"कौन हो तुम और मेरे कमरे में क्या कर रही हो?" कशिश ने सामने खड़ी लड़की से पूछा। "प्लीज मेरी मदद करो। मेरी बच्ची को बचा लो। मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, कशिश," वह लड़की बोली। "तुम मेरा नाम कैसे जानती हो? कौन हो तुम? और कौन-सी बच्ची? मैं किसी बच्चे को नहीं... "कौन हो तुम और मेरे कमरे में क्या कर रही हो?" कशिश ने सामने खड़ी लड़की से पूछा। "प्लीज मेरी मदद करो। मेरी बच्ची को बचा लो। मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, कशिश," वह लड़की बोली। "तुम मेरा नाम कैसे जानती हो? कौन हो तुम? और कौन-सी बच्ची? मैं किसी बच्चे को नहीं जानती," कशिश ने हैरान होकर कहा। "चौराहे के मंदिर पर मेरी बच्ची तुम्हारा इंतज़ार कर रही है," वह लड़की रोते हुए बोली। "बचा लो, कशिश... मेरी बच्ची को बचा लो।" अचानक, कशिश अपने बिस्तर से उठकर बैठ गई और लंबी-लंबी साँसें लेते हुए खुद से बोली, "यह कैसा सपना था? वह लड़की कौन थी?" "यार, कशिश, तू ज़्यादा सोच रही है। जल्दी से फालतू बातें दिमाग से निकाल, नहीं तो ऑफिस के लिए लेट हो जाएगी," कशिश खुद से बोलते हुए वॉशरूम में चली गई।
Kashish
Heroine
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यह कहानी मेरी कल्पना पर आधारित है। कृपया नकल न करें 🙏🏻🙏🏻
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अध्याय एक — रहस्य का दरवाज़ा
"कौन हो तुम... और मेरे कमरे में क्या कर रही हो?"
कशिश ने घबराई नज़रों से सामने खड़ी लड़की को देखा।
लड़की की आँखों में आँसू थे, चेहरा भय और बेबसी से भरा हुआ था।
"प्लीज़ मेरी मदद करो... मेरी बच्ची को बचा लो। मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, कशिश," वह गिड़गिड़ाई।
कशिश का चेहरा सख्त हो गया, पर उसकी आवाज़ में डर झलक रहा था।
"तुम मेरा नाम कैसे जानती हो? कौन हो तुम? और कौन-सी बच्ची? मैं किसी को नहीं जानती!"
लड़की की आँखों से आँसू बहते जा रहे थे। उसने काँपते हुए कहा,
"चौराहे के मंदिर पर मेरी बच्ची तुम्हारा इंतज़ार कर रही है।"
"उसे बचा लो... प्लीज़ उसे बचा लो, कशिश।"
अगले ही पल—कशिश हड़बड़ाकर उठ बैठी। उसका शरीर पसीने से भीगा हुआ था, साँसें तेज़ चल रही थीं।
"ये... ये सपना था?" उसने खुद से कहा। "वो लड़की कौन थी? और मेरा नाम... उसे कैसे पता था?"
वह कुछ पल बिस्तर पर बैठी रही, फिर खुद को झाड़ते हुए बोली,
"यार कशिश, तू पागल हो रही है... ज़्यादा सोचने लगी है। इन बेतुकी बातों को दिमाग़ से निकाल नहीं तो ऑफिस के लिए फिर लेट हो जाएगी।"
वह बाथरूम में चली गई, खुद को फ्रेश किया और रोज़ की तरह घर के छोटे-मोटे काम निपटाकर ऑफिस के लिए निकल गई।
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अध्याय दो — सपना या सच?
पूरा दिन मीटिंग, ईमेल और रिपोर्ट्स में बीत गया। शाम होने तक बारिश ने दिल्ली की सड़कों को डुबो दिया था। हर तरफ जाम और हॉर्न की आवाज़ें गूंज रही थीं।
कशिश अपनी कार में बैठी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी कि अचानक चौराहे के मंदिर पर उसकी नज़र पड़ी।
वहीं... वही जगह... वही मंदिर, जो सपने में देखा था।
"क्या यह वही मंदिर है? क्या वो सपना... कोई इशारा था?"
उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
गाड़ी को साइड में रोका और छतरी उठाकर मंदिर की ओर बढ़ गई। बारिश की बूँदें उसके चेहरे को भिगो रही थीं, पर उसका ध्यान कहीं और था।
अचानक मंदिर की सीढ़ियों के पास से एक मासूम सी रुलाई सुनाई दी।
"ये आवाज़...!" कशिश ठिठक गई।
"क्या ये सपना... सच में...?"
वह आवाज़ की दिशा में दौड़ी। सामने मंदिर के किनारे, एक टोकरी में एक नवजात बच्ची लिपटी पड़ी थी—भूखी, डरी हुई और भीगी हुई।
कशिश ने बिना देर किए उसे उठा लिया। जैसे ही बच्ची उसकी गोद में आई, वह चुप हो गई। उसकी आँखें बंद थीं, पर चेहरा किसी सुकून की तलाश में जैसे थम गया हो।
"हे भगवान... ये वही बच्ची है न, जिसकी बात उस लड़की ने की थी!"
कशिश की आँखों से अपने आप आँसू बहने लगे।
उसने इधर-उधर देखा, आवाज़ लगाई, "कोई है? ये बच्ची यहाँ कैसे आई? इसका कोई है?"
पर वहाँ कोई नहीं था।
तभी... मंदिर के कोने में एक छाया उभरी।
वही लड़की... वही चेहरा... वही आँसू...
"तुम... तुम वही हो, जो मेरे सपने में आई थी!"
कशिश ने डरते हुए पूछा, "कौन हो तुम?"
लड़की कुछ पल शांत रही, फिर कहा,
"मेरा नाम शिवानी है। तुम्हारी गोद में जो बच्ची है, वह मेरी बेटी है।"
"अगर ये तुम्हारी बेटी है, तो तुमने इसे यूँ अकेले क्यों छोड़ दिया? लो, इसे गोद में लो,"
कशिश ने बच्ची को उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा।
शिवानी ने पीछे हटते हुए आँसुओं में कहा,
"नहीं ले सकती..."
"क्यों नहीं ले सकती?" कशिश ने घबराकर पूछा।
शिवानी की आवाज़ कांप उठी—
"क्योंकि मैं मर चुकी हूँ..."
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कशिश की रूह काँप गई।
"ये... ये मज़ाक नहीं है ना?"
उसकी आवाज़ जैसे गले में अटक गई।
शिवानी ने सिर झुका लिया, "मैं सच कह रही हूँ, कशिश। अब सिर्फ तुम ही मेरी मदद कर सकती हो। मेरी बच्ची को बचा लो... और मुझे न्याय दिला दो।"
कशिश स्तब्ध खड़ी रही। मंदिर की घंटियाँ बज रही थीं, बारिश अब भी बरस रही थी, और उसकी गोद में एक मासूम ज़िंदगी धीरे-धीरे सिहरती साँसें ले रही थी।
...जारी रहेगा...
"मैं सच कह रही हूँ, कशिश। मैं मर चुकी हूँ। अब सिर्फ तुम ही मेरी मदद कर सकती हो - मेरे कातिलों तक पहुँचने और मेरी बच्ची की रक्षा करने में," शिवानी बोली।
शिवानी की बात सुनकर कशिश हैरान रह गई।
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"अब तो मैंने तुम्हें सब बता दिया, ना? तो मदद करोगी ना मेरी?" शिवानी उम्मीद भरी नजरों से कशिश को देखते हुए बोली।
"मैं तैयार हूँ तुम्हारी मदद करने के लिए और तुम्हारी प्यारी सी बेटी की माँ बनने के लिए," कशिश मुस्कुराते हुए कहती है।
उसके बाद कशिश बच्ची को लेकर अपने घर की ओर निकल जाती है। तभी रास्ते में उसे एक मॉल दिखता है, तो वह अपनी कार रोक देती है।
"क्या हुआ? कार क्यों रोक दी?" पीछे से अचानक आवाज़ आती है।
अचानक आई आवाज़ को सुनकर कशिश डर जाती है। पर जब पीछे देखती है, तो शिवानी को खड़ा पाती है।
"तुम कहाँ से आ गई? और ऐसे अचानक मत बोला करो, यार, डर जाती हूँ," कशिश अपने साँसों पर काबू करते हुए कहती है।
शिवानी हँसते हुए बोलती है, "अब आदत डाल लो, क्योंकि अब मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगी, जब तक तुम मुझे मेरे कातिल तक नहीं पहुँचा देती। अब यह बताओ, यहाँ क्यों रुकी हो?"
"मेरे घर में तो बच्चा था नहीं, तो हमारी बेटी के लिए ज़रूरी सामान तो लेना ही पड़ेगा," कशिश बच्ची को लेकर मॉल की तरफ चल देती है।
मॉल से बच्चों का ज़रूरी सामान लेकर कशिश अपने घर की ओर निकल जाती है।
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जंगल में एक हवेली के अंदर एक कमरा है, जहाँ सारा सामान काले रंग का है। वहीं एक आदमी गुस्से में किसी से बात कर रहा है।
"तुम लोगों को मैं किस चीज़ के पैसे देता हूँ? अभी तक मेरी बेटी के बारे में कुछ भी पता नहीं कर पाए!" गुस्से से उसकी आँखें लाल हो रखी थीं।
"बॉस, हम ढूंढ रहे हैं, पर कहीं भी वह बच्ची नहीं मिली," बॉडीगार्ड घबराते हुए बोलता है।
"अगर कल तक मेरी बच्ची नहीं मिली, तो मैं तुम लोगों को हमेशा के लिए इस दुनिया से दूर कर दूँगा," गुस्से में उस आदमी ने अपने बॉडीगार्ड को कहा और फोन काट दिया।
गुस्से में उसने कमरे का सामान इधर-उधर फेंकना शुरू कर दिया। तभी पीछे से एक आदमी आकर बोला, "राजवीर, इन सामानों पर गुस्सा निकालने से कुछ नहीं होगा। शांति से इस समस्या का हल निकालो। किसी भी तरह हमें गुड़िया को ढूँढना होगा। वह हमारे शिवानी की आखिरी निशानी है।" यह कहकर वह आदमी कमरे से बाहर चला गया।
राजवीर उस कमरे में लगी तस्वीर को ध्यान से देखते हुए बोला, "मैंने तुझको खो दिया, जिसे जान से भी ज्यादा प्यार करता था। तुझे एक खरोच भी बर्दाश्त नहीं थी, और आज तू मुझसे इतनी दूर चली गई।" आँसुओं से भरी आँखों से वह तस्वीर को देखता है।
अपने आँसू पोछते हुए वह कहता है, "मैं वादा करता हूँ, शिवानी, मैं कहीं से भी अपनी बेटी को लेकर आऊँगा और तुम्हारे कातिल का ऐसा हाल करूँगा कि वह दोबारा इस दुनिया में आने से भी डरेंगे।"
गुस्से में यह कहते हुए राजवीर वॉशरूम में चला जाता है और ठंडे पानी का शॉवर लेने लगता है। बाहर बारिश हो रही थी, पर अंदर राजवीर ठाकुर खुद से लड़ रहा था कि वह अपनी जान से प्यारी बेटी को बचा नहीं पाया।
थोड़ी देर शॉवर लेने के बाद राजवीर कपड़े बदलकर अपने स्टडी रूम में चला जाता है और ऑफिस का काम करने लगता है।
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कशिश बच्ची को घर लेकर आती है। उसका घर हमेशा की तरह आज भी खाली था, क्योंकि कुछ कारणों की वजह से वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रहती।
पहले वह अपने कपड़े बदलती है, फिर बच्ची के कपड़े बदलती है। बच्ची बहुत रो रही थी और चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी। कशिश को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। बच्ची को रोता देख उसकी आँखों में भी आँसू आ जाते हैं।
"शायद उसे भूख लगी है," तभी पीछे से आवाज़ आती है।
continue........
बच्ची बहुत रो रही थी चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी कशिश को समझ नहीं आ रहा था क्या करे और बच्ची को रोता देख उसके आँखों में भी आँसू आ जाते हैं
कशिश उसको भूख लगी है तभी पीछे से आवाज़ आती है......
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जब कशिश पीछे देखती है तो वहाँ शिवानी का साया होती हैं।..... मैं अभी इसके लिये दूध लेकर आती हूँ इतना बोल के कशिश बच्ची को पालने में रखती है और किचेन में दूध बनाने चली जाती हैं।
थोड़ी देर बाद दूध लेकर आती है और बच्ची को अपने गोद में लेकर प्यार से दूध पिलाती है।....... कशिश का ऐसे दूध पिलाते देखकर शिवानी आँखों में आँसू आ जाते हैं।
दूध पिलाते हुए कशिश का ध्यान शिवानी पर जाता है उसको देखकर कशिश बोली शिवानी क्या हुआ तुम रो क्यों रही हो।
देखो ना कशिश कितनी बेकार किस्मत है मेरी बच्ची भूख से रो रही थी और मैन उसको दूध भी नहीं पिला सकती क्यों हुआ मेरे साथ ऐसा इतना बोल कर शिवानी आत्मा फूट-फूट कर रोने लगती है।
इसमें तो मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाऊँगी लेकिन तुमसे वादा करती हूँ तुम्हारी बच्ची को इतना प्यार दूंगी की कभी उसको तुम्हारी कमी नहीं होगी।
कशिश बच्चे को दूध पिलाने के बाद सुला देती है और खुद भी खाना खाकर सो जाती हैं।
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अगली सुबह जब राजवीर की आँखे खुलती है सबसे पहले अपने बॉडीगार्ड को कॉल् करता हैं क्या खबर हैं........ बॉस कोई पता नहीं चला।
आज के बाद अपनी शकल मत दिखाना मुझे नहीं तो तुम सब को जाने से मार दूंगा किसी काम के नहीं हो तुम लोग एक बच्ची नहीं ढूंढ पा रहे हो राजवीर गुस्से से अपने बॉडीगार्ड को धमकाता और फोन काट देता है।
फिर वाशरूम में जाता हैं और तैयार होकर बिना नाश्ता किये अपने ऑफिस चला जाता है।
राजवीर की गाड़ी 30 मंजिला बिल्डिंग के आगे रूकती है जिस पर बड़े-बड़े अक्षर में लिख था RT कॉर्पोरेशन....
राजवीर जैसे ही ऑफिस के अंदर जाता है उसके सारे इम्ˈप्लॉई उसको देख कर खड़े हो जाते हैं। और गुड मॉर्निंग विष करते हैं बट वह साबको इगनोर कर के आपने केबिन में चला जाता हैं।
सभी इम्ˈप्लॉई आपस में बात करते हुए बोली लागत हैं आज बॉस बहुत गुस्से में है सब ध्यान से काम करो नहीं तो किसी एक को तो ऑफिस से बाहर जान होना पक्का हैं आज.....
राजवीर अपने कैबिन में काम कर रहा था तभी उसके कैबिन का डोर नोक होता हैं।...... कम इन
राजवीर के बोलते ही एक लड़की अंदर आती हैं , बहुत शॉर्ट ड्रेस पहनी थी जिसका नेक्क दीप था जिससे उसका क्लीवेज़ साफ नज़र आ रहा था और फेस पर बहुत मकेउप कर रखा था।
सर इस फाइल पर आपके सिग्नेचर चहिये और सिग्नेचर के बहाने राजवीर पर झुक जाती है और सेड्यूस करना चहती हो राजवीर गुस्से से बोला।
लड़की की हरकत देख कर राजवीर को बहुत गुस्स आता हैं और वह लडकी जो जोर से धक्का देता है जिसे लड़की नीचे गिर जाती हैं ।
और गुस्से से बोला तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरेे पास आनेे की...... जोर से चिला कर बॉडीगार्ड को बुलाता हैं ले जाओ इस लड़की को आज के बाद यह मेरे ऑफिस के आस पास भी नही दीखे....
राजवीर का गुस्सा देख कर बॉडीगार्ड जल्दी से लड़की को लेकर जाने लगते हैं...... बॉस प्लिज़ माफ़ कर दीजिये आगे से एसी गलती नही होगी लड़की बोलती हैं पर राजवीर को कोई फर्क नहीं पड़ता......
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कशिश जब उठती हैं तो देखती है की उसकी प्यारी बेटी उठ कर खेल रही थी अपनी नीली आखों को बड़ी कर के अपनी कशिश माँ को देख रही थी।
कशिश प्यार से उसके सर पर चूम लेती हैं और बोलती बेबी मम्मी को अपका नाम किया रखे
और फिर नाम सोचने लगती हैं......
To be continue.....
