"जब पहली बार वो बारिश में मिले, तो सिर्फ कपड़े नहीं, दिल भी भीग गए थे..." सान्वी शर्मा — एक शांत, संवेदनशील और टूटी हुई लड़की जो अपने अतीत से दूर एक नई शुरुआत की तलाश में है। आरव मल्होत्रा — एक सफल, आत्मनिर्भर लेकिन अंदर से अधूरा लड़का, जो रिश... "जब पहली बार वो बारिश में मिले, तो सिर्फ कपड़े नहीं, दिल भी भीग गए थे..." सान्वी शर्मा — एक शांत, संवेदनशील और टूटी हुई लड़की जो अपने अतीत से दूर एक नई शुरुआत की तलाश में है। आरव मल्होत्रा — एक सफल, आत्मनिर्भर लेकिन अंदर से अधूरा लड़का, जो रिश्तों से डरता है। दोनों की मुलाकात होती है कॉलेज की गलियों में, जहां तकरारें होती हैं, बातों से जज़्बात झलकते हैं, और फिर एक अनकही मोहब्बत जन्म लेती है। लेकिन कहानी आसान नहीं होती। अतीत की परछाइयाँ, समय की दूरियाँ, और समाज की दीवारें उनके बीच आ खड़ी होती हैं। पर क्या सच्चा प्यार कभी हारता है? "तेरे नाम की बारिश" एक भावनात्मक यात्रा है — पहली नज़र के प्यार से लेकर दिल टूटने तक, और फिर दोबारा एक-दूसरे को पाने की जद्दोजहद तक। इस कहानी में है कॉलेज की नर्मी, बारिश की नज़ाकत, और मोहब्बत की गहराई — एक ऐसा अनुभव जो आपको मुस्कुराने, रोने और अंत में प्यार पर फिर से यकीन करने पर मजबूर कर देगा। --- लेखिका: QUEEN शैली: रोमांटिक, इमोशनल, यंग एडल्ट, हिंदी उपन्यास पात्र: मजबूत, संवेदनशील और सच्चे दिल वाले पढ़ने वालों के लिए: जो "तेरी बातों में ऐसा उलझा हूं मैं..." जैसे गानों में खो जाते हैं
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अध्याय 1: पहली बूँद
बारिश की बूँदें खिड़की से टकरा रही थीं — जैसे कोई भूला हुआ राग वापस लौट आया हो। हर बूँद मानो किसी अधूरी कहानी का हिस्सा बन चुकी थी। शहर की गलियों में हल्का-हल्का कोहरा और बारिश की ठंडी हवा एक नई शुरुआत का इशारा कर रहे थे।
सान्वी शर्मा ने धीमे से खिड़की खोली। बाहर झाँकती नज़रों में थोड़ी घबराहट, थोड़ा कौतूहल और बहुत-सा खालीपन था। ये शहर उसके लिए नया था — न कोई जान-पहचान, न कोई पुरानी याद, और यही वो चाहती भी थी। पुराने शहर में रह गई थीं कुछ टूटी हुई उम्मीदें, एक अधूरा रिश्ता, और वो कुछ सवाल जिनके जवाब अब मिलना मुमकिन नहीं था।
"आज से नई ज़िंदगी शुरू," उसने खुद से कहा, और अपने बालों को एक रबर बैंड में बांधते हुए आईने में झाँका।
आईना चुप था, पर आँखों ने बहुत कुछ कहा — थकान, चाह, और उम्मीद का टकराव उसकी पुतलियों में झलक रहा था।
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सान्वी ने ग्रे स्वेटशर्ट पहना, बैग उठाया और पी.जी. से बाहर निकल पड़ी। सुबह की हल्की बारिश अब धीमी हो चुकी थी, लेकिन आसमान अब भी भीगा-भीगा था।
ऑटो में बैठते ही उसने शहर की हलचल को देखा — लोग भीगते हुए दौड़ रहे थे, कुछ छतरी के नीचे, कुछ हाथों से सिर ढकते हुए।
कॉलेज का पहला दिन था।
दिल में घबराहट थी, पर चेहरा मुस्कुराता रहा। ये उसकी आदत थी — हर डर को मुस्कान में बदल देना।
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कॉलेज कैंपस में कदम रखते ही वो माहौल से थोड़ा अभिभूत हो गई।
चारों तरफ लड़कियों के ग्रुप — कोई सेल्फी में व्यस्त, कोई फ्रेशर्स पार्टी की बातें करता हुआ। लड़के बाइक से आते, तेज़ म्यूज़िक में झूमते और कुछ बिना हेलमेट के घुसते। सब कुछ ज़रा तेज़, ज़रा दिखावटी लगा उसे।
उसने गहरी साँस ली और डायरेक्शन बोर्ड की ओर देखा —
"लिटरेचर डिपार्टमेंट – रूम नंबर 201"
वो अपने मन में कविता दोहराते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ी।
"रास्ते नए हैं, पर मंज़िल वही...
तेरे नाम की बारिश, हर मोड़ पर सही..."
जैसे ही वो मुड़ी, अचानक से एक तेज़ क़दमों वाला लड़का उससे ज़ोर से टकरा गया।
धप्प!
सान्वी की किताबें ज़मीन पर बिखर गईं।
"देख कर नहीं चल सकते?" उसने झल्लाकर कहा।
"तो तुमने आँखें बंद क्यों कर रखी हैं?" सामने वाले ने बिना देखे जवाब दिया।
सान्वी ने पहली बार उसकी तरफ ध्यान से देखा —
ऊँचा कद, गहरे नीले रंग की हुडी, और आंखों में एक अजीब सा आत्मविश्वास। लड़के ने झुके बिना ही किताबें सरका दीं और चला गया।
"बदतमीज़!" उसने धीमे से बुदबुदाया।
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रूम 201 के दरवाज़े पर पहुँचते ही घंटी बज चुकी थी। क्लास लगभग भर चुकी थी। पहली लाइन में कोई जगह नहीं थी, और आखिरी लाइन में सिर्फ एक सीट खाली थी — और उसके बगल में वही लड़का बैठा था।
"Seriously?" उसने मन में कहा और जाकर बैठ गई।
जैसे ही वो बैठी, लड़के ने मुस्कुराकर कहा, "तुम फिर दिख गईं… इस बार किताबें नहीं गिरीं, गिनती चालू रखूं?"
"अगर तुम चुप रहो, तो मैं पढ़ भी सकती हूँ," सान्वी ने तंज़ कसते हुए कहा।
"नाम?" उसने पूछा, जैसे कुछ जानने में दिलचस्पी हो।
"सान्वी। और तुम्हारा?"
"आरव। आरव मल्होत्रा।"
उसका नाम कॉलेज में काफी मशहूर था — सबसे इंटेलिजेंट और हैंडसम स्टूडेंट्स में गिना जाता था। लेकिन सान्वी को इन चीज़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता था।
क्लास में प्रोफेसर आ गए थे — "आज की क्लास का विषय है — ‘Rain in Literature’..."
सान्वी का ध्यान टूट गया। बाहर अब भी बारिश हो रही थी। वो एकटक खिड़की की ओर देखती रही।
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क्लास के दौरान आरव बार-बार उसे देखता रहा। उसके चेहरे की मासूमियत में कोई गहराई थी — जैसे वो खुद में एक किताब हो, जिसके हर पन्ने पर एक कविता छुपी हो।
"तुम बारिश को पसंद करती हो?" उसने फुसफुसाकर पूछा।
सान्वी ने उसकी ओर बिना देखे जवाब दिया, "पसंद थी… अब बस याद बन गई है।"
आरव कुछ पल खामोश रहा। पहली बार किसी ने उसके सवाल का जवाब कविता में दिया था।
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क्लास खत्म हुई। बाहर अब भी हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। सान्वी ने बैग उठाया और बाहर निकलने लगी।
"सान्वी," पीछे से आवाज़ आई।
वो मुड़ी — आरव छतरी लेकर खड़ा था।
"बारिश में भीगना अच्छा है, लेकिन पहली बार वाले दिन बीमार मत पड़ जाना," उसने छतरी आगे बढ़ाते हुए कहा।
सान्वी ने एक पल सोचा… फिर मुस्कुरा दी।
"तुम्हें लगा मैं छतरी नहीं लाई?"
उसने अपने बैग से एक छोटी सी रंग-बिरंगी छतरी निकाली — और निकल पड़ी।
आरव वहीं खड़ा रह गया — उसकी हँसी अब भी हवा में गूंज रही थी।
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अध्याय 1 समाप्त
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> "पहली बारिश में भीगने से सर्दी लग सकती है,
लेकिन किसी की मुस्कान में भीगना…
वो एहसास उम्र भर याद रहता है |"
अध्याय 2: वो आँखें, वो सवाल
कॉलेज की गलियों में नमी अब भी बरकरार थी। बारिश की बूँदें पेड़ों की पत्तियों से टपकतीं, और ज़मीन पर एक चुप्पी सी बिछ जाती — कुछ अधूरी बातों की तरह, जो कहे बिना ही खत्म हो जाती हैं।
सान्वी कैंटीन की ओर बढ़ रही थी। बैग उसके कंधे से लटक रहा था, और वो हर नए कोने को जैसे अपने भीतर उतारने की कोशिश कर रही थी। नई जगहों में वो आदत थी उसमें — अकेले रहकर भी सबकुछ महसूस कर लेने की आदत।
"Excuse me…" किसी ने पीछे से कहा।
वो पलटी — वही लड़का। वही हल्की मुस्कान, वही आत्मविश्वास। आरव मल्होत्रा।
"तुम्हें देखकर लग रहा था कि तुम यहां की नहीं हो," उसने कहा।
"तो तुम्हारा अंदाज़ा सही है," सान्वी ने हल्के कटाक्ष के साथ जवाब दिया।
"पहली बार किसी ने मुझे जवाब देने में इतना गौरव महसूस कराया," आरव मुस्कुरा दिया।
"मैं जवाब नहीं देती, सिर्फ बात खत्म करती हूँ," सान्वी ने कहा और आगे बढ़ने लगी।
"वैसे ये तो शुरुआत है… बातों की," उसने पीछे से जोड़ा।
सान्वी रुकी नहीं, पर उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान ज़रूर आ गई — जिसे उसने छुपा लिया।
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कैंटीन में बहुत शोर था। लड़कियाँ फ्राइज़ के लिए लड़ रही थीं, और लड़के चाय की जगह कॉफी पर बहस कर रहे थे।
सान्वी ने कोने की एक टेबल पकड़ी और अपनी डायरी निकाली। वो डायरी, जो उसके दिल की सबसे सुरक्षित जगह थी। हर पन्ना उसके अतीत की परछाइयों से भरा हुआ था — कुछ अधूरी कविताएं, कुछ बिना नाम के खत, और कुछ अधूरी ख़ामोशियाँ।
"तेरे नाम की बारिश में कुछ सवाल ऐसे भीग गए हैं,
जो अब जवाब माँगने नहीं, बस चुपचाप जीने लगे हैं..."
अभी वो लिख ही रही थी कि एक आवाज़ आई, "लिखना पसंद है?"
वो जान गई — कौन है।
आरव, ट्रे में कॉफी लिए खड़ा था।
"हाँ," उसने बिना उसकी तरफ देखे कहा।
"कहानी या कविता?"
"दोनों। पर ज़्यादा वो, जो कही नहीं जाती," उसने पन्ना पलटते हुए कहा।
"और सुनने वाला?" उसने कुर्सी खींचकर पूछा।
"शायद अब तक कोई नहीं मिला," वो अब उसकी आँखों में देख रही थी।
"तो फिर कोशिश करने दो।"
इस बार सान्वी ने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा — पहली बार खुलकर।
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कॉलेज का माहौल सर्दियों में कुछ और ही हो जाता है। हल्की धूप, ऊनी स्वेटर्स, और चाय की खुशबू हर कोने में बस जाती है। सान्वी और आरव अब अक्सर मिलने लगे थे — कभी लाइब्रेरी में, कभी कैंटीन में, कभी कॉरिडोर की खिड़की के पास, जहां से शहर का पुराना मंदिर दिखाई देता था।
आरव उसे पढ़ाई में मदद करता, तो सान्वी उसे कविता की भावनाएँ समझाती।
"तुमने कभी प्यार किया है?" एक दिन आरव ने पूछा।
सान्वी का चेहरा एक पल को बुझ गया।
"किया था," उसने धीमे से कहा।
"अब?" वो थोड़ा झिझका।
"अब सिर्फ लिखा है," उसने डायरी की ओर इशारा किया।
आरव ने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप उसकी ओर देखता रहा। शायद पहली बार वो उसे सिर्फ एक लड़की नहीं, एक किताब समझ रहा था — जिसके हर पन्ने को पढ़ने के लिए धैर्य चाहिए था।
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एक दिन कॉलेज में वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव की घोषणा हुई। सभी छात्रों को भाग लेने के लिए कहा गया। नाटक, डांस, कविता पाठ — सबकी तैयारी जोरों पर थी।
सान्वी को कविता पाठ में चुना गया। आरव ने बिना बताए अपना नाम डुएट डांस के लिए डाल दिया।
"डांस? तुम?" सान्वी ने पूछा, चौंकते हुए।
"हाँ, कभी-कभी मैं भी कुछ अलग कर लेता हूँ," उसने कहा।
"और पार्टनर?"
