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Madness Of The Shadow

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अद्रकाश खुराना — एक ताक़तवर बिज़नेस टायकून और खतरनाक अंडरवर्ल्ड डॉन, जिसे कोई नहीं समझ पाया। उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था... सिवाय एक के — अवीरा सहगल। बेपरवाह, चुलबुली और आज़ाद ख्यालों वाली अवीरा को नहीं पता कि उसकी हर छोटी-बड़ी ख़ुशी की वजह कोई छिपी ह...

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Madness of the shadow

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Madness of the Shadow

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Total Chapters (10)

Page 1 of 1

  • 1. Madness Of The Shadow - Chapter 1

    Words: 1870

    Estimated Reading Time: 12 min

    दिल्ली की सर्द सुबहों में, जब सड़कों पर हड़कंप मचने से पहले शहर में हल्की सी शांति पसरी होती है, अवीरा सहगल की मुस्कान उसके चेहरे पर बिखरी होती थी। वह अपनी दुनिया में खुश थी, उसकी छोटी-सी दुनिया जिसमें कोई बंधन नहीं था। उसकी ज़िंदगी का हर पल, हर दिन, एक नई शुरुआत था। उसके दिल में कोई ग़म नहीं था, केवल हल्की सी उत्सुकता थी, जो उसे हर नए दिन से मिलती थी।

    आज भी वह जैसे ही ‘ब्रीज़ ब्लूम’ कैफ़े पहुंची, उसे उसी पुराने काउंटर पर अपनी पसंदीदा कॉफ़ी के लिए खड़ा हुआ पाया। वह अक्सर इसी कैफ़े में आती थी, और यहां का माहौल, उसकी पसंदीदा हल्की सी म्यूजिक और चॉकलेटी खुशबू उसे हमेशा तरोताजा महसूस कराती थी।

    लेकिन उस दिन कुछ अलग था। जैसे ही वह काउंटर की ओर बढ़ी, बैरिस्टा मुस्कराते हुए बोला, "आपका ऑर्डर पहले से तैयार है, मिस अवीरा।"

    "क्या?" अवीरा ने चौंकते हुए पूछा। "मैंने तो ऑर्डर दिया ही नहीं था!"

    बैरिस्टा हल्का हंसते हुए बोला, "किसी ने पहले से करवा दिया था — वही usual hazelnut latte, two sugar cubes, no cream।"

    अवीरा कुछ पल के लिए चुप रही, फिर एक हल्की मुस्कान उसके चेहरे पर आ गई। "Must be some secret admirer..." उसने मज़ाक में कहा, लेकिन उसका दिल कुछ अजीब सा महसूस कर रहा था। उसे ये सब कुछ जरा भी अजीब सा लगने लगा था। वह आदत से बाहर सोचना चाहती थी, लेकिन फिर भी वह सोचने लगी कि ये सब क्यों हो रहा था। कोई तो है, जो उसे अच्छे से जानता है, बहुत अच्छे से।

    अवीरा ने उस कॉफ़ी का प्याला लिया और एक ओर इशारा करते हुए बैठने के लिए अपनी सीट की ओर बढ़ी। तभी उसकी नज़र अचानक सड़क के उस पार खड़ी एक ब्लैक SUV पर पड़ी। कुछ पल के लिए उसका ध्यान वहीं टिक गया, लेकिन फिर उसने नजरें हटा लीं।

    उस एसयूवी के अंदर बैठा आदमी कुछ ज्याादा ही ध्यान से उसे देख रहा था। काले चश्मे और सख्त लुक में वह शख्स किसी खतरनाक साजिश की तरह महसूस हो रहा था। उसकी आँखों में एक बेचैनी थी, जैसे वह किसी चीज़ का पीछा कर रहा हो।

    सपनों जैसी कोई भावना दिल में उठने लगी। अवीरा ने फिर से अपनी कॉफ़ी पर ध्यान दिया और बैठने की कोशिश की, पर कुछ अजीब सा ख्याल उसे छूने लगा। यह कुछ था जो वह चाहकर भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती थी।

    वहीं, एसयूवी के अंदर बैठा आदमी, अद्रकाश खुराना, उसकी हर हरकत को बड़े ध्यान से देख रहा था। उसकी आँखों में एक अजीब सी जलन और जुनून था। अवीरा की मुस्कान को वह महसूस कर रहा था, जैसे वह किसी ख़ास तरह की मासूमियत से भरी हुई हो, जो उसे अपनी ओर खींचती थी।

    "हर सुबह की शुरुआत सिर्फ उसी के दीदार से होती है..." उसने धीमे से बुदबुदाया। उसकी आवाज़ में किसी गहरी तृप्ति की ध्वनि थी, जैसे वह किसी लक्ष्य की ओर बढ़ रहा हो, किसी ख्वाब को पूरा करने के लिए।

    अद्रकाश का हर कदम, हर विचार, सब कुछ एक उद्देश्य से जुड़ा हुआ था। अवीरा उसके मन में एक रहस्य बन गई थी, एक ऐसी पहेली, जिसे वह हल करने के लिए खुद को समर्पित कर चुका था। हर दिन, वह उसके नज़दीक जाने की योजना बनाता था, और इस दिन, उसने अपने आप को उसके और करीब पाया।

    अवीरा का मन कहीं न कहीं उसकी आँखों में कुछ महसूस कर रहा था। कुछ ऐसा था जो वह न चाहकर भी महसूस कर रही थी। उसके अंदर एक तरह की बेचैनी उभर रही थी। फिर भी, उसने इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उसने अपनी कॉफ़ी का प्याला उठाया और कैफ़े के बाहर चल दी।

    वह सड़क के उस पार से निकलते हुए सोच रही थी कि वह आदमी — उस एसयूवी में बैठा शख्स — कौन था। उसकी आँखों में एक अजीब सी गहरी खामोशी और खतरनाक आकर्षण था।

    अद्रकाश की दुनिया

    अद्रकाश का नाम दिल्ली के अंडरवर्ल्ड और बिजनेस साम्राज्य में खौफ और सम्मान दोनों के साथ लिया जाता था। उसकी आँखों में उस ताकत का अक्स था, जो कभी किसी को भी नजरअंदाज नहीं कर सकती थी। उसकी शख्सियत और स्वाभाव, दोनों ही उसे एक अजीब सी छवि देते थे — एक ऐसा आदमी, जो रहस्यों से घिरा हुआ था और जिसे सब जानते थे, लेकिन फिर भी कोई नहीं जानता था कि वह असल में है कौन।

    उसकी ताकत का सबसे बड़ा कारण उसकी हिम्मत और उसका दृढ़ संकल्प था। जब उसने अवीरा को पहली बार देखा था, तो उसके दिल की धड़कन कुछ बढ़ गई थी। एक पल में ही उसे एहसास हुआ कि वह उस लड़की को चाहता है, लेकिन न सिर्फ किसी आम तरीके से, बल्कि एक जुनून के रूप में। वह उसका पीछा करना चाहता था, उसके साथ हर पल बिता कर उसे समझना चाहता था, और अंततः उसे अपनी दुनिया का हिस्सा बनाना चाहता था।

    वह जानता था कि यह आसान नहीं होगा, क्योंकि अवीरा का व्यक्तित्व बहुत मजबूत था, लेकिन यह भी सच था कि वह कभी हार नहीं मानता था। उसके मन में यह विचार था कि वह किसी भी हद तक जा सकता है।

    अद्रकाश ने अपनी कार के शीशे को थोड़ा नीचे किया और एक बार फिर से उस लड़की को देखा जो अब उसकी नजरों से ओझल हो चुकी थी। उसने धीरे से कहा, "तुम मुझे नहीं जानतीं, अवीरा। लेकिन मैं तुम्हें बहुत अच्छे से जानता हूँ।"

    उसने अपने चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान लाते हुए कहा, "तुमसे मिलने का वक्त अब बहुत करीब है।"

    उसी शाम, अवीरा अपने भाई करण सहगल के साथ उसके ऑफिस पहुँची।

    अवीरा और करण का रिश्ता हमेशा से एक खास था। करण, जो एक बिजनेस टाइकून थे, हमेशा अपनी बहन को अपनी दुनिया से अवगत कराते रहते थे। अवीरा को भी यह पसंद था, क्योंकि वह हमेशा इस बिजनेस वर्ल्ड की सबसे ऊंची ऊँचाईयों को देखना चाहती थी। परंतु, इस दिन कुछ ऐसा था जो अवीरा को खींच रहा था। करण के ऑफिस का माहौल उसे सामान्य से कहीं ज्यादा रहस्यमयी लग रहा था। उसकी आँखों में चुपके से सवाल था और दिल में एक अनकहा डर।

    "तू ज़रा स्मार्ट बन, वो मेरा पार्टनर है, कोई मामूली आदमी नहीं — Adrakash Khurana," करण ने कहा, उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, पर उसकी आवाज में एक गंभीरता थी। यह नाम ही था जो अवीरा को बेचैन कर देता था।

    "Naam toh filmy villain jaisa hai," अवीरा ने हँसते हुए कहा, मगर उसकी हंसी में कोई खोखलापन था। वह जानती थी कि ये सब एक मजाक नहीं था।

    जैसे ही वे ऑफिस की लिफ्ट में सवार हुए, अवीरा का दिल हल्का-सा धड़कने लगा। इस पल में कोई अजीब सी सनसनी उसके अंदर पैदा हो रही थी। जब लिफ्ट का दरवाज़ा खुला, अवीरा की आँखों के सामने वही शख्स खड़ा था, जिसकी वह पहले ही कई बार छाया में मौजूदगी महसूस कर चुकी थी। वही अजनबी, वही आंखें — जो जैसे सीधे उसकी आत्मा को चीर रही थीं।

    अद्रकाश खुराना।

    अवीरा के दिल में एक गहरी सिहरन दौड़ गई। उसका कद, उसका ड्रेसिंग सेंस, और उसकी आँखों में जो गहराई थी, वह उसे बहुत अजीब सा लग रहा था। वह उस कमरे में एक तरह का खौफ पैदा कर रहा था, जैसे वह सिर्फ एक आदमी न होकर, एक छाया हो। और वह छाया अवीरा की दुनिया में धीरे-धीरे घुसने के लिए तैयार थी।

    "Hello, Mr. Khurana," करण ने आदत से हाथ बढ़ाया और एक सटीक बिजनेस मुस्कान के साथ कहा।

    अवीरा को लगा कि उसके भाई की मुस्कान में भी एक अजीब सा डर था। वह अपने पार्टनर के सामने पूरी तरह से आत्मविश्वास से भरा हुआ था, लेकिन उस आत्मविश्वास के पीछे एक रहस्यमय भय था। अवीरा ने खुद को शांत रखने की कोशिश की और उसे नजरअंदाज करने की सोची, लेकिन दिल के किसी कोने में वह इस आदमी से अनजान नहीं रह सकती थी।

    "Nice to meet you, Miss Sehgal," अद्रकाश ने कहा, उसकी आवाज़ में एक ठंडापन था, जैसे वह हर शब्द को सावधानी से तोलकर बोल रहा हो। उसकी आँखों की चमक सीधे अवीरा की आँखों से टकराई और दोनों की नज़रें एक-दूसरे में खो गईं। अवीरा ने अपनी नजरें झुका लीं, लेकिन अद्रकाश की नज़रें उससे हटने का नाम नहीं ले रही थीं।

    वह पल अद्रकाश के लिए किसी जादू से कम नहीं था। उसका दिल एक खौफनाक तरीके से धड़क रहा था। उसकी आँखें, जो अक्सर किसी की आँखों में किसी डर की तलाश करती थीं, अब अवीरा की आँखों में खुद को खो चुकी थीं। वह कुछ दिनों से उसे नज़रें चुराते हुए देखता था, लेकिन अब वह सामने खड़ी थी। और जब वह सामने खड़ी होती है, तो जैसे सब कुछ रुक जाता था। हवा थम जाती थी। वह केवल उसे देख सकता था, उसके भीतर का सब कुछ महसूस कर सकता था।

    "Miss Sehgal, your brother speaks very highly of you," अद्रकाश ने धीरे से कहा, जैसे वह पूरी तरह से अवीरा को समझने की कोशिश कर रहा हो। उसके शब्दों में कुछ था, जो एक गहरे रहस्य को उजागर कर रहा था।

    अवीरा का दिल और तेज़ी से धड़कने लगा। उसकी आवाज़ का गूढ़ अर्थ वह समझ नहीं पा रही थी, लेकिन उसने सोचा, "क्या यह आदमी कुछ छिपा रहा है? क्यों उसकी आँखों में ये अजीब सी चमक है?"

