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लव इज लव (एक अनोखी शादी)

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Sarvam

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शादी के लिए मंडप सजा हुआ था । दूल्हा मंडप में इंतजार कर रहा था । लेकिन अचानक ही एक खबर से हर तरफ हलचल होने होने लगी। दुल्हन शादी से भाग चुकी थी। दूल्हे के दोस्त ने आकर उसके कान में कुछ बताया । शायद उसे दुल्हन की कोई खबर मिली थी । दूल्हा अपनी जगह से...

Total Chapters (62)

Page 1 of 4

  • 1. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 1

    Words: 3249

    Estimated Reading Time: 20 min

    पंचवटी सिर्फ बस्ती नहीं शहर में हो रहे गुनाहों की शुरुवात होती थी इस जगह से । यहाँ जितने भी घर बसे हुए थे उनमे से हर घर का एक शक्स तो अलग अलग छोटी मोटी गैंग का हिस्सा था ही । वो सब गैंग्स एक बड़ी गैंग के अंडर काम करती थी “देवा गैंग”

    आर्म्स ट्रेफिकिंग , मनी माफिया , सैंड माफिया जैसे ग्रुप देवा गैंग के अंडर काम करते थे । फिर भी किसी की हिम्मत नहीं थे उनके खिलाफ सबूत जुटाकर कार्यवाही कर सके ।

    देवा गैंग देवराज गायकवाड के नाम से शुरू हुई थी और आज उस गैंग को देवा का बेटा दत्ता संभाल रहा था । देवा ने अपने कदम राजनीती की तरफ घुमा लिए थे ।

    देवा की तरह शांत नहीं था दत्ता । पावर का नशा काफी कम उम्र से लग चुका था उसे । ऊपर से उसका गुस्सा जिससे शहर ही नहीं उसका खुदका परिवार भी डरता था । बस एक शख्स को छोड़कर । हर कोई जानता था ये बात की वो अकेला इन्सान दत्ता के गुस्से से बचा हुआ है ।

    अट्ठाईस साल का दत्ता नाशिक का नया डॉन कहलाता था । उसका नाम हर किसी की जबान पर होता था । लेकिन देखने वाले लोग काफी कम थे ।

    *******

    दोपहर का समय था जब बस्ती के अंदर खड़ी दो मंजिला ईमारत के सामने एक कालि गाड़ी आकर रुक गयी । गाड़ी का दरवाजा खुला और उन्नीस साल का एक लड़का बाहर उतर आया । पाच फुट पाच इंच की हाइट, गोरा रंग , माथे पर बिखरे हुए हलके सुनहरे बाल , सफ़ेद रंग की टीशर्ट पर उसने डेनिम की जेकेट पहनी हुई थी ।

    उसने ईमारत के निचले हिस्से में बने बड़े से गेरेज को देखा और उसी दिशा में बढ़ गया । अंदर काफी सारी गाड़िया खड़ी थी । वहा चार से पाच लड़के एक जैसी यूनिफॉर्म पहने काम कर रहे थे । दिखने में तो काफी शरीफ लेकिन पुलिस की नजरो में वो सारे मुजरिम थे ।

    इसी बीच एक लड़के ने दुसरे लड़के की पीठ पर अपना हाथ मार दिया तो दुसरे लड़के ने गुस्से में उसकी तरफ देखा । क्युकी पहले वाले लडके के हाथो पर ऑइल लगा हुआ था ।

    दुसरे लड़के ने अपनी पीठ की तरफ झाकने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा “अरे मंदबुद्धि , एक काम तो सरळ किया कर ? अब इस शर्ट को तू ही धोकर देगा ।“

    पहले वाले लड़के ने उसके कंधे पर दुबारा मार दिया “उधर देख ।“

    दुसरे लड़के ने अपने गुस्से पर काबू किया और उस तरफ पलट गया जहा देखने के लिए पहले वाले लड़के ने कहा था ।

    एकदम से उसके मुह से निकला “मानव ?”

    मानव ने मुस्कुरा कर हाथ हिला दिया "गाइज मैने सबको इन्विटेशन दिया था ।"

    मैक्स ने अपना गला खराश कर पास खड़े लड़के से धीमी आवाज में कहा “ मुह क्या देख रहा है मेरा ? जाकर बता उपर ।“

    उस लड़के ने अपना सर हिलाया । जहा मैक्स मानव की तरफ बढा गया तो वही वो लड़का उपर जाने वाली सीडियों की तरफ भाग गया ।

    वो लड़का सीडिया चढ़कर उपर गया जो बालकनी में पोहचती थी । बाहर ही कुर्सी डालकर बैठा हुआ वेधा उसे नजर आया । वेधा इस घर और गेरेज का मालिक होने के साथ साथ दत्ता का करीबी दोस्त भी था । सुबह की धुप में वो सुस्ता रहा था जब कदमो की तेज आवाज सुनकर उसने आंखे खोली ।

    “क्या हुआ छोट्या ? कुत्ता पड गया क्या पीछे ?” वेधा ने कहा ।

    वो लड़का हापते हुए बोला “वो साला ,,, आया है ।“

    वेधा ने आंखे छोटी कर ली "कौन साला आ गया यहां? और खुद नही संभाल सकते जो बताने के लिए आ गए ?"

    छोट्या ने चिड़कड़ सर हिलाया "दत्ता भाऊ का साला आया है ।"

    वेधा ने कुछ पल उसकी तरफ देखा । फिर अचानक ही सर हिला दिया । छोटया को जाने का इशारा कर वो रेलिंग पर हाथ रख निचे झाका । मानव और मैक्स साथ खड़े उसे साफ दिख रहे थे ।

    वेधा पलट कर तुरंत ही घर में चला गया । एक बंद दरवाजे के बाहर आके वो रुका । जो घर के पिछले हिस्से में बना आखिरी कमरा था । वेधा ने जैसे ही दरवाजा खोला तो किसी की तेज चीख उसके कानो से टकरा गयी । अच्छा हुआ उसने इस कमरे को साउंड प्रूफ बना लिया वरना पड़ोसी रोज आकर उसे चार बाते सुना जाते ।

    वेधा ने कान में ऊँगली डालकर कान को बंद किया “दत्ता !”

    वेधा ने जोर से आवाज दी थी । जिसे सुनकर कमरे में एक बंधे हुए आदमी के अलावा मोजूद दो लड़के उसकी तरफ देखने लगे ।

    वेधा ने कान से ऊँगली निकाल कर देखा बंधे हुए आदमी के ठीक सामने कुर्सी डाले बैठा था दत्ता । उसके हाथ में चिमटा था जिससे उस बंधे आदमी के दात उसने उखाड़ दिए थे । आदमी के मुह से खून निकल रहा था ।

    दत्ता ने सर्द आवाज में कहा “क्या हुआ ?”

    वेधा द्वारा रोके जाना उसे जरा भी पसंद नहीं आया था

    वेधा ने कहा “ आज हल्दी है तेरी और तू यहां खून से होली खेल रहा है । उठ जा जल्दी । तेरा साला आया है नीचे । कहे तो भेज दू उसे तेरे पास यहाँ ?”

    दत्ता ने ठंडी साँस छोड़ी । हाथ में पकड़ा हुआ चिमटा उसने पीछे खड़े लड़के की तरफ बढा दिया “अभी इसके सारे दांत और उसके बाद नाख़ून भी उखाड़ने है । “

    वो दत्ता का खास आदमी एकलव्य था । उसने हा में सर हिलाया तो बंधा हुआ आदमी कसमसाने लगा । डर के कारन वो दत्ता के सामने गिडगिड़ा रहा था ।

    दत्ता ने कुटिल मुस्कान के साथ उस आदमी का गाल थपथपा दिया “जब तू धोका देने का सोचकर मेरे दुश्मन के हाथों बिक गया तभी सोच लेना चाहिए था तुझे ये समय आयेगा ही आयेगा । जानता नहीं है क्या मुझे ?”

    “गलती हो गयी भाऊ । बस एक बार छोड़ दो । मै वादा करता हु फिर से ये नहीं होगा । “ वो आदमी दर्द से कराहते हुए बोला । उसकी आँखों में आंसू थे जिसकी वजह थी की उसे अपने सामने साक्षात मौत नजर आ रही थी ।

    “जो कुछ नहीं करता वो गलती करता है और दत्ता की डिक्शनरी में धोखे की कोई माफ़ी नहीं । “ दत्ता ने कहकर उठते हुए एकलव्य को इशारा कर दिया ।

    दत्ता और वेधा एक साथ उस कमरे से बाहर निकल कर लिविंग रूम में पोहचे । दत्ता का सफ़ेद कुरता खून से लाल हो चूका था । वो अपने अवतार को देख रहा था जब वेधा ने दुसरे कमरे की तरफ बढ़ते हुए कहा “तू नहा ले । मै कपडे निकाल कर रखता हु ।“

    दत्ता बिना कुछ बोले नहाने चला गया । इस घर के कोने कोने से वो वाकिफ था । जब दत्ता फोन ना उठाए और घर पर भी ना हो तो इसी जगह मिल जाता था वो ।

    कुछ ही देर बाद तैयार हुआ दत्ता अपने कुरते की बाजु समेटता हुआ सीडिया उतर कर गेरेज में आया । मानव वही एक कुर्सी पर बैठा था ।

    दत्ता ने उसके पीछे जाकर कुर्सी पर हाथ रख झुकते हुए कहा “यहाँ क्यों आए माऊ ?”

    सारे लड़के जो अबतक मानव के साथ बेठे थे वो जल्दी से उठ कर अपने अपने काम को देखने लगे । दत्ता की एक घूर ही काफी थी उनके लिए ।

    मानव ने अपनी गर्दन पीछे घुमाई “आप भूल गए हो क्या ? आपकी हल्दी है आज । सब लोग ढूंढ ढूंढकर परेशान हो गए आपको । ऊपर से फोन भी बंद । ऐसा क्या जरूरी काम है डीजी जो शादी के बाद नही हो सकता ?"

    दत्ता ने चुपचाप उसकी डाट सुन ली "मै भुला नहीं था । बस निकल रहा था यहां से ।"

    "हा! बिलकुल सुबह से निकल रहा है वो यहां से ?" वेधा ने व्यंग से कहा ।

    "गप रे!" दत्ता ने उसे घूर कर चुप करा दिया ।

    वही मानव ने सामने हाथ दिखा कर उसे चलने का इशारा किया । दत्ता ठंडी सांस छोड़ते हुए गाड़ी की तरफ बढ़ते हुए बोला "हल्दी है मेरी भूल मत जाना । सब लोग शाम तक सामने चाहिए मुझे ।"

    मानव ने भी सहमति से सर हिलाकर वेधा की तरफ देखा । वेधा ने कहा वो आ जायेगा ।

    शाम का समय था जब उस बड़े से मैरिज हॉल में हल्दी की रस्म शुरू थी । मेहमान फिलहाल सिर्फ दूल्हे और दुल्हन के करीबी रिश्तेदार थे ।

    दत्ता का मुंह बना हुआ था क्युकी उसकी दादी चंद्रकला पास खड़ी होकर हर किसी को आकर हल्दी लगाने को बोल रही थी ताकि दत्ता उन्हे भगा ना दे ।

    दूल्हे की बची हुई हल्दी दुल्हन के पास भेजने के चंद्रकला किसी को ढूंढने लगी । तभी दुल्हन की मां दर्शना सामने आ गई ।

    हल्दी की थाली लेकर दर्शना जा ही रही थी की अचानक ही वो किसी से टकरा गई ।

    "आह मम्मी! ये क्या किया आपने ?" मानव आपने खराब हो चुके कुर्ते को देख बोला ।

    दर्शना ने कहा "कुछ नही होता । हल्दी ही तो है माऊं।"

    "हा... हल्दी ही तो है । जो अब लग चुकी है इसलिए हमे इसका सही उपयोग कर लेना चाहिए ।" दर्शना के पीछे से निकल कर अथर्व सामने आया । वो मानव की बुआ का बेटा था ।

    मानव ने उसकी तरफ देखा मानो कह रहा हो क्या उपयोग करना है ? कुर्ता निकाल कर एग्जिबिशन में लगा दे?

    अथर्व बड़ी सी मुस्कान के साथ उसके करीब आया । कुर्ते पर फैली हल्दी को उसने दोनो हाथो से पोछ लिया । मानव ये देख कर खुश हुआ । लेकिन अगले ही पल अथर्व ने अपने हाथो पर हल्दी को मलकर उसे मानव के पूरे चेहरे पर लगा दिया ।

    "देवा ... ये लड़के ।" एक कदम पीछे होकर दर्शना ने कहा और उनकी बगल से निकल कर चली गई । सबकी नजरे उनकी तरफ आ चुकी थी क्यूकी मानव चिल्लाया था ।

    खाने के बाद दूल्हा दुल्हन का एक तरफ फोटो सेशन चल रहा था । मानव की बहन मृदुला वाकई खूबसूरत थी । इसी बीच वेधा अपने हाथ में कुछ पेपर्स पकड़ कर किसी को ढूंढते हुए मानव के सामने आया ।

    "क्या हुआ भाई ?" मानव ने पूछा ।

    "अरे वो वेडिंग ऑर्गेनाइजर्स ने कुछ पेपर्स भेजे है । इस पर साइन चाहिए । तुम करोगे या फिर तुम्हारे पप्पा को ढूंढ लू ?" वेधा ने भौंहे उचका दी ।

    मानव ने आसपास देखा । उसके पिता अंकुश जाधव इस समय कही नजर नहीं आ रहे थे । मानव ने सर हिलाकर पेपर्स लिए तो वेधा ने फौरन आखिरी पन्ना निकाल कर उसकी तरफ पेन बढ़ा दिया । मानव ने साइन कर दिए ।

    वेधा ने पेपर्स लेकर कहा "मै लौटा कर आया ये उन्हे ।"

    इतना बोलकर वो चला गया ।

    ******

    अगले दिन , शाम ढल चुकी थी और हल्के अंधेरे में वो मैरिज हॉल काफी खूबसूरत लग रहा था । मेहमान आना शुरू हो चुके थे । इसी बीच मैक्स मानव को पकड़ कर एक कमरे के बाहर ले आया ।

    दत्ता के सारे दोस्त वहा खड़े थे । तभी वेधा ने कहा "जाओ , उसे किसी की मदत चाहिए ।"

    "तो आप लोग क्यू नही गए ?" मानव हैरान होकर बोला । उसकी बहन की शादी थी । उसे बाकी चीजे भी देखनी थी ।

    वेधा ने अफसोस के साथ कहा "उसे सिर्फ तुम्हारी मदत चाहिए ।"

    मानव ने आगे कुछ नहीं कहा । दरवाजा खोलकर वो अंदर चला गया । मरून कलर की शेरवानी पहने दत्ता आइने के सामने खड़ा था जब मानव ने कहा "क्या हुआ जीजू ?"

    दत्ता पलट गया "कभी जीजू ? कभी डीजी? एक बारी डिसाइड करलो जरा ।"

    "मम्मी इतनी बार डाट चुकी है कल से की अब याद रखना पड़ेगा... जीजू !", मानव हल्की मुस्कान के साथ बोलकर दत्ता के करीब खड़ा हुआ "अच्छे लग रहे हो ।"

    जो तस्वीर खींचते समय भी ना आ सकी ऐसी मुस्कान दत्ता के चेहरे पर आ गई । फिर उसने अपनी गर्दन ऊपर उठाकर कहा "ये बटन लग नही रहा ।"

    मानव ने सर हिला दिया और उसे लगाना चाहा लेकिन उससे भी नही हो पा रहा था । उसने एकदम से कहा "लगाना जरूरी है क्या ? रहने दो ना खुला । हवा लगती रहेगी ।"

    "पूरा निकाल देता हु फिर ।" दत्ता ने कहा तो मानव का मुंह बन गया । चुपचाप वो बटन लगाने की कोशिश करने लगा । लगभग पाच मिनट का समय गया लेकिन वो सफल रहा ।

    "इसे खोलोगे कैसे ?" मानव ने कहा ।

    "तुम्हे साथ ले जाऊंगा ।" कहते हुए दत्ता आइने की तरफ पलट गया ।

    मानव ने कहा "तो फिर मैं जाऊ?"

    "हा ! जाइए , आपके बिना सारे काम रुके पड़े होंगे ।" दत्ता ने परफ्यूम उठाकर खुद पर छिड़क दिया । मानव ने गहरी सांस भरी । दत्ता के करीब हमेशा वो खुशबू उसे मिल जाती थी ।

    आइने में देख दत्ता दुबारा मुस्कुराया और एकदम से मानव की तरफ पलट कर उस पर भी परफ्यूम छिड़का । मानव ने खुदको सूंघना शुरू किया और ऐसा करते हुए ही वो कमरे से चला गया ।

    शादी का मुहूर्त निकल रहा था । सब लोग घड़ी की तरफ देख कर आपस में बाते कर रहे थे । कबसे दर्शना मृदुला को लाने गई थी लेकिन अब तक उसका कोई पता नहीं था ।

    दत्ता मंडप में बैठा हुआ था । उसने दूसरी तरफ देखा जहा उसके चाचा की बेटी युतिका खड़ी थी । दत्ता ने उसे जाने का इशारा किया तो यूतिका फौरन सर हिलाकर दुल्हन के कमरे की तरफ निकल गई ।

    कुछ देर बाद ही हर तरफ हल्ला मच गया की दुल्हन भाग चुकी है । मानव के कदम लड़खड़ा गए । वो जल्दी से अपनी मां के पास पहुंचा जो थकी हुई सी चाल चलकर आ रही थी । दर्शना के हाथ में चिट्ठी देख मानव ने फौरन उसे लिया और पढ़ने लगा । अंकुश भी उसके साथ आकर खड़े हुए । उन्होंने जब चिट्ठी देखी तो अपना सर ही पकड़ लिया ।

    "मम्मी पापा , मुझे माफ कर दीजिए । लेकिन मैं ये समझौते की शादी नही कर सकती । दत्ता मेरी पसंद नही है और ना ही कभी हो सकता है ।

    जिसे मैं पसंद करती हु उसके साथ यहां से दूर जा रही हु । मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना ।

    मृदुला !"

    तभी दत्ता की बड़ी बहन अस्मिता ने वो चिट्ठी छीन ली । उसे एक बार पढ़ने के बाद अस्मिता ने मोड़कर गुस्से में दूसरी तरफ फेका और अपना पेट पकड़ कर दत्ता के सामने चली आई । वो गर्भवती थी । उसने सभी के सामने तेज आवाज में कहा "अरे भाग गई वो बेशरम । शादी नही करनी थी तो पहले ही ना बोल देती । इतना ताम झाम करवाने की क्या जरूरत थी ? अक्खे शहर के सामने हमारे मुंह पर कालिख पोथ दी । बैठा क्या है दत्ता , उठ जा वहा से ।"

    दत्ता की नजरे सामने जल रहे अग्नि कुंड पर थी ।

    इसी बीच वेधा ने आकर उसके कान में कुछ कहा । शायद उसे कोई खबर मिली थी ।

    सभी मेहमानों के बीच से निकल कर दत्ता गुस्से में बाहर चल पड़ा । उसकी आंखे दहक रही थी । शेरवानी के ऊपरी बटन को उसने खोलना चाहा लेकिन जब वो नही खुला तो दत्ता ने उसे तोड़ दिया । वो गाड़ी में बैठने ही वाला था की किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया ।

    दत्ता गुस्से में उसकी तरफ पलटा। उसके सामने मानव खड़ा था ।

    "जीजू !" इससे आगे वो कुछ कहता उससे पहले ही दत्ता ने दात पीसकर कहा "अगर तुम्हारी बहन ना मिली तो शादी के लिए मंडप में तुम बैठोगे मेरे साथ । शहर के सामने वो दत्ता गायकवाड की नाक कटा कर भाग गई । उसकी सजा तुम्हारे पूरे परिवार को मिलेगी ।"

    जब से बोलना भी शुरू नही किया था तब से मानव दत्ता को जानता था । लेकिन आज तक कभी उसने गुस्से में तो क्या उसके सामने तेज आवाज में बात भी नही की थी ।

    मानव उसे देख कर डर गया और अपने कदम पीछे लेकर कहा "दीदी को ,,, कुछ मत करना ।"

    दत्ता ने ऊपर देखना शुरू किया । उसके कदम एक जगह रुक नही रहे थे । वेधा ने तुरंत ही मानव को पीछे खींच लिया "कुछ मत बोलो । वो अभी गुस्से में है ।"

    मानव की आंखो से टपटप आंसू गिरने लगे । उसने फौरन अपना सर झुका लिया । वही दत्ता गाड़ी में बैठा और तेज आवाज में उसने दरवाजा बंद कर लिया । पल भर में उसकी गाड़ी मानव को नजरो से ओझल हो गई ।

    एक सुनसान सड़क पर एक गाड़ी पूरी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी । ड्राइविंग सीट पर एक लड़का था तो वही पैसेंजर सीट पर मृदुला बैठी थी । बार बार ना चाहते हुए भी उसकी नजरे गाड़ी के शीशे पर रुक पीछे खाली सड़क को देखने लगती ।

    अचानक ही सामने से एक गाड़ी की रोशनी उन पर पड़ी । मृदुला ने लड़के के हाथ पर अपना हाथ रखा "नक्ष !"

    मजबूरन नक्ष को गाड़ी रोकनी पड़ी । क्युकी सामने तीन गाड़िया पूरा रास्ता रोक खड़ी थी बीच वाली गाड़ी के बोनेट पर कोई बैठा हुआ था ।

    मृदुला का गला सुख गया जब उनकी गाड़ी के हैडलाइट की रोशनी उस शख्स पर पड़ी ।

    हाथ में गन लेकर बैठा हुआ था दत्ता । मृदुला ने नक्ष के हाथ पर मारना शुरू कर दिया "गाड़ी घुमाओ, जल्दी गाड़ी घुमाओ ।"

    "श्श ...! कुछ नही होगा ।" नक्ष ने कहा और मृदुला के रोकने के बावजूद वो गाड़ी से उतर गया ।

    मजबूरन मृदुला को भी बाहर आना पड़ गया । जैसे ही वो बाहर आए दत्ता के लोगो ने उन्हें घेर लिया ।

    दत्ता ने सीधे नक्ष की तरफ देखा "दोस्त बनकर आते है और पीठ में छुरा घोप चले जाते है । एक बार के लिए धोखा दे देता । दोस्ती के नाम पर माफ कर देता मै । लेकिन शादी के मंडप से तूने उस लड़की को भगाया जिससे मेरी शादी हो रही थी ?"

    दत्ता की आवाज मौत सी ठंडी थी । नक्ष को अपनी रीड की हड्डी में सिहरन महसूस होने लगी ।

    दत्ता एकदम नीचे उतर गया तो नक्ष और मृदुला दोनो ही एक एक कदम पीछे हट गए । दत्ता ने नक्ष को निशाना बनाया "पहले कौन जायेगा ?"

    "दत्ता सुनो !" मृदुला ने कहना चाहा ।

    "मुंह बंद !" दत्ता ने उसे घूर कर चुप करा दिया ।

    फिर उसने कहा "वो दोस्त ही क्या जो दूसरे दोस्त के लिए जान की बाजी ना लगा दे ? एक काम करते है । तुझे मार कर इससे शादी करूंगा । आखिर मेरी भी कुछ इज्जत है ना ? कल सुबह पेपर की हेडलाइन नही बनना मुझे ।"

    नक्ष में माथे पर ठंडा पसीना उभर आया । इसी बीच वेधा ने दत्ता के कंधे पर हाथ रखा "इतना आगे बढ़ने की जरूरत नहीं है दत्ता । दोस्त है अपना ।"

    "तुझे भी उसके आगे खड़ा कर दू?" दत्ता ने कहा तो वेधा चुप हो गया ।

    मृदुला एकदम से नक्ष के सामने आकर खड़ी हो गई "अगर किसी को मरना चाहिए तो वो मै हु । नक्ष को जाने दो ।"

    "तेरी मर्जी ।" दत्ता ने हल्की सी गर्दन टेढ़ी की और अगले ही पल गोली चला दी । उस शांत जगह पर दो चीखे गुंजकर शांत पड़ गई ।

    कहानी पसंद आए तो फॉलो करना ना भूले। आगे जानने के लिए कहानी के साथ जुड़े रहे । समीक्षा के साथ साथ स्टीकर देना और फॉलो करना बिलकुल भी ना भूले ।

  • 2. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 2

    Words: 1952

    Estimated Reading Time: 12 min

    चंद्रकला गायकवाड और मैथिली जाधव अपने जमाने की पक्की सहेलियां थी । शादी के बाद भी उनकी दोस्ती पहले की तरह ही बनी रही । जिसका नतीजा था दोनो परिवार एक दूसरे से सालो से जुड़े हुए थे ।
    चंद्रकला के दो बेटे है , देवराज और आदिनाथ । देवराज की पत्नी हेतवी और दो बच्चे अस्मिता और दत्ता । अस्मिता की शादी हो चुकी है । अपने पति प्रणय के साथ वो गायकवाड़ निवास में ही रहती है ।
    वही आदिनाथ की पत्नी पवित्रा और उनकी दो जुड़वा बेटियां है , युतिका और अविका ।
    दूसरी तरफ मैथिली के दो बच्चे है, बेटा अंकुश और बेटी अनिता । अंकुश की पत्नी दर्शना और उनके दो बच्चे मानव और मृदुला ।
    अनिता के भी दो बेटे है , अथर्व और उज्वल । उज्वल अपनी बाइस साल की उम्र से देश के बाहर रह रहा था ।
    एक साल पहले ही मैथिली का स्वर्गवास हो गया। उनकी आखिरी इच्छा थी दोनो परिवार में दोस्ती से गहरा रिश्ता बने । जब वो अपने आखिरी समय में थी तभी दत्ता और मृदुला की सगाई उनकी आंखों के सामने कर दी गई । हालाकि दोनो से ही उनकी हामी नहीं ली गई ।
    चंद्रकला ने अपनी सहेली की आखिरी इच्छा का मान रखते हुए पहले श्राद्ध के फौरन बाद शादी का मुहूर्त निकाल लिया ।

    उस मैरिज हॉल के अंदर इस समय मौत सा सन्नाटा छाया हुआ था । कोई भी इंसान बाहर नही जा पाया क्युकी एकलव्य मुख्य दरवाजे पर ही खड़ा था । दत्ता का ऐसे चले जाना इस बात का सबूत था आज किसी भी हालत में शादी होकर ही रहनी थी । इसी का कारण था दत्ता के पिता देवराज गायकवाड़ आराम से हाथ में ज्यूस का ग्लास पकड़े उसे पिए जा रहे थे ।
    वही मानव परेशानी में बाहर टहल रहा था । उसकी आंखे रोने के कारण लाल हो चुकी थी । अपनी बहन मृदुला के अलावा वो वेधा को काफी बार फोन कर चुका था । मृदुला का फोन तो शुरू से बंद ही था लेकिन अब वेधा का भी बंद हो गया । मानव ने अपना सर पकड़ लिया । हालाकि दत्ता ने कभी उस पर अपना गुस्सा दिखाया नही था , लेकिन इसका ये मतलब नही मानव को पता ना हो दत्ता बाकी सबके लिए कैसा था । अपना खानदान उसके लिए प्रथम स्थान पर आता था ऐसे में जो दत्ता ने कहा वो करने के अलावा जो नही कहा वो भी कर सकता था ।
    इसी बीच उसके कानो में कुछ गाड़ियों की आवाज सुनाई पड़ने लगी । मानव की धड़कने तेज हो गई । और अगले ही पल उसके ठीक सामने दत्ता की गाड़ी आकर रूकी । किसी के बाहर आने का मानव इंतजार करने लगा । दरवाजा खुला और मानव ने अपने कुर्ते को मुट्ठियों में भींच लिया । दत्ता के चेहरे पर सर्द भाव थे । उसके हाथ और कुर्ते पर खून लगा हुआ था । मानव के कदम लड़खड़ाने लगे जैसे उनमें जान ही ना बची हो ।
    इसी बीच दत्ता ने आकर उसका हाथ पकड़ लिया और सर्द आवाज में कहा "चलो , शादी करते है । तुम्हारी बहन तो हाथ ना लगी ।"
    वेधा जो दत्ता के पीछे ही बाहर आया था उसने हैरानी से दत्ता को देख अपना गला तर कर लिया । ये लड़का झूठ बोलने में माहिर था ।
    दत्ता की बात कानो में पड़ने के लिए मानव होश में भी तो होना चाहिए था । उसकी नजरे उस खून पर अटक गई जो मृदुला का होने के चांसेस कही ज्यादा थे । दत्ता ने मानव को खींचा तो किसी बेजान लाश की तरह मानव उसके साथ चला जाने लगा ।
    दत्ता को लौटा देख हॉल में फुसफुसाहट होना शुरू हो गई । इसी बीच सबके मुंह खुले रह गए जब दत्ता शादी के मंडप में मानव को अपने साथ लेकर बैठा ।
    मानव की मां दर्शना ने मुंह पर हाथ रख लिया तो वही दत्ता की मां हेतवि आंखे बड़ी कर बोली "दत्ता क्या कर रहे हो तुम ?"
    "शादी कर रहा हु आई । आप लोगो की परम इच्छा थी ना जाधव परिवार से रिश्ता जोड़ने की ? आपकी इच्छा का मान रखते हुए उसे पूरा कर रहा हु ।" दत्ता की बोलते हुए नजरे चंद्रकला पर थी जो बाकी सबकी तरह अभी भी सामने चल रही बातो को समझने की कोशिश में थी ।
    हेतवी ने कहा "दत्ता ये कोई मजाक नही है । चलो घर चलते है बेटे ।"
    "मै आपको मजाक के मूड में दिख रहा हु इस समय ?" दत्ता गुस्से में चिल्लाया तो हेतवी चुप होकर एक कदम पीछे हट गई । उसके गुस्से के आगे फिर किसी के कुछ कहने की ताकत नहीं थी ।
    मानव के पिता अंकुश ने आगे आकर कुछ कहना चाहा लेकिन तभी दर्शना को गन प्वाइंट पर लेते हुए एकलव्य बोला "कुछ समय तो आप बिल्कुल शांत रहिए जाधव साहब । वरना आपकी पत्नी हमेशा के लिए शांत हो सकती है ।"
    दत्ता ने सीधे पंडित जी की तरफ देखा जो हैरान परेशान हो चुके थे । दत्ता बोला "ज्यादा समय नही है । जो करना है करो और शादी करवाओ।"
    "लेकिन ,,,,!" पंडित ने कहना चाहा ।
    "तेरा लेकिन , किंतु, परंतु कुछ नही सुनना मुझे ।" दत्ता ने अपनी बंदूक निकाल कर सामने रखी तो पंडित जी के मुंह से मंत्र अपने आप ही निकलना शुरू हो गए ।
    वेधा ने सर हिला दिया । मंगलसूत्र रखे हुए थाम में उसने एक अंगूठी रख दी । जिसे दत्ता ने लेकर मानव की उंगली में पहना दिया । अगले ही मिनट उसने खड़े होकर मानव का बाजू पकड़ उठा लिया । फेरे लेने के लिए उसने अपना कदम आगे बढ़ाना चाहा लेकिन उसी समय मानव की आंखो के आगे अंधेरा छा गया और वो नीचे गिरने लगा ।
    दर्शना ने मुंह पर हाथ रख रोना शुरू कर दिया । लगभग पूरा शहर इस अनोखी को शादी को देख रहा था जिसमे दत्ता मानव को बाहों में लिए फेरे ले रहा था ।


    रात का दूसरा पहर शुरू हो चुका था जब दत्ता मानव को गोद में लिए गायकवाड़ निवास के दरवाजे पर खड़ा था । दत्ता के पीछे जहा उसके सभी दोस्त, जीजा प्रणय और एक बहन युतिका खड़ी थी । तो वही दत्ता का बाकी परिवार घर के अंदर था ।
    हेतवी दरवाजे पर खड़ी देवराज पर गुस्सा जाहिर कर रही थी क्युकी दत्ता से कुछ कहने की उसमे हिम्मत नही थी भले ही वो उसका सगा बेटा हो । चंद्रकला अंदर बैठी हुई थी । अविका को उसकी मां पवित्रा ने ऊपर कमरे में भेज दिया और अब वो युतिका को चुपचाप ऊपर जाने का इशारा कर रही थी । आदिनाथ अपनी मां के पास बैठा उन्हें संभाल रहा था । और अस्मिता अपने मां के चुप होते ही उन्हे गुस्सा करने के लिए बढ़ावा दे रही थी ।
    दत्ता ने सभी बातो से परेशान होकर कहा "आई घरात येऊ की नको मी?" (आई घर में आऊ की नही मै ?")
    "नही ! मेरे घर में कदम नही रखना अगर ये लड़का तेरे साथ होगा ?" हेतवी की लाल आंखे दत्ता की तरफ घूमी ।
    दत्ता ने सर हिलाकर अपने कदम पीछे लेने चाहे । जिसे देख देवराज की आंखे बड़ी हो गई । जिस शख्स ने पूरे समय एक शब्द भी नहीं बोला उसने अब जाकर कहा "हेतवी बस ! उसे अंदर आने दो । बाकी बाते तुम बाद में कर लेना ।"
    "अब तक चुप रहे ना आप ? अब भी चुप रहिए । इस लड़के ने हमेशा अपनी मनमानी की है और एक शब्द से भी मैने उसे रोका या टोका नही । उसी का नतीजा है जो इसने आज ये हरकत कर दी । पूरा शहर और रिश्तेदार थूक कर गए है हमारे मुंह पर । अगर इसे उस परिवार को सबक ही सिखाना था तो कुछ और कर देता ?" हेतवी का गुस्सा एक बार फिर फूट पड़ा । उसकी आंखो से आंसू भी लगातार बह रहे थे ।
    "मेरे ससुराल वाले भी मोजूद थे वहा । क्या इज्जत रह गई उनके सामने ?" अस्मिता ने कहा तो प्रणय ने उसे घूर कर देखा । ससुराल का मुंह भी देखा है उसने शादी के बाद से ?
    "सुन लो मेरी कान खोलकर । अगर ये दोनो साथ इस घर में आए तो मैं यहां से चली जाऊंगी ।" हेतवी ने कहा तो देवराज का जबड़ा कस गया ।
    किसी के आगे कुछ भी कहने से पहले दत्ता मानव को लेकर दरवाजे से ही पलट कर चल पड़ा था ।
    युतिका ने कहा "काकू , जा रहे है भाऊ ।"
    "तो जाने दे ना ? पहली बार थोड़ी ही कही जा रहा है ? सर से भूत उतरेगा तो लौट कर इथेच येनार । तू अंदर जा , छोटो को ज्यादा नाक नही घुसानी चाहिए हर जगह ।" अस्मिता ने उसे डाट लगाई तो यूतिका का सर झुक गया ।
    दत्ता के दोस्त भी पलट कर चले गए । देवराज ने दत्ता के पीछे जाना चाहा तो हेतवी रुंधे गले से बोली "अपने परिवार को छोड़कर आपको चुना था मैंने । पूरा जीवन आपकी मर्जी का खयाल किया है । अगर आज आप मेरे फैसले में मेरे साथ खड़े नही हो पाए तो मेरी जिंदगी यही खत्म हो जाएगी ।"
    देवराज की सांसे तेज हो गई । एक नजर हेतवी को देख वो तेजी से घर के अंदर चले गए । अस्मिता ने फौरन हेतवी को संभाल लिया ।
    बाहर खड़े प्रणय ने युतिका से कहा "अंदर जाओ तुम । मै देख कर आया उसे ।"
    "गरज नाही आपको कही जाने की ।", अस्मिता ने जैसे ही उसकी बात सुनी उसे आंखे दिखा कर कहा ।
    "सगा भाई है वो तेरा अस्मी!" प्रणय ने कहा ।
    "मेरा सगा भाई झंडे गाड़ कर आया है आज । उसकी आरती तो उतारनी होगी ना मुझे ?" अस्मिता ने दात पीसकर कहा ।
    प्रणय ने ठंडी सांस छोड़ी । अस्मिता से बात करना और दीवार पर सर मार लेना एक जैसा था ।


