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सेवन शेड्स ऑफ लाइफ

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Sarvam

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एक समंदर की गहराई तो दुसरा उफान मारती लहरों सा! (हिंदी बीएल) “कहा जाऊंगा नहीं पता , क्या करूँगा वो भी नहीं पता ! लेकिन... मरूँगा तो बिलकुल नहीं । जीना है वारिन को ... आसमान में उड़ना है। लोगो के लिए हो सकता है मै भाग चूका हु । लेकिन मै अपनी जिंदग...

Total Chapters (84)

Page 1 of 5

  • 1. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 1

    Words: 2475

    Estimated Reading Time: 15 min

    उस यूनिवर्सिटी की तयारी देखते बन रही थी। आज वहा आखिरी साल में पढने वाले स्टूडेंट्स के लिए फेयरवेल सेरेमनी रखी गयी थी। इसी बिच एक लड़का बच्चों से खचाखच भरे हॉल में दाखिल हुआ। उसकी नजर जिसे ढूंड रही थी इस समय वह अपने कोलेज जर्नी के बारे में सबको बताते हुए उनसे विदा ले रहा था। आखिरी वर्ष का सबसे चहेता विद्यार्थी ‘मल्हार देशमुख!’
    लड़का भीड़ को चीरते हुए आगे जाकर एक तरफ खड़ा होकर मल्हार का इन्तेजार करने लगा। लेकिन उसके ठीक आगे मल्हार की दोस्त निशा खड़ी थी। लड़के ने कुछ सोचा और कहा “एक्सक्यूज मी निशा मेम।"
    होठो पर हलकी मुस्कान लिए निशा पलट गयी “हा?”
    “क्या आप इसे मल्हार सर को दे देंगी?” उस लड़के ने एक चिट्ठी निशा के सामने करते हुए कहा।
    “लेकिन तुम कौन हो? और क्या है इस चिट्ठी में?” निशा ने चिट्ठी को देखते हुए सवाल किया।
    “मुझे नहीं पता इसमें क्या है? एक लड़के ने इसे मल्हार सर को देने के लिए कहा था। दरअसल मुझे कही जाना है तो मै उनके स्पीच ख़त्म होने का इन्तेजार नहीं कर सकता।” उस लड़के ने बहुत जल्दबाजी में जवाब दिया क्युकी निशा के हाथो में वह चिट्ठी थमा चूका था।
    निशा ने कंधे उठा दिए “ओके फाइन! मै दे दूंगी।”
    इतना सुनना था की लड़का "थैंक यू" बोल कर एकदम से वहा से निकल गया।
    कुछ समय बाद मल्हार अपनी स्पीच ख़त्म कर स्टेज से निचे उतर आया। सब लोग उसके लिए तालिया बजा रहे थे। निशा भी उनमे शामिल थी। मल्हार आकर फिर से उसकी बगल में पहले की तरह खड़ा हो चूका था।
    तभी निशा को चिट्ठी के बारे याद आया। जिसे उसने मल्हार के सामने किया “लो, लगता है तुम्हारे लिए फिर से किसी ने लव लेटर भेजा है?”
    मल्हार की आंखे सिकुड़ गयी। उसने एकदम से उसके हाथ से वह चिट्ठी छीन ली और फाड़ने लगा तो निशा ने कहा “एक बार देख लो पक्का लव लेटर ही है ना? क्युकी इसे किसी लड़के ने दिया था?”
    मल्हार रुक गया। उसने धीरे से चिट्ठी को खोल कर देखा तो उसमे लिखा था “आपके पाच मिनट मिल सकते है ? यूनिवर्सिटी के पीछे .... वारिन!”
    मल्हार की आंखे भावहीन हो गयी। निशा उसकी चिट्ठी में झाँकने को हुई तो मल्हार ने जल्दी से उसे फाड़ कर अपनी जेब में डाल लिया “मै आता हु वोशरुम से।”
    “अरे लेकिन?” निशा ने कहना चाहा पर मल्हार तुरंत ही वहा से निकल गया। जैसे ही वह भीड़ से निकल कर हॉल के बाहर आया उसका फोन बजने लगा।

    यूनिवर्सिटी के पीछे सामने के मुकाबले थोड़ी कम रौशनी थी। वहा गार्डन में एक लड़का नर्वस होने के कारन लगातार चक्कर लगा रहा था। वह ज्यादा लम्बा नहीं था। ना ही उसमे आकर्षक लगे ऐसा कुछ खास था। लेकिन हां, उसकी आंखे जरुर सुन्दर थी। समुद्र सी नीली आंखे उसके गोरे चेहरे पर सबसे खुबसूरत लगती थी। साधारण सा चेहरा था और सुखा हुआ शरीर , मानो खाने की कमी से ऐसा हो गया हो। उसके बाल गर्दन तक लम्बे और बिलकुल सीधे थे। जिनमे से आधे पोनी में बंधे थे। हाथ में गुलाब का फुल पकडे वह बार बार उसे अपने हाथ में घुमाये जा रहा था।
    उसने खुदसे ही कहा “क्या वह आएंगे?”
    कुछ पलो बाद खुद ही अपने सवाल का जवाब देते हुए उसने कहा “चाहे आए चाहे ना आए। उनकी अपनी मर्जी है। लेकिन मै इंतजार जरूर करूंगा।”
    हा, उसे इन्तेजार था किसी का.. जिसे अपने दिल का हाल आज बयान कर देना चाहता था। करे भी क्यों ना? जब सामने वाला उसकी इतनी केयर करता हो?
    वो काफी ज्यादा नर्वस था। लेकिन फिर भी उसके चेहरे की ख़ुशी और मुस्कान जाने का नाम नहीं ले रही थी।
    उस लड़के की उम्र ज्यादा से ज्यादा उन्नीस साल थी। और जिसे वह अपने दिल की बात कहना चाहता था उसका आज यूनिवर्सिटी में आखिरी दिन था। जवाब चाहे जो भी आए, किसी बात का रिग्रेट ना रहे इसलिए वह अपने दिल की बात उसके पसंदीदा इन्सान के सामने कन्फेस कर देना चाहता था। शायद उसी वजह से आज वह खास तरह से तैयार होकर आया था। हलके गुलाबी रंग की शर्ट और काले रंग की पेंट उसने पहनी हुई थी।
    एक गहरी साँस भरते हुए उसने फिर से उस दिशा में पलट कर देखा जहा से आने का रास्ता था। अभी भी कोई नहीं आया था। पर वह मायूस नही हुआ। बल्कि याद करने लगा, आखिर किसे वो अपने दिल की बात बोलने वाला था।
    अजीब संयोग था... वोशरुम में किसी को देख दिल की घंटी बज जाना ! काफी ज्यादा अजीब था और इस बारे में सोच कर उसे खुद पर ही हंसी आती थी कभी कभी।
    रो रहा था हर रोज की तरह बुली होने के कारन और अचानक ही उस लड़के ने अपना रुमाल देकर कहा था "डोंट वरी ,मै किसी को नहीं बताऊंगा तुम वोशरुम में जाकर रोते हो! वैसे मै नहीं मानता ये काम सिर्फ लडकिया करती है। क्युकी लड़के भी तो इंसानी प्रजाति है। दुःख होने पर तो जानवर भी रो लेते है।
    इसलिए रोने का हक किसी जेंडर में केटेगराईज नहीं करना चाहिए मेरे ख्याल से।
    तुम चिंता मत करो .. और दिल खोल कर रो लो। फिर बताना की तुम्हे किसने क्या किया है? वैसे मै सीनियर हु तुम्हारा। आखिरी साल में पढता हु। अगर तुम मुझे बताओगे तो तुम्हारा बदला मै उसे बुली करके लूँगा।”
    रोते रोते भी वह लड़का हंस पड़ा था। उस दिन के बाद जब भी वह आपस में टकराए एक मुस्कान जरुर पास कर देते एक दुसरे को। पहली ही मुलाकात में उस सीनियर ने एक गहरी छाप छोड़ दी थी उस लड़के के दिल पर। वह उसे हर जगह स्टॉक करने लगा और तभी उसे उस सीनियर का नाम पता चला “मल्हार!”
    वैसे मल्हार बिलकुल भी मिलनसार नहीं था। बाकि लोगो के लिए एरोगेंट और अकडू सीनियर न जाने क्यों सिर्फ उसके लिए ही इतना अच्छा था। काफी ज्यादा मदत की थी मल्हार ने उसकी कोलेज के माहौल में घुलने के लिए।
    लड़के ने एक बार फिर उस दिशा में देखा और खुद से कहा “वारिन , आज तेरे सब्र की परीक्षा है। हार मत मानना। या फिर स्ट्रेस लेकर बेहोश मत हो जाना।”
    वैसे तो कहने के लिए वारिन के दो बड़े भाई.. मतलब बड़े पापा के लड़के उसी कोलेज में पढ़ते थे। लेकिन उन्होंने साफ़ मना करके रखा था की , उनके पास वारिन अपनी कोई शिकायत लेकर ना आया करे। वह उसकी कोई मदत नहीं करेंगे। ना ही खुदको उसका भाई बता कर इंबरेस करेंगे।
    समय के साथ वारिन को ये भी पता चला की उसके चाचा जी का बड़ा बेटा शिरीष और मल्हार एक ही क्लास में पढ़ते थे। बुरी बात ये थी की दोनों की आपस में जरा भी नहीं बनती थी।
    शायद यही वजह थी की जैसे ही मल्हार को पता चला वारिन शिरीष का भाई है। उसने वारिन को इग्नोर करना शुरू कर दिया।
    वारिन वजह जानना चाहता था। इसलिए लगातार उसका पीछा करता रहा। उससे बात करने की कोशिश करता रहा और तब तक जब तक मल्हार ने इरिटेट होकर उस पर गुस्सा किया और उसे धक्का दे दिया।
    जिस जगह वह दोनों खड़े थे वहा से निचे सीढ़िया थी। वारिन तैयार ना होने के कारन गिरने लगा और इतना तय था की सीढियों से गिरने पर वह बुरी तरह घायल हो सकता था।
    लेकिन समय रहते मल्हार ने उसे पकड़ा और अपनी तरफ खीच कर सिने से लगा लिया। मल्हार का दिल डर के कारन तेजी से धड़क रहा था तो वही वारिन का दिल उसकी सुकून देय शरीर की गर्माहट को महसूस कर धड़क उठा। मल्हार ने उससे माफ़ी मांगी और तब तक मांगी जब तक वारिन ने उसे रोक कर समझा नहीं दिया की वह ठीक है और मल्हार ने कुछ भी जानकर उसे चोट पहुंचाने के लिए नही किया।
    उस दिन के बाद मल्हार उससे बात तो नहीं करता था लेकिन जब भी वारिन उसे देख मुस्कुराये बदले में वह जरुर मुस्कुरा देता था।
    देखते ही देखते पूरा साल गुजर गया और मल्हार आज यहाँ से जा रहा था। इस बिच वारिन अपनी भावनाओ को लेकर पूरी तरह श्योर हो चूका था। उसे मल्हार की तरफ सिर्फ आकर्षण नहीं था। उसे प्यार हो चूका था। वह भी एक लड़के से।
    वारिन को पता था आज के बाद वह चाह कर भी किसी कोरिडोर में एक दुसरे से नहीं टकरायेंगे। अगर किसी ने उसे बुली किया तो मल्हार उसकी मदत के लिए नहीं आ सकेगा।

    वह अचानक ही अपनी सोच से बाहर आया जब किसी के कदमो की आहट अपने पीछे सुनाई दी। वो जल्दी से पलट गया तो देखा सामने मल्हार खड़ा था।
    काले रंग का सूट , हमेशा की तरह सलिखे से सवारे हुए बाल। रोज के मुकाबले आज वह ज्यादा हैंडसम लग रहा था। उसका रंग ज्यादा गोरा नहीं था। लेकिन वह लम्बा और एक मजबूत शरीर का मालिक था।
    इसी बिच मल्हार ने थोड़े उखड़े हुए स्वर में कहा “यहाँ अकेले क्या कर रहे हो ? मुझे किसलिए मिलने बुलाया?”
    अपने हाथ का गुलाब पहले ही पीछे कर लिया था वारिन ने। मल्हार की आवाज सुन कर उसे महसूस हुआ शायद मल्हार का मुड कुछ ठीक नहीं होगा। यु तो उसे गुस्से में देख वारिन हमेशा चुप रहने में भलाई समझता था। लेकिन आज बात करना जरुरी था। हलके से हिचकिचाते हुए उसने कहा “मुझे बात करनी है तुमसे?”
    “ऐसी भी क्या बात थी जो इतनी दूर बुला लिया , अंदर नहीं कर सकते थे?”, मल्हार ने अपने गुस्से को शांत रखते हुए कहा “ठीक है। अब कह भी दो। मुझे जाना है। सब इन्तेजार कर रहे है।”
    अपने माथे पर जमा हुई पसीने की बुँदे पोछते हुए वारिन ने कहा “म.. मल्हार.. दरअसल मुझे..!”
    वह कहते हुए रुका तो मुह से ठंडी साँस छोड़ते हुए मल्हार ने अपनी कमर पर हाथ रख लिए। यक़ीनन उसका गुस्सा बढ़ रहा था। अगर वारिन ने जल्दी अपनी बात ना कही तो वह कभी भी फट सकता था उस पर।
    हाथ में पकड़ा हुआ गुलाब एकदम से आगे करते हुए वारिन ने अब तक जो भी सोचा था वह लम्बी साँस भर कर बोलना शुरू किया “एक लड़के से ये बात सुनना आपको अजीब लग सकता है। लेकिन मेरा अब अपने दिल पर कोई कण्ट्रोल नहीं रहा। इस पर आपका कब्ज़ा हो चूका है मल्हार। मुझे आपसे पहली नजर वाला प्यार हो चूका था। जिसे मै पुरे साल भर अपने मन में दबा कर रखा हुआ हु। अगर आपको परेशानी ना हो तो इस बारे में आप सोच कर जवाब दे सकते है। लेकिन आपको कुछ भी बुरा लगा हो तो मुझे थप्पड़ मार कर चले जाना।”
    इतना कह कर वारिन ने कस कर आंखे बंद कर ली। हां से ज्यादा उसे थप्पड़ पड जायेगा इस बात पर ज्यादा विश्वास था।
    सामने मल्हार एकदम सुन्न पड़ चूका था। बहुत देर तक उसकी कोई आवाज नहीं आई तो वारिन ने धीरे से आंखे खोल कर देखा। लेकिन...
    लगभग पूरा कोलेज उन्हें घेर कर खड़ा था। शायद पहले से ही छुप कर तमाशा देख रहे थे वो लोग। वारिन ने फिर मल्हार की तरफ देखा जो अपने दोस्तों के बिच घिरा खड़ा था।
    वारिन ने उससे नजरे हटा कर चारो तरफ देखा तो उसे समझ आया हंसी का पात्र बन चूका था वो।
    उसी भीड़ में खड़े उसके दोनों बड़े भाई उसे बुरी तरह घुर रहे थे। उनकी नजरे वारिन को किसी अपराधी की तरह देख रही थी।
    बाकि सब इस तमाशे का मजा लेने के लिए खड़े थे की आगे क्या होगा। साथ में उनके कैमरा भी विडिओ बनाने के लिए बाहर निकल चुके थे।
    मल्हार के साथ खड़ी निशा एकदम से सामने निकल कर आई और उसने वारिन से कहा “शी! पुरे कोलेज को आज तुमने शर्मिदा कर दिया ये घटिया काम करके। मुझे लगता था सब यु ही तुम्हारी चाल ढाल को देख कर तुम्हे परेशान करते होंगे, लेकिन आज समझ आया बाकि लोग गलत नहीं थे। तुम वैसे ही निकले। यु आर गे.. और अपनी गन्दगी के छीटे तुम मल्हार पर भी उड़ाना चाहते हो? उसे अपने जैसा समझ रखा है क्या तुमने?
    अरे उसका नेचर ही ऐसा है की वह सबकी मदत करता है। लेकिन तुमने इसका इतना घटिया मतलब निकाल लिया? हमारा मल्हार तुम जैसे को अपने दोस्त के रूप में भी स्वीकार नहीं करेगा। कभी नहीं!”
    जिस हाथ में वारिन ने गुलाब पकड़ा हुआ था वह निचे हो गया। उस गुलाब के काटे मजबूती से पकडे जाने के कारन उसकी हथेली में चुभ गए और हाथ से खून निकलने लगा। उसकी नजरे निचे हो चुकी थी। बिना कोई गलती किये भी वह सबके लिए एक दोषी बन चुका था।
    वारिन ने एक ओर बार नजर उठाई और मल्हार की तरफ देखा। उसकी नीली आंखे आंसुओ से भरी हुई थी। मल्हार खाली आँखों से बिना कुछ भी कहे उसे देख रहा था।
    “तो क्या मल्हार ने जानबूझ कर सबको यहाँ...?” इसके आगे वह कुछ सोचना भी नहीं चाहता था। तभी शिरीष ने आकर उसकी कोलर पकड़ी और उसे खीचते हुए सबके बिच में से ले गया। खून से सना हुआ वह गुलाब वही उस गार्डन में उसके हाथो से गिर पड़ा।

    उस रात घर जाकर भी बहुत कुछ हुआ। जैसे की बुआ और चाची के ताने , पापा के थप्पड़ , दादू की चुप्पी, माँ का उसे भावुक होकर देखते हुए रोना, छोटी बहन की नफरत ! सबकुछ दिखाई और सुनाई दे रहा था उसे। लेकिन उसने अपने मुह से एक शब्द भी नहीं निकाला। जो भी आज हुआ उसे तोड़ कर रख देने के लिए बहुत था।
    बस प्यार ही तो किया था उसने। क्या यह इतनी बड़ी गलती थी? जिसकी सजा उसे मिल रही थी?
    पापा ने मर जाने के लिए कह दिया था उसे। क्युकी वह उनके खानदान पर लग चूका कलंक था। वह सवाल उसके मन में अंदर तक गहरा जख्म दे रहा था ... क्या गे होना पाप है?
    उन्नीस साल का बुद्धू सा वारिन शायद चल पड़ा था पापा के दिखाए हुए रस्ते पर। जहर खा लिया उसने ! लेकिन भगवान की मेहरबानी से मौत उसे नसीब नहीं हुई। समय पर दादू ने अस्पताल पहुचाया था।
    एक हफ्ते तक वह अस्पताल में रहा और इस बिच कोई उससे मिलने नहीं आया। सिवाय उसके दादू और बुआ के बेटे के अलावा।
    वह पूरी तरह शांत हो चूका था। बीते हफ्ते में एक शब्द भी उसके मुह से नहीं निकला। जैसे ही उसे घर लाया गया उसने खुद से एक फैसला कर लिया।
    बस दो जोड़ी कपडे लेकर वह लड़का हमेशा हमेशा के लिए घर छोड़ चूका था।
    एक ट्रक को हाथ दिखा कर वह उसमे पीछे बैठ गया और खुद से कहा “कहा जाऊंगा नहीं पता , क्या करूँगा वो भी नहीं पता ! लेकिन... मरूँगा तो बिलकुल नहीं। जीना है वारिन को ... आसमान में उड़ना है।
    लोगो के लिए हो सकता है मै भाग चूका हु। लेकिन मै अपनी जिंदगी जीने निकला हु! गे होना पाप नहीं है और ये बात मुझे जीने से कभी नहीं रोक सकती। मै साबित करके रहूँगा, मै खुदको सही साबित करके रहूंगा।”



    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 2. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 2

    Words: 2137

    Estimated Reading Time: 13 min

    पांच साल बाद ,
    टेक्सस,

    उस आलीशान विला के एक कमरे में लगातार अलार्म बज रहा था। कमरे में लगे बिस्तर एक लड़का पेट के बल शर्ट लेस सो रहा था। अलार्म की आवाज सुन कर वह नींद में ही परेशान होने लगा। बिना आंखे खोले ही उसने हाथ मेज तक पहुचाने की कोशिश की पर सफल नहीं हो सका।
    एक चिढन भरी आवाज करते हुए उसने तकिया उठा कर अपने सर पर रख उस आवाज से बचने की कोशिश की। पर अलार्म की आवाज तीखी थी। इसी बिच कोई कमरे का दरवाजा भी पीटने लगा।
    “ओशियन , बाहर आओ जल्दी।” बाहर से कोई चिल्ला कर बोल रहा था।
    “आय जस्ट हेट यु विशु!” कहते हुए उस लड़के ने तकिया दूर फेक कर आंखे खोली। उसकी आंखे समंदर की तरह नीली और गहरी थी।
    लड़का जैसे ही उठ कर बैठा उसके सिने पर बनाया हुआ टेटू दिखने लगा। सिने पर दोनों तरफ किसी पक्षी के पंख बने हुए थे। लड़के ने अपने बालो में हाथ घुमाया। जो की बाल छोटे और माथे पर बिखरे हुए थे।
    दोनों कानो में बालिया लटक रही थी। काफी अलग थी वह। एक लम्बी तो दूसरी छोटी सी। जो लम्बी थी उसमे एक नीला मोती चमक रहा था। बिस्तर पर हाथ टिकाते हुए वह किनारे पर सरकने लगा तो उसके हाथो की मसल्स उभर कर दिखने लगी। उसके एब्स भी बने हुए थे। जिसे देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था उसका काफी समय जिम के अंदर खर्च होता होगा।
    इस बिच बाहर से किसी का चिल्लाना जारी था। उसने तेज आवाज में जवाब दिया “हां आ रहा हु ना?”
    बिस्तर से उतर कर वह एक बड़े से आयने के सामने से गुजरा। लेकिन तभी उसने अपने कदम पीछे ले लिए। खुदको को एक नजर देख उसने आयने पर मुट्ठी मारी “तुम वारिन नहीं ओशियन हो। जिसे सब पसंद करते है।”
    एक घमंड के साथ कहकर वह मुस्कुराया और उसने जाकर दरवाजा खोला
    अगले ही पल किसी लड़के ने उसे गोद में उठा कर गोल घुमाया “हैप्पी बर्थडे जान।”
    वारिन का मुह बन गया “तुम फिर भूल चुके हो मेरा बर्थडे विशु , जो की कल है।”
    जिसने वारिन को उठा रखा था उसका नाम विशंभर था। वह उनतीस साल का था। एकदम से रुकते हुए उसने बडबडा कर कहा “मेगोट(कीड़ा) ने फिर मुझे बुद्धू बना दिया? तभी मै कहू तुम्हारा जन्मदिन है और अब तक वह ट्रिप से लौटा क्यों नहीं?”
    वारिन ने अफ़सोस के साथ सर हिलाया “निचे रखोगे अब मुझे?”
    “अरे तो क्या हुआ कल है बर्थडे? हम प्री बर्थडे मनाएंगे।” और इतना कह कर विशंभर उसे लेकर जाने लगा।
    वारिन को मानो पता था वह क्या करने वाला था। चिल्ला कर वह कहने लगा “विशु डोंट।"
    विशंभर ने उसकी एक भी नही सुनी और घर के पीछे बने पुल में ले जाकर कर वारिन को फेक दिया। फिर वो चिल्ला कर बोला “हैप्पी बर्थडे इन अडवांस।”
    वारिन पानी के बाहर आया और बालो में हाथ फिर कर उन्हें पीछे कर दिया “आय विल किल यु बास्टर्ड!”
    “तुम पहले ही कर चुके हो जान। देखो तुम्हारे लिए वेम्पायर बना हुआ हु। जिसका दिल नहीं धडकता फिर भी ज़िंदा है?” विशंभर ने नाटकीय ढंग से कहा ।
    वारिन तेजी से उसकी तरफ बढ़ने लगा “रुको तुम इडियट , बेअक्ल प्राणी, धरती पर बोझ। मेरे प्रिंस के यहाँ ना होने का फायदा उठा कर परेशान कर रहे हो? अच्छा है की वही तुमसे डील करता है। तब तो जान बचाने के लिए मुझे ही ढूंडते हो?”
    “हां। जैसे की वो यहाँ नहीं है तो मै पूरा फायदा उठा सकता हु?” विशंभर ने हँसते हुए कहा ।
    वारिन किनारे पर पंहुचा और उसने एकदम से पानी को विशंभर पर उड़ेल दिया। विशंभर के कपडे सरे गिले हो गए जो शायद उसने ऑफिस जाने के लिए पहने थे।
    मुह खोले पहले उसने अपने कपड़ो को देखा और फिर वारिन को।
    वारिन ने टेढ़ी मुस्कान के साथ कहा “जैसे को तैसा। ओशियन किसी का हिसाब बाकी नहीं रखता।”
    एकदम से उसने लगातार पानी में हाथ डाल कर उसे विशंभर पर उड़ाना शुरू कर दिया। विशंभर कुछ ना कर सका। सिवाय चिल्ला कर उसे रुकने के लिए बोलने के। हालाकि वह भाग सकता था लेकिन फिर भी अपनी जगह जम कर खड़ा रहा।

    *************

    वह एक बड़ा सा स्टूडियो था। मास्क चढ़ा कर वारिन गाड़ी से उतरा तो दूसरी तरफ से आकर विशंभर उसके साथ चलने लगा।
    जल्द ही वह दोनों एक केबिन में पहुचे जिसकी एक दीवार पर कांच का शेल्फ बना हुआ था। उसके अंदर बहुत सारे सर्टिफिकेट और प्राइज रखे हुए थे। वह सभी ओशियन के नाम से थे। बाकी दीवारों पर कुछ पेंटिंग्स लगी थी। जो की काफी महँगी लग रही थी। उन पर किये हुए सिग्नेचर से साफ़ पता लग रहा था उन्हें बनाने वाला कोई और नहीं खुद ओशियन यानी की वारिन था।
    विशंभर एकदम से कुर्सी खीच कर बैठ गया। उसने कपडे बदल लिए थे। जहा वो सूट पहने था तो सामने जाकर बैठे वारिन ने एक टीशर्ट पर काले रंग की जेकेट चढाई हुई थी। मुह से मास्क हटा कर उसने लम्बी साँस भरी “क्या क्या करना पड़ता है चेहरा छुपा कर रखने के लिए।“
    “तो जान इतनी खुबसूरत शक्ल छुपाते भी क्यों हो? लोग पागल है तुम्हारा चेहरा देखने के लिए। लेकिन द फेमस पेंटिंग आर्टिस्ट अपना चेहरा ही नहीं दिखाना चाहते?” विशंभर टेबल पर दोनों हाथ टिकाये बोला।
    “मै बस अपना काम बिना किसी परेशानी के करना चाहता हु। ट्वेंटी फोर इनटू सेवन मुझे किसी की अटेंशन नही चाहिए। आफ्टर ऑल मुझे बस पैसे से मतलब है नाम और पॉपुलैरिटी से नहीं।” वारिन ने काफी आराम से कहा।
    “जो की तुम्हे पैसे के साथ मिल ही रहा है। वैसे करना क्य़ा चाहते हो तुम इतने पैसे कमा कर? डोनेट ही कर देते हो अपने देश के लिए। ना तुम्हारी कोई जरूरते है, ना ही शौख? दिन भर एक रुम में पड़े हुए पेंटिंग करते रहते हो। कपडे भी तुम्हारे लिए कोई और खरीद कर लाये तब पहनते हो। वर्ना तो एक पेंट पर तुम पूरा साल निकाल लोगे? बस वह विला लिया तुमने। उसके बाद कुछ नहीं।” विशंभर ने जिज्ञासा वश कहा। पिछले पांच सालो से वह वारिन के साथ था। लेकिन हर पल ऐसे लगता था मानो वह इस लड़के के बारे में ज़रा भी कुछ जानता नहीं था।
    इससे पहले की कोई कुछ बोलता टेबल पर रखा रिसीवर बजने लगा। विशंभर ने एक बटन दाबया “यस!”
    “सर एक स्पेशल कस्टमर आए है इंडिया से। उन्होंने पहले भी काफी सारी पेंटिंग्स खरीदी हुई है। वह सेवन शेड्स को खरीदने की डिमांड कर रहे है। जिसके लिए मिस्टर ओशियन से मिलना चाहते है।” सामने से किसी भारतीय लड़की की आवाज सुनाई दी। ज्यादा तर स्टाफ इस स्टूडियो में भारतीय ही था।
    विशंभर ने कहा “ओके मै आता हु।”
    कह कर उसने रिसीवर बंद कर उठते हुए कहा “मै मिल कर आता हु। लोगो से कितनी बार कहा है वह पेंटिंग बेचने के लिए नहीं , फिर भी उसे खरीदने की मांग करते रहते है।”
    वारिन ने कुछ नहीं कहा। वह सोचने लगा की उसी पेंटिंग के साथ उसने एक बड़ा इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन जित कर इतने पैसे कमाए थे की वह देश छोड़ने में सक्षम हो पाया था।

    एक बड़े से हॉल के अंदर वह पेंटिंग कांच के अंदर बंद थी। पेंटिंग को पूरी तरह हाथ से बनाया गया था। जिसमें सात रंगों से बने हुए एक लड़के की आकृति थी। समझने वाले समझ जाते थे की बनाने वाले ने पुरे दिल से और भावनाओं में बह कर वह पेंटिंग बनाई होगी।
    “सेवन शेड्स ऑफ़ लाइफ!” निचे बोर्ड पर लिखे उस नाम को पढ़ते हुए वह शख्स लगातार पेंटिंग को देखे जा रहा था। इसी बिच उसके फोन पर एक नोटिफिकेशन आया। उसका हाथ अपनी जेब में चला गया। उसने देखा एक नंबर से कोई मेसेज था “तुमने होटल से चेक आउट कर लिया और तुम्हारे लोग भी साथ नहीं है। क्या तुम भागने के बारे मे सोच रहे हो?”
    “मै अपनी जान बचा रहा हु जो की खतरे में है।” उस शख्स ने जवाब में लिखा।
    “मुझे वो चीज दिए बिना तुम कही गायाब नही हो सकते। जहा भी हो वही रुकना। मै किसी को भेजता हु तुम्हारे पास।” सामने से फिर मेसेज आया।
    “कोई फायदा नही। मेरे पास इतना समय नहीं है। मै अपना काम करके जा रहा हु। गुड बाय!” शख्स ने फिर जवाब में लिखा।
    “वेट तुमने कहा था तुम मुझे वो दे दोगे?” मेसेज आया जिसे उस शख्स ने पढ़ा लेकिन कोई जवाब नही भेजा।
    तभी किसी ने उसका नाम पुकार कर कहा “मिस्टर निर्वाण?”
    वह लड़का यानी निर्वाण हलकी मुस्कान के साथ विशंभर की तरफ पलट गया “आज फिर मिस्टर ओशियन सामने नहीं आए?”
    विशंभर ने फॉर्मल होकर उससे हाथ मिलाया “वह किसी से नहीं मिलता है। उसका फैन होने के नाते आपको पता होना चाहिए?”
    “शायद मेरी किस्मत आपकी तरह अच्छी नहीं। आप जब मन आए उन्हें देख सकते है?” निर्वाण हलकी हंसी के साथ बोला। फिर उसने पेंटिंग की तरफ देखा “क्या लेंगे मिस्टर ओशियन इसे देने के लिए?”
    “इसे देश के प्रेसिडेंट तक खरीदना चाहते थे। लेकिन ओशियन ने मना दिया। यह पेंटिंग सिर्फ उसका आर्ट नहीं है। उसके दिल से जुडी है।” विशंभर ने कहा।
    “आय केन अंडरस्टैंड!", निर्वाण ने उस पेंटिंग पर हाथ फेर कर कहा “मिस्टर ओशियन से कहिये मै उन्हें एक कीमती चीज दूंगा इस पेंटिंग के बदले। वह मुझसे बस एक बार के लिए मिल ले।"
    विशंभर ने एक ठंडी साँस छोड़ी। तभी उसका फोन बजने लगा। विशंभर ने देखा तो वारिन का मेसेज था “उन्हें ऊपर ले आओं।”
    विशंभर ने पलट के उपर देखा। वारिन काच पर हाथ टिकाये खड़ा उन्हें ही देख रहा था।

    कुछ समय बाद ही निर्वाण और वारिन आमने सामने थे। निर्वाण ने हल्की मुस्कान के साथ कहा “विश्वास नहीं हो रहा आप इतने यंग है। ज्यादा से ज्यादा ट्वेंटी फोर, ट्वेंटी फाइव?”
    वारिन ने मास्क से चेहरा छुपाये हुए था और वह पूरी कोशिश कर रहा था अपनी नीली आंखे छुपाने की। ताकि आसानी से पहचान में ना आ सके। लेकिन निर्वाण ने एक नजर में ही उसकी नीली आंखे देख ली थी।
    “मुझे सेवन शेड्स खरीदनी है। बदले में मै आपको एक राजमुद्रा दूंगा। जो की असली और सोलवी सदी की है।” निर्वाण ने उसके सामने डील रखी।
    वारिन ने अबकी बार उसकी आँखों में देखा तो निर्वाण ने एकदम से जेब में हाथ डाल कर एक बोक्स निकाल वारिन की तरफ बढ़ाया। वारिन ने उसे लेकर खोलते हुए देखा। उसके अंदर सच में एक राजमुद्रा रखी हुई थी। वारिन को पुराणी चीजो में क़ाफ़ी दिलचस्पी थी। खास कर वह चीजे जो छत्रपती शिवाजी महाराज से जुडी हो। ये राजमुद्रा उसी समय की थी।
    “क्या ये असली है?” वारिन ने गहरी आवाज में कहा।
    “हां ये बिलकुल असली है। मेरे पास प्रूफ भी है इसके असली होने के। आर यु इंटरेस्टेड इन दिस डील?” निर्वाण ने उसकी तरफ अशा भरी नजरो से देखा।
    वारिन ने जब उसके पास से प्रूफ देखे तब जाकर वह बोला “ठीक है।”
    “मुझे पेंटिंग इंडिया एक एड्रेस पर भेजनी है।” निर्वाण ने कहा।
    “वह सब विशु कर देगा। आप जाकर फॉर्मेलिटी पूरी कर लीजिये।” वारिन ने खोयी आवाज में कहा। वह आँखों में चमक लिए उस राजमुद्रा को देख रहा था।
    निर्वाण वहा से ज़ाने लगा। लेकिन फिर रुकते हुए उसने पलट कर वारिन को देखा। एक हलकी मुस्कान अभी भी निर्वाण के होठो पर बनी हुई थी।

