अभिरा— एक sweet और innocent लड़की, जिसका दिल कांच-सा साफ़ है| उसे दुनिया की चालाकियों का ज़्यादा idea नहीं है| उसका dream है एक simple, loving life| लेकिन, उसकी destiny उसे मिलाती है अक्षरराज से| अक्षरराज— एक ruthless, arrogant business tycoon| Mon... अभिरा— एक sweet और innocent लड़की, जिसका दिल कांच-सा साफ़ है| उसे दुनिया की चालाकियों का ज़्यादा idea नहीं है| उसका dream है एक simple, loving life| लेकिन, उसकी destiny उसे मिलाती है अक्षरराज से| अक्षरराज— एक ruthless, arrogant business tycoon| Money और power ही उसकी दुनिया है| इमोशंस उसके लिए एक joke हैं, और वह लोगों को इस्तेमाल करने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाता| जब अभिरा की innocence अक्षरराज की arrogance से टकराती है, तो शुरुआत होती है एक unexpected love story की| अक्षरराज, जो सिर्फ़ deals करना जानता था, अभिरा की सादगी में kuchh to feel करने लगता है| वह उसे pamper करता है, उसे अपने luxurious life का हिस्सा बनाता है, और अभिरा को लगता है कि उसे उसका Prince Charming मिल गया है| उनकी chemistry शहर भर में famous हो जाती है, और उनका romance बिल्कुल fairy tale जैसा लगता है| लेकिन, यह fairy tale तब टूट जाती है जब अभिरा को पता चलता है कि अक्षरराज का love सिर्फ़ एक game था| एक power play! उसने अभिरा का इस्तेमाल अपने किसी secret agenda या business rival से revenge लेने के लिए किया था| यह dhokha अभिरा को अंदर तक तोड़ देता है| उसका innocence अब pain और bitterness में बदल जाता है| टूटा हुआ दिल और आँखों में आँसू लिए, अभिरा अब वही स्वीट लड़की नहीं रही| वह अब strong, focused और fierce है| उसने कसम खाई है कि वह अक्षरराज को उसी coin में जवाब देगी| क्या अभिरा, अपने ex-lover के business empire को तहस-नहस कर पाएगी| क्या revenge की इस आग में उनका पुराना love हमेशा के लिए राख हो जाएगा, या फिर intense hatred के बीच love की कोई spark अब भी बाक़ी है|
अभिरा गुप्ता
Heroine
अक्षराज कुंद्रा
Hero
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ऋषिका शर्मा सेक्रेटेरियल ऑफिस से बाहर निकली। उसकी आँखें लाल और सूजी हुई थीं, जैसे उसने घंटों रोया हो। उसके चेहरे पर जो एक्सप्रेशन था, वह ऐसा लग रहा था जैसे उसने अभी-अभी कोई भूत देख लिया हो। ऑफिस में बैठे सभी लोग उसे देखकर बुरा महसूस कर रहे थे। आखिर सिर्फ पाँच मिनट की देरी के लिए बॉस ने उसे पूरा एक घंटा लेक्चर दिया था।
अनिता, जो दूसरी इंटर्न थी, वो अपनी सीट से उठकर ऋषिका के पास जाते हुए बोली , "अरे यार, ये CEO तुम्हारे साथ इतने बुरे इसलिए हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि तुम एक easy target हो। देखो ना, वो बिज़नेस ट्रिप से वापस आए और पहला काम क्या किया? तुम्हें डाँटना! मेरा मतलब है, ये भी कोई बात हुई?"
ऋषिका अभी भी शॉक में थी। वह कुछ बोल नहीं पा रही थी, बस चुपचाप खड़ी थी।
अनिता ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "सुनो ऋषिका, तुम kc कॉलेज में न्यूज़ मैनेजमेंट की जूनियर स्टूडेंट हो ना? ये बस एक महीने की विंटर इंटर्नशिप है। अब तो लगभग खत्म ही होने वाली है। थोड़ा और सह लो, बस। शांत हो जाओ।"
ऋषिका ने धीरे से सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी आँसू थे।
"वैसे," अनिता ने टॉपिक बदलते हुए कहा, "आज शाम को डिपार्टमेंट डिनर है। युविका की तरफ से। तुम्हें पता है ना, वो इंटर्न जिसके बारे में अफवाह है कि उसे स्पेशल privileges मिले हुए हैं? खैर, सीनियर स्टाफ भी आ रहे हैं तो हम इंटर्न्स को जाना ही पड़ेगा। टाल नहीं सकते।"
ऋषिका के चेहरे पर tension की लकीरें उभर आईं। उसे याद आया कि आज सुबह ही CEO ने उसे साफ-साफ कहा था कि काम के बाद सीधे घर चली जाए। लेकिन अगर वह डिनर पर नहीं गई तो सब क्या सोचेंगे? उसे खुद को संभालने में दिक्कत हो रही थी, लेकिन फिर भी उसने मन ही मन decide किया कि वह डिनर पर जाएगी। उसने अपने आप से कहा कि उसने CEO के फुसफुसाए हुए वो शब्द सुने ही नहीं थे।
***
शाम को फ्लेवर फ्यूजन रेस्टोरेंट में डिनर का माहौल काफी लाइवली था। सभी इंटर्न्स और सीनियर स्टाफ के मेम्बर्स मौजूद थे। टेबल पर तरह-तरह के dishes सजे हुए थे।
ऋषिका जैसे ही अंदर दाखिल हुई, सबकी नज़रें उस पर टिक गईं। वह बिना चाहे ही attraction का center बन गई थी।
एक सीनियर स्टाफ मेम्बर ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे ऋषिका, आ गई? बैठो बैठो।"
लेकिन जल्द ही conversation का टॉपिक बदल गया।
"यार, मुझे समझ नहीं आता," एक दूसरे स्टाफ मेम्बर ने कहा, "CEO सर ऋषिका के साथ इतने स्ट्रिक्ट क्यों रहते हैं? मेरा मतलब है, बाकी इंटर्न्स के साथ तो वो इतने cold नहीं हैं।"
"हाँ यार," अनिता ने बीच में कहा, "आज तो हद ही हो गई। सिर्फ पाँच मिनट की देरी के लिए पूरा एक घंटा!"
सब ऋषिका की तरफ देखने लगे, expectation से कि वह कुछ बोलेगी।
ऋषिका ने मासूमियत से कंधे उचकाते हुए कहा, "मुझे नहीं पता। शायद... शायद मैंने कुछ गलत किया हो?"
"अरे नहीं," युविका ने कहा, "तुमने कुछ गलत नहीं किया। बस वो ऐसे ही हैं।"
बातों का सिलसिला चल ही रहा था कि अचानक ऋषिका का फोन बजा। स्क्रीन पर नाम देखकर उसकी साँसें थम गईं। रिदांश श्रॉफ का कॉल था।
उसने nervously फोन उठाया। "हेलो?"
दूसरी तरफ से एक गहरी, लुभावनी आवाज़ आई। "तुम कहाँ हो?"
रिदांश की आवाज़ में authority थी, लेकिन साथ ही कुछ और भी था जिसे ऋषिका पहचान नहीं पाई।
"मैं... मैं फ्लेवर फ्यूजन में हूँ," उसने धीरे से कहा। "डिपार्टमेंट डिनर है।"
फोन के दूसरी तरफ से एक लंबी silence आई। फिर रिदांश ने गुस्से भरी आवाज़ में कहा, "मैंने तुमसे कहा था ना कि काम के बाद सीधे घर आ जाओ? अभी, इसी वक्त, अपना काम छोड़ो और घर आओ। अभी!"
कहकर उसने फोन काट दिया।
ऋषिका का चेहरा pale हो गया। उसने जल्दी से अपना बैग उठाया और बाकी सबकी तरफ देखते हुए कहा, "सॉरी गाइज़, मुझे... मुझे अचानक कुछ ज़रूरी काम याद आ गया। मुझे जाना होगा।"
"क्या? अभी?" अनिता ने हैरानी से पूछा।
"हाँ, रियली sorry!" कहकर ऋषिका ने जल्दी से रेस्टोरेंट से बाहर निकल गई।
***
ऋषिका ने बाहर से एक टैक्सी पकड़ी और ड्राइवर को एड्रेस बताया, "सिल्वर ओक विलाज़, प्लीज़।"
पूरे रास्ते भर उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। वह जानती थी कि रिदांश गुस्से में होंगे। और जब रिदांश श्रॉफ गुस्से में होते हैं, तो...
टैक्सी सिल्वर ओक विलाज़ के गेट पर रुकी। यह एक लक्ज़री residential area था, जहाँ शहर के सबसे अमीर लोग रहते थे। ऋषिका ने टैक्सी का किराया दिया और अंदर चली गई।
विला के मेन door पर बटलर खड़ा था। उसने ऋषिका को देखते ही कहा, "वेलकम होम, मैडम।"
ऋषिका ने धीरे से सिर हिलाया और अंदर चली गई। पूरा विला शानदार था - मार्बल फ्लोर्स, क्रिस्टल chandeliers, एक्सपेंसिव पेंटिंग्स। लेकिन ऋषिका को इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसके दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी - रिदांश।
वह सीढ़ियाँ चढ़कर बेडरूम की तरफ बढ़ी। दरवाज़ा खोलकर अंदर गई, लेकिन रूम में रिदांश नहीं थे। बाथरूम से पानी के बहने की आवाज़ आ रही थी। वो नहा रहे थे।
ऋषिका ने एक लंबी साँस ली और सोफे पर बैठ गई। उसके विचार भटकने लगे।
कितनी अजीब बात थी ना? वह, एक सिंपल कॉलेज स्टूडेंट, ने शादी की थी रिदांश श्रॉफ से। श्रॉफ ग्रुप के यंगेस्ट और मोस्ट eligible bachelor CEO से। श्रॉफ फैमिली के वारिस से। पूरे शहर की लड़कियाँ उनके पीछे पागल थीं, लेकिन उन्होंने उसे चुना। क्यों?
यही सवाल ऋषिका को रात-दिन परेशान करता रहता था। और सबसे बड़ी बात - लगभग किसी को भी उनकी शादी के बारे में नहीं पता था। यह एक secret था, जिसे सिर्फ वो दोनों और उनके करीबी लोग ही जानते थे।
ऋषिका अपने विचारों में इतनी खोई हुई थी कि उसे पता ही नहीं चला कि कब बाथरूम का दरवाज़ा खुला। जब उसने नज़र उठाई तो उसकी साँसें थम गईं।
रिदांश बाथरूम से बाहर निकले थे। उन्होंने सिर्फ एक सफेद तौलिया कमर पर लपेटा हुआ था। उनका शरीर... ऋषिका के पास words नहीं थे। चौड़ी, muscular छाती, परफेक्ट six-pack abs, बाहों में उभरी हुई muscles - हर चीज़ बिल्कुल perfect थी।
ऋषिका स्तब्ध रह गई। उसने पहले कभी इतने ध्यान से उन्हें देखने की हिम्मत नहीं की थी। उसकी आँखें बड़ी हो गईं और वह बस घूरती रह गई।
रिदांश ने उसके एक्सप्रेशन को notice किया। उनके होंठों पर एक mocking smile आई। वो धीरे-धीरे ऋषिका की तरफ बढ़े और उसके सामने आकर खड़े हो गए।
"क्या हुआ?" उन्होंने अपनी गहरी आवाज़ में पूछा। "पहली बार देख रही हो क्या?"
