His Pretty Toy “उसने मेरी मासूमियत देखी... और मुझे कैद कर लिया।” एक मासूम लड़की... एक मनोरोगी लड़का... एक शहर जहां प्यार नहीं, सिर्फ जुनून की हदें पार होती हैं। वो आयशा थी... His Pretty Toy “उसने मेरी मासूमियत देखी... और मुझे कैद कर लिया।” एक मासूम लड़की... एक मनोरोगी लड़का... एक शहर जहां प्यार नहीं, सिर्फ जुनून की हदें पार होती हैं। वो आयशा थी 24साल की, भोली, सपनों से भरी। वो विहान था 26साल का, गुस्सैल, पागल… और खतरनाक। "मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई मेरी मुस्कान से प्यार नहीं करेगा... बल्कि उसे कुचलना चाहेगा।” उसने आयशा को पहली बार देखा और उसी दिन तय कर लिया: "अब ये मेरी है… मेरी प्रिटी टॉय!" कैद, जुनून, पागलपन… और टूटती मासूमियत। क्या आयशा बच पाएगी इस पागल की दुनिया से? या उसकी मासूमियत ही उसका सबसे बड़ा गुनाह बन जाएगी? "वो कहता है प्यार करता है… लेकिन उसकी नजरों में प्यार नहीं, एक शिकारी की भूख है..."
Page 1 of 1
Chapter 1: अनजानी सुबह
उदयपुर, राजस्थान
सुबह 9:15
उदयपुर की एक पतली-सी गली में एक पुराना मगर खूबसूरत घर था, जिसकी दीवारों पर वक़्त की कुछ दरारें थीं, लेकिन उनमें बसी थीं यादें, सपने और वो मासूम हँसी जो इस घर को घर बनाती थीं।
दूसरी मंज़िल पर एक कमरा था। खिड़की से धूप की पीली रेखा धीरे-धीरे भीतर घुस रही थी, और उसके सामने बिस्तर पर कोई सोया था कम्बल में छुपी एक प्यारी-सी लड़की, जो अब भी अपने टेडी बियर को बाँहों में लिए सोई थी। बाल उसके चेहरे पर बिखरे थे, माथे पर पसीना था और होठों पर थकी-सी मुस्कान।
वो थी आयशा।
उम्र लगभग 19 साल, डॉक्टर बनने का सपना देखने वाली एक लड़की, जो सिर्फ़ खूबसूरत नहीं थी, बल्कि उसकी आँखों में कुछ ऐसा था… एक जादू… जो इंसान को उसकी मासूमियत में डुबो दे।
नीचे रसोई में
अवनी जी आयशा की माँ गैस पर पराठे सेंक रही थीं। माथे पर बिंदी और माथे पर चिंता की लकीरें थीं।
“हे भगवान!” उन्होंने तवा पलटते हुए कहा, “इस लड़की को ज़रा सी अक़ल दे दो! आज इसकी ट्रेन है और ये अब तक सो रही है!”
पीछे से एक लड़का आकर उन्हें गले लगा लेता है।
“उफ्फो मॉम! आपको बस दीदी की ही पड़ी है। मैं हूं भी या नहीं इस घर में?”
“तुम अभी बच्चे हो अभय,” उन्होंने प्यार से उसके गाल खींचते हुए कहा। “वो आज मुंबई जा रही है, डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने। उसके बाद तेरी ही बारी है।” उन्होंने मुस्कराते हुए तौलिया कंधे पर रखा और कहा, “जा, जाकर अपनी बहन को उठा ला, वरना स्टेशन हम दोनों को छोड़ आएगा।”
आयशा का कमरा
दरवाज़ा खुला, और अवनी जी भीतर आईं। उन्होंने खिड़की का पर्दा हटाया। धूप सीधी आयशा की आँखों पर पड़ी।
“आयशा बेटा, उठो! नौ बज गए हैं!”
नींद में ही बड़बड़ाती आयशा ने तकिया मुंह पर रख लिया, “मॉम प्लीज़ पाँच मिनट और…”
“बेटा, पाँच मिनट में ज़िंदगी नहीं रुकती,” उन्होंने हँसते हुए कंबल खींचा, “तू डॉक्टर बनने जा रही है, कोई परियों की रानी नहीं है।”
इतना सुनते ही आयशा उछल पड़ी, “ओह माई गॉड! मॉम, आपने मुझे उठाया क्यों नहीं!! मेरी ट्रेन ओएमजी!!”
वो ज़ोर से चीखी और भागकर बाथरूम की ओर दौड़ी।
अवनी जी ने माथे पर हाथ मारा और मुस्कराईं, “इसकी आदतें नहीं जाएंगी…”
थोड़ी देर बाद
नीचे
आयशा तैयार होकर नीचे आई। लाल टी-शर्ट, ब्लैक जीन्स, बाल खुले हुए और आँखों में चमक वो सच में किसी नायिका जैसी लग रही थी।
अभय ने उसे देखकर सीटी मारी, “ओहो दीदी! मुंबई की ट्रेन पकड़ रही हो या किसी फिल्म का शूटिंग?”
“चुप!” आयशा ने उसे हल्के से झाड़ा।
अवनी जी आयशा को देखकर थोड़ा भावुक हो गईं। “अपना ख्याल रखना… किसी पर जल्दी भरोसा मत करना… और अकेले मत घूमना।”
“मॉम… प्लीज़!” आयशा ने हँसते हुए उन्हें गले लगाया। “आप चिंता छोड़िए, मैं कोई बच्ची नहीं हूं।”
“मेरे लिए तो हमेशा रहेगी,” उन्होंने धीरे से कहा और माथा चूमा।
स्टेशन आधा घंटा बाद
ट्रेन आ चुकी थी। लोग चढ़ रहे थे, सीटी बज चुकी थी। आयशा ने माँ और भाई को देखा, मुस्कराई, और धीरे-से ट्रेन में चढ़ गई।
खिड़की से झांकते हुए उसने हाथ हिलाया।
“माँ… मैं ठीक रहूंगी!”
अवनी जी की आँखों में आँसू थे, लेकिन होंठों पर मुस्कान, “ख्याल रखना बेटा… और खाने की आदत मत बदलना।”
ट्रेन धीरे-धीरे स्टेशन से आगे बढ़ी।
माँ वहीं खड़ी रही… और आयशा की हँसी, उसी स्टेशन पर रह गई।
मुंबई
अगली सुबह
स्टेशन पर ट्रेन से उतरते हुए आयशा थकी लग रही थी। भीड़ से घिरी, हाथ में बैग और चेहरे पर चिंता।
उसने पर्स से एक कागज निकाला जिस पर अस्पताल का पता लिखा था… लेकिन हवा में उड़ गया।
“नहीं! अरे नहीं!” वो उसे पकड़ने भागी… पर कागज़ गायब हो चुका था।
फोन निकाला कोई रिस्पॉन्स नहीं।
“अब क्या करूं?” वो वहीं एक बेंच पर बैठ गई।
मुंबई उसकी आँखों में था, लेकिन अब वो बिल्कुल अकेली लग रही थी।
अगली सुबह स्टेशन की बेंच
रात वो वहीं बेंच पर बैठी रही। नींद टूटी तो आसमान हल्का नीला हो चुका था।
तभी एक बूढ़ा फकीर सामने आकर खड़ा हो गया। सफेद दाढ़ी, झुकी कमर और गहरी आँखें।
“बेटा… वापस लौट जा…”
आयशा चौंकी। “क्या मतलब?”
“जिसे तू सपना समझ रही है… वो एक भूल है। तू अपनी बर्बादी का टिकट लेकर आई है… लौट जा जब तक वक्त है।”
आयशा की रूह काँप गई। उसने उठकर फकीर से सवाल करना चाहा, लेकिन वो गायब हो चुका था जैसे कभी था ही नहीं।
To Be Continued…
मुंबई स्टेशन पर सुबह की हल्की धूप पड़ रही थी, लेकिन आयशा की आंखों में रात की थकान अब भी थी। फकीर की बातें उसके ज़हन में अब भी घूम रही थीं "वापस लौट जा बच्चा… तू यहाँ अपनी बरबादी लेकर आई है…" उस अजनबी की गंभीर आवाज़ बार-बार गूंज रही थी।
लेकिन आयशा ने अपने आपको संभाला, बैग उठाया और खुद से बुदबुदाई, “नहीं… मैं हार मानने नहीं आई हूं। ये शहर मेरे सपनों की शुरुआत है, डर का अंत नहीं।”
स्टेशन के बाहर खड़ी होकर उसने इधर-उधर देखा। कुछ मिनटों बाद उसे एक ऑटो मिल गया। उसने ड्राइवर से कहा, “सिटी केयर हॉस्पिटल चलिए।” और वह शहर की तेज़ रफ्तार में समा गई।
सिटी केयर हॉस्पिटल मुंबई के जाने-माने अस्पतालों में से एक था बाहर से ही उसकी सफेद दीवारें, चमकते ग्लास डोर और इधर-उधर दौड़ते मेडिकल स्टाफ इस बात की गवाही दे रहे थे कि यहां काम करने का मतलब है असली ज़िंदगी से जूझना।
अस्पताल के अंदर एक डॉक्टर तेज़ी से फाइलें पलटती हुई आगे बढ़ रही थी। सफेद कोट में, बाल पोनी में बंधे, चेहरे पर तेज़ और चाल में आत्मविश्वास यह थी डॉ. आयशा भाटिया। वो आयशा की कॉलेज की पुरानी दोस्त थी, जो अब इसी अस्पताल में सीनियर रेज़िडेंट के तौर पर काम कर रही थी।
“आज की नई इंटर्न कौन है?” उसने एक नर्स से पूछा।
नर्स ने लिस्ट देखकर जवाब दिया, “आयशा राजपूत… लेकिन अभी तक नहीं आईं।”
डॉ. भाटिया कुछ कहने ही वाली थी कि दरवाज़े से अंदर एक लड़की घुसी चेहरे पर हल्का संकोच, बिखरे बाल, कंधे पर बैग और गले में स्कार्फ। वही थी आयशा।
डॉ. भाटिया ने उसे देखते ही मुस्कुरा कर कहा, “अब आई महारानी! मिसिंग पोस्टर छपवा रही थी क्या तेरा?”
दोनों एक-दूसरे को देखकर हँस पड़ीं और गले मिलीं।
“सॉरी यार,” आयशा बोली, “कल सब गड़बड़ हो गया। पता खो गया, फोन बंद… और फिर एक अजीब-सा फकीर मिला…”
“फकीर?” डॉ. भाटिया ने हैरानी से पूछा।
“हां, स्टेशन पर आया और कहने लगा ‘लौट जा… तू तबाही लेकर आई है।’ अजीब डरावनी बात कर रहा था,” आयशा ने उसकी नकल उतारी।
भाटिया हँस दी, “मुंबई है बहन, यहाँ फकीर भी फिल्मी डायलॉग मारते हैं।”
थोड़ी देर की हंसी-मजाक के बाद दोनों हॉस्पिटल के भीतर चली गईं। डॉ. भाटिया ने आयशा को पूरा फ्लोर दिखाया इमरजेंसी वार्ड, एक्स-रे यूनिट, ओपीडी और फिर उसका छोटा-सा केबिन।
“अब से यही तेरा वॉर ज़ोन है। सफेद कोट पहन, और मरीजों से जूझ,” भाटिया ने मुस्कराकर कहा।
आयशा ने कोट पहना और आइने में खुद को देखा। वो थोड़ी घबराई जरूर थी, लेकिन उसकी आंखों में उम्मीद चमक रही थी। उसने खुद से कहा, “तू डॉक्टर बनी है, डरने नहीं आई।”
दोपहर के करीब हॉस्पिटल की इमरजेंसी में हलचल मच गई। सिक्योरिटी गार्ड्स एक युवक को सहारा देकर ला रहे थे। उसके कपड़े फटे हुए थे, बाजू से खून बह रहा था और चेहरा थका हुआ था लेकिन उसकी आँखें गहरी और शांत थीं।
उसे तुरंत स्ट्रेचर पर लिटाया गया। डॉ. भाटिया बाहर किसी मीटिंग में थी, तो नर्स ने आयशा से कहा, “मैम, एक केस आया है, प्लीज़ देख लीजिए।”
थोड़ा घबराते हुए, लेकिन अपने अंदर के डॉक्टर को जगाते हुए, आयशा इमरजेंसी रूम में पहुंची। जैसे ही उसने परदा हटाया सामने जो चेहरा था, उसे देखकर उसका दिल एक पल को ठहर गया।
लड़के ने धीरे से आँखें खोली और पहली नज़र में ही मुस्कराया। “डॉक्टर… आप पहली बार में ही इतनी सीरियस लग रही हैं,” उसने कहा।
आयशा थोड़ी चौंकी, लेकिन मुस्कराकर बोली, “Serious तो आपकी हालत है। खून बंद नहीं हो रहा, infection हो सकता है।”
“तो इलाज कर दीजिए न,” उसने कहा, “अगर आप जैसे डॉक्टर मिलें, तो हर दर्द सहने को तैयार हूं।”
आयशा ने हल्की सी नजरों से उसकी तरफ देखा और कहा, “नाम क्या है?”