    “व्हाट द हेल? तुमने इस छोटी सी चीज के लिए करोडो की पेंटिंग बेच दी? अरे कितने बड़े बड़े लोग उस पेंटिंग के पीछे पड़े थे। यहाँ तक की वह चोरी होने से भी बची थी?” विशंभर आग बगुला होकर बोला।
    जिसका अंश मात्र भी असर वारिन पर नहीं हुआ था। वह खो गया था उस राजमुद्रा को देखने में।
    विशंभर ने एकदम से उसके हाथ से वह बॉक्स लेना चाहा तो वारिन ने हाथ पीछे कर लिया “हाथ मत लगाना इसे अगर तुम पैसे में इसको तोलना चाहते हो?”
    विशंभर मुह खोले उसे देखने लगा “तुम मुझे भी पैसे के लिए बेच दो ऐसे शख्स हो और इस छोटी सी चीज को पैसे में नहीं तोलना चाहते?”
    “ये हमारा अभिमान है। तुम्हारा क्या? तुम तो बेवकूफ हो।” वारिन ने लापरवाही से कहा।
    “ओशियन के बच्चे।” विशंभर उस पर चिल्ला दिया। तभी उसके फोन पर किसी का फोन आने लगा। वह एक अनजान नंबर था।
    विशंभर ने कुछ समय के लिए वारिन को माफ करते हुए थोडा हिचकिचा कर फोन उठाया। कुछ पल सामने वाले की बात सुनने के बाद वारिन की तरफ उसने फोन बढ़ाया “कोई तुमसे बात करना चाहता है।”
    वारिन ने चुपचाप फ़ोन लेकर कान से लगा लिया। लेकिन जैसे ही उसने सामने से कुछ सुना वह अपनी जगह जम गया।

    उसी स्टूडियो से कुछ दुरी पर पुलिस की काफी सारी गाड़िया खड़ी थी। काफी लोग वहा जमा हुए थे। एक गाडी का बुरी तरह एक्सीडेंट हो चूका था। उस जगह को देखते हुए एक आदमी दूसरी तरफ कुछ दूरी पर गाडी रोके खड़ा था। उसने कहा “निर्वाण मारा गया।”



    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 3. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 3

    Words: 2097

    Estimated Reading Time: 13 min

    मुंबई , भारत

    दोपहर का समय था जब शहर के एक बड़े अस्पताल के सामने एक टैक्सी रुकी जिसमे से वारिन ने बाहर कदम रखा। एक अलग सी बात थी अपने देश की हवा में। लेकिन ये वही हवा थी जो कभी उसकी सांसो को रुकता हुआ देखना चाहती थी।
    इतने में किसी ने वारिन का हाथ पकड़ लिया “ओशियन, आर यु ओके ना?”
    वारिन ने एक ठंडी साँस छोड़ी “मै ठीक हु विशु। चलो , अंदर चल कर मेरे भुत काल से सामना करते है।"
    विशंभर उसके शांत चेहरे को नहीं बल्कि उन गहरी नीली आँखों को देखे जा रहा था। जो चाह कर भी उससे अपना दर्द नहीं छुपा पाती थी। वारिन ने मास्क लगाया और आँखों पर एक चश्मा चढ़ा कर चल पड़ा अंदर।

    दोनों लिफ्ट खुलने का इंतेज़ार कर रहे थे। तभी एक घंटी बजी और लिफ्ट का दरवाजा खुल गया। अंदर एक लड़का फोन पर बाते हुए बाहर निकल रहा था। उसने काले रंग का सूट पहने हुए था। उसके पीछे ही एक जाना पहचाना दूसरा चेहरा भी वारिन को दिखा। लेकिन वह उस पर इतना ध्यान नहीं दे पाया।
    क्युकी उसकी नजर बस लडके पर रुक चुकी थी। जो उसकी बगल से होकर गुजरा। इसी बिच विशंभर उसका हाथ पकडे लिफ्ट में ले गया। दरवाजा बंद होने से पहले ही वारिन ने धीरे से कहा “मल्हार!"
    उस काले सूट वाले लड़के के कदम कुछ दूर जाकर रुक गए। उसने पलट कर देखा वो मल्हार ही था। पाच साल हो चुके थे। बस जरा सा फर्क आया होगा उसके अंदर। बाकी वो वैसा का वैसा ही था। हमेशा की तरह गंभीर चेहरा लिए। उसने अपने पीछे चल रहे आदमी का हाथ पकड़ा और उन्हें अपने साथ ले गया। लिफ्ट का दरवाजा भी बंद हो चूका था। वारिन ने उस दरवाजे पर हाथ लगाया। जिस पर हाथ रख विशंभर बोला “क्या हुआ? कोई पहचान वाला था?”
    वारिन एकदम से होश में लौटा। एक गहरी साँस भरते हुए उसने ना में सर हिला दिया।
    जल्दी ही वह दोनों एक लम्बे कोरिडोर में चल रहे थे। सामने आयसीयु था और उसके बाहर बैठे कुछ जाने पहचाने लोगो को देख कर वारिन दूर ही खड़ा रह गया। उसका पूरा परिवार था कहने के लिए वहा। लेकिन कोई अपना नहीं ये भी वो जनता था।
    उसके बड़े पापा श्रीपाद हाथ बांधे एक बेंच पर बैठे हुए थे। पास ही उनकी पत्नी सरिता थी। श्रीपाद की बगल में वारिन का पिता रघुनाथ खड़ा था। शायद नशे में होने के कारन ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था उनसे। सामने वाली बेंच पर वारिन माँ अश्विनी बैठी थी। उनकी बगल में वारिन की बुआ शर्वरी बैठी थी। पास ही बड़े पापा का छोटा बीटा श्रेयस खड़ा था। वारिन को अपनी छोटी बहन और बुआ के बेटे के अलावा बड़े पापा का बड़ा बेटा शिरीष भी कही नहीं दिखा। लेकिन तभी कोई उसके कंधे को धक्का देकर आगे निकला। वह लड़का एक कदम आगे जाकर रुका और गर्दन घुमा कर कहा “बिच में मत खड़े रहो।”
    वह शिरीष ही था। जिसे देख वारिन ने अपनी गर्दन को हल्का सा झटका देकर कहा “धक्का देने के बाद सॉरी बोलते है। से सॉरी!”
    शिरीष की आंखे छोटी हो गयी। इससे पहले वह कुछ कहता विशंभर ने कहा “ओशियन अपनी बात दोहराना पसंद नहीं करता।”
    शिरीष को याद आया की वह इस समय अस्पताल में था। इसलिए बात को ज्यादा ना बढ़ाते हुए उसने आंखे घुमा कर कहा “सॉरी!”
    और वह एकदम से आगे चला गया। वारिन ने अपना कन्धा झटकना शुरू कर दिया। मानो कोई धुल लग गयी हो उसके कपड़ो पर। फिर वही दीवार से टेक लगाकर वह खड़ा हो गया।
    सामने ही शिरीष पंहुचा तो श्रेयस ने उसके पास जाकर कहा “क्या हुआ?”
    “मिडिया में खबर पहुच गयी थी। सब जमा है बाहर। फ़िलहाल तो संभल लिया लेकिन लगता नहीं दादू के बारे में जाने बिना जायेंगे।” शिरीष ने कहा जिसे सबने सुन लिया था। लेकिन किसी ने कुछ भी नहीं कह़ा। पिछले दिन अचानक ही वारिन के दादू को अस्पताल में भरती करना पड़ा। हार्ट अटैक आया था उन्हें। तब से पूरा परिवार अदल बदल कर यही मोजूद था।

    कुछ समय बाद आयसीयु का दरवाजा खोल कर एक उम्र दराज डॉक्टर बाहर आए। सब लोग उन्हें देख खड़े हो गये। श्रीपाद ने तुरंत ही पूछा “बाबा को होश आ गया?”
    “जी ! आबासाहेब को होश आया चूका है।” डॉक्टर ने सर हिला कर जवाब दिया।
    “क्या हम मिल सकते है उनसे?” इस बार सवाल शर्वरी की तरफ से आया।
    “जी नहीं! उन्होंने किसी से भी मिलने से मना कर दिया है। हां वह वारिन भारद्वाज से जरूर मिलना चाहते है। कौन है वो? उन्हें बुला दीजिये।” डॉक्टर ने इतना कहा और फिर वह चले गए। पीछे सब शांत और सुन्न खड़े थे। पिछले पाच सालों में इस नाम का जिक्र तक नहीं हुआ था उनके घर में। फिर अचानक ही उससे मिलने की इच्छा क्यों जताई थी आबासाहेब ने?
    इसी बिच वारिन आगे बढ़ गया और उसने डॉक्टर का रास्ता रोक लिया। कुछ बात करने के बाद वह सीधे आयसीयु की तरफ बढा। सबके बिच से निकल कर उसने जैसे ही आयसीयु का दरवाजा खोला शिरीष रोकने के लिए आगे आते हुए बोला “हेय कौन हो तुम? अंदर कहा चले जा रहे हो?”
    वारिन अंदर जा चुका था। उसने दरवाजा छोड़ा तो वो शिरीष के मुह पर बंद हो गया। शिरीष ने दरवाजा खोलना चाहा। लेकिन विशंभर ने दरवाजे पर हाथ रख कर उसे ऐसा करने नहीं दिया।
    शिरीष ने उसे घुरा वही श्रेयस भी आगे चला आया। उसने एकदम से कहा “कौन हो तुम लोग ? क्या करने की कोशिश कर रहे हो? रस्ते से हटो वरना मजबूरन हमें एक्शन लेना पड़ेगा।”
    “प्लीज! गो अहेड। लेकिन कोई भी उसे अपने दादू से मिलने से नहीं रोक सकता.. राईट?” विशंभर ने कहा तो श्रेयस के कदम ठिठक गए।
    “कौन? किसकी बात कर रहे हो?” इस बार बड़े पापा श्रीपाद आगे आ गए।
    “वेल जब वो बाहर आए उसी से पूछ लेना।” विशंभर ने लापरवाही से कहा। कुछ समय पहले खड़े खड़े उसने वारिन का पूरा पास्ट सुन लिया था उसके मुह से। इसलिए अब ये वारिन के अपने थे इस वजह से उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।

    वारिन दरवाजे के पास ही खड़ा अपने दादू आबासाहेब भारद्वाज को उस बिस्तर पर मशीनों से घिरे देख पा रहा था। एक समय पर क्या रौब हुआ करता था उनका। लेकिन अब बूढ़े हो चुके थे। पुरे घर में सबसे ज्यादा प्यार आखिर तक वारिन को किसी से मिला था तो वो सिर्फ उसके दादू थे। इसलिए जैसे ही उनके बारे में वारिन को खबर मिली वो यहाँ फ्लाइट पकड़ कर पहुच गया।
    किसी की आहट पाकर आबासाहेब ने हलकी सी आंखे खोली। एकदम से उन आँखों में नमी उतर आई और उन्होंने होठों पर मुस्कान लिए कहा “वारिन!”
    वारिन के कदम अपनी जगह लडखडा गए। उसने अब जाकर अपना मास्क और आँखों पर लगे ग्लासेस हटाये। जबकि उसके होते हुए भी दादू पहचान चुके थे उसे। वह आगे बढा और उनके करीब बैठ गाया “दादू!”
    “बहुत देर लगा दी मिलने आने में? क्या मै मर जाता तब आते?” आबासाहेब ने कहा।
    “ऐसी बाते क्यों कर रहे हो? जिन्दा हो अभी और डॉक्टर ने कहा बिलकुल फर्स्ट क्लास हो। लम्बी उम्र जिनी है आपको।” वारिन की आँखों से टपटप आंसू गिरने लगे। उसने आबासहेब का हाथ कस कर अपने दोनों हाथो में पकड़ लिया था।
    “जन्मदिन की ढेर सारी बधाईया!” आबासाहेब ने एकदम से कहा तो वारिन ने हैरानी से उनकी तरफ देखा।
    वह आगे बोले “अब तुम आ गए हो ना तो मै तुम्हे कही जाने नहीं दूंगा। सबसे पहले तो तुम्हारा जन्मदिन मनाते है। पाच साल हो गए ना? न जाने तुमने मनाया होगा की नही?”
    उनके कहने के बाद वारिन को याद आया कही सरे फोन्स , मेल्स और मेसेजेस उसे मिल चुके थे। लेकिन वारिन ने एक भी खोल कर नही देखा। उसे तो बस जल्द से जल्द भारत पहुच कर अपने दादू को सह कुशल देखना था।
    “आप सिर्फ आराम कीजिये। मेरा जन्मदिन बिलकुल भी जरुरी नहीं है। आप जरुरी हो?” वारिन ने नजरे झुकाते हुए कहा।
    “तुम डॉक्टर को बुला दो बस। मै बिल्क्कुल ठीक हु। आराम तो बाकी घर पर भी कर लूंगा। बूढ़ा हो चूका हु तो ये आम सी बाते है, अब हार्ट अटैक आना वगेरा।” आबासाहेब लापरवाही से बोले।

    आयसीयु रूम के बाहर का वातावरण तनाव भरा हो चूका था। पूरा परिवार विशंभर को घेरे खड़ा था जब किसी ने कहा “मिस्टर विशंभर , आप आ गए? वारिन भी आया है ना आपके साथ?”
    सबने हैरानी से उस लड़के को देखा। जो कोई और नहीं शर्वरी का बेटा क्षितिज था। वह वारिन की उम्र का था। इसलिए भाई के अलावा एक दोस्त भी रहा कभी वारिन का।
    “क्षितिज? क्या बोल रहे हो तुम?” शर्वरी गुस्से में उसका बाजु पकडे बोली।
    इससे पहले कोई कुछ कहता दरवाजा खुला और वारिन सबके सामने आकर खड़ा हो गया। काफी ज्यादा बदल चूका वो लेकिन फिर भी सब उसे पहचान गए। सबकी आंखे फटी रह गई। वारिन जिंदा था और लौट चुका था।
    उसकी माँ अश्विनी ने तो मुह पर हाथ रख लिया। उनकी आँखों में आंसू आ चुके थे। कुछ बोल ही नहीं पायी वो। क्युकी अधिकार भी तो नहीं था अपने ही बेटे से बात करने के लिए।
    एक सरसरी नजर सबके उपर डालते हुए वारिन ने कहा “दादू घर जाना चाहते है।"
    “पहले तो तुम ये बताओ, यहाँ क्या कर रहे हो?” शिरीष ने गुस्से में कहा।
    “ये पूछो की इतने साल अपना काला हो चूका मुह छुपाने के बाद अब क्यों लौटा है?” चाची सरिता नफरत से बोली।
    वारिन ने आराम से उन दोनों की तरफ देख कर कहा “ना ये अस्पताल तुम दोनों के बाप का है। ना ही शहर! मेरा जहा मन करेगा मै आऊंगा जाऊंगा... तुम्हे इससे क्या?”
    ऐसा पहली बार था जब वारिन ने इतनी बेबाकी से जवाब दिया था। वरना कोई कितना भी कुछ कह लेता था घर में , वारिन ने कभी पलट कर जवाब नहीं दिया था किसी को। सरिता का मुह हल्का सा खुल गया। वह बेइज्जती महसूस कर रही थी।
    वही शिरीष हैरान रह गया। पहले भी वारिन ही था जिसने उससे सॉरी बुलवाया। उसका चेहरा लाल पड़ गया। जो छोटा भाई उससे आंखे मिलाकर बात करने से कतराता था उसने आज उसे सॉरी बोलने के लिए कहा। शिरीष ने कहा “कुछ दिन बाहर रह लेने के बाद जबान चलाना सिख गए हो? हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी माँ से इस तरह बात करने की?”
    “मैंने तुमसे भी वैसे ही बात की शिरीष भारद्वाज। अब तुम्हारी कानपुर लाइन ठीक से काम कर रही होगी तो सुन लिया ना? दादू घर जाना चाहते है। जाकर व्यवस्था करो।” वारिन ने आराम से हाथ बांधे कहा।
    “तुम मुझे आर्डर दे रहे हो?” शिरीष गुस्से में आग बगुला हो चूका था।
    “कही के प्रेसिडेंट नहीं हो तुम। हां! तुम्हे ही आर्डर दिया।” वारिन ने उसकी आँखों में देख कहा।
    इससे पहले शिरीष कुछ कहता उसके पिता श्रीपाद ने उसे रोक दिया “अस्पताल है ये। अगर बाबा घर जाना चाहते है तो वह किसी की नहीं सुनेंगे। जाकर डिस्चार्ज पेपर्स रेडी करो।”
    शिरीष उनके सामने कुछ भी बोल नहीं पाया। वह चुपचाप हां कह कर दूसरी तरफ गया। साथ में श्रेयस को भी ले गया। बाकी सब तो वारिन को देख अभी तक सदमे से उभरे ही नहीं थे।
    श्रीपाद ने अब वारिन को कुछ कहना चाहा तो वो वहा है ही नहीं ऐसे उन्हे नजरंदाज करते हुए वारिन आगे निकल गया।


    वारिन और विशंभर अस्पताल के बाहर निकल आए थे जब अचानक ही किसी ने आवाज देकर उन्हें रोक लिया।
    वारिन रुका लेकिन पलटा नहीं। जिस वजह से क्षितिज को ही उसके सामने जाना पड़ा “कहा जा रहे हो तुम? दादू से बात की ना तुमने? वो घर ले जाना चाहते है तुम्हे।”
    वारिन ने उसके सवाल के बदले अपना सवाल कर दिया “तुमने ही फोन किया था ना मुझे? तुम्हे पता कैसे चला मेरे बारे में?”
    क्षितिज ने दांत दिखा दिए “उस बारे में आराम से बैठ कर बात करेंगे। फ़िलहाल तुम घर आ रहे हो। क्युकी दादू ने ऐसा कहा है।"
    “मै किसी होटल में रुक जाऊंगा।“ वारिन ने कहा।
    “जी नहीं! तुम घर ही आ रहे हो।” क्षितिज ने कहा और वारिन के कुछ कहने से पहले ही वह भाग गया।
    वारिन ने एक ठंडी साँस छोड़ी “दम घुट रहा है यहाँ मेरा विशु। न जाने क्या क्या होगा आगे?”
    “मै तुम्हारे साथ हु।” विशंभर ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे हिम्मत दी।
    कुछ दूर जाकर क्षितिज रुका और उसने फोन से किसी को मेसेज भेजा "वारिन आ चुका है। आप मिले नही उससे?"
    सामने से कोई जवाब नही मिला था। फिर भी फोन बंद कर क्षितिज अंदर चला गया।
     


    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 4. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 4

    Words: 2013

    Estimated Reading Time: 13 min

    भारद्वाज निवास, रात होते हुए वारिन और विशंभर टैक्सी लेकर उस घर के बाहर पहुच गए थे। वारिन कदम भी नहीं रखना चाहता था इस जगह जिसे उसने सालों पहले छोड़ दिया था। लेकिन अब इतने फोन कर चूका था क्षितिज दादू के कहने पर की उसे यहाँ आना ही पड़ा। वरना अपना सामान होटल में ही छोड़ आया था वो। ताकि उसे यहां रुकना ना पड़े। उसने सोचा कुछ समय दादू के पास बैठ कर जब वो सो जायेंगे वो वह निकल जायेगा।
    इसी बिच विशंभर के फोन पर फिर किसी का कॉल आने लगा “अरे यार, ये पेंटिंग भेजने के लिए कहा था इन्हे। एक काम मेरे बिना कर नहीं पाते ये लोग। तुम चलो आगे, मै जरा बात करके आया।”
    वारिन बिना कुछ बोले ही गेट की तरफ चल पड़ा। अंदर मोजूद गार्ड ने तुरंत दरवाजा खोल दिया। मानो उसे पहले से पता हो की कौन आने वाला था। गेट से अंदर प्रवेश करने पर आज भी वैसा ही खड़ा वो घर वारिन को दिखने लगा। न जाने क्यों ये घर अब एक समय की कैद की याद दिलाता था उसे। जहा कुछ भी उसकी इच्छा से नहीं होता था। घर के सारे फैसले दादी के बाद उसकी बड़ी माँ सरिता लिया करती थी। इसलिए बाकि बच्चो के मुकाबले वारिन को कभी कुछ भी अच्छा और मांगा हुआ ना मिला। उसकी माँ को इस घर में कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं था। इसकी सबसे बड़ी वजह थी की वह वारिन की सगी मासी थी। वारिन को जन्म देते हुए उसकी माँ की मृत्यु हो चुकी थी। इसलिए उनकी जगह अश्विनी को रघुनाथ के साथ रिश्ते में बांध दिया गया। मगर अश्विनी कभी निराश नहीं हुई। वारिन के लिए उसने सब कुछ सहा और अपनी जिम्मेदारी हमेशा निभाती रही। लेकिन वारिन की इतनी बड़ी सच्चाई के लिए वह चाह कर भी किसी के इच्छा विरुद्ध जाकर खड़ी नहीं हो पाई।
    वारिन की नजरे सामने थी। इसलिए निचे ना देख पाने के कारन एक बच्चा अचानक ही आकर उससे टकरा कर गिर गया। जब वह चिल्लाया तब कही जाकर वारिन का ध्यान निचे गया।
    “ओह! आय सो सॉरी। तुम्हे लग गयी क्या बच्चे?” वारिन ने जल्दी से उसके बाजु पकड़ कर उसे देखा। बड़ा ही प्यार बच्चा था वो। जो वारिन को देखते ही अपना दर्द भूल गया।
    “क्या हुआ? कुछ बोल क्यों नहीं रहे?” वारिन ने थोडा जोर से पूछा, शायद बच्चे ने सुना नहीं हो सोच कर।
    “आप वारिन हो क्या? सेम सेम फेस है। लेकिन हेयर्स कट कर लिए। हा थोड़े से ज्यादा हेंडसम लगते हो पहले से। पर आपकी आंखे अभी भी वैसी ही है।”, बच्चे ने खड़े होकर अपने कपड़े झाड़े और ख़ुशी से कहा “मतलब आप वारिन ही हो ना? मै कबसे आपका इन्तेजार कर रहा था।”
    वारिन ने अपनी तरफ ऊँगली कर लीं “तुम जानते हो मुझे? और मेरा इन्तेजार कर रहे थे?”
    “हां , आज आपका जन्मदिन है ना? हम सब यहाँ उसी के लिए जमा हुए है। वैसे मै वो वहा दिवार के उस पार रहता हु।” बच्चे ने कहा तो वारिन की नजरे उस तरफ उठी। एक दीवार का अंतर था बस दोनों घरो में। वारिन अच्छे से जानता था वह घर प्रभाकर अंकल का था। उनकी उम्र उतनी ज्यादा नहीं थी। लेकिन फिर भी वह उसके बड़े पापा और पापा की जगह दादू के फ्रेंड थे। स्वभाव की बात होती है।
    वैसे तो प्रभाकर के तिन बच्चे थे ऐसा उसने सुना था।  लेकिन पत्नी डिवोर्स और बच्चे दोनों लेकर चली गयी। जिसके बाद ही वो यहां शिफ्ट हुए थे। लेकिन फिर एक बच्चा उनके पास लौट आया था। वारिन तो उससे कभी नहीं मिला था। क्युकी वो उनके घर कभी नहीं आया था। शायद ये बच्चा प्रभाकर अंकल का पोता होगा सोच कर वारिन ने सर हिलाया “तो फिर तुम अकेले बाहर क्या कर रहे हो?”
    “क्युकी मै अकेले ही दादू के साथ पहले चला आया था। मेरे बाबा और मम्मी अभी तक आये नहीं है। यहाँ मै देखने आया था वो आ रहे है या मुझे उन्हें लेने घर जाना पड़ेगा। वो क्या है ना, मेरे बाबा बड़े बोरिंग है। वो कभी किसी फंक्शन में नहीं जाते।” उस बच्चे ने कहा तो वारिन की हंसी छुट गयी।
    “हम्म्म , हो गयी मेरी बुराई?”, पीछे से एक सर्द आवाज सुन कर बच्चे के चेहरे पर खौफ उतर आया। उसने जल्दी से अपनी जीभ काट कर पलटते हुए भाग जाना चाहा की पीछे खड़ा शख्स फिर बोला “प्रज्वल!”
    “सॉरी बाबा , मै अकेले कही भी नहीं घूम रहा था। मै बस बाहर तक आया आपको देखने और देखो मुझे कौन मिल गया।” उस बच्चे प्रज्वल को जैसे एकदम से वारिन का ख्याल आया और वह आगे आकर वारिन को दिखाने लगा।
    वारिन भी देखना चाहता था उस बोरिंग शख्स को। जिसने आते ही इतने प्यारे बच्चे की बोलती बंद कर दी। वह खड़ा हुआ और जैसे ही पलटा उसके चेहरे की हंसी फीकी पड़ गयी। हाथो की मुट्ठिया कस गयी और ज्यादा समय तक वो उस इन्सान से नजरे मिलाये नहीं रह पाया।
    “मल्हार यहाँ?” वारिन की आंखे में अनगिनत सवाल थे। वही सामने खड़ा मल्हार बिलकुल शांत होकर उसे देख रहा था। वारिन को गर्मी का एहसास हुआ। जिस वजह से वह यहाँ वहा नजरे घुमाते हुए अपनी गर्दन सहलाने लगा।
    तभी मल्हार ने कहा “वारिन!”
    “हननं?” वारिन ने एकदम से उसकी तरफ देखा।
    “तुम्हे दुबारा देख कर मुझे ख़ुशी हुई। मैंने सुना था की तुम भाग गये थे ... मुह छुपा कर?” मल्हार ने एक टेढ़ी मुस्कान होठो पर लिए कहा।
    कुछ पल तो वारिन एक शब्द भी नहीं बोल पाया। कैसे कुछ बोलता इस शख्स को? किसी समय उसकी पसंद हुआ करता था वो। लेकिन क्या अभी वो वारिन का मजाक बना रहा था?
    “कहा खो गए?” मल्हार ने उसके चेहरे के सामने चुटकी बजायी।
    वारिन ने एक ठंडी साँस छोड़ते हुए ना में सर हिलाया। वह चाह कर भी कुछ कह कर खुदको तकलीफ नहीं देना चाहता था।
    मल्हार कुछ कहने को हुआ की पीछे से एक लड़की अपने बाल सवारते हुए आकर बोली “आप दोनों यही खडे हो अभी तक? पहले ही देर करा दी, अब देखना बाबा कैसे सुनायेंगे?”
    वह लड़की आकर मल्हार की बगल में खड़ी हुई और उसकी नजरे वारिन से मिली। शायद पहचाना नहीं था उसने वारिन को। लेकिन वारिन उसे पहचान गया। वह निशा थी। किसी समय मल्हार की बेस्ट फ्रेंड हुआ करती थी और अब शायद उसकी पत्नी थी।
    सर हिला कर वारिन पलटा और घर के अंदर चल दिया। मल्हार के माथे पर बल पड़ गए। क्या इस लड़के को किसी बात से फर्क नहीं पड़ता अभी भी?

    घर के अंदर तैयारियों में कोई कमी नहीं रखी गयी थी। घरवालो के अलावा सिर्फ प्रभाकर एक ऐसे थे जो बाहर से बुलाये गए थे। तैयारियों में हाथ बटाने के लिए घरवाले कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे थे। सिर्फ एक क्षितिज था जो आबासाहेब के कहने पर हर काम को करवा रहा था।
    आबासाहेब एक कुर्सी पर बैठे हुए थे। पास ही प्रभाकर भी थे। परिवार के लोग दूसरी तरफ अलग सोफे पर जमा होकर बैठे थे।
    “वारिन , कितनी देर लगा दी आने में?” दादू ने उसे आया देख कहा तो चेहरे पर हलकी सी मुस्कान लिए वारिन उनकी तरफ बढ़ गया।
    “मैंने आपको आराम करने के लिए कहा था दादू।” वारिन उनके करीब जाकर पैरो के पास बैठ गया।
    सभी लोगो का ध्यान उस पर जा चूका था। लेकीन श्रेयस ने शिरीष को दूसरी तरफ देखने के लिए कहा। जहा मल्हार अपने बेटे और निशा के साथ खड़ा था। मल्हार के कपड़ो से मिलती जुलती साड़ी पहनी थी निशा ने और वारिन का नाम सुन कर उसके चेहरे का रंग बिलकुल ही उड़ चूका था।
    “आज सारे आशिक एक ही छत के निचे जमा हुए है।“ शिरीष ने तंज कसते हुए कहा तो श्रीपाद ने उसे घुर कर देखा। उसके पिता यही बैठे थे। उनके सामने ऐसी बाते वो कैसे होने दे सकते थे? शिरीष को मजबूरन चुप होना पड़ गया। वरना मल्हार जो उसे घुर रहा था , उसके बाद दोनों यहाँ भी बहस छेड़ने में कसर बाकी नहीं रखते।
    आवाज सुन कर अश्विनी किचन से बाहर झांकी और वही से वारिन को देखने लगी। एक कमरे से रघुनाथ भी बाहर निकल आए थे। नशे में पूरी तरह धुत और तेज आवाज में कहते हुए आए “मेरा बेटा घर आ गया।”
    लडखडाते कदमो से वह वारिन के पास पहुचे। लेकिन ना वारिन अपनी जगह से हिला और ना ही उसने कोई प्रतिक्रया दी। आबासाहेब सख्त आवाज में बोले “संभालो खुदको रघु और जाकर एक तरफ खड़े हो जाओ।”
    “लेकिन मुझे मिलना था।” रघुनाथ जरा भी होश में नहीं लग रहे थे।
    “मैंने कहा एक तरफ जाकर खड़े हो जाओ।” आबासाहेब ने कहा तो रघुनाथ चुपचाप पीछे हट गए।
    वही उपर रेलिंग पकड़ कर वारिन की छोटी बहन रुतुजा निचे झाक रही थी। उसकी पकड़ रेलिंग पर काफी ज्यादा कस चुकी थी। मानो वारिन को देख उसे जरा भी ख़ुशी ना हुई थी।
    इस बिच क्षितिज ने कहा “सारी तयारी हो चुकी है नानू।”
    अपनी माँ की घूरती नजरो को वह पुरे समय नजरंदाज करता रहा।
    आबासाहेब ने कहा “चलो वारिन , केक काट लो। बाकी सबका मुह बना, बिगाड़ कर हो गया हो तो सब यहाँ जमा हो जाओ।”
    मजबूरन रुतुजा को निचे आना पड़ा। अश्विनी भी किचन से बाहर आकर अपने पति रघुनाथ की बगल में खड़ी हो गयी। बाकि सब भी उठ कर एक जगह जमा हो गए। चाहे वह कितना भी आबासाहेब की किसी बात का विरोश कर ले। लेकिन उनका सुनाया गया आदेश आज भी सबके लिए महत्वपूर्ण था।

    वारिन हाथ में चाकू उठाये कुछ पल बाहर देखने लगा। विशंभर आया नहीं था अब तक। उसे रुका देख आबासाहेब ने धीरे से उसकी पीठ को छूकर उसे आगे बढ़ने के लिए कहा।
    वारिन ने जैसे ही केंडल बुझानी चाही एक बच्चे की आवाज उसके उसके कानो में पड़ी “हैप्पी बर्थडे टू यु , हैप्पी बर्थडे हैप्पी बर्थडे डियर डेडा , हैप्पी बर्थडे टू यु!”
    वारिन के चेहरे पर एक ना देखे जाने वाली मुस्कान आ गयी। विशंभर उसके सामने फोन पकडे खड़ा था और एक बच्चा स्क्रीन पर केक लिए बैठा दिख रहा था। उसके हाथ में भी चाकू था। उसके पीछे एक लड़की भी थी।
    “थैंक यु माय लिटल चार्म।” वारिन ने उसकी तरफ एक फ्लाइंग किस उछाल दी।
    बच्चे ने कहा “चलो जल्दी से केक कट करो। उसके बाद मुझे आपसे बहुत सारी शिकायते करनी है।"
    वारिन ने हां में सर हिलाया और केंडल बुझा कर केक कट करने लगा। हर कोई वारिन को देख हैरान था। क्या वह इतना खुश पहले भी होता था? सामने से वह बच्चा भी केक कट कर रहा था। लेकिन ज्यादा समय तक अपनी शिकायतों का पिटारा बंद नही रख पाया “ये क्या बात हुई ? यहाँ मै मम्मा को लेकर रात के बारह बजे विला पंहुचा और आप दोनों एकदम से गायब हो गए। सच सच बताना ये सब विशु ने किया ना? क्युकी मैंने उसे एक दिन पहले बता दिया था आपका बर्थडे है? ये बहुत चाईल्डीश है। हर समय मुझसे कंप्लीट करने की कोशिश करते रहता है। बस एक बार आप वापस आ जाओ फिर इसकी खैर नहीं।”
    “आह मै तो कांप उठा तुम्हारी धमकी सुन कर। जाओ नहीं आ रहा ओशियन वापस।” विशंभर ने उससे कहा।
    “फिर मै जाऊंगा सीधे गेरेज में। ग्रीस की बोतल उठाऊंगा और तुम्हारी वो लाल परी की कांच।” सामने से बच्चे ने इतना ही कहा की विशंभर ने आंखे बड़ी कर ली। वही सर हिलाते हुए वारिन ने फोन लिया और दूसरी तरफ जाते हुए कहा “ऐसा कुछ मत करना। वरना विशु यही हार्ट अटैक से मर जायेगा। और मुझे इसे यही जला कर आना पड़ेगा वापस।”
    “इतनी तैयारी की आपने बाबा और इसे तो कोई परवाह ही नहीं उसकी?” शर्वरी ने वारिन के दूसरी तरफ जाने के बाद व्यंग से कहा।
    “क्युकी उसे अपने बेटे के सामने इस पूरी दुनिया में दूसरा कुछ दिखाई नहीं देता।” विशंभर ने आराम से कहा।
    आबासाहेब हैरान थे। वारिन का बेटा? लेकिन ये कैसे हो सकता था? रघुनाथ की नजरे अपने बेटे मल्हार पर जाकर रुकी। लेकिन मल्हार के चेहरे पर अब भी कोई भाव नहीं थे। पर कोई था जिसे राहत हुई थी इस बात से और वह निशा थी।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 5. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 5