    मानव की आंखे खुली तो वो खुदको हवा में महसूस कर रहा था । उसके कानो वेधा की आवाज पड़ रही जिसने अभी अभी वो कमरा दत्ता के लिए खोल दिया था ।
    वेधा ने लाइट जलाई तो दत्ता मानव को लेकर अंदर चला गया । मानव ने हिलना शुरू कर दिया तब जाकर दत्ता ने देखा उसे होश आ चुका था ।
    दत्ता ने उसे नीचे रखा और कुछ कहने ही वाला था कि एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर पड़ा । वेधा दरवाजे से टकराते हुए बच गया । वही मैक्स और छोटा ने दरवाजे से बाहर अपने कदम पीछे कर लिए ।
    खुदको संभालते हुए वेधा ने बाहर निकलना चाहा की छोटा ने पानी का जग उसके हाथ में थमा दिया "अंदर रख दो ना भाऊ ।"
    "तू ,,, तू जा !" वेधा की जबान साथ नही दे रही थी ।
    "आपका घर है ये ।" मैक्स ने कहा ।
    "आज तो मुझे मेरे ही घर में डर लग रहा है ।" वेधा ने पानी का जग लेकर दरवाजे के पास लगी टेबल पर रखा और फौरन बाहर निकल दरवाजा बाहर से बंद कर लिया ।
    दिल पर हाथ रख वो बोला "लगता है आज पड़ोसी के घर जाकर सोना पड़ेगा । अब ये अंदर लड़े मरे, मै देखने नही आ रहा ।"
    "डर क्यू रहे हो ? मानव को थोड़ी ही कुछ करेंगे भाऊ ?" मैक्स ने कहा ।
    "वो मानव को कुछ नही करेगा । लेकिन मानव पर आया गुस्सा किसी और पर जरूर निकलेगा । मुझे बकरा नही बनना । हटो सामने से ।" उनके बीच से जगह बनाते हुए वेधा बाहर भागा । मैक्स और छोटा ने एक दूसरे को देखा । तभी एक ओर थप्पड़ की आवाज उनके कान में पड़ी ।
    गिरते पड़ते दोनो जान बचाकर बाहर भागे ।



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  • 3. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 3

    Words: 1986

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था जब उस कमरे का तापमान एकदम से गिर चुका था । दत्ता और मानव आमने सामने खड़े थे । मानव के अंदर का गुस्सा फूट पड़ा था । दत्ता को दो थप्पड़ लगाने के बाद उसने एकदम ही दत्ता की कॉलर पकड़ ली । उसे झकझोरते हुए मानव चिल्ला कर बोला "क्या किया आपने मेरी बहन के साथ ? मार दिया ना जैसे बाकी लोगो को मारते हो ?"
    दत्ता ने आंखे बंद कर दूसरी तरफ चेहरा कर लिया । उसकी सांसे तेज हो चली थी । मानव की पकड़ उसकी कॉलर पर कस गई "क्या हुआ ? जवाब दो ना ? जब सब कहते थे तब मुझे विश्वास नहीं हुआ । लेकिन आज अपनी आंखों से आपका असली चेहरा देख लिया । बदला लेना था ना आपको मेरे परिवार से ? तो हमे भी मार दिया होता । ये तमाशा करने की क्या जरूरत थी ? बस इतना ही था आपका बदला या कुछ और करना बाकी है अभी? "
    दत्ता ने गहरी सांस भर ली । फिर मानव की कलाईया पकड़ कर उसकी भीगी आंखो मे देखा "आज तक मेरे मां बाप ने भी कभी उंगली नही उठाई मुझ पर । दो थप्पड़ मार लेने के बाद तुम कॉलर पकड़ रहे हो?
    खैर जिंदगी में हर बारे में अनुभव लेना चाहिए । थोड़ा भारी लगा लेकिन कोई बात नही ।"
    दत्ता ने एक हाथ से अपना गाल सहला दिया । विश्वास करना मुश्किल था इतने गंभीर माहोल में वो गंभीरता से ऐसी बात कह रहा था जिसे सुनकर किसी का भी पारा चढ़ जाए ।
    "आई हेट यू दत्ता गायकवाड़ । शक्ल भी नही देखना चाहता मै आपकी ।" मानव ने उसकी कॉलर को झटके से छोड़ दिया । लेकिन दत्ता ने दुबारा उसकी कलाईयां पकड़ ली ।
    "तू हेट कर , नको करू ... रहना तुम्हे मेरे साथ ही है । शादी जो हुई है हमारी ? वो क्या बोलते है ..... सात जन्म का रिश्ता ! वो जुड़ गया हमारे बीच । जब तक मैं जिंदा हु , या जब तक मुझे तुम याद हो ... मुझसे पीछा नहीं छुड़ा पाओगे ।" दत्ता ने कहा तो उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान थी ।
    मानव अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा । दत्ता ने उसे छोड़ दिया ।
    मानव चेहरा फेर कर खड़ा हो गया "नही मानता मैं इस शादी को ना ही किसी रिश्ते को । दूर रहना मुझसे । आज से हमारे बीच दोस्ती का भी रिश्ता नही । आप अजनबी हो मेरे लिए ।"
    दत्ता ने आंखे घुमा ली । उसे जरा भी फर्क नही पड़ा था मानव की बात से । उसने एक नजर कमरे में डाली "अब सबसे पहले कपड़े और सामान का इंतेजाम करना होगा अगर यहां रहना है । लगता नही है आई जल्दी घर में आने देगी । तू आराम कर मै पहले तो कुछ खाने के लिए मंगाता हु ।"
    मानव ने कोई जवाब नही दिया । आगे बहस बढ़ाकर फायदा भी नही था । क्युकी दत्ता उसकी बातो को गंभीरता से ले ही नही रहा था । बिस्तर पर जाकर उसने खुदको चादर में पूरी तरह ढक लिया । दत्ता ने सर हिला दिया ।
    बाहर जाने के लिए उसने जैसे ही कमरे का दरवाजा खोला नीचे कुछ सामान रखा हुआ था । शायद वेधा ने डर के कारण दरवाजा नही खटखटाया । उसमे खाना और कपड़े दोनो थे ।
    दत्ता ने अंदर आते हुए कहा "माउ उठ जा , कुछ खाकर सो । "
    मानव अपनी जगह से हिला भी नही । दत्ता ने उसकी चादर को हटाया तो मानव ने अपना मुंह तकिए में घुसा लिया ।
    "तेरी नाराजगी मुझ पर है । खुदको क्यू तकलीफ दे रहा है? अगर खाना नही खाएगा और तू बीमार हुआ तो तेरी मां क्या कहेगी , मैने उसके माऊं का खयाल नहीं रखा ?" दत्ता ने उसे उठाना चाहा लेकिन मानव भी ठहरा जिद्दी । उसने एक ना सुनी ।
    एक मिनट बाद ही मानव के कानो मे दत्ता की आवाज सुनाई दी "हा एकलव्य , माऊ का सामान ला रहे हो ना ? आते हुए सासुमा को बताना उनका बेटा खाना नही खा रहा । हा अब उसके बाद वो भी भूखी रहे तो हमे क्या करना है ?"
    मानव झटके से उठ कर पैर पटकते हुए दत्ता के पास आया । उसने फोन छीन लिया , सामने सच में एकलव्य से उसकी बात हो रही थी ।
    "खा रहा हु खाना ।" मानव ने रुंधे गले से कहा और फोन काट दिया ।
    दत्ता ने कुछ कहने की जगह हल्के से अपना गला खराश दिया । फिर मानव को बैठने का इशारा कर वो प्लेट में खाना निकालने लगा ।
    एक निवाला खाया मानव ने और उसकी सिसकियां रोने में बदल गई ।
    दत्ता ने परेशान होकर उसे देखा "क्या हुआ ? पसंद नही आया या फिर तीखा है ? तुम रोने लगो ऐसा कुछ नही किया मैने ?"
    मानव मुंह खोल कर रोने लगा ।
    "अरे ... चुप चुप ! रोना बंद करो ।" दत्ता उसके आगे हाथ हिलाने लगा जैसे किसी बच्चे को धमका रहा हो वो रोया तो उसे मार पड़ेगी । अब क्या करे , उसने आज तक ऐसी परिस्थिति का सामना नहीं किया था । और बिचारे को अनुभव भी चाहिए था हर चीज का ।
    अचानक ही दत्ता ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया ताकि वो रोए नहीं । मानव चौक गया मगर उसकी आवाज और रोना बंद जरूर हुआ । दत्ता ने ये देख कर राहत की सांस लेनी चाही । पर उसे कहा पता था उसकी शादी नही जिंदगी भर की कसरत शुरू हुई थी ।
    मानव ने उसका हाथ पकड़ा और अगले ही पल जोर से काट लिया । दत्ता की आंखे बंद हुई । ठंडी सिसकारी भरते हुए उसने कहा "आज पता चला तेरी मां ने तेरा नाम माऊ क्यू रखा । ऐसे ही काटता फिरता होगा बचपन में ।"
    उसने कहा पर मानव का मुंह नही छोड़ा । क्युकी मानव की आंखे डबडबा गई थी । वो दुबारा रो सकता था इसलिए पहले ही दत्ता ने तैयारी रखी "बच्चो की तरह रो रहे हो ? किसी ने देखा तो क्या कहेगा ?"
    मानव भरी आंखों से उसे देखने लगा । दत्ता ने आगे कहा "वादा करो रोना शुरू नही करोगे तो मै हाथ हटा लूंगा। "
    मानव ने कुछ पल सोचा और फिर पलके झपका दी तो आंसू बहकर दत्ता के हाथ पर आ गए। लंबी सांस भरते हुए दत्ता ने हाथ हटा लिया। मानव नही रोया जानकर उसे राहत भी मिली।
    उसने कहा "जो हुआ वो बदलने नही वाला। रोकर तुम्हे कुछ हासिल भी नहीं होगा। मर्जी हो या ना हो तुम्हे मेरे साथ रहना है।"
    मानव ने उलटे हाथ से आंसू साफ किए "मुझे ना रहना हो तो ?"
    "पर्याय मैने रखा ही नही तुम्हारे सामने।" दत्ता लापरवाही से बोला । मानव ने नजरे झुका ली । वो जानता था अगर यहां से भाग भी जाए तो कोई फायदा नही होगा । एक मिनट में दत्ता के लोग उसे ढूंढकर दुबारा यहां लाकर पटक देंगे ।
    "तो अब दिमाग को ठंडा कर । बाकी मेरे साथ तुम्हे कोई परेशानी नहीं होगी तू जानता है।" दत्ता ने कहा तो मानव झट से खड़ा हो गया।
    "मेरा पेट भर गया । बहुत कर लिया आपने आज।  इससे ज्यादा मेरे परिवार को परेशान मत करना ।" मानव ने कहा और हाथ धोने चला गया ।
    दत्ता ने खाना वैसा ही छोड़ दिया ।

    मानव बाहर आया तो वेधा के दिए कपड़ो में उसने चेंज कर लिया था। आकर बिस्तर पर लेटते हुए उसने फिर खुदको चादर में पूरा ढक लिया। अगले ही पल अपने पैर और हाथ फैला कर वो सो गया । दत्ता की आंखे छोटी हो गई । उसके ही दोस्त के घर में उसे बिस्तर पर जगह नही थी । काउच पर तकिया सही कर मुंह बनाते हुए वो लेट गया। आज तक उसके साथ ऐसा कुछ करने की किसी ने हिम्मत नही की थी। मानव ने भी नही । बल्कि वो तो दत्ता को बहुत ज्यादा पसंद करता था। उसकी जिंदगी का अब तक काफी ज्यादा समय दत्ता और उसके दोस्तो के साथ गुजरा । यहां कोई उसके लिए अनजान नहीं था। लेकिन आज दत्ता ने जो भी किया उसकी वजह से मानव का मासूम दिल टुकड़ों में बिखर गया। जिस पर वो आंखे बंद कर विश्वास कर सकता था उसने ही सब बिगाड़ कर रख दिया।
    मानव की सिसकियां फिर शुरू हुई तो दत्ता के लिए सो पाना मुश्किल हो गया। कमरे में सीलिंग को घूरने के अलावा वो कुछ नही कर सकता था।

    *******

    बालकनी से आते उजाले की तरफ देखते हुए दत्ता समझ गया सुबह हो चुकी थी । एक मिनट भी नहीं सो पाया वो पूरी रात। ना ही मानव की सिसकियां रुकी ! बस कुछ समय पहले ही उसकी आवाज आना बंद हो गई। दत्ता ने उठकर उसे देखा। मानव सो चुका था।
    जितना दत्ता ने सोचा था ये सब उससे कही ज्यादा मुश्किल था। उसने मानव से समझदारी की उम्मीद नही की थी। लेकिन वो पहले इतना परेशान भी नही करता था।

    तैयार होकर दत्ता जब किचन में पहुंचा तो वेधा को देख उसने सवाल किया "कल रात कहा था ?"
    "रात को इंसान सो जाता है मेरे खयाल से ?" वेधा खाना बना रहा था । उसने तिरछी नजर दत्ता पर डाली जो ग्लास में पानी डालकर उसे पी रहा था।
    फिर दत्ता ने कहा "तू कमरे में नही था ।"
    वेधा ने दिल पर हाथ रख खुद से कहा "मतलब ये सच में चेक करने आया था । अच्छा हुआ नही था मैं कमरे में। वरना तू सच में मेरी बैंड बजा देता । अच्छा हुआ की वो आदमी भी मर गया वरना तेरी फ्रस्ट्रेशन झेलने के बाद दुबारा जन्म लेने की हिम्मत ना करता।"
    बात को बदलते हुए वेधा ने शरारत से कहा "शादी का ग्लो चेहरे पर नजर आ रहा है। देखो तो कैसे लाल हो चुके है गाल ?"
    दत्ता ने जोर से ग्लास को दूसरी तरफ पटक दिया । वेधा की बात का मतलब उसे साफ समय आया था।
    "रोटियां बना तू।" दत्ता ने ठंडी आवाज में कहा ।
    "मै बना तो लूंगा लेकिन खाने के लिए कोई आएगा ? मानव कहा है?" वेधा ने सवाल किया ।
    "वो सो रहा है ।" दत्ता की आवाज में मायूसी थी। जाकर वेधा की बगल में खड़ा होकर वो मदत करने लगा।
    "ठीक से सोया था? आंखे तो पूरी लाल हो चुकी है?" वेधा इस बार गंभीर होकर बोला ।
    "ये समय जल्दी से गुजर जाए बस । मुझे अपनी चिंता नही।" दत्ता की आवाज धीमी थी ।
    "तू कभी परिणाम की चिंता नही करता। लेकिन ये करते हुए तुझे दस बार सोचना था। तेरे फैसले में किसी ऐसे इंसान की जिंदगी जुड़ी थी जो तेरे लिए सबसे खास है। मुझे पछतावा हो रहा है पहली बार तेरा साथ देकर। मै बता रहा हु , वो मेरे लिए छोटे भाई जैसा है। उससे किसी बात की उम्मीद मत करना वो तुझे समझे या तेरी भावनाओ को समझे। उसे समय दे। और फिर भी कुछ ना हुआ तो उसे शांति से जीने देना। वैसे अब ये होना मुश्किल है। क्युकी दुनिया उसे जीने नही देगी।" वेधा की बातो में नाराजगी झलक रही थी।
    "मैने जो किया वो आज गलत लगेगा। पर मेरी नजर में ये जरूरी था। माऊ से बढ़कर मेरे लिए मैं खुद भी नही हु। आगे मुझे कुछ भी कहने की जरूरत नही क्युकी तू सच्चाई से परिचित है।" दत्ता का पूरा ध्यान चॉपिंग बोर्ड पर था और हाथ में चाकू को वो लगातार घुमा रहा था।
    वेधा ने उसके हाथ से चाकू ले लिया "तू जा! बाहर इंतजार कर ना? मै अकेला बना लूंगा खाना।"
    असली वजह तो ये थी की जैसी हालत में दत्ता था , उसके हाथ से हथियारों को दूर रखना बेहतर था।
    इसी बीच कोई जोर जोर से दरवाजा पीटने लगा । वेधा ने उसे जाने का इशारा किया । दत्ता सर हिला कर दरवाजा खोलने चला गया ।


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  • 4. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 4

    Words: 2112

    Estimated Reading Time: 13 min

    सुबह का समय , कोई जोर जोर से वेधा के घर का दरवाजा पिट रहा था । दत्ता ने अपनी बाजुओं को समेट कर दरवाजा खोला तो सामने खड़े मैक्स और छोटा के कदम अपने आप ही पीछे हो गए ।
    जहा दत्ता सर्द निगाहों से दोनो को देख रहा था तो सामने दोनो के पैर अपने आप ही हिल रहे थे । कुछ पल की चुप्पी के बाद दत्ता बोला "क्या साइलेंट शो दिखाने आए हो इतना दरवाजा पीटने के बाद ? जल्दी बोलो जो कहने आए थे ।"
    मैक्स ने हिम्मत कर कहा "मानव की आई ने केस कर दिया आप पर । पुलिस को लेकर गायकवाड़ निवास गई थी और अब यहां आ रही है ।"
    "हा तो?" दत्ता ने लापरवाही से कहा जैसे कोई बड़ी बात नहीं थी उसके लिए ।
    इसी बीच एकलव्य हाथ में दो बैग पकड़े आया । दत्ता एक तरफ हटा तो वो अंदर जाते हुए बोला "आ चुकी है आपकी सासु मां । बहुत गुस्से में है ।"
    दत्ता ने आंखे घुमा ली "मै भी केस करूंगा उन पर । मानहानि का । मेरी इज्जत का तमाशा बना गई उनकी बेटी ।"
    इसी बीच नीचे से किसी की आवाजे आने लगी । दत्ता ने सर हिला दिया । वेधा को बाहर बुला वो दरवाजा बंद करते हुए सबके साथ नीचे चला गया ।
    दर्शना गुस्से में गैरेज में काम करने आ चुके लडको पर चिल्ला रही थी । उसके साथ एक ऑफिसर और दो कांस्टेबल थे । उसके अलावा अनिता और अथर्व भी थे ।
    दत्ता को आता देख दर्शना को शांत रहने के लिए बोलने वाले खुद ही शांत हो गए। अथर्व ने ठंडी नजरो से दत्ता को देख हाथ की मुट्ठी बना ली। लेकिन तभी उसे अपने सीधे हाथ में दर्द महसूस हुआ । बैंडेज बंधा हुआ था उसपर।
    "क्या हुआ सासुमा , क्यू तकलीफ दे रही हो गले को भी और मोहल्ले को भी ? वैसे इन लोगो को तो आदत है रोज का । मुझे बस आपकी चिंता है ।" दत्ता की आवाज सुनकर दर्शना गुस्से में पलट गई ।
    दत्ता उसके ठीक सामने जाकर खड़ा हो गया "इतने सुबह सुबह पगफेरे की रस्म नही कर रहा मै । आपने तैयारी का मौका भी नही दिया हमे ।"
    "अपनी बकवास बंद करो । ऑफिसर अरेस्ट कीजिए इसे।  कल रात मेरे बेटे से जबरदस्ती शादी की इस आदमी ने । वो भी हथियारों के जोर पर। " दर्शना की आंखे आग उगल रही थी जब से उसने दत्ता को देखना शुरू किया । आंखो के नीचे पड़ चुके काले घेरे देख साफ पता चल रहा था रात भर एक मिनट भी सोई ना होगी वो ।
    दत्ता ने ऑफिसर की तरफ देखा तो वो बिचारा भी सकपका कर बोला "आपके ऊपर इन्होंने ना सिर्फ जबरदस्ती शादी करने का केस किया । उसके अलावा इनकी बेटी के साथ कुछ अनहोनी हुई इसका भी शक है।"
    "शक ? शक के आधार पर मुझे जेल जाना होगा ? अरे कमसे कम सबूत ले आते । रहने दो सबूत, एक आध लाश ही ले आते ? पहले जाकर लाश ढूंढो। फिर सबूत । अगर मेरा हाथ उसमे आ गया तब आपके साथ बिना कुछ कहे चला आऊंगा । रही बात शादी की तो .... उसमे मेरे पति की पूरी सहमति थी ।" दत्ता ने कहा तो सब आंखे फाड़कर उसे देखने लगे । हर कोई जानता था मैरिज हॉल में क्या हुआ लेकिन ये आदमी बिना किसी हिचक इतना बड़ा झूठ बोल रहा था ।
    "ये ... ये क्या बकवास कर रहे हो तुम ? ताई आप कहिए ना कुछ । हम सबके सामने इसने जबरदस्ती शादी की थी । तुम ... तुम मेरे बेटे को बुलाओ । वो बताइए सच ।" दर्शना रोनी सी आवाज में बोली । उसके चेहरे पर संताप साफ दिख रहा था ।
    अनिता ने उसका साथ देकर कहा "हा ... मानव को बुलाओ । कहा छुपा रखा है उसे तुमने ?"
    "नई नई शादी हुई है उसकी । ऐसे जिद तो ना करो मिलने की । बिचारा शर्म के मारे किसी को चेहरा नही दिखा पाएगा ।" दत्ता ने कहा तो वेधा ने अपना सर पकड़ लिया ।
    दर्शना एक कदम पीछे लड़खड़ा गई "क्या किया तुमने उसके साथ ? वो ठीक तो है ? मुझे मिलना है उससे ।"
    वैसे तो दर्शना काफी शांत स्वभाव वाली थी । लेकिन मानव को मृदुला से भी ज्यादा प्यार करती थी। इसी वजह से खुदको संभाल पाना उसके लिए मुश्किल था । वो ऊपर जाने की कोशिश करने लगी लेकिन सभी लड़के रास्ता रोके खड़े थे । दर्शना ने फौरन ऑफिसर से कहा "आप इसे अरेस्ट कीजिए पहले ।"
    "अभी अभी मैंने कहा सासुमा । इस शादी से आपके माऊ को कोई परेशानी नहीं थी । उसकी मर्जी से हुआ था जो भी हुआ । आपको विश्वास नहीं ना ? मै सबूत देता हु ।" दत्ता ने कहकर फौरन वेधा को इशारा किया।
    वेधा ने सर हिलाते हुए एक पेपर दर्शना की तरफ बढ़ाया जिसे वो साथ लेकर आया था । दर्शना से पहले ही वो पेपर अथर्व ने छीन लिया ।
    एक मिनट बाद ही वो निराशा से दर्शना को देख रहा था ।
    वेधा ने कहा "आप भी देख लीजिए एक बार ऑफिसर । मानव ने खुद इस पर साइन किया है । वो अपनी स्व इच्छा से दत्ता के साथ शादी कर उसे अपना पति मानता है ।"
    ऑफिसर ने भी वो पेपर्स देखे और फिर सर झुकाते हुए कहा "हमे माफ कर दीजिए गायकवाड़ साहब । हम चलते है ।"
    दत्ता ने आराम से सर हिला दिया । वही दर्शना सुन्न होकर खड़ी थी । बिना मानव के मुश्किल से रात निकाली थी उसने ।
    अथर्व ने उनकी हालत देखी थी । ना चाहते हुए भी विनती कर उसने कहा "एक बार मामी को मिलने दो मानव से।  वो रात भर रो रही थी ।"
    दत्ता ने दिल पर हाथ रख लिया "मुझे अफसोस है और दिल से बड़ी इच्छा है की सासुमा मिल ले अपने बेटे से । लेकिन आज नही । वो पहले से दुखी है । उनसे मिलकर और दुखी हो जायेगा ।"
    अथर्व ने आंखे घुमा ली तो दत्ता आगे बोला "उनका बेटा अब सिर्फ उनका नही रहा। वो मेरा हो चुका है । और मेरी सहमति के बिना उससे कोई नही मिल सकता ।"
    "तुम क्यू कर रहे हो ये सब ? क्या मिलेगा तुम्हे ?" दर्शना बिलकुल शांत हो गई । उसकी आखिरी उम्मीद भी खत्म हो चुकी थी ।
    दत्ता ने गहरी सांस भर ली । दर्शना के कंधे थाम कर वो बोला "मेरे लिए जैसे मेरी आई है वैसे ही आप भी हो । कम से कम वो ऐसी जगह नही है जहा कोई उसकी शक्ल भी नही देखना चाहता । घर चले जाओ अभी । जब वो ठीक होगा आपको बुला लूंगा।"
    दत्ता ने अथर्व की तरफ देखा "ओह हीरो ! लेकर जा इन्हे ।"
    अथर्व ने आकर उसके हाथ दर्शना के कंधे से झटक दिए । फिर दर्शना और अनीता को लेकर चला गया ।
    "कुछ जल रहा है क्या ?" एकलव्य की अचानक आवाज सुनकर वेधा की आंखे बड़ी हो गई ।
    "मेरी सब्जी !" वेधा चिल्लाकर ऊपर भागा । उसके पीछे एकलव्य और दत्ता भी ।

    घर में धुआं फैला था और किचन से किसी के खांसने की आवाज आ रही थी । तीनो लड़के जब वहा पहुंचे तो मानव ने नाक और मुंह ढक कर गैस की फ्लेम बंद कर दी थी ।
    वेधा ने जल्दी से जाकर खिड़की को खोल दिया । एकलव्य बाहर की खिड़की दरवाजे खोलने चला गया । और दत्ता मानव को लेकर सीधे घर के बाहर आया ।
    "तू ठीक है ना ?" दत्ता ने सवाल किया । पर मानव ने कोई जवाब नही दिया । उसने रेलिंग पकड़ कर नीचे सड़क पर देखा । किसी की जानी पहचानी आवाज सुनकर वो उठा था । लेकिन बाहर आते ही घर में फैला हुआ धुआं देखा ।
    दर्शना की गाड़ी जा चुकी थी देख दत्ता ने राहत भरी सांस ली ।
    इसी बीच वेधा बाहर आकर लंबी लंबी सांसें भरने लगा "बस भाई , मै नही बना रहा कोई खाना । एकलव्य को भेज बाहर से लाने के लिए । मै पक्का आज ही कामवाली बाई का इंतेजाम कर दूंगा । वरना मानव बोलेगा मै भूखा रख रहा हु उसे ।"
    मानव के कानो में उसकी बात नही पड़ी । वो अभी भी नीचे देख रहा था । सूरज की रोशनी सीधे उसके लाल हो चुके चेहरे पर पड़ रही थी । उसके बाल बिखरे और आंखो में सूजन थी । पर फिर भी वो खूबसूरत लग रहा था , ऐसा दत्ता का सोचना था ।

    कुछ समय बाद सब नीचे गैरेज के ऑफिस में बैठ नाश्ता कर रहे थे । सबके साथ बैठकर मानव को अच्छा लगेगा वेधा ने सुझाव दिया । पर अब तक मानव ने एक शब्द भी नहीं कहा था । चुपचाप वो अपना खाना खाने में व्यस्त था ।
    इसी बीच मैक्स ने कहा "शादी के बाद घूमने भी जाना पड़ता है भाऊ । आप नही ले जाओगे मानव को ?"
    "वो कहेगा तो बिलकुल ले जाऊंगा ।" दत्ता ने छोटा सा जवाब दिया ।
    "ये इतना दिलदार कभी कभी होता है मानव । मौका मत छोड़ना । वरना ये और इसका काम । जल्दी से बता दो तुम्हे कहा जाना है ।" वेधा ने मानव के कंधे पर हल्का सा धक्का मारा ।
    मानव फिर भी चुप ही रहा । सब लोग कोशिश कर थक चुके थे ।
    दत्ता ने ठंडी सांस छोड़ी "कब तक चलेगा तुम्हारा मौन व्रत? बस हो गया ना अब ? क्यू जिद पकड़ कर बैठा है ? हा , उससे कोई फायदा होता तो करना ठीक था । लेकिन तुझे पता है मैं तेरी बात नही मानने वाला चाहे तू कुछ भी कर ?"
    अचानक ही माहौल तनाव भरा हो गया । सब लोग खाना बंद कर चुके थे । वेधा ने एकदम से निवाला लेकर मानव के सामने कर दिया "दत्ता मुंह बंद रख । तुझे जो कहना है वो खाने के बाद ।"
    दत्ता चुप हो गया । वही मानव ने वेधा का हाथ अपने सामने से हटाकर खुद ही खाना शुरू कर दिया ।
    तभी एक आवाज ने सबका ध्यान आकर्षित कर लिया "क्या मै आ जाऊ?"
    मानव ने भी पुतलियां घुमाई। युतिका चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान लिए खड़ी थी ।
    "आ जाओ राक्षस की बहन परी! हमारी छोटी सी कुटिया में स्वागत है आपका । कहो कैसे आना हुआ ? आपके भाऊ का खयाल रखा जा रहा है या नहीं देखने आई हो ?" वेधा ने भौंहे चढ़ाकर कहना शुरू किया ।
    युतिका हा में सर हिलाकर आगे आई । अपने साथ वो टिफिन ले आई थी । दत्ता की तरफ से पहला सवाल यही आया "आई ने भेजा है ?"
    "आजी ने ! काकू तो कह रही थी आप बाहर का ही खाना खाओ । ताकि तबियत खराब हो और आपके सर से घर के बाहर रहने का भूत उतर जाए ।" युतिका ने हेतवी के शब्द जैसे थे उसी लहजे में दत्ता को सुना दिए ।
    दत्ता का मुंह बन गया । वही युतिका मानव को देख कर बोली "कॉलेज चलोगे ?"
    मानव के दोस्तो में युतिका भी शामिल थी । दोनो एक ही कक्षा में पढ़ते थे । मानव ने कोई जवाब नही दिया तो दत्ता ने कहा "आज कही नही जा रहा वो । उसे आराम की जरूरत है ।"
    "मै आ रहा हु ।" दत्ता की बात काटते हुए मानव खड़ा होकर बोला ।
    "आज रुक जा माऊ ! चीजे थोड़ी बिगड़ी हुई है बाहर । सब संभाल लू एक बार । फिर तुम्हे जहा जाना हो चले जाना ।" दत्ता भी खड़ा हो गया ।
    मानव व्यंग से मुस्कुरा दिया "क्या फर्क पड़ता है आपको ? जो होगा मेरे साथ होगा । आप बस तमाशा देखना । मुझे तकलीफ में देख आपको सुकून भी तो मिलेगा ना ? वैसे भी जो किया आपने किया , मै क्यू मुंह छुपाकर बैठु? आज नही तो कल मुझे दुनिया का सामना करना ही है ।"
    दत्ता अपना माथा सहलाने लगा । पहले तो चुप से ये लड़का सारी बाते मान जाता था।  लेकिन अब कुछ सुनने के लिए तैयार ही नही ।
    युतिका अजीब सी मुस्कान लिए बोली "कोई बात नही मानव । आज जाना जरूरी नहीं । मै ... भी नही जाती आज । हम साथ बैठकर पढ़ लेंगे थोड़ा सा । तुम भाऊ की बात को टालो मत । वो जो कह रहे है तुम्हारे भले के लिए है ।"
    मानव ने सर्द नजरो से एक बार दत्ता को देखा और अचानक ही सबके बीच से निकल कर वो चला गया । दत्ता उसी दिशा में देख कर अपनी गर्दन सहला रहा था जब सारे लड़के अपना अपना प्लेट लेकर दबे पाओ उस ऑफिस से खिसकने लगे ।



    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 5. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 5

