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From Never to FOREVER

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Ravina Sastiya

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"डैड... आप समझते क्यों नहीं हो!" जीवांशी ने गुस्से में अपने पैर पटकते हुए कहा, "मैं उस  छोटे से गाँव में शादी नहीं कर सकती। और उस लड़के को तो मैंने कभी देखा भी नहीं। आप ऐसा कैसे कर सकते हो मेरे साथ?" जीवांशी के डैड अक्षत रॉय बोले, "जीवी, ये फैसला...

Total Chapters (3)

Page 1 of 1

  • 1. From Never to FOREVER - Chapter 1

    Words: 1756

    Estimated Reading Time: 11 min

    गाँव के अंदर एक कार तेजी से बड़ रही थी और उसमें बैठा हुआ दुल्हा जिसका नाम माधव और पास में मूंह फूला कर बैठी  दुल्हन जिसका नाम जीवांशी रॉय...जो अब बन गई है जीवांशी माधव ठाकुर।

    जीवांशी के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था और वो खिड़की से बाहर झांक रही थी।

    माधव ठाकुर  उम्र 25 ... गेहुआ रंग...  माथे तक  आते कर्ली बाल... गहरी नीली आंखे... स्वभाव से बहुत ही भोला...शांत।


    जीवांशी रॉय उम्र 25 .. गौरा रंग... कंधे तक आते सीधे रेशमी बाल... भूरी आँखें... तीखे नैन नक्श...कुल मिलाकर कर  बहुत ही सुंदर है लेकिन ये जितनी सुंदर है उतनी ही ज्यादा घमंडी और  जिद्दी भी है।

    जीवांशी के डैड अक्षत रॉय जिनका नाम और रुतबा दोनो ही बहुत बड़ा था। दिल्ली के टॉप बिज़नेस मैन की लिस्ट में अक्षत रॉय का नाम था..इनका बिज़नेस इंडिया के बाहर भी फैला हुआ है...लेकिन अक्षत रॉय की जिंदगी में तबाही तब मची जब उसकी  सबसे छोटी बेटी जीवांशी का जन्म हुआ.... जीवांशी बचपन से ही बहुत जिद्दी थी...लेकिन इसकी जिद्द ने उसे समय के साथ साथ घमंडी भी बना दिया...आखिर जिसका बाप इतना अमीर हो, उसके अमर घमंड कैसे न आए। जीवांशी हर बात पर जिद्द कर बैठती थी और इसका सबसे बड़ा कारण खुद इसकी मम्मा अवनी रॉय थी... वैसे तो अवनी और अक्षत की लव मैरिज थी लेकिन अवनी के लाड प्यार ने जीवांशी को बहुत ही जिद्दी बना दिया था। जिसकी वजह से अक्षत रॉय ने एक फैसला लिया... जीवांशी की शादी अपने सबसे ख़ास दोस्त राजीव ठाकुर के बेटे माधव से करवाने का... जीवांशी ने साफ मना कर दिया था की वो एक गांव में शादी बिलकुल नहीं करेगी ...

    "डैड... आप समझते क्यों नहीं हो!" जीवांशी ने गुस्से में पैर पटकते हुए कहा, "मैं उस   छोटे से गाँव में शादी नहीं कर सकती। और उस लड़के को तो मैंने कभी देखा भी नहीं। आप ऐसा कैसे कर सकते हो मेरे साथ?"

    अक्षत रॉय ने चश्मा उतारते हुए कहा, "जीवी, ये फैसला तुम्हारे भले के लिए है। ज़िंदगी हमेशा तुम्हारी शर्तों पर नहीं चलती। और माधव एक बहुत अच्छा लड़का है। तुम्हें वहाँ सबकुछ मिलेगा, बस थोड़ी अडजस्टमेंट करनी पड़ेगी।"

    जीवांशी ने गुस्से में आँखें चौड़ी करते हुए कहा, "अडजस्टमेंट? सीरियसली, डैड? मैं दिल्ली की लाइफ छोड़कर उस गाँव में जाऊँगी जहाँ इंटरनेट भी सही से नहीं चलता!"