कशिश जब सुबह उठती है, तो देखती है कि उसकी प्यारी बेटी जाग चुकी है और खेल रही है। अपनी नीली आँखों को बड़ी करके वह कशिश को देख रही थी।
कशिश प्यार से उसके सिर पर चूमती है और कहती है, "बेबी, मम्मी तुम्हारा नाम क्या रखे?" फिर नाम सोचने लगती है।
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फिर नाम सोचने लगती हैं..."तो मेरी प्यारी सी बेबी का नाम होगा प्रियांशी..."प्रियांशी भी नाम सुनकर अपनी नीली आँखें बड़ी कर हँसने लगती है।
अपनी बेटी को हँसते देख कशिश मुस्कुरा देती है। लेकिन पीहू (प्रियांशी) की नीली आँखें देखकर कशिश को किसी की याद आ जाती है और उसकी आँखें हल्की नम हो जाती हैं।
"नाम तो बहुत प्यार भरा रखा तुमने हमारी बेटी का। और तुम्हें पता है, इसके पापा ने भी इसका यही नाम रखा था। देखो, तुमने भी इसका नाम प्रियांशी रखा," शिवानी की साया मुस्कुराते हुए कहती है।
"तुम दिन में भी दिखती हो? मतलब, कहते हैं ना, आत्मा सिर्फ रात को आती है?" कशिश शिवानी को देखकर हैरानी से बोली।
कशिश की बात सुनकर शिवानी मुस्कुराते हुए बोली, "बस इतना समझ लो, मैं एक अच्छी आत्मा हूँ, तो मैं कभी भी आ सकती हूँ। यह सब छोड़ो, तुम्हारी आँखें क्यों नम हैं?"
"अरे, कुछ नहीं... आँखों में कुछ चला गया था। अच्छा, तुम पीहू के पास बैठो। मैं फ्रेश होकर आती हूँ।" इतना कहकर कशिश वाशरूम में चली जाती है और दरवाजे से लगकर रोने लगती है।
"काश! हम साथ होते तो आज हमारी भी पीहू जैसी बच्ची होती... पीहू की बिल्कुल तुम्हारे जैसी नीली आँखें..." इतना कहकर कशिश फूट-फूट कर रोने लगती है। कुछ समय बाद वह अपने आँसू पोंछती है और खुद को सँभालती है।
बाहर आकर देखती है कि शिवानी पीहू से बात कर रही होती है और पीहू भी उसकी बातें सुनकर मुस्कुरा रही होती है, जैसे उसे सब समझ आ रहा हो।
कशिश दोनों के पास आती है और कहती है, "चलो, अब बातें हो गईं तो पीहू को रेडी करना है।" वह पीहू को गोद में उठाकर वाशरूम में ले जाती है। शिवानी की साया मुस्कुराते हुए गायब हो जाती है।
इसके बाद कशिश पीहू को तैयार करती है और अपने ऑफिस में तीन दिन की लीव अप्लिकेशन ईमेल कर देती है। फिर वह पीहू को दूध बनाकर पिलाती है। (पीहू अभी पाँच महीने की बच्ची है।) दूध पीने के बाद पीहू सो जाती है और कशिश घर के कामों में लग जाती है।
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ऑफिस में
राजवीर काम कर रहा था, तभी उसके डोर पर नॉक होता है...
"कम इन," राजवीर कहता है।
राजवीर सिर उठाकर उस आदमी की तरफ देखता है और कहता है, "क्या ख़बर मिली है?"
"बॉस, बच्ची को आखिरी बार मंदिर में देखा गया था। वहाँ से उसे एक लड़की ले जाती हुई दिखी। अभी उस लड़की के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है।"
"मुझे भी दिखाओ वह वीडियो," राजवीर ने कहा।
"जी, बॉस।"
वीडियो चालू होता है, और राजवीर बड़े ध्यान से वीडियो देख रहा था।
"लड़की पर जूम करो। ऐसा क्यों लग रहा है, जैसे मैं इस लड़की को जानता हूँ?"
"पता लगाओ, कौन है यह लड़की। जल्द से जल्द मुझे मेरी बच्ची चाहिए," राजवीर ने गुस्से में कहा।
राजवीर की बात सुनकर वह आदमी चला गया। राजवीर लड़की के बारे में सोचने लगा।
"क्या सच में यह वही थी? पर वह यहाँ कैसे हो सकती है?" राजवीर यही सोच रहा था, तभी उसका असिस्टेंट अमित अंदर आता है।
"बॉस, यह नई डिज़ाइन उस डिज़ाइनर की है जिसने पिछले महीने ही हमारे ऑफिस को जॉइन किया है।"
राजवीर डिज़ाइन देखता है और कहता है, "डिज़ाइन काफी अच्छी है और मिस्टर खन्ना को भी पसंद आएगी। इस डिज़ाइनर को मेरे केबिन में बुलाओ।"
"सॉरी, बॉस। मिस कशिश तीन दिन की लीव पर हैं।"
"ओके। तुम जाओ और मिस्टर खन्ना के साथ मीटिंग की तैयारी करो।"
"जी, बॉस।" अमित कैबिन से बाहर चला जाता है।
राजवीर अपने केबिन की काँच की खिड़की से पूरे शहर को देख रहा था।
वह खुद से बोला, "अगर तुम सच में हो, तो मुझे दूर रहना होगा। नहीं तो मुझे भी नहीं पता मैं क्या कर बैठूँगा, तुम जैसी धोखेबाज के साथ।"राजवीर की आँखें गुस्से से लाल हो रही थीं।
तभी अमित अंदर आता है।
"बॉस, मिस्टर खन्ना आपका इंतज़ार कर रहे हैं मीटिंग रूम में।"
To be continue.......
राजवीर अपने केबिन की काँच की खिड़की से, जहाँ से पूरा शहर दिख रहा था, खुद से बोला,
"अगर तुम सच में हो, तो मुझे दूर रहना होगा। नहीं तो मुझे भी नहीं पता, मैं तुम्हारे जैसी धोखेबाज के साथ क्या करूँगा।"
राजवीर की आँखें गुस्से से लाल हो चुकी थीं।
तभी अमित अंदर आता है।"बॉस, मिस्टर खन्ना आपका इंतज़ार कर रहे हैं मीटिंग रूम में।"
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मीटिंग रूम में
राजवीर अमित के साथ मीटिंग रूम पहुँचता है, जहाँ मिस्टर खन्ना उनका इंतज़ार कर रहे थे।
"हैलो, मिस्टर ठाकुर," मिस्टर खन्ना मुस्कुराते हुए बोले। राजवीर ने भी मिस्टर खन्ना को वेलकम किया।
"मीटिंग शुरू करें, मिस्टर खन्ना," राजवीर ने कहा।"यस, ऑफ कोर्स, मिस्टर राजवीर।"
"अमित, प्रेजेंटेशन शुरू करो।""जी, बॉस।" अमित ने प्रेजेंटेशन शुरू किया।

एक के बाद एक डिज़ाइन दिखाए गए। प्रेजेंटेशन खत्म होने के बाद सभी ने मिस्टर खन्ना की तरफ देखा।
"नो डाउट, मिस्टर ठाकुर, आपकी डिज़ाइन्स बहुत अच्छी हैं। मैं डील साइन करने के लिए तैयार हूँ।"
मिस्टर खन्ना की बात सुनकर राजवीर ने अमित को इशारा किया। अमित ने तुरंत कुछ पेपर्स मिस्टर खन्ना के सामने रख दिए।
तभी मिस्टर खन्ना बोले, "क्या मैं आपकी डिज़ाइनर से मिल सकता हूँ? मुझे कुछ डिज़ाइन्स के बारे में डिस्कस करना है।"
"सॉरी, मिस्टर खन्ना। फिलहाल वह डिज़ाइनर लीव पर है," राजवीर ने जवाब दिया।
थोड़ी देर और डिस्कशन के बाद मीटिंग खत्म हो गई। मिस्टर खन्ना ऑफिस से चले गए, और राजवीर अपने दूसरे कामों में लग गया।
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कशिश और पीहू
कशिश अपना सारा काम निपटाने के बाद बैठकर बेबी के बारे में रिसर्च कर रही थी, जैसे बेबी को कितने महीने बाद कुछ खिलाया जा सकता है, बॉडी केयर प्रोडक्ट्स, वैक्सीन और अन्य चीज़ें।
उसके पास बैठी शिवानी की साया कशिश की इन हरकतों को देखकर हँस रही थी।
"क्या हुआ? तुम हँस क्यों रही हो?" कशिश ने पूछा।
"तुम यह सब क्या कर रही हो?" शिवानी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"पहली बार माँ बनी हूँ। इसलिए बेबी के बारे में सर्च कर रही हूँ, ताकि कोई गलती न हो जाए," कशिश ने कहा।
"जैसे बाकी तो हजार बार माँ बनते हैं। सभी पहली बार ही बनते हैं," शिवानी ने जवाब दिया।
वे बातें कर ही रही थीं कि अचानक पीहू की रोने की आवाज आई।
आवाज सुनकर कशिश तुरंत पीहू के पास गई और उसे अपनी गोद में ले लिया।
"अरे मेरे बच्चे, भूख लगी है? मम्मी अभी आपके लिए दूध बनाती है।"
कशिश किचन में जाकर दूध बनाती है, उसे ठंडा करती है और फिर पीहू को पिला देती है। दूध पीने के बाद वह पीहू के साथ खेलने लगती है।
अभी वह पीहू को थपकी देकर सुला ही रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई।
कशिश ने पीहू को झूले में सुलाया और दरवाजा खोलने गई।
सामने उसके माता-पिता खड़े थे। उन्हें देखकर वह ज्यादा खुश नहीं हुई लेकिन अंदर आने को कहा।
मिस्टर और मिसेज शर्मा अंदर आए। उन्होंने देखा कि वहाँ बहुत सारे खिलौने रखे थे और झूले में एक बच्ची खेल रही थी।
"यह बच्ची किसकी है, कशिश? कोई आया है तेरे घर में?" कशिश की माँ ने सवाल किया।
"मेरे घर में कोई नहीं आया। यह मेरी बच्ची है," कशिश ने जवाब दिया।
कशिश की बात सुनकर दोनों हैरानी से उसे देखने लगे।"क्या बकवास कर रही हो?" मिसेज शर्मा गुस्से में बोलीं।
"मैं सच बोल रही हूँ। यह मेरी बेटी है। और मुझे अपनी बेटी के बारे में कुछ भी सुनना बर्दाश्त नहीं है।"
"अच्छा! तेरी बेटी है? तो इसका बाप कहाँ है?" "जहाँ भी हो, आपसे मतलब नहीं। आप लोग मिलने आए हैं, तो मिलें और जा सकते हैं," कशिश ने सख्ती से जवाब दिया।
"कशिश, क्या तरीका है अपनी माँ से बात करने का?" उसके पिता ने कहा। "सॉरी पापा, लेकिन आप इन्हें यहाँ से ले जाइए।"
"मुझे भी कोई शौक नहीं है यहाँ रहने का," इतना कहकर मिसेज शर्मा चली गईं।
कशिश आँसुओं से भरी आँखों से उन्हें जाते हुए देख रही थी।
To be continue. . . ..
कशिश ने खुद से कहा, "काश, आप एक बार तो पूछतीं, कैसी हो मेरी बच्ची। पर नहीं, आपको हमेशा मेरी गलतियाँ ही दिखती हैं। हमेशा आपके प्यार के लिए तरसती रही। आपकी वजह से अपना घर छोड़ दिया, अपने प्यार को छोड़ दिया, ताकि थोड़ी सी तो मोहब्बत कर पातीं मुझसे। मुझे पता है, आज फिर आपके बेटे ने मेरे बारे में कुछ बताया होगा और आप मुझे कोसने आ गईं।"
कशिश रोते हुए खुद से बोली।
"तुमने उन्हें सच क्यों नहीं बता दिया कि पीहू तुम्हारी बच्ची नहीं है? देखो, उन्होंने कितना कुछ सुना दिया और चली गईं," शिवानी बोली।
शिवानी को बुरा लग रहा था कि कशिश के परिवार ने पीहू की वजह से उससे दूरी बना ली है।
"यह कैसी बात कर रही हो, शिवानी? जिस दिन वह मुझे मिली थी, उसी दिन मैंने उसे अपनी बच्ची मान लिया था। तुम ही बताओ, कैसे कह दूँ कि पीहू मेरी बच्ची नहीं है?
अभी तो शुरुआत है। पूरा समाज पूछेगा, तब भी तो मुझे जवाब देना होगा। इसलिए मैंने शुरुआत अपनों से की है। बाहर वालों को भी जवाब देना होगा। और प्लीज, आज के बाद ऐसा मत कहना कि पीहू मेरी बच्ची नहीं है। तुम टेंशन मत लो। मेरा वैसे भी अपने परिवार से कोई खास रिश्ता नहीं है।"
कशिश को शिवानी की बात सुनकर दिल को सुकून मिला कि उसकी बेटी सही हाथों में है। उसे कभी किसी कमी का अहसास नहीं होगा।
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रात का समय
रात हो चुकी थी। कशिश ने अपने लिए डिनर बनाया और बेबी के लिए दूध तैयार कर उसे पिलाया। फिर पीहू को सुलाने के लिए लोरी गाने लगी।
लोरी:
लोरी-लोरी-लोरी
लोरी-लोरी-लोरी
चंदनिया छुप जाना रे, क्षण भर को लुक जाना रे।
निंदिया आँखों में आए, बिटिया मेरी सो जाए।
निंदिया आँखों में आए, बिटिया मेरी सो जाए।
ले के गोद में सुलाऊँ
गाऊँ, रात भर सुनाऊँ
मैं लोरी-लोरी, हो।
मैं लोरी-लोरी।
करधनिया छुन-छुन बजे, पलकन में सपना सजे।
धीमे-धीमे, हौले-हौले, पवन बसंती डोले।
धीमे-धीमे, हौले-हौले, पवन बसंती डोले।
ले के गोद में सुलाऊँ
गाऊँ, रात भर सुनाऊँ
मैं लोरी-लोरी, ओ हो।
मैं लोरी-लोरी।
मेरी मुनिया रानी बने, महलों का राजा मिले।
देखे खुशियों के मेले, दर्द कभी न झेले।
ओ, देखे खुशियों के मेले, दर्द कभी न झेले।
ले के गोद में सुलाऊँ
गाऊँ, रात-भर सुनाऊँ
मैं लोरी-लोरी, हो।
मैं लोरी-लोरी।
कशिश को पीहू को ऐसे सुलाते देख शिवानी की आँखों में आँसू आ गए। उसने सोचा, कभी वह भी अपनी बच्ची को ऐसे ही लोरी गाकर सुलाती थी। पर उसकी जिंदगी से यह खुशियाँ बहुत पहले ही दूर हो गईं।
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तीन दिन बाद
तीन दिन बीत चुके थे। अब कशिश काफी हद तक पीहू को संभालना सीख चुकी थी। उसने एक नैनी भी रख ली थी और घर में कैमरे लगवा दिए थे, ताकि ऑफिस में रहते हुए भी वह अपनी बच्ची को देख सके और यह भी पता चलता रहे कि नैनी पीहू के साथ सही व्यवहार कर रही है।
"देखो, पीहू का ध्यान रखना। उसे टाइम पर दूध देना। और कोई परेशानी हो तो मुझे कॉल कर देना," कशिश ने नैनी को समझाया।
"तुम टेंशन मत लो, कशिश। मैं भी यहीं हूँ," शिवानी ने सामने आकर कहा।
"दी, आप हैं, इसलिए टेंशन नहीं है। फिर भी," शिवानी की बात पर कशिश मुस्कुरा दी।
"कशिश बेटा, आप किससे बात कर रही हैं?" शारदा काकी (नैनी) ने कशिश को खुद से बात करते हुए देखकर पूछा।
"कोई नहीं, काकी। मैं खुद से बात कर रही थी।"
कशिश ने पीहू को गोद में लिया और कहा, "मेरा बच्चा, शाम तक मम्मा आ जाएगी। अपना ध्यान रखना।"
उसने पीहू के सिर पर किस किया और सबको बाय बोलकर ऑफिस चली गई।
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ऑफिस में
आज कशिश तीन दिन बाद ऑफिस आई थी। उसे देखकर सब मुस्कुराते हुए गुड मॉर्निंग कह रहे थे। कशिश भी मुस्कुराते हुए सबको जवाब देती हुई अपने केबिन में चली गई।
"यार, पहले भी तो ऑफिस आई हूँ। फिर आज इतना अजीब क्यों लग रहा है? भगवान जी, जो भी हो, प्लीज़ संभाल लेना।"
To be continue........
यार, पहले भी तो ऑफिस आई हूँ, फिर आज इतना अजीब क्यों लग रहा है? भगवान जी, जो हो, प्लीज संभाल लेना..."
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कशिश ने अपने पेंडिंग वर्क पर ध्यान लगाना शुरू किया। तभी दरवाजे पर किसी ने नॉक किया।"कम इन," कशिश ने कहा।
"गुड मॉर्निंग, अमित सर।" "गुड मॉर्निंग, कशिश," अमित ने जवाब दिया।
"तो मिस कशिश, कैसी रहीं आपकी छुट्टियाँ?"