    Words: 2034

    Estimated Reading Time: 13 min

    सुबह का समय , जाधव निवास के अंदर अंकुश गुस्से में यहां से वहां चक्कर लगा रहा था । उसके मना करने के बाद भी दर्शना घर से बिना बताए चली गई । इसके अलावा अपने साथ उसने अनिता और अथर्व को भी लिया । अनिता के पति की मौत मैथिली की मौत से कुछ समय पहले ही हुई थी । बेटी का आगे क्या होगा इस बारे में ज्यादा विचार करने ने उन्हें बीमारी का शिकार बना दिया ।
    उनकी आंखों के सामने ही अंकुश अनिता और अथर्व को हमेशा के लिए घर ले आया । ताकि मैथिली इस बारे में ज्यादा सोचना छोड़ दे । लेकिन होनी को कौन टाल सकता है , जब उम्र भी हो चली हो ?
    पिछले साल भर से अथर्व और अनीता इसी घर में रहते थे । अथर्व दो साल बड़ा था मानव से । लेकिन फिर भी उनकी अच्छी जमती थी । अथर्व कभी बिलकुल बड़े भाई की तरह उसका खयाल रखता तो कभी दोस्त की तरह शरारत भी करता ।
    उसी समय घर के बाहर गाड़ी आकर रूकी और अंकुश के चेहरे पर गुस्से के भाव उभर आए । हाथो की मुट्ठियां कस वो सबका स्वागत करने दरवाजे पर ही पहुंच गया ।
    दर्शना को संभाले अनिता अभी भी उसे समझा रही थी । अथर्व उनके पीछे ही था । तभी तीनो के कदम अंकुश को देख कर ठिठक गए ।
    "आ गए अपना अपमान करा कर ? जानते नही कैसा इंसान है वो देवराज का लड़का ? पहली बात तो मैने साफ मना किया था ना उस बला को घर में दुबारा लाने के लिए?" अंकुश ने तेज आवाज में बोलना शुरू किया ।
    दर्शना के रुके आंसू फिर से बह निकले "बेटा है वो आपका? कभी तो उसके बारे ने बुरा बोलना बंद कीजिए ?"
    "अपना होने के लिए खून ही नही गुण भी होने चाहिए । नही मानता मैं उसे बेटा । अच्छा हुआ मेरे कुछ करने से पहले ही चला गया । कान खोल कर बात सुन लो मेरी । वो दुबारा इस घर में नही आयेगा । और इससे आगे कोई चर्चा नहीं होगी उस लड़के के बारे में । जिसे करनी हो । घर के बाहर जाकर करे ।" अंकुश ने तीनो को देख कर फैसला सुना दिया । वो घर का मालिक था जिसके सामने मुश्किल से ही कोई मुंह खोलता था ।
    तीनो ने एक भी शब्द नही बोला जब तक अंकुश वहा से चला नही गया । उसके जाते ही दर्शना नीचे बैठ कर रोने लगी ।
    "हिम्मत रखो वहीनी, बार बार रोकर कुछ बदलने तो नही वाला ना? " अनिता ने दर्शना को फिर समझाना चाहा ।
    "उसका चेहरा तक नहीं देख पाई । कैसा होगा वो ? बहुत रोया होगा ना ? खाना भी खाया या फिर नही ? कैसे रख रहा होगा दत्ता उसे ? उसका स्वभाव सब जानते है और वही हमारा मासूम मानव , हल्की सी तेज आवाज पर भी डर जाता है ।" सभी बातो के बारे में सोच दर्शना का दिल तेज दर्द से भर उठता ।
    "कही ना कही ये सारा दोष मेरा है ।" अनिता खुद पर ही निराश हुई लग रही थी ।
    अथर्व और ज्यादा वहा नही रुक पाया । वो तेजी से अपने कमरे की तरफ चला गया जो मानव के ठीक सामने था ।
    मानव के कमरे को देख अनजाने में ही उसके कदम अंदर जाने के लिए बढ़ गए । जब वो दरवाजा खोल कर आता था तो सामने ही दीवार पर कही सारी तस्वीरे लगी रहती थी जो की अब गायब थी । उसके अलावा मानव का सामान अथर्व को कही नही दिखा । हैरान होने वाली बात नही थी क्युकी एकलव्य उनके पीछे ही आकर मानव का सारा सामान ले जा चुका था ।
    अथर्व जाकर बिस्तर पर सर झुकाते हुए बैठ गया । तभी उसकी नजर दुबारा अपने बैंडेज बंधे हाथ पर पड़ी । उसे याद आया की ये चोट हल्दी वाली रात को लगी थी ।
    चोट कहना बेकार था क्युकी किसी ने बुरी तरह अथर्व का हाथ मरोड़ कर कहा था "तेरा माऊ से क्या रिश्ता है क्या नही जानने में कोई रुचि नहीं मुझे । मै बस इतना जानता हु वो शख्स उसे छूने का अधिकार नहीं रखता जिसके परिवार के कारण माऊ ने काफी कुछ सहा । अपने हाथ के साथ अपने आपको , उससे दूर रखना । वरना ये हाथ हमेशा के लिए तोड़ देने में मुझे समय नही लगेगा ।"
    अथर्व ने आंखे मिच कर एकदम से अपना हाथ बिस्तर पर मार दिया । दर्द तो उसे हुआ लेकिन वो अभी गुस्से में था तो सह गया ।

    *******

    गैरेज के अंदर ऑफिस में दत्ता चेहरे पर साधारण भाव लिए खड़ा था । क्युकी उससे मिलने के लिए देवराज खुद वहा पहुंचा था ।
    "आपको यहां आने की कोई जरूरत नही थी बाबा । मुझे फोन कर दिया होता । मै आ जाता ?" दत्ता ने कहा और उन्हे बैठने के लिए इशारा किया ।
    देवराज ने सर हिला दिया "ये जगह अनजान नहीं मेरे लिए । रग रग में बसी हुई है इसकी गलियां मोहल्ले । बैठने का समय नहीं है । मै बस तुझे देखने आया था । कैसा है सब ? अपनी जिद तो पूरी कर ली अब आगे क्या ?"
    "थोड़ा कठिन है लेकिन ... आपका दत्ता सब संभाल लेगा ।" वो हल्की मुस्कान के साथ बोला ।
    "भरोसा है मुझे । समाज से विपरीत जाकर कदम उठाया है । कीचड़ बहुत उछलेगा । तयारी रख !" देवराज ने हल्के से उसके कंधे को पकड़ कर सहला दिया ।
    "आपका आशीर्वाद है ना । मै कर लूंगा । वैसे घर पर सब कैसा है ? आई का गुस्सा शांत हुआ या नहीं ?" दत्ता ने कहा ।
    "ज्यादा पढ़ी लिखी नही है । समझेगी नही इन चीजों को । ऊपर से हमारे पड़ोसी , लगता है समाज के ठेकेदार वो चार लोग वही आकर बसे और हर नए दिन कुछ नया लेकर पहुंच जाते है तेरी आई के पास । उसकी चिंता मत कर । मां है , ज्यादा दिन अपनी औलाद को नजर से दूर नहीं रख पाएगी ।" देवराज हल्की मुस्कान के साथ बोला ।
    "माऊ के बिना मै घर नही आऊंगा बोल देना उसे ।" दत्ता ने अपनी बात साफ शब्दो में कही ।
    "जिद्दी मां का जिद्दी बेटा । तुम दोनो मुझे ही बीच में पीस देते हो । " देवराज ने अफसोस के साथ सर हिलाकर कहा ।
    कुछ ही देर में देवराज निकलने वाला था । अचानक ही वो रुका और पलट कर बोला "संभल कर रहना । सुनने में आया अपने लोग बिकने लगे है ?"
    "आपको इन चीजों पर ध्यान देने की जरूरत नही । मै देख लूंगा । आप आराम से अपने काम पर फोकस करो ।" दत्ता गहरी आवाज में बोला । देवराज ने बिलकुल हल्के से हा में सर हिलाया । दत्ता के होते हुए उसे किसी बारे में परेशान होने की जरूरत नही पड़ती थी । होठों पर हल्की मुस्कुराहट लिए वो कुछ पल दत्ता को देखता रहा । दत्ता को जो चाहिए होता वो किसी भी हालत में पा ही लेता था । लेकिन फिर भी उस चीज के लिए कोई खुशी उसके चेहरे पर नजर नहीं आती थी । लेकिन आज कुछ अलग था । उसकी आंखो में एक ऐसी चमक थी की बस .... अब इससे आगे और ज्यादा कुछ भी नही चाहिए ।
    "बाबा?" दत्ता ने पुकारा तो देवराज होश में आया और हाथ हिलाकर वहा से निकल गया ।

    उसी गैरेज के उपर एक कमरे में मानव और युतिका सामान अनपैक कर रहे थे । मानव का ध्यान एक बॉक्स में सबसे उपर रखी कुछ फोटो फ्रेम्स पर गया । एक थोड़ी बड़ी फ्रेम को उसने हाथ में लिया । बिना किसी भाव के वो उसे देखने लगा जिसमे मैथिली , चंद्रकला के साथ दत्ता और मानव खड़े थे । ये तस्वीर शायद दो साल पुरानी थी । मैथिली ने अपने नाम से एक ट्रस्ट बनाया था जिसमे चंद्रकला का काफी सहयोग रहता था । ऐसे ही एक दिन दोनो अपने पोते लेकर एक आश्रम में वस्त्र दान करने गई थी । तभी उन्होंने साथ में तस्वीर खिंचवाई थी । दोनो दादियो के बीच वो एक दूसरे का हाथ पकड़े खड़े थे ।
    मानव ने ठंडी सांस छोड़ते हुए उस तस्वीर को निकाल कर नीचे रखा । दूसरी भी कही तस्वीरे थी उसके पास । और लगभग हर तस्वीर में दत्ता था , अगर एक या दो तस्वीरों को छोड़ दे ।
    "इन्हे अभी कही मत लगाना । जब तुम घर आओगे तो भाऊ के कमरे में लगा देंगे । वैसे मैं हैरान हु , तुम्हारा सामान सिर्फ दो बैग्स और दो बॉक्स इतना ही था ?" युतिका ने कहा ।
    मानव व्यंग से मुस्कुरा दिया "इसमें भी आधा तुम्हारे भाऊ का दिया हुआ है ।"
    सारा सामान छोड़ मानव फिर उदास होकर बैठ गया ।
    युतिका उसके सामने से बॉक्स सरका कर वहा बैठ कर बोली "ऐसे उदास मत रहो मेरी जान ! जब तक तुम्हारी मुस्कान ना देख लू मेरा दिन अच्छा नही जाता ।"
    "तुम्हे याद है युति, कुछ समय पहले हमारी यूनिवर्सिटी में एक रैली होने वाली थी ? एलजीबीटी के सपोर्ट में ।", मानव ने कहकर युतिका की तरफ देखा "जिस टीचर ने ये ऑर्गेनाइज किया था उनकी कितनी बुरी तरह से इंसल्ट की गई थी सबके सामने ? सीनियर्स का वो ग्रुप , पता नहीं फिर उन्होंने क्या किया उन प्रोफेसर के साथ । जो वो कभी दुबारा कॉलेज में नही दिखे ।"
    युतिका शांत पड़ गई । मानव ने कुछ पल अपना निचला होठ काटा । फिर वो बोला "इतने सालो से छुपा कर रखी अपनी सेक्सुअलिटी ताकि किसी मजाक का पात्र ना बनू । लेकिन इसके बावजूद अब मेरे साथ जीवन भर यही होगा ।"
    युतिका ने उसका चेहरा थाम लिया "कौन तुम्हारी पीठ पीछे क्या कहेगा ये सोच कर तुम इतना दुखी हो रहे हो मानव ? क्युकी मुंह पर आकर कुछ बोलने की हिम्मत कोई नही कर पायेगा । भूलो मत , प्रोफेसर के साथ उन सीनियर्स के ग्रुप ने जो भी किया उसके लिए उन्हें सजा मिली थी ।
    दुनिया में कोई परफेक्ट नही होता मानव । अगर तुम बन भी जाओ तो दुनिया फिर भी तुम्हे जज करने के लिए तैयार बैठी है । वो तुम पर डिपेंड करता है उनका मनोरंजन करना है या नजरंदाज कर उनका अपनी ही नजरो मे मजाक बना देना है ? लोग चार दिन बाते करते है फिर भूल जाते है । लेकिन तुम ही नही भूलोगे तो लोगो से क्या एक्सपेक्ट करते हो ?"
    मानव ने हल्के से सिसकते हुए कहा "नही भूल सकता , मै कुछ नही भूल सकता । मेरे इमोशंस के साथ खेला गया है जबकि वो शख्स मेरी सच्चाई जानता था । वो मेरे लिए सबसे खास दोस्त था , हमारे बीच उम्र का अंतर कभी नही आया । जो कभी मुझे उदास नही देख पाती थी और हमेशा मेरे लिए लड़ने वाली बहन को उसके हाथो सौप कर खुश देखना चाहता था । लेकिन उन्होंने क्या किया ? खून किया है उस शख्स ने मेरी बहन का ? क्या ये .... भूल पाना आसान है ?"
    "तो फिर तुम्हारे और भाऊ के बीच ऐसा ही चलता रहेगा ?", युतिका निराशा होकर उसके सामने बैठ गई "और किस बात के बेसिस पर तुम उन्हे खूनी ठहरा रहे हो ? क्या उन्होंने खुद कहा कि वो मृदुला दीदी को मारकर आए थे कल रात ? इससे अच्छा एक काम क्यू नही किया तुमने ? उनसे जाकर सवाल करो उन्होंने ऐसा किया है या नही ? तुम्हे अच्छे से पता है वो तुमसे झूठ नही बोलेंगे ।"
    मानव कुछ पल उसकी तरफ देखता रहा । उसने कल रात शांति से सवाल जवाब करने की जगह सीधे थप्पड़ जड़ दिया था । ये बात याद आते ही मानव की आंखे हल्की सी बड़ी हो गई और उसने मुंह पर हाथ रख लिया ।
    "क्या हुआ तुम्हे ?" युतिका ने सवालिया नजरो से उसके बदले भावों को देखा ।
    "मेरे हाथ .... बिलकुल सही सलामत है ।" मानव ने कहा तो युतिका अजीब नजरो से उसे देखने लगी ।
    इसी बीच दोनो के कानो में दत्ता की आवाज पड़ी "जल्लाद समझ कर रखा है मुझे, जो लोगो के हाथ काटता फिरता है ?"
    मानव और युतिका झटके से खड़े हो गए ।



    आगे जानने के लिए कहानी के साथ जुड़े रहे ।

  • 6. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 6

    Words: 1483

    Estimated Reading Time: 9 min

    सुबह का समय ,

    मानव और युतिका बात कर रहे थे जब अचानक ही दत्ता उस कमरे में आया । दोनो झटके से खड़े होकर उसे देखने लगे ।
    युतिका ने फौरन कहा "मै ... मै बाहर जा रही हु । शायद वेधा भाई ने आवाज दी है ।"
    मानव चाहता था वो ना जाए । न जाने क्यों अकेले दत्ता के सामने उसे डर लगने लगा था जब से दत्ता ने उस पर गुस्सा किया । गर्दन झुका कर वो खड़ा हो गया ।
    दत्ता ने उनके बीच की दूरी कम कर कहा "हा तो क्या बोल रहे थे ? मुझे थप्पड़ मारने के बाद भी तुम्हारे हाथ सही है ?"
    मानव ने आंखे मिच ली । एक हाथ को दूसरे में पकड़ कर वो नाखून से खरोचने लगा । दत्ता ने ठंडी सांस छोड़ी । जब भी मानव शर्मिंदा होता था वो ऐसे ही करता था ।
    "माऊ! मेरी तरफ देख । शर्माने की जरूरत नही है तुझे । हा पति के सामने आ जाती है शर्म । लेकिन हम अनजान थोड़ी ही है एक दुसरे के लिए? पूरे उन्नीस साल का रिश्ता है हमारा । बिलकुल मेड फॉर ईच अदर!" दत्ता ने कहा तो मानव ने एकदम से उसे देख घूरना शुरू किया ।
    अब तक वो युतिका से अच्छे से बात कर रहा था लेकिन दत्ता से उसे कोई बात नही करनी थी । वो फिर चुप हो चुका ।
    "सब बर्दाश्त है सिवाय तेरी चुप्पी के । कुछ बोल ना ? गुस्सा ही करले ? " दत्ता ने उसके चेहरे की तरफ हाथ बढ़ाना चाहा लेकिन बीच में ही रोक दिया । क्या पता मानव को अब ये पसंद ना आए ?
    मानव ने उसके रुके हाथ को देख एक कदम पीछे लिया और चेहरा फेर कर खड़ा हो गया ।
    "बहुत बाते है तुम्हारे पास कहने के लिए । पर शायद सुनाने वाला मैं नही ? कोई बात नही युति को बता देना । वैसे बाहर जा रहा हु । कुछ चाहिए तुम्हे ? चॉकलेट , आइसक्रीम या .... ब्राउनी?" दत्ता ने आखिरी शब्द पर जोर देकर कहा तो मानव ने गुस्से में दात पीस लिए । सब पता था इस इंसान को । उसकी ताकत उसकी कमजोरी । जानबूझ कर लालच दे रहा था ताकि मानव कुछ कहे । लेकिन गुस्से और नाराजगी के आगे लालच टिक सकता था भला ?
    दत्ता मायूस होकर लौट जाने लगा । दरवाजे तक वो पहुंचा ही था की मानव की आवाज उसके कानो से टकरा गई "सुनो !"
    दत्ता तुरंत पलट गया तो मानव ने उसके करीब आकर कहा "क्या आपको सचमे कल दीदी नही मिली ?"
    दत्ता सर खुजाने लगा "अच्छा ठीक है । मिली थी ।"
    मानव का गला सुख गया " वो ... उसके साथ क्या किया आपने ? मार दिया , क्युकी वो भाग गई थी?"
    "नही !" दत्ता ने एक ही शब्द में जवाब देकर मानव को असमंजस में डाल दिया ।
    "नही क्या ?" मानव खीजते हुए बोला ।
    "नही का दूसरा मतलब होता है क्या माऊ?" दत्ता ने उलझन से उसे देखा ।
    "खाओ कसम !" मानव ने एकदम से कहा ।
    "तुम्हारी कसम , आई की कसम , मेरे बाप की कसम ! और कोई बचा हो तुम्हे विश्वास दिलाने तो उसकी भी कसम ।" दत्ता ने सर हिलाकर कहा ।
    "जाओ ! चले जाओ ।" मानव ने हाथ से ही उसे हुडकना चाहा और वो सोचते हुए पलटा । दत्ता का मुंह बन गया । जिससे मानव को कोई फर्क नही पड़ने वाला था । उसे तो बस राहत मिली थी मृदुला के जिंदा होने की ।
    लेकिन फिर वो खून ? जो दत्ता के कुर्ते पर लगा था ? पूछने के लिए मानव दुबारा दत्ता की तरफ मुड़ गया तो दरवाजा खुला था और दत्ता जा चुका था । मानव ने पैर पटक पर अपने बालो में हाथ घुमा लिया ।

    ********

    वो शहर का चहल पहल वाला इलाका था । एक होटल के बाहर जैसी ही वो काली थार जाकर रुकी होटल में खाना खा रहे लोग ऐसे निकलने लगे जैसे जान बचाकर भाग रहे हो किसी से ।
    एक टेबल पर अभी भी कुछ लड़के बैठे हुए थे । जिनमे से एक हिसाब किताब करते हुए बाहर झांक कर देखने लगा । दत्ता , वेधा और एकलव्य को देख उसके होठों पर टेढ़ी मुस्कान आ गई ।
    "बहारो फूल बरसाओ ....!", उस लड़के ने एकदम से गाना शुरू किया "मेरा मेहबूब आया है, मेरा ... मेहबूब आया है!"
    बाकी सबने उसे देखा और अचानक ही टेबल बजाकर संगीत देना शुरू कर दिया ।
    लड़के ने दुबारा से गाना शुरू कर दिया । वाकई उसकी आवाज में जादू था "नज़ारो हर तरफ अब तान दो एक नूर की चादर बड़ा शर्मिला दिलबर है चला जाए ना शरमा कर ज़रा तुम दिल को बहलाओ, मेरा मेहबूब आया है मेरा मेहबूब आया है ।"
    दत्ता और वेधा उसके ठीक सामने खड़े थे । अचानक ही वेधा ने अपनी जेब में हाथ डालना शुरू कर दिया । वो लड़का ध्यान से उसे देखने लगा जब अचानक ही वेधा ने चेहरे पर अफसोस लाकर कहा "अरे अरे , छुट्टे घर पर भूल आया मै तो ? कोई बात नही । खाते में लिख लेना । अगली बार हिसाब बराबर करके जाऊंगा ।"
    "हिसाब किताब की बात करके , यू दिल ना दुखाओ!
    मै और तुम की फॉर्मेलिटी हटाकर , हम पर आ जाओ !" उस लड़के ने कहा तो उसके साथ मोजूद लड़के वाह वाह करने लगे ।
    वेधा ने आंखे घुमा ली । वो लड़का भौंहे उचका कर बोला "कहो, कैसे आना हुआ?"
    "शिवा ?" दत्ता ने ठंडी आवाज में कहा ।
    शिवा कुछ पल उसकी तरफ देखता रहा । अचानक ही उसने हल्की सी तेज आवाज में कहा " ए गण्या चार चाय ला !"
    उसके आसपास बैठे सारे लड़के फौरन उठकर वहा से चले गए । शिवा ने उन्हें बैठे का इशारा किया तो दत्ता और वेधा बैठ गए ।
    "नाना भाऊ कहा है ?" दत्ता ने सीधे मुद्दे पर आकर कहा ।
    "नाना भाऊ तो शहर से भाग गया । अब आपने पुलिस छोड़ दी उसके पीछे तो बिचारा क्या करता ?" शिवा की आवाज में लापरवाही थी । लेकिन उसकी आंखे दत्ता पर ना होकर टेबल पर थी जहा वो उंगली से कुछ बना रहा था । वो क्रॉस का निशान था ।
    दत्ता ने आगे कुछ नहीं कहा । चुप चाप वो सारे चाय आने का इंतजार करने लगे । दो मिनट बाद ही गण्या ने टेबल पर चाय रख कहा "सामान खत्म हो गया है । मार्केट जाना पड़ेगा ।"
    शिवा ने सर हिला दिया । गन्या के जाते ही वो बोला "तुम्हारा आदमी बिक सकता है तो किसी का भी बिक सकता है । खयाल रखना पड़ता है थोड़ा । सुनने में तो आया नाना भाऊ भाग गया , लेकिन उसके आदमी बहुत घूम रहे है इधर ।"
    "बातो को उड़ा मत । सब पता होता है तुझे ।" दत्ता ने चाय का ग्लास उठा लिया ।
    शिवा के होठों पर टेढ़ी मुस्कान आ गई "अपना काम खबरे देना है । ना यहां का ना वहा का । बिना फायदे के कुछ नही करूंगा ।"
    "क्या चाहिए ?" दत्ता ने लंबी सांस छोड़ी ।
    शिवा की नजरे वेधा की तरफ उठी तो वेधा ने दात पीसकर कहा "चाय गर्म है और फेकने से पहले एक बार भी नही सोचूंगा ।"
    शिवा ने दात दिखा दिए "तू बात पूरी सुनता नही और बदनाम मै हो जाता हु । कह रहा था की अपनी गाड़िया ठीक से काम नही कर रही । सर्विसिंग चाहिए !"
    "अच्छे से करवा दूंगा .... गाड़ियों की सर्विसिंग !" वेधा उंगलियां मरोड़कर बोला ।
    शिवा ने फौरन गला खराशते हुए कहा "शहर में ही कही छुपा है नाना भाऊ । कुछ समय मिलेगा तो ढूंढ लूंगा उसे । पर लगता है इस बार किसी का स्ट्रॉन्ग सपोर्ट लेकर आया है । उसके कारण अपने आदमी ठीक से काम नही कर पा रहे । एक तो काफी घायल मिला । अब उसे होश आयेगा तो पता चले हुआ क्या था ?"
    "वही पता करना है कि कौन है उसका स्ट्रॉन्ग सपोर्ट ? और कब तक शहर में आयेगा ।" दत्ता ने इस लहजे में कहा जैसे उसे पहले ही किसी पर शक हो ।
    चाय खत्म कर दत्ता और वेधा निकलने लगे तो शिवा ने एकदम से खड़े होकर कहा "शादी की बहुत बहुत बधाईयां! जरा काम में फसा था , आ नही पाया । लेकिन वहीनी के लिए फूल भिजवा दूंगा ।"
    अचानक ही उसने अपने सर पर मारा "वहीनी के भाई को कहा फूल पसंद होंगे ? बता देना क्या पसंद है ? भेज दूंगा ।"
    दत्ता ने उसे घूरा तो शिवा ने हाथ हिला दिया । वेधा दत्ता को बाहर ले जाने के लिए धकेलते हुए बोला "उससे काम निकालना है हमे अभी । बाद में मेरी तरफ से भी गोली मार देना ।"
    वेधा के कानो में फिर से शिवा के गाने की आवाज पड़ने लगी थी ।



    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 7. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 7

    Words: 1705

    Estimated Reading Time: 11 min

    एक अनजान सड़क पर वो गाड़ी तेजी से बढ़ रही थी जिसे एकलव्य चला रहा था । पैसेंजर सीट पर बैठे वेधा ने हल्के से पलट कर देखा "तू हर बार ऐसे काम उस बेवकूफ को क्यू सौपता है?"
    "पहली बात , वो बेवकूफ नहीं है । दूसरी बात , सबकी नजरे होती है हमारी हरकतों पर । तीसरी बात , शिवा ऐसे कामों में माहिर है । कही से भी नाना भाऊ को ढूंढ लायेगा वो ।" दत्ता ने कहा तो वेधा का मुंह बन गया । चेहरा घुमा कर चुप चाप वो सामने देखने लगा ।
    अचानक ही दत्ता तेज आवाज में बोला "गाड़ी रोक ।"
    एकलव्य ने झटके से ब्रेक मार दिया । वेधा डेशबोर्ड से टकराते हुए बच गया । उसने गुस्से में कहा "ए तेरेको ड्राइविंग का क्लास नही मिला क्या कभी ? अगर कोई गाड़ी रोकने के लिए बोले तो ऐसे बीच सड़क में नही रोकने का ।"
    वेधा ने पलट कर सड़क पर देखा । अच्छा हुआ दूर तक कोई पीछे नहीं था वरना सीधे स्वर्ग पधार जाता "गैर जिम्मेदार माणुस !"
    फिर उसने दत्ता को देखा "क्या है? क्यू चिल्लाया ? बीच बीच में दौरे आते है तुझे ?"
    दत्ता बिना कुछ बोले कांच से बाहर देख रहा था । वेधा और एकलव्य दोनो ने उसकी नजरो का पीछा कर देखा तो एक बूढ़ी औरत फूलों की छोटी सी रेडी लगातार वही बैठी गुलदस्ते बना रही थी ।

    शाम का समय था जब मानव और युतिका सारा सामान सेट कर चुके थे । युतिका ने समय देखा और घर जाने की बात कही । मानव चाहकर भी अब उसे रोक नही सकता था । युतिका के जाने के बाद वो घंटे भर तक बिना किसी हलचल बिस्तर पर बैठा रहा । खिड़की से आती शाम की धूप धीरे धीरे गायब हो रही थी । जब कमरे में पूरा अंधेरा छा गया तक मानव ने नजरे उठाई । उसे याद आया , अगर इस समय अपने घर में होता तो दर्शना उसे मंदिर में दिया जलाने के लिए कहती ।
    मानव ने फौरन सर झटका और खड़ा हो गया । जितना वो उन सब बातो के बारे में सोचेगा , उतनी ही तकलीफ उसे होती रहेगी । बाहर किसी के साथ बैठ लेगा भले ही बात ना हो सोच वो कमरे से बाहर आया तो उसे दत्ता दिख गया जो हॉल में ही अपने दोस्तो के साथ जमा था ।
    मानव को देख उसने फौरन सर खुजाते हुए कहा "तुम्हारे लिए कुछ लाया हु ।"
    मानव एक मिनट तक उसे देखता रहा । अचानक ही वो बोला "नही चाहिए ।"
    "पर मुझे तो देना है ।" दत्ता ने आगे जाकर पीछे छुपाए हाथ को मानव के सामने किया । अलग अलग प्रकार के सफेद फूलों का काफी खूबसूरत गुलदस्ता था वो जिसे आते समय उसी बूढी से दत्ता ने खरीद लिया ।
    मानव ने उसकी बगल से निकल कर जाना चाहा तो दत्ता ने फिर से उसके सामने फूल कर दिए ।
    मानव ने चिढ़ कर उसे लिया और नीचे फर्श पर फेक कहा "नही चाहिए कहा ना?"
    "फुल पसंद नही आए? कोई बात नही , मुझे भी नही पता था तुम्हे क्या पसंद आयेगा ।" कहते हुए दत्ता ने अपना हाथ पीछे कर दिया । वेधा ने फौरन उसके हाथ में दूसरा गुलदस्ता पकड़ा दिया ।
    वो सभी रंगों से मिश्रित फूल थे । मानव ने गहरी सांस भरते हुए आंखे मिच ली । आखिर क्यों दत्ता हार नही मान रहा था । उसने दुबारा गुलदस्ता छीना और फिर फर्श पर फेक दिया । दत्ता के चेहरे के भाव फिर भी नही बदले। शायद वो पूरी दुकान खरीद कर लाया था । उसके हाथो में वेधा ने अगला गुलदस्ता पकड़ा दिया ।
    मानव को बहुत गुस्सा आ रहा था । दत्ता के हाथ से उसने फूल छीने और उसे खोलकर पूरी जगह फैला दिया । पैर पटकते हुए वो दत्ता को हटाकर वेधा और बाकी सबके पास आया । पूरा टेबल भरा हुआ था गुलदस्तों से । मतलब मानव थक जाता उन्हे फेकते हुए ।
    "जानबूझ कर परेशान कर रहे हों ना मुझे ? मजा आ रहा है क्या आपको ?" मानव गुस्से में दत्ता की तरफ पलट कर चिल्लाया ।
    "मै तो बस तुम्हे खुश करने के लिए....!", दत्ता की बात पूरी होने से पहले ही मानव बोला "जब दुखी करने के लिए इतना कुछ कर चुके हो तो क्यू चाहिए मेरी खुशी ? मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो । वरना मुझे ही छोड़ दो ।"
    वेधा ने सबको निकल चलने का इशारा किया । इन लोगो की बहस बढ़ने वाली थी अब । उनके जाते ही दत्ता अपना माथा सहलाते हुए बैठ गया । एक ठंडी सांस छोड़ कर उसने कहा "तुमसे शादी करने के लिए इतना ड्रामा किया है और अब ऐसे ही छोड़ दू? नही छोड़ सकता । ना ही तुम्हे तुम्हारे हाल पर छोड़ सकता हु । बस एक दिन की बात थी जब तुम्हे थोड़ी सी तकलीफ दी । उसके बाद खुद से वादा किया था कि अब जिंदगी भर छोटी सी आंच भी नही आयेगी तुम पर ।"
    मानव हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा "मतलब ? आप...! "
    "अब तुझे जो समझना है समझ ले । क्युकी मेरे कुछ कहने का असर तुम पर होगा नही । दुनिया का सबसे झूठा इंसान बन चुका हू तुम्हारी नजरो में । कुछ नही बता रहा आज के बाद मैं तुम्हे ।" दत्ता ने नाराजगी से अपना मुंह फेर लिया ।
    "ऐसे कैसे नही बताओगे ? मेरे सवालों का जवाब कौन देगा फिर ? आपने क्यू की मुझसे शादी और मुझसे करनी थी तो दीदी को क्यू बीच में फसाया ? आपने कहा कल आप उनसे मिले थे । तो अब वो कहा है ?" मानव ने उसके सामने खड़े होकर सवालों की छड़ी लगा दी ।
    दत्ता ने एक भी शब्द मुंह से नही निकाला । मानव पूरे एक मिनट तक इंतजार करने के बाद बोला "मुझे मेरे सवालों के जवाब चाहिए ।"
    "पहले मुझे वादा चाहिए ।" दत्ता ने बाहें मोड़ ली ।
    "कैसा वादा ?" मानव की आंखे छोटी हो गई ।
    "तुम मेरी सारी बाते मानोगे बिना कोई जिद किए ।" दत्ता ने कहा ।
    "नही मानूंगा ।" मानव ने एक पल का भी समय जाया नही किया । दत्ता की सारी बाते मान लेना मतलब उसके आगे घुटने टेक देना हो गया ।
    "तो जाओ मैं भी कुछ नही बता रहा ।" दत्ता ने आराम से कहा ।
    हाथो की मुट्ठियां बनाकर जैसे तैसे मानव ने अपना गुस्सा काबू करने की कोशिश की । जब नही हुआ तो टेबल पर से एक गुलदस्ता उठाकर उसने दत्ता के मुंह पर मार दिया "मत बताओ कुछ । जानना भी नही है मुझे ।"
    पैर पटकते हुए वो दुबारा अपने कमरे में चला गया । अपना मुंह सहलाता दत्ता उसे जाता हुआ देख कर मुस्कुरा रहा था ।

    ************

    सुबह का समय ,

    दत्ता ने हाथ पकड़ा हुआ था मानव का जब वो तैयार होकर नीचे आए । मानव ने सफेद रंग की शर्ट पर काले रंग की पैंट पहनी थी जो शायद उसका यूनिफॉर्म था । उसके अलावा उसकी पीठ पर छोटा सा बैग था ।
    वेधा ने मानव को देख हाथ हिला दिया । मानव ने बदले में सिर्फ सर हिलाया । वो दोनो बाहर आए तो एकलव्य गाड़ी लेकर तैयार था । मानव ने एक नजर अपने आसपास डाली । मोहल्ले के लोग रुक रुककर उन्हे देख रहे थे । मानव को शर्मिंदगी महसूस होने लगी । वो जानता था सब उसे घिन भरे भाव से देख रहे है लेकिन दत्ता के होते कोई कुछ बोलेगा नही ।
    इसी बीच किसी ने उनकी बलाईया लेकर कहा "भगवान तुम्हारा जोड़ा हमेशा बनाए रखे । लोगो की बातो पर ध्यान ना देना । वो भगवान पर भी सवाल उठा देते है ।"
    दत्ता ने मुस्कुरा कर देखा एक किन्नर हाथ में सब्जी की थैली लेकर अपने रास्ते से जा रही थी । लेकिन उसकी नजरे उन्हे आंखो में चमक लिए देख रही थी ।
    इसी बीच एकलव्य ने गाड़ी का दरवाजा खोला । मानव को अंदर बिठा कर दत्ता भी बैठा और गाड़ी वहा से निकल गई । वेधा उन्हे ही जाते हुए देख रहा था ।
    मैक्स ने कहा "क्या लगता है बॉस ? मानव ठीक रहेगा कॉलेज में ?"
    "नही पता । दत्ता ने खबरे छपने नही दी थी । लेकिन जिन्हे पता होगा वो तो बाते फैलाएंगे ।" वेधा ने चिंता भरी आवाज में कहा ।


