Novel Cover Image

The sea horizon

User Avatar

Harsh Tripathi

Comments

5

Views

49

Ratings

6

Read Now

Description

   पूरे 10 वर्षों बाद, कल श्वेतवर्ण पूर्णिमा है। 10 वर्षों में एक बार दिखाई देने वाले सबसे बड़े चंद्रमा की किरणें जब आसाकन के द्वीपों के ऊंचे पहाड़ों से होती हुई सागर पर पड़ेगी, तब सदा लाल रंग से रंगा रहने वाला रक्त सागर दूध से सफेद और मधुर रंग में र...

Characters

Character Image

अक्षांश

Pirate

Character Image

विधिका

Heroine

Character Image

उत्कल

Pirate

Character Image

Avantika

Heroine

Total Chapters (8)

Page 1 of 1

  • 1. The sea horizon - Chapter 1

    Words: 570

    Estimated Reading Time: 4 min

      

    चांदनी रात में नेवतारा द्वीप के किनारे रेत पर बैठी विधिका की आँखें सागर की शांत लहरों पर थीं. सागर की धीमी लहरें ऊपर चढ़कर उसके पैरों को भिगोतीं और वहां से वापस पीछे लौट जातीं. चाँद की रौशनी में विधिका का गोरा रंग और ज्यादा चमक रहा था. उसके लम्बे काले बाल हवा में लहराकर उसके चेहरे पर आते, लेकिन वो उन्हें चेहरे से हटाने की कोई कोशिश नहीं कर रही थी.
    आचानक से उसकी आँख से एक बूँद आंसू लुढ़ककर रेत पर जा गिरा. तभी अचानक से उसे एक आवाज आई. विधिका जल्दी से उठकर आवाज की दिशा में भागी. कुछ ही दूरी पर उसे किनारे पर कोई पड़ा हुआ नजर आने लगा.
    विधिका जल्दी से उसके पास पहुंची. वह एक लड़का था. करीब 17 साल का. विधिका से लगभग एक साल बड़ा. उसके सर से खून बह रहा था. शरीर पर कई सारी चोटें थीं, कपड़े भी फट चुके थे. लड़का धीमी आवाज में कराह रहा था. विधिका ने जल्दी से उसका सर अपनी गोद में रख लिया.
    “दूर हटो. मुझे नफरत है तुमसे.” लड़के ने अपनी आँखें खोलते और बंद करते हुए कहा. बेशक वह ठीक से देख नहीं पा रहा था.
    विधिका उससे कुछ पूंछ पाती उससे पहले ही उस लड़के के शरीर से हरकत होनी बंद हो गई. विधिका ने जल्दी से उसकी धडकनों की जांच की. धडकनें चल रही थीं. लड़का सिर्फ बेहोश हुआ था. अचानक से लड़के के हाथ से कुछ छूटकर जमीन पर गिर गया. यह नीले रंग का माणिक था. लेकिन टूटा हुआ. विधिका ने लड़के को सहारा देते हुए जैसे तैसे अपने घर में पहुंचाया और बिस्तर पर लिटा दिया.
    लड़के की हालत खराब थी और उसका बचना मुश्किल लग रहा था. विधिका ने लड़के को ध्यान से देखा. उसके कपड़े जहाजियों के थे. गले में एक धागा था जिसपर कपडे में लपेटकर कोई चीज बंधी हुई थी. विधिका जल्दी से भागी और गर्म पानी और कुछ फूल पत्ते ले आई. उसने लड़के के घावों को गर्म पानी से साफ़ करना शुरू किया. जैसे जैसे खून हट रहा था,घाव और अच्छे से नजर आने लगे थे. कुछ चोट के निशाँ थे, जो शायद समुद्र में बहते हुए चट्टानों से टकराने के कारण लगे थे. कुछ घाव किसी धारदार चीज से कटने के थे. शायद तलवार के. और कुछ घाव ऐसे थे जिनके आसपास कुछ अजीब से निशाँ बन गए थे. ऐसे निशानों को विधिका ने पहले कभी नहीं देखा था.
    लेकिन सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह थी की इतने घावों के बाद भी लड़का अब तक जिन्दा था.
    विधिका लड़के का इलाज करने में पूरी तरह से तल्लीन हो गई थी. और अपनी व्यस्तता में वह यह भी नहीं देख रही थी की एक काला साया उसके घर की खिड़की से काफी समय से उसी को देखे जा रहा था. उसका सारा शरीर काले कपड़ों से ढंका हुआ था. चेहरे पर भी काला नकाब था. कुछ देर तक विधिका और उस लड़के को देखने के बाद काला साया वहां से चला गया.
    लड़के के पूरे शरीर पर दवा लगाकर और पट्टियां बांधने के बाद आखिरकार विधिका ने चैन की सांस ली। लड़के को चादर ओढ़ाकर विधिका एक बार फिर घर के बाहर आ गई। काफी वक्त बीत चुका था। सूरज पहाड़ों के बीच से निकल आया था। विधिका ने अपनी मुट्ठी खोली जिसमें लड़के के हाथ से गिरा वह नीला माणिक का टुकड़ा था। उसने कुछ देर टुकड़े को निहारा और एक बार फिर मुट्ठी बंद कर ली।

  • 2. Utkal

    Words: 1334

    Estimated Reading Time: 9 min

    “आआआआ!” एक चीख के साथ लड़के की नींद खुली. उसने देखा की वो एक कमरे में था जिसकी दीवारें मिट्टी की बनी थी. उसका पूरा शरीर सूती कपड़ों की पट्टियों से लिपटा हुआ था. खून बहना बंद हो चुका था लेकिन घाव पूरी तरह से नहीं भरे थे.
    “उठ गए!” अचानक से उसे आवाज आई. उसने सामने देखा जहां विधिका एक कटोरी लिए खड़ी थी. एक पल के लिए लड़के की नजरें विधिका पर ही ठहर गईं. लेकिन जल्द ही उसने अपनी नजरें नीचे झुका लीं. विधिका उसके पास आई और उसके बगल में बैठ गई.
    “तुम तीन दीं से बेहोश थे.” विधिका ने शांत आवाज में कहा. “तुम मुझे दरिया किनारे मिले थे. तो मैं तुम्हें यहाँ ले आई. मेरा नाम विधिका है.”
    “मैं कहाँ हूँ?” लड़के ने उलझन भरी आवाज में पूंछा.
    “नेवातारा में.” विधिका ने जवाब दिया. “लुटेरों के 12 द्वीपों में से एक.”
    “अच्छा तुम्हारा नाम क्या है?” विधिका ने पूंछा.
    लड़के ने कुछ बोलने के लिए अपना मुंह खोला. लेकिन उसके मुंह से शब्द नहीं निकले. उसने उलझन भरे भाव से अपना सर पकड़ लिया. काफी देर तक सोचने के बाद वह बस इतना ही बोल पाया, “मैं नहीं जानता.”
    “कोई बात नहीं.” विधिका कुछ सोचते हुए बोली. “तुम्हारे सर पर बहुत गहरी चोट थी. तुम जिन्दा हो यही बहुत बड़ी बात है. वक्त के साथ तुम्हारी यादें भी लौट आएंगीं.”
    लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया. विधिका कटोरी उठाते हुए बोली, “लो मैं तुम्हारे खाने के लिए कुछ लेकर आई हूँ.”
    लड़के ने अजीब निगाहों से विधिका की तरफ देखा. और विधिका उसकी नजरों का मतलब समझ गई. “इसमें कुछ भी नहीं मिलाया है. अगर तुम्हें मारना ही होता तो तुम्हें बचाती ही क्यों?”
    “शायद कोई जानकारी पाने के लिए.” लड़का ने तर्क देते हुए कहा.
    “और एक बिना याद्दाश्त का लड़का मुझे कुआ जानकारी देगा?”
    “इसीलिए शायद अब तुम मुझे मारना चाहती हो. अब मैं तुम्हारे किसी काम का नहीं.”
    विधिका ने एक गहरी सांस ली और खिचड़ी का एक निवाला खुद खा लिया.
    “लो. अब तो यकीन हो गया ना?”
    लड़का कुछ नहीं बोला. उसने अपनी पलकें झुका लीं. जिसका मतलब था की वह विधिका की बात पर सहमत था.
    “चलो अब अच्छे बच्चे की तरह इसे खा लो.”
    “मेरे हाथ.” लड़के ने धीरे से कहा. विधिका ने उसके हाथों को देखा जो पत्तियों से पूति तरह बंधे हुए थे. लड़का उन हाथों से चम्मच नहीं पकड़ सकता था.
    अचानक से चम्मच उसके मुंह के पास आ गई. लड़के ने विधिका को देखा तो विधिका धीरे से मुस्करा दी. “लो खाओ.”

    लड़के ने झिझकते हुए उसके हाथों से खाना शुरू कर दिया. खाना ख़त्म होने के बाद विधिका उसे आराम करने को बोलकर बाहर चली गई. लड़का भी काफी कमजोर और थका हुआ था इसीलिए वह भी जल्द ही सो गया.
    इस सब से दूर अंतर सागर में क्षितिज पर सूरज की पहली किरण निकलने को थी. ‘अंतिम योद्धा’ जहाज अपने पाल फैलाए सागर की लहरों को चीरता हुआ दक्षिण की तरफ बढ़ रहा था. जहाज पर चहल पहल का माहौल था. सारे लोग अपने अपने काम में लगे हुए थे. जहाज का कप्तान हेल्म को पकडे हुए जहाज को दिशा दे रहा था. उम्र 40 के आसपास. सांवला चेहरा जिसपर काफी सारी खरोंचें बनी हुईं थी, सालों से की गई जानलेवा लड़ाइयों का प्रमाण दे रही थीं.
    “जहाज का राशन कितना बचा है?” कप्तान अधिरथ ने सामने की ओर देखते हुए पूछा.
    “लगभग 12 दिन का कप्तान.” उसके पीछे खड़े उस्मान ने जवाब दिया. उस्मान, कप्तान अधिरथ का सबसे काबिल योद्धा और जहाज का द्वितीय प्रमुख था. उम्र करीब 50, चेहरे और दाढ़ी के कुछ बाल सफ़ेद हो चुके थे. कमर पर दो बंदूकें और एक तलवार टंगी हुई थीं.
    “हम्म. अगर हवा का रुख सही रहा तो एक सप्ताह में हम अमृतशिला पहुँच जाएंगे.” अधिरथ ने अपना कम्पास देखते हुए कहा, जो फिलहाल पश्चिम की ओर इशारा कर रहा था.
    “आआआआ!”
    अचानक से एक जोर की चीख ने अधिरथ और बाकी लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा.
    “वो अभी तक मारा नहीं?” अधिरथ सामने जहाज के आगे वाले हिस्से की तरफ देखकर बोला.
    “नहीं कप्तान.” उस्मान ने जवाब दिया. “मुझे लगता है उत्कल उन लोगों पर कुछ ज्यादा ही ज्यादती कर रहा है.”
    “मुझे भी ऐसा ही लगता है.” अधिरथ सामने कुछ देखने की कोशिश करते हुए बोला. लेकिन हर बार कोई ना कोई आदमी बीच में आकर उसे सामने का नजारा देखने से रोक लेता था. “लेकिन उत्कल अपने मजे के चक्कर में जहाज के लोगों को निशाना बनाए इससे अच्छा है की यही लोग यातनाएं सहें.”
    उस्मान कुछ नहीं बोला. लेकिन उसके चेहरे से साफ़ था की वह कप्तान अधिरथ की बातों से सहमत था.
    जहाज के अगले हिस्से में जहाज की पट्टी पर कुछ लोगों को बाँधा गया था. उनके शरीर पर गंभीर निशान थे. कुछ के चेहरों में डर का भाव था तो कुछ निराशा से भरे हुए थे. शायद अपने भाग्य को स्वीकार कर चुके थे.
    इन लोगों से दो कदम आगे, एक और आदमी पड़ा हुआ था. आदमी धीमी आहें भर रहा था. तभी अचानक से एक जोर की लात उसके सीने पर पड़ी और आदमी के मुंह से खून बाहर आ गया. वह खांसते हुए एक बार फिर धीरे धीरे कराहने लगा.
    “तुझे आसान मौत पसंद नहीं क्या?” सामने खड़े लड़के ने एक मजाक भरी आवाज में कहा. ये था कप्तान अधिरथ का एकलौता बेटा उत्कल. उम्र करीब 15 साल. लेकिन अपनी उम्र के बच्चों से एकदम अलग. उसने भी जहाजियों वाले कपडे पहन रखे थे. उसके घुंघराले बाल कन्धों तक आते थे. शरीर सुडौल और ताकतवर था. चेहरा भी सामान्य जहाजियों के मुकाबले सुन्दर था. लेकिन जो लोग उसे जानते थे उनकी नजरों में वह चलता फिरता नरक का द्वार था.
    “म.म. मुझे नहीं पता.” आदमी कमजोर सी आवाज में बोला.
    उत्कल ने निराशा में अपनी आँखें मली. उसने अपनी बेल्ट से एक बड़ी सी लोहे की कील निकाली और आदमी की हथेली पर ठोक दी. कील आदमी की हथेली और जहाज की लकड़ी के आरपार हो गई. आदमी दर्द से चिल्ला उठा. लेकिन उत्कल को कोई फर्क नहीं पड़ा.
    “बस एक सवाल. एक सवाल पूछ रहा हूँ तुम लोगों से. और तुम उसे बताने में भी इतने नखरे दिखा रहे हो.” उत्कल टहलते हुए उन बंधे हुए लोगों को देखकर बोला.
    “चलो खैर.” वह एक लम्बी साँस छोड़कर बोला. “अब तुम्हारी बारी.”
    उसने एक नए आदमी की बेड़ियों को खोला और उसे खींचकर जहाज के बीच ले जाने लगा. आदमी काफी कमजोर और चलने फिरने में असमर्थ लग रहा था. लेकिन अचानक से वह हरकत में आया और उत्कल को एक जोर का धक्का देकर अपना हाथ छुड़ा लिया.
    वह पूरी रफ़्तार से किनारे की तरफ भागा की जहाज से कूद सके. लेकिन वो जहाज से कूद पाता उससे पहले ही एक भाला हवा में उड़ता हुआ आया और आदमी की टांग के आरपार होता हुआ जहाज में धंस गया.
    आदमी दर्द से चिल्लाया. उसने अपना पैर उठाने की कोशिश की लेकिन पैर भाले में इस तरह फंस चूका था की वह ऊपर नहीं उठ सका.
    उत्कल मुस्कराते हुए धीरे क़दमों से उस आदमी के सामने आकर खड़ा हो गया.
    “मेरा निशाना लुटेरे बिरादरी में सबसे अच्छा है, बाबू.” उत्कल हँसते हुए बोला. फिर वह मुड़कर अपने जहाज के लोगों को देखकर बोला, “क्यों सही कहा ना?”
    सारे लोगों ने तुरंत ही सहमती में अपना सर हिला दिया.
    “तो अब तुम्हारे साथ क्या किया जाए?” वह सोचने की कोशिश करते हुए बोला.
    “मुझे छोड़ दो. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँ. मुझे नहीं पता वह कहाँ है.” आदमी लगभग रोती हुई आवाज में बोला.
    “अरे. तुम उस सब की चिंता मत करो.” उत्कल आदमी का कन्धा थपथपाते हुए बोला. “मेरे पास जवाब पाने के लिए काफी सारे लोग हैं. तुम फिलहाल मुझे ये सोचने दो की तुमने अभी जो क्रांतिकारी कदम उठाया था उसके क्या इनाम दिया जाए.”
    कुछ देर सोचने के बाद आखिरकार उत्कल अपने जहाज के एक आदमी को देखता हुआ बोला, “इसे जहाज से कूदने का कुछ ज्यादा ही शौक है. एक काम करो, इसे रस्सी से बांधकर समुद्र में फेंक दो. देखते हैं ये कितनी देर तक लहरों को सह पाएगा.”

