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Obbsession of Kaynaat

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कायनात एक विदेश में पली बड़ी लड़की इंडिया आने पर जिसे मुश्किलों का सामना करना पड़ा और वह एक ऐसी आत्मा का जुनून बन गई, जो उसके पीछे हाथ धोकर पड़ गए थी तो कौन थी यह आत्मा और कौन थी कायनात! जानने के लिए पढ़िए दोस्तों ऑब्सेशन of आत्मा only story m...

Total Chapters (104)

Page 1 of 6

  • 1. Obbsession of Kaynaat - Chapter 1

    Words: 2014

    Estimated Reading Time: 13 min

    ठाकुरगंज गाँव में आज फिर एक जवान लड़की की लाश मिली। जैसे ही गाँव वालों को उस लड़की की लाश मिली, गाँव में बुरी तरह रोना-पीटना शुरू हो गया। क्योंकि उस लड़की की लाश केवल लाश नहीं थी, बल्कि उसके कुछ संवेदनशील अंग भी गायब थे!

    सभी लोगों ने फिर बातें बनाना शुरू कर दिया कि एक और लड़की जिस्म की प्यासी आत्मा के कब्ज़े में आ गई थी, जिसकी वजह से उसका ऐसा हाल हुआ था। लड़की के माता-पिता अपना सिर पटक-पटक कर रो रहे थे।

    आस-पास के गाँव के लोग हैरानी से उस लड़की की आधी-अधूरी लाश को देख रहे थे। यह उस गाँव की कोई पहली या दूसरी लाश नहीं थी; यह उस गाँव की पूरी 51वीं लाश थी। लड़की के माँ-बाप सिर पटक-पटक कर रो रहे थे और बोलते हुए जा रहे थे, "आखिर कब इस गाँव से लड़कियों का मरना बंद होगा? कब तक हमारी जवान बेटियाँ उस आत्मा की शिकार होती रहेंगी? आखिर कब तक?" ऐसा कहकर वे बुरी तरह रोने लगे थे।

    वहाँ मौजूद सभी की आँखों में आँसू थे। तभी अचानक गाँव के मुखिया वहाँ आ गए और जोरों से चिल्लाकर बोले, "यह क्या मीटिंग लगा रखा है तुम लोगों ने? जब हमने साफ-साफ मना किया हुआ है कि नदी के उस पार वाले जंगलों में कोई नहीं जाएगा, तो क्यों अपनी जवान लड़कियों को वहाँ भेजते हो? क्या तुम लोग नहीं जानते वहाँ जिस्म की प्यासी आत्मा रहती है?"

    "जो जवान लड़कियों को देखते ही पागल हो जाती है। आज तक हम कितने सारे बाबाओं से भी धागे-ताबीज करवा चुके हैं, लेकिन कोई भी उसके जिस्म की प्यासी आत्मा का इलाज नहीं कर पाया है।"

    "क्या तुम लोग नहीं जानते कुंवारी लड़कियाँ उस आत्मा की कितनी बड़ी कमजोरी हैं? तो क्यों अपनी लड़कियों को नदी पर पानी भरने के लिए भेजते हो? क्यों? क्यों?" ऐसा कहकर गाँव के मुखिया ने सब पर चिल्लाना शुरू कर दिया था, और किसी के मुँह से चूँ तक की आवाज़ नहीं निकल रही थी।

    मुखिया जी का उस गाँव में काफी ज़्यादा रौब था। पूरे गाँव में हर कोई मुखिया जी से डरा करता था। इसीलिए किसी की भी हिम्मत नहीं होती थी कि मुखिया जी के सामने अपना मुँह खोल सके।

    जल्दी ही मुखिया जी ने सभी रीति-रिवाज़ों के साथ पूरे तामझाम से उस लड़की का अंतिम संस्कार करवा दिया था और एक बार फिर पूरे गाँव में यह चेतावनी दी थी कि अब कोई भी उस नदी के पार वाले जंगल में नहीं जाएगा और ना ही कोई अपनी जवान लड़की को उस साइड भेजेगा।

    यह बात कहीं ना कहीं पूरे गाँव वाले जानते थे, लेकिन कुछ गाँव की लड़कियाँ, जो इस बात पर विश्वास नहीं किया करती थीं, यह जानने के लिए कि क्या वाकई नदी के पार में कुछ ऐसा है जो घातक है, वहाँ चली जाया करती थीं, और वहाँ से उनकी सिर्फ़ और सिर्फ़ लाश ही वापस आया करती थी।

    जल्दी ही पूरे गाँव में इस बात की मुनादी करवा दी गई थी कि एक और लड़की की लाश मिली है, और अब उसे गाँव में उस नदी के पार कोई नहीं जाएगा।

    लड़की के माँ-बाप उसे जलाने के बाद अपने घर आ गए थे। अब उनके पास रोने-पीटने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था, क्योंकि उनकी बेटी अब वापस नहीं आने वाली थी। उन दोनों बूढ़े माँ-बाप का इकलौता सहारा सिर्फ़ और सिर्फ़ उनकी बेटी थी। हमेशा से उसके पिताजी ही नदी के पार पानी भरने के लिए जाया करते थे, लेकिन उनकी तबीयत अचानक खराब होने की वजह से उसे लड़की को पानी लेने के लिए जाना पड़ा था, और उसके मन में भी यह बात थी कि नदी के पास ऐसा कुछ नहीं होने वाला है।

    लोगों ने सिर्फ़ फ़ालतू की बातें बना रखी हैं।

    यह सोचते हुए वह लड़की पानी भरने के लिए नदी के पार चली गई थी,

    और वहाँ जाकर वह जिस्म की प्यासी आत्मा का शिकार हो चुकी थी।

    वहीं दूसरी ओर, मुखिया जी अपने बड़े से शानदार महल में बैठे हुए थे। क्योंकि पूरे गाँव में अगर किसी का बड़ा ही खूबसूरत महल था, वह किसी और का नहीं, मुखिया जी का था।

    लेकिन किसी को भी इस बात के बारे में दूर-दूर तक कोई अंदाज़ा नहीं था कि असल में वह मुखिया जी का महल नहीं था। मुखिया जी के मालिक मेवाड़ी परिवार हुआ करता था। वे अपने गाँव का बंगला, ज़मीन, सब कुछ मुखिया जी की देखरेख में छोड़कर हमेशा के लिए शहर में जा बसे थे, जहाँ वे देश के नंबर वन एचआरएम ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ के मालिक थे।

    मुखिया जी के मन में यह बात थी कि वे जय प्रकाश जी को इतना खुश कर देंगे कि वे कभी भी गाँव आने की नहीं सोचेंगे। क्योंकि अगर जिस दिन जय प्रकाश जी गाँव आ गए अपने बेटे को लेकर, तो मुखिया जी का उस दिन सड़क पर आ जाना तय था।

    मुखिया जी ने अपनी ज़िंदगी के पूरे 18 साल उस महल और जय प्रकाश जी की प्रॉपर्टी की देखरेख में दिए थे।

    तो किसी भी कीमत पर वह प्रॉपर्टी को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे। इसीलिए जब भी किसी लड़की की मौत हुआ करती थी, तो वह जिस्म की प्यासी आत्मा के नाम पर गाँव वालों के मन में एक बार फिर बहुत ही ज़्यादा रौब जमाया करते थे।

    जिसकी वजह से काफी हद तक गाँव वाले मुखिया जी से डरा करते थे। किसी को भी इस बात का दूर-दूर तक कोई एहसास नहीं था कि मुखिया जी प्रॉपर्टी पर कुंडली मारे बैठा हुआ था; वह प्रॉपर्टी उसकी नहीं थी। वह प्रॉपर्टी दूर शहर में रहने वाले मेवाड़ी परिवार की थी।

    औलाद के नाम पर जयशंकर जी की ज़िंदगी में सिर्फ़ उनका एक बेटा था और दो पोते थे; बड़े पोते का नाम राज था और छोटे पोते का नाम करण था।

    लेकिन मुखिया जी को उन्होंने यह बात अच्छी तरह से बता रखी थी कि तुम्हें सिर्फ़ उनकी गाँव की प्रॉपर्टी को देखने के लिए रखा गया है, तो तुम कभी भी अपने आप को मालिक समझने की भूल मत करना।

    लेकिन उस बड़ी सी हवेली में रहने के बाद मुखिया जी खुद को वहाँ का मालिक ही समझने लगे थे,

    और इसीलिए सभी के मन में मुखिया जी के लिए खौफ़ बना हुआ था। इतना ही नहीं, गाँव का बच्चा-बच्चा भी मुखिया जी से डरा करता था।

    क्योंकि मुखिया जी ने अपने नाम का खौफ़, अपने नाम का रौब अच्छी तरह से पूरे गाँव वालों पर लगा रखा था।

    जय प्रकाश जी हर 15 दिन में मुखिया जी से अपनी प्रॉपर्टी, अपने महल की खैर-खबर ले लिया करते थे।

    मुखिया जी कुछ सोच ही रहे थे कि तभी उनकी लाडली बेटी उनके पास आ गई। मुखिया जी की बेटी का नाम रियाशी था।

    उस गाँव के मुखिया ने शुरू से ही एक सपना देखा था कि वह अपनी बेटी रियाशी की शादी मेवाड़ी परिवार के बड़े बेटे के साथ करवाएँगे,

    और हमेशा-हमेशा के लिए जो उनकी गाँव की प्रॉपर्टी है, वह उन्हीं की हो जाएगी।

    यह सपना सजाए हुए थे,

    इसलिए बचपन से ही उन्होंने अपनी बेटी रियाशी की आँखों में सिर्फ़ राज का सपना संजोया था,

    और उसके मन में सिर्फ़ और सिर्फ़ मेवाड़ी परिवार के बड़े बेटे राज के लिए ही ज़ज़्बात डाले थे।

    और कहा था कि तेरी शादी सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके बड़े बेटे राज से होगी।

    लेकिन राज की शादी का इनविटेशन कार्ड अपने डेस्क पर देखने के बाद वह दोनों बाप-बेटी गुस्से से लाल-सुर्ख होने लगे थे।

    लेकिन अब उनके पास वहाँ जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था।

    और रियाशी यह देखना चाहती थी कि आखिरकार किस लड़की ने उसका बचपन का प्यार और उसके ख़्वाब छीन लिए थे।

    वहीं दूसरी ओर, लंदन की एक बड़ी ही प्यारी सी खूबसूरत लड़की के साथ राज की शादी हो रही थी। उस लड़की का नाम कुछ और नहीं, बल्कि कायनात था।

    कायनात बहुत ही ज़्यादा सुलझी हुई लड़की थी। भले ही वह बचपन से विदेश में पली-बड़ी थी, लेकिन उसने कभी भी अपने आदर्शों को नहीं छोड़ा था। वह थोड़ी सी चुलबुली सी और हाँ, थोड़ी सी डरपोक सी थी, लेकिन बहुत क्यूट थी। विदेश में हर कोई उसके साथ फ़्रेंडशिप करना चाहता था, उसे प्यार करना चाहता था,

    लेकिन कभी भी कायनात ने किसी को घास तक नहीं डाली थी। हर रोज़ न जाने कितने प्रपोज़ल वह ठुकराती थी, कम से कम डेली 3-4 लड़के उसे हर रोज़ प्रपोज़ किया करते थे।

    एक बार तो कायनात के पीछे एक ऐसा लड़का लग गया था जब कायनात अपने कॉलेज से घर लौट रही थी।

    तभी अचानक से एक बाइक सवार लड़का उसके सामने आया, उसने अपनी बाइक को आलमोस्ट कायनात के बिल्कुल पैरों के पास ही रोक दी थी। और खुद झुककर उससे मोहब्बत का इज़हार किया था।

    कायनात उसके इस तरह के एक्शन से काफी ज़्यादा हैरान थी और उसकी ओर देखकर कहने लगी थी, "तुम कौन हो? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस तरह से मेरे सामने बर्ताव करने की? और वैसे भी, मुझे प्यार-मोहब्बत में किसी भी तरह का कोई यकीन नहीं है, तो तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम यहाँ से अभी और इसी वक्त चले जाओ।"

    लेकिन अचानक से वह लड़का थोड़ा सा आगे बढ़ा था और कायनात के कान के पास जाकर बोला था, "तुम मुझे चाहकर भी अपनी ज़िंदगी से नहीं निकाल पाओगी, तुम मुझे अपनाओ या ना अपनाओ, लेकिन तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी हो, सिर्फ़ मेरी।"

    ऐसा कहकर अचानक से वह लड़का बड़ी ही फ़ास्ट स्पीड से अपनी बाइक तेज़ी से भगाता हुआ वहाँ से चला गया था।

    अंजान लड़के की इस तरह की हरकत से कायनात काफी ज़्यादा हैरान थी, क्योंकि उसने आज से पहले कभी उसे लड़के को नहीं देखा था, और वह लड़का अचानक से एक हवा के झोंके की तरह आया था और उसी तरह से गायब भी हो गया था।

    आज तक कितने ही लड़के कायनात को प्रपोज़ करते आये थे, लेकिन यह सबसे अलग था।

    कायनात की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था और उसे इस बात को भूलने में काफी समय लगा था, क्योंकि उस दिन के बाद वह लड़का उसे कभी भी दिखाई नहीं दिया था।

    जल्दी ही अपनी एजुकेशन कम्प्लीट करने के बाद कायनात इंडिया लौट आई थी,

    लेकिन इंडिया में उसका एक अलग ही तरह का ख़बर इंतज़ार कर रही थी। वहाँ पर आकर उसे पता चला कि उसके पिता ने अपनी एक बिज़नेस डील को क्रैक करने के लिए अपनी बेटी की शादी मेवाड़ी परिवार के बड़े बेटे और एचआरएम ग्रुप के होने वाले चेयरमैन के साथ तय कर दी थी,

    क्योंकि इसमें कहीं ना कहीं उनके बिज़नेस का बहुत ही बड़ा फ़ायदा होने वाला था।

    अब कायनात वैसे भी किसी को पसंद नहीं किया करती थी।

    और उसने कभी अपने पापा की कोई बात नहीं टाली थी,

    लेकिन आज जैसे ही उसे शादी का प्रस्ताव मिला, तो उसे उस लड़के की याद अचानक से आ गई थी जिस लड़के ने उसे विदेश में प्रपोज़ किया था,

    और कहा था कि चाहे वह कहाँ भी, कहीं भी रह ले, लेकिन वह सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी रहेगी।

    यह याद आते ही कायनात का गला अचानक से सुखने लगा था। उसे कुछ अजीब सा लगा था। हालाँकि वह लड़का उस दिन के बाद उसे दिखाई नहीं दिया था,

    लेकिन आज यूँ शादी के मौके पर उसकी याद आ जाना कायनात को काफ़ी अलग लगा था।

    लेकिन फ़िलहाल जब उसके पिता ने एक बार और कायनात को शादी के बारे में पूछा, तो कायनात के पास और कोई रास्ता नहीं था

    और मना करने का कोई कारण भी नहीं था, तो

    इसलिए उसने राज से, यानी कि मेवाड़ी परिवार के बड़े बेटे से शादी करने के लिए हाँ कह दी थी।

  • 2. Obbsession of Kaynaat - Chapter 2

    Words: 1282

    Estimated Reading Time: 8 min

    कायनात के पास और कोई रास्ता नहीं था, और मना करने का कोई कारण भी नहीं था। इसलिए उसने राज से, मेवाड़ी परिवार के बड़े बेटे से, शादी करने के लिए हाँ कह दी। कायनात के हाँ कहते ही दोनों घरों में शादी की तैयारियाँ जोरों-शोरों से होने लगीं।

    जल्दी ही कायनात और राज की हल्दी का दिन आ गया। कायनात पहली बार राज से अपनी हल्दी के फंक्शन में मिली। पहली ही मुलाक़ात में राज कायनात को काफ़ी अच्छा लगा।

    राज ने बड़े ही विनम्र तरीके से कायनात से बातें कीं, और उसे पूरी तरह से सहज महसूस कराने की कोशिश की। राज का इतनी तमीज़ से बात करना कहीं न कहीं कायनात के दिल को छू गया।

    इसलिए उसने भी दिल से राज को कबूल कर लिया। राज के परिवार में उसके दादाजी जय प्रकाश, पिता राघव, माँ वंदना, एक छोटी बहन माही, चाचा-चाची और राज का एक छोटा भाई भी था।

    कायनात को सिर्फ़ इतना पता था कि राज का एक छोटा भाई है जिसका नाम करण है, लेकिन वह अपनी पढ़ाई के चलते उनकी हल्दी, मेहँदी और संगीत में नहीं आने वाला था। वह शादी वाले दिन ही आने वाला था।

    राज और कायनात ने अपना हल्दी का फंक्शन बड़े ही मज़े से एन्जॉय किया। धीरे-धीरे हल्दी के साथ मेहँदी और संगीत, सभी फंक्शन लगभग हो चुके थे।

    आज कायनात और राज की शादी का दिन था। एक बहुत ही भव्य शादी आयोजित की गई थी। यह शहर के सबसे अमीर लोगों की बड़ी शादी थी, जिसमें बड़े-बड़े देशी-विदेशी लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

    जल्दी ही कायनात और राज की शादी की रस्में शुरू हो गईं। ठीक उसी वक्त मुखिया जी अपनी बेटियों के साथ शादी में मौजूद थे।

    रियानशी और मुखिया जी ध्यान से, बड़ी ही नफ़रत से, कायनात को देख रहे थे। कायनात की खूबसूरती ऐसी थी कि उसे कोई एक बार देख ले, बस देखता ही रह जाए। रियानशी की आँखों में कायनात की खूबसूरती बुरी तरह चुभने लगी।

    वह मन ही मन उससे बहुत जलने लगी। वह कायनात से बहुत गुस्सा हो चुकी थी और उसने सोच लिया था कि जिस कायनात ने उसकी ज़िन्दगी की सारी खुशियाँ, बचपन से देखे हुए उसके सपनों को, अपने पैरों के नीचे रौंद दिया, वह उसे कभी खुश नहीं रहने देगी।

    लेकिन फ़िलहाल वह शादी में मेहमान के तौर पर आई हुई थी, इसलिए वह किसी को कुछ नहीं कह सकती थी और न ही कोई जोखिम ले सकती थी।

    तभी राज और कायनात फेरों के लिए खड़े हो गए। जल्दी ही उनके फेरे कराए जाने लगे। लगभग सातों फेरे पूरे हो चुके थे और अब बारी थी गले में मंगलसूत्र पहनाने और मांग में सिंदूर भरने की।

    लेकिन सिंदूर भरने और मंगलसूत्र पहनाने की रस्म शुरू होते ही अचानक हॉल में एक अजीब शोर हुआ। लगातार कम से कम २०-२५ बाइकें अचानक धूम-धूम करती हुई वहाँ आ गईं।

    जितने भी लोग शादी हॉल में मौजूद थे, सबका ध्यान उन बाइकों की ओर चला गया। सब पूरी तरह हैरान हो गए।

    तभी राज की छोटी बहन जोरों से चिल्लाई, "वाओ! क्या एंट्री है भाई!"

    क्योंकि कोई और नहीं, राज का छोटा भाई करण वहाँ आया था। करण ने अपने भाई को सरप्राइज़ देने के लिए कम से कम १०० बाइकें, अपने दोस्तों के साथ लाकर, पूरी पार्टी में धूम मचा दी थी।

    कुछ लोगों ने करण के इस तरह के मूव पर उसकी हौसला अफ़ज़ाई की और उसके लिए तालियाँ बजाईं। वहीं कायनात इस बाइक के शोर से थोड़ी परेशान हो गई, क्योंकि यह बाइक का शोर कुछ वैसा ही था जैसा उसे एक बार विदेश में सुनने को मिला था।

    राज की छोटी बहन माही ने जोरों से चिल्लाया, "वाओ! ब्रदर करण!" सभी लोग जोरों से "करण! करण!" चिल्लाने लगे।

    वहीं राज के दादाजी, कायनात के ससुर दादाजी जय प्रकाश, अपनी मूँछों पर ताव देने लगे। उन्हें अपने छोटे पोते की इस हरकत पर बहुत नाज़ था। उनका मानना था कि इतना अमीर लड़का है, अगर पैसे नहीं उड़ाएगा, मौज-मस्ती नहीं करेगा या धूम नहीं मचाएगा तो फिर क्या करेगा? और वैसे भी बड़े घर के लड़कों का यह सब आम होता है। सभी करण की इस एंट्री से ख़ुश थे, लेकिन कायनात को अंदर ही अंदर कुछ अजीब सा लगा।

    तभी अचानक, उन सभी लड़कों ने हेलमेट पहन रखे थे, उनके बीच में से एक बड़ी ही स्टाइलिश, सबसे महँगी बाइक पर बैठे हुए, एक बड़े ही शानदार पर्सनैलिटी वाले करण वहाँ आया।

    जैसे ही करण वहाँ आया और उसने अपनी हेलमेट उठाई, कायनात ने अपने देवर को देखने के लिए जैसे ही अपना घूँघट हल्का सा ऊपर किया, कायनात के चेहरे का रंग उड़ गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके सामने आया हुआ लड़का उसका देवर होगा, और वह वही लड़का होगा जिसने उसे विदेश में प्रपोज़ किया था।

    अभी तक करण की नज़र कायनात पर नहीं पड़ी थी क्योंकि कायनात और राज की शादी हो चुकी थी, इसलिए कायनात के चेहरे पर एक बड़ा सा पर्दा डाला गया था, जो मुँह-दिखाई की रस्म के बाद ही उठाया जाना था।

    करण ने जल्दी ही आगे बढ़कर अपने भाई को ढेर सारी शुभकामनाएँ दीं। सभी ने बड़े-बुज़ुर्गों के पाँव छुए और अपनी बहन माही को उसने हाई-फ़ाइव दिया।

    वह कहने लगा, "कैसी है मोटी? तू ठीक तो है ना? मुझे पूरी उम्मीद है कि तूने अपने भाई को ज़्यादा याद नहीं किया होगा।" ऐसा कहकर वह अपनी बहन से सामान्य बातें करने लगा।

    वहीं कायनात के दिल में कुछ अजीब सी उलझनें पैदा हो गईं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह लड़का अचानक यहाँ कैसे आ सकता है, जो उसे विदेश में दिखाई दिया था।

    तब कायनात ने अपनी सोच को तुरंत नकार दिया कि उसे उस लड़के के बारे में ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए। और वैसे भी उसकी अब शादी हो चुकी है और हो सकता है कि उस वक़्त अपने किसी दोस्त की किसी शर्त के चलते उसने उससे बातें कर दी हों, और उसे प्रपोज़ कर दिया हो। और वैसे भी पूरे दो-ढाई साल हो चुके हैं इस बात को, अब तक तो वह भूल भी चुका होगा।

    लेकिन अब जैसे ही उसे यह पता चलेगा कि मैं इसकी भाभी बन चुकी हूँ, तो हो सकता है कि यह मेरे साथ अच्छी तरह से बातें करेगा, और उस दिन जो इसने बदतमीज़ी की थी उसकी माफ़ी भी मांग लेगा। कहीं न कहीं कायनात ने अपने मन में करण को लेकर एक अलग ही तरह का विचार बना लिया था।

    जल्दी ही बड़े ही धूमधाम और रीति-रिवाजों के साथ कायनात और राज की शादी पूरी हो गई।

  • 3. Obbsession of Kaynaat - Chapter 3

    Words: 650

    Estimated Reading Time: 4 min

    और वहीं, करण के आने पर पूरा मेवाड़ी परिवार बहुत ही ज्यादा खुश था। क्योंकि करण सबसे छोटा था, ऊपर से सबका लाड़ला भी। वह सभी की आँखों का तारा बना रहता था।

    वेल, शादी के बाद अब बारी थी कायनात की मुँह-दिखाई की रस्म की। इसलिए कायनात को मुँह-दिखाई की रस्म के लिए हाल में बिठाया गया था। और जितने भी मेवाड़ी परिवार के सदस्य थे—राज के माता-पिता, चाचा-चाची, इतना ही नहीं, सभी के सबसे बड़े, उनके दादाजी जय प्रकाश, जिनका हुकुम ही उस घर में चलता था—सभी लाइन में लग चुके थे। क्योंकि सभी परिवार की मौजूदगी में नई बहु को कई सारे उपहार दिए जाने थे।

    धीरे-धीरे करके सभी की बारी आ रही थी। सबसे पहले दादाजी ने शुरुआत की और उन्होंने कायनात को एक बड़ा ही खूबसूरत, बहुत ही महँगा डायमंड नेकलेस गिफ्ट के रूप में दिया।

    और इसी तरह से कायनात की सास, वंदना जी ने बड़े ही खूबसूरत डायमंड ईयरिंग्स गिफ्ट किए।

    इसी तरह सबने एक से बढ़कर एक, अपने-अपने अलग तरह के उपहार कायनात को दिए।

    कायनात काफी खुश थी; उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। उसके मन में अगर किसी को लेकर कोई हल्का सा बोझ था, तो वह सिर्फ़ अपने देवर करण को लेकर था।

    लेकिन उसने सोच लिया था कि हो सकता है करण ने उस वक़्त मज़ाक किया हो, और वह उस बात को लेकर गंभीर ना हो, और वह तो कब का भूल भी चुका होगा। इसलिए कायनात ने भी अब उस बात को छोड़ दिया था।

    धीरे-धीरे सभी बड़ों ने मुँह-दिखाई कर दी थी, लेकिन अब बारी किसी और की नहीं, बल्कि माही और करण की थी।

    तो सबसे पहले करण थोड़ा सा आगे बढ़ा। करण के हाथ में भी एक बड़ा सा बॉक्स था। उसने वह बॉक्स कायनात को देने से पहले कायनात का हाथ पकड़ते हुए कहा,

    "भाभी, अब आप मुझे क़ुबूल करें या न करें, लेकिन मैं आपका एक बदमाश देवर हूँ, तो आपको मुझे क़ुबूल करना ही होगा। और मैं वादा करता हूँ, मैं आपका बेस्ट से बेस्ट देवर बनकर दिखाऊँगा। और हमेशा आपका ख्याल रखूँगा। और हमेशा आपको खुश रखूँगा।"

    करण की बातें सुनकर, जितने भी घर और परिवार वाले थे, सभी दोनों हाथों से तालियाँ बजाने लगे।

    "वाह प्यारे वाह बेटा! आज भैया की शादी होते ही बड़ी समझदारी वाली बातें कर रहा है अपनी भाभी से। चल चल, अब आगे भी बढ़ ले और आगे बढ़कर अपनी भाभी का मुँह तो देख ले! और हाँ, पहले तेरा गिफ्ट हम सबके सामने खोलेंगे। देखेंगे तो इसमें क्या लेकर आया है।"

    ऐसा कहकर सभी करण को छेड़ने लगे। लेकिन करण तुरंत अपना गिफ्ट पीछे छिपाते हुए बोला,

    "नहीं-नहीं, मैं अपना गिफ्ट किसी को नहीं दूँगा। और भाभी, आपको अपने प्यारे से देवर की कसम है, आप यह गिफ्ट यहाँ सभी के सामने नहीं खोलेंगे। आप यह गिफ्ट अकेले में खोलेंगे। आपके लिए स्पेशल गिफ्ट है। आपके लिए स्पेशल गिफ्ट लेकर आया हूँ, और मुझे पूरी उम्मीद है कि आप अपने देवर का गिफ्ट सबसे ज्यादा पसंद करेंगी।"

    ऐसा कहकर करण थोड़ा सा आगे बढ़ा। और कायनात भी करण की इस तरह की बातें सुनकर मुस्कुरा दी।

    तभी करण थोड़ा सा अपने घुटनों के बल बैठकर कायनात का गिफ्ट उसके गोद में रखते हुए, जैसे ही उसने उसका घूंघट उठाया... और उसने अपने सामने दुल्हन बनी हुई, अपने सपनों की राजकुमारी को देखा... तो करण के पैरों तले से जमीन खिसक गई।

    क्या करण कायनात को भाभी के तौर पर स्वीकार करेगा? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों!

