ये कहानी है राजवीर और काव्या की । जहां राजवीर पूरे राजस्थान का होने वाला हुकुम सा था । वहीं काव्या उदयपुर की राजकुमारी थी । राजवीर लंडन से अपनी पढ़ाई खत्म कर इंडिया लौटा था । आते ही उसे शादी के बंधन में बंधने के लिए बोला गया । वहीं काव्या जो शायद मन... ये कहानी है राजवीर और काव्या की । जहां राजवीर पूरे राजस्थान का होने वाला हुकुम सा था । वहीं काव्या उदयपुर की राजकुमारी थी । राजवीर लंडन से अपनी पढ़ाई खत्म कर इंडिया लौटा था । आते ही उसे शादी के बंधन में बंधने के लिए बोला गया । वहीं काव्या जो शायद मन ही मन किसी को पसंद करती थी उसे राजवीर से शादी के लिए कहा गया । क्या राजवीर और काव्या शादी के बंधन में बंधेगे ? किसे पसंद करती है काव्या ? क्या राजवीर के जीवन में कोई और है ? कौनसा राज छुपा रहा है राजवीर? क्या ये राज राजवीर और काव्या के रिश्ते को खत्म कर देगी ? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी, "तेरे बिना अधूरा हूं में"
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Royal London Institute of Business and Leadership, London — एक नाम जो दुनिया भर के छात्रों के लिए एक सपना था।
कॉलेज की विशाल, सफेद पत्थरों से बनी इमारत के सामने हल्की धुंध तैर रही थी। लंदन की ठंडी हवा चेहरे से टकराते हुए एक हल्की-सी सिहरन दे रही थी, लेकिन उसके साथ एक अजीब-सी ताज़गी भी थी।
मुख्य गेट से बाहर आता एक लड़का — ऊँचा कद, सधा हुआ व्यक्तित्व, आँखों में गहराई और कदमों में आत्मविश्वास।
उसके साथ दो-तीन दोस्त भी थे, लेकिन उसकी चाल में एक अलग ही ठहराव था।
उसने अपने कॉलेज की इमारत की ओर आख़िरी बार नज़र डाली।
वो दीवारें, वो गलियारे… जहाँ उसने न सिर्फ बिज़नेस का ज्ञान पाया, बल्कि अपनी सोच को, अपने नजरिए को एक नई दिशा दी।
पढ़ाई के साथ-साथ उसने यहाँ खुद को पहचाना था — एक इंसान के तौर पर और एक लीडर के रूप में भी।
जैसे ही वो गेट से बाहर निकला, उसके पीछे से एक दोस्त ने ज़ोर से आवाज़ लगाई,
"Finally! हमारा एग्ज़ाम खत्म हुआ… अब तो सीधा इंडिया!"
आवाज़ में आज़ादी की खुशी और बंधनों के टूटने का उत्साह साफ़ झलक रहा था।
दूसरा दोस्त हँसते हुए आगे बढ़ा और उसी लड़के के कंधे पर हाथ रखकर बोला,
"और वैसे भी… राज, तेरी तो रॉयल फैमिली है ना! अब तू सीधा अपने महल जाएगा… और हम नॉर्मल लोग तो एयरपोर्ट से सीधे घर!"
यह सुनकर लड़का — राज — हल्के से मुस्कुराया।
मुस्कान में एक गरिमा थी, लेकिन आँखों में एक गहरी, अनकही गंभीरता भी थी।
मानो वो जानता हो कि महलों की ज़िंदगी उतनी आसान नहीं होती, जितनी दूर से दिखती है।
उसकी नज़रें पल भर को आसमान की तरफ उठीं, फिर उसने एक गहरी साँस ली और दोस्तों के साथ आगे बढ़ गया…
लेकिन उसके मन में पहले से तय था — ये वापसी सिर्फ घर जाने की नहीं, बल्कि एक नए अध्याय की शुरुआत होगी।
तो ये है राजबीर सिंह राठौड़ हमारे कहानी का मैन लीड । 25 साल का नौजवान निकलता है । हल्का गेंहुआ रंग, तेज़ और आकर्षक चेहरे के फीचर्स, जो सभी को मंत्रमुग्ध कर दे । भूरी आँखें, जो न सिर्फ आकर्षक होती हैं, बल्कि उनमें एक गहरी सोच और गंभीरता का भी इशारा करती हैं । जब वह किसी से बात करता है, तो उसकी आँखों में एक प्रकार का आकर्षण और ताकत होती है । बाल काले, घने और थोड़े सीधे, माथे तक आते हुए । कद लगभग 6 फीट, बेहद फिट और आकर्षक ।
उसके साथ उसके दो दोस्त करण और अर्जुन साथ में चल रहे थे । दोनों ही इंडिया से थे । तो उन तीनों की दोस्ती जल्दी हो गई थी ।
तभी करण ने अपनी शरारती मुस्कान के साथ राजवीर की तरफ देखते हुए चुटकी ली,
"अरे His Highness राज साहब, अब अपने महल में हमारी भी तस्वीर लगवा देना… ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जान सकें कि हम आपके कॉलेज के टाइम के खास दोस्त थे!"
अर्जुन ने हँसते हुए बात आगे बढ़ाई,
"और हाँ… तू शादी में हमें इन्वाइट करना मत भूलना! हम भी देखना चाहते हैं तेरी रॉयल दुल्हन… पूरी शाही ठाठ-बाठ में।"
राजवीर उनकी बात सुनकर बस मुस्कुरा दिया, लेकिन उसके भीतर कहीं एक हल्की-सी हलचल उठी।
"शादी?" उसने मन ही मन दोहराया, जैसे यह शब्द अचानक उसके विचारों में दस्तक दे गया हो।
उसने हल्के से सिर झटकते हुए मुस्कान बनाए रखी,
"पहले महल में जाकर साँस तो लेने दो…", उसने सहजता से जवाब दिया, मानो दोस्तों की बात को हल्के में टाल रहा हो।
हवा में मस्ती और ठहाकों की गूंज देर तक बनी रही। बातें, मज़ाक और यादों के सिलसिले में वक्त कैसे निकल गया, किसी को पता ही नहीं चला।
धीरे-धीरे रात गहराती गई और सब अपने-अपने कमरों में लौट गए।
राजवीर भी अपने कमरे में आ गया।
खिड़की के पास खड़े होकर उसने परदे हटाए और बाहर झाँकने लगा।
ठंडी रात की हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, लेकिन उसकी आँखें कहीं दूर, बहुत दूर टिकी थीं।
उसकी नज़रों में अपने पैलेस की तस्वीर उभर रही थी — ऊँची-ऊँची दीवारें, सुनहरी झूमरों से सजा दरबार, और गलियारों में गूंजते कदमों की आहट।
उसके दादा सा का गरिमामय चेहरा, उनकी सख्त लेकिन देखभाल करने वाली आँखें… और उसकी माँ, जिनके स्नेह में हमेशा एक शाही अनुशासन की छाया रहती थी।
पर इन सबके बीच… एक अनकही सी उलझन भी थी।
शायद यह आने वाले बदलाव की आहट थी, या फिर किसी ऐसी सोच का बोझ, जिसे वह खुद भी पूरी तरह समझ नहीं पा रहा था।
उस रात, राजवीर खिड़की से बाहर देखते हुए देर तक खामोश खड़ा रहा — मानो वह सिर्फ लंदन से नहीं, बल्कि अपनी ज़िंदगी के एक नए सफर की ओर लौट रहा हो।
अगला दिन
लंदन की सुबह थोड़ी धुंधली थी । लेकिन राजवीर के लिए ये सुबह बेहद साफ़ थी और स्पेशल भी क्यों कि आज इंडिया अपने राजस्थान वापसी की सुबह । जैसे ही एयरपोर्ट के प्राइवेट लाउंज के बाहर राजवीर निकला, वहां पहले से खड़ा उसका पर्सनल हेलीकॉप्टर उसकी रॉयल पहचान की झलक दे रहा था।
पायलट ने आदर से सिर झुकाया ,“Welcome back, Yuvraj Rajveer Singh Rathore.”
राजवीर अपना सर हिलाते हुए अपनी बिना भाव के चेहरे के साथ बोलता है," थैंक यू ।"
इतना बोल वो अपने शीट पर बैठ गया और आसमान की ओर देखा जैसे वो अपने आने वाले जीवन को निहार रहा हो । हेलीकॉप्टर धीरे-धीरे उड़ान भरता है और कुछ घंटों बाद राजस्थान की धूप, रेत और रॉयल हवा राजवीर का स्वागत करने को तैयार थी ।
जिसे महसूस कर राजवीर के चेहरे पर एक सुकून झलकने लगा । जो उसे london में बिल्कुल भी महसूस नहीं होता था । आखिर अपनी जन्मभूमि अपनी ही होती है । पराए देश में जा कर वो सुकून कहां जो हमे अपने जन्मभूमि में मिलती है ।
क्यू रीडर्स मैंने सच बोला न । कमेंट कर के बताना ।
राजस्थान के उदयगढ़ राजमहल में...
दोपहर की तेज़ धूप महल की संगमरमर की दीवारों से टकरा कर एक सुनहरी आभा बिखेर रही थी । लेकिन आज ये चमक सिर्फ सूरज की नहीं थी बल्कि राजवीर सिंह राठौड़ की घर वापसी का था ।
महल के चारों ओर हलचल मची हुई थी । दरबानों की कतारें, फूलों से सजे दरवाज़े, और बगीचे में रंग-बिरंगे पर्दे लहराते हुए शाही माहौल बना रहे थे ।
महल की बाहरी बालकनी में खड़ी एक औरत तेज़-तेज़ कदमों से चलती हुई हर कोने पर नज़र रख रही थी । उम्र लगभग 45 साल, चेहरे पर शालीनता और आँखों में ममता । ग्रीन कलर की राजस्थानी घाघरा चोली में वो औरत जैसे एक शाही चित्र हो ।
“अरे मनोहर, वो गुलाब की लड़ियाँ बाईं तरफ लगाओ और रसोई में आज के पकवान की लिस्ट दोबारा देखो ।”
यही हैं आरती सिंह राठौड़, राजवीर की मां । महल की रानी, पर स्वभाव से बेहद स्नेही और कोमल । पूरे घर की धड़कन, जिनकी एक मुस्कान से पूरा परिवार जुड़ा रहता है ।
तभी पीछे से एक धीमी, मगर अधिकारपूर्ण आवाज़ आई ,"बिंदणी, ये सारा इंतज़ाम मुझ पर छोड़ दे और तू जा और राज के कमरे को अच्छे से सजा दे । तू तो अच्छे से जानती है, उसे अपने कमरे में तेरे अलावा किसी का स्पर्श भी पसंद नहीं है ।”
उन की आवाज सुन आरती जी तुरंत पलटीं और हाथ जोड़कर मुस्कुराईं।
तो उन के सामने थीं - राजमाता वृंदा सिंह राठौड़, उम्र करीब 70, पर अब भी चाल में वही ठाठ और आँखों में वही शौर्य ।
येलो कलर की राजस्थानी घाघरा चोली में लिपटीं, मोतियों का हार पहने, उनकी मौजूदगी में एक सन्नाटा सा छा जाता था । पर वो सन्नाटा डर के वजह से नहीं बल्कि सम्मान के वजह से था ।
आरती ने नम्रता से कहा ,“जी मां सा, मैं अभी जाती हूँ । उसका कमरा भी उतना ही शाही होना चाहिए जितना वो खुद है ।”
इतना बोल वो राजवीर के कमरे के तरफ चली जाती है । जो सब से ऊपर फ्लोर पर था । वहां सिर्फ आरती जी का जाना ही एलाऊ था और किसी के जाने की नहीं । वहां की कमरे की साफ सफाई भी ज्यादा तर आरती जी करती थी या फिर राजवीर के रहते वो खुद । वहीं बाहर हॉल की साफ सफाई वहां की एक बूढ़ी औरत, जिसे राजवीर दाई मां पुकारता था, वो करती थी ।
आरती जी धीमे क़दमों से राजवीर के कमरे की ओर बढ़ती हैं । कमरे के दरवाज़े को हल्के से खोला । अंदर वही ख़ामोशी थी, जो पिछले दो सालों से उस कमरे की आदत बन चुकी थी । मगर आज उस ख़ामोशी में भी एक हलचल थी वो थी बेटे की वापसी की हलचल ।
सूरज की हल्की किरणें खिड़की से छन कर कमरे के फर्श पर पड़ रही थीं । आरती जी ने धीरे-धीरे कमरे के पर्दे बदले , हल्के बादामी रंग के रेशमी कॉटन, जो कमरे को गर्मी में भी सुकून दे सकें । उन्होंने बेड पर सफ़ेद सिल्क की बेडशीट बिछाई, जिस पर सुनहरे धागों से बने हुए जटिल राजस्थानी डिज़ाइन थे ।
तभी आरती जी की नजर कहीं पर जाती है । जिसे देख आरती जी के आखों में नमी आ जाती है ।
आज के लिए इतना ही
तो आप सब को क्या लगता है
आरती जी की आँखें नाम क्यों हो गई ?
ऐसा क्या देख लिया आरती जी ने?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी .....
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Chapter 2: राजस्थान में स्वागत
सुबह का समय था। महल के आँगन में हल्की धूप की सुनहरी परत बिखरी हुई थी। हवा में एक अजीब-सी ताज़गी थी, जैसे हर कण कह रहा हो — आज कुछ खास होने वाला है। चिड़ियों की चहचहाहट और बगीचे के फूलों की महक पूरे वातावरण को और भी जीवंत बना रही थी।
महल के अंदर, आरती जी अपने हाथों में फूलों की टोकरी और कुछ सजावट का सामान लिए धीमे-धीमे कदम बढ़ाते हुए राजवीर के कमरे की ओर जा रही थीं। उनके मन में एक ही ख्याल था — दो साल… पूरे दो साल बाद आज मेरा बेटा इस कमरे में सोएगा।
दरवाज़े के पास आकर उन्होंने एक पल के लिए रुककर गहरी साँस ली। हल्की-सी मुस्कान उनके चेहरे पर आई, लेकिन आँखों में नमी थी। उन्होंने दरवाज़े को धीरे से खोला और अंदर कदम रखा।
अंदर वही ख़ामोशी थी, जो इन दो सालों में इस कमरे की साथी बन चुकी थी। पर आज उस ख़ामोशी में एक अनजानी हलचल थी — बेटे की वापसी की हलचल।
खिड़की से छनकर आती सूरज की हल्की किरणें फर्श पर सुनहरी चादर बिछा रही थीं। कमरे की दीवारों पर टंगी पुरानी पेंटिंग्स जैसे राजवीर के बचपन की कहानियाँ सुना रही हों। आरती जी ने हल्के बादामी रंग के रेशमी कॉटन के नए पर्दे टाँगे, जो गर्मी में भी सुकून दें। उन्होंने सफ़ेद सिल्क की बेडशीट बिछाई, जिस पर सुनहरे धागों से बने जटिल राजस्थानी डिज़ाइन चमक रहे थे। हर तह, हर कोना उन्होंने अपने हाथों से सीधा किया — जैसे बेटे के लिए सबसे बेहतरीन सजावट तैयार कर रही हों।
कमरे को सजाते-सजाते उनकी नज़र खिड़की के पास रखे पीतल के पुराने गमले पर पड़ी। उसे देखते ही उनकी आँखें भर आईं। वे धीरे से उसके पास पहुँचीं, मुरझाए फूलों को निकालकर उनकी जगह ताज़े गुलाब, मोगरा और गेंदे के फूल सजाने लगीं।
"उसे फूल बहुत पसंद हैं," उन्होंने हल्के से बुदबुदाया और होंठों पर एक कोमल मुस्कान आ गई।
उनके मन में तुरंत एक पुराना दृश्य उभर आया — छोटा सा राजवीर, बगीचे में दौड़ता हुआ, हाथों में फूलों का गुच्छा थामे, हाँफते हुए कह रहा है,
"माँ देखो! आज मैंने फूल खुद तोड़े हैं।"
"मेरे राज ने फूल क्यों तोड़े?" — आरती जी ने तब प्यार से डाँटा था।
राजवीर ने मासूमियत से जवाब दिया था,
"मुझे अपने गमले में रखना है फूल। मुझे बहुत पसंद है ये।"
फिर वो एक गुलाब उनकी जूड़े में लगा देता और बाकी फूल लेकर अपने कमरे की ओर भाग जाता।
उस दिन के बाद से, चाहे मौसम कैसा भी हो, आरती जी ने एक दिन भी ऐसा नहीं जाने दिया जब उस गमले में फूल न रखे हों। उनके लिए ये सिर्फ फूल नहीं थे, बल्कि बेटे के इंतज़ार की खुशबू थे।
कमरे को अंतिम बार देखते हुए उन्होंने संतोष की साँस ली। कमरा अब वैसा ही था जैसा राजवीर को पसंद था — रॉयल, लेकिन सादगी से भरा।
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करीब दो घंटे बाद, उदयगढ़ राजमहल से कुछ दूरी पर बने शाही हेलीपैड पर आसमान में गूँजती एक तेज़ आवाज़ सुनाई दी। एक रॉयल हेलीकॉप्टर धीरे-धीरे उतर रहा था। हवा के तेज़ झोंकों से पेड़ों की पत्तियाँ और आँगन के फूल हिलने लगे।
महल के ऊपरी छज्जों और मीनारों पर खड़े पहरेदारों ने तुरही बजानी शुरू कर दी। उसकी गूँज इतनी दूर तक पहुँची कि बगीचे में काम कर रहे माली भी रुककर आकाश की ओर देखने लगे।
महल के मुख्य द्वार के सामने लाल कालीन बिछाया गया था। दोनों ओर खड़े सेवकों के हाथों में चाँदी की थालियाँ थीं, जिनमें गुलाब की पंखुड़ियाँ और हल्का इत्र रखा था। हर कोई उत्सुक था — आखिर दो साल बाद युवराज लौट रहे थे।
हेलीकॉप्टर का दरवाज़ा खुला। धूप की सुनहरी किरणें उसके पीछे से आईं और सफ़ेद कुर्ता-सुनहरी जैकेट पहने, लंबे कद के, आत्मविश्वासी चाल चलते राजवीर सिंह राठौड़ की छवि को और भी प्रभावशाली बना दिया। उसके चेहरे पर वही ठंडी, शाही सी चमक थी, लेकिन आँखों में अपने घर लौटने की गर्माहट भी थी।
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राजवीर ने हेलीपैड से उतरते ही सीधे अपने दादा सा, महाराज समर प्रताप सिंह राठौड़ की ओर कदम बढ़ाए। दूर से ही उनकी शाही उपस्थिति और सफ़ेद दाढ़ी में बसी गरिमा, उसे हमेशा की तरह सुरक्षा का अहसास दे रही थी।
जैसे ही वह पास पहुँचा, उसने झुककर आदरपूर्वक उनके चरण स्पर्श किए।
दादा सा, जो एक समय अपनी तलवार के दम पर रणभूमि में दुश्मनों के दिल दहला देते थे, आज अपने पोते को सामने देखकर जैसे फिर से वही जवान, जोशीला योद्धा बन गए हों।
उन्होंने दोनों हथेलियों से राजवीर के सिर को थामकर आशीर्वाद दिया —
"कैसा है मेरा शेर?"
उनकी आवाज़ में वर्षों की मजबूती के साथ एक पिता-सा अपनापन भी था।
राजवीर ने हल्की-सी मुस्कान के साथ उनकी आँखों में देखा और कहा,
"अच्छा हूँ, दादा सा… और आप कैसे हैं?"
दादा सा की आँखें चमक उठीं।
"अब अच्छा हूँ बेटा… तू आ गया, यही सबसे बड़ी बात है।"
ये सुनकर राजवीर ने हल्के से सिर झुकाया और होंठों पर एक संतोष भरी मुस्कान आ गई।
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पीछे खड़ी आरती जी का दिल जैसे भर आया था। वर्षों का इंतज़ार, हजारों रातों की बेचैनी… आज सब जैसे एक पल में मिट गया। उनकी आँखों में नमी थी, लेकिन चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान, जो सिर्फ एक माँ की हो सकती है।
राजवीर ने बस एक पल के लिए उनकी ओर देखा… और बिना शब्दों के ही एक लंबी कहानी कह दी — मैं आ गया हूँ माँ।
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दादा सा का आशीर्वाद लेने के बाद, राजवीर आगे बढ़ा और राजमाता वृंदा देवी के सामने खड़ा हुआ। उम्र के साथ उनका चेहरा और भी सौम्य हो गया था, लेकिन आँखों में अब भी वही पैनी नज़र थी। उन्होंने अपने पोते को सीने से लगाया और कहा,
"अब पूरा महल जीवंत लग रहा है, बेटा। तेरी कमी हर दिन खलती थी।"
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इसके बाद राजवीर अपने पिता, महाराजा विजय सिंह के चरणों में झुका। विजय सिंह ने गंभीर लेकिन स्नेह भरी नज़रों से बेटे को देखा, फिर कंधे पर हाथ रखकर बोले,
"राजघराने का वारिस बनना आसान नहीं, बेटा… अब समय है जिम्मेदारी निभाने का।"
राजवीर ने बिना झिझक सिर झुकाकर कहा,
"हाँ पिताजी… मैं तैयार हूँ। और वैसे भी, आप हैं तो मुझे डर किस बात का।"
विजय सिंह के होंठों पर एक हल्की-सी मुस्कान आई, जो उनकी सख़्त छवि में छुपे स्नेह को उजागर कर रही थी।
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अब बारी थी माँ के आशीर्वाद की। आरती जी ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया, जैसे डर हो कि कहीं फिर न छूट जाए।
"बस तू ठीक सलामत आया, यही बहुत है मेरे लिए।"
उनकी आवाज़ भर्राई हुई थी, लेकिन उसमें राहत की मिठास थी।
राजवीर ने उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा,
"अब मैं यहीं हूँ माँ… कहीं नहीं जाऊँगा।"
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तभी एक चंचल सी आवाज़ गूँजी —
"भैया! Finally आप आ गए!"
ये उसकी छोटी बहन इशिता थी, जो बिना रुके दौड़ते हुए उससे आकर लिपट गई।
राजवीर ने हँसते हुए उसके सिर पर हाथ रखा,
"अब कभी इतना लंबा नहीं जाऊँगा, पगली।"
इशिता ने शरारती मुस्कान के साथ कहा,
"देख लेना, मैं फिर गिनूँगी दिन… अगर गए तो!"
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इसके बाद राजवीर ने एक-एक कर अपने चाचा देवेंद्र सिंह राठौड़, चाची नीलिमा सिंह राठौड़, कज़िन अर्जुन सिंह राठौड़, तृषा सिंह राठौड़, बुआ गौरी देवी चौहान, फूफा रतन सिंह चौहान, और कज़िन रिया व साहिल सिंह चौहान से मुलाक़ात की।
हर एक ने उसे गले लगाया, आशीर्वाद दिया, या मज़ाक में चुटकी ली।
रॉयल प्रोटोकॉल के बीच भी ये रिश्तों की गर्माहट उसकी थकान मिटा रही थी।
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फिर आरती जी पूजा की थाली लेकर आईं। थाली में दीपक की लौ हल्के-हल्के हिल रही थी और चंदन की महक हवा में फैल रही थी। उन्होंने बेटे की नज़र उतारते हुए कहा,
"तेरे माथे की ये चमक… तुझ पर बुरी नज़र कभी न लगे, मेरे लाल।"
उन्होंने हल्की-सी आरती की, फिर थाली एक ओर रखकर उसका हाथ थाम लिया और बोलीं,
"चल, अंदर आ… तेरे बिना ये महल अधूरा था।"
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महल के अंदर कदम रखते ही, राजवीर की नज़र चारों ओर बिखरी सजावट पर पड़ी।
मेहंदी और गेंदे के फूलों की लतरें, चाँदी के बड़े-बड़े दीये, और संगमरमर की फ़र्श पर बिछे गलीचे — सब कुछ मानो उसकी वापसी का जश्न मना रहे थे।
उसने कुछ नहीं कहा, बस हल्की-सी मुस्कान दी।
राजमाता वृंदा जी ने पास खड़े होकर कहा,
"देखा, फूलों का जादू अब भी काम करता है इस पर।"
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राजवीर चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ा। दरवाज़ा खोलते ही उसकी नज़र खिड़की के पास रखे उस गमले पर पड़ी, जो बचपन से उसकी सबसे प्रिय चीज़ों में से एक था।
गुलाब के ताज़ा फूल उसमें सजे थे — वही अंदाज़, वही खुशबू, जैसे कभी बदली ही न हो।
वो पास गया, फूलों को हल्के से छुआ और मुस्कुराते हुए बोला,
"माँ, आप अब भी रोज़ फूल रखती हैं?"
पीछे से आरती जी की कोमल आवाज़ आई,
"जब तक मैं हूँ… ये आदत नहीं जाएगी।"
राजवीर ने सिर झुका लिया और खिड़की से बाहर महल के आँगन को देखा — उसके मन में एक गहरा सुकून उतर आया था।
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दूसरी ओर…
उदयपुर, राजस्थान।
एक प्राचीन राजमहल की ऊँची-ऊँची दीवारों के बीच, सूरज की सुनहरी किरणें रंगीन काँच की खिड़कियों से होकर संगमरमर के फर्श पर गुलाबी और सुनहरे पैटर्न बना रही थीं।
कक्ष के बीचोंबीच, एक युवती सफ़ेद और सुनहरी किनारी वाली रेशमी पोशाक में बैठी थी। उसकी उंगलियाँ वीणा की तारों पर चल रही थीं, और हर स्वर जैसे हवा में मिठास घोल रहा था।
पीछे खड़े लोग हाथ जोड़कर उस संगीत और प्रार्थना में डूबे हुए थे। पीतल के बड़े दीयों की लौ हल्की हवा में झूम रही थी, और चंदन-केसर की खुशबू पूरे कक्ष में फैल रही थी।
लड़की का चेहरा शांत था, लेकिन उसकी आँखों की गहराई में कोई अनकहा सवाल, कोई अधूरी कहानी छुपी थी।
उसकी उंगलियों का हर स्पर्श वीणा की तारों पर जैसे किसी पुराने वादे की गूँज दोहरा रहा था।
वो कौन है?
उसका जीवन राजवीर से कैसे जुड़ने वाला है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए…
दूसरी तरफ,
उदयपुर, राजस्थान में,
सूरज की सुनहरी किरणें अरावली की पहाड़ियों से निकलकर एक भव्य राजमहल की दीवारों पर पड़ रही थीं । ये महल — "सिसोदिया निवास" — पुराने समय की वास्तुकला का जीता-जागता उदाहरण था । संगमरमर की जालियों से छनती धूप, बड़े-बड़े आंगन, फव्वारों की मधुर कलकल, और हर कोने में रॉयल्टी की छाप । राजमहल के चारों ओर घना बगीचा फैला हुआ था — गुलाब, मोगरा, चमेली की महक से भरा । महल का प्रवेशद्वार ऊँचा और नक्काशीदार था, और उस पर एक सुनहरा नाम उकेरा गया था " देव निवास"।
जैसे ही महल के भीतर आते हैं, हॉल में सफेद संगमरमर की ज़मीन पर सुंदर रंगोली बनी हुई थी ।
वहीं एक और से एक मधुर संगीत सुनाई दे रही थी । संगीत ऐसा था जो रूह को छू जाए ।
वो आवाज़ किसी और की नहीं, बल्कि महाराज रूद्रप्रताप सिंह सिसोदिया की छोटी बेटी राजकुमारी काव्या की थी ।
वह मंदिर में आरती कर रही थी । सफेद और गोल्डन बॉर्डर वाली अनारकली में, माथे पर छोटी सी बिंदी और चेहरे पर श्रद्धा की रोशनी लिए वो बेहद सौम्य लग रही थी ।
उसके पीछे खड़े थे ,
महाराज रणधीर सिंह सिसोदिया (दादा सा) – जो अपने गहरे अनुभव और गरिमा के साथ सबको आशीर्वाद देते दिख रहे थे ।
राजमाता विमला देवी (दादी सा) – जिनकी आँखों में अपनी पोती के लिए ढेर सारा स्नेह था ।
महाराज रूद्रप्रताप सिंह सिसोदिया (पिताजी) – एक अनुशासित, राजसी व्यक्तित्व, जिनका ध्यान पूरे विधि-विधान पर था ।
महारानी पद्मिनी देवी (माँ) – जिनकी मुस्कान में काव्या के लिए गर्व और ममता झलक रही थी ।
अभिराज सिंह (बड़ा भाई) – जो शांत और सधे कदमों से खड़े थे, और काव्या को देख कर उनकी आँखों में भावुकता थी ।
काव्या जैसे ही आरती कर पीछे मुड़ती है, तो देखती है कि सभी आँखें बंद कर प्रार्थना में लीन हैं । उनके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ जाती है । वह चारों दिशा में आरती देती है और फिर प्रेम से सबको आरती देती है ।
आरती के बाद सभी एक-दूसरे की ओर मुस्कराते हैं और अपने-अपने कामों की ओर बढ़ जाते हैं ।
दूसरी तरफ,
उदयगढ़ में,
उदयगढ़ के उस शांतिपूर्ण सुबह में, राजवीर ने स्नान करके ताज़ा होकर नीचे कदम रखा। महल की सीढ़ियाँ उसके कदमों की हल्की आवाज़ से गूँज रही थीं। नीचे पहुंचकर उसने देखा कि परिवार के सभी सदस्य पहले से ही डाइनिंग एरिया में एकत्र हो चुके थे। बड़े भव्य हॉल में फैली हुई खुशबू ने हर किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखेरी थी।
डाइनिंग टेबल को खूबसूरती से सजाया गया था। भारी लकड़ी की मेज पर राजस्थानी परंपरा के अनुसार दाल बाटी चूरमा, गट्टे की ताज़ी बनी सब्ज़ी, बेसन का गरमागरम हलवा, केसरिया दूध की मिठास और राजवीर के मनपसंद कढ़ी-चावल रखे गए थे। हर व्यंजन से निकलती महक ने माहौल को और भी खास बना दिया था। मेज के चारों ओर शाही कुर्सियाँ थीं, जिनपर परिवार के सदस्य आराम से बैठे थे। दीवारों पर लगे पारंपरिक पेंटिंग्स और झूमरों की झिलमिलाती रोशनी ने इस माहौल को और भी गरमाहट से भर दिया था।
मेड ने बड़े ध्यान और आदर के साथ एक-एक प्लेट लेकर सर्व करना शुरू किया। राजवीर की आँखों में उस घर की मिठास झलक रही थी। उसने पहली बाइट ली, जैसे ही स्वाद उसके जीभ तक पहुँचा, उसने अपनी आँखें धीरे से बंद कर लीं और गहराई से मुस्कुराते हुए बोला, "घर का खाना... इसका कोई मुकाबला नहीं।" उसकी आवाज़ में सुकून और प्यार दोनों झलक रहे थे।
सब लोग उसकी बात सुनकर एक-दूसरे की ओर देख रहे थे, मानो उस छोटे से शब्द ने सबके दिलों को छू लिया हो। वो लम्हा, जिसमें परिवार के सदस्य एक साथ थे, घर के स्वाद की महक और एक-दूसरे की मौजूदगी का अहसास, सब कुछ मिलकर एक परिपूर्ण खुशहाल परिवार की तस्वीर बना रहा था। उस पल में हर किसी की आंखों में अपनत्व और गर्माहट साफ़ झलक रही थी।
खाना खत्म होने के बाद, सभी सदस्य धीरे-धीरे हॉल की ओर चले गए जहाँ आराम से बैठकर बातचीत हो रही थी। आरती जी और नीलिमा जी चाय बनाने के लिए रसोईघर की तरफ बढ़ गई थीं, उनकी बातचीत से कमरे में मिठास फैल रही थी। राजवीर अपने दादा सा, समर प्रताप सिंह राठौड़ के पास बैठा था, उनकी आँखों में संतोष और प्यार झलक रहा था। बाकी परिवार के सदस्य भी पास ही आरामदायक कुर्सियों पर बैठे हुए थे।
कुछ समय की शांति के बाद, समर प्रताप सिंह राठौड़ ने अपनी छड़ी धीरे से एक ओर रखी। उनकी आवाज़ में एक भारीपन था, जो हॉल की हवा को अचानक गंभीर बना गया। गले में खंखारते हुए उन्होंने कहा,
"राजवीर..."