    अवीरा ने हल्के से मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसकी मुस्कान में कोई ताजगी नहीं थी। उसका मन भटक रहा था, और जैसे ही वह कमरे में दाखिल हुई, उसे यह महसूस हुआ कि अद्रकाश की नज़रे हमेशा उसके पीछे हैं, जैसे उसका पीछा कर रही हो। वह भाग नहीं सकती थी। वह नहीं चाहती थी कि यह डर उसके भीतर आए, फिर भी यह उसे अपने साथ खींचता जा रहा था।

    अद्राक्ष ने अब पूरी तरह से अवीरा को अपने कब्जे में ले लिया था, और वह चाहता था कि वह पूरी तरह से उसे महसूस करे। उसकी नज़रें, उसकी मौजूदगी, सब कुछ अवीरा के मन में गहरे तौर पर घर कर चुका था।

    "आप ठीक हैं?" अद्राक्ष ने धीरे से पूछा, उसकी आवाज़ में एक झूठी चिंता थी, जिसे अवीरा आसानी से पहचान सकती थी।

    "हां," उसने झूठ बोला।

    "क्या आप मुझे अपने बारे में कुछ और बता सकती हैं, Miss Sehgal?" अद्राक्ष ने एक कदम और बढ़ते हुए पूछा, उसकी आँखों में अब एक अदृश्य जुनून था।

    अवीरा का मन हलका-सा उबला। यह आदमी क्या चाहता था? क्यों वह उसे इस तरह से देख रहा था? क्या वह उसके बारे में जानने का प्रयास कर रहा था या कुछ और?

    "आपसे कुछ सवाल पूछे हैं," अद्राक्ष ने आगे कहा, "क्या आप कभी अपने आसपास के लोगों के बारे में सोचती हैं, या आप खुद को पूरी तरह से जाने बिना जीती हैं?"

    उसका सवाल कुछ गहरा था, और अवीरा को लगा जैसे वह उसका पीछा कर रहा हो। उसकी आवाज़ में एक जादुई खिचाव था, जो उसे चुप करवा देता था। वह अब जानने लगा था कि अवीरा की आँखों में क्या था — एक असहाय सी बेबसी, जो अब धीरे-धीरे उसके मन को घेर रही थी।

    अवीरा ने अपनी आँखें घुमाईं, और जैसे ही उसने पलटकर देखा, उसे फिर वही एहसास हुआ — अद्राक्ष उसके दिमाग में बस चुका था। उसकी आँखों में छुपा हुआ जुनून, एक गहरा अंधेरा, और एक अजीब सा आकर्षण था, जो उसे डुबो रहा था।

  • 2. Madness Of The Shadow - Chapter 2

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    अवीरा ने अपनी आँखें घुमाईं, और जैसे ही उसने पलटकर देखा, उसे फिर वही एहसास हुआ — अद्राक्ष उसके दिमाग में बस चुका था। उसकी आँखों में छुपा हुआ जुनून, एक गहरा अंधेरा, और एक अजीब सा आकर्षण था, जो उसे डुबो रहा था।

    रात को अवीरा अपने कमरे में बैठी थी, जब उसका फोन वाइब्रेट हुआ। एक अननोन नंबर से मेसेज था:

    “Careful on the stairs. The third one’s a little loose.”

    वो चौंकी।

    अगले दिन जब वो सीढ़ियाँ उतर रही थी, तीसरी सीढ़ी सच में हिली।

    अवीरा का दिल तेजी से धड़क रहा था, जैसे उसके शरीर में खून की धारा अचानक रुक गई हो। वह सीढ़ियों के पास खड़ी होकर, उस तीसरी सीढ़ी की ओर देख रही थी, जो अब तक इतनी सामान्य सी दिखती थी। लेकिन अब, उसका मतलब कुछ और था, कुछ भयंकर। उसका दिल जानता था कि कुछ गड़बड़ है, लेकिन वह इसे नज़रअंदाज़ करने की कोशिश कर रही थी।

    “क... कौन है?” अवीरा ने बुदबुदाते हुए पूछा, लेकिन वह खुद भी यह नहीं जानती थी कि वह किससे जवाब चाहती है। उसकी आँखों में एक अजीब सा डर था, और साथ ही साथ वह एक नई तरह की बेचैनी महसूस कर रही थी। क्या यह कोई मजाक था, या फिर एक चेतावनी?

    अवीरा ने अपने मन को समझाने की कोशिश की और सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी। वह अब तक उस सीढ़ी के बारे में सोच रही थी, और फिर अचानक, उसकी नजरें तीसरी सीढ़ी पर पड़ीं। वह सच में हिल रही थी। वह धीरे-धीरे नीचे झुकी और सीढ़ी को हल्के से दबाया। वह हिली, बिलकुल वैसे ही जैसे किसी ने कहा था। अवीरा का दिल अब पूरी तरह से घबराया हुआ था। क्या यह सिर्फ एक संयोग था, या कुछ और?

    अवीरा ने अपने हाथ में फोन पकड़ा और उस अननोन नंबर से आये हुए संदेश को फिर से देखा। "Careful on the stairs. The third one’s a little loose." यह कोई सामान्य संदेश नहीं था। यह किसी की चेतावनी थी, किसी का ध्यान था।

    उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि यह संदेश क्यों आया था, लेकिन एक बात तो तय थी — इस संदेश के पीछे कोई था। कोई जो उसकी हर हरकत पर नजर रख रहा था। अवीरा का मन मंथन कर रहा था, और उसकी सोच के धागे उलझने लगे थे। क्या उसे किसी ने देखा था? क्या वह किसी और से जुड़ा हुआ था, या यह सिर्फ एक संयोग था?

    “तेरा हर पल मेरा है, अवीरा... तुझे बस अभी तक एहसास नहीं।”

    यह वाक्य उसके दिमाग में घूमा। उसने फिर से उस संदेश को पढ़ा और उसकी धड़कन बढ़ गई। यह वाक्य ऐसा था, जैसे किसी ने उसके दिल की गहरी धड़कन को सुन लिया हो और उसे शब्दों में ढाल दिया हो। यह वो ही था, जिसे वह अपने मन की गहराई में महसूस कर रही थी — वह कोई था, जो हमेशा उसके आसपास था, लेकिन जिसे वह पहचान नहीं पा रही थी।

    उसके दिल में एक हलचल मच गई थी। उसे लगा जैसे किसी ने उसकी दुनिया को पूरी तरह से पलट दिया हो। वो अनकहा डर, जो अब तक छुपा हुआ था, अब सामने आ चुका था। उसे एहसास हुआ कि यह जो कुछ भी था, वह सिर्फ एक शुरुआत थी। और इस शुरुआत के बाद, क्या कुछ और आ सकता था?

    वो अपने कमरे के खिड़की से बाहर देखने लगी। रात का सन्नाटा उसे भारी महसूस हो रहा था। दूर कहीं, शहर की रोशनी झिलमिला रही थी, लेकिन अवीरा के भीतर का अंधेरा बढ़ता जा रहा था। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसकी ज़िन्दगी इस तरह से बदल सकती है। उसे डर लग रहा था, लेकिन इस डर के साथ एक अजीब सी कशिश भी महसूस हो रही थी। जैसे किसी रहस्यमय शक्ति ने उसे अपने जाल में फंसा लिया हो।

    तभी उसका फोन फिर से वाइब्रेट हुआ। इस बार, संदेश में सिर्फ एक शब्द था:

    " देखो।"

    अवीरा ने जल्दी से फोन उठाया और देखा, लेकिन वहां कुछ नहीं था। सिर्फ वही शब्द, "देखो"। वह किचन के पास चली गई और खिड़की से बाहर देखा। रात का अंधेरा अब उसे और ज्यादा घेरने लगा था, और वो महसूस कर रही थी कि वह पूरी तरह से अकेली नहीं थी। उसकी आंखों के सामने जो दृश्य था, वह किसी फिल्म के सस्पेंस से कम नहीं था। उसे लगा जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो, और वह इस पीछा करने वाले को पहचानने की कोशिश कर रही थी।

    अवीरा ने खिड़की से झांकते हुए हर कोने को देखा, लेकिन बाहर कुछ नहीं था। फिर भी, कुछ था। कुछ था जो उसे भीतर से खींच रहा था। उसे लगा जैसे कोई उसकी आत्मा को महसूस कर रहा हो। वह गहरे से सांस ली, और फिर धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर लौट आई।

    “मैं इस सब को एक बार फिर से नहीं देख सकती,” उसने खुद से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में विश्वास नहीं था। वह जानती थी कि वह इस रहस्य से बाहर नहीं निकल सकती। जो कुछ भी हो रहा था, वह उसे अपनी तरफ खींच रहा था।

    सिटी में उस रात, अद्रकाश खुराना एक अंधेरे कमरे में बैठा था, और उसकी आँखों के सामने CCTV स्क्रीन पर अवीरा की तस्वीर थी। वह स्क्रीन से नहीं हट रहा था, उसकी आँखों में एक खौफनाक खुशी थी।

    "तुम उसे नहीं पहचान पा रही हो, अवीरा," उसने मुस्कराते हुए कहा, "लेकिन बहुत जल्दी, तुम्हें एहसास होगा कि तुम्हारा हर पल, तुम्हारा हर कदम, अब मेरे हाथों में है।"

    अद्रकाश खुराना के चेहरे पर जो मुस्कान थी, वह एक घातक आदत की तरह फैल रही थी। यह जुनून था, जो उसे अपनी ओर खींच रहा था। और अवीरा को अब समझ में आ रहा था कि उसकी ज़िंदगी में यह नया किरदार सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं था, बल्कि वह खेल का मास्टर था।

    अवीरा के दिल में अब सवाल थे। क्या वह कभी इस जाल से बाहर निकल सकेगी? क्या अद्रकाश खुराना का जुनून उसे अपनी जद में पूरी तरह से समेट लेगा? या फिर, वह खुद को उस डर और उस आदत से मुक्ति दिला पाएगी?