  • 4. Obbsession of Kaynaat - Chapter 4

    Words: 1453

    Estimated Reading Time: 9 min

    तभी करण ने थोड़ा-सा अपने घुटनों के बल बैठकर कायनात का गिफ्ट उसके गोद में रखा। जैसे ही उसने उसका घूंघट उठाया,

    और उसने अपने सामने दुल्हन बनी अपनी सपनों की राजकुमारी को देखा, तो

    करण के पैरों के तले से जमीन खिसक गई थी।

    ऐसा लगने लगा था मानो करण की आँखों के सामने अंधेरा आ गया हो और अचानक उसकी मुस्कुराहट पूरी तरह गायब हो गई थी।

    वहीं कायनात करण की आँखों को देखकर काफी हद तक डर गई थी,

    क्योंकि करण की आँखों में कुछ ऐसा था जिसे देखकर कायनात की रूह तक काँप गई थी।

    और काफी देर तक करण कायनात को देखता रहा।

    तभी अचानक माही थोड़ी आगे बढ़ी।

    "क्या भैया, आप तो भाभी की खूबसूरती देखकर ही फिसल गए! अरे भाभी हैं, भाभी, कुछ तो शर्म करो," माही ने करण को कोहनी मारते हुए कहा।

    तभी माही के ऐसा कहने पर करण ने उसे घूरकर देखा।

    माही करण के इस तरह घूरने पर अंदर तक काँप गई।

    लेकिन तभी बाकी के घरवाले जोरों से हँसने लगे।

    "तुम लोगों का मज़ाक फिर शुरू हो गया! अब चलो चलो, फटाफट से अपनी मुँह-दिखाई की रस्म पूरी करो। अरे भैया, भाभी को आराम भी करना है!"

    अब करण के लिए वहाँ रुके रहना बहुत मुश्किल हो गया था।

    और जल्दी ही करण उन सबकी नज़रों से दूर, लम्बे-लम्बे कदम बढ़ाता हुआ वहाँ से चला गया।

    वहीं राज बड़े ही प्यार और मुस्कुराहट के साथ कायनात का हाथ पकड़कर उसे अपने कमरे में ले आया।

    कायनात आज खुश भी थी, लेकिन कहीं न कहीं उसे अपने देवर करण का बर्ताव थोड़ा मायूस भी कर गया था।

    लेकिन फिलहाल वह अपने इस स्पेशल मोमेंट को खराब नहीं करना चाहती थी।

    जल्दी ही कायनात राज के सामने थी और राज तो सिर्फ़ अपनी खूबसूरत बीवी को निहारे जा रहा था।

    उसका हाथ पकड़कर घंटों बैठा रहा,

    और कहने लगा, "मेरी ज़िन्दगी में तुम्हारे जैसी कोई लड़की आएगी, वाकई तुम बहुत खूबसूरत हो। ऐसा लगता है कि मैं पूरी ज़िन्दगी तुम्हें देखते हुए गुज़ार दूँ।"

    कायनात राज की बातें सुनकर बड़ी शर्मा रही थी। उस वक़्त उसके दिलो-दिमाग में सिर्फ़ उसका पति था जो उसे ढेर सारे प्यार भरी बातें कर रहा था।

    तो कहीं न कहीं कायनात काफी खुश थी।

    तभी राज ने उसका हाथ चूमते हुए कहा, "आज की रात हमारी ज़िन्दगी की बहुत बड़ी रात होने वाली है और मुझे पूरी उम्मीद है कि आज की रात के बाद हम दोनों एक हो ही जाएँगे और हमेशा-हमेशा के लिए हम एक साथ रहेंगे।

    और हमारी ज़िन्दगी में कभी भी किसी तरह का कोई गम नहीं आएगा।"

    कायनात जैसी खूबसूरत बीवी पाने के बाद राज, जो हमेशा अपने बिज़नेस में घुसा रहता था, आज एक अलग ही तरह का दिख रहा था।

    राज ने काफी कम उम्र में ही अपने पिता के साथ मिलकर अपना HRM ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ का बिज़नेस अच्छी तरह से संभाल लिया था।

    और इतना ही नहीं, बहुत ही कम उम्र में वह वहाँ का चेयरमैन भी बन बैठा था।

    उसके अंडर कम से कम हज़ारों लोग काम किया करते थे।

    राज के पास इतना समय कभी था ही नहीं कि वह किसी लड़की के साथ समय बिता सके,

    या किसी के साथ अपनी कुछ रातें गुज़ार सके। लेकिन जैसे ही राज को यह पता चला कि उसके पिता उसकी शादी करवाना चाहते हैं, वह भी सिर्फ़ 500 करोड़ की एक डील के लिए, तो राज काफी हद तक हैरान था।

    लेकिन उसने शुरू से ही बिज़नेस को सबसे ज़्यादा मान्यता दी थी,

    तो इस डील के लिए उसने यह शादी कर ली थी। लेकिन जिस लड़की से उसकी शादी होने वाली थी,

    उस लड़की को देखने के बाद अब राज को यह लगने लगा था मानो यह शादी उस डील के लिए नहीं, बल्कि उस लड़की के लिए की गई है,

    क्योंकि इतनी खूबसूरत लड़की शायद ही राज ने कभी देखी थी।

    और आज तो राज बहुत खुश था। धीरे-धीरे उसने कायनात का घूंघट उठाया और फिर एक बड़ा ही खूबसूरत सा हीरा जड़ा ब्रेसलेट उसके हाथों में पहना दिया।

    और कहने लगा, "मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि तुम्हारे हाथ ज़्यादा हसीन हैं या यह ब्रेसलेट। यह ब्रेसलेट भी तुम्हारे हाथों की खूबसूरती को केवल थोड़ा-बहुत ही बढ़ा पा रहा है। तुम बहुत खूबसूरत हो।" ऐसा कहकर उसने कई बार कायनात के हाथों को चूमा।

    और कायनात राज का इस तरह का प्यार पाकर आत्ममुग्ध हो गई थी।

    और जल्दी ही धीरे-धीरे एक-एक करके राज ने कायनात के जेवर-गहने उतारने शुरू कर दिए थे।

    लेकिन इस वक़्त राज को इस बात की दूर-दूर तक कोई खबर नहीं थी कि उसके कमरे में इस वक़्त दो आँखें ऐसी थीं जो उन्हें बड़ी ही बारीकी और गुस्से भरी नज़रों से देख रही थीं।

    वह कोई और नहीं, बल्कि करण था।

    करण कायनात और राज को एक साथ देखकर आग-बबूला हो उठा था।

    हालाँकि वह उनके कमरे में नहीं था, लेकिन उसने राज के कमरे में राज के लिए एक प्रैंक तैयार किया था।

    वह तो बस नई भाभी के साथ मज़ाक करना चाहता था, लेकिन

    अब यह जानने के बाद कि कायनात उसकी भाभी है,

    लेकिन अब वह प्रैंक ख़त्म नहीं करने वाला था।

    इसलिए उसने अपनी आँखें एलईडी टीवी पर गड़ा ली थीं। राज के कमरे में उसने जो कैमरा लगाया था, उसके ज़रिए वह कायनात और राज को देख रहा था।

    और कायनात का शर्माना करण के दिल पर बिजलियाँ गिरा रहा था।

    तभी राज आगे बढ़कर कायनात के जितने भी गहने पहने थे, उन्हें एक-एक करके उतारना शुरू कर दिया था,

    और धीरे-धीरे अपने हाथों को उसके गालों पर, उसकी गर्दन पर, उसके कंधों पर घुमाना शुरू कर दिया था!

    यह देखकर अब करण के गुस्से की सीमा हद पार कर गई थी और अचानक करण अपने घर के हाल में जाकर खुद को जख़्मी कर लिया।

    और जैसे ही राज को घर में किसी के चीख़ने-चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी, वह कायनात को छोड़कर फटाफट नीचे आया।

    और वह यह देखकर पूरी तरह से हैरान हो गया कि करण लहू-लुहान पड़ा हुआ था। गुस्से में करण ने खुद को इतने ज़ख़्म दिए थे कि उसका खून पूरे हॉल में फैल चुका था।

    यह देखकर पूरा घर डर गया था क्योंकि करण सबका लाड़ला था और सभी करण को बहुत प्यार करते थे।

    लेकिन सबको यही लगा कि ज़रूर करण पर किसी ने हमला कर दिया है,

    इसलिए उसकी यह हालत हो गई है। और जब कायनात भी सबका शोर-शराबा सुनकर जल्दी से बाहर आई, तब उसने भी करण की ओर देखा।

    कायनात भी बड़े ही हमदर्दी भरी नज़रों से करण की ओर देख रही थी।

    लेकिन कायनात के आते ही अचानक करण ने अपनी आँखें खोल लीं

    और बिलकुल खून लगे चेहरे के साथ वह कायनात की ओर देखकर मुस्कुराया।

    जैसे ही कायनात ने देखा, तो उसकी रीढ़ की हड्डी में सिरहन हो उठी और वह काँप गई। और फिर जल्दी ही उसके पति राज,

    करण को लेकर अस्पताल की ओर रवाना हो गए।

    और कायनात के साथ उसकी छोटी ननद माही और उसके दादा, सब उसे संभालने लगे।

    लेकिन कायनात की आँखों के सामने सिर्फ़ बार-बार करण का खून से लथपथ चेहरा और उसकी मुस्कुराहट याद आ रही थी।

    कायनात को यकीन ही नहीं हो रहा था कि आखिरकार करण ने यह क्या हरकत की थी और उसकी यह हरकत देखने के बाद कहीं न कहीं उसे इस बात का शक ज़रूर हो चुका था कि ज़रूर करण ने जानबूझकर खुद को हर्ट किया था ताकि वह राज और कायनात की सुहागरात न होने दे सके।

    करण को शहर के बड़े अस्पताल में इमरजेंसी में एडमिट करवाया गया था क्योंकि उसका काफी खून बह चुका था। लेकिन उस वक़्त उसने गुस्से में अपने आप को इतना ज़्यादा हर्ट किया था,

    क्योंकि उसे इस बात की कोई परवाह नहीं थी। उसे तो सिर्फ़ राज और कायनात की सुहागरात नहीं होने देनी थी।

    इसके लिए उसने अपनी जान तक की बाजी लगा दी थी।

  • 5. Obbsession of Kaynaat - Chapter 5

    Words: 782

    Estimated Reading Time: 5 min

    क्योंकि उसे इस बात की कोई परवाह नहीं थी; उसे तो सिर्फ राज और कायनात की सुहागरात नहीं होने देनी थी। उसने अपनी जान तक की बाजी लगा दी थी।

    कायनात के मन में जैसे ही इन सब बातों का ख्याल आया, वह सिहर उठी। उसे कुछ अलग ही तरह का, अनजान सा डर सताने लगा। उसकी आँखों के सामने आज से ठीक तीन साल पहले का वह किस्सा याद आ गया जब वह घर से लौट रही थी और करण ने बाइक सरेआम रोककर, उसके कान के पास कहा था कि वह उसे कभी किसी और का नहीं होने देगा। और उसके बाद अचानक वह गायब हो गया था। कायनात को बहुत डर लगने लगा था।

    कायनात की पहली रात सबसे बुरी रात बीती। उसकी आँखों में नींद नहीं थी। धीरे-धीरे घर वाले सो गए थे, लेकिन राज करण के साथ अस्पताल में ही रुका था। कायनात को आज काफी कुछ अजीब सा लगा था, जिसकी वजह से नई नवेली दुल्हन पूरी रात नहीं सो पाई थी। लेकिन जैसे-तैसे रात का अंधेरा डूबता रहा और लगभग 4:00 बजे कायनात की आँख लग गई और वह सो गई। अगले दिन राज अस्पताल से घर आया।

    और कायनात को सोफे पर सोते हुए देखकर, राज को उस पर बहुत प्यार आया। वह कायनात के करीब गया और अपने होठों से उसके गालों को छू लिया।

    "आप... आप आ गए? आप कब आए? और अब करण जी की तबीयत कैसी है? करण कैसा है? वह ठीक है ना?"

    कायनात ने सीधा-सीधा राज से उसके आने और करण की तबीयत के बारे में पूछा। राज के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई।

    उसने जल्दी से कायनात के चेहरे को अपने हाथों में पकड़ कर उसके माथे को चूमते हुए कहा,

    "तुम जानती हो, मुझे शुरू से ही ऐसी ही बीवी की इच्छा थी जो मुझे समझे, मेरे परिवार को समझे। मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करता हूँ। इतना ही नहीं, मैं अपने करण से तो सबसे ज़्यादा प्यार करता हूँ। और जिस तरह से तुमने सीधा-सीधा करण की तबीयत के बारे में पूछा, वाकई मेरे दिल को बहुत अच्छा लगा।"

    ऐसा कहकर उसने कायनात को एक बार और किस कर दिया। कायनात अपने पति के इस जवाब से हैरान थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने पति को करण के उस दिन के प्रपोज करने वाली बात बताए या नहीं।

    कायनात ने सोचा था कि जैसे ही राज वापस आएगा, वह उसे करण द्वारा तीन साल पहले किए गए प्रपोजल के बारे में बता देगी। लेकिन अब अपने भाई के लिए राज की चिंता देखकर उसने कुछ ना कहने का फैसला कर लिया।

    वहीं दूसरी ओर, ठाकुरगंज गाँव में प्रियांशी की नींद हराम हो चुकी थी। उसने शुरू से ही राज से मोहब्बत की थी और उसे ही अपना पति बनने का सपना देखा था। लेकिन आज राज की शादी कायनात से होती देखकर उसका गुस्से से बुरा हाल हो गया था। उनके गाँव में पहले से ही जवान लड़कियों को रात को निकलना मना था, लेकिन अब प्रियांशी को कुछ सूझ नहीं रहा था। इसीलिए वह रात के अंधेरों में बाहर निकलकर उस नदी के पास वाले जंगल के पास जाने लगी।

    प्रियांशी ने सोच लिया था कि अगर वहाँ वाकई कोई जिस्म की प्यासी आत्मा है तो वह उसकी जान भी ले ले और अपनी प्यास बुझा ले। प्रियांशी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था, क्योंकि अब तो वह अपनी जान देना चाहती थी। उसे ऐसा लगने लगा था मानो राज के बाद उसकी ज़िन्दगी पूरी तरह से खत्म हो गई हो। इसलिए जानबूझकर वह नदी के उस पार वाले जंगल में जाने लगी।

    क्या प्रियांशी अपने पागलपन में अपनी जान दे देगी और खुद को उस आत्मा को सौंप देगी? क्या कायनात करण के बारे में राज को बता पाएगी? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों!

  • 6. Obbsession of Kaynaat - Chapter 6

    Words: 697

    Estimated Reading Time: 5 min

    लेकिन अब रियांशी को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। इसलिए वह रात के अंधेरों में बाहर निकलकर उस नदी के पास वाले जंगल के पास जाने लगी थी।

    क्योंकि रियांशी ने सोच लिया था कि अगर वहाँ पर वाकई कोई जिस्म की प्यासी आत्मा है, तो वह उसकी भी जान ले ले, और अपनी प्यास बुझा ले। रियांशी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था क्योंकि अब तो वह अपनी जान देना चाहती थी। उसे ऐसा लगने लगा था मानो राज के बाद उसकी ज़िन्दगी पूरी तरह से खत्म हो गई हो।

    इसलिए जानबूझकर वह नदी के उस पार वाले जंगल में जाने लगी थी। लेकिन इससे पहले कि रियांशी वह तालाब पार करके उन जंगलों की ओर जाती, अचानक से उसका बाप, यानी मुखिया, उसके पास आ गया था। उसने रियांशी का हाथ पकड़कर खींच लिया था और उसे डाँटना-फटकारना करने लगा था।

    "तू पागल हो गई है! तू जानबूझकर मौत को गले लगाना चाहती है!"

    "तुझे उस प्यासी आत्मा के बारे में पता है ना? अरे, वह तेरा बुरा हाल कर देगी! और तू मेरी बेटी है! मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं तेरी इस तरह की मौत देखूँगा!"

    "अरे, बहुत प्यार करता हूँ मैं तुझे! और तुझे क्या लगा कि तू इतनी जल्दी हार मान जाएगी? तू मेरी बेटी है, मैं तुझे कभी भी हारने नहीं दूँगा। अगर क्या हुआ कि कायनात की शादी राज से हो गई, तो लेकिन अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। शादी अगर होती है, तो शादी तोड़ी भी जा सकती है। अरे, बहुत से ऐसे काम होते हैं जो किये जा सकते हैं। बस तुझे अपने पिता पर भरोसा रखना होगा। मैं बहुत जल्द ऐसा कुछ करूँगा कि राज खुद कायनात को छोड़ देगा और तुझसे शादी कर लेगा। तुझे बिल्कुल भी अपने पिता के रहते परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

    जैसे ही रियांशी ने अपने पिता की बातें सुनीं, वह अचानक से फूट-फूट कर रोने लगी थी।

    "कैसे करेंगे आप ये सब? आपने देखा है उसकी बीवी को? उसकी बीवी कायनात, स्वर्ग से आई अप्सरा जैसी दिखती है! तो भला राज उसे छोड़कर मुझ जैसी कम सुन्दर दिखने वाली लड़की से शादी क्यों करेगा? आखिर क्यों?"

    उसने अपने पिता को गले से लगा लिया था। और फिर कहने लगी थी, "मुझे राज चाहिए पिताजी, राज! मैंने राज का बचपन से लेकर आज तक सपना देखा है। मैं किसी भी कीमत पर उसे नहीं खो सकती हूँ। और वह आज अपनी सुहागरात मना रहा होगा अपनी उस कायनात के साथ! आप नहीं जानते इस वक्त मुझ पर क्या गुज़र रही है! उस कायनात की जगह आज मैं होती, सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं! आखिर कहाँ से आई है कायनात हमारे बीच में? कहाँ से आई? आप देखिएगा, मैं उसे ज़िन्दा नहीं छोड़ूँगी! मैं उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ूँगी!"

    अपनी बेटी के इस पागलपन की बातें सुनकर मुखिया जी काफी हद तक हैरान और परेशान हो गए थे।

    लेकिन अब वह सारी गलती उन्हीं की थी। आखिरकार उन्होंने ही अपनी बेटी के मन में राज के लिए मोहब्बत बचपन से डाली थी। और अब उसकी वह बचपन से लेकर जवानी तक की मोहब्बत, मोहब्बत न रहकर एक ज़िद, एक अड़ा बन चुकी थी। और अब उसे हर हाल में राज चाहिए ही था।

    वह दोनों बाप-बेटी अपने आप में ही खोये हुए थे, लेकिन उन्हें इस बात की कोई खबर नहीं थी कि बिल्कुल जलती हुई आँखों के साथ दो आँखें उन्हें देख रही थीं। वह दो आँखें किसी और की नहीं, बल्कि इस जंगल के भूत की थीं, यानी उस हैवान की थीं जो औरतों के जिस्म का जन्म से प्यासा था। और इस वक्त वह रियांशी को अपने करीब देखना चाहता था। लेकिन रियांशी को उसके पिता ने वक्त रहते बचा लिया था।

    तो उसकी आँखों में आग सी लगने लगी थी। सुलगती हुई आँखों से वह रियांशी की ओर देखने लगा था, और उसकी एक-एक बात सुन चुका था। और तब उस जिस्म की प्यासी आत्मा ने मन ही मन में नाम दोहराया था - कायनात।

