कहते हैं प्यार एक ऐसी चीज है जो किसी भी इंसान को बहुत ही ताकतवर बना देती है और बहुत ही ज्यादा कमजोर भी। चाहे वह इंसान कितना ही क्रुएल हार्टेड क्यों ना हो लेकिन प्यार उसके अंदर भी जज्बात भर देता है। एक बेरहम इंसान राणा जिसकी दुश्मनी सिर्फ और सिर्फ पुल... कहते हैं प्यार एक ऐसी चीज है जो किसी भी इंसान को बहुत ही ताकतवर बना देती है और बहुत ही ज्यादा कमजोर भी। चाहे वह इंसान कितना ही क्रुएल हार्टेड क्यों ना हो लेकिन प्यार उसके अंदर भी जज्बात भर देता है। एक बेरहम इंसान राणा जिसकी दुश्मनी सिर्फ और सिर्फ पुलिस वालों के साथ थी एक एक्सीडेंट की वजह से सीधा-साधा भोला - भाला रणवीर बन चुका था जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह जिसका नाम सुनकर सभी पुलिस वाले थर-थर कांपते थे। राणा की बढ़ती हुई रफ्तार को लगाम तब लगी जब उसकी जिंदगी में एक बहुत ही खूबसूरत लड़की आई। जो अपने आप में एक मिस्ट्री थी। क्या सबंध था राणा का उस लड़की से? क्या राणा फिर से एक आम जिन्दगी जी पायेगा? और क्या है उस अनजान लड़की का राज? जानने के लिए पढ़िए cruel hearted lover❤
Page 1 of 8
एक बड़े से होटल का कमरा था, जिसके बाहर चार-पाँच लोग बंदूक लिए खड़े थे। कमरे से एक लड़की और लड़के की मदहोश भरी आवाज़ आ रही थी।
बाहर खड़े, बंदूक लिए हुए एक लड़के ने दूसरे से कहा,
"क्या करें? अंदर चलें? अंदर की आवाज़ें सुनकर लगता है अंदर का माहौल काफ़ी गर्म होगा।"
दूसरा बंदूकधारी आदमी बोला,
"अरे यार! इन लोगों के चक्कर में कितने ही दिनों से हम अपनी-अपनी बीवियों और गर्लफ्रेंड से दूर रहे हैं, और इन्हें देखो, ये लोग कितने मज़े कर रहे हैं! मज़ा तो इसी बात में है कि हम इनके मज़े को भंग कर दें।"
ऐसा कहकर एक लड़के ने अपनी साइलेंसर लगी बंदूक से बंद कमरे के दरवाज़े का लॉक तोड़ दिया।
अंदर मौजूद लड़के और लड़की को इस बात का पता ही नहीं चला था कि उनका दरवाज़ा खुल चुका था, क्योंकि वे दोनों एक-दूसरे को प्यार करने में पूरी तरह से व्यस्त थे।
जब उन दोनों का प्यार पूरे शबाब पर था, बाहर खड़े लड़कों में से एक ने जोर से दरवाज़े पर लात मारी। एक झटके से दरवाज़ा खुल गया।
पाँचों लड़के उस कमरे में जा पहुँचे और उन्होंने अंदर जाकर एक-दूसरे से चिपके हुए लड़के-लड़की पर बंदूक तान दी।
"हैंड्स अप!"
अंदर जो लड़की थी, उसने जल्दी से अपने आप को एक चादर से कवर कर लिया। अचानक आई मुसीबत का उन दोनों को दूर-दूर तक कोई अंदाजा नहीं था। वे दोनों पूरी तरह से एक-दूसरे में डूबे हुए थे।
पाँचों आदमियों ने उन दोनों को कुछ मिनट का समय दिया और कहा,
"जल्द से जल्द अपने कपड़े पहन लो, वरना इसी हालत में ही हम तुम्हें यहाँ से गिरफ्तार करके ले जाएँगे।"
उन पाँचों पुलिस अफ़सरों की बात सुनकर वह दोनों लड़का-लड़की एक-दूसरे का मुँह देखने लगे थे और जल्दी ही उन्होंने अपने-अपने कपड़े पहन लिए।
तब तक पुलिस वालों ने अपना मुँह दूसरी ओर कर लिया था, लेकिन यही उन्होंने बहुत बड़ी भूल कर दी थी। जैसे ही उन लोगों ने अपने कपड़े पहने, उन्होंने अपनी बंदूकें भी रेडी कर लीं और उन्होंने अचानक से उन पुलिस वालों पर धड़ाधड़ गोली चलानी शुरू कर दी।
उन पाँच पुलिस वालों में से एक के हाथ पर गोली लग गई थी। पुलिस वाले भी तैश में आ गए थे और उन्होंने भी उन लोगों पर वापस से फायरिंग शुरू कर दी।
जिससे उस लड़की के हाथ में गोली लगी और उस लड़के के पैर में गोली लगी। जल्दी ही पुलिस वालों ने उन दोनों लड़का-लड़की को गिरफ्तार कर लिया था और अपने साथ एक स्पेशल गुप्त स्थान पर ले गए।
उन पुलिस वालों ने उन लड़का-लड़की को वहाँ पर ले जाकर बहुत ही ज़्यादा टॉर्चर करना शुरू कर दिया। हर कोई केवल एक ही सवाल पूछ रहा था,
"राणा कहाँ है? कहाँ है राणा? जवाब दो! कहाँ है राणा? कहाँ छिपाकर रखा है तुम लोगों ने उसे? बोलो! जवाब दो!"
पुलिस वालों को इस तरह से सवाल पूछता हुआ देखकर वह लड़की, जो वहाँ पाई गई थी, अपने होंठों पर आए खून को बुरी तरह से रगड़ते हुए हँसते हुए बोली,
"हा हा हा हा हा हा! तो तुम लोग राणा की तलाश में आए हो? ओ हो! इसीलिए तुम लोग हम तक पहुँच पाए हो। अफ़सर! क्या तुम्हें नहीं पता? राणा अगर किसी से मिलता है, तो सिर्फ़ अपनी मर्ज़ी से मिलता है। वह किसी का गुलाम नहीं है कि कोई उसे आदेश दे सके। वह राणा है! राणा! अगर उसका मन होगा, तो वह तुम लोगों से मिलेगा; अगर उसका मन नहीं होगा, तो वह तुम लोगों से नहीं मिलेगा।"
जैसे ही उस लड़की ने यह सब कुछ कहा, उस पुलिस वाले का दिमाग घूम गया था और उसने एक और जोरदार थप्पड़ उस लड़की के मुँह पर मार दिया। वह लड़की एक बार फिर गिर गई और उसके सिर से भी अब खून बहने लगा।
वह पुलिस वाला बोला,
"बहुत घमंड है ना तुम लोगों को उस राणा पर? देखना, एक दिन जब वह मेरे हाथों चढ़ जाएगा, तो मैं उसकी ऐसी हालत करूँगा, ऐसी हालत करूँगा कि उसे अपने जन्म पर अफ़सोस होगा! समझी तू..."
उसने बड़ी ही गंदी गाली देकर उस लड़की से फिर पूछा,
"बता! कहाँ है राणा?"
ऐसा कहकर उन पुलिस वालों ने बिना लड़का-लड़की को देखे हुए बेल्ट से मारना शुरू कर दिया।
लेकिन उस लड़की और लड़के के मुँह से दर्द भरी एक भी आवाज़ नहीं निकल रही थी, क्योंकि वे दोनों राणा के आदमी थे और उन्हें पूरा यकीन था कि राणा उन्हें हर हाल में बचा लेगा।
जब उन लोगों को लगा कि ये दोनों इतने ढीठ हैं, ये इतनी आसानी से जुबान नहीं खोलेंगे, तब उनमें से एक पुलिस वाले ने कुछ ज़्यादा ही अपनी हद को पार करते हुए एक लोहे की रॉड को खूब तेज़ गर्म करने लगा।
उसने दोनों की ओर इशारा करते हुए बोला,
"बहुत शौक है ना तुम लोगों को वफ़ादारी का? आज हम भी देखते हैं, हम लोगों के कहर से तुम लोगों को कौन बचाएगा? और वैसे भी, आतंकवादियों के लिए हमारे मन में किसी भी तरह का कोई रहम नहीं है! तो तुम लोगों की भलाई इसी में है कि तुम लोग हमें बता दो, कहाँ है राणा? अगर तुम लोग हमें इसका जवाब दे दोगे, तो हो सकता है कि तुम लोग इन सब तकलीफ़ों से बच जाओ।"
उस पुलिस वाले की बात सुनकर वह लड़का-लड़की एक-दूसरे की ओर देखने लगे थे और फिर उन्होंने उस पुलिस वाले के ऊपर थूकते हुए कहा,
"जो करना चाहे कर ले, लेकिन तू हमारा मुँह कभी भी नहीं खुलवा पाएगा।"
ऐसा कहकर इतने दर्द के बावजूद वे दोनों बुरी तरह से पागलों की तरह हँसने लगे।
इतना पागलपन देखकर वे पुलिस वाले बहुत ही ज़्यादा हैरान रह गए थे। वे सोच भी नहीं सकते थे कि ये लोग उन पर इस तरह से हँस सकते थे।
वहीं दूसरी ओर, एक आदमी बड़ी ही बेरहमी से चाकू से लगातार एक आदमी के सीने पर वार कर रहा था। उसका पूरा मुँह खून में हो चुका था, लेकिन वह उस आदमी पर वार करना बंद नहीं कर रहा था।
जिस पर वह आदमी वार कर रहा था, वह कोई और नहीं, बल्कि उस शहर का नया डीजीपी, गौरव ठाकुर था।
राणा ने डीजीपी ठाकुर के सीने में अनगिनत वार किए थे और इतना ही नहीं, गौरव ठाकुर की जान जाने के बाद भी उसने उस पर वार करना बंद नहीं किए थे।
ऐसा लग रहा था मानो वह उसकी जान ही ना ले रहा हो, बल्कि वह उसको उसके किसी गुनाह की सज़ा दे रहा हो। जब उसे लगा कि गौरव डीजीपी गौरव ठाकुर के शरीर की एक-एक खून की बूँद अब निचोड़ चुकी है, तब जाकर उसने उसे छोड़ा था और जल्दी ही उसके आदमियों ने डीजीपी गौरव ठाकुर की लाश को ठिकाने लगा दिया था।
राणा उठा और अपने बड़े से खूबसूरत महल के सामने जो बड़ा सा तालाब बना हुआ था, जाकर खून से सने हाथ और कपड़ों समेत उसके बीचो-बीच बने बहुत ही खूबसूरत से तालाब में जाकर कूद गया।
और कितने ही देर तक वह अपने शरीर पर लगे खून को बहता रहा था, क्योंकि उसका पूरा शरीर एकदम लाल हो चुका था, क्योंकि डीजीपी गौरव के खून की एक-एक बूँद उसके शरीर पर थी। ऐसा लग रहा था मानो वह उसके खून से नहाया हुआ हो।
कुछ देर नहाने के बाद राणा को एक नोटिफ़िकेशन की आवाज़ सुनाई दी थी और एक बार फिर से उसने अपने दोनों हाथों की मुट्ठियों को कस लिया था और फिर जल्दी से तैयार होकर बाहर की ओर रवाना हो चुका था। उसको जाता हुआ देखकर उसके पीछे खड़ा हुआ उसका असिस्टेंट, देव, बोला,
"पता नहीं अब किसकी शामत आई है।"
ऐसा कहकर वह भी उसके पीछे-पीछे दूसरी गाड़ी में बॉडीगार्ड समेत निकल गया।
वहीं दूसरी ओर, एक इक्कीस साल की बड़ी ही खूबसूरत लड़की थी, जो इस वक़्त आराम से अपने शानदार बेड पर सोई हुई थी।
उसकी आँखें सोते हुए इधर-उधर टिमटिमा रही थीं। इसका मतलब साफ़ था कि वह एक बुरा सपना देख रही थी और सपने में वह देख रही थी कि,
एक बारह साल की लड़की अपने माँ-बाप से नाराज़ होकर घर से निकल जाती है और गलती से वह एक ऐसी बस में बैठ जाती है, जो बस उसे एक अँधेरे गाँव में ले जाकर छोड़ देती है।
उस लड़की को दूर-दूर तक कोई अंदाज़ा नहीं था कि वह कहाँ आ गई है। वह बस में इसलिए बैठी थी क्योंकि एक बस उसकी बुआ के घर जाती थी, जिसका रास्ता केवल दस मिनट का था, लेकिन वह इतने गुस्से में थी कि वह सही से बस को नहीं देख पाई थी और वह एक ऐसी बस में जाकर बैठ गई थी, जो बस उसे एक ऐसे गाँव में ले आई थी जहाँ पर सुख-सुविधाएँ, मोबाइल, इंटरनेट, बिजली, किसी भी चीज़ का दूर-दूर तक कोई नामोनिशान नहीं था।
वह बारह साल की बच्ची उस गाँव में पहुँचकर एक ऐसे आदमी के घर फँस जाती है, जो कि खुद पन्द्रह-सोलह साल का लड़का था, लेकिन उसकी आँखों में कुछ ऐसा था, जिसे देखकर उसे गाँव का बच्चा-बच्चा भी डरता था।
वह बच्चा, जो कि केवल पन्द्रह साल का था, वह कोई आम बच्चा नहीं था। उसे देखकर पूरा गाँव थर-थर काँप रहा था और वह लड़की गलती से उसी के घर में चली जाती है। वह लड़का उसे लड़की को कुछ नहीं कहता है, केवल घूर-घूरकर उसे देखता रहता है। लेकिन जैसे ही वह लड़की वहाँ से भागने की कोशिश करती है और पूरे गाँव में इधर-उधर दौड़कर चक्कर लगाती है और चिल्लाती है,
"कोई तो मेरी मदद करो! कोई तो उसके बाबा को कॉल करवा दो! कोई तो उसे बस स्टैंड तक छुड़वा दो! कोई तो उसे यह रास्ता बता दो कि कहाँ से बस शहर की ओर जाती है!"
वह उसे पूरे गाँव में घर-घर घूमकर अपने लिए मदद माँगती है, लेकिन उसे बारह साल की बच्ची की कोई भी मदद करने को तैयार नहीं रहता है, क्योंकि उस लड़के के डर की वजह से उसे कोई बस स्टैंड का रास्ता बताने के लिए तैयार नहीं था।
और फिर उस लड़के के आदमी उस लड़की को वापस से उसी के घर में ले जाते हैं। लेकिन उसके बाद भी लड़की के भागने की कोशिश पर वह लड़का उसे लड़की को कुछ नहीं कहता, केवल उसे घूर-घूरकर देखने लगता है।
वह लड़की उस जगह पर रहकर बहुत ही ज़्यादा घबराती है, क्योंकि उसे पूरे घर में उस लड़के के अलावा और कोई नहीं रहता था। उसे लड़की को एक कमरा दिया गया था जहाँ पर वह सोया करती थी, लेकिन खाना वह केवल नाम का ही खाया करती थी और वह दिन को कोसती थी कि क्यों वह अपने माँ-बाप से गुस्सा होकर बस में बैठी थी।
फिर एक दिन, जब उस लड़की ने एक बार फिर से भागने की कोशिश की, तो वह एक ऐसे घर में चली गई जिसने उसकी मदद करने के लिए हाँ कह दिया था और उसे इशारों ही इशारों में बस स्टैंड का रास्ता बता दिया था। तो वह छोटी सी बच्ची किसी तरह से वहाँ से भागकर उस लड़के के आदमियों से बचती-बचाती बस स्टैंड तक पहुँच गई थी और जैसे ही वह बस में चढ़ने वाली थी, तभी उस लड़की का हाथ उस लड़के ने पकड़ लिया।
तब उस लड़की ने रोते-रोते उस लड़के की ओर देखते हुए कहा,
"प्लीज़! मुझे मेरे मॉम के पास जाने दो! प्लीज़! मुझे छोड़ दो!"
उस लड़की की आँखों में आँसू देखकर ना जाने उस लड़के को क्या हुआ कि उसने एकदम से उसका हाथ छोड़ दिया था और वह लड़की फिर जैसे ही बस में बैठकर आगे बढ़ी,
तुरंत ही जो खूबसूरत लड़की यह सपना देख रही थी, अचानक से डर के मारे वह चिल्लाकर उठ बैठी थी और उसका यह सपना टूट गया था।
जैसे ही वह खूबसूरत सी लड़की चिल्लाई, उसके माँ-बाप, जो बराबर वाले कमरे में सोए हुए थे, वे तुरंत उसके पास आए थे और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले,
"क्या हुआ बेटा? क्यों परेशान हो? क्या फिर से वही बुरा सपना देखा?"
तब उस लड़की के चेहरे पर पसीने की बूँदें आने लगी थीं और वह बहुत ही ज़्यादा घबराई हुई लग रही थी। तब उसकी माँ ने बड़े ही प्यार से उसके चेहरे को पोंछा था और फिर कहा,
"तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नहीं है बेटा। अब तुम अपने घर पर हो। तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। कोई तुम्हें हमसे अलग नहीं कर सकता है। उस बात को बीते हुए, बेटा, पूरे-पूरे दस साल हो चुके हैं। अब तुम्हें वह सब बातें भूल जानी चाहिए।"
अपनी माँ की बात सुनकर वह लड़की हल्का सा हाँ में गर्दन हिलाने लगी थी और उसके बाद अपनी माँ से लिपट गई थी।
वहीं दूसरी ओर, जैसे ही वे पुलिस वाले लोहे की गरम रॉड से उस लड़की और लड़के को मारने के लिए आगे बढ़े, तभी अचानक वहाँ की पृथ्वी में कंपन होना शुरू हो गई।
उस कंपन को महसूस करने के बाद वह लड़का-लड़की इतने ज़्यादा दर्द के बावजूद खिल-खिलाकर हँसने लगे थे और बोले रहे थे,
"बहुत शौक था ना तुम लोगों को राणा से मिलने का? देखो, आ गया राणा! अब बच सकते हो तो बच जाओ!"
ऐसा कहकर वे तेज़-तेज़ हँसने लगे।
और पुलिस वाले उस लड़का-लड़की की बात सुनकर हल्का सा घबराकर एक-दूसरे की ओर देखने लगे।
लाइक, शेयर, कमेंट्स करें दोस्तों और फॉलो करना बिल्कुल न भूलें!
जैसे ही वह पुलिस वाला उस लड़के-लड़की की ओर गरम लोहे की रॉड लेकर मारने बढ़ा, अचानक वहाँ की पृथ्वी में कंपन होने लगी। उस कंपन को महसूस कर लड़का और लड़की मुस्कुराने लगे और पुलिस वालों की ओर देखते हुए बोले, "बहुत शौक था ना तुम्हें राणा से मिलने का? देखो, आ गया राणा! अब बच सकते हो तो बच लो!" लड़के-लड़की ने बड़े ही दीवानगी भरे स्वर में कहा और फिर एक-दूसरे की ओर देखकर हँसने लगे। उन दोनों को इस तरह हँसता देखकर, और यह सुनकर कि राणा आ गया है, पुलिस वालों को अजीब सा लगने लगा। वे एक-दूसरे की ओर देखने लगे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वे लोग सच कह रहे हैं या झूठ। राणा की तलाश उन्हें पिछले दस साल से थी। दस सालों में उन्हें राणा का कोई सुराग नहीं मिला था। वास्तव में, किसी को यह भी नहीं पता था कि राणा कैसा दिखता था। जितने लोगों ने राणा को देखा था, या तो वे उसके जानने वाले खास आदमी थे, या फिर वे आदमी थे जिनकी राणा ने जान ले ली थी और वे अब राणा की पहचान बताने के लिए ज़िंदा नहीं थे। तभी पुलिस वालों में से एक ने बोला, "यह फालतू की बकवास बंद करो! तुम्हें क्या लगा? तुम्हारी बात सुनकर हम डर जाएँगे और तुम्हें इन गरम लोहे की रॉड से नहीं मारेंगे? यह तुम्हारी गलतफहमी है! अब देखो हम तुम्हारा क्या हाल करते हैं! वैसे भी, तुम लोग राणा के आदमी हो और तुम्हारी मौत के बाद राणा तुम्हारी लाश लेने ज़रूर आएगा। और हमने सुना है राणा अपने लोगों को ना तो ज़िंदा छोड़ता है और ना ही मुर्दा, तो हमें पूरा यकीन है वह राणा तुम्हारी लाश लेने ज़रूर आएगा।" यह कहकर दोनों पुलिस वाले गरम लोहे की रॉड लेकर लड़के-लड़की की ओर बढ़ने लगे। लेकिन इससे पहले कि वे रॉड से लड़के-लड़की को नुकसान पहुँचाते, ठीक उसी वक्त उनके पीछे से उनका एक आदमी उड़ता हुआ आ गिरा। और उसके मुँह से खून निकल रहा था। ऐसा लग रहा था कि किसी ने उसके पेट में जोरों से वार किया था, जिससे उसके मुँह से खून निकलना शुरू हो गया था। अपने आदमी की ऐसी हालत देखकर दोनों पुलिस वाले बुरी तरह डर गए और पूछने लगे, "क्या हुआ? किसने मारा तुझे? और यह कैसे? यह हालात कैसे हुई तुम्हारी?" लेकिन उस आदमी को घूँसा शायद इतनी तेज़ी से पड़ा था कि वह कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। थोड़ी ही देर बाद उसका दूसरा आदमी भी उसी के बराबर में जाकर लेटा हुआ था। वे लोग पाँच-छह लोग थे; पाँच-छह पुलिस वाले उस वक्त वहाँ मौजूद थे। उनमें से दो पहले ही ज़मीन पर गिरे हुए थे, ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे। क्योंकि राणा के घूँसों ने ही उन लोगों की हालत बद से भी ज़्यादा बदतर कर दी थी। वे लोग ना तो ढंग से साँस ले पा रहे थे और ना ही बोल पा रहे थे। तभी दोनों पुलिस वाले, जिनके हाथ में गरम लोहे की रॉड थीं, घबराकर उनके हाथ से वह रॉड छूट गईं। तभी दरवाज़े पर उन्हें एक बड़ी सी परछाई नज़र आने लगी और जैसे ही उनकी नज़र उस परछाई के साथ वाले इंसान पर पड़ी, तो उनकी आँखें हैरत से फटी की फटी रह गईं। क्योंकि सामने से एक बहुत ही लंबा-चौड़ा शख्स, जो दिखने में किसी राजा-महाराजा से कम नहीं लग रहा था, वह बड़े ही स्टाइल से चलता हुआ, अपनी मूँछों पर दाँव देता हुआ, अंदर की ओर आ रहा था। उसे देखकर अच्छे-अच्छों की पैंट गीली हो जाया करती थी। एक पुलिस वाला उस आदमी की पर्सनालिटी को देखकर ही इतना डर गया कि उसकी हालत खराब होने लगी और उसे अपने नीचे कुछ गीला-गीला सा महसूस होने लगा। जैसे ही उसने देखा, तो उसे पता चल गया था कि उसकी पैंट खराब हो चुकी थी। राणा को देखकर उसने अपनी पैंट में ही पेशाब कर दिया था। जैसे ही राणा वहाँ अपनी मूँछों पर दाँव देता हुआ आया, वह लड़का-लड़की खुशी से चिल्लाते हुए खड़े हो गए। "राणा! राणा! राणा!" चारों ओर केवल एक ही आवाज़ सुनाई दे रही थी: "राणा! राणा! राणा!" और जितने भी पुलिस वाले थे, वे बेबसी से नीचे की ओर पड़े हुए थे। उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वे उस वक्त क्या करें। उस वक्त वे लोग अपनी जान बचाकर भी नहीं भाग सकते थे, क्योंकि दरवाज़े पर राणा खड़ा हुआ था और कोई रास्ता उस बंद जगह में नहीं था जहाँ से वे बचकर अपनी जान बचा सकें। तभी राणा धीरे-धीरे आगे बढ़ा और जो गरम लोहे की रॉड दोनों पुलिस वालों के हाथ से छूट गई थीं, उसने उन्हें उठा लिया और सीधा दोनों पुलिस वालों की आँखों पर वार कर दिया। गरम लोहे की रॉड लगते ही दोनों पुलिस वालों की आँखें बुरी तरह खराब हो गईं और तड़प-तड़प कर उन्होंने अपनी जान दे दी। एक पल को उसके आदमी भी उनकी इतनी खतरनाक मौत को देखकर काँप गए, लेकिन वे अच्छी तरह जानते थे कि पुलिस वालों के लिए राणा के मन में कितना गुस्सा भरा हुआ था। जल्दी ही राणा ने जितने भी छह-सात पुलिस वाले वहाँ मौजूद थे, उन सबको बड़े ही बेरहमी से अपने लोहे जैसे हथौड़े से मार-मारकर, अधमरा करके, बड़ी ही बेदर्दी से तड़पा-तड़पाकर मार डाला। और फिर अपने आदमियों की ओर देखते हुए बोला, "ठीक हो? तुम लोग? कुछ हुआ तो नहीं है ना तुम्हें?" तब दोनों, वह लड़का और लड़की, दोनों ही उसके सामने सिर झुकाकर खड़े हो गए, और बोले, "नहीं राणा! हमें कुछ नहीं हुआ है। हम दोनों ठीक हैं और हमें गर्व है कि हम दोनों आपके साथ काम करते हैं।" उनकी बात सुनकर राणा ने एक बार फिर अपनी मूँछों पर ताव दिया और जिस खतरनाक स्टाइल से वह आया था, उसी स्टाइल से चलता हुआ वह वापस चला गया। उसके पीछे-पीछे उसके आदमी भी चले गए। वहीं दूसरी ओर, वह खूबसूरत लड़की, जो उस ख्वाब के बाद से रात को सो नहीं पाती थी, वह एक बार फिर उठी और अपने स्टडी रूम में जाकर कुछ लिखने लगी। तब उसकी माँ अपनी बेटी की ओर देखते हुए उसके पिता से बोली, इन बातों को दस साल हो चुके हैं, लेकिन आज तक हमारी बेटी उस हादसे को नहीं भूल पाई है। पता नहीं हमारी बच्ची ने क्या-क्या सहन किया होगा। ऐसा कहकर वह रोने लगी और फिर अपनी बेटी के लिए हर रोज़ की तरह कॉफ़ी बनाने के लिए किचन में चली गई। वहीं उनकी बेटी के पिता कितनी देर तक खामोशी से खड़े हुए अपनी बेटी को देखते रहे, क्योंकि उनकी बेटी अब पूरी तरह से कुछ लिखने में डूब चुकी थी। पिछले दस सालों से यह होता हुआ आया था। हर रात को जब भी वह डरती थी और डर के मारे बीच नींद से उठ जाया करती थी, उसके बाद वह सो ही नहीं पाती थी, और जब वह सो नहीं पाती थी, तो अपने स्टडी रूम में आकर कुछ ना कुछ लिखना शुरू कर दिया करती थी। असल में, वह एक डायरी लिखा करती थी जहाँ पर वह अपने दिल की बात को शेयर किया करती थी, लेकिन हर रात को उसे सिर्फ़ एक ही सपना आता था, जो सपना नहीं, असल में उसकी ज़िंदगी के साथ घटी हुई एक दुर्घटना थी, जिसे वह भूल नहीं पा रही थी। कुछ देर में उस लड़की की माँ अपनी बेटी के लिए कॉफ़ी बनाकर ले आई, और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, "मेरी बच्ची! एक बार कोशिश तो करो! हो सकता है तुम्हें नींद आ जाए और तुम सो सको।" तब उसकी बेटी उसकी माँ की ओर देखते हुए बोली, "नहीं मॉम! आपको क्या लगता है? मैंने कोशिश नहीं की होगी? मैं बहुत कोशिश करती हूँ, लेकिन अगर एक बार मेरी नींद टूट जाए, तो वह टूट ही जाती है। उसके बाद मुझे नींद नहीं आती है।" अपनी बेटी का दर्द सुनकर उसकी माँ की आँखें एक बार फिर भर आईं, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकती थी, क्योंकि उसकी बेटी का ऐसा दुःख था जिसे उसे अकेले ही सामना करना था। तब उस लड़की की माँ अपने पति के गले लगकर कितनी देर रोती रही और बोली, "आखिर कब तक हमारी बेटी इस तरह इस दर्द में रहेगी? आखिर कोई तो ऐसा होगा जो हमारी बेटी को इस दर्द से बाहर निकालेगा! कोई तो होगा इस दुनिया में!" ऐसा कहकर वह फूट-फूटकर रो दी। वहीं उनकी खूबसूरत सी बेटी, जो कुछ भी उस रात को सपने में दिखाई दिया करता था, उसे वह अपनी डायरी में उतार लिया करती थी और पिछले दस सालों से उसे एक ही चीज, लगातार एक ही दुर्घटना, लगातार दिखाई दे रही थी और उसे ही वह हर रोज अपनी डायरी में उतार लिया करती थी। उसे आज भी अच्छी तरह से याद है जब बारह साल की वह अपने माता-पिता से गुस्सा होकर घर से बाहर, अपना स्कूल का बैग टांगकर, अपनी बुआ के घर जाने के लिए निकल पड़ी थी और गलती से वह एक ऐसी बस में बैठ गई जो बस दूर के गाँव में जाया करती थी। बस में बैठने के बाद उसे नींद आ गई थी, जिससे वह सही समय पर नहीं जाग पाई थी। करीब छह-सात घंटे वह उस बस में सोती रही थी और किसी ने भी उस मासूम सी बच्ची पर ध्यान नहीं दिया था। सबको यही लग रहा था कि यह बच्ची शायद पढ़ने के लिए जा रही है, क्योंकि वह उस वक्त स्कूल यूनिफॉर्म में थी। रिमझिम इस बात को याद नहीं करना चाहती थी और एक बार फिर उसको अपनी सोच को झटका देकर आगे लिखने लगी। जी हाँ! जिस खूबसूरत लड़की की यहाँ बात हो रही है, उसका नाम रिमझिम था। रिमझिम अपने माता-पिता की इकलौती औलाद थी। जब वह बारह साल की थी, तब वह गुस्से में अपने माँ-बाप से नाराज़ होकर गलती से एक अँधेरे गाँव में पहुँच गई थी। वहाँ से आजाद होने के बाद भी, आज पूरे दस साल बाद भी, उसका पीछा नहीं छोड़ा था। कल का दिन रिमझिम के लिए काफी बड़ा था, तो वह जल्दी से ही अपनी डायरी लिखकर तैयार होने के लिए चली गई, क्योंकि सुबह होने में ज्यादा देर नहीं थी। वहीं दूसरी ओर, वह लड़का-लड़की, जिसे राणा बचाकर लाया था, अपने कमरे में जाते ही एक बार फिर एक-दूसरे को किस करने लगे। उन्हें इतनी इंजर्ड हालत में रोमांस करते हुए देखकर देव और बाकी के टीम मेंबर बोले, "ये लैला-मजनू एक बार फिर से शुरू हो गए! इन्हें अपनी चोटों का भी ख्याल नहीं है!" और हँसने लगे। राणा के गैंग में केवल कुछ ही खास मेंबर थे। उसकी कोई ज्यादा से ज्यादा दो सौ लोगों की फ़ौज नहीं थी। उसके पास केवल दस से बारह लोग ही आदमी थे, लेकिन दस से बारह आदमी ऐसे थे जिनकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि अगर उन्हें कोई भी काम सौंपा जाए, तो उसे काम को किये बगैर वे पीछे नहीं हटते थे। और वह लड़का-लड़की, जो उस होटल में पकड़े गए थे, वे भी राणा के खास आदमी थे। वे राणा के कहने पर किसी की जान ले भी सकते थे और अपनी जान हँसते-हँसते दे भी सकते थे, क्योंकि राणा की ताकत का उन्हें अच्छी तरह से अंदाजा था, क्योंकि वह दोनों लड़का-लड़की बचपन से ही एक साथ रहे थे। तो वे दोनों आपस में एक-दूसरे को मोहब्बत करने लगे थे। हालाँकि, उनकी अभी तक शादी नहीं हुई थी। बिना शादी के ही वे दोनों एक साथ रहा करते थे। इसीलिए राणा की टीम में सभी उन्हें लैला-मजनू कहकर बुलाया करते थे। राणा की टीम में जितने भी टीम मेंबर थे, उनमें से हर किसी के साथ कुछ ना कुछ दुर्घटना हुई थी, जिसके बाद से वे सभी इतने ज़्यादा बेरहम बन गए थे कि कोई उनकी ताकत का अंदाजा नहीं लगा सकता था। क्योंकि उस वक्त होटल में पुलिस वालों ने उनके रोमांस में खलल डाला था, तो अब वे लोग वापस अपने अड्डे पर जाकर शुरू हो गए थे। तब राणा ने अपने खास आदमी देव को ऑर्डर दिया कि जल्दी ही टीम के डॉक्टर को बुलाया जाए और उनका ट्रीटमेंट कराया जाए, क्योंकि पुलिस वालों ने उन दोनों लड़के और लड़की, यानी लैला-मजनू को बहुत ही ज्यादा बुरी तरह से मारा था। लेकिन अपने-अपने ज़ख्म भूलकर वे दोनों एक बार फिर एक-दूसरे को प्यार करने में बिजी हो गए थे। वहीं राणा अपने कमरे में जाकर अपनी कुर्सी पर आँखें बंद करके बैठ गया था और उसे कुछ ऐसा याद आने लगा था, जिसकी वजह से वह ज्यादा देर अपनी आँखें बंद नहीं कर पाया था और उसने घबराकर अपनी आँखें खोल ली थीं। राणा की आँखें एकदम से लाल-सुर्ख हो गई थीं। तभी उसके पास फ़ोन पर एक नोटिफ़िकेशन आता है। उसे नोटिफ़िकेशन को देखने के बाद राणा के चेहरे पर एक डेविल मुस्कान आ जाती है, क्योंकि उस नोटिफ़िकेशन में यह बताया गया था कि डीजीपी गौरव की लाश को पुलिस वालों ने बरामद कर लिया है। और जल्दी ही एक और पुलिस वाले की लाश से पूरे शहर में अफ़रा-तफ़री मचाने वाली थी, क्योंकि छह महीने के अंदर-अंदर किसी बड़े अफ़सर की यह आठवीं लाश थी जिसे बहुत ही ज्यादा बेरहमी और बेरहम तरीके से मारा गया था। वहीं दूसरी ओर, दोस्तों! आपको आज का यह एपिसोड कैसा लगा? प्लीज़ ज़रूर बताएँ और लाइक, कमेंट करना बिल्कुल ना भूलें! प्लीज़ दोस्तों! और मेरी नई स्टोरी को ज़्यादा से ज़्यादा लाइक और शेयर करें और कुछ भी सुझाव देना चाहते हैं तो प्लीज़ बिल्कुल भी पीछे ना हटें।
६ महीने में आठवें पुलिस वाले की इतनी बेरहमी से मौत ने पूरे शहर में बवाल मचा दिया था। हमेशा की तरह, यह अखबारों में प्रमुख समाचार बन चुका था; एक और पुलिस वाले की दर्दनाक और खतरनाक मौत राणा के हाथों हुई थी।
जी हाँ, पूरे शहर में राणा का नाम ही काफी था। राणा को किसी ने नहीं देखा था, लेकिन उसके खतरनाक कामों को शहर का बच्चा-बच्चा जानता था। हर कोई जानता था कि राणा एक ऐसा तूफान है जिसमें अब तक कितने ही पुलिस वाले बह चुके थे।
एक बार फिर, बड़े-बड़े मीडिया ने पुलिस वालों को ट्रोल करना शुरू कर दिया था। नेताओं की भी मुश्किल बढ़ गई थी। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि राणा को कैसे पकड़ा जाए, क्योंकि अब तक जितने भी बेहतरीन पुलिस वाले राणा को पकड़ने भेजे गए थे, वे सब मारे जा चुके थे।
और न केवल मारे गए थे, उनकी मौत इतनी दर्दनाक थी कि देखने वालों की रूह काँप जाती थी। राणा का दूसरा नाम ‘मौत का फ़रिश्ता’ था। हर कोई उसे ‘मौत के फ़रिश्ता’ के नाम से पुकारता था।
जल्दी ही सभी न्यूज़ चैनलों पर टीआरपी की बाढ़ आ गई थी, क्योंकि राणा की खबर शहर के हर किसी की पसंदीदा खबर थी। हर कोई राणा की खबर देखना पसंद करता था।
राणा के आदमी भी उसकी खबर को सुपरहिट फिल्म की तरह देखते थे और शोर मचाते थे। उन्हें ऐसा लगता था मानो उन्होंने बड़ी जीत हासिल कर ली हो, क्योंकि चारों तरफ़ सिर्फ़ राणा का ही नाम सुनाई देता था।
लेकिन राणा को न्यूज़ पेपर या हेडलाइन से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। उसका एक ही मकसद था: सभी पुलिस वालों को मारना, उनका नामोनिशान मिटा देना। ऐसा लगता था मानो उसने पुलिस वालों को मारने का ठेका ले लिया हो, जैसे घर बनाने का ठेका लेते हैं।
वहीं, रिमझिम अगली सुबह ठीक ६:०० बजे तैयार होकर खड़ी थी। हालाँकि वह आधी रात के बाद सोई नहीं थी, लेकिन उसके चेहरे की ताज़गी बिल्कुल भी कम नहीं हुई थी।
उसके चेहरे पर एक अलग तेज था, जो किसी को भी मोहित कर सकता था। रिमझिम एक दुबली-पतली, बहुत खूबसूरत लड़की थी और उसके चेहरे पर हल्के-हल्के डिम्पल उसे और भी खूबसूरत बनाते थे।
उसके लंबे, गहरे, घने बाल थे, जिन्हें वह हमेशा गुंथकर बाँधती थी।
रिमझिम ने अपना साधारण सूट पहना था और अपनी खूबसूरत काली आँखों पर एक छोटा सा चश्मा लगा लिया था। जैसे ही वह बाहर आई, उसने देखा कि उसकी माँ खड़ी होकर उसका इंतज़ार कर रही थी।
रिमझिम की माँ का नाम सरिता अग्रवाल और पिता का नाम मयंक अग्रवाल था। मयंक और सरिता की एक ही बेटी थी।
मयंक और सरिता की जान अपनी बेटी रिमझिम में बसती थी। रिमझिम भी अपने माता-पिता से बहुत प्यार करती थी। तब रिमझिम की माँ ने कहा था, "बेटा, आज की न्यूज़ देखी तुमने? एक बार फिर उस राणा ने किसी पुलिस वाले की जान ले ली है।"
जैसे ही उसकी माँ ने उसे बताया कि एक और पुलिस वाले का मर्डर हो चुका है, रिमझिम की आँखें हैरत से फटी रह गई थीं, क्योंकि रिमझिम एक क्राइम रिपोर्टर थी।
रिमझिम ने अपनी माँ की ओर देखते हुए कहा था,
"ओफ़्फ़ो! माँ! क्या वाकई आप सच कह रही हैं? फिर तो मुझे अभी निकलना होगा! ऑफ़िस में बहुत काम होगा।
ये राणा जब भी किसी का मर्डर करता है, ऑफ़िस का काम दोगुना बढ़ जाता है। और अगर मैं समय पर नहीं गई, तो बॉस मेरी छुट्टी कर देंगे।"
तब रिमझिम के पिता, मयंक अग्रवाल, हँसते हुए आए थे और बोले थे,
"अरे मेरी प्यारी बहादुर बेटी! रुक जाओ! पहले नाश्ता कर लो, क्योंकि मैंने तुम्हारे बॉस से बात कर ली है कि तुम ८:०० बजे तक आओगी।"
उसके पिता की बात सुनकर रिमझिम उन्हें घूरकर देखने लगी थी और बोली थी,
"ओह हो! पापा! मैंने आपसे कितनी बार कहा है? अपनी दोस्ती अपने कामों के लिए रखा करो! मेरे मामले में बिल्कुल मत बोला करो! मुझे पसंद नहीं है! वे मेरे बॉस हैं! मुझे उनका हर आर्डर मानना होगा! आप मेरी बात क्यों नहीं समझते हो?"