"बस तलाश है… कोई मिलेगा जो ताल से ज़्यादा दिल से डांस करे।"
उसकी बात में कुछ था, जो सान्वी के दिल की दीवारों को धीरे-धीरे ढहाने लगा था।
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फेस्ट की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। कॉलेज का माहौल रंगों से भर गया था। शाम को मैदान में लाइट्स की चमक, म्यूज़िक की धुन और छात्रों की हँसी पूरे माहौल को जादुई बना देती थी।
सान्वी हर शाम छुपकर स्टेज के पीछे बैठकर सब देखती। उसे भीड़ से डर लगता था — शायद इसलिए क्योंकि भीड़ में वो अक्सर अकेली महसूस करती थी।
एक शाम आरव उसकी तलाश करता हुआ वहीं पहुंचा।
"तुम हमेशा भीड़ से दूर क्यों रहती हो?" उसने पूछा।
"क्योंकि वहां सब देख लेते हैं, पर कोई समझता नहीं," सान्वी ने कहा।
"तो क्या अब भी कोई नहीं समझता?"
सान्वी ने उसकी ओर देखा — उसकी आँखों में सवाल नहीं, समझ थी।
"शायद अब एक कोशिश हो रही है…"
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फेस्ट का दिन आ गया।
सान्वी की कविता ने सबका दिल छू लिया। उसने मंच पर पढ़ा —
> "कुछ रिश्ते होते हैं बारिश जैसे...
जो बिना पूछे भी भीगा जाते हैं,
और कुछ लोग होते हैं बादल जैसे...
जो हर बार सिर पर मंडराते हैं,
पर बरसते नहीं..."
तालियाँ बज रही थीं, लेकिन सान्वी की निगाहें सिर्फ एक चेहरा ढूंढ़ रही थीं — और वो चेहरा भी उसे ही देख रहा था।
आरव का डांस आखिरी परफॉर्मेंस था। मंच पर उसका आत्मविश्वास और सहजता देखते ही बनती थी। पर उसकी निगाहें बार-बार दर्शकों में किसी को तलाश रही थीं।
शो खत्म होते ही वो सीधे उसके पास आया।
"कैसी लगी परफॉर्मेंस?"
"कमाल की," सान्वी ने मुस्कराकर कहा।
"तो अब तुम मेरी पार्टनर बनोगी?"
"किस चीज़ में?"
"ज़िंदगी की रिहर्सल में… शायद एक दिन असली स्टेज तक चले जाएं।"
सान्वी चुप हो गई — ये पहली बार था जब किसी ने उसे ‘हम’ की तरह देखा था।
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रात में जब सब सो गए, सान्वी बालकनी में बैठी थी। आसमान साफ़ था, पर दिल में अब भी बादल थे।
आरव का मैसेज आया —
“तुम्हारे बिना अब शब्द भी अधूरे लगते हैं।”
उसने जवाब नहीं दिया। लेकिन उसकी डायरी में एक नई कविता जन्म ले चुकी थी।
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अध्याय 2 समाप्त
> "कुछ रिश्ते यूँ ही बन जाते हैं —
न वादा, न इकरार…
बस एक मुस्कान, एक सवाल, और एक धीमा-सा एहसास..."
अध्याय 3: कोई अजनबी सा
कॉलेज का माहौल अब धीरे-धीरे सान्वी के लिए जाना-पहचाना होने लगा था। क्लासरूम की खिड़की से आती धूप, कैंटीन की हलचल, लाइब्रेरी में किताबों की महक — सब कुछ अब उसके दिल के करीब था। लेकिन सबसे ज़्यादा जो चीज़ उसे खींचती थी, वो थी — आरव।
आरव, जो हर दिन उसे कुछ नया दिखाता। कभी एक कविता की तरह, कभी एक पहेली की तरह। वो लड़का जिसे देखकर लगता था जैसे ज़िंदगी मुस्कुरा रही हो। और सान्वी? वो अब खुद को धीरे-धीरे खुलते हुए महसूस कर रही थी — जैसे बारिश के बाद सूखी ज़मीन पर पहली हरियाली।
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उस दिन भी कुछ खास था। कॉलेज की दीवारों पर पोस्टर्स चिपके थे — "Alumni Interaction Week"। शहर के कई नामी पूर्व छात्र आने वाले थे, जो अब किसी ना किसी क्षेत्र में सफल हो चुके थे।
सान्वी और आरव दोनों को आयोजन समिति में शामिल किया गया था। ये उनके लिए एक नया अनुभव था — साथ में समय बिताना, योजनाएँ बनाना, और तैयारियों में जुट जाना।
"ये रहा लिस्ट… इन स्पीकर्स को रिसीव करने तुम जाओगी," सीनियर ने सान्वी को सूची थमाई।
सान्वी ने ध्यान से देखा — नामों की भीड़ में एक नाम पर उसकी नज़र अटक गई।
"विवान खुराना" — आर्टिस्ट, पोएट, और अब एक मोटिवेशनल स्पीकर।
दिल एक पल को रुक गया। वो नाम उसे कहीं दूर अतीत की गलियों में ले गया… जहाँ सब कुछ थम गया था, सिर्फ यादें चलती रही थीं।
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"सब ठीक?" आरव ने पूछा, जब उसने देखा कि सान्वी अचानक चुप हो गई है।
"हाँ… बस थोड़ा थक गई हूँ," उसने खुद को संभालते हुए कहा।
"तुम झूठ बहुत अच्छा बोलती हो," आरव मुस्कराया।
सान्वी ने उसकी ओर देखा, फिर धीरे से कहा, "कुछ नाम दिल से निकलते नहीं। और जब वो सामने आ जाएं तो साँसें भी उलझ जाती हैं।"
आरव ने कुछ नहीं पूछा। सिर्फ उसके हाथ पर हल्के से हाथ रखा — और यही उसका तरीका था कहने का, “मैं हूँ।”
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अगले दिन सान्वी विवान को रिसीव करने एयरपोर्ट गई।
वो अब भी वैसा ही था — लंबा कद, सादगी भरा अंदाज़, और वो मुस्कान जो कभी सान्वी के दिल का हिस्सा थी।
"सान्वी?" विवान ने कहा, जैसे कोई पुराना सपना फिर से जिंदा हो गया हो।
"विवान," उसकी आवाज़ में ना खुशी थी, ना नाराज़गी — बस एक स्थिरता थी, जैसे वो खुद को समझा चुकी हो कि अतीत अब सिर्फ एक कहानी है।
"कितनी बदल गई हो…" विवान ने कहा।
"समय सबको बदल देता है," उसने जवाब दिया और गाड़ी की तरफ इशारा किया।
रास्ते भर दोनों चुप रहे। लेकिन वो चुप्पी कई सवालों से भारी थी।
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कॉलेज पहुंचते ही आरव उनका इंतज़ार कर रहा था। विवान को देखकर उसके चेहरे पर हल्का सा सवाल उभरा, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
"Hi, I’m Aarav," उसने हाथ बढ़ाया।
"Vivan," उसने हाथ मिलाया, और उसी वक्त सान्वी के भीतर कुछ काँप गया — जैसे दो दुनियाएँ आपस में टकरा गई हों।
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शाम को सान्वी लाइब्रेरी में बैठी थी। किताब खुली थी, पर आँखें कहीं और थीं। तभी आरव आया।
"वो तुम्हारा अतीत है, है ना?" उसने बिना किसी आरोप के पूछा।
सान्वी ने कोई जवाब नहीं दिया।
"तुम्हें कुछ बताने की ज़रूरत नहीं, जब तक तुम चाहो। पर इतना जान लो — मैं वहाँ खड़ा नहीं रहूँगा जहाँ कोई और पहले से मौजूद हो।"
सान्वी ने उसकी तरफ देखा — आरव की आँखों में खुद्दारी थी, लेकिन कहीं गहराई में एक डर भी।
"मैं टूट चुकी थी, आरव," उसने धीमे से कहा। "और जब टूटे लोग जोड़ने लगते हैं, तो डरते हैं कि फिर से ना बिखर जाएं।"
"तो इस बार कोई टूटने नहीं देगा," उसने उसकी हथेली थामते हुए कहा।
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अगले दिन विवान का सेशन था। ऑडिटोरियम खचाखच भरा हुआ था।
विवान ने माइक पकड़ा और बोलना शुरू किया —
"कभी-कभी हम जिन लोगों से सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं, वही हमें सबसे बड़ा सबक दे जाते हैं। और कभी-कभी… वो सबक ज़िंदगी बन जाता है।"
सान्वी दर्शकों में बैठी थी, और हर शब्द उसके सीने में तीर की तरह उतर रहा था।
विवान की नज़रें कई बार उसकी ओर उठतीं, लेकिन वो सिर झुकाए बैठी रही।
सेशन खत्म हुआ।
बाहर निकलते ही विवान ने उसे रोका।
"मैं माफ़ी माँगने नहीं आया, सान्वी। बस ये जानना चाहता हूँ कि तुमने माफ़ कर दिया?"
"कुछ लोग माफ़ हो जाते हैं, विवान… पर वापस नहीं आते," उसने ठहरकर कहा और चली गई।
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रात में बारिश फिर से शुरू हो गई थी।
सान्वी बालकनी में बैठी थी — उसके सामने उसकी डायरी खुली थी।
"तुम आए तो सही,
पर जो टूटा था वो अब भी वैसा ही है।
तुम्हारी मौजूदगी सिर्फ यादें हिला गई,
पर अब मैं किसी और की ख़ामोशी में सुकून पाती हूँ…"
आरव पास आया — एक कप कॉफी लेकर।
"ये बारिश आज कुछ ज़्यादा बोल रही है," उसने कहा।
"हाँ, आज दिल भीगने से डर नहीं रहा," सान्वी ने जवाब दिया।
"कभी सोचा था कि कोई अजनबी एक दिन इतना अपना लगने लगेगा?" आरव ने पूछा।
"नहीं। पर अब लग रहा है कि जो रिश्ता दिल से जुड़ता है, वो बीते हुए नामों से आगे निकल जाता है।"
आरव मुस्कुराया।
"तो अब से हर बारिश सिर्फ मेरे नाम की होगी?"
सान्वी ने उसकी आँखों में देखा — वो आँखें अब उसके लिए अनजान नहीं रहीं।
"हाँ, अब 'तेरे नाम की बारिश'… बस तेरे नाम की है।"
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अध्याय 3 समाप्त
> "कभी-कभी अतीत लौटकर आता है,
सिर्फ ये साबित करने कि हमने सही रास्ता चुना था।
और कभी एक हाथ थामकर, ज़िंदगी फिर से शुरू हो जाती है…"
अध्याय 4: खामोशियाँ बोल उठीं
कॉलेज का माहौल धीरे-धीरे अपने आम रफ्तार में लौटने लगा था। Alumni Week खत्म हो चुका था, और साथ में चला गया वो अतीत भी, जिसका नाम था — विवान। लेकिन उसकी परछाईं अब भी सान्वी की आँखों के पीछे जमी हुई थी, जैसे कोई धुंध जो सूरज निकलने के बाद भी पूरी तरह हटती नहीं।
आरव ने कुछ नहीं कहा। उसने ना कोई सवाल किया, ना कोई सफाई मांगी। वो बस चुप रहा — और शायद यही उसकी मौजूदगी की सबसे खूबसूरत बात थी। वो सान्वी की चुप्पी को समझता था।
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उस दिन क्लास के बाद, दोनों कॉलेज की पुरानी लाइब्रेरी की ओर चल दिए। वहाँ एक खिड़की थी — जो पुराने समय की तरह थी, जहां से पूरा पहाड़ी शहर दिखाई देता था, नीचे बहती नदी और दूर फैली हरियाली। सान्वी को ये जगह बेहद पसंद थी।
"तुम जानती हो," आरव बोला, "मुझे लगता है, खामोशियाँ इंसानों से ज़्यादा साफ बोलती हैं।"
सान्वी मुस्कुरा दी।
"शब्द कई बार झूठ बोल जाते हैं, पर नज़रों में जो छिपा होता है, वो सच होता है…"
आरव ने उसकी तरफ देखा। उसकी आँखों में अब भी एक हल्का दर्द था। ऐसा दर्द जो बीत तो चुका था, पर पूरी तरह गया नहीं था।
"तुम अब भी टूटे हुए हिस्सों को पकड़कर बैठी हो?" उसने पूछ ही लिया।
"नहीं," सान्वी ने धीमे से कहा, "मैं अब सिर्फ ये देख रही हूँ कि क्या कोई उन्हें जोड़ पाएगा… बिना सवाल पूछे, बिना ताकझांक किए।"
आरव ने उसकी हथेली थामी — बिना कुछ कहे। और सच यही था, कि वो हर रोज़ उसे थोड़ा और समझ रहा था।
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कॉलेज में अब ‘लिटरेचर वीक’ की तैयारियाँ शुरू हो चुकी थीं। इस बार थीम थी — “Letters Never Sent”। हर छात्र को एक ऐसा पत्र लिखना था, जो उन्होंने कभी किसी को भेजा नहीं — लेकिन दिल में आज भी जिंदा था।
सान्वी को ये विचार बेहद निजी सा लगा। रात को उसने अपनी डायरी खोली और एक कोरा पन्ना निकाला।
> "प्रिय कोई..."
मैंने तुझे कभी नाम से नहीं पुकारा, शायद इसलिए कि नाम सिर्फ पहचान होते हैं, एहसास नहीं।
तू मेरे एहसासों में था — उस चाय की खुशबू में, बारिश की पहली बूँद में, और हर उस गीत में जो बीच में ही रुक गया था।
पर अब… शायद मैं किसी और की खामोशियों को सुनना चाहती हूँ।
कोई ऐसा… जो सवाल ना करे।
— तेरी सान्वी नहीं रही अब, बस एक अधूरी कविता हूँ।
पत्र पूरा होते ही सान्वी ने उसे मोड़ा, लेकिन भेजा नहीं। वो जानती थी — ये सिर्फ खुद को समझाने के लिए था।
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अगली सुबह कॉलेज में उस सप्ताह का पोस्टर लगा —
"अपने अनकहे पत्र शेयर करें, मंच पर।"
"तुम पढ़ोगी?" आरव ने पूछा।
"शायद नहीं," सान्वी बोली।
"क्यों?"
