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"मैं इश्क़ लिखूं" (लव गुरु)

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जब जज़्बातों की स्याही से काग़ज़ पर मोहब्बत उतरती है, तो हर लफ़्ज़ में एक रहस्य छुपा होता है। "मैं इश्क़ लिखूं" — एक जादुई सफर, जहाँ प्यार सिर्फ महसूस नहीं होता, बल्कि तक़दीर भी बदलता है। हर एपिसोड में आपको मिलेगा इश्क़, दर्द, और अधूरी दुआओं का वो च...

Total Chapters (4)

Page 1 of 1

  • 1. "मैं इश्क़ लिखूं" (लव गुरु) - Chapter 1

    Words: 1363

    Estimated Reading Time: 9 min

    📍"तेरे हिस्से का इश्क़…"

    "अवी! तुझे पता है!"

    बीस साल का एक लड़का लाइब्रेरी की खामोशी को तोड़ता हुआ, एक्साइटमेंट में बोलते हुए तेज़ी से भीतर आया।

    लेकिन अचानक उसे होश आया कि वो लाइब्रेरी में है। उसने फौरन खुद को संभाला, कान पकड़ते हुए चारों ओर मौजूद रीडर्स से धीरे से माफ़ी मांगी और फिर उस लड़के की ओर बढ़ा जो उसकी आवाज़ सुनकर पहले ही उसे देख रहा था।

    धीरे से झुककर उसने उसके कान में कहा —

    "ध्रुव इंडिया आ रहा है।"

    अवीर — पच्चीस साल का, स्मार्ट, हैंडसम, शांत लेकिन गहराई से भरा हुआ चेहरा।

    वो उसकी बात सुनकर जरा भी चौंका नहीं। बस बिना कुछ कहे उस लड़के के साथ लाइब्रेरी से बाहर निकल गया।

    बाहर आते ही अवीर ने पूछा —

    "समीर! लाइब्रेरी में कोई ऐसे चिल्लाता है क्या? और तुझे किसने कहा कि ध्रुव इंडिया आ रहा है?"

    समीर:

    "सॉरी फॉर दैट, बट यार मैं इतना एक्साइटमेंट में था की... अच्छा, ये सब छोड़ और जल्दी एयरपोर्ट के लिए निकल... अभी कुछ ही देर में ध्रुव एयरपोर्ट पहुंचने वाला होगा।"

    अवीर (थोड़ा तल्ख़ होकर):

    "अजीब है... ध्रुव इंडिया आ रहा है और उसने मुझे — अपने बेस्ट फ्रेंड को — एक बार बताना भी जरूरी नहीं समझा...? चल ये छोड़, तू मेरे स्टूडियो जा... मैं एयरपोर्ट जा रहा हूं।"

    समीर:

    "पर मेरी डेट है आज... मैं कैसे..."

    अवीर:

    "ध्रुव कौन?"

    समीर:

    "तेरा बेस्ट फ्रेंड!"

    अवीर:

    "उसे एयरपोर्ट से पिक कौन करेगा?"

    समीर:

    "तू भूल गया है क्या जो मुझसे पूछ रहा... ऑफकोर्स तू करेगा!"

    अवीर (स्माइल के साथ):

    "तो समीर बेटा... आपको स्टूडियो जाना होगा... ठीक है! अब मैं जा रहा हूं..."

    समीर कुछ आगे बोल पाता, उससे पहले ही अवीर अपनी कार लेकर निकल गया।

    समीर मुंह बनाते हुए बड़बड़ाया —

    "किसने बनाया इसको लव गुरु... जो मेरे लव की नैया पार ही नहीं होने देता! हुह्ह..." 😒

    🎭 [इंट्रो — लव गुरु का रहस्य]

    अवीर — वो एक लव गुरु था।

    जिसके पास कुछ अनोखी, अद्भुत शक्तियां थीं।

    वो न सिर्फ लोगों का Past और Future देख सकता था, बल्कि उसे बदल भी सकता था।

    पर शर्त ये थी — अगर वो Past की कोई घटना बदलता है,

    तो वो अपने समय को पीछे नहीं कर सकेगा।

    मतलब?

    उसके फ्यूचर में उसके उतने ही साल कम हो जाएंगे।

    🛬 [एयरपोर्ट]

    एयरपोर्ट पर पहुंचकर अवीर कार से उतरा।

    वो भीड़ में किसी खास चेहरे की तलाश कर रहा था।

    और तभी उसकी नजर उस पर पड़ी।

    ब्लू कलर का थ्री पीस सूट पहने, कुछ बॉडीगार्ड्स के बीच चलता हुआ एक नौजवान।

    जैसे ही उसने अवीर को देखा, उसने अपने बॉडीगार्ड्स को इशारा किया और सबको वहां से जाने को कहा।

    एक हल्की-सी मुस्कान और गले मिलते ही दोनों कार की ओर बढ़ने लगे।

    अवीर:

    "अपने बॉडीगार्ड्स को क्यों भेज दिया?"