“विहान,” उसने जवाब दिया।
आयशा ने बिना कुछ कहे पट्टी बांधनी शुरू कर दी, इंजेक्शन तैयार किया और नज़रें उसके जख्म पर टिकाईं मगर दिमाग में उसकी आंखें थीं।
“First aid चाहिए या coffee?” आयशा ने माहौल हल्का करने की कोशिश की।
“अगर हर बार आप ही देंगी, तो रोज़ चोट खाने आ सकता हूँ,” विहान ने मुस्कुराकर कहा।
उसकी बातों में एक शरारत थी, लेकिन नज़रों में एक ठहराव जैसे कुछ छुपा हो।
उसी पल, डॉ. भाटिया इमरजेंसी रूम के बाहर खड़ी थी और अंदर हो रही बातचीत देख रही थी। उसकी नज़रें गंभीर हो गईं। “अब खेल शुरू हो चुका है…” उसने धीमे से खुद से कहा।
कुछ देर बाद जब विहान को स्टिचिंग के बाद दूसरे रूम में भेजा गया, तो आयशा अपनी सीट पर लौट आई, लेकिन उसका ध्यान लगातार वहीं था। एक अजनबी, जिसका चेहरा और उसकी आँखें उसके ज़हन में अटक गई थीं।
उसे नहीं पता था कि यही मुलाकात उसकी जिंदगी का रुख बदलने वाली थी।
रात का तीसरा पहर था। हॉस्पिटल के अंधे गलियारे में सन्नाटा पसरा हुआ था, लेकिन विहान की आँखों में नींद नहीं थी। उसके होंठों पर कोई नाम नहीं था, पर ज़ेहन में एक ही चेहरा घूम रहा था आयशा।
कमरे में एक मॉनिटर की बीप सुनाई दे रही थी और खिड़की से हल्की ठंडी हवा अंदर आ रही थी। पर उसकी आँखें बंद होते ही, अतीत की एक चिंगारी भड़क उठी।
वो आवाज़…
वो धमाका…
वो चीख "सर, नीचे मत झुकिए!"
[फ्लैशबैक दो दिन पहले]
शाम के वक़्त विहान अपनी सिग्नेचर ब्लैक SUV में बैठा था। पीछे बैठे थे उसके दो भरोसेमंद आदमी समीर और अर्जुन। समीर उसकी tight security का हिस्सा था, जिसे विहान ने खुद ट्रेंड किया था।
“आज की डील खतम होते ही शहर छोड़ देंगे, सर,” समीर ने कहा।
विहान ने आंखें झुका लीं। “हर बार यही सोचते हैं... फिर कोई न कोई दुश्मन हमें वहीं खींच लाता है।”
SUV एक अंधेरी गली में मुड़ी ही थी कि अचानक सामने से एक ट्रक बेकाबू रफ्तार में आ गया।
“ब्रेक मारो!!” अर्जुन चीखा।
पर ड्राइवर की आंखों में उस वक्त सिर्फ डर था।
ट्रक ने सीधे विहान की गाड़ी को टक्कर मारी एक तेज़ धमाका हुआ, कांच बिखर गए, गाड़ी पलट गई।
धुआं, खून और टूटे शरीर अर्जुन मौके पर ही मारा गया। समीर ने आखिरी ताक़त से विहान को खींचकर बाहर निकाला।
"तू जिंदा रहेगा, सर..." ये कहकर वो बेहोश हो गया।
[फ्लैशबैक समाप्त]
विहान की आँख खुली, चेहरा पसीने से भीगा था। उसने खुद को बेड पर पाया, शरीर में दर्द था लेकिन दिल में कुछ और कुछ अधूरा।
दरवाज़ा खुला। राजन अंदर आया, जो अब उसके साथ रहता था साया बनकर।
"सर, दुश्मन का नाम मिल गया है। चिराग गिल। पंजाब बेल्ट का पुराना दुश्मन। आपके काम से उसे घाटा हो रहा था। उसने ही ट्रक भेजा था।"
"और समीर?" विहान की आवाज़ धीमी थी।
"ICU में है, हालत नाज़ुक है। लेकिन आपके लिए जान तक दे गया।"
विहान ने खामोशी से छत को देखा। "इन सबका हिसाब होगा... लेकिन पहले मैं खुद को ठीक करूंगा।"
राजन ने एक फाइल उसकी टेबल पर रख दी। "ये रही उस डॉक्टर की जानकारी जिसने आपको बचाया… आयशा राजपूत।"
विहान ने धीमे से उसका नाम दोहराया "आयशा…"
राजन ने कहा, "उसके बारे में अजीब बात ये है कि उसका पुराना रिकॉर्ड अधूरा है। तीन साल तक वो गायब रही। और… एक लड़का था उसकी ज़िंदगी में।"
विहान की भौंहें तन गईं। “कौन?”
"नाम है आर्यन। इंजीनियरिंग स्टूडेंट, जिसके साथ उसकी सगाई लगभग तय थी। लेकिन एक हादसे में वो लड़का गायब हो गया… और आयशा तब से बदल गई।”
विहान की नज़र खिड़की से बाहर चली गई।
वो नहीं जानता था कि जिसे वो अपना बना लेना चाहता है, उसके दिल में पहले ही कोई और ज़िंदा था।
उसी वक्त हॉस्पिटल के एक दूसरे विंग में, आयशा अपनी सीट पर बैठी थी। उसके हाथ में एक पुराना पेंडेंट था — उसी आर्यन का जो अब अतीत में कहीं खो गया था।
“तुम अब भी वहीं हो… और मैं कहीं और,” वो बुदबुदाई।
उसकी आंखों में आँसू नहीं थे, लेकिन ठंडेपन में एक टूटापन था।
तभी फोन बजा। डॉ. भाटिया थी।
“तू ठीक है ना?”
“हूं… बस थोड़ा थकी हुई हूं।”
“और वो विहान मेहरा? उसके लिए कुछ महसूस करती है?”
आयशा चुप हो गई।
“उसकी आँखों में कुछ अजीब है… जैसे वो तुझे खोने से डरता है, जबकि पाया कुछ नहीं।”
“डॉक्टर, मैं फिलहाल किसी से कुछ नहीं चाहती। और शायद किसी को कुछ देने की हालत में भी नहीं हूं।”
उधर विहान के घर दिल्ली में उसकी फैमिली की एक मीटिंग चल रही थी।
दादी शारदा देवी, जो एक वक़्त पर पूरी अंडरवर्ल्ड बेल्ट की रानी मानी जाती थीं, आज भी शान से कहती थीं, "हमारा खानदान झुकता नहीं है।"
विहान के पिता, अजय मेहरा, अब बिज़नेस की दुनिया में शरीफ बन चुके थे, लेकिन बेटे की गैरकानूनी हरकतों से नाराज़ रहते थे।
"हमारा बेटा जिस रास्ते पर जा रहा है, वो मौत है, शारदा।"
“तो क्या उसे अकेला मरने दें?” दादी गरजीं।
विहान की बहन साक्षी भी चिंतित थी। “माँ, अगर भैया को कुछ हो गया तो…”
वो परिवार टूट चुका था, पर दिल में जुड़ाव अब भी था।
वापस हॉस्पिटल में, विहान अब व्हीलचेयर पर था। राजन उसे लॉबी तक लाया।
और फिर, वही पल जब विहान ने दूर से आयशा को देखा।
उसकी नजरें ठहर गईं। उसकी आँखों में वो प्यास थी, जो पहली बार किसी को पाने की थी न अपनी ताक़त से, न अपने डर से… बस मोहब्बत से।
पर आयशा के चेहरे पर कोई रंग नहीं बदला। उसके लिए ये सिर्फ ड्यूटी थी।
शायद यही सबसे बड़ा फर्क था एक के लिए दिल धड़क रहा था… और दूसरी के लिए, दिल पहले ही किसी और के नाम था।
To Be Continued...
रात गहराती जा रही थी, हॉस्पिटल की लाइटें धीमी हो चुकी थीं। स्टाफ भी कम हो गया था। आयशा अपनी ड्यूटी खत्म करके नर्सिंग स्टेशन के पास लगी बेंच पर कुछ देर के लिए आंखें बंद किए बैठी थी। उसकी आँखों में थकावट तो थी, लेकिन मन में बेचैनी कहीं ज्यादा थी।
उसे अब भी समझ नहीं आ रहा था कि विहान की आँखों में जो गहराई थी, वो डर थी या मोह। जिस तरह वो उसका नाम लेता था… जैसे वो उसे बरसों से जानता हो। और आज जब वो अचानक सामने आया… कुछ तो था उसके लहजे में, जिससे आयशा बहुत असहज महसूस कर रही थी।
तभी एक नर्स घबराई हुई सी भागती हुई आई, “डॉक्टर आयशा! वो… इमरजेंसी… विहान मेहरा… अचानक गायब हैं।”
आयशा चौंकी, “क्या? लेकिन उनकी हालत… वो स्ट्रेचर पर थे… डॉक्टर भाटिया कहाँ हैं?”
“मैम, वो तो नीचे मेडिकल स्टाफ से मिलने गई हैं। लेकिन विहान सर का पूरा कमरा खाली है… और सिक्योरिटी का कोई सुराग नहीं।”
आयशा तेजी से उठी, लेकिन इससे पहले कि वो कोई कदम उठा पाती, पीछे से एक रुमाल उसके मुँह पर आ लगा।
तेज़ महक… आँखों में अंधेरा…
और फिर… कुछ नहीं।
जब उसकी आंख खुली, तो वो एक बिल्कुल अंजान जगह पर थी। कमरे में हल्की रोशनी थी, फर्श संगमरमर का, दीवारों पर महंगे पर्दे, और खिड़की से दूर कहीं समंदर की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
उसने खुद को देखा वो एक रेशमी ड्रेस में थी, जो उसके हॉस्पिटल वाले कपड़े नहीं थे। वो चौंकी, घबराई… उठने की कोशिश की लेकिन महसूस हुआ, उसके दोनों हाथ बेड के किनारे से बंधे हुए थे।
"हैलो...? कोई है?" उसकी आवाज़ काँप रही थी।
तभी दरवाज़ा खुला।
विहान अंदर आया, काले शर्ट में, गले में सोने की चैन और आँखों में वही पुरानी आग। लेकिन अब वो मुस्कुरा नहीं रहा था… उसकी आँखों में गुस्सा साफ़ दिख रहा था।
“कैसी हो, डॉक्टर आयशा?” उसकी आवाज़ में एक झूठी मिठास थी।
“विहान… ये क्या मज़ाक है? मुझे यहाँ क्यों लाया गया है? और ये क्या कपड़े… और ये बांध रखा है आपने?”
विहान धीरे-धीरे उसके पास आया, उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला, “मज़ाक? तुम्हें लगता है ये सब सिर्फ़ मज़ाक है?”
“मुझे जाने दो। मैं पुलिस को बुला लूंगी”
विहान ज़ोर से हँस पड़ा, लेकिन उसकी हँसी में पागलपन था।
“पुलिस? मुंबई की पुलिस… जिसने मेरे कहने पर तुम्हें इंटर्नशिप में एडमिट किया? जिसकी हर रिपोर्ट मेरी मेज़ पर जाती है? डॉक्टर आयशा… तुम बहुत भोली हो।”
आयशा के चेहरे का रंग उड़ गया।
विहान अब गुस्से में था। उसने पास की टेबल से एक फाइल उठाई और फेंक दी सारी फाइल्स वही थीं जिनमें आयशा का मेडिकल रिकॉर्ड, उसकी ट्रेन टिकट, हॉस्पिटल एंट्री टाइम्स, यहाँ तक कि स्टेशन का CCTV फुटेज तक शामिल था।
“तुम्हें लगता है तुम सिर्फ़ एक इंटर्न हो? नहीं… तुम हो मेरी ज़रूरत। मेरी कमजोरी। और मैं अपनी कमजोरी को इस बार नहीं खोने वाला।”
“तुम पागल हो! मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कौन हो, माफिया हो या कुछ और। मुझे यहाँ से जाने दो!” आयशा ने चिल्लाते हुए हाथ छुड़ाने की कोशिश की।
विहान अचानक उसके पास आया, उसकी ठुड्डी पकड़ी और आंखों में गुस्से से कहा, “तुम्हें क्या लगता है… मैं तुम्हें ऐसे ही जाने दूँगा, जैसे वो गया था?”
