ये कहानी है चाहत और रोहन की. चाहत एक आज़ाद ख्यालों वाली लड़की है, जो अपनी शर्तों पर जीती है. रोहन एक कामयाब बिज़नेसमैन है, जिसके लिए रिश्ते ज़्यादा मायने नहीं रखते. उनकी पहली मुलाकात किसी बड़े धमाके से कम नहीं होती, और दोनों एक-दूसरे को नापसंद करने ल... ये कहानी है चाहत और रोहन की. चाहत एक आज़ाद ख्यालों वाली लड़की है, जो अपनी शर्तों पर जीती है. रोहन एक कामयाब बिज़नेसमैन है, जिसके लिए रिश्ते ज़्यादा मायने नहीं रखते. उनकी पहली मुलाकात किसी बड़े धमाके से कम नहीं होती, और दोनों एक-दूसरे को नापसंद करने लगते हैं. लेकिन, ज़िंदगी के पास उनके लिए कुछ और ही प्लान है – नफ़रत के बावजूद, उन्हें शादी करनी पड़ती है. क्या ये रिश्ता सिर्फ एक समझौता रहेगा, या नफ़रत की ये दीवारें कभी प्यार में बदल पाएंगी? जानने के लिए पढ़ते रहिये ये स्टोरी " रोचा - दास्तान ए इश्क़"
रोहन कपूर
Hero
चाहत
Heroine
Page 1 of 1
उत्तराखंड के सीने में बसा ऋषिकेश, सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक एहसास है | ये वो जगह है जहां गंगा की पवित्र धारा हिमालय की गोद से निकलकर मैदानी इलाकों में उतरती है, और साथ लाती है अपने पहाड़ों की शांति और सदियों पुरानी तपस्या की गूँज | इसे 'ऋषियों की धरती' यूं ही नहीं कहते | यहां का कण-कण योग, तप और आध्यात्म से सराबोर है | यहां की खूबसूरती ऐसी है कि एक बार जो इन घाटों, वादियों और झरनों को देख ले, वो फिर कभी इसे भूल नहीं पाता | हरी-भरी पहाड़ियां, कल-कल करती गंगा, और आसमान छूते झरने - ये सब मिलकर एक ऐसा नज़ारा बनाते हैं जो दिल और दिमाग दोनों को सुकून देता है | भारत से ही नहीं, दुनिया भर से लोग इस पावन भूमि पर आते हैं, ताकि यहां की सकारात्मक ऊर्जा को महसूस कर सकें, अपनी अंदरूनी शांति पा सकें | और इसी ऋषिकेश की शांत फिजाओं से हमारी कहानी शुरू होती है, एक ऐसी कहानी जो प्यार, दोस्ती, परिवार और नए जीवन की जिम्मेदारियों के इर्द-गिर्द घूमती है |
दिसंबर का महीना अपने पूरे शबाब पर था | ऋषिकेश में शाम के पांच बजे थे और हवा में हल्की-हल्की ठंडक घुलने लगी थी | ये वो ठंडक थी जो सिर्फ शरीर को नहीं, बल्कि रूह को भी छू जाती है | सूरज अभी पूरी तरह से अस्त नहीं हुआ था, लेकिन उसकी सुनहरी रोशनी अब धीमी पड़ने लगी थी | आसमान में नारंगी, गुलाबी और बैंगनी रंगों का एक खूबसूरत संगम बन रहा था, जो धीरे-धीरे गहरे नीले में बदल रहा था | गंगा का पानी इस ढलते सूरज की रोशनी में जगमगा रहा था, जैसे किसी ने सोने की चादर बिछा दी हो |
त्रिवेणी घाट पर हर रोज की तरह शाम की गंगा आरती की तैयारी चल रही थी | घाट पर लोगों की भीड़ धीरे-धीरे बढ़ रही थी | हर तरफ एक खास तरह की चहल-पहल थी - कहीं मंत्रों का जाप हो रहा था, कहीं घंटियों की आवाज़ गूँज रही थी, और कहीं लोग भक्ति में लीन होकर डुबकी लगा रहे थे | इन सब आवाज़ों के बीच भी एक अजीब सी शांति थी, जो इस पवित्र जगह का ही एक हिस्सा थी |
इन सब के बीच, चाहत और तन्वी, घाट की सीढ़ियों पर बैठी हुई थीं | वे दोनों खामोश थीं, और उनकी नज़रें गंगा की बहती धाराओं पर टिकी थीं | उनके चेहरे पर एक ऐसी गंभीरता थी, जो उनके अंदर चल रहे गहरे विचारों को साफ बयां कर रही थी | वे दोनों सगी बहनें नहीं थीं, लेकिन उनका रिश्ता किसी खून के रिश्ते से कम भी नहीं था | वे दोनों भले ही एक दूसरे की मुँहबोली बहनें थीं, लेकिन बचपन से वो दोनों एक-दूसरे के साथ पली-बढ़ी थीं, और एक-दूसरे के हर सुख-दुख की साथी थीं | उनका रिश्ता दोस्ती से कहीं बढ़कर था – एक ऐसा रिश्ता जो बिना कहे एक-दूसरे की बात समझता था, और बिना शर्त एक-दूसरे का साथ देता था |
चाहत, जिसकी उम्र बमुश्किल बाईस साल रही होगी, अपने दोनों घुटनों पर कोहनियाँ टिकाए, अपने हाथों की हथेलियों में अपना चेहरा छुपाए बैठी थी | धूप की सुनहरी किरणें उसकी ऊंची बंद पोनी से निकल रहे, हल्की सुनहरी-भूरी ज़ुल्फ़ों से होकर उसके चेहरे पर पड़ रही थीं। उसकी नीली आँखें, जो अक्सर शरारत और चुलबुलेपन से भरी रहती थीं, इस वक्त थोड़ी बुझी हुई थीं, मानो किसी गहरे समंदर की तरह शांत हो | वैसे तो, उसके चेहरे पर गुस्सा, चिंता या परेशानी कभी टिकती ही नहीं थी, वो हमेशा एक खिलखिलाती हुई धूप की तरह रहती थी | लेकिन आज, उसकी नीली आँखों में हल्की सी उदासी साफ दिख रही थी | उसने एक हल्के पीले रंग की, ढीली-ढाली शोर्ट सूती कुर्ती पहनी थी, जिसके साथ उसने ब्लू जीन्स पहनी हुई थी | ये कपड़े उस पर बहुत जँच रहे थे और "उसकी बंद पोनी से निकलते बाल हवा में धीरे-धीरे लहरा रहे थे।"
वही चाहत के बगल में बैठी थी तन्वी, जो चाहत से मुश्किल से एक साल बड़ी थी, यानी चौबीस साल की | तन्वी का नेचर एकदम शांत और सुलझा हुआ था | वो कभी किसी बात पर ज़्यादा रिएक्ट नहीं करती थी और हर मुश्किल को बहुत समझदारी से हैंडल करती थी | चाहत जहाँ आग थी, वहीं तन्वी पानी थी – शांत, गहरी और सब कुछ खुद में समा लेने वाली | उसके चेहरे पर हमेशा एक ठहरी हुई सी मुस्कान रहती थी, पर आज वो मुस्कान भी कहीं गायब थी | उसकी बड़ी-बड़ी, गहरे भूरे रंग की आँखें गंगा के पानी में कुछ ढूंढ रही थीं, मानो अपने सवालों के जवाब | तन्वी का रंग गेहुंआ था और उसके गालों पर हल्की सी लाली थी, जो उसकी प्रेगनेंसी की निशानी थी | उसने एक सूती, हल्के गुलाबी रंग के ढीले - वाले से लॉन्ग कुर्ता - सलवार पहने हुए थे, जिस पर उसने सफ़ेद दुप्पटा लिया हुआ था | वो कपडे उसके बढ़े हुए पेट को खूबसूरती से ढँक रहे थे | उसके बाल एक साधारण सी चोटी में बँधे थे और उसके माथे पर एक छोटी सी बिंदी थी | तन्वी की ज़िंदगी में इस वक्त सबसे बड़ा मोड़ आया हुआ था |
काफी देर की खामोशी को तोड़ते हुए चाहत ने एक बार तन्वी की ओर देखा | उसकी आँखों में सवाल था, पर साथ ही एक गहरी समझ भी थी | फिर उसने अपनी नज़रें वापस गंगा पर कर लीं | चाहत ने पास पड़ा एक छोटा सा पत्थर उठाया | उसने उसे अपनी उंगलियों के बीच घुमाया, जैसे कोई बड़ा फैसला लेने से पहले हम अक्सर करते हैं | फिर उसने उस पत्थर को पूरी ताकत से पानी में उछाला | पत्थर गंगा के पानी में उछला, कई छोटी-छोटी लहरें बनाईं, और फिर धीरे से डूब गया | उसकी आवाज़ ने उस गहरी शांति को और भी गहरा कर दिया |
"क्या सोचा तूने इसके बारे में?" चाहत ने धीरे से पूछा, उसकी आवाज़ में एक हल्की सी उदासी थी, लेकिन साथ ही एक हिम्मत भी थी | यह सवाल सिर्फ एक सवाल नहीं था, बल्कि एक लंबी चुप्पी के बाद एक उम्मीद थी कि अब वे अपने दिल की बात कह सकेंगी |
तन्वी ने अपना एक हाथ अपने पेट पर रखा, जैसे वो अंदर पल रहे एक नए जीवन को महसूस कर रही हो | उसकी साँसें थोड़ी तेज़ थीं, और उसकी आवाज़ में एक अजीब सी घबराहट थी | "कुछ समझ नहीं आ रहा यार कि क्या करूं |" उसकी आवाज़ लगभग फुसफुसाहट जैसी थी | "ये फैसला तो ले लिया कि | इसे इस दुनिया में लाना है, लेकिन | " वो थोड़ी देर के लिए रुकी, उसकी आवाज़ में हिचकिचाहट साफ दिख रही थी | "समझ नहीं आ रहा है कि मैं ये जिम्मेदारी निभा पाऊंगी या नहीं | क्या मैं इतनी मजबूत हूं कि इसे अकेले पाल सकूं? क्या मैं इसे वो सब दे पाऊंगी, जिसकी इसे जरूरत होगी? मुझे डर लग रहा है, चाहत | बहुत डर लग रहा है | "
चाहत ने तन्वी की बात सुनी | उसकी आँखों में तन्वी की चिंता साफ दिख रही थी | चाहत जानती थी कि तन्वी कितनी अकेली महसूस कर रही है, और इस पल उसे सबसे ज़्यादा सहारे की जरूरत थी | चाहत ने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया और प्यार से तन्वी का हाथ पकड़ लिया | उसकी पकड़ में एक अजीब सी ताकत और भरोसा था, जो सिर्फ एक बहन ही दे सकती है |
"तूने अगर ये फैसला ले लिया है तो अब इस फैसले के बारे में ज्यादा मत सोच | " चाहत ने उसे सांत्वना देते हुए कहा | उसकी आवाज़ में वो दृढ़ता थी जो तन्वी को चाहिए थी | "और रही बात जिम्मेदारी की तो मैं भी तो हूं तेरे साथ | तू अकेली नहीं है | हम दोनों हैं ना! हम दोनों मिलकर इसे संभालेंगे | हम हर मुश्किल का सामना साथ मिलकर करेंगे, जैसे हम हमेशा करते आए हैं | "
चाहत ने आगे कहा, "देख, जिंदगी में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जब हमें लगता है कि हम अकेले पड़ गए हैं, पर ऐसा होता नहीं है | हर मुश्किल का रास्ता होता है, और हम साथ हैं तो कोई मुश्किल बड़ी नहीं है | बाकी सब वक्त पर और शिवजी पर छोड़ दे | शिवजी हमेशा हमारा साथ देंगे | इस पवित्र भूमि पर बैठ कर तू सिर्फ अपनी शक्ति और अपने विश्वास पर भरोसा कर | सब कुछ अच्छा ही होगा | कभी-कभी हमें बस एक कदम बढ़ाना होता है, बाकी रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं | " चाहत ने तन्वी की आंखों में देखते हुए कहा, उसकी आँखों में पूरा भरोसा था |