"कुछ बातों को दिल में रखना ही बेहतर होता है।"
"पर शायद किसी और को वही बात सुनकर खुद को जोड़ने की ताकत मिले।"
उसकी ये बात सान्वी को छू गई।
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इसी बीच, आरव का व्यवहार थोड़ा बदलने लगा था। वो अब कम बोलता था, ज्यादा लिखता था — अपने स्केचबुक में। उसके पन्नों पर अब सान्वी की आकृति बनने लगी थी — कभी मुस्कुराती हुई, कभी सोचती हुई, और कभी चुपचाप खिड़की से बाहर झांकती हुई।
एक दिन सान्वी ने पूछ ही लिया —
"तुम मुझे यूँ बार-बार क्यों उकेरते हो?"
आरव मुस्कराया, फिर बोला —
"क्योंकि जब मैं तुम्हें देखता हूँ, तो लगता है जैसे कोई अधूरी कहानी पूरी होने को है।"
सान्वी की आँखें भर आईं।
"अगर मैं फिर से बिखर गई तो?"
"तो मैं फिर से उठाऊँगा, जैसे पहली बार… पर इस बार तुम्हारे साथ बिखरूंगा भी।"
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लिटरेचर वीक के दिन, मंच सजा था। हल्की-हल्की बारिश हो रही थी, जैसे मौसम भी सान्वी की उलझनें समझ रहा हो। वो दर्शकों के बीच बैठी थी, लेकिन दिल की धड़कनें मंच पर चल रही थीं।
"अगले स्पीकर — सान्वी शर्मा।"
आरव ने उसकी तरफ देखा। सान्वी उठी, धीमे क़दमों से मंच की ओर बढ़ी। हाथ में वही पत्र था।
उसने माइक थामा। एक गहरी साँस ली।
> "कई चिट्ठियाँ ऐसी होती हैं
जो भेजी नहीं जातीं,
क्योंकि उन्हें पढ़ने वाला
या तो चला गया होता है…
या बदल चुका होता है…"
"मैंने भी एक चिट्ठी लिखी थी —
एक ऐसे ‘तुम’ के नाम,
जो कभी मेरा था,
पर आज किसी और का हो चुका है…"
"पर अब मेरी जिंदगी में कोई ऐसा है
जिसे देखूं, तो लगे कि
शब्द अब भी जिंदा हैं…"
"जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ लेता है,
और बिना कुछ कहे
मेरे दर्द को अपनी मुस्कान में छुपा लेता है…"
आँखों में नमी थी। पर आवाज़ में दृढ़ता।
आरव अब झुका नहीं, वो गर्व से मुस्कुराया।
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उस रात, कैंपस में चारों तरफ रोशनी थी। बारिश की नमी अब सुकून देने लगी थी।
सान्वी ने पहली बार आरव का स्केच देखा — एक लड़की, जिसकी आँखें मुस्कुरा रही थीं।
"ये मैं नहीं हूँ," उसने कहा।
"तुम हो — वैसी जैसी मैं तुम्हें देखता हूँ," आरव ने जवाब दिया।
"और तुम?" सान्वी ने पूछा।
आरव ने अपनी जेब से एक छोटी डायरी निकाली — उसमें सिर्फ एक लाइन लिखी थी:
"मैं तेरे नाम की बारिश हूँ…"
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अध्याय 4 समाप्त
> "कभी-कभी चुप्पियाँ वो कह जाती हैं,
जो शब्द कह नहीं पाते।
और अगर कोई इन्हीं चुप्पियों को समझ ले —
तो समझो… मोहब्बत मुकम्मल है।"
अध्याय 5: उन आँखों के पीछे क्या छिपा है?
कॉलेज में मौसम सुहाना था — बारिश के बाद की धूप, हरियाली और ठंडी हवाओं ने सबके मूड में सुकून घोल दिया था। सान्वी अपनी डायरी के नए पन्ने के साथ लाइब्रेरी की बालकनी में बैठी थी। आज उसका मूड कुछ हल्का था — बीते दिनों की बेचैनी कम होने लगी थी, शायद आरव की वजह से।
आरव वहाँ पहुँचा — हाथ में दो कॉफी कप और स्केचबुक।
"आज कोई कविता लिखी?" उसने पूछा।
"हाँ… पर अधूरी है," सान्वी मुस्कराई।
"तो चलो उसे पूरा करते हैं — पर किताबों की भीड़ में नहीं, खुले आसमान के नीचे।"
सान्वी ने हैरानी से उसकी ओर देखा।
"कहाँ?" उसने पूछा।
"मेरे साथ एक जगह है — कुछ दूर, लेकिन बहुत खास।"
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कुछ ही देर में दोनों आरव की बाइक पर थे। रास्ता ऊँचा था, पेड़ों से ढंका और बरसात के बाद की मिट्टी की भीनी गंध उनके चारों ओर थी।
सान्वी का दुपट्टा हवा में उड़ रहा था, और आरव बार-बार रियर व्यू मिरर में उसकी मुस्कान पकड़ने की कोशिश कर रहा था।
"तुम मुझे यूँ क्यों देख रहे हो?" सान्वी ने पीछे से पूछा।
"क्योंकि कुछ मुस्कानें कैमरे में नहीं, आँखों में कैद होती हैं," आरव ने जवाब दिया।
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थोड़ी देर बाद वो एक हिलटॉप पर पहुँचे — जहाँ दूर तक पहाड़ फैले थे और नीचे नदी बह रही थी। वहाँ एक पुरानी सी बेंच थी, जिसे शायद बरसों से किसी ने नहीं छुआ था। चारों ओर हरियाली, पक्षियों की चहचहाहट और आसमान में बिखरी बादलों की लकीरें थीं।
"ये जगह तुम्हारी है?" सान्वी ने पूछा।
"नहीं… पर मेरे जज़्बात इसे अपना बना चुके हैं। जब भी कुछ अधूरा लगता है, मैं यहाँ आ जाता हूँ," आरव ने कहा।
सान्वी कुछ देर चुप रही, फिर उसके पास बैठ गई।
"तुम हमेशा दूसरों को शब्दों में ढालते हो… खुद के लिए क्या रखते हो?"
आरव ने स्केचबुक खोली। उसमें एक नया पन्ना था — एक लड़की खिड़की से बाहर देख रही थी, और पीछे लिखा था:
"उसने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसकी खामोशी ने मुझे सुन लिया।"
सान्वी ने पन्ना छुआ —
"ये मैं हूँ?"
"नहीं," आरव बोला, "ये वो है, जिससे मैं हर दिन थोड़ा और प्यार करता हूँ।"
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शब्द थम गए थे। हवा ठहर गई थी। उनकी आँखें एक-दूसरे में उतरने लगीं। सान्वी ने आरव का हाथ थाम लिया — पहली बार अपनी मरज़ी से, बिना डर के।
"तुम्हें डर नहीं लगता?" उसने पूछा।
"अब नहीं… क्योंकि अब तुम हो," आरव ने कहा।
उस पल के बाद खामोशी ने सब कह दिया। न कोई इकरार, न कोई वादा — सिर्फ एक नज़दीकी, जिसमें कोई बनावटीपन नहीं था।
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संध्या ढलने लगी थी। वापस लौटते समय, बाइक एक सुनसान मोड़ से गुज़र रही थी, जब अचानक सामने से एक तेज़ कार आ गई।
आरव ने ब्रेक मारा। बाइक फिसलते-फिसलते रुकी। दोनों गिरते-गिरते बचे।
सान्वी काँप गई थी।
"क्या हुआ?" आरव ने घबराकर पूछा।
उसने कुछ नहीं कहा — बस उसकी बाँहों में खुद को समेट लिया।
"तुम ठीक हो?" वो फिर बोला।
"मैं… मैं उस रात को फिर से जी गई…" उसके शब्द लड़खड़ा रहे थे।
आरव ने उसे मजबूती से थामा।
"कौन सी रात?" उसने धीरे से पूछा।
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कुछ देर बाद, पार्क में एक बेंच पर दोनों बैठे थे। सान्वी अब भी चुप थी।
"मैं जानता हूँ, तुम्हारे अंदर कुछ है जो अब तक बाहर नहीं आया… लेकिन जब तुम तैयार हो, मैं सुनने को यहाँ हूँ," आरव ने कहा।
सान्वी ने उसकी ओर देखा — उसकी आँखों में सवाल नहीं थे, बस इंतज़ार था।
"दो साल पहले… मैंने अपने पापा को एक ऐक्सिडेंट में खो दिया था," उसने पहली बार बताया।
"मैं पीछे बैठी थी… वही मोड़ था… वही अंधेरा… वही स्पीड। और मैं… कुछ नहीं कर पाई।"
आरव का दिल सिहर गया।
"इसके बाद… मैं बदल गई। ज़िंदगी से डरने लगी। भीड़ से, आवाज़ों से, रिश्तों से। और फिर… विवान से मिली। जो आया, समझा, और चला गया।"
वो चुप हो गई।
"तुम अब भी टूटी हुई हो?" आरव ने पूछा।
"नहीं… पर हर आवाज़ मुझे चौंका देती है। और हर रिश्ता डराता है कि अगर फिर कोई छोड़ गया तो?"
आरव ने उसके माथे पर हाथ रखा।
"तो इस बार कोई नहीं छोड़ेगा। और अगर कभी जाना भी पड़ा… तो साथ लेकर जाऊँगा।"
सान्वी की आँखों में आंसू थे, लेकिन अब डर नहीं था।
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अगले दिन से उनका रिश्ता थोड़ा बदल गया था — अब उनमें औपचारिकता नहीं थी। आरव बिना कहे उसकी किताबें उठा लेता, और सान्वी उसकी स्केचबुक पर चुपचाप कमेंट्स लिख देती।
लाइब्रेरी के पुराने कोने अब उनकी मुलाक़ात की जगह बन चुके थे। अब बारिश होने पर सान्वी खिड़की बंद नहीं करती थी — बल्कि उसका चेहरा आसमान की ओर होता, और होंठों पर मुस्कान।
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पर एक दिन, सबकुछ बदल गया।
आरव क्लास से अचानक गायब था। फोन बंद। उसका दोस्त भी कुछ नहीं जानता था।
सान्वी बेचैन हो गई। दोपहर होते-होते वो अकेले उसकी पीजी तक पहुँची। वहाँ ताला लगा था।
अचानक, उसके दरवाज़े के पास कुछ गिरा पड़ा दिखा — एक सफेद लिफाफा। उस पर लिखा था:
"सान्वी के नाम..."
वो काँपती उंगलियों से लिफाफा खोलने लगी।
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अध्याय 5 समाप्त
> "कुछ मौन इतने भारी होते हैं
कि शब्द भी उनके नीचे दब जाते हैं।
और जब कोई अचानक चुप हो जाए,
तो समझो कि कहानी अब करवट लेने वाली है…"
अध्याय 6: वो चिट्ठी... जो सब बदल गई
सान्वी की उंगलियाँ काँप रही थीं। चिट्ठी हाथ में थी, लेकिन उसमें लिखे शब्दों से डर लग रहा था — जैसे किसी किताब का आखिरी पन्ना पढ़ने से पहले दिल धड़कना बंद कर देता है।
उसने धीरे-धीरे लिफाफा खोला। अंदर एक हाथ से लिखी चिट्ठी थी — वही हाथ, जो अक्सर उसे स्केचबुक थमाता था, वही जो उसकी डायरी के किनारों पर मुस्कुराते चेहरे बनाता था।
> "सान्वी,
कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करती है, जहाँ न जाने का रास्ता होता है, न ठहरने का। मैं तुझसे कुछ नहीं छिपाना चाहता था, लेकिन वक्त ने मुझे मजबूर कर दिया।
मैं तुम्हारे लिए झूठा नहीं बनना चाहता था — इसलिए जा रहा हूँ।
मैं बीमार हूँ, सान्वी।
और ये कोई मामूली बीमारी नहीं।
डॉक्टर कहते हैं — एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है। धीरे-धीरे मेरी यादें मुझसे दूर जा रही हैं। वो चेहरे, वो पल, वो आवाजें… सब धुंधले पड़ रहे हैं।
अभी तो तुम्हें पहचानता हूँ, हर लम्हा, हर मुस्कान…
लेकिन एक दिन शायद… वो भी ना रहे।
इसलिए जाने से पहले एक बात कहना चाहता हूँ —
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ। बेपनाह। बिना किसी शर्त के।
और अगर मेरी यादें साथ छोड़ भी दें… तो मेरी रूह तुम्हारे नाम की बारिश में ज़रूर भीगेगी।
— आरव"
सान्वी की आँखें भर आईं। आँसुओं से चिट्ठी धुँधली हो गई थी। उसके अंदर जैसे किसी ने सन्नाटा भर दिया हो। अभी कुछ ही दिन पहले वो उसके साथ बारिश में खड़ी थी — और आज?
आज वो सवालों के सामने अकेली थी।
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वो लड़खड़ाते क़दमों से पीजी से बाहर निकली। चारों ओर लोग थे, लेकिन कोई भी चेहरा अपना नहीं लग रहा था। हवा भारी हो चुकी थी। साँसें धीमी पड़ने लगी थीं।
उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था — वो क्यों गया, कहाँ गया, क्या अब लौटेगा?