    यूनिवर्सिटी के गेट से लगातार तीन गाड़िया एक के पीछे एक प्रवेश कर गई । हर कोई पलट कर उन्हे देख रहा था क्युकी वो किसकी है पहचानने में देर नहीं लगती थी ।
    जैसे ही गाड़ी से मानव बाहर आया सब उसे देख आपस में बाते करने लगे । मानव ने अपने मन को पूरी तरह तैयार कर लिया था । सर झुका कर वो आगे बढ़ा तभी दत्ता ने उसका हाथ थामा और चल दिया । मानव ने सवाल नही किया की वो क्यू साथ आ रहा है ? क्युकी दत्ता के होने से उसे राहत मिल रही थी । सभी लोग चुपचाप उनके रास्ते से हटकर एक तरफ होने लगे ।
    अथर्व अभी अभी आया था । उसने भी ये नजारा देखा और सर हिलाकर वो अपनी क्लास की तरफ निकल गया ।
    मानव की क्लास में अभी ज्यादा लोग आए नही थे । लेकिन युतिका, अविका और मानव का सबसे करीबी दोस्त सौरभ आया हुआ था ।
    "मानव ! इधर आ जा ।" सौरभ ने आवाज देकर उसे बुलाया जो जरा भी नही बदली थी । जबकि सौरभ भी मृदुला की शादी अटेंड करने आया था । मानव को राहत हुई , उसका दोस्त उसे जज नही कर रहा ।
    वही बाकी सबकी नजरे मानव पर आ गई थी । क्लास में भी धीमी आवाज में उसके बारे में बाते शुरू हो गई । गहरी सांस लेते हुए मानव सीधे सौरभ के पास जा बैठा । उनके ठीक पीछे युतिका और अविका बैठी हुई थी । युतिका फौरन ही आगे होकर उनसे बातो में लग गई लेकिन अविका आंखे घुमा अपने फोन में कुछ करने लगी ।
    दत्ता ने बाहर से ही मानव को एक नजर देखा जो सौरभ और युतिका दोनो से बात करने लगा था ।
    "यहां तक तो सब ठीक है ।" दत्ता ने खुदसे कहा और पलट कर चला गया ।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 8. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 8

    Words: 1653

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुबह का समय था जब क्लास के अंदर अपने दोस्तो के बीच बैठा मानव अचानक गुमसुम हो चुका था । न जाने क्यों उसे कुछ लोगो की नजरे अपने शरीर को भेदती हुई महसूस हो रही थी । उसका मन कर रहा था कही भाग जाए और खुदको छुपा ले । बड़ी मुश्किल से दुनिया का सामना करने की हिम्मत की थी । लेकिन लोग इसे आसान बनने दे तब ना । उसके दोस्तो का एकदम साधारण बरताव और वही थोड़ा सा ध्यान कानो में पड़ रही खुसर फुसर पर दिया जाए तो उसे अपने बारे में काफी घटिया शब्द सुनने को मिल रहे थे ।
    मानव ने आंखे कसकर बंद करते हुए हाथो की मुट्ठियां बना ली । तभी अचानक ही अविका ने कहा "वेल मानव , अपने भाई अथर्व से मिले तुम ? सुना है उसके हाथ में कुछ इंजरी हुई हल्दी वाले दिन ?"
    मानव ने चौक कर उसकी तरफ देखा । युतिका ने कहा "इंजरी ? लेकिन मैंने तो नही देखी ?"
    सौरभ ने भी सर हिलाया क्युकी शादी के दिन वो पूरा समय अथर्व के साथ था । वहा दूसरा किसी को जानता भी तो नही था ।
    अविका ने बारी बारी तीनो को देखा और फिर अजीब सी मुस्कान के साथ बोली "आह, पता तो तब चलेगा ना जब वो तुम्हे दिखाता उस दिन ? आज सुबह देखा मैने , उसके हाथ पर बैंडेज बंधी हुई थी ।"
    "अच्छा ? तुम्हे कैसे पता चला फिर उसे इंजरी हल्दी वाले दिन ही हुई ?" युतिका ने भौंहे उठा दी । अविका उनसे बात करने के लिए कभी दिलचस्पी ले ऐसा होता नहीं था । यकीनन वो कुछ तो दिमाग में सोच कर बात शुरू कर रही थी ।
    अविका ने सर हिला दिया "बस ऐसे ही, मै हल्दी वाले दिन वहा से गुजर रही थी जब मैंने भाऊ को अथर्व का हाथ मरोडते हुए देखा । उनकी बाते सुनी तो जानकर हैरानी हुई । उन्होंने ऐसा किया क्युकी अथर्व ने सबके सामने मानव को हल्दी लगाने के लिए छुआ था । आई मिन अपनी होने वाली पत्नी के भाई के लिए इतनी पजेसिव नेस, काफी शॉकिंग है ना ? उसके अगले दिन ही तुम्हारी अनोखी शादी देखने को मिली । तब मुझे कुछ कुछ लगा कि मृदुला जाधव से शादी करने का ड्रामा कर भाऊ ने सबको उल्लू बना दिया ।"
    मानव का जबड़ा कस गया । उसकी आंखो मे नमी आने लगी । एकदम से सामने चेहरा फेरकर उसने अपना सर झुका लिया ।
    युतिका अविका को डाट लगाते हुए बोली "अपनी बकवास बंद करो और ज्यादा तर्क वितर्क करना है ना तुझे तो भाऊ को बुला देती हु । आधे रास्ते पहुंचे होंगे सिर्फ । उनके सामने बोलना फिर ये बाते ।"
    अविका ने उसे घूरा और मुंह बिगाड़ कर चुप हो गई ।
    मानव की हिम्मत लगातार जवाब दे रही थी और उसे क्या पता था ये तो अभी बस शुरुवात ही है । तभी एकदम से सब शांत हो गए । कक्षा की अध्यापक अंदर आ चुकी थी ।
    प्रोफेसर माहिरा माथुर , उम्र सत्ताईस से ज्यादा नही थी । सब पर सरसरी नजर डाल कर उसने सर झुका बैठे मानव को देखा । उसने सर हिला दिया क्युकी दुनिया से यही उम्मीद की जा सकती थी । वैसे मानव उसका पसंदीदा विद्यार्थी था । वो हमेशा कक्षा में पहला आता था और काफी शांत बच्चा था । सबके मुंह से उसके लिए तारीफ ही निकलती थी । बस यही कारण था अविका को उसे नापसंद करने का । वो भी बहुत होशियार थी । लेकिन मानव के आगे कभी जा ना सकी । हमेशा एक या दो नंबर पीछे ही चाहे कितनी भी कोशिश कर ले । इस वजह से कोई कमी नहीं छोड़ती थी वो मानव का मोरल डाउन करने में । अब तो उसे पक्की वजह मिल चुकी थी ।
    मिस माथुर ने एक गहरी सांस भरते हुए कहा "तो आज का चैप्टर शुरू करे ?"
    "हा , लेकिन दो मिनट की सूचना के बाद ।" दरवाजे से आई आवाज से मिस माहिरा की आंखे छोटी हो गई ।
    उसने देखा काले एक जैसे कुर्ते पहने कुछ लड़के लड़कियां अंदर आ रहे थे बिना अनुमति लिए । सबसे आगे वाले लड़के को हर कोई जानता था । स्टूडेंट यूनियन का नालायक प्रेसिडेंट सार्थक । उसके दो चमचे उससे काफी कम उम्र के लग रहे थे अनुराधा और विराग ।
    माहिरा ने अपने हाथ बांध लिए "कैसी सूचना ?"
    "यही .... कुछ लोग कॉलेज के साथ साथ समाज का वातावरण खराब कर रहे है । तो अच्छा नागरिक होने के नाते अपना फर्ज निभाने आया हु ।" सार्थक ने टेढ़ी मुस्कान के साथ माहिरा से नजरे हटाकर क्लास में घुमाई और मानव को देखा । मानव ने फौरन अपना गला तर कर लिया ।
    " और आप कौन है ? समाज के ठेकेदार ? समाज का वातावरण खराब हो रहा है? क्युकी तुम जैसे लोग खुले आम घूम रहे है ?", माहिरा व्यंग से बोली "मिस्टर सार्थक बाहर चले जाइए । आपकी सूचना मेरे लेक्चर के बाद ।"
    "दो मिनट शांत हो जा माथुर । ये बात जरूरी है ।" सार्थक ने उसे पूरी तरह नजरंदाज करते हुए कहा तो माहिरा का जबड़ा कस गया ।
    वही सार्थक आगे बोला "मानव जाधव , कौन है ? चल खड़े हो जा ।"
    "ये मेरी क्लास है । यहां आकर तुम मेरे स्टूडेंट्स को परेशान नही कर सकते ।" माहिरा ने इस बार तेज आवाज में कहा तो सार्थक ने कान बंद कर लिया ।
    "आजा भाई बाहर आ बात करने के लिए । ये आज चिल्ला चिल्लाकर मेरे कान के परदे फाड़ देगी ।" सार्थक ने कहा तो मानव सहम गया ।
    "सुनाई नही देता क्या ?", सार्थक ने मानव को बात ना मानता देख विराग से कहा "लेकर आ जरा इसे ।"
    विराग जा पाता उससे पहले ही माहिरा उसके रास्ते में खड़ी हो गई "आउट, जस्ट गेट आउट ऑफ माई क्लासरूम । अगले एक मिनट में तुम यहां नजर आए तो मैं प्रिंसिपल को बुला लूंगी ।"
    "वो तो आकर मुझे कच्छा खा जायेगा ।", सार्थक ने चिढ़कर कहा "क्लास खत्म होते ही चुपचाप सारे ग्राउंड में जमा हो जाना । इसके बारे ने ठोस निर्णय लेना होगा । और तू जाधव , भागने की कोशिश की तो दुबारा कदम नही रख पाएगा कॉलेज में । वैसे ज्यादा कुछ नहीं करना । नाक रगड़ कर सबसे माफी मांग लेगा और अपनी गलती को सुधार लेगा तो हम जरूर इस बारे में कुछ सोचेंगे ।"
    अविका के चेहरे पर दुनिया भर का सुकून दिखने लगा ।
    सार्थक ने जाने से पहले अपने हाथ खड़े कर माहिरा से पूछा "अब ठीक ।"
    माहिरा ने चेहरा फेर लिया । सार्थक दुबारा एक नजर मानव पर डालकर बाहर निकल गया । उसके पीछे सारी पलटन भी चली गई ।
    मानव की आंखो में जमा हुआ पानी आंसू बनकर गालों पर बहने लगा । माहिरा ने उसे देख अपने चेहरे पर हाथ फेर लिया "मेरी क्लास से कोई भी ग्राउंड में गया या इस बकवास में अपने ही क्लासमेट के विरुद्ध खड़ा हुआ । मुझसे बुरा फिर कोई नही होगा जान लो ये बात । चलो सब किताबे निकालो ।"
    सबका ध्यान मानव से हटाने के लिए माहिरा ने पढ़ाना शुरू कर दिया जबकि वो खुद भी काफी डिस्टर्ब हो चुकी थी ।

    अपनी क्लास से काफी हड़बड़ी में निकला अथर्व, जब उसने सुना की सीनियर्स के बीच मानव को लेकर कोई मीटिंग हुई थी कल । मानव की क्लास के बाहर आकर वो हाफने लगा । हल्के से अंदर झांक कर देखने पर उसे मानव नजर आया । अथर्व ने चैन की सांस ली । लेकिन अभी सीनियर्स के ग्रुप को रोकने की जरूरत थी । अथर्व तेजी से पलट कर जाने लगा । रास्ते में ही उसने पूछा की सीनियर्स का ग्रुप कही देखा है ?
    उस लड़के ने डरते हुए स्विमिंग पूल एरिया बताया और वो ऐसे भागा मानो पीछे कोई भूत पड़ गया हो । अथर्व की आंखे सिकुड़ गई । वो तेजी से पुल एरिया की तरफ चला गया ।
    पुल एरिया का प्रवेश द्वार बंद था । अथर्व ने जैसे ही दरवाजा खोला काले कपड़े पहने दो बाउंसर से उसका सामना हो गया । उन दोनो ने हाथ अड़ाकर अथर्व का रास्ता रोक लिया । लेकिन अथर्व का ध्यान उनकी तरफ ना होकर पुल के किनारे कुर्सी डाले बैठे दत्ता पर था ।
    सीनियर्स का पूरा ग्रुप पानी में खड़ा थर थर कांप रहा था । हालाकि इसकी वजह डर नही ये अथर्व समझ गया । क्युकी दत्ता के लोग लगातार पानी में बर्फ की सिल्लियां डाल रहे थे ।
    दत्ता के ठीक पीछे एकलव्य खड़ा था । उसने दत्ता को उसकी गन सौंपी तो उसने आराम से कुर्सी पर पसरते हुए कहा "सब तैयार है ? रेस शुरू करने से पहले कुछ नियम जान लो । जो पहले पहुंचेगा उसे यहां से भागने का मौका मिलेगा । और जिसके सर से किताब नीचे गिरी उसे मैं गोली मार दूंगा । बाकी दूसरा जीते नही उसके लिए तुम लोग उसे पीछे भी खीच सकते हो । तो चलो शुरू करते है ।"
    इतना कहकर दत्ता ने हाथ ऊपर उठाकर गोली चला दी । पुल में डरे हुए चेहरे लेकर खड़े अब तक सार्थक को उम्मीद से देख रहे थे की वो उन्हे बचा लेगा । लेकिन रेस जितने के लिए सार्थक सबसे पहले सर पर किताब को बैलेंस किए हुए चल रहा था । न जाने उसके लोग कहा मर चुके थे । कही ना कही उसे अंदाजा हो चुका था वो क्यू नही आ रहे होगे ?
    बाकी सब सार्थक को देख सकते में आ गए । उन्होंने उसे पकड़ने के लिए तेजी से चलना शुरू कर दिया । हालाकि पानी में डाली बर्फ की सिल्लियां पैर से टकरा कर उनका रास्ता रोक रही थी । और ज्यादा देर वो पानी में रह भी ना पाते अब । दत्ता ने लड़का लड़की किसी पर दया नही दिखाई । सब उसकी सर्द नजरो के साथ गन प्वाइंट पर थे ।



    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 9. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 9

    Words: 1956

    Estimated Reading Time: 12 min

    सुबह का समय था जब वेधा अपनी गाड़ी से बाहर आकर यहां वहा देखने लगा । अभी वो ढूंढ ही रहा था की किसी ने उसे आवाज लगाई "वेधा !"
    उसने पलट कर आवाज की दिशा में देखा । दत्ता की दादी चंद्रकला गायकवाड़ अपने बॉडीगार्ड के साथ खड़ी थी ।
    वेधा जल्दी से उनके पास पहुंचा । कुछ समय पहले ही उन्होंने फोन करके वेधा को बताया था उन्हे रेगुलर चैकप के लिए जाना है । काफी बार वेधा उनके साथ गया था तो उसके लिए ये नई बात नही थी । दत्ता की फैमिली के साथ वो काफी करीब था । जैसे दत्ता और वेधा की दोस्ती है ठीक उसी तरह देवराज और वेधा के पिता की दोस्ती थी ।
    "पहले बताती मै घर पर लेने आ जाता ?" वेधा ने कहकर उनका आशीर्वाद लेने झुक गया ।
    चंद्रकला ने उसके कंधे पर हाथ रखा "परेशान होने जैसी कोई बात नही । तुम्हे भी काम होता है ।"
    कहकर उसने अपने आदमी को जाने का इशारा किया और खुद वेधा के साथ अंदर जाने लगी ।
    "कैसा है मेरा दत्ता ? नाराज है मुझ पर ?" चंद्रकला ने सवाल किया ।
    "क्यू नाराज होगा वो आपके ऊपर ?" वेधा ने कहा ।
    "मैने बिना उसकी अनुमति लिए मृदुला के साथ रिश्ता तय कर दिया । लेकिन उसने एक बार भी मना नही किया जबकि कुछ भी बोलने के लिए वो कभी नही कतराता । मृदुला चली गई , उसे दुख हुआ होगा बहुत । क्या वो ढूंढ रहा है उसे ?" चंद्रकला परेशानी से बोली ।
    "वो क्यू दुखी होगा । लड्डू फूट रहे थे उसके मन में ।", वेधा बड़बड़ाया और फिर उसने चंद्रकला से कहा "चली गई ना वो , अब हमे क्या करना है ? उसका बाप ढूंढ रहा है उसे ।"
    "तो मानव को क्यू पकड़ रखा है दत्ता ने ? क्या उसे परेशान कर रहा है वो ? ये सब ठीक नहीं है बेटा । उसे समझा ना तू ... मानव को जाने दे । उस बच्चे की क्या गलती इस सबमें ? ठीक है उसने बदला लेने के लिए कर लिया जो किया । लेकिन आगे इन चीजों को बढ़ाने की क्या जरूरत ? दर्शना कितनी परेशान है वहा । कल तो पुलिस लेकर घर पहुंची थी । हेतवी ने भी उसे ही सुना कर निकाल दिया । नाराज होने का हेतवी को एक और मौका मिल गया । तू दत्ता को बता मानव को छोड़ दे और घर लौट आए । उसकी आई कुछ बुरा नही चाहती उसका ।" चंद्रकला कहती जा रही थी । वेधा ने अपने बालो में हाथ घुमा लिया । अच्छा हुआ ये बाते सुनने के लिए दत्ता नही था यहां , वरना भड़क ही जाता ?
    चलते हुए वो वेटिंग एरिया में पहुंच चुके थे । वेधा ने चंद्रकला को एक कुर्सी पर बैठने को कहा और काउंटर पर चला गया । रिसेप्शनिस्ट फौरन ही उनकी अपॉइंटमेंट मैनेज कर रही थी लेकिन वेधा ने ऐसा करने से मना कर दिया ।
    वो दुबारा चंद्रकला के पास लौटा और दूसरी कुर्सी पर अपने पैर मोड़कर बैठ गया । एक गहरी सांस भर कर उसने कहा "आजी आप चिंता ना करो । कोई परेशान नही कर रहा दत्ता उसे । आपको भी पता है वो कितना प्यार करता है मानव को ?"
    "उनका दोस्ती वाला प्यार मै समझती हु । लेकिन उनकी अपनी अपनी जिंदगी है । ये शादी का बंधन एक साथ रख नही पाएगा उन्हे । बस हो गया ना अब , मुझे पता है दत्ता का गुस्सा ज्यादा से ज्यादा एक दिन तक रहता है । अगर मानव पर नाराजगी नही है तो उसे जाने दे उसके परिवार के पास ?" चंद्रकला ने कह कर उसका हाथ थाम लिया ।
    "आजी ! एक बात आप अच्छे से समझ कर दिमाग में बिठा ही लो । दत्ता मानव को नही छोड़ेगा क्युकी उसका प्यार कभी भी दोस्ती वाला नही था । ये उससे बढ़कर है । अब तो सब कुछ उसके हाथ में आ गया । वो मानव के लिए किसी से भी लड़ सकता है , किसी से भी !" वेधा ने अपनी हर एक बात पर जोर देते हुए कहा तो चंद्रकला उसकी तरफ देखती रह गई ।
    "मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा वेधा । क्या ये सही है ? लोग क्या कहेंगे ?" कुछ समय बाद चंद्रकला अपना सर पकड़ कर बोली ।
    "आपके लिए कौन जरूरी है ? दत्ता या लोग ? मै जितना समझता हु , प्यार में कुछ भी सही गलत नहीं होता । ये बात मैने दत्ता से ही सीखी है । आजी एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा होगा जब दत्ता के मुंह से मानव का जिक्र ना हुआ । वो पागल है उसके लिए । जितना उसे रोकने की कोशिश करोगे वो सबसे दूर होता चला जाएगा ।" वेधा ने पीछे पसरते हुए कहा ।
    चंद्रकला ने आगे कहा "मानव ? उसके बारे में क्या ? अपनी जिद के चलते बांध रखेगा उसे जिंदगी भर ?"
    "ये बात मुझसे मत पूछो । मुझे भी गुस्सा आया था इस जबरदस्ती की शादी पर । इतना ही दम था उसमे तो उसका दिल जीतकर दिखाता । लेकिन वो ना डरपोक है मानव के मामले में । अब आगे जो होगा वही देख लेगा । मै बस ध्यान रखूंगा मानव इस सबमें हर्ट ना हो जाए ।", वेधा ने कहा और थोड़ा परेशान हो गया "लेकिन एक तरह से सही हुआ भी लग रहा है । मानव को जरूरत है दत्ता की , इससे पहले की वो मुसीबत फिर उसकी जिंदगी में दस्तक दे ।"
    वेधा की आखिरी बात पर चंद्रकला की आंखे सिकुड़ गई "कैसी मुसीबत ?"
    वेधा के कुछ बोलने से पहले ही रिसेप्शनिस्ट ने आवाज देकर कहा "मिस्टर वेधा आपका नंबर है ।"
    वेधा ने सर हिलाया और चंद्रकला को लेकर डॉक्टर के केबिन में छोड़ा । चैकअप में समय लगना था इसलिए वेधा थोड़ी देर ले लिए बाहर आ गया । एक वार्ड के सामने से वो गुजर रहा था जब अचानक ही उसके कदम ठिठक गए ।
    दुबारा पीछे आकर उसने वार्ड के कांच से अंदर देखा । वहा शिवा किसी पेशेंट के पास खड़ा था । उसके अलावा कमरे में सात से आठ लड़के थे , जिनकी उम्र तेरह से बीस साल के बीच ही थी ।
    वेधा अच्छे से जानता था इन सभी को शिवा ने गोद ले रखा था । अगर वो ना होता तो किसी गैंग के अंडर ये इतनी सी उम्र में शामिल होकर खून करना शुरू कर देते । या फिर कही चोरी कर रहे होते । शिवा के साथ उन्हे रहने के लिए छत , खाने के लिए तीन समय का खाना उसके अलावा उन सबको वो जबरदस्ती पढने भेज देता था । बाकी बचे समय में यही लोग उसके लिए खबरे जमा कर लाते थे ।
    वो अपना काम सिर्फ पैसे के लिए करते थे । चाहे फिर सामने दत्ता जैसा डॉन हो , कोई छोटा मोटा गैंग मेंबर या फिर पुलिस भी क्यू ना हो ।
    वेधा ने अपना सर झटक दिया और वो जाने वाला था कि तभी शिवा की नजर उस पर पड़ी ।
    वेधा चौक गया " भाग लो,  वरना ये फिर बकवास करेगा ।"
    वेधा जैसे ही पलटा अपने सामने किसी को देख दरवाजे से टकराते हुए बचा ।
    "शिवा से मिलने आए हो और बिना मिले जाओगे ?" गण्या ने कहा ।
    "नही मैं क्यों उससे मिलने आने लगा ?" वेधा ने कहकर उसकी बगल से निकल कर जाना चाहा । पर गण्या उसका रास्ता रोके खड़ा हो गया । इसी बीच शिवा बाहर आ गया । वेधा ने मुंह खोलकर ठंडी सांस छोड़ी ।

    **************

    कॉलेज में , माहिरा ने अपना लेक्चर खत्म किया और वो सबकी अटेंडेंस लेने लगी । क्लास शुरू होने के बाद भी दूर रहने वाले बच्चे आते रहते थे इसलिए माहिरा अक्सर क्लास के बाद अटेंडेंस लेती थी ताकि कोई एब्सेंट ना लग जाए । परीक्षा के लिए अटेंडेंस काफी जरूरी थी ।
    अगला नंबर मानव का था । माहिरा कुछ पल के लिए रुकी । फिर अचानक ही उसने छोटी सी मुस्कान के साथ कहा "मानव दत्ता गायकवाड़ !"
    मानव की आंखे बड़ी हो गई और क्लास में फिर आवाज होना शुरू हो गई । उसका नाम बदल दिया गया था ।माहिरा ने ऊपर देखा "प्रेजेंट है ना ?"
    "हा मैम, बिलकुल है ।" युतिका ने मानव को दिखा कर कहा । क्युकी मानव का दिमाग तो सुन्न पड़ चुका था ।
    माहिरा ने अटेंड्स लेने के बाद कहा "इस बात पर ज्यादा रिएक्ट करने की जरूरत नही । पढ़े लिखे लोगो को गावरो वाली हरकते शोभा नही देती । किसी को फिर भी दिक्कत है तो मानव से पहले उसके पति से जाकर बार कर लेना , जैसे इस समय आपके प्यारे सीनियर्स का ग्रुप कर रहा होगा ।"
    माहिरा की बात पर पूरी क्लास में मौत सी ठंडक फेल गई । वही युतिका माहिरा की तरफ देखते हुए मुस्कुरा दी ।
    माहिरा के जाते ही अविका ने युतिका का हाथ दबाकर कहा "क्या कह कर गई मिस माथुर ? तूने भाऊ को बताया जो कुछ समय पहले क्लास में हुआ ?"
    "तो क्या मानव को सबके सामने खड़ा होकर माफी मांगते देखती , बिना उसकी गलती हुए ?" युतिका ने उसका हाथ झटक दिया । वो खड़ी हुई और मानव , सौरभ से लाइब्रेरी चलने के लिए कहा । आज माहिरा ने लगातार दो लेक्चर लिए थे इसलिए युतिका क्लास में बैठना नही चाहती थी ।
    उनके जाते ही अविका दात पीसकर रह गई ।

    वही स्विमिंग पुल एरिया में पानी से बाहर आकर सारे सीनियर्स फर्श पर पड़े ठंड से कांप रहे थे । कुछ समय और वो पानी में रहते तो पक्का ठंड से अकड़ जाते । अथर्व अंदर आकर खड़ा था । वही कॉलेज के प्रिंसिपल भी पहुंच चुके थे ।
    दत्ता सच में किसी को गोली ना मार दे इसलिए वो गिड़गिड़ा रहा था "बेटा कॉलेज में ऐसा कुछ मत कर जिससे मामला संभालना मुश्किल हो जाए । बच्चे है वो ! हो गई गलती , माफ कर दो ।"
    "बच्चे और ये ? वो सत्ताईस साल का घोड़ा पढ़ाई कर रहा है यहां? कौन सी डिग्री ले रहा है जो पूरी ही नही हो रही ?" दत्ता ने सर्द आवाज में कहा तो प्रिंसिपल की बोलती बंद हो गई ।
    "ज्यादा कुछ नही नेताओ के छोड़े गए पिल्ले है । ताकि कॉलेज उनके कंट्रोल में रह सके ।" एकलव्य ने कहकर जैसे उनका परदा फाश कर दिया हो । प्रिंसिपल का चेहरा सफेद पड़ गया ।
    दत्ता ने उसके सर पर गन लगा दी "फालतू समय नही है मेरे पास । जो करना है कर ... ये और इसके जैसे दुबारा कॉलेज में दिखने नही चाहिए । अगर चाहता है कॉलेज चलता रहे तो जरा सुरक्षा का भी अच्छा इंतजाम रख । कोई बाहर वाला यहां घुसता हुआ दिखा तो सबसे पहले आकर तेरा सर ढूंढूंगा अपनी गन खाली करने के लिए ।"
    प्रिंसिपल ने गला तर करते हुए जल्दी जल्दी हा में सर हिलाया । अगले कुछ ही समय में सार्थक के साथ साथ पाच दूसरे लडको को भी कॉलेज से रेस्टिगेट कर दिया गया ।
    सार्थक की कॉलर पकड़ कर दत्ता ने ठंडी आवाज में कहा "मामला शांति से सुलझाना था इसलिए जिंदा है । अब जा और जिसे तूने माफी मांगने के लिए कहा था उससे जाकर माफी मांग । वो भी नाक रगड़ कर ।"
    सार्थक ने डरते हुए हा में सर हिला दिया ।

    पूरी लाइब्रेरी हैरानी से सार्थक की तरफ देख रही थी जो अपने ग्रुप के साथ मानव के सामने गिरकर माफी मांग रहे थे । मानव का तो अब दिमाग ही खराब हो गया । वही उन्हे देख सबके मन में डर बैठ गया की मानव के सामने तो क्या उसकी पीठ पीछे भी वो उसके बारे में कुछ बोल नहीं सकते ।


    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 10. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 10

    Words: 1850

    Estimated Reading Time: 12 min

    दोपहर का समय था जब चंद्रकला को डॉक्टर के पास छोड़ कर वेधा यू ही टहलते हुए एक वार्ड के बाहर आ रुका । लेकिन उसे क्या पता था अंदर मौजूद शिवा उसे देख लेगा । वेधा ने जल्दी से निकलना चाहा इससे पहले की शिवा उसे पकड़ ले । पर वो भाग पाता उतने में शिवा का लड़का गणेश उसका रास्ता रोके खड़ा हो गया । इसी बीच शिवा भी बाहर आ चुका था । एक हाथ वेधा के कंधे पर रख वो दूसरी तरफ से वेधा के करीब खड़ा हुआ ।
    वेधा ने पहले अपने कंधे की तरफ देखा फिर दूसरी तरफ गर्दन घुमा कर शिवा के चेहरे की तरफ नजरे उठाई । हा शिवा लंबा था उससे । उसके चेहरे पर हमेशा बच्चो जैसी एक मासूमियत रहती थी और बस इसी से डर लगता था वेधा को , कही वो इसके आगे किसी दिन बेबस ना हो जाए ।
    "मेरा कंधा है खुटी नही , जिसपर हाथ टांग कर तुम खड़े हो गए ?" वेधा ने कंधा नीचे किया तो शिवा का हाथ सरक गया ।
    वेधा ने बात बढ़ने से पहले ही जाना चाहा लेकिन शिवा ने उसके हाथ की कलाई पकड़ ली "अरे रुक ना । बिना बात किए जाना अच्छा नही होता , किसी ने सिखाया नही क्या ? लगता है सब मुझे ही सिखाना पड़ेगा ।"
    शिवा ने उसे पीछे खींच कर फिर उसके कंधे पर हाथ रख दिया "यहां क्या कर रहे हो ? ये मत कहना मेरा पीछा करते हुए आए । कसम से , हार्ट अटैक आ जायेगा ?"
    शिवा ने दूसरा हाथ अपने दिल पर रखा तो वेधा का मुंह बिगड़ गया "खुदको इतना इंपोर्टेंस देने की जरूरत नही । तुम जिस रास्ते से गुजरोगे वहा पैर भी नही लगाऊंगा मैं ।"
    "दिल ने दर्द उठ गया । लेकिन याद रखना , मजनू की तरह उस रास्ते पर किसी दिन चलना शुरू करोगे जिस पर तुम्हारा हाथ पकड़े मै चल रहा हूंगा ।" , शिवा ने काफी आराम से कहा "फिर प्यार के दुश्मनों के लिए तुम्हे गाना होगा , कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को !"
    गणेश मुस्कुराते हुए सर हिलाकर अंदर चला गया । वही वेधा ने फिर शिवा का हाथ झटक दिया और उसे हल्का सा पीछे धक्का देकर कहा "तुम्हारा हाथ पकड़ने से अच्छा मै उसे खुद काट दूंगा और दूसरे हाथ से तुम्हे पत्थर भी मारूंगा ।"
    शिवा अब भी मुस्कुरा रहा था "तुम्हारे फेके हुए पत्थर भी फूल समझ कर स्वीकार कर लूंगा । तुम फेको तो सही ।"
    "आह, इससे बात करना ही बेकार है ।" वेधा झल्लाते हुए दुबारा डॉक्टर के केबिन की तरफ बढ़ा जहा वो चंद्रकला को छोड़ आया था । लेकिन अब शिवा कहा उसे अकेला छोड़ने वाला था । पीछे पीछे चला आया जिसे देख कर वेधा चिढ़ते हुए पलटा "जाकर अपना पेशेंट देखो ना ?"
    "देख तो लिया , और कितना देखू ? वो भी तब जब असली देखने वाली चीज यहां हो ?" शिवा ने बाहें मोड़कर भौंहे उचका दी । ऐसा करने से उसकी शर्ट के बटन पर तनाव आया था । साथ ही हाथो की उभरी मांसपेशियां साफ नजर आने लगी । वेधा को गर्मी का एहसास हुआ । उसने अपनी नजरे फेर ली ।
    "जानेमन , यहां क्यों आए हो ? तबियत खराब है ? लेकिन फिर अकेले ?" शिवा ने उससे सवाल करना शुरू कर दिए ।
    इससे पहले की वेधा कोई जवाब देता दरवाजा खोल कर चंद्रकला बाहर आ गई । डॉक्टर खुद बाहर तक आया था ।
    वेधा ने शिवा को नजरंदाज कर आगे जाकर पूछा "डॉक्टर सब ठीक है ना ? कोई परेशानी वाली बात तो नही ?"
    "रेगुलर चेकअप था बेटा ! तभी मै तुम लोगो को साथ लाने से मना कर देती हु ।" चंद्रकला सर हिलाकर बोली ।
    "दादी की हेल्थ बहुत अच्छी है सर । सब कुछ नॉर्मल है । आप बेफिक्र रहिए वो बहुत साल जीने वाली है अभी ।" डॉक्टर ने कहा तो वेधा ने सर हिला दिया ।
    अनुमति लेकर डॉक्टर चला गया । वेधा ने चंद्रकला से चलने का इशारा किया लेकिन वो शिवा को बिलकुल ही भूल चुका था की वो उनके रास्ते में ही खड़ा था ।
    "ये कौन है ?" चंद्रकला की भौंहे उठ गई । उसने पहले कभी भी शिवा को नही देखा था ।
    "कोई नही !"
    "दोस्त !"
    वेधा और शिवा ने एक साथ ही कहा और अगले ही पल वो एक दूसरे को आंखे छोटी कर देखने लगे ।
    "वो कह रहा है दोस्त है, तू ना कह रहा है?" चंद्रकला उलझन से बोली ।
    "आह, अच्छा ! मतलब तू मुझे दोस्त नही समझता । उससे ज्यादा समझता है । परिवार , है ना ?", शिवा ने कहा और अपने हाथ जोड़ लिए "मै इसका परिवार ! आप मुझे नही जानती लेकिन मैं आपको जानता हूं । अब दत्ता भाऊ की आजी को कौन नही जानेगा ?"
    चंद्रकला को उसकी बाते समझ नही आई लेकिन वो मुस्कुरा कर बोली "अच्छा है ! मतलब दोस्त ही हो । कभी देखा नहीं ना तुम्हे , वरना दत्ता के दोस्त काफी बार घर आए है ।"
    "अपने पास इतना समय नहीं होता । वरना आ जाता । लेकिन चलो हम फिर भी मिल गए । अब मेरी शक्ल याद रखना । जाने ... मेरा मतलब वेधा का परिवार ।" शिवा बड़ी सी मुस्कान के साथ बोला ।
    वेधा आंखे फाड़े उसे देख रहा था । इस लड़के को बातो में हरा पाना काफी मुश्किल था । कुछ न कुछ कहने को होता ही था इसके पास ।
    इसी बीच वेधा पीछे रह गया और शिवा चंद्रकला से बाते करते हुए आगे चल पड़ा । वेधा ने गहरी सांस लेकर अपना सर झटक दिया ।

    चंद्रकला को गाड़ी में बिठाकर वेधा ने दरवाजा बंद कर दिया । फौरन कांच को खोलकर चंद्रकला ने उसका हाथ पकड़ लिया "तुम्हारी बातो के बारे में मै सोचूंगी और हेतवी से बात भी करूंगी । तू दत्ता को समझाना । उन पर अच्छे से नजर रख । मानव को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए , मुझे ऊपर जाकर अपनी सहेली को जवाब देना है ।"
    "आप ऐसी बाते मत करो । मै हु ना । ज्यादा चिंता नको करू । " वेधा ने कहा ।
    चंद्रकला ने हल्की मुस्कान के साथ अपना हाथ हिलाया और शिवा को सुनाई दे इतनी तेज आवाज में कहा "अपने परिवार को किसी दिन घर ले आना ।"
    वेधा ने आंखे घुमा कर गार्ड से गाड़ी आराम से ले जाने को कहा । चंद्रकला के जाते ही वेधा तेजी से अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगा । वो जानता था शिवा अभी भी उसके पीछे ही है ।
    "हेय जानेमन , रुक ना ?" शिवा ने कहा तो वेधा गुस्से में उसकी तरफ पलटा ।
    "क्या है ? तुम्हारी बकवास खत्म क्यू नही होती ? हर पल कहने को कुछ ना कुछ होता ही है । पीछा छोड़ो अब मेरा । जाना है मुझे ।" वेधा ने कहकर गाड़ी का दरवाजा खोलना चाहा ।
    शिवा दरवाजे से ही टेक लगाकर खड़ा हो गया "मेरी बाते कभी खत्म नहीं होंगी जब तक वो तुम्हारे लिए है । कुछ पता चला नाना भाऊ के बारे में । लेकिन तुम्हे जाने की जल्दी है तो.... मै नही बता रहा अब ।"
    शिवा एकदम से निकलने लगा तो वेधा का मुंह खुल गया । तुरंत ही पलट कर वेधा ने कहा "शिवा , रुको ! पूरी बात बताकर जाओ ।"
    "पहले सॉरी बोल ?" शिवा रुक गया लेकिन पलटा नही ।
    वेधा ने गहरी सांस भरकर अपनी गर्दन सहलाई । ये इंसान हमेशा उसकी दिमाग की नसे छेड़ देता था ।
    "अच्छा सॉरी ! अब इधर वापस आ । क्या पता चला बताओ जल्दी ।" वेधा ने कहा तो शिवा भागा हुआ चेहरे पर मुस्कान लिए वापस आया ।
    "हा तो बात ऐसी है ना ! अभी मैं अपने लड़के को लेकर घर जाऊंगा । फिर सारी गाडियां लेकर तुम्हारे गैरेज आऊंगा । वही बात करेंगे , जब तुम अपने हाथो से चाय बनाकर पिलाओगे ।" शिवा कहकर चला गया और उसे सुनकर वेधा हक्का बक्का रह गया । अगर बताना ही नही था तो सॉरी किसलिए बुलवाया ?