हॉल में हर कोई जैसे एक पल के लिए थम गया। बातचीत रुकी, चाय की चुस्कियों की आवाज़ भी सूनसान हो गई। सभी की निगाहें राजवीर पर टिकी थीं।
राजवीर ने तुरंत सजग होकर जवाब दिया, "जी दादा सा।"
समर जी ने धीरे से राजवीर की आँखों में देखा, जैसे वो उसके दिल की गहराइयों तक झाँक रहे हों। उनकी नज़रें अनुभव और समझदारी से भरी थीं।
फिर उन्होंने गंभीर लेकिन प्यार भरे स्वर में कहा,
"अब तू पच्चीस का हो गया है। तेरा फर्ज़ बनता है कि तू अपने नाम के साथ-साथ इस राजघराने की परंपराओं को भी निभाए।"
उनके शब्दों में एक जिम्मेदारी की गूंज थी, जो केवल परिवार के लिए नहीं, बल्कि राजसी सम्मान के लिए भी थी।
फिर समर जी ने दृढ़ता से कहा,
"मैं चाहता हूँ अब तेरी शादी हो जाए, बेटा।"
राजवीर ने कुछ क्षण तक चुप्पी साधी। उसकी आँखों में एक हल्की जद्दोजहद झलक रही थी। वह सोच रहा था कि क्या कहे, कैसे जवाब दे। हॉल की हर नज़र उसके ऊपर थी।
वहीं दादी वृंदा जी एक कोमल मुस्कान लिए बैठे थीं, मानो पहले से ही इस पल का इंतजार कर रही हों। उनकी आँखों में गर्व और स्नेह दोनों की चमक थी।
धीरे से राजवीर ने गहरी सांस ली और धीमे स्वर में बोला,
"दादा सा, मुझे थोड़ा वक्त दीजिए... अभी मैं... तैयार नहीं हूँ। शादी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। मैं कुछ वक्त चाहता हूँ सोचने के लिए।"
समर जी ने उसकी बात समझते हुए मुस्कुराए, फिर गंभीरता से कहा,
"ठीक है राजवीर, तुझे तीन दिन का वक्त देता हूँ। सोच ले अच्छे से। ये फैसला सिर्फ परिवार का नहीं, तेरे पूरे जीवन का है।"
राजवीर ने सिर झुकाकर सम्मान व्यक्त किया और बोले,
"जी दादा सा।"
हल्की मुस्कान उसके चेहरे पर थी, जिसमें इज्जत भी थी और थोड़ी सी नाज़ुक असमंजस भी। फिर वह धीरे-धीरे उठकर, हॉल से बाहर निकलते हुए अपने कमरे की ओर चला गया।
उसके जाते ही बाकी सभी भी एक-दूसरे की ओर देख कर धीरे-धीरे हॉल से उठ कर अपने-अपने कमरों में चले जाते हैं । महल फिर से अपने सन्नाटे में लौट जाता है । पर अब उसमें एक इंतज़ार की आहट है।
उदयपुर,
शाम का समय था । उदयपुर के भव्य महल की रौशनी धीरे-धीरे सुनहरी होती जा रही थी । महल के बड़े हॉल में परिवार के सभी सदस्य एकत्र थे । आरामी कुर्सियों पर बैठे, चाय की चुस्कियों और हल्की बातचीत का दौर चल रहा था ।
तभी, हॉल की गंभीर चुप्पी में रणधीर सिंह सिसोदिया की आवाज़ गूंजती है, जो हमेशा की तरह ठोस और निर्णायक होती है। उनकी गहरी, ठहराव भरी आवाज़ ने सभी का ध्यान खींचा,
"हमारी गुड़िया के लिए उदयगढ़ से रिश्ता आया है।"
उनके इस शब्द को सुनते ही हॉल में एक गहरा सन्नाटा छा गया, जैसे पूरा माहौल थम गया हो। हवा भी मानो ठहरी सी रह गई हो। कुछ ही क्षणों में सबकी निगाहें एक-दूसरे पर टिक गईं, एक-दूसरे की प्रतिक्रिया जानने को बेचैन थीं।
काव्या, जो उस वक्त दादा सा की बातों को सुन रही थी, अचानक चौंक उठी। उसके चेहरे पर अनजानी बेचैनी का साया उमड़ आया, लेकिन उसने खुद को संभाला। उसकी नज़रें जमी हुई थीं, जैसे मन के भीतर किसी लड़ाई को छुपा रही हो।
इसी बीच, अभिराज, जो काव्या का बड़ा भाई और परिवार का संरक्षक था, तुरंत उठ खड़ा हुआ और तंज कसते हुए बोला,
"पर दादासाहब, अभी तो काव्या सिर्फ इक्कीस की है। ये सब कुछ थोड़ा जल्दी नहीं हो रहा?"
रणधीर सिंह ने एक हंसते हुए, पर दृढ़ स्वर में जवाब दिया,
"हमारे ज़माने में लड़कियों की शादी अठारह की होते ही तय हो जाती थी। काव्या अब बड़ी हो गई है और उसकी पढ़ाई भी लगभग पूरी हो चुकी है। समय आ गया है कि वह अपने जीवन के नए अध्याय की ओर बढ़े।"
फिर उनकी दृष्टि काव्या की तरफ़ मुड़ी, और उन्होंने कोमल लेकिन अधिकारपूर्ण आवाज़ में कहा,
"बोलो बेटा, तुम्हारा क्या कहना है इस रिश्ते के बारे में?"
काव्या ने कुछ पल के लिए अपनी सांस थाम ली। उसका मन भावों की एक भँवर में उलझा हुआ था — सवाल, उलझनें, और भविष्य की अनिश्चितताएं। वह देख रही थी कि ये फैसला सिर्फ परिवार का नहीं, बल्कि उसके जीवन का एक बड़ा मोड़ था।
उसके होठ हल्के से कांप रहे थे, लेकिन उसने अपने भीतर की हिम्मत को इकट्ठा किया और धीरे से अपनी बात कहने को तैयार हो रही थी।
आप सब को क्या लगता है
क्या बोलेगी काव्या इस रिश्ते के लिए ?
क्या काव्या शादी के लिए राजी होगी ?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी......
Please अगर कहानी पसंद आ रही है तो कमेंट, लाइक और फॉलो करना मत भूलना ।
रणधीर सिंह सिसोदिया की आवाज़ में हल्की नरमी आई, उन्होंने काव्या की ओर देखते हुए कहा,
"बोलो बेटा, तुम्हारा क्या कहना है इस रिश्ते के बारे में?"
काव्या ने कुछ क्षण के लिए नज़रें झुका लीं। उसके मन में अनेक सवाल और उलझनें कौंध रही थीं। कौन सा फैसला सही होगा, क्या वह तैयार है, क्या यह उसके सपनों से मेल खाता है — ये सब बातें उसके दिल-दिमाग में तैर रही थीं।
धीरे-धीरे, वह अपने मन को संभालते हुए बोली,
"दादासाहब... मुझे थोड़ा वक्त चाहिए सोचने के लिए।"
रणधीर सिंह ने संतोष जताते हुए सिर हिला दिया,
"ठीक है बेटा, तीन दिन का समय है तुम्हारे पास। सोच समझ कर जवाब देना।"
काव्या ने आदर से सिर झुकाया और धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर बढ़ गई। उसकी चाल में भारीपन था, और कदमों की आहट में अनसुलझे भाव गूँज रहे थे।
पीछे से उसकी माँ, पद्मिनी देवी, उसकी आँखों में छुपी उस हल्की सी नमी को देख रही थीं। माँ के दिल में बेटी के लिए अनगिनत चिंता और प्रेम छलक रहा था। मगर वे कुछ कहे बिना, बस खड़ी रहकर उसे जाते हुए देखती रहीं, जैसे शब्दों से परे उनकी भावनाएँ उस नजारे को और भी मार्मिक बना रही थीं।
हॉल में फिर से एक शांतिपूर्ण सन्नाटा छा गया। हर कोई अपने-अपने विचारों में खो गया था। राजसी महल की भव्यता के बीच, इस शांति में अनकही बातों और भावनाओं की गूंज घुली हुई थी।
रात को,
रात की गहराई ने पूरे महल को अपने शांत और नीम रोशनी वाले आंचल में लपेट रखा था। भव्य राजमहल के काले और चांदी जैसे चमकते गुंबदों के बीच, हर कोना एक अजीब सी शांति लिए हुए था। डिनर के बाद की हल्की थकान सभी पर छाई थी, मगर काव्या के कमरे का माहौल कुछ अलग ही था — बेचैनी और उलझन की परतें उस कमरे में छाई हुई थीं।
काव्या, हल्के रेशमी गुलाबी रंग के कुर्ते में नंगे पाँव, अपने कमरे की चौड़ी खिड़कियों से बाहर झाँक रही थी। चाँदनी की ठंडी रौशनी उसकी चेहरे की उलझन को और गहरा बना रही थी। वह कमरे में इधर-उधर टहल रही थी, मन के तूफ़ानों से जूझती हुई, आँखें उस अंधेरे में कुछ खोजती हुई। उसके दिल में अनगिनत सवाल कौंध रहे थे — क्या ये रिश्ता सही है? क्या वह उस जीवन के लिए तैयार है? क्या उसका मन सच में इस नए सफ़र के लिए राज़ी होगा?
तभी, बिना किसी आवाज़ किए, दरवाज़ा धीरे से खुला और रणधीर सिंह सिसोदिया, दादासाहब, कमरे में दाखिल हुए। उनकी चाल धीमी और स्थिर थी, जैसे कोई सोच-समझ कर कदम बढ़ा रहा हो। उनकी गहरी आवाज़ में अभी भी वही पुरानी ठहराव और सम्मान झलक रहा था।
धीमे से उन्होंने कहा,
"गुड़िया, मैं जानता हूँ... अचानक ये रिश्ता सुनकर तू परेशान हो गई होगी।"
उनकी आवाज़ में एक नरमी थी, जो पिता जैसी फिक्र को बयान कर रही थी। फिर वे थोड़ी देर रुके और फिर जारी रखा,
"लेकिन लड़का बहुत अच्छा है। लंदन से पढ़ाई पूरी करके आया है। खुद का बिज़नेस भी है और जिम्मेदार भी।"
फिर उन्होंने एक बार ठहराव लिया, और बड़ी गंभीरता से कहा,
"और सबसे खास बात ये कि वो कोई और नहीं, तेरी भाभी के मामा का बेटा है। मतलब हमारे जान-पहचान का ही है।"
काव्या कुछ कहती नहीं थी। वह बस उनकी बात ध्यान से सुनती रही। उसकी आंखों में सवाल और आशंका का मिश्रण था, पर दादासाहब की बातों में एक भरोसे की झलक भी थी। वह अपने दिल की बेचैनी को दबाते हुए, धीरे-धीरे उन शब्दों को समझने की कोशिश कर रही थी।
रणधीर जी ने अपने स्वर में थोड़ी नरमी घोलते हुए काव्या से कहा,
"अगर तू किसी को पसंद करती है, किसी के लिए मन में कुछ है, तो निःसंकोच बता सकती है, बेटा। हम तेरी मर्ज़ी के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे।"
उनकी बातों में समझदारी और सम्मान का भाव साफ़ झलक रहा था, जैसे वह सचमुच काव्या की खुशहाली चाहते हों।
काव्या ने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाया,
"नहीं दादू... ऐसा कुछ नहीं है।"
रणधीर जी ने धीरे से उसके सिर पर हाथ रखा और एक पिता जैसी ममता से कहा,
"तो फिर ऐसा कर। बस एक बार उस लड़के और उसके परिवार से मिल ले। अगर अच्छा लगे, तो हम रिश्ता आगे बढ़ाएँगे। नहीं तो नहीं। डिसीजन पूरी तरह से तेरे हाथ में है, बेटा।"
इतना कहकर वे कमरे से बाहर निकल गए, उनकी चाल में शांति और आत्मविश्वास था।
कमरे में वापस शांति छा गई। काव्या धीरे-धीरे बालकनी की ओर बढ़ी। खिड़की खोलकर बाहर निकली तो चांदनी की ठंडी रौशनी में पूरा उदयगढ़ निहारा जा सकता था।
हवा में हल्की सी ठंडक थी, जो उसके तन और मन को कुछ राहत दे रही थी। चारों ओर सन्नाटा पसरा था, जैसे प्रकृति भी उसकी उलझनों को समझ रही हो।
काव्या ने आसमान में चमकते चाँद को निहारा, उसकी झिलमिलाती रोशनी में अपने भविष्य के अनिश्चित रास्तों को तलाशती हुई, मन में अनगिनत सवालों के साथ।
अचानक, काव्या की आंखों के सामने एक चेहरा उभर आया। वह चेहरा उसकी यादों का हिस्सा था — किसी की हल्की सी मुस्कान, जो सुकून और उम्मीद दोनों बिखेर रही थी। उस मुस्कान में एक तरह की नरमी थी, जैसे कोई गहरे दिल से मदद कर रहा हो। और फिर, उसकी वे आँखें — जिनमें उसने कुछ अपना सा देखा था, जैसे कोई अधूरा सपना, कोई अनकही बात।
काव्या ने मन ही मन बुदबुदाया,
"शायद आप हमारे नसीब में नहीं थे। इतनी बार आपके शहर आए, लेकिन आपसे कभी मिल नहीं पाए।"
उसकी आवाज़ में एक नमी थी, जो अनसुलझी चाहत और बेबसी को बयान कर रही थी।
वह गहरी सांस लेकर धीरे-धीरे खिड़की से दूर हुई, जैसे कोई सपना अधूरा रह गया हो, जो अब कभी पूरा न हो सके। कुछ देर तक चाँद को घूरती रही, उसकी ठंडी चाँदनी में खोई हुई, फिर अंततः उसने चुपचाप कमरे में लौटने का फैसला किया।
कमरे के भीतर कदम रखते ही, उसने धीरे से दरवाज़ा बंद किया। वह लाइट्स बुझाने लगी, परंतु पूरी अंधेरी रात से बचने के लिए उसने टेबल लैम्प की मद्धम रोशनी जलाई रखी। वह नर्म, धुंधली रोशनी कमरे की दीवारों पर उसकी उलझनों की परछाइयाँ फैला रही थी — मानो उसके मन के भाव भी उसी रोशनी में छुपकर चुपचाप कहीं दूर खुद को संभाल रहे हों।
कमरे की शांतिमा में, वह बैठ गई — अपनी यादों और अपने सवालों के साथ, उस अंधेरे और उजाले के बीच, एक अनसुलझे सफर की शुरुआत में।
धीरे-धीरे वक्त बीतता गया, और तीन दिन का वो इंतजार आखिरकार पूरा हो गया। राजवीर और काव्या को जो वक्त दिया गया था, अब समाप्त हो चुका था। दोनों परिवारों के लिए यह क्षण बेहद निर्णायक था — उस पल का जब दोनों युवाओं को अपनी पसंद और फैसले को सामने रखना था।
उदयपुर के राजमहल में, भव्य डाइनिंग हॉल की बड़ी लकड़ी की मेज के चारों ओर पूरे परिवारवाले एकत्रित थे। चारों ओर की दीवारों पर शाही तसवीरों की चमक और झूमरों की कोमल रोशनी के बीच एक गहरा सन्नाटा पसरा था, मानो हवा भी इस खास मौके की गरिमा को महसूस कर रही हो।
रणधीर सिंह सिसोदिया की सख्त लेकिन प्यार भरी नजरें काव्या पर टिकी हुई थीं। उन्होंने धीमे, मगर मजबूत स्वर में पूछा,
"तो गुड़िया, क्या तुम्हारा फैसला हो गया है?"
काव्या की निगाहें कुछ देर के लिए झुकी रहीं, पर भीतर से एक अनजाना आत्मविश्वास धीरे-धीरे उसके चेहरे पर चमकने लगा। उसने धीरे से सिर हिलाया और एक हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"हाँ दादू, मुझे लगता है कि ये सही होगा।"
उस एक वाक्य ने पूरे कमरे में जैसे खुशी की लहर दौड़ा दी। सभी की आँखों में राहत और प्रसन्नता के चमक थे। काव्या के इस फैसले ने हर किसी की उम्मीदों को नया जीवन दे दिया था, जैसे एक नया सूरज उदय हो गया हो।
महाराज रूद्रप्रताप और महारानी पद्मिनी, जो काव्या के माता-पिता थे, एक-दूसरे की ओर देखकर मुस्कुराए। उनकी आंखें भरे हुए आंसुओं से चमक रही थीं — ये आंसू खुशी के, गर्व के और राहत के थे। उनके चेहरों पर उस दिन की थकान और तनाव अब खुशी और संतोष में बदल चुका था।
बाकी परिवार के सदस्य भी अपने-अपने स्थानों से उठकर एक-दूसरे से मिलते हुए मुस्कुराए, जैसे ये पल उनके लिए भी एक नई शुरुआत का संदेश था।
काव्या का हां कहना उनके लिए एक नए अध्याय की शुरुआत थी, और उनका दिल खुशियों से भर गया था। काव्या ने अपने परिवार को वो विश्वास दिलाया था जिसकी उन्हें जरूरत थी।
रणधीर जी ने मुस्कुराते हुए काव्या से कहा,
"अच्छा किया, गुड़िया। अब हम सब मिलकर इस रिश्ते को आगे बढ़ाएंगे।"
काव्या के जाने के बाद, रणधीर जी ने सभी को लड़के के बारे में बताया, जिस पर सभी खुश हो गए थे।
"लड़का अच्छा है," उन्होंने कहा, "लंदन से पढ़ाई कर के आया है, और खुद का बिजनेस भी है। उसका परिवार भी बहुत अच्छा है।"
यह सुनकर सभी को न केवल राहत मिली, बल्कि उन्होंने इस रिश्ते को अपनाया। लड़का सभी को पसंद आया था, और अब बस एक फॉर्मल मीटिंग और फिर सब कुछ तय हो जाने वाला था।
रणधीर जी ने औरों से कहा,
"अब हम सब इस रिश्ते को पक्का करेंगे। और यह काव्या का फैसला है, तो हम उसकी इच्छाओं का सम्मान करेंगे।"
इस फैसले के साथ ही, पूरे महल में एक नई खुशी का माहौल बन गया था। काव्या और राजवीर के रिश्ते की नींव अब मजबूत हो चुकी थी, और दोनों परिवारों का दिल एक साथ धड़कने लगा था।
आज के लिए इतना ही
क्या राजवीर लड़की देखने जाने के लिए तैयार होगा ?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी .....
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उदयगढ़ के राजमहल के विशाल डाइनिंग हॉल में, पूरे परिवार के सदस्य आराम से बैठे थे। हल्की-सी बेचैनी और उम्मीद भरे एहसास के बीच माहौल कुछ खास था।
अचानक दरवाज़ा खुला और राजवीर कमरे में प्रवेश किया। जैसे ही उसकी झलक मिली, सभी की नजरें एक साथ उसकी तरफ़ मुड़ गईं। थोड़ी देर के लिए राजवीर खामोशी से खड़ा रहा, आँखों में अपने दादा, समर प्रताप सिंह राठौड़ को देखा।
समर जी ने चेहरे पर स्नेहिल मुस्कान लिए, उसका हौंसला बढ़ाते हुए पूछा,
"राजवीर, शादी के बारे में क्या सोचा है?"
राजवीर ने कुछ पल के लिए गहरी सांस ली, अपने विचारों को समेटा, और फिर धीरे-धीरे सिर हिलाया — एक संकेत कि उसने सोच-समझकर फैसला कर लिया है।
समर जी की आंखों में संतोष झलक उठा, और उनकी मुस्कान और भी नर्म हो गई।
"अच्छा किया, राजवीर।"
उनके इस शब्द से पूरे कमरे में एक हल्की सी राहत की लहर दौड़ गई। परिवार के अन्य सदस्य भी मुस्कुराने लगे, जैसे एक भारी बोझ उनके दिलों से उतर गया हो।
इस पल ने हर किसी के दिल में उम्मीद की एक नई किरण जगाई — एक नए अध्याय की शुरुआत।
राजवीर के निर्णय के बाद, परिवार के सभी सदस्य एकजुट होकर आगे की योजना बनाने लगे। माहौल में उत्साह और उम्मीद की मिठास घुल गई थी।
कोई सुझाव देने लगा, तो कोई खुशी से मुस्कुरा रहा था। अंत में, सबने मिलकर सहमति जताई,
"हम संडे को लड़की देखने जाएंगे।"
राजवीर ने भी इस बात पर अपना सिर हिलाया और परिवार के सदस्यों की आँखों में चमक देख मुस्कुरा दिया।
डिनर के बाद, समर जी ने गंभीर लेकिन सौम्य स्वर में सभी को संबोधित किया,
"हम संडे को लड़की वालों से मिलने जाएंगे। यह समय दोनों परिवारों के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात का है।"
उनकी बातों में जिम्मेदारी और उत्साह दोनों झलक रहे थे।
राजवीर के परिवार में इस निर्णय से एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। सबके दिलों में उम्मीदें खिल उठीं, यह सोचकर कि यह मुलाकात रिश्ते की एक मजबूत नींव रखेगी।
परिवार के सदस्यों ने मिलकर संडे के दिन के लिए तैयारियां शुरू कर दीं — कपड़ों का चयन, उपहारों की बात, और मिलने वाले परिवार के बारे में जानकारी लेने में व्यस्त हो गए।
महल की दीवारों में गूँजती इस खुशी ने जैसे पूरे घर को नवजीवन दे दिया था।
संडे को,
संडे की सुबह उदयगढ़ के राजमहल में एक खास उमंग के साथ आई। राठौड़ परिवार के सभी सदस्य बड़े हॉल में इकट्ठे हुए थे। राजवीर के आने का इंतजार था। माहौल में हल्की-सी उत्सुकता और खुशी का संगम था, क्योंकि यह पहला मौका था जब पूरा परिवार लड़की को देखने के लिए जा रहा था।
समर प्रताप सिंह राठौड़, वृंदा जी, आरती जी, विजय जी और परिवार के सभी छोटे-बड़े सदस्य एकसाथ तैयार थे, उनके कपड़े और आभूषण राजसी परंपरा के अनुरूप सज-धज कर एक भव्य दृश्य बना रहे थे।
कुछ ही देर बाद राजवीर ने हॉल में प्रवेश किया। जैसे ही वृंदा जी ने उसे देखा, वे धीमे से खड़ी हो गईं। अपनी सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार, उन्होंने राजवीर की नजर उतारना शुरू किया — एक खास तरह की नज़र जो सौभाग्य और शुभता के लिए की जाती है।
"राजवीर, ध्यान रखना। यह एक नई शुरुआत है," वृंदा जी ने गंभीरता और स्नेह से कहा।
उनकी आशीर्वाद भरी निगाहों ने राजवीर के मन में आत्मविश्वास और जिम्मेदारी का भाव भर दिया। राजवीर ने सिर झुका कर उनका सम्मान और आभार व्यक्त किया।
उसके बाद, सभी एक साथ कारों में बैठे। समर जी, जो परिवार के मार्गदर्शक और स्तम्भ थे, इस पूरे क्षण को गंभीरता से महसूस कर रहे थे। उनके चेहरे पर उम्मीद और विश्वास की चमक थी, क्योंकि वे जानते थे कि यह मुलाकात उनके परिवार के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी।
सड़क पर सफर के दौरान, हल्की-फुल्की बातचीत चल रही थी, पर सभी की निगाहें उस मुलाकात की ओर टिकी थीं, जो भविष्य की राह तय करेगी। राजवीर के चेहरे पर भी सोच और भावना का मिश्रण साफ़ देखा जा सकता था।
उनके कदम उस नए सफर की ओर बढ़ रहे थे, जहाँ प्यार, परिवार और परंपरा के बीच एक नया अध्याय लिखा जाना था।
उदयपुर के सिसोदिया निवास में सुबह की धूप धीरे-धीरे महल की पुरानी दीवारों पर पड़ रही थी। पूरा महल अपनी भव्यता और शाही आभा के साथ जाग रहा था। घर के चारों ओर हलचल थी — नौकर अपने-अपने कामों में व्यस्त थे, दीवारों पर लगी तस्वीरों को साफ कर रहे थे, फव्वारे की सफाई हो रही थी, और किचन में पद्मिनी जी स्वादिष्ट पकवानों की तैयारी में लगी थीं।
सुबह 10 बजे के आसपास, अचानक बाहर गाड़ियों की आवाज़ गूंजने लगी। एक-एक करके आठ आलीशान कारें सिसोदिया निवास के मुख्य द्वार पर पहुंचीं और धीरे-धीरे रुक गईं।
गाड़ियों के रुकते ही महल की हवा में उत्सुकता की एक हल्की सी लहर दौड़ गई। परिवार के सभी सदस्य खिड़कियों और बालकनियों से बाहर झांकने लगे, हर कोई उस खास मुलाकात के लिए तैयार था।
पहली कार से समर जी, वृंदा जी, विजय जी और आरती जी उतरे। चारों की मौजूदगी महल के वातावरण को और भी गरिमामय बना रही थी। समर जी की गंभीरता और सम्मानित चेहरे पर अनुभव की छाप थी, वृंदा जी की मातृत्व भरी उपस्थिति से सबका मन प्रफुल्लित हो उठा, विजय जी की सख्त लेकिन न्यायप्रिय मुद्रा पूरे परिवार में अनुशासन की मिसाल बन रही थी, और आरती जी की स्नेहिल मुस्कान हर दिल को छू रही थी।
दूसरी कार से देवेंद्र जी, नीलिमा जी, गौरी जी और रतन जी उतरे। ये चारों मिलकर परिवार के स्नेह और समझदारी की तस्वीर थे। देवेंद्र जी की समझदारी के साथ नीलिमा जी का प्रेममय स्वभाव, गौरी जी की पारंपरिक भावनाएं और रतन जी की समर्पित मौजूदगी, महल में गर्माहट भर रही थी।
तीसरी कार से राजवीर और साहिल उतरे। राजवीर की गंभीर और आत्मविश्वासी चाल देखते ही बन रही थी, जबकि साहिल का मस्तमौला और चुलबुला स्वभाव माहौल में हल्का-फुल्का रंग भर रहा था। दोनों के बीच की केमिस्ट्री साफ झलक रही थी, जो परिवार में नई ऊर्जा लेकर आई थी।
चौथी कार से रिया, अर्जुन और तृषा उतरे। तीनों की उपस्थिति ने सिसोदिया परिवार के रिश्तों को एक नया आयाम दे दिया था। रिया की शांति, अर्जुन की अनुशासनप्रियता और तृषा की समझदारी एक साथ मिलकर परिवार के माहौल को और भी ऊर्जावान बना रही थीं।
बाकी की कारों से बॉडीगार्ड्स उतरे, जो सुरक्षा की दृष्टि से बेहद आवश्यक थे। उनकी गंभीर और चौकस निगाहों ने पूरे महल के वातावरण को और भी सुरक्षित और रॉयल बना दिया।
इस भव्य और संजीदा माहौल के बीच, सिसोदिया निवास की महफिल अब उस अहम मुलाकात के लिए पूरी तरह तैयार थी, जो परिवार के भविष्य के लिए एक नई दिशा तय करने वाली थी।
गाड़ियों की आवाज़ जैसे ही सिसोदिया निवास के बाहर गूँजी, परिवार के सदस्य उत्सुकता से बाहर निकल आए। हर कोई इस महत्वपूर्ण पल के स्वागत के लिए पूरी तरह तैयार था।
समर जी, अपनी गंभीर और सम्मानित मुद्रा में, थोड़े ठहराव के साथ बाहर आए। उनके कदमों में एक आत्मविश्वास और जिम्मेदारी की गूँज थी। बृंदा जी की चेहरे पर स्नेहिल मुस्कान थी, जो माहौल को गरमाहट से भर रही थी। विजय जी ने अपनी पारंपरिक गरिमा को बनाये रखा, उनकी मौजूदगी से सबका मन स्थिर हो उठा। आरती जी ने सभी का स्नेहपूर्वक स्वागत किया, जैसे हर एक सदस्य उनके परिवार का हिस्सा हो।
इसके बाद, देवेंद्र जी, नीलिमा जी, गौरी जी और रतन जी ने एक-एक कर सभी को आदरपूर्ण प्रणाम किया। उनके प्रणाम में परिवार और रिश्तों का सम्मान साफ झलक रहा था।
जैसे ही सभी सदस्य बाहर आकर एक-दूसरे से मिले और हल्का-फुल्का हालचाल पूछा, माहौल में एक सजीवता और गर्मजोशी आ गई। तनाव की जगह अपनापन और उम्मीद ने ले ली।
सभी सदस्य एक-एक कर बड़े धैर्य, शालीनता और गरिमा के साथ एक-दूसरे से मिलते हुए घर के अंदर प्रवेश करते गए। हाथ मिलाने, नमस्ते करने और मुस्कुराने की यह रस्में इस महल की सदियों पुरानी परंपराओं को बखूबी दर्शा रही थीं। हर किसी के चेहरे पर सम्मान और अपनापन साफ झलक रहा था।
सिसोदिया निवास की विशाल हवेली के अंदर माहौल एक अनोखे संजीदगी और उम्मीद से भर गया था। इस भव्य और शांतिपूर्ण महल में आज का दिन किसी खास याद की तरह उभर कर आया था — एक ऐसा दिन जो राजवीर और काव्या के रिश्ते की दिशा तय करने वाला था।
हर सदस्य के मन में हल्की-सी उम्मीद और उत्साह के साथ-साथ एक सूक्ष्म तनाव भी मौजूद था। सब जानते थे कि आज की यह मुलाकात सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि दोनों परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय का पहला कदम थी।
दीवारों पर टंगी पुरानी तस्वीरें और जड़े हुए झूमर जैसे इस माहौल को और भी राजसी बना रहे थे। बड़े-बड़े आंगनों से आती ताजी हवा और घर की मिठास भरी खुशबू ने उस दिन की महत्ता को और गहरा कर दिया था।
परिवार के हर सदस्य के दिल में यही दुआ थी — कि यह मुलाकात सफल हो, और दो परिवारों के बीच एक नयी, खुशहाल कहानी लिखी जाए।
इसी बीच, राजवीर और साहिल भी एक-दूसरे से बातचीत में मग्न थे, उनकी आँखों में नई उम्मीद और उत्साह था। बाकी सदस्य आपस में बधाइयाँ देते और शुभकामनाएं देते नजर आएं।
अचानक, समर जी ने गंभीर और ठोस स्वर में कहा,
"अब काव्या को लाने का समय है।"
उस शब्द ने माहौल को एक नई ऊर्जा और उत्सुकता से भर दिया। सभी की निगाहें दरवाज़े की ओर टिक गईं, जहाँ से अब एक नया अध्याय शुरू होने वाला था।
क्या राजवीर और काव्या शादी के लिए तैयार होंगे ?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी......
