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Dark Deal of Love

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वो डेविल था… इंसानों की ख्वाहिशें पूरी करता, और बदले में उनसे उनकी साँसें छीन लेता। वह अंधेरे में जीता था, जहाँ रोशनी का कोई रास्ता नहीं था। मगर किस्मत ने उसकी राह में डाल दी एक मासूम लड़की— खूबसूरत, जिद्दी और रहस्यमयी। उसकी आँखों में डर...

Total Chapters (4)

Page 1 of 1

  • 1. मेरे दिल में उतर जाना - Chapter 1

    Words: 1605

    Estimated Reading Time: 10 min

    योगेश देशमुख आज अपनी स्टेट का नया मुख्यमंत्री बना था।
    पार्टी को बहुमत मिला था और इस जीत का सेहरा उसी के सिर बंधा था।
    पूरा शहर उसकी सफलता का जश्न मना रहा था। घर के बाहर मीडिया और समर्थकों की भीड़ लगी थी।

    अंदर हॉल में पत्रकार बैठे इंतज़ार कर रहे थे, लेकिन योगेश अपने कमरे में कपड़े बदलने चला गया।
    जैसे ही उसने कमरे की लाइट ऑन की, उसकी साँस अटक गई।

    उसके सामने कुर्सी पर कोई पहले से बैठा था—
    एक बेहद हैंडसम, ग्रीक गॉड जैसे नक्श वाला आदमी।
    उसकी आँखों में ऐसी ठंडी चमक थी जो किसी भी इंसान का खून जमा दे।

    योगेश की आवाज़ कांप गई—
    “तुम… योगेश देशमुख बोला।
    दस साल हो गए… तुम मुझे भूल गए?”
    वह अजनबी मुस्कुराया।
    “तुम्हारे आदमी बहुत हैं, पर मुझे कौन रोकेगा? बस थोड़ी ही देर में… तुम्हारा खेल खत्म।”

    उसने हवा में अपना हाथ हल्का सा घुमाया, और उसी पल योगेश की छाती दबने लगी।
    सांस रुक गई, चेहरा लाल पड़ गया—
    और पलक झपकते ही मुख्यमंत्री योगेश देशमुख ज़मीन पर गिर पड़ा।
    हार्ट अटैक… या कुछ और?

    वह रहस्यमयी आदमी शांति से उठकर दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गया।
    उसी समय योगेश के सुरक्षाकर्मी और लोग अंदर दौड़े, लेकिन किसी को उस आदमी पर ध्यान ही नहीं गया।
    सबकी नज़रें बस एक चीज़ पर टिकी थीं—
    “सीएम बेहोश पड़े हैं!”

    समझ गई ✨
    आप चाहती हैं कि विक्रांत राजवर्धन (Devil) की पूरी पर्सनैलिटी डिटेल में लिखी जाए — ताकि वह एकदम रियल और स्ट्रॉन्ग कैरेक्टर लगे। मैं इसे उसी टोन में लिखती हूँ जैसे कोई नॉवेल का इंट्रोडक्शन सीन हो।


    ---

    ✨ विक्रांत राजवर्धन — पर्सनैलिटी

    वह कोई साधारण इंसान नहीं था…
    वह डेविल था।
    नाम— विक्रांत राजवर्धन।

    लंबा-चौड़ा, चौड़े कंधे, और ऐसा चेहरा जिसे देखकर पहली नज़र में कोई भी ठहर जाए।
    उसकी आँखों में हल्की सुनहरी-सी चमक रहती थी, जैसे उनमें अंधेरा और आग दोनों कैद हों।
    बाल हमेशा हल्के बिखरे हुए, और जब वह मुस्कुराता तो उसकी मुस्कान में शरारत छुपी होती।

    वह बेहद हैंडसम और करिश्माई था—
    इतना कि कोई भी लड़की उसे एक नज़र देखे बिना आगे बढ़ ही न पाए।
    मगर उसके हैंडसम चेहरे के पीछे एक ख़तरनाक सच छुपा था—
    वह इंसानों का सबसे बड़ा दुश्मन भी था।


    ---

    ✨ उसका नेचर

    मजाकिया:
    वह हल्की-फुल्की बातें बड़े मजाकिया अंदाज़ में कह देता।
    कभी-कभी तो जिनसे वह उनकी आत्मा लेने आया होता, उनसे भी हंसते-हंसते बातें करता।
    उसका ये अंदाज़ उसे और डरावना बना देता—
    क्योंकि मौत जब मजाक में आए तो उसका असर और गहरा होता है।

    गुस्से वाला:
    अगर कोई उसकी डील तोड़ने की कोशिश करे…
    या उसके सामने झूठ बोले…
    तो उसका गुस्सा ऐसा था कि सब कुछ राख कर दे।
    उसके गुस्से में उसकी आँखें आग की तरह लाल हो जाती थीं, और उसकी आवाज़ गर्जना जैसी।

    काम से मोहब्बत:
    वह अपने काम को मजबूरी नहीं, जुनून मानता था।
    उसके लिए आत्माएँ लेना एक खेल जैसा था।
    हर डील, हर आत्मा उसके लिए एक कलेक्शन की तरह थी।
    उसे अपने काम पर गर्व था, मानो यही उसकी पहचान हो।