ऐसा कहते हुए रिमझिम जल्दी से एक सेब हाथ में उठाकर और एक हाथ में अपना बैग उठाकर बाहर निकल पड़ी थी। मयंक और सरिता उसे रोकते ही रह गए थे, लेकिन वह नहीं रुकी थी। उसने अपनी स्कूटी स्टार्ट की और अपने ऑफ़िस की ओर रवाना हो गई थी।
उसके जाने के बाद सरिता ने मयंक से कहा था,
"आपने अपने दोस्त वैभव जी से बात करके इसको क्रिमिनल रिपोर्टिंग में तो लगा दिया है,
लेकिन आज तक इस लड़की की कैमरे के सामने आने की हिम्मत ही नहीं हुई है। आखिर कब तक ऐसा चलेगा? आप अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारी बेटी कितनी कमज़ोर है। वह अभी तक अपने अतीत से उभरी नहीं है।
मैं जानती हूँ कि उसके अतीत से उभरने के लिए ही आपने उसकी नौकरी एक ऐसे फील्ड में लगवाई है जहाँ पर क्रिमिनल से वास्ता पड़ता ही रहता है,
और भला हमारी कमज़ोर सी बेटी कैसे इन क्रिमिनल का सामना करेगी? कैसे उनसे सवाल-जवाब करेगी? कैसे उन पर रिपोर्ट तैयार करेगी? क्योंकि आज तक वह अपने अंदर के डर को ख़त्म नहीं कर पाई है। भले ही आपने अपने कनेक्शन को यूज़ करके उसे एक क्रिमिनल रिपोर्टर बना दिया हो, लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि वह रिपोर्टिंग कर पाए।"
तब मयंक उठा और सरिता के कंधों पर हाथ रखते हुए बोला था,
"मैं जानता हूँ तुम क्या कहना चाहती हो, लेकिन मैं भी एक बाप हूँ। मैं अपनी बेटी को इस तरह से हालातों से डरते हुए, घबराते हुए नहीं देख सकता हूँ। और उसे मैं क्रिमिनल रिपोर्टिंग में इसीलिए लगवाया है ताकि वह धीरे-धीरे ज़िंदगी का सामना करे और देखे कि उसके आस-पास क्या हो रहा है। और मुझे लगता है यह जो राणा है, अगर हमारी बेटी उसके बारे में न्यूज़ देगी, तो मुझे पूरी उम्मीद है कि उसके अंदर का जितना भी डर है, वह सब ख़त्म हो जाएगा।"
यह सुनकर सरिता घूरकर अपने पति को देखने लगी थी और बोली थी,
"आपकी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कहने की? क्या आप जानते नहीं हैं कि वह राणा कितना खतरनाक है? उसे आज तक देश की पुलिस नहीं पकड़ पाई है। पुलिस वालों की वह जान लेने में लगा हुआ है, और आप चाहते हैं कि मेरी, मेरी फूल सी बेटी, उस जल्लाद राणा के बारे में जानकारी निकाले? नहीं! नहीं! नहीं! मेरी बेटी डरी-सहमी सी ही ठीक है, और मुझे वह ऐसे ही पसंद है। मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी के अंदर किसी भी तरह की कोई हिम्मत-ताक़त आए! समझे आप?"
ऐसा कहकर सरिता किचन में चली गई थीं और बोली थीं,
"मैं चाय लेकर आती हूँ। पी लीजिये, और ये फालतू बातें आगे से मेरे सामने मत कीजिएगा।"
सरिता की बात सुनकर मयंक कुछ सोचता हुआ मुस्कुरा दिया था। वहीं दूसरी ओर, राणा अपने आदमियों का शोर-शराबा सुनकर कमरे से बाहर आ गया था।
और जैसे ही उसने देखा कि उसकी न्यूज़ को देखकर उसके आदमी बुरी तरह से हल्ला-गुल्ला कर रहे थे, शोर मचा रहे थे, तो वह जाकर ठीक टीवी के सामने खड़ा हो गया। और जैसे ही उसके आदमियों की नज़र राणा पर पड़ी, वे सब एकदम से शांत हो गए, जहाँ थे वहीं जम गए, मानो किसी ने उन्हें स्टैचू कर दिया हो। सभी की हालत खराब हो गई थी।
तब देव धीरे से उठा था और राणा के सामने हाथ बाँधकर सिर झुकाकर खड़ा हो गया था। तब राणा ने देव से कहा था,
"मुझे प्यास लगी है। पता लगाओ नया पुलिस अफ़सर कब आ रहा है।
साथ ही साथ मुझे कुछ खाना भी है, इसीलिए इंतज़ाम करो। और याद रहे, मैं कम से कम चार-पाँच पुलिस वालों को खाना चाहता हूँ, तो सबकी डिटेल निकालकर मेरे सामने जमा करो। समझे तुम लोग?
और ये फालतू के नाटक बंद करो और जल्दी से काम पर जुट जाओ।"
राणा ने अपने मुँह से कहा था कि उसे प्यास और भूख दोनों लगी है, तो इसका मतलब साफ़ था कि एक बार फिर राणा शहर में तबाही मचाने के लिए तैयार था।
रिमझिम अपनी स्कूटी से जल्दी ही अपने कार्यालय में गई थी। कार्यालय के नीचे अपनी स्कूटी पार्क करने के बाद, उसने कार्यालय की इमारत की ओर देखा; उसकी कार्यालय की इमारत काफी ऊँची थी। रिमझिम उसे हर रोज़ कार्यालय आने के बाद, ऊपर से लेकर नीचे तक अपनी पूरी इमारत देखा करती थी।
वह यह भी सोचती थी, "अगर किसी दिन तेज़ी से भूकंप आ गया और यह पूरी की पूरी इमारत गिर गई, तो क्या वह बच जाएगी या मर जाएगी?" 😁😁 रिमझिम के दिमाग में हमेशा यही सवाल आता रहता था।
फिर, हमेशा की तरह, वह अपने एक हाथ में बैग टाँगकर, दूसरे हाथ से अपना चश्मा ठीक करती हुई, कार्यालय के अंदर गई थी। 😁
कार्यालय के अंदर जाते ही, उसने गार्ड से हेलो किया और कहा था,
"अरे काका, सब ठीक है ना आपके घर पर?"
रिमझिम की बात सुनकर वह गार्ड मुस्कुरा दिया था और बोला था,
"जी जी, रिमझिम बीबी, सब ठीक है और आप ठीक हैं?"
तब रिमझिम अपना चश्मा हल्का सा ठीक करते हुए बोली,
"जी जी, सब ठीक है।"
और जल्दी ही मुस्कुराती हुई वह अपने तल पर जाने लगी थी।
रिमझिम का कार्यालय सातवें तल पर था। उसे हमेशा से ही ऊँचाई से बहुत डर लगता था। इसीलिए वह लिफ़्ट का इस्तेमाल नहीं करती थी और सीढ़ियों से ही आया-जाया करती थी क्योंकि उसे लगता था, "अगर लिफ़्ट में वह अटक गई, तो दम घुटने से उसकी जान भी जा सकती है।" 😁
इसलिए वह लिफ़्ट से नहीं जाती थी। ऐसे ही कितने सारे उटपटाँग ख़्याल हमेशा से ही रिमझिम के दिमाग में आते रहते थे। जल्दी ही रिमझिम सात मंज़िलों का सफ़र सीढ़ियों से तय किया था।
सातवीं मंज़िल तक पहुँचने में वह पूरी पसीने से तर-बतर हो गई थी। और हमेशा की तरह, सातवीं मंज़िल पार करने के बाद, वह अपने बैग में से निकालकर दो घूँट पानी पिया करती थी। उसके बाद अच्छी तरह से अपना चश्मा, अपने मुँह-चेहरे पर आए पसीने, और गर्दन, अच्छी तरह से रुमाल से पोछकर, तब वह अपने तल के अंदर गई थी।
अंदर जाते ही, उसने देखा, सभी उसके साथ काम करने वाले सहकर्मी एक टेबल को चारों ओर से घिरे हुए खड़े थे। रिमझिम यह देखकर हैरान हो गई थी। वह यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि यह, भले ही यह उसके अंकल, यानी कि उसके पिता के ख़ास मित्र का कार्यालय था, लेकिन सभी नियमों का काफ़ी ज़्यादा ख़्याल रखते थे।
लेकिन आज इस तरह से एक ही डेस्क पर सभी जमा थे, तो रिमझिम समझ गई थी कि ज़रूर इन लोगों के हाथों कुछ बड़ी ख़बर लगी थी। तब रिमझिम सब लोगों को साइड में करने की कोशिश कर रही थी और वह भी देखना चाहती थी कि आखिर उस टेबल पर ऐसा क्या हो रहा था जिसकी वजह से जितने भी काम करने वाले थे, वह इस टेबल पर झुके हुए थे। लेकिन कोई भी रिमझिम को आगे नहीं जाने दे रहा था। सभी खुद ही आगे बढ़ने में लगे हुए थे।
तब रिमझिम ने अपनी कोशिश छोड़ दी थी। एक-दो बार उचक-उचककर उसने देखने की कोशिश की थी, लेकिन उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया था। तब रिमझिम जाकर सीधा अपनी डेस्क पर बैठ गई थी और कुछ ही देर बाद वहाँ पर तरुण जी की आवाज़ सुनाई दी थी। तरुण कोई और नहीं, रिमझिम का बॉस और उसके पिता मयंक अग्रवाल का दोस्त था।
तरुण ने आते ही दो बार अपने हाथों की हथेलियाँ बजाई थीं और कहा था,
"एवरीवन, बी अटेंशन, प्लीज़! एवरीवन! एवरीवन! या... यू आल्सो! एवरीवन, सी टू मी! एवरीवन, बी अटेंशन!"
तरुण ने आते ही सबको अपनी ओर देखने का इशारा किया था।
जितने भी स्टाफ़ एक डेस्क की तरफ़ झुके हुए थे, वह सभी वापस से अपनी-अपनी डेस्क पर चले गए थे और तरुण की ओर देखने लगे थे। तब रिमझिम को उस डेस्क की ओर देखने का मौका मिल गया था, तो उसने देखा, उस डेस्क पर रिद्धिमा बैठी हुई थी और वह सभी को राणा के ऊपर उसने जो कवरेज की थी, वह दिखा रही थी।
जिसकी वजह से चैनल को काफ़ी ज़्यादा टीआरपी मिली थी। तो सभी पर्सनली रिद्धिमा की वह कवरेज लाइव देख रहे थे। अब रिमझिम को सब कुछ समझ में आ गया था और वह अपना सर झटककर तरुण की बातों की ओर ध्यान देने लगी थी।
तब तरुण ने रिद्धिमा को चीयर अप करते हुए, उसकी तारीफ़ में कहा था,
"हाँ, तो दोस्तों, जैसे कि आप लोग अच्छी तरह से जानते हैं, मैंने अपने वर्कर्स को हमेशा अपनी फैमिली की तरह ही रखा है। भले ही मैं आप लोगों से उम्र में कितना भी बड़ा हूँ, लेकिन फिर भी मैं आप लोगों को दोस्त कहकर ही बुलाता हूँ। वह भी इसलिए ताकि आप लोगों को हमेशा ही मुझसे अपनापन मिलता रहे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप इस बात का नाज़ायज़ फ़ायदा उठाएँ। अब क्या अकेले रिद्धिमा ने ही इस बात का ठेका ले रखा है कि पूरे ऑफ़िस में वही सबसे ज़्यादा न्यूज़ लेकर आएगी?"
"आप लोग अच्छी तरह से जानते हैं, राणा खुद में ही कितनी बड़ी न्यूज़ है और अकेली रिद्धिमा ही एक, हमारे ऑफ़िस में एक ऐसी काम करने वाली लड़की है जो राणा को फ़ॉलो करती है और उसके सारे कवरेज इकट्ठा करके लेकर आती है। लेकिन आप में से कोई भी आज तक कोई ऐसी न्यूज़ लेकर नहीं आया है जिससे टीआरपी पर कुछ ख़ास फ़र्क़ पड़ा हो। तो गाइज़, यह बात काफ़ी ज़्यादा डिसअपॉइंटिंग है मेरे लिए, लेकिन अब से ऐसा नहीं चलेगा। मुझे न्यूज़ चाहिए! आप जानते हैं, टीआरपी की रेस में हमारा चैनल सातवें नंबर पर आता है। आखिर कब मेरा सपना होगा, अपने चैनल को नंबर वन बनाने का? क्यों आप लोग काम नहीं करते हो?"
तरुण जी सब पर गुस्सा होते हुए, हर किसी को डाँट रहे थे।
वहीं रिद्धिमा टाँग पर टाँग रखकर बैठी हुई, सभी की ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। क्योंकि रिद्धिमा शुरू से ही काफ़ी ज़्यादा ख़बर राणा के बारे में लेकर आती थी। उसकी ख़ास एक वजह यह भी थी क्योंकि उसके एक जानने वाले मित्र पुलिस में अधिकारी थे। तो रिद्धिमा किसी न किसी बहाने से उनके घर जाती थी और राणा के बारे में जितना हो सकता था, उतनी जानकारी इकट्ठा करके ले आया करती थी। तो इस बात का भी वह बहुत ही ज़्यादा फ़ायदा उठाती थी।
तरुण जी एक-एक करके सभी काम करने वाले, सभी रिपोर्टर्स को समझा रहे थे कि जितना हो सके, उतना अच्छे से अच्छी ख़बर लेकर आएँ। तब तरुण ने अपनी आवाज़ थोड़ा और तेज़ करते हुए कहा था,
"आज मैंने सभी के लिए एक इम्पॉर्टेंट मीटिंग रखी है और उस मीटिंग में मैंने कुछ काम हैं जो सभी के लिए अलग-अलग बाँटे हैं। तो मैं किसी की कोई भी एक भी बात नहीं सुनूँगा। सबको उस काम को हर हाल में करना ही होगा। अगर किसी ने भी अपना काम ईमानदारी से नहीं किया या कुछ भी आनाकानी की, तो मैं उसे फ़ायर कर दूँगा।"
तरुण बहुत ही ज़्यादा गुस्से में था। इसीलिए उसने सबको धमकी दे डाली थी।
तरुण की बात सुनकर जितने भी रिपोर्टर्स वहाँ मौजूद थे, वह एक-दूसरे का मुँह देखने लगे थे और फिर जल्दी ही वह मीटिंग की तैयारी करने लगे थे। वह अच्छी तरह से जानते थे, उनके बॉस तरुण मीटिंग में किसी से भी किसी भी तरह का कोई भी सवाल पूछ सकते थे और उसके अनुसार उन्हें काम मिलने वाला था। और कोई भी अपनी नौकरी नहीं खोना चाहता था। तब तरुण ने रिमझिम की ओर देखते हुए कहा था,
"रिमझिम, तुम आओ। मेरे केबिन में आकर मुझसे मिलो।"
रिमझिम ने जैसे ही तरुण की बात सुनी, पहले तो वह डर गई, लेकिन फिर उसने हल्का सा मुस्कुराकर हाँ कहा था और जल्दी ही वह तरुण के पीछे-पीछे उसके केबिन में चली गई थी।
दूसरी ओर, राणा का हुक्म था, तो देव को तो मानना ही था। इसीलिए देव ने अपने तरीके से तहक़ीक़ात करनी शुरू कर दी थी। किस शहर में कितने अधिकारी हैं और इस वक़्त कहाँ हैं और क्या कर रहे हैं? क्योंकि राणा को अब प्यास और भूख दोनों ही लगी थी। इसका मतलब साफ़ था, वह काफ़ी ज़्यादा संख्या में पुलिस अधिकारियों की जान लेना चाहता था क्योंकि राणा की भूख और प्यास का मतलब ही सीधा यही होता था—पुलिस वालों की बड़ी ही बेरहमी और बेदर्दी से जान लेना।
राणा अपना हुक्म देकर चला गया था, लेकिन उसके जो आदमी थे, वह उसके हुक्म को पूरा करने के लिए पूरे शहर में फैल गए थे और उन्होंने अपने-अपने नेटवर्क ऑन कर लिए थे क्योंकि जहाँ से किसी भी पुलिस वाले की जो भी जानकारी उन्हें मिलने वाली थी, वह सारी जानकारी, फ़ोटो समेत, उन्हें राणा को देनी होती थी। और फिर प्लान के मुताबिक़, उन्हें किसी एक दिन अगवा करके, पहले टॉर्चर किया जाता था, उसके बाद राणा बड़ी ही बेरहमी से उनकी जान लिया करता था। कितने ही सालों से यह सिलसिला चलता हुआ आया था, लेकिन अब यह सिलसिला कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया था क्योंकि राणा को अब जल्दी-जल्दी प्यास और भूख लगने लगती थी।
वेल, राणा अब अपने शानदार बेडरूम में था और अपने कमरे की बालकनी में खड़ा होकर अपने ख़ूबसूरत बाग़ को देख रहा था। और फिर कुछ सोचकर, जैसे ही राणा ने अपनी आँखें बंद कीं, एक चेहरा फिर से उसकी आँखों के सामने घूमने लगा था और उसने फिर से अपनी आँखें खोल ली थीं। वह चेहरा किसी और का नहीं, बल्कि 12 साल की मासूम लड़की का चेहरा था जो उसके गाँव में, उसके घर में फँस गई थी, पूरे 15 दिनों के लिए। वह लड़की कोई और नहीं, बल्कि आज की हमारी डरी-सहमी सी क्राइम रिपोर्टर, रिमझिम अग्रवाल थी।
राणा को उस लड़की का नाम कुछ भी पता नहीं था, लेकिन आज तक वह उस लड़की का चेहरा नहीं भूल पाया था। जब भी राणा अपनी आँखें बंद किया करता था, रिमझिम की मोटी-मोटी आँखें, ख़ूबसूरत सा उसका चेहरा, पतली-पतली उसकी नाक, उसे सब कुछ दिखाई देने लगता था। और राणा ज़्यादा देर तक अपनी आँखें बंद नहीं कर सकता था। इसीलिए वह तुरंत अपनी आँखों को खोल लिया करता था। आज फिर जैसे ही उसने थोड़ी देर के लिए अपनी आँखें बंद कीं, रिमझिम का 12 साल पुराना चेहरा उसकी आँखों के सामने आ गया था।
और उसने फिर से अपनी आँखें खोल ली थीं और खींचकर एक जोरदार घूँसा अपनी बराबर वाली दीवार में मारा था। जिसका नतीजा यह था कि दीवार की जो टाइल थी, वह हट गई थी। राणा का हाथ एकदम लोहे के जैसा मज़बूत था। हालाँकि उसे चोट आई थी और उसके हाथों से ख़ून टप-टप निकलने लगा था, लेकिन उसे उस वक़्त किसी ख़ून की, किसी भी चीज़ की कोई परवाह नहीं थी। वह केवल इस बात से गुस्सा था कि आज तक वह उस लड़की को क्यों नहीं भूल पाया है? क्यों नहीं?
ऐसा नहीं था कि राणा ने उस लड़की को ढूँढने की कोशिश नहीं की थी। उसने कितनी ही बार, बस वालों से लेकर हर जगह उस लड़की की तलाश करनी जारी रखी थी, लेकिन वह उस लड़की का कहीं से कहीं तक, दूर-दूर तक कोई पता नहीं लगा पाया था। ऊपर से उसे अपना मिशन भी पूरा करना था—पुलिस को इस दुनिया से निस्तनाबूद करने का। इसीलिए फिर वह उस लड़की को भूलकर, अपने तन-मन से, अब केवल पुलिस वालों को ख़त्म करने में लग चुका था—पुलिस वालों की नज़रों में और इतना ही नहीं, आम जनता की नज़रों में राणा का दूसरा नाम अब मौत का फ़रिश्ता था। लोग अब उसको राणा के नाम से कम, मौत के फ़रिश्ता के नाम से ज़्यादा जानते थे।।।।।✍🏻
रिमझिम, डरी-सहमी सी, तरुण के सामने खड़ी हुई थी। तरुण ने कुछ देर रिमझिम को देखा, फिर उसकी ओर देखते हुए बोला, "क्या हुआ? इस तरह से क्यों देख रही हो? क्या मेरे सर पर तुम्हें सींग नज़र आ रहे हैं या मैं तुम्हें कोई राक्षस नज़र आ रहा हूँ जो मैं पलक झपकते ही तुम्हें खा जाऊँगा?"
तरुण की बातें सुनकर रिमझिम अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके तरुण की ओर देखने लगी। तब तरुण ने रिमझिम से कहा, "देखो, बेटा, मैं तुझे बचपन से जानता हूँ और तुझे यह भी अच्छी तरह से पता है कि मैं तेरे पिता का बचपन का दोस्त हूँ। लेकिन इस ऑफ़िस में मैं तुम्हारा बॉस भी हूँ और यकीन मानो, तुम्हारे पिता के कहने पर ही मैं तुम्हें यहाँ रखा हुआ हूँ। वरना अब तक मैं तुम्हें यहाँ से निकाल चुका होता, समझी तुम?"
"तुम पिछले छह महीने से यहाँ काम कर रही हो। कहने को तो तुम पिछले छह महीने से यहाँ हो, लेकिन अभी तक तुमने एक भी काम नहीं किया है। केवल अपनी डेस्क पर बैठकर अगल-बगल के लोगों को देखती रहती हो कि कौन कैसे क्या करता है। आखिर कब करोगी तुम कुछ काम?"
"आखिर अपनी ज़िंदगी में कुछ करोगी भी या नहीं? अगर तुम्हें इतना ही डर लगता है, तो घर पर क्यों नहीं बैठती हो? तुम जानती हो, अभी तक मैं मयंक की शर्म कर रहा था, लेकिन कब तक? आखिर कब तक उसकी शर्म करूँ मैं?"
"तुम लोगों के चक्कर में क्या अपना ऑफ़िस बंद कर लूँ? मेरे ऑफ़िस में केवल एक ही लड़की काम करती है, रिद्धिमा, और तो कोई आज तक कोई ख़बर लेकर नहीं आया है। और तुम लोगों ने यह आदत लगा रखी है—डर लगता है, डर लगता है! अरे, जब तुम लोगों को डर ही लगता है, तो अपने घर पर क्यों नहीं बैठते हो?"
"हाँ, और क्राइम रिपोर्टिंग में आने का मतलब क्या है तुम लोगों का? जानते भी हो क्राइम रिपोर्टर का मतलब क्या होता है?"
तरुण जो मुँह में आ रहा था, वह रिमझिम को बोले जा रहा था। रिमझिम अपनी गर्दन नीचे करके उसकी एक-एक बात सुन रही थी। साथ ही साथ दो-तीन मोटे-मोटे आँसू उसकी आँखों से उसके गालों पर लुढ़क आए थे।
रिमझिम पिछले छह महीने से तरुण के पास काम कर रही थी, लेकिन उसने न तो एक भी न्यूज़ कवर की थी और न ही किसी जाने-माने शख़्स का इंटरव्यू लिया था। इतना ही नहीं, रिमझिम ने कभी भी बाकी के ग्रुप वालों को ज्वाइन नहीं किया था जो किसी न किसी क्रिमिनल के पीछे लगे रहते थे। रिमझिम हमेशा सबसे दूरी बनाकर रखती थी। वह केवल लोगों को काम करते हुए देखा करती थी, लेकिन कुछ भी काम नहीं करती थी। आज तरुण के सब्र का बाँध टूट गया था, इसलिए उसने आज जमकर रिमझिम की क्लास लगा दी थी।
तब तरुण ने रिमझिम की ओर देखते हुए कहा, "अब मेरे सामने यह मासूम सी शक्ल बनाने की कोई ज़रूरत नहीं है, समझी तुम? और हाँ, अभी जो मीटिंग है, उसकी जाकर तैयारी करो और याद रखना, उस मीटिंग में जिसे जो भी काम दिया जाएगा, उसे वह काम करना ही होगा। अगर किसी ने भी वह काम नहीं किया, तो मैं इस बार मयंक का, यानी कि तुम्हारे पिता का, कोई भी लिहाज़ नहीं रखूँगा और तुम्हें काम से निकाल दूँगा, समझी तुम? अब जाओ यहाँ से।"
तरुण ने रिमझिम को वहाँ से जाने के लिए कह दिया। रिमझिम, झुँझलाए मन से, वहाँ से जाने लगी।
रिमझिम अपना उदास चेहरा लिए अपनी डेस्क पर आकर बैठ गई और अपनी कोहनी टेबल पर रखकर, अपना हाथ सर पर रखकर सोचने लगी कि अगर तरुण अंकल ने उसके पिता मयंक को बता दिया कि उसने अभी तक कोई काम नहीं किया है और वह उसे काम से निकालने वाले हैं, तो उसके पिता उसे पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं कर पाएँगे। और वैसे भी, कितने भरोसे के साथ उन्होंने उसे इस काम पर भेजा था? रिमझिम यह सोचते हुए फिर से रोने लगी, लेकिन फिर थोड़ा सा अपना इरादा मज़बूत करते हुए उसने सोचा कि तरुण अंकल इस बार उसे जो भी काम कहेंगे, वह ज़रूर करेगी और उन्हें शिकायत का मौका नहीं देगी। उसके बाद वह मीटिंग की तैयारी करने में जुट गई।
वहीं दूसरी ओर, तरुण किसी से फ़ोन पर बात कर रहे थे और कह रहे थे, "मयंक के बच्चे को तेरे कहने पर मैंने उस मासूम सी बच्ची को इतना डाँट दिया! तू जानता है, उसकी आँखों से कितने मोटे-मोटे आँसू आ रहे थे? कितना बुरा लग रहा था मुझे! और एक तू है कि हमेशा मेरी दोस्ती का नाज़ायज़ फ़ायदा उठाता है। अब पता नहीं मेरी बच्ची मेरे बारे में क्या सोच रही होगी। तू जानता है, मैंने उसे कितना डाँटा आज! वह भी सिर्फ़ तेरे कहने पर।"
दूसरी ओर, रिमझिम के पिताजी हँसने लगे और बोले, "मैं जानता हूँ, मेरे दोस्त, तुझे रिमझिम को डाँटकर कुछ ख़ास अच्छा नहीं लग रहा होगा, लेकिन मेरी बात मान यार, वह उसके लिए बहुत ज़्यादा ज़रूरी है। अगर उसे अपने अतीत से बाहर आना है, तो उसे अपने वर्तमान को खुलकर, अच्छी तरह से जीना होगा।"
कहीं ना कहीं तरुण इस बात के लिए सहमत था और कहने लगा, "अब मैंने उसे डाँट-फटकार तो दिया है, अब यह बता, आगे क्या करना है?"