  • 3. The sea horizon - Chapter 3

    Words: 1933

    Estimated Reading Time: 12 min

    जब लड़के की नींद दोबारा खुली तब तक रात हो चुकी थी. सामने दरवाजे के बाहर आग जल रही थी. लड़के ने धीरे से उठने की कोशिश की. लेकिन उसके पूरे शरीर में एक तेज दर्द हुआ. वह कुछ पल रुका और दोबारा उठने की कोशिश करने लगा. कुछ देर बाद लड़खड़ाता हुआ ही सही लेकिन वह अपने पैरों पर खड़ा हो गया.
     
     
    उसने पास ही में पड़ी एक छड़ी उठाई और उसके सहारा लेते हुए घर से बाहर आ गया. बाहर का नजारा काफी सुन्दर था. घर के चारों तरफ काफी बड़ा घास का मैदान था. घर के पीछे लगभग आधा मील की दूरी पर पूरा शहर बसा हुआ था. घर के सामने की तरफ समुद्र का किनारा था. और जल्द ही उसे समुद्र के किनारे बैठी विधिका दिख गई. उसे यहाँ से विधिका की पीठ और लहराते बाल ही नजर आ रहे थे.
     
     
    लड़के ने अपने कदम उस ओर बढाए. लेकिन कुछ सोचते हुए उसने अपने कदम वापस ले लिए. वह वहीं आग के पास बैठ गया.
     
     
    कुछ देर बाद विधिका वहां आ गई. “तुम यहाँ!” वह हैरानी से बोली.
     
     
    “हाँ. अन्दर मन नहीं लगा तो बाहर चला आया.” लड़के ने जवाब दिया.
     
     
    “लेकिन तुम्हारे शरीर की कई सारी हड्डियां टूटी हुई थीं. और हड्डियां जुड़ने में महीनों लग जाते हैं. और तुम 4 दिन में ही चलने लग गए.”
     
     
    लड़के ने विधिका के चेहरे की तरफ देखा. लेकिन विधिका ने जल्द ही अपनी नजरें झुका लीं, शायद वह नहीं चाहती थी की लड़का उसकी आँखों में देखे.
     
     
    “खैर, अच्छा है की तुम जल्दी ठीक हो रहे हो.” विधिका उसके सामने बैठते हुए बोली.
     
     
    “वैसे तुम्हें तुम्हारा नाम याद नहीं है तो क्यों ना तुम्हें नया नाम दिया जाए.” विधिका बोली. “ताकि तुम्हें अच्छे से पुकारा जा सके.”
     
     
    लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया.
     
     
    “सागर कैसा रहेगा?”
     
     
    लड़के ने विधिका की तरफ देखा, फिर धीरे से ना में गर्दन हिला दी.
     
     
    “तो, अथर्व?”
     
     
    लड़के ने कुछ देर सोचा. फिर ना में गर्दन हिला दी. कुछ देर तक विधिका अलग अलग नाम बोलती गई और लड़का उन नामों के लिए मना करता गया.
     
     
    आखिर में थक हारकर विधिका बोली, “तुम्हें क्या लगता है, हम सब अपना नाम खुद चुनते हैं? हमारे बोलना शुरू करने से पहले ही हमारे घर वाले हमें नाम दे देते हैं. हमें पसंद आए या ना आए लेकिन हमें वाही नाम रखना पड़ता है. और मैं तुम्हें आक्षांश कहकर बुलाऊंगी. तुम चाहो या ना चाहो.”
     
     
    लड़का कुछ नहीं बोला. लेकिन उसके चेहरे के भाव से लग रहा था की वह विधिका का विरोध करना नहीं चाह रहा था.
     
     
    “तो आक्षांश.” विधिक नाम का हर एक अक्षर स्पष्ट तरीके से बोली. “ आगे कुछ करने का सोचा है?”
     
     
    आक्षांश ने खाली निगाहों के साथ आग की तरफ देखा. फिर धीरे से ना में गर्दन हिला दी. “ना तो कोई नाम है ना अतीत. अब मैं कुछ भी नहीं हूँ. बिना मंजिल के.”
     
     
    फिर वह विधिका को देखकर बोला, “क्या तुम यहाँ अकेली रहती हो?”
     
     
    “हाँ. मेरा यहाँ कोई नहीं है. मेरे पिता लुटेरे थे. और मेरी माँ...” विधिका बीच में ही रुक गई. “लुटेरे कप्तान बच्चियों को जहाज पर नहीं रखते. वे बच्चियों को समुद्री सफ़र के लिए अशुभ मानते हैं. उन्हें लगता है की छोटी बच्चियों को गंध जलपरियों और समुद्र की ताकतवर शक्तियों को अपने पास खींचती हैं. जो अपने साथ तबाही और मौत लेकर आते हैं.”
     
     
    “तो उन्होंने तुम्हें यहाँ अकेले छोड़ दिया? तुम्हारी उम्र 16 से ज्यादा नहीं लगती.”
     
     
    “जब उन्होंने मुझे छोड़ा तब मैं 8 साल की थी.”
     
     
    “तो क्या तबसे तुम अकेले ही रहती आई हो? बिना किसी सहारे के?”
     
     
    विधिका ने जवाब नहीं दिया. वो बोली, “खाना बनकर तैयार है. तुम बैठो मैं लेकर आती हूँ.” इतना कहकर विधिका बिना जवाब का इन्तजार किये अन्दर चली गई. शायद अब वह इस बारे में और बात नहीं करना चाहती थी. आक्षांश ने भी उससे दोबारा पूछने की कोशिश नहीं की. वैसे भी उसे विधिका से मिले ज्यादा वक्त नहीं हुआ था. ऐसे में वह उसकी जिन्दगी से जुड़े निजी सवाल पूछने में संकोच कर रहा था.
     
     
    खाना खाने के बाद आक्षांश दोबारा कमरे में आ गया. और विधिका समुद्र किनारे चली गई.
     
     
    कुछ दिन बीत गए. अंतिम योद्धा तट पर पहुँच चुका था. उनके सामने एक विशाल द्वीप था. अमृतशिला. लुटेरों के 12 द्वीपों में से एक. लुटेरों की राजधानी कालपताका के बाद अमृतशिला दूसरा सबसे समृद्ध और शक्तिशाली द्वीप था.
     
     
    लुटेरे द्वीपों की शक्ति का पैमाना उस जगह से आने वाले कप्तानों और उनकी शक्ति के आधार पर लगाया जाता था. उदाहरण के लिए सागर में 500 से ज्यादा लुटेरे जहाज थे. जिनमें से 300 जहाज के कप्तान कालपताका, और 150 जहाज जहाज के कप्तान अमृतशिला से थे. बाकी बचे जहाज शेष 10 द्वीपों से आते थे. नेवतारा द्वीप के पास केवल 6 कप्तान थे.
     
     
    “उम्मीद है अब कुछ वक्त के लिए मैं अकेले वक्त गुजार सकता हूँ. है न?” उत्कल, अधिरथ से बोला.
     
     
    “मुझे तुम्हारे कोठे पर जाने से कोई समस्या नहीं है. लेकिन एक बात याद रहे. कोठे पर अक्सर बड़े और खूंखार समुद्री लुटेरे भी जाते हैं. और मैं नहीं चाहता तुम किसी ऐसे लुटेरे को हमारा दुश्मन बना दो जिनसे लड़ने की क्षमता हमारे पास नहीं है.”
     
     
    “मैं क्या आपको मूर्ख नजर आता हूँ जो ऐसा कोई काम करूंगा?” उत्कल नाखुश होकर बोला.
     
     
    अधिरथ ने उसे ऊँगली से जहाज की तरफ इशारा कर दिया. वहां जहाज पर खड़े दो लोग पानी के नीचे से रस्सी ऊपर निकाल रहे थे. रस्सी के दूसरे छोर पर एक कटा हुआ हाथ था.
     
     
    “वो आदमी जिसे तुमने बांधकर समुद्र में फिंकवा दिया था उसका पूरा शरीर हाथ से अलग होकर पानी में बह गया. बस इतना ही हिस्सा बचा है.” अधिरथ ने बिना भाव के कहा. ”मैं नहीं चाहता तुम ऐसी कोई गलती वहां करो जहां हमसे ज्यादा ताकतवर लोग हो सकते हैं.”
     
     
    “हाँ हाँ समझ गया. मैं वहां किसी के साथ कोई दुश्मनी मोल नहीं लेने वाला.”
     
     
    “ठीक है. तुम जा सकते हो.”
     
     
    इतना कहकर अधिरथ वहां से दूसरी दिशा में निकल गया. उसके पीछे उसके कुछ आदमी संदूक पकड़कर चल दिए. लुटेरे अपना लूटा और जमा किया कीमती सामान द्वीपों के बड़े व्यापारियों को बेंचा करते थे. और वे व्यापारी उन सामानों को बड़े बड़े राज्यों के बाजारों में भिजवा देते थे. लुटेरों की जमा की गई कुछ चीजें इतनी ज्यादा मूल्यवान होती थीं की बड़े बड़े राजपरिवार उनके बदले एक बड़ी रकम देने को तैयार हो जाते थे.
     
     
    जल्द ही रात हो गई. उत्कल भीड़ भरी गलियों से निकलता हुआ एक बड़ी सी इमारत के सामने आकर खड़ा हो गया. काफी सारे लोग इमारत के अन्दर ही जा रहे थे. इमारत के मुख्य द्वार पर ही काफी सारी लडकियां कड़ी हुई थीं जो लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने की पूरी कोशिश कर रही थीं. लेकिन ज्यादातर लोग उनपर ध्यान दिए बिना आगे बढ़ रहे थे.
     
     
    उत्कल भी आगे बढ़ा और उन लड़कियों को नजरंदाज करते हुए अन्दर चला गया. कुछ ही पलों बाद वह एक बड़े से कमरे में था. उसके सामने एक 40 के आसपास की औरत कड़ी हुई थी.
     
     
    उत्कल ने अपने हाथ में पकड़ी शराब का एक घूँट लेकर बोला, “जल्दी जल्दी सबको अन्दर भेजो.”
     
     
    उसका आदेश मिलते ही एक के बाद एक सुन्दर लडकियां कतार लगाए उत्कल के सामने पेश की जाने लगीं. और उत्कल हर किसी को ना पसंद करता जा रहा था. आखिरकार काफी देर तक लडकियां देखने के बाद उसने 3 लडकियां चुन लीं.
     
     
    “बाकी सब यहाँ से निकलो. और याद रहे.” वह औरत को देखकर बोला, “खाने पाने और शराब की कोई कमी नहीं पड़नी चाहिए.”
     
     
    “जी मालिक. हर आधे घंटे में हम खाने पीने का इंतजाम करते रहेंगे.” औरत ने सर झुकाकर कहा और उन तीन लड़कियों को वहीं छोड़कर बाकियों के साथ बाहर चली गई.
     
     
    “अब क्या तुम लोगों को बताना पड़ेगा की क्या करना है?” उत्कल ने गुस्से भरी आवाज में कहा.
     