  • 7. Obbsession of Kaynaat - Chapter 7

    Words: 1250

    Estimated Reading Time: 8 min

    और तब उस जिस की प्यासी आत्मा ने मन ही मन में नाम दोहराया था , कायनात, जिसका नाम इतना खूबसूरत है वह कितनी खूबसूरत होगी कहीं ना कहीं सोचते  हुए वह हेवान बड़ी ही बुरी तरह से हंसने लगा था,, Khubsurat लड़किया उस आत्मा की सबसे बड़ी कमजोरी थी,  वहीं दूसरी और राज जो कि अस्पताल से थक हार कर आया था कायनात को थोड़े से किस करने के बाद वह जल्दी से नहा धोकर फ्रेश हो गया था और कायनात से कहने लगा था कि वह भी हम अपने कपड़े बदल ले, क्योंकि अब अगर वह अपनी सुहागरात कंटिन्यू करते हैं तो वह कर नहीं पाएंगे क्योंकि ऑलरेडी अब सुबह हो चुकी है , जैसे ही राज ने यह कहा कायनात घूर कर उसकी और देखने लगी थी, तब राज जल्दी से बोला था, I'm just kidding यार वो actualy आपने अभी तक change नही किया न, so वेल आप जल्दी से रेडी हो जाइये हमेअस्पताल भी चलना होगा करण को देखने के लिए, जैसे ही राज् ने कायनात को हॉस्पिटल चलने के लिए कहा अब कायनात पूरी तरह से सकपका  सी गई थी क्योंकि वह करण का सामना नहीं करना चाहती थी,?!!!!!!! लेकिन वह अब राज को सीधे-सीधे उसके मुंह पर मना भी नहीं कर सकती थी! ;;;; कि मैं तुम्हारे भाई को देखने नहीं जाऊंगी ,!!!!! फिलहाल कायनात जल्दी से बाथरूम में घुसकर नहाने लगी थी और क्योंकी पूरी रात वह  सही से नहीं सो पाई थी तो हल्का-हल्का कालापन उसकी आंखों के नीचे आ गया था जो उसकी खूबसूरती में एक दाग की तरह लग रहा था,!!;;;;;;;;; लेकिन कायनात ने जल्दी ही नहा धोकर हल्का सा मेकअप अपनी आंखों के नीचे अप्लाई कर लिया था क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई भी उस कैसे कालेपन को देखें और कुछ गलत समझे,!!;;;;;;; तो इसीलिए कायनात ने आज जल्दी से एक  येलो कलर की साड़ी पहनी थी जिसमें कायनात का की कमर साथ ही साथ थोड़ा-थोड़ा पेट दिखाई दे रहा था जो उसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा निखार रहा था, किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की साड़ी खूबसूरत है या फिर कायनात,!!;;;;;!!!!! इस बात का अंदाजा लगाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल था ,!!!!! और जैसे ही राज की नजर  पीली साड़ी पर में कायनात पर पड़ी तो वह तो अपनी पलके झपकना ही भूल गया था, जल्दी से उसके पास जाकर उसने अपना हाथ कायनात के कमर पर डाल लिया था, और उसके करीब उसकी गर्दन के पास से उसे हल्का सा सूंघते हुए कहने लगा था, वाकई तुम बहुत खूबसूरत हो तुम्हारी खूबसूरती देखकर मेरा दिल ऐसे मचल उठा है कि मैं तुम्हें क्या बताऊं, ;! ऐसा कह कर उसने कायनात का हाथ पकड़ कर अपने दिल की धड़कन पर रख दिया था , और कायनात यह इस तरह का मूवमेंट देखकर मुस्कुरा उठी थी, और कायनात के मुस्कुराते ही राज भी  राज भी मुस्कुराने लगा था, तब राज का इतना प्यार पाकर कायनात हल्का सा शर्मा उठी थी तभी राज ने थोड़ा सा आगे बढ़कर एक बार फिर कायनात के माथे को चूम लिया था,!!!!! और अभी वह कायनात के होठों को चूमने के लिए बढ़ ही रहा था कि तभी उसे उसके दादाजी की आवाज सुनाई दी थी, अरे राज बेटा कहां रह गया है ,जल्दी कर,  करण को देखने के लिए भी जाना है ,वह इंतजार कर रहा होगा चल बहू को लेकर जल्दी आ नीचे ऐसा कहकर उसके दादाजी  राज को आवाज लगाने लगे थे !!!!!!!!! और आज ने जल्दी से कायनात का हाथ पकड़ लिया था, और कहने लगा था चलो जल्दी से दादाजी बुला रहे हैं ,कहीं ऐसा ना हो कि दादाजी गुस्सा हो जाए, राज का इस तरह का मोमेंट देखकर कहना थोड़ा सा हैरान हो गई, क्योंकि राज कायनात को प्यार भी बहुत कर रहा था लेकिन राज के बिहेव में कायनात को इतना जरूर पता चल चुका था कि राज के लिए उसके फैमिली कितनी ज्यादा इंपोर्टेंस है, और वह अपनी फैमिली को कितना ज्यादा प्यार करता है, वेल जल्दी ही  उसने अपनी सोच को झटक दिया था , और इस बारे में ज्यादा नही सोचा था,!!!  और जल्दी ही जैसे ही वह राज के साथ सीढ़ियां उतरते हुए नीचे जाने लगी थी पूरे के पूरे खानदान की नजर कायनात पर जाकर ठहर गई थी ,!!!!!! हर कोई कायनात की खूबसूरती को देखकर उसे निहारे जा रहा था, और इतना ही नहीं कायनात की सास तो जल्दी से उसके पास आई थी, और उसकी नजर उतारते हुए कहने लगी थी, वाकई मेरी बहू तो एकदम चांद सी दुल्हन है आज तक सिर्फ और सिर्फ चांद सी दुल्हन हमने सुना सुना था, लेकिन आज तो देख भी लिया यह तो कितनी सुंदर है , आपको पता है जी अब जब हम कायनात के आने की वेलकम पार्टी करेंगे, तो आप देखेगा कितने ही लोगों के दिल जल उठेंगे......  तभी उसके दादाजी यानी के कायनात की सास के ससुर तेज आवाज में बोले थे,!!!!! अच्छा-अच्छा यह पार्टी पार्टी की बातें बाद में कर लेना क्या तुम लोगों को पता नहीं है तुम्हारा बेटा अभी जख्मी हालत में अस्पताल में है ,!!!! और एक और बात हमने डिसाइड किया है कि कायनात की वेलकम पार्टी जिस दिन हम करेंगे उसी दिन हम करण की भी सगाई कर देंगे, ;;!!!! !!!क्योंकि करण के लिए भी हमने एक लड़की देख ली है जैसे ही उसके दादाजी ने यह कहा कायनात के चेहरे पर अपने आप ही मुस्कुराहट आ गई थी,!;;;;;;;; और कहीं ना कहीं वह सोचने लगी थी कि चलो अच्छी बात अगर करण की सगाई हो जाती है तो शायद उसके दिल से अब थोड़ा सा जो यह बोझ सा था वह खत्म हो जाएगा ,;;;;;;;; तो कहीं ना कहीं यह सोचते हुए कायनात राज के साथ जल्दी ही अस्पताल की ओर जाने लगी थी,!!! इतना ही नही पूरा का पूरा मारवाड़ी परिवार हॉस्पिटल की ओर रवाना हो चुका था वही दूसरी और ठाकुरगंज गांव में आज अजीब सा माहौल था क्योंकि अमावस्या की काली रात थी, और उस रात उस गांव वालों का मानना था तो जो औरतों के जिस्म की प्यासी आत्मा होती है, उस रात पूरी तरह से पूरे गांव पर हावी हो जाती है इतना ही नहीं वह किसी के घर में जाकर भी किसी न किसी औरत को अपना शिकार बनासकती है,!;;;;;;; तो उस दिन गांव में एक विशेष तरह की पूजा हुआ करती थी, सभी लोग एक जगह इकट्ठा होकर एक बरगद के पेड़ के नीचे काली माता की पूजा किया करते थे, क्योंकि कहीं ना कहीं उनका मानना था कि जो कोई भी इस पूजा को करेगा तो उनके घर में जिस्म की प्यासी  आत्मा बिल्कुल भी नहीं आएगी,!!!;;;;;;;; क्योंकि पूजा के बाद वहां पर एक पवित्र जल छिड़का जाता था और वह जल पूरे गांव में सभी को थोड़ा-थोड़ा दिया जाता था, जिससे गांव वाले उस जल को अपने घर की दहलीज पर, इतना ही नहीं उनके घर में एंट्री होने वाले जितने भी रास्ते होते थे, उस रास्तों पर छिड़क दिया करते थे,!!;; ;!!;;और उसके बाद चेन व सुकून की नींद सो जाया करते थे , पूरे गांव में पिछले कई सालों से यही सब होता हुआ आया था और सभी लोग इस प्रथा को मानते भी थे , वेल जल्दी ही पूरे गांव में  काली माता की पूजा की जाने लगी थी पूजा होने के बाद पवित्र जल को हर एक घर पर छिड़का गया था, लेकिन एक घर  इस बार   उस पूजा में शामिल नहीं हो पाया था........... ❤✍🏻🙏🏻🙏🏻✍🏻❤❤🙏🏻🙏🏻❤❤✍🏻✍🏻❤❤🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻✍🏻✍🏻✍🏻क्या कायनात इस aatma  kaa रहस्य पता लगा पायगी,  क्या करण अपनी हरकते  बंद करेगा या करेगा नई मुसीबत खड़ी, Jannne के लिए बने रहिये दोस्तो....... 

  • 8. Obbsession of Kaynaat - Chapter 8

    Words: 1748

    Estimated Reading Time: 11 min

    वेल जल्दी ही पूरे गाँव में काली माता की पूजा की जाने लगी थी। पूजा के बाद पवित्र जल को हर घर पर छिड़का गया था, लेकिन एक घर उस पूजा में शामिल नहीं हो पाया था।

    क्योंकि उस घर में एक बुजुर्ग, उसकी बेटी और उसकी बूढ़ी माँ ही रहती थीं।

    लेकिन उसके पिताजी काफी बीमार थे।

    इसलिए माँ-बेटी उस वक्त अस्पताल में इलाज के लिए गई हुई थीं।

    और उन्हें अमावस्या की रात के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

    वरना वे लोग भी उस पूजा में शामिल होते। जैसे ही रात को वे लोग लौटकर आए, जिस्म की प्यासी आत्मा को उनके घर में जाने का रास्ता मिल चुका था।

    और उसकी जवान लड़की को जिस्म की प्यासी आत्मा ने एक सुरीला गीत गाकर अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। वह लड़की गहरी नींद में सोई हुई थी।

    लेकिन चूँकि उसके घर की दहलीज पर देवी माँ की पूजा का पवित्र जल नहीं छिड़का गया था, जिसकी वजह से उस प्रेत आत्मा की आवाज़ उस लड़की के कानों में सुनाई देने लगी थी।

    और वह लड़की उस आवाज़ के पीछे मंत्रमुग्ध होकर नदी के उस पार जंगल में पहुँच गई थी।

    और वह प्रेत आत्मा उस लड़की को देखकर जोरों से हँसने लगी थी। क्योंकि कोई न कोई घर किसी न किसी मजबूरी के तहत पूजा में शामिल नहीं हो पाता था, जिसकी वजह से जिस्म की प्यासी आत्मा उस परिवार की लड़की को अपना शिकार बना लेती थी।

    और आज, जैसे ही उसकी आवाज़ से मोहित होकर एक लड़की उस जंगल में आई, उस आत्मा ने जल्दी ही उसे अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया था।

    सबसे पहले उसने उस लड़की के जिस्म के नाजुक अंगों को, उसके जिंदा रहते ही, खा लिया था।

    और उसके बाद, अपनी मनमर्ज़ी उसके शरीर पर करने के बाद, उसके जिस्म के अंगों को खाने के बाद, उसने उस लड़की की लाश को उस बरगद के पेड़ के पास फेंक दिया था, जिस बरगद के पेड़ के पास लोगों ने पूजा की थी।

    और क्योंकि उस आत्मा को अब काफी दिनों के लिए संतुष्टि मिल चुकी थी, वह वहाँ से गायब हो चुका था।

    जैसे ही अगले दिन सब लोगों ने सुबह गाँव में एक बार फिर जवान लड़की की आधी-अधूरी लाश देखी, तो पूरे गाँव में एक बार फिर रोना-पीटना शुरू हो चुका था।

    और उसके बुज़ुर्ग माता-पिता तो कहीं के नहीं रहे थे। वे अपनी बेटी की जान जाने के सदमे से पागल हो गए थे, क्योंकि उनकी बेटी एकमात्र उनका सहारा थी।

    लेकिन पूजा न करने के कारण वे भी अब उस जिस्म की प्यासी आत्मा का शिकार बन चुके थे।

    और जिस्म की प्यासी आत्मा भले ही वापस जंगल में चली गई थी, लेकिन अभी भी उसके कानों में एक नाम गूँज रहा था - कायनात। और तभी उसने जोरों से हँसते हुए कहना शुरू कर दिया था,

    "कायनात, तुम्हें मेरे पास आना ही होगा। बहुत सुना है तुम्हारी खूबसूरती के बारे में। बस अब मैं तुम्हारी खूबसूरती का दीदार बहुत करीब से करना चाहता हूँ। हो सकता है तुम ही वो लड़की हो, जिसकी मुझे जन्मों-जन्मों से तलाश है, कायनात।"

    उसने बड़ी ही बुरी तरह से कायनात का नाम लिया था।

    और कायनात उस वक्त बड़े ही कशमकश के साथ अपने पति राज के साथ अपने देवर को देखने के लिए अस्पताल जा रही थी।

    और जैसे ही सभी लोग अस्पताल में गए और उस वक्त कायनात बाहर ही रुकी हुई थी, तब कायनात की सास अपने बेटे करण को देखकर आई थी।

    तभी उसने जाकर बाहर बताया कि करण कायनात से मिलना चाहता है।

    जैसे ही कायनात ने यह सुना, वह पूरी तरह से हक्का-बक्का रह गई थी।

    कायनात पूरी तरह से हैरान हो गई थी, और वह हैरानी से अपने पति की ओर देखने लगी थी। तभी उसका पति कायनात से कहने लगा था,

    "इसमें हैरान होने वाली क्या बात है? करण तुमसे मिलना चाहता होगा। आखिरकार तुम उसकी भाभी हो, भई।"

    तभी उसके दादाजी की आवाज़ वहाँ गूँजी थी और वे कहने लगे थे,

    "उस बदमाश को कहीं कोई शैतानी तो नहीं सूझ रही है? देख, कितना बीमार है, लेकिन उसकी शैतानी है कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती है।"

    तभी अचानक कायनात की छोटी नन्द, माही, पीछे से बोली थी, "अरे दादा जी, आपको तो पता है ना कल रात भैया-भाभी की कितनी स्पेशल नाइट थी, लेकिन करण भैया पर हुए अटैक की वजह से उनकी नाइट ख़राब हो गई। तो शायद इसी वजह से भैया भाभी से सॉरी करना चाहते होंगे।"

    जैसे ही माही ने यह कहा, सभी लोगों को यह बात ठीक लगी थी। और तभी दादाजी आगे आए थे और कायनात को देखकर कहने लगे थे,

    "बेटा, अब यहाँ क्यों खड़ी हुई है? जाकर करण से मिल लो। उसके बाद बारी-बारी से हम सबको भी उससे मिलना है।"

    ऐसा कहकर उन्होंने कायनात को करण के कमरे में भेज दिया था।

    अब कायनात ने जैसे ही करण को देखा, उसके पूरे जिस्म पर पट्टियाँ लगी हुई थीं, क्योंकि उसने बड़ी बुरी तरह से अपने हाथों पर, अपने पेट पर, अपनी जाँघ पर, अपने मुँह पर, गर्दन के पास चाकू से वार किया था।

    करण के जिस्म का ऐसा कोई हिस्सा नहीं था जहाँ उसने अपने जिस्म के हिस्से पर वार न किया हो। वह पूरा का पूरा पट्टियों में लिपटा हुआ पड़ा हुआ था। तभी, जैसे ही कायनात वहाँ गई, उसने तुरंत अपनी आँखें खोलकर बैठना शुरू कर दिया था।

    और कायनात की खूबसूरती कितनी देर तक निहारता रहा था और अचानक से करण अपने पैरों पर खड़ा होकर कायनात के सामने खड़ा हो गया था।

    अब तो कायनात की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था और वह कहने लगी थी, "करण, यह क्या कर रहे हैं आप? आपकी तबीयत ठीक नहीं है। आप इस तरह से कैसे खड़े हो सकते हैं? और आपको कितनी चोटें आई हैं!"

    तभी करण अचानक से कायनात के करीब बढ़ने लगा था। और अपने होठों को एक बार फिर कायनात के कान के पास ले जाकर कहने लगा था,

    "तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी हो। तुम्हें मुझसे कोई अलग नहीं कर सकता है। किसी और के करीब जाने की सोचना भी मत।"

    जैसे ही उसने कायनात को एक बार फिर वही बातें दोहराईं, अब तो कायनात से रहा नहीं गया, और उसने जल्दी से अपने दोनों हाथ अपने कानों पर रख लिए थे और जोरों से चीख मार दी थी।

    कायनात की चीख सुनकर बाहर खड़े हुए राज, साथ ही साथ उसकी सास, माही, उसके दादाजी, ससुर, सभी के सभी अंदर आ गए थे।

    और जैसे ही वे लोग अंदर आए, तो उन्होंने देखा कि करण तो एक बार फिर अपने बेड पर लेटा हुआ था। और कायनात उसी के पास खड़ी होकर चीख रही थी।

    तभी करण कह रहा था, "अरे भाभी, शांत हो जाइए! कुछ नहीं हुआ है। क्यों आप इतना चिल्ला रही हैं? अरे मैं ठीक हूँ भाभी, ठीक हूँ!" ऐसा कहकर करण ये सारी बातें बोलने लगा था।

    तभी दादाजी आगे आए थे और कहने लगे थे, "क्या हुआ बेटा? तुम क्यों चीख रही हो?" तभी कायनात ने अपनी उंगली से करण की ओर इशारा किया था। लेकिन करण तो बेड पर इस तरह से लेटा हुआ था। अब तो कायनात की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था।

    वह कहती भी तो क्या कहती? कायनात काफी डर गई थी। तभी राज उसके करीब आया था और कायनात का कंधा पकड़कर उसे अपने सीने से लगा लिया था।

    और जैसे ही राज के सीने से लगी कायनात ने करण की ओर देखा, तो उसने देखा कि करण की आँखें आग बरसा रही थीं। ऐसा लग रहा था कि वह कायनात को अभी जलाकर राख कर देगा या फिर राज को जला डालेगा।

    तभी दादाजी बीच में बोले थे, "लगता है करण को इतनी सारी पट्टियाँ देखकर कायनात बेटी डर गई होगी। एक काम करो राज, बहू को घर लेकर जाओ। वैसे भी कल रात उसे सही से सोने नहीं मिला होगा। इस आराम की सख्त ज़रूरत है।"

    ऐसा कहकर दादाजी ने कायनात को राज के साथ भेज दिया था।

    लेकिन करण की आँखें तब तक उस दरवाज़े को देखती रहीं, जब तक कायनात वहाँ से बाहर नहीं निकल गई थी।

    और आखिर में बाहर निकलते वक्त कायनात ने एक बार फिर पीछे मुड़कर देखा था। उसने देखा था कि करण अभी भी उसे उन हवस भरी नज़रों से देख रहा था।

    कायनात ने जैसे ही यह देखा, उसकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई थी, और वह बहुत डर गई थी।

    एक बार फिर कायनात डरकर राज के बाजू को कसकर पकड़ लिया था, और राज कायनात को घर ले आया था।

    तभी करण, कायनात के जाने के बाद अपने दादा की ओर देखकर कहने लगा था,

    "दादा जी, आखिर मुझे कब तक अस्पताल में रहना होगा? मैं यहाँ नहीं रह सकता हूँ। और क्या उन लोगों को पता चला जिन्होंने मुझ पर हमला किया था?"

    तभी उसके दादा, जय प्रकाश जी, करण के पास जाकर उसका हाथ पकड़कर कहने लगे थे,

    "बेटा, तुम पर हमला तुमने ही किया है। तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारे दादा बेवकूफ़ हैं?"

    जैसे ही उसके दादा ने करण को सीधे-सीधे यह कहा, करण की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था।

    तभी करण सकपका गया था और हकलाते हुए कहने लगा था,

    "दादाजी, आप क्या कह रहे हैं? भला मैं खुद पर ही हमला क्यों करूँगा?"

    क्योंकि उस वक्त वार्ड में कोई भी मौजूद नहीं था, सिवाय दादा-पोते के।

    तभी करण के दादाजी, करण का कान पकड़कर कहने लगे थे, "बेटा, तुझे मैंने बचपन से पाला है, और बचपन से तेरी आदतों और शरारतों को देखता हुआ आया हूँ। अपने भैया-भाभी की फर्स्ट नाइट न हो, इसके लिए तुमने इतना बड़ा कदम उठा दिया। आखिरकार वजह क्या है? भाभी की खूबसूरती देखकर तुम्हारा दिल तो नहीं मचल रहा है? मेरी एक बात कान खोलकर सुन ले, वह भाभी है तेरी समझा? अगर तेरे मन में उसको लेकर कुछ उल्टे-सीधे ख्याल भी आ रहे हैं, तो उन्हें यहीं रोक दे। क्योंकि अब वह तेरे बड़े भाई की पत्नी है।"

  • 9. Obbsession of Kaynaat - Chapter 9

    Words: 1571

    Estimated Reading Time: 10 min

    भाभी की खूबसूरती देखकर तुम्हारा दिल तो नहीं मचल रहा है?

    "मेरी एक बात कान खोलकर सुन ले, वह भाभी है तेरी। समझा? अगर तेरे मन में उसको लेकर कुछ उल्टे-सीधे ख्याल भी आ रहे हैं तो उन्हें यहीं रोक दे। क्योंकि अब वह तेरे बड़े भाई की पत्नी है। और मेरी एक बात कान खोलकर समझ ले, और एक बार तेरी तबीयत ठीक हो जाए, उसके बाद मैं तेरी सगाई अधीर वर्मा की बेटी अनीता वर्मा से करने वाला हूँ।"

    "समझ गया ना? तो अनीता वैसे भी खूबसूरत और पढ़ी-लिखी लड़की है, और ऊपर से उसका पिता एमएलए है जो हमारे काफी ज्यादा काम में आता है। वैसे भी हमारे काम में बड़े-बड़े लोगों से संबंध होना बहुत ही ज्यादा जरूरी है। अब कायनात के पिता के द्वारा हमें पाँच सौ करोड़ की डील मिली है। और अगर एमएलए की बेटी से तेरी शादी हो जाती है तो उसके बाद वह हमें कोई भी गैरकानूनी काम करवाना होगा तो आराम से उसका पिता कर सकता है। समझा तू? और हाँ, अब यह बचपना छोड़, फटाफट से ठीक हो और घर आ जा।" ऐसा कहकर उसके दादाजी वहाँ से चले गए थे।

    करण अपने दादा की बात सुनकर हक्का-बक्का रह गया था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके दादाजी यह सारी बात जानते होंगे और उसके मन की बात समझ चुके होंगे। और तब कहीं ना कहीं करण को यकीन करना ही पड़ा, क्योंकि उसके दादा ने इतना बड़ा एचआरएम ग्रुप अकेले अपने बलबूते पर खड़ा किया था। फिर राज ने जब से इसे संभाला था, उसने पूरे बिज़नेस को बहुत आगे बढ़ा दिया था। और अब कायनात से उसकी शादी करने के बाद उन्हें पाँच सौ करोड़ की डील मिली थी, जिसकी वजह से एचआरएम ग्रुप इंडस्ट्रीज के शेयर आसमान छूने लगे थे और उनकी प्रसिद्धि जोरों-शोरों से बढ़ने लगी थी। तो कहीं ना कहीं करण ने सोच लिया था कि शायद उसके दादा अब उसे भी किसी न किसी डील की भेंट चढ़ाना चाहते हैं।

    लेकिन करण की जिद अब कायनात बन चुकी थी। करण ने तीन साल पहले कायनात को प्रपोज किया था क्योंकि पहली बार उसने कायनात को उसके कॉलेज से आते हुए देखा था। कायनात पहली ही नज़र में करण को भा गई थी और उसने सीधा-सीधा पहली ही नज़र में देखते ही उसे प्रपोज कर दिया था। उसके बाद उसकी दादी की डेथ एनिवर्सरी होने पर करण को वापस इंडिया लौटना पड़ा था। लेकिन कुछ दिनों के बाद जब वह वापस विदेश गया, तब उसने कायनात को ढूँढने की कोशिश की थी, लेकिन कायनात के बारे में करण को कुछ भी नहीं पता था, जिसकी वजह से उस दिन के बाद उसे कायनात कहीं नहीं मिली थी।

    लेकिन कायनात का चेहरा उसकी यादों में मौजूद था और उसकी नज़रें सिर्फ़ और सिर्फ़ हर जगह, हर भीड़ में सिर्फ़ और सिर्फ़ कायनात को ही ढूँढती थीं। लेकिन यूँ अचानक से कायनात उसे मिली भी, लेकिन उसकी भाभी के रूप में। तो अब करण के पैरों के तले से जमीन खिसक चुकी थी। वह किसी भी कीमत पर कायनात को नहीं खोना चाहता था। हर हाल में वह कायनात को अपने साथ रखना चाहता था और अपने दादा की बात सुनने के बाद उसने सोच लिया था कि वह या तो मर जाएगा या फिर कुछ और कदम उठा लेगा, लेकिन किसी भी कीमत पर कायनात के अलावा किसी और से ना तो शादी करेगा और ना ही सगाई करेगा।


    वहीं दूसरी ओर, राज कायनात को घर ले आया था। घर लाकर उसने कायनात को बड़े ही आराम से एक सोफ़े पर बिठा दिया था और एक गिलास पानी दिया था। उसके पास घुटनों के बल बैठकर उसका हाथ पकड़कर कहने लगा था, "क्या हुआ है स्वीटहार्ट? आप ठीक तो हैं ना? अब तो आपको डर नहीं लग रहा है ना? अरे क्यों? आप छोटी सी बात को लेकर डर गई? करण ठीक हो जाएगा, उसको ज़्यादा चोट नहीं लगी।"

    तभी कायनात ने राज को कहने की कोशिश की थी कि वह इस बात से नहीं डरी कि करण की कैसी तबीयत है, उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ करण की कही हुई बातों से डर लग रहा था; करण ने किस तरह से उसके पास आकर उसे यह सब कुछ कहा था कि वह सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी है और वह सिर्फ़ उसी की रहेगी। तो कहीं ना कहीं यह बात कायनात को अंदर तक डराकर रह गई थी।

    जल्दी ही राज कायनात का हाथ पकड़कर उसे अपने बेडरूम में ले आया था और कहने लगा था, "मुझे लगता है तुम्हें इस वक्त आराम की सख्त ज़रूरत है। मैं यहीं बैठकर अपने ऑफ़िस का काम कर लेता हूँ, तब तक तुम आराम कर लो।" ऐसा कहकर उसने कायनात को थोड़ी देर के लिए सोने के लिए कह दिया था और खुद उसके पास बैठकर उसका हाथ सहलाने लगा था। क्योंकि कायनात वैसे भी पूरी रात नहीं सोई थी, तो राज को अपने इतने पास पाकर, इतना प्यार पाकर जल्दी ही उसकी आँखें बोझल होने लगी थीं और वह एक गहरी नींद में सो चुकी थी।

    कायनात के सोने के बाद राज ने जल्दी ही अपना लैपटॉप सिस्टम ऑन कर लिया था और अपना काम करना शुरू कर दिया था। आखिरकार राज एचआरएम ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज का अध्यक्ष था, तो उसके कंधों पर काफी ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ थीं, जो उसे पूरी करनी ही थीं।