आयशा सिहर गई। “वो… कौन?”
कुछ देर खामोशी रही… फिर विहान एक गहरी साँस लेते हुए बोला, “वो जिसकी तस्वीर तुम्हारे पर्स में थी… वो जिसके लिए तुम्हारी आंखें अब भी भीग जाती हैं… क्या नाम है उसका? समीर?”
आयशा का चेहरा एकदम सफेद पड़ गया। उसे अब समझ आ रहा था कि विहान ने सिर्फ उसे किडनैप नहीं किया, बल्कि उसकी हर बात पर नजर रखी थी।
“समीर का इस सब से कोई लेना-देना नहीं है…” वो बुदबुदाई।
“लेकिन अब होगा…” विहान ने बर्फीली आवाज़ में कहा।
फिर वो दरवाज़े की तरफ मुड़ा, और जाते-जाते बोला, “तैयार रहो… अब तुम सिर्फ़ मेरी हो। तुम्हारा डर… ही मेरी जीत है।”
दरवाज़ा बंद हो गया।
कमरे में अब सिर्फ़ आयशा की हल्की सिसकी और समंदर की दूर जाती आवाज़ थी।
Vihaan के अंधेरे विला के कोने में सन्नाटा पसरा था। सीलन भरी दीवारें और एक तरफ जलती धीमी लाइट के नीचे बैठी थी Ayesha कांपती, डरी हुई और गुस्से से तमतमाई।
वो अब तक यकीन नहीं कर पा रही थी कि Vihaan, जिसने उसका इलाज करवाया, उससे ठीक से पेश आया… वही अब उसे जबरन यहां अपने विला में कैद कर चुका था। वो अपने गुस्से और डर से झूलती हुई बार-बार खुद से सवाल कर रही थी "मैंने ऐसा क्या किया कि उसने मुझे इस तरह कैद कर लिया?"
Vihaan दूर, एक शीशे की खिड़की के पास खड़ा था। उसकी आंखें तेज़ थीं, चेहरा सख्त और होठों पर एक ऐसा सन्नाटा था, जिसमें तूफ़ान छिपा था।
"तुम्हें समझ में नहीं आता Ayesha, मैं क्या चाहता हूं?" उसकी आवाज़ गूंजी, और कमरे की हवा में जहर घुल गया।
Ayesha गुस्से से उठ खड़ी हुई। "तुम एक क्रिमिनल हो! तुम मुझे यहां क्यों लाए हो? मुझे वापस मेरे हॉस्पिटल जाना है!"
Vihaan उसकी तरफ धीरे-धीरे बढ़ा। उसका चेहरा अब और भी ज्यादा गुस्से में था। "तुम्हें किसके पास जाना है? उस Aryan के पास?" उसने Ayesha की कलाई पकड़ ली। Ayesha तड़प उठी।
"छोड़ो मुझे!" उसने चीख कर कहा।
Vihaan की आंखों में अब नफरत के साथ दर्द था। "तुम्हें क्या लगता है, मैं नहीं जानता Aryan कौन है? मैं नहीं जानता कि तुम दोनों के बीच क्या था?"
Ayesha की सांसें अटक गईं। वो एकदम चुप हो गई।
Vihaan ने एक फाइल उसके सामने फेंकी। फाइल में कुछ फोटोज़ थीं Ayesha और Aryan की पुरानी तस्वीरें, किसी लॉज के कमरे की, कोई CCTV फुटेज, और साथ ही डॉक्टर की रिपोर्ट की कॉपी। Ayesha के चेहरे का रंग उड़ गया।
"तुम Aryan के साथ रह चुकी हो… उसके साथ सब कुछ कर चुकी हो…" Vihaan की आवाज़ कांप रही थी गुस्से और टूटे हुए आत्मसम्मान से।
Ayesha ने धीरे से कहा, "वो मेरा अतीत था Vihaan… और तुम इसे मेरी सज़ा मत बनाओ…"
Vihaan ने एक ठंडी हंसी हँसी, "तुम्हारे जैसे मासूम चेहरे के पीछे इतना झूठ? तुम मुझे क्या समझती हो? मैं कोई बच्चा हूं?"
Ayesha की आँखों में अब आँसू थे, लेकिन उसकी आवाज़ कांपती नहीं थी। "तुम्हारा मेरे अतीत से क्या लेना देना है? हम दोनों के बीच कोई रिश्ता नहीं…"
Vihaan ने उसके पास आकर उसका चेहरा अपने हाथ में लिया और कहा, "अब है… क्योंकि मैंने तुम्हें अपना बनाया है। अब तुम सिर्फ मेरी हो। और अगर तुमने किसी और से जुड़ाव दिखाया, तो मैं तुम्हें इस दुनिया से मिटा दूंगा!"
Ayesha ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन Vihaan ने उसे दीवार से धक्का मार दिया। उसका सिर हल्का-सा दीवार से टकराया। Ayesha लड़खड़ाई।
"तुम्हारी सज़ा यही है अकेलापन, मेरी कैद… और अब तुम मेरी नजरों में सिर्फ एक धोखेबाज़ औरत हो," Vihaan ने ठंडी बेरहमी से कहा।
Ayesha अब फर्श पर बैठी थी, उसका सिर झुका हुआ, और आँसू उसकी आंखों से बह रहे थे।
"मैंने तुमसे कुछ नहीं छुपाया Vihaan…" उसने फुसफुसाते हुए कहा, "मैंने Aryan से प्यार किया था, लेकिन उसने मुझे छोड़ दिया… मैंने खुद को संभाला… अपनी जिंदगी को दुबारा शुरू किया… लेकिन तुम… तुमने मुझे फिर से एक कैदी बना दिया…"
Vihaan अब भी गुस्से से कांप रहा था। उसने दरवाज़ा खोला और एक आदेश में कहा, "इसे नीचे तहखाने में बंद कर दो। और खाना… सिर्फ पानी, दिन में एक बार।"
दो गार्ड अंदर आए। Ayesha चुपचाप खड़ी हुई, उसने कोई चीख-पुकार नहीं की। बस एक बार Vihaan की आंखों में देखा, और कुछ नहीं कहा।
Vihaan उसके जाते हुए चेहरे को देखता रहा वो चेहरा जिससे उसे कभी सुकून मिला था, अब नफरत का कारण बन चुका था।
Ayesha को नीचे तहखाने में बंद कर दिया गया अंधेरा, ठंडा और अकेला कमरा। वहीं फर्श पर बैठी Ayesha ने खुद से एक वादा किया।
"मैं रोऊंगी नहीं। मैं अब उस Ayesha को खत्म कर दूंगी जो डरती थी। अगर Vihaan मुझे तोड़ना चाहता है, तो अब उसे एक टूटी हुई लड़की नहीं, बल्कि आग देखनी पड़ेगी।"
ऊपर Vihaan खड़ा था गुस्से से कांपता हुआ। लेकिन अंदर कहीं कोई अजीब सी बेचैनी थी। वो खुद नहीं समझ पा रहा था कि उसके गुस्से में प्यार क्यों छलक गया… क्यों उसने उसकी आँखों में नज़र डालते हुए दर्द महसूस किया।
रात लंबी थी एक तरफ Vihaan का टूटता हुआ विश्वास और दूसरी तरफ Ayesha की जागती हुई आग।
कहानी अब एक मोड़ पर थी जहाँ प्यार, नफरत और बदले की लपटें एक साथ जलने लगी थीं।
रात के ढाई बज चुके थे।
Vihaan बार-बार बिस्तर पर करवटें बदल रहा था। कमरे में हर चीज़ शांत थी, लेकिन उसका मन एक तूफ़ान से घिरा था। छत की ओर देखता वो बार-बार Ayesha का चेहरा याद कर रहा था उसका वो टूटता हुआ लहजा, कांपती पलकों पर ठहरे आँसू, और जाते वक्त उसकी वो खामोशी... जो किसी चीख से ज़्यादा तेज़ थी।
"मैंने उसे सिर्फ इसलिए सज़ा दी... क्योंकि वो किसी और से प्यार कर चुकी थी?"
"क्या मैं उससे सिर्फ उसका अतीत छीनना चाहता हूं... या उसे खुद के अंधेरे में घसीटना चाहता हूं?"
Vihaan उठ बैठा। माथे पर पसीना था। उसने घड़ी की ओर देखा रात के तीन बजने वाले थे। उसका दिल एक अजीब बेचैनी से धड़क रहा था। जितनी बार वो अपनी आँखें बंद करता, Ayesha की सिसकियाँ उसके कानों में गूंज जातीं।
आख़िर वो उठ खड़ा हुआ। बिना कुछ सोचे, सीधा तहखाने की ओर बढ़ा। सीढ़ियाँ उतरते वक़्त उसका हर कदम भारी था।
Ayesha उसी ठंडी जमीन पर बैठी थी, घुटनों में सिर डाले। उसकी साँसें धीमी थीं लेकिन उसके भीतर अब भी कोई आँच जल रही थी। तभी दरवाज़ा खुला।
Vihaan कुछ पल उसे देखता रहा बिना कुछ कहे।
फिर धीमे कदमों से उसके पास आया और बगल में बैठ गया।
"चलो…" उसने सिर्फ एक शब्द कहा।
Ayesha ने उसकी तरफ देखा उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, सिर्फ थकावट और तिरस्कार था।
"अब क्या नया तमाशा है?" उसने टूटे हुए स्वर में कहा।
Vihaan का गला भर आया। "मैं… मुझे माफ़ कर दो, Ayesha… मैं तुम्हें कभी चोट नहीं देना चाहता था… लेकिन…"
"लेकिन तुमने दी," Ayesha ने काटा, "और सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं तुम्हारे मुताबिक पवित्र नहीं निकली?"
Vihaan ने गहरी साँस ली। "नहीं… मैंने तुम्हें अपने गुस्से में गलत समझा। लेकिन उस तहखाने में तुम्हें छोड़कर… मैं खुद सो नहीं सका। मेरे लिए सब कुछ हो सकता है Ayesha… लेकिन तुम्हारी आँखे… वो खाली नज़रें मुझे चैन से जीने नहीं देंगी।"
Ayesha चुप रही।
Vihaan ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। "प्लीज़, चलो ऊपर चलो… मैं तुम्हें बस सुलाना चाहता हूँ… अपने पास… ताकि मेरी बेचैनी कुछ तो कम हो।"
Ayesha कुछ पल उसे देखती रही, फिर चुपचाप उठ खड़ी हुई।
Vihaan ने उसका हाथ नहीं पकड़ा, बस साथ चला बिना ज़ोर दिए।
ऊपर कमरे में पहुँचकर Vihaan ने चुपचाप कंबल हटाया। Ayesha कुछ झिझक के साथ बिस्तर पर बैठी। उसकी आँखें अब भी डरी हुई थीं, लेकिन गुस्से की आग थोड़ी बुझ चुकी थी।
Vihaan बिस्तर के दूसरे तरफ लेट गया। उनके बीच अब भी दूरी थी।
"तुम सो जाओ," उसने धीरे से कहा, "मैं बस इतना चाहता हूँ कि आज रात… तुम मेरी आंखों के सामने रहो… ताकि मैं खुद को माफ़ कर सकूं।"
Ayesha ने कुछ नहीं कहा। कुछ देर बाद उसने करवट ली, और दीवार की ओर मुँह कर लिया।
Vihaan ने धीरे से उसका कंधा छुआ, फिर धीरे से कहा, "मैं नहीं जानता मैं अच्छा इंसान हूं या नहीं… लेकिन तुमने मुझे महसूस करवा दिया कि मुझे कोई फर्क पड़ता है… और वो फर्क तुम हो।"
Ayesha की आँखें हल्के-हल्के भीगने लगीं। लेकिन वो कुछ नहीं बोली।
धीरे-धीरे कमरे में खामोशी पसर गई… लेकिन उस खामोशी में दो टूटे हुए दिलों की धड़कनें थीं एक जो माफ़ी मांग रहा था, और दूसरा जो शायद धीरे-धीरे फिर से भरोसा करना सीख रहा था।
to be continued..
