कहते हैं सुंदर होना बहुत सौभाग्यशाली होता है पर जब यही सुंदरता आपका मौत के कारण बन जाए तो हां यह कहानी है ऐसी लड़की की जिसका सुंदरता ही उसके लिए जान का खतरा बन गया वह बेचारी जो दुनिया की रीति रिवाज से अनजान एक नई दुनिया बसाना चाहती थी पर उसके अपनों न... कहते हैं सुंदर होना बहुत सौभाग्यशाली होता है पर जब यही सुंदरता आपका मौत के कारण बन जाए तो हां यह कहानी है ऐसी लड़की की जिसका सुंदरता ही उसके लिए जान का खतरा बन गया वह बेचारी जो दुनिया की रीति रिवाज से अनजान एक नई दुनिया बसाना चाहती थी पर उसके अपनों ने ही उसका सौदा कर दिया..! ऐसा सौदा जिसके बारे में सोच कर के भी आप के रूह कांप जाए कहते हैं सुंदर होना बहुत सौभाग्यशाली होता है पर जब यही सुंदरता आपका मौत के कारण बन जाए तो हां यह कहानी है ऐसी लड़की की जिसका सुंदरता ही उसके लिए जान का खतरा बन गया वह बेचारी जो दुनिया की रीति रिवाज से अनजान एक नई दुनिया बसाना चाहती थी पर उसके अपनों ने ही उसका सौदा कर दिया..! ऐसा सौदा जिसके बारे में सोच कर के भी आप के रूह कांप जाए
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रात के करीब 12:00 बजे, ठंड और कोहरे ने अपना पैग़ाम बिछाना शुरू कर दिया था।
देखते ही देखते, सफेद चादर ने चारों तरफ़ से मनाली को अपने बाहों में ले लिया था।
वो सर्द हवाएं... रात की कंपकपाहट... रूह को छू जाने वाली थी... और इन्हीं सबके बीच, सड़क पर चल रही थी एक लड़की... जिसने चादर से अपना चेहरा ढक रखा था।
कंपकंपाती ठंड में, बिना चप्पल के... वह लगातार आगे बढ़ रही थी।
उसके पैरों में मानो बर्फ की सुइयां चुभ रही हों... सड़क की ठंडक जैसे उसकी हड्डियों तक उतर रही थी।
पर वो... अपने कांपते हुए पैरों को ज़बरदस्ती घसीटते हुए, अपने कमरे की ओर तेज़ी से बढ़ रही थी...
तभी...
पीछे से किसी की आवाज़ आती है —
"तुम यहाँ... क्या कर रही हो?"
वो आवाज़ सुनते ही, लड़की स्तब्ध रह जाती है...
उसके हाथ और पैर पहले से ही सुन्न हो चुके थे, लेकिन अब... जैसे रूह तक जम गई हो।
वो चादर को और कसकर पकड़ लेती है... और तभी, कोई उसके कंधे पर हाथ रखता है।
उसके स्पर्श से ही... वो कांप जाती है...
"डर मत निधि, मैं हूं... सुमेधा!"
"इतनी रात को... तुम यहां क्या कर रही हो? अगर किसी ने तुम्हें देख लिया, तो तुम्हारी भी बलि चढ़ा देंगे...!"
सुमेधा की आवाज़ सुनते ही... निधि फूट-फूट कर रोने लगती है।
वो उसके गले लग जाती है...
सुमेधा, उसकी आंखों के आंसू पोंछते हुए कहती है —
"बच्चे... रो क्यों रही है? चल, अभी यहां से निकल... अगर किसी ने हमें देख लिया तो लेने के देने पड़ जाएंगे!"
वो निधि को जल्दी से अपने घर ले आती है...
घर पहुंचते ही, झट से दरवाज़ा बंद करती है और चिमनी की तरफ़ जाकर आग लगाती है।
दो कुर्सियां लाकर निधि को बैठाती है —
"क्या हुआ निधि...? रो क्यों रही हो?"
निधि... अपने चेहरे से चादर हटा देती है।
उसकी खूबसूरती देखकर, सुमेधा भी कुछ पल के लिए ठहर जाती है...
फिर झट से खिड़कियां और दरवाज़े बंद करते हुए कहती है —
"ये तुमने क्या किया...? चेहरा साफ़ क्यों किया...?