तब मयंक तरुण को कुछ समझाने लगा और तरुण के चेहरे का रंग उड़ने लगा और वह कहने लगा, "वाकई तू यह काम रिमझिम से करवाना चाहता है?"
तब मयंक ने तरुण से कहा, "हाँ, मैंने जो तुझे कहा है, तू बस वैसा कर और बाक़ी जब रिमझिम शाम को घर आएगी, मैं उसे अपने आप बात कर लूँगा।"
मयंक की बात सुनकर तरुण ने फ़ोन की ओर देखते हुए फ़ोन काट दिया और सोचने लगा, "बेचारी मेरी मासूम बच्ची रिमझिम, पता नहीं कैसे कर पाएगी यह काम?" और फिर कुछ काम करने में बिज़ी हो गया।
वहीं दूसरी ओर, राणा का आदमी देव, दो पुलिस वालों की पूरी डिटेल्स लाकर राणा के सामने रख देता है। राणा एक-एक नज़र उन दोनों पुलिस वालों के फ़ोटो की ओर देखता है और पूछता है, "कौन-कौन है ये और कहाँ से हैं?"
तब देव बताना शुरू करता है, "इनमें से एक पुलिस ऑफ़िसर का नाम एजाज़ अहमद है और दूसरे पुलिस ऑफ़िसर का नाम वीर सिंह है। और ये अभी नए-नए ही पुलिस की टीम में ज्वाइन हुए हैं। एक इनमें से एस.आई. की पोस्ट पर है और दूसरा ए.सी.पी. की पोस्ट पर है।"
तब राणा ने ए.सी.पी. एजाज़ अहमद की ओर देखते हुए कहा, "अच्छा, तो यह ए.सी.पी. साहब एजाज़ अहमद अभी क्या कर रहे हैं और कहाँ मिलेंगे?"
तब देव ने कहा, "सर, अगले हफ़्ते ए.सी.पी. एजाज़ अहमद की शादी है और वहाँ पर काफ़ी सारे पुलिस वाले, बहुत सारे, इकट्ठे होने वाले हैं।"
"क्या! या...या...या..." जैसे ही राणा ने यह सुना, वह जोरों से हँसने लगा। हा हा हा हा हा हा हा हा! वह हँसता हुआ बहुत ही ज़्यादा ख़तरनाक लग रहा था और बोलने लगा, "इतना सारा खाना एक साथ! बहुत मज़ा आएगा! एक काम करो, पता लगाओ कि इस ए.सी.पी. एजाज़ अहमद की शादी कहाँ है और किस जगह है और कब होनी है। इसकी शादी को ही हम इसकी मैयत बना डालेंगे!"
राणा ने बड़ी नफ़रत से कहा और देव उसकी ओर देखता ही रह गया। देव को कहीं ना कहीं इस बार थोड़ा सा बुरा लग रहा था कि उसकी शादी के दिन ही एजाज़ अहमद की मौत—यह काफ़ी बोल्ड डिसीज़न था। लेकिन राणा को कोई चीज़, किसी चीज़ से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। उसे तो बस अब ए.सी.पी. एजाज़ अहमद को मौत की सज़ा देनी थी, वह भी उसी की शादी के दिन।
जल्दी ही देव ने उसे कह दिया, "बहुत जल्द ए.सी.पी. की पूरी डिटेल्स आपके सामने होगी और उसकी शादी कब, किससे और किस जगह होनी है, यह भी पता लग जाएगा। तब तक आप तैयारी कर सकते हैं।"
ऐसा कहकर देव वहाँ से चला गया। वहीं राणा एक बार फिर से एजाज़ अहमद और वीर सिंह की डिटेल्स पढ़ने लगा और मुस्कुराने लगा क्योंकि पुलिस वालों की मौत के बाद जो सुकून राणा के चेहरे पर देखने को मिलता था, वह बहुत ही कम मिला करता था। पुलिस वालों को मौत देने के बाद उसे बहुत ही ज़्यादा सुकून मिला करता था।
वहीं दूसरी ओर, जल्दी ही तरुण ने ठीक 5:00 बजे एक मीटिंग ऑर्गेनाइज़ कर दी थी। जितने भी क्राइम रिपोर्टर वहाँ थे—तरुण के पास 12 से 13 क्राइम रिपोर्टर थे, जिनमें रिद्धिमा नंबर वन की पोज़िशन पर थी, बाक़ी सब उसके बाद ही आते थे। किसी ने छोटे-मोटे क्रिमिनल्स के बारे में रिपोर्ट देकर अपना नाम कहीं ना कहीं दर्ज कर ही रखा था। लेकिन रिमझिम का तो अभी तक खाता भी नहीं खुला था। इसीलिए रिमझिम उन सभी में सबसे ज़्यादा पीछे थी। सभी तरुण के आने का इंतज़ार कर रहे थे। जल्दी ही तरुण सबके सामने खड़े हुए और उन्होंने कहना शुरू किया, "तो दोस्तों, जैसा कि आप लोग जानते हैं, इस वक़्त अगर टीआरपी का नाम कुछ है, तो वह सिर्फ़ राणा।"
"इसीलिए मैं आप सबको राणा के पीछे लगा रहा हूँ क्योंकि जिस राणा को पुलिस तक नहीं पकड़ पा रही है, कोई भी नेता उसका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा है और वह बेख़ौफ़ होकर पूरे शहर में मर्डर करता हुआ फिर रहा है, वह भी पुलिस वालों का! तो उससे ज़्यादा टीआरपी, उससे ज़्यादा बड़ा क्रिमिनल इस पूरे शहर में ही तो क्या, इस पूरे देश में कोई नहीं हो सकता है।"
"इसीलिए मुझे ज़्यादा से ज़्यादा राणा की ख़बर चाहिए। और हाँ, तुम सबको सिर्फ़ राणा की ख़बर निकालने पर ही काम करना होगा, समझे तुम लोग? और मैं तुम लोगों को सिर्फ़ एक महीने का टाइम दे रहा हूँ। तुम सभी को एक महीने के अंदर-अंदर राणा के बारे में ऐसी इन्फ़ॉर्मेशन लेकर आनी होगी जो किसी के भी पास, किसी और चैनल के पास नहीं होगी—वह भी सबूत के साथ, समझे तुम लोग? और हाँ, रिमझिम, तुम्हारे पास भी एक महीने का समय है। अगर एक महीने के अंदर-अंदर तुम राणा के ख़िलाफ़ कोई भी सबूत, कोई भी ख़बर या कोई भी सनसनीख़ेज़ न्यूज़ नहीं लेकर आई, तो मजबूरन मुझे तुम्हें नौकरी से निकालना पड़ेगा, समझी तुम?"
तरुण ने सबके सामने एक बार और रिमझिम को बुरी तरह से झाड़ दिया। रिमझिम केवल अपनी आँखों में उदासी लिए तरुण की ओर देख रही थी क्योंकि उसे तो क्राइम, ख़ून-ख़राबे के नाम से ही डर लगा करता था और अब तो उसके बॉस ने उसे एक क्रिमिनल के ही ख़बर लाने के लिए कह दिया था। रिमझिम को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह आखिर कैसे क्रिमिनल के बारे में न्यूज़ लेकर आ सकती है; उसे तो कुछ पता भी नहीं है। तब तरुण ने फिर से बोलना शुरू किया, "अब तुम लोग यह मत कहना कि तुम लोगों को नहीं पता है कि तुम लोग कहाँ से राणा की ख़बर लाओगे। मैं कुछ नहीं जानता हूँ। चाहे पुलिस के चक्कर काटो, चाहे गली-गली घूमो, चाहे पूरे शहर में घूमो, पर जितना हो सके, उतनी ज़्यादा इन्फ़ॉर्मेशन राणा के बारे में लेकर आओ, समझे तुम लोग?"
तरुण ने जैसे सभी को अपना फैसला सुना दिया था।
जितने भी क्राइम रिपोर्टर इस वक़्त वहाँ मौजूद थे, वह सब एक-दूसरे के मुँह को देखने लगे क्योंकि राणा की ख़बर लाने का मतलब था सीधे-सीधे मौत को दावत देना। हालाँकि राणा ने पुलिस वालों के अलावा किसी और की जान नहीं ली थी, लेकिन जो इंसान पुलिस वालों की जान इतनी बेरहमी से ले सकता था, उसका क्या भरोसा कि वह किसी और की जान नहीं ले सकता? रिमझिम कभी अपने सामने खड़े हुए अपने बॉस को देख रही थी, तो कभी अपने आस-पास बैठे हुए कलीग्स को देख रही थी। तभी...✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻❤❤❤❤
रिमझिम समेत सभी लोगों को तरुण ने एक अत्यंत खतरनाक कार्य सौंपा था: सबसे खतरनाक अपराधी राणा की जानकारी निकालना।
रिमझिम को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह अपने आस-पास के सहकर्मियों को देखने और उनकी बातें सुनने लगी, शायद उसे कोई विचार मिल जाए।
उसे काम करने का तरीका समझ नहीं आ रहा था। जैसे ही उसके सहकर्मियों की नज़र रिमझिम पर पड़ी, वे उसका मज़ाक उड़ाते हुए बोले, "है चश्मिश! बहुत फ़ायदा उठा लिया तुमने अपने बाप की दोस्ती का। अब हम भी देखते हैं कैसे टिकोगी तुम यहां पर, क्योंकि जहां तक हम जानते हैं, तुम्हारे अंदर इतनी हिम्मत नहीं है कि तुम किसी भी अपराधी के बारे में कोई जानकारी लेकर आ जाओगी। और वह भी राणा की जानकारी? तो असंभव है तुम्हारे लिए!"
उसका दूसरा सहकर्मी बोला, "यार, मेरी तो शर्त रही, मेरी तो लगी शर्त! यह लड़की किसी भी कीमत पर नहीं जीत पाएगी, और अगले महीने तक इस चश्मिश की इस ऑफिस से छुट्टी हो जाएगी। वैसे भी, इस चश्मिश के उबाऊ चेहरे को देख-देख कर रोज़-रोज़ मूड ख़राब हो जाता था। चलो अच्छा है, चश्मिश से पीछा तो छूटेगा।"
हर कोई अपने-अपने तरीके से रिमझिम की खिल्ली उड़ा रहा था। हालाँकि, चश्मा पहनने के बाद रिमझिम एक शांत स्वभाव वाली लड़की लगती थी, लेकिन उसने कभी इस बात को इतना गंभीरता से नहीं लिया था। वहां मौजूद सभी लोग यह अच्छी तरह जानते थे कि रिमझिम से ज़्यादा खूबसूरत उसके पूरे ऑफिस में कोई नहीं है। लेकिन वह कभी अपनी खूबसूरती को दिखावा नहीं करती थी; वह हमेशा सादा रहती थी, जिसकी वजह से उसके सहकर्मी आज उसे ज़्यादा चिढ़ाने लगे थे। क्योंकि जब से तरुण ने सबके सामने रिमझिम को फटकारा था, तब से उन लोगों के मुंह खुल गए थे। वरना कोई भी रिमझिम के सामने कुछ नहीं बोल पाता था, क्योंकि उन लोगों को पता था कि अगर रिमझिम ने तरुण से उनकी शिकायत कर दी, तो उनकी नौकरी जा सकती है, क्योंकि तरुण रिमझिम के पिता के बहुत अच्छे दोस्त थे। यह बात ऑफिस के हर कर्मचारी को पता थी।
लेकिन आज तरुण ने सबके सामने रिमझिम को डांटा था, इसलिए उन्हें रिमझिम के बारे में बातें करने का मौका मिल गया था।
अपने सहकर्मियों की बातें सुनकर रिमझिम को समझ नहीं आ रहा था कि वह उनका क्या जवाब दे। वह रोते हुए उस कमरे से निकल गई और सीधे बाथरूम की ओर जाने लगी। टॉयलेट में जाकर शीशे के सामने खुद को देखकर वह जोरों से रोने लगी। फिर उसने अपने मुंह पर दो-तीन बार पानी छिड़का, अपना चश्मा साफ करके फिर से पहन लिया, और शीशे में खुद को देखते हुए बोली, "शांत हो जा, रिमझिम! शांत हो जा! इन लोगों की बातों पर ध्यान मत दे। तू इन लोगों जैसी नहीं है। शांत हो जा, रिमझिम! शांत हो जा!"
इस तरह की बातें करके वह खुद को शांत करने की कोशिश करने लगी। लेकिन रिमझिम को बार-बार बहुत गुस्सा आ रहा था, और उसका दिल कर रहा था कि वह जोरों से रोना शुरू कर दे। क्योंकि रिमझिम यही करती थी: जब भी वह परेशान या दुखी होती थी, वह जोरों से रोना शुरू कर देती थी।
रिमझिम इतना जोर से रोया करती थी कि आस-पास वाले भी उसके हालचाल पूछने आ जाते थे। लेकिन यहां ऑफिस था। अगर रिमझिम जोर से रोना शुरू कर देती, तो ऑफिस वाले उसका और मज़ाक उड़ाते। यह रिमझिम अच्छी तरह जानती थी, इसलिए उसने रोने का विचार त्याग दिया और जल्दी ही थोड़ा सा फ़्रेश होकर बाहर आ गई और अपनी सीट पर बैठ गई।
कुछ देर बाद तरुण उसकी डेस्क पर आ गए और बोले, "बेटा, मैं जानता हूँ तुम काफ़ी परेशान हो, लेकिन मैं चाहता हूँ कि इस बार तुम खुद को साबित करो। और अगर एक महीने बाद में तुम्हें यहां से निकाल भी दूँगा, तो फिर कहाँ काम करोगी तुम? मुझे लगता है अगर तुम यहां काम नहीं कर पाओगी, तो तुम कहीं भी काम नहीं कर पाओगी। और मयंक आखिर कब तक रहेगा तुम्हारे साथ? कब तक तुम्हें सपोर्ट करेगा वह? तो इसीलिए तुम्हें अपने लिए खुद खड़ा होना होगा, खुद को सपोर्ट करना सीखना होगा।"
अपने अंकल तरुण की बात सुनकर रिमझिम केवल हाँ में सिर हिलाने लगी, लेकिन मन ही मन में बोली, "बड़े आए मुझे खड़ा होना सिखाने वाले! एक तो सबके सामने मेरी बेइज़्ज़ती कर दी, और अब यहां पर भोले बन रहे हैं! मैं घर जाकर देखो अपने पिताजी से कैसे आपकी शिकायत करती हूँ!"
रिमझिम मन ही मन में तरुण के खिलाफ प्लान बनाने लगी, और उसने सोच लिया कि रो-रो कर अपने पिता को तरुण के व्यवहार के बारे में सब कुछ बता देगी और अपने पिता से तरुण को डांट करवाएगी। रिमझिम शुरू से ही ऐसी थी: जब भी कोई उसे परेशान करता था या दुख देता था, तो वह सीधा जाकर अपने पिता से शिकायत कर दिया करती थी। और बचपन में उसके पिता, अगर किसी ने भी उसे परेशान किया, तो उसे टीचर को भी सबक सिखाया करते थे; उसके सामने दंड-बैठक करवाया करते थे, और रिमझिम से ही दो-तीन डंडे भी पड़वा दिया करते थे। लेकिन अब रिमझिम बड़ी हो चुकी थी, लेकिन उसकी आदत अभी भी नहीं गई थी। अभी भी उसे यही लग रहा था कि जैसे ही वह तरुण की शिकायत अपने पिता से रोते हुए करेगी, बचपन की तरह अभी भी उसके पिता तरुण जी को दो-तीन डंडे मारेंगे और उनसे दंड-बैठक करवाएंगे, और फिर रिमझिम बहुत खुश होगी।
मयंक अग्रवाल एक सेवानिवृत्त आर्मी ऑफिसर थे। उन्हें अच्छी तरह पता था कि उनकी बेटी कब क्या सोचती है। इसलिए उन्होंने अपने दोस्त तरुण के माध्यम से उसे एक खतरनाक मिशन पर लगा दिया था, और वह यह भी जानते थे कि उनकी बेटी इस मिशन को कब गंभीरता से ले लेगी। इसका उन्होंने पूरा प्लान कर लिया था। लेकिन अभी उन्हें अपनी बेटी को उसके अतीत से निकालना था। जब तक वह अपनी बेटी को उसके अतीत से नहीं निकालेंगे, तब तक वह आज में जीना नहीं सीखेगी, और वह अभी तक अपने माँ-बाप के सहारे ही अटकी रहेगी, और वह कभी किसी का सामना नहीं कर पाएगी, बल्कि खुद ही सब सहती रहेगी, जैसे कि आज ऑफिस वालों ने उसकी जमकर मज़ाक उड़ाया था, लेकिन उसने चुपचाप सब की बातें सुन ली थीं, उल्टा खुद ही रोने के बारे में सोचने लगी थीं।
तरुण रिमझिम को समझा कर चले गए, और कुछ देर में सभी ऑफिस वालों की छुट्टी हो गई। और कल से उन्हें राणा के खिलाफ जानकारी भी इकट्ठा करनी थी। तो यही सोचकर सभी जल्दी-जल्दी निकल गए और अपने-अपने तरीके से राणा के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के बारे में प्लान बनाने लगे।
वे सब एक-एक ग्रुप बनाकर काम कर रहे थे, लेकिन किसी ने भी अपने ग्रुप में रिमझिम को नहीं लिया था, क्योंकि वे रिमझिम को किसी भी लायक नहीं समझते थे। उन्हें लगता था कि यह लड़की पूरी तरह बेकार है।
अगर इस लड़की को हमने अपने साथ रखा, तो ना तो यह किसी काम आएगी, उल्टा हमें कहीं ना कहीं फँसा ज़रूर देगी। क्योंकि रिमझिम ऐसे ही किया करती थी। एक बार एक ग्रुप वालों के साथ तरुण ने उसे ज़बरदस्ती भेज दिया था। वह ग्रुप वाले एक अपराधी का पीछा करने के लिए गए हुए थे। वह अपराधी एक मॉल में घुस गया था।
तो मीडिया रिपोर्टर, जो कि अपने पहचान पत्र वगैरह छुपाकर उस अपराधी का पीछा कर रहे थे, वह उसकी चुपके से क्लिपिंग ले रहे थे, ताकि उसकी क्रिमिनल की क्लिपिंग वह अपने चैनल की टीआरपी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर सकें। उस ग्रुप में रिमझिम भी साथ में थी। तरुण ने रिमझिम को इसलिए भेजा था ताकि वह थोड़ा बहुत कुछ सीखे और थोड़ा सा समस्या का सामना करना सीखे। लेकिन रिमझिम ने उसे मॉल में जाकर पूरा रायता फैला दिया था। जैसे ही उसके साथी उस अपराधी की वीडियो रिकॉर्डिंग करने लगे थे, उसने चिल्लाकर अपने साथी को डांटा था और कहा था, "यह क्या कर रहे हो तुम? इस तरह से बिना किसी से पूछे उसकी रिकॉर्डिंग लेना, उसके वीडियो बनाना, यह सही नहीं है। यह अच्छे मर्यादा नहीं हैं।"
जैसे ही रिमझिम ने यह कहा, उसे अपराधी ने सुन लिया था, और जल्दी ही उस अपराधी ने अपने तीन-चार आदमियों को बुलाकर उन सभी रिपोर्टर्स की जमकर पिटाई कर दी थी। रिमझिम तो वहां से जैसे-तैसे बचकर आ गई थी, लेकिन उसके साथ के जो पुरुष सहकर्मी थे, वे पूरी तरह से फंस गए थे। उन लोगों की रिमझिम की वजह से बहुत पिटाई हुई थी। उन सब ने आकर रिमझिम के बारे में शिकायत तरुण से कर दी थी।
लेकिन जैसे-तैसे तरुण ने सारा मामला संभाल लिया था, और रिमझिम को कुछ नहीं कहा था। वह केवल सर झुकाए खड़ी हुई थी। रिमझिम का चेहरा ही ऐसा था; उसका चेहरा इतना मासूम सा था कि कोई उसे डांट भी नहीं सकता था। लेकिन आज तो दिल कड़ा करके तरुण ने आखिरकार उसे डांट ही दिया था।
वहीं दूसरी ओर, राणा अपना अगला शिकार करने के लिए तैयार था, और इस बार उसने पुलिस वाले को उसी के घर में मारने का प्लान बनाया था। वरना हर बार राणा सबसे पहले पुलिस वाले को अगवा किया करता था; उसे कुछ दिनों तक प्रताड़ित करने के बाद वह उसकी बेरहमी से हत्या कर देता था। लेकिन इस बार राणा के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। इस बार पुलिस वालों में अपना और भी ज़्यादा खौफ पैदा करने के लिए राणा ने उसी के घर में, उसी की शादी वाले दिन, उस पुलिस वाले को मारने का प्लान बना लिया था। राणा अच्छी तरह से जानता था कि अगर इतने सारे पुलिस वालों के सामने वह एक एसीपी की जान लेगा, तो सभी पुलिस वालों के दिल में उसके लिए कितना ज़्यादा खौफ बढ़ जाएगा। और राणा कोई आम मौत तो देता नहीं था; राणा की दी हुई मौत बहुत ही ज़्यादा खतरनाक और बेरहम हुआ करती थी।
जल्दी ही राणा ने अपने सभी गुर्गों को उस शादी में जाने के लिए कह दिया था। और शादी में गिने-चुने लोग ही जाने वाले थे, लेकिन राणा के कनेक्शन इतने ज़्यादा थे कि उसके जितने भी आदमी थे, वे कहीं ना कहीं होटल स्टाफ़ के काम करने वालों के साथ मिल गए थे। और अब केवल अगर वहां पर किसी का जाना था, तो वह था सिर्फ़ और सिर्फ़ राणा। राणा उस शादी में जाने के लिए पूरी तरह से तैयार था।❤❤❤
दोस्तों, आपको आज का एपिसोड कैसा लगा? प्लीज़ ज़रूर बताएँ। like share comments करें दोस्तों ✍🏻✍🏻
वही दूसरी और रिमझिम अपने घर चली गई थी और घर जाकर उसने सबसे पहले जोरों से तेज तेज रोना शुरू कर दिया था जैसे ही रिमझिम ने बच्चों की तरह रोना शुरू कर दिया था उसके माता-पिता घबरा गए थे उसे समझाने की कोशिश करने लगे थे हालांकि मयंक अग्रवाल जी को इस बात का पहले से ही अंदेशा था कि अब रिमझिम क्या करने वाली थी उन्हें लगी रहा था कि रिमझिम अब रोना शुरू कर देगी और ऐसा ही हुआ था तब इससे पहले की रिमझिम और तेज तेज रोती और पड़ोसी भी पूछने के लिए आते की रिमझिम को क्या हुआ है तभी मयंक जी ने कितने सारे समोसे रिमझिम के सामने रख दिए थे जैसे ही रिमझिम ने समोसे समोसे की तरफ देखा वह एकदम से रोना भूल गई थी और फिर समोसे पर बुरी तरह से टूट पड़ी थी रिमझिम ने एक साथ 6 से 7 समोसे खा लिए थे समोसो में उसकी जान बसा करती थी उसके पिता अच्छी तरह से जानते थे तरुण ने उसे डांटा है तो आकर वह घर पर रोएगी और टरुण की रोती रोती शिकायत करेगी और अगर वह और तेज तेज रोएगी तो पड़ोसी तक पूछने के लिए आ जाएंगे इसीलिए मयंक जी ने पहले से ही रिमझिम के लिए कितने सारे समोसे मंगा कर रख लिए थे वह अच्छी तरह से जानते थे उनकी बेटी चाहे कितने ही गुस्से में हो कितना ही रो रही हो कितना ही हंस रही हो या किसी भी सिचुएशन में हो समोसे देखते ही वह पूरी तरह से बदल जाती थी और फिर केवल समोसे खाने में लग जाती थी और सब कुछ भूल जाती थी उस वक्त भी रिमझिम समोसे ही खा रही थी समोसे खाते-खाते तरुण की सारी बात अपने पिता को बता रही थी उसके पिताजी भी मुस्कुराते हुए अपनी बेटी को ही देख रहे थे,, रिमझिम ने पूरे 10 समोसे खा लिए थे और 10 समोसे खाने के बाद उसने एक लंबी सी डकार ली थी और फिर अपने पिता के सामने जाकर बैठ गई थी और बोली थी आपने मेरी बात सुनी ना मैंने आपको क्या बोला है अभी, आज तरुण अंकल ने क्या-क्या मेरे साथ आप सुन रहे हैं ना आप डटेंगे ना उन्हें अब मारेंगे ना उन्हें रिमझिम ने एक बार फिर से अपनी बचकानी हरकतें शुरू कर दी थी और अपने पिता को तरुण को करने के लिए कहने लगी थी रिमझिम की बात सुनकर उसके पिता अपना हल्का सा चेहरा सेड बनाते हुए बोले थे मेरी बच्ची तुझे फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है वैसे भी कल शाम तो मैं उसे तरुण से मिलने ही वाला हूं और फिर देख तेरे सामने मैं उसकी कैसी क्लास लगाता हूं तुम तो जानती है ना अपने पापा को मयंक की बात सुनकर रिमझिम मुस्कुराने लगी थी और जल्दी से उसने अपने पिता को गले से लगा लिया था तब रिमझिम के पिता ने रिमझिम से कहा था अब तुम जाओ अपने कमरे में जाकर आराम करो, मैं अभी थोड़ी देर में तुम्हारी फेवरेट कॉफी के साथ तुमसे मिलता हूं क्योंकि मुझे तुमसे कुछ बात भी करनी है अपने पिता की बात सुनते हुए रिमझिम जल्दी से अपनी मां को भी गले लगा कर बाय कहती हुई अपने कमरे में चली गई थी।।।। रिमझिम के कमरे में जाने के बाद सरिता जी मयंक से बोली थी यह क्या है जी आखिर कब तक चलेगा यह सब आखिर कब बंद होगी रिमझिम की बचकानी हरकतें आप अच्छी तरह से जानते हैं वह 21वीं साल में लग रही है और उसकी हरकतें अभी तक वही 12 13 साल की बच्ची के जितनी है ।। आखिर कब बड़ी होगी वह सरिता की बात सुनकर मयंक जी मुस्कुराए थे और बोले थे रिलैक्स रिलैक्स सरिता जी आप इतना परेशान क्यों होती है, और हमारी बच्ची बड़ी हो जाएगी और हमारी अभी इतनी भी क्या जल्दी है और वह बच्ची है उसे जीने दो अभी प्लीज उसे पर यह जिम्मेदारी टेंशन परेशानी यह सब मत डालो वैसे ही वह अपने पास्ट को लेकर क्या कम परेशान है आज तक मेरी बच्ची एक भी रात को सुकून की नींद नहीं सोई है और वह थोड़ी बहुत जो उसकी बच्चों वाली हरकतें हैं वह आप बंद करना चाहती है आखिर आप कहना क्या करना क्या चाहती है उसके साथ मयंक जी ने थोड़ा सा सरिता पर गुस्सा करते हुए कहा था मयंक की बातें सुनकर सरिता ने भी अपनी गर्दन झुका ली थी क्योंकि कहीं ना कहीं मयंक बिल्कुल सही कह रहे थे उनके बच्ची बड़े हादसे से गुजरी थी उसके बाद से कितने ही दिन लगे थे उसे नॉर्मल लाइफ होने में और अभी भी वह नॉर्मल नहीं थे अभी भी वह रातों को सो नहीं पाती थी। हर रात को वह जाग कर बिताया करती थी बस अगर दिन में वह थोड़ी बहुत बच्चों वाली हरकतें कर भी रही थी तो सरिता जी को उसका बुरा नहीं मानना चाहिए था सरिता को भी खुद पछतावा होने लगा था और कहने लगी थी आग आपको क्या लगता है मैं अपनी बेटी की दुश्मन हूं नहीं ना मैं मां हूं मैं भी चाहती हूं मेरी बेटी हर चीज का हर हालातो का डटकर सामना करें लेकिन जब तक वह जिंदगी को सीरियस नहीं लेगी तब तक कैसे काम चलेगा जी और फिर एक एक्सीडेंट की वजह से तो वह हिम्मत नहीं हार सकती ना जी और फिर कब तक वह इस एक्सीडेंट को लेकर बैठी रहेगी वह पास्ट था वह बीत चुका है अब उसे आगे बढ़ना चाहिए अपनी जिंदगी को फेस करना चाहिए अगर कोई उसे कुछ कह रहा है तो उसे खुद सामना करना चाहिए आप अच्छी तरह से जानते हैं आजकल कैसा जमाना चल रहा है सरिता की बात सुनकर मयंक जी अब थोड़ा सा नरम पड़ चुके थे और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले थे तुम्हें परेशान होने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है और हां याद रखना वह एक रिटायर्ड करनल की बेटी है तो वह कायर तो बिल्कुल भी नहीं होगी समझी तुम और फिक्र मत करो मुझे पूरी उम्मीद है बहुत जल्द रिमझिम अपनी जिंदगी में सबको जवाब देना सीख लेगी मयंक ने बड़ी हिम्मत के साथ कहा था और जल्दी ही वह किचन में घुस गए थे अपनी बेटी रिमझिम के लिए उसकी पसंद की कॉफी बनाने के लिए वही रिमझिम अपने कमरे में आकर एक बार फिर से डकार मारने लगी थी क्योंकि उसने पूरे 10 12 समोसे खा लिए थे और उसके बाद वह मुस्कुराने लगी थी और कहने लगी थी समोसे खाने के बाद सोने का मजा ही कुछ और है ऐसा कहती हुई उसे जल्दी से अपना फेवरेट पिंक कलर का पिलो हाथ में लिया था जो बहुत ही ज्यादा सॉफ्ट था और उसे बाहों में भरकर एक बहुत ही प्यारी नींद वह सो चुकी थी।।।।।।।।।। और उसने अपने चश्मा तक को नहीं उतारा था मयंक जी ठीक 15 मिनट के उतरे इस हालत में सो गए थे तब उसे उन्होंने सरिता जी को बुलाया। जैसे ही सरिता जी कमरे में आई और उन्होंने अपनी बेटी रिमझिम को भी इस तरह से सोते हुए देखा तो वह भी मुस्कुराए बिना ना रह सके थे क्योंकि रिमझिम बहुत ही बुरी तरह से सोई हुई थी एक तो उसने अपना चश्मा भी नहीं उतारा था और उसका एक पेर तो हवा में लटक रहा था एक पेर बेड के ऊपर था तब सरिता जी बोली थी मेरी झल्ली रिमझिम ना जाने कब बड़ी होगी यह लड़की ऐसा कहते हुए सरिता जी ने उसका चश्मा उतार कर साइड टेबल पर रख दिया था और उसका पैर जो नीचे लटक रहा था उसे उठा कर अच्छी तरह से बेड पर रख दिया था और हल्की सी ब्लैंकेट से उसे कवर कर दिया था और फिर मयंक जी अपने हाथ में पकड़ी हुई काफी को देखकर बोले थे अब क्या करूं मुझे तो इससे बात करनी थी लेकिन यह तो सो गई है और इतनी प्यारी सो रही है कि मुझे तो इसको उठाने का दिल ही नहीं कर रहा है तब सरिता जी बोली थी नहीं मयंक जी रिमझिम को बिल्कुल मत उठायेगा आप अच्छी तरह से जानते हैं ना जाने इसकी नींद यह कितनी देर की है अगर इसे फिर से वह बुरा सपना आ गया तो यह ज्यादा देर नहीं सो पाएगी और फिर पूरी रात जागेगी और वैसे भी आपने इसे 10 12 समोसे खिला दिए तो क्या यह सोएगी नहीं आप अच्छी तरह से जानते हैं समोसे खाने के बाद इसे कितनी तेज नींद आती है और मैंने कितनी बार मना किया है इसके सामने समोसे मत लाया करो वह un हेल्दी होते हैं उसे खाकर यह बीमार भी पड़ सकती है सरिता जी की बात सुनकर मयंक अपनी नज़रे चुराने लगे थे और बोले थे अच्छा-अच्छा मिसेज अग्रवाल अब आप गुस्सा मत कीजिए और अब देखिए कॉफी तो हमने आपकी बेटी के लिए बनाई थी लेकीन जोकि अब बेटी तो आपकी सो गई है तो आप ही हमें काफी के साथ कंपनी दे दीजिए मयंक जी ने सरिता जी को मनाते हुए कहा था और जल्दी ही दोनों काफी का मग हाथ में लिए बाहर अपने छोटे से गार्डन में आकर बैठ गए थे।।।।।।। वहीं दूसरी और राणा के असिस्टेंट देव ने एसीपी आजाद अहमद की पूरी डिटेल्स शादी समेत की एहसाद अहमद की शादी कब किस और कहां होने वाली थी यह एक बार फिर से राणा के हाथों में थमा दी थी राणा यह देखकर मुस्कुराने लगा था शादी एक शहर के मशहूर जाने माने हाल में होनी थी तब राणा ने देव से कहा था क्या इस शादी में मीडिया वाले आ रहे हैं जैसे ही देव ने यह सुना वह हैरानी से राणा की ओर देखने लगा था और बोला था राणा यह क्या कह रहे हो तुम मीडिया वालों से तो तुम हमेशा बचते हुए आए हो फिर अचानक से शादी में मीडिया में कुछ समझ नहीं तब राणा देव की और मुस्कुराते हुए बोला था देव देव देव मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है पिछले 12 साल से तुम मेरे साथ काम कर रहे हो लेकिन अभी तक तुम्हें यही नहीं पता है कि राणा कब क्या करता है और क्या कहता है अगर इस शादी में मीडिया वाले नहीं आ रहे हैं तो मीडिया वालों को बुलाओ मैं चाहता हूं मीडिया वाले एसीपी आजाद अहमद की मौत लाइव पूरे देश को दिखाएं समझे तुम राणा की बात सुनकर देव कांपने लगा था क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था अगर आजाद अहमद की मौत लाइव दिखाई जाएगी तो उससे कितना हाहाकार मच सकता था और इतना ही नही बच्चों पर बड़ों पर क्या बुरा प्रभाव पड़ सकता था क्योंकि कोई राणा गोली मारकर पेट में चाकू घुसा कर या गले में फांसी का फंदा लगाकर या जहर देकर तो एसीपी को मारने वाला नहीं था यह तो बहुत आसान और सिंपल सी मौत थी राणा तो बहुत ही बेदर्दी और बेरहम तरीके से मारा करता था राणा के द्वारा दी गई मौत को लाइव दिखाने का मतलब था साफ-साफ पूरे देश में राणा के नाम का कोहराम मचा ना।।। ।। देव ने थोड़ा डरते डरते राणा से कहा था राणा मुझे लगता है तुम्हें इस बारे में एक बार फिर सोचना चाहिए क्योंकि यह एक बहुत बड़ा डिसीजन है।।।।। देव की बात सुनकर राणा उसे घूर कर देखने लगा था देव इससे आगे भी कुछ और कहना चाहता था लेकिन राणा को इस तरह से अपने तरफ घूरते हुए देखा वह एकदम से चुप हो गया था। और जल्दी ही उसके कमरे से लंबे-लंबे कदम बढ़ता हुआ बाहर निकल गया था।।।।। मेरी दूसरी ओर एसीपी आजाद अहमद बाकी सब साथियों के साथ एक जरूरी मीटिंग में बिजी था हालांकि उसकी शादी को ज्यादा समय नहीं बचा था लेकिन उससे पहले वह कितने सारे काम थे जो निपटाना चाहता था।।।। क्योंकि आज कमिश्नर साहब के साथ सभी बड़े ऑफिसर्स की एक सीक्रेट मीटिंग थी तो सभी उसी की तैयारी में जुटे हुए थे उसे सिकरेट मीटिंग में कुछ ऐसा होने वाला था जिसमें इसके बारे में किसी ने भी नहीं सोचा था।।।।।✍🏻
एक खुफिया स्थान पर पुलिस अधिकारियों की गुप्त बैठक होने लगी थी। किसी को भी इस बैठक के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
तभी बैठक के प्रमुख, शहर के पुलिस आयुक्त स्वयं, ने एसीपी आजाद सहित सभी वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाया था। उनके पास चर्चा करने के लिए एक विषय था: राणा।
आयुक्त साहब ने आते ही कहा, "क्या राणा के बारे में किसी को कोई सुराग मिला है?" आयुक्त के इस प्रश्न पर सभी पुलिसवालों ने सिर झुका लिया। इससे स्पष्ट था कि किसी को भी राणा के बारे में कुछ नहीं पता चला था।
तब आयुक्त ने कहा, "आप लोगों को चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है। मैं जानता हूँ राणा कितना शातिर और खतरनाक है। अगर उसके बारे में कुछ पता नहीं चल रहा है, तो यह उसके शातिरपन का ही हिस्सा है।
मैंने आप सभी को कुछ बताने के लिए बुलाया है। मैंने राणा के खिलाफ तीन विशेष एजेंट तैनात किए हैं, जिनके पास पूर्ण अधिकार होंगे। वे शहर में कुछ भी करने में सक्षम होंगे। उनके कानून और व्यवस्था को कोई नहीं रोक सकता। इतना ही नहीं, उन्हें किसी का भी, कभी भी, एनकाउंटर करने का अधिकार होगा। क्योंकि राणा नाम का अपराधी अब पुलिसवालों के ही नहीं, पूरे शहर के सिर पर बैठकर नाच रहा है। अब उसे इस तरह खुला नहीं छोड़ा जा सकता। राणा ने बहुत दिवाली मना ली है, अब पुलिस उसे करारा जवाब देगी। या तो वह हमारे विशेष एजेंट के हाथों मारा जाएगा, या जल्द ही सलाखों के पीछे होगा।"
आयुक्त साहब की बातों में राणा के प्रति गुस्सा और नफरत साफ झलक रही थी। वहाँ मौजूद सभी पुलिसवाले राणा से बेहद नफरत करते थे।
क्योंकि राणा ने उनमें से कई लोगों की जान ली थी! कोई उसका भाई था, तो कोई दोस्त। इसलिए सभी के दिलों में राणा के लिए गहरी नफरत थी।
तब एसीपी एजाज अहमद ने कहा, "सर, वे एजेंट कहाँ हैं? हमें यह जानकर खुशी हुई कि आपने ऐसे एजेंट तैयार किए हैं जो राणा को सीधी टक्कर देंगे। लेकिन हम उनसे मिलना चाहते हैं।" एजाज अहमद की बात सुनकर आयुक्त मुस्कुराए और बोले, "आजाद साहब, हमने सुना है... ठीक तीन दिनों के बाद आपकी शादी है।"
आयुक्त साहब के आजाद की शादी के बारे में बोलते ही, एसीपी एजाज शर्माने लगे और बोले, "लेकिन सर, इस समय हम एक खतरनाक मुजरिम के बारे में बात कर रहे हैं। फिर यह शादी बीच में कहाँ से आ गई?"