Chapter 7
[सुबह का वक्त – फार्महाउस पर एक नई सुबह की शुरुआत]
सुबह की पहली किरण जब खिड़की से भीतर आई, तो Ayesha की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। पिछली रात की थकावट अब भी उसके चेहरे पर झलक रही थी, लेकिन ये सुबह कुछ अलग सी थी कम से कम उस तहखाने के अंधेरे से बेहतर।
Vihaan की बाँह पास में थी लेकिन वो खुद बिस्तर पर नहीं था। Ayesha ने हल्के से करवट ली और कमरे के सन्नाटे को महसूस किया। कमरे के कोने में रखा बड़ा-सा शीशा, भारी पर्दे, और दीवार पर टंगी Vihaan की फैमिली की तस्वीरें जैसे सब उसे घूर रहे थे।
अचानक दरवाज़ा खुला।
Ayesha थोड़ी चौंकी, लेकिन देखा कि Vihaan कमरे में एक ट्रे लेकर आ रहा था उस पर चाय, टोस्ट और फल थे।
"सुबह हो गई है," उसने धीमे से कहा, आँखें Ayesha से मिलाने से बचाते हुए, "तुम्हें भूख लगी होगी।"
Ayesha बिना कुछ कहे उठी, और चाय की प्याली थाम ली। कुछ पल दोनों के बीच खामोशी रही।
"तुम्हें आज मेरे साथ चलना होगा," Vihaan ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
Ayesha ने सवाल भरी नज़रों से उसकी ओर देखा।
"मेरे फार्महाउस पर। मेरी फैमिली वहाँ है… उन्हें तुम्हारे बारे में जानना चाहिए," Vihaan की आवाज़ सख्त नहीं थी, मगर उसमें आदत वाली ठंडक मौजूद थी।
Ayesha का दिल जोर से धड़क उठा। "और हम दोनों के बीच का रिश्ता… क्या नाम दोगे उसे उनके सामने?" वो धीरे से बोली।
Vihaan ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में कोई कोमलता नहीं थी, "जैसा दिखाना ज़रूरी हो, वैसा दिखाएँगे।"
Ayesha ने गहरी साँस ली। वो जानती थी ये सफ़र आसान नहीं होगा।
[दोपहर – Vihaan का फार्महाउस, उदयपुर से दूर एक शांत पहाड़ी इलाका]
जैसे ही कार ने फार्महाउस के अंदर प्रवेश किया, Ayesha की धड़कनें तेज़ हो गईं। चारों तरफ हरियाली, खामोश हवाएं और एक पुरानी हवेली जैसी आलीशान इमारत।
दरवाज़े पर खड़ा एक लड़का जैसे पहले से इंतज़ार कर रहा था बाल उलझे, आँखों में चमक और हाथ में एक गिटार।
“ओ भैया! आखिर लव-बर्ड्स लौट आए!" उसने मजाकिया अंदाज़ में कहा।
Ayesha चौंकी। लेकिन तभी Vihaan बोला, "रियान, ज्यादा बकवास मत कर। ये Ayesha है, अब इस घर की सदस्य।"
Riyan, जो Vihaan का छोटा भाई था Vihaan जितना सख्त था, Riyan उतना ही मस्तमौला, मजाकिया और दिल का साफ।
Riyan ने Ayesha की ओर मुस्कुराकर हाथ बढ़ाया, “Hi भाभी! Don’t worry, इस घर में मैं हूँ जो आपको बचाएगा इस ज़ालिम इंसान से!”
Ayesha का चेहरा पहली बार नरम पड़ा। उसने हल्के से मुस्कुराकर हाथ मिलाया। “Hello…”
Vihaan की माँ, एक रॉयल दिखने वाली महिला, थोड़ी ही देर में दरवाज़े पर आईं। उन्होंने Ayesha को ऊपर से नीचे तक देखा तेज़ निगाहें, लेकिन चेहरे पर हल्की मुस्कान।
"अंदर आओ, बेटी," उन्होंने कहा। "Vihaan ने पहली बार किसी को यहाँ लाया है… कुछ तो खास होगी।"
Ayesha झिझकते हुए उनके पास गई और धीरे से बोली, "नमस्ते…"
"माँ कह सकती हो," उन्होंने सिर पर हाथ रखते हुए कहा।
Ayesha के गले में कुछ अटक गया। एक अजनबी घर में, इतने अपनापन की उम्मीद उसने नहीं की थी।
Riyan बीच में बोल पड़ा “भाभी, अब आप आ ही गईं हैं, तो मैं आपको घर का टूर दूंगा। भैया से डरने की जरूरत नहीं है, ये बस आँखों से ही डराते हैं!”
Vihaan ने उसे घूरा, “Riyan, ज़्यादा नटखट बना तो तेरी ज़ुबान खींच दूँगा।”
Riyan ने मजाक उड़ाते हुए कहा, “भाभी! देखा आपने, यही रोज़ मुझसे करते हैं… मैं तो सोच रहा हूँ एक दिन ये भी आपके पैरों पर गिरेंगे!”
Ayesha ने पहली बार खुलकर हँसी में साथ दिया। और Vihaan ने दूर खड़े होकर Ayesha के चेहरे पर वो मुस्कान देखी जो उसने कभी अपने लिए नहीं देखी थी।
शाम का वक्त
फार्महाउस का अहाता]
सूरज ढलने लगा था। फार्महाउस की बालकनी में बैठकर सभी लोग नाश्ते का आनंद ले रहे थे। गर्म समोसे, चाय, और हवाओं में एक हल्की ठंडक।
Ayesha चुपचाप बैठी थी। Vihaan की माँ बार-बार उससे कुछ पूछने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन Ayesha का मन जैसे कहीं और था।
Riyan अब भी अपने मज़ाकी अंदाज़ में कह रहा था, “भाभी, अगर एक हफ्ता यहाँ रही ना, तो मैं शर्त लगाता हूँ कि आप मुझसे ज्यादा प्यार करने लगेंगी!”
Vihaan ने आँखें तरेरी, “Riyan, ज़ुबान संभाल।”
सबके हँसते-हँसाते माहौल के बीच Ayesha की आंखें बार-बार Vihaan की तरफ जातीं, जो चाय की प्याली में खोया था जैसे उसकी सोच कहीं और हो।
नाश्ता खत्म हुआ। एक-एक कर सब अपने-अपने कमरों में चले गए।
Ayesha और Vihaan भी ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़े।
सूरज धीरे-धीरे ढल चुका था। फार्महाउस के हर कोने में एक हल्की उदासी और खामोश हवाएं फैल चुकी थीं। Ayesha खामोशी से कमरे में आई, पीछे Vihaan भी उसी सख्त चेहरे के साथ दाखिल हुआ।
कमरे का दरवाज़ा बंद होते ही Ayesha ने धीरे से पूछा, “Vihaan… हम दोनों का रिश्ता क्या है?”
Vihaan कुछ पल खामोश रहा। फिर खिड़की की ओर देखते हुए बोला, “जैसा दिखाना जरूरी हो, वैसा है ये रिश्ता।”
“पर मेरे लिए ये जरूरी है जानना कि मैं तुम्हारे लिए क्या हूँ… एक जिम्मेदारी, एक मजबूरी या सिर्फ एक इंसान जिसे तुम कंट्रोल करना चाहते हो?”
Vihaan ने उसकी तरफ देखा, आंखों में कोई कोमलता नहीं थी, बस थकान और कठोरता थी।
“तुम वही हो… जो मैंने सोचा है… इससे ज़्यादा कुछ नहीं,” वो बोला।
Ayesha की आंखों में गुस्सा तैरने लगा, “तुम क्या सोचते हो उससे मेरी जिंदगी की दिशा तय नहीं हो सकती। मैं कोई चीज़ नहीं हूँ जिसे जब चाहो उठा लो, जब चाहो छोड़ दो।”
Vihaan उसके करीब आया, आवाज धीमी थी लेकिन काटने जैसी, “मुझे इस बहस में कोई दिलचस्पी नहीं है। जो कहना था कह दिया।”
“और मैं कोई गुड़िया नहीं हूँ जिसे अपने घर ले आए और सबको दिखा दो कि देखो ये मेरी है,” Ayesha चीखी।
Vihaan ने उसका चेहरा पल भर के लिए देखा, फिर दरवाज़ा खोलकर बाहर चला गया। उसकी पीठ में कोई भावना नहीं थी जैसे अब वो कोई जवाब देने की ज़रूरत ही नहीं समझता।
कमरे में भारी खामोशी छा गई। Ayesha ने खुद को कसकर पकड़ लिया… जैसे खुद को संभाल रही हो… फिर बिस्तर पर बैठ गई, आंखें बंद करके चुपचाप।
कई घंटे बीत गए।
रात के किसी हिस्से में, दरवाज़ा अचानक खुला। कदमों की आवाज़ आई।
Vihaan था लेकिन वैसा नहीं जैसा सुबह था। उसका चेहरा लहराता हुआ, आंखें लाल, सांसों में शराब की बदबू, और चाल लड़खड़ाती हुई।
वो धीरे-धीरे Ayesha के पास आया।
“तुम… बहुत बोलती हो…” उसकी आवाज़ भारी थी, लड़खड़ाती हुई। “पर आज… आज मैं सुनना नहीं चाहता… सिर्फ महसूस करना चाहता हूँ।”
Ayesha पीछे हटने लगी। “Vihaan… तुम नशे में हो… दूर रहो मुझसे।”
लेकिन Vihaan ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"तुम मेरी हो… मेरी… और कोई मुझसे दूर नहीं कर सकता तुम्हें," उसने उसकी बाहों को अपनी ओर खींचते हुए कहा।
Ayesha का चेहरा डर से सफेद हो गया। “छोड़ो Vihaan… ये ठीक नहीं है!”
उसके शब्द हवा में खो गए। Vihaan ने अपनी उंगलियां उसकी गर्दन और पीठ पर फिराई जबरदस्ती, दबाव से भरी।
तभी Ayesha ने पूरी ताकत से उसे धक्का दिया और एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके चेहरे पर मारा।
Vihaan दो कदम पीछे हटा, चेहरा सख्त हो गया। एक पल के लिए कमरे में सांस लेना मुश्किल हो गया।
Ayesha की आंखों से गुस्से और डर के आँसू बहने लगे। “तुम्हें ज़रा भी शर्म नहीं आई? क्या मैं तुम्हारी चीज़ हूँ, जो जब चाहो इस्तेमाल कर लो?”
Vihaan की आंखें एकदम सुनी थीं। पर अब उनमें कुछ और जलने लगा था आग… बदले की आग।
उसने कुछ नहीं कहा। बस घूरता रहा… फिर मुड़ा और दरवाज़ा जोर से बंद करते हुए बाहर चला गया।
Ayesha वहीं ज़मीन पर बैठ गई, कांपती हुई। उसके होंठों से बस एक ही फुसफुसाहट निकली “क्यों, Vihaan… क्यों?”