    वेल, कायनात एक गहरी नींद में तो सो गई थी, लेकिन जल्दी ही उसे एक बुरा ख्वाब आने लगा था। उस बुरे ख्वाब में कायनात ने देखा कि वह बिना कपड़ों के जंगलों में घूम रही थी और हर किसी से कपड़ों के लिए भीख माँग रही थी, लेकिन कोई भी उसे कपड़े देने के लिए तैयार नहीं था। और इसी बीच उसे किसी के हँसने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। जैसे ही कायनात ने उस आवाज़ का पीछा किया और उसने अपने सामने करण को पाया, तो कायनात बुरी तरह से डर गई थी। और जो कि कायनात तो इस वक्त राज के साथ उसके बेड पर सोई हुई थी और जल्दी ही कायनात ने अपना सर बुरी तरह से घुमाना शुरू कर दिया था। लेकिन इतना बुरा ख्वाब देखने के बाद कायनात ख़्वाब के अंदर बहुत ही ज़्यादा डर गई थी।

    जैसे ही राज, जो कि अपने सिस्टम पर काम कर रहा था, उसे एहसास हुआ कि कायनात डर रही है, जल्दी से जाकर उसके पास बैठ गया था और उसे उठाने की कोशिश करने लगा था। लेकिन उस वक्त तो कायनात एकदम नग्न बदन पूरे जंगल में घूम रही थी और उसे लोगों के हँसने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। तो जल्दी से उसने डर के मारे अपनी आँखें खोल ली थीं और जोरों से लंबे-लंबे साँस लेने लगी थी। तभी राज जल्दी से उसकी पीठ थपथपाने लगा था और उसके लिए एक गिलास पानी लेकर आया था। "कि जल्दी से फटाफट पानी पियो, तुमने ज़रूर कोई बुरा ख़्वाब देखा होगा।" ऐसा कहकर उसने कायनात को शांत करने की कोशिश की थी।

    तब कायनात ने जैसे ही अपने आप को राज के साथ उसके बेड पर पाया, तो उसे थोड़ी बहुत तसल्ली हुई थी और वह थोड़ा सा साँस लेने की कोशिश करते हुए पानी पीने लगी थी।

    वहीं दूसरी ओर, करण को जल्दी ही अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया था। लेकिन करण घर पर मौजूद था। कायनात की हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह उसकी आँखों के सामने जा सके। एक बार को उसका दिल भी किया कि वह करण से पूछे कि वह उसके साथ इस तरह की हरकतें क्यों कर रहा है, लेकिन वह बार-बार डर जाती थी, क्योंकि करण की आँखों में कुछ ऐसा था कि कायनात ज़्यादा देर उसकी आँखों में नहीं देख पाती थी।

    वेल, तभी उसके दादाजी करण के पास आए थे और उसका हाथ पकड़कर कहने लगे थे, "तू कैसा है? तू ठीक तो फील कर रहा है ना? और हाँ, जल्दी फटाफट ठीक हो जा। नई बहू की वेलकम पार्टी वाले दिन ही मैंने तेरी सगाई करने का ऐलान कर दिया है।"

    "नहीं दादाजी, मैं कोई सगाई नहीं करूँगा।" जैसे ही करण ने यह कहा, उसके दादा जय प्रकाश जी करण की ओर देखकर मुस्कुराए थे।


    आखिर किस हद तक जाएगी करण की जिद? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों।

  • 10. Obbsession of Kaynaat - Chapter 10

    Words: 1743

    Estimated Reading Time: 11 min

    जैसे ही करण ने यह सुना, वह घूर कर अपने दादा को देखने लगा और बोला, "नहीं दादा जी, मैं कोई सगाई नहीं करूँगा।"

    जैसे ही करण ने यह कहा, उसके दादा जय प्रकाश जी करण की ओर देखकर मुस्कुराए और बोले, "तू अच्छी तरह से जानता है कि एक बार HRM ग्रुप का मालिक जो कह दे, वह पत्थर की लकीर है; फिर उसे कोई नहीं मिटा सकता है…"

    अपने दादा की बात सुनने के बाद, करण केवल उन्हें देखता रहा। अगले ही पल वह सीधा अपने कमरे में जाने लगा।

    लेकिन जैसे ही वह अपने कमरे में जाने को हुआ, आचानक से उसकी नज़र कायनात पर पड़ी।

    और करण के कदम खुद-ब-खुद रुक गए। वह कायनात को खड़ा होकर देखने लगा।

    कायनात एक हल्के पिंक कलर की साड़ी पहने हुए, कमरे से बाहर आ रही थी। वह अपने साड़ी का पल्लू ठीक करती हुई आ रही थी, जिसकी वजह से कायनात के पेट पर छोटा सा, प्यारा सा तिल दिखाई दे रहा था। जिसे देखकर करण की आँखों में चमक आ गई।

    और वह बड़ी ही बुरी तरह से कायनात को ऊपर से लेकर नीचे तक घूरने लगा।

    और जैसे ही कायनात को अचानक अपने ऊपर किसी की नज़र का एहसास हुआ और उसने अपने सामने की ओर देखा, तो वह काफी हद तक डर गई! क्योंकि उसके सामने करण खड़ा हुआ था। लेकिन इससे पहले कि वह करण को कुछ कहती, तभी अचानक राज भी कमरे से बाहर आ गए।

    और कायनात का हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया राज ने। तब तक करण को नहीं देखा था राज ने।

    लेकिन कायनात की एक नज़र करण पर ही थी। राज का एक हाथ कायनात की कमर में था और वह उसके कान के पास जाकर कह रहा था, "वह आज शाम को तैयार रहे, वह आज शाम उसे घुमाने ले जाएगा…"

    लेकिन कायनात की आँखें बार-बार करण पर जाकर ठहर रही थीं। करण, जो कि अस्पताल से अभी-अभी आया था, उसके घाव अभी सब ताज़ा थे।

    और अब राज और कायनात को करीब देखकर, उसने गुस्से से अपने हाथ की मुट्ठी बनाकर सीधा अपने कमरे की दीवार पर दे मारी, जिससे उसके हाथों से खून टपकना शुरू हो गया।

    जैसे ही कायनात ने यह देखा, वह अंदर तक सहम गई। उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह किसी को इस बारे में कुछ बता सके। उसे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसका देवर क्या चाह रहा था।

    और जल्दी ही कायनात, करण को इग्नोर करते हुए, राज के साथ जाने लगी।

    वहीं दूसरी ओर, एक जवान लड़की की लाश मिलने के बाद, गाँव में एक बार फिर पूरी तरह से सन्नाटा पसर चुका था।

    आज उस जवान लड़की की लाश देखने के लिए रियांशी भी गई हुई थी।

    और कहीं ना कहीं उसके मन में कुछ अलग ही तरह के खयालात जन्म लेने लगे थे।

    और उसने अपने पिता, मुखिया को कह दिया था कि कुछ ना कुछ वह ऐसा करें जिसकी वजह से कायनात यहाँ इस गाँव में आने पर मजबूर हो जाए।

    और उसके बाद वह उसे उस जिस्म की प्यासी आत्मा के हवाले कर देगी।

    वैसे भी, जो शहर से और विदेश से लोग आते हैं, उन लोगों को गाँव के अंदर हो रही घटनाओं के बारे में जानने की क्यूरियोसिटी होती है।

    तो क्यों ना हम इस बात का फायदा उठाएँ? क्योंकि जो बाहर से लोग आते हैं, जिन्हें ज़्यादा किसी चीज़ की नॉलेज नहीं होती है, जानकारी नहीं होती है, वह हर चीज़ को झूठा मान लेते हैं,

    और ज़्यादातर आत्माओं में, जिस की प्यासी आत्मा, भूत-प्रेत इन सब चीज़ों में, वह किसी तरह का कोई विश्वास नहीं करते हैं।

    तो वह सोचने लगी थी कि कुछ ना कुछ ऐसा किया जाए जिससे कायनात इस गाँव में आने पर मजबूर हो जाए।

    और एक बार कायनात इस गाँव में आ गई, फिर रियांशी बड़े चढ़कर उस भूत के किस्से कायनात के सामने कहेगी।

    और फिर कायनात खुद ब खुद जंगल के उस पार, नदी के उस पार चल जाएगी… और वहाँ जाकर वह हो जाएगी जिस्म की प्यासी आत्मा का शिकार। कहीं ना कहीं रियांशी काफी कुछ सोचने लगी थी।

    क्योंकि वह कायनात को कोई नॉर्मल, सीधी-साधी, सिंपल मौत नहीं देना चाहती थी।

    उसने सोच लिया था, जिस कायनात ने उसके सारे सपने तोड़ दिए, जिसे बचपन से लेकर आज तक वह अपना मानती हुई आई थी… उसे एक पल में उसने छीन लिया, तो वह उस कायनात को इतनी जल्दी, इतनी आसान मौत नहीं देगी। वहीं दूसरी ओर, राज ने स्पेशली कायनात के लिए एक बड़े से होटल का एक कपल सूट बुक किया था।

    क्योंकि वह कुछ क्वालिटी टाइम कायनात के साथ स्पेंड करना चाहता था।

    वहीं पर वह दोनों रात का डिनर करने वाले थे।

    राज ने जल्दी ही अपने ऑफिस का काम खत्म कर लिया था, क्योंकि राज HRM ग्रुप का अध्यक्ष था, तो उसके ऊपर काम का सबसे ज़्यादा भार रहता था।

    लेकिन उसके दादाजी और साथ ही साथ उसके पिताजी ने वक्त की नज़ाकत को समझते हुए, राज को हैंड्स-फ़्री कर दिया था।

    और अब राज के पास समय ही समय था। इतना ही नहीं, उसके दादाजी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि राज और कायनात कुछ दिनों के लिए कहीं हनीमून पर आ जाएँ।

    या स्विट्ज़रलैंड चले जाएँ, अमेरिका; जहाँ उनका मन होगा, वहाँ घूमने चले जाएँ।

    क्योंकि ये दिन वापस से लौटकर नहीं आते हैं।

    लेकिन राज ने साफ़-साफ़ मना कर दिया था, क्योंकि वह काम को लेकर किसी तरह की लापरवाही नहीं कर सकता था।

    और अब तो हज़ारों लोगों की ज़िम्मेदारी उसके कंधों पर थी, तो इस तरह से वह अपने हनीमून के लिए नहीं जा सकता था।

    लेकिन वह कायनात को भी दुखी नहीं करना चाहता था। वह अच्छी तरह से जानता था, एक लड़की की नई-नई शादी ही हुई है, उसके कुछ अपने सपने हैं, उसके कुछ अरमान हैं, तो इस तरह से वह उसके अरमानों को भी मिटते हुए नहीं देख सकता था।

    इसीलिए राज ने कायनात के लिए छोटे-छोटे प्लान अरेंज किए थे।

    शहर के सबसे मशहूर होटल में एक बड़ा ही रोमांटिक सा डिनर प्लान किया था, जिससे वह कायनात को आज दुनिया भर का स्पेशल फील कराना चाहता था।

    कायनात को माही ने अपनी पार्लर वाली दोस्त से तैयार करवा दिया था। कायनात रेड रंग की चटक साड़ी पहनी थी और बड़ा सा सिंदूर उसने अपनी मांग में भरा था।

    जिसमें कायनात की खूबसूरती इतनी निखर कर आ रही थी कि एक पल को तो अगर कोई औरत भी उसे देख ले, तो जल-भून कर राख हो जाए।

    और माही तो तुरंत कायनात को गले लगाकर कहने लगी, "वाह भाभी! आप कितनी खूबसूरत हो! आप जानती हैं, जब आपकी वेलकम पार्टी में मैं अपने सभी दोस्तों को बुलाने वाली हूँ, और सबसे आपको इंट्रोड्यूस कर आऊँगी। और आप देखना, जब सब आपकी तारीफ़ करेंगे, तब मुझे कितना अच्छा लगने वाला है, और आप देखेंगे, सब के सब जलने वाले हैं मुझसे, कि मेरी भाभी सबसे खूबसूरत है!"

    माही ने कायनात के हाथों को चूम लिया। और कायनात उसके इस तरह से प्यार करने पर थोड़ा सा मुस्कुरा दी।

    और कहने लगी, "बस बस! अपनी भाभी को इतना मक्खन लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है! और फ़टाफ़ट से मुझे लेकर चलो, तुम्हारे भैया मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। कहीं ऐसा ना हो कि वह मुझसे नाराज़ हो जाए।"

    कायनात जल्दी से माही को चलने के लिए कहने लगी।

    माही जल्दी से बाहर निकल गई और कहने लगी, "भाभी! आप एक काम कीजिए, आप जल्दी फ़टाफ़ट तैयार रहिए, तब तक मैं भैया की आँखें बंद करवाती हूँ। मैं चाहती हूँ कि भैया आपको इतने अच्छे लुक में देखें, तो तुरंत आपको देखकर बेहोश हो जाएँ!"

    माही हँसने लगी और कायनात उसके इस तरह के बदमाशी पर केवल मुस्कुरा कर रह गई।

    और पाँच मिनट वेट करने के बाद, जैसे ही वह कमरे से निकली, अचानक से वह किसी से बड़ी बुरी तरह से टकरा गई, और वह कोई और नहीं, बल्कि करण था।

    करण ने कायनात को अपनी बाहों में थाम लिया। करण का एक हाथ कायनात की कमर में था, तो दूसरा हाथ उसके हाथों में था।

    और वह कायनात को इतने करीब देखकर अपने होश खोने लगा। ऊपर से कायनात बड़ी खूबसूरत लग रही थी।

    और वहीं, जैसे ही कायनात ने करण को अपने करीब देखा, तो उसने जल्दी से सीधा खड़े होने की कोशिश की।

    लेकिन करण जानबूझकर उसका हाथ छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।

    इतना ही नहीं, उसने अपना हाथ कायनात की कमर पर कस लिया, जिससे कायनात को थोड़ा सा दर्द भी महसूस हो रहा था। और तभी अचानक से, थोड़ा सा ज़बरदस्ती करते हुए, उसने करण से अपना हाथ छुड़ा लिया।

    और करण की ओर देखकर कहने लगी, "यह क्या बदतमीज़ी है देवर जी? और आप मुझसे इस तरह का बर्ताव क्यों कर रहे हैं? क्या प्रॉब्लम है आपकी?"

    कायनात, जो काफी दिनों से चुप थी, जो बात उसके मन में थी, वह आज उसने अपनी जुबान पर ले आई थी। और सीधा-सीधा करण को उसी के मुँह पर "देवर जी" बोलकर उससे सवाल किया था।

    अब करण, कायनात के इस तरह से उसे "देवर" बोले जाने पर, आग-बबूला हो उठा।

    और फिर हल्का सा उसके करीब जाकर कहने लगा, "बहुत खूबसूरत लग रही हो, लेकिन यह खूबसूरती सिर्फ़ मेरी है। तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी हो, भले ही तुम्हारा गठबंधन मेरे बड़े भाई राज के साथ हो गया हो… लेकिन मैं इस शादी को नहीं मानता, क्योंकि तुम पर सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा अधिकार है… सिर्फ़ मेरा…"

    अपने देवर की इतनी पागलपन वाली बात सुनकर, कायनात की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था।

    और उसने जल्दी से करण को अपने सामने से हटाकर, वह दौड़ते-भागते राज की तरफ़ जाने लगी।

    कायनात जल्दी से सीढ़ियों पर दौड़ती-भागती जा रही थी और अचानक से राज ने उसे तुरंत संभाल लिया।

    कायनात गिरते-गिरते बची। तब माही पीछे से चिल्लाकर बोली, "ओह हो! भाभी! मैंने आपसे कहा था ना कि आपको अभी नहीं आना है! अभी हमें भैया को थोड़ा सा सताने तो दे दिया होता! कितनी जल्दी आ गई आप!"

    माही की बात सुनकर कायनात कुछ नहीं बोली, बल्कि वह काफी ज़्यादा सहमी हुई सी थी। तब राज, कायनात को इस तरह से देखकर, उसका हाथ पकड़कर कहने लगा…

  • 11. Obbsession of Kaynaat - Chapter 11

    Words: 977

    Estimated Reading Time: 6 min

    ओह हो! भाभी! मैंने आपसे कहा था ना कि आपको अभी नहीं आना है! अभी हमें भैया को थोड़ा सा सताने तो दे दिया होता! कितनी जल्दी आ गई आप!

    माही की बात सुनकर कायनात कुछ नहीं बोली, वह काफी सहमी हुई सी थी। तब राज, कायनात को इस तरह देखकर, उसका हाथ पकड़कर कहने लगा, "क्या हुआ, कायनात? तुम ठीक तो हो? अगर तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, तो हम कल भी जा सकते हैं, कोई इशू नहीं है। बस तुम्हारी तबीयत ठीक होनी चाहिए।"

    तब कायनात बोली, "नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। मैं ठीक हूँ। एक्चुअली, मैंने अभी एक छिपकली देखी, तो मैं उसे देखकर डर गई।"

    ऐसे कहकर कायनात ने झूठ बोल दिया। और राज कायनात की बात सुनकर जोरों से हँस पड़ा। और कहने लगा, "मेरी इतनी खूबसूरत बीवी एक मामूली सी छिपकली से डरती है! अरे, यह बात किसी को पता नहीं होनी चाहिए, कहीं ऐसा ना हो कि सब लोग मेरा मज़ाक उड़ाने लगें!"

    ऐसा कहकर राज हँसने लगा। साथ में माही भी कायनात का मज़ाक उड़ाने लगी, "की भाभी कैसे एक छिपकली से डर गई!"

    तभी राज बोला, "तुम चलो फ़टाफ़ट, कहीं ऐसा ना हो कि हमें डिनर के बजाय सुबह का ब्रेकफ़ास्ट करना पड़े। ऑलरेडी रात के 9:00 बज चुके हैं।"

    ऐसा कहकर राज कायनात को जल्दी ही उस मशहूर होटल में ले आया, जहाँ उसने एक रोमांटिक डिनर प्लान किया था।

    और जैसे ही वह दोनों होटल में गए, होटल वालों ने उनका ग्रैंड वेलकम किया। क्योंकि उस होटल का मालिक राज ही था, यानी मेवाड़ी परिवार ही उस होटल का मालिक था। तो राज ने अपने ख़ास आदमियों को एक बेहतरीन सा रूम तैयार करने के लिए कहा था, क्योंकि आज वह कायनात के साथ इसी होटल के बेडरूम में क्वालिटी टाइम स्पेंड करना चाहता था।

    पहले उन्होंने थोड़े से अलग-हटके, एक प्यारा सा डिनर प्लान किया था। हर तरफ़ रेड रंग के बैलून, हार्ट शेप के, नीचे गिरे हुए थे। और तब, खुशगवार माहौल में, हल्के-हल्के म्यूज़िक के साथ, कायनात और राज ने डिनर किया।

    डिनर कंप्लीट करने के बाद, राज थोड़ा सा रोमांटिक हो गया, और कायनात से कहने लगा, "मुझे लगता है कि आप मुझे थोड़ा सा मीठा भी खिला दें। आपका क्या ख़्याल है इस बारे में?" जैसे ही राज ने कायनात के होठों की ओर देखते हुए कहा, कायनात शर्मा उठी, क्योंकि वह राज की बातों का मतलब अच्छी तरह से समझ गई थी।

    तभी राज ने तुरंत अपने एक आदमी को बुलाया कि जो उसने स्पेशल रूम कायनात के लिए तैयार करवाया था, उसे ओपन किया जाए। ऐसा कहकर उसने अपने आदमियों को वह रूम खोलने के लिए भेज दिया। क्योंकि राज ने खुद थोड़ा सा टाइम निकालकर, अपनी निगरानी में एक कमरा तैयार करवाया था, जिसमें आज वह कायनात के साथ टाइम स्पेंड करने वाला था। और वह कायनात को खुद यह सब कुछ, अपनी आँखों से सरप्राइज़ देना चाहता था कि उसने उसके लिए कितनी मेहनत की थी। इसलिए उसने कायनात की आँखों पर अपने हाथ रख दिए। कहने लगा, "जब तक मैं नहीं कहूँगा, तुम अपनी आँखें नहीं खोलोगी।" ऐसा कहकर धीरे-धीरे वह उस कमरे की ओर कायनात को लेकर जाने लगा, जिस कमरे का डेकोरेशन खुद उसने अपने हाथों से किया था, और उसे बड़ा ही खूबसूरत सजाया था। उसे पूरी उम्मीद थी कि कायनात को वहाँ जाकर बहुत अच्छा लगेगा; शायद वह अपनी ज़िंदगी की नई शुरुआत (सुहागरात) शायद इस कमरे से करे। इसलिए राज धीरे-धीरे कायनात को लेकर जाने लगा… और कायनात भी खुशी-खुशी राज के साथ जाने लगी। हालाँकि वह करण के बर्ताव से थोड़ा सा परेशान थी, लेकिन अब राज के साथ खुशगवार माहौल में डिनर करने के बाद उसका मूड पूरी तरह से ठीक हो चुका था।

    नौकर ने राज का वह कमरा खोल दिया। उसने बड़ा ही खूबसूरत सा रूम तैयार किया था। राज के कहने के मुताबिक, उस कमरे में पहले से अंधेरा कर रखा था। क्योंकि राज चाहता था कि जैसे ही कायनात वहाँ पर आँखें खोले, तुरंत चारों तरफ़ से उसके ऊपर फूलों की बरसात होने लगे।

    रूम में अंधेरा होने पर कायनात थोड़ा सा डर गई और उसने राज का हाथ पकड़ लिया, और कहने लगी, "राज, आप कहाँ हैं? आप जानते हैं, मुझे अंधेरे से डर लगता है। आपको मुझे इस तरह से अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।"

    तब राज मुस्कुराते हुए कहने लगा, "अरे मेरी प्यारी, भोली-भाली बीवी! क्यों इतना डरती है आप? आपका पति आपके साथ है, आपको डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। एक मिनट, मैं बस लाइट ऑन कर देता हूँ। और तब तक आप अपनी आँखें बंद कीजिए। प्लीज़, आप बिल्कुल भी आँखें नहीं खोलेंगी।"

    ऐसा कहकर राज ने कायनात की आँखें बंद करवा दी, और खुद उसने कमरे की लाइट ऑन कर दी। और जैसे ही उसने कमरे की लाइट ऑन की, तब राज ने कायनात से कहा कि वह भी अपनी आँखें खोले। राज कमरे की ओर नहीं देख रहा था, वह तो सिर्फ़ कायनात की ओर देख रहा था। क्योंकि राज कायनात के चेहरे की खुशी देखना चाहता था कि कायनात किस तरह से मुस्कुराती है… और तभी अचानक, जैसे ही कायनात ने अपनी आँखें खोलीं, कायनात की खुशी के बजाय, कायनात के चेहरे का रंग एकदम सफ़ेद पड़ चुका था। उसका चेहरे का रंग पूरी तरह से उड़ चुका था, और उसने जोरों से चीख मार दी। ...........

    आखिर क्या था उस कमरे में, जिससे कायनात डर गई थी? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों!

  • 12. Obbsession of Kaynaat - Chapter 12

    Words: 1732

    Estimated Reading Time: 11 min

    जैसे ही उसने कमरे की लाइट ऑन की, राज ने कायनात से कहा, “अपनी आँखें खोल।” राज ने अपने कमरे की ओर नहीं देखा था। वह सिर्फ़ कायनात की ओर देख रहा था। वह कायनात के चेहरे की खुशी देखना चाहता था, किस तरह वह मुस्कुराती है। और तभी, जैसे ही कायनात ने अपनी आँखें खोलीं, उसकी खुशी के बजाय, उसका चेहरा एकदम सफ़ेद पड़ चुका था। उसका रंग पूरी तरह उड़ चुका था, और उसने जोरों से चीख मार दी।

    राज ने कायनात का यह अजीब बर्ताव और उसका उड़ा हुआ चेहरा देखकर हैरान हो गया। फिर, जैसे ही उसकी नज़र अपने कमरे पर गई, उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। राज गुस्से और हैरानी से बुरा हाल हो चुका था। क्योंकि जिस बेड को राज ने अपने हाथों से खूबसूरत, सबसे महँगे फूलों से सजाया था, वह पूरा का पूरा बेड चाकू से गुदा हुआ था। जगह-जगह खून के छींटे दिखाई दे रहे थे। पूरा कमरा ऐसा लग रहा था मानो वहाँ दस से पंद्रह लोगों को बुरी तरह से मार डाला गया हो। कमरा भयानक लग रहा था, और वहाँ से कुछ अजीब सी स्मेल आ रही थी। यह देखकर राज का गुस्सा और बढ़ गया। वह जोरों से चिल्लाया, "सिक्योरिटी! सिक्योरिटी!"