तब आयुक्त साहब हल्के से मुस्कुराते हुए बोले, "तुम्हें चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है। हम चाहते हैं तुम अपनी आने वाली ज़िंदगी में खुशी से आगे बढ़ो। और रही बात राणा की, तो तुम लोग अपने-अपने स्तर पर उसके बारे में जितनी हो सके उतनी जानकारी निकालो। और उन एजेंटों से मिलने की बात है, तो मैं बता दूँ, उन एजेंटों की पहचान उजागर नहीं की जाएगी। वे तीनों एजेंट इतने खतरनाक होंगे और कब वे किसके आस-पास होंगे, आप लोग सोच भी नहीं सकते।
इस बैठक का मकसद केवल एजेंटों की जानकारी देना और राणा के खिलाफ जो भी सबूत या जानकारी है, वह सब इस डेस्क पर जमा करना है। क्योंकि हमारे एजेंट स्वयं उस जानकारी को अपने नज़रिए से देखना चाहते हैं।" आयुक्त साहब के कहने पर सब एक-दूसरे की ओर देखने लगे और बोले, "लेकिन सर, यहाँ तो कोई एजेंट नहीं है, तो फिर कौन देखना चाहता है?"
तब आयुक्त साहब ने कहा, "मैंने आप लोगों से कहा ना, यह पहचान उजागर नहीं की जाएगी। जितना कहा जा रहा है, आप लोग केवल उतना कीजिए। जल्द से जल्द जाइए और जिसके पास जो जानकारी है, वह लेकर आइए। ठीक? और सब यहाँ इस टेबल पर जमा कर दीजिए। जानकारी एजेंटों तक कैसे पहुँचाएँगे, यह मैं देख लूँगा।"
आयुक्त साहब ने सभी को आदेश दे दिए और फिर मुस्कुराते हुए कुछ सोचने लगे और बोले, "राणा, राणा, राणा! बहुत शौक है ना तुम्हें पुलिसवालों की जान लेने का! अब देखो पुलिसवाले क्या करते हैं! अगर हिम्मत है, तो बचकर देखो हमारे इन रहस्यमयी एजेंटों के जाल से!"
आयुक्त साहब किस पर इतना गुस्सा कर रहे थे, यह पता नहीं, लेकिन उनके चेहरे पर आत्मविश्वास साफ़ दिख रहा था।
वहीं दूसरी ओर, आधी रात के बाद रिमझिम को फिर से बुरे सपने ने घेर लिया था। आधे घंटे बाद वह उठ बैठी थी। जैसे ही रिमझिम चिल्लाकर उठी, उसके माँ-बाप उसके कमरे में आ गए थे। उसे संभालने लगे थे। तब मयंक ने सरिता से कहा, "सरिता जी, आप अपने कमरे में जाइए। आज रिमझिम के साथ मैं रहूँगा।"
सरिता ने मयंक की ओर देखा और समझ गई कि कुछ बात है, जिसके लिए मयंक उसे कमरे से भेज रहे हैं। वह जानती थी कि अगर मयंक ने उसे जाने को कहा है, तो इसमें रिमझिम की भलाई होगी। सोचकर सरिता जी बिना कुछ पूछे अपने कमरे में चली गई।
मयंक जी ने रिमझिम को संभाला, उसे पानी पिलाया और बिठाया, फिर कहा, "बेटा, आओ मेरे साथ चलो।" ऐसा कहकर उन्होंने रिमझिम का हाथ पकड़ा और उसे बाग में ले आए।
रिमझिम अभी भी थोड़ी डरी हुई थी। अपने बीते हुए समय को याद करते हुए उसे लगता था कि वह अभी भी कहीं कैद है और उसे खुद को संभालने में समय लगता था। लेकिन मयंक जी ने उसे जल्दी ही संभाल लिया।
तब मयंक जी ने रिमझिम से कहा, "रिमझिम बेटा, एक बात बताऊँ?" पिता की बात सुनकर रिमझिम उनकी ओर देखने लगी और हल्की सी गर्दन हिलाते हुए बोली, "हाँ पापा, कहिए।" तब उसके पिता ने कहा, "बेटी, अगर इस तरह हर रोज़ रात को सपने से डरकर उठ बैठोगी, तो आगे जिंदगी से कैसे लड़ोगे? तुम्हें लेकर मुझे कितनी चिंता होती है। कल को अगर हम रहे या ना रहे, तो कौन रखेगा तुम्हारा ख्याल? तुम तो खुद अपना ख्याल नहीं रख सकती हो। आखिर कब तक? तुम्हारी माँ हर रोज़ इसी चिंता में रहती है कि उसकी बेटी को हालातों से लड़ना नहीं आता। मैं मानता हूँ, मैंने तुम्हें जबरदस्ती क्राइम रिपोर्टर बना दिया है, लेकिन तुम क्रिमिनल से इतना डरती हो कि आज तक किसी का इंटरव्यू तक नहीं लिया है। असल में, तुमने किसी को जवाब देने की हिम्मत तक नहीं दिखाई है। बेटा, यह जिंदगी है, और जिंदगी में उतार-चढ़ाव आम है। अगर तुम इसी तरह अपनी बीती जिंदगी को लेकर बैठी रहोगी, तो आगे क्या करोगे? आज हम हैं, कल नहीं हैं। अगर हम कल नहीं होंगे, तो फिर...?"
मयंक जी ने कम शब्दों में बहुत बड़ी बात रिमझिम से कह दी थी। रिमझिम हैरानी से अपने पापा की ओर देख रही थी। क्योंकि उसके पापा हमेशा उसकी शरारतों, उसकी बचकानी हरकतों में उसका साथ देते थे। हालाँकि उसकी माँ हमेशा रोक-टोक करती थी। लेकिन आज उसके पिताजी भी उसे जिंदगी के हालातों से मुकाबला करने के लिए कह रहे थे। रिमझिम को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने पिता को क्या जवाब दे। आँखों में आँसू लाकर वह अपने पिता के गले लग गई और रोने लगी। उसके पिता उसे संभालने लगे, क्योंकि वे रिमझिम की आँखों में एक भी आँसू बर्दाश्त नहीं कर सकते थे।
तब मयंक जी ने प्यार से रिमझिम के सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा, मैं यह नहीं चाहता कि तुम बंदूक लो और सभी दुश्मनों को मार डालो। मैं केवल इतना चाहता हूँ कि जो तुम्हें बुरा-भला कह रहा है, कम से कम तुम उसका मुकाबला करो, उसको जवाब दो। अगर तरुण ने तुम्हें कोई काम सौंपा है, तो कुछ सोचकर ही सौंपा होगा ना? तो मैं चाहता हूँ तुम तरुण का काम करके अपने आप को साबित करो। इस वक़्त देश का सबसे खतरनाक मुजरिम राणा है। अगर तुम उसके खिलाफ जानकारी निकालकर लाओगे, तो मुझे पूरा यकीन है, तरुण के साथ-साथ सभी लोग तुम्हें अपना लेंगे। आज ऑफिस में कितने ही लोगों ने तुम्हें उल्टा-सीधा बोला था, लेकिन तुम फिर भी उनके किसी भी बात का जवाब नहीं दे पाई। उल्टा वॉशरूम में जाकर खुद ही रोने लगी थीं।"
रिमझिम यह सुनकर हैरान हो गई कि उसके पिता को यह सब बातें कैसे पता चलीं। उसे इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि तरुण ऑफिस में क्या हो रहा है, रिमझिम क्या कर रही है, यह सब मयंक को पता चल जाता था।
अपने पिता की बात सुनकर रिमझिम बोली, "लेकिन बाबा, आपको यह सब कुछ कैसे पता चला?" तब मयंक जी हल्के से मुस्कुराते हुए बोले, "मेरी बेटी जहाँ काम करती है, तो क्या मैं वहाँ की पूरी खबर नहीं रखूँगा? और बेटा, जब मैं तुम्हारे ऑफिस के अंदर तक की खबर रख सकता हूँ, तो तुम्हारे लिए एक राणा की जानकारी निकालना क्या बड़ी बात होगी? आखिर तुम तो कर्नल की बेटी हो, तो तुम कैसे हार मान सकती हो? मुझे पूरी उम्मीद है, मेरी बेटी किसी से नहीं डरती और मेरी बेटी सबका मुकाबला कर सकती है। मुझे मेरे बच्चे पर पूरा यकीन है।"
मयंक जी की आँखों में अपने लिए इतना आत्मविश्वास देखकर रिमझिम को भी लगा कि उसे अब अपने हालातों से लड़ना सीखना चाहिए। तब उसने मयंक जी का हाथ पकड़ते हुए कहा, "पापा, आप बिल्कुल भी फ़िक्र मत कीजिए। मैं आज के बाद पूरी कोशिश करूँगी, सभी लोगों को जवाब देने की भी और उस राणा की जानकारी निकालने की भी। मैं आपसे वादा करती हूँ, मैं अब कभी आपको निराश नहीं होने दूँगी।"
रिमझिम की बातें सुनकर मयंक जी की आँखें भर आईं और उन्होंने उसे गले से लगा लिया। क्योंकि रिमझिम ने पहली बार खुद से इस तरह से बात की थी और उसकी बातों में आत्मविश्वास साफ़ दिख रहा था।
तब मयंक जी ने रिमझिम से कहा, "अच्छा मेरे बच्चे, अब बहुत बातें हो गईं। अब चलो और आराम कर लो। और हाँ, एक और बात, ठीक तीन दिन के बाद मेरे दोस्त अनवर अहमद के बेटे की शादी है, तो हम लोग वहाँ चलेंगे। ठीक? तुम भी तैयार रहना और ऑफिस से जल्दी आ जाना।" अपने पिता की बात सुनकर रिमझिम मुस्कुराने लगी और बोली, "ठीक है पापा, मैं ज़रूर चलूँगी।" ऐसा कहकर वह अपने कमरे में चली गई और मयंक जी उसे जाते हुए देखते रहे।
अपने पापा से बात करने के बाद रिमझिम अपने कमरे में आ गई थी। कमरे में आकर वह बेड पर लेट गई थी, पर उसकी आँखों में नींद नहीं थी।
आधी रात के बाद, वह उठ जाया करती थी, और फिर सो नहीं पाती थी। उसे नींद नहीं आती थी। यह उसका डर था, जो उसे सोने नहीं देता था। रिमझिम ने आज खुद से वादा किया था कि वह अपने पिता की सारी परेशानी ख़त्म करेगी। उसे पिता को इस तरह परेशान देखना अच्छा नहीं लगता था। क्योंकि उसके पिता ने आज पहली बार उससे कुछ कहा था, जबकि हमेशा से वह उसका समर्थन करते आए थे। अब रिमझिम को लगा कि उसे अपनी जिंदगी में कुछ ऐसा करना होगा, जिससे उसके पिता बेफ़िक्र हो जाएँ।
रिमझिम ने आँखें बंद करके सोने की कोशिश की थी, पर उसे नींद नहीं आई थी। वह फिर से अपने स्टडी रूम में गई और अपनी कहानी लिखने लगी।
उसके बाद मयंक जी अपने कमरे में जाते हुए एक नज़र अपनी बेटी की ओर देखे थे, और फिर अपने कमरे में चले गए थे। मयंक जी को यकीन हो गया था कि उनकी बेटी ने सही फैसला लिया है, पर उसे थोड़ी हिम्मत की ज़रूरत थी।
मयंक जी अपने कमरे में जाकर शांत लेट गए थे और हल्का-हल्का मुस्कुराने लगे थे। मयंक की पत्नी, सरिता जी, अभी तक नहीं सोई थी। वह मयंक का इंतज़ार कर रही थी। मयंक को मुस्कुराते हुए देखकर, उसने पूछा,
"ऐसा क्या हुआ है कि आप इस तरह से मुस्कुरा रहे हैं?"
मयंक ने सरिता जी से कहा,
"बहुत शिकायत थी ना तुम्हें मेरी बेटी के बर्ताव को लेकर? आज के बाद देखना, मेरी बेटी का बर्ताव पूरी तरह से बदल जाएगा।"
ना जाने मयंक जी किस हिम्मत से कह रहे थे, पर उनकी बातों में आत्मविश्वास नज़र आ रहा था।
सरिता जी ने पूछा,
"अरे हाँ, मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गया। ठीक तीन दिनों के बाद अनवर, मेरा दोस्त अनवर अहमद, जो कि मेरी टीम में मेरे साथ था, रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर... उन्हीं की बात कर रहा हूँ। उसके बेटे, एजाज़ अहमद की शादी है। और तुम जानती हो, उनका बेटा कौन है? उनका बेटा इस शहर का एसीपी है।"
सरिता जी हैरान हो गईं।
"क्या? काफ़ी ज़्यादा शरीफ़ है, अच्छा! तो उनके बेटे की शादी है?"
मयंक ने कहा,
"हाँ, उन्हीं के बेटे की शादी है, और हम लोग उस शादी में ज़रूर जाएँगे। रिमझिम को भी लेकर जाएँगे। और तुम जानती हो, मेरा रिमझिम को शादी में लेकर जाने का क्या मक़सद है? शादी में एसीपी आजाद के साथ-साथ शहर के और भी पुलिस वाले मौजूद होंगे। मुझे उम्मीद है, उन्हें देखकर रिमझिम को हौसला मिलेगा। वह अपने काम पर अच्छी तरह से फ़ोकस करेगी।"
मयंक ने पूरी बात सरिता को नहीं बताई थी। वह अपने ख़यालों में गुम होकर गहरी नींद में सो गए थे।
वहीं दूसरी ओर, राणा अपने शानदार हाल में बैठा हुआ था, एक राजा की तरह। कोई भी उसके सामने बैठने की हिम्मत नहीं करता था। जिस जगह राणा बैठा रहता था, उसके बगल में कभी कोई नहीं बैठा करता था। केवल उसके सामने हाथ बाँधकर सभी लोग खड़े हुआ करते थे। राणा की आँखें अजीब सी थीं। उन आँखों से सभी लोग डरते थे।
राणा ने अपने सामने खड़े आदमियों की ओर देखा और बोला,
"तीन दिन बाद की पूरी तैयारी हो गई है?"
उसके सभी आदमियों ने हाँ में सर हिला दिया था।
लैला-मजनू, जो अभी भी एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए खड़े थे, एक-दूसरे की ओर ही देख रहे थे। राणा की बातों पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया था। राणा की नज़र उन दोनों पर पड़ चुकी थी।
अचानक राणा ने अपनी बंदूक निकालकर उन दोनों के बीच से गोली चलाई थी, और गोली सीधा दीवार पर लगी पेंटिंग में जा लगी थी।
राणा के रिएक्शन को देखकर, सभी थर-थर काँपने लगे थे। लैला-मजनू, जो एक-दूसरे में खोए हुए थे, धीरे-धीरे अपनी नज़रें राणा की ओर करने लगे थे। राणा के एक्शन से सभी बुरी तरह से डर गए थे। किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि राणा से कुछ पूछे। लेकिन उनकी आँखों में डर में सवाल साफ़ नज़र आ रहे थे।
राणा ने कहा,
"राणा तुम लोगों के सामने बैठा हुआ है, तो फिर तुम दोनों की हिम्मत कैसे हुई एक-दूसरे को देखने की? कितनी बार कहा है, अपना यह प्यार-मोहब्बत अपने कमरे तक रखा करो! बाहर साथ मत उड़ते रहा करो! तुम राणा की टीम में हो। राणा की टीम में कब, कहाँ से, किस ओर से हमला हो जाए, किसी को कुछ भी पता नहीं है। तो इसलिए हर मूवमेंट के लिए तैयार रहा करो। अगर मेरा निशाना थोड़ा सा भी इधर-उधर हो जाता, तो तुम दोनों में से किसी एक की खोपड़ी भी उड़ सकती थी। तुम दोनों को इस बात का अंदाज़ा है?"
वे दोनों एक-दूसरे की ओर देखने लगे थे। लैला, उस लड़के की प्रेमिका, रुक नहीं पाई और बोली,
"राणा, तेरे अंदर तो दिल ही नहीं है! राणा, you are heartless, राणा!"
"लेकिन एक बात बताओ राणा, जब तुम्हें भी प्यार होगा ना, तो तुम्हें किसी और की तरफ़ को देखने का दिल ही नहीं करेगा।"
उससे पहले कि वह लड़की कुछ और कहती, उस लड़के ने आकर उसके मुँह पर अपना हाथ रख दिया था, क्योंकि वह राणा के सामने बोलने की हिम्मत कर बैठी थी। राणा उसे खा जाने वाली नज़रों से देखने लगा था। राणा का दिल किया कि अपनी बंदूक उठाकर सारी गोलियाँ उस लड़की के भेजे में उतार दे, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता था। क्योंकि उसके टीम मेंबर उसकी मर्ज़ी से चुने थे, इसलिए वह उन्हें नुकसान नहीं पहुँचा सकता था। उसकी टीम मेंबर के अलावा उसका इस दुनिया में और कोई नहीं था। वह उन्हें अपने परिवार की तरह मानता था। उससे पहले कि राणा उस लड़की को कुछ कहता, उस लड़के ने बोला,
"राणा, इसे माफ़ कर दो, इससे गलती हो गई। राणा, इसे कुछ मत करना।"
लड़की ने भी कहा,
"राणा, मैं भावनाओं में बह गई थी। राणा, मुझे माफ़ कर दो।"
राणा ने अपना सर झटक दिया था और बोला,
"किसी लड़की की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह राणा की ज़िंदगी में आ सके। समझे तुम? और राणा को कभी यह प्यार-मोहब्बत नाम की बीमारी नहीं होगी।"
राणा का मुँह कम, उसकी आँखें ज़्यादा बातें कर रही थीं। उसकी आँखें ही बोल दिया करती थीं।
राणा ने कहा,
"देव, मुझे लगता है कि तीन दिन बाद की सारी तैयारी हो गई होगी। और याद रखना, मुझे किसी भी तरह की कोई भी झोल नहीं चाहिए। किसी भी गलती की कोई गुंजाइश नहीं है। अगर किसी ने भी किसी तरह की कोई गलती की, तो राणा उसे माफ़ नहीं करेगा।"
ऐसा कहता हुआ राणा अपने कमरे में चला गया था।
वह लैला, उस मजनू की लैला, राणा को जाते हुए देख रही थी और फिर अपने आशिक की ओर देखकर उसे गले से लगने लगी थी, क्योंकि आज उन दोनों की जान बची थी। उसके आशिक ने भी लैला को प्यार जताते हुए अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए थे, और बाकी टीम मेंबर की परवाह किए बिना वे दोनों एक-दूसरे को प्यार करने में खो गए थे। बाकी टीम मेंबर वहाँ से जाने लगे थे, क्योंकि वे जानते थे, जब यह लैला-मजनू शुरू हो जाते हैं, तो ये किसी और के बारे में नहीं सोचते। देव उन्हें कहते हुए निकल गया था,
"अपने कमरे में जाओ!"
कुछ ही मिनट में हाल खाली हो गया था, और फिर वे दोनों दिल खोलकर एक-दूसरे को प्यार करने लगे थे। प्यार करते हुए लड़की ने अपने आशिक से कहा था,
"मुझे पूरी उम्मीद है, राणा की ज़िंदगी में भी कोई ना कोई लड़की ज़रूर आएगी, और फिर देखना, जिस दिन राणा की ज़िंदगी में लड़की आएगी और राणा को उस लड़की से दिल से मोहब्बत हो जाएगी, तब राणा को हमारे मोहब्बत का एहसास होगा।"
उस लड़की की बात सुनकर मजनू ने कहा था,
"तुम्हें राणा के बारे में फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है। और आइंदा से ख़्याल रखना, तुम उसके सामने कुछ भी ज़्यादा नहीं बोलोगी। क्योंकि मैं तुम्हारे बगैर एक पल भी ज़िंदा नहीं रह सकता हूँ। और तुम अच्छी तरह से जानती हो, राणा कितनी ख़तरनाक सज़ा देता है। अगर तुमने राणा के सामने कोई गलती कर दी, वह तुम्हें तो जान से मार ही देगा, लेकिन वह मुझे ज़िंदा रखेगा, तुम्हारी यादों में, पल-पल मरने के लिए, तड़पने के लिए। राणा कितना बेरहम है, यह तुम अच्छी तरह से जानती हो। तो आगे से किसी भी तरह की कोई गलती करने की कोशिश मत करना। जितना हो सके, राणा के सामने चुप रहना।"
मजनू ने अपनी लैला को अच्छी तरह से समझा दिया था, और फिर दोनों एक-दूसरे को प्यार करने लगे थे।
वहीं दूसरी ओर, रिमझिम के दिमाग, दिल में अपने पिता की कही हुई बातें गूंजने लगी थीं। उसे इस बात ने ज़्यादा प्रभावित किया था कि उसके पिता ने उससे कहा था कि अगर कल को वे ना रहे, तो वह क्या करेगी? यह बात हद तक सही थी। रिमझिम ने कभी खुद को अकेले संभालना नहीं सीखा था। हमेशा उसे संभालने के लिए उसके माता-पिता मौजूद रहा करते थे। उसका कोई ख़ास दोस्त भी नहीं था। जब वह 8 से 9 साल की थी, उसके कई दोस्त थे, लेकिन उस एक्सीडेंट के बाद उसने दोस्त बनाना बंद कर दिए थे। उसकी ज़िंदगी में केवल उसके माँ-बाप थे। ✍🏻❤❤❤❤❤❤like shere comments kre dosto ❤❤❤
लेकिन उस एक्सीडेंट के बाद उसने अपनी ज़िंदगी में दोस्त बनाना ही बंद कर दिए थे। उसकी ज़िंदगी में अगर कोई था, तो सिर्फ़ उसके माँ-बाप।
वेल, सोचते-विचारते हुए रिमझिम अपने ऑफिस गई। ऑफिस में उसे आज अजीब सी हलचल दिखाई दी। रिमझिम को काफ़ी अजीब सा लग रहा था।
वह जहाँ सभी यूज़ुअली काम किया करते थे, वहाँ गई। उसने देखा कि सभी एक-एक ग्रुप बनाकर अलग-अलग तरीके से कुछ ना कुछ डिस्कस कर रहे थे। वह लोग पहले भी ऐसा किया करते थे, लेकिन आज कुछ रिमझिम को अलग सा लग रहा था। उसे लग रहा था कि ज़रूर कुछ गड़बड़ है, लेकिन वह किसी से भी इस तरह से नहीं पूछ सकती थी। पूरे ऑफिस में रिमझिम की किसी से भी दोस्ती नहीं थी।
रिमझिम आगे बढ़ी। तभी तरुण जी उसे मिल गए। तरुण जी ने रिमझिम को देखते ही कहा, "आ गई तुम? तुमने टाइम देखा है? तुम पूरे 20 मिनट लेट हो! रिमझिम, मैं तुम्हारी ये गैरज़िम्मेदारी कब से बर्दाश्त करते हुए आया हूँ? मैं तुम्हें बच्चा समझकर आज तक छोड़ दिया है, लेकिन मैं तुम्हें साफ़-साफ़ बता देता हूँ, आगे से यह सब कुछ नहीं चलेगा। तुम्हारी इस तरह की मनमानियाँ फिर से बर्दाश्त नहीं की जाएँगी! तुम जानती भी हो, सुबह-सुबह ही क्या हुआ है? सभी के सभी कलीग्स मेरे कॉल पर, एक मैसेज पर, फटाफट ऑफिस में आ गए थे। लेकिन तुम्हें भी ग्रुप में मैसेज मिला था ना, लेकिन तुमने हर बार की तरह उस मैसेज को इग्नोर कर दिया था! और देखो, तुम इस वजह से पूरे 20 मिनट लेट हो।"
ऑफिस में आते ही तरुण जी ने रिमझिम पर बरसना शुरू कर दिया। रिमझिम को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर किस बात के लिए उसे इतनी खरी-खोटी सुनाई जा रही थी। उसने खुद को संभालते हुए कहा, "लेकिन अंकल सर, सॉरी सर, आप ऐसा क्या कह रहे हैं? और ऑफिस में तो अभी 10 मिनट और बाकी है शुरू होने में। 9:00 बजे का हमारा ऑफिस है, और मैं 8:40 को ऑफिस में पहुँच चुकी हूँ। फिर भी आप मुझे इस तरह से बातें क्यों कह रहे हैं?"
