निराशा साफ झलक रही थी। "यह आर्मी कैंटोनमेंट है, आपका फिल्म सेट नहीं! आपको किसने इजाज़त दी यहाँ स्मोक बॉम्ब इस्तेमाल करने की? आपको पता भी है, आपने क्या कर दिया? पूरी सुरक्षा व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया है!"
रिया घबरा गई थी। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसका 'ग्रांड प्लान' इस तरह से उलटा पड़ जाएगा। "मेजर साहब... मुझे लगा... मुझे लगा यह मज़ेदार होगा... शालू की एंट्री के लिए..." उसकी आवाज़ लड़खड़ा रही थी।
"मज़ेदार?" करण ने आँखें चौड़ी करते हुए पूछा। "आपको यह मज़ेदार लगता है? मुझे लगा यह हमला है! मेरे सैनिक एक्शन मोड में आ गए हैं! आपने पूरे कैंटोनमेंट में 'कोड रेड' की स्थिति पैदा कर दी है, वह भी अपनी इस 'बेवकूफी' की वजह से!"
मेहमान अभी भी घबराए हुए थे। कुछ लोग तेज़ी से बाहर निकल रहे थे, कुछ अपनी जगह पर जमे हुए थे, यह समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हो रहा है। शालू, अपने होने वाले पति रोहित के साथ, हैरान होकर यह सब देख रही थी। पुष्पा बुआ ने अपनी छाती पर हाथ रखा और "हे भगवान!" चिल्लाईं।
ब्रिगेडियर सिंह, करण के पिता, जो अब तक मेहमानों से बात कर रहे थे, उन्होंने भी यह सब देखा। वे करण के पास आए। "क्या हुआ करण? यह सब क्या है?"
करण ने गुस्से में रिया की तरफ इशारा किया। "पापा, इनकी वजह से! इन्होंने स्मोक बॉम्ब से धुआँ फैला दिया!"
ब्रिगेडियर सिंह ने रिया की तरफ देखा, उनके चेहरे पर भी निराशा थी। रिया बहुत शर्मिंदा थी। उसकी 'परफेक्ट' प्लानिंग का यह कितना बड़ा फ्लॉप शो था। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसकी एक छोटी सी क्रिएटिविटी आर्मी के इतने बड़े ऑपरेशन में बदल जाएगी।
"मेजर साहब, प्लीज़ शांत हो जाइए!" रिया ने हिम्मत जुटाकर कहा। "मुझे माफ़ कर दीजिए। मैंने नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ होगा।"
"आप सोचती ही कहाँ हैं, मैडम?" करण ने गुस्से में कहा। "आप सिर्फ अपने 'ग्रांड' आइडियाज़ के बारे में सोचती हैं! यहाँ सुरक्षा सबसे पहले है, आपका ग्लैमर नहीं!"
रिया की आँखों में पानी आ गया। उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था, लेकिन करण का तरीका उसे और भी बुरा लग रहा था। वह चुपचाप खड़ी रही, सिर झुकाए हुए, जैसे उसे अपनी सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ रहा हो। पूरे कैंटोनमेंट में उस वक़्त सिर्फ करण की गुस्से भरी आवाज़ और घबराए हुए मेहमानों की फुसफुसाहट सुनाई दे रही थी। संगीत की रात, जो खुशी और जश्न के लिए थी, अब एक बड़े हंगामे में बदल चुकी थी। और रिया मेहरा, 'द वेडिंग डीवा', अपनी ज़िंदगी में पहली बार पूरी तरह शर्मिंदा और असहाय महसूस कर रही थी।
Chapter 11
धुएँ के गुबार और करण के गुस्से भरे शब्दों से संगीत की रात लगभग बर्बाद हो चुकी थी। मेहमानों में फैली दहशत धीरे-धीरे शांत हो रही थी, लेकिन माहौल में अभी भी एक अजीब सा तनाव और असहजता थी। सैनिक अपनी पोजीशन से हट रहे थे और करण का चेहरा अभी भी लाल था। शालू ने दौड़कर रिया को संभाला, जो सिर झुकाए खड़ी थी।
"भैया, आप शांत हो जाओ!" शालू ने करण का हाथ पकड़कर कहा। "ये सिर्फ़ स्मोक था, कोई हमला नहीं। रिया दीदी तो बस मेरी एंट्री को स्पेशल बनाना चाहती थीं।"
पुष्पा बुआ, जो पहले करण के साथ थीं, अब उनका गुस्सा थोड़ा कम हो गया था और उन्होंने माहौल को हल्का करने की कोशिश की। "अरे हाँ करण! तू भी तो हद करता है। लगा, कहीं कोई पाकिस्तानी घुसपैठिया घुस आया हो, और ये बिटिया अपनी बहन की शादी में धुआँ-धुएँ कर रही है!" बुआ जी की बात सुनकर कुछ मेहमानों के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
करण ने बुआ जी की तरफ देखा। "बुआ जी, ये कैंटोनमेंट है। यहाँ हर छोटी सी चीज़ भी बड़े खतरे का संकेत हो सकती है। आप लोग इसे मज़ाक समझ रहे हैं?"
"अरे, समझ रहे हैं बाबा! तेरी कमांडो ट्रेनिंग है, पर यहाँ थोड़ी ढील दे दे!" बुआ जी ने हँसते हुए कहा। "अब सब ठीक है, मेहमानों को पानी वानी पिलाओ, और संगीत फिर से शुरू करो।"
रिया ने अपनी टीम की तरफ देखा। उसके मैनेजर और बाकी सदस्य अभी भी डरे हुए थे। रिया, जो हमेशा शांत और कंट्रोल में रहती थी, अब अपना गुस्सा उन पर निकाल रही थी। "तुम लोगों को अक्ल नहीं है? इतना धुआँ कौन करता है? मैंने कहा था, थोड़ा स्मोक करना है, किसी को धुएँ से मारना नहीं है!" उसकी आवाज़ में झुंझलाहट थी, लेकिन अंदर ही अंदर वह जानती थी कि गलती उसकी थी। उसने ही 'ग्रांड' एंट्री का आइडिया दिया था, और उसने ही टीम को ठीक से ब्रीफ नहीं किया था। या शायद टीम ने भी ओवर-एक्साइटमेंट में काम बिगाड़ दिया था। जो भी हो, ज़िम्मेदारी उसी की थी।
शालू ने रिया का हाथ थाम लिया। "रिया दीदी, कोई बात नहीं। हो जाती है ग़लती। मुझे पता है आपने मेरे लिए ही ऐसा किया था।" शालू की बात से रिया को थोड़ी तसल्ली मिली, लेकिन उसके मन में करण के गुस्से भरे शब्द गूँज रहे थे। 'आप पागल हो गई हैं, मैडम इवेंटवाली?' 'यह आर्मी कैंटोनमेंट है, आपका फिल्म सेट नहीं!'
रात ढल चुकी थी। संगीत की रस्म दोबारा शुरू हो गई थी, लेकिन माहौल में वह पहली वाली रौनक नहीं थी। मेहमान धीरे-धीरे कम होने लगे थे। रिया की टीम अपने इक्विपमेंट्स पैक कर रही थी, और रिया खुद अपने कमरे में जाकर कपड़े बदलने लगी। उसका दिल बहुत भारी था। आज पहली बार उसे अपने काम में इतना बड़ा झटका लगा था, और वह भी करण की वजह से। या शायद अपनी ही अति-आत्मविश्वास की वजह से।
वह अपने बेड पर बैठी थी, उसकी आँखों में पानी भरा हुआ था। उसे अपने करियर में कभी इतनी शर्मिंदगी महसूस नहीं हुई थी। 'द वेडिंग डीवा' का नाम खराब हो गया था। और करण... उसकी आँखों में जो गुस्सा था, वह रिया को अब तक परेशान कर रहा था। वह हमेशा से सोचती थी कि क्लाइंट को खुश करना उसका काम है, और वह कभी नहीं झुकी थी। लेकिन आज उसे झुकना पड़ा था, अपनी गलती माननी पड़ी थी।
थोड़ी देर बाद, रिया ने सोचा कि उसे करण से बात करनी चाहिए। यह उसके स्वभाव में नहीं था, लेकिन कुछ तो था, जो उसे करण के पास जाने के लिए प्रेरित कर रहा था। शायद उसे यह बात अच्छी नहीं लग रही थी कि करण उसे इतना गलत समझ रहा था, या शायद उसे अपने आप को दोषी महसूस करना पसंद नहीं था। वह उठी और कमरे से बाहर निकली।
पूरा घर शांत था। लोग सो चुके थे, या अपने-अपने कमरों में जा चुके थे। रिया लॉन की तरफ गई, जहाँ अभी भी कुछ लाइट्स जल रही थीं। उसने देखा, करण अकेले एक बेंच पर बैठा था, उसकी यूनिफॉर्म जैकेट उसके बगल में रखी थी। वह रात के अंधेरे में आसमान की ओर देख रहा था, उसके चेहरे पर एक गहरी सोच थी।
रिया उसके पास धीरे से गई। उसके कदमों की आवाज़ सुनकर करण ने मुड़कर देखा। उसकी आँखें अभी भी थोड़ी सख्त थीं, लेकिन वह गुस्सा अब उतना तीव्र नहीं था।
"मेजर साहब... क्या मैं बैठ सकती हूँ?" रिया ने धीरे से पूछा।
करण ने सिर हिलाया। "हाँ।" उसकी आवाज़ में कोई भावना नहीं थी।
रिया उसके पास, थोड़ी दूरी पर बैठ गई। कुछ देर तक दोनों के बीच खामोशी छाई रही। सिर्फ रात की खामोशी और दूर से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आ रही थी। रिया ने अपनी हिम्मत जुटाई।
"मुझे... मुझे माफ़ कर दीजिए," रिया ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में sincerity थी। "आज जो भी हुआ, वह मेरी ग़लती थी। मैं... मैंने सोचा नहीं था कि इसका इतना बड़ा असर होगा।"
करण ने उसकी तरफ देखा। "आप एक वेडिंग प्लानर हैं, मैडम। आपको हर छोटे-बड़े डिटेल पर ध्यान देना चाहिए। ख़ासकर, जब आप एक सैन्य छावनी में काम कर रही हों। यहाँ सुरक्षा के नियम बहुत सख्त होते हैं।"
"मैं जानती हूँ," रिया ने कहा। "मैंने बहुत बड़ी ग़लती की। मैं इतनी परफेक्शनिस्ट हूँ, लेकिन आज मैंने खुद ही सब खराब कर दिया।" उसकी आवाज़ में निराशा थी। "मैं अपनी टीम को बहुत डाँट रही थी, लेकिन अंदर से मैं जानती हूँ कि ज़िम्मेदार मैं हूँ। मुझे अपनी क्रिएटिविटी को थोड़ा कंट्रोल करना चाहिए था।"
करण ने उसकी बात सुनी, और उसके चेहरे के भाव थोड़े नरम पड़े। उसने रिया को कभी इस तरह से बात करते हुए नहीं देखा था। हमेशा आत्मविश्वास से भरी, कभी न झुकने वाली 'वेडिंग डीवा' आज इतनी शांत और अपनी गलती मानने वाली लग रही थी।
"ठीक है," करण ने आखिरकार कहा। "मैं आपकी माफ़ी स्वीकार करता हूँ।" उसकी आवाज़ अब थोड़ी कम सख्त थी। "लेकिन आगे से ध्यान रखिएगा। ऐसी ग़लती दोबारा न हो। मेरी बहन की शादी है, और मैं नहीं चाहता कि इसमें कोई और अड़चन आए।"
रिया ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखों में कृतज्ञता थी। "मैं ध्यान रखूँगी। वादा करती हूँ।" उसने एक गहरी साँस ली। "आप हमेशा इतने सख्त क्यों रहते हैं, मेजर साहब? क्या आपको कभी मज़ाक करना, या हल्के फुल्के रहना पसंद नहीं?"
करण ने फिर आसमान की ओर देखा। "मेरी ट्रेनिंग मुझे सख्त बनाती है, मैडम इवेंटवाली। मेरा काम ही ऐसा है, जहाँ एक छोटी सी ग़लती भी भारी पड़ सकती है। और जब बात मेरे परिवार की आती है, तो मैं और भी प्रोटेक्टिव हो जाता हूँ।"
"मैं समझ सकती हूँ," रिया ने कहा। "मुझे भी अपना काम परफेक्ट करना बहुत पसंद है। मेरे लिए भी मेरी क्लाइंट की खुशी सबसे ज़रूरी होती है।"
"आपकी आँखों में आज पहली बार मैंने गुस्सा नहीं, बल्कि कुछ और देखा," रिया ने धीरे से कहा। "आप वाकई में डरे हुए थे, है ना?"