"अपनी बेटी के साथ बहुत खूबसूरत पल बिताए," कशिश ने मुस्कुराते हुए कहा।
"आपकी बेटी भी है? मुझे तो लगा था कि आप अनमैरिड हैं," अमित ने हैरानी से कहा।
कशिश ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "मेरी 5 महीने की बेटी है।"
अमित ने धीमे से कहा, "मैंने तो सोचा था आप सिंगल हैं..."
"कुछ कहा आपने, सर?"
"नहीं, नहीं... मैं बस यह बताने आया था कि आपके डिज़ाइन्स क्लाइंट को पसंद आ गए हैं, और बॉस आपसे मिलना चाहते हैं।"
"ठीक है, सर। मैं अभी जाती हूँ," कशिश ने जवाब दिया।
इतना कहकर कशिश बॉस के केबिन की ओर बढ़ने लगी।
"इतना अजीब क्यों लग रहा है? ऐसा एहसास तो तब होता था जब तुम साथ थे। पुरानी बातों से बाहर निकलो, कशिश," उसने खुद से कहा।
बॉस के केबिन के बाहर पहुँचकर उसने गहरी साँस ली और दरवाज़ा नॉक किया।
"कम इन," अंदर से आवाज़ आई।
कशिश ने देखा कि बॉस की पीठ उसकी ओर थी। "गुड मॉर्निंग, सर," कशिश ने कहा।
जैसे ही बॉस पलटे, कशिश उन्हें देखकर चौंक गई। सामने राजवीर खड़े थे। उनके चेहरे पर हैरानी और गुस्से के मिले-जुले भाव थे।
"वी...वी...वीर?" कशिश हकलाते हुए बोली।
(कशिश ने मन ही मन सोचा, "कितने बदल गए हो तुम, वीर। विश्वास नहीं हो रहा कि यह वही 5 साल पुराना मेरा वीर है। मन तो कर रहा है पास जाकर गले लगा लूँ और कह दूँ, यह शोना आज भी तुम्हारी है।")
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई दोबारा मेरे सामने आने की?" राजवीर ने गुस्से से कहा।
(राजवीर के मन में ख्याल आया, "क्यों चली गई थी मुझे छोड़कर? क्या कमी थी मेरे प्यार में? कितना प्यार करता था तुमसे, शोना। लेकिन तुमने मेरी जगह किसी और को चुना। क्यों, शोना? क्यों? पर अब तुम दोबारा मेरे सामने आई हो, तो अब तुम देखोगी मेरी नफरत। अब तुम मेरी कोई नहीं, क्योंकि मेरी ज़िंदगी में सिर्फ मेरी बीवी और मेरी बेटी का हक़ है।")
"वीर, एक बार मेरी बात सुन लीजिए," कशिश ने कहा।
"कॉल मी सर। आई एम योर बॉस," राजवीर ने ठंडे स्वर में जवाब दिया।
"ओके, सर," कशिश ने उदास होकर कहा और बिना कुछ और कहे केबिन से बाहर चली गई।
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कशिश का केबिन:
कशिश अपने केबिन में गई और खुद को संभालने की कोशिश करने लगी। लेकिन उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
"क्यों आए हो मेरे सामने, वीर? कितनी मुश्किल से तुमसे दूर हुई थी और आज फिर मेरा अतीत मेरे सामने आ गया," कशिश ने रोते हुए कहा।
कुछ देर बाद उसने खुद को संभाला और अपना रिज़ाइन लेटर लिखा। फिर अमित के केबिन में जाकर नॉक किया।"मे आई कम इन, सर?"
"यस, कम इन।"
"हाँ, कशिश, बोलो। क्या हुआ?"
"सर, यह मेरा रिज़िग्नेशन लेटर है।"
"तुमने तो अभी-अभी ऑफिस जॉइन किया है। फिर अचानक क्यों छोड़ रही हो? सर ने कुछ कहा क्या?"
"नहीं, सर। ऐसा कुछ नहीं है। बस अब मुझे यहाँ और काम नहीं करना।"
इतना कहकर कशिश केबिन से बाहर निकल गई और अपनी कार लेकर घर चली गई।
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राजवीर का केबिन:
राजवीर अपने केबिन में सामान इधर-उधर फेंकते हुए गुस्से में बड़बड़ा रहा था।"क्यों वापस आई हो मेरी ज़िंदगी में? छोड़ गई थी ना मुझे मंडप पर। तुम्हारे बिना जीना सीख गया था। अपने जीवन में आगे बढ़ गया था। फिर क्यों आई हो, मेरी ज़िंदगी में?"राजवीर ने गुस्से में अपने केबिन का पूरा सामान तहस-नहस कर दिया।
तभी अमित अंदर आया।"बॉस, आप ठीक तो हैं? और केबिन का यह हाल?"
"कुछ नहीं हुआ है। जिस काम के लिए आए हो, वह बताओ।"
"बॉस, मिस कशिश ने रिज़िग्नेशन लेटर दिया है और जॉब छोड़ दी है। अगर उन्होंने जॉब छोड़ दिया, तो हमारा बहुत बड़ा नुकसान होगा, क्योंकि डील साइन हो चुकी है और काम तभी शुरू होगा जब मिस्टर खन्ना डिजाइनर से मिलेंगे।"
"डील भी होगी और मिस कशिश वापस ऑफिस भी आएगी।"
"पर कैसे, बॉस?"
"जब कशिश ने ऑफिस जॉइन किया होगा, तो कॉन्ट्रैक्ट भी साइन किया होगा। और कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से वह 2 साल तक जॉब नहीं छोड़ सकती। अगर वह छोड़ती है, तो उसे कंपनी को 5 लाख रुपए देने होंगे।"
"लेकिन, बॉस, वह इतनी बड़ी डिजाइनर हैं कि उनके लिए 5 लाख देना कोई बड़ी बात नहीं है।"
"तो 5 लाख से 20 लाख कर दो..."
"अब तुम देखोगी, मिस कशिश। किसी को धोखा देने का नतीजा क्या होता है। जस्ट वेट एंड वॉच।"
To be continue........
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लेकिन, बॉस, वह इतनी बड़ी डिजाइनर हैं कि उनके लिए 5 लाख देना कोई बड़ी बात नहीं है।"
"तो 5 लाख से 20 लाख कर दो..."
"अब तुम देखोगी, मिस कशिश। किसी को धोखा देने का नतीजा क्या होता है। जस्ट वेट एंड वॉच।"
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मरीन ड्राइव पर:
कशिश ऑफिस से निकलकर सीधे घर नहीं जाती। मन को शांत करने के लिए वह मरीन ड्राइव चली जाती है।
समंदर का पानी जितना शांत था, कशिश का मन उतना ही अशांत।
"आज मेरा अतीत फिर से मेरे सामने आ गया। जिसके लिए मैंने तुम्हें छोड़ा था, उन सभी ने मुझे अकेला छोड़ दिया। तुम्हारे साथ किए गए धोखे की सजा शायद भगवान मुझे दे रहे हैं," कशिश मन ही मन सोच रही थी।
तभी उसका फोन बजता है।फोन की स्क्रीन पर शारदा काकी का नाम चमक रहा था।कशिश ने फोन उठाया, "हेलो..."
"कशिश बेटा, कहाँ हो? जल्दी से घर आ जाओ। पीहू बहुत रो रही है, उसे शांत नहीं कर पा रही हूँ।"
"आंटी, आप पीहू का ध्यान रखें। मैं अभी घर आती हूँ," कशिश ने तुरंत जवाब दिया।
वह जल्दी-जल्दी अपनी कार की ओर बढ़ ही रही थी कि सामने से आ रही एक कार ने उसे टक्कर मार दी। वह सड़क पर गिर गई।
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कार के पास:
"क्या हुआ? कार क्यों रोकी?" अंदर बैठे आदमी ने पूछा।
"बॉस, कोई लड़की कार के सामने आ गई है," ड्राइवर ने जवाब दिया।
"जाकर देखो, ज्यादा चोट तो नहीं लगी?" "जी, बॉस।"
ड्राइवर जल्दी से बाहर निकला और देखा कि एक लड़की सड़क पर गिरी पड़ी थी।"मैडम, आप ठीक तो हैं? ज्यादा चोट तो नहीं लगी?"
ड्राइवर को देर करता देख, कार के अंदर बैठे आदमी ने गुस्से में बाहर आकर कहा, "क्या हो रहा है? जल्दी से इस लड़की को पैसे दो और यहाँ से निकलो। मुझे लेट हो रहा है।"
यह सुनकर पास खड़ा एक आदमी बोला, "एक तो एक्सीडेंट करते हो, ऊपर से पैसों का रोब दिखाते हो।"
"तुम्हारे साथ कुछ नहीं हुआ, तो अपना मुँह बंद रखो," राजवीर ने उस आदमी को घूरते हुए कहा।
कशिश धीरे-धीरे उठी। आसपास खड़े लोग पूछने लगे, "बेटा, तुम ठीक हो ना? हमें इन अमीरों के खिलाफ पुलिस में शिकायत करनी चाहिए।"
"आप लोग चिंता मत कीजिए। मैं ठीक हूँ। मुझे कोई शिकायत नहीं करनी।" इतना कहकर कशिश अपनी कार की ओर बढ़ने लगी।
तभी कार के मालिक ने उसका हाथ पकड़ लिया और गुस्से में कहा,
"क्या ऑफिस में मेरी बात नहीं सुनी, तो अब मेरे गाड़ी के सामने कूद गई? मुझे नहीं पता था कि तुम इतनी गिर जाओगी अपनी बात मनवाने के लिए। लेकिन तुम जो भी कर लो, रहोगी तो धोखेबाज ही।"
"वीर, आप गलत समझ रहे हैं।""डोंट कॉल मी वीर।"
"सॉरी... मिस्टर राजवीर, आप मुझे गलत समझ रहे हैं। मैं जानबूझकर आपकी कार के सामने नहीं आई। गलती से ऐसा हुआ। अगर मेरी वजह से आपको तकलीफ हुई हो, तो आई एम सॉरी।"
राजवीर कुछ बोलता, इससे पहले कशिश का फोन दोबारा बजा। फोन सड़क पर गिरा हुआ था।
ड्राइवर ने फोन उठाकर कशिश को दिया।
फोन पर शारदा काकी की कॉल थी। कशिश ने तुरंत फोन उठाया। लेकिन जल्दबाज़ी में फोन स्पीकर पर लग गया।
फोन से काकी की आवाज़ आई, "कशिश बेटा, जल्दी घर आ जाओ। पीहू बहुत रो रही है। अगर ऐसे ही रोती रही, तो उसकी तबीयत बिगड़ जाएगी।"
"बस काकी, मैं आ रही हूँ।"
कशिश ने बिना कुछ कहे अपनी कार में बैठकर घर की ओर रुख कर लिया।
"कशिश की बेटी भी है... मतलब मैं गलत नहीं था। तुमने मुझे धोखा दिया था। मुझे कभी-कभी लगता था कि शायद तुम किसी परेशानी में थी, इसलिए चली गई। लेकिन नहीं, तुमने वाकई धोखा दिया।"
राजवीर गुस्से में बड़बड़ाते हुए अपनी कार में बैठा और ड्राइवर से कहा, "चलो घर।"
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"क्यों, वीर? आप इतने बदल गए कि आज आपको मेरी चोट भी नहीं दिखी। एक वक्त था, जब मेरी छोटी-सी खरोंच भी आप बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। और आज... आपको लगा मैं जानबूझकर आपकी कार के सामने आई। कैसे सोच लिया आपने?"कशिश अपनी कार चलाते हुए पुरानी यादों में खो गई।
फ्लैशबैक:
"राधिका, क्या तुम्हें पता है कशिश कहाँ है?" राजवीर ने कशिश की दोस्त राधिका से पूछा।
"सर, वह गिर गई है। इसलिए मेडिकल रूम में है।"
इतना सुनते ही राजवीर भागते हुए मेडिकल रूम की तरफ गया। वहाँ उसने देखा कि कशिश बेड पर लेटी हुई थी।
उसके पास जाकर राजवीर ने उसे गले लगा लिया और कहा,
"कहाँ ध्यान रहता है तुम्हारा, शोना? कितनी बार कहा है, ध्यान से चला करो। तुम कभी अपना ध्यान नहीं रखती हो। अब बोलो, क्या हुआ?"
"वीर, आप कुछ बोलने का मौका देंगे, तब ना। और ज्यादा नहीं लगा है, सिर्फ पैर में मोच है। और मैं अपना ध्यान क्यों रखूँ? आप हो ना मेरा ध्यान रखने के लिए," कशिश ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा।
"वीर, आप हमेशा मुझसे ऐसे ही प्यार करेंगे ना?"
"हाँ, शोना। हमेशा," राजवीर ने उसके सिर पर किस करते हुए जवाब दिया।
फ्लैशबैक का अंत:
"कितने खूबसूरत पल थे वह। हम दोनों साथ में कितने खुश थे। पता नहीं किसकी नज़र लग गई हमारी खुशियों को," कशिश ने आँसू पोंछते हुए मन ही मन कहा।
To be continue........
फ्लैशबैक का अंत:
"कितने खूबसूरत पल थे वह। हम दोनों साथ में कितने खुश थे। पता नहीं किसकी नज़र लग गई हमारी खुशियों को," कशिश ने आँसू पोंछते हुए मन ही मन कहा।
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अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कशिश अपने घर पहुँचती है।
घर के अंदर जाकर कशिश पीहू को अपनी गोद में ले लेती है। पीहू भी अपनी माँ का स्पर्श पाकर चुप हो जाती है।
कशिश: मेरा बच्चा मम्मी को मिस कर रहा था। सॉरी बच्चा, अब मम्मी कभी लेट नहीं होगी और सब कुछ छोड़कर सिर्फ आप पर ध्यान देगी। बिकॉज़ यू आर मोस्ट इम्पोर्टेंट फॉर मम्मा।
काकी: देखो तुम्हारी बेटी कितनी बदमाश है। मैं कब से चुप करवा रही थी, तो शांत नहीं हुई, और अपनी माँ की गोद में जाते ही शांत हो गई।
कशिश: सॉरी काकी, पीहू ने आपको ज्यादा परेशान कर दिया ना...?
काकी: अरे नहीं बिटिया, यह हमारा काम है, और बच्चे परेशान नहीं करेंगे तो कौन करेंगे।और बेटा, यह तुम्हारे सर पर चोट कैसे लगी?
कशिश: कुछ नहीं काकी, बस गिर गई थी।
काकी: अच्छा रुको, मैं तुम्हारे लिए दवा लेकर आती हूँ।
कशिश: नहीं काकी, आप घर जाइए, सब इंतजार कर रहे होंगे। आप परेशान मत होइए, दवा मैं खुद लगा लूंगी।
काकी: अच्छा, हमने पीहू बेटा के लिए दूध गर्म कर दिया है, और आपके लिए भी खाने को बना दिया है। अब मैं चलती हूँ।
कशिश: काकी, मेरे लिए थोड़ा सा खाना निकाल कर बाकी का खाना आप ले जाइए।
काकी: ठीक है बिटिया, और काकी किचन में चली जाती है।
शिवानी: कहां थी तुम कशिश? और चोट कैसे लगी?
कशिश: कुछ नहीं, बस हल्की सी चोट है, ठीक हो जाएगा। इतना बोलकर अपने कमरे में चली जाती है।
शिवानी (अपने आप से): मुझे सब पता है कशिश, पर टेंशन मत लो, जल्दी मिलोगी तुम अपने प्यार से, जिसे मिलने का जरिया पीहू बनेगी।
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राजवीर घर पहुँचकर गुस्से में अपने कमरे में जाता है और अमित को कॉल करता है।
राजवीर: यस बॉस...
अमित: तुम्हारे पास 2 घंटे हैं, मुझे कशिश शर्मा का पूरा इंफॉर्मेशन चाहिए और जल्दी से उसे ऑफिस में वापस लाओ।
राजवीर: यस सर, बोलते ही कॉल कट जाती है।
अमित (सोचता है): अब बॉस को अचानक मिस कशिश का इंफॉर्मेशन क्यों चाहिए, और वह इतने गुस्से में क्यों थे? रात को भी चैन से सोने नहीं देती, ओ गॉड बचा लो मुझे मेरे खडूस बॉस से।
कुछ ही देर बाद, राजवीर का फोन फिर बजता है। स्क्रीन पर मां का नंबर शो हो रहा था, पर राजवीर कॉल को इग्नोर करता है। लेकिन जब बार-बार कॉल आता है, तो गुस्से से फोन उठाता है।
क्यों, अपनी माँ को तड़पा रहा है? पिछले 2 महीने से तुम घर नहीं आए हो।
राजवीर (गुस्से में): क्यों मैं उस घर आऊँ जहाँ के लोग मेरी बीवी के कातिल हैं और एक छोटी सी बच्ची को नहीं संभाल पाए। आज पता नहीं मेरी बेटी कहाँ है और किस हालत में है। आप ही बताओ, कैसे आ जाऊं?