    ध्रुव (कार में बैठते हुए):

    "मेरे पास लव गुरु है जो अपने लव डोज से सबकी छुट्टी कर दे... तो मुझे लगा उनकी मुझे क्या जरूरत।"

    अवीर (हँसते हुए):

    "क्या यार! कुछ भी.... चल बता अब इंडिया किस वजह से आना हुआ... बिना कोई बड़ी वजह के तू इंडिया आ ही नहीं सकता।"

    ध्रुव (मायूसी से):

    "हम्मम... एक तू ही मुझे अच्छी तरह से जानता है... बस उम्मीद है मेरी वजह जानने के बाद तू मुझे समझेगा..."

    अवीर (थोड़ा कंफ्यूज़ होकर):

    "Oky! तो बता तेरी वजह... सफर लंबा है... इतने में तू समझा देगा और शायद मैं समझ भी जाऊं।"

    ध्रुव सोचते हुए, पीछे देखने लगा... और फिर कहानी शुरू हुई।

    🕯️ [फ्लैशबैक — लंदन]

    ध्रुव एक ऊंची इमारत की छत पर था, खुले आसमान के नीचे।

    वो एक लड़की को बेतहाशा चूम रहा था — उस चुम्बन में गहराई, दर्द और मोहब्बत थी।

    उसकी आंखों में नमी थी।

    एक लंबी सांस और अहसास के बाद जब दोनों अलग हुए,

    लड़की — जिसकी खूबसूरती शब्दों से परे थी — मुस्कुराते हुए उसकी आंखों में देख रही थी।

    ध्रुव ने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और धीमे से कहा —

    "अतिथि..!"

    ध्रुव कुछ कहने ही वाला था कि चुप हो गया और उसने चेहरा फेर लिया।

    अतिथि (पीछे से उसे बाहों में भरते हुए):

    "ध्रुव, मुझे यकीन नहीं हो रहा कल हमारी शादी है... जिसका मैंने कितने सालों से इंतजार किया... और अब फाइनली!"

    वो उसकी पीठ से लगी रही, आंखें बंद कर सुकून से मुस्कुरा रही थी।

    ध्रुव (अपने आंसू छुपाते हुए, फीकी मुस्कान के साथ):

    "अतिथि... तुम सच में मुझसे शादी करोगी?"

    अतिथि:

    "हा हा हा... मिस्टर खडूस!"

    इतना कहकर अतिथि ध्रुव के गले लग गई।

    👰 [अगले दिन — शादी का दिन]

    सारी रस्में हो चुकी थीं।

    मंडप में, जैसे ही दूल्हा दुल्हन की मांग भर रहा था —

    अतिथि की नजर घूंघट से होते हुए दूल्हे के हाथ के अंगूठे पर पड़ी।

    वो ठिठक गई।

    उस अंगूठे पर वो तिल नहीं था।

    जो ध्रुव की पहचान थी।

    अतिथि चौंक गई और झट से खड़ी हो गई।

    "ये क्या मजाक है.... ध्रुव कहाँ हो तुम!!!!"

    कुछ देर बाद दूल्हा खड़ा हुआ और उसने शेरा उठाया।

    वो ध्रुव नहीं था।

    🕰️ [फ्लैशबैक एंड — वर्तमान]

    अवीर ने झट से ब्रेक लगाए।

    उसके माथे पर बल थे। आँखों में गुस्सा।

    "क्यों?!!!!"

    "आखिर क्यों?"

    ध्रुव (मासूमियत से):

    "मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं था..."

    अवीर:

    "मैंने जो कुछ भी देखा, सुना और समझा... उसमें ये समझ आया कि तेरी जगह तेरा भाई क्यों था... हा?

    जब तुझे शादी नहीं करनी थी तो अतिथि को इतने सपने क्यूं दिखाए?"

    ध्रुव फिर चुप हो गया।

    🧩 [फ्लैशबैक — सच्चाई का खुलासा]

    ध्रुव सामने खड़ा था।

    अतिथि झर-झर आंसू बहाते हुए उसका सीना पीट रही थी।

    "क्यों? क्यों! ध्रुव आखिर क्यों तुमने ये किया... हम कितने खुश थे... हमने कितने सपने देखे...

    उन सपनों को तुमने एक झटके में तोड़ दिया... और मुझे किसी ओर की दुल्हन बना दिया... क्यों!"

    वो ध्रुव के कदमों में गिर गई।

    ध्रुव झुका, उसका चेहरा थामा, और कहा —

    "तुम्हें ये करना होगा अतिथि... ये जरूरी है...

    मेरे भाई को बचाने का एक यही रास्ता है...

    एक तुम ही हो जो उन्हें ठीक कर सकती हो... वरना वो फिर से..."

    अतिथि (गुस्से में):

    "किसने हक़ दिया तुम्हे मेरी ज़िंदगी के साथ खेलने का? हा!

    मैं कोई चीज़ हूं जो तुम्हारा मन किया और तुमने मुझे किसी और को सौंप दिया..."

    ध्रुव शर्मिंदगी से, दर्द में डूबा कुछ कहना चाह रहा था —

    "अ... अतिथि... मैं..."

    "चुप!!!!"

    (एक ज़ोरदार थप्पड़)

    तभी पीछे से — अनिरुद्ध — बच्चों की तरह हरकतें करता हुआ रोने लगा।

    अनिरुद्ध:

    "एं... एंजेल, तुम... तुम मेरे भाई से ऐसे तेज़ आवाज़ में बात क्यों कर रही हो?"

    अतिथि (गुस्से में, बिना होश खोए):

    "चुप!!! एकदम चुप! बहुत खेल... खेल लिया अब कोई कुछ नहीं बोलेगा..."