दिमाग़ में सिर्फ उसकी आवाज़ गूंज रही थी —
"अगर मेरी यादें चली भी जाएं… तो मेरी रूह तुम्हारे पास रहेगी…"
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कॉलेज में सबने जाना कि आरव अचानक चला गया है। उसके दोस्त भी सिर्फ इतना कह सके — "उसने कहा था कि कुछ जरूरी फैमिली रीजन है… शायद दिल्ली गया है।"
लेकिन सान्वी जानती थी — ये सिर्फ 'रीजन' नहीं था। ये एक छुपा हुआ युद्ध था, जो आरव अकेले लड़ रहा था।
वो हर रोज़ उसकी पुरानी बातें पढ़ती — स्केचबुक के नोट्स, फोन में उसकी रिकॉर्ड की हुई आवाज़ें, पुराने फोटो। और हर बार एक ही बात सोचती —
"क्या मैं उसके जाने से पहले उससे प्यार कह सकती थी?"
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एक दिन, कैंपस की लाइब्रेरी में बैठी-बैठी उसे आरव की बनाई एक छोटी सी ड्रॉइंग मिली — किताब के अंदर छुपा हुआ पन्ना।
> "एक दिन तुम्हारे नाम की बारिश में मैं भीगूंगा…
लेकिन तब शायद मुझे तुम्हारा नाम याद न हो।
पर तुम्हारे चेहरे की वो मुस्कान —
वो मुझे ज़िंदगी भर याद रहेगी।"
सान्वी अब टूट चुकी थी।
पर इस बार वो बिखर कर बैठ नहीं गई — उसने खुद को उठाया।
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अगले दिन वो कॉलेज की प्रिंसिपल के पास पहुँची।
"मैम, मुझे दिल्ली जाना है… एक पुराना दोस्त है, बहुत ज़रूरी है… कुछ दिन की छुट्टी चाहिए।"
प्रिंसिपल ने उसकी आँखों में देखा — वहाँ आग्रह नहीं था, वहाँ एक आग थी।
"जाओ," उन्होंने कहा।
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दिल्ली की ट्रेन में बैठते ही वो खिड़की से बाहर देखने लगी। स्टेशन की भीड़, चायवालों की आवाज़ें, बेंच पर बैठे बुज़ुर्ग — सब कुछ तेज़ी से पीछे छूट रहा था। लेकिन एक उम्मीद थी जो उसके साथ चल रही थी — "मैं उसे ढूंढ़ूंगी। उसे बताऊंगी कि मैं यहाँ हूँ। और मैं उसे याद दिलाऊंगी — कि वो कौन है, और हम कौन हैं।"
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दिल्ली पहुँचकर वो सबसे पहले उस हॉस्पिटल गई, जिसके बारे में आरव ने कभी जिक्र किया था — सेंट क्लेयर न्यूरोलॉजिकल सेंटर।
वहाँ घंटों इंतज़ार के बाद उसे एक नाम मिला —
"आरव मल्होत्रा — अंडर ऑब्ज़र्वेशन।"
उसका दिल एक पल को धड़कना भूल गया।
"मिल सकती हूँ उनसे?" उसने डॉक्टर से पूछा।
"वो किसी को पहचानते नहीं हैं अब, मैम। पर आप कोशिश कर सकती हैं।"
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कमरे के दरवाज़े पर खड़े होते ही सान्वी का पूरा शरीर कांपने लगा।
अंदर बैठा लड़का वही था — आरव। लेकिन उसका चेहरा अब खाली था, जैसे किसी ने उस पर से रंग हटा दिए हों।
वो धीरे-धीरे उसके पास गई।
"आरव…" उसने धीरे से कहा।
वो उसकी ओर देखा — एक अजनबी की तरह।
"तुम… कौन हो?"
सान्वी की आँखें छलक पड़ीं। पर उसने मुस्कुराकर जवाब दिया,
"मैं वो हूँ, जिससे तुमने वादा किया था — कि जब भी यादें चली जाएं, तुम्हारी रूह मुझे पहचान लेगी।"
आरव की आँखें कुछ पल को स्थिर रहीं। फिर उसने सिर झुका लिया।
सान्वी ने उसकी हथेली पकड़ी।
"मैं तुम्हें फिर से सब याद दिलाऊँगी। हर कविता, हर स्केच, हर बारिश…"
आरव अब भी चुप था, लेकिन उसकी उंगलियों ने हल्का सा स्पर्श दिया — जैसे कोई डोर फिर से जुड़ रही हो।
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अगले कुछ दिन सान्वी वहीं रही। वो उसे अपनी कविताएँ सुनाती, कॉलेज की तस्वीरें दिखाती, और कभी-कभी वही गाना गुनगुनाती — जिसे आरव अक्सर व्हिसल करता था।
एक शाम, जब वो खिड़की के पास बैठी थी, आरव ने पहली बार खुद से कुछ कहा —
"तुम… वही लड़की हो ना, जो बारिश में मुस्कुराती है?"
सान्वी की साँस थम गई।
"हाँ," उसने कहा। "मैं वही हूँ।"
आरव की आँखों में पहली बार हल्का सा भाव आया — और सान्वी को यकीन हो गया —
"शायद यादें लौटती नहीं, लेकिन एहसास कभी नहीं जाते।"
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अध्याय 6 समाप्त
> _"अगर यादें चली भी जाएं…
तो क्या मोहब्बत भी चली जाती है?
या फिर कोई... उस मोहब्बत को फिर से जिंदा कर सकता है?"_
अध्याय 7: फिर से चल पड़े हैं हम
सर्द दिल्ली की सुबह में अस्पताल के गलियारे अक्सर चुपचाप रहते हैं — दीवारें बस निगरानी करती हैं, आहटें थमती नहीं, और कुछ रिश्ते वहाँ नए सिरे से सांस लेना शुरू करते हैं।
सान्वी वहीं थी — रोज़, हर पल। कभी खिड़की के पास बैठकर डायरी लिखती, कभी आरव के सामने बैठकर वही पुरानी बातें दोहराती जो कभी उनकी दुनिया थीं।
आरव अब भी शांत था — लेकिन पूरी तरह खाली नहीं।
हर बार जब वो उसे देखती, उसकी आँखों में कुछ हल्का-सा झिलमिलाता। कभी हैरानी, कभी डर, और कभी... पहचान की एक झलक।
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"आरव, तुम्हें वो दिन याद है? जब हम पहाड़ी पर गए थे... जहाँ तुमने कहा था कि खामोशियाँ बोलती हैं?"
आरव ने उसकी तरफ देखा। कुछ पल चुप रहकर धीरे से सिर झुकाया।
"शायद... कुछ दिखता है... पर धुंधला है।"
सान्वी मुस्कुरा दी।
"कोई बात नहीं... मैं तुम्हें फिर से वो दिन जियूँगी। जैसे हम किसी अधूरी कहानी को दोबारा लिख रहे हों।"
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इलाज की शुरुआत हो चुकी थी।
डॉक्टरों का कहना था कि याददाश्त पूरी तरह लौटेगी या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता — लेकिन भावनात्मक कनेक्शन, पुराने संबंध और पुनः दोहराए गए अनुभव, एक बीमार दिमाग को भी झकझोर सकते हैं।
इसलिए अब हर दिन, सान्वी उसे वही बातें सुनाती — उसकी पसंदीदा कविताएं, बचपन की यादें, कॉलेज की घटनाएं।
एक दिन उसने वो स्केचबुक उसके सामने रखी।
"देखो, ये सब तुमने बनाए थे।"
आरव ने उसे पलटा — पन्ना दर पन्ना।
"ये... मैं?" उसने धीमे से पूछा।
"हाँ। और ये मैं हूँ — तुम्हारी नज़रों से देखी गई मैं।"
वो कुछ देर पन्नों को देखता रहा, फिर एक पन्ने पर उँगली रोकी — सान्वी की तस्वीर थी, जिसमें उसकी आँखें मुस्कुरा रही थीं।
"इस लड़की में कुछ... जाना-पहचाना है।"
सान्वी की आँखें नम हो गईं।
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कुछ दिन बाद, उन्होंने डॉक्टर की अनुमति से अस्पताल के गार्डन में जाना शुरू किया। हर शाम, सान्वी उसके साथ लॉन में टहलती, कभी कंधे से सिर टिकाती, कभी हाथ पकड़कर गुनगुनाती...
"तू आ गया है अब तू जाना नहीं..."
(उसका वही पसंदीदा गाना)
एक शाम, अचानक आरव ने उसका हाथ थामा।
"ये गाना... मैं सुन चुका हूँ पहले... किसी के साथ... बारिश में..."
सान्वी की साँस थम सी गई।
"हाँ, आरव... बारिश में। मैं तुम्हारे साथ भीगी थी... और तुम्हारी आवाज़ में भी।"
आरव उसकी ओर देखने लगा — गहराई से, जैसे शब्दों से परे कुछ महसूस करना चाहता हो।
"सान्वी..."
"हां?"
"तुम... मेरी बारिश हो?"
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वो पहला क्षण था — जब उसने उसका नाम खुद लिया था।
सान्वी की आँखों से आँसू बह निकले — पर ये आंसू अब तकलीफ के नहीं थे। ये थे उम्मीद के।
"हाँ, मैं हूँ। और जब तक यादें लौटती रहेंगी, मैं हर याद तुम्हें दोहराती रहूँगी।"
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धीरे-धीरे बदलाव शुरू हुआ।
अब वो कुछ-कुछ बातें याद करने लगा था। पुराने गानों की धुनें, कॉफी का स्वाद, सान्वी की हँसी।
कभी-कभी वो उसे देखता और कहता,
"तुम मेरी कविता हो — जो अधूरी नहीं लगती।"
वो बातें, जो उसकी ज़ुबान से फिर से निकल रही थीं, सान्वी के लिए दुआ जैसी थीं।
---
एक दिन, अस्पताल में एक आर्ट थेरेपी सेशन हुआ। सान्वी ने डॉक्टरों से आरव की स्केचबुक ले जाने की इजाज़त मांगी।
"शायद ये उसकी उंगलियों को, और उसकी यादों को, दोनों को जगा दे," उसने कहा।
आरव बैठा रहा — सफेद कागज़, सामने रंग और ब्रश।
शुरुआत में उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन सान्वी ने धीरे से उसका हाथ थामा।
"एक लकीर खींचो... फिर वो लकीर खुद ही रास्ता बना लेगी।"
आरव ने कागज़ पर पहला स्ट्रोक डाला। धीरे-धीरे वो आकृति बनाता गया। घंटों बाद, जब सान्वी ने देखा, उसकी आँखें भर आईं।
वो एक लड़की थी — जिसके चेहरे पर हल्की बारिश की बूँदें थीं, और आँखों में शांति।
"ये तुम हो," आरव ने धीरे से कहा।
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वो रात बेहद खास थी।
अस्पताल की छत पर, दोनों बैठकर चुपचाप आसमान देख रहे थे।
"आरव..."
"हां?"
"अगर कल सब भूल गए... तो भी मैं यहीं रहूँगी।"
"और अगर यादें वापस आ गईं...?" उसने पूछा।
सान्वी मुस्कराई।
"तो हम फिर से प्यार करेंगे — लेकिन इस बार पहले से गहराई से।"
---
अध्याय 7 समाप्त
> _"प्यार वो दवा है,
जो यादों को नहीं लौटाती…
पर किसी को फिर से जीना सिखा देती है।
और जब कोई प्यार में टूटकर भी मुस्कुराए,
समझो... मोहब्बत मुकम्मल हो चुकी है।"_
अध्याय 8: वो जगह जहाँ दिल रुक गया
अस्पताल की दीवारों ने पहली बार हल्का सुकून महसूस किया — जैसे वहाँ ठहरे वक्त को भी अब कुछ राहत मिली हो। आज आरव को डिस्चार्ज मिल रहा था। डॉक्टर मुस्करा रहे थे, नर्सें चुपचाप देखकर संतुष्ट थीं, और सान्वी… वो भावनाओं का समंदर थी — डर, राहत, उम्मीद और... बहुत सारा प्यार।
"तैयार हो?" सान्वी ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा।
आरव ने सिर हिलाया।
"जाना कहाँ है?"
"तुम्हीं ने तो कभी कहा था — यादें लौटानी हैं तो वहीं ले चलो जहाँ पहली बार दिल धड़का था।"
"मतलब...?"
"मतलब अब चलो उस पहाड़ी पर," सान्वी ने कहा। "जहाँ तुमने मुझे कहा था — 'कुछ मुस्कानें कैमरे में नहीं, आँखों में कैद होती हैं।'"
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दिल्ली से बाहर निकलते ही रास्ते पहचाने लगने लगे। वही पुराना मोड़, वही झरना, वही चाय की दुकान… और अंत में वही पहाड़ी, जहाँ एक बेंच समय के इंतज़ार में अब भी खड़ी थी।
आरव उस जगह को देखता रहा — आँखें झपकाए बिना।
"मैं यहाँ... पहले आ चुका हूँ, है न?" उसने पूछा।
सान्वी उसकी ओर मुड़ी।
"हाँ… और तुम्हारी आँखों ने उस दिन मुझे पहली बार पूरा देखा था।"
आरव ने बेंच पर बैठते हुए आसमान की ओर देखा।
"तुम्हारी बातें मुझे किसी पुराने ख्वाब जैसी लगती हैं… अधूरी सी, पर अपनी सी।"
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थोड़ी देर दोनों चुप बैठे रहे। फिर सान्वी ने उसकी ओर स्केचबुक बढ़ाई — वही जिसे वो फिर से साथ ला रही थी।
"कुछ बनाना चाहोगे?" उसने पूछा।
आरव ने पन्ना पलटा। वहाँ पहले से एक अधूरी तस्वीर थी — एक लड़की जो किसी खिड़की से बाहर देख रही थी। उसके होंठों पर हल्की सी उदासी थी, और आंखों में सवाल।
"ये तुम हो, है न?" आरव ने पूछा।
सान्वी चौंकी — कुछ पल को उसका दिल रुका।
"हाँ… शायद अब भी हूँ।"
आरव ने धीरे से स्केच पूरा करना शुरू किया — इस बार लड़की की आँखों में जवाब था, और होंठों पर मुस्कान।
"अब तुम बदल गई हो…" उसने कहा।
"और शायद… मैं भी।"
---
अचानक, हवा तेज़ हुई — जैसे बादल कुछ कहने लगे। आसमान पर हल्की बूंदें गिरने लगीं।
"बारिश!" सान्वी मुस्कराई।
आरव ने उसकी ओर देखा।
"तेरे नाम की बारिश…" उसने धीमे से कहा।
सान्वी ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया।
"अब हम पूरा भीगेंगे, अधूरे नहीं।"
दोनों उठकर खुले आसमान के नीचे खड़े हो गए। बारिश उनकी बातों, उनके दर्द, और उनके बीच बचे हर डर को धो रही थी।
आरव ने धीरे से सान्वी के माथे को चूमा।
"मुझे सब कुछ याद नहीं… लेकिन तुम्हें मैं हर दिन फिर से जानने को तैयार हूँ।"
---
पर तभी…
एक कार तेज़ी से पहाड़ी की ओर आती दिखी। उसमें से एक औरत उतरी — काले कपड़ों में, चेहरे पर घबराहट और हाथ में एक मेडिकल फाइल।
"आरव!" उसने चिल्लाया।
सान्वी चौंकी।
"आप कौन?"