    राज की चीख सुनकर होटल का स्टाफ़ देखते ही देखते उसके कमरे में पहुँच गया। जो कोई भी कमरे की हालत देख रहा था, वह हैरान हो रहा था। राज ने जब वह कमरा सेट किया था, तो वह सबसे खूबसूरत कमरा था, लेकिन अब वह ऐसा लग रहा था मानो वहाँ कई लोगों को मार डाला गया हो।


    उस कमरे की ऐसी हालत देखकर, कायनात के दिल में सबसे पहले करण का नाम आया। वह सोचने लगी कि कहीं करण ने यह सब नहीं किया है। क्योंकि करण ने आज फिर उसे कहा था कि वह सिर्फ़ उसकी है। कायनात काफी परेशान हो चुकी थी, और इतना स्ट्रेस वह संभाल नहीं पाई। वह राज की बाहों में बेहोश हो गई।

    कायनात को बेहोश होते देखकर राज घबरा गया, और जल्दी ही उसे अस्पताल में एडमिट करवा दिया। कायनात के बीमार होने की खबर पूरे मेवाड़ी परिवार में पहुँच गई। राज इस एक्सीडेंट से काफी हताश हो चुका था, और उसने तुरंत इन्क्वायरी बिठाई ताकि पता लगाया जा सके कि कमरे की हालत इतनी बुरी किसने की है।

    आखिरकार राज कोई आम आदमी नहीं था; वह पूरे सिस्टम को हिला सकता था। उसके पास इतनी पावर और पोजीशन थी। जल्दी ही राज के दादा, जय प्रकाश जी, उसके साथ अस्पताल में पहुँच गए। जैसे ही राज ने उन्हें कमरे की हालत और सारी बातें बताईं, जय प्रकाश जी कुछ सोचने पर मजबूर हो गए। उनके शक की सुई उनके पोते पर जाकर टिक गई थी। क्योंकि वह करण को अच्छी तरह जानते थे; करण बचपन से ही जिद्दी और साइको जैसा था। और अब उन्हें अपने पोते पर गुस्सा भी आने लगा था। क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि राज के सामने यह बात आए कि करण कायनात में इंटरेस्ट दिखा रहा है। इससे पूरे परिवार की बदनामी का डर था, और मेवाड़ी परिवार अपनी इज़्ज़त के लिए जान तक दे सकता था। वे परिवार की इज़्ज़त पर कोई दाग नहीं लगने देना चाहते थे। इसीलिए गुस्से में उन्होंने जल्दी ही करण से मिलने का फैसला किया। और राज को कहा कि वह कायनात का ख्याल रखे; कायनात को थोड़े शॉक की वजह से बेहोश हो गई थी।

    डॉक्टर ने उसे एक-दो इंजेक्शन लगाए, और सावधानी से खाना वगैरह, रेस्ट करने को कहकर उसे राज के साथ घर भेज दिया। वहीं, दादाजी सीधे करण के पास पहुँचे। करण उस वक़्त हाथ में चाकू लिए, अपने दादा की ओर देख रहा था। एक पल को उसके दादा भी डर गए। करण की आँखों में कुछ अजीब सा, वहशीपन सा था, जिसे देखकर हर कोई डर जाता था। दादाजी ने करण से कहा, "कर क्या हरकत किया तूने? अपने भाई-भाभी के कमरे का क्या हाल कर दिया? क्यों किया तूने ऐसा? तू पागल हो गया है? तुझे मैं कितनी बार समझाऊँ? अगर तू मुझे पहले बताता कि तू कायनात को पसंद करता है, तो मैं तेरी शादी उससे करवा देता, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता; वह राज की बीवी है। समझा तू?"

    करण ने अपने हाथ में पकड़ा चाकू अपने दादा की ओर करते हुए कहा…

    "दादाजी, आप जानते हैं, यह मेरे हाथ में क्या है? इसे चाकू कहते हैं, और इस चाकू को अगर हम इस तरह से पकड़कर सीधा किसी के जिस्म के अंदर डालें, तो यह शायद शायद करके चला जाता है… और आपको पता है, तो कितना सारा खून निकलता है! इतना सारा खून निकलता है! और आप जानते हैं, मुझे खून निकलता हुआ देखकर कितना मज़ा आता है!"

    ऐसा कहकर करण जोरों से हँसने लगा।

    उसके दादा एक पल को करण का यह बर्ताव देखकर काँप गए। उन्हें लगने लगा कि कहीं उनका पोता पागल तो नहीं हो गया है। वह जोरों से चिल्लाकर बोले, "खबरदार! क्या हरकत है यह? और कैसी बदतमीज़ी है! और बहकी-बहकी बातें कर रहे हो तुम! क्या तुम भूल गए, तुम अपने दादा के सामने खड़े हुए हो? क्या कर रहे हो तुम?"

    अपने दादा की बात सुनकर, करण ने चाकू दूर फेंक दिया, और अपने दादा की ओर देखकर कहने लगा, "दादा, मुझे नहीं पता, मुझे क्या हो गया है, लेकिन मुझे कायनात चाहिए। मैं उसके बिना नहीं रह सकता; वह मेरी कोई भाभी नहीं है। मुझे कायनात चाहिए! आप राज का कुछ करो! राज का कायनात से तलाक कर दो; उसे अलग कर दो! मुझे कायनात चाहिए!" ऐसा कहकर करण बुरी तरह से अपने दादा के सामने गिड़गिड़ाने लगा।

    अब उसके दादा को समझ आ गया कि करण को कोई मानसिक समस्या है। इसीलिए उसके दादा ने करण से कहा, "देखो बेटा, अब मुझे लगता है कि तुम किसी मानसिक रोग के शिकार हो गए हो… पर तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है; तुम्हारा दादा तुम्हारे लिए डॉक्टरों की लाइन लगा देगा, और बहुत जल्द तुम्हें ठीक कर दूँगा। अरे, तू मेरे आँख का तारा है! HRM ग्रुप के दो सितारे हैं—एक मेरा राज और एक मेरा करण। मैं तुम्हें कभी कुछ नहीं होने दूँगा। और रही बात तेरी उस होटल वाली हरकत की, तो फ़िक्र मत कर, मैं सब मामला रफ़ा-दफ़ा कर दूँगा। लेकिन तुझे मुझे वादा करना होगा, अपनी भाभी के बारे में यह उल्टी-सीधी बातें करना पूरी तरह से बंद कर देगा!"

    जैसे ही उसके दादा ने फिर से कायनात को "भाभी" कहा, करण गुस्से से अपने दादा को घूरने लगा, और कहने लगा, "मैंने आपसे कहा ना, उसे आप मेरी भाभी मत कहिए! मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता हूँ! वह कायनात है; वह सिर्फ़ मेरी कायनात है, मेरी दुनिया है! और उसे सिर्फ़ मेरे साथ रहना चाहिए, मेरे करीब रहना चाहिए!" ऐसा कहकर वह जोरों से हँसने लगा। और कहने लगा, "दादाजी, आप इतना परेशान क्यों हो रहे हैं? क्या आपने कभी मोहब्बत नहीं की? अरे, वह जो गाँव में मुखिया है, जिसे आपने अपने गाँव की हवेली और प्रॉपर्टी की देखरेख के लिए रखा है, उसकी बहन के साथ आपने भी तो इश्क़ किया था!"

    यह सुनकर उसके दादा का रंग उड़ गया, और उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो बात उसके घर में किसी को नहीं पता, वह बात करण को कैसे पता चली? उसके दादा हकलाकर बोले, "यह क्या बकवास कर रहे हो तुम? तुम्हें कैसे पता चला? और यह सब तुम कैसे जानते हो, जबकि तुम्हारी पैदाइश तो यहाँ शहर में हुई है? मैं गाँव से तुम लोगों को कब का लेकर आ चुका हूँ।"

    यह सुनकर करण हँसते हुए कहने लगा, "दादाजी, आखिरकार मैं भी तो आपका ही पोता हूँ ना, और मोहब्बत तो हमारे खून में है! अब मैं कुछ नहीं जानता; जिस तरह से आपने अपनी मोहब्बत को हासिल किया था, मैं भी अपनी मोहब्बत को हासिल करना चाहता हूँ… और इसके लिए आपको मेरी मदद करनी ही होगी; सुन रहे हैं ना आप? और अगर आपने मेरी मदद नहीं की, तो याद रखिएगा, मैं कुछ भी कर सकता हूँ…"

    करण की बेतुकी बातें सुनकर उसके दादा की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था… और उन्हें पूरा यकीन हो गया था कि उनका पोता करण किसी मानसिक बीमारी का शिकार हो चुका है…

  • 13. Obbsession of Kaynaat - Chapter 13

    Words: 962

    Estimated Reading Time: 6 min

    करण की ऐसी बेतुकी बातें सुनकर उसके दादा हैरान रह गए। उन्हें यकीन हो गया था कि करण किसी मानसिक रोग का शिकार हो गया है।

    उनके दादा करण की हरकतों से बहुत परेशान थे।

    वे करण से बहुत प्यार करते थे और बचपन से उसकी हर चाहत पूरी करते आए थे।

    लेकिन करण की यह चाहत उनके लिए पूरी करना नामुमकिन था।

    उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। कायनात राज की पत्नी थी, पर उसके पिता विदेश के बड़े उद्योगपति थे, जिनकी वजह से HRM ग्रुप को 500 करोड़ का सौदा मिला था।

    अगर कायनात को कोई परेशान करता, तो इसका सीधा असर उनके बिज़नेस पर पड़ता।

    उनके दादा सब कुछ सह सकते थे, पर अपने बिज़नेस पर कोई आंच नहीं आने दे सकते थे।

    इसलिए वे करण को गुस्से से घूरने लगे और अचानक उसका गिरेबान पकड़ लिया।

    "यह पागलपन बंद कर! तुझे तुरंत साइकियाट्रिस्ट के पास ले जा रहा हूँ। तेरा दिमागी संतुलन ठीक नहीं है। बेवजह गाँव की मुखिया की बहन की कहानी सुना रहा है और अपनी भाभी के बारे में उल्टा-सीधा सोच रहा है। तुझे ठीक होने की ज़रूरत है। और तेरी शादी मैंने तय कर दी है। कायनात की वेलकम पार्टी वाले दिन ही तेरी सगाई होगी। चुपचाप सगाई करेगा। अगर तूने कोई तमाशा किया, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। और अब कोई और गलती मत करना। तूने राज और कायनात का हनीमून खराब कर दिया, उनके कमरे को चाकू से नुकसान पहुँचाया। अब कोई गलती की गुंजाइश नहीं है, याद रखना!"

    यह कहकर दादा चले गए। करण घुटनों के बल बैठ गया। फिर उसने हाथ में पकड़े चाकू से अपने दाएँ हाथ पर लिखना शुरू कर दिया: "कायनात"। और फिर बेहोश हो गया।

    करण पूरी तरह बेहोश हो गया था, और खून बह रहा था।

    थोड़ी देर बाद, बहता खून उसके शरीर में वापस जाने लगा और खून से लिखा "कायनात" साफ़ होने लगा। करण ठीक होकर खड़ा हो गया। उसकी आँखें अलग-अलग रंगों में चमकने लगीं। उसने चाकू मुँह में लेकर कहा,

    "कायनात, तुम सिर्फ़ मेरी हो!"

    यह बहुत खतरनाक लग रहा था। ऐसा लग रहा था मानो करण के शरीर में किसी और की आत्मा आ गई हो।

    वह आत्मा वही थी जिसने ठाकुरगंज गाँव में जवान लड़कियों का जीना हराम कर रखा था। वह यहाँ सिर्फ़ कायनात को देखने की इच्छा से आया था। रियाशी ने अपने पिता से कायनात की खूबसूरती के बारे में बताया था, तब से उसे कायनात को देखने की इच्छा हुई थी।

    लेकिन उसे पता नहीं था कि कायनात वही लड़की है जिसके चक्कर में उसने कई मासूम लड़कियों की ज़िन्दगी बर्बाद की थी।

    कायनात उसकी पिछले जन्म की साथी थी। करण कायनात के प्रति आसक्त था, इसलिए उस आत्मा के लिए उसे अपना मोहरा बनाना आसान हो गया था। अब करण का शरीर उसका दूसरा घर बन गया था।

    दूसरी ओर, राज कायनात को घर लाया था। वंदना जी कायनात को देखकर परेशान हो गईं और बार-बार उसका सिर छू रही थीं, और हालचाल पूछ रही थीं।

    वंदना जी बहुत परेशान थीं। उन्हें पता था कि दोनों कैसे एक साथ गए थे, लेकिन वहाँ क्या हुआ, यह बात पूरे घर में फैल चुकी थी।

    सब परेशान थे। राज के पिता ने पुलिस को जाँच के लिए लगा दिया था। वे नहीं चाहते थे कि जो उनके बेटे के साथ ऐसा किया है, वह बच जाए।

    तभी वंदना जी गुस्से में बोलीं, "मैंने तुझे कहा था ना, अपने साथ सुरक्षा लेकर जाना चाहिए, पर तू मेरी कोई बात नहीं सुनता!"

  • 14. Obbsession of Kaynaat - Chapter 14

    Words: 2153

    Estimated Reading Time: 13 min

    वंदना जी राज पर गुस्सा होते हुए बोली थीं, "मैंने तुझे कहा था ना, तुझे अपने साथ सिक्योरिटी लेकर जानी चाहिए थी, पर तू है कि मेरी कोई बात नहीं सुनता! अगर तू गार्ड्स लेकर जाता, तो क्या हो जाता? तुझे पता है कितना बड़ा हादसा हो सकता था? कायनात बहू की जान जा सकती थी, तेरे साथ कुछ हो सकता था। आखिरकार, तू समझता क्यों नहीं है?"

    उन्होंने राज को डाँटना शुरू कर दिया था। कायनात सहमी-सहमी सी नज़रों से कभी वंदना जी को, कभी राज को देख रही थी। वह उन्हें देख ही रही थी कि अचानक से कायनात के बाल जोरों से उड़ने लगे थे। कुछ अजीब, अलग तरह की आँधी उनके हॉल में आने लगी थी। खिड़की-दरवाज़े अपने आप ही तेज़ी से बंद और खुलने लगे थे। तभी अचानक कायनात की नज़र सीढ़ियों से आते हुए करण पर पड़ी थी। करण को देखकर कायनात अंदर तक से सहम गई थी। ऐसा लगने लगा था मानो करण केवल उसे देख ही रहा हो, बल्कि आँखों ही आँखों में उसे खाने की कोशिश कर रहा हो। कायनात की रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई थी, और उसने घबराकर राज का बाजू पकड़ लिया था।

    तभी अचानक राज बोला था, "अरे माँ! आप यह कैसी बातें कर रही हैं? मैंने आपको कहा ना कि सिक्योरिटी या किसी भी हमले की बातें कायनात के सामने मत करो! आपने देखा कि कितना ज़्यादा डर गई है।"

    राज को लग रहा था कि उसकी माँ उस पर हुए हमले की बात कर रही थी, इसलिए कायनात डर गई है। लेकिन राज को इस बात का दूर-दूर तक कोई एहसास नहीं था कि कायनात इस वक़्त उसकी माँ की बातों से नहीं, बल्कि अपने भाई से डर रही है, जो कि बड़ी ही हवस और गंदी नज़रों से कायनात को देख रहा था।

    जैसे ही राज की नज़र करण पर पड़ी, वह उसकी ओर देखकर कहने लगा था, "करण, तुम कमरे से बाहर क्यों आए? तुम्हारी अभी तबीयत पूरी तरह से ठीक नहीं है। मुझे लगता है, तुम्हें जाकर आराम करना चाहिए।"

    तभी वंदना जी थोड़ा सा आगे आई थीं और कहने लगी थीं, "लगता है मेरे बच्चों को बुरी तरह से किसी की नज़र लग गई है! पहले हमारे खुद के घर में मेरे बेटे करण पर हमला हुआ, और अब इस तरह से मेरे बहू और बेटे के स्पेशल मोमेंट को ख़राब कर दिया गया। मुझे लगता है ज़रूर कुछ ना कुछ गड़बड़ है।"

    वह अपने पति, अरविंद जी को अपने बेटों की सिक्योरिटी बढ़ाने के लिए कहने लगी थीं।

    तभी अरविंद जी वंदना जी के पास आए और कहने लगे थे, "अरे भाग्यवान! क्यों इतना परेशान हो रही हो? हाँ, हम मानते हैं कि हमें बच्चों की सिक्योरिटी को लेकर पहले ही सचेत रहना चाहिए था, लेकिन अब आपको परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। ऑलरेडी हमने पूरी की पूरी पुलिस फ़ोर्स इस काम में लगा दी है; बहुत जल्द तुम्हारे बेटे करण और साथ-साथ राज और कायनात के गुनहगारों को पकड़ लिया जाएगा।"

    कायनात उस वक़्त करण को फ़ेस नहीं करना चाहती थी, क्योंकि उसे पूरा यकीन था कि जो कमरा बिगड़ गया था, वह किसी और ने नहीं, करण ने ही बिगाड़ा होगा। वह इस बात को फ़ेस नहीं करना चाहती थी; उसे काफी ज़्यादा अजीब सी फ़ीलिंग आ रही थी, और उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसका देवर चाहता क्या है। अगर वह उसे पसंद ही करता था, तो वह उस समय कहाँ ग़ायब हो गया था, जिस समय उसने उसे प्रपोज़ किया था? उस समय तो कायनात को लगा था कि यह कोई सिरफ़िरा लड़का होगा; ऐसा होता नहीं, रोड पर चलते हुए किसी को कोई भी लड़की पसंद आ गई, उसे प्रपोज़ कर दिया; अगर वह हाँ कर दें तो ठीक, मना कर दें तो भी ठीक। तो कायनात को उस वक़्त वही लगा था, लेकिन अब तो बात कुछ अलग थी। अब मामला पूरी तरह से अलग हो चुका था; करण का बर्ताव धीरे-धीरे कायनात को लेकर पूरी तरह से बदलने लगा था, जो कि कायनात के लिए, किसी के लिए भी, किसी भी हद तक ठीक नहीं था।

    जल्दी ही राज कायनात को लेकर उसके कमरे में आ गया था, क्योंकि इस वक़्त कायनात को आराम की बहुत ज़रूरत थी। कायनात की आँखों के सामने वह कमरा बार-बार आ रहा था, जिस कमरे की हालत बहुत ही ज़्यादा बुरी थी। कायनात सोचने लगी थी कि अगर उस बेड के गद्दे की जगह वह या राज होता, तो जिसने भी इतना ज़्यादा गुस्सा वहाँ दिखाया था, उसके अंदर कितनी सारी नफ़रत होगी। कायनात के दिल में एक बड़ा सा डर बैठ गया था, लेकिन फ़िलहाल उसे इन सब चीज़ों को बड़ी ही प्रैक्टिकल तरीके से फ़ेस करना था। कायनात शुरू से ही हर चीज़ सोच-समझकर किया करती थी; बड़ी ही सुलझी हुई और सीधी-साधी, साथ में थोड़ी चुलबुली सी थी। लेकिन अभी यहाँ मसला कुछ और था; धीरे-धीरे करण का बर्ताव कायनात को काफी कुछ सोचने-समझने पर मजबूर कर रहा था।

    इसलिए कायनात ने सोचा कि उसे अब दिल कड़ा करके राज को सब कुछ बता देना चाहिए, क्योंकि उसे पूरी उम्मीद थी कि राज जैसे ही सच जानेंगे, वह उसकी सारी बात सुन लेगा। यह सोचते हुए कायनात धीरे-धीरे उठ बैठी थी। राज तभी उसके कमरे में आया था; उसने उसकी ओर मेडिसिन बढ़ाते हुए कहा था, "डॉक्टर ने तुम्हें एक रेस्टलेस मेडिसिन दी है; तुम्हें यह खानी चाहिए। तुम्हें यह मेडिसिन खानी चाहिए; उसके बाद तुम्हें शारीरिक तौर पर और मानसिक तौर पर आराम मिलेगा।"

    उसने दवाइयाँ कायनात की ओर बढ़ा दी थीं। कायनात ने एक नज़र दवाइयों की ओर देखा था; अगले ही पल उसने राज का हाथ पकड़ लिया था और कहने लगी थी, "मैं आपसे कुछ बात करना चाहती हूँ।"

    जैसे ही राज ने कायनात के चेहरे पर कितने ही सारे सवाल देखे, तो वह हैरानी के साथ बोला था, "क्या हुआ, कायनात? क्यों परेशान हो रही हो?"

    "यह सब… हम इतने बड़े बिज़नेसमैन हैं, हमें शहर के न जाने कितने ही लोगों की आँखों में चुभ रहे होंगे, क्योंकि हम लोगों का जितना बिज़नेस, हम लोगों का जितना स्टेट्स, आज तक किसी का भी नहीं हुआ है। इतना ही नहीं, पूरे देश भर में बड़े-बड़े VIP, गुंडे, मवाली, बिज़नेसमैन, हर कोई हमसे बराबरी करने पर तुला हुआ है। तो किसी न किसी ने ज़रूर घात लगाकर हम पर हमला किया है… और यह देखो, करण पर तो कितना बड़ा हमला हुआ था, है ना?"

    जैसे ही राज ने करण का नाम लिया, कायनात थोड़ा सा सहम गई थी। फिर राज ने तुरंत अपना एक हाथ कायनात के गाल पर रखकर कहा था, "मैं जानता हूँ, तुम्हारे लिए सब कुछ टॉलरेट कर पाना काफी ज़्यादा मुश्किल है, क्योंकि यह सब कुछ तुम्हें काफी ज़्यादा अजीब लग रहा होगा, लेकिन हमारे लिए यह बिल्कुल भी अजीब नहीं है। और मुझे शायद तुम्हें पहले बता देना चाहिए था, पर तुम अगर इसी तरह से डरती रहोगी, तो कैसे काम चलेगा?"

    तब कायनात को एहसास हुआ, मानो कि राज कुछ छुपा रहा था। तब कायनात ने जल्दी से राज की ओर देखते हुए कहा, "देखिए राज, अगर कोई ऐसी बात है जो मुझे पता होनी चाहिए, तो प्लीज़ आप मुझे बता दीजिए। आप नहीं जानते कि इस वक़्त मेरी क्या हालत है; सोच-सोचकर मेरा दिमाग ख़राब हो जा रहा है।"

    जैसे ही कायनात यह कहा, राज ने अपना हाथ उसके हाथ पर रखते हुए कहा था…

    "वह एक्चुअली, जब से तुम्हारे पापा के साथ हमारे 500 करोड़ की डील फ़ाइनल हुई है, तब से हमें अंडरवर्ल्ड से धमकी मिलना शुरू हो गई है। क्योंकि उन लोगों की नज़रों में यह बात आ गई है कि कितना सारा पैसा हमारे पास है, तो वह एक बड़ी अच्छी-खासी मोटी फिरौती मांग रहे हैं, और साथ ही साथ उन्होंने कहा है कि अगर हमने उन्हें वह फिरौती नहीं दी, तो वह मुझे और करण को मार सकते हैं…"

    "क्या?" जैसे ही कायनात ने यह सुना, वह थोड़ा सा हैरान थी, लेकिन कहीं ना कहीं उसका दिल तो बार-बार चीखकर यही कह रहा था कि यह सब कुछ फिरौती के लिए नहीं हो रहा है; यह सब कुछ करण ही कर रहा है।

    लेकिन अपने पति की बात सुनने के बाद, कायनात के शब्द उसकी जुबान में ही दबकर रह गए थे। उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह अब राज को इससे आगे कुछ और बता सके। अब कायनात को इस तरह से ख़ामोश देखकर राज उसकी ओर आगे बढ़ा था, और उसके बालों को उसके कान के पीछे करते हुए कहने लगा था, "तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है; मैं बहुत जल्द बेस्ट से बेस्ट सिक्योरिटी एजेंसी से बात करता हूँ, और अब ऐसा कुछ भी नहीं होगा; तुम भी बिल्कुल भी परेशान नहीं होना है, ओके?"

