यह कहानी एक साधारण से, दुबले-पतले से दिखने वाले लड़के की है, जिसके मां-बाप का कुछ पता नहीं। सभी ने उसकी दिल खोलकर बेइज्जती की। कभी किसी ने उसे प्यार नहीं किया। लेकिन फिर अचानक, एक दिन हुआ कुछ ऐसा—उसका एक बहुत भयानक एक्सीडेंट हो गया। उसने भी जीने की इ... यह कहानी एक साधारण से, दुबले-पतले से दिखने वाले लड़के की है, जिसके मां-बाप का कुछ पता नहीं। सभी ने उसकी दिल खोलकर बेइज्जती की। कभी किसी ने उसे प्यार नहीं किया। लेकिन फिर अचानक, एक दिन हुआ कुछ ऐसा—उसका एक बहुत भयानक एक्सीडेंट हो गया। उसने भी जीने की इच्छा छोड़ दी थी। उसने ऊपरवाले से सिर्फ यही एक विश मांगी थी कि जल्द से जल्द उसकी मौत हो जाए। लेकिन हुआ कुछ ऐसा कि ना तो उसकी मौत हो पाई, और ना ही वह जी पाया। अर्जुन पहुंच गया सदियों पुराने प्राचीन युग में, जहाँ पर जादू है, टोना है, भूत है, प्रेत है। लेकिन साथ ही साथ, वहाँ है एक बेहद खूबसूरत राजकुमारी। तो कौन था अर्जुन? क्या हुआ था उसके साथ? जानने के लिए जरूर पढ़िए दोस्तों— Mysterious Reborn — On StoryMania पर! ---
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बैंगलोर में रहने वाला अर्जुन वर्मा, जो एक साइंस का स्टूडेंट था और अपनी दुनिया में काफी ज्यादा टैलेंटेड था, अचानक एक अजीब-सी घटना का शिकार हो गया। जब उसे होश आया, तो उसने खुद को किसी और समय, किसी और शरीर में बंद पाया—एक अंधेरी जेल की सीलनभरी कोठरी में।
अर्जुन के सामने की दीवारें गीली थीं, ऊपर से पानी टपक रहा था। सांसें भारी हो रही थीं, और शरीर... शरीर अपना नहीं लग रहा था।
"ये... ये हाथ... ये आवाज़... ये... मैं कौन हूँ?"
उसने कांपते हुए अपने चेहरे को छुआ। ये चेहरा अर्जुन का नहीं था।
अब अर्जुन की सांस पूरी तरह उखड़ने लगी थी।
शुरुआती झटके के बाद उसका दिमाग जैसे रुक गया। वह ज़मीन पर गिर पड़ा और गहराई से साँसें लेने लगा, जैसे कि खुद से लड़ रहा हो।
जल्दी ही उसने सोचना शुरू कर दिया था कि कहीं वो कोई सपना तो नहीं देख रहा है।
"ये सपना है... या उसके किसी प्रयोग का नतीजा? क्या मैं मर गया हूँ? या... ये पुनर्जन्म है?" अर्जुन का दिमाग इस वक्त जोरों से चल रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिरकार उसके साथ हो क्या रहा है क्योंकि उसके हाथ जरूरत से ज्यादा ही मजबूत और ताकतवर से महसूस हो रहे थे, हालांकि अपनी प्रेजेंट लाइफ में अर्जुन एकदम सीधा-साधारण सा दुबला-पतला लड़का था, जो हमेशा से दूसरों की उपेक्षा का शिकार होता रहता था। कोई भी उसे कुछ खास पसंद नहीं करता था, सब लोग उसे नीची नज़रों से देखते थे, लेकिन अब अर्जुन की हालत काफी ज्यादा अजीब हो रही थी। उसका शरीर अचानक से ही काफी ज्यादा चौड़ा और मजबूत और ताकतवर-सा महसूस हो रहा था। उसने आसपास अच्छी तरह से देखना शुरू कर दिया था। यह जगह उसे काफी ज्यादा अजीब लग रही थी। इतनी अजीब जगह उसने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखी थी और जल्दी ही उसकी नजर उस काल कोठरी में कुछ कांच के टुकड़ों पर पड़ी थी। अर्जुन जल्दी से वहां गया और जैसे ही उसने अपना शरीर और चेहरा देखा तो उसकी आंखें हैरानी के मारे फटी की फटी रह गई थीं। यह उसका शरीर तो किसी भी कीमत पर नहीं था। अब अर्जुन अपना दिमाग जोरों से चलाने लगा था और जल्दी ही एक मूवी रील की तरह उसकी पूरी जिंदगी उसकी आंखों के सामने आ गई थी। फिलहाल,
धीरे-धीरे उसे समझ आया कि वो किसी और के शरीर में है—उस शरीर का नाम "युवान" था, जो एक शक्तिशाली सैनिक था, लेकिन इस समय एक चोरी के झूठे इल्ज़ाम में जेल में था। उसके खिलाफ 1,50,000 तांबे के सिक्कों की चोरी का आरोप था। युवान को मौत की सज़ा सुनाई गई थी। लेकिन ये सब अर्जुन को नहीं पता था
अर्जुन—या अब युवान—के लिए ये सब किसी सपने से कम नहीं था।
लेकिन अर्जुन आधुनिक ज़माने का आदमी था, उसका दिमाग काफी ज़्यादा तेज-तर्रार था। वेल, अब धीरे-धीरे उसने खुद को समझाया और आसपास के सिचुएशन को समझते हुए उसने खुद को इस बात का एहसास दिला लिया था कि भले ही मैं...