"मैं डॉक्टर प्राची हूँ — आरव की न्यूरोलॉजिस्ट।"
आरव पीछे मुड़ा। "डॉक्टर? आप यहाँ?"
डॉ. प्राची ने सीधा सान्वी की ओर देखा।
"आपको उसे यहाँ नहीं लाना चाहिए था। उसकी फाइल में नोट किया गया है कि हाई एल्टीट्यूड और इमोशनल ओवरलोड उसके ब्रेन पैटर्न को डिस्टर्ब कर सकता है!"
सान्वी अवाक रह गई। "लेकिन... उसने खुद यादें दिखाना शुरू किया…"
"और अब वो खतरे में है!" डॉक्टर ने चिल्लाया।
अचानक, आरव के माथे पर हाथ गया — जैसे किसी बिजली की तरंग ने उसके सिर को चीर दिया हो।
"आरव?" सान्वी उसके पास आई।
वो लड़खड़ाने लगा।
"मेरा… सिर… जल रहा है…" उसके शब्द टूटने लगे।
सान्वी ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उसका शरीर ठंडा होने लगा था।
"आरव! मेरी तरफ देखो! मुझे देखो!"
"सान्वी…"
वो बोला, और आँखें बंद कर दीं।
---
वो क्षण थम गया था।
बारिश अब भी गिर रही थी — लेकिन अब वो रोमांटिक नहीं रही, वो चीख बन गई थी। डॉक्टर ने उसे पकड़कर वापस कार की ओर दौड़ लगाई।
सान्वी वहीं खड़ी रह गई — भीगती हुई, काँपती हुई।
"मैंने तो बस… उसे उसकी यादों के पास लाना चाहा था…" उसकी फुसफुसाहट केवल हवा ने सुनी।
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रात भर सान्वी अस्पताल के बाहर बैठी रही। डॉक्टर्स उसे अंदर नहीं जाने दे रहे थे।
अगली सुबह डॉक्टर बाहर आए।
"क्या... वो ठीक है?" सान्वी ने तुरंत पूछा।
डॉ. प्राची ने गहरी साँस ली।
"वो कोमा में है।"
सान्वी का शरीर सुन्न हो गया।
"हम दुआ कर रहे हैं कि वो जागे… पर समय नहीं बता सकता कि कब।"
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अगले कुछ दिन सान्वी ने उसकी ICU के बाहर बिताए। हर रोज़ वो उसके पास बैठती, कुछ न कुछ कहती, उसकी उंगलियाँ थामती, पुराने गाने गुनगुनाती।
एक रात, उसने चुपचाप उसकी स्केचबुक ICU के टेबल पर रख दी — खुले पन्ने पर वही अधूरी तस्वीर पूरी बनी हुई थी।
"अगर मेरी आवाज़ नहीं पहुंच रही… तो शायद तुम्हारे बनाए ये रंग पहुंच जाएं," उसने कहा।
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अध्याय 8 समाप्त
> _"कभी-कभी प्यार आवाज़ नहीं मांगता —
सिर्फ मौन में विश्वास करता है।
और कभी-कभी वो सबसे गहरी याद
किसी अधूरी तस्वीर में छिपी होती है…"_
अस्पताल, रात का दूसरा पहर...
सुनसान गलियारे, धीमी रौशनी और मशीनों की आवाज़ें। हर एक बीप, हर एक धड़कन अब सान्वी के दिल में धड़क रही थी। सामने ICU में लेटा आरव — बंद आँखें, निस्तेज चेहरा, और फिर भी किसी अंदरूनी तकरार में उलझा हुआ।
सान्वी चुपचाप उसके पास बैठी थी। उसका हाथ थामे, हल्के-हल्के अंगूठे से सहला रही थी — जैसे कोई माँ बच्चे को सुला रही हो, या फिर कोई प्रेमिका अपने अधूरे गीत को उसकी हथेलियों पर लिख रही हो।
"आरव..." उसकी आवाज़ फिसलती हुई सी निकली, टूटती हुई। "सुन सकते हो क्या मुझे?"
आरव ने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन सान्वी ने महसूस किया — उसकी उंगलियों ने बहुत हल्की सी हरकत की थी। या शायद उसका भ्रम था?
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आरव की चेतना में...
घना अंधेरा था। सारा शरीर जड़, जैसे कोई शून्य में तैर रहा हो। आवाज़ें आती थीं — कुछ धुंधली, कुछ दर्द भरीं।
और फिर एक हल्की सी खनकती हुई आवाज़ — "आरव..."
उसने देखा — बारिश हो रही थी। हल्की बूँदें उसके कंधों को छू रही थीं। सामने एक लड़की खड़ी थी — सफेद सूट में, भीगती हुई, पर मुस्कुराती हुई। वह उसकी तरफ़ बढ़ी, कुछ कहना चाहती थी, पर आवाज़ नहीं निकल रही थी।
"क्या ये सपना है?" आरव ने सोचा।
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अस्पताल में...
सान्वी ने उसकी आँखों पर हाथ फेरा। "मुझे माफ कर देना आरव... अगर कभी ऐसा कुछ कहा जो तुम्हें तोड़ गया हो।"
उसकी आँखें नम थीं। पर इस बार आँसू सिर्फ़ ग़म के नहीं थे — उनमें डर भी था। खो देने का डर।
"मुझे नहीं पता तुम कब जागोगे... पर मैं जानती हूँ, तुम लड़ रहे हो। जैसे हमेशा लड़ते आए हो। मेरे लिए, अपने लिए... अब एक बार और लड़ लो आरव। एक बार और।"
वो उठी, अपने बैग से डायरी निकाली और आरव के सिरहाने रख दी। "याद है, मैंने वादा किया था, जब मेरी किताब पूरी होगी... मैं सबसे पहला नाम तुम्हारा लिखूँगी?"
उसने डायरी के पहले पन्ने पर लिखा —
"तेरे नाम की बारिश — आरव के नाम, जो अधूरे जज़्बातों को भी मुकम्मल बना देता है।"
---
आरव की चेतना में — फिर एक दृश्य...
उसने उस लड़की को देखा। वो पास आ चुकी थी। आँखें नम थीं, होंठों पर मुस्कान थी।
"क्या तुम सान्वी हो?" उसने पूछा।
वो मुस्कुराई, और बस कहा —
"अगर हाँ हूँ... तो क्या साथ चलोगे?"
"लेकिन... मैं तो इस दुनिया में हूँ भी या नहीं?"
"मैं हूँ... तो तुम भी हो। तुम्हारे ख्वाबों में आना अब मेरा हिस्सा है, आरव।"
---
अस्पताल — कुछ घंटों बाद...
डॉक्टर चेकअप कर रहे थे। मॉनिटर पर नज़रें थीं।
"Pulse स्टेबल है... brain activity में हल्की हलचल दिख रही है," डॉक्टर ने कहा।
सान्वी की उम्मीदें जागीं। "क्या इसका मतलब है कि वो...?"
"हो सकता है," डॉक्टर ने मुस्कराते हुए कहा।
सान्वी ने आरव का हाथ फिर से थामा, और फुसफुसाई —
"मैं जानती हूँ, तुमने मुझे सुना है... और अब तुम लौटोगे।"
---
तीन दिन बाद...
सुबह की पहली किरण ICU के शीशे से भीतर आई। आरव अब भी वैसे ही था — निश्चल, शांत।
लेकिन अचानक, उसकी उंगलियाँ हल्की-हल्की कांपने लगीं। पलकों में हलचल हुई।
सान्वी वहीं पास बैठी थी, जाग रही थी। उसने फ़ौरन डॉक्टर को नहीं बुलाया। बस उसकी आँखों में आँसू आ गए।
"आरव... आरव, क्या तुम...?"
आरव की आँखें खुलीं। धीमे-धीमे, धुंधली दृष्टि से उसने इधर-उधर देखा। फिर उसकी आँखें सीधे सान्वी पर जाकर थमीं।
"सान्वी?" उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी।
वो फूट-फूट कर रो पड़ी।
"हाँ आरव... मैं ही हूँ। मैंने कहा था ना, वापस आओगे तुम!"
आरव ने मुस्कुराने की कोशिश की — उसके होंठ कांपे, लेकिन आँखें मुस्कुरा उठीं।
"मैं चला गया था शायद... पर तुमने मुझे वापस बुला लिया।"
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दो हफ़्ते बाद...
आरव अब व्हीलचेयर पर बैठा था, थोड़ा कमज़ोर लेकिन होश में, और सान्वी के साथ। अस्पताल के गार्डन में वो दोनों एक ही बेंच पर बैठे थे।
सान्वी ने उसकी तरफ़ देखा।
"तुम्हें क्या याद है?"
आरव ने धीमे से कहा —
"सब नहीं... लेकिन कुछ यादें तुम्हारे साथ की, बार-बार आती रहीं। एक सपना था, जिसमें तुम भीग रही थीं बारिश में... और कुछ कह रही थीं।"
"मैंने कुछ नहीं कहा था... लेकिन मेरी हर खामोशी चिल्ला रही थी कि मैं तुम्हें चाहती हूँ।"
आरव चौंक पड़ा।
"सान्वी..."
"हाँ आरव... मुझे कब से ये कहना था। पर हर बार डर लगता था — कहीं तुम्हें खो न दूँ। लेकिन जब तुम चले गए... तब समझ आया, बिना कहे भी खोया जा सकता है। और अब जब मिले हो, तो कह देने में क्या डर?"
आरव ने उसका हाथ थामा।
"अब हम साथ हैं... और मैं वादा करता हूँ, इस बार तुम्हें जाने नहीं दूँगा।"
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उसी शाम...
बारिश फिर से शुरू हो चुकी थी।
सान्वी और आरव उसी पुरानी किताबों की दुकान के सामने खड़े थे, जहाँ सब कुछ शुरू हुआ था।
"तेरे नाम की बारिश..." आरव ने दुकान के काउंटर पर रखी किताब की कॉपी देखी।
"ये तुम्हारी है?"
"हाँ," सान्वी मुस्कुराई। "और अब इसकी कहानी भी हमारी है।"
बारिश की बूँदें जैसे सब धो रही थीं — दर्द, डर, और अतीत की खामोशियाँ।
आरव ने धीमे से कहा —
"अब अगर फिर से कभी खो गया... तो मुझे बस तेरे नाम की बारिश में ढूंढ लेना।"
हॉस्पिटल, सुबह के चार बजे —
सान्वी की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। आरव की उंगलियों को उसने अपने हाथों में थाम रखा था जैसे उसकी सांसें अब इसी छुअन पर टिकी हों। कमरे की मशीनें अब भी बीप कर रही थीं, मगर अब उनकी आवाज़ डरावनी नहीं लग रही थी, बल्कि उम्मीद की तरह लग रही थी।
"आरव..." उसने धीमे से फुसफुसाया, "तुमने वादा किया था न, छोड़ कर नहीं जाओगे। अब निभाओ इसे…"
उसके शब्दों में नमी थी, लेकिन उसी में हिम्मत भी। तभी अचानक, आरव की उंगलियाँ थोड़ी सी हरकत करती हैं।
सान्वी की धड़कनें जैसे एक पल को थम गईं।
"आरव...?" वह झुक कर उसके चेहरे के पास गई।
धीरे-धीरे उसकी आँखों की पलकें काँपीं और फिर—
आरव ने अपनी आँखें खोलीं।
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अस्पताल का पल, फिर से जिन्दा हो उठा था।
डॉक्टर्स दौड़ पड़े। मशीनें तेज़ी से हरकत में आ गईं। सान्वी वहीं खड़ी रही, उसकी आँखों से आँसू बहते रहे — लेकिन अब वो डर के नहीं, राहत के थे।
"वो जाग गया..." उसने खुद से कहा, "वो वापस आ गया..."
आरव की नज़रें कमरे में घूमीं। सब कुछ धुंधला, अनजाना, लेकिन सान्वी का चेहरा… वो कुछ था जिसे उसने पहले कहीं देखा था। महसूस किया था।
"तुम... कौन हो?" उसने फुसफुसाते हुए कहा।
सान्वी का चेहरा जैसे पत्थर का हो गया।
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अगले दिन
डॉक्टरों ने बताया कि आरव को "Partial Retrograde Amnesia" हुआ है — यानी वह कुछ समय की यादें खो चुका है।
सान्वी की दुनिया जैसे वहीं रुक गई। जिस इंसान के लिए वह हर दिन लड़ी, हर आंसू बहाया, वह उसे भूल गया।
लेकिन उसने हार नहीं मानी।
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"रिश्ते यादों से नहीं, एहसासों से बनते हैं..."