उस रात एक रिश्ता और टूट गया। एक विश्वास, एक उम्मीद… और शायद किसी दिल का बचा-खुचा कोना।
अगली सुबह
Ayesha की आँखें तब खुलीं जब कमरे की खिड़की से तेज़ धूप उसके चेहरे पर पड़ी। उसकी आँखों में अब भी लालिमा थी रात के आंसू और डर की छाया अब भी ताज़ा थी।
कमरे में Vihaan नहीं था।
उसने खुद को समेटते हुए उठाया, लेकिन अभी वो ठीक से खड़ी भी नहीं हुई थी कि दरवाज़ा जोर से खुला Rohit अंदर आया, चेहरा गंभीर।
"Ayesha ji… आपको Vihaan sir ने नीचे बुलाया है। तुरंत।"
Ayesha ने कुछ पूछना चाहा, लेकिन Rohit ने नज़रे झुका लीं। कुछ तो अजीब था।
वो नीचे आई तो फार्महाउस की बैठक में Vihaan खड़ा था सिग्नेचर सूट, चेहरा सख्त और आँखों में अजीब सी चमक।
उसके बगल में एक टेबल पर एक बड़ा कागज़ी फोल्डर रखा था।
“बैठो,” उसने कहा।
Ayesha चुपचाप सामने बैठ गई।
Vihaan ने फोल्डर खोला और एक पेपर उसके सामने रखा।
"ये एक contract है… तुम्हारे और मेरे बीच। अब से हमारा रिश्ता इसी कागज़ के मुताबिक चलेगा।"
Ayesha की साँसें थम गईं।
Vihaan ने पढ़ना शुरू किया एक-एक शब्द में सज़ा लिपटी थी।
1.Ayesha Sharma अब Vihaan Malhotra की personal property है।
2. Ayesha किसी और मर्द से बात नहीं करेगी, न मुस्कुराएगी।
3. वो सिर्फ Vihaan के आदेशों का पालन करेगी दिन, रात, शरीर, आत्मा सब Vihaan की मर्जी के अधीन।
4.अगर Ayesha ने किसी भी नियम का उल्लंघन किया… तो उस पर ₹50,00,000 का जुर्माना लगेगा।
5.ये रिश्ता समाज के लिए शादी कहलाएगा… लेकिन इसमें प्यार, इज़्ज़त और आज़ादी Ayesha के लिए मना है।”
Ayesha की आँखों से खामोश आँसू गिरने लगे।
"तुम ये मुझसे नहीं कर सकते," वो फुसफुसाई।
Vihaan झुका उसका चेहरा अब एक शैतान जैसा सख्त और ठंडा था।
“तुम्हारी सोचने की आज़ादी छिन चुकी है, Ayesha। क्योंकि तुम्हारी वजह से मेरी ego टूटी थी… और उसका बदला अब तुम्हारी ज़िंदगी बनेगी।"
Ayesha उठ खड़ी हुई, काँपते हुए। “मेरे परिवार को क्यों खींचा इसमें?”
Vihaan की आँखों में एक विकृत सुकून था। “क्योंकि तुम उनसे प्यार करती हो। और मुझे तुम्हारा हर प्यार तोड़ना है… ताकि सिर्फ मैं रह जाऊं तुम्हारी नफ़रत में भी, और ज़रूरत में भी।”
Ayesha ने कांपते हुए पूछा, “अगर मैंने मना किया तो?”
Vihaan मुस्कुराया वो भयानक मुस्कान थी।
“तो कल तुम्हारे मम्मी-पापा और छोटी बहन की लाश किसी पुल के नीचे मिलेगी।"
Ayesha की रूह काँप गई।
“Sign करो,” Vihaan ने पेन उसकी ओर बढ़ाया।
Ayesha की उंगलियां कांप रही थीं… आँखों में नफ़रत थी, पर मजबूरी उससे ज़्यादा भारी थी।
उसने कांपते हाथों से कागज़ पर दस्तख़त कर दिए।
Vihaan ने कागज़ उठाया और एक ज़ोर की तालियाँ बजाईं। Rohit ने आकर अंदर से एक सिंदूर की डिबिया और मंगलसूत्र निकाला।
Vihaan ने उसके माथे पर ज़बरदस्ती सिंदूर लगाया और गले में मंगलसूत्र पहनाया सब चुपचाप… बिना किसी पवित्रता के।
“अब तुम मेरी बीवी नहीं, मेरी बंदी हो। और ये जेल है तुम्हारा नया घर।”
Ayesha की आंखों से लगातार आंसू बहते रहे।
उस रात… Vihaan ने Ayesha को उस नए कमरे में बंद किया जहां कोई खिड़की नहीं थी, कोई आवाज़ बाहर नहीं जाती थी, और जहां सिर्फ उसका हुक्म चलता था।
कमरे के बाहर एक तख्ती टंगी थी “Vihaan ki rakhwali Ayesha”
अंदर बैठी Ayesha सिर्फ एक बात सोच रही थी “मैं कब टूटी… और कब फिर जुड़ूंगी?”
Chapter 9
[कुछ दिन बाद Vihaan का फार्महाउस, बंद कमरा और टूटती सांसें]
कमरे की दीवारें गूंगी थीं, लेकिन Ayesha की हर चीख को उन्होंने चुपचाप निगला था।
तीन दिन हो चुके थे उस कॉन्ट्रैक्ट शादी को… और Ayesha अब एक कैदी से भी बदतर ज़िंदगी जी रही थी। सुबह, दोपहर, शाम हर वक्त किसी नौकर या गार्ड की निगरानी में। न कहीं आ-जा सकती थी, न किसी से बात कर सकती थी।
हर रोज़ Vihaan दरवाज़े पर आता, लेकिन भीतर न झाँकता, न कुछ कहता। बस एक बर्फीली नज़र डालता और चला जाता।
उस रात जब Ayesha पलंग के एक कोने में सिमटी थी, तब दरवाज़े की हल्की सी दस्तक हुई।
"Ayesha भाभी?" आवाज़ बहुत धीमी थी और वो थी Riyan की।
Ayesha चौक गई। वो कैसे अंदर आया?
Riyan खिड़की से अंदर आया था, जैसे किसी चोरी पर निकला बच्चा।
"मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ," उसने धीरे से एक थैला आगे बढ़ाया। “इसमें तुम्हारा पसंदीदा chocolate, एक diary और कुछ sketch pens हैं… ताकि तुम खुद को याद रख सको।”
Ayesha की आँखें भर आईं वो कुछ कह नहीं पाई।
“भैया डरावने हो सकते हैं, लेकिन तुम्हें मारने वाले नहीं हैं,” Riyan ने मासूमियत से कहा। “बस… उन्हें पता नहीं कि वो क्या चाहते हैं।”
Ayesha फुसफुसाई, “वो मुझे तो नहीं चाहते…”
Riyan चुप हो गया।
"एक बात कहूं?" उसने हल्के से पूछा, "भैया तुमसे नफ़रत करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वो खुद को ही धोखा दे रहे हैं।"
Ayesha ने सिर झुका लिया। “मुझे न उनका प्यार चाहिए, न नफ़रत। बस… आज़ादी चाहिए।”
Riyan ने कुछ नहीं कहा, बस खिड़की से वापस निकल गया। लेकिन Ayesha को पहली बार किसी ने इंसान समझा था और यही एहसास उस रात उसकी ढाल बना।
[अगले दिन Vihaan का ऑफिस रूम, फार्महाउस के भीतर]
Vihaan अपने लैपटॉप में कुछ डाटा देख रहा था। उसकी उंगलियाँ तेज़ी से कीबोर्ड पर चल रही थीं, लेकिन दिमाग कहीं और था।
"Why am I thinking about her again and again?"
उसके पास हर चीज़ थी पैसा, ताकत, सत्ता लेकिन Ayesha की आँखों में जो दर्द था… वो अब उसके सपनों में आने लगा था।
“मुझे उससे नफ़रत है… है ना?” उसने खुद से पूछा।
लेकिन जवाब नहीं आया।
Rohit कमरे में दाख़िल हुआ। “Sir, media को पता चल गया है कि आपने शादी की है। कुछ reporters फार्महाउस के पास देखे गए हैं।”
Vihaan का माथा सिकुड़ गया।
“Let them come. Let them see what happens when someone becomes mine…”
[रात Ayesha का कमरा]
Ayesha diary में कुछ लिख रही थी शब्द नहीं, दर्द उतार रही थी।
“Main kaidi hoon, par kamzor nahi…
Main sab kuch haar chuki hoon, par apne aap ko nahi…
Ek din, main apne liye jeeyungi. Us din Vihaan Malhotra, tumhe meri चुप्पी से डर लगेगा।”
तभी दरवाज़ा खुला।
Vihaan अंदर आया चेहरे पर थकावट थी, आँखों में कुछ अलग… guilt जैसा।
"तुमने खाना खाया?" उसने पूछा।
Ayesha ने जवाब नहीं दिया।
"मैं तुमसे बात करने आया हूँ…" Vihaan ने कुर्सी खींची और पास बैठ गया।
Ayesha थोड़ा पीछे खिसकी।
"तुम मुझसे डरती हो?" उसने अचानक पूछा।
Ayesha ने सीधा उसकी आँखों में देखा, “मैं खुद से डरती हूँ कि कहीं मैं तुम्हें समझने न लगूं… जब तुम उसके लायक नहीं।”
Vihaan जैसे चौंक गया। उसके चेहरे पर कुछ टूटा।
"एक सवाल पूछूं?" Ayesha बोली। “अगर मैं तुम्हारे जैसी होती… तो क्या तुम मुझसे प्यार कर पाते?”
Vihaan चुप रहा वो सवाल उसके दिल में हथौड़े की तरह बजा।
वो बिना कुछ कहे उठ गया और बाहर चला गया।
उस रात Vihaan ने खुद से पहली बार सच कबूला “I don’t want to break her anymore… but I don’t know how to fix myself.”
सुबह
की हवा में एक अजीब सी खामोशी थी। Vihaan अपने रूम में खिड़की के पास खड़ा था, हाथ में कॉफी का कप और नजरें कहीं दूर जैसे हर चीज़ को धुंधला देख रही हों।
Rohit अंदर आया, उसकी चाल हमेशा की तरह सधी हुई थी।
“Sir, दो दिन बाद Sayam की पार्टी है। वो खुद invite करने आ रहा है।”
Vihaan ने चुपचाप सिर हिलाया।
“इस बार मैं जाऊँगा,” उसने धीमे से कहा, “और Ayesha भी जाएगी मेरे साथ।”
Rohit थोड़ा चौंका, “Ayesha ma’am? लेकिन सर, media–”
“Let them watch,” Vihaan ने ठंडे स्वर में कहा, “अब Ayesha मेरा नाम है। और मैं चाहता हूँ कि सबको ये पता चले।”
Rohit ने धीरे से सिर झुकाया, “Party का थीम royal है… सारे पुराने पार्टनर, media, Sayam के contacts… सब होंगे। And sir… Sayam dangerous भी है।”
Vihaan के होंठों पर हल्की सी मुस्कान आई, “वो जितना dangerous लगता है, उससे ज़्यादा मैं हूँ।”
उसी वक्त, Ayesha कमरे में दाखिल हुई। उसकी आँखों में अब पहले जैसी घबराहट नहीं थी, बल्कि एक अजीब सी स्थिरता थी जैसे हर दर्द ने उसे और मजबूत बना दिया हो।
“तुम मुझसे कुछ बात करना चाहते थे?” Ayesha ने सीधा पूछा।
Vihaan उसकी आवाज़ के ठहराव को पहचान रहा था। पहले जैसी कांपती आवाज़ नहीं थी।
“दो दिन बाद एक पार्टी है… तुम मेरे साथ चलोगी,” उसने संक्षेप में कहा।
“क्यों?” Ayesha ने पूछा, “ताकि दुनिया देख सके तुमने मुझे कैसे तोड़ा है? या ताकि मैं वहाँ भी एक trophy बन कर खड़ी रहूँ?”
Vihaan थोड़ा आगे बढ़ा, “क्योंकि मैं चाहता हूँ लोग जानें कि तुम सिर्फ मेरी हो।”
Ayesha की आँखों में एक पल को कुछ कांपा। फिर उसने सधी हुई आवाज़ में कहा, “ठीक है… मैं चलूंगी। लेकिन वहाँ मैं तुम्हारी परछाई नहीं बनूँगी।”
Vihaan ने कुछ नहीं कहा। उसकी चुप्पी में सहमति थी।
पार्टी वाले दिन फार्महाउस में हलचल थी। Ayesha के लिए एक royal black gown लाया गया था और Vihaan, पहली बार उसके लिए खुद कपड़े सिलेक्ट कर रहा था।
Riyan, हमेशा की तरह कमरे में घुस आया हल्के मज़ाक के साथ।
“भाभी! आज तो आप कयामत ढा देंगी… मेरा दिल आ गया तो?” उसने आंख दबाकर कहा।
Ayesha पहली बार हल्का मुस्कराई, “तुम तो पहले से ही सबसे अच्छे हो।”
“देखा भैया! मुझसे सबको प्यार हो ही जाता है,” Riyan ने Vihaan की ओर देखकर कहा।
Vihaan ने एक नजर Riyan पर डाली, फिर Ayesha की ओर वो पहली बार उसे इस तरह देख रहा था। जैसे उसके भीतर कुछ नया, कुछ अनकहा खिल रहा हो।
रात को जब Vihaan और Ayesha पार्टी में पहुंचे, तो हर आँख उनकी ओर मुड़ी।
Ayesha ने खुद को पूरी तरह संभाल रखा था चेहरे पर गरिमा थी, चाल में आत्मविश्वास। और Vihaan उसके बगल में था, जैसे कोई बादशाह अपनी रानी को दुनिया से मिलवा रहा हो।
अचानक भीड़ में एक जाना-पहचाना चेहरा दिखा Sayam।
लंबा, स्टाइलिश, आँखों में रहस्य और होठों पर एक चालाक मुस्कान।
“Vihaan… welcome, brother!” Sayam ने गले लगाते हुए कहा। फिर उसकी नजर Ayesha पर गई।
“और ये हसीन राज़ कौन है?”