    लेकिन अभी, यह केवल शुरुआत थी।

  • 3. Madness Of The Shadow - Chapter 3

    Words: 951

    Estimated Reading Time: 6 min

    अवीरा के दिल में अब सवाल थे। क्या वह कभी इस जाल से बाहर निकल सकेगी? क्या अद्रकाश खुराना का जुनून उसे अपनी जद में पूरी तरह से समेट लेगा? या फिर, वह खुद को उस डर और उस आदत से मुक्ति दिला पाएगी?

    लेकिन अभी, यह केवल शुरुआत थी।

    उसकी आँखों के सामने CCTV स्क्रीन पर अवीरा की तस्वीर थी। वह स्क्रीन से नहीं हट रहा था, उसकी आँखों में एक खौफनाक खुशी थी।

    "तुम उसे नहीं पहचान पा रही हो, अवीरा," उसने मुस्कराते हुए कहा, "लेकिन बहुत जल्दी, तुम्हें एहसास होगा कि तुम्हारा हर पल, तुम्हारा हर कदम, अब मेरे हाथों में है।"

    अद्रकाश खुराना के चेहरे पर जो मुस्कान थी, वह एक घातक आदत की तरह फैल रही थी। यह जुनून था, जो उसे अपनी ओर खींच रहा था। और अवीरा को अब समझ में आ रहा था कि उसकी ज़िंदगी में यह नया किरदार सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं था, बल्कि वह खेल का मास्टर था।

    उस रात शहर की गलियाँ नीली स्ट्रीटलाइट्स में नहाई हुई थीं, पर अद्रकाश खुराना का कमरा — अंधेरे और जुनून का गढ़ बन चुका था। उसकी उंगलियाँ चमड़े की कुर्सी की कुहनियों पर थिरक रही थीं, और उसकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी थी — जैसे हर पल वो और इंतज़ार नहीं कर सकता।

    अवीरा उस रात को सो नहीं पाई। उसके दिमाग में हर पल वही संदेश, वही शब्द घूम रहे थे — "Careful on the stairs. The third one’s a little loose." और फिर दूसरा संदेश — "देखो।" उसके मन में डर और असमंजस का एक तूफ़ान था, लेकिन साथ ही, कुछ और भी था, एक अजीब सी कशिश। वह सोच रही थी कि क्या यह सब बस एक संयोग था या फिर उसके आसपास कोई अनदेखी ताकत काम कर रही थी।

    अवीरा की आँखें थकी हुई थीं, लेकिन नींद की बजाय उसकी चेतना अब जागृत हो चुकी थी। वह अपने कमरे के अंदर घबराई हुई, एक घेरा महसूस कर रही थी। घर में हर कोने में उसे वह छाया महसूस हो रही थी।

    वही अद्रकाश अविरा को सीसीटीवी से देख रहा था ।

    "I’m closer than you think, Avira "तुम्हारे दिल की हर धड़कन अब मेरे पास रिकॉर्ड है, अवीरा," उसने बुदबुदाते हुए कहा, "तुम सोच भी नहीं सकती, तुम कब से मेरी हो..."

    अद्रकाश का अतीत —

    वह ऐसे ही जुनूनी नहीं बना था। अद्रकाश खुराना की ज़िंदगी में प्यार कभी ठहरा नहीं था, बस पिघलता रहा था — उसकी माँ की आँखों का सूना पानी, उसके पिता का खून से सना अतीत, और उसका अकेलापन... वह इंसान नहीं रहा था, एक परछाई बन गया था।

    अद्रकाश के लिए प्यार कभी फूलों भरा सपना नहीं था, वो एक हुकूमत थी — कब्ज़ा करने का अधिकार, और अब वह अधिकार उसने अवीरा पर ठोक दिया था।

    In present

    रात का दूसरा पहर — जब शहर सो रहा था, एक निगाह जाग रही थी।

    अद्रकाश की उंगलियाँ अब रुक गई थीं। उसकी आँखों में एक नई चिंगारी थी — एक साज़िश, एक अगला कदम। CCTV स्क्रीन पर अवीरा की साँसों की गति अब भी स्पीकर पर साफ़ सुनाई दे रही थी। वो करवट बदल रही थी। तकिये के नीचे हाथ रखते हुए वो सोने की कोशिश कर रही थी।

    "नींद में भी तेरा चेहरा देखता हूँ मैं..."

    अद्रकाश के होंठों से यह लफ़्ज़ खुद-ब-खुद निकले।

    उसका हर लम्हा, अद्रकाश का कब्ज़ा बन चुका था।

    नेक्स्ट मॉर्निंग,

    सूरज की किरणें जब खिड़की से छनकर कमरे में आईं, तो अवीरा उनींदी आँखों से जागी। उसने अलार्म की आवाज़ बंद की और सिर को तकिये में गाड़ लिया, जैसे कुछ और वक्त चाहिए उसे… खुद को संभालने के लिए।

    लेकिन उस रात की बेचैनी अब भी उसकी नसों में दौड़ रही थी। और फिर वो एहसास — कि कोई है… कोई, जो बहुत करीब है।

    “नहीं, अवीरा… तू overthink कर रही है।” उसने खुद को समझाया।

    और उठ कर वॉशरूम चली गई और जल्दी से अपने जोगिंग सूट पहन कर वापिस आई और अपने डेली रूटीन के अकॉर्डिंग जॉगिंग के लिए निकल गई।

    करीब 2 घंटे बाद अविरा जॉगिंग से वापिस आई तो उसे करण हॉल में सोफे पे बैठा चाय पीता हुआ दिखा वो उनके पास आई और बोली," गुड मॉर्निंग भाई।"

    करण जो न्यूजपेपर पढ़ रहा था उसका ध्यान अविरा पर गया उसने हाथ फैला कर बोला,"गुड मॉर्निंग अवि।"

    अविरा जल्दी से अपने भाई के गले लग गई। ओर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए करण ने मुस्कराते हुए सिर हिलाया। “वैसे आज शाम को थोड़ा फॉर्मल रहना — Adrakash Khurana डिनर पर आ रहा है।”

    “क्या?” उसके होंठों से बस यही निकला।

    करण ने अख़बार एक तरफ रखा, “हाँ, उसने खुद invite लिया है। कल call आया था — कुछ future projects discuss करने हैं। और... he also mentioned he’d like to know the family better.”

    “He’d like to know the family better…”

    ये शब्द अवीरा के कानों में जैसे अजीब सी गूंज छोड़ गए।

    वो कुछ बोलना चाह रही थी, लेकिन खुद को रोक लिया।

    उसके बाद करण खड़ा हुआ और उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोला,"अनु अब जाओ और रेडी हो जाओ। में ऑफिस जा रहा हु ।

    और रात को डिनर पर कोई शरारत मत करना। अपने भाई की बात सुनकर अविरा ने सिर हिला दिया।

    करण ने प्यार से अनु का माथा चूमा और ऑफिस के लिए निकल गया।

    वहीं अविरा ने अपने भाई को जाते हुए देखा और उसके बाद खुद भी अपने सीढ़ियों से होते हुए अपने कमरे की तरफ चली गई। कमरे में आई ओर सीधा वॉशरूम में चली गई।

    कुछ देर बाद अविरा वॉशरूम से निकली उसके बाल गिले थे। और उसने टॉवेल से अपने बालों को लपटे रखा था। और उसने बाथरोब पहन रखा था।

    कुछ देर में अविरा रेडी हो गई। और अपने कॉलेज के लिए निकल गई।

  • 4. Madness Of The Shadow - Chapter 4

    Words: 1028

    Estimated Reading Time: 7 min

    दिन ढल रहा था, लेकिन शहर की कुछ इमारतें अब भी जगी थीं। उन्हीं में एक ऊँची, स्याह इमारत — “Khuraana Group Headquarters” — जो बाहर से जितनी चमकदार लगती थी, अंदर से उतनी ही रहस्यमयी थी। उस इमारत की सबसे ऊपरी मंज़िल पर अद्रकाश खुराना का ऑफिस था, एक गहरी स्याही से सना गढ़, जहाँ से वह अपने हर मोहरे को नियंत्रित करता था।

    वह इस वक़्त अकेला था। लेकिन अकेला कहाँ?

    उसके सामने एक 360 डिग्री स्क्रीन की दीवार थी — हर स्क्रीन पर CCTV फीड थी — कुछ उसके ऑफिस के, कुछ उसके गोदामों के... और कुछ ऐसे जो उसकी पर्सनल दुनिया से जुड़ी थीं।

    एक स्क्रीन पर — अवीरा सेहगल।

    उसे सुबह जॉगिंग करते हुए देखा गया, फिर कॉलेज जाते हुए। उसकी आँखें हर समय कुछ तलाशती हुई लग रही थीं — लेकिन उसे नहीं पता था कि वो खुद ही किसी की तलाश बन चुकी है।

    अद्रकाश की उंगलियाँ टेबल पर धीमे-धीमे थिरक रही थीं।

    "Beautiful... इतनी मासूमियत, इतनी तेज़ी और फिर भी... इतनी बेखबर।"

    उसने ज़ूम किया। स्क्रीन पर अब अवीरा की आँखें भर आईं। उसने रुककर पानी पिया, और कहीं दूर किसी पेड़ के नीचे बैठ गई।

    "तुम थक जाती हो, मैं जानता हूँ। और इसलिए तुम्हारे लिए वो स्पॉट साफ़ कराया था। वहाँ कोई नहीं आता अब..."

    वो मुस्कराया — एक ऐसी मुस्कान जो मोहब्बत के साथ-साथ पागलपन से भी भरी थी।
    ---

    अद्रकाश की दुनिया में मोहब्बत एक “फीलिंग” नहीं, एक कमांड थी।

    जहाँ ज़्यादातर लोग इश्क़ में अपना वजूद खो देते हैं, अद्रकाश इश्क़ में दूसरे का वजूद मिटा देता था — सिर्फ़ उसे रखने के लिए।

    "तुम मेरी हो, अवीरा। कब से... ये तुम नहीं जानती। लेकिन मैं जानता हूँ, कि तुम्हारी पहली हँसी से लेकर तुम्हारी आख़िरी नींद तक, सब मेरी है..."