तन्वी ने चाहत की बात सुनी | उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई, एक ऐसी मुस्कान जिसमें थोड़ी सी राहत और थोड़ी सी हिम्मत थी | उसने चाहत की ओर देखा और हां में सिर हिला दिया, जैसे उसे उसकी बातों से थोड़ी उम्मीद मिली हो | फिर उसने चाहत का हाथ और कसकर पकड़ा और उसकी आँखों में देखते हुए पूछा, "तू हमेंशा मेरे और मेरे बच्चे के साथ रहेगी ना? कभी छोड़ के तो नहीं जाएगी? मुझे सच में बहुत डर लग रहा है कि कहीं मैं इसे संभाल न पाऊं, और फिर मुझे अकेला छोड़ दिया जाए | | | " उसकी आवाज़ में एक मासूमियत और डर दोनों थे, जो इस नई और बड़ी ज़िम्मेदारी के बोझ को साफ दिखा रहे थे |
उसकी ये बात सुनकर चाहत ने भी उसका हाथ और कस के पकड़ा | उसने अपनी आँखों में पूरा भरोसा भर कर कहा, "हमेशा! हर वक्त, हर कदम पर | चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तेरे साथ खड़ी रहूंगी | तू मेरी बहन है, और तेरा बच्चा मेरा भी बच्चा होगा | हम एक परिवार हैं, और परिवार कभी एक-दूसरे को नहीं छोड़ता | " उसने उसे एक बड़ी और आश्वस्त करने वाली मुस्कान दी | उस मुस्कान में सिर्फ प्यार नहीं, बल्कि एक अटल वादा था | एक ऐसा वादा, जो हर चुनौती के सामने अटल रहने वाला था, जैसे गंगा की धारा कभी रुकती नहीं |
फिर चाहत ने माहौल को हल्का करने के लिए मजाक करते हुए कहा, "हां, मैं तो रहूंगी उसके साथ और वो मेरा भी तो बच्चा (भांजा/भांजी) होगा, आखिर मैं उसकी मासी होउंगी | देख लेना, वो जब इस दुनिया में आएगा या आएगी ना तो वो मुझसे ही ज्यादा प्यार करेंगे और हमेशा मुझसे ही चिपके रहेंगे | फिर तू चाहे जितना भी jealous हो ले, तू हम दोनों को अलग नहीं कर सकेगी | " फिर वो उसकी बाजू पर हल्की कोहनी मारते हुए दोनों आईब्रो ऊपर चढ़ाते हुए मुस्कुराने लगी | उसकी बात सुनकर तन्वी उसे गौर से देखती रही और फिर मुस्कुरा दी | उसकी मुस्कान में अब पहले से ज्यादा सुकून और हल्की सी खुशी थी |
उस पल, गंगा की लहरों और ढलते सूरज की रोशनी में, दो मुँह बोली बहनें एक नए सफर की तैयारी में थीं | उनके सामने मुश्किलें थीं, अनिश्चितता थी, लेकिन उनके बीच का रिश्ता, उनका एक-दूसरे पर विश्वास, और उनकी अटूट दोस्ती उन्हें हर मुश्किल से लड़ने की ताकत दे रही थी | वे दोनों एक-दूसरे का सहारा थीं, एक-दूसरे की हिम्मत |
वही दूसरी तरफ,
ऋषिकेश से दूर, देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट पर एक प्राइवेट जेट लैंड हुआ, और फिर धीरे-धीरे टैक्सीवे पर दौड़ते हुए अपनी जगह पर आकर रुक गया। ये कोई नार्मल प्राइवेट जेट नहीं था। इस जेट की विंडोज़ एकदम काली थीं और ये दिखने में बेहद शानदार था। जैसे ही जेट का दरवाज़ा खुला, उसमें से एक के बाद एक कुछ गार्ड्स बाहर निकले। सबके हाथ में गन थीं और उनके चेहरे पर एक अजीब सी गंभीरता थी, जो उनके हाई-लेवल सिक्योरिटी होने का सिग्नल दे रही थी। उनके काले सूट्स और सधा हुआ अंदाज़ देखकर ही लग रहा था कि ये कोई छोटे-मोटे आम बॉडीगार्ड्स नहीं थे।
गार्ड्स के बाहर आते ही, सबकी नज़रें जेट के दरवाज़े पर टिक गईं | और फिर, अंदर से दो एकदम हैंडसम शख्स बाहर आए, जिन्होंने एयरपोर्ट पर मौजूद हर किसी का अटेंशन अपनी ओर खींच लिया।
उन दोनों शख्स में से पहला था शान सबरवाल, जिसकी उम्र 28 साल थी | शान की हाइट अच्छी थी, बॉडी एकदम फिट थी और "उसका अंदाज़ ऐसा था जिसमें कामनेस और डेप्थ दोनों दिखती थी | उसकी आँखें बादामी रंग की थीं, जिनमें एक अजीब सी चमक थी | उसका रंग गोरा था और बाल एकदम ठीक से सेट करे हुए थे | उसने गहरे नीले रंग का एक थ्री-पीस सूट पहना था, जिसमें सफेद शर्ट और हल्के ग्रे रंग की टाई थी | उसका सूट इतना फिट था कि उसकी बॉडी की शेप साफ दिख रही थी | शान के शांत चेहरे पर एक हल्की सी सीरियसनेस हमेशा रहती थी, जिससे वो और भी स्मार्ट लगता था | उसकी चाल में भी एक कॉन्फिडेंट और स्मूथ फ्लो था | वो कम बोलता था, पर जब बोलता था, तो उसकी बात में दम होता था | शान, रोहन का कजिन होने के साथ-साथ उसका दोस्त भी था, और रोहन की बड़ी बुआ दिशा सबरवाल का छोटा बेटा था | उसका नेचर बहुत शांत था, पर जब उसे गुस्सा आता था, तो वो बहुत रूखा और डोमिनेटिंग हो जाता था | अपने दोस्तों और परिवार के लिए वो कुछ भी कर सकता था |
शान के ठीक बगल में खड़ा था निहाल मल्होत्रा, जिसकी उम्र 29 साल थी | निहाल की हाइट पांच फुट 9 इंच थी और वो भी फिट था, पर शान जैसी गंभीरता उसमें नहीं थी | उसके चेहरे पर हमेशा एक हल्की सी मुस्कान रहती थी और उसकी आँखें बहुत कुछ कह जाती थीं | उसके बाल थोड़े बिखरे हुए थे, जो उसे एक कैजुअल, पर स्टाइलिश लुक दे रहा था | उसने एक स्टाइलिश, हल्के ग्रे रंग की टी-शर्ट के ऊपर एक ब्लैक लेदर जैकेट पहनी थी और उसके साथ डार्क जींस और सफेद जूते थे | निहाल का लुक थोड़ा आराम वाला था, पर उसके स्टाइल में एक अलग ही स्वैग था | निहाल, रोहन और शान का दोस्त होने के साथ-साथ रोहन की चाची, कीर्ति कपूर का इकलौता भतीजा था | दो साल की उम्र से ही वो कपूर विला में, कीर्ति जी के पास पला बढ़ा था | अपने भाई-भाभी की मौत के बाद कीर्ति कपूर ने उसे गोद ले लिया था और अपने बच्चों की तरह पाला था | इसलिए, रोहन और उसके सभी भाइयों का बचपन निहाल के साथ ही बीता था और वो कपूर परिवार का एक हिस्सा ही था |
तीसरा बंदा बाहर निकला, जिसने एयरपोर्ट पर मौजूद हर किसी को हिला कर रख दिया | ये था रोहन रिहान कपूर, जिसकी उम्र 28 साल थी |
रोहन कपूर एक ऐसा नाम था, जो देश के सबसे बड़े अमीर बिज़नेस टायकून में गिना जाता था | उसके अपने रिसॉर्ट्स और होटल्स की चेन थी, जिसका मैन होटल 'हान्या' मुंबई में था | वो अपने फैमिली बिज़नेस में भी पार्टनर था, जिसकी वजह से वो देश का सबसे अमीर बिजनेसमैन माना जाता था |
रोहन का लुक ऐसा था कि वो कहीं भी खड़ा हो जाए, तो सबकी नज़रें उसी पर पड़ती थीं | उसकी हाइट लगभग छह फीट थी, और उसकी बॉडी एकदम बनी हुई थी – चौड़े कंधे, पतली कमर और हर मसल अपनी जगह पर एकदम परफेक्ट | उसने गहरे ग्रे रंग का एक सूट पहना था, जिसके नीचे एक सफेद शर्ट थी, और गले में एक पतली काली टाई थी | उसके सूट की फिटिंग इतनी ज़बरदस्त थी कि वो किसी मॉडल से कम नहीं लग रहा था | उसके बाल काले थे और पीछे की तरफ सेट किए हुए थे, जो उसके एरोगेंट और रूड अंदाज़ को और बढ़ा देते थे | उसकी आँखें गहरे भूरे रंग की थीं, इतनी गहरी कि उनमें झांकने की हिम्मत हर कोई नहीं कर पाता था | उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो कभी-कभी ठंडक और कभी-कभी आग जैसी दिखती थी | उसके चेहरे पर एक अहंकारी और कम बोलने वाला भाव हमेशा रहता था, जो उसके शॉर्ट टेम्पर्ड स्वभाव को दर्शाता था |
रोहन को सिर्फ अपने बिज़नेस, दोस्त और अपने परिवार से प्यार था | लड़कियों से उसे बहुत चिढ़ थी, क्योंकि उसे लगता था कि हर लड़की जब भी उसके पास आती है, तो वो उसके पैसे और स्टेटस को देखकर ही आती है | उसे लगता था कि इस दुनिया में कोई भी लड़की ऐसी नहीं है जो उसे सच में प्यार करे, उसे बस उसकी दौलत से प्यार होता है | यही वजह थी कि वो लड़कियों से दूर रहता था और उनसे बात भी नहीं करता था | उसका अंदाज़ हमेशा डोमिनेंट और रूड रहता था, जो सामने वाले को बता देता था कि वो कोई आम आदमी नहीं है |
जैसे ही रोहन, शान और निहाल अपने गार्ड्स के साथ एयरपोर्ट से बाहर अपनी कार की तरफ बढ़ने लगे, तो पूरे एयरपोर्ट में हंगामा मच गया | लोग अपनी-अपनी बातें छोड़कर उन्हीं तीनों को देख रहे थे | हर कोई कानाफूसी कर रहा था, कोई उनकी पर्सनालिटी पर मर रहा था, तो कोई उनके स्टेटस पर | एयरपोर्ट के बाहर उनकी लग्ज़री और ब्रांडेड कारें पहले से खड़ी थीं, जो उनके रुतबे का सबूत थीं | काली मर्सिडीज़, एक बीएमडब्ल्यू और एक ऑडी – तीनों चमक रही थीं, उनका इंतज़ार कर रही थीं |
खासकर लड़कियों का ध्यान उन तीनों पर अटक गया था | वे सभी ग्रुप्स में खड़ी, आँखें फाड़-फाड़कर उन तीनों को घूर रही थीं |
एक लड़की ने अपनी सहेली से फुसफुसाते हुए कहा, "हे भगवान! देख! वो बीच वाला लड़का, कौन है ये? इतना हॉट! मैं तो यहीं बेहोश हो जाऊँगी!"
दूसरी ने जवाब दिया, "हाँ यार! वो काले सूट वाला | उसकी आँखें तो देख! लगता है जैसे किसी हॉलीवुड फिल्म का हीरो हो | ऐसा लग रहा है जैसे अभी किसी मैगज़ीन के कवर से निकलकर आया हो | "
तीसरी लड़की, जो थोड़ी ज़्यादा बिंदास थी, उसने कहा, "मुझे लगता है ये रोहन कपूर है! ओह माय गॉड! मैंने उसकी फोटो देखी हैं, पर रियल में तो ये और भी ज़्यादा डैशिंग है | सुना है ना, वो इंडिया का सबसे बड़ा बिज़नेसमैन है? उसके पास तो अरबों की दौलत है!"