उसने खुद से कहा।
"अगर उसे मुझसे जुड़ी यादें नहीं रहीं, तो क्या हुआ… मैं फिर से उसे अपना बनाऊँगी।"
अगले कुछ दिन सान्वी ने उसकी देखभाल में गुजारे। उसे आरव को उन सभी जगहों पर ले जाया गया जहाँ उनके प्यार की कहानियाँ शुरू हुई थीं।
पहला पड़ाव: कॉलेज का मैदान।
सान्वी उसे उसी बेंच पर लेकर गई जहाँ पहली बार आरव ने उससे बारिश में छतरी बाँटी थी।
"कभी बारिश से डर लगता था मुझे," सान्वी ने कहा, "फिर एक दिन किसी ने सिखाया कि हर बूँद में प्यार छुपा होता है।"
आरव चुप रहा। लेकिन उसकी आँखों में हल्की सी चमक थी।
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दूसरा पड़ाव: किताबों की दुकान
जहाँ आरव ने सान्वी के लिए पहली किताब खरीदी थी। वहाँ पहुंचते ही उसने कहा,
"ये जगह… जानी पहचानी सी लगती है…"
सान्वी मुस्कुरा दी। वो जानती थी, आरव का दिल बोल रहा था — यादें भले गुम हो गई हों, लेकिन दिल के पन्ने अभी भी खुले थे।
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तीसरा पड़ाव: वो पुरानी छत — जहां उसने पहली बार 'आई लव यू' कहा था।
वहाँ खड़े होकर उसने आरव से पूछा,
"अगर मैं कहूँ कि हम दोबारा शुरू करें — बिना पुराने नाम, बिना पुराने दाग — तो क्या तुम साथ दोगे?"
आरव उसे देखता रहा — एकटक।
"तुम्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे मेरी अधूरी कहानी का आखिरी पन्ना तुम्हारे पास है..."
फिर उसने हल्की सी मुस्कान दी, "शायद मुझे दोबारा तुमसे प्यार हो रहा है।"
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रात — अस्पताल
आरव लेटा हुआ था। सान्वी उसके बगल में कुर्सी पर बैठी थी, उसकी उंगलियाँ हल्के से सहला रही थी।
"सान्वी," उसने धीरे से कहा, "तुम अब भी वहीं हो, हर बार की तरह?"
सान्वी की आँखें भर आईं,
"क्योंकि तुम्हारे नाम की बारिश में मैं खुद को हर बार पाती हूँ, आरव…"
और उसी पल, आरव के दिमाग में एक तेज़ झटका सा महसूस हुआ — जैसे कोई तस्वीर टूटी हो… फिर जुड़ गई हो।
एक पुरानी याद… सान्वी के आँसुओं की, उसकी मुस्कान की… बारिश में भीगे उस चेहरे की।
"सान्वी..." उसने धीरे से कहा, "क्या हमने कभी… छतरी के नीचे एक-दूसरे को सिर्फ देखा था?"
सान्वी की साँसें थम गईं।
"हाँ… और तुमने कहा था, 'तुम्हारे पास आकर बारिश भी खास लगने लगी है…'"
आरव की आँखें बंद हो गईं, पर होंठों पर एक मुस्कान थी।
"शायद… मुझे फिर से तुमसे प्यार हो रहा है… एक बार नहीं… बार-बार… हर बार।"
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कुछ दिन बाद — अस्पताल से छुट्टी
आरव अभी भी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था, लेकिन उसका चेहरा अब पहले जैसा सुस्त नहीं, बल्कि ज़िंदा था।
डिस्चार्ज के दिन, सान्वी ने उसके हाथ में एक डायरी दी।
"ये क्या है?" उसने पूछा।
"हमारी कहानी," सान्वी ने कहा, "तुम्हारी यादें… मेरी कलम से।"
आरव ने किताब को अपने सीने से लगा लिया।
"मैं इसे पढ़ूँगा… और फिर शायद मुझे सब याद आ जाए… या शायद नहीं…"
फिर वो रुककर बोला,
"लेकिन अगर तुम्हें मंज़ूर हो… तो हम इसे फिर से लिख सकते हैं, साथ में…"
सान्वी मुस्कुरा दी — आँसू भरी आँखों से, लेकिन अब उनमें दुख नहीं, सिर्फ प्यार था।
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अध्याय समाप्त।
अगले अध्याय में:
सान्वी और आरव की नई शुरुआत — लेकिन जब एक पुराना खत आरव के हाथ लगता है, तो कहानी में लौट आता है अतीत का एक रहस्य…
क्या यह प्यार फिर किसी तूफान से गुज़रेगा?
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“धुंध में कुछ चेहरों जैसे”
1
आरव की आँखें खुलीं तो रोशनी की एक हल्की किरण उसके चेहरे पर पड़ी। चारों ओर सफ़ेद दीवारें थीं, खामोशियाँ थीं, और एक नाम... जो हर कुछ देर में उसकी ज़ुबान तक आने की कोशिश करता, पर ठहर जाता — "सा... न्वी..."
उसके बगल की कुर्सी पर वही बैठी थी — वही आँखें, वही चेहरा, जो उसके सपनों में उतर आया करता था। सान्वी।
"आरव..." उसकी आवाज़ नर्म थी, लेकिन भीतर तक उतर जाने वाली।
"मैं..." आरव ने बोलने की कोशिश की, पर ज़बान भारी थी।
"कुछ मत कहो। बस सुनो... तुम लौट आए हो, यही बहुत है," सान्वी ने उसका हाथ थामा।
आरव ने उसकी आँखों में देखा — कुछ जाना-पहचाना सा, लेकिन फिर भी अजनबी।
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2
"डॉक्टर का कहना है कि तुम्हें आंशिक एम्नेशिया है, यादें धीरे-धीरे वापस आएंगी," सान्वी ने मुस्कुराकर समझाया, जबकि उसके भीतर एक डर का समंदर लहरा रहा था।
आरव ने सिर हिलाया, जैसे वो खुद से कह रहा हो — क्या ये लड़की सच में मेरी ज़िंदगी का हिस्सा थी?
वो नाम... सान्वी, उसके दिल में कहीं गूंज रहा था, जैसे अधूरी कविता का अधूरा अंतरा।
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3
अगले कुछ दिनों में सान्वी ने उसका कमरा एक छोटे से म्यूज़ियम में बदल दिया — पुरानी तस्वीरें, टिकटें, हैंडराइटन नोट्स, और वो नीली डायरी जिसमें आरव कविताएं लिखा करता था।
"ये देखो... तुम्हारी लिखी पहली कविता जो तुमने मेरे लिए पढ़ी थी..."
सान्वी ने डायरी खोली —
"तेरे नाम की बारिश में भीगता रहा हूँ,
हर बूँद में तुझे समेटता रहा हूँ..."
आरव ने पढ़ा। कुछ खिंचा... जैसे दिल की किसी दरार से कोई रौशनी फूटी हो।
"ये मैंने लिखा?" उसने पूछा।
"हाँ, मेरे लिए... हमारी पहली बारिश के दिन..." उसकी आवाज़ काँप गई।
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4
रातों को आरव अक्सर बेचैन हो जाता। कुछ सपने आते — धुंधले चेहरे, सड़कों पर भागती बारिश, और एक लड़की जो भीगते हुए हँस रही होती।
"मैं कौन हूँ तुम्हारे लिए?" उसने एक दिन पूछ लिया।
सान्वी चुप रही। फिर बोली, "एक समय तुम मेरी हर सांस में बसे थे। अब भी हो... बस तुम्हें याद नहीं।"
"माफ़ करना..." आरव की आँखों में संकोच था।
"मत कहो ऐसा... तुम बस वापस आओ, मैं इंतज़ार करती रहूँगी।"
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5
एक शाम, सान्वी उसे अस्पताल की छत पर ले गई। बारिश हो रही थी — नर्म और शांत।
"याद है, हम इसी तरह बारिश में भीगा करते थे?" उसने कहा।
आरव खामोश रहा। लेकिन उसके भीतर कुछ टूटा, कुछ जागा।
"मैं जानती हूँ, ये सब अचानक बहुत भारी है, पर मैं कहीं नहीं जाऊंगी," सान्वी की आँखों में आँसू थे।
आरव ने पहली बार उसके गीले बालों को देखा, फिर उसकी काँपती उंगलियों को थाम लिया।
"शायद मेरी यादें लौटें... शायद ना भी लौटें। पर तुम... तुम सही लगती हो," उसने धीमे से कहा।
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6
अगले कुछ दिनों में आरव ने दोबारा गिटार उठाया, कविताएं देखीं, अपनी पुरानी स्केचबुक खोली। हर चीज़ में कहीं-न-कहीं सान्वी मौजूद थी।
एक दिन उसने पूछा, "सान्वी... क्या तुम मुझे फिर से वो सब सिखा सकती हो... जो मैं भूल गया?"
सान्वी की आँखों में आंसुओं के पीछे मुस्कान थी, "हाँ, आरव। हम फिर से शुरू कर सकते हैं।"
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7
और वो दिन आया जब आरव ने एक नई कविता लिखी — उसके बिना कहे ही।
"धुंध में कुछ चेहरों जैसे,
तू भी थी, पर दिखी नहीं,
तेरे नाम की बारिश थी,
भीगता रहा, पर समझी नहीं..."
सान्वी ने सुना, और कुछ पल को बस उसे देखती रही।
"ये मेरे लिए है?" उसने पूछा।
आरव ने मुस्कुरा कर कहा, "शायद... मेरी यादें तुम्हारे पास थीं, सान्वी। अब मुझे बस अपना रास्ता ढूँढना है — तुम्हारे साथ।"
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अंतिम दृश्य
वो दोनों अस्पताल की छत पर खड़े थे, एक बार फिर बारिश हो रही थी।
सान्वी ने उसका हाथ थामा और कहा,
"ये तेरे नाम की बारिश है, आरव... हर बूँद में तेरा ही अक्स है।"
आरव ने उसकी ओर देखा, पहली बार पूरी यकीन से —
"और हर बूँद में तू भी है, सान्वी।"
बरसात की फुहारें दोनों को भीगाती रहीं — जैसे ज़िंदगी ने दोबारा उन्हें एक साथ लिखने का फैसला किया हो।
“पुरानी डायरियाँ, नए सवाल”
1
आरव की ज़िंदगी अब धीरे-धीरे एक नई रफ्तार पकड़ रही थी। यादें अब पूरी तरह लौटी नहीं थीं, लेकिन दिल कुछ-कुछ पहचानने लगा था — कुछ एहसास, कुछ लम्हे, और सबसे बढ़कर… सान्वी।
उस शाम जब सान्वी कमरे में दाख़िल हुई, आरव डेस्क पर बैठा कुछ पढ़ रहा था।
"क्या कर रहे हो?" सान्वी ने धीरे से पूछा।
"डायरी… मेरी पुरानी। तुम्हारी लाकर दी हुई। आज थोड़ी हिम्मत हुई पढ़ने की।"
आरव की आवाज़ में संकोच था।
"कुछ खास मिला?"
"हां… और कुछ अजीब भी।"
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2
डायरी के पन्ने पुराने थे, किनारे मुड़े हुए, लेकिन भावनाएं अब भी ताज़ा।
एक पन्ने पर लिखा था —
"उसकी आँखों में कुछ है जो मुझे खींचता है, और डराता भी है।
सान्वी से अलग… ये कोई और है।
क्या मैं धोखा दे रहा हूँ… या बस खुद को समझा रहा हूँ?"
सान्वी की मुस्कान जैसे जम गई।
"ये क्या है?" उसने पूछा।
आरव ने चुपचाप उसे डायरी थमा दी।
"ये... कब की है?" सान्वी की उंगलियाँ काँप रही थीं।
"कुछ महीने पहले की। तब जब शायद हम साथ थे... लेकिन मेरे मन में कुछ और भी चल रहा था।"
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3
सान्वी कमरे से बाहर निकल आई। वो पल उसकी सबसे बड़ी आशंका की तरह था — क्या आरव के दिल में कोई और भी थी?
छत पर खड़ी बारिश को ताकती रही। उसका मन जैसे टपकती बूंदों की तरह बिखर रहा था।
उसी वक़्त पीछे से आरव आया।
"मैं खुद हैरान हूँ, सान्वी। मुझे याद नहीं कौन थी वो... या क्या था ये सब। लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ — जब से मैं होश में आया हूँ, सिर्फ तुम हो मेरे पास।"
"तो क्या मैं तुम्हारा विकल्प हूँ? रिकवरी का हिस्सा?" सान्वी की आँखें भर आईं।
"नहीं। तुम मेरी शांति हो। बाकी सब शोर था।"
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4
कुछ दिनों बाद, अस्पताल से छुट्टी मिल गई। सान्वी ने आरव को अपने घर बुलाया, वही घर जहां उन्होंने पहली बार साथ बारिश में चाय पी थी।
आरव के साथ पुरानी जगहों पर जाना जैसे यादों के छोटे-छोटे पुल बना रहा था।
लेकिन दिमाग़ के किसी कोने में वो नाम अब भी गूंज रहा था — "नैना..."
वो नाम बार-बार डायरी के दूसरे हिस्सों में आया था।
"नैना की आँखों में कुछ कहर है,
वो सान्वी जैसी नहीं… पर अजीब सी शांति देती है..."
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5
अगली सुबह आरव अपनी स्केचबुक देख रहा था, जिसमें एक चेहरा बार-बार बना था — सान्वी नहीं, कोई और।
उसने तस्वीर उठाई और सान्वी के पास गया।
"ये... तुम नहीं हो।"
सान्वी ने तस्वीर देखी। चेहरा उसके लिए अनजान था, लेकिन उसने तुरंत कहा — "शायद वो नैना है?"