"मैं अर्जुन हूँ, लेकिन मेरी आत्मा इस शरीर में है। इसका मतलब है, मैं जिंदा हूँ, लेकिन एक नए रूप में।"
वेल, एक गहरी साँस लेते हुए, उसने अपनी आँखें बंद कीं और अपने भीतर झाँका—
उसे अपने बीते जीवन की कुछ झलक दिखाई दी:
दूसरों की गालियां, अपने जुनून में पढ़ी गई किताबें और कुछ एक्सपेरिमेंट—अपने मामा-मामी के ढेर सारे ताने, नकारा होने का ठप्पा!
लेकिन आज?
एक बेगुनाह सैनिक के शरीर में फंसा अर्जुन वर्मा, जो अब युवान बन चुका था।
उसने खुद से कहा, "अगर मेरी आत्मा इस शरीर में आई है, तो इसके पीछे कोई मकसद है। मैं इसे ऐसे ही नहीं जाने दूँगा।"
और वैसे भी मेरी पिछली आधुनिक जिंदगी से तो यह जिंदगी काफी ज्यादा अच्छी है, भले ही मुझे यह ना पता हो कि इस वक्त मैं कहां हूं या कहां नहीं, लेकिन मैं सबके बारे में पता लगा लूंगा। शायद ऊपर वाले को मुझ पर तरस आ गया है, इसीलिए उसने मुझे यह जिंदगी दी है। मैं कुछ ना कुछ करके ख़ुदको यहां से बाहर भी निकाल लूंगा और साथ ही साथ जिसके भी शरीर में मैं इस वक्त हूं उसको भी मैं न्याय जरूर दिलाऊंगा। कहीं ना कहीं अर्जुन के दिलो-दिमाग में इस वक्त एक अलग ही तरह की जंग छिड़ी हुई थी और वह हर हाल में जिस दुनिया में वह आया था, उस दुनिया के बारे में सारी बातें जानना चाहता था ताकि वह इस दुनिया में सरवाइव कर सके, हालांकि उसके पास उसके आधुनिक जिंदगी का तेज-तर्रार दिमाग था जिसकी बदौलत वह कुछ भी हासिल कर सकता था, लेकिन उसकी अपनी दुनिया की नजरों में तो वह सिर्फ और सिर्फ एक नाकारा और एक ऐसा इंसान था जिसकी उसे दुनिया को कोई जरूरत नहीं थी और शायद इसीलिए वह कई 100 साल पीछे एक अलग दुनिया में एक शक्तिशाली सैनिक के अंदर आया था। फिलहाल अर्जुन ने सोचा—
वह इस दुनिया में खुद को साबित करेगा, अपनी पहचान बनाएगा और वॉइस जय कोठारी के अंदर क्यों है इसके बारे में भी पता लगाएगा , और जो भी उस पर इल्ज़ाम लगे है उनसे वह खुद को और इस इंसान को बचाएगा जिसके अंदर वो आया है।
युवान के रूप में अर्जुन ने जेल की कोठरी में बैठे-बैठे सोचना शुरू किया—
"अगर ये दुनिया अतीत की है, तो मुझे अपने आपको नए तरीक़े से साबित करना होगा।
मेरी सोच, मेरी आत्मा साथ ही मेरा दिमाग तो मेरे साथ हैं।"
कहीं ना कहीं यह सब सोचते हुए अर्जुन पूरी तरह से इमोशनल हो गया था, उसकी आंखों का किनारा तक भीग गया था, लेकिन अब उसकी आंखों में एक ठोस इरादा था।
अर्जुन ने बेदर्दी से अपनी आंखों को रगड़ दिया था और इमोशनल होकर बोला था,
"अगर ये मेरा नया जीवन है, तो इसे मैं ही अपनी शर्तों पर जियूँगा।"
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यह सोचते हुए अर्जुन पूरी रात काल कोठरी में इधर-उधर टहलने लगा था। अंधेरा ज्यादा अंधेरा होने की वजह से उसके आसपास क्या चीज है, कुछ भी उसे समझ में नहीं आ रहा था। उसने पूरी रात खुद को यह समझने में गुजार दी थी कि इस वक्त उसकी आत्मा किसी और के शरीर में है, लेकिन ऐसा उसके साथ क्यों हुआ है इसका उसके पास कोई जवाब नहीं था। फिलहाल तो उसने डिसीजन ले लिया था कि उसकी जिंदगी में यह जो कुछ भी हुआ है वह उसे एक्सेप्ट करेगा और इस शरीर के साथ किसी भी तरह की कोई ना इंसाफी नहीं होने देगा।
सुबह की पहली किरण अब जैसे ही जेल की सलाखों से भीतर आई, तो युवान (यानी अर्जुन) अपनी कोठरी के कोने में बैठा हुआ था। रातभर वो सो नहीं सका था। पूरी रात उसका मन, शरीर और आत्मा—तीनों अलग-अलग रास्तों पर चल रहे थे।
अगली सुबह होते ही जैसे ही थोड़ी-थोड़ी रोशनी पूरी की पूरी जेल की कोठरी के अंदर आई अचानक ही अर्जुन की आंखों में चमक आ गई थी और वह अपने आसपास की जगह को देखने लगा था। बड़े-बड़े उस जेल की कोठरी में पत्थर लगाए गए थे। इतने बड़े पत्थर अर्जुन ने कभी नहीं देखे थे और जैसे ही उसकी नजर जेल की लंबी-लंबी मोटी-मोटी लोहे के रोड पर पड़ी तो पूरी तरह से हैरान हो गया था क्योंकि उसने अपने प्रेजेंट लाइफ में उसे अच्छी तरह से पता था कि जेल के सलाखें लोहे की तो जरूर होती थी, लेकिन इतनी मोटी कभी भी नहीं होती थी जितनी की मोटी यहां दिखाई दे रही थी। अर्जुन अभी यह आसपास की जगह को अच्छी तरह से देख ही रहा था कि तभी अचानक
जेल का दरवाज़ा ज़ोर से खुला और दो सैनिक भीतर आए। और तुरंत वह रोबदार आवाज में बोले थे,
“राजसभा में ले चलने का आदेश है, कैदी युवान।”
अब उन दोनों सैनिकों की आवाज सुनकर अर्जुन पूरी तरह से चौंक गया—"और उसने मन ही मन में दोहराया, राजसभा? क्या वह किसी महल की कोठरी में कैद है और यह राज्यसभा क्या है क्योंकि आधुनिक युग में तो अदालत, पुलिस, कोर्ट, वकील यह सब चीज हुआ करती है, है तो फिर यह राज्यसभा क्या है?"और कैदी युवान कौन है?अर्जुन कहीं ना कहीं अपने आसपास की स्थिति को समझने की पूरी तरह से कोशिश कर रहा था और साथ ही साथ अपना दिमाग जोरों से चला रहा था। अर्जुन को कुछ सोचते हुए देखकर दोनों सैनिकों ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर अर्जुन की जंजीरों को थोड़ा सा खींचते हुए बोला था, "क्या हुआ कैदी युवान, क्या तुम्हें सुनाई नहीं दे रहा है, तुम्हें अभी और इसी वक्त महाराज के समक्ष पेश होना है तो अभी और इसी वक्त हमारे साथ चलो।" अर्जुन की क्यूरियोसिटी अब काफी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि आखिरकार यह लोग उसे कहां लेकर जाना चाहते हैं और क्या वाकई राजा महाराजाओं की दुनिया में आ गया है। और यह बार-बार उसे कैदी युवान कहकर बुला रहे हैं यानी कि वह इस वक्त जिस शरीर में है उसे शरीर का नाम युवान है कहीं ना कहीं अर्जुन की आंखों में चमक भी आ रही थी और वह खुद को रोक नहीं पाया और तुरंत ही उन दोनों की और जिज्ञासा पूर्वक देखते हुए बोला था, "मैं राज्यसभा चलने के लिए तैयार हूं, लेकिन क्या आप दोनों मुझे बता सकते हो वहां पर क्या होने वाला है और यह कौन सी जगह है और मुझे क्यों इस काल कोठरी में कैद किया गया है?" अब जैसे ही अर्जुन जो कि अपनी जो कि खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाया था, जैसे उसने यह सवाल उनके सैनिकों से कीया, वह सैनिक एक दूसरे की शक्ल को देखने लगे थे और तभी एक सैनिक दूसरे के कानों में हल्के से सरगोशी करते हुए बोला था, "लगता है मौत की सजा सुनकर यह कैदी युवान पागल हो गया है इसीलिए इस तरह की उल्टी सीधी बातें कर रहा है।" अब जैसे ही अर्जुन के कानों में उनकी आवाज सुनाई दी तो वह पूरी तरह से हक्का-बक्का रह गया था, उसकी हैरानी को उसे वक्त कोई ठिकाना नहीं था। उसने तो सोचा था कि इस जिंदगी को पूरी तरह से अपनआएगा और अपनी शर्तों पर जियेगा, लेकिन यह क्या, यहां तो उसे मौत की सजा दी गई थी, लेकिन क्यों और शायद इसीलिए उसे राज्यसभा में लेकर जाया जा रहा है जहां पर उसकी उसका फैसला सुनाया जाएगा। ..."
अभी अर्जुन की आंखों में ढेर सारे सवाल थे लेकिन तभी एक सैनिक थोड़ा सा आगे बढ़ा और उसने एक और मोटी सी लोहे की ज़ंजीरों में बाँधकर वो अर्जुन को लेकर जाने लगे थे। इस वक्त अर्जुन को किसी भी चीज का कोई डर या खौफ नहीं था, उसके दिमाग में तो सिर्फ और सिर्फ यह चल रहा था कि आखिरकार उसकी जिंदगी के साथ हो क्या रहा है और जैसे ही अब उसे काल कोठरी से बाहर लेकर जाया गया और धीरे से कुछ सीढ़ियां चलकर उसे तहखाना से ऊपर की ओर लेकर जाया गया तो वहां की खूबसूरती देखकर अर्जुन की आंखें चौंधिया गई थी। उसने इतनी खूबसूरत जगह अपनी पूरी जिंदगी में कहीं नहीं देखी थी। यह महल सोने चांदी से बना हुआ था। इतना खूबसूरत महल तो उसने कभी किस्से कहानियों में ही सुना था। अब यह देखकर तो पूरी तरह से हैरान हो चुका था और जल्दी ही उसके दिमाग में एकहाल ही में जो उसने एक कहानी पढ़ी थी राजवंश राज्य की, उसके कुछ सीन उभर आए थे कि राजवंश का राजमहल कुछ इसी तरह का खूबसूरत था। उस novel के सीन को याद करके अर्जुन अंदर ही अंदर खुश रहो गया था और सोचने लगा था कि क्या वाकई इतना खूबसूरत महल उसे अपनी आंखों से देखने को मिल रहा है। अभी भी उसे लग रहा था कि शायद वह कोई सपना देख रहा है, लेकिन आसपास की खूबसूरती और कहीं से आ रही थी में धीमे बज रही खूबसूरत सी आवाज अर्जुन को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। इस वक्त उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, लेकिन जैसे ही एक सैनिक ने बड़े से लोहे की जंजीर को खींचा अर्जुन को अपने हाथों में दर्द सा महसूस हुआ वह तुरंत ही सैनिक को घूर कर देख कर बोला था, "यह क्या कर रहे हो भाई साहब, मैं चल तो रहा हूं आप लोगों के साथ, फिर इस तरह का मिस बिहेव क्यों कर रहे हो?" अब जैसे ही अर्जुन ने मिस बिहेव शब्द का use किया वह सैनिक एक दूसरे की शक्ल को देखने लगे थे कि यह कौन सी भाषा में बात कर रहा है क्योंकि इंग्लिश का वह लोग नामोनिशान भी नहीं जानते थे। अर्जुन आधुनिक युग का व्यक्ति था तो उसे कितनी सारी लैंग्वेज आती थी और जैसे उसने इस तरह से बोला वह सैनिक हैरानी से एक दूसरे को देखने लगे तब अर्जुन उनकी ओर देखकर बोला था, "तुम लोगों को इस तरह से शर्मिंदा होने की कोई जरूरत नहीं है, तुम चाहो तो मुझे सॉरी भी बोल सकते हो।" अब अर्जुन किस तरह से बोलने पर वह सैनिक फिर से हैरान हो गए और साथ ही साथ एक दूसरे की ओर देखकर बोले थे, "लगता है यह पूरी तरह से पागल हो गया है जो यह इस तरह की हरकतें कर रहा है।"
"फ़िलहाल, जल्दी ही एक बड़े ही खूबसूरत से गलियारे में से निकाल कर अर्जुन को राजसभा के बीचो-बीच लेकर जाया गया था, जहाँ पर मखमली कालीन बिछा हुआ था और वहाँ पर चारों तरफ़ बड़े-बड़े झूमर लगाए गए थे। अर्जुन ने देखा कि एक साथ लाइन से कितने ही सारे लोग, बड़े-बड़े कितने ही सारे हीरे-मोती के गहने पहने हुए बैठे हुए थे और उसके ठीक सामने एक बड़ा सा ताज सर पर लगाए एक प्रभावशाली व्यक्ति बैठा हुआ था। अब अर्जुन ने जैसे यह सब कुछ देखा, तो वह पूरी तरह से शॉक्ड हो गया था। इस वक़्त उसकी हैरानी की कोई सीमा नहीं थी। वह हैरानी से चारों ओर घूम-घूम कर आसपास की जगह को देख रहा था, वहीं उस राजसभा में बैठे हुए सभी दरबारी अर्जुन को अजीब सी नज़रों से देख रहे थे, क्योंकि वह अलग तरह का बर्ताव कर रहा था। ना तो उसने आज सभा में जाकर किसी को भी झुक कर प्रणाम किया और ना ही उसने उसके हाव-भाव में किसी भी तरह का अनुशासन दिखाई दिया, तो सभी लोग अर्जुन को यूँ देखकर हैरान हो रहे थे, एक दूसरे के कानों में बातें भी बना रहे थे, वहीं अर्जुन तो अभी पूरी तरह से इस बात को हज़म कर लेना चाहता था कि इस वक़्त वह वाक़ई एक बड़े से महल के महाराज के सामने मौजूद है और इस वक़्त सबके सब हीरे-मोती पहने हुए उसके सामने बैठे हुए हैं। अर्जुन काफ़ी हद तक शॉक्ड में था, फिर जल्दी ही अर्जुन की नज़र महाराज के ठीक बराबर में बैठी हुई है बहुत ही खूबसूरत औरत पर पड़ी थी, वह महाराज की महारानी थी और महारानी के ठीक बराबर में दो और बेहद खूबसूरत लड़कियाँ बैठी हुई थी, उन्होंने एकदम सफ़ेद रंग के कपड़े पहने हुए थे और उन्होंने भी बाक़ी सब की तरह हीरे-मोती के जेवर पहने हुए थे। अब यह देखकर अर्जुन की तो पूरी तरह से लार टपकने लगी थी, उसने इतनी खूबसूरत लड़कियाँ अपनी पूरी ज़िंदगी में कहीं नहीं देखी थी, वहीं वह राजकुमारी जिसका नाम राजकुमारी संयुक्त था, वह बड़े ही ध्यान से अर्जुन की ओर देख रही थी और अर्जुन भी उसे ही देख रहा था। अचानक ही अर्जुन को ऐसा लगा मानो कि उसका दिल उछल कर गिरने को तैयार है। वह राजकुमारी बड़ी ही खूबसूरत थी, उसकी बड़ी-बड़ी आँखें, दूध सा गोरा बदन और जो उसने कपड़े पहने हुए थे, उसमें उसका आधे से ज़्यादा शरीर दिखाई दे रहा था, जिसमें काफ़ी ज़्यादा -अट्रेक्टिव दिखाई दे रही थी। अचानक अर्जुन खुद को रोक नहीं पाया और राजकुमारी की ओर देखकर बोला था, 'हाय ब्यूटीफुल यू आर लुकिंग सो गॉर्जियस।' अब जैसे ही अर्जुन ने इंग्लिश में राजकुमारी की तारीफ़ की, राजकुमारी का मुँह हैरानी के मारे खुला का खुला रह गया था, लेकिन तभी एक सेनापति और दो से तीन सैनिक तुरंत अर्जुन के सामने आकर खड़े हो गए और अर्जुन पर तलवार तानते हुए बोले थे, 'अपनी हद में रहो युवान, तुम अब राजवंश के सैनिक नहीं रहे, तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ एक कैदी हो। तुमने राजवंश का भारी मात्रा में चाँदी के सिक्के चुराए हैं, तुम्हें उसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी और तुम अच्छी तरह से जानते हो, राजवंश में चोरी करने के सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही सज़ा होती है और वह होती है, मौत।' अब जैसे ही उस सेनापति जिसका नाम जयंत था, उसने आप ग़लत हुई नज़रों से अर्जुन की ओर देखकर यह कहा, अर्जुन की तो आँखें पूरी तरह से हैरानी से भर गई थी और उससे अब जल्दी ही समझ में आ चुका था कि इस वक़्त वह जिस इंसान के शरीर में है, उसे पर चोरी का इल्ज़ाम लगा हुआ है और साथ ही साथ यहाँ चोरी के इल्ज़ाम में उसे मौत की सज़ा दी गई है। अब तो अर्जुन ने तुरंत अपने सर पर हाथ मार लिया था और थोड़ी सी तेज़ आवाज़ में रोने की एक्टिंग करते हुए बोला था, 'ओह गॉड, यह सब क्या है मेरे तुमसे अब मैं अपनी पुरानी ज़िंदगी से परेशान था, तुमने यह मुझे कि ज़िंदगी मिलकर छोड़ दिया जहाँ पर ज़िंदगी इतनी कम है, जबकि आसपास इतना हरा-भरा माहौल है।' अर्जुन ने आसपास की लड़कियों को देखते हुए कहा, वहीं अब सेनापति और साथ ही साथ सभी दरबारी पूरी तरह से हैरान हो रहे थे, क्योंकि उनका शक्तिशाली सैनिक युवान, जो इतना ज़्यादा ताक़तवर था कि एक ही बार में 100 लोगों की जान लेने का वह दम रखता था, वह इस तरह की उटपटांग हरकतें कर रहा था, तो सब लोगों की हैरानी काफ़ी ज़्यादा बढ़ चुकी थी, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आख़िरकार यहाँ हो क्या रहा है, वहीं अर्जुन अभी पूरी तरह से शोक में था, लेकिन तभी महाराज की आवाज़ सुनाई दी थी, 'शांत हो जाओ, यह सब हो क्या रहा है यहाँ पर?"
---महाराज की आवाज़ सुनते ही
दरबार में जो राजगुरु थे, जिनकी आँखों में चालाकी की परछाई साफ़ नज़र आ रही थी, वह तुरंत ही सीधे होकर बैठ गए थे, साथ ही साथ राजा के दाएँ हाथ, सेनापति विक्रम सिंह, जो अभी भी आग उगलती निगाह से युवान को देख रहे थे। वही राजा के पास बैठी हुई राजकुमारी संयुक्त जिसकी आंखों में युवान के लिए कुछ अलग सी फीलिंग दिखाई दे रही थी, लेकिन बार-बार अपने पिता की ओर देखकर वह अपना सर झुका रहे थी, सभी एकदम से खामोश होकर बैठकर महाराज की ओर देखने लगे थे। सब को इस तरह से शांत देखकर अर्जुन खुद को रोक नहीं पाया और महाराज की ओर देखकर बोला था, 'महाराज यह अन्याय है, मैंने कुछ नहीं किया है, मैंने कुछ नहीं चुराया है, आप इस तरह से मुझ पर चोरी का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।' जैसे ही अर्जुन ने भावेश में आकर इस तरह की बातें की, महाराज का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया था और तुरंत ही अपना हाथ खड़ा करके वह बोले थे, 'अपनी हद में रहो सैनिक युवान, हम ने तुम्हारी बहादुरी से और तुम्हारे कौशल से खुश होकर तुम्हें अपने तुम्हें हमने मान सम्मान दिया, अपने सैनिकों में सर्वोच्च सर्वश्रेष्ठ पद तुम्हें दिया, लेकिन तुमने उसके बदले में क्या किया? तुमने हमारे डेढ़ लाखचांदी के सिक्के ही चुरा लिए, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था सैनिक युवान।' जैसे ही महाराज ने यह कहा अर्जुन का चेहरा तुरंत ही पीला पड़ गया था, लेकिन जैसे ही उसके नजर राजगुरु और साथ ही साथ सेनापति विक्रम सिंह पर गई और दोनों आंख दोनों की आंखों में उसने मक्कारी देखी तो उसे समझते देर नहीं लगी कि इस वक्त अर्जुन जिसके भी शरीर के जिस इंसान के वास्ते शरीर के अंदर है जरूर इन दोनों ने ही मिलकर उसे फसाया है, फिलहाल अर्जुन ने गहरी सांस ले आसपास के माहौल को तो उसने एक्सेप्ट कर ही लिया था, लेकिन उसके नजरे बार-बार राजकुमारी संयुक्ता पर फिसल रही थी, उसने अपनी जिंदगी में इतनी खूबसूरत लड़की कभी नहीं देखी थी और वह मन ही मन में सोच रहा था कि अगर यह लड़की उसकी जिंदगी में आ जाती है और उसके बाद यह उसकी असली जिंदगी यानि की आधुनिक जिंदगी में भी जाती है, तो फिर उस टीना का क्या हो गया, टीना तो जल बुनकर ही राख हो जाएगी, वैसे भी उसने उसे धोखा दिया है, वह टीना को किसी भी कीमत पर माफ नहीं करेगा, कहीं ना कहीं यह अभी भी अर्जुन के दिमाग में राजकुमारी को देखकर अलग की तरह के ख्याल आ रहे थे। अब अर्जुन को चुप देखकर महाराज तुरंत बोल पड़े थे, 'सैनिक युवान कुछ हम तुमसे पूछ रहे हैं, अभी भी हम तुम्हें मृत्युदंड से आजाद कर सकते हैं, अगर तुम हमें हमारे चांदी के सिक्के तुमने कहां छुपाए हैं उनके बारे में बताओ दो तो।' अब जैसे ही महाराज की आवाज़ एक बार फिर उसके कानों में सुनाई दी अर्जुन एक बार फिर अपने खूबसूरत हसीन ख्वाब से बाहर आया और तुरंत अपने सर पर टकली मारते हुए सोचने लगा था कि यह क्या उल्टी सीधी बातें सोच रहा है फिलहाल तुझे इस इंसान को बचाना होगा जिस इंसान के शरीर में इस वक्त मौजूद है, अगर इसी तरह से राजकुमारी के सपने देखता रहा तो बहुत जल्द यह महाराज तुझे सूली पर चढ़ा देंगे और जो तू सपना देख रहा है वह सपना तेरा सपना ही रह जाएगा। फिलहाल अर्जुन ने गहरी सांस ली और खुद के इमोशन पर कंट्रोल करके महाराज की ओर देखकर बोला था, 'महाराज मैं बेगुनाह हूं और अपनी बेगुनाही का सबूत जुटाना के लिए मुझे आपसे तीन दिन का समय चाहिए।' अब जैसे ही अर्जुन ने यह कहा सेनापति और राजगुरु दोनों का ही चेहरे का रंग उतर गया था और तुरंत ही राजगुरु उठ खड़े हुए और बोले थे, 'नहीं-नहीं महाराज, हम पहले से ही सारी खोज करवा चुके हैं और सारे सारे सबूत सैनिक युवान की ओर इशारा कर रहे हैं कि उसी ने चोरी की है, मुझे नहीं लगता कि एक चोर को हमें इस तरह से छोड़ना चाहिए।' जल्दी ही सेनापति भी राजगुरु की बात सुनकर उसके हां में हां मिलाते हुए बोला था, 'हां हम महाराज राजगुरु जी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, हमें इस उद्दंड सैनिक को अभी और इसी वक्त मृत्यु दंड दे देना चाहिए।' उन दोनों की यह बात सुनकर अर्जुन कौ उन पर काफी गुस्सा आया था और बिना किसी की परवाह किया अर्जुन उनकी और देखकर बोला था, 'राजगुरु जी और मिस्टर सैनिक जी, आप तो इस तरह का बर्ताव कर रहे हैं मानो कि अगर इन तीन दिनों अगर इन तीन दिनों में मैंने असली चोर को ढूंढ लिया तो कहीं आप लोगों के किसी तरह की कोई पोल खुल जाएगी, कहीं आप लोगों को कोई डर तो नहीं लग रहा?' अब जैसे ही अर्जुन ने बेबाक अंदाज से वहां इस तरह से बोल राजगुरु और सैनिक दोनों का ही मुंह पूरी तरह से उतर गया था और वह तुरंत ही अर्जुन को घुर कर देखने लगे थे, वही जैसे ही बेबाक अंदाज में अर्जुन ने यह बात बोली राजकुमारी की आंखों में चमक आ गई थी और उसके होंठ हल्के से हल्की सी मुस्कुराहट से हिल गए थे। वही अर्जुन को इस तरह से बोलते हुए देखकर सभी राज को दरबारी का मुंह खुला का खुला रह गया था, क्योंकि जितना वह लोग सैनिक युवान के बारे में जानते थे सैनिक युवान सबके सामने सर झुका कर खड़े रहता था और हमेशा अनुशासन पर चलने वाला व्यक्ति था, कभी भी तेज आवाज में बात तक नहीं करता था, लेकिन यहां यहां तो आज सैनिक युवान के रूप रंग चाल ढाल सब कुछ बदले हुए थे वह एक अलग ही दुनिया का प्राणी लग रहा था, लेकिन अपने सामने मौजूद इंसान को वह लोग झुठला भी नहीं सकते थे, वही महाराज को भी अब काफी ज्यादा हैरानी हुई और वह तुरंत ही अर्जुन की ओर देखकर बोले थे, 'अगर तुम्हें लगता है कि तुम तुम निर्दोष हो तो खुद को निर्दोष साबित करो, हम तुम्हें तीन दिनों का समय देते हैं, तीन दिनों तक तुम अपने घर रह सकते हो, तीन दिनों तक के लिए तुम आजाद और याद रखना यहां से भागने की कोशिश मत करना, क्योंकि तुम यह बात अच्छी तरह से जानते हो कि राजवंश से निकलना तुम्हारे लिए किसी भी लिए तरह मुमकिन नहीं होगा।' जैसे ही महाराज ने यह कहा अर्जुन तुरंत मुस्कुरा कर बोला था, 'आपका बहुत थैंक यू थैंक यू सो मच मिस्टर महाराज।' अब जैसे ही अर्जुन एक बार फिर इंग्लिश वर्ड का use किया, महाराज आंखों में हैरानी लाकर अर्जुन की ओर देखने लगे थे, वही सब लोग भी हैरान हो चुके थे कि आखिरकार अर्जुन को हो क्या गया है और यह किस तरह की बातें बोल रहा है , तब सेनापति विक्रम खुद को रोक नहीं पाया और तुरंत महाराज के सामने खड़ा होकर सर झुका कर बोला था, 'महाराज देखा आपने इस कैदी युवान को या आप ही के सामने खड़ा होकर आपको उल्टी सीधी बातें बोल रहा है, आपको गालियां दे रहा है अपनी अलग भाषा में, आपको गालियां दे रहा है आपको इसके खिलाफ सख्त अभी और इसी वक्त एक्शन अभी इसी वक्त आपको ऐसे सख्त से सख्त सजा देनी चाहिए।' अब जैसे ही उसने एक बार फिर आज में घी डालने का काम किया अब जल्दी से अर्जुन बोला था, 'नहीं नहीं महाराज, यह गलत कह रहे हैं सेनापति जी, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया, मैंने तो सिर्फ और सिर्फ आपका शुक्रिया अदा किया है।' अब तुम महाराज पूरी तरह से हैरान हो गए थे कि आखिरकार अर्जुन सैनिक युवान ने कौन सी भाषा में उन्हें शुक्रिया अदा किया है। महाराज खुद को रोक नहीं पाए और बोले थे, 'क्या वाकई तुमने हमें शुक्रिया अदा किया है, लेकिन यह कौन सी भाषा है जिसके बारे में हमें नहीं पता?' तब जल्दी ही महाराज ने विद्वानों की ओर देखा था, उसे दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान वहां मौजूद थे और उनकी और देखकर महाराज बोले थे, 'हमें भी यह भाषा सीखनी है, पता लगाओ कि यह भाषा हमें कौन से खाएगी।' यह बोलकर महाराज वहां से उठ खड़े हुए और दरबार को बर्खास्त करके जाने लगे थे, वहीं अर्जुन की आंखें एक बार फिर राजकुमारी पर जाकर ठहर गई थी, जो की जाते हुए हल्का सा रुक रुक कर मुड़कर बार-बार अर्जुन की ओर ही देख रही थी, वही अर्जुन मुस्कुरा कर राजकुमारी की ओर देख रहा था। अब सेनापति ने जैसे यह देखा कि अर्जुन राजकुमारी को देख रहा है वह तुरंत ही अपना तलवार लेकर अर्जुन के करीब आया और उसकी गर्दन पर तलवार रख कर बोला था, 'अपनी आदतों से बाज आज सैनिक युवान, वरना भी तो तुम्हें सिर्फ चांदी के सिक्कों की चोरी में फसाया है अगली बार मैं तुम्हें जान से मार डालूंगा अगर तुमने राजकुमारी की और आंख उठा कर भी देखा तो।' अब जैसे ही सैनिक सेनापति ने यह बात बोली अर्जुन का दिमाग पूरी तरह से जल उठा था।
और उसे समझ में आ चुका था कि यह सारा मामला लव ट्रायंगल का है, क्योंकि सेनापति की बातों से उसने इस बात का अंदाज़ा लगा लिया था कि ज़रूर युवान को राजकुमारी पसंद थी, और राजकुमारी भी सैनिक युवान को पसंद करती थी। और शायद यही बातचीत सेनापति को रास नहीं आ रही, इसीलिए इसने झूठे इल्ज़ाम में अर्जुन को फँसाया है—यानी युवान को फँसाया है।
अब तो अर्जुन का दिल एक ही पल में हल्का-फुल्का हो गया था, और वह मन ही मन सोचने लगा था कि, "अगर यह बात सच है और राजकुमारी भी युवान को पसंद करती है, तो मेरी तो बल्ले-बल्ले हो जाएगी! इतनी खूबसूरत राजकुमारी मुझे कहाँ मिलेगी?"
कहीं न कहीं, ऐसी सोच के साथ अर्जुन पूरी तरह से युवान के किरदार में घुस चुका था, और उसने सोच लिया था कि अब तो चाहे कुछ भी हो जाए, वह खुद को कुछ नहीं होने देगा और इस इल्ज़ाम से भी बाइज्ज़त बाहर होकर रहेगा। और तो और, राजकुमारी के साथ रासलीला भी करेगा!
इस सोच के साथ अर्जुन मुस्कुराता हुआ, सेनापति की ओर एक आँख मारकर वहाँ से जाने लगा था। सेनापति अब गुस्से से तिलमिला कर रह गया था, और उसने सोच लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह इस युवान को कभी भी बाइज्ज़त बरी नहीं होने देगा।
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(अर्जुन के वहाँ से जाने के बाद)
सेनापति ने तुरंत ही अपने गुप्तचरों को आदेश दे दिया कि युवान की हर गतिविधि पर नज़र रखी जाए। उधर अर्जुन—जो अब युवान की पहचान में था—महल के गलियारों में घूमते हुए राजकुमारी से मिलने का कोई रास्ता तलाश रहा था।
हालाँकि उसे महाराज ने कहा था कि वह तीन दिनों के लिए अपने घर पर रह सकता है, लेकिन अब अर्जुन को तो यह पता नहीं था कि युवान का घर कहाँ है और उसे साथ ही साथ सबूत भी इकट्ठा करने थे। हालाँकि महाराज ने उससे इस बात की भी इजाज़त ले ली थी कि वह सबूतों को इकट्ठा करने के लिए महल के किसी भी कक्ष में जा सकता है और किसी से भी पूछताछ कर सकता है। महाराज अभिमन्यु राजवंश, जो कि न्याय के पूरी तरह से पक्के और अपने वचन के बिल्कुल पक्के थे, उन्होंने युवान से कह दिया था कि वह जो चाहे तीन दिनों में कर सकता है, लेकिन अगर इन तीन दिनों के अंदर-अंदर उसने अपने खिलाफ लगे सभी निर्दोष होने के सबूत नहीं दिखाए, तो वह युवान को बहुत ही भयानक मौत देंगे। मौत का नाम सुनकर अर्जुन काफी हद तक डर भी गया था, लेकिन कहीं ना कहीं उसे अपने इंसानी दिमाग पर पूरी तरह से भरोसा था कि वह हर हाल में अपने आपको बचाकर ही रहेगा। भले