    ऐसा कहकर उसने कायनात को दवाई खाने पर मजबूर कर दिया था, और कायनात दवाइयों के नशे में आराम से, सुकून से सो गई थी।

    कायनात के सोने के बाद राज अपने कमरे से बाहर आ गया था, क्योंकि वह अपने पिता और दादा से घर और फैमिली सिक्योरिटी को लेकर बात करना चाहता था। वह किसी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था, क्योंकि भले ही उसे अपनी ख़ास परवाह नहीं थी, लेकिन कायनात की उसकी ज़िंदगी में आने के बाद उसकी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल चुकी थी, और वह कायनात पर अब किसी तरह की कोई आँच बर्दाश्त नहीं कर सकता था। इसलिए राज ने जल्दी ही अपने पिता और दादा के सामने बैठकर सारे मसले को डिस्कस करना शुरू कर दिया था।

    वहीं, उसके दादा कहीं खोए हुए थे, और कहीं ना कहीं उनका दिल कर रहा था कि वह अपने पोते राज को सारी बातें बता दें, लेकिन वह कुछ सोचकर चुप थे कि कहीं दोनों भाइयों में फूट ना पड़ जाए, और ऐसा हो गया तो HRM ग्रुप बर्बाद होने में एक पल नहीं लगेगा। अगर HRM ग्रुप बर्बाद हो गया, तो उन्होंने जो इतने दिनों से इतनी मेहनत की है, इतने लोगों की जान लेकर उन्होंने जो HRM ग्रुप का एम्पायर खड़ा किया है, वह एक पल में मिट्टी के ढेर में तब्दील हो जाएगा। तो इसीलिए जयप्रकाश जी ने, यानी कि उसके दादा ने, कुछ भी ना बताने का फ़ैसला कर लिया था, और सोच लिया था कि वह खुद इस करण को समझाने की कोशिश करेंगे। कहीं ना कहीं उन्हें लग रहा था कि करण को थोड़ी सी साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम है; वह उसे डॉक्टर को दिखाएँगे, तो वह ठीक हो जाएगा, और करण की बहुत जल्दी सगाई कर देंगे, और उसके बाद एक लड़की जब उसकी ज़िंदगी में आएगी, तो करण बिल्कुल बदल जाएगा, वह कायनात को भी भूल जाएगा। जयप्रकाश जी ने यह सोच लिया था।

    दूसरी ओर, करण राज को उसके कमरे से निकलते हुए देख चुका था, और मौका देखकर जल्दी ही वह कायनात के कमरे में पहुँच गया था। और जैसे उसने कायनात को सुकून से सोते हुए देखा, तो उसके चेहरे पर अपने आप ही मुस्कराहट आ गई थी, और वह खुद को रोक नहीं पाया; उसने आगे बढ़कर अपना हाथ कायनात के गालों पर रख दिया था और सहलाने लगा था।

    कायनात, जो कि अर्ध-नींद में थी, उसे लगा कि राज शायद उसके बेहद करीब है, तो उसने भी अपना हाथ उठाकर करण के हाथ पर रख दिया था। उसे इस बात का एहसास नहीं था कि राज उस वक़्त उसके कमरे में नहीं है, बल्कि करण उसके कमरे में है; वह तो करण को राज ही समझ रही थी। और तभी कायनात ने आँखें बंद ही कहा था, "राज, मैं आपसे कब से कुछ कहना चाहती थी; मुझे लग रहा है कि यह सब कुछ करण कर रहा है…"

    जैसे ही अचानक से कायनात ने हल्की सी टूटी-फूटी जुबान में यह कहा, अब तो करण काफी गुस्से से कायनात को घूरने लगा था, लेकिन अगले ही पल वह थोड़ा सा आगे बढ़ा था, और उसने कायनात के सुर्ख लाल, गुलाबी होठों को चूम लिया था। हालाँकि राज ने अभी तक कायनात के होठों को नहीं चूमा था, और जैसे ही करण ने कायनात के होठों को चूमा, तो कायनात हल्का सा मुस्कुरा दी थी, क्योंकि उसे तो लगा था कि उसका पति राज ही उसे चूम रहा है। और कायनात को ऐसे मुस्कुराते हुए देखकर करण भी मुस्कुराने लगा था। और जल्दी ही उसने मौका पाकर एक बार और कसकर कायनात के होंठों का रसपान करना शुरू कर दिया था… और तभी अचानक…

    क्या कायनात करण के बारे में राज को बता पाएगी? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों! आखिर किस हद तक जाएगा कायनात को लेकर करण का जुनून? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों!

  • 15. Obbsession of Kaynaat - Chapter 15

    Words: 1436

    Estimated Reading Time: 9 min

    और जैसे ही करण ने कायनात के होठों को चुम्मा, तो कायनात हल्का सा मुस्कुरा दी थी। क्योंकि उसे तो लगा था कि उसका पति राज ही उसे चूम रहा है। और कायनात को ऐसे मुस्कुराते हुए देखकर, करण भी मुस्कुराने लगा था। और जल्दी ही उसने, मौका पाकर, एक बार और कसकर कायनात के होंठों का रसपान करना शुरू कर दिया था। और तभी, अचानक उसे एहसास हुआ कि मानो उसका भाई वहाँ आ रहा हो। और मौका देखकर वह जल्दी ही वहाँ से निकल चुका था। और जैसे ही अब राज कमरे में आया, उसने देखा कि कायनात मुस्कुरा रही है; तो राज हैरान हो गया, और कहने लगा, "कायनात, क्या हुआ? तुम मुस्कुरा क्यों रही हो?" जैसे ही राज ने यह कहा, कायनात ने तुरंत अपनी आँखें खोल लीं। वह सोचने लगी कि आज वह उससे यह क्यों पूछ रहा है कि वह मुस्कुरा रही है। तभी कायनात राज की ओर देखकर कहने लगी, "क्या हो गया आपको? अभी तो आप इतने ज़्यादा रोमांटिक हो रहे थे, और अभी आप कह रहे हैं कि मैं मुस्कुरा क्यों रही हूँ? आप इतनी शरारत कर रहे हैं, तो क्या मैं मुस्कुराऊँ भी ना?" जैसे ही कायनात ने यह कहा, राज हैरानी से कायनात की ओर देखकर कहने लगा, "कैसी बातें कर रही हो? मैं तो अभी-अभी कमरे में आया हूँ। तुम कौन सी शरारतों की बात कर रही हो?" जैसे ही राज ने यह कहा, कायनात का दिल एकदम से धड़क सा गया था। और उसे अब उसे राज को क्या बताती कि उसे अभी किसी ने किस किया था, वह भी उसके होठों पर। और अचानक से कायनात की नज़रें कहीं और नहीं, बल्कि अपने दरवाज़े के बाहर खड़े हुए करण पर पड़ीं, जो कि अपने होठों पर अपना हाथ बुरी तरह से फेर रहा था। जैसे ही कायनात ने यह देखा, वह पूरी तरह से घबरा गई थी और उसने कसकर राज को गले से लगा लिया था। और उसे समझ में आ चुका था कि उसके होठों को जिसने चुम्मा था, वह किसी और ने नहीं, बल्कि करण ने चुम्मा था। अब तो कायनात को बहुत ही तेज गुस्सा आया था और साथ ही साथ उसे घिन सी भी महसूस होने लगी थी। क्योंकि कायनात ने सोने से पहले दवाइयाँ ली थीं, तो एक बार फिर वह दवाई के नशे में चूर होकर सो चुकी थी। वहीं करण, कायनात को किस करने के बाद, आज बहुत ही ज़्यादा खुश था। ऐसा लगने लगा था मानो उसने दुनिया का सबसे महँगा और खूबसूरत शरबत पी लिया हो। वह बहुत ही ज़्यादा बुरी तरह से अपने कमरे में जाकर हँसने लगा था। वहीं उसके दादा, जो कि उसके कमरे से ही गुज़र रहे थे, जैसे ही उन्होंने करण को इस तरह से हँसने की आवाज़ सुनी, वे तुरंत उसके पास आ गए थे। और कहने लगे थे, "करण, क्या हुआ बेटा? इतनी बुरी तरह से क्यों हँस रहा है? बता, क्या बात है?" तभी करण अपने दादा को देखकर, उनका हाथ पकड़कर उन्हें गोल-गोल घुमाने लगा था। और कहने लगा, "दादा, दादा, दादा... आप नहीं जानते मैं आज कितना खुश हूँ! आज मैंने उसके खूबसूरत होंठों का रसपान किया है! आप नहीं जानते इस वक्त मुझे कैसा लग रहा है! ओह माय गॉड! क्या फीलिंग थी! मैं ज़िंदगी भर उसके होठों को चूमना चाहता हूँ! मैं उसके साथ रहना चाहता हूँ!" जैसे ही करण इतनी बुरी तरह से, सारी बातें बेशर्मी से अपने दादा से कीं, उसके दादा का गुस्से से बुरा हाल हो गया था। और वे कहने लगे थे, "क्या बकवास कर रहा है तू? पागल हो गया है? तू ऐसी हरकत कैसे कर रहा है? अगर तेरी हरकत के बारे में राज को पता चला, तो वह तेरे बारे में क्या सोचेगा? अरे, टूट जाएगा वह! क्या तुझे हमारे घर की इज़्ज़त का जरा सा भी ख्याल नहीं है? अरे, वह तेरी भाभी है! और तू अपनी भाभी के बारे में इतनी उल्टी-सीधी बातें सोच रहा है?" तभी अचानक करण, जो कि बहुत तेज़ी से हँस रहा था, उसने अपना चेहरा एकदम से सँगीन कर लिया था और अपने दादा के कंधों को पकड़कर कहने लगा था, "इज़्ज़त की बात आप मुझसे कर रहे हैं, दादाजी? जिसने खुद उस गाँव की मुखिया की बहन की शादी का जिम्मा लिया था, लेकिन फिर उसकी शादी की पहली रात आप उसके कमरे में चले गए थे?" जैसे ही करण ने यह कहना शुरू किया, अब तो उसके दादा पूरी तरह से हैरान हो गए थे। और उसे चुप करने की कोशिश करने लगे थे। कहने लगे थे, "क्या बकवास कर रहा है तू? पागल हो गया है? तुझे हो क्या गया है?" तभी करण ने अपने दादा के मुँह पर अपना हाथ रख दिया था। और कहने लगा था, "आपको कुछ नहीं बोलना है। मैं बताता हूँ आपने उस दिन क्या-क्या किया था। मुझे सब कुछ पता है।" ऐसा कहकर करण बड़ी ही बेशर्मी से अपने दादा की लव स्टोरी बताने लगा था। और कहने लगा था, "शादी की पहली रात आप उसके पास गए। हालाँकि उसकी शादी किसी और से होने वाली थी, लेकिन आप उसके साथ सुहागरात मनाना चाहते थे... और आपने उसे कितने ही सारे जेवर दिए थे और कहा था कि उसे बदले में सिर्फ़ आपको एक रात दे दे। और उस रात के बदले आपने उसे कितने सारे गहने-जेवर, इतना ही नहीं, दादी का वह नौलखा हार भी दे दिया था! और तब वह कितनी ज़्यादा खुश हो गई थी! फिर आपने उस लड़की ने जो हरे रंग का घाघरा पहना था, उस घाघरे को उतारना शुरू कर दिया था! और आप उसकी खूबसूरत टाँगों को देखकर कितना मचल उठे थे! दादा जी, उसके बाद आपने किस तरह से उसकी टाँगों को चूमना शुरू किया था!" अब करण के मुँह से इस तरह की बातें सुनकर, अब तो उसके दादा पूरे पसीने पसीने हो गए थे। और उन्होंने उठकर खींचकर एक चाँटा करण के मुँह पर दे मारा था। और कहने लगे थे, "क्या बकवास कर रहा है तू? पागल हो गया है? तुझे हो क्या गया है? मेरे बेटे, होश में आओ! करण, होश में आओ!" ऐसा कहकर वे जल्दी से उसे कमरे से बाहर निकल जाना चाहते थे। क्योंकि जय प्रकाश जी उस रात के बारे में किसी से कोई बात नहीं करना चाहते थे। लेकिन करण तो इतनी डिटेल से सारी बातें बता रहा था, मानो कि उस वक़्त वह वहीं बैठा हुआ था, वहीं मौजूद था। करण के दादाजी, यानी के जयप्रकाश जी के लिए अब उस कमरे में रुकना बहुत ही ज़्यादा मुश्किल हो गया था। क्योंकि करण की बातें उन्हें कहीं न कहीं उनके किए गए उस काम की याद दिला रही थीं, जिसे कहीं न कहीं वे काफी सालों से भूल बैठे थे। लेकिन आज करण के इस तरह से बोलने पर उनकी हैरानी की कोई सीमा नहीं थी। उन्हें तो यकीन नहीं हो रहा था कि उनका पोता उनसे इस तरह से, इस लैंग्वेज में बात कर रहा था। तभी जयप्रकाश जी मौका देखकर उस कमरे से बाहर निकल आए थे। और सीधा उन्होंने आकर अपने आप को कमरे में बंद कर लिया था। और उनके ठीक सामने उनकी पत्नी की फ़ोटो लगी हुई थी, जिस पर एक बड़ा सा हार लटक रहा था। जयप्रकाश जी कितने ही देर तक अपनी पत्नी की फ़ोटो को निहारते रहे थे, और बेचैनी से अपने कमरे में इधर-उधर टहलने लगे थे। आज कहीं न कहीं करण की कही हुई बातें उन्हें अपने उस गाँव, ठाकुरगंज में ले गई थीं, जहाँ से वे कब का निकल कर आ गए थे, और सब कुछ भूल बैठे थे। उन्हें वह दिन आज भी अच्छी तरह से याद था, जब रियाशी के ता, यानी के गाँव का मुखिया, ने उन्हें आकर बताया था कि उसकी बहन का रिश्ता तय हो गया है, और इसी महीने उसकी बारात आनी है। तब जयप्रकाश जी के दिल में कुछ चुभने सा था। क्योंकि उनकी बहन जैसे-जैसे जवान होती गई थी, जयप्रकाश की नज़र उस पर पड़ती चली गई थी। और वे किसी न किसी तरह से उसे अपना बनाना चाहते थे। लेकिन उस वक़्त जयप्रकाश जी गाँव के जमींदारों में से एक थे, तो इस तरह से एक अपने से कम हैसियत की लड़की को अपने घर की बहू नहीं बना सकते थे। लेकिन उनकी नज़र मुखिया की बहन पर फिसल चुकी थी, और वे उसे हर हाल में पाना चाहते थे। और फिर मुखिया की बहन की शादी वाली रात से एक रात पहले, वे जैसे-तैसे चुपके-छुपाते उसके कमरे में जा पहुँचे थे। और जैसा कि करण ने बताया था, उस वक़्त उसने हरे रंग का घाघरा-चोली पहना हुआ था…✍🏻✍🏻🙏🏻💕✍🏻❤❤✍🏻❤✍🏻❤✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 करण के इस तरह के बर्ताव पर अब क्या फैसला लेंगे उसके दादाजी? जानने के लिए बने रहें दोस्तों…

  • 16. Obbsession of Kaynaat - Chapter 16

    Words: 1950

    Estimated Reading Time: 12 min

    और फिर मुखिया की बहन की शादी वाली रात से एक रात पहले, वे जैसे-तैसे चुपके-छुपाते उसके कमरे में पहुँच गए थे।

    और जैसा करण ने बताया था, उस वक्त उसने हरे रंग का घाघरा-चोली पहना हुआ था…लेकिन उनकी नज़र मुखिया की बहन पर फिसल गई थी, और वे उसे हर हाल में पाना चाहते थे।

    और फिर, मुखिया की बहन की शादी वाली रात से एक रात पहले, वे जैसे-तैसे चुपके-छुपाते उसके कमरे में पहुँच गए थे।

    और जैसा कि करण ने बताया था, उस वक्त उसने हरे रंग का घाघरा-चोली पहना हुआ था।

    जिसमें वह बड़ी ही खूबसूरत लग रही थी। तब जयप्रकाश जी ने उसे बहुत सारे गहने, रुपये-पैसे दिए थे,

    और कहा था, "तुम सिर्फ़ आज की रात मुझे दे दो।" पहले तो मुखिया की बहन ने साफ़ मना कर दिया था,

    लेकिन जब उसने इतने सारे जेवर और गहने देखे, और उसे अपनी गरीबी और साथ ही जिससे उसकी शादी हो रही थी, उस गरीब आदमी का एहसास हुआ, तब उसने अपनी इज़्ज़त का सौदा उस वक्त जयप्रकाश जी के साथ कर लिया था।

    और कहीं न कहीं वह रात जयप्रकाश जी आज तक नहीं भूल पाए थे,

    क्योंकि वह उनकी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत रात थी, जब उन्होंने अपने सपनों की लड़की के साथ पूरी रात जिस्मानी रिश्ता बनाया था।


    लेकिन आज करण के मुँह से इस तरह की बातें सुनकर, मुखिया जी काफ़ी हैरान हो रहे थे।

    उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार करण को ये सारी बातें कैसे पता चलीं।

    क्योंकि करण तो कभी ठाकुरगंज, अपने गाँव में गया ही नहीं था, तो वह इस तरह की बातें कैसे कर सकता था?

    अब कहीं न कहीं उन्हें लगने लगा था कि ज़रूर करण पर कोई बुरा साया है,

    जो किस क़दर अपनी भाभी के पीछे दीवाना हो चुका है। और जयप्रकाश जी अपने खानदान की इज़्ज़त पर इतनी सी भी आँच बर्दाश्त नहीं कर सकते थे।

    और ख़ासकर कायनात पर; कायनात उनके लिए एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी थी। कायनात की वजह से उन्हें पूरे 500 करोड़ की डील मिली थी। भले ही यह शादी एक बिज़नेस डील थी, लेकिन कायनात के घर में आने के बाद वे काफ़ी ज़्यादा खुश थे।

    क्योंकि कायनात बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत थी, और हर तरफ़ उसकी ख़ूबसूरती के चर्चे थे। अब जयप्रकाश जी ने सोच लिया था कि अगर उन्हें अपने घर की इज़्ज़त बचानी है, तो सबसे पहले उन्हें करण को ठीक करना होगा।

    और इसी उधेड़बुन में वे पूरी रात सोते-विचारते रहे थे, और आख़िर में एक नतीजे पर पहुँच गए थे। सबसे पहले उन्होंने अपने कुलगुरु से मिलने का फ़ैसला कर लिया था।

    उनके कुलगुरु, जो बरसों से उनके साथ थे, वे हमेशा से ही उन्हें शुभ-अशुभ, किसी भी काम को करने से पहले, उनसे पूछा करते थे।

    और उनसे राय लिया करते थे, और एक शुभ मुहूर्त में ही वह काम किया करते थे।

    इतना ही नहीं, कायनात की कुंडली भी उन्होंने ही दिखाई थी, और उन्होंने ही कायनात को राज के लिए बिल्कुल परफ़ेक्ट बताया था।

    लेकिन अब करण की इस तरह की मानसिक स्थिति देखते हुए, उन्होंने कुलगुरु के साथ-साथ एक शहर के जाने-माने साइकैट्रिस्ट से मिलने का भी फ़ैसला कर लिया था।

    और उसके लिए जयप्रकाश जी ख़ुद जाकर उनसे मिलना चाहते थे।

    वह अच्छी तरह से जानते थे कि अगर इस बात की भनक ज़रा सी भी किसी मीडिया या उनके किसी भी राइवल पार्टी को लग गई, तो वे इस मामले को कितना ज़्यादा तूल दे सकते थे।

    और एचआरएम ग्रुप के शेयर रातों-रात गिर सकते थे। इसलिए वे किसी तरह का कोई रिस्क लिए बिना, कल सबसे पहले ये दो काम करने का फ़ैसला कर लिया था।


    वहीं कायनात अर्ध-नींद के नशे में पूरी रात सो गई थी। और राज, कायनात के सोने के बाद, कितनी देर तक अपना काम ख़त्म करता रहा था।

    क्योंकि राज ने सोच लिया था कि वह सारा काम अब घर से ही करेगा,

    जब तक कायनात पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती,

    और साथ ही साथ उस इंसान के बारे में पता नहीं चल जाता, जिस इंसान ने कायनात के साथ स्पेशल मोमेंट ख़राब किया था।

    अब राज उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ने वाला था।


    काफ़ी देर सिस्टम पर काम करने के बाद, राज भी कायनात के ठीक बराबर में आकर लेट गया था,

    और उसने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया था, और सोने की कोशिश करने लगा था।

    वहीं दूसरी ओर, जैसे ही राज ने कायनात का हाथ पकड़ा, तो करण की लाल-सुर्ख आँखें राज को घूरने लगी थीं।

    राज को इस बात का दूर-दूर तक कोई एहसास नहीं था।

    वह तो बस उस वक़्त अपनी ख़ूबसूरत बीवी, कायनात को देख रहा था, जो एकदम डरी-सहमी सी, पुतली की तरह एक जगह सिमटी हुई लेटी पड़ी थी।

    राज सोचने लगा था कि उसकी शादी को ऑलरेडी दो-तीन दिन होने वाले थे,

    लेकिन अभी तक उन दोनों के बीच में स्पेशल मोमेंट नहीं हुआ था,

    जिस स्पेशल मोमेंट का राज को न जाने कब से इंतज़ार था।

    वेल, राज का दिल भी किया कि वह थोड़ा सा आगे बढ़कर कायनात को प्यार करे,

    लेकिन उस वक़्त कायनात की कंडीशन ठीक नहीं थी। ऊपर से वह दवाइयों के नशे में सो रही थी,

    तो इसीलिए राज ने उसे डिस्टर्ब करना ज़रूरी नहीं समझा था।

    लेकिन कायनात के इतने करीब होकर उसे बहुत ही ज़्यादा बेचैनी होने लगी थी,

    इसीलिए उसने अचानक कायनात का हाथ पकड़कर उसे अपने सीने से लगा लिया था, और उसे चारों तरफ़ से कसकर गले से लगाकर वह गहरी नींद में सो गया था।

    वहीं करण यह सब देखकर गुस्से से बुरा हाल हो गया था, और जल्दी ही उसने अपने कमरे में जाकर तोड़फोड़ करना शुरू कर दी थी,

    और गुस्से से चीखने-चिल्लाने लगा था, "नहीं! भाई! तुझे उसे नहीं छूना चाहिए था! वह सिर्फ़ मेरी है! तुझे उसे अपने पास करीब नहीं बुलाना चाहिए था! अब तुझे इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी! तू सोच भी नहीं सकता कि मैं तेरे साथ क्या कर सकता हूँ!"

    यह सोचते हुए करण बड़ा ही ज़्यादा ख़तरनाक लग रहा था।

    जैसे-तैसे सूरज निकल आया था, और अगली सुबह हो गई थी।

    वहीं जयप्रकाश जी, आज बिना नाश्ता किए, सुबह-सुबह ही अपने दो कामों को करने के लिए निकल गए थे, जिन दो कामों के लिए उन्होंने रात भर सोचा था।

    कहीं न कहीं वंदना जी, जयप्रकाश जी को सुबह के समय नाश्ते की टेबल पर न पाकर पूरी तरह से हैरान थीं,

    क्योंकि आज तक पूरे 26 सालों में ऐसा कभी भी नहीं हुआ था कि जयप्रकाश जी ने कभी इस तरह से सुबह का नाश्ता मिस किया हो।

    कहीं न कहीं वंदना जी काफ़ी परेशान थीं, और उन्होंने अपने पति, अरविंद जी को इस बात के बारे में बताया था।

    "पिताजी को अचानक से आज क्या हुआ है? वे इस तरह से बिना बताए सुबह-सुबह कहाँ जा सकते हैं?"

    तभी अरविंद जी ने वंदना जी से कहा था, "आप सारी चीज़ों को लेकर कुछ ज़्यादा ही चिंता करने लगी हैं। वंदना जी, मुझे लगता है कि आपकी उम्र हो गई है। आपको छोटी-छोटी बातों को लेकर इतना ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए, ठीक है? और रही बात पिताजी की, तो मैं अभी उन्हें फ़ोन करके पूछ लेता हूँ। ज़रूर कोई न कोई ज़रूरी काम आ गया होगा।"

    ऐसा कहकर अरविंद जी जल्दी ही अपने पिता को फ़ोन करने के लिए चले गए थे।

    वहीं राज, अगली सुबह जैसे ही उठा, उसकी नज़र सबसे पहले कायनात पर पड़ी थी। कायनात उसकी बाहों में थी, और उस वक़्त कायनात बला की ख़ूबसूरत लग रही थी। राज कितनी ही देर तक कायनात का ख़ूबसूरत चेहरा निहारता रहा था।

    कायनात को देखकर उसे ऐसा लग रहा था मानो कि उसे देखने के बाद उसे ज़िंदगी में कुछ और ख़ूबसूरत न लगे,

    क्योंकि कायनात की ख़ूबसूरती सभी चीज़ों का, सभी सवालों का जवाब थी।

    थोड़ी देर बाद कायनात की भी आँखें खुल गई थीं, और जैसे ही उसने अपने आप को राज की बाहों में पाया, तो कायनात हल्का सा शर्मा गई थी,

    और राज को एकटक निहारने लगी थी। कुछ देर राज को वह इसी तरह से देखती रही थी। तभी अचानक कायनात को धुंधला सा, राज का वह किस याद आने लगा था,

    जब उसे करण ने किस किया था। कायनात को जैसे ही वह किस याद आया और उसके आँखों के सामने करण का चेहरा आया, तो कायनात एक बार फिर डरने लगी थी,

    और वह राज को कुछ बताना चाहती थी, लेकिन उस वक़्त राज ने उससे पहले ही सवाल करना शुरू कर दिया था। "अब तुम कैसा फील कर रही हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना? तुम जानती हो, तुम्हारी कल रात की हालत देखने के बाद मैं कितना ज़्यादा डर गया था! हाँ, प्लीज़, तुम्हें अपने आप को ठीक रखना होगा। मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर इस तरह से बीमार और परेशान बिल्कुल नहीं देख सकता हूँ।"

    जैसे ही राज ने इस तरह से कायनात से बातें करना शुरू कीं,

    अब कायनात बिल्कुल चुप हो गई थी।

    उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह राज को क्या बताए और कैसे बताए; और राज तो उसे कुछ भी बोलने का मौका ही नहीं दे रहा था। थोड़ी देर बाद

    वंदना जी की आवाज़ राज के कानों में आई। "राज बेटा, तुम अभी तक सोकर नहीं उठे हो क्या बेटा? कायनात की तबीयत कैसी है?"