माँ: पर बेटा...
राजवीर: मोम, प्लीज, अगर आपको इतना ही मुझसे मिलना है तो आप मेरे घर आ जाइए, मैंने कभी आपको मना नहीं किया।
राजवीर बिना अपनी माँ की बात सुने फोन काट देता है, और फिर से काम में लग जाता है।
कुछ ही देर बाद, जब राजवीर कमरे में आता है तो उसके फोन में एक मैसेज आता है। असिस्टेंट अमित ने कशिश के सारे इंफॉर्मेशन भेजे थे। कशिश की जानकारी को राजवीर बड़े ध्यान से पढ़ता है।
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कशिश अपना मन बहलाने के लिए पीहू के साथ बातें और मस्ती कर रही थी, और वही इन दोनों को ऐसे खुश देख शिवानी की आत्मा खुश हो जाती है।
अभी कशिश अपनी बेटी से बात कर रही थी, तभी उसका फोन बजता है।
कशिश (सोचते हुए): यह अमित सर मुझे क्यों कॉल कर रहे हैं? मैंने तो कल ही सब कुछ क्लियर कर दिया था।कशिश फोन उठाती है।
कशिश: हेल्लो सर, ।
अमित: कशिश, मैंने तुमसे इसलिए कॉल किया था क्योंकि बॉस ने तुम्हारे रिजाइन लेटर को रिजेक्ट कर दिया है। तुम यह जॉब नहीं छोड़ सकती हो।
कशिश: आप क्या बोल रहे हैं अमित सर? यह तो मेरी चॉइस है कि जॉब कंटिन्यू करना है या नहीं।
अमित: नहीं कशिश, कंपनी के कुछ रूल्स हैं, जिनको आपको फॉलो करना पड़ेगा। आपने जो जॉइनिंग के समय कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था, उसके हिसाब से अगर आप बीच में जॉब छोड़ती हैं, तो आपको 20 लाख देना पड़ेगा।
अमित: अब आप सोच लीजिए कि आपको जॉब कंटिन्यू करना है या फिर 20 लाख देना है।
कशिश: मुझे सोचने का कुछ समय चाहिए, मैं आपको कल सुबह बताती हूँ।
अमित: आई होप आप सही फैसला लें, मिस कशिश। ओके फिर, हम कल मिलते हैं ऑफिस में। बाय एंड गुड नाइट।
फोन रखने के बाद कशिश खुद से बोलती है, "अब क्या चाहते हो वीर तुम मुझसे? आपने मुझे ऑफिस में इसलिए रोका है ताकि मुझे सजा दे सको धोखा देने का। मुझे मंज़ूर है आपकी हर सजा, क्योंकि गलती तो की है मैंने।"
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अगली सुबह
राजवीर की नींद फोन के बजने के कारण टूटती है। नंबर देखकर राजवीर जल्दी से कॉल उठाता है।
राजवीर: बोलो, क्या खबर है?
सामने वाला आदमी कुछ बोलता है, जिसे सुनकर राजवीर जल्दी से घर से निकलकर अपनी कार लेकर कहीं निकल जाता है।
To be continue............
1) किया फेसला लगी कशिश....
2) राजवीर को किसका कॉल आया था।
3) राजवीर कार लेकर कहाँ गया
अगली सुबह
राजवीर की नींद फोन के बजने के कारण टूटती है। नंबर देखकर राजवीर जल्दी से कॉल उठाता है।
राजवीर: बोलो, क्या खबर है?सामने वाला आदमी कुछ बोलता है, जिसे सुनकर राजवीर जल्दी से घर से निकलता है और अपनी कार लेकर कहीं निकल जाता है।
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थोड़ी देर बाद राजवीर की कार एक घने जंगल के पास रुकती है। सामने राजवीर के कुछ बॉडीगार्ड खड़े थे, उनके पास जाने की राजवीर में हिम्मत नहीं थी, फिर भी भारी कदमों से राजवीर उनके पास जाता है।
रघु (जिसका फोन राजवीर को आया था): क्या तुमने सही से जांच की है?
रघु: यस बॉस, मैंने पूरी जानकारी निकाली है और डीएनए टेस्ट भी करवाया है, जिससे यह पता चला है कि यह आपकी बेटी है।
रघु की बात सुनकर राजवीर को अपने अंदर कुछ टूटता हुआ महसूस हो रहा था। वह आज खुद को बहुत बेबस समझ रहा था। पूरा शरीर ठंडा हो गया था। हिम्मत नहीं हो रही थी अपनी बच्ची के पास जाने की, हाथ-पैर काँप रहे थे।
राजवीर धीरे-धीरे चलकर बच्ची के शरीर के पास जाता है।
राजवीर: प्रियांशी... राजवीर उस बच्ची को अपनी गोद में लेकर जोर से चिल्लाता है। उसकी आवाज जंगल गूंज उठती है।
राजवीर (रोते हुए): सॉरी... सॉरी बच्चा, आपके पापा आपको बचा नहीं पाए। आई एम सॉरी, माय प्रिंसेस।
सारे बॉडीगार्ड अपने बॉस को ऐसे टूटते हुए पहली बार देख रहे थे। वहाँ खड़े सारे बॉडीगार्ड और रघु की भी आँखें नम हो जाती हैं। क्योंकि वे सभी जानते थे कि राजवीर अपनी बच्ची से कितना प्यार करता था।
राजवीर खुद को शांत करके गुस्से से बोला, "किसने किया है? उसके बारे में जल्द से जल्द पता लगाओ!"
रघु: एस बॉस।
उसके बाद राजवीर उस बच्ची को लेकर अपने घर चला जाता है।
उसके जाने के बाद एक आदमी पेड़ के पीछे से निकलता है और किसी को कॉल करता है।
आदमी: बॉस, जैसा आपने कहा था, वही हो गया है, और राजवीर बच्ची को लेकर चला गया है। मैंने आपका काम कर दिया है, तो मेरे पैसे कब मिलेंगे?
सामने वाला इंसान: गुड, अब जल्दी से यहाँ से निकल जाओ, तुम्हारे पैसे तुमको मिल जाएंगे।
आदमी: ओके बॉस। इतना बोलकर वह आदमी वहाँ से चला जाता है।
राजवीर घर पहुँचकर अपने घर के पीछे गार्डन में जाता है और अपनी बच्ची को वहीं पर दफना देता है। वहाँ पर गुलाब के फूल लगाता है।
राजवीर (गार्डन के माली से): इस फूल का हमेशा ध्यान रखना, यह कभी भी मुरझाना नहीं चाहिए।
गार्डन माली: जी साहब।
उस जगह की मिट्टी को अपने होठों से छूकर राजवीर अपने कमरे में चला जाता है।
राजवीर अपने कमरे में आता है और बेड के पास लगी तस्वीर को देख कर बोलता है,
राजवीर: उस दिन मैं तुम्हें भी नहीं बचा पाया, और आज देखा, तुम्हारी आखिरी निशानी हमारी बच्ची को भी नहीं बचा पाया, और वह भी तुम्हारी तरह मुझसे दूर हो गई। मैं सचमुच बहुत बेकर हूँ, मैं कभी भी न अच्छा दोस्त बन पाया, न पति और न ही पिता।
राजवीर बेबसी से उस तस्वीर को देखते हुए बोलता है।
अभिमन्यु (राजवीर का बचपन का दोस्त और राणा इंडस्ट्री के CEO): यह मैं क्या सुन रहा हूँ? तुम हमारी शिवि की आखिरी निशानी गुड़िया को नहीं बचा पाए?
अभिमन्यु गुस्से से राजवीर से बोलता है।
तभी अभिमन्यु का ध्यान राजवीर पर जाता है, जिसकी हालत ठीक नहीं थी। उसकी आँखें पूरी तरह लाल हो चुकी थीं। हमेशा जिसके चेहरे पर गुस्सा और चमक होती थी, आज वह दर्द था, अपने को खोने का।
अभिमन्यु: राज, खुद को संभालो, यह क्या हाल बना लिया है तुमने?
राजवीर (बिखरते हुए): देखो ना, अभी मैं अपनी दोस्त को नहीं बचा पाया था, न ही अपनी बेटी को। मेरे इतने पॉवरफुल होने का क्या फायदा? तुम्हें शायद इसीलिए कशिश मुझे छोड़ कर चली गई थी। मेरे परिवार वाले भी मुझे धोखा दे रहे हैं।
राजवीर बिखरते हुए बोला।
राज की हालत बिगड़ते देख अभिमन्यु उसे पानी में नींद की दवा मिलाकर पिला देता है। कुछ ही देर में राज अभिमन्यु की गोद में सो जाता है। अभिमन्यु उसे अच्छे से बेड पर सुला देता है।
अभिमन्यु (सोचते हुए): आज इतने साल बाद तुम फिर उस कशिश का नाम ले रहे हो, जिसने तेरी जिंदगी बर्बाद कर दी।
To be continue.......
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राज की हालत बिगड़ते देख अभि उसको पानी में नींद की दवा मिलकर पिला देता हैं। कुछ ही देर मैं राज अभी के गोद मै सो जाता हैं। .........भी राज को अच्छे से बेड पर सुला देता हैं।
आज इतने साल बाद तुम फिर उस कशिश का नाम ले रहा जिसने तेरी जिंदिगी बर्बाद कर दिया........
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काश तुम हमारे लाइफ में नहीं आई होती तो आज में भी खुश होता और राज भी तुम्हारे कारण मैं उसे दूर हुआ था।
इतना बोल अभिमन्यु वहां पर चला जाता है।
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एक खूबसूरत सुबह के साथ कशिश उठती है और सबसे पहले अपनी बेटी को देखती है जो पहले से ही उठकर खेल रही थी।
अरे मेरा बच्चा उठ गया चलो अब जल्दी से मम्मा के साथ फ्रेश होंगे कशिश पीहू को उठाते हुए बोली।
थोड़ी देर बाद दोनों फ्रेश होकर आती है और किचन में जाकर यू के लिए दूध बनाती है और उसको दूध पिला कर उसे खिलौने के साथ खेलने के लिए छोड़ देती है।
और अपने लिए नाश्ता बनाने लगती है नाश्ता बनाने के बाद कद नाश्ता करती है और पीहू के पास जाकर बैठ जाती
अच्छा पीहू बेबी आप मम्मी की हेल्प करोगे ना तो जल्दी से इन दोनों उंगली में से कोई एक उंगली चुनो और मुझे बताओ कि मैं ऑफिस फिर से जॉइन करूं या नहीं ।
पीहू हंसते हुए एक उंगली चुन लेती हैं।..... अच्छा तो मेरा बच्चा चाहता है कि मम्मा दोबारा ऑफिस ज्वाइन करें चलो ठीक है। मैं अभी अमित सर को कॉल करती हूं।
कशिश अमित को कॉल करती हैं।....... अमित कॉल उठाते हुए बोला तो मैडम क्या सोचा आपने
सर मैं ऑफिस ज्वाइन करना चाहती हूं।..... एकदम सही फैसला लिया है आपने चलो फिर जल्दी से ऑफिस आ जाओ वैसे भी आज सर नहीं आ रहे।
सर क्यों नहीं ऑफिस आ रहे हैं कुछ प्रॉब्लम है क्या........ पता नहीं पर उनके फ्रेंड का मैसेज आया था कि वह नहीं आएंगे।
अच्छा ठीक है सर मैं ऑफिस पहुंचकर आपसे बात करती हूं।.....ओके
क्या हुआ वीर को आज ऑफिस क्यों नहीं आया भगवान जी उनको हमेशा सही सलामत रखना कशिश भगवान से राजगीर के लिए दुआ करती है।
आज तो शिवानी दीदी भी नहीं दिख रही है पता नहीं कहाँ है...... क्या हुआ मुझे क्यों याद कर रही हो शिवानी की साया सामने आते हुए बोली
मैं ऑफिस जा रही हूं ना और आज आप मिलने भी नहीं आई....... जब तुम मुसीबत में होगी तभी मैं सामने आऊंगी हमेशा थोड़ी दिखाऊंगी हां पर साथ हमेशा रहूंगी शिवानी मुस्कुराते हुए कशिश को जवाब देती है।
कुछ समय बाद शारदा काकी आती है और उनको सब कुछ बता कर कशिश ऑफिस के लिए निकल जाती है।
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ऑफिस में
कशिश ऑफिस पहुंच गया और सबको मुस्कुराते हुए विश करते हुए अमित की केबिन के तरफ से आती है और डोर नॉक करती है।..... कम इन
गुड मॉर्निंग अमित सर....... गुड मॉर्निंग अमित मुस्कुराते हुए जवाब देता है।
तुमने बिलकुल सही फैसला लिया है कशिश कि ऑफिस दोबारा ज्वाइन करती है चलो अब 1 घंटे बाद हमारी मीटिंग है मिस्टर खन्ना के साथ है।
ओके सर बोलकर कशिश अपने केबिन में चली जाती है। अपने केबिन में आकर कशिश मिस्टर खन्ना से रिलेटेड फाइल डिलीट करने लगती है।
कुछ समय बाद अमित केबिन में आता है और उसके साथ कशिश मीटिंग रूम में जाती है।
मीटिंग रूम में
कशिश और अमित मीटिंग रूम में जाते हैं। जहां मिस्टर खन्ना पहले से ही उन दोनों का वेट कर रहे थे।
गुड मॉर्निंग मिस्टर खन्ना अमित और कशिश दोनों मिस्टर खन्ना विश करते हैं।.......गुड मॉर्निंग मिस कशिश
आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई आपकी डिजाइंस बहुत अच्छी है आप ऐसे ही मेहनत करते नहीं तो बहुत जल्द पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो जाएंगी।
थैंक यू सो मच कि आपको मेरी डिजाइंस पसंद आया। हमारी कंपनी आपको बेस्ट है इस बात की गारंटी मैं आपको जानती हूं।
कुछ देर डिजाइंस के बारे में डिस्कस करने के बाद मीटिंग एंड हो जाता है।
सो मिस्स कशिश एंड मिस्टर अमित अब मैं चलता हूं। फिर जल्दी मिलेंगे इतना बोल कर मुझसे खाना चले जाते हैं।
अमित और कशिश भी अपने अपने काम में लग जाते हैं।
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शाम को जब राजवीर की नींद खुलता है तो उसके सर में बहुत दर्द हो रहा था। दर्द को ठीक करने के लिए राजगीर शावर लेन जाता है।
थोड़ी देर बाद जब राजवीर शावर लेकर आता है। तो देखता है अभी उसके कमरे में बैठा है जो शायद उसके लिए कॉफी लेकर आया था।
राज कॉफी का मांग उठाते हुए तुम आज मेरे कमरे में क्या कर रहे हो...... मुझे तुझसे कुछ इंपॉर्टेंट बात करनी है।
और वह क्या है तेरी इंपॉर्टेंट बातें.......कशिश
To be continue......