“Mrs. Vihaan Malhotra,” Vihaan ने ज़ोर देकर कहा।
Sayam ने Ayesha का हाथ थामा थोड़ी देर तक उसकी आँखों में देखकर कहा, “अब समझा… तुम इतने दिन कहाँ गुम थे।”
Ayesha ने शालीनता से हाथ खींचा, “खुद को ढूंढ रही थी।”
Vihaan की नज़र दोनों पर थी और Sayam की नज़रों में वो बारीकी जो वो पहचानता था। ये वो आदमी था जो कभी भी कुछ भी छीन सकता था सिर्फ खेल के लिए।
पार्टी की भीड़ में Ayesha को कई निगाहें महसूस हो रही थीं कुछ तारीफ की, कुछ जजमेंट की। लेकिन उसने खुद को कमजोर नहीं होने दिया।
Vihaan भी सबके सामने काफी control में था लेकिन जब Sayam जान-बूझकर Ayesha से थोड़ा ज़्यादा पास होने लगा, तो उसका चेहरा तन गया।
Riyan, जो दूर से सब देख रहा था, धीरे से Ayesha के पास आया और फुसफुसाया, “भाभी, ये आदमी खतरनाक है। आप बस खुद को मजबूत रखना।”
Ayesha ने सिर हिलाया, “अब मैं किसी से नहीं डरती, Riyan। खुद से भी नहीं।”
Vihaan की नज़र उन दोनों पर पड़ी और पहली बार उसने Ayesha की आँखों में वो रोशनी देखी जो कभी उसकी कैद में नहीं थी।
उस रात, पार्टी के खत्म होते वक्त, Sayam ने Ayesha के सामने झुक कर धीरे से कहा, “Vihaan ने तुम्हें क़ैद किया है… मैं तुम्हें आज़ाद कर सकता हूँ। अगर कभी चाहो, तो बस एक बार देखना मेरी ओर।”
Ayesha ने गहरी नज़र से उसकी आँखों में झांका, फिर हल्के से बोली, “किसी और की ज़ंजीर में बंधना आज़ादी नहीं होती।”
Vihaan दूर से ये सुन रहा था। और उस पल, उसके भीतर कुछ फटा… एक डर, एक गुस्सा, और एक बेबसी।
जब वो Ayesha के पास आया, तो उसकी पकड़ उसके हाथ पर पहले से ज़्यादा कस गई थी। “तुम्हें उसके पास जाने की ज़रूरत नहीं है… समझीं?”
Ayesha ने अपनी उंगलियाँ धीरे से छुड़ाई, “तो फिर मुझे खुद से दूर क्यों नहीं कर देते?”
Vihaan ने कुछ नहीं कहा। वो जानता था अब ये लड़की पहले वाली Ayesha नहीं रही।
फार्महाउस की अगली सुबह एक अनकहे तनाव में डूबी थी। पिछली रात की पार्टी की चमक अब केवल याद बन चुकी थी, लेकिन उसके पीछे जो रहस्य और खतरनाक निगाहें थीं… वो अभी भी दीवारों से टकरा रही थीं।
Ayesha ने अपनी आंखें खोलीं तो खिड़की से हल्की धूप कमरे में आ रही थी। लेकिन अंदर का माहौल अभी भी भारी था। वो अकेली थी, लेकिन अकेली नहीं। उसके चारों ओर कैमरों की निगरानी, गार्ड्स की उपस्थिति, और सबसे ऊपर Vihaan की छाया।
पिछली रात Vihaan ने किसी दुश्मन की तरह Sayam को देखा था। उसकी आंखों में वो चेतावनी थी, जो जिंदा आदमी को मरने से पहले मिलती है।
Ayesha ने उठते हुए खुद को संयम में रखने की कोशिश की। तभी कमरे के बाहर किसी की आवाज़ आई।
"भाभी… आपके लिए breakfast भिजवाया है," ये Riyan की आवाज़ थी। उसने ट्रे रखकर दरवाज़ा खटखटाया और वापस चला गया।
Ayesha ने ट्रे खोली वही सब कुछ था जो उसे पसंद था, लेकिन भूख जैसे दरवाज़े पर ही रुक गई हो।
कुछ ही देर बाद फोन पर एक अनजाना मैसेज चमका बिना नाम का।
“अगर तुम आज शाम 6 बजे ग्रीनहाउस की पिछली खिड़की से बाहर आओ, तो तुम्हें आज़ादी मिल सकती है।”
Ayesha की सांस थम गई।
शायद… ये कोई trap हो।
लेकिन अगर नहीं? अगर ये सचमुच कोई मदद है? क्या वो इस कैद से निकल सकती है?
Ayesha ने पूरी दोपहर बेचैनी में गुजारी। उसका मन खुद को समझाता रहा कि Vihaan जितना खतरनाक है, उससे दूर रहना ही अच्छा है। लेकिन दिमाग में सवाल गूंजता रहा क्या वो सच में भाग सकती है?
शाम होने लगी। Vihaan कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। Riyan भी गायब था। गार्ड्स अपनी जगह थे, लेकिन थोड़े दूर।
Ayesha ने मौका देखा और ग्रीनहाउस की ओर बढ़ने लगी।
उसे किसी ने नहीं रोका।
पिछली खिड़की पर एक कार खड़ी थी Sayam ड्राइविंग सीट पर था।
“आओ जल्दी,” उसने कहा, “इससे पहले कि कोई देख ले।”
Ayesha कुछ सेकंड ठिठकी। फिर कार का दरवाज़ा खोला और अंदर बैठ गई।
“तुम मुझे यहां से सच में ले जा रहे हो?” उसने पूछा।
Sayam मुस्कुराया, लेकिन उसकी आंखों में कोई और ही इरादा था।
“हां… लेकिन Vihaan को सबक सिखाने का वक्त आ गया है।”
Ayesha की आंखें फैल गईं उसने ये नहीं सोचा था कि Sayam के इरादे इतने गहरे हो सकते हैं।
“तुम मुझे उससे बचाने के लिए नहीं… उसे चोट पहुंचाने के लिए ले जा रहे हो?” वो फुसफुसाई।
Sayam ने रफ्तार बढ़ा दी।
“वो आदमी पागल है, Ayesha. तुम सिर्फ एक मोहरा हो उसकी जिंदगी में… और मुझे वो मोहरा अब अपने पास चाहिए।”
अचानक, कार के सामने से एक काली SUV आई सीधी उनकी कार को रोकती हुई।
Sayam ने ब्रेक मारे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
SUV से Vihaan निकला आँखों में वो खामोश तबाही, जो किसी भी ताज़े खून की तरह खौफनाक लग रही थी।
“नीचे उतरो,” Vihaan ने बर्फीले लहजे में कहा।
Sayam ने हँसने की कोशिश की। “तुम्हें क्या लगा, मैं डर जाऊंगा?”
Vihaan ने आगे बढ़कर Sayam की कॉलर पकड़ी और उसे सीधे कार से बाहर खींचा।
Ayesha चीख पड़ी “Vihaan! Please, उसे मारो मत!”
Vihaan ने एक झटका दिया और Sayam को जमीन पर गिरा दिया।
“तुमने मेरी चीज़ छूने की हिम्मत की,” वो बुरी तरह फुफकारा, “तुम्हें नहीं पता Vihaan Malhotra की चीज़ कोई छीनता नहीं… वो सिर्फ खत्म हो जाती है।”
Sayam रेंगते हुए पीछे हटने लगा, लेकिन Vihaan की नजरें उसे जला रही थीं।
Ayesha ने कांपते हाथों से दरवाज़ा खोला और Vihaan की तरफ देखा।
“मैं भागना नहीं चाहती थी…” उसकी आवाज़ टूटी, “मुझे लगा कोई… कोई समझेगा…”
Vihaan ने उसकी तरफ देखा अब गुस्से की जगह एक ठंडी चुप्पी थी।
“अब तुम्हें कोई नहीं छुएगा… कोई नहीं समझेगा… तुम्हें खुद को ही समझना होगा, और वो भी मेरी शर्तों पर।”
Ayesha का चेहरा फक पड़ गया।
Vihaan ने उसका हाथ पकड़ा, और उसे वापस SUV में बिठाया जैसे वो उसे दुनिया से छीनकर ले जा रहा हो।
SUV के दरवाज़े बंद हुए।
और उस रात, Vihaan ने अपनी पकड़ और ज़्यादा कसी जैसे वो अब Ayesha को पूरी तरह से तोड़ना चाहता हो।
लेकिन Ayesha अब वही लड़की नहीं थी जो तीन दिन पहले इस फार्महाउस में आई थी।
अब उसके अंदर एक आग जल रही थी खुद को पाने की, खुद को साबित करने की… और शायद, Vihaan को हराने की।
SUV ने फार्महाउस का दरवाज़ा पार किया तो अंधेरा और गहरा हो गया। गार्ड्स ने तुरंत मेन गेट बंद कर दिया जैसे अब Ayesha का बाहर जाना असंभव हो चुका था।
Vihaan ने ड्राइविंग सीट से बिना कुछ कहे SUV को सीधे उस हिस्से की ओर मोड़ा जहाँ कोई नहीं जाता था फार्महाउस का पिछला हिस्सा, जो वीरान और सीलन भरा था।
Ayesha डर से नहीं, बल्कि चुप्पी से काँप रही थी।
SUV रुकी।
Vihaan उतरा, फिर दूसरी तरफ का दरवाज़ा खोला और Ayesha को लगभग खींचता हुआ बाहर लाया।
"Vihaan, मैं अब और नहीं भागूँगी…" Ayesha की आवाज़ बहुत धीमी थी, लेकिन उसमें एक दृढ़ता थी।
Vihaan ने उसकी तरफ देखा, "अब तुम भाग भी नहीं सकोगी।"
उसने Ayesha को उस कमरे में ले जाया जो पहले कभी घोड़ों के अस्तबल हुआ करता था, लेकिन अब… एक personal cell जैसा बन चुका था।
कमरे की दीवारों पर लोहे की जंजीरें थीं, एक पुराना लकड़ी का पलंग, और बस एक पीली बल्ब की रौशनी।
"आज से तुम यहाँ रहोगी," Vihaan ने कहा, "बाहर की दुनिया, तुम्हारा अतीत… सब खत्म।"
Ayesha ने अपनी मुट्ठियाँ भींचीं। उसकी आंखों में आँसू नहीं थे वहाँ अब जिद थी।
"तुम मुझे अपने पास रख सकते हो, Vihaan," उसने धीमे स्वर में कहा, "लेकिन मेरी आत्मा तुम्हारे कब्ज़े में नहीं आने वाली।"
Vihaan कुछ पल तक उसे घूरता रहा। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी मगर वो प्यार की नहीं, नियंत्रण की मुस्कान थी।
"देखते हैं, ये आत्मा कब तक लड़ती है," उसने कहा, और दरवाज़ा जोर से बंद कर दिया।
रात गहरी हो गई।
Ayesha उस अंधेरे कमरे में अकेली थी। लेकिन उसने खुद से एक वादा किया "अब डर नहीं, अब सिर्फ योजना।"
उसे याद आया Riyan एक बार कह चुका था कि फार्महाउस की पुरानी सुरंगें अब भी किसी को पता नहीं।
शायद… वहीं से बाहर निकलने का रास्ता है।
लेकिन इससे पहले… उसे Vihaan को उसके ही खेल में मात देनी होगी।
अगली सुबह
Vihaan जैसे ही कमरे में आया, Ayesha बिल्कुल शांत बैठी थी।
"कैसी हो आज?" उसने पूछा, जैसे कोई मालिक अपने पालतू से पूछता है।
Ayesha ने उसकी आँखों में देखकर जवाब दिया
"तुम जैसा चाहोगे, वैसी बन जाऊंगी, Vihaan… लेकिन पहले मुझे तुमसे कुछ सीखना है…"
Vihaan चौंका
"क्या?"