करण ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखें क्षण भर के लिए कमजोर पड़ीं, फिर उसने उन्हें कठोर कर लिया। "डर सबको लगता है। लेकिन हमारा काम उस डर पर काबू पाना है और अपने देश और परिवार को बचाना है।"
रिया ने उसके चेहरे के भाव पढ़े। उसे लगा, इस सख्त फ़ौजी के पीछे भी एक इंसान है, जिसे डर लगता है, जिसे गुस्सा आता है, और जिसे अपने परिवार की चिंता होती है। करण की ईमानदारी ने उसे प्रभावित किया। वह हमेशा से करण को एक ज़िद्दी, अहंकारी और बेवजह गुस्सा करने वाला आदमी मानती थी, लेकिन आज उसने उसकी एक नई साइड देखी थी।
"ठीक है," रिया ने हल्की सी आवाज़ में कहा। "मुझे लगता है, मुझे सोना चाहिए। बहुत लंबी रात थी।" वह उठने लगी।
"गुड नाइट, मैडम इवेंटवाली," करण ने धीरे से कहा।
रिया रुक गई। "गुड नाइट, जनरल साहब।" उसने पलटकर देखा, करण अभी भी वहीं बैठा था, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। रिया को लगा, उनके बीच की बर्फीली दीवार में एक छोटी सी दरार पड़ चुकी थी। यह एक छोटी सी शुरुआत थी, लेकिन यह शुरुआत थी। उसने एक हल्की सी मुस्कान के साथ अपने कमरे की ओर कदम बढ़ाए। रात के अंधेरे में, करण ने उसे जाते हुए देखा, उसके चेहरे पर एक अनकही भावना थी। शायद उसे भी रिया की यह नई साइड पसंद आई थी - वह 'वेडिंग डीवा' जो अपनी गलती मान सकती थी और माफी भी माँग सकती थी। यह उनके रिश्ते में एक नया मोड़ था, जिसकी उन्हें खुद भी कल्पना नहीं थी।
Chapter 12
अगली सुबह, संगीत की रात के हंगामे के बाद, कैंटोनमेंट का माहौल अजीब सा शांत था। धूप खिली हुई थी, लेकिन हवा में अभी भी पिछली रात की घटनाओं का असर महसूस हो रहा था। रिया जल्दी उठ गई थी, क्योंकि उसके पास बहुत काम था। उसकी टीम पहले से ही नाश्ते की मेज़ पर बैठी थी, उनके चेहरों पर अभी भी पिछली रात का डर और थकावट साफ दिख रही थी। वे आपस में फुसफुसा रहे थे, "मैंने तो सोचा था कि पकड़े जाएँगे, या गोली ही न चल जाए कहीं!" "हाँ यार, मैम का दिमाग कहाँ चला गया था! आर्मी कैंटोनमेंट में कौन स्मोक बॉम्ब यूज़ करता है?"
रिया ने उन्हें सुना, लेकिन कुछ कहा नहीं। उसने अपना कप कॉफ़ी उठाई और अपने टैबलेट पर अगले इवेंट्स की लिस्ट चेक करने लगी। उसे पता था कि गलती उसकी थी, और वह उस पर और सोचना नहीं चाहती थी। रात में करण से माफी मांगने के बाद, उसे थोड़ा हल्का महसूस हुआ था, लेकिन उसने अपने अंदर के प्रोफेशनल को जागृत कर लिया था। अब उसका एकमात्र लक्ष्य शालू की शादी को परफ़ेक्ट बनाना था, कोई और ड्रामा नहीं।
तभी, शालू, पुष्पा बुआ और ब्रिगेडियर सिंह नाश्ते की मेज़ पर आए। शालू ने रिया को देखा और मुस्कुराई। "गुड मॉर्निंग, रिया दीदी! आपने कल रात मेरा मूड खराब नहीं होने दिया। इतनी अच्छी एंट्री किसी और ने प्लान नहीं की होगी।" शालू की बात सुनकर रिया के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
पुष्पा बुआ ने एक गहरी साँस ली। "गुड मॉर्निंग, बिटिया। बड़ी हिम्मत है तुझमें, रात भर के बाद भी मुस्करा रही है। मैं तो आज भी डर रही हूँ, कहीं फिर से कमांडो साहब को 'कोड रेड' न लग जाए!" बुआ जी ने मज़ेदार लहजे में कहा, और करण की तरफ देखा, जो अभी-अभी मेज़ पर आया था।
करण ने अपनी बुआ की तरफ कठोरता से देखा। "बुआ जी, ये कोई मज़ाक नहीं था।"
"अरे बाबा, पता है, पता है!" बुआ जी ने हाथ हिलाया। "अब नाश्ता कर। वैसे, कल रात तो तू हीरो बन गया था, सब ठीक कर दिया।"
रिया ने चोरी से करण की तरफ देखा। करण का चेहरा अभी भी गंभीर था, लेकिन उसने बुआ जी की बात पर कोई ज़्यादा प्रतिक्रिया नहीं दी। नाश्ते के दौरान, माहौल थोड़ा शांत रहा, सब अपने-अपने काम और आने वाली रस्मों के बारे में सोच रहे थे।
नाश्ते के बाद, शालू ने अचानक एक आइडिया दिया। "पापा, भैया, बुआ जी... क्यों न हम संगीत में कुछ डांस परफॉर्मेंस प्लान करें? मज़ा आएगा!"
"हाँ हाँ, बिल्कुल!" पुष्पा बुआ उत्साहित हो गईं। "मैं तो एक पुरानी फ़िल्मी गाने पर थिरकना चाहती हूँ।"
"अच्छी बात है, शालू," ब्रिगेडियर सिंह ने कहा। "तुम और रोहित साथ में कुछ करो।"
"हाँ, हम तो करेंगे ही!" शालू ने कहा। "लेकिन मुझे लगता है, भैया को भी मेरे साथ एक गाने पर डांस करना चाहिए!"
यह सुनकर करण अपनी कॉफ़ी पीते-पीते लगभग खँस दिया। "क्या? मैं? नहीं, मैं नहीं करूँगा।" उसने सीधे मना कर दिया। "मुझे डांस वान्स नहीं आता। मैं तो कमांडो हूँ, लड़ता हूँ, नाचता नहीं।"
शालू ने मुँह बना लिया। "अरे भैया, प्लीज़! मेरी शादी है। एक बार तो मेरे लिए कर लो। सिर्फ़ एक गाने पर! आप मेरे इकलौते भाई हो।"
करण ने सिर हिलाया। "नहीं शालू। तू जानती है, मुझे ये सब पसंद नहीं।"
"लेकिन भैया, मेरे दोस्तों ने कहा है कि दूल्हे का भाई अगर डांस न करे, तो मज़ा नहीं आता," शालू ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। "सब इंतज़ार करेंगे।"
"करने दो इंतज़ार," करण ने लापरवाही से कहा। "मेरा काम डांस करना नहीं है। तू किसी और को तैयार कर ले।"
रिया, जो पास ही अपने फोन पर कुछ चेक कर रही थी, उसने यह सब सुना। करण का इतना सीधा मना करना उसे अजीब लगा। उसने सोचा, 'कमांडो है, तो क्या हुआ? थोड़ा डांस करने से क्या हो जाएगा?' उसके मन में तुरंत एक शरारती आइडिया आया। यह करण को थोड़ा परेशान करने का एक अच्छा मौका था।
वह धीरे से करण के पास आई, उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। "अरे, मेजर साहब! क्या बात है? लगता है जनरल साहब को मुश्किल मिशन से डर लगता है।" उसने आँखों ही आँखों में उसे छेड़ा। "इतना भी क्या है? सिर्फ कुछ स्टेप्स ही तो हैं। या कमांडो की डिक्शनरी में 'डांस' नाम का कोई शब्द नहीं होता?"
करण ने तुरंत पलटकर रिया की तरफ देखा। उसकी आँखें सिकुड़ गईं। 'मैडम इवेंटवाली' की यह तानाकशी उसे सीधे चुनौती दे रही थी। वह अपनी हर बात में अनुशासन और साहस की बात करता था, और अब यह लड़की उसके साहस पर ही सवाल उठा रही थी, वह भी एक मामूली से डांस के लिए! उसका कमांडो वाला अहंकार तुरंत जाग उठा।
"क्या कहा आपने, मैडम इवेंटवाली?" करण ने अपनी आवाज़ को थोड़ा ऊँचा करते हुए कहा, जिससे शालू और बुआ जी भी चौकन्ने हो गए। "डर? कमांडो को डर? आपको लगता है कि मुझे डांस करने से डर लगता है?"
रिया ने अपने कंधे उचकाए। "मुझे तो ऐसा ही लगा। वरना कोई इतनी आसानी से 'ना' क्यों कहेगा? बड़े-बड़े मिशन फतह करने वाला मेजर, एक छोटे से डांस परफ़ॉर्म करने से क्यों हिचकिचाएगा? शायद ये आपके लिए 'कोड रेड' से भी मुश्किल मिशन है?" उसकी बातों में शरारत और व्यंग्य दोनों थे।
करण का मुँह गुस्से से लाल हो गया। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि यह लड़की उसे इस तरह से छेड़ रही थी। वह अपनी इमेज के प्रति बहुत सचेत था, खासकर अपने परिवार और सैनिकों के सामने। उसे किसी भी हाल में अपनी कमज़ोरी नहीं दिखानी थी। और 'डर' शब्द उसके लिए सबसे बड़ा अपमान था।
"ठीक है!" करण ने अचानक तेज़ी से कहा, जैसे वह किसी युद्ध का आदेश दे रहा हो। "ठीक है, मैं करूँगा! डांस करूँगा! दिखाऊँगा कि मुझे किसी चीज़ से डर नहीं लगता।" उसने सीधे रिया की आँखों में देखा, जैसे उसे चुनौती दे रहा हो। "और आप ही मुझे सिखाएँगी! आप ही होंगी मेरी कोरियोग्राफर, मैडम इवेंटवाली!"
रिया ने अपनी मुस्कान छुपाने की कोशिश की, लेकिन उसके चेहरे पर एक जीत की चमक साफ दिखाई दे रही थी। उसे पता था कि उसकी बात करण को चुभ जाएगी, लेकिन इतना नहीं कि वह मान जाएगा। यह तो उसके लिए एक अप्रत्याशित बोनस था। "मैं?" उसने अपनी भौंहें चढ़ाईं, जैसे वह हैरान हो रही हो, हालाँकि वह अंदर से बहुत खुश थी। "मेजर साहब, आप तो जानते हैं कि मैं सिर्फ़ इवेंट प्लान करती हूँ, डांस नहीं सिखाती।"
"नहीं!" करण ने गुस्से में कहा। "आपने मुझे चुनौती दी है, तो अब आपकी ज़िम्मेदारी है। मैं शालू के साथ डांस करूँगा, और आप मुझे तैयार करेंगी। अब बताइए, कौन सा गाना है?"
शालू और पुष्पा बुआ, जो चुपचाप यह सब ड्रामा देख रही थीं, अब हँसने लगीं। "वाह भैया! ये हुई न बात!" शालू ने तालियाँ बजाईं। "रिया दीदी, अब आपको ही भैया को सिखाना पड़ेगा।"
पुष्पा बुआ ने सिर हिलाया। "बड़ी मुश्किल है इस लड़के को मनाना। पर इस बिटिया ने तो जादू कर दिया! अब रिया, ये तेरी ज़िम्मेदारी है। देख, इसे कमांडो डांस से बॉलीवुड डांस सिखाना है।"
रिया ने नाटक करते हुए एक गहरी साँस ली। "ठीक है, मेजर साहब। अगर आपकी यही इच्छा है, तो मैं तैयार हूँ।" उसने मन ही मन मुस्कुराया। 'कमांडो साहब को अपनी उंगलियों पर नचाने का मौका मिल गया था। यह मिशन तो बड़ा मज़ेदार होने वाला है।' उसकी आँखों में एक नई चुनौती की चमक थी। उसे पता था कि करण को डांस सिखाना कोई आसान काम नहीं होगा, लेकिन उसे यह आइडिया ही इतना मज़ेदार लग रहा था कि वह अपनी सारी थकान भूल चुकी थी। यह उस बड़े युद्ध विराम के बाद उनके बीच की पहली मज़ेदार नोक-झोंक थी, और रिया को एहसास हुआ कि वह इसे एंजॉय कर रही थी। अब उसे करण को 'नचाने' का मौका मिल रहा था, और वह इसे पूरी तरह से भुनाने वाली थी।
Chapter 13
Chapter 13
अगले दिन सुबह से ही, रिया के दिमाग में करण को डांस सिखाने का 'मिशन' घूम रहा था। यह उसके लिए एक अनोखा और मज़ेदार चैलेंज था। वह अपनी टीम के साथ दिन की बाकी तैयारियों में जुटी हुई थी, लेकिन उसका ध्यान बार-बार करण और उसके "टू लेफ्ट फीट" (नाचने में अनाड़ी) की तरफ चला जाता था। संगीत की शाम में ज़्यादा समय नहीं बचा था, और करण को डांस सिखाना, रिया को ऐसा लग रहा था, जैसे किसी सिपाही को बैले सिखाना।
दोपहर में, शालू ने एक बड़ा हॉल खाली करवाया, जहाँ वे लोग प्रैक्टिस कर सकें। करण अपने मिलिट्री पैंट और एक प्लेन टी-शर्ट में तैयार होकर आया था। उसके चेहरे पर गंभीरता थी, जैसे वह किसी महत्वपूर्ण ब्रीफिंग के लिए आया हो, न कि डांस सीखने। रिया एक आरामदायक ट्रैक सूट में थी, जो उसे मूव करने में आसानी दे।
"तो मेजर साहब," रिया ने अपनी कमर पर हाथ रखकर कहा, उसकी आँखों में शरारत थी। "तैयार हैं अपने सबसे मुश्किल मिशन के लिए?"