तुम्हें पता है ना, इस गांव में गोरा होना... पाप है...!"
"तुम्हारी मां ने इतने वर्षों से तुम्हें छुपाकर रखा...! उनके जाने के बाद मैंने वादा किया था, कि तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी... और अब अगर तुमने अपना चेहरा ऐसे दिखा दिया, तो मैं तुम्हारी रक्षा कैसे करूंगी...? निधि...!"
निधि रोते हुए कहती है —
"मासी... मुझे कुछ समझ नहीं आता कि मेरे साथ ये सब क्यों हो रहा है...!"
"दिन भर काले रंग से चेहरा पोत कर जीना... अब सहा नहीं जाता...! न मैं पानी के पास जा सकती हूं... न खुद की शक्ल देख सकती हूं...!"
"इससे अच्छा है... मैं मर जाऊं!"
सुमेधा झट से उसका मुंह बंद करती है —
"ऐसी बातें मत कर बेटी...! जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था, पर अब भी तुम्हारे पास एक मौका है...!"
"तुम्हें इस गांव से भागना होगा!"
ये सुनकर निधि हैरान होती है —
"नहीं मासी... मैं आपको छोड़कर कैसे जा सकती हूं...? अगर आप पर कुछ हो गया तो?"
सुमेधा हल्की मुस्कान के साथ कहती है —
"बेटा... हमें कुछ नहीं होगा...! हमारी उम्र तो बीत चुकी है... पर तुम्हें मैं इस नर्क से निकालकर ही दम लूंगी...!"
"उस रात... अगर तुम्हारी मां ने वो गलती न की होती... तो आज तुम्हें ये सज़ा नहीं भुगतनी पड़ती...
पर उनके किए की सज़ा मैं तुम्हें नहीं मिलने दूंगी!"
तभी...
दरवाज़े पर एक ज़ोरदार दस्तक होती है...!
दोनों एक-दूसरे को भयभीत निगाहों से देखती हैं...
सुमेधा जल्दी से काजल की डिब्बी निधि को थमाती है —
"जल्दी! ये अपने पूरे चेहरे पर लगा लो! मैं देखती हूं कौन आया है...!"
सुमेधा अपना पल्लू ठीक करते हुए, दरवाज़े की ओर बढ़ती है।
दरवाज़ा खोलते ही... सामने थे प्रधान जी...
वो मुस्कुराते हुए कहते हैं —
"क्या... बाहर ही बात करोगी...? या अंदर बुलाओगी भी...?"
सुमेधा मुस्कुराकर कहती है —
"हां-हां प्रधान जी, आइए... घर आपका ही है...!"
प्रधान अंदर आते हैं और निधि दूर से सब देख रही होती है...
वो हंसते हुए कहते हैं —
"बड़े चर्चे सुने हैं सुमेधा...! आज आपके हाथों का कमाल हम भी देख लें!"
सुमेधा गुस्से से चिल्लाती है —
"ये आप क्या कह रहे हैं प्रधान जी?! होश में हैं?!?"
"हां... हमें होश है... और आपकी 'शामें' भी मशहूर हैं!"
सुमेधा तिलमिलाकर कहती है —
"मैं धंधे में हूं, पर मेरा भी वक़्त है, वसूल है! शाम के बाद किसी को छूने नहीं देती!"
प्रधान हंसते हुए उसकी ओर बढ़ता है और पल्लू खींचकर ज़मीन पर गिरा देता है...
सुमेधा चिल्लाती है —
"प्रधान जी! ये आप क्या कर रहे हैं!"
प्रधान आगे बढ़ता है...
तभी... निधि पास आती है और जोर से प्रधान के हाथ पर वार करती है।
फिर पास से चाकू उठाकर उसकी गर्दन पर टिका देती है —
"चुपचाप निकल जा यहां से... नहीं तो यही काट कर रख दूंगी!"
प्रधान डर जाता है... कांपते हुए कहता है —
"अरे बेटी... चाकू रख दो... चोट लग जाएगी!"
"निकल बाहर!!" — निधि चीखती है।
प्रधान घबराकर चला जाता है, लेकिन जाते-जाते कहता है —
"इसकी कीमत चुकाओगी...! दोनों चुकाओगी!"