    अतिथि ने चारों ओर देखा — रिश्तेदार, डीलर्स, सब स्तब्ध।

    उसने अपने पेरेंट्स को देखा — जो पहले से इस शादी से नाखुश थे —

    अब तो जैसे उनकी इच्छा पूरी हो गई।

    अतिथि:

    "आप सबका दिल से शुक्रिया मेरी ज़िंदगी के तमाशे में आने के लिए..."

    (ध्रुव को घूरती हुई)

    "अब आप सभी जा सकते हैं..."

    उसने अपने गले से मंगलसूत्र खींच कर तोड़ा और कहा —

    "ध्रुव सिंघानिया... थैंक यू!

    हो सके तो मुझे कभी नजर मत आना..."

    मंगलसूत्र के मोती ज़मीन पर बिखर गए।

    वो रोती हुई सीढ़ियों की ओर दौड़ी।

    ध्रुव की आंखों से भी आंसू बह निकले।

    🛑 [फ्लैशबैक समाप्त]

    अवीर:

    "तुझे लगता है तू बहुत होशियार है? अतिथि को तेरी तक़दीर में मैंने लिखा है...

    और तू उसे अनिरुद्ध को सौंपना चाहता है?

    और तू सोचता है मैं तेरा इस बेवकूफी में साथ दूंगा?"

    (व्यंग्यात्मक मुस्कान)

    ध्रुव:

    "ये शादी हो जाती तो सब सही रहता...

    तुझे पता है डॉक्टर ने कहा है कि भाई ठीक हो सकते हैं अगर अतिथि उनकी ज़िंदगी में आ जाए...

    वो उनकी याद्दाश्त वापस ला सकती है...

    क्योंकि वो अपने पास अतिथि के अलावा किसी को नहीं आने देते...

    भाई सिर्फ अतिथि की बातें मानते हैं... इसलिए।"

    अवीर (झुंझलाकर):

    "इसलिए तू चला अतिथि की ज़िंदगी बर्बाद करने... हा!"

    ध्रुव:

    "मैं डिसाइड कर चुका हूं... तुझे मेरी मदद करनी होगी।"

    अवीर:

    "क्या मतलब है तेरा?"

    ध्रुव:

    "अवी! जैसे तूने मेरी किस्मत में अतिथि को लिखा था, उसे मिटा दे... सब बदल दे...

    तू पास्ट चेंज कर सकता है... अतिथि को..."

    अवीर (बीच में काटते हुए): "तू चाहता है... मैं तेरे हिस्से का इश्क़... किसी ओर के हिस्से में लिख दूं?"

    [Episode 1 — End]

  • 2. "मैं इश्क़ लिखूं" (लव गुरु) - Chapter 2

    Words: 900

    Estimated Reading Time: 6 min

    📍🍂 "तू उसे खोना चाहता है?"

    अवीर ने बात खत्म की और होटल के सामने कार रोकी।

    ध्रुव ने गहरी उदासी से उसकी ओर देखा और कहा —

    "अब बस यही एक तरीका है... मैंने हर मुमकिन कोशिश कर ली... अब आख़री ऑप्शन यही है।"

    अवीर (गंभीर स्वर में):

    "ध्रुव! मैं चाहूं तो भी वक्त को पीछे नहीं कर सकता...

    तेरा और अतिथि का रिश्ता 6 साल पुराना है —

    इतना पीछे जाने पर मैं सर्वाइव नहीं कर पाऊंगा...

    ये मेरी शक्तियों की शर्त है।"

    ध्रुव (हैरानी से):

    "इसके बारे में तूने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?"

    अवीर:

    "ज़रूरी नहीं लगा।"

    ध्रुव:

    "कोई बात नहीं अवी... मैं सोच लूंगा मुझे क्या करना है।"

    अवीर (संशय में):

    "तू क्या करना चाहता है?"

    ध्रुव:

    "अतिथि को खुद से दूर।"

    अवीर (हैरत में):

    "जिसे पाने के लिए तूने ज़मीन आसमान एक कर दिया... आज उसे दूर करना चाहता है?"

    ध्रुव चुप रहा और कार से बाहर निकल गया।

    🏢 [लंदन — मित्तल इंडस्ट्रीज़]

    केबिन में —

    अतिथि अपने फोन की स्क्रीन को गहराई से देख रही थी।

    तभी उसकी असिस्टेंट भीतर आई —

    "मैम, ये वो फाइल्स हैं जो आपने मंगाई थी।"

    अतिथि (बिना देखे):

    "यहां रख दो।"

    असिस्टेंट (संकोच से):

    "मैम! वो..."

    अतिथि (तीखी नज़र से):

    "जो कहना है... कहो?"

    "मैम! मिस्टर ध्रुव सिंघानिया..."

    अतिथि (ध्यान से):

    "हां?"

    "शादी कर रहे हैं।"

    अतिथि के चेहरे पर कोई भाव नहीं उभरा।

    बस हल्की सी झलक आई और उसने शांत स्वर में कहा —

    "ठीक है, तुम जा सकती हो।"

    जैसे ही असिस्टेंट बाहर गई,

    अतिथि ने अपने मोबाइल की स्क्रीन पर ध्रुव के साथ वाली तस्वीर को देखा।

    वो तस्वीर जिसे वो अब भी नहीं हटा सकी थी।

    "वाह! ध्रुव... मज़ाक है ना तुम्हारे लिए सब....