    Words: 1872

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था जब वारिन अपने बेटे से बात करते हुए एक तरफ जा चूका था। सबकी नजरे उस पर थी और उसके चेहरे की ख़ुशी सबको जलन का एहसास करा रही थी।
    रुतुजा ने एकदम से कहा “दादू अगर ये तमाशा ख़त्म हो गया हो तो क्या मै अपने कामरे में चली जाऊ? मेरे एग्जाम करीब आ रहे है। पढना है मुझे?”
    “तो फिर परमिशन क्यों ले रही है हमारी गुडिया? जा जाकर पढाई कर।” बड़ी माँ सरिता ने ऐसे कहा मानो रुतुजा अश्विनी की नहीं उसकी ही बेटी हो। रुतुजा बदले में मुस्कुरायी और सर हिलाते हुए चली गयी।
    निशा ने भी हिम्मत कर प्रभाकर से कहा “बाबा , क्या हम यहाँ अपनी बेइज्जती करवाने के लिए रुके है? हमें भी घर जाना चाहिए ना?”
    प्रभाकर ने पहले तो उसे घुर कर देखा लेकिन उन्हें मानना ही पड़ा जब मल्हार ने कहा “चलिए बाबा। मेरे पास यहाँ व्यर्थ करने के लिए समय नहीं है”
    प्रभाकर आबासाहेब से बोले “आज्ञा दीजिये।”
    आबासाहेब ने कहा “कम से कम खाना खाकर तो जाते?”
    “नहीं आबासाहेब! हम तो बस जन्मदिन में शामिल होने आये थे। सोचा बहुत दिन बाद वारिन को देखा नहीं, उसे देखना हो जायेगा।” प्रभाकर ने कहा।
    आबासाहेब ने हाथ जोड़ लिए। अब वो क्या ही कह सकते थे। जिसके बाद प्रभाकर अपने परिवार को लेकर चले गए।
    सरिता पलट कर अश्विनी से बोली “खड़ी क्या हो तुम? जाकर खाने का देखो? या फिर भूखा ही रखना है आज सबको?”
    अश्विनी ने सर हिलाया और वह तेजी से अपनी जगह लौट गयी। सरिता ने एक ठंडी साँस छोड़ी “न जाने क्यों इतनी थकान हो रही है आज? मै कमरे में जा रही हु अपने। “
    किसी ने कुछ भी नहीं कहा और सरिता वहा से चली गयी।

    बस एक दीवार का अंतर था भारद्वाज निवास और देशमुख निवास में। अपने घर में पहुचते ही अब तक शांत रहे प्रज्वल ने एकदम चीजे उठा कर इधर उधर फेकना शुरू कर दी। निशा की आंखे बड़ी हो गई। वह तेज आवाज में बोली “प्रज्वल , क्या कर रहे हो तुम?”
    प्रज्वल कुछ भी सुनने के लिए तैयार नही था। प्रभाकर भी परेशान हो गये। प्रज्वल के इस बरताव की आदत थी उन्हे। जब भी कुछ उसके मन से ना हो ऐसे ही चीजे इधर उधर फेकने लगता था वो।
    इस बिच मल्हार एकदम शांत खड़ा था। जैसे वो जानता हो प्रज्वल के गुस्से की क्या वजह हो सकती है? उसने निशा और प्रभाकर से कहा “आप दोनों जाइये। मै उसे समझा दूंगा।”
    प्रभाकर कुछ पल उसकी तरफ देखते रहे। फिर उन्होंने कहा “बाद में मुझे कमरे में आकर मिलो।”
    मल्हार ने हां में सर हिलाया। प्रभाकर अपने कमरे की तरफ निकल गए तो निशा भी किचन में जाकर खाना बनाने का बोल खुद अपने कमरे में चली गयी।
    इस बिच प्रज्वल का गुस्से में चीजे इधर उधर फेकना जारी था। मल्हार ने कड़क आवाज में कहा “अगर हो गया हो तो अब सीधे खड़े हो जाओ।"
    प्रज्वल रुका और उसकी तरफ पलट कर गुस्से में बोला “आप झूठे हो। आपने कहा था की वारिन हमारे है। लेकिन फिर उनका बेटा क्यों है?”
    “क्या हमारा कोई कण्ट्रोल है उस पर? क्या हो गया अगर उसका कोई बेटा है तो?” मल्हार ने उसी लहजे में कहा।
    “आपने मुझे नही बताया की उनका बेटा भी है। अगर उनका बेटा कोई बनेगा तो वो मै हु। मै अपनी जगह किसी को नहीं दूंगा। किसी को भी नहीं।” प्रज्वल गुस्से में बोला।
    “इधर आओ?” मल्हार घुटनों के बल बैठा तो प्रज्वल पैर पटकते हुए उसके पास पंहुचा। मल्हार ने उसे गोद में उठा लिया और फिर घर के पीछे बने गार्डन में ले गया।
    कुछ समय दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। फिर प्रज्वल ने एकदम से कहा “मुझे बुआ को मम्मा नहीं बुलाना। आपने प्रोमिस किया था मै वारिन को मम्मा बुला सकता हु।”
    “क्या बाबा ने आज तक प्रज्वल से किया प्रोमिस तोडा है?” मल्हार ने भौहे उचकाते हुए कहा।
    प्रज्वल ना में सर हिलाने लगा तो मल्हार आगे बोला “तो फिर विश्वास रखो। जो बाबा कहते है वो करते है। थोडा समय लगेगा लेकिन आपकी विश जरुर पूरी होगी।”
    “मै उनके बेटे को एक्सेप्ट नहीं करूँगा।” प्रज्वल ने सीधे शब्दों में कह दिया।
    “ये तो गलत बात है। अगर वह तुम्हे एक्सेप्ट करेंगे तो तुम्हे भी उनके बेटे को एक्सेप्ट करना होगा ना? या फिर तुम चाहते हो जिसे वो सबसे ज्यादा प्यार करते है वो उनसे दूर हो जाये और फिर वो दुखी रहे?” मल्हार उसे लेकर वहा लगे एक झूले पर बैठ गया।
    “आपको पता है ना मुझे अपनी चीजे शेयर करना पसंद नहीं? ना ही लोग। “ प्रज्वल ने कह कर उसके सीने पर सर रख दिया। मल्हार उसके सर पर थपकी देने लगा।
    “जिंदगी हमेशा हमारे अकॉर्डिंग नहीं चलती। कभी कभी कुछ चीजो को छोड़ना पड़ता है और कभी कभी अनचाही चीजे एक्सेप्ट भी करनी पड़ती है।” कुछ समय बाद मल्हार ने खोयी आवाज में बोला।
    प्रज्वल हल्के से कुनकुनाया। शायद उसे नींद आने लगी थी। मल्हार ने ये देखा तो अपना फोन निकाल कर एक नंबर मिलाया। कुछ समय तक वो फोन मिलने के लिए इन्तेजार करता रहा। फिर एकदम से एक उनींदी आवाज उसके कानो में पड़ी “हेल्लो कौन?”
    “तुम्हारा बाप , मल्हार देशमुख।” सामने वाले को सोता देख मल्हार को गुस्सा आ गया था।
    सामने वाला शख्स हडबडा कर बोला “हेल्लो पापा..! मतलब मल्हार, इतनी सुबह सुबह फ़ोन किया?”
    “सोने के लिए नहीं भेजा मैंने तुम्हे वहा?” मल्हार ने दांत चबा कर कहा ।
    “कर तो रहा हु ना यार काम? अब मै क्या करू? क्युकी इससे ज्यादा कुछ भी पता नहीं चल पा रहा ।वारिन के साथ टेक्सस तिन लोग आए थे चार साल पहले। उसमे वो विशंभर , एक लड़की ओजल और बच्चा आर्य मोजूद थे। अब वो कहा से आए नही पता। बाकी यहाँ से तो कुछ भी पता कराना मुश्किल है। ओशियन द सीक्रेट आर्टिस्ट और उसकी पेंटिंग्स बस इतना ही जानते है यहाँ के लोग। बाकी पिछली जिंदगी वारिन ने कहा बितायी, इसके बारे में उसने कोई सबुत पीछे नहीं छोड़ा। अब वो वहा है तो पूछ लो ना उससे जाकर मुझे परेशान करने की जगह?”
    “हां मै पूछने जाऊंगा और वो बड़े प्यार से मुझे सब बता देगा? यु नो व्हाट रचित , तुम किसी काम के नहीं हो?” मल्हार ने गुस्से में कह कर फोन काट देना चाहा।
    “ओह एक्सक्यूज मि? भूलो मत उसे ढूंडने वाला मै ही था?” सामने से रचित तुरंत ही बोला ।
    “बिलकुल! तुमसे पहले कही लोगो को ये काम सौपने के बाद पुरे तिन साल पहले मैंने तुम्हे इस काम की जिम्मेदारी सौपी थी। तुम्हारे काम करने का तरीका इतना फ़ास्ट है की बस , दो साल मुझे इन्तेजार करना पड़ा और तुम फिर भी उसके बारे में ज्यादा कुछ पता लगा नहीं पाए?” मल्हार ने उस पर तंज कसते हुए कहा।
    “कभी आओ यहाँ ओशियन के पागल प्रेमी देखने। उसके स्टूडियो के बाहर खड़ा रहने के लिए जगह नहीं देंगे तुम्हे , तो कुछ पता करना घंटा हो पायेगा। कितनी कोशिश की मैंने उससे मिलने की। लेकिन वो कभी किसी से नहीं मिलता। जब तक बहुत जरुरी इन्सान ना हो। यु नो व्हाट वो सबकी पहुच से बाहर निकल चूका है। वो आसमान में ऊँची उड़ान भर रहा है। मुश्किल है की तुम्हे दुबारा कोई भाव मिलने वाला है उसकी तरफ से।” रचित की पूरी बात सुनते हुए मल्हार के होठो पर एक मुस्कान बनी हुई थी। लेकिन जैसे ही उसने आखिरी बात कही उसका मन किया फोन में घुस कर रचित को पिट कर आ जाये। शायद रचित समझ चूका था की उसने क्या बोल दिया। उसने तुरंत कहा “अच्छा अब मै रखता हु। यहाँ कुछ करने के लिए बचा नहीं तो मुझे लगता है लौट आना चाहिए। “
    मल्हार ने बिना कुछ भी कहे फोन काट दिया और फिर प्रज्वल को देखा। हलके से उसका माथा चूम लेने के बाद वह उसे अंदर ले गया।

    रात के खाने के लिए वारिन और विशंभर रुके हुए थे। सब एक साथ फिर जमा होकर चुपचाप अपना खाना खा रहे थे। जब आबासाहेब ने एकदम से बात छेड़ दी “वारिन , वो कौन था जिससे तुम बात कर रहे थे?”
    वारिन ने हलके से उनकी तरफ देखा और गहरी मुस्कान के साथ कहा “वो मेरा बेटा है, आर्य!”
    आबासाहेब आगे भी जानना चाहते थे। लेकिन वारिन को कुछ बुरा ना लग जाये इसका भी उन्हें खयाल रखना था। उन्होंने कुछ नहीं पूछा तो वारिन ने भी आगे जवाब नहीं दिया।
    इस बिच श्रीपाद बोल पड़े “बाबा वो मिडिया में बहुत गलत बाते फ़ैल रही है। हमारे समझाने के बाद भी। आप एक बार उन्हें इंटरव्यू देंगे तो अच्छा रहेगा। आपको तो पता ही है आज कल छोटी सी छोटी बात का होटल पर असर पड़ रहा है?”
    आबासाहेब ने कुछ भी नहीं कहा। उन्होंने पूरी तरह श्रीपाद की बात को नजरंदाज कर दिया जैसे सुना ही ना हो और वह वारिन से बोले “तुम अपना सामान ले आओ। आज से यही रहना है तुम्हे?”
    सबके हाथ रुक गए। वही वारिन खाते हुए एकदम से हंस पड़ा। आबासाहेब के साथ सबने उसकी तरफ सवालिया नजरो से देखा तो वारिन ने हाथ हिलाया “सॉरी दादू , लेकिन क्या मेरा कमरा बचा होगा इस घर में? वैसे भी वो बाकी बच्चो के मुकाबले बड़ा छोटा था। अगर उसे आप तैयार भी करवा देंगे तो विशु वहा एडजस्ट नहीं कर पायेगा। हम होटल में ही ठीक है। एटलिस्ट वहा बड़ा कमरा तो है, कोई स्टोर रूम नही।”
    सरिता की मुट्ठिया भींच गयी। वारिन को उसके कमरे से निकाल कर एक छोटे से स्टोर रूम को उसका कमरा बना दिया गया और जो उसका असल कमरा था वो क्षितिज को दिया गया जब वो अपनी माँ शर्वरी के साथ डिवोर्स के बाद इस घर में शिफ्ट हुए थे।
    “चेहरे देख कर लगता है दस बाय दस की खोली लेकर रहने की भी औकात नहीं होगी और बात करते है बड़े कमरे की?” शिरीष ने कहा तो पास बठी रुतुजा और श्रेयस मुह दबा कर हंस पड़े।
    “इन्सान को अपने पुराने दिन भूलने नहीं चाहिए। ऑफ़ कोर्स मै, ओशियन और ओजल दस बाय दस के कमरे में भी रहे है। लेकिन वो अब की बात कर रहा है। अब नहीं रह सकते।” विशंभर ने एक चिढाने वाली मुस्कान के साथ उसे देखते हुए कहा।
    वारिन ने ठंडी साँस छोड़ी “सॉरी दादू! मै यहाँ नहीं रह सकता।"
    “तो फिर मै तुम्हारे रहने के प्रबंध कही और करूँगा। लेकिन तुम होटल में नहीं रहोगे बस।” आबासाहेब ने कहा।
    “क्यू तकलीफ ले रहे है आप बाबा? जब सामने वाले को आपके कुछ करने की अहमियत ही ना हो?” शर्वरी ने कहा।
    “बिलकुल दादू। क्युकी मै नहीं चाहता आपके द्वारा की गयी छोटी छोटी चीजो को लेकर भी आपके घरवालो के पेट में दर्द उठने लगे।” वारिन ने शर्वरी को देख कहा।
    शर्वरी का चेहरा लाल पड़ चूका था। लेकिन वही उसके पास ही बैठे क्षितिज को इससे कोई फरक नहीं पडा। वह आराम से अपना खाना खाने में व्यस्त रहा। उस टेबल पर से रघुनाथ और अश्विनी गायब थे। शायद रघुनाथ के कारन अश्विनी को भी कमरे में ही खाना पड़ रहा था।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे। अभी भी बहुत से लोग फॉलो नही करते हैं, बस पढ़ कर निकल जाते है। कमेंट्स करना तो दूर की ही बात है। फिर जब मैं समय से पार्ट्स नही देती तब भी कंप्लेंट करते है। ये क्या बात हुई भला?🥺

  • 6. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 6

    Words: 1760

    Estimated Reading Time: 11 min

    देशमुख निवास , प्रज्वल को अपने कमरे में सुला देने के बाद मल्हार सीधे अपने बाबा प्रभाकर के कमरे के बाहर पंहुचा। उसने एक बार दरवाजा खटखटाया तो अंदर से आ जाने के लिए कहा गया।
    मल्हार ने अंदर जाकर देखा तो कमरे में ज्यादा रौशनी नहीं थी। एक पिली रौशनी वाला बल्ब जल रहा था वहा। उसी के करीब कुर्सी डाल कर प्रभाकर बैठे हुए थे। उनकी आंखों पर चश्मा लगा था और उनके हाथ में एक किताब थी। मल्हार जाकर उनके सामने खड़ा हुआ “आपने बुलाया था बाबा?”
    हा में सर हिलाते हुए प्रभाकर ने किताब बंद कर दी “आज तक कहा नहीं मैंने। लेकिन अब पूछना चाहता हु। तुम्हे क्या चाहिए मल्हार?”
    “मै कुछ समझा नहीं ?” मल्हार ने माथे पर बल लिए कहा।
    “दो दिन पहले आबासाहेब तुमसे मिलने आए थे। शायद पहले भी उन्होंने होटल को लेकर मदत के लिए तुमसे बात की थी। कल उन्हें अचानक से हार्ट अटैक आ जाना? और वारिन का फिर यहाँ पहुच जाना? क्या ये सब बस संयोग है या मै कुछ ज्यादा सोच रहा हु?” प्रभाकर ने कहा। उन्हे हालात की चिंता हो रही थी। ऐसा लग रहा था मल्हार भारद्वाज परिवार को बर्बाद कर देना चाहता था। वह वारिन को मुश्किल में देखना चाहता था। शायद जो भी पांच साल पहले हुआ उसके लिए?
    “आप ज्यादा सोच रहे है बाबा। “ मल्हार ने नजरे चुराते हुए कहा।
    “आबासाहेब की सालों पहले खड़ी की गयी मेहनत आज उनकी ही औलादे मिट्टी में मिला चुकी है। उन्होंने तुमसे मदत के लिए कहा था तो तुमने मदत के बदले अजीब सी शर्ते रख दी उनके सामने। इसलिए बताओ मुझे की आखिर तुम चाहते क्या हो?” प्रभाकर गौर से उसे देख रहे थे। चाहे वो कितना भी इंकार कर ले। मल्हार के अंदर उसकी माँ के मक्कारी वाले गुण जरुर आए थे।
    मल्हार ने आराम से कहा “बाबा मै एक बिजनेस मन हु। फायदा देखे बिना कैसे किसी की मदत करूँगा? ज्यादा कुछ नहीं बस मैंने उनके होटल का नाम बदल कर अपने नाम पर रखने की बात कही। अब इतने सारे पैसे लगाने है मुझे, उनका होटल बचाने के लिए बिना शर्त रखे ये कैसे हो पाएगा जबकि वो लोग मेरे राइवल रहे हैं? मेरी जगह कोई भी होगा तो यही करेगा?। रही बात दादा जी के अचानक हार्ट अटैक आने की तो मैंने उनसे ऐसा कुछ भी नहीं कहा जिससे वो स्ट्रेस लेकर बीमार पड़ जाये।“
    “तुम्हारी जबान बहुत तीखी है मल्हार। मानो या ना मानो , किसी को कुछ भी बोलने से पहले तुम एक बार भी नहीं सोचते। मुझे बस इतना जानना है तुम वारिन को परेशान करने के लिए तो कुछ नहीं करोगे?” प्रभाकर ने कहा।
    “आप खाना खाने निचे आएंगे या यहाँ भिजवा दू? क्युकी प्रज्वल सो चूका है और मुझे भूख नहीं।” मल्हार ने उनकी बात को नजरंदाज करते हुए कहा।
    प्रभाकर ने सर हिलाया “उसका नाम आते ही बात बदल दी। मै चला जाऊंगा निचे। तुम जा सकते हो अब।”
    इतने में ही उनका फोन बजने लगा तो मल्हार उन्हें गुड नाईट बोल कर चला गया।

    **************

    होटल के एक कमरे में विशंभर आराम से बिस्तर पर सोये हुए टीवी देख रहा था। वही वारिन बिच में ही चक्कर मारते हुए बार बार टीवी के सामने आ रहा था। परेशान होकर विशंभर ने टीवी बंद कर कहा “ओशियन क्या कर रहे हो तुम?”
    वारिन रुक कर उसकी तरफ पलट गया “मल्हार ने शादी कब कर ली होगी इतना बड़ा बच्चा होने के लिए?”
    विशंभर की आंखे सिकुड़ गयी “तुम्हारा पहला प्यार? जिसके बारे में दोपहर को बताया था? वही जिसे तुम्हारे बर्थडे पर आना वेस्टेज ऑफ़ टाइम लग रहा था? वही जिसका मुह सबसे ज्यादा सडा हुआ था और वही...!”
    इससे आगे वो कुछ कह पाता वारिन ने हाथ दिखा कर उसे रोक दिया “तुमसे कुछ डिस्कस करना भी पाप है। एक काम करो। पता लगाओ सब कुछ।”
    विशंभर आंखे छोटी करके उसे देखने लगा “तुम तो पुराणी बातो को पीछे छोड़ चुके हो ना? फिर क्यों पता करना है किसी के बारे में? याद रखो तुम्हारी अब एक अलग जिंदगी है। तुम चाह कर भी यहाँ लौट नहीं सकते।”
    वारिन ने ठंडी साँस छोड़ी “मुझे सब पता है और तुम वही करो जो मैंने कहा। ना सिर्फ मल्हार के बारे में बल्कि भारद्वाज परिवार के बारे में भी मुझे जितना हो सके जानना है। उस घर का माहोल तनाव भरा था। रघुनाथ भारद्वाज का मुझे बेटा कह कर बुलाना और दादू का श्रीपाद भारद्वाज को नजरंदाज करना। कुछ तो अजीब है वहा।“
    “तो फिर हम कब तक रुकने वाले है? क्युकी सब पता करने में समय तो लगेगा?” विशंभर सीधे होकर बैठ गया।
    “ओजल से कहना वह कुछ दिन तक प्रिंस और स्टूडियो दोनों संभाल ले। जब तक दादू की हेल्थ में मुझे सुधार नहीं दीखते मै जा नहीं पाउँगा यहाँ से और ना ही वो मुझे जाने देंगे। उन्हें जिंदगी के आखिरी समय में तडपना नहीं चाहता अपनी याद में। बाकी लोगो का मुझे नहीं पता , लेकिन उन्होंने मुझे बहुत प्यार दिया है बिना किसी स्वार्थ के।” वारिन एक छोटी सी मुस्कराहट के साथ बोला।
    “तो फिर उन्हें भी साथ ले लो? ये शहर , मुझे नफरत है इस शहर से। तुम जानते तो हो ना सब कुछ?” विशंभर को यहाँ रहना ही पसंद नहीं आ रहा था।
    “सब जानता हु और तुम्हे नहीं लगता हमें उस मामले को आसानी से छोड़ना नहीं चाहिए अब? याद रखो हम कुछ भी कर सकते है और हमें करना ही चाहिए। उस समय तुम कमजोर थे। लेकिन अब अगर वो तुम्हे मिल जाये तो?” वारिन ने गहरी आवाज में कहा तो विशंभर का चेहरा काला पड़ गया। उसने वारिन की बात पर सहमती जता दी “मै सब पता कर लूँगा। मुझे थोडा समय दो।”
    वारिन आकर उसकी बगल में बैठा और फिर लेट गया। अब वो आराम से सो सकता था। लेकिन मन में अभी भी कही सारी बाते थी। जैसे की मल्हार जब बालिक हुआ होगा तभी अपने पिता के पास लौटा होगा। लेकिन फिर भी वारिन ने कभी उसे वहा नहीं देखा। हां वो कभी जाता भी तो नहीं था प्रभाकर के घर। वही आया करते थे उनके पास।
    आगे उसने सोचा , मल्हार ने शादी कर ली!
    “लेकिन एक मिनट!” वारिन झटके से उठ कर बैठते हुए बोला तो विशंभर भी बिचारा हडबडा गया।
    “क्या? क्या है?” उसने चिढ कर पूछा।
    “शादी करने पर मंगलसूत्र और सिंदूर लगाते है ना?” वारिन ने कहा। उसके चेहरे पर एक राहत दिख रही थी।
    “हां तो?” विशंभर ने गंभीर होकर उसे देखा।
    “तो कुछ नहीं।“ वारिन ने चादर को एकदम से खीच कर मुह तक ओढा और सो गया। विशंभर कुछ पल अजीब नजरो से उसे देखता रह गया।

    ************

    क्षितिज ने उस कमरे के अंदर खड़े होकर कुछ दवाइया हाथ में निकाल कर आबासाहेब के सामने कर दी। आबासाहेब ने उसके हाथ को दूर करते हुए कहा “अरे हटाओ यार? क्या हो गया है मुझे इतनी सारी दवाइया खाने के लिए?”
    “नाटक का बुखार चढ़ा है। इसे खा लीजिये ताकि जल्दी उतर जाए।” क्षितिज ने सर हिलाते हुए कहा।
    “दवाई खिला कर मारना चाहते हो तुम मुझे?” आबासाहेब बोले।
    “बस विटामिन्स है नानू। खा लीजिये! किसी ने नोटिस कर लिया तो आपके नाटक पर पानी फिर जायेगा।” क्षितिज ने कहा तो चुपचाप वो सारी दवाइया लेकर खाने लगे।
    “आपको दवाई दे दी। वारिन के रहने का इन्तेजाम अच्छी जगह हो चूका है। तो अब आप सो जाइये। मै बहुत थक गया हु। इसलिए मुझे भी सोने जाना है।” क्षितिज ने कहा।
    “अरे रुक!”, आबासाहेब ने उसका हाथ पकड़ लिया “वो बच्चा किसका है कौन बताएगा? क्युकी वारिन को तो लड़के पसंद है ना?” आबासाहेब थोड़ी हिचक के साथ बोले। पाच साल पहले एकदम से उनके सामने वारिन की सच्चाई आ गयी तो वह सुन्न पड़ गए थे। क्या रियेक्ट करना चाहिए उन्हें समझ नहीं आ रहा था। आखिर वह थे तो पुराने खयालो के। लेकिन उस सच्चाई से ये नहीं बदल जाता की वारिन उनका पोता नहीं? वह पूरी कोशिश कर रहे थे अभी भी सब समझने की। क्षितिज को तो परेशान करने रख दिया था। उसका काम बन चूका था उन्हें हर दिन एलजीबीटी कम्युनिटी के बारे में कुछ बताये। वह तो मज़बूरी में उनके साथ बैठ कर सामाजिक फिल्मे भी देख लेता था।
    उसने लम्बी साँस भर कर कहा “वो किसका बच्चा है इस बारे में अब तक किसी को पता नहीं। जैसे ही मुझे पता चलेगा मै आपको बता दूंगा। अब गुड नाईट! चुपचाप सो जाइये।”
    क्षितिज ने इतना कह कर उन्हें जबरदस्ती लिटा दिया और चादर से उनको ढक कर लाइट बंद करते हुए बाहर जाने लगा। जब वो दरवाजे तक पंहुचा तो आबासाहेब बोले “मेरा वारिन हेंडसम दीखता है ना?”
    क्षितिज सर हिलाते हुए मुस्कुरा पड़ा “उसे हेंडसम कह कर मुझे मरना नहीं है।”
    उसने जाते हुए दरवाजा भी बंद कर लिया।


    कोई ऐसा भी था जिसकी आँखों में जरा भी नींद नहीं थी। कस कर उसने फ़ोन को अपने हाथ में पकड़ रखा था और वह किसी से बात कर रही थी। उसने कहा “वो वापस आ गया।”
    “तुम्हारे पास इतना समय था और तुम कुछ ना कर सकी। समझ लो मल्हार तुम्हारे हाथ से निकल गया अब।" सामने से कहा गया।
    “शट अप शिरीष। मैंने तुम्हे मदत मांगने के लिए फोन किया। क्या हो रहा है या क्या होगा तुम बता कर मुझे डरा रहे हो?” निशा ने कहा।
    “उसके साथ एक घर में रह कर तुम कमरे तक नहीं पहुच पायी तो दिल तक कैसे पहुचोगी? अब एक ही रास्ता है , जैसे उस बच्चे के कारन घर में घुसी वैसे ही उसकी जिंदगी में जगह बनाओ। उस बच्चे को अपने साथ कर लो।" शिरीष ने कहा।
    “वह पहले से मेरे साथ है। लेकिन अगर मैंने उससे कुछ भी करने के लिए कहा तो तुरंत अपने बाप की तरफ घूम जायेगा। बहुत चालक बच्चा है। बाप बेटे के बिच कौन सी बाते होती है वह तक मुझे नहीं बताता। इससे अच्छा तो ये रहेगा की वारिन पहले की तरह दुबारा यहाँ से चला जाये।” निशा ने कहा।
    “जाने के को तो अभी चला जाये। लेकिन इस बूढ़े को कौन समझाए ? मेरा बाप तक उसके आगे कुछ बोल नहीं पाता। तुम ना अपना काम करती रहो। यहाँ मै देखता हु। इस घर में तो उसे बिलकुल कदम नहीं रखने दूंगा।” शिरीष ने कहा तो निशा रहत से हां में सर हिलाने लगी।
    कुछ समय बात करने के बाद निशा ने फोन बंद करके रख दिया। उसी कमरे में एक तरफ लगी हुई तस्वीर को उसने देखा। जिसमे वो, मल्हार और प्रज्वल थे। एक बच्चे की माँ तो बन गयी लेकिन पत्नी कब बनेगी उसके बाप की?






    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे। समीक्षा के साथ फॉलो करना भी बिल्कुल ना भूले।