"यह क्या किया निधि! में प्रधान से निपट लेती, तुझे उसे ऐसे नहीं भागना चाहिए था।"
"मासी, वह जो आपके साथ करने जा रहा था, क्या उसे मैं करने देती?"
"बेटी, एक बात बताओ... हम देश को बचपन में ही मां-बाप सड़ने के लिए उसे गली में छोड़ जाते हैं। और वहां रहकर के काम करना या ना करना — इससे लोगों को फर्क नहीं पड़ता। वे तुम्हें उस निगाह से देखेंगे, जिस निगाह से वहां की औरतें देखी जाती हैं।"
"बेटी, कुछ भी हो जाए पर तुझे वह सब नहीं करना है! तेरी मां का यही सपना था कि तू यहां से कहीं दूर चली जाए। चल, हमें यहां से निकलना होगा... क्योंकि प्रधान अपने आदमियों को लेकर आ रहा है। उससे पहले हमें यहां से जाना पड़ेगा।"
यह कहकर सुमेधा वहां से उठती है, झट से अपना बैग उठाती है और उसमें कुछ कपड़े और पैसे डालते हुए कहती है,
"बेटा, निधि! यह यहां से जाने के बाद तेरे काम आएंगे।"
यह कहकर साल को निधि को ढकती है और उसे लेकर सीधा पीछे वाले रास्ते से बाहर चली जाती है।
इधर प्रधान, गुस्से से दिल में लावा लिए, सीधा कोठी के ऊपर पहुंच जाता है।
पकोड़े की मालकिन शानूबाई को देखते हुए कहता है,
"शानू! हम अपनी बेइज्जती कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
शानू, जो पान चबा रही थी और चार और लड़कियां उसका हाथ-पैर दबा रही थीं, वह एक लड़की को इशारा करती है। लड़की पास में पड़े कटोरे को उठाकर शानू को देती है। शानू उसमें पान थूकते हुए, अपनी अदाओं के साथ उठ खड़ी होती है और प्रधान की तरफ देखते हुए कहती है,
"क्या हुआ प्रधान जी? ऐसे हैरान क्यों हैं आप? किसने कर दी आपकी बेइज्जती? कहीं आपका खड़ा नहीं हुआ तो किसी ने उस पर बवाल तो नहीं कर दिया?"
यह कहकर हर कोई हंसने लगता है। उन्हें हंसते देखकर प्रधान गुस्से में चीखते हुए कहता है,
"चुप करो सानू! ज़्यादा बकवास की तो ये कोठा बंद कर देंगे। मुझे एक मिनट नहीं लगेगा इस कोठे को गिराने में!"
सुनते ही शानू मुस्कुराते हुए आगे बढ़ती है। प्रधान जी के चेहरे पर उंगलियां फिरते हुए कहती है,
"अरे प्रधान जी, हम तो मज़ाक कर रहे थे! आप गुस्सा क्यों हो गए? बताइए, किसकी इतनी मज़ाल जो आपको मना कर दे और आपकी बेइज्जती करे?"
"वही... आपके काम वाले समय था और उसकी जो दोस्त थी — सुनीता की बेटी, निधि!"
यह सुनते ही शानू बाई की आंखें फड़फड़ाने लगती हैं। उसे तो एक मौका मिल गया था सुधा के खिलाफ जाने का — क्योंकि सुधा अपने धंधे में बहुत शांत और शातिर तरीके से रहती थी। वह शाम के 6 बजे के बाद किसी को भी अपने साथ बिस्तर पर नहीं लेती थी।
शानू मुस्कुराते हुए कहती है,
"अरे बिंदु, ज़रा पता कर तो... यह सुधा और निधि कहां हैं?"
तब तक एक दूसरी लड़की, जो धीरे-धीरे अपने पैरों को पीछे कर रही थी, मानव — वहां के लोगों की नजर में आने से बच रही थी। शानू का ध्यान उस पर जाता है। वह शानू से छुपते हुए दूसरी लड़कियों के पीछे खड़ी होने की कोशिश कर रही थी। शानू आगे बढ़ती है और उसके बालों को कसकर पकड़ते हुए बाहर धकेल देती है।
"तू वृंदा! तू तो उसकी अच्छी दोस्त है ना? चल, अब बता — सुधा कहां है?"