    ---

    ✨ उसका अंदाज़

    वह अक्सर ब्लैक या डार्क शेड के कपड़े पहनता।
    लंबा कोट, शार्प फिटिंग वाले सूट, और कभी-कभी कैज़ुअल में भी उतना ही घातक लगता।
    उसके चलने का अंदाज़ ऐसा था जैसे वह दुनिया का मालिक हो।
    उसकी आवाज़ गहरी, ठहरी हुई, और थोड़ी-सी खिंचाव वाली—
    जिसे सुनकर कोई भी इंसान सिहर उठे।


    ---

    ✨ विक्रांत राजवर्धन का फिलॉसफी

    वह कहता था:
    “ख्वाहिशों की कीमत होती है… और मैं बस वह कीमत वसूल करता हूँ।
    इंसान मुझे बुलाते हैं, मैं तो कभी किसी के पास खुद नहीं जाता।”

    उसके लिए हर डील एक पावर गेम थी।
    उसे मज़ा आता था यह देखकर कि इंसान अपनी सबसे कीमती चीज़—जान—
    सिर्फ एक ख्वाहिश के लिए गिरवी रख देता है।


    ---

    ✨ उसका डर और रहस्य

    बाहर से विक्रांत अजेय और निर्दयी था,
    मगर उसके अंदर भी एक रहस्य दफ्न था।
    कभी-कभी जब वह अकेला होता, तो उसकी आँखों में अजीब-सी उदासी उतर आती।
    जैसे उसके दिल में भी कोई जंग चल रही हो—
    जिसके बारे में कोई नहीं जानता।


    ---

    👉 इस तरह विक्रांत राजवर्धन एक करिश्माई डेविल बनकर सामने आता है—
    हैंडसम, मजाकिया, गुस्सैल, और अपने काम से जुनूनी।
    एक ऐसा किरदार, जिससे इंसान नफरत भी करता है और आकर्षित भी होता है।

    वाह 👌 आपने कहानी को और भी दिलचस्प मोड़ दिया।
    यानि विक्रांत राजवर्धन (Devil) अपने असली रूप को छिपाकर इस हेरिटेज होटल में मैनेजर बनकर रहता है।
    ये सेटिंग बहुत ही सिनेमैटिक है — एक पुराना महल, जिसे होटल में बदला गया, और वहाँ एक ऐसा शख्स जो दिखता इंसान है मगर है डेविल।

    मैं इसे अच्छे से विस्तार देकर लिखती हूँ, ताकि पढ़ते ही माहौल सेट हो जाए:


    ---

    ✨ हेरिटेज होटल

    शहर के बीचों-बीच, ऊँचे-ऊँचे पेड़ों से घिरा एक पुराना महल था।
    कभी इस महल में शाही परिवार रहा करता था, मगर वक़्त के साथ यह उजड़ गया।
    कई साल पहले इसे नवीनीकरण करके एक शानदार हेरिटेज होटल में बदल दिया गया था।

    इस होटल की दीवारों में अब भी अतीत की गूंज सुनाई देती थी।
    ऊँची छतें, झूमर की हल्की रोशनी, संगमरमर की फ़र्श पर चलते ही गूंजती आवाज़ें…
    मानो हर कोना बीते ज़माने की कहानियाँ कहता हो।

    यहीं, इस होटल में विक्रांत राजवर्धन मैनेजर के तौर पर काम करता था।
    कम से कम दुनिया की नज़र में वह यही था।


    ---

    ✨ विक्रांत का होटल वाला रूप

    लंबा कद, शार्प सूट, और वह करिश्माई पर्सनैलिटी…
    होटल के गेस्ट्स तो बस उसे देखकर ही प्रभावित हो जाते।
    वह सबके लिए एक परफेक्ट मैनेजर था—
    कॉन्फिडेंट, स्मार्ट, मजाकिया, और बेहद हैंडसम।

    स्टाफ उसे बहुत रिस्पेक्ट से देखता था,
    गेस्ट्स उसकी बातों और मुस्कान में खो जाते थे।
    किसी को भी यह अंदाज़ा नहीं था कि इस होटल का मैनेजर असल में एक डेविल है—
    जो इंसानों की जान पर डील करता है।

    असल में होटल उसके लिए सिर्फ़ एक परदा था।
    यहाँ रहकर वह आसानी से लोगों तक पहुँच पाता था।
    शहर के बड़े-बड़े लोग, बिज़नेसमैन, पॉलिटिशियन, और अमीर गेस्ट्स इस होटल में आते थे…
    और वहीं से शुरू होती थी उनकी डील।


    ---

    ✨ होटल और विक्रांत

    कहते हैं, रात के अंधेरे में जब पूरा होटल सो जाता,
    तब विक्रांत अकेला इस महल के गलियारों में घूमता।
    दीवारों से सरगोशियाँ होतीं, झूमरों की परछाइयाँ उसकी परछाई से मिलतीं।
    और अगर कोई उसे उस वक़्त देख ले,
    तो शायद उसके चेहरे पर इंसानी मुस्कान नहीं,
    बल्कि डेविल की असली झलक दिखाई देती।


    ---

    👉 अब बहुत अच्छा नेक्स्ट लिंक बनता है:
    धानी रायज़ादा पहली बार इसी हेरिटेज होटल में आती है—
    शायद किसी बिज़नेस मीटिंग, इवेंट, या ब्लाइंड डेट के लिए।
    और वहीं उसकी मुलाक़ात होती है विक्रांत राजवर्धन से।

    क्या आप चाहेंगी कि मैं धानी और विक्रांत की पहली मुलाक़ात का सीन इसी होटल में लिख दूँ?