     
    उसकी आवाज सुनते ही लडकियां तुरंत हरकत में आ गईं. कुछ ही देर में जमीन पर काफी सारे कपड़े फ़ैल चुके थे और कमरे से कराहने की आवाजें आने लगीं थीं.
     
     
    लगभग 1 घंटे बाद उत्कल शांत होकर बिस्तर पर लेट गया. उसने एक लड़की को अपनी बाहों में भर लिया और बाकी दो लड़कियां भी उसी के आसपास लेटने लग गईं.
     
     
    “तुम दोनों को लेटने के लिए किसने कहा?” उत्कल हँसते हुए थकी हुई आवाज में बोला. “जाओ शराब का गिलास भरकर लाओ. और तुम. तुम नाचो. नाच देखे हुए काफी वक्त हो गया है.”
     
     
    सबकुछ उत्कल के मन मुताबिक़ ही चल रहा था की अचानक से उसे कुछ महसूस हुआ. उसने तुरंत हरकत में आते हुए अपने बगल में पड़ा तीर उठाया और बिना धनुष का सहारा लिए उसे खिड़की की तरफ दे मारा. खिड़की के बाहर खड़ा साया अचानक हुए हमले को समझ नहीं पाया. जब उसे समझ आया तब उसने प्रतिक्रिया दी. लेकिन फिर भी तीर उसके कंधे में खरोंच बनाता हुआ चला गया.
     
     
    काले कपडे पहने नकाबपोश ने भागने की कोशिश की. लेकिन तभी दीवार को चीरता हुआ एक और तीर आया और उसके कपडे के आरपार हो गया. नकाबपोश जल्डियो से कपडे को तीर से अलग करने की कोशिश करने लगा. और उत्काक्ल जितना जल्दी हो सके अपना पैजामा पहनने लगा.
     
     
    उत्कल बिना कमीज पहने सीधा साए की तरफ भाग पड़ा. साए ने भी तुरंत अपनी तलवार निकाली और कपडे का उतना हिस्सा जल्दी से काट दिया. बिना एक पल की देरी किये साया वहां से भाग निकला.
     
     
    उताक्ल भी उसके पीछे भगा. लेकिन वह अचानक से खिड़की के पास जाकर रुक गया. उसने मुड़कर उन लड़कियों को देखा जो अपने अपने कपड़े पहनने में लगी हुई थीं.
     
     
    “तुम लोग जाना मत. मैं जल्दी वापस आ जाऊँगा.” उत्कल ने हांफते हुए कहा. “अभी पूरी रात बाकी है.”
     
     
    लड़कियों ने भी धीरे से गर्दन हिला दी. उत्कल तुरंत खिड़की से कूदकर नकाबपोश वाली दिशा की तरफ भाग गया.
     
     
    उत्कल की रफ्तार काफी अच्छी थी. जल्द ही वह नकाबपोश के पास पहुँच गया. नकाबपोश भी बच निकलने की पूरी कोशिश कर रहा था. रास्ते में जो भी सामान आता, नकाबपोश उसे जमीन पर गिराकर उत्कल की रफ़्तार कम करने की कोशिश करता. लेकिन उत्कल की फूर्ती उसकी सोच से ज्यादा तेज थी.
     
     
    जल्द ही नकाबपोश एक दीवार के सामने आकर रुक गया. वह तुरंत ही दाई तरफ के रास्ते के लिए मुड़ा, लेकिन अचानक से एक तलवार उड़ती हुई आई और उसके माथे के सामने से गुजरते हुए दीवार से जा टकराई. अगर उसने अपने क़दमों को सही वक्त पर ना रोका होता तलवार की धार उसके सर के आरपार हो जाती.
     
     
    नकाबपोश जल्दी ही बगल की तरफ से भागने के लिए मुड़ा. लेकिन वह भाग ना सका. उसके पीछे उत्कल की बंदूक थी.
     
     
    “तुम्हें मारने का मन तो बहुत है. क्योंकि आज रात मुझे जब मेरी ताकत की ज्यादा जरूरत थी तब मेरी आधी ताकत तुम्हें भागते हुए पकड़ने में खर्च हो गई. लेकिन यह जानना भी जरूरी है की मुझपर नजर क्यों राखी जा रही थी. तो चुपचाप मुझे बताओ. और उसके बाद शायद मैं तुम्हें आसान मौत देने के बारे में सोचूंगा.”
     
     
    नकाबपोश ने बिना पीछे मुड़े अपनी लात उत्कल पीछे की ओर मारी. लेकिन उत्कल जल्द ही दूसरी तरफ मुड़ गया.
     
     
    “वैसे अगर मैं गोली तुम्हारी टांगों में मार दूँ उसके बाद भी मैं आराम से पूछ्ताछ कर सकता हूँ. और तुम भाग भी नहीं पाओगे.” उत्कल ने बंदूक का घोड़ा ऊपर चढाते हुए कहा.
     
     
    “मुझे जाने दो उत्कल. नहीं तो तुम पछताओगे.” नकाबपोश ने कहा. उसकी मीठी आवाज ने जैसे आसपास की हवा में कोई इत्र छिड़क दिया हो.
     
     
    “आहा. इतनी सुन्दर आवाज की तो एक ही लड़की है जिसे मैं जानता हूँ.” उत्कल ने बंदूक को उसकी कमर से हटाते हुए कहा. वह धीरे धीरे चलकर नकाबपोश लड़की के सामने आकर खड़ा हो गया. “अगर मैं गलत नहीं हूँ तो तुम्हारा नाम अवंतिका होना चाहिए.”

  • 4. The sea horizon - Chapter 4

    Words: 1265

    Estimated Reading Time: 8 min

    लड़की कुछ पल खड़ी रही. फिर उसने अपना नकाब उतार दिया. उसकी उम्र 16 से 17 के आसपास की ही लग रही थी. उसकी खूबसूरती की तुलना शब्दों में बयां करना नामुमकिन था. उसके चेहरे का हर हिस्सा अपने आप में सुन्दरता की परिभाषा था. यहाँ तक की उत्कल भी सबकुछ भूलकर उसका चेहरा देखने लगा.
     
     
    फिर वह अचानक से होश में आकर बोला, “जितना सुना था तुम उससे ज्यादा खूबसूरत हो.” वह धीरे धीरे करके अवंतिका के करीब बढ़ने लगा. लेकिन अवंतिका ने अपनी तलवार उत्कल के गले पर रख दी.
     
     
    लेकिन उत्कल डरने की वजाय मुस्करा दिया और उसके करीब बढ़ने लगा.”मुझे लगा था मेरी रात बर्बाद हो गई. लेकिन ये तो और भी हसीन होती जा रही है.”
     
     
    अवंतिका की तलवार उसकी गर्दन को काटने की वजाय पीछे आने लगी.
     
     
    अवन्तिका के हाथ कांप रहे थे. वह गुस्से भरी आवाज में बोली, “अगर तुम पीछे ना गए तो मैं तुम्हारी गर्दन तुम्हारे शरीर से अलग कर दूँगी.”
     
     
    लेकिन उत्कल आर कोई असर नहीं पड़ रहा था. उसके होंठ अवंतिका के होंठों की तरफ बढ़ रहे थे. अवंतिका की आँखें भर आईं थीं. वो उत्कल को अपने इतने करीब देखना नहीं चाहती थी. इसीलिए उसने अपनी आँखें बंद कर लीं.
     
     
    लेकिन काफी देर तक आँखें बंद रखने के बाद उसे महसूस हुआ की उत्कल ने अभी भी उसे नहीं छुआ था. अवंतिका ने डरते हुए धीरे धीरे अपनी आँखें खोलीं. उत्कल उससे एक हाथ के फासले पर खड़ा हुआ था.
     
     
    “इतना ज्यादा डरोगी तो तुमपर अत्याचार करने का भी मन नहीं करेगा.” उत्कल निराशा भरी आवाज में बोला.
     
     
    “मुझ पर नजर रखने का कोई ख़ास कारण?”
     
     
    “मैं बस..” अवंतिका अटकते हुए बोली.
     
     
    “अनन्तविजय जहाज के डूबने की खबर मिल गई थी मुझे.” उत्कल ने चबूतरे पर बैठते हुए कहा. “सुना है सिर्फ एक ही बचा.”
     
     
    उत्कल की बात सुनकर अवंतिका के माथे पर सिलवटें पड़ गईं. उत्कल उसे देखते हुए बोला, “कप्तान आरंभ का वफादार पिल्ला असिधार. सुना है वही बचकर भाग पाया. अफ़सोस हुआ मुझे.”
     
     
    ये सुनकर जैसे अवंतिका की जान में जान आई. “तुम्हें कैसे पता चला?” वह लम्बी साँस छोड़ते हुए बोली.
     
     
    “एक जहाज से आमना सामना हुआ था. उस जहाज से कुछ लूट का सामान मिला जिसमें से एक कप्तान आरंभ की तलवार भी थी. वहां से जिन्दा बचे लोगों को तड़पाने के बाद पता चला की उन्होंने 3 और जहाज़ों के साथ मिलकर अनन्तविजय पर हमला किया था. फिर पता चला की असिधार समय रहते बच निकला.” उत्कल ने जवाब दिया. “लेकिन काफी यातनाएं देने के बाद भी ये पता नहीं चला की वह किस तरफ भागा. सुना है मोती उसी के पास है. अब तो आधी लुटेरों की बिरादरी उसके पीछे पड़ने वाली है.”
     
     
    वह आगे बोला, “अफ़सोस हुआ की तुम्हारा सबसे प्यारा दोस्त मारा गया. उसे मैं अपने हाथों से मारना चाहता था.”
     
     
    अवंतिका ने कोई जवाब नहीं दिया. उत्कल जमीन से उठते हुए बोला, “खैर, अब ये बताओ की तुम मुझपर नजर क्यों रख रही थी?”
     
     
    “कई सदियों में पहली बार मोतियों के रक्षकों पर इस तरह का हमला हुआ है. अनन्तविजय पर पांच जहाज़ों ने हमला किया. इसका मतलब उन्हें पता था की कप्तान आरंभ के पास मोती है. लेकिन इस दुनिया में गिनती के ही लोग हैं जो मोतियों के बारे में जानते हैं. इसका मतलब साफ़ है की ये काम शक्ति रक्षक दल के किसी शक्तिशाली सदस्य का किया हुआ है.”
     
     
    “दिमाग तो काफी अच्छा चलाया है तुमने. तो तुम्हें क्या लगता है ये सब मेरे पिताजी ने कराया है? तुम जानती हो अब हमारे पास इतनी शक्ति नहीं रही की हम अनन्तविजय जैसे जहाजों से टकराएं.” उत्कल बोला.
     
     
    “जानती हूँ. लेकिन अगर ये हमला हुआ है तो सीधा मतलब है की मोतियों के बाकी रक्षकों पर भी हमले होंगे. और तुम्हारे ऊपर भी हमला हो सकता है.”
     
     
    “ओ, तो तुम्हें हमारी चिंता हो रही है? सुनकर थोड़ा अजीब लग रहा है.”
     
     
    “मुझे सागर की चिंता है. 2000 साल पहले जो हुआ, मैं नहीं चाहती वो दोबारा हो. मोतियों के पीछे जो भी है वो उनका अच्छा इस्तेमाल करने के लिए उन्हें नहीं ढूंढ रहा है.” अवंतिका बोली.
     
     
    “तुम्हें मोती की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. हम उसकी रक्षा कर सकते हैं.” उत्कल गुस्से भरे लहजे में बोला.
     
     
    “मैं जानती हूँ तुम्हारे पिता और कप्तान आरंभ हमेशा से ही खून के प्यासे रहे हैं. लेकिन दुश्मनी दिखाने का ये सही समय नहीं है. हमें फिलहाल एक दुसरे का साथ देना होगा.”
     
     
    “और वो होगा कैसे?”
     
     
    “मुझे अपना मोती दे दो. ये सब रुकने तक मैं उसे सुरक्षित रखूंगी.”
     
     
    “क्या मैं तुम्हें मूर्ख नजर आता हूँ?”
     
     
    “देखो, मेरी बात समझो. ना तो ये मोती तुम्हारे साथ सुरक्षित है और ना ही तुम मोती के साथ.”
     
     
    उत्कल कुछ बोलने को हुआ लेकिन अचानक पीछे से कोई नुकीली चीज आकर उसकी गर्दन पर लगी. उसने जल्दी से उस चीज को निकाला. ये एक सुई थी.
     
     
    “तो ये थी तुम्हारी चाल. तुम मुझे मारकर मोती लेने आई थी.” उत्कल सुई को जमीन पर फेंककर बोला. उसकी आँखों के आगे अँधेरा सा छाने लगा था. ऐसा लग रहा था जैसे उसके हाथों पैरों ने उसकी बात माननी बंद कर दी हो.
     
     
    “इससे तुम मरोगे नहीं. बस कुछ घंटों के लिए बेहोश हो जाओगे.” अवंतिका ने कुछ दूरी पर खड़े दुसरे नाकाब्पोश देखते हुए कहा जिसने उत्कल को सुई मारी थी.
     
     
    उत्कल कुछ और बोल या कर पाता उससे पहले ही उसके हाथ पैर पूरी तरह से ढीले पड़ गए. वह आँखें बंद करके जमीन पर गिर पड़ा. चाँद पलों में वह बेहोश हो चुका था.
     
     
    अब तक वह नकाबपोश अवंतिका के पास आ गया था. उसने अपना मुकौटा उतारकर अवंतिका की तरफ देखा. उसकी उम्र भी अवंतिका के बराबर ही थी. लगभग 16 साल. सुन्दरता में भी अवंतिका के बराबर.
     