    अवनी, जो चुपचाप खड़ी थी, अब बीच में आई, "बेटा, ज़िंदगी सिर्फ सुविधाओं के बारे में नहीं होती। माधव और उसकी फैमिली बहुत अच्छे लोग हैं।"

    जीवांशी ने झटके से अवनी की ओर देखा, "मॉम, आपको क्या लगता है, मैं वहाँ हैप्पी रहूंगी? मुझे  गाँव की सिंपलिस्टिक लाइफस्टाइल से नफरत है!"

    अक्षत ने गंभीर स्वर में कहा, "जीवांशी, ये कोई डिस्कशन नहीं है। तुम्हारी शादी तय हो चुकी है, और तुम वहाँ जाओगी। बस!"

    जीवांशी ने गुस्से से कहा,"बिलकुल भी नही ! मैं नहीं करने वाली ये कोई भी शादी वादी समझे आप ...और वैसे भी मैं अर्चित से प्यार करती हु। "


    अवनी ने गुस्से से कहा,"जीवी, वो अर्चित अच्छा लड़का नही है । "

    जीवांशी ने गुस्से में अक्षत की ओर देखा और तेज़ आवाज़ में बोली, "आप लोग मुझे समझते ही नहीं हो! मैं अर्चित से प्यार करती हूँ और उसी से शादी करूँगी। आप मुझे इस माधव के साथ ज़बरदस्ती शादी नहीं करवा सकते!"

    अक्षत रॉय ने अपनी आवाज़ को और गंभीर करते हुए कहा, "जीवांशी, अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी, तो मुझे ज़हर खाकर मरने के अलावा कोई और रास्ता नहीं दिखता।"

    जीवांशी ने चौंकते हुए कहा, "डैड, ये क्या बोल रहे हैं आप? आप मुझे ब्लैकमेल कर रहे हैं!"

    अक्षत ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, "ये ब्लैकमेल नहीं है, जीवी। ये सिर्फ तुम्हारे भले की बात है। तुम जिस अर्चित से प्यार करती हो, वो तुम्हारे लायक नहीं है। वो तुम्हारे पैसों के पीछे है, तुम समझ क्यों नहीं रही?"

    जीवांशी ने अवनी की ओर मुड़ते हुए कहा, "मॉम, आप तो कुछ कहिए! ये सही नहीं है। आप लोग मेरे सपनों को तोड़ रहे हो!"

    अवनी ने गहरी नजरों से जीवांशी को देखा और कहा, "जीवी, तुम जितना इस वक्त गुस्से में हो, हम भी उतने ही परेशान हैं। हम तुम्हारी खुशी चाहते हैं, लेकिन ये रास्ता सही नहीं है।"

    जीवांशी ने  गुस्से से कहा, "तो  फिर आपने बिग ब्रदर  की शादी क्यों नही करवाई गांव में...आप ..आप लोग मुझे खुश ही नहीं देखना चाहते?और ...और शिव्या दी ...वो तो  लंदन में है न उनके बॉयफ्रेंड के साथ! आई नो शिव्या दी ने आपकी बात नही मानी और वो लंदन में सबको छोड़ कर चली गई  इसीलिए आप मुझे जबरदस्ती कर रहे हो न....लेकिन मैं भी आपसे डबल जिद्दी हु।"



    अक्षत रॉय ने अपनी नज़रें जीवांशी पर टिकाते हुए ठंडे स्वर में कहा, "शिव्या की बातें यहाँ मत लाओ, जीवी। उसकी अपनी ज़िंदगी के फ़ैसले थे और उसने उसका नतीजा भी भुगता। लेकिन मैं तुम्हारे लिए वैसा कुछ नहीं चाहता।"

    जीवांशी ने गुस्से में अपने बाल झटकते हुए कहा, "ओह रियली,डैड ? तो फिर मुझसे जबरदस्ती क्यों कर रहे हो? अगर मेरी खुशियाँ आपको इतनी ही प्यारी हैं तो मुझे क्यों गाँव में भेज रहे हो?"