रिमझिम के मुँह से निकली बातें सुनकर तरुण जी पूरी तरह से हैरान हो गए। क्योंकि रिमझिम को कुछ भी कहा जाए, वह चुपचाप खड़े होकर सर झुकाकर सुना करती थी। लेकिन उसने आज तक किसी को भी जवाब नहीं दिया था। और आज पहली बार उसने तरुण जी की बात काटते हुए जवाब दे दिया था। तब तरुण जी मन ही मन अपने बचपन के दोस्त मयंक को शाबाशी दे रहे थे। फिर रिमझिम की ओर देखते हुए बोले, "मैडम रिमझिम, हमें भी पता है कि ऑफिस 9:00 बजे का है। लेकिन आज हमने 8:15 को सभी को ऑफिस में बुलाया था, क्योंकि ठीक 8:00 बजे हमारे ऑफिस में सनसनीखेज खबर मिली है। और उस खबर को और ज़्यादा सनसनीखेज बनाने के लिए ही हमने सारे स्टाफ़ को यहाँ बुलाया था, ताकि सबसे पहले हमारे न्यूज़ चैनल उस खबर को दिखा सके।"
रिमझिम को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। उसने पूछा, "आखिर सर, आप कहना क्या चाहते हैं? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।"
तब तरुण जी ने गहरी साँस ली और रिमझिम से कहा, "ठीक है, तुम आओ मेरे साथ।" ऐसा कहकर वह रिमझिम को अपने साथ ले गए और कहा, "देखो बेटा, फिर तुमसे कोई पर्सनल दुश्मनी नहीं है। तुम अच्छी तरह से जानती हो, मैं तुम्हें कितना पसंद करता हूँ। मैं तुम्हें अपनी बेटी की तरह मानता हूँ। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हें इतनी ज़्यादा छूट दे दूँ कि बाकी के एम्प्लॉइज़ को तुम्हारे चक्कर में नज़रअंदाज़ कर दूँ। आज मैंने सभी को जल्दी इसलिए बुलाया था, क्योंकि राणा का एक मैसेज आज सुबह ठीक 8:00 हमारे ऑफिस में पहुँच चुका है। न केवल हमारे ऑफिस में, बल्कि साथ-साथ टॉप 10 न्यूज़ चैनल वालों के पास, हर एक के पास राणा का एक मैसेज पहुँच चुका है।"
रिमझिम हैरानी से अपने बॉस की बात सुन रही थी। फिर बोली, "यह आप क्या कह रहे हैं? राणा का मैसेज? क्या राणा यहाँ आया था?" रिमझिम की आँखें हैरत के मारे फटी रह गई थीं। जिसे क्रिमिनल के पीछे उसके बॉस ने सबको लगा दिया था, वह क्रिमिनल का मैसेज खुद मीडिया में आया था! यह बात उसके लिए काफ़ी ज़्यादा सोचने वाली थी। तब तरुण जी ने कहा, "अभी तुम्हें सब कुछ समझ में आ जाएगा। तुम काम करो। ठीक 9:00 बजे कॉन्फ़्रेंस रूम में मुझसे आकर मिलो।" ऐसा कहकर तरुण जी कुछ काम में लग गए।
उसके बाद रिमझिम बेसब्री से 9:00 बजने का इंतज़ार करने लगी। उसे रह-रहकर कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। उसके दिमाग में कितने सारे सवाल घूमने लगे थे।
जल्दी ही सारे ऑफिस वाले कॉन्फ़्रेंस रूम में जमा थे। सभी एक-दूसरे का मुँह देखने लगे थे। सभी को यह खबर मिल चुकी थी कि राणा का कोई मैसेज आया है, लेकिन वह क्या मैसेज था, इस पर से अभी तक पर्दा नहीं उठा था। जल्दी ही तरुण जी भी वहाँ गए और उन्होंने एक एम्प्लॉई को इशारा कर दिया। जल्दी ही बड़ी सी स्क्रीन पर कुछ चलने लगा।
एक आदमी, राजा के स्टाइल में कुर्सी में बैठा हुआ था। उसका पूरा चेहरा अंधेरे में था, लेकिन केवल उसकी आँखें दिखाई दे रही थीं। जैसे ही रिमझिम की नज़र उसकी आँखों पर पड़ी, उसके हाथों में रोंगटे खड़े होने लगे। उसका रोम-रोम खड़ा हो गया था। क्योंकि इन आँखों को पिछले 10 साल से वह अपने सपने में देखते हुए आई थी। जैसे ही रिमझिम ने उन आँखों को देखा, वह कुर्सी पर बैठी हुई बर्फ़ की तरह जम गई थी। ऐसा लग रहा था, उसके आँख, नाक, कान, ने बिल्कुल ही हिलना-डुलना, सोचना, सब कुछ बंद कर दिया हो।
तभी उस आदमी ने, जो राजा-महाराजा स्टाइल में कुर्सी पर बैठा हुआ था, उसकी रोबदार आवाज़ वहाँ गूँजने लगी, "मैं जानता हूँ, न्यूज़ चैनल वालों, तुम लोगों को राणा की खबर की कितनी ज़्यादा तलाश है। तो देखो, आज खुद राणा तुम लोगों के पास एक खबर भेज रहा है। बहुत जल्द मैं इस शहर के एक नामी पुलिस ऑफिसर की जान लेने वाला हूँ। तो मैं तुम्हारे पुलिस सिस्टम वालों को खुली, नंगी चुनौती दे रहा हूँ। अगर किसी में हिम्मत है, तो रोककर दिखाएँ राणा को! राणा बहुत जल्द एक ऐसे पुलिस वाले की जान लेगा, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है! और इस बार राणा पुलिस वालों को खुली चुनौती दे रहा है! तुम लोगों के द्वारा, अगर हो सकता है, अगर तुम लोगों से हो सके, तो बचा लो उसे ऑफिसर को, राणा के ख़ौफ़ से!" राणा ने खुल्लम-खुल्ला एक वीडियो क्लिप भेजकर सभी पुलिस वालों को एक चुनौती दे दी थी।
जैसे ही क्लिप ख़त्म हुई, तरुण जी ने बोलना शुरू कर दिया, "आप लोगों ने क्लिप अच्छी तरह से देख ली है। यह मत सोचिएगा कि यह क्लिप केवल हमारे ही टीवी चैनल को मिली है। यह क्लिप हमारे साथ-साथ, पूरे 10, जो इस शहर के बेस्ट न्यूज़ चैनल हैं, टीआरपी की लिस्ट में 1 से लेकर 10 तक की गिनती में आते हैं, उन सब के ऑफिस में भेज दी गई है। क्योंकि मेरी सभी से ऑलमोस्ट बात हो गई है। और बहुत जल्द कुछ लोगों ने तो उसको लाइव भी कर दिया है। लेकिन मैं इसे अभी लाइव नहीं करना चाहता हूँ। क्योंकि मैं चाहता हूँ, एक-दो इनफॉर्मेशन कुछ और तुम लोग ऐसी कलेक्ट करो, जो जिसके साथ हम यह वीडियो टेप चला सकें, जिससे हमारी टीआरपी में काफ़ी ज़्यादा बढ़ोतरी हो सकती है।" तरुण जी ने सभी की ओर देखते हुए कहा। लेकिन जैसे ही उनकी नज़र रिमझिम पर पड़ी, वे हैरान हो गए। क्योंकि रिमझिम के चेहरे का रंग पूरी तरह से उड़ा हुआ था। उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें साफ़ दिखाई दे रही थीं। तरुण जी को समझ में नहीं आया कि रिमझिम को आखिर क्या हुआ है। तभी तरुण जी ने रिमझिम को पुकारना शुरू कर दिया, "रिमझिम! रिमझिम!" लेकिन रिमझिम सिर्फ़ उनकी ओर आँखें दिखा रही थी; उन्हें देख रही थी। उसे तरुण जी की एक भी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी।
जैसे ही तरुण जी थोड़ा सा आगे बढ़े और उन्होंने रिमझिम के कंधे पर हाथ रखा, तो रिमझिम डर के मारे एकदम से काँप उठी और फिर जल्दी ही उसकी आँखें भारी होने लगीं, और वह बेहोश हो गई। रिमझिम को बेहोश देखकर तरुण जी पूरी तरह से घबरा गए और जल्दी उन्होंने मयंक के साथ-साथ अस्पताल में एम्बुलेंस को भी फ़ोन कर दिया। मयंक और सरिता जी घबराए हुए अस्पताल पहुँच चुके थे। रिमझिम को भी अस्पताल में एडमिट करवा दिया गया था।
वहीं दूसरी ओर, राणा के सामने देव हाथ बाँधकर खड़ा हुआ था और दबी-दबी आवाज़ में राणा से कह रहा था, "राणा, इस तरह से खुल्लम-खुल्ला मीडिया में वीडियो क्लिप भेजकर मर्डर करना, यह बहुत बड़ी बात है! तुम्हें इस तरह का रिस्क नहीं लेना चाहिए। आखिरकार, वे पुलिस वाले हैं। कोई इतना भी बेवकूफ़ नहीं है कि आसानी से हर बार हमारे जाल में फँस जाए। आज टाइम हमारा चल रहा है, तो वक़्त हमारे साथ है। लेकिन वक़्त पलटते देर नहीं लगती है, राणा। तुम्हें इस तरह का रिस्क नहीं लेना चाहिए था।" देव ने दबी-दबी आवाज़ में राणा से कहा था कि उसने जो यह काम किया है, उसने बड़ी ही बेवकूफ़ी के साथ किया है। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मन में तो देव यह कहना चाहता था, लेकिन वह राणा के सामने यह नहीं कह पाया।
तब राणा ने देव की आँखों में आँखें डालते हुए कहा, "राणा कब क्या करता है, सोच-समझकर ही करता है। बहुत शौक है ना पुलिस वालों को अपनी समझदारी और अपनी ताक़त पर? तो मैं भी देखना चाहता हूँ कि एसीपी आजाद अहमद को राणा के ख़ौफ़ से कौन सा पुलिस वाला बचाता है! और वैसे भी, मैंने पुलिस वाले का नाम रिवील नहीं किया है। तो सबसे पहले तो मैं पुलिस वालों की समझदारी देखना चाहता हूँ कि आखिरकार वह उस पुलिस ऑफिसर का किस तरह से पता लगाते हैं, जिसकी राणा जान लेने वाला है। अगर उन्होंने इस बात का पता लगा लिया, तो मैं मान जाऊँगा, देव, ज़रूर पुलिस वाले भी समझदार होते हैं। मेरी नज़रों में तो पुलिस वालों से बेवकूफ़ कोई नहीं होता। सब के सब यूज़लेस फ़ेलो होते हैं।" राणा ने देव की आँखों में देखते हुए कहा। अभी देव कुछ और कहना चाहता था, लेकिन जैसे ही राणा ने थोड़ी बड़ी आँखें करके देव की ओर देखा, देव ने अपनी नज़र झुका ली। क्योंकि राणा ने अपनी आँखों में साफ़-साफ़ देव को चुप रहने का इशारा कर दिया था। और देव में आगे हिम्मत ही नहीं थी कि वह राणा के सामने कुछ और बोल सके।❤❤❤❤❤
दोस्तों, आज का पाठ आप लोगों को कैसा लगा? प्लीज़ कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएँ। स्टोरी को ज़्यादा से ज़्यादा लाइक, शेयर, कमेंट करना बिल्कुल ना भूलें। धन्यवाद।
वहीं दूसरी ओर, हॉस्पिटल में सरिता, मयंक और तरुण परेशानी के मारे इमरजेंसी वार्ड के बाहर खड़े हुए थे। रिमझिम को इमरजेंसी वार्ड में एडमिट करवाया गया था। रिमझिम डर के मारे बेहोश हो गई थी। रिमझिम ने राणा की आँखें देखते ही पहचान लिया था कि यह राणा असल में कौन था। रिमझिम को बहुत डर लग रहा था, और उसे रह-रहकर राणा से और भी ज़्यादा ख़ौफ़ आने लगा था। रिमझिम भला वह आँखें कैसे भूल सकती थी? बस में चढ़ते समय, राणा ने उसका हाथ पीछे से पकड़ लिया था। रिमझिम उसकी आँखों में देखते हुए, रोते हुए उसे वहाँ से जाने के लिए कहा था। राणा ने अपनी आँखें बड़ी करके रिमझिम को देखा था।
उन ख़तरनाक आँखों को, राणा की आँखों को, रिमझिम आज तक नहीं भूल पाई थी। यही कारण था कि जब भी वह डायरी लिखती थी, राणा की आँखें बनाना नहीं भूलती थी। आज वीडियो क्लिप में राणा की आँखें देखने के बाद उसे यकीन हो गया था कि राणा वही था, बचपन में जिसने उसे अगवा किया था।
रिमझिम का चेकअप करने के बाद, आधे घंटे बाद डॉक्टर इमरजेंसी कमरे से बाहर आए। डॉक्टर के बाहर आते ही मयंक, सरिता और तरुण डॉक्टर के पास जाकर खड़े हो गए और रिमझिम के बारे में पूछने लगे।
सरिता घबराते हुए बोलीं,
"डॉक्टर! डॉक्टर! मेरी बेटी कैसी है? क्या हुआ है उसको? अचानक से बेहोश कैसे हो गई? वह ठीक तो है ना?"
सरिता ने बिना रुके कई सवाल डॉक्टर से कर दिए।
डॉक्टर सरिता और मयंक को शांत करने की कोशिश करने लगे।
"आप लोगों को परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। आपकी बेटी बिल्कुल ठीक है। उसके सामने कुछ ऐसा आया है, जिससे वह बहुत ज़्यादा शॉक्ड हो गई थी। उसे बहुत डर लग गया था, जिससे वह बेहोश हो गई थी।"
तरुण हैरान हो गया। मयंक ने तरुण की ओर देखते हुए कहा,
"तो ऑफिस में ऐसा कुछ हुआ था, जिससे रिमझिम को शॉक लगा हो?"
तरुण ने जो कुछ भी आज ऑफिस में हुआ था, वह सारी बातें मयंक को बता दीं; कि आज राणा का एक मैसेज आया था। उसी की वीडियो क्लिपिंग कॉन्फ़्रेंस रूम में चलाई गई थी, ताकि उसके बारे में ज़्यादा जानकारी इकट्ठा करके अपने चैनल पर लाइव चला सकें। रिमझिम ने वह वीडियो क्लिप देखते ही ऐसी हालत हो गई थी।
मयंक थोड़ी देर सोचने लगे और फिर बोले,
"लगता है, इतने बड़े क्रिमिनल को देखकर वह डर गई होगी। उसने और बाकी सब ने आज तक केवल राणा के बारे में सुना ही था। आज राणा की आवाज़ और सामने से बैठा हुआ देखकर ही वह डर गई है। हालाँकि राणा का पूरा चेहरा उसने नहीं देखा था, लेकिन उसकी आँखें देखकर ही वह इतना डर गई कि उसकी हालत ऐसी हो गई।"
तरुण ने मयंक की ओर देखते हुए कहा,
"तुझे लगता है कि राणा की वीडियो क्लिप देखने के बाद रिमझिम की यह हालत हो सकती है, और तू उसके केस में रिमझिम को इन्वॉल्व करना चाहता है, तो क्या यह सही रहेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम रिमझिम की जान को लेकर कोई रिस्क ले रहे हैं?"
मयंक थोड़ा सोच में पड़ गया।
"हाँ, तू सही कह रहा है! लेकिन रिमझिम के मन से डर निकालने के लिए राणा ही एक बेस्ट ऑप्शन होगा। राणा के बारे में अगर रिमझिम इन्वेस्टिगेशन करेंगी, उसके खिलाफ़ सबूत इकट्ठा करेंगी, तो मुझे पूरा यकीन है, उसके अंदर से राणा और बाकी के जितने भी क्रिमिनल को लेकर उसके मन में ख़ौफ़ है, वह सब ख़त्म हो जाएगा। हो सकता है कि वह अपने पास्ट से भी सामना कर सके। इसीलिए मैं उसे राणा के केस में लगाना चाहता था।"
तरुण ने मयंक की ओर देखते हुए कहा,
"तू अच्छी तरह से जानता है, राणा कितना ख़तरनाक मुजरिम है। आज तक कोई भी पुलिस वाला उसे पकड़ नहीं पाया। ना जाने कितने ही पुलिस वालों की उसने जान ले ली है। उसके बाद भी तू अपनी फूल सी बेटी को उसके पीछे लगाना चाहता है? मुझे तो तेरी बातें कुछ समझ में ही नहीं आती हैं।"
मयंक ने तरुण के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
"वैसे तो इस शहर में इतने सारे क्रिमिनल हैं कि मैं किसी के पीछे भी रिमझिम को लगा सकता था। तू जानता है, मैंने राणा को ही क्यों चुना है? क्योंकि जितने भी क्रिमिनल हैं, वे सब छोटे-मोटे हैं, और जो पुलिस के नाम से ही डरते हैं। लेकिन राणा इकलौता ऐसा क्रिमिनल है जो पुलिस वालों की ही जान लेता है और वह किसी से नहीं डरता है। इसीलिए मैंने रिमझिम को इतने बड़े क्रिमिनल के पीछे लगाने का फैसला किया है। और मुझे पूरा यकीन है, मेरी बेटी इसमें ज़रूर कामयाब होगी।"
"तुम चिंता मत करो। पहली बार उसने इस तरह का क्रिमिनल का वीडियो देखा है, तो इसलिए वह डर गई होगी। तू चिंता ना कर, मैं उसे संभाल लूँगा।"
वे एक-दूसरे के गले लग गए।
सरिता की आँखों में आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। रिमझिम उनकी इकलौती बेटी थी। मयंक और तरुण सरिता को संभालने की पूरी कोशिश कर रहे थे।
तभी डॉक्टर ने आकर बताया,
"आपकी बेटी को होश आ गया है। अब आप चाहे तो उनसे मिल सकते हैं।"
वे तीनों रिमझिम के कमरे में चले गए।
रिमझिम ने अपने पापा को देखते ही पैनिक करने लगी और बोलने लगी,
"पापा! पापा! वह... वह..."
रिमझिम आगे कुछ नहीं बोल पाई। राणा के कहे हुए आखिरी शब्द याद आने लगे, और वह खुद को रोक लिया।
मयंक ने रिमझिम का हाथ पकड़ते हुए कहा,
"क्या हुआ बेटा? इस तरह का बिहेवियर क्यों कर रही हो? क्या बताना चाहती हो?"
रिमझिम को राणा के कहे हुए आखिरी शब्द याद आ रहे थे, जो उसने बस में चढ़ते वक़्त कहे थे। इसलिए रिमझिम ने अपने पिता को कुछ नहीं कहा।
"वह पापा, पहली बार किसी क्रिमिनल को देखा, तो मैं थोड़ा पैनिक हो गई थी।"
मयंक थोड़ा मुस्कुरा दिए।
"मेरी बहादुर बेटी! अगर इस तरह से छोटे-मोटे क्रिमिनल को देखकर इस तरह का बिहेवियर करोगी, तो आगे ज़िंदगी में आए उतार-चढ़ाव को कैसे पार करोगे? और तुम्हें तो अभी इससे भी बड़े-बड़े क्रिमिनल का सामना करना है। तो यह मामूली राणा क्या चीज़ है?"
रिमझिम ने आँखें झुका लीं। सरिता को रिमझिम का बिहेवियर अलग सा लगा, लेकिन वह उस वक़्त अपने पति के सामने कुछ नहीं बोल पाई।
तरुण बोले,
"अच्छा, तो एक काम करो, जैसे कि रिमझिम की तबीयत सही नहीं है, तो तुम इसे आज और कल ऑफिस मत भेजना। इसे 2 दिन की मैं छुट्टी देता हूँ। और मैं भी अब जा रहा हूँ, क्योंकि काफ़ी काम पेंडिंग पड़ा हुआ है। बाकी का काम और राणा के फ़ाइल्स वगैरा, मैं किसी और से करवा लूँगा। ठीक है बेटा, तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर तुम्हारा मन है इस प्रोजेक्ट पर काम करने का, तो तुम कर सकती हो, वरना तुम पूरी तरह से आज़ाद हो। ओके? पर बस तुम किसी भी तरह की कोई टेंशन मत लेना।"
तरुण ने रिमझिम के सर पर हाथ रखते हुए कहा। रिमझिम की हालत देखकर वह डर गए थे, और रह-रहकर उनका बिहेवियर, जो उन्होंने रिमझिम के साथ किया था, याद आने लगा था। वह खुद को डाँट रहे थे कि आखिर बच्ची के साथ उन्होंने इस तरह का बिहेवियर क्यों किया?
जल्दी ही तरुण वहाँ से चले गए, और रिमझिम एक गहरी सोच में चली गई। मयंक ने रिमझिम को सोचते हुए देखा,
"बेटा, तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम बस कल की तैयारी करो। कल हम लोग शादी में जाएँगे। और अच्छा हुआ, तुम्हें छुट्टी मिल गई। तो कल हम पहले एक काम करते हैं, ढेर सारी शॉपिंग करते हैं, और तुम्हें अच्छा सा, तुम्हारी पसंद के कपड़े दिलाते हैं। उसके बाद हम शाम को शादी में जाएँगे।"
मयंक जी ने शादी और शॉपिंग की बात करते ही, रिमझिम का मूड थोड़ा ठीक होने लगा। खाना और शॉपिंग ऐसी चीज़ें थीं, जिन्हें सुनकर रिमझिम ख़ुश हो जाया करती थी। रिमझिम का मूड थोड़ा ठीक हो गया था, लेकिन उसका दिल आज बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गया था।
2 से 3 घंटे में रिमझिम को डिस्चार्ज कर दिया गया। वह केवल शॉक के मारे बेहोश हुई थी, तो उसको ज़्यादा प्रॉब्लम नहीं थी। केवल मानसिक रूप से वह थोड़ा बीमार थी, लेकिन डॉक्टर ने कुछ दवाइयाँ एडवाइस कर दी थीं, और उसे डिस्चार्ज कर दिया गया था। सरिता और मयंक रिमझिम को लेकर घर आ गए।
मयंक ने रिमझिम को उसके कमरे में लिटा दिया और आराम करने के लिए कह दिया, और सरिता को लेकर बाहर आ गए।
"तुम भी परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। रिमझिम ठीक हो जाएगी।"
मयंक जी आर्मी के एक जांबाज़ और दिलदार कमांडर थे। उन्हें पता था कि अपनी बेटी के दिल से डर ख़त्म करने के लिए उन्हें अब क्या करना होगा। उन्होंने रिमझिम को शादी में ले जाने का फैसला कर लिया था। वह जानते थे कि शादी में कितने सारे पुलिस वाले आने वाले थे।
रिमझिम को पुलिस वालों से मिलवाने के बाद, उसमें इतनी हिम्मत आ जाएगी कि वह आराम से राणा का मुकाबला कर पाएगी। मयंक को यकीन था कि पुलिस वाले राणा के खिलाफ़ बातें करेंगे और उसे यकीन दिलाएँगे कि बहुत जल्द राणा को सलाखों के पीछे कैद कर देंगे।
उन्होंने अपना प्लान रेडी कर लिया था। लेकिन उन लोगों को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि जिस शादी के लिए वे लोग इतनी तैयारी कर रहे हैं, वह शादी रिमझिम की ज़िंदगी में क्या तूफ़ान लेकर आने वाली थी।
रिमझिम के पिता मयंक ने सोच सोच लिया था कि वह अपनी बेटी के मन से जितना भी किसी भी क्रिमिनल को लेकर डर है खोफ है वह निकाल कर रहेंगे इसीलिए वह रिमझिम को एसीपी आजाद अहमद की शादी में लेकर जाना चाहते थे ताकि रिमझिम जो राणा की वीडियो क्लिप देखकर बेहोश हो गई थी तो वहां पुलिस वालों का जज्बा देखकर राणा को पकड़ने के उनके प्लेन सुनकर वह जरूर उसके अंदर हिम्मत जन्म ले लेगी यही सोच कर मयंक जी ने डिसाइड कर लिया था कि वह रिमझिम को उस शादी में लेकर जरूर जाएंगे वही रिमझिम बेड पर पड़ी हुई इधर-उधर बेचैन हो रही थी क्योंकि उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आज जो कुछ भी उसके सामने आया था वह क्या था उसका 10 साल पुराना पास्ट जिससे वह आज तक भागती हुई आई थी वह आज अचानक से उसके सामने आकर खड़ा हो गया था रिमझिम ने तो सपने में भी नहीं सोचा था जीस राणा के नाम का खौफ पूरी दुनिया में मचा हुआ था वह राणा ही उसका किडनैपर होगा उस वक्त रिमझिम सिर्फ और सिर्फ 12 साल की थी 12 साल की रिमझिम को राणा ने अपने ही एक अपने ही घर में कैद कर लिया था उस वक्त तो राणा ने रिमझिम को तरस खाकर छोड़ दिया था लेकिन रिमझिम का उस वक्त बच्चों के जैसा मन था तो इसीलिए हमेशा हमेशा के लिए राणा की कड़वी याद है उसके दिलों दिमाग पर छप गई थी और आज इतने दिनों के बाद राणा को सामने देख कर रिमझिम को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वह अपने मां-बाप को राणा का सच भी नहीं कह सकती थी क्योंकि रह रहकर उसे राणा के कहे हुए आखिरी शब्द याद आ रहे थे जिस वक्त रिमझिम जब जब 12 साल की थी और राणा के घर से भाग कर वह बस में चढ़ी थी ठीक उसी वक्त राणा ने उसका हाथ पकड़ लिया था और उसकी उसकी और अपनी आंखों से घूरते हुए उसे कहा था आज तो मैं तुम्हें यहां से जाने दे रहा हूं लेकिन याद रखना अगर तुमने मेरे बारे में किसी को कुछ भी बताया तो मैं तुम्हें कहीं से भी ढूंढ कर ले आऊंगा और तुम्हारा वह हाल करूंगा कि तुम सोच भी नहीं सकती हो और साथ ही साथ तुम्हारे मां-बाप को भी मार डालूंगा उस वक्त क्योंकि रिमझिम एक 12 साल की बच्ची थी उसके लिए राणा की यह धमकी बहुत ही ज्यादा बड़ी थी और आज तक रिमझिम इस धमकी में उलझी हुई थी इसीलिए उसने आज तक राणा के बारे में किसी को नहीं बताया था रिमझिम के वापस आने के बाद मयंक जी ने कितनी ही बार स्केचेस आर्टिस्ट से उस किडनैपर का चेहरा बनवाने के लिए रिमझिम से कहा था लेकिन रिमझिम ने एक बार भी राणा की शक्ल नहीं बनवाई थी हालांकि वह राणा की शक्ल अच्छी तरह से पहचानती थी अच्छी तरह से जानती थी क्योंकि उस वक्त राणा भी कुछ खास बड़ा नहीं था राणा भी उसे वक्त केवल 16-17 साल का ही था वेल अभी रिमझिम कुछ सोच रही थी कि तभी सरिता जी उसके कमरे में आ गई थी और बोली थी डॉक्टर ने बेटा तुम्हें हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करने के लिए कह दिया है तुम अब घर पर जाकर आराम कर सकती हो और कल जो कि तुम्हें पता है तुम्हारे पापा के दोस्त के बेटे की शादी है तो हमें वहां भी जाना है तो उसके लिए तुम्हें कोई भी शॉपिंग वगैरा करनी है तो तुम कर लेना आज शाम को हम लोग शॉपिंग करने चलेंगे अपनी मां की बात सुनकर रिमझिम एक फीकी सी हंसी-हंस दी थी और जल्दी ही वह अपने मां-बाप के साथ घर आ गईं थी घर जाकर जैसे ही वह अपने कमरे में आई उसने जोरों से अपने दरवाजा बंद करके अपने बेड पर बैठ गई थी और फिर जो पिछले 10 साल से वह डायरी लिखते हुए आई थी उसने वह सारी डायरी अपने सामने रख ली थी वह कम से कम अब तक 18 डायरी उसके पास हो गई थी रिमझिम एक-एक डायरी को खोलकर देख रही थी हर एक डायरी पर राणा की आंखें बनी हुई थी हर एक डायरी पर राणा की आंखें थी जिन्हें देखकर रिमझिम को एक बार फिर से खोफ आने लगा था लेकिन कैसे ने कैसे उसने खुद को संभाल लिया था वह अच्छी तरह से जानती थी अगर उसने राणा के बारे में किसी को कुछ भी बताया तो उसके मां-बाप की जान को खतरा हो सकता है और चूंकि राणा तो अब शहर का सबसे बड़ा नामी गुंडा बन चुका था तो उसके लिए उसके मां-बाप की जान लेना कोई बड़ी बात नहीं थी इसीलिए रिमझिम ने खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझी थी रिमझिम को इस तरह से अपने कमरे में बंद हुआ देख मयंक जी कुछ परेशान हो गए थे और ठीक आधे घंटे बाद उन्होंने रिमझिम का दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया था रिमझिम का मन कहीं भी बाहर जाने का नहीं था लेकिन वह इस तरह से अपने पिता को परेशान नहीं कर सकतीं थी इसीलिए रिमझिम ने दरवाजा खोल दिया था रिमझिम के दरवाजा खोलते ही उसके पिता ने रिमझिम से कहा था बेटा तुम तो जानती हो ना हमें शॉपिंग करने के लिए जाना है और कुछ ना कुछ अनवर के बेटे के लिए गिफ्ट भी खरीदना है तो तुम जल्दी से अब तैयार हो जाओ हम लोग मॉल के लिए चल रहे हैं अपने पिता की बात सुनकर रिमझिम ने खामोशी से अपने कमरे में वापस चली गई थी और तैयार होकर बाहर आ गई थी उसने सोच लिया था उसके मैं और दिलों दिमाग में जो कुछ भी चल रहा है वह अपने पिता से कुछ नहीं रहेगी क्योंकि वह उन्हें किसी भी परेशानी में नहीं डालना चाहती थी रिमझिम बूझे मन से अपने माता-पिता के साथ मॉल के लिए निकल चुकी थी वहीं राणा के सारे आदमी कल की तैयारी करने लगे थे क्योंकि वह अच्छी तरह से जानते थे अगर उनकी तैयारी में किसी भी तरह की कोई कमी रही तो राणा उनका क्या हाल कर सकता था राणा उनकी जान तो नहीं लगा लेकिन उनकी हालत जान लेने से भी ज्यादा बत्तर बना देगा यह बात वह लोग अच्छी तरह से जानते थे इसीलिए वह राणा के काम में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ा करते थे वही वह लैला मजनू एक दूसरे को प्यार करने में खोए हुए थे लेकिन जब देव ने उन्हें इस बात इस बार टोक दिया था और कहा था अगर इस बार तुम लोगों ने कोई गड़बड़ की तो हो सकता है राणा के कहर से इस बार तुम लोग न बच पाव तब उसे मजनू की जो लैला थी वह देव से बोली थी तुम देखना देव बाबू एक दिन हमारे राणा साहब को ऐसी मोहब्बत होगी ऐसी मोहब्बत होगी कि दुनिया हिला कर रख देंगे।।।।। उसने इस अंदाज से से कहा था कि जितने भी काम करने वाले थे वह सभी के सभी हंसने लगे थे तभी देव, तभी देव की नजर सीढ़ियों पर खड़े हुए राणा पर पड़ी थी उसकी हंसी पर एकदम से ही ब्रेक लग गया था साथ ही साथ जितने भी लोग हंस रहे थे उन सब की नजर जैसे ही देव पर पड़ी और देव की नजरों का पीछा करके उन लोगों की नजर राणा पर पड़ी तो उन सब ने भी अपनी-अपनी गर्दन झुका ली थी और उन सब की हंसी को एकदम से ही ब्रेक लग गए थे और तभी उस लड़की ने जैसे ही राणा को देखा उसने भी अपनी गर्दन झुका ली थी वह अच्छी तरह से जानती थी अगर उसने कुछ भी बोलने की हिम्मत की तो उसकी गर्दन कटने में एक पल भी नहीं लगेगा और वह अपने मजनू से दूर नहीं रह सकती थी इसीलिए वह भी गर्दन झुकाकर अपने मजनू का हाथ पकड़ कर खड़े हो गई थी राणा ने एक नजर अपनी सारी टीम की ओर देखा था जो सभी गर्दन झुकाए हुए खड़े हुए थे उसके बाद वह लंबे-लंबे कदम भरता हुआ अपने कमरे में चला गया था अपने कमरे में जाकर राणा इधर-उधर घूमने लगा था रह रहकर लैला की बातें यानी कि उसे लड़की की बातें उसके दिमाग में घूमने लगे थे कि राणा को जब मोहब्बत होगी तो वह पूरी दुनिया हिला कर रख देंगे जैसे ही राणा ने अपनी आंखें बंद कि उसे सिर्फ और सिर्फ 12 साल की स्कूल गर्ल का चेहरा याद आ गया था उसका चेहरा याद आते ही राणा के फेस पर एक हल्की सी नाम बराबर इस्माइल आ गई थी लेकिन अगले ही पर उसका चेहरा फिर से कठोर हो गया था क्योंकि राणा की जिंदगी में यह मोहब्बत प्यार नाम की कोई चीज थी ही नहीं राणा ने एक पल में ही अपनी सोच को झटका दे दिया था और फिर वह गुस्से से अपने हाथ में गन लेकर बाहर निकला था और उसने जोरों से गण पूरे घर में तीन से चार रैंडम फायर कर दिए थे राणा का यह अंदाज देखकर सभी के सभी थर-थर कांपने लगे थे क्योंकि कहीं ना कहीं उन्हें लगने लगा था कि राणा अब किसी न किसी पर अपना कहर जरूर ढाएगा लेकिन तभी राणा ने बड़े ही गुस्से में कहा था तभी राणा ने गुस्से से उस लड़की की ओर देखते हुए कहा था तुम लोगों की बकवास दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है मैंने कितनी बार कहा है यह प्यार मोहब्बत की बाते यहां मेरे इस गैंग में नहीं चलेगी अगर तुम लोगों को यह प्यार मोहब्बत की बातें ही करनी है तो तुम लोग इस गैंग से निकल सकते हो और याद रखना राणा के खिलाफ कुछ भी बोलने के करने की हिम्मत मत रखना जैसे ही राणा ने यह कहा वह लड़की यानी लैला एकदम से आकर राणा के पैरों में झुक गई थी और बोली थी नही नही राणा नहीं राणा हमें कुछ और सजा दे दो मैं कोई भी सजा काटने के लिए तैयार हूं लेकिन अपनी टीम में से निकलने की बात मत करना राणा तुमने हमें उस वक्त सहारा दिया था जब वहां पर हमें कुछ सहारे की बहुत ज्यादा जरूरत जरूरत थी मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है जब वह मकान मालिक मेरी इज्जत लूटने के लिए मेरे पास आ रहा था और उस वक्त तुमने मेरी इज्जत और जान दोनों ही बचाई थी मैं यह एहसान तुम्हारा जिंदगी भर नहीं भूलूंगी राणा और मैं अब मरते दम तक सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे साथ ही काम करना चाहूंगी और तुम्हारे साथ काम करने पर मुझे मेरी सच्ची मोहब्बत भी मिली है राणा जिसे मैं अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती हूं राणा कुछ पल उस लडकी की बातें सुनता रहा था और फिर उसे एक-एक करके वह फ्लैशबैक याद आ गया था जब किन हालातो में उसे वह लड़की मिली थी।।।। वह यह था ठीक 5 साल पहले राणा एक आदमी का मर्डर करने के लिए एक बड़े से बंगले में गया था क्योंकि उस आदमी का कनेक्शन सीधा-सीधा पुलिस से था और वह पुलिस को खबर खबर दिया करता था एक तरह से वह पुलिस का खबरी था तो राणा को उसके बारे में जैसे ही पता चला तो वह उसे मारने के लिए उसके घर में जा पहुंचा था वहां उसने देखा उस लड़की ललिता जो की अब लैला बन चुकीं थीं उस के मां-बाप एक छोटा छोटा भाई बहन बैठे हुए थे और उस अमीर आदमी ने उस लड़की को उस के बालों से पकड़ कर अपने पास खड़ा रखा था और एक हाथ उसने उसके कमर पर रख रखा था और बोला था तुम लोगों ने पिछले 3 महीने से मेरे कमरे का भाड़ा नहीं दिया है इसीलिए तुम्हारी बेटी आज उस की कीमत चुकाएगी इसीलिए चुपचाप करके यही खड़े रहो तुम लोग जैसे ही राणा ने यह सुना उसका गुस्से के मारे बहुत ज्यादा बुरा हाल हो गया था और वह उस अमीर आदमी को मारने का कड़ा इरादा करके उसके कमरे में जा चुका था उस लड़की के मां-बाप बुरी तरह से रो रहे थे और अपनी बेटी को छोड़े जाने की गुहार लगा रहे थे लेकिन उस जमींदार के कानों पर जू तक नहीं रेंग रही थी और जैसे ही वह उस लैला यानी के उस लड़की ललिता को अपने कमरे में ले गया ठीक उसी वक्त राणा ने उस जमींदार की चाकू घोंप कर बड़ी ही निर्मम तरीके से हत्या कर दी थी साथ ही साथ वह उस चाकू से उसके प्राइवेट पार्ट को काटना नहीं भूला था तभी उस लड़की ने राणा की हिम्मत और ताकत देखकर उसके साथ ही रहने का फैसला कर लिया था और उसकी टीम में आने के बाद उसे राणा की टीम के दूसरे मेंबर यानी कि मजनू से मोहब्बत हो गई थी।।।।।।।🙏🏻
रिमझिम को आज कुछ भी खरीदने का मन नहीं था। लेकिन, वह जब भी मॉल जाती थी, सामानों का ढेर लगा देती थी। उसके पिता उसे समझाते रहते थे, पर वह एक बात नहीं सुनती थी। आज रिमझिम का चहकना, खेलना, सब कुछ गायब था।
क्योंकि उसके दिमाग में रह-रहकर राणा का ख्याल आ रहा था।
जल्दी ही, सरिता जी रिमझिम को एक कपड़ों के क्षेत्र में ले गईं। वहाँ उन्होंने रिमझिम के लिए एक बहुत ही खूबसूरत साड़ी पसंद की। रिमझिम एक लंबे कद की, बहुत गोरी और सुंदर लड़की थी; उसके नैन-नक्श बेहद खूबसूरत थे।
जो उसे और भी ज्यादा खूबसूरत बनाते थे। सरिता जी ने रिमझिम को वह साड़ी ट्राई करने के लिए कहा। साड़ी लेकर रिमझिम जैसे ही चेंजिंग रूम में गई, अचानक मॉल की लाइट चली गई।
यह देखकर रिमझिम पूरी तरह घबरा गई। उसने अभी तक कपड़े नहीं बदले थे; वह आधी-अधूरी थीं। किसी को भी यह एहसास नहीं था कि राणा मॉल में था। राणा को अपने लिए कुछ जरूरी सामान खरीदना था, जो एसीपी आजाद अहमद की मौत के लिए वह काम में लेने वाला था।
इतने बड़े मॉल में अचानक लाइट जाना सभी के लिए चर्चा का विषय बन गया।
किसी को यह अंदाजा नहीं था कि शहर का सबसे बड़ा खतरनाक क्रिमिनल उस मॉल में मौजूद था। उसके इशारे पर ही लाइट गई थी। वह नहीं चाहता था कि जो सामान वह खरीदना चाहता है, वह किसी भी सीसीटीवी फुटेज में रिकॉर्ड हो। इसीलिए उसने अंधेरे का फायदा उठाकर सभी सीसीटीवी फुटेज बंद करवा दिए थे।
और कुछ ही मिनटों में लाइट वापस चालू करवा दी थी। जैसे ही लाइट आई, रिमझिम ने राहत की साँस ली और जल्दी से आधी-अधूरी साड़ी पहनकर बाहर आ गई। उसे डर लगने लगा था कि कहीं फिर से लाइट न चली जाए। क्योंकि अगर फिर से लाइट चली गई, तो इस बार वह शायद अंधेरे का सामना न कर पाती।
सरिता जी ने जैसे ही रिमझिम को देखा, वह हँसने लगीं।
"तेरी मेरी झल्ली रिमझिम! यह क्या किया? आधी-अधूरी साड़ी पहनकर बाहर आ गई!"