     
    “तुमने अच्छा काम किया अलकनंदा.” अवंतिका उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली.
     
     
    “धन्यवाद जीजी.” अलकनंदा ने सर झुकाते हुए कहा.
     
     
    अवंतिका ने जल्दी से उत्कल के गले में बंधा हुआ लॉकेट निकाला जिसपर कपड़े में कोई गोल सी चीज बंधी हुई थी.
     
     
    “चलो. हमें यहाँ से जल्दी निकलना होगा.” अवंतिका ने आगे बढ़ते हुए अलकनंदा से कहा. दोनों उत्कल को वहीं पड़ा छोड़कर वहां से निकल गए.
     
     
    लेकिन वो ज्यादा दूर नहीं पहुंचे थे की अचानक से किसी ने उनका रास्ता रोक लिया. उसके हाथों में बंदूक थी. और निशाने पर अवंतिका और अलकनंदा.
     
     
    वो दोनों बिना देरी किये भागने के लिए पीछे मुड़ीं. लेकिन उनके पीछे भी बंदूक ताने दो लड़कियां खड़ी हुई थीं. ये तीनों वही लड़कियां थीं जिनके साथ उत्कल कोठे पर था.
     
     
    दोनों ही लड़कियों ने लड़के के लिए अपनी अपनी बंदूकें निकाल लीं. लेकिन उसके बाद कुछ ऐसा हुआ की दोनों वहीं की वहीं जमी रह गईं.
     
     
    गली में और भी ज्यादा भीड़ बढ़ने लगी. कुछ ही देर में उनके दोनों तरफ 50 और लोग आकर खड़े हो चुके थे जिनके हाथों में बंदूकें और कमर पर तलवारें थीं. दोनों तरफ बने घरों की छतों पर भी बंदूक धारी लोग आ चुके थे.
     
     
    दोनों लड़कियां चारों तरफ से घिर चुकी थीं. उन लोगों के बीच से एक आदमी निकलकर बाहर आ गया. उम्र लगभग 45. भारी और बलिष्ठ शरीर. ऊपर से चमड़े के कपडे पहन रखे थे. बाल छोटे लेकिन लम्बी दाढ़ी मूंछें थीं जिनके कुछ बाल सफ़ेद हो चले थे. चेहरे पर एक बड़ा कटने का निशान था जो माथे के ऊपर से शुरू होकर गालों के नीचे तक था.
     
     
    उसके हाथ कमर के पीछे बंधे हुए थे. एक टेढ़ी मुस्कान के साथ वह लड़कियों को देखता हुआ बोला, “मुझे ज्यादा बोलने की आदत नहीं. बस इतना ही कहूँगा की अब तुम्हारे मरने का वक्त हो गया है.”
     
     
    उसके इतना कहते ही एक लड़की आगे आई और...उसने गोली चला दी. एक जोर की चीख पूरी गली में गूँज उठी.
     
     
     
     
     

  • 5. The sea horizon - Chapter 5

    Words: 2058

    Estimated Reading Time: 13 min

    दोपहर हो चली थी. सूरज आसमान के बीचों बीच पहुँच चुका था. आक्षांश हाथों में कुल्हाड़ी लिए पेड़ की टहनी काट रहा था. उसका पूरा शरीर पसीने से भीग चुका था.
     
     
    “खाने का वक्त हो गया है. अब तो नीचे आ जाओ.” नीचे से विधिका आवाज लगाते हुए बोली.
     
     
    “बस थोड़ी सी और बची है.” आक्षांश टहनी पर दोबारा कुल्हाड़ी मारते हुए बोला.
     
     
    “क्या तुम अपनी मनमानी करना बंद करोगे? अभी तुम्हारे घाव पूरी तरह नहीं भरे हैं. अगर ऐसे काम करोगे तो घावों को भरने में और ज्यादा समय लगेगा.”  
     
     
    आक्षांश ने कुल्हाड़ी रोककर नीचे विधिका की तरफ देखा. उसने एक सफ़ेद पोशाक पहन रखी थी. उसके कमर तक आते बाल लम्बी छोटी में बंधे हुए थे. काम करने की वजह से उसके चेहरे पर भी पसीने की बूँदें आ गईं थीं.
     
     
    आक्षांश नीचे आ गया. कुछ ही देर में दोनों घर की रसोई में बैठे हुए खाना खा रहे थे. विधिका चूल्हें की आग में रोटियाँ सेंककर आक्षांश की थाली में रख रही थी. दोनों ने शान्ति से खाना ख़त्म किया. विधिका को खाने के समय बात करना पसंद नहीं था.
     
     
    खाने के बाद दोनों कमरे में आ गए. विधिका ने आक्षांश की पट्टियां खोलनी शुरू कर दीं. विधिका का पूरा ध्यान आक्षांश की चोटों की जांच करने में था. और आक्षांश का विधिका के चेहरे पर. उसे विधिका से मिले 8 दीं हो गए थे. और इन दिनों विधिका ने जिस तरह उसका ध्यान रखा उसने आक्षांश के दिल में विधिका के लिए जगह बना दी थी.
     
     
    “तुम्हारे घाव बड़े थे. उन्हें भरने में समय लगेगा.” विधिका घावों की जांच करते हुए बोली. विधिका की बात सुनकर आक्षांश होश में आ गया.
     
     
    “लेकिन हैरानी इस बात की है की कई हड्डियां टूटने के बाद भी तुम कुछ ही दिनों में चलने फिरने लग गए. तुम्हारी आतंरिक चोटें इतनी जल्दी भरी हैं की इन्होने मुझे अचरज में डाल दिया है.” विधिका घावों पर मरहम लगाते हुए बोली.
     
     
    “तुम इतनी अच्छी वैद्य हो. तुम्हें इतनी छोटी सी बात पर अचरज है?” आक्षांश बोला, “मुझे लगा की तुमने अपने जीवन में ऐसे कई मामले देखे होंगे.”
     
     
    “नहीं. यहाँ नेवतारा में मुझे ज्यादा लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं करती. इसीलिए ज्यादातर लोग मेरे पास उपचार के लिए नहीं आते.” विधिका ने पलकें झुकाए हुए जवाब दिया. फिर एक नया सूती कपड़ा लेकर उसे घावों पर लपेटना शुरू कर दिया.
     
     
    इतने दिनों तक साथ रहने के बाद आक्षांश विधिका के बारे में काफी कुछ जान गया था. जैसे की विधिका का कम लोगों से मिलना. विधिका के पिता समुद्री लुटेरे थे. उन्होंने विधिका को सिर्फ इसीलिए अकेला छोड़ दिया था क्योंकि वह लड़की थी. इसीलिए वह लुटेरों के परिवारों को ज्यादा पसंद नहीं करती थी. केवल कुछ ही लोग थे जो विधिका के करीबी थी. जैसे की नेवतारा के मुख्य नगर में रहने वाला एक बूढ़ा वैद्य, जिसने विधिका को सबकुछ सिखाया था.
     
     
    “लेकिन अगर मैं और लोगों को भी देखती तब भी मैं यही कहती की तुम्हारे ठीक होने की दर किसी भी इंसान की तुलना में ज्यादा है. गुरूजी ने एक बार बताया था की उनके सबसे जल्दी ठीक होने वाले मरीज की हड्डी जुड़ने में 1 महीना लग गया था.”
     
     
    “तब तो मैं पक्का आसमान से टपका हुआ लड़का हूँ.” आक्षांश ने हँसते हुए कहा.
     
     
    विधिका के चेहरे पर भी हल्की से मुस्कान बिखर गई. और पता नहीं क्यों विधिका की मुस्कान आक्षांश की धड़कने तेज कर देती थी. विधिका अक्सर हंसती या मुस्कराती नहीं थी. या तो उसका चेहरा सामान्य रहता था, या कभी कभी इतना शांत जैसे कोई बड़ा तूफ़ान सबकुछ बर्बाद करके अपने पीछे गहरा सन्नाटा छोड़ गया हो.
     
     
    “ऐसे क्या देख रहे हो?”
     
     
    विधिका के झकझोरने पर आक्षांश दोबारा होश में आ गया.
     
     
    “क.क. कुछ नहीं.” आक्षांश ने सर झटकते हुए कहा. “बस यही सोच रहा था की अब कुछ ही दिनों में मुझे यहाँ से जाना होगा. ऐसी दुनिया में निकलना होगा जिसके बारे में मैं सबकुछ भूल चुका हूँ.”
     
     
    “इतनी भी क्या जल्दी है तुम्हें. यहाँ नेवतारा में तुम अच्छे से रहोगे. यहाँ बंदरगाह पर तुम्हें अच्छी नौकरी मिल जाएगी.” विधिका आखिरी पट्टी बांधते हुए बोली.
     
     
    “मैं जानता हूँ.लेकिन जिसने भी मेरी ये हालत की मुझे उसके बारे में पता करना ही होगा. क्या पता मेरा कोई परिवार भी हो जो मुसीबत में हो. जिसने मुझे मारने की कोशिश की वह मुझसे जुड़े लोगों को भी मारने की पूरी कोशिश करेगा.” आक्षांश बोला.
     
     
    विधिका ने अपने हाथ अच्छे से साफ़ किये. फिर कुछ पत्ते पानी में घोलकर बोली, “जब तुम्हें सब पता था तब उन्होंने तुम्हारे साथ ऐसा किया. और अब जब तुम सबकुछ भूल चुके हो, अब तुम उन लोगों अ सामना कैसे करोगे?”
     
     
    “क्या ये बात सोचकर मैं अपने कर्तव्य को भूल जाऊं? सागर ने मुझे राह दिखाई. मैं मर जाता, लेकिन तुम तक पहुँच गया. मैं बच गया. अब सागर ही मुझे मेरी अगली मंजिल तक ले जाएगा.” आक्षांश ने जवाब दिया.
     
     
    “मैं तुम्हारे फैसले के आड़े नहीं आउंगी. लेकिन बस इतना ही कहूँगी की जिस जान को मैंने बचाया है उसे अपने गलत फैसलों में गँवा मत देना.” विधिका बाहर जाते हुए बोली. फिर वो अचानक दरवाजे के पास रुक गई. उसने वापस आक्षांश की तरफ मुड़ते हुए कहा, “अब तुम लगभग ठीक हो चुके हो. अब तुम नेवतारा घूम सकते हो. अगर तुम चाहो तो मेरे साथ शाम को बाजार चल सकते हो.”
     
     
    “मैं तैयार हूँ.” आक्षांश ने जल्दी से उछलते हुए कहा. विधिका के चेहरे पर छोटी सी मुस्कान आ गई. फिर वह बाहर चली गई. वह कमरे से बाहर चली गई.
     
     
    कुछ घंटों बाद सूरज क्षितिज को छूने को हो गया. आक्षांश और विधिका दोनों तैयार होकर शहर घूमने के लिए निकल पड़े. जितना विधिका के घर से दिखता था, नेवतारा उससे काफी बड़ा था. शहर के बाहरी भाग में छोटे घर और झोपड़ियाँ थीं. जैसे जैसे वे शहर के अन्दर बढ़ रहे थे वैसे वैसे सुन्दर और बड़े घरों की संख्या बढ़ रही थी. जल्दी ही शहर घूमने के बाद वो नेवतारा के बाजार पहुँच गए.
     
     
    बाजार में सोने चांदी के काफी सारे आभूषण थे. आक्षांश ने ध्यान दिया की विधिका उन गहनों को ध्यान से देख रही थी. विधिका के पास गहने के नाम पर एक छोटा सा काला धागा था जो उसके सूने गले को भरता था. कानों में छोटे छोटे सोने के टार थे. इसके आलावा विधिका के पास और कोई आभूषण नहीं था.
     
     
    “तुम्हें आभूषण पसंद हैं?” आक्षांश विधिका से बोला.
     
     
    “हमें अक्सर वही पसंद आता है जो हमसे दूर होता है.” विधिका अपनी गर्दन दूसरी तरफ मोड़कर बोली.
     
     
    आक्षांश को इस बात का बुरा लग रहा था. विधिका एक लड़की थी. जिस तरह से बच्चे को खिलौना, डाकुओं को खजाना और योद्धाओं को तलवार आकर्षित करती है. लड़कियों का गहनों और सुन्दर वस्त्रों की तरफ आकर्षित होना स्वाभाविक चीज थी. लेकिन फिलहाल आक्षांश अफ़सोस करने के आलावा और कुछ नहीं कर सकता था. उसने जो कपडे पहन रखे थे वे भी विधिका ने ही उसके लिए खरीदे थे.
     
     
    विधिका के पास आय का अच्छा स्रोत नहीं था. वह जंगल से जड़ीबूटियाँ लाकर उनसे दवाएं बनाती थी और उन्हें चिकित्सालयों में बेंच दिया करती थी. लेकिन एक अकेली लड़की होने की वजह से ये सारा काम करना काफी समय लेता था.  
     
     
    बाजार घूमते हुए वे आखिरकार बंदरगाह तक पहुँच गए. बंदरगाह पर 8 जहाज रुके हुए थे. सभी के ऊपर लुटेरों के झंडे लहरा रहे थे.
     
     
    “यहाँ बस लुटेरों के ही जहाज आते हैं?” आक्षांश ने विधिका से पूछा.
     