Please अगर कहानी पसंद आ रही है तो कमेंट, लाइक और फॉलो करना मत भूलना ।
समर जी ने गंभीर स्वर में कहा,
"अब काव्या को लाने का समय है।"
उनके शब्दों की गूंज पूरे हॉल में फैल गई। सभी की धड़कनें तेज़ हो गईं, हर कोई उस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहा था।
कुछ ही देर बाद, आदेश दिया गया कि काव्या को बुलाया जाए। जैसे ही काव्या के आने की खबर फैली, माहौल और भी रोमांचक हो उठा।
सीढ़ियों की ओर सबकी निगाहें टिक गईं। कुछ देर बाद, काव्या धीरे-धीरे नर्म और सजग कदमों से सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी। उसका रूप इस खास दिन के लिए पूरी तरह सज-धजा था — सफेद रंग का सूट, जिस पर लाल रंग का दुपट्टा बड़ी खूबसूरती से लपेटा गया था, उसके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा रहा था।
उसके घने, काले बाल कमर तक खुले हुए थे, जो हर हल्की हवा के झोंके में धीरे-धीरे हिल रहे थे। कानों में झुमकों की हल्की सी झनकार उसकी चाल में एक मधुरता जोड़ रही थी।
उसके चेहरे पर गुलाब सी लाल लिपस्टिक, और हेज़ल रंग की आँखें उसकी मासूमियत और आकर्षण को और भी निखार रही थीं। आँखों में छिपी हुई हया और सादगी ने उसे एक खास नयापन दिया था — जैसे वो इस नए सफर की शुरुआत में अपनी पूरी अस्मिता और भावना के साथ खड़ी हो।
हर कदम पर वह मानो खुद एक मिसाल बनती जा रही थी, एक ऐसी मिसाल जो अपने घर, अपने संस्कारों, और अपने भविष्य के लिए तैयार थी।
सभी की निगाहें उस पर टिकी थीं, हर कोई उसकी खूबसूरती, उसकी शांति और उसके आत्मविश्वास से प्रभावित था। एक नई कहानी की शुरुआत के लिए यह पल सच में बेहद खास था।
काव्या जैसे ही सीढ़ियों से नीचे उतरी, पूरे हॉल में अचानक एक सन्नाटा छा गया। सभी की नजरें एक पल के लिए थम सी गईं। राजवीर की निगाहें सबसे पहले काव्या पर ठहर गईं। उसकी खूबसूरती, उसकी सादगी, और वह नाज़ुक एहसास जो उसके चेहरे पर था, सब कुछ राजवीर को जैसे मंत्रमुग्ध कर गया।
लेकिन काव्या की नजरें झुकी हुई थीं। वह अपनी हया और बेचैनी को छुपा नहीं पा रही थी। अपने दोस्त के कंधे से सहारा लेकर, वह धीरे-धीरे बड़ों के पास गई और विनम्रता से प्रणाम किया।
साहिल, जो सब कुछ करीब से देख रहा था, अपनी मुस्कान को छुपा नहीं पाया। वह मन ही मन खुश हो उठा। उसे बखूबी पता था कि राजवीर, जो आमतौर पर किसी लड़की को सीधे देखकर भी नजर नहीं मिलाता था, आज अपनी होने वाली भाभी को इतनी गहराई से देख रहा है।
साहिल ने दिल ही दिल में सोचा,
"लगता है अब मुझे पक्का भाभी मिलने वाली है। अब ये तो दिलचस्प होने वाला है।"
उसके चेहरे पर शरारती मुस्कान खिल उठी, और वह काव्या की ओर एक बार फिर नजरें गड़ा कर बैठ गया, तैयार कुछ नए रंगों और पलों के लिए।
काव्या का शांत और सलीके से किया गया प्रणाम पूरे कमरे में एक सजीव माहौल बना गया। हर कोई उसकी विनम्रता और शिष्टाचार से प्रभावित था। लेकिन धीरे-धीरे, सभी की नजरें काव्या और राजवीर के बीच एक खास कनेक्शन, एक अनकहे भाव को समझने की कोशिश करने लगीं।
डाइनिंग हॉल में सभी सदस्य एकत्रित थे। समर जी और बृंदा जी ने काव्या की तारीफ में कुछ शब्द कहे थे, लेकिन अब, माहौल थोड़ा और खुला था। आरती जी, जो अपने स्नेह और ममता के लिए जानी जाती थीं, अपनी भावना व्यक्त करने लगीं।
उन्होंने अपनी बगल में बैठी वृंदा जी की ओर देख कर धीरे से कहा,
"मुझे तो काव्या बहुत पसंद है।"
फिर थोड़ा मुस्कुराते हुए, सवाल किया,
"क्यू मैंने सही कहा न, मां सा?"
वृंदा जी, जो सदैव परंपराओं और परिवार की मर्यादाओं की संरक्षक रहीं हैं, एक हल्की मुस्कान के साथ जवाब दीं,
"हां, मुझे भी वह बहुत पसंद है। वह एक अच्छी लड़की है, और मुझे पूरा विश्वास है कि वो हमारे राजवीर के लिए परफेक्ट रहेगी और हमारे राजघराने की हुकुम रानी सा बनने के लिए भी पूरी तरह सक्षम है।"
ये सुनते ही आरती जी के चेहरे पर खुशी के फूल खिल उठे। उन्होंने धीमे से सिर हिलाया और अपने दिल की संतुष्टि जाहिर की।
माहौल में एक मीठी गर्माहट फैल गई, और सबका मन यह सोचकर प्रफुल्लित हो उठा कि ये रिश्ता न केवल दो दिलों का मिलन होगा, बल्कि दो परिवारों के संस्कारों और प्यार का भी खूबसूरत संगम।
समर जी ने गंभीर और सहज स्वर में दोनों परिवारों को संबोधित किया,
"अगर आप सबको मंजूर हो, तो मैं सोचता हूँ कि राजवीर और काव्या को कुछ वक्त अकेले बिताने का अवसर देना चाहिए। इससे वे एक-दूसरे को बेहतर समझ सकेंगे और इस रिश्ते को आगे बढ़ाने की राह आसान होगी।"
उनकी बात सुनकर सभी ने धीरे-धीरे सहमति जताई।
तभी विमला जी ने मुस्कुराते हुए काव्या की ओर बढ़कर कहा,
"काव्या, तुम राजवीर को गार्डन में ले जाओ। वहाँ वे थोड़ा आराम से बैठकर खुलकर बात कर पाएंगे।"
काव्या ने एक हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया और संकोच भरे कदमों के साथ राजवीर की ओर बढ़ी।
राजवीर भी बिना किसी झिझक के उसकी तरफ़ मुड़ा और दोनों गार्डन की ओर बढ़ने लगे। बाहर की ठंडी हवा में फूलों की खुशबू तैर रही थी, जो माहौल को एकदम रोमांटिक और मनमोहक बना रही थी।
उनका कदम धीमा था, पर दिल की धड़कनें तेज़। गार्डन के हरे-भरे रास्तों के बीच, दोनों ने एक-दूसरे की तरफ़ कुछ कहना चाहा, पर शब्द अधूरे रह गए।
फूलों की खुशबू और ठंडी हवा के बीच, ये दो दिल एक नए सफर की शुरुआत कर रहे थे — जहाँ समझदारी, सम्मान और अपनापन साथ-साथ चलेंगे।
गार्डन में दोनों आराम से पड़े हुए चेयर पर बैठे थे, लेकिन उनके बीच एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी। हवा में फूलों की ताज़गी थी, लेकिन दोनों के दिलों में एक अनजाना सा सन्नाटा था, जैसे शब्द कहने को हों पर जुबां पर न आएं।
राजवीर की निगाहें लगातार काव्या पर टिकी हुई थीं। उसकी हर छोटी-छोटी हलचल, हर मुस्कुराहट और हर नर्वस झलक उसे देख रही थीं। वह इस नए रिश्ते की शुरुआत में हर बात को समझने और महसूस करने की कोशिश कर रहा था।
काव्या को राजवीर की घूरती नजरें महसूस हो रही थीं। उसकी सांसें थोड़ी तेज हो गईं, और नर्वसनेस ने उसके दिल में हलचल मचा दी। वह खुद को संभालने की कोशिश करते हुए, अपने दुपट्टे के छोर से खेल रही थी, उसे कोई छोटा-सा सा सहारा मिला जैसे।
पर राजवीर की नजरें इतनी तीव्र और संवेदनशील थीं कि वह छोटी से छोटी हरकत भी पकड़ लेते थे। काव्या की ये नाजुक सी आदत भी उसकी नजरों से बच नहीं पाई।
इस खामोशी के बीच, दोनों के मन में अनगिनत सवाल, उम्मीदें और थोड़ा सा डर भी था — एक नई शुरुआत की नाजुकता और उसमें छुपी अनिश्चितता।
करीब दस मिनट की उस अनकही खामोशी के बाद, राजवीर ने महसूस किया कि काव्या शायद इस चुप्पी को तोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। उसकी आँखों में झलकती वह बेचैनी, झिझक और मन के सवाल साफ़ दिखाई दे रहे थे।
राजवीर ने सोचा, “अगर मैं शुरू नहीं करता, तो शायद यह पल यूं ही खामोशी में डूब जाएगा।”
धीमे और सहज स्वर में, वह धीरे से बोला,
"क्या... आपको कोई और पसंद है? या फिर आप किसी से मोहब्बत करती हैं?"
उसका सवाल बिना किसी पूर्व चेतावनी के था, लेकिन उसमें एक तरह की सादगी और संवेदनशीलता थी।
राजवीर का अचानक पूछा गया सवाल काव्या को झकझोर कर रख देता है। उसकी आँखों में एक हल्का सा आश्चर्य सा छा जाता है, साथ ही संकोच भी। वह धीरे से राजवीर की तरफ देखती है, पर जैसे ही उसकी नजरें उसकी गंभीर, गहरी और सवाल भरी आँखों से टकराती हैं, एक सन्नाटा सा उनके बीच फैल जाता है।
उस गहरी नजर में ऐसी ताक़त और एहसास था कि काव्या की जुबां जैसे थम सी गई हो। उसका दिल तेजी से धड़कने लगता है, और वह खुद को खोए हुए पाती है।
दोनों के बीच कुछ पल ऐसी खामोशी छा जाती है, जहाँ वक्त थम सा गया हो। काव्या की आँखों में एक अलग सी गहराई थी — जैसे उसके अंदर कोई अनकहा दर्द, कोई छुपा हुआ राज हो, जिसे वह शब्दों में बयां नहीं कर पा रही हो।
राजवीर भी उसी गहराई में डूबा हुआ था, और वह बिना कुछ कहे, बस उस पल को महसूस कर रहा था।
यह नज़ारा दोनों के लिए एक नए सफर की शुरुआत थी — एक ऐसा सफर, जिसमें इशारे, नज़रें, और अनकहे शब्द भी बड़ी बातें कह जाते हैं।
करीब पाँच मिनट तक, दोनों ऐसे ही खामोशी में डूबे रहे, जैसे उनकी पूरी दुनिया एक-दूसरे में समा गई हो। समय की रफ़्तार ठहर सी गई थी, और गार्डन की ठंडी हवा, फूलों की खुशबू, सब कुछ इस अनोखे पल को और भी खास बना रहा था।
पर अचानक, काव्या को कुछ महसूस हुआ — एक हल्का सा स्पर्श, जो उसकी त्वचा पर नर्माहट की तरह छू गया। उसकी सांसों की रफ़्तार थोड़ी तेज़ हो गई, और वह थोड़ा चौक गई।
तो आप सब को क्या लगता है
ऐसा क्या महसूस हुआ काव्या को जिस से वो चौक गई ?
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करीब पाँच मिनट तक, दोनों ऐसे ही खामोशी में डूबे रहे, जैसे उनकी पूरी दुनिया एक-दूसरे में समा गई हो। समय की रफ़्तार ठहर सी गई थी, और गार्डन की ठंडी हवा, फूलों की खुशबू, सब कुछ इस अनोखे पल को और भी खास बना रहा था।
पर अचानक, काव्या को कुछ महसूस हुआ — एक हल्का सा स्पर्श, जो उसकी त्वचा पर नर्माहट की तरह छू गया। उसकी सांसों की रफ़्तार थोड़ी तेज़ हो गई, और वह थोड़ा चौक गई।
काव्या की नजरें धीरे-धीरे अपनी पालतू बिल्ली की ओर गईं, जो उसकी टखनों के पास आराम से बैठी थी। अचानक उस हल्की सी असहजता को छिपाने के लिए, उसने बिल्ली को अपने गोद में उठा लिया।
उसके चेहरे पर तनाव की एक नर्मी थी, लेकिन जैसे ही उसने बिल्ली को गोद में लिया, उसकी मुस्कान वापस लौट आई — एक प्यारी, सहज मुस्कान जो उसकी सच्चाई और मासूमियत को बयां कर रही थी।
राजवीर अपनी गहरी निगाहें काव्या पर टिकाए हुए था, लेकिन इस बार कुछ कहने की बजाय वह सिर्फ चुपचाप उस मुस्कान को निहार रहा था।
पर कुछ देर बाद, वह अपनी सोच से उबर कर फिर से सवाल करता है, थोड़ा गंभीर होते हुए,
"क्या... आप किसी और से मोहब्बत करती हैं?"
राजवीर के इस सवाल ने काव्या को झकझोर कर रख दिया। वह कुछ पल चुप रही, अपनी भावनाओं को समेटने की कोशिश करती हुई। फिर धीरे-धीरे उसकी नजरें राजवीर की ओर उठीं।
उसकी आँखों में कोई गुस्सा या टकराव नहीं था, बल्कि एक हल्का सा आश्चर्य, जैसे वो इस सवाल की वजह जानना चाहती हो।
धीमी आवाज़ में उसने जवाब दिया,
"ऐसा कुछ नहीं है... पर आप यह क्यों सोच रहे हैं?"
राजवीर का चेहरा गंभीर था, उसकी आंखों में ईमानदारी और थोड़ा सा सवाल भी झलक रहा था। बिना किसी झिझक के, उसने कहा,
"आप जब से नीचे आई हैं, एक बार भी मेरी तरफ आँखें उठाकर नहीं देखा। इसका मतलब तो यही है, ना कि आप इस शादी के लिए तैयार नहीं हैं?"
काव्या के लिए यह बात सुनना जैसे किसी झटके से कम नहीं था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि पहली मुलाकात में ही कोई उसे इतना गहराई से समझ सकता है। उसकी नज़रों के बीच छुपी उलझन, वह बेचैनी — सब कुछ राजवीर की बातों में साफ झलक रही थी।
लेकिन काव्या ने खुद को संभाला, और थोड़ी देर की सोच के बाद, धीरे से बोली,
"जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं है।"
फिर उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"आप जो भी पूछना चाहें, बेहिचक पूछ सकते हैं।"
उस मुस्कान में एक साहस था — खुद को खुलकर सामने रखने की एक कोशिश, और राजवीर के लिए एक संकेत कि वह बातचीत के लिए तैयार है।
राजवीर ने काव्या की इस बात को महसूस किया और अपनी गंभीरता के साथ-साथ मुस्कुराहट भी छुपाने लगा।
काव्या का शांत और आत्मविश्वास से भरा जवाब सुनकर राजवीर के मन में थोड़ी राहत हुई। उसने महसूस किया कि काव्या ने अपनी भावनाओं को बहुत अच्छे से छुपा लिया था, लेकिन फिर भी वह पूरी तरह सहज नहीं लग रही थी। उसकी मुस्कान के पीछे छुपा वो थोड़ा सा डर और अनिश्चितता राजवीर की नजरों से बच नहीं पाया।
राजवीर ने अपनी बातों को थोड़ा मुलायम कर लिया और अगला सवाल पूछने से पहले कुछ पल चुप रहकर काव्या की आँखों में देखकर जवाब का इंतजार करने लगा।
उस पल, उसकी नज़रें काव्या की मुस्कान में खो गईं — जैसे समय रुक सा गया हो। उसकी आँखों में एक गहरी शांति और आकर्षण झलक रहा था, जो राजवीर को अपनी ओर खींच रहा था।
पर थोड़ी देर बाद वह होश में आया, अपने मन से धीरे से बोला,
"क्या ये सही है?"
यह सवाल उसके दिल और दिमाग के बीच की जद्दोजहद को दर्शा रहा था — क्या यह रिश्ता वाकई सही दिशा में जा रहा है? क्या वो सही निर्णय ले रहा है?
राजवीर ने खुद को सँभाला और मुस्कुराते हुए काव्या से पूछा,
"तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है? आगे के क्या प्लान हैं तुम्हारे?"
काव्या ने थोड़ी देर सोचकर अपनी बात शुरू की,
"मैंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है, और मैं आगे किसी अच्छी कंपनी में जॉब करना चाहती हूँ। साथ ही, मैं कुछ समय बाद अपना एक छोटा सा बिज़नेस भी शुरू करना चाहती हूँ, जो फैशन और डिजाइनिंग से जुड़ा होगा।"
राजवीर ने उसकी बात ध्यान से सुनी और कहा,
"बहुत बढ़िया। तुम्हारे सपने और योजनाएं सुनकर अच्छा लगा। मुझे लगता है, जब हम साथ होंगे तो हर मंज़िल आसान होगी।"
काव्या की आँखों में भी एक चमक आ गई, और दोनों के बीच का तनाव धीरे-धीरे कम होने लगा। उनकी बातचीत अब एक सहजता और अपनापन लिए हुए थी।
इसी बीच, अंदर से साहिल आवाज़ लगाता हुआ आया,
"भाई, अंदर आ जाओ, सब लोग इंतज़ार कर रहे हैं।"
राजवीर ने काव्या की तरफ देखा और मुस्कुराया,
"चलो, वापस चलते हैं।"
दोनों अंदर की ओर बढ़े। हॉल में सभी लोग पहले से ही बैठ चुके थे। राजवीर ने सभी का अभिवादन किया और अपने स्थान पर बैठ गया।
वहीं, पद्मिनी जी काव्या को लेकर कमरे की ओर चली गईं।
पूरे महल में एक सुकून भरा माहौल था, जैसे आज एक नई शुरुआत की नींव रखी जा रही हो।
कमरे में, पद्मिनी जी ने काव्या की नर्म कंधे पर हल्का सा हाथ रखा और धीरे से पूछा,
"बेटा, तुम्हें शादी के बारे में क्या लगता है? क्या तुम तैयार हो इस नए सफर के लिए?"
काव्या थोड़ी शर्म से सिर हिला कर हां में जवाब देती है। उसकी आँखों में हल्की झिझक थी, लेकिन साथ ही एक नई उम्मीद की चमक भी थी।
पद्मिनी जी की आंखों में खुशी की नमी छलक उठी। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,
"ठीक है, अब आराम करो। सब ठीक होगा।"
फिर पद्मिनी जी हल्की मुस्कान लिए हॉल में चली गईं। उन्होंने पूरे परिवार को यह खुशखबरी सुनाई, "काव्या शादी के लिए राज़ी हैं।"
यह सुनते ही पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी चेहरे खिल उठे, और एक उत्सव सा माहौल बन गया।
थोड़ी देर बाद, राजवीर से भी उसका निर्णय पूछा गया। उसने सभी की ओर देखते हुए कहा,
"आप सब की इच्छा है। अगर आप सब को यह रिश्ता पसंद है, तो मैं भी शादी के लिए तैयार हूं।"
राजवीर के इस जवाब ने परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी। वे एक-दूसरे को बधाई देने लगे, और महल में उल्लास और उमंग की एक नई हवा बहने लगी।
सभी खुशी-खुशी मिठाई खाते हुए, विमला जी ने मिठाई लाने के लिए कहा। कुछ ही देर में तश्तरी में रंग-बिरंगी और स्वादिष्ट मिठाइयाँ आ गईं। सबने एक-दूसरे को देखकर हँसते हुए मिठाईयां बाँटीं और मनमोहक मुस्कान के साथ आनंद मनाने लगे।
लेकिन इसी खुशी के बीच, एक व्यक्ति ऊपर की ओर देखकर बेचैनी से भरा हुआ था। उसकी निगाहें कहीं दूर तक फैली हुई थीं, और उसका मन एक अलग ही चिंता में डूबा हुआ था।
वृंदा जी और विमला जी ने एक-दूसरे की ओर आँखों से इशारा किया — एक अनकहा समझौता, एक छुपी हुई चिंता जो दोनों के दिलों में एक साथ गुज़र रही थी।
तभी विमला जी ने अभिराज से कहा,
"बेटा, तुम बच्चों को घर घुमा दो।"
यह सुनते ही सारे बच्चे उत्साह से झूम उठे। वे हंसते-खेलते अभिराज के पीछे-पीछे चल पड़े। अभिराज ने बच्चों को घर के कमरों और अलग-अलग हिस्सों के बारे में बताया, जैसे वह उन्हें अपने राजमहल की राजकुमारियों और राजकुमारों की तरह टूर करा रहा हो।
धीरे-धीरे पूरा परिवार घर के विभिन्न हिस्सों में बंट गया, एक नया उत्साह और एकजुटता लिए हुए। बच्चों की हँसी और बातचीत पूरे महल में गूँज रही थी, और बेचैनी का माहौल थोड़ी देर के लिए कम हो गया।
राजवीर महल की भव्यता में खोया हुआ था। चारों तरफ हरियाली, महकते फूल और दूर तक फैली हुई लालटेन की रोशनी उसकी निगाहों को मंत्रमुग्ध कर रही थी। वह धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए उस विशाल हॉल से बाहर निकल आया और अपनी नजरें आस-पास की सुंदरता में गुम हो गईं। अचानक उसकी नजर महल की एक साइड में बने छोटे से बल्कनी पर पड़ी।
वह बल्कनी पूरी तरह से सजाया हुआ था — रंग-बिरंगे फूलों के सुंदर-खूबसूरत गमले, जिनमें चमकीली गुलाब, मोगरे और चमेली के फूल खिल रहे थे। फूलों की खुशबू हवाओं के साथ मुरझाए हुए महल के गुप्त कोनों तक पहुंच रही थी। गमलों की सजावट इतनी नाजुक और परफेक्ट थी कि ऐसा लग रहा था मानो किसी ने वहां खास किसी के लिए ये जगह बनाई हो।
राजवीर अपने कदमों को संभालते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। उसके चारों ओर फैली हुई हवेली की शान उसकी आत्मा को सुकून दे रही थी। दीवारों पर बनी नक्काशी इतनी महीन और बारीक थी कि हर एक आकार और हर एक रेखा में कहानी छिपी लगती थी। जैसे सदियों की परंपरा, संस्कार और कला ने एक साथ मिलकर यहाँ अपना आभा बिखेरी हो।
झरोखों से छन कर आती हुई धूप की किरणें मद्धम सुनहरे रंग की फुहार की तरह हवेली के अंदर फैल रही थीं। वो हल्की-हल्की रोशनी हर चीज़ को जादुई सा बना रही थी — दीवारों की नक्काशियाँ और फर्श की चमक, दोनों और भी निखर कर सामने आ रही थीं।
फूलों की ताजी खुशबू, जो कहीं दूर बगीचे से आ रही थी, हवा में घुली हुई थी। उस खुशबू ने राजवीर के दिल को छू लिया था — जैसे प्रकृति ने खुद उसे गले लगाकर उसकी थकान दूर करने की कोशिश की हो।
लेकिन इसी खूबसूरती के बीच, उसकी नजर अचानक एकदम ठहर गई। एक बल्कनी का वह कोना जो उसके नजर को खींच लिया।
तो आप सब को क्या लगता है
ऐसा क्या देख राजवीर ने ?
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राजवीर के कदम थम चुके थे, लेकिन उसका दिल जैसे अब धड़कने लगा था — एक अलग ही लय में।
वो बस उसे देख रहा था… उस लड़की को, जो चाँदनी रात में बालकनी के कोने पर अपनी बिल्ली से कुछ ऐसे बात कर रही थी,
जैसे उसके दिल के सारे राज उसी के सामने खुलते हों।
काव्या के चेहरे पर एक अनकहा सुकून था।
उसकी मासूम सी मुस्कान… हवा में उड़ते बाल… और वो हर थोड़ी देर में उन्हें पीछे करने का प्यारा सा अंदाज़ —
राजवीर के दिल में कुछ बुनता जा रहा था।
शायद एक एहसास… या शायद एक यकीन — कि वो अब अकेला नहीं है।
वो वहीँ खड़ा रहा — कुछ पल… या शायद कुछ सदियाँ।
वक़्त जैसे थम गया था।
फिर धीरे से, बिना कोई शब्द कहे,
उसने एक-एक कदम काव्या की ओर बढ़ाना शुरू किया।
ना कोई जल्दबाज़ी… ना कोई संकोच।
उसकी चाल में सिर्फ एक बात थी — "मैं यहाँ हूँ… तुम्हारे पास।"
काव्या को जैसे उसकी आहट महसूस हुई।
उसने धीरे से पलटकर देखा।
पहले उसकी आँखों में एक हल्की सी हैरानी थी — जैसे उसने राजवीर को इस वक्त यहाँ देखने की उम्मीद नहीं की थी।
पर अगले ही पल उसकी आँखें नरम पड़ गईं, और होंठों पर एक मीठी मुस्कान फैल गई —
वो मुस्कान, जो बिना कुछ कहे सब कुछ कह जाती है।
उस एक नज़र ने राजवीर को रोक लिया —
शब्द बेमानी हो गए थे।
अब सिर्फ सुकून था… खामोशी थी… और उस खामोशी में पनपता एक रिश्ता।
राजवीर हल्के से मुस्कराया — एक ऐसी मुस्कान जिसमें शरारत भी थी, और कुछ अनकहा एहसास भी।
"आपकी बातें सुनकर लग रहा था कि आपकी बिल्ली आपसे ज़्यादा समझदार है,"
उसने हँसी रोकते हुए कहा।
काव्या पहले तो हल्का सा चौंकी, फिर खुद भी मुस्कुरा दी।
"शायद है भी… कम से कम मेरी बातों को बिना टोके सुन तो लेती है,"
उसने नर्म मज़ाकिया लहजे में जवाब दिया।
राजवीर उसकी मासूम-सी मुस्कान में खो गया।
थोड़ी देर तक बस देखता रहा, फिर उसी कोमलता से बोला —
"कभी हमें भी आजमा लेना… हम भी आपकी बातें बिना टोके सुन लेंगे।"
ये सुनकर काव्या की सांसें थम-सी गईं।
उसके दिल की धड़कन एक पल को तेज़ हो गई।
उसने धीरे से नज़रें उठाईं, राजवीर की आंखों में झांका…
और फिर नज़रे झुका लीं —
जैसे उसकी आँखें उसके दिल की सारी बातें कह गई हों।
राजवीर ने उसकी झिझक को महसूस किया, लेकिन माहौल को हल्का करते हुए मुस्कुराकर पूछा —
"वैसे आप अपनी बिल्ली से क्या बात कर रही थीं? ज़रा हमें भी तो बताइए।"
काव्या कुछ कहने ही वाली थी…
शायद वो कोई बात कहती, जो उसके दिल के और करीब थी…
लेकिन तभी हँसी और मस्ती की आवाज़ों के साथ बाकी सभी नौजवान बालकनी में आ गए।
साहिल जैसे ही बालकनी के पास पहुँचा, उसकी नजर सीधी राजवीर और काव्या पर पड़ी —
दोनों बिल्कुल पास, चुपचाप, जैसे किसी अपने की खामोशी समझ रहे हों।
साहिल की आँखों में तुरंत शरारत तैर गई। वो मुस्कुराते हुए थोड़ा ज़ोर से बोला,
"ओहो… यहाँ तो कोई बहुत जल्दी घुल-मिल गया है!"
राजवीर ने हल्की सी मुस्कान दबाई,
और काव्या ने तुरंत अपनी नज़रें नीचे कर ली —
जैसे किसी ने उसे उसकी तन्हाई से चुपके से खींच लिया हो।
साहिल की आवाज़ सुनकर बाकी सभी भी धीरे-धीरे वहीं आ गए।
रिया, तृषा, अर्जुन, इशिता — सब ने जब राजवीर और काव्या को यूँ एक साथ देखा,
तो बिना एक शब्द कहे उनके चेहरे खिल उठे।
नज़रों में वही चिढ़ाने वाली शरारत थी,
जो कहे बिना भी बहुत कुछ कह जाती है।
साहिल ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा,
"भाभी जी को पहले ही अंदाज़ा था शायद कि आप यहीं आने वाले हैं,
तभी तो पहले से स्टैंडबाय मोड में खड़ी थीं।"
इतना कहना था कि पूरा ग्रुप ठहाकों में फूट पड़ा।
हँसी चारों तरफ गूंज रही थी।
पर उस हँसी में दो लोग शामिल नहीं थे —
एक राजवीर…
और दूसरी काव्या।
राजवीर ने बिना एक शब्द कहे, एकदम स्थिर चेहरा बनाए, सीधी नज़र से साहिल को देखा।
वो नज़र...
न ही कठोर थी, न ही मज़ाक उड़ाने वाली —
बस इतनी गंभीर थी कि उसमें एक अलिखित चेतावनी साफ़ झलक रही थी।
साहिल, जो अभी तक सबसे ज़ोर से हँस रहा था,
अचानक हँसते-हँसते रुक गया।
गर्दन हल्की सी झुका ली और बुदबुदाते हुए बोला,
"अरे भाई... मज़ाक था... तू तो सीरियस ही हो गया यार..."
बाकी सब अब भी मुस्कुरा रहे थे, पर किसी ने फिर कुछ नहीं कहा।
वहीं, काव्या की हालत कुछ और ही थी।
वो अब भी चुपचाप खड़ी थी।
चेहरे पर हल्की गुलाबी आभा थी,
और आँखें अब तक ज़मीन से ऊपर नहीं उठी थीं।
उसके हाथों में पकड़ा दुपट्टा धीरे-धीरे उंगलियों में मरोड़ा जा रहा था —
जैसे उसके दिल की घबराहट उंगलियों के ज़रिए बाहर निकल रही हो।
और फिर...
वो एक पल…
जो कहता कुछ नहीं था,
पर महसूस सब कुछ करा देता था।
राजवीर ने एक आखिरी बार काव्या की ओर देखा।
उसकी आँखों में एक गहराई थी —
जैसे कुछ कहना चाहता हो...
कुछ पूछना… या शायद…
बस यूँ ही उस लम्हे को थोड़ा और जी लेना चाहता हो।
तभी अभिराज ने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में हल्के मज़ाकिया लहजे में कहा —
"चलो चलो सब नीचे! बहुत देर हो गई है… बड़े लोग हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे।
अगर और देर की तो डांट पड़ जाएगी।"
उसकी बात पर सभी ने सिर हिलाया और हँसते हुए सीढ़ियों की ओर बढ़ गए।
राजवीर ने एक बार फिर बिना कुछ बोले हल्की सी मुस्कान दी —
और सबसे आगे बढ़ते हुए नीचे उतरने लगा।
बाकी सभी उसके पीछे-पीछे चल दिए —
कोई हल्की हँसी में डूबा,
कोई साहिल को चिढ़ाते हुए,
तो कोई अब भी पीछे पलट-पलट कर उस जोड़ी को देखकर मुस्कुरा रहा था।
और उस बालकनी में...
काव्या अब भी खड़ी थी।
धीरे-धीरे उसके होंठों पर एक मुस्कान आई,
एक वो मुस्कान —
जो शायद पहली बार किसी की नज़रों में खुद को खास महसूस कर रही थी।
काव्या ने अपनी बिल्ली को धीरे से गोद में उठाया और उसके कान के पास फुसफुसाई —
"वो मुझे कितनी जल्दी समझ गए न!"
उसके चेहरे पर एक नर्म, तृप्त सी मुस्कान उभर आई —
जैसे किसी ने उसके दिल की बात बिना कहे सुन ली हो।
वो कुछ देर यूँ ही बैठी रही, अपनी बिल्ली को सीने से लगाए,
मानो उसके पास कोई और नहीं,
सिर्फ वही थी जो हर भावना को चुपचाप समझ लेती थी।
---
वहीं नीचे, सिसोदिया निवास के भव्य हॉल में —
माहौल पूरी तरह शांत और गंभीर हो चुका था।
अभी कुछ ही समय पहले जहाँ हँसी-ठिठोली की गूंज थी,
अब वहाँ सन्नाटे की चादर बिछ चुकी थी।
पंडित जी एक गहरे ध्यान में बैठे थे।
उनकी आँखों पर मोटी ऐनक थी,
जिसे वो बीच-बीच में ठीक करते हुए सामने खुली पड़ी राजवीर और काव्या की कुंडलियों को गहराई से पढ़ रहे थे।
पास ही उनका मोटा पंचांग और एक लाल रंग की कलम रखी थी,
जिससे वो कुंडली में किसी-किसी स्थान पर निशान लगाते जा रहे थे।
तभी राजवीर और बाकी यंग जनरेशन हँसते-मुस्कराते नीचे पहुँचे।
पर जैसे ही उन्होंने हॉल का माहौल देखा,
उनके चेहरे भी गंभीर हो गए,
और सब चुपचाप जाकर अपनी जगह बैठ गए।
अब हर नज़र पंडित जी की ओर थी।
पंडित जी की भौंहें टेढ़ी थीं,
चेहरे पर गहरी चिंतनशीलता थी —
जैसे किसी निर्णय तक पहुँचना कठिन हो।
कुछ क्षण बाद, समर सिंह ने शांत स्वर में पूछा —
"क्या बात है पंडित जी? आप कुछ परेशान लग रहे हैं..."