करण ने सीधे खड़े होकर, जैसे किसी अधिकारी को रिपोर्ट कर रहा हो, जवाब दिया, "मैं हमेशा तैयार रहता हूँ, मैडम इवेंटवाली। बस अपने आदेश दीजिए।"
रिया मुस्कुराई। "मेरे आदेश यहाँ काम नहीं करेंगे, मेजर साहब। यहाँ तो आपको अपनी बॉडी को ढीला छोड़ना होगा, भावनाओं को बाहर आने देना होगा।"
करण ने अपनी भौंहें चढ़ाईं। "भावनाएँ? मैडम, हम फौजी हैं। हम भावनाओं से नहीं, अनुशासन से चलते हैं।"
"वही तो दिक्कत है," रिया ने सिर हिलाया। "डांस में अनुशासन नहीं, लय चाहिए। फ्लो चाहिए। अच्छा, तो पहले वार्म-अप करते हैं। अपने हाथों को ऊपर उठाइए, फिर नीचे।"
करण ने ड्रिल की तरह अपनी बाहें ऊपर उठाईं और फिर धड़ से नीचे गिरा दीं, जिससे हवा में एक 'फड़फड़ाहट' की आवाज़ आई।
रिया ने माथा पकड़ा। "अरे! ऐसे नहीं! धीरे से। जैसे कोई चिड़िया उड़ रही हो। कोमलता से।"
करण ने एक और बार कोशिश की, लेकिन उसके हाथ अभी भी मशीन की तरह ऊपर-नीचे हो रहे थे। "मैडम, चिड़िया उड़ती है, कमांडो ड्रिल करते हैं। मेरे लिए यही कोमलता है।"
रिया ने एक गहरी साँस ली। "ठीक है, ठीक है। छोड़िए ये सब। हम सीधे स्टेप्स पर आते हैं। शालू ने कौन सा गाना चुना है?"
"फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे' का 'रुक जा ओ दिल दीवाने'," करण ने तुरंत बताया। "शालू को बहुत पसंद है।"
रिया ने अपने मन में सोचा, 'शाहरुख खान का गाना, और मेजर साहब की ये मिलिट्री बॉडी! हे भगवान!' "ठीक है। तो ये गाना थोड़ा रोमांटिक और चुलबुला है। इसके स्टेप्स में एक फ्लो चाहिए।"
रिया ने गाने का म्यूजिक चलाया और खुद कुछ स्टेप्स करके दिखाए। "देखिए, पहले राइट पैर आगे, फिर लेफ्ट, और साथ में हाथ ऐसे।" उसने बड़े ग्रेस के साथ कुछ स्टेप्स किए।
करण ने ध्यान से देखा, जैसे वह किसी दुश्मन की चाल को समझने की कोशिश कर रहा हो। "ठीक है। समझा।"
"चलिए, कोशिश कीजिए," रिया ने उसे प्रोत्साहित किया।
करण ने राइट पैर आगे रखा, लेकिन उसके शरीर में कोई लय नहीं थी। वह हर स्टेप को एक अलग एक्शन की तरह कर रहा था, जैसे वह मार्च कर रहा हो। उसके हाथ भी अजीब से हिल रहे थे।
"अरे! ऐसे नहीं!" रिया ने हँसते हुए कहा। "मेजर साहब, ये परेड नहीं है! थोड़ी कमर हिलाइए। हाथों में थोड़ा ग्रेस लाइए। ढीला छोड़ो खुद को, यार!"
"मैडम, मेरे लिए हर काम अनुशासन से होता है। मैं ढीला नहीं छोड़ सकता," करण ने अपनी भौंहों पर बल डालते हुए कहा। "अगर मैं ढीला छोड़ दूँ, तो मेरा मिशन फेल हो जाएगा।"
"लेकिन ये डांस का मिशन है, सर!" रिया ने झुंझलाकर कहा। "यहाँ ढीला छोड़ना ही मिशन की सफलता है।"
करण ने फिर से कोशिश की। इस बार उसने अपने हाथों को थोड़ा ढीला किया, लेकिन उसके पैर अभी भी सैनिक की तरह आगे बढ़ रहे थे। वह हर स्टेप पर "वन, टू, थ्री, फोर" गिन रहा था।
"गिनती क्यों कर रहे हैं?" रिया ने पूछा।
"बिना गिनती के, मैं भटक जाऊँगा, मैडम," करण ने गंभीर होकर कहा। "हर स्टेप एक क्रम में होना चाहिए।"
रिया ने अपना सिर हिलाया। "उफ़! मेजर साहब, आपको तो एक-एक स्टेप सिखाना पड़ेगा, जैसे किसी छोटे बच्चे को चलना सिखाते हैं।"
उनकी प्रैक्टिस जारी रही। रिया को बार-बार करण के पास जाकर उसे स्टेप्स समझाने पड़ते थे। कभी वह उसके हाथ पकड़कर उसे मूव करने में मदद करती, तो कभी उसकी कमर पर हल्का सा हाथ रखकर उसे मोड़ने को कहती। इन सब शारीरिक संपर्कों से दोनों के बीच एक अजीब सी, हल्की-फुल्की रोमांटिक टेंशन पैदा हो रही थी। जब भी उनके हाथ छूते, या वे एक-दूसरे के करीब आते, एक छोटी सी चिंगारी महसूस होती। करण का चेहरा लाल हो जाता, और रिया के दिल की धड़कन तेज़ हो जाती। वे दोनों एक-दूसरे से नज़रें चुराते, लेकिन फिर भी एक-दूसरे की तरफ खिंचे चले आते।
"मेजर साहब, ऐसे खड़े मत रहिए, जैसे आपने कोई मूर्ति निगल ली हो!" रिया ने एक बार कहा, जब करण एक स्टेप के बाद बिल्कुल सीधा खड़ा हो गया था।
करण ने आह भरी। "मैडम, आप नहीं समझेंगी। इतने सालों की ट्रेनिंग है मेरी।"
"लेकिन ये वाली ट्रेनिंग तो आपको सीखनी पड़ेगी," रिया ने मुस्कुराकर कहा। "अच्छा, ऐसे करो... जब मैं गाऊँ 'दिल दीवाने', तो ऐसे करके मुझे पकड़ना।" उसने एक रोमांटिक पोज़ दिया।
करण ने उसे देखा, उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। "मैडम, ये मेरी ट्रेनिंग में नहीं आता। मैं किसी को सिर्फ तभी पकड़ता हूँ, जब वह भाग रहा हो, या कोई खतरा हो।"
"यहाँ खतरा मुझे डांस न सीखने का है!" रिया ने कहा। "अरे, बस करो। कोशिश तो करो। थोड़ा रोमांटिक बनो।"
करण ने झिझकते हुए रिया की कमर पर हाथ रखा, जैसे वह कोई भारी सामान उठा रहा हो। रिया को हंसी आ गई। "अरे! ये क्या है? थोड़ा हल्का हाथ! प्यार से।"
करण ने एक गहरी साँस ली और थोड़ी कोमलता से उसे पकड़ा। रिया को लगा, उसके हाथ ठंडे थे, लेकिन उसकी पकड़ में एक अजीब सी ताकत और गर्माहट थी। इस पल में, वे दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। हॉल में बज रहे गाने की धुन उनके कानों में एक मीठी आवाज़ बनकर गूँज रही थी।
"अरे-रे, ये क्या हो रहा है?"
अचानक, उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने देखा, पुष्पा बुआ दरवाज़े के पीछे से झाँक रही थीं, उनके चेहरे पर एक मज़ेदार और शरारती मुस्कान थी। वह दोनों को इस तरह करीब देखकर हैरान भी थीं और खुश भी।
करण और रिया तुरंत एक-दूसरे से दूर हो गए, जैसे उन्होंने कोई चोरी पकड़ी हो। करण का चेहरा और लाल हो गया।
"बुआ जी! आप यहाँ क्या कर रही हैं?" करण ने थोड़ा सकपकाकर पूछा।
पुष्पा बुआ अंदर आईं। "अरे, मैं तो बस देखने आई थी कि मेरे कमांडो साहब को ये मैडम कैसे नचा रही हैं।" उन्होंने रिया की तरफ देखा और मुस्कुराईं। "मुझे तो लगा, तुम इसे सच में 'कमांडो डांस' सिखा रही हो। पर यहाँ तो कुछ और ही चल रहा है।"
रिया शरमा गई। "नहीं बुआ जी, हम तो बस स्टेप्स प्रैक्टिस कर रहे थे।"
"हाँ, हाँ, प्रैक्टिस!" बुआ जी ने अपनी आँखें सिकोड़ीं। "ऐसी प्रैक्टिस तो हमने अपने ज़माने में भी नहीं की थी। ये आजकल के बच्चे भी न!" उन्होंने करण की तरफ देखा। "क्यों रे करण, तेरे चेहरे पर इतनी लाली क्यों है? तबीयत ठीक है?"
"बुआ जी! कुछ नहीं है," करण ने झुंझलाकर कहा। "आप जाइए, हमें प्रैक्टिस करनी है।"
"जा रही हूँ, जा रही हूँ!" बुआ जी ने हँसते हुए कहा। "पर लगता है, मेरे कमांडो साहब का दिल अब कमांडो नहीं रहा। कोई 'इवेंटवाली' उस पर कमांड करने लगी है।" बुआ जी ने दोनों को छेड़ते हुए हॉल से बाहर निकल गईं, लेकिन उनके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान थी। उन्हें उनके बीच कुछ पकने का शक होने लगा था।
करण ने रिया की तरफ देखा, वह अभी भी शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। "ये बुआ जी भी न!"
रिया ने हल्की सी आवाज़ में कहा, "लगता है, हमारा मिशन अब सिर्फ डांस सिखाना नहीं, बुआ जी की नज़र से बचना भी है।"
करण ने पहली बार रिया के साथ खुलकर हँसा। उसकी हँसी की आवाज़ रिया को बहुत अच्छी लगी। यह हँसी उसकी कठोरता को तोड़ रही थी और एक नया, नरम पहलू दिखा रही थी। उनके बीच का रिश्ता अब सिर्फ क्लाइंट और वेंडर का नहीं रहा था, न ही सिर्फ झगड़ने वालों का। उसमें अब एक चुलबुलापन, एक समझ, और एक-दूसरे के प्रति बढ़ता आकर्षण भी शामिल हो गया था। उन्हें पता नहीं था कि यह 'डांस मिशन' उन्हें कहाँ ले जाएगा, लेकिन इतना तय था कि यह अब पहले से कहीं ज़्यादा दिलचस्प हो चुका था।
Chapter 14
Chapter 14
जैसे-जैसे संगीत की रात नज़दीक आ रही थी, घर में चहल-पहल और बढ़ रही थी। रिया और उसकी टीम तैयारियों में व्यस्त थी, और करण के साथ उसकी डांस प्रैक्टिस भी दिन का मुख्य आकर्षण बन चुकी थी, जिस पर पुष्पा बुआ की पैनी नज़र थी। इसी गहमागहमी के बीच, दूल्हे का परिवार भी शादी की रस्मों के लिए सिंह निवास पहुँच गया।
गाड़ियों का एक छोटा काफिला गेट पर रुका। उनमें से दूल्हे के माता-पिता उतरे, और उनके साथ एक लंबा, अधेड़ उम्र का आदमी भी था। उसके चेहरे पर एक स्थायी मुस्कान थी, आँखों में चमक और बोलने का लहजा बेहद मीठा था। उसने तुरंत आगे बढ़कर ब्रिगेडियर सिंह और पुष्पा बुआ के पैर छुए।
"नमस्ते, अंकल जी, नमस्ते बुआ जी!" उसने कहा, उसकी आवाज़ में बहुत अपनापन था। "मैं रमेश वर्मा हूँ, दूल्हे का मुँह-बोला चाचा। अरे वाह! आप लोगों से मिलकर बहुत अच्छा लगा। सुना था, आप बहुत अच्छे लोग हैं, लेकिन इतने अच्छे, सोचा न था।"
पुष्पा बुआ उसे देखकर तुरंत पिघल गईं। "अरे, आओ, रमेश! अंदर आओ, बेटा! इतनी दूर से आए हो। ये क्या पैर छूने की ज़रूरत थी!" उन्होंने उसे गले लगाया, और वर्मा ने अपनी मीठी बातों से उन्हें तुरंत प्रभावित कर लिया। वह हर किसी से बड़ी सहजता से घुल-मिल रहा था, खासकर परिवार के बुजुर्गों से। वह बच्चों के साथ भी हंस रहा था और रिया की टीम के लोगों की भी तारीफ़ कर रहा था।
"आप तो जादूगर हैं, बिटिया!" वर्मा ने रिया से कहा, जब वह संगीत के मंच की सजावट को अंतिम रूप दे रही थी। "मैंने सुना है, आप मुंबई की नंबर वन वेडिंग प्लानर हैं। आपकी कला तो वाकई लाजवाब है। इस पुराने फौजी घर को आपने एक परियों के महल में बदल दिया।" उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, लेकिन रिया ने इसे एक सामान्य तारीफ़ समझकर नज़रअंदाज़ कर दिया।
करण ने दूर से यह सब देखा। वर्मा का अत्यधिक मिलनसार व्यवहार उसे थोड़ा अजीब लगा। वह अपनी फौजी प्रवृत्ति के कारण हमेशा सतर्क रहता था, और वर्मा की हरकतों पर उसकी नज़र जा रही थी। उसने नोटिस किया कि वर्मा ने सबसे पहले ब्रिगेडियर सिंह से उनके पुराने दिनों और उनकी आर्मी पोस्टिंग्स के बारे में बात की।
"अंकल जी, मैंने सुना है, आप पुराने कैंटोनमेंट के लेआउट को बहुत अच्छे से जानते हैं," वर्मा ने ब्रिगेडियर सिंह से कहा, उनकी बातों में अत्यधिक रुचि दिखाते हुए। "आजकल तो बहुत बदलाव हो गए होंगे, है ना? मैं भी सोच रहा था कि एक बार यहाँ की कुछ मुख्य इमारतों को देखने जाऊँ, जैसे... वो पुराना सर्वर रूम, जहाँ कभी पुराने कागज़ात रखे जाते थे। सुना है, वहाँ अब भी कुछ पुरानी फाइलें हैं।"
ब्रिगेडियर सिंह ने लापरवाही से जवाब दिया, "हाँ, रमेश। काफी बदलाव हुए हैं। अब तो सब कुछ हाई-टेक हो गया है। पुराना सर्वर रूम तो अब बहुत मॉडर्न हो गया है, बहुत सिक्योरिटी रहती है वहाँ। लेकिन हाँ, मैं तुम्हें एक बार कैंटोनमेंट का मैप दिखा सकता हूँ, अगर तुम्हें दिलचस्पी है।"
"अरे वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है, अंकल जी!" वर्मा की आँखों में पल भर के लिए एक अलग सी चमक आई, जो इतनी तेज़ी से आई कि किसी ने ध्यान नहीं दिया। "मैं तो बस देखना चाहता हूँ कि हमारे जवान कितनी मुस्तैदी से देश की सेवा करते हैं। मुझे बहुत गर्व होता है फौजियों पर।" उसने मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन उसका दिमाग कहीं और काम कर रहा था।
करण उस समय अपनी बहन शालू से बात कर रहा था, जो उत्साह से उसे अपने संगीत के गाने बता रही थी। लेकिन उसका ध्यान वर्मा की बातचीत पर चला गया। 'पुराना सर्वर रूम? कैंटोनमेंट का मैप?' करण को यह सवाल थोड़ा अजीब लगा। एक रिश्तेदार, खासकर 'मुँह-बोला चाचा', कैंटोनमेंट की सुरक्षा व्यवस्था में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा था? यह सामान्य उत्सुकता से ज़्यादा लग रहा था।
शालू ने करण को अपनी कोहनी मारी। "भैया! कहाँ खो गए? मैंने कहा, मुझे लगता है कि मैं आपको 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे' के गाने पर डांस करने के लिए तैयार कर लूँगी।"
करण ने ध्यान से सुना, लेकिन उसकी आँखें वर्मा पर टिकी थीं, जो अब शालू से बात करने चला गया था। "और ये अंबाला कैंटोनमेंट कितना बड़ा है, बेटा?" वर्मा ने शालू से पूछा, उसकी आवाज़ में एक अनौपचारिक जिज्ञासा थी। "यहाँ से मुख्य बाज़ार कितनी दूर है? और ये जो आप लोगों का घर है, क्या ये कैंटोनमेंट के सेंटर में है? मतलब, मेन बिल्डिंग्स के आसपास ही है?"