कृपया आप सभी स्टोरी पढ़ने के बाद कमेंट जरूर करें ताकि मुझे भी पता चले आपको मेरी स्टोरी पसंद आ रही हो कि नहीं🙏
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राज कॉफी का मांग उठाते हुए तुम आज मेरे कमरे में क्या कर रहे हो...... मुझे तुझसे कुछ इंपॉर्टेंट बात करनी है।
और वह क्या है तेरी इंपॉर्टेंट बातें.......कशिश
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और बताओ इतने सालों बाद अचानक तुमको कशिश की याद कैसे आ गई अभिमन्यु राजवीर को घूरते हुए बोलना
लंबी सांस लेते हुए कशिश मेरे ऑफिस में काम करती है एज अ डिजाइनर....... अब तुम सोचोगे मैंने क्यों उसको अपने ऑफिस से नहीं निकाला क्योंकि मुझे उससे बदला लेना है मुझे मंडप में छोड़ जाने की सजा तो मिलना चाहिए बस इसीलिए वह मेरे ऑफिस में है नहीं तो कब का उसको निकलवा फेकता।
फिर तो इस चीज में मैं तुम्हारे साथ हूं क्योंकि उसके कारण मैंने भी तो बहुत कुछ खोया है। पर मुझे यह बात आज भी समझ नहीं आता जब कशिश गलत थी तब तृषा ने उसका साथ क्यों दिया।
यह बात तो मुझको भी नहीं पता इतना जरूर बता सकता हूं कशिश के लिये वह बहन जैसी थी। शायद इसी वजह से उस वक्त तृषा उसका साथ दिया।
चलो यह सब छोड़ो कल संडे है बताओ क्या प्लान है अभिमन्यु ने राजवीर से बोला
मैं पहले जैसे जीना चाहता हूं जब हम हर संडे को मस्ती करते थे मूवी देखने जाते थे और मॉल घूमते थे कल हम वही सब करेंगे क्योंकि मैं भी थक गया हूं अपनी कंपनी को संभालते संभालते अब तो जीने की कोई वजह ही नहीं है तो बस कुछ पल खुलकर जीना चाहता हूं।
फिर कल हम लोग वहीं पल जिएंगे अभिमन्यु मुस्कुराते हुए बोला
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जब कशिश घर पहुंचती है पर जैसे ही डोर लॉक करने वाली होती है उसको अंदर से किसी के खिलखिलाने की आवाज आती है उसको सुनते ही जल्दी से दरवाजा खटखटा दिया तो शारदा का की दरवाजा खोलती है।
अरे बेटा कैसा रहा दिन आपका....... बहुत अच्छा था काकी बोलते हुए वह सोफ़ा पर बैठी लड़की को ध्यान से देख रही थी।
और चलाते हुए बोली तृषा....... और जाकर के कस के गले से लगा लेती है।
तृषा कशिश को खुद से दूर करते हुए अब तुम मुझसे बातें भी छुपाने लगी।
ऐसा क्या छुपाया मैंने तुझसे जो कुछ है तेरे सामने है कशिश प्यार से बोली
अच्छा फिर बता यह बच्ची कौन है।....... कशिश प्यार से पीहू को अपने गोद में लेते हुए यह मेरी बेटी पीहू है।
तो तुमने मूव ऑन कर लिया अच्छा लगा यह जानकर तुम अपनी लाइफ में आगे बढ़ गई और राजवीर के अलावा किसी और को अपने लाइफ में लाई।
ऐसा नहीं है तृषा मेरे लाइफ में वीर के अलावा कोई नहीं आ सकता और ना ही कभी मैं वीर को भूल पाऊंगा मेरी लाइफ में वह मेरा पहला प्यार था और हमेशा रहेगा और तुम यह बात जानती हूं हम दोनों का रिश्ता कितना करीब था।
जब तुम्हारी लाइफ में राजवीर के अलावा कोई नहीं है तो फिर यह बच्ची तृषा हैरानी से बोली
कशिश मुस्कुराते हुए तृषा को पूरी बात बताती है कैसे उसको पीहू मिली....... पूरी बात सुनने के बाद तृषा बोली यह तो तुमने बहुत अच्छा किया और वैसे भी यह बच्ची बहुत प्यारी है पर आई थिंक तुमको पीहू लीगली अडॉप कर लेना चाहिए ।
क्योंकि कल को अगर इसके पिता ने इसको पहचान लिया तो वह तुमको इससे दूर कर देंगे और तुम को देख कर तो मैं इतना समझ गई हूं कि तुम इस के कितने करीब आ चुकी हूं तुम कभी नहीं चाहोगी कि पीहू तुमसे दूर हो।
बात तो तुम्हारी बिल्कुल सही है मैं जल्द पीयू के लिए कोर्ट में अप्लाई कर दूंगी।
अच्छा यह सब छोड़ो तुम पीहू को संभालो मैं अच्छा सा डिनर बनाती हूं दोनों के लिए....... अच्छा ठीक है तुम जाओ मैं तुम्हारी बेटी का अच्छे से ध्यान रखूंगी।
अच्छा काकी आप भी घर के रह निकल जाइए सब आपका इंतजार कर रहे होगे और उसके बाद काकी भी अपने घर चले निकल जाती है।
थोड़ी देर बाद कशिश तृषा का फेवरेट खाना बनाकर डाइनिंग टेबल पर सजा देती है और दूध का बोतल लेकर पीहू को दूध पिलाने लगती है।
पीहू कुछ खाती नहीं है।....... अभी वह बहुत छोटी है मैंने डॉक्टर से बात किया था उन्होंने कहा था 6 महीने में वह खाना स्टार्ट कर देगी तो उसको खिचड़ी और दलिया खिला सकते हैं इसलिए तो मैं सोच रही हूं कल मॉल चलते हैं घूम भी लेंगे और मैं भी हूं के लिए शॉपिंग भी कर लूंगी।
यह तो बहुत अच्छी बात है इसी बहाने हम दोनों साथ में टाइम स्पेंड कर पाएंगे कि बहुत टाइम हो गया हम मिले ही नहीं।
फिर दोनों डिनर करती है और अपने अपने रूम में सोने चली जाती है।
कोई फ्रेंड के आने से हमें भूल गया हूं...... पैसा नहीं शिवानी दी आप ही ने तो कहा था जब मैं मुसीबत में होंगी तब आप मेरे सामने आओगे इसलिए मैंने भी आपको डिस्टर्ब नहीं किया कशिश हंसते हुए बोली....... अच्छा ठीक है तुम खुश हो यह देखकर मुझे खुशी होती है।
कुछ देर बातें करने के बाद कोशिश तो जाती है और शिवानी की साया गायब हो जाती है।
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संडे की सुबह
कशिश कितना टाइम लगेगा तुमको तैयार होने में पहले तो इतना टाइम लगता था।...... मैडम पहले अकेले थे इसलिए टाइम मिलता था पर आप हमारे साथ पीहू भी है। इसलिए थोड़ा टाइम लग गया
अच्छा तुम पीहू को पकड़ो मैं गाड़ी निकालती हू। कशिश पीयू को तृषा को देखकर अपना कार्ड निकालती है और दोनों उस में बैठकर सनशाइन मॉल के तरफ निकल जाते हैं। थोड़ी देर में दोनों मॉल पहुंचते हैं।
इधर अभिमन्यु और राजवीर भी सनशाइन मॉल पहुंचते हैं।
तुषा तुम यहां वेट करो मैं कार पार्क करके आती हूं। और कशिश कार पार्क करने चली जाती है जब वह पार्क करके आ ही नहीं होती है।
तृषा पीहू को लेकर खड़ी थी और पीहू से बातें कर रही थी तभी कोई उसको छक्का मारता है और तृषा गिरने होती है की तभी दो मजबूत बाहों उसे बचा लेता हैं।.........
To be continue........
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तुषा, तुम यहां वेट करो, मैं कार पार्क करके आती हूं।
और कशिश कार पार्क करने चली जाती है, जब वह पार्क करके आती है तो वह नजर नहीं आती।
तृषा पीहू को लेकर खड़ी थी और पीहू से बातें कर रही थी। तभी कोई उसे धक्का मारता है और तृषा गिरने ही वाली थी, तभी दो मजबूत बाहों ने उसे बचा लिया।
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गिरने के झटके की वजह से पीहू रोने लगती है। तब तृषा को महसूस होता है कि वह नहीं गिरी तो खुद को ठीक से खड़ा करती है और सामने खड़े इंसान को देखती है जिसने उसे बचाया था। उसे देखकर वह हैरानी से बोलती है, "अ...भि...अभी।"
अभि भी तृषा को एक बच्चे के साथ देखकर हैरान हो जाता है और खुद से बोलता है, "क्या तुम अपनी लाइफ में आगे बढ़ गई हो? मुझे विश्वास नहीं हो रहा, तृषा। क्योंकि मुझे हमेशा से लगता था कि हमारा प्यार सच्चा है और कोई इसके बीच नहीं आएगा, पर तुम आगे बढ़ गई।"
अभी यह सब सोच ही रहा था कि तभी कशिश भागते हुए आती है और पीहू को अपनी गोद में लेकर चुप कराने लगती है।
"बस, बस बच्चा! कुछ नहीं हुआ, मम्मा हैं ना?" कशिश के बहलाने से पीहू चुप नहीं होती है।
कशिश पीहू को संभालते हुए तृषा से बोलती है, "तुम ठीक हो न, तृषा? कहीं लगी तो नहीं?"
"मैं बिल्कुल ठीक हूं, कशिश, पर पीहू तो ठीक है ना?"
"उसे कुछ नहीं हुआ, बस वह थोड़ा सा डर गई है," कशिश पीहू को संभालते हुए बोलती है।
"ठीक है, फिर हम घर चलते हैं, मुझे कोई शॉपिंग नहीं करनी।"
"तृषा, तुम टेंशन मत लो, कुछ नहीं हुआ है पीहू को और हम पहले रेस्टोरेंट चलते हैं, उसके बाद शॉपिंग करेंगे... ओके।"
कशिश और तृषा बात कर रही थीं कि तभी अभि तृषा को अपनी तरफ करते हुए पूछता है, "तुम ठीक हो न?" अभी की आंखों में तृषा के लिए प्यार और परेशानी दोनों दिख रही थी, जिसे देख तृषा की आंखें नम हो जाती हैं। "मैं ठीक हूं," तृषा खुद को संभालते हुए बोलती है और अभि को इग्नोर करके कशिश के पास जाकर खड़ी हो जाती है।
वही तृषा का ऐसा व्यवहार देखकर अभि को बहुत बुरा लगता है, जिससे वह इतना प्यार करता था, वह उससे बिना कोई गलती के दूर हो गई।
कशिश से पीहू शांति नहीं हो रही थी। कशिश को समझ नहीं आ रहा था कि पीहू शांत क्यों नहीं हो रही।
लेकिन कोई और भी था जिसे पीहू का रोना बर्दाश्त नहीं हो रहा था और वह धीरे-धीरे अपने कदम पीहू और कशिश की तरफ बढ़ाता है।
कशिश के पास पहुंचकर वह पीहू को अपनी गोद में लेकर चुप कराता है। पीहू भी उसके गोद में जाकर एकदम से शांत हो जाती है, जैसे कोई अपना उसे गले लगा लिया हो।

राजवीर प्यार से पीहू को शांत कराते हैं और उसे अपने गले से लगा लेते हैं। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसने अपनी बेटी को गले लगाया हो। एक पल के लिए राजवीर को पीहू में अपनी बेटी का अंश दिखता है। (शिवानी की आत्मा यह देखकर मुस्कुरा देती है)
कशिश हैरानी से राजवीर की तरफ देखती है क्योंकि वह जानती थी कि राज कितना नफरत करता है उसे, फिर भी उसकी बच्ची को अपनी गोद में ले रहा है। पीहू भी शांत हो गई है राज के पास जाकर।
अभी वह हैरानी से राजवीर को देख ही रही थी कि तभी राजवीर तंज कसते हुए बोलता है, "जब तुमसे बच्चे संभलते नहीं हैं तो अपने हस्बैंड के साथ क्यों नहीं लेकर आती हो जो तुम्हारी बच्ची का ध्यान रखें?"
"मेरे कोई हस्बैंड नहीं है," इतना बोलते हुए कशिश को समझ नहीं आता कि उसने क्या बोल दिया और तुरंत पीहू को अपनी गोद में लेकर रेस्टोरेंट की तरफ चली जाती है। तृषा भी उसके पीछे-पीछे चल देती है।
वही राजवीर और अभिमन्यु दोनों उन्हें जाते हुए देखते रह जाते हैं।
कशिश और तृषा रेस्टोरेंट के एक प्राइवेट रूम में बैठकर बातें कर रहे थे और कशिश पीहू को बॉटल से दूध पिला रही थी।
वही बाहर राजवीर रेस्टोरेंट के मैनेजर पर गुस्सा कर रहा था।
"तुमको पता है कि इस प्राइवेट रूम को मैंने परमानेंटली बुक कर रखा है, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई किसी और को देने की?" राजवीर गुस्से से मैनेजर से बोलता है।
"सॉरी सर, मैं देना तो नहीं चाहता था, पर उन मेम को अपनी बच्ची को फ़ीड करना था।
सर, प्लीज़ एडजस्ट कर लीजिए और हमने रूम का पार्टीशन कर दिया है, एक साइड आप लोग के लिए अरेंज किया है और दूसरी साइड उन मेम के लिए।"
"राजवीर, कोई बात नहीं है, सिर्फ लंच ही तो करना है। और तुम्हें पता है आज संडे है, बहुत ज्यादा भीड़ है, और मुझे लगता है उस लेडी को भी यही प्रॉब्लम है।"
अभिमन्यु की बात सुनकर राजवीर, " हां," करता है और दोनों प्राइवेट रूम में जाते हैं और बैठकर अपना ऑर्डर करते हैं।
(बाकी तो आप लोग समझ ही गए होंगे कि वह लेडी कौन है 😁)
कशिश पीहू को वॉटर से दूध पिलाते हुए बोली, "तृषा, तुम सब कुछ जानती हो कि क्यों मैं राज से दूर हुई थी, पर तुमने क्यों अभि का साथ छोड़ दिया? तुम्हें पता है ना वह कितना प्यार करता है तुमसे? आज भी उसकी आंखों में तुम्हारे लिए वही प्यार देखा है मैंने। आज एक बार फिर कह रही हूं, तुमसे वापस लौट जाओ अभि के पास, मेरी वजह से अपनी लाइफ खराब मत करो।"
अभिमन्यु और राजवीर अपना नाम सुनकर कान खड़े कर लेते हैं और ध्यान से दोनों की बातें सुनने लगते हैं।
"यह बात सच है, कशिश, कि अभि मुझसे बहुत प्यार करता है और शायद मैं भी उनसे बहुत प्यार करती हूं," (तृषा की यह बात सुनकर दूसरे साइड बैठे अभिमन्यु के दिल को सुकून मिलता है)। "पर जो तुम्हारे साथ गलत हुआ था, वह मैं कभी भूल नहीं सकती। आज भी याद है मुझे, कितने दिनों तक तुम डिप्रेशन में रही थी, डॉक्टर ने तो यह तक कह दिया था कि तुम्हारी जान बचने की संभावना बहुत कम है। तुम्हें पता है उस वक्त मुझ पर क्या बीती थी?" तृषा इमोशनल होते हुए बोली।
"इसीलिए जो जैसा चल रहा है, उसे वैसा ही रहने दो और शायद हमारी किस्मत में दूर रहना ही लिखा था।"
वही तृषा की बात सुनकर राजवीर को समझ नहीं आ रहा था कि गलत कौन है और सही कौन है, पर इस वक्त उसका दिमाग सिर्फ कशिश को गलत समझ रहा था।
"जैसा तुम चाहो, तृषा, पर मैं तो यही कहूंगा, मत दूर हो अभिमन्यु से, तुम दोनों खुश नहीं रह पाओगे अगर तुम अलग हो। चलो पीहू अब ठीक है, हम शॉपिंग करते हैं क्योंकि मुझे कल से ऑफिस भी जॉइन करना है। उसके बाद तो फिर टाइम मिलना मुश्किल है।" फिर दोनों वहां से निकलकर मॉल की तरफ चले जाते हैं।
वहीं दूसरी साइड अभिमन्यु और राजवीर दोनों लड़कियों की बातों के बारे में सोचते हुए, जहां राजवीर सही और गलत का फैसला नहीं कर पा रहा था, वही अभिमन्यु खुश था कि तृषा आज भी उससे प्यार करती है।
दोनों कुछ देर में रेस्टोरेंट से बाहर निकलते हैं और अपने प्लान के हिसाब से पूरा दिन बिताते हैं और अपने घर की तरफ निकल जाते हैं।
तृषा और कशिश भी अपनी जरूरत की शॉपिंग करके घर चले जाते हैं।
गहरी रात हो रही थी, सब अपने-अपने सोच के साथ नींद के आगोश में चले जाते। किसी को नहीं पता कि अगला दिन उनके लिए क्या लेकर आएगा...
To be continue.......
सॉरी माय डियर रीडर
मुझे पता है आप सभी मेरी इस स्टोरी का इंतजार कर रहे हैं बट कुछ पर्सनल रीजन के वजह से मैं नहीं लिख पा रही थी। अब से पूरी कोशिश करूंगी की स्टोरी के पार्ट रोज देने का😌
आप सभी प्यारे-प्यारे कमेंट करते रहे😁
And don't forget to follow😀
दोनों कुछ देर में रेस्टोरेंट से बाहर निकलते हैं और अपने प्लान के हिसाब से पूरा दिन बताते हैं और अपने घर की तरफ निकल जाते हैं।
तृषा और कशिश भी अपनी जरूरत की शॉपिंग करके घर चले जाते हैं।
गहरी रात हो रही थी, सब अपने-अपने सोच के साथ नींद के आगोश में चले जाते हैं, किसी को नहीं पता कि अगला दिन उनके लिए क्या लेकर आएगा।
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अगली सुबह
खिड़की से सूर्य की रोशनी कशिश के चेहरे पर पड़ती है, जिससे उसकी नींद खुलती है। सबसे पहले अपनी बेटी को देखने के लिए अपनी साइड में देखती है, पर पीहू वहां पर नहीं थी। पीहू को अपने बगल में न देख कर कशिश घबरा जाती है और जल्दी से बिस्तर से उठकर आसपास देखती है। जब रूम में पीहू नहीं मिलती है, तो कशिश बाहर जाकर देखती है। जैसे ही बाहर निकलती है, तो सामने शारदा काकी पीहू की मालिश कर रही होती हैं।
काकी: "एक बार बता तो देती, पीहू को अपने पास न देख कर कितना डर गई थी मैं। और आप क्या कर रही हो?"