     
    “कभी कभी दूसरे जहाज भी आते हैं. कभी कभी लुटेरे शक्तिशाली साम्राज्यों के जहाज़ों को लूट लेते हैं जिस वजह से युद्धक जहाज उनकी तलाश करते हुए यहाँ पहुँच जाते हैं. और कभी कभी तूफ़ान से बचने के लिए भी जहाज यहाँ आ जाते हैं. यहाँ किनारे से लेकर समुद्र में 5 मील तक किसी भी तरह की लड़ाई पर पाबंदी है. लुटेरे ऐसा इसीलिए करते हैं ताकि दो जहाज़ों के बीच की लड़ाई में द्वीप के लोगों की जान खतरे में ना पड़े. इसीलिए इस दायरे में आने के बाद व्यापारी जहाज भी लुटेरों से सुरक्षित हो जाते हैं. फिर भी कोई लुटेरों की धरती पर बेवजह कदम रखकर अपने आपको अपवित्र करने से डरता है.” विधिका बोली.
     
     
    “कमाल है, लुटेरे नियम भी बनाकर रखते हैं.” आक्षांश हँसते हुए बोला.
     
     
    “अपनी झूठी एकता को बनाए रखने के लिए.” विधिका बोली. “वो बाकी लोगों को दिखाना चाहते हैं की लुटेरे आपस में एक हैं. हालांकि इसका सच तो हम सभी जानते हैं. लेकिन द्वीपों पर काफी नियम हैं जो सभ्य माने जाने वाले लोगों की तरह ही हैं. जैसे की बंदरगाह पर बनी बड़ी बड़ी इमारतें. यहाँ जहाजी और कप्तान आकर रुकते हैं. उनके रहने और खाने पीने की अच्छी व्यवस्था यहीं कर दी जाती है.”
     
     
    वो लोग आपस में बातें कर ही रहे थे की अचानक से उन्हें किसी की आवाज आई.
     
     
    “ए लड़की.” एक 41 से 42 साल का लड़का विधिका के पास आकर बोला. उसने अपनी आँखों को घुमाते हुए विधिका को ऊपर से नीचे तक देखा. विधिका ने अपनी नजरें झुका लीं. लेकिन आक्षांश की मुट्ठियाँ कस चुकी थीं.
     
     
    “मैं छाया जहाज का आदमी हूँ.” आदमी अपने गंदे दांत बाहर निकालते हुए बोला. “जहाज आज रात यहीं रुकने वाला है. तुम रात को मेरे पास आ सकती हो. बदले में तुम्हें सोना मिल जाएगा.”
     
     
    “क्या कहा तूने!” आक्षांश गुस्से में आगे बढ़ता हुआ बोला. अपना सबकुछ खोने के बाद विधिका वह पहली और आखिरी इंसान थी जिसे आक्षांश ने जाना था. कोई उसी के साथ ऐसा बर्ताव करे ये आक्षांश कैसे बर्दाश्त कर सकता था?
     
     
    आक्षांश उसे मारने के लिए आगे बढ़ा ही था की विधिका ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया. आक्षांश ने हैरानी से विधिका को देखा तो विधिका ने ना में गर्दन हिला दी.
     
     
    “ओ. तो तेरे पास आशिक भी है.” आदमी दोबारा अपने काले दांत निकालकर बोला. “हो भी क्यों ना? जब बदन इतना खूबसूरत पाया है तो कोई नुमाइश करने वाला भी चाहिए होगा ना.”
     
     
    इतना कहकर आदमी धीमी हंसी हंसने लगा.
     
     
    आक्षांश दोबारा आगे बढ़ने को हुआ लेकिन विधिका ने पूरी ताकत से उसका हाथ पकड़ लिया. “नहीं आक्षांश. उससे मत उलझो. तुम्हें मेरी कसम.”
     
     
    अचानक से आक्षांश ने ताकत लगानी बंद कर दी. उसने अपनी गुस्से से लाल आँखों से विधिका को देखा. विधिका की आँखें भी भर आई थीं. लेकिन उसकी पलकें झुकी हुई थीं. वह इस तरह आक्षांश को नहीं देखना चाहती थी.
     
     
    “अरे गुस्सा मत हो लड़के.” आदमी ने अपना हाथ आक्षांश के कंधे पर रख दिया. “हमेशा हमेशा के लिए थोड़े ही ले जा रहा हूँ इसे. कप्तान जहाज पर लड़की को देखना पसंद नहीं करेंगे. मुझे तो ये बस आज रात के लिए चाहिए. और बदले में मैं तुम लोगों को 10 सोने के सिक्के दूंगा.”
     
     
    हर गुजरते पल के साथ आक्षांश की आँखें लाल होती जा रही थीं. लेकिन विधिका की कसम ने आक्षांश को रोक दिया था.
     
     
    “क्या हो रहा है इधर?” अचानक से एक दूसरी आवाज ने उन तीनों का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया. 3 सैनिक हाथों में भला लिए उन्हीं की तरफ आ रहे थे.
     
     
    “क्या तुम नियम नहीं जानते?” सैनिक तेज और भरी आवाज में उस आदमी से बोला. “आम नागरिकों को परेशान करने की तुम्हें भारी सजा मिल सकती है.”
     
     
    आदमी ने पहले गुस्से में सैनिक को देखा. फिर विधिका और आक्षांश को. आख़िरकार उसने एक गहरी सांस ली और अपने कदम वापस ले लिए, “मेरा इन्तजार करना. मैं वापस आउंगा.”
     
     
    इतना कहकर वह वापस चला गया. सैनिक विधिका और आक्षांश से बोला, “अब तुम लोगों को भी यहाँ से चलना चाहिए. यहाँ रहे तो बेवजह खतरे में पड़ जाओगे.”
     
     
    विधिका आक्षांश का हाथ पकड़कर उसे वहां से ले जाने लगी. लेकिन आक्षांश वहां से नहीं हिला. उसकी निगाहें अभी भी उसी दिशा में थीं जहां वो आदमी गया था.
     
     
    “आक्षांश.” विधिका ने धीमी आवाज में उसे पुकारा. “चलो यहाँ से.”
     
     
    “क्या यहाँ हमेशा तुम्हारे साथ यही होता है?” आक्षांश ने उसी दिशा में देखते हुए कहा.
     
     
    “हम इस बारे में बाद में बात करेंगे. अभी यहाँ से चलो.” विधिका उसका हाथ खींचते हुए बोली.
     
     
    आक्षांश ने शांत आँखों से विधिका को देखा जिसकी आँखें हल्की सी नम थीं. उसने तुरंत ही अपनी पलकें झुका लीं. आक्षांश उसके पीछे पीछे चल दिया.
     
     
     
     
     
    दूसरी तरफ अवंतिका एक अँधेरे कमरे में बैठी हुई थी. उसकी गोद में अलकनंदा का सर था. जिसे वह बेसुध होकर सहला रही थी. उसके कंधे पर लगी गोली से अभी भी खून रिस रहा था. गोली का जहर शरीर में फ़ैल चुका था. उसकी आँखें बंद थीं. वह कब तक जिन्दा रहने वाली थी इस बात का कोई अता पता नहीं था.
     
     
     
     
     

  • 6. The sea horizon - Chapter 6

    Words: 1946

    Estimated Reading Time: 12 min

    अचानक से चरमराहट के साथ कमरे का दरवाजा खुल गया. बाहर की थोड़ी बहुत रौशनी अन्दर आने लगी. उसी के साथ एक आदमी भी धीरे क़दमों से चलता हुआ कमरे में आ गया. यह वही आदमी था जिसके कहने पर अलकनंदा पर गोली चलाई गई थी. उसके हाथ अभी भी कमर के पीछे थे. उसके पीछे तीन और आदमी कमरे में आ गए.
     
     
    “जांच करो.” आदमी ने आदेश दिया और कमरे में बने चबूतरे पर जाकर बैठ गया.
     
     
    दो आदमी आगे बढे और अवंतिका के पास से अलकनंदा को खींच लिया. अवंतिका गुस्से में उठी लेकिन दुसरे आदमी ने एक जोर की लात अवंतिका को मारी और अवंतिका जोर से जमीन पर जा गिरी.
     
     
    दोनों लोगों ने अलकनंदा को कुछ दूरी पर ले जाकर छोड़ दिया. उसकी हालत ठीक नहीं लग रही थी. उसका मुंह सांस लेने के लिए थोडा सा खुला हुआ था. लेकिन फिर भी उसकी साँसें धीमी थीं. उसकी आँखें हल्की सी खुली हुई थीं. लेकिन वह कुछ देख रही थी ऐसा कहना मुश्किल था.
     
     
    तीसरा आदमी आगे बढ़ा और अलकनंदा की नाड़ी की जांच करने लगा. कुछ देर बाद वह खड़ा हुआ और चबूतरे पर बैठे आदमी से बोला, “अगर जल्दी इलाज ना किया गया तो ये नहीं बचेगी.”
     
     
    “ठीक है. तुम लोग जा अकते हो.” आदमी ने अवंतिका की तरफ देखते हुए कहा जो दोबारा से यथ बैठी थी और अपने होठों पर लगे खून को साफ़ कर रही थी.
     
     
    आदमी के कहते ही वो तीनों लोग कमरे के बाहर चले गए. अब कमरे में वह आदमी, अवंतिका और लगभग बेजान हो चुकी अलकनंदा थे.
     
     
    “सबकुछ कितना सही चल रहा था.” आदमी उठकर कमरे में टहलता हुआ बोला. “मेरी भेजी लड़कियों ने उत्कल का अच्छा खासा मन बहला दिया था. कुछ देर बाद मोती हमारा हो जाता. लेकिन फिर अचानक से तुम दोनों आ गईं और उत्कल को अपने जाल में फंसाकर मोती ले लिया. हमारी पहली योजना बर्बाद हो गई. लेकिन फिर हमने तुम दोनों को पकड लिया और तुमसे मोती ले लिया.”
     
     
    फिर वह रूककर बोला, “और कमाल की बात ये है की वो मोती असली था ही नहीं.”
     
     
    “मुझे असली मोती के बारे में नहीं पता.” अवंतिका जमीन को देखते हुए बोली. “मैंने उत्कल के गले से वही मोती निकाला था जो तुम्हारे पास है.”
     
     
    “हो सकता है तुम सच बोल रही हो. या नहीं भी. लेकिन सोचने वाली बात ये है की अधिरथ ने मोती उत्कल को दिया था. और उत्कल को खुद पर इतना विशवास है की वह मोती को कहीं छुपाने की जगह हमेशा अपने गले में रखता था. फिर ऐसा कैसे हो सकता है की तुमने उसके गले से जो मोती लीया वह नकली निकला?” आदमी बोला.
     
     
    “वैसे, क्या तुम मुझे जानती हो लड़की?” आदमी ने दोबारा चबूतरे पर बैठकर कहा.
     
     
    “तुम्हारा नाम विसेरिथ है.” अवंतिका आदमी को देखते हुए बोली. “तुम पश्चिम के अंतिम साम्राज्य सिडेरा से हो. एक अपराधी जो वहां की कैद से भाग गया.”
     
     
    आदमी कुछ देर खामोश रहा. फिर उसने अपनी कलाई उठाकर उसपर बने एक निशान को देखा. उसकी कलाई पर एक किसी अजीब सी भाषा में कुछ लिखा हुआ था.
     
     
    “सिडेरा में अपराध करने की यही सजा है. अपराधियों की कलाई पर इन शब्दों को उकेर दिया जाता है. जानती हो ये क्या लिखा है?” विसेरिथ ने अपनी निशान अवंतिका की तरफ घुमाते हुए कहा, “आज से लेकर समय के अंत तक विसेरिथ ब्लुफ्लेम, सिडेरा का अपराधी है. उससे उसके सारे अधिकार, उसके वंश का नाम, और भूत से लेकर भविष्य तक की सारी पदवियां और सम्मान रद्द किये जाते हैं.”
     
     
    “जानती हो मेरा अपराध क्या था? मैंने जिस लड़की को चाहा उसी ने मुझे धोखा दे दिया. वो किसी और के साथ जीना चाहती थी. तो मैंने उसका सर काटकर उस लड़के को भेंट कर दिया. उसके बाद मुझपर ये निशाँ लगाकर मुझे देश से निकाल दिया गया. कोई भी राज्य इस निशान के साथ मुझे रहने की इजाजत नहीं देता था. इसीलिए मैं समुद्री लुटेरा बन गया. खुद की पहचान बनाई. और आज आधा समुद्र विसेरिथ को जानता है.” विसेरिथ आगे बोला. “तो लड़की. मेरी बात समझो. धोखा देने पर मैं उन्हें भी नहीं बख्शता जिन्हें मैं प्यार करता हूँ. तुम्हारी बात तो बहुत दूर की है. अगर तुम्हारी बहन को जल्दी दवा नहीं मिली तो वह मर जाएगी. और तुम अपनी आँखों के सामने उसके शरीर को गलत हुआ देखोगी. उसके सुन्दर चेहरे को सूखकर कंकाल बनते देखोगी.”
     
     
    “मैं अब भी यही कहूँगी की मेरे पास मोती नहीं है.” अवंतिका, अलकनंदा को देखकर बोली.
     
     
    “मैं समझ सकता हूँ, लड़की. वो मोती है ही ऐसी चीज की अच्छा आदमी बुरे को देगा नहीं और बुरा इंसान कभी उसे छोड़ेगा नहीं.” विसेरिथ कमरे का दरवाजा खोलते हुए बोला. “लेकिन मेरे पास इस सबके लिए ज्यादा वक्त नहीं है.”
     