    कॉलेज छूट चुका था और मानव अथर्व का हाथ पकड़े एक तरफ खड़ा था । उसके अलावा वहा सौरभ , युतिका भी वही मौजूद थे ।
    मानव ने इस बार सख्त आवाज में पूछा "तुम्हे ये चोट कैसे लगी ? अगर इस बार कहा ना की बाथरूम में गिर गए थे , मुझसे बुरा कोई नही होगा ?"
    अथर्व उसे काफी बार समझा चुका था । उसने एक गहरी सांस भर ली "इसका मतलब तुम्हे पता चल गया ये कैसे हुआ ?"
    "वो जरूरी नहीं है । मुझे तुम्हारे मुंह से सिर्फ उस इंसान का नाम सुनना है ।" मानव की सांसे गुस्से में तेज हो रही थी ।
    "इतना भी कुछ खास नही हुआ जो तुम ऐसे रिएक्ट करोगे । ये बात छोड़ो और मुझे बताओ , तुम ठीक हो ना उनके साथ ? अगर तुम्हे वहा कोई भी तकलीफ है तो मुझे बताओ । किसी भी हालात में मै तुम्हे उस आदमी से आजाद कराऊंगा ।" अथर्व ने गंभीर होकर कहा ।
    मानव के कहने से पहले ही यूतिका बोली "तुम सबने सोच क्या रखा है मेरे भाऊ के बारे में ?"
    "बिलकुल वही , जैसे उसके लक्षण है ।" अथर्व ने तुरंत ही जवाब दिया ।
    "जबान संभाल कर बात करो समझे ना ? मै एक शब्द उनके खिलाफ नही सुनने वाली ।" युतिका ने उसे उंगली दिखाई ।
    "सुनना पड़ेगा । क्युकी उस इंसान ने जो किया उसकी वजह से मेरा हमेशा मुस्कुराते रहने वाला भाई भूल चुका है मुस्कुराना ।" अथर्व ने जैसे ही कहा युतिका चुप हो गई । उसने अपनी उंगली भी नीचे कर ली क्युकी बोलने के लिए कुछ था ही नही उसके पास ।
    "तुम दोनो कभी तो शांत रह लिया करो और अथर्व , कुछ पूछा मैने तुमसे ?" मानव ने कहा ।
    सौरभ उसके गले में हाथ डालकर बोला "तुम्हारी सीडी एक ही जगह क्यू अटकी पड़ी है ? वो नही बताना चाहता , जवाब तुम्हे पता है ... लेकिन फिर भी बात को बढ़ाकर ध्वनि प्रदूषण करना है तुम्हे ? ग्लोबल वार्मिंग आसमान छू रही है । एक अच्छे नागरिक का कर्तव्य निभाओ , अपने गले को शांति देकर ?"
    मानव ने उसे घूर कर देखा "मेरे प्यारे समाज प्रेमी ? अपने गले को तुम ही शांति दो वरना मै हमेशा के लिए इसे शांत कर दूंगा ।"
    सौरभ एकदम से सीधा हो गया । इससे पहले की उनमें से कोई कुछ भी कहता एकलव्य ने आकर कहा "मानव चलो!"
    मानव एक मिनट रुकने के लिए कहने ही वाला था की एकलव्य ने कहा "अभी !"
    दत्ता के बाद उसका ये आदमी , मानव का दिमाग खराब कर चुका था । भले ही वो सदमे में था शादी वाले दिन । लेकिन भुला नहीं था की एकलव्य ने बंदूक लगाई थी दर्शना के सर पर । अपने पैर पटकते हुए बिना किसी को बाय कर वो चला गया ।
    अथर्व बुरी तरह एकलव्य को घूर रहा था । इसी बीच एकलव्य ने युतिका को घर चले जाने का इशारा किया । युतिका भी चुपचाप निकल गई ।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 11. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 11

    Words: 1751

    Estimated Reading Time: 11 min

    शाम का समय था जब गैरेज के ऑफिस का दरवाजा तेज आवाज के साथ खुला और मानव काफी गुस्से में अंदर दाखिल हुआ । आवाज सुनकर वेधा ने लगभग अपने कान पर हाथ रख लिया था "तुम पति पत्नी दरवाजे तोड़ कर रख दोगे तब चैन मिलेगा तुम्हे ।"
    वेधा ने कहकर सामने देखा । मानव का चेहरा लाल हो चुका था । गुस्से के कारण उसकी सांसे तेज चल रही थी । वही मानव की नजरे सिर्फ वेधा पर बनी हुई थी । उसके सामने बैठकर अभी भी आराम से बैठकर चाय का मजा ले रहे शिवा से उसे कोई मतलब नहीं था । पैर पटकते हुए वो वेधा के पास गया "कहा है वो ?"
    "कौन ?" वेधा ने अनजान बनते हुए एक भौह उठा दी ।
    "वो राक्षस ! जो सिर्फ मेरा खून पीना बाकी रह गया है । कहा है वो ?" मानव ने दहाड़ कर कहा ।
    वेधा आराम से बोला "तुम्हारा पति ? वो .. पीछे बैठा है ।"
    मानव ने जैसे ही सुना एक सनसनी उसके शरीर ने दौड़ गई । अपने गले को तर करते हुए वो धीरे से पीछे पलट गया । दत्ता सोफे पर अपने हाथ टिकाए भावहीन चेहरे से उसकी तरफ देख रहा था ।
    "राक्षस ? खून पीना बाकी रह गया हु मै ?" अपनी तरफ उंगली करते हुए दत्ता बिलकुल ही सर्द आवाज में बोला ।
    मानव ने तुरंत ही वेधा की तरफ चेहरा कर लिया ।
    वेधा के चेहरे पर शरारती मुस्कान खेल रही थी "हा मानव ? बोलो ना ? क्यू ढूंढ रहे थे अपने राक्षस पति को ?"
    जैसे ही मानव को याद आया उसका डर तेल लेने चला गया और वो गुब्बारे की तरह फूटा "पूछो इनसे ! इन्होंने मेरा नाम क्यू बदलवाया ?"
    वेधा ने नासमझी से उसकी तरफ देखा तो मानव ने कहा "पापा के नाम की जगह उन्होंने अपना नाम और आखिरी नाम लगाया ?"
    वेधा ने हैरानी से दत्ता की तरफ देखा । ये कब हुआ ? उसे पता तक नहीं चला । लेकिन वेधा ने तारीफ में उसकी वा वाही करते हुए हाथ उठा दिया । मानव ने ये देख गुस्से में जवाब के लिए दत्ता की तरफ देखा ।
    दत्ता आराम से पीछे पसर कर बोला "दिस इज हाउ इट वर्क्स बेबी ! शादी के बाद पति का नाम लगाना जरूरी हो जाता है । इसलिए तुम्हारे पति ने ये शुभ काम सबसे पहले कर दिया ।"
    मानव का मुंह खुला रह गया । अब इस पर क्या ही कहता वो ?
    इसी बीच शिवा ने अपनी खत्म हो चुकी चाय का कप नीचे रख ताली बजाते हुए कहा "हाउ रोमेंटिक ! मै भी यही करूंगा शादी के बाद ।"
    " सब करते है । इसमें इतना खास क्या था ? इतना ही की वो दोनो लड़के है ।" वेधा के मुंह से निकला । पर अचानक ही उसे एहसास हुआ की शिवा हाथ धोकर उसके पीछे पड़ा है । मतलब वो उसका नाम बदलने की बात कर रहा था । वेधा के समझ आते ही उसने शिवा को देखा जो दात फाड़कर उसकी तरफ देख रहा था ।
    "ठीक है ! छोड़ो इस बात को । लेकिन इनसे पूछो उन्होंने अथर्व को हर्ट क्यू किया ?" मानव ने अपना सर झटक कर फिर वेधा से सवाल किया ।
    वेधा ने दत्ता की तरफ देखा "सुन लिया ना राक्षस । बता जल्दी ।"
    "क्या उसने खुद बोला मैने उसके साथ कुछ किया है ?" दत्ता ने पूछा ।
    "आप तो झूठ नही बोलते ना मुझसे ?" मानव ने कहकर दत्ता को निशब्द कर दिया ।
    कुछ पल मानव को देखने के बाद दत्ता ठंडी सांस छोड़ते हुए बोला "चल छोड़ दे उस बात को । जो किया उसके लिए पछतावा है मुझे । माफी मांग लूंगा , खुश ?"
    मानव दात पर दात घिसने लगा । उसका बस चलता तो दत्ता का सर फोड देता ।
    वेधा ने फौरन कहा "वो टेबल पर रखी मूर्ति मेरे बाबा की दी हुई आखिरी निशानी है । उसे छोड़कर तुम कुछ भी तोड़ सकते हो ।"
    मानव का बस इतना सुनना था और उसने बड़ा सा वास उठाकर फर्श पर दे मारा । एक मिनट के लिए वहा सब शांत पड़ गया । शायद मानव को भी अब थोड़ा बेहतर महसूस हो रहा था ।
    उसने वेधा को देखा तो वेधा ने सर हिलाकर कहा "अभी भी कुछ बचा है ?"
    "ये आखिरी है ।", कहकर मानव ने अपनी उंगली दत्ता की तरफ की "पूछो इनसे ! क्यू किया उन्होंने आज कॉलेज में आकर तमाशा ? सब देख रहे थे मेरी तरफ जब वो सीनियर्स माफी मांग रहे थे ?"
    इस बार दत्ता का चेहरा गंभीर हो गया "उसके लिए मुझे कोई अफसोस नहीं । वो करना जरूरी था । अब लोग सिर्फ तुझे देख सकते है कुछ कहने की किसी में हिम्मत नही आयेगी ।"
    "पर वो... बहुत ज्यादा था ।" दत्ता की सख्त आवाज से मानव की आवाज उसके गले से भी मुश्किल से निकली ।
    दत्ता उठकर उसके करीब आया । मानव ने अपने कदम पीछे लेने चाहे तो दत्ता ने उसकी आंखो में देखते हुए उसके कंधे थाम लिए "पकड़ लू ना?"
    मानव ने सर झुका लिया । दत्ता ने उसका चेहरा ऊपर उठाया "अगर प्यार से कहता या फिर विनती करता तो उन्हें मेरी बात समझ नही आती । उल्टा चार बाते मुझे ही सुनाकर कहते की गलत मै हु ।
    डर! बहुत जरूरी होता है कुछ भी समझाने के लिए । यही मेरा तरीका है, क्युकी दुनिया को यही भाषा समझ आती है ।"
    "दुनिया से अलग जाकर कुछ करेंगे तो सामने वाले को बात करने से हम रोक नही सकते । सबको फ्रीडम ऑफ स्पीच का अधिकार है ।" मानव ने कहा ।
    "कोई चीज तब तक ही गंद लगती है जब तक हम उसे गंदा समझे । अपने दिमाग से ये बात निकाल दे की तू या मै अजीब या अलग है ? अगर किसी को लगता है और वो अपनी फ्रीडम ऑफ स्पीच का अधिकार दिखाएगा तो मैं उसे अपने कायदे का उपयोग करके दिखाऊंगा ।", दत्ता ने कहकर मानव का सर सहला दिया "अगर तुम्हे अपने सवालों के जवाब मिल गए होंगे तो जाकर चेंज कर लो । और फ्रिज में तुम्हारी फेवरेट ब्राउनी रखी है । "
    उसने मानव को छोड़ा तो मानव चुप चाप वहा से निकल गया ।
    मानव के जाते ही दत्ता नीचे पड़े टुकड़ों से बचकर वेधा के पास पड़ी खाली कुर्सी पर जाकर बैठ गया । वेधा और शिवा मुंह खोले उसे देख रहे थे । ये आदमी किसी के साथ प्यार से भी डील कर सकता था ?
    इसी बीच एकलव्य अंदर चला आया । वो भी उनके पास जाकर खड़ा हो गया और दत्ता ने शिवा के सामने चुटकी बजाई "कुछ बताने आया था तू?"
    "हा वो नाना भाऊ ... शहर में ही है । जिस आदमी का पीछा कर रहा था मेरा लड़का , उससे मिला था नाना भाऊ । लेकिन अपनी सुरक्षा का वो खासा खयाल रख रहा है इस वजह से लड़का मुसीबत में पड गया ।", शिवा ने कहकर गहरी सांस भरी "आसानी से पकड़ में नहीं आएगा नाना भाऊ । बार बार जगह बदल लेता है वो । हफ्ते में कमसे कम चार बार । बोलो कब पकड़ना है उसे ? क्युकी हफ्ते का एक दिन वो खास जगह भी जाता है ।"
    दत्ता की आंखे छोटी हो गई "खास जगह ?"
    शिवा ने सर हिलाया । लेकिन कहने से पहले उसने वेधा को देखा जो ध्यान से नजर लगाए बैठा था उसकी बात पर ।
    शिवा ने फौरन कहा "तू कान बंद कर ले । मै नही चाहता तू सुने ।"
    "हनन? ऐसा भी क्या है ? बको जल्दी !" वेधा चिढ़ कर बोला । ये क्या बात हुई सब सुनेंगे और वो नही ?
    शिवा ने ना में सर हिलाया "मै नही बता रहा ।"
    एकलव्य ने जल्दी से जाकर वेधा के कान ढक दिए "बोलो अब !"
    शिवा ने एक पल का भी समय जाया नही किया क्युकी वेधा एकलव्य को दूर कर रहा था "चमेली बाई के पास जाता है नाना भाऊ । सुना है काफी समय से उनका लफड़ा है ।"
    वेधा ने आखिर कार एकलव्य को दूर कर ही दिया लेकिन तब तक शिवा की बात खत्म हो चुकी थी । वो पूछ पाता उससे पहले ही दत्ता बोला "मुझे जीजा से बात करने दो । जैसा आगे वो कहेंगे ।"
    शिवा ने कुछ नही कहा । नाना भाऊ के ऊपर जिस प्रकार के आरोप थे उस वजह से पुलिस पर काफी दबाव था उसे जल्द से जल्द अरेस्ट करने का ।


    गायकवाड़ निवास के बाहर एक गाड़ी आकर रूकी और उसमे से प्रणय बाहर निकल आया । पुलिस की वर्दी में लगे स्टार देख उसके ऊंचे पद का अनुमान लगाया जा सकता था । फोन पर बार करते हुए ही वो घर में घुसा तो कुछ औरतों का झुंड शायद हेतवी को दिलासा देने पहुंचा हुआ दिख रहा था । अस्मिता को भी उनके बीच बैठा देख कर प्रणय की आंखे एक पल के लिए बंद हो गई । बस कही चुगली चल रही हो और ये लड़की अपनी नाक और कान ना घुसाए ।
    प्रणय ने फोन बंद कर तेज आवाज में कहा "अस्मी मेरी चाय ?"
    अस्मिता के साथ साथ सबकी नजरे प्रणय पर चली गई । अस्मिता ने फौरन अपने पेट की तरफ इशारा किया "आठवा महीना चल रहा है मुझे । अब भी आपके चाय पानी का खयाल मै ही रखू?"
    "अच्छा हुआ याद आ गया ? वरना जिस तरह के संस्कार हमारा बच्चा तुम्हारे पेट में बैठा बैठा ले रहा है , उसके भविष्य की चिंता हो रही है मुझे ।" प्रणय ने कहा तो अस्मिता का मुंह बन गया । फौरन ही औरतों के बीच में से उठकर वो कमरे की तरफ चली गई जो नीचे ही बना हुआ था ।
    हेतवी भी सबके बीच से उठी "आप फ्रेश हो जाइए दामाद जी । चाय भिजवाती हु मै ।"
    प्रणय ने हल्के से सर हिलाया और अस्मिता के पीछे कमरे की तरफ चला गया । वही युतिका और अविका की मां अपनी बेटियो को आया हुआ देखकर उठ गई । सभी औरतों को उसने आने को कह दिया तो धीरे धीरे घर खाली हो गया ।



    आगे जानने के लिए कहानी के साथ जुड़े रहे । लेखक का मनोबल बढ़ाने के लिए एक बड़ी समीक्षा काफी जरूरी होती है । अगर आपको नही समझ आ रहा क्या लिखे तो कमसे कम यही बता दिया करे कहानी में कोई कमी है या नही ? क्या बदलाव होने चाहिए ? समीक्षा देना मुश्किल नही होता , बस दिल से कहानी के साथ जुड़ने की जरूरत है ।

  • 12. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 12

    Words: 2054

    Estimated Reading Time: 13 min

    पंचवटी, शाम का समय था जब मानव हाथ में एक प्लेट और चम्मच लेकर घर के बाहर बरामदे मे आकर खड़ा हुआ । जैसे की उसे पता चल चुका था मृदुला को दत्ता ने नही मारा तो अब वो सिर्फ नाराज था , नफरत खत्म हो चुकी थी । इस वजह से दत्ता की लाई ब्राउनीज को वो खा ही सकता था । खाने की बरबादी नही करते ।
    रेलिंग इतनी ऊंची थी की मानव अपनी कोहनी टिकाते हुए सहारा लेकर खड़ा हो सके । अनजाने में ही उसकी नजरे नीचे गई । मानव एक ही झटके में सीधा हो गया । कोई लड़की दत्ता का हाथ पकड़े खड़ी थी । उनके बीच की बाते मानव के कानो तक नही पहुंच पाई लेकिन दत्ता उसे दूर नही कर रहा ये चीज मानव को दिख रही थी । नही जानता था वो क्यू , लेकिन हमेशा की तरह कुछ अजीब सा होने लगा उसे । होठ आपस में भींच गए और चेहरा लाल होने लगा । दिमाग में शायद एक ही बात चल रही थी , वो लड़की हाथ छोड़ कर भी बात कर सकती थी दत्ता से ?
    दत्ता को भी किसी की नजरे खुद पर महसूस हुई और उसने फौरन गर्दन घुमा कर मानव की दिशा में देखा। झट से उसने लड़की के हाथो से अपने हाथ छुड़ा लिए । मानव को लग रहा था जैसे उसके दिल को किसी ने मुट्ठी में जकड़ रखा हो और अब जाकर वो आजाद हो पाया । जो वो खा रहा था उसे ज्यादा चबाने की भी जरूरत नही थी लेकिन मानव जोर जोर से उसे चबा रहा था ।
    इसी बीच लड़की ने कुछ कहा और दत्ता का ध्यान फिर उस पर चला गया । शायद वो जाने की अनुमति ले रही थी । दत्ता ने सर हिलाया तो गाड़ी में बैठकर वो निकल गई ।
    उसके जाते ही दत्ता ने गहरी सांस लेकर दुबारा मानव को देखा । मानव पलके झपकाने के लिए भी तैयार नहीं था । जिससे दत्ता समझ गया वो अपनी नाराजगी जता रहा है ।
    यू तो दत्ता और मृदुला कभी इतने क्लोज नही रहे । अगर उन्हे मिलकर कुछ बात करनी भी होती तो दर्शना मानव को साथ भेज दिया करती थी । मानव कितनी भी उन्हे प्राइवेसी देने की कोशिश करे लेकिन वो दोनो ही उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते थे , मानो अकेले में दुश्मन बिल्लियों को तरह आपस मे झपट पड़े एक दूसरे पर । बस इसी वजह से मानव को मृदुला से कभी जलन नही हुई ।
    वही दत्ता ने अपने हाथों को रगड़ना शुरू कर दिया । वो दिखा रहा था किसी और का टच वो मिटा रहा है । उसे तो आज भी वो बात याद थी लेकिन शायद मानव भूल चुका था ।

    तेरह साल का मानव सड़क पर लापरवाह सा चला जा रहा था मानो किसी का डर ही उसे ना हो । स्कूल यूनिफॉर्म में था और बैग न जाने कहा छोड़ कर आया । उसकी लंबाई शुरू से ही काफी कम थी जिसकी वजह से वो छोटा बच्चा ही लगता देखने वालो को ।
    इसी बीच उसने सड़क को पार करना चाहा लेकिन अचानक ही आई गाड़ी को देख कर वो चार पांच कदम पीछे हटकर सूखे पत्ते की तरह कांप गया ।
    और तभी उसके कानो में एक जानी पहचानी सर्द आवाज पड़ी जो ठीक पीछे से आई थी "माऊ!"
    मानव की आंखे चमक उठी । वो पलटा तो कुछ ही दूरी पर बने कॉफी शॉप के सामने से दत्ता ने उसे आवाज लगाई थी । उसके चेहरे पर चिंता थी । अगले ही पल वो तेज कदमों से मानव के पास आया । मानव ने मुस्कुरा कर बाहें फैला दी । दत्ता ने उसे उठा कर डाट लगाई "यहां क्या कर रहे हो तुम ? ये खेलने की जगह है ? बिना सोचे समझे सड़क पार करने चले ? कहा है तुम्हारा ड्राइवर?"
    मानव उसकी डांट पर भी मुस्कुरा रहा था । दत्ता भी शायद कॉलेज से निकल कर ही यहां बैठा होगा मानव समझ गया । उसने अपने छोटे छोटे हाथ दत्ता के गाल पर रखे और वो शांत पड़ गया ।
    मानव ने कहा "वो ,,, पता नही फिर गाड़ी छोड़ कर कहा चले गए । हर बार मुझे परेशान करते है तो आज मैं भी उन्हे परेशान करूंगा । ढूंढने दो थोड़ी देर ताकि अगली बार ऐसा कुछ करने की हिम्मत नही होगी उनकी ।"
    "शैतान !" दत्ता बड़बड़ाया और उसे अपने साथ लेकर कॉफी शॉप में चला गया । पूरी जगह खाली थी सिर्फ एक टेबल को छोड़ कर । दत्ता वही बैठ गया जहा पहले से ही एक लड़की बैठी हुई थी । वो सुंदर थी और मानव ने आज तक उसे नही देखा था । दत्ता का ज्यादा से ज्यादा समय वेधा और बाकी सबके साथ गुजरता था । आज तो एकलव्य भी उसके साथ नही था सोच कर मानव की आंखे छोटी हो गई ।
    दत्ता ने उसे अपनी गोद से उतारा नही था बैठने के बाद भी । वेटर को बुला कर उसने आइसक्रीम लाने के लिए कहा ।
    "रिश्वत देकर मेरा मुंह बंद करना चाहते हो ?" मानव ने धीरे से कहा तो दत्ता की एक भौह ऊपर उठ गई । मानव की तरफ उसने सवालिया नजरो से देखा तो मानव ने कहा "गर्लफ्रेंड है ?"
    सामने बैठी लड़की एकदम से हंस पड़ी । मानव की नजरे अब दत्ता से हट उसकी तरफ चली गई ।
    लड़की ने हाथ खड़े कर लिए "सॉरी ! मै बस निकल ही रही थी ।"
    मानव ने कुछ नही कहा तो दत्ता ने सर हिला दिया । वो लड़की उसके बाजू को छूकर चली गई । मानव बिना पलके झपकाए दत्ता को भौंहे आपस में जोड़ कर देखने लगा ।
    दत्ता ने लंबी सांस छोड़ी "गर्लफ्रेंड नही है । साथ में प्रोजेक्ट कर रहे है बस !"
    मानव हल्का सा आगे आया और अपने हाथ से उसका बाजू झाड़ने लगा ।
    "क्या कर रहे हो ?", दत्ता के सवाल पर मानव ने नाराजगी से कहा "उसका टच मिटा रहा हु । मुझे पसंद नही आया ये । जब मैं बड़े होकर आपसे शादी करूंगा तो किसी को छूना तो दूर देखने भी नही दूंगा आपकी तरफ ।"
    दत्ता को उसकी बात ने हैरान नही किया । कुछ दिनों पहले ही आकर मानव ने उससे कुछ अजीब सी बाते कही थी । जैसे की वो बहुत हैंडसम है और उसकी क्लास की लड़किया हर समय दत्ता के बारे में ही बात करती है । उसने ये भी बताया कि उसे पसंद नही आता जब कोई और दत्ता के बारे में ऐसा कुछ कहे । उन लड़कियों की तरह ही मानव दत्ता को पसंद करता है वगैरा वगैरा!
    दत्ता समझ चुका था मानव का आकर्षण लडको की तरफ है । उसे अजीब नही लगा । जैसा वो पहले मानव के साथ था वैसे ही आज भी था । हा वो शादी की बात कह दे तो दत्ता उसे बच्चा और उसका बचपना समझ कर नजरंदाज कर देता था । क्युकी इस बगबग मशीन की बाते सोने के बाद ही बंद होती थी ।
    "हम्म! पहले बड़े हो जाओ । और हमारा प्रोमिस याद है ना ?" दत्ता ने कहकर उसके लिए आइसक्रीम से चम्मच भर लिया ।
    मानव ने सर हिलाया "किसी और के सामने ये सब बाते नही करनी है । ना ही किसी को बताना है मुझे लड़के पसंद है , वरना सब मुझे परेशान करेंगे ।"
    "वेरी गुड!" दत्ता ने उसके मुंह के सामने चम्मच कर दिया ।

    गाड़ी के हॉर्न को सुनकर दत्ता होश में आया । वो अभी भी मानव को देख रहा था और एक मुस्कान थी उसके चेहरे पर । मानव ने मुंह बिगाड़ लिया और दत्ता की नजरो से ओझल हो गया । दत्ता की नजरे अब सामने हो गई तो वेधा के साथ साथ वहा काम करने वाले लड़के मुंह खोले दत्ता को मुस्कुराते हुए देख रहे थे । शायद वेधा का हाथ ही गलती से हॉर्न पर दब गया था ।
    सकपकाते हुए दत्ता ने अपनी मुस्कान छुपा ली और तेजी से अंदर चला गया ।


    रात का समय था जब वो मोहल्ला बिल्कुल ही शांत हो चुका था । सिर्फ किसी जगह कुत्तों के भौंकने की आवाज कानो में पड़ रही थी । कमरे में मानव बिस्तर पर लगातार करवट बदल रहा था । नींद तो जैसे उसकी आंखो से गायब ही हो चुकी थी । आखिर में मानव उठकर बैठ गया । उसकी नजरे कमरे मे डिम लाइट होने के बावजूद दत्ता को साफ देख सकती थी । वो सोफे पर मुश्किल से सो पा रहा था । लेकिन एक बार भी उसने इसकी शिकायत नहीं की थी ।
    मानव बिस्तर से उतर कर उसके सामने जा खड़ा हुआ । दत्ता शांति से सो रहा था ये बात मानव को कहा रास आनी थी । लेकिन मुंह बना कर वो दुबारा बिस्तर की तरफ गया । चादर घसीटते हुए लाकर उसने काफी आराम से दत्ता को ओढ़ाई और दबे कदमों से कमरे के बाहर निकल गया ।

    गैरेज में अभी भी लाइट जल रही थी और कुछ आवाजे कानो में पड़ रही थी । मानव ने देखा तो वेधा गाड़ी के इंजन में झाक कर कुछ कर रहा था । अपने पीछे किसी की आहट पाकर उसने धीरे से सर घुमा कर देखा ।
    "मानव ? इस समय जाग रहा है? नींद नही आ रही क्या ?" वेधा सीधे होकर उसकी तरफ पलट गया ।
    "आप भी तो जाग रहे हो ?" मानव ने उसका सवाल उसे ही दाग दिया ।
    "मै जाग रहा हु क्युकी उस नमूने की गाड़िया जल्द से जल्द ठीक करवा कर वापस भेजनी है । वरना हर रोज मुंह उठाकर वो यहां आता रहेगा । सोच रहा हु । उसका भी एक आध स्क्रू टाइट कर दू । शायद ढीला हो चुका है ?" वेधा ने कहा तो मानव मुस्कुराए बिना रह नहीं पाया ।
    "आ जा! बैठ इधर ।" वेधा ने कुर्सी की तरफ इशारा कर दिया । मानव ने कुर्सी ली और उसे वेधा के करीब ले जाकर रख दिया ताकि वो गाड़ी में झांक सके वेधा क्या कर रहा है देखने के लिए ।
    "दत्ता खर्राटे लेता है?" वेधा ने शरारत से कहा । ताकि मानव से कुछ तो बात शुरू कर सके ।
    "नही !", मानव ने कहा "मुझे ही नींद नहीं आ रही ।"
    "छोटा सा तो सर है । ज्यादा सोच कर उसे परेशान करते रहोगे तो नींद कैसे आएगी ?" वेधा ने दुबारा अपना काम शुरू कर दिया ।
    "कैसे परेशान ना हु ? आप मेरी जगह होते तब समझ आता । शिवा का उदाहरण ले लो । अगर वो जबरदस्ती आपसे शादी कर लेता । तब आप कैसे रिएक्ट करते ?" मानव ने कुर्सी पर पसर कर कहा । शैतान तो वो अब भी था ।
    वेधा के हाथ रुक गए "जान ले लेता उस कमीने की,,,,, की ,,, की!"
    वेधा की बात बीच में ही बंद हो गई क्युकी दत्ता के आकर उसका कान पकड़ कर मरोड़ दिया था ।
    "साले पहले ही यहां मुसीबतों का पहाड़ है , तू उसे बढ़ा कर आसमान पर पहुंच दे ।" दत्ता ने गुस्से में वेधा के कान में कहा ।
    वेधा ने उसका हाथ झटक कर अपना कान छुड़ा लिया । कान को सहला कर उसने मानव को देखा जो दत्ता के आने से सर झुका कर बैठ चुका था ।
    वेधा ने कहा "बिलकुल इसी तरह कान पकड़ कर मैं उससे सवाल करता । तुम क्यू डर रहे हो ? थप्पड़ मार ,,,,! "
    दत्ता ने काफी जोर से गला खराश दिया तो वेधा बात को बदलते हुए बोला "कान पकड़ने में क्या हर्ज है । कौन रोकेगा तुम्हे ? तुम बात करो तब तो तुम्हारा मन हल्का होगा ना ?"
    मानव ने कुछ भी नही कहा ।
    वेधा ने सर हिला दिया । दत्ता को घूर कर वो धीमी आवाज में बोला "क्या जरूरत थी शादी वाले दिन इतना कैरेक्टर में घुसने की ? संभाल ... ये तेरी ही गलती है । ना तू गुस्सा करता ना ही वो तुझ से डरने लगता ।"
    दत्ता ने एक गहरी सांस भर ली । मानव कोई ऐसा शख्स नही था जिसे दत्ता डरा धमकाकर अपनी बात समझा देता । उसे प्यार से काम लेना था और वो अब सीखना भी होगा ।
    मानव की कुर्सी को अपनी तरफ घुमा कर वो घुटनो के बल आकर बैठ गया । उसके करीबी से मानव खुदमें ही सिमट चुका था ।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 13. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 13