    वंदना जी दरवाज़े के बाहर खड़ी हुई, राज और कायनात को आवाज़ लगा रही थीं,

    क्योंकि काफ़ी लेट हो चुका था, और वे कायनात की तबीयत को लेकर काफ़ी चिंता में थीं,

    इसलिए वे कायनात के बारे में जानना चाहती थीं। तभी राज उठा था, और उसने कायनात को लेटे रहने को कहा था। वह नहीं चाहता था कि कायनात इस तरह से हड़बड़ाहट में उठे। तभी उसने दरवाज़ा खोला था।

    वंदना जी ने फ़िक्रमंद होकर राज से पूछा था, "बेटा, अब कायनात बेटी की तबीयत कैसी है? वह ठीक तो है ना?" तभी राज ने अपनी माँ का हाथ पकड़ते हुए कहा था, "जी जी माँ, आपको परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है, कायनात बिल्कुल ठीक है।" जैसे ही राज ने यह कहा, वंदना जी को थोड़ा सा सुकून मिला था,

    और वे तुरंत अंदर आई थीं और कायनात के सर पर हाथ रखकर कहने लगी थीं, "बेटा, तुम अब कैसा फील कर रही हो? तुम ठीक तो हो ना?" तभी कायनात ने भी हल्की सी मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया था, "जी आंटी जी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"

    तभी वंदना जी ने कायनात से कहा था, "बेटा, एक्चुअली आज आपके पिताजी पग-फेरे की रस्म के लिए आ रहे हैं। एक्चुअली वे कल ही आने वाले थे, लेकिन उस वक़्त आपकी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी, और फिर आप और राज के साथ वो हादसा भी हो गया था, तो इसीलिए आपके दादाजी ने उन्हें मना कर दिया था। लेकिन आज वे आ रहे हैं, तो आज आपको घर जाना ही होगा, और कल राज आपको जाकर ले आएगा।"

    जैसे ही कायनात ने यह सुना, वह थोड़ा सा हल्का सा महसूस करने लगी थी,

    क्योंकि उस वक़्त वह वाकई उस घर से जाना चाहती थी, क्योंकि मेवाड़ी मेंशन में उसके साथ कुछ ऐसी चीज़ें हो रही थीं, जिन्हें कायनात ने कभी नहीं सोचा था।

    हालाँकि राज बहुत अच्छा था, और कायनात तो उसे पसंद भी करती थी,

    और पति के रूप में उसे पाकर खुश भी थी,

    लेकिन करण का बर्ताव… जिस तरह से करण ने उसके साथ व्यवहार किया था, इतना ही नहीं, उसने होटल रूम का बुरा हाल कर दिया था… कहीं न कहीं कायनात के दिल में एक डर सा बैठ गया था… क्या कायनात के घर जाने पर उसकी मुसीबतें कम हो जाएँगी? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों…

  • 17. Obbsession of Kaynaat - Chapter 17

    Words: 1545

    Estimated Reading Time: 10 min

    हालाँकि राज बहुत अच्छा था और कायनात उसे पसंद भी करती थी, और पति के रूप में उसे पाकर खुश भी थी; लेकिन करण के बर्ताव ने, जिस तरह से करण ने उसके साथ व्यवहार किया था, और होटल कमरे की दुर्दशा ने, कायनात के दिल में एक डर बिठा दिया था।

    इसलिए वह अब अपने घर जाना चाहती थी, कहीं और जाना चाहती थी जहाँ वह थोड़ा बेहतर महसूस कर सके। इसलिए वह इस रस्म के बारे में सुनकर खुश हुई थी। वहीं राज थोड़ा मायूस हो गया था, क्योंकि वह कायनात के साथ और समय बिताना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि कायनात जाए, लेकिन वंदना जी के सामने वह कुछ नहीं कह सकता था, क्योंकि राज ने कभी किसी को किसी भी चीज़ के लिए मना नहीं किया था। राज शुरू से ही फरमान बरदार, एकदम संस्कारी बेटा था। तभी वंदना जी ने कहा था, "बेटा, अब तुम दोनों फटाफट तैयार हो जाओ। तुम्हारे पिताजी आते ही होंगे, तब तक मैं खाने-पीने और नाश्ते का इंतज़ाम करवाती हूँ।" यह कहकर वंदना जी नीचे चली गई थीं।

    वंदना जी के जाने के बाद राज ने दरवाज़ा बंद कर दिया था और कायनात का हाथ पकड़कर बैठ गया था। "क्या तुम्हारा जाना ज़रूरी है क्या, यार? कायनात, अभी तक हम दोनों एक-दूसरे के साथ ढंग का समय भी नहीं बिताया है, और तुम्हारा अभी से बुलावा आ गया है। मैं नहीं चाहता तुम जाओ।"

    जैसे ही राज ने बड़े प्यार से यह कहा, कायनात मुस्कुरा उठी थी और कहने लगी थी, "एक दिन की तो बात है, और परसों तो आप मुझे लेने के लिए आ ही जाएँगे। और माँ ने अभी तो कहा है कि यह एक रस्म होती है, तो यह तो करना ज़रूरी है। और वैसे भी अब हमारी वेलकम पार्टी भी नहीं होनी है।"

    "हाँ, दादाजी ने कल ही तो बोला है कि अब वह पार्टी आज से ठीक 15 दिन के बाद होगी, और उसमें करण की सगाई भी होगी।"

    जैसे ही राज ने यह कहा, कायनात के चेहरे पर अलग तरह के भाव आ गए थे, क्योंकि करण का नाम सुनकर उसे अब डर लगने लगा था।

    "राज, मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ।"

    कायनात एक बार फिर राज से करण के बारे में कुछ कहने की कोशिश कर रही थी, तभी राज कहने लगा था, "हाँ हाँ, स्वीटहार्ट, बोलो क्या कहना चाहती हो? यही ना कि तुम्हारा भी मेरे बिना दिल नहीं लगेगा? यह कहना चाहती हो ना? डोंट वरी, मैं कुछ ना कुछ चक्कर चलाता हूँ, उस रस्म को अभी के लिए मना करवाता हूँ।"

    "नहीं नहीं राज, ऐसा मत कीजिएगा, प्लीज़।"

    अब तो राज कायनात की इस तरह की बात सुनकर हैरान हो गया, और कहने लगा था, "मुझे लगा था कि तुम इस बात को लेकर थोड़ा परेशान हो, क्योंकि तुम्हें मुझसे दूर जाना पड़ रहा है, लेकिन तुम तो रस्म को करवाने से मना कर रही हो। क्या बात है कायनात?"

    तभी कायनात ने एक लंबी साँस ली थी और राज की ओर देखकर कहने लगी थी, "आप मेरी बात नहीं समझ रहे हैं, राज। यह रस्म होती है। रस्मों के बीच में मुझे नहीं लगता कि बच्चों को बोलना चाहिए, और वैसे भी मुझे इंडियन रस्मों के बारे में ज़्यादा कुछ नॉलेज नहीं है। इसीलिए मैं हर एक रस्म करना चाहती हूँ, उसे फेस करना चाहती हूँ, उसके बारे में सोचना-समझना चाहती हूँ, इसका मतलब जानना चाहती हूँ।"

    जैसे ही कायनात ने यह कहा, राज मुस्कुरा दिया था और कहने लगा था, "तो ठीक है। जैसे तुम्हें ठीक लगे, तुम करो। अच्छा, मैं फटाफट रेडी होने जा रहा हूँ। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी भी हेल्प कर सकता हूँ।"

    जैसे ही राज ने थोड़ा सा रोमांटिक लहजे में यह कहा, कायनात हल्का सा मुस्कुरा दी थी और कहने लगी थी, "यार, डोंट वरी, आपको परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं खुद तैयार हो सकती हूँ। आप तैयार हो जाइए, तब तक मैं आती हूँ।"

    ऐसा कहकर राज वहाँ से चला गया था, और कायनात कुछ सोचती रह गई थी। वहीं करण को इस बात का पता चल चुका था कि कायनात आज अपने घर जा रही है। वह बहुत खुश हो गया था क्योंकि उसके दिमाग में कुछ अलग तरह का प्लान चल रहा था।


    वहीं दूसरी ओर, जयप्रकाश जी सीधा सबसे पहले अपने गुरु के पास पहुँचे थे, और अपने पोते करण की कुंडली वह साथ में लेकर गए थे। जैसे ही कुल गुरु ने थोड़ी देर करण की कुंडली बैठकर पढ़ना शुरू की, उनके चेहरे पर कई भाव आकर चले गए थे। जयप्रकाश जी कुल गुरु के हर एक भाव को देख रहे थे। तभी कुल गुरु जी ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं और एकदम से लाल-सुर्ख आँखों के साथ उन्होंने अपनी आँखें खोली थीं, और जयप्रकाश जी की ओर देखते हुए कहने लगे थे, "जयप्रकाश जी, बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है, बहुत बड़ा।"

    जैसे ही कुल गुरु ने यह कहा, जयप्रकाश जी की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था, और वह कहने लगे थे, "क्या बात है गुरुजी? ऐसा क्या अनर्थ हो गया है? यह मेरे पोते करण की कुंडली है, उसका बर्ताव काफी बदल चुका है।"

    तभी अचानक कुल गुरु जी ने कहना शुरू कर दिया था, "आपका पोता कोई आम लड़का नहीं है, उसके ऊपर एक आत्मा का निवास है।"

    "आत्मा का निवास?" जैसे ही जयप्रकाश जी ने यह सुना, वह पूरी तरह से हैरान हो गए और कहने लगे थे, "आप... ये... आप कैसी बातें कर रहे हैं गुरुजी? करण पर आत्मा का निवास कैसे हो सकता है?"

    तभी कुल गुरु ने कहना शुरू कर दिया था, "यह कोई ऐसी-वैसी आत्मा नहीं है, यह औरतों के जिस्म की प्यासी आत्मा है, जो कि आपके गाँव ठाकुरगंज से जुड़ी हुई है।"

    जैसे ही जयप्रकाश जी को जिस्म की प्यासी आत्मा की याद आई, वह काफी हैरान हो गए थे। वह अच्छी तरह से जिस्म की प्यासी आत्मा के बारे में जानते थे, जो उनके गाँव में कोहराम मचा कर रखे हुए थी, और इसी डर की वजह से वह अपने परिवार को लेकर शहर भी आ गए थे।

    लेकिन जैसे ही उन्हें यह बात पता चली कि करण के अंदर, उनके लाडले पोते के अंदर, जिस्म की प्यासी आत्मा का वास है, तो वह पूरी तरह से परेशान हो उठे थे। वह दोनों हाथ जोड़कर कुल गुरु के सामने बैठ गए थे और कहने लगे थे, "यह आप कैसी बातें कर रहे हैं? अब जिस्म की प्यासी आत्मा भला हमारे घर तक कैसे पहुँच सकती है, और वह इस तरह से करण को अपने वश में कैसे कर सकती है?"

    तभी कुल गुरु जी ने बड़े ध्यान से जयप्रकाश जी की बात सुनी थी और उसके बाद कहने लगे थे, "अगर आप वाकई उसके बारे में सारा सच जानना चाहते हैं, तो आपको हमें करण का कोई एक वस्त्र लाकर देना होगा।"

    "करण का वस्त्र तो मैं अभी आपके लिए मँगवा देता हूँ।"

    तब गुरु ने उसे रोकते हुए कहा था, "आपको करण का कोई साफ़-सुथरा दूल्हा वस्त्र नहीं लेकर आना है, बल्कि आपको करण का पहना हुआ वस्त्र लेकर आना होगा।"

    अगर जयप्रकाश जी को सारे सच का पता लगवाना ही था, तो उन्हें हर हाल में अब करण का वस्त्र लाकर कुल गुरु को देना था, और पता लगाना था कि आखिरकार जिस्म की प्यासी आत्मा उसके घर तक कैसे पहुँच गई, जबकि वह गाँव से बाहर कभी जा ही नहीं सकती थी।

    गाँव में कई लोगों ने तंत्र-मंत्र का जाल पूरे गाँव में फैला रखा था, जिससे जिस्म की प्यासी आत्मा केवल नदी तक ही सीमित थी, वह जंगलों से बाहर नहीं आती थी। लेकिन इस तरह से वह भला वहाँ कैसे आ सकता था और सीधा करण को निशाना कैसे बना सकता था? यह सारी बातें जयप्रकाश जी को बेचैन करने लगी थीं।

    तभी कुल गुरु उसे रोकते हुए कहने लगे थे, "एक और बात जयप्रकाश जी, आपको हमारी सुननी होगी। करण का वस्त्र जब लेकर आएंगे, आपको साथ-साथ अपनी बहू कायनात के सर का एक बाल भी लाकर देना होगा।"

    अब तो जयप्रकाश जी बहुत हैरान हो गए थे और सोचने लगे थे कि भला करण के अंदर निवास करने वाली जिस्म की प्यासी आत्मा से कायनात का क्या कनेक्शन है?

    जयप्रकाश जी को इस तरह से सोचते हुए देखकर गुरु ने उन्हें कहा था, "हम जानते हैं कि इस वक्त आपके मन में कई दुविधाएँ चल रही हैं, लेकिन हम जो कह रहे हैं आपकी भलाई के लिए ही कह रहे हैं। आपको जो कहा है आप वह कीजिए, उसके बाद हम सारी चीज़ों की जानकारी आपको ज़रूर देंगे।"

    क्या जयप्रकाश जी कायनात के सर का बाल ले आ पाएँगे?

  • 18. Obbsession of Kaynaat - Chapter 18

    Words: 1998

    Estimated Reading Time: 12 min

    तभी जयप्रकाश जी को इस तरह से सोचते हुए देखकर गुरु ने उन्हें कहा था, "हम जानते हैं कि इस वक्त आपके मन में काफी सारी दुविधाएँ चल रही हैं, लेकिन हम जो कह रहे हैं, आपकी भलाई के लिए ही कह रहे हैं। आपको जो कहा है, वह कीजिए; उसके बाद हम सारी चीज़ों की जानकारी आपको ज़रूर देंगे।"

    जयप्रकाश जी के पास अब वहाँ से वापस आने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। वह सोचने लगे थे कि क्या उन्हें अब साइकियाट्रिस्ट के पास नहीं जाना चाहिए? गुरु जी से सारी बात सुनने के बाद जयप्रकाश जी ने खुद को रोक लिया था। वह सोचने लगे थे, पहले वह आत्मा का क्या चक्कर है, उसके बारे में सारी चीज़ें पता कर लें; उसके बाद वह करण को किसी साइकियाट्रिस्ट को दिखा सकते हैं। यह सोचते हुए, वह जल्दी ही अपने घर के लिए निकल गए थे।

    और जैसे ही वह अपने बंगले में गए, उन्होंने देखा कि उनके बंगले के बाहर कम से कम 25-30 गाड़ियाँ खड़ी हुई थीं। जयप्रकाश जी काफी हैरान थे कि इतनी सारी गाड़ियों में कौन आया होगा? और जैसे ही वह अंदर गए, तो यह देखकर हैरान हो गए कि कायनात के पिताजी आए हुए थे। कायनात के पिताजी बहुत ही बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट थे। इतना ही नहीं, उनका विदेश में सबसे ज़्यादा बड़ा कारोबार था। और जब जयप्रकाश जी ने कायनात की शादी अपने पोते से करने के लिए ना जाने कितनी ही चालें चली थीं, और फिर धीरे-धीरे उसके पिता के साथ रिश्ता बनाया था, और उसे जगह-जगह लाकर ऐसा उलझा दिया था जिसकी बदौलत अब उन्होंने उसके पिता को इतना मजबूर कर दिया था कि खुद ब खुद ही उन्हें राज पसंद आने लगा था, और आज के लिए उन्होंने अपनी बेटी कायनात का हाथ माँग लिया था!

    जल्दी-जल्दी ही हल्की सी मुस्कुराहट के साथ जयप्रकाश जी कायनात के पिता के सामने मौजूद थे, और उनसे बड़ी ही गर्मजोशी के साथ मिले थे।

    राज भी बड़े पॉलाइट तरीके से अपने ससुर साहब से मिला था। कितने सारे अंगरक्षक उनके ठीक बराबर में खड़े हुए थे, जो उनमें से कुछ उनके सेक्रेटरी वगैरह थे। उनकी पावरफुल पोज़िशन देखने के बाद कहीं ना कहीं जयप्रकाश जी को कुछ अजीब सा भी लग रहा था, क्योंकि वह अपने से ज़्यादा पावरफुल कभी भी किसी को नहीं समझा करते थे। लेकिन फ़िलहाल उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि उनके सामने खड़ा हुआ इंसान उन्हें नीचा नहीं दिखा रहा है। राज ने जल्दी ही कुछ स्नैक्स वगैरह उन्हें ऑफ़र किए थे। थोड़ा बहुत चाय-नाश्ता करने के बाद उन्होंने जल्दी कायनात को लेकर जाने की बात की थी।

    अभी जैसे ही उन्होंने कायनात को लेकर जाने के लिए बोला, जयप्रकाश जी परेशान हो गए थे, क्योंकि उन्हें तो कायनात का एक सर का बाल भी लेना था। तो इस तरह से वह कायनात को भला कैसे जाने दे सकते थे? इसलिए उन्होंने जल्दी से कायनात के पिता की ओर देखते हुए कहा था, "माफ़ कीजिएगा समधी जी, एक्चुअली आप तो जानते हैं, कायनात बहू की हमें वेलकम पार्टी करनी है, और उसी में हमने अपने छोटे बेटे करण की सगाई का इरादा बनाया है। तो हम जानते हैं कि पग-फेरों की रस्म करना भी ज़रूरी है, लेकिन हम चाहते हैं कि आप कायनात बहू को वेलकम पार्टी के बाद ही लेकर जाएँ।"

    अभी जैसे ही जयप्रकाश जी ने यह कहा, राज दिल ही दिल में बहुत ही ज़्यादा खुश हो गया था, क्योंकि वह कायनात को जाना नहीं देना चाहता था। वह तो पहले से ही कायनात को नहीं भेजना चाहता था, क्योंकि वह ज़्यादा से ज़्यादा टाइम कायनात के साथ गुज़ारना चाहता था। लेकिन तभी करण के चेहरे पर कुछ अलग तरह के भाव आ गए थे। करण हॉल में मौजूद नहीं था; वह वहाँ से थोड़ी दूरी पर था, जहाँ से वह अच्छी तरह से हॉल में सभी की बातें सुन पा रहा था, कि कौन क्या बातें कर रहा है। करण ने गुस्से से अपने दोनों हाथों की मुट्ठियाँ कसकर बंद कर ली थीं, क्योंकि वह चाहता था कि कायनात राज से दूर हो जाए, और जैसे ही कायनात को उसके पिता लेकर जाएँगे, करण कुछ ना कुछ करके कायनात को अपने साथ अगवा कर लेगा, उसे ज़िंदगी भर बंधक बनाकर अपने पास रखेगा, और उसे एक पल के लिए भी खुद से दूर नहीं करेगा। यह करण का प्लान था।

    लेकिन अब जैसे ही जयप्रकाश जी ने कायनात को रोके जाने के लिए बोला, वह बहुत ही ज़्यादा चिढ़ गया था, और मन ही मन में सोचने लगा था कि लगता है इस बूढ़े का काम तमाम करना ही पड़ेगा। और वह जोरों से, बड़ी ही बुरी तरह से अपने होंठों को मसलने लगा था।

    वहीं दूसरी ओर, प्रियांशी ने अपने सामने थोड़ा सा स्पेस बनाकर उसमें आग जला रखी थी, और उसमें कुछ मंत्रों का उच्चारण कर रही थी। और उसके सामने एक बड़े लंबे बालों वाला अघोरी बैठा हुआ था, जो प्रियांशी को बड़े ही ध्यान से देख रहा था। उसके पास छोटी एक गुड़िया और एक गुड़िया रखी हुई थीं, और वह उसे अलग-अलग तरह की छोटी-छोटी सुइयाँ चुभो रहा था। प्रियांशी के चेहरे पर मक्कारिता साफ़ दिखाई दे रही थी, और वह हँसते हुए कहने लगी थी, "बस जैसे ही मेरा तप पूरा होगा, कायनात के लिए जिस्म की प्यासी आत्मा की लालसा बढ़ जाएगी, और वह हर हाल में कायनात को पाना चाहेगा, और वह जब कायनात के साथ रिश्ता बनाएगा, वह हमेशा-हमेशा के लिए कायनात की जान ले लेगा, और कायनात की जान जाने के बाद वह राज से शादी करेगी, और राज के साथ एक बड़ी ही सुकून भरी, अमीर ज़िंदगी गुज़ारेगी।" प्रियांशी बड़े ही कड़े मन से तप कर रही थी। कहीं ना कहीं उस अघोरी ने उसे कह दिया था कि वह जल्द से जल्द कायनात को जिस्म की प्यासी आत्मा के चंगुल में फँसा देगा, और उसकी जगह वह अब प्रियांशी को भेज देगा, और उसी से ही राज की शादी होगी। इसलिए प्रियांशी को उसने कुछ कड़ा काला मंत्र का तप करने के लिए कहा था।

    प्रियांशी कितनी ही देर तक वह तप करती रही थी, और अब तो उसे पूरे यकीन हो चुका था कि बस कुछ दिन और कुछ दिनों के बाद हमेशा-हमेशा के लिए कायनात राज की ज़िंदगी से चली जाएगी, और वह उसकी ज़िंदगी में उसकी जगह लेगी। अपना तप कंप्लीट करने के बाद प्रियांशी जल्दी ही मुखिया जी के पास आ गई थी। मुखिया जी ने जैसे ही अपनी बेटी के माथे पर काले कुंकुम के तिलक की जगह काले रंग का तिलक देखा, वह हैरान हो गया, और कहने लगे थे, "बेटी, तुमने अपनी क्या हालत बना ली है? और जो माथे पर तुमने तिलक लगाया है, यह कैसा तिलक है?"

    तभी प्रियांशी मुस्कुराते हुए कहने लगी थी, "पिताजी, यह कोई आम तिलक नहीं है, बल्कि यह लाशों की राख के ढेर का तिलक है।"

    अब जैसे ही प्रियांशी ने यह कहा, उसके पिता पूरी तरह से हैरान हो गए, और कहने लगे थे, "मेरी बच्ची, तूने यह सब क्या किया? आखिरकार यह सब क्या कर रही हो तुम?!"