    दो दिन पहले मुझसे झूठा वादा कर रहे थे और अब किसी और से...

    ऐसे क्यों...

    तुम मेरे ध्रुव नहीं हो सकते...

    मैंने जिससे प्यार किया वो ऐसा कभी कर ही नहीं सकता..."

    आँखों की नमी अब गालों पर उतर आई थी।

    🌃 [इंडिया— रात्रि]

    अवीर —

    अपने अपार्टमेंट में बैठा कॉफी पी रहा था।

    फोन स्क्रॉल करते हुए उसे एक खबर दिखाई दी —

    "ध्रुव सिंघानिया की शादी की अनाउंसमेंट..."

    अवीर (मुस्कराते हुए):

    "अच्छा बेटा... मेरी लिखी कहानी बदलने की कोशिश...

    नॉट बैड... पर मैं भी लव गुरु हूं...

    होगा वही जो मैंने सोचा है।"

    वो सोचते हुए किचन में गया।

    फ्रिज खोला — लेकिन जो चाहिए था, वो नहीं मिला।

    "चल बेटा अवीर... मार्केट जाना ही पड़ेगा..."

    समय देखा, जैकेट पहनी और कार लेकर निकल गया।

    🚦 [मार्केट रोड]

    बारिश के कारण सड़क पर पानी से भरे गड्ढे थे।

    जैसे ही अवीर की कार ने एक गड्ढे को पार किया,

    पास से निकल रही स्कूटी पर कीचड़ उछल गया।

    स्कूटी पर दो लड़कियाँ थीं —

    दोनों के कपड़े कीचड़ से खराब हो चुके थे।

    सिग्नल पर कार रुकी।

    लड़कियाँ गुस्से में स्कूटी लेकर कार के पास आईं और शीशा थपथपाया।

    अवीर ने शीशा नीचे किया।

    जैसे ही उसने उनके कपड़ों की हालत देखी,

    उसे कुछ संकोच हुआ और उसने पैसे निकालकर आगे बढ़ा दिए।

    लेकिन गुस्से से तमतमाई एक लड़की भड़क उठी —

    "बाहर निकलो!"

    अवीर:

    "ये काफी नहीं है?"

    "तुम्हें हम भिखारी नजर आ रहे हैं...?

    अभी के अभी बाहर निकलो!"

    अवीर (मन में):

    "क्या मुसीबत है यार..."

    वो गाड़ी से बाहर निकला।

    जैसे ही उसने लड़की का चेहरा देखा —

    गुस्से से सजी भौंहें, गोल गोरा चेहरा —

    एक पल को वो उसकी मासूम गुस्सेभरी सुंदरता में खो गया।

    लेकिन अगले ही क्षण उसकी नजर उनके कपड़ों पर पड़ी और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ।

    "फैल गया रायता..."

    (हाथ से माथा पीटते हुए)

    "देखिए आई एम रियली सॉरी...

    रात के अंधेरे में मुझे वो गड्ढा नजर नहीं आया..."

    लड़की (व्यंग्य में):

    "ओह! तो आपको ये गड्ढा नजर नहीं आया...?

    तो मिस्टर, या तो आंखों का इलाज कराओ या चश्मा लगाओ...

    पूरी ड्रेस खराब कर दी।"

    दूसरी लड़की, शांत और समझदार स्वर में बोली —

    "प्रियल... शांत हो जा... देख, वो माफ़ी मांग रहा है।"

    अवीर (सहमति में सिर हिलाते हुए):

    (मौन में क्षमा याचना)

    प्रियल:

    "शांत हो जाऊं...? तूने देखा नहीं काव्या...?

    अगर हम इसे बाहर ना निकलते तो इन जनाब को गड्ढे के साथ साथ अपनी गलती भी नजर नहीं आती...ये हमे पैसे देके निकल रहा था! "

    अवीर (मन में):

    "कहां फंस गया यार..."

    अवीर:

    "देखिए मिस प्रिया... प्रियल... जो भी आपका नाम है,

    आई एम एक्सट्रीमली सॉरी... मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था..."

    प्रियल और कुछ कहने ही वाली थी कि काव्या ने उसे रोका —

    "देख यार प्रियल... हमें देर हो रही है...

    माफ़ी मांग रहा है ना वो... अब चल जल्दी..."

    काव्या (सख्त स्वर में अवीर से):

    "हमने तुम्हें माफ़ किया... पर अगली बार से आंखें खोल कर कार चलाना।"

    अवीर (सिर झुकाकर स्वीकार करता है)

    प्रियल उसे गुस्से में घूरती हुई चली गई।

    जैसे ही रोड क्लियर हुआ,

    अवीर कार में बैठा और खुद से कहा —

    "इतना गुस्सा...

    क्यूट थी पर...

    लेट हो रहा है वरना लव डोज़ का यूज ज़रूर करता...

    फिर देखना दिलचस्प होता...

    जो बातें उसने गुस्से में सुनाई, वो प्यार से कैसे सुनाती..."