    अवनी ने आगे बढ़ते हुए कहा, "जीवी, तुम ये क्यों नहीं समझ रही कि हम तुम्हारे लिए बेस्ट चाहते हैं? माधव एक अच्छा लड़का है, और वो तुम्हें बहुत खुश रखेगा।"

    जीवांशी ने अवनी की बात काटते हुए कहा, "बेस्ट? सीरियसली मॉम, आप इस लड़के को बेस्ट कह रही हो जिसे मैंने कभी देखा भी नहीं! यू गाइज आर डेस्ट्रॉयिंग माय लाइफ! मैं अर्चित के साथ ही खुश हूँ और मैं उसी से शादी करूँगी।"

    अक्षत ने अपना धैर्य खोते हुए कहा, "जीवांशी, तुम्हें अर्चित के बारे में जितना पता होना चाहिए था, उतना है भी नहीं। वो लड़का तुम्हारे साथ सिर्फ इसलिए है क्योंकि तुम अक्षत रॉय की बेटी हो।"

    जीवांशी ने आँखों में आंसू भरते हुए कहा, "डैड, आप लोग हमेशा ये सोचते हो कि पैसे ही सबकुछ होते हैं। लेकिन मैं अर्चित से सच्चा प्यार करती हूँ! और अगर आप मुझे समझने की कोशिश नहीं करेंगे, तो मैं..."

    अवनी ने जल्दी से कहा, "तुम क्या, जीवी? तुम क्या करोगी?"

    जीवांशी ने गुस्से में जवाब दिया, "मैं भाग जाऊंगी! हाँ, मैं अर्चित के साथ भाग जाऊंगी और तब देखेंगे आप दोनों क्या करेंगे।"

    अक्षत ने अपने हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, "इनफ, जीवी! तुम्हारी ये चिल्डिश बातें अब और नहीं सुन सकता। अगर तुमने हमारे फ़ैसले को नहीं माना, तो तुम्हें मेरा मरा हुआ मुँह देखना पड़ेगा।"

    जीवांशी का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। उसने अवनी की ओर देखा, जो खुद भी परेशान दिख रही थी।

    "डैड... आप ये क्या कह रहे हैं?" जीवांशी की आवाज़ टूटते हुए बोली, "आप मुझे ब्लैकमेल कर रहे हैं। ये सही नहीं है।"

    अक्षत ने शांत लेकिन सख्त लहजे में कहा, "ये ब्लैकमेल नहीं है, जीवी। ये मेरी आखिरी उम्मीद है कि तुम मेरी बात मानो। मैं अपने जिगर के टुकड़े को गलत रास्ते पर जाते हुए नहीं देख सकता।"

    अवनी ने आगे आकर जीवांशी के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "बेटा, हम तुम्हारी खुशी चाहते हैं। तुम अभी जो गुस्से में कह रही हो, वो बाद में तुम्हें समझ आएगा। हमें यकीन है कि माधव तुम्हारे लिए सही इंसान है। बस एक मौका दो उसे, जीवी।"

    जीवांशी ने थोड़ा रुकते हुए कहा, "आप लोग समझते नहीं हो... मुझे वो लाइफ चाहिए जो मैंने सपने में देखी है। मैं उस छोटे से गाँव में कैसे रह सकती हूँ, जहाँ कोई भी मेरी लाइफस्टाइल को नहीं समझेगा?"

    अक्षत ने ठंडी आवाज़ में कहा, "ज़िंदगी सपनों से नहीं, हकीकत से चलती है, जीवी। तुम्हारे सपने तब पूरे होंगे जब तुम सही फैसले लोगी।"


    जीवांशी ने रोते हुए कहा, "डैड, आप ऐसा नहीं कर सकते! मैं... मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ।"

    अक्षत ने नर्म स्वर में कहा, "तो फिर हमारी बात मान लो, बेटा। ज़िंदगी में हमेशा हर चीज़ हमारी पसंद की नहीं होती। कभी-कभी हमें समझौता करना पड़ता है।"