    दूसरी तरफ, st. Xavier college

    शाम ढल चुकी थी। अविरा सारी क्लासेज अटेंड करके कॉलेज से बाहर निकल गई। जहां पहले से ड्राइवर कार लेके खड़ा था। अविरा कार के पास आई ओर कार में बैठ गई। ड्राइवर भी अपनी सीट पे बैठ गया और उसने घर सहगल हाउस की ओर बढ़ा दी। कुछ ही देर में अविरा घर पहुंच गई थी।

    ऐसे ही रात हो गई ओर करण भी घर आ चुका था आज अद्रकाश आने वाला था। जिसके के लिए करण ने शेफ से कह के सारा खाना अद्रकाश की पसंद का खाना बनवाया था।
    सब कुछ परफेक्टली किया गया था ।

    करण रेडी होके नीचे आया उसने एक बार ओर सब चेक कर रहा था कि दरवाज़े पर बेल बजी।

    अद्रकाश खुराना अपने पूरे रुतबे और ठहराव के साथ अंदर दाख़िल हुआ। काले सूट में, कलाई पर महँगी घड़ी, और आँखों में वो खामोशी जो किसी तूफ़ान से पहले आती है।

    "Welcome, Adrakash!" करण ने हाथ बढ़ाया।

    "Pleasure, Karan." अद्राकाश ने मुस्कराते हुए हाथ मिलाया।
    लेकिन उसकी नज़रें करण की पीछे से आती अवीरा पर टिकी थीं।
    अवीरा सीढ़ियों से उतरते हुए आ रही थी — नीले कुर्ते में, बाल खुले हुए, हल्के काजल के साथ सनी उसकी आँखें।

    अद्रकाश ने उसकी ओर देखा, उसकी पलकों को देखा, उसकी साँसों की चाल को पढ़ा — “You look... exactly how I imagined you would tonight,” उसने धीमे से कहा।


    "Hi..." अवीरा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।

    "Hi, Avira." उसकी आवाज़ एक धीमा मगर असरदार कोहरा थी।
    करण अद्रकाश को देखा और कहा,"चलिए डिनर का टाइम हो गया है। "
    करण की बात सुनकर अद्रकाश ने सिर हिला दिया। " और तीनों डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ गए।

    टेबल पर बैठने के बाद माहौल थोड़ी देर तक साधारण था। लेकिन अद्राकाश के अंदाज़ में एक धीमा कब्ज़ा था — जैसे किसी फूल को सूंघने से पहले उसकी हर पंखुड़ी को आँखों से पढ़ लेना।

    डिनर के दौरान अद्रकाश ने बातें की, लेकिन उसका हर वाक्य किसी रहस्य की तरह लिपटा था।

    “तुम्हारा कॉलेज कैसा है?”
    “ठीक है…”?? अद्रकाश ने पूछा।
    अविरा खाना खाते हुए अद्रकाश का सवाल सुनकर बोली," ठीक चल रहा है। "
    अद्रकाश - "गुड।" ऐसे ही अच्छे से पढ़ाई करो।
    "Avira," अद्राकाश ने अचानक कहा, "I’ve heard you’re learning classical piano?"

    वो चौकी, “हाँ, लेकिन… आपको कैसे पता?”

    वो मुस्कराया, “A little bird told me.”
    (वो “little bird” था — उसका hidden microphone, उसकी रिपोर्टिंग टीम)

    अविरा मुंह बनाते हुए बोली,"आप मजाक कर रहे है?"

    उसने सिर्फ मुस्कराया — “मैं एक businessman हूँ… मुझे हर चीज़ की खबर होती है।”

    करण हँसा, “That’s true. Adrakash knows more about people than they do themselves.”

    रात बीती, खाना खत्म हुआ। करण ऊपर चला गया। फाइल लाने के लिए लेकिन अद्रकाश वहीं सोफे पे बैठा था।

    “Avira,” उसने धीरे से कहा।

    वो पलटी।

    “Next time you step out for your jog, avoid the west park. Dogs there are getting wild these days.”

    अवीरा की आँखों में एक कंपकंपी दौड़ गई। वो कुछ बोल नहीं पाई। बस सिर हिलाया और ऊपर चली गई।


    ---

    कुछ ही देर में करण फाइल लेके नीचे आया और अद्रकाश को वो फाइल दे दी। अद्रकाश ने वो फाइल ली और बोला,"अब मुझे चलना चहिए। "
    अद्रकाश की बात से सहमत होकर करण ने अपना सिर हिला दिया और उसे बाहर तक छोड़ने आया। अद्रकाश ने हाथ मिलाया और अपनी कार में बैठ गया और वहां से निकल गया।
    करण भी अद्रकाश को छोड़ने के बाद अंदर आया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।


    रात 2:45 AM

    अवीरा फिर से नींद से उठ गई — बदन पर पसीना, और आँखों में डर।

    उसने एक सांस खींची — और फिर उसकी फोन स्क्रीन पर देखा जहां एक नया मैसेज आया।

    “You looked beautiful tonight. तुम्हारा डर भी उतना ही हसीन है जितना तुम्हारी हँसी।

    अब कोई शक नहीं था।

    कोई था।

    जो बहुत करीब था।

    जो उसकी साँसों में, उसकी परछाइयों में, उसके हर निर्णय में शामिल था।

    और वो कोई और नहीं, अद्रकाश कपूर था — जो अब सिर्फ उसे देख नहीं रहा था… वह उसकी रूह में उतर चुका था।


    ---

    अद्राकाश अपने कमरे में अकेला बैठा था,

    शेर ओ शायरी उसके जुनून की ज़बान बन चुकी थी —

    “तू हवा बनके आई, मैं साँसों में ढल गया,
    तू अनजानी रही, और मैं तुझमें मिल गया।
    तेरे साए को भी छूने की इजाज़त नहीं दी तूने,
    पर मैं हूँ साया... तेरी हर रौशनी में जल गया।”

  • 5. Madness Of The Shadow - Chapter 5

    Words: 963

    Estimated Reading Time: 6 min

    और वो कोई और नहीं, अद्रकाश कपूर था — जो अब सिर्फ उसे देख नहीं रहा था… वह उसकी रूह में उतर चुका था।

    अगली सुबह की हल्की धूप खिड़की से छनकर अवीरा के कमरे में आ रही थी। लेकिन अवीरा पहले ही उठ चुकी थी। रात का डर अब भी उसकी आँखों में बाकी था, लेकिन चेहरे पर दृढ़ता थी — जैसे उसने तय कर लिया हो कि वो अपने डर को खुद से दूर करेगी।

    तैयार होकर वह नीचे आई, करण पहले ही ऑफिस के लिए निकल चुका था। उसने जल्दी से टोस्ट खाया, बैग उठाया और कार में बैठ कॉलेज के लिए निकल गई।

    St. Xavier College के सामने अजीब सी भीड़ जमा थी। छात्र-छात्राएं, प्रोफेसर और कुछ मीडिया वाले भी मौजूद थे। कैंपस में हलचल थी। कार से उतरते ही अवीरा ने देखा कि हर कोई एक ही सवाल कर रहा था — “किसने कॉलेज खरीदा?”

    अभी तक किसी को ठीक से पता नहीं था, लेकिन अफवाहें थीं कि कोई बड़ा नाम इससे जुड़ा है।

    अवीरा ने एक सीनियर स्टूडेंट से पूछा, “क्या हो रहा है?”

    वो बोली, “अरे तुमने नहीं सुना? कॉलेज किसी खुराना ग्रुप ने खरीद लिया है। आज उनके डायरेक्टर आ रहे हैं। पूरा कॉलेज उनके स्वागत में लगा है।”

    “खुराना ग्रुप?” उसके होंठ कांपे।

    दिल की धड़कन तेज़ हो गई। अचानक उसे पिछली रात याद आई — वो मैसेज, वो निगाहें, वो चेतावनी।

    और फिर, जैसे वक़्त थम गया हो…

    तभी सामने एक काली bugatti गाड़ी कॉलेज के मेन गेट पर आकर रुकी। दरवाज़ा खुला, और उसमें से उतरा वो साया — काले थ्री पीस सूट में, आँखों पर काले शेड्स, कदमों में ठहराव और चाल में हुकूमत — अद्रकाश खुराना। जैसे ही उसने पहला कदम कॉलेज की ज़मीन पर रखा, वहां खड़े हर चेहरे पर सन्नाटा छा गया।

    उसके पीछे दो बॉडीगार्ड्स खड़े थे, लेकिन वो अकेला ही काफी था सारा माहौल बदल देने के लिए।

    ब्लैक फॉर्मल सूट, सधे हुए कदम, चेहरे पर ठंडी मुस्कान, और आँखों में वही पुरानी हुकूमत। भीड़ खुद-ब-खुद दो भागों में बंट गई, जैसे रास्ता बना रही हो किसी शहंशाह के लिए।

    कॉलेज का प्रिंसिपल खुद आगे आया, “Welcome to St. Xavier’s, Mr. Khurana.”

    “Pleasure.” अद्रकाश ने हल्की मुस्कान के साथ हाथ मिलाया, लेकिन उसकी निगाहें उस पूरे समय सिर्फ एक चेहरे को खोज रही थीं।

    अवीरा।

    वो थोड़ी दूरी पर खड़ी थी, लेकिन अद्रकाश की आँखें सीधे उससे जा टकराईं। उसने हल्के से सिर झुकाया, जैसे एक अनकहा आदेश दे रहा हो।

    अवीरा का दिल धड़क उठा।

    तभी माइक लेकर कॉलेज का प्रिंसिपल मंच पर आया।

    “प्रिय छात्रों,” उसने कहा, “हम सबके लिए आज का दिन एक नया मोड़ लेकर आया है। St. Xavier अब एक नई शुरुआत करने जा रहा है, क्योंकि अब यह कॉलेज Khuraana Group के अंतर्गत आ गया है।”

    सन्नाटा छा गया।

    “और अब मैं आपको मिलवाना चाहता हूँ हमारे नए चेयरमैन और कॉलेज के डायरेक्टर — Mr. Adrakash Khuraana से।”

    तालियाँ बजीं, और स्याह सूट में वही काला तूफान — अद्रकाश — सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ मंच की तरफ आया। उसकी चाल में वही ठहराव था, लेकिन उसकी आँखों में सिर्फ़ एक चेहरा था — अवीरा सेहगल।

    स्टूडेंट्स ने स्वागत किया, ।

    अद्रकाश कपूर स्टेज पर आया ओर बोला,"“From today, this institution is under Khuraana Group’s patronage. We believe in discipline, excellence… and loyalty.”

    उसकी आवाज़ में कोई दिखावा नहीं था, कोई झूठा अपनापन नहीं — बस सीधा, तीखा और असरदार अंदाज़।

    “आप सब बदलते सिस्टम को महसूस करेंगे। लेकिन जो इसे समझेगा… वो आगे बढ़ेगा। जो नहीं…”

    उसने रुककर अवीरा को देखा।

    “…वो मेरे रास्ते में होगा।”

    हॉल में सन्नाटा छा गया। किसी ने ताली नहीं बजाई — सब समझ नहीं पाए कि ये स्वागत था या धमकी। लेकिन अवीरा की रूह कांप चुकी थी।

    उसने एक नज़र फिर से अवीरा पर डाली।

    फिर प्रिंसिपल बोले — “और हाँ, मैं विशेष रूप से इस अवसर पर अवीरा सहगल का नाम लेना चाहूँगा, जो इस कॉलेज की टॉपर रही है। Congratulations, Miss Sehgal.”

    अवीरा को जैसे झटका लगा। अब वो सिर्फ़ अद्रकाश की निगरानी में नहीं थी — अब वो उसकी ताकत के नीचे थी।

    कुछ देर बाद सभी अपनी क्लासेज़ की ओर बढ़ गए। अवीरा भी अपनी नोटबुक संभालती क्लास में चली गई।

    क्लास के दौरान भी वो बेचैन थी, लेकिन उसने खुद को पढ़ाई में डुबोने की कोशिश की।

    क्लास खत्म होते ही वह कॉरिडोर से होते हुए निकल रही थी, तभी एक कोने में मॉपिंग हुई थी और फर्श गीला था। उसका पैर फिसल गया, वह गिरने ही वाली थी कि पीछे से किसी ने झपट कर उसे पकड़ लिया।

    “Careful!”