    Words: 1383

    Estimated Reading Time: 9 min

    रात का समय था जब दत्ता घुटनो के बल आकर मानव के सामने बैठा था । उसके हाथ कुर्सी पर थे और मानव खुदमे सिमट कर बैठा था जैसे दत्ता उसे अभी खा जायेगा ।
    दत्ता को पछतावा हो रहा था उसने क्या कर दिया है मानव के साथ । उसका भरोसा वो खो चुका था । जिस इंसान से बात करने के लिए मानव को हल्की सी भी हिचक नहीं होती थी उसे ही आज वो आंखे उठाकर देखने से भी डर रहा है ।
    दत्ता ने मानव के सामने हाथ किया "अपना हाथ दो ?"
    मानव ने बहुत ही धीरे से अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया ।
    दत्ता ने गहरी आवाज में कहा "मुझको नही समझ आता गोल गोल बाते घुमाकर माफी कैसे मांगते है । मुझे एक ही शब्द और बात पता है, सॉरी बोलकर घुटनो पर आ जाओ ।"
    मानव ने पलके उठाकर उसकी तरफ देखा तो दत्ता ने उसका हाथ अपने सीने से लगा लिया "एक आखिरी बार माफ कर दे । तुम्हे रुलाने की और दुखी करने की गलती दुबारा कभी नही करूंगा । अगर आज के बाद कभी ऊंची आवाज में बात भी की तो तेरी जो मर्जी आए मुझे सजा दे । तेरा बात ना करना खल रहा है बहुत । सांस लेना मुश्किल हो चुका है मेरे लिए ।"
    "मै नही भूल सकता आपने जबरदस्ती शादी की थी मुझसे । क्या मिल गया ये सब करके ? बस ईगो सेटिस्फाई हुआ होगा ? आपकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आए लेकिन मेरा तो सब बिखर चुका है । लोग मुझ पर सवाल उठा रहे है । अपनी मां से दूर हो गया , उनको देख भी नही पा रहा मै ? न जाने मेरे कारण उन्हें कितनी बाते सुनने को मिल रही होंगी ? माफी मांग कर आप निकल जाओगे । पर कुछ ठीक तो नहीं कर सकते ।", मानव ने कहकर अपना हाथ छुड़ा लिया "जो चल रहा है , जैसे चल रहा है और जब तक चलेगा ... चलने दो ।"
    मानव ने बात को खत्म किया और खड़े होना चाहा । दत्ता उठकर खड़ा हुआ तो मानव तुरंत ही ऊपर निकल गया ।
    वेधा ने अफसोस के साथ सर हिला दिया "तुझे सिर्फ गुस्सा करना आता है बात करना नही ।"
    दत्ता ने उसकी तरफ देखा तो वेधा दुबारा अपने काम में लग गया "उसे सच बता दे । वो वैलिड रीजन चाहता है तेरे से । माफी मांगने से कुछ नही होगा । उसे सच्चाई जानने का हक है ।"
    "उस कड़वी सच्चाई को जानने से बेहतर होगा वो मुझसे नाराज़ ही रहे ।" दत्ता ने कहा और सामने पड़ी कुर्सी पर सर पकड़ते हुए बैठ गया ।
    वेधा ने तिरछी नजर उस पर डाली "उसका गुजरा हुआ कल है जो कभी भी सामने आकर खड़ा हो जायेगा । तु लाख सुरक्षा में रख उसको । छोटी सी गलती भी भारी पड़ेगी तुझ पर ।"
    "जो आज तक नही होने दिया वो आगे भी नही होगा । मेरे लोगो को अच्छे से पता है उसके साथ मै कोई रिस्क नहीं लूंगा । गलती की गुंजाइश ही नहीं ।" दत्ता ने कहा ।
    वेधा ने ठंडी सांस छोड़ी "अति आत्मविश्वास मत रख दत्ता । उसके मन की तैयारी होनी चाहिए अगर गलती से किसी सिचुएशन में पड़ा ?"
    "जो याद नही वो बताकर फायदा नही । उसकी परेशानियां हमेशा से मेरी थी ।" दत्ता ने कहा और आंखे बंद कर सर पीछे कुर्सी पर टिका दिया । मतलब साफ था इस विषय पर आगे वो बात नही करेगा ।

    सुबह होते ही दत्ता ने पूरे घर को अपने सर पर उठा लिया था । बुखार मानव को आया था लेकिन गर्म वो हो रहा था ।
    वेधा ने उसे शांत रहने के लिए बोलकर कहा "डॉक्टर बस आ रहा है तू बैठ जा तब तक । पानी पी और चिल्लाना बंद कर । मानव तक तेरी आवाज पहुंची तो बच्चा फिर डर जायेगा ।"
    दत्ता अपने बाल बिगाड़ कर बोला "सब मेरी ही गलती है । उसका खयाल नहीं रख पा रहा ।"
    "बच्चा है क्या वो ?" मैक्स के मुंह से निकला तो दत्ता ने खा जाने वाली नजरो से उसे देखना शुरू कर दिया ।
    मैक्स की आवाज हलक में अटक गई "हा हा , बच्चा ही तो है । मै नीचे जाकर रास्ते पर खड़ा होता हु डॉक्टर को लाने के लिए ।"
    वो ऐसे भागा मानो पीछे भूत पड़ गया हो । इसी बीच वेधा ने कहा "उसे अपनी आई की जरूरत है । तू एक बार उन्हे फोन ...!"
    "कोई जरूरत नहीं है ।", वेधा की बात काट कर दत्ता ने कहा "मै काफी हु उसका खयाल रखने के लिए । उस घर के लोगो की परछाई भी नही चाहिए मुझे माऊ पर ।"
    वेधा ने कहा "बाकी लोगो का छोड़ लेकिन उसकी आई से तो दूर मत कर उसे ?"
    "तू जानता है मैने उन्हे अभी मिला दिया तो क्या होगा ? वो मुझे छोड़ कर जाने की जिद्द करेगा । मै नही करना चाहता उसे दूर ।" दत्ता वेधा पर ही भड़क उठा ।
    वेधा ने हाथ दिखा दिए "ठीक है । जो तेरी मर्जी आए वो कर । अभी तो ... उसके पास जा ।"
    "डॉक्टर को जल्दी आने को बोल । वरना वो आयेगा अपने पैरो पर लेकिन छोड़ने के लिए चार कंधे चाहिए होंगे ।" दत्ता ने ठंडी आवाज में कहा और तेज कदमों से कमरे मे लौट गया । वेधा ने तीन चार बार गहरी सांसे लेकर खुद पर संयम रखा । कभी कभी दत्ता भी उसका दिमाग घुमा देता था । वेधा का बहुत मन हुआ दर्शना को फोन करने का , लेकिन दत्ता के आगे किसकी चली है जो उसकी चलेगी ?
    चुप चाप वो डॉक्टर को फोन मिला कर दत्ता की धमकी पास करने लगा ।

    मानव का शरीर बुखार से तप रहा था । ठंड लगने के कारण वो चादर में सिकुड़ कर सो रहा था । उसकी आंखे हल्की सी खुली और वो नम होकर बहने लगी । जब भी वो बीमार होता था दर्शना एक पल के लिए भी उसे अकेला नही छोड़ती थी । मानव ने तकिए को ही बाजुओं में कस कर रोते हुए दर्शना को पुकारा "मम्मा !"
    उसकी आवाज ने दत्ता के दिल पर खंजर की तरह वार कर दिया था । करीब जाकर उसने तकिया छुड़ा लिया और मानव के पास बैठ गया । मानव ने देखने की तकलीफ नहीं उठाई । दत्ता के परफ्यूम से ही उसके आस पास होने का वो अंदाजा लगा लेता था । दत्ता ने उसे करीब कर लिया तो मानव ने तुरंत ही अपना चेहरा उसके पेट में छुपा कर कमर पर बाहें कस ली । एक हाथ सर पर तो दूसरा वो मानव के कंधे पर फिराने लगा ।
    कुछ ही समय में डॉक्टर आकर मानव को देख कर चले गए । मानव सो चुका था लेकिन उसने दत्ता को कुछ इस कदर पकड़ रखा ताकी वो दूर ना जा सके ।

    इसी बीच वेधा बिना किसी आवाज के कमरे में दाखिल हुआ । दत्ता का सर पीछे टीका हुआ था और आंखे भी बंद थी । वेधा ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो वो हल्का सा चौक गया । वेधा ने धीमी आवाज में कहा "बाहर चल कोई मिलने आया है ।"
    "आज नही । जो भी है , जाने के लिए बोल दे ।" दत्ता ने भी धीमी आवाज में जवाब दिया । उनकी फुसफुसाहट से मानव नींद में ही कसमसाने लगा । वेधा कुछ कहने वाला था लेकिन रुका और दत्ता के कान में कहा "बड़े बूढ़े है । जाने के लिए कैसे बोल दू? थोड़े परेशान है । चलकर देख ले एक बार उन्हे । वो बस तुझ से मिलना चाहते है एक बार ।"
    "ठीक है उन्हे अंदर बिठा । आ रहा हु मै ।" दत्ता ने कहा तो वेधा सर हिला कर चला गया ।
    दत्ता ने काफी आराम से मानव को दूर करना चाहा । लेकिन इस चक्कर में वो उसे जगा चुका था । मानव ने उसकी शर्ट को मुट्ठियों में भींच लिया । वो दूर होने के लिए तैयार नहीं था ।
    "बस दस मिनट दे ।" दत्ता ने उसके सर पर हाथ फिराया ।
    "नही !" मानव की आवाज में जिद थी ।
    "नीचे चलोगे ?" दत्ता ने आखिर में कहा तो मानव ने धीरे सर हिला दिया ।



    आगे जानने के लिए कहानी के साथ जुड़े रहे ।

  • 14. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 14

    Words: 1750

    Estimated Reading Time: 11 min

    पंचवटी, सुबह का समय था जब एक बूढ़ा जोड़ा उस कमरे में पहुंचा । वेधा ने उन्हें बैठने के लिए कहा "दत्ता आ रहा है ।"
    उस जोड़े ने सर हिलाकर सामने देखा । एक काला परदा लगा हुआ था बीच में । कुछ समय बाद दुसरी तरफ हलचल होती हुई दिखी और फिर दत्ता की आवाज उस जोड़े के कानो में पड़ी "नमस्कार! माफ करना सामने से बात नही कर पा रहा । फिलहाल बच्चा संभाल रहा हु एक ।"
    दत्ता ने कहकर अपनी नजरे नीचे घुमाई तो मानव हल्की सी आंखे खोल कर उसे घूर रहा था । इस समय वो दत्ता की गोद में था । उसने अभी भी दत्ता की शर्ट को कसकर मुट्ठी में भींच रखा था ताकि वो उसे दूर ना कर दे ।
    दत्ता ने मुस्कुरा कर पलके झपकाई जैसे कह रहा हो, मैने झूठ कहा क्या ?
    मानव ने आंखे बंद कर अपना चेहरा उसके सीने में छुपा लिया । दत्ता ने अपना ध्यान फिर से सामने किया जहा वो जोड़ा उसे मिलने के लिए धन्यवाद बोल रहा था , की दत्ता ने उन्हें वापस नहीं भेजा ।
    " कहिए कैसे आना हुआ ?" उसने सवाल पूछा ।
    औरत कहने से पहले थोड़ा हिचकिचाई "हमे आपकी मदत चाहिए बेटा । कुछ समय पहले जमीन का छोटा सा टुकड़ा खरीद कर सोचा था बच्चो के लिए अपनी जमा पूंजी से घर बनाएंगे । लेकिन अब ....!"
    उसने मुंह पर हाथ रखा और रोने लगी । दत्ता ने तुरंत ही वेधा की तरफ देखा तो वेधा पानी की बोतल लेकर उनके पास चला गया ।
    आदमी ने बात को आगे जारी रखा "भुवनेश विश्वकर्मा ! उसने आसपास की जमीनें खरीद ली । और बची हुई हम जैसे लोगो की जबरदस्ती छीन ली , वो भी आधे दाम में ।"
    दत्ता के माथे पर बल पड़ गए । वही मानव ने अपनी आंखे खोली । वो जानता था उस आदमी को । बहुत ही धीरे से वो बोला "विश्वकर्मा बिल्डर्स का मालिक । सार्थक उसी का भाई है ।"
    इन छोटे मोठे लोगो को दत्ता नही जानता था । उसे तो ये भी नही पता था सार्थक कौन है ? मानव ने आंखे मिच ली "जिसे आपने पानी में डुबाया था ।"
    "आह हा हा! ", दत्ता ने हल्के से सर हिला कर सामने देखा "क्या चाहते है आप दोनो ? जमीन का पूरा मोबदला या फिर जमीन ?"
    आदमी औरत एकदुसरे को देखने लगे । वेधा ने कहा "देखिए , चिंता करने की जरूरत नही । जो आप चाहते है बेखौप कहिए । आपकी परेशानी सुलझ जाएगी ।"
    "हम उनके दिए पैसे लौटा कर जमीन ही वापस चाहते है ।" दोनो एक साथ बोले ।
    "तो बस , बात खत्म ! आपकी जमीन जल्द ही आपको मिल जायेगी ।" दत्ता ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा । इसीलिए तो वो बैठा है यहां । यू ही लोग पॉलिटिक्स में देवा को सपोर्ट नहीं करते थे । दोनो ही बाप बेटे आम जनता के लिए कुछ भी करने से पीछे नहीं हटते थे ।
    वो जोड़ा हाथ जोड़ कर धन्यवाद करते हुए चला गया । वेधा ने दत्ता के सामने जाकर कहा "अब क्या आदेश है आगे ?"
    "बुला उस बिल्डर को मिलने । ना आए तो उठा लाना ।" दत्ता ने कहा । वेधा ने अपना सर हिला दिया । वो बाहर निकला ही था कि गैरेज के बाहर एक गाड़ी आकर रूकी । भले ही इंसान ना पहचाने वेधा , लेकिन गाड़िया जरूर पहचान लेता था । और ये गाड़ी जाधव परिवार की थी । वेधा हैरानी से सामने देखने लगा । अगले ही पल गाड़ी से दर्शना उतर कर बाहर आ गई ।
    वेधा ने सर हिला दिया "किसी की समझाई बात ना समझने का वरदान लेकर आया है ये लड़का । पहले मैंने कहा उसकी आई को बुला ले, तो नही ! अकड़ दिखानी थी तब । अब नही संभाल पा रहा उसे तो कैसे फट से बुला लिया ?"
    दर्शना को देख कर वेधा ने हाथ जोड़ लिए । दर्शना ने एकदम से सवाल किया "माऊ?"
    वेधा ने अंदर बने कमरे की तरफ इशारा किया । दर्शना तेजी से वहा चली गई ।
    इसी बीच अथर्व भी अंदर आ रहा था और उसी समय आ रही युतिका से उसकी टक्कर हुई । दोनो का ही ध्यान सामने था इसलिए एकदुसरे को देखा नही । अपने अपने कंधे देख कर उन्होंने ऐसा चेहरा बनाया जैसे गंभीर चोट पहुंचा दी हो सामने वाले ने ।
    "अंधे हो ? देख कर नही चला जाता ?" युतिका गुस्से ने बोली ।
    "हा हु मै अंधा । लेकिन तुम्हारे पास है ना इतनी बड़ी बड़ी आंखे ? इनका इस्तेमाल सिर्फ लोगो को घूरने के लिए करती हो ?" अथर्व ने भी गुस्से में कहा ।
    "मेरी आंखे है ! मै चाहे किसी को घुरू चाहे आंखो से ही नोच लूं ! तुम होते कौन हो बताने वाले ? एक तो गलती करो , ऊपर से सीना जोरी भी ?" युतिका उसकी तरफ पलट कर जलती निगाहों से उसे देखने लगी ।
    "क्युकी ये असल काम तो कर ही नही रहे । जाकर इलाज कराओ इनका ।" अथर्व भी उसकी तरफ पलटा ।
    "इलाज की ज्यादा जरूरत तुम्हे है । जाकर अपने दिमाग का इलाज कराओ तुम । सड़ चुका है ये , लोगो को देख कर काट खाने दौड़ पड़ते हो ?" युतिका ने तेज आवाज में कहा ।
    "क्यू नही ? एक काम करते है साथ चलते है ? तुम्हे भी बहुत जरूरत है इलाज की । क्युकी मेरा दिमाग सड़ाने का काम तुम ही करती हो ।" अथर्व की आवाज भी तेज थी । फिर क्या था उनकी तू तू मैं मैं शुरू हो गई ।
    वेधा के साथ साथ गैरेज में आए लड़के भी अपना काम छोड़ कर उन्हे ही देखने लगे । कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं था । वेधा ने तो कान में उंगली डाल ली । पहली बार इन दोनो का झगड़ा नहीं देख रहा था वो । न जाने इन्हे आपस में कौन सी दिक्कत थी । सामने आते ही गोले बारूद की बारिश कर देते थे मुंह से एक दूसरे के लिए ।
    वेधा से रहा नही गया और उनसे भी ज्यादा तेज आवाज में उसने कहा "अरे बस!"
    रास्ते से जा रहे लोग भी चौक कर उसे देखने लग गए । लेकिन उसकी आवाज से अथर्व और युतिका शांत हो चुके थे । गर्दन घुमा कर उन्होंने वेधा को देखा । जो तेजी से उनके सामने आकर बोला "समझदार लोगो से ऐसे बचकानी बात पर झगड़ा करने की उम्मीद नही थी मुझे ।"
    दोनो के कंधे पकड़ कर वो बोला "दिखाओ कितने बड़े गड्ढे पड़ गए हल्के से धक्के से ?"
    अथर्व और युतिका सकपका गए । अथर्व ने तुरंत ही कहा "शुरुवात इसने की थी ।"
    इससे पहले की जवाब में युतिका कुछ बोलती वेधा ने कहा "बस हनन? अब और नहीं !"
    युतिका ने लंबी सांस छोड़ी "मानव कहा है ? उसने कल मुझसे बोला था मेरे साथ जायेगा । इसलिए मैं आई हु इस रास्ते से ।"
    "मानव बीमार है , नही जा सकता । तुझे जाने का मन हो तो चली जा वरना मार ले छुट्टी ।" वेधा ने आराम से कहा ।
    "बीमार है ?", युतिका ने कहा "कल तो बिलकुल ठीक था ?"
    "बीमारी फोन करके आती है क्या ?" कहकर अथर्व ने आंखे घुमा ली ।
    युतिका ने उसकी बात को नजरंदाज कर दिया । अपना बैग निकालते हुए वो बोली "छोड़ो फिर ! मानव ना हो तो मजा नही आता क्लास में बैठने का । अवि (अविका) से नोट्स ले लूंगी मैं ।" दूसरी तरफ बैग को फेक कर युतिका चहकते हुए सबको हाय करने लगी ।
    वेधा ने ठंडी सांस छोड़ते हुए किसी मां की तरफ उसका बैग उठाया और फिर अभी तक अपनी ही जगह खड़े अथर्व को देखा "ओह हीरो ! आ जाओ । अपना ही समझो इस जगह को । क्युकी तुम्हारे भाई का आधा ससुराल है ये ।"
    अथर्व ने कुछ नही कहा लेकिन वेधा जरूर बड़बड़ाया "लगता है दत्ता का जीजा बनकर ही मानेगा । बहुत बार सुना है , जहा ज्यादा झगड़े वही पर प्यार होता है । ऐसा ना हो , वरना इसकी लव लाइफ का विलेन दत्ता ही बनेगा ।"

    उस कमरे में सिर्फ कुछ कुर्सियां और एक काउच था । दत्ता उस पर ही बैठा था । बस पहले उसके सीने से लगा मानव अब दर्शना के सीने से लगा रो रहा था ।
    दत्ता का चेहरा हद से ज्यादा सख्त और हाथो की मुट्ठियां बनी हुई थी । एक तो उसे मानव का खुद से दूर जाना अच्छा नही लगा था । दूसरा मानव का रोना उसे कभी पसंद नही आया था । पहले कभी भी दत्ता ने छोटी सी बात पर भी मानव को नाराज नहीं किया था , फिर उसके रोने का सवाल ही पैदा नहीं होता था । लेकिन अब शादी वाले दिन से ही उसने मानव की मुस्कान नही देखी थी ।
    "इसके बाप ने आने दिया आपको ?" अपने बालो में हाथ फिरा कर दत्ता ने दर्शना से कहा जो बार बार मानव के बालो में हाथ फिराकर उसे चूम रही थी ।
    दर्शना ने उसे घूरा "तुम बात करना सीख जाओ तमीज से । पति है वो मेरे ।"
    दत्ता ने सर हिला दिया "मेरा पति मेरा परमेश्वर ! यही तो दिक्कत है भारतीय महिलाओं की । अपने परमेश्वर में उन्हे कोई गलती ही नजर नहीं आती जबकि कुछ लोगो की हरकते जूते खाने वाली हो ? जैसे की इसका बाप , आपका पति और मेरा ससुर !"
    दर्शना का जबड़ा कस गया "तुमसे बात करना ही बेकार है ।"
    "लो अब ! सच कहूं तो लोगो को बुरा लग जाता है और झूठ बस कभी कभी बोल लेता हु मै ।", दत्ता आराम से पीछे पसर गया "मेरी बीवी को रुलाना बंद करो आप ।"
    मानव ने अपना आसुओ से भरा लाल चेहरा दर्शना के सीने से निकाल कर दत्ता की तरफ गर्दन घुमाई "मेरी मम्मी से ऐसे बात करना बंद करो । और ... और मै बीवी नही हु आपकी ।"
    "चल पति है ! लेकिन रो तो रहा है ? वो भी इन्हे देख कर । फिर बताना बनता है की मेरे पति को रुलाना बंद करो ?" दत्ता ने कहा तो दोनो मां बेटे का मन बहुत कुछ करने का हुआ ।
    मानव ने एकदम से अपनी आंखे पोंछ दी "नही रो रहा मै ! ठीक ?"
    "शाबास !", कहकर दत्ता ने उसकी नाक खीच दी । फिर वो उठकर बाहर जाते हुए बोला "मै यही हु । कुछ चाहिए हो तो आवाज लगाना ।"




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहिए ।

  • 15. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 15

    Words: 1724

    Estimated Reading Time: 11 min

    मानव और दर्शना अकेले ही उस कमरे में मौजूद थे । ज्यादा समय नही गुजरा था उन्हे अलग हुए , लेकिन फिर भी मानव पहले से ज्यादा कमजोर नजर आ रहा था।
    "तुझे कोई परेशानी है यहां? वो दत्ता , तुम्हारे साथ कोई मिसबिहेव तो नही करता ना?" दर्शना ने चिंता वश पूछा। उसके कहने के क्या मतलब था ये समझने में मानव को देर नहीं लगी। उसने तुरंत ही ना में सर हिलाया "आपको पता है वो ऐसे नही है।"
    "इतना सब कर दिया है उसने , फिर भी तू तरफदारी करना बंद मत कर ?" दर्शना ने आंखे छोटी करके उसकी तरफ देखते हुए कहा।
    "मै कोई तरफदारी नही कर रहा मम्मी। क्युकी यही सच है।" मानव ने कहा।
    "अच्छा ? फिर तू यहां दत्ता के साथ बहुत खुश होगा ? मै यू ही चिंता से मरे जा रही थी ? तो आराम से यही रह, अपनी मां से दूर ?" दर्शना का लहजा नाराजगी भरा था।
    "मम्मी !", मानव रोनी सी आवाज में बोला और आगे कहने से पहले उसने अच्छे से देखा कही दत्ता आस पास तो नही "मुझे नही रहना यहां। आप ले चलो ना साथ ?"
    "वो जाने देगा तुझे?", दर्शना ने कहा तो मानव मायूस हो गया "सबसे बड़ा सवाल , क्या पापा आने देंगे मुझे ?"
    दर्शना इस पर कुछ नही बोल पाई। उसके पास अधिकार ही नहीं था अपनी औलाद को हक से अपने घर में ले जा सके ।
    मानव इस बात को बहुत अच्छे से समझता था । उसने धीरे से कहा "मेरी चिंता मत करो। यहां बिलकुल ठीक हु मै। वो मेरा खयाल रखने में कोई कसर नहीं रखते। अगर पापा आपको आने से रोक दे तो उनकी बात सुन लेना। मेरी वजह से आपको कोई परेशानी नही होनी चाहिए।"
    "हम्म!" दर्शना बेबस थी। चाहकर भी वो कुछ कह नहीं पाई। दिल का टुकड़ा था मानव उसके। पर इतना भी हक उसके पास नही था कि अपने बेटे को साथ रखने के लिए पति के खिलाफ जा पाए।
    मानव ने आगे कहा "दीदी का कुछ पता चला?"
    "तेरे पापा ढूंढ रहे है। दत्ता से पूछा नही तूने वो शादी वाली रात कहा गया था?" दर्शना ने सवाल थोड़ी चिंता भरी आवाज में किया।
    मानव ने सर हिलाया "वो मिले थे दीदी से। और उन्होंने उसे कुछ नही किया।"

    कुछ ही समय बाद मानव आंखो में नमी लिए दर्शना को जाते देख रहा था। दत्ता ने दर्शना को गाड़ी में बिठाते हुए अभी भी दरवाजा पकड़ रखा था।
    दर्शना सख्त आवाज में बोली "एक बात बताओ ? तुम्हे कभी मृदुला से शादी करनी थी?"
    दत्ता हल्के से मुस्कुरा दिया "मुझे हमेशा माऊ से शादी करनी थी। मृदुला को मैने ही भगाया है। अब खुश?"
    दर्शना की आंखे बड़ी हो गई "तुम ? तुम मजाक नहीं कर रहे ?"
    "इतने गंभीर चेहरे के साथ मै मजाक करूंगा ?", दत्ता ने खुदकी तरफ उंगली की "मै बिल्कुल सच बोल रहा हु। मैने सारा ड्रामा माऊ से शादी करने के लिए ही किया था। थोड़ा समय के लिए उसे तकलीफ हुई है। लेकिन आगे जिंदगी भर वो खुश रहेगा वादा है मेरा। पसंद तो पहले से करता है। किसी दिन प्यार भी करेगा।"
    दर्शना ने आंखे घुमा ली "प्यार का मतलब पता है तुम्हे? सामने वाले की खुशी में अपनी खुशी ढूंढनी पड़ती है?"
    "हा! और सामने वाले की सुरक्षा भी करनी होती है। भूलना आसान नहीं होगा ना जो छह साल पहले हुआ था? उसकी बचपन की यादें खो चुकी है और उसे नही पता कौन सी मुसीबत उसकी जिंदगी में कभी भी आकर दस्तक देगी?" दत्ता ने कहा तो दर्शना का चेहरा सफेद पड़ गया। अपनी साड़ी को उसने मुट्ठियों में भींच लिया था।
    "उस समय आपके पति ने मामले को दबाने की कोशिश करने से अच्छा अपने बच्चे की सच्चाई स्वीकार कर कोई सख्त कदम उठाया होता तो मेरी जान ना लटकी रहती इतने सालो से? ना ही जबरदस्ती शादी करके उसे अपने पास ले आता?" दत्ता कहते हुए अचानक ही चुप हो गया। दूसरी तरफ दरवाजा खोल कर अथर्व अंदर बैठ गया । उसने एक नजर दत्ता पर डाली और तुरंत ही चेहरा आगे कर लिया ।
    दत्ता ने गहरी सांस लेकर सर हिला दिया "संभाल कर ले जाना मेरी सासुमा को। और जो हल्दी वाले दिन हुआ उसके लिए माफ कर दे। हा कोई भाड़ मे जाए फिर भी मुझे फर्क नही पड़ता। लेकिन माऊ से कहा था मै तुमसे माफी मांग लूंगा। मैंने माफी मांग ली , अब अपना विषय यही क्लोज।"
    कहकर दत्ता ने दर्शना की तरफ का दरवाजा बंद कर दिया। अथर्व मुंह बना कर बड़बड़ाया और उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी।


    गायकवाड़ निवास, शाम का समय था जब घर की महिलाए लिविंग रूम में बैठी हुई थी। अस्मिता की नजरे उस औरत पर थी जो कुछ जरूरी बताने का बोलकर अब तक दो बार चाय पी चुकी थी। अस्मिता ने घड़ी की तरफ देख धीरे से कहा "ये काकी मुद्दे की बात तो बता ही नही रही। प्रणय के आने का समय हो चुका है। उन्होंने मुझे फिर इनके साथ बैठा देख लिया तो चार बात सुना देंगे।"
    उसकी चाची पवित्रा ने सुनकर सर हिला दिया "किसने कहा तुम्हे बैठने के लिए? चुगलिया सुनने की आदत हो चुकी है।"
    "काकू...!", अस्मिता दबी आवाज में बोली "तू भी ऐसे बोल रही है?"
    "हा नही तो क्या बोलूं? इस समय तुझे आराम करना चाहिए। कुछ सात्विक देखना चाहिए। वो नही? आ जाती है औरतों की बाते सुनने। हमारे पास कोई काम नही होता यहां वहा की बाते करने के अलावा?" पवित्रा ने उसे डांट दिया।
    अस्मिता का मुंह बन गया "घर का माहौल इतना ज्यादा सात्विक है की और क्या गर्भ संस्कार होने बाकी रह गए? न जाने कैसे कैसे लोगो का साया पड़ा होगा मेरे बच्चे पर?"
    इसी बीच चाय खत्म कर वो औरत दत्ता की मां हेतवि से बोली "एक बार लडको का शौख लग जाए तो छूटे नहीं छूटता। बहुत उदाहरण देखे है मैने। समय रहते अपने लड़के को संभाल लो। एक लौता लड़का है वो इस घर का। सोच लो आगे का वंश कैसे बढ़ेगा?"
    हेतवी ने अपना सर पकड़ लिया "मै क्या करू कुछ समझ नही आ रहा। दत्ता सुनता नही है और उसके पापा कुछ सुनने को तैयार नही। एक बार बोल क्या दिया घर में मत आ , लड़का पलट कर देख भी नही रहा?"
    उस औरत ने हेतवी का कंधा सहलाया "मेरी बात ध्यान से सुनो।"
    अस्मिता ने तुरंत कान खड़े कर दिए जबकि ये बात वो न जाने कितनी बार सुन चुकी थी उस औरत के मुंह से। उस औरत ने कहा "जो होना था वो हो गया। जिद पकड़ कर मत रहो की उस लड़के के बिना अपनी ही औलाद को घर में नही लोगी। दत्ता दूर हो जाए ऐसा नही चाहती तो दोनो को बुला ले। एक बार वो इस घर में आ जाए, फिर तू देख लेना उस लड़के को अपने बेटे की जिंदगी से कैसे दूर करना है?"
    हेतवी, अस्मिता और पवित्रा एक दूसरे की तरफ देखने लगी । उस औरत ने आगे कहा "अपनी मुक्ता की मां तो इस सबके बाद भी मुक्ता की शादी दत्ता से कराने के लिए तैयार है। लडको की शादी को क्या मानकर बैठना? जैसे ही दत्ता घर आ जाए फटाफट शादी की बात चलाकर लड़की घर ले आओ?"
    "दत्ता मानेगा?" पवित्रा परेशानी से बोली।
    "आग लगा देगा वो घर को , लोगो समेत!" अस्मिता ने तुरंत ही कहा।
    वो औरत भी थोड़ी सहम गई। क्युकी उसका आइडिया बाहर आया तो दत्ता उसे ढूंढते हुए आने में कसर नही रखेगा। जल्दी से खड़े होकर वो बोली "बहुत समय हो गया। अब मैं चलती हूं। तुम देख लो भाई क्या करना है आगे? मैने तो बस सुझाव दिया?"
    जाते जाते वो औरत हेतवी को सोच में डालकर जरूर चली गई।


    जाधव निवास , काफी तमतमाते हुए अंकुश घर में दाखिल हुआ । उसने दर्शना को ढूंढना चाहा लेकिन जब वो ना दिखी तो तेज आवाज में उसे पुकारना शुरू कर दिया "दर्शना ... दर्शना बाहर आओ ! कहा हो तुम , सुनाई दे रहा है बाहर आओ ।"
    दर्शना के संग अनिता भी पिछले गलियारे से अंदर आ गई । अथर्व भी आवाज सुनकर ऊपर रेलिंग पकड़ खड़ा हो गया । अंकुश का चिल्लाना और दर्शना पर गुस्सा करना इस घर में किसी के लिए नया नही था । अगर बीच में कोई हस्तक्षेप कर दे तो उसे याद दिलाया जाता है ये घर अंकुश जाधव का है ।
    "क्या हुआ ? क्यू इतना चिल्ला रहे हो ?" अनिता ने पूछा ।
    अंकुश ने दर्शना के आते ही उस पर पेपर्स फेके "ये लो , देखो अपनी बेटी की करामत । आखिर करती क्या हो घर में जो अपने बच्चो तक को नहीं संभाल सकती । एक तो पहले ही खानदान के नाम पर कलंक था अब बेटी ने भी कालिख पोथने में कसर नही रखी ।"
    दर्शना को बहुत गुस्सा आता था जब भी बात घूम फिर कर मानव पर आए । लेकिन वो मजबूर थी । कुछ कह ही नहीं पाती थी । अनिता ने झुक कर नीचे पड़े पेपर्स उठाए और उन्हे पढ़कर उसकी आंखे बड़ी हो गई ।
    दर्शना ने सवालिया नजरो से उसे देखा तो अंकुश ने व्यंग भरी हसी के साथ कहा "शादी कर ली थी तुम्हारी बेटी ने एक साल पहले ही । लड़का जात का भी नही है । और देखो आंखे फाड़कर जामीनदार के नाम पर तुम्हारे होने वाले दामाद के हस्ताक्षर है ।"
    दर्शना ने अनिता के हाथो से पेपर्स छीन लिए । तभी उसे याद आया आज सुबह ही दत्ता ने कहा था , आपकी बेटी को मैने ही भगाया है । दर्शना ने आंखे बंद कर ली ।
    अंकुश गुस्से में हाफने लगा "ये सब तुम्हारी गलती है । किसी काम की नही हो तुम । नालायक एक बार मिल जाए , काटकर फिकवा दूंगा उसके पति के साथ ।"
    "भैया ! जो होना था वो हो चुका । अब कुछ करके क्या फायदा ?" अनिता ने तेज आवाज में कहा लेकिन अंकुश एक भी सुने बगैर अपने कमरे की तरफ चला गया । दर्शना ने अपना सर पकड़ लिया । जो भी हो रहा था वो बिलकुल भी सही नही था । आखिर उसकी ही जिंदगी में इतने दुख क्यू थे जबकि उसने कभी किसी का बुरा नही चाहा ।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ जुड़े रहे । पार्ट्स तो डेली चाहिए होता है लेकिन समीक्षा सब लोग क्यू नही करते ? पढ़ने वाले भी बहुत होते है लेकिन फॉलो तक कोई कर नही पाता ।😤