"अरबों की क्या, खरबों की!" पहली लड़की ने अपनी आँखें मटकाते हुए कहा | "उसका ये एरोगेंट लुक ही तो जानलेवा है | जो लड़कियों को इग्नोर करता है ना, वही सबसे ज़्यादा पसंद आता है | "
एक और लड़की ने सपनों में खोते हुए कहा, "काश, एक बार वो मेरी तरफ देख ले, एक बार बस | उसके चेहरे पर वो जो डोमिनेंट एक्सप्रेशन है ना, वो मुझे पागल कर रहा है | "
"और उसकी बॉडी तो देख!" दूसरी लड़की ने कहा, "सूट में भी इतनी परफेक्ट लग रही है | पता नहीं कितनी मेहनत करता होगा जिम में | वो बीच वाला, जिसका नाम रोहन है, उसकी तो पर्सनालिटी ही इतनी हैवी है कि बाकी दोनों भी उसके आगे फीके पड़ रहे हैं, जबकि वो भी कोई कम नहीं हैं | "
तभी एक लड़की थोड़ी समझदारी वाली बात करते हुए बोली, "यार, ये तो कभी किसी लड़की को भाव ही नहीं देता | सुना है ये लड़कियों से नफरत करता है, क्योंकि उसे लगता है कि सब उसके पैसे के पीछे ही भागती हैं | "
"हाँ, पर एक बार उसे अपनी तरफ खींचने में जो मज़ा आएगा ना!" तीसरी लड़की ने अपनी आँखें चमकाते हुए कहा | "वो तो चैलेंज है | ऐसा एरोगेंट लड़का, अगर किसी पर फिदा हो जाए, तो वो दुनिया की सबसे लकी लड़की होगी | "
शान, निहाल और रोहन, इन सब बातों से बेखबर, अपने ही अंदाज़ में आगे बढ़ रहे थे | रोहन के चेहरे पर कोई भाव नहीं था, वो सीधे सामने देख रहा था, जैसे ये भीड़ उसके लिए मायने ही नहीं रखती हो | उसकी चाल में एक खास तरह का घमंड और कॉन्फिडेंस था, जो बता रहा था कि उसे इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता | शान और निहाल भी अपने-अपने अंदाज़ में आगे बढ़ रहे थे, पर उनकी आँखों में एक हल्की सी चमक थी, जो बता रही थी कि उन्हें इस तरह की अटेंशन की आदत थी |
कुछ ही देर में, तीनों अपनी-अपनी कारों में बैठ गए | लग्ज़री कारों के गेट बंद हुए और उनके गार्ड्स भी अपनी गाड़ियों में सवार हो गए | एयरपोर्ट पर मौजूद लोगों की आँखें तब तक उन पर टिकी रहीं, जब तक उनकी गाड़ियाँ दिखनी बंद नहीं हो गईं | देहरादून की सड़कों पर अब कुछ और नई कहानियाँ शुरू होने वाली थीं |
देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से निकलने के बाद, वो जो तीन चमचमाती लग्ज़री गाड़ियाँ थीं – एक काली मर्सिडीज़, एक शानदार बीएमडब्ल्यू और एक ऑडी – उन्होंने शहर की भीड़-भाड़ को पीछे छोड़ दिया | हवा में थोड़ी देर तक तेज़ इंजन की आवाज़ गूँजती रही और फिर धीरे-धीरे कम होने लगी, जैसे-जैसे वो शहर से बाहर, एक बड़े, खाली से मैदान की तरफ बढ़ती गईं | ये मैदान काफी बड़ा था, दूर-दूर तक फैला हुआ, जहाँ घास कम और सूखी मिट्टी ज़्यादा थी | गाड़ियाँ तेज़ रफ्तार में यहाँ पहुँचीं और फिर अचानक, धूल का एक बड़ा गुबार उठाते हुए, ज़मीन पर रुक गईं | कुछ पल के लिए तो धूल का इतना गुबार उठा कि कुछ भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था, जैसे किसी ने आसमान में भूरे रंग का पर्दा डाल दिया हो |
जैसे ही धूल थोड़ी शांत हुई, सबसे पहले उन गाड़ियों के दरवाज़े खुले और उनमें से गार्ड्स बाहर निकले | करीब दस-बारह गार्ड्स थे, सबने काले सूट और काले चश्मे पहन रखे थे | उनके हाथों में लेटेस्ट मॉडल की बंदूकें थीं और उनके चेहरे पर एक भी शिकन नहीं थी, बस एक सधा हुआ, गंभीर भाव था | वो सब एकदम प्रोफेशनल तरीके से एक लाइन में लगकर खड़े हो गए, उनकी नज़रें आसमान और आस-पास के माहौल को स्कैन कर रही थीं, ताकि कोई खतरा न हो | उनका हर मूव ऐसा था, जैसे किसी हॉलीवुड फिल्म का सीन चल रहा हो |
तभी, आसमान में एक तेज़ घरघराहट सुनाई दी | ये आवाज़ धीरे-धीरे पास आती गई और फिर एक शानदार, बड़ा हेलीकॉप्टर आसमान में उड़ता हुआ दिखाई दिया | ये कोई आम चॉपर नहीं था; इसका रंग गहरा काला था और इसमें चमकदार सिल्वर की धारियाँ थीं | उसके पंखे इतनी तेज़ी से घूम रहे थे कि नीचे की सूखी घास और धूल ज़ोर-ज़ोर से उड़ने लगी | कुछ ही पल में, वो हेलीकॉप्टर मैदान के बीचो-बीच आकर धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा | जैसे ही उसने ज़मीन को छुआ, उसके पंखों से इतनी तेज़ हवा निकली कि आस-पास की सारी धूल फिर से उड़ने लगी, मानो ज़मीन पर कोई बवंडर आ गया हो | घास और छोटे पौधे इस हवा के आगे झुक गए थे |
हेलीकॉप्टर के लैंड होते ही, वो गार्ड्स जो गाड़ियों से उतरे थे, उन्होंने तुरंत शान, निहाल और रोहन की गाड़ियों के दरवाज़े खोले | दरवाज़े खुलते ही, अंदर से रोहन, शान और निहाल बाहर निकले | धूप में भी उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी |
रोहन कपूर ने जैसे ही ज़मीन पर पैर रखा, उसकी चाल में वही पुराना वाला एरोगेंट और डोमिनेंट अंदाज़ था | उसका सूट एकदम परफेक्ट दिख रहा था और उसकी हर चाल में एक राजा वाला कॉन्फिडेंस था | उसकी आँखें सीधे हेलीकॉप्टर की तरफ थीं, जैसे वो किसी और चीज़ पर ध्यान देना ही नहीं चाहता | उसके चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं थी, बस वही गंभीर, थोड़ा गुस्सैल वाला भाव था | वो एकदम सीधा खड़ा था, जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता कि आस-पास क्या हो रहा है | उसकी बॉडी लैंग्वेज खुद बता रही थी कि वो कोई आम आदमी नहीं है, बल्कि एक ऐसा शख्स है जो अपनी शर्तों पर जीता है |
उसके बगल में शान सबरवाल था, जो अपने नीले सूट में बहुत शांत और सुलझा हुआ दिख रहा था | उसके चेहरे पर भी गंभीरता थी, पर रोहन जैसी रुडनेस नहीं थी | उसकी आँखें एक बार चारों तरफ घूमीं, शायद सिक्योरिटी चेक करने के लिए, और फिर वो भी रोहन के साथ हेलीकॉप्टर की तरफ बढ़ने लगा | शान की चाल में भी एक सधा हुआपन था, जो बताता था कि वो भी अपने आप में एक बड़ा खिलाड़ी है, बस दिखाता नहीं |
और फिर था निहाल मल्होत्रा, जिसने लेदर जैकेट और जींस पहनी थी | वो शान और रोहन के मुकाबले थोड़ा ज़्यादा रिलैक्स्ड दिख रहा था, पर उसकी आँखों में भी एक अलग ही चमक थी | उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, जैसे उसे पता हो कि वो कहाँ जा रहा है और क्या होने वाला है | उसकी चाल थोड़ी तेज़ थी, जैसे उसे किसी बात की जल्दी हो |
तीनों ने मिलकर एक ज़बरदस्त कॉम्बिनेशन बनाया था – एक तरफ रोहन का एटीट्यूड, दूसरी तरफ शान की गंभीरता और तीसरी तरफ निहाल का रिलैक्स्ड, फिर भी स्टाइलिश अंदाज़ | वो तीनों बिना रुके, सीधे हेलीकॉप्टर की तरफ बढ़े | उनके गार्ड्स भी उनके पीछे-पीछे चल रहे थे, उनकी हर मूवमेंट पर नज़र रखे हुए |
जैसे ही वो तीनों हेलीकॉप्टर के पास पहुँचे, हेलीकॉप्टर का दरवाज़ा खुल गया | तीनों अंदर चले गए | सबसे पहले रोहन अंदर गया, उसके बाद शान और फिर निहाल | उनके बैठते ही, रोहन का पर्सनल बॉडीगार्ड, जैनेश, जो अब तक बाहर ही खड़ा था, उसने बाकी के सभी गार्ड्स को एक बार फिर से इंस्ट्रक्शन दिया |
जैनेश एक लंबा-चौड़ा आदमी था, जिसकी आवाज़ में भी दम था | उसने अपने बाकी के गार्ड्स को इशारा करते हुए कहा, "सुनो सब! अब यहाँ कोई रुकने वाला नहीं है | तुम सब अपनी-अपनी गाड़ियों में बैठो और ऋषिकेश में हमारे पहुँचने से पहले-पहले वहाँ पहुँच जाओ | वहाँ की सारी सिक्योरिटी चेक कर लेना, कोई चूक नहीं होनी चाहिए, समझे?" उसकी आवाज़ एकदम क्लियर और स्ट्रॉन्ग थी, जिससे कमांड साफ झलक रही थी |
जैनेश की बात सुनते ही, सभी गार्ड्स ने एक साथ सिर हिलाया और ज़ोर से कहा, "ओके सर!" उनकी आवाज़ में डिसिप्लिन साफ दिख रहा था | उन्होंने तुरंत अपनी-अपनी गाड़ियों की तरफ दौड़ लगाई और चंद सेकंड्स में सब अपनी जगह पर बैठ गए |
सभी गार्ड्स को इंस्ट्रक्शन देने के बाद, जैनेश ने एक आखिरी बार मैदान और आस-पास का जायज़ा लिया | जब उसे लगा कि सब ठीक है और सारे गार्ड्स अपनी गाड़ियों में बैठ चुके हैं, तो वो भी हेलीकॉप्टर में चला गया | उसने दरवाज़ा बंद किया और पायलट को उड़ने का इशारा किया |
कुछ ही सेकंड्स बाद, हेलीकॉप्टर का इंजन एक बार फिर पूरी ताकत से गूँजा | उसके पंखे और तेज़ी से घूमने लगे और फिर वो धीरे-धीरे ज़मीन से ऊपर उठने लगा | उसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी कि पूरा मैदान गूँज उठा | देखते ही देखते, वो हेलीकॉप्टर उस बड़े मैदान से ऊपर उठकर देहरादून के नीले आसमान में तेज़ी से उड़ने लगा, अपने पीछे हल्की सी धूल का निशान छोड़ता हुआ | नीचे खड़ी लग्ज़री गाड़ियाँ भी उसके उड़ते ही तेज़ी से ऋषिकेश की तरफ दौड़ पड़ीं | अब ये तीनों दोस्त, और उनकी पूरी टीम, ऋषिकेश की तरफ बढ़ रही थी, जहाँ शायद उनकी ज़िंदगी में कुछ बड़ा होने वाला था |
चाहत की बातें सुनकर तन्वी के चेहरे पर अब हल्की सी स्माइल थी, लेकिन उसके मन में अभी भी कई सवाल थे। चाहत की बातों ने उसे कुछ हिम्मत तो दी थी, पर एक और चिंता उसके ज़हन में लगातार घूम रही थी।
तन्वी कुछ सोचते हुए बोली, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी झिझक थी, "चाहत, तूने उससे बात करी?" उसने अपनी नज़रें चाहत पर टिका दीं, जैसे जवाब का इंतज़ार कर रही हो।
चाहत ने कहीं और देखते हुए बेपरवाही से जवाब दिया, "किससे?" उसकी आवाज़ में ऐसा लग रहा था जैसे वो उस बात को टालना चाहती हो।
तन्वी ने चाहत का चेहरा अपने एक हाथ से अपनी ओर करते हुए कहा, "समीर, समीर की बात कर रही हूं मैं।" उसकी आवाज़ में थोड़ी झुंझलाहट थी, क्योंकि वो जानती थी कि चाहत जानबूझकर अनजान बन रही है।
चाहत ने अपना चेहरा तन्वी के हाथों से हटाते हुए सामने नदी की ओर कर लिया। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उदासी थी। "हां, वो कल सुबह जा रहा है। अब दो साल बाद ही लौटेगा। वो कह रहा था कि उसका बिल्कुल मन नहीं है जाने का लेकिन उसकी मजबूरी है इसलिए उसे जाना होगा।" उसके शब्दों में एक अजीब सी दूरी थी, जैसे वो समीर से जुड़ी हर बात से खुद को दूर रखना चाहती हो।