ही उसकी आधुनिक ज़िंदगी हो। महल की खूबसूरती को देखता हुआ आगे ही बढ़ रहा था कि तभी अचानक वह किसी से टकरा गया। अब जैसे वह टकराया, उसे आदमी की आँखों में उस वक्त लंबे-लंबे आँसू थे। अब जैसे ही उस आदमी ने युवान को देखा, युवान ने उसे देखा, उसने तुरंत उसे सॉरी बोल दिया था कि वह गलती से उससे टकरा गया, लेकिन वह आदमी तुरंत ही युवान के गले से लिपट पड़ा था और रो पड़ा था। अब यह देखकर अर्जुन की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था, और वह उसे शांत करते हुए बोला था, "अरे भाई, क्या हुआ है तुझे, जो इतनी ज़ोरों से तो मैं तुझे टकरा भी नहीं मारा कि तू इतनी बुरी तरह से रो रहा है, क्या हुआ है, इतनी बुरी तरह से क्यों रो रहे हो भाई तुम?" जैसे ही अर्जुन ने अपनी चुलबुले अंदाज़ के मुताबिक़ उससे इस तरह से बातें की, वह आदमी रोता-रोता भी कंफ्यूजन से अर्जुन की ओर देखने लगा था और बोला था, "मैं आपके लिए तो रो रहा था, मुझे लगा कि शायद आज आपकी ज़िंदगी का आख़िरी दिन होगा और अभी तक आपको फाँसी दे दी गई होगी, लेकिन आपको सही सलामत देखकर आप सोच भी नहीं सकते कि इस वक्त मैं कितना ज़्यादा खुश हूँ।" अब यह सुनकर अर्जुन पूरी तरह से शकपका गया और जल्दी ही अपने दिमाग़ की बत्ती को जलाते हुए उसे यह समझ में आ चुका था कि यह इंसान ज़रूर इस शरीर का यानी युवान का जानने वाला है। तब अर्जुन ने गहरी साँस ली और उसकी ओर देखकर कहा था, "ओह माफ़ करना, मैं कुछ गहरी सोच में था तो इसीलिए मैं तुमसे टकरा गया। तुम... तुम मुझे जानते हो?" जैसे ही अर्जुन ने एक बार फिर इस तरह का सवाल किया, अब तो वह आदमी पूरी तरह से अपने माथे पर बल लाकर बोला था, "क्या हो गया आपको, भ्राता युवान, आप किस तरह की बातें कर रहे हैं?" अब जैसे ही उस आदमी ने यह कहा, जल्दी ही अर्जुन अपने आपको कंट्रोल करके भारी मन में बोला था, "शांत हो जा अर्जुन, शांत हो जा, अगर इस तरह से इतनी ज़्यादा जिज्ञासा इस आदमी के सामने दिखाएगा तो वह तुझे एक मिनट में पहचान लेगा, हो सकता है कि जो शरीर इस वक्त तेरे साथ है वह शरीर का कुछ ख़ास जानने वाला हो।" तभी अर्जुन झूठ-मूठ अपनी आँखों में नमी लाते हुए बोला था, "क्या करूँ मैं भाई, जब से काल कोठरी में बंद हुआ हूँ, तब से अपनी सोचने-समझने की शक्ति खो बैठा हूँ, मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मैं कहाँ जाऊँ, क्या करूँ, क्या ना करूँ।" अब जैसे ही अर्जुन ने थोड़ा सा मुँह बनाते हुए यह कहा, एक बार फिर सामने खड़े हुए इंसान ने अर्जुन को गले से लगा लिया था और बोला था, "तुम क्यों परेशान होते हो, मैं हूँ ना, मैं हूँ तुम्हारा ख़्याल रखूँगा। अब तुम चलो मेरे साथ, घर पर सब लोग बहुत ज़्यादा दुखी हैं और तुम्हारी माँ, तुम्हारी माँ का तो रो-रो कर बहुत बुरा हाल है, तुम चलो, तुम्हारा पूरा परिवार तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है, चलो मेरे साथ।" अभी तक अर्जुन को शादी का नाम पता कुछ भी नहीं पता चला था, लेकिन जिस तरह से वह उसे चलने के लिए कह रहा था, तो वह समझ चुका था कि ज़रूर यह युवान का कोई ना कोई ख़ास आदमी है। फ़िलहाल अर्जुन के पास उसके साथ चलने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था, इसीलिए अर्जुन उसके साथ चलने लगा था और अर्जुन ने अपने दिमाग़ का इस्तेमाल करते हुए चालाकी से युवान के बारे में जितनी हो सकती थी उतनी इनफ़ॉर्मेशन उससे निकाल वाली थी, जैसे कि युवान कब क्या करता था, उसके घर में कौन-कौन था और कब से कितने दिनों से वह काल कोठरी में था, यह सारी बातें उसने जल्दी ही पता लगा ली थीं और महल से बाहर निकालकर छोटी-छोटी गलियों को पार करके जल्दी ही अर्जुन उस आदमी के साथ एक जगह पर खड़ा हुआ था और उसका ठीक सामने बड़ा ही खूबसूरत सा घर था। यह घर देखकर अर्जुन हैरान हो गया और उस आदमी की ओर देखकर बोला था, "यह घर तो बहुत खूबसूरत है।" तब वह आदमी अपने चेहरे पर फिर से हैरानी लाते हुए बोला था, "क्या बात है आयुष्मान भाई, भ्राता आप काफ़ी कुछ बदले-बदले से लग रहे हैं, मैं समझता हूँ कि काल कोठरी अच्छे-अच्छों को बदल देती है, लेकिन आपको तो कुछ