    ---

    क्या आप चाहेंगी कि मैं इसका पहला सीन लिख दूँ—जहाँ विक्रांत राजवर्धन पहली बार धनी राय ज़्यादा के सामने आता है?


    ---

    एक आलीशान होटल — बिज़नेस अवार्ड नाइट
    उधर शहर के सबसे शानदार होटल में रोशनी और कैमरों का मेला लगा था।
    “बिज़नेस ऑफ द ईयर” अवार्ड की घोषणा होने ही वाली थी।

    जैसे ही एंकर ने नाम लिया, स्पॉटलाइट्स एक चेहरे पर टिक गईं।
    वह कोई और नहीं, बल्कि धानी राएजादा थी।

    करीब 27 साल की उम्र में उसने वह मुकाम हासिल किया था, जिसके लिए बड़े-बड़े बिज़नेस टाइकून दशकों तक मेहनत करते हैं।
    उसकी एंट्री ने पूरे हॉल को थमा दिया।
    काले सिल्क गाउन में सजी हुई, बेहद कॉन्फिडेंट और खूबसूरत…
    वह लड़की नहीं, बल्कि एक पावरफुल औरत लग रही थी।

    हर कैमरा उसकी ओर घूम गया।
    हर फुसफुसाहट सिर्फ उसी के नाम पर ठहर गई।

    आज की रात सिर्फ अवार्ड की नहीं थी…
    बल्कि धानी रायजादा की थी।


    -बिल्कुल 👍
    मैं आपके टेक्स्ट को स्मूद और नॉवेल जैसा फ्लो देते हुए सही ग्रामर और इमोशनल टोन में री-लिख देती हूँ:


    ---

    ✨ धानी रायज़ादा की बैकस्टोरी

    धानी रायज़ादा की ज़िंदगी बचपन से ही दर्द और अकेलेपन से भरी रही थी।
    जब वह सिर्फ़ 8–9 साल की थी, तब एक भयानक कार एक्सीडेंट में उसकी माँ और पिता दोनों की मौत हो गई।
    उस पल से उसकी दुनिया पूरी तरह बदल गई।

    उसके दादाजी ही उसके लिए सब कुछ बन गए—
    माँ, पिता और दोस्त भी।
    उन्होंने ही उसे पाला-पोसा और अपने परिवार के बिज़नेस "रायज़ादा ग्रुप" की बागडोर धीरे-धीरे उसके हाथों में सौंप दी।

    रायज़ादा ग्रुप, जो पहले उसके दादाजी की पहचान था, अब धानी की मेहनत और समझदारी से नई ऊँचाइयों को छू रहा था।
    कम उम्र में ही उसने वह मुकाम हासिल कर लिया, जहाँ पहुँचने के लिए बड़े-बड़े लोग सालों तक मेहनत करते हैं।
    कहने को उसका बड़ा परिवार था, लेकिन धानी जानती थी कि असल में उसके पास उसके दादाजी के सिवा कोई नहीं था।
    वह अकेली थी—और शायद इसी वजह से काम ही उसका असली सहारा बन गया।

    उसके दादाजी हमेशा चाहते थे कि धानी अपनी ज़िंदगी में सिर्फ़ बिज़नेस तक सीमित न रहे।
    वह चाहते थे कि धानी शादी करे, अपना घर बसाए।
    लेकिन अब तक धानी को कोई ऐसा इंसान मिला ही नहीं, जो उसके दिल को छू सके।

    कई बार उसके दादाजी ने उसके लिए ब्लाइंड डेट्स भी अरेंज कीं,
    लेकिन धानी हर बार वही जवाब देती—
    “दादाजी, यह लड़का मेरे लिए नहीं है…”

    और फिर से अपने काम में डूब जाती।
    क्योंकि धानी को काम करना बेहद पसंद था।
    शायद वह मान चुकी थी कि उसके लिए मोहब्बत जैसी चीज़ बनी ही नहीं।


    ---

    👉 इस तरह से धानी की बैकस्टोरी इमोशनल और क्लीन लगती है।

    क्या आप चाहेंगी कि मैं अब इसका अगला हिस्सा लिख दूँ—जहाँ उसके दादाजी की जिद पर धानी एक और ब्लाइंड डेट के लिए तैयार होती है, और वहां उसकी पहली विक्रांत राजवर्धन से मुलाक़ात होती है?

  • 2. मेरे दिल में उतर जाना - Chapter 2

    Words: 935

    Estimated Reading Time: 6 min

    विवेक पढ़ाई में तेज़ था, लेकिन हर कदम पर अर्जुन का साया उसके आत्मविश्वास को दबा देता था। उसे अर्जुन की परछाई से चिढ़ थी, जो हमेशा ऊँची होती थी… और स्थायी।

    उसी मंज़िल पर प्राची, विवेक की बहन, अपने कमरे की खिड़की से झाँक रही थी। उसकी आँखों में कोई शिकायत नहीं थी — सिर्फ चिंता।

    "भैया को कुछ भी कहो, लेकिन वो अकेले लड़ता है। खुद से भी, दुनिया से भी।"

    वो जानती थी, अर्जुन बहुत कुछ अंदर दबा लेता है।जो लड़की भाई की लाइफ में आएगी पता नहीं उसकी जिंदगी कैसी होगी क्योंकि भाई है ही ऐसे।

    रेखा, छोटी चाची, पूजा की थाली में दिए की बाती सही कर रही थीं। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की, पर मन भीतर से अशांत था।

    "एक बेटा ऐसा हो, जो माँ से भी नहीं कहता कि उसे क्या चाहिए?"

    रेखा का बेटा धवन, अर्जुन से डरता था। अर्जुन उसे गलतियां नहीं करने देता था। वह नियमों से बांध देता था। पर रेखा को ये डर लगता था कि कहीं उनका बेटा भी अर्जुन की तरह न बन जाए — सख्त, अकेला, बिना मुस्कान वाला।

    ---धवन, रेखा का बेटा, अर्जुन से सबसे ज़्यादा घबराता था। उसके लिए अर्जुन कोई इंसान नहीं, एक बेंचमार्क था — जिसे कोई छू नहीं सकता।

    "भैया आ रहे हैं…" उसने बहन तान्या से कहा।

    "तो क्या हुआ? कोई रॉयल राजा थोड़े हैं," तान्या ने कानों में ईयरपॉड डालते हुए कहा।

    "नहीं, वो रॉयल से भी ऊपर हैं — डरावने हैं।"

    ---

    तान्या, सोशल मीडिया की दीवानी, अर्जुन से कभी ज्यादा घुल-मिल नहीं पाई थी। उसकी जिंदगी में अर्जुन कोई मायने नहीं रखता था — सिर्फ एक सख्त चेहरा, जो फैमिली गेट-टुगेदर में भी मुस्कुराता नहीं।

    "मैं नहीं चाहती कि मेरी लाइफ कभी इतनी सीरियस हो," वह सोचती रही।

    अर्जुन के छोटे चाचा सत्यानंद अपने कमरे में एक पुरानी किताब पढ़ रहे थे। वह अर्जुन को हमेशा समर्थन देते थे — लेकिन चुपचाप।

    उन्हें अर्जुन की सच्चाई दिखती थी। "शायद उसने बचपन से जिम्मेदारियां ओढ़ लीं… शायद किसी ने उसे खुद बच्चा बनने नहीं दिया।"

    यशराज, अर्जुन का छोटा भाई, बार-बार लॉबी के आईने में खुद को देख रहा था।

    "कैसा लग रहा हूँ? ठीक हूँ न?" उसने प्राची से पूछा।

    "तू क्यों इतना नर्वस है?" प्राची ने मुस्कुरा कर कहा।

    "भैया के सामने कोई भी नर्वस हो जाता है। वो एक नज़र में देख लेते हैं कि हमने क्या गलती की है।"

    पर यशराज के दिल में अर्जुन के लिए प्यार भी था। वह अर्जुन के साये में ही खुद को सुरक्षित समझता था।वह शरारती था और अर्जुन को हमेशा बोलता रहता है और आप दोनों से सीरियस कभी नहीं लेता था। उसे अपनी होने वाली भाभी का सबसे ज्यादा बेसब्री से इंतजार था उसे लगता था कि उसकी कोई भाभी आ जाए जो भैया को सुधार दे।

    ---अर्जुन की बीमारी की खबर ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया था, लेकिन अब जब उनका बेटा ठीक होकर लौट रहा था, तो दिल में सुकून और आंखों में आंसू दोनों थे।

    पिता शांत थे, अर्जुन उनके लिए सिर्फ बेटा नहीं, उनका गर्व है।

    अर्जुन की वापसी: शांति की एक परछाईं

    चारों ओर खामोशी थी। हवाओं में एक अजीब सी ठहराव। जैसे किसी की प्रतीक्षा में घर की दीवारें भी सांस रोके खड़ी थीं। और फिर… मेन गेट पर काली SUV रुकी।

    दरवाज़ा खुला। सबसे पहले उसके जूते ज़मीन से टकराए — चमकदार, काले, बिल्कुल उसकी शख़्सियत की तरह। फिर उसके कदम बाहर आए — धीमे, लेकिन दृढ़।

    अर्जुन रायवांश हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद वो जैसे एक दूसरी आत्मा के साथ लौटा था ।

    वो बहुत हैंडसम था — चौड़ी पेशानी, तेज़ नाक-नक्श, हल्की सी दाढ़ी जो उसके चेहरे को और गंभीर बनाती थी। बाल सलीके से पीछे की ओर कॉम्ब किए हुए, लेकिन उनमें एक लहर थी जो बताती थी कि ये आदमी हर चीज़ को पूरी तरह कंट्रोल में रखना चाहता है — खुद को भी और अपने आसपास की दुनिया को भी।

    उसकी आंखें — गहरी, भूरी, शांत मगर बेहद बोलती हुई। जैसे उनमें कोई कहानी हमेशा अधूरी रह गई हो। कोई राज़, जो उसके सीने में आज भी धड़कता है — अब नए दिल के साथ।