वृंदा जमीन पर गिरी हुई थी। वह उठते हुए कहती है,
"मालकिन! मुझे नहीं पता वह कहां गई है।"
"अच्छा?" यह कहकर शानू जोर-जोर से हंसने लगती है। वह कसकर उसके बालों को पकड़कर खींचते हुए कहती है,
"ऐसे नहीं बताएगी तू! तू और वह तो साथ में पली-बढ़ी हो ना? वह वफादार है — उसकी तू! ऐसे नहीं मानेगी। अरे ओ सलीम! सुन... ज़रा उन सभी मुस्टंडों को बुला न। आज सारे लड़कियों का काम ही अकेली करेगी। सारे ग्राहक आज पूरी रात इसके बिस्तर पर जाएंगे!"
यह सुनते ही वहां पर खड़ी सभी लड़कियों की रूह कांप जाती है — क्योंकि उन्हें भी पता था कि इतने लोगों को झेल पाना किसी के बस की बात नहीं है।
यह सुनते ही वृंदा के चेहरे से पसीना छूटने लगता है। वृंदा उसका पैर पकड़ते हुए कहती है,
"मुझे सच में कुछ नहीं पता! प्लीज़... मुझे जाने दीजिए! हम पर रहम करो अम्मा! ऐसा मत करो — हम मर जाएंगे!"
यह सुनते ही शानू उसे ज़ोर से धक्का देते हुए कहती है,
"जिंदा रहकर भी क्या करना है वही काम ना? इससे अच्छा है — एक बार में ही मर जाओ! और मुझे दगाबाजी करने वालों का यही हाल पसंद है!"
यह कहकर वह अपनी गाड़ी निकालने के लिए सलीम को इशारा करती है। वहां से प्रधान और वह चले जाते हैं।
उनके जाने के बाद ढेर सारे आदमी आकर वृंदा को जबरदस्ती पकड़कर एक कमरे में ले जाते हैं। वृंदा की चीखें चारों तरफ गूंज रही थीं। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। और वहां पर खड़ी सारी औरतें — डर के कारण सहमी हुई थीं।
इधर दूसरी तरफ शानू अपने आदमियों के साथ और प्रधान जी के आदमियों के साथ सुमेधा के घर पहुंचती है, पर घर में कोई नहीं था। यह देखकर वह चिल्लाकर कहती है,
"कहां जा सकती है वह?"
प्रधान जी कुछ पल सोचते हैं और फिर कहते हैं,
"बस स्टैंड... अगर भागी होगी तो बस स्टैंड ही गई होगी। हमें वहां चलकर देखना चाहिए।"
"ठीक है, आप सही कह रहे हैं प्रधान जी! अरे सलीम, गाड़ी निकाल!"
फुट गाड़ी की स्पीड तेज करते हुए वे सीधा बस स्टैंड की तरफ जाते हैं।
इधर अपनी रफ्तार को तेज करते हुए सुधा और निधि भी बस स्टैंड की तरफ बढ़ रहे थे। थोड़ी देर में वह बस निकलने ही वाली थी। दूर से उन्हें वह बस दिखाई देती है। उसे देखते ही सुधा मुस्कुराते हुए कहती है,
"निधि! जल्दी चल... एक बार तुझे वह बस मिल गई, तो तू यहां के बंधनों से आज़ाद हो जाएगी! अपने कदम बढ़ा बेटी, एक बार!"
यह कहकर वह अपनी रफ्तार और तेज करती है। देखते ही देखते वह बस के करीब आ जाती है। निधि को बस में बिठाते हुए, उसे थोड़े और पैसे देकर कहती है,
"तू यहां से चली जा। मैं यहां के लोगों को संभाल लूंगी।"
"पर मासी, आप भी चलो ना! आपको ही वे लोग छोड़ेंगे नहीं!"
यह कहकर निधि रोने लगती है।
निधि को रोता देख, सुधा उसके माथे को चूमते हुए कहती है,
"मेरी बच्ची... तू जा! बाहर जा, पढ़-लिखकर एक बड़ी अफसर बनकर आना। फिर इन सबका सर्वनाश कर देना। अभी के लिए — तू चली जा मेरी बेटी, तू जा!"