"चल, मेरे साथ। तेरी मदद करती हूँ। और मैं तो भूल ही गई थी कि तुझे साड़ी पहनना आता ही नहीं है!" ऐसा कहकर सरिता जी हँसने लगीं।
रिमझिम ने अपनी माँ से कहा,
"मॉम, वैसे भी साड़ी कल शाम को पहननी है, और मैं अभी बिल्कुल भी साड़ी पहनने के मूड में नहीं हूँ।"
"तो प्लीज, आप मुझे जाने दीजिये।" ऐसा कहकर रिमझिम ने जल्दी से अपने कपड़े बदल लिए और बाहर आ गई। बाहर आकर रिमझिम को समोसे की खुशबू आने लगी।
वह जिस फ्लोर पर थी, उसी फ्लोर पर कैंटीन भी थी। समोसे की खुशबू ने रिमझिम को अपनी ओर खींच लिया।
और जैसे ही वह कैंटीन की ओर जाने लगी, तभी वह किसी से टकरा गई। जैसे ही रिमझिम ने उसे देखा, वह हैरान रह गई। वह कोई और नहीं, बल्कि राणा के गैंग की लैला थी। लैला ने रिमझिम से माफ़ी माँगी।
रिमझिम ने भी उसे माफ़ी माँगी। लेकिन जैसे ही रिमझिम ने लैला की पिछली जेब में कुछ उभरा हुआ भाग देखा, तो उसका दिमाग चलने लगा।
क्योंकि लैला ने अपनी पिछली जेब में अपनी बंदूक रखी हुई थी। हालांकि, बंदूक लाने की इजाज़त किसी भी मॉल में किसी को नहीं थी।
लेकिन राणा के स्टाफ़ के लिए बंदूक लेकर आना बहुत आम बात थी। वे इन सब कामों में बहुत माहिर थे।
रिमझिम को न जाने क्यों लैला पर शक होने लगा। वह कैंटीन में जाने की जगह लैला के पीछे-पीछे हो ली। हालांकि उसे क्रिमिनल से बहुत डर लगता था, लेकिन इस बार क्रिमिनल एक लड़की थी। रिमझिम उसकी जेब में क्या था, इसकी सच्चाई जानना चाहती थी।
हालांकि, उसने अपनी रियल लाइफ में कितनी बार बंदूक देखी थी? क्योंकि उसके पिता एक आर्मी ऑफ़िसर थे और मज़ाक-मज़ाक में कभी-कभी वह अपनी बंदूक रिमझिम के हाथों में भी दे दिया करते थे।
इसलिए रिमझिम को एहसास हो गया था कि उस लड़की की जेब में बंदूक ही थी। इसलिए रिमझिम उसके पीछे चल पड़ी ताकि उसे शायद कोई ख़बर मिल जाए और उसके पिता उस पर नाज़ करें।
जैसे ही लैला कल शाम को होने वाली शादी के लिए कपड़े खरीदने कपड़ों के क्षेत्र में गई, उसने रिमझिम को अपने पास आते हुए देखा। इस तरह से एक लड़की को अपने पीछे आता हुआ देखकर लैला का दिमाग घूमने लगा। उसकी आँखें गोल-गोल हो गईं।
क्योंकि लैला एक शातिर गैंग की मेंबर थी, शातिरपना उसकी रग-रग में बसा हुआ था।
जल्दी ही लैला ने रिमझिम की डिटेल्स अपनी पूरी टीम को भेज दीं: "एक लड़की मेरे पीछे है।" राणा को भी यह मैसेज मिल चुका था।
राणा चूँकि कल रात को बहुत बड़ा क्राइम करने वाला था, वह किसी भी झंझट में नहीं पड़ना चाहता था। अगर रिमझिम को लैला पर शक हो भी गया था, तो इस वक्त राणा कुछ नहीं कर सकता था।
क्योंकि उसकी सबसे पहली प्राथमिकता पुलिस वालों की जान थी। राणा पुलिस वालों को अपना शिकार समझता था।
पुलिस वालों की जान लेने के बाद ही राणा को सुकून मिलता था। उसे ऐसा लगता था जैसे उसने जी भरकर खाना खा लिया हो।
लैला का मैसेज मिलने के बाद राणा ने सबको वापस मैसेज कर दिया: "कोई भी उस लड़की को कुछ नहीं कहेगा या कोई बखेड़ा खड़ा नहीं करेगा। कल रात का मिशन सबसे ज़रूरी है। उसे पूरा होने के बाद ही हम किसी और चीज़ के बारे में सोच सकते हैं।"
एक ही बार में राणा ने सबको आदेश दे दिया था, और सब ने रिमझिम का पीछा करना छोड़ दिया। क्योंकि राणा का फैसला ही आखिरी फैसला हुआ करता था।
उन्होंने साथ ही लैला को मैसेज कर दिया कि वह खुद स्थिति को संभाले, समझदारी से। जब लैला को राणा का मैसेज मिला, वह मन ही मन में कहने लगी, "लगता है मुझे ही स्थिति से निपटना पड़ेगा।" यह सोचकर जैसे ही उसने रिमझिम की ओर देखा, रिमझिम अभी भी उसे देख रही थी। रिमझिम को इस तरह से देखकर वह फिर से सोच में पड़ गई।
वह सोचने लगी कि कहीं यह किसी पुलिस अधिकारी की स्टाफ़ मेंबर तो नहीं है जो इस तरह उसे घूर रही है।
लैला में सब्र नाम की चीज़ बहुत कम थी। इसलिए, वह बिना किसी के प्रवाह के एक मिनट में रिमझिम के सामने आ गई।
रिमझिम इस तरह से लैला को अपने सामने देखकर चौंक गई और उसे आँखें फाड़कर देखने लगी। तब लैला ने रिमझिम से कहा,
"क्या हुआ? तुम मेरा पीछा कर रही हो या कुछ कहना चाहती हो? मैं बहुत देर से नोटिस कर रही हूँ, तुम मुझे बार-बार देख रही हो।"
जैसे ही लैला ने साफ़-साफ़ रिमझिम से यह कहा, रिमझिम का हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। उसे तो लग रहा था कि वह बहुत सावधानी से लैला का पीछा कर रही है, उस पर कभी शक नहीं होगा।
लेकिन रिमझिम को इस बात का एहसास नहीं था कि जिस तरह वह लैला का पीछा कर रही थी, किसी को भी उस पर शक हो सकता था। रिमझिम खुद को छुपाकर चल रही थी, जिससे वह साफ़-साफ़ लोगों की नज़रों में आ रही थी।
रिमझिम को जल्दी अपनी गलती का एहसास हो गया।
"एक्चुअली, आप गलत समझ रही हैं। मैं आपका पीछा नहीं कर रही थी। मैं यहाँ कपड़े खरीदने आई हूँ, और मुझे कपड़ों की ज़्यादा जानकारी नहीं है। तो मैं यह देखना चाहती थी कि आप किस तरह के कपड़े खरीद रही हैं।"
"ताकि मैं भी उसी तरह के कपड़े खरीद सकूँ।" रिमझिम की बात सुनकर लैला अपने आप को हँसने से नहीं रोक पाई।
और जोरों से हँसने लगी। उसे हँसता हुआ देख रिमझिम शर्मा गई और उसकी ओर देखने लगी। तब लैला ने रिमझिम से कहा,
"अगर ऐसी बात है, तो तुम मुझे बता सकती थीं। तुमने तो मुझे डरा ही दिया।"
इस तरह से लैला की परेशानी रिमझिम को लेकर दूर हो गई।
वह सोचने लगी कि रिमझिम जैसी सीधी-साधी, मासूम लड़की उसने ज़िन्दगी में पहली बार देखी थी। और ऊपर से रिमझिम ने बड़ा सा चश्मा लगा रखा था, जिसकी वजह से वह किसी चश्मिश से ज़्यादा नहीं लग रही थी। चश्मा रिमझिम की खूबसूरती को हमेशा छुपा लिया करता था।
तब लैला ने रिमझिम के कंधे पर हाथ रखा और उसे कपड़ों के सेक्शन में ले गई। लैला ने रिमझिम के लिए एक ब्लैक एंड रेड कलर का लहंगा-चोली निकाल दिया।
क्योंकि वह जल्द से जल्द अपना काम ख़त्म करके वहाँ से जाना चाहती थी और रिमझिम से अपना पीछा छुड़ाना चाहती थी।
तो जब रिमझिम ने उसे कह दिया कि वह केवल कपड़ों के लिए उसके पीछे थी, तो लैला के हाथ में जो भी पहले ड्रेस आया, वह उसने रिमझिम के लिए निकाल दिया। अनजाने में ही, लेकिन लैला ने जो ड्रेस रिमझिम के लिए निकाली थी, वह बहुत खूबसूरत थी।
वह रेड एंड ब्लैक कलर का मैचिंग घाघरा-चोली था, और उसके ऊपर हलके वर्क का दो-तरफ़ा दुपट्टा था, जो अपने आप में उस ड्रेस की खूबसूरती को और बढ़ा रहा था।
उस ड्रेस को देखकर रिमझिम खुश हो गई और उसने जोरों से लैला को गले लगा लिया। कितने दिनों के बाद किसी और लड़की का साथ मिलना लैला को बहुत अच्छा लगा।
उसने भी बदले में रिमझिम को गले लगा लिया और बोली,
"यह ड्रेस तुम पर बहुत खूबसूरत लगेगी। तुम यह ड्रेस ज़रूर पहनना।" हालांकि मन ही मन में लैला रिमझिम के बड़े चश्मे का मज़ाक उड़ा रही थी, लेकिन रिमझिम के इस तरह से गले लगाने पर वह खुश हो गई थी।
और मन ही मन में सोचने लगी कि आज के ज़माने में भी कोई इतना सीधा-साधा और मासूम हो सकता है। तभी लैला ने रिमझिम के गाल को छूते हुए कहा,
"अच्छा, तुम यह ड्रेस ट्राई करो। तब तक मैं अपने बाकी दोस्तों को देखती हूँ, वे कहाँ हैं।" ऐसा कहकर लैला जल्दी से रिमझिम से अपना पीछा छुड़ाकर वहाँ से निकल गई।
तभी राणा का एक और मैसेज आया: "सभी जल्द से जल्द इस मॉल से बाहर निकलो और अड्डे पर मिलो।" राणा का मैसेज मिलने के बाद लैला समेत सभी एक-एक करके मॉल से निकलने लगे, और किसी को उन पर कोई शक नहीं हुआ।
लेकिन राणा सबसे आखिर में रहा गया था। राणा जैसे ही मॉल से बाहर निकला और पीछे मुड़कर देखा, तब रिमझिम की आँखें राणा पर पड़ गईं।
दोस्तों, प्लीज स्टोरी को ज़्यादा से ज़्यादा लाइक, शेयर और कमेंट करें, और अपने फ़्रेंड सर्कल में शेयर करना बिल्कुल न भूलें। धन्यवाद।
रिमझिम के पिता मयंक ने यह निश्चय कर लिया था कि वह अपनी बेटी के मन से किसी भी अपराधी को लेकर जितना भी डर या खौफ है, उसे दूर करेंगे। इसलिए वे रिमझिम को एसीपी आजाद अहमद की शादी में ले जाना चाहते थे। ताकि राणा की वीडियो क्लिप देखकर बेहोश हुई रिमझिम, वहाँ पुलिसवालों का जोश देखकर, राणा को पकड़ने की उनकी योजना सुनकर हिम्मत जुटा ले। यही सोचकर मयंक जी ने फैसला कर लिया था कि वे रिमझिम को उस शादी में अवश्य ले जाएँगे।
रिमझिम बेड पर पड़ी बेचैनी महसूस कर रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आज उसके सामने क्या हुआ था। उसका दस साल पुराना अतीत, जिससे वह भागती आई थी, अचानक उसके सामने आ गया था। रिमझिम ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस राणा के नाम का खौफ पूरी दुनिया में था, वही उसका अपहर्ता होगा। उस वक्त रिमझिम केवल बारह साल की थी। बारह साल की रिमझिम को राणा ने अपने ही घर में कैद कर लिया था।
राणा ने तब रिमझिम को दया खाकर छोड़ दिया था। पर रिमझिम का बचपन का मन था, इसलिए राणा की कड़वी याद हमेशा-हमेशा के लिए उसके दिलो-दिमाग़ में बस गई थी। और आज इतने दिनों बाद राणा को सामने देखकर रिमझिम कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे। वह अपने माता-पिता को राणा का सच नहीं बता सकती थी, क्योंकि राणा के आखिरी शब्द बार-बार उसके दिमाग में आ रहे थे।
जब रिमझिम बारह साल की थी और राणा के घर से भागकर बस में चढ़ी थी, तभी राणा ने उसका हाथ पकड़ लिया था और आँखों में घूरते हुए कहा था,
"आज तो मैं तुम्हें जाने दे रहा हूँ, लेकिन याद रखना, अगर तुमने मेरे बारे में किसी को कुछ भी बताया, तो मैं तुम्हें कहीं से भी ढूँढकर ले आऊँगा और तुम्हारा ऐसा हाल करूँगा कि तुम सोच भी नहीं सकती हो। और तुम्हारे माता-पिता को भी मार डालूँगा।"
बारह साल की रिमझिम के लिए राणा की यह धमकी बहुत बड़ी थी, और आज तक रिमझिम इस धमकी में उलझी रही थी। इसलिए उसने आज तक राणा के बारे में किसी को नहीं बताया था। रिमझिम के वापस आने के बाद मयंक जी ने कई बार स्केच आर्टिस्ट से उस अपहर्ता का चेहरा बनवाने को कहा था, लेकिन रिमझिम ने एक बार भी राणा की शक्ल नहीं बनवाई थी। हालाँकि वह राणा की शक्ल अच्छी तरह पहचानती और जानती थी। क्योंकि उस वक्त राणा भी ज्यादा बड़ा नहीं था; वह केवल सोलह-सत्रह साल का ही था।
रिमझिम कुछ सोच ही रही थी कि सरिता जी उसके कमरे में आ गईं और बोलीं,
"डॉक्टर ने बेटा, तुम्हें हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया है। तुम अब घर पर आराम कर सकती हो। और कल, तुम्हें पता है, तुम्हारे पापा के दोस्त के बेटे की शादी है, हमें वहाँ भी जाना है। तो अगर तुम्हें कोई शॉपिंग करनी है, तो कर लेना। आज शाम को हम लोग शॉपिंग करने चलेंगे।"
अपनी माँ की बात सुनकर रिमझिम हल्की सी मुस्कान मुस्कुराई और जल्दी ही अपने माता-पिता के साथ घर आ गई। घर जाकर जैसे ही वह अपने कमरे में आई, उसने जोर से दरवाजा बंद कर बेड पर बैठ गई। और फिर पिछले दस साल से लिखी अपनी डायरी उसके सामने रख ली। अब तक उसके पास अठारह डायरी हो गई थीं। रिमझिम एक-एक डायरी खोलकर देख रही थी। हर डायरी पर राणा की आँखें बनी हुई थीं; राणा की आँखें देखकर रिमझिम को फिर से खौफ होने लगा।
लेकिन उसने खुद को संभाला; वह जानती थी। अगर उसने राणा के बारे में किसी को कुछ बताया, तो उसके माता-पिता को खतरा हो सकता है। और चूँकि राणा शहर का सबसे बड़ा गुंडा बन चुका था, इसलिए उसके लिए उसके माता-पिता की जान लेना कोई बड़ी बात नहीं थी। इसलिए रिमझिम ने चुप रहने में ही भलाई समझी।
रिमझिम को इस तरह कमरे में बंद देख मयंक जी परेशान हो गए, और आधे घंटे बाद उन्होंने रिमझिम का दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया। रिमझिम का मन कहीं भी जाने का नहीं था, लेकिन वह अपने पिता को परेशान नहीं कर सकती थी। इसलिए रिमझिम ने दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही उसके पिता ने कहा,
"बेटा, तुम्हें पता है ना, हमें शॉपिंग करने जाना है, और अनवर के बेटे के लिए गिफ्ट भी खरीदना है। तो जल्दी से तैयार हो जाओ, हम लोग मॉल के लिए चल रहे हैं।"
अपने पिता की बात सुनकर रिमझिम चुपचाप कमरे में वापस गई और तैयार होकर बाहर आ गई। उसने सोचा कि वह अपने मन की बात अपने पिता से नहीं कहेगी, क्योंकि वह उन्हें किसी भी परेशानी में नहीं डालना चाहती थी।
रिमझिम उदास मन से अपने माता-पिता के साथ मॉल के लिए निकल गई। वहीं राणा के सारे आदमी कल की तैयारी करने लगे थे। क्योंकि वे जानते थे, अगर उनकी तैयारी में कोई कमी रही, तो राणा उनका क्या हाल कर सकता था। राणा उनकी जान नहीं लेगा, लेकिन उनकी हालत जान लेने से भी बदतर बना देगा; यह बात वे अच्छी तरह जानते थे। इसलिए वे राणा के काम में कोई कमी नहीं छोड़ते थे। वहीं वे लैला-मजनू एक-दूसरे से प्यार करने में खोए हुए थे। लेकिन जब देव ने उन्हें टोका और कहा,
"अगर इस बार तुम लोगों ने कोई गड़बड़ की, तो हो सकता है राणा के कहर से इस बार तुम लोग न बच पाओ।"
तब लैला ने देव से कहा,
"तुम देखना देव बाबू, एक दिन हमारे राणा साहब को ऐसी मोहब्बत होगी, कि दुनिया हिलाकर रख देंगे।"
उसने ऐसा कहा कि सभी हँसने लगे। तभी देव की नज़र सीढ़ियों पर खड़े राणा पर पड़ी; उसकी हँसी रुक गई।
सभी की नज़र देव पर पड़ी, और देव की नज़रों का पीछा करके उन लोगों की नज़र राणा पर पड़ी, तो सभी ने गर्दन झुका ली, और उनकी हँसी रुक गई। लड़की ने भी राणा को देखकर गर्दन झुका ली। वह जानती थी, अगर उसने कुछ बोला, तो उसकी गर्दन कटने में देर नहीं लगेगी। और वह अपने मजनू से दूर नहीं रह सकती थी। इसलिए वह भी गर्दन झुकाकर अपने मजनू का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई। राणा ने एक नज़र अपनी टीम पर देखा, जो सभी गर्दन झुकाए खड़े थे। फिर वह लंबे-लंबे कदम भरता हुआ अपने कमरे में चला गया।
अपने कमरे में जाकर राणा इधर-उधर घूमने लगा। बार-बार लैला की बातें उसके दिमाग में घूमने लगीं: "राणा को जब मोहब्बत होगी, तो वह पूरी दुनिया हिलाकर रख देंगे।" जैसे ही राणा ने आँखें बंद कीं, उसे केवल बारह साल की स्कूल गर्ल का चेहरा याद आया। उसका चेहरा याद आते ही राणा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई, लेकिन अगले ही पल उसका चेहरा फिर से कठोर हो गया। क्योंकि राणा की ज़िंदगी में मोहब्बत-प्यार नाम की कोई चीज़ नहीं थी। राणा ने अपनी सोच को झटक दिया और गुस्से से हाथ में बंदूक लेकर बाहर निकला। और उसने जोर से बंदूक से घर में तीन-चार रैंडम फायर कर दिए।
राणा का यह अंदाज़ देखकर सभी थर-थर काँपने लगे। क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि राणा अब किसी न किसी पर अपना कहर ज़रूर ढाएगा। लेकिन तभी राणा ने बड़े गुस्से में कहा,
"तुम लोगों की बकवास दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। मैंने कितनी बार कहा है, यह प्यार-मोहब्बत की बातें यहाँ मेरे गैंग में नहीं चलेगी। अगर तुम लोगों को यह प्यार-मोहब्बत की बातें ही करनी हैं, तो तुम लोग इस गैंग से निकल सकते हो। और याद रखना, राणा के खिलाफ़ कुछ भी बोलने या करने की हिम्मत मत रखना।"
जैसे ही राणा ने यह कहा, लैला आकर राणा के पैरों में झुक गई और बोली,
"नहीं-नहीं राणा, नहीं! राणा, हमें कुछ और सज़ा दे दो। मैं कोई भी सज़ा काटने के लिए तैयार हूँ, लेकिन अपनी टीम में से निकलने की बात मत करना। राणा, तुमने हमें उस वक्त सहारा दिया था, जब हमें सहारे की बहुत ज़्यादा ज़रूरत थी। मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है, जब वह मकान मालिक मेरी इज़्ज़त लूटने के लिए मेरे पास आ रहा था, और उस वक्त तुमने मेरी इज़्ज़त और जान दोनों ही बचाई थीं। मैं यह एहसान तुम्हारा जिंदगी भर नहीं भूलूँगी, राणा। और मैं अब मरते दम तक सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे साथ ही काम करना चाहूँगी। और तुम्हारे साथ काम करने पर मुझे मेरी सच्ची मोहब्बत भी मिली है, राणा, जिसे मैं अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करती हूँ।"
राणा कुछ पल उस लड़की की बातें सुनता रहा, और फिर उसे एक-एक करके वह घटना याद आ गई, जब उसे वह लड़की मिली थी। पाँच साल पहले राणा एक आदमी का मर्डर करने के लिए एक बड़े बंगले में गया था, क्योंकि उस आदमी का सीधा संबंध पुलिस से था, और वह पुलिस को खबर दिया करता था; वह पुलिस का मुख़बिर था। राणा को जैसे ही पता चला, वह उसे मारने उसके घर पहुँच गया। वहाँ उसने देखा, ललिता (अब लैला), उसके माता-पिता, एक छोटा भाई-बहन बैठे हुए थे। और उस अमीर आदमी ने ललिता को बालों से पकड़कर अपने पास खड़ा रखा था, और एक हाथ उसके कमर पर रखकर बोला था,
"तुम लोगों ने पिछले तीन महीने से मेरे कमरे का किराया नहीं दिया है, इसलिए तुम्हारी बेटी आज उसकी कीमत चुकाएगी। इसलिए चुपचाप खड़े रहो।"
यह सुनकर राणा का गुस्सा बढ़ गया, और वह उस अमीर आदमी को मारने के इरादे से उसके कमरे में चला गया। ललिता के माता-पिता बुरी तरह रो रहे थे और अपनी बेटी को छोड़े जाने की गुहार लगा रहे थे, लेकिन ज़मींदार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही थी। और जैसे ही वह लैला को अपने कमरे में ले गया, राणा ने उस ज़मींदार की चाकू घोंपकर निर्मम हत्या कर दी। साथ ही उसने उसके प्राइवेट पार्ट को काटना नहीं भूला। तभी ललिता ने राणा की हिम्मत और ताकत देखकर उसके साथ रहने का फैसला किया, और उसकी टीम में आने के बाद उसे राणा के टीम के दूसरे सदस्य मजनू से मोहब्बत हो गई।
रिमझिम जल्दी से ऑफिस पहुँच गई थी। रिमझिम को ऑफिस में देखकर तरुण हैरान हो गए थे। उन्हें यकीन नहीं था कि रिमझिम इस तरह से ऑफिस आएगी। वे सबसे पहले रिमझिम के हाल-चाल पूछने लगे थे।
रिमझिम ने कहा, "अंकल, मैं अब ठीक हूँ, और मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी थी, इसलिए मैं यहाँ आई हूँ।" रिमझिम की बात सुनकर तरुण हैरान हो गए थे, क्योंकि रिमझिम ने पहली बार खुद पहल की थी।
तब तरुण जी हल्की सी मुस्कान के साथ बोले, "हाँ-हाँ, बेटा, बोलो, क्या बात करनी है?" जैसे ही रिमझिम ने अपने पीछे अपने बाकी के ऑफिस के स्टाफ़ को देखा, वे सब रिमझिम और तरुण की ओर देख रहे थे। इसलिए उसने तरुण से कहा, "क्या अंकल, हम आपके केबिन में चलकर बात कर सकते हैं?"
तब तरुण ने रिमझिम के इशारे से देखा कि सारा स्टाफ़ उन्हें देख रहा था। तब उन्होंने सभी स्टाफ़ को काम करने को कहा और रिमझिम को लेकर अपने केबिन में आ गए थे।
केबिन में आने के बाद रिमझिम थोड़ी देर कुर्सी पर शांत बैठी रही। रिमझिम को इस तरह शांत देखकर तरुण जी हल्का सा मुस्कुराए और बोले, "बोलो बच्चा, क्या बात है?" तब रिमझिम ने तरुण से कहा, "वह अंकल, मैं राणा के प्रोजेक्ट पर काम करना चाहती हूँ।"
क्या?! यह सुनकर तरुण की हैरानी का ठिकाना नहीं था। वे हैरानी से रिमझिम की ओर देखने लगे, क्योंकि रिमझिम ने पहली बार किसी क्रिमिनल के केस पर काम करने की इच्छा जताई थी। यह बात वाकई तरुण के लिए आश्चर्यजनक थी।
तब तरुण आश्चर्यचकित होते हुए बोले, "अरे वाह! बेटा, तुम वाकई राणा के केस पर काम करना चाहती हो?" तब रिमझिम ने हाँ में अपना सर हिलाया और कहा, "अंकल, मैं राणा के केस पर काम करना चाहती हूँ, तो इसके लिए मुझे आपकी मदद की ज़रूरत है। आप प्लीज़ मुझे राणा के जितने भी इनफॉर्मेशन आपके पास हैं, वह सब मुझे दे दीजिए।"
तब तरुण हल्का सा मुस्कुराते हुए बोले, "ठीक है, मेरा बच्चा। अगर तुम्हें ठीक लगे, तो क्या मैं तुम्हें रिद्धिमा के ग्रुप के साथ ज्वाइन करवा देता हूँ? रिद्धिमा के ग्रुप के पास ऑलरेडी राणा की सारी इनफॉर्मेशन है। और अगर तुम रिद्धिमा के ग्रुप के साथ काम करोगी, तो तुम्हें काफ़ी कुछ सीखने को मिलेगा, और ज़्यादा से ज़्यादा इनफॉर्मेशन तुम्हें उनके थ्रू मिल जाएगी।"
तरुण की बात सुनकर रिमझिम उन्हें हैरानी से देखने लगी। रिद्धिमा के साथ काम करने का मतलब था, रोज़ अपमान सहना। रिद्धिमा काम कम करती थी और अपने ग्रुप के लोगों से सारा काम करवाती थी, और बात-बात पर उन्हें ताना मारती थी।
वह सारी इनफॉर्मेशन खुद अपने रिश्तेदारों के थ्रू निकलवाती थी। रिमझिम के पास कोई और रास्ता नहीं था। इसलिए उसने अपने अंकल तरुण से कहा, "ठीक है अंकल, आप रिद्धिमा के ग्रुप में मुझे भी ऐड करवा दीजिए। आई होप रिद्धिमा मुझे अपने ग्रुप में ले लेगी।"
यह सुनकर तरुण खुश हो गए और बोले, "बेटा, तुम 1 मिनट रुको, मैं अभी रिद्धिमा को यहाँ बुलाता हूँ।" जल्दी ही तरुण ने रिद्धिमा को कॉल करके वहाँ बुला लिया।
रिद्धिमा ने एक प्यारी नज़र रिमझिम पर डाली और फिर तरुण जी की ओर देखते हुए बोली, "यस सर, आपने मुझे बुलाया?" तब तरुण जी बोले, "हाँ रिद्धिमा, मैं तुम्हें यहाँ इसलिए बुलाया है कि आज से रिमझिम भी तुम्हारे ग्रुप को ज्वाइन करेगी।"
क्या?! यह सुनकर रिद्धिमा हैरान हो गई। वह रिमझिम को शुरू से ही जानती थी। रिमझिम कभी किसी काम को ठीक से नहीं करती थी। अगर उसे कोई प्रोजेक्ट दिया जाए, तो वह उसे बिगाड़ देती थी। इसलिए हर कोई रिमझिम को अपने ग्रुप में लेने से बचता था। रिद्धिमा हैरान होकर तरुण से बोली, "लेकिन सर, आप तो अच्छी तरह से जानते हैं कि इसको कोई काम नहीं आता है। ये किसी काम की नहीं है। यह उल्टा मेरा ग्रुप भी ख़राब करवा देगी। और मेरे ग्रुप में जो लोग हैं, वे ठीक काम कर रहे हैं। मुझे किसी और मेंबर की कोई ज़रूरत नहीं है।"
रिद्धिमा ने साफ़-साफ़ रिमझिम को अपने ग्रुप में लेने से मना कर दिया। तब तरुण जी थोड़ा सख़्त होते हुए बोले, "रिद्धिमा, मैं तुमसे पूछ नहीं रहा हूँ, मैं तुम्हें बता रहा हूँ। और आज से रिमझिम भी तुम्हारे ग्रुप में ही काम करेंगी। और यह इट्स एन ऑर्डर, ओके? यह मत भूलो, मैं तुम्हारा बॉस हूँ, तुम मेरी बॉस नहीं हो, जो मेरी बात को टालोगी।"
तरुण का ऑर्डर सुनने के बाद रिद्धिमा के पास कोई और विकल्प नहीं था। इसलिए उसे मजबूरी में रिमझिम को भी अपने ग्रुप में काम करने के लिए हाँ कहना पड़ा।
जल्दी ही रिद्धिमा के साथ रिमझिम भी बाहर आ गई, और वह उसी के ग्रुप वालों के साथ बैठ गई। उन सब के साथ बैठना रिमझिम को असहज लग रहा था। वह हमेशा अपनी डेस्क पर अकेली बैठा करती थी, और आज सबके साथ बैठना उसे अजीब लग रहा था। लेकिन सबकी नज़रें बार-बार रिमझिम पर आकर ठहर रही थीं। जैसे ही बाकी ग्रुप वालों ने रिमझिम को रिद्धिमा के साथ देखा, उनमें से एक बोला, "क्या यह चश्मिश भी आज के बाद हमारे ग्रुप ज्वाइन करेगी? नो-नो-नो! नहीं यार, इस चश्मिश को हमारे साथ नहीं होना चाहिए। तुम जानती हो ना, इसने पिछली बार क्या किया था? ज़बरदस्ती तरुण सर ने इसे गौरव और अक्षय के साथ भेज दिया था, और इसने मॉल में जाकर उस क्रिमिनल को ही उल्टा हमारे बारे में बता दिया था, जिसके बाद क्रिमिनल के आदमियों ने उन दोनों की ख़ूब पिटाई की थी!"