  • 16. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 16

    Words: 1683

    Estimated Reading Time: 11 min

    गायकवाड़ निवास, रात का समय था और प्रणय को तैयार होता देख कर अस्मिता का मुंह बन गया । ये पुलिस वाला अक्सर वक्त बेवक्त उसे अकेला छोड़ कर बाहर चला जाता था ।
    "प्रणय !" अस्मिता ने बिस्तर पर बैठे हुए उसका नाम पुकारा ।
    "हम्मम!" भौंहे उचकाते हुए प्रणय उसकी ओर पलटा ।
    "जाना जरूरी है ?" अस्मिता होठों को सिकुड़ कर धीमी आवाज में बोली ।
    "ड्यूटी है ना बीवी , क्या कर सकते है?", कहते हुए आकर वो अस्मिता के पैरो के पास बैठा "सरकार को ना एक नियम ऐसा भी बनाना चाहिए । प्रेगनेंट महिला के साथ उसके आखिरी महीने में पति को भी छुट्टी मिले । ताकि वो दूसरा सारा काम छोड़ कर अपनी बीवी का ध्यान रख सके । जमाना बदल रहा है । जरूरी नहीं सबके पास अपना मायका और ससुराल हो ?"
    अस्मिता मुस्कुरा दी "आप और आपकी बाते ।"
    प्रणय ने सर हिलाया और अस्मिता के पैरो को देखा । उनमें सूजन थी । प्रणय बिना कुछ बोले ही हल्के हल्के से उसके पैर दबाने लगा । अस्मिता की मुस्कान गहरी हो गई । अगर अभी वो कहती की प्रणय उसका पति है और पैर नही छू सकता तो चार ज्ञान की बाते वो फिर उसे सुना देता । इसलिए वो चुप ही रही । कभी दिखाता नही था लेकिन प्रणय था बहुत केयरिंग । जब भी थोड़ा सा समय मिले अपनी बीवी की खातिरदारी में कमी नहीं रखता था। 
    "तुमने वो किताबे पढ़ी जो मैं पिछली बार लाया था ?" प्रणय ने यू ही सवाल किया । कबसे शांति छाई हुई थी उनके बीच ।
    अस्मिता ने हा में सर हिलाया "पढ़ी ना , चार पन्ने ! फिर मैं बोर हो गई ।"
    प्रणय ने आंखे छोटी कर उसकी तरफ देखा तो अस्मिता मुंह बनाते हुए बोली "प्रणय मुझे पढ़ने लिखने का इतना ही शौख होता तो आज काका के साथ बिजनेस में हाथ बटाने चली जाती । मैने पढ़ाई की किताबे भी सिर्फ पास होने के लिए पढ़ी थी । ये मेरे बस की बात नही । अगली बार कोई मूवी वगैरा ले आओ । उसे सोते हुए भी देख लुंगी ।"
    "आलसी कही की ! मेहनत का काम तुमसे होता ही नही । मै ही पागल था जो एक एक किताब ढूंढ कर ले आया । सोचा तुम्हे पसंद आएंगी । तुमने तो चार पन्ने पढ़कर छोड़ दिया तो कैसे पता चलेगा वो किताबे बोर होने वाली नही थी ?" प्रणय नाराज होकर बोला ।
    अस्मिता ने अपने पैर छुड़ा लिए और धीरे से सरक कर उसके करीब चली आई "गुस्सा मत कीजिए पति देव । अगर आप चाहते है उस किताब की बाते मुझ तक पहुंचे तो थोड़ा समय निकाल कर खुद पढ़ कर सुनाना होगा ।"
    प्रणय कुछ पल ले लिए चुप हो गया । फिर उसने कहा "सच में ? तुम सुन लोगी?"
    "आपके मुंह से तो कड़वी बाते भी शहद सी मीठी लगती है । सुन लूंगी ।" अस्मिता ने कहकर बाहों का घेरा उसके गले में डाल दिया ।
    प्रणय ने एक गहरी सांस भर ली । बस यहीं वो पिघल जाता था । छोटी सी मुस्कान होठों पर लेकर उसने अस्मिता का माथा चूम लिया । फिर वो बोला "जल्दी आ जाऊंगा । मेरे लिए इंतजार मत करना । खाना , दवाई और समय पर सो जाना । याद रहेगा ?"
    "यस सर!" अस्मिता ने उसे हल्के से सेल्यूट किया ।

    उसी घर की ऊपरी मंजिल पर हेतवी अपने मंगलसूत्र में उंगली घुमाते हुए इधर उधर चक्कर लगा रही थी । इसी बीच बाथरूम का दरवाजा खोल कर देवराज बाहर आए । वो फ्रेश हो चुके थे ।
    हेतवी ने उनकी तरफ देखा और वो भी एक नजर हेतवी को देख सोफे पर जा बैठे । वो अच्छे से जानते थे हेतवी को कुछ कहना था । पर उन्होंने इंतजार करना सही समझा । अगर वो कहते की क्या बात है तो हेतवी कुछ नही कह बात को टाल देती और तभी कहती जब उसका मन करता ।
    लगभग पंधरा मिनट गुजरने के बाद हेतवी हिचकिचाते हुए बोली "सुनिए ! आपसे कुछ कहना था ।"
    देवराज ने सर हिलाया "सुन रहा हु । कहो!"
    हेतवी उनके पास जाकर बैठ गई "मै कह रही थी कब तक अपने बच्चे को घर से बाहर रखू?"
    "तो आखिर कार तुमने फैसला कर ही लिया ? याद है ना दत्ता इस घर में अकेला नही आयेगा ?" देवराज ने उसकी आंखो में देखने की कोशिश की लेकिन हेतवी नजरे मिलाने से कतरा रही थी ।
    देवराज ने ठंडी सांस छोड़ी "किसने सुझाव दिया दत्ता को वापस बुलाने का ? तुमने अपने मन से ये फैसला नही लिया ना ?"
    हेतवी ने अपनी पलके उठाकर देवराज की तरफ देखा । उसकी आंखो में पानी जमा होकर जल्दी ही गालों पर बह आया "सबके ताने सुन सुनकर थक चुकी हु मै । चार लोगो में जा नही सकती । यहां तक मंदिर में भी नही । किसी के सामने नजरे उठाकर चलने लायक नही रखा दत्ता ने हमे ।"
    देवराज अपना माथा सहलाने लगे "तो क्या सोचा तुमने ? उसे घर लाकर क्या करोगी ?"
    "उसकी शादी करा देते है । मुझे पता है जाधव परिवार की नाक काटने के लिए दत्ता ने उस लड़के से शादी की । हो गया होगा ना अब उसका बदला पूरा । छोड़ देगा उस लड़के को मुझे भरोसा है । घर वापस लाते है दत्ता को । आप और मैं मिलकर समझाएंगे तो तैयार हो जाएगा शादी के लिए भी ।" हेतवी ने देवराज के दोनो हाथ थाम लिए । देवराज समझते थे मां का दिल है , लोग चार बाते उसके मन में भर कर चले जाते थे और आगे की सोच कर हेतवी परेशान हो जाती थी ।
    "दत्ता रहना चाहता है मानव के साथ ।" देवराज शांत आवाज में बोले । हेतवी की पकड़ उनके हाथो पर कस गई । निचले होठ को काटते हुए वो बोली "क्या .. क्या बोल रहे हो आप ? दत्ता और एक लड़के के साथ ? वो ऐसे कैसे ...?"
    "मां हो ना उसकी ? समझ नही पाई उसे कभी ?", देवराज ने उसके हाथ सहला कर कहा "बहुत कम चीजे उसे खुश करती है । मानव तो जन्म से ही उसकी जिंदगी का खास हिस्सा बन चुका था । समय के साथ वो खास भावना बहुत खास होती चली गई । हमारा दत्ता प्यार करता है उस लड़के से । और ये प्यार अजीब नही है हेतवी । हम इसे अजीब बना रहे है । लोगो की बातो में आकर अपने बेटे की खुशियों को बरबाद मत करो । तुमने उसे मानव से दूर करने के बारे में सोचा तो वो तुमसे और पूरे परिवार से दूर हो जायेगा ।"
    "क्या उसके लिए अपने परिवार की कोई अहमियत नहीं ?" हेतवी ने रुंधे गले से कहा ।
    "यही तो हम गलती कर देते है । परिवार की जिम्मेदारी थोप कर बच्चो से उनकी खुशियां छीन लेना । क्या उसे जिम्मेदारी और खुशियां एक साथ नही दे सकते हम ?" देवराज ने उसे समझाया ।
    "लोग क्या कहेंगे ?"
    देवराज व्यंग से हस दिया "लोग सदियों से कहते ही आ रहे है । जो कुछ कहता नही वो इंसान और समाज का हिस्सा कैसे माना जायेगा ? तुम लोगो को बात करने दोगी तभी तो वो बात करेंगे । तुम सुनोगी तो वो सुनाएंगे । उनका मनोरंजन करना छोड़ दो । सब सही होगा ।"
    देवराज ने उसके कंधे पकड़े और करीब लेकर अपने सीने से लगा लिया । हेतवी ने उसकी पीठ पर हाथ रख दिए । वो अभी भी रो रही थी । देवराज नही जानते थे उनके समझाने का असर हेतवी पर हुआ है या नही ?
    एक मिनट बाद हेतवी अलग होकर अपने आंसू साफ करते हुए बोली "दत्ता को घर बुला लो और... उस लड़के को भी । मै पहले अपनी आंखो से सब देखूंगी । उसके बाद ही कोई फैसला होगा ।"
    देवराज ने राहत भरी सांस ली "जैसा आप चाहे ।"


    दूसरी तरफ मानव चादर में दुबक कर बिस्तर पर बैठा था । उसका चेहरा लाल था और आंखे नींद से बोझिल होने को थी । बुखार अभी भी हल्का सा था । इसी बीच कमरे में मौजूद दत्ता ने एक काले रंग की जैकेट चढ़ा कर अपनी गन और फोन उठा लिया ।
    मानव बिलकुल नहीं चाहता था दत्ता कही जाए लेकिन कहे तो कैसे कहे ? कुछ समय पहले ही प्रणय का फोन आया था और दत्ता ने उसे बताया की वो आयेगा । अब मानव मना तो नही कर सकता था । शादी से पहले का समय होता तो दस बार पूछ लेता वो कहा जा रहा है और अंत में उसके पीछे भी लग जाता साथ ले जाने के लिए । दत्ता मना भी नही करता था उसे, भले ही फिर काम रह जाए ।
    "माऊ...! मै जल्द ही आ जाऊंगा । वेधा यही पर है । तुम्हे किसी चीज की जरूरत हो तो उससे कहना । या फिर उसे यही तुम्हारे पास बैठने के लिए बोल दू ?" दत्ता ने उसके सामने आकर कहा ।
    मानव ने दूसरी तरफ चेहरा कर लिया । उसके फूले हुए गाल देख कर दत्ता मुस्कुराते हुए उसके सामने झुक गया "ए मनी माऊ! ऐसे बाहर जाने वाले को नाराज होकर विदा नही करते । तेरी मुस्कान मेरा लकी चार्म है । अगर मुझे ना दिखी और रास्ते में कुछ हो गया तो ?"
    मानव ने तुरंत ही नाराजगी से उसे देखा "पागल हो क्या आप ?"
    "नही ! लेकिन तु ऐसे ही रहा तो जल्द ही हो जाऊंगा । मुस्कुरा दे ना ? इतना भी क्या मांग लिया ?" दत्ता विनती भरे लहजे में बोला ।
    मानव ने एक जबरदस्ती वाली बड़ी सी मुस्कान के साथ दात दिखाए " ये ठीक है ?"
    दत्ता ने पलके झपका दी । मानव के बाल सहला कर वो बोला "अप्रतिम !"
    मानव ने आंखे घुमा कर फिर से मुंह सिकुड़ लिया । दत्ता के बाहर जाने तक वो उसी दिशा में देखता रहा । फिर उसने अपनी गर्दन छूकर देखी । बुखार इतना भी नही था की वो बाहर कही घूम ना सके । चादर हटाकर उसने एक मोटी सी जैकेट पहनी और कमरे से बाहर निकल पड़ा ।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 17. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 17

    Words: 2004

    Estimated Reading Time: 13 min

    रात का समय था। शिवा ने अपनी गाड़ी को गैरेज के सामने रोक कर कांच खोली और गर्दन बाहर निकाली। उसकी नजरे वेधा को ढूंढने लगी थी जो जल्द ही दत्ता से कुछ बात करते हुए बाहर आता दिखा। शिवा के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान ने जगह ले ली। जल्दी से बाहर आकर उसने कहा "जानेमन !"
    वेधा ने बिना देखे ही ठंडी सांस छोड़ कर खुदको उसकी बाते झेलने के लिए तैयार कर लिया "आ गया जान खाने। वैसे मुझे समझ नही आ रहा? मेरे बिना आज तक तू कही नही गया। फिर आज क्यू जा रहा है और वो भी इसको साथ लेकर?"
    दत्ता ने अपना गला खराशा "क्युकी माऊ की तबियत ठीक नहीं। मेरे अलावा वो सिर्फ तेरी सुनेगा, एकलव्य की नही।"
    वेधा की आंखे छोटी हो गई "मुझे दाल में कुछ काला लग रहा है। इस शिवा ने तुझे कुछ बताया था जो ना मुझे सुनने को मिला ना ही तूने बाद में बताया? बताओ जल्दी कहा जाने वाले हो तुम लोग?"
    "कही भी जाए? तू क्यों एक बीवी की तरह चिंता कर रहा है जिसका पति बाहर चक्कर चलाता है? तुझे सच में मेरी चिंता है या फिर.... शिवा की?" दत्ता ने भाव हीन चेहरे के साथ कहा।
    वेधा की बोलती बंद हो गई। नाराजगी से वो बोला "भाड में जाओ तुम दोनो। कोई फरक नही पड़ता दूसरी औरत के पास जाओ या औरतों को घर ले आओ। कहने सुनने का भी अब जमाना नही रहा।"
    शिवा ने हल्के से उसकी बाते सुन ली। उसने अपनी मुस्कान को फीका नही होने दिया और कहा "क्या हुआ जानेमन? किसलिए भड़क रहे हो? चिंता मत करो, तुम्हारे बिना मेरी नजरे किसी औरत या मर्द की तरफ नही जाती। वो क्या कहते है? हनन, वन मैन मैन!"
    वेधा का मुंह ऐसा हो गया मानो अपना सर फोड़ेगा या फिर इस गधे का। तेज आवाज में वो बोला "निकलो यहां से दोनो के दोनो।"
    दत्ता ने सर हिलाया और दूसरी तरफ देखा। एकलव्य वही खड़ा था। दत्ता ने गंभीर चेहरे के साथ उसे सतर्क रहने का इशारा किया। एकलव्य ने पलके झपका दी तो दत्ता शिवा की गाड़ी में जाकर बैठ गया।
    "मै तुझे साथ नही ले जा रहा इसलिए नाराज हुआ ना? अगली बार सिर्फ अपन दोनों जायेंगे ? खुश?" शिवा ने कहकर उसका गाल खींचा तो वेधा ने उसके हाथ पर मारकर उसे पीछे धकेल दिया। शिवा हंसते हुए चला गया।

    गाड़ी जाने की आवाज हुई और मानव ने हल्के से झाक कर देखा। फिर वो तेजी से सीढ़िया उतर कर नीचे आने लगा, जिसकी आवाज सुनकर वेधा और एकलव्य हैरानी से पलट गए।
    "मानव? कुछ चाहिए बच्चे? नीचे क्यू आया? मुझे आवाज लगाई होती?" वेधा आगे जाकर उसके सामने खड़ा हुआ। मानव अभी भी आखिरी सीढी पर ही था। वेधा को एक तरफ हटाते हुए वो नीचे आकर बोला "पार्क जाना है।"
    "रात के इस समय बिगड़ी हालत में कही नही जाना है।" एकलव्य की सर्द आवाज दोनो ने कानो में पड़ी।
    मानव का चेहरा सख्त हो गया "वेधा मै बिलकुल ठीक हु और मुझे पार्क तक घूमने जाना है।"
    "घूमना है तो ऊपर छत पर जाओ। यहां से बाहर कोई नही जायेगा।" जैसे मानव अप्रत्यरूप से उसे सुना रहा था ठीक वैसे ही एकलव्य भी बता रहा था।
    मानव ने एक ठंडी सांस छोड़ी। उसने एक बार भी एकलव्य की तरफ नही देखा और वेधा से कहा "मै दिन भर कमरे में रहकर ऊब चुका हु। आप पार्क ले जाओगे या नही?"
    वेधा अजीब सी मुस्कान लिए अपना सर खुजाने लगा। अगर मना किया तो मानव नाराज और हा कहा तो दत्ता। उसे मानव को समझाना ही बेहतर लगा। मानव का माथा छूकर वो बोला "देख तुझे अभी भी बुखार है। ऐसे में बाहर की हवा लग गई तो? हम कल जायेंगे ना। तब तक तू ठीक भी हो जायेगा?"
    "मुझे अभी जाना है।" मानव ने तो जैसे जिद ही पकड़ ली थी।
    एकलव्य उनके करीब चला आया "अभी दो मिनट पहले बोलना था ना आकर? भाऊ के जाने का इंतजार कर रहे थे? रुको मैं फोन करके बताता हु।"
    मानव ने चेहरा सिकुड़ लिया। उसकी आंखों में फौरन पानी जमा होकर आया। वेधा ने जोर से एकलव्य की पीठ में मुक्का जड़ दिया "क्या मांग लिया बच्चे ने? बस पार्क ही तो जाना है जो ज्यादा दूर भी नही? कबसे मना किए जा रहा है? और खबरदार जो दत्ता को बताया। मुझसे बुरा कोई नही होगा?"
    मानव का चेहरा पल भर में साधारण हो गया तो अपनी पीठ सहलाते हुए एकलव्य बड़बड़ाया "नाटकी!"


    कुछ समय बाद वो तीनो पैदल ही पार्क के करीब पहुंच चुके थे। एकलव्य हद से ज्यादा सतर्क था। जरा सी गलती पर दत्ता उसकी गर्दन काटकर कही लटका देता। उसने पार्क से कुछ दूरी पर बनी शॉप की तरफ देखा। जो दरअसल काफी बड़ी बेकरी शॉप थी। उसके अलावा चौबीस घंटे खुली भी रहती थी। एकलव्य ने सर हिला कर वेधा की कॉलर पकड़ ली "अगर इसने बुखार में आईसक्रीम खाने की जिद की तो वो तेरी गलती रहेगी।"
    वेधा की आंखे छोटी हो गई। एकलव्य ने उसे शॉप की तरफ देखने का इशारा किया तो वेधा हैरान रह गया। कही मानव सच में सिर्फ आइसक्रीम खाने के लिए तो नही आया था ? वेधा ने अपना गला तर कर लिया। मानव की काफी आदते वो बचपन से देखता आया था। जैसे की एक बार वो आइसक्रीम शॉप में घुस जाए फिर उसे बाहर लाना सबसे मुश्किल काम है।
    वेधा ने लंबी सांस भर ली। फिर बिना कुछ कहे आगे जाकर पार्क का बंद गेट खोल दिया।

    एकलव्य कुछ दूरी पर ही खड़ा रहा। वही मानव और वेधा एक बेंच पर बैठ गए। मानव ने ताजी हवा को अपने फेफड़ों में भर कर कहा "अब अच्छा लग रहा है।"
    "भाऊ के आने से पहले हमे जाना भी होगा। वरना तुम्हे पता है ना वो मेरी क्या हालत करेगा?" एकलव्य ने बाहे मोड कर कहा।
    मानव ने मुंह बनाया "मै क्यू चिंता करू? डाट आपको पड़ेगी मुझे नही?"
    वेधा बेंच पर पसर गया "उसके साथ मेरी भी क्लास लगेगी। तुम्हे लाने वाला मैं ही था।"
    "मुझे बैठकर सांस तो लेने दो ना?" मानव नाराजगी से बोला।
    "यहां सांस रुकने की नौबत आ गई है हमारी।" एकलव्य इस बार काफी धीरे से बोला क्युकी वो मानव से कोई बहस नही करना चाहता था। अपनी गर्दन सहलाते हुए उसने दूसरी तरफ देखा और उसकी आंखे ठंडी पड़ गई।
    देख कर भी उस दिशा में अनदेखा करके वो बिलकुल उलट दिशा में चला गया। मानव और वेधा का उस पर कोई ध्यान नहीं था।

    **********

    शहर का तंज और चहल पहल वाला इलाका था वो। या यू कहे रेड लाइट एरिया था, बस मैन एरिया से थोड़ा दूर। किसी दुकान पर तेज आवाज में गाने चल रहे थे जिसकी धुन पर शिवा गर्दन हिलाते हुए उंगलियां स्टेरिंग पर पटक रहा था। पैसेंजर सीट पर दत्ता था। उसकी नजरे एक दो मंजिला घर पर थी जिसके आस पास कोई घर नही था। वो लोग जानबूझ कर भीड़ वाली जगह में गाड़ी खड़ी की हुए थे ताकि किसी की नजर में ना आए।
    तभी दत्ता ने कहा "तुम्हे पूरा विश्वास है वो आज ही आयेगा?"
    "मेरी खबर आज तक गलत साबित हुई है क्या? चिंता नको करू। आपके बीमार पति से ज्यादा समय के लिए दूर नही रखूंगा आपको।" शिवा लापरवाही से बोला।
    दत्ता ने बस थोड़ी जोर से सांस छोड़ी थी। इसी बीच उसका फोन आवाज करने लगा। दत्ता ने तुरंत ही फोन उठाकर कहा "हा जीजा हम पहुंच गए। आप तैयार हो?"
    सामने से कुछ कहा गया जिस पर वो आगे बोला "बिलकुल घाई मत करना। बस यही एक जगह है जहा वो हमारे हाथ आसानी से आयेगा।"
    दत्ता आगे कुछ कहता इतने में शिवा ने उसके कंधे को छूकर कहा "शायद वो रहा।"
    उसका इशारा गाड़ी के कांच की तरफ था। एक शॉल ओढ़े आदमी चुपचाप उस घर की तरफ भिड़ से निकलने हुए जा रहा था। वो गाड़ी के पास से गुजरा तो दत्ता ने ठंडी आवाज में कहा "आ गया है। भागने न पाए।"
    फोन बंद कर उसने गाड़ी का दरवाजा खोला और शिवा के साथ उस आदमी के पीछे चलना शुरू कर दिया। बहुत ही सावधानी से , ताकि उस आदमी को शक ना हो।
    जैसे ही लोगो से दूर वो निकल कर घर के करीब पहुंचे, उस शख्स को अपने पीछे किसी के आने का एहसास होने लगा। उसकी चाल धीमी होकर कान खड़े हो चुके थे। दत्ता ने समय जाया नही किया। तेजी से उनके बीच की दूरी तय कर उस आदमी के गले में बाह डालते हुए वो बोला "क्या भाऊ? आज कल ना दिखाई देते हो ना ही मिलते हो?"
    आवाज सुनकर उस आदमी की आंखे में हल्का सा खौफ उतर आया। उसकी पकड़ अपनी शॉल पर कस गई। अगले ही पल दत्ता के शरीर को हल्का सा झटका लगा जो उस आदमी ने दिया था। और वो दूसरी तरफ भागने लगा। पर शायद आज किस्मत साथ नही थी। शिवा ने बीच में अपना पैर अड़ा दिया जिसके कारण वो आदमी सीधे मुंह के बल जा गिरा। उसकी शॉल भी पीछे ही छुट गई थी।
    उस आदमी ने अपना चेहरा ऊपर उठाया। उसकी उम्र चालीस के आसपास होगी। चेहरा उठाते ही उसे किसी के काले जूते दिखे। वो शख्स नीचे बैठा और कहा "नाना भाऊ? कहा तक भागने का इरादा है? और भागना ही था तो शहर में आता ही नहीं?"
    नाना भाऊ ने सामने वाले शख्स का चेहरा देखा। दत्ता मौत सी ठंडी निगाहों से उसे देख रहा था। नाना भाऊ तुरंत ही हड़बड़ा कर उठा। अपने आस पास उसने देखा तो सिर्फ शिवा था।
    मौका देख कर नाना भाऊ ने अपनी कमर पर छुपाया हुआ खंजर निकाल लिया। उसकी तेज धार की चमक दत्ता की आंखो में नजर आने लगी।
    दत्ता व्यंग से हंस दिया "बाप को हथियार नही दिखाते।"
    "इसके सामने कोई बाप नही होता। लेकिन जब अंदर जाता है तो मां जरूरी याद दिलाता है।" नाना भाऊ ने कहा और दत्ता पर चाकू से वार कर दिया। वो हड़बड़ाया हुआ था जिसकी वजह से निशाना गलत लगा। वही फुर्ती से दूसरी तरफ हटकर दत्ता ने उसका हाथ पकड़ा और घुमा कर मरोड़ दिया। नाना भाऊ चिल्ला पड़ा। साथ ही उसके हाथ से चाकू भी नीचे गिर गया। उसका हाथ कुछ इस तरह पकड़ा गया था की किसी भी पल टूट जाता। तभी न जाने कहा से पुलिस की पूरी फौज निकल आई और उन लोगो को घेर लिया।
    प्रणय बाहर निकल कर आया तो दत्ता ने तुरंत नाना भाऊ को छोड़ कर आगे धकेल दिया। प्रणय ने उसे पकड़ कर हथकड़ी पहना दी और अपने लोगो से कहा "डाल दो इसे गाड़ी में।"
    नाना भाऊ राहत से मुस्कुरा दिया। दत्ता के हाथो एक भयानक मौत मरने से अच्छा वो जेल में रहेगा।
    दत्ता उसकी मुस्कान देख भी शांति से बोला "तुझे क्या लगता है जेल में तुझे मरवाना ज्यादा मुश्किल है?"
    नाना भाऊ की आंखे सिकुड़ गई। दत्ता आगे बोला "मेरे हाथो तू सच में मर ही जायेगा। लेकिन मुझे जानना है उसके बारे में। और उसे भी दुनिया के सामने लाकर फिर मारना है।"
    नाना भाऊ जोर से हंस पड़ा "भले ही मेरी जान चली जाए लेकिन उसके बारे में कुछ नही बताऊंगा। और तू क्या उसे मारेगा? वही तेरी मौत बनकर आयेगा। तू सिर्फ शहर का डॉन है। वो ऐसे दस देश अपने काबू में रखता है। तूझसे ज्यादा पावरफुल है और जल्दी ही यहां आकर तुझे तेरी औकात बताएगा।"
    "मै इंतजार कर रहा हु।" कहकर दत्ता ने जोर दार मुक्का उसके पेट में जड़ दिया।
    प्रणय ने दत्ता को पीछे खींच नाना भाऊ को ले जाने का इशारा किया। दत्ता की सांस तेज चल रही थी। प्रणय ने उसे शांत करने के लिए कहा "तू चिंता नको करू। उसका मुंह तो मैं किसी भी हालत में खुलवा कर रहूंगा। आखिर किसके कहने पर वो मानव पर नजर रखवाता है?"
    दत्ता ने प्रणय की तरफ देखा "सिर्फ आप परेशानी में थे इसके कारण, इसलिए उसे आपके हवाले किया। वरना ये मेरे हाथो ही मरता।"
    प्रणय ने कहा "मै संभाल लूंगा आगे। तू परेशान मत हो। जा घर चला जा।"
    दत्ता ने एक गहरी सांस ली और वो दोनो ही अपने अपने रास्ते चले गए।



    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 18. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 18

    Words: 1930

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था जब पंचवटी के एक पार्क में मानव और वेधा बेंच पर बैठे हुए थे। वही दूर एक पेड़ के पीछे छिपा साया उन्हे , नही सिर्फ मानव को अपने कैमरा में कैद कर रहा था। उसकी नजरे अभी भी कैमरा पर थी इससे अनजान की उसकी तरफ बड़ी ही सावधानी से कोई बढ़ रहा था। अचानक ही उस शख्स के कान खड़े हो गए और आंखे बड़ी। लेकिन वो कुछ समझ या कर पाता एक मजबूत हाथ ने उसकी कॉलर पकड़ कर कैमरा छीन लिया। वो शख्स छूटने के लिए कसमसाने लगा। कुछ कदमों की आवाजे वो साफ सुन पा रहा था और अंदाजा यही था कि मानव को खुफिया तरीके से सुरक्षा देने वाले दत्ता के लोग उसकी तरफ आ रहे है। वो एकदम से घुमा और जोर से उसने एकलव्य की नाक पर पांच मारा। एकलव्य का सारा ध्यान इस बात पर था वो शख्स दुबारा कैमरा ना ले पाए उससे। इसी कोशिश में सामने वाला उसे मार पाया।
    एकलव्य हल्का सा लड़खड़ा गया। इसीका फायदा उठाकर वो शख्स जल्दी से भाग निकला। हालाकि की उसने कैमरा लेने की कोशिश की थी पर एकलव्य ने अपना हाथ पीछे कर लिया। लड़के को अपनी जान बचाना इस समय ज्यादा जरूरी लगा।
    जबतक बाकी लोग पहुंचे एकलव्य अकेला ही रह चुका था। किसी ने एकलव्य से पूछा "क्या हुआ सर ? कहा गया वो?"
    "भाग गया!" एकलव्य ने अपनी नाक सहला कर कहा। उसने काफी जोर से मार दिया था जिससे एकलव्य की नाक पूरी लाल पड़ चुकी थी।
    "पीछा नहीं करना?", दूसरे ने कहा तो ना में सर हिला कर एकलव्य बोला "दीवार फांद कर गया है। पीछे सड़क है तो शायद कोई लेने के लिए तैयार खड़ा होगा। खैर , ऐसे तो रोज ही मिल रहे है। जितने मरेंगे उतने आयेंगे। जो जरूरी था वो मिल गया बहुत है।"
    एकलव्य कैमरा की तरफ देख कर बोला। काफी सारी तस्वीरे जमा थी उस कैमरा में। शायद वो गैरेज से निकलते ही पीछे लग गया था।

    पार्क से निकल कर मानव आंखे बड़ी करके उस बेकरी शॉप को देख रहा था जो अभी कुछ समय पहले ही खुली हुई थी। ना ही वो पूरी रात बंद होती थी तो आज ऐसा क्या हो गया? सोचते हुए मानव मायूस सा चेहरा लिए वेधा की तरफ पलट गया जो आंखो से ही एकलव्य को उसके कार्य के लिए शाबसी दे रहा था। मानव की नजरे महसूस करते ही उसने कहा "क्या हुआ ? हमे वापस जाना था ना?"
    "जैसे पार्क खोला वैसे शॉप भी खुलवाओ ना?" मानव ने अपनी मासूम आंखो का जादू चलाकर कहा।
    "लॉक तोड़ना होगा जो की इलीगल है। मालिक ने केस कर दिया तो मैं तुम्हारा नाम लूंगा।" एकलव्य ने कहकर अपनी गन निकाली और ताले को निशाने पर लिया।
    मानव की आंखे फैल गई। जबकि वेधा अच्छे से जानता था एकलव्य नाटक कर रहा है। मानव ने तुरंत ही एकलव्य का हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहा "आप पागल हो क्या? पब्लिक प्लेस में गोली चलाओगे?"
    "तुम्हे ही शॉप खुलवानी है ना? अब अपने बॉस के पति का हर ऑर्डर मानना मेरा परम धर्म है। तोड़ ही देता हू अभी लॉक।" एकलव्य ने जिद करते हुए कहा तो मानव उसके सामने जाकर खड़ा हो गया।
    "पागल पन मत कीजिए। नही खोलनी मुझे शॉप। मै तो ऐसे ही मजाक कर रहा था। हम ना ... वापस चलते है। वो राक्षस आ गए तो हम सबको जिंदा निगल जायेंगे।" मानव ने कहा। उसे अच्छे से पता था दत्ता उसे नही डाटेगा। लेकिन एकलव्य और खास कर वेधा को उसकी वजह से डाट पड़े ये नही चाहता था मानव।
    एकलव्य ने सर हिला कर उसे आगे चलने का इशारा किया। मानव चुपचाप वापस गैरेज की दिशा में चल पड़ा।