पंडित जी ने धीरे से सिर उठाया।
उनकी आँखों में एक झिझक थी, और स्वर कुछ भारी।
"चिंता की बात बहुत बड़ी नहीं है, पर नज़रअंदाज़ भी नहीं की जा सकती..."
उन्होंने बात को कुछ पल के लिए रोका, फिर आगे बोले —
"अब से कुछ दिनों तक, राजवीर बेटे की कुंडली में मृत्यु का योग सक्रिय है।"
सुनते ही पूरे हॉल में जैसे एक बिजली सी दौड़ गई।
वृंदा जी और विमला जी ने एक-दूसरे की ओर सहमे हुए देखा,
और आरती जी की मुस्कान जो कुछ पल पहले तक हल्की खिली थी,
अब एकदम फीकी पड़ चुकी थी।
हर कोई स्तब्ध था।
शब्द जैसे कहीं खो गए थे।
और उस भरे-पूरे, रोशनी से जगमगाते हॉल में
अब बस एक नज़ाकत भरी चुप्पी रह गई थी।
पंडित जी की बातों का असर पूरे हॉल में साफ देखा जा सकता था। जैसे ही उन्होंने “मृत्यु दोष” का ज़िक्र किया, एक सिहरन सी पूरे माहौल में दौड़ गई। हॉल में बैठा हर व्यक्ति जैसे कुछ पल के लिए जड़ हो गया हो। कोई कुछ बोल नहीं रहा था, लेकिन सभी की आँखों में अनगिनत सवाल थे।
समर सिंह, जो हमेशा हर परिस्थिति में शांत और नियंत्रण में रहते थे, इस बार उनकी प्रतिक्रिया अलग थी। उनकी भौंहें एक साथ सिमट गई थीं, और उनकी मुट्ठियाँ अनायास ही भींच गई थीं। ये वही हाथ थे जो कभी तलवार उठाते थे, और आज पहली बार डर से कांप रहे थे—अपने बेटे के लिए। उनकी आँखों में चिंता की एक हल्की परछाईं साफ झलक रही थी, लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर वही कठोर शांति थी, जो एक योद्धा का चेहरा होता है — जब वह किसी अनदेखे युद्ध के लिए खुद को तैयार करता है।
वहीं देवेंद्र सिंह एकदम शांत, गहरी सोच में डूबे हुए नज़र आ रहे थे। उनका चेहरा उतना ही गंभीर था जितना एक पिता का होता है, जब वह अपने बेटे के भविष्य को धुँधली आँखों से देखता है। उनकी निगाहें ज़मीन पर गड़ी हुई थीं, जैसे वह पंडित जी की कही हुई बातों को दोबारा-दोबारा अपने मन में दोहरा रहे हों… समझने की कोशिश कर रहे हों कि आखिर ये सब क्यों, और क्यूं अब?
कुछ पल तक पूरे हॉल में सन्नाटा छाया रहा। किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी पंडित जी से कोई सवाल पूछने की। लेकिन उस ख़ामोशी को तोड़ते हुए रूद्रप्रताप सिंह ने अपनी भारी और सधी हुई आवाज़ में पूछा—
"पंडित जी… क्या कोई उपाय नहीं है इसका?"
उनकी आवाज़ में दबा हुआ भय था, लेकिन उसके ऊपर एक जिम्मेदार पिता की दृढ़ता थी। वो किसी जवाब से नहीं, बल्कि किसी उम्मीद से पूछ रहे थे।
आज के लिए इतना ही …
तो आप सब को क्या लगता है
क्या राजवीर ये जानते हुए कि उसके ऊपर खतरा है वो काव्या से शादी करेगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी …
समर सिंह की मुट्ठियाँ धीरे-धीरे भींच गई थीं — जैसे उन्होंने खुद को मजबूर कर लिया हो शांत रहने के लिए।
चेहरा अब भी शांत और नियंत्रित था, लेकिन आँखों की गहराई में चिंता की हल्की लकीरें उभर आई थीं।
वहीं देवेंद्र सिंह की निगाहें अब भी ज़मीन पर टिकी थीं —
उनका मन जैसे अंदर ही अंदर उस खबर को समझने, और फिर स्वीकार करने की कोशिश कर रहा था।
रूद्रप्रताप सिंह, जो अब तक चुपचाप बैठकर हर शब्द को गंभीरता से सुन रहे थे,
आख़िरकार अपनी भारी आवाज़ में बोले —
"पंडित जी... क्या कोई उपाय नहीं है इसका? या फिर... क्या ये रिश्ता टाल देना ही सही रहेगा?"
सारे कमरे में एक पल को ख़ामोशी छा गई।
हवा भी मानो थम गई हो, सबकी साँसें रुकी-सी लगीं।
पंडित जी ने एक लंबी साँस ली, फिर शांत स्वर में बोले —
"रिश्ता टाल देने से कुछ नहीं बदलेगा, ठाकुर साहब। ये दोनों की ही कुंडलियों का भाग्य है।
अगर इनका मिलन न भी हो… तब भी ये योग इनके जीवन में अलग-अलग रूपों में घटित होंगे।"
यह बात सुनते ही कमरे का माहौल और भारी हो गया।
समर सिंह और देवेंद्र सिंह दोनों जैसे एक ही समय पर भविष्य की अनदेखी चिंता में डूब गए।
पंडित जी कुछ देर चुप रहे… फिर अपनी दृष्टि सामने स्थिर करते हुए धीमे स्वर में बोले —
"उपाय है… लेकिन एक ही रास्ता है।
शादी पाँच दिन बाद — रामनवमी के दिन करवाई जाए।
उस दिन भगवान श्रीराम का विशेष प्रभाव रहता है, और उनका आशीर्वाद इन दोनों के ग्रहों की कठोरता को थोड़ा कम कर सकता है।"
उन्होंने आगे जोड़ा —
"उस दिन विवाह होने से जीवन पर कोई बड़ा संकट नहीं आएगा…
हाँ, घटनाएं होंगी अवश्य, क्योंकि ये प्रारब्ध है।
लेकिन जान का भय टल जाएगा।"
कमरे में अब सन्नाटा गहरा गया था।
हर शख्स अपने-अपने भीतर उतर चुका था —
किस्मत, भाग्य, और प्रभु की इच्छा जैसे अब किसी और ही दुनिया के शब्द लग रहे थे…
पर जो सामने थे, उन्हें स्वीकार करना अब शायद मजबूरी थी।
होनी को कौन टाल सकता है। इतना सोच कर सभी थोड़ा शांत हुए और शादी के लिए 5 दिन बाद का डेट फिक्स कर दिया । वहीं पद्मिनी जी काव्या के कमरे के तरफ चल देती है । उसे ये खबर देने के लिए ।
पद्मिनी जी ने धीरे से दरवाज़ा खोला, काव्या खिड़की के पास बैठी चुपचाप बाहर देख रही थी। उसके चेहरे पर शांत भाव था, पर उसकी आंखें बहुत कुछ कह रही थीं। पद्मिनी जी ने पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखा। काव्या पीछे मूड कर देखती है ।
तो पद्मिनी जी को देख वो बोलती है," क्या हुआ मां आप यहां ?"
ये सुन पद्मिनी जी उस के बगल में धीरे से बैठ गईं और बोलती है, "काव्या पंडित जी ने कुछ कहा है । कुछ ऐसा जो हम सबको मिल कर करना होगा तुम्हारे लिए और राजवीर के लिए ।"
काव्या ने ध्यान से देखा, "क्या कहा पंडित जी ने माँ?"
पद्मिनी जी ने एक गहरी साँस ली और कहा, "तुम दोनों की कुंडली में मृत्यु दोष है। पर साथ होने से वो दोष कम हो सकता है। पंडित जी बोले हैं कि अगर तुम दोनों की शादी रामनवमी के दिन हो यानी पाँच दिन बाद। तो खतरा तो पूरी तरह नहीं टलेगा। पर तुम दोनों की जान बच सकती है। "
काव्या की सांस अटक सी गई। उसने आश्चर्य से कहा, "पाँच दिन…!"
फिर अपने आप से मन में बोलती है," क्या में इस शादी के लिए इतनी जल्दी तैयार हो सकूंगी ? क्या शादी के बाद के सारे जिम्मेदारियों को में सही से निभा पाऊंगी ?"
वो ये सब सोच रही थी कि पद्मिनी जी ने उसकी हथेली थामती है और बोलती है, "हां बेटा हमें जल्दी करनी होगी। हम सब तैयार हैं, बस तुम्हारी हाँ चाहिए।"
काव्या कुछ देर तक चुप रही, उसकी आँखों में अब भी हल्का डर था। पर अपनी मां की आँखों में विश्वास देख कर वो धीरे से बोलती है, "अगर आप सब खुश है । तो में इस शादी के लिए तैयार हूं ।"
ये सुन पद्मिनी जी की आँखों में नमी आ गई। उन्होंने अपनी बेटी को सीने से लगा लिया। उनका दिल जैसे हल्का हो गया। उन्होंने तुरंत हॉल में जाकर सबको ये खबर सुनाई, "काव्या तैयार है… वो रामनवमी के दिन शादी के लिए राजी है।"
ये सुनते ही पूरे हॉल में एक सुकून की लहर दौड़ गई। वृंदा जी ने भगवान का नाम लिया, "जय श्रीराम… भगवान राम ही दोनों बच्चों की रक्षा करेंगे।"
समर सिंह ने गहरी साँस लेकर कहा, "तो फिर तय रहा पाँच दिन बाद, रामनवमी को, हमारे बच्चों का विवाह होगा।"
विजय जी ने सिर हिलाते हुए समर्थन दिया,"हाँ… अब कोई देरी नहीं करनी चाहिए। जितनी जल्दी तैयारियाँ शुरू हों, उतना अच्छा।"
आरती जी मुस्कराईं, "हमारी बहू आएगी, तो पूरे घर में रौनक ही रौनक होगी।"
वहीं रतन सिंह बोले, "पंडित जी, आप शुभ मुहूर्त बताइए… ताकि हम सब रस्मों की योजना बना सकें।"
पंडित जी ने पंचांग खोला, तिथि और समय गिनने लगे। फिर बोले, "रामनवमी वाले दिन सुबह 11:45 से दोपहर 1:15 तक का मुहूर्त उत्तम है। उसी समय विवाह कराना सर्वोत्तम रहेगा।"
सभी ने एक स्वर में कहा, "तो तय रहा राजवीर और काव्या की शादी रामनवमी के दिन दोपहर होगी।"
लेकिन साथ ही अब पाँच दिन में शादी की सारी तैयारियाँ पूरी करनी थीं, और इतने बड़े घरानों की शादी ऐसे ही थोड़ी न होती है।
विमला जी ने सबसे पहले स्वर उठाया, “तो फिर चलिए, सारी रस्मों की तारीख तय कर लेते हैं। वक्त कम है, और काम बहुत।”
वृंदा जी ने सिर हिलाया, “सही कहा । सब कुछ सुचारू रूप से हो इसके लिए हर दिन की प्लानिंग होनी चाहिए।"
थोड़ा रुककर उन्होंने आगे कहा, "तो फिर कल और परसों, यानि पहले दो दिन शादी और बाकी रस्मों के लिए खरीदारी कर लेंगे, साथ ही डेकोरेशन, कार्ड्स और बाकी तैयारियाँ भी।"
आरती जी ने प्रस्ताव रखा, “तीसरे दिन सगाई की रस्में रख लेते हैं। सभी रिश्तेदार और खास मेहमान भी आ जाएंगे तब तक।"
गौरी जी ने झट से बोलती है, “फिर चौथे दिन सुबह को मेहंदी और शाम को घर में संगीत भी रखेंगे, थोड़ा नाच-गाना भी हो जाएगा। ”
रतन सिंह बोले, “चौथे दिन हल्दी रख सकते हैं। "
समर सिंह ने निर्णयात्मक लहजे में कहा, "और शाम को गणेश पूजन ।"
विजय जी बोले:
“और फिर पाँचवें दिन रामनवमी के पावन दिन पर, दिन के शुभ मुहूर्त में शादी।”
सब एक-दूसरे की ओर देख मुस्कराए। उत्साह सबके चेहरों पर दिख रहा था।
पद्मिनी जी धीरे से बोलीं, “अब बस भगवान की कृपा बनी रहे, और हमारे बच्चों का जीवन खुशियों से भर जाए।”
सभी रस्मों और तय तारीखों के बाद, राजवीर के घरवाले सब से बिदा लेकर अपने घर के लिए निकल पड़े। गाड़ियों का काफिला धीरे-धीरे हवेलीनुमा महल से दूर होता गया।
घर पहुँचते ही राजवीर सबसे चुपचाप नमस्ते कर सीधा अपने कमरे में चला गया। कमरे का दरवाज़ा बंद करते ही जो ठहराव अब तक उसके चेहरे पर था, वह पिघलने लगा। धीरे-धीरे उसके होंठों पर एक बड़ी सी मुस्कान खिल गई — वही मुस्कान जिसे वह अब तक सबसे छुपा रहा था।
आखिर आए भी क्यों न हमारे राजवीर बाबू को पहली नजर वाला प्यार हो गया था। एक ऐसा एहसास जो उसके चेहरे के हर कोने पर साफ झलक रहा था। पर अभी राजवीर को उसका एहसास कहां था। देखते हैं कब राजवीर को उसके प्यार का एहसास होता है।
वह सीधा जाकर खिड़की के पास खड़ा हो गया, और बाहर अंधेरे आसमान की ओर देखते हुए एक गहरी सांस ली। दिल बहत तेजी से धड़क रहा था, बिल्कुल वैसे जैसे किसी छोटे बच्चे को उसकी सबसे प्यारी चीज़ मिलने वाली हो। आखिरकार, आज पहली बार जब उसने काव्या को देखा था। उसकी मासूमियत, उसकी झुकी नजरें, और वो हलकी सी मुस्कान सब कुछ उसके दिल में उतर गया था।
वो हल्की हँसी के साथ खुद से ही बड़बड़ाया, " पता नहीं ये कैसा एहसास है जो आप को देखने के बाद से ही इस दिल को महसूस हो रहा है। इस दिल पर आपकी मासूमियत ने ऐसा जादू किया है। की एक पल के लिए आपकी वो खूबसूरत आँखें और निष्छल मुस्कान मेरे आंखों से जा ही नहीं रही।"
फिर बिस्तर पर लेटते हुए छत को देखते-देखते न जाने कब उसकी आँखों में काव्या की मुस्कुराती तस्वीरें तैरने लगीं और वो मीठे ख्वाबों में खो गया।
दूसरे तरफ,
सिसोदिया निवास में,
काव्या का कमरा,
डिनर कर काव्या अपने कमरे में वापस आ गई थी और कपड़े चेंज कर उसने एक शॉर्ट और क्रॉप टॉप पहन लिया था। (दरसल काव्या को रात को हल्की फुल्की ड्रेस पहन कर सोने की आदत है। इस लिए वो सिर्फ अपने कमरे में ही ऐसे छोटे कपड़े पहन कर रहती थी।)
वो बालकुनी में खड़े हो कर चांद को देखते हुए बोलती है," मैंने कभी सोचा नहीं था मेरा ये सपना, ये ख्वाब कभी सच होगा। मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दिया था। पर थैंक यू राम जी आप ने मेरी ये ख्वाब पूरा कर दिया।"
इतना बोल वो अपने कमरे में सोने के लिए चली गई।
आज के लिए इतना ही …
आप सब को क्या लगता है
किस ख्वाब के बारे में काव्या बात कर रही थी?
क्या राजवीर अपने दिल की बात पहचान पाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी …
दूसरी तरफ — सिसोदिया निवास, काव्या का कमरा
डिनर के बाद काव्या अपने कमरे में लौट आई थी।
दिनभर की हलचल और सबके साथ बिताया गया वक्त अब उसकी यादों में उतर रहा था।
उसने कपड़े बदल लिए थे — एक हल्का सा शॉर्ट और क्रॉप टॉप पहन रखा था।
(असल में, काव्या को रात में आरामदायक और हल्के कपड़े पहनकर सोने की आदत थी — लेकिन वो सिर्फ अपने कमरे की चारदीवारी के भीतर ही इस तरह खुद को सहज रखती थी।)
कमरे की हल्की पीली रोशनी और खिड़की से आती ठंडी हवा में एक सुकून था।
काव्या बालकनी में आकर खड़ी हो गई — सामने आसमान में फैला रात का सन्नाटा, और उसी के बीच चमकता हुआ चाँद।
उसने गहरी साँस ली, और चाँद की तरफ देखते हुए हल्के स्वर में बोली,
"मैंने कभी सोचा नहीं था कि मेरा ये सपना, ये ख्वाब कभी पूरा होगा। मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी... पर थैंक यू राम जी, आपने मेरी दुआ सुन ली।"
उसकी आँखें चमक रही थीं — प्यार से, और उस ख्वाब की सच्चाई को महसूस करने की ख़ुशी से।
चाँद की तरफ देखते हुए, उसने धीरे-धीरे अपनी फीलिंग्स शब्दों में ढालनी शुरू की —
"मैंने कभी नहीं सोचा था कि आपका रिश्ता इस तरह मेरे लिए आएगा। जब मैंने आपको पहली बार देखा था, तभी कुछ हो गया था। जैसे... जैसे दिल को पहली बार कोई एहसास हुआ हो।"
"शुरुआत में तो मुझे लगा कि बस आप अच्छे लगते हैं — शायद क्रश है, या थोड़ी सी अट्रैक्शन... लेकिन जब आपसे पहली बार बात की, जब आपकी वो गहरी नज़रें मुझसे मिलीं... तो सब बदल गया।"
उसकी आँखें थोड़ा सा नम हुईं, लेकिन मुस्कान नहीं टूटी।
"आपकी नज़रें जैसे सीधा दिल में उतर गई थीं... अंदर तक बेचैन कर गई थीं। और मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं क्या करूँ, कैसे रिएक्ट करूँ।"
वो एक पल के लिए चुप हुई, फिर बालकनी की रेलिंग को हल्के से पकड़े हुए धीमे से बोली —
"अब समझ आती है एक बात…
मैं आपसे मोहब्बत करने लगी हूँ, राजवीर।"
उसने नाम नहीं लिया — लेकिन उसके दिल ने लिया था।
"पता नहीं… कभी आपसे ये फीलिंग्स कह भी पाऊँगी या नहीं...
पर आज इस चाँद को गवाह बनाकर कहती हूँ, आप मेरे दिल का सबसे हसीन हिस्सा बन चुके हैं।"
काव्या की मुस्कान अब थोड़ी गहरी थी, और उसके दिल की धड़कनें थोड़ी तेज़।
वो वहीं बालकनी में खड़ी रही… चाँद की चाँदनी में अपने राज छुपाए, उस अनकहे प्यार को जीती हुई।
अगर आप चाहें तो अगले दिन की शुरुआत, या राजवीर की तरफ से कोई जवाबी फीलिंग्स वाला POV जोड़ सकते हैं।
(फ़्लैशबैक — तीन साल पहले)
तीन साल पहले की बात है। दिल्ली की हलचल भरी दोपहर,
काव्या दिल्ली में अपने एक आर्ट कंपटीशन के लिए गई थी। कंपटीशन खत्म होने के बाद वह एयरपोर्ट के लिए रवाना हो रही थी। तभी रास्ते में अचानक तेज ट्रैफिक के कारण उनकी कार रुक गई।
काव्या यूं ही समय काटने के लिए खिड़की से बाहर देखने लगी। तभी उसकी नजर एक लड़के पर पड़ी। वो लड़का एक बूढ़ी अम्मा की मदद कर रहा था। बड़े प्यार से उनका हाथ पकड़कर उन्हें सड़क पार करवा रहा था। उनके भारी थैले भी उसी ने उठाए हुए थे। इस दृश्य को देखकर काव्या की नजरें ठहर गईं।
आजकल की इस तेज़-तर्रार दुनिया में ऐसा इंसान मिलना मुश्किल था और शायद इसीलिए काव्या उस अनजाने लड़के को देखती रह गई। काव्या की धड़कन एक पल के लिए थम-सी गई। उसे कुछ समझ नहीं आया, बस उसकी आँखें उस लड़के पर जम गईं।
ऐसा लगा मानो भीड़ में वक़्त थम गया हो बस वो लड़का और उसकी सादगी बाकी रह गई थी। अचानक कार फिर से चल पड़ी। पर काव्या का दिल वहीं ठहर गया था। उसने मुड़-मुड़कर उस अनजाने को तब तक देखा, जब तक वह उसकी नज़रों से गायब नहीं हो गया। दिल में एक अनकही कसक रह गई थी — कोई ऐसा जिसे वो जानती नहीं थी, फिर भी दिल उसे पहचानना चाहता था।
आप सब समझ ही गए होंगे — वो लड़का और कोई नहीं, बल्कि राजवीर था।
फ़्लैशबैक समाप्त)
चाँद की ठंडी रोशनी कमरे में बिखरी हुई थी। काव्या अपने ख्यालों में खोई-खोई अपने कमरे में गई और बिस्तर पर लेटते ही गहरी नींद में डूब गई।
अगले दिन सुबह,
सुबह की हल्की रोशनी कमरे में फैल रही थी। हल्की हलचल के साथ पद्मिनी जी कमरे में आईं।
उन्होंने प्यार से काव्या के सिर पर हाथ फेरते हुए आवाज़ लगाई, "काव्या, उठ जा बेटा... सुबह के सात बज गए हैं।"
काव्या ने उनींदी आँखों से उन्हें देखा, फिर मुस्कुराते हुए उनके गोद में सर टिकाकर मासूमियत से बोली, "बस पाँच मिनट और, मम्मा..."
पद्मिनी जी उसकी मासूमियत पर मुस्कुराए बिना नहीं रह सकीं। धीरे से उसके बालों को सहलाते हुए वहीं बैठ गईं, जैसे उसकी नींद में भी ममता का पहरा दे रही हों।
5 मिनट बाद उन्होंने उसके बालों में उंगलियाँ फेरते हुए प्यार से कहा, "अरे, ये बचपन की आदत अभी तक नहीं गई तेरी। कुछ ही दिनों में तेरी शादी है। वहाँ भी ऐसे ही 'पाँच मिनट' बोलकर सोती रहेगी क्या?"
काव्या ने आँखें बंद किए ही हल्की मुस्कान दी और धीरे से बड़बड़ाई, "वहाँ भी तो कोई मम्मा जैसा चाहिए जो गोदी दे दे सोने के लिए। "
पद्मिनी जी का दिल भर आया। उन्होंने झुककर उसके माथे पर एक प्यार भरा चुम्बन दिया और मुस्कुराते हुए बोलीं, "पगली कहीं की..."
पद्मिनी जी काव्या के माथे को चूमते हुए मुस्कुरा रही थीं, पर उनकी आँखों में हल्की नमी झलक गई। बेटी को यूं अपनी गोद में सुलाए देख, उनके दिल में हज़ारों भाव उमड़ आए। कुछ ही दिनों में उनकी नन्ही-सी गुड़िया किसी और की दुनिया में जाने वाली थी।
उन्हें इमोशनल होते देख काव्या ने तुरंत सिर उठाया और उनकी आँखों में नमी देखकर फिक्रमंद होकर बोली, "प्लीज़ मम्मा, ऐसे इमोशनल मत हो। वरना मुझे भी रोना आ जाएगा। और फिर मैं नहीं करूंगी शादी।"
ये सुनकर पद्मिनी जी ने तुरंत खुद को संभाला और उसकी नाक पकड़कर हंसते हुए बोलीं, "ऐसा कोई बोलता है क्या? चल अब, नाटक बंद कर और जल्दी तैयार हो जा। सब नीचे तेरा इंतजार कर रहे हैं पूजा के लिए।"
काव्या मुस्कुराते हुए उठी और अपनी मम्मा को प्यार से गले लगा लिया। फिर चुपके से आँसू पोंछते हुए बुदबुदाई, "मम्मा... आप सबसे बेस्ट हो।"
पद्मिनी जी मुस्कुराती हुई काव्या के सर पर एक प्यार भरा चुम्बन देती हैं और फिर धीरे-धीरे कमरे से बाहर चली जाती हैं। उनके जाते ही काव्या के दिल में दबे हुए जज़्बात बाहर फूट पड़ते हैं। उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
मगर वो खुद को जल्दी से संभालती है, गहरी साँस लेती है और खुद को समझाते हुए बुदबुदाती है, "नहीं... मम्मा को और परेशान नहीं कर सकती।"
वो उठती है, आँखें पोंछती है और फ्रेश होने चली जाती है।
आधा घंटा बाद,
पूरे घर में एक अलग ही पवित्र माहौल था। दीये की रौशनी में सब कुछ चमक रहा था। कव्या स्वच्छ कपड़े पहनकर आ चुकी थी और भक्ति-भाव से पद्मिनी गा रही थी। उसकी आवाज़ में एक अनजानी मिठास और सुकून था।
सामने, विमला जी पूजा की थाल घुमा रही थीं, पूरे श्रद्धा भाव से पद्मिनी कर रही थीं। उनके पीछे परिवार के बाकी सभी सदस्य हाथ जोड़कर श्रद्धा से खड़े थे। सबके चेहरों पर भक्ति, खुशी और थोड़ा सा भावुकपन भी झलक रहा था। घंटी की मधुर ध्वनि और काव्या की मीठी आवाज़ से घर का कोना-कोना जैसे पवित्र हो उठा था।
पद्मिनी समाप्त होने के बाद, घर में सब अपने-अपने कामों में लग गए। पद्मिनी जी और काव्या दोनों मिलकर रसोई में खाना बनाने चली गईं।
करीब एक घंटे बाद,
पूरा घर खाने की महक से भर गया था। सभी लोग डाइनिंग टेबल पर बैठ चुके थे। हँसी-मज़ाक और हल्की-फुल्की बातचीत के बीच माहौल बहुत खुशनुमा था। काव्या और पद्मिनी जी रसोई से एक-एक कर सारे व्यंजन लेकर टेबल पर रख रही थीं — गरमा-गरम पराठे, आलू की सब्ज़ी, दही, अचार, और मिठाई भी।
सब कुछ सजा कर रखते ही काव्या ने प्यार से पद्मिनी जी का हाथ पकड़ते हुए कहा, "मम्मा, अब आप भी बैठ जाइए। मैं सबको सर्व कर दूंगी।"
पद्मिनी जी मुस्कुरा कर बैठ गईं। काव्या ने मुस्कुराते हुए सभी के प्लेट में खाना परोसना शुरू कर दिया। उसके चेहरे पर हल्की सी थकान थी। पर उससे ज़्यादा संतोष और अपनेपन की चमक थी। सबके चेहरों पर काव्या के लिए एक अलग ही प्यार और गर्व दिखाई दे रहा था।
कुछ देर बाद, सभी ने खाना खत्म कर लिया। हँसी-मज़ाक के बीच काव्या मुस्कुराते हुए बोली, "मैं मिठाई लेकर आती हूँ।"
इतना कहकर वह उठी और रसोई की तरफ चली गई। किचन से मिठाई की थाली संभालते हुए वह बाहर आ ही रही थी कि। अचानक किसी ने पीछे से आकर उसे कसकर गले लगा लिया!
काव्या एकदम चौंक गई। उसके हाथ से मिठाई की प्लेट तो गिरते-गिरते बची और उसके मुँह से जोर से निकला, "मम्मा!!"
पूरा हॉल काव्या की आवाज़ से गूंज उठा। सभी चौंककर उसकी तरफ देखने लगे।
काव्या का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। वो झट से पलटी और सामने जो चेहरा देखा, उसे देख उसकी हैरानी और भी बढ़ गई ।
आज के लिए इतना ही …
आप सब को क्या लगता है
क्या काव्या राजवीर को अपने दिल की बात बता पाएगा?
कौन ऐसे पीछे से आ कर काव्या को डरा दिया?
क्या राजवीर अपने दिल की बात पहचान पाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी …
काव्या जैसे ही किचन से बाहर निकली, हाथ में चाय की ट्रे थी, तभी पीछे से किसी ने अचानक उसे कसकर अपनी बाँहों में भर लिया।
अचानक हुए इस अप्रत्याशित स्पर्श से काव्या का पूरा शरीर सिहर उठा। उसकी साँसें तेज हो गईं, दिल जैसे एक पल के लिए रुककर फिर तेज़ी से धड़कने लगा। उसके होठों से हल्की सी दबी-सी चीख निकल पड़ी —
"अ…!"
चाय की ट्रे काँपने लगी, लेकिन गिरने से पहले ही उसने उसे संभाल लिया।
तभी सामने वाला भी जैसे अपने होश में आया और झट से पीछे हट गया। काव्या ने चौककर देखा — वो कोई अजनबी नहीं, बल्कि एक मासूम-सी, नाजुक कद-काठी वाली लड़की थी। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में पछतावे और घबराहट का मिश्रण था, जैसे उसने कोई गलती कर दी हो।
"सो… सॉरी भाभी!" वो जल्दी से बोल पड़ी, आवाज़ में सच्चा खेद साफ़ झलक रहा था। "मैं… मैं बस आपको पहली बार देख रही थी… और मैं बहुत एक्साइटेड हो गई थी। इसलिए… इसलिए अचानक आकर गले लगा लिया।"
उसकी साँस अभी भी हल्की-हल्की फूल रही थी, जैसे डर रही हो कि कहीं काव्या नाराज़ न हो जाए।
काव्या ने उसे कुछ पल ध्यान से देखा — उसके चेहरे पर छुपी सच्ची मासूमियत, चमकती हुई आँखें और होंठों पर झिझकी हुई मुस्कान… सब मिलकर जैसे उसकी झुंझलाहट पिघला रहे थे।
हल्की-सी मुस्कान काव्या के चेहरे पर आ गई।
"कोई बात नहीं," उसने नरम लहज़े में कहा, "लेकिन अगली बार ऐसे अचानक मत आना… दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं।"
लड़की ने राहत की साँस ली और शरारती अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोली, "ठीक है भाभी… अगली बार धीरे-धीरे गले लगूँगी।"
दोनों हल्के से हँस पड़ीं, और माहौल का सारा तनाव पलभर में जैसे गायब हो गया।
फिर उसकी नज़रों में हल्की-सी हैरानी उतर आई। भौंहें ज़रा-सी सिकुड़ गईं और उसने हल्के से मुस्कुराते हुए पूछा,
"लेकिन… इतनी सुबह-सुबह तुम यहाँ कैसे?"
यह सुनते ही इशिता ने छोटे बच्चों की तरह होंठों को गोल करते हुए, हल्का-सा मुंह फुला लिया। उसके चेहरे पर मानो कोई शिकायत लिखी हो। उसने धीमे लेकिन मीठे सुर में कहा,
"भाभी… आपको याद नहीं है? आज हमें शॉपिंग के लिए जाना है न!"