Ayesha मुस्कुरा दी एक अजीब सी, रहस्यमयी मुस्कान।
"कैसे सब पर काबू पाया जाता है।"
Vihaan कुछ पल तक Ayesha को देखता रहा जैसे वो उसके शब्दों का मतलब नहीं समझ पा रहा हो। उसके चेहरे पर एक हल्की परेशानी और दिलचस्पी दोनों की परछाईं थी।
"तुम क्या कहना चाहती हो?" उसने धीमे लेकिन सख़्त लहजे में पूछा।
Ayesha ने गहरी सांस ली और अपनी आंखों में एक दृढ़ता लाकर बोली,
"तुमने मुझे कैद किया… मेरी आज़ादी छीनी… लेकिन तुमने जो सबसे ज़्यादा छीना, वो था मेरा आत्मविश्वास। अब मैं वही तुमसे वापस लेना चाहती हूँ… तुमसे सीखकर।"
Vihaan ने उसकी बात पर हल्की मुस्कान दी, जो ज्यादा तंजभरी थी।
"तुम ये सब सीखकर क्या करोगी?"
Ayesha का जवाब सीधा था,
"खुद पर काबू पाने के लिए। और उस दुनिया को काबू में करने के लिए जिसने मुझे कभी गंभीरता से नहीं लिया।"
Vihaan पहली बार चुप हो गया। शायद उसे कोई ऐसा मिला था जो उसके जैसे सोचने लगा था या फिर वो सिर्फ दिखावा कर रही थी, लेकिन तरीका उसे पसंद आ रहा था।
अगले कुछ दिन एक नए रिश्ते की शुरुआत थे।
Vihaan अब Ayesha को सिखाने लगा वो सब जो कोई किताबों में नहीं मिलता।
कैसे किसी की आंखों से उसकी कमजोरी पढ़ी जाती है,
कैसे सन्नाटे में भी डर बोया जाता है,
कैसे एक मुस्कान के पीछे राज छिपाए जाते हैं,
और सबसे जरूरी कैसे अपने जज़्बातों को मारकर ताकत बनाई जाती है।
Ayesha हर चीज़ ध्यान से सुनती। हर बात को अपने भीतर समेटती, लेकिन जब Vihaan की नजरें हटतीं, तब उसके होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान उभरती जैसे वो किसी और ही खेल की तैयारी में हो।
एक रात
Vihaan ने Ayesha से पूछा,
"अगर तुम सच में ये सब सीख रही हो… तो एक सौदा करते हैं।"
Ayesha ने आंखें उठाईं।
"सौदा?"
Vihaan उसकी तरफ झुका और धीमे से बोला,
"तुम मुझे अपना सबसे बड़ा राज बताओ… और मैं तुम्हें वो सिखाऊँगा, जो आज तक किसी को नहीं सिखाया।"
Ayesha कुछ पल चुप रही, फिर बोली,
"ठीक है… लेकिन पहले तुम मुझे वो बताओ जिससे तुम डरते हो।"
Vihaan का चेहरा बदल गया। उसकी आंखों में पहली बार एक हलकी सी चौंकाहट थी।
"मैं डरता नहीं।"
Ayesha धीरे से मुस्कराई।
"फिर उस आदमी का नाम क्यों नहीं लेते… जिसने तुम्हारे पिता को धोखा दिया था?"
Vihaan की आंखों में गुस्से की एक परत चढ़ गई। उसकी सांसें भारी होने लगीं।
अगले ही पल उसने Ayesha की बाँह पकड़ी और उसकी आंखों में सीधा देखा,
"अब तुम मेरी कमजोरियों तक पहुंच रही हो… और अगर तुमने एक भी कदम गलत रखा… तो तुम खुद को नहीं पहचान पाओगी।"
Ayesha ने अपनी आँखें उससे नहीं हटाईं।
उसके लहजे में वो ठंडा आत्मविश्वास था, जो कभी Vihaan की पहचान हुआ करता था।
"शायद यही सीखना चाहती थी मैं डर पैदा करना।"
Ayesha और Vihaan के बीच अब सिर्फ गुरुकुल और शिष्य का रिश्ता नहीं था।
अब यह एक युद्धभूमि थी जहाँ एक सिखा रहा था, और दूसरा सीखते-सीखते अपना ही हथियार बना रहा था।
अगला कदम किसका होगा? कौन पहले हमला करेगा?
कमरे में रौशनी बहुत कम थी।
Vihaan उस कुर्सी पर बैठा था जहाँ से Ayesha को बिना एक शब्द कहे भी पढ़ा जा सकता था। उसकी आंखें अब सिर्फ एक प्रेमी की नहीं एक शिकारी की थीं, जो शिकार के हर हरकत को देखता है… और उसी से उसकी अगली चाल बनाता है।
"आज तुमने क्या सीखा?" Vihaan ने पूछा।
Ayesha शांत रही। उसकी नजरें सीधे थीं। अब उसमें वो डर नहीं था, जो पहले होता था।
"सीखा कि जब तुम चुप होते हो… तभी सबसे ज्यादा खतरनाक होते हो," उसने जवाब दिया।
Vihaan मुस्कुराया। वो जवाब उसकी उम्मीद से बेहतर था।
"गुड," उसने कहा, "अब मैं जानना चाहता हूं… अगर तुम्हें किसी अपने को धोखा देना पड़े ताकत पाने के लिए, क्या करोगी?"
Ayesha का चेहरा थोड़ी देर के लिए सख्त हो गया।
"जो इंसान दिल तोड़ने में माहिर हो, वो भरोसा भी गहराई से करता है… इसलिए सबसे बड़ा धोखा वहीं से शुरू होता है।"
Vihaan ने सिर झुका लिया।
"तुम बहुत तेज हो रही हो, Ayesha… बहुत तेज। शायद मैं थोड़ा देर से समझा कि तुम खेल सीखने नहीं, खेल बदलने आई हो।"
Ayesha मुस्कुराई… लेकिन वो मुस्कान Vihaan से छुप नहीं सकी।
दूसरी ओर
फार्महाउस का गुप्त कॉरिडोर
Riyan देर रात एक पुराने तहखाने में कुछ फाइलें और एक डिवाइस छुपाकर निकल रहा था। Ayesha को अब सिर्फ दिमागी तौर पर नहीं, तकनीकी मदद की भी जरूरत थी ताकि फार्महाउस के सीक्रेट रास्तों की पूरी जानकारी उसके पास रहे।
“बस थोड़ा और,” Riyan बुदबुदाया। “फिर वो इसे खत्म कर पाएगी।”
लेकिन तभी पीछे से एक आहट आई।
“छुपा क्या रहे हो, Riyan?” ये Tara की आवाज़ थी।
वो अब वापस आ चुकी थी लाल साड़ी, माथे पर छोटी बिंदी, लेकिन आंखों में एक आग। वो अब किसी पुराने प्यार की नहीं, आत्मा पर हक जताने वाली दुश्मन की तरह आई थी।
“Tara… तुम्हें यहां नहीं होना चाहिए…” Riyan घबराया।
Tara ने उसकी तरफ झुककर कहा,
“अब मैं हमेशा यहीं रहूंगी। और इस बार Vihaan सिर्फ मेरा होगा… चाहे किसी की भी लाश पर क्यों ना चलना पड़े।”
अगले दिन
Vihaan ने Ayesha को बुलवाया।
“आज एक खास मेहमान मिलने आ रहा है,” उसने कहा।
Ayesha जैसे ही ड्राइंग रूम में पहुंची… उसकी नजर सीधे उस लड़की पर पड़ी Tara।
कपड़े, स्टाइल, चाल सब कुछ शाही और जानलेवा।
Tara ने उसे ऊपर से नीचे देखा, फिर कहा
“तो तुम हो… जिसने मेरे Vihaan को बदल दिया। Cute… पर बहुत temporary।”
Ayesha ने पहली बार बिना पलक झपकाए जवाब दिया
“जो चीज़ें स्थायी हो जाएं, वो कब्र बन जाती हैं। मैं सिर्फ आग हूं जो जलाएगी, दफन नहीं होगी।”
Tara की आंखें सिकुड़ गईं।
Vihaan चुपचाप ये टकराव देख रहा था उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी।
शायद यही वो लड़ाई थी जिसका उसे इंतज़ार था।
ek request 🙏
ap log padh ke chlge jate ho na koi rating deta hai na comment karta hai aj agar comment nahi aye toh mein ye novel ka chapter nahi dugi please thodi si daya khao aur comment aur Rating detw jao itna toh kar hi sakte ho mein apke liye itni mahent karti hu aur ap itna kar do please request
apki pyari aur cute writer 😁
रात की चुप्पी को अगर कोई चीर सकता था, तो वो सिर्फ Vihaan Malhotra की चालाक मुस्कान थी
Farmhouse की दूसरी मंज़िल का वो कमरा जहाँ किसी को जाने की इजाज़त नहीं थी वहीं बैठा था Vihaan, अकेला। कमरे की दीवार पर लगे स्क्रीन पर दर्जनों कैमरों की फीड चल रही थी। हर कोने की निगरानी, हर हलचल की नज़र… और उन्हीं में से एक कैमरा दिखा रहा था Ayesha अपने कमरे में बैठी एक किताब के पन्नों में कुछ लिख रही थी।
"So predictable..." Vihaan की आवाज़ इतनी धीमी थी कि वो हवा से भी हल्की लग रही थी। उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे स्क्रीन के सामने बैठे हुए टेबल पर थिरक रही थीं, जैसे शिकार को फँसाने वाला शिकारी अपने जाल की डोरियों को छू रहा हो।
Ayesha को लगा था, वो चालाकी से बच रही है। उसे लगा, वो अब धीरे-धीरे Vihaan को manipulate कर रही है। उसे ये भी लगने लगा था कि वो उससे सीखकर, उसे हराकर, किसी दिन इस जगह से भाग जाएगी।
लेकिन असल में... जो कहानी वो अपने दिमाग में गढ़ रही थी, उसकी स्क्रिप्ट का लेखक कोई और था। और वो था Vihaan Malhotra।
तीन दिन पहले:
Ayesha ने Vihaan से कहा था, "मुझे तुमसे कुछ सीखना है... कैसे सब पर काबू पाया जाता है।"
Vihaan चौंका नहीं था। उसने सिर्फ एक हल्की सी मुस्कान दी थी लेकिन वो मुस्कान मासूमियत की नहीं, बल्कि एक गहरे षड्यंत्र की छाया थी। उसी पल उसने फैसला कर लिया था अब खेल खुलेआम नहीं, बल्कि अंदर ही अंदर होगा। Ayesha अब उसकी student नहीं, एक pawn बनने जा रही थी।
आज:
Ayesha को लगा, वो हर पल Vihaan से कुछ नया सीख रही है। उसकी आंखों की भाषा, उसके चलने की चाल, उसकी सांसों में छिपे इशारे सब कुछ जैसे वो absorb कर रही थी।
लेकिन उसे नहीं पता था Vihaan जानबूझकर वही दिखा रहा था, जो वो दिखाना चाहता था। वो उसके हर सवाल, हर जवाब, हर "हाँ" और हर "नहीं" को design कर चुका था।
एक सुबह Ayesha ने Riyan को फार्महाउस की पिछली सुरंगों की बात छेड़ी। Riyan डर गया था, लेकिन फिर उसने सिर झुकाकर Ayesha को कहा था, "अगर आप चाहें तो... मैं रास्ता दिखा सकता हूँ।"
ये सब Vihaan देख रहा था। उसी वक्त surveillance रूम में बैठकर उसने एक बटन दबाया और एक फोन vibrate हुआ Tara का।
Tara वही लड़की जो बाहर से Vihaan की ex लगती थी, लेकिन असल में उसका सबसे बड़ा weapon थी।
"Phase two शुरू करो," Vihaan ने कहा।
Tara मुस्कुराई, "Ayesha अब खुद को बहुत स्मार्ट समझ रही है।"
"Let her. जब तक वो जीतती हुई महसूस कर रही है, हम उसके हर move पर control कर सकते हैं।"
Ayesha अब पूरा प्लान बना चुकी थी। एक हफ्ते बाद फार्महाउस में एक charity party थी जिसमें कई बाहर के लोग आने वाले थे। उसी दिन, उसी रात सुरंग के रास्ते भागने का प्लान था।
रोज़ रात को वो diary में छोटे-छोटे नक्शे बनाती, चाबी की जगहें लिखती, कैमरों की टाइमिंग नोट करती। Riyan से धीरे-धीरे इशारों में बात होती। सब कुछ परफेक्ट लग रहा था।
लेकिन जो वो नहीं जानती थी वो diary असल में Ayesha की नहीं रही… वो अब Vihaan की डायरी बन चुकी थी। क्योंकि Ayesha के कमरे की दीवार में लगा एक पतला सा one-way glass उसके हर पल का गवाह था।
Vihaan रोज़ रात उसी दीवार के पीछे खड़ा होकर उसके चेहरे के भाव, उसकी आँखों में उभरती उम्मीद, और उसके होंठों पर फिसलती मुस्कान देखता… और अंदर ही अंदर हँसता।
एक शाम, जब Ayesha ने Vihaan से पूछा, "अगर मैं ये सब सीख रही हूँ… तो क्या मैं कभी तुम्हें हरा पाऊँगी?"
