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The 10th Avatar of God

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Aman Aj

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**"जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ता है, अन्याय और अत्याचार हावी होता है, तब-तब मैं आता हूं। मैं आता हूं हर युग में, हर समय में, धर्म की स्थापना करने और बुराई का संहार करने। मैं हूं 'दसवां अवतार', जिसने सदियों से धर्म की रक्षा की है और सच्चाई को...

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यशa

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अवनी

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Total Chapters (82)

Page 1 of 5

  • 1. The 10th Avatar of God - Chapter 1

    Words: 965

    Estimated Reading Time: 6 min

    जब-जब पृथ्वी पर संकट आया है, तब-तब भगवान निर्माण ने अवतार लिया है। वे अब तक नौ अवतार ले चुके थे। अपने प्रत्येक अवतार में उन्होंने बुराई का विनाश किया है और उस व्यक्ति को खत्म किया जो बुराई का नेतृत्व करता था। क्योंकि यही भगवान निर्माण का काम था। हालांकि, बुराई कभी कमज़ोर नहीं होती। वह कुछ देर के लिए खत्म हो जाती है, मगर बाद में दोबारा पनप जाती है। कई बार यह इतनी ताकतवर बन जाती है कि भगवान निर्माण को भी उसे खत्म करने में असहजता महसूस होती है। अपनी नौ जन्मों की लड़ाई में, कई बार उनके सामने मौजूद दुश्मन उनसे भी ज़्यादा ताकतवर था और उन्हें कठिनाई में डाल चुका था। बुरे लोग हमेशा गलत तरीके से अपने दिमाग का इस्तेमाल करते थे। वे ताकतवर भगवानों से किसी न किसी प्रकार का वरदान प्राप्त करके, खुद को इतना ताकतवर बना लेते थे कि उन्हें हराना मुश्किल हो जाता था। यही वरदान आगे चलकर सभी भगवानों के लिए मुसीबत बन जाते थे। वरदान प्राप्त व्यक्ति इतना ताकतवर हो जाता था कि वह दुनिया में तबाही मचाकर उसके रंग-रूप को ही बदल देता था, और यही वह वक्त होता था जब भगवान निर्माण को अपना काम करना पड़ता था। जीवन को संभाले रखना और उसे पूरी तरह से खत्म होने से बचाना, भगवान निर्माण की ही ज़िम्मेदारी होती थी। चाहे बुरे शख्स ने किसी भी भगवान से वरदान क्यों न लिया हो, जब उसे खत्म करने की बारी आती थी, तब भगवान निर्माण को ही इंसान के रूप में धरती पर अवतार लेना पड़ता था। बुरे लोग अक्सर अमर होने की कोशिश करते थे, लेकिन अमरता भगवान से प्राप्त नहीं होती थी; सीधे-सीधे तो बिल्कुल भी नहीं। इसलिए वे वरदान में कुछ ऐसी चीज़ माँगते थे जिससे वे पूरी तरह से अमर तो नहीं हो पाएँ, लेकिन फिर भी लगभग अमरता के करीब पहुँच जाएँ। भगवान निर्माण के नौ अवतारों की कहानी दिलचस्प थी; उन्होंने अपने सभी अवतारों में अलग-अलग तरीके से वरदानों का उपयोग करके अजेय शख्स को समाप्त किया था। हर एक अपनी बुद्धि-कौशल का इस्तेमाल करता था और खुद को इस प्रकार बना लेता था कि उसे किसी भी हालत में समाप्त नहीं किया जा सकता था, लेकिन फिर भी भगवान निर्माण ने उसे खत्म किया। यह कहानी भगवान निर्माण के दसवें अवतार की है, और इस अवतार में भी उन्हें एक ऐसी ही बुराई को समाप्त करना होगा; जिसके बारे में किसी को कुछ भी नहीं पता। यहाँ तक कि भगवान निर्माण को भी इसके बारे में नहीं पता। इस बार का अवतार भगवान निर्माण के बाकी अवतारों से अलग था। अपने पहले के सभी अवतारों में, अवतार लेने के बाद भी भगवान निर्माण ने अपनी कभी ना खत्म होने वाली शक्ति का उपयोग किया था। इसका मतलब है कि वे अपनी दैविक शक्ति का उपयोग भूत और भविष्य देखने के लिए करते थे। दुनिया के कौन से कोने में कौन मौजूद है, वह इसका भी पता अपनी जगह पर बैठे-बैठे लगा लेते थे। भूत और भविष्य देखने की वजह से भगवान निर्माण को दुनिया के बारे में पता होता था और यह भी पता होता था कि यहाँ कौन बुरा शख्स है। अगर किसी दुनिया में पहुँचकर वहाँ के भूतकाल और भविष्य को देखने की शक्ति हो, तो आप उस दुनिया को आसानी से समझ लेते हैं और दुनिया में रहने वाले लोगों को भी। इस बार भगवान निर्माण का अवतार इसलिए अलग था क्योंकि उन्होंने अवतार लेने से पहले यह निर्णय किया था कि वे अपनी इस शक्ति का उपयोग नहीं करेंगे। वे न तो अपनी शक्ति का उपयोग करके भूतकाल देख सकते हैं, न ही भविष्य देख सकते हैं। यहाँ तक कि वे अपनी शक्ति का उपयोग करके आस-पास के वातावरण को समझ भी नहीं सकते। उनके पहले के अवतारों में अनंत दूरी पर भी क्या है, वो इसका पता लगा लेते थे, लेकिन अबकी बार ऐसा नहीं होगा। इस बार उन्हें किसी आम व्यक्ति की तरह ही अवतार लेना होगा; उनके पास दैविक शक्तियाँ तो होंगी, मगर वे उस तरह से नहीं होंगी जिस तरह से वे वास्तव में हैं। उनकी शक्तियाँ सीमित होंगी। उन्हें दुनिया के बारे में पता नहीं होगा, दुनिया में रहने वाले लोगों के बारे में पता नहीं होगा, यहाँ तक कि उन्हें इस बात की भी जानकारी नहीं होगी कि वे किस दुनिया में हैं, कौन सा वर्ष चल रहा है, माहौल कैसा है, और वहाँ रहने वाला बुरा शख्स कौन है जिसके लिए वे अवतार लेने जा रहे हैं। सब कुछ उनके लिए अनजान होगा, क्योंकि इस बार अपने अवतार में वे कुछ ऐसा करना चाहते थे जो उन्होंने आज तक नहीं किया है; ताकि जिस तरह से वे अपने पिछले अवतारों में लोगों के लिए आदर्श बने, उसी तरह से इस अवतार में भी लोगों के लिए आदर्श बनें, एक ऐसा आदर्श जिसे लेकर लोग अगले हज़ारों वर्षों तक अच्छाई के रास्ते पर चलें। अब से कुछ ही क्षणों बाद उनका जन्म होगा। कुछ देर पहले उन्हें पता था कि वे कहाँ जन्म लेने वाले हैं, और वे यह भी जानते थे कि उन्होंने इस जगह का निर्धारण क्यों किया, लेकिन जन्म से कुछ वक्त पहले ही वे यह सारी बातें भूल चुके हैं। अपने दसवें अवतार से जुड़ी हुई जो भी चीज़ उनके लिए ज़रूरी थी, उसकी पूरी जानकारी भी वे भूल चुके हैं। उन्हें अगर कुछ याद रहेगा, तो यह है कि वे एक अवतार हैं और उन्होंने अपने पिछले जन्मों में क्या किया है; और जो याद नहीं रहेगा, वह यह है कि उन्होंने इस जन्म में किस बुराई को समाप्त करने के लिए जन्म लिया है। बस अब थोड़ी देर और, फिर वे जन्म ले लेंगे, एक नई दुनिया में, एक अनजान दुनिया में, और उन्हें वहाँ पर समाप्त करना होगा उस बुराई को, जिसके लिए वे अपना दसवाँ अवतार ले रहे हैं। यह कहानी है भगवान निर्माण के दसवें अवतार की।

  • 2. The 10th Avatar of God - Chapter 2

    Words: 1501

    Estimated Reading Time: 10 min

    उसे कमरे में ज़्यादा भीड़ नहीं थी; गिनती के पाँच-छह औरतें थीं जो एक औरत के चारों तरफ़ खड़ी थीं। वह औरत बिस्तर पर लेटी हुई थी और एक बच्चे को जन्म देने वाली थी; इस वजह से उसे काफी दर्द हो रहा था और वह जोर-जोर से चिल्ला भी रही थी। उसकी ज़िंदगी में यह खुशी पूरे दस सालों के बाद आई थी, वह भी अचानक से, बिना किसी उम्मीद के। कौन जानता था कि इस औरत के घर पर भगवान मेहरबान होंगे और अपनी लीला दिखाएँगे? समुद्र के बीचो-बीच बने एक टापू पर मौजूद गाँव में रहने वाली इस औरत को लेकर गाँव के सबसे बड़े बुज़ुर्ग व्यक्ति भी कह चुके थे कि यह कभी माँ नहीं बनेगी। उनकी बात पत्थर की लकीर होती थी, और एक बार अगर वे कुछ कह देते थे तो फिर कुछ भी उससे अलग हटकर नहीं होता था। औरत के लिए भी उन्होंने यही कहा था कि चाहे कोई कितना भी जोर क्यों न लगा ले, दुनिया में ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो इसे माँ बना सके। लेकिन उस वृद्ध व्यक्ति को भी नहीं पता था कि भगवान के आगे कुछ भी नामुमकिन नहीं है; जब वे अपनी मर्ज़ी कर लेते हैं तो सब कुछ हो सकता है। औरत भी अपनी उम्मीद हार चुकी थी और अपने माँ बनने के सपने को छोड़ चुकी थी। उसे किसी भी तरह की उम्मीद नहीं थी। फिर पता नहीं अचानक कैसे चमत्कार हो गया और वह माँ बनने वाली हो गई। आज जाकर वह बच्चे को जन्म देने जा रही थी। जो आस-पास की औरतें थीं वे इसमें उसकी मदद कर रही थीं। बाहर का मौसम काफी खराब था। तूफ़ान, तेज बारिश और बादलों की कड़कड़ाहट के बीच चमकती बिजली सब कुछ डरावना बना रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति में भयंकर उथल-पुथल मची हुई है, जो शायद सिर्फ़ भगवान के जन्म की वजह से था। दुनिया में एक दिव्य शक्ति पैदा होने जा रही थी जो प्रकृति को शांत रहने ही नहीं दे सकती थी; प्रकृति में असंतुलन होना स्वाभाविक था। गाँव के आस-पास काफी विशाल जंगल था और फिर पहाड़ी चोटियाँ थीं, और इस वक्त सभी जगह पर एक अलग ही प्रकार का कोहराम छाया हुआ था। तूफ़ानों की हवाओं की वजह से पेड़ झूल रहे थे, वह भी इस क़दर तक कि वे जमीन से लगने को हो रहे थे। बिजली इतनी ख़तरनाक थी कि वह पहाड़ियों पर बीच-बीच में गिर रही थी। हर एक बिजली के साथ भयंकर धमाके हो रहे थे और पत्थर उछलते हुए पहाड़ियों से नीचे गिर रहे थे। गाँव के लोग घरों के अंदर बैठकर खिड़कियों से बाहर के इस ख़तरनाक नज़ारे को देख रहे थे और जो भी इसे देख रहा था वह बार-बार भगवान निर्माण को याद कर रहा था। सभी के मुँह से बस एक ही भगवान का नाम निकल रहा था और वह था भगवान निर्माण। इस डर के माहौल में वे भगवान निर्माण से ही इस बात की प्रार्थना कर रहे थे कि इस ख़तरनाक मौसम को किसी तरह से यहाँ से निकाले। ऐसा ख़तरनाक मौसम गाँव में आज से पहले कभी नहीं आया था। भगवान इस गाँव को इस ख़तरनाक मौसम से बचा लें; मगर लोगों को क्या पता था कि जिस भगवान निर्माण का वे नाम ले रहे हैं, वह स्वयं धरती पर आने वाले हैं? इस पूरे गाँव के चारों तरफ़ पत्थरों और लकड़ी की बनाई गई एक दीवार भी थी जहाँ पर सैनिकों जैसे कपड़े पहने गाँव वाले पहरा दे रहे थे। वे भी अपने हाथों को जोड़कर बीच-बीच में भगवान निर्माण की ही प्रार्थना कर रहे थे। यह पूरा गाँव ही भगवान निर्माण की पूजा करता था। वहीं बिस्तर पर मौजूद औरत की पीड़ा बढ़ती गई। उसके पास खड़ी औरत ने उसके सर पर हाथ रखा और उससे कहा, “आहुदी, तुम्हें खुद पर नियंत्रण करना होगा, इस पीड़ा को सहना होगा ताकि हम तुम्हारे बच्चे को जन्म दिलवा सकें; चीज़ें थोड़ी मुश्किल हो रही हैं, लेकिन अगर तुम थोड़ा और साथ दोगी तो हम इसे कर लेंगे।” वह इस गाँव की दाई थी और अब तक काफी औरतों के बच्चों को पैदा करवा चुकी थी, लेकिन आज उसे भी काफी सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। बच्चे का जन्म उसके लिए आसान नहीं हो पा रहा था। इसके पीछे की वजह यह थी कि बच्चा गर्भाशय में अटका हुआ था और लाख कोशिशों के बावजूद वह उसे वहाँ से निकाल नहीं पा रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे बच्चा खुद नहीं चाहता था कि वह इतनी जल्दी पैदा हो या फिर उसे पैदा होने के लिए किसी सही मौके का इंतज़ार है, इसलिए वह गर्भाशय में ही ज़बरदस्ती रुका हुआ है। तक़रीबन पन्द्रह मिनट तक और जद्दोजहद होती रही और आख़िरकार बच्चे ने जन्म ले लिया। आख़िरकार भगवान निर्माण ने जन्म ले लिया। उसकी किलकारी से पूरा कमरा गूंज उठा। सभी औरतों के चेहरों पर कभी न ख़त्म होने वाली खुशी थी। गाँव की दाई ने बच्चे को ऊपर उठाकर देखा और फिर खुशी से आहुदी से कहा, “मुबारक हो, तुम्हें लड़का हुआ है...” यह सुनकर आहुदी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। दाई ने बच्चे को साफ़ करके उसकी गोद में दे दिया। वह अपने बच्चे की ओर देख रही थी। बाकी की औरतें भी उसके बच्चे की ओर देख रही थीं। वह बच्चा जन्म से ही अलग लग रहा था; उसके चेहरे का आकर्षण, उसका तेज, सबको हैरान कर रहा था। किसी ने भी आज से पहले इतना तेज किसी बच्चे के चेहरे पर नहीं देखा था। सब लोग इस बात से अनजान थे कि उनके सामने जो बच्चा है वह कोई साधारण बच्चा नहीं, बल्कि वह भगवान निर्माण का दसवाँ अवतार है जो अपने दसवें अवतार में बुराई का विनाश करने के लिए पैदा हुआ है; वह बुराई जो इस दुनिया के किसी न किसी कोने पर मौजूद होगी, अपने किसी ऐसे वरदान के साथ जिसमें वह अमर तो नहीं होगा, लेकिन फिर भी उसे मारना लगभग नामुमकिन होगा; अपनी बाहें फैलाए, और इस अहंकार के साथ कि वह सर्वशक्तिशाली है और उसका अंत नहीं है। मगर उसे भी इस बात की जानकारी होगी कि भगवान निर्माण उसे ख़त्म करने के लिए अवतार लेंगे। सभी जन्मों में सबसे पहले भविष्यवाणी होती थी और उसके बाद भगवान अपना अवतार लेते थे; तो इस बार भी भविष्यवाणी हुई होगी और भगवान के दुश्मन ने पहले से ही अपनी तैयारी पूरी कर रखी होगी। उसे भगवान के जन्म के बारे में भी पता होगा और वह उसे रोकने के लिए अपनी कोशिश भी कर सकता है। अपने नौ अवतारों में भगवान निर्माण ने कई दुश्मनों का अंत किया था और उनके पास जो वरदान थे वे ऐसे थे कि उन्हें मारना भी आसान नहीं था, मगर फिर भी भगवान निर्माण ने अपनी सूझबूझ का इस्तेमाल किया और एक लंबी लड़ाई लड़ने के बाद अपने दुश्मनों को ख़त्म किया और वह इस बार भी ख़त्म करेंगे। हालाँकि, इस बार का उनका यह जन्म काफी ख़ास था, जिसके पीछे का कारण यह था कि वे अपनी तमाम शक्तियों के साथ पैदा नहीं हुए थे और न ही अपनी उन शक्तियों के साथ जिनमें उन्हें पैदा होते ही पूरी दुनिया की जानकारी मिल जाती थी। दुनिया के कौन से कोने पर क्या है, उन्हें पता होता था; लेकिन इस बार वे सभी चीज़ों से अनजान हैं। उन्हें अपनी कुछ ही शक्तियों के बारे में पता होगा और उनका वे इस्तेमाल कर सकते हैं, जबकि बाकी शक्तियों के लिए उन्हें समय पर निर्भर होना पड़ेगा और वक्त आने पर ही उनके पास सारी शक्तियाँ लौटेंगी। दुनिया की जानकारी के लिए उन्हें दुनिया में बाहर निकलना होगा और जैसे-जैसे वे दुनिया में आगे बढ़ेंगे, वैसे-वैसे उन्हें दुनिया की समझ होगी और दुनिया की जानकारी भी उन्हें मिलेगी। अपने दुश्मन और उसकी ताकत के लिए उन्हें अपने दुश्मन तक पहुँचना होगा और फिर जाकर पता चलेगा कि उनके दुश्मन के पास क्या ताकत है और वह किस तरह के वरदान को हासिल किए हुए हैं; या फिर उसके पास एक नहीं, बल्कि कई सारे वरदान हैं, जैसा उनके पिछले अवतार में हुआ था जहाँ उनके दुश्मन के पास कुल तीन वरदान थे और इन तीनों ही वरदानों का संयोजन इतना ताकतवर था कि वह उसे किसी तरह से ख़त्म होने से रोक रहा था; जबकि इस बार भी कुछ ऐसा ही हो सकता है। इस बार क्या है, क्या नहीं, यह तभी पता चलेगा जब वक्त के पन्ने खुलेंगे और वे अपने सफ़र पर निकलेंगे; ऐसे सफ़र पर जो इतिहास में लिखा जाएगा और फिर इस बात के लिए जाना जाएगा कि भगवान निर्माण ने अपने दसवें अवतार में क्या कुछ किया था। फिलहाल के लिए सभी लोगों का ध्यान बच्चे की ओर था। कोई आखिर बचपन से ही इतना सुंदर कैसे हो सकता है कि उसे देखने के बाद उसे देखने का ही मन करता रहे, और यह बचपन से ही इतना स्वस्थ कैसे लग रहा है? वरना जब बच्चे पैदा होते हैं तो उनका शरीर इतना हष्ट-पुष्ट और स्वस्थ नहीं होता। आहुदी ने अपने बच्चे को पकड़कर हवा में ऊपर की ओर किया और बोली, “मेरा बच्चा, आहुदी का बच्चा... देवांश, तुम्हारा नाम देवांश होगा।”

  • 3. The 10th Avatar of God - Chapter 3

    Words: 1749

    Estimated Reading Time: 11 min

    उस बच्चे के जन्म के साथ ही बाहर का तूफ़ान धीरे-धीरे शांत होने लगा और देखते ही देखते पूरा तूफ़ान बंद हो गया। मानो यह तूफ़ान बच्चे के जन्म तक ही था और जैसे ही बच्चे ने जन्म लिया, किसी तरह का चमत्कार हुआ जिसने इस तूफ़ान को ख़त्म कर दिया। बच्चे के चेहरे पर एक मुस्कान थी। धीरे-धीरे वक़्त बीतता गया। कुछ दिनों के बीत जाने के बाद बच्चे का पिता आया। वह दीवार पर पहरा देने वाले सैनिकों में से एक था। उसकी कमर में तलवार लटकी हुई थी और उसने लोहे का कवच पहन रखा था। घर पर आते ही उसने अपना कवच उतारा और दौड़कर आहुदी के पास आ गया। फिर अपने बच्चे की ओर देखते हुए बोला, “हे भगवान निर्माण की कृपा से हमें कितना सुंदर बच्चा हुआ है! यह बिल्कुल दिखने में भगवान निर्माण की तरह ही है...” आहुदी ने भी हाँ में सिर हिलाया, “यह बच्चा हमें उन्हीं की कृपा से हुआ है। जब हमारे गाँव के वैद्य ने भी कह दिया था कि मैं माँ नहीं बन सकती, तो मैंने भी उम्मीद हार दी थी; लेकिन फिर भी मैंने भगवान निर्माण के मंदिर में जाना नहीं छोड़ा और हर दिन उनसे प्रार्थना करनी भी नहीं छोड़ी, और देखो, उनकी प्रार्थना के फलस्वरूप कैसे आज हमें अपनी खुशी मिल गई।” उस पिता ने अपने बच्चे को उठाया और गोद में लेकर उसे खिलाते हुए बोला, “देखना, मेरा बच्चा बड़ा होकर मुझसे भी बड़ा योद्धा बनेगा; यह हमारे इस गाँव को आदमखोरों के ख़तरों से बचाएगा, हमारा नाम रोशन करेगा...” उसने बच्चे को ऊपर उठाया; बच्चे के चेहरे पर खुशी थी। यह गाँव समुद्र के बीचो-बीच मौजूद एक टापू पर बना हुआ था और चारों तरफ़ जंगल और पहाड़ी इलाक़ों से घिरा हुआ था। इस गाँव से बाहर मौजूद समुद्र में आगे चलकर क्या है, इसके बारे में किसी भी गाँव वाले को नहीं पता था। पिछले हज़ारों सालों से गाँव वाले इसी टापू पर अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे थे और पीढ़ी दर पीढ़ी इसे आगे बढ़ा रहे थे। गाँव के लोग मुख्यतः उगाए जाने वाले अनाज और समुद्र में पाई जाने वाली मछलियों पर ही निर्भर रहते थे। इसमें आदमखोरों का ख़तरा एक ऐसा ख़तरा था जिसका सामना उन्हें आए दिन करना पड़ता था। गाँव के आस-पास जो पहाड़ियाँ मौजूद थीं, उनमें हज़ारों की संख्या में सुरंगें थीं और उन सुरंगों में आदमखोर रहते थे; अजीब से जानवर जो खेतों में आकर नुकसान पहुँचाते थे और अनाज को खा जाते थे। गाँव के चारों तरफ़ एक दीवार भी बनी हुई थी जो लकड़ी और पत्थरों से बनाई गई थी और वहाँ पर गाँव के लोग हमेशा पहरा देते रहते थे। कुछ आदमखोर इस दीवार को पार करने की कोशिश करते थे ताकि वे इंसानों का मांस भी खा सकें। आदमखोर अनाज और मांस दोनों ही खा सकते थे और गाँव के लोग इन आदमखोरों से बचने के लिए दीवार पर मौजूद रहकर हमेशा इनका सामना करते थे; जिससे गाँव वालों की जान बचती थी। गाँव में रहने वाले तमाम मर्द इन दीवारों पर पहरा देने में ही लगे रहते थे; चाहे मौसम कितना भी ख़राब क्यों न हो, चाहे उनके घर पर कुछ भी क्यों न हो रहा हो, वे अपना पहरा छोड़कर वापस नहीं आ सकते थे। बीच-बीच में उन्हें छुट्टियाँ मिलती थीं और इसी बीच कुछ लोगों को घर आने की इजाज़त भी दे दी जाती थी। हालाँकि गाँव ज़्यादा बड़ा नहीं था, मगर फिर भी कोई पहरा छोड़कर घर पर नहीं आता था। खाने-पीने का सामान उनके पास सीधे ही पहुँचा दिया जाता था। ज़्यादातर वक़्त गाँव के आदमियों का पहरा देने में निकल जाता था और फिर जो वक़्त बचता था, उसे दीवार से आगे जाकर खेती करने में और फिर खेतों की हिफ़ाज़त करने में लगा देते थे ताकि अनाज भी उगाया जा सके और फिर गाँव में मौजूद घर वालों का पेट भरा जा सके। एक के बाद एक दिन बीतते गए और तक़रीबन छह महीने बीतने के बाद देवांश अपने घर में ही इधर-उधर घूमने लगा। घूमते हुए वह घर से बाहर भी आ जाता था और काफ़ी दूर तक भी चला जाता था। आहुदी को हर बार उसे दूर-दूर से पकड़कर लेकर आना पड़ता था। यहाँ तक कि रात को भी, अगर उस पर नज़र न रखी जाए तो वह मौके की नज़ाकत को देखकर रात को भी फ़रार हो जाता था और फिर उसे बड़ी मुश्किल से कुछ औरतों के साथ जाकर आहुदी को ढूँढ़ना पड़ता था। जब भी आहुदी देवांश को ढूँढ़कर लाती थी, तब वह उसे डाँटती थी और उसे डंडे से इशारा करते हुए यह भी कहती थी कि तुम्हें घर से बाहर नहीं जाना है; लेकिन देवांश फिर भी नहीं समझता था। वह इसके बावजूद घर से बाहर चला जाता था। आहुदी ने उसे घर से बाहर जाने से रोकने के लिए कुछ और भी किया; जैसे उसने घर के बाहर एक बाड़ बना दी ताकि देवांश उस बाड़ को पार करके बाहर न जा सके; मगर देवांश उसमें से भी किसी तरह से रास्ता ढूँढ़ लेता था। बाड़ में कहीं न कहीं कोई जगह ऐसी रह जाती थी जहाँ पर लकड़ियाँ और काँटे नहीं होते थे और देवांश उनमें से निकलकर बाहर चला जाता था। बीच में, जब उसके पिता अपने पाँच दिनों की छुट्टियों में घर वापस आए थे, तब उन्होंने लकड़ी के पट्टों की एक दीवार बना दी थी ताकि देवांश घर से बाहर न जा सके; लेकिन देवांश ने इसके अंदर से भी रास्ता बना लिया था। पता नहीं कैसे, पर अजीब से तरीक़े से उसने निकलने के लिए रास्ता बना लिया था जो किसी कुत्ते के बनाए हुए बिल की तरह लगता था। हालाँकि यह बिल देवांश ने बनाया था या फिर कुत्ते ने खोदा था, यह किसी को नहीं पता था; लेकिन वह रास्ता देवांश के बाहर जाने का टिकट था। आहुदी हमेशा सोचती थी कि आखिर देवांश को बाहर जाने की इतनी क्या जल्दी रहती है; लेकिन उसके पास इस सवाल का सिर्फ़ एक ही जवाब था और वह यह था कि यह बच्चा है और बच्चों के दिमाग़ में कुछ भी चलता रहता है। उन्हें कौन समझाए या फिर उन्हें कौन सा पता होता है कि क्या करना है? फिर यह भी है कि बच्चे जिज्ञासु होते हैं और अगर एक बार वे किसी तरफ़ जाने का सोच लें तो उन्हें चाहकर भी नहीं रोका जा सकता है। बच्चे सबसे पहले उस काम को करेंगे जिससे उन्हें रोका जाता है, चाहे इसके लिए कुछ भी क्यों न कर लिया जाए या फिर बच्चों के हाथ-पैर भी क्यों न बाँध दिए जाएँ। छह महीने का वक़्त कब चार साल में बदल गया, किसी को पता नहीं चला। चार साल के बाद देवांश बड़ा हो गया था और वह चलते हुए दीवार तक भी पहुँच जाता था। इतना ही नहीं, वह दीवार के दूसरी ओर जाने की कोशिश करता था; लेकिन वहाँ पर हमेशा उसे बाकी के लोगों द्वारा रोक लिया जाता था। लखन ने उसका हाथ पकड़कर उसे पीछे की ओर ले जाते हुए कहा, “मेरे बेटे, तुम्हें कितनी बार कहा है कि अपनी माँ के पास रहा करो! तुम यहाँ आते ही क्यों हो? इस दीवार के दूसरी ओर ख़तरनाक जानवर रहते हैं; अगर किसी ने भी तुम्हें पकड़ लिया तो तुम ज़िंदा नहीं मिलोगे; वे तुम्हारी हड्डियाँ भी खा जाएँगे...” देवांश ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा, “मुझे छोड़ दीजिए पिताजी, मुझे खेतों में जाना है, मुझे और आगे जाना है...” बाप और बच्चे की यह जुगलबंदी देखकर दूर खड़े आदमी ने कहा, “अरे लखन, इसे आदमखोरों के पास जाने की कुछ ज़्यादा ही जल्दी है... तुम इसे तलवारबाज़ी सिखा दो; जिस तरह की इसकी हरकतें हैं, ऐसा लग रहा है जैसे यह दस साल की उम्र में ही आदमखोरों को मारने लगेगा...” लखन ने उस आदमी की ओर देखा और बोला, “वीर, यह बस शरारती है और कुछ नहीं... पता नहीं यह कैसे इतना शरारती बन गया। हमारे पूरे खानदान में कोई इतना शरारती नहीं था। मैंने भी बचपन में इतनी शरारत नहीं की थी जितनी यह करता है; घर पर यह अपनी माँ की नाक में दम कर देता है और यहाँ पर मेरी नाक।” लखन उसे दीवार से नीचे लेकर आया और फिर वहाँ पर खड़ी एक लड़की को देखा और कहा, “श्री, इसे घर ले जाओ; अगर यह नहीं जाए तो ज़बरदस्ती ले जाना, इसके कान पकड़कर ले जाना।” श्री वीर की बेटी थी जो लगभग देवांश की ही उम्र की थी। अपने चार साल की उम्र में देवांश दिखने में काफ़ी सुंदर और क्यूट लगता था और उसके सर पर एक चोटी भी रहती थी जो उसे अलग ही लुक देती थी। वहीं श्री भी दिखने में काफ़ी सुंदर थी और लड़की होने की वजह से उसकी चोटी उसकी कमर तक आती थी। देवांश जैसे ही उसके पास आया और आगे जाने की कोशिश की, श्री ने उसे चोटी से पकड़ा और बोली, “तुम घर चलते हो या मैं अभी तुम्हारे कान के नीचे दो लगा दूँ...” उसने तुतलाती हुई आवाज़ में कहा था जो काफ़ी प्यारा लग रहा था। देवांश अभी भी दीवार की ओर जाना चाहता था; मगर श्री ने उसकी चोटी को नहीं छोड़ा और उसे चोटी से ही पकड़कर घर ले गई। देवांश घर पर गिर गया क्योंकि श्री ने उसे धक्का मारकर गिराया था। वह अपनी जगह से खड़ा हुआ और तुतलाती हुई आवाज़ में श्री की ओर देखते हुए बोला, “तो क्या हुआ? मैं उन्हें हाथों से ख़त्म कर दूँगा...” देवांश ने अपने हाथ को ऊपर करके कुछ करने की कोशिश की, जैसे वह अंदर से जोर लगाकर अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर रहा हो; लेकिन इससे कुछ भी नहीं हुआ। श्री बोली, “यूँ करके किसी को ख़त्म नहीं किया जा सकता है; इसके लिए तुम्हें तलवार चलाना सीखना होगा और तलवार सीखने के लिए तुम अभी काफ़ी छोटे हो; पहले बड़े हो जाओ और फिर तलवार सीखकर उन्हें ख़त्म करना; तब तक दीवार के इस तरफ़ ही रहो।” यह कहकर श्री अपने घर की ओर चली गई; वहीं देवांश ने दोनों हाथ अपनी कमर पर रखे और बोला, “हूँह, अभी मेरी शक्तियाँ काम नहीं कर रही हैं; वक़्त आने दो, फिर मैं बता दूँगा सबको कि मैं क्या चीज़ हूँ।” श्री ने देवांश को तो डाँट दिया था; वह दीवार के इस पार ही रहेगा; लेकिन उसे क्या पता था कि वह तो पैदा ही हुआ था दीवारों को पार करने के लिए; सिर्फ़ इस दीवार को नहीं, बल्कि वह अपने रास्ते में आने वाली हर एक दीवार को पार करके अपने दुश्मन तक पहुँचेगा और उसे ख़त्म करेगा। देवांश इस दुनिया से बुराई को ख़त्म करेगा; उस बुराई को जड़ से ही मिटा देगा।