काव्या उसकी मासूम-सी नाराज़गी देखकर हँस दी।
"अरे हाँ…" वो सोच में डूबी, फिर धीरे से मुस्कुरा दी।
उसने प्यार से इशिता के सिर पर अपना हाथ फेरा, जैसे कोई बड़ी बहन छोटे बच्चे को मनाती है। इशिता के चेहरे पर भी उस स्पर्श से एक प्यारी-सी मुस्कान खिल उठी।
तभी काव्या ने अपनी ही हथेली से हल्के से अपने सिर पर चपत लगाई और शर्माते हुए, मानो खुद से ही डाँट खा रही हो, बोली,
"सॉरी… मैं तो बिलकुल भूल ही गई थी।"
काव्या ने इशिता के माथे से अपनी उंगलियाँ हटाईं, फिर जैसे अचानक कुछ याद आया हो, उसने आसपास नजर दौड़ाई। उसकी निगाहें ड्रॉइंग रूम की ओर, फिर दरवाजे की तरफ गईं।
भौंहों में हल्की-सी जिज्ञासा उतर आई और उसने सहज-सी आवाज़ में पूछा,
"वैसे… तुम अकेली ही आई हो?"
इशिता के होठों पर धीरे-धीरे एक शरारती मुस्कान तैर गई। उसने ठुड्डी हल्की-सी ऊपर उठाई और आँखों में चमक भरते हुए बोली,
"नहीं भाभी… भला मैं अकेली कैसे आ सकती हूँ?"
फिर उसने जानबूझकर ठहराव लेते हुए, काव्या को हल्का-सा चिढ़ाते हुए कहा,
"भैया भी आए हैं मेरे साथ।"
ये सुनते ही काव्या के हाथ में पकड़ा कप प्लेट थोड़ा-सा काँप गया। दिल की धड़कन अचानक तेज़ हो गई, जैसे किसी ने उसे अनजाने में छू लिया हो। गले में हल्की-सी रूखाई उतर आई और उसने अनजाने में निगलते हुए खुद को संभालने की कोशिश की।
इशिता ने उसकी इस हल्की-सी घबराहट को भांप लिया। उसके चेहरे पर शरारत और गहरी हो गई। वो खिलखिलाकर हँसी, फिर झट से आगे बढ़कर काव्या का हाथ थाम लिया।
"चलिए, चलिए!" उसने लगभग खींचते हुए कहा, "बाहर चलिए… आप उनसे मिल लीजिए।"
उसकी आँखों में उत्साह साफ झलक रहा था, "वो वहीं बैठे हैं, आपका इंतजार कर रहे हैं।"
काव्या का चेहरा इशिता की बात सुनते ही हल्की-सी लाज से गुलाबी पड़ गया। गालों पर जैसे गुलाब की पंखुड़ियाँ खिल उठी हों। उसने पल भर के लिए नजरें झुका लीं, फिर खुद को संयत करते हुए होंठों पर एक हल्की-सी मुस्कान ले आई।
"आप बहुत ज़्यादा बोलने नहीं लगी हो, इशिता?" उसने नर्मी में छुपी शरारत के साथ कहा।
इशिता ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों में मासूम चमक भरते हुए ठहाका लगाया। उसकी हँसी में एक भोली-सी शरारत थी, जैसे वो जानती हो कि उसकी बात ने भाभी के दिल में हल्की-सी गुदगुदी कर दी है।
"क्या करूँ भाभी," वो मुस्कुराई, "आपको चिढ़ाना तो मेरा हक है।"
काव्या ने हल्की-सी नकली नाराज़गी जताते हुए सिर हिलाया, फिर माहौल हल्का करने के लिए बात बदल दी।
"अच्छा छोड़ो… चलो पहले नाश्ता कर लो," उसने कहा, उसकी आवाज़ में अपनापन साफ झलक रहा था, "फिर आराम से शॉपिंग पर चलेंगे।"
लेकिन इशिता ने बिना एक पल गँवाए तपाक से जवाब दिया,
"पर भाभी, हम सब तो खाना खाकर ही आए हैं।"
उसकी आँखों में वही चमक थी, जो किसी बच्चे की होती है जब उसे बाहर घूमने का मौका मिलता है।
फिर वो उत्साह से झुककर काव्या की ओर बोली,
"आप बस जल्दी से तैयार हो जाइए, हम घूमने चलेंगे!"
काव्या उसकी बेपरवाह ऊर्जा और चमकते चेहरे को देख मुस्कुरा दी। हल्के से सिर हिलाते हुए बोली,
"अच्छा ठीक है… पर एक शर्त है।"
इशिता ने भौंहें ऊपर उठाईं, "क्या?"
काव्या ने चुलबुले अंदाज़ में कहा,
"पहले तुम मेरे हाथ की बनी रसगुल्ला खाओगी!"
ये सुनते ही इशिता के चेहरे पर मानो सूरज-सी रौशनी फैल गई।
"हाँ हाँ भाभी! क्यों नहीं!" उसने बच्चों जैसी उत्सुकता से कहा, "मुझे तो मिठाई बहुत पसंद है… जल्दी चलिए ना!"
इतना कहते-कहते उसका उत्साह इतना बढ़ गया कि उसने काव्या का जवाब भी नहीं सुना और सीधे उसका हाथ पकड़कर खींच लिया।
काव्या हल्की-सी हँसी दबाती हुई उसके पीछे-पीछे चल दी, और दोनों के कदमों के साथ पूरे घर में एक हल्का-सा रौनक भरा माहौल फैल गया।
हॉल के बड़े से सोफे पर परिवार के सभी सदस्य आराम से बैठे बातें कर रहे थे। हल्की-हल्की हँसी, चाय की महक और आरामदायक माहौल में सब पूरी तरह मग्न थे।
जैसे ही काव्या वहाँ पहुँची, दरवाज़े के पास कदम रखते ही सबकी नज़रें एक साथ उसकी ओर उठ गईं। इतने सारे लोगों का ध्यान खुद पर महसूस करते ही उसके सीने में हल्का-सा दबाव सा महसूस हुआ। दिल की धड़कन तेज़ हो गई और उंगलियों में हल्की-सी कंपन दौड़ गई।
लेकिन उसने तुरंत गहरी साँस लेकर खुद को सँभाल लिया। होंठों पर एक प्यारी-सी, संयमित मुस्कान सजाई और धीमे-धीमे कदम बढ़ाते हुए वो सबके पास पहुँची।
"ये लीजिए… मेरे हाथ के बने रसगुल्ले," उसने धीमे और संकोच भरे लहज़े में कहा, और प्लेट से एक-एक करके सर्व करने लगी। उसकी आँखों में हल्की-सी झिझक थी, लेकिन उसके हर gesture में एक अपनापन झलक रहा था।
हॉल के उस कोने में, जहाँ हल्की-सी रोशनी परदे से छनकर आ रही थी, राजवीर चुपचाप सोफे पर बैठा था। उसकी नज़रें किसी और पर नहीं, सिर्फ काव्या पर टिकी थीं।
वो उसके हर छोटे से छोटे हाव-भाव को देख रहा था — प्लेट पकड़ने का तरीका, सर्व करते वक्त उसकी हल्की झुकी पलकों की शर्म, और चेहरे पर तैरती सादगी और मासूमियत।
राजवीर की आँखों में जैसे एक अजीब-सी खामोश मोहब्बत ठहर गई थी।
उधर, काव्या भी महसूस कर रही थी कि किसी की निगाहें उस पर स्थिर हैं… वो निगाहें, जो उसके दिल की धड़कन को सामान्य से तेज़ कर रही थीं। लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह अपना सिर उठाकर सीधे राजवीर की तरफ देख सके।
आख़िरकार, रसगुल्ले की प्लेट हाथ में लिए, वह धीरे-धीरे राजवीर की ओर बढ़ी। उसके हर कदम के साथ दिल की धड़कन और तेज़ हो रही थी। पास पहुँचकर उसने हल्की-सी झिझक के साथ प्लेट उसकी तरफ बढ़ाई।
राजवीर ने बिना कुछ कहे, सिर्फ उसकी आँखों में एक नज़र डालते हुए हाथ बढ़ाया।
रसगुल्ला लेते समय, अनजाने में उनकी उंगलियाँ हल्के से एक-दूसरे को छू गईं।
छोटा-सा यह स्पर्श इतना गहरा असर कर गया कि दोनों के दिलों की धड़कन एक साथ तेज़ हो गई।
उनकी नज़रें अचानक टकराईं — और जैसे उसी पल, आस-पास की सारी आवाज़ें, बातें और हलचल फीकी पड़ गईं।
कुछ सेकंड के लिए वक्त मानो थम गया था… बस दो दिलों की धड़कनें और उन नज़रों का मौन संवाद बाकी था।
लेकिन फिर दोनों ही अचानक होश में आ गए। थोड़ी झेंप और हल्की शर्माहट उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी। काव्या ने जल्दी से नजरें चुराई और सबको रसगुल्ला देने के बाद पद्मिनी जी के पास जाकर बैठ गई।
उसके दिल की धड़कन अब भी काबू में नहीं आ रही थी, और राजवीर भी वहीं चुपचाप अपनी जगह बैठा, हल्की मुस्कान के साथ इधर उधर देख रहा था।
सब लोग रसगुल्ला खा रहे थे और हर किसी के चेहरे पर मिठास और खुशी साफ झलक रही थी।
इशिता ने रसगुल्ला का स्वाद लेते हुए मुस्कुराकर कहा, "वाह भाभी! आपकी मिठाई तो कमाल की टेस्टी है। वैसे भाभी, आपको और कौन-कौन सी मिठाइयाँ बनानी आती हैं?"
काव्या हल्के से मुस्कुराई और बोली, "मुझे लगभग दस तरह की मिठाइयाँ बनानी आती हैं — जैसे रसगुल्ला, गुलाब जामुन, रबड़ी, मालपुआ, बेसन के लड्डू, कलाकंद, जलेबी, खीर, मोदक और गुझिया।"
ये सुनकर इशिता खुशी से चहक उठी। वो बच्चों जैसी उत्सुकता से बोली, "भाभी! क्या आप मुझे भी ये सब बनाना सिखाएंगी?"
काव्या ने प्यार भरी मुस्कान के साथ हाँ में सिर हिलाया। इशिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, और पूरे घर में एक हल्का सा मीठा माहौल फैल गया था।
थोड़ी देर बाद सबने तय किया कि अब शॉपिंग के लिए निकलना चाहिए। घर के सारे यांग जनरेशन बड़े उत्साह के साथ तैयार हो गए।
काव्या भी जल्दी से तैयार होकर बाहर आई। जैसे ही वो में गेट के पास पहुँची, उसका कदम अचानक रुक गया। उसके सामने खड़ा नज़ारा देख वो आश्चर्यचकित रह गई।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या देखा होगा काव्या जो वो आश्चर्य हो गई ?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी…
जब सब शॉपिंग के लिए तैयार होने लगे, तो घर के सारे यंगस्टर्स की नज़रें आपस में मिलीं। उन निगाहों में एक शरारती चमक थी, जैसे बिना एक शब्द कहे ही सबके बीच कोई गुप्त समझौता हो गया हो।
बस पलभर में एक प्लान बन गया — काव्या और राजवीर को अकेला छोड़ना है।
फिर जैसे किसी रेस में हों, सबने जल्दी-जल्दी अपनी-अपनी गाड़ियों का चुनाव किया और शोर-गुल, हँसी-मज़ाक के बीच वहाँ से निकलना शुरू कर दिया। कोई पीछे मुड़कर देखने की जहमत भी नहीं उठा रहा था, ताकि प्लान और भी सफल लगे।
काव्या को लगा था कि सब लोग एक साथ जाएंगे, चहकते हुए, जैसे हमेशा होता है। पर जब वो हल्के कदमों से बाहर आई, तो सामने का नज़ारा देखकर पल भर के लिए रुक गई।
पूरा आँगन सुनसान था। सूरज की हल्की किरणें फर्श पर पड़ रही थीं, हवा में चंपा के फूलों की मीठी महक तैर रही थी… और वहाँ बस एक ही गाड़ी खड़ी थी।
गाड़ी के पास राजवीर खड़ा था — सफेद कुर्ते-पायजामे में, हाथ जेब में डाले, और नज़रों में वही गहरी, चुपचाप सी शांति।
काव्या की साँस एक पल को थम-सी गई। दिल में एक हल्की-सी धड़कन उभरी, जो धीरे-धीरे तेज़ होने लगी।
उसके हाथ अनजाने में अपने दुपट्टे के कोने से खेलने लगे, जैसे उसमें छुपी घबराहट को ढकना चाह रही हो।
धीमे-धीमे वो आगे बढ़ी। हवा की नरम लहर उसके बालों को छेड़ते हुए चेहरे पर ले आई, और उसने हल्के से सिर झटककर उन्हें पीछे किया। उसके गालों पर लाज की गुलाबी आभा और गहरी हो गई, जबकि निगाहें अब भी ज़मीन पर टिकी थीं।
राजवीर वहीं खड़ा था, हाथ अब भी जेब में डाले, पर नज़रें पूरी तरह सामने आ रही काव्या पर टिकी थीं।
उसके होंठों के किनारों पर एक नरम-सी, अनकही मुस्कान तैर गई थी — वैसी जो शब्दों से नहीं, बल्कि नज़रों से बहुत कुछ कह जाती है।
काव्या धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थी, कदम जैसे सोच-समझकर रख रही हो, मानो हर हलचल पर उसका दिल कोई टिप्पणी कर रहा हो। उसके चेहरे पर हल्की-सी झिझक थी, आँखें ज़्यादातर झुकी हुईं, लेकिन फिर भी बार-बार ऐसा लग रहा था जैसे वो राजवीर की निगाहों को महसूस कर रही हो।
राजवीर, जो अब तक घरवालों की मौजूदगी के कारण बस चोरी-चोरी उसे देखता था, अब खुले आसमान और सुनसान आँगन में बिल्कुल बंधनमुक्त था। उसकी निगाहें बस एक जगह थमी थीं — काव्या पर।
वो उसे ऐसे देख रहा था, जैसे सदियों से किसी का इंतज़ार कर रहा हो और अब पहली बार वो सामने खड़ी हो।
उसकी आँखों में गहराई थी, लेकिन उनमें एक हल्की-सी शरारत भी छुपी थी। सच कहें तो, उस पल में वो किसी गंभीर राजकुमार से ज्यादा, एक सड़कछाप रोमियो की तरह लग रहा था — जो बिना पलक झपकाए, खुलेआम, बेहिचक देखे जा रहा हो।
काव्या को उसकी तीव्र, गहरी नज़रें साफ महसूस हो रही थीं।
दिल की धड़कनें अब सामान्य लय में नहीं थीं — जैसे हर बीट पर उसका नाम उभर रहा हो।
उसके होंठों पर हल्की-सी नमी आ गई, साँसें अनजाने में तेज़ हो गईं।
वो हल्के से घबराई, पर पैरों ने मानो उसकी हिचक को अनसुना कर दिया।
धीमे-धीमे, जैसे किसी अदृश्य डोर से खिंचती हुई, वो उसके और करीब आने लगी।
हर कदम के साथ उसके गालों का रंग और गहरा गुलाबी होता जा रहा था, और घबराहट के साथ-साथ एक अनकही सी मिठास भी दिल में पलने लगी थी।
उधर, राजवीर तो जैसे किसी और ही दुनिया में डूबा हुआ था — एक ऐसी दुनिया जहाँ चारों ओर सन्नाटा था और उसके बीच बस वो थी… काव्या।
उसके लिए उस पल न तो आस-पास का आँगन था, न हवा का बहना, न ही कहीं दूर से आती हँसी की हल्की-सी गूँज… बस काव्या थी।
उसके मासूम चेहरे पर हल्की-सी लाज की परत चढ़ी हुई थी, जो हर पल और गहरी हो रही थी।
उसकी साड़ी की लहराती झालरें हवा के साथ खेल रही थीं, कभी उसके कदमों के पास, कभी हल्के से उसकी कमर को छूती हुईं।
और उसकी झुकी हुई नज़रें… जैसे आँखों में कोई राज छुपा रही हों, पर फिर भी अनजाने में सब कुछ कह दे रही हों।
काव्या अब लगभग उसके बिलकुल पास आ चुकी थी, पर राजवीर को जैसे इसका एहसास ही नहीं हुआ।
वो अब भी उसे उसी तरह देखे जा रहा था — गहरी, ठहरी हुई नज़रों से, जिनमें न कोई झिझक थी, न कोई हड़बड़ाहट… बस एक सुकून और एक अनकहा अपनापन।
काव्या के दिल की धड़कनें इस खामोश नजरों के संवाद में और भी तेज़ हो गईं।
उसकी साँसें हल्की-हल्की तेज़ हो रही थीं, जैसे हर पल उसके सीने में कोई गुप्त संगीत बज रहा हो।
राजवीर की गहरी नज़रों में खुद को डूबा पाकर उसके मन में एक मीठी-सी गुदगुदी उठी, जिसे वो महसूस भी कर रही थी और छुपाना भी चाह रही थी।
उसके गालों पर लाज की गुलाबी आभा फैल गई, मानो सुबह की पहली किरण उसके चेहरे पर उतर आई हो।
उसने धीरे-से अपनी पलकें झुका लीं, लेकिन वो जानती थी — उसकी नज़रे झुकाने से राजवीर की निगाहें उस पर से हटने वाली नहीं थीं।
वो अब भी उसे देख रहा था, जैसे उसकी आँखों में ही अपनी पूरी दुनिया पा ली हो।
लेकिन तभी, उस खामोश और मीठे माहौल को तोड़ते हुए, अचानक राजवीर की जेब में रखा मोबाइल तेज़ी से बज उठा।
अनचाही सी वह रिंगटोन हवा में गूँजते ही, जैसे किसी ने दोनों के बीच का अदृश्य जादू तोड़ दिया हो।
राजवीर हल्का-सा चौंक गया, जैसे किसी गहरे ख्वाब से अचानक जाग उठा हो।
एक पल के लिए उसकी भौंहें हल्की-सी सिकुड़ीं, फिर उसने थोड़ी झेंप के साथ जल्दी से हाथ जेब में डाला और मोबाइल निकाला।
स्क्रीन पर नज़र गई — साहिल का कॉल।
उसने एक पल ठहरकर नज़र उठाई और काव्या की तरफ देखा।
उसकी आँखों में अब भी वही नर्म मुस्कान तैर रही थी, जैसे यह छोटी-सी रुकावट भी उसके मन में उठ रही भावनाओं को कम नहीं कर पाई हो।
बिना कुछ कहे, उसने धीरे से कार का दरवाज़ा खोला।
फोन रिसीव करते हुए, दूसरी ओर खाली हाथ से उसने काव्या की तरफ इशारा किया — एक मौन निमंत्रण, “बैठिए…”
काव्या, जो अब तक वहीं खड़ी अपने दुपट्टे के कोने को उंगलियों में मरोड़ती जा रही थी, उसकी इस चुपचाप सी अदाकारी पर हल्की-सी मुस्कुराई।
उसने धीरे से अपना दुपट्टा ठीक किया, साड़ी की पल्लू को संभाला और कोमल कदमों से गाड़ी की तरफ बढ़ी।
दरवाज़ा खोलते हुए उसकी पायल की हल्की सी छन-छन सुनाई दी, जैसे वो पल अपने साथ कोई अनकहा वादा लिए जा रहा हो।
वो बिना कुछ बोले, सिर झुकाए गाड़ी में बैठ गई, और राजवीर अब भी फोन पर बात करते हुए, एक नज़र उस पर डालना नहीं भूला।
वहीं, राजवीर फोन कान से लगाए चुपचाप साहिल की बातें सुन रहा था।
साहिल की आवाज़ में वही पुरानी शरारत थी —
"भाई, ज़्यादा वक्त साथ में बर्बाद मत कर देना… आज ही तुम्हें दोनों के लिए सारा शॉपिंग कंप्लीट करना है!"
राजवीर ने हल्की-सी मुस्कान दबाई, पर जवाब में बस एक छोटे, गहरे स्वर में “हूँ” कहा।
उसकी यह प्रतिक्रिया न तो पूरी हामी थी, न ही इंकार — बस एक ऐसी चुप्पी, जिसमें बहुत कुछ छुपा था।
बिना कोई और शब्द जोड़े, उसने कॉल काट दिया और मोबाइल को जेब में सरका दिया।
फिर आराम से अपनी ओर घूमकर बैठ गया, और उसकी हल्की-सी हरकत के साथ ही ड्राइवर ने इग्निशन घुमाया।
गाड़ी की इंजन की घर्राहट ने आँगन की खामोशी को तोड़ दिया, और अगले ही पल, कार सड़क पर धीमे-धीमे आगे बढ़ने लगी।
पीछे की सीट पर दोनों के बीच एक नर्म-सी दूरी बनी हुई थी। काव्या खिड़की से बाहर के नज़ारे देख रही थी, उसकी आँखों में एक अजीब सी मासूमियत और हल्की सी बेचैनी थी। वो अपने दुपट्टे के किनारे से खेलते हुए बाहर देखती रही,
जैसे खुद को राजवीर की मौजूदगी से सहज करने की कोशिश कर रही हो।
राजवीर ने भी बाहर से शांत बनने का नाटक किया। उसने अपना लैपटॉप खोला,
जैसे कोई बेहद जरूरी काम करना हो, पर असल में उसका ध्यान काम पर नहीं था। वो चुपके-चुपके लैपटॉप के पीछे से काव्या को निहार रहा था। उसकी लहराती जुल्फें, उसके गालों की हल्की गुलाबी आभा, और उसका मासूम सा चेहरा।
हर बार जब काव्या जरा भी उसकी तरफ देखती, राजवीर जल्दी से अपनी नज़रें लैपटॉप स्क्रीन पर गड़ा लेता। और काव्या भी जानती थी... कि कोई उसे देख रहा है। लेकिन वो बस हल्के से मुस्कुराकर फिर बाहर देखने लगती थी।
कार के भीतर एक मीठी सी खामोशी फैल गई थी। जहाँ शब्दों की कोई ज़रूरत नहीं थी, बस धड़कनों की आहट थी।
करीब आधे घंटे की यात्रा के बाद, कार एक भव्य और आलीशान शॉपिंग मॉल के सामने आकर रुकी। यह मॉल राजस्थान के सबसे फेमस मॉल्स में से एक था —
शानदार इमारत, ऊँचे चमकते हुए ग्लास के दरवाजे, और चारों ओर एक रॉयल माहौल था, जैसे मॉल खुद बयां कर रहा हो कि यह किसी आम इंसान की नहीं, बल्कि किसी राजा की मेहनत का नतीजा है।
काव्या कार से उतरते हुए चारों तरफ हैरानी से देखने लगी। उसके चेहरे पर साफ़ लिखा था — "वाह!"
तभी बाकी सब भी, जो पहले से वहाँ पहुँचे हुए थे, मुस्कुराते हुए उनकी ओर बढ़े। जैसे ही राजवीर और काव्या मॉल के अंदर गए, सभी एक साथ हँसते-बोलते एंट्रेंस से अंदर चले गए।
तभी इशिता उसे कुछ कहती है जिसे सुन कर काव्या के चेहरे पर एक शॉकिंग एक्सप्रेशन आ जाते है।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या कहा होगा इशिता ने काव्या को ?
करीब आधे घंटे की लंबी और आरामदायक यात्रा के बाद, कार एक बेहद भव्य और आलीशान शॉपिंग मॉल के सामने आकर थमी। सूरज की हल्की किरणें उस मॉल की चमकदार दीवारों पर पड़कर उसे और भी राजसी बना रही थीं।
यह मॉल राजस्थान के सबसे मशहूर और रॉयल मॉल्स में से एक था — दूर से ही इसकी ऊँची-ऊँची इमारतें, ट्रांसपेरेंट और चमकते हुए ग्लास के दरवाज़े, और प्रवेश द्वार पर खड़े सिक्योरिटी गार्ड्स की ड्रेस तक कुछ ऐसी थी जो इस बात का अहसास कराती थी कि ये जगह किसी आम इंसान की कल्पना से कहीं ऊपर है।
चारों तरफ रॉयल ब्लू और गोल्डन थीम का डेकोर था, जैसे हर ईंट में किसी राजा की मेहनत और शान छुपी हो। वहां खड़े महंगे ब्रांड्स के शोरूम्स, लक्ज़री कारों की पार्किंग, और अंदर-बाहर घूमते लोगों की स्टाइल, सब कुछ खुद में खास था। ऐसा लग रहा था मानो कोई महल हो — फर्क बस इतना कि ये महल अब शॉपिंग के लिए बना था।
काव्या कार से उतरते ही चारों ओर देखने लगी। उसकी आंखों में बच्चों जैसी चमक थी — हैरानी और खुशी का मिला-जुला भाव उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था। उसने हल्के से अपनी सांस छोड़ी और अनजाने में उसके होंठों से एक शब्द निकला — "वाह!"
उसके इस भोले रिएक्शन पर राजवीर की नजर पड़ी। वो मुस्कुरा उठा, और मन ही मन बोला, "जिस चीज़ को देखकर लोग हैरान होते हैं, उस पर भी तू इतनी मासूमियत से रिएक्ट करती है… तू वाकई सबसे अलग है, काव्या।"
तभी मॉल के दरवाज़े की ओर से कुछ लोग उनकी तरफ मुस्कुराते हुए बढ़ते नजर आए। वे सभी पहले से वहाँ पहुँचे हुए थे — राजवीर के कुछ खास दोस्त, फैमिली फ्रेंड्स और कुछ करीबी रिश्तेदार।
जैसे ही राजवीर और काव्या मॉल के मुख्य प्रवेश द्वार की ओर बढ़े, वे सभी लोग गर्मजोशी से उनका स्वागत करते हुए गले मिले और हँसी-मजाक करते हुए अंदर की ओर बढ़ चले।
जैसे ही सब मॉल के अंदर दाखिल हुए, चारों तरफ की रॉयल सजावट और मॉल की भव्यता देख काव्या के कदम रुक-से गए। तभी इशिता उसके पास आई और मुस्कुराते हुए बोली,
"पता है भाभी, इस मॉल की सबसे खास बात क्या है?"
काव्या ने हैरानी से उसकी तरफ देखा और हल्के से ना में सिर हिला दिया।
इशिता ने गर्व से उसकी ओर देखा और बोली,
"ये पूरा मॉल… खुद राजवीर भैया का है।
उन्होंने लंदन में पढ़ाई के दौरान ही इसकी प्लानिंग शुरू की थी। वहाँ रहकर उन्होंने हर छोटी-बड़ी चीज सीखी, फिर अपनी मेहनत, लगन और दूरदर्शिता से इस सपने को हकीकत बनाया।"
काव्या हैरानी से राजवीर की ओर देखने लगी, लेकिन इशिता की बात अभी बाकी थी।
"इस सफर में दो लोग हमेशा उनके साथ खड़े रहे — साहिल भैया और विक्रम भैया।
दोनों ने हर मोड़ पर भाई का साथ दिया, कंधे से कंधा मिलाकर इस मॉल की नींव रखी।"
फिर वो रुककर एक गहरी साँस लेकर बोली,
"आज ये मॉल सिर्फ एक बिज़नेस प्रोजेक्ट नहीं है… ये राजवीर भैया के संघर्ष, मेहनत और सपनों की पहचान है।"
जब काव्या ने इशिता से ये सब सुना — राजवीर की मेहनत, उसका विज़न, और उसके साथ खड़े रहने वाले लोगों की कहानी — तो उसके दिल में राजवीर के लिए और भी ज़्यादा इज़्ज़त और अपनापन भर गया।
वो चुप रही, कुछ नहीं बोली... पर उसकी आंखों की नमी और हल्की-सी शर्माई मुस्कान बहुत कुछ बयां कर रही थी। जैसे दिल कह रहा हो — "तुम वाकई खास हो, राजवीर।"
वो अपनी मुस्कान में उस एहसास को छुपाने की कोशिश करती है और एक नज़र चुपके से राजवीर की ओर देखती है, जो उस वक्त साहिल और विक्रम के साथ कुछ गंभीर बातें कर रहा था।
राजवीर के चेहरे पर आत्मविश्वास और नेतृत्व की झलक साफ थी — एक ऐसा व्यक्ति जो न सिर्फ सपने देखता है, बल्कि उन्हें जीता भी है।
काव्या की निगाहें पलभर के लिए ठहर गईं, फिर वह हल्के से नजरें झुका कर इशिता की ओर देखने लगी, जैसे कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कह गई हो।
*********
अब, चलिए आपको विक्रम के बारे में बताता हूँ।
विक्रम... सिर्फ एक बॉडीगार्ड नहीं है। वो राजवीर की ज़िंदगी का वो हिस्सा है, जो शायद शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। उसका रुतबा सिर्फ उसके कंधे पर टंगी बंदूक से नहीं, बल्कि उसकी वफादारी, उसकी नज़रों की सतर्कता, और उसकी खामोश मौजूदगी से पहचाना जाता है।
पर ये रिश्ता आज का नहीं है।
कहानी शुरू होती है कई साल पहले... जब राजवीर सिर्फ चौदह या पंद्रह साल का था। एक दिन यूँ ही किसी सड़क से गुजरते हुए उसकी नज़र एक लड़के पर पड़ी — दुबला-पतला, झुलसी हुई त्वचा, फटे-पुराने कपड़े, और आंखों में कुछ ऐसा, जो बाकी दुनिया को नहीं दिखा।
वो लड़का था विक्रम।
उसकी आँखों में ग़रीबी की परछाई तो थी, पर साथ ही थी एक आग... जो शायद हालातों को जला कर राख कर देना चाहती थी। एक जिद, एक आत्मसम्मान, जो उसके चेहरे पर साफ दिखाई देता था।
राजवीर रुका।
उसने ना पैसे दिए, ना दया दिखाई — बस सीधा उसकी आँखों में देख कर कहा,
"मेरा नाम राजवीर है। क्या तुम मेरे साथ चलोगे? तुम्हें एक घर मिलेगा... पढ़ाई भी, और एक परिवार भी।"
यह कोई सवाल नहीं था, यह एक प्रस्ताव था... एक ज़िंदगी बदलने वाला प्रस्ताव।
विक्रम थोड़ी देर तक चुप रहा। पर राजवीर की आंखों में जो साफ़-सुथरी सच्चाई थी, उसने झिझक को तोड़ दिया। बाद में जब राजवीर ने उसके माता-पिता से बात की, तो वो भी खुशी से तैयार हो गए। क्योंकि वो समझ गए थे — उनका बेटा अब सिर्फ पेट भरने की लड़ाई नहीं लड़ेगा, बल्कि पहचान बनाने की जंग लड़ेगा… और जीतेगा भी।
उस दिन के बाद से विक्रम, राजवीर का दोस्त नहीं — उसका साया बन गया।
वो हर उस जगह दिखा, जहाँ राजवीर को जरूरत थी। वो हर उस लड़ाई में खड़ा रहा, जहाँ भाई को सहारे की ज़रूरत थी। वो हर उस चुप्पी को समझ गया, जिसे शब्दों में ढालना मुश्किल था।
आज, जब लोग विक्रम को देखते हैं तो सिर्फ एक सिक्योरिटी गार्ड नजर आता है — लेकिन सच्चाई ये है कि राजवीर की सफलता की सबसे मजबूत दीवारों में से एक विक्रम भी है।
विक्रम के लिए राजवीर कोई 'हुकुम सा' नहीं है... वो उसका भाई है, उसका परिवार है। और यही रिश्ता उन्हें दूसरों से अलग बनाता है — खून से नहीं, पर दिल से जुड़ा हुआ रिश्ता।
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जैसे ही सभी मॉल के अंदर दाखिल हुए, एक अलग ही चमक और हलचल ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा।
रंग-बिरंगी रोशनी, हर ओर जगमगाते ब्रांडेड स्टोर्स, और लोगों की भीड़ से मॉल में एक जीवंत रौनक थी — जैसे कोई त्योहार हो रहा हो।
सबने एक-दूसरे को देखा… और फिर बिना कुछ कहे, बस मुस्कुरा दिए।
उनके चेहरों पर जो शरारत थी, वो साफ बयां कर रही थी कि कुछ तो प्लान किया गया है — और उसका शिकार बनने वाली थीं काव्या।
तभी अचानक एक-एक करके सबने बोलना शुरू किया — जैसे कोई पहले से तय की गई स्क्रिप्ट हो:
"काव्या भाभी, आप अपने लिए ड्रेस सिलेक्ट कर लीजिए, मैं अपने लिए देखती हूँ,"
रिया ने मुस्कराकर आंखों से इशारा करते हुए कहा।
"हाँ भाभी! अब आपकी बारी है, अकेले भैया के साथ शॉपिंग करने की..."