रिमझिम ने अपनी गर्दन झुका ली, क्योंकि वह जानती थी यह सब उसे सुनने को ही मिलेगा; आखिरकार गलती उसी की थी। उसने कुछ नहीं कहा। फिर रिद्धिमा ने रिमझिम से कहना शुरू कर दिया, "तो यह बस समझ लेना, बॉस ने तुम्हें ज़बरदस्ती मेरे साथ घुसा दिया है, तो तुम अपने आप को ज़्यादा इम्पॉर्टेंस मत देना, समझी तुम? और हाँ, जो भी काम हम तुम्हें दें, तुम्हें वह करना होगा।"
रिद्धिमा ने रिमझिम को परेशान करने के प्लान बनाने शुरू कर दिए। तब रिमझिम ने धीमी आवाज़ में रिद्धिमा से कहा, "मुझे राणा की पूरी डिटेल्स चाहिए।" यह सुनकर रिद्धिमा उसे हैरानी से देखने लगी और बोली, "तुम राणा की डिटेल्स लेकर क्या करोगी? तुम जानती भी हो राणा कितना ख़तरनाक मुजरिम है, और तुम्हें उसी की डिटेल्स चाहिए? तुम पागल हो गई हो क्या?"
तब रिमझिम ने अपनी आवाज़ सख़्त करते हुए कहा, "देखो रिद्धिमा, मैं पागल हूँ या मैं ठीक हूँ, यह मेरी हैडिक् है, ठीक है? और अगर मैं तुम्हारे साथ इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हूँ, तो मुझे भी राणा के बारे में पूरी चीज़ पता होनी चाहिए। मुझे सारी डिटेल्स चाहिए, मतलब सारी डिटेल्स चाहिए!"
रिमझिम के इस तरह की बातें सुनकर ग्रुप वाले हैरान हो गए और अपना मुँह खोलकर रिमझिम की ओर देखने लगे। ऐसा पहली बार हुआ था कि रिमझिम ने इस तरह की बात ऑफिस में की थी।
तब रिद्धिमा रिमझिम की बात सुनकर मुस्कुराने लगी और बोली, "वाह! तो तुममें लगता है कि तुम राणा को पकड़वा लोगी? तुम राणा की खोज-ख़बर निकाल लोगी? तुम्हें तो बड़ा कॉन्फिडेंस आ गया है! तुममें अगर ऐसी बात है, तो यह लो, यह है राणा की फ़ाइल। और हाँ, तुम जो कि मेरे ग्रुप में हो, और मैं तुम्हारी ग्रुप की हेड हूँ, तो तुम्हें मेरी हर एक बात माननी होगी, ठीक है? और पहले काम तुम्हारा यह होगा कि तुम मुझे राणा की कोई फ़ोटो लाकर दोगी। क्योंकि राणा की केवल आँखें हमारे पास हैं, लेकिन किसी ने भी आज तक राणा को देखा नहीं है। और मुझे नहीं पता, तुम राणा की फ़ोटो कहाँ से लेकर आओगी। कुछ भी करो, पुलिस स्टेशन जाओ, क्रिमिनल्स के पीछे जाओ, या खुद राणा के पीछे जाओ, लेकिन मुझे राणा की फ़ोटो तीन दिन के अंदर चाहिए, समझी तुम?"
रिद्धिमा की बात सुनकर बाकी ग्रुप वाले मुँह खोलकर रिद्धिमा की ओर देखने लगे। रिद्धिमा ने रिमझिम को ऐसा काम दिया था, जिसे करना लगभग नामुमकिन था। रिद्धिमा ने जानबूझकर उसे यह काम दिया था, क्योंकि वह जानती थी, राणा की फ़ोटो तो किसी को मिलने वाली नहीं है, और वह फिर इस बहाने से रिमझिम को अपने ग्रुप से निकलवा देगी, और हो सकता है वह इस ऑफिस से ही उसे निकलवा दे। रिद्धिमा ने रिमझिम को कभी पसंद नहीं किया था; वह हमेशा उसे चिढ़ाती आई थी। इसका एक ख़ास कारण था: तरुण ने हमेशा रिमझिम को अपनी बेटी की तरह प्यार किया था, और जबकि रिद्धिमा भी तरुण के ही एक रिश्तेदार की बेटी थी, लेकिन तरुण ने कभी रिद्धिमा को इतना प्यार और शफ़्क़त नहीं किया था, जितना उसने रिमझिम को किया था। इसीलिए वह रिमझिम से हमेशा चिढ़ती रहती थी।
रिद्धिमा की बात सुनने के बाद रिमझिम ने कहा, "क्या मैं राणा की फ़ाइल आज अपने साथ घर ले जा सकती हूँ?" तब रिद्धिमा ने वह फ़ाइल रिमझिम के हाथ से लेते हुए दूसरी फ़ाइल की कॉपी उसे थमा दी और कहा, "तुम ले जा सकती हो। यह ओरिजिनल फ़ाइल मैं तुम्हें नहीं दूँगी। हाँ, इसकी कॉपी, जो मैंने सभी बाकी मेंबर्स को दे रखी है, इसको तुम ले जा सकती हो।" रिद्धिमा की बात सुनकर रिमझिम हल्का सा मुस्कुरा उठी, और वह फ़ाइल लेकर जल्दी से ऑफिस से बाहर निकल गई। रिद्धिमा उसे हैरानी से देखने लगी, क्योंकि आज रिमझिम के अंदर कुछ अलग तरह का आत्मविश्वास नज़र आ रहा था। लेकिन यह कब, क्यों और कैसे हुआ था, इसके बारे में किसी को भी कोई अंदाज़ा नहीं था।
✍🏻❤❤❤❤❤
शाम पाँच बजे नहीं हुए थे, परन्तु रिमझिम अपने घर पहुँच चुकी थी। उसके पिता ने पाँच बजे से पहले ही उसे घर आने को कहा था। घर आते ही, उसने देखा कि उसकी माँ एक खूबसूरत लाल साड़ी पहनी हुई थी, और उसके पिता कोट-पैंट पहनकर तैयार थे; वे बहुत स्मार्ट लग रहे थे। माता-पिता को तैयार देखकर रिमझिम बहुत खुश हुई और बोली,
"यह क्या? आप लोग मेरे बिना ही तैयार हो गए? क्या आप लोग मुझे शादी में नहीं ले जा रहे हैं?"
रिमझिम की बात सुनकर मयंक जी मुस्कुराए और बोले,
"मेरे बच्चे, हम तुम्हारे बिना कहीं नहीं जा रहे हैं। तुम अपने कपड़े पहन लो, तुम्हारी माँ ने रख दिए हैं। फिर मैं अपनी बेटी के बाल बनाऊँगा।"
ऐसा कहते हुए मयंक जी मुस्कुराए। सरिता जी ने रिमझिम से कहा,
"तुम चलो, मैं तुम्हारी मदद करने आ रही हूँ।"
रिमझिम जल्दी ही अपने कमरे में गई और नहा-धोकर लैला के पसंद किए हुए कपड़े पहन लिए। वह एक लाल और काले रंग का लहंगा-चोली था, जो बहुत खूबसूरत था। उस पर ज़्यादा वर्क नहीं था, फिर भी वह लड़कियों के हिसाब से बहुत सुंदर था। कपड़े पहनकर बिना चश्मे के आईने में देखते ही वह शर्मा गई। रिमझिम के लंबे, खूबसूरत, घने बाल थे, लंबा कद, पाँच फ़ीट तीन इंच के करीब, और वह दुबली-पतली थी। लहंगे में उसकी कमर हल्की-हल्की दिखाई दे रही थी, खासकर दुपट्टे के ढंग से।
रिमझिम बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसने हल्का सा मेकअप किया। रिमझिम कभी मेकअप नहीं करती थी, पर शादी के फ़ंक्शन के कारण उसने हल्का सा मेकअप कर लिया था और अपने होंठों को हल्का लाल कर लिया था। उसके होंठ कुदरती तौर पर लाल थे, इसलिए वह लिपस्टिक नहीं लगाती थी। आज उसने थोड़ा सा लिप-जेल और आँखों में हल्का सा काजल लगाया था।
खुद को देखकर वह देखती रह गई। उसने आज अपने बालों को चोटी में नहीं बांधा था; बाल खुले छोड़ दिए थे और फिर चश्मा पहन लिया था। चश्मे ने उसकी खूबसूरती को ढँक दिया था, पर आज भी उसकी खूबसूरती दिखाई दे रही थी।
ठीक आधे घंटे बाद रिमझिम तैयार होकर बाहर आई, तो उसके माता-पिता उसे देखते ही रह गए। उसकी माँ की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। उसने अपनी उंगली पर काजल लेकर रिमझिम के बालों के पीछे लगाया और उसके माथे पर किस करते हुए बोली,
"मेरी बेटी कितनी खूबसूरत लग रही है! तुझे किसी की नज़र ना लगे!"
फिर वे लोग शादी के लिए निकल गए।
शादी शहर के एक बड़े हाल में होनी थी। शादी में जाते ही रिमझिम ने देखा कि हाल को बहुत सुंदर तरीके से सजाया गया था। चारों तरफ़ पुलिस की गाड़ियाँ खड़ी थीं; ऐसा लग रहा था मानो वहाँ पुलिस का मेला लगा हो। कोई भी ऑफ़िसर पुलिस ड्रेस में नहीं था, पर उनकी चाल-ढाल, उनके एटीट्यूड से साफ़ पता चल रहा था कि कौन पुलिस वाला था। रिमझिम उस बड़े मैरिज हाल के अंदर चली गई, जो अंदर से गार्डन के रूप में था, और बहुत खूबसूरत था। कुछ पल के लिए तो रिमझिम अपनी पलकें झपकना भूल गई। लाइटिंग और फूलों की डेकोरेशन से इतना खूबसूरती से सजाया गया था, मानो पूरे हाल को दुल्हन की तरह सजाया गया हो। सब कुछ खूबसूरत और रॉयल सा लग रहा था। रिमझिम वहाँ की खूबसूरती को देख रही थी। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे फव्वारे लगे हुए थे, और कई जगह अलग-अलग तरह का खाना लगा हुआ था।
अंदर जाते ही, दरवाज़े पर एसीपी आजाद अहमद के पिता अनवर जी उन्हें मिल गए, और वे मयंक जी से खुशगवार लहजे में मिले। दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया, और तब अनवर ने मयंक से कहा,
"भाई, इतनी देर कोई करता है क्या, अपने घर की खुद की शादी में?"
तब मयंक ने अपने दोस्त से कहा,
"यार, तू तो जानता है ना, यह तुम्हारी बेटी ने ही आने में देर की है।"
जानबूझकर मयंक ने रिमझिम को आगे कर दिया। मयंक चाहते थे कि रिमझिम के डर और हिचकिचाहट दूर हो जाएँ। अनवर की नज़र रिमझिम पर पड़ते ही, वह उसे देखते रह गए और बोले,
"अरे वाह! तुमने मेरी चाँद से खूबसूरत बेटी को छुपाकर रखा हुआ था, और आज दीदार करवा रहे हो! मेरी इतनी खूबसूरत बेटी का!"
जल्दी ही अनवर ने रिमझिम के सर पर अपना हाथ रख दिया। रिमझिम काफ़ी खुश थी, और उसने अपनी पलकें झुका लीं।
अनवर ने रिमझिम से कहा,
"मेरे बच्चे, तुम जाओ एजाज़ की दुल्हन के पास, और उसे नीचे लेकर आओ।"
आँखों ही आँखों में मयंक ने अनवर से कुछ बात की, और वे दोनों एक-दूसरे की बातों को समझ गए। इसलिए जानबूझकर अनवर ने रिमझिम को दुल्हन लाने के लिए ऊपर कमरे में भेज दिया। रिमझिम एक नज़र अपने माता-पिता की ओर देखती हुई, और उनका इशारा हाँ में मिलने के बाद, ऊपर जाने लगी।
ऊपर वाले कमरे में जाकर उसने देखा कि एक खूबसूरत लड़की, कई लड़कियों से घिरी बैठी थी। रिमझिम के अंदर आते ही, वे सब उसकी ओर देखने लगे। सबको अपनी ओर देखते हुए रिमझिम थोड़ी सकपका गई, और उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह वहाँ जाकर दुल्हन को कह सके कि वह उसे लेने आई है।
तभी उनमें से एक लड़की बोली,
"अरे चश्मिश लड़की, कौन है?"
दुल्हन की नज़र रिमझिम पर पड़ी, तो उसे पहली नज़र में ही क्यूट और मासूम लगी, और उसने प्यार से रिमझिम को अपने पास बुलाया। रिमझिम उसके पास गई, और थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली,
"अनवर अंकल आपको नीचे बुला रहे हैं, तो मैं आपको लेने आई हूँ।"
यह कहते ही, सारी लड़कियाँ रिमझिम पर हँसने लगीं। दुल्हन की एक दोस्त बोली,
"हाँ-हाँ, फ़रीन! अनवर...अंकल तुम्हें बुला रहे हैं। तुम इन चश्मिश मैडम के साथ नीचे जाओ।"
उनके मज़ाक उड़ाने पर बाकी लड़कियाँ खिलखिलाकर हँसने लगीं। रिमझिम को बहुत बुरा लगा, और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे। इसलिए रिमझिम बिना दुल्हन फ़रीन को लिए वापस मुड़ गई, और उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह नीचे जा सके। वह ऊपर सीढ़ियों की ओर भागी, और अचानक किसी से टकरा गई।
वह सामने वाला बहुत ताकतवर और मज़बूत इंसान था। अगर वह रिमझिम को नहीं संभालता, तो रिमझिम नीचे गिर सकती थी, और उसका सर फूट सकता था। उसने रिमझिम को अपनी बाहों में संभाल लिया। रिमझिम ने कसकर अपनी आँखें बंद कर रखी थीं। वह इंसान रिमझिम का चेहरा करीब से देख रहा था; उसका एक हाथ रिमझिम की हल्की सी खुली हुई कमर पर था, और उसका चेहरा रिमझिम के चेहरे के सामने था। वह रिमझिम के चेहरे को ध्यान से देख रहा था। रिमझिम की आँखों में आँसू देखकर उस इंसान की ख़तरनाक आँखों में भी दर्द उमड़ आया। वह इंसान कोई और नहीं, बल्कि राणा था।
रिमझिम का कुछ लड़कियों ने मज़ाक उड़ाया था; इसके बाद रिमझिम को काफ़ी ज़्यादा इंसल्टिंग फ़ील हुआ था। इसीलिए वह गुस्से से ऊपर की ओर जा रही थी। लेकिन इससे पहले कि वह ऊपर पहुँच पाती, उसके लहँगे में ही उसका पैर उलझ गया, और वह अचानक किसी से बहुत ज़्यादा बुरी तरह से टकरा गई। जिससे वह टकराई, वह कोई और नहीं, बल्कि राणा था। राणा ने उसे अपनी मज़बूत बाहों में थाम रखा था। राणा बड़े ही ध्यान से रिमझिम को देख रहा था। क्योंकि रिमझिम रोते हुए ऊपर गई थी, कुछ आँसू उसके राणा के हाथों पर गिर रहे थे। रिमझिम ने डर के मारे अपनी आँखें बंद कर रखी थीं। जैसे ही उसने धीरे-धीरे अपनी गहरी, घनी पलकों को खोलना शुरू किया, उसके सामने राणा का चेहरा था।
हमेशा की तरह राणा ने केवल अपनी आँखें ही दिखा रखी थीं; उसका बाकी का चेहरा मास्क से कवर था। राणा की आँखों को देखकर रिमझिम को एक पल नहीं लगा उसे पहचानने में। लेकिन आज राणा उसके इतने करीब था कि कोई सोच भी नहीं सकता था। अचानक रिमझिम के जिस्म के रोंगटे एक बार फिर खड़े होने लगे। अब तक वह राणा को दूर से ही देखती आई थी; उसकी इतनी बुरी हालत हो जाया करती थी। लेकिन आज राणा उसके बिल्कुल करीब खड़ा हुआ था; ऊपर से राणा का एक हाथ उसके कमर में था, और दूसरा उसके पीछे, गर्दन पर।
रिमझिम राणा की बाहों में एकदम से जम गई थी। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह बस अपनी आँखें बड़ी करके राणा की आँखों में देख रही थी।
राणा भी कुछ नहीं बोल रहा था; उसकी निगाहें उस वक़्त सिर्फ़ रिमझिम पर थीं। वह कभी रिमझिम के फड़फड़ाते खूबसूरत होंठों को देख रहा था, तो कभी उसके गहरे, घने पलकों को। कितनी देर तक वह इसी तरह से रिमझिम को देखता रहा। तभी अचानक रिमझिम के जिस्म में एक बिजली सी दौड़ी, और उसे राणा के वीडियो में दिया हुआ चैलेंज याद आने लगा, और साथ ही रिद्धिमा का चैलेंज भी, राणा की फ़ोटो क्लिक करने का। क्योंकि राणा की फ़ोटो आज तक किसी ने नहीं देखी है।
"क्या तुम राणा की फ़ोटो ला सकती हो?"
अचानक यह सब याद आने पर, रिमझिम राणा की बाहों में थी; उसने एक बोल्ड स्टेप ले लिया, और वह राणा के थोड़ा और करीब चली गई। और फिर अचानक रिमझिम ने अपने एक हाथ से राणा का मास्क नीचे कर दिया। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि राणा को कुछ भी सोचने-समझने का मौका नहीं मिला।
राणा का एकदम स्मार्ट और डैशिंग वाला चेहरा रिमझिम की आँखों के सामने था। रिमझिम बिना पलक झपके राणा को देख रही थी। रिमझिम खुद नहीं जानती थी कि अचानक से उसके अंदर इतनी हिम्मत कैसे आ गई थी। उसने सीधा शेर के मुँह में हाथ डाल दिया था।
राणा ने उसकी हरकत पर कोई रिएक्ट नहीं किया; वह भी उस वक़्त रिमझिम को ही देख रहा था। राणा को इस बात का दूर-दूर तक कोई ख़बर नहीं थी कि उस वक़्त वहाँ राणा के दो आदमी भी मौजूद थे: लैला और मजनू।
वे दोनों हमेशा एक साथ टीम की तरह काम करते थे, और काम करते वक़्त वे अपने काम के लिए ही रॉयल रहते थे। उनके बीच किसी तरह का कोई रोमांस नहीं था। जैसे ही फूलों की टोकरी लिए मजनू नीचे की ओर जा रहा था, और लैला, एक वेट्रेस की ड्रेस में, खाने की डिश लेकर नीचे जा रही थी, उनकी नज़र वहाँ खड़े हुए राणा और उस लड़की पर पड़ी; दोनों हैरान रह गए। लैला तो रिमझिम को देखकर खिल उठी, क्योंकि रिमझिम ने वही कपड़े पहने हुए थे जो लैला ने उसे अनजाने में पकड़ा दिए थे। उसे इस बात का दूर-दूर तक कोई अंदाज़ा नहीं था कि यह लड़की उसके दिए हुए कपड़े पहनकर यहाँ आ जाएगी, और राणा से टकरा जाएगी।
रिमझिम ने जिस तरह से राणा का मास्क नीचे किया था, उसे कितनी देर तक देखने के बाद वह अपने आप को बोलने से नहीं रोक पाई, और एकदम से बोल पड़ी, "राणा!"
जैसे ही राणा ने रिमझिम के मुँह से अपना नाम सुना, उसके माथे पर सिलवटें उभर आईं, और उसकी दोनों आइब्रो आपस में सिकुड़ गईं। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह अनजान लड़की उसका नाम कैसे जानती है, जबकि राणा को तो आज तक किसी ने भी नहीं देखा है। तभी अचानक राणा को याद आ गया कि वह किस सिचुएशन में उस लड़की के साथ खड़ा हुआ है; उसका एक हाथ उस लड़की के कमर में था, और दूसरा उसकी पीठ, गर्दन पर।
जल्दी से राणा ने अपने हाथों को पीछे खींच लिया और रिमझिम को अच्छी तरह से सीढ़ी पर खड़ा कर दिया। और उसके बेहद करीब से होता हुआ, फ़ेस मास्क वापस पहनकर नीचे जाने लगा। राणा ने यह पता करने की कोशिश नहीं की कि उस लड़की को उसका नाम कैसे पता चला; उसके पास इतना समय नहीं था; उसका "शिकार" उसका इंतज़ार कर रहा था। और राणा सब कुछ बर्दाश्त कर सकता था, लेकिन अपने "खाने" में देरी किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं कर सकता था।
राणा को वहाँ देखकर रिमझिम एक तरफ़ जम गई थी। उसे अब समझ में नहीं आ रहा था वह क्या करे। क्योंकि राणा को वहाँ देखकर वह एक बात समझ गई थी कि ज़रूर इस जगह पर कुछ बड़ा होने वाला है। और तभी अचानक रिमझिम की आँखों के सामने फ़रीन का खूबसूरत चेहरा आ गया, जो दुल्हन के वेश में थी। फ़रीन दुल्हन के वेश में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। लेकिन अचानक फ़रीन के खूबसूरत दुल्हन वाले रूप की जगह सफ़ेद कपड़ों में फ़रीन का चेहरा उसके सामने आने लगा। अब रिमझिम को समझने में देर नहीं लगी कि राणा वहाँ क्या करने आया था।
राणा नीचे उतरते ही आँखों ही आँखों में अपने आदमियों को उस लड़की की पूरी डिटेल निकालने के बारे में कह चुका था। क्योंकि वह शादी के माहौल में किसी तरह का कोई हंगामा नहीं करना चाहता था, ना ही वह लोगों की नज़रों में आना चाहता था; जब तक उसका काम पूरा ना हो जाए।
जल्दी ही देव ने एक एसएमएस के थ्रू राणा को बता दिया था कि एसीपी आजाद अहमद किस कमरे में है। राणा सीधा उसकी ओर चल पड़ा। राणा के पीछे वाली जेब में कोई गन नहीं थी, बल्कि स्क्रूड्राइवर था, जो उसने मॉल से खरीदा था। राणा आज एसीपी आजाद अहमद को अपने प्लान के मुताबिक स्क्रूड्राइवर से ही मारकर मौत देना चाहता था।
वहीं रिमझिम को काफ़ी देर हो गई थी। दुल्हन भी नीचे चली गई थी, लेकिन अभी तक रिमझिम नीचे नहीं आई थी। यह बात उसके पिता को परेशान कर गई थी। इसीलिए मयंक जी रिमझिम को ढूँढते हुए ऊपर की ओर आने लगे, और जैसे उन्होंने बुत बनी हुई सीढ़ियों पर खड़ी हुई रिमझिम को देखा, वह काफ़ी ज़्यादा परेशान हो गए और जल्दी से उसके पास गए। रिमझिम उस ओर देख रही थी जहाँ राणा गया था; उसके बाद से उसने अपनी पलकें तक नहीं झपकाई थीं; वह लगातार एकटक उसी ओर देख रही थी। जैसे उसके पिता ने रिमझिम की नज़रों का पीछा किया और देखा, वहाँ पर खाली रेलिंग के अलावा कुछ नहीं था। तब उसने अपनी बेटी को कंधों से पकड़कर झिंझोड़ दिया।
अचानक अपने पिता को सामने देखकर रिमझिम खुद को रोक नहीं पाई और उसने जल्दी से अपने पिता को गले से लगा लिया और रोने लगी। क्योंकि आज उसके सामने उसके साथ जो कुछ भी हुआ था, वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी। रोती-रोती रिमझिम अपने पिता से कहने लगी, "वह...पा...पा...पापा! पापा! यहाँ कुछ होने वाला है! अब चलिए यहाँ से! हमें यहाँ नहीं रहना चाहिए! अब चलिए यहाँ से!" रिमझिम बार-बार यही बात बोले जा रही थी।
अब मयंक जी को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर रिमझिम कहना क्या चाहती है और आखिर ऐसा यहाँ क्या होने वाला था। तब मयंक ने रिमझिम के चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए कहा, "क्या हुआ मेरे बच्चे? इतना क्यों परेशान हो रही है? क्या हुआ है मेरी बेटी को? आप मुझे यह बताओ पहले। किसी ने कुछ कहा है क्या? और क्या होने वाला है यहाँ पर? आप कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही हो? मैं यहाँ तुम्हें हिम्मत भरने के लिए लेकर आया था; तुम्हें अपने आर्मी के कुछ स्पेशल फ़्रेंड से मिलवाने के लिए लाया था, और आप हैं कि यहाँ पर अकेले गुमसुम सी खड़ी हुई है।" मयंक ने रिमझिम को थोड़ा सा डाँटना शुरू कर दिया और प्यार से पूछने लगे कि आखिर ऐसा क्या होने वाला है, जिसकी वजह से तुम इतना ज़्यादा पैनिक कर रही हो।
तब रिमझिम ने बार-बार अपने पिता को यही बात कही, "पापा, आप मेरी बात क्यों नहीं समझ रहे हैं? हमें यहाँ नहीं होना चाहिए! आप मेरी बात मानिए, चलिए यहाँ से!" रिमझिम बार-बार इसी बात पर अड़ी हुई थी।
अब मयंक भी थोड़ा सा तेज़ चिल्ला पड़े, "यह क्या लगा रखा है बेटा तुमने? आखिर समझती क्यों नहीं हो? क्यों इतना डर है तुम्हारे अंदर? क्यों हिम्मत नाम की कोई चीज़ नहीं है तुम्हारे अंदर? तुम जानती हो, तुम मेरी बेटी हो, तुम रिटायर्ड कर्नल की बेटी हो! तुम्हारे अंदर तो हिम्मत अपने आप ही आ जानी चाहिए! लेकिन तुम्हारे अंदर हिम्मत क्यों नहीं है? क्या केवल एक पास्ट की वजह से कोई इतना कमज़ोर हो सकता है? मैंने कभी भी नहीं सोचा था। तुम जानती हो, अब तो मुझे यह लगने लगा है, काश तुम्हारी जगह मेरा कोई बेटा होता, तो कम से कम मैं उसे आर्मी में तो भर्ती कर देता! तुम्हारे अंदर तो इतनी कायरता है, इतनी कायरता है कि तुम्हें तो मुझे अपनी बेटी कहने में भी शर्म आती है!"
आज मयंक का गुस्सा रिमझिम पर फूट पड़ा था। वह रिमझिम के कायरपन और उसकी डरी-सहमी सी हालत को लेकर परेशान होने लगे थे, और आज वह पूरी तरह से रिमझिम पर झुंझला उठे थे।
अपने पिता की बात सुनकर रिमझिम को बहुत बुरा लगा, और अचानक से रिमझिम अपने पिता पर बहुत तेज़ चिल्लाई, "आप मेरी बात क्यों नहीं समझ रहे हैं! मैं कायर नहीं हूँ! नहीं हूँ मैं कायर! आप जानते हैं मैंने क्या किया? जानना चाहते हैं? मैंने क्या किया? मैंने आज उसका चेहरा देखा है!"
जैसे ही रिमझिम ने यह कहा, मयंक उसे हैरानी से देखने लगे, और उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर रिमझिम क्या कह रही है और उसने किसका चेहरा देख लिया है। तब रिमझिम फिर बोली, "मैं कायर नहीं हूँ! जो बड़े-बड़े लोग नहीं कर पाए, आज वह मैंने कर दिखाया है! मैंने उसका चेहरा देखा है, समझे आप?!"
तब मयंक उसकी यह बेतुकी सी बातें सुनकर और ज़्यादा झुंझला गए और बोले, "अपनी बकवास बंद करो और चलो यहाँ से!" तब रिमझिम बोली, "वो आ गया है! वो तबाही मचाएगा!"
मयंक उसकी बेतुकी बातें सुनकर और अधिक झुंझला गए थे।
और बोले, "रिमझिम, अपनी बकवास बंद करो और चुपचाप मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें अपने दोस्तों से मिलवाता हूँ।"
ऐसा कहकर मयंक नीचे जाने लगे थे। लेकिन तभी रिमझिम ने अपने पिता का हाथ पकड़ लिया और बोली, "मैंने आपसे कहा ना, आप कहीं नहीं जा सकते। हम यहाँ एक पल भी नहीं रुकेंगे। चलिए यहाँ से, यहाँ बहुत बड़ा तूफान आने वाला है।"
रिमझिम को राणा की ताकत का अच्छी तरह अंदाजा था। वह जानती थी कि अगर राणा शादी में आया है, तो वह यहाँ क्या तबाही मचाएगा।
अब उसके पिता रिमझिम की बात सुनकर उसके सामने खड़े हो गए थे। कड़ी आवाज में, घूरते हुए बोले, "कौन आ गया है? और यहाँ क्या होने वाला है? कृपया, मुझे साफ़-साफ़ बताओ।"
तभी रिमझिम ने कहा, "यहाँ राणा आ गया है, और वह इस शादी में तबाही मचाएगा।" यह सुनकर मयंक हैरानी से अपनी बेटी को देखने लगे थे।
उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि उनकी बेटी क्या कह रही है। क्या राणा की वीडियो देखने के बाद वह उससे ज़्यादा डरने लगी है?
क्या इसी वजह से वह इस तरह की बातें कर रही है? तभी मयंक ने अपनी बेटी का हाथ पकड़ते हुए कहा, "बच्चे, क्यों बेकार की बातें कर रही हो? यहाँ राणा कैसे आ सकता है?"
"और तुम कह रही हो राणा तुम्हारा रिश्तेदार है, और तुम उसे जानती हो कि वह यहाँ आ गया है?"
रिमझिम ने अपने पिता का हाथ झटकते हुए बोला, "आप मेरी बात क्यों नहीं समझ रहे हैं? मैं सच कह रही हूँ। यहाँ राणा आ गया है, और आज मैंने उसका चेहरा देखा है।"
"और आप जानना चाहते हैं ना राणा कौन है? तो सुनिए, राणा वही इंसान है जिसने दस साल पहले आपकी बेटी का अपहरण किया था।"
यह सुनते ही मयंक हैरान रह गए थे। क्योंकि उनकी बेटी अपने अपहरणकर्ता को कभी नहीं भूल सकती थी।
पिछले दस सालों से, अगर वह सपने में भी किसी को देखती थी, तो अपने अपहरणकर्ता को। और आज वह उसकी आँखों के सामने था, तो वह उसे पहचानने में भूल नहीं सकती थी।
अब मयंक को रिमझिम का पैनिक होना समझ में आ गया था। आखिर वह इतना रिएक्ट क्यों कर रही थी।
तभी मयंक ने नरमी से कहा, "बेटे, कहाँ है राणा?" रिमझिम ने अपनी उंगली से रेलिंग की ओर इशारा किया। यह सुनते ही मयंक जल्दी से रिमझिम को नीचे ले जाने लगे थे।
और सरिता के पास खड़ा कर अनवर को एक तरफ ले गए थे। रिमझिम ने जो कुछ मयंक को बताया था, वह अनवर को बताने लगे थे।
और कहा, "तुम्हें यहाँ की सुरक्षा कड़ी करनी चाहिए। हर कमरे की तलाशी करवानी चाहिए। क्योंकि मेरी बेटी ने राणा को यहाँ देखा है।" यह सुनकर अनवर हैरान हो गया था। और कहने लगा, "सारे पुलिस वाले यहाँ मौजूद हैं, लेकिन मेरा बेटा यहाँ नहीं है! इसका मतलब, मेरे बेटे की जान खतरे में है!"