    एक लड़का — शायद नया स्टूडेंट था — ने उसे थाम लिया था। उसके हाथों में उसका हाथ था। वो मुस्कराया, “आप ठीक हैं?”

    अवीरा थोड़ी घबराई, लेकिन फिर सिर हिलाया। “हाँ... थैंक्स।”

    वो लड़का मुस्कराते हुए आगे बढ़ ओर बोला," hii, में अबीर शर्मा एंड आपका नाम.??"

    अविरा मुस्कुराते हुए बोली,"अविरा।"

    दोनों ऐसे मुस्कुराते बात करते हुए जा रहे थे।

    लेकिन दूर खड़ा कोई और यह सब देख रहा था।

    कॉरिडोर के दूसरी ओर, खिड़की की ओट में खड़ा अद्रकाश कपूर, यह सब देख चुका था। उसका चेहरा पहले शांत था — अब उसमें आग की झलक थी। उसकी उंगलियाँ उसकी जेब में मुठ्ठी बन चुकी थीं। उसकी साँसें गहरी हो चुकी थीं।

    उसके अंदर एक बवंडर उठ चुका था — कोई और? उसकी अवीरा को छुए?

    लेकिन वो कुछ नहीं बोला। कुछ नहीं किया। बस गहरी नज़र डाली और वहाँ से निकल गया।

    उसके अंदर एक बवंडर उठ चुका था — कोई और? उसकी अवीरा को छुए?

    लेकिन वो कुछ नहीं बोला। कुछ नहीं किया। बस गहरी नज़र डाली और वहाँ से निकल गया।

    उसकी गाड़ी जैसे ही कॉलेज के गेट से निकली, उसका फोन उठा।

    “उस लड़के के बारे में सब पता करो। नाम, बैकग्राउंड, परिवार — सब।”

    उसकी आवाज़ में एक पत्थर की ठंडक थी।

  • 6. Chapter 6 - गिफ्ट

    Words: 1088

    Estimated Reading Time: 7 min

    कॉलेज से निकलते ही अद्रकाश की आंखों में उठी आग जब शांत नहीं हुई तो उसने अपनी जेब से फोन निकाला और अपनी काली बुगाटी में बैठ गया और खिड़की से बाहर देखते हुए बोला — “उस लड़के के बारे में सब पता करो। नाम, बैकग्राउंड, परिवार — सब।” उसकी आवाज़ में बर्फीली सर्दी थी। उस दिन के दोपहर तक अबीर शर्मा की पूरी जानकारी अद्रकाश के सामने थी — मिडल क्लास बैकग्राउंड, स्कॉलरशिप पर कॉलेज में आया हुआ, होशियार लेकिन महत्वाकांक्षी। लेकिन इन तमाम सूचनाओं से अधिक जो चीज़ अद्रकाश के दिल में आग लगा रही थी वो थी अवीरा के चेहरे पर आई मुस्कान जो अबीर को देखकर आई थी। और वो मुस्कान, अद्रकाश को अपने होने पर एक तमाचा लगी थी। अद्रकाश ने फोल्डर पढ़ते-पढ़ते होंठ दबा लिए, फिर खड़ा हुआ और अपने बॉडीगार्ड से कहा, "आज रात उसका एक्सीडेंट होना चाहिए, लेकिन... याद रहे, ज़िंदा बचे। पर इतना कि कभी अपनी चाल में सीधा न हो पाए।"

    रात को जब अबीर कॉलेज से बाहर आया और अपनी बाइक पर घर लौटने लगा, तब एक काली SUV पीछे से उसकी गति के साथ खेलने लगी। कुछ सेकंड्स में ही एक मोड़ पर जब गली सुनसान हुई, SUV ने सीधा टक्कर मारी। अबीर बाइक से उछल कर किनारे गिरा, सिर से खून बहता गया, और उसकी टाँग बुरी तरह मुड़ गई। लोग दौड़े, हॉस्पिटल ले जाया गया। अगले दिन की हेडलाइन बनने वाली थी — "St. Xavier Student Severely Injured in Hit-and-Run Case"। लेकिन किसी को नहीं पता था कि वह टक्कर सिर्फ एक हादसा नहीं थी — वह एक इशारा था, एक चेतावनी, एक जुनूनी दीवानगी का खूनी दस्तावेज़।

    शाम को कॉलेज खत्म होने के बाद अवीरा अपनी सबसे अच्छी दोस्त आराध्या के साथ मॉल गई। दोनों ने साथ-साथ कई चीज़ें देखीं खरीदी— पर्फ्यूम्स, बैग्स, कुछ किताबें और थोड़ा फैशन ट्रेंड। हँसी-मज़ाक और गॉसिप्स के बीच दोनों का मूड हल्का हो गया था। शॉपिंग बैग्स हाथ में लिए जब वे मॉल में घूमते हुए बाहर जा रही थी की उसकी नजर एक मानेक्विन पर गई, जिस पर एक खूबसूरत ब्लड वाइन कलर का गाउन सजा था — बेहद खूबसूरत, उसकी पसंद के हर मापदंड पर खरा। अवीरा जैसे कुछ देर के लिए ठहर गई। वो उस गाउन को देखती रही जैसे किसी पुराने ख्वाब को जी रही हो।

    आराध्या ने मुस्कराकर पूछा, “पसंद आया?” अवीरा ने हल्के से सिर हिलाया, “बहुत ज़्यादा... लेकिन कीमत देखी?” टैग पर नज़र जाते ही वह पास गई, टैग देखा — ₹9,00,000। आराध्या ने कहा, “चल हट, शादी के लिए भी इतना महंगा नहीं लेती।” दोनों हँसते हुए आगे बढ़ गईं लेकिन अवीरा के मन में वो गाउन बस गया था। रात को दोनों सहगल विला पहुँचीं। थोड़ी देर के बाद आराध्या अपने घर चली गई।

    अवीरा अपने कमरे में गई, लेकिन उस गाउन की छवि अब भी उसकी आँखों में घूम रही थी। उसने खुद के ख्यालों को झटका ओर अपने बेड पर आ कर लेट गई।

    नेस्ट मॉर्निंग,

    अगली सुबह जब वह हर रोज की तरह जॉगिंग करने गेट से बाहर जा रही थी और वो वहां से निकली तो उसे वॉचमैन ने कहा, “मैडम, आपके नाम एक कुरियर आया है।”

    “मेरे नाम?” उसने हैरानी से कहा। “किसने भेजा?”

    “पता नहीं मैडम, नाम नहीं लिखा है।”

    पैकेट खूबसूरत था — महंगे ब्लैक वेलवेट बॉक्स में बंधा हुआ, ऊपर सिल्वर रिबन। जिस पर सिर्फ उसका नाम लिखा था — AVIRA, ब्लैक इंक में अविरा ने वो बॉक्स लिया और वापिस विला के अंदर आ गई और सीधा अपने रूम में आई और उसने बॉक्स को ओपन किया और जैसे ही अवीरा ने बॉक्स खोला — उसकी आँखें चौंधिया गईं — वही गाउन... — वही ब्लड वाइन कलर का सिल्की गाउन जिस पर उसकी निगाह अटक गई थी। , जो कल मॉल में उसने देखा था। उसके हाथ काँप गए। उसके साथ एक छोटा सा लेटर भी था — हाथ से लिखा गया, खूबसूरत लेकिन सधे हुए अक्षरों में — बिना किसी नाम के।

    लिफ़ाफ़ा खोला, और जो लिखा था, वो उसके रोंगटे खड़े करने के लिए काफी था:

    “हर चीज़ जो तुम्हारे दिल में उतरती है, वो मेरे लिए हुक्म होती है। तुम चाहो या ना चाहो, मैं जानता हूँ तुम्हें क्या चाहिए… और कब। ये गाउन तुम्हारे उस पल के लिए है जब तुम्हें लगेगा कि तुम सिर्फ एक आम लड़की नहीं हो... तुम मेरी हो।

    "जो तुम्हें छूना चाहे, वह पहले मेरी आग से गुज़रेगा। जो तुम्हें देखे, वो मेरी परछाईं से डरेगा। तुमने उस गाउन को सिर्फ देखा था, और मैंने तुम्हारे देखने को ख्वाहिश बना लिया। यह गाउन अब तुम्हारा नहीं, मेरी दीवानगी का हिस्सा है — इसे पहनना तुम्हारी मर्ज़ी नहीं, मेरी हुकूमत है। तुम नहीं समझती, लेकिन मैं हर उस पल का हिसाब रखता हूँ जिसमें तुम्हारी पलकें किसी और पर झुकी हों। तुम्हारा मुस्कुराना मेरी सनक की हदें तोड़ सकता है, और किसी और से बात करना... मौत का दस्तखत बन सकता है। तुम्हारा कोई और होना — सोच भी मत लेना। तुम्हारी हर चीज़ अब मेरी है — हर साँस, हर एहसास। ये गाउन मेरे होने का एहसास है, मेरी चेतावनी है । पहनोगी तो मेरी होगी, नहीं पहनोगी...

    तब भी मेरी रहोगी। फर्क सिर्फ इतना होगा कि तुम्हें दर्द के साथ याद रखना होगा कि मैंने तुम्हें कब देखा था पहली बार। —

    अवीरा की उंगलियाँ काँप गईं। अविरा स्तब्ध खड़ी थी। गाउन बेहद खूबसूरत था, लेकिन उस पर लिपटी सनक की महक ने उसे जहरीला बना दिया था।

    अविरा ने आखिरी लाइन पढ़ी । — तुम्हारा कोई… जो सिर्फ तुम्हें देखता है।”

    नाम नहीं था। लेकिन अल्फ़ाज़... जैसे दिल में उतरते चले गए। अवीरा घबरा गई। ये किसने भेजा? कैसे जाना उसे ये पसंद था? कोई देख रहा था क्या? और फिर... उसका मन तुरंत अद्रकाश की ओर गया। उसकी आँखों की वो अजीब सी गहराई... जो कल कॉलेज में महसूस हुई थी, उसकी निगाहें — उनमें कोई खामोश हिंसा थी, कोई ऐसा सच जो उसने अभी तक जाना नहीं था। वो बाहर से शालीन, डीसेंट और डिसिप्लिन की बात करता है... लेकिन कहीं न कहीं उसके भीतर कुछ और है। कुछ ऐसा जो बहुत गहरा, बहुत खतरनाक और बहुत अपना-सा है। अवीरा ने गाउन को दोबारा बॉक्स में रखा और अपनी सांसें संयत करने की कोशिश की। लेकिन डर, हैरानी और कहीं न कहीं एक अजीब सा कम्पन — एक एहसास कि कोई उसे बहुत गहराई से जानता है, उसे पढ़ता है... और अब उसके क़रीब आ चुका है। ये जुनून था... या कोई और शुरुआत — वो नहीं जानती थी। लेकिन उसका अंत शायद अब उसके हाथों में नहीं था।

    जारी।।।

    जय श्री महाकाल।।

    क्या होगा आगे??

  • 7. Madness Of The Shadow - Chapter 7

    Words: 865

    Estimated Reading Time: 6 min

    अविरा ने पार्सल को देखने के बाद अपनी अलमारी के क्यबोर्ड में रख दिया। ओर जल्दी से बाथरूम जाकर शावर लिया और कॉलेज के लिए रेडी हुई और कोलेज के लिए निकल गई। कारण तो पहले ही ऑफिस चला गया था।
    अविरा कॉलेज पहुंची कॉलेज का माहौल कुछ अलग था। कैंपस में एक अजीब सी चुप्पी फैली हुई थी, जैसे हवा भी किसी अनजाने डर को छुपा रही हो। अवीरा ने जब क्लास में कदम रखा। तभी उसके पास आराध्या आई ।
    "तुमने सुना?" आराध्या ने बगल में आकर धीरे से कहा।

    "क्या हुआ?" अवीरा ने सवालिया निगाहों से देखा।

    आराध्या ने धीरे से कहा, "अबीर... उसका एक्सीडेंट हो गया। बहुत बुरा। ICU में है।"

    अवीरा के कदम वहीं जम गए। उसे याद आया जब उसने कल आखिरी बार अबीर को देखा था, उसकी मुस्कराहट, उसका मुस्कान में छुपा अपनापन।

    "कब हुआ ये?"

    "कल शाम। किसी ने बाइक से टक्कर मारी और भाग गया। CCTV भी काम नहीं कर रहा था। सबको लग रहा है कि ये कोई सामान्य हादसा नहीं था।"

    अवीरा का दिल धड़कने लगा। उसके अंदर एक गहरी बेचैनी उठी, जो उसे खुद भी समझ नहीं आई।

    "हॉस्पिटल चलें?" आराध्या ने पूछा।

    अवीरा ने सिर हिलाया और दोनों बिना देर किए हॉस्पिटल के लिए निकल गईं।

    Hospicare Hospital

    Hospicare Hospital की चौथी मंज़िल पर ICU के बाहर बैठी अबीर की माँ के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। डॉक्टरों ने अबीर की हालत को गंभीर बताया था। अवीरा ने धीरे से कदम बढ़ाया और दरवाज़े के काँच से झांक कर देखा — अबीर के शरीर पर पट्टियाँ थीं, मशीनें उसके हर साँस को गिन रही थीं। उसका चेहरा पहचान में आ रहा था लेकिन ज़िन्दगी उससे लड़ रही थी।

    "क्या अबीर मुझसे बात कर पाएगा?" अवीरा ने डॉक्टर से पूछा।

    "अभी नहीं। उसे होश में आने में वक्त लगेगा। मानसिक और शारीरिक दोनों ट्रॉमा से गुज़र रहा है।"

    अविरा ने कहा," में अभी आई, आराध्या ने पूछा,"कहा जा रही है।"

    अविरा," वॉशरूम।"

    आराध्या," ठीक है। "
    अवीरा चुपचाप सिर हिलाते हुए वॉशरूम की ओर चली गई। वॉशरूम का हल्का पीला लाइट और अंदर की खामोशी जैसे उसके मन की बेचैनी को कुछ पल का सुकून दे रही थी। वह शीशे में खुद को देख रही थी — आँखों में थकावट, चेहरे पर उलझन और मन में एक अनकहा डर।

    वॉशरूम यूज़ करने के बाद जब वो बाहर निकली, तो अचानक किसी ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया। वो कुछ बोल भी नहीं पाई कि उसे खींचते हुए एक कमरे में ले गया। दरवाज़ा धड़ से बंद हुआ और कमरे की बत्तियाँ बंद थीं — चारों ओर घना अंधेरा। अवीरा की साँसें तेज़ हो गईं।

    "क... कौन है? छोड़ो मुझे!" वो घबरा कर चीखी।

    लेकिन जवाब में केवल एक गहरी साँस की आवाज़ आई। वो साँस जो जैसे उसकी गर्दन को छू रही हो।

    "तुम्हें नहीं पता मैं कौन हूँ? फिर भी इतनी देर से मेरी धड़कनों में रह रही हो।"

    उस आवाज़ में जुनून की एक आग थी, पागलपन की सिहरन।

    "कौन हो तुम? दिख क्यों नहीं रहे? और ये सब क्यों?"

    "नाम ज़रूरी नहीं, एहसास काफ़ी है," वो फुसफुसाया। "जिसने तुम्हें उस गंदे लड़के की बाँहों में देखा, जिसने देखा तुम्हारा मुस्कुराना किसी और के लिए... तुम्हारी आँखों में किसी और के लिए चमक... वो मैं था। और अब... अब वो लड़का हॉस्पिटल बिस्तर पर है, और तुम मेरी बाँहों में।"

    "क्या?! तुमने अबीर के साथ ये सब... पागल हो तुम! साइको हो!"

    अंधेरे में उसकी कलाई पर पकड़ और कस गई।

    "हाँ, साइको... जुनूनी... दीवाना... जो नाम चाहो दे दो। लेकिन याद रखना, जो मेरी है, वो किसी और की नहीं हो सकती। तुम्हारा हर लम्हा, हर साँस, हर मुस्कान सिर्फ मेरी है। किसी और का नाम तुम्हारी ज़ुबान पर आना मेरे लिए नफ़रत का इशारा है।"

    "तुम पागल हो गए हो! छोड़ो मुझे!"

    लेकिन अगली ही पल, वो चेहरा जो नहीं दिख रहा था, उसकी गर्दन के पास आ गया और एक तेज़, जबरदस्ती और जुनूनी तरह से अपने दांतों से वहां काट लिया और अपने बेदर्दी से अपने होठों से वहां किस किया उसकी गर्दन पर अपने काटने का निशान छोड़ दिया। जिस से अविरा की चीख निकल गई,"आह। " ओर अविरा का जहां उसने कटा वहां चला गया जिस से अवीरा काँप गई, उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन वो बाँहें लोहे की तरह थीं।

    "मुझे मत छुओ!"

    "छूना तो छोड़ो... मैं तुम्हें अपनी रूह में बसाने आया हूँ। तुम मेरी हो, सिर्फ मेरी। जो भी तुम्हारे पास आने की कोशिश करेगा, वो अबीर की तरह ही हॉस्पिटल बिस्तर पर जाएगा या फिर इस दुनिया से ।"

    इतना कह कर उसने अविरा को छोड़ दिया और वो दरवाज़ा खोल कर बाहर चला गया। और अवीरा उस अंधेरे कमरे में काँपती, डरी हुई, ज़मीन पर बैठ गई। उसकी साँसें बिखर रही थीं। मन में डर और आँखों में आँसू — उसे अब यक़ीन हो चला था कि जो उसकी ज़िंदगी में छुपकर चल रहा था, वो अब उसके सामने आ रहा था — लेकिन बिना नाम, बिना चेहरा, बिना रहम।

    कौन था वो? अद्रकाश?

    उसके अंदर एक तूफ़ान मच गया था — और अब ये खेल सिर्फ़ पीछा करने तक नहीं था, ये जुनून अब उसके वजूद को निगलने के लिए तैयार था।

  • 8. Chapter 8- love or obsession

    Words: 1249

    Estimated Reading Time: 8 min

    अंधेरे कमरे की हवा में उसके साँसों की गर्मी अब भी तैर रही थी। अविरा की आँखें अब तक उस दिशा में देख रही थीं जहाँ से वो गया था — जैसे दीवार के उस पार भी उसकी मौजूदगी अभी भी महसूस हो रही थी। वो ज़मीन पर बैठी थी, काँपती हुई, उसके बाल अस्त-व्यस्त थे और होंठ सूख चुके थे।उसके हाथ काँप रहे थे, साँसें अनियमित थीं और दिल किसी बेकाबू घोड़े की तरह धड़क रहा था। उसकी गर्दन जहाँ उस अजनबी ने अपने दाँत गड़ा दिए थे, वहाँ अब भी जलन सी हो रही थी — जैसे कोई ज़हर धीरे-धीरे उसकी रूह में घुल रहा हो। उसकी साँसें बेतरतीब थीं और आंखों से आँसू निकलकर गालों से लुढ़क रहे थे लेकिन वो उन्हें पोंछने का भी होश नहीं रखती थी। लेकिन वह जानती थी, यह सब सामान्य नहीं था। यह दीवानगी थी — उस हद तक जहाँ चाहत इबादत नहीं, बल्कि क़ैद बन जाती है।।


    कुछ देर बाद किसी की आहट आई। दरवाज़ा फिर से खुला लेकिन इस बार नर्स थी। "मैम, आप ठीक हैं? यहाँ क्यों बैठी हैं अंधेरे में?" आवाज़ सुनकर अविरा चौंकी जैसे नींद से जगी हो। उसने झटपट खुद को समेटा, सिर हिलाया, और बिना कुछ बोले बाहर निकल आई। उसके कदम बेमकसद थे, मन में एक ही सवाल गूंज रहा था — ये कौन था? और क्यों?

    वो आराध्या के पास पहुँची। उसने देखा कि आराध्या फोन पर किसी से बात कर रही थी। उसे देखते ही आराध्या ने पूछा, "तू ठीक है? तू बहुत देर हो गई थी। ठीक तो है ना?"

    अविरा ने जबरन मुस्कुराने की कोशिश की, "हाँ... बस थोड़ी तबियत गड़बड़ लग रही थी।"

    "आ चल, अबीर से मिल लेते है लेते हैं," आराध्या ने उसका हाथ पकड़ा। लेकिन अविरा का मन अबीर में नहीं था — वो हाथ जो उसकी कलाई पर कस गए थे, वो साँस जो उसकी गर्दन से टकराई थी, वो शब्द जो किसी और की साँसों में जहर बनकर गूंज रहे थे, उन्हीं में उलझा था।

    दिन ढलने को था। हॉस्पिटल से निकलने के बाद जब अविरा घर लौटी, तो कमरे में एक अजीब सी बेचैनी थी। वही अलमारी, वही कीबोर्ड का पार्सल — लेकिन अब वो गाउन एक खामोश गवाह था उस जुनूनी सोच का, जो अब केवल ख़्याल नहीं था। उसने अलमारी खोली, गाउन निकाला और अपने हाथों में पकड़े उसे घूरती रही।

    उसकी उंगलियों ने उस रेशमी कपड़े को छुआ, और जैसे ही उसने उसकी गर्दन के पास गाउन रखा, उसे उस पल की याद आई — जब किसी की साँसों ने वही जगह छुआ था। वो कांप गई। उसके अंदर डर और गुस्से का मिश्रण उबलने लगा। उसने गाउन को ज़मीन पर फेंक दिया और पलंग पर बैठकर अपनी साँसों को सम्हालने की कोशिश की। लेकिन मन में वो आवाज़ फिर गूंज गई — "तुम मेरी हो, सिर्फ मेरी।"

    रात देर तक वो जागती रही। हर आहट पर चौंकती, हर छाया को देखती रही। उसे लगने लगा था कि वो अकेली नहीं है। उसकी खिड़की के बाहर हल्की सी सरसराहट हुई — वो दौड़कर गई, पर कुछ नहीं था। या शायद कोई था... जो देख रहा था। उसकी आदतें, उसका डर, उसकी हर साँस।

    अगले दिन कॉलेज जाना एक संघर्ष जैसा था। लेकिन वो नहीं चाहती थी कि कोई जाने कि वो टूटी है। क्लास में जब वो बैठी तो उसकी नज़रें खुद-ब-खुद हर कोने पर घूमने लगीं — कोई देख तो नहीं रहा? कोई छिपा तो नहीं?