तृषा ने हँसी रोकते हुए रिया की कोहनी में हलका सा धक्का दिया, मानो उसे चुप रहने को कह रही हो पर खुद भी मज़ा ले रही थी।
"हम सब तो यहीं हैं, लेकिन थोड़ी देर के लिए आप दोनों को अकेला छोड़ देते हैं,"
अर्जुन ने हल्के मज़ाकिया अंदाज़ में कहा और अपनी मुस्कान छिपाने की नाकाम कोशिश की।
इतना कहने की देर थी, सब एक-एक कर वहां से चुपचाप खिसक गए — कोई बहाना बनाकर, कोई हँसी में टालकर।
अब वहां सिर्फ दो लोग बचे थे — राजवीर और काव्या।
पूरा माहौल एक पल में ही किसी रोमांटिक फिल्म के सीन जैसा लगने लगा —
आसपास की हलचल के बीच भी, उनके बीच एक सुकून-भरी ख़ामोशी थी...
जैसे वक्त थोड़ी देर के लिए सिर्फ उनके लिए रुक गया हो।
जैसे ही राजवीर और काव्या पलट कर पीछे देखते हैं, तो उन्हें एहसास होता है कि उनके साथ आए सारे लोग… अचानक गायब हो चुके थे, जैसे किसी फिल्म के सीन में बैकग्राउंड एक्स्ट्रा हट जाते हैं और कैमरा बस हीरो और हीरोइन पर टिक जाता है।
काव्या का चेहरा अचानक थोड़ा सा बदल जाता है। उसकी आंखों में हल्की सी घबराहट तैर जाती है।
वो बेचैनी से इधर-उधर देखने लगती है, मानो किसी परिचित चेहरे को ढूंढ़ रही हो… कुछ ऐसा जो इस अचानक आए अकेलेपन को थोड़ा कम कर दे।
चारों तरफ चहल-पहल थी, लेकिन उस भीड़ में खुद को अकेले खड़ा पाकर काव्या को हल्की सी असहजता महसूस होने लगी।
वो अपने पल्लू को एक बार ठीक करती है, अपनी हथेलियां आपस में मसलती है — जैसे मन ही मन खुद को सँभाल रही हो।
उधर, राजवीर एक कोने में खड़ा है। उसे इस पूरे नाटक का पहले से अंदाज़ा था — शायद उसकी ही सहमति से सब हुआ था।
वो पूरे ध्यान से एक ड्रेस स्टैंड के पास खड़ा, कुछ आउटफिट्स को देख रहा है। उसकी आँखों में फोकस था, पर होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान… जैसे उसे पता हो कि अब काव्या की नज़रों की तलाश सिर्फ उसी पर आकर टिकेगी।
तभी राजवीर कुछ ऐसा कहता है जिससे काव्या हैरान हो कर उसे देखने लगती है।
क्या कहा होगा राजवीर ने?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी…
नई जगह… अनजाने कमरे की हल्की सी खुशबू… भारी-भरकम पलंग के पीछे लगे सुनहरे नक़्क़ाशीदार पैनल… और खिड़की से आती ठंडी हवा।
काव्या का मन जैसे एक साथ कई भावों के भंवर में फँस गया हो —
उत्सुकता, घबराहट, अनजाना डर और कहीं भीतर एक धीमी सी मिठास।
उसकी आँखें कभी राजवीर की तरफ उठतीं, तो अगली ही क्षण झट से दरवाज़े की ओर भाग जातीं — मानो भीतर ही भीतर सवाल कर रही हों,
"ये सब यूँ ही हुआ है… या फिर हुकुम सा की कोई सोच-समझी चाल?"
कमरे की नर्म रोशनी में उसकी झिझक और भी गहरी लग रही थी। होंठों के कोने पर, न जाने कब से, एक मासूम सी मुस्कान ठहरी हुई थी, जो पूरी तरह खिलने से पहले ही उसकी संकोच में खो जाती।
राजवीर ने उसे एक पल चुपचाप निहारा।
उसकी उंगलियों के बीच में रखी तलवार की मूठ पर अब कसाव नहीं था — बल्कि उसकी निगाहों में एक हल्की सी नरमी आ गई थी।
वह समझ रहा था कि काव्या की हर सांस इस वक्त अपने आप में एक सवाल है… और उसका मन, नई ज़िंदगी के इस पहले मोड़ पर, खुद को सम्भालने की कोशिश कर रहा है।
वह हल्के से मुस्कराया और एक क़दम आगे बढ़ आया। उसकी मौजूदगी से कमरे में जैसे हवा और भारी हो गई, फिर भी उसमें एक अजीब सी सुकून की लहर थी।
नरम, मगर स्थिर आवाज़ में उसने कहा —
"चलिए… आपके लिए शादी की सारी रस्मों के कपड़े देख लेते हैं।"
काव्या का दिल जैसे एक धड़कन के लिए रुक गया। उसने धीरे से सिर हिलाया, आँखें अब भी झुकी हुई थीं, पलकों की ओट में अनगिनत विचार तैरते हुए।
राजवीर उसके हर छोटे-छोटे हाव-भाव को बारीकी से देख रहा था।
उसके सिर झुकाने का तरीका, कपड़ों के किनारे को उंगलियों से सहलाना, और बीच-बीच में नज़रें चुराकर देख लेना — सब कुछ राजवीर की तेज़ निगाहों से छुपा नहीं था।
उसने होंठों पर हल्की सी मुस्कान लाते हुए कहा,
"यार, आप मुझसे इतनी नर्वस क्यों हो जाती हैं? मैं आपका होने वाला पति हूँ… और आपको मेरे साथ पूरी ज़िंदगी बितानी है।"
काव्या ने एक पल को सांस रोक ली। उसका दिल अचानक तेज़ चलने लगा।
राजवीर के लहजे में एक सहज अपनापन था, जो उसकी घबराहट को धीरे-धीरे पिघला रहा था।
राजवीर ने बात यहीं खत्म नहीं की।
थोड़ा झुकते हुए, आँखों में हल्की सी शरारत भरकर बोला —
"अगर आप शादी के लिए तैयार नहीं हैं, तो चलिए… अभी घर चलते हैं और सबसे कह देते हैं कि आप मना कर रही हैं।"
काव्या ने चौंककर सिर ऊपर उठाया।
उसकी आँखों में एक साथ आश्चर्य और हल्की घबराहट चमक गई।
मानो वह सोच रही हो — "ये सच में कह देंगे क्या?"
पर उसी क्षण उसने राजवीर के चेहरे पर फैली नटखट मुस्कान देखी, और पहली बार उसे महसूस हुआ कि इस गंभीर, शाही-सा दिखने वाले इंसान के भीतर भी एक गर्मजोशी और हँसी की जगह है।
उसके होंठों पर एक अनजानी, धीमी-सी मुस्कान आ गई।
वो मुस्कान उसकी झिझक के गलने और भरोसे के अंकुर फूटने का पहला संकेत थी।
राजवीर ने उसकी आँखों में उतरते इस बदलाव को महसूस किया।
वो बिना कुछ कहे, बस देखता रहा — जैसे उसकी इस हल्की मुस्कान को हमेशा के लिए अपनी यादों में कैद कर लेना चाहता हो।
"ऐसा कुछ नहीं है… हमें आपसे शादी करनी है," काव्या ने धीमे स्वर में कहा।
आवाज़ में संकोच था, पर साथ ही उसमें एक मीठी सच्चाई भी थी — जैसे कोई बात दिल से निकल रही हो और बिना सजावट के सीधे सामने आ रही हो।
"बस… हम जल्दी अजनबियों से घुल-मिल नहीं पाते… इसलिए…"
राजवीर उसकी बात चुपचाप सुन रहा था।
उसकी नज़रें काव्या के चेहरे पर टिकी थीं — वहाँ लाली की हल्की सी परत थी, पलकें झुकी थीं, और होंठों के कोनों में एक नर्म सी कंपकंपी थी।
वो समझ रहा था कि काव्या के लिए यह सब बिल्कुल नया है और उसकी दुनिया एक झटके में बदल गई है।
राजवीर ने हल्के से सिर हिलाया, जैसे उसकी बात पूरी तरह समझ ली हो।
फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा —
"ठीक है, पर आपको भी कंफर्टेबल होने की कोशिश करनी होगी।"
इसके बाद, उसने बिना कोई औपचारिकता रखे, एक सहज अंदाज़ में अपना हाथ आगे बढ़ाया।
उसकी आँखों में ईमानदारी थी, और मुस्कान में एक सच्चा अपनापन।
"क्या हम दोस्त बन सकते हैं?" — उसकी आवाज़ में न कोई दबाव था, न कोई अधिकार… बस एक गर्मजोशी भरा आमंत्रण।
काव्या ने चुपचाप उसे देखा।
कुछ पलों तक उसकी आँखें राजवीर के चेहरे का जायज़ा लेती रहीं — भौंहों की गंभीर लकीरें, आँखों में झलकती सच्चाई, और होंठों पर खेलती हल्की सी उम्मीद भरी मुस्कान।
दिल के भीतर कहीं एक कोमल सा एहसास जागा, जो उसे बता रहा था कि यह रिश्ता सिर्फ एक बंधन नहीं होगा, बल्कि इसमें अपनापन और भरोसा भी होगा।
धीरे-धीरे, बिना कुछ कहे, उसके होंठों पर मुस्कान उतर आई।
उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और राजवीर की हथेली में रख दिया।
राजवीर की हथेली गर्म थी, और उसका हल्का-सा दबाव काव्या के दिल की धड़कनों में एक नई लय भर रहा था।
उस पल, दोनों की आँखों में जैसे एक अनकहा वादा तैर गया —
दोस्ती की इस शुरुआत में कहीं गहराई से एक नए सफ़र की नींव रखी जा रही थी…
जहाँ झिझक के पर्दे धीरे-धीरे हटेंगे, और अपनापन अपनी जगह बनाएगा।
राजवीर काव्या से हाथ मिलाकर मुस्कुरा उठा। उसकी आँखों में अब एक नई चमक थी, एक सुकून कि उन्होंने एक नई शुरुआत कर ली थी।
"अब तो हम फ्रेंड्स बन गए हैं," राजवीर ने हल्के-फुल्के, मगर सच्चे अंदाज़ में कहा।
उसकी आँखों में हल्की सी चमक थी, जैसे उसने कोई छोटा-सा वादा कर लिया हो।
"इसलिए आप जितनी जल्दी हो सके, खुद को मेरे साथ नॉर्मल कर लीजिए। और ये मत सोचिए कि आपके कुछ कहने या करने से मैं आपको जज करने लगूंगा।"
उसकी आवाज़ में आत्मीयता थी — वो आत्मीयता जो किसी को एकदम सुरक्षित और सहज महसूस कराती है।
बात करते वक्त उसका लहजा बिल्कुल स्थिर था, जैसे हर शब्द को तौलकर कह रहा हो, ताकि काव्या के मन में बनी झिझक की दीवार धीरे-धीरे टूट जाए।
फिर उसने थोड़ी गंभीरता और बहुत सच्चाई के साथ जोड़ा —
"आप जैसी हैं, मुझे वैसी ही चाहिए।"
ये सुनते ही काव्या के दिल में जैसे कोई मीठी सी लहर उठी। उसे दिल ही दिल में अच्छा लगने लगा कि उसका होने वाला जीवनसाथी इतना समझदार, विनम्र और अपनाने वाला है।
राजवीर की बातें उसके मन में हल्की-सी लहर की तरह फैल गईं – आत्मविश्वास, सम्मान और एक विश्वास की नींव डालती हुईं। काव्या की आँखों में अब एक हल्की चमक थी, और होठों पर वो मुस्कान जो दिल से आती है।
दोनों एक साथ कपड़े देखने लगे।
कपड़ों का ढेर सामने रखा था — रेशमी साड़ियाँ, मोतियों से सजे दुपट्टे, और गहरे रंगों वाले लहंगे।
काव्या एक-एक करके देखती गई, पर उसके चेहरे पर संतोष का कोई भाव नहीं आया।
आख़िरकार उसने हल्के से भौं सिकोड़ते हुए, थोड़े झुंझलाए से अंदाज़ में कहा —
"मुझे इनमें से कुछ भी पसंद नहीं आ रहा है।"
उसकी आवाज़ में शिकायत तो थी, लेकिन उसमें एक बच्ची जैसी मासूमियत भी छिपी थी — ठीक वैसे जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी पसंद का खिलौना न मिलने पर होठ फुलाकर बोलता है।
राजवीर ने उस मासूम नाराज़गी को गौर से देखा… और एक पल में उसके गंभीर चेहरे पर मुस्कान तैर गई।
दिल में कहीं गहराई से एक अजीब सा सुकून उतर आया — ये लड़की तो सच में अपनी असली शक्ल मेरे सामने दिखाने लगी है।
वह अपनी जगह से धीरे-धीरे आगे बढ़ा।
काव्या की आँखें अभी भी कपड़ों पर थीं, इसलिए वह उसके पास आने का अंदाज़ा नहीं लगा पाई।
राजवीर ने हल्के से झुककर उसके गाल उंगलियों से खींचते हुए चंचल अंदाज़ में कहा —
"You are sooo cute."
उसके स्वर में प्यार भी था, और एक हल्की-सी नटखट छेड़ भी।
काव्या एकदम से चौंकी, फिर खुद को रोक नहीं पाई और ठहाका सा हँस पड़ी।
उसकी हँसी में वह सारी झिझक घुल रही थी जो अब तक उसके और राजवीर के बीच थी।
लेकिन जैसे ही उसकी हँसी थमी, उसे अचानक अहसास हुआ कि वह राजवीर के सामने बच्चों जैसा बर्ताव कर रही थी।
गालों पर हल्की लालिमा चढ़ आई। नज़रें झुका कर, होंठ काटते हुए वह धीमे से बोली —
"सॉरी… वो… मुझसे होश में नहीं था।"
राजवीर ने उसकी शर्म को महसूस किया और तुरंत अपना हाथ उसके गाल पर रख दिया।
उसकी हथेली की गर्माहट में एक भरोसे की लहर थी।
मुस्कुराते हुए, बेहद नरम लहजे में उसने कहा —
"शू श… शांत रहिए। कुछ नहीं हुआ है। आप जैसे मेरे साथ व्यवहार कर रही हैं, वो बिल्कुल ठीक है। मैं आपका होने वाला पति हूँ… और अब तो दोस्त भी।"
वह एक क्षण के लिए रुका, उसकी आँखों में सीधे देखते हुए आगे बोला —
"इसलिए मेरे सामने खुद को किसी पिंजरे में बंद चिड़िया की तरह मत समझिए। Feel free to talk with me. Okay, काव्या?"
राजवीर की आँखें उस समय पूरी ईमानदारी और स्नेह से भरी थीं। उसका स्पर्श, उसकी बातें — सब कुछ काव्या के दिल को छू गए।
तभी कुछ ऐसा होता है जिस से दोनों हड़बड़ा जाते है।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या हुआ ऐसा जिस से राजवीर और काव्या दोनों हड़बड़ा गए?
जानने के लिए अगले chapter को पढ़ते रहिए ......
दोनों ही एक-दूसरे की आँखों में खोए हुए थे। माहौल कुछ ऐसा था जैसे वक्त थम सा गया हो। काव्या की आँखों में मासूमियत थी, तो राजवीर की नज़रों में अपनापन और प्रशंसा।
उनकी ये खामोश बातचीत चल ही रही थी कि अचानक राजवीर का फोन बज उठा। रिंगटोन की आवाज़ ने जैसे इस खूबसूरत पल को तोड़ दिया। दोनों हँस पड़े – वो हँसी जिसमें थोड़ी झिझक थी, थोड़ी शरारत।
राजवीर ने हल्की मुस्कान के साथ खुद से बुदबुदाया,
"पता नहीं क्या दुश्मनी है इन लोगों की मुझसे… हमेशा ऐन वक्त पर कॉल आ जाता है।"
उसकी निगाहें अब भी काव्या पर थीं, और होंठों पर अनायास ही एक प्यारी-सी कशिश भरी मुस्कान खेल रही थी।
"कितनी हसीन थीं उनकी आँखें…" उसने मन ही मन कहा।
वो फिर से उन आँखों में डूबने ही वाला था — जैसे उनकी गहराई में कोई छुपा हुआ राज ढूँढना चाहता हो — कि तभी फोन फिर से ज़िद्दी अंदाज़ में बज उठा।
इस बार उसके चेहरे पर हल्की सी चिढ़ उभर आई।
फोन उठाने से पहले उसने काव्या की तरफ देखा और विनम्रता से कहा —
"Excuse me,"
फिर फोन कान से लगाते हुए कुछ कदम दूर चला गया।
काव्या वहीं खड़ी रह गई।
उसकी आँखें अब उसके पीछे हटते कदमों को देख रही थीं, और होंठों पर एक अनजानी, नर्म सी मुस्कान तैर गई थी।
दिल में जैसे कोई हल्की-सी गुदगुदी हो रही थी — वह एहसास, जो किसी के खास होने पर ही दिल के अंदर जन्म लेता है।
उसकी नज़रें अनायास ही फिर से राजवीर पर टिक गईं।
उसकी चौड़ी पीठ, ठहराव भरे कंधे, और बात करते वक्त चेहरे पर उभरती गंभीरता… सब कुछ उसे बाँधे हुए था।
मन ही मन उसने सोचा —
"कितनी गहरी आँखें हैं इनकी… मन करता है, डूबती ही जाऊँ…"
उसकी साँस थोड़ी थम सी गई, लेकिन अगले ही पल एक हल्की सी कसक के साथ विचार आया —
"पर शायद किस्मत को ये मंज़ूर नहीं था… तभी तो इनका फोन बज उठा।"
एक गहरी साँस लेकर उसने अपनी नज़रें उससे हटा लीं।
वो अब खुद को कपड़ों में व्यस्त दिखाने लगी — रेशमी किनारों को उंगलियों से सहलाते हुए, दुपट्टों की कढ़ाई को ध्यान से देखते हुए।
पर उसके मन में अब भी राजवीर की छवि तैर रही थी… और उसकी आँखों की गहराई में खो जाने की अधूरी ख्वाहिश भी।
करीब पंद्रह मिनट बाद राजवीर वापस आया।
उसके चेहरे पर अब फोन कॉल की गंभीरता नहीं, बल्कि एक हल्की-सी राहत और मुस्कान थी।
"वो मेरे ऑफिस से कॉल था," उसने सहजता से कहा, जैसे कोई छोटी-सी बाधा अब पूरी तरह पीछे छूट गई हो।
उसकी नज़र तुरंत काव्या की ओर गई —
वो अपने हाथों में कुछ कपड़े थामे थी, आँखें कपड़ों पर टिकीं, पर ध्यान कहीं और था।
राजवीर ने हल्की-सी उत्सुकता के साथ पूछा —
"आपने कपड़े चुन लिए?"
काव्या ने धीरे से उसकी तरफ देखा।
"हाँ…" उसकी आवाज़ में थकान की हल्की परत थी, लेकिन उसमें एक संतोष भी था।
"मैंने शादी के बाद पहनने के लिए कुछ साड़ियाँ… और हल्दी-मेहंदी के लिए लहंगे ले लिए हैं। बस शादी, संगीत और रिसेप्शन के लिए ड्रेस बाकी हैं… पर इनमें से कुछ भी पसंद नहीं आ रहा।"
राजवीर ने उसकी बात सुनते ही मुस्कान दी।
उसकी आँखों में जैसे कोई छोटा-सा इशारा चमका — कि अब वो खुद इसमें हिस्सा लेगा।
"ठीक है, आप ये कपड़े यहीं रख दीजिए…" उसने नरम, मगर आत्मविश्वासी अंदाज़ में कहा।
काव्या ने चुपचाप सिर हिलाया और धीरे-धीरे सारे कपड़े एक जगह रख दिए।
उसकी उंगलियाँ अब भी कपड़ों के मुलायम कपड़े को सहला रही थीं — मानो अभी भी तय कर रही हों कि इन्हें रखना चाहिए या नहीं।
राजवीर उसकी ओर देखते हुए सहजता से बोला —
"मैं इन सबको पैकिंग के लिए बोल देता हूँ।"
काव्या ने उसकी ओर देखकर ‘हूँ’ में सिर हिलाया।
उसकी आँखों में हल्की-सी थकान थी, जैसे पूरे दिन का बोझ महसूस हो रहा हो, लेकिन साथ ही एक अनकही-सी राहत भी थी —
राहत इस बात की कि अब सब कुछ संभल रहा है, और शायद… राजवीर के साथ यह सफ़र उतना मुश्किल नहीं होगा, जितना उसने सोचा था।
राजवीर ने तुरंत एक अटेंडेंट को बुलाया और सख्त लेकिन शांत स्वर में कहा, "इन कपड़ों को अच्छे से पैक कर दो और कार तक पहुँचा दो।"
इसके बाद वह बिना कुछ कहे काव्या की ओर मुड़ा, उसका हाथ थामते हुए बोला, "चलो, तुम्हें कुछ खास दिखाना है।"
काव्या चुपचाप उसके साथ चल पड़ी। वह उसे महल के सबसे ऊपरी फ्लोर पर लेकर गया। जैसे ही लिफ्ट से बाहर निकले, वहाँ का माहौल बिल्कुल अलग था—शांति से भरा हुआ, जैसे हर दीवार में रॉयल्टी बसी हो। इक्का-दुक्का लोग ही दिख रहे थे, जो अपने-अपने काम में व्यस्त थे।
काव्या ने चारों ओर नजरें दौड़ाईं और धीरे से पूछा, "यहाँ कोई दिखाई क्यों नहीं दे रहा?"
राजवीर मुस्कुराया और बोला, "क्योंकि यहाँ सिर्फ हमारे फैमिली मेंबर्स और कुछ चुनिंदा डिज़ाइनर्स को ही आने की अनुमति है।"
"क्यों?" काव्या ने उत्सुकता से पूछा।
"क्योंकि यह जगह खास है। यहाँ सिर्फ रॉयल वेडिंग्स और फंक्शन्स के लिए ड्रेस डिज़ाइन किए जाते हैं। हर एक सिलाई में परंपरा और हर एक धागे में गरिमा होती है।" राजवीर की आवाज़ में गर्व साफ झलक रहा था।
काव्या की आँखें चमक उठीं। उसने बच्चों जैसी मासूमियत से पूछा, "क्या मैं डिज़ाइनर्स को काम करते हुए देख सकती हूँ?"
राजवीर ने हल्के से सिर हिलाया, "हाँ, बिल्कुल।"
जैसे ही वे अंदर दाखिल हुए, काव्या की आँखें हर कोने को उत्सुकता से देख रही थीं—दीवारों पर सजी हुई पुराने समय की रॉयल वेडिंग्स की तस्वीरें, बड़े-बड़े शेल्व्स में रखे रेशमी और भारी कढ़ाई वाले फैब्रिक्स, और एक कोने में अपने काम में मग्न डिज़ाइनर्स।
उसे देखकर राजवीर के चेहरे पर एक सुकूनभरी मुस्कान आ गई। वह उसके पास आकर धीमे स्वर में बोला, "अब चलिए, आपकी शादी और रिसेप्शन के लिए आउटफिट्स देखने हैं।"
काव्या ने सहमति में सिर हिलाया। दोनों एक प्राइवेट रूम की ओर बढ़े, जहाँ उन्हें अकेले में सारी ड्रेसेस दिखाई जानी थीं।
जैसे ही वे अंदर पहुँचे, कमरे का माहौल ही बदल गया। बड़ी-बड़ी शीशे की अलमारियों में हैंगर पर लटकती रॉयल ड्रेसेस, हर एक ड्रेस जैसे कोई कहानी कह रही हो। बारीक कढ़ाई, रेशमी कपड़े, और पारंपरिक लुक में ढले मॉडर्न डिज़ाइन।
काव्या के मुँह से अनायास ही निकल पड़ा,
"वाह... कितना सुंदर है ये सब! जैसे कोई सपना हो…"
राजवीर ने उसकी ओर देखा और धीमे से मुस्कुराया—शायद पहली बार उसे काव्या की आँखों में सच्ची खुशी नजर आई थी।
राजवीर और काव्या, दोनों अब तक काव्या की शादी के लिए परफेक्ट आउटफिट ढूँढने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन मुश्किल यह थी कि जो ड्रेस काव्या को पसंद आ रही थी, वह राजवीर को कुछ खास नहीं लग रही थी। और जो राजवीर को पसंद आ रही थी, वह काव्या के दिल को नहीं छू रही थी।
कभी काव्या कहती, "ये वाला लहंगा बहुत क्लासी है,"
तो राजवीर सिर हिलाकर जवाब देता, "नहीं, तुम्हारी पर्सनैलिटी से मेल नहीं खा रहा।"
तो कभी राजवीर कोई ब्राइट रेड लहंगा निकालकर कहता, "ये वाला बिल्कुल परफेक्ट है,"
और काव्या उसका चेहरा देखती हुई कहती, "इतना ज़्यादा चमकदार? मैं इसमें खो जाऊंगी!"
इस उलझन में काव्या ने अब तक 10 लहंगे ट्राय कर लिए थे। हर बार नए जोश के साथ उठती, तैयार होती, और फिर मायूसी से वापस आती।
अब वह 10वाँ लहंगा पहनने ट्रायल रूम की ओर जा रही थी। चेहरे पर थकान साफ नजर आ रही थी, लेकिन वह फिर भी मुस्कराने की कोशिश कर रही थी।
उधर, राजवीर अब भी हार मानने को तैयार नहीं था। वह रैक के पास खड़ा, गहरी नजरों से हर ड्रेस को देख रहा था। उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे एक बेज और गोल्डन कलर के लहंगे तक पहुँचीं। उस लहंगे में कुछ खास बात थी—सादगी में शाहीपन, और रंगों में गरिमा।
उसने वह लहंगा निकाला, उसके चारों तरफ घूम-घूमकर हर एम्ब्रॉयडरी को गौर से देखा, और खुद से बुदबुदाया,
"शायद ये… शायद ये वही है जो उसे भी पसंद आए… और मुझे भी।"
उसी वक्त ट्रायल रूम से काव्या बाहर आई। चेहरा थोड़ा फीका पड़ा था। वह राजवीर के पास आई और धीरे से बोली, "राजवीर… ये भी कुछ खास नहीं लगा।"
राजवीर ने मुस्कुराते हुए उसके हाथ में वह बेज-गोल्डन लहंगा दिया और कहा,
"एक आखिरी कोशिश और कर लो… सिर्फ मेरे लिए।"
काव्या ने उसकी आँखों में देखा—थोड़ी सी जिद, और बहुत सारा प्यार। उसने बिना कुछ कहे लहंगे को पकड़ा और ट्रायल रूम की ओर बढ़ गई।
कुछ ही देर बाद, ट्रायल रूम का दरवाज़ा धीरे से खुलता है।
हल्की सी झिझक के साथ काव्या बाहर निकलती है। उसने वही बेज और गोल्डन रंग का लहंगा पहना हुआ है जो राजवीर ने चुना था। उसकी चाल थोड़ी धीमी थी, लेकिन जैसे ही वो लाइट के नीचे आई—पूरा कमरा जैसे थम गया।
लहंगे की सिल्वर-गोल्ड ज़री की कढ़ाई, सॉफ्ट नेट की डबल लेयर, और उस पर पेस्टल शेड की हल्की चमक, सबकुछ एक सपने जैसा लग रहा था। उसका दुपट्टा हल्के से उसके कंधों पर लहरा रहा था, और झुमकों की हल्की खनक उसकी मासूमियत को और उभार रही थी।
राजवीर की आँखें उस पर ही टिक गईं।
वो बस कुछ पल खामोश रहा, फिर धीमे से बोला—
"काव्या... अब मुझे लग रहा है कि मैंने अपनी दुल्हन को देख लिया है।"
काव्या का चेहरा लाल हो गया। उसने हल्के से मुस्कराकर नज़रें झुका लीं।
"तुम्हें सच में पसंद आया?" उसने धीमे से पूछा।
राजवीर दो कदम आगे बढ़ा, और एकदम दिल से बोला,
"इतना कि अब कोई और ड्रेस इससे बेहतर हो ही नहीं सकती।"
तभी राजवीर कुछ कहता है जिसे सुन कर काव्या की आँखें बड़ी बड़ी हो जाती है।
तो आप सब को क्या लगता है क्या कहा होगा राजवीर ने?
जानने के लिए अगला चैप्टर पढ़ते रहिए.......
राजवीर की नज़रें जैसे काव्या पर थम सी गई थीं।
वो एक पल के लिए बिल्कुल खामोश रहा, बस उसे देखता रहा —
उसकी आँखों में उस लहंगे का रंग जैसे काव्या के चेहरे की रौशनी से मिलकर और भी गहरा हो गया था।
फिर उसकी गहरी आवाज़ ने खामोशी को तोड़ा —
"काव्या… अब मुझे लग रहा है कि मैंने अपनी दुल्हन को देख लिया है।"
काव्या का दिल जैसे एक धड़कन के लिए रुक गया।
गालों पर लालिमा दौड़ आई, और होंठों पर एक हल्की, संकोची मुस्कान ठहर गई।
उसने नज़रें झुका लीं, पर आवाज़ में एक मीठी-सी घबराहट के साथ पूछा —
"तुम्हें सच में पसंद आया?"
राजवीर के कदम ठहराव से भरे थे जब वह धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा।
दो कदम की दूरी पाटते हुए उसने सीधा उसकी आँखों में देखा और एकदम दिल से कहा —
"इतना… कि अब कोई और ड्रेस इससे बेहतर हो ही नहीं सकती।"
उसकी आवाज़ में सिर्फ तारीफ़ नहीं थी — उसमें अपनापन, गर्व और एक अटूट यक़ीन झलक रहा था।
काव्या के दिल में उस क्षण एक अजीब-सी हल्की, मगर गहरी गर्माहट उतर आई।
राजवीर ने फिर अपना चेहरा स्टाफ की ओर मोड़ा, पर आवाज़ अब भी गर्व से भरी हुई थी —
"इसी लहंगे को पैक कर दो… ये मेरी रानी के लिए परफेक्ट है।"
स्टाफ ने तुरंत सिर झुकाकर हामी भरी, और राजवीर की नज़र एक बार फिर काव्या पर लौट आई।
उसकी आँखों में जैसे यह घोषणा लिखी थी कि अब तुम मेरी हो… और हमेशा रहोगी।
काव्या की आँखें बड़ी बड़ी हो गई… लेकिन उसकी आंखों में खुशी की चमक देखी जा सकती थी। शायद पहली बार उसे किसी ने इतने अपनापन से “उसकी” कहा था।
कव्या का लहंगा फाइनल होते ही, राजवीर ने स्टाफ से कहा कि उसी के रंग और डिज़ाइन से मेल खाती हुई शेरवानी उसके लिए भी तैयार करवाई जाए। कुछ देर बाद, शाही सुनहरे और गहरे मरून रंग की एक शानदार शेरवानी सामने लाई गई — जिस पर महीन ज़री का काम था, और बटन पर रॉयल क्रेस्ट की नक्काशी।
राजवीर ने उसे हाथ में लिया, कपड़े की नर्मी और कारीगरी को महसूस किया, फिर ट्रायल रूम की तरफ बढ़ गया।
कुछ ही मिनटों बाद, जब वह बाहर आया, तो वह सिर्फ एक दूल्हा नहीं, बल्कि जैसे किसी शाही चित्र से निकलकर आया हुआ राजकुमार लग रहा था।
कव्या की आँखें एक पल के लिए उस पर ठहर गईं।
चेहरे पर अनायास ही एक मुस्कान खिल उठी — वो मुस्कान जिसमें तारीफ़ भी थी, अपनापन भी, और एक मीठी-सी झिझक भी।
राजवीर ने उसकी नज़रें पकड़ लीं और हल्के से मुस्कुराया,
"ऐसे मत देखो, वरना शेरवानी छोड़कर अभी शादी कर लूँगा।"
कव्या हल्के से हँस दी, मगर गालों की लालिमा छिपा न पाई।
शेरवानी को भी फाइनल कर लिया गया। इसके बाद दोनों बाकी तैयारियों में जुट गए —
जूते, पगड़ी, और कव्या के लिए खूबसूरत ज्वेलरी।
राजवीर की पगड़ी पर वही गहरे मरून रंग का मोर पंख लगा था, जो कव्या के लहंगे के दुपट्टे में था।
मॉल के गलियारों में चलते हुए, कव्या का हर चेहरा देखने लायक था।
कभी किसी ज्वेलरी शोरूम के कांच के अंदर झाँककर कहती, "देखो, ये नेकलेस कितना सुंदर है, है न?"