  • 7. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 7

    Words: 2037

    Estimated Reading Time: 13 min

    सुबह का समय था जब विशंभर हाथ में वारिन का सामान लिए उसके साथ देशमुख निवास के दरवाजे पर खड़ा था। वह खुद होटल में ही रहने वाला था। क्युकी उसे बहुत कुछ पता करना था।
    वे दोनों को ही नहीं जानते थे वारिन के रहने का इन्तेजार आखिर दादू ने किया कहा था। यहाँ पहुच कर वारिन के होश उड़ गए। वह एकदम से पलटा तो सामने ही आबासाहेब और क्षितिज खड़े थे।
    वारिन ने कहा “मै यहाँ नहीं रहूँगा दादू।”
    “क्यों नहीं रहोगे भला? अपने घर आने से तो मना कर दिया। कम से कम प्रभाकर अंकल के घर तो रहो?” आबासाहेब साधारण लहजे में बोले। जैसे की कोई बड़ी बात ही नहीं थी। लेकिन उन्हें क्या पता ये बात कितनी बड़ी थी।
    “पहले रह भी लेता जब पता नहीं था की मल्हार मेरा पडोसी और प्रभाकर अंकल का बेटा है। लेकिन अब कैसे रह लू जब की सब पता है? और थू है वारिन तुझ पर, जिस लड़के को हर जगह स्टॉक किया उसके घर का पता क्यों नहीं निकाला कभी?” खुदसे बोलते हुए वारिन काफी ज्यादा परेशान हो चूका था।
    “क्या हुआ वारिन? ये जगह तुम्हारे रहने के लिए बिलकुल बेस्ट है और याद रखना, इसमें मेरा कोई हाथ नहीं था। ये फैसला दादू का था तुम्हे यहाँ रखने का?” क्षितिज ने एक टेढ़ी मुस्कान के साथ कहा।
    वारिन ने उसे बुरी तरह घुरना शुरू किया। अच्छे से पता था इस लड़के को वारिन के क्रश के बारे में, तो अब इसी जगह उसे कैसे लाकर फसा कर जा सकता था वो?
    “दादू मै होटल में ही रह लूँगा। लेकिन यहाँ नहीं?” वारिन ने कहा और उसी समय दरवाजा खुल गया। वारिन ने आंखे मीच ली।
    प्रभाकर की आवाज आई “आप लोग आ गए?”
    “जी नहीं , सिर्फ ओशियन आया है।” विशंभर ने हलकी मुस्कान के साथ कहा।
    वारिन एक गहरी साँस लेते हुए पलट गया तो देखा प्रभाकर के अलावा प्रज्वल बड़ा तैयार होकर खड़ा था। अपनी कोलर ठीक करते हुए उसने बड़ी विनम्रता से कहा “आईये ना वारिन।”
    वारिन जबरदस्ती मुस्कुरा दिया। यहाँ तक आ गया था तो अब कोई चारा भी नहीं था उसके पास। उसने अपना कदम घर के अंदर बढ़ाया तो एक तेज आवाज हुई। वारिन हल्का सा चिहुक उठा। प्रज्वल ने एक क्रेकर फोड़ कर कहा “वेलकम होम!”
    “बड़ा प्यारा बच्चा है। मेहमानों का इतने अच्छे से स्वागत करता है। और एक हमारा मैगोट! घर के लोगो का ही जीना मुश्किल कर दे।” विशंभर जहा एक तरफ प्रज्वल की तारीफ कर रहा था तो दूसरी तरफ आर्य की बुराई भी कर रहा था। उसने जोर से कह दिया इसलिए वारिन ने उसके पेट में कोहनी मार दी।
    विशंभर हल्का सा झुक गया। वही प्रज्वल ने कहा “वारिन मेहमान थोड़ी ही है? वह यहाँ रहेंगे मतलब इस घर का हिस्सा हुए। है ना दादू?”
    प्रभाकर ने हां में सर हिलाया। वारिन अपने हाथ जोड़ कर बोला “थैंक यु अंकल! आप मुझे यहाँ रहने देंगे। वैसे अगर किसी को परेशानी ना हो तो मैं सबसे पहले अपना कमरा देखना चाहूंगा। एक लम्बी फ्लाइट के बाद मुझे बस नींद ही आए जा रही है।”
    प्रभाकर ने हां में सर हिलाया। वही आबासाहेब हलकी मुस्कान के साथ उसे देखते रह गए। चाहे वारिन को कितनी भी तकलीफ हो लेकिन कभी भी अपने मन की व्यथा किसी से कह नहीं पाता था पहले।
    वारिन ने हलके से अपनी नजरे चारो तरफ घुमाई। एक आध बार आया होगा वो यहाँ पर। वो भी तब जब सिर्फ प्रभाकर अकेले इस घर में रहते थे। वारिन को हिचकिचाहट हो रही थी की मल्हार क्या कहेगा उसे देखने के बाद। क्या पता वह जानता भी होगा या नहीं , उसके यहाँ रहने के बारे में?
    प्रभाकर अपने पीछे सबको अंदर ले आए। इसी बिच एक कमरे से निशा बाहर आ गयी। सुबह के दस बज रहे थे और वो अभी तक नाईट सूट पहने हुए थी। बालो का जुडा बंधा था। उसे देख कर लग रहा था मानो अभी अभी नींद से जागी थी।
    कमरे से बाहर निकलते ही वारिन को देखना उसके लिए किसी सदमे की तरह था। आंखे फाड़ कर वह कुछ पल उसे देखती रही। उसके बाद आंखे मलना उसने शुरू कर दिया। दो तिन बार आंखे बंद खोल लेने के बाद उसे विश्वास हो गया की वारिन सच में उस घर के अंदर मोजूद था। तेजी से आकर वह वारिन का रास्ता रोके खड़ी हो गयी।
    “बाबा , ये लड़का यहाँ क्या कर रहा है?” निशा ने वारिन को घूरते हुए कहा।
    “वह आज से यही रहेगा।” प्रभाकर ने आराम से जवाब दिया।
    “लेकिन क्यों? उसका अपना घर है ना?” निशा परेशान होकर बोली।
    “क्युकी वो अपने घर में नहीं रहना चाहता था। इसलिए आबासाहेब ने पिछली रात मुझसे फोन करके इस बारे में चर्चा की। फिर मैंने ही उन्हें सजेस्ट किया की वारिन यहाँ रहे?” प्रभाकर ने कहा।
    “इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता और मल्हार , उससे पूछा आपने?” निशा हलकी सी भड़क गयी थी।
    “ये घर मल्हार का नहीं, उसके बाप का है। इसलिए प्रभाकर देशमुख अकेले फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है की यहाँ कौन आयेगा, कौन जायेगा?” प्रभाकर को ऐसे सबको खड़े रख कर निशा का सवाल झाड़ना अच्छा नहीं लग रहा था। वह इसे आबासाहेब जैसे बुजुर्ग शख्स का अपमान मानते थे।
    निशा ने नजरे झुका ली “सॉरी बाबा , लेकिन क्या आपको पता नहीं है इस लड़के ने पाच साल पहले क्या किया था? इसी के कारन मल्हार ...!”
    इससे आगे वह कुछ कहती प्रभाकर ने कहा “रास्ता छोडोगी तुम?”
    “हां मम्मा! आप जाकर फ्रेश क्यों नहीं हो जाती पहले?” प्रज्वल ने कहा तो एक जबरदस्ती वाली मुस्कान होठो पर लिए निशा रस्ते से हट गयी।
    प्रभाकर ने आबासाहेब को बैठने के लिए कहा और प्रज्वल से बोले की वह वारिन को उसका कमरा दिखा दे। प्रज्वल ने हलके से उन्हें सेल्यूट किया और तीनो लडको को अपने साथ उपर ले गया। एक कमरे के बंद दरवाजे के बाहर आकर वह सब खड़े हुए और प्रज्वल बोला “वैसे तो ये मेरा कमरा है लेकिन मै ज्यादा तर बाबा के साथ सोना पसंद करता हु। बाबा का कमरा भी दूर नहीं है , ये रहा सामने।”
    वारिन का हाथ अपने सर पर चला गया और उसने कहा “विशु , मैंने जो मांगा है भेज देना। जब तक अपना ध्यान नहीं बटाऊंगा मेरा स्ट्रेस कम नहीं होगा।”
    विशंभर ने बिना कुछ भी कहे हां में सर हिला दिया। वही क्षितिज ने कमरे का दरवाजा खोल दिया। ऐसा लग ही नहीं रहा था की वह कमरा किसी बच्चे का होगा। क्युकी वहा एक भी खिलौना नहीं था। हां कमरे में प्रज्वल की काफी सारी तस्वीरे जरुर थी।
    “ओशियन कमरा बहुत गंदा कर देता है।” विशंभर ने साफ़ सुथरे फर्श को देख कर कहा। क्युकी टेक्सस में जो वारिन का कमरा था उसकी फर्श पर हमेशा की रंग के दाग देखने को मिल जाते थे। सिर्फ फर्श ही नही, सामान तक सही सलामत नहीं रहता था।
    “मुझे कोई परेशानी नहीं। अब ये कमरा वारिन का है। इसे वो जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकते है। चाहे तो सफाई करने में मै आपकी मदत करूँगा।” प्रज्वल ने सीने पर हाथ रख कहा। जिस वजह से विशंभर को बड़ा ही प्यार आ रहा था उस पर। हाथ से सामान छोड़ कर उसने एकदम से प्रज्वल को गोद में उठा लिया “बताओ तुम क्या समजदारी खाने के बाद पैदा हुए थे? आखिर एक बच्चा इतना मिच्योर हो कैसे सकता है? क्या मै तुम्हे हमारे वाले से रिप्लेस कर दू? समजदार लोगो को आखिरकार एक साथ रहना चाहिए?”
    प्रज्वल को उसकी बाते ज्यादा कुछ समझ नहीं आई। लेकिन वह इतना जरुर समझ गया की विशंभर उस दुसरे बच्चे के साथ प्रज्वल को कंपेयर कर रहा था। इसलिए प्रज्वल का सीना चौड़ा हो गया।
    “तुम्हे जाना नहीं है क्या?” वारिन ने कहा।
    विशंभर ने सर हिलाया तो क्षितिज भी निकलने की तयारी में था। वारिन ने उसकी कोलर पकड़ कर कहा “तुम नहीं! बात करनी है मुझे तुमसे। विशु , बच्चे को अपने साथ ले जाओ।”
    विशंभर ने सर हिलाया तो प्रज्वल उसके साथ जाते हुए बोला “वारिन आपको किसी भी चीज की जरुरत होगी तो मुझे आवाज लगा देना। मै तुरंत आपके लिए हाजिर हो जाऊंगा।”
    वारिन ने कुछ नहीं कहा बस सर हिलाया। थोडा अजीब था ये। प्रज्वल इतना छोटा सा था , फिर भी उसका खिचाव कुछ ज्यादा ही वारिन की तरफ था। वारिन के दिमाग में वो बाते भी घुमने लगी जो प्रज्वल ने उसे पहली नजर में देख कर कही थी। तो क्या उसने वारिन की तस्वीर को कही देखा होगा?
    लेकिन कहा ? क्युकी तस्वीरे खिचवाने का ज्यादा शौख उसे था नहीं और भारद्वाज निवास में जो कुछ भी बाकी लोगो के साथ होगी वह अब उसे हॉल में लगी हुई नहीं दिखी। शायद किसी ने वो सारी तस्वीरे हटा दी थी, जिसमे वारिन मोजूद हो।
    क्षितिज ने एकदम से कहा “लगता है तुम्हे अभी आराम की जरुरत है। क्यों ना तुम एक अच्छी नींद पूरी कर लो? हम बाद में भी बात कर सकते है?”
    वारिन होश में आया और उसने क्षितिज की कोलर पर पकड़ कस कर कहा “अगर दादू मुझे यहाँ रखना चाहते थे तो तुमने रोका क्यों नहीं उन्हें?”
    “अब मै भला कैसे रोकता? ये फैसला उनका था। मेरे जानने से पहले ही उन्होंने प्रभाकर अंकल से बात कर ली थी। क्या तुम्हे डर लग रहा है यहां रहने में?” क्षितिज ने एक टेढ़ी मुस्कान के साथ कहा।
    वारिन ठंडी हंसी हंस दिया “डरे मेरा जूता! मुझे बस उस शख्स के घर में नहीं रहना था जिसके कारन मेरी जिंदगी उथल पुथल हो गयी।”
    “आर यु श्योर ये सब उनके कारन हुआ है?” क्षितिज ने पूछा।
    वारिन ने नजरे फेर ली “मुझे कुछ नहीं पता वो सब छोडो और ये बताओ आज कल चल क्या रहा है यहाँ? भारद्वाज निवास में क्या चल रहा है?"
    “सब ठीक ही तो है?” क्षितिज ने आराम से कंधे उठा कर कहा।
    वारिन हलके हलके से सर हिलाने लगा। इस लड़के से कोई भी बात जानना इतना आसान होता तो उसे कभी विशंभर को काम पर नहीं लगाना पड़ता। उसने क्षितिज की कोलर छोड़ दी और हाथ हिला कर कहा “गेट लॉस्ट!”
    क्षितिज का मुह खुल गया “तुम बत्तमीज हो चुके हो लड़के।”
    “हु केयर्स?” वारिन बिना जुते खोले ही जाकर बिस्तर पर पेट के बल गिर गया। क्षितिज मुह बना कर रह गया और वहा से चला गया।

    वारिन की आंखे खुली तो शाम की लालिमा उसके कमरे में फैली हुई थी। कमरा इस समय ठंडा था और चादर में सिकुड़ कर वह सो रहा था। कुछ पल वैसे ही लेटे रहने के बाद वह उठ कर बैठ गया। सबसे पहले तो खुद पर ओढ़ी हुई चादर को उसने देखा। भले ही ठण्ड से अकड कर मर जाये, लेकिन मजाल थी की लड़का खुद पर चादर ओढने तक के लिए नींद से हल्का भी जागे? एक तो नींद जल्दी आती नहीं थी और आ जाये तो फिर कोई कितना भी उठाने की कोशिश करे उठता ही नहीं था। इसलिए तो हर रोज उसे अलार्म लगा कर सोना पड़ता था। इतना तो तय था की किसी ने आकर उसे चादर ओढाई थी। इसके अलावा उसके जूते भी खोले गए थे। वो ज्यादा कुछ सोच पाता तभी उसकी नजर कमरे में रखे गए एक बड़े से बोक्स पर गयी। शायद विशंभर को जो सामान भेजने के लिए उसने कहा था वो आ चूका था। इसलिए उसने ही जूते उतारे होगे सोच कर वारिन साधारण हो गया। बिखरे बालो में उसने हाथ घुमाया तो वह फिर माथे पर आकर बिखर गए।
    दूसरा कुछ भी किये बिना एक कटर लेकर वारिन ने सबसे पहले बोक्स को खोला। उसका एक ही नशा था .. पेंटिंग करना। स्ट्रेस को मिटाने के लिए पेंट करता था , लेकिन ना करे तो तो भी वह स्ट्रेस में आ जाता था।
    पेंटिंग उसके लिए अब सिर्फ कला या रोजी रोटी नहीं बल्कि महत्व्पूर्ण चीज, शरीर के किसी हिस्से की तरह बन चुकी थी। उसका मानना था उसकी बेरंग जिंदगी में इन रंगों ने ही रंग भर दिए थे। जब से इन रंगों का हाथ पकड़ा उसकी जिंदगी रंगीन हो गई जो पूरी अधेंरे में डूबी हुई थी वो सतरंगी हो गई।





    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे। जिन्होंने फॉलो नही किया वह जरूर कर ले ताकि अगले भाग की अपडेट्स आपको मिलती रहे।
    समीक्षा लेखक कर मनोबल बढ़ाने के लिए जरूरी होती है। कोशिश करे की सब लोग कुछ न कुछ जरूर लिखे।

  • 8. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 8

    Words: 1529

    Estimated Reading Time: 10 min

    देशमुख निवास, रात का समय था जब प्रभाकर, निशा और प्रज्वल डाइनिंग टेबल पर जमा थे। आठ बजने में अभी भी थोडा समय था। मुख्य कुर्सी पर बैठे प्रभाकर ने घडी से नजर हटा कर तुरंत सामने देखा जहा मल्हार अपने लिए कुर्सी खीच कर बैठ रहा था। प्रभाकर के पास प्रज्वल बैठा था। क्युकी वह खाने के समय मल्हार के पास बिलकुल नहीं बैठना चाहता था। एक तो मल्हार समय का बहुत पाबन्दी था और हर दूसरी बात के लिए वो सामने वाले इन्सान को टोक भी देता था। प्रज्वल और उसके दादू इसलिए अलग बैठते थे। क्युकी उन्हें परेशानी थी खाने के समय भी अपने शिष्ठाचार बनाये रखने से। वह इन्सान थे कोई मशीन नहीं। लेकिन निशा जरुर मल्हार के पास ही बैठती थी।
    मल्हार सब तरफ नजर घुमा कर कहा “आपने किसी को घर में रहने की अनुमति दी तो क्या उसके साथ रूल्स नहीं बताये?”
    “उसका पहला दिन है यहाँ।” प्रभाकर ने कहा।
    तभी निशा बोली “मैंने भेजा था किसी को लेकिन उस लड़के ने दरवाजा नहीं खोला।”
    मल्हार ने एक ठंडी साँस छोड़ी “पहला दिन हो चाहे आखिरी। उसे बता दीजिये, दिन के दोनों समय शार्प आठ बजे वह खाने के लिए उपस्थित हो जाया करे। वर्ना उसे खाना नहीं मिलेगा।”
    प्रभाकर ने अफ़सोस के साथ सर हिला दिया “मै बुला कर लाता हु उसे।”
    “बैठिये आप! मै जाता हु।" मल्हार ने कहा तो प्रज्वल सर झुका कर मुस्कुरा पड़ा।

    वारिन के दोनों हाथ रंगों से भरे हुए थे। निचे ही बोर्ड पर शिट बिछा कर वह हाथो से पेंट किये जा रहा था। उसका पूरा ध्यान सिर्फ अपने काम पर था। जिसमे वह पूरी तरह खो चूका था।
    शरीर के उपरी हिस्से पर कुछ भी ना पहने होने के कारन उसकी उभरी हुई मांसपेशिया साफ़ नजर आ रही थी। उसके बाल माथे पर बिखरे हुए थे और जिस कान में लम्बी बाली थी उसमे लगा नीला मोती हिल रहा था।
    इसी बिच दरवाजे पर किसी ने दस्तक देना शुरू कर दिया। वारिन पूरी कोशिश कर रहा था उसे नजरंदाज करने की लेकिन उसका ध्यान अंत में टूट ही गया। बहुत गुस्सा आता था उसे जब कोई काम के समय उसे परेशान करे। ये बात उसके घर में विशंभर, ओजल और आर्य तीनो ही जानते थे। इसलिए जब तक खुद वो कमरे से बाहर ना आ जाये उसे बुलाया तक नहीं जाता था।
    वारिन ने जाकर दरवाजा खोल दिया और जैसे ही कुछ कहना चाहा वह चुप हो गया। सामने मल्हार खड़ा था। दरवाजा खुलते ही उसकी नजरे सबसे पहले वारिन के खुले सीने पर जाकर रुकी, जहा पंखो का टेटू बनाया गया था। वारिन ने कुछ पल उसके बोलने का इन्तेजार किया। लेकिन जब मल्हार अपनी नजरे हटाने को तैयार नहीं हुआ तो वारिन ने कहा “क्या मै हॉट लग रहा हु?”
    “हनन?” मल्हार ने खोयी आवाज में कहा।
    “इतनी हवस के साथ कभी लडकियो ने भी मुझे नही देखा होगा मिस्टर देखमुख।”, वारिन ने उसकी आँखों के सामने चुटकी बजा कर कहा “यहां, मेरी आँखों में देख कर बात कीजिये। आप असहज कर रहे है मुझे।”
    मल्हार एकदम से होश में लौटा। साथ ही वह सकपका गया। उसके कान लाल होने के साथ गर्म हो उठे थे। उसने खुदको ठीक किया और सीधे वारिन की नीली आँखों में देखा। न जाने ऐसा क्या था उसके अंदर जो मल्हार को खो जाने पर मजबूर कर देता था।
    इससे पहले मल्हार कुछ बोल पाता वारिन ने कहा “मुझे डिस्टर्ब क्यों किया?”
    अब जाकर मल्हार की नजर उसके रंगों से सने हाथो पर भी गयी और उसने कहा “खाने का समय हो चूका है। आज बुलाने आया क्युकी मुझे बताना था इस घर में समय पर ही सबको खाना होता है। इस घर में रहते हुए तुम्हे कुछ रूल्स फोलो करने होगे।”
    “क्या मुसीबत है यार।” धीरे से बडबडा कर वारिन ने उलटे हाथ से अपना माथा सहलाया “कितने बजे का टाइम है?”
    “शार्प आठ सुबह , रात और पहले ही दिन तुम पांच मिनट लेट हो।” मल्हार ने हाथ बांध कर कहा।
    “इतनी जल्दी कौन खाता है?” वारिन ने हैरानी से कहा। सुबह का नाश्ता वह बारह बजने से पहले नहीं करता था और डिनर में तो दस ग्यारह आराम से हो जाते थे।
    वह आगे बोला “अगर लेट हुआ तो खाना नहीं मिलेगा?”
    मल्हार ने आराम से ना में सर हिला दिया। वारिन ने कुछ पल उसे देखा और आराम से फिर कंधे उठा कर कहा “तो फिर मै बाहर से मंगा लूँगा। जाओ अब और दुबारा डिस्टर्ब मत करना। जैसे खाने के लिए यहाँ नियम है, ठीक वैसे ही मेरे कमरे के बाहर आवाज करने के लिए है। इस बार शांति से दरवाजा खोला। अगली बार कुछ फेक कर जरुर मारूँगा , ताकि याद रहे।"
    इतना कह कर वारिन ने दरवाजा जोर से मल्हार के मुह पर बंद कर दिया। मल्हार का मुह खुल चूका था। तेजी से पलके झपकाते हुए कुछ पल वह बिना कोई प्रतिक्रिया दिए खड़ा रहा। लेकिन जल्द ही उसने दरवाजे पर हाथ मार कर कहा “बाहर आओ तुम! इस घर में बाहर से मंगा कर भी खाना नहीं खा सकते।”
    वह जोर जोर से दरवाजा पीटने लगा तो वारिन ने चिढ कर दरवाजे को खोल दिया। मल्हार ने फिर अपनी बात दोहरा दी “इस घर में बाहर का खाना भी नहीं आता। अगर यहाँ रहना है तो रूल्स को फोलो करके ही रहना होगा।”
    “घर है की जेल? और क्या पूरा गाँव बसा है यहाँ जिनके लिए आपने रूल्स बना दिए?” वारिन दांत पिसते हुए बोला।
    मल्हार एक पल के लिए हिचकिचाया। वारिन के साथ हुई हर मुलाकात उसे आज भी अच्छी तरह याद थी। और उसने कभी इस लहजे में उससे बात नहीं थी। उसका रहन सहन ही नहीं वह खुद भी बहुत ज्यादा बदल चूका था।
    “आय जस्ट हेट मेसी पीपल।” मल्हार ने ठंडी आवाज में कहा।
    “और आपके ओपोइनियन से जैसे मुझे कोई फर्क पड़ेगा? गेट लॉस्ट मैन! इतना ही रुल वाले हो तो मै बाहर जाकर खाना खा लूँगा। या फिर यहाँ आने जाने का भी समय बना है?” वारिन तिलमिला कर बोला। हां था वो मेसी! लेकिन मल्हार को वो बात कहने की क्या जरुरत थी? मतलब पांच साल पहले रिजेक्ट नही कर पाया तो अब ये कहकर कर रहा था?

    अगले दस मिनट बाद ही एक सफ़ेद रंग की ढीली सी टीशर्ट पहने वह मल्हार के पीछे सबके बीच आ पहुचा। हां मल्हार के घर में आने जाने को लेकर भी रूल्स बने हुए थे। मल्हार जाकर अपनी जगह पर वापस बैठ गया। वारिन ने देखा तो बहुत सारी कुर्सीया खाली पड़ी थी। एक हिस्से में दादा, पोता तो दुसरे में निशा, मल्हार दिखाई दे रहे थे।
    वारिन हंसी उड़ाते हुए बोला “साथ बैठ कर खाना, नाइक जोक!”
    मल्हार के अलावा निशा ने भी उसे माथे पर बल लिए देखा। लेकिन उसकी बात को प्रभाकर अच्छे से समझ गए थे। वारिन उनकी दूसरी तरफ जाकर बैठ गया
    “हाय वारिन! क्या मै आपके लिए प्लेट लगा दू?” प्रज्वल ने कहा।
    “थैंक यु सो मच, लेकिन मै अपना काम खुद करना पसंद करता हु।” वारिन ने हलकी मुस्कान के साथ अपने लिए प्लेट लगाई। इससे पहले वह खाना शुरू करता उसका फोन बजने लगा।
    उसने महसूस किया सबकी नजरे उस पर आ चुकी थी। वारिन ने सबको देख कहा “क्या? फोन भी रिस्ट्रिक्टेड है?”
    प्रज्वल ने जोर जोर से हां में सर हिलाया तो होठो ही होठो में मल्हार को कोसते हुए वारिन ने फोन सायलेंट कर दिया , जो की विशंभर का था।
    “कोई बात नहीं धीरे धीरे आदत लग जाएगी तुम्हे इस जेल में रहने की। ये जेलर सुबह का जाने के बाद सीधा रात को ही लौटता है। उस समय घर पर हमारा ही राज होता है।” प्रभाकर ने उसकी तरफ होकर धीरे से कहा।
    वारिन फिर मुस्कुरा उठा “वैसे खाते हुए बात कर सकते है ना?”
    प्रभाकर ने आराम से हां में सर हिला दिया “अब साथ बैठे ही है तो बताओ तुम कैसे हो? और आखिर थे कहा इतने साल?”
    वारिन अपने बारे में कोई बात नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने छोटा सा जवाब दिया “मै बिलकुल ठीक हु। एंड टेक्सस में रहता हु।”
    “तुम तो बहुत दूर चले गए। लगता है शादी भी कर ली?” प्रभाकर ने कहा।
    वारिन अपना माथा सहलाने लगा। तभी प्रज्वल हलकी जलन भरी आवाज में बोला “आपका तो बेटी भी है वारिन? क्या वो मेरे जितना है?”
    मल्हार जान चूका था वारिन उनके सवालो से असहज हो रहा था। लेकिन फिर भी उसने उन्हें रोका नहीं।
    “अम्म्म , तुम कितने साल के हो?” वारिन ने कहा।
    “मै पाच का हु।” प्रज्वल ने जवाब दिया।
    “वह भी जल्दी हो जायेगा। तुमसे छोटा है थोडा।” वारिन ने सर हिला कर जवाब दिया।
    “और तुम्हारी वाइफ?” इस बार सवाल निशा की तरफ से आया जो मुश्किल से खुदको शांत रखे हुए थी।
    “क्या करेंगी आप जानकर? आधार कार्ड बनवाना है उसके लिए?” वारिन एक जबरदस्ती वाली मुस्कान उसे दिखाई। टेबल के निचे निशा के हाथ की मुट्ठिया कस गयी। इतना तो उसे पता था की वारिन गे है। वह शादी कभी नहीं करेगा। लेकिन फिर भी मल्हार के सामने उसे दिखाना था वारिन की जिंदगी अब अलग है। वह उसके बारे में ना सोचे तो ही बेहतर होगा।
    प्रभाकर उसकी झूठी मुस्कान को पहचान गए तो उन्होंने सबको खाने पर ध्यान देने के लिए कहा।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 9. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 9

    Words: 1439

    Estimated Reading Time: 9 min

    रात के खाने के बाद प्रज्वल वारिन का हाथ पकड़ कर उसे घर के पीछे बने लॉन में ले जाने लगा। निशा ने उसे आवाज लगाकर भी कहा की उसे सोना नहीं? पर प्रज्वल ने मना कर दिया। प्रभाकर के पास फोन आया था। जिसे लेकर वह कमरे में चले गए। बचे हुए निशा और मल्हार घर के लिविंग रूम में अभी भी बैठे हुए थे।
    निशा ने थोडा हिचकिचाते हुए कहा “प्रज्वल कुछ ज्यादा ही नहीं घुल मिल रहा उस लड़के के साथ?”
    “उसका नाम वारिन है।” मल्हार के हाथ में फोन था। जिससे नजरे हटा कर वह निशा की तरफ देखना तक जरुरी नहीं समझ रहा था।
    निशा का चेहरा फीका पड़ गया “जो भी हो। तुम्हे प्रज्वल को रोकना चाहिए उसके साथ ज्यादा घुलने मिलने से। तुम्हे पता है ना वो क्या है? उसके गन्दगी के छीटे बिना किसी गलती के तुम पर भी उड़े थे। उसका गन्दा साया तुम्हारी जिंदगी पर भी पड़ गया और ...!”
    इससे पहले वह अपनी बात को पूरा कर पाती मल्हार झटके से खड़ा हो गया “तुम जाकर सो क्यों नहीं जाती?”
    “मुझे तुम्हारी चिंता है मल्हार? जो भी पाच साल पहले हुआ वह उसकी काली परछाई का परिणाम था। अगर वैसा फिर कुछ हो गया? तुम्हारे अपने फिर तुमसे ...!" निशा अपनी बात पूरी कर पाती उससे पहले ही मल्हार ने गुस्स्से में उसकी तरफ देख उसे ऊँगली दिखा दी। वह बोला “मै खुद पर बहुत कण्ट्रोल करता हु ताकि किसी को भी कुछ ऐसा ना बोल दू जिससे सामने वाला हर्ट हो जाये। तुम इस घर का हिस्सा हो सिर्फ प्रज्वल के कारन। लेकिन मै तुम्हे वापस भी भेज सकता हु भूलो मत।”
    निशा ने अपना गला तर कर लिया “सॉरी मल्हार? मै ज्यादा बोल गयी। गुड नाईट!”
    इतना कह कर वह तेजी से अपने कमरे की तरफ निकल गयी। मल्हार ने एक गहरी साँस भरी और वह पलट कर घर के पीछे लॉन में देखने लगा। वारिन का हाथ पकड़ प्रज्वल उसके साथ चलते हुए उसे बहुत ही चाव से कुछ बता रहा था। उसके चेहरे की ख़ुशी देख मल्हार के होठो पर भी मुस्कान आ गयी।
    अपनी सगी माँ कौन थी प्रज्वल को याद तक नही था। उसकी कमी ना हो इसलिए मल्हार ने निशा को घर आने देने का फैसला लिया। फिर भी प्रज्वल उसके उतना क्लोज नहीं जा पाया जितना वो मल्हार के था, या फिर सिर्फ वारिन की तस्वीर देख उससे लगाव कर बैठा था एक असली इंसान के मुकाबले।
    हां वारिन की तस्वीर ! जो मल्हार के पास थी। उसे प्रज्वल ने देखा हुआ था। वह अच्छे से जानता था वारिन उसके।बाबा के लिए क्या था। इसलिए वह उसे अपनी माँ मानने में पीछे नहीं हटता था। उसका कहना था “जो बाबा को पसंद वो प्रज्वल को पसंद। वारिन ही उसकी मम्मा बनेगा।"
    प्रज्वल बहुत समजदार था। उन दोनों के बिच कोई भी बात होती तो उसे प्रभाकर भी जान नहीं पाते थे, निशा तो फिर भी दूर ही थी।

    मल्हार के कदम अपने आप ही वारिन और प्रज्वल की तरफ बढे। प्रज्वल ने जब उसे आते हुए देखा तो अचानक ही वारिन हाथ पकडे उसके इर्द गिर्द घुमा और उसे खिच दिया। वारिन तैयार नहीं था। वह लडखडा कर गिरने लगा लेकिन उससे पहले ही मल्हार ने उसे कमर से पकड़ कर अपनी तरफ खीच लिया। वारिन उसके सीने से जा लगा।
    "मुझे कुछ जरुरी याद आ गया। मै दादू को बताकर आता हु।" प्रज्वल दांत दिखा कर मुस्कुरा दिया और वहा से भाग गया।
    वारिन मल्हार की ठुड्डी तक ही पहुचता था। उसने कस कर मल्हार की शर्ट को सिने पर पकड़ रखा था।
    मल्हार ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा “माना की मै हॉट हु, लेकिन इतनी भी क्या हवस की सिचुएशन का फायदा उठा कर मौका साध लो? छूने के लिए इतने बहाने तो लडकिया भी नहीं करती?”
    वारिन ने दो तिन बार पलकें झपका दी। कुछ पल लगे उसे समझने की मल्हार क्या बोल रहा था। वह झटके से पीछे हट गया और अपना चेहरा दूसरी तरफ कर आंखे मीच ली। मल्हार ने जानबूझ कर उसकी ही बात उसे सुना दी थी। गला खराश कर वारिन बोला “मैंने इंटेंशनली नहीं किया।”
    “मुझे क्या पता तुम्हारे इंटेशन क्या हो सकते है?” मल्हार कंधे उठा कर पास ही लगे झूले पर जाकर बैठ गया। उसे नहीं पता था वारिन वहा रुकेगा की नहीं। लेकिन वारिन रुकने के साथ उससे दुरी बनाते हुए झूले पर भी बैठ गया। दोनों लड़के शांत होकर आसमान की तरफ देखने लगे।
    “तुम अब पहले की तुलना में ज्यादा खुश दिखते हो।” मल्हार ने अपनी चुप्पी तोड़ कर कहा।
    “खुश रहने के लिए वजह चाहिए होती है जो की मेरे पास अब मोजूद है।” वारिन ने आराम से एक पैर मोड़ कर उपर रख लिया और पीछे पीठ लगा दी।
    “वजह?” मल्हार ने उसकी तरफ देखा।
    “हम्म.. सोचता था की दुनिया में मुझसे दुखी कोई है ही नहीं। जब तक ओजल से नहीं मिला। उसने मुझे हिम्मत भी दी और वजह भी।” वारिन के होठो पर एक निश्छल मुस्कान थी। जिसे देख न जाने क्यों मल्हार को जलन हुई। वारिन की मुस्कान पर अब उसका अधिकार नहीं था। किसी और को याद कर वह मुस्कुरा रहा था।
    इससे पहले मल्हार कुछ पूछता वारिन झटके से कुछ याद कर खड़े होकर बोला “ओह नो, मुझे याद आया उन्हें फोन करना था। मै चलता हु।”
    वह तुरंत ही अपना फोन निकालते हुए वहा से चला गया पीछे मल्हार को गुस्से में छोड़। वह ठंडी आवाज में बोला “ओजल!”

    “हेय ओजल, आय एम् सॉरी मै बात नहीं कर पाया पहले।” वारिन अपने कमरे में बैठा ओजल से विडिओ कॉल पर बात कर रहा था।
    “कोई बात नहीं! दरअसल आर्य तुम्हे बहुत याद कर रहा है। लो बात कर लो उससे।“ ओजल अपने पास ही फोन लेने के उछल रहे लड़के को फोन थमा कर बोली।
    “डेडा.. मुझे आपकी बहुत याद आ रही है। आप कब आओगे वापस?” आर्य का छोटा सा मायूस चेहरा वारिन को दिखा। एक दूसरे को देखे बिना उनका दिन ना शुरू होता था ना ही ख़त्म।
    “ओह माय प्रिंस , डेडा जल्दी आ जायेंगे। आय नो आप मुझे मिस कर रहे हो। डेडा भी आपको बहुत मिस करते है।” वारिन ने कहा और उसकी तरफ दो चार फ्लाइंग किस उछाल दी।
    “तो फिर आप क्यों चले गए मुझे अकेला छोड़ कर और मुझे एक्साक्ट बताओ आप किस डेट को लौट आओगे?” आर्य ने सवाल किया।
    “वो तो मुझे नहीं पता प्रिंस। लेकिन मै जल्दी आने की कोशिश करूँगा। क्युकी ज्यादा समय के लिए मै भी आप लोगो से दूर नहीं रहा सकता।" वारिन ने कहा।
    “ओके, मै वेट करूँगा। लेकिन अगर आप नहीं आए तो मै आपके पास पहुच जाऊंगा।”, आर्या ने कह कर मुह बना लिया “ और मै विशु को माफ़ नहीं करूँगा आपको मुझसे दूर ले जाने के लिए। उसने जानबुझ कर ऐसा किया है।”
    “नो प्रिंस, इसमें विशु की गलती नहीं है। मै अपनी इच्छा से आया हु और साथ में उसे भी ले आया।” वारिन हँसते हुए बोला। अगर उसने आर्य को नहीं रोका तो वह मिलते ही विशंभर की बैंड बजा देता।
    “आप कहते हो तो मान लेता हु। अपना ख्याल रखना डेडा , मै भी अपना ख्याल रखूँगा और मम्मा को परेशान नहीं करूँगा।” आर्य ने एक समजदार बच्चा बनते हुए कहा। वारिन ने मुस्कुरा कर सर हिलाया। फिर फोन बंद करके वह यु ही बिस्तर पर लेट गया।
    यहाँ सब कुछ उसके लिए उलझा हुआ रहने वाला था। जब तक की विशंभर यहाँ के हालात के बारे में उसे पता करके बता नहीं देता। एकदम से उसके दिमाग में कुछ समय पहले हुई बात घूम गयी। मल्हार और वो शायद दूसरी बार एक दुसरे के इतना करीब आए थे। जैसे पहली बार उसे छूने पर वारिन की धडकने बढ़ी थी ठीक वैसा ही आज हुआ।
    वारिन एकदम से पलट गया और अपना चेहरा बिस्तर में छुपा कर बोला “मै आज भी उनके लिए वही सब महसूस क्यों करता हु? किसी बात से फर्क पड़ना मुझे बंद हो चूका है, लेकिन उनसे आज भी उतना ही फर्क पड़ता है।”
    अगले ही पल वह दुबारा सीधा हुआ और अपने दिल को उसने फटकार लगा कर कहा “दिमाग ख़राब हो चूका है तुम्हारा ओशियन। भूलो मत यहाँ सिर्फ तुम दादू के लिए रुके हो।”
    पर अगले ही उसका दिल बोला “अगर दादू के लिए रुके हो तो इस घर में रहने की कोई जरूरत नहीं थी। तुम्हे अपने घर जाना चाहिए था।”
    जल्दी से उसने सर झटक कर कहा “मै वहा इसलिए नहीं रह रहा क्युकी दादू को इससे प्रॉब्लम होती और मुझे शांति चाहिए। वहा के लोगो संग हर पल बहस में नहीं पड़ सकता मै।”
    उसका दिल और दिमाग एक दुसरे के विरुद्ध हो चुके थे फ़िलहाल।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 10. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 10