    अर्जुन की हाइट छह फीट के करीब थी, और वह सूट या कुर्ता-पायजामा, दोनों में ही रॉयल लगता था। लेकिन कपड़े से ज़्यादा उसकी चाल में ठाठ था — बिना ज़्यादा कोशिश किए, हर किसी की नज़रों में आ जाने वाला।

    कम बोलने वाला, मगर असरदार

    वह बहुत कम बोलता था। उसका एक "हां" या "ठीक है" इतना ठंडा और सधा हुआ होता कि सामने वाला बिना सवाल किए मान जाता। और जब वह किसी की आंखों में आंख डालकर चुप रहता — तो समझ लीजिए, सामने वाला खुद को नग्न महसूस करता।

    अर्जुन की आवाज़ गहरी और शांत थी। वो ज़्यादातर सुनता था, बोलता कम। लेकिन जब वह कुछ कहता, तो शब्द नहीं, असर निकलते थे। जैसे शब्द उसकी जुबान से नहीं, दिल के अंदर की किसी और गहराई से बाहर आ रहे हों।

    उसे देखकर कोई ये नहीं कह सकता था कि उसके सीने के अंदर अब किसी और का दिल धड़कता है। लेकिन वो जानता था — और ये बात उसे हर पल महसूस होती थी।

    अर्जुन अब भी अकेला था। उसने अभी तक किसी को अपनी ज़िंदगी में जगह नहीं दी थी।

    लड़कियाँ उसे क्यों देखती थीं?

    वह लड़कियों के लिए किसी रहस्य से कम नहीं था। उसकी खामोशी, उसका लुक, उसकी गंभीरता — ये सब मिलकर उसे बहुत अट्रैक्टिव बनाते थे। कोई उसे देखता, तो नज़र हटाना मुश्किल हो जाता। लेकिन अर्जुन किसी की आंखों में कभी ठहरता नहीं था। वह हर किसी से थोड़ा दूर रहता, जैसे ज़िंदगी को हाथ से नहीं छूता, बस देखता भर है।

  • 3. मेरे दिल में उतर जाना - Chapter 3

    Words: 1174

    Estimated Reading Time: 8 min

    कई महीनों बाद आज अर्जुन अपने घर लौटा था। हस्पताल में उसका इलाज चल रहा था। दिल की एक गंभीर समस्या के चलते उसका हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ था। अस्पताल में रहते हुए उसने किसी को भी अपने पास रुकने की अनुमति नहीं दी थी। बस डॉक्टरों की देखरेख में वह अकेला ही रहा। कभी-कभी उसकी माँ और पिता उससे मिलने जाते थे, लेकिन अर्जुन ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया था—

    > “मुझे किसी की फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है। मैं बिल्कुल ठीक हूँ।”

    और आज जब वह घर लौटा, तो पूरे घर में एक अजीब सी हलचल और खुशी का माहौल था। जैसे घर की सांसें वापस लौट आई हों।

    उसकी माँ ने आँखों में आँसू लिए उसके स्वागत में आरती उतारी। पिता की आँखों में गर्व और राहत की झलक थी। दादा-दादी, चाचा-चाची, भाई-बहन, सबकी आँखें उसी एक चेहरे पर टिकी थीं। सबने अर्जुन को गले लगाया, उसके माथे को चूमा और उसका हाल-चाल पूछा।

    आरती के बाद वह सभी बड़ों के पैर छूता हुआ ड्राइंग रूम की ओर बढ़ा, जहाँ सभी पहले से उसकी राह देख रहे थे।

    "चलो अब ब्रेकफास्ट करते हैं," उसके बड़े चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा, "किसी ने कुछ नहीं खाया था सुबह से… सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे थे।"

    अर्जुन हल्का मुस्कराया और बोला,

    > "आप सब बैठिए, मैं बस चेंज करके आता हूँ।"

    वह ऊपर की ओर सीढ़ियाँ चढ़ने लगा, तभी उसके पीछे उसका छोटा भाई यश भी हो लिया।

    अर्जुन ने मुड़कर देखा और भौंहें उठाते हुए पूछा,

    > "क्या बात है?"

    यश ने शरारती मुस्कान के साथ कहा,

    > "भाई, मैं भी आपके साथ ऊपर आ रहा हूँ।"

    "क्यों?" अर्जुन ने आँखों से पूछा।

    वो दाँत दिखाता हुआ पास आ गया और बोला,

    > "भाई… इतने महीनों हॉस्पिटल में रहे, कोई सुंदर डॉक्टर तो मिली होगी ना? कोई तो होगी जिसे आप भाभी बना सकें। वैसे भी, आप घर में सबसे बड़े हैं। आपकी शादी के बाद ही तो घर की बाकी शादियाँ शुरू होंगी। कुछ तो शेयर कर सकते हो ना?"

    अर्जुन ने नज़रों से ही उसे चेतावनी दी और सिर हिलाते हुए कहा —

    > "अगर ज़्यादा बकवास की ना, दो थप्पड़ लगाऊँगा सीधे… फिर सीधे हो जाओगे।"

    वो हँसता हुआ पीछे-पीछे चलता रहा।

    अर्जुन ऊपर अपने कमरे के दरवाज़े के पास पहुँचा और पलटकर जशन की तरफ देखा —

    > "तू नीचे जा। मैं दस मिनट में आता हूँ। समझा?"