तो कभी किसी शोरूम में सजी कलाकारी की वस्तु उठाकर राजवीर की ओर देखती,
"ये तुम्हारे ऑफिस के केबिन में रखेंगे, अच्छा लगेगा।"
राजवीर बस शांत-सा मुस्कुराता रहता।
उसे कव्या की मासूम खुशी देखना अच्छा लग रहा था —
वो हर छोटी चीज़ में जैसे एक नई दुनिया खोज रही थी।
उसकी चमकती आँखों और खिलखिलाती हँसी के बीच, राजवीर को लगा कि शादी के असली मायने बस यही हैं —
किसी के साथ उन लम्हों को जीना, जो ज़िंदगी को रॉयल से ज़्यादा खूबसूरत बना देते हैं।
शाम ढलते-ढलते, उनके बैग गिफ्ट्स और ज़रूरी सामान से भर चुके थे,
और दिल उन अनकहे एहसासों से — जिनकी गूंज शायद आने वाले पलों में और गहरी होने वाली थी।
शॉपिंग पूरी होने के बाद...
राजवीर गाड़ी तक कव्या का सामान लेकर जाता है और उसे कार में बैठाता है। रास्ते भर दोनों चुपचाप होते हैं लेकिन उस खामोशी में भी एक सुकून होता है।
सिसोदिया निवास के बाहर —
राजवीर गाड़ी रोकता है।
कव्या मुस्कुराकर कहती है, “आज का दिन बहुत अच्छा था... थैंक यू।”
राजवीर उसकी तरफ देखकर हल्के से सिर हिलाता है, “बस अब अगला दिन और खास होने वाला है।”
कव्या गाड़ी से उतरती है और दरवाज़े की तरफ बढ़ती है। राजवीर तब तक वहीं खड़ा रहता है जब तक वो अंदर नहीं चली जाती।
फिर वह एक गहरी साँस लेकर गाड़ी मोड़ता है और अपने घर — राठौड़ निवास — की ओर निकल जाता है।
दो दिन बाद —
सुबहे की पहली किरण के साथ ही दो रॉयल महलों में हलचल शुरू हो चुकी थी।
आज सगाई थी… राजवीर सिंह राठौड़ और काव्या सिंह सिसोदिया की।
दोनों ही राजघरानों के लोग सुबह से तैयारी में व्यस्त थे। साज-सज्जा, मेहमानों की लिस्ट, सिक्योरिटी से लेकर फोटोग्राफर तक — हर चीज़ को लेकर एक अलग रॉयल अनुशासन और परफेक्शन देखा जा सकता था।
📍लोकेशन – Hotel Aryavrat Palace, Udaipur
जहां ये सगाई होनी थी, वो होटल खुद राठौड़ फैमिली की प्रॉपर्टी के अंतर्गत आता था। इसलिए बुकिंग, सजावट और सेक्योरिटी में कोई परेशानी नहीं हुई।
होटल का हॉल एक सपने की तरह सजा हुआ था — छत से लटकते कांच के झूमर, सुनहरे पर्दे, ताजमहल जैसी नक्काशीदार मेज़ और कुर्सियां, और सफेद-गुलाब की खुशबू से महकता माहौल।
चूंकि सबकुछ बेहद जल्दी हुआ था, इसलिए दूर के रिश्तेदारों को reception में बुलाने का फैसला लिया गया था। सगाई में सिर्फ नज़दीकी और खास मेहमानों को बुलाया गया — जैसे कि राजघरानों के करीबी दोस्त, शहर के कलेक्टर, कुछ बॉलिवुड हस्तियां और बिज़नेस वर्ल्ड के नामचीन लोग।
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शाम 5 बजे,
काव्या के घर में:
काव्या अपने कमरे में तैयार हो रही थी। वही लाल और गोल्डन लहंगा जो राजवीर ने चुना था — उसे पहनते हुए उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी।
आज वो nervous भी थी, लेकिन उस nervousness में एक अलग-सी खुशी भी थी।
"क्या मैं सच में आज उनकी होने जा रही हूँ?" उसने आइने में खुद से पूछा।
तभी उसे नीचे से बुलावा आ जाता है होटल के लिए निकलने के लिए। सभी बड़े पहले ही होटल चले गए थे सारी व्यवस्था देखने के लिए। घर में सिर्फ काव्या, उसकी मम्मी पद्मिनी जी ही थी। काव्या के आते ही वो दोनों भी निकल पड़ते है।
राजवीर के घर में:
राजवीर mirror के सामने खड़ा था। हाथ में sherwani के buttons बंद करते हुए उसने खुद से कहा—
"ये सगाई बस एक रस्म नहीं है, ये मेरे दिल की मंज़िल है। आज से काव्या सिर्फ नाम से नहीं, दिल से मेरी हो जाएगी।"
राजवीर तैयार हो कर नीचे आता है। तो साहिल उसका नीचे इंतेज़ार कर रहा था। उसके आते ही दोनों होटल के लिए निकल जाते हैं।
सगाई से आधा घंटा पहले, होटल के गेट पर हलचल बढ़ गई थी। बाहर राठौड़ फैमिली की गाड़ियों का काफिला पहुंच चुका था।
सबसे आगे एक रॉयल ब्लैक विंटेज कार, जिसके बोनट पर राठौड़ परिवार का चिन्ह बना था। उसी कार से उतरा — राजवीर सिंह राठौड़।
वाइट ऑफ-व्हाइट गोल्डन एम्ब्रॉयडरी वाली शेरवानी, रिच टिशू का दुपट्टा कंधे पर, और पैरों में सिल्क जूतियां —
वो किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था।
उसके साथ उसके पिता महाराज विजय जी, माँ आरती जी और दादा-दादी (समर और वृंदा जी) भी थे — सबके चेहरे पर गौरव और शांति।
जैसे ही राजवीर ने होटल के प्रांगण में कदम रखा —
DJ ने बैकग्राउंड में शुद्ध क्लासिकल और मॉडर्न बीट्स का मिक्स बजाया —
🎵 “Veer Rajputana” instrumental with a hint of beats and shankh sound 🎵
राजवीर सीधा और शांत चाल में हॉल की ओर बढ़ा, चारों तरफ कैमरों की फ्लैश और तालियों की हल्की गूंज थी, लेकिन उसकी नजरें कहीं और थीं।
वो मंच की तरफ गया, और चुपचाप खड़ा हो गया।
सब उसके तेज, आत्मविश्वासी चेहरे को देख रहे थे।
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भीड़ में किसी महिला ने फुसफुसाया:
“यही है राठौड़ खानदान का वारिस?”
“हां, और लग भी तो रहा है जैसे किसी ऐतिहासिक महाकाव्य से उतरा हो।”
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फिर मंच पर आकर राजवीर ने एक बार नजरें ऊपर उठाईं — और धीमे से मुस्कुरा दिया।
उसी वक्त उसके मन में एक ही ख्याल आया:
"अब बस उसका इंतज़ार है..."
राजवीर मंच पर खड़ा था, पर उसकी निगाहें दरवाज़े पर टिकी थीं।
अचानक पूरा हॉल हल्का सा शांत हो गया। लाइट्स धीमी हुईं, और पीछे एक सॉफ्ट रॉयल धुन बजने लगी।
🎵 Santoor + Flute fusion 🎵
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दरवाज़े पर गुलाब की पंखुड़ियों से सजा एक पर्दा खिसकाया गया,
और उसके पीछे से दिखाई दी —
काव्या।
वो इतनी सुंदर लग रही थी कि कुछ पल के लिए हर चीज़ जैसे थम गई।
लाल और सुनहरे लहंगे में सजी,
मांग टीका और पासा उसके माथे को शाही रूप दे रहे थे,
और उसकी चाल — धीमी, शांत, और शालीन।
उसके पीछे दो छोटी बहनें थीं, जो गुलाब की पंखुड़ियां बिखेर रही थीं। दाएं-बाएं मम्मा और दादी थीं, जो उसके घूंघट और लहंगे को संभाल रही थीं।
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काव्या की आंखें झुकी हुई थीं, पर चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी —
जैसे वो इस पल को पूरी आत्मा से महसूस कर रही हो।
राजवीर की नजरें बस उसी पर थीं।
उसे देखकर उसके चेहरे पर जो मुस्कान आई, वो कैमरे में नहीं, बस दिल में कैद की जा सकती थी।
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DJ softly announces:
“प्रवेश कर रही हैं, सिसोदिया राजघराने की लाडली,
महाराज रुद्रप्रताप सिंह और महारानी पद्मिनी की बेटी,
राठौड़ परिवार की होने वाली बहू — काव्या सिंह सिसोदिया।”
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जब काव्या मंच पर पहुंची,
राजवीर ने अपने कदम आगे बढ़ाए और उसके सामने हाथ बढ़ाया।
काव्या ने हल्का सा मुस्कराते हुए उसका हाथ थामा।
तालियों की गूंज, कैमरों की फ्लैश, और परिवार वालों की नम आंखों ने उस पल को अमर बना दिया।
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सगाई की रस्म शुरू होती है। जैसे ही राजवीर काव्या को अंगूठी पहनाने जा रहा था। तभी एक तेज आवाज आती है, " रुको ये सगाई नहीं हो सकती।"
ये सुन सभी चौक कर दरवाजे के तरफ देखते है।
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तो आप सब को क्या लगता है
किसने रोका सगाई को ऐसे बीच में?
क्या कोई नई मुसीबत आने वाली है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....
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tq रितिका for your comment.
राजवीर ने जैसे ही नाजुक हाथ से काव्या का हाथ थामा, दोनों की नजरें अनायास एक-दूसरे से टकरा गईं। उस एक पल में, जैसे सारी दुनिया रुक सी गई हो।
सैकड़ों कैमरों की फ्लैश की चमक, जो अभी तक चारों तरफ जगमगा रही थी, अचानक फीकी पड़ गई। मेहमानों की तालियों की गूंज, शंखों की घनघनाहट, और भव्य हवेली की हलचल सब कहीं दूर चली गई।
उस पल का आलम कुछ ऐसा था, जैसे वक्त ने अपने पंख फैलाकर उन्हें अपने भीतर समेट लिया हो। ना कोई आवाज़ सुनाई दे रही थी, ना ही कोई हलचल महसूस हो रही थी।
बस एक गहरी खामोशी थी — एक ऐसी खामोशी जिसमें सिर्फ़ उनके दिलों की धड़कनें स्पष्ट सुनाई दे रही थीं। एक-दूसरे के करीब होते हुए, दोनों के दिल ऐसे धड़क रहे थे जैसे वे दुनिया के सारे रहस्यों को समझ गए हों।
वो हाथ जो मिले थे, वो नज़रें जो मिली थीं, वे पल सिर्फ़ उनके थे — एक अनमोल, पवित्र एहसास, जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता था।
बैकग्राउंड में हल्की-हल्की रूमानी धुन बज रही थी — वायलिन और फ्लूट का ऐसा मेल जैसे कोई दिल की अनकही बातों को छू रहा हो। हर सुर, हर ताल उनके जज़्बातों की कहानी बयाँ कर रहा था।
काव्या की पलकें धीरे-धीरे झुकी हुई थीं, मानो अपनी सारी उलझनों और भावनाओं को संजो रही हो। लेकिन जैसे-जैसे धुन की मिठास बढ़ी, उसकी झुकी पलकें धीरे-धीरे उठने लगीं।
फिर, एक नाज़ुक पल में उसकी नजरें सीधे राजवीर की आंखों से टकराईं।
राजवीर की आंखों में वो गहरा सुकून और संतोष था — जैसे बरसों की तड़प और इंतज़ार अब पूरी हो गया हो, और सामने खड़ी काव्या ही उसका मकसद हो।
काव्या की आंखों में थोड़ी झिझक जरूर थी, पर उस झिझक के पीछे एक कोमल मुस्कान छुपी हुई थी, जो जैसे कह रही हो — “हाँ, मैं भी इस पल के लिए तैयार हूँ।”
उस पल हवा में वो नर्मी थी, जो सिर्फ़ दो दिलों के बीच महसूस की जा सकती है — एक अनकहा वादा, एक छुपा हुआ अहसास, और एक नई शुरुआत की उम्मीद।
कुछ सेकंडों तक, समय मानो थम सा गया था। दोनों एक-दूसरे की आंखों में खोए हुए थे। कोई शब्द नहीं, कोई आवाज़ नहीं, बस एक गहरी चुप्पी थी जो उनके बीच की हर भावना को बयाँ कर रही थी।
ना कोई हिला, ना कोई सांस लेने की जल्दी थी। बस आंखों की जुबां ने वो सब कुछ कह दिया, जो दिल की गहराइयों में छिपा था —
“मैं अब तुम्हारा हूँ।”
काव्या की निगाहों में भी वही आवाज़ गूँज रही थी —
“और मैं हमेशा तुम्हारी रहूंगी।”
उन शब्दों के बिना, उनकी नज़रों ने एक-दूसरे से वो वादा कर लिया था, जो ज़ुबां पर कभी नहीं आ पाता। वो पल, एक नयी शुरुआत की शुरुआत था — एक ऐसा वादा जो दिलों को जोड़ता है और जीवन को रंगों से भर देता है।
कैमरे क्लिक कर रहे थे, लोग ताली बजा रहे थे,
लेकिन उस एक पल में सिर्फ उनका “हम” बनना दर्ज हो रहा था।
राजवीर ने हल्की सी मुस्कान दी।
काव्या ने उसी मुस्कान में जवाब दिया — बिना बोले, पर सब कह दिया। दोनों होश में आते है और सेंटर में जा कर खड़े हो जाते है। काव्या चारों तरफ अपनी नजरे तिरछी कर के देखती है।
स्टेज को गुलाब, रजनीगंधा और मोगरे के फूलों से सजाया गया है।
बैकड्रॉप पर क्रीम और गोल्डन पर्दे झूल रहे हैं, जिसके बीच में लिखा है —
"Rajveer ❤️ Kavya - Forever"
बगल में परिवार के सदस्य खड़े हैं:
राजवीर के दादा-दादी, माता-पिता
काव्या के माता-पिता, दादा, दादी और भाई
और कुछ खास रिश्तेदार
हॉल में धीमी रोशनी और बीच में स्टेज पर हल्का स्पॉटलाइट।
🎶 बैकग्राउंड म्यूज़िक:
एक भावुक पर रॉयल धुन बज रही है – जैसे Santoor और Violin का मेल हो, किसी रथ यात्रा की सजीव ध्वनि सी।
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पंडितजी ने आस्था भरे स्वर में घोषणा की,
“अब अंगूठी पहनाने का शुभ समय आया है। वर और वधु एक-दूसरे को अंगूठी पहनाएं।”
राजवीर ने धीरे-धीरे काव्या की ओर कदम बढ़ाए। उसकी नज़रें काव्या के चेहरे पर टिक गईं, जहाँ एक हल्की सी नर्म मुस्कान खिल रही थी — मानो उसने इस पल का इंतजार सदियों से किया हो।
काव्या का दिल तेज़ी से धड़क रहा था, हर धड़कन में एक मीठी-सी तड़प समाई हुई थी। राजवीर उसके करीब आया, उसकी नाज़ुक हथेलियों को अपने स्नेहिल हाथों में थाम लिया।
हॉल की सारी रोशनी, सैकड़ों मेहमानों की निगाहें, पंडितजी की मंत्रोच्चारण — सब कुछ उस पल के इर्द-गिर्द घूम रहा था।
पर तभी... अचानक!
हॉल में किसी ने जोर से आवाज़ लगाई, जो पूरी जगह गूँज उठी—
“रुक जाओ! ये सगाई नहीं हो सकती!”
एक ठहराव सा छा गया। हर चेहरा घबरा उठा। राजवीर और काव्या के हाथों से अंगूठी गिरने को थी। सबकी निगाहें उस आवाज़ की ओर मुड़ीं।
हॉल के दरवाज़े की ओर से अचानक तेज़ कदमों की आहट सुनाई दी। एक लड़की दौड़ती हुई अंदर आई। उसकी साड़ी पर हल्का सा धूल-धूसरित था, माथे पर पसीने की बूंदें टपक रही थीं, और चेहरे पर एक गहरी बेचैनी और अर्जेंसी साफ झलक रही थी।
वह बिना रुके सीधे हॉल के बीचों-बीच पहुंची और घुटनों के बल झुक गई। उसकी साँसें इतनी भारी और तेज़ थीं, मानो वह लंबी दौड़ से आ रही हो। दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि हर कोई उसकी बेचैनी महसूस कर सकता था।
राजवीर की नज़रें उस लड़की पर पड़ीं तो उनका गुस्सा आग की तरह भड़क उठा। उसकी आंखें लालिमा लिए हुई थीं, जैसे कोई ज्वाला फूट रही हो। वह लड़की को घूरता रहा, उसकी निगाहें इतनी तीखी थीं कि अगर नज़रों से कोई मर सकता, तो वह लड़की शायद अब ज़िंदा न रहती।
राजवीर के चेहरे की सख्ती, उसके कलाई की नसों में उभरा तनाव — हर चीज़ साफ बता रही थी कि उसे इस अचानक और बिना बताए बीच में आ जाने वाली लड़की से बिलकुल भी खुशी नहीं थी। लेकिन साथ ही उसकी दिल की गहराई में एक उलझन भी थी, जो उसने ज़ाहिर नहीं होने दी।
उधर काव्या, उसका चेहरा हैरानी से भर जाता है। वो लड़की जब अपना चेहरा उठाती है…
काव्या अचानक मुस्कुराती है और कहती है:
“अरे अंजलि... तुम?”
और बिना एक पल रुके,
काव्या अपनी भारी कलीरे वाली ड्रेस संभालते हुए भागकर उसके पास जाती है,
उसे गले से लगा लेती है। जिस से राठौड़ परिवार के चेहरे पर चौंक का भाव साफ नजर आता है।
वहीं, सिसोदिया परिवार के चेहरे पर एक शांत मुस्कान थी।
राजमाता विमला देवी, धीरे से अपने पति से कहती हैं:
"देखा? हम जानते थे ये लड़की जरूर आएगी।"
रुद्रप्रताप सिंह (काव्या के पिता) बस सिर हिलाकर मुस्कुराते हैं।
पद्मिनी देवी (काव्या की माँ) —
"अब माहौल थोड़ा नरम होगा… अच्छा किया अंजलि ने आकर।"
अंजलि, अभी भी सांसें संभालते हुए (drama queen अंदाज़ में):
“कव्या की बच्ची! तूने मुझे अपनी सगाई के बारे में एक बार भी नहीं बताया?”
काव्या, शरारती मुस्कान के साथ:
“Sorry यार! पर सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि टाइम ही नहीं मिला।
और तू तो इतनी दूर थी… मैंने सोचा इतनी जल्दी कैसे आ पाएगी तू।"
अंजलि (जैसे नखरे करती हुई):
“जैसे ही भाई सा का message मिला, मैं first flight लेकर भागी आई हूँ!
तेरे बिना इस सगाई का हिस्सा नहीं बनती, समझी!”
काव्या:
“मुझे पता था तू आएगी… तू हमेशा आती है।”
दोनों मुस्कुराकर एक-दूसरे की आँखों में देखती हैं,
और पूरे हॉल में थोड़ी सी हलचल के बाद अब माहौल फिर से हल्का हो जाता है।
"तो ये है अंजलि शेखावत..."
शेखावत राजघराने की इकलौती बेटी।
बेशक आज वो सांसें उखड़ी हुई लेकर हॉल के बीच खड़ी है,
पर उसकी मौजूदगी ने जैसे माहौल में एक अलग सी गरिमा भर दी हो।
शेखावत परिवार, राजस्थान के प्रतिष्ठित राजघरानों में से एक,
जिनकी पहचान उनकी कड़ी परंपराओं, विशाल हवेलियों और आधुनिक सोच से होती है। अंजलि बचपन से ही तेज, आत्मनिर्भर और स्पष्टवादी रही है। उसने स्कूलिंग उदयपुर में की, पर Higher Education के लिए USA चली गई थी — वहाँ वो Fashion Merchandising और Luxury Brand Management पढ़ रही है।
काव्या और अंजलि की दोस्ती राजकुमारियों से बढ़कर बहनों जैसी थी। दोनों ने साथ में घुड़सवारी सीखी थी, शाम के समय महलों की छत पर बैठकर सपने देखे थे, और जब कोई दुख आता, तो एक-दूसरे के कंधे पर सिर रखकर चुपचाप आंसू बहाए थे। अलगाव सिर्फ भौगोलिक हुआ था, दिलों का नहीं।
“चाहे अमेरिका हो या उदयगढ़,
हमारी दोस्ती का रिश्ता कभी दूरी से नहीं डिगा।”
— ये बात काव्या ने कई बार अपनी माँ को कही थी।
पढ़ाई के बावजूद अंजलि रोज़ रात काव्या को वीडियो कॉल करती थी। तीन दिन पहले जब काव्या की शादी की बात पक्की हुई, तब हालात कुछ ऐसे बने कि उसे बताने का मौका ही नहीं मिला।
अभिराज को पता था काव्या को अंजली के बिना अच्छा नहीं लगेगा। इस लिए उसने शादी तय होते ही अंजली को मैसेज में सब बता दिया और उसके आने का सारे इंतेज़ाम भी कर दिया। जिस से अंजली को कोई परेशानी न हो।
अब चलते है कहानी में वापस....
“तेरे बिना तो मेरी सगाई अधूरी लग रही थी, पगली…” — काव्या मुस्कराकर कहती है।
“अब मैं आ गई हूँ, तो चल... तेरी रिंग पहनने की तस्वीरें परफेक्ट होनी चाहिए!” — अंजलि हँसते हुए कहती है।
तभी अंजली कुछ ऐसा कहती है, जिसे सुन कर सभी हंसने लगते है।
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तो आप सब को क्या लगता है
क्या कहा होगा अंजली ने जिसे सुन कर सभी हंसने लगे?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....
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“अब मैं आ गई हूँ, तो चल... तेरी रिंग पहनने की तस्वीरें परफेक्ट होनी चाहिए!” — अंजलि हँसते हुए कहती है।
हॉल अब फिर से सजीव हो चुका था।
शाही सजावट की चमक के बीच सबकी निगाहें अभी भी काव्या, अंजलि और राजवीर पर थीं।
हल्के से suspense के बाद, अब माहौल में फिर से मुस्कानें लौट आई थीं।
काव्या ने मुस्कुराते हुए अंजलि को अपने बाहों से धीरे से अलग किया और हँसते हुए बोली,
“तू सच में झटका देकर आई है...”
अंजलि, अपनी हमेशा की तरह नाटकीय अंदाज़ में, आंखें चौड़ी करके बोली,
“अच्छा अच्छा! चल, तुझे माफ किया।”
फिर उसने शरारती मुस्कान के साथ कहा,
“अब जा... जिजू मुझे ही खा जाने वाली नज़रों से घूर रहे हैं।”
वो मुस्कुराते हुए मंच की तरफ इशारा करती हुई बोली,
“अगर मैंने तुझे कुछ और देर यहीं रोक लिया होता, तो ये आदमी अपनी नज़रों से ही मेरा क़त्ल कर देते।”
राजवीर, जो अभी तक गंभीर और सख्त चेहरा बनाए खड़ा था, अंजलि की बात सुनते ही एक हल्की मुस्कान अपने होठों पर लिए बिना नहीं रह पाया। उसकी आंखों में झलकती उस मुस्कान में थोड़ी नरमी और अपनापन था।
राठौड़ परिवार के बाकी सदस्य भी उस माहौल में फूटती हल्की-सी मुस्कुराहट को महसूस कर सके। सबके चेहरे पर अचानक एक छोटी सी खुशी और आराम की भावना छा गई।
जो कुछ क्षण पहले संदेह और तनाव में डूबे थे, वह अब धीरे-धीरे एक सहज और हल्के-मिजाज माहौल में बदलने लगा था।
सिसोदिया परिवार के चेहरे पर मुस्कान थी, मानो उन्हें अंजलि की इस नाटकीय और अनपेक्षित एंट्री की पूरी उम्मीद थी। उनकी आँखों में एक तरह की खुशी और इंतजार की चमक थी, जो माहौल को और भी जीवंत बना रही थी।
स्टेज के पास खड़े फोटोग्राफर की नजरें भी इस पल पर टिक गईं, जैसे उसे एकदम परफेक्ट कैंडिडेट मोमेंट मिल गया हो। उसने झट से कैमरे की क्लिक ध्वनि के साथ तस्वीर खींच ली — काव्या की खिलखिलाती हंसी, अंजलि का नाटकीय अंदाज, और राजवीर की वह चुप्पी भरी, पर मुस्कुराती हुई मुस्कान।
काव्या ने अपनी भारी ज्वेलरी से सजे हुए हाथों को अपने खूबसूरत पिंक-ब्लश रंग के लहंगे पर रखा और मुस्कुराते हुए कहा,
“हां चल।”
अंजलि भी हँसते हुए जवाब दी,
“और मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से सगाई की अंगूठी तलवार में बदल जाए।”
काव्या खिलखिलाकर हँसी, और फिर वापस स्टेज की ओर बढ़ गई।
जैसे ही वह मंच पर दोबारा चढ़ी, राजवीर की निगाहें अब उस पर टिकीं थीं। लेकिन इस बार उनकी आँखों में कठोरता नहीं थी, बल्कि एक सॉफ्ट, अड्मायरिंग एक्सप्रेशन था — जो उसके लिए छुपे हुए प्रेम और सम्मान को बयान कर रहा था।
राजवीर, जो सामान्यतः अपनी शांत और सधे हुए स्वभाव के लिए जाना जाता था, आज उसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी — एक गहरी उम्मीद और प्यार की झलक।
धीरे-धीरे, उसने अपनी जेब से एक छोटे से रॉयल ब्लू बॉक्स को निकाला। जैसे ही उसने उसे खोला, अंदर चमकती एक सोलिटेयर डायमंड रिंग नजर आई, जिसके बीच में हल्के गुलाबी रंग का एक नाजुक स्टोन जड़ा हुआ था — बिल्कुल काव्या की नाज़ुकता और सुंदरता की तरह।
राजवीर ने बड़ी नज़ाकत से काव्या की उंगली को अपने हाथों में थामा। काव्या की उंगलियाँ थोड़ी सी काँप रही थीं, उसकी धड़कनें तेज हो चली थीं।
धीरे-धीरे मुस्कुराते हुए, राजवीर ने बहुत ही कोमल स्वर में कहा,
“अब से हर मोड़ पर तुम्हारा हाथ थामूंगा… ठीक ऐसे ही।”
फिर उसने वह रिंग उसकी उंगली में पहना दी।
हॉल में एकाएक तालियों की गड़गड़ाहट गूंजी, कैमरों के फ्लैश चमकने लगे, और पूरे माहौल में एक जोरदार “Awww...” की आवाज़ फैल गई।
हर किसी के चेहरे पर प्यार और खुशी की झलक थी, और वह पल सदियों तक याद रहने वाला था।
अब काव्या की बारी थी। दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं, पर उसने एक हल्की सी झिझक के साथ अपनी अंगूठी का बॉक्स खोला। उसकी आँखों में उस पल की खासियत और नाज़ुकता झलक रही थी।
रिंग कुछ अलग थी — यह बेहद क्लासिक थी, लेकिन साथ ही मर्दाना अंदाज़ में डिज़ाइन की गई थी। रिंग के अंदर बड़े ही खूबसूरती से राजवीर के नाम का आर (R) अक्षर उकेरा गया था, जैसे यह उसकी पहचान और प्यार दोनों का प्रतीक हो।
काव्या ने धीरे-धीरे राजवीर की उंगली थामी। उसकी नज़रें उसकी आँखों से मिलते ही एक प्यार भरे एहसास से भर गईं।
राजवीर ने झुककर बेहद नर्मी से कहा,
“अब ये उंगली सिर्फ तुम्हारी अमानत है…”
काव्या ने एक हल्की मुस्कान के साथ, अपने दिल की पूरी सच्चाई के साथ, धीरे से वह रिंग उसकी उंगली में पहना दी।
वो पल कुछ ऐसा था, जैसे दोनों की दुनिया सिर्फ उन्हीं दो हाथों और उन दोनों रिंगों के बीच सिमट आई हो — एक अनमोल वादा, जो हमेशा के लिए जुड़ा था।
आरती देवी (राजवीर की माँ) की आंखें भर आई है। महारानी पद्मिनी (काव्या की माँ) धीरे से मुस्कुरा कर हाथ जोड़ती हैं। दादीसां और दादासां गर्व से देख रहे हैं, भाभी और बहनें एक-दूजे को कोहनी मारकर मुस्कुरा रहे थे।
DJ ने अचानक म्यूज़िक बदल दिया — अब बज रही थी एक सॉफ्ट, सुकून देने वाली फ्लूट की धुन, जो गुनगुना रही थी,
🎶 “Tera ban jaunga...” — जैसे कोई दिल की अनकही बातों को हवा में बिखेर रहा हो।
राजवीर और काव्या की नजरें एक-दूसरे से टकराईं। उनकी आंखों में वो मीठी नर्माहट थी, जो हर रिश्ते की शुरुआत में होती है। धीरे-धीरे, दोनों ने अपने सिर झुका लिए, मानो एक दूसरे के लिए अपनी सारी भावनाएं बोल रही हों।
ठीक उसी खूबसूरत पल में, एक फोटोग्राफर ने कैमरे का शटर दबा दिया — यह था “The Perfect Engagement Shot”। एक ऐसा पल जो सदियों तक याद रखा जाएगा।
स्टेज के बगल में, एक खास "Engagement Photo Corner" तैयार किया गया था, जो पूरी तरह से रॉयल थीम में सजाया गया था।
बैकड्रॉप पर बड़े सुनहरे अक्षरों में लिखा था — “R & K Forever”।
उस जगह को गुलाब, ऑर्किड के फूलों और जलती हुई कैंडल्स से सजाया गया था, जो उस माहौल को और भी जादुई बना रहे थे। वहां एक गोल्डन झूला था, उसके पास एक भव्य रजवाड़ी कुर्सी रखी हुई थी, और पास में ही एक विंटेज घोड़ा-कार्ट का सेटअप भी था — जैसे किसी परियों की कहानी का हिस्सा हो।
राजवीर और काव्या उस खूबसूरत जगह की ओर बढ़े, जहां वे अपनी नई ज़िंदगी के लिए एक साथ तस्वीरें खिंचवाने जा रहे थे। यह पल उनके प्यार और नए सफर की शुरुआत का प्रतीक था।
राजवीर ने धीरे से काव्या का हाथ थामा और उसे झूले की तरफ ले गया।
काव्या झूले पर बैठी — और राजवीर उसके पास बैठकर हल्के से उसकी ओर झुका।
कैमरे ने फोटो क्लिक किया। ऐसे ही कुछ और फोटो खींचे गए।
किसी में राजवीर और काव्या दोनों एक-दूसरे की आंखों में देख रहे थे। तो किसी में राजवीर ने अपना माथा काव्या के माथे से सटा दिया। ऐसे ही बाकी सब भी काव्या और राजवीर के साथ फोटो खिंचवाए।
तभी लाइट्स धीमी कर दी जाती हैं। पूरे हॉल में सिर्फ डांस फ्लोर पर spotlight। फ्लोर पर गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखरी हुई हैं। चारों तरफ fairy lights झिलमिला रही हैं।
साहिल ने माइक थामे गर्व से कहा,
“अब पेश है वो पल जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार था —
राजवीर सिंह राठौड़ और काव्या सिसोदिया का पहला डांस।”
हॉल की रोशनी थोड़ी धीमी हो गई, और माहौल एकदम रोमांटिक हो गया।
राजवीर ने धीमे-धीमे काव्या की ओर कदम बढ़ाए। अपनी शाही शख्सियत के साथ, वह झुका और बडे़ ही शालीन अंदाज़ में अपना हाथ आगे बढ़ाया, जैसे किसी राजकुमार की गरिमा में कोई रानी को आमंत्रित करता हो।
“Shall we, Miss Sisodia?” उसकी आवाज़ में एक मिठास और आदर था, जो सीधे काव्या के दिल को छू गया।
काव्या ने मुस्कुराते हुए उसकी हथेली थाम ली, उसकी नज़रों में चमक थी और चेहरे पर एक प्यारी सी चमक —
“With pleasure, Mr. Rathore.”