शालू ने जवाब दिया, "हाँ चाचा जी, हमारा घर तो लगभग बीच में ही है। यहाँ से मेन बाज़ार भी पास है, और सारे ऑफिसर्स क्वार्टर, मेस और बाकी बिल्डिंग्स भी यहीं आसपास हैं।" शालू को नहीं पता था कि वह कितनी महत्वपूर्ण जानकारी दे रही है।
करण ने तुरंत अपनी बातचीत रोकी और वर्मा और शालू की तरफ देखा। वर्मा की आँखों में फिर वही सूक्ष्म चमक थी, जब उसने शालू की बात सुनी। करण का माथा ठनका। यह सामान्य जिज्ञासा नहीं थी। यह कुछ और था। 'यह आदमी बहुत ज़्यादा सवाल पूछ रहा है,' करण ने अपने मन में सोचा। 'सुरक्षा और लेआउट के बारे में इतनी जानकारी क्यों चाहिए इसे?'
करण की फौजी प्रवृत्ति उसे संकेत दे रही थी कि कुछ तो गड़बड़ है। उसका शक अब गहरा हो गया था, लेकिन उसके पास अभी तक कोई ठोस सबूत नहीं था। वर्मा इतना मीठा और मिलनसार था कि उस पर खुले तौर पर शक करना मुश्किल था। वह एक मास्टर मैनिपुलेटर लग रहा था।
करण ने फैसला किया कि वह वर्मा पर दूर से नज़र रखेगा। वह उसे बिना कोई शक हुए अपनी गतिविधियों पर नज़र रखेगा। यह एक नया 'मिशन' था, जो उसकी बहन की शादी के बीच शुरू हुआ था, और इस बार इसका खतरा सिर्फ एक डांस परफॉर्मेंस का नहीं, बल्कि कुछ और ही बड़ा था। उसकी आँखों में गंभीरता आ गई। वह वर्मा की हर हरकत पर पैनी नज़र रखने लगा।
Chapter 15
Chapter 15
अँधेरा धीरे-धीरे गहरा रहा था, और अंबाला कैंटोनमेंट के सिंह निवास में संगीत की रात के लिए तैयारियाँ अपने चरम पर थीं। रिया की टीम ने पूरे लॉन को रंग-बिरंगी लाइट्स, फूलों और शाइनी कपड़ों से सजा दिया था। यह किसी सपनों की दुनिया जैसा लग रहा था। हर कोने में रोशनी थी, हवा में फूलों और इत्र की खुशबू घुल रही थी, और दूर से संगीत की हल्की धुन सुनाई दे रही थी। रिया ने अपनी पूरी जान लगा दी थी इस इवेंट को भव्य बनाने में, ठीक वैसे ही, जैसे उसने वादा किया था। उसने इस बात का खास ध्यान रखा था कि पुष्पा बुआ की पारंपरिक पसंद और शालू की मॉडर्न इच्छाएँ, दोनों का संगम हो सके।
एक तरफ स्टेज पर बड़े-बड़े स्पीकर्स लगे थे, डीजे की लाइट्स जगमगा रही थीं, तो दूसरी तरफ एक छोटा सा मंच भी था, जहाँ पारंपरिक ढोल और हारमोनियम रखे थे। यह "डीजे बनाम ढोल" की प्रतियोगिता का मैदान था, जिसके लिए रिया और करण ने अनिच्छा से ही सही, लेकिन समझौता कर लिया था।
रिया अपनी टीम को अंतिम निर्देश दे रही थी, उसकी आँखों में चमक थी। उसने खुद एक खूबसूरत, हल्के नीले रंग का लहंगा पहना था, जिसमें सिल्वर वर्क था। वह एक मॉडर्न ब्राइड्समेड की तरह लग रही थी। वहीं, करण एक गहरे नीले रंग की शेरवानी में था, जो उस पर खूब फब रही थी। हालांकि, उसके चेहरे पर अभी भी पिछली रात के 'स्मोक बॉम्ब' कांड की थोड़ी-बहुत झुंझलाहट थी, लेकिन आज वह थोड़े बेहतर मूड में लग रहा था। उसकी आँखें लगातार मिस्टर वर्मा को ढूंढ रही थीं, जो मेहमानों के स्वागत में व्यस्त दिख रहा था।
"मैम, सब तैयार है," रिया की मैनेजर ने आकर बताया। "मेहमान भी आने शुरू हो गए हैं।"
"ग्रेट," रिया ने कहा। "और याद रहे, पहले एक घंटा बुआ जी के हिसाब से चलेगा। ढोल और लोकगीत। उसके बाद डीजे।"
"मैडम, हम भूलेंगे नहीं," मैनेजर ने मुस्कुराकर कहा। "पुष्पा बुआ ने सुबह से सौ बार याद दिला दिया है।"
रिया मुस्कुराई। पुष्पा बुआ भी आज एक नई, रंगीन साड़ी में थीं, और उनका चेहरा खुशी से चमक रहा था। उन्होंने रिया के पास आकर उसके गाल पर प्यार से हाथ फेरा। "बहुत सुंदर लग रही है, बिटिया। तूने तो मेरा घर स्वर्ग बना दिया।"
रिया थोड़ी शरमा गई। "यह तो मेरा काम है, बुआ जी।"
"काम तो है," बुआ जी ने उसकी नज़र उतारी, "पर लगन से किया है। ऐसा लग रहा है, जैसे अपनी बेटी की शादी हो।" उनकी आवाज़ में अपनापन था।
कुछ ही देर में संगीत का कार्यक्रम शुरू हो गया। पहले एक घंटा पूरी तरह से पारंपरिक माहौल में बीता। ढोल की थाप पर लोकगीत गाए जा रहे थे। परिवार की महिलाएँ और बुज़ुर्ग नाच रहे थे, ठहाके लग रहे थे। पुष्पा बुआ खुद मंच पर थीं और अपने पुराने अंदाज़ में एक पहाड़ी लोकगीत गा रही थीं। करण अपने पिता और कुछ मेहमानों के साथ बैठा था, और उसे यह सब देखकर बहुत सुकून मिल रहा था। वह बीच-बीच में वर्मा को भी देख रहा था, जो अब भी सब से घुलमिल रहा था, लेकिन उसकी नज़रें कभी-कभी स्थल के मुख्य सुरक्षा बिंदुओं की तरफ घूम जाती थीं। करण ने यह नोटिस किया, और उसका शक गहराता चला गया।
फिर बारी आई डीजे की। जैसे ही मॉडर्न बॉलीवुड बीट्स बजनी शुरू हुईं, माहौल पूरी तरह बदल गया। युवा पीढ़ी डांस फ्लोर पर टूट पड़ी। रंगीन लाइट्स और धुएं के बीच सब झूम रहे थे। शालू अपने दोस्तों के साथ खुशी से नाच रही थी।
"रिया! अब तुम्हारी बारी है!" शालू चिल्लाई। "आओ, डीजे पर धमाल मचाते हैं!"
रिया ने खुशी से सिर हिलाया और डांस फ्लोर पर चली गई। वह अपनी पूरी ऊर्जा के साथ नाच रही थी। उसे देखकर करण के होंठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। वह अपनी दुनिया में इतनी डूबी हुई थी कि उसे आसपास की किसी चीज़ की परवाह नहीं थी।
अब बारी थी रात के सबसे बड़े आकर्षण की: शालू और करण का डांस। शालू स्टेज पर आ चुकी थी और माइक पर बोली, "तो दोस्तों, अब नंबर है मेरी और मेरे प्यारे भैया का। भैया, प्लीज स्टेज पर आओ!"