शारदा काकी: "माफ करना बेटा, तुम बहुत गहरी नींद में थी, इसलिए मैंने नहीं उठाया। और पीहू को यहां ले आई मालिश करने के लिए। अभी बच्ची छोटी है, ना? इसको जितना मालिश करोगी, वैसे बच्चे की हड्डियां मजबूत होंगी।"
कशिश: "मुझे तो यह बात पता ही नहीं थी। अच्छा हुआ आपने बता दिया। क्या आप रोज पीहू की मालिश किया करेंगी? क्योंकि मुझे तो नहीं आता यह सब।"
शारदा काकी: "अरे बिटिया, तुम्हारा पहला बच्चा है न, जल्दी सब कुछ सीख जाओगी। अभी तो इन सब के लिए मैं हूं, तुम ऑफिस के लिए तैयार हो जाओ, नहीं तो लेट हो जाओगी।"
कशिश: "जी काकी।"
काफी की बात सुनकर कशिश अपने रूम में आती है और उदास मन से अपने बेड पर बैठ जाती है।
शिवानी (आत्मा): "क्या हुआ, कुछ इतना उदास क्यों हो?"
कशिश: "शिवानी, तुमने मुझे ही क्यों चुना? देखो, मुझे तो कुछ पता भी नहीं है बच्चों के बारे में। मैं कभी एक अच्छी मां नहीं बन पाऊंगी।"
शिवानी (मुस्कुराते हुए): "इस दुनिया में जितनी भी मां होती हैं, उनमें से किसी को भी यह नहीं पता होता कि बच्चों को कैसे संभालते हैं, किस वक्त क्या करना होता है। लेकिन वे कभी हार नहीं मानतीं और कोशिश करती हैं सीखने की। वे या तो किसी से पूछती हैं या खुद से सीख जाती हैं जब उनके पास बच्चा होता है। शायद इसी कारण से बच्चों को जन्म लेने में 9 महीने लगते हैं, ताकि हर मां अपने बच्चे को अपने अंदर महसूस कर सके और उसके बारे में जान सके, फिर खुद सब कुछ सीख जाती है।"
शिवानी: "तुम उसकी यशोदा मां हो और धीरे-धीरे तुम सब कुछ सीख जाओगी। क्योंकि किसी भी मां को अपने बच्चों को संभालने के लिए सीखना नहीं पड़ता है। पीहू के साथ वक्त बिताते-बिताते सब कुछ सीख जाओगी। इसीलिए टेंशन मत लो। जल्दी से तैयार हो जाओ, क्योंकि तुम्हारा बॉस तुम्हारा इंतजार कर रहा है।"
शिवानी मुस्कुराते हुए बोलकर गायब हो जाती हैं।
कशिश (खुद से): "पता नहीं मेरे साथ क्या होगा। महादेव, इस बालिका की रक्षा करना। नहीं तो पता नहीं वीर मुझसे कैसे बदला लेगा।"
फिर कशिश फ्रेश होने चली जाती है और थोड़ी देर बाद अपने कमरे से बाहर निकलती है।
काकी: "कशिश बेटा, नाश्ता कर लो।"
कशिश: "जी काकी, आप नाश्ता निकालिए, मैं तब तक अपनी पीहू के साथ खेल लूंगी। सुबह से एक बार भी अपनी बच्ची को नहीं लिया मैंने, और फिर ऑफिस का पता नहीं कब आऊं।"
इतना बोलते हुए कशिश पीहू को ले लेती है, उसे दूध पिलाती है और उसके साथ खेलती है, बातें करती है।
तृषा (डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए): "मम्मा, आप को ऑफिस में बहुत मिस करेंगी।"
तृषा: "वह तुम को बिल्कुल मिस नहीं करेगी क्योंकि उसकी मासी जो उसके साथ है।"
कशिश: "मुझे लगा तुम हॉस्पिटल चली गईं।"
तृषा: "आज मैं हॉस्पिटल नहीं जाऊंगी। आज कोई अप्वाइंटमेंट्स नहीं है। आज मैं सिर्फ अपनी पीहू के साथ रहूंगी।"
"अच्छा ठीक है, तुम एंजॉय करो और मुझे भी टेंशन नहीं होगी पीहू का क्योंकि डॉक्टर साहब हैं साथ में।"
कशिश मुस्कुराते हुए जवाब देती है और अपना नाश्ता करती है। फिर सबको बाय बोलकर ऑफिस के लिए निकल जाती है।
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राजगीर का घर
राजवीर अपने रूम में तैयार हो रहा था तभी अभिमन्यु अंदर आता है।
अभि: "क्या बात है भाई, आज बहुत जल्दी रेडी हो रहे हो? कोई खास बात है क्या?"
राजवीर: "कुछ ऐसा ही समझ लो, अभि। आज से किसी की उल्टी गिनती शुरू होने वाली है। बहुत शौक है ना लोगों को तकलीफ देने का? अब पता चलेगा तकलीफ किसे कहते हैं।"
अभि: "मतलब तुम कुछ करने वाले हो कशिश के साथ, पर जो भी करना सोच समझ कर करना, क्योंकि अभी अकेली नहीं, उसकी बेटी भी उसके साथ है।"
राजवीर: "मुझे पता है अभि, पर पता नहीं क्यों, जब कल मैंने उसकी बच्ची को गोद में लिया था, तो मुझे एक पल के लिए लगा जैसे मेरी गुड़िया मेरे पास हो।"
अभि: "बात तो तुम्हारी बिल्कुल सही है। यह एहसास तो मुझको भी हुआ था। क्या पता, इसलिए ही हम बहुत मिस कर रहे हैं अपनी गुड़िया को, हमारी जान थी यार।"
इतना बोलते हुए अभिमन्यु की आंखें नम हो जाती हैं। उसे देख राजवीर की आंखों में भी आंसू आ जाते हैं, पर वह खुद को संभालता है और अपने ऑफिस के लिए निकल जाता है।
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ऑफिस में
कशिश ऑफिस पहुंचती है और सबको गुड मॉर्निंग विश करते हुए अपनी केबिन में जाती है। और मिस्टर खन्ना के डिजाइन पर काम करने लगती है।
कशिश काम कर रही थी कि केबिन के दरवाजे को खोलकर कोई अंदर आता है।
अमित: "सो, मिस कशिश, गुड मॉर्निंग।"
कशिश: "गुड मॉर्निंग सर।"
अमित: "कैसा चल रहा है काम? और आपने बिल्कुल सही फैसला लिया ऑफिस फिर से जॉइन करके।"
कशिश: "ठीक है चल रहा है सर। ऑफिस में जॉइन करना ही था मुझे क्योंकि फालतू के पैसे मुझे नहीं देने हैं।" कशिश मुस्कुराते हुए जवाब देती है।
अमित: "बिल्कुल ठीक कहा तुमने। और मैं यह बताने आया था कि कल से डिजाइन पर काम शुरू होगा। अभी आपको राजवीर सर ने आपको बुलाया है।"
कशिश: "अमित सर, आपको कोई आइडिया है, राजवीर सर क्यों बुला रहे हैं?"
अमित: "मुझे तो नहीं पता मिस।"
कशिश: "ओके सर, फिर मैं चलती हूं, नहीं तो वह गुस्सा करेंगे।"
अमित मुस्कुराते हुए कहता है, "सही कहा।"
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कशिश राजवीर के केबिन के बाहर खड़ी होती है और गहरी सांस लेकर दरवाजा खोलती है। अंदर से "कम इन" की आवाज आती है, तो कशिश अंदर जाती है।
To be continue........
अब से पक्का स्टोरी कंटिन्यू रहेगी क्योंकि इस मंथ के लास्ट तक इसको खत्म करना एम रियली सॉरी🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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अमित सर, आपको कोई आइडिया है राजवीर सर क्यों बुला रहे हैं?
मुझे तो नहीं पता, मिस...
ओके सर, फिर मैं चलती हूं, नहीं तो वो गुस्सा करेंगे...
अमित मुस्कुराते हुए: सही कहा।
कशिश राजवीर के केबिन के बाहर खड़ी होती है और गहरी सांस लेकर दरवाजा खटखट करती है। अंदर से "कम इन" की आवाज आती है तो कशिश अंदर जाती है।
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सामने राजवीर कोई फाइल पढ़ रहा था। कशिश सामने जाकर खड़ी हो जाती है और धीरे से "गुड मॉर्निंग सर" कहती है।
कशिश की आवाज सुनकर राजवीर ऊपर देखता है और कशिश को देखकर देखता ही रह जाता है। एक पल के लिए वह भूल जाता है कि वह उससे नफरत करता है।
आज ऑफिस का ट्रेडिशनल डे था, इसीलिए कशिश ने ब्लैक कलर की साड़ी पहनी थी और बालों का जुड़ा बना लिया था। हल्के मेकअप के साथ वह बहुत खूबसूरत लग रही थी, जिसे देखकर राजवीर सब कुछ भूलकर उसे ही देख रहा था। उसका मन तो कर रहा था कि अभी जाकर कशिश को अपनी बाहों में भरकर चुम ले।
"सर, आपने मुझे बुलाया था?"
कशिश की आवाज सुनकर राजवीर अपने सपनों की दुनिया से बाहर आता है और इधर-उधर देखते हुए "हां, मुझे मिस्टर खन्ना के प्रोजेक्ट के बारे में डिस्कस करना है।"
"डिजाइन ऑलमोस्ट रेडी है, कल से काम शुरू हो जाएगा। बाकी इंफॉर्मेशन आपको आज शाम तक दे दूंगी।"
"ओके।"
"क्या मैं अब जा सकती हूं?" "नहीं, मुझे तुमसे बात करनी है..."
"जी सर, क्या बात करनी है आपको?"
"वैसे तुम्हारा हसबैंड कहां चला गया?"
"सर, मैं अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में बताना आपको जरूरी नहीं समझती।"
"कल तुमने कहा तुम्हारे कोई हसबैंड नहीं है, इसका मतलब तो यही है कि तुमने अपनी बेटी के पिता को भी छोड़ दिया, जैसे मुझको छोड़ कर चली गई थी। मेरे जैसा शायद वह भी तुम्हारी जरूरत पूरी नहीं कर पाया।"
"जस्ट शट अप! आप इतनी घटिया सोच रखते हैं मेरे बारे में। वीर, आप मेरे बारे में ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं? शायद मेरा ही प्यार गलत था, तभी तो आप मुझे ऐसी बातें कर रहे हो। आपको थोड़ा भी शर्म नहीं आ रही।"कशिश की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे और उसका पूरा चेहरा रोने के कारण लाल हो गया।
एक पल को तो कशिश की ऐसी हालत देखकर राजवीर भी पिघल गया, लेकिन अपने भावनाओं को एक तरफ रखकर कशिश के बाजू को पकड़ते हुए बोला: "इतनी भोली बनने का ड्रामा मत करो, क्योंकि जब तुम्हारा मुझसे मन भर गया, तुम मुझे छोड़ कर चली गई थी। क्या बोला तुमने, अब हमारे बीच कुछ नहीं है? पर शायद तुम भूल चुकी हो, तो याद दिला देता हूं कि हमारा रिश्ता कितना आगे तक था। तुम्हारे जिस्म का एक-एक अंक देखा है। अब तुम ही बताओ, कैसा था हमारा रिश्ता?"
"प्लीज... वीर, ऐसी बातें मत करो, कि बाद में तुम खुद पछताओ। और तुमको जो सोचना है मेरे बारे में, तुम सोच सकते हो, क्योंकि तुमको नहीं पता, इतने सालों में कितनी परेशानियों का सामना किया है। तुमसे दूर होने का कारण क्या था। बस इतना एहसान कर दो कि मुझसे और मेरी बेटी से दूर रहो।"इतना बोल कशिश रोते हुए केबिन से बाहर चली जाती है।
कशिश जाने के बाद राजवीर अमित को कॉल करता है और जल्दी से अपने केबिन में बुलाता है।
कुछ ही समय में अमित राजवीर के केबिन में आता है।"एस बॉस..."
"कुछ समय पहले मैंने तुमसे मिस कशिश का सारी इंफॉर्मेशन निकालने के लिए बोला था?"
"यस बॉस, मैंने आपको पूरी इंफॉर्मेशन दे दी थी।"
"दोबारा सारी इंफॉर्मेशन निकालो, इन 3 सालों में उसने क्या-क्या किया और उसकी लाइफ में कौन-कौन आए हैं?"
"एस बॉस," इतना बोलकर अमित कैबिन से चला जाता है।
पता नहीं क्यों, लेकिन हमेशा लगता था कि तुम किसी परेशानी में हो। अगर ऐसा हुआ, तो आज मेरे कहे इन शब्दों के लिए मुझे माफ मत करना।इतना बोल राजवीर अपने कामों में लग जाता है।
अमित राजवीर के केबिन से बाहर आकर खुद से बोलता है: "यह बॉस मिस कशिश के पीछे क्यों पड़ गए हैं? पता नहीं इनके दिमाग में क्या चलता है। चल अमित, लग जा काम पर, नहीं तो तेरी नौकरी गई।"
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कशिश का केबिन
कशिश की आंखों के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। रह-रह कर उसके कानों में राजवीर की कड़वी बातें गूंज रही थीं, जिसे सोच-सोचकर उसे अपने दिल में दर्द महसूस हो रहा था कि उसके प्यार ने ही उसके चरित्र पर उंगली उठाई।
अभी कशिश खुद को संभाल रही थी कि तभी उसका फोन बजता है। कॉल उसके पापा का था, जो हमेशा किसी काम पर ही उसे कॉल करते थे। कशिश ने खुद को संभाला और फोन उठा लिया।
"हेल्लो पापा, कैसे कॉल करना हुआ?"
पापा: "क्या मैं अपनी बेटी को कॉल नहीं कर सकता?"
"ऐसी बात नहीं है, आप बोलिए।"
पापा: "तुम्हारी मां ने तुमको घर बुलाया है, अगर हो सके तो अभी आ जाओ।"
"देखती हूं, अगर कोई काम नहीं होगा ऑफिस में तो मैं अभी आ जाऊंगी।"
पापा: "अच्छा, ठीक है। बाय!"(बाय बोलकर कशिश के पापा फोन काट देते हैं।)
कशिश मुस्कुराते हुए खुद से कहती है: "एक बार भी नहीं पूछा कि कैसी है मेरी बच्ची, बस अपने काम के लिए कॉल करते हैं।" फिर खुद को समझते हुए वॉशरूम में जाती है और फ्रेश होकर अमित सर के केबिन की तरफ चली जाती है।
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कशिश अमित के केबिन का दरवाजा खटखट करती है..."कम इन!"
"अरे मिस कशिश, बोलिए, क्या बात है?""सर, मुझे हाफ डे मिल सकता है?"
"हां, क्यों नहीं, अभी कोई काम नहीं है, आप जा सकती हैं। मैं सर को बता दूंगा।"
"थैंक यू सर," इतना बोल कशिश वर्मा हाउस के लिए निकल जाती है।
To be continue........
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कशिश अमित के केबिन का दरवाजा खटखट करती है..."कम इन!"
"अरे मिस कशिश, बोलिए, क्या बात है?""सर, मुझे हाफ डे मिल सकता है?"
"हां, क्यों नहीं? अभी कोई काम नहीं है, आप जा सकती हैं। मैं सर को बता दूंगा.""थैंक यू सर," इतना बोल कशिश वर्मा हाउस के लिए निकल जाती है।
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वर्मा हाउस
पुरी वर्मा फैमिली हॉल में बैठकर किसी बात पर डिस्कशन कर रहे थे तभी घर की डोर बेल बजती है। सर्वेंट गेट खोलता है और सामने कशिश खड़ी होती है।"अरे कशिश बेटा, आओ अंदर!"
"नमस्ते काका, कैसे हैं आप?""मैं बिल्कुल ठीक हूं बेटा, अंदर आओ।"
कशिश अंदर जाती है और हॉल में जाकर बैठ जाती है, जहां उसके मम्मी (सोनी वर्मा), पापा (अनंत वर्मा), भाई (वरुण वर्मा) और उसकी गर्लफ्रेंड नताशा बैठी होती हैं।
कशिश बिना बातों को घुमाए सीधे उनके पास जाकर बोलती है, "आप सब मुझे क्यों याद कर रहे हैं?"
"दी, आप हमारी फैमिली के मेंबर हो, आपको कैसे याद नहीं करेंगे?" वरुण मुस्कुराते हुए कशिश से बोला।
"वह क्या है ना, मेरे छोटे भाई हमारा परिवार थोड़ा अलग है। जब उन्हें मेरी जरूरत होती है या फिर मुझसे कोई काम होता है, तभी वे लोग मुझे याद करते हैं।"
"तुम्हारी सोच गलत है कशिश, इन सब को छोड़ो। मेन मुद्दे की बात यह है कि तुम जानती हो हमारी कंपनी कितने लॉस में जा रही है, इसीलिए हमारे एक बिजनेस पार्टनर हमारी कंपनी में पैसे लगाना चाहते हैं, बट उनकी एक शर्त है।"आनंत वर्मा इतना बोलकर चुप हो जाते हैं।
"मैं गलत नहीं हूं पापा, कोई बात नहीं। आप ही बताइए, क्या शर्तें हैं?"