तन्वी उसकी ओर देखते हुए बोली, उसकी आवाज़ में अब थोड़ा गुस्सा था, "यार, उसने सिर्फ तुझे प्रपोज़ किया है, कोई जबरदस्ती शादी थोड़ी कर रहा है तुझसे जो तू उससे अच्छे से बात भी नहीं कर रही है और ना ही उसकी कोई बात सुनना चाहती है। उसने तुझे वक़्त दिया है ना जवाब देने के लिए। अब वो तेरी मर्जी होगी कि तुझे उससे शादी करनी है या नहीं। और देख, सिमरन और समीर हमारे फ्रेंड्स हैं, अच्छा नहीं लगता है कि तू उन्हें अनदेखा करना शुरू कर दे। और सिमरन को जब ये पता चलेगा कि तू इस बात के लिए उससे दोस्ती खत्म कर रही है तो उसे कैसा लगेगा? सोचा है तूने?" तन्वी के शब्द नुकीले थे, पर उनमें चाहत के लिए फिक्र साफ झलक रही थी। वो जानती थी कि चाहत अपने गुस्से में गलत फैसले ले सकती है।
चाहत थोड़ी टेंशन में आ गई। उसका चेहरा थोड़ा पीला पड़ गया। "नहीं, मैं कोई दोस्ती नहीं खत्म कर रही, बस थोड़ी देर का ब्रेक ले रही हूं इस सिचुएशन को एक्सेप्ट करने के लिए। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं। मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है।" उसकी आवाज़ में अब झुंझलाहट के साथ-साथ एक अजीब सी लाचारी भी थी।
"ठीक है, जितना वक्त लेना है ले लेना।" तन्वी उसे समझाते हुए बोली, उसकी आवाज़ में अब नरमी थी। "वैसे भी वो दो साल तक नहीं आने वाला। लेकिन कल हम दोनों उससे मिलने जाएंगे।" तन्वी ने यह बात ऐसे कही जैसे यह पहले से तय हो।
जैसे ही चाहत अपना सर हिलाकर ना करने वाली थी, तन्वी ने आंखों के इशारे से उसे रोक दिया। तन्वी की आँखों में वो ताकत थी कि चाहत उसकी बात मान गई। चाहत जानती थी कि तन्वी जो कह रही है, वही सही है।
तन्वी ने कहा, "अब कल हम सुबह उसके घर ही चलेंगे। क्योंकि एयरपोर्ट तो बहुत दूर है और कल तो हम बिल्कुल भी एयरपोर्ट नहीं जा सकते।"
तभी तन्वी अचानक से खड़ी होकर जोर से बोली, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी घबराहट थी, "अरे... अरे... अरे... भूल गए... हम दोनों... अब तो... हम दोनों गए..." फिर वो परेशान होते हुए एक अंगुली मुंह में रखकर उसका नाखून दांतों से चबाने लगी। उसका चेहरा तनाव से भर गया था।
चाहत भी खड़ी होकर उसे देखते हुए बोली, "क्य... क्या भूल गए?" उसकी आवाज़ में भी अब थोड़ी घबराहट थी।
तन्वी उसे घूरकर, एक आइब्रो ऊंचा करके, एक हाथ कमर पर रखते हुए बोली, "वो... आने वाली है आज।" उसकी आवाज़ में एक चेतावनी थी।
चाहत थोड़ा झुंझलाते हुए दूसरी ओर देखते हुए बोली, "कौन आने वाली है?" अचानक से उसे कुछ याद आया और वो झट से तन्वी की तरफ मुड़ कर उसे हैरानी से देखती हुई एक पल के लिए शांत खड़ी हो गई। उसके चेहरे पर डर साफ दिख रहा था।
थोड़ी देर की शांति के बाद, दोनों जोर से चिल्लाते हुए बोलीं, "अरे... नहीं... वो आने वाली है!" तभी घंटियों की आवाज़ और तेज़ हो गई, आरती शुरू हो गई। दोनों ने उन घंटियों की आवाज़ की ओर देखा। मानो आरती की आवाज़ ने उन्हें उनकी असलियत याद दिला दी हो।
तन्वी बोली, "चल जल्दी से पहले आरती में चलते हैं, फिर घर चलेंगे। अगर देर हो गई ना तो दोनों ही एक टीम में होकर हम दोनों की क्लास लगाएगी।" उसकी आवाज़ में अब थोड़ी हड़बड़ी थी।
चाहत बोली, "हां, चल जल्दी और फिर मुझे एक बार पंडित जी से भी काम है। अगर यह काम नहीं किया तो मेरी तो डबल क्लास लगेगी।" उसकी आवाज़ में भी अब डर साफ था।
फिर दोनों जल्दी से आरती स्थल की ओर जाने लगीं। वहां जाकर देखा तो बहुत भीड़ थी। लोग आरती के लिए उत्साह से भरे हुए थे। बहुत सारे पंडित बड़े-बड़े दीये लेकर गंगा आरती गा रहे थे। घंटियों की ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ें आ रही थीं, और हवा में अगरबत्तियों की खुशबू फैली हुई थी। आरती का यह नज़ारा आँखों को भाने वाला था। गंगा का पानी दीयों की रोशनी से जगमगा रहा था, और पूरा घाट एक जादुई माहौल में लिपटा हुआ था। दोनों वहीं खड़ी होकर आरती देखने लगीं। उनके मन में अभी भी कई चिंताएं थीं, लेकिन इस पवित्र माहौल में आकर उन्हें थोड़ी शांति मिली थी।
जैसे ही आरती अपने चरम पर पहुँची, दीयों की रोशनी में गंगा का पानी और भी चमकीला लगने लगा। मंत्रों का जाप और घंटों की आवाज़ें एक साथ गूँज रही थीं, जो एक अजीब सी ऊर्जा पैदा कर रही थीं। चाहत और तन्वी दोनों ने अपनी आँखें बंद कर लीं, और इस दिव्य माहौल में खो गईं। उन्होंने प्रार्थना की, शायद अपने लिए, शायद अपने आने वाले कल के लिए, और शायद उस नए जीवन के लिए जो तन्वी के अंदर पल रहा था। उन्हें उम्मीद थी कि यह पवित्र ऊर्जा उन्हें अपनी मुश्किलों से लड़ने की ताकत देगी। आरती खत्म होते ही भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगी, और दोनों ने एक गहरी सांस ली।
थोड़ी देर बाद, आरती खत्म हो गई। घाट पर भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगी थी। चाहत और तन्वी पंडित जी को ढूंढने के लिए आगे बढ़ीं। वे पंडित जी को खोज ही रही थीं कि अचानक उनके कानों में कुछ डिस्टर्बिंग नॉइज़ सुनाई दी। दोनों ने चारों ओर देखा। उनकी नज़र साइड में खड़े 4-5 बच्चों के एक ग्रुप पर पड़ी। वे सब ज़ोर-ज़ोर से किसी पर हंस रहे थे और मज़ाक उड़ा रहे थे। यह देखकर दोनों वहां जाने लगीं, यह देखने कि वहां क्या हो रहा है। उन्हें लगा शायद कोई मिसबिहेव कर रहा है या किसी को ट्रबल दे रहा है।
जैसे ही वे वहां पहुंचीं, उन्होंने देखा कि एक 24-25 साल की लड़की ज़मीन पर बैठी हुई थी। ऐसा लग रहा था कि फर्श पर फैले पानी के कारण उसका पैर फिसल गया था। उसने एक शॉर्ट ब्लैक वन-पीस ड्रेस पहनी हुई थी और देखने में भी सुंदर लग रही थी। लेकिन गिरने की वजह से उसके कपड़ों पर मिट्टी और पानी दोनों के दाग थे। उसकी हालत थोड़ी खराब हो गई थी। बाल बिखरे हुए थे और चेहरे पर हल्के स्क्रैचेस भी दिख रहे थे।
यह देखकर चाहत और तन्वी का दिल पसीज गया। उन्हें बुरा लगा कि कोई उसकी मदद नहीं कर रहा और बच्चे उसका मज़ाक बना रहे हैं। उन्होंने तुरंत डिसाइड किया कि वो उसकी हेल्प करेंगी। यह उनके नेचर में था — किसी को मुश्किल में देखकर चुप नहीं रह सकती थीं। वे झट से उस लड़की के पास गईं और उसे अपने हाथों से उठाकर खड़ा किया। फिर बच्चों को डांटकर वहां से भगा दिया। बच्चों ने थोड़ी बदमाशी की। लेकिन चाहत और तन्वी की सख़्त नज़रें देखकर तुरंत खिसक लिए।
चाहत ने लड़की से पूछा, "तुम ठीक हो ना? तुम्हें कहीं चोट तो नहीं आई?" उसकी आवाज़ में हमदर्दी थी। चाहत ने ध्यान से लड़की के कपड़ों और चेहरे को देखा कि कहीं कोई सीरियस इंजरी तो नहीं है।
वो लड़की बोली, "नहीं, कोई चोट नहीं आई। मैं ठीक हूं। थैंक यू तुम दोनों को मेरी हेल्प करने के लिए। वो फर्श पर पानी था और मेरा ध्यान नहीं गया और मैं स्लिप हो गई।" उसकी आवाज़ में थोड़ा घबराहट थी। लेकिन साथ ही राहत भी थी कि किसी ने उसकी मदद की।
चाहत बोली, "कोई बात नहीं। अच्छा हुआ कि तुम्हें ज़्यादा चोट नहीं आई। लेकिन तुम्हारे तो सारे कपड़े खराब हो गए हैं। इन्हें साफ़ करना पड़ेगा। तुम्हें देखकर लग नहीं रहा कि तुम यहां की हो। बाहर से आई हो क्या? नाम क्या है तुम्हारा?" चाहत की आवाज़ फ्रेंडली थी। जिससे लड़की थोड़ा कंफर्टेबल महसूस करे।
उस लड़की ने कहा, "हां, मेरा नाम वृशिका है और मैं मुंबई से आई हूं। लेकिन अभी होटल नहीं जा सकती। मुझे यहां किसी से मिलना है, अर्जेंटली।" उसकी आवाज़ में हड़बड़ी और आँखों में बेचैनी थी। चेहरा जैसे किसी चिंता से भरा हुआ था।
तन्वी बोली, "ठीक है तो तुम अपनी ड्रेस यहीं साफ कर लो। वरना दाग रह जाएगा।" फिर वह चाहत की तरफ मुड़ी और बोली, "मैं इसे ले जाती हूं कपड़े साफ करवाने। तू जाकर पंडित जी से मिल लो। नहीं तो वो यहां से चले गए तो उनसे कल ही मिल पाएगी।" तन्वी को पता था कि चाहत के लिए पंडित जी से मिलना ज़रूरी है।
चाहत ने कहा, "नहीं, अभी मिलना तो ज़रूरी है। नहीं तो घर जाकर क्या जवाब दूंगी। तू सही कह रही है। तू जा। मैं पंडित जी से मिल लेती हूं।" उसे भी अंदाज़ा था कि अगर वो पंडित जी से नहीं मिली तो घर पर एक और क्लास लगनी तय है।
वृशिका ने चाहत को देखते हुए कहा, "लेकिन मेरा सामान..." और उसने नीचे अपने पैरों की तरफ देखा। वहां एक हैंडबैग और एक ब्लेज़र रखा था। चाहत ने भी देखा और तुरंत सामान उठाने लगी।
वृशिका बोली, "जब तक मैं खुद को और अपनी ड्रेस को थोड़ा साफ करके आती हूं। क्या तुम तब तक मेरे सामान का ध्यान रखोगी?" उसकी आवाज़ में रिक्वेस्ट साफ थी।
"इसमें रिक्वेस्ट करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं ध्यान रखूंगी।" चाहत ने मुस्कुराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा। उसका ये जेस्चर वृशिका को थोड़ा सुकून दे गया।
चाहत ने तन्वी से कहा, "तू जल्दी से इसकी हेल्प करके आ। तब तक मैं पंडित जी से बात कर लूंगी।" चाहत जानती थी की अगर वो अभी पंडित जी से नहीं मिली तो घर पर आज उसका बुरा हाल होने वाला था |
तन्वी को देखते हुए चाहत आगे बोली - "तन्वी, तू जल्दी से इसकी ड्रेस ठीक करने में हेल्प करके आ। तब तक मैं भी पंडित जी से बात कर के आती हूँ। अपना-अपना काम पूरा होने के बाद हम लोग शिव पार्वती की वो बड़ी वाली मूर्ति है ना, वहां मिलेंगे।"
चाहत की बात सुनकर तन्वी ने बस "ठीक है" कहा और वृशिका के साथ वहां से निकल गई। अब चाहत के दिमाग में एक ही चीज़ चल रही थी - पंडित जी को ढूंढना! वो मंदिर के आस-पास ही उन्हें ढूंढ रही थी। वो कुछ ही कदम आगे बढ़ी थी कि, उसने देखा कि सामने से पंडित जी अपने वही चिर-परिचित झोले के साथ, मंदिर की सीढ़ियों से नीचे आ रहे थे। पंडित जी को देखते ही चाहत के चेहरे पर स्माइल आ गई और वो फटाफट उनके पास पहुंच गई।
"नमस्ते पंडित जी," चाहत ने बड़े ही अदब से कहा।
पंडित जी ने चाहत को देखा और उनके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। "अरे! चाहत बिटिया... नमस्ते... कैसी हो तुम?" उन्होंने प्यार से पूछा।
"मैं तो बिलकुल ठीक हूँ पंडित जी, आप कैसे हैं...? और अभी आपकी तबियत कैसी है...? कल सोहन बता रहा था कि आपको थोड़ा बुखार था।" चाहत ने उनकी सेहत का भी हाल-चाल पूछ लिया, जो कि आज के ज़माने में कम ही लोग करते हैं।
पंडित जी ने जवाब दिया, "मैं बिलकुल ठीक हूँ, वो थोड़ा मौसम के कारण थोड़ा बुखार हो गया था। और बताओ कोई काम से आयी हो क्या?"
चाहत ने बिना देर किए सीधे मुद्दे पर आ गई। "हाँ पंडित जी, वो आप तो जानते हैं ना, चार दिन बाद घाट पर हवन और पूजा होगी, तो मैं उसी के सिलसिले में आपके पास आई हूँ।"
पंडित जी ने अपनी याददाश्त पर ज़ोर दिया, "हाँ, सुचिता जी से बात हुई थी मेरी इस बारे में। उन्हें हर साल की तरह इस बार भी हवन और पूजा करवानी है।"
चाहत ने अपनी बात आगे बढ़ाई, "आप मुझे बता दीजिये कि आपको क्या-क्या सामग्री की ज़रूरत होगी हवन और पूजा के दौरान। मैं उन सबका इंतज़ाम करवा दूंगी। और हाँ पंडित जी, ये भी बता दीजिये कि हवन का मुहूर्त कितने बजे का है।"
पंडित जी ने जवाब दिया, "हवन का मुहूर्त सुबह 11 बजे का है, तो आप सब 10 बजे तक यहाँ पहुँच जाइयेगा, हवन से पहले जो पूजा होगी उसके लिए। और ये रही सामग्री की लिस्ट, मैंने पहले ही बना दी है।"
इतना कहते ही पंडित जी ने एक कागज़ का टुकड़ा चाहत की ओर बढ़ा दिया। चाहत ने लिस्ट अपने हाथ में लेते हुए कहा, "ठीक है पंडित जी, सारा इंतज़ाम हो जाएगा और हम लोग उस दिन सुबह समय पर घाट पर भी आ जायेंगे।"
चाहत की बात सुनकर पंडित जी ने मुस्कुराते हुए प्यार से चाहत के सिर पर हाथ रखा और फिर वो वहां से चले गए।
पंडित जी के जाते ही चाहत ने चैन की सांस ली। उसका एक बड़ा काम निपट गया था। अब उसे बस तन्वी से मिलना था, ताकि वो दोनों जल्दी - जल्दी घर जा सके। इसलिए चाहत अब शिव पार्वती की उस बड़ी वाली मूर्ति की तरफ़ चल पड़ी, जहाँ उसने, तन्वी और वृशिका ने आपस में मिलने का डिसाइड किया था |
थोड़ी देर बाद चाहत वहाँ पहुँच गई थी, जहाँ पर शिव और पार्वती माता की एक बड़ी सी मूर्ति थी। ये मूर्ति इतनी शानदार थी कि देखते ही बनती थी! शिव भगवान एक बड़े से पत्थर पर अपने आसन पर बैठे हुए थे। उनके खुले केश ऊपर की ओर हवा में लहरा रहे थे, जैसे वो किसी गहरे ध्यान में हों। उनके बगल में उनका त्रिशूल शान से खड़ा था और उस त्रिशूल के पास माता पार्वती खड़ी थीं, जो एकटक शिव भगवान को ही देख रही थीं, मानो उनके प्रेम में लीन हों। ये मूर्ति घाट की सीढ़ियों के पास बनाई गई थी, जहाँ से गंगा नदी के खूबसूरत नज़ारे दिखते थे। शाम ढल चुकी थी, और अंधेरा पूरी तरह से छा गया था।
चाहत गंगा नदी की ओर चेहरा करके खड़ी, तन्वी और वृशिका के आने का इंतज़ार कर रही थी। उसके हाथों में वृशिका का हैंडबैग और ब्लेज़र था। आरती खत्म होने के बाद भीड़ भी कम हो गई थी, इसलिए उस वक़्त वहाँ आस-पास ज्यादा लोग नहीं थे। बस हल्की ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी जो चाहत के चेहरे को छू रही थी, जिससे उसे भी सुकून मिल रहा था। इस शांति भरे माहौल में चाहत ने अपनी आँखें बंद कर लीं और बस उस पल को महसूस करने लगी।
चाहत अपनी आँखें बंद करके उस सुकून को एन्जॉय कर रही थी कि तभी उसे महसूस हुआ कि किसी का हाथ उसकी कमर पर है। ये अहसास इतना अचानक था कि चाहत ने झट से अपनी आँखें खोल लीं। उसके दिमाग में पहला ख्याल आया, " कौन है ऐसा, जिसे अपनी मौत प्यारी लगने लगी है, जो मेरे साथ इस तरह की बदतमीजी कर रहा है ?"
फिर वो जैसे ही पीछे की ओर पलटने के लिए मुड़ने लगी, तभी वो हाथ धीरे से उसकी कमर से होकर सीधे उसके पेट पर आकर रुक गया। ये टच कुछ ऐसा था जो चाहत को थोड़ा डरा रहा था, लेकिन डर से ज्यादा उसे गुस्सा आने लगा था। क्युकी उसे किसी ने बिना उसकी परमिशन के छूने की हिम्मत जो की थी |
उसने जैसे ही उस शख्स को देखने के लिए पीछे पलटना चाहा, इतने में ही उस शख्स ने अपने हाथ से चाहत के पेट को दबाकर उसे पीछे अपनी तरफ खींच लिया और उसे खुद के शरीर से सटा लिया। चाहत को महसूस हुआ कि वो किसी मजबूत शख्स से टकरा गई है, जिससे उसकी साँसें अटकने लग गईं। उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं, इतनी तेज़ कि उसे अपनी ही धड़कनें अपने कानों में साफ़ सुनाई देने लगीं। यह पल उसके लिए किसी सदमे से कम नहीं था।
फिर अचानक ही चाहत को उस शख्स की गर्म-गर्म साँसें अपनी गर्दन पर महसूस होने लगीं। ये अहसास होते ही उसके शरीर में गुसबंप्स उठने लगे, जैसे कोई करंट दौड़ गया हो। उसे कुछ अजीब सा महसूस होने लगा, ये डर और एक्साइटमेंट का मिला-जुला अहसास था। उसकी आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गईं, वो इस अनजाने अहसास में पूरी तरह खो गई थी। क्युकी ये अनजाना अजनबी सा एहसास उसने पहली बार महसूस किया था |
तभी चाहत के कानों में एक हल्की लेकिन एक रौबदार आवाज़ सुनाई दी – "तो तुम… यहाँ हो?"
वो आवाज़ इतनी गहरी और दमदार थी कि, चाहत के पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। उस अजनबी की आवाज़ से अब जाकर चाहत का ध्यान टूटा और वो होश में आई। उस आवाज़ में एक अजीब सा रौब था, जिसने उसे अपनी तरफ़ खींच लिया था। चाहत ने पूरी ताकत लगाकर उस शख्स को पीछे की तरफ़ धक्का दिया और गुस्से में पीछे मुड़ी। उसने अपने सामने खड़े शख्स को देखा – वो देखने में लंबा, अट्रैक्टिव मस्कुलर बॉडी वाला, हैंडसम और काफी डैशिंग लग रहा था। उसके चेहरे पर एक अलग ही रौब नज़र आ रहा था और उसने सफ़ेद टी-शर्ट के साथ ब्लैक ब्लेज़र और ब्लैक जीन्स पहनी हुई थी।
चाहत के धक्का मारने की वजह से वो शख्स लड़खड़ाते हुए गिरने से बचा। फिर उसने अपनी गुस्से भरी नज़रें उठाईं और अपने सामने खड़ी लड़की को देखने लगा। दूध जैसी गोरी त्वचा, गुलाबी होंठ, हल्के पीले रंग की, ढीली-ढाली शॉर्ट सूती कुर्ती जिसके साथ उसने ब्लू जीन्स पहनी हुई थी। , कानों में छोटे-छोटे झुमके, लंबे बाल जिन्हें उसने बंद पोनी में बाँधा हुआ था, बड़ी पलकों के साथ सुंदर काजल वाली कजरारी आँखें, दोनों हाथों में पतले काले बैंगल्स, पैरों में ब्लैक जूती पहने और हाथ में एक हैंडबैग और ब्लेज़र लिए वह गुस्से में उसे ही घूर रही थी।
वो उसे बला की खूबसूरत लग रही थी। उस शख्स की आँखें अपने सामने खड़ी उस लड़की पर से हट ही नहीं रही थीं। चाहत की खूबसूरती देखते ही वह अपने ही किसी ख़्याल में खो सा गया। लेकिन थोड़ी देर बाद उसे अपने गालों पर बहुत तेज़ दर्द महसूस हुआ और वह अपने ख्यालों से बाहर आया। उसने जब अपने सामने और बिल्कुल पास उसी लड़की को खड़ा पाया, तब उसे एहसास हुआ कि उस लड़की ने उसे अभी-अभी थप्पड़ मारा था।
जो अलग एहसास उसे अभी थोड़ी देर पहले अपने सामने खड़ी लड़की को देखकर हुआ था, वो गाल पर महसूस हो रहे दर्द के साथ-साथ पूरी तरह से जा चुका था। थप्पड़ का एहसास होते ही वो फिर से गुस्से में आ गया और गुस्से से भरी तेज़ आवाज़ में चाहत से बोला, " हाउ डेयर यू ? तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुमने मुझे थप्पड़ मारा।"
चाहत ने उसे तीखी नज़रों से घूरते हुए ताना देते हुए कहा, "नहीं! थप्पड़ थोड़ी मारा है। यह तो मेरा प्यार करने का स्टाइल है। अरे! इसी प्यार के लिए तो आपने मुझे छूने की हिम्मत की थी ना। तो लीजिए, दे दिया मैंने आपको प्यार।" चाहत के ऐसा कहते ही वो शख्स, चाहत को गुस्से से, खा जाने वाली नज़रों से घूरने लगा।
फिर चाहत गुस्से भरी आवाज़ में उससे बोली, "आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की? और कौन हैं आप? और इतनी घटिया हरकत करने के बाद आप मुझसे ये बात कहने की हिम्मत कर भी कैसे सकते हैं?" अपनी बात कहकर चाहत भी उसे गुस्से में घूरकर देखने लगी।
तभी वो शख्स चाहत के थोड़ा करीब आते हुए गुस्से में बोला - " मैं कौन हूँ, ये तुम शायद जानती नहीं हो अभी | इसलिए तुमने हिम्मत करि है मुझे थप्पड़ मारने की | बट आई स्वेयर, मैं कौन हूँ और क्या क्या करने की हिम्मत रखता हूँ, जिस वक्त मैंने तुम्हे बता दिया ना, उस वक्त से तुम अपनी इस हरकत के लिए पूरी लाइफ पछताओगी | "
" धमकी दे रहे है आप मुझे ? " इतना कहते हुए चाहत ने उसकी आँखों में घूर कर देखा |
फिर चाहत अपनी बात जारी रखते हुए उससे बोली - " आप कौन है ? ये मुझे जानने में बिलकुल भी इंटरेस्ट नहीं है | और रही बात आपकी धमकी की, तो मैं आपको बता दूँ, मैं वो बला हूँ... जिसपे इस तरह की धमकिया उप्पर से गुजर जाती है, लेकिन कुछ बिगाड़ नहीं सकती | "
फिर चाहत एक पल के लिए रुक कर बोली - " लेकिन मैं अगर अपने पर आ गयी ना, तो आपका क्या हाल होगा, वो तो मैं भी अभी श्योरिटी के साथ नहीं बता सकती हूँ | लेकिन इतना जरूर बता सकती हूँ की वो हाल बुरे से बुरा ही होगा | इसलिए ये भूल ही जाइये की, आप मुझे पूरी लाइफ पछताने पर मजबूर कर सकते है | "
इतना कहकर चाहत उस शख्स को घूर रही थी और वही वो शख्स चाहत को | दोनों लगातार एक-दूसरे को आपस में खा जाने वाली नज़रों से घूरे जा रहे थे। दोनों ने अब एक दूसरे से आगे कुछ भी नहीं कहा।
तभी इतने में एक 28 साल की उम्र तक का लड़का, जो दिखने में हैंडसम था, उन दोनों के पास आ गया। उन दोनों को आपस में गुस्से से एक-दूसरे को घूरते हुए देख वह थोड़ा डर गया। उसने चाहत के सामने खड़े शख्स को देखते हुए हड़बड़ाती आवाज़ में कहा, "क्य... क्या हुआ रोहन... सब ठीक... है ना। कुछ हुआ है क्या...?"