    जीवांशी ने अपने आंसू पोंछते हुए धीरे से कहा, "ठीक है डैड... मैं आपकी बात मानूँगी, लेकिन याद रखिए, ये फैसला मेरा नहीं है।"

    अवनी ने जीवांशी को गले लगाते हुए कहा, "हम जानते हैं, बेटा। लेकिन एक दिन तुम्हें समझ आएगा कि हमने जो किया, वो तुम्हारे लिए सही था।"


    जीवांशी ने कुछ देर तक चुपचाप खिड़की के बाहर देखा, जहाँ दूर-दूर तक गाँव के छोटे-छोटे घर दिख रहे थे। 

    कार अब गाँव की संकरी गलियों में धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, और जीवांशी को अपना नया जीवन अब और करीब आता महसूस हो रहा था—एक ऐसा जीवन, जिसे उसने कभी चाहा ही नहीं था।

    माधव, गाड़ी चलाते हुए बार-बार बगल में बैठी हुई जीवांशी की ओर देखता। जीवांशी का गुस्से से फूला चेहरा देखकर उसने हल्के से मुस्कराते हुए कहा, "मुझे पता है आप यहां आने से खुश नहीं हो, लेकिन एक मौका तो दो।"

    जीवांशी ने गुस्से से कहा , "मौका? किस चीज़ का मौका? "


    जीवांशी के इस तरह अचानक चिल्लाने की वजह से माधव एक दम से चौक गया लेकिन अगले ही पल उसने धीरे से कहा," माफ करना...अभी पानी की बॉटल खाली हो गई है ... आपके गुस्से को ठंडा करने के लिए। "

    जीवांशी ने गुस्से में कहा, "इडियट! तुम क्या समझते हो खुद को ? मेरे सामने तुम एक फूटी कौड़ी के बराबर भी नही हो !"

    माधव ने कुछ नही कहा और चुपचाप कार चलाता रहा।

    जीवांशी ने माधव को घूरते हुए कहा, "तुम गाँव के गंवार हो, तुम्हें क्या पता शहर की ज़िंदगी का? तुम्हारे पास कोई डिग्री नहीं, बस तुम्हारे घर का नाम है। मैं तुमसे शादी करके अपनी ज़िंदगी को बर्बाद नहीं कर सकती!"

    माधव ने मुस्कराते हुए कहा, "शादी का मतलब बर्बादी नहीं होता । ये  तो एक नई शुरुआत होती है।"

    जीवांशी ने चिढ़कर कहा, "नई शुरुआत? खुद तो मेरे डैड की कार चला रहे हो और कह रहे हो की नई शुरुआत... तुम्हारी खुद की औकात भी नही है ऐसी महंगी महंगी कार में बैठ सको ऐसी। 



    माधव, जो अब तक चुप बैठा था, धीरे से बोला, "जीवांशी, मुझे पता है कि ये सब आपके लिए बहुत मुश्किल है। पर मैं एक बात कहना चाहता हूँ—मैं आपको कभी मजबूर नहीं करूँगा। जितना वक्त चाहोगी, उतना वक्त मैं आपको दूँगा। बस इतना जान लो कि मैं आपकी खुशी चाहता हूँ।"


    जीवांशी ने एक बार फिर खिड़की से बाहर देखा, जहाँ अब गाँव के लोग उनकी कार की ओर देख रहे थे, जैसे किसी फिल्म का सीन देखने के लिए जमा हुए हों।


    गाड़ी घर के दरवाज़े पर रुकी। घर के बाहर कई औरतें खड़ी थीं, जो नई दुल्हन की एक झलक पाने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रही थीं।





    आगे क्या होगा जानने के लिए  अगले भाग का इंतजार करते  रहिए साथ ही समीक्षा भी करते रहिए।

  • 2. From Never to FOREVER - Chapter 2

    Words: 2002

    Estimated Reading Time: 13 min

    जैसे ही कार रुकी, सभी औरतें एक साथ उठ खड़ी हुईं, उनकी आँखों में जिज्ञासा और उत्साह था। जीवांशी ने जब उस कच्चे घर को देखा, तो उसकी आंखें हैरानी से चौड़ी हो गईं। एक बड़ा सा घर, लेकिन ईंटों से बना और जमीन पर गोबर पुता हुआ। घर के आंगन में ढोल नगाड़े बज रहे थे, बच्चे कूद रहे थे और गाँव की महिलाए एकत्रित होकर नई शहरी बहु के बारे में वार्तालाप कर रही थी।

    जीवांशी ने मुँह पर हाथ रखा, "यहाँ तो कोई ठीक से बैठने की जगह भी नहीं है!" उसने मन ही मन सोचा।


    जीवांशी ने धीरे से दरवाज़ा खोला और बाहर कदम रखा। जैसे ही वह बाहर निकली,  आँगन में बैठी औरतों ने जीवांशी को घेर लिया।

    जीवांशी को बहुत ही अजीब लग रहा था इस छोटे से गांव में उसने खुद को संभालते हुए  इधर उधर देखा। सब उसे अजीब सी नज़रों से देख रहे थे।

    एक महिला ने आगे बढ़कर कहा, "शहरी बहु ...सच मुच में शहरी ही लग रही है।"

    जीवांशी ने उस महिला की बात सुनी फिर अपने मन में बड़बड़ाते हुए बोली," हुह्ह्ह शहरी हु तो शहरी ही लगूंगी न....कैसे कैसे लोग है यहां... ।"

    तभी माधव ने कहा, " अरे अरे चाची अभी हमारा गृहप्रवेश तो हो जाने दो... उधर हमारी मईया  दरवाजे पर आरती  थाल लिए खड़ी है और आप सभी हो की यहां रास्ता रोक कर खड़ी हो ।"

    जीवांशी ने माधव की आवाज़ सुनते ही राहत की सांस ली, जैसे उसकी चिंताएं थोड़ी कम हो गई हों। उसने देखा कि माधव मुस्कुराता हुआ उसकी तरफ बढ़ रहा था, और उसके पीछे घर की बड़ी-बूढ़ी महिलाएं आपस में हंसती हुई, पीछे हटने लगीं। वह आहिस्ता-आहिस्ता उनकी बातों को सुनने लगी, "अरे, ये नई बहू तो बड़ी नाज़ुक लग रही है, न जाने ये गाँव की ज़िन्दगी कैसे निभाएगी!" किसी और ने कहा, "कहाँ शहर की चमक-धमक, और कहाँ हमारा ये धूल-धूसरित गाँव।"

    जीवांशी का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने खुद को शांत किया और माधव की ओर देखा, जैसे वह उससे कुछ सहारा चाह रही हो। माधव उसकी ओर आकर बोला, "चलो, अन्दर चलते हैं। गृहप्रवेश का समय हो रहा है।" उसकी आवाज़ में प्यार और सुकून था, जिससे जीवांशी को थोड़ा भरोसा मिला।

    वह माधव के साथ दरवाजे की ओर बढ़ी, जहां उसकी सास, माधव की मां, हाथ में आरती की थाल लिए खड़ी थीं। दरवाजे के दोनों ओर दीवारों पर हल्दी और कुमकुम से सुंदर सजावट की गई थी। गाँव की महिलाएं उनके चारों ओर जमा हो गईं थीं, मानो ये कोई बड़ा उत्सव हो।

    माधव की मां ने आरती करते हुए कहा, "जीवांशी, बेटा, जब बहू पहली बार घर में कदम रखती है, तो उसे अपने नये जीवन की शुरुआत के साथ साथ, इस घर को भी अपनी ममता से भर देना होता है।" उनके चेहरे पर दुलार और स्नेह झलक रहा था, मगर जीवांशी को लगा कि उन शब्दों में कहीं एक परम्पराओं की चुपचाप जिम्मेदारी भी छिपी है।

    जीवांशी ने जब अपने पैरों के पास देखा, तो उसने गोबर से लीपे आँगन में अपने महंगे सैंडल से उठ रही धूल को महसूस किया। उसे थोड़ा असहज लगा, लेकिन उसने अपना ध्यान दूसरी ओर करने की कोशिश की। "शायद यहीं की मिट्टी मुझे स्वीकार करने की राह देख रही है," उसने खुद से कहा और धीरे गहरी सांस छोड़ दी।

    जैसे ही उसने गृहप्रवेश के लिए कदम बढ़ाया, माधव की मां ने हल्दी-कुमकुम से सजी थाली से उसका स्वागत किया और उसके पैरों के नीचे चावल का कटोरा रखा। "पहला कदम शुभ हो, बहू," कहते हुए उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखा।

    जीवांशी ने बिना कुछ कहे, अपना पहला कदम उस कटोरे पर रखा और जैसे ही उसके पैर से चावल आँगन में बिखर गए, उसे एक अजीब सी अनुभूति हुई। 

    आँगन के दूसरे छोर से गाँव की कुछ औरतें धीरे-धीरे हंसते हुए आपस में बातें करने लगीं, "देखना, ये शहरी बहू यहां की रीति-रिवाजों को कितनी जल्दी समझती है।" यह सुनकर जीवांशी के दिल में हल्की सी घबराहट हुई, लेकिन वह अपने चेहरे पर एक बनावटी मुस्कान बनाए रखी।

    गृहप्रवेश के बाद घर के बड़े कमरे में सभी लोग इकट्ठा हो गए थे। माधव ने उसका हाथ पकड़कर उसे बैठाया, और धीरे से फुसफुसाया, "आप फिक्र मत करो, मैं हूं न। ये सब बस आपको जानने की कोशिश कर रहे हैं।" माधव की इस बात से जीवांशी  को कोई भी फर्क नही पड़ा, लेकिन उसके चेहरे पर तनाव की लकीरें अभी भी साफ दिख रही थीं।

    घर की महिलाएं और बच्चे उसे देखने के लिए अंदर आ गए थे। बच्चे उसकी ओर इशारा करके आपस में हंस रहे थे, औरतें उसकी साड़ी और गहनों की तारीफ कर रही थीं, लेकिन उनके शब्दों में शहरी और गाँव की ज़िन्दगी का स्पष्ट फर्क साफ झलक रहा था।

    तभी, माधव की दादी, जो सबसे वरिष्ठ थीं, पास आकर बोलीं, "बहू, अब ये तुम्हारा घर है। जैसा भी है, इसे अपनाने में ही तुम्हारी असली पहचान है। हम जानते हैं, शहर की ज़िन्दगी अलग होती है, लेकिन यहाँ की मिट्टी में भी अपनापन है, बस थोड़ा वक्त लगेगा इसे महसूस करने में।"

    जीवांशी ने दादी के शब्दों को ध्यान से सुना। उसे समझ आ रहा था कि ये सब जितना उसके लिए नया और अजीब था, उतना ही यहाँ के लोग भी उसे लेकर उत्सुक थे।

    जीवांशी ने दादी के शब्दों को सुनकर धीरे से सिर हिला दिया, लेकिन उसके मन में विचारों का बवंडर चल रहा था। गाँव की ये दुनिया, जिसकी उसे बचपन से ही धुंधली सी झलकें मिली थीं, अब उसके सामने पूरी सजीव होकर खड़ी थी। वह सोचने लगी, "क्या मैं वाकई इस नई जिंदगी को अपना पाऊँगी? क्या मैं इस मिट्टी से जुड़ पाऊँगी?" उसकी आँखें घर की दीवारों पर लगी पुरानी तस्वीरों पर टिक गईं, जहाँ माधव की दादी के जवानी के दिनों की एक तस्वीर थी, जिसमें वह सिर पर पल्लू डाले मुस्कुरा रही थीं। तस्वीर के ठीक नीचे, एक छोटा सा भगवान का मंदिर सजा था, जिसमें पीतल के दीये जल रहे थे। यह दृश्य एक अलग ही जीवन की गवाही दे रहा था—एक साधारण, शांत, लेकिन गहरे अपनापन भरे जीवन की।

    तभी, माधव की माँ ने उसकी तंद्रा तोड़ी, "बहू, थोड़ा आराम कर लो। आज का दिन लंबा था, और तुम्हें भी थकान हो रही होगी।" जीवांशी ने उनकी ओर देखा, फिर धीमे से मुस्कुराते हुए कहा, " हम्म।" लेकिन अंदर ही अंदर वह जानती थी कि थकान सिर्फ शारीरिक नहीं थी; ये नए माहौल को समझने और स्वीकार करने की मानसिक थकान भी थी।

    माधव की मां हेमा जी ने कहा,"किट्टू जा तो जरा अपनी भाभी को उसके कमरे तक छोड़ कर आ। "

    जीवांशी ने सामने देखा जहा किट्टू हंसते हुए आ रही थी।

    एक लगभग 17 साल की लड़की जिसने एक नीले रंग का कुर्ता पहना हुआ था जिसके उपर सफ़ेद धागे से डिजाइन बना हुई थी और उसी के साथ उसने सफ़ेद रंग का दुप्पटा ओढ़ा हुआ था और उसने अपने लम्बे बालों की चोटी बनाई हुई थी।  वैसे तो किट्टू का पूरा नाम कल्पना था लेकिन सब उसे किट्टू ही कहते थे।

    किट्टू ने हंसते हुए आई और बोली ," चलिए भाभी ...आपको आपके कमरा तक ले चलती हु। "


    जीवांशी ने किट्टू की ओर देखा, उसकी मासूमियत और हंसी देखकर थोड़ा सुकून महसूस किया। वह जानती थी कि यह गांव और इसके लोग उसके लिए बिल्कुल नए और अजीब थे, लेकिन किट्टू का स्वागत भरा व्यवहार उसे थोड़ा सहज करने की कोशिश कर रहा था।

    किट्टू ने हंसते हुए कहा, "भाभी, यहां के कमरों का क्या बताएं! सीधे-साधे हैं, लेकिन चिंता मत करना, हम मिलकर थोड़ी-बहुत शहरी झलक भी डाल देंगे। आपके लिए भी तो कुछ खास करना चाहिए न!"

    जीवांशी ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा, "शहरी झलक? यहां?" उसने सोचा कि गांव के इस पुराने घर में ऐसा करना आसान नहीं होगा। 

    जब वे कमरे के पास पहुँचीं, तो किट्टू ने दरवाजा खोला। कमरे में घुसते ही जीवांशी की नजर चारों ओर गई। कमरे की दीवारों पर सफेद चूने का लेप था, छत लकड़ी की थी, और फर्श पर पुरानी सी चटाई बिछी थी। कोने में एक बड़ा सा तख्त था, जिस पर चादर बिछी हुई थी और पास ही एक अलमारी रखी थी, जिसमें कुछ कपड़े और गांव के हिसाब से सजी-धजी चीजें रखी हुई थीं।

    जीवांशी ने कमरे के चारों तरफ नज़र घुमाई और उसकी आँखों में हैरानी और असहजता एक साथ झलकने लगी। "ये... ये तो बहुत ही छोटा है," उसने मन में बड़बड़ाते हुए सोचा। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अब यही कमरा उसका था। "और ये तख़्त? यहाँ तो पलंग तक ढंग का नहीं है! अलमारी में कपड़े जैसे बेतरतीब ढंग से ठूसे हुए हैं।" उसने हल्के से नाक सिकोड़ते हुए देखा।

    किट्टू, जो उसकी मनोदशा समझ रही थी, ने हंसते हुए कहा, "अरे भाभी, थोड़ा वक्त दीजिए। आपको इस कमरे से भी प्यार हो जाएगा। और वैसे भी, आप जो चाहें, हम यहां बदलाव कर सकते हैं। लेकिन हां, गाँव की शान अपनी जगह पर ही रहेगी।" उसने चुटकी लेते हुए कहा।

    जीवांशी ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए कमरे के एक कोने में रखे छोटे से दर्पण को देखा, जो इतना धुंधला था कि उसमें ठीक से चेहरा भी नज़र नहीं आ रहा था। "शहर में तो हर चीज़ इतनी साफ-सुथरी होती है, और यहाँ..." उसने फिर से मन ही मन सोचा और एक गहरी सांस ली।

    किट्टू ने मजाकिया लहजे में कहा, "भाभी, आप टेंशन मत लो। ये जो हमारा तख़्त है, ये गाँव का सबसे मजबूत फर्नीचर है! इसमें से कभी आवाज़ नहीं आएगी, चाहे कितनी भी देर बैठो!" उसने खिलखिलाते हुए तख़्त पर हाथ मारा, जिससे थोड़ा सा धूल उड़कर जीवांशी के कपड़ों पर आ गई।

    जीवांशी ने जल्दी से अपने कपड़े झाड़े और हल्की सी झुंझलाहट में कहा, "धूल तो हर तरफ़ है यहां! और ये क्या कमरा है, कहीं बैठने की भी जगह नहीं है।"

    किट्टू ने उसकी नाराजगी भांपते हुए कहा, "अरे भाभी, आप शहरी बहु हो, लेकिन ये गाँव भी आपकी जिंदगी का हिस्सा है अब। यहां की सादगी में भी एक अलग ही अपनापन है, जो शहरों की चकाचौंध में नहीं मिलता। बस, थोड़ा वक्त लगेगा आपको।"

    जीवांशी ने मन में सोचा, "अपनापन? इस धूल में अपनापन कहाँ से महसूस होगा! मेरे कपड़े, मेरे सैंडल... सब खराब हो जाएंगे।" उसकी नज़रें चारों ओर घूम रही थीं, और हर कोने में उसे कुछ न कुछ कमी दिख रही थी।

    किट्टू ने फिर हंसते हुए कहा, "वैसे भाभी, आप तो इस कमरे में इतनी सी जगह देखकर ही परेशान हो रही हो, लेकिन हमारे गाँव में तो ये कमरे सबसे बड़े होते हैं! और हाँ, शहरों में जो बड़े-बड़े बाथरूम होते हैं, यहाँ वैसा कुछ भी नहीं मिलेगा। यहाँ तो आपको कुएं से पानी भरना पड़ेगा!" उसने फिर से एक चुटकी ली।

    जीवांशी का चेहरा और भी मुरझा गया। "कुआं?" उसने लगभग चीखते हुए कहा। "मैं... मैं कैसे कर पाऊंगी ये सब? मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे इस तरह रहना पड़ेगा।"

    किट्टू ने हंसते हुए कहा, "अरे भाभी, हम हैं ना आपकी मदद के लिए। आप देखिएगा, धीरे-धीरे आपको भी सब अच्छा लगने लगेगा। और रही बात शहरी झलक की, तो हम यहां कुछ नया करवा लेंगे। लेकिन पहले तो आप थोड़ा आराम कर लीजिए।"

    जीवांशी ने बेमन से सिर हिलाया, लेकिन उसके दिल में लगातार बेचैनी बढ़ती जा रही थी।  कितना अजीब है ये सब..." डैड  मैने आपकी बात मान ली...अब तो आप खुश ही होंगे न। " उसने अपने मन में कहा।

    तभी बाहर से किसी औरत की तेज़ आवाज़ आई, "अरे किट्टू, बहू को आराम करने दो।" यह आवाज़ माधव की मां हेमा जी की थी, जो कमरे के दरवाजे पर खड़ी थीं।

    किट्टू ने मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, मां। भाभी को आराम करने देते हैं।" फिर उसने धीरे से जीवांशी की ओर मुड़ते हुए कहा, "आप चिंता मत करो, भाभी। हम सब आपके साथ हैं।"

    जीवांशी ने एक बार फिर किट्टू की बात सुनी, लेकिन उसके दिल में अभी भी गाँव की इस सादगी और अपनी शहरी दुनिया के बीच का अंतराल गूंज रहा था।


      



    आगे क्या होगा जानने के लिए  अगले भाग का इंतजार करते  रहिए साथ ही समीक्षा भी करते रहिए।

  • 3. From Never to FOREVER - Chapter 3

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min