     
    उसके दरवाजा खोलते ही बाहर खड़े कुछ लोग अन्दर आ गए. सभी के सभी दिखने में खूंखार दिखाई दे रहे थे. सभी की नजरें अवंतिका और अलकनंदा पर थीं.
     
     
    “इन लोगों को देखो लड़की.” विसेरिथ दोबारा अवंतिका के पास आकर बोला. “ये इंसान की खाल में जानवर हैं. ये रहम दिखाना नहीं जानते. ये तुम्हें नोंच खाएंगे. और तुम्हारी बहन को भी. ये लोग लाशों का भी बलात्कार करने से नहीं कतराते. फिर तुम दोनों की तो बात ही अलग है. तुम्हारे पास कल सुबह तक का वक्त है. अगर कल तक मुझे मोतियों का पता नहीं चला तो ये लोग तुम्हारा क्या करेंगे इसका अंदाजा तुम लगा सकती हो.”
     
     
    इतना कहकर विसेरिथ वहां से बाहर निकल गया. उसके बाहर जाते ही एक आदमी धीरे धीरे अवंतिका की तरफ बढ़ने लगा. उसकी आँखें हवस से भरी हुई थीं. उसे पास आता देख अवंतिका धीरे धीरे पीछे खिसकने लगी. वह तब तक पीछे खिसकती गई जब तक वह दीवार से नहीं सट गई. अब वह और पीछे नहीं जा सकती थी. आदमी आगे आया और उसका कपड़ा पकड़ लिया.
     
     
    लेकिन वो कुछ कर पाता उससे पहले ही एक आदमी ने आगे आकर उसकी कलाई पकड़ ली.
     
     
    “सुनना नहीं विसेरिथ ने क्या कहा? हम सुबह तक इसे हाथ नहीं लगा सकते.” आदमी ने कहा.
     
     
    “विसेरिथ को इस लड़की से सिर्फ जानकारी चाहिए. चिंता मत कर, इसे मारूंगा नहीं.” पहला आदमी कपडे को धीरे से खींचता हुआ बोला.
     
     
    “तुझे पता है न अगर विसेरिथ को ये पसंद नहीं आया तो वो तेरे साथ हम सबको मार डालेगा.” दूसरा आदमी दोबारा उसे रोकने की कोशिश करते हुए बोला.
     
     
    लेकिन पहले आदमी का रुकने का कोई इरादा नहीं दिख रहा था. “ऐसी खूबसूरती पहले कहीं नहीं देखि. और आगे भी देखने को नहीं मिलेगी. अगर इसके साथ एक रात गुजारने के बाद विसेरिथ मुझे मार भी डाले तो मुझे मंजूर है.”
     
     
    “कुछ ही घंटों की बात है. अपने आप पर थोडा और काबू रख. उसके बाद हम सबको इसका स्वाद चखने को मिलेगा.” दूसरा आदमी दोबारा उसे समझाते हुए बोला.
     
     
    दोनों लोगों में काफी देर तक बहस चलती रही. अवंतिका जमीन पर बैठी बुरी तरह कांप रही थी. उसे इस वक्त क्या महसूस हो रहा था ये तो सिर्फ वाही जानती थी. आखिरकार कुछ देर बाद आदमी रुकने के लिए तैयार हो गया.
     
     
    “ठीक है. लेकिन कल इसपर पहला हाथ मैं ही साफ़ करूंगा.” आदमी ने कहते हुए अवंतिका के कपडे को इतनी जोर से खींचा की उसके कंधे का कपड़ा फट गया. आदमी ने फाटे हुए कपडे को जोर से अपनी मुट्ठी में जकड़ा और वापस चला गया.
     
     
    अवंतिका बहुत ज्यादा डरी हुई थी. फिर भी जैसे तैसे हिम्मत बटोरकर वह अलकनंदा के पास आ गई और अपने कांपते हुए हाथों से दोबारा उसका सर सहलाने लगी.
     
     
     
     
     
    रात हो चुकी थी. लेकिन नींद आक्षांश से कोसों दूर थी. आखिरकार आक्षांश उठकर बाहर आ गया. विधिका हमेशा की तरह समुद्र के किनारे बैठी थी. आक्षांश को उसकी पीठ नजर आ रही थी. आक्षांश ने उसे पहले भी वहां बैठे देखा था. लेकिन वह उसके पास नहीं गया था. लेकिन आज पता नहीं क्यों उसके पैर खुद बा खुद विधिका की तरफ बढ़ रहे थे.
     
     
    आक्षांश उसके बगल में आकर रुक गया. विधिका ने अभी भी उसे नहीं देखा था. उसकी आँखें पानी की लहरों पर थीं जो अपने बहाव के साथ किनारे पर कुछ छोड़ जातीं और कुछ अपने साथ लिए जातीं.
     
     
    आक्षांश वहीं विधिका के बगल में बैठ गया. विधिका पानी को ही देखते हुए बोली, “यही सोच रहे हो की ये लड़की इस द्वीप पर अभी तक जिन्दा कैसे है?”
     
     
    आक्षांश कुछ नहीं बोला. विधिका आगे बोली, “यहाँ के यही नियम हैं. यहाँ पर उन्हीं लड़कियों की जान सुरक्षित है जिनके गले में लुटेरे जहाज के निशान का हार हो. ये हार लड़कियों के उच्च घराने का प्रतीक होता है. बाकी की गरीब लड़कियों को यहाँ वेश्याओं की नजर से देखते हैं. सिपाही बंदरगाह पर बखेड़ा नहीं चाहते थे इसीलिए उन्होंने मुझे बचा लिया. लेकिन अगर वो आदमी जहाज के कप्तान के मुख्य आदमी को साथ लेकर आया तो सैनिक उन्हें नहीं रोकेंगे. इसलिए जब भी कोई मुझे इस तरह की धमकी देता है तो मैं सबसे छुपाकर जंगल में चली जाती हूँ और कुछ दिन तक जंगल में ही रहती हूँ और जब मैं वापस आती हूँ तो वो जहाज और मेरी मुसीबत जा चुके होते हैं.
     
     
    आक्षांश को समझ नहीं आ रहा था की वो क्या बोले. कुछ देर शांत रहें के बाद उसने विधिका से पूछा, “क्या तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए हार नहीं बनवाया?”
     
     
    विधिका ने आँखें बंद कर लीं. फिर एक लम्बी निराशा भरी साँस छोड़कर बोली, “मैं मेरे पिता के लिए कुछ भी नहीं हूँ. मैंने उन्हें आखिरी बार तभी देखा था जब वो मुझे यहाँ अकेला छोड़ गए थे. उसके बाद उनका जहाज कभी नेवतारा के तट पर नहीं आया.
     
     
    “तो क्या यहाँ पर कोई नहीं है जो तुम्हारा साथ दे?” आक्षांश बोला.
     
     
    “तुम क्या चाहते हो मैं किसी किसी लुटेरे से शादी कर लूँ? ऐसे इंसान से जो अपनी पत्नी से ज्यादा वक्त कोठों पर बिताता हो?” विधिका लगभग गुस्से के साथ बोली.
     
     
    “सारे लुटेरे बुरे नहीं होते.” आक्षांश ने धीमी आवाज में जवाब दिया.
     
     
    “हाँ, सही कहा. और सारे भेड़िये मांसाहारी नहीं होते.” विधिका प्रतिवाद करते हुए बोली.
     
     
    “मुझे गलत मत समझो विधिका.” आक्षांश बोला. “तुमने मेरी जान बचाई है. मेरे लिए तुम्हारा क्या स्थान है ये सिर्फ मैं जानता हूँ. और मैं नहीं चाहता की तुम्हारे साथ कुछ गलत हो. तुम हमेशा ऐसे अकेले नहीं रह सकती. जीवन में आगे बढ़ने के लिए किसी के साथ की जरूरत पड़ती ही है.”
     
     
    “मुझे नहीं है.” विधिका बोली. “मैं अकेले जी सकती हूँ. लेकिन मैं ये बर्दाश्त नहीं करूंगी की आने वाले कल में अगर मेरी कोई बच्ची हुई तो उसे यूँ ही लावारिस छोड़ दिया जाए. तुम आराम से अपने सागर के सफ़र पर जाओ. मैं यहाँ ख़ुशी से रह लूंगी. जैसे अब तक रहती आई हूँ.”
     
     
    वहां कुछ देर के लिए शान्ति छा गई. आक्षांश ने एक लम्बी सांस छोड़ी और वहां से उठते हुए बोला, “मैं कहीं नहीं जा रहा. मैं यहीं रहूँगा....”
     
     
     
     
     
    अगली सुबह अवंतिका की नींद ठन्डे पानी की बौछार के साथ खुली. उसके सामने विसेरिथ और उसके लोग खड़े थे. उसने डरी हुई निगाहों से अलकनंदा की ओर देखा जो उसकी गोद में सर रखे शान्ति से बिना प्रतिक्रिया दिए लेटी हुई थी.
     
     
    “उम्मीद है तुमने अब तक सोच लिया होगा की तुम्हें मुझे मोती का पता बताना है या नहीं.” विसेरिथ बोला. “मोती तो कैसे भी करके मैं ढूंढ ही लूंगा, लेकिन तुम्हारे साथ जो होगा उसके बाद पछताने के आलावा और कुछ नहीं रह जाएगा.”
     
     
    “मेरे- पास- मोती नहीं है.” अवंतिका पतली और धीमी आवाज में बोली.
     
     
    विसेरिथ ने अपने माथे पर हाथ फेरा. फिर चबूतरे की तरफ बढ़ते हुए बोला. “नोंच खाओ इसे.”
     
     
    उसके कहते ही सारे लोग अवंतिका की तरफ बढ़ने लगे. अवंतिका का पूरा शरीर कांप रहा था. लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकती थी.
     
     
    एक आदमी ने उसके पास आकर उसके कपड़ों को अपनी बड़ी सी मुट्ठी में जकड लिया. और अगले ही पल.....एक चीख पूरे कमरे में गूँज गई.
     
     
     
     