    जब वो तीनो गैरेज लौटे तो सामने देख कर उनके कदम ठिठक गए। दत्ता प्रवेश द्वार पर ही कुर्सी डालकर बैठा था। उसके पास एक आदमी सर झुकाए खड़ा था। मतलब दत्ता को उससे पता चल चुका होगा वो लोग कहा गए थे।
    वेधा ने अपना गला तर कर लिया और कदम पीछे लेकर भाग जाना चाहा। लेकिन तभी वो किसी के मजबूत सीने से टकरा गया। वेधा ने हल्के से गर्दन पीछे घुमाई और फिर नजरे उठाकर ऊपर देखा।
    "जानेमन! बहुत गलत बात है। तुम्हे साथ लेकर नही गए तो तुमने अपना ही प्लान बना लिया?" शिवा होठों पर टेढ़ी मुस्कान लिए बोला। वो मुस्कान इस बात का संकेत थी की उनकी आज खैर नहीं।
    मानव तो सूखे पत्ते की तरफ कांप रहा था। उसे खुद समझ नही आया बुखार के कारण ठंड लग रही है या डर से ऐसा हो रहा है?
    इसी बीच एकलव्य आगे जाने लगा। मानव ने तुरंत ही उसका हाथ पकड़ा और उसे रोक कर खुद आगे चला गया। दत्ता के सामने जाकर सर झुकाते हुए वो बोला "मेरी गलती है। कमरे में रह कर बोर हो गया था। इसलिए सोचा पार्क तक ... जाकर आए। वो दोनो मना कर रहे थे लेकिन मैने जिद की जाने की।"
    दत्ता ने उसका हाथ पकड़ लिया "इतनी रात को कौन पार्क जाता है?"
    दत्ता की आवाज काफी शांत थी। जो उसके चेहरे के सख्त भावो से मेल नहीं खा रही थी। मानव का गला सुख रहा था। बात करने के लिए उसे शब्द नही मिल रहे थे।
    दत्ता उठकर खड़ा हो गया। उसने आगे कुछ नही पूछा , ना ही कहा। मानव के गले में बाजू डालकर वो उसे अपने साथ ऊपर ले जाने लगा। उसे चुपचाप गया देखकर वेधा और एकलव्य ने राहत भरी सांस ली। शायद वो बच गए थे।
    वेधा ने एकदम से शिवा के कंधे पर मारकर कहा "पागल हो क्या तुम थोड़े से? डरा दिया था? वैसे कब आए और अब बताओ आखिर गए कहा थे?"
    "अरे बापरे इतने सवाल? बिलकुल घरवाली की तरह।" शिवा ने कुछ ज्यादा ही शरमाते हुए कहा तो वेधा ने उल्टी जैसा मुंह बना लिया। वही एकलव्य सर हिला कर चला गया।
    शिवा ने कहा "अभी अभी आए इसलिए बच गए तुम लोग। वैसे भी भाऊ थोड़ा भड़का हुआ है आज।"
    "क्यू?" वेधा की भौंहे सिकुड़ गई।
    "नाना भाऊ का पता मिल गया। उसे ही पकड़वाने गए थे। कुछ बाते कही उसने अजीब सी। कोई जो बहुत पावरफुल है वो वापस आएगा।" शिवा ने याद करते हुए कहा।
    वेधा अपनी गर्दन खुजाने लगा। उसने एकदम से कहा "किसी की मदत के बिना नाना भाऊ यहां वापस आकर छुप नही सकता था। तूने पता किया किसका हाथ और मिल गया उसे?"
    शिवा ने ना में सर हिलाया "कुछ कह नहीं सकता। या तो समय लगेगा ढूंढने में। या फिर ना भी पता चले? अपने कॉन्टैक्ट शहर में है। शहर के बाहर वालो के बारे में कैसे पता लगाऊं? वो तो देश के बाहर वाले की बात कर रहा था। हा , लेकिन कोई शहर में आता है तो जरूर बता पाऊंगा।"
    "तो फिर नजर रखो। उसके शहर में आते ही कोई तो हलचल जरूर होगी।" वेधा ने कहा।
    "मुझे लगता है तुम लोग पहले से ही जानते हो वो कौन है? बस नाम कन्फर्म करना है क्या?" शिवा ने भौंहे उचका दी।
    "सही समझे।" वेधा बेखयाली में ही बोल गया।
    कुछ पल शिवा ने उसकी तरफ ध्यान से देखा। फिर वो अपनी हथेली खुजा कर बोला "मै कर तो दूंगा , लेकिन बदले में क्या मिलेगा?"
    वेधा ने आंखे घुमा ली "चल तू भी क्या याद करेगा? साल भर अपनी गाड़िया मुफ्त में सर्विसिंग करके ले जाना।"
    शिवा ने ना में सर हिलाया।
    "तो?" वेधा चिढ़ के साथ बोला।
    शिवा उसकी तरफ बस मुस्कुराते हुए देखता रहा गया। वेधा ने एक मिनट के लिए आंखे बंद की और खुदको शांत करने का पूरा प्रयास किया। फिर वो मुंह खोल कर ठंडी सांस छोड़ते हुए बोला "ज्यादा लक अजमाने की कोशिश ना किया कर।"
    शिवा उसके करीब एक कदम बढ़ा। वो पहले से ही करीब खड़े थे। अब तो जरा भी दूरी नही बची थी उनके बीच। वेधा अपनी जगह जम गया। चाहकर भी वो पीछे नहीं हो पा रहा था। तभी शिवा ने उसकी कमर में हाथ फसाया "अगर लक अजमाने की कोशिश नही करूंगा तो सिंगल ही मरना होगा। क्युकी तेरी जगह यहां किसी ओर को कभी नही मिलेगी।"
    शिवा ने अपने दिल की तरफ इशारा किया था। वेधा की सांसे अटक गई। धड़कने तेज हो चुकी थी। जिसे महसूस कर शिवा के होठों की मुस्कान गहरी हो गई "अपने हाथ का बनाया खाना खिलाना चाहता हु तुम्हे हर रोज।"
    "ठीक ... ठीक है! भेज दिया करना। अब छोड़ो, मुझे जाना है।" वेधा लड़खड़ाती जबान से बोला।
    शिवा का मुंह बन गया। उसके कहने का मतलब था वो जिंदगी भर वेधा को अपने साथ रख कर उसे खाना बनाकर खिलाएगा। लेकिन ये लड़का तो कुछ समझता ही नही था। उसे छोड़कर शिवा पीछे हट गया "चलता हु मै। शुभ रात्रि!"
    वेधा ने अनजाने में ही सर हिलाया तो शिवा बड़बड़ाते हुए वहा से चला गया।


    कुछ समय बाद दत्ता , वेधा और एकलव्य घर के बाहर बनी गैलरी में खड़े थे। एकलव्य ने कैमरा दत्ता को सौप दिया था। मानव की तस्वीरे देखने के बाद दत्ता ने मेमोरी कार्ड निकाल लिया और कैमरा उसे वापस सौप दिया।
    "ये सब काम वही कर रहा है ना? नाना भाऊ को अपने हाथ में लेना , मानव पर नजर रखना। वो अपनी जड़े यहां फैलाना चाहता हैं। क्या वो सच में इतना पावरफुल बन गया होगा? मुझे याद है उसकी आखिरी बात जो उसने जाने से पहले कही थी।" वेधा थोड़ा परेशान लग रहा था।
    दत्ता रेलिंग से पीठ लगाकर खड़ा था। घूम कर उसने रेलिंग कसकर हाथो में पकड़ ली "काफी सालो तक उसका कोई पता नहीं था। अब भी नही है। लेकिन उसके द्वारा माऊ के पीछे भेजे जाने वाले लोग इस बात का सबूत है ये वही है। वो वापस जरूर आयेगा। लेकिन इस बार कही भी जाने नही दूंगा उसे। इसी जमीन में गाड़ूंगा।"
    वेधा ने उसके कंधे कर हाथ फिराया। इसी बीच दरवाजे पर अंदर से खटखटाने की आवाज सुनाई पड़ने लगी। दत्ता ने तुरंत ही दरवाजा खोला तो मानव मुंह फुला कर खड़ा था "मुझे अंदर बंद क्यू कर लिया?"
    "मुझे लगा तू सो गया है?" दत्ता ने कहा जो मानव को आंखे बंद किया देख कर बाहर चला आया था।
    "दिन भर सो रहा था। अब कैसे आएगी नींद ?" मानव कहते हुए उसकी बगल से निकल कर आगे आया और वेधा के साथ खड़ा हो गया।
    दत्ता ने सर हिला दिया। वो पलटा तो एक मिनट के लिए बिल्कुल सुन्न पड़ गया। मानव के ठीक पीछे आसमान में पूरा चांद निकल कर चमक रहा था। मानव के हल्के सुनहरे बाल थोड़े से अस्त व्यस्त थे। चेहरा हल्का सा लाल था। उसके अलावा उसने पहनी आसमानी रंग की जैकेट, हुडी ने उसके सर को छुपाया हुआ था और बस उसका छोटा सा चेहरा दिख रहा था। हुडी पर बने कान उसे किसी खरगोश की तरह दिखा रहे थे।
    दत्ता को खोया हुआ देख कर वेधा ने चुटकी बजा दी "ए मेरे जादुई आयने , बता कौन ज्यादा खूबसूरत है? आसमान में चमकता हुआ चांद या मेरी बालकनी में खड़ा खरगोश?"
    दत्ता झेप गया। वही मानव आसपास आंखो में चमक लिए देखने लगा "कहा है? कहा है खरगोश?"
    "वो देखो ! उसकी आंखो में ध्यान से देखना नजर आ जायेगा।" वेधा ने दत्ता की तरफ इशारा किया तो मानव बिलकुल गंभीर होकर दत्ता के करीब गया और उसकी आंखो में देखने लगा।
    वेधा और एकलव्य हंस पड़े। एकलव्य ने कहा "तुम ढूंढो खरगोश। हम आते है।"
    एकलव्य और वेधा बिना समय गवाए नीचे चले गए। वही दत्ता की आंखो में देख रहे मानव ने एकदम से ही अपनी नजरे हटाई। दत्ता की आंखो में अपना ही अक्स नजर आया था उसे। दत्ता सिवाय मुस्कुराने के कुछ नही कर पाया ।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 19. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 19

    Words: 1756

    Estimated Reading Time: 11 min

    रात का समय था जब दत्ता और मानव उस गैलरी में कबसे खड़े थे। बढ़ती ठंड को देखते हुए दत्ता ने काफी बार उसे अंदर चलने को कहा लेकिन मानव माने तब ना ? उसे यहां अच्छा लग रहा था। खास वजह यह थी की काफी समय बाद खुली हवा में यू लापरवाही से सांस ले पा रहा था वो। उसका दिमाग चाहे कितना भी बताए की दत्ता ने शादी कर उसे अपने साथ बांध लिया या फिर कैद कर लिया था। लेकिन दिल उससे उलट कह रहा था। वो दत्ता के पास आकर आजाद हुआ था। उसकी बात यहां सुनी जाती थी और पूरी भी की जाती थी।
    हार मानकर दत्ता भी चुप होकर उसके साथ खड़ा हुआ। बस मानव की नजरे जहां आसमान की तरफ थी तो दत्ता की नजरे उसके चेहरे पर।
    अचानक ही मानव ने कहा "कुछ कहना था। दरअसल रिक्वेस्ट थी एक।"
    दत्ता की नजरे एक पल के लिए भी उससे नही हटी "बोल ना ? नही , तू ऑर्डर दे।"
    "अगर दिया तो मानोगे?" मानव ने अपनी नजरे उसकी तरफ घुमाई।
    दत्ता ने हा में सर हिलाया। मानव ने कहा "घूमने जाना है मुझे।"
    "हनन?", दत्ता की आंखे हल्की सी बड़ी हो गई।
    मानव ने एकदम से कहा "कुछ भी गलत सलत नही सोचना।"
    "मैने तो अभी कुछ सोचा ही नहीं। गलत बोलकर तू ही गलत आइडिया दे रहा है मुझे।" दत्ता ने शरारत से कहा।
    "आप सुनोगे पहले?" मानव हल्का सा चिढ़ गया।
    "हम्मम! बोलिए सरकार, कहा ले चले आपको?" दत्ता ने दिल पर हाथ रख हल्के से सर झुकाया।
    "आपको पता है ना दीदी कहा है? मुझे मिलना है उनसे। ले चलोगे?" कुछ पल रुकने के बाद मानव ने कहा और आशा भरी नजरो से उसे देखने लगा।
    दत्ता का मुंह बन चुका था "मांग कर क्या मांगा? दीदी से मिलना है।"
    "कल जाए?" मानव की आंखो में चमक आ गई। क्युकी मना करना होता तो पहली ही बार में वो ना कर देता।
    "इतनी घाई किस बात की होती है तुझे। आराम से जायेंगे ना?" दत्ता थकी हुई आवाज में बोला। लेकिन एकदम से उसकी धड़कने मानो पल भर के लिए रुक गई और फिर रफ्तार से चलने लगी।
    दत्ता के दोनो हाथो को अपने हाथो में लेकर मानव ने उसकी आंखो झांकते हुए कहा "कल सुबह सुबह निकलेंगे। डील डन?"
    "लेकिन?" दत्ता की सुनने से पहले ही हाथ छोड़ कर वो अंदर भाग गया। हा तो उसे मिल ही चुकी थी।
    अपने बालो में हाथ घुमा कर दत्ता खुद से ही बडबडा कर बोला "तैयारी करने का मौका तो देता कमसे कम? सुबह सुबह! आह, एकलव्य !"
    आवाज देते हुए वो नीचे जाने लगा ।

    सुबह का समय , मानव हड़बड़ाते हुए बिस्तर पर उठकर बैठ गया। जल्दी जाने का बोल कर वो खुद सोया पड़ा था। उठने के बाद सबसे पहले उसकी नजरे बिस्तर पर अपने दोनो तरफ रखे तकिए पर गई। दत्ता कमरे में नही था शायद इसलिए उसने ये लगा दिए। मानव अपने घर में अक्सर बिस्तर से गिर जाया करता था। दर्शना उसका खयाल रखती थी। लेकिन इन छोटी बातो पर कौन ध्यान देता था? पर दत्ता की नजरे हमेशा उसकी छोटी सी मूवमेंट पर भी होती थी। अगर मानव बात भी ना करे तो अंतर्यामी की तरह दत्ता समझ जाता। बस , जब मानव बात कर कुछ समझाने की कोशिश करे ... वो दत्ता को कभी समझ नही आता था।
    मानव के होठों पर फिलहाल शर्म भरी और गहरी मुस्कान आ गई। उसने खोई आवाज में कहना चाहा "ही इज....!"
    कहते हुए वो एकदम से रुका "मानव ! होश में आओ। पागल वागल तो नही हो गए? उन पर लाइन नही मारनी है क्युकी वो तुम्हारी बहन के...!"
    वो फिर शांत हो गया। अब उसका ही पति था दत्ता। जबरदस्ती वाला। मायूस होकर वो बिना समय गवाए तैयार होने चला गया।

    जब मानव नीचे पहुंचा तो सबसे पहले मैक्स और छोटा को सुबह सुबह किसी बात पर बहस करते हुए देखा। उनकी जोड़ी कुत्ते बिल्ली की तरह थी। साथ आते ही बर्तनों की तरह आवाज करना शुरू कर देते थे।
    मानव ने उनकी बहस रोकने के लिए तेज आवाज में कहा "हेय मैक्स!"
    मैक्स ने हैरानी से गर्दन घुमाई "तू ठीक हो गया?"
    "जरा सा बुखार था। ऐसे क्या रिएक्ट कर रहे हो?" मानव उसे अजीब नजरो से देखने लगा। 
    मैक्स जबरदस्ती मुस्कुरा दिया "मै बुखार की बात नही कर रहा। तेरी बात कर रहा हु। तू नॉर्मल हो गया? मतलब तेरी नाराजगी मिट गई भाऊ पर से? माफ करके अपना लिया तूने उन्हे?"
    उसके सवालों को सुनकर मानव का दिमाग चकरा गया "सांस ले लो भाई! और माफ करके अपना लिया का क्या मतलब होता है? जबरदस्ती शादी की उन्होंने मुझसे। नाराज रहने का भी अधिकार नही मुझे?"
    "अरे तो मना कौन कर रहा है। तू रह ले ना नाराज। लेकिन ज्यादा नही हनन? तू उनसे और उसकी वजह से वो अपने आप से। फिर उनकी नाराजगी सब पर निकलती है।" मैक्स ने कहा तो मानव का मुंह बन गया।
    "अपनी चिंता है सिर्फ। मेरी नही ना? छोड़ो , उम्मीद ही क्या की जा सकती है। है तो सब राक्षस के ही दोस्त?" मानव ने कहकर आसपास देखा। वेधा और दत्ता दोनो ही नजर नही आ रहे थे।
    "वैसे कहा है राक्षस?" मानव ने धीमी आवाज में पूछा। फिर से दत्ता उसके मुंह से ऐसा कुछ सुने वो बिल्कुल नही चाहता था।
    मैक्स गंभीर होकर बोला "बिल्डर विश्वकर्मा आया है।"
    "आया नही जबरदस्ती लाया गया कहो। अकड़ दिखा रहा था। साले के बार ने जाकर थोड़ा तमाशा....!" छोटा कहते हुए चुप हो गया। क्युकी मैक्स ने उसके पैर पर अपना पैर रख कर चुप हो जाने का इशारा किया था।
    लेकिन देर तो हो गई। मानव ने सुन लिया और समझ भी लिया। दत्ता के बारे में बहुत कुछ सुनता था वो पहले। लेकिन सब नजरंदाज कर दिया करता था क्युकी उसे दत्ता पर पूरा भरोसा था। और भ्रम भी की अगर ऐसा कुछ हुआ तो दत्ता खुद आकर उसे सब बताएगा। लेकिन शादी के दिन जो दत्ता ने किया उसके बाद मानव को सभी बातो पर विश्वास हो गया। उस दिन से दत्ता अपनी गन अब मानव के सामने नहीं छुपाता था।
    सर झटक कर मानव ने सोचा कि इन बातो पर वो ध्यान नही देगा। मैक्स ने तुरंत ही छोटा को दूसरी तरफ धकेल दिया "जाकर काम कर। रिमाका खड़ा होकर टाइम पास करता है।"
    छोटा भी हा हा बोलकर दूसरी तरफ चला गया।

    वही पास बने एक कमरे का माहोल एकदम से ही गर्म हो उठा था। वेधा को लगा यहां से बाहर निकल जाए फिर दत्ता का जो मन करे वो सामने बैठे भुवनेश विश्वकर्मा के साथ कर दे।
    दरअसल जब दत्ता ने कहा कि विश्वकर्मा जबरदस्ती छीनी हुई जमीन को वापस कर दे तो विश्वकर्मा ने उसे ही ऑफर दे दी "ये सब करके आपका तो कोई फायदा नही है ना भाऊ? रहने दो ना फिर। आपको कुछ चाहिए तो बदले में पहुंच जाएगा आपके पास?"
    दत्ता हल्की हंसी के साथ विश्वकर्मा को देखने लगा। लेकिन वेधा जानता था ये हंसी कोई शुभ संकेत तो बिलकुल नहीं दे रही थी।
    दत्ता ने कहा "चौबीस घंटे है तेरे पास। जो कहा वो कर , वरना मै वो करूंगा जो तू झेल नही पाएगा।"
    "पर ...!" विश्वकर्मा माथे पर बल लिए उसे देखने लगा। उसकी बात पूरी होने से पहले ही दत्ता ने कहा "दुबारा बता रहा हु। जगह खाली करके जिसकी है उन्हे लौटा। और साथ में माफी भी मांग लेना अपनी बत्तमीजी के लिए। वरना अगली बार सिर्फ तोड़ फोड़ नही होगी।"
    दत्ता की बातो में चेतावनी थी। हाथ दिखा कर उसने विश्वकर्मा को चले जाने का इशारा किया। विश्वकर्मा का चेहरा सख्त होकर हाथो की मुट्ठियां बन चुकी थी। पिछली रात का नुकसान तो उसने सह लिया और मिलने भी आया। लेकिन यहां मुंह पर दत्ता ने जो बेइज्जती की थी उसे पचाना उसके लिए मुश्किल होने लगा। चुपचाप बिना एक भी शब्द बोले वो उस कमरे से बाहर निकल कर जाने लगा। पर गैरेज में जाकर उसके कदम रुक गए। नजरे सामने से हट कर नीचे अपने जूते पर पड़ी जहा किसी का धक्का लगने से ऑयल का डिब्बा गिर कर सारा ऑयल उसके जूते पर फैल गया था।
    भुवनेश ने गुस्से ने अपनी नजरे उठाई तो मानव मुंह खोले खड़ा था। उसने जल्दी से कहा "माफ़ कर दीजिए। गलती से धक्का लगा।"
    भुवनेश ने कुछ कहना चाहा पर तभी दत्ता की आवाज उसके कानो में पड़ी "एक शब्द निकाल और फिर तू अपने पैरो पर वापस जाने लायक नही रहेगा।"
    भुवनेश ने गुस्से का घुट पी लिया। फिर मानव पर एक सर्द नजर डाल कर वो तेजी से निकल गया। मानव के चेहरे पर परेशानी वाले भाव थे। दत्ता ने आकर उसकी पीठ पर लगे बैग को पकड़ लिया "चले? सुबह कब की निकल गई?"
    मानव होश में आया और अपना बैग उतार कर उसे दे दिया। उसके बाद वो दोनो साथ ही बाहर चले गए।
    वेधा ने निकलने से पहले मैक्स को बोला "घर और गैरेज दोनो का ध्यान रखना। और वो शिवा आए तो उसकी गाड़िया जाने देना।"
    मैक्स ने हा में सर हिलाया तो वेधा भी निकल गया। लेकिन उसके गाड़ी में बैठने से पहले ही किसी ने आवाज देकर रोक लिया। वेधा ने उस दिशा में गर्दन घुमाई। गणेश भागता हुआ आ रहा था।
    वेधा के पास रुक कर हाफते हुए वो बोला "बाहर जा रहे थे भाब.... मेरा मतलब भाई?"
    "क्यू? साथ चलेगा?" वेधा सुबह सुबह उसे देख कर नाखुश हो चुका था। क्या पता पीछे शिवा भी आ गया हो सोचकर?
    गणेश ने मुस्कुरा कर ना में सर हिलाया "शिवा ने आपके लिए ये भेजा है।"
    कहकर उसने बैग से टिफिन निकाल कर वेधा के सामने किया।
    वेधा की आंखे सिकुड़ गई। उसे अच्छी तरह पता था पिछली रात शिवा की बात का क्या मतलब था। लेकिन जानबूझ कर उसने खाना भेज देने के लिए कह दिया। पर शिवा ऐसा करेगा इस बात का उसे अंदाजा नही था।
    "खाने के जरिए पति के दिल में पहुंचने का पुराना ट्रिक?" वेधा ने एकलव्य की बात सुनी तो वो एकदम से चिढ़ गया।
    पर एकलव्य ने उसके कुछ कहने से पहले ही टिफिन ले लिया "तुम्हे नही चाहिए तो हम लोग खा लेंगे। वैसे भी किसी ने नाश्ता नही किया। सुना है शिवा का होटल अच्छे खाने के लिए प्रसिद्ध है।"
    गणेश ने घमंड से हा में सर हिलाया "शिवा जैसा खाना पूरे शहर में कोई नही बना सकता। अन्नपूर्णा का मेल वर्जन है वो।"
    उनकी बातो पर मुंह बनाए वेधा ने उन्हें रास्ते से हटाया और गाड़ी में जाकर बैठ गया। मगर किसी ने वो मुस्कान नही देखी जो अंदर बैठने पर उसके होठों पर आई थी।



    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 20. लव इज लव (एक अनोखी शादी) - Chapter 20

    Words: 1666

    Estimated Reading Time: 10 min

    एक जगह रुक कर सबने सुबह का नाश्ता किया और निकलते हुए मानव बड़ी मासूमी से दत्ता को देख रहा था। उसके कहे बिना ही दत्ता समझ गया था उसे क्या चाहिए। बहुत सारी प्रेस्ट्री खरीद कर देने के बाद फिर से उनकी गाड़िया रास्ते पर चल पड़ी थी। एकलव्य और वेधा आगे वाली गाड़ी में थे। वही मानव दत्ता के साथ उनके पीछे ही थे। दत्ता खुद ड्राइविंग कर रहा था।
    मानव का ध्यान सिर्फ अपने खाने पर था लेकिन उसके कारण दत्ता सड़क पर ध्यान नहीं बना पा रहा था। अचानक ही सड़क किनारे उसने गाड़ी रोकी तो मानव सवालिया नजरो से उसे देखने लगा। दत्ता ने कुछ कहने की जगह अपना रुमाल निकाल कर उसका मुंह साफ किया और फिर कहा "ठीक से खाओ वरना मै तुम्हे खा जाऊंगा।"
    "हनन?" मानव अजीब नजरो से उसे देखने लगा। उसके हाथ भी क्रीम से भरे थे।
    दत्ता ने सर हिलाकर दुबारा से गाड़ी शुरू करते हुए कहा "किसी दिन तुम्हे बाहर का खिलाना मुझे भारी पड़ने वाला है।"
    मानव की आंखे छोटी हो गई "क्यू?"
    "तू घर के खाने को मुंह भी लगाता है?" दत्ता ने नाराजगी से कहा।
    "हा तो चौबीस घंटे बाहर का ही खाता हु मै? दिन में एक दो बार। इतना तो चलता है।" मानव ने तुरंत सफाई देते हुए कहा।
    "बाहर का खाने से बिमारिया आती है। और हमे तो डॉक्टर और अस्पताल से सख्त नफरत?" दत्ता ने एक नजर उस डाल कर कहा।
    मानव का गला सुख गया। जल्दी से उसने बची हुई पेस्ट्री का बॉक्स बंद कर आगे रख दिया और अपने हाथ मुंह साफ करने लगा।
    कुछ समय बाद वो रास्ते को देख कर बोल "वैसे हम कहा जा रहे है?"
    "रायगड!" दत्ता ने आराम से कहा तो मानव की आंखे बड़ी हो गई। कबसे जाना चाहता था वो उस जगह। जब उनकी ट्रिप गई थी तब अंकुश ने जानबूझ कर मानव को जाने से मना कर दिया था। मानव बहुत रोया था लेकिन कोई फायदा नही हुआ।
    "दीदी से मिलने के बाद घुमाने भी ले जाओगे ना? मुझे जंजीरा देखना है।" मानव एक्साइट होकर बोला।
    "बिलकुल।" दत्ता ने मुस्कुरा कर जवाब दिया। जिससे मानव के चेहरे पर चमक आ गई।


    वही पुलिस स्टेशन की एक सेल में लगातार किसी के चीखने की आवाज आ रही थी। प्रणय के हाथ में डंडा था और उसने नाना भाऊ की हालत को पूरा बिगाड़ कर रख दिया था। सेल में मौजूद दूसरे ऑफिसर्स थोड़ी चिंता ने आ गए। एक जन हिचकिचाते हुए आगे आया और कहा "सर! कोर्ट ने पेश करना है इसे। मर गया तो दिक्कत हो जायेगी।"
    प्रणय पूरा पसीने से लथपत था। उसकी यूनिफॉर्म अस्त व्यस्त थी। दूसरे ऑफिसर की बात सुनकर वो रुक गया। भले ही अभी तक अपने सवालों के जवाब उसे नही मिले थे। लेकिन ओर ज्यादा टॉर्चर किया जाता तो नाना भाऊ जिंदा ना रहता। प्रणय ने दूसरी तरफ डंडा फेक दिया और एक नजर उसे घूर कर बाहर निकला।
    जैसे ही वो केबिन में पहुंचा तो टेबल पर छोड़ कर गया फोन न जाने कब से बज रहा था। कटने से पहले प्रणय ने जल्दी से फोन लेकर उठाया "जी बीवी साहेब।"
    "कितने बजे है पति देव ? जल्दी आने का कहकर गए और अब सुबह के ग्यारह बज रहे है।" सामने से अस्मिता नाराजगी से बोली।
    घड़ी में समय देख कर प्रणय ने आंखे मिच ली। उसने कहा "मै बस अभी निकल ही रहा था।"
    "आते हुए जरा अपने साले के पास जाकर आना। आप कहेंगे तो नखरे नही दिखाएगा घर आने में। बाबा को अचानक जरूरी काम से मुंबई जाना पड़ा है तो पता नही वो कब तक लौटेंगे।" अस्मिता ने कहा ।
    "ठीक हैं। चला जाऊंगा।" प्रणय ने कहा तो हा कहकर अस्मिता ने फोन रख दिया।


    सुबह से निकली गाड़िया शाम ढलने पर रायगढ़ पहुंची थी। दत्ता बहुत भड़का हुआ था क्युकी काफी समय से वो पता ढूंढ कर परेशान हो गए थे। अंत में उन्हे वो बिल्डिंग मिल ही गई।
    कुछ ही समय में उस बिल्डिंग के एक फ्लैट के सामने वो सब खड़े थे और एकलव्य ने बेल बजा दी। पूरे एक मिनट बाद दरवाजा खुला और मानव के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसके सामने उसकी बहन मृदुला खड़ी थी। दरवाजे को पूरा खोल कर बड़ी सी मुस्कान के साथ उसने बाहें फैलाई तो मानव एकदम से उसके गले जा लगा।

    "हा ये कर लो पहले। खड़े है हम इधर ही।" काफी देर बाद भी जब वो अलग नही हुए तो दत्ता ने खीजते हुए कहा।
    मृदुला ने मानव को अलग कर दत्ता को घूरा "किसने बोला था तुम्हे आने को? सिर्फ मेरा भाई भेज देते तो नही चलता?"
    "ऐसे कैसे अकेला छोड़ दूंगा उसे? शादी की है मैने। पति है वो मेरा।" कहते हुए दत्ता ने उसे बीच ने हटाया और घर में प्रवेश कर गया।
    इससे पहले की मृदुला कुछ कह पाती वेधा ने उसके हाथ ने फूलों का बड़ा सा बुके थमा कर कहा "हैप्पी मैरिड लाइफ इन लेट। कहा है तेरा पति?"
    "आ गई सौतन।", उसका दिया बुके मृदुला ने साइड टेबल पर पटक दिया और कहा "मार्केट गया है। आओ तब तक मेरे सर पर बैठ जाओ सब।"
    "तू एक खराब बीवी मटेरियल है। घर आए मेहमानों का ठीक से स्वागत तक नही कर सकती। जबकि उसके खास दोस्त के अलावा एक तेरा जीजा भी आया है। न जाने क्या देखा उसने तेरे अंदर और शादी कर ली। मै होता तो किसी बिल्डिंग से कूद जाता लेकिन तेरे जैसी बला अपने गले ने ना लटकाता।" वेधा ने उसे चिढ़ाते हुए कहा।
    "तेरे में और उसमे जमीन आसमान का फर्क है। तू दूर ही रह शादी वादी के मामले में। मेरे जैसी तो दूर की बात तुझे अच्छी लड़की भी ना संभाल पाएगी। तेरे लिए हम ना कोई लड़का ढूंढ देंगे।" मृदुला ने उसी की भाषा में उसे जवाब दिया।
    वेधा ने उसके सर पर मार दिया। बदले में उसके सर पर भी पड़ी। एकलव्य और मानव इस आशा में खड़े थे अगर इनका हो जाए तो वो भी अंदर आ जायेंगे। दत्ता तो आराम से अपना ही घर समझ कर बैठ चुका था लिविंग रूम में।

    कुछ ही समय में नक्ष लौट आया और अब चारो दोस्त साथ बैठे थे। मृदुला किचन में उनके लिए डिनर बनाने में जुट गई तो मानव भी पीछे पीछे आ चुका था।
    उसने कहा "मै कुछ मदत कर दू?"
    "हा! यहां बैठ और मुझे बता की सब कुछ कैसा चल रहा है?" मृदुला ने काउंटर की तरफ इशारा करते हुए कहा।
    मानव उससे कुछ दूरी पर ही बैठ गया "आप यहां कैसे आए? शादी वाली रात क्या हुआ था? वो सच में बहुत गुस्सा थे। क्या उन्हे नही पता था आपके भागने के बारे में ?"
    "वो? क्या बात है ? नाम नही लिया जा रहा अब?" मृदुला ने उसे छेड़ते हुए कहा।
    "दीदी!" मानव चिढ़ उठा।
    "बताती हु ना ? जल्दी क्या है? पहले ये बताओ तुम दत्ता के साथ ही रह रहे हो? क्या उसकी फैमिली नाराज है तुम पर? परेशान तो नही कर रहा ना कोई? वैसे दत्ता के होते मुझे चिंता करने की जरूरत नहीं, लेकिन फिर भी कोई ऐसी बात हो जो तुम उसे नही बता सकते ... तो मुझे बता दो।" मृदुला ने काफी गंभीरता से पूछा। यहां आने के बाद उन लोगों का बाकी सबसे कोई कॉन्टैक्ट नही हुआ था तो क्या हो रहा है इसके बारे में कोई अंदाजा ही नही था।
    "हेतवी आंटी ने घर में नही आने दिया मुझे तो शायद इस वजह से उन्होंने भी घर छोड़ दिया। अभी हम वेधा के घर पर रह रहे है। उनके घर पर क्या हुआ नही पता लेकिन उनके घरवाले नाराज होंगे मुझ पर इतना तय है।" मानव ने उदासी से कहकर कर सर झुका लिया।
    मृदुला भी शांत हो गई। मानव की हालत वो समझ सकती थी। अचानक ही उसने थोड़ा हिचकिचा कर कहा "मम्मी! कैसी है वो? मिले तुम उनसे? नाराज है क्या मुझपर?"
    "नही है वो नाराज। ना कभी हो सकती है हम पर। पर शायद पापा बहुत गुस्सा है। ढूंढ भी रहे है आपको।" मानव ने कहा।
    मृदुला सर हिलाकर बोली "नाराज होने के लिए क्या जाता है उनका? जिम्मेदारी के तौर पर कभी कुछ किया है उन्होंने हमारे लिए? शादी में भी अपना फायदा ढूंढ रहे थे वो। उस आदमी के लिए ना गुस्सा आता है, ना नफरत ! बल्कि दया आती है। न जाने अपने इस एटीट्यूड के साथ कहा तक जायेंगे।"
    "आपने वापस आने के बारे में क्या सोचा है?" मानव ने एकदम से सवाल कर दिया।
    मृदुला ने उसे घूरा "बदल दी बात।"
    "छोड़ो ना फिर उनकी बुराई। बात करने के लिए बहुत कुछ है लेकिन आप वही जाकर रुकती है।" मानव ने कहा।
    "तुम उनका बुरा बर्ताव एक दिन में भूल जाते हो लेकिन में पूरे जन्म नही भूल सकती।", मृदुला व्यंग से हंस कर बोली "छोड़ो, बात करके मुझे ही अपना मुंह गंदा नही करना। बस मम्मी को जल्दी समझ आ जाए। फिर उस आदमी को अकेले रहने पर मजबूर कर दूंगी मैं।"
    "उसके लिए वापस आना होगा ना?" मानव ने भौंहे उचका दी।
    "आ जायेंगे। वातावरण थोड़ा शांत होने दो। वैसे शर्मीली दुल्हन की तरह क्यू चला आया यहां? मुझे मदत की जरूरत नही है। तू जाकर अपने पति के साथ बैठ।" मृदुला ने फिर से शरारत शुरू कर दी। जिसका जवाब देते हुए मानव ने वही आटा लेकर उसके उपर उड़ेल दिया जिसे उसने बर्तन में निकाला था।
    "माऊ! मस्ती नही।" मृदुला आंखे बंद कर चिल्लाई।
    "आप करो तो सब ठीक। मैने की तो तकलीफ हो रही हैं?" मानव ने काउंटर से उतर कर फिर उस पर आटा उड़ेल दिया।
    "रुक तू!" मृदुला दोनो हाथो में आटा लेकर उसके पीछे भागी। कुछ ही समय में उन्होंने बच्चो की तरह पूरा किचन अस्त व्यस्त कर दिया था। अंदर से आवाज सुनकर नक्ष पहुंचा तो उसने सर पिट लिया अपना। उसकी बीवी सिर्फ उम्र से बढ़ी थी। दिमाग मानव के साथ ही बढ़ रहा था।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे और सिर्फ पढ़कर निकल जाना। डेली पांच सौ से ज्यादा लोग पढ़ते है पर ना फॉलो करना है ना ही कमेंट। अब से मैं भी जब मर्जी आए तब पार्ट दूंगी।😤