चाहत और रोहन ने अपनी गुस्से भरी नज़रें एक-दूसरे की तरफ़ से हटाकर दूसरी तरफ़ कर लीं। फिर चाहत उस लड़के को देखने लगी जो अभी-अभी आया था। वो लड़का कोई और नहीं निहाल था | चाहत ने गुस्से में रोहन को घूरते हुए निहाल से कहा, "इनका दिमाग़ ख़राब है भैया। इलाज कराइए इनका... किसी को भी पकड़कर ज़बरदस्ती छूने लगते हैं, और फिर जब कोई इन्हे पलटकर इनकी बदतमीजी का जवाब दे दे... तो उससे बहस करने के साथ साथ, उसे धमकी भी देने लगते है | काफी बदतमीज़ टाइप के इंसान है ये। देखिये ना, अभी मुझे बिना मेरी परमिशन के छूकर मेरे साथ बदतमीजी कर रहे थे और फिर मुझे ही रौब दिखा रहे है | अगर मैंने इन्हें धक्का देकर खुद से दूर नहीं किया होता, तो क्या पता ड्रैकुला बनकर मेरी गर्दन से मेरा सारा ख़ून ही चूस लेते। पागल कहीं के।"
रोहन चाहत की तरफ़ अपने कदम बढ़ाते हुए उससे गुस्से में बोला, "किसे कहा तुमने पागल?"
चाहत ने मुँह बनाते हुए तिरछी नज़रों से रोहन को देखते हुए कहा, "लो, दिमाग़ ही नहीं, बल्कि आँखें और कान भी ख़राब हैं इनके। इसका मतलब चलते-फिरते डिफ़ेक्टिव पीस हैं ये।"
फिर वो अपने सामने खड़े निहाल से बोली, "दिमाग़ ही नहीं, बल्कि इन्हें पूरा का पूरा ठीक करवाइए। वरना ऐसे ही ज़ोम्बी बनकर लोगों पर काट खाने को हमला करते फिरेंगे। वो तो इनकी किस्मत अच्छी है कि ये मुझे तब नहीं मिले जब मुझे घर जाने की जल्दी नहीं होती। वरना ऐसी तबीयत सेट करती ना मैं इनकी कि, किसी भी लड़की के पास भटकने की हिम्मत तक नहीं करते।"
फिर चाहत ने रोहन को ऊँगली दिखाते हुए वार्निंग टोन में कहा - " नेक्स्ट टाइम गलती से भी सामने मत आ जाइएगा मेरे, वर्ना उसवक्त मैं आज की तरह आपको इतने सस्ते में नहीं छोड़ने वाली | आज सिर्फ एक थप्पड़ से निपट गए आप, अगर नेक्स्ट टाइम आपने मुझसे इस तरह की बदतमीजी की ना, तो आपकी पूरी बॉडी की हड्डिया तोड़ कर रख दूंगी मैं | फिर जुड़वाते रहिएगा अपनी उन टूटी - फूटी हड्डियों को अपनी पूरी लाइफ में | "
इतना कहकर चाहत ने रोहन को एक नज़र घूरकर देखा और फिर वो वहाँ से जाने लगी। रोहन उसे जाते हुए गुस्से से देख रहा था। चाहत की एक - एक बात उसके ईगो को बुरी तरह से हर्ट कर चुकी थी और इसी वजह से वो इस वक्त इतने ज्यादा गुस्से में था की वो अभी के अभी चाहत को सबक सिखाने का ठान चूका था | इसलिए रोहन ने अपने कदम चाहत की तरफ जाने के लिए बढाए लेकिन तभी, रोहन को निहाल ने वैसा करने से रोक लिया |
निहाल ने रोहन से कहा - " जाने दे रोहन..."
निहाल की बात सुनते ही रोहन उसकी तरह पलटा और उससे बोला, "निहाल तुमने तो कहा था कि वो यहाँ है। तो ये लड़की यहाँ कैसे थी? और ये थी कौन जिसने मुझे यानी रोहन कपूर को थप्पड़ मारने की हिम्मत की और साथ-साथ बदतमीज़ और पता नहीं क्या-क्या कहकर चली गई।" फिर वो गुस्से से उसी ओर देखने लगा जिस ओर चाहत गई थी।
निहाल थोड़ा डरते हुए बोला, "रो...हन मुझे तो उसने यही कहा था कि वो... यहीं मिलेगी।" फिर निहाल चारों ओर नज़र घुमाकर देखता है और अपनी बात आगे कहता है, "और तुमने तो उस लड़की के हाथों में हैंड पर्स और और ब्लेज़र देखा था ना... जो..." निहाल आगे कुछ कहता तभी रोहन उसे गुस्से से घूरने लगा, इसलिए वो अपनी बात आगे कहते-कहते बिच में ही रुक गया और उसने अपनी नज़र नीचे झुका ली।
रोहन उसे गुस्से से घूरते हुए बोला, "ऐसे हैंडबैग और ब्लेज़र ना जाने कितने सारे हैं दुनिया में।" और फिर गुस्से में वो नदी की ओर अपना चेहरा करके खड़ा हो गया।
उधर, चाहत के भीतर अभी भी उस अनचाहे स्पर्श का गुस्सा खौल रहा था। उसके कदम तेज़ी से घाट से बाहर की ओर बढ़ रहे थे, मानो वह अपने अंदर की आग को बुझाना चाहती हो। इसी बीच, उसकी नज़र सामने से आती हुई तन्वी और वृशिका पर पड़ी। चाहत के चेहरे पर साफ दिख रहा था कि कुछ तो गलत हुआ है।
तन्वी ने चाहत को देखते ही चिंता से पूछा, "क्या हुआ तुझे? इतने गुस्से में क्यों है तू?" यह कहते हुए तन्वी ने प्यार से चाहत के चेहरे पर हाथ रखा, जैसे उसे छूकर उसके मन की बेचैनी को महसूस करना चाहती हो। वृशिका भी चाहत की ओर देखने लगी, उसकी आँखों में सवाल था, और वह चाहत के जवाब का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी।
चाहत इतनी गुस्से में थी कि उसने थोड़ी देर तक तो कुछ नहीं कहा। उसके दिमाग में अभी भी उस बदतमीज़ आदमी का चेहरा घूम रहा था, और उसकी हिम्मत पर उसे यक़ीन नहीं हो रहा था। लेकिन जब तन्वी और वृशिका ने एक साथ उससे पूछा, तो चाहत ने एक लंबी, गहरी साँस छोड़ी, मानो वह अपने अंदर की सारी भड़ास बाहर निकालना चाहती हो। उसने खुद को शांत किया और फिर बोली, "अरे यार, एक बदतमीज़ आदमी से मुलाक़ात हो गई थी। उसने मेरी कमर पर हाथ लगाया, तो मैंने एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया।" उसकी आवाज़ में अभी भी एक कड़वाहट थी, लेकिन दोस्तों के सामने दिल हल्का हो गया था।
यह सुनकर वृशिका और तन्वी दोनों के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक आया। तन्वी तुरंत तड़पकर बोली, "हिम्मत कैसे हुई उसकी तुझे छूने की? अच्छा हुआ तूने उसके गाल पर एक थप्पड़ बजा दिया। अरे मैं तो कहती हूँ कि उसे एक नहीं, बल्कि तीन-चार थप्पड़ लगाने थे, मार-मार के गाल सुजा देती उस घटिया इंसान का।" तन्वी गुस्से में उस रोहन पर कुढ़ते हुए बोल रही थी, मानो वह अभी जाकर उसे सबक सिखा देगी। उसकी आँखों में चमक थी, जो उसकी सच्ची दोस्ती और चाहत के प्रति चिंता को दर्शा रही थी।
उसकी ऐसी बातें सुनकर चाहत और वृशिका पहले तो एक-दूसरे को हैरानी से देखने लगीं। उन्हें यक़ीन नहीं हो रहा था कि तन्वी इतनी गुस्से में भी इतनी मज़ेदार बातें कर सकती है। फिर तन्वी की ओर देखकर वे ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगीं। उनकी हँसी पूरे माहौल को हल्का कर रही थी। तन्वी उन दोनों को हैरान नज़रों से देखने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी बात पर ये दोनों क्यों हँस रही हैं, जबकि वह इतनी गंभीर बात कर रही थी। फिर उसने उन दोनों से पूछा, "तुम दोनों हँस क्यों रही हो? एक तो इतनी सीरियस बात चल रही है और तुम दोनों ऐसे दाँत दिखा-दिखा के हँस रही हो। ऐसा भी क्या मज़ाक कर दिया मैंने।" इतना कहकर उसने रूठे बच्चे जैसा मुँह बना लिया, जैसे वह सचमुच नाराज़ हो गई हो।
चाहत ने तन्वी के गालों को प्यार से पिंच करते हुए कहा, "अच्छा हुआ उसने तुम्हें नहीं छेड़ा। वरना तुम तो उसकी शक्ल ही बिगाड़ कर आ जाती। बेचारा बच गया। वैसे भी वो चलता-फिरता डिफ़ेक्टिव पीस था। और अगर तू वहाँ होती, तो वो उस लायक भी नहीं रहता।" चाहत की बात सुनकर वृशिका भी मुस्कुराने लगी और बोली, "एक्ज़ैक्ट्ली, मेरा भी कुछ यही ख़्याल है।" इतना कहने के बाद वृशिका और चाहत दोनों फिर से ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगीं, तो तन्वी उन दोनों को गुस्से से घूरने लगी, लेकिन उसकी आँखों में भी कहीं न कहीं हँसी छिपी हुई थी। यह उनकी दोस्ती का अंदाज़ था, जहाँ गंभीर पलों में भी वे एक-दूसरे को हँसाने का मौका नहीं छोड़ते थे।
थोड़ी देर ऐसे ही बात करने और हँसी-मज़ाक करने के बाद, वृशिका ने अपनी बात रखी। उसने कहा, "चलो ठीक है, मैं अब चलती हूँ। कोई मेरा इंतज़ार कर रहा है। हम लोग फिर कभी मिलेंगे। तुम लोग मुझसे मिलोगी ना?" उसकी आवाज़ में थोड़ी झिझक थी, जैसे उसे डर था कि कहीं ये दोनों उसे भूल न जाएँ।
उसकी इस बात पर चाहत और तन्वी उसे घूरकर देखने लगीं। उन्हें लगा कि वृशिका ऐसी बातें क्यों कर रही है। फिर तन्वी बोली, "कैसी बात कर रही हो तुम? क्यों नहीं मिलेंगे? अब तुम हम दोनों की दोस्त बन गई हो तो तुमसे तो मिलना-जुलना होता रहेगा।" इतना कहते ही तन्वी मुस्कुरा दी, और उसके साथ वृशिका और चाहत भी मुस्कुराने लगीं। उनकी दोस्ती की एक नई शुरुआत हुई थी। फिर उन तीनों ने अपना फ़ोन नंबर एक्सचेंज किया, ताकि वे भविष्य में भी जुड़े रह सकें। उसके बाद वृशिका उन दोनों को 'बाय' कहकर वहाँ से चली गई और वे दोनों उसे वहाँ से जाते देख रहे थे, एक नई दोस्ती के सुकून भरे एहसास के साथ।
वृशिका के जाते ही, चाहत को अचानक कुछ याद आया। वह ज़ोर से बोली, "नहीं.. नहीं.. नहीं.." उसकी आवाज़ में एक घबराहट थी।
तो तन्वी ने हैरानी से पूछा, "क्या नहीं..?" उसे समझ नहीं आ रहा था कि चाहत को अचानक क्या हो गया।
चाहत ने तन्वी का हाथ कसकर पकड़ा और उसकी आँखों में देखते हुए बोली, "अरे! पागल, हम लोग लेट हो गए हैं। आज तो हम दोनों पक्का गए!" यह सोचकर कि घर पर उन्हें डाँट पड़ने वाली है, दोनों ने अपने-अपने सर पर हाथ रख लिया। उनके चेहरे पर अब मस्ती की जगह चिंता और डर साफ दिख रहा था। उन्हें पता था कि माँ की डाँट से बचना मुश्किल है।