सुधा बस वाले से इशारा करती है,
"भाई! बस लेकर जाओ आप।"
बस वाला सुधा की बात समझकर बस की रफ्तार बढ़ा देता है और बस को वहां से लेकर चला जाता है।
इधर निधि खिड़की से बाहर अपनी मासी को देख रही थी... उसकी निगाहें आंसुओं से भर आई थीं।
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सुधा गहरी सांस ले ही रही होती है कि तब तक प्रधान की जीप वहाँ जाकर पहुँच जाती है।
वो लोग सुधा की तरफ भागते हैं। सुधा, उनको देखते ही तेजी से अपने कदमों को तेज़ करते हुए दूसरी तरफ भाग रही थी, पर वो लोग दौड़कर उसे पकड़ लेते हैं। जैसे ही वे सुधा को पकड़कर प्रधान जी के पास लाते हैं, उसके चेहरे पर भय और डर की जगह खुशी थी! वह जोर-जोर से हँसते हुए कहती है,
"प्रधान! मुझे पता था तू दरिंदा है... पर अब तो कुछ नहीं कर सकता। मेरी बेटी तेरे चंगुल से आज़ाद है!"
तब तक शानू पान को थूकते हुए आगे बढ़ती है। वह सुधा के मुँह को कस कर दबाते हुए कहती है,
"काम करती है रन** वाले और हैसियत भूल जाती है...?"**
"प्रधान इस गाँव के जाने-माने सदस्य हैं! और तूने उनके साथ ऐसा करने का सोचा भी कैसे...? बता, बता निधि कहाँ है, वरना तुझे यहीं पर ज़िंदा काट दूँगी!"
यह सुनकर सुधा जोर-जोर से हँसते हुए कहती है,
"वो वहीं है जहाँ उसे होना चाहिए... तेरे पहुँच से बहुत दूर!"
"मुझे तो घिन आती है तुझे अम्मा कहते हुए! तू माँ के शब्द के बराबर भी नहीं है! हम लड़कियों के जिस्म को बेचकर तू अपनी इच्छाएँ पूरी करती है, और तू चाहती है हम तुझे अम्मा बुलाएँ?"
यह कहकर वह ज़मीन पर थूक देती है, जिसकी वजह से शानू को गुस्सा आ गया था। वह तिलमिला उठती है और कस के सुधा के बालों को पकड़ते हुए, अपने हाथ में लिए चाकू से उसके बाल काटकर ज़मीन पर फेंक देती है और चिल्लाते हुए कहती है,
"तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे ऐसा कहने की? अब तू देखेगी! ऐसा करूंगी तेरा कि तू सोच भी नहीं सकती!"
यह सुनकर सुधा फिर से जोर-जोर से हँसते हुए कहती है,
"क्या करोगी मेरा...? ज़्यादा से ज़्यादा मारोगी ना...? मारो मुझे! मैं तो उसी दिन मर गई थी, जिस दिन मेरे घरवालों ने मुझे तेरे कोठे पर बेचा था!
मैं उसी दिन मर गई थी, जिस दिन दरिंदों की तरह तेरे पैसों के सौदागर ने मेरे जिस्म को नोचा था! अब और कितना मारोगी...? मार डालो!"
सुधा जोर-जोर से हँस रही थी। शानू भाई, सुधा को देखते हुए अपने आदमियों को इशारा करते हैं। उसके कुछ आदमी सुधा को पकड़कर वहाँ से लेकर चले जाते हैं।
शानू भाई और प्रधान जी पर बैठते हुए कहते हैं,
"जीप तेज़ बढ़ाओ! चलती बस को हमें पकड़ना होगा! इससे पहले कि वो शहर पहुँचे, उसे बीच रास्ते में ही रोक लेना है!"