Vihaan ने हल्के से जवाब दिया, "अगर कभी तुमने ये सोचना शुरू कर दिया कि तुम जीत रही हो… समझो मैं तुम्हें वहीं चाहता था।"
Ayesha थोड़ी देर चुप रही, फिर मुस्कुराकर बोली, "तुम अब डरते नहीं हो मुझसे?"
Vihaan ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "मैं सिर्फ उनसे डरता हूँ जो मेरे level से ऊपर सोचते हैं… और तुम अभी training में हो।"
Ayesha के चेहरे की मुस्कान हल्की पड़ी, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वो सोच रही थी वो जितनी गहराई में उतर रही है, उतनी ही शक्ति पा रही है।
लेकिन उसे नहीं पता था वो गहराई की खाई असल में Vihaan ने खुद बनाई थी।
Vihaan एक फाइल खोलता है जिसमें कई तस्वीरें हैं Ayesha की, Riyan की, सुरंग के नक्शे की, और... एक medical रिपोर्ट की।
रिपोर्ट में लिखा था: "Ayesha Kapoor Under mental stress. Subject is showing patterns of emotional disassociation. Can be molded."
Vihaan ने फाइल बंद की और धीरे से कहा "तुम्हारा दिमाग अब मेरा territory है, Ayesha… और अब असली खेल शुरू होगा।"
कैमरा zoom out करता है और कमरे की दीवार पर जलती screen पर Ayesha अपनी diary में आखिरी वाक्य लिख रही होती है:
"बस एक मौका और… फिर मैं इस पिंजरे से आज़ाद हो जाऊँगी।"
लेकिन उस वाक्य के ठीक नीचे किसी और की लिखावट में एक और लाइन उभरती है
"या शायद… यही तुम्हारा असली पिंजरा है। V"
ek request 🙏
ap log padh ke chlge jate ho na koi rating deta hai na comment karta hai aj agar comment nahi aye toh mein ye novel ka chapter nahi dugi please thodi si daya khao aur comment aur Rating detw jao itna toh kar hi sakte ho mein apke liye itni mahent karti hu aur ap itna kar do please request
apki pyari aur cute writer 😁
रात का तीसरा पहर था। फार्महाउस पर अजीब सन्नाटा पसरा हुआ था। हवाओं में नमी थी और कमरे की दीवारों पर हल्की पीली रोशनी ठहर रही थी।
Ayesha अभी भी अपने कमरे में बैठी थी Vihaan के दिए हुए शब्दों को याद करती हुई।
"तुम अब सीखने के काबिल हो… पर याद रखो, हर सीख की एक कीमत होती है।"
उसकी आंखें अब डर से नहीं, उत्सुकता से चमक रही थीं।
लेकिन तभी… दरवाज़ा धीरे से खुला। कोई दस्तक नहीं बस एक साया।
Vihaan
काले कपड़ों में, उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं। जैसे किसी मिशन पर निकला हो।
“उठो,” उसने कहा।
Ayesha ने नज़रें उठाईं कोई सवाल नहीं पूछा।
वो अब Vihaan की चालों को समझने की कोशिश में इतनी गहराई तक जा चुकी थी कि डर अब सवालों से बाहर हो गया था।
“कहाँ?” Ayesha ने बस इतना पूछा।
“जहाँ से तुम्हारी कहानी शुरू हुई थी… और मेरी भी।”
फार्महाउस से बाह
Vihaan ने खुद गाड़ी चलाई तेज़, शांत, बिना कोई म्यूज़िक। Ayesha बगल में बैठी, खिड़की के बाहर अंधेरे को देख रही थी।
एक घंटे की ड्राइव के बाद, गाड़ी एक सुनसान पहाड़ी इलाके में रुकी।
नीचे एक पुराना, टूटा-फूटा warehouse था सड़कों से छुपा हुआ, जंगलों में खोया हुआ।
Ayesha ने पहली बार Vihaan की आंखों में घबराहट देखी नहीं, ये डर नहीं था… ये आग थी।
जैसे वो खुद को रोक रहा हो।
“Vihaan… ये क्या जगह है?”
Vihaan ने दरवाज़ा खोला और कहा,
“वो जगह… जहाँ तुम्हारा मासूम दिल कभी सोच भी नहीं सकता था कि इंसान कैसे टूटते हैं।”
Warehouse में घुसते ही अंधेरा था। Vihaan ने एक बटन दबाया dim लाइट्स जलीं।
दीवारों पर तस्वीरें थीं।
एक-एक फोटो में एक ही चेहरा:
Vihaan का पिता — एक ताकतवर बिज़नेस मैन, जिसके चेहरे पर हर बार एक अलग इमोशन था।
“यही था मेरा सब कुछ,” Vihaan बोला।
“पर इस दुनिया ने उसे तोड़ दिया… उन्हीं लोगों ने जिन्हें वो सबसे ज़्यादा मानता था।”
Ayesha ने तस्वीरों को देखा, और फिर एक डेस्क पर रखी एक फाइल की ओर इशारा किया।
Vihaan ने फाइल उठाई और Ayesha के सामने फेंकी।
“इसमें हर नाम है जिसने मेरे पिता को बरबाद किया। और उस लिस्ट में तुम्हारे पिता का नाम भी है।”
Ayesha की सांसें रुक गईं।
“मेरे… पिता?”
“हाँ,” Vihaan का चेहरा ठंडा हो गया।
“तुम्हें लगता था तुम सिर्फ मेरी कैद हो… नहीं, Ayesha तुम मेरी सजा हो, मेरी मोहरा नहीं… मेरा मकसद हो।”
Ayesha की आंखें भर आईं confusion, guilt, डर सब मिलकर उसका दम घोंटने लगे।
“मैंने कभी नहीं सोचा…”
“तुमने नहीं, लेकिन तुम्हारे खून ने किया था,” Vihaan ने कहा।
और फिर उसने दीवार के पीछे एक दरवाज़ा खोला।
उस कमरे में एक बुज़ुर्ग आदमी कैद था झुर्रियों भरा चेहरा, थकी आंखें।
“ये… तुम्हारे पिता के सबसे पुराने पार्टनर हैं इन्होंने सब देखा था… और सब बताया मुझे।”
Ayesha का पूरा शरीर सुन्न हो गया।
“तुमने मुझे इसलिए नहीं रोका Vihaan… क्योंकि तुम मुझे सिखा रहे थे कि कैसे मुझसे ही मेरी ज़िंदगी छीनी जाए?”
Vihaan ने उसकी तरफ देखा पहली बार उसकी आंखों में कोई नर्मी नहीं, सिर्फ असली चेहरा।
"मैं तुम्हें वो सब सिखा रहा था… ताकि जब मैं तुम्हें खत्म करूं, तब तुम्हारे पास कोई बहाना न हो।"
Ayesha की आंखों से एक आँसू गिरा और साथ ही उसके भीतर कुछ टूट गया… या फिर जन्म लिया।
Vihaan ने धीरे से Ayesha की ठोड़ी उठाई और बोला
"खेल खत्म नहीं हुआ, Ayesha… ये तो बस शुरुआत है। अब तू मेरा सबसे बड़ा हथियार है… या सबसे बड़ा खतरा। ये तुझ पर है।"
Ayesha अब रो नहीं रही थी।
उसने सिर्फ एक शब्द कहा
“ठीक है।”
Vihaan पीछे मुड़ा, अंधेरे में चला गया।
अंधेरे warehouse से लौटने के बाद Vihaan की आंखों में एक अलग ही चमक थी वो चमक, जो किसी शिकारी की होती है जब उसे शिकार को धीरे-धीरे मारना हो… खेलते हुए।
Ayesha अब फार्महाउस के उसी पुराने हिस्से में लौटा दी गई थी लेकिन अब माहौल अलग था।
उसके कमरे की दीवारों पर हल्की गुलाबी रौशनी थी, चारों तरफ महंगे फूल, रेशमी चादरें, और एक गहरी खुशबू… जो रोमांस की नहीं, धोखे की थी।
सुबह
Ayesha की आंखें खुलीं तो सामने Vihaan था बिस्तर के सिरहाने बैठा, उसे देखते हुए।
"नींद कैसी थी?" उसने पूछा, आवाज़ में एक अजीब सी मिठास थी।
Ayesha ने पलंग से उठने की कोशिश की, लेकिन Vihaan ने उसका हाथ थाम लिया।
"आज से तुम मेरी रानी हो, Ayesha… लेकिन रानी वही होती है जो राजा के इशारों पर चले।"
Ayesha का गला सूख गया। उसे Vihaan की आँखों में कुछ ऐसा दिखा जो पहले कभी नहीं था प्यार नहीं… एक शिकार की भूख।
अचानक
Vihaan ने उसके गले में हाथ डाला और उसके बहुत क़रीब आ गया।
"डर लग रहा है?" उसने फुसफुसाकर पूछा
Ayesha ने जवाब नहीं दिया। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं।
Vihaan की उंगलियाँ उसकी गर्दन से उसकी पीठ तक फिसलीं। वह कांप उठी।
"ये सिर्फ़ शुरुआत है…" Vihaan ने कहा, "मैं तुम्हें प्यार में नहीं फँसाना चाहता… मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी जरूरत बन जाओ पर अपने इज़्ज़त की कीमत पर।"
Ayesha का दिल धड़कने लगा तेज़… तेज़… जैसे अभी बाहर आ जाएगा।
Vihaan ने उसे अपनी बाहों में घसीटा बिना चेतावनी, बिना सहमति, उसकी ज़ुबान में एक ही बात थी: "तुम मेरी हो, और अब तुम्हारी हर चीज़ भी।"
Ayesha ने खुद को बचाने की कोशिश की, लेकिन Vihaan की पकड़ लोहे जैसी थी।
पर वो कोई जबरदस्ती नहीं कर रहा था नहीं, Vihaan और चालाक था।
वो हर बार बस इतना करता, कि Ayesha के दिमाग में ये डर बैठ जाए कि अगली बार कुछ भी हो सकता है।
वो उसके इतने करीब आता… कि Ayesha कांप जाती, लेकिन फिर…
Vihaan मुस्कराता, दूर चला जाता।
"मैं तुम्हें तोड़ूंगा Ayesha… धीरे-धीरे… तुम्हारे अपने ही इमोशंस से… ताकि जब मैं तुम्हारे करीब आऊँ, तुम खुद को सौंप दो डर से नहीं, हार से।"
रात
Ayesha अपने कमरे में बैठी थी, दरवाज़ा बंद, लेकिन दिल में हलचल।
हर बार जब Vihaan उसके करीब आता था, Ayesha सोचती क्या अब…?
पर हर बार Vihaan रुक जाता। वो चाहता था कि Ayesha खुद उसके पास आए खुद को उसके हवाले कर दे… लेकिन डर और उलझन के बीच।
ये कोई इश्क़ नहीं था ये Vihaan का नया खेल था।
और Ayesha उस खेल की प्यादे से भी छोटी मोहर बन चुकी थी।
एक रात
जब Ayesha बाथरूम में थी, शीशे में उसने अपनी आंखों में वो लड़की नहीं देखी जो कुछ दिन पहले तक जिंदा थी।
उसने धीरे से कहा,
"मैं हार नहीं मानूंगी… पर कब तक?"
उसी पल पीछे से Vihaan आया
उसने Ayesha के बालों को छुआ और धीमे से फुसफुसाया:
"खेल खत्म नहीं हुआ, रानी… अब तो असली शुरुआत है।"
Ayesha कांप गई वो पहली बार वाकई डर गई थी।