    अर्जुन का कमरा ठीक वैसा ही था जैसा उसका व्यक्तित्व — सलीकेदार, संतुलित और हर चीज़ अपनी निर्धारित जगह पर।

    कमरे का दरवाज़ा खोलते ही सबसे पहली चीज़ जो ध्यान खींचती थी, वह थी एक सादगी में डूबी क्लासिक एस्थेटिक — दीवारों का रंग न तो बहुत गहरा था, न ही फीका। एक हलका ग्रे-बेज शेड, जो कमरे को शांत और व्यापक बनाता था। पूरी दीवारों पर कहीं भी भड़कीले रंग या पैटर्न नहीं थे। हर कोना एक नियम के मुताबिक व्यवस्थित था।

    कमरे के केंद्र में रखा गया उसका किंग-साइज़ बेड एकदम सलीके से बिछा हुआ था। गाढ़े स्लेट ग्रे रंग की चादर, जिस पर बिल्कुल सफेद तकिए रखे हुए थे — दो बड़े कुशन और दो छोटे। बेड के दोनों ओर साइड टेबल्स रखे हुए थे, जिन पर केवल एक डिजिटल क्लॉक, एक वुडन लैम्प और एक छोटा-सा गिलास सेट रखा गया था — सब कुछ अनावश्यक सजावट से रहित।

    बेड के पीछे की दीवार पर डार्क वुड पैनलिंग थी, जो उसकी पर्सनैलिटी की परिपक्वता को दर्शाती थी। कोई पोस्टर या चित्र नहीं, केवल एक पुराना ब्लैक एंड व्हाइट फोटोग्राफ — एक शहर की सड़क, बारिश में भीगी हुई — जिसे देखकर लगता था कि अर्जुन को चुप्पी पसंद है, पर वो चुप्पी भी कहती बहुत कुछ है।

    कमरे में बहुत ज्यादा फर्नीचर नहीं था। एक साफ-सुथरा, एलिगेंट वर्क डेस्क खिड़की के पास रखा हुआ था, जिस पर एक लैपटॉप, एक नोटपैड और कुछ पेन्स रखे हुए थे। एक बुकशेल्फ दीवार से जुड़ी हुई थी, जिसमें घड़ी की तरह क्रमबद्ध किताबें रखी थीं — ज़्यादातर बिज़नेस, आर्किटेक्चर, और क्लासिक लिटरेचर से जुड़ी हुई।

    ड्रेसिंग टेबल नहीं थी — उसकी जगह एक लंबा, फुल-लेंथ मिरर एक साइड की दीवार पर टिका हुआ था। उसके पास एक वॉर्डरोब थी जो दीवार के साथ बनी थी — हिडन हैंडल्स वाली, शोर न करने वाली स्लाइडिंग डोर के साथ। वह कपड़े हमेशा प्रेस किए हुए और एकदम करीने से लगाकर रखता था।

    दीवारों पर फोटोग्राफ्स बहुत कम थे, लेकिन जो थे, वो बहुत मायने रखते थे। एक फ्रेम में मम्मी-पापा के साथ बचपन की तस्वीर थी — अर्जुन आठ साल का था, हँसते हुए माँ की गोद में बैठा। एक फ्रेम में कॉलेज की ग्रेजुएशन फोटो थी — कैप और गाउन में वह खड़ा था, और उसके चेहरे पर गर्व से ज़्यादा जिम्मेदारी झलकती थी।

    बेड के बाईं ओर एक स्लाइडिंग ग्लास डोर थी, जो छोटी-सी बालकनी की ओर खुलती थी। बालकनी में दो क्लासिक लोहे की कुर्सियाँ और एक गोल टेबल रखी हुई थी — बेहद सादा, लेकिन शुद्ध।

    बालकनी से बाहर देखने पर लॉन और सामने के बाग़ का दृश्य साफ दिखता था। दूर-दूर तक फैली हरियाली, और रात के समय जब चाँद की रोशनी पड़ती थी, तो वह दृश्य जैसे किसी पेंटिंग का हिस्सा लगता।

    अर्जुन को अक्सर वहीं बैठना पसंद था — बालकनी की कुर्सी पर, हाथ में कॉफ़ी का मग और सामने चुपचाप खड़ा आकाश।

    कमरे में हल्की सी सैंडलवुड और लैवेंडर की खुशबू फैली रहती थी — जो उसकी पसंदीदा रीड डिफ्यूज़र से आती थी। वह तेज़ परफ्यूम्स से परहेज़ करता था। लाइट्स कभी भी तेज़ नहीं होती थीं। वार्म येलो लाइटिंग, डिमेबल स्पॉटलाइट्स और एक रीडिंग लैम्प उसकी जरूरतों के मुताबिक थीं।

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    यह कमरा सिर्फ चार दीवारें नहीं था — यह अर्जुन की आत्मा का विस्तार था।