शानू भाई के आदेश पाते ही उसके आदमी ने जीप की रफ्तार बढ़ा दी। और दूसरी जीप वाले अलग-अलग दिशा से बस की तरफ चले जाते हैं।
इधर निधि बस में बैठी बाहर के नज़ारे देख रही थी। तभी उसका ध्यान पीछे की तरफ जाता है — कई जीप उसकी तरफ आ रही थीं! यह देखकर वो डर जाती है और उसके हाथ-पैर काँपने लगते हैं। वह साड़ी से अपने आप को पूरी तरह से ढँक लेती है और पीछे की सीट की तरफ जाते हुए नीचे बैठ जाती है।
जीप का ड्राइवर बस के आगे जीप खड़ी कर देता है, जिसकी वजह से बस रुक जाती है। जीप से सारे आदमी उतरकर बस के अंदर आते हैं। ड्राइवर का कॉलर पकड़कर, कसकर उसे मारते हुए पूछते हैं,
"वो लड़की कहाँ है?"
ड्राइवर उनकी बात सुनकर हैरानी से उनकी तरफ देखते हुए कहता है,
"सर, यहाँ कोई लड़की नहीं है! बस तो खाली है... मैं इसे सर्विसिंग के लिए लेकर जा रहा हूँ!"
उसकी बात सुनकर उसके आदमी उसे दूर पटकते हैं और बस में चारों तरफ नज़रें दौड़ाते हैं। बस पूरी तरह से खाली थी।
वो सब नीचे उतरते हुए शानू भाई की तरफ देखकर कहते हैं,
"अम्मा, बस तो पूरी की पूरी खाली है! एक भी पैसेंजर नहीं है!"
यह सुनकर शानू मुस्कुराते हुए, पान जबाते हुए बगल में थूकती है और कहती है,
"ऐसा कैसे हो सकता है...? तूने ध्यान से देखा?"
"हाँ अम्मा! पूरी बस खाली है!"
"चलो रे, जीप में बैठो!" — यह कहकर वह जीप में बैठने का इशारा करती है।
उधर, बस के नीचे बैठी निधि... अपने सिर को बस से टिकाए, आँखें बंद करके गहरी साँस ले रही होती है, कि तभी अचानक उसे अपने हाथों पर किसी का एहसास होता है! एहसास होते ही उसकी आँखें खुल जाती हैं — वह अपने सामने शानू अम्मा को देखकर डर जाती है!
वह जोर-जोर से चिल्लाते हुए कहती है,
"छोड़ो मुझे! छोड़ो!"
वो दरिंदों की तरह हँसते हुए उसे घसीट कर बस से बाहर निकाल लेती है और उसे जीप में बिठाकर गाँव की तरफ ले जाती है।
गुंजन, जो ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी, उसका मुँह, हाथ सब बाँध दिया गया था। और उसके आदमियों ने बस के मालिक को भी बहुत पीटा था।
देखते-देखते वो लोग गाँव पहुँच जाते हैं। प्रधान, सुधा के पास पहुँचते हुए कहता है,
"बड़ा घमंड था ना तुझे...? देख, तेरी बेटी को ढूँढ कर लाए हैं! तेरे सामने तेरी बेटी की इज़्ज़त को लूटेंगे!"
इतना कहते ही वे लोग निधि को उसके सामने फेंक देते हैं। निधि को देखते ही सुधा की आँखें भर आती हैं — वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगती है और उनके पैरों को पकड़कर गिरती हुई कहती है,
"तुम सब जो कहोगे, मैं करने को तैयार हूँ... पर इसको जाने दो! ये अभी बच्ची है... तुम सब के आगे हाथ जोड़ती हूँ, इसे जाने दो!"
यह कहकर सुधा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगती है।
तब तक शानू भाई, पास में पड़े जग का पानी उठाकर निधि के ऊपर डाल देता है। जिसकी वजह से उसके चेहरे पर लगी कालिख बहकर ज़मीन पर बिखरने लगती है। यह देखकर वहाँ खड़े हर कोई चौंक जाता है।
शानू उसके पास बैठते हुए, उसके चेहरे से कालिख साफ़ करके हैरानी से देखकर मुस्कुराते हुए कहता है,
"यह तो... दूध की तरह गोरी है!"
कहा थी अब तक ये कोहनूर बड़ी चालक थी तेरी मां तुझे छिपा कर रखा था क्यों री सुधा तू भी अरे अगर पहले मिली होती तो आज न जाने कितने पैसे होते हमारे पास ये यह कहकर पर जोर-जोर से हंसने लगतीहैं
"इस चाँद के टुकड़े को इसने छुपाकर रखा था, प्रधान...? ये क्या...?!"