  • 7. The sea horizon - Chapter 7

    Words: 1948

    Estimated Reading Time: 12 min

    अवंतिका ने डर के साथ धीरे धीरे अपनी आँखें खोलीं. उसका पूरा शरीर पसीने से भीग चूका था. उसके हाथ पैर अभी भी कांप रहे थे. लेकिन फिलहाल वो डरने के साथ साथ हैरान भी थी. जिस आदमी ने उसके कपड़ों को पकड़ा था उसका वह हाथ जमीन पर पड़ा हुआ था. वह आदमी खून की बौछार करता हुआ बुरी तरह चीख रहा था.
    विसेरिथ भी अपनी बंदूक निकालकर खड़ा हो चुका था. ये काम उसी आदमी का था जिसने कल अवंतिका को बचाया था. उसकी लम्बी सी चाक़ू से अभी भी खून टपक रहा था.
    इससे पहले की विसेरिथ गोली चलाता... दरवाजे पर एक जोर का विस्फोट हुआ. जो लोग दरवाजे के पास थे, उड़ते हुए दूर जा गिरे. कोई कुछ समझ या कर पाता उससे पहले ही कुछ काले कपडे पहने नकाबपोश कमरे में घुसे और सब लोगों पर बंदूकें तान दीं.
    विसेरिथ और एक नकाबपोश एक दुसरे पर बंदूक ताने खड़े थे. इतने में ही एक और नकाबपोश ने कमरे में प्रवेश किया. उसके कपडे बाकियों जैसे ही थे, बस सीने पर एक सोने के चील का निशान लगा हुआ था जो ये बता रहा था की ये इन नकाबपोशों का मुखिया था.
    मुखिया चलते हुए विसेरिथ के बगल में आकर खड़ा हो गया. विसेरिथ ने एक पल के लिए अपनी नजरें टेढ़ी करके उसे देखा. फिर वापस अपनी निगाहें उस आदमी पर गड़ा दीं जो उसके ऊपर बंदूक ताने खड़ा था.
    “तुम लोग जो भी हो, मुझे मारकर यहाँ से जिन्दा नहीं भाग पाओगे. कुछ ही देर में मेरे 200 लोग यहाँ पहुँच जाएंगे औत तुम सब गन्दी मौत मारे जाओगे.” विसेरिथ सामने खड़े आदमी को देखता हुआ बोला. लेकिन उसका सन्देश उनके मुखिया के लिए था.
    “जानते हैं.” मुखिया एक भारी और कर्कश आवाज के साथ बोला. “लेकिन तुम्हें तो मार ही सकते हैं. सोच लो विसेरिथ, तुम्हारे लिए मोती ज्यादा जरूरी है या अपनी जान.”
    “क्या मतलब?”
    “बात सीधी है. तुम हमें इन दोनों लड़कियों के साथ सुरक्षित बाहर जाने दोगे. और हम तुम्हें और तुम्हारे किसी आदमी को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. लेकिन अगर हम यहाँ से जिन्दा बचकर नहीं निकले तो हम मरते मरते इन दोनों लड़कियों को भी मार देंगे. उसके बाद तुम्हें कभी पता नहीं चलेगा की मोती कहाँ है.” इतना कहकर मुखिया ने अपनी बंदूक अवंतिका पर तान दी.
    “तो बताओ विसेरिथ, तुम दोनों में से कौन सा रास्ता चुनोगे. मोती का पता हमेशा के लिए खो देना, या भविष्य में मोती पाने के लिए एक मौका पाना.”
    घर के चारों तरफ लोगों की भीड़ इकट्ठी होनी शुरू हो गई थी. बाहर पहले से ही कुछ लाशें पड़ी हुई थीं जिन्हें नकाबपोशों ने अन्दर आने के लिए मार दिया था. लोग लाशों पर पैर रखकर आगे बढ़ रहे थे. सभी के एक हाथ में बंदूकें और दुसरे हाथ में तलवारें थीं. भीड़ शोर मचाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रही थी. बीच बीच में हवा में गोलियां दागी जा रही थीं.
    “अगर कप्तान विसेरिथ को कुछ भी हुआ तो तुम सब मौत के लिए पछताओगे.” एक आदमी दरवाजे के पास जाकर बोला.
    अन्दर खड़े सारे लोग उसकी धमकी साफ़ सुन पा रहे थे.
    “जल्दी फैसला करो विसेरिथ. हमें मौत का डर नहीं है. लेकिन अगर हम मर गए तो तुम्हारा मोतियों तक पहुँचने का सपना हमेशा के लिए सपना बनकर रह जाएगा.” मुखिया ने बंदूक पर अपनी पकड़ कसते हुए कहा.
    तभी बाहर से फिर आवाज आई. “अगर मेरे 3 तक गिनने से पहले दरवाजा नहीं खुला तो हम दरवाजे को गोलियों से छेड़ देंगे.” “एक....दो..”
    इससे पहले की वह 3 कहता, दरवाजा खुल गया. सबसे पहले विसेरिथ और उसके आदमी बाहर आए.
    “सब अपने हथियार नीचे करो.” वह सबको आदेश देते हुए बोला. उसका आदेश पाते ही भीड़ शांत हो गई. हवा में लहरा रही बंदूकें और तलवारें झुक गईं.
    अगले ही पल मुखिया और अवंतिका बाहर आए. मुखिया की बंदूक अभी भी अवंतिका के माथे पर थी.
    कुछ और नकाबपोश अलकनंदा को उठाए बाहर आ गए. और उनके पीछे बाकी नकाबपोश थे.
    “इन लोगों को अमृतशिला छोड़ने तक कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा.” विसेरिथ ने सबको आदेश दिया.
    लुटेरों की दुनिया में बने नियमों से एक वाडे का नियम भी था. एक बार जो वादा कर दिया गया उसे निभाना लुटेरों का कर्तव्य था. लेकिन केवल नियम के दम पर लुटेरे एक दुसरे पर भरोसा नहीं करने वाले थे. इसीलिए मुखिया की बंदूक अभी भी अवंतिका के सर पर थी.
    सारी भीड़ धीरे धीरे पीछे हटते हुए उन लोगों को रास्ता देने लगी. सारे लोग जल्दी ही वहां से निकल गए. कुछ ही देर में सारे लोग जहाज पर थे. मुखिया ने जल्दी से जाकर जहाज का पहिया संभाल लिया. जहाज पर पहले से ही कुछ लोग मौजूद थे. सारे लोग नकाबपोशों के साथ मिलकर लंगर ऊपर उठाने लगे. जल्द ही जहाज के पाल हवा में लहराने लगे.
    अवंतिका और अलकनंदा को कप्तान के कमरे में ले जाया गया.
    एक आदमी अवंतिका के लिए दुसरे कपडे और खाना ले आया. “तुम खाना खाओ.जल्द ही वैद्य ऊपर आकर इसका उपचार शुरू करेगा.” आदमी ने अलकनंदा को देखते हुए कहा.
    वह आदमी जाने ही वाला था की अवंतिका ने आवाज देकर उसे रोक लिया. अवंतिका को अभी याद आया की यह वाही आदमी था जिसने उसे कल रात दूसरे आदमी से बचाया था. और आज भी उस आदमी का हाथ काटकर उसकी इज्जत बचाई थी.
    “तुमने मुझे बचाया.” अवंतिका बोली.
    “हमने मोतियों को बचाया.” आदमी बोला. “हम दो दिन पहले ही अमृतशिला आ गए थे. हमें कप्तान अधिरथ का सन्देश मिला की मोती खतरे में है. और हम यहाँ चले आए. हम सब पूरे द्वीप पर घूमकर जांच कर रहे थे. फिर मैंने तुम्हें उत्कल का मोती लेते देखा. और फिर मोतियों को बचाने के लिए मुझे उन लोगों से मिलना पड़ा. ताकि तुम्हारे मोती का पता बताने से पहले ही तुम्हें मार दूँ. लेकिन फिर कप्तान को तुम्हारी असली पहचान के बारे में पता चला और हमने योजना बदलकर तुम्हें बचा लिया.”
    “मेरी पहचान?” अवंतिका उलझन भरे स्वर में बोली.
    “तुम अवंतिका हो. कप्तान आरंभ के बेटे की दोस्त!” मुखिया कमरे के अन्दर आते हुए बोला.
    वो अवंतिका के सामने आकर खड़ा हो गया. उसने अपने चेहरे का मुकौटा उतार दिया. वह लगभग 50 के आसपास का दिखाई दे रहा था. मध्यम दाढ़ी मूंछें जो लगभग सफ़ेद हो चुकी थीं. लम्बे सफ़ेद बाल जो पीछे बंधे हुए थे. आँखें हल्की हरी थीं.
    “असिधार!” अवंतिका हैरानी से मुंह पर हाथ रखते हुए बोली.
    “हाँ मैं. असिधार. अनन्तविजय जहाज का द्वितीय प्रमुख. कप्तान आरंभ का प्रमुख सेनापति. जहाज का दूसरा आखिरी बचा योद्धा.” असिधार बिना किसी भाव के बोला.
    “वो कैसा है?” अवंतिका भावुक होकर बोली.
    “जिन्दा है.” असिधार वापस पीछे मुड़ता हुआ बोला. “इसके आगे की बात हम बाद में करेंगे. फिलहाल हमें जल्द से जल्द मिडार पहुंचना है. अमृतशिला के आसपास रहने का मतलब ही मौत.”
    फिर वह मुड़कर अलकनंदा के पास आ गया. उसने उसकी नाड़ी की जांच की फिर उसकी पलकों को उठाकर आँखों की जांच करते हुए बोला, “जहर फ़ैल चुका है. मैं काफी हैरान हूँ की इतने वक्त बाद भी इसकी साँसें चल रही हैं. लेकिन इसके दिल की धडकनें बहुत नीचे गिर चुकी हैं. मुझे नहीं लगता ये आज रात तक भी जिन्दा रह पाएगी.”
    “आपको यह कहने का हक़ नहीं है.” अलकनंदा अपने आंसू पोंछते हुए बोली. “मेरी बहन मेरी इजाजत के बिना कुछ नहीं करती. और जब तक मैं उसे आदेश नहीं दूंगी तब तक वह मर भी नहीं सकती.”
    अवंतिका आकर अलकनंदा के बगल में बैठ गई. “मुझे समुद्र का पानी चाहिए. हर घंटे एक बाल्टी पानी.”
    “समुद्र के पानी से क्या होगा?” आदमी हैरानी से बोला.
    “वो जो कह रही है उसे पूरा किया जाए, सौरभ.” असिधार से अवंतिका और अलकनंदा को देखते हुए लहा.
    “जी कप्तान.” सौरभ सर झुकाते हुए बोला और वहां से निकल गया. कुछ देर बाद वह पानी की बाल्की के साथ लौटा.
    अवंतिका ने पानी को देखा. फिर वह दोनों लोगों को देखकर बोली, “आप दोनों बाहर जाइए. और ध्यान रखियेगा की कोई अन्दर ना आए. हर घंटे के बाद समुद्र से पानी निकालकर दरवाजे के बाहर रख दिया कीजिए.”
    सभी लोग उसकी बात मानकर बाहर चले गए और दरवाजे को बंद कर दिया गया.
    अवंतिका ने अलकनंदा के कपडे उतारने शुरू किये. उसका शरीर किसी तराशी हुई मूर्ती के जैसा था. ऐसी मूर्ती जिसे बनाने में सूक्ष्म सी भी गलती ना की गई हो. उसका गोरा रंग, पतला और कंटीला शरीर किसी भी इंसान को पागल बनाने के लिए काफी था.
    लेकिन फिलहाल उसके शरीर में बंदूक की गोली का जहर फ़ैल चुका था. कंधे के आसपास की नसें काली पड़ चुकी थीं. साँसें इतनी धीमी थीं की नाक के पास कान लगाए बिना उन्हें सुना नहीं जा सकता था.
    अवंतिका ने एक नुकीले चाक़ू को गर्म किया और कांपते हाथों से कंधे में लगी गोली को निकालना शुरू किया. ऐसा करते हुए उसके आंसू भी लगातार बह रहे थे. अवंतिका को दुश्मनों का खून बहाने में भी डर लगता था. और अलकनंदा तो उसकी अपनी थी.
    लेकिन आखिरकार उसने उसके कंधे से गोली निकाल दी. इस दौरान अलकनंदा के शरीर ने दर्द की हल्की सी हलचल भी नहीं दिखाई. वह ऐसे पड़ी रही जैसे वह मर चुकी हो.
    फिर अवंतिका ने एक साफ़ सूती कपड़ा लिया, और समुद्र के पानी में डुबाकर उसके शरीर को धीरे धीरे गीला करने लगी.

    इस सब से दूर पूर्व के आखिरी महाद्वीप एनेडा के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य सिंहक्षेत्र में आज एक अलग ही चहल पहल मची हुई थी.
    सिंहक्षेत्र की राजधानी निधारा सागर के किनारे पर बसी हुई थी. ऊंची और बड़ी इमारतें, चौड़ी सड़कें, सुन्दर बाग़, निधारा किसी स्वर्ग की तरह थी. सागर के किनारे ही निधारा का राजमहल बना हुआ था.
    यूँ तो राज्य का केंद्र बिंदु होने के कारण राजमहल हमेशा ही लोगों की आवाजाही से भरा रहता था. लेकिन आज बात कुछ और थी. शहर की सारी जनता आज महल में प्रवेश कर रही थी. किसान से लेकर जमींदार तक, भिखारी से लेकर साहूकार तक, सारे के सारे लोग महल के नीचे बने विशाल गोलाकार प्रांगण में इकट्ठे हो रहे थे. लोगों के बैठने के लिए पत्थरों के आसन थे जो काफी ऊंचाई तक बनाए गए थे.
    सबसे ज्यादा ऊंचाई पर एक विशेष स्थान बनाया गया था जहां कुछ सिंहासन रखे हुए थे. सिंहासनों के बीचों बीच एक बड़ा और विशाल सिंहासन बना हुआ था. इसमें कोई शक नहीं की यह सिंहासन राजा के लिए था.
    कुछ ही देर में पूरा प्रांगण हजारों लोगों की भीड़ से भर गया. प्रांगण के बीचों बीच बने बड़े से मैदान में एक बूढी औरत आकर खड़ी हो गई. उसने एक काली साड़ी पहन रखी थी. उसके गहने चांदी के थे जिसपर काले रंग के हीरे जड़े हुए थे. हाथ में एक पुरानी सी लकड़ी की छड़ी थी. उसने छड़ी को जोर से दो बार जमीन पर पटका और पूरी भीड़ शांत होकर उसे देखने लगी.
    “मैं, अनंतमुद्रा, नीले पहाड़ की पुजारिन, राज्य के इतिहास की रक्षक, निधारा की प्रजा का स्वागत करती हूँ.” औरत चारों तरफ घूमकर प्रजा को संबोधित करते हुए बोली.
    फिर उसने अपनी निगाहें ऊपर सिंहासन की तरफ जमा दीं.
    “और अब मैं स्वागत करती हूँ, महाराज विक्रांत का. सिंहक्षेत्र के महाराज. प्रजा के रक्षक, अष्ट वंशों में सर्वश्रेष्ठ, नीलज्योति तलवार को धारण करने वाले. संसार के रक्षक भगवान् वीरन के वंशज...”


    (इस दुनिया को समझने के लिए मैं जल्द ही नक़्शे की फोटो पोस्ट करूंगा. फिलहाल उसे बनाना मेरे लिए थोडा चुनौतीपूर्ण है इसीलिए इसमें थोडा वक्त लग सकता है.
    इस कहानी मल्टीपल कैरेक्टर्स और एक पूरी नई दुनिया होने वाली है. इतने सारे लोगों को सही समय पर दिखाने के लिए मुझे काफी ध्यान से लिखना पड़ता है. और मैं अभी एक लेखक के रूप में उतना अनुभवी नहीं हूँ. इसीलिए मुझसे चैप्टर्स नियमित रूप से पब्लिश करना थोड़ा मुश्किल है. इसके लिए मैं आप सभी से क्षमा चाहता हूँ. मैं पूरी कोशिश करूंगा की समय पर चैप्टर्स दे सकूँ.)