    वो सोचकर मुस्कुरा दिया।

    🍦 [आइसक्रीम — सच्चा प्यार]

    अवीर ने आइसक्रीम पार्लर से ढेर सारी आइसक्रीम खरीदी।

    कार में बैठते हुए बोला —

    "जो मुझे चाहिए था वो मिल गया...

    लव गुरु का पहला प्यार — मेरी प्यारी आइसक्रीम!"

    तभी उसका मोबाइल बजा।

    स्क्रीन पर नाम चमक रहा था —

    "ध्रुव"

    कॉल रिसीव करते ही घबराई हुई आवाज़ आई —

    "अवीर...! अतिथि..."

    🕯️ [एपिसोड 2 — समाप्त]

  • 3. "मैं इश्क़ लिखूं" (लव गुरु) - Chapter 3

    Words: 1129

    Estimated Reading Time: 7 min

    🚗 "जब मुहब्बत मुंबई उतरती है..."

    अवीर ने अतिथि नाम सुनते ही उत्सुकता से पूछा —

    "अतिथि... इंडिया आ रही है, राइट?"

    ध्रुव (हैरानी से):

    "तुझे कैसे पता?"

    अवीर (मुस्कराते हुए):

    "भूल गया क्या... मैं लव गुरु हूँ और मैं फ्यूचर देख सकता हूँ मेरे भाई!"

    ध्रुव (हँसते हुए):

    "ओह! हाँ यार... दिमाग से ही निकल गया...

    पर प्रॉब्लम ये है कि अतिथि इंडिया क्यों आ रही है?"

    अवीर (कार आगे बढ़ाते हुए, शरारती अंदाज़ में):

    "तेरी शादी देखने!"

    ध्रुव (झट से):

    "हां...? पर मैं उसके सामने किसी और से शादी कैसे कर सकता हूँ!"

    अवीर (बिल्कुल सहज स्वर में):

    "तो मत कर!"

    ध्रुव (झुंझलाकर):

    "अवी!"

    इतना बोलकर ध्रुव ने कॉल काट दिया।

    अवीर हल्का हँसते हुए म्यूज़िक सिस्टम ऑन करता है और बेफिक्र सा घर की ओर बढ़ता जाता है।

    🏠 "काव्या की चाची का चमत्कारिक चेहरा"

    प्रियल और काव्या की स्कूटी एक घर के सामने रुकी।

    काव्या जल्दी से जाकर डोरबेल बजाती है — जैसे उसे पूरा यकीन हो कि आज तो डांट पड़नी ही है।

    दरवाज़ा खुलता है।

    सामने चाची जी खड़ी थीं — पहले तो गुस्से में दिख रही थीं,

    लेकिन जैसे ही उनकी नज़र प्रियल पर पड़ी —

    वो मन ही मन सोचने लगीं —

    "अरे! ये तो मशहूर डॉक्टर वंदना राठौड़ की बेटी प्रियल राठौड़ है...

    हाय! काव्या ने पहली बार किसी काम की लड़की को दोस्त बनाया है..."

    चाची को ख्यालों में गुम देख काव्या डरते हुए बोली —

    "अ... मम्म... चाची?... ये प्रियल है मेरी..."

    चाची झूठी मुस्कान फैलाते हुए तुरंत लहजा बदल देती हैं —

    "अरे! काव्या बेटा... बाहर क्यों खड़ी हो, अंदर आओ... और अपनी दोस्त को भी लाओ!"

    प्रियल, जो चाची के बदले हुए व्यवहार को समझने की कोशिश कर रही थी,

    फिर कुछ सोचकर हाथ जोड़कर नमस्ते कहती है और काव्या के साथ अंदर जाकर सोफे पर बैठ जाती है।

    "अरे रमाया! ज़रा पता करो ये लड़की कहाँ रह गई!"

    — एक अधेड़ उम्र के आदमी (काव्या के चाचा) की आवाज़ आती है।

    काव्या जल्दी से बोलती है —

    "चाचा जी! मैं आ गई!"

    अनीश अग्रवाल (काव्या का चाचा) बाहर आते हैं।

    जैसे ही उनकी नज़र प्रियल पर पड़ती है, वो उसे तुरंत पहचान लेते हैं —

    आख़िर क्यों नहीं — प्रियल भी अपनी माँ की तरह एक होनहार सर्जन थी,

    जिनकी तस्वीरें न्यूज़पेपर में छपती रहती थीं।

    "अरे! प्रियल राठौड़ — मशहूर डॉक्टर?"

    प्रियल मुस्कुराहट के साथ नमस्ते करती है।

    अनीश:

    "रमाया! जाओ बच्चों के लिए चाय-पानी लेकर आओ कुछ..."

    प्रियल:

    "नहीं अंकल, मुझे निकलना होगा... मेरी रात की शिफ्ट है।"

    काव्या:

    "हाँ चाचा जी, प्रियल को जाना होगा..."

    रमाया:

    "ठीक है ठीक है... चले जाना... पहले अपने कपड़े बदल लो...

    काव्या, जा अपनी दोस्त को रूम में लेकर जा।"

    काव्या:

    "अरे हाँ प्रियल, मैं तो भूल ही गई... चल!"

    प्रियल:

    "इसकी ज़रूरत नहीं थी... मैं हॉस्पिटल में ही कुछ..."