अनवर और मयंक को इस बात का एहसास हुआ कि दूल्हे की जान खतरे में है। तभी उन्हें राणा का भेजा हुआ वीडियो याद आया। राणा इस बार किस तरह की तबाही मचाने वाला था। इसलिए जल्दी से अनवर, मयंक और कुछ पुलिस वाले एसीपी एजाज के कमरे की ओर रवाना हो चुके थे।
रिमझिम अपनी माँ के पास खड़ी थी, उनका हाथ पकड़े हुए। वह कांप रही थी। क्योंकि उसे बार-बार राणा का मास्क उतार कर उसका चेहरा देखना याद आ रहा था।
रिमझिम सोच रही थी कि उसके अंदर इतनी हिम्मत कैसे आ गई? वह राणा को कैसे देख सकती थी? और राणा ने उसे आसानी से देखने दिया था। उसने कोई ऑप्शन नहीं उठाया था। जैसे ही पार्टी में हलचल मची,
राणा के आदमी, जो वेटर्स के रूप में थे, एक्टिव हो गए थे। उन्होंने जल्दी ही राणा को मैसेज कर दिए थे। पूरी टीम एक्टिव हो चुकी थी।
राणा को अपनी टीम के लगातार मैसेज मिले। उसकी भौंहें सिकुड़ गई थीं। क्योंकि उसके सामने उसका "खाना" था, जिसे उसने एक कुर्सी पर बाँध रखा था।
उसने उसका कुर्ता उतार कर, स्क्रूड्राइवर से दो बार उस पर हमला कर दिया था।
जिससे एसीपी आजाद को खून निकलना शुरू हो गया था। लेकिन उसकी आवाज कमरे से बाहर नहीं जा रही थी। क्योंकि राणा ने उसके मुँह पर कपड़ा बाँध रखा था।
राणा किसी भी पुलिस वाले को देखकर बेकाबू हो जाता था। इसलिए उसमें धैर्य नहीं था। और वह उस पर हमला कर देता था।
राणा ने एसीपी आजाद को बाँधते ही उसकी कमर पर दो बार हमला कर दिया था। और फिर सोचा कि आराम से बैठकर एसीपी आजाद के हर अंग को काटेगा।
उसे स्क्रूड्राइवर से मारेगा, इतने छेद बनाएगा कि पोस्टमार्टम वाले भी परेशान हो जाएँगे।
राणा का एसीपी आजाद को बेरहमी से मारने का प्लान था। जिसके लिए वह मॉल में स्क्रूड्राइवर खरीदने गया हुआ था।
दो जगह तो उसने एसीपी आजाद को मार भी दिया था। फिर वह थोड़ा सा खून निकलने का इंतज़ार करने लगा था। क्योंकि इस तरह से आसानी से मौत देना राणा ने कभी सीखा ही नहीं था।
वह जब भी किसी पुलिस वाले को मौत देता था, वह बहुत बुरी तरह से देता था।
अब क्योंकि वह एसीपी एजाज को मारने के लिए तैयार था, तभी उसकी टीम के मैसेज आ गए। अब राणा के पास वहाँ से निकलने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
वह जानता था कि अगर वह रुका तो पकड़ा जा सकता था। और अभी तक उसका मकसद पूरा नहीं हुआ था।
जब तक राणा का मकसद पूरा नहीं होता, वह किसी के कब्जे में नहीं आ सकता था। यह सोचकर उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। तभी उसने अचानक एसीपी आजाद से कहा, "तेरे परिवार वाले तुझे लेने के लिए ऊपर आ रहे हैं। लेकिन मैं उन्हें कोई तकलीफ नहीं देखना चाहता। इसलिए मैं तुझे नीचे भेज रहा हूँ।"
अपने सामने खाने को देखकर राणा इस तरह नहीं जा सकता था। इसलिए उसने कुर्सी समेत एसीपी आजाद को उठा लिया था।
और क्योंकि वह दूसरी मंज़िल पर था, उसने एसीपी आजाद को सभी मेहमानों के बीच फेंक दिया था।
एसीपी आजाद सीधा रिमझिम के पास गिरा था। रिमझिम ने डरते हुए ऊपर देखा, और उसकी आँखों के सामने राणा था। राणा को देखते ही रिमझिम चीखने लगी थी, "राणा! राणा!"
राणा की नज़र चीखती रिमझिम पर पड़ी। वह हैरान हो गया था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इस लड़की को उसका नाम कैसे पता चला।
तभी देव वहाँ गया था। वह जानता था कि अगर राणा को वहाँ से नहीं ले जाया गया, तो वह पकड़ में आ सकता था। जैसे ही एसीपी आजाद नीचे गिरा था, उसके पिता नीचे लौट आए थे।
लेकिन कुछ पुलिस वाले राणा को देखने के लिए ऊपर आने लगे थे। लेकिन तब तक देव राणा को लेकर वहाँ से गायब हो चुका था। एक-एक करके, राणा की पूरी टीम गायब हो चुकी थी।
क्योंकि वे जानते थे कि राणा के वहाँ होने का एहसास सभी को हो चुका था। अगर उसकी टीम का कोई भी मेंबर वहाँ रुकता, तो सभी की जाँच की जाती, जो उनके लिए बहुत बड़ा रिस्क हो सकता था।
जहाँ थोड़ी देर पहले शादी में हँसी-मज़ाक चल रहा था, वहाँ अब हर तरफ चीख-पुकार थी।
एक ही पल में राणा ने शादी के फ़ंक्शन को चीख-पुकार में बदल दिया था। एसीपी आजाद की जान तो नहीं गई थी, लेकिन वह बुरी तरह घायल हो चुका था। वह कई महीनों तक ठीक नहीं होने वाला था।
उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी। रिमझिम राणा को देखने और एसीपी आजाद की हालत देखने के बाद अपनी माँ की गोद में बेहोश हो गई थी।
मयंक को समझ में नहीं आ रहा था कि इस वक्त अपने दोस्त के बेटे की मदद करें या अपनी बेटी को संभाले। लेकिन अनवर ने उसकी स्थिति को समझ लिया था।
और कहा, "आजाद को हम अस्पताल ले जा रहे हैं। तुम रिमझिम को भी साथ ले लो। उसे भी अस्पताल ले जाना होगा।"
जल्दी ही वे एसीपी एजाज और रिमझिम दोनों को अलग-अलग एम्बुलेंस में अस्पताल ले गए थे।
और तभी सभी पुलिस वाले स्टाफ़ के साथ हर चीज़ की जाँच करने लगे थे। क्योंकि आधे से ज़्यादा पुलिस वाले वहीं मौजूद थे, और उन्हीं के सामने राणा घुस गया था, और एसीपी एजाज पर हमला भी कर गया था। यह बात पुलिस वालों के लिए बहुत बुरी थी।
बार-बार मयंक को खुद पर गुस्सा आ रहा था। उसने अनजाने में अपनी बेटी के साथ बुरा किया था। उसने अपनी बेटी को बहुत डाँटा था।
और उसे इतनी बातें सुनाई थीं, जिससे उसकी बेटी का दिल दुखा होगा। जल्दी ही एजाज अहमद और रिमझिम को अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया था।
वहीं राणा अपने अड्डे पर पहुँच चुका था। उसके सारे साथी भी ठीक थे, और अपने अड्डे पर पहुँच चुके थे।
उन लोगों का इरादा शादी में दस-ग्यारह पुलिस वालों की जान लेने का था, अलग-अलग तरीके से। लेकिन आज राणा पहली बार खाली हाथ लौटा था।
उसके सामने उसका खाना था, लेकिन वह उसे खा नहीं पाया था। राणा आराम से अपने खाने को खाया करता था।
लेकिन आज का सारा प्लान एक लड़की की वजह से खराब हो चुका था। राणा का गुस्से से बुरा हाल था।
उसके सामने उसका खाना था, लेकिन वह उसे खा नहीं पाया था। राणा बड़े ही आराम से, बड़े ही मजे लेकर अपने खाने को खाया करता था।
लेकिन आज का सारा प्लान एक लड़की की वजह से खराब हो चुका था। राणा का गुस्से के मारे बहुत ही बुरा हाल था।
उसकी गहरी काली और बड़ी आंखें और भी बड़ी हो गई थीं, और वह एकदम लाल-सुर्ख थीं। ऐसा लग रहा था मानो उसकी आंखों में खून उतर आया हो।
राणा ने अपने अड्डे पर पहुँचते ही वहाँ तोड़फोड़ करनी शुरू कर दी थी। बड़े-बड़े कुर्सियों और सोफों को इस तरह उठा रहा था, मानो वे उसके लिए कोई मायने ही न रखते हों।
कुछ ही पल में राणा ने एक शानदार हाल को कबाड़खाना बना दिया था और चिल्लाते हुए बोला था-
"मुझे वह लड़की चाहिए!"
राणा का गुस्सा देखकर उसके सभी टीम वाले थर-थर काँप रहे थे।
किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह एक नज़र राणा की ओर उठाकर देख सके। वैसे भी, राणा जब इस तरह गुस्सा किया करता था, वह इतना खतरनाक लगता था, मानो कोई जख्मी शेर सामने खड़ा हो।
और आज तो राणा का बना-बनाया प्लान खराब हो चुका था। पहली बार ऐसा हुआ था जब राणा किसी पुलिस ऑफिसर की जान नहीं ले पाया था। राणा चाहता तो एजाज अहमद को एक गोली मारकर भी मार सकता था।
लेकिन उसने ऐसा नहीं किया था। उसका इरादा तो एसीपी एजाज अहमद को बड़ी ही बेरहमी से मारने का था।
लेकिन आज सिर्फ़ रिमझिम की वजह से वह एसीपी की जान नहीं ले पाया था। यह बात अलग थी कि उसने एसीपी की हालत जान लेने से भी ज़्यादा बदतर कर दी थी।
उसने उसे उठाकर ऊपर से फेंक दिया था, जिसकी वजह से उसे काफ़ी चोटें आई थीं और वह महीनों तक ठीक नहीं होने वाला था।
राणा ने जैसे ही अपनी टीम को यह हुक्म दिया-
"मुझे वह लड़की हर हाल में चाहिए!"
राणा जानना चाहता था, आखिर वह लड़की कौन थी जिसने राणा का नाम लिया था। क्योंकि उसी लड़की की वजह से राणा का पूरा प्लान खराब हो चुका था।
इसलिए राणा अब हर हाल में रिमझिम से मिलना चाहता था। जैसे ही लैला ने राणा के दिलो-दिमाग में रिमझिम के लिए इतना गुस्सा देखा, तो वह डरकर रह गई थी।
वह तो यह सोच रही थी कि काश राणा रिमझिम को प्यार करे, लेकिन जिस नफ़रत से राणा ने रिमझिम का नाम लिया था, उसे समझने में देर नहीं लगी कि राणा रिमझिम का क्या हाल करने वाला था।
धीरे-धीरे एक-एक आदमी राणा के सामने से जाने लगा था। क्योंकि राणा का हुक्म था कि उसे आज ही वह लड़की चाहिए; आज रात को ही उसे रिमझिम चाहिए; उसे सुबह होने तक का इंतज़ार नहीं करना था।
राणा अपना हुक्म देकर अपने कमरे में जा चुका था। उसकी टीम इधर-उधर रिमझिम की तलाश करने के लिए हो गई थी। देव ने जल्दी ही पता लगा लिया था कि रिमझिम कहाँ है। और जैसे ही उसे यह पता चला कि रिमझिम हॉस्पिटल में एडमिट है,
अब देव को समझ में नहीं आया कि वह क्या करे और राणा को क्या जवाब दे। क्योंकि अगर रिमझिम उसके घर होती, ऑफिस होती, कहीं और होती, तो वह आसानी से उसे किडनैप कर सकते थे।
लेकिन अभी रिमझिम हॉस्पिटल में एडमिट थी। और रिमझिम उसी अस्पताल में एडमिट थी जहाँ एसीपी एजाज अहमद एडमिट था। इसका मतलब साफ़ था- एजाज की सिक्योरिटी पहले ही बढ़ा दी गई थी।
तो वहाँ से रिमझिम को किडनैप करना नामुमकिन था।
देव की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह राणा के कमरे में जाए और राणा को इस बात के बारे में बता दे कि रिमझिम को अगवा करना कितना कठिन है।
लेकिन जब तीन घंटे गुज़र गए और राणा बेचैनी से कमरे में इधर-उधर टहलता रहा। क्योंकि उसे पूरा यकीन था कि उसके आदमी एक-दो घंटे के अंदर रिमझिम को अगवा करके ले आएंगे। लेकिन तीन घंटे पूरे होने के बाद भी उसका कोई आदमी उसके पास नहीं आया था, तो यह बात राणा को परेशान करने लगी थी।
इसलिए उसने धड़क से अपने कमरे का दरवाज़ा खोला था। और जैसे ही वह हाल में गया, तो यह देखकर हैरान हो गया- उसके सारे टीम वाले सर झुकाए बैठे हुए थे। हालाँकि रात के दो बज रहे थे, लेकिन किसी की आँखों में नींद नहीं थी।
एक तो राणा का खौफ़ उनके दिलो-दिमाग पर मंडरा रहा था, ऊपर से वे रिमझिम को अगवा भी नहीं कर पाए थे। यह पहली बार हुआ था कि राणा ने कोई काम कहा था और उसके आदमी समय पर काम नहीं कर पाए थे।
जैसे ही राणा ने अपने कमरे का दरवाज़ा धड़क से खोला था, उसी वक़्त सारे टीम वाले राणा के कमरे की ओर देखने लगे थे। राणा ख़तरनाक अंदाज़ से चलता हुआ वहाँ आ रहा था।
लैला ने नोटिस किया था- राणा ने आज कपड़े तक नहीं बदले थे। वह उसी व्हाइट सूट में था जो उसने आज शादी में एजाज अहमद को मारने के लिए पहना था।
ख़ास बात यह थी कि जब भी वह किसी पुलिस वाले की जान लेता था, वह व्हाइट कलर का सूट पहना करता था। क्योंकि उसका यह मानना था कि व्हाइट कलर के सूट पर खून की बूँदें बहुत जल्दी दिखाई देती थीं। और जब तक वह पुलिस वालों को मारता था, तब तक उनके खून की एक-एक बूँद से उसकी व्हाइट शर्ट रंग नहीं लेती थी।
राणा ने आते ही अपनी टीम में से देव से पूछा था-
"वह लड़की कहाँ है? अभी तक उसे किडनैप करके क्यों नहीं लाए हो?"
तब देव ने थोड़ा डरते-डरते राणा को सारी बात बता दी थी।
और बता दिया था कि वह अस्पताल में एडमिट है और वह उसी अस्पताल में एडमिट है जिसमें एसीपी एजाज अहमद एडमिट है। और वहाँ की सिक्योरिटी काफ़ी टाइट है; वहाँ से रिमझिम को अगवा करना पॉसिबल नहीं होगा।
जैसे ही देव ने रिमझिम का नाम लिया, राणा हैरानी से उसे देखने लगा था और बोला था-
"क्या कहा तुमने? रिमझिम? कौन है यह रिमझिम?"
तब देव ने राणा से कहा था-
"रिमझिम वही लड़की है जिसकी वजह से आज का सारा प्लान ख़राब हुआ था।"
तब राणा ने मन ही मन में एक बार और रिमझिम का नाम लिया था। रिमझिम… कहीं न कहीं उसे यह नाम कुछ-कुछ सुना हुआ सा लग रहा था, लेकिन उस वक़्त वह इतने गुस्से में था कि वह कुछ सोच ही नहीं पाया था।
तब राणा ने देव से कहा था-
"ठीक है। अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद वह लड़की सीधा मेरे पास आनी चाहिए। समझे तुम?"
ऐसा कहकर राणा अपने कमरे में चला गया था और देव उसे जाते हुए देख रहा था। और बाकी की टीम धीरे-धीरे अपने-अपने कमरों में जाने लगी थी। राणा की टीम में आठ-नौ लड़के और केवल एक लड़की थी; कुल मिलाकर दस लोग थे, और वे दसों काफ़ी पावरफुल थे।
राणा के जाने के बाद सभी अपने कमरे में जाकर थोड़ी देर सोने के लिए चले गए थे।
हालाँकि उनकी आँखों में नींद नहीं थी, क्योंकि राणा को आज काफ़ी गुस्सा आ रहा था और वे अच्छी तरह जानते थे कि अगर राणा का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो वह किसी पर भी उतर सकता था।
और फिर उसका क्या अंजाम होगा, यह वे लोग अच्छी तरह से जानते थे।
वहीं दूसरी ओर, मयंक और सरिता बेचैनी से अपनी बेटी के होश में आने का इंतज़ार कर रहे थे।
कहीं न कहीं मयंक को आज इस बात का बहुत बुरा लग रहा था कि उसने अपनी बेटी को आज बहुत कुछ कह दिया था।
जिसकी वजह से उसकी बेटी का दिल कितना रोया होगा, यही सोच-सोचकर मयंक को खुद पर गुस्सा आ रहा था। उसका दिल कर रहा था कि वह अपनी जुबान को ही काट ले, जिस जुबान से उसने अपनी बेटी के लिए ऐसे शब्द कहे थे।
वहीं दूसरी ओर, एसीपी एजाज अहमद की काफ़ी हड्डियाँ फ्रैक्चर हो गई थीं और साथ ही उनका हैवी ब्लड लॉस हुआ था, जिसकी वजह से उनकी हालत काफ़ी सीरियस बनी हुई थी।
उनकी दुल्हन, फ़रीन, दुल्हन के लहंगे में सजी हुई, हॉस्पिटल में बैठी हुई रो रही थी। उसकी आँखें लाल और सूजी हुई थीं।
वह बार-बार अपने हाथों की मेहँदी को देख रही थी जहाँ बड़े अक्षरों में एजाज का नाम लिखा हुआ था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि आज उसकी ज़िंदगी की सबसे ख़ूबसूरत रात, और आज ही रात उसके पति हॉस्पिटल में इतनी बुरी हालत में होंगे।
उसे रह-रहकर रोना आ रहा था। फ़रीन को देखकर हर किसी का दिल रो रहा था। नई-नवेली दुल्हन इस तरह अस्पताल में बैठी रो रही थी, उसका दर्द देखकर हर किसी का दिल पसीज रहा था।
वह बार-बार अपने ऊपर वाले से दुआएँ कर रही थी कि उसका शौहर किसी तरह ठीक हो जाए, और साथ ही साथ वह उस पर हमला करने वाले को कोस रही थी।
और बार-बार बोल रही थी-
"जिसने मेरे पति की यह हालत की है, ऊपर वाला करे कि उसे कभी सच्ची मोहब्बत न मिले!"
वहीं दूसरी ओर, राणा के दिमाग में बार-बार रिमझिम का चेहरा आ रहा था। रिमझिम को पकड़ना और उसके चेहरे को देखना राणा को बहुत अजीब लग रहा था।
बार-बार वह यह सोचने पर मजबूर हो रहा था कि आखिर वह लड़की कौन थी जो उसका नाम जानती थी और जिसने उसका चेहरा देखने की हिम्मत की थी।
अब रात के तीन बज गए थे और राणा की आँखों में नींद नहीं आई थी। तब राणा ने एक बोल्ड स्टेप लिया था और सीधा कपड़े बदलकर वह अस्पताल की ओर रवाना हो चुका था, क्योंकि वह इस वक़्त रिमझिम से मिलना चाहता था।
राणा की टीम के किसी सदस्य को यह अंदाजा तक नहीं था कि राणा अपने कमरे में नहीं है। सभी थक चुके थे, और रात के दो बज चुके थे। सभी अपने-अपने कमरों में सो गए थे; कुछ को नींद आ गई थी, कुछ अभी भी जागे हुए थे।
राणा की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। वह अस्पताल की ओर रवाना हो चुका था। अस्पताल के बाहर पहुँचते ही उसने देखा कि वहाँ बहुत सारे पुलिसवाले थे। पुलिसवालों को देखकर राणा के मुँह में पानी आ गया।
वह हर पुलिसवाले को इस तरह देख रहा था मानो अपनी नज़रों से ही उन्हें खा जाएगा। चारों ओर पुलिस ही पुलिस थी। एसीपी आजाद अहमद की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी।
सभी को यह डर सता रहा था कि एसीपी आजाद अहमद के जीवित होने की खबर सुनकर राणा फिर उस पर हमला कर सकता है। इसीलिए उनकी सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी।
रिमझिम एसीपी एजाज के ठीक बराबर वाले वार्ड में थी।
राणा ने जल्दी से एक डॉक्टर का वेश धारण कर लिया था और सफ़ेद रंग का मास्क लगा लिया था। वह धीरे-धीरे रिमझिम के कमरे की ओर बढ़ने लगा था।
हालांकि उसे यह पता नहीं था कि रिमझिम किस कमरे में है। उसके आदमियों ने पहले ही बता दिया था कि रिमझिम किसी इमरजेंसी वार्ड में भर्ती है और उस अस्पताल के एक फ्लोर पर केवल दो ही इमरजेंसी रूम थे।
इसलिए राणा को तुरंत समझ आ गया कि उनमें से किसी एक कमरे में रिमझिम अवश्य होगी।
राणा तेज़ी से आगे बढ़ रहा था। वह एक ट्रॉली खिसका कर ले जा रहा था। उस ट्रॉली में उसने कुछ औज़ार रखे थे।
उसका इरादा रिमझिम को अस्पताल में ही खत्म करने का था। जब तक वह रिमझिम की जान नहीं ले लेता, उसे नींद नहीं आने वाली थी।
रिमझिम के कमरे के बाहर पहुँचते ही उसने देखा कि कुछ पुलिसवाले थे और एक तरफ़ रिमझिम के माता-पिता बैठे हुए रो रहे थे। सरिता जी बेहाल हालत में मयंक का हाथ थामे बैठी थीं।
दूसरी ओर एक दुल्हन कभी अपनी मेहँदी देख रही थी, तो कभी सिर पटक-पटक कर रो रही थी। वह दुल्हन कोई और नहीं, बल्कि एसीपी एजाज अहमद की दुल्हन फरीन थी।
धीरे-धीरे राणा उन सबके बीच से निकलकर आगे बढ़ने लगा। उसे इस बात का कोई डर नहीं था कि वह पकड़ा जाएगा या नहीं। उसे हर क्षेत्र का अच्छा ज्ञान था।
राणा जैसे ही आगे बढ़ा, उसे फरीन का रोना साफ़-साफ़ सुनाई दिया। साथ ही सरिता जी का विलाप भी वह सुन सकता था।
तब सरिता जी रोती हुई मयंक से कह रही थीं,
"कब मेरी बच्ची को होश आएगा? वह होश में क्यों नहीं है?"
वहीं दूसरी ओर फरीन बुरी तरह रो रही थी। उसके ससुर अनवर उसके पास बैठे हुए थे। वह रो-रोकर बार-बार कह रही थी,
"जिसने भी मेरे शौहर की यह हालत की है, ऊपरवाला करे कि उसकी हालत इससे भी बदतर हो और उसे कभी जिंदगी में सच्चा प्यार न मिले।"
राणा घूर कर फरीन की ओर देख रहा था, मानो आँखों ही आँखों में उसे खा जाएगा। फरीन को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि जिसे वह कोस रही थी, वह उसके ठीक सामने से गुज़र रहा था।
फरीन की दुआ सुनने के बाद राणा ने मन ही मन सोचा, "मैंने तो खुद को प्यार-मोहब्बत से दूर रखा हुआ है। तुम्हारी यह दुआ किसी काम नहीं आएगी।" ऐसा सोचकर एक जहरीली मुस्कान उसके होठों पर आ गई।
राणा धीरे-धीरे रिमझिम के वार्ड की ओर गया और उसने दरवाजा खोलने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी मयंक ने उसे रोक लिया और बोला,
"तुम कौन हो? अभी तो डॉक्टर रिमझिम का चेकअप करके गए हैं। फिर वापस क्यों आए हो?"
जैसे ही मयंक ने राणा से सवाल किया, राणा का हाथ उस ट्रॉली पर कस गया जिसमें स्क्रूड्राइवर आदि रखे हुए थे। उसका मन कर रहा था कि एक स्क्रूड्राइवर इसी वक्त मयंक के सीने में घोंप दे।
लेकिन अगले ही पल उसने कहा,
"अच्छा-अच्छा, तुम उसकी सुई बदलने के लिए आए हो। हाँ हाँ, वही तुम्हें बुलाने गया था। माफ़ करना डॉक्टर साहब, जब से बेटी बीमार हुई है, तब से थोड़ा सा ऐसा ही हो गया हूँ मैं।"
मयंक ने अपनी स्थिति राणा के सामने बयान कर दी। राणा उसे गहरी नज़रों से देखता हुआ जल्दी ही अंदर चला गया।
वह सोचने लगा कि यह कितना भाग्यशाली है, राणा के हाथों से बाल-बाल बच गया। अंदर जाते ही उसने देखा कि एक बेड पर एक लड़की लेटी हुई थी।
रिमझिम के मुँह पर ऑक्सीजन मास्क लगा हुआ था और उसे ग्लूकोज़ की बोतल चढ़ रही थी। ग्लूकोज़ में कुछ इंजेक्शन भी थे जो रिमझिम को दिए जा रहे थे।
राणा धीरे-धीरे चलकर रिमझिम के सामने जाकर खड़ा हो गया।
कितनी देर तक राणा रिमझिम को देखता रहा। रिमझिम ने अपनी आँखों पर चश्मा नहीं पहना था, फिर भी ऑक्सीजन मास्क लगे होने के कारण वह उसे सही से नहीं देख पा रहा था। लेकिन जितना भी रिमझिम का चेहरा दिखाई दे रहा था, वह बहुत खूबसूरत और प्यारा लग रहा था।
राणा चाहकर भी अपनी नज़रें रिमझिम के चेहरे से नहीं हटा पा रहा था।
तभी अचानक रिमझिम जोरों से अपनी गर्दन इधर-उधर हिलाने लगी।
और फिर अचानक से टूटी-फूटी साँसों में बोलने लगी,
"राणा, मुझे जाने दो, मुझे छोड़ दो, छोड़ो मेरा हाथ, राणा, मेरा हाथ छोड़ दो, छोड़ो मुझे।"
बार-बार रिमझिम यही बात दोहरा रही थी। जैसे ही राणा ने रिमझिम के मुँह से अपना नाम सुना, उसके दोनों भौंहें चढ़ गईं।
वह उसे गौर से देखने लगा और सोचने लगा, "आखिर मैंने तो इस लड़की का हाथ तक नहीं पकड़ा, तो बार-बार यह यह क्यों कह रही है? मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो, आखिर यह है कौन?"
अब राणा का सब्र टूट गया था और उसने सोच लिया था कि वह इस लड़की की जान एक पल में ले लेगा। चाहे वह कोई भी हो, उसने आज उसका बड़ा प्लान खराब किया था, तो उसे सज़ा तो भुगतनी ही होगी।
ऐसा सोचकर राणा ने अपने स्क्रूड्राइवर पर पकड़ मज़बूत कर ली। जैसे ही उसने रिमझिम का ऑक्सीजन मास्क हटाया, रिमझिम की आँखें धीरे-धीरे खुलने लगीं। रिमझिम ने उल्टी-सीधी साँसें लेते हुए जैसे ही अपने सामने राणा का चेहरा देखा, वह एकदम से बोलने लगी,
"राणा! राणा! राणा!"
रिमझिम का नाम सुनकर राणा फिर हैरान हो गया।
अब रिमझिम पूरी तरह से घबरा गई थी। राणा उसके ठीक सामने खड़ा था, इसलिए उसे फिर से घबराहट का दौरा पड़ने लगा। राणा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या वह इसी वक्त इसका मुँह दबाकर इसकी जान ले ले या स्क्रूड्राइवर से पेट में घोंपकर इसकी हत्या कर दे।
राणा अभी अपना प्लान अंजाम देना ही चाहता था कि तभी घबराहट के दौरे में रिमझिम ने अपने हाथ-पैर हिलाने शुरू कर दिए।
और गलती से उसके हाथ से इमरजेंसी अलार्म बज उठा। जैसे ही राणा ने देखा कि रिमझिम ने अलार्म बजा दिया है,
तो उसने जल्दी से अपने स्क्रूड्राइवर आदि को किनारे कर दिया और रिमझिम का ऑक्सीजन मास्क फिर से लगा दिया।
और उसे संभालने की कोशिश करने लगा। तब राणा ने वहाँ से भागकर छिपने की कोशिश नहीं की। उसे अपने आप पर इतना विश्वास था कि अगर वहाँ सारी टीम आ भी गई तो वह कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी।
जल्दी ही डॉक्टर की टीम आकर रिमझिम को चेक करने लगी। डॉक्टर की टीम के साथ-साथ मयंक और सरिता भी वहाँ आ गए थे। जैसे ही रिमझिम के कमरे का इमरजेंसी अलार्म बजा, तो उन सबको हैरानी और चिंता हुई।
जल्दी से डॉक्टर के साथ वे भी भागकर वहाँ आ गए थे।
तभी डॉक्टर ने राणा से कहा,
"क्या हुआ? सब ठीक है?"
तभी राणा ने डॉक्टर से कहा,
"अचानक लड़की घबराने लगी, इसीलिए मैंने इमरजेंसी अलार्म बजा दिया ताकि आप लोग यहाँ आ जाएँ।"
राणा ने बहुत चालाकी से झूठ बोल दिया था।
तब डॉक्टर ने राणा की पीठ थपथपाई और कहा,
"वेरी गुड! बिलकुल ठीक किया तुमने। तुम किस डिपार्टमेंट में काम करते हो?"
अचानक डॉक्टर ने राणा से पूछ लिया था, लेकिन राणा उस वक्त कोई जवाब नहीं दे पाया था। और फिर डॉक्टर ने भी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और वह रिमझिम को देखने लगा।
जल्दी ही डॉक्टर ने रिमझिम को एक इंजेक्शन लगा दिया, जिसके बाद वह थोड़ी देर और हाथ-पैर हिलाकर शांत हो गई और सो गई।
रिमझिम के सोने के बाद डॉक्टर ने कहा,
"अब मरीज़ को कोई परेशान नहीं करेगा।"
तब मयंक ने डॉक्टर से पूछा,
"आखिर मेरी बेटी को अचानक क्या हुआ? अभी तो वह ठीक थी।"
तभी डॉक्टर मयंक से बोला,
"देखिए सर, आप अच्छी तरह जानते हैं कि आपकी बेटी को पिछले दस सालों से ये घबराहट के दौरे पड़ते आ रहे हैं। और जब तक यह अपने डर से मुकाबला नहीं करेंगी, तब तक इसकी यही हालत रहेगी।"
ऐसा कहकर डॉक्टर मयंक के कंधे पर हाथ रखते हुए बाहर निकलने लगे।
सबसे आखिर में राणा रह गया था। राणा हैरानी से रिमझिम की ओर देख रहा था। डॉक्टर की बात सुनकर वह भी परेशान था कि इस लड़की को पिछले दस सालों से घबराहट के दौरे क्यों पड़ रहे हैं और यह बार-बार उसका नाम क्यों ले रही है। राणा को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
तभी सरिता जी रोती हुई मयंक के गले लग गईं और बोलीं,
"आखिर कब हमारी बेटी अपने बुरे अतीत को पीछे छोड़ेगी? कब पीछे छूटेगा हमारे बेटे का उस भयानक हादसे से पता नहीं हमारी बच्ची की ज़िंदगी में और कितने दुख लिखे हैं। आखिर यह राणा मर क्यों नहीं जाता? उसने हमारी बेटी की ज़िंदगी बर्बाद कर दी है। हमारी बच्ची कितनी हँसी-खेलती बच्ची थी और अब कितनी डरी-सहमी सी रहने लगी है, सिर्फ़ और सिर्फ़ उस राणा की वजह से। देखना, एक माँ की दुआ है, कभी राणा को चैन नहीं आएगा, कभी जिंदगी में उसे सुकून नहीं मिलेगा।"
मयंक जी ने सरिता जी को बता दिया था कि राणा ने ही दस साल पहले रिमझिम का अपहरण किया था। तब से वह राणा के लिए कठोर शब्दों का इस्तेमाल कर रही थी।
सरिता जी के ऐसे शब्द सुनकर राणा के माथे पर शिकन आ गई। राणा को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसने उस लड़की के साथ क्या किया है।
वह दाँत पीसते हुए कमरे से बाहर जाने लगा।
तभी मयंक की आवाज राणा के कानों में पड़ी। मयंक राणा को देखते हुए बोला,
"अच्छा डॉक्टर साहब, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। आपने वक्त रहते इमरजेंसी अलार्म बजा दिया। अगर आप इमरजेंसी अलार्म नहीं बजाते, तो हमारी बेटी को न जाने कब तक पैनिक अटैक आते रहते।"