फिर दोनों जल्दी-जल्दी घाट से बाहर निकलीं और अपनी स्कूटी तक पहुँचीं। चाहत ने तुरंत स्कूटी की डिग्गी में से एक हेलमेट और एक शॉल निकाली। उसने जल्दी से वह शॉल तन्वी को ओढ़ा दी ताकि उसे ठंड न लगे और खुद जल्दी से हेलमेट पहन लिया। चाहत स्कूटी चला रही थी और तन्वी उसके पीछे बैठी हुई थी। उनकी स्पीड देखकर लग रहा था कि वे कितनी जल्दी घर पहुँचना चाहती हैं। वे दोनों घाट से होकर बाज़ार तक पहुँच गईं और वहाँ जाकर चाहत ने स्कूटी रोक दी।
स्कूटी के रुकने पर तन्वी ने उससे पूछा, "स्कूटी क्यों रोक दी? घर नहीं चलना क्या? लेट हो रहा है।" उसकी आवाज़ में अधीरता थी, क्योंकि वे पहले ही काफ़ी लेट हो चुके थे।
चाहत स्कूटी से उतरते हुए बोली, "पता है। लेकिन मैं जल्दी से अपना एक काम करके आती हूँ। तुझे तो पता है ना, घर पर तुझे भले ही रोज़ डाँट पड़े या न पड़े, लेकिन मेरा तो तय है कि मुझे तो ज़रूर डाँट पड़नी है।" उसकी आवाज़ में थोड़ी निराशा थी, क्योंकि उसे पता था कि माँ उसे ज़रूर डाँटेंगी। "इसलिए ये समझ ले, वैसे तो मेरे पास डाँट से बचने का प्लान रेडी है। लेकिन अगर सिचुएशन ज़्यादा ख़राब हुई, तो उसके लिए मुझे अपने लिए तो बैकअप प्लान की ज़रूरत है ना। इसीलिए मैं उसी का इंतज़ाम करने जा रही हूँ।" चाहत की बात सुनकर तन्वी का माथा ठनक गया।
तन्वी उसकी बात नहीं समझी तो वह चिढ़कर बोली, "क्या बोल रही है तू? दिमाग़ ख़राब हो गया है क्या तेरा?" उसे लगा कि चाहत मज़ाक कर रही है या फिर घबराहट में कुछ भी बोल रही है।
चाहत उसे देखते हुए अपना हेलमेट उतार कर उसे पकड़ाते हुए बोली, "मैं अभी आती हूँ। और तू यहीं रुक। मैं आकर बताऊँगी सब कुछ।" यह कहकर वह जल्दी से वहाँ से चली गई और तन्वी उसे आवाज़ देती रह गई। चाहत जल्दी-जल्दी मार्केट में चल रही थी, उसकी नज़रें आस-पास घूम रही थीं, जैसे वह कुछ ढूँढ रही हो। लेकिन अचानक उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसका पीछा कर रहा है। यह एहसास इतना तेज़ था कि वह रुककर पीछे पलट कर चारों ओर देखने लगी, लेकिन उसे वहाँ ऐसा कोई नहीं दिखाई दिया। माहौल शांत था और केवल बाज़ार का शोर सुनाई दे रहा था। उसे लगा कि शायद यह सिर्फ़ उसका वहम था, इसलिए वह वापस पलट कर आगे चल दी, लेकिन उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी थी, एक अनजाना डर, जो उसके कदमों को थोड़ा धीमा कर रहा था। उसे नहीं पता था कि यह कौन था, या यह सिर्फ़ उसका भ्रम था, लेकिन यह एहसास उसे अजीब सा लग रहा था।
वहीं दूसरी तरफ त्रिवेणी घाट पर रोहन और निहाल अभी भी वहीं खड़े थे। रोहन का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वो गंगा नदी की ओर अपना चेहरा करके खड़ा था, उसके दिमाग में अभी भी उस थप्पड़ और चाहत की बातें घूम रही थीं। उसके भीतर एक आग सी लगी हुई थी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि किसी की हिम्मत कैसे हुई उसे, रोहन कपूर को थप्पड़ मारने की। ये उसके अहंकार पर सीधी चोट थी। उसे उस लड़की पर गुस्सा आ रहा था, जिसने उसकी बेइज़्ज़ती की थी।
रोहन गुस्से से भरी आवाज़ में बोला, "उस लड़की की हिम्मत कैसे हुई? मुझे थप्पड़ मारने की? अगर वो लड़की मेरे सामने फिर से आई तो मैं उसे बिल्कुल नहीं छोडूंगा।" उसकी आवाज़ में प्रतिशोध की भावना साफ़ झलक रही थी, मानो वो उस पल का इंतज़ार कर रहा हो जब उसे उस लड़की से बदला लेने का मौका मिले। निहाल उसे चुपचाप सुन रहा था, वो जानता था कि रोहन का गुस्सा कितना खतरनाक हो सकता है। उसने कभी रोहन को इतना गुस्से में नहीं देखा था।
तभी पीछे से एक परिचित आवाज़ आई, "रोहन, किसे नहीं छोड़ोगे तुम?" उस आवाज़ को सुनकर रोहन और निहाल एक साथ उस आवाज़ की ओर पलटे तो उन्होंने देखा वहाँ पर वृशिका खड़ी थी। वृशिका को देखकर रोहन के चेहरे पर हल्की सी राहत दिखी, लेकिन उसका गुस्सा अभी पूरी तरह से शांत नहीं हुआ था। वृशिका जल्दी से रोहन के पास आई और बिना कुछ कहे उसके गले लग गई। थोड़ी देर तक गले लगने के बाद वो उससे अलग हुई और फिर निहाल के पास गई और उसे भी जाकर उसने गले लगा लिया। वो निहाल से अलग हुई और उन दोनों को देखते हुए फिर से पूछने लगी, "रोहन तुम क्या बोल रहे थे? किसे नहीं छोड़ोगे तुम? किसे पकड़ रखा है तुमने?" उसकी आवाज़ में उत्सुकता थी, उसे पता नहीं था कि यहाँ क्या चल रहा है।
वृशिका के इतना पूछने पर निहाल जल्दी से आगे आया और बात को सँभालते हुए बोला, "कुछ नहीं, ऐसे ही बोल रहा है ये। तू बता, तुम्हें इतना टाइम कैसे लग गया?" ये पूछकर उसने हल्की सी आह भरी, जैसे वो वृशिका के सवालों से बचकर रोहन के गुस्से को शांत करना चाहता हो। उसे पता था कि अगर वृशिका को सच्चाई पता चली, तो क्या होगा।
निहाल के पूछने पर वृशिका ने अब तक जो उसके साथ हुआ था, वो सब उन दोनों को बताया। उसने अपनी नई दोस्तों चाहत और तन्वी के बारे में बताया, और कैसे उन्होंने पूजा में मदद की। निहाल उसे गौर से सुनता जा रहा था, उसके चेहरे पर अब थोड़ी चिंता दिख रही थी। लेकिन रोहन अभी भी गुस्से में वही सब सोच रहा था, उसके दिमाग में सिर्फ़ उस थप्पड़ और उस लड़की का चेहरा था। वृशिका अपनी बात बोलकर चुप हो गई, उसने सोचा कि शायद अब सब ठीक है।
वृशिका ने तभी अचानक से कुछ याद करते हुए आगे कहा, "तुम्हें पता है यहाँ पर ना, कुछ बदतमीज़ लोग भी हैं।" उसकी आवाज़ में थोड़ी गंभीरता थी, जिसे सुनकर निहाल चौकन्ना हो गया।
उसे ऐसा बोलते सुन निहाल ने उससे पूछा, "बदतमीज़ लोग मतलब? किसी ने तेरे साथ बदतमीज़ी की यहाँ पर? कौन है वो? बता मुझे, अभी बताता हूँ उसे।" इतना कहकर वो वृशिका के जवाब का बेसब्री से इंतज़ार करते हुए उसकी तरफ़ देखने लगा। उसे ऐसे गुस्से में देख वृशिका जल्दी से बोली, "नहीं.. नहीं! मेरे साथ किसी ने कुछ नहीं किया।" उसने तुरंत निहाल को शांत करने की कोशिश की, क्योंकि उसे नहीं चाहिए था कि उसकी वजह से कोई और मुसीबत खड़ी हो।
उसकी बात सुनकर निहाल ने पूछा, "तो फिर तू किसकी बात कर रही है?" उसके मन में अब भी सवाल थे। उसे डर था कि कहीं वृशिका उस घटना का ज़िक्र न कर दे।
इतना कहकर वृशिका निहाल और रोहन को सारी बातें बताने लगी, "वो तो मेरी अभी-जो नई दो दोस्त बनी थीं, जिसके बारे में मैंने तुम्हें अभी बताया था ना। उनमें से एक के साथ किसी ने बदतमीज़ी की थी, इसलिए मेरी दोस्त ने उसे खींच कर एक थप्पड़ लगा दिया।" पूरी बात सुनकर और ख़ासकर थप्पड़ की बात सुनकर निहाल चौंक गया। उसके चेहरे पर डर के भाव साफ़ दिख रहे थे। और वहीं रोहन वृशिका की ओर देखने लगा, उसकी आँखें अब वृशिका पर टिकी हुई थीं, मानो वो हर शब्द को तोल रहा हो। उसके कान अब पूरी तरह से वृशिका की बातों पर थे।
निहाल ने जल्दी से वृशिका से पूछा, "थप्पड़ किसे, कब और कहाँ?" उसकी आवाज़ में घबराहट थी, वो अब तक की पूरी कहानी समझने की कोशिश कर रहा था, और ये जानने के लिए उत्सुक था कि क्या ये वही घटना है जिसके बारे में वो सोच रहा था।
वृशिका पहले उसके इतनी जल्दी-जल्दी क्वेश्चंस पूछने से उसे हैरानी से देखने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निहाल इतना परेशान क्यों हो रहा है। फिर उसकी इस हरकत को इग्नोर करते हुए बोली, "ये ही इसी जगह पर, जहाँ हम लोग खड़े हैं, थोड़ी देर पहले की बात है।" वृशिका की बात सुनकर निहाल डरते हुए रोहन को देखने लगा, उसके चेहरे पर पीलापन छा गया था। उसकी नज़रें रोहन की आँखों में डर ढूँढ रही थीं। और रोहन ये सब बातें सुनकर और भी ज़्यादा गुस्से में आ रहा था, उसकी मुट्ठियाँ कस गईं थीं, उसके चेहरे पर एक कठोरता आ गई थी। उसके होंठ एक पतली रेखा में सिकुड़ गए थे।
निहाल डर के कारण हड़बड़ा कर वृशिका से बोला, "उस लड़की को ग़लतफ़हमी हुई होगी और उसने उस ग़लतफ़हमी के चक्कर में गलती से उस आदमी को थप्पड़ लगा दिया होगा। है ना..?" वो अपनी बात को सही साबित करने की कोशिश कर रहा था, ताकि रोहन का गुस्सा शांत हो सके। उसे उम्मीद थी कि वृशिका उसकी बात मान लेगी।
निहाल के इतना कहने पर रोहन उसे गुस्से से घूरने लगा, उसकी आँखों में एक चेतावनी थी। निहाल ने अपनी नज़रें जल्दी से नीचे कर लीं, उसे पता था कि रोहन अब और सुनना नहीं चाहता। रोहन की चुप्पी ही बहुत कुछ कह रही थी।
वृशिका उन दोनों के चेहरों के भाव को बिना देखे ही बोलने लगी, "बिलकुल भी नहीं, कोई ग़लतफ़हमी नहीं हुई थी। पता है वो कितना गुस्से में थी और जब मुझे और मेरी दूसरी दोस्त को ये बात पता चली तो हमें भी बहुत गुस्सा आया। मैं उसकी जगह होती ना, तो एक नहीं, बल्कि दो-दो थप्पड़ लगाती ऐसे बदतमीज़ इंसान को।" उसकी आवाज़ में दृढ़ता थी, वो अपनी दोस्त के पक्ष में खड़ी थी। उसे उस बदतमीज़ आदमी पर गुस्सा आ रहा था, जिसने उसकी दोस्त को परेशान किया था।