    काव्या उसकी बात सुने बिना उसे रूम में ले जाती है।

    कुछ देर बाद,

    प्रियल कपड़े बदलकर टैक्सी से हॉस्पिटल के लिए निकल जाती है।

    🏥 "संजीवनी प्राइवेट हॉस्पिटल"

    प्रियल जल्दी से अपनी कलीग निधि के पास जाती है —

    "निधि! जल्दी से केस फाइल दे! यार बहुत लेट हो गया!"

    निधि कुछ इशारों में उसे पीछे किसी के होने का इशारा करती है।

    "निधि! तू ये क्या कर रही है..."

    "मिस प्रियल!"

    प्रियल ये सुनते ही समझ जाती है — ये उसकी माँ हैं —

    क्योंकि जब भी उनकी माँ नाराज़ होती थीं,

    वो उसे इसी अंदाज़ में बुलाती थीं।

    वो शिकायती लहजे में निधि को आँखों ही आँखों में कहती है —

    "बोल नहीं सकती थी!"

    प्रियल अपनी माँ की ओर घूम कर सफाई देती है —

    "मम्मा वो..."

    वंदना राठौड़ (बिल्कुल प्रोफेशनल अंदाज़ में, घड़ी देखते हुए):

    "रूम 202... निधि! बोल दो मिस प्रियल को!"

    और वहाँ से चली जाती हैं।

    निधि (जल्दी से):

    "चल भाग! वरना आज तेरी मेरी साथ में सर्जरी कर देंगी मिस राठौड़!"

    प्रियल जल्दी से ग्लव्स, डॉक्टर ID और कोट पहनती है और दौड़ जाती है।

    🩺 "माँ-बेटी की मीठी लड़ाई"

    कुछ घंटों बाद —

    प्रियल अपनी माँ के केबिन में जाती है और फाइल पढ़ रही होती है।

    वो प्यार से माँ को हग करते हुए कहती है —

    "मम्मा! आपकी सबसे अच्छी बात क्या है पता है?

    आप ना सख्त बनने की एक्टिंग बिल्कुल नहीं कर पाते..."

    वंदना जी (हल्के डांट भरे अंदाज़ में):

    "प्रियल..."

    प्रियल (बिल्कुल बच्चों जैसी मासूमियत में):

    "अच्छा सॉरी ना...

    वो एक दोस्त को थोड़ा घर छोड़ने में लेट हो गया..."

    वंदना जी:

    "थोड़ा सा...? बेटा पूरा ही छोड़ना था?"

    प्रियल हँसते हुए:

    "हाँ हाँ वही!"

    अब वंदना जी का ग़ुस्सा गायब —

    वो प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए पूछती हैं —

    "खाना खाया मेरा बच्चा?"

    प्रियल:

    "हाँ!"

    (आँखें गोल-गोल घुमाकर झूठ बोलती है)

    तभी उसके पेट से "गुड़-गुड़" की आवाज़ आती है।

    वंदना जी हँसते हुए —

    "अगली बार अपने पेट से पूछ कर झूठ बोलना..."

    (उसका गाल खींच देती हैं)

    प्रियल क्यूट सा पाउट बना लेती है।

    वंदना जी:

    "भूख लगी है?"

    प्रियल (बच्चे की तरह हाँ में सिर हिलाती है)

    वंदना जी माथे पर किस कर बोलीं —

    "चलो साथ में कुछ खाते हैं... हम्म..."

    (फिर प्रियल के कपड़ों को देखकर पूछा —)

    "बेटा! कपड़े कब और क्यों चेंज किए?"

    प्रियल, अवीर को याद कर के मुँह बनाते हुए बोली —

    "बस यूँ समझ लीजिए... कोई सिरफिरा मिल गया था...

    जिसे कार चलाने का होश नहीं था!"

    वंदना जी सब समझ गईं —

    "अच्छा! कोई बात नहीं...

    हमें दूसरों की वजह से मूड खराब नहीं करना चाहिए... हुँ?"

    प्रियल ने ‘हाँ’ कहा और दोनों घर के लिए निकल गईं।

    🎤 "स्टूडियो में सिंगलपन का शोर"

    अगली सुबह...

    अवीर अपने स्टूडियो पहुंचा —

    जहाँ समीर सफ़ाई कर रहा था।

    "वाह! तूने तो कमाल की क्लीनिंग की है समीर!

    तू क्लीनर क्यों नहीं बन जाता?"

    समीर (आँखें छोटी कर व्यंग्य से):

    "अवी!... द ग्रेट लव गुरु...

    जिन्होंने मेरी ज़िंदगी के लव की वाट लगा रखी है..."

    अवीर (मुस्कुराते हुए):

    "ये वाली भी चली गई?"

    समीर (सैड पाउट में):

    "चली नहीं गई... तेरी वजह से चली गई...

    कल मैं डेट पर नहीं पहुंचा तो उसने ब्रेकअप कर लिया..."

    अवीर (हँसते हुए):

    "तो अच्छा है ना...

    जो प्यार में थोड़ा सा इंतजार ही ना कर सके...

    उसका चले जाना ही बेहतर है...

    और मैंने बोला है ना —

    सही टाइम पर तेरी सोलमेट भी मिल जाएगी...

    तो थोड़ा सब्र रख!"

    समीर:

    "हुह्ह...😏 सोलमेट!

    कब आएगी यार...

    मैं अब और सिंगल नहीं रहना चाहता...