ऋषिका तुरंत शरमा गई। उसने झट से अपनी नज़रें हटा लीं और अनजाने में बुदबुदाई, "मैंने... मैंने इसे कभी महसूस नहीं किया है, तो मैं बता नहीं सकती..."
जैसे ही ये शब्द उसके मुँह से निकले, उसे अहसास हुआ कि उसने क्या कह दिया। उसका चेहरा टमाटर की तरह लाल हो गया।
रिदांश ने एक eyebrow उठाई। वो और करीब आए और ऋषिका के बिल्कुल सामने झुक गए। उनका चेहरा उसके चेहरे से सिर्फ इंचों की दूरी पर था।
"तो," उन्होंने धीमी, seductive आवाज़ में कहा, "कोशिश करके देखो ना। फिर बताओ कैसा लगा।"
ऋषिका को लगा जैसे उसने किसी बिजली के करंट को छू लिया हो। उसका पूरा शरीर सिहर गया। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
वो जानती थी कि उनके बीच physical intimacy थी। लेकिन हर बार वो इतनी overwhelmed हो जाती थी कि बेहोश सी हो जाती थी। उसने कभी सीधे तौर पर, होश में रहते हुए, उनके शरीर को touch नहीं किया था। और अब...
रिदांश उसके बिल्कुल करीब थे। उनकी महक, उनकी गर्माहट, उनकी presence - सब कुछ ऋषिका को घेर रहा था।
"क्या हुआ?" रिदांश ने फिर पूछा, इस बार और करीब आते हुए। "डर गई?"
ऋषिका ने हिम्मत करके उनकी आँखों में देखा। उन गहरी, काली आँखों में कुछ ऐसा था जो उसे अपनी तरफ खींच रहा था।
"मैं..." उसने कहना शुरू किया, लेकिन उसकी आवाज़ काँप रही थी।
रिदांश ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसके गाल को हल्के से छुआ। "तुम जानती हो ना," उन्होंने कहा, "मुझे पसंद नहीं जब तुम मेरी बात नहीं सुनती। मैंने कहा था सीधे घर आ जाओ। फिर भी तुम डिनर पर चली गईं।"
ऋषिका ने अपनी आँखें बंद कर लीं। "सॉरी," उसने whisper किया। "वो... सीनियर स्टाफ भी था तो मैं..."
"मुझे तुम्हारे बहाने नहीं चाहिए," रिदांश ने उसे बीच में ही रोक दिया। उनकी आवाज़ stern थी, लेकिन साथ ही उसमें कुछ और भी था। "मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी बात सुनो। समझी?"
"हाँ," ऋषिका ने कहा।
"हाँ क्या?" रिदांश ने पूछा।
"हाँ... समझ गई," ऋषिका ने धीरे से कहा।
रिदांश ने अपना हाथ वापस खींचा और सीधे खड़े हो गए। वो अपनी अलमारी की तरफ बढ़े और कपड़े निकालने लगे।
ऋषिका अभी भी सोफे पर बैठी थी, उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। उसने रिदांश को देखा जो अपनी पीठ उसकी तरफ किए हुए खड़े थे। उनकी चौड़ी पीठ पर पानी की बूँदें अभी भी चमक रही थीं।
अगली सुबह, 8 बजे अलार्म की रिंग जोर से बजी । ऋषिका ने आँखें खोलीं तो उसे अहसास हुआ कि वह देर से उठी है। पिछली रात की थकान इतनी ज़्यादा थी कि उसे पता ही नहीं चला कब नींद आ गई।
"ओह नो!" वह झटके से उठ बैठी। "मुझे काम पर देर हो जाएगी!"
उसकी अचानक movement से बगल में सो रहे रिदांश की नींद टूट गई। उन्होंने आँखें खोलीं और उसे देखा।
"कहाँ जा रही हो?" रिदांश ने उसकी कलाई पकड़कर उसे वापस खींच लिया।
"रिदांश, छोड़ो! मुझे देर हो रही है!" ऋषिका ने protest किया।
रिदांश ने उसे अपनी बाहों में कस लिया। "इतनी जल्दी क्या है?"
"जल्दी? देखो तो clock!" ऋषिका ने frustrated होकर कहा। "मुझे 9 बजे तक ऑफिस पहुँचना है!"
"तो?" रिदांश ने casual tone में कहा। "थोड़ी देर और रुक जाओ।"
"नहीं! मुझे जाना है!" ऋषिका ने उनकी पकड़ से निकलने की कोशिश की।
लेकिन रिदांश ने उसे और कसकर पकड़ लिया। "मैं कह रहा हूँ रुको।"
"लेकिन रिदांश—"
उन्होंने उसे बीच में ही रोक दिया। उनकी आँखों में एक अलग सा look था। "तुम कहीं नहीं जा रही अभी।"
ऋषिका ने फिर से निकलने की कोशिश की, चुपके से bed के किनारे की तरफ सरकते हुए। लेकिन रिदांश तेज़ थे। उन्होंने तुरंत उसे वापस खींच लिया।
"मैंने कहा ना," उन्होंने warning tone में कहा, "तुम कहीं नहीं जा रही।"
और फिर... अगले घंटे में जो हुआ, उससे ऋषिका को पता था कि वह definitely देर से पहुँचने वाली थी।
***
ऋषिका जब ऑफिस पहुँची तो घड़ी में 9:30 बज रहे थे। वह quickly अपनी desk की तरफ बढ़ी, hoping कि किसी ने notice ना किया हो।
लेकिन अनिता ने तुरंत देख लिया।
"अरे ऋषिका!" अनिता ने अपनी chair से उठते हुए कहा। "आज फिर देर? क्या हुआ?"
ऋषिका ने nervously smile दी। "वो... घर पर एक छोटी सी पूजा थी। इसलिए थोड़ी देर हो गई।"
"ओह," अनिता ने समझते हुए सिर हिलाया। "कोई बात नहीं। वैसे भी आज तुम lucky हो।"
"क्यों?" ऋषिका ने पूछा।
"क्योंकि अभी तक CEO सर भी ऑफिस नहीं आए हैं," अनिता ने mischievously मुस्कुराते हुए कहा। "तो आज तुम्हें उनकी डाँट से बच जाने का chance है!"
ऋषिका ने relief की साँस ली। अच्छा हुआ। असल में, रिदांश और वो एक साथ ही घर से निकले थे। एक ही car में बैठकर आए थे। लेकिन building से थोड़ा पहले रिदांश ने car रोक दी थी और उसे पहले उतार दिया था। और अच्छा हुआ कि किसी ने उन्हें together नहीं देखा।
ऋषिका ने अपनी seat पर बैठकर system on किया। उसकी internship में अब सिर्फ एक हफ्ता बचा था। एक हफ्ता और फिर वह वापस college चली जाएगी।
उसका phone buzz हुआ। एक message था।
"Reached office?"
रिदांश का message था। ऋषिका ने smile करते हुए reply किया, "हाँ।"
"On time?"
"Umm... थोड़ा late।"
"I know। Next time jaldi uthna।"
ऋषिका ने eye roll किया। जैसे कि late उठना उसकी गलती थी!
यह पिछले तीन महीनों से चल रहा था। उनकी secret marriage के बाद से। रिदांश पूरे दिन उसे messages भेजते रहते थे। चाहे वो meeting में हों, business trip पर हों, या office में हों। यह उनकी habit बन चुकी थी।
***
अगले दिन जब ऋषिका office पहुँची, तो उसकी desk पर कुछ रखा हुआ था। एक बड़ा सा bouquet। 99 red roses का।
"वाह!" अनिता ने देखते ही कहा। "यह किसने भेजा?"
Desk के आसपास काम कर रहे सभी colleagues gather हो गए। सब उस expensive bouquet को देख रहे थे।
"यह तो बहुत महंगा लग रहा है," एक colleague ने jealousy से कहा।
"हाँ यार," दूसरे ने add किया। "इतने सारे roses! Definitely कोई rich admirer होगा।"
ऋषिका ने bouquet उठाया और उसमें लगा card निकाला। जैसे ही उसने card पढ़ा, उसका चेहरा बदल गया।
"I'm sorry। Please forgive me। - Ishaan"
ऋषिका का jaw tighten हो गया। बिना कुछ बोले, उसने पूरा bouquet उठाया और सीधे dustbin में फेंक दिया।
"क्या?!" सभी shocked थे।
"ऋषिका! यह क्या किया तुमने?!" अनिता ने हैरानी से पूछा।
"Garbage को dustbin में ही जाना चाहिए," ऋषिका ने cold tone में कहा और अपनी seat पर बैठ गई।
बाकी सब confused होकर एक-दूसरे को देखने लगे।
***
शाम को जब ऋषिका office से बाहर निकली, तो उसे company gate के बाहर कोई खड़ा दिखा। Ishaan।
उसने ऋषिका को देखते ही उसकी तरफ बढ़ना शुरू किया।
"ऋषिका! रुको!" Ishaan ने पुकारा।
ऋषिका ने उसे ignore करने की कोशिश की और तेज़ी से चलने लगी।
लेकिन Ishaan ने उसका हाथ पकड़ लिया। "Please, मेरी बात तो सुनो!"
"छोड़ो मेरा हाथ!" ऋषिका ने गुस्से में कहा।
"नहीं! पहले मेरी बात सुनो!" Ishaan ने desperately कहा। "मुझे माफ कर दो, please! मैं नशे में था उस दिन। मुझे पता ही नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूँ। मैंने Bhavya को तुम समझ लिया था!"
"Really?" ऋषिका ने sarcastic tone में कहा। "तुमने अपनी best friend को मुझे समझ लिया? How convenient!"
"सच कह रहा हूँ मैं!" Ishaan ने कहा। "मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। Please, मुझे एक और chance दो!"
"एक और chance?" ऋषिका ने उसका हाथ झटक दिया। "तुमने already अपना chance waste कर दिया, Ishaan। अब मुझसे दूर रहो!"
"ऋषिका! चलो!" अनिता अपनी car में बैठी हुई चिल्लाई।
ऋषिका ने बिना पीछे मुड़े अनिता की car में बैठ गई।
Car में बैठते ही अनिता ने पूछा, "यह कौन था?"
ऋषिका ने एक लंबी साँस ली। "Ishaan। मेरा ex-boyfriend।"
"Ex?" अनिता ने surprised होकर पूछा। "कब तक साथ थे तुम लोग?"
"दो साल," ऋषिका ने कहा। "लेकिन फिर... मेरे birthday पर, 14 February को, मुझे पता चला कि वो मुझे धोखा दे रहा था।"
"क्या?!" अनिता shocked थी। "Valentine's Day पर? तुम्हारे birthday पर?"
ऋषिका ने सिर हिलाया। "हाँ। उस दिन मैं उसे surprise देने के लिए उसके घर गई थी। लेकिन surprise तो मुझे मिल गया। उसे अपनी so-called best friend Bhavya के साथ देखकर।"
"Oh my God!" अनिता ने sympathy से कहा। "That's terrible!"
"हाँ," ऋषिका ने window से बाहर देखते हुए कहा। "उस रात मैं गुस्से में bar चली गई थी। और फिर..."
उसने अचानक रुक गई। वह रिदांश के बारे में नहीं बता सकती थी। उस रात के बारे में नहीं, जब उसकी life completely बदल गई थी।
***
अगले तीन दिन तक यही silsila चलता रहा। हर दिन ऋषिका की desk पर expensive roses का bouquet आता। हर शाम Ishaan company gate के बाहर wait करता।
लेकिन ऋषिका ने हर बार उसे ignore किया। Flowers को dustbin में फेंका और Ishaan को avoid किया।
चौथे दिन कुछ अलग हुआ।
ऋषिका office के corridor में चल रही थी जब reception से announcement आई, "Ms. Rishika Sharma, आपसे कोई मिलने आया है। Conference room में wait कर रहे हैं।"
ऋषिका confused थी। किसे आना था उससे मिलने? उसने conference room का door खोला और अंदर गई।
वहाँ एक लड़की खड़ी थी। पीठ उसकी तरफ थी। जब वो मुड़ी तो ऋषिका की साँसें रुक गईं।
Bhavya।
"तुम?" ऋषिका ने shocked होकर कहा।
Bhavya की आँखों में आँसू थे। "ऋषिका, please... मुझे तुमसे बात करनी है।"
"मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी," ऋषिका ने cold tone में कहा और पलटने लगी।
"Please!" Bhavya ने desperately कहा। "सिर्फ पाँच मिनट!"
ऋषिका रुक गई। उसने cross arms किया और Bhavya की तरफ देखा। "बोलो।"
Bhavya ने आगे बढ़कर ऋषिका का हाथ पकड़ा। "मुझे माफ कर दो, please। मैं जानती हूँ मैंने गलत किया। लेकिन please, Ishaan को मुझसे छीनो मत।"
ऋषिका ने हाथ छुड़ाया। "मैं उसे छीन नहीं रही। वो खुद तुमसे दूर जा रहा है।"
"लेकिन तुम्हारी वजह से!" Bhavya रोते हुए बोली। "वो मुझे छोड़ने की ठान चुका है। वो कहता है कि उसे सिर्फ तुम चाहिए। Please, उसे मुझे वापस कर दो ।"
"Seriously?" ऋषिका ने unbelievable tone में कहा। "तुम यहाँ मुझसे ये कहने आई हो?"
"ऋषिका, please समझो," Bhavya ने कहा। "तुम तो Mumbai की rich families में से एक, Sharma family से belong करती हो। तुम Sharma family की बेटी हो। तुम्हें तो कोई भी better से better life partner मिल सकता है। लेकिन मेरे पास क्या है? मुझे Ishaan की ज़रूरत है! मेरे पास और कुछ नहीं है!"
ऋषिका ने एक sarcastic laugh दी। "Wow। So now you're playing the victim card?"
"नहीं, मैं बस—"
"बस क्या?" ऋषिका ने interrupt किया। "तुम मुझसे ये expect कर रही हो कि मैं तुम्हारे लिए sympathy महसूस करूँ? After what you did?"
"ऋषिका, please—"
"Listen Bhavya," ऋषिका ने firmly कहा। "उस रात तुम नशे में नहीं थी। तुमने होश में, पूरी awareness के साथ, मेरे boyfriend के साथ... तुम जानती थी तुम क्या कर रही हो। और अब तुम यहाँ आकर ये drama कर रही हो?"
Bhavya ने कुछ नहीं कहा। बस रोती रही।
"और जहाँ तक Ishaan की बात है," ऋषिका ने continue किया, "मैंने कभी उसके लिए compete करने की planning नहीं की। मैं उसे वापस नहीं चाहती। So technically, वो तुम्हारा है। लेकिन शायद वो तुम्हें नहीं चाहता।"
Bhavya ने अपनी आँखें पोंछीं। "But तुम उसे मना कर सकती हो। उसे बता सकती हो कि तुम उसके साथ नहीं रहना चाहती।"
"मैंने already बता दिया है," ऋषिका ने कहा। "कई बार। लेकिन वो समझता नहीं। यह मेरी problem नहीं है, Bhavya। यह तुम्हारी और Ishaan की problem है।"
"ऋषिका, please—"
"बस," ऋषिका ने अपना hand raise किया। "क्या तुम सिर्फ यही सब बताने आई थी? क्योंकि अगर हाँ, तो मैं जा रही हूँ। मेरे पास और बहुत काम है।"
चाहत की बातें सुनकर तन्वी के चेहरे पर अब हल्की सी स्माइल थी, लेकिन उसके मन में अभी भी कई सवाल थे। चाहत की बातों ने उसे कुछ हिम्मत तो दी थी, पर एक और चिंता उसके ज़हन में लगातार घूम रही थी।
तन्वी कुछ सोचते हुए बोली, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी झिझक थी, "चाहत, तूने उससे बात करी?" उसने अपनी नज़रें चाहत पर टिका दीं, जैसे जवाब का इंतज़ार कर रही हो।
चाहत ने कहीं और देखते हुए बेपरवाही से जवाब दिया, "किससे?" उसकी आवाज़ में ऐसा लग रहा था जैसे वो उस बात को टालना चाहती हो।
तन्वी ने चाहत का चेहरा अपने एक हाथ से अपनी ओर करते हुए कहा, "समीर, समीर की बात कर रही हूं मैं।" उसकी आवाज़ में थोड़ी झुंझलाहट थी, क्योंकि वो जानती थी कि चाहत जानबूझकर अनजान बन रही है।
चाहत ने अपना चेहरा तन्वी के हाथों से हटाते हुए सामने नदी की ओर कर लिया। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उदासी थी। "हां, वो कल सुबह जा रहा है। अब दो साल बाद ही लौटेगा। वो कह रहा था कि उसका बिल्कुल मन नहीं है जाने का लेकिन उसकी मजबूरी है इसलिए उसे जाना होगा।" उसके शब्दों में एक अजीब सी दूरी थी, जैसे वो समीर से जुड़ी हर बात से खुद को दूर रखना चाहती हो।
तन्वी उसकी ओर देखते हुए बोली, उसकी आवाज़ में अब थोड़ा गुस्सा था, "यार, उसने सिर्फ तुझे प्रपोज़ किया है, कोई जबरदस्ती शादी थोड़ी कर रहा है तुझसे जो तू उससे अच्छे से बात भी नहीं कर रही है और ना ही उसकी कोई बात सुनना चाहती है। उसने तुझे वक़्त दिया है ना जवाब देने के लिए। अब वो तेरी मर्जी होगी कि तुझे उससे शादी करनी है या नहीं। और देख, सिमरन और समीर हमारे फ्रेंड्स हैं, अच्छा नहीं लगता है कि तू उन्हें अनदेखा करना शुरू कर दे। और सिमरन को जब ये पता चलेगा कि तू इस बात के लिए उससे दोस्ती खत्म कर रही है तो उसे कैसा लगेगा? सोचा है तूने?" तन्वी के शब्द नुकीले थे, पर उनमें चाहत के लिए फिक्र साफ झलक रही थी। वो जानती थी कि चाहत अपने गुस्से में गलत फैसले ले सकती है।
चाहत थोड़ी टेंशन में आ गई। उसका चेहरा थोड़ा पीला पड़ गया। "नहीं, मैं कोई दोस्ती नहीं खत्म कर रही, बस थोड़ी देर का ब्रेक ले रही हूं इस सिचुएशन को एक्सेप्ट करने के लिए। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं। मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है।" उसकी आवाज़ में अब झुंझलाहट के साथ-साथ एक अजीब सी लाचारी भी थी।
"ठीक है, जितना वक्त लेना है ले लेना।" तन्वी उसे समझाते हुए बोली, उसकी आवाज़ में अब नरमी थी। "वैसे भी वो दो साल तक नहीं आने वाला। लेकिन कल हम दोनों उससे मिलने जाएंगे।" तन्वी ने यह बात ऐसे कही जैसे यह पहले से तय हो।
जैसे ही चाहत अपना सर हिलाकर ना करने वाली थी, तन्वी ने आंखों के इशारे से उसे रोक दिया। तन्वी की आँखों में वो ताकत थी कि चाहत उसकी बात मान गई। चाहत जानती थी कि तन्वी जो कह रही है, वही सही है।
तन्वी ने कहा, "अब कल हम सुबह उसके घर ही चलेंगे। क्योंकि एयरपोर्ट तो बहुत दूर है और कल तो हम बिल्कुल भी एयरपोर्ट नहीं जा सकते।"
तभी तन्वी अचानक से खड़ी होकर जोर से बोली, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी घबराहट थी, "अरे... अरे... अरे... भूल गए... हम दोनों... अब तो... हम दोनों गए..." फिर वो परेशान होते हुए एक अंगुली मुंह में रखकर उसका नाखून दांतों से चबाने लगी। उसका चेहरा तनाव से भर गया था।
चाहत भी खड़ी होकर उसे देखते हुए बोली, "क्य... क्या भूल गए?" उसकी आवाज़ में भी अब थोड़ी घबराहट थी।
तन्वी उसे घूरकर, एक आइब्रो ऊंचा करके, एक हाथ कमर पर रखते हुए बोली, "वो... आने वाली है आज।" उसकी आवाज़ में एक चेतावनी थी।
चाहत थोड़ा झुंझलाते हुए दूसरी ओर देखते हुए बोली, "कौन आने वाली है?" अचानक से उसे कुछ याद आया और वो झट से तन्वी की तरफ मुड़ कर उसे हैरानी से देखती हुई एक पल के लिए शांत खड़ी हो गई। उसके चेहरे पर डर साफ दिख रहा था।
थोड़ी देर की शांति के बाद, दोनों जोर से चिल्लाते हुए बोलीं, "अरे... नहीं... वो आने वाली है!" तभी घंटियों की आवाज़ और तेज़ हो गई, आरती शुरू हो गई। दोनों ने उन घंटियों की आवाज़ की ओर देखा। मानो आरती की आवाज़ ने उन्हें उनकी असलियत याद दिला दी हो।
तन्वी बोली, "चल जल्दी से पहले आरती में चलते हैं, फिर घर चलेंगे। अगर देर हो गई ना तो दोनों ही एक टीम में होकर हम दोनों की क्लास लगाएगी।" उसकी आवाज़ में अब थोड़ी हड़बड़ी थी।
चाहत बोली, "हां, चल जल्दी और फिर मुझे एक बार पंडित जी से भी काम है। अगर यह काम नहीं किया तो मेरी तो डबल क्लास लगेगी।" उसकी आवाज़ में भी अब डर साफ था।
फिर दोनों जल्दी से आरती स्थल की ओर जाने लगीं। वहां जाकर देखा तो बहुत भीड़ थी। लोग आरती के लिए उत्साह से भरे हुए थे। बहुत सारे पंडित बड़े-बड़े दीये लेकर गंगा आरती गा रहे थे। घंटियों की ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ें आ रही थीं, और हवा में अगरबत्तियों की खुशबू फैली हुई थी। आरती का यह नज़ारा आँखों को भाने वाला था। गंगा का पानी दीयों की रोशनी से जगमगा रहा था, और पूरा घाट एक जादुई माहौल में लिपटा हुआ था। दोनों वहीं खड़ी होकर आरती देखने लगीं। उनके मन में अभी भी कई चिंताएं थीं, लेकिन इस पवित्र माहौल में आकर उन्हें थोड़ी शांति मिली थी।