  • 4. The 10th Avatar of God - Chapter 4

    Words: 2094

    Estimated Reading Time: 13 min

    देवांश वापस अपने घर लौट आया। अगले दिन वह फिर से दीवार पर था, लेकिन दीवार के पार जाने की कोशिश नहीं कर रहा था, बल्कि अपने पिता के पास खड़ा था। उसके पिता अपने हाथ में एक लंबी दूरबीन लिए खेतों पर नज़र रख रहे थे और देख रहे थे कि कहीं कोई ख़तरा तो नहीं है। देवांश ने अपने पिता से पूछा, "पिताजी, इन खेतों के बाद क्या आता है...?" लखन ने बिना उसकी ओर देखे जवाब दिया, "खेतों के बाद, बेटा, ख़तरनाक पहाड़ियाँ आती हैं, जिनमें ढेर सारी सुरंगें हैं और उन सुरंगों में आदमखोर रहते हैं, जिनसे हम लोग खुद को बचा रहे हैं..." देवांश ने कहा, "और इन पहाड़ियों के बाद फिर क्या आता है...?" लखन ने दोबारा बिना उसकी ओर देखे जवाब दिया, "इसके बाद समुद्र है; विशाल समुद्र जिसका कोई अंत नहीं है..." देवांश ने दोबारा सवाल किया, "और समुद्र के बाद क्या आता है, पिताजी? दूसरी दुनिया?" लखन ने फिर से उसकी ओर नहीं देखा और सामने की ओर देखते हुए ही जवाब दिया, "नहीं, समुद्र के बाद कुछ भी नहीं आता है; बस पानी ही पानी है, चाहे आप कितना भी आगे क्यों न चलें, और दूसरी दुनिया नाम की कोई भी चीज़ यहाँ पर नहीं है; जो भी है, बस यही है; यही इकलौती दुनिया इस पूरे ब्रह्मांड में है।" देवांश ने अपने दोनों हाथों को फैलाते हुए कहा, "मगर पिताजी, यह दुनिया तो बहुत बड़ी है; फिर इतनी बड़ी दुनिया में सिर्फ़ हम लोग कैसे हो सकते हैं? हम तो बहुत कम लोग हैं।" लखन ने अपनी दूरबीन नीचे की और फिर देवांश की ओर मुड़कर बोला, "इसका जवाब कोई नहीं जानता; लेकिन सच्चाई यही है कि हमारे अलावा यहाँ पर और कोई नहीं है। इस पूरी दुनिया में सिर्फ़ हम लोग ही हैं; सिर्फ़ और सिर्फ़ हम लोग ही।" गाँव वाले पिछले चालीस हज़ार सालों से, या फिर उससे भी ज़्यादा वक़्त से, यहाँ पर रह रहे थे। अपने इस वक़्त के दौरान उन्होंने जो भी इतिहास बनाया, उसमें यह बात साफ़-साफ़ कह दी गई थी कि उनके अलावा इस पूरी दुनिया में और कोई नहीं है। गाँव के इतिहास में कई लोगों ने समुद्र में जाकर और लोगों को ढूँढ़ने की कोशिश की थी; मगर किसी को भी कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई। यहाँ तक कि जो लोग समुद्र में किसी को ढूँढ़ने के लिए निकले, वे कभी लौटकर वापस भी नहीं आए; इसके बाद इतिहास में यही लिख दिया गया कि पूरी दुनिया में उनके अलावा और कोई नहीं है। गाँव में जो भी इतिहास था, उसमें भगवान निर्माण के बारे में जानकारी थी; जो ब्रह्मांड के तीन भगवानों में से एक थे और उन्होंने इस दुनिया का निर्माण किया था। वे जीवन की रक्षा करने का काम करते हैं और वक़्त-वक़्त पर अवतार लेकर दुनिया को बुराई से बचाते हैं। फिर इतिहास में जो और जानकारी थी, उसमें आदमखोरों का ज़िक्र था जो तक़रीबन सौ साल पहले यहाँ गाँव की पहाड़ियों में आ गए थे, वे भी समुद्र के रास्ते से। इसके बाद से वे गाँव वालों के लिए ख़तरा बन गए और गाँव वाले पिछले सौ सालों से उनके ख़िलाफ़ हमेशा इसी तरह से दीवार बनाकर खुद की सुरक्षा करते आए हैं। मौसम की मार, आदमखोरों का ख़तरा और कई सारी अन्य मुश्किलों की वजह से गाँव वाले कभी अपनी जनसंख्या को बड़ा नहीं कर सके। जितने लोग पैदा होते थे, उतने ही लोग मर जाते थे; जिससे इस गाँव वालों की संख्या कभी भी पन्द्रह-सोलह सौ से न तो कम हुई और न ही कभी ज़्यादा हुई। दो हज़ार से भी कम जनसंख्या वाले इस गाँव के अंदर इतिहास की जो जानकारी थी, उसमें दूसरी दुनिया का कोई ज़िक्र नहीं था। दूसरी दुनिया से यहाँ मतलब था इन लोगों के अलावा इस दुनिया में मौजूद दूसरे लोग, या फिर कोई दूसरा टापू, या फिर वह जगह जहाँ पर करोड़ों की संख्या में लोग रहते हैं। देवांश ने कुछ देर तक दीवार की ओर देखा और फिर वह दीवार से उतरकर घर की ओर जाने लगा। घर जाते हुए उसने खुद से कहा, "अगर इस पूरी दुनिया में कोई और है ही नहीं, तो मैंने फिर किस लिए जन्म लिया है? मैं यहाँ पर किसको ख़त्म करने के लिए पैदा हुआ हूँ? नहीं, इन गाँव वालों को कुछ भी पता नहीं है; दूसरी दुनिया यहाँ पर है; मगर वह गाँव वालों की नज़र से दूर है; वह सबकी नज़र से दूर है।" कहीं न कहीं यही सच्चाई है कि यह पूरी दुनिया एक छोटे से टापू पर सीमित नहीं हो सकती। बस वह अभी तक छिपी हुई थी और देवांश मौजूद था, उस छिपी हुई दुनिया से कोसों दूर। दुनिया से दूर, अलग-थलग एक छोटे से टापू पर देवांश की मौजूदगी और उसके दुश्मन का किसी और जगह पर होना, यह एक ऐसा इतिहास लिखने वाला था जो युगों-युगों तक याद किया जाएगा। एक साल और बीत गया और देवांश पूरे पाँच साल का हो गया। दीवार पर आदमखोरों के हमले होना कम हो गए थे; इसलिए काफ़ी लोगों को लंबे वक़्त के लिए छुट्टी दे दी गई थी। देवांश के पिता लखन को भी पूरे तीन महीने की छुट्टी मिली थी। लखन ने फ़ैसला कर लिया था कि अपने इन तीन महीने की छुट्टी में वह देवांश को तलवारबाज़ी सिखाएगा ताकि अगर शुरू से ही उसे तलवार के बेसिक सिखा दिए जाएँ तो बड़े होते-होते वह एक अच्छा तलवार चलाने वाला योद्धा बन जाए। सूर्य की पहली किरण के साथ ही लखन ने देवांश को लकड़ी की तलवार पकड़ाकर उसे अभ्यास करवाने के लिए साफ़ जगह पर ले गया था। यह साफ़ जगह उसके घर के पीछे ही मौजूद एक छोटी सी मिट्टी की पहाड़ी थी। लखन एक के बाद एक उसे तलवार के अलग-अलग गुण सिखा रहा था और देवांश भी उन्हें सीख रहा था। लेकिन जब लखन अपनी तलवार से उसके साथ लड़ाई कर रहा था, तब ऐसा लग रहा था जैसे देवांश की कला उसकी कला से भी कई गुना ज़्यादा आगे की है। देवांश लखन के हर एक वार को आसानी से समझ रहा था और उसका सामना भी कर रहा था। कई वार ऐसे थे जिनके बारे में लखन ने अभी तक देवांश को बताया भी नहीं था; लेकिन देवांश फिर भी उन्हें समझ पा रहा था और उसे आसानी से रोक रहा था, जैसे यह बस उसके बाएँ हाथ का खेल है। लखन को हैरानी हो रही थी; अपनी पाँच साल की उम्र में भी देवांश ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई पच्चीस साल का एक कुशल योद्धा हो और तलवार चलाने का अभ्यास उसने दिन-रात किया हो। काफ़ी देर तक अभ्यास करने के बाद लखन रुका और देवांश को हैरानी से देखते हुए पूछा, "क्या तुम्हें कोई और भी तलवारबाज़ी सिखाता है?" देवांश ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, क्यों? क्या हुआ?" लखन ने अपनी लकड़ी की तलवार को देखा और फिर देवांश की ओर देखते हुए उसे जवाब दिया, "क्योंकि तुम्हारी लड़ने की स्किल काफ़ी शानदार है; ऐसा लग रहा है जैसे तुमने पहले से ही काफ़ी अभ्यास कर रखा है; वरना जिस तरह से तुम लड़ाई कर रहे हो, इस तरह से लड़ना सीखने में दस साल लग जाते हैं।" यह सुनकर देवांश ने अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कान दी और फिर तलवार को लखन की ओर करते हुए कहा, "तो पिताजी, चलिए क्यों न एक मुक़ाबला हो जाए; अगर मैं जीत गया, तो आपको मुझसे वादा करना होगा कि जो मैं माँगूँगा, आप वह मुझे देंगे।" लखन ने उसकी ओर देखा और फिर घर की ओर बढ़ते हुए बोला, "पहले मुक़ाबला करने लायक हो जाओ; उसके बाद मुझे मुक़ाबला करने के लिए चुनौती देना; अभी तो तुम बहुत छोटे हो।" देवांश ने अपने चेहरे पर हल्के से भाव दिखाए और वह भी तलवार लेकर लखन के पीछे चला गया। घर आने के बाद दोनों ने खाना खाया और फिर सो गए। अगले दिन सुबह की शुरुआत के साथ ही दोनों फिर से तलवारबाज़ी का अभ्यास करने लगे और यह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक तीन महीने का वक़्त ख़त्म नहीं हो गया। तीन महीने की छुट्टियाँ पूरी हुईं और लखन फिर से दीवार पर चला गया; जबकि देवांश घर पर अकेले ही तलवारबाज़ी का अभ्यास करने लगा। दोपहर को आहुदी देवांश के पास आई और बोली, "चलो, आज हमें महर्षि दयानंद के यहाँ जाकर आना है; हम आश्रम जाएँगे आज।" देवांश ने अपनी तलवारबाज़ी का अभ्यास रोका और फिर आहुदी के साथ गाँव से बाहर निकलते हुए आश्रम की ओर जाने लगा। आश्रम गाँव के बाहर एक ऐसी जगह था जहाँ पर पाठ-पूजा जैसे सारे ही कामों को पूरा किया जाता था। गाँव में जब भी कोई दिक्कत आती थी, तब यहाँ पर एक बड़े हवन को रखा जाता था ताकि इस दिक्कत का निवारण भगवान निर्माण कर सकें। गाँव के सारे लोग भगवान निर्माण की पूजा करते थे। जल्द ही वे लोग महर्षि दयानंद के आश्रम में थे। महर्षि दयानंद ने अपनी दृष्टि ज्योतिषीय ग्रंथ पर टिकाई हुई थी। आहुदी देवांश की कुंडली उन्हें दिखा रही थी। उन्होंने बताया कि बच्चे का जन्म एक विशेष दिन पर हुआ था, जो चालीस हज़ार वर्षों में एक बार आता है, और पिछली बार जब यह समय आया था, तब भगवान निर्माण के नौवें अवतार का जन्म हुआ था। सारे ग्रह-नक्षत्र उस वक़्त बिलकुल सही थे और ऐसा होना चालीस हज़ार सालों में एक ही बार होता है। महर्षि दयानंद बोले, "मैं चाहता हूँ कि तुम इसे एक बार भगवान निर्माण के मंदिर ले जाना। उनका आशीर्वाद आवश्यक है ताकि जिस प्रकार उन्होंने इस दुनिया में अवतार लेकर बुराई का अंत किया था, उसी प्रकार यह भी इस गाँव में अपना एक नाम कमा सके।" आहुदी ने हाँ में सिर हिलाया और देवांश के साथ वहाँ से निकल गई। वे पहाड़ियों से नीचे की ओर आ रहे थे। पहाड़ियों पर आबादी घनी नहीं थी, किन्तु जैसे-जैसे वे नीचे आ रहे थे, घनी आबादी मिलती जा रही थी। पूरा इलाक़ा ऐसी पहाड़ियों से घिरा हुआ था जो सीढ़ीनुमा ढंग से नीचे उतरते हुए विशाल भू-भाग में बदलती जा रही थीं। पूरी जगह इस प्रकार सात-आठ अलग-अलग बड़े भू-भागों में विभाजित थी, जहाँ प्रत्येक भू-भाग पहले वाले भू-भाग के ऊपर स्थित था। देवांश गाँव में काफ़ी जगह घूम चुका था; मगर यह इलाक़ा यहाँ पर नहीं था। देवांश ने अपने आस-पास के क्षेत्र का अवलोकन करते हुए कहा, "अच्छा हुआ मुझे घर से यहाँ तक आने के सारे रास्ते याद हैं। जैसे ही मुझे मौक़ा मिलेगा, मैं घर से चोरी-छुपे बाहर निकल जाऊँगा और फिर इस जगह को देख लूँगा। मुझे नहीं लगता मेरा परिवार मुझे सात-आठ साल होने से पहले इस पूरे गाँव को कभी दिखाएगा।" जल्द ही आहुदी एक मंदिर में पहुँच गई। पत्थरों से बना हुआ यह मंदिर काफ़ी पुराना लग रहा था। देवांश ने उसे मंदिर की ओर देखा तो उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई। वह मंदिर को देखते हुए बोला, "यह तो मेरा ही मंदिर है, मेरे पुराने अवतार का मंदिर! कमाल की बात है, मुझे पैदा हुए चालीस हज़ार वर्ष हो चुके हैं, लेकिन ये लोग आज भी मेरी पूजा करते हैं, आज भी मेरे आदर्शों पर चलते हैं! यही तो मैं चाहता हूँ। इस बार भी मैं यही चाहता हूँ कि जब मैं अपना पूरा जीवन यहाँ पर व्यतीत करूँ और मृत्यु लोक जाऊँ, तो फिर से ये इसी प्रकार आने वाले कई हज़ारों वर्षों तक मेरे आदर्शों पर चलें।" मंदिर में भगवान निर्माण की एक मूर्ति मौजूद थी जिनके चार हाथ थे। एक हाथ में चक्र जैसा हथियार था, एक हाथ में तलवार थी, एक हाथ में एक किताब और एक हाथ में एक माला। उनके पैरों के ठीक नीचे एक बड़ा चक्र बना हुआ था जिसमें कई सारी अलग-अलग आकृतियाँ थीं। देवांश ने अपने हाथों की ओर बार-बार देखा और फिर कहा, "वैसे मेरे तो दो ही हाथ थे! पता नहीं इन्होंने चार हाथ क्यों बना दिए! चारों हाथों में उन्होंने अलग-अलग चीज़ें पकड़ा रखी हैं, जबकि मैं कभी भी इन्हें इस प्रकार नहीं पकड़ता था। इन्होंने मेरे हाथ में जो मृत्यु-चक्र दिखा रखा है, उसका उपयोग मैं बहुत कम करता था। मृत्यु-चक्र मेरा एक ऐसा हथियार है जिसे चलाने के बाद सामने वाले की मृत्यु निश्चित है, क्योंकि इसका कोई तोड़ नहीं है। पिछली बार के अवतार में अर्थव ने मुझसे जो वरदान लिया था, वह यही था कि मैं कभी भी उस पर मृत्यु-चक्र का उपयोग न करूँ। वह काफ़ी चालाक था; उसे हर एक चीज़ के बारे में पहले से ही पता था।" अर्थव पिछले अवतार में देवांश का दुश्मन था। तब देवांश ने जो अवतार लिया था उसका नाम अनंत था और मुकाबला अनंत और अर्थव के बीच में हुआ था। आखिरी मुकाबला बहुत विध्वंसक था और उसने आधी से ज्यादा दुनिया को हिला कर रख दिया था।

  • 5. The 10th Avatar of God - Chapter 5

    Words: 1978

    Estimated Reading Time: 12 min

    आहुदी ने भगवान निर्माण को प्रणाम किया और कहा, "भगवान, जिस प्रकार आपके आशीर्वाद से देवांश का जन्म हुआ है, मैं चाहती हूँ कि इसी प्रकार आपका आशीर्वाद इस पर बना रहे।" देवांश मन ही मन बोला, "हाँ हाँ, क्यों नहीं? मेरा आशीर्वाद मुझ पर तो हमेशा बना ही रहेगा।" आहुदी अपनी आँखें बंद करके भगवान निर्माण के मंत्र का जाप करने लगी। वहीं देवांश को ऐसा महसूस हुआ जैसे मंदिर के दाईं ओर मौजूद झाड़ियों में कोई हलचल हो रही है। देवांश अपनी माँ को मंत्रों के जाप में लीन देखकर उन झाड़ियों की ओर जाने लगा। जैसे ही वह झाड़ियों के करीब पहुँचा, अचानक उनके अंदर से एक आदमखोर निकलकर बाहर आया। एक चिपचिपा रंग का दिखाई देने वाला, काले रंग का जानवर जो देवांश की ऊँचाई से दुगुना बड़ा था। जैसे ही वह झाड़ियों से बाहर निकला, उसने अपना मुँह खोलकर देवांश को निगलने की कोशिश की; लेकिन जैसे ही वह देवांश के पास पहुँचा, हवा में मौजूद एक पारदर्शी शक्ति ने उसे रोक लिया। देवांश ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसे पीछे की ओर धक्का मार दिया। वह आदमखोर दोबारा झाड़ियों में गिर गया जहाँ से वह खड़ा हुआ और दोबारा देवांश की ओर अपनी आँखों से घूरने लगा। देवांश ने कहा, “मेरे पास एक शक्ति है जिसे मैं 'इन्फिनिटी' कहता हूँ; जब तक यह शक्ति मेरे पास है, तब तक कोई मुझे मेरी मर्ज़ी के बिना छू भी नहीं सकता; चाहे कोई अचानक से हमला करने के लिए मेरे पास आए या फिर किसी और तरीक़े से, वह मेरे पास आते ही रुक जाएगा।” वह आदमखोर उसके चारों ओर घूमने लगा और दोबारा से उसने हमला करने की कोशिश की। एक बार फिर से वह उसके पास पहुँचा तो एक पारदर्शी दीवार की वजह से रुक गया। देवांश ने दोबारा अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया और फिर से उसे हवा में ही जोर से धक्का मार दिया जिससे वह इतनी दूर जाकर गिरा कि ठीक से दिखाई भी नहीं दे रहा था। वहाँ से पहाड़ी का ढलान शुरू हो रहा था। उसने खुद को संभालने की कोशिश की; मगर वह पहाड़ी के ढलान पर फिसल गया और इसके बाद नीचे ही चला गया। आहुदी ने अपना मंत्र समाप्त किया तो वह देवांश को ढूँढ़ने लगी जो वहाँ नहीं था। उसने बाहर देखा तो देवांश पहाड़ी से नीचे की ओर देख रहा था, “अरे, तुम यहाँ क्या कर रहे हो, बच्चे? उधर मत जाओ, यहाँ पर भी ख़तरा है! मुझे तो भगवान निर्माण के दर्शन करने थे, वरना यहाँ पर कोई बिना सैनिकों के आता भी नहीं है।” देवांश ने हाँ में सिर हिलाया और वापस अपनी माँ के पास गया। मंदिर में भगवान निर्माण को प्रणाम करने के बाद आहुदी बाहर आ गई और फिर देवांश के साथ वापस अपने घर की ओर चली गई। देर रात को देवांश चारपाई पर सोते हुए सामने की छत की ओर देख रहा था और अपने हाथों से कुछ करने की कोशिश कर रहा था। देवांश ने मन ही मन कहा, "पता नहीं और कितना वक़्त लगेगा जब मैं अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर सकूँगा। अगर आज मेरे पास मेरी 'इन्फिनिटी' पावर नहीं होती तो वह मुझे मार देता। मेरी किस्मत अच्छी है कि मेरे दुश्मन को मेरे जन्म के बारे में पता नहीं चला, वरना इसी उम्र में मेरा अगर उसके साथ मुक़ाबला होता तो मैं आसानी से हार जाता। मुझे मेरी शक्तियों की ज़रूरत है; मुझे मेरी दिव्य ऊर्जा की ज़रूरत है।" इस ब्रह्मांड में शक्ति के कई सारे स्रोत थे जिनके ज़रिए जादुई चीज़ें की जा सकती थीं। देवांश इसमें डिवाइन ऊर्जा का इस्तेमाल करता था जो देवताओं और भगवानों द्वारा इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा थी। ब्रह्मांड की सबसे ख़तरनाक ऊर्जा जिसका मुक़ाबला कोई नहीं कर सकता था; इसलिए भगवान इस पूरे ब्रह्मांड में सबसे ताकतवर थे। मगर फिलहाल के लिए देवांश के पास डिवाइन ऊर्जा का इस्तेमाल करने की क्षमता नहीं थी। वहीं जिस 'इन्फिनिटी' शक्ति का उसने नाम लिया था, यह उसकी एक आत्मरक्षा शक्ति थी। उसे पता था कि कम उम्र में अगर उसके पास शक्ति नहीं होगी तो उसे किसी से भी ख़तरा हो सकता है; ऐसे में 'इन्फिनिटी' जैसी शक्ति का उसके पास होना ज़रूरी है जिससे वह हमेशा अपने दुश्मनों के हमले से सुरक्षित रहे। 'इन्फिनिटी' की शक्ति देवांश का एक सुरक्षा कवच थी जिससे कोई चाहकर भी उसे छू नहीं सकता, चाहे वह कितना भी ताकतवर क्यों न हो। अगर हमला अचानक से होता है, तभी देवांश की 'इन्फिनिटी' शक्ति उसे नुकसान पहुँचाने नहीं देगी, चाहे वह कितना भी ताकतवर क्यों न हो। एक के बाद एक और साल निकलते गए और चार साल और निकल गए। देवांश पूरे नौ साल का हो चुका था। वह इस उम्र में आदमखोरों की एक गुफा में था। वह चोरी-छुपे यहाँ पर पहुँचा था क्योंकि गाँव वाले उसे दीवार पार करके आने ही नहीं देते थे। एक आदमखोर, जो इंसानी ऊँचाई की तुलना में दुगुना बड़ा था, तेज़ी से दौड़ रहा था। उसके दौड़ने से गुफा हिल रही थी और गुफा की मिट्टी आस-पास उड़ रही थी। उसकी चमड़ी लाल रंग की थी और चमड़ी पर काँटेदार छुरीयाँ थीं। वह गुफा की दीवारों से टकराया तो उसके चमड़े के काँटों ने पत्थरों को भी रगड़ दिया। उसके सिर की ओर एक नुकीला सींग बाहर निकला हुआ था। दौड़ते-दौड़ते उसने जमीन पर उस सींग से मारा तो जमीन में एक दरार पैदा हो गई जो काफ़ी दूर तक जाती चली गई। वह बहुत ख़तरनाक और बहुत ताकतवर था। उसके ठीक सामने उसका शत्रु था जिसकी ओर वह दौड़ रहा था ताकि वह उसे ख़त्म कर सके; एक छोटा सा, नौ साल का बच्चा, देवांश, धोती पहने हुए और दोनों हाथों को कमर पर रखकर खड़ा हुआ। उसने अपने सिर पर छोटी सी चोटी रखी हुई थी जिससे वह लड़की की तरह दिख रहा था, मगर काफ़ी प्यारा। आदमखोर जैसे ही करीब आया, दृश्य स्लो मोशन में हो गए और आदमखोर ने अपने सिर के नुकीले सींग को बच्चे की ओर किया ताकि वह उसके सीने को फाड़ सके। तभी अचानक ऐसा लगा जैसे उसके सींग ने किसी भारी-भरकम चीज़ से टक्कर की हो। आदमखोर पीछे से अपना संतुलन नहीं संभाल पाया और वह उछलते हुए हवा में ही लटक गया। देवांश ने उसके इतने बड़े हमले को अपनी छोटी सी उंगली से ही रोक लिया था। उसने आदमखोर के सींग के ठीक सामने अपनी छोटी सी उंगली रखी थी जिससे आदमखोर का सींग उससे टकराया और वहीं रुक गया। जो भी बल उसने लगाया था, उसमें इतना दम नहीं था कि वह देवांश को धक्का दे पाए। हवा में उड़ता हुआ आदमखोर गुफा की छत से टकराया और दोबारा नीचे गिर गया। देवांश ने अपनी उंगली को पीछे किया और कहा, "तुम बहुत कमज़ोर हो, अपने बाकी साथियों की तरह! मुझे बताओ, तुम्हारे ताकतवर दोस्त कहाँ पर मिलेंगे? मुझे अपनी शक्ति का परीक्षण करना है ताकि मुझे पता चले कि मैं कितना शक्तिशाली हूँ?" आदमखोर के शरीर के चारों ओर तारे घूमने लगे थे। वह जमीन पर अर्ध-चेतन अवस्था में गिरा पड़ा था। देवांश ने उसके सींग को पकड़ा और उसके सिर को ऊपर करते हुए कहा, "अरे, बता ना मेरे भाई! तुम्हारे बाकी दोस्त कहाँ पर हैं? मैं सारी गुफा में जा-जाकर देख चुका हूँ, मगर मुझे अभी तक तुम्हारे ताकतवर दोस्त नहीं मिले हैं। बताओ ना, मेरे भाई, बताओ, तुम्हारे ताकतवर दोस्त कहाँ हैं?" देवांश उससे पूछ रहा था, लेकिन आदमखोर इस प्रकार अपने होश खो चुका था कि वह कुछ भी सोचने या बोलने की स्थिति में नहीं था। देवांश ने उसके सिर को छोड़ा तो वह धड़ाम से दोबारा नीचे गिर गया। "कुछ ज़्यादा ही भाव खा रहा है।" देवांश ने अपनी धोती को कसकर बाँधा और कहा, "लगता है मैंने अपनी कुछ ज़्यादा ही शक्ति का प्रयोग कर दिया था! मगर एक मिनट! मैंने अपनी शक्ति इस्तेमाल ही कहाँ की थी? मैंने तो बस अपनी छोटी सी उंगली से इसे रोका था। हे भगवान! पता नहीं इन सब का क्या होगा? तुमने इन्हें इतना कमज़ोर क्यों बनाया है भगवान, इनमें कम से कम थोड़ी सी जान तो डाल देते।" देवांश यह कहकर गुफा में आगे चलने लगा, "अरे, भगवान तो मैं ही हूँ! मैं ही क्या, खुद से इनकी शिकायत कर रहा हूँ!" देवांश गुफा में और आगे गया तो गुफा पहले से भी ज़्यादा चौड़ी हो गई और यहाँ पर इंसानी ऊँचाई से चौगुनी ऊँचाई रखने वाले आदमखोर दिखाई दिए। इनमें से एक आदमखोर के तीन सिर थे और उसके सिर पर बिजली चमक रही थी। दो और आदमखोर यहाँ पर थे जिनका एक-एक सिर था, मगर उनकी पूँछ पर कई काँटेदार छुरीयाँ लगी हुई थीं, जिन्हें वे तेज़ी से फेंकते हुए हमले के लिए इस्तेमाल कर सकते थे। देवांश ने तीनों की ओर बारी-बारी से देखा, "ऐसा लग रहा है इनमें थोड़ी सी जान है। इन आदमखोरों से मैं पिछले छह दिनों से लड़ाई कर रहा हूँ, लेकिन अभी तक मुझसे इनकी गुत्थी नहीं सुलझी। हर बार जब भी मैं किसी आदमखोर से मिलता हूँ, तब मुझे अलग प्रकार के आदमखोर ही दिखाई देते हैं। पता नहीं इन आदमखोरों के पीछे की कहानी क्या है और इनके बदलते स्वरूपों की भी!" बिजली वाले आदमखोर ने अपने तीनों सिरों को नीचे की ओर किया जिससे बिजली एक ही जगह पर इकट्ठी होने लगी जो बीच वाले सिर पर इकट्ठी हो रही थी और अगले ही पल ढेर सारी बिजली की तरंगें देवांश पर गिरीं। मगर देवांश ने तुरंत छलांग लगाई और दूसरी ओर चला गया। आदमखोर ने अपने सिर को उसकी ओर घुमाया तो देवांश ने ऊपर की ओर छलांग लगाई और गुफा की छत से लटक गया। आदमखोर ने अपने सिर को ऊपर की ओर किया तो देवांश नीचे की ओर कूदा और जानवर के ठीक पैरों के नीचे आ गया। आदमखोर अपने सिर को नीचे करता उससे पहले ही देवांश ने अपने हाथ को मुट्ठी के रूप में बंद किया और फिर जोर से अपना एक मुक्का उसके एक पैर पर मारा। जैसे ही उसने मुक्का मारा, आदमखोर की सारी चमड़ी उतरती चली गई और अगले ही पल उसका शरीर किसी बड़े धमाके के साथ फट गया। गुफा की छत और बाकी सभी जगहों से आदमखोर के शरीर के टुकड़े चिपक गए और देवांश भी खून से पूरा तर-बतर हो गया। बाकी के दो आदमखोरों ने यह देखा तो वे डर के मारे भाग गए। देवांश ने अपने चेहरे पर लगे खून को साफ़ किया, "नहीं, इनमें भी दम नहीं है। मुझे यहाँ पर काफ़ी देर हो गई है। अब मुझे घर पर ही चले जाना चाहिए; घर वाले भी मुझे ढूँढ़ रहे होंगे।" देवांश ने अपने पैर से एक छोटा सा निशान लगा दिया ताकि उसे पता रहे कि वह गुफा में कहाँ तक आया था और फिर वापस चला गया। कुछ ही देर बाद वह गुफा के बाहर था। सूरज छिप रहा था और वह छिपते हुए सूरज को अपनी कमर पर हाथ रखकर देख रहा था। देवांश ने छिपते हुए सूरज की ओर देखकर कहा, "ये नौ वर्ष, मेरे लिए नब्बे वर्षों के बराबर रहे हैं। इन नौ वर्षों में बहुत कुछ हुआ, बहुत कुछ! पिछली तीन सर्दियों में गाँव के पचास से ज़्यादा लोग मारे गए क्योंकि सभी सर्दियाँ पहले से ज़्यादा ख़तरनाक थीं। मैं प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता था, इसलिए मेरे भी हाथ बाँधे हुए थे। कम उम्र होने के कारण मैं कुछ और भी नहीं कर सकता था।" देवांश मुड़ा और घर की ओर जाने लगा, "मैंने अभी तक किसी को नहीं बताया कि मैं एक अवतार हूँ, क्योंकि मुझे नहीं पता अगर मैं यह बता दूँगा तो सब लोग क्या सोचेंगे?" जैसे-जैसे वह जा रहा था, वैसे-वैसे सूरज छिपता जा रहा था और अंधेरा होता जा रहा था। देवांश बोला, "इस बार की दुनिया पहले की दुनिया से बहुत अलग है, और सबसे बड़ी बात मैं इसके बारे में कुछ भी नहीं जानता। न मैं यह जानता हूँ कि मेरा दुश्मन कहाँ पर है? देवांश, मेरे भाई, इस बार कुछ भी आसान नहीं रहने वाला है। और इस बात पर तुम अब गाँठ बाँध लो, तो ही तुम्हारे लिए अच्छा है।"