    तू बताता भी नहीं कौन है!"

    अवीर:

    "जब सही टाइम होगा, तो खुद-ब-खुद पता चल जाएगा...

    अब इधर आ, माइक सेट करने में मेरी मदद कर..."

    ✈️ "दिल्ली एयरपोर्ट — इश्क़ उतर चुका है"

    एयरपोर्ट पर अतिथि की लैंडिंग हो गई थी।

    वो अपनी बुक की हुई VIP कैब में बैठी —

    साथ में उसकी असिस्टेंट रूही भी थी।

    कैब में बैठते ही अतिथि ने कॉल मिलाते हुए कहा —

    "मिलते हैं!"

    🕯️ [एपिसोड 3 — समाप्त]

  • 4. "मैं इश्क़ लिखूं" (लव गुरु) - Chapter 4

    Words: 1095

    Estimated Reading Time: 7 min

    📍अतीत की परछाइयां और दोस्ती की तपिश :


    🌆 अतिथि की मीटिंग और अजीब कार्ड :
    अतिथि ने इतना कह कर कॉल कट की और खिड़की के बाहर देखने लगी उसकी आंखों में एक सूनापन था।

    कुछ ही घंटों में उनकी कैब एक आलीशान रेस्टोरेंट के सामने रुकी।

    अतिथि की अस्सिटेंट (रुही) ने उसके लिए गेट ओपन किया। अतिथि रेस्टोरेंट के ओर बढ़ी।

    अतिथि : "सब रेडी है?"

    रुही : "जी मैम...मिस्टर कश्यप मीटिंग रूम में आपका ही वेट कर रहे है"

    📃 मीटिंग रूम में...

    अंदर पहुंचते ही रूम में अतिथि की नजर रुधिर कश्यप पर गई जिसके साथ उसकी डील होनी थी। रुधिर (शांत ,गुड लुकिंग और अपने काम के लिए डेडीकेटेड बिजनेसमैंन था)

    अतिथि ने कॉन्ट्रैक्ट पढ़ा और उस पर साइन कर दिया।

    रुधिर : "मिस मित्तल! आपसे मिलकर खुशी हुई...."

    अतिथि (मुस्कान के साथ) : "उम्मीद है इस पार्टनरशिप से हम दोनों को प्रॉफिट होगा.."

    रुधिर : "जी!"

    अतिथि : "डील की बाकी की डिटेल्स के लिए आप मेरी अस्सिटेंट से कॉन्टेक्ट करे...अब मैं चलती हु.."

    रुधिर : "जी...लेकिन जस्ट ए टू मिटनेट्स प्लीज!

    ...(रुधिर ने अपने वर्कर को कुछ इशारा किया, वर्कर समझ गया और एक वेडिंग कार्ड रुधिर को थमा दिया)"

    रुधिर ने अपनी बात जारी रखी,, "मिस मित्तल अब हम पार्टनरस है...तो मुझे खुशी होगी अगर आप मेरी छोटी बहन को शादी में शामिल हो" (कार्ड अतिथि की ओर बढ़ाते हुए)

    अतिथि ने कार्ड पर नाम देखे,, "ध्रुव weds आरोही.."

    अतिथि (व्यंग से मुस्करा कर) : "हम्मम... अब मैं चलती हु"

    रूही ने कार्ड लिया और अतिथि के पीछे दौड़ गई।

    🚕 कैब में उलझन भरी खामोशी

    कुछ देर बाद

    अतिथि अपनी अस्टिटेंट रुही के कैब किसी सोच में डूबी थी।

    रूही के दिमाग में कार्ड वाली बात चल रही थी जिसे वो अतिथि से कंफर्म करना चाहती थी।

    अतिथि ने उसकी आंखों की उलझन पढ़ी और फिर उस से कहा,, "जो कहना है बेझिझक कहो!"

    रूही को अपना कंफ्यूजन दूर करने का इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता था उसने पूछा,, "ये पार्टनरशिप क्या एक प्लेन थी... ध्रुव सर को शादी में शामिल होने का?"

    अतिथि : "स्मार्ट हो गई हो रूही....हा ये पार्टनरशिप इसलिए ही लिए थी..."

    रूही हैरान थी इसलिए नहीं क्योंकि उसका कंफ्यूजन सही था बल्कि इसलिए क्यूंकि अतिथि ने पहली बार उसे उसके नाम से बुलाया..उसे अच्छे से याद था जब उसने इंटरव्यूव में अपना रिज्यूमे दिया तब भी अतिथि ने उसका नाम नहीं लिया।

    उसे लगता था जैसे अतिथि को उसका नाम याद नहीं होगा।

    रूही : "मैम! आपको मेरा नाम पता था?"

    अतिथि (हंस कर) : "अभी मैने तुम्हे स्मार्ट कहा और अभी तुमने बेवकूफी भरी बात कर दी...(रूही ने ये सुन पाउट बना लिया वो इसमें क्यूट लग रही थी)...

    ...ऑफकोर्स मुझे पता होगा..तुम इतने सालों से मेरे लिए काम कर रही हो.."

    रूही : "नहीं वो कभी आपने..."