    एक ऐसा कोना जहाँ वह दुनिया से नहीं, खुद से जुड़ता था।

    जहाँ वह परफेक्ट होना नहीं, बल्कि सुकून में होना चाहता था।

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    उसे हमेशा से कम बोलने वाले लोग पसंद थे। शोरगुल और अनावश्यक बातचीत से उसे दूरी ही भाती थी। वह खुद भी बहुत ज़्यादा बात नहीं करता था — सिर्फ़ उतना ही बोलता जितना ज़रूरी हो।

    घर के लोगों का बातें बनाना, जैसे उसका छोटा भाई यश बेवजह की बातें करता रहता था, तो भी अर्जुन उसे देखकर मुस्कुरा देता था। क्योंकि वो जानता था कि उस की बातों में कोई छल नहीं होता — बस एक मासूमियत होती है।

    लेकिन बाहर के लोगों से — चाहे रिश्तेदार हों या कोई और — अर्जुन कभी भी औपचारिक ज़रूरत से ज़्यादा नहीं बोलता था। कोई घर आए या जाए, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। न वो उत्साहित होता, न परेशान। वह शांति से, अपने ही दायरे में रहना पसंद करता था।

    उसने खुद को जान-बूझकर ऐसा बना लिया था — सीमित, संयमित, और खुद के दायरे में समाया हुआ।

    कोई उसके साथ ज़्यादा फ्रेंडली होने की कोशिश करता, तो वह शालीनता से दूरी बना लेता।

    उसका सलीका ऐसा था कि सामने वाला कभी यह कह भी नहीं पाता था कि अर्जुन ने उसे ठुकराया — लेकिन फिर भी वो पास नहीं आ पाता था।

    अर्जुन जैसे लोग ज़्यादा नहीं मिलते — जो कम बोलकर भी बहुत कुछ कह जाते हैं।

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  • 4. मेरे दिल में उतर जाना - Chapter 4

    Words: 1047

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    अर्जुन अब ठीक था। ज़िंदगी वापस उसी ढर्रे पर चलने लगी थी — सुबह ऑफिस जाना, देर शाम लौटना, खाने-पीने में अनियमितता और अपने आप में खोया रहना। उसने खुद को फिर से अपने काम में पूरी तरह झोंक दिया था। उसके परिवार के कुछ सदस्य इस बात से खुश थे कि वह सामान्य जीवन में लौट आया है, लेकिन कुछ लोगों को उसकी यह वापसी असहज लग रही थी। खासकर उसका चाचा, उसकी चाची सारीका और उनका बेटा — तीनों भीतर ही भीतर परेशान थे।

    हालांकि बिज़नेस में आई कुछ समस्याएं अब धीरे-धीरे सुलझने लगी थीं। सबसे ज़्यादा खुशी उसके डैड विक्रांत सिंह को थी। वे जानते थे कि अर्जुन अपने काम में परफेक्ट है, और यही वजह थी कि वह सब कुछ फिर से संभाल लेगा।

    अब घर में अर्जुन की शादी की चर्चा भी शुरू हो गई थी।

    शाम को जब पूरा परिवार डाइनिंग टेबल पर एकत्र हुआ, तो अर्जुन अब तक नहीं लौटा था। लेकिन बात उसी की हो रही थी।

    "रमा, मैं सोच रही थी, क्या अर्जुन की शादी के लिए लड़की देखी जाए?" — दादीसा ने अर्जुन की मॉम से कहा। वे भले ही रमा से मुखातिब थीं, लेकिन बात पूरे परिवार से कर रही थीं।

    उनकी बात पर दादीसा की दोनों बहुएँ — रेखा और सारिका — एक-दूसरे की तरफ देखने लगीं। सारिका ने धीरे से कहा, "शादी तो करनी चाहिए... मगर जैसा अर्जुन का स्वभाव है, क्या वह किसी लड़की के साथ निभा पाएगा?"

    "हम बिल्कुल उसी जैसी लड़की ढूंढेंगे," — रेखा चाची ने मुस्कुराकर कहा।

    "बात तो सही है," — अर्जुन के डैड ने कहा, "अर्जुन इतना परफेक्ट है कि उसे किसी और का दख़ल पसंद ही नहीं।"

    "तो फिर आप क्या चाहते हैं? लड़के को बिना शादी के ही रख लें?" — दादा विक्रांत सिंह ने हँसते हुए कहा।

    "नहीं दादाजी, मेरा ऐसा कोई मतलब नहीं था," — अर्जुन के डैड बोले।

    "मैं तो चाहता हूँ कि अर्जुन की ज़िंदगी में कोई ऐसी लड़की आए, जो उसे प्यार से अपना बना ले... बिल्कुल वैसे ही जैसे रमा ने तुम्हें बना लिया," — दादाजी ने मुस्कुराते हुए राम से कहा।

    दादीसा ने भी मुस्कराकर जोड़ा, "तुम कौन से कम थे,  तुम्हारा स्वभाव भी कम सख़्त नहीं था। देखो रमा ने तुम्हें कैसे बदल दिया।"

    "मगर अब कौन सी लड़की होगी जो अर्जुन को प्यार से अपना बना ले?" — सारिका ने संदेह से पूछा।

    "मेरी बहुत-सी सहेलियाँ हैं जो अर्जुन भैया पर मरती हैं," — प्राची उत्साहित होकर बोली, "कॉलेज में जब भी अर्जुन भैया की बात चलती है, तो सारी लड़कियाँ तो बस उनकी भाभी बनने को तैयार रहती हैं।"

    "तो फिर भाभी, अपनी सहेलियों में से ही किसी को ढूँढें?" — यश ने मुस्कुराते हुए पूछा।

    "अरे, पहले अर्जुन से भी तो पूछो! हो सकता है उसने पहले ही किसी को पसंद कर रखा हो," — रमा बोलीं।

    "मैं तो नहीं मानती जी," — सारिका ने फौरन टोका, "आजकल के बच्चों का क्या भरोसा! देख नहीं रहे, दिनभर क्या करते रहते हैं!"