"क्या तुम उससे जानती हो?"
"नहीं… लेकिन अब मुझे भी जानना है।"
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6
सान्वी और आरव ने आरव की पुरानी कॉल डिटेल्स, मेल्स और डायरीज़ खंगालना शुरू किया।
कुछ मेल्स में एक नाम था — Naina Verma.
और एक छोटा सा नोट —
"काश उस एक शाम को मैं ना रुका होता।
काश वो मेरा सच न बनती।
और काश सान्वी को कभी पता न चले।"
सान्वी की आँखें अब नम नहीं थीं — वो अब ठंडी थीं।
"तुम मुझसे कुछ छुपा रहे थे, आरव… और शायद खुद से भी।"
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7
आरव को समझ नहीं आ रहा था — वो नैना थी कौन?
वो प्यार था या बस एक उलझन?
और उससे भी बड़ा सवाल — क्या आज भी उसके दिल में कहीं नैना है?
"मैं अब भी सिर्फ तुम्हें महसूस करता हूँ, सान्वी। लेकिन अगर मेरे अतीत में कोई अधूरी कहानी थी, तो क्या हमें उसे जानना नहीं चाहिए?"
"हाँ, जानना ज़रूरी है। ताकि हमारे बीच कभी अधूरापन ना रहे।"
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8
अगले दिन, सान्वी ने नैना को ढूंढने की ठानी।
एक मेल के ज़रिए उन्होंने उससे संपर्क किया।
सिर्फ एक लाइन का जवाब आया —
"अगर यादें लौट आई हैं, तो मिलने का वक्त भी आ गया है।"
स्थान: कैफे बारिश
वक्त: शाम 6 बजे
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अंतिम दृश्य
सान्वी और आरव उस कैफे में पहुंचे।
बारिश हो रही थी — जैसे हर बार।
कॉर्नर टेबल पर कोई बैठा था — लंबी चोटी, गुलाबी सलवार-सूट, और आँखों में अजीब सी चमक।
"नैना?" आरव ने धीमे से कहा।
लड़की मुस्कुराई —
"बहुत दिन हो गए, आरव। और शायद बहुत कुछ छूट गया है।"
सान्वी ने आरव का हाथ थामा।
नए सवालों के साथ एक पुराना जवाब अब सामने बैठा था।
सान्वी के संघर्ष और भावना की तीव्रता
आरव की कोमा के बाद चेतना में संभावित हलचल
फ्लैशबैक में उनका अतीत
वर्तमान की उलझनें और आने वाले मोड़ की झलक
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अध्याय 13: भीगे लम्हों की दस्तक
(भाग 1/3)
बरसात की हल्की बूंदें ICU की खिड़की से टकरा रही थीं। सान्वी, चुपचाप आरव के बिस्तर के पास बैठी थी — उसकी उंगलियाँ आरव की हथेली में बसी थीं, जैसे वो अपनी साँसें उसकी हथेलियों में उतार देना चाहती हो। डॉक्टर्स कह चुके थे — "संभावनाएं कम हैं, लेकिन चमत्कार कभी भी हो सकता है।" और सान्वी… चमत्कार बनना चाहती थी।
वो हर रोज़ उसी समय आती थी, वही बातें दोहराती थी, वही यादें सुनाती थी — मानो हर शब्द, हर पल एक सुई बनकर उसकी आत्मा में चुभ रहा हो… पर वो चुभन ज़रूरी थी, शायद आरव के दिल तक पहुंचने के लिए।
"याद है आरव… पहली बार जब बारिश में हम भीगे थे, कॉलेज के बाहर? तुमने मुझे अपनी जैकेट दी थी… और खुद भीगते रहे… पर जब मेरी तबीयत बिगड़ी थी, तुमने एक शब्द भी नहीं कहा… बस मेरी देखभाल करते रहे… क्यों किया तुमने ऐसा?" उसकी आवाज़ भर्रा गई।
आरव के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। पर सान्वी ने उसकी पलकों की कोरों पर एक हल्की-सी हरकत देखी… या शायद महसूस करना चाहा।
उसने गहरी सांस ली।
"तुमने मुझसे कभी नहीं कहा, लेकिन मैं जानती थी — तुम्हारा प्यार शब्दों में नहीं, कामों में था। पर आज मैं हर वो बात कह रही हूँ जो उस वक़्त नहीं कह पाई थी… क्योंकि शायद अब वक़्त नहीं बचे…"
वो झुक कर आरव के माथे पर हल्की-सी चूमी।
उसके आँसू उसके चेहरे पर गिर पड़े — जैसे हर बूँद उसकी रूह से बह रही हो।
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अध्याय 13: भीगे लम्हों की दस्तक
(भाग 2/3)
सान्वी की आँखें लगातार आरव के चेहरे पर टिकी थीं, जैसे वहाँ कोई कहानी छुपी हो, जो सिर्फ वो ही पढ़ सकती हो। कमरे की घड़ी की सुइयाँ जैसे थम-सी गई थीं। बाहर बारिश का शोर धीमा हो गया था, लेकिन भीतर उसके दिल में एक तूफान बरस रहा था।
उसने धीमे से आरव का हाथ अपने गाल से लगाया।
"मैं थक गई हूँ आरव… लड़ते-लड़ते… दुनिया से, हालातों से, अपने आप से… लेकिन तुमसे नहीं।" उसकी आवाज़ में टूटन थी, पर गहराई भी।
फ्लैशबैक
कॉलेज का कैंपस। एक शाम।
सान्वी बौखलाई हुई कैंटीन में आई थी, उसकी आँखें आरव को ढूंढ रही थीं। वो कोने वाली टेबल पर बैठा था — अपनी फेवरेट ब्लैक कॉफी और नॉटबुक के साथ।
"तुमने वो कविता क्यों लिखी?" सान्वी ने कड़क आवाज़ में पूछा।
आरव ने सर उठाया — उसकी आँखों में वो चिर-परिचित मासूमियत थी।
"क्योंकि तुम्हारी मुस्कान बारिश जैसी लगती है," उसने जवाब दिया।
वो झुंझला गई, "ये मज़ाक है क्या?"
"नहीं… एहसास है," उसने कहा, और उसी पल कुछ टूट गया था सान्वी के भीतर — उसके गुस्से का आवरण, उसकी तनी हुई दीवारें।
उस दिन पहली बार, वो रोई थी। और आरव ने बस एक हाथ उसके कंधे पर रखा था — बिना शब्दों के। और उसी शाम पहली बार उसे लगा था… ये लड़का, उसका घर बन सकता है।
वर्तमान में लौटते हुए…
"तुम मेरी ज़िन्दगी का वो हिस्सा हो, जो मैं चाहकर भी मिटा नहीं सकती। और आज, जब तुम इस हालत में हो… मैं खुद को हर रोज़ तोड़ती हूँ, सिर्फ तुम्हें जोड़ने के लिए," सान्वी का गला रुंध गया।
डॉक्टर अंदर आए।
"मिस सान्वी, हमें कुछ टेस्ट करने हैं। आप थोड़ी देर बाहर रुक सकती हैं?"
वो बेमन से उठी। बाहर आते ही उसने आरव की माँ को देखा — उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं।
सान्वी ने उनके हाथ थाम लिए।
"आंटी… मुझे भरोसा है… आरव लौटेगा।"
उन्होंने बस सिर हिलाया, पर उनकी आँखें सब कह गईं — डर, थकावट, उम्मीद और एक माँ का टूटा हुआ दिल।
सान्वी गलियारे में आई, और एक तरफ बैठ गई। उसकी डायरी उसके बैग में थी — वही डायरी जिसमें उसने आरव के लिए हर कविता, हर ग़ज़ल लिखी थी।
उसने पन्ना पलटा और पढ़ना शुरू किया:
> "तेरे नाम की बारिश जब भी बरसी
मेरी रूह तक भीग जाती है
हर कतरा तुझसे कुछ कहता है
और मैं चुपचाप सुनती जाती हूँ…"
वो शब्द अब उसके लिए सिर्फ कविता नहीं थे — वो आरव के दिल की दस्तक थे।
उसी वक्त, ICU के अंदर नर्स ने कुछ हरकत नोट की। मॉनिटर पर हल्की तरंगें दिखने लगी थीं।
"डॉक्टर! उसकी फिंगर मूवमेंट!" नर्स चिल्लाई।
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अध्याय 13: भीगे लम्हों की दस्तक
(भाग 3/3 – समापन)
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ICU के दरवाज़े पर सन्नाटा था।
लेकिन उस सन्नाटे के बीच, एक हरकत ने सब कुछ बदल दिया।
साँसों की मशीन की बीप अब हल्की सी तेज़ हो चली थी। नर्सों के चेहरे पर हलचल थी। डॉक्टर ने स्टेथोस्कोप हटाते हुए कहा—
"मिरेकल… वो रेस्पॉन्ड कर रहा है!"
सान्वी को कुछ समझ नहीं आया। वो भागती हुई ICU की ओर पहुँची, आँखें विश्वास और डर के बीच जूझती रहीं।
डॉक्टर ने उसे देखा और धीमे से सिर हिलाया, जैसे कह रहा हो — अब तुम जाओ।
सान्वी के पैरों ने ज़मीन छूना बंद कर दिया।
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ICU में…
आरव अब भी वहीं था — बेहोश, शांत… मगर मशीनें गवाही दे रही थीं कि अब कुछ बदल चुका है।
सान्वी ने कांपते हाथों से उसका हाथ पकड़ा।
"आरव… सुन रहे हो ना?"
उसकी उंगलियों में हल्की सी हरकत हुई।
सान्वी की आँखों से झर-झर आँसू बह निकले।
"ये वही हाथ है जो मेरा साथ देने का वादा करता था। ये वही साँसें हैं जिन्होंने मुझे हिम्मत दी थी। मत हारो… मैं यहाँ हूँ।"
तभी आरव की पलकें हल्के से हिलीं।
एक पल के लिए, समय जैसे रुक गया।
फिर… बहुत धीमे से… उसकी आँखें खुलीं।
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"सान्वी?"
उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी। जैसे किसी गहरे कुएँ से आती हो।
सान्वी ने खुद को उसके ऊपर झुकाया —
"हाँ… मैं यहीं हूँ।"
"कितना… वक्त… हो गया?"
"बस कुछ दिन। मगर हर लम्हा… सदियों जैसा था।"
आरव की आँखों में नमी थी, मगर मुस्कान भी।
"मुझे… सिर्फ़ तेरा नाम याद रहा।"
"बस वही काफी था।"
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कुछ दिन बाद…
आरव अब व्हीलचेयर पर था। उसका चेहरा फिर से वही हो रहा था — ज़िंदा, थोड़ा सा चुप, पर गहराइयों से भरा।
सान्वी उसके साथ अस्पताल के गार्डन में बैठी थी।
"तेरी कविताएं अभी भी वैसी ही हैं?" उसने पूछा।
"अब पहले से भी गहरी हो गई हैं," सान्वी ने कहा।
"मैंने सुना… तू रोज़ मुझे पढ़ती थी?"
"हाँ, रोज़। क्योंकि मैं चाहती थी कि अगर तू लौटे, तो मेरी आवाज़ तेरी पहली याद बने।"
आरव ने उसकी तरफ देखा —
"और अगर मैं नहीं लौटता?"
"तो मेरी कविताएं तुझे ढूंढती रहतीं… मरने के बाद भी।"
आरव ने उसका हाथ पकड़ा —
"पागल लड़की।"
"हाँ… तेरे प्यार में पागल।"
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Discharge वाले दिन…
आरव अब बेहतर था, चलने की कोशिश कर रहा था। सान्वी उसके साथ थी।
"अब क्या प्लान है?" सान्वी ने पूछा।
"पहले तो तुझे एक बात कहनी है।"
"क्या?"
"जब मैं कोमा में था… मैंने तेरा सपना देखा। हम दोनों बारिश में भीग रहे थे… तू हँस रही थी… और मैं सिर्फ़ तुझे देख रहा था।"
"फिर?"
"फिर तूने कहा — 'अगर लौटे, तो वादा कर, अब अधूरी कहानी पूरी करेंगे।'"
सान्वी की आँखें भर आईं।
"तो कर रहा हूँ वादा।"
वो घुटनों के बल बैठ गया, धीरे से —
"सान्वी… क्या तू मेरी अधूरी कविता को अपना नाम देगी?"
सान्वी हँसते हुए रो पड़ी।
"हाँ, आरव… अब हर कविता मेरे नाम की बारिश होगी… तेरे साथ।"
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तेरे नाम की बारिश – Chapter 14
✍️ लेखिका: QUEEN
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कहानी अब तक:
आरव की याददाश्त धीरे-धीरे लौट रही है, और सान्वी का प्यार उसकी रूह में उतरता जा रहा है। लेकिन अभी भी वो कशिश, वो अपनापन—एक परछाईं बनकर सामने खड़ा है। क्या इस बारिश में कोई ऐसा पल आएगा जो सब कुछ बदल देगा?
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भाग 1:
रात का सन्नाटा कमरे में पसरा हुआ था, मगर सान्वी की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। खिड़की के पास खड़ी वो बारिश की बूँदों को निहार रही थी जो काँच पर टकराकर फिसलती जा रही थीं। बाहर अंधेरे में लिपटी सड़कें भीगी हुई थीं, और हवा में एक अजीब सी बेचैनी घुली हुई थी।
आरव बिस्तर पर लेटा हुआ था, उसकी साँसों की रफ्तार अब पहले से थोड़ी बेहतर हो गई थी। मगर उसकी आँखों में अभी भी अतीत का कोहरा छाया हुआ था। उसने धीमे स्वर में कहा—
"सान्वी...?"