जैसे ही आरती अपने चरम पर पहुँची, दीयों की रोशनी में गंगा का पानी और भी चमकीला लगने लगा। मंत्रों का जाप और घंटों की आवाज़ें एक साथ गूँज रही थीं, जो एक अजीब सी ऊर्जा पैदा कर रही थीं। चाहत और तन्वी दोनों ने अपनी आँखें बंद कर लीं, और इस दिव्य माहौल में खो गईं। उन्होंने प्रार्थना की, शायद अपने लिए, शायद अपने आने वाले कल के लिए, और शायद उस नए जीवन के लिए जो तन्वी के अंदर पल रहा था। उन्हें उम्मीद थी कि यह पवित्र ऊर्जा उन्हें अपनी मुश्किलों से लड़ने की ताकत देगी। आरती खत्म होते ही भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगी, और दोनों ने एक गहरी सांस ली।
थोड़ी देर बाद, आरती खत्म हो गई। घाट पर भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगी थी। चाहत और तन्वी पंडित जी को ढूंढने के लिए आगे बढ़ीं। वे पंडित जी को खोज ही रही थीं कि अचानक उनके कानों में कुछ डिस्टर्बिंग नॉइज़ सुनाई दी। दोनों ने चारों ओर देखा। उनकी नज़र साइड में खड़े 4-5 बच्चों के एक ग्रुप पर पड़ी। वे सब ज़ोर-ज़ोर से किसी पर हंस रहे थे और मज़ाक उड़ा रहे थे। यह देखकर दोनों वहां जाने लगीं, यह देखने कि वहां क्या हो रहा है। उन्हें लगा शायद कोई मिसबिहेव कर रहा है या किसी को ट्रबल दे रहा है।
जैसे ही वे वहां पहुंचीं, उन्होंने देखा कि एक 24-25 साल की लड़की ज़मीन पर बैठी हुई थी। ऐसा लग रहा था कि फर्श पर फैले पानी के कारण उसका पैर फिसल गया था। उसने एक शॉर्ट ब्लैक वन-पीस ड्रेस पहनी हुई थी और देखने में भी सुंदर लग रही थी। लेकिन गिरने की वजह से उसके कपड़ों पर मिट्टी और पानी दोनों के दाग थे। उसकी हालत थोड़ी खराब हो गई थी। बाल बिखरे हुए थे और चेहरे पर हल्के स्क्रैचेस भी दिख रहे थे।
यह देखकर चाहत और तन्वी का दिल पसीज गया। उन्हें बुरा लगा कि कोई उसकी मदद नहीं कर रहा और बच्चे उसका मज़ाक बना रहे हैं। उन्होंने तुरंत डिसाइड किया कि वो उसकी हेल्प करेंगी। यह उनके नेचर में था — किसी को मुश्किल में देखकर चुप नहीं रह सकती थीं। वे झट से उस लड़की के पास गईं और उसे अपने हाथों से उठाकर खड़ा किया। फिर बच्चों को डांटकर वहां से भगा दिया। बच्चों ने थोड़ी बदमाशी की। लेकिन चाहत और तन्वी की सख़्त नज़रें देखकर तुरंत खिसक लिए।
चाहत ने लड़की से पूछा, "तुम ठीक हो ना? तुम्हें कहीं चोट तो नहीं आई?" उसकी आवाज़ में हमदर्दी थी। चाहत ने ध्यान से लड़की के कपड़ों और चेहरे को देखा कि कहीं कोई सीरियस इंजरी तो नहीं है।
वो लड़की बोली, "नहीं, कोई चोट नहीं आई। मैं ठीक हूं। थैंक यू तुम दोनों को मेरी हेल्प करने के लिए। वो फर्श पर पानी था और मेरा ध्यान नहीं गया और मैं स्लिप हो गई।" उसकी आवाज़ में थोड़ा घबराहट थी। लेकिन साथ ही राहत भी थी कि किसी ने उसकी मदद की।
चाहत बोली, "कोई बात नहीं। अच्छा हुआ कि तुम्हें ज़्यादा चोट नहीं आई। लेकिन तुम्हारे तो सारे कपड़े खराब हो गए हैं। इन्हें साफ़ करना पड़ेगा। तुम्हें देखकर लग नहीं रहा कि तुम यहां की हो। बाहर से आई हो क्या? नाम क्या है तुम्हारा?" चाहत की आवाज़ फ्रेंडली थी। जिससे लड़की थोड़ा कंफर्टेबल महसूस करे।
उस लड़की ने कहा, "हां, मेरा नाम वृशिका है और मैं मुंबई से आई हूं। लेकिन अभी होटल नहीं जा सकती। मुझे यहां किसी से मिलना है, अर्जेंटली।" उसकी आवाज़ में हड़बड़ी और आँखों में बेचैनी थी। चेहरा जैसे किसी चिंता से भरा हुआ था।
तन्वी बोली, "ठीक है तो तुम अपनी ड्रेस यहीं साफ कर लो। वरना दाग रह जाएगा।" फिर वह चाहत की तरफ मुड़ी और बोली, "मैं इसे ले जाती हूं कपड़े साफ करवाने। तू जाकर पंडित जी से मिल लो। नहीं तो वो यहां से चले गए तो उनसे कल ही मिल पाएगी।" तन्वी को पता था कि चाहत के लिए पंडित जी से मिलना ज़रूरी है।
चाहत ने कहा, "नहीं, अभी मिलना तो ज़रूरी है। नहीं तो घर जाकर क्या जवाब दूंगी। तू सही कह रही है। तू जा। मैं पंडित जी से मिल लेती हूं।" उसे भी अंदाज़ा था कि अगर वो पंडित जी से नहीं मिली तो घर पर एक और क्लास लगनी तय है।
वृशिका ने चाहत को देखते हुए कहा, "लेकिन मेरा सामान..." और उसने नीचे अपने पैरों की तरफ देखा। वहां एक हैंडबैग और एक ब्लेज़र रखा था। चाहत ने भी देखा और तुरंत सामान उठाने लगी।
वृशिका बोली, "जब तक मैं खुद को और अपनी ड्रेस को थोड़ा साफ करके आती हूं। क्या तुम तब तक मेरे सामान का ध्यान रखोगी?" उसकी आवाज़ में रिक्वेस्ट साफ थी।
"इसमें रिक्वेस्ट करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं ध्यान रखूंगी।" चाहत ने मुस्कुराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा। उसका ये जेस्चर वृशिका को थोड़ा सुकून दे गया।
चाहत ने तन्वी से कहा, "तू जल्दी से इसकी हेल्प करके आ। तब तक मैं पंडित जी से बात कर लूंगी।" चाहत जानती थी की अगर वो अभी पंडित जी से नहीं मिली तो घर पर आज उसका बुरा हाल होने वाला था |
तन्वी को देखते हुए चाहत आगे बोली - "तन्वी, तू जल्दी से इसकी ड्रेस ठीक करने में हेल्प करके आ। तब तक मैं भी पंडित जी से बात कर के आती हूँ। अपना-अपना काम पूरा होने के बाद हम लोग शिव पार्वती की वो बड़ी वाली मूर्ति है ना, वहां मिलेंगे।"
चाहत की बात सुनकर तन्वी ने बस "ठीक है" कहा और वृशिका के साथ वहां से निकल गई। अब चाहत के दिमाग में एक ही चीज़ चल रही थी - पंडित जी को ढूंढना! वो मंदिर के आस-पास ही उन्हें ढूंढ रही थी। वो कुछ ही कदम आगे बढ़ी थी कि, उसने देखा कि सामने से पंडित जी अपने वही चिर-परिचित झोले के साथ, मंदिर की सीढ़ियों से नीचे आ रहे थे। पंडित जी को देखते ही चाहत के चेहरे पर स्माइल आ गई और वो फटाफट उनके पास पहुंच गई।
"नमस्ते पंडित जी," चाहत ने बड़े ही अदब से कहा।
पंडित जी ने चाहत को देखा और उनके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। "अरे! चाहत बिटिया... नमस्ते... कैसी हो तुम?" उन्होंने प्यार से पूछा।
"मैं तो बिलकुल ठीक हूँ पंडित जी, आप कैसे हैं...? और अभी आपकी तबियत कैसी है...? कल सोहन बता रहा था कि आपको थोड़ा बुखार था।" चाहत ने उनकी सेहत का भी हाल-चाल पूछ लिया, जो कि आज के ज़माने में कम ही लोग करते हैं।
पंडित जी ने जवाब दिया, "मैं बिलकुल ठीक हूँ, वो थोड़ा मौसम के कारण थोड़ा बुखार हो गया था। और बताओ कोई काम से आयी हो क्या?"
चाहत ने बिना देर किए सीधे मुद्दे पर आ गई। "हाँ पंडित जी, वो आप तो जानते हैं ना, चार दिन बाद घाट पर हवन और पूजा होगी, तो मैं उसी के सिलसिले में आपके पास आई हूँ।"
पंडित जी ने अपनी याददाश्त पर ज़ोर दिया, "हाँ, सुचिता जी से बात हुई थी मेरी इस बारे में। उन्हें हर साल की तरह इस बार भी हवन और पूजा करवानी है।"
चाहत ने अपनी बात आगे बढ़ाई, "आप मुझे बता दीजिये कि आपको क्या-क्या सामग्री की ज़रूरत होगी हवन और पूजा के दौरान। मैं उन सबका इंतज़ाम करवा दूंगी। और हाँ पंडित जी, ये भी बता दीजिये कि हवन का मुहूर्त कितने बजे का है।"
पंडित जी ने जवाब दिया, "हवन का मुहूर्त सुबह 11 बजे का है, तो आप सब 10 बजे तक यहाँ पहुँच जाइयेगा, हवन से पहले जो पूजा होगी उसके लिए। और ये रही सामग्री की लिस्ट, मैंने पहले ही बना दी है।"
इतना कहते ही पंडित जी ने एक कागज़ का टुकड़ा चाहत की ओर बढ़ा दिया। चाहत ने लिस्ट अपने हाथ में लेते हुए कहा, "ठीक है पंडित जी, सारा इंतज़ाम हो जाएगा और हम लोग उस दिन सुबह समय पर घाट पर भी आ जायेंगे।"
चाहत की बात सुनकर पंडित जी ने मुस्कुराते हुए प्यार से चाहत के सिर पर हाथ रखा और फिर वो वहां से चले गए।
पंडित जी के जाते ही चाहत ने चैन की सांस ली। उसका एक बड़ा काम निपट गया था। अब उसे बस तन्वी से मिलना था, ताकि वो दोनों जल्दी - जल्दी घर जा सके। इसलिए चाहत अब शिव पार्वती की उस बड़ी वाली मूर्ति की तरफ़ चल पड़ी, जहाँ उसने, तन्वी और वृशिका ने आपस में मिलने का डिसाइड किया था |
थोड़ी देर बाद चाहत वहाँ पहुँच गई थी, जहाँ पर शिव और पार्वती माता की एक बड़ी सी मूर्ति थी। ये मूर्ति इतनी शानदार थी कि देखते ही बनती थी! शिव भगवान एक बड़े से पत्थर पर अपने आसन पर बैठे हुए थे। उनके खुले केश ऊपर की ओर हवा में लहरा रहे थे, जैसे वो किसी गहरे ध्यान में हों। उनके बगल में उनका त्रिशूल शान से खड़ा था और उस त्रिशूल के पास माता पार्वती खड़ी थीं, जो एकटक शिव भगवान को ही देख रही थीं, मानो उनके प्रेम में लीन हों। ये मूर्ति घाट की सीढ़ियों के पास बनाई गई थी, जहाँ से गंगा नदी के खूबसूरत नज़ारे दिखते थे। शाम ढल चुकी थी, और अंधेरा पूरी तरह से छा गया था।
चाहत गंगा नदी की ओर चेहरा करके खड़ी, तन्वी और वृशिका के आने का इंतज़ार कर रही थी। उसके हाथों में वृशिका का हैंडबैग और ब्लेज़र था। आरती खत्म होने के बाद भीड़ भी कम हो गई थी, इसलिए उस वक़्त वहाँ आस-पास ज्यादा लोग नहीं थे। बस हल्की ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी जो चाहत के चेहरे को छू रही थी, जिससे उसे भी सुकून मिल रहा था। इस शांति भरे माहौल में चाहत ने अपनी आँखें बंद कर लीं और बस उस पल को महसूस करने लगी।
चाहत अपनी आँखें बंद करके उस सुकून को एन्जॉय कर रही थी कि तभी उसे महसूस हुआ कि किसी का हाथ उसकी कमर पर है। ये अहसास इतना अचानक था कि चाहत ने झट से अपनी आँखें खोल लीं। उसके दिमाग में पहला ख्याल आया, " कौन है ऐसा, जिसे अपनी मौत प्यारी लगने लगी है, जो मेरे साथ इस तरह की बदतमीजी कर रहा है ?"
फिर वो जैसे ही पीछे की ओर पलटने के लिए मुड़ने लगी, तभी वो हाथ धीरे से उसकी कमर से होकर सीधे उसके पेट पर आकर रुक गया। ये टच कुछ ऐसा था जो चाहत को थोड़ा डरा रहा था, लेकिन डर से ज्यादा उसे गुस्सा आने लगा था। क्युकी उसे किसी ने बिना उसकी परमिशन के छूने की हिम्मत जो की थी |
उसने जैसे ही उस शख्स को देखने के लिए पीछे पलटना चाहा, इतने में ही उस शख्स ने अपने हाथ से चाहत के पेट को दबाकर उसे पीछे अपनी तरफ खींच लिया और उसे खुद के शरीर से सटा लिया। चाहत को महसूस हुआ कि वो किसी मजबूत शख्स से टकरा गई है, जिससे उसकी साँसें अटकने लग गईं। उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं, इतनी तेज़ कि उसे अपनी ही धड़कनें अपने कानों में साफ़ सुनाई देने लगीं। यह पल उसके लिए किसी सदमे से कम नहीं था।
फिर अचानक ही चाहत को उस शख्स की गर्म-गर्म साँसें अपनी गर्दन पर महसूस होने लगीं। ये अहसास होते ही उसके शरीर में गुसबंप्स उठने लगे, जैसे कोई करंट दौड़ गया हो। उसे कुछ अजीब सा महसूस होने लगा, ये डर और एक्साइटमेंट का मिला-जुला अहसास था। उसकी आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गईं, वो इस अनजाने अहसास में पूरी तरह खो गई थी। क्युकी ये अनजाना अजनबी सा एहसास उसने पहली बार महसूस किया था |
तभी चाहत के कानों में एक हल्की लेकिन एक रौबदार आवाज़ सुनाई दी – "तो तुम… यहाँ हो?"
वो आवाज़ इतनी गहरी और दमदार थी कि, चाहत के पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। उस अजनबी की आवाज़ से अब जाकर चाहत का ध्यान टूटा और वो होश में आई। उस आवाज़ में एक अजीब सा रौब था, जिसने उसे अपनी तरफ़ खींच लिया था। चाहत ने पूरी ताकत लगाकर उस शख्स को पीछे की तरफ़ धक्का दिया और गुस्से में पीछे मुड़ी। उसने अपने सामने खड़े शख्स को देखा – वो देखने में लंबा, अट्रैक्टिव मस्कुलर बॉडी वाला, हैंडसम और काफी डैशिंग लग रहा था। उसके चेहरे पर एक अलग ही रौब नज़र आ रहा था और उसने सफ़ेद टी-शर्ट के साथ ब्लैक ब्लेज़र और ब्लैक जीन्स पहनी हुई थी।
चाहत के धक्का मारने की वजह से वो शख्स लड़खड़ाते हुए गिरने से बचा। फिर उसने अपनी गुस्से भरी नज़रें उठाईं और अपने सामने खड़ी लड़की को देखने लगा। दूध जैसी गोरी त्वचा, गुलाबी होंठ, हल्के पीले रंग की, ढीली-ढाली शॉर्ट सूती कुर्ती जिसके साथ उसने ब्लू जीन्स पहनी हुई थी। , कानों में छोटे-छोटे झुमके, लंबे बाल जिन्हें उसने बंद पोनी में बाँधा हुआ था, बड़ी पलकों के साथ सुंदर काजल वाली कजरारी आँखें, दोनों हाथों में पतले काले बैंगल्स, पैरों में ब्लैक जूती पहने और हाथ में एक हैंडबैग और ब्लेज़र लिए वह गुस्से में उसे ही घूर रही थी।
वो उसे बला की खूबसूरत लग रही थी। उस शख्स की आँखें अपने सामने खड़ी उस लड़की पर से हट ही नहीं रही थीं। चाहत की खूबसूरती देखते ही वह अपने ही किसी ख़्याल में खो सा गया। लेकिन थोड़ी देर बाद उसे अपने गालों पर बहुत तेज़ दर्द महसूस हुआ और वह अपने ख्यालों से बाहर आया। उसने जब अपने सामने और बिल्कुल पास उसी लड़की को खड़ा पाया, तब उसे एहसास हुआ कि उस लड़की ने उसे अभी-अभी थप्पड़ मारा था।
जो अलग एहसास उसे अभी थोड़ी देर पहले अपने सामने खड़ी लड़की को देखकर हुआ था, वो गाल पर महसूस हो रहे दर्द के साथ-साथ पूरी तरह से जा चुका था। थप्पड़ का एहसास होते ही वो फिर से गुस्से में आ गया और गुस्से से भरी तेज़ आवाज़ में चाहत से बोला, " हाउ डेयर यू ? तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुमने मुझे थप्पड़ मारा।"
चाहत ने उसे तीखी नज़रों से घूरते हुए ताना देते हुए कहा, "नहीं! थप्पड़ थोड़ी मारा है। यह तो मेरा प्यार करने का स्टाइल है। अरे! इसी प्यार के लिए तो आपने मुझे छूने की हिम्मत की थी ना। तो लीजिए, दे दिया मैंने आपको प्यार।" चाहत के ऐसा कहते ही वो शख्स, चाहत को गुस्से से, खा जाने वाली नज़रों से घूरने लगा।
फिर चाहत गुस्से भरी आवाज़ में उससे बोली, "आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की? और कौन हैं आप? और इतनी घटिया हरकत करने के बाद आप मुझसे ये बात कहने की हिम्मत कर भी कैसे सकते हैं?" अपनी बात कहकर चाहत भी उसे गुस्से में घूरकर देखने लगी।
तभी वो शख्स चाहत के थोड़ा करीब आते हुए गुस्से में बोला - " मैं कौन हूँ, ये तुम शायद जानती नहीं हो अभी | इसलिए तुमने हिम्मत करि है मुझे थप्पड़ मारने की | बट आई स्वेयर, मैं कौन हूँ और क्या क्या करने की हिम्मत रखता हूँ, जिस वक्त मैंने तुम्हे बता दिया ना, उस वक्त से तुम अपनी इस हरकत के लिए पूरी लाइफ पछताओगी | "
" धमकी दे रहे है आप मुझे ? " इतना कहते हुए चाहत ने उसकी आँखों में घूर कर देखा |
फिर चाहत अपनी बात जारी रखते हुए उससे बोली - " आप कौन है ? ये मुझे जानने में बिलकुल भी इंटरेस्ट नहीं है | और रही बात आपकी धमकी की, तो मैं आपको बता दूँ, मैं वो बला हूँ... जिसपे इस तरह की धमकिया उप्पर से गुजर जाती है, लेकिन कुछ बिगाड़ नहीं सकती | "
फिर चाहत एक पल के लिए रुक कर बोली - " लेकिन मैं अगर अपने पर आ गयी ना, तो आपका क्या हाल होगा, वो तो मैं भी अभी श्योरिटी के साथ नहीं बता सकती हूँ | लेकिन इतना जरूर बता सकती हूँ की वो हाल बुरे से बुरा ही होगा | इसलिए ये भूल ही जाइये की, आप मुझे पूरी लाइफ पछताने पर मजबूर कर सकते है | "
इतना कहकर चाहत उस शख्स को घूर रही थी और वही वो शख्स चाहत को | दोनों लगातार एक-दूसरे को आपस में खा जाने वाली नज़रों से घूरे जा रहे थे। दोनों ने अब एक दूसरे से आगे कुछ भी नहीं कहा।
तभी इतने में एक 28 साल की उम्र तक का लड़का, जो दिखने में हैंडसम था, उन दोनों के पास आ गया। उन दोनों को आपस में गुस्से से एक-दूसरे को घूरते हुए देख वह थोड़ा डर गया। उसने चाहत के सामने खड़े शख्स को देखते हुए हड़बड़ाती आवाज़ में कहा, "क्य... क्या हुआ रोहन... सब ठीक... है ना। कुछ हुआ है क्या...?"
चाहत और रोहन ने अपनी गुस्से भरी नज़रें एक-दूसरे की तरफ़ से हटाकर दूसरी तरफ़ कर लीं। फिर चाहत उस लड़के को देखने लगी जो अभी-अभी आया था। वो लड़का कोई और नहीं निहाल था | चाहत ने गुस्से में रोहन को घूरते हुए निहाल से कहा, "इनका दिमाग़ ख़राब है भैया। इलाज कराइए इनका... किसी को भी पकड़कर ज़बरदस्ती छूने लगते हैं, और फिर जब कोई इन्हे पलटकर इनकी बदतमीजी का जवाब दे दे... तो उससे बहस करने के साथ साथ, उसे धमकी भी देने लगते है | काफी बदतमीज़ टाइप के इंसान है ये। देखिये ना, अभी मुझे बिना मेरी परमिशन के छूकर मेरे साथ बदतमीजी कर रहे थे और फिर मुझे ही रौब दिखा रहे है | अगर मैंने इन्हें धक्का देकर खुद से दूर नहीं किया होता, तो क्या पता ड्रैकुला बनकर मेरी गर्दन से मेरा सारा ख़ून ही चूस लेते। पागल कहीं के।"
रोहन चाहत की तरफ़ अपने कदम बढ़ाते हुए उससे गुस्से में बोला, "किसे कहा तुमने पागल?"
चाहत ने मुँह बनाते हुए तिरछी नज़रों से रोहन को देखते हुए कहा, "लो, दिमाग़ ही नहीं, बल्कि आँखें और कान भी ख़राब हैं इनके। इसका मतलब चलते-फिरते डिफ़ेक्टिव पीस हैं ये।"
फिर वो अपने सामने खड़े निहाल से बोली, "दिमाग़ ही नहीं, बल्कि इन्हें पूरा का पूरा ठीक करवाइए। वरना ऐसे ही ज़ोम्बी बनकर लोगों पर काट खाने को हमला करते फिरेंगे। वो तो इनकी किस्मत अच्छी है कि ये मुझे तब नहीं मिले जब मुझे घर जाने की जल्दी नहीं होती। वरना ऐसी तबीयत सेट करती ना मैं इनकी कि, किसी भी लड़की के पास भटकने की हिम्मत तक नहीं करते।"
फिर चाहत ने रोहन को ऊँगली दिखाते हुए वार्निंग टोन में कहा - " नेक्स्ट टाइम गलती से भी सामने मत आ जाइएगा मेरे, वर्ना उसवक्त मैं आज की तरह आपको इतने सस्ते में नहीं छोड़ने वाली | आज सिर्फ एक थप्पड़ से निपट गए आप, अगर नेक्स्ट टाइम आपने मुझसे इस तरह की बदतमीजी की ना, तो आपकी पूरी बॉडी की हड्डिया तोड़ कर रख दूंगी मैं | फिर जुड़वाते रहिएगा अपनी उन टूटी - फूटी हड्डियों को अपनी पूरी लाइफ में | "
इतना कहकर चाहत ने रोहन को एक नज़र घूरकर देखा और फिर वो वहाँ से जाने लगी। रोहन उसे जाते हुए गुस्से से देख रहा था। चाहत की एक - एक बात उसके ईगो को बुरी तरह से हर्ट कर चुकी थी और इसी वजह से वो इस वक्त इतने ज्यादा गुस्से में था की वो अभी के अभी चाहत को सबक सिखाने का ठान चूका था | इसलिए रोहन ने अपने कदम चाहत की तरफ जाने के लिए बढाए लेकिन तभी, रोहन को निहाल ने वैसा करने से रोक लिया |
निहाल ने रोहन से कहा - " जाने दे रोहन..."
निहाल की बात सुनते ही रोहन उसकी तरह पलटा और उससे बोला, "निहाल तुमने तो कहा था कि वो यहाँ है। तो ये लड़की यहाँ कैसे थी? और ये थी कौन जिसने मुझे यानी रोहन कपूर को थप्पड़ मारने की हिम्मत की और साथ-साथ बदतमीज़ और पता नहीं क्या-क्या कहकर चली गई।" फिर वो गुस्से से उसी ओर देखने लगा जिस ओर चाहत गई थी।
निहाल थोड़ा डरते हुए बोला, "रो...हन मुझे तो उसने यही कहा था कि वो... यहीं मिलेगी।" फिर निहाल चारों ओर नज़र घुमाकर देखता है और अपनी बात आगे कहता है, "और तुमने तो उस लड़की के हाथों में हैंड पर्स और और ब्लेज़र देखा था ना... जो..." निहाल आगे कुछ कहता तभी रोहन उसे गुस्से से घूरने लगा, इसलिए वो अपनी बात आगे कहते-कहते बिच में ही रुक गया और उसने अपनी नज़र नीचे झुका ली।
रोहन उसे गुस्से से घूरते हुए बोला, "ऐसे हैंडबैग और ब्लेज़र ना जाने कितने सारे हैं दुनिया में।" और फिर गुस्से में वो नदी की ओर अपना चेहरा करके खड़ा हो गया।
उधर, चाहत के भीतर अभी भी उस अनचाहे स्पर्श का गुस्सा खौल रहा था। उसके कदम तेज़ी से घाट से बाहर की ओर बढ़ रहे थे, मानो वह अपने अंदर की आग को बुझाना चाहती हो। इसी बीच, उसकी नज़र सामने से आती हुई तन्वी और वृशिका पर पड़ी। चाहत के चेहरे पर साफ दिख रहा था कि कुछ तो गलत हुआ है।
तन्वी ने चाहत को देखते ही चिंता से पूछा, "क्या हुआ तुझे? इतने गुस्से में क्यों है तू?" यह कहते हुए तन्वी ने प्यार से चाहत के चेहरे पर हाथ रखा, जैसे उसे छूकर उसके मन की बेचैनी को महसूस करना चाहती हो। वृशिका भी चाहत की ओर देखने लगी, उसकी आँखों में सवाल था, और वह चाहत के जवाब का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी।
चाहत इतनी गुस्से में थी कि उसने थोड़ी देर तक तो कुछ नहीं कहा। उसके दिमाग में अभी भी उस बदतमीज़ आदमी का चेहरा घूम रहा था, और उसकी हिम्मत पर उसे यक़ीन नहीं हो रहा था। लेकिन जब तन्वी और वृशिका ने एक साथ उससे पूछा, तो चाहत ने एक लंबी, गहरी साँस छोड़ी, मानो वह अपने अंदर की सारी भड़ास बाहर निकालना चाहती हो। उसने खुद को शांत किया और फिर बोली, "अरे यार, एक बदतमीज़ आदमी से मुलाक़ात हो गई थी। उसने मेरी कमर पर हाथ लगाया, तो मैंने एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया।" उसकी आवाज़ में अभी भी एक कड़वाहट थी, लेकिन दोस्तों के सामने दिल हल्का हो गया था।
यह सुनकर वृशिका और तन्वी दोनों के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक आया। तन्वी तुरंत तड़पकर बोली, "हिम्मत कैसे हुई उसकी तुझे छूने की? अच्छा हुआ तूने उसके गाल पर एक थप्पड़ बजा दिया। अरे मैं तो कहती हूँ कि उसे एक नहीं, बल्कि तीन-चार थप्पड़ लगाने थे, मार-मार के गाल सुजा देती उस घटिया इंसान का।" तन्वी गुस्से में उस रोहन पर कुढ़ते हुए बोल रही थी, मानो वह अभी जाकर उसे सबक सिखा देगी। उसकी आँखों में चमक थी, जो उसकी सच्ची दोस्ती और चाहत के प्रति चिंता को दर्शा रही थी।
उसकी ऐसी बातें सुनकर चाहत और वृशिका पहले तो एक-दूसरे को हैरानी से देखने लगीं। उन्हें यक़ीन नहीं हो रहा था कि तन्वी इतनी गुस्से में भी इतनी मज़ेदार बातें कर सकती है। फिर तन्वी की ओर देखकर वे ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगीं। उनकी हँसी पूरे माहौल को हल्का कर रही थी। तन्वी उन दोनों को हैरान नज़रों से देखने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी बात पर ये दोनों क्यों हँस रही हैं, जबकि वह इतनी गंभीर बात कर रही थी। फिर उसने उन दोनों से पूछा, "तुम दोनों हँस क्यों रही हो? एक तो इतनी सीरियस बात चल रही है और तुम दोनों ऐसे दाँत दिखा-दिखा के हँस रही हो। ऐसा भी क्या मज़ाक कर दिया मैंने।" इतना कहकर उसने रूठे बच्चे जैसा मुँह बना लिया, जैसे वह सचमुच नाराज़ हो गई हो।
चाहत ने तन्वी के गालों को प्यार से पिंच करते हुए कहा, "अच्छा हुआ उसने तुम्हें नहीं छेड़ा। वरना तुम तो उसकी शक्ल ही बिगाड़ कर आ जाती। बेचारा बच गया। वैसे भी वो चलता-फिरता डिफ़ेक्टिव पीस था। और अगर तू वहाँ होती, तो वो उस लायक भी नहीं रहता।" चाहत की बात सुनकर वृशिका भी मुस्कुराने लगी और बोली, "एक्ज़ैक्ट्ली, मेरा भी कुछ यही ख़्याल है।" इतना कहने के बाद वृशिका और चाहत दोनों फिर से ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगीं, तो तन्वी उन दोनों को गुस्से से घूरने लगी, लेकिन उसकी आँखों में भी कहीं न कहीं हँसी छिपी हुई थी। यह उनकी दोस्ती का अंदाज़ था, जहाँ गंभीर पलों में भी वे एक-दूसरे को हँसाने का मौका नहीं छोड़ते थे।
थोड़ी देर ऐसे ही बात करने और हँसी-मज़ाक करने के बाद, वृशिका ने अपनी बात रखी। उसने कहा, "चलो ठीक है, मैं अब चलती हूँ। कोई मेरा इंतज़ार कर रहा है। हम लोग फिर कभी मिलेंगे। तुम लोग मुझसे मिलोगी ना?" उसकी आवाज़ में थोड़ी झिझक थी, जैसे उसे डर था कि कहीं ये दोनों उसे भूल न जाएँ।
उसकी इस बात पर चाहत और तन्वी उसे घूरकर देखने लगीं। उन्हें लगा कि वृशिका ऐसी बातें क्यों कर रही है। फिर तन्वी बोली, "कैसी बात कर रही हो तुम? क्यों नहीं मिलेंगे? अब तुम हम दोनों की दोस्त बन गई हो तो तुमसे तो मिलना-जुलना होता रहेगा।" इतना कहते ही तन्वी मुस्कुरा दी, और उसके साथ वृशिका और चाहत भी मुस्कुराने लगीं। उनकी दोस्ती की एक नई शुरुआत हुई थी। फिर उन तीनों ने अपना फ़ोन नंबर एक्सचेंज किया, ताकि वे भविष्य में भी जुड़े रह सकें। उसके बाद वृशिका उन दोनों को 'बाय' कहकर वहाँ से चली गई और वे दोनों उसे वहाँ से जाते देख रहे थे, एक नई दोस्ती के सुकून भरे एहसास के साथ।
वृशिका के जाते ही, चाहत को अचानक कुछ याद आया। वह ज़ोर से बोली, "नहीं.. नहीं.. नहीं.." उसकी आवाज़ में एक घबराहट थी।
तो तन्वी ने हैरानी से पूछा, "क्या नहीं..?" उसे समझ नहीं आ रहा था कि चाहत को अचानक क्या हो गया।
चाहत ने तन्वी का हाथ कसकर पकड़ा और उसकी आँखों में देखते हुए बोली, "अरे! पागल, हम लोग लेट हो गए हैं। आज तो हम दोनों पक्का गए!" यह सोचकर कि घर पर उन्हें डाँट पड़ने वाली है, दोनों ने अपने-अपने सर पर हाथ रख लिया। उनके चेहरे पर अब मस्ती की जगह चिंता और डर साफ दिख रहा था। उन्हें पता था कि माँ की डाँट से बचना मुश्किल है।
फिर दोनों जल्दी-जल्दी घाट से बाहर निकलीं और अपनी स्कूटी तक पहुँचीं। चाहत ने तुरंत स्कूटी की डिग्गी में से एक हेलमेट और एक शॉल निकाली। उसने जल्दी से वह शॉल तन्वी को ओढ़ा दी ताकि उसे ठंड न लगे और खुद जल्दी से हेलमेट पहन लिया। चाहत स्कूटी चला रही थी और तन्वी उसके पीछे बैठी हुई थी। उनकी स्पीड देखकर लग रहा था कि वे कितनी जल्दी घर पहुँचना चाहती हैं। वे दोनों घाट से होकर बाज़ार तक पहुँच गईं और वहाँ जाकर चाहत ने स्कूटी रोक दी।
स्कूटी के रुकने पर तन्वी ने उससे पूछा, "स्कूटी क्यों रोक दी? घर नहीं चलना क्या? लेट हो रहा है।" उसकी आवाज़ में अधीरता थी, क्योंकि वे पहले ही काफ़ी लेट हो चुके थे।
चाहत स्कूटी से उतरते हुए बोली, "पता है। लेकिन मैं जल्दी से अपना एक काम करके आती हूँ। तुझे तो पता है ना, घर पर तुझे भले ही रोज़ डाँट पड़े या न पड़े, लेकिन मेरा तो तय है कि मुझे तो ज़रूर डाँट पड़नी है।" उसकी आवाज़ में थोड़ी निराशा थी, क्योंकि उसे पता था कि माँ उसे ज़रूर डाँटेंगी। "इसलिए ये समझ ले, वैसे तो मेरे पास डाँट से बचने का प्लान रेडी है। लेकिन अगर सिचुएशन ज़्यादा ख़राब हुई, तो उसके लिए मुझे अपने लिए तो बैकअप प्लान की ज़रूरत है ना। इसीलिए मैं उसी का इंतज़ाम करने जा रही हूँ।" चाहत की बात सुनकर तन्वी का माथा ठनक गया।
तन्वी उसकी बात नहीं समझी तो वह चिढ़कर बोली, "क्या बोल रही है तू? दिमाग़ ख़राब हो गया है क्या तेरा?" उसे लगा कि चाहत मज़ाक कर रही है या फिर घबराहट में कुछ भी बोल रही है।
चाहत उसे देखते हुए अपना हेलमेट उतार कर उसे पकड़ाते हुए बोली, "मैं अभी आती हूँ। और तू यहीं रुक। मैं आकर बताऊँगी सब कुछ।" यह कहकर वह जल्दी से वहाँ से चली गई और तन्वी उसे आवाज़ देती रह गई। चाहत जल्दी-जल्दी मार्केट में चल रही थी, उसकी नज़रें आस-पास घूम रही थीं, जैसे वह कुछ ढूँढ रही हो। लेकिन अचानक उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसका पीछा कर रहा है। यह एहसास इतना तेज़ था कि वह रुककर पीछे पलट कर चारों ओर देखने लगी, लेकिन उसे वहाँ ऐसा कोई नहीं दिखाई दिया। माहौल शांत था और केवल बाज़ार का शोर सुनाई दे रहा था। उसे लगा कि शायद यह सिर्फ़ उसका वहम था, इसलिए वह वापस पलट कर आगे चल दी, लेकिन उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी थी, एक अनजाना डर, जो उसके कदमों को थोड़ा धीमा कर रहा था। उसे नहीं पता था कि यह कौन था, या यह सिर्फ़ उसका भ्रम था, लेकिन यह एहसास उसे अजीब सा लग रहा था।
वहीं दूसरी तरफ त्रिवेणी घाट पर रोहन और निहाल अभी भी वहीं खड़े थे। रोहन का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वो गंगा नदी की ओर अपना चेहरा करके खड़ा था, उसके दिमाग में अभी भी उस थप्पड़ और चाहत की बातें घूम रही थीं। उसके भीतर एक आग सी लगी हुई थी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि किसी की हिम्मत कैसे हुई उसे, रोहन कपूर को थप्पड़ मारने की। ये उसके अहंकार पर सीधी चोट थी। उसे उस लड़की पर गुस्सा आ रहा था, जिसने उसकी बेइज़्ज़ती की थी।
रोहन गुस्से से भरी आवाज़ में बोला, "उस लड़की की हिम्मत कैसे हुई? मुझे थप्पड़ मारने की? अगर वो लड़की मेरे सामने फिर से आई तो मैं उसे बिल्कुल नहीं छोडूंगा।" उसकी आवाज़ में प्रतिशोध की भावना साफ़ झलक रही थी, मानो वो उस पल का इंतज़ार कर रहा हो जब उसे उस लड़की से बदला लेने का मौका मिले। निहाल उसे चुपचाप सुन रहा था, वो जानता था कि रोहन का गुस्सा कितना खतरनाक हो सकता है। उसने कभी रोहन को इतना गुस्से में नहीं देखा था।
तभी पीछे से एक परिचित आवाज़ आई, "रोहन, किसे नहीं छोड़ोगे तुम?" उस आवाज़ को सुनकर रोहन और निहाल एक साथ उस आवाज़ की ओर पलटे तो उन्होंने देखा वहाँ पर वृशिका खड़ी थी। वृशिका को देखकर रोहन के चेहरे पर हल्की सी राहत दिखी, लेकिन उसका गुस्सा अभी पूरी तरह से शांत नहीं हुआ था। वृशिका जल्दी से रोहन के पास आई और बिना कुछ कहे उसके गले लग गई। थोड़ी देर तक गले लगने के बाद वो उससे अलग हुई और फिर निहाल के पास गई और उसे भी जाकर उसने गले लगा लिया। वो निहाल से अलग हुई और उन दोनों को देखते हुए फिर से पूछने लगी, "रोहन तुम क्या बोल रहे थे? किसे नहीं छोड़ोगे तुम? किसे पकड़ रखा है तुमने?" उसकी आवाज़ में उत्सुकता थी, उसे पता नहीं था कि यहाँ क्या चल रहा है।
वृशिका के इतना पूछने पर निहाल जल्दी से आगे आया और बात को सँभालते हुए बोला, "कुछ नहीं, ऐसे ही बोल रहा है ये। तू बता, तुम्हें इतना टाइम कैसे लग गया?" ये पूछकर उसने हल्की सी आह भरी, जैसे वो वृशिका के सवालों से बचकर रोहन के गुस्से को शांत करना चाहता हो। उसे पता था कि अगर वृशिका को सच्चाई पता चली, तो क्या होगा।
निहाल के पूछने पर वृशिका ने अब तक जो उसके साथ हुआ था, वो सब उन दोनों को बताया। उसने अपनी नई दोस्तों चाहत और तन्वी के बारे में बताया, और कैसे उन्होंने पूजा में मदद की। निहाल उसे गौर से सुनता जा रहा था, उसके चेहरे पर अब थोड़ी चिंता दिख रही थी। लेकिन रोहन अभी भी गुस्से में वही सब सोच रहा था, उसके दिमाग में सिर्फ़ उस थप्पड़ और उस लड़की का चेहरा था। वृशिका अपनी बात बोलकर चुप हो गई, उसने सोचा कि शायद अब सब ठीक है।
वृशिका ने तभी अचानक से कुछ याद करते हुए आगे कहा, "तुम्हें पता है यहाँ पर ना, कुछ बदतमीज़ लोग भी हैं।" उसकी आवाज़ में थोड़ी गंभीरता थी, जिसे सुनकर निहाल चौकन्ना हो गया।
उसे ऐसा बोलते सुन निहाल ने उससे पूछा, "बदतमीज़ लोग मतलब? किसी ने तेरे साथ बदतमीज़ी की यहाँ पर? कौन है वो? बता मुझे, अभी बताता हूँ उसे।" इतना कहकर वो वृशिका के जवाब का बेसब्री से इंतज़ार करते हुए उसकी तरफ़ देखने लगा। उसे ऐसे गुस्से में देख वृशिका जल्दी से बोली, "नहीं.. नहीं! मेरे साथ किसी ने कुछ नहीं किया।" उसने तुरंत निहाल को शांत करने की कोशिश की, क्योंकि उसे नहीं चाहिए था कि उसकी वजह से कोई और मुसीबत खड़ी हो।
उसकी बात सुनकर निहाल ने पूछा, "तो फिर तू किसकी बात कर रही है?" उसके मन में अब भी सवाल थे। उसे डर था कि कहीं वृशिका उस घटना का ज़िक्र न कर दे।
इतना कहकर वृशिका निहाल और रोहन को सारी बातें बताने लगी, "वो तो मेरी अभी-जो नई दो दोस्त बनी थीं, जिसके बारे में मैंने तुम्हें अभी बताया था ना। उनमें से एक के साथ किसी ने बदतमीज़ी की थी, इसलिए मेरी दोस्त ने उसे खींच कर एक थप्पड़ लगा दिया।" पूरी बात सुनकर और ख़ासकर थप्पड़ की बात सुनकर निहाल चौंक गया। उसके चेहरे पर डर के भाव साफ़ दिख रहे थे। और वहीं रोहन वृशिका की ओर देखने लगा, उसकी आँखें अब वृशिका पर टिकी हुई थीं, मानो वो हर शब्द को तोल रहा हो। उसके कान अब पूरी तरह से वृशिका की बातों पर थे।
निहाल ने जल्दी से वृशिका से पूछा, "थप्पड़ किसे, कब और कहाँ?" उसकी आवाज़ में घबराहट थी, वो अब तक की पूरी कहानी समझने की कोशिश कर रहा था, और ये जानने के लिए उत्सुक था कि क्या ये वही घटना है जिसके बारे में वो सोच रहा था।
वृशिका पहले उसके इतनी जल्दी-जल्दी क्वेश्चंस पूछने से उसे हैरानी से देखने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निहाल इतना परेशान क्यों हो रहा है। फिर उसकी इस हरकत को इग्नोर करते हुए बोली, "ये ही इसी जगह पर, जहाँ हम लोग खड़े हैं, थोड़ी देर पहले की बात है।" वृशिका की बात सुनकर निहाल डरते हुए रोहन को देखने लगा, उसके चेहरे पर पीलापन छा गया था। उसकी नज़रें रोहन की आँखों में डर ढूँढ रही थीं। और रोहन ये सब बातें सुनकर और भी ज़्यादा गुस्से में आ रहा था, उसकी मुट्ठियाँ कस गईं थीं, उसके चेहरे पर एक कठोरता आ गई थी। उसके होंठ एक पतली रेखा में सिकुड़ गए थे।
निहाल डर के कारण हड़बड़ा कर वृशिका से बोला, "उस लड़की को ग़लतफ़हमी हुई होगी और उसने उस ग़लतफ़हमी के चक्कर में गलती से उस आदमी को थप्पड़ लगा दिया होगा। है ना..?" वो अपनी बात को सही साबित करने की कोशिश कर रहा था, ताकि रोहन का गुस्सा शांत हो सके। उसे उम्मीद थी कि वृशिका उसकी बात मान लेगी।
निहाल के इतना कहने पर रोहन उसे गुस्से से घूरने लगा, उसकी आँखों में एक चेतावनी थी। निहाल ने अपनी नज़रें जल्दी से नीचे कर लीं, उसे पता था कि रोहन अब और सुनना नहीं चाहता। रोहन की चुप्पी ही बहुत कुछ कह रही थी।
वृशिका उन दोनों के चेहरों के भाव को बिना देखे ही बोलने लगी, "बिलकुल भी नहीं, कोई ग़लतफ़हमी नहीं हुई थी। पता है वो कितना गुस्से में थी और जब मुझे और मेरी दूसरी दोस्त को ये बात पता चली तो हमें भी बहुत गुस्सा आया। मैं उसकी जगह होती ना, तो एक नहीं, बल्कि दो-दो थप्पड़ लगाती ऐसे बदतमीज़ इंसान को।" उसकी आवाज़ में दृढ़ता थी, वो अपनी दोस्त के पक्ष में खड़ी थी। उसे उस बदतमीज़ आदमी पर गुस्सा आ रहा था, जिसने उसकी दोस्त को परेशान किया था।
उसकी बात सुनकर निहाल तो उसे आगे कुछ भी न बोलने के लिए कुछ कहने ही वाला था कि, तभी उसने देखा रोहन गुस्से से वहाँ से जा रहा था। उसका चेहरा लाल था और उसके कदम तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे, जैसे वो इस जगह से दूर भागना चाहता हो। उसे इस बात पर यक़ीन नहीं हो रहा था कि उसकी ही दोस्त, जिसके सामने वो इज़्ज़तदार बनना चाहता था, उसी के सामने उसकी पोल खुल गई थी। रोहन को ऐसे जाते देख वृशिका उसे आवाज़ देने लगी, "रोहन! रोहन!" और जैसे ही उसकी ओर जाने लगी, निहाल ने उसका हाथ पकड़कर उसे पीछे खींच कर रोक लिया। निहाल के ऐसा करने पर वृशिका उससे बोली, "ये क्या है, निहाल? क्यों रोका मुझे? और वो रोहन ऐसे क्यों जा रहा है? वो मेरी आवाज़ भी नहीं सुन रहा है।" उसकी आवाज़ में थोड़ी चिंता और थोड़ी हैरानी थी।
निहाल ने कहा, "उसे जाने दो, वो अभी बहुत गुस्से में है। अभी उसे अकेला रहने दो।" उसकी आवाज़ में गंभीरता थी, वो जानता था कि इस समय रोहन से बात करना ठीक नहीं होगा। रोहन का गुस्सा किसी भी चीज़ को बर्बाद कर सकता था।
"उसे जाने दो, वो अभी बहुत गुस्से में है। अभी उसे अकेला रहने दो।" उसकी आवाज़ में गंभीरता थी, वो जानता था कि इस समय रोहन से बात करना ठीक नहीं होगा। रोहन का गुस्सा किसी भी चीज़ को बर्बाद कर सकता था।
निहाल के ऐसा कहने पर वृशिका उसे देखने लगी। उसके मन में कई सवाल थे। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि रोहन इतना गुस्सा क्यों है और निहाल उसे रोकने की कोशिश क्यों कर रहा है। फिर वो उसके पास आई और उससे वजह पूछने लगी, "गुस्सा? वो क्यों गुस्सा है? क्या बात हुई है? तुम लोग मुझसे क्या छुपा रहे हो?" उसकी आवाज़ में अब ज़िद थी, वो सच्चाई जानना चाहती थी। उसे महसूस हो रहा था कि कुछ तो है जो उससे छुपाया जा रहा है।
वृशिका के इतने सवाल सुनने के बाद निहाल ने एक लंबी आह भरी और अंततः सच्चाई बताने का फ़ैसला किया। वो बोला, "अभी जिस आदमी की तुम बात कर रही थी, वो... कोई और नहीं, बल्कि रोहन था।" उसकी आवाज़ धीमी थी, जैसे उसे डर हो कि वृशिका कैसे रिएक्ट करेगी। उसने नज़रें झुका लीं, क्योंकि उसे पता था कि अब क्या होने वाला है।
वृशिका को कुछ समझ नहीं आया और वो उससे बोली, "मैं किस आदमी की बात कर रही थी? और रोहन कहाँ से बीच में आ गया?" उसके दिमाग में अभी भी पूरी बात नहीं बैठी थी। उसका चेहरा उलझन में था।
इतने में वृशिका को कुछ याद आया और वो निहाल को शांत होकर हैरानी से देखने लगी। उसकी आँखों में धीरे-धीरे सच्चाई की झलक दिख रही थी। एक-एक करके सारे टुकड़े जुड़ने लगे थे। उसने अपनी आँखों के इशारे से उससे कहा, "वो आदमी...?" निहाल ने अपना सर हाँ में हिला दिया, उसकी नज़रें वृशिका पर टिकी थीं। जिसे देख वृशिका मूर्ति बनकर वैसे की वैसे ही खड़ी रह गई। उसका चेहरा अवाक था, जैसे उसे यक़ीन नहीं हो रहा हो। थोड़ी देर बाद वो ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी, उसकी हँसी पूरे घाट पर गूँज रही थी। ये हँसी हैरान करने वाली थी, क्योंकि ऐसे हालात में कोई कैसे हँस सकता है। ये हँसी रोहन के लिए नहीं थी, बल्कि इस पूरी सिचुएशन की विडंबना पर थी।
निहाल उसे हैरानी से घूरने लगा और उससे बोला, "हँस क्यों रही हो? एक तो तुम्हारी दोस्त ने रोहन को थप्पड़ मार दिया। और तुम्हें हँसी आ रही है।" उसकी आवाज़ में थोड़ा गुस्सा था, क्योंकि उसे लगा कि वृशिका स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं रही है। उसे रोहन की इज़्ज़त की फ़िक्र थी।
वृशिका हँसते हुए बोली, "रोहन को किसने कहा था कि जाकर उसकी कमर पकड़े और अपनी ओर उसे खींच ले। थप्पड़ न मारती तो क्या उसे प्यार से किस करती?" उसकी बात सुनकर निहाल की आँखें छोटी-छोटी हो गईं, उसे वृशिका के बेबाक जवाब की उम्मीद नहीं थी। वृशिका की हँसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
जिसे देख वृशिका ने फिर से बोली, "ओ.. ओ.. ओ.. मिस्टर निहाल, वो ऐसी-वैसी लड़की नहीं है। समझ आया? मैं जितनी देर भी उसके साथ रही थी, उतनी देर में मुझे पता चल गया था कि वो बहुत अच्छी और बहुत ही स्ट्रॉन्ग लड़की है। बाकी की लड़कियों जैसी तो बिलकुल भी नहीं है। पर हाँ, बेचारा रोहन, उसका गलत लड़की से पाला पड़ गया और पहली मुलाकात में उससे थप्पड़ भी खा लिया उसने।" वृशिका ने ये सब झूठी फ़िक्र दिखाते हुए कहा और इतना कहने के बाद वो फिर से हँसने लगी, उसकी हँसी में रोहन के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी, बल्कि उसके मन में इस पूरी घटना का मज़ाक चल रहा था।
निहाल उसको हँसता हुआ देखकर उससे बोला, "अच्छा हुआ रोहन यहाँ से चला गया। अगर खुद पर तुझे हँसते हुए देखता तो उस लड़की का तो पता नहीं, तुझे इस गंगा के पानी में डुबो-डुबो के मार देता। और तू एक बात ध्यान से सुन ले। आगे से इस बात का ध्यान रखना कि होटल में जाकर उससे इस टॉपिक पर बिलकुल भी बात मत करना। समझ आई तुझे.. बात।" इतना कहकर वो चिढ़ते हुए वहाँ से जाने लगा और वृशिका हँसते-हँसते उसके पीछे-पीछे जाते हुए उसे आवाज़ें देने लगी, "अरे निहाल, सुनो तो... निहाल!," लेकिन निहाल ने उसकी एक न सुनी और तेज़ी से आगे बढ़ गया, उसके मन में अब भी इस अजीब घटना को लेकर कई सवाल थे और रोहन के गुस्से की चिंता भी। उसे पता था कि अगर रोहन को वृशिका की हँसी का पता चला, तो क्या होगा।
वही त्रिवेणी मार्केट में,
रात के 8 बजकर 15 मिनट हो चुके थे। दिन भर की भाग-दौड़ अब थोड़ी धीमी पड़ चुकी थी, पर हल्की-फुल्की चहल-पहल अभी भी दिख रही थी। इन सबके बीच, तन्वी पिछले 20 मिनट से अपनी स्कूटी के पास खड़ी, चाहत का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। हर बीतता पल उसे बेचैन कर रहा था। उसकी नज़रें दूर-दूर तक चाहत को ढूँढ रही थीं, पर चाहत का कोई अता-पता नहीं था, न ही उसके आने के कोई आसार दिख रहे थे। तन्वी के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई थीं। उसे घर देर होने की फ़िक्र खाए जा रही थी। वह कभी इधर, तो कभी उधर टहलने लगती, मानो उसकी बेचैनी उसे एक जगह टिकने नहीं दे रही हो।
तभी उसकी नज़र चाहत पर पड़ी। चाहत हाथ में एक छोटा-सा बॉक्स लिए उसकी तरफ़ ही आ रही थी। उसे देखते ही तन्वी के मन में राहत तो आई, पर साथ ही गुस्सा भी फूट पड़ा। वह तेज़ी से चाहत की तरफ़ बढ़ी और उसकी ओर उँगली करते हुए तेज़ आवाज़ में बोली, "कहाँ चली गई थी तू? कब से मैं तेरा इंतज़ार कर रही हूँ। तुझे पता है ना घर जाने में कितनी देर हो गई है? और तेरा यहाँ अता-पता ही नहीं है। अब बता भी... कहाँ चली गई थी? और ये हाथ में क्या लेकर आई है?" तन्वी की आवाज़ में हड़बड़ाहट और परेशानी साफ झलक रही थी, जैसे वह बस अब और इंतज़ार नहीं कर सकती।
चाहत ने देखा कि तन्वी बहुत ज़्यादा स्ट्रेस में थी और ज़्यादा चलने की वजह से हाँफ रही थी। चाहत को लगा कि पहले तन्वी को शांत करना ज़्यादा ज़रूरी है। वह जल्दी-जल्दी तन्वी के पास पहुँची और बिना कुछ कहे, उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी स्कूटी के पास ले जाने लगी। चाहत ने तुरंत स्कूटी की डिग्गी खोली और उसमें से एक पानी की बोतल निकाल कर तन्वी को पानी पिलाया। तन्वी ने जैसे ही पानी का पहला घूँट लिया, उसे थोड़ी राहत मिली। पानी पीने के बाद तन्वी थोड़ी शांत हुई, उसकी साँसें थोड़ी सामान्य हुईं। उसके चेहरे पर जो तनाव था, वह थोड़ा कम होता दिखा।
चाहत ने उसे देखते हुए प्यार भरी डाँट लगाई, "कितनी बार कहा है तुझे ज़्यादा टेंशन मत लिया कर, लेकिन तू... कभी मेरी बात सुनती क्यों नहीं है?" उसकी आवाज़ में एक हल्की-सी शिकायत थी, पर उसमें प्यार और फ़िक्र ज़्यादा थी। उसे तन्वी की इतनी चिंता करने की आदत पता थी।
तन्वी लंबी-लंबी साँसें लेते हुए बोली, "वो तो... तू पता नहीं कहाँ... चली गई थी? मुझे तो टेंशन हो गई थी और घर जाने के लिए भी देर हो रही है ना इसलिए।" उसकी आवाज़ अभी भी पूरी तरह से स्थिर नहीं थी, लेकिन चिंता थोड़ी कम हुई थी। वह चाहत की आँखों में देखकर अपनी परेशानी बता रही थी।
चाहत ने हल्के से उसके सर पर थपकी मारते हुए कहा, "मैंने कहा था ना मैं आ रही हूँ। फिर टेंशन लेने की क्या ज़रूरत थी? अब... चल, यह बता अभी तू कैसा फील कर रही है?" उसकी आवाज़ में अब थोड़ी मस्ती थी, क्योंकि उसे पता था कि तन्वी अब शांत हो चुकी है और अब उनसे घर जाने के लिए डाँट नहीं पड़ेगी।
तन्वी चाहत के हाथ में हेलमेट पकड़ाते हुए बोली, "अब अच्छा फील हो रहा है। चल अब चलते हैं, नहीं तो घर पर हम दोनों बिलकुल अच्छा फील नहीं करेंगे।" उसकी बात सुनकर चाहत मुस्कुरा दी। उसे पता था कि तन्वी का इशारा उनकी मासी की डाँट की तरफ़ था, जो देर होने पर उन्हें ज़रूर पड़ती। फिर वे दोनों स्कूटी पर बैठकर घर की ओर चल दीं, मार्केट की हल्की-फुल्की रोशनी को पीछे छोड़ते हुए। अब उनका ध्यान बस घर पहुँचने पर था, ताकि वे मासी की डाँट से बच सकें और एक सुकून भरी रात बिता सकें।