    "वैसे... अगर कोई लड़की उसकी ज़िंदगी में है, तो हम सबसे पहले जानना चाहेंगे कि वो कौन है," — दादीसा ने गंभीर होकर कहा।बहुत अच्छा।

    "लगता है अर्जुन आ गया," — उन्होंने धीमे से कहा और सबकी नज़रें दरवाज़े की ओर घूम गईं। बाहर गाड़ी रूकने की आवाज आई थी।

    अर्जुन अंदर आया — हाथ में लैपटॉप बैग, आँखों में वही पुरानी थकावट, चेहरे पर हलकी-सी बेरुख़ी। मगर वह अब पहले जैसा नहीं रहा था — बीमार शरीर से बाहर निकलकर वह पहले से भी ज़्यादा गंभीर और सधा हुआ लग रहा था। उसकी चाल में एक अनकही मजबूती थी, जैसे वह खुद को ज़िंदगी के हर मोर्चे के लिए तैयार कर चुका हो।

    "खाना लगा दूँ बेटा?" — रमा ने पूछा।

    "नहीं मम्मा, कुछ नहीं खाना। आज क्लाइंट मीटिंग देर तक चली। बहुत खा लिया वहाँ," — उसने संयमित स्वर में कहा और डायरेक्ट सोफे की ओर चला गया। सब उसकी तरफ देख रहे थे। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद, दादीसा ने सीधे मुद्दे पर आना बेहतर समझा।

    "अर्जुन," — उन्होंने आवाज़ दी।

    "जी दादीसा?" — उसने संयम से जवाब दिया।

    "हम सब सोच रहे थे... अब जब तुम ठीक हो गए हो, तो तुम्हारी शादी के बारे में भी सोचा जाए?"

    अर्जुन ने बिना प्रतिक्रिया के उनकी बात सुनी। उसके चेहरे पर कोई खास भाव नहीं था, न उत्साह, न इनकार। बस एक लंबा सन्नाटा और फिर बहुत ठंडे स्वर में बोला —

    "आप लोग जैसे ठीक समझें।"

    "क्या मतलब?" — रेखा चाची ने उत्सुकता से पूछा।

    "मतलब ये कि मैं इस पर कुछ नहीं सोच रहा। ना कोई प्लान है, ना कोई इंटरेस्ट," — उसने टेबल पर रखा पानी उठाया, एक सिप लिया और आगे कहा, "शादी से ज़्यादा ज़रूरी अभी मेरी ज़िंदगी में बहुत कुछ है।"

    "अर्जुन, बेटा, ऐसा मत बोलो," — दादाजी बोले, "एक लड़की का साथ ज़िंदगी में बहुत कुछ बदल सकता है।"

    "शायद, मगर मेरी ज़िंदगी में पहले ही बहुत कुछ बदल चुका है। अब और कुछ बदलने की ज़रूरत नहीं है।" — उसने आंखों में थकी हुई दृढ़ता के साथ कहा।

    "मतलब तुम्हारी ज़िंदगी में कोई लड़की नहीं है?" — सारिका ने सीधे सवाल दागा।

    अर्जुन ने एक क्षण के लिए उनकी तरफ देखा और फिर नज़रें हटा लीं।

    "नहीं," — वह बस यही बोला।

    "अर्जुन भैया, मेरी बहुत सारी फ्रेंड्स हैं जो..." — प्राची ने बात शुरू की, मगर अर्जुन ने हल्के से मुस्कुराते हुए बीच में ही बात काट दी।

    "प्राची, यह कॉलेज वाला टाइम नहीं है। अब ज़िंदगी और ज़िम्मेदारियाँ दोनों असली हो चुकी हैं।"

    घर में फिर एक बार खामोशी छा गई। अर्जुन ने उठकर कहा, "थक गया हूँ, मम्मा। मैं ऊपर जा रहा हूँ। आप लोग जो सही समझें, वही करिए।"

    और वह सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ अपने कमरे की ओर बढ़ गया।


    -

    कमरे की खिड़की से बाहर शहर की रोशनी झिलमिला रही थी। अर्जुन ने अपनी शर्ट की बांहें मोड़ी, घड़ी उतारी, और खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया।

    काफ़ी देर तक वह बिना किसी आवाज़ के बाहर देखता रहा।

    उसकी आंखों में थकान नहीं थी... मगर एक खालीपन था — ऐसा खालीपन जो सिर्फ वही समझ सकता था जिसने हाल ही में ज़िंदगी को बहुत करीब से देखा हो।

    वह जानता था, परिवार उसके लिए भलाई सोचता है। मगर वह यह भी जानता था कि अभी वह खुद को किसी और की ज़िम्मेदारी सौंपने लायक नहीं समझता।