    क्लास के बोर्ड पर लिखा था — "Psychology of Emotions"।

    तभी क्लासरूम का दरवाज़ा खुला और अंदर वो कदम पड़े जिन्हें देख कर अवीरा का शरीर जैसे सुन्न हो गया। वो था — अद्रकाश खुराना। काले शर्ट और स्लेटी कोट में, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। उसकी चाल में वही संयमित पागलपन था जिसे अविरा अब पहचानने लगी थी।

    Good morning class," उसकी गूंजती आवाज़ ने सबका ध्यान खींचा। "मैं आज का गेस्ट लेक्चर लूंगा क्योंकि आपके प्रोफेसर नहीं आए हैं। आज का टॉपिक रहेगा — "" Love और Obsession ""।
    । ये कहने को तो सिर्फ लफ्ज़ थे लेकिन इनके अल्फ़ाज़ बहुत गहरे थे।

    सारी क्लास खुश थी, लेकिन अविरा की साँसें थम सी गई थीं। उसकी नज़रें क्लास के सामने खड़े उस आदमी पर थीं जो सामने था। लेकिन बाकी स्टूडेंट्स के लिए वो सिर्फ एक प्रोफेसर, आकर्षक बिज़नेस टायकून था।

    अद्रकाश ने बोर्ड पर धीरे से लिखा — "LOVE VS OBSESSION" फिर उसने क्लास की तरफ घूमते हुए कहा, "आप में से कौन बताना चाहेगा कि प्यार और जुनून में फर्क क्या होता है?"

    कुछ स्टूडेंट ने हाथ उठाए। एक ने कहा, "Love is about giving space," दूसरे ने कहा, "Obsession is unhealthy," तीसरे ने कहा, "Love accepts, Obsession controls."

    अद्रकाश उनकी बातें सुनता रहा, उसके होठों पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन उसकी निगाहें — सिर्फ एक जगह अटकी थीं, अविरा पर। उसकी नज़रें इतनी स्थिर और गहरी थीं कि अविरा को लग रहा था जैसे वो उसकी रूह के आर-पार देख रहा हो।

    कुछ पल चुप रहने के बाद उसने धीमी, पर असरदार आवाज़ में कहा, "अब मे आप सब को बताता हु कि love or obsession सही मतलब।।"

    "Love," अद्रकाश ने बोलना शुरू किया, "एक एहसास है जो इंसान को जोड़ता है, सुकून देता है। लेकिन Obsession... Obsession वो होता है जब वो प्यार इंसान की साँसों में रच बस जाए, जब किसी की हर मुस्कान पर अधिकार लगे, जब उसकी हर धड़कन किसी और की तरफ मुड़ती नज़र आए तो वो तकलीफ जलन नहीं, जंग बन जाती है।"

    उसके शब्दों में एक गहराई थी, एक आग थी। "सच्चा प्रेम वो नहीं जो आज़ादी दे, सच्चा प्रेम वो है जो अपने पंखों से किसी की उड़ान भी बाँध दे, और वो भी बिना पिंजरा दिखाए। क्या कभी सोचा है कि जब किसी की हँसी किसी और के लिए हो, और आप वो हँसी सिर्फ अपने नाम करना चाहो... वो कैसा एहसास होता है? वो प्यार नहीं, ज़रूरत नहीं — वो इंसान की रूह में लगी आग होती है।"

    हर एक शब्द के साथ उसकी नज़रें क्लास में किसी एक चेहरे पर टिकी थीं — अविरा। वो शांति से बैठी थी, लेकिन उसकी रूह में जैसे तूफान चल रहा था। अद्रकाश के शब्द उसकी साँसों में घुलते जा रहे थे — जैसे कोई धीमा ज़हर, मीठा लेकिन जानलेवा।

    "Love is soft, but Obsession is sacred," वो मुस्कुराया। "ये वो प्यास है जो बुझती नहीं, ये वो दीवानगी है जो इजाज़त नहीं माँगती। ये वो हक है जो वक्त से नहीं, खून से लिया जाता है। और जो कोई उस दीवानगी के बीच आए, उसे रास्ते से हटाना ज़रूरी होता है।"

    सारी क्लास मौन थी। और उस मौन के बीच सिर्फ दो नज़रें थीं जो आमने-सामने थीं — एक जुनून से भरी, और एक डर से काँपती।

    तभी बेल बजी। क्लास खत्म हुई, स्टूडेंट्स धीरे-धीरे निकलने लगे। लेकिन अविरा अपनी जगह से हिल नहीं सकी। अद्रकाश धीरे से उसके पास आया, इतना पास कि उसकी साँसें फिर से उसकी गर्दन के पास महसूस हुईं।
    महसूस होते ही जैसे उसका खून ठंडा पड़ गया। उसकी उंगलियों ने कलम को कस कर पकड़ लिया और मन में वही चेहरा उभर आया — धुंधला, लेकिन खतरनाक। उसकी सोचें दौड़ने लगीं — क्या ये संयोग था? या कोई खेल?

    अविरा को डरता देख वो मुस्कुराया और चला गया। और अविरा उस जगह पर जमी रह गई — जैसे ज़मीन ने उसके कदम थाम लिए हों। उसका डर अब हकीकत बन चुका था — और ये कहानी अब महज़ जुनून नहीं थी, ये एक इबादत थी, जो खून से लिखी जा रही थी।

    जारी।।
    जय श्री महाकाल।।
    क्या होगा आगे??

  • 9. Chapter 9- kiss

    Words: 852

    Estimated Reading Time: 6 min

    अवीरा क्लास से बाहर निकली तो उसके पैरों में जैसे जान नहीं थी। वो धीरे-धीरे कारिडोर से जा रही थी, लेकिन उसकी आँखों के सामने अब भी अद्रकाश का चेहरा घूम रहा था। उसकी बातें, उसकी आँखों की तीव्रता, वो हर लम्हा जब उसने सिर्फ उसी को देखा था — सब कुछ उसके अंदर एक भय और अजीब-सी बेचैनी की लहरें पैदा कर रहे थे। लेकिन कहीं न कहीं, उस डर के नीचे एक और भावना थी — एक रहस्यमयी खिंचाव, जो उसे खुद समझ नहीं आ रहा था। लेकिन मन ने धीरे से एक नाम उगला — अद्रकाश? लेकिन वो शक ही था, कोई पुख्ता यकीन नहीं।

    उसने सोच लिया था कि उसे इस पागलपन से दूर रहना होगा, लेकिन जब जुनून किसी के रगों में उतर जाए तो वो चाह कर भी पीछा नहीं छोड़ता।

    कॉलेज के बाद वह लाइब्रेरी के पीछे बने पुराने गार्डन में चली गई, जो आमतौर पर सुनसान रहता था। वो थोड़ी देर वहाँ बैठकर खुद को समेटना चाहती थी। उसने वहां आकर एक बेच पर बैठ कर अपनी आँखें बंद कीं, अचानक किसी की साँसें फिर से उसकी गर्दन के पास महसूस हुईं।

    "तुम सोचती हो कि मुझसे छुप सकती हो?" वो आवाज़ फुसफुसाहट बनकर उसकी रूह में उतर गई ।

    अवीरा ने आँखें खोलीं और सामने देखा — वही चेहरा, वही आँखें, वही वो — अद्रकाश खुराना। वो उसके सामने खड़ा था, उसके चेहरे पर — सिर्फ अधिकार और जुनून। दिल की धड़कनों ने फिर उस नाम को दोहराया — 'अद्रकाश?' क्या ये वही है? शक गहराया, लेकिन सबूत नहीं था। वो उसके सामने खड़ा था, लेकिन इस बार कोई डर नहीं था उसके चेहरे पर — सिर्फ अधिकार और जुनून।

    "तुम... यहाँ क्या कर रहे हो? मुझे अकेला छोड़ दो," अवीरा की आवाज़ काँप रही थी, लेकिन उसमें गुस्सा भी था।

    वो एक कदम आगे बढ़ा। "तुम नहीं आप। नेस्ट टाइम से ध्यान रहे। तुम नहीं आप होना चाहिए। तुम्हें लगता है मैं तुम्हें अकेला छोड़ सकता हूँ? तुम मेरी हो, अवीरा। उस दिन जब मैंने तुम्हारी साँसों को अपनी साँसों से जोड़ा, तभी से तुम मेरी हो गई हो।"

    वो और पास आया। अवीरा पीछे हटना चाहती थी, लेकिन जैसे उसके पैरों ने काम करना बंद कर दिया हो। वो वहीं खड़ी रह गई, काँपती हुई। उसने फिर उसकी आँखों में देखा — वही गहराई, वही दावा, वही ज्वाला। शक और यकीन के बीच झूलती उसकी चेतना ने एक बार फिर नाम पुकारा — 'अद्रकाश?'

    उसने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया, उसके बालों को धीरे से पीछे किया और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला, "तुम्हें पता है, प्यार वो होता है जो साँसों में घुल जाए... लेकिन जुनून — वो वो होता है जो साँसों को थाम ले, उन्हें रोक दे... और फिर भी तुम उससे दूर न जा सको।"

    उसके शब्दों में पागलपन था, लेकिन एक ऐसा पागलपन जो अवीरा को खींच रहा था। वो खुद को रोकना चाहती थी, लेकिन उसकी आँखों में कुछ ऐसा था — जैसे वो उसके रूह को छू रहा हो।

    उसने उसके होंठों को अपनी उँगलियों से छुआ, बेहद नर्मी से। "तुम्हारे ये होंठ... ये मेरी खामोशियाँ हैं। जो मैंने कभी किसी से नहीं कही, वो सब तुममें बसी हैं।"

    अवीरा ने उसकी कलाई पकड़ने की कोशिश की, उसे रोकने की, लेकिन उसकी पकड़ ढीली थी। उसका शरीर काँप रहा था, लेकिन विरोध की शक्ति जैसे खत्म हो गई थी।

    "आप पागल है," उसने फुसफुसा कर कहा।

    वो उसकी ओर देख मुस्कुराया। उसकी आँखों में कोई शर्म नहीं थी, बस एक जिद — एक गहरी जिद। "हाँ, मैं पागल हूँ। तुम्हारे लिए। और यही पागलपन मेरी ताकत है। तुम मुझसे भाग सकती हो, लेकिन इस एहसास से नहीं। क्योंकि ये प्यार नहीं, जुनून है — और जुनून कभी हार नहीं मानता।"

    और फिर — उसने झुककर उसके होंठों को अपने होंठों से छू लिया। एक धीमा, गहरा, जुनूनी किस — ऐसा जो समय रोक दे, सांसें थाम ले और आत्मा को बांध दे। ये कोई सामान्य चुंबन नहीं था, ये एक अधिकार था, एक कसम, एक चेतावनी। उसकी उँगलियाँ अब भी अवीरा के चेहरे को थामे थीं और होंठों पर उसकी दीवानगी लहरों की तरह उतर रही थी।

    अवीरा की आँखें बंद थीं, उसके अंदर हलचल थी। वो चाहकर भी इस क्षण से खुद को अलग नहीं कर पाई। एक पल को उसे लगा जैसे वो उसी के लिए बनी है — जैसे वो स्पर्श कोई सज़ा नहीं, कोई आदत हो। लेकिन तभी, जैसे होश लौटा। उसने खुद को अलग किया और पीछे हट गई, उसका चेहरा आँसुओं से भीगा हुआ था।

    अविरा ने चिल्ला कर कहा,"नहीं।"

    तभी उसने अपने आस पास देखा कि कोई नहीं है। ओर वो अभी भी बेंच पर बैठी हुई थी। ओर वहां वो अकेली थी उसके अलावा वहां कोई नजर नहीं आ रहा था।

    अविरा ने खुद को शांत किया और एक गहरी सांस ली ओर बोली,"ओह गॉड ये ये क्या था। "

    अविरा वो सब सोच रही थी कि उसकी अंगुली अपने आप अपने होठों पे चली गई। ओर उसे वही किस का एहसास हो रहा था कि ये जो भी हुआ ये हकीकत थी ना कि कोई वहम।

    जारी।।

    जय श्री महाकाल।।

    क्या होगा आगे.??