प्रधान भी उसको देख रहा होता है।
तब तक उनके दरवाज़े पर दस्तक होती है, और जैसे ही पीछे मुड़कर देखते हैं — वहाँ पर गाँव के राजा अमर प्रताप सिंह खड़े हुए थे।
अमर प्रताप जी को देखकर वह सब उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं।
अमर प्रताप जी आगे बढ़ते हैं और निधि को देखते ही उस पर मोहित हो जाते हैं।
वह उन सब की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं,
"इसे नहलाकर, सजा-संवार कर मेरी दुल्हन बनाओ। इसके साथ हम सुहागरात मनाएँगे!"
यह सुनकर वे सब उनके हुक्म का पालन करते हुए, निधि को वहाँ से ले जाने लगते हैं।
पर निधि ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी, वह जाने के लिए तैयार नहीं थी।
सुधा भी राजा के पैरों में पड़कर, ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए कहती है,
"राजा जी, वह बच्ची है! उसे छोड़ दीजिए... उसे जाने दीजिए। आप जो कहेंगे, मैं करने के लिए तैयार हूँ..."
सुधा की रोती हुई बातों को सुनकर राजा जी ज़ोर-ज़ोर से हँसते हुए कहते हैं,
"इसकी माँ ने मुझे मना किया था, ना...? अब उसका कर्ज... इसकी बेटी चुकाएगी!"
निधि वहाँ से नहीं जा रही थी। वह जबरदस्ती खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी।
तब तक राजा अपने आदमियों को इशारा करते हैं — वे सब सुधा के गले पर चाकू लगा देते हैं।
राजा, निधि की तरफ देखते हुए कहता है,
"अगर तूने ऊँगली भी हिलाई, तो इसकी जान ले लूँगा... और मेरे सारे आदमी तुझ पर शैतानों की तरह टूट पड़ेंगे!"
निधि डरते हुए निगाहों से सुधा की तरफ देखती है, जिसके चारों तरफ सभी आदमी खड़े हुए थे।
किसी एक ने उसका मुँह दबा रखा था।
सुधा रो-रोकर अपनी आँखें लाल कर चुकी थी। उसके हाथ तड़प रहे थे, छटपटा रहे थे।
निधि, उसे दर्द में देखकर राजा के पाँव पकड़ते हुए कहती है,
"आप जो कहेंगे, मैं करने के लिए तैयार हूँ... पर मेरी मासी को छोड़ दीजिए!"
यह सुनते ही राजा हँसते हुए कहते हैं,
"दूसरे कमरे में तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ। दुल्हन के जोड़े में... अभी के अभी आ जाओ!"
उसकी बात सुनकर निधि रोते हुए वहाँ से चली जाती है।
शानू भाई उसे बाथरूम में लेकर आती हैं, जहाँ पर फूलों से सजा हुआ एक टब रखा था — जिसमें बस दूध भरा हुआ था।
निधि को उस टब में डाला जाता है।
उसे पूरी तरह से अच्छे तरीके से नहलाया जाता है।
दूध में नहा कर निकलते ही उसका रंग पूरी तरह से बदल चुका था।
वह एक खूबसूरत परी की तरह नज़र आ रही थी — गुलाबी होंठ, सुनहरी आँखें, सफेद चमड़ा।
उसे देखकर शानू भाई इतराते हुए कहती हैं,
"तेरी माँ तो ठीक, कमाल की क्या चीज़ जानी है! एकदम माल लगती हो... माल!"