करण के पेट में तितलियाँ उड़ने लगीं। वह जानता था कि वह अच्छा डांसर नहीं है, और रिया ने जो उसे स्टेप्स सिखाए थे, वह उन पर कितना खरा उतरेगा, इसका उसे कोई अंदाज़ा नहीं था। वह घबराया हुआ सा स्टेज की तरफ बढ़ा। रिया उसे भीड़ में खड़ी होकर देख रही थी, उसके चेहरे पर एक उत्सुक मुस्कान थी।
जैसे ही 'रुक जा ओ दिल दीवाने' गाना बजना शुरू हुआ, शालू ने करण का हाथ पकड़ा और उसे नाचने के लिए खींचा। करण ने पहला स्टेप लिया – जो थोड़ा सख्त और मशीनी था। वह 'वन, टू, थ्री, फोर' मन ही मन गिन रहा था। शालू हंस रही थी और उसे छेड़ रही थी।
करण के डांस स्टेप्स में वो ग्रेस नहीं था जो शाहरुख खान के डांस में होता है, लेकिन उसकी कोशिश दिल छू लेने वाली थी। उसने रिया द्वारा सिखाए गए हर स्टेप को याद करने की कोशिश की, कभी हाथों को हिलाता, तो कभी कमर को थोड़ा-सा झटका देता। वह अनाड़ीपन से नाच रहा था, लेकिन उसकी आँखों में शालू के लिए प्यार और उसके चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। वह अपनी बहन की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता था, और यह डांस उसकी उसी भावना का सबूत था।
भीड़ में से हंसी की आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन वे हंसी मज़ाक वाली नहीं, बल्कि प्यार और अपनेपन वाली थीं। हर कोई करण को नाचते हुए देखकर खुश था, खासकर उसकी बहन को।
रिया भी उसे देख रही थी। शुरू में उसे करण के अनाड़ीपन पर हल्की हंसी आई, लेकिन जैसे-जैसे वह उसे नाचते हुए देखती गई, उसकी हंसी एक नरम मुस्कान में बदल गई। उसने देखा कि करण कितना घबराया हुआ है, फिर भी अपनी बहन की खुशी के लिए वह अपनी फौजी कठोरता को एक तरफ रख कर कोशिश कर रहा है। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। जो करण उसे सिर्फ एक सख्त, गुस्सैल फौजी लगा था, वह अब एक प्यार करने वाला, मासूम भाई नज़र आ रहा था। वह उसकी आँखों में छिपी हिचक और उसके प्रयासों में छिपी ईमानदारी को देख सकती थी।
एक पल आया, जब करण ने गाने के बोल के अनुसार रिया को देखा। उसकी नज़रें रिया से मिलीं, और उस एक पल में, रिया को लगा जैसे समय रुक गया हो। करण के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई, जैसे वह कह रहा हो, 'देख लो, मैडम इवेंटवाली, मैंने कोशिश की है।' रिया ने भी उसे जवाब में एक प्यारी सी मुस्कान दी।
जैसे-जैसे गाना खत्म होने वाला था, शालू और करण ने एक साथ आखिरी पोज़ दिया, जिसमें करण ने थोड़ी देर के लिए शालू को अपनी बाहों में उठा लिया। भीड़ ने तालियाँ बजाईं और सीटियाँ मारीं। करण पसीने से लथपथ था, लेकिन उसके चेहरे पर संतोष था।
जब गाना खत्म हुआ और करण स्टेज से उतरा, तो उसकी नज़रें फिर से रिया से मिलीं। रिया ने उसे थम्स-अप का इशारा किया और मुस्कुराई। यह एक छोटी सी हरकत थी, लेकिन इसमें बहुत कुछ छिपा था। यह एक स्वीकृति थी, एक प्रशंसा थी, और शायद एक शुरुआत भी।
रिया ने अपने दिल में महसूस किया कि सख्त मेजर के पीछे एक इंसान है, जिसमें उतनी ही भावनाएँ हैं जितनी किसी और में। उसकी कठोरता शायद उसकी रक्षा कवच है, लेकिन अंदर से वह भी एक गर्मजोशी वाला, प्यार करने वाला व्यक्ति है। करण के लिए उसके मन में सम्मान तो पहले से था, लेकिन इस डांस परफॉर्मेंस ने उसके मन में कुछ और भी जगा दिया था – एक तरह की कोमलता, एक समझ, और शायद एक नए रिश्ते की उम्मीद।
रात ढल रही थी, और संगीत का जश्न पूरे ज़ोरों पर था। करण अभी भी बीच-बीच में मिस्टर वर्मा पर नज़र रख रहा था, लेकिन आज रात के लिए उसका सबसे बड़ा मिशन पूरा हो गया था – उसने अपनी बहन को खुशी दी थी, और अनजाने में ही सही, रिया के दिल में भी अपनी जगह बना ली थी।
Chapter 16
संगीत की रात अपने पूरे शबाब पर थी। डीजे की धुन पर युवा थिरक रहे थे, और बड़े-बुज़ुर्ग अपनी जगह पर बैठकर बातें कर रहे थे, बच्चों की हंसी और ठहाकों से पूरा घर गूँज रहा था। शालू और करण का डांस परफॉर्मेंस अभी-अभी खत्म हुआ था। करण मंच से उतरा, पसीने से लथपथ लेकिन चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान लिए हुए। उसने एक गहरी साँस ली, जैसे कोई बड़ा मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया हो।
जैसे ही वह नीचे उतरा, उसकी आँखें अनायास ही रिया को ढूंढने लगीं। रिया भीड़ के बीच में खड़ी थी, उसे ही देख रही थी। उनकी नज़रें मिलीं, और उस एक पल में, दोनों के बीच की सारी कड़वाहट, सारी नोक-झोंक, सारे ताने-बाने जैसे हवा में घुल गए। रिया ने अपने होठों पर एक हल्की, प्यारी सी मुस्कान लाई और उसे एक 'थम्स-अप' का इशारा किया। करण ने भी उसे जवाब में एक छोटा सा, हिचकिचाता हुआ, पर सच्चा स्माइल दिया। उस पल उन्हें लगा जैसे वे एक-दूसरे को वर्षों से जानते हों, और आज जाकर उनकी समझदारी की शुरुआत हुई है।
करण ने शालू और परिवार के सदस्यों से बधाई स्वीकार की, लेकिन उसका मन कहीं और ही था। वह जानता था कि उसे रिया से बात करनी है। वह जानता था कि इस पल को बिना कुछ कहे जाने नहीं देना चाहिए।
कुछ ही देर में जब सब डीजे फ्लोर पर या खाने की स्टॉल पर व्यस्त हो गए, करण धीरे से रिया की तरफ बढ़ा। रिया अपनी मैनेजर को कुछ निर्देश दे रही थी, उसके चेहरे पर अब भी उस सफल परफॉर्मेंस की खुशी थी, जिसका एक बड़ा श्रेय वह खुद को दे रही थी, और कुछ हद तक करण की कोशिश को भी।
करण उसके पास आकर थोड़ी दूर पर रुका। रिया ने अपनी मैनेजर को विदा किया और मुड़कर देखा, तो करण को सामने पाया। उसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी।
करण ने हिचकिचाते हुए कहा, "शुक्रिया... सिखाने के लिए।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी नरमी थी, जो रिया ने पहले कभी नहीं सुनी थी।
रिया ने एक पल के लिए उसे देखा, फिर मुस्कुराई। "आपने भी बुरा नहीं किया, जनरल साहब।" उसके स्वर में अब पहले जैसी कटुता नहीं थी, बल्कि एक चुलबुलापन था। "मुझे लगा था कि आप स्टेज पर जम जाएँगे, पर आपने तो कमाल कर दिया। मैंने सोचा नहीं था कि एक कमांडो के अंदर इतना बॉलीवुड छिपा होगा।"
करण के चेहरे पर एक हल्की सी हंसी आई। "यह सब तुम्हारी वजह से है। तुम न होतीं तो शायद मैं कभी अपनी बहन के लिए भी स्टेज पर न आता।"
"आपकी बहन के लिए या मेरे चैलेंज के लिए?" रिया ने उसे छेड़ते हुए कहा, उसकी आँखों में चमक थी।
करण ने गर्दन हिलाई। "दोनों के लिए। पर ज़्यादा तुम्हारे चैलेंज के लिए। मैं कभी हारना पसंद नहीं करता।"
"और मैंने तो आपको पहले ही बता दिया था कि मैं 'द वेडिंग डीवा' हूँ," रिया ने अपनी ठुड्डी थोड़ी ऊपर उठाई, "हारना तो मुझे भी पसंद नहीं।"
दोनों ने एक-दूसरे को देखा और हल्के से मुस्कुरा दिए। वह पल एक अजीब सी शांति और समझ से भरा था। उनके बीच की जो बर्फीली दीवार थी, वह अब पूरी तरह से पिघल चुकी थी। अब उनके बीच सिर्फ दो पेशेवर या दो झगड़ालू लोग नहीं थे, बल्कि दो इंसान थे जो एक-दूसरे की दुनिया को, एक-दूसरे की भावनाओं को समझने लगे थे। उनकी आँखों में एक-दूसरे के लिए सम्मान और एक अनकहा आकर्षण साफ झलक रहा था।
करण ने थोड़ा झुककर कहा, "तुम्हारे आइडियाज़... बहुत अच्छे हैं। तुमने घर को सच में बदल दिया।" यह उसकी तरफ से बहुत बड़ी तारीफ़ थी, जिसे उसने बहुत मुश्किल से अपने मुँह से निकाला था।
रिया थोड़ी चौंक गई, करण की इतनी सीधी तारीफ़ सुनकर। "थैंक यू, जनरल साहब। आपने भी अपना बेस्ट दिया।"
"तो फिर, मैडम इवेंटवाली," करण ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ अब और नरम थी, "क्या हम अब से थोड़ा दोस्त बन सकते हैं? या कम से कम, बिना लड़ाई के काम कर सकते हैं?"
रिया की आँखों में शरारत तैर गई। "देखना पड़ेगा, मेजर साहब। आप इतने सख्त हैं कि दोस्ती निभाना भी मुश्किल हो सकता है।" फिर उसने गंभीरता से कहा, "हाँ, हम काम कर सकते हैं... बिना लड़ाई के।"
उनके बीच एक आरामदायक खामोशी छा गई। वे एक-दूसरे को देखते रहे, अपने नए रिश्ते की शुरुआत को महसूस करते हुए। उस पल में, कैंटोनमेंट का शोर भी धीमा पड़ गया था, और सिर्फ वे दोनों ही थे। रिया के दिल में एक हल्की सी गुदगुदी हुई। करण को भी एक अजीब सा सुकून महसूस हुआ, जो उसे अपनी मिलिट्री लाइफ के बाहर शायद ही कभी मिला हो।
तभी, पुष्पा बुआ की तेज़ आवाज़ उनके कानों में पड़ी। "करण! रिया! कहाँ हो तुम दोनों? आओ, कुछ खा लो! मैं कब से बुला रही हूँ!"
उनकी आवाज़ सुनकर करण और रिया दोनों चौंक गए और एक-दूसरे से दूर हट गए, जैसे किसी ने उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया हो। पुष्पा बुआ उनकी तरफ आ रही थीं, उनके चेहरे पर एक मज़ेदार सी मुस्कान थी। उन्होंने उन दोनों को एक साथ देखा था, और उनके दिमाग में तुरंत ही घोड़े दौड़ने लगे थे।
"क्या हो रहा है यहाँ?" पुष्पा बुआ ने मज़ेदार लहजे में पूछा, उनकी आँखों में शरारत थी। "तुम दोनों अकेले में क्या फुसफुसा रहे हो? कोई नई 'प्लानिंग' चल रही है क्या?" उन्होंने जानबूझकर 'प्लानिंग' शब्द पर ज़ोर दिया।
करण ने तुरंत कहा, "नहीं, बुआ जी! बस... संगीत के बारे में बात कर रहे थे।" उसके गाल थोड़े लाल हो गए थे।
रिया ने भी बात संभालने की कोशिश की। "हाँ, बुआ जी। मैं बस जनरल साहब को बता रही थी कि उनका डांस कितना... प्रेरणादायक था।"
पुष्पा बुआ ने अपनी भौंहें चढ़ाईं। "ओहो! 'प्रेरणादायक'? मुझे तो लगा था, बस एक अनाड़ी था जो अपनी बहन के लिए नाच रहा था।" उन्होंने करण की तरफ देखा और मुस्कुराईं। "और तुम, रिया, तुम्हें तो सुबह से कुछ खाया नहीं। चलो, मैंने तुम्हारे लिए खास मीठा बनवाया है।" उन्होंने रिया का हाथ पकड़ा और उसे खाने की तरफ खींचने लगीं।
रिया ने जाते-जाते एक पल के लिए करण की तरफ देखा। करण भी उसे देख रहा था, उसके चेहरे पर एक हल्की सी शर्मिंदगी थी, लेकिन साथ ही एक नई चमक भी थी। पुष्पा बुआ ने उनके बीच के उस अनकहे, अनजाने रिश्ते की छोटी सी चिंगारी को देख लिया था, और अब वह उसे और हवा देने का कोई मौका नहीं छोड़ने वाली थीं। उस रात, करण और रिया के बीच की बर्फीली दीवार में एक दरार नहीं, बल्कि एक पूरा दरवाज़ा खुल गया था, जो उन्हें एक-दूसरे के करीब ला रहा था, भले ही वे दोनों अभी तक इस बात को पूरी तरह से समझ नहीं पाए थे।
Chapter 17
सुबह के ठीक चार बजे थे। अंबाला कैंटोनमेंट में भोर का बिगुल बजा, और उसकी तेज़, तीखी आवाज़ ने सिंह निवास में गहरी नींद में सो रही रिया की पूरी टीम को एक झटके में जगा दिया। मुंबई की ग्लैमरस लाइफस्टाइल के आदी उन इवेंट प्लानर्स के लिए यह किसी नाइटमेयर से कम नहीं था। एसी कमरों और देर रात की पार्टियों में रहने वाले उन लोगों के लिए सुबह चार बजे का मतलब शायद ही कभी सूर्योदय देखना होता।
एक कमरे में, जहाँ मेकअप आर्टिस्ट, कोरियोग्राफर और इवेंट हेड सो रहे थे, अचानक से चिल्लाहटें सुनाई देने लगीं।
"आह! ये क्या है?" मेकअप आर्टिस्ट रोहित ने तकिए में मुँह छुपाते हुए कहा, उसकी आवाज़ नींद में सँधी हुई थी। "क्या कोई ड्रिल है? भूकंप आ गया क्या?"
"ये बिगुल है, गधे!" इवेंट हेड समीर ने करवट बदलते हुए गुस्से से कहा। "यहां रोज़ सुबह बजता है, मुझे कल ही पता चला। चार बजे! मैं सोच भी नहीं सकता!"
कोरियोग्राफर टीना उठकर बैठ गई, उसके बाल बिखरे हुए थे। "चार बजे? मतलब अभी तक रात ही है! ये लोग सोते कब हैं? और क्या हम यहाँ शादी प्लान करने आए हैं या आर्मी ट्रेनिंग के लिए?" उसकी आवाज़ में चिड़चिड़ाहट थी।
"मुझे अपनी कॉफी चाहिए," रोहित ने सिर खुजाते हुए कहा। "स्ट्रॉन्ग, ब्लैक कॉफी। और मेरा ऑर्गेनिक जूस। यहाँ कुछ मिलेगा क्या?"
थोड़ी देर में सब उठकर बैठ गए, एक-दूसरे को परेशान आँखों से देखते हुए। "मुझे पता था, यह प्रोजेक्ट हमें मार डालेगा," समीर ने बुदबुदाया। "मुंबई की चकाचौंध कहाँ और यह फौजी छावनी कहाँ!"
रिया अपने कमरे में थी, बिगुल की आवाज़ से वह भी जगी थी। उसने थोड़ी देर तक आँखें बंद रखीं, फिर एक लंबी साँस लेकर उठ बैठी। पिछले कुछ दिनों से उसे इस बिगुल की आदत सी हो गई थी। पहले उसे भी यह एक टॉर्चर लगता था, लेकिन अब यह उसके लिए अंबाला की सुबह की पहचान बन गया था। वह अपनी खिड़की के पास गई और बाहर देखा। सूरज की पहली किरणें आसमान में लालिमा घोल रही थीं। दूर परेड ग्राउंड से सैनिकों के मार्च करने की हल्की आवाज़ आ रही थी। रिया ने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कीं और मुस्कुराई। उसे खुद पर हैरत हो रही थी कि वह इस माहौल में कितनी जल्दी ढल गई थी।
कुछ देर बाद, जब रिया अपनी टीम के पास गई, तो सब पहले से ही तैयार बैठे थे, लेकिन उनके चेहरों पर निराशा और थकान साफ झलक रही थी।
"गुड मॉर्निंग, मैम," समीर ने कटाक्ष करते हुए कहा। "यहाँ की 'गुड मॉर्निंग' कुछ ज़्यादा ही जल्दी होती है।"
रिया ने उन्हें देखा और उसकी हंसी छूट गई। "मुझे पता है, बच्चों। लेकिन हमें एडजस्ट करना होगा। अब चलो, नाश्ते का टाइम है।"
"नाश्ता?" रोहित ने मुँह बनाया। "वही मेस का खाना? कल की दलिया से तो मेरा पेट आज तक ठीक नहीं हुआ।"
सब मिलकर मेस हॉल पहुँचे। यह एक विशाल हॉल था जहाँ बड़े-बड़े मेज़ और बेंच लगे थे। खाना बहुत सादा था - दाल, रोटी, सब्ज़ी और चाय। सैनिकों की लाइन लगी थी, सब अनुशासन से अपना खाना ले रहे थे।
रोहित ने अपनी प्लेट में दाल और सब्ज़ी ली और एक कौर खाते ही उसका मुँह बन गया। "मैम, ये क्या है? इसमें नमक है क्या?"
टीना ने अपनी चाय का कप पकड़ा और कहा, "ये चाय है? मुझे तो रंगीन पानी लग रहा है। कहाँ मेरी लैटे! कहाँ ये..." उसने बात अधूरी छोड़ दी।
"यार, मुझे अपनी डायट याद आ रही है," समीर ने निराशा से कहा। "मेरा प्रोटीन शेक, मेरा एवोकैडो टोस्ट... यहाँ तो सादा पराठा भी नसीब नहीं हो रहा।"
रिया ने उन्हें शांत रहने का इशारा किया। "शांत हो जाओ, तुम सब! यह घर का खाना है। हेल्दी है। और सैनिक यही खाते हैं।"
तभी पुष्पा बुआ उनके पास आ गईं। उन्होंने रिया और उसकी टीम को ऐसे देखा जैसे वे किसी अजूबे को देख रही हों। "ओहो! क्या हुआ? शहर के बच्चों को दाल-रोटी पसंद नहीं आ रही?" उन्होंने रोहित की थाली में झाँका। "ये तो ताज़ी दाल है! बहुत पौष्टिक! तुम शहर में क्या खाते हो? सिर्फ मैगी?"
रोहित ने डरते-डरते कहा, "बुआ जी, हम... हम तो... सूप खाते हैं, और... ग्रिल्ड चिकन।"
"ग्रिल्ड चिकन?" पुष्पा बुआ ने नाक-भौं सिकोड़ीं। "अरे, वो तो बीमार लोगों का खाना है। ये खाओ, देखो, कितनी ताकत आएगी।" उन्होंने रिया की थाली में देखा, जहाँ रिया चुपचाप अपनी दाल रोटी खा रही थी। "रिया तो खा रही है। रिया को पता है कि अच्छी सेहत के लिए क्या ज़रूरी है।"
रिया ने मुस्कुराकर पुष्पा बुआ की तरफ देखा। बुआ जी की इस बात पर उसे खुद पर भी हैरानी हुई। सच में, अब उसे यह खाना उतना बुरा नहीं लगता था। पहले जहाँ वह हर छोटी चीज़ पर शिकायत करती थी, अब वह धीरे-धीरे एडजस्ट करना सीख गई थी।
नाश्ते के बाद, काम फिर से शुरू हुआ। कैंटोनमेंट के नियमों और प्रोटोकॉल्स से उनकी टीम बुरी तरह परेशान हो चुकी थी।
"मैम, मेरा मेकअप ब्रश खो गया है," रोहित ने शिकायत की। "मैंने उसे अपनी वैनिटी वैन में रखा था, पर सिक्यूरिटी वाले उसे बाहर नहीं ले जाने दे रहे। कहते हैं, 'बाहरी सामान अंदर नहीं आएगा'।"
"अरे यार, यहाँ के लोगों को पता भी है कि ग्लैमर क्या होता है?" टीना ने हवा में हाथ लहराते हुए कहा। "मैंने एक सोल्जर को डांस स्टेप सिखाने की कोशिश की, उसने मुझे ऐसे देखा जैसे मैं कोई विदेशी भाषा बोल रही हूँ। उनके स्टेप्स में कोई ग्रेस नहीं, बस मार्च करना आता है!"
समीर, जो लॉजिस्टिक्स संभाल रहा था, गुस्से में अपने वॉकी-टॉकी पर बात कर रहा था। "मैम, यहाँ हर चीज़ के लिए परमिशन लेनी पड़ती है। एक छोटा सा लाइट स्टैंड भी अगर मुझे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना है, तो मुझे 'ऑफिसर इंचार्ज' से साइन करवाना पड़ता है। ये कोई इवेंट मैनेजमेंट नहीं, एक ऑपरेशन है!"
"शांत! समीर!" रिया ने उसे डांटा। "यह एक ऑपरेशन ही है! और हमें इसे सफलतापूर्वक पूरा करना है। यह आर्मी कैंटोनमेंट है, कोई मुंबई का फ़िल्मी सेट नहीं। तुम्हें नियमों का पालन करना होगा। यही अनुशासन है।"
उसने अपनी टीम को एक-एक करके देखा। "देखो, मुझे पता है कि यह मुश्किल है। तुम सब शहर की खुली हवा में काम करने के आदी हो। यहाँ थोड़ा ज़्यादा कंट्रोल है, ज़्यादा नियम हैं। लेकिन तुम सब प्रोफेशनल हो। हमें यह शादी यादगार बनानी है, चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं।"
रोहित उदास होकर बोला, "पर मैम, यहाँ की हवा में glamour की कमी है। मेरा कैमरा भी यहाँ की धूल से भर गया है। और मुझे अपना इंटरनेट भी सही से नहीं मिल रहा।"
रिया ने एक गहरी साँस ली। वह खुद भी इन सब समस्याओं से गुज़री थी, लेकिन अब उसे यह सब उतना बड़ा नहीं लगता था। उसे याद आया जब पहली बार उसने मेस का खाना खाया था, या जब सुबह का बिगुल सुनकर वह बिस्तर से उछल पड़ी थी। अब वह इन सब की आदी हो चुकी थी।
वह मुस्कुराई। "रोहित, तुम्हें पता है, मेरा पहला विचार भी यही था कि इस जगह को glamour की बहुत ज़रूरत है। लेकिन अब मुझे लगता है कि इस जगह की अपनी एक अलग ख़ूबसूरती है। यहाँ अनुशासन है, सम्मान है, और एक अलग तरह की शांति है।" उसने अपनी टीम को देखकर कहा, "और रही बात तुम्हारे इंटरनेट की, तो थोड़ी देर के लिए दुनिया से कटकर देखो, शायद कुछ नया सीखने को मिल जाए।"
समीर ने उसे हैरानी से देखा। "मैम, क्या आप ठीक हैं? आप ऐसा कैसे कह सकती हैं?"
रिया ने हंसते हुए कहा, "हाँ, मैं ठीक हूँ। शायद मुझे भी मेजर साहब का असर हो रहा है।" उसकी बात सुनकर टीम के कुछ लोग हंस दिए।
करण दूर से उनकी बातचीत सुन रहा था। उसने देखा कि कैसे रिया अपनी टीम को संभाल रही थी। वह अपनी टीम की शिकायतों को भी समझ रही थी, लेकिन उन्हें अनुशासन और वास्तविकता भी सिखा रही थी। करण ने देखा कि वह अब सिर्फ एक ग्लैमरस इवेंट प्लानर नहीं थी, बल्कि एक ऐसी महिला बन गई थी जो मुश्किल परिस्थितियों को भी आसानी से संभाल लेती थी। उसके चेहरे पर अब वैसी चिड़चिड़ाहट नहीं थी जो शुरू में थी, बल्कि एक ठहराव और समझदारी थी।
करण उसके पास आया, उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। "क्या हुआ, मैडम इवेंटवाली? आपकी टीम को ज़्यादा अनुशासन मिल गया क्या?"
रिया ने उसे देखा और मुस्कुराई। "थोड़ा मुश्किल तो है, जनरल साहब। आपकी दुनिया हमारी दुनिया से बहुत अलग है। पर, हम सीख रहे हैं।"
"अच्छा?" करण ने अपनी भौंहें उठाईं। "तो क्या आपको भी अब चार बजे का बिगुल पसंद आने लगा है?"
रिया ने आँखें घुमाईं। "पसंद आना तो नहीं कहूँगी, पर अब नींद खुलते ही मैं उठ जाती हूँ। आपकी तरह, एक कमांडो की तरह।"
करण हल्का सा हंसा। "यही तो हमारा काम है, एडजस्ट करना। परिस्थितियों के हिसाब से ढलना।"
"हाँ," रिया ने गंभीरता से कहा, "और मैं समझ रही हूँ कि यह कितना ज़रूरी है। आपने सही कहा था, यहाँ सब कुछ एक मिशन की तरह होता है।"
करण ने रिया की आँखों में देखा। उसे एहसास हुआ कि रिया सिर्फ उसके शब्दों को दोहरा नहीं रही थी, बल्कि उन्हें महसूस भी कर रही थी। वह वाकई बदल रही थी। रिया ने भी उस पल महसूस किया कि अंबाला का यह शांत, अनुशासित माहौल, और करण की मौजूदगी, उसे एक अलग इंसान बना रही थी। वह अब सिर्फ "द वेडिंग डीवा" नहीं थी, बल्कि कुछ और भी बन रही थी – शायद ज़्यादा शांत, ज़्यादा समझदार, और हाँ, थोड़ी ज़्यादा फम्बोसी भी। यह परिवर्तन उसके लिए एक सुखद आश्चर्य था।
Chapter 18
अगली सुबह कैंटोनमेंट में एक नई हलचल थी। बिगुल की आवाज़ अब रिया की टीम को उतना परेशान नहीं कर रही थी, और मेस का खाना भी अब उन्हें 'सादा' नहीं, बल्कि 'पौष्टिक' लगने लगा था। रिया ने अपनी टीम को बहुत ही कुशलता से संभाला था, और अब वे सब इस नए माहौल में कुछ हद तक ढल चुके थे। आज मेहंदी की रस्म थी, और रिया के पास इसे खास बनाने का एक और मौका था।
सिंह निवास के लॉन में मेहंदी की रस्म की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। रिया ने एक बहुत ही खूबसूरत, फूलों वाली थीम चुनी थी। पूरा लॉन गेंदे और गुलाब के फूलों से सजा हुआ था। रंग-बिरंगी चुनरियाँ और रिबन चारों ओर लहरा रहे थे, और हर कोने से ताज़े फूलों की खुशबू आ रही थी। रिया, आज एक हल्के हरे रंग का अनारकली पहने हुए थी, अपनी टीम को निर्देश दे रही थी, उसकी आवाज़ में वही आत्मविश्वास था, लेकिन अब उसमें एक नई सौम्यता भी थी।
"अमित, वो पीले वाले गेंदे के फूलों का गुच्छा थोड़ा और ऊपर करो। हाँ, परफेक्ट!" रिया ने एक तरफ इशारा करते हुए कहा।
"टीना, संगीत के लिए स्टेज पर लाल गुलाब के साथ सफेद ड्रेप्स रखो। हमें एक रोमांटिक और क्लासी लुक चाहिए।"
टीम के सदस्य अब पहले से ज़्यादा तेज़ी और समझदारी से काम कर रहे थे। उन्हें रिया के विज़न पर भरोसा हो गया था, और वे यह भी समझ गए थे कि मेजर साहब से झगड़ने का कोई फायदा नहीं, बल्कि उनके हिसाब से एडजस्ट करने में ही भलाई है।
थोड़ी देर में पुष्पा बुआ, शालू और ब्रिगेडियर सिंह भी लॉन में आ गए। पुष्पा बुआ ने जब पूरी सजावट देखी, तो उनकी आँखें खुली की खुली रह गईं। उनके चेहरे पर पहली बार एक आश्चर्य और प्रशंसा का भाव था।
"अरे वाह!" पुष्पा बुआ ने हाथ मलते हुए कहा। "रिया बिटिया, ये तो तुमने गज़ब कर दिया! मैंने तो सोचा था तुम बस वो प्लास्टिक के फूल और चमक-धमक लगाओगी। पर ये तो... बिलकुल घर जैसा लग रहा है! बिलकुल पारंपरिक!"
रिया ने मुस्कुराकर पुष्पा बुआ की तरफ देखा। "जी बुआ जी। मैंने कोशिश की है कि पारंपरिकता और मॉडर्न टच दोनों का ध्यान रखूँ।"
शालू खुशी से चिल्लाई, "रिया दीदी! ये तो बिलकुल मेरे सपनों जैसी मेहंदी है! थैंक यू सो मच!"
रिया ने शालू के गाल थपथपाए। "खुश रहो शालू।"
पुष्पा बुआ रिया के पास आईं, उनके चेहरे पर अब कोई खीज नहीं थी, सिर्फ अपनापन था। उन्होंने एक प्लेट में रखी गुझिया उठाई और रिया के मुँह के पास ले जाकर बोलीं, "इतनी मेहनत कर रही हो, कुछ खा भी लो। ये मैंने खुद बनाई है, खाकर बताओ कैसी बनी है।"
रिया को थोड़ी हैरानी हुई। पुष्पा बुआ का यह व्यवहार उसके लिए बिलकुल नया था। उसने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ गुझिया का एक टुकड़ा खाया। "वाह बुआ जी! बहुत टेस्टी है! बिलकुल माँ के हाथ जैसी।" रिया के मुँह से अनायास ही ये शब्द निकल गए।
पुष्पा बुआ का चेहरा खुशी से खिल उठा। "अरे! ये तो बहुत अच्छी बात है! तूने खाया और तुझे पसंद भी आया। मुझे लगा था, शहर के बच्चों को बस पिज़्ज़ा बर्गर ही भाता है।" उन्होंने रिया के सिर पर प्यार से हाथ फेरा। "मेरी बिटिया! तू तो सच में जादूगर है। इस घर में रौनक आ गई है जब से तू आई है।"
यह पल रिया के लिए बहुत सुखद था। पुष्पा बुआ की डांट और शिकायतें अब प्यार और अपनेपन में बदल गई थीं। यह सिर्फ एक क्लाइंट से मिली तारीफ़ नहीं थी, बल्कि एक परिवार का अपनापन था, जिसकी उसे शायद अनजाने में ही ज़रूरत थी।
करण, जो अपनी यूनिफॉर्म में अपनी कुछ फ़ाइलें लेकर जा रहा था, पल भर के लिए रुका। उसने दूर से यह सब देखा। रिया को पुष्पा बुआ के साथ इतने सहज होते हुए, और उनके चेहरे पर उस खुशी को देखकर, करण के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। उसे रिया को अपने परिवार के साथ घुलते-मिलते देखना अच्छा लग रहा था। वह उसे सिर्फ एक वेडिंग प्लानर के तौर पर नहीं, बल्कि एक ऐसे इंसान के तौर पर देखने लगा था, जो उसके परिवार को खुश कर रहा था। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जिसमें सुकून और कुछ अनकहा भाव मिला था।
तैयारियों के बीच, एक और व्यक्ति भी था जो पूरे माहौल का जायजा ले रहा था - मिस्टर वर्मा। वह आज एक ढीली-ढाली सी कुर्ता-पायजामा में था, और सभी से बहुत ही मीठा और मिलनसार व्यवहार कर रहा था। वह कभी डेकोरेशन टीम को पानी पिलाने का बहाना करता, तो कभी कैटरिंग वालों से बातें करने लगता। लेकिन उसकी नज़रें हर वक़्त हर जगह घूम रही थीं।
वर्मा ने रिया के पास आकर कहा, "वाह! बिटिया, क्या शानदार काम किया है तुमने! ये सब फूल-पत्तियाँ... बिलकुल मनमोहक! तुम तो सच में 'द वेडिंग डीवा' हो।"
रिया ने मुस्कुराकर धन्यवाद कहा। वर्मा ने अपने हाथ फैलाकर सजावट की तारीफ़ करने का बहाना किया, और इस दौरान उसकी नज़रें बहुत ही बारीकी से वेन्यू के हर कोने का मुआयना कर रही थीं। वह ख़ास तौर पर बिजली के मेन स्विच बोर्ड के पास, जनरेटर की लोकेशन, और जहाँ-जहाँ बड़े-बड़े तार और केबल्स बिछे हुए थे, उन जगहों को ध्यान से देख रहा था।
"ये सब तार-वार का काम बड़ा पेचीदा होता है, है ना?" वर्मा ने रिया से सवाल किया, उसकी आवाज़ में भोलापन था। "तुम्हारी टीम बहुत प्रोफेशनल लगती है, सब कुछ ठीक से मैनेज कर रही है।"
रिया ने आत्मविश्वास से कहा, "जी अंकल जी। हमारी टीम बहुत अनुभवी है। हम सुरक्षा का पूरा ध्यान रखते हैं।"
वर्मा ने सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखों में एक शातिर चमक थी। वह मन ही मन सोच रहा था कि इस अव्यवस्था का फायदा कैसे उठाया जाए। उसने कुछ देर तक वहाँ रुककर बिजली के कनेक्शनों और उनकी सुरक्षा को परखा।
थोड़ी देर बाद, वर्मा को करण अपने पिता, ब्रिगेडियर सिंह से बात करते हुए नज़र आया। वर्मा चुपचाप उनके पास चला गया, जैसे वह भी उनकी बातचीत में शामिल होना चाहता हो।
"ब्रिगेडियर साहब, आप तो बड़े खुश लग रहे हैं!" वर्मा ने कहा, उसकी आवाज़ में दिखावटी उत्साह था। "आपकी बेटी की शादी है, आखिर! और ये रिया बिटिया ने भी कमाल कर दिया है।"
ब्रिगेडियर सिंह ने मुस्कुराकर वर्मा का स्वागत किया। "हाँ, वर्मा जी। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा है। रिया ने सच में बहुत मेहनत की है।"
वर्मा ने तुरंत विषय बदला। "अच्छा ब्रिगेडियर साहब, मुझे एक बात पूछनी थी। यह जो कैंटोनमेंट का एरिया है, यह कितना सुरक्षित है? मेरा मतलब, बाहरी लोग कैसे आ-जा सकते हैं?"
ब्रिगेडियर सिंह ने थोड़ा हैरान होकर कहा, "वर्मा जी, यह एक अति-सुरक्षित सैन्य क्षेत्र है। हर एंट्री और एग्जिट पॉइंट पर कड़ी सुरक्षा होती है। बिना परमिशन के परिंदा भी पर नहीं मार सकता।"
"हाँ, वो तो है," वर्मा ने सिर हिलाया। "लेकिन शादियों में तो भीड़ बहुत होती है। इतनी सारी गाड़ियाँ, इतने सारे लोग... कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए।" उसकी बातों में एक अजीब सी जिज्ञासा थी, जो करण को खटक गई।
करण, जो पास में ही खड़ा था और अपनी बहन शालू से बात कर रहा था, उसने वर्मा की बात सुनी। उसे वर्मा का यह सवाल अजीब लगा। एक रिश्तेदार, जो दूल्हे का मुँह-बोला चाचा है, वह सैन्य क्षेत्र की सुरक्षा के बारे में इतनी बारीकी से क्यों जानना चाहता है? करण की फौजी प्रवृत्ति तुरंत सतर्क हो गई। उसने वर्मा को एक पल के लिए ध्यान से देखा। वर्मा ने करण की तरफ देखा और मुस्कुरा दिया, जैसे वह बस एक सामान्य बातचीत कर रहा हो।
करण ने भी मुस्कुराने का नाटक किया, लेकिन उसके दिमाग में एक अलार्म बज उठा था। उसे वर्मा का व्यवहार थोड़ा ज़्यादा ही जिज्ञासु लग रहा था। वह जानता था कि एक फौजी कभी भी अपने इलाके की सुरक्षा से जुड़ी जानकारी किसी बाहरी व्यक्ति के साथ साझा नहीं करता, चाहे वह कितना भी करीबी क्यों न हो। करण ने मन ही मन फैसला कर लिया। वह वर्मा पर अब और बारीकी से नज़र रखेगा। यह सिर्फ एक संदेह नहीं था, यह उसकी फौजी ट्रेनिंग का एक हिस्सा था जो उसे किसी भी खतरे को पहले से भाँपने के लिए प्रेरित करता था। उसे अभी तक कोई ठोस सबूत नहीं मिला था, लेकिन उसकी अंदरूनी गट फीलिंग कुछ और ही कह रही थी।
Chapter 19
Chapter 19
मेहंदी की रस्म अब पूरी रौनक के साथ चल रही थी। पूरा लॉन गेंदे और गुलाब के फूलों से महक रहा था, और रंग-बिरंगी लाइट्स की हल्की जगमगाहट शाम को और भी खुशनुमा बना रही थी। शालू के हाथों में मेहंदी लग रही थी, और उसके आस-पास सहेलियाँ व परिवार की महिलाएँ ढोलक की थाप पर पारंपरिक लोकगीत गा रही थीं। बच्चों की खिलखिलाहट, बड़ो की हँसी और संगीत की मधुर ध्वनि से सारा माहौल गुलज़ार था। रिया अपनी टीम के साथ अंतिम तैयारियों का जायजा ले रही थी, जहाँ-तहाँ छोटे-मोटे सुधार कर रही थी ताकि सब कुछ परफेक्ट लगे। पुष्पा बुआ, जो अब रिया की पक्की वाली फैन बन चुकी थीं, उसे बार-बार कोई न कोई मीठा खिला रही थीं, और रिया भी अब उनकी इस ममता को सहज स्वीकार कर रही थी।
लेकिन इस खुशियों और रंगों के बीच, मेजर करण प्रताप सिंह का दिमाग एक अलग ही धुन में काम कर रहा था। वह मेहमानों के बीच घूम रहा था, सबसे मिल-जुल रहा था, लेकिन उसकी आँखें लगातार मिस्टर वर्मा पर टिकी हुई थीं। करण अपनी फौजी ट्रेनिंग के चलते, हर स्थिति में अपनी सुरक्षा और अपने आस-पास के माहौल पर नज़र रखना कभी नहीं भूलता था। उसका शरीर भले ही एक शादी के उत्सव में था, लेकिन उसका दिमाग किसी मिशन पर लगे कमांडो की तरह चौकन्ना था।
करण ने नोटिस किया कि मिस्टर वर्मा, जो हर किसी से हँसकर बात कर रहा था, उसका ध्यान जश्न से ज़्यादा उन जगहों पर था जहाँ शादी की व्यवस्था के महत्वपूर्ण उपकरण लगे थे। करण ने उसे बार-बार बिजली के मेन स्विच और बड़े जनरेटर के पास घूमते देखा। वर्मा कभी बहाने से वहाँ रखे पानी के गिलासों को देखने लगता, तो कभी किसी तार को छूकर ऐसे देखता जैसे वह उसकी गुणवत्ता परख रहा हो। वह बार-बार अपनी नज़रें उन मोटे तारों पर गढ़ा रहा था जो पूरे पंडाल में बिजली की सप्लाई कर रहे थे।
"कितना बड़ा जनरेटर है!" करण ने सुना वर्मा एक कैटरिंग स्टाफ से पूछ रहा था। "इससे तो पूरे गाँव को बिजली मिल जाए। और ये सारे तार कहाँ से आ रहे हैं? सीधा पावर हाउस से?"
कैटरिंग स्टाफ ने सरलता से जवाब दिया, "जी साहब, सब कैंटोनमेंट के मेन पावर ग्रिड से जुड़ा है। हाई सिक्योरिटी है।"
वर्मा ने मुस्कुराकर सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। करण ने यह सब दूर से देखा और उसकी भौंहें तन गईं। एक सामान्य मेहमान इन सब बातों में इतनी दिलचस्पी क्यों लेगा? यह सवाल करण के दिमाग में कौंध गया। उसकी फौजी प्रवृत्ति उसे बार-बार सचेत कर रही थी कि कुछ तो गड़बड़ है।
कुछ देर बाद, जब शालू के हाथ में मेहंदी का डिज़ाइन पूरा हो चुका था और सभी एक-दूसरे को मेहंदी लगा रहे थे, तभी करण ने मिस्टर वर्मा को पंडाल के बाहरी छोर पर, एक बड़े से पेड़ के पीछे जाकर फोन पर बात करते देखा। वर्मा की आवाज़ बेहद धीमी थी, लगभग फुसफुसाहट जैसी।
करण ने अपनी बातचीत रोकी और हल्के क़दमों से उस तरफ बढ़ा, इस तरह से जैसे वह किसी से मिलने जा रहा हो। वह इतनी दूरी पर रुक गया जहाँ से वह वर्मा की बात सुन सके, लेकिन खुद वर्मा की नज़र में न आए।
वर्मा फोन पर कह रहा था, "हाँ... सब प्लान के मुताबिक है। कोई दिक्कत नहीं। लोकेशन परफेक्ट है। कोई शक नहीं कर रहा।" उसकी आवाज़ में एक आत्मविश्वास और धूर्तता थी। "बिजली... हाँ, उस पर भी नज़र है। बिलकुल सही वक़्त पर... हाँ, मैं तुम्हें 'कोड' दूँगा।"
करण की नसें तन गईं। 'प्लान', 'लोकेशन परफेक्ट', 'कोड'... ये शब्द किसी सामान्य बातचीत के नहीं थे। यह किसी ऑपरेशन की भाषा थी। वह अभी और सुनना चाहता था, लेकिन तभी वर्मा की नज़रें अचानक करण पर पड़ीं, जो अब अपनी आँखों में जिज्ञासा लिए उसकी तरफ देख रहा था।
जैसे ही वर्मा ने करण को देखा, वह तुरंत सकपका गया। उसके चेहरे पर एक पल के लिए घबराहट आई, लेकिन उसने तुरंत उसे एक सहज मुस्कान में बदल दिया। उसने फ़ौरन फोन काट दिया।
"अरे! मेजर साहब! आप यहाँ?" वर्मा ने अपने चेहरे पर सबसे मीठी मुस्कान लाते हुए कहा। "मैं तो बस हलवाई से बात कर रहा था। पूछ रहा था कि मिठाइयाँ ताज़ी हैं या नहीं। आपको तो पता है, मैं सेहत का बहुत ध्यान रखता हूँ।"
करण ने एक हल्की सी मुस्कान दी। "हाँ, वर्मा जी। सेहत तो ज़रूरी है।" उसने वर्मा की आँखों में देखा, एक पल के लिए भी अपनी नज़रें नहीं हटाईं। "वैसे, मिठाइयाँ तो बहुत अच्छी लग रही हैं। हलवाई से क्या बात हो रही थी?"