"शर्त यह है कि तुम्हें हमारे बिजनेस पार्टनर रवि कपूर के साथ शादी करनी होगी।"
"और आपने यह सोच कैसे लिया कि मैं उनसे शादी करूंगी? एक पल को, अगर मैं मान भी जाऊं शादी करने को, तो आपको पता है रवि कपूर आपकी उम्र के हैं। आप कैसे अपनी बेटी की शादी करवा सकते हैं? इस बार भी आपने अपनी बेटी के लिए नहीं सोचा।"
"देखो, माना कि वह उम्र में बड़े हैं, लेकिन तुम्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं होगी, मिसेस वर्मा कशिश को समझाते हुए बोली।"
"सॉरी, लेकिन मुझे कोई शादी नहीं करनी। मैं अपनी बेटी के साथ खुश हूं। अब आप यह देख लीजिए, आपको अपनी कंपनी बचाने के लिए क्या करना है। ओके, अब मैं चलती हूं।"
"देखो कशिश, शादी तो तुम्हें करनी होगी। आखिर तुम हमारी बेटी हो, हमारे लिए इतना नहीं कर सकती? और वैसे भी तुम्हारी वह बेटी पता नहीं किसका गंदा खून है। उसे किसी अनाथ आश्रम में छोड़कर रवि कपूर से शादी कर लो, नहीं तो तुम सोच नहीं सकती, तुम्हारे उस बेटी के साथ मैं क्या करुंगी?"मिसेस वर्मा कशिश को धमकाते हुए बोलती हैं।
"कैसी मां है, अपनी बेटी की जिंदगी खराब करने के लिए कुछ भी कर सकती है। आपको जो करना है करो, लेकिन मेरी बेटी से दूर रहो। अगर आपकी वजह से मेरी बच्ची को एक खरोंच भी आई, तो मैं भूल जाऊंगी कि आप मेरी मां हैं।"
इतना बोलकर कशिश गुस्से से वर्मा हाउस से निकल जाती है।
"मॉम दी को कैसे भी करके मनाऊं, नहीं तो हम रोड पर आ जाएंगे।"
"तुम टेंशन मत लो बेटा, बहुत जल्द कशिश मान जाएगी।"
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कशिश की गाड़ी रोड पर तेज रफ्तार में चल रही थी। उतनी रफ्तार में उसके दिमाग में बहुत सी बातें आ रही थी। एक तरफ राजवीर की बातें, वहीं दूसरी तरफ उसके परिवार का ऐसा व्यवहार। यह सब कशिश को अंदर से तोड़ रहा था।
"हम इस दुनिया में सब से लड़ सकते हैं, लेकिन जब हमारे सामने परिवार से कोई का हो, तो हम ना लड़ सकते हैं, न जीत सकते हैं। इतने कमजोर हो जाते हैं कि समझ नहीं आता क्या करें।"इस वक्त कशिश की हालत भी कुछ ऐसी ही थी।
अभी यह सब सोच रही थी कि तभी उसका फोन बजता है। कॉल राजवीर का था। पहले तो कशिश फोन नहीं उठाना चाहती थी, लेकिन जब दूसरी बार फोन आता है तो कशिश फोन उठाती है।
"और कुछ रह गया था बोलने के लिए, जो कॉल किया आपने?"
"ऐसा कुछ नहीं, मुझे तुमसे जरूरी बात करनी है। बताओ, तुम कहां हो?"
"जो बोलना है, अभी बोलिए, मैं अभी कहीं नहीं आ सकती।"
"एक बार में तुमको समझ नहीं आता? मैंने बोल रहा हूं, मुझे मिलना है तुमसे!"
"मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी अभी," कशिश इतना बोल ही रही थी कि उसकी गाड़ी सामने से आ रहे ट्रक से टकरा जाती है और जोर का धमाका राजवीर को सुनाई पड़ता है। सब कुछ शांत हो जाता है।
"कशिश... क...शिश, तुम ठीक हो ना कशिश?"
राजवीर घबराते हुए घर से बाहर निकलता है और अपनी गाड़ी लेकर कशिश की लोकेशन के लिए निकल जाता है।
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आज कशिश को इतना लेट क्यों लग रहा है? यहां पीहू भी शांत नहीं हुई। क्या करूं, कॉल क्यों नहीं उठा रही है? मेरे पास तो उसके ऑफिस का भी नंबर नहीं है।
कुछ सोचकर तृषा एक नंबर डायल करती है। थोड़ी देर में रिंग जाने के बाद कोई कॉल उठाता है।
"हैलो तृषा..."
"आज भी तुम्हारे पास मेरा नंबर है?" तुषार इमोशनल होते हुए बोलता है।
"हां तृषा.""अच्छा, बताओ क्या हुआ?"
"कशिश अब तक घर नहीं आई है। आप ऑफिस में कॉल करके पता करवा सकते हैं क्या?"
"अच्छा, तुम थोड़ी इंतजार करो..."
To be continue.......
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"आज भी तुम्हारे पास मेरा नंबर है?" तुषार इमोशनल होते हुए बोला।
"हां तृषा."
"अच्छा बताओ, क्या हुआ?""कशिश अब तक घर नहीं आई है। आप ऑफिस में कॉल करके पता करवा सकते हैं क्या?"
"अच्छा, तुम थोड़ी इंतजार करो..."
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एक अंधेरा कमरा, जिसमें चारों तरफ पीले रंग की रोशनी फैली हुई थी। दो आदमी खड़े थे, पर दोनों के ही चेहरे नहीं दिख रहे थे। तभी पहला आदमी बोला, "काम हो गया..."
"जी बॉस, और इस बार भी किसी को पता नहीं चलेगा कि एक्सीडेंट किसने किया।"
"अब जल्दी से शहर छोड़ दूं क्योंकि मुझे अच्छे से पता है, राजवीर इसकी छानबीन करेगा...""जी बॉस."
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"प्लीज गॉड, मेरी गलती का इतना बड़ा सजा मत देना। कशिश को कुछ नहीं होना चाहिए। पहले ही शिवानी को खो चुका हूं, अपनी बच्ची को भी..."यह बोलते हुए पार्क में राज की आंखें नम हो जाती हैं।
जल्द ही राजवीर कशिश की लोकेशन पर पहुंचता है, जहां आसपास बहुत भीड़ लगी हुई थी। पुलिस जांच चल रही थी और लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे।
राजवीर हिम्मत करके भीड़ को चीरते हुए कार के पास जाता है, जहां कार की हालत बहुत बुरी थी। ऐसा लग रहा था कि शायद ही कोई बचा होगा। इसे देखकर राजवीर की हालत और खराब हो जाती है। वहां पुलिस कार की जांच कर रही थी।
"देखिए सर, यहां से दूर रहिए। यहां पर अभी किसी को आने की परमिशन नहीं है। आप प्लीज थोड़ा दूर हो जाइए।"
"देखिए, जिसका यहां एक्सीडेंट हुआ है, मैं उनका दोस्त हूं। आप बताइए, कहां हैं?"
"उनकी हालत बहुत खराब है। उन्हें यहां पास में ही श्री हॉस्पिटल लेकर गए हैं और..."कॉन्स्टेबल आगे कुछ बोले उससे पहले ही राजवीर वहाँ से चला जाता है।
राजवीर हॉस्पिटल की तरफ जा ही रहा था कि तभी उसके फोन पर किसी का कॉल आता है। कॉल अभि का था।
"हां बोलो अभि?" "तुम कहां हो राज? वह एक्चुअली, मुझे तृषा का कॉल आया था। वह पूछ रही है कि कशिश ऑफिस में है या नहीं?"
"अभि, कशिश का एक्सीडेंट हुआ है, मैं अभी वही हॉस्पिटल जा रहा हूं," राज फिर खुद को संभालते हुए बोला।
यह सुनकर अभि हैरान हो जाता है।"तुम टेंशन मत लो, मैं अभी पहुंचता हूं..."
"हम्म."
अभिमन्यु राजवीर से बात करने के बाद तुरंत तृषा को कॉल करता है और उसे पूरी बात बताता है। तृषा यह सुनकर परेशान हो जाती है और जल्दी से अभिमन्यु को अपना एड्रेस देती है।
"अभि, हम पीहू के साथ ड्राइविंग नहीं कर पाएंगे, आप प्लीज मुझे यहां से पिक कर लीजिए."
"ओके तृषा."
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हॉस्पिटल
राजवीर भागते हुए अंदर आता है और रिसेप्शन से पूछता है, "यहां पर एक्सीडेंट केस आया है। प्लीज मुझे उनका रूम नंबर बताइए."
"वेट सर, मैं अभी चेक करके बताता हूं."
"सर, पेशेंट अभी आईसीयू, रूम नंबर 309, थर्ड फ्लोर में हैं."
"ओके, थैंक यू." इतना बोलकर राजवीर जल्दी से थर्ड फ्लोर के रूम नंबर 309 में जाता है, जहां रूम के छोटे से कांच से कशिश को देखता है। कशिश की हालत बहुत खराब थी, चारों तरफ से मशीनों से घिरी हुई थी। इसे देखकर राजवीर को खुद के अंदर टूटता हुआ महसूस हो रहा था, जैसे खुद उसके दर्द को झेल रहा हो।
वहीं पर तृषा और अभिमन्यु भी आते हैं।
"राजवीर सर, कशिश कैसी है?"
"अभी मुझे कुछ नहीं पता, मैं खुद कुछ देर पहले आया हूं। अब डॉक्टर बाहर निकलेंगे, वही बताएंगे," राजवीर खुद को इमोशनल होने से रोकते हुए बोलता है।
तृषा भी पीहू को लेकर बेंच पर बैठ जाती है, राजवीर अभी भी कशिश को देख रहा था। कोई नहीं बता सकता था कि उसके मन में अभी क्या चल रहा था।
तभी डॉक्टर बाहर आते हैं। डॉक्टर को देख कर राजवीर फिर जल्दी से पूछता है, "डॉक्टर, कशिश कैसी है?"
डॉक्टर को लगता है कि शायद यह पेशंट के हसबैंड हैं, तो वह बोलते हैं, "देखिए, पेशंट की हालत बहुत खराब है, काफी खून बह चुका है, और एक पैर में फैक्चर भी है। सर पर काफी गहरी चोट है, और उनकी बॉडी बिल्कुल रिस्पॉन्स नहीं कर रही है। फिलहाल, आप में से किसी का भी ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव है तो जल्दी से ब्लड बैंक में जमा कर दें, नहीं तो कहीं और से इंतजाम करें." इतना बोलकर डॉक्टर चले जाते हैं।
डॉक्टर की बात सुनकर सब घबराते हैं, वहीं राजवीर पैनिक होकर सब को कॉल करने लगता है। राजवीर की ऐसी हालत देखकर तृषा और अभिमन्यु को तरस आता है, चाहे कितनी भी गुस्से में क्यों न हों, लेकिन अपने प्यार को इस हालत में देखना सबसे बड़ा दर्द होता है।
"राज, शांत हो जाओ। ऐसी पैनिक होने से कुछ नहीं होता, और तुम शायद भूल रहे हो, मेरा ब्लड ग्रुप भी बी पॉजिटिव है."
"यह बात मैं कैसे भूल गया, जल्दी जाओ और मेरी कशिश को ब्लड दो."
"तुम टेंशन मत लो, मैं अभी जा रहा हूं, और तुम्हारी कशिश को कुछ नहीं होगा, वह जल्दी ठीक हो जाएगी."
"तृषा, राज का ध्यान रखना और अपना भी। मैं अभी आता हूं."
"हां."
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राज, शांत हो जाओ। ऐसी पैनिक होने से कुछ नहीं होता, और तुम शायद भूल रहे हो कि मेरा ब्लड ग्रुप भी बी पॉजिटिव है... यह बात मैं कैसे भूल गया? जल्दी जाओ और मेरी कशिश को ब्लड दो... तुम टेंशन मत लो, मैं अभी जा रहा हूँ, और तुम्हारी कशिश को कुछ नहीं होगा, वो जल्दी ठीक हो जाएगी।
तृषा, राज का ध्यान रखना और अपना भी। मैं अभी आता हूँ... हाँ।
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अभिमन्यु ब्लड डोनेशन रूम में जाता है, जहां नर्स पहले से उसका इंतजार कर रही थी।
नर्स अभिमन्यु को एक बेड पर लेटा कर हाथ में नीडल लगाती है और उसे एक स्माइली बॉल देती है।
अभिमन्यु आराम से लेटा हुआ था, तभी उसे कुछ बातें याद आती हैं।
फ्लैशबैक:
कुछ बच्चे कॉलेज कैंटीन में बैठे थे। एक लड़की मुंह बनाते हुए बोली, "देखो, कितना दर्द हो रहा है। मैंने पहले ही बोला था कि मुझे नहीं करवाना ब्लड टेस्ट।"
कशिश"क्या बच्चों जैसी हरकतें करती हो? थोड़ा सा खून तो निकाला तुम्हारा ताकि पता चल सके कि कोई बीमारी तो नहीं है तुम्हें..."
कशिश (मुंह बनाते हुए): "तुम्हें क्या पता, कितना दर्द होता है!"
अभिमन्यु और राजवीर पास आकर बैठते हैं।
राजवीर, "सर, मुझे तो समझ नहीं आता कि आपने क्या देख कर इस कशिश को प्रपोज़ किया। जब से ब्लड डोनेट किया, बच्चों जैसे ड्रामा कर रही है।"
राजवीर कशिश को साइड से हग करते हुए कहते हैं, "इसीलिए तो इसको प्रपोज़ किया, क्योंकि इसके डिमांड भी बच्चों जैसे हैं। दूसरे लड़कियों जैसे नखरे नहीं करती, और फालतू के डिमांड भी नहीं करती, तो हुई ना मेरे लिए फायदेमंद?"राजवीर मुस्कुराते हुए बोला।
अभिमन्यु (राजवीर का मजाक उड़ाते हुए): "वाह भाई, इतनी अच्छी सोच लाता कहाँ से?"
राजवीर (मुस्कुराते हुए): "दिमाग से!"
अभिमन्यु: "अच्छा, यह सब छोड़ो। एक बात बताओ, तृषा तुम हमारे कॉलेज में एडमिशन क्यों नहीं ले लेती हो? मतलब, पूरा टाइम तो हमारे कॉलेज में रहती हो।"अभिमन्यु तृषा को टोंट मारते हुए बोला।
तृषा मैं कोई तुमसे मिलने नहीं आती, अपनी फ्रेंड से मिलने आती हूँ। तुम्हें क्यों इतनी मिर्ची लग रही है? और मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं है अपना मेडिकल छोड़कर बिजनेस स्टडी करने का।"
अभिमन्यु (मुस्कुराते हुए): "अब तुम लड़ाई शुरू मत कर देना। यह बताओ, सबने ब्लड दिया ना? किसका कौन सा ब्लड है?"
तृषा: "मेरा तो ओ पॉजिटिव है।"
राजवीर: "मेरा एबी पॉजिटिव है।"
अभिमन्यु: "मेरा तो बी पॉजिटिव है।"
अभिमन्यु की बात सुनकर कशिश खुश होते हुए बोली: "वाओ, अभि भाई, हम दोनों तो खून से भी भाई-बहन हो गए! मेरा भी बी पॉजिटिव है। आप मुझे टेंशन नहीं, मुझे फ्यूचर में कुछ होगा, तो आप मुझे ब्लड दे सकते हो।"
अभिमन्यु (मुस्कुराते हुए): "मैं कभी नहीं चाहूंगा कि फ्यूचर में तुम्हें कुछ हो। तुम्हें वरदान देता हूँ, तुम्हें मेरी खून की जरूरत कभी नहीं पड़ेगी।"
कशिश अपने भाई को गले लगाते हुए बोली: "बस, मैं इतना चाहती हूँ कि हम हमेशा ऐसे ही साथ रहें।"
उनके इस हग को तृषा और राजवीर भी ज्वाइन कर लेते हैं। चारों मिलकर हग करते हैं।
फ्लैशबैक एंड
यह सब सोचते हुए अभिमन्यु की आँखों में आंसू आ जाते हैं और वह खुद से कहते हैं, "काश हम कभी अलग नहीं हुए होते, तो कितने खुश होते आज..."