यह कहकर वह उसको बाहर लाती है।
निधि की आँखों से आँसू बह रहे थे, पर वह कुछ नहीं कर सकती थी।
बस बेबसी के साथ चुपचाप खड़ी थी।
शानू भाई, निधि को लाल जोड़े में तैयार करती हैं।
उसके चेहरे पर हल्का मेकअप और सोलह सिंगार करके उसे सजाया जाता है।
अब निधि बिल्कुल किसी रानी की तरह लग रही थी — मानो कोई चाँद से सीधा ज़मीन पर उतर आया हो।
फिर वह उसे राजा के कमरे में लेकर आती है।
राजा, जो अपने बिस्तर पर बैठे मूँछों को ताव दे रहे थे — निधि को देखते ही उठ खड़े होते हैं।
उसे अपने बिस्तर पर बिठाते हैं, और वहाँ खड़े सभी लोगों को जाने का इशारा करते हैं।
फिर राजा अपने हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए, निधि के ऊपर चढ़ जाते हैं।
उसके साथ वह सब करते हैं जो एक पति-पत्नी के बीच होता है।
निधि रोती रही... पूरी तरह से हताश हो चुकी थी। अब उसकी आँखों के आँसू भी सूख गए थे।
इधर सुधा तड़पती, छटपटाती ज़मीन पर पड़ी थी।
लगभग एक घंटे बाद, राजा उसे छोड़कर उठ खड़े होते हैं।
अपने कपड़े पहनकर वहाँ से बाहर आते हैं और अपने आदमियों को इशारा करते हैं।
उनका इशारा मिलते ही उनके आदमी सुधा पर भी पागलों की तरह टूट पड़ते हैं।
देखते ही देखते 15 से 20 आदमी, सुधा के साथ ऐसी हरकत करते हैं कि सुधा बेदम होकर ज़मीन पर गिर जाती है।
उधर, रानी अपने महल में राजा का इंतज़ार कर रही थी।
तब तक एक दासी आकर उन्हें बताती है —
"रानी सुभद्रा! राजा एक कोठे वाली लड़की के साथ हैं..."
यह सुनते ही रानी की निगाहें बड़ी हो जाती हैं।
जब वह उस लड़की की प्रशंसा दासी के मुँह से सुनती हैं — उन्हें डर लगने लगता है कि कहीं कोठे वाली उनकी महल की रानी ना बन जाए।
राजा, नशे में चूर घर पहुँचते हैं।
उन्हें देखते ही रानी सुभद्रा उनके पास जाती हैं।
राजा हँसते हुए कहते हैं,
"हमारी शादी की तैयारी करिए! कल हम शादी करने वाले हैं। हमें एक लड़की पसंद आ गई है।"
यह सुनते ही रानी के चेहरे की हवाइयाँ उड़ जाती हैं।
वह खुद से बाल नोचते हुए कहती हैं,
"यह तो वही हो रहा है जिसका डर था! नहीं... एक कोठे वाली कभी भी राजमहल की रानी नहीं बन सकती! वह कभी भी हमारी बराबरी नहीं कर सकती!"
राजा को वह उनके कमरे में लिटाकर वहाँ से बाहर आती हैं।
अपने आदमियों को बुलाकर कहती हैं,
"सुनो, गाँव में हल्ला फैला दो कि 'सफेद चुड़ैल' आई है! कुछ ऐसा करो कि पूरे गाँव वाले उसे मार-मार के ख़त्म कर दें!"
"पर रानी, ऐसा क्या करें...?"
रानी सातब से अपने कमरे में आती हैं।
वहाँ से एक किताब उठाकर, उस पर बने चिन्ह को देखकर नौकर के हाथ में देते हुए कहती हैं,
"सुनो, इस चिन्ह को देख रहे हो ना...? यही चिन्ह उस लड़की के शरीर पर बना दो! बाकी का मैं देख लूँगी..."
उसके आदमी वह चित्र लेकर वहाँ से चले जाते हैं।
इधर निधि, जो अपने बिस्तर पर बेदम पड़ी हुई थी — मानो उसकी सारी दुनिया उजड़ गई हो।
उसके सारे अरमान पल भर में खत्म हो चुके थे।
उसका गोरा शरीर अब उसके लिए शराब बन चुका था...
आदमी फिर आते हैं।
निधि को बिना वस्त्र के देख, उसके साथ फिर से वही दुष्कर्म करते हैं।
और फिर जब उनका मन भर जाता है —
तो उसके शरीर पर वह टैटू बनाने लगते हैं...
आगे की कहानी पढ़ने से पहले, आप सब लोग कृपया रिव्यू ज़रूर दीजिएगा।
कमेंट कर के बताइएगा कि कहानी कैसी लग रही है।
और एक बात इस कहानी के रोज दो से तीन पार्ट आयेंगे क्यों कि और भी कहानियां लिखने होती है और पढ़ाई वगैरा भी है तो इतना चाहता हु कि हमारी मेहनत का आप लोग सम्मान करे और अपना प्यार दिखाते रहिए