  • 8. The sea horizon - Chapter 9

    Words: 1713

    Estimated Reading Time: 11 min

    सारी प्रजा महाराज विक्रांत के स्वागत के लिए खड़ी हो गई. विक्रांत की उम्र लगभग 70 साल थी. सर पर एक सोने का मुकुट था. लाल रंग के कीमती कपड़े जिनपर सोने के तारों से कलाकृतियाँ बनाई गईं थीं.
    उन्होंने प्रजा का अभिवादन स्वीकार किया और जाकर सिंहासन पर बैठ गए. उनके बैठने के बाद तीन और लोग वहां आ गए. उनमें से एक लड़की थी जिसने लाल रंग की साड़ी पहन रखी थी. उम्र 20 साल. उसकी सुंदरता को शब्दों में नहीं लिखा जा सकता था. अगर उसे सुन्दरता में कोई हरा सकता था तो बस अवंतिका.
    उसके बगल में एक लड़का था. उम्र 25 साल. मजबूत गँठीला शरीर. चेहरे पर गंभीरता और कमर पर तलवार टांग रखी थी. उसके बगल में तीसरा लड़का था. उम्र में सबसे बड़ा. लगभग 27 साल. एक लकड़ी के आसन पर बैठा हुआ जिसपर पहिये लगे थे. चेहरे पर हल्की दाढ़ी मूंछें थीं. चेहरा शांत था.
    बुढ़िया ने छड़ी को फिर से जमीन पर पटका. “और अब मैं स्वागत करती हूँ इस साम्राज्य के भविष्य का. सबसे बड़े राजकुमार अम्बुज. छोटे राजकुमार महेंद्र. और सबकी चहेती राजकुमारी मीरा का.”
    सारी प्रजा उनके स्वागत में शोर मचाने लगी. प्रजा तब तक शांत नहीं हुई जब तक महाराज विक्रांत ने हाथ उठाकर उन्हें शांत रहने का इशारा नहीं कर दिया. तीनों ही लोग राजा के बगल के सिंहासनों पर बैठ गए. उसके बाद राज्य के मंत्री और पदाधिकारी आकर सिंहासनों पर बैठ गए.
    बुढ़िया ने छड़ी पटककर सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा. “10 वर्षों बाद आज एक बार फिर वो घड़ी आई है. आज रात का चाँद 10 सालों में सबसे बड़ा और चमकदार होगा. श्वेतवर्ण पूर्णिमा! विजय का दिन! इसी दिन 2000 सालों पहले इंसानों ने जालवासियों को हराकर सागर पर अपना एकाधिकार किया था.”
    इसी बीच किसी ने राजकुमारी मीरा की आँखों पर अपने हाथ रख दिए.
    “हमें पता है सुमन ये तुम हो.” मीरा मुस्कराते हुए बोली.
    “और है ही कौन जो राजकुमारी मीरा के साथ शरारतें कर सकता है?” सुमन अपने हाथ मीरा की आँखों पर से हटाते हुए बोली.
    सुमन राजकुमारी मीरा की दासी थी. लेकिन मीरा उसे दासी से बढ़कर मानती थी. उसे सुमन पर उतना ही विश्वास था जितना अपने परिवार के किसी सदस्य पर. उसकी उम्र भी 20 से 21 साल के आसपास ही थी. राजकुमारी मीरा जितनी सुन्दर तो नहीं, लेकिन फिर भी वह काफी सुन्दर थी. उसके चेहरे पर नटखटपन झलकता था.
    “क्या तुम दोनों आज के लिए अपनी बातें बंद करोगे?” बगल से राजकुमार विक्रम ने गंभीर सी आवाज में कहा.
    उसकी बात सुनकर दोनों लड़कियों का मुंह फूल गया. सुमन मुंह बनाकर राजकुमार विक्रम की नक़ल करने लगी. दोनों ही लडकियां धीमी हंसी हंस दीं. विक्रम ने अपना सर ना में हिलाया और फिर से सामने देखने लगा.
    बुढ़िया आगे बोली, “आज के दिन हम इकट्ठे होते हैं उस इतिहास, उस कहानी को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए.”
    बुढ़िया आगे बोली, “आज से 2500 वर्षों पहले तक सागर पर जालवासियों का राज था. बड़े बड़े समुद्री दानव और शक्तिशाली जलपरियाँ इंसानों के सागर पार करने में मुसीबतें खड़ी करते थे. रक्त सागर था उनका घर. असाकान थे उनकी राजधानी.
    जब पानी सर के ऊपर चढ़ गया, जब समुद्र में गए सारे जहाज डुबाए जाने लगे तो शुरू हुई एक लड़ाई. लड़ाई इंसानों और जालवासियों के बीच की. जालवासियों को हारने के लिए साम्राज्यों ने ऐसे लोगों को चुना जो किसी की भी जान लेने में माहिर थे. ऐसे लोग जिन्हें हथियार चलाने का ज्ञान था. लेकिन ऐसे लोग जो अगर मर जाते तो राज्य का कोई नुकसान नहीं होता. जिनके जीने से ज्यादा मरने की दुआएं मांगी जाती थीं. ये थे अपराधी, चोर ,हत्यारे. इन लोगों को जीने का एक मौका देकर इन्हें जहाजी बनाया गया. और इन्हें नाम मिला ‘समुद्री लुटेरे’. जल्द ही लुटेरों ने सागर में जालवासियों को खदेड़ना शुरू किया. उन खूंखार लोगों ने बड़े बड़े समुद्री दानवों के मजबूत और सख्त चमड़े को चीर दिया. धीरे धीरे दानव रक्त सागर की परिधि में सिमटने लगे. लुटेरों और जालवासियों के बीच का ये युद्ध 493 वर्षों तक चला.
    हम लगभग जीतने वाले थे, लेकिन- लेकिन फिर असाकान में शासन आया एक नई जलपरी का....श्वेतकमल. उसकी सुंदरता ऐसी की जो भी मर्द देखे वो सबकुछ भूलकर उसके इशारों पर नाचने लग जाए. जब वो सागर की गहराइयों में बैठकर गाती तो उसकी आवाज से सम्मोहित होकर लुटेरे और जहाजी सागर में कूद जाते. लेकिन इतना काफी नहीं था. उससे बचने के लिए इंसानों ने एक नई तरकीब खोज निकाली. लुटेरे अक्सर अपने कान ढंककर रखने लगे. उसके रूप पर मोहित होने से बचाने के लिए लुटेरों के जहाज़ों पर लड़कियों को भी नियुक्त किया जाने लगा. जब भी इंसान उसे देखकर उसके पीछे जाने को होते तो वो लडकियां उस सम्मोहन को तोड़ने में मदद करतीं. वो लुटेरों की हवस मिटा देतीं. लेकिन इससे ज्यादा फायदा नहीं हुआ. जल्द ही लुटेरे और ज्यादा हवसी होने लगे. जो लडकियां उनकी जान बचाने के लिए थीं वो उनके मनोरंजन का साधन बन गईं. और इस बात ने जहाज पर नियुक्त हुई लड़कियों के मन में लुटेरों के लिए गुस्सा पैदा कर दिया. लड़कियों ने अपने पसीने से भीगे कपडे समुद्र में फेंकने शुरू कर दिए. जलपरियाँ, लड़कियों की गंध को और अच्छे से महसूस कर पाती थीं, क्योंकि वे खुद आधी लड़की थीं. धीरे धीरे उनकी गंध से वे जहाज़ों का सही पता ढूँढने लगीं. जब भी वो अपने रूप से लुटेरों को आकर्षित करतीं तो लडकियां उन्हें बचाने उनके पास नहीं आतीं. और इस तरह लुटेरे हारने लगे. जल्द ही लुटेरे लड़कियों को शापित मानने लगे और उन्होंने लड़कियों को जहाज पर जगह देना बंद कर दिया.
    इसी बीच आज से लगभग 2000 साल पहले श्वेतकमल ने अपनी सबसे बड़ी चाल चली. उसने सागर की शक्तियों को संगठित करना शुरू किया. सागर की सबसे गहरी सतह से उसने सात मोती ढूंढ निकाले. असाकान द्वीपों के आसमान छूते पर्वतों की तलहटी से उसने दुनिया का सबसे प्राचीन लोहा खोज निकला. इन मोतियों और लोहे को जोड़कर उसने संसार की सबसे शक्तिशाली जादुई छड़ी बनाई जो सागर पर काबू पा सकती थी. जमीन को तूफानों से बर्बाद कर सकती थी. श्वेतकमल इंसानों की दुनिया को मिटाने के लिए आगे बढ़ी, वो छड़ी की ताकत का इस्तेमाल सागर में नहीं करना चाहती थी, क्योंकि इससे उसी की प्रजा को नुकसान होता. लेकिन इंसानों तक ये खबर पहुँच गई. और इंसानों ने जालवासियों के खिलाफ एक आखिरी लड़ाई लड़ी. सागर के 19 सबसे शक्तिशाली लुटेरे सरदारों और 18 महान साम्राज्यों के राजाओं ने मिलकर एक खतरनाक लड़ाई लड़ी और आखिरकार श्वेतकमल को हरा दिया. श्वेतकमल और उसकी सेना मारी गई. जलपरियाँ और खूंखार दानव रक्तसागर और असाकान की सीमा में खदेड़ दिए गए. और छड़ी को तोड़ दिया गया. इस लड़ाई में केवल 10 सरदार और 8 राजा बचे. सात मोती तोड़कर 7 सरदारों में बाँट दिए गए. और छड़ी के लोहे को ज्वालामुखी की आग से पिघलाकर 8 तलवारें बनाई गईं और 8 राजाओं में बाँट दी गईं.”

    बुढ़िया ने कहानी ख़त्म की. “सिंहक्षेत्र के महाराज वीरन उन 8 राजाओं में से एक थे. और अब उनके वंशज महाराज विक्रम नीलज्योति तलवार के धारक हैं.”
    बुढ़िया की बात ख़त्म होते ही महाराज विक्रम अपनी जगह से उठे और मंच के किनारे पर आ गए. उन्होंने अपनी तलवार के हत्थे को पकड़ा और खींचकर तलवार बाहर निकाल ली.
    नीलज्योति तलवार की दो धारें थीं. लम्बाई लगभग डेढ़ से दो हाथ के बीच में. उसमें एक प्रकृतिक रूप से नीले रंग की चमक थी. धार ऐसी की हवा को भी चीर दे. सारी प्रजा की उत्साहित आँखें तलवार पर थीं.
    विक्रम ने तलवार को नीचे किया और जोर से जमीन की तरफ फेंक दिया. तलवार सीधा मैदान के बीचों बीच जाकर मिट्टी में धंस गई.
    “मेरे प्रजाजनों, आज का दिन विशेष है. यह हमें हमारी विजय आर हमारे गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता है.” महाराज विक्रम बोले. “और आज के ही दीं मैं चाहता हूँ की हमें हमारा नया राजा मिले. वीरन का अगला वंशज....”

    some extra facts....
    लुटेरों के 12 द्वीप
    1. मिडार (लुटेरे द्वीपों में सबसे कमजोर।)
    2. नेवतारा (आक्षांश और विधिका का वर्तमान ठिकाना। लुटेरों के सबसे प्राचीन द्वीपों में से एक)
    3. नितारा (लुटेरों की भट्टी, forge of pirates) (लुटेरों के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले हथियारों से लेकर अलग अलग यंत्रों तक सबकुछ नितारा में बनाया जाता है। यहां के कुछ कारीगर पूरी दुनिया के सबसे महान कारीगरों को टक्कर देते हैं।)
    4. कालशिला (अंधेरों का द्वीप, the island of dark) (लुटेरों का सबसे प्राचीन द्वीप। लेकिन अब यह लगआग वीरान है। लुटेरे इस द्वीप को शापित मानते हैं। फिर भी अपने इतिहास के लिए इसकी रक्षा करते हैं। कालशिला को उसका नाम मिला है उसके बीचों बीच बने विशाल काले पत्थरों वाले पहाड़ से।)
    5. तरंगा (कब्रिस्तान, the graveyard) (तरंगा बिना भूमि का द्वीप है. हजारों टूटे फूटे जहाज़ों के एक ही जगह जमा होने से तरंगा बना है. इसीलिए इसे जहाज़ों की कब्र कहते हैं.)
    6. ओसेरिया (रक्षा कवच, the defence) (इसे लुटेरों के रक्षा कवच के नाम से जाना जाता है। मध्य जल के पश्चिम में और सिडेरा के पूर्व में बस यह द्वीप ऊंची ऊंची दीवारों और शक्तिशाली तोपों के लिए मशहूर है। कहते हैं जब लुटेरे मुसीबत में पड़ते हैं तो ओसेरिया की मजबूत दीवारें उनकी रक्षा करती हैं।)
    7. गायब (अनदेखा द्वीप, the unseen island) (यह द्वीप कहां है ये कोई नहीं जानता। लुटेरों की प्राचीन किताबों में इस द्वीप का जिक्र है। लेकिन इसका पता बहुत ही कम लुटेरे जानते हैं।)
    8. सीमिरतला (यहां लुटेरों से ज्यादा आम लोग रहते हैं। 30 साल पहले लड़े गए युद्ध में लुटेरों ने इस द्वीप को जीता था। अब यहां का शासन लुटेरों के हाथ में है।)
    9. अमृतशिला (लुटेरों की सोने की खान, gold mine of pirates) (लुटेरों का दूसरा सबसे शक्तिशाली और समृद्ध द्वीप। शक्तिशाली कप्तानों को भूमि।)
    10. असाकान (the forbidden kingdom) (यहां पिछले 1800 सालों से किसी लुटेरे ने कदम नहीं रखा। जो भी इसके पास भी गए वो कभी नहीं लौटे। लुटेरों की बिना किसी आवाजाही के भी इसे उन्हीं के अधिकार क्षेत्र में गिना जाता है।)
    11. कालपताका (the pirate kingdom) (सारे लुटेरे द्वीपों में सबसे शक्तिशाली और समृद्ध, 2000 सालों से लुटेरों की राजधानी और प्राचीन सागर के इतिहास का केंद्र बिंदु।)
    12. अंतबिंदु (जन्म स्थान, the birthplace) (इसे लुटेरों का जन्म स्थान कहते हैं। यहां विशाल जहाजों के निर्माण से लेकर लुटेरों के प्रशिक्षण और जहाज की मरम्मत का काम होता है।)