  • 6. The 10th Avatar of God - Chapter 6

    Words: 2134

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    रात के लगभग 8:00 बजे देवांश वापस लौटा। आहुदी ने देवांश के आते ही कहा, "आखिर तुम कहाँ थे इतनी देर तक?" वह गुस्से में थी। "तुम्हें पता भी है, तुम दोपहर से गायब हो। मैं और तुम्हारे पापा तुम्हें ढूँढ़-ढूँढ़ कर थक गए, मगर तुम कहीं पर भी नहीं मिले।" देवांश ने अपने बालों में हाथ फेरा। "अरे, कहीं भी नहीं माँ, मैं खेलते-खेलते सो गया था। आपको तो पता है ना, मैं कितना लापरवाह हूँ, कहीं भी सो जाता हूँ।" आहुदी उसके लिए खाना बना रही थी। देवांश उसके पास आकर प्लाथी मारकर बैठ गया और फिर एक प्लेट लेकर उसमें खाना खाने लगा। आहुदी ने कहा, "हर रोज़ तुम आखिर यही बात कहते हो। आखिर ऐसी कैसी तुम्हारी नींद है जो पूरी ही नहीं हो रही है? तुम रात में भी सोते रहते हो और अब तुम्हें दोपहर को भी सोना होता है। तुम्हें पता है, तुम्हारे पापा मुझे कितना डाँट रहे थे? कह रहे थे, मैं लापरवाह हो गई हूँ, तुम्हारा बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखती हूँ।" देवांश ने अजीब सी मुस्कान बनाते हुए कहा, "अरे, आप भी कहाँ पापा की बातों को गंभीरता से ले रही हैं? वह खुद भी अपनी बातों को इतनी गंभीरता से नहीं लेते। चलिए माँ, अब मुझे खाना दीजिए, मुझे बहुत भूख लगी है।" आहुदी ने उसकी प्लेट में दो रोटियाँ और थोड़ी सी सब्जी-दाल दी, फिर कहा, "तुम्हें पता है ना, तुम कितनी तपस्या के बाद हमें मिले थे। इस तरह से बाहर मत जाया करो। अगर तुम्हें कहीं कुछ हो गया, तो तुम सोच भी नहीं सकते, हम दोनों का क्या होगा। हम दोनों ही चाहते हैं, तुम हमारी आँखों के सामने रहो।" देवांश ने गहरी साँस लेकर कहा, "माँ, मैं आपका ताकतवर बच्चा हूँ, मुझे कुछ भी नहीं हो सकता है। मुझे नहीं पता, आप मुझ पर यकीन करेंगी या फिर नहीं, लेकिन इस दुनिया में कोई भी इतना ताकतवर शख्स नहीं है जो मुझे मेरी मर्ज़ी के बिना छू भी सके।" आहुदी हँसने लगी। "तुम्हारी बातों पर कभी-कभी हँसने का मन करता है। अच्छा, तुम्हारे पापा बता रहे थे, तुम तलवारबाज़ी में बहुत अच्छे हो। कई बार तो वह कहते हैं, ऐसा लगता है जैसे तुम पैदा होते ही सीख कर आए हो। मुझे बताओ, तुमने इतनी अच्छी तलवारबाज़ी कहाँ से सीखी? क्या तुम चोरी-छुपे वीर से सीखने जाते हो?" देवांश ने थोड़ा सा सोचा और फिर उतरे हुए चेहरे के साथ कहा, "वीर तो आजकल खुद मुझसे सीख रहा है। मुझे नहीं पता, मैं इतनी अच्छी तलवारबाज़ी कैसे जान गया, लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे तलवार मेरे हाथ में आते ही अपने आप चलने लग जाती है।" वह दोनों बात कर ही रहे थे, तभी लखन कमरे में आ गया और उसने अपने हथियारों को दरवाजे के पास रखा। देवांश ने अपने पिता की तरफ़ देखा तो बोला, "माँ, पिताजी भी आ गए हैं। पिताजी, आप भी हमारे साथ खाना खा लीजिए।" उसके पिता ने सिर हिलाया और फिर हाथ धोकर उनके पास आकर बैठ गए। वह अभी भी अपने चेहरे से परेशान लग रहे थे। आहुदी के पूछने से पहले ही देवांश ने पूछा, "आपके चेहरे की हवाइयाँ क्यों उड़ी हुई हैं पिताजी? क्या किसी ने आज आपको कोई बुरी खबर सुना दी क्या?" देवांश के पिता ने खाना अपने हाथ में ही पकड़ रखा था। वह बोले, "नहीं, बुरी खबर नहीं सुनाई, मगर जो खबर सुनाई, वह अच्छी भी नहीं है। आज गाँव के कुछ लोग मेरे पास आए थे और उन्होंने कहा, गुफाओं में आदमखोर मरे हुए मिल रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे उन पर किसी और खतरनाक जानवर ने हमला किया है। उनकी यह हालत देखकर गाँव वाले परेशान हो रहे हैं। इस गाँव में कोई नया खतरनाक जानवर आ गया है जो आदमखोरों के लिए खतरा बन रहा है।" देवांश ने छिपी हुई मुस्कान दिखाई दी, क्योंकि इन सभी आदमखोरों को मारने के पीछे उसका ही हाथ था। वह बोला, "तो यह तो अच्छी बात है ना? कोई हमारे दुश्मनों को खत्म कर रहा है, तो इसमें दुखी होने वाली कौन सी बात है।" उसके पिता बोले, "दुखी होने वाली बात ही है बेटा। अगर वह आदमखोरों को खत्म कर रहा है, तो इसका मतलब वह बहुत ताकतवर है और जब वह सारे आदमखोरों को खत्म कर देगा, तब कहीं ना कहीं हम भी उसके निशाने पर आ सकते हैं। अगर आदमखोर उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए, तो फिर हम उसका क्या बिगाड़ पाएँगे? मैंने गाँव वालों के साथ बात तो की है और यह कहा है, हम पता लगाने की कोशिश करते हैं, वह कौन है जो इन आदमखोरों को मार रहा है, ताकि हम उसे निपटाने की तैयारी वक्त से पहले ही कर सकें।" देवांश ने अपने मन में कहा, "कैसे बेवकूफ़ हैं! मुझसे निपटने की तैयारी करेंगे? मुझसे… जो खुद यहाँ किसी को निपटाने आया है।" खाना खाने के बाद देवांश और लखन दोनों बाहर आकर तलवारबाज़ी का अभ्यास करने लगे। लखन अपनी तलवार से कारनामे दिखा रहा था और देवांश उतनी ही तेज़ी से उन कारनामों से बच रहा था। लखन तेज़ी से तलवार का हमला करते हुए बोला, "मैंने ये सारे हमले आज तक किसी को दिखाए भी नहीं हैं, फिर भी तुम्हारे पास इसका तोड़ कैसे है? मुझे सच-सच बताओ, मेरी मर्ज़ी के बिना तुम किस से तलवारबाज़ी सीखते हो?" तलवार के एक हमले से बचते हुए देवांश ने पीछे की तरफ़ जम्प लिया और कहा, "पिताजी, आपको पता है ना, इस गाँव में आपसे बेहतर तलवारबाज़ कोई नहीं है, तो फिर मैं किससे सीख सकता हूँ? ये सारे पेंतरे आपकी ही ट्रेनिंग के हैं, बस आप भूल गए हो कि आपने मुझे कब ट्रेन किया।" उसके पिता ने तलवार को तेज़ हमले के लिए फेंककर इस्तेमाल किया। यह लकड़ी की तलवार थी, तो इससे किसी तरह के नुकसान होने का डर नहीं था। उन्हें लगा था, अगर वह इस तरह से फेंक कर हमला करेगा, तो देवांश इस हमले को समझ नहीं पाएगा और तलवार उससे टकरा जाएगी। मगर बाज की नज़रों से भी तेज़ देवांश ने पल भर में इस वार को समझ लिया और अपने हाथ से उसके पिता की फेंकी हुई तलवार को पकड़ लिया। उसके पिता यह देखकर दंग रह गए और उनकी आँखें चौड़ी हो गईं। "गज़ब! मानना पड़ेगा, तुम बहुत टैलेंटेड हो मेरे बेटे। तुमने मेरे एक ऐसे वार को भी पकड़ लिया, जिसका इस्तेमाल तलवारबाज़ी में कोई भी नहीं करता।" देवांश ने अपने पिता की तलवार को फेंका और कहा, "पिताजी, मुझे हराने के लिए आपको और मेहनत करनी होगी।" उसके पिता झुके हुए कंधों के साथ चले और अपनी तलवार उठाकर बोले, "हाँ, तुम शायद सही कह रहे हो। मैंने अपने बेटे को इतना बड़ा तलवारबाज़ बना दिया है कि आज मैं खुद भी उसे हरा नहीं पा रहा हूँ, वह भी तब जब मेरा बेटा सिर्फ़ 9 साल का है। पता नहीं, जब तुम 40 साल के हो जाओगे, तब तुम क्या-क्या करोगे।" देवांश ने अपनी तलवार पर लगी मिट्टी को ऐसे साफ़ किया जैसे वह खून साफ़ कर रहा हो और कहा, "40 साल बाद क्या होगा, क्या नहीं पिताजी, ये बाद की बातें हैं। अभी तो ये भी नहीं पता, आने वाले सालों में क्या होगा।" लखन एक पत्थर पर बैठ गया और देवांश भी उसके पास आकर पत्थर के ठीक नीचे वाले हिस्से पर बैठ गया। लखन ऊपर बैठा था, वहीं देवांश नीचे बैठा हुआ था। देवांश ने कहा, "पिताजी, मुझे समझ में नहीं आ रहा, आखिर कब तक आप इस सचाई से छिपेंगे? मेरा दिल ये नहीं मानता, इतनी बड़ी दुनिया में हम यहाँ पर अकेले रहते हैं? मैं नहीं जानता, आपने कभी समुद्र में जाने की कोशिश की या फिर नहीं, लेकिन जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, तब मैं इस पूरे समुद्र को छान मारूँगा। मैं इस पूरे समुद्र को तब तक छानूँगा, जब तक मुझे यहाँ पर बाकी के लोग नहीं मिल जाते।" उसके पिता ने अपने चेहरे पर गुस्सा दिखाया। "तुम फिर से अपनी बेवकूफी भरी बातें लेकर शुरू हो गए। मैंने तुमसे कहा ना, इस पूरी दुनिया में और कोई भी नहीं है, बस हम लोग हैं जो खुशकिस्मती से बचे हुए हैं। हमारे पूर्वजों ने यह भी बताया है कि हम क्यों बच गए। यहाँ तक कि तुम आश्रम में जाकर वहाँ मौजूद इतिहास की किताबों को भी पढ़ सकते हो।" देवांश ने अपने सर को झटका। "मैं उन किताबों को पढ़ चुका हूँ। वह बस रटी-रटाई किताबें हैं, इसके अलावा और कुछ भी नहीं।" लखन ने नीचे अपने बेटे की तरफ़ देखा। "तुम अपनी उम्र से ज़्यादा ही बड़े होने का दिखावा कर रहे हो। मुझे अच्छे से पता है, यह सब कुछ वीर की वजह से है। वीर पता नहीं तुम्हारे मन में क्या-क्या बातें डालता रहता है। इस गाँव में वीर और कुछ लोग ही हैं जो ये बातें कहते रहते हैं और यही बातें वे बाकी लोगों के मन में डालते रहते हैं। तुम वीर की बेटी के साथ खेलने जाते हो, तो वहीं ये सब सीख कर आते होगे।" देवांश ने इस पर कुछ नहीं कहा। लखन बोला, "बेटा, इतिहास में लिखी हुई चीज़ कभी भी गलत नहीं होती। आश्रम में मौजूद इन किताबों में हमारा इतिहास लिखा गया है। 40,000 साल पहले जब भगवान निर्माण ने अपने अनंत रूप में अवतार लिया था, तब उन्होंने बुराई को खत्म कर दिया था। लेकिन यह लड़ाई इतनी विध्वंसक थी कि इस लड़ाई ने बुराई के साथ-साथ इस दुनिया को भी ख़तरे के करीब ला दिया था। पूरी दुनिया का संतुलन बिगड़ गया था। ज़मीन टुकड़ों में बंट गई थी और जो बर्फ के बड़े-बड़े पहाड़ थे, वे पिघल गए थे। लड़ाई इतनी विध्वंसक थी कि सब तरफ़ कोहराम ही मच गया था। हमारे पूर्वज उस वक्त भगवान अनंत के बहुत बड़े भक्त हुआ करते थे। भगवान अनंत अपने आखिरी वक्त में इस पूरी दुनिया को तो नहीं बचा पाए, लेकिन उन्होंने हमारे पूर्वजों को बचाया और उन्हें यहाँ पर सुरक्षित जीवन यापन के लिए छोड़ दिया।" देवांश ने अपने मन में कहा, "सब झूठ है। वह लड़ाई बड़ी ज़रूर थी, मगर दुनिया ख़त्म करने जितनी बड़ी नहीं थी। उस लड़ाई के ख़त्म होने के 1 साल बाद तक मैं यहीं पर इस दुनिया में रहा था और यहाँ पर अच्छी-खासी खुशहाली थी। फिर मैं यहाँ से चला गया था, जिसके बाद की बातें मुझे याद नहीं, क्योंकि यहाँ आने से पहले मैंने सब कुछ भुला दिया था। उसके बाद कुछ ऐसा हुआ होगा जिससे यह पूरी दुनिया ख़त्म हो गई। मगर नहीं, अगर यह दुनिया ख़त्म हो चुकी होती, तो मैं यहाँ पर अवतार क्यों लेता? अगर मैंने अवतार लिया है, तो इसका मतलब है यहाँ पर बुराई है। भले ही मैंने उससे जुड़ी सारी यादें अपने दिमाग से हटा दी हों, लेकिन अगर मैं यहाँ पर हूँ, तो सब कुछ यहाँ पर है।" देवांश खड़ा हुआ और अपने पिता से बोला, "पिताजी, मैं नहीं जानता आप क्या सोचते हैं और क्या नहीं, और ना ही मुझे फ़र्क़ पड़ता है, लेकिन एक बात मैं आपको साफ़-साफ़ बता देता हूँ, आज मैं 9 साल का हूँ, लेकिन जैसे ही मैं 10 साल का हो जाऊँगा, तब मैं इस समुद्र में अपनी यात्रा शुरू करूँगा। अपनी यात्रा, जिसका कोई अंत नहीं होगा और यह तभी ख़त्म होगी जब मैं यहाँ पर बाकी के लोगों को ढूँढ़ लूँगा।" लखन खड़ा हुआ और जोर से अपने बेटे के मुँह पर थप्पड़ जड़ दिया। "ख़बरदार, अगर तुमने यह बात आज के बाद दोबारा की, तुम यहाँ से कभी बाहर नहीं जाओगे, कभी भी नहीं, और समुद्र में तो बिल्कुल भी नहीं। और आज के बाद तुम्हारा वीर के यहाँ पर जाना भी बंद। तुम्हें पता है, समुद्र में सबसे पहले कुछ और लोगों ने भी जाने की कोशिश की थी, मगर वे सब के सब मारे गए और मैं नहीं चाहता, तुम भी समुद्र में जाकर मरो। तुम्हारी माँ ने और मैंने तुम्हें कई सालों के बाद पाया है। हम बस यही चाहते हैं, तुम इसी गाँव में रहो और जब बड़े हो जाओ, तब मेरी ज़िम्मेदारी को संभालो। बड़े होकर अपना परिवार बसाओ और जिस तरह से हमारे पूर्वज इस गाँव में एक के बाद एक अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ा रहे हैं, वैसे तुम भी आगे बढ़ाओ।" यह कहकर लखन घर की ओर चला गया, जबकि देवांश वहीं पर खड़ा रहा। देवांश की आँखों में गुस्सा था। उसने अपने हाथों की मुट्ठियाँ बंद कर लीं और जोर से अपने सिर को सामने पड़े पत्थर पर मार दिया। लखन अंदर जा चुका था। देवांश के सिर के वार की वजह से कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ, मगर इसके बाद पत्थर हज़ारों टुकड़ों में बंट गया। देवांश बोला, "बिल्कुल नहीं! ज़रूर आप सब यहाँ पर एक ऐसे चक्र में फँसे होंगे जिसमें पैदा होना, परिवार बसाना, बच्चे पैदा करना और फिर उन्हें आगे की ज़िम्मेदारी सौंप कर यहाँ से चले जाना है, लेकिन मैं ऐसा कभी नहीं करने वाला। हज़ारों सालों से चल रहे इस चक्र को मैं यहाँ पर तोड़ूँगा। इस गाँव के इतिहास में आज तक बदलाव नहीं हुआ, मगर मैं इसे बदल दूँगा।"

  • 7. The 10th Avatar of God - Chapter 7

    Words: 2326

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    सुबह लखन सूर्य की पहली किरण के साथ ही उठकर बाहर आया। उसने देखा कि उसके आंगन में रखा पत्थर का टुकड़ा टुकड़े-टुकड़े हो गया था। वह यह देखकर हैरान हो गया। उसने अपने आस-पास देखा और फिर पत्थर के टुकड़े के आसपास जाकर उसके चारों ओर घूमने लगा। वह परेशानी से बोला, “समझ में नहीं आ रहा आखिर इसकी ऐसी हालत किसने की होगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि जो जानवर आदमखोरों का शिकार कर रहा था, वह यहां पर भी आ गया हो? मुझे आज ही गांव वालों को इस बारे में बताना होगा। एक तो इस गांव में नए-नए खतरे आ रहे हैं और ऊपर से मेरे बेटे को 10 साल की उम्र में ही बाहर जाना है।” यह कहकर वह वापस अंदर गया और थोड़ी देर बाद ही गांव वालों से मिलने के लिए निकल गया। देवांश तकरीबन देर से उठा। उठते ही उसने दूध पिया और घर से बाहर निकल गया। थोड़ी ही देर बाद वह वीर के घर के सामने था। वीर घर के बाहर ही खड़ा था और लकड़ियाँ काट रहा था। देवांश वीर के करीब आते हुए बोला, “अंकल, मैं यहां आपसे कोई जरूरी बात करने आया हूँ।” वीर ने लकड़ी काटना बंद किया और देवांश की ओर मुड़ते हुए बोला, “तुम्हें सुबह-सुबह क्या जरूरी बात करनी है बेटा? जरूर तुम श्री के बारे में कोई बात करने आए होगे, मगर श्री तो अभी तक उठी ही नहीं है।” देवांश बोला, “उसे बीच में क्यों ला रहे हो आप? मैं उससे भी ज़रूरी बात करने आया हूँ। मैंने आश्रम की किताबें पढ़ी हैं, जिनमें लिखा है हमारी इस जगह के अलावा पूरी दुनिया खत्म हो चुकी है। जबकि मेरा ऐसा मानना नहीं है। यह दुनिया बहुत बड़ी है, आखिर यह कैसे खत्म हो सकती है? मैं अपने पिताजी से भी इस बारे में बात कर रहा था, लेकिन वे कुछ समझने की कोशिश ही नहीं करना चाहते हैं।” वीर के चेहरे पर हल्की मुस्कराहट आ गई, “तुम अभी सिर्फ़ नो साल के हो, मगर तुम्हारी जिज्ञासा किसी चौदह साल के लड़के जैसी है। मुझे भी यही लगता है कि हमारी इस दुनिया के अलावा भी लोग होने चाहिए, मगर कोई भी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है।” देवांश उनके पास बैठते हुए बोला, “मगर ऐसा क्यों वीर अंकल? मेरे पिताजी के कुछ रिश्तेदारों ने समुद्र में जाकर बाहर की दुनिया को ढूँढने की कोशिश की थी, मगर सब मारे गए।” वीर ने हाँ में सिर हिलाया, “हाँ, यह तकरीबन साठ साल पहले की बात होगी। मेरे दादा और तुम्हारे पिताजी के दादा भी अपने कुछ दोस्तों के साथ समुद्र में दुसरे लोगों को ढूँढने के लिए निकले थे। उनका भी यह मानना था कि इस दुनिया में हमारे अलावा भी और लोग होने चाहिए। मगर इसके बाद अगले बीस सालों तक उनका कोई पता नहीं चला। फिर अचानक समुद्र के किनारे पर उनकी लाश दिखाई दी। तब से गांव वालों के मन में यह बात बैठ गई है कि बाहर की दुनिया में कुछ भी नहीं है और अगर कोई जाने की कोशिश भी करता है तो उसकी लाश ही वापस आती है।” देवांश ने अपने मन में कहा, “अगर मैं दिव्य दृष्टि लेकर पैदा हुआ होता, तो अभी पल भर में देख लेता कि कहाँ पर कौन मौजूद है, मगर मैं इस शक्ति के साथ पैदा नहीं हुआ हूँ।” फिर उसने वीर से कहा, “एक नई चीज़ को खोज पाना कभी भी आसान नहीं होता है। यहाँ पर अगर कुछ नया बनाना पड़े, तब भी सालों साल लग जाते हैं, और हम तो इस दुनिया में मौजूद अन्य लोगों को ढूँढने की बात कर रहे हैं, तो यह इतनी आसानी से कैसे ढूँढे जाएँगे? मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, तब क्या आप मेरे साथ इस दुनिया के सफ़र पर निकलेंगे? हम इस दुनिया को ढूँढने के सफ़र पर निकलेंगे और बाकी के लोगों की तलाश करेंगे। हम इस दुनिया के आखिरी कोने तक जाएँगे। तब तक इस दुनिया का सफ़र करेंगे जब तक…” देवांश ने अपने मन में कहा, “जब तक मैं अपने दुश्मन को नहीं ढूँढ लेता, जिसके लिए मैं पैदा हुआ हूँ।” वीर ने अपने चेहरे पर परेशानी दिखाई और कुल्हाड़ी के सहारे बैठते हुए बोला, “नहीं बेटा, कभी भी नहीं। अब मेरा एक परिवार है, जिसे छोड़कर मैं नहीं जा सकता हूँ।” देवांश को इस जवाब की उम्मीद नहीं थी। उसे लगा था कि जिस तरह से वीर का हमेशा नाम लिया जाता है, उसके हिसाब से वह हाँ कर देगा, लेकिन अपने परिवार की वजह से उसने साफ़ मना कर दिया। देवांश बोला, “मगर फिर भी आपको कोशिश तो करनी चाहिए। आप इस तरह से कैसे हाथ पर हाथ रखकर बैठ सकते हैं?” वीर ने जवाब दिया, “तुम अभी बहुत छोटे हो। देखना, जब तुम धीरे-धीरे बड़े हो जाओगे, तब तुम्हारे मन से भी यह चीज़ बाहर निकल जाएगी। और एक बार तुम्हारा परिवार बस जाएगा, तब तो तुम इसके बारे में सोचोगे भी नहीं।” देवांश ने अपनी आँखें दिखाते हुए कहा, “और आपको लगता है कि मैं कोई परिवार बनाऊँगा? बिल्कुल नहीं! जब तक मैं इस दुनिया में मौजूद दुसरे लोगों को नहीं ढूँढ लेता, तब तक मैं परिवार बढ़ाने के बारे में सोचूँगा भी नहीं।” वीर जोर-जोर से हँसने लगा, “ये बस बचकानी बातें हैं बेटा। जब तुम बड़े होगे, तब तुम खुद अपने पिताजी से कहोगे, ‘पापा, पापा, मेरी शादी कर दो।’” यह कहकर वीर फिर से जोर-जोर से हँसने लगा, “चलो, अब इन सब बातों को अपने दिमाग से निकालो और अंदर जाकर श्री को जगा दो। तुम दोनों के आपस में बहुत बनती है। ऐसे ही अपनी दोस्ती आगे भी बनाकर रखना।” वीर ने सिर हिलाया और फिर अंदर जाकर एक चारपाई पर मौजूद कंबल को हटा दिया। जैसे ही उसने कंबल हटाया, कंबल के नीचे सो रही लड़की ने फौरन खुद को तकिये के सहारे छिपा लिया। 8 साल की वह लड़की दिखने में बहुत प्यारी थी। उसके मोटे-मोटे गाल और सर पर छोटे बाल, फ्रॉक पहनी वह लड़की काफी चंचल थी। देवांश ने आस-पास देखा और जब उसे कोई नहीं देख रहा था, तब उसने श्री को अपने हाथों से उठाया और उसे घुमा दिया। श्री नीचे गिर गई। वह खड़ी हुई और गुस्से से बोली, “आखिल तुम्हें दिक्कलत क्या है?” वह साफ़ नहीं बोलती थी; उसकी आवाज़ में थोड़ा तोतलापन था। देवांश यह आवाज़ सुनकर हँसने लगा, “तुम्हारी ये टूटी-फूटी आवाज ही सुनने के लिए तो मैं यहाँ पर आया हूँ। चलो, चलो, दोबारा बोलना, तुम्हें क्या दिक्कलत है? हा हा, बोल दो ना, एक बार बोल दो ना…” श्री ने तकिया उठाया और उसे जोर से देवांश पर फेंक मारा। देवांश ने अपने हाथ से इशारा किया, जिससे तकिया उसके सामने से जादू की तरह मुड़ गया और दूसरी तरफ जाकर गिर गया। देवांश बोला, “पागल लड़की! कोई मुझे मेरी मर्ज़ी के बिना छू भी नहीं सकता है, और तुम मुझ पर हमला करने के बारे में सोच रही हो? चलो, चलो, बचपना छोड़ो और बड़ों की तरह व्यवहार करो। तुम्हें बहुत कुछ सीखना है। मैं तुम्हें आज से तलवार चलाना सिखाऊँगा।” वह अपने मन में बोला ,"कोई और तो जा नहीं रहा इस सफर पर, इसलिए मैं तुम्हें तैयार करूंगा सफर के लिए" श्री ने गुस्से से अपनी नाक फुलाते हुए कहा, “मैं कोई तलवार चलाना नहीं सीखने वाली हूँ। तुम्हें पता है ना, मैं एक लड़की हूँ, और लड़की का काम है घर के काम संभालना। मैं कुछ सीखूँगी तो माँ से सीखूँगी। माँ मुझे खाना बनाना सिखाएंगी।” देवांश ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा, “ये सब इस दुनिया के नियम हैं, जिन्हें मैं बिल्कुल भी नहीं मानता हूँ। लड़के और लड़की में कोई भेदभाव नहीं होता है। चलो मेरे साथ चलो, हम तलवारबाज़ी ही सीखेंगे।” श्री ने गुस्से से कहा, “नहीं, बिल्कुल नहीं! मैं कुछ भी नहीं सीखने वाली हूँ।” देवांश उसके पास आया और जबरदस्ती उसे अपने कंधे पर उठाकर बाहर ले जाने लगा। वह अपने मन में बोला, “तलवारबाज़ी के अभ्यास के लिए भी मैं पिता पर निर्भर नहीं रह सकता हूँ, इसलिए मुझे कुछ चाहिए; एक ऐसा योद्धा, जिसे मैं तैयार करुं, फिर वो मेरी तलवारबाज़ी में भी मेरी मदद कर सके और मेरी तलवार के हमलों का सामना भी कर सके।” वीर ने देखा तो उसने पूछा, “अरे भाई, तुम इसे अभी कहाँ ले जा रहे हो?” देवांश ने कहा, “मैंने इसे तलवारबाज़ी सीखने के लिए कहा था, लेकिन यह कह रही है कि मैं खाना बनाना सीखूँगी। इसलिए मैं इसे जबरदस्ती ले जा रहा हूँ ताकि इसे तलवार चलाना सिखा सकूँ।” यह सुनकर वीर खुश हो गया। घर से थोड़ा दूर आने के बाद देवांश ने अपने आस-पास देखा और फिर तेज़ी से दौड़ने लगा। उसकी दौड़ने की गति काफी ज़्यादा थी। वह एक पहाड़ी घाटी के पास आ गया, जिस पर चढ़ाई कठिन थी, और यह पहाड़ी भी सीधी थी। देवांश ने अपने आस-पास देखा और जब उसने पूरी तरह से देख लिया कि कोई नहीं देख रहा है, तो वह अपने हाथों से श्री को पहाड़ी पर चढ़ाने लगा। थोड़ी देर में वह एक ऐसी पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया था, जिस पर कोई भी नहीं चढ़ सकता था क्योंकि यह एक बेलनाकार पहाड़ी थी और सीधे जमीन पर ऐसे खड़ी थी जैसे किसी ने जमीन में कोई बेलनाकार लकड़ी का टुकड़ा गाड़ दिया हो। देवांश ने श्री को छोड़ा और कहा, “अब जाकर दिखाओ, कहाँ जाती हो?” श्री ने पहाड़ी के किनारे पर जाकर देखा तो ऊँचाई देखकर ही वह डर गई। वह फौरन पीछे हटी और देवांश से टकरा गई। वह बोली, “तुम इतना ऊपर कैसे आ सकते हो?” देवांश मुस्कुराया और बोला, “क्योंकि मैं देवांश हूँ।” श्री ने कहा, “झूठ मत बोलो। मैं कुछ दिन पहले ही इस पहाड़ी को देखने आई थी, और मेरे पिताजी ने कहा था कि कोई भी इस पहाड़ी पर नहीं चढ़ सकता है क्योंकि इस पर चढ़ने के लिए रास्ता ही नहीं बना है। फिर मुझे बताओ, तुम किस रास्ते से यहाँ पर आए हो?” देवांश के चेहरे की मुस्कराहट गायब नहीं हुई थी। वह बोला, “मैं किसी रास्ते से नहीं आया हूँ, बल्कि अपनी डिवाइन ऊर्जा का इस्तेमाल करके आया हूँ।” “डिवाईन ऊर्जा??” श्री की आँखों में हैरानी थी। देवांश ने सिर हिलाया, “हाँ, डिवाइन ऊर्जा; एक ऐसी ऊर्जा जिसका इस्तेमाल इस पूरी दुनिया में भगवान के अलावा और कोई नहीं कर सकता है।” श्री ने बचपने वाली आवाज़ के साथ कहा, “तो क्या तुम भगवान हो?” देवांश ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। इस पहाड़ी पर पहले से ही दो तलवारें मौजूद थीं। उसने उन्हें उठाया और उनमें से एक श्री को देते हुए बोला, “यहाँ से नीचे जाने का कोई रास्ता नहीं है। अगर तुम चाहती हो कि मैं शाम को तुम्हें यहाँ से वापस ले जाऊँ, तो तुम्हें तलवारबाज़ी का अभ्यास करना होगा।” तलवार को कसकर अपने हाथ में पकड़ते हुए श्री ने कहा, “तुम मेरे साथ यह ठीक नहीं कर रहे हो। मैं इसका तुमसे बदला लूँगी।” देवांश ने कहा, “हाँ, बेझिझक ले लेना। मैं तुम्हें रोक नहीं रहा हूँ।” श्री दौड़ते हुए देवांश के पास आई और उस पर तलवार से हमला करने लगी, जिसका देवांश सामना करने लगा, और दोनों ही इस तरह से अपनी तलवारबाज़ी का अभ्यास करने लगे। अभ्यास के थोड़ी देर बाद ही श्री थक चुकी थी। श्री ने अपने घुटनों पर हाथ रखते हुए कहा, “मैं थक चुकी हूँ। अब मुझे और नहीं तलवार चलाना है।” देवांश उसके पास गया और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला, “तुम कुछ ज़्यादा जल्दी ही थक जाती हो।” अचानक उसके शरीर में एक पीले रंग की रोशनी हुई, और फिर यही पीले रंग की रोशनी श्री के शरीर के आस-पास हुई। इसके होते ही अचानक श्री के शरीर में दोबारा से ऊर्जा आ गई और वह फिर से लड़ने लगी। देवांश मन में बोला, “मैंने तुम्हें अपनी थोड़ी सी डिवाइन ऊर्जा दी है। ताकी तुम अच्छे से अभ्यास करो। इसलिए मैं तुम्हें रोज़ थोड़ी-थोड़ी डिवाइन ऊर्जा दिया करूँगा। इस गांव के लोग क्या करते हैं, क्या नहीं, मैं इसके पीछे नहीं जाना चाहता, लेकिन मैं कभी नहीं चाहूँगा कि तुम बस इस गांव में एक सामान्य खाना बनाने वाली औरत बनकर रह जाओ। मैं तुम्हें एक योद्धा बनाऊँगा; एक ऐसी योद्धा जो क्या पता मेरे कितना काम आए। मुझे अच्छे से पता है कि जब एक बड़ी लड़ाई लड़नी होती है, तो आप अकेले उसे नहीं लड़ सकते; आपके साथ कुछ और लोगों का होना भी ज़रूरी है। और उन लोगों के लिए मुझे ऐसे ही कुछ लोगों को प्रशिक्षित करना होगा; कुछ ताकतवर लोगों को बनाना होगा। पिछले अवतार में मेरा बड़ा भाई था, जिसके पास काफी ताकत थी और वह हर लड़ाई में मेरा साथ देता था। इस बार में अकेला हुं। वह मेरे साथ नहीं आया। क्या पता इस बार मेरे बड़े भाई की जगह तुम मेरा साथ दो।” एक के बाद एक महीने बीतते गए, और इसी तरह से दोनों यहाँ पर रोज़ आकर अभ्यास करने लगे। यह चीज़ अगले छह महीनों तक चलती रही, जब देवांश दस साल का हो गया और श्री नौ साल की। कम उम्र में ही दोनों काफी जल्दी जवान हो गए थे। अपनी नौ साल की उम्र में श्री देवांश से भी लंबी हो गई थी। उसके पतले-नाज़ुक शरीर में ढेर सारी लचकता थी। देवांश के हर हमले का वह बहुत ही खूबसूरती से जवाब दे रही थी। वहीं देवांश दस साल का हो गया था। उसका शरीर दुबला-पतला था कद भी ज्यादा नहीं था, मगर उसके तलवार चलाने की गति काफी ज़्यादा थी। उसने अपने एक हाथ को पीछे कर रखा था और सिर्फ़ एक हाथ के इस्तेमाल से ही तलवार चला रहा था। सामने से श्री भी बराबर एक हाथ के इस्तेमाल से ही उसकी तलवार के हमलों को रोक रही थी। दोनों काफी तेज़ी से लड़ रहे थे। तभी देवांश ने श्री को चकमा देते हुए एक हमला किया, जिससे उसके बाल खुल गए और वे हवा में उड़ने लगे। श्री के काले बाल काफी लंबे थे और हवा में उड़ते हुए उसकी कमर तक आ रहे थे। देवांश ने एक वार किया, तो श्री का पैर फिसल गया। वह गिरने वाली थी, तभी देवांश ने उसके नाज़ुक शरीर को अपने हाथों में संभाल लिया।

  • 8. The 10th Avatar of God - Chapter 8

    Words: 2389

    Estimated Reading Time: 15 min

    श्री देवांश की बाहों में थी। वो काफी देर तक एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। फिर देवांश ने उसे छोड़ दिया, जिससे वह धड़ाधड़ नीचे गिर गई। अपनी कमर संभालते हुए, उसने कहा, "बेवकूफ! मुझे छोड़ने से पहले बता नहीं सकते थे?" देवांश ने अपनी तलवार उसकी ओर घुमाई और उसकी गर्दन पर रखते हुए बोला, "इस वक्त हम एक-दूसरे के दुश्मन हैं, दोस्त नहीं। जैसे ही मुझे मौका मिलेगा, तुम्हारी जान निपटा दूँगा। जब दुश्मन सामने हो, तब हर पल चौकन्ना रहना चाहिए, भले ही वह प्यार से ही क्यों न देखे।" यह कहकर देवांश तलवार उसकी गर्दन से हटाकर नीचे करता गया। उसने तलवार उसके सीने पर रखी और कहा, "तुममें और लड़ने की हिम्मत है, या अब हार मानती हो?" श्री ने एक झटके से उसकी तलवार अपने हाथ से पकड़ी और अपनी ओर खींच ली, जिससे देवांश लड़खड़ा गया और सीधे श्री के ऊपर गिर पड़ा। श्री ने अगले ही पल उसे झटका देकर दूसरी ओर गिराया और अपनी कमर से चाकू निकालकर उसकी गर्दन पर रख दिया। श्री ने कहा, "कभी भी सामने वाले को इतना कमजोर मत समझो कि आपका ध्यान भटक जाए, खासकर जब सामने लड़की हो। वह चाहे कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो, लेकिन अगर वह दुश्मन है, तो उसका मकसद सिर्फ सामने वाले को खत्म करना होता है, ना कि उसकी बाहों में आना। समझ में आई बात, बेवकूफ लड़के?" देवांश ने हाथ ऊपर करते हुए कहा, "हाँ, समझ में आ गई, और मैं अब हार मानता हूँ।" श्री अपनी जगह पर खड़ी हुई और अपने कपड़े साफ़ करते हुए बोली, "आज पूरे तीन महीने हो गए हैं, और तीन महीने से मैं तुम्हें हरा रही हूँ। क्या तुम बता सकते हो, हारकर कैसा लग रहा है?" देवांश भी अपनी जगह से उठा और अपने कपड़े साफ़ करते हुए बोला, "लग तो बुरा ही रहा है, मगर क्या कर सकते हैं? कभी-कभी हारने से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है।" यह कहकर वह पहाड़ी के किनारे पर आकर दूसरी पहाड़ियों की ओर देखने लगा। श्री भी उसके पास आ गई और वह भी उसके साथ-साथ दूसरी पहाड़ियों की ओर देखने लगी। देवांश ने उन पहाड़ियों की ओर देखते हुए कहा, "मैं सिर्फ़ तुमसे नहीं, बल्कि उन आदमखोरों से भी हार रहा हूँ। मैं कई सालों से उन आदमखोरों की गुत्थी को सुलझाने में लगा हुआ हूँ, मगर मुझे आज तक उनका मास्टर नहीं मिला। इन गुफाओं में मैं इतनी गहराई तक जा चुका हूँ कि वहाँ साँस लेना भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन अभी तक जो भी आदमखोर मेरे सामने आए हैं, वे बस नौकर ही हैं, मालिक नहीं।" श्री ने अपनी तलवार अपनी म्यान में डाली और फिर सामने की ओर देखते हुए बोली, "सारी गुफाएँ आपस में जुड़ी हुई हैं, इसका फ़ायदा इनके मास्टर को मिल रहा होगा। अगर हम किसी एक गुफा में जाते हैं, तो उसे हमारे आने के बारे में पता चल जाता होगा, और फिर वह किसी सुरक्षित गुफा में चला जाता होगा।" देवांश ने गहरी साँस ली और छोड़ी, "अगर ऐसा होता, तब भी हमें इसका कोई न कोई प्रमाण मिलता, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ पता नहीं चला है।" श्री ने देवांश की ओर देखना शुरू कर दिया, "अभी सुबह का वक्त है। अगर तुम कहो, तो गुफा में चलें। आज हम किसी एक गुफा में तब तक चलते रहेंगे, जब तक हम उसके अंत तक नहीं पहुँच जाते, भले ही हमारी साँसें ही क्यों न रुक जाएँ।" देवांश ने अपने चेहरे पर मुस्कराहट दिखाई, "अच्छा, ठीक है। लेकिन आज सारी लड़ाई तुम ही करोगी। मुझे पता है, पिछली बार मैं किस गुफा के अंदर गया था और कहाँ पर आगे जाना छोड़ दिया था। हम उसी गुफा में चलते हैं और उसमें और आगे जाते हैं।" यह कहकर देवांश ने श्री को कमर से पकड़ा और अगले ही पल पहाड़ी से लटकते हुए इतनी तेजी से नीचे उतरने लगा, जैसे वह किसी पेड़ से सीधा नीचे आ रहा हो, लेकिन बीच-बीच में पड़ाव लेते हुए। नीचे आते ही उसने श्री को छोड़ दिया, और फिर दोनों ही एक गुफा की ओर दौड़ने लगे। दोनों की दौड़ने की गति काफी तेज थी, सामान्य लोगों से तो कहीं ज्यादा तेज। थोड़ी ही देर में उन्होंने एक जंगल पार किया और फिर कुछ झाड़ियों से गुज़रते हुए एक पहाड़ी पर चढ़ने लगे। उस पहाड़ी के बीच में आते ही देवांश श्री के साथ एक गुफा में चला गया। लगभग दो घंटे बाद दोनों गुफा में काफी गहराई तक आ गए थे। देवांश यहाँ पहुँचते ही दीवारों पर बने निशानों को देखने लगा। श्री भी दीवारों पर बने निशानों को देख रही थी। ये निशान अजीबोगरीब थे, जैसे देवांश ने खास तरह की रेखाओं को जोड़कर आपस में मिलाकर किसी तरह के चक्र का निर्माण किया हो। यह देखकर श्री ने देवांश से पूछा, "तुमने दीवार पर ये क्या बना रखा है? तुम्हें तो ठीक से चित्रकारी भी नहीं आती है?" देवांश ने निशानों की ओर देखा और जवाब देते हुए कहा, "ये कोई आम चित्र नहीं हैं, ये डिवाइन ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल करने के लिए बनाए गए चक्र हैं। ये चक्र मेरे और तुम्हारे शरीर में मौजूद ऊर्जा को किसी एक जगह पर केंद्रित करके हमला करने में मदद कर सकते हैं।" श्री बड़ी-बड़ी आँखों से देवांश की ओर देखने लगी, "क्या सच में?" देवांश ने उसे सहलाया, "हाँ, सच में। लेकिन मैं अभी तक इनका इस्तेमाल करना नहीं सीख पाया हूँ। मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन मुझे लग रहा है मेरी आयु अभी कम है इनका इस्तेमाल करने के लिए। शायद 15 या 16 साल के बाद मैं इन चक्रों का इस्तेमाल कर सकूँ।" श्री ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा, "मुझे समझ में नहीं आ रहा, तुम इतनी सारी चीज़ें कहाँ से सीखकर आते हो? और तुम डिवाइन ऊर्जा का भी इस्तेमाल करते हो! इसके बारे में आश्रम में गुरु ने बताया था कि यह सिर्फ़ भगवान ही इस्तेमाल कर सकते हैं। अब देखो, तुम भगवान तो नहीं हो, मगर फिर भी तुम इसका इस्तेमाल करते हो, और तुमने मुझे भी इसका इस्तेमाल करना सिखाया है। पर तुमने आज तक मुझे नहीं बताया कि तुम ये सब कहाँ से सीख कर आए हो?" देवांश ने श्री को बहुत कुछ बताया था, लेकिन आज तक उसने उसे यह नहीं बताया था कि वह भगवान का अवतार है। श्री जब भी उसे इस बारे में कुछ पूछती थी, तब वह बातों को कुछ न कुछ कहकर टाल देता था। देवांश ने थोड़ा सोचा और फिर जवाब देते हुए कहा, "अगर तुम इस बारे में किसी और को न बताओ, तब तो मैं तुम्हें यह राज बता देता हूँ, वरना मुझे इस राज को अपने तक ही रखना होगा।" श्री ने पीछे देखा, उसके गालों पर लाली थी और उसके होंठों पर एक मुस्कराहट, "तुम बताओ, मैं यह बात किसी को भी नहीं बताऊँगी।" देवांश को पता था कि श्री किसी बात को हज़म नहीं कर पाती। उसने कहा, "दरअसल, मुझे आश्रम में एक गुप्त लाइब्रेरी मिली थी, जिसके बारे में आश्रम के लोगों को भी आज तक नहीं पता। वहाँ पर ढेर सारी ऐसी किताबें थीं, जिनमें बाहरी दुनिया के बारे में बताया गया था। उन किताबों में एक किताब थी जिसके अंदर दिव्य ऊर्जा के बारे में लिखा गया था और उसके इस्तेमाल करने के तरीके के बारे में भी। तभी मैंने उसे वहाँ से सीख लिया था।" श्री ने देवांश की बात को मान लिया, "क्या बात है! मुझे तो आज तक आश्रम में कोई भी गुप्त लाइब्रेरी नहीं मिली। मैंने भी वहाँ पर पूरी छानबीन की थी, यह सोचकर कि यह आश्रम काफी पुराना है, तो यहाँ पर कुछ ऐसा मिल सकता है जो पूरे गाँव वालों को हैरान कर देगा।" देवांश हँसने लगा। उसने अपने सिर पर पीछे की ओर बालों में हाथ फेरा और कहा, "तुम्हारी नज़रें मेरी तरह तेज नहीं हैं, वरना तुम्हें भी वह मिल जाता जहाँ मैं अक्सर जाता हूँ।" श्री ने गुस्से से कहा, "अब देखो, जैसे ही हम यहाँ से वापस जाएँगे, मैं सबसे पहले उस कमरे को ढूँढूँगी।" दीवारों पर बने सारे चक्र खत्म हो गए थे और अब खाली दीवारें थीं। देवांश ने यह देखकर कहा, "आखिरी बार मैं यहीं तक आया था। जब भी मैं किसी जगह पर रुकता हूँ, मैं एक चक्र बना देता हूँ। अब इसके बाद हमें कोई भी चक्र नहीं मिलेगा।" देवांश अपनी बात पूरी नहीं कर पाया था कि अचानक सामने एक आदमखोर आ गया। यह आदमखोर काफी अजीब सा था, किसी पतले, प्लास्टिक के रबर की तरह, जो दीवारों पर चारों ओर फैला हुआ था; किसी कवर की तरह। देवांश कुछ करता, उससे पहले ही श्री ने अपनी तलवार निकाली और उसे सामने की ओर करके, अपने पैरों को नीचे करके लड़ने के लिए तैयार हो गई। उसका ध्यान पूरी तरह से आदमखोर पर केंद्रित था। आदमखोर थोड़ा सा आगे आया और फिर एक ही जगह पर इकट्ठा होकर एक अजीब से जानवर में बदल गया, जो रबर की तरह पतला था। या गुब्बारे की तरह, जिसमें पानी भरा हो, और अपना आकार बदल सके। श्री ने अपने शरीर को और नीचे किया और फिर अपने पूरे ध्यान को आदमखोर पर लगा दिया। उसके शरीर से सुनहरी रोशनी चमकने लगी और अगले ही पल वह तेज़ी से उस आदमखोर की ओर गई और अपनी तलवार से इतने सारे वार किए कि उनकी गिनती भी नहीं की जा सकती थी। सारे वार करने के बाद वह वापस देवांश के पास आकर उसी तरह खड़ी हो गई, जैसे वह हमला करने से पहले खड़ी थी। कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ। इसके बाद सामने का आदमखोर हज़ारों टुकड़ों में बदल गया और श्री सामान्य हो गई। श्री बोली, "चलो आगे चलें।" दोनों आगे चलने लगे। एक के बाद एक गुफा में आदमखोर आते जा रहे थे और श्री सबका सामना करते हुए उन्हें खत्म कर रही थी। देवांश को कुछ भी नहीं करना पड़ रहा था, वह बस श्री को उन आदमखोरों को खत्म करते हुए देख रहा था। थोड़ा और आगे जाने पर गुफा पतली होने लगी, लेकिन अभी भी यह काफी बड़ी थी और इसमें सामने आने वाले आदमखोर छत तक आ रहे थे। श्री का सामना एक बड़े आदमखोर से हुआ, जिसे हराने में उसे दिक्कत महसूस हो रही थी। यह बड़ा आदमखोर लगभग 25 टाँगों वाला था, और सभी 25 टाँगें वह काफी तेज़ी से हमले के लिए इस्तेमाल कर रहा था। श्री एक टाँग पर हमला करने जाती थी, तो वह दूसरी टाँगों से हमला करके उसे दूर धकेल देता था। काफी देर तक श्री उसे नीचे से ही खत्म करने की कोशिश करती रही, लेकिन जब उसे लगा कि वह यहाँ से उसे खत्म नहीं कर पाएगी, तब उसने गुफा की दीवारों का सहारा लेते हुए ऊपर की ओर चढ़ना शुरू किया और उस आदमखोर के ऊपर कूद गई। आदमखोर के ऊपर आते ही उसने अपनी तलवार को जोर से उसके चमड़े में घुसाया और फिर उसके शरीर पर दौड़ती चली गई, जिससे उसका शरीर टुकड़ों में फटता चला गया। चार-पाँच चक्कर लगाने के बाद वह देवांश के सामने कूद गई। उसने देवांश की ओर आत्मविश्वास से भरी नज़रों से देखा, यह दिखाते हुए कि वह काफी बड़े-बड़े कारनामे कर रही है। उसके ठीक पीछे, आदमखोर का पूरा शरीर कई सारे टुकड़ों में ऐसे बिखर गया, जैसे वह बस लकड़ी के टुकड़े हों जिन्हें एक-दूसरे से जोड़ा गया था, लेकिन अब एक हल्के हवा के झोंके से वे सब गिर गए। श्री अपनी जगह पर खड़ी हुई और फिर बोली, "चलो आगे चलें।" देवांश ने अपने हाथ पीछे कर रखे थे। उसने सिर हिलाया और फिर दोनों आगे चल दिए। शाम होने के करीब थी और वे दोनों अभी भी गुफा में चलते जा रहे थे। ऑक्सीजन की कमी से वे दोनों ठीक से साँस भी नहीं ले पा रहे थे। देवांश और श्री दोनों ने प्राणायाम का अभ्यास कर रखा था, जिसकी वजह से वे कम ऑक्सीजन में भी ठीक से साँस ले पाते थे, लेकिन अब उन्हें भी मुश्किल हो रही थी। देवांश ने गहरी साँस ली और रुक गया, "तुम रुक जाओ श्री, यह गुफा अब तक की गुफाओं में सबसे ज़्यादा लंबी है।" यह कहकर देवांश जोर से गुफा में चिल्लाया, यह देखने के लिए कि उसकी आवाज़ किस तरह से वापस आती है, लेकिन उसके चिल्लाने के बावजूद सामने से आवाज़ वापस नहीं आई, जिसका मतलब था कि अभी भी गुफा इतनी गहरी है कि आवाज़ भी किसी से टकराकर वापस नहीं आ रही है, या फिर किसी रुकावट की वजह से वह बीच में ही खत्म हो रही है। देवांश बोला, "हम इतना आगे आ गए हैं, लेकिन अभी भी हमारी आवाज़ सामने किसी भी चीज़ से टकराकर वापस नहीं आ रही है, मतलब कहीं न कहीं इस गुफा के अंदर कोई ऐसा राज़ छुपा हुआ है जिसे हम अभी नहीं सुलझा सकते। ऐसा लग रहा है जैसे यह गुफा अनंत तक फैली हुई है। हमें वापस आना होगा।" श्री गुस्से से बोली, "तुम्हें वापस जाना है तो जाओ, मगर मैं वापस नहीं जाने वाली हूँ। मैं अभी और आगे जा सकती हूँ। अभी भी मैं साँस ले पा रही हूँ, और जब तक मैं साँस लेती रहूँगी, तब तक मैं इस गुफा में चलती रहूँगी।" देवांश ने उसका हाथ पकड़ा और फिर उसे पीछे की ओर खींचने लगा, "तुम्हें चलना ही होगा।" श्री ने जोर लगाने की कोशिश की, मगर देवांश को इससे रत्ती भर भी फ़र्क नहीं पड़ा। श्री ने अपने शरीर को सुनहरी रोशनी से चमकाकर दिव्य ऊर्जा का इस्तेमाल किया, मगर इसके बावजूद भी देवांश को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। काफी देर तक जब श्री नहीं मानी, तब देवांश ने उसे उठाकर अपने कंधों पर रखा और फिर तेज़ी से दौड़ने लगा। देवांश की दौड़ने की रफ़्तार आवाज़ की रफ़्तार के बराबर थी। इतनी रफ़्तार में श्री को साँस लेने का भी वक्त नहीं मिल रहा था, और जब उसे साँस लेने का वक्त नहीं मिल रहा था, तो उसे आगे जाने की ज़िद करने का भी वक्त नहीं मिला। रात होने से पहले ही दोनों वापस बाहर आ गए। देवांश ने श्री को नीचे उतारा और कहा, "अभी हमें और अभ्यास करना होगा। तुम ज़िद करना छोड़ो। हम यहाँ पर चार-पाँच सालों बाद दोबारा आएँगे।" श्री ने गहरी साँस ली और फिर गुफा की ओर देखते हुए कहा, "मेरा मन तो नहीं कर रहा है जाने का, लेकिन शायद तुम सही कह रहे हो। हम अभी तक इस गुफा के काबिल नहीं बने हैं, इसलिए हमें हमारे काबिल होने का इंतज़ार करना होगा।" आखिरकार श्री ने हामी भरी और फिर दोनों ही वापस जाने लगे।

  • 9. The 10th Avatar of God - Chapter 9

    Words: 1523

    Estimated Reading Time: 10 min

    रात काफी ठंडी थी। घर आने के बाद से देवांश लखन का इंतज़ार कर रहा था। उसकी माँ आग में आंच जला रही थी और खाना बना रही थी। अपनी कमर से बंधी तलवार को पकड़े हुए, देवांश लगातार अपने घर के आंगन में चहलकदमी कर रहा था। वह खुद से बोला, "दस साल की उम्र काफी होगी खतरनाक काम करने के लिए। जैसे ही पिताजी घर पर आएंगे, मैं उनसे इजाज़त माँगूँगा। वैसे भी, दुनिया की रक्षा के लिए मैं पैदा हुआ हूँ, और जिस इंसान से इस दुनिया को खतरा है, उसे खत्म करना मेरा काम है। मैं जानता हूँ इन लोगों को इस दुनिया के बारे में नहीं पता, लेकिन दुनिया सिर्फ़ इस छोटे से टापू पर सीमित नहीं है; दुनिया कहीं और भी है, और वहाँ जाकर मुझे अपना काम करना है।" इंतज़ार करते-करते रात के ग्यारह बजने को हो गए, मगर लखन अभी तक वापस नहीं आया था।  आहुदी बाहर निकली और उसने परेशान चेहरे के साथ कहा, "बेटा, तुम्हारे पिताजी को तो अब तक आ जाना चाहिए था। वे इतनी देर रात कभी बाहर नहीं रहते; ठंड भी ज़्यादा है, मुझे उनकी फ़िक्र हो रही है।" लखन ने रास्ते की तरफ़ देखा, जहाँ से उसके पिताजी अक्सर आते थे। बर्फ से ढका हुआ रास्ता पूरी तरह खाली दिखाई दे रहा था। उसकी माँ ने कहा, "वह आज कुछ गाँववालों के साथ आदमखोरों को मारने के लिए पहाड़ी के नीचे बनी गुफा में जाने वाले थे। एक काम करो, जाकर वीर से पूछो कि क्या वे घर पर आ गए हैं? वे उनके साथ गए थे।" देवांश ने सहमति से कहा, "ठीक है माँ, मैं अभी पूछकर आता हूँ।" यह कहकर देवांश बर्फ से जमी सड़क पर दौड़ते हुए वीर के घर जाने लगा। कुछ ही देर में वह वीर के घर पहुँच गया, क्योंकि वह दौड़ने में काफी तेज था। जैसे ही वह वहाँ पहुँचा, उसने देखा वीर घर के आंगन में ही था और उसने आग जलाई हुई थी। वह अपनी बेटी श्री के साथ खेल रहा था। देवांश आया और पूछा, "वीर अंकल, क्या मेरे पिताजी अभी तक नहीं आए हैं? हम उनका घर पर इंतज़ार कर रहे हैं, मगर वे घर नहीं पहुँचे।" वीर ने अपने चेहरे पर परेशानी दिखाते हुए कहा, "क्या कहा! लेकिन वे तो हमारे साथ गुफा से बाहर आए थे। गुफा से बाहर आने के बाद उन्होंने कहा था कि वे एक बार खेतों को देखकर आएंगे, इसके बाद घर पहुँचेंगे। उन्हें तो अब तक घर आ जाना चाहिए था।" श्री ने कहा, "लेकिन अंकल खेतों में वे कहाँ जा सकते हैं?" देवांश को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने कहा, "ठीक है, फिर मैं देखकर आता हूँ। शायद खेत में उन्हें कोई काम आ गया होगा, जिसे वे करने लग गए होंगे।" वीर ने घर जाकर अपनी तलवार उठाई और कहा, "ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।" लेकिन उसने पलटकर देखा तो देवांश वहाँ नहीं था; वह कब का निकल चुका था। यह समय कम था, मगर देवांश के लिए काफी था। लखन का खेत एक जंगल को पार करने के बाद आता था। देवांश इस जंगल में दौड़ रहा था। उसके साँसों की आवाज़ के अलावा और उसके कदमों की आवाज़ के अलावा जंगल में से और कोई भी आवाज़ नहीं आ रही थी। उसे अपने पिता की फ़िक्र हो रही थी। दूसरी तरफ़, लखन भी आज एक ऐसी मुसीबत में फँसा हुआ था, जिसमें वह कभी नहीं फँसा था। कुछ पेड़ों के झुंड के बीच उसके आस-पास चार से ज़्यादा आदमखोर थे; अजीबोगरीब आदमखोर, जिन्हें लखन ने पहले कभी नहीं देखा था। आदमखोरों के मामले में यह चीज़ सबको हैरान करने वाली थी कि एक तरह दिखने वाला आदमखोर दूसरी बार दिखाई नहीं देता था। चारों आदमखोर बड़ी ऊँचाई के नहीं थे; वे तकरीबन इंसान की तुलना में आधी ऊँचाई के होंगे, मगर वे दिखने में काफी खतरनाक थे। उनका शरीर हड्डियों के कंकाल से बना हुआ था। उनके सीने में जो दिल था, वह हड्डियों के कंकाल से भी साफ़ धड़कता हुआ देखा जा सकता था। लखन अब तक उन्हें तलवार से मारने की कोशिश कर चुका था, लेकिन उनके शरीर पर तलवार का कोई असर नहीं हो रहा था। लखन उनकी हड्डियों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहा था, पर हड्डियाँ बहुत ताकतवर थीं। इस वजह से एक इंसान अपनी तलवार से न तो उन्हें काट सकता है और न ही उन्हें तोड़ सकता है। जलने के बाद ही वे हड्डियाँ इतनी कमज़ोर होती थीं कि उन्हें काटा जा सकता था। लखन ने चारों आदमखोरों की तरफ़ बारी-बारी से देखा, "आज तो अच्छी मुसीबत में फँस गया! मैं तो बस खेत देखने आया था, मुझे क्या पता आदमखोर मेरे खेतों को लूटने आए हैं।" सामने के एक आदमखोर ने अपने पैरों पर ज़ोर लगाया और लखन पर कूदा। लखन फुर्ती से अपने दाएँ तरफ़ कूद गया और अपनी पोज़ीशन बदलकर उस आदमखोर के हमले से बच गया। आदमखोर ने अपना मुँह तेज़ी से लखन की तरफ़ किया और खोलते हुए बुरी तरह से चिल्लाया। उसकी बुरी तरह से चिल्लाने से उसके मुँह से अजीब सा द्रव निकलने लगा, जो हवा में मकड़ी के जाले की तरह फैल रहा था। इसके कुछ जाले लखन की त्वचा से टच हुए तो वो जलने लगी। लखन दूर हट गया, "यह क्या था? इनकी लार तो काफी ज्वलनशील है।" वह यह बोल ही रहा था कि तभी उसके दाएँ ओर मौजूद एक आदमखोर ने तेज़ी से दौड़ लगाई और लखन के पास पहुँचकर अपने सिर से उसे टक्कर मारी। लखन टकराते ही तेज़ी से उछल पड़ा, लेकिन गिरने से पहले ही वह संभल गया और पैरों के बल नीचे गिर गया। दो आदमखोर तेज़ी से उसके ऊपर हमला करने के लिए आए, तो लखन ने एक पर तलवार से हमला किया और दूसरे को पैर से दूर धकेल दिया। तलवार से हमला किया गया आदमखोर पास ही गिर गया, जबकि जिसे लखन ने धक्का मारा था, वह दूर जाकर गिरा। अब एक बार फिर से लखन के सामने वह आदमखोर आ गया जिसने उस पर लार फे़की थी। वह चलते हुए भी डरावना लग रहा था; उसकी लाल रंग की आँखों से ही डर लग रहा था। लखन ने अपने पैरों को नीचे कर लिया और तलवार पर पकड़ मज़बूत की, क्योंकि वह अब पूरा जोर लगाकर उस पर हमला करने वाला था। आदमखोर धीरे-धीरे कदमों से लखन की तरफ़ आ रहा था, लेकिन लखन ने उसकी तरफ़ तेज़ी से दौड़ना शुरू कर दिया ताकि वह एक छलांग लगाकर अपने पूरे जोर से उस आदमखोर के सिर पर हमला कर सके। वह दौड़ ही रहा था कि अचानक उसे एक अजीब सी आवाज़ सुनाई दी, जिसे सुनते ही वह रुक गया। यह आवाज़ पहाड़ियों से आ रही थी; ऐसी आवाज़, जैसे हज़ारों की संख्या में सैनिकों का दल कदमताल करते हुए पहाड़ी से नीचे उतर रहा हो। लखन ने अपनी आँखों से पहाड़ी की तरफ़ देखा। जो भी वह देख रहा था, उस पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वह एक भयानक, खौफ़नाक सपना देख रहा हो। ऐसा कभी हो ही नहीं सकता था, और यही लखन का मानना था। उसके ठीक सामने जो दृश्य था, उसमें पहाड़ी से हज़ारों की तादाद में आदमखोर तेज़ी से उतर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे आज सारे आदमखोरों ने मिलकर आपस में एक मीटिंग की हो और फिर पूरे गाँव पर हमला करने का फ़ैसला किया हो। उनकी संख्या, उनका बल, और उनका उतरने की रफ़्तार – इन सबसे इसी चीज़ का अंदाज़ा लग रहा था। लखन परेशानी से बोला, "मुझे जल्दी से जल्दी गाँववालों को इस बारे में बताना होगा। आज आदमखोर किसी भी गाँववाले को नहीं छोड़ेंगे।" यह बोलकर वह जाने की तैयारी करने लगा, मगर उसे चारों आदमखोरों ने फिर से घेर लिया। चारों आदमखोरों के होते हुए वो वहाँ से नहीं जा सकता था, और उन्हें मारना भी उसके लिए आसान नहीं था, क्योंकि ये सिर्फ़ हड्डियों वाले आदमखोर थे। इससे पहले जो भी आदमखोर उसे मिले थे, उनकी त्वचा होती थी, और जब वह उनकी त्वचा काटता था, तो खून निकलने की वजह से वे मर जाते थे, जबकि इनका तो खून ही नहीं था। अचानक एक और आवाज़ आई, और लखन का ध्यान फिर से पहाड़ी की तरफ़ चला गया। पहाड़ी की चोटी पर उसे एक और आदमखोर दिखाई दिया; एक विशाल आदमखोर; किसी भेडी़ए की तरह दिखाई देने वाला आदमखोर, जंगल में मौजूद लंबे-लंबे पेड़ों की ऊँचाई के बराबर का। उसके पंख भी थे। पहाड़ी की चोटी पर उसने अपने पंखों को फैला रखा था। उसका चेहरा किसी भेड़िये की तरह आसमान की ओर था, और वह आसमान के बादलों को घूर रहा था। उसके पंखों में चमक दिखाई दे रही थी, जैसे बिजली की चमक हो रही हो। उसने एक अजीब सी आवाज़ अपने मुँह से निकाली, वही आवाज़ जो लखन ने सुनी थी। इस आवाज़ के होते ही पहाड़ी के पीछे से हज़ारों की संख्या में और आदमखोर बाहर निकल आए थे। यह उन सबका मालिक लग रहा था; ऐसा लग रहा था कि जो भी आदमखोर हमला करने के लिए आए हैं, वे सब उसी के आदेश पर चल रहे थे। क्या उसी ने सभी आदमखोरों को इकट्ठा किया और उन्हें गाँव पर हमला करने के लिए मजबूर किया?

  • 10. The 10th Avatar of God - Chapter 10

    Words: 1477

    Estimated Reading Time: 9 min

    लखन की परेशानी और भी ज़्यादा बढ़ गई। पहले ही आदमखोरों की संख्या काफी ज़्यादा थी, और अब तो यह और भी बढ़ गई थी। लखन भागने की तैयारी करने लगा, लेकिन तभी एक आदमखोर ने उसे गिरा दिया और अपने चारों पैरों से उसके ऊपर आकर खड़ा हो गया। लखन ने अपनी तलवार से उसके दिल की ओर निशाना साधा और उसके दिल को चीर दिया। लखन की धड़कनें तेज हो गई थीं; उसे लगा कि अगर वह आदमखोर के दिल को निशाना बनाएगा, तो वह मर जाएगा। मगर जब लखन ने तलवार बाहर निकाली, तो उसके दिल के आस-पास हल्के बिजली के स्पार्क वाली रोशनी के साथ अजीब सा धुआँ निकला, और दिल वापस पहले जैसा हो गया। आदमखोर की आँखों का रंग बदल गया, और वे लाल रंग की गहरी रोशनी में बदल गईं, जिनमें अजीब सा कालापन था। उसने ऊपर की ओर चेहरा किया और जोर से दहाड़ा। उसकी दहाड़ पहाड़ी की चोटी पर खड़े आदमखोरों ने सुनी, और वे भी सामने से अजीब से तरीके से दहाड़ा। लखन ने उसके शरीर पर नीचे से अपनी तलवार से कई हमले किए। उसने उसके पैर पर हमला किया ताकि वह नीचे गिर जाए, मगर वह हिला तक नहीं। अब लखन को अपनी मौत अपनी आँखों के सामने दिखाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह आज ज़िंदा वापस नहीं जा पाएगा और न ही गाँव वालों को बता पाएगा। इसके बाद गाँव वालों का भी अंत निश्चित था, क्योंकि वे किसी भी तरह की लड़ाई के लिए तैयार नहीं थे। उसने हिम्मत नहीं हारी और लगातार अपनी तलवार से हमले करता रहा। अचानक, एक हमले को आदमखोर ने अपने मुँह से पकड़ा और उसकी तलवार छीनकर दूर फेंक दी। लखन ने आदमखोर को हाथ के मुक्के से मारने की कोशिश की, मगर आदमखोर ने उसका हाथ अपने मुँह में ले लिया और अगले ही पल इतना जोरदार झटका दिया कि उसका हाथ कंधे से अलग हो गया। लखन जोर से चिल्लाया क्योंकि उसका हाथ उसके कंधे से अलग हो गया था। खून के फुहारें उसके कंधे से निकलने लगे, और उसके चेहरे पर भीषण दर्द छा गया। अब लखन की मौत उसके सामने खड़ी थी। आदमखोर ने उसके हाथ को ऐसे खींचा ता जैसे कोई कुत्ता हड्डी को खींचता हो, और अब वो उसे अपने बिना त्वचा वाले पेट में ले गया था। लखन की उंगलियाँ और उसके हाथ के टुकड़े आदमखोर के पेट में साफ़ दिखाई दे रहे थे। आदमखोर ने दोबारा आसमान की ओर देखा और शोर मचाया। फिर उसने अपना मुँह खोला और लखन के सिर को कुतरने की तैयारी करने लगा। लखन को अपनी सारी उम्मीदें खत्म होती हुई दिखाई दे रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे वह आज ज़िंदा नहीं बचेगा। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। आँखें बंद करके बोला, "हे ऊपर वाले, हे भगवान, मैं नहीं चाहता आप मेरी हिफ़ाज़त करें, मगर मेरे इस गाँव का और मेरे परिवार का ख़्याल ज़रूर रखना। मेरे इस गाँव को और मेरे परिवार वालों को बचा लेना। भगवान, अब बस आप ही हो जो इस गाँव को बचा सकते हो।" देवांश, जो जंगल में दौड़ रहा था, अचानक उसे अपने कानों में यह सब सुनाई दिया। देवांश ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसकी आँखों से आँसुओं का कतरा निकलकर उसके गालों पर आ गया। वह हवा में उछल रहा था, दौड़ते हुए। आँसुओं का कतरा उसके गाल से लुढ़का और जमीन पर गिर गया। जैसे ही वह जमीन पर गिरा, ऐसा एहसास हुआ जैसे कोई उल्कापिंड जाकर जमीन पर गिर गया हो। एक तेज तरंग चारों ओर फैलती चली गई; आस-पास के पेड़-पौधे झूलकर गिर गए। जमीन पर ऐसा एहसास हुआ जैसे कोई भूकंप आ गया हो। देवांश के आँसू उसकी आँखों से बहते रहे। देवांश ने अपनी आँखें खोलीं तो वे सामान्य आँखें नहीं थीं, बल्कि सुनहरे रंग से चमकती हुई आँखें थीं। अचानक यह सुनहरा रंग उसके शरीर के आस-पास भी दिखाई देने लगा, और जब उसके पैर जमीन पर आए, तब उसकी चाल पहले से भी कई गुना तेज हो गई। जब वह दौड़ रहा था, तब उसके पीछे पीले रंग की रोशनी की एक छाया छूट रही थी, जैसे उसके शरीर से भयानक आग बाहर निकल रही हो और वह पीछे ही रह गई हो, जबकि वह दौड़कर आगे निकल गया हो। आदमखोर उसके पिता को नुकसान पहुँचाने वाला था, तभी देवांश वहाँ पहुँचा और उसने जोरदार मुक्का आदमखोर के मुँह पर मारा। जैसे ही वह मुक्का आदमखोर के मुँह पर पड़ा, वह हवा में तेज़ी से उछला और एक नहीं, दो नहीं, तकरीबन एक दर्जन से ज़्यादा पेड़ों को तोड़ते हुए दूर जा गिरा। उसकी हड्डियाँ बुरी तरह से टूट गई थीं, और जब भी वह किसी पेड़ से टकराया था, तब बिखर गई थीं। देवांश के शरीर को देखकर और उसके शरीर के आस-पास निकलने वाली सुनहरी रंग की रोशनी को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह गुस्से में था। देवांश ने अपने पिता की ओर देखा, जो आँखें बंद किए हुए थे। उसके पिता ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं, तो उसे अपने ठीक सामने देवांश नहीं, बल्कि रोशनी से चमकता हुआ कोई शख़्स दिखाई दिया। उसका चेहरा ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था; तेज रोशनी की वजह से वो उसके चेहरे को नहीं देख पा रहा था। देवांश ने अपना हाथ अपने पिता की ओर बढ़ाया, "उठिए पिताजी..." देवांश बोला, और उसके पिता जैसे होश में आ गए। क्या यह उसका बेटा है? रोशनी से चमकता हुआ एक लड़का जो उसके ठीक सामने खड़ा है, क्या यह उसका बेटा है? एक आदमखोर ने दाएं ओर से हमला करने की कोशिश की, मगर देवांश ने अपना हाथ हवा में कर दिया। उसके हाथ से रोशनी की चमक किसी तेज लाइट की तरह निकली और उसने आदमखोर को हवा में ही रोक लिया। हे भगवान!! इतना ताक़तवर शख़्स!! इतना ताक़तवर लड़का!! क्या यह उसका बेटा है? उसका बेटा, जो सिर्फ़ अपनी 9 साल की उम्र में है, क्या इतना ताक़तवर है?? अपने बचे हुए हाथ को लखन ने अपने बेटे के हाथ में रख दिया। उसके बेटे के शरीर से पीले रंग की ऊर्जा लखन के शरीर में जाने लगी। इससे लखन का हाथ वापस तो नहीं आया, मगर उसे जो भी दर्द का एहसास हो रहा था, वह सारा ख़त्म हो गया। यह एक करिश्मा था। दर्द का एहसास पूरी तरह से गायब हो गया। यह चमत्कार था। लखन जैसे लोगों के लिए, जो बस एक छोटे से टापू पर रहते थे और जिन्हें यह भी नहीं पता था कि इस टापू के अलावा भी किसी जगह पर दुनिया मौजूद है, उनके लिए यह चमत्कार था। *** लखन को देवांश ने खड़ा किया। लखन देवांश के पीछे आया और पहाड़ी की ओर देखते हुए बोला, "बेटा, हमारा गाँव इस वक़्त ख़तरे में है; ये बहुत ज़्यादा संख्या में हैं। अगर इतने सारे आदमखोर हमारे गाँव में पहुँच गए, तो कोई भी ज़िंदा नहीं बचेगा।" देवांश ने पहाड़ी की ओर देखा, "आप फ़िक्र मत कीजिए पिताजी, जब तक मैं इस गाँव में हूँ, तब तक इनमें से कोई भी इस गाँव के रहने वालों को, तो छोड़िए, यहाँ के जीव को भी हाथ नहीं लगा सकता।" यह कहकर देवांश ने अपना हाथ ऊपर किया और जोर से बोला, "द डिसेंशन!" लखन नहीं जानता था उसने क्या बोला और क्यों बोला। मगर जैसे ही उसने ये शब्द बोले, आसमान में एक सुनहरे रंग की चमक उठी। फिर उस चमक से एक के बाद एक अलग-अलग रेखाएँ निकलने लगीं, जैसे कोई कलम से वहाँ पर एक चित्र बना रहा हो। आसमान में बन रहा यह पीली रोशनी का चित्र दूर से भी देखा जा सकता था। गाँव में मौजूद हर एक शख़्स, जो अपने घर में था, इस रोशनी की वजह से बाहर आ गया। सब की आँखें बस इस चक्र को ही देख रही थीं जो अभी तक बन ही रहा था। जो भी इसे देख रहा था, उसकी आँखें हैरत से खुली की खुली रह गई थीं। और मन में एक सवाल, कि आखिर यह है क्या? वीर और श्री भी जंगल की ओर आ रहे थे ताकि वे लखन के पास पहुँच सकें, मगर वे अभी तक काफी दूर थे। रास्ते में ही उनकी नज़र आसमान पर गई, तो वे भी रुक गए। वीर को तो समझ ही नहीं आ रहा था यह क्या है, मगर श्री इसके बारे में जानती थी। श्री ने धीमी आवाज़ में कहा, "उसने तो कहा था कि वह अभी चक्र शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर सकता है; इसके लिए 15-16 साल की उम्र होना ज़रूरी है, मगर वो...वह तो इसका इस्तेमाल कर रहा है! यानी उसने मुझे झूठ कहा था। इस वक़्त वह चक्र बना रहा है; यह उसे गुफ़ा में आने वाला पहला चक्र है।" आसमान में एक विशाल आकृति बन गई जो अनजान लोगों के लिए आड़ी-टेढ़ी लकीरों के सम्मेलन के अलावा और कुछ भी नहीं थी, मगर जो इसको जानते थे, जिनमें सिर्फ़ श्री इकलौती थी, उसे पता था यह क्या था। द डिसेंशन। देवांश का पहला चक्कर।

  • 11. The 10th Avatar of God - Chapter 11

    Words: 1385

    Estimated Reading Time: 9 min

    जो भी आदमखोर पहाड़ी से नीचे उतर रहे थे, उन्हें इस चक्कर से कोई खास चिंता नहीं था। उनका ध्यान केवल आगे की ओर था, और वे दौड़ने पर ही केंद्रित थे। अचानक, चक्कर से पीले रंग की रोशनी, बारिश के पानी की तरह नीचे गिरने लगी। चाँदनी रात में, इस पीली रोशनी ने पहाड़ी के साथ-साथ आसपास के जंगल को भी ढँक लिया। इसकी सीमा देवांश के ठीक सामने थी; इसके आगे यह रोशनी नहीं जा रही थी, जबकि पीछे यह रोशनी उस आदमखोर के पैरों के पास आकर समाप्त हो गई थी, जो पहाड़ी की चोटी पर सबको आदेश दे रहा था। वह इसकी जद में नहीं था। सारे दौड़ रहे आदमखोर, जो इस पीली रोशनी के अंदर थे, उनके शरीर को पीले रंग की रोशनी की बारिश छलनी करने लगी। देखते ही देखते, हजारों की संख्या में आदमखोरों का शरीर खत्म होने लगा, जैसे उन पर तेज़ाब गिर रहा हो और उन्हें गला रहा हो। पहाड़ी से अभी भी आदमखोर आ रहे थे, और जो भी आदमखोर इस पीली रोशनी के अंदर आ रहे थे, वे खत्म होते जा रहे थे। देखते ही देखते, कुछ क्षणों में, हजारों की संख्या में जो भी आदमखोर इस रोशनी की जद में थे, वे सब खत्म हो गए, और पीछे बस उनकी हड्डियाँ और उनके कंकाल रह गए, जो अब पहाड़ी पर पत्थर के बारीक टुकड़ों की तरह लुढ़क रहे थे। पहाड़ी की चोटी पर खड़े आदमखोर ने, अपना चेहरा ऊपर करके, एक अलग तरह की आवाज निकाली, जो क्रोध से भरी हुई थी। इस आवाज के निकलते ही, सारे आदमखोर अपनी जगह पर रुक गए। वे आदमखोर, वह भी जो इससे पहले पागलों की तरह रोशनी में जा रहे थे, यह जानते हुए भी कि इसके अंदर जाने से वे मर रहे हैं। इस हरकत से पता चला कि सारे आदमखोर उसके वश में थे और केवल उसी की बात सुन रहे थे। आदमखोर ने एक और आवाज निकाली, जिससे वे सारे दाएं और की पहाड़ीयों की ओर दौड़ने लगे, न कि सामने की ओर। देवांश ने अपना हाथ नीचे किया और फिर लखन की ओर पलटा, “आपको गाँव वालों को आश्रम में इकट्ठा होने के लिए कहना चाहिए। अगर गाँव वाले अलग-अलग जगह पर रहेंगे, तो उन्हें बचा पाना मुश्किल होगा, लेकिन एक जगह पर रहेंगे तो बचाना आसान होगा।” लखन ने सिर हिलाया और फिर वह गाँव की ओर दौड़ पड़ा। वहीं देवांश सामने मौजूद सुनहरे रंग की रोशनी में प्रवेश कर गया। वह इस रोशनी के अंदर से अब उस आदमखोर की ओर जा रहा था जो उसे पहाड़ी की चोटी पर दिखाई दे रहा था। उस आदमखोर ने अपना चेहरा नीचे किया और देवांश को देखा। दोनों के बीच में अभी काफी दूरी थी। देवांश अपनी तेज नज़रों की वजह से उसे दूर से ही देख पा रहा था, जबकि जो आदमखोर चोटी पर खड़ा था, उसके पास भी शायद ऐसा ही कोई गुण था। वह आदमखोर पलटा और बाकी आदमखोरों के साथ दाएँ तरफ़ जाने लगा। कुछ हद तक वह पैदल चला, इसके बाद उसने अपने पंख फैलाए और वह हवा में उड़ने लगा। देवांश ने पहाड़ी पर आगे बढ़ना शुरू कर रखा था ताकि वह आदमखोरों के मुखिया के पास पहुँच सके या चोटी पर, और फिर वहाँ से उनका पीछा कर सके। जंगल में लखन जितना तेज हो सकता था उतना तेज दौड़ रहा था। रास्ते में पहुँचते ही उसे वीर और श्री दिखाई दिए। वीर ने जैसे ही उसका हाथ देखा, वह शोक में पड़ गया, “लखन, तुम्हारे हाथ को क्या हुआ?” श्री उसके हाथ की हालत देखकर डर गई, “अंकल, आपका हाथ?” लखन ने अपने हाथ की ओर देखा जहाँ अब केवल खून का थक्का रह गया था और फिर कहा, “अभी हमें इसकी फ़िक्र नहीं, बल्कि गाँव वालों की फ़िक्र करनी है। सारे आदमखोर गुफ़ाओं से बाहर आ गए हैं और उन्होंने एक साथ हमला कर दिया है। आज से पहले उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया था। पहली बार सारे आदमखोर गुफ़ाओं से बाहर आए हैं और ऐसा लग रहा है जैसे हम समय से पहले उनका कुछ नहीं करेंगे तो गाँव में से कोई भी नहीं बचेगा। उनकी संख्या हज़ारों में है, या फिर यह और भी ज़्यादा हो सकती है क्योंकि मुझे पहाड़ी के पीछे और कितने आदमखोर हैं, यह दिखाई नहीं दिया।” यह सुनकर वीर और श्री दोनों परेशान हो उठे। वीर बोला, “हे भगवान, यह सब आखिर क्या है? अगर वे अपने मकसद में कामयाब हो गए तो गाँव का कोई भी शख्स नहीं बचेगा, यहाँ तक कि बच्चे भी नहीं।” फिर वीर का ध्यान उस रोशनी पर गया जो अभी भी आसमान में थी और एक चक्कर के रूप में थी। वीर ने लखन से पूछा, “लेकिन लखन, यह आसमान में क्या है और यह अजीब सी पीली रोशनी जमीन पर क्यों गिर रही है?” लखन ने रोशनी की ओर देखा, “अभी तो मैं भी इसके बारे में कुछ नहीं जानता हूँ, मगर यह सब कुछ देवांश का किया हुआ है। मुझे नहीं पता उसने यह कैसे किया, और वह यह सब कैसे कर पा रहा है, लेकिन इस वक्त अगर मैं ज़िंदा हूँ तो बस उसी की वजह से हूँ और उसी ने आदमखोरों को इस रास्ते से गाँव में आने से रोका है। अगर आदमखोर इस रास्ते से जाने में कामयाब हो जाते, तो वे सबसे जल्दी गाँव पहुँच जाते, क्योंकि यह रास्ता सबसे पास पड़ता है।” वीर के चेहरे पर अचंभा दिखा, “मगर देवांश आखिर वह है क्या? यह सब कैसे?” श्री बोली, “वह डिवाइन एनर्जी का इस्तेमाल करता है, उसने मुझे भी इसका इस्तेमाल करना सिखाया है। यह डिवाइन ऊर्जा एक खास तरह की ऊर्जा होती है जिसका इस्तेमाल केवल भगवान करते हैं।” लखन और वीर के चेहरे पर हैरानी थी। लखन बोला, “लेकिन अगर इस ऊर्जा का इस्तेमाल सिर्फ़ भगवान करते हैं, तो फिर देवांश कैसे इसका इस्तेमाल कर पा रहा है?” वहीं वीर ने कहा, “इसका मतलब देवांश भी भगवान है? मगर नहीं, यह नहीं हो सकता। वह भगवान नहीं है।” उसने श्री की ओर देखा, “श्री ने कहा वह भी इसका इस्तेमाल कर सकती है, इसका मतलब क्या है वह भी भगवान है? डिवाइन ऊर्जा के बारे में मैंने भी काफी कुछ सुना है, लेकिन शायद हम इसके बारे में नहीं जानते, इसलिए हमें नहीं पता यह कैसे इस्तेमाल होती है। क्या पता देवांश ने कुछ खास किया होगा, जिससे वह इस ऊर्जा का इस्तेमाल करना सीख गया और फिर उसने इसे दूसरों को भी सिखा दिया।” श्री बोली, “उसने कहा था, उसे आश्रम में एक गुप्त कमरा मिला था, और उस कमरे में कुछ किताबें थीं, जिनमें डिवाइन एनर्जी का कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है, इसके बारे में लिखा गया था। वहीं से उसने डिवाइन एनर्जी का इस्तेमाल करना सीखा।” वीर यह सुनते ही बोला, “देखा, मैंने कहा था ना, उसने कुछ खास किया होगा। उसने उन किताबों से सब कुछ सीखा है, वरना कोई भगवान थोड़ी ना हो सकता है।” एक तरह की बहस शुरू हो गई थी जिसे लखन ने रोकते हुए कहा, “हम इस पर बाद में बहस करेंगे, और खुद देवांश से ही पूछ लेंगे, क्या है क्या नहीं, लेकिन अभी के लिए हमें गाँव जाना होगा और सभी लोगों को आश्रम में इकट्ठा करना होगा। देवांश ने कहा है , सभी को आश्रम में इकट्ठा करो, ताकि उनको बचाना आसान हो जाए, वरना गाँव में अलग-अलग जगह पर उन्हें बचना आसान नहीं होगा।” वीर और श्री दोनों ने इस बात पर सहमति जताई और फिर तीनों ही एक साथ गाँव की ओर दौड़ने लगे। गाँव पहुँचते ही वे सभी अलग-अलग घरों में जाने लगे और वहाँ के लोगों को आश्रम जाने के लिए कहने लगे। श्री दौड़कर गाँव के खतरे के अलार्म के पास पहुँची जहाँ पर एक बड़ा सा घंटा टंगा हुआ था, और फिर जोरदार मुक्का मारकर उस घंटे को बजा दिया। बड़े घंटे को बजाने के लिए दो आदमियों की ज़रूरत पड़ती थी, मगर श्री के पास भी डिवाइन एनर्जी इस्तेमाल करने की ख़ासियत थी, इसलिए उसने डिवाइन एनर्जी का इस्तेमाल करके उस घंटे को बजा दिया। इस घंटे की आवाज़ सुनकर, जो कोई भी उसे सुन पाता था, वह इस घंटे के पास इकट्ठा हो जाता था ताकि जो भी परेशानी हो, वह सबको बताई जा सके। यह एक इमरजेंसी अलार्म की तरह था, जिसमें इस घंटे के बजने पर लोगों को यहाँ इकट्ठा होना ही था। और फिलहाल यही हो रहा था। गांव पर आया ये खतरा बहुत बड़ा था।

  • 12. The 10th Avatar of God - Chapter 12

    Words: 1305

    Estimated Reading Time: 8 min

    देखते ही देखते भीड़ इकट्ठी हो गई। जो लोग इस घंटे की आवाज़ से दूर थे, वहाँ लखन और वीर दोनों ही उन्हें आगाह कर रहे थे और आश्रम जाने के लिए कह रहे थे। जब काफी सारे लोग इकट्ठे हो गए, तब श्री ने सभी को कहा, “सभी ग्रामीणों, मेरी बात ध्यान से सुनो। इस वक्त हम बहुत बड़ी मुसीबत में फँस चुके हैं। हमारे गाँव पर आदमखोरों ने मिलकर हमला कर दिया है। हम सभी को अभी के अभी आश्रम जाना होगा। कृपया सभी आश्रम चलें।” सारे ग्रामीणों में हलचल होने लगी और फिर जल्द ही सब अपने-अपने घरों में दौड़ने लगे ताकि अपने बच्चों को लेकर आश्रम में जा सकें। मौसम काफी क्रूर था और इस क्रूर मौसम में कुछ भी कर पाना इतना आसान नहीं था। पूरे गाँव में भय था।  कई सारे सवाल ग्रामीणों के मन में थे, मगर अभी तक न तो उन्हें कोई जवाब देने के लिए यहाँ पर था और न ही यह समय था कि वे इस तरह के सवाल पूछ सकें। तभी एक और पीले रंग की रोशनी आकाश में दिखाई दी और यह रोशनी पहले वाली रोशनी से भी ज़्यादा तेज थी। लखन और वीर दोनों ही अपनी-अपनी जगह पर थे और श्री भी घंटे के पास थी। जब तीनों ने इस रोशनी की ओर देखा, तो फिर से तीनों हैरानी से उस रोशनी की ओर देखने लगे। श्री ने रोशनी की ओर देखते हुए कहा, “देवांश ने अब दूसरे चक्र का इस्तेमाल किया है। यह लड़का एक के बाद एक अलग-अलग चक्र का इस्तेमाल करता जा रहा है।” पहाड़ी की चोटी पर देवांश मौजूद था और उसने अपना एक हाथ ऊपर कर रखा था और अभी-अभी उसने जो शब्द बोला था, वह था, “द डिस्ट्रॉयर।” देवांश ने जो पहला चक्र इस्तेमाल किया था, उसमें जो भी चक्र की रोशनी में आता था वह पूरी तरह से नष्ट होकर हड्डियों के टुकड़ों में बदल जाता था, इसलिए उस चक्र का नाम ‘द डिसेशन’ था; और इस बार देवांश जिस चक्र का नाम ले रहा था, वह था ‘द डिस्ट्रॉयर’। एक ऐसा चक्र जिसके अंदर जो भी मौजूद रहता है व़ पटाखों की तरह फुटने लगता है। देवांश के चक्र में ढेर सारे आदमखोर थे। जो भी आदमखोर थे, वे अब फुट रहे थे। देवांश का असली लक्ष्य इन आदमखोरों का मुखिया था जो इस वक्त आकाश में उड़ रहा था और देवांश की पहुँच से काफी दूर था। देवांश ने दोबारा दौड़ना शुरू किया। वह अपने रोशनी के चक्र में से आदमखोरों के करीब से निकलते हुए दौड़ रहा था। वह पहाड़ी के ऊपर था और पहाड़ी की चोटी पर ही दौड़ते हुए वह उस आदमखोर का पीछा कर रहा था जो अब आकाश में उड़ रहा था। दो आदमखोर उस पर हमला करने की कोशिश की, मगर वे उसकी और मुड़ ही रहे थे कि अचानक हवा में ही एक धमाके के साथ फट गए। यह देवांश की शक्ति थी जिसमें अगर कोई उसे भूलकर भी छूता था तो वह फट जाता था। देवांश अपने घेरे से बाहर आ गया। आदमखोरों का सरदार अब गाँव की ओर मुड़ गया था और वह आश्रम की ओर ही जा रहा था। देवांश आश्रम से काफी दूर था। देवांश बोला, “यह हवा में उड़ रहा है, जिसकी वजह से यह कहीं भी मुझसे पहले पहुँच सकता है; मुझे इसे किसी तरह से आश्रम पहुँचने से रोकना होगा।” यह कहकर उसने अपनी आँखें बंद की और दोनों हाथों को फैला दिया। उसके ऐसा करते ही आकाश में हलचल होने लगी और काले बादल इकट्ठे होने लगे। देवांश बोला और उसके बोलने की आवाज़ ऐसी थी जैसे कोई भविष्यवाणी हो रही हो, “मैं जानता हूँ आपने मेरी इस शक्ति को प्रतिबंधित कर रखा है, मैं प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता हूँ और प्रकृति के नियमों को बदल नहीं सकता, मगर फिर भी मैं यह करने जा रहा हूँ क्योंकि यह करना ज़रूरी है।” आकाश में बिजली चमकने लगी और ये सारे काले बादल तेज़ी से आदमखोरों के मुखिया की ओर जाने लगे। बिजली की तरंगों के बीच में अब आदमखोर के मुखिया को उड़ना पड़ रहा था और यह कहीं से भी उसके लिए आसान नहीं था। बिजली की एक तरंग उसके ऊपर गिरी। फिर और तरंगें गिरीं और एक के बाद एक कई सारी बिजली की तरंगें उसके ऊपर गिरने लगीं। वह आकाश में बुरी तरह से चिल्लाने लगा। अचानक उसने अपनी गर्दन को नीचे किया और फिर चेहरा ऊपर करके दहाड़ मारी और तेज़ी से ऊपर की ओर ही उड़ान भरने लगा। देवांश जानता था यह सब उसे ज़्यादा देर तक नहीं रोक पाएगा क्योंकि वह इस वक्त काले बादलों को इकट्ठा करके बिजली गिरा रहा था। इसलिए उसने आदमखोर को बिजली की तरंगों के बीच ही छोड़ दिया और तेज़ी से आश्रम की ओर जाने लगा। वहीं आदमखोरों का मुखिया उड़ते हुए बादलों के ऊपर आ गया जहाँ उसे किसी तरह का खतरा नहीं था, लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे वह बादलों के खतरे से डरकर ऊपर नहीं आया था, बल्कि कुछ और ही कारण से ऊपर आया था। उसने अजीब नज़रों से बादलों को देखा, जिससे वह सारे बादल तेज़ी से अपनी जगह पर घूमने लगे और वे पहले से ही ज़्यादा खतरनाक हो गए। फिर वे सारे के सारे बादल आश्रम की ओर जाने लगे। उसने दूर से अपनी नज़रों का इस्तेमाल किया तो उसे काफी सारे लोग अब आश्रम की ओर जाते हुए दिखाई दिए। वह बड़ा आदमखोर, उड़ते हुए किसी विशाल राक्षस की तरह लग रहा था जो सच में इतना विशाल था कि आकाश में उड़ता हुआ भी वह तकरीबन आधे गाँव के बराबर के हिस्से को ढँक रहा था। किसी पहाड़ी के तौर पर देखा जाए तो वह एक छोटी पहाड़ी को पूरा का पूरा ढँक ले, इतना बड़ा था उसका आकार। देवांश जंगल में से होते हुए तेज़ी से दौड़ रहा था। उसके दौड़ने की रफ़्तार की वजह से वह एक जगह से दूसरी जगह पर काफी तेज़ी से जा रहा था। देवांश ने पीछे मुड़कर देखा तो उसके द्वारा बनाए गए बादल अब उसी के पीछे आ रहे थे।  उसके ठीक पीछे बारिश का तेज पानी और उनके बीच में बिजली की तरंगें गिरने लगीं। देवांश को अब अपने दौड़ने की रफ़्तार को और तेज करना पड़ा। रात के अंधेरे में बर्फीली सतह पर गिरती हुई बिजली की तरंगें और होती ही बारिश—इन सब पर कोई भी यकीन न करे, लेकिन इस वक्त सब कुछ ऐसा हो रहा था जिस पर कोई भी यकीन नहीं कर सकता था। लखन और वीर भी अब आश्रम आ चुके थे और आहूदी भी यहाँ पर थी। आहूदी लखन के पास आई और उसके हाथ की ओर देखकर वह रोने लगी, “हे भगवान! आपके हाथ को क्या हुआ? भगवान, आपने मेरे पति के साथ ऐसा क्यों किया? आपने उनकी जान क्यों नहीं बचाई?” लखन ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा, “यह सब तुम क्या कह रही हो? मेरा सिर्फ़ एक हाथ गया है, लेकिन मेरी जान बच गई है। इसमें भी भगवान की मर्ज़ी थी। तुम इस तरह से मत रो।” आहूदी को अपने बच्चों का ख्याल आया, “मगर इस वक्त देवांश कहाँ पर है? वह मुझे आपके साथ क्यों नहीं दिखाई दे रहा है? भगवान, मेरा देवांश कहाँ पर है?” लखन ने कहा, “तुम अपने बेटे की फ़िक्र मत करो। पता नहीं उसके पास क्या है, क्या नहीं, लेकिन इस वक्त जितने भी गाँव वाले सुरक्षित हैं, वे बस उसकी वजह से सुरक्षित हैं। वह डिवाईन ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकता है, जो एक अलग तरह की ऊर्जा है और इसका इस्तेमाल बस भगवान ही कर सकते हैं।” आहूदी अपने चेहरे पर अचंभा लिए बोली, “क्या इसका मतलब मेरा बेटा भगवान है? नहीं, पर यह कैसे हो सकता है?” लखन समझाते हुए कहा, “ज़रूरी नहीं कि वह भगवान हो। डिवाइन ऊर्जा का इस्तेमाल श्री भी कर सकती है और उसने बताया कि देवांश ने आश्रम में मौजूद एक गुप्त ग्रंथ से यह सब कुछ सीखा था।”

  • 13. The 10th Avatar of God - Chapter 13

    Words: 1276

    Estimated Reading Time: 8 min

        आश्रम वाले सारे एक ही जगह पर इकट्ठे हो रहे थे और सब में अलग-अलग तरह की बातें हो रही थीं। वहाँ मौजूद किसी एक व्यक्ति ने कहा, “मुझे बहुत डर लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे आज हम सब मारे जाएँगे। खुद मौत की देवी हमसे बदला लेने के लिए आई है।” वहीं उसके पास मौजूद दूसरा व्यक्ति बोला, “चुप रहो! हमें हमारे गाँव के मुखिया पर पूरा भरोसा है। उसने हमें हर बार इन आदमखोरों से बचाया है और जब सर्दियाँ काफी ज़्यादा थीं, तब हमने इन्हीं आदमखोरों का मांस खाया था और इसमें भी हमारे मुखिया का ही हाथ था। इस बार भी वह हमें किसी तरह से बचा लेगा।” एक और आदमी उनके पास आया और वह बोला, “क्या तुम लोगों ने सुना? हमारे मुखिया का बेटा एक खास तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल करता है जो सिर्फ़ भगवान कर सकते हैं?” यह सुनकर पहले वाले आदमी ने कहा, “मगर यह कैसे हो सकता है? क्या लखन का बेटा भगवान है?” धीरे-धीरे यह बात बाकी के लोगों में भी फैलने लगी और सब तरफ़ बस इसी तरह की बातें होने लगीं कि क्या देवांश एक भगवान है। सब इसी तरह की बातें कर रहे थे, तभी सबका ध्यान आकाश की ओर गया। सब यह देखकर और भी ज़्यादा डर गए। आकाश में काले बादलों का एक झुंड तेज़ी से उनकी ओर आ रहा था। आश्रम में ज़्यादा कमरे नहीं थे, इसलिए ज़्यादातर लोगों को बाहर ही खड़े रहना पड़ रहा था और अब जिस तरह से बादल और उनकी होने वाली बारिश उनकी ओर बढ़ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे वे सर्दी में ही जम जाएँगे। अगर वे बारिश में भीग जाते हैं तो इतनी ठंड में किसी के भी बचने की उम्मीद नहीं थी। लखन तेज़ी से चिल्लाया, “सारे आश्रम के कमरों को खाली करो! हमें सबसे पहले बच्चों को सुरक्षित करना है। जिन-जिन के पास बच्चे हैं, वे सब के सब अपने बच्चों को आश्रम के कमरों में छोड़ दें ताकि कोई भी पानी में भीग न पाए।” महर्षि दयानंद इसमें सबकी मदद कर रहे थे। श्री की मां ने श्री को कमरे में बंद होने के लिए कहा, मगर श्री बोली, “नहीं माँ, मैं आप सबके साथ बाहर ही रहूँगी। आप चिंता मत कीजिए, मुझे कुछ नहीं होगा।” सारे बच्चों को आश्रम के कमरों में बंद कर दिया गया था। महर्षि दयानंद और कुछ और आश्रम के ऋषि सभी बच्चों को कमरों में संभाल रहे थे। देवांश का अभी तक कोई अता-पता नहीं था और बादल भी तेज़ी से आ रहे थे। अभी यह मुसीबत ख़त्म नहीं हुई थी कि तभी सभी ग्रामीणों को दाहिनी ओर से एक और आवाज़ सुनाई दी। लखन ने अपनी तलवार निकालकर उस ओर देखा तो उसने देखा काफी सारे आदमखोर वहाँ से भी आ रहे हैं। ये सारे आदमखोर उस झुंड का हिस्सा नहीं थे, जो आदमखोरों के मुखिया के साथ था, बल्कि ये तो अलग दिशा से अपना खुद का अलग झुंड बनाकर आए थे। उसकी नज़र दूर गई तो वहाँ पर उसने एक और आदमखोर को देखा जो पहले वाले आदमखोर की तरह ही लग रहा था, लेकिन उसके पंखों से आग निकल रही थी। वहीं पहले वाले आदमखोर के पंखों पर उसे बिजली की तरंगें दिखाई दी थीं। लखन का ध्यान अभी उस ओर था, तभी एक और दिशा से आवाज़ आने लगी। वीर ने उस ओर झांककर देखा तो यहाँ पर भी एक बड़ा आदमखोर था जिसके पंखों से काले रंग का अजीब सा धुआँ निकल रहा था। फिर एक ओर से और आवाज़ आई, जिस ओर श्री ने झांकर देखा तो उसे ढेर सारे आदमखोर और फिर सबकी अगुवाई करने वाला एक आदमखोर दिखाई दिया। उस आदमखोर के पंख तारों की तरह टिमटिमा रहे थे। लखन, वीर और श्री तीनों एक जगह पर इकट्ठे हो गए। लखन ने कहा, “हम आज तक इन आदमखोरों का रहस्य कभी सुलझा नहीं पाए और न ही हम यह कभी जान पाए कि उनकी गुफा में और कितने ताकतवर आदमखोर हैं, लेकिन अब ऐसा लग रहा है जैसे हम लोग उनके सामने बस चींटी की तरह हैं। इन्होंने कभी भी हमें अपनी पूरी ताकत नहीं दिखाई, लेकिन आज ये अपनी पूरी ताकत दिखाने के लिए आए हैं, और दिखा भी रहे हैं।” श्री बोली, “मगर इतने सारे आदमखोरों का सामना तो देवांश भी अकेले नहीं कर पाएगा, हमें उसकी मदद करनी होगी।” वीर इतने सारे आदमखोरों को देखकर बोला, “मगर इतने सारे आदमखोरों के आगे हम क्या मदद कर सकते हैं? अब सिर्फ़ ऊपर वाला ही हमारी जान बचा सकता है, इसके अलावा और कोई नहीं।” लखन ने वीर से कहा, “ऊपर वाला क्या करता है, क्या नहीं, यह बाद में देखेंगे। अभी के लिए सभी गांव वालों को इकट्ठा करो और उन्हें बोलो कि लड़ने के लिए तैयार हो जाएँ। हमारे बच्चे इस वक़्त यहाँ पर हैं और हमारे होते हुए हम इन आदमखोरों को उन्हें नुकसान पहुँचने नहीं देंगे।” वीर ने सिर हिलाया और फिर सारे ग्रामीणों को यह बात जाकर बताई और उन्हें लड़ने के लिए तैयार रहने के लिए कहा। कुछ ही देर में सारी औरतें एक ओर हो गईं और सारे मर्द अपनी-अपनी तलवारें पकड़कर घेरा बनाकर खड़े हो गए। उधर बारिश करने वाले बादल तेज़ी से आ रहे थे, इधर आदमखोरों का झुंड भी आ रहा था और देवांश का कोई अता-पता नहीं था। आदमखोरों का झुंड आश्रम के पास आया और वे तेज़ी से यहाँ मौजूद लोगों की ओर जाने लगे। वहीं जो गाँव के लोग थे, वो आदमखोरों का सामना करने लगे। आदमखोरों की तादाद ज़्यादा थी; गाँव वाले ठीक से सामना भी नहीं कर पा रहे थे और जल्दी ही घायल हो रहे थे, जिन्हें औरतें संभालकर पीछे कर रही थीं। अचानक आकाश के बादल भी यहाँ पर आ गए और सारे के सारे लोग बारिश के पानी से भीग गए और ठंड की वजह से काँपने लगे, जिससे लड़ना और भी मुश्किल हो गया। अभी आदमखोर बड़े झुंड में हमला नहीं कर रहे थे, लेकिन जो भी आ रहे थे उनकी संख्या भी काफी ज़्यादा थी। लखन ने अपनी बेटे देवांश की शक्ति को याद किया जहाँ उसने बस एक शब्द को पढ़ने के बाद ही हज़ारों की संख्या में आदमखोरों को एक ही बार में मार दिया था। लखन सोचने लगा कि अब इस वक़्त अगर उसका बेटा यहाँ पर होता तो वह इतने सारे आदमखोरों को खत्म कर देता। श्री ने अपनी आँखें बंद की और अपनी दिव्य ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए पहले चक्र, ‘द डिसेंशन’ चक्र का इस्तेमाल करने की कोशिश की। वह जोर से बोली, “द डिसेंशन!” मगर उसके पास इतनी ज़्यादा डिवाइन ऊर्जा नहीं थी कि वह इस तरह का चक्र बना सके, इसलिए कोई फायदा नहीं हुआ। उसे वापस से तलवार से ही इन आदमखोरों को खत्म करना पड़ा। आदमखोरों के झुंड का हमला तेज होने लगा और गाँव के लोग एक के बाद एक जख़्मी होने लगे। कुछ देर में काफी सारे गाँव वाले जख़्मी हो गए और अब कुछ गाँव वाले ही बचे थे जो बाकी लोगों को बचा पाने में सफल नहीं हो रहे थे। अचानक एक आदमखोर ने इंसानों के झुंड में प्रवेश किया और एक औरत को उठाकर दूर पटक दिया। लखन ने अपनी तलवार फेंककर उस आदमखोर को मारा जिससे वह घायल होकर वहीं पर गिर गया। लेकिन तभी एक आदमखोर लखन के ऊपर गिरा और उसने लखन को नीचे गिरा दिया। वह लखन को खत्म करने ही वाला था कि तभी श्री तेज़ी से आई और अपने कंधे के जोर से उस आदमखोर को दूर गिरा दिया। दो आदमखोर आए और उन्होंने श्री पर हमला करके उसे दूर गिरा दिया, जिसे बचाने के लिए वीर आगे आ गया। हालात ख़राब होते जा रहे थे। लखन के हाथ में फिर से दर्द होने लगा था।

  • 14. The 10th Avatar of God - Chapter 14

    Words: 1751

    Estimated Reading Time: 11 min

    गाँव की सारी औरतों ने अपने-अपने हाथ जोड़ लिए और भगवान अनंत को याद करने लगे। भगवान अनंत या भगवान निर्वाण एक ही बात थी। अनंत भगवान निर्माण का नोंवा अवतार था। आहुति ने सभी औरतों की अगुवाई की और प्रार्थना करते हुए बोलीं, “हे भगवान अनंत, आप जहाँ कहीं भी हों, हमारी मदद करें। हमें इस आपदा की स्थिति से बचाएँ। आप ही हमारे लिए यह कृपा कर सकते हैं, आप ही हमारी जान बचा सकते हैं। हे भगवान अनंत, हमें बचाएँ!” सारी औरतें प्रार्थना कर रही थीं। लखन ने भी अपनी आँखें बंद कीं और बोला, “भगवान अनंत, प्लीज हमें बचाओ।” श्री और वीर ने इसी शब्द का दोहराव किया, “भगवान अनंत, हमें बचाएँ।” सबको लग रहा था कि अब इस मुसीबत का कोई छुटकारा नहीं होगा। देवास कहां था, पता नहीं था, और ठंड से सबका बुरा हाल हो रहा था। वहीं, अब आदमखोर भी इस बात के लिए आज़ाद हो गए थे कि वे उन पर हमला करके उन्हें खत्म कर सकें, क्योंकि उन्हें रोकने वाले गाँव वाले घायल हो चुके थे और अधिकांश मूर्छित अवस्था में थे। तभी अचानक, सभी को दूर से एक पीले रंग की रोशनी अपने पास आते हुए दिखाई दी। सबका ध्यान उस रोशनी की ओर चला गया। वह इतनी तेज थी कि हर कोई इसे दूर से देख पा रहा था, और यह तेज़ी से पास आ रही थी। जल्दी ही सबको दिखाई देने लगा कि यह कौन है। यह कोई और नहीं, बल्कि देवांश था। उसके आस-पास के आदमखोर उसकी रोशनी मात्र से ही तेज आवाज़ के साथ खत्म हो रहे थे। कोई भी देवांश के पास आने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था, और जो भी उसके पास आने की हिम्मत कर रहा था, वह उसके कुछ दूर पर आते ही एक धमाके के साथ फट रहा था। लखन को यह देखकर डर लगने लगा और उसने श्री और वीर को अपने पीछे कर लिया, क्योंकि उसे लग रहा था कि अगर देवांश उनके पास आया, तो वे भी इसी तरह से फट जाएँगे। श्री ने कहा, “यह अभी-अभी डिवाइन ऊर्जा का इस्तेमाल करना सीखा है। पता नहीं इसे ये कंट्रोल भी कर पाएगा या फिर नहीं? कहीं इन आदमखोरों से पहले यही हमारे लिए खतरा न बन जाए।” यह कहकर उसने दूर से ही देवांश को रोकने की कोशिश की, मगर देवांश पल भर में उनके पास आ गया और किसी को भी कुछ नहीं हुआ। जैसे ही देवांश यहाँ पहुँचा, आदमखोरों का झुंड भी हमला करने के लिए आया, लेकिन सारे के सारे एक निश्चित सीमा तक आते ही धमाके के साथ उड़ने लगे। जो देवांश के शरीर से निकलने वाली उर्जा की वजह से था। ऐसा लग रहा था जैसे यह सीमा देवांश के शरीर के आसपास ही मौजूद थी, और कोई भी देवांश के इस ‘रेडार’ की सीमा में नहीं आ सकता था। देवांश ने सभी गाँव वालों की तरफ़ देखा और फिर अपने पिता से पूछा, “क्या गाँव में कोई बचा तो नहीं? आदमखोर काफी ज़्यादा संख्या में हैं, और मुझे नहीं लगता कि अगर गाँव में कोई बचा है, तो इस वक़्त वह ज़िंदा बचा होगा, क्योंकि उन्होंने पूरे गाँव को तहस-नहस कर दिया है। वहां की बर्बादी को देखते हुए मुझे यहाँ पहुँचने में वक़्त लग गया।” लखन ने कहा, “नहीं, मैंने आते हुए देख लिया था। यहाँ पर सब लोग हैं। इस वक़्त गाँव में कोई नहीं बचा है; सभी लोग यहाँ पर आ गए हैं।” श्री तेज़ी से देवांश के पास आई और पूछा, “आखिर यह सब क्या है? इतने सारे आदमखोर एक साथ हमला करने के लिए कैसे बाहर आ गए?” देवांश ने कहा, “इसका जवाब तो मेरे पास भी नहीं है, लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे ये बस अपना बदला लेने के लिए आए हैं। अब तक ये बस हमारे हाथों से मर रहे थे, लेकिन अब शायद इन्होंने सोच लिया है कि ये अब हमें मार कर रहेंगे।” देवांश पलटा। उसने चार अलग-अलग दिशाओं में देखा; उसे चार अलग-अलग आदमखोरों के मुखिया दिखाई दिए जो हमला कर रहे थे – उन सभी झुंडों का सरदार। वह जिसका पीछा कर रहा था, वह अभी यहाँ पर नहीं था, यानी कि ये चारों ही अलग थे। देवांश ने सबकी तरफ़ देखते हुए कहा, “मैं इन्हें ठीक से समझ नहीं पा रहा हूँ, ना ही मुझे इनकी ताकत का अंदाज़ा लग रहा है। शुरुआत में जितना मैंने इन्हें कमज़ोर समझा था, ये उससे कई गुना ज़्यादा ताकतवर हैं।” श्री देवांश के पास आई, “क्या तुम हमें बचा पाओगे?” देवांश ने श्री की तरफ़ देखा, “हाँ, जब तक मैं यहाँ पर हूँ, कोई भी यहाँ पर तुम लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाएगा।” फिर उसने आसमान की तरफ़ देखा जहाँ बादलों से बारिश हो रही थी। देवांश ने अपनी आँखें बंद कीं और अपनी उस शक्ति को याद किया जिसमें वह नेचर को कंट्रोल कर सकता था। फिर अपनी आँखें खोलीं, जिससे सारे बादल पल भर में गायब हो गए। बारिश बंद हो गई और बिजली का गिरना भी बंद हो गया। अब बस आस-पास से आने वाले आदमखोरों के झुंड थे जो खत्म होने के बाद और धमाके के साथ उड़ने के बावजूद नहीं रुक रहे थे और लगातार आकर देवांश के रोशनी के घेरे से टकरा रहे थे। देवांश ने पीछे मुड़कर गाँव वालों की तरफ़ देखा। वे सब अपने हाथ जोड़कर खड़े थे। लखन, वीर और श्री को छोड़कर बाकी सभी ने अपने हाथ देवांश के आगे जोड़ रखे थे, जैसे उन्होंने यह मान लिया हो कि देवांश भगवान है। एक गाँववाला बोला, “आप भगवान अनंत के अवतार हो, भगवान हमारी जान बचा लीजिये। अब आप ही हमारी जान बचा सकते हो।” एक-एक करके बाकी के लोग भी यही बात बोलने लगे। लखन ने देवांश की तरफ़ देखा और उससे पूछा, “तुमने यह सब कहाँ से सीखा? तुम भगवान तो नहीं हो, फिर तुमने इतनी ताकत कैसे हासिल कर ली?” देवांश को समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब यह बात बताए या फिर नहीं, लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे अब उसके पास कोई और रास्ता नहीं है। देवांश ने पलट कर दूसरी तरफ़ देखा। वह मुखिया, जिसका वह पीछा कर रहा था, वह भी उनकी ओर आ रहा था। देवांश ने हाथ ऊपर किया, “फायरस्टॉर्म!” वह बोला। उसकी यह बोलते ही उस मुखिया आथमखोर के ठीक आगे एक छोटा सा चक्र बना और उस से तेज आग निकलने लगी जो लगातार उसके ऊपर गिर रही थी। देवांश पलटा और सभी गाँव वालों की तरफ़ देखते हुए बोला, “हाँ, आप लोगों ने सही समझा है, मैं हूँ भगवान निर्माण, भगवान अनंत मेरा ही एक रुप था। और मेने इस दुनिया में अवतार लिया है ताकि मैं इस दुनिया में बुराई का खात्मा कर सकूँ; उसे मार सकूँ जो इस दुनिया में बुराई का मालिक है।” लखन और वीर को यकीन नहीं हो रहा था कि जो देवांश ने कहा है, वह बिल्कुल सच है, लेकिन उसके आस-पास निकलने वाली सुनहरे रंग की रोशनी और उसने जो भी किया है, यह देखकर वे इस बात को नकार भी नहीं सकते थे। पल भर में ही एक झटके के साथ देवांश और लखन भी अपने पैरों पर आ गए और उन्होंने भी अपने हाथ देवांश के आगे जोड़ दिए। श्री के अलावा सभी ने अपने हाथ देवांश के आगे जोड़ दिए थे। देवांश ने सबकी तरफ़ देखते हुए कहा, “मैं यह आप सबको कभी नहीं बताने वाला था, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि हर किसी को पता चले कि मैं एक भगवान हूँ और लोग मेरे आगे-पीछे घूमने लगें। मगर मुझे अपनी शक्तियों के साथ आप सबके सामने आना पड़ा। मेरी उम्र कम है, इसलिए मैं अपनी सभी शक्तियों का इस्तेमाल इस तरह से नहीं कर सकता कि किसी को पता भी ना चले। मैं नहीं जानता था कि आदमखोरों का यह खतरा अचानक से इतना बड़ा हो जाएगा कि मुझे आप सबके सामने आना पड़ेगा।” आहुति बोली, “भगवान, इसमें इतनी परेशानी वाली कौन सी बात है? हम तो धन्य हो गए कि आपने हमारी इस छोटी सी दुनिया में अवतार लिया। मैं तो और धन्य हो गई कि आप मेरी कोख से पैदा हुए। भगवान, आप नहीं जानते, आपने जिस भी घर में जन्म लिया, उन्हें ज़िंदगी में क्या सुख मिला, उनकी ज़िंदगी के सारे पाप खत्म हो गए और आगे आने वाले जन्मों में भी उन्हें सुख मिलेगा। भगवान, मैं इसके लिए, इस गाँव को चुनने के लिए, अपने कोख से  जन्म के लिए, आपकी आभारी रहूँगी।” देवांश सबके चेहरों की तरफ़ बारी-बारी से देख रहा था और सबके चेहरों में ही उसे अपने लिए उदारता, श्रद्धा, हर एक चीज़ नज़र आ रही थी। महर्षि दयानंद अपने कमरे से बाहर निकले और वे भी अपने हाथ जोड़कर देवांश के आगे खड़े हो गए, “मैं धन्य हो गया हूँ भगवान अनंत, जो मैंने आपको अपनी आँखों से देखा। मैं धन्य हो गया हूँ जो आपने तब जन्म लिया जब मैं इस दुनिया में हूँ।” हर कोई अपनी-अपनी तरफ़ से भगवान अनंत के लिए कोई ना कोई शब्द कह रहा था। देवांश ने अपने चेहरे पर अजीब से भाव लाते हुए कहा, “मुझे यह सब सच में बहुत अजीब लगता है, इसलिए मैं बताने से डरता रहता हूँ कि मैं भगवान हूँ। प्लीज़ आप सब नॉर्मल हो जाइए, एक बार भूल जाइए कि मैं भगवान हूँ और वैसे ही रहिए जैसे पहले रहते थे, यह मानकर कि मैं एक छोटा सा लड़का हूँ जिसकी बस 9 साल की उम्र है।” लखन बोला, “यह कैसी बातें कर रहे हैं आप? हम यह कैसे मान सकते हैं? अब आप भगवान हो तो भगवान ही रहोगे।” अचानक सबका ध्यान फिर से आसमान में चला गया जहाँ देवांश ने फायरस्टॉर्म का हमला किया था। उस आदमखोर को अभी भी कुछ नहीं हुआ था और वह फिर से आग के  बीच में से निकलकर उन सबकी तरफ़ आ रहा था। देवांश ने दोबारा उस आदमखोर की तरफ़ देखा। वह काफी पास आ गया और पास आने के बाद उसने अपना मुँह खोला और अपने पंख फैला दिए। उसके ऐसा करते ही बिजली की ढेर सारी तरंगें निकलीं जो नॉर्मल बिजली की तरंगें नहीं थीं, बल्कि काले रंग की बिजली की तरंगें थीं। वे सभी गाँव वालों के ऊपर गिरने लगीं, मगर इनकी पहुँच भी सिर्फ़ वहीं तक थी जहाँ तक देवांश की ऊर्जा फैल रही थी और वे आगे नहीं आ पा रही थीं। इसके बावजूद, इन काले रंग की बिजली की तरंगों में कुछ अजीब था, जिसकी वजह से कहीं-कहीं से वे छेद करते हुए देवांश के चक्र को तोड़कर उसके अंदर तक आने में सफल हो रही थीं। हालाँकि, वे गाँव वालों से काफी दूर थीं, लेकिन वे उसके चक्र को तोड़ पाने में कामयाब हो रही थीं।

  • 15. The 10th Avatar of God - Chapter 15

    Words: 1564

    Estimated Reading Time: 10 min

    देवांश उस आदमखोर को गहरी नज़रों से देख रहा था, जैसे उसे गुस्सा आ रहा हो और थोड़ी ही देर बाद वह गुस्से से आगबबूला हो उठेगा। देवांश ने पीछे देखा और सभी को पीछे होने का इशारा किया। जब सब पीछे हो गए, तब देवांश आगे बढ़ने लगा। वह अपनी रोशनी के सुरक्षा कवच को आदमखोर की ओर करीब कर रहा था। बिजली की तरंगें सुरक्षा कवच को चीर रही थीं; वह अब देवांश के पास तक आने लगी थीं। एक छोटी सी बिजली की तरंग देवांश के चेहरे पर लगी तो वहाँ पर घाव बन गया। देवांश ने घाव की ओर इशारा करते हुए कहा, “यह नामुमकिन है! भले ही मेरे पास मेरी सारी शक्तियाँ न हों, मगर फिर भी कोई मेरी मर्ज़ी के बिना मुझे नुकसान नहीं पहुँचा सकता। मैं अपने इंफिनिटी की शक्ति के साथ हर अवतार  में पैदा होता हूं, जो किसी को भी मुझे मेरे बिना मर्जी के छुने नहीं देती।  आखिर...यह क्या है? मेरे पास जानकारी की कमी है। इस दुनिया के नियम क्या हैं, यह किस हिसाब से चलती है, कुछ भी नहीं पता और यहाँ पर किस तरह की शक्तियाँ हैं, इसका भी कोई अंदाज़ा नहीं। यह आदमखोर दिखने में बहुत साधारण लगते थे, मगर अब पता चल रहा है कि यह कहीं से भी साधारण नहीं हैं। यह इस दुनिया की उपज है, एक ऐसी उपज जो यहाँ के गाँव वालों से अलग है और सही तौर पर बताती है कि इस दुनिया में क्या कुछ है।” देवांश ने अपने दोनों हाथों को फैला दिया, जिससे उसके शरीर से इतनी सारी रोशनी निकली कि वह आदमखोर को जलाने लगी। मजबूरन आदमखोर को पीछे हटना पड़ा और वह दूर जाकर उड़ने लगा। उसने आवाज़ की ओर, जो दूसरे चार आदमखोरों थे, उन्हें इशारा किया। सभी चारों आदमखोरों ने सामने से आवाज़ करके जवाब दिया और फिर वे पहाड़ी के पीछे गायब हो गए। देवांश को अभी तक पता नहीं चला था कि वे क्या करने के लिए गायब हुए हैं। देवांश वापस पीछे आया। वह इन गाँव वालों को छोड़कर कहीं और जा भी नहीं सकता था, क्योंकि उसके जाने पर सुरक्षा कवच खत्म हो जाएगा, जो बस उसके शरीर के चारों तरफ़ रहता था। श्री देवांश के पास आई और बोली, “क्या तुम इन सब का सामना करोगे? आह्, मैं भी कैसी बातें कर रही हूँ! तुम तो भगवान हो, फिर तुम इनका सामना क्यों नहीं कर पाओगे?” देवांश ने सिर हिलाकर जवाब दिया, “मैं भगवान हूँ, मगर मैं अपनी पूरी शक्तियों के साथ पैदा नहीं हुआ हूँ। हर एक अवतार में मैं अपने लिए कुछ नियम बनाता हूँ; इस अवतार में भी मैंने अपने लिए कुछ नियम बनाए थे। पहला नियम यह था कि मैं अपनी उन शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करूँगा जिससे मुझे भविष्य का और आस-पास के एरिया का पता चल जाता है। दूसरा नियम यह था कि मेरे पास शुरुआत में ही मेरी सारी शक्ति नहीं होगी; यह मेरी उम्र के साथ-साथ विकसित होगी। इस वक़्त मैं 9 साल का हूँ और 9 साल की उम्र में मेरे पास बस थोड़ी सी शक्तियाँ हैं।” श्री ने अपने चेहरे पर हल्का गुस्सा दिखाते हुए कहा (क्योंकि वह उसकी दोस्त थी, इसलिए ऐसे रिएक्शन उसके चेहरे पर आना आम थे), “हद है! यह सब करने की क्या ज़रूरत थी? तुमने जब भगवान अनंत के रूप में अवतार दिया था, तब तो तुम कितनी सारी शक्तियों के साथ पैदा हुए थे! बचपन में ही तुमने एक पहाड़ को लात मारकर उड़ा दिया था, वह भी तब जब तुम सिर्फ़ एक साल के थे।” देवांश ने अपने सिर पर हाथ रखा। वह यह सुनकर शर्मा रहा था, “छोड़ो भी ना! क्यों पुराने दिनों को याद कर रही हो?” श्री बोली, “मैं याद नहीं कर रही हूँ, मैं तुम्हें बता रही हूँ कि क्या तुम्हारे पास इस बार भी ऐसी कोई शक्ति नहीं है? अगर है, तो तुम भी लात मारकर पहाड़ को उड़ाओ और इन सभी को उनके नीचे दबा दो।” वीर आया और उसने श्री को कंधे से पकड़ते हुए कहा, “यह तुम किस लहजे में बात कर रही हो? यह भगवान हैं! उनके साथ रिस्पेक्ट से बात करो।” श्री कुछ बोल पाती, उससे पहले ही देवांश ने कहा, “नहीं-नहीं, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। मैं चाहता हूँ कि आप लोग जैसे पहले बात कर रहे थे, वैसे ही बात करें। मुझे इससे कोई एतराज़ नहीं है।” तभी उसने देखा कि आस-पास के चार पहाड़, पूरे आश्रम को घेरे हुए, हिलने लगे थे। देवांश ने महसूस कर लिया, जबकि बाकी के लोगों को यह अभी तक महसूस नहीं हुआ था। देवांश दौड़कर एक तरफ़ गया, “नहीं! यह सारे गाँव वालों को इस जगह में फँसाकर मारने वाले हैं।” उसने चारों तरफ़ अपनी तेज नज़रों से देखा तो उसे चारों ही पहाड़ तकरीबन 2 सेमी तक हिलते हुए दिखाई दिए। देवांश वापस आया और श्री के पास आकर बोला, “श्री, इस वक़्त हम सब मुसीबत में हैं, जिसे सही करने के लिए मुझे यहाँ से जाना पड़ेगा, लेकिन अगर मैं यहाँ से गया तो आस-पास के आदमखोर इन गाँव वालों को ख़त्म कर देंगे, क्योंकि मेरा इंफिनिटी सुरक्षा कवच सिर्फ़ मेरे पास रहता है।” श्री ने परेशान होकर कहा, “तो फिर तुम अब क्या चाहते हो?” देवांश ने कहा, “मैं तुम्हें अपनी यह इंफिनिटी  सुरक्षा कवच की शक्ति देने जा रहा हूँ। इससे जो कवच मेरे चारों तरफ़ रहता है, वह अब तुम्हारे चारों तरफ़ रहेगा। इससे मेरे यहाँ से जाने के बाद भी इन गाँव वालों को कोई ख़तरा नहीं होगा।” श्री ने परेशान होकर कहा, “लेकिन अगर तुमने अपना सुरक्षा कवच मुझे दे दिया, तो फिर तुम्हारी सुरक्षा का क्या होगा?” देवांश बोला, “तुम शायद भूल रही हो कि मैं कौन हूँ। मुझे ज़रूरत नहीं है।” यह कहकर उसने श्री के दोनों हाथों को पकड़ा और अपनी आँखें बंद कर लीं। पल भर में ही जो रोशनी का कवच देवांश के चारों तरफ़ था, वह शिफ्ट होकर श्री के चारों तरफ़ फैल गया। देवांश ने अपनी आँखें खोलीं, “भगवान होने की वजह से मेरे पास यह ख़ासियत है कि मैं जिस किसी को भी चाहूँ, उसे किसी भी प्रकार की शक्ति दे सकता हूँ और अपने शरीर की शक्ति का हिस्सा भी, जिससे सामने वाले को भी ताक़त मिलती है।” फिर यह कहकर वह दौड़ते हुए सुरक्षा कवच से बाहर चला गया और पहाड़ी की तरफ़ भागने लगा। अब देवांश के चारों तरफ़ किसी तरह का सुरक्षा कवच नहीं था और बड़े आदमखोर की बिजली की तरंगों से उसे नुकसान भी पहुँच रहा था। उसके चेहरे पर जो घाव हुआ था, वह अभी तक ठीक नहीं हुआ था, जबकि देवांश के पास सुपर हीलिंग की पावर भी थी। मौजूद जंगलों के बीच में से देवांश दौड़ता जा रहा था, तभी बड़े आदमखोर की नज़र उसके ऊपर पड़ी। उसने तेज़ी से देवांश की तरफ़ उड़ान भरी और उसके ऊपर आते हुए अपने पंखों से बिजली गिराने लगा। देवांश बिजली से बचने के लिए इधर-उधर होते हुए दौड़ने लगा। दौड़ते हुए देवांश ने अपने हाथ को ऊपर किया और बोला, “द वेन्ग!” देवांश के यह कहते ही उसके शरीर के कई सारे प्रतिरूप बन गए और तकरीबन 25 से ज़्यादा देवांश पल भर में ही जंगल में अलग-अलग तरफ़ अपनी दिशा बदलते हुए दौड़ने लगे। अपने इतने सारे प्रतिरूपों को बनाकर उसने बड़े आदमखोर को कन्फ़्यूज़ कर दिया था कि कौन सा वाला असली देवांश है जिस पर उसे हमला करना चाहिए। उस आदमखोर की बिजली कुछ प्रतिरूपों पर गिरी तो वे पल भर में ही ख़त्म हो गए, जबकि उनके पास भी देवांश के जितनी ही ताक़त होती थी। देवांश ने उनकी तरफ देखा और कहा "मैं अपने 25 रूप बना सकता हूं, वह भी इस पूरे जन्म में, अगर इसने सभी को खत्म कर दिया तो आगे क्या होगा?" असली देवांश ने अपने प्रतिरूपों को ख़त्म होते हुए देखा तो वह अपने मन में दोबारा बोला, “समझ में नहीं आ रहा यह किस तरह की पावर है जो मेरे प्रतिरूपों को ख़त्म कर रही है। अनंत के रूप में जब मैंने अवतार लिया था, तब मेरे दुश्मन के पास भी ऐसी ताक़त नहीं थी कि वह मेरे प्रतिरूपों को ख़त्म कर सके, जबकि इस बार यह आदमखोर...यह तो बस मेरा पहला ही दुश्मन है जिससे मैं अपनी ज़िन्दगी में सामना करने जा रहा हूँ। मुझे अपनी ज़िन्दगी में और दुश्मनों का सामना करना है। अगर यहीं पर मुझे इतना ताक़तवर दुश्मन मिल गया है, तो आगे जाकर क्या होगा?” काले रंग की बिजली की चमक, नॉर्मल बिजली की तरंगों की तरह ही थी, बस उसमें नॉर्मल बिजली के रंग की तरह आस-पास एक काले रंग का कवच था जो इस बिजली को और भी ख़तरनाक बना रहा था। बड़ा आदमखोर देवांश के प्रतिरूपों को ख़त्म करने में लगा हुआ था, तभी असली देवांश पहाड़ी की चोटी पर आ गया और उसने वहाँ से नीचे की तरफ़ देखा तो उसे काफ़ी सारे आदमखोर और उनका सरदार पहाड़ी को चढ़ते हुए नज़र आए। देवांश ने अपने हाथ को उनकी तरफ़ किया और फिर कहा, “द डिसेंशन!” उसके यह कहते ही आसमान में फिर से पहले की तरह लाइनें निकलने लगीं और वे आपस में जुड़ते हुए एक चक्कर का निर्माण करने लगीं। जल्दी ही चक्कर पूरा बन गया और फिर उससे तेज रोशनी नीचे गिरने लगी और जो भी आदमखोर इस रोशनी में आ रहे थे, वे सब हड्डियों के टुकड़ों में बदलते चले गए। यहाँ तक कि सरदार भी इससे नहीं बच पाया। हालाँकि वह काफ़ी देर बाद टुकड़ों में बदला, लेकिन देवांश के चक्कर ने उसे आख़िरकार टुकड़ों में बदल ही दिया।

  • 16. The 10th Avatar of God - Chapter 16

    Words: 1422

    Estimated Reading Time: 9 min

    एक छोटे आदमखोर मुखिया को मारने के बाद, देवांश दूसरी पहाड़ी की ओर दौड़ने लगा। वहीं, बड़े आदमखोर को पता चल गया कि यही असली देवांश है। देवांश पहाड़ी की ओर दौड़ रहा था, तभी बड़ा आदमखोर उससे काफी आगे आ गया और उसने पहाड़ी पर हमला करते हुए, देवांश के रास्ते में एक बड़ी दरार पैदा कर दी। देवांश ने दौड़ना नहीं रोका और जब वह दरार के पास आया, तो उसके पैरों के नीचे सुनहरी रोशनी से जमीन बनती चली गई, जो देवांश को आगे का रास्ता दे रही थी। देवांश अभी भी आगे दौड़ सकता था, यह देखकर बड़े आदमखोर ने उस पर बिजली की तरंग गिराई, मगर देवांश कूद गया और जैसे ही वह वहाँ गिरा, वहाँ पर जमीन बन गई जो सुनहरे रंग की एक प्लेट थी। देवांश पहाड़ी को पार कर गया और फिर उसने अपने हाथ को ऊपर कर जोर से कहा, “दे डिसेंशन!” उसकी शक्ति अपना असर दिखाने लगी और जो भी आदमखोर इस रोशनी के घेरे में थे, वे सब मरने लगे और एक-दूसरे को ही खत्म करने लगे।  देवांश ने इसी तरह बाकी के दो आदमखोर सरदारों को उनके पूरे दल के साथ खत्म कर दिया, लेकिन अभी भी बड़ा आदमखोर बाकी था, जिसके पास बिजली की तरंग थी जो देवांश को नुकसान पहुँचा सकती थी। देवांश पहाड़ी की चोटी पर खड़ा था और उसे आदमखोर को अपनी ओर आते हुए देख रहा था। देवांश ने उसे अपनी ओर आते हुए देखकर कहा, “मैं सिर्फ़ तीन चक्रों का इस्तेमाल कर सकता हूँ, इसके बाद मेरे पास सिर्फ़ डिवाइन ऊर्जा बचती है। यह हवा में उड़ रहा है और अपनी स्थिति लगातार बदल रहा है, इसलिए मेरे शुरुआती दो चक्र इस पर काम नहीं करेंगे जो इसे खत्म करने में मेरे काम आ सकते हैं। मेरे पास फायर स्टॉर्म की भी शक्ति है, जिसे मैंने चार साल की उम्र में सीखा था, मगर उसका कोई असर नहीं हो रहा है। इसके बाद मेरे पास क्या बचता है जिसका इस्तेमाल मैं इस आदमखोर पर करूँ? मैं प्रकृति की शक्ति को नियंत्रित कर सकता हूँ, मगर यह उसमें भी बदलाव कर देता है।” वह काफी करीब आ गया था और जब वह करीब आया, तब उसने अपने पंखों से बड़ी बिजली की तरंग को देवांश पर गिराया। देवांश ने अपना हाथ उसकी बिजली की तरंग की ओर कर दिया। बिजली की तरंगें उसके हाथ पर गिरीं। देवांश को एक झटका लगा और वह कुछ कदम पीछे की ओर हट गया। वहीं, बिजली की तरंगों से उसके हाथ में जलन होने लगी। देवांश को तकलीफ हो रही थी, मगर वह कुछ ऐसा करने जा रहा था जो शायद उसने पहले कभी नहीं सोचा था। उसके हाथ पर जलन के साथ-साथ अब घाव भी होने लगे और उसकी त्वचा भी मकड़ी के जालों की तरह फटती जा रही थी, जो अभी तक सिर्फ़ कलाई तक ही थी। देवांश ने अपना पूरा जोर लगाया। उसने अपनी डिवाइन ऊर्जा को अपने हाथ की ओर केंद्रित कर लिया और सारी डिवाइन ऊर्जा उसके हाथ पर आ गई। आदमखोर द्वारा छोड़ी गई बिजली को अब देवांश की डिवाइन ऊर्जा संभाल रही थी। देवांश ने पूरा जोर लगाकर अपने मन में कहा, “मैं अपनी एक और गुप्त शक्ति का इस्तेमाल करने जा रहा हूँ जो पिछली लड़ाई में मेरे बहुत काम आई थी, इसे मैं कहता हूँ कन्वर्टर, और जब भी मुझे इसका इस्तेमाल करना होता है तब मैं इसे ‘द कन्वर्टर’ बोलता हूँ। यह मेरे दुश्मन के हमले को ओब्जरव करके उसे परिवर्तित करती है और फिर मैं उसका इस्तेमाल उस पर हमला करने के लिए कर सकता हूँ। अगर यह बिजली की तरंगें इतनी शक्तिशाली हैं कि मुझे नुकसान पहुँचा रही हैं, तो इससे उसे भी नुकसान पहुँचना चाहिए।” देवांश ने अपना पूरा जोर लगाया और फिर अपने हाथ को तेज़ी से आदमखोर की ओर करके जोर से बोला, “द कन्वर्टर!” डिवाइन ऊर्जा की रोशनी इतनी तेज़ी से आसपास फैली कि एक पल के लिए रात में भी सब कुछ सोने के रंग में बदल गया। इसके बीच काले रंग की बिजली की तरंगों का एक छोटा सा घेरा दिखाई दिया जो एक ही जगह पर चमक रहा था क्योंकि उसके आसपास सब कुछ सुनहरा था। डिवाइन ऊर्जा की शक्ति से जो भी आसपास के बचे हुए आदमखोर थे, वे जलकर खत्म होते चले गए। बड़े आदमखोर को समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक क्या हुआ, तभी उसकी बिजली की तरंग, जिसे उसने देवांश पर हमला करने के लिए छोड़ी थी, वह किसी लेज़र किरण की तरह आई और उसके सीने में होती हुई चली गई। उसके सीने में एक बड़ा छेद हो गया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, कई सारी और लेज़र किरणें आईं, मगर ये सुनहरे रंग की किरणें थीं, यानी कि डिवाइन ऊर्जा की तरंगें।  ‘द कन्वर्टर’ के ठीक बाद देवांश ने एक और मंत्र पढ़ा और बोला, “द डिवाइन सोर्स लाइनर!” ‘द डिवाइन सोर्स लाइनर’ यह डिवाइन ऊर्जा को इकट्ठा करके उसे एक रेखा के रूप में हमला करने के लिए इस्तेमाल करती है, यानी कि एक लेज़र किरण की तरह। अगर दुश्मन एक जगह पर रुका हुआ है, तब इसका इस्तेमाल करना काफी फायदेमंद और प्रभावी होता है। आदमखोर के शरीर में इतने सारे छेद हो गए थे कि अब उसका जीवित रह पाना नामुमकिन था। वह हवा में ही थरथराया। वो अपने शरीर में हुए छेदों की ओर देख रहा था। अचानक उसका शरीर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से नीचे गिरने लगा। वह धड़ाम से नीचे गिरा, इतना जोर से कि जमीन तक हिल गई और जहाँ पर वह गिरा था, वहाँ पर एक गहरा गड्ढा हो गया। वह जंगली इलाके में गिरा था। जिन पेड़ों पर वह गिरा, वे भी खत्म हो गए और आसपास के कई किलोमीटर तक के पेड़ भी खत्म होते चले गए। देवांश ने अपनी सारी ऊर्जा का इस्तेमाल कर दिया था। जैसे ही बड़ा आदमखोर मर गया, वैसे ही देवांश की आँखों के आगे अंधेरा छा गया और वह भी बेहोश होकर जमीन पर गिर गया। सारे आदमखोर मारे जा चुके थे। मुसीबत के जो बादल ग्रामीणों पर छाए थे, वे खत्म हो गए थे और शायद हमेशा के लिए। क्योंकि ऐसा लग रहा था जैसे इस बार गुफा के सारे आदमखोर बाहर निकल कर आ गए हों। आखिर देवांश के शरीर से जो डिवाइन ऊर्जा निकली थी, उसने बाकी के आदमखोरों को भी खत्म कर दिया था, चाहे वे छोटे हों या बड़े। सारे ग्रामीण आश्रम में बने भगवान अनंत के छोटे से मंदिर के आगे घुटने टेक कर बैठे थे और जब यह पूरी घटना शांत हुई, तब उन्होंने भगवान अनंत का धन्यवाद किया। श्री लखन और वीर को अब देवांश के लौटने का इंतज़ार था, मगर वह काफी देर तक नहीं आया। जब वह तकरीबन दो घंटे तक नहीं लौटा, तब श्री उसे ढूँढने के लिए निकली। उसके साथ वीर भी था, जबकि लखन ग्रामीणों के पास ही रुक गया था। श्री को यह पता था कि आखिरी बार रोशनी किस पहाड़ी की चोटी पर दिखी थी, इसलिए वह उस पहाड़ी की चोटी पर जा रही थी। सब कुछ खत्म हो जाने के बाद भी देवांश वापस नहीं लौटा, इसलिए श्री को भी लग रहा था कि कुछ गड़बड़ हो गई होगी। कहीं देवांश को कुछ हो तो नहीं गया, इस चीज़ का भी डर था। वह पहाड़ी पर पहुँची तो दोनों ने देवांश को वहाँ पर बेहोश पाया। वीर ने उसे जल्दी से उठाया और फिर घर ले आया। देवांश को तकरीबन छह घंटे लगे होश में आने में। उसका सिर चकरा रहा था और उसे यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह बेहोश कैसे हो गया। शायद आखिरी बार जब उसने अपनी शक्ति का अधिक इस्तेमाल किया था, तब वह उसके भार को सहन नहीं कर पाया था और इसी वजह से वह बेहोश हो गया था। उसके आसपास तकरीबन दो दर्जन से ज़्यादा लोग खड़े थे, जिनमें उसके माता-पिता, श्री, वीर और उसकी पत्नी,  एवं कुछ और लोग भी थे। लखन अपने बेटे देवांश के पास आया और पूछा, “बेटा, तुम ठीक तो हो ना? तुम पहाड़ी की चोटी पर बेहोश मिले थे?” देवांश ने अपने दोनों हाथों की ओर देखा। उसकी उंगलियाँ एक हाथ में तो सामान्य दिखाई दे रही थीं, मगर एक हाथ जल चुका था और काला पड़ गया था। देवांश ने अपने हाथ को गौर से देखा और फिर उसे खोलकर और दोबारा बंद करके देखा। उसका हाथ तो ठीक से काम कर रहा था, लेकिन उसकी उंगलियाँ, हथेली और कलाई तक का हिस्सा काला पड़ गया था। शुरुआत में यह कालापन ज़्यादा था, मगर बाद में धीरे-धीरे कम होता जा रहा था और कलाई तक आते-आते पूरा गायब हो रहा था।

  • 17. The 10th Avatar of God - Chapter 17

    Words: 1226

    Estimated Reading Time: 8 min

    देवांश ने लखन से कहा, “मैं इस दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं जानता, मगर इस दुनिया की चीजें मुझे हैरान कर रही हैं। शुरुआत में आप लोगों ने कहा था कि इस जगह के अलावा और कोई जगह नहीं है। यह पूरी दुनिया खत्म हो चुकी है; बस यह एक आखिरी जगह है। और अब, अब उस आदमखोर के पास जो बिजली थी, वह इतनी खतरनाक थी कि मेरी दिव्य ऊर्जा को चीरकर, मुझे नुकसान पहुँचा रही थी। आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ; दिव्य ऊर्जा हमेशा सबसे ताकतवर ऊर्जा रही है, मगर अब यह एक नई तरह की ऊर्जा आ गई है जो इसे भी ताकतवर लग रही है।” देवांश बार-बार अपनी उंगलियों की ओर देख रहा था। लखन ने कहा, “यह सब हमारी समझ से बाहर है; यह ऐसी बातें हैं जिन्हें तुम समझ सकते हो या फिर शायद सिरी, मगर मुझे सिर्फ यह जानना है कि तुम ठीक हो या नहीं?” देवांश ने कहा, “मैं पूरी तरह से ठीक हूँ; मैं पहले ही बता चुका हूँ कि मैं भगवान का अवतार हूँ और यहाँ पर बुराई के नाश के लिए पैदा हुआ हूँ। इस हमले ने मुझे अचंभित जरूर किया था, मगर यह इतना भी ताकतवर नहीं था कि यह मुझे नुकसान पहुँचा सके।” यह कहकर देवांश ने दोबारा अपने हाथ की ओर देखा। अगर वह उस बिजली के हमले को और काफी देर तक रोक कर रखता, तो शायद उसका यह हाथ उसके शरीर से उखड़ जाता। देवांश के चेहरे पर एक हल्की सी चिंता थी जो सिर्फ़ इसी बात को लेकर थी कि आखिर वह किस तरह का हमला था। श्री देवांश के पास आई और बोली, “सारे गाँव वाले इसके लिए हमेशा तुम्हारे एहसानमंद रहेंगे। उन्होंने कहा है कि तुमने सबकी जान बचाई है, इसलिए वे सब तुम्हें तोहफ़े देना चाहते हैं। काफ़ी सारे गाँव वाले तुम्हारे लिए तोहफ़े ले भी आये हैं; तुम्हारे घर के बाहर ढेर सारे तोहफ़े पड़े हैं।” देवांश ने श्री से कहा, “नहीं, मुझे आप सब लोगों से कुछ भी नहीं चाहिए। अगर मुझे आप सब से कुछ चाहिए, तो सिर्फ़ इतना ही कि आप सब मेरे साथ सामान्य रहें। अगर आप इस तरह से व्यवहार करेंगे, तो यह मेरे लिए अजीब होगा क्योंकि मुझे आदत नहीं है भगवान बनकर लोगों के बीच में रहने की।” आहूदी आई और अपने हाथ जोड़कर देवांश से बोली, “आप भगवान हैं; कोई आपके सामने कैसे सामान्य रह सकता है? आपने मेरी कोख से जन्म लिया है, मगर इसके बावजूद भी मैं आपसे उस तरह से व्यवहार नहीं कर पाऊँगी जिस तरह से आप चाहते हैं; मैंने आपको बचपन से ही पुजा  है।” देवांश ने आहूदी के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ा और बोला, “मैं जानता हूँ, लेकिन आप मेरी माँ हैं और मैं यही चाहूँगा कि आप मुझे माँ की तरह प्यार करें। मुझे भक्ति नहीं चाहिए; मुझे रिश्ते चाहिए, मुझे अपनापन चाहिए। आपसे मुझे माँ का प्यार चाहिए, आपकी डाँट चाहिए; आप सब गाँव वालों से मुझे वैसा ही रिश्ता चाहिए जैसा पहले था।” वीर ने कहा, “यह आसान तो नहीं है, मगर फिर भी हम कोशिश करेंगे।” लखन ने अपने सर की पगड़ी उतारी और उसे देवांश के चरणों में रखते हुए बोला, “आज से आप ही हमारे सब कुछ हैं; आप इस गाँव की मुखिया हैं, आप इस गाँव के रक्षक हैं।” महर्षि देयानंद भी यहाँ पर थे। उन्होंने भी हाथ जोड़कर कहा, “हाँ, भगवान! अब जो भी है, वह बस आप हैं। यह गाँव आपके निर्देशन से चलेगा; जैसा आप कहेंगे, वैसा होगा।” देवांश सबकी ओर देख रहा था; उन सबके चेहरों की ओर देखते हुए उसने अपनी माँ से कहा, “कर तो मैंने गलती ही ली है। पिछले कई जन्मों के अनुभव से मुझे यह बात पता है कि जब भी लोगों को पता चलता है कि मैं भगवान हूँ, तब उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। अगर मैं उनसे कहूँ कि सामान्य रहो, वे तब भी सामान्य नहीं रहेंगे। शायद मुझे इसी के साथ आगे बढ़ना होगा।” देवांश ने पगड़ी उठाई और उसे दोबारा अपने पिता के सर पर रख दिया, “इस गाँव के मुखिया आप ही रहेंगे, मगर हाँ, मैं आप सबको यहाँ पर काफ़ी कुछ सिखा सकता हूँ। आप सब अभी भी पुराने तरीके से रह रहे हैं, जो कि 40,000 साल पहले रहने वाले लोगों से भी ज़्यादा पुराना है। मैं भी सिर्फ़ 9 साल का हूँ और 10 साल तक मैं इस गाँव से बाहर नहीं जाऊँगा क्योंकि यह वादा मैंने अपने पिता से किया है। अभी भी 3 महीने बाकी हैं, इसलिए इन तीन महीनों में मैं आप सबको विकसित करूँगा।” सारे गाँव वाले यह सुनकर खुश हो गए। श्री ने कहा, “अगर ऐसा है, तो हम इसमें तुम्हारी मदद करेंगे। तुम्हें जिस भी मदद की ज़रूरत होगी, हम वह करेंगे। बस तुम्हें हमें आदेश देना है; फिर देखना हम क्या-क्या करते हैं।” देवांश के चेहरे पर मुस्कान थी। 10 साल का होने के बाद वह बाहरी दुनिया के लिए अपना सफ़र शुरू करेगा। यह एक ऐसा वादा था जो उसने अपने पिता के साथ किया था! भले ही वह गुस्से में किया गया हो, मगर देवांश, भगवान होने के नाते, अपने वादे का पक्का था और वह किसी भी हालत में अपने किसी भी वादे को नहीं तोड़ता था। इन तीन महीनों में वह गाँव वालों को विकसित करके उन्हें इतना सशक्त बना सकता था कि अगर इस तरह का आक्रमण दोबारा भी आता है, तब भी ये गाँव वाले उसका सामना कर सकें। हालाँकि, बड़े आदमखोर की तरह अगर कोई आदमखोर आ गया, तब इन गाँव वालों का उसका सामना कर पाना नामुमकिन है, मगर अब ऐसा नहीं लग रहा कि ऐसा खतरा दोबारा आएगा। मगर फिर भी देवांश को इस पर काम तो करना ही होगा। देवांश ने इस पर सोचा और फिर सभी गाँव वालों से कहा, “कुछ भी करने से पहले हमें यह देखना होगा कि क्या आदमखोरों का खतरा अभी भी बाकी है, क्योंकि जब तक हम यह देखने की कोशिश नहीं करेंगे कि क्या और भी आदमखोर बचे हैं, तब तक हम कुछ भी कर लें, हमारी सारी तैयारी बेकार हो जाएगी। अगर हम यह पता नहीं लगा सकते कि आदमखोर बच्चे हैं या नहीं, तो हमें उनकी सभी गुफाओं को बंद करने का काम करना होगा।” श्री ने पूछा, “लेकिन हम यह कैसे करेंगे? हम उन गुफाओं को कैसे बंद कर सकते हैं? अगर हम गुफाएँ भी बंद कर दें, तो आदमखोर इतने ताकतवर हैं कि वे उन्हें तोड़ देंगे?” देवांश ने थोड़ा सा सोचा और फिर कहा, “यह बात तो है; इसका बस एक ही इलाज है: डिवाइन ऊर्जा से बना मेटर।” सभी ने हैरानी से कहा, “डिवाइन ऊर्जा से बना मेटर?” देवांश ने समझाया, “हाँ, डिवाइन ऊर्जा से बना मेटर। आप लोगों के आसपास जो भी चीज बनी है, वह अलग-अलग ऊर्जा की शक्ति से बनी है, जैसे पृथ्वी की शक्ति, आकाश की शक्ति और जल की शक्ति। ठीक इसी तरह से डिवाइन ऊर्जा की शक्ति से तत्व बनाया जा सकता है, जिसे मेटर कहा जाता है, और उस तत्व से हम दूसरी चीजें बना सकते हैं, जैसे कि दिव्य ऊर्जा से बने हुए पत्थर, लकड़ी या फिर कुछ भी और। सामान्य पत्थरों को वे आदमखोर तोड़ सकते हैं, मगर दिव्य ऊर्जा से बने पत्थरों को तोड़ना उनके बस की बात नहीं होगी। इसलिए मैं दिव्य ऊर्जा का इस्तेमाल करके तत्व बनाऊँगा और फिर हम उस तत्व से अलग-अलग पत्थर के टुकड़े तैयार करेंगे और उनसे गुफाओं के दरवाज़े बंद कर देंगे।”

  • 18. The 10th Avatar of God - Chapter 18

    Words: 1542

    Estimated Reading Time: 10 min

    गाँव का माहौल पूरी तरह से बदल चुका था। अगले दिन सुबह की शुरुआत के साथ ही ऐसा लग रहा था जैसे सब लोग रात के हादसे को भूल चुके थे। लोग इस बात की वजह से बेफ़िक्र थे कि उनके इस छोटे से गाँव में भगवान हैं और भगवान होने का मतलब है उन्हें किसी तरह का खतरा नहीं। रात को जो तूफ़ान आया था उसके बाद कोई बाहर आने के बारे में सोच भी नहीं सकता था, मगर देवांश के यहाँ होने की वजह से सब बेफ़िक्र होकर अपने घर के बाहर घूम रहे थे और अलग-अलग तरह के काम कर रहे थे। देवांश भी बिज़ी था और वह कुछ लोगों को एक अलग ही तरह की चीज बनाने के बारे में बता रहा था। वीर और उसके कुछ साथी इसमें लगे हुए थे। सब का दिमाग घूम रहा था क्योंकि देवांश जो भी बता रहा था, यह उनकी समझ में नहीं आ रहा था। देवांश ने पत्थर पर एक चित्र बना रखा था और सभी को चित्र को देखते हुए कुछ समझा रहा था। सब लोग समझने की कोशिश तो कर रहे थे मगर फिर भी वह ठीक से समझ नहीं पा रहे थे। उसके ठीक पीछे के एक मैदानी इलाके में लखन था जो अपने एक हाथ से तलवार का अभ्यास करवाते हुए कुछ लोगों को तलवारबाजी सिखा रहा था। देवांश ने कहा था वह चाहता है गाँव का हर एक व्यक्ति तलवारबाजी का अभ्यास करे और इसके लिए उसने 100 गाँव वालों का चयन करने के लिए कहा था। पहले लखन 100 गाँव वालों को तलवारबाजी सिखाएगा और फिर ये 100 गाँव वाले आगे और लोगों को तलवारबाजी सिखाएँगे। आश्रम के ऋषि महिलाओं को औषधि बनाना सिखा रहे थे और यह भी देवांश की वजह से हो रहा था। पहले महिलाओं को कभी घर से बाहर भी नहीं निकलने दिया जाता था, मगर आज वे सब आश्रम में थीं और औषधि बनाना सीख रही थीं। श्री देवांश के साथ ही थी और वीर के साथ बैठी समझने की कोशिश कर रही थी कि आखिर देवांश बनाना क्या चाहता है। काफी देर तक समझने के बाद उसने देवांश से पूछा, “वह सब तो ठीक है, लेकिन यह है क्या चीज और इसे होगा क्या?” देवांश ने एकदम से कहा, “मैं कई बार तो कह चुका हूँ। यह वह तकनीक है जिसके ज़रिए हम डिवाइन ऊर्जा का इस्तेमाल करके डिवाइन पत्थरों को बनाएँगे और फिर उन पत्थरों से गुफा के दरवाज़ों को बंद करेंगे।” श्री ने अपने सर पर हाथ फेरते हुए देवांश से कहा, “मगर तुमने पत्थर पर जो चित्र बनाया है वह पत्र के टुकड़ों जैसा तो बिल्कुल भी नहीं लग रहा। तुमने सबसे पहले एक गोल चीज को बनाया है जो नीचे किसी और गोल चीज के ऊपर खड़ी है और यह गोल चीज नीचे एक और गोल चीज के ऊपर खड़ी है जो शायद घूमती हुई नज़र आ रही है।” देवांश ने दोबारा अपने बनाए गए चित्र की तरफ़ देखा। उसने अपने चित्र में एक मशीन बनाई थी। देवांश ने कहा, “यह एक मशीन है। हम इसमें साधारण पत्थरों को डालेंगे और फिर मैं अपनी डिवाइन ऊर्जा साधारण पत्थरों को दूँगा। यह मशीन मेरी डिवाइन ऊर्जा को पत्थरों में डालने का काम करेगी और जो पत्थर बाहर निकलकर आएंगे तब वे डिवाइन पत्थर में बदल जाएँगे।” श्री ने सवाल किया, “क्या हम इस काम को सीधे ही नहीं कर सकते? तुम सीधा ही अपनी एनर्जी से इन डिवाइन पत्थर नहीं बना सकते? तुम तो भगवान हो, तुम्हारे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है?” देवांश ने गहरी साँस ली और फिर कहा, “हाँ, मेरे लिए  कुछ भी नामुमकिन नहीं है, लेकिन मेरे इस शरीर के लिए हाँ। यह शरीर काफी कमज़ोर है। जब मैं तुम्हारे शरीर में डिवाइन ऊर्जा डाल रहा था तब भी मुझे तुम्हारे शरीर में धीरे-धीरे डिवाइन ऊर्जा डालनी पड़ रही थी क्योंकि अगर मैं एक साथ तुम्हारे शरीर में डिवाइन ऊर्जा डालने की कोशिश करता तो शायद तुम एक धमाके के साथ फ़ट जातीं। यह डिवाइन ऊर्जा इस ब्रह्मांड की सबसे खतरनाक ऊर्जा है। कोई भी चीज इसे सीधे नहीं संभाल सकती है।” सब ने देवांश की बात मानी और फिर उसकी बताई गई चीजों के अनुसार उस मशीन को बनाने लगे। देवांश अपने पिता के पास आया। अपने पिता के एक हाथ को देखकर उसने कहा, “मुझे माफ़ कर देना, मैं आपके हाथ को नहीं बचा सका। काश मैं थोड़ा सा और जल्दी आ जाता और किसी तरह से आपके हाथ को बचा पाता। मुझे इस बात का भी अफ़सोस हो रहा है कि मेरी कम उम्र की वजह से मैं आपके हाथ को वापस नहीं जोड़ सकता।” लखन अपने बेटे के पास आया और कहा, “तुमने मेरी ज़िन्दगी बचा ली, यही मेरे लिए काफी है। मुझे इससे ज़्यादा और कुछ भी नहीं चाहिए।” दोनों एक पगडंडी के ज़रिए होते हुए खेतों की तरफ़ जाने लगे। काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा और दोनों में किसी तरह की कोई बात नहीं हुई। लखन ने सन्नाटा तोड़ा और कहा, “तो तुम इस गाँव से बाहर जाना चाहते हो? क्या तुम्हें सच में लगता है इस गांव से बाहर और दुनिया होगी? हमारे काफी सारे लोगों ने दुसरी दुनिया को ढूँढने की कोशिश की थी, मगर किसी को भी वह दुनिया नहीं मिली?” देवांश ने सोचते हुए कहा, “मैं नहीं जानता। लेकिन उसे होना ही चाहिए, क्योंकि अगर मैंने जन्म लिया है तो यह बिना मतलब तो लिया नहीं होगा। और ना हीं, मुझे लगता है मैंने जन्म इस गाँव की किसी बुराई को खत्म करने के लिए लिया है, क्योंकि इस गाँव की बुराई इतनी भी बड़ी नहीं है कि मुझे जन्म लेना पड़े। बस दुसरी दुनिया अभी तक हमारी नज़रों में नहीं आई, लेकिन अगर हम कोशिश करेंगे और इसे ढूँढने के लिए मैं निकलूँगा तो मैं इसे ढूँढ ही लूँगा।” लखन के चेहरे पर एक हल्का सा अफ़सोस दिखाई दे रहा था, “क्या तुम हम सबको यहाँ पर छोड़कर जाओगे?” देवांश के पास इसका कोई जवाब नहीं था। लखन ने कुछ देर तो कुछ नहीं कहा, फिर वह बोला, “मैं समझ सकता हूँ तुम एक भगवान हो और तुम्हारी ज़िम्मेदारी हमसे भी ज़्यादा बड़ी है। फ़िक्र मत करो, तुम्हें जब भी यहाँ से बाहर जाना हो तुम जा सकते हो, ना तो मैं तुम्हें रोकूँगा और ना ही इस गांव का कोई और शख्स तुम्हें इस चीज़ के लिए रोकेगा। बस मैं तुमसे इतना वादा ज़रूर चाहूँगा, तुम इस गाँव से हमेशा के लिए मत जाना। जब तुम्हारा काम हो जाए या फिर तुम्हें लगे अब तुम्हें कुछ और नहीं करना है, तब इस गाँव में लौटकर ज़रूर आना।” देवांश रुक गया और उसने अपना एक हाथ देवांश की तरफ़ किया। देवांश ने मुस्कुरा कर अपना हाथ लखन के हाथ पर रखा और कहा, “यह मेरा आपसे वादा रहा। मैं इस गाँव में ज़रूर आऊँगा।” दोनों फिर खेतों की तरफ़ चले गए और वहाँ पर उन्होंने फसल को देखा। कल रात के हुए हमले की वजह से ज़्यादातर फसल ख़राब हो गई थी और फिर जो तूफ़ान और बारिश हुई थी उसने बची हुई फसल को भी पूरी तरह से ख़त्म कर दिया था। लखन ने अपनी उजड़ी फसल को देखकर कहा, “लगता है इस बार की सर्दी फिर से मुश्किल भरी जाएगी।” देवांश मुस्कुराया और बोला, “लगता है आप भूल गए, हमने कल ही ढेर सारे आदमखोरों को मारा है। उन आदमखोरों से आप लोगों के अगले 10 साल आराम से निकल जाएंगे।” जैसे ही लखन ने यह सुना वह जोर-जोर से हँसने लगा। उसने अपने बेटे की पीठ को थपथपाया। अगले कुछ महीनों तक देवांश की बनाई गई मशीन पर काम चलता रहा और 6 महीने बाद उसे मशीन तैयार कर ली गई जिसका चित्र उसने दिमाग में बनाया था। यह मशीन काफी बड़ी थी। इतनी बड़ी कि गाँव में रखने के बाद ऐसा लग रहा था जैसे कोई बड़ा राक्षस उनके ठीक सामने खड़ा हो। यह मशीन उस आदमखोर जितनी ही बड़ी थी जिसका देवांश ने ख़ात्मा किया था। इस मशीन को एक पत्थर की पहाड़ी के पास रखा गया था। देवांश उस मशीन के पास आया और उसने ऊपर खड़े कुछ लोगों की तरफ़ इशारा किया जो पहाड़ी के ऊपर खड़े थे। पहाड़ी पर खड़े वे लोग अपनी जगह से पीछे हट गए। देवांश ने अपने हाथ को पीछे की तरफ़ किया और ज़ोर से बोला, “द ब्रेकर…” दोपहर की तेज धूप हो रही थी। देवांश के यह कहते ही अचानक शाम हो गई और आसमान में उसका बनाया गया सुनहरी रोशनी से बना चक्कर घूमने लगा। अगले ही पल चक्कर से लेज़र लाइटों की तरह किरणें निकलीं और वे पहाड़ी के ऊपर गिरने लगीं। जहाँ-जहाँ वे पहाड़ी पर गिर रही थीं वहाँ-वहाँ पत्थर के टुकड़े टूटकर मशीन में जाकर गिर रहे थे। देवांश मशीन के पास आया और अपने दोनों हाथों को मशीन से लगाकर अपने शरीर की डिवाइन ऊर्जा को निकालकर उन पत्थरों में डालने लगा। डिवाइन ऊर्जा पहले मशीन में जा रही थी और फिर पत्थरों में। कुछ देर तक अंदर कुछ भी नहीं हो रहा था, मगर फिर एक हलचल सी हुई और जब पत्थर बाहर निकल रहे थे वे सुनहरे रंग से चमकते हुए बाहर निकल रहे थे। और गाँव वालों ने कुछ जानवरों के साथ उन पत्थरों को बड़े-बड़े टाँगों में भरना शुरू किया और उन्हें गुफाओं की तरफ़ लेकर जाने लगे। काफी सारे पत्थरों के होने के बाद देवांश उन्हें अपने हाथों से उठा-उठाकर गुफाओं की तरफ़ फेंकने लगा।

  • 19. The 10th Avatar of God - Chapter 19

    Words: 1966

    Estimated Reading Time: 12 min

    अगले 15 दिनों तक गुफाओं को बंद करने का काम ऐसे ही चलता रहा और 15 दिनों के बाद सबसे आखिरी गुफा को भी देवांश ने एक बड़े से पत्थर को रखकर बंद कर दिया। देवांश ने अपने हाथों को आपस में झाड़ा और फिर सभी पीछे खड़े ग्रामीणों की तरफ़ देखते हुए बोला, “आखिरकार आदमखोरों की मुसीबत का अंत हो गया।” सब लोग यह सुनकर खुश हो गए और आपस में तालियाँ बजाने लगे। फिर इसके बाद सब देवांश के आगे झुक कर खड़े हो गए। सब ने देवांश का शुक्रिया अदा किया। धीरे-धीरे भीड़ शांत होने लगी और देवांश श्री के साथ वहाँ पर अकेला रह गया। श्री ने देवांश के हाथ को पकड़ा और कहा, “मगर तुम्हारे हाथ के इस काले निशान का क्या? तुम्हारा आधा हाथ काला हो चुका है। क्या तुम्हें पता चला उसने ऐसी कौन सी शक्ति का इस्तेमाल किया था जिसने तुम्हारे हाथ को जला दिया?” देवांश ने श्री के हाथ से अपने हाथ को अलग किया और फिर अपने हाथ की उंगलियों को मसलकर देखने लगा, “नहीं, मैं इसके बारे में नहीं जान पाया। यह कोई नई शक्ति है। इस गाँव में कोई ऐसा है भी नहीं जो मुझे इसके बारे में बता सके। शायद जब मैं बाहरी दुनिया में चला जाऊँगा तब मुझे कोई ऐसा मिलेगा जिसे मेरे ऊपर हुए इस शक्ति के हमले के बारे में पता हो।” श्री ने यह सुनते ही अपनी आँखों में उदासी दिखाई। वह इधर-उधर देखने लगी। देवांश ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे पूछा, “इसमें उदास होने वाली कोई बात नहीं है। अगर तुम चाहो तो तुम भी मेरे साथ बाहर आ सकती हो, हम दोनों ही बाहर की दुनिया में जाएँगे।” श्री ने अपने कंधे को झटका दिया और उसके हाथ को अपने कंधे से हटा दिया, “नहीं, मैं अपने परिवार को छोड़कर यहाँ से नहीं जाने वाली हूँ।” देवांश ने गहरी साँस ली, “तुमने मेरी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। मैं तो पता नहीं क्या कुछ सोचकर बैठा था। मैंने सोचा था तुम्हें अपनी शक्तियाँ देकर मैं तुम्हें एक बड़ा योद्धा बनाऊँगा और फिर तुम मेरे साथ मेरी बॉडीगार्ड बनकर रहोगी। मगर तुमने तो मुझे सीधे ही जवाब दे दिया।” श्री देवांश की तरफ़ पलटी और गुस्से से बोली, “अगर तुमने यह सब सोचकर मुझे अपनी शक्तियाँ दी थीं तो इसे अभी के अभी वापस ले लो और तुमने अभी तक अपनी वह शक्ति भी वापस नहीं ली जो किसी को भी तुम्हें छूने से रोकती है। मुझे नहीं चाहिए ऐसी शक्तियाँ जिसमें मुझे अपने परिवार के लोगों को छोड़ना पड़े।” देवांश कुछ देर कुछ नहीं बोला और वह शांति से ढलते हुए सूरज को देखता रहा। फिर उसने कहा, “मैं तुम्हारी भावनाओं को अच्छे से समझ सकता हूँ, लेकिन यह मोह माया है। अगर मैं एक साधारण इंसान होता तो मैं भी अपने परिवार को छोड़कर दूर जाने के बारे में नहीं सोचता, लेकिन मैं भगवान हूँ…” श्री ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा, “हाँ, मुझे पता है, अब बार-बार कहना बंद करो। अगर भगवान हो तो तुम यहाँ पर बैठे-बैठे ही काफी कुछ कर सकते हो, तुम्हें कहीं जाने की ज़रूरत ही नहीं है। मैंने तुम्हारे पुराने सारे जन्म देखे हैं किताबों में। तुमने तो गरीब से गरीब लोगों का भी अपने यहीं बैठे-बैठे कल्याण किया है। तुम्हारा एक दोस्त हुआ करता था जो काफी गरीब था और तुमने उसको आधा ब्रह्मांड तक दान में दे दिया था। फिर यह छोटी सी समस्या दूर करने के लिए तुम्हें सबको छोड़कर दूर जाने की क्या ज़रूरत है?” देवांश ने उसके चेहरे की तरफ़ देखते हुए कहा, “करने को तो मैं सब कुछ ऊपर बैठे-बैठे ही कर लेता, लेकिन फिर भी मैं अवतार लेकर यहाँ पर आया हूँ ना? क्यों? ताकि आज से हज़ारों साल बाद कोई तुम्हारी तरह ही किसी और को यह सारी बातें बोले और उसे कहे कि मैंने किस तरह से इंसानों का भला किया और किस तरह से बुराई का अंत करने के लिए अलग-अलग त्याग दिए। मैं जन्म लेता हूँ ताकि लोगों को एक अच्छा संदेश दे पाऊँ और उस संदेश के ज़रिए अगले हज़ारों सालों तक शांति बनी रहे।” श्री ने दोबारा गुस्से से कहा, “हाँ तो इसके लिए ऐसे तरीके का इस्तेमाल करो जिसमें तुम्हें किसी को छोड़कर जाना ना पड़े। यह क्या मतलब हुआ? पहले तो किसी जगह पर अवतार ले लिया, वहाँ के लोगों को अपना भक्त बना लिया और जब वे तुमसे दूर न रह सकें तब तुम उन्हें कह दो कि मुझे तो अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करनी है, मैं तो भगवान हूँ, मुझे तो वहाँ जाकर यह करना है, वह करना है। भगवान कभी भी किसी को नाराज़ नहीं करते, चाहे वो कोई भी क्यों ना हो।” देवांश ने अपने चेहरे पर एक हल्की मुस्कराहट दिखाई और फिर कहा, “ऐसा लग रहा है जैसे तुम्हें गाँव वालों का दुःख नहीं बल्कि खुद का दुःख हो रहा है कि मैं तुम्हें छोड़कर क्यों जा रहा हूँ। अरे पागल, मैंने तुम्हें तो बोल ही दिया कि तुम भी मेरे साथ चलो, इतना ड्रामा और ओवरएक्टिंग करने की क्या ज़रूरत है?” श्री ने गुस्से से अपने पैर मार दिए और बोली, “तुम मेरे साथ यह बकवास मत करो। मुझे चुपचाप बताओ तुम अपनी शक्ति को वापस ले रहे हो या फिर नहीं क्योंकि मुझे तुम्हारी शक्ति अपने पास नहीं रखनी है।” देवांश ने अपना सिर नीचे किया और सिर हिलाते हुए कहा, “अफ़सोस, मैं अपनी शक्ति दे सकता हूँ मगर उसे दोबारा वापस नहीं ले सकता। शक्ति देना भी अपने आप में किसी तरह का वरदान देने जैसा होता है। जिस तरह से हम भगवान, एक वरदान देने के बाद उसे वापस नहीं ले सकते, उसी तरह से हम शक्ति को भी देकर वापस नहीं ले सकते।” श्री ने हैरान होते हुए कहा, “अब इसका क्या मतलब है? क्या तुम अपनी उस शक्ति को भी नहीं वापस ले सकते जिससे कोई भी तुम्हें छू नहीं सकता?” देवांश ने उसे समझाया, “हाँ, और इस शक्ति का नाम द इंफिनिटी है। इस शक्ति के होने के बाद अगर कोई तुम्हें नुकसान पहुँचाने की इच्छा रखता है तो वह तुम्हारी इच्छा के बिना तुम्हें छू नहीं पाएगा। अगर दुश्मन ज़्यादा ही ताकतवर हो तब भी यह शक्ति उतनी ही प्रभावी रहती। पर तुम जैसे-जैसे बड़ी होगी तुम्हारी यह शक्ति भी बढ़ती जाएगी और जब तुम 22 या 23 साल की हो जाओगी तब मेरे ख्याल से कोई कितना भी ताकतवर क्यों ना हो, वह तुम्हें तुम्हारी मर्ज़ी के बिना नहीं छू पाएगा।” श्री चौंकते हुए बोली, “अरे तो फिर तुम्हारा क्या होगा? मुझसे ज़्यादा तुम्हें इस शक्ति की ज़रूरत है। मुझे तो यहाँ पर किसी को मारना भी नहीं है जबकि तुम तो बुराई के खात्मे के लिए पैदा हुए हो। जिसे तुम्हें मारना होता है वह बहुत ताकतवर होता है। तुम्हारे पिछले जन्म में तुमने जिस किसी को भी मारा है उसके पास ढेर सारी ताकत थी। अगर तुम्हारे पास यह इंफिनिटी वाली शक्ति नहीं होगी तो फिर तुम उसका कैसे सामना करोगे? मुझे तुम्हारी फ़िक्र हो रही है।” देवांश ने उसके कंधों पर हाथ रखा और उसे संतुष्ट करते हुए कहा, “मेरे पास सिर्फ़ यही एक शक्ति नहीं है, मेरे पास और भी काफी सारी शक्तियाँ हैं। मैं कुछ ना कुछ कर लूँगा। मगर हाँ, तुम इस शक्ति का इस्तेमाल आगे अच्छे कामों के लिए ही करना। तुम्हें यह शक्ति मिल गई है मगर इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि तुम इसका इस्तेमाल उन कामों के लिए करो जिन्हें रोकने के लिए मेंने जन्म लिया है।” श्री ने जवाब दिया, “बिल्कुल भी नहीं, मैं तो इस शक्ति का इस्तेमाल भी नहीं करूँगी। यह तुम्हारी शक्ति है तो हमेशा तुम्हारी अमानत बनकर ही मेरे पास रहेगी। अगर तुम्हें इसे वापस लेने का कोई तरीका मिल जाए तो तुम जब चाहो तब इसे वापस लेने के लिए मेरे पास आ जाना।” दोनों वापस घर की तरफ़ जाने लगे। रास्ते में दोनों ने और भी काफी सारी बातें कीं और बातों का यह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक श्री अपने घर तक नहीं आ गई। श्री ने देवांश को गले लगाया और कहा, “तुम कब यहाँ से जाने के बारे में सोच रहे हो?” देवांश ने उसकी पीठ पर हाथ रखा और हाथ फेरते हुए कहा, “मुझे यहाँ 10 साल हुए 3 महीने हो गए हैं, मैं बस गुफाओं के दरवाज़ों के बंद होने का इंतज़ार कर रहा था। शायद कल सुबह सूरज की पहली किरण के साथ मैं यहाँ से निकलने के बारे में सोचूँ।” श्री की आँखों में हल्के से आँसू थे जिसे वह संभाल नहीं पा रही थी। उसने जल्दी से अपने आँसुओं को साफ़ किया और फिर पीछे हटकर बोली, “ठीक है, मगर मुझे भूल मत जाना। अगर तुम्हें बाहर कोई दुनिया मिल जाए तो समय निकालकर मुझे मिलने ज़रूर आना।” देवांश ने अपने चेहरे पर मुस्कराहट दिखाकर कहा, “हाँ, मैं ज़रूर आऊँगा। मैं ना तो तुम्हें भूलूँगा और ना ही इस गाँव के किसी और भी व्यक्ति को। मैंने इस गाँव में जन्म लिया है और इस जगह को मैं ज़िन्दगी भर याद रखूँगा।” उसने श्री को अलविदा कहा और फिर अपने घर की तरफ़ जाने लगा। वहीं उसके जाने के बाद श्री तेज़ी से अपने कमरे में गई और वहाँ अपने पिता के गले लगकर रोने लगी। श्री अपने पिता को रोती हुई बोली, “क्या हमारे पास कोई ऐसा तरीका नहीं जिससे हम देवांश को यहाँ पर रोक सकें?” लखन ने अपनी बेटी की पीठ पर हाथ फेरा और कहा, “नहीं बेटा, नहीं। वह भगवान है और भगवान को कोई नहीं रोक सकता। जिस काम के लिए वह पैदा हुए हैं, हमें उसे वो काम करने देना होगा।” श्री रो रही थी और जितेंद्र उसे संभालने की कोशिश कर रहा था। देवांश अपने घर पहुँचा। उसकी माँ उसके लिए खाना बना रही थी। जैसे ही देवांश घर पहुँचा, उसकी माँ ने उसे देखा और कहा, “अरे बेटा, तुम आ गए। चलो खाना खा लो, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी।” देवांश ने अपने हाथ धोए और फिर अपनी माँ के पास आकर बैठ गया। उसकी माँ उसे थाली में खाना डालने लगी। खाना डालते हुए उसने कहा, “बेटा, तुम इतने साल से हमारे साथ हो, मैं हर दिन तुम्हारे लिए खाना बनाकर देती हूँ और तुम्हें संभालती हूँ, मैं तुम्हारी माँ हूँ…” देवांश ने अपनी माँ को हैरानी से देखा और कहा, “मैं यह सब जानता हूँ माँ, मगर आप यह सब क्यों कह रही हैं?” आयुधी ने अपने चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान दिखाई और कहा, “क्योंकि मुझे तुमसे कुछ माँगना है। मैंने इतने साल तक तुम्हारे लिए इतना कुछ किया है तो मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे मना नहीं करोगे।” देवांश ने खाने का एक निवाला लिया और फिर मुस्कुराते हुए कहा, “अगर आप यह सब ना करतीं और तब भी मुझे कुछ माँगतीं तो भी मैं आपको मना नहीं करता माँ, आप मेरी माँ हैं। अगर आप यह पूरी दुनिया भी माँग लेंगी तो मैं वह दुनिया भी आपके कदमों में लाकर रख दूँगा।” आयुधी के चेहरे पर आँसू थे जिसे वह छिपाने की कोशिश कर रही थी। आयुधी ने अपने आँसुओं को हल्का सा साफ़ किया और कहा, “तुम्हारे पिता ने मुझे बताया कि तुम यह गाँव छोड़कर जाने वाले हो। मैं चाहती हूँ कि तुम इस गाँव को ना छोड़कर जाओ और हमेशा-हमेशा के लिए यहाँ पर रहो।” देवांश ने खाना खाते हुए अपने हाथों को रोक दिया। कुछ देर तक वह शांत रहा और उसने कुछ भी नहीं कहा। फिर वह बोला, “कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें मैं भी नहीं बदल सकता हूँ, यह उनमें से एक चीज़ है। अगर मैं इस गाँव से बाहर नहीं गया तो मैं जिस चीज़ के लिए पैदा हुआ हूँ, उस काम को मैं कभी पूरा नहीं कर सकूँगा। उस काम के अधूरे रहने की वजह से पता नहीं भविष्य में कितना नुकसान होगा, कितने हज़ारों लोग मारे जाएँगे। इसलिए माफ़ करना मेरी माँ, मैं ऐसा नहीं कर सकता हूँ। मेरे हाथ बंधे हुए हैं।” आयुधी के चेहरे पर यह सुनकर मायुसी आ गई।

  • 20. The 10th Avatar of God - Chapter 20

    Words: 1377

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    देवांश यह कहकर फिर से खाना खाने लगा, और उसकी माँ अब अपने आँसू छिपा नहीं सकी और वह खुलकर रोने लगी। देवांश ने अपने हाथ साफ़ किए और फिर माँ के पास आकर उसे गले लगा लिया, “आप फ़िक्र मत कीजिए, मैं हमेशा के लिए छोड़कर नहीं जा रहा हूँ। मैं यहाँ पर वापस ज़रूर आऊँगा और इसका वादा मैंने पिताजी से और श्री से भी किया है।” उसकी माँ ने भी उसे गले लगा लिया और गले से लगे हुए वो बोली, “मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी बेटा, बहुत-बहुत।” देवांश ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा, “और मुझे भी आपकी याद आएगी माँ। मैं आपको हर दिन याद करूँगा।” देर रात को देवांश लखन के साथ बाहर एक पत्थर पर बैठा था। लखन के हाथ में तलवार थी। लखन ने उस तलवार को देवांश को देते हुए कहा, “यह हमारी पुश्तैनी तलवार है। मेरे परदादा को यह तलवार उनके पिताजी ने दी थी और फिर दादा ने अपने आगे, और इसी तरह से यह तलवार मेरे पास आई है। हमारी पीढ़ी में हम इस तलवार को एक के बाद एक आगे देते रहते हैं, इसलिए यह तलवार मैं तुम्हें दे रहा हूँ।” देवांश के लिए यह तलवार काफी बड़ी थी क्योंकि वह सिर्फ़ 10 साल का ही था, जबकि इस तलवार को चलाने के लिए 18 या 19 साल का होना ज़रूरी है। देवांश ने तलवार पकड़ी और फिर कहा, “अगर यह हमारे परिवार की परंपरा का हिस्सा है तो मैं इस परंपरा को आगे बढ़ाऊँगा।” उसने तलवार रख ली। लखन ने कहा, “इस तलावर के अलावा मेरे पास तुम्हें देने के लिए और कुछ भी नहीं है। उम्मीद करूँगा जब तुम अगली बार यहाँ पर वापस आओगे तब मैं तुम्हारे लिए काफी कुछ रखूँगा।” देवांश ने दोबारा तलवार की ओर देखा, “आपने जो मुझे दिया, मेरे लिए यही काफी है। जिस दिन मैं अपने दुश्मन को ख़त्म करूँगा, देखना, मैं आपकी इस तलवार का इस्तेमाल करूँगा। यह मेरा आपसे वादा रहा।” लखन मुस्कुराया और फिर देवांश के कंधे थपथपाने लगा। देर रात तक दोनों ही बाहर बैठे रहे और आपस में बातें करते रहे। फिर दोनों ही सोने के लिए चले गए। अगली सुबह, सूरज की पहली किरण के साथ ही लोगों का जमावड़ा समुद्र तट के किनारे लग गया था। एक बहुत बड़ी नाव समुद्र के किनारे पर खड़ी थी। इसे बनाने का काम वीर ने किया था और देवांश ने इसका नक्शा दिया था। नीले रंग के समुद्र के बीच, वह जहाज़ पानी की धाराओं के साथ ऊपर नीचे हो रहा था। देवांश तैयार होकर एक तरफ़ खड़ा था और उसके पास ही श्री खड़ी थी और फिर आहुधी, लखन और वीर। सबके चेहरे मायूस थे और सब बड़ी मुश्किल से अपने रोने को रोक रहे थे। देवांश ने सभी गाँव वालों की तरफ़ देखा और उन्हें संबोधित करते हुए कहा, “मैं जानता हूँ आप सब इस वक़्त क्या सोच रहे हो, लेकिन, आप सब एक इतिहास का हिस्सा बनने वाले हो, एक ऐसे इतिहास का हिस्सा जिसमें आप सबको हज़ारों सालों तक याद किया जाएगा। जब भी मेरी बात होगी तब आप लोगों की भी बात होगी। मैंने कहाँ जन्म लिया था? एक ऐसी जगह पर जो पूरी दुनिया से अलग थी, एक ऐसी जगह पर जहाँ रहने वाले लोगों को यह भी नहीं पता था कि उनके अलावा कुछ और भी लोग इस दुनिया में हैं या नहीं, या फिर और भी दुनिया यहाँ पर हैं या नहीं, कुछ ऐसे लोग जो आदमखोरों के ख़तरे में रहते थे। इतिहास में हर एक चीज़ को सुनहरे शब्दों में लिखा जाएगा और मेरा यह सफ़र सिर्फ़ मेरा सफ़र नहीं होगा, बल्कि आप सबका भी सफ़र होगा।” सारे लोग देवांश का जयजयकार करने लगे, वे कहने लगे, “भगवान की जय हो! भगवान की जय हो! भगवान की जय हो!” देवांश श्री की तरफ़ मुड़ा और उसके कंधों पर हाथ रखकर बोला, “मैंने तुम्हें अपनी शक्तियाँ दी हैं, और तुम्हारे पास मेरी अनंत शक्ति भी है। मेरे जाने के बाद अगर इस गाँव में कोई ख़तरा आता है तो उसे ख़तरे का सामना तुम करोगी। मुझसे वादा करो, तुम हर एक गाँव वाले को सुरक्षित रखोगी।” श्री ने उसे अपना सिर हिलाया और वादा किया, “मैं वादा करती हूँ, मैं इस गाँव वालों को कुछ भी नहीं होने दूँगी।” फिर वह देवांश के गले लग गई और हल्का सा रोने लगी, मगर देवांश ने उसकी पीठ थपथपाकर उसे दोबारा शांत करवा दिया। वह अपनी माँ के पास आया और उसका आशीर्वाद लिया और फिर अपने पिता का आशीर्वाद लिया। देवांश ने दोनों को कहा, “आप दोनों ने मेरे लिए जो किया, मैं उसे भूलने वाला नहीं हूँ। और आप भी निराश मत होइए, बस मेरे आने का इंतज़ार कीजिए। मैं जल्दी अपने काम को पूरा करके आऊँगा।” लखन ने अपने बेटे के सर पर हाथ फेरा, “मुझे तुम पर गर्व रहेगा बेटा। हमारा नाम इस पूरी दुनिया में रोशन करना। सबको बताना तुम लखन और आहुदी के बेटे हो।” देवांश ने सिर को हिलाया और फिर वह वीर के पास पहुँचा, “आप इस दुनिया को जानने को लेकर काफी जिज्ञासु रहे हैं। जब मुझे इस दुनिया के बारे में पता चल जाएगा, तब मैं आपको एक संदेश ज़रूर भेजूँगा यह बताने के लिए कि बाहर की दुनिया कैसी है और वहाँ तक कैसे पहुँचा जा सकता है।” वीर ने देवांश को गले लगा लिया, “बिल्कुल, मैं तुम्हारे उस संदेश का इंतज़ार करूँगा।” देवांश ने एक-एक करके और भी ज़रूरी लोगों से मुलाक़ात की और फिर अपने जहाज़ की तरफ़ रवाना हो गया। जहाज़ को ऐसे बनाया गया था जिसे एक व्यक्ति भी चला सकता था और यह लंबे सफ़र के लिए भी काम का था। जहाज़ पर जाने के बाद वह गाँव के सभी लोगों को एक-एक करके देखने लगा। सभी लोगों के चेहरे उसे उम्मीद से देख रहे थे। सब उसे जाते हुए देखकर दुखी थे, मगर उन्हें गर्व भी था क्योंकि वे देवांश के एक नए सफ़र को शुरू होते हुए देख रहे थे; एक ऐसे सफ़र में जहाँ देवांश बुराई के ख़ात्मे के लिए पैदा हुआ था। सबने अपने हाथ हिलाकर देवांश को अलविदा कहा। देवांश ने भी अपना हाथ हिलाया और फिर जहाज़ की तरफ़ चला गया। उसने जहाज़ के पाल खोले, जो हवा में लहराने लगे और हवा की गति की वजह से ही जहाज़ थोड़ी ही देर में रवाना हो गया। जैसे ही जहाज़ शुरू हुआ, श्री दौड़ने लगी और पहाड़ी की चोटी की तरफ़ जाने लगी। वह सूरज के साथ पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गई जहाँ वह देवांश को खुद से दूर जाते हुए देख रही थी। उसने अपना हाथ देवांश की तरफ़ किया, जैसे वह जहाज़ को पकड़कर उसे रोकना चाहती हो, लेकिन वह ऐसा कुछ भी नहीं कर सकती थी। उसने अफ़सोस के साथ अपने हाथों की मुट्ठी बंद कर ली और फिर उसे दिल से लगा लिया। देवांश को जाते हुए देखकर उसे दुख हो रहा था। उसके आँसू उसके गालों पर लुढ़क रहे थे। उसने अपने आँसू दोबारा साफ़ किए और देवांश को तब तक जाते हुए देखती रही जब तक वह उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गया। वहीं देवांश भी अपने जहाज़ से पहाड़ी की चोटी पर ही श्री को देख रहा था। देवांश ने अपनी आँखें मसलीं और फिर दोबारा उन्हें पहाड़ी की चोटी पर केंद्रित किया, “तो आखिरकार मेरी दूर तक देखने की क्षमता भी अब काम करने लगी है। श्री, मुझे नहीं पता था तुम्हें मेरे जाने का कितना दुख होगा…” देवांश ने अपना हाथ श्री की तरफ़ किया, “फ़िक्र मत करो, मैं तुम्हारे पास जल्दी वापस आऊँगा।” यह कहकर वह मुड़ा और जहाज़ के स्टीयरिंग की तरफ़ जाने लगा। जाते हुए उसने कहा, “मेरी ज़िन्दगी का एक अध्याय पूरा हो चुका है और अब एक दूसरा अध्याय शुरू होने जा रहा है। मैंने अपने पहले अध्याय में अपनी 10 साल की ज़िन्दगी जिया और अब मेरे दूसरे अध्याय में मैं नई दुनिया की खोज पर निकला हूँ। मैं एक अवतार हूँ, भगवान का एक अवतार, जो पैदा हुआ है बुराई के ख़ात्मे के लिए, इस दुनिया को संदेश देने के लिए, हज़ारों सालों तक याद रखने के लिए एक कहानी देने के लिए। बुराई चाहे कितनी भी ताक़तवर क्यों न हो, उसका अंत होता है, और इस दुनिया में मौजूद इस बुराई का अंत मैं करूँगा।” यह कहकर उसने स्टीयरिंग पकड़ा और फिर पूरे कॉन्फ़िडेंस के साथ उसे घुमा दिया; अपने एक नए सफ़र के लिए।