वर्मा ने हड़बड़ाहट में कहा, "अरे, बस पूछ रहा था कि आज रात के खाने में और क्या नया है। आपको तो पता है, शादियों में ज़रा खाने-पीने का ही मज़ा होता है।"
करण ने सिर हिलाया, लेकिन उसका शक अब यकीन में बदल चुका था। वर्मा साफ झूठ बोल रहा था। उसकी आवाज़ में वह आत्मविश्वास नहीं था जो अभी थोड़ी देर पहले फोन पर बात करते हुए था। करण जानता था कि यह कोई साधारण आदमी नहीं है। उसकी अंदरूनी घबराहट और फिर अचानक आया सामान्य व्यवहार, सब कुछ उसके फौजी दिमाग को सिग्नल दे रहा था कि यह आदमी खतरनाक है।
करण ने वर्मा को कुछ देर और देखा, फिर कहा, "ठीक है वर्मा जी। आप खाइए-पीजिए। मैं ज़रा शालू से मिल लेता हूँ।"
वह वहाँ से हट गया, लेकिन उसकी चाल में अब सतर्कता और गंभीरता आ चुकी थी। वह जानता था कि उसे अब और देर नहीं करनी चाहिए। उसे वर्मा के बारे में पूरी जानकारी चाहिए थी, और वह भी जल्द से जल्द।
करण ने पंडाल से बाहर निकलने का एक बहाना ढूँढा। उसने शालू के कानों में फुसफुसाया, "मैं ज़रा बाहर तक जा रहा हूँ। एक ज़रूरी कॉल है। किसी को बताना मत।" शालू ने सिर हिला दिया, उसे अपने भाई की गंभीरता समझ में आ गई थी।
करण सीधे अपने कमरे में गया। उसने दरवाज़ा बंद किया और अपना फोन निकाला। उसने अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में से एक नंबर ढूँढा - यह उसके पुराने दोस्त और आर्मी इंटेलिजेंस के एक विश्वसनीय अधिकारी का नंबर था। यह नंबर उसने सिर्फ आपातकालीन स्थितियों के लिए रखा था।
उसने कॉल मिलाया। कुछ ही रिंग्स के बाद दूसरी तरफ से आवाज़ आई, "करण? सब ठीक है? तुमने इस नंबर पर कॉल किया, मतलब कुछ गंभीर है।"
करण ने अपनी आवाज़ को जितना हो सके उतना शांत रखा, लेकिन उसमें urgency थी। "हाँ, गौरव। मुझे एक अर्जेंट काम है। मुझे एक व्यक्ति की बैकग्राउंड चेक करवानी है। जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी।"
"नाम और डिटेल्स दो," गौरव ने तुरंत कहा।
"उसका नाम मिस्टर वर्मा है। वह यहाँ अंबाला में है, एक शादी में 'दूल्हे का मुँह-बोला चाचा' बनकर आया है। मुझे उसकी पूरी हिस्ट्री चाहिए। उसका असली नाम, उसका पेशा, उसका कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड, अगर पहले कभी कोई इंवॉल्वमेंट रहा हो... सब कुछ। मुझे लग रहा है यह आदमी कुछ गड़बड़ है।" करण ने अपनी सारी ऑब्जर्वेशन बताईं – उसके अजीब सवाल, जनरेटर और तारों के पास घूमना, और वह संदिग्ध फोन कॉल।
"ठीक है, करण। मुझे कुछ समय दो। मैं तुरंत काम पर लगता हूँ। जैसे ही कुछ पता चलेगा, तुम्हें इन्फॉर्म करूँगा।" गौरव ने कहा, उसकी आवाज़ में भी गंभीरता थी।
"जितना जल्दी हो सके," करण ने दोहराया। "यह सिर्फ एक शक नहीं है, गौरव। मेरी गट फीलिंग कुछ और कह रही है। और तुम जानते हो, मेरी गट फीलिंग कभी ग़लत नहीं होती।"
"समझ गया, दोस्त। अपना ध्यान रखना। मैं तुम्हें अपडेट करूँगा।" गौरव ने फोन काट दिया।
करण ने फोन नीचे रखा और एक गहरी साँस ली। उसका माथा सिकुड़ गया था। उसके दिमाग में तेज़ी से विचार घूम रहे थे। अगर उसका शक सही निकला, तो इस शादी में सिर्फ शालू की ख़ुशी ही नहीं, बल्कि कुछ बहुत बड़ा दाँव पर लगा होगा। कैंटोनमेंट एक अति-सुरक्षित सैन्य क्षेत्र था। अगर कोई बाहरी व्यक्ति यहाँ किसी गलत इरादे से घुसा है, तो इसका मतलब बहुत गंभीर हो सकता था। करण को अब हर पल भारी लग रहा था। मेहंदी की खुशनुमा महक और संगीत की धुन अब उसे परेशान करने लगी थी। उसके लिए, यह सिर्फ एक शादी नहीं थी, यह एक ऐसा मिशन बन गया था, जिसमें उसे हर हाल में जीतना था, और उससे पहले, हर खतरे को पहचानना था।
Chapter 20
Chapter 20
मेहंदी की रस्म अपने चरम पर थी। पूरा पंडाल खुशियों और रंगों से लबालब था। शालू और दूल्हा, राहुल, एक छोटे से सजे हुए सोफे पर बैठे थे, उनके हाथों में मेहंदी की ख़ुशबू घुल चुकी थी। परिवार के सदस्य और मेहमान नाच-गा रहे थे, हँसी के फुहारे छूट रहे थे, और हर तरफ एक जश्न का माहौल था। रिया अपनी टीम के साथ संतुष्टि से मुस्कुरा रही थी। उसकी मेहनत रंग ला रही थी, और सब कुछ बिलकुल उसकी योजना के अनुसार चल रहा था। करण भी मेहमानों के साथ घुलमिल रहा था, लेकिन उसकी एक आँख अभी भी मिस्टर वर्मा पर थी, जिसने अब तक कोई और संदिग्ध हरकत नहीं की थी, जिससे करण को थोड़ी राहत मिली थी।
"पुष्पा बुआ, देखिए, कितनी सुंदर लग रही है शालू!" रिया ने पुष्पा बुआ से कहा, जो अब रिया को अपनी बेटी की तरह मानती थीं।
"हाँ बिटिया, तेरी मेहनत है ये सब," पुष्पा बुआ ने प्यार से रिया के कंधे पर हाथ फेरा।
अचानक, एक अजीब सी गड़गड़ाहट की आवाज़ आई। यह आवाज़ इतनी तेज़ थी कि एक पल के लिए संगीत और बातचीत सब थम गया। उसके तुरंत बाद, पंडाल के एक कोने में, जहाँ बिजली के बहुत सारे तार सजावट के पर्दों के पीछे से गुज़र रहे थे, वहाँ से चिंगारियाँ निकलने लगीं। कुछ ही पलों में, चिंगारियाँ एक छोटी सी आग में बदल गईं, जिसने पास के सजावटी पर्दों को अपनी चपेट में ले लिया।
किसी को कुछ समझ आता, इससे पहले ही आग तेज़ी से फैलने लगी। सूखे फूल और रेशमी पर्दे पलक झपकते ही आग की लपटों में घिर गए। पूरे पंडाल में धुआँ फैलने लगा, और आग की गर्मी महसूस होने लगी।
"आग! आग लग गई!" एक महिला चिल्लाई।
यह सुनते ही, जहाँ एक पल पहले सब खुशी से नाच रहे थे, वहाँ अब हड़कंप मच गया। लोग चिल्लाने लगे, भागने लगे। बच्चों में डर फैल गया, और वे रोने लगे। पूरे पंडाल में भगदड़ मच गई। मेहमान एक-दूसरे से टकराते हुए बाहर निकलने के रास्ते की तलाश में दौड़ रहे थे।
रिया, जो हमेशा हर स्थिति को कंट्रोल करती थी, इस बार हक्की-बक्की रह गई। उसकी आँखें दहशत से फैल गईं। उसने कभी नहीं सोचा था कि ऐसी कोई अनियंत्रित घटना उसकी प्लानिंग का हिस्सा बन सकती है। वह अपने ही हाथों से की गई सजावट को आग की लपटों में घिरते देख रही थी, और एक पल के लिए उसे लगा कि सब कुछ खत्म हो गया। वह असहाय महसूस कर रही थी, उसके होंठ खुले थे, लेकिन कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी। उसकी पूरी टीम भी घबराई हुई थी, वे नहीं जानते थे कि क्या करें।
जहाँ सब घबराकर चिल्ला रहे थे और इधर-उधर भाग रहे थे, वहीं करण प्रताप सिंह का कमांडो दिमाग सक्रिय हो गया। शोर और अफ़रा-तफ़री के बीच भी, उसका मन बिलकुल शांत और केंद्रित था। उसके लिए, यह सिर्फ एक आग नहीं थी, यह एक आपातकालीन स्थिति थी, एक 'मिशन' था। उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, सिर्फ दृढ़ता और निर्णय की क्षमता थी।
"कोई भागेगा नहीं!" करण की आवाज़, जो उसकी फौजी ट्रेनिंग के कारण इतनी तेज़ और स्पष्ट थी कि उसने भगदड़ के शोर को भी चीर दिया, "नीचे झुको! और धीरे-धीरे बाहर की तरफ बढ़ो!"
उसने तुरंत स्थिति का जायजा लिया। उसने देखा कि आग बिजली के तारों से लगी है और तेज़ी से फैल रही है। उसका पहला काम था लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना और फिर आग पर काबू पाना।
"महिलाएं और बच्चे पहले! कतार में बाहर निकलो! धीरे-धीरे! धक्का-मुक्की मत करो!" करण ने एक बार फिर ज़ोर से आवाज़ लगाई, उसकी आवाज़ में एक कमांडो का अधिकार था। लोग उसकी आवाज़ सुनकर एक पल के लिए रुके, और कुछ लोगों ने उसकी बात मानकर कतार बनाना शुरू किया।
करण ने बिना एक पल गंवाए, अपनी यूनिफॉर्म में ही, पास रखे आग बुझाने वाले सिलेंडर (फायर एक्सटिंग्विशर) की तरफ दौड़ा। उसने उसे उठाया, उसकी पिन निकाली, और आग की तरफ बढ़ा। धुएँ और गर्मी की परवाह न करते हुए, उसने निडरता से आग पर रसायन का छिड़काव करना शुरू किया।
"राहुल! शालू! तुम दोनों बाहर निकलो!" करण ने अपने दूल्हे और बहन को आवाज़ दी।
शालू और राहुल, जो पहले डर गए थे, करण की आवाज़ सुनकर हरकत में आए और सुरक्षाकर्मियों की मदद से बाहर की ओर भागे।
करण ने देखा कि कुछ लोग अभी भी घबराकर इधर-उधर भाग रहे हैं। उसने तुरंत कुछ सैनिकों को आवाज़ दी जो मेहमानों के बीच थे, "सुरक्षा! मेहमानों को बाहर निकालो! जल्दी!"
सैनिकों ने तुरंत करण के निर्देशों का पालन करना शुरू किया। वे मेहमानों को सहारा देकर, सुरक्षित बाहर निकालने लगे। करण खुद भी लगातार फायर एक्सटिंग्विशर का इस्तेमाल कर रहा था, और धुएँ के बीच आग के स्रोत तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था। उसकी आँखों में आग की लपटों के साथ-साथ एक अजीब सी बेचैनी थी। वह जानता था कि इस तरह की घटनाएँ अक्सर किसी गहरी साज़िश का हिस्सा भी हो सकती हैं। लेकिन फिलहाल उसका पूरा ध्यान आग बुझाने और लोगों को बचाने पर था।