    Words: 1664

    Estimated Reading Time: 10 min

    देशमुख निवास , सुबह का समय था जब कोई जोर जोर से वारिन के कमरे का दरवाजा पिट रहा था। बहुत कोशिशो के बाद भी उस आवाज को वो नजरंदाज नहीं कर पाया तो मजबूरन बंद आँखों से ही दरवाजे को ढूंडते हुए पंहुचा और हल्का सा दरवाजा खोला “एक काम करो तुम मेरे साथ ही सो जाया करो। ताकि सुबह सुबह रोज दरवाजा नहीं पिटोगे विशु।”
    उसकी आंखे अभी भी बंद थी और वह दरवाजा पकड़ कर खड़ा था। तभी किसी की आवाज उसके कानो में पड़ी “वाह्ह वारिन आपने टेटू किया हुआ है?”
    वारिन की आंखे झटके से खुली और वह लडखडा कर दरवाजे से टकरा गया। सामने मल्हार और वारिन दोनों एक जैसा ट्रेक सूट पहन कर तैयार खड़े थे। वारिन फिर बिना शर्ट के ही मल्हार को दिख रहा था। इसलिए उसकी आंखे छोटी हो गयी थी।
    वारिन ने खुदको संभाल कर कहा “आप लोग यहाँ? इतनी सुबह सुबह?”
    “हम जोगिंग पर जा रहे है। आप भी चलो ना। दिन भर फ्रेश रहोगे?” प्रज्वल ने चहक कर कहा।
    वारिन ने अपना सर खुजा लिया “नहीं नहीं , मै बाद में एक्सरसाइज कर लूँगा। तुम लोग जाओ।”
    “चलो ना प्लीज वारिन ?” प्रज्वल ने एकदम से उसका हाथ पकड़ कर बड़ी बड़ी आँखों से उसकी तरफ देख विनती की। वारिन चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाया। इतनी प्यारी रिक्वेस्ट के बाद तो मना करने का सवाल ही पैदा नहीं होता था।
    बस एक टीशर्ट पहन कर वारिन निकल पड़ा उनके साथ। सूरज उगने में अभी समय था और जितना पांच साल पहले के बारे में वारिन को याद था। इस मोहल्ले में सभी सुबह जल्दी जोगिंग के लिए पार्क तक जाते ही थे। वारिन , मल्हार और प्रज्वल जैसे ही घर के बाहर निकल पड़े क्षितिज ने आकर उन्हें ज्वाइन करके कहा “गुड मोर्निंग मिस्टर वारिन! अच्छे से नींद आई आपको?”
    वारिन ने उसे घुर कर देखा “अकेले में चल , तुझे बताता हु।"
    इतना सुनना था की क्षितिज ने भाग कर जगह बदलते हुए मल्हार को बिच में कर दिया। फिर उसने सवाल किया “अकेले अकेले मजा नहीं आयेगा मिस्टर वारिन। है ना मल्हार सर?”
    मल्हार ने हलकी सी नजर उस पर डाली और कहा “क्या?”
    “वारिन मुझे अकेले में बुला रहा है।” क्षितिज कुछ ज्यादा बड़ी मुस्कान लेकर बोला। मल्हार ने आँखों छोटी करके उसे घुरा तो क्षितिज ने फिर अपनी जगह बदल ली और अपने भाई वारिन की तरफ आ गया। वह बात बदल कर बोला “मिस्टर विशंभर क्यों चले गए?”
    “क्यों तुम्हे याद आ रही है उसकी?” वारिन ने रूखे स्वर में कहा।
    “हां यार , उन्हे देखने के लिए तो मै मरे जा रहा हु। बता ना वो सिंगल है? मै लाइन मार लू उन पर?” क्षितिज ने दांत दिखा कर कहा।
    “बकवास मत कर।” वारिन ने कहा तो क्षितिज जोर से हंस पड़ा। फिर वो बोला “अब यहाँ हो तो क्या सोचा है? क्या करोगे ?”
    “मै दादू के लिए रुका हु। ऑफ़ कोर्स उनके साथ ही समय बिताऊंगा।” वारिन ने बिना किसी भाव के साथ कहा तो दूसरी तरफ उसकी धीमी रफ़्तार के साथ खुदको दौडाते हुए जा रहे मल्हार ने उसकी तरफ देखना शुरू कर दिया।
    “मतलब तुम वापस भी जाओगे? कितनी मुश्किल से ढूंडा है तुमको। अब आ गए हो तो रुक जाओ ना यहाँ?” क्षितिज एकदम से रुक कर बोला।
    वारिन भी थोडा आगे जाकर रुका और मल्हार भी। वारिन ने पलट कर कहा “ये मेरी जगह नहीं है। ना ही यहाँ मेरे लोग है ,ना घर, ना मै यहाँ कंफर्टेबल हु। मुझे बस एक मेहमान की तरह समझो जो जल्द ही तुम सबकी जिंदगी से पहले की तरह गायब हो जायेगा।”
    “वारिन!” क्षितिज नाराजगी से बोला।
    “इट्स ओशियन! उस वारिन को मैंने पाच साल पहले ही मार दिया था। वारिन अब सिर्फ अपने दादू के लिए बचा है।”, एक तिरछी नजर मल्हार पर डालते हुए वारिन ने कहा और वह वापस घर की तरफ जाने को हुआ था की पीछे से आवाज आई “बहुत ही सही फैसला लिया है तुमने। क्युकी यहाँ तुम्हारे लिए कोई जगह बची भी नहीं है।”
    वारिन नहीं पलटा लेकिन मल्हार जरुर पलट गया। शिरीष, श्रेयस और रुतुजा एक साथ खड़े थे। शिरीष ने आगे कहा “और तुम कोशिश भी करोगे तो भी हम तुम्हे फिर से परिवार का हिस्सा बनने नहीं देंगे। आय नो दादू के हार्ट अटैक की खबर सुनते ही तुम क्यों लौटे होगे? कही उन्होंने तुम्हारे लिए कुछ छोड़ा तो नहीं राईट?”
    वारिन ने मुह खोल कर एक ठंडी साँस छोड़ी और होठो पर एक मुस्कान लिए वह पलट गया “निश्चिंत हो जाओ। मै ऐसा कुछ भी करने के लिए नहीं लौटा।”
    “तो फिर रुके क्यों यहाँ? वापस चले जाओ अभी?” रुतुजा अपने हाथ बांध कर नफरत से बोली।
    वारिन के होठो की मुस्कराहट वैसे ही बरक़रार रही। वह आगे चला आया और एकदम से रुतुजा का गाल काफी जोर से पिंच करके कहा “आज भी तुमने बड़ो से बात करने की तमीज नहीं सीखी ना? बड़े भाई से ऐसे बात नहीं करते। क्या ये दोनों तुम्हे कुछ सिखाते नहीं है? अब माँ से तो उम्मीद नहीं कर सकता, क्युकी वह दिन का आधा समय किचन में ही मिलती है। बड़ी माँ तो फ्री ही रहती है? वह दे रही है तुम्हे ऐसे संस्कार?”
    “वारिन माइंड यूर टंक।” श्रेयस ने कहा।
    वारिन ने रुतुजा का गाल छोड़ दिया जो की पूरा लाल हो चूका था। वह अपना गाल सहलाने लगी। उसे दर्द हो रहा था। वारिन ने पलकें झपका दी “जी बड़े भाई , जैसा आप कहे।”
    किसी आज्ञा कारी बच्चे की तरह उसने हां में सर हिला दिया था। जिसे देख तीनो ही बुरी तरह चिढ़ गए। लेकिन क्षितिज मुह छुपा कर हंस पड़ा।
    “मेहमान को इसी तरह आज्ञाकारी होना चाहिए। ताकि लोग तुम्हे उनके घर में टिकने दे। वैसे जहा रह रहे हो वहा अपने पुराने काम शुरू मत कर देना। क्या है वहा अब एक बच्चा भी रहता है एक।” मल्हार को देखते हुए शिरीष ने व्यंग भरी मुस्कान के साथ वारिन से कहा।
    मल्हार का जबड़ा कस गया। इससे पहले की वह कुछ कहता वारिन ने कहा “मुझे पता है आपको मेरी बहुत चिंता है बड़े भैया। लेकिन थोड़ी बहुत अपनी भी कर लीजिये? उम्र निकली जा रही है, जरा परिवार बसाने के बारे में सोचिए। वर्ना मेरे कारन लोग आप पर भी सवाल उठाने लगेंगे। कही बड़ा बड़ा भाई भी तो...?”
    “वारिन !” शिरीष गुस्से में चिल्लाया।
    वारिन ने कान में ऊँगली डाल ली “ओह गॉड, बहरा नहीं हु मै। आराम से बात करो ना?”
    शिरीष का शरीर कांपने लगा था। श्रेयस ने जल्दी से उसका हाथ पकड़ा और कहा “दादू वॉक के लिए आ रहे है।”
    शिरीष गुस्से का घुट पीकर रह गया। वह तीनो ही आबासाहेब की नजर में आने से पहले ही निकल गए।
    “वाह्ह मेरे शेर! आय एम् सो प्राउड ऑफ़ यु।” क्षितिज ने उसके कंधे पर हाथ मार कर कहा।
    इसी बिच प्रज्वल दौड़ते हुए आया “बाबा , वारिन आप लोग पीछे क्यों रह गए?”
    “कुछ कुत्ते मिल गए थे रस्ते में। चलो वापस शुरू करते है।” वारिन एकदम से उसकी तरफ पलट गया और उसे लेकर आगे दौड़ पड़ा।
    क्षितिज ने मल्हार की तरफ देखा। मल्हार भी उसे ही देखा रहा था। अगले ही पल दोनों हलके से मुस्कुरा पड़े और वारिन के पीछे चले गए।

    “बाबा मै मम्मी पापा से मिलने जा रही हु।” निशा ने अपने कंधे पर बैग टांग कर कहा जबकि बाकी लोग नाश्ते के लिए बैठे हुए थे। प्रभाकर ने सर हिला कर उसे जाने की अनुमति दे दी। निशा ने फिर मल्हार की तरफ देखा “मुझे लेने आ जाओगे?”
    “ड्राईवर लेकर जाओ और उसके साथ ही आ जाना। मेरे पास समय नहीं है।” मल्हार ने उसकी तरफ देखा तक नहीं था।
    निशा को बेइज्जती महसूस हुई। ना पूछती तो ही बेहतर होता। क्युकी मल्हार तो वैसे भी उसे लेने कभी नहीं आता।
    “बाय म...!”, कहने से पहले प्रज्वल हल्का सा रुका और फिर कुछ सोच कर उसने कहा “बाय बुआ!”
    निशा ने हैरानी से उसकी तरफ देखा। लेकिन कहा कुछ भी नहीं। बहुत कम बार ऐसा होता था की वह उसे बुआ कह कर बुलाये। इस बात के लिए निशा को मल्हार पर गुस्सा आता था। जैसे ही प्रज्वल सोचने समझने लगा मल्हार ने उसे बता दिया था निशा उसकी सगी माँ नहीं बल्कि उसकी बुआ थी। अपने बाबा की हर एक बात पर प्रज्वल विश्वास कर लेता था। इसलिए उसने अपने दादा जी से सवाल किया की “मम्मा कौन होती है?”
    प्रभाकर ने फिर उसे बताया था “जो आपके बाबा से शादी करेगी वही आपकी मम्मा होगी।”
    ये जवाब पाकर प्रज्वल फिर मल्हार के पास पूछने के लिए पंहुचा था “आप किससे शादी करोगे बाबा?”
    मल्हार काम में व्यस्त था। बेखयाली में वो बोल गया “वारिन से!”
    बस तब से ही प्रज्वल के सर पर भुत चढ़ा था वारिन को अपनी मम्मी बनाने का।

    प्रज्वल के मुह से निशा के लिए बुआ सुन कर वारिन हैरान था। उसे समझ नहीं आया उसने ऐसा क्यों कहा? क्युकी निशा मल्हार की बहन बिलकुल भी नहीं थी।
    “तो क्या प्रज्वल मल्हार का बेटा नहीं है?” वारिन धीरे से बडबडा दिया। जिसे पास बैठे हुए क्षितिज ने सुन कर कहा “तुम्हे क्या मल्हार सर किसी के भी साथ रात बिताने वाले लगते ? है जो उनका एकदम से बेटा निकल कर आ जायेगा?”
    वारिन ने एकदम से उसकी तरफ देखा “तो? बेवकूफ कब बताएगा ये मुझे?”
    “तुमने पूछा ही नहीं?” क्षितिज कंधे उठा कर बोला।
    वारिन ने ने कुछ नहीं कहा। तभी निशा वहा से चली गयी और आबासाहेब अंदर आ गए। प्रभाकर ने उन्हें नाश्ते पर बुलाया था। क्षितिज वारिन के साथ पहले ही आ गया था। आबासाहेब के पीछे ही विशंभर भी आया और सीधे वारिन की बगल में बैठ गया “तुम ठीक हो?”
    “क्यों? अजीब लग रहा हु मै?” वारिन ने अपने चेहरे पर हाथ फिराया।
    “अरे नहीं यार! अपने पहले प्यार के घर में हो ना? बस इसलिए पूछा सब ठीक है ना यहाँ?” विशंभर बोला।
    वारिन ने जवाब में सिर्फ आंखे घुमा ली। वही मल्हार ने घडी में समय देखा। आठ बज चुके थे। इसलिए उसने सबको नाश्ता शुरू करने के लिए कहा।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 11. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 11

    Words: 1505

    Estimated Reading Time: 10 min

    देशमुख निवास , सुबह का समय था जब सभी लोग नाश्ते की टेबल पर जमा थे। निशा अपने घर जाने का बोल कर चली गयी थी। आबासाहेब के अलावा विशंभर भी नाश्ते के लिए वहा पंहुचा हुआ था। जिसे बुलाने वाला वारिन था। क्युकी वह आज थोड़ा बाहर जाना चाहता।
    “तुमने बात की मेगोट से? परेशान कर दिया था उसने मुझे फ़ोन लगा कर जब मैंने कहा की हम साथ नहीं है तो। पता है कितना गुस्सा किया? कितने ताने सुनाये ? जैसे वो मेरी सास हो! गाड़ी को लेकर धमकी देता वो अलग।” विशंभर शिकायत करते हुए बोला। लेकिन उसे सुन कर वारिन मुस्कुरा पड़ा था।
    “बस ऐसे ही , तुम उसे गंभीरता से नहीं लेते ना। इसलिए वह बिगड़ता जा रहा है।” विशंभर ने उसे घुर कर कहा।
    “वह ओशियन का बेटा है। उसे स्पोइल होने का पूरा अधिकार है।” वारिन लापरवाही से बोला।
    “यु नो व्हाट? आय हेट यु। आय हेट बोथ ऑफ़ यु। घर में ही दो दुश्मन पाल रखे है मैने। जिसके लिए कोई पर्याय नही। मै ना जॉब छोड़ दूंगा और कही चला जाऊंगा।” विशंभर नाराजगी से बोला।
    “तुम्हे पूरी परमिशन है। तुम जाकर दिखाओ बस।” वारिन ने एक टेढ़ी मुस्कान के साथ बोला।
    “सिर्फ इसलिए क्युकी मै तुमसे बहुत प्यार करता हु। वर्ना कबका चला गया होता। और याद रखना, मै हु इसलिए तुम्हारी दुकान चल रही है। वर्ना आज भी स्ट्रीट आर्टिस्ट ही रहते।” विशंभर खुद पर घमंड करते हुए बोला। हां! वह था जुगाडू और वह ना होता तो वारिन आज भी किसी सड़क पर भटक रहा होता।
    वारिन ने मुह बना लिया “खाना खाओ चुप से। बड़ा आया कही चला जाऊंगा।”
    बहुत ही धीमी आवाज में बात करने के कारन उन्हें कोई सुन नहीं पा रहा था। लेकिन उनकी खुसपुस पर सबके कान थे।
    “तो? तुम लोग दोस्त हो?” आबासाहेब गला खराश कर उनका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हुए बोले।
    “आप चाहे तो समझ लीजिये। लेकिन ये लड़का मेरी जान है।” विशंभर ने कुछ ज्यादा ही शर्माते हुए कहा। जिसे सुनने के बाद वारिन की आंखे बड़ी हुई और एकदम से उसने अपना पैर विशंभर के पैर पर मार दिया। विशंभर कराह कर झुक गया और अपना पैर सहलाने लगा।
    “ये बहुत घटिया मजाक करते रहता है दादू। दोस्त ही है।” वारिन ने बात को संभल कर जबरदस्ती वाली मुस्कान के साथ कहा।
    सब लोग शांत हो गए। वर्ना क्षितिज की सबसे पहली नजर मल्हार पर चली गयी थी। जिसने चम्मच को कुछ ज्यादा ही कस कर पकड़ लिया था।
    “तुम अपने बारे में खुल कर बात क्यों नहीं करना चाहते वारिन? कुछ बता नहीं रहे? आखिर कहा थे? कैसे रहे? ये लोग तुम्हारे साथ क्यों है?” आबासाहेब ने फीके चेहरे के साथ पूछा।
    वारिन का चेहरा भावहीन हो गया “पुराणी बातो में क्या रखा है दादू? मै आ गया ना आपके पास? क्या आपके लिए वह काफी नहीं? यहाँ रुक भी तो रहा हु आपके कहने पर?”
    “लेकिन एक ना एक दिन तो तुम चले ही जाओगे?” आबासाहेब ने कहा तो प्रज्वल परेशान हो उठा।
    “क्युकी मुझे जाना ही होगा। यहाँ मेरी दुनिया नही है। जहा मेरे लोग है मुझे वहा लौटना होगा। वहा कोई है जिसे मेरे आने जाने से ख़ुशी होती है। एक शांत घर जहा कोई किसी को नापसंद नहीं करता। नफरत के लिए मेरी छोटी सी दुनिया में कोई जगह नहीं है। मै बस अपनी जिंदगी शांति से जीना चाहता हु दादू।” वारिन ने उन्हें जवाब देकर एक लम्बी साँस भर ली। यहां फिर से आकर उसका दम घुट रहा था।
    आबासाहेब कुछ ना कह सके। आखिर उसे दिया ही क्या था उन्होंने? बुरी यादो के अलावा?
    “डोंट वरी दादा जी। मै हु ना ओशियन का ख्याल रखने के लिए? मै उसे कभी अकेला नहीं छोड़ता। भले ही वह इरिटेट ही क्यों ना हो जाये।” माहोल को शांत करने के लिए विशंभर ने हलकी हंसी के साथ कहा।
    आबासाहेब ने सर हिलाया और वारिन से कहा “होटल की हालत बहुत ख़राब है। बच्चो को मतलब नहीं की अब वह बंद भी पड़ जाए। उनकी नजरे दुसरे बिजनेस की तरफ घूम रही है और वह अपने लिए अलग अलग जगह पैर भी जमा रहे है। जबसे रघुनाथ ने होटल से नजरे फेरी है तबसे यह सब हो रहा है। श्रीपाद में तो शुरू से कोई प्रतिभा थी ही नहीं किसी काम को संभालने की।"
    वारिन अपना माथा सहलाने लगा। ‘होटल नंदिता’ दादी के नाम पर बनाया हुआ था। वह होटल दादू की जिंदगी भर की मेहनत थी। बहुत बार वह जा चूका था वहा पर। उसके पिता बचपन में अपनी गोद में उठा कर ले जाते थे। लेकिन धीरे धीरे वह काम में व्यस्त होते गए और उनका ध्यान पूरी तरह परिवार से हट गया। लौट कर आने पर भी रुतुजा ही उनके आस पास घूम कर उनसे प्यार लेती थी।
    “वह क्यों ध्यान नहीं दे रहे?” वारिन ने रूखे स्वर में पूछा।
    “तुम्हारे जाने के बाद से ही पुरे समय नशे में डूबा रहता है। डॉक्टर ने सलाह दी है उसकी शराब बंद करने को लेकर। लेकिन ना पिए तो पागल हो जाता है। अगर ऐसा ही रहा तो बाप से पहले नंबर लगाने वाला है वो।” आबासाहेब सर झुका कर बोले।
    वारिन की मुट्ठिया कस गयी। उसने धीरे से विशंभर की तरफ देखा विशंभर ने सर हिला कर कहा “यह सच है। होटल की हालत बहुत ख़राब है।”
    वारिन ने फिर एक गहरी साँस भर कर कहा “आप मुझसे क्या चाहते है?”
    “अगर तुम होटल संभालने की जिम्मेदारी लेते हो मल्हार के अंडर तो वह इन्वेस्टमेंट देने के लिए तैयार है।” आबासाहेब ने मानो कुछ भारी सा फेक मारा था वारिन के सर पर। वारिन ने अपनी गर्दन घुमाई और बहुत ही धीरे से मल्हार की तरफ देखा। वह आराम से अपना नाश्ता कर रहा था की हलकी सी नजरे उठा कर उसने उसने वारिन को आंख मार दी।
    वारिन की आंखे बड़ी हो गयी। हडबडा कर उसने नजरे हटा ली। धडकने तेज हो चुकी थी उसकी। मल्हार ने ये करके उसके सोचने समझने के रस्ते पुरे बंद कर दिए थे।
    “ये नहीं हो सकता। पोसिबल ही नहीं है दादू।” वारिन ने ज्यादा ना सोचते हुए कहा।
    “क्यों? तुम दादू की मेहनत को बचाने के लिए इतना भी नहीं कर सकते?” कब से चुप बैठे क्षितिज ने अब जाकर अपना मुह खोला।
    “तुम पागल हो? पहली बात तो मुझे कोई एक्सपीरियंस नहीं इस काम का। दूसरी बात मै यहाँ रह नहीं सकता। इट्स जस्ट अ स्माल पीरियड ऑफ़ टाइम और उसके बाद मै शायद ही यहाँ दुबारा लौट कर आऊंगा।” वारिन ने उसे देख जवाब दिया।
    “आप बार बार ऐसा क्यों बोल रहे हो वारिन? मुझे बुरा लग रहा है। “ प्रज्वल हलकी नाराजगी के साथ बोला। तब जाकर वारिन को एहसास हुआ यहाँ एक बच्चा भी बैठा था। उसके सामने वह लोग इतनी बड़ी बड़ी बाते कह रहे थे। लेकिन उसके बाप को तो कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। जैसे वह अपनी हर छोटी बड़ी बात अभी से प्रज्वल के साथ शेयर करता आया हो।
    “सॉरी! बार बार कहने के लिए। “वारिन ने हाथ खड़े करते हुए कहा।
    “तो मतलब आप नहीं जाओगे? बाबा के साथ काम करोगे ना?” प्रज्वल ने खुश होकर पूछा।
    “नो देट्स...!” इससे पहले की वारिन अपनी बात पूरी करता मल्हार ने उसके बात को बिच में ही काट दिया। वह बोला “एक महिना , अगर एक महीने में मुझे होटल की हालत में सुधार दिखे तो तुम आराम से जा सकते हो यहाँ से।"
    “और ऐसा ना हो पाया तो?” वारिन ने उसकी तरफ देखा।
    “तो फिर मै उस जगह को खरीद कर गिरा दूंगा।” बिना किसी भाव के मल्हार ने कहा तो वारिन का मुह खुल गया।
    “कोई इतना निर्दयी कैसे हो सकता है?” कहते हुए वारिन ने अपना सर प्रभाकर की तरफ घुमा लिया। आखिर वह बाप थे मल्हार के। उसे रोक सकते थे ये सब करने से या फिर कहने से?
    “बिजनेस को लेकर वह मेरी एक नहीं सुनता। मेरा बिजनेस उसके आने से ही चल पड़ा और बढ़ा भी है।” प्रभाकर ने अफ़सोस के साथ सर हिला दिया।
    “निर्दयी तुम हो रहे हो। तुम्हारे सामने नानू की मेहनत गिरने की बात हो रही है और तुम जाने की जिद कर रहे हो? मेरा यार बदल गया है। तू ऐसा नहीं था वारिन। तुझे नानू के सेंटिमेंट्स की जरा भी परवाह नहीं रही अब।” क्षितिज ने दिल पर हाथ रख झूठा रोना रोते हुए कहा।
    उसकी नौटंकी देख कर वारिन का जबड़ा कस गया। इसी बिच मल्हार ने कहा “मै बार बार किसी को मौका नहीं देता। ये तुम्हारा लास्ट चांस है और होटल का भी। वह वैसे भी जल्द ही बिक जायेगा।”
    “हम नहीं रह सकते जान यहां एक महिना? वो मेगोट जीना मुश्किल कर देगा ओजल का।” विशंभर ने धीमी आवाज में वारिन से कहा।
    वारिन अपना सर पकड़ चूका था। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। धीरे से उसने नजरे उठा कर ठंडी आँखों से मल्हार को देखा। ये सब उसकी वजह से हो रहा था। आखिर चाहता क्या था ये आदमी उससे? वही मल्हार ने उससे नजरे मिलायी और फिर भौहे उचका दी। एक टेढ़ी मुस्कान उसके होठो पर बन गयी थी।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 12. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 12

    Words: 1901

    Estimated Reading Time: 12 min

    क्षितिज को कोलर से पकड़ कर वारिन खीचते हुए उसे अपने कमरे में ले गया और बिस्तर पर धकेल दिया।
    “उफ्फ्फ! ये क्या कर रहे हो तुम? किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा? तुम मेरी इज्जत पर हाथ डाल रहे हो?” क्षितिज उसे देख दांत दिखाते हुए बोला।
    इसी बिच विशंभर भी कमरे में आया और उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। क्षितिज ने तुरंत ही हाथो को क्रोस कर सिने पर रख लिया। नाटकीय अंदाज में वो बोला “वारिन मै तेरा भाई हु। तू मेरे साथ ऐसे नहीं कर सकता।”
    वारिन एकदम से बिस्तर पर चढ़ कर उसके पेट पर बैठ गया। क्षितिज कराह उठा “तू भरी हो चूका है वारिन। उतर जल्दी! “
    वारिन अपनी जगह से नहीं हिला “एक एक सच्चाई तू ऐसे ही रह कर बोलेगा अब। वर्ना जो तू सोच रहा है ना वो मै ... वो मै विशु से करवाऊंगा।”
    क्षितिज ने सुना तो एकदम से शर्माते हुए मुह ढक लिया “अगर ऐसा है तो मै बिलकुल नहीं बताने वाला तुझे कुछ भी।”
    बिचारा विशंभर अपनी जगह ही लडखडा गया। पहले तो वारिन को सुन कर और फिर क्षितिज का जवाब पाकर।
    “जरा मुझे भी पूछो मै कुछ चाहता हु की नहीं और वारिन, तुमने हां कैसे बोल दिया उस आदमी को? एक महिना बहुत ज्यादा हो जायेगा। हम दोनों ही यहाँ नहीं रुक सकते। या फिर मै वापस चला जाऊ?” विशंभर परेशान होकर बोला।
    “क्यों? आपको क्यों वापस जाना है? अरे रहो यहाँ। मजे करो! मै देता हु ना आपको कम्पनी?” क्षितिज वारिन के बोलने से पहले ही बोल पड़ा।
    वारिन ने एकदम से उसकी कोलर पकड़ ली। उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हुए उसने कहा “पांच साल पहले उस रात के बाद , मतलब मेरे जाने के बाद क्या क्या हुआ था इन डिटेल मुझे जानना है। वर्ना मै तेरे उपर ऐसे पूरी रात भी बैठ सकता हु।”
    कह कर वारिन ने अपना वजन उसके पेट पर डाला तो क्षितिज हाफने लगा “हट , हट जा भाई। बताता हू , बैठ कर बात करते है हम।”
    वारिन नहीं माना तो क्षितिज ने दुबारा कहा “सच बोल रहा हु। सब बताऊंगा, उठ जा।"
    वारिन ने कुछ पल उसे घुरा और उसके उपर से हट गया। दो तिन गहरी सांसे भरने के बाद क्षितिज उठ कर बैठा।
    वारिन ने कहा “मैंने विशु को पता करने बोला था। जितना अब मुझे पता है उस हिसाब से तुम्हारी सो कोल्ड फॅमिली होटल को बेच देना चाहती है। क्युकी उससे उन्हें फायदा नहीं पहुच रहा। शिरीष और श्रेयस अपने पैर अलग बिजनेस में जमा रहे है बहुत अच्छी बात है। बाकी रुतुजा के लिए रिश्ते आ रहे है। दूसरी तरफ मल्हार के बारे में एक सिंगल बात तक नहीं पता चली है। वो तू बता मुझे।”
    “ऑफ़ कोर्स उनके बारे में पता करना सबसे मुश्किल काम है। अगर उनकी बाते यु ही बाहर वाले जानने लगे तो जिस मुकाम पर वह इस समय है उन्हें निचे गिराना आसान नहीं हो जायेगा?” क्षितिज ने आराम से कहा।
    “मुझे किसी की तारीफ नही सुननी। मुद्दे पर आ।” वारिन ने कहा।
    “तुझे लगता है उस रात मल्हार सर ने सबको तेरा प्रोपोजल सुनाने बुलाया था?” क्षितिज ने ये बात वारिन को गौर से देखते हुए बोली। मानो वह जानना चाहता हो की कही वारिन मल्हार को गलत तो नहीं समझता।
    “नहीं! वो क्यों ही बुलाएँगे? वह मेरे लिए बहुत सीनियर्स से लड़े है। मेरी पसंद को अलग रखा जाए तो मै उन्हें एक दोस्त के रूप में भी देखता था। एंड उनकी तरफ से भी शायद ऐसा ही कुछ था।” वारिन ने कंधे उठा कर कहा।
    क्षितिज अब आराम से बैठ चूका था। उसने कहा “मै उस दिन कॉलेज नहीं गया था। लेकिन अगले दिन सुना जरुर की मल्हार सर तुम्हारे जाने के बाद बेहोश हो गए थे। किसी को नहीं पता क्या हुआ था? लेकिन वो शायद दो हप्तो के लिए अस्पताल में रहे। तुम्हारे बारे में उन्हें कुछ नहीं पता था, तुम चले गए हो इस बारे में भी उन्हें नहीं पता था। और इस बिच कुछ ऐसा भी हुआ की उनकी पूरी जिंदगी बदल गयी।”
    वारिन सब कुछ सुन कर हैरान था। साथ में विशंभर भी वह अब आकर उन दोनों के पास बैठ चूका था।
    क्षितिज ने कहा “बात बहुत ज्यादा लम्बी है। इसलिए शोर्ट में बताता हु। प्रभाकर अंकल के तिन बच्चे है .. मतलब थे। मल्हार सबसे छोटे है। बड़ा भाई आय थिंक मल्हार सर दस साल के थे तभी उसकी डेथ हो गयी थी। एक्चुअली उन्होंने खुदको शूट कर लिया था। वजह मुझे नहीं पता। लेकिन इसी वजह से प्रभाकर अंकल और उनकी वाइफ का डिवोर्स हुआ था। बचे हुए बच्चो को अपने साथ लाने की प्रभाकर अंकल ने पूरी कोशिश की। लेकिन उनकी वाइफ की जो फॅमिली है वह बहुत स्ट्रोंग थी। प्रभाकर अंकल केस हार गए और हमेशा के लिए यहाँ शिफ्ट हो गए। मल्हार सर जब अठरा के हुए वह अपनी इच्छा से अपने पिता के पास लौट आए। लेकिन उनकी बहन वही रही अपनी माँ के साथ। जिस रात तुमने उन्हें प्रोपोज किया था उस रात ही उनकी बहन की डेथ हो गयी। उन्होंने भी डिप्रेशन में सुसाइड कर लिया। वजह थी की उससे दो महीने पहले ही उनके पति की डेथ हुई थी।
    एक महीने के प्रज्वल को पीछे छोड़ कर उनकी बहन ने मौत चुन ली। एक तरफ मल्हार सर अस्पताल में थे। दूसरी तरफ उनकी बहन की डेथ हो गई। वह आखिरी बार देख तक नही पाए अपनी बड़ी बहन को।”
    वारिन ने अपनी पीठ को बिस्तर से लगा लिया। जितनी उलझी हुई ये कहानी लग रही थी, अंदर उससे दुगुनी उलझी थी। उसने खाली आंखो से क्षितिज को देखा। और भरी आवाज में कहा “तो प्रज्वल उनका भांजा है? फिर उनके पास कैसे आया ? और निशा मेम यहाँ क्यों है?”
    “मल्हार सर की सिस्टर की शादी निशा मेम के भाई से हुई थी। लेकिन वो दोनों मल्हार की माँ के घर ही रहते थे। अब दोनों पेरेंट्स की डेथ के बाद बच्चा किसके पास जायेगा इसके लिए प्रभाकर अंकल और निशा मेम की फॅमिली दोनों तरफ से केस लड़ा गया, मल्हार सर की माँ के खिलाफ। प्रभाकर सर हार सकते थे लेकिन मल्हार सर कभी अपनी जिंदगी में नहीं हारे। उन्होंने अंत में बच्चा अपने साथ ही लाया। लेकिन निशा मेम की फॅमिली के साथ उनका कॉम्प्रोमाइज हो चूका था। बच्चे का ख्याल रखने के लिए निशा मेम अपनी मर्जी से यहाँ आई थी। मल्हार सर उस समय बस प्रज्वल के बारे में सोच रहे थे जो की बहुत छोटा था। उसे एक मां की जरूरत थी। इसलिए उन्होंने निशा मेम को यहाँ रहने की परमिशन दी।” क्षितिज चुप हुआ तो वारिन हलके से चिल्ला पड़ा। उसका दिमाग घूम रहा था।
    क्षितिज ने कहा “सो , अब सब कुछ क्लियर है राईट?”
    “नहीं! मुझे ये बताओ आखिर मेरे प्रोपोज करने पर उन्हें ऐसा भी क्या हुआ की दो हप्ते तक अस्पताल में रहे? मैंने कोई काला जादू नहीं किया था उन पर?” वारिन अजीब सा चेहरा बना कर बोला।
    क्षितिज अपना सर खुजाने लगा। वह बताने से हिचकिचा रहा था। पर मानो किसी ने उसे पूरी सच्चाई बताने को कहा हो इसलिए वह बोला “दरअसल अस्पताल नहीं , मेंटल असायमल!"
    वारिन एकदम से सुन्न पड़ गया। उसके हाथ पैर फूल गए थे। वही विशंभर का मुह देखने लायक हो गया। उसने तुरंत ही कहा “ओशियन, हम अभी वापस जा रहे है। नो वे! मै तुम्हे किसी ऐसे के साथ बिलकुल नहीं छोड़ सकता जो पागल हो और तुम्हारे कारन दो हप्ते पागलखाने में रहकर आया हो।”
    बिना कुछ कहे ही वारिन सहमती में गर्दन हिलाने लगा। क्षितिज ने गुस्से में वारिन का कोलर पकड़ा “सर क्या हिला रहे हो? तुम्हे सच्चाई जाननी थी मैंने बता दी। उनके कारन तुम्हारी जिंदगी में मैस क्रिएट हुई तो तुम्हारे कारन भी उनकी जिंदगी उलट पलट हो चुकी है। यहाँ रहो और उनकी जिंदगी ठीक करो।”
    “मै क्या कोई कारपेंटर लगता हु तुम्हे उनकी जिंदगी ठीक करने के लिए? या फिर मुझे पागलो का डॉक्टर समझ रखा है? मै नहीं कर सकता उनके साथ डील। क्या पता वह मुझसे जो भी पांच साल पहले हुआ उसके लिए बदला लेना चाहते हो? अरे मेरे साथ कितना बुरा हो चूका है? मै तो बदला लेने किसी के पीछे नहीं पड़ा?” वारिन ने उसका हाथ हटाने की कोशिश करनी चाही। लेकिन क्षितिज ने उसे नहीं छोड़ा। उसने याद दिलाया की “तुम मल्हार सर को यहां रुकने के लिए हां बोल चुके हो याद रखो। तुम वारिन भारद्वाज हो , अपनी बात से पलटना तुम्हारे पुरे खानदान के लिए कलंक की बात होगी। चाहे कुछ भी हो जाये, एक महीने तक तुम कही नहीं जाओगे।”
    “अरे मर गया वारिन। मै ओशियन हु और बातो से पलट जाना मेरे लिए अब ज्यादा मेटर नहीं करता। तुम एक महीने की बात कर रहे हो? मेरी बॉडी को बेसमेंट से ढूंड कर निकालना है तुम्हे?”, वारिन चेहरे पर खौफ लिए बोला “वो आदमी मुझे शुरू से थोडा अजीब ही लगता था। आज पता भी चल गया की पागल है। अरे पागल तो मै हु जो उसे कभी पसंद करता था। उसे स्टॉक किया करता था। क्या होता अगर उन्हें जरा भी शक होता इस बारे में? अकेले में ले जाकर मुझे कही टुकडो में बाट दिया होता तो?”
    “शुरू में ही तुमने उन पर विश्वास दिखाने की बात कही है वारिन भूलो मत अब और तुम कही नहीं जाओगे। डरो मत यार! पांच साल हो गए उस बात को। वह अब बिलकुल ठीक है। फिर कभी उन्हें कोई दौरा नहीं पड़ा।” क्षितिज उसे झकझोरते हुए बोल रहा था।
    वारिन ने कहा “विशु मेरी मदत करो। ये लड़का उसके बाजु वाले घर में रहकर पागल हो चूका है।”
    विशंभर बिना कुछ भी कहे दो पागलो को एक साथ खीचा तानी करते हुए देख रहा था।

    खुदको शांत करके सोचने के लिए वारिन ने पेंट करना शुरू कर दिया था। इसलिए क्षितिज और विशंभर उसे अकेला छोड़ कर बाहर निकल गए। एकदम से क्षितिज रुका और विशंभर का हाथ पकड़ कर वो बोला “प्लीज मै आपसे रिक्वेस्ट करता हु, उसे यहाँ रहने के लिए मना लीजिये?”
    “मुझे ऐसा क्यों करना चाहिए? जिन लोगो के कारन वह मरने के लिए कदम उठा सकता था, क्या भरोसा वो लोग दुबारा उसे मजबूर ना करे?” विशंभर ने रूखे स्वर में कहा।
    “अगर उसे नापसंद करने वाले है तो पसंद करने वाले भी मोजूद है। और बस एक महीने की बात है।” क्षितिज उसे आशा भरी नजरो से देखते हुए बोला।
    “क्या हो जायेगा एक महीने में?” विशंभर ने सवालिया नजरो से उसे देखा।
    “आप उसके ज्यादा करीबी हो। वह अपने भाव छुपाना सिख चूका है। अगर आप उसे अच्छे से समझते है तो क्या मुझे बता सकते हो वह मल्हार सर को लेकर अब क्या फिल करता है?” क्षितिज ने कहा।
    विशंभर ने एक ठंडी साँस छोड़ी। ये बात तो थी की वारिन यहाँ आकर पूरा बदल चूका था। उसकी आँखों में छुपा हुआ अकेलापन गायब हो चूका था। विशंभर ने बिना कुछ भी कहे क्षितिज को देखा तो क्षितिज मुस्कुरा कर बोला “तो फिर आप उन्हें मना लेंगे रहने के लिए?”
    विशंभर ने आंखे घुमा ली “मै एक महीने तक होटल में नहीं रह सकता।”
    “अरे आप हमारे घर आ जाइये। मै आपको अपना कमरा दे दूंगा।” क्षितिज खुश होकर बोला।
    “मुझे इंसानों के बिच रहना है।” विशंभर ने तंज कसते हुए कहा।
    “क्षितिज इनके लिए यही कमरा तैयार करने के लिए बोल देना निचे।” मल्हार उनके पीछे से होकर सिर्फ इतना बोला और सीधे अपने कमरे में निकल गया।
    दोनों लड़के बस उसे जाता हुआ देखते रहे।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 13. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 13

    Words: 1582

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुबह से शाम हो गयी और शाम से रात। वारिन अपने कमरे से बाहर नहीं आया था। इस बिच विशंभर देशमुख निवास में शिफ्ट हो चुका था। क्षितिज ने उसकी पूरी मदत की थी इसमें।
    रात के खाने पर भी जब वारिन नहीं पंहुचा तो मल्हार ने आज फिर उसे बुलाना चाहा। लेकिन तभी निशा ने उसे टोका “तुमने उसे रूल बता दिया है। फिर भी वह नहीं आया इसका साफ मतलब है। य़ा तो वह खाना नहीं चाहता या फिर वेट कर रहा है किसी के बुलाने का?”
    “वह फिर भी यहाँ नया है। आदत लगने में समय लगेगा। मल्हार तुम बुला लाओ।” प्रभाकर ने कहा।
    “शुरुवाती दिनों में मुझे कोई बुलाने नही आता था बाबा जब मै यहाँ शिफ्ट हुई थी?” निशा हलके गुस्से में बोली।
    विशंभर उसे देखते हुए मुह में ही बडबडा दिया “बड़ी आई मेरे ओशियन के साथ खुदको कंपेयर करने वाली?”
    उसने आगे कहा “रहने दीजिये मिस्टर मल्हार। जब तक उसका मन नहीं होगा वह बाहर नही आएगा। जबरदस्ती लाने की कोशिश करोगे तो आपके साथ भी ये होगा।” कहते हुए उसने बालो को माथे से हटा कर दिखाया। पुराना निशान था खरोच का। सबने हैरान होकर उसे देखा तो विशंभर सर हिलाते हुए बोला “बाउल उठा कर मार दी थी। तब से मैने उसे डिस्टर्ब करने की हिम्मत नहीं की।”
    प्रज्वल ने उसके माथे की तरफ अपना हाथ बढ़ाया और उसकी चोट को छुआ “क्या वह गुस्सा भी करते है?”
    “बहुत ज्यादा।” विशंभर ने होठ सिकुड़ कर हां में सर हिलाया। वही मल्हार पलके झपकाते हुए रह गया था। मतलब वारिन ने उसे झूठ नहीं बताया था की वह कुछ उठा कर मारेगा उसको। उसने बिलकुल सच कहा था। अपनी गर्दन सहला कर मल्हार ने खुद से कहा “बचकर रहना होगा।”
    सुबह से वारिन पेंटिंग करने में इतना बीजी हो गया की उसे समय का भी ख्याल नहीं रहा। पेंटिंग पूरी होते ही वह सीधा हुआ और गौर से उस पेंटिंग को देखने लगा। तो क्या हुआ उसकी सारी तस्वीरे भारद्वाज निवास से हटा दी गयी थी? वह ये अपनी और आबासाहेब की बनाई गयी पेंटिंग को उन्हें गिफ्ट कर देगा। उसने बहुत बारीकी से उस पर काम किया था।
    उँगलियों चटका कर उसने पीठ सीधे की तो देखा फर्श , उसके कपडे , हाथ सब गन्दा हो चूका था। सबसे पहले तो वह उठा और पेंटिंग को उठा कर एक कोने में रख दिया। ताकि वह ख़राब ना हो जाये। निचे ओशियन के साइन भी बने हुए थे। आसान नहीं था उसकी पेंटिंग को लेना। वह ऑक्शन में सबसे ऊँचे दामो में बिकती थी।
    कमर पर दोनों हाथ रख फिर उसने चारो तरफ देखा “सबसे पहले सफाई करता हु। वह पागल आया तो फिर बोलेगा , आय हेट मेसी पीपल।”
    उसने जल्दी से एक कपड़ा उठाया और फर्श को पोछने लगा। रंगों के दाग आसानी से जाने नहीं वाले थे। थोडा बहुत पोछ देने के बाद उसने कपड़ा दूसरी तरफ फेका “हट , मै क्यों उसकी इतनी परवाह कर रहा हु? अपनी मर्जी से करूँगा जो भी करना है। हो गयी मेरी सफाई। अब नहा लेता हु।"
    कहते हुए वह मस्ती में चल कर वोशरुम में घुस गया।

    फ्रेश होने के बाद आकर जब उसने समय देखा तो उसका मुह खुल गया। रात के एक बज रहे थे। दो तिन बार पलके झपकाने के बाद वारिन ने अपना हाथ पेट पर रखा “लेकिन मुझे तो भूख लगी थी। अब क्या करू? बाहर से आर्डर नहीं कर सकता, आठ बज कर जमाना हो गया, दुसरे आठ बजने तक मै मर जाऊंगा। अब आखिरी रास्ता है।”
    बहुत ही संभल कर उसने दरवाजा खोला। बाहर कोरिडोर में अँधेरा था। वारिन बिना कोई आवाज किये बाहर निकला और दबे पैरो से नीचे जाने लगा। निचे भी कोई रौशनी नहीं थी। बाहर खिड़कियों के कांच से आ रही हल्की रौशनी में जैसे तैसे वह रास्ता ढूंडते हुए किचन तक पंहुचा। बहुत ही धीरे उसने किचन के अलावा पूरे हॉल में नजर घुमाई और फिर अंदर जाकर फ्रिज पर टूट पड़ा।
    उपर से निचे तक झांक कर उसने देखा और कहा “क्या फायदा इतना बड़ा फ्रिज रखने का जब उसमे एक खाने की चीज नहीं? मल्हार देखमुख यु पागल जेलर ! माना फ़ूड वेस्ट करना अच्छी बात नहीं होती। जितना खाना हो उतना ही बनाना चाहिए। लेकिन यार मेरे जैसा कोई भूखा भी रह सकता है ना? और ये तुम्हारा बच्चा! चॉकलेट , आइसक्रीम नहीं खाता क्या? कुछ भी नहीं है यहाँ। मेरा प्रिंस ये सब ना मिले तो पुरे घर को सर पर उठा लेता है।"
    एक ठंडी साँस छोड़ते हुए उसकी नजर ढक कर रखी कटोरी पर गयी। खाने के लिए कुछ होगा सोच कर वारिन ने उसे उठा कर खोला तो बस चावल बचे हुए थे उसमे। साथ में खाने के लिए कुछ भी नहीं था। इसलिए उसने फ्रिज बंद किया और वही काउंटर से पीठ लगातार कर बैठ गया। चावल देखते हुए वह दुखी आवाज में बोला “क्या दिन आया गए है तेरे ओशियन? खा अब सूखे चावल।”
    हाथ से ही उसने चावल को खाने के लिए उठाना चाहा की तभी किसी ने उसका हाथ पकड लिया।
    वारिन की आँखे एक जगह रुक गयी। मानो कोई चोरी कर रहा हो और अब पकड़ा जा चूका हो ऐसे उसकी शक्ल हो गयी थी। डर से घुट भर कर उसने अपनी बगल में देखा तो मल्हार भावहीन चेहरा लिया वहा पैरो के बल बैठा था। आखिर ये इंसान कब और कैसे आया? उसने वारिन के हाथ से चावल ले लिए। वारिन को इसकी बिलकुल चिंता नहीं थी। वह हडबडा कर दूर सरका और फिर खड़े हो गया। जैसे ही उसने देखा किचन का दरवाजा बंद था उसकी धडकने बढ़ गयी। नजरे अपने आप ही काउंटर पर रखे हुए चाकुओ पर जा रुकी। जो मल्हार के सर के क़ाफ़ी पास थे। वारिन लड़खड़ा कर पीछे वाले काउंटर से टकरा गया और उसने कहा “द.. दरवाजा क्यों बंद किया?”
    मल्हार ने जवाब नहीं दिया और उठ कर खड़े होते हुए चावल की कटोरी काउंटर पर रखी। अगले ही पल उसने एक चाक़ू निकाला तो वारिन ने मुह पर हाथ रख लिया। वह कांप उठा था। तो क्या ये उसका आखिरी सामय था?
    मल्हार पलटा और वारिन सूखे पत्ते सा कांप उठा। मल्हार हाथ में चाकू लेकर उसकी तरफ आने लगा। अब तो पीछे जाने के लिए भी जगह नहीं बची थी। मल्हार उसके बिलकुल करीब आकर खड़ा हुआ। वारिन बार बार अपना सूखता हुआ गला तर करने लगा। उसके होठ मल्हार को रोकने के लिए कुछ कहना चाहते थे। लेकिन आवाज गले से बाहर निकले तब ना?
    तभी मल्हार ने कहा “थोडा हटोगे?”
    “मैंने कुछ नही किया। मुझे मत मारो। मेरी कोई गलती नहीं थी।” वह बिना ये सुने की मल्हार ने क्या कहा बडबडाने लगा।
    “हनन?” मल्हार ने ना समझी से उसे देखा।
    वारिन की सांसे भारी हो चुकी थी। इसी बिच वारिन ने चाकू वाला हाथ उपर उठाया तो वारिन की आंखे फ़ैल गयी। इससे पहले की वह चिल्ला पाता मल्हार ने चाकू की तरफ देखा और फिर दूसरा हाथ आगे बढा कर वारिन को एक तरफ कर दिया।
    वारिन अभी भी सदमे में था। वही मल्हार ने झुक कर काउंटर पर बने एक शेल्फ को बाहर खींचा जहा पहले वारिन खड़ा था। उस शेल्फ दूसरा फ्रिज था। उसमे फल सब्जि रखी हुई थी। एक प्याज , दो हरी मिर्च और एक टमाटर लेकर वह काउंटर की तरफ लौट गया। पैन को गैस पर रख कर उसने मिनट के अंदर ही तीनो चीजो को बड़ी आसानी से काट दिया। फिर पेन में तेल डाल कर उसने गैस को जलाया। उसमे थोड़े से पीनट्स डाले। फिर कटा हुआ प्याज, टमाटर और मिर्ची डाल कर उन्हें अच्छे फ्राई करने लगा। अंत में जरा सी हल्दी डाल कर उसने चावल डाले और उसे मिक्स करते हुए जरा सा रुक कर थोडा सा नमक भी डाल दिया। कुछ रह गया था शायद! सोचते हुए उसने गैस की फ्लेम बंद की और पलटा तो वारिन अभी भी अपनी जगह खड़ा सब कुछ समझने की कोशिश कर रहा था। मल्हार ने एक शब्द से भी कुछ नहीं कहा और फिर से जाकर उस शेल्फ को खोलते हुए हरी धनिया निकाल कर ले गया। उसे काट कर चावल पर डालते हुए उसने अच्छे से सब मिक्स किया और फिर चावल एक प्लेट में निकाले।
    उसमे एक चम्मच डालते हुए वह प्लेट को वारिन के सामने ले आया “पकड़ो।”
    उसने पहला शब्द कहा तो वारिन ने चुपचाप प्लेट ले ली। वह दुबारा निचे बैठने लगा तो मल्हार ने कहा “क्या कर रहे हो? उपर बैठो?”
    “मै ठीक हु यही।” वारिन ने कहा और निचे बैठ गया।
    मल्हार कुछ पल उसे खाते हुए देखते रहा। फिर पलट कर जाते हुए उसने सफाई कर दी। पैन को धोकर रख दिया, ताकि पीछे कोई सबुत ना छूटे। दरवाजा भी उसने इसी वजह से बंद कर दिया था। वर्ना कोई देख लेता की वह अपने ही बनाये रूल्स को तोड़ रहा था तो सब उसका मजाक बना देते।
    अपना काम ख़त्म कर वह हाथ साफ़ करते हुए वारिन के सामने जा बैठा। वारिन अपनी गहरी सोच से बाहर आया और हल्का सा चिहुक उठा। मल्हार को समझने में देर नहीं लगी वारिन ऐसे क्यों कर रहा था? उसने उन चीजो को नजरंदाज करते हुए कहा “कैसा लगा?”
    “हम्म!” वारिन ने छोटा सा जवाब सर हा में हिला कर दिया।
    “हम्म्म?” मल्हार ने उसे गौर से देखा। वह ज्यादा की मांग कर रहा था। वारिन को क्या कहे कुछ समझ नही आ रहा था। अंत में उसने सर झुकाया और दुबारा खाना शुरू किया। वह जानता था मल्हार की नजरे लगातार उस पर बनी हुई थी।





    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे। फॉलो करना बिलकुल भी ना भूले।

  • 14. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 14

    Words: 1693

    Estimated Reading Time: 11 min

    रात का समय था जब वारिन और मल्हार किचन के अंदर मोजूद थे। जहा वारिन निचे ही बैठा मल्हार द्वारा बनाये फ्राइड राइस खा रहा था।
    मल्हार उसके सामने ही दुसरे काउंटर से पीठ लगा कर बैठते हुए उसे लगातार देखे जा रहा था। वारिन मुश्किल से अपना निवाला निगलने की कोशिश कर रहा था। अंत में परेशान होकर वो बोला “बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन बनाया है आपने मिस्टर देशमुख। इसके सामने बड़े बड़े शेफ भी फेल है। अब आपकी तारीफ सुनने की इच्छा पूरी हो गयी हो तो अपनी नजरे हटाने की कृपा कीजिये और आप खुद भी यहाँ से प्रस्थान कर लीजिये। मै अपनी प्लेट धोकर रख दूंगा। थैंक यु सो मच!”
    मल्हार के भाव जैसे पहले थे वैसे ही अभी भी बरक़रार रहे। वारिन ये देख चिढ गया। आखिर चाहता क्या था ये आदमी?
    तभी मल्हार ने अपना हाथ उसकी तरफ बढा दिया तो वारिन चौक गया। उसने जल्दी से अपना सर पीछे किया जो एक आवाज के साथ काउंटर से टकरा गया।
    “ऐश...!” वारिन ने अपने सर पर हाथ लगाकर उसे सहलाया। वही मल्हार ने उसके होठो की तरफ हाथ बढा कर उसके होठ के किनारे लगे चावल को हटा कर कहा “खा नहीं जाऊंगा मै तुम्हे। इतना रिएक्ट क्यू कर रहे हो?”
    और अगले ही पल उसने अपने अंगूठे को मुह से लगा कर वह चावल खा लिया। वारिन ये देख कर सुन्न पड़ गया। मल्हार के होठो पर पहली बार मुस्कान आई, वो भी तिरछी। उसने अपनी आय विंक करते हुए कहा “याद से प्लेट धोकर रख देना। वरना किसी को पता चला तो तुम्हारी खैर नहीं।”
    इतना कह कर वह उठा और वहा से बाहर निकल गया। वारिन कुछ नहीं कह पाया सिवाय उसे जाते हुए देखने के। उसके जाते ही वारिन ने बच्चो की तरह पैर पटके और हलके से चिल्ला पड़ा “ये आदमी पक्का पागल ही है। मुझे संभल कर इस घर में घूमना होगा आगे से। वरना पता चला घुमने के लिए मै बचा ही नहीं हु।”
    जल्दी जल्दी में उसने खाना ख़त्म किया और अपनी प्लेट धोकर वापस रखते हुए तुरंत ही कमरे में भाग गया।

    सुबह का समय था जब पिछले दिन बनाई अपनी पेंटिंग को अच्छे से पैक कर वारिन कमरे से निकल कर निचे आया। नाश्ते का समय कबका गुजर चूका था और आज वह फिर लेट था। उसने देखा तो मल्हार ऑफिस जाने के लिए पूरी तरह तैयार था। कुछ भी कह लो, लडके पर काला रंग हमेशा से जचता था। वारिन सोचते हुए अपनी नजरे मल्हार से हटा ली।
    वारिन को आता हुआ देख कर मल्हार रुक गया था, या फिर वह वारिन का ही इन्तेजार कर रहा था। इसी बिच वारिन के पीछे से विशंभर निकल कर आते हुए उसके साथ चलने लगा। संयोग से उसने भी मल्हार से मिलते रंग का सूट पहना हुआ था।
    मल्हार ने एक ठंडी साँस छोड़ी और वारिन के पहुचते ही कहा “मेरे पास पूरा दिन नही है तुम्हारा मानोरंजन करने के लिए।”
    “तो किसने कहा करो? मै मांग भी नहीं रहा आपका मानोरंजन। वैसे भी मुझे बोरिंग चीजे पसंद नहीं आती।” वारिन ने खुदको मेसी बोले जाने के लिए ये कहकर बदला लिया था।
    मल्हार ठंडी आँखों से उसे देखने लगा। वारिन ने सोचा ये इन्सान यक़ीनन दो चेहरे लेकर घूमता था। कभी कुछ तो कभी कुछ। पिछली रात की ही बात देखि जाये तो उसने रूल तोड़ कर वारिन के लिए खाना बना कर दिया। और तो और ...!
    वारिन का चेहरा याद करके हल्का सर लाल पड गया। इसलिए उसने जल्दी से सर झटका “मै विशु के साथ टैक्सी से आऊंगा। दरअसल मुझे दादू से मिलने जाना है अभी।”
    “तो तुम ये बात पहले नही बता सकते थे? या फिर पहले नहीं मिल सकते थे उनसे? मेरे साथ काम करना है ... एक्चुअली नहीं मेरे अंडर काम करना है तो समय के साथ तैयार रहना सिख लो।”, मल्हार ने उस पर गुस्सा करते हुए कहा “नो मोर एक्सक्यूजिस नाउ! हम अभी होटल जा रहे है।”
    वारिन उसे देखते रह गया, माथे पार ढेर सारे बल लिए।
    दूर खड़े प्रज्वल ने प्रभाकर का हाथ पकडे हुए था। वह बोल गया “ये बाबा ऐसे क्यों कर रहे है वारिन के साथ? अगर वह गुस्सा हो गए और बाबा का भी सर फोड़ दिया तो?”
    “फोड़ना ही चाहिए। तब शायद थोड़ी अकल आए तुम्हारे बाबा में।” प्रभाकर सर हिलाते हुए बोले।
    “अपने ही बेटे के लिए कोई ऐसे कहता है क्या दादू?” प्रज्वल ने तुरंत ही उसे देखा।
    “ए बाबा के चमचे! तेरे बाप का बाप हु मै भूलना मत।” प्रभाकर ने कहा तो प्रज्वल मुह बनाकर रह गया। इसी बिच निशा उनके बगल में आकर खड़ी हो गयी “अभी तक मल्हार ऑफिस नहीं गया?”
    “वह वारिन का इन्तेजार कर रहे थे।” प्रज्वल ने तपाक से जवाब दिया।
    “क्यों?” निशा ना समझी से बोली।
    “क्युकी वारिन, बाबा के साथ काम करने वाले है। अबसे वह साथ साथ ही रहेंगे।” प्रज्वल ने कहा तो वह बात निशा की धडकने बढा गयी।
    “लेकिन क्यों बाबा? और वारिन का मल्हार के साथ काम करने से क्या सम्बन्ध है?” निशा तिलमिला उठी थी।
    प्रभाकर पहले ही मल्हार पर नाराज थे, क्युकी उन्हें पता था वो वारिन को पारेशान करने के लिए सब कर रहा था। इसलिए उनका गुस्सा निशा पर ही निकल गया “क्यों ना ये बात तुम उससे ही जाकर पूछो? और वह तुम्हे बता दे तो मुझे भी आकर बात देना।”
    इतना कह कर प्रभाकर प्रज्वल को अपने साथ ले गए। निशा हाथो की मुट्ठिया बनाकर रह गयी। एकदम से उसका सारा खेल पलट कर मुख्य प्यादा ही उसके हाथ से निकल चूका था।

    कुछ ही समय बाद वारिन, मल्हार और विशंभर भारद्वाज निवास में पहुच चुके थे। हर रोज की तरह घर के सदस्य फिर वहा मोजूद थे। किसी को भी उन तीनो के आने की ख़ुशी नहीं हुई थी।
    लेकिन तभी कही से रघुनाथ ने आकर वारिन को पकड़ लिया “मेरा बेटा , मेरा बेटा घर आ गया आश्विनी। मेरा बेटा घर आ गया।"
    वारिन को शराब की तेज बदबू आ रही थी। उसने अपने हाथ में पकड़ी हुई पेंटिंग को अच्छे से पकड़ लिया ताकि वह गिरे नही। फिर उसने कहा “आप क्या कर रहे है? पीछे हटिए प्लीज?”
    “क्यों? तुम मुझसे अभी भी नाराज हो क्या?” रघुनाथ ने उसे नहीं छोड़ा। वारिन ने एक गहरी साँस भर ली और नजरे घुमाई तो अश्विनी फिर किचन से झाक रही थी। उसकी आँखों के आंसू देख वारिन उस दर्द को महसूस कर पा रहा था जो इतने सालों से वह इस घर में झेल रही थी।
    “रघुनाथ कितनी बार कहना होगा मुझे तुमसे?” आबासाहेब की सख्त आवाज सुनकर रघुनाथ के हाथ वारिन से छुट गए। वह चुपचाप पीछे हटा और सर झुका कर खड़ा हो गया।
    आबासाहेब आगे चले आये। उन्होंने वारिन को देख कर कहा “होटल जा रहे हो?”
    ये सुनकर शिरीष, श्रेयर और श्रीपाद के साथ साथ सरिता और शर्वरी की आंखे भी बड़ी हो गयी। वह सब एक दुसरे का चेहरा देखने लग गए। इसी बिच रुतुजा उपर से ही झाकने लगी तो क्षितिज तैयार होकर निचे आया।
    शर्वरी तुरंत ही आगे आ गयी। क्युकी श्रीपाद की कोई बात तो आबासाहेब के कानो पर पड़ती ही नहीं थी अब।
    “बाबा , क्या है ये सब? होटल क्यों जायेगा ये लड़का?” शर्वारी ने गुस्से में कहा।
    “कान बहुत उपर रहते आपके बुआ? वैसे दादू ने जिक्र भी नहीं किया की मै किस होटल जा रहा हु?” वारिन ने फिर अपने होठो पर एक मुस्कान लिए कहा। जिसे देख कर सबको जलन होने के साथ साथ बहुत ज्यादा गुस्सा भी आता था।
    “तमीज से बात करो लड़के और मै अपने पिता से बात कर रही हु।” शर्वारी आग बगुला हो उठी। जो लड़का उसके सामने नजरे तक नहीं उठाता था वो अब उसकी बातो को काटने लगा था।
    “माफ़ कीजिये, आपने मेरे बारे में दादू से बात की इसलिए मुझे बोलना पड़ा।” वारिन ने कहा
    इसी बिच शिरीष आगे चला आया। उसने व्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा “कुछ लोग कितने ज्यादा दोगले होते है ऩा? इसने तो कहा था इसे कुछ नहीं चाहिए यहाँ। लेकिन देखो प्रोपर्टी देख कर सबके सिंग निकल आते है।”
    “आप तो ऐसे बात कर रहे हो जैसे आपके पिता हरिश्चंद्र और आप उनके सिद्धांत को आगे बढ़ाने वाले वंशज है भाई?”, वारिन ने मजाकिया अंदाज में कह कर उसके कंधे पर बड़ा जोर का मुक्का मार दिया और कहा “मै भाई हु तुम्हारा शिरीष भरद्वाज। जिस चीज पर तुम्हारे बाप का हक है उस पर मेरे बाप का हक भी बाय डिफ़ॉल्ट आ जाता है?”
    शिरीष ने अपने कंधे पर हाथ रख लिया “तुमने मुझे छुआ कैसे?”
    “हाथ से! बिलकुल ऐसे, आप तो मजाक भी नहीं झेल पाते बड़े भाई।” वारिन ने फिर उसके कंधे पर रख कर दिया था। जिसे देख कर मल्हार की आंखे में शिरीष के लिए जहा चिढाने वाले भाव थे, वही विशंभर बिना किसी की पारवाह किये मुस्कुराये जा रहा था। लेकिन उसकी मुस्कान देख भी किसी के होठ अपने आप फ़ैल गए थे। वह क्षितिज था। जिसके पेट पर अचानक ही हल्का सा मुक्का पडा “शर्म कर ले। चार लोग खड़े है यहाँ। क्या कहेंगे वो?”
    “शर्म आप कर लो नानू। ये सब आपके कारण हो रहा है। एलजीबीटी के बारे में इतना जान चुका हु की अब खुदको बाईसेक्सुअल महसूस करने लगा हु।
    और ना ज्यादा दोस्त बनने की जरुरत नहीं मेरा। बूढ़े कही के!” क्षितिज अपना पेट सहला कर उन्हें घूरते हुए बोला।
    “कौन है बुढा? बुढा होगा तेरा बाप , तेरी माँ तेरे बाप का पूरा खानदान!” आबासाहेब ने भी बदले में उसे किसी लड़ाकू दोस्त की तरह घुरा।
    “मेरे खानदान को बाद में याद कर लेना। पहले अपनी बेटी को संभालो, मतलब जवाब दो। वह पूछ रही है आपसे कुछ?” क्षितिज ने आँखे घुमा कर कहा।
    “सब नालायक ही मिले मुझे। बच्चे भी और पोते भी। बस मेरा वारिन एक अच्छा है?” आबासाहेब ने उसे चिढाते हुए कहा।
    “दल बदलू कही के। जब वारिन नहीं था तो मै ही हु जिसे आप अच्छा बोल रहे थे।” क्षितिज उन्हें देख बडबडा दिया।
    लेकिन आबासाहेब ने अब अपना सारा ध्यान सामने कर लिया। गंभीर होकर वह सबको देख रहे थे। फिलहाल तो वह कुछ कहना नहीं चाहते थे। क्युकी बहुत चुप रह लिया था वारिन। अब उसकी बोलने की बारी थी।





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  • 15. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 15

    Words: 1285

    Estimated Reading Time: 8 min

    भारद्वाज निवास, वारिन अपने दादा जी को हाथ से बनाई हुई पेंटिंग भेंट स्वरूप देने पहुंचा था। लेकिन जब दादा जी के मुंह से सबने सुना की वारिन होटल जा रहा था उनसे रहा नही गया। शर्वरी आगे आ गई अपने पिता से सवाल पूछने। उसका साथ देने के लिए शिरीष भी वारिन के सामने खड़ा हो चुका था।
    इस बिच वारिन एकदम से आबासाहेब की तरफ पलट गया "लीजिए दादू, मेरे हाथ खाली कर दीजिए।"
    "ये क्या है?" आबासाहेब के माथे पर बल पड़ गए।
    उन्होंने पेपर से ढकी हुई पेंटिंग लेकर खोली तो उनकी आंखे चमक उठी "अरे वाह, मैने उम्मीद नही की थी तुम इसे मेरे लिए बनाओगे?"
    "आपको पसंद आया यही बहुत है।" वारिन ने कहा।
    शिरीष की मुट्ठियां कस गई। उसने व्यंग से कहा "ऐसा भी क्या खास है इसमें? एक फालतू सी पेंटिंग, जिसे स्कूल जाने वाला बच्चा भी बना सकता है।
    ओह ,आय सो सॉरी! कुछ खरीद कर देने की औकात नही होगी ना तुम्हारी। तभी पेंटिंग गिफ्ट दे दी।"
    उसके कहने पर शर्वरी और श्रेयस हंस पड़े। वारिन को उसकी बात का बुरा बिलकुल नही लगा। लेकिन उसके साथ खड़े लोगो को लगा था।
    विशंभर ने कहा "यू नो व्हाट, तुम अपना सारा बैंक बैलेंस खाली करोगे और वेटिंग लिस्ट में भी शामिल हो जाओगे तो मुश्किल है उसकी एक पेंटिंग भी खरीद सको। तुम जैसे लोगो को औकात दिखाने के लिए यही काफी है की उसकी बनाई गई पेंटिंग तुम्हारे घर मे फ्री आई है।"
    "इट्स फाइन विशु।" वारिन ने उसका बाजू पर हल्के से हाथ मारा। वही शिरीष का चेहरा लाल पड़ चुका था। उसने कहा "हो कौन तुम हनन? कुछ ज्यादा ही नही बोल रहे? जबसे आए हो बहुत सुनाया है तुमने। व्हाट डू यू थिंक, इसकी बकवास पेंटिंग हमारे लिए खजाना मिलने जैसी है?"
    वारिन ने मुंह खोल कर ठंडी सांस छोड़ी। विशंभर को जवाब देने के लिए मना करते हुए वह आबासाहेब की तरफ पलट कर उनके पैर छूते हुए बोला "आशीर्वाद दीजिए दादू! मै हमारे होटल जा रहा हु।"
    जानबूझ कर उसने वह बात जोर से कही। जिसे सुनने के बाद सबके तन बदन में आग लग गई।
    शर्वरी ने तुरंत ही कहा "बाबा, आप ऐसा नही कर सकते। इस लड़के को होटल क्यू भेज रहे है? आखिर क्या हक है इसका वहा? हमारी पहले ही बात हो चुकी थी की ये लड़का इस परिवार का हिस्सा नहीं है। इसलिए इसे प्रॉपर्टी में भी कोई हिस्सा नहीं मिलेगा।"
    आबासाहेब गुस्से में उसकी तरफ देखा और कहा "बात हुई थी? की तुम लोगो ने बस बता दिया था मुझे ये इस घर का हिस्सा नहीं? और रही बात प्रॉपर्टी में हिस्से की तो जितना तुम्हारे बेटे को दिया है उतना वारिन का हमेशा से रहेगा। कोई भी उससे उसका हक नही छीन सकता। मै उसे होटल इसलिए भेज रहा हु ताकि वह होटल को बचा सके। ना की उससे फायदा नही मिल रहा कह कर उसे बेचने के बारे में सोचे।"
    कहते हुए आबासाहेब की नजरे सीधे श्रीपाद पर जाकर रुकी थी। श्रीपाद की पलट कर उन्हे देखने की या कुछ कहने की हिम्मत नही हुई। वह सर झुकाए खड़ा रह गया।
    "हाह, अब ये बचाएगा होटल को ? कैसे दादा जी? जो काम मै नही कर पाया वो ये करेगा?" शिरीष वारिन की तरफ प्वाइंट करते हुए बोला।
    "किसने कहा वो कुछ करेगा? करना तो मुझे है। आखिर कार होटल को मैं खरीद रहा हु?" अब तक चुप बैठे मल्हार ने कहा तो शिरीष का मुंह खुल गया। मल्हार होटल खरीद रहा था मतलब?
    "हा सही सोच रहे हो? जो तुम चाहते थे वह आबासाहेब ने सच कर दिखाया।" मल्हार ने आराम से कहा। उसके होठों पर एक चिढ़ाने वाले मुस्कुराहट थी। शिरीष को गुस्से के साथ साथ जलन भी हुई। क्युकी अगर इस शहर में मल्हार कुछ खरीदना चाहता हो तो दूसरा कोई उस चीज पर नजर भी ना डालता। जलन इस बात से थी की वह आज भी अपना बिजनेस सेट कर रहा था और मल्हार बैठे बैठे उनके होटल को दस बार खरीद सकता था। शिरीष को ये सारी गलती अपने परिवार की लगती थी। खास कर अपने दादा जी की। जो एक ऐसे होटल को बचाना चाह रहे थे जिसके चलने की कोई उम्मीद ही नही बची थी। शिरीष ने बहुत कोशिश करके देख ली थी। लेकिन कोई फायदा नही हुआ। उस होटल के कारण उसने अपनी जिंदगी के चार साल बरबाद कर दिए थे।


    एक अनजान सड़क पर मल्हार की गाड़ी चल रही थी। पसेंजर सीट पर ड्राइवर की बगल में विशंभर बैठा था और पिछली सीट पर मल्हार और क्षितिज के बीच वारिन। ज्यादा जगह ना होने के कारण वारिन चिढ़ कर बोला "तुझे इसी गाड़ी में आने की क्या ज़रूरत थी?"
    "क्युकी वायु प्रदूषण से शहर बेहाल हो रहा है। और पेट्रोल के दाम... वह कितने बढ़ गए है पता नही क्या तुम्हे? अब एक ही जगह जा रहे थे तो दो गाड़िया क्यू ले जानी?" क्षितिज ने दांत दिखा कर कहा।
    "मन कर रहा है तेरे सारे दांत तोड़ दू। सरक उधर।" वारिन ने हल्के गुस्से में कहा।
    "दरवाजे से बाहर गिर जाऊ? और तुम सरको ना उधर? देखो मल्हार सर और तुम्हारे बीच कितनी जगह बची है? थोड़े समय तक कर लो एडजस्ट, काटे थोड़े ना लगे है उनमें जो तुम्हे चुभ जायेंगे?" क्षितिज ने कहा तो वारिन का जबड़ा कस गया।
    तभी एकदम से उसकी कमर पर मल्हार का हाथ आया और उसे अपनी तरफ खीच कर मल्हार ने अनजान बनते हुए कहा "क्षितिज मुझे सबसे पहले तो स्टाफ से मिलना है।"
    "सब आपसे मिलने के लिए तैयार रहेंगे सर।" क्षितिज ने जगह बनने पर आराम से बैठ कर कहा। इस बिच वारिन की सांसे रुकी हुई थी। मल्हार का हाथ अभी भी उसकी कमर से हटा नही दिया। अपना गला तर करते हुए वारिन किसी मूर्ति की तरह सीधे होकर बैठा था। हल्की सी हलचल भी उससे नही हो रही थी। उसे बस इंतजार था कब वो लोग होटल पहुंचे और उसे गाड़ी से उतरने को मिले।
    "न्यूज के हिसाब से होटल में कोई खून हो गया था? तब से ही उसका नाम खराब हुआ है राइट?" विशंभर ने एकदम से कहा तो क्षितिज ने हा में सर हिलाया ।
    वह बोला "लेकिन वो सरासर अफवाह थी। किसी का खून नही हुआ वहा। कितनी बार हमने क्लारिफिकेशन दिया लेकिन वो अफवा बंद होने का नाम ही नही लेती।"
    "शायद किसी ने जानबूझ कर ऐसा किया होगा? होटल को बदनाम करने के लिए? ये काम राइवल्स का हो सकता है ना?" मल्हार ने वारिन की कमर पर धीरे सी अपनी उंगलियों को सरकाना शुरू किया।
    वारिन की आंखे फैल गई। उसका चेहरा लाल पड़ चुका था। आखिर वो क्यू बीच में बैठा होगा सोच कर उसने क्षितिज को घूरा। ये सब इस लड़के के कारण हुआ था।
    वही क्षितिज आराम से बोला "बात करे हमारे राइवल्स की तो एक आप ही हो जिन्हे हम कॉम्पिटिशन दे रहे थे।"
    वारिन का चेहरा मल्हार की तरफ घूम गया। मल्हार उसे ही देख रहा था। उसने कहा "क्या ... तुम ऐसा कहना चाहते हो की वो अफवाह मैने फैलाई?"
    वारिन का मुंह खुल गया "यू!"
    "आह!" अगले ही पल वह हल्के से चिल्ला पड़ा। विशंभर और क्षितिज ने तुरंत उसकी तरफ देखा तो वारिन ने मुंह पर हाथ रख चेहरा झुका लिया "सॉरी!"
    "तुम सॉरी किसलिए बोल रहे हो? और चिल्लाए क्यू आखिर?" मल्हार ने झूठी चिंता करते हुए पूछा। जबकि उसका हाथ अभी भी वारिन की कमर पर था और उसने ही वारिन को चिमटी काटी थी।
    वारिन ने अपना चेहरा ऊपर नही उठाया इसलिए क्षितिज और विशंभर ने अपना ध्यान उससे हटा लिया। वारिन की सांसे और धड़कने दोनो तेज चल रही थी। आखिर क्यों ये आदमी उसे इस तरह परेशान कर रहा था?





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  • 16. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 16

    Words: 2042

    Estimated Reading Time: 13 min

    सुबह का समय था जब मल्हार की गाड़ी शहर के सबसे बड़े और पुराने होटल के अंदर प्रवेश कर गयी। ड्राईवर ने गाडी रोकते ही बाहर आकर मल्हार के लिए दरवाजा खोला। मल्हार ने बाहर उतर कर सबसे पहले अपने ब्लेजर को सही किया और फिर दरवाजे के सामने हाथ किया। बड़ी जोर से वारिन ने उसके हाथ पर मारा और उसे कस कर पकड़ते हुए बाहर आया। क्युकी दूसरी तरफ से क्षितिज उतरने को तैयार ही नहीं था। जब वारिन बाहर आया तब जाकर वो दूसरी तरफ से उतरा।
    वारिन ने मल्हार से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन मल्हार ने उसके हाथ की उंगलियों में अपनी उंगलिया उलझा ली।
    “मिस्टर देशमुख!” वारिन ने अपने हाथ की तरफ इशारा करते हुए कहा।
    “मेरा नाम मल्हार है। अगर तुम मुझे मेरे नाम से बुलाओगे तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी।” मल्हार ने आराम से सामने देखते हुए कहा। जैसे उसे पता ही ना हो की वारिन उससे अपना हाथ छुड़ाना चाहता था।
    इस बिच विशंभर और क्षितिज भी उनकी बगल में आकर खड़े हुए। चारो ने सामने देखा तो गेट से प्रवेश करने पर बीचो बिच ‘होटल नंदिता’ वो लाल रंग का बड़ा सा नाम दिखाई देता था। उसके पीछे ही एक फाउंटेन था और आसपास छोटा सा गार्डन बना हुआ था।
    वारिन का चेहरा भावहीन था। पहले जैसी चमक अब उस होटल में बची नहीं थी। सामने देखते हुए ही वह आगे बढा तो मल्हार के कदम भी हाथ पकडे होने के कारन अपने आप ही उसके साथ चल दिए।
    अचानक ही उनके कदम ठिठक गए जब उनके सामने और बहुत ही करीब से एक गाडी स्पीड से गुजर कर दूसरी तरफ जा रुकी।
    “मदर...!” वारिन को अपनी बात पूरी करने से पहले ही एहसास हुआ की वह किसके साथ खड़ा था। वह बुरी तरह सकपका कर चुप हो गया।
    लेकिन क्षितिज का छोटा सा दिल लगभग मुह से बाहर आने को हुआ था। वह गुस्से चिल्ला पड़ा “अबे ओ अकल के अंधे। गाड़ी चलानी नहीं आती तो चलाते क्यों हो? या फिर निबंध लिखने में पीएचडी कर ली है?”
    इसी बिच उस गाड़ी के दरवाजे खुले। क्षितिज ने भी जब गाडी को गौर से देखा तो उसका जबड़ा कस गया। गाडी से शिरीष और श्रेयस बाहर आए थे। वह सीधे उन लोगो के सामने आकर खड़े हो गए।
    श्रेयस ने व्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा “भूलो मत क्षितिज ये मेहमान ज्यादा समय के लिए हम यहाँ रहने नहीं देने वाले। तुमने गलत पार्टी ज्वाइन कर ली है। कम से कम किसी ऐसे के साथ रहो जो परमानेंट तुम्हारे साथ मोजूद रहे। कभी बूढ़े दादू , कभी पडोसी!”
    “तुम अपनी चिंता क्यों नहीं कर लेते श्रेयस भैया? मेरी मर्जी है मै किसी के साथ भी रहु? और आप कैसे ड्राइव कर रहे थे अभी? अगर यहाँ किसी को लग जाती तो?” क्षितिज तिलमिला कर बोला।
    वारिन के साथ रहने के कारन घर में क्षितिज को भी इन दोनों ने बहुत परेशान किया था शुरू में। लेकिन जबसे क्षितिज ने छोटी छोटी बातो को लेकर शर्वरी से शिकायत लगाना शुरू कर दिया तब जाकर इनकी हरकते बंद हुई थी।
    “किसी को लगी तो नहीं ना? क्यों खामखा चिल्ला रहे हो?”, शिरीष ने मल्हार और वारिन को बारी बारी देखते हुए कहा “सोच रहे होगे की हम यहाँ क्यों आए है?”
    वारिन एकदम से मुस्कुरा पड़ा “सोचने के लिए फ़िलहाल बहुत चीजे है। जिनमे से आप आखिरी पर भी नहीं आओगे। चलो रास्ता खली करो। हमें होटल प्रवेश करना है। पता तो है ही की आप टांग अड़ाने आए हो बिच में। फिर क्यू पूछने लगे हम?”
    शिरीष कुछ कहता उससे पहले ही मल्हार ने उसके ब्लेजर को पकड़ कर उसे एक तरफ धकेल दिया “ओह सो सॉरी! मेरा हाथ लग गया गलती से। अगली बार संभल कर मेरे आस पास खड़े रहना। और हा वारिन, ये टांग अड़ाने बिलकुल नहीं आए। इन्हे तो भेजा गया है।”
    शिरीष हल्का सा लडखडा गया था। संभल कर वह कुछ कहता इससे पहले ही बाकि चारो उसे पूरी तरह नजरंदाज करते हुए आगे चले गए।

    एक बड़े से प्रवेश द्वारा को पार करते हुए सब अंदर गए तो सामने ही वारिन की दादी की एक बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी। जिस पर फूलो की माला चढ़ी हुई थी। वारिन ने पलके झपका दी और झुक कर जमीन से हाथ लगा कर माथे से छू लिया। फिर उसने अपने दोनों तरफ देखा। सीधी रेशा में होटल का पूरा स्टाफ खड़ा था।
    उन्हें और होटल को किसी होटल की तरह नजर ना देख आता देख मल्हार की तरफ से पहला सवाल आया “इनके पास यूनिफार्म नहीं है?”
    “यूनिफार्म स्कुल जाने वाले बच्चो के पास होता है मिस्टर मल्हार देशमुख।” शिरीष जेबों में हाथ डालते हुए आगे आया तो स्टाफ की चढ़ी हुई सांसे साधारण हो गयी।
    वारिन सबको गौर से देख रहा था। तभी शिरीष ने कहा “हमारे घर के मेहमान आए है होटल देखने। जरा इन्हें ठंडा तो पिलाओ कोई?”
    एक आदमी मुह में कुछ चबाते हुए आगे आया और उसने कहा “फ्रिज काम नहीं कर रहा। ठंडा तो नहीं है इसलिए पानी से काम चला लो।”
    वारिन ने हलके से उपर देखा और अपनी गर्दन को दाएं बाये घुमा कर एक गहरी साँस भर ली। उसे गुस्सा आ रहा था , ये देख मल्हार ने चुपचाप उसका हाथ छोड़ दिया। वारिन की नजर कोने में एक दीवार पर गयी। ऐसा लग रहा था किसी ने गुटखा खाकर वहा थूका हो।
    वारिन ने ठंडी आवाज में कहा “कितने गेस्ट ठहरे हुए है होटल में?”
    “लगभग ... सिर्फ एक!” जो आदमी पानी लेकर आया था उसने सोचते हुए जवाब दिया।
    इसी बिच कोई दनदनाते हुए वहा आया और उसने चिल्ला कर कहा “बाथरूम में पानी नहीं आ रहा। ये कैसी सर्विस दे रहे है आप? जितने पैसे बुकिंग के लिए लिए थे उस हिसाब से कुछ भी नहीं मिल रहा। हर दूसरी चीज के लिए मुझे फोन करना पड़ रहा है। अब तो फोन उठाना भी बंद कर दिया है आप लोगो ने? अगर नहीं हो रहा है तो मुझे वैसे बता दो। मै कोई और होटल देख लूँगा।”
    “अरे सर आप गुस्सा क्यों होते हो? जाओ रूम में वापस। आपको जो भी परेशानी है मै सुलझाता हु ना।” मुह में गुटखा चबा रहा आदमी बोला।
    गेस्ट ने कुछ पल उसकी तरफ देखा और फिर सर झटकते हुए चला गया। उसके चेहरे से ही लग रहा था वो यही सोच रहा होगा की इस होटल में आकर ही गलती कर दी।
    वारिन ने पलट कर शिरीष की तरफ देखा तो वो हंस रहा था। वारिन ने सर हिला दिया “वाह बड़े भैया, क्या ही होटल चला रहे हो? इस स्पीड से काम करोगे तो खूब तरक्की करोगे?”
    शिरीष और श्रेयस फिर से हंस पड़े। वारिन का चेहरा सख्त पड़ चूका था। उसने गर्दन घुमा कर उस आदमी की तरफ कदम बढाये जो अभी भी हाथ में पानी के गिलास को लेकर खड़ा था। ट्रे से वारिन ने गिलास उठा कर कहा “नाम क्या है तुम्हारा? और क्या काम करते हो?”
    “यहाँ काम का इन्सान फ़िलहाल मै ही हु साहब। क्युकी बाकी सारे तो काम छोड़ कर चले गए। वैसे मेरा नाम कुसुम है।” वह कुछ ज्यादा ही शर्मा कर बोला।
    “कुसुम! बड़ा प्यारा नाम है।” वारिन के मुह से विशंभर ने जब ये सुना तो उसने अफसोस के साथ सर हिला दिया।
    अगले ही पल वारिन ने कुसुम का मुह उंगलियों में पकड़ा और पानी का ग्लास उसके मुह से लगा दिया। सबकी आंखे बड़ी हो गयी। वही स्टाफ के लोग तुरंत वहा से एक एक कदम पीछे हट गए। कुसुम के हाथ से ट्रे छूट गया। उसने वारिन को दूर हटाने की कोशिश की लेकिन वारिन की पकड़ मजबूत थी।
    “वारिन ... क्या कर रहे हो?” शिरीष चिल्ला दिया और आगे आने को हुआ की मल्हार ने फिर उसे ब्लेजर से पकड़ कर पीछे कर दिया। वह सर्द आवाज में बोला “चुपचाप पीछे ही खड़े रहो वर्ना तुम्हे भी मै पानी पिलाने का काम कर दूंगा।”
    शिरीष ने उसे गुस्से में घुरा तो मल्हार ने कहा “अपने मालिक से ऐसे नजरे नहीं मिलाते बेटा। अगर मुझे बुरा लगा तो तुम्हे वॉचमैन की जगह पर भी रख सकता हु।”
    शिरीष का मुह खुल गया। वह इस होटल में इसलिए पहुचे थे क्युकी श्रीपाद ने उन्हें आबासाहेब के आदेश पर भेजा था। आज से एक महीने तक उन्हें अपना सारा काम छोड़ कर ठीक वारिन की तरह ही मल्हार के अंडर काम करना था। शिरीष गुस्से का घुट पीकर पीछे हट गया।
    दूसरी तरफ वारिन ने कुसुम को पानी पिलाना जारी रखा। जिसके साथ कुसुम के मुह का गुटखा उसके पेट में जाने लगा। एकदम से ही वह खास पड़ा तो वारिन ने उसे छोड़ दिया। घुटनों के बल गिर कर कुसुम उल्टिया निकालने लगा।
    वारिन ने गिलास को दूर फेक कर तेज आवाज में कहा “तुम लोग यहाँ जिस भी पोजीशन में काम कर रहे हो, सबसे पहले तो यहाँ की सफाई शुरू करो। कही भी मुझे धुल का एक कण भी नजर आया, या फिर कही छोटा सा दाग भी नजर आया तो जीभ से साफ़ करने बोलूँगा सबको। फिट चाहे वो फर्श हो, दीवार हो या फिर टॉयलेट!”
    सारे स्टाफ की सांसे अटक गयी और उन्होंने शिरिष की तरफ देखा। शिरीष क्या ही कर सकता था इसमे?
    वारिन ने आगे कहा “मेरा मुह मत देखते रहो। काम पर लगो जल्दी।”
    इतना सुनना था की सब वहा से ऐसे भागे जैसे कोई भुत पीछे पड़ गया हो। वारिन ने फिर निचे बैठ कर खांस रहे कुसुम को देखा “और तुम मिस्टर काम के इन्सान! अगर अगली बार मुझे तुम्हारे मुह में कुछ भी दिखा ना तो इस बार साधारण पानी पिलाया था, अगली बार मिर्च वाला पानी होगा।”
    कुसुम ने आंखे बड़ी कर ली और चुपचाप हां में सर हिला दिया।
    वारिन सीधे क्षितिज की तरफ पलटा “क्या ये सब हमेशा से यहाँ चलता आ रहा है?”
    “हमेशा से नहीं, जब से आधे से ज्यादा स्टाफ ने पेमेंट ना मिलने पर नोकरी छोड़ी है तब से और कुछ लोग इस बात को बढ़ावा भी दे रहे है। ताकि बचे हुए लोग भी काम छोड़ कर चले जाये।” क्षितिज ने तिरछी नजरो से शिरीष और श्रेयस को देखते हुए कहा।
    वारिन ने ठंडी साँस छोड़ी “तुम सभी रूम्स का इंस्पेक्शन करवाओ। कहा क्या दिक्कत है देखो और जल्द से जल्द उसे ठीक करवाओ। साथ ही स्टाफ की जरुरत है इसकी जाहिरात करवाओ , जल्द से जल्द!”
    क्षितिज परेशानी से बोला “लेकिन हमारे पास फण्ड बिलकुल नहीं है?”
    “तो ये इन्वेस्टर क्या सिर्फ मुझे नोकर बनाने के लिए लेकर आए है?” वारिन ने मल्हार की तरफ इशारा किया तो उसे सुन कर क्षितिज और मल्हार दोनों चिहुक उठे। वारिन सच में बहुत ज्यादा गुस्से में था इस समय।
    मल्हार ने तुरंत ही कहा “रचित वापस आ चूका है। वह कुछ समय में पहुच जायेगा। तुम कोटेशन निकाल कर उसे दो , वह सब संभल लेगा।”’
    क्षितिज ने चुपचाप सर हां में हिलाया तो वारिन बचे हुए अपने भाइयो की तरफ पलटा “और आप दोनों .. खड़े मत रहो मेरे सर पर । सब लोग अपना काम ठीक से कर रहे है या नहीं ये आपको ही देखना है। आखिर कार मालिक है ना आप इस होटल के?”
    शिरीष और श्रेयस ने अपनी तरफ ऊँगली की और एक साथ ही कहा “हम?”
    “हां तुम लोग! मालिक बनना आसान नहीं होता मेरे प्यारे भाइयो। दादू और पापा दोनो ही किसी काम को करने से पहले खुदकी तरफ उंगली नही करते थे आपकी तरह। इसलिए अब काम पर लगो। जितना मेहनती राजा, उतनी मेहनती उसकी प्रजा! अगर आपकी प्रजा से कोई भी गलती होती है तो मै सवाल आपसे ही पूछूँगा।” वारिन ने ठंडी आवाज में कहा।
    “तुम होते कौन हो हमें ये सब बताने वाले ?” शिरीष गुस्से में बोला।
    इससे पहले की वारिन कुछ कहता मल्हार उसकी तरफ पलटा और एक टेढ़ी मुस्कान के साथ उसने धीमी आवाज में अपनी तरफ ऊँगली करते हुए कहा “तुम्हारे मालिक का मालिक!”
    शिरीष और श्रेयस के चेहरे देखने लायक रह गए। इसी बिच वारिन उन पर भी खड़े रहने के लिए चिल्ला दिया तो वह दोनों जल्दी से भागे। क्षितिज भी जाने लगा लेकिन उसने फिर विशंभर को भी अपने साथ खीच लिया। बचा हुआ वारिन काफी समय बाद इतना गुस्सा करने की वजह से बुरी तरह हाफ रहा था। गहरी सांसे भर कर वह खुदको शांत करने की कोशिश करने लगा।





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  • 17. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 17

    Words: 1601

    Estimated Reading Time: 10 min

    होटल नंदिता , सुबह का समय था जब चारो तरफ भगदड़ मची हुई थी। वारिन के सौपे हुए सबसे पहले सफाई के काम को जल्द से जल्द किया जा रहा था। फिर भी वारिन जानता था की आज का दिन सफाई में ही चला जाने वाला था। आखिर इतना बडा होटल था और उंगलियों पर गिनने जितने लोग।
    इसी बिच वारिन और मल्हार होटल के पुल एरिया में पहुचे जो पीछे की तरफ बना हुआ था। वारिन ने जब देखा पुल में काफी गन्दगी थी तो उसका गुस्सा शांत होने की जगह फिर से बढ़ गया “आखिर ओर क्या क्या देखना बाकी रह गया है यहाँ?”
    मल्हार ने हिचकिचाते हुए उसके हाथ को छुआ “तुम शांत क्यों नहीं हो जाते? डू यु वांट सम वाटर? ऑर एनीथिंग एल्स?”
    वारिन ने उसे घूरा और उसका हाथ अपने हाथ से हटा दिया “मै ठीक हु।”
    “तो फिर बैठ जाओ।” मल्हार ने उसे बेंच की तरफ इशारा करते हुए कहा। वारिन ने उसकी ये बात मान ली और बेंच पर जाकर बैठ गया। मल्हार भी उसके काफी करीब होकर बैठा तो वारिन ने आंखे सिकुड़ कर उसे देखा। उससे रहा नहीं गया और पिछली रात को लेकर अब तक बदले हुए मल्हार के बर्ताव को लेकर उसने सवाल पूछा “आखिर आप क्या करने की कोशिश कर रहे है?”
    “मैंने क्या किया ?” मल्हार ने बेंच कर पसरते हुए वारिन के पीछे बेंच पर हाथ रख दिया। उसकी करीबी पर वारिन को गर्मी का एहसास हो रहा था।
    सामने देखते हुए वारिन ने कहा “ज्यादा अनजान बनने की जरुरत नहीं। कल रात , फिर गाड़ी में! आप जानबूझ कर मुझे परेशान कर रहे है ना?”
    मल्हार के होठो पर एक टेढ़ी मुस्कान आ गयी। वारिन के कान के करीब चेहरा ले जाकर वो बोला “तुम्हे ऐसा लगता है?”
    वारिन सिहर उठा। उसने दूर सरकने की कोशिश की तो मल्हार ने अपना हाथ बेझिजक उसके कंधे पर रखा “इतना डर क्यों रहे हो तुम मुझसे? मै क्या कोई पागल हु जो तुम्हे बेसमेंट में बंद करके हर तरह से टॉर्चर करके मार दूंगा?”
    वारिन का गला सुख गया। किसी मूर्ति की तरह वह बैठा रह गया। उसके माथे पर पसीने की बुँदे छलक आई थी। यु तो वारिन आराम से किसी से लड़ सकता था , लेकिन इस इन्सान के सामने उसके हाथ पैर ठन्डे पड़ जाते थे।
    उसका चेहरा देख कर मल्हार को हंसी भी आने लगी थी। ज्यादा समय तक वह खुदको रोक नहीं पाया और जोर से हंस पड़ा। वारिन उसकी हंसी पर भी चौक गया था की अचानक इसे क्या हो गया?
    मल्हार हँसते हुए पूरा झुक गया था। उसने मुश्किल से कहा “तुम आज भी बिलकुल वैसे ही हो... डरपोक!”
    वारिन का मुह फुल गया “कौन है डरपोक? कब था मै डरपोक?”
    मल्हार सीधा हुआ और अपनी हंसी रोक कर उसने बात बदलते हुए वारिन का गाल खीच लिया “तुम खुश हो ना?”
    वारिन को उसके सवाल का मतलब समझ नहीं आया। लेकिन उसने हां में सर हिला कर बताया “हां! मै बहुत खुश हु।”
    “मै चाहता हु तुम खुश रहो।”, मल्हार ने पलके झपका कर आगे की बात अपने मन में कही “मेरे साथ, या फिर मेरे बिना।”
    “अगर आप मुझे मुझे खुश देखना चाहते है तो क्यों खामखा रोके रखा है?” वारिन मुह बना कर बोला।
    “मेरी ख़ुशी भी तो मेटर करती है?” मल्हार ने आराम से कहा।
    “आपकी ख़ुशी? या राईट ! मुझे परेशान करके ना?” वारिन ने आंखे तरेर कर कहा।
    मल्हार कुछ नही कह पाया। बस उसकी तरफ देखता रह गया। कुछ पल की चुप्पी के बाद वारिन बोला “अगर एक महीने में होटल की हालत में सुधार नहीं हुए तो आप सच में वही करोगे जो पहले कहा था? होटल को गिरा दोगे?”
    मल्हार ने सर हिलाया “ये सब देखने के बाद तुम्हे खुद ही विश्वास नहीं हो रहा की एक महीने में चीजे ठीक भी हो सकती है ? बोलो मेरे तो पैसे लग रहे है, मुझे विश्वास कर लेना चाहिए?”
    वारिन बेचारगी से बोला “मै अपनी पूरी कोशिश करूँगा। लेकिन अंत में फिर भी कुछ नहीं हो पाया तो? और आखिर कितने परसेंट तक सुधार चाहिए होगा आपको?”
    “मुझे नाइंटी नाइन परसेंट सुधार चाहिए। तभी होटल का मालिकाना हक तुम्हारे पास रह पाएगा।” मल्हार ने लापरवाही से कहा।
    “ऐसा एकदम से एक महीने में होना संभव ही नहीं है?” वारिन ने कहा।
    “फाइन! अगर अंत में मुझे जो चाहिए वह नहीं हुआ तो होटल बचाने के लिए तुम मुझसे शादी कर सकते हो। फिर दहेज़ के तौर पर मै तुम्हे होटल दे दूंगा।” मल्हार के होठो पर एक शैतानी मुस्कान खेल गयी थी।
    वारिन का मुह खुल गया “मल्हार आप मजाक कर रहे है? कुछ कहने की भी लिमिट होती है?”
    “मै मजाक नहीं कर रहा। मेरी कही हर एक बात अंत में सच साबित होगी। अगर तुम्हे कुछ चाहिए तो कुछ देना भी पड़ेगा। चीजे ऐसे ही काम करती है इस दुनिया में।” मल्हार ने आराम से कहा। उसने वारिन को हैरान परेशान छोड़ दिया था। वारिन को ये सुनकर गुस्सा आना चाहिए था। पर न जाने क्यों वह शर्म से लाल हो उठा था।
    इसी बिच उसके पेट से गुडगुड की आवाज सुनाई दी। वारिन ने जल्दी से चेहरा फेर कर आंखे मीच ली। वही मल्हार हलके से हंस दिया।

    प्रज्वल को पढाने आए ट्यूटर के लिए निशा ने थोडा बहुत नाश्ता पहुचाया और फिर उन्हें हॉल में अकेला छोड़ते हुए अपने कमरे में लौट आई। हर रोज ही प्रज्वल को एक ट्यूटर आकर थोडा बहुत पढाता करता था। न जाने मल्हार को ऐसा कौन सा डर था की वह एक मिनट के लिए भी प्रज्वल को अपनी आँखों से ओझल नहीं करता था। या तो वो या फिर प्रभाकर उसके पास दोनों में से कोई न कोई हमेशा मोजूद रहता था।
    कमरे का दरवाजा अच्छे से बंद कर निशा ने किसी को फोन मिला दिया।

    होटल के किचन में खड़े होकर शिरीष सबसे सफाई करा रहा था। मगर खुद मुह को ढक कर एकदम दूर खड़ा था। तभी उसका फोन बजने लगा। उसने देखा तो निशा कॉल कर रही थी। बिना देरी के उसने फ़ोन उठा कर कहा “बोलो क्या हुआ?”
    “वारिन मल्हार के साथ काम करने वाला है।” निशा ने कहा।
    “तुम्हारे मल्हार की तो!”, गुस्से में दांत पिसते हुए शिरीष बोला “सिर्फ वारिन ही नहीं मै और मेरा भाई भी उस मल्हार के अंडर काम करने वाले है।”
    “व्हाट?” निशा की हैरानी भरी आवाज आई।
    “न जाने किस दुनिया में रहती हो तुम। एक कम भी नहीं होता तुमसे। अरे तुम्हारी जगह हमारी रुतुजा होती तो अब तक मल्हार उसके आगे पीछे दुम हिलाता हुआ घूम रहा होता।" शिरीष निशा पर भड़कते हुए बोला।
    “शिरीष जबान संभल कर बात करो तुम। नोकर नहीं हु मै तुम्हारी हर बात सुन लेने के लिए।” निशा भी भड़कते हुए बोली।
    “झूठ क्या कहा मैंने? तुम सच में किसी काम की नहीं हो। सिर्फ तुम्हारे कारन हमें इस मल्हार का नोकर बनना पड रहा है आज।”, शिरीष ने सारा दोष निशा पर डालते हुए कहा “अगर तुमने अपना काम सही से किया होता, तुम मल्हार को संभाल सकती थी तो आज ये वारिन यहाँ इतने समय तक ना रुक पाता। अब बात करना बंद करो और सोचना शुरू की वारिन का आगे क्या करना है। मै और श्रेयस उस बूढ़े के कारन यहाँ बुरी तरह फंस चुके है।”
    निशा ने उसकी पूरी बात सुन ली और बिना जवाब दिए ही फोन काट दिया। शिरीष ने बंद फोन को देख जमीन पर पैर मारा। इस लड़की के भी अलग ही नखरे थे।
    इसी बिच मल्हार की आवाज वहा गूंज उठी “सफाई पूरी हुई की नहीं मिस्टर शिरीष भारद्वाज ?”
    और उसने आकर एक काउंटर पर ऊँगली फिरा कर देखि। वह काउंटर अब पहले के मुकाबले काफी चमक रहा था। वहा सफाई कर रहे लोग एकदम से पीछे हट कर खड़े हो गए। वारिन भी आगे आया और उसने हर तरफ घूम कर उस बड़े से किचन का जायजा लिया। सब कुछ तो ठीक ही लग रहा था।
    वारिन ने कहा “अब यहाँ तारीफ सुनने के लिए खड़े हो? बाकि जगह का काम कौन करेगा मेरा बाप?”
    शिरीष गुस्से का घुट पीकर खड़ा रह गया। वही वारिन ने आगे कहा “बड़े भाई , इनसे स्विमिंग पुल भी साफ़ करवा लो लगे हाथ।”
    शिरीष ने एक शब्द भी नहीं कहा और उसे एक नजर घूरते हुए वहा से बाहर निकल गया। उसके पीछे ही वे सभी लोग चले गए। वारिन उसी दिशा में देख रहा था जब मल्हार की आवाज उसके कानो में पड़ी “क्या खाओगे?”
    उसने नाइफ हवा में उछाल कर चोपिंग बोर्ड पर मार दिया था। जो की सीधा खड़ा रह गया।
    वारिन उसकी तरफ पलट कर हैरानी से बोला “आपने खाना बनाना सिखा हुआ है?”
    “मेरा बाबा अपने जमाने के बहुत अच्छे शेफ हुआ करते थी वो बात अलग है की अब उन्हें अपने पोते के आगे कुछ नजर नहीं आता। उनसे ही थोड़ी बहुत चीजे सिख ली थी।” मल्हार ने कह कर आस पास चीजे ढूंढना शुरू कर दिया।
    वारिन ने सर हिलाया “मै कुछ भी खा लूँगा।”
    “कुछ भी?”, मल्हार ने एकदम से दो करेले निकाल कर चोपिंग बोर्ड पर रखे तो वारिन चिल्ला पड़ा “नो नो .. ये नहीं! कुछ भी मतलब ये छोड़ कर।”
    मल्हार हलके से मुस्कुरा दिया। फिर कुछ आलू निकाल कर उबालने डाल दिए। तब जाकर वारिन शांत हो पाया।     






    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे। वैसे कल के भाग पर बड़ा ठंडा रिस्पॉन्स आया। क्यू भई? पार्ट लॉक था इसलिए? लेकिन आज तो खुल गया होगा? अच्छा ! इग्नोर किया जा रहा है कहानी को?😑
    सोच रहे होंगे कुछ चार पांच पार्ट्स जम जाए फिर एक साथ पढ़ लेंगे? बता रही हु फिर मैं भी चार चार दिन पार्ट्स नही डालूंगी। फॉलो तो करते नही, कमसे कम समीक्षा तो दिया करो?