दोनों ने एक-दूसरे को देखा, और फिर संगीत की मधुर लय में कदम मिलाते हुए वह पहला डांस शुरू हुआ — जैसे कोई जादू हो रहा हो।
दोनों हॉल के बीचों बीच आ जाते है। सॉन्ग बजता है....
🎶 "Kehte hain..... Khuda ne iss jahaan mein Sabhi ke liye.... kisi na kisi ko hai banaaya.... Har kisi ke liye" 🎶
इस पर राजवीर आसमान को दिखा कर कुछ ऐसर करते हुए काव्या का हाथ थाम लेता है।
🎶 "Tera milna hai uss rab ka ishaara.... Maano mujhko banaya tere jaise hi kisi ke liye...." 🎶
इस पर काव्या खुद को इशारा कर राजवीर का हो जाने का इशारा करती है।
🎶 "Kuch toh hai tujhse raabta… Kuch toh hai tujhse raabta…" 🎶
राजवीर और काव्या दोनों एक-दूसरे के करीब खड़े होकर धीरे-धीरे साइड स्टेप करते हैं। काव्या की ड्रेस घूमती है, राजवीर की आँखें सिर्फ उसी पर टिकी हैं।
🎶 "Kaise hum jaane, hume kya pata…" 🎶
राजवीर उसे हल्के से अपनी ओर खींचता है, जिस से काव्या की पीठ उसके सीने से लगती है। दोनों के चेहरों पर हल्की सी मुस्कान और आँखें बंद।
🎶 "Kuch toh hai tujhse raabta…" 🎶
एक छोटा सा ट्वर्ल — काव्या घूमती है, बाल उड़ते हैं, लाइट्स उस पर पड़ती हैं, और राजवीर उसे पकड़ लेता है जैसे वो पूरी दुनिया की सबसे कीमती चीज़ हो।
नीचे बैठे मेहमान ताली बजा रहे हैं। कैमरे लगातार फ्लैश कर रहे हैं। उनके माता-पिता एक-दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुरा रहे हैं।
गाना धीमा हो जाता है। तभी कुछ होता है जिस से काव्या सिहर जाती है।
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तो आप सब को क्या लगता है
ऐसा क्या हुआ जिस से काव्या सिहर गई?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....
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नीचे बैठे मेहमान ताली बजा रहे हैं। कैमरे लगातार फ्लैश कर रहे हैं। उनके माता-पिता एक-दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुरा रहे हैं।
गाना धीमा हो जाता है।
राजवीर काव्या की आँखों में देखता है —
धीरे से उसके कान में कहता है:
“आज आप बेहद खूबसूरत दिख रही है। इतना की आप पर से नज़र हटाने का दिल नहीं कर रहा…”
ये सुन काव्या शर्मा जाती है। जिसे देख राजवीर अंधेरा का फायदा उठा कर उस के कानों के पीछे किस कर देता है। जिस से काव्या सिहर जाती है।
फिर दोनों मुस्कुराते हुए, एक-दूसरे का हाथ थामे, झुक कर धन्यवाद करते हैं। सारा हॉल तालियों से गूंज उठता है।
उसके बाद सभी को डिनर के लिए डाइनिंग हॉल में जाने के लिए बोला जाता है। एक एक कर सभी डाइनिंग हॉल की तरफ बढ़ जाते हैं।
डाइनिंग हॉल,
हॉल के बीचों बीच एक बड़ी सी गोल्डन झूमर लगा हुआ था। लंबे टेबल्स पर क्रिस्टल वेस, गुलाब की सजावट, और silver cutlery सजे हुए थे। बैकग्राउंड में सॉफ्ट रोमांटिक म्यूजिक बज रहे थे। जो माहौल को रोमांटिक बना रहा था।
सभी बड़े एक ग्रुप कर बैठते हैं। तो सभी यांग जनरेशन एक ग्रुप में बैठते है। राजवीर और काव्या को पास बैठा दिया जाता है।
राजवीर धीरे से काव्या की प्लेट में उसकी पसंद की चीज़ें परोसता है। ये देख काव्या मुस्कुरा देती है।
तभी अंजली बोलती है, "शादी के बाद भी इतना ही ख्याल रखेंगे मेरे दोस्त का?"
काव्या की बात सुन राजवीर मुस्कुराते हुए बोलता है, "Shaadi ke baad तो और भी ज़्यादा… क्योंकि तब ये सिर्फ मेरी नहीं, बल्कि मेरी ज़िम्मेदारी बन जाएंगी।"
ये सुन सभी मुस्कुरा देते है। काव्या भी राजवीर की बात सुन कर नजरे नीचे पर मुस्कुराने लगती है। उसके गाल शर्म से लाल हो गए थे। जिन्हें वो छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। पर ये सब राजवीर के आखों से छिप नहीं पाई।
ऐसे ही सभी का खाना खत्म होता है। उसके बाद सभी अपने अपने कमरे में वापस चले जाते है।
राजवीर का कमरा,
सगाई की रस्में खत्म हो चुकी हैं।
होटल में हलचल कम हो गई है।
राजवीर धीरे-धीरे अपने कमरे में आता है, शेरवानी के बटन खोलते हुए, एक गहरी सांस लेकर बेड पर बैठता है।
अपनी फोन में से काव्या की एक तस्वीर को देखता है — जिसे राजवीर ने छुप कर आज शाम को क्लिक किया था।
राजवीर कुछ पलों तक बस तस्वीर को देखता है… फिर धीरे-धीरे मुस्कुराता है — एक सच्ची, नरम मुस्कान जो शायद किसी ने उससे पहले नहीं देखी होगी।
"आज... पहली बार एक अलग सा सुकून मिल रहा है ..."
वो खुद से बुदबुदाता है।
फिर फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला जाता है।
थोड़ी देर बाद,
राजवीर एक हाथ में कॉफी का मग लिए हुए चुपचाप चाँद की तरफ देख रहा था। जैसे उसके पास सवाल तो हजारों हैं और जिस के जवाब भी उसे चाहिए था।
राजवीर धीमी आवाज़ में चांद को देखते हुए बोलता है,
" तुम तो बहुत कुछ देख चुके हो ना… कितनी शादियाँ देखीं होंगी, कितनी सगाइयाँ… पर बताओ ना — क्या हर किसी को ऐसा लगता है?"
(वो एक लंबा साँस लेकर हल्की सी मुस्कान देता है)
"आज जब काव्या ने मुझे देखा… बस… सब रुक सा गया।
जैसे हॉल में हज़ारों लोग थे, पर मेरी आँखें… बस उसी को ढूंढ़ रही थीं।"
थोड़ी देर चुप रहने के बाद फिर से बोलता है,
"और जब वो मुस्कुराई ना… लगा जैसे पूरा हॉल उसकी रौशनी से भर गया। मेरे जिंदगी में तो सब कुछ था, कभी कुछ मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ी। पर अब मुझे बस एक खुशहाल ज़िन्दगी चाहिए… उसके साथ…"
राजवीर का गला हल्का सा रुंधता है। वो आज हद से ज्यादा इमोशनल महसूस कर रहा था,
"मैं नहीं जानता ये प्यार है या कुछ और… पर जो भी है… ये एहसास बहुत खास है।"
(वो मग को नीचे रखता है, और आकाश की ओर सिर टिका लेता है)
"बस इतना करना… जब भी वो उदास हो, तुम उसे मेरी ओर से रोशनी भेज देना। और जब वो मुस्कुराए, तो उसकी मुस्कान को मेरे ख्वाबों में उतार देना।"
दूसरे तरफ,
काव्या के कमरे में,
काव्या ने भारी सगाई का लहंगा उतार कर एक हल्का, सफेद कॉटन नाइटसूट पहन लिया था। उसके बाल अब भी लहराते हुए कंधों पर बिखरे थे, लेकिन चेहरा थका हुआ नहीं, बल्कि किसी मीठे एहसास से खिला हुआ लग रहा था।
कमरे की खिड़की आधी खुली थी। पर्दा हल्की हवा में सरसराह रहा था। बाहर का आसमान बिल्कुल साफ था — और बीचोंबीच, दूधिया चाँद अपनी पूरी रौशनी में चमक रहा था।
काव्या धीरे-धीरे बल्कुनी के पास आई, और सोफे पर बैठ गई। उसका चेहरा चाँद की ओर था — उस शांत, चमकते हुए गवाह की ओर, जो जैसे उसके दिल की हलचल समझ रहा था।
फिर उसने चाँद की ओर देखते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा —
"चाँद मामा… बचपन में माँ कहती थीं, जब दिल बहुत उलझ जाए, तो तुमसे बात कर लिया करो… आज वो दिन है…"
उसने अपनी ठुड्डी घुटनों पर टिका दी, और हल्के-हल्के झूलते हुए चाँद की ओर देखती रही।
"आज सगाई हो गई…
हाँ… सगाई। पर दिल अब भी यक़ीन नहीं कर रहा…
ये वही राजवीर है, जिनके नाम से मैं घबराती थी,
और आज… उन्हीं के साथ सुकून मिलता है।
आज उन की आँखों में अपने लिए कुछ अलग जज्बात देखी।"
वो मुस्कराई — एक ऐसी मुस्कान जो सिर्फ दिल से आती है, जहाँ डर और यक़ीन दोनों साथ होते हैं।
"जब उसने मेरा हाथ थामा… लगा जैसे सारी दुनिया थम गई… जैसे उसके हाथों में सिर्फ मेरी नहीं, मेरी सारी उलझनें भी थाम ली हों।"
उसकी आँखों की कोर हल्की सी भीगी, लेकिन चेहरा अब भी उजाला बिखेर रहा था।
"क्या सच में… मैं उस इंसान की होने जा रही हूँ जिसे पहली बार देखते ही कुछ अलग महसूस करने लगी थी। क्या सच में… मेरी कहानी में अब ‘मैं’ से ‘हम’ होने वाला है?"
काव्या वहीं थोड़ी देर बैठी रही — चुपचाप, खुद से, चाँद से, और उन जज़्बातों से बात करती हुई जो आज से पहले कभी इतने खूबसूरत नहीं लगे थे।
अगले दिन, शाम को,
समय के अभाव के कारण आज मेंहदी के साथ साथ संगीत भी हो रहा था।
लॉन को शाही अंदाज़ में सजाया गया था। रंग-बिरंगे फूलों के झूमर, झूले, हैंगिंग कैंडल लैंप्स, और पारंपरिक राजस्थानी कढ़ाई वाले कुशंस ने माहौल को एकदम रॉयल और दिलकश बना दिया था। एक ओर महिलाओं के लिए झूला रखा गया था — गुलाबी और पीले रंग के रेशमी कपड़े से सजा हुआ, जिसे हर कोई "काव्या का दुल्हन झूला" कह रहा था। सामने स्टेज पर फूलों का गजरा बना एक विशाल बैकड्रॉप था जिसमें काव्या की और राजवीर की इंगेजमेंट वाली तस्वीरें खूबसूरत फ्रेम्स में टंगी थीं।
घड़ी ने जैसे ही शाम के 5 बजे, बांसुरी और ढोल की मधुर धुन के साथ प्रवेश हुआ राजकुमारी काव्या सिंह सिसोदिया का। उसने नींबू-हरे रंग का लहंगा पहना था जिस पर ज़री और मोर डिजाइन की जटिल एम्ब्रॉयडरी थी। उसकी चूड़ियाँ खनक रही थीं, हाथों में बस थोड़ी सी मेहंदी लगी थी क्योंकि असली मेहंदी तो अभी लगनी थी। लेकिन चेहरे पर एक मुस्कुराहट थी — घबराई हुई, लेकिन दिल से सजी।
राजमाता विमला देवी और महारानी पद्मिनी देवी ने काव्या को मंच पर बिठाया। साथ में उसकी सहेलियाँ — सब रॉयल राजपूत स्टाइल के अनारकली सूट्स और ज्वेलरी में सजीं — उत्साह से घिरी थीं। माहौल हल्का-फुल्का, मज़ेदार और संगीत से भरपूर था।
थोड़ी देर बाद,
शाम की ठंडी हवा में जैसे ही ढोल की थाप गूंजी, सबकी नज़रें होटल के ग्रैंड स्टेयरकेस की ओर गईं —
"दूल्हा राजा", महाराज राजवीर सिंह राठौड़, सफेद कुर्ता और गहरे हरे रंग की बंधेज दुपट्टा डाले, हल्की मुस्कान लिए सीढ़ियाँ उतर रहा था।
वो सीधा काव्या की ओर नहीं गया। पहले राजमाता वृंदा देवी के पास जाकर आशीर्वाद लिया, फिर काव्या की दादीसा और माता-पिता से भी बारी-बारी मिलकर अदब से झुका और काव्या के भाई के गले लगा।
तभी उसकी नजर काव्या पर पड़ी। जो उसे ही देख रही थी। जैसे ही दोनों की नजरे मिली, काव्या का चेहरा लाल हो गया। भीड़ की आवाज़ों के बीच, उनके बीच सिर्फ चुप मुस्कुराहटों का संवाद था।
मेहंदीवाले आर्टिस्ट्स जयपुर से खास बुलाए गए थे। गोल मेजों पर बैठी महिलाओं के हाथों में डिज़ाइन उभरने लगे — कोई दूल्हा-दुल्हन का चेहरा बनवा रहा था, कोई राजस्थानी महल, कोई नामों को छुपा रहा था।
काव्या के हाथों में जो मेहंदी लगी, उसमें राजवीर का नाम बहुत ख़ास तरीके से छुपा था — बाँह तक फैली बेलों में उसकी पहचान को छिपा देना भी एक मीठा खेल था।
राजवीर दूर खड़ा सब देख रहा था — आँखों में एक चमक, जैसे उसकी दुनिया धीरे-धीरे पूरी हो रही हो।
शाम ढलते-ढलते, संगीत का रंग गाढ़ा होता गया। सबसे पहले इशिता (राजवीर की बहन) और त्रिशा (उसकी कजिन) ने "लट्टे दी चादर" पर डांस किया। फिर काव्या की सहेलियों ने "मेहंदी लगा के रखना" पर परफॉर्म किया।
जब गौरी बुआ और नीलिमा चाची ने मिलकर "नवराई माझी" पर डांस किया, तो पूरा मंडप तालियों से गूंज उठा। ऐसे ही सभी कुछ न कुछ डांस करते है।
आखिर में, सबके कहने पर राजवीर और काव्या को एक साथ मंच पर बुलाया गया। दोनों ने थोड़ी झिझक के साथ "रातां लांबियां" पर हल्का-सा डांस किया — लेकिन उस छोटे से पल में, हर कोई देख सका कि उनके बीच वो अनकही सी मोहब्बत पनप चुकी है।
रात के 10 बजे, मेहमान धीरे-धीरे अपने कमरों की ओर लौटने लगे। लेकिन काव्या अपने कमरे की ओर नहीं गई — वह अभी भी वहीं पर बैठी थी, मेहंदी सूखने दे रही थी, चुपचाप हवा से बातें करती हुई।
राजवीर बालकनी से देख रहा था — और मुस्कुरा रहा था। वहीं इस बात से अनजान काव्या अपने हाथ और पैरों की मेंहदी देख रही थी।
थोड़ी देर बाद काव्या अपने कमरे में लौटने लगी। तभी कुछ हुआ जिस से काव्या की चीख निकल गई।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या हुआ होगा ऐसा जिस से काव्या की चीख निकल गई?
जानने के लिए अगला चैप्टर पढ़ते रहिए....
काव्या अपने कमरे में जा ही रही थी कि, किसी ने उसका हाथ कसकर खींच लिया और पास की एक अंधेरी दीवार की तरफ ले गया।
"श्श्श… मैं हूँ।"
वो धीमी, गहरी आवाज़ राजवीर की थी।
काव्या ने हल्के-से खुद को छुडाने की कोशिश की, पर वो मुस्कुराते हुए और भी करीब आ गया।
"आपने डरा दिया मुझे…"
काव्या ने थोड़े गुस्से और शर्म के मिलेजुले भाव से कहा।
राजवीर ने उसकी बात अनसुनी करते हुए धीरे से उसकी हथेली को थामा, जिस पर मेहंदी अब सूख चुकी थी।
"दिखाओ… कहाँ छुपाया है मेरा नाम?"
उसने उसकी उंगलियों को नज़दीक से देखना शुरू किया।
काव्या ने अपनी हथेलियाँ छुपाते हुए धीरे से कहा,
"नहीं… अभी नहीं… कल... अब मुझे छोड़िए, कोई देख लेगा…"
राजवीर ने उसकी कलाई थाम ली — वो थामना ऐसा नहीं था कि काव्या डर जाए,
बल्कि ऐसा था कि वो उसके स्पर्श में खुद को सुरक्षित महसूस करे।
वो उसके बिल्कुल करीब आया… उसका चेहरा महज़ कुछ इंच की दूरी पर था।
"पर इसके बदले… मुझे क्या मिलेगा?"
उसने गहराई से पूछा — उसकी आवाज़ में एक कशिश थी, एक अधूरी तड़प।
काव्या की सांसें गड़बड़ाने लगीं। उसने नज़रें झुका लीं,
"आप… बहुत बदल गए हैं…"
राजवीर ने उसकी ठुड्डी को हल्के से उठाया,
"नहीं, मैं तो वही हूँ… बस आज तुम्हें थोड़ा ज्यादा चाहता हूँ…"
काव्या ने खुद को थोड़ा पीछे खींचने की कोशिश की — पर दीवार आ चुकी थी।
अब उनके बीच कोई दूरी नहीं थी…
सिर्फ गर्म साँसें थीं… और बढ़ती धड़कनें।
राजवीर ने उसकी गालों के पास अपने होठों से बहुत ही धीमे से एक किस किया —
नरम, लेकिन इतना गहरा कि काव्या की आँखें अपने आप बंद हो गईं।
वो उसकी गर्म साँसें महसूस कर पा रहा था…
उसके काँपते होंठ…
उसके गुलाबी गालों पर फैला तनाव…
"सिर्फ एक किस चाहता हूं... शादी से पहले उस एहसास को जीना चाहता हूं... क्या इजाजत है मुझे... इन गुलाबी होठों पर अपनी छाप छोड़ने का...?"
राजवीर ने उसकी पेशानी पर माथा टिकाते हुए फुसफुसाया।
काव्या की साँसें अब तेज़ हो जाती है।
उसने बहुत धीरे से अपनी पलकों को उठाया — और सिर्फ इतना कहा, "मत रुकिए…"
बस इतना सुनना था —
राजवीर ने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया…
और इस बार, उसके होंठों को अपने होंठों से छू लिया —
धीरे… गहराई से… बेकाबू होते हुए…
वो कोई छोटी सी, शर्मीली पहली किस नहीं थी —
वो एक प्यास थी जो बरसों से दिल में दबी थी
और अब इजाज़त मिलते ही, उसकी रूह तक को छू रही थी।
काव्या ने पहले तो खुद को रोका, पर फिर…
उसने राजवीर की शेरवानी की कॉलर को कस कर पकड़ लिया, जैसे कह रही हो — अब मत दूर जाना।
उनके बीच कुछ पल वैसे ही बीत गए…
बिना किसी आवाज़ के,
बिना किसी दुनियावी डर के —
सिर्फ एहसासों की भाषा में।
जब किस टूटी —
तो दोनों की सांसें उलझी हुई थीं, आँखें भीगी, और होठों पर एक हल्की सी कंपन…
राजवीर ने अपना माथा उसके माथे से टिकाया।
उसकी आँखों में वो गहराई थी… जो सिर्फ सच्चे इश्क़ के वक़्त उतरती है।
"थैंक यू, जान... मुझे इतनी बड़ी खुशी देने के लिए।
मेरे एहसास, मेरी चाहत का मान रखने के लिए…"
उसकी आवाज़ थरथराती थी, जैसे हर लफ़्ज़ सीधा दिल से आ रहा हो।
काव्या ने कुछ नहीं कहा, बस हल्का-सा सिर झुका लिया।
राजवीर ने उसकी हथेली को अपने होठों से छुआ —
फिर एक नरम चूम उसके गालों पर छोड़ दिया…
"अब चलता हूँ…"
कहकर वो मुड़ गया।
काव्या वहीं खड़ी रह गई —
गालों पर उसकी गर्म साँसें अब भी महसूस हो रही थीं।
उसने धीरे से गाल पर हाथ रख लिया — जैसे उस एहसास को अपनी हथेली में क़ैद करना चाहती हो।
लेकिन तभी…
दरवाज़ा फिर से खुला।
काव्या चौंकी — और देखा…
राजवीर वापस आ गया था।
वो मुस्कुरा रहा था —
और काव्या को इस तरह अपने गालों पर हाथ रखे शरमाते देख
उसकी नज़रों में एक शरारती चमक उतर आई।
धीरे-धीरे वो पास आया —
इतना पास कि अब फिर वही सांसों की गर्माहट दोनों के बीच तैरने लगी।
"ये शर्माना…"
उसने फुसफुसा कर कहा,
"बाकी रखिए कल के लिए… क्योंकि कल —
आपकी ज़िंदगी का सबसे ख़ास दिन होगा।
और मैं… आपको ऐसा तोहफ़ा दूंगा, जिसे शायद आप कभी भूल नहीं पाएंगी।"
काव्या की आँखों की पुतलियाँ हल्की सी कांपीं।
राजवीर थोड़ा और झुक गया,
और उसके कान के बिल्कुल करीब जाकर —
उसके कान के नर्म लॉब को हल्के से बाइट कर दिया।
सिर्फ एक सेकंड… लेकिन उस एक सेकंड में
काव्या की पूरी रूह काँप गई।
उसने आँखें भींच लीं —
होंठ खुद-ब-खुद भीग गए थे।
उसके चेहरे पर अब जो भाव था —
वो इश्क़ से ज़्यादा गहराई और प्यास का था।
राजवीर मुस्कुराया,
"Good night, Mrs. Soon-To-Be Rathore."
और फिर… इस बार सच में चला गया।
काव्या वहीं खड़ी रह गई —
कमरे की हवा अब भी उस बाइट की गर्माहट लिए हुए थी। थोड़ी देर बाद वो अपने कमरे में लौट जाती है।
काव्या का कमरा –
हल्की-सी बत्ती जल रही थी, और खिड़की से आती चाँदनी कमरे को एक सौम्य चमक दे रही थी। काव्या पलंग पर बैठी थी, चुप… लेकिन भीतर कुछ बहुत तेज़ धड़क रहा था। गाल अब भी लाल थे, और कानों के पास हल्की-सी जलन… मानो राजवीर की वो आखिरी हरकत अब भी अपनी जगह जीवित हो।
उसने धीरे से अपने कान को छुआ… और होंठों पर एक मासूम मुस्कान फैल गई।
"कल... वो क्या तोहफा देने वाले हैं? और इतनी शरारत से बोले थे... शायद..." सोचते ही उसका दिल उछल गया।
उसने तकिए को गले लगाया और आंखें बंद कर लीं। लेकिन नींद कहाँ थी? ज़हन में सिर्फ वही मुस्कराता चेहरा… वही गहरी आँखें… वही गुनगुनी सी आवाज़…
"हुकुम सा..." उसने धीमे से बुदबुदाया… और खुद ही अपनी मुस्कान से हार गई।
राजवीर का कमरा –
राजवीर अपने पलंग की पुश्त से टेक लगाए बैठा था। सामने की मेज़ पर उसकी तलवार रखी थी, दीवार पर उसके पुरखों की तस्वीरें, और उसके दिल में — सिर्फ एक नाम — काव्या।
उसने अपनी ऊंगलियाँ अपने होठों पर फेरते हुए खुद को आईने में देखा।
"पहली बार किसी को इतने हक़ से चूमा है… और पहली बार किसी के जाने के बाद भी ऐसा लग रहा है जैसे वो यहीं हो…"
वो उठ कर खिड़की के पास आया, पर्दा हटाया और बाहर आसमान की ओर देखने लगा।
"कल तुझे ऐसी चीज़ दूँगा, काव्या… जो तुझमें मेरी साँसों की तरह बस जाए। सिर्फ नाम की रानी नहीं, मेरी आत्मा की महारानी बन जाएगी तू..."
उसने आंखें बंद कर लीं और एक गहरी साँस ली… जैसे हवा में भी उसकी खुशबू थी।
अगली सुबह – हल्दी की रस्म
उदयगढ़ होटल इस सुबह कुछ अलग ही रंग में रंगी हुई थी। पूरा गार्डन पीले, नारंगी और गुलाबी फूलों की महक से महक रहा था। एक तरफ शहनाइयाँ बज रही थीं, तो दूसरी तरफ लोक गीतों की धुन पर महिलाएं थालों में हल्दी लेकर नाच रही थीं।
हल्दी की रस्म एक ही जगह पर रखी गई थी, पर दोनों परिवारों की रिवायतों और शगुन की वजह से एक महीन रेशमी पर्दा बीच में टांग दिया गया था—जो काव्या और राजवीर को एक-दूसरे से देख तो नहीं पा रहे थे, लेकिन महसूस जरूर कर रहे थे।
काव्या की तरफ:
काव्या को एक पीले रंग की कढ़ाईदार साड़ी पहनाई गई थी, उसके चेहरे पर शर्म और रौनक दोनों साथ-साथ थे। उसकी सहेलियाँ और बुआएँ गाना गा रही थीं—
"कुड़ी नू हल्दी लगाओ जी, सजना दे नाल भेजो जी..."
हल्दी लगते ही उसके गोरे गाल और हथेलियाँ सुनहरे रंग से दमक उठी थीं। काव्या बार-बार उस पर्दे की ओर देखती, जहाँ से बस हल्का-सा राजवीर की आवाज़ या हँसी की झलक मिलती थी।
"उधर होंगे न वो?" उसने अपनी सहेली से धीमे से पूछा।
"हां हां, हुकुम सा भी वहीं हैं। पर पर्दा है न बीच में। देखना तो क्या, सोचने भर से ही दिल धड़क रहा है तेरा।" उसकी सहेली ने छेड़ा।
काव्या मुस्कुरा दी, और खुद को और हल्दी में रंगने लगी।
राजवीर की तरफ:
राजवीर ने पीले रंग का कुर्ता और सफेद धोती पहन रखी थी। उसकी माँ और बाकी औरतें हँसते हुए उसे हल्दी लगा रही थीं, कोई गाल पर, कोई बाहों पर। राजवीर बस मुस्कुरा रहा था, लेकिन उसकी नजर बार-बार उस पर्दे की ओर जाती।
"माँ, ये पर्दा हटवा नहीं सकते क्या?" उसने अधीर होकर पूछा।
आरती देवी मुस्कराते हुए बोलीं, "अभी नहीं हुकुम सा… ये पर्दा ही तो सब्र सिखाता है। और सब्र से ही प्यार गहरा होता है।"
जिसे सुन राजवीर का मुंह बन जाता है। पर जैसे तैसे वो उनकी बात मान लेता है।
ऐसे ही मस्ती मजाक में हल्दी की रस्म खत्म होती है। सभी हल्दी के होली से नहाए हुए थे।
थोड़ी देर बाद,
जैसे ही काव्या अपने कमरे की दरवाज़ा बंद करने को होती है, तभी किसी की मजबूत उंगलियां उसकी कमर को बेहद एहतियात से थाम लेती हैं। उसकी सांसें अटक जाती हैं।
पूरा शरीर एक झुरझुरी से भर उठता है। वो कांपती आवाज़ में सिहरते हुए बोल उठती है, "हुकुम सा… ये आप क्या कर रहे हैं? कोई देख लेगा तो डांट पड़ेगी… आप जाइए अपने कमरे में…"
उसका चेहरा शर्म और घबराहट से सुर्ख हो चुका था। पलकों पर हया की परछाईं थी। पर सामने खड़े राजवीर सिंह राठौड़ की आंखों में आज कुछ और ही जुनून था।
"आज डांट भी पड़ेगी… तो मंज़ूर है… पर तेरी इस मासूम सूरत पर हल्दी लगाना सिर्फ मेरा हक है, काव्या।" उसकी आवाज़ धीमी थी, मगर उस धीमेपन में भी एक हुकूमत छुपी थी।
राजवीर ने उसे अपने नज़दीक खींचा और अपनी उंगलियों से धीरे-धीरे उसका चेहरा अपने सामने किया। अब दोनों की सांसें एक-दूसरे को छू रही थीं। काव्या की नज़रें नीची थीं, पर उसकी धड़कनें शोर कर रही थीं।
राजवीर के हाथों में अब भी हल्दी की कटोरी थी, जो उसने छिपाकर लाया था। उसने अपनी उंगलियां उसमें डुबोईं और बेहद नज़ाकत से, जैसे किसी बहुमूल्य चीज़ को छू रहा हो, काव्या के दाएं गाल पर हल्दी लगा दी। उसके बाद बाईं ओर…
हल्दी के स्पर्श से काव्या की आंखें बंद हो गईं। जैसे उसका रोम-रोम उस एक स्पर्श में पिघल रहा हो।
फिर अपनी अंगुलियों को उसके दूसरे गाल पर ले गया… और हल्दी धीरे-धीरे पूरे चेहरे पर फैला दी। काव्या की पलकें भीगने लगी थीं… खुशी और शर्म के बीच लिपटी हुई।
राजवीर झुकता है… और उसके गालों से शुरू कर… वो हल्दी धीरे-धीरे उसकी गर्दन तक ले जाता है।
उंगलियों की नमी, हल्दी की खुशबू और उनकी साँसों की गर्माहट… सब कुछ जैसे कमरे की हवा में घुल गया।
उसकी गर्दन पर हल्दी लगाते हुए राजवीर की उंगलियाँ हल्के से ठहरती हैं।
काव्या की आंखें बंद हो जाती हैं और होंठों से एक मीठी सिहरन सी फिसल जाती है।
“हुकुम सा…” वो बस इतना ही कह पाती है।
उसका हाथ अब धीरे से काव्या की बाँहों की ओर बढ़ा, जहाँ की कांच की चूड़ियों के बीच से उसकी कोमल त्वचा झलक रही थी। उसने वहाँ हल्दी लगाई… धीरे से… और बहुत ध्यान से… जैसे कोई बहुमूल्य चीज़ को सजा रहा हो।
काव्या ने अपनी आँखें मींच लीं। हल्दी की खुशबू, राजवीर का स्पर्श, और वो पल… जैसे वक्त वहीं रुक गया हो।
तभी काव्या राजवीर की नजर को समझते हुए बोलती है,
"हुकुम सा… नहीं… प्लीज़…" उसके शब्द थरथरा रहे थे।
आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी...