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Psychopath love

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Alfie khan

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Description

My new novel क्या होगा यदि आप एक मनोरोगी द्वारा बंधक बना लिए जाएं, जो आपकी मासूमियत और खुशी को छीन ले? यह आयशा की कहानी है, एक 19 वर्षीय लड़की जिसका जीवन एक मनोरोगी के साथ शुरू और समाप्त होता है। लेकिन क्या होगा अगर उसकी मासूमियत ही उसके पतन का का...

Characters

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अदिहा मासूम और चुल बुली लड़की

Heroine

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विहान गुसल और बेरहम इसको किसी के जिने या मरने से फर्क नहीं पड़ता

Hero

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. मासूम शुरुआत- Chapter 1

    Words: 692

    Estimated Reading Time: 5 min

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    📝
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    Chapter 1:

    उदयपुर

    एक छोटे से घर की दूसरी मंज़िल पर, एक कमरे में एक लड़की अपने टेडी बियर को बाँहों में लिए गहरी नींद में सो रही थी। खिड़की से आती सूरज की हल्की सी रोशनी उसके मासूम चेहरे पर पड़ रही थी। बाल बार-बार उसकी आँखों पर आ रहे थे, फिर भी वो किसी कुंभकरण की तरह बेसुध सोई थी।

    वो थी आयशा — 19 साल की, बेहद खूबसूरत, मासूम और क्यूट लड़की। उसे देखकर लगता था मानो दुनिया की कोई बुराई उसे छू भी नहीं सकती।


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    नीचे रसोई में –

    एक औरत, खाना बनाते हुए माथा पकड़ कर बोली:
    “हे भगवान! इस लड़की को थोड़ी अक़ल दे दो। आज इसकी ट्रेन है और मैडम अब तक आराम फरमा रही हैं!”

    उसी वक्त पीछे से एक लड़का, जो उसकी बात सुन रहा था, आकर अपनी माँ को गले लगाते हुए बोला,
    “उफ्फो मॉम, आपको तो बस दीदी की ही चिंता है। आपकी दुनिया में मैं हूं भी या नहीं?”

    उस औरत — अवनी जी — ने मुस्कुरा कर उसके सिर पर हल्की सी चपत मारी और बोलीं,
    “तुम अभी छोटे हो। वो बड़ी है, और आज मुंबई जा रही है। उसके बाद तो बस तुम्हारी ही फिकर करूंगी।”

    फिर उन्होंने तौलिये से हाथ पोंछते हुए कहा,
    “जाओ, अपनी बहन को उठाओ। कब से सो रही है, कहीं ट्रेन ना छूट जाए।”


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    ऊपर – आयशा का कमरा

    आयशा अब भी बेफिक्र सो रही थी। तभी दरवाज़ा खुला और अवनी जी अंदर आईं। उन्होंने कंबल हटाते हुए प्यार से कहा,
    “आयशा बेटा, उठो! तुम्हारी ट्रेन छूट जाएगी।”

    आयशा नींद में ही बड़बड़ाते हुए बोली,
    “आप कहाँ जा रही हैं मॉम? आपकी ट्रेन छूट रही है क्या?”

    अवनी हँसते हुए बोलीं,
    “मैं कहीं नहीं जा रही, बेटा। तुम जा रही हो मुंबई, काम के लिए!”

    ये सुनते ही आयशा की आँखें एकदम खुलीं। उसने घबरा कर टाइम देखा —
    “OMG! बारह बज गए? मॉम आपने मुझे उठाया क्यों नहीं!”

    वो जल्दी-जल्दी कपड़े लेकर वॉशरूम की तरफ भाग गई।
    अवनी जी मुस्कुराते हुए बोलीं,
    “पागल लड़की…”


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    थोड़ी देर बाद नीचे

    आयशा ने सामान पैक किया और अपना बैग साइड में रखा। आज वो बहुत सुंदर लग रही थी — काली जींस और लाल टी-शर्ट में, खुले रोल बालों के साथ। होंठों पर हल्की सी रेड लिपस्टिक और आँखों में गहरा काजल — उसकी मासूमियत और भी निखर आई थी।

    अवनी जी ने उसका सिर सहलाते हुए कहा,
    “काम में मन लगाना… और अपना ख्याल रखना।”

    उनकी आँखों में आँसू थे।

    आयशा का छोटा भाई अभय, यह देख कर थोड़ा खुश हो रहा था, क्योंकि अब माँ का सारा ध्यान उस पर रहने वाला था।

    अभय बोला,
    “ओहो मॉम, दीदी तो मुंबई जा रही है, ससुराल नहीं!”

    आयशा मुस्कुराई,
    “ये मेरी मॉम है, इसलिए उनके आँसू निकले हैं। तेरे लिए तो कभी नहीं निकलेंगे!”

    अवनी जी उसे टकटकी लगाए देखती रहीं। कहीं न कहीं उन्हें डर था — उसकी मासूमियत कहीं उसकी कमजोरी न बन जाए।


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    स्टेशन पर

    ट्रेन आ चुकी थी। आयशा ने सामान उठाया, अपनी छोटी-सी फैमिली को देखा और मुस्कुरा कर ट्रेन में चढ़ गई। खिड़की से झांकते हुए उसने माँ को बाय कहा।

    अवनी जी आँखें भर कर बोलीं,
    “ख्याल रखना… और खाना टाइम से खा लेना…”

    ट्रेन धीरे-धीरे चल पड़ी।

    आयशा की मुस्कुराहट तो वहीं रह गई… लेकिन उसकी जिंदगी अब हमेशा के लिए बदलने जा रही थी।


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    मुंबई स्टेशन – अगली सुबह

    ट्रेन के रुकते ही आयशा ने उतरकर स्टेशन की एक बेंच पर सामान रख कर बैठ गई। उसने पर्स निकाला और पता ढूंढा —
    “ओह नो! एड्रेस तो गुम हो गया…”

    कॉल करने पर भी कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला। अब उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे। थक कर उसने वहीं आंखें बंद कीं और सोच लिया,
    "आज की रात यहीं बितानी पड़ेगी…"


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    अगली सुबह

    जब आयशा की आंख खुली, स्टेशन लगभग खाली था। वह बेंच से उठी ही थी कि सामने एक बूढ़ा फकीर आ गया। डर के मारे आयशा थोड़ा पीछे हट गई।

    फकीर ने उसे गहराई से देखा और बोला:

    > “वापस लौट जा बच्चा…
    तू यहाँ अपनी बरबादी लेकर आई है।
    अभी लौट जा — जब तक वक्त है।”




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    ❗Be Continued…


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