उसकी बात सुनकर निहाल तो उसे आगे कुछ भी न बोलने के लिए कुछ कहने ही वाला था कि, तभी उसने देखा रोहन गुस्से से वहाँ से जा रहा था। उसका चेहरा लाल था और उसके कदम तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे, जैसे वो इस जगह से दूर भागना चाहता हो। उसे इस बात पर यक़ीन नहीं हो रहा था कि उसकी ही दोस्त, जिसके सामने वो इज़्ज़तदार बनना चाहता था, उसी के सामने उसकी पोल खुल गई थी। रोहन को ऐसे जाते देख वृशिका उसे आवाज़ देने लगी, "रोहन! रोहन!" और जैसे ही उसकी ओर जाने लगी, निहाल ने उसका हाथ पकड़कर उसे पीछे खींच कर रोक लिया। निहाल के ऐसा करने पर वृशिका उससे बोली, "ये क्या है, निहाल? क्यों रोका मुझे? और वो रोहन ऐसे क्यों जा रहा है? वो मेरी आवाज़ भी नहीं सुन रहा है।" उसकी आवाज़ में थोड़ी चिंता और थोड़ी हैरानी थी।
निहाल ने कहा, "उसे जाने दो, वो अभी बहुत गुस्से में है। अभी उसे अकेला रहने दो।" उसकी आवाज़ में गंभीरता थी, वो जानता था कि इस समय रोहन से बात करना ठीक नहीं होगा। रोहन का गुस्सा किसी भी चीज़ को बर्बाद कर सकता था।
"उसे जाने दो, वो अभी बहुत गुस्से में है। अभी उसे अकेला रहने दो।" उसकी आवाज़ में गंभीरता थी, वो जानता था कि इस समय रोहन से बात करना ठीक नहीं होगा। रोहन का गुस्सा किसी भी चीज़ को बर्बाद कर सकता था।
निहाल के ऐसा कहने पर वृशिका उसे देखने लगी। उसके मन में कई सवाल थे। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि रोहन इतना गुस्सा क्यों है और निहाल उसे रोकने की कोशिश क्यों कर रहा है। फिर वो उसके पास आई और उससे वजह पूछने लगी, "गुस्सा? वो क्यों गुस्सा है? क्या बात हुई है? तुम लोग मुझसे क्या छुपा रहे हो?" उसकी आवाज़ में अब ज़िद थी, वो सच्चाई जानना चाहती थी। उसे महसूस हो रहा था कि कुछ तो है जो उससे छुपाया जा रहा है।
वृशिका के इतने सवाल सुनने के बाद निहाल ने एक लंबी आह भरी और अंततः सच्चाई बताने का फ़ैसला किया। वो बोला, "अभी जिस आदमी की तुम बात कर रही थी, वो... कोई और नहीं, बल्कि रोहन था।" उसकी आवाज़ धीमी थी, जैसे उसे डर हो कि वृशिका कैसे रिएक्ट करेगी। उसने नज़रें झुका लीं, क्योंकि उसे पता था कि अब क्या होने वाला है।
वृशिका को कुछ समझ नहीं आया और वो उससे बोली, "मैं किस आदमी की बात कर रही थी? और रोहन कहाँ से बीच में आ गया?" उसके दिमाग में अभी भी पूरी बात नहीं बैठी थी। उसका चेहरा उलझन में था।
इतने में वृशिका को कुछ याद आया और वो निहाल को शांत होकर हैरानी से देखने लगी। उसकी आँखों में धीरे-धीरे सच्चाई की झलक दिख रही थी। एक-एक करके सारे टुकड़े जुड़ने लगे थे। उसने अपनी आँखों के इशारे से उससे कहा, "वो आदमी...?" निहाल ने अपना सर हाँ में हिला दिया, उसकी नज़रें वृशिका पर टिकी थीं। जिसे देख वृशिका मूर्ति बनकर वैसे की वैसे ही खड़ी रह गई। उसका चेहरा अवाक था, जैसे उसे यक़ीन नहीं हो रहा हो। थोड़ी देर बाद वो ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी, उसकी हँसी पूरे घाट पर गूँज रही थी। ये हँसी हैरान करने वाली थी, क्योंकि ऐसे हालात में कोई कैसे हँस सकता है। ये हँसी रोहन के लिए नहीं थी, बल्कि इस पूरी सिचुएशन की विडंबना पर थी।
निहाल उसे हैरानी से घूरने लगा और उससे बोला, "हँस क्यों रही हो? एक तो तुम्हारी दोस्त ने रोहन को थप्पड़ मार दिया। और तुम्हें हँसी आ रही है।" उसकी आवाज़ में थोड़ा गुस्सा था, क्योंकि उसे लगा कि वृशिका स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं रही है। उसे रोहन की इज़्ज़त की फ़िक्र थी।
वृशिका हँसते हुए बोली, "रोहन को किसने कहा था कि जाकर उसकी कमर पकड़े और अपनी ओर उसे खींच ले। थप्पड़ न मारती तो क्या उसे प्यार से किस करती?" उसकी बात सुनकर निहाल की आँखें छोटी-छोटी हो गईं, उसे वृशिका के बेबाक जवाब की उम्मीद नहीं थी। वृशिका की हँसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
जिसे देख वृशिका ने फिर से बोली, "ओ.. ओ.. ओ.. मिस्टर निहाल, वो ऐसी-वैसी लड़की नहीं है। समझ आया? मैं जितनी देर भी उसके साथ रही थी, उतनी देर में मुझे पता चल गया था कि वो बहुत अच्छी और बहुत ही स्ट्रॉन्ग लड़की है। बाकी की लड़कियों जैसी तो बिलकुल भी नहीं है। पर हाँ, बेचारा रोहन, उसका गलत लड़की से पाला पड़ गया और पहली मुलाकात में उससे थप्पड़ भी खा लिया उसने।" वृशिका ने ये सब झूठी फ़िक्र दिखाते हुए कहा और इतना कहने के बाद वो फिर से हँसने लगी, उसकी हँसी में रोहन के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी, बल्कि उसके मन में इस पूरी घटना का मज़ाक चल रहा था।
निहाल उसको हँसता हुआ देखकर उससे बोला, "अच्छा हुआ रोहन यहाँ से चला गया। अगर खुद पर तुझे हँसते हुए देखता तो उस लड़की का तो पता नहीं, तुझे इस गंगा के पानी में डुबो-डुबो के मार देता। और तू एक बात ध्यान से सुन ले। आगे से इस बात का ध्यान रखना कि होटल में जाकर उससे इस टॉपिक पर बिलकुल भी बात मत करना। समझ आई तुझे.. बात।" इतना कहकर वो चिढ़ते हुए वहाँ से जाने लगा और वृशिका हँसते-हँसते उसके पीछे-पीछे जाते हुए उसे आवाज़ें देने लगी, "अरे निहाल, सुनो तो... निहाल!," लेकिन निहाल ने उसकी एक न सुनी और तेज़ी से आगे बढ़ गया, उसके मन में अब भी इस अजीब घटना को लेकर कई सवाल थे और रोहन के गुस्से की चिंता भी। उसे पता था कि अगर रोहन को वृशिका की हँसी का पता चला, तो क्या होगा।
वही त्रिवेणी मार्केट में,
रात के 8 बजकर 15 मिनट हो चुके थे। दिन भर की भाग-दौड़ अब थोड़ी धीमी पड़ चुकी थी, पर हल्की-फुल्की चहल-पहल अभी भी दिख रही थी। इन सबके बीच, तन्वी पिछले 20 मिनट से अपनी स्कूटी के पास खड़ी, चाहत का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। हर बीतता पल उसे बेचैन कर रहा था। उसकी नज़रें दूर-दूर तक चाहत को ढूँढ रही थीं, पर चाहत का कोई अता-पता नहीं था, न ही उसके आने के कोई आसार दिख रहे थे। तन्वी के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई थीं। उसे घर देर होने की फ़िक्र खाए जा रही थी। वह कभी इधर, तो कभी उधर टहलने लगती, मानो उसकी बेचैनी उसे एक जगह टिकने नहीं दे रही हो।
तभी उसकी नज़र चाहत पर पड़ी। चाहत हाथ में एक छोटा-सा बॉक्स लिए उसकी तरफ़ ही आ रही थी। उसे देखते ही तन्वी के मन में राहत तो आई, पर साथ ही गुस्सा भी फूट पड़ा। वह तेज़ी से चाहत की तरफ़ बढ़ी और उसकी ओर उँगली करते हुए तेज़ आवाज़ में बोली, "कहाँ चली गई थी तू? कब से मैं तेरा इंतज़ार कर रही हूँ। तुझे पता है ना घर जाने में कितनी देर हो गई है? और तेरा यहाँ अता-पता ही नहीं है। अब बता भी... कहाँ चली गई थी? और ये हाथ में क्या लेकर आई है?" तन्वी की आवाज़ में हड़बड़ाहट और परेशानी साफ झलक रही थी, जैसे वह बस अब और इंतज़ार नहीं कर सकती।
चाहत ने देखा कि तन्वी बहुत ज़्यादा स्ट्रेस में थी और ज़्यादा चलने की वजह से हाँफ रही थी। चाहत को लगा कि पहले तन्वी को शांत करना ज़्यादा ज़रूरी है। वह जल्दी-जल्दी तन्वी के पास पहुँची और बिना कुछ कहे, उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी स्कूटी के पास ले जाने लगी। चाहत ने तुरंत स्कूटी की डिग्गी खोली और उसमें से एक पानी की बोतल निकाल कर तन्वी को पानी पिलाया। तन्वी ने जैसे ही पानी का पहला घूँट लिया, उसे थोड़ी राहत मिली। पानी पीने के बाद तन्वी थोड़ी शांत हुई, उसकी साँसें थोड़ी सामान्य हुईं। उसके चेहरे पर जो तनाव था, वह थोड़ा कम होता दिखा।
चाहत ने उसे देखते हुए प्यार भरी डाँट लगाई, "कितनी बार कहा है तुझे ज़्यादा टेंशन मत लिया कर, लेकिन तू... कभी मेरी बात सुनती क्यों नहीं है?" उसकी आवाज़ में एक हल्की-सी शिकायत थी, पर उसमें प्यार और फ़िक्र ज़्यादा थी। उसे तन्वी की इतनी चिंता करने की आदत पता थी।
तन्वी लंबी-लंबी साँसें लेते हुए बोली, "वो तो... तू पता नहीं कहाँ... चली गई थी? मुझे तो टेंशन हो गई थी और घर जाने के लिए भी देर हो रही है ना इसलिए।" उसकी आवाज़ अभी भी पूरी तरह से स्थिर नहीं थी, लेकिन चिंता थोड़ी कम हुई थी। वह चाहत की आँखों में देखकर अपनी परेशानी बता रही थी।
चाहत ने हल्के से उसके सर पर थपकी मारते हुए कहा, "मैंने कहा था ना मैं आ रही हूँ। फिर टेंशन लेने की क्या ज़रूरत थी? अब... चल, यह बता अभी तू कैसा फील कर रही है?" उसकी आवाज़ में अब थोड़ी मस्ती थी, क्योंकि उसे पता था कि तन्वी अब शांत हो चुकी है और अब उनसे घर जाने के लिए डाँट नहीं पड़ेगी।
तन्वी चाहत के हाथ में हेलमेट पकड़ाते हुए बोली, "अब अच्छा फील हो रहा है। चल अब चलते हैं, नहीं तो घर पर हम दोनों बिलकुल अच्छा फील नहीं करेंगे।" उसकी बात सुनकर चाहत मुस्कुरा दी। उसे पता था कि तन्वी का इशारा उनकी मासी की डाँट की तरफ़ था, जो देर होने पर उन्हें ज़रूर पड़ती। फिर वे दोनों स्कूटी पर बैठकर घर की ओर चल दीं, मार्केट की हल्की-फुल्की रोशनी को पीछे छोड़ते हुए। अब उनका ध्यान बस घर पहुँचने पर था, ताकि वे मासी की डाँट से बच सकें और एक सुकून भरी रात बिता सकें।