  • 10. Madness Of The Shadow - I like it

    Words: 1170

    Estimated Reading Time: 8 min

    अवीरा लाइब्रेरी के पीछे बने उस गार्डन से उठी तो उसके कदम डगमगाते थे, दिल की धड़कनें अब भी तेज़ थीं। उसने अपनी हथेलियों से अपने चेहरे को ढक लिया जैसे खुद को यक़ीन दिलाना चाहती हो कि जो कुछ हुआ वो सिर्फ एक वहम था। लेकिन होंठों पर अब भी वही नर्मी, वही गर्माहट बाकी थी—किसका था ये स्पर्श? दिमाग़ कहता वहम, दिल कहता सच। उसकी साँसें उलझी हुई थीं, और उसकी आँखें लाल थीं—डर से, या फिर किसी अनकही चाह से, उसे खुद नहीं पता।

    कॉरिडोर में लौटते हुए उसके कदम भारी थे। हर कोने से उसे लगता कोई उसे देख रहा है। हर आहट पर उसका दिल जोर से धड़क उठता। क्या वो सच में यहाँ था? उसने खुद से सवाल किया। अगर था, तो फिर ये सब कैसे गायब हो गया? और अगर नहीं था, तो ये मेरे होठ अब भी जल क्यों रहे हैं?

    क्लास के बाहर पहुँचकर उसने दरवाज़े के शीशे में खुद को देखा। उसकी आँखें डरी हुई थीं लेकिन कहीं न कहीं उनमें वही शक फिर से उभरा—क्या ये अद्रकाश ही था? उसकी याद आई—उसकी गहरी निगाहें, उसका हर लफ़्ज़ जो हमेशा उसके दिल को चीर देता था।

    अविरा वहां से सीधा घर के लिए निकल गई उसके लिए कॉलेज में रहना मुश्किल हो रहा था।
    वो घर आई और अपने कमरे में सीधा जाकर बेड पे गिर गई। और अपनी आँखें बंद कर ली। उसके दिमाग में बस वही चल रहा था क्या वो हकीकत थी ये सिर्फ एक वहम।
    सोचते सोचते उसकी आंख लग गई और कब वो गहरी नींद में चली गई पता ही नही चला।
    शाम को कारण घर आया। उसने देखा घर में इतनी शान्ति कैसे है उसकी बहन कॉलेज के आने के बाद शांत थे मुश्किल था। वो रोज शाम को ऑफिस से घर आता था उसे हसी की गूंज सुनाई देती थी। लेकिन आज बिल्कुल शांति थी। उसने एक बूढ़ी औरत जो यहां काम करती हैं उस से पूछा,"काकी क्या अविरा घर आ गई। "

    उन्होंने सिर हिलाते हुए कहा,"हा बाबा अविरा बेटी आज जल्दी आ गई थी जब से अपने कमरे में ही है। "

    कारण ने सिर हिला दिया और सीढ़ियों से ऊपर जाने लगा। वो अपने कमरे में जाने की जगह अविरा के कमरे में आया। जहां देखा अविरा सो रही है।
    वो उसके पास आया और उसके बालों पे हाथ फेरते हुए बोला,"अवि उठा जा डिनर कर ले फिर सो जाना। "

    कारण कि आवाज सुनकर अविरा कसमसाई ओर नींद में ही बोली,"सोने दो ना भाई। "

    , डिनर कर ले उसके बाद फिर सो जाना कॉलेज से आने के बाद भी तूने कुछ नहीं खाया होगा। चल अब जल्दी से उठ जा। में फ्रेशअप होके आता हु जब तक डाइनिंग टेबल पर होनी चाहिए। "

    इतना कह कर कारण वहां से चला गया। अविरा उसके जाने के बाद उठी और फ्रेश अप हुई और अपने कपड़े चेंज करके नीचे चली गई।

    ओर डाइनिंग टेबल पर बैठ गई। कारण भी आया वो भी अपनी जगह बैठ गया। ताई ने उन्हें डिनर सर्व किया। दोनों अपना डिनर करने लगे। डिनर करने के बाद कारण अपने स्टडी रूम में चला गया। ओर अविरा अपने कमरे में। कमरे में आके अपनी स्टडी टेबल पर बैठ गई और अपनी पढ़ाई शुरू की। करीब 2 घंटे पढ़ने के बाद उसने अपनी अपनी नोवेल निकली और पढ़ने लगी। उसे नोवेल पढ़ने का शौक था। वो haunting Adeline पढ़ रही थी।
    वही दूसरी तरफ कोई उसे बढ़े ध्यान से देख रहा था। वो अविरा को देखते हुए बोला," इंटरेस्टिंग little bird को डार्क रोमांस नोवेल पसंद है। " I like it।


    अगले दिन की क्लास ने उसे फिर से अपने घेरे में ले लिया। प्रोफ़ेसर आज मौजूद नहीं थे और स्टूडेंट्स आपस में बातें कर रहे थे कि तभी दरवाज़ा खुला। सबकी नज़रें उधर मुड़ीं—लंबा कद, तीखे नैन-नक्श, और वो चाल जिसमें एक ठंडी लेकिन सिहरन भरी ताक़त थी। अद्रकाश खुराना।

    उसकी एंट्री पर जैसे पूरा क्लासरूम एक पल को थम गया। हर कोई उसकी तरफ देखने लगा लेकिन उसकी आँखें किसी और को नहीं ढूँढ रही थीं। वो सीधे क्लास के सेंटर में आया, कुर्सी पर बैठने के बजाय टेबल के किनारे पर खड़ा हो गया और गहरी आवाज़ में बोला—"आज तुम्हारे प्रोफ़ेसर नहीं आए हैं। तो चलो आज फिर, कुछ और सीखते हैं। कुछ ऐसा जो किताबों में नहीं मिलेगा।"

    स्टूडेंट्स फुसफुसाने लगे, पर उसकी ठंडी निगाहों ने सबको खामोश कर दिया। वो धीमे-धीमे क्लासरूम में चलने लगा, हर डेस्क के पास ठहरता लेकिन उसकी नज़रें सिर्फ एक जगह पर टिकतीं—अवीरा पर।

    "प्यार," उसने शब्द खींचते हुए कहा, "क्या है ये प्यार? किसके लिए होता है? कोई बता सकता है?"

    क्लास में हल्की-सी हंसी गूँजी, कुछ ने अपने-अपने ख्याल कहे—
    "प्यार मतलब देखभाल करना।"
    "प्यार मतलब किसी की खुशियों में खुश रहना।"
    "प्यार मतलब इज़्ज़त देना।"

    अद्रकाश ने हल्की मुस्कान दी, मगर वो मुस्कान किसी को चैन नहीं दे रही थी। वो ठंडी थी, जैसे शिकारी अपने शिकार को देखकर मुस्कुरा रहा हो। उसकी आँखें अब भी अवीरा पर थीं।

    "ये सब किताबों वाली बातें हैं," उसने गहरी आवाज़ में कहा। "असल सच्चाई सुनना चाहते हो? प्यार वो है जो तुम्हारी रगों में ज़हर की तरह उतर जाए। प्यार वो है जो तुम्हारी नींदें चुरा ले, तुम्हें चैन से जीने न दे। प्यार वो है जो हर वक़्त तुम्हें उसी की याद दिलाए। और जब वो सामने हो—तो तुम्हें बाकी दुनिया दिखनी ही बंद हो जाए।"

    वो बोलते-बोलते धीरे से अवीरा की डेस्क के पास आ खड़ा हुआ। उसकी नज़रें सीधी उसकी आँखों में धँस गईं। क्लास के बाकी स्टूडेंट्स सोच रहे थे कि वो सबके लिए कह रहा है, लेकिन अवीरा जानती थी—ये सिर्फ उसके लिए है।

    अद्रकाश ने एक पल रुका और फिर कहा, "लेकिन... प्यार और जुनून में फर्क है। प्यार छोड़ भी सकता है, लेकिन जुनून... जुनून तो साँसों तक पीछा करता है। जुनून कहता है—तुम मेरी हो, सिर्फ मेरी। और मैं तुम्हें कभी जाने नहीं दूँगा।"

    उसके लफ़्ज़ जैसे ज़हर की तरह अवीरा की नसों में घुल रहे थे। उसकी साँसें अटक रही थीं। वो चाहती थी नज़रें चुरा ले, लेकिन उसकी आँखों का दबाव इतना गहरा था कि वो पलकें भी नहीं झुका पाई।

    क्लास में कोई और समझ ही नहीं पा रहा था कि ये सब इतना भारी क्यों लग रहा है, लेकिन अवीरा का दिल जानता था। उसकी शक्ल पर पसीना झलकने लगा। क्या ये वाकई वही है? उसका शक अब और गहरा हो गया।

    अद्रकाश ने ठंडी हँसी छोड़ी और कहा, "प्यार कमजोर दिल वालों का होता है। लेकिन जुनून... जुनून ताक़त है। जुनून वो हथियार है जिससे इंसान दुनिया जीत सकता है... या किसी एक को अपनी दुनिया बना सकता है।"

    ये कहते हुए उसकी नज़रें फिर से अवीरा के होंठों पर ठहर गईं। वो क्षण भर के लिए काँप गई, याद आया—वही स्पर्श, वही किस, वही दीवानगी।

    उसका दिल चीख-चीख कर कह रहा था—यही है वो। यही है जिसने मुझे छुआ था, जिसने मेरी रूह को कैद कर लिया।

    लेकिन ज़ुबान खामोश रही। वो बस वहीं बैठी रही, साँसें थामे, और उसकी आँखों के तूफ़ान को सहती रही।

    जारी।
    जय श्री महाकाल।।
    क्या होगा आगे।