  • 18. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 18

    Words: 1424

    Estimated Reading Time: 9 min

    होटल नंदिता,

    सुबह का समय था जब किचन में वारिन और मल्हार डेरा जमा कर कर बैठे हुए थे। मल्हार ने वारिन के लिए आलू के पराठे बना रहा था। और जब तो उसका काम जारी था वारिन बार बार किसी बच्चे की तरह उसके आस पास घूम कर सब कुछ देखे जा रहा था। भूख से उसका बुरा हाल था। कब एक बार मल्हार बना दे और वो खा पाए ऐसा उसे लग रहा था।
    उससे भी ज्यादा पागल वो उस खुशबु से हो रहा था। उसके मुह में पानी आ रहा था। मल्हार की नजरे अपने काम के साथ साथ उसकी हरकतों पर भी थी और चाह कर भी वह खुदको मुस्कुराने से रोक नही पा रहा था। जल्दी से उसने एक पराठा बना कर प्लेट में डाल कर वारिन के सामने किया।
    वारिन आस पास देखने लगा तो मल्हार ने कहा “क्या हुआ? कुछ और भी चाहिए?”
    “आचार! उसके बिना कैसे खाऊंगा?” वारिन की नजरे अभी भी यहाँ वहा घूम रही थी। जल्द ही उसे आचार का जार दिखा तो उसने लपक कर जार को उठाया और आचार अपनी प्लेट में निकाल लिया।
    उसने आस पास बैठने के लिए जगह ढूंढनी चाही तो मल्हार ने पैर से ही काउंटर के निचे सरकाया हुआ स्टूल निकाल कर वारिन की तरफ सरका दिया।
    वारिन मुस्कुरा कर उस पर बैठा और अपना खाना शुरू किया। अभी उसने निवाला अपने मुह में डाला भी नहीं था की किसी की आवाज आई “वाह्ह खुशबु तो बहुत अच्छी आ रही है बॉस। आखिर क्या बनाया है आपने?”
    वारिन और मल्हार ने एक साथ उस दिशा में देखा। कुछ समय लगा वारिन को उस शख्स को पहचान लेने में और उसने कहा “रचित?”
    “अरे वाह तुम तो हमें आज भी पहचान लेते हो?” कहते हुए मल्हार की ही उम्र का एक लड़का किचन में प्रवेश कर गया। वारिन खड़ा होने लगा क्युकी रचित कभी उसका सीनियर रह चूका था। उसने जल्दी से कहा “अरे अरे मालिक, आप कहा अब हमारे लिए उठेंगे? आप तो हमें खड़ा रखने की पोजिशन में पहुंच चुके है।”
    एक नजर मल्हार पर डालते हुए उसने वो बात शरारत से कही थी।
    वारिन को उसकी बात समझ नहीं आई। वही मल्हार ने आंखे घुमा कर कहा “बैठे रहो और इसकी किसी बकवास पर ध्यान देने की जरुरत नहीं।”
    “बकवास?", धीरे से कह कर उसने सर हिला दिया। फिर वो मल्हार से बोला "गुड मोर्निंग बॉस। सुबह सुबह आपके खाने की खुशबु से नाक तृप्त हो गया। जरा पेट को भी तृप्त करने के बारे में सोचिये? एक और हमारे लिए भी बना दीजिये?”
    “नहीं बना सकता।” मल्हार ने कंधे झटक कर कहा।
    “अच्छा?”, रचित ने एक भौह उठा कर कुछ पल उसे देखा और एकदम से वारिन की तरफ बढ़ गया “वारिन यार बड़ी भूख लगी है। तुम शेयर कर लोगे मेरे साथ। है ना?”
    मल्हार की आंखे छोटी हो गयी। वही वारिन ने हां में सर हिला दिया। मल्हार तुरंत ही बोला “रुको तुम। बना देता हु मै। वारिन तुम्हे भी चाहिए ना ओर?”
    वारिन ने जल्दी से हां में सर हिलाया तो रचित भी बोला “मुझे भी दो चाहिए।”
    मल्हार ने उसे एक नजर घुर कर देखा और फिर अपने काम में लग गया।

    कुछ ही समय बाद वारिन और रचित साथ बैठे खा रहे थे। वही मल्हार उनके लिए किसी शेफ की तरह बन चूका था। उसे अपनी तरफ देखता पाकर वारिन ने कहा “क्या हुआ मिस्टर देशमुख? आपने आठ बजे नाश्ता नहीं किया क्या? ऐसे क्यों देख रहे हो?”
    मल्हार समझ गया वारिन ने उसे आठ बजे का ताना दिया था। उसने नजरे घुमा कर अपना सामान समेटना शुरू कर दिया।
    “इट्स ओके। कोई और कर देगा ये सफाई का काम।” वारिन ने कहा।
    रचित हलके से हंस पड़ा “ये इन्सान ना बहुत सफाई प्रेमी है। इसे जरा सी गन्दगी भी हजम नहीं होती।”
    वारिन ने सर हिला दिया। उसे अंदाजा तो हो ही चूका था इस बात का।
    मल्हार ने उसकी सुने बिना सारी सफाई कर दी। जो चीज जिस जगह पर थी उस जगह वापस रख दी। तब तक वारिन और रचित अपना नाश्ता पूरा कर चुके थे। रचित ने पेट पर हाथ घुमा कर कहा “वाह भाई! आज तो मजा आ गया। बॉस की डाट ही नहीं बल्कि उनके द्वारा बनाये खाने से भी पेट भर गया।”
    “तेरा हो गया होगा तो अब काम पर लौटेगा? क्षितिज से मिला की सीधे यही आ गया?” मल्हार ने अपने शर्ट की बाजुओ को सही करते हुए बटन लगा दिए।
    “क्षितिज मिले तो सही पहले। है कहा वो? जो मिल गया उसके पास आ गया मै।” रचित ने आराम से कंधे उठा कर कहा।

    क्षितिज एक कमरे में नोटबुक लेकर बैठा हुआ था। वह फोन पर लगे हुए लगातार कुछ लिखे जा रहा था। शायद किसी को उसने काम पर लगाया था होटल के हर एक कमरे की जाँच करके उसे डिफेक्टिव सामान के बारे में बताने के लिए। स्टाफ की पहले से कमी होने के कारन क्षितिज को ये काम खुद ही करना पड रहा था। इसमें उसका पूरा दिन चला जायेगा इसका उसे पूरा अंदाजा था। आखिर कार इतना बड़ा होटल और हजारो की संख्या में कमरे थे वहा।
    उसकी तरफ देखते हुए विशंभर उसी कमरे के बिस्तर पर पसर कर उपर सीलिंग को देखे जा रहा था। वह क्षितिज के साथ आ तो गया लेकिन उसे ये चुप्पी बरदाश्त नहीं रही थी। इससे अच्छा तो वो वारिन को बात बात पर छेड़ लेता था।
    क्षितिज ने एकदम से उसकी तरफ देखा और फ़ोन पर कहा “कुछ समय के लिए खुद ही नोट कर लो और मुझे वो लाकर देना।”
    उसने फ़ोन बंद किया और एक एस्टीमेटेड फिगर निकाल ली की उसे रचित को कितने अमाउंट के बारे में बताना था। फिर अपनी जगह से उठ कर वो बिस्तर के पास खड़े हो गया। विशंभर ने एक नजर उसे देखा और एकदम से उठ कर बोला “कहा सोचा था की काम से छुटकारा मिल गया यहाँ आकर। लेकिन हमारे नसीब में आराम है ही नहीं। लग गया वारिन यहाँ भी काम में।”
    क्षितिज ने बेचारगी से उसकी तरफ देखा। क्युकी उसे तो यहाँ ज्यादा कुछ काम कभी नहीं होता था। लेकिन वहा विशंभर अकेले वारिन का हर काम संभालता था। और वारिन भी तो घंटो तक अपने काम के लिए एक जगह बैठे रह जाता था।
    क्षितिज ने कहा “हमारे कारन हो रहा है ये सब। अगर हम पहले से अपनी चीजो का अच्छे से ध्यान रखते तो आज ये सब ना हो रहा होता।”
    विशंभर ने सर हिलाया “तुम क्यों माफ़ी मांग रहे हो? तुमने थोड़ी ही कुछ किया है? जिसकी गलती है वो मुह उठा कर कुछ भी बोलने लग जाते है। मन करता है एक एक की जबान बाहर खीच लू। समझ क्या रखा है इन लोगो ने मेरे ओशियन को? इनकी औकात भी नहीं है उसके सामने खड़े तक होने की। अपने बाप दादा के पैसे पर उछलते है बस। ओशियन खुदसे बना हुआ है। लेकिन इनकी तरह घमंड नहीं पाल रखा उसने।”
    क्षितिज ने उसके कंधे पर हाथ फिराया “शांत हो जाइये। मै आपका गुस्सा समझता हु। लेकिन फ़िलहाल यही कह सकता हु की वारिन ही हमारे घर का माहोल ठीक कर सकता है।”
    “वो यहाँ कुछ भी ठीक करने नहीं आया है क्षितिज। वो सिर्फ अपने दादू के लिए आया था। तुम लोगो ने उसे इमोशनल ब्लैकमेल करके यहाँ रोक लिया। मुझे ये जरा भी पसंद नहीं आया।” विशंभर ने उसका हाथ अपने कंधे से हटा दिया।
    क्षितिज मायूस होकर बोला “आप मुझ पर नाराज मत हो जाइये। मैंने तो बस वही किया जो मुझे करने के लिए कहा गया था।”
    विशंभर ने एकदम से उसकी तरफ देखा तो आंखे बड़ी करके क्षितिज ने जीभ काट ली। वह तुरंत ही बोला “वो मुझे कुछ याद आ गया है। मै भी कहा आपके साथ बातो में लग गया। कितना सारा काम करना है मुझे।”
    विशंभर खड़ा हुआ और उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खीच लिया। क्षितिज एकदम से उसके सिने से आकर लगा। विशंभर ने उसे अच्छे से पकड़ लिया ताकि वह भाग ना सके। फिर उसने पूछा “किसके कहने पर किया तुमने ये सब?”
    क्षितिज के होठ कांपने लगे। उसे खुद पर ही गुस्सा आया की आखिर क्यों उसने अपना मुह खोला। अगर उसने विशंभर को कुछ भी बता दिया तो उनका सारा भांडा फुट जाता।




    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे। अब से पार्ट्स लेट ही आयेंगे क्युकी रिस्पॉन्स भी तो ठंडा ही मिल रहा है मुझे।
    जैसे हर पार्ट और कहानी के साथ पाठको की एक्सपेक्टेशन लेखकों से बढ़ जाती है ठीक उसी तरह लेखक भी पाठको से कुछ एक्सपेक्ट करता है। उस हिसाब से सपोर्ट ना मिले तो कहानी लिखने का मन नही होता।

  • 19. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 19

    Words: 1574

    Estimated Reading Time: 10 min

    होटल नंदिता ,

    सुबह का समय था जब क्षितिज के मुह से विशंभर ने कुछ ऐसा सुन लिया जो क्षितिज को नहीं बोलना चाहिए था। वह जल्द से जल्द विशंभर से बचकर निकल जाना चाहता था। लेकिन विशंभर ने उसे अच्छे पकड़ लिया।
    क्षितिज का चेहरा रोना सा हो गया। आखिर क्यों उसने अपना मुह खोला उसे समझ नहीं आ रहा था। अगर ना बताता तो विशंभर शायद ही उसे जाने देता और अगर बता देता तो आबासाहेब की लाठी उसकी कमर पर पड़नी तय थी।
    इसी बीच विशंभर सर्द आवाज में बोला “किसके कहने पर और क्या किया है तुमने? आखिर क्या चल रहा है यहाँ पर?”
    “म.. मुझे नहीं पता।” क्षितिज हकलाते हुए बोला।
    विशंभर ने हलके से सर हिलाया और अगले ही पल उसका चेहरा उंगलियों में हलके से दबोच लिया। अपनी गर्दन को टेढ़ी करते हुए उसने डरावनी आवाज में कहा “तुम ना मेरी सिर्फ वही इमेज देख चुके हो जो टेक्सस में है। वहा जाने से पहले मै क्या था ये कोई नहीं जानता। मुझे फिर से वैसा बनने पर मजबूर ना करोगे तभी बेहतर होगा। समझे ना? अभी मुह खोल कर तोते की तरह बोलना शुरू कर दो।”
    क्षितिज का गला सुख गया। विशंभर की किसी बात में कोई झूठ नहीं लग रहा था। वो सोचने लगा की इस सिचुएशन से कैसे बचा जाये। उसकी धडकने काफी ज्यादा बढ़ चुकी थी। दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। इस बिच जो पहला खयाल उसके दिल में आया उसने वो करते हुए विशंभर के गाल पर एक हाथ रखा और आगे बढ़ कर उसके होठो पर अपने होठ रख दिए।
    विशंभर की आंखे फ़ैल गयी। वो अपनी जगह जम गया। ना उसे कुछ समझ आ रहा था, ना ही महसूस हो रहा था। अपने आप ही उसके हाथ क्षितिज पर ढीले पड़ गए। जिसका फायदा उठाते हुए क्षितिज ने अलग होकर कहा “मै ना बहुत समय से आपको स्टॉक कर रहा था। वारिन के अलावा मुझे आपमें भी काफी इंटरेस्ट आ चूका है। आय रियली लाइक यु मिस्टर विशंभर। अगर आपकी जिंदगी में कोई नहीं होगा तो प्लीज मुझे एक मौका दे देना। इससे ज्यादा कोई बात नहीं है।”
    उसने विशंभर के हाथ को अपनी कमर से हटाया तो वह हवा में झूल गया। क्षितिज जल्दी से उससे दूर हुआ और फिर जाकर अपनी नोटबुक उठाते हुए कमरे से बाहर भाग गया।
    विशंभर अभी भी अपनी जगह पर खड़ा सब कुछ समझने की कोशिश कर रहा था।

    कमरे से बाहर आकर क्षितिज तेजी से लिफ्ट की तरफ बढ़ गया। राहत भरी साँस के साथ वो बोला “मरते मरते बचा हु आज। लेकिन कुछ ज्यादा ही घाई नहीं कर दी मैंने वो बोलने में? छोडो यार, उसके अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था सफाई देने का। अब अगली बार से उनसे बचकर रहना होगा। वर्ना फिर से वही सब पूछेंगे वो।”
    इसी बिच वो लिफ्ट के सामने जाकर खड़ा हुआ और उसने बटन प्रेस करना ही चाहा था की किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया। क्षितिज की धडकने फिर से तेज हो गयी। इसी बिच विशंभर की आवाज उसके कान के बहुत करीब सुनाई दी “तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते हो।”
    “म.. मै सच कह रहा हु मिस्टर विशंभर। आय रियली लाइक यु।” क्षितिज हकलाते हुए बोला।
    “मै वो नहीं कह रहा।”, विशंभर का चेहरा लड़के ने पूरा लाल कर दिया था “किसके कहने पर तुमने वारिन को यहाँ रुकने पर मजबूर किया वो जानना है मुझे? इस किस और तुम्हारे कन्फेशन के बारे में हम बाद में डिस्कस करेंगे।”
    क्षितिज ने हल्का सा उपर देखा और गहरी साँस भरते हुए एकदम से विशंभर की तरफ घूम गया। उसने अपने बाहो का घेरा विशंभर के गले में डालते हुए कहा “प्यार ..! प्यार के कहने पर किया। अगर वारिन यहाँ रुक जाता है मतलब आप भी रुकोगे ही? इसमें मेरा फायदा हुआ ना?”
    विशंभर उसकी करीबी से हडबडा गया। उसने जल्दी से क्षितिज को दूर कर दिया और बिना सोचे समझे कहा “ओके ठीक है।”
    वह नजरे चुराने लगा था। ये देख क्षितिज ने दिल पर हाथ रख लम्बी साँस भर ली। इसी बिच लिफ्ट का दरवाजा खुला और रचित की आवाज आई “ले भई! मुझे लगा था लड़का अपना काम कर रहा होगा। लेकिन ये तो आराम से घूम रहा है?”
    क्षितिज ने पहले तो अपना चेहरा ठीक किया और फिर आवाज की दिशा में पलट गया। सामने रचित के अलावा मल्हार और वारिन भी लिफ्ट में मोजूद थे। क्षितिज को हटाते हुए वारिन बाहर निकल कर विशंभर के पास जाकर उसे गौर से देखने लगा।
    “क्या हुआ तुम्हे?” वारिन ने उसका लाल पड़ चूका चेहरा देखते हुए कहा।
    विशंभर ने अपने चेहरे पर हाथ घुमाया “कुछ नहीं। कुछ भी तो नही। मै ठीक हु, बिलकुल ठीक।”
    “आर यु श्योर? क्षितिज ने तुम्हारे साथ कोई मस्ती नहीं की है राईट?” वारिन ने कहा तो विशंभर ने एकदम से क्षितिज की तरफ देखा। इतनी घटिया अगर मस्ती होगी तो विशंभर उससे आज के बाद बात भी करना पसंद ना करता।
    क्षितिज ने बिलकुल गंभीर होकर उसकी आँखों में देखते हुए कहा “मै कोई मस्ती नहीं कर रहा था। मैंने जो कहा वो बिलकुल सच है।”
    “क्या? क्या सच है?” वारिन ने कहा।
    “यही की...!” क्षितिज कहने लगा तो विशंभर की आंखे बड़ी हो गयी। उसने तुरंत ही वारिन का हाथ पकड़ा और अपने साथ एक तरफ ले जाते हुए कहा “कुछ भी नहीं है जान। तुम मेरे साथ आओ।”
    उसके मुह से फिर वारिन के लिए जान सुनकर मल्हार का चेहरा सर्द पड़ गया। रचित और क्षितिज दोनों की गर्दन एक साथ मल्हार की तरफ घूमी और अगले ही पल दोनों मल्हार की बाजुओ को पकड़ कर खड़े हो गए।
    क्षितिज ने कहा “नहीं नहीं मल्हार सर! गुस्सा मत कीजिये। जीने दीजिये उस नादान इन्सान को। अगर आपने उसे कुछ कर दिया तो मेरी लव लाइफ का क्या होगा?”
    “ये भी तो सोच की वो वारिन का दोस्त है। अगर तुमने उसे हर्ट किया तो वारिन तुमसे नाराज हो जायेगा।” रचित ने उसका बाजु सहलाते हुए कहा।
    मल्हार की आंखे ठंडी पड़ गयी थी। बारी बारी उसने दोनों लडको को घुरा और एकदम से उन्हें खुदसे दूर झटक दिया। एक बार फिर उन पर अपनी घूरती नजरे डाल कर वो वारिन और विशंभर के पीछे चला गया।
    रचित ने गहरी साँस भर ली “माना की ये लड़का शांत हो चूका है। लेकिन मुझे अभी भी डर लगता है।”
    “आपने मुझे भी डरा कर रखा हुआ है वो सब बताकर।” क्षितिज ने उस पर गुस्सा करते हुए कहा।
    “मै कैसे भूल जाऊ जो मैंने अपनी आँखों से देखा? इसे देखने के बाद पागलो की परिभाषा बदलने का मन किया था मेरा। ऐसा लग रहा था किसी आत्मा ने वश कर लिया हो इसके शरीरर पर। वो हमर मल्हार था ही नहीं।” रचित ने कह कर अपने माथे से होकर बालो में हाथ घुमा दिया। याद करने भर से उसके माथे पर पसीने की बुँदे उभर आई थी।
    क्षितिज ने कहा “हम उन्हें वारिन से मिलाने की कोशिश तो कर रहे है। लेकिन वारिन को इससे कोई खतरा तो नहीं है ना?”
    “मै बार बार तुम्हे ये नहीं समझा सकता। एक ही बार में समझ जाओ की वारिन को उससे कोई खतरा नहीं। लेकिन अगर कोई वारिन को उससे दूर करना चाहे तो उसे जरुर इससे खतरा है।” रचित ने चेतावनी भरे शब्दों में सामने जा रहे मल्हार को देखते हुए कहा।

    उस कोरिडोर के अंत में बड़ी सी खुली बालकनी थी। जिससे निचे बना हुआ स्विमिंग पुल साफ़ दिखाई दे रहा था। धुप से बचने के लिए शिरीष वहा लगी हुई बेंच पर जाकर बैठा था। जिसके उपर छाया के लिए प्रबंध किया गया था।
    उपर विशंभर के साथ आकर खड़े वारिन ने चिल्ला कर कहा “ओह मिस्टर होटल के मालिक, बैठे क्या हो? आपकी प्रजा धुप में काम कर रही है। जरा सी शर्म आती है आपको?”
    उसकी आवाज सुन कर शिरीष झटके से अपनी जगह खड़ा हुआ और उस छाव से बाहर जाकर आँखों के सामने हाथ लगाते हुए उपर देखा “क्या कहा?”
    “बेवकूफ!” वारिन जोर से चिल्ला दिया तो निचे खड़ा शिरीष गुस्से में कुछ कह रहा था। जिसकी आवाज वारिन तक पहुच भी नहीं रही थी।
    वारिन ने उसे नजरंदाज करते हुए विशंभर से कहा “हमारे पास इतने पैसे नहीं है क्या, बिना मल्हार की मदत के हम होटल को सुधार सके?”
    “ऑफ़ कोर्स है। लेकिन रिस्क क्यों लेना है तुम्हे? जबकि ये लोग तुम्हारा हिस्सा तक यहाँ कंसीडर नहीं करते? लगाने दो मल्हार देशमुख को पैसे। उसके सामने मुह खोलने की इन लोगो की औकात नहीं होगी। लेकिन तुम्हे किसी मक्खी की तरह उड़ा दिया जायेगा काम होने के बाद।” विशंभर ने कहा।
    वारिन को उसकी बात बिलकुल सही लगी। लेकिन वह परेशान होकर बोला “अगर ये सब एक महीने में ठीक नहीं हुआ तो मल्हार सच में इस होटल को गिरा देंगे?”
    “जान वो बिजनेस मेन है। यहाँ पर इतना पैसा लगाकर ऐसे ही जगह गिराएगा क्या? वो बस किसी भी हालत में होटल को अपनी प्रोपर्टी में शामिल कर लेना चाहता है। तुम चिंता मत करो। जब तक मै तुम्हारे साथ हु तुम कभी नहीं हारोगे। वैसे तुम्हारे दादू ने कॉन्ट्रैक्ट बना लिया होगा ना उसके साथ? सारी शर्तो को पढ़ लेना तुम।” विशंभर ने कहा।
    “हां वो दादू ने देख लिया होगा। लेकिन फिर भी मै उनसे पूछ लूँगा।” वारिन ने कहा और आगे कुछ कहने से पहले ही मल्हार को आता हुआ देख वह शांत हो गया।





    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे। कुछ व्यस्तता के कारण पार्ट्स लेट आ रहे है। जल्द ही कोशिश करूंगी रेगुलर लिखने की। तब तक के लिए फॉलो कर दो।😉

  • 20. सेवन शेड्स ऑफ लाइफ - Chapter 20

    Words: 1451

    Estimated Reading Time: 9 min

    होटल नंदिता में पहला दिन ख़त्म कर सभी घर लौटने की होड़ में थे। होटल की सफाई के लिए थोड़े से लोगो के साथ एक दिन में वो काम संभव नहीं था।
    दिन भर शिरीष और श्रेयस को परेशान करके वारिन को काफी अच्छा महसूस हो रहा था। गाड़ी में वो पिछली सिट पर मल्हार के संग बैठा हुआ था। ड्राईवर को छुट्टी देकर क्षितिज ने खुद ड्राइविंग सिट संभल ली थी। उसके पास ही विशंभर था। जिसकी नजरे ना चाहते हुए भी बार बार क्षितिज पर जाकर रूकती। सुबह हुई बात को वो चाह कर भी भूल नहीं पा रहा था। लेकिन पूरे दिन उसे क्षितिज से बात करने का कोई मौका नहीं मिला। शायद वो नजरंदाज कर रहा था विशंभर को।
    गाड़ी में फैली शांति को तोड़ते हुए वारिन ने कहा “क्षितिज कल सफाई वालो को बुला लो। दोनों मालिक के भरोसे रहे तो हो गया काम महीने भर तक। हम आज रात बैठ कर कल के लिए प्लान बनायेंगे। तो डिनर करके मेरे रूम में पहुच जाना।”
    “ओके बॉस।” क्षितिज ने मिरर में उसकी तरफ देखते हुए सर हिला दिया।
    “और हां! आते हुए दादू से कॉन्ट्रैक्ट पेपर की कॉपी भी ले आना।” वारिन ने कहा।
    “क्यों? तुम्हे लग रहा है मै फ्रॉड करूँगा गलत सलत शर्ते डाल कर?” मल्हार ने एकदम से उसके करीब जाकर कान के पास कहा तो आंखे बड़ी करते हुए वारिन सिहर उठा। एक झटके से साथ वो दरवाजे की तरफ सरक कर बैठ गया।
    मल्हार के होठो पर एक टेढ़ी मुस्कान आ गयी। जानबूझ कर वारिन की तरफ सरक कर वो बैठ गया। जबकि दूसरी तरफ आधी सिट खाली पड़ी थी। वारिन की सांसे अटक गयी। आखिर इस इन्सान को बिच बिच में हो क्या जाता था? कभी कुछ तो कभी कुछ!
    वही मल्हार ने कहा “क्षितिज उस कॉन्ट्रैक्ट में एक ओर शर्त एड कर ले क्या? अगर वारिन अपना काम नहीं कर पाया तो होटल बचाने के लिए वो मुझसे शादी कर सकता है। फिर मै होटल उसे दहेज़ में दे दूंगा।”
    क्षितिज ने हैरानी और खुशी के मिले जुले भावों के साथ कहा “वाह मल्हार सर! क्या दिमाग लगाते हो आप। आपको हमारे होटल की कितनी ज्यादा चिंता है ना? खुद ही हमें आईडिया दिए जा रहे हो?”
    वारिन के साथ साथ विशंभर ने भी क्षितिज को घुर कर देखा तो वो सकपका कर चुप हो गया।
    “बस होटल की पड़ी है तुम्हे। बदले में मेरी बलि चढ़ जाये , है ना?” वारिन ने दांत पिस कर कहा।
    इसी बिच मल्हार ने अपना हाथ उसके कंधे पर रख दिया। वारिन ने दूसरी तरफ चेहरा करके आंखे बंद कर ली। उसकी आवाज अब उसके गले में ही फंस चुकी थी।
    क्षितिज ने बडबडा कर कहा "लेकिन इसमें तुम्हे दो फायदे मिलेंगे। होटल भी और ..!"
    वारिन ने मल्हार को हाथ से दूर कर उसी हाथ को आगे ले जाते हुए क्षितिज के सर पर मार दिया "चुपचाप गाड़ी चला तू। वरना नीचे फेक दूंगा यही से।"
    क्षितिज अपना सर सहलाने के चक्कर में गाड़ी की स्टेरिंग को छोड़ चुका था।
    विशंभर ने आंखे बड़ी करते हुए अपना हाथ स्टेरिंग पर रख दिया "तुम क्या कर रहे हो? गाड़ी संभालो।"
    "ओह आपको कितनी चिंता है मेरी?" क्षितिज ने उसकी तरफ प्यार से देखते हुए कहा।
    "उसे तुम्हारी नही हम सबकी चिंता है बेवकूफ।" वारिन दांत पीसते हुए बोला।
    क्षितिज ने मुंह बना लिया "मै बहुत अच्छे से गाड़ी चला लेता हु। बल्कि दौड़ा लेता हु। कभी चलेंगे रेसिंग डेट पर।"
    कहते हुए उसने विशंभर को देख आंख मारी। विशंभर ने आंखे बड़ी कर ली। और अगले ही पल शर्मिंदगी से चेहरा फेर लिया।
    वारिन भी उसकी हरकत देख हैरान था।

    जल्द ही वो लोग देशमुख निवास के अंदर प्रवेश कर गए। क्षितिज उन्हें छोड़ कर भारद्वाज निवास की तरफ निकल गया था।
    जैसे ही वारिन ने घर के अंदर कदम रखा प्रज्वल भागते हुए उसकी तरफ आया और उसने कहा “गुड इवनिंग! आपका दिन कैसा रहा वारिन?”
    “बहुत अच्छा!” वारिन के जवाब देते हुए ही उसे किसी का फोन आया तो उसका ध्यान प्रज्वल से हट कर फ़ोन की तरफ चला गया। एक मुस्कान ने जगह ले ली थी उसके होठो पर।
    “एक्सक्यूज मी।” कहते हुए वो अपने कमरे की तरफ निकल गया। जिसके बाद विशंभर भी प्रज्वल के बाल सहला कर चला गया।
    प्रज्वल के चेहरे पर मायूसी आ चुकी थी। मल्हार ने एकदम से उसे गोद में उठा लिया “क्या हुआ?”
    “मै उनके क्लोज होना चाहता हु। लेकिन या तो वो अपने काम में बीजी होते है या फिर अपने फ़ोन में। मेरे लिए उनके पास समय ही नहीं है। बताओ कैसे हमारी बोन्डिंग अच्छी बनेगी? कैसे मैं उन्हे जाने से रोक पाऊंगा?” प्रज्वल ने कहा। उसका चेहरा उतर गया था।
    “अभी उसे आए हुए समय ही कितना हुआ है? बाबा भी तो अभी कोशिश कर रहे है उनके साथ बोन्डिंग बनाने की। थोडा इन्तेजार करो। जैसे ही उन्हें यहाँ रहने की आदत होने लगेगी। अपने आप वो सबके साथ समय बिताएंगे।” मल्हार ने उसे समझाते हुए कहा और अपने साथ कमरे में ले गया।
    मल्हार ने जैसे ही उसे बिस्तर पर रखा। प्रज्वल ने जल्दी से जाकर तकिये के निचे से एक तस्वीर निकाल ली। फिर उसने मल्हार को देख कर पूछा “आपको ज्यादा सुन्दर कौन लगता है बाबा ? ये वाले वारिन या पहले वाले?”
    “क्या बदल जायेगा? है तो वो वारिन ही ना?” मल्हार ने कंधे उठा कर कहा।
    “पहले वो सुन्दर थे, बिलकुल प्रिंसेस की तरह। अब हैंडसम हो गए है। मुझे वो अब ज्यादा कूल लगते है।” प्रज्वल ने चहक कर कहा।
    मल्हार ने अफ़सोस के साथ सर हिला दिया “अगर तुम मेरी जगह होते तो तुम्हे पहले वाला वारिन ज्यादा पसंद आता। पता है वो बहुत स्वीट और इनोसेंट था पहले।”
    “अब क्या बदल गया? है तो वारिन ही ना?” प्रज्वल ने उसे देखते हुए टेढ़ी मुस्कान के साथ कहा तो मल्हार आंखे छोटी करके उसे देखने लगा।
    “बाप से होशियारी?” कहते हुए मल्हार आगे आया तो प्रज्वल बिस्तर पर खड़े होकर भागने की कोशिश करने लगा। लेकिन मल्हार ने जल्द ही उसे पकड़ कर बिस्तर पर पटका और गुदगुदी करने लगा। प्रज्वल की खिलिखिलाहट पुरे कमरे में गूंजने लगी।

    कुछ समय आर्य से बात करने के बाद वारिन फ्रेश होने चला गया। जब वो लौटा तो उसकी आंखे बड़ी हो गयी। प्रज्वल एक कपडा और पानी लेकर निचे गन्दा पड़ चूका फर्श साफ़ करने की कोशिश कर रहा था।
    वारिन ने जल्दी से जाकर उसे रोकते हुए कहा “तुम ये क्या कर रहे हो?”
    “आपकी हेल्प कर रहा हु?” प्रज्वल ने कहा।
    “ये तुम्हारा काम नहीं है। आय एम सो सॉरी मैंने तुम्हारा कमरा इतना गन्दा कर दिया। रहने दो इसे। रंगों के दाग है आसानी से जायेंगे नहीं।” वारिन ने कहा।
    “अरे नहीं! आप मुझे गलत समझ रहे हो। ये कमरा तो अब आपका ही है। कमरा क्या पूरा घर आपका है। वो तो मै इसलिए कर रहा था क्युकी,  अगर बाबा कभी इस कमरे में आ जाये तो घर को सर पर उठा लेंगे। उन्हें ना गन्दगी .. नहीं नहीं छोटी सी धुल भी पसंद नहीं।” प्रज्वल ने कहा।
    “तुम्हारे बाबा भी थोड़े से अजीब ही है। खैर , मै इसे साफ़ कर दूंगा। तुम्हे मेरे लिए परेशान होने की जरुरत नहीं।” वारिन ने मुस्कुराते हुए उसके हाथ से कपडा लेकर कहा।
    प्रज्वल ने कुछ पल उसकी तरफ देखा। फिर धीरे से वो बोला “क्या आप बीजी है?”
    “क्यों?” वारिन ने खुद वो दाग साफ़ करने की कोशिश की।
    “मेरे साथ कोई गेम खेलना पसंद करोगे? पीछे बास्केट बॉल कोर्ट बना है।” प्रज्वल ने आशा भरी नजरो से उसकी तरफ देखते हुए पूछा।
    वारिन ने जब उसका चेहरा देखा तो वो मना नहीं कर पाया। उसने हलके से हां में सर हिला दिया।

    घुटने तक आती काली शोर्ट और उसी रंग की टी शर्ट पहने वारिन घर के पीछे बने बास्केट बॉल कोर्ट में पंहुचा। उसके साथ प्रज्वल भी था। जिसके हाथ में एक बोल थी।
    “ग्रेट! ये किसने बनाया ... मल्हार सर ने?” वारिन ने एक छोटी सी मुस्कान के साथ कहा। मल्हार कोलेज का सबसे बेस्ट बास्केट बॉल प्लेयर रह चूका था। सिर्फ वही नही वो हर गेम में बेहतर था। वारिन तो पूरा समय उसे प्रैक्टिस करते हुए अपना समय बिताया करता था।
    “हां, बाबा ने बनाया है इसे। उन्हें बास्केट बॉल खेलना पसंद है। अभी भी समय मिलने पर वो खेलते है।”, प्रज्वल ने कह कर एकदम से बॉल को वारिन की तरफ उछाल कर कहा “क्या आपने कभी खेला है?”
    वारिन ने बोल बिच में ही पकड़ ली। एक टेढ़ी मुस्कान के साथ उसने कहा “कोशिश करके देखते है।”
    दोनो ही लड़के एक दूसरे के सामने हो गए और वारिन ने उसे बॉल पास करना शुरू कर दिया। प्रज्वल अभी बच्चा था। लेकिन लगता था की मल्हार ने उसे अभी से ट्रेन करना शुरू कर दिया था।





    आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।