    प्रियांशी मुस्कुराते हुए अपने पिता की ओर देखकर कहने लगी थी, "आपको परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है, पिताजी। बस अब हमारी मंज़िल दूर नहीं है। बस आप इतना समझ लीजिए, मैं जो कुछ भी कर रही हूँ, वह हम दोनों के लिए ही कर रही हूँ।" अपनी बेटी की इस तरह की बातें सुनकर मुखिया जी हैरान थे, लेकिन उस वक्त तो वह उसे कुछ नहीं कह सकते थे, और उसी तरह वहाँ से चले गए थे, क्योंकि प्रियांशी के चेहरे पर कुछ अलग ही तरह के भाव थे, जिन्हें वह समझ नहीं पा रहे थे।

    प्रियांशी, मुखिया के जाने के बाद जल्दी ही अपने कमरे में गई थी, और उसने वहाँ जाकर उस अघोरी का दिया हुआ कुछ सामान एक जगह रख दिया था, और फिर रात होने का बेसब्री से इंतज़ार करने लगी थी। और जैसे ही रात हुई, इस रात के अंधेरे में वह नदी के किनारे पहुँच गई थी। नदी के किनारे पहुँचकर उसने तेज़ी से चिल्लाकर कहा था, "सुनो, जिस्म की प्यासी आत्मा, मैं प्रियांशी यहाँ आई हूँ। मैंने ही तुम्हें पहले भी यहाँ से रिहा करने की कोशिश की थी, और एक और कोशिश में आज करने के लिए आई हूँ। लेकिन तुम्हें इसके बदले में मेरा सिर्फ़ और सिर्फ़ एक काम करना होगा; तुम्हें उस कायनात को राज की ज़िंदगी से निकालकर बाहर फेंकना होगा, और उस कायनात को अपना निशाना बनाना होगा, और तुम राज को कुछ नहीं करोगे।" प्रियांशी ने ही जिस्म की प्यासी आत्मा का जो बंधन गाँव के लोगों ने बरसों पहले कुछ तांत्रिकों की मदद से कैद करके रखा हुआ था, जिससे वह आत्मा नदी के उस पार नहीं आ सकती थी, वह केवल जंगल में ही रह सकती थी, वह बंधन हटाया था; सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी नफ़रत के लिए, अपनी ज़िद को पूरा करने के लिए। उसने अघोरी की मदद से नदी के जंगल के बाहर, जिससे प्यासी आत्मा को रोके जाने के लिए जो ताबीज़ गाड़े हुए थे, उन सभी ताबीज़ों को खोद निकालकर नदी में बहा दिया था, जिससे जिस्म की प्यासी आत्मा के लिए बाहर निकलना आसान हो गया था। और सबसे पहले उसने प्रियांशी के मुँह से कायनात के बारे में सुना था, तब से उसने कायनात को ही अपना निशाना बना लिया था, और कायनात को देखने के बाद उसे समझ में आ चुका था कि उसकी तलाश अब ख़त्म हो चुकी है। सिर्फ़ और सिर्फ़ कायनात की तलाश के लिए ही उसने इतने सालों से इतनी सारी लड़कियों को अपना निशाना बनाया था, और उसकी तलाश अब कायनात पर आकर रुक गई थी, क्योंकि कायनात उसके पिछले जन्म की ज़िद, मयूरी थी, जिसके जिस्म की चाहत ने उसे जिस्म की प्यासी आत्मा बना दिया था।

    प्रियांशी ने वहाँ जाकर एक बार फिर से जादू-टोना करना शुरू कर दिया था, क्योंकि हर रात को उसे प्यासी आत्मा को बंधन में बाँधने के लिए प्रियांशी को वहाँ पर जादू-टोना करना ही था, क्योंकि अगर किसी दिन भी उसने वह जादू-टोना नहीं किया, तो जिस्म की प्यासी आत्मा एक बार फिर वहाँ आने पर मजबूर हो जाएगी और कैद होकर रह जाएगी। क्योंकि उस अघोरी ने उसे साफ़-साफ़ कह दिया था कि जिन भी तांत्रिकों ने बरसों पहले उस आत्मा को कैद किया था, उन्होंने पहले ही इतने कड़े इंतज़ाम किए थे कि अगर कोई इस आत्मा को छुड़ाने की कोशिश करे, या इस बंधन को तोड़ने की कोशिश करे, तो वह बिल्कुल भी कामयाब ना हो पाए, भले ही वह इन ताबीज़ों को निकालकर फेंक दे, लेकिन 24 घंटे से ज़्यादा वह इस जगह से उस आत्मा को नहीं छुड़ा पाएगा। इसलिए अघोरी ने प्रियांशी को ताबीज़ दिए थे कि उसे हर रात 24 घंटे पूरे होने से पहले-पहले उस जंगल के पास वाली जगह पर जाकर उन ताबीज़ों को जलाना होगा, जिससे अगले 24 घंटे के लिए आत्मा के बाहर खुला रहने की लाइफ़ बढ़ जाएगी। जल्दी ही प्रियांशी वह ताबीज़ जलाने के बाद घर आ गई थी। प्रियांशी बहुत ही ज़्यादा खुश थी, क्योंकि उस आत्मा ने उसे कुछ भी नहीं कहा था, वरना बेसिकली जो भी लड़की नदी के उस पार जाया करती थी, वहाँ से उसकी लाश ही वापस आया करती थी। लेकिन प्रियांशी ने तो उस प्यासी आत्मा की मदद की थी; उसने तो उसका जादू-टोना ख़त्म किया था, जिसके बाद वह आत्मा सीधा शहर में करण के पास जा पहुँची थी, और जैसे ही उसने करण का रुझान इस तरह से कायनात की ओर देखा, तब उसने करण के जिस्म को ही अपना घर बना लिया था, और उसके जिस्म में निवास करके वह कायनात को पाने का सपना देखने लगा था।

    क्या कायनात वक्त रहते उस आत्मा और करण से बच पाएगी? कायनात के पीछे एक इंसान और आत्मा दोनों ही पड़े हुए थे। कैसे होगा इन दोनों का मुकाबला? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों।

  • 19. Obbsession of Kaynaat - Chapter 19

    Words: 1597

    Estimated Reading Time: 10 min

    जिसके बाद वह आत्मा सीधा शहर में करण के पास पहुँची। और जैसे ही उसने करण का रुझान इस तरह से कायनात की ओर देखा, उसने करण के शरीर को ही अपना घर बना लिया, और उसके शरीर में निवास करके वह कायनात को पाने का सपना देखने लगा।

    वेल, वहीं दूसरी ओर, कायनात के पिताजी ने जल्दी ही जयप्रकाश जी से कहा, "ठीक है जयप्रकाश जी, जैसा आपको ठीक लगे, आप कायनात को उसकी वेलकम पार्टी के बाद भेज सकते हैं। हमें कोई मसला नहीं है। वैसे भी रीति-रिवाज केवल नाम के होते हैं; हमें इतनी ज़्यादा ख़ास तवज्जो नहीं देते।"

    अब जैसे ही उन्होंने यह कहा, कायनात काफी ज़्यादा उदास हो गई, और कायनात के पिता उसके पास आए। उसके सर पर हाथ रखकर कहने लगे, "हम जानते हैं कि हमारी बेटी हमारी बात नहीं टालती; वैसे भी हमारी बेटी ने आज तक हमारी कोई बात नहीं टाली।" तब कायनात मन ही मन में चिढ़ गई; इसीलिए उसने अपने पिता से कोई बात नहीं की, और सीधी जाकर अपने कमरे में बैठ गई।

    वहीं दूसरी ओर, जयप्रकाश जी को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार वह क्या करें? करण की शर्ट कैसे ले लेंगे? क्योंकि गंदी शर्ट धुलने के लिए जाती थी, तो वह नौकरानी को बोल देंगे कि करण के कपड़े धोने की जगह से उन्हें दे दे; लेकिन कायनात के बालों का क्या करें? कायनात के बाल सीधे तरीके से उससे नहीं माँग सकते थे! इसीलिए वह कुछ ना कुछ सोचने लगे। इसके लिए उन्होंने अपने घर की एक नौकरानी को चुना। उसे उन्होंने करण की गंदी शर्ट मँगवा ली, साथ ही साथ उन्होंने कायनात के बालों के लिए एक नौकरानी को कुछ पैसे ऑफ़र किए, और कहा कि कुछ ना कुछ करके कायनात के कुछ बाल उसे लाकर दे दे। अब वह नौकरानी पैसों के लालच में जल्दी ही कायनात के कमरे में मौजूद थी।

    कायनात उस वक्त गुस्से से बैठी हुई थी, क्योंकि वह अपने घर जाना चाहती थी, लेकिन अब जयप्रकाश जी ने मना कर दिया था, तो वह बहुत उदास थी, क्योंकि कहीं ना कहीं वह यहाँ के माहौल में सही से साँस नहीं ले पा रही थी। तो इसीलिए उसे थोड़ा सा स्पेस चाहिए था, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं हो सकता था; उसके पास अब कोई और रास्ता नहीं था! इसीलिए उसे वहीं रहना था। तभी वह नौकरानी वहाँ आई; उसके हाथ में तेल की शीशी थी, और उसने कायनात की ओर देखते हुए कहा, "मैडम जी, अगर आप थोड़ी देर रहें, तो क्या मैं आपकी थोड़ी सी हेड मसाज कर दूँ? वह एक्चुअली मैडम ने भेजा है आपकी हेड मसाज करने के लिए, क्योंकि आपको इन दिनों काफी ज़्यादा परेशानी हुई है। थोड़ी सी मसाज होगी तो आपको थोड़ा रिलीफ़ फील होगा।"

    "हाँ," कायनात ने तुरंत कह दिया, क्योंकि वाकई उस वक्त उसका सर बहुत ही ज़्यादा भारी हो रहा था! तो उसने सोचा कि अगर थोड़ी देर उसकी हेड मसाज होती है, तो हो सकता है कि वह थोड़ा बेहतर फील करे। जल्दी से नौकरानी ने कायनात की हेड मसाज करना शुरू कर दिया, और मौका देखकर उसने चुपके से कायनात के कुछ दो-तीन बाल निकाल लिए, और कायनात को पता ही नहीं चला। वह बाल ले जाकर उसने सीधा जयप्रकाश जी को दे दिए।

    जयप्रकाश जी ने खुश होकर उसे भारी-भरकम मोटी रकम दी। वह नौकरानी बहुत ही ज़्यादा खुश हो गई, क्योंकि 6 से 7 महीने की सैलरी उसे एक ही दिन में एक ही छोटे से काम से मिल चुकी थी! साथ उसने जयप्रकाश जी से कह दिया कि अगर उनको कभी भी कोई और काम हो तो वह उसे बता सकते हैं; वह ज़रूर करेगी। तब उन्होंने नौकरानी को चुप करा दिया कि वह इस बात का ज़िक्र कभी भी किसी से नहीं करेगी, और कहा कि अगर उस नौकरानी ने किसी को भी इस बात के बारे में बताया तो वह उसे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे। नौकरानी अच्छी तरह से जानती थी कि जयप्रकाश जी का क्या ओहदा और क्या उनकी पावर पोज़िशन है! तो उसने साफ़-साफ़ कह दिया कि आपको फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है; जैसे आप कहेंगे, मैं वैसा ही करूँगी! और जल्दी वह वहाँ से चली गई। और तभी करण, जो कि उस वक्त अपने कमरे में था, उसके चेहरे के भाव अपने आप ही बदल रहे थे। अपने आप ही उसे बहुत तेज़ गुस्सा आ रहा था; वह हर हाल में कायनात को पाना चाहता था, क्योंकि जब से उसने उसके होंठों को चूमा था, तब से उसे पाने की इच्छा उसकी बहुत ही ज़्यादा बढ़ चुकी थी, और अब तो केवल करण ही नहीं, शरीर की प्यासी आत्मा भी कायनात को चाहती थी!

    लेकिन करण और प्यासी आत्मा का क्या कनेक्शन था? यह तो कुल गुरु ही बताने वाले थे! इसके लिए उन्होंने अपने कुछ पुराने वेद-शास्त्रों को खोलकर रख लिया था, और सारी चीज़ें समझने की कोशिश करने लगे थे। जयप्रकाश जी ने वह बाल और शर्ट अपने एक भरोसेमंद आदमी के साथ कुल गुरु के पास भिजवा दिए थे, क्योंकि वह खुद अभी वहाँ नहीं जा पाए थे। कुल गुरु ने उन्हें कहा था कि वह यह सामान उसके पास भिजवा दे; उसके बाद वह अच्छी तरह से सारी चीज़ों का मंथन करेंगे, और उसके बाद सारी बातें जयप्रकाश जी को बताएँगे। कहीं ना कहीं जयप्रकाश जी यह सब सोचते हुए वह सामान तो कुल गुरु के पास भिजवा दिया था, लेकिन वह खुद नहीं गए थे; खुद उन्हें अगले दिन वहाँ जाना था।

    वहीं दूसरी ओर, राज जल्दी ही कायनात के पास आया; उसका हाथ पकड़कर बैठ गया, और कहने लगा, "तुम जानती हो, जब से मैंने यह सुना कि तुम पग-फेरों की रस्म के लिए घर जाने वाली हो, मेरा दिल बहुत ही ज़्यादा भारी हो गया था, क्योंकि मेरा दिल ही नहीं कर रहा था कि मैं तुम्हें कहीं भी जाने दूँ, क्योंकि ना जाने इन तीन दिनों में ही ऐसा क्या हो गया है, ऐसा लगने लगा है कि मैं तुम्हारे बिना एक पल नहीं रह सकता हूँ।"

    उसने कायनात के हाथों को चूम लिया। कायनात राज का इतना प्यार देखकर सिहर उठी, और उसने आगे बढ़कर राज को गले से लगा लिया। दोनों इस वक्त बेहद करीब थे; दोनों की साँसें आपस में घुलने लगी थीं, और अचानक राज के हाथ कायनात की पीठ पर चलने लगे। कायनात ने जो साड़ी पहन रखी थी, उसके ब्लाउज़ से नीचे कमर का हिस्सा उसका साफ़ दिखाई दे रहा था, और राज कायनात की खुशबू में बिल्कुल पागल हो जा रहा था। वह इस वक्त कायनात को पाना चाहता था; इसीलिए उसने अचानक से अपने होंठों को कायनात के गर्दन पर रख दिया, और उन्हें स्मूथली किस करने लगा। धीरे-धीरे कायनात ने भी अपनी आँखें बंद कर ली थीं, क्योंकि राज की और उसकी शादी तो हो गई थी, लेकिन उनके बीच अभी तक वह रिश्ता कायम नहीं हुआ था जो कि मियाँ-बीवी के बीच में होना चाहिए था। उस वक्त राज पूरी तरह से कायनात को अपना बना लेना चाहता था। जल्दी ही उसने कायनात के नग्न कमर को पूरी तरह से चूमना शुरू कर दिया, और धीरे-धीरे उसकी साड़ी का पल्लू उसके ऊपर से हटा दिया, और अब कायनात के शरीर का काफी सारा हिस्सा राज को दिखाई दे रहा था। राज कायनात की इतनी ख़ूबसूरती देखकर पागल सा होने लगा, और वह खुद को रोक नहीं पाया, और उसने जल्दी से कायनात को सीधा गोद में उठाकर सीधा बेड पर लेटा दिया, और उसे किस पर किस करने लगा।

    वहीं करण, जो कि 24 घंटे कायनात पर नज़र रखे हुए था, जैसे ही उसने अपने कैमरे के द्वारा यह देखा कि राज और कायनात इस वक्त क्या कर रहे थे, तो उसका गुस्से के मारे बुरा हाल हो गया। वह किसी भी कीमत पर राज को कायनात को छूने नहीं देना चाहता था! इसीलिए वह गुस्से से जल्दी ही राज के कमरे की ओर बढ़ने लगा; उसने सोच लिया था कि वह आज के आज ही राज का गला दबा देगा! लेकिन राज तो उस वक्त अपनी ख़ूबसूरत बीवी की बाहों में पूरी तरह से मशगूल हो चुका था, और कायनात को वह बड़े ही आराम से, बड़े ही ईज़ी तरीके से प्यार कर रहा था। कहीं ना कहीं उसे लग रहा था कि अगर वह कायनात को जोरों से किस करेगा, तो कहीं कायनात को दर्द ना हो जाए; कायनात की छोटी सी तकलीफ़ को भी ध्यान में रखते हुए वह कायनात को प्यार कर रहा था, और फिर धीरे-धीरे उसके गले पर किस करने के बाद जल्दी ही उसके ख़ूबसूरत होंठों पर किस करने लगा, और कायनात अब राज का प्यार पाकर सिहर उठी, और वह भी आगे बढ़कर राज का साथ देने लगी। धीरे-धीरे दोनों मियाँ-बीवी एक-दूसरे को प्यार करने में बिज़ी थे, लेकिन इस बात से दोनों अनजान थे कि एक अनजानी मुसीबत उनके सर पर आने वाली है, और जल्दी ही करण बड़े ही गुस्से से राज के कमरे की ओर बढ़ने लगा। जिसे जयप्रकाश जी ने देख लिया, और अचानक जयप्रकाश जी को जब इस बात का एहसास हुआ कि करण कुछ ना कुछ गलती करने वाला है, तो उन्होंने अचानक से जोरों से चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया।

    क्या वक्त रहते कायनात और राज, करण और उसमें समाए आत्मा से बच पाएंगे? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों।

  • 20. Obbsession of Kaynaat - Chapter 20

    Words: 1879

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    क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि करण का असली चेहरा अभी किसी के सामने आए। जब से उन्हें पता चला था कि करण के अंदर एक जिस्म की प्यासी आत्मा का निवास है, तब से वे बहुत परेशान हो गए थे; वे करण पर नज़र रख रहे थे। उन्होंने सोचा था कि जब तक वे करण का इलाज नहीं कर देते, तब तक वे राज के आसपास करण को नहीं भड़काएँगे। क्योंकि उस वक्त करण राज को अपना भाई नहीं, बल्कि दुश्मन समझेगा। क्योंकि यदि वह जिस्म की प्यासी आत्मा आई थी, तो वह केवल कायनात के लिए आई थी, और जयप्रकाश जी अच्छी तरह जानते थे कि खूबसूरत औरतें, खूबसूरत लड़कियाँ उस आत्मा की कितनी बड़ी कमज़ोरी थीं। क्योंकि बचपन से उन्होंने भी उस आत्मा के किस्से सुने थे।

    उन्होंने उस आत्मा के कई किस्से सुने थे। जैसे ही जयप्रकाश जी के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ सभी घरवालों के कानों में पड़ी, वंदना जी, उनके पति अरविंद जी और करण का ध्यान उनके दादा जयप्रकाश जी की ओर गया। सभी दौड़कर उनके पास आ गए। करण गुस्से से खड़ा होकर अपने दादा को घूर रहा था; उसके दादा की आँखें करण पर थीं, क्योंकि वे देखना चाहते थे कि अपने दादा को परेशान देखकर करण क्या करता है और क्या सोचता है। लेकिन करण एक ही जगह खड़ा होकर जयप्रकाश जी को घूर रहा था।

    उस वक्त राज, जो कायनात के होठों का रसपान कर रहा था, जैसे ही उसके कानों में दादा की आवाज़ पड़ी, वह तुरंत कायनात से हट गया। कायनात भी तुरंत उठकर बैठ गई। दोनों को एहसास हुआ कि वे क्या करने वाले थे। लेकिन जैसे ही उन्हें हाल में से चीखने-चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी, उनके पास कोई और रास्ता नहीं था; इसलिए कायनात जल्दी से अपने कपड़े ठीक करते हुए राज के साथ नीचे आ गई।

    करण ने यह देखा कि राज और कायनात अब एक-दूसरे से अलग हो चुके हैं, तो उसका गुस्सा कम हो गया। लेकिन उसे बार-बार वही दिखाई दे रहा था जब राज कायनात की गर्दन चूम रहा था। क्योंकि करण किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि कायनात को कोई छुए; यहाँ तक कि वह हवा को भी नहीं छूने देता। इसलिए उसने गुस्से से मन ही मन कहा था, "तुमने अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती की है, भाई; तुम्हें इसकी कीमत चुकानी होगी।" उसने यह दूसरी बार सोचा था। जब से राज ने कायनात को छुआ था, उसके दिल में राज को लेकर अलग तरह की भावना जन्म ले चुकी थी, और उसने सोच लिया था कि वह राज को अपने रास्ते से हटा देगा। राज ने कायनात को चूमा था, तो उसका इरादा और भी मज़बूत हो गया था।

    दूसरी ओर, कायनात और राज जैसे ही नीचे गए, दादाजी ने राहत की साँस ली। अरविंद जी ने अपने पिताजी को उठाकर कुर्सी पर बिठा दिया और फ़टाफ़ट से उनके लिए ठंडा पानी लाने के लिए कहा। उनके सर पर बहुत पसीना आ रहा था। जयप्रकाश जी उस वक्त लाल आँखों के साथ कायनात और राज के कमरे की ओर करण को आता देख चुके थे। वे समझ चुके थे कि करण का गुस्सा भड़क गया है, और वह राज को नहीं छोड़ेगा। इसलिए राज की जान बचाने के लिए उन्हें यह नाटक करना था। उन्होंने कहा, "मेरे सीने में अचानक दर्द उठा है।" वंदना जी ने जल्दी ही डॉक्टर को फोन कर दिया; उनके फ़ैमिली डॉक्टर कुछ ही समय में आ गए। जयप्रकाश जी को ठीक होने के बावजूद, अपने नाटक की वजह से एक इंजेक्शन लेना पड़ा।

    जयप्रकाश जी को इस बात का कोई मसला नहीं था; उन्होंने पहले ही डॉक्टर को बता दिया था कि वह कोई हैवी डोज़ ना दें; कोई नॉर्मल सा विटामिन का इंजेक्शन, क्योंकि वे बिल्कुल ठीक थे। डॉक्टर ने ज़्यादा सवाल-जवाब नहीं किया। उन लोगों का पावर और पोज़िशन ऐसी थी कि कोई उनके बारे में ज़्यादा कुछ नहीं सोच सकता था।

    जल्दी ही राज और कायनात एक साथ खड़े होकर दादा जी की हालत देखने लगे। तभी जयप्रकाश जी ने कायनात की ओर देखकर कहा, "यहाँ आओ बेटी, हम जानते हैं कि तुम अपने घर जाना चाहती हो। हम तुमसे माफ़ी माँगते हैं कि हम तुम्हें तुम्हारे घर नहीं भेजा। बेटा, तुम जानती हो कि जब से घर पर इतनी समस्या है, हमें अपने परिवार के सदस्यों को अपनी आँखों से दूर करने में डर लग रहा है, और तुम हमारे परिवार का एक ख़ास हिस्सा हो, तो हम नहीं चाहते कि तुम पर आँच आए; इसलिए हमने तुम्हारी पग-फेरों की रस्म टाल दी। लेकिन जैसे ही करण की सगाई हो जाएगी और तुम्हारी वेलकम पार्टी हो जाएगी, उसके बाद तुम आराम से जा सकती हो; राज तुम्हें खुद लेकर जाएगा। और राज, अब तुम ऑफ़िस का कोई काम नहीं करोगे; हमने डिसाइड किया है कि करण भी अब ऑफ़िस आएगा और काम संभालेगा।"

    जयप्रकाश जी के कहने पर राज काफी हैरान था; बाकी के सभी घरवाले भी हैरान थे, क्योंकि करण को कभी भी ऑफ़िस में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

    तभी माही आई और कहने लगी, "लेकिन दादाजी, करण भैया को तो पता ही नहीं है कि ऑफ़िस का काम कैसे होता है, तो आपको क्या लगता है कि करण भैया ऑफ़िस का काम कर पाएँगे? कहीं ऐसा ना हो कि आपकी सारी प्रोजेक्ट, सारे काम ही वह ख़त्म कर दें।" माही के करण पर टॉन्ट करने पर सभी हँसने लगे।

    तभी वंदना जी आगे आईं और माही के कान खींचते हुए कहने लगीं, "तू मेरे बेटे को ज़्यादा अंडरएस्टिमेट करती है। मेरा करण हीरा है! तू देखना, एक दिन वह कितना बड़ा आदमी बनेगा।" वंदना जी करण की हिमायत करने लगीं। माही ने जल्दी से कहा, "अच्छा-अच्छा, ठीक है। आपको तो करण भैया में सारे गुण दिखाई देते हैं; आपका बेटा हीरा है, और हम सब क्या हैं? हम सब कोयला हैं क्या? आपने हमें क्या समझा है; हम भी तो आपके बच्चे हैं।" माही ने थोड़ा सा नाराज़ होने का नाटक किया।

    वहाँ का माहौल हल्का हो गया; सभी के चेहरों पर मुस्कान थी। जयप्रकाश जी ने मन में दुआ की कि उनके परिवार में हमेशा सब कुछ इसी तरह रहे। कायनात और राज, जो अभी थोड़ी देर पहले एक-दूसरे के साथ थे, वह दोनों अभी भी एक-दूसरे को देख रहे थे; इसका मतलब साफ़ था कि दोनों के अंदर एक-दूसरे को पाने की इच्छा बढ़ चुकी थी, और वे दोनों इरादा कर चुके थे कि आज रात वे अपने रिश्ते को एक नया नाम देंगे। करण ने उनकी बात समझ ली थी, और वह समझ चुका था कि उसे अब रात को क्या करना है। वह कुछ भी करेगा, लेकिन कायनात और राज को एक नहीं होने देगा। उसके मन में एक अलग ही प्लान था।

    तभी वंदना जी ने कायनात की ओर देखते हुए कहा, "बेटा, तुम लोग बहुत थके हुए लग रहे हो; जाओ अपने कमरे में और आराम करो।" वंदना जी ने कायनात और राज को कमरे में जाने के लिए कह दिया। करण अपनी माँ को घूरने लगा; ऐसा लगने लगा कि वह अपनी माँ को आँखों ही आँखों में खा जाएगा। जयप्रकाश जी करण के हर पल को देख रहे थे, और उसके मन की बात समझने की कोशिश कर रहे थे।

    उन दोनों के जाने के बाद, जैसे ही करण उनके पीछे जाने लगा, जयप्रकाश जी ने करण को आवाज़ देकर रोका और कहने लगे, "करण, बेटा, तू कहाँ जा रहा है? मेरे पास आ; थोड़ी देर अपने दादा के साथ टाइम स्पेंड कर। आजा, हम दोनों दोस्तों की तरह बैठेंगे और थोड़ी देर बातें करेंगे।" उसके दादा के कहने पर करण के माथे पर बल पड़ गए; उसका गुस्से से बुरा हाल हो गया, और वह सोचने लगा कि लगता है इस बूढ़े के दिन पूरे हो चुके हैं।

    पूरा परिवार वहाँ मौजूद था, इसलिए करण जयप्रकाश जी को मना नहीं कर सकता था, और वह उनके पास बैठ गया। जयप्रकाश जी ने एक गिलास पानी करण की ओर बढ़ाया और कहने लगे, "बेटा, तेरे चेहरे पर पसीना क्यों आ रहा है? ले, पानी पी; थोड़ा बेहतर लगेगा।" जयप्रकाश जी ने गिलास पानी करण को दिया। करण ने बिना पानी की ओर देखे, एक ही घूंट में सारा पानी पी लिया। जयप्रकाश जी मन में मुस्कुराने लगे, और अचानक करण की आँखें भारी होने लगीं, और जयप्रकाश जी के कमरे में वह गहरी नींद में सो गया।

    जयप्रकाश जी उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहने लगे, "मुझे माफ़ कर देना मेरे बच्चे, कि मुझे तुम्हें इस तरह से नींद की गोलियाँ देकर सुलाना पड़ रहा है। क्योंकि मैं चाहता हूँ कि राज और कायनात एक हो जाएँ; अगर वे एक हो जाएँगे, तो मुझे पूरी उम्मीद है कि तू उसके बाद कायनात के पीछे नहीं जाएगा, और कल सुबह मैं खुद गुरुजी के पास जाकर तेरे इस आत्मा से बचने का उपाय ढूँढूँगा।" जयप्रकाश जी सोचने लगे कि डॉक्टर से नींद की गोलियाँ कैसे माँगें। उन्होंने गोलियाँ लीं और उसे पानी में मिलाकर तैयार कर दिया ताकि मौका देखकर वह करण को पिला सकें। अब करण गहरी नींद में सो चुका था, तो कायनात और राज का रास्ता साफ़ था।

    क्या कायनात और राज एक हो पाएँगे? जानने के लिए बने रहिए।