तभी नर्स आती है और अभिमन्यु के हाथ से नीडल निकाल देती है और उसे एक ग्लास जूस देती है, ताकि उसे विकनेस महसूस न हो। अभिमन्यु थैंक्स बोलकर चला जाता है।
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तृषा कब से पीयू को चुप करा रही थी क्योंकि वह न तो दूध पी रही थी और न ही सो रही थी। शायद उसे महसूस हो गया था कि उसकी माँ खतरे में है।
(पास में खड़ी शिवानी का साया अपनी बच्ची को इस तरह देखकर परेशान थी। उसे यह भी डर लग रहा था कि कहीं दोबारा उसकी बच्ची अपनी माँ को ना खो दे। वह राजवीर की तरफ देखती हुई सोच रही थी, "आज तुम सब कुछ पा लोगे या फिर सब कुछ खो दोगे।")
राजवीर अभी भी एक टक देख रहा था। बहुत देर से पीहू को रोते देख तृषा के पास जाता है, पीहू को अपनी गोद में लेकर चुप कराने के लिए। वह उसे गले से लगाता है, और पीहू भी राजवीर के पास आकर शांत हो जाती है।
तभी राज पीहू को खुद से अलग करता है और उसके चेहरे को देख हैरान रह जाता हैं।
"चलो, अच्छा हुआ, कम से कम आप आपके पास आकर पीहू शांत हो गई। नहीं तो कशिश के अलावा किसी से शांत नहीं होती।"तृषा बोली
राजवीर कुछ बोलता तभी अभिमन्यु आता है।
अभिमन्यु (राज को देखता हुआ): "क्या हुआ राज?"
राज: "गुडिया, हमारी ... नम आँखों से अभिमन्यु को पीहू दिखाते हुए बोला।"
राज की बात सुनकर तृषा और अभिमन्यु हैरान हो जाते हैं...
To be continue..........
आप सभी कहते हैं डेली पोस्ट करो पर कोई भी कंमेंट नही करता है 😔
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राजवीर कुछ बोलता ही, तभी अभिमन्यु आता है।"क्या हुआ राज... अभि, यह हमारी गुड़िया..."
राजवीर नम आंखों से पीहू को दिखाते हुए बोला।
राजवीर की बात सुनकर तृषा और अभिमन्यु हैरान हो जाते हैं।
"राजवीर सर, जो आप बोल रहे हैं, क्या वह सच है?"
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"हां तृषा, यह हमारी गुड़िया है। राजवीर और शिवानी की बेटी," अभिमन्यु खुश होकर बोला।
अभिमन्यु की बात सुनकर तृषा हैरान हो जाती है और परेशान होकर दोनों को देखते हुए मन ही मन सोचती है,
"अगर यह राजवीर की बेटी है, तो यह सब पीहू को कशिश से दूर कर देंगे। और कशिश बिना पीहू के जी नहीं पाएगी।"
"तृषा, क्या तुम बता सकती हो कि गुड़िया कशिश के पास कैसे पहुंची?"
"सर, कशिश को पीहू मंदिर में मिली थी," और इसके बाद तृषा सारी बात राजवीर को बता देती है (जो आप सभी ने पहले पार्ट्स में पढ़ी थीं)।
"प्लीज सर, पीहू को कशिश से दूर मत करिए। कशिश पीहू के बिना नहीं रह पाएगी। ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, लेकिन इन दो महीनों में कशिश पीहू के बहुत करीब आ गई है।"
"तुम टेंशन मत लो, तृषा। अब सब कुछ ठीक होगा। सबके असली चेहरे सामने आएंगे। इन लोगों ने मुझे बहुत हल्के में लिया है।"
"अब यह सब छोड़ो। गुड़िया को मुझे दो। कितने दिनों से इसे नहीं देखा। उस दिन मॉल में मुझे लगा था जैसे कोई अपना मेरे पास हो, पर मैं समझ नहीं पाया कि यह हमारी गुड़िया है," अभिमन्यु पीहू को खिलाते हुए बोला।
सब बातें कर रहे थे, तभी डॉक्टर बाहर आते हैं।सभी डॉक्टर को घेरकर पूछते हैं, "कशिश कैसी है?"
"ऑपरेशन सफल रहा। अगर 24 घंटे में पेशेंट को होश आ गया तो ठीक है, नहीं तो वह कोमा में जा सकती हैं। और मुझे लगता है कि पेशेंट ठीक होना ही नहीं चाहती। मानसिक रूप से वह डिप्रेशन में हैं।"
"क्या मैं कशिश से मिल सकता हूं?"
"आपको कुछ देर इंतजार करना होगा, जब तक पेशेंट नॉर्मल वार्ड में शिफ्ट नहीं हो जाती," डॉक्टर बोले। "ठीक है, डॉक्टर।"
"एक काम करो, तुम दोनों घर जाकर फ्रेश हो जाओ। कल रात से यहीं हो, और गुड़िया को ज्यादा देर अस्पताल में रखना सही नहीं है।"
"नहीं, राजवीर सर। मैं घर नहीं जाऊंगी, जब तक कशिश को होश नहीं आ जाता।"
"देखो तृषा, समझने की कोशिश करो। अभी कशिश को होश आने में समय लगेगा, और तुम्हें पता है कि गुड़िया भी बहुत छोटी है। अगर उसे अस्पताल में रखेंगे तो वह बीमार पड़ सकती है। और अगर गुड़िया बीमार हो गई, तो बाद में कशिश तुम्हीं पर नाराज होगी।"
"ठीक है, मैं जा रही हूं, लेकिन जैसे ही कशिश को होश आएगा, मैं वापस आ जाऊंगी पीहू को लेकर। और हां, आपकी गुड़िया का नाम प्रियांशी है। कशिश उसे प्यार से पीहू बुलाती है।"
"बहुत प्यारा नाम रखा है कशिश ने।"
तृषा और अभिमन्यु घर चले जाते हैं। राजवीर बेंच पर बैठकर कशिश के शिफ्ट होने का इंतजार करने लगता है।
थोड़ी देर में कशिश को नॉर्मल वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है। नर्स बाहर आकर कहती है, "सर, अब आप पेशेंट से मिल सकते हैं।"
"ठीक है," राजवीर गहरी सांस लेते हुए बोला।
वह कशिश के कमरे में जाता है। उसके बेड के पास रखे स्टूल पर बैठता है और ध्यान से कशिश के चेहरे को देखता है। उसके सिर पर पट्टी बंधी थी, चेहरा हल्का पीला हो गया था, और वह बहुत कमजोर लग रही थी। उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि कॉलेज के समय वह हमेशा मुस्कुराती रहती थी, लेकिन आज इतनी शांत हो गई है।
"मेरे कारण तुम्हारी लाइफ में इतनी समस्याएं आई हैं, शोना। लेकिन तुम जल्दी से ठीक हो जाओ, उसके बाद सब ठीक कर दूंगा। और थैंक यू सो मच मेरी बेटी का ध्यान रखने के लिए। मुझे तो लगा था कि मैंने उसे खो दिया है।" यह कहते वक्त राजवीर की आंखें नम हो गईं।
"देखो कशिश, मुझे पता है तुम बहुत परेशान हो और ठीक होना नहीं चाहती। लेकिन तुम्हें ठीक होना होगा, मेरे लिए नहीं तो हमारी पीहू के लिए। और हां, तुमने बहुत अच्छा नाम रखा है। मैंने भी अपनी गुड़िया का नाम प्रियांशी रखा था। और तुमने भी वही नाम दिया।"
"अब जल्दी से ठीक हो जाओ, फिर दोनों मिलकर अपनी पीहू का ध्यान रखेंगे।"राजवीर कशिश से बात करते-करते वहीं सो जाता है।
अभिमन्यु, तृषा और पीहू को उनके फ्लैट छोड़ देता है।"अभि... हां बोलो तृषा।"
"आप यहीं फ्रेश हो जाइए। काकी ने नाश्ता बना रखा होगा। घर जाएंगे तो खुद बनाना पड़ेगा, इससे अच्छा यहीं रुक जाइए।"
अभिमन्यु कुछ देर सोचकर मान जाता है। दोनों फ्लैट के अंदर जाते हैं।
"तृषा बेटा, कशिश बिटिया कैसी है?"
"टेंशन मत लीजिए, काकी। कशिश अभी ठीक है। जल्द ही घर आ जाएगी।"
"बेटा, यह कौन है?"
तृषा कुछ देर अभिमन्यु को देखती है और फिर कहती है, "काकी, यह कशिश के भाई हैं।"
तृषा की बात सुनकर अभिमन्यु उसे घूरकर देखता है। तृषा जल्दी से पीहू को लेकर अपने रूम में चली जाती है।
"बेटा, चाय या कॉफी लोगे?"
"काकी, कॉफी... ठीक है।"
थोड़ी देर में अभिमन्यु और तृषा नाश्ता करते हैं। नाश्ता लेकर वे फिर से अस्पताल के लिए निकल जाते हैं।
To be continue......
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हॉस्पिटल
जैसे ही दोनों रूम में पहुंचते हैं, सामने राजवीर को सोते हुए पाते हैं। तृषा और अभिमन्यु का मन नहीं करता उन्हें उठाने का, पर राज ने कल रात से कुछ भी नहीं खाया था। थोड़ी देर बाद राजवीर उठते हैं और फ्रेश होकर नाश्ता करते हैं।
राजवीर नाश्ता करते हुए पूछते हैं, "तुम दोनों इतनी जल्दी कैसे आ गए?"
अभिमन्यु जवाब देता है, "हम घर नहीं गए। कशिश के फ्लैट पर फ्रेश हो गए, और काकी ने नाश्ता बना दिया था, इसलिए ज्यादा समय नहीं लगा।"
"हम्म," राजवीर ने सिर हिलाते हुए कहा।
तृषा पीहू को लेकर कशिश के पास बैठ जाती है। "देखो पीहू, मम्मी सो रही हैं। उनसे कहो, जल्दी से उठ जाओ, मैं आपके साथ खेलने का इंतजार कर रही हूं।"
पीहू भी तृषा की बात सुनकर बोलने की कोशिश करती है। "ब... म... मा..."
"देखो कशिश, अब तुम्हारी बेटी बोलने की भी कोशिश कर रही है। जल्दी से ठीक हो जाओ।"
पीहू खेलते हुए कशिश के हाथों को पकड़ने की कोशिश करती है। शायद कशिश पीहू को महसूस करती है, जिससे उसके शरीर में हलचल होती है। यह देखकर तृषा जल्दी से अभिमन्यु और राजवीर को बुलाती है।
"सर, अभि! कशिश मूव कर रही हैं।"
दोनों जल्दी से कशिश के पास आते हैं। राजवीर तुरंत डॉक्टर को बुलाने के लिए बेल बजाते हैं।
थोड़ी देर में डॉक्टर आते हैं। "आप सभी लोग बाहर चले जाइए, मुझे पेशेंट को चेक करना है।"
डॉक्टर की बात सुनकर सभी लोग रूम से बाहर चले जाते हैं और डॉक्टर के बाहर आने का इंतजार करने लगते हैं।
कुछ देर बाद डॉक्टर बाहर आते हैं। सभी लोग उम्मीद भरी नजरों से उन्हें देखते हैं।
डॉक्टर मुस्कुराते हुए कहते हैं, "पेशेंट रिकवर हो रही हैं और उन्हें 1 घंटे में होश आ जाएगा।"
डॉक्टर की बात सुनकर सब खुश हो जाते हैं।
1 घंटे बाद
सभी लोग कशिश के वार्ड में बैठे उनके होश में आने का इंतजार कर रहे थे। कुछ देर में कशिश धीरे-धीरे होश में आती हैं।
कशिश आंखें खोलकर अपने पास सबको देखकर एक पल के लिए घबरा जाती हैं और जल्दी से उठने की कोशिश करती हैं।
"कशिश, आराम से। तुम्हें बहुत चोट लगी है, दर्द होगा," राजवीर कशिश को समझाते हुए कहते हैं।
"तुम्हें कहीं दर्द तो नहीं हो रहा ना?" तृषा कशिश के पास आकर पूछती है।
"मैं बिल्कुल ठीक हूं। पीहू को दो ना," कशिश कहती हैं।
"कशिश, तुम्हारे हाथ में चोट है। अगर तुम पीहू को गोद में लोगी, तो दर्द होगा।"
"मुझे अपनी बेटी को गोद में लेने से कोई दर्द नहीं होगा। पर मुझे पता है, मेरे पास आने के लिए यह बदमाश कितना रोई होगी।"
"यह तो तुमने बिल्कुल सच कहा। कल तो चुप ही नहीं हो रही थी। वह तो राजवीर सर के पास जाकर चुप हो गई थी।"
कशिश एक नजर राजवीर को देखती हैं और बिना कुछ कहे पीहू को अपनी गोद में ले लेती हैं।
"मेरी प्रिंसेस, मैंने तुम्हें बहुत मिस किया मम्मी को?" कशिश प्यार से पीहू के सिर पर किस करते हुए बोलती हैं।
पीहू भी अपनी मां की बात सुनकर मुस्कुरा देती है और अपने छोटे-छोटे हाथों से कशिश के चेहरे को छूने की कोशिश करती है।
दोनों मां-बेटी को देखकर तीनों मुस्कुराने लगते हैं।
"मैं डॉक्टर को बुलाकर लाता हूं, एक बार कशिश को चेक कर लें," अभि कहते हैं और रूम से बाहर चले जाते हैं।
"कशिश, मैं पीहू को बाहर घुमा लाती हूं। कब से हॉस्पिटल में है, बोर हो गई होगी।"
"ओके, जा," कशिश कहती हैं।
तृषा जल्दी से पीहू को लेकर चली जाती हैं। अब रूम में सिर्फ कशिश और राजवीर थे।
राजवीर को समझ नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करें। कुछ दिन पहले हुई बहस में कहे शब्दों के कारण उन्हें बोलने में झिझक हो रही थी।राजवीर कशिश के पास जाकर बैठते हैं और कहते हैं, "कहीं दर्द तो नहीं हो रहा ना?"
"होगा तो क्या आप ठीक कर देंगे? डॉक्टर हैं क्या?" कशिश मुँह बनाते हुए बोलती हैं।
"ऐसा नहीं है। मैं तो बस पूछ रहा हूं, तुम ठीक हो या नहीं।"
"आज कौन से भगवान आ गए हैं आपके ऊपर? कुछ ज्यादा ही मीठी बातें कर रहे हैं," कशिश तंज कसते हुए कहती हैं।
"उस दिन के लिए सॉरी। गुस्से में कुछ ज्यादा बोल दिया था।"
"आपके सॉरी बोलने से वह दर्द कम नहीं हो जाएगा।" यह कहते हुए कशिश की आंखें नम हो जाती हैं।
"प्लीज, तुम रो मत। तुम्हारी तबीयत खराब हो जाएगी," राजवीर ने कहा।
"मैंने आपसे कहा था ना, जिस दिन आपको सच्चाई पता चलेगी, उस दिन आप खुद को माफ नहीं कर पाएंगे।"
"थैंक यू। आप यहां थे। बट अब आप यहां से जा सकते हैं। और प्लीज मेरी बेटी और मुझसे दूर रहें।"
राजवीर कुछ बोल पाते, उससे पहले डॉक्टर और अभिमन्यु अंदर आ जाते हैं।
"सो मिसेज, कैसा महसूस हो रहा है अब? जब तक आप होश में नहीं आई थीं, आपके हसबैंड बहुत परेशान थे।"डॉक्टर की बात सुनकर कशिश हैरान हो जाती हैं।
"सर, कौन हसबैंड? शायद आपको कोई गलती हो गई है।"
"अरे, आपके हसबैंड मिस्टर राजवीर ठाकुर।"
"पर डॉक्टर..." कशिश कुछ बोलती, उससे पहले राजवीर कहते हैं, "डॉक्टर, लगता है मेरी वाइफ के सिर पर गहरी चोट लगी है। तभी तो वह मुझे नहीं पहचान रही है।"
"अब आप यह भी बोलेंगे कि हमारी कोई बेटी नहीं?"
"वह मेरी बेटी है, तुम्हारी नहीं," कशिश राजवीर को घूरते हुए बोलती हैं।
"डॉक्टर, प्लीज ध्यान से चेक करें। देखिए, मेरी वाइफ कितनी बहकी-बहकी बातें कर रही है।"
डॉक्टर मुस्कुराते हुए कहते हैं, "जी, यह बिल्कुल ठीक हैं। दो दिन बाद आप इन्हें घर ले जा सकते हैं।" इतना कहकर डॉक्टर चले जाते हैं।
"राजवीर, आपका दिमाग खराब हो गया है क्या? यह सब फालतू बातें क्यों कर रहे थे?"
"देखो, मैं बिल्कुल ठीक हूं। अब तुम आराम करो। मैं परेशान नहीं करूंगा," राजवीर ने शांत होते हुए कहा क्योंकि उन्हें समझ आ गया था कि अगर बात बढ़ी, तो लड़ाई हो जाएगी।
कशिश भी आराम करने लगती हैं क्योंकि वह बहुत थक गई थीं।
To be continue........
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