वो जैसे उसी पल का इंतज़ार कर रही थी। पलटकर तुरंत उसकी ओर आई—"हाँ, आरव? कुछ चाहिए तुम्हें?"
आरव की निगाहें उसकी आँखों में अटक गईं। कुछ पलों तक वो बस उसे देखता रहा, जैसे शब्द उसकी ज़ुबान तक आकर रुक गए हों। फिर फुसफुसाते हुए बोला—
"तुम... अब भी मुझसे उतना ही प्यार करती हो?"
सान्वी का दिल एक क्षण के लिए थम सा गया। वो प्रश्न नहीं था, बल्कि उस आत्मा की पुकार थी जो सब कुछ भूलकर भी एक चीज़ को याद रखती थी—प्यार।
वो पास बैठ गई, और उसका हाथ थामते हुए बोली—
"आरव, जब किसी की धड़कनों में कोई बस जाता है ना, तो वो न याद आने पर भी हर धड़कन में गूंजता रहता है। मैं हर दिन तुम्हें उसी प्यार से देखती हूँ, जैसे पहले दिन देखा था। फर्क बस इतना है, अब मैं तुम्हें और भी ज़्यादा चाहने लगी हूँ।"
आरव की आँखों में नमी तैरने लगी। "मैं कोशिश कर रहा हूँ सब कुछ याद रखने की, पर... कुछ तस्वीरें बहुत धुंधली हैं। बस एक एहसास है, जो हर बार तुम्हारे पास खींच लाता है।"
सान्वी ने मुस्कुरा कर उसका माथा चूमा—"यही एहसास तो हमारा सच है, आरव। यादें चाहे लौटें या नहीं, हमारा प्यार कभी नहीं खोया।"
आरव ने धीरे से उसका हाथ अपने दिल पर रखा। "इस दिल ने तुम्हें कभी नहीं भुलाया, सान्वी।"
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भाग 2 आएगा जल्द ही...
इस अध्याय में हम देखेंगे कि कैसे सान्वी और आरव के रिश्ते में भावनाओं की गहराई बढ़ती है, और एक पुरानी डायरी—अतीत के कुछ ऐसे पन्ने खोलती है जो सान्वी तक भी नहीं पहुंचे थे।
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शानदार! अब प्रस्तुत है Chapter 14 of तेरे नाम की बारिश, जिसमें भावनाओं का संगम, रिश्तों की कसक, और अतीत-भविष्य के द्वंद्व को एक साथ पिरोया गया है। यह भाग 2000+ शब्दों में होगा, और आपकी कहानी को गहराई व रहस्य दोनों देगा।
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तेरे नाम की बारिश
अध्याय 14 — "यादों की धुंध में छुपा एक चेहरा"
(लेखिका — QUEEN)
भाग 1:
कमरे में खामोशी बिछी थी। केवल मॉनिटर की बीप—बीप आवाज़ और ऑक्सीजन मशीन की धीमी साँसों की गूंज सुनाई दे रही थी। साँवली शाम की रोशनी खिड़की से छनकर आ रही थी, और उसमें सान्वी का चेहरा उदास चाँद की तरह लग रहा था।
अरव की आँखें अब भी बंद थीं, लेकिन उसके चेहरे पर आज एक अलग सी शांति थी। सान्वी उसका हाथ थामे बैठी थी, मानो उसकी हथेली में वो हर लम्हा समेट लेना चाहती हो, जो कभी अधूरा छूट गया था।
"तुम जानते हो अरव..." उसने धीमे से कहा, "मैं आज भी वही लड़की हूँ, जो तुम्हारे साथ बारिश में भीगकर हँसी थी, जो तुम्हारी बाइक की पीछे बैठकर खुद को पूरी दुनिया से अलग समझती थी। लेकिन जब तुम चले गए... तो सिर्फ एक लड़की नहीं, एक दुनिया ही टूट गई थी।"
उसकी आँखों में आंसू भर आए। लेकिन फिर उसने खुद को संभाला, और अरव के पास झुककर उसके कान में फुसफुसाई —
"अब और नहीं... अब मैं तुम्हें खोने नहीं दूंगी।"
वो उठी, और एक डायरी खोलकर बैठ गई — वही नीली रंग की छोटी सी डायरी, जिसमें उसने उन दिनों की बातें लिखी थीं जब अरव उसके साथ नहीं था।
भाग 2:
"6 जुलाई...
आज बारिश आई थी।
बिना तुम्हारे...
पर मैं फिर भी उसी जगह गई जहाँ हम पहली बार मिले थे।
वहाँ अब भी तुम्हारी हँसी गूंजती है, तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ...
पर तुम नहीं आते।"
सान्वी के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई। वो जानती थी, ये शब्द अरव के पास पहुँच रहे हैं — किसी और दुनिया में सही, पर उस रिश्ते की डोर अभी भी जुड़ी है।
इतने में कमरे का दरवाज़ा खुला। डॉक्टर और एक नर्स भीतर आए।
"अब उन्हें रिस्पॉन्स देना शुरू हो गया है," डॉक्टर बोले, "कभी-कभी आवाज़ें, परिचित एहसास या भावनाएँ बहुत बड़ा असर डालती हैं।"
सान्वी की आँखें चमक उठीं, "मतलब...?"
"मतलब... वो लौट सकता है," डॉक्टर ने धीरे से सिर हिलाया।
वो एक पल को कुछ बोल नहीं सकी। फिर उसने अरव का हाथ और कसकर पकड़ लिया।
"तुम सुन रहे हो न, अरव? तुम्हारा वादा अधूरा है... और हमारी कहानी भी।"
भाग 3:
अगले कुछ दिन अस्पताल के भीतर किसी युद्धभूमि की तरह थे — भावनाओं की, यादों की, उम्मीदों की। सान्वी हर दिन अरव को वो सब सुनाती, जो वो अब तक उससे कहना भूल गई थी।
"मुझे याद है, जब तुम पहली बार मेरे लिए गुलाब लाए थे, वो गलती से प्लास्टिक का था। पर मैंने फिर भी उसे सालों तक संभालकर रखा। क्योंकि वो तुम्हारा था।"
"तुम्हारे जाने के बाद भी मैंने खुद को तुम्हारे नाम की बारिश में भिगोया — ताकि हर बूँद मुझे तुम्हारी बाँहों की याद दिला सके।"
और फिर... एक सुबह...
उसने देखा कि अरव की उंगलियाँ हिली थीं।
"अरव!" सान्वी चीख पड़ी। डॉक्टर दौड़ते आए। नर्स ने पलकों की प्रतिक्रिया देखी।
"उसने रेस्पॉन्ड किया है... वो जाग रहा है!"
सान्वी की आँखों से आँसू थम ही नहीं रहे थे। जैसे किसी तपते रेगिस्तान में बारिश गिर गई हो।
अरव ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं।
वो धुंधले से चेहरों में एक चेहरा साफ़ देख पा रहा था — सान्वी।
"तुम...?" उसकी आवाज़ धीमी थी, पर भाव स्पष्ट थे।
"हाँ... मैं," सान्वी ने उसका माथा चूमा, "तेरे नाम की बारिश बनकर लौटी हूँ..."
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भाग 4:
दो सप्ताह बाद...
अरव अब लगभग ठीक हो चुका था। उसकी याददाश्त भी लौट रही थी — धीरे-धीरे, पर स्थायी रूप से।
"सान्वी," उसने एक शाम अस्पताल के बगीचे में बैठे हुए कहा, "मैंने सपना देखा था... तुम मुझे पुकार रही थी... और बारिश हो रही थी।"
सान्वी मुस्कुराई, "वो सपना नहीं था... मैं सच में तुम्हें बुला रही थी। हर रोज़। हर बूँद के साथ।"
अरव ने उसका हाथ थाम लिया। "क्या हम फिर से... शुरुआत कर सकते हैं?"
सान्वी की आँखों में आँसू थे, लेकिन इस बार वो आंसू अधूरेपन के नहीं, बल्कि पूर्णता के थे।
"शुरुआत...? नहीं अरव... ये एक नई किताब होगी। जिसमें तुम्हारा नाम पहले पन्ने पर होगा, और आखिरी पंक्ति तक सिर्फ हमारा साथ।"
"तेरे नाम की बारिश अब हमेशा के लिए है..."
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[अध्याय 14 समाप्त]
कहानी अब तक: आरव की याददाश्त धीरे-धीरे लौट रही है, और सान्वी का प्यार उसकी रूह में उतरता जा रहा है। लेकिन अभी भी वो कशिश, वो अपनापन—एक परछाईं बनकर सामने खड़ा है। क्या इस बारिश में कोई ऐसा पल आएगा जो सब कुछ बदल देगा?
भाग 1 में, सान्वी आरव के लिए अपने प्यार का इजहार करती है और आरव अपनी याददाश्त वापस लाने की कोशिश कर रहा है। भाग 2 में, सान्वी अपनी डायरी से आरव के साथ बिताए पलों को पढ़ती है और डॉक्टर बताते है कि आरव रिस्पॉन्स दे रहा है। भाग 3 में, सान्वी अरव को वो सब सुनाती है, जो वो अब तक उससे कहना भूल गई थी और आरव धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलता है। भाग 4 में, आरव और सान्वी फिर से शुरुआत करने की बात करते हैं और हमेशा साथ रहने का वादा करते हैं।
Now Next
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Phuket की white sand beaches, golden-orange sunset, romance और hero-centric emotional twist के साथ।
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Chapter 15 – सुनहरी शाम का इकरार
समुद्र की लहरें बड़े सुकून से किनारे को छू रही थीं। Phuket की सफ़ेद रेत अपने अंदर एक ठंडक समेटे हुए थी, और उस पर पड़ती सुनहरी धूप उसे मानो सोने की चादर ओढ़ा रही थी। सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था, और उसका सुनहरा-नारंगी रंग पूरे आसमान में फैलकर समुद्र के पानी को भी अपने रंग में रंग चुका था। हवा में हल्की-हल्की नमी थी, जिसमें नमक की खुशबू और पास के फ्रेंगिपानी फूलों की महक घुली हुई थी।
आरव ने अपनी जेब में हाथ डाला, वहाँ वो छोटा सा सी-शेल था जो उसने दोपहर में चुपके से उठाया था। उसके लिए ये बस एक सी-शेल नहीं था, ये उस शाम का एक हिस्सा था जिसे वो हमेशा अपने साथ रखना चाहता था।
मेहर कुछ दूर खड़ी थी, उसकी नज़रें उस सुनहरी लहरों पर थीं, लेकिन दिल कहीं और था—शायद उसी जगह, जहाँ आरव खड़ा था।
आरव ने धीमे कदमों से उसकी ओर बढ़ते हुए कहा,
"अगर मैं कहूँ कि ये जगह सिर्फ़ खूबसूरत नहीं, बल्कि जादुई है, तो तुम मानोगी?"
मेहर मुस्कुराई, बिना उसकी तरफ देखे बोली—
"जगहें तब जादुई लगती हैं, जब हमारे साथ कोई सही इंसान हो…"
आरव उसके पास आकर रुक गया। लहरें उनके पैरों को छूकर लौट रही थीं।
"तो क्या मैं सही इंसान हूँ?" उसने धीरे से पूछा।
मेहर ने उसकी आँखों में झाँका—वो आँखें जिनमें ढलते सूरज की सुनहरी छवि चमक रही थी।
"तुम सही हो… लेकिन ये समझने में मुझे वक़्त लगा," उसने हल्की आवाज़ में कहा।
आरव ने जेब से सी-शेल निकाला और उसकी हथेली में रख दिया।
"ये याद रखना, जब भी तुम्हें लगे कि ज़िंदगी की लहरें तुम्हें बहा रही हैं… तो ये सी-शेल तुम्हें वापस किनारे पर ले आएगा—मेरे पास।"
मेहर की आँखें भर आईं। उसने शरारत भरे अंदाज़ में कहा—
"तुम्हें पता है, ये सब सुनकर मैं बहुत इमोशनल हो सकती हूँ…"
आरव ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा—
"तो हो जाओ… आज की शाम का तो यही मक़सद है।"
दूर आसमान में एक सीगल उड़ता हुआ दिखा, और हवा थोड़ी ठंडी हो चली। मेहर ने अनजाने में अपने कंधे पर आरव का हाथ महसूस किया, और वो स्पर्श उसे अंदर तक सुकून दे गया।
वो दोनों रेत पर बैठ गए। आसमान अब गहरे नारंगी से बैंगनी में बदल रहा था, और समुद्र के पानी में एक चमक सी तैर रही थी।
मेहर ने धीमे से कहा—
"आरव, तुम जानते हो… जब तुम मेरे साथ नहीं होते, तो सब अधूरा लगता है। ये जगह, ये नज़ारे, ये लहरें—सब जैसे अपनी कहानी अधूरी छोड़ देते हैं।"
आरव ने उसकी बात काटी, "और मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी कहानी कभी अधूरी ना रहे।"
उसने अपनी बैग से एक छोटा सा बॉक्स निकाला। मेहर ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।
"ये क्या है?"
आरव ने बॉक्स खोला—अंदर एक नाजुक सी सिल्वर चेन थी, जिसमें एक छोटी सी पर्ल लगी थी, जो हल्की रोशनी में चमक रही थी।
"ये मोती इस बीच से है… और ये तुम्हें हमेशा याद दिलाएगा कि मैं तुम्हारी ज़िंदगी के हर लम्हे में रहना चाहता हूँ।"
मेहर ने बिना कुछ कहे उसका हाथ पकड़ लिया। उनकी उँगलियाँ आपस में ऐसे जुड़ गईं, जैसे कभी अलग ना हों।
समुद्र की लहरों ने तालियाँ बजाईं, जैसे उनकी इस खामोश मोहब्बत को आशीर्वाद दे रही हों।
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