    उसकी बात पूरी नहीं हुई कि उनकी कैब एक आलीशान बंगले के आगे रुकी।

    रूही ने बात छोड़ कर जल्दी से अतिथि के लिए गेट खोला।

    🏥 संजीवनी हॉस्पिटल – इश्क़ OFF

    प्रियल अपने id 🪪 और कोट पहन अपने पेशेंट्स को देखने निकली।

    वार्ड में एक एक 15 साल की बच्ची के पास जा ही रही थी कि उसे रेडियो की आवाज सुनाई थी जो एक बूढ़े आदमी के पास था जो पास ही के बेड पर थे।जिस पर गाना की कुछ लाइंस चल रही थी,,

    🎶"मन का मौजी इश्क़ तो जी... अलबेली सी राहों पर ले चले"🎶

    इश्क़ का नाम सुनते ही ना जाने प्रियल क्या हुआ उसने झट से रेडियो बंद कर दिया।

    वहां के लोगों को अजीब लगा लेकिन प्रियल ने कोई जवाब नहीं दिया।

    तभी पीछे से निधि की आवाज आई,, "अरे ! आप सभी का दवाई लेने का टाइम हो गया है..."

    निधि ने माहौल ठंडा किया। वहीं प्रियल उस बच्ची का चेकअप कर उस से थोड़ी बाते की जहां बच्ची ने कहा,,"दीदी! अपने इतने अच्छे सॉन्ग को बंद क्यू किया...वो मेरा फेवरेट शो था..मुझे लव गुरु बहुत पसंद है...और अपने उसे ऑफ कर दिया.." (बच्ची ने मुंह बना लिया) ।

    प्रियल (बच्ची के सर पर हाथ फेरते हुए) : "बेटा..ना लव होता है और ना ही लव गुरु सब बस मन बहलाने के झाल है...हमे इस से दूर रहना चाहिए.. हम्मम.."

    बच्ची को प्रियल की बाते समझ नहीं आई तो निधि उसके पास जाकर बोली,, "बेटा दीदी ने रेडियो इसलिए ऑफ किया क्यूंकि आपके रेस्ट का टाइम है अभी...अभी आओ रेस्ट करो सॉन्ग बाद में सुन लेना.."

    निधि इतना बोल प्रियल को अपने साथ ले जाती है।

    💬 केबिन में बहस – प्यार बनाम कड़वाहट

    निधि : "तेरा बस चले तो तू पूरी दुनिया को प्यार के खिलाफ कर दे!"

    प्रियल (सपाट लहजे में) : "मैने ना कुछ गलत किया और ना कुछ गलत कहा"

    निधि (हार मानते हुए) : "ok! माई एंटीलव गर्ल....तू सही मै गलत...पर फिर भी एक बात जरूर कहूंगी प्यार बुरा नहीं है...अपना दिल का दरवाजा खोल के तो देख"

    प्रियल : "नहीं खोलना भाई मुझे! तूने देखा ना क्या हुआ अतिथि के साथ...और मम...(शब्द अधूरा छोड़)....जब मेरे अपनो की ज़िंदगी में प्यार ने जहर गोल दिया तो मुझे ऐसी बेवकूफी करने में कोई दिलचस्पी नहीं है"

    निधि (उस से बहस नहीं करना चाहती थी) : "ठीक है..छोड़ ये सब और अतिथि को कॉल कर पूछ कहा है वो.."

    प्रियल (हा में सर हिलाते हुए) : "हम्मम.."

    निधि केबिन से बाहर चली गई।

    📞 बेस्ट फ्रेंड्स की कॉल – शिकायत और मिठास

    2 रिंग के बाद अतिथि ने प्रियल का कॉल रिसीव कर लिया।

    प्रियल (टोंट मारते हुए) : "थैंक क्यूं मैडम आपने कॉल उठाने का कष्ट किया...क्यूंकि कॉल किया तो जाता नहीं आप से!"

    अतिथि (प्यार से) : "प्रियू.. आई एम सॉरी...यार मैं तुझे कॉल करने ही वाली थी..की तेरा सामने से कॉल आ गया"

    प्रियल : "अच्छा! तो आप कॉल करने ही वाली थी...सब को बताने के बाद सब से लास्ट में मुझे पता चलता है...की मेरी बेस्टफ्रेंड इंडिया आ रही है...वो तो मुझे मम्मा ने बताया नहीं तो मुझे पता ही नहीं चलता..तू मिल बेटा मुझे"

    अतिथि : "सॉरी! यार... यहां आने के बाद से ही मेरा सर दर्द कर रहा है...तुझे कॉल करना चाहती थी...पर आंटी ने कहा कि तू किसी इंपॉर्टेंट केस को लीड कर रही है तो..मैने उन्हें कहा था तुझे बता दे"

    प्रियल (फिक्र जताते हुए) : "हम्मम..ठीक है ठीक है! तूने टैबलेट ली?...मै आऊ तेरे पास?"

    अतिथि (हंसते हुए) : "क्या करेगी आकर... सर्जरी !...मुझे सर दर्द है बस..."

    प्रियल (मुंह बना कर) : "हंस मत ! "

    अतिथि (शांत होकर) : "अच्छा मेरी तीखी मिर्ची...कल मिलते है...मुझे कुछ जरूरी बात भी करनी है"

    प्रियल : "हम्मम..."

    अतिथि (चिढ़ाते हुए) : "हम्मम..."

    प्रियल ने कॉल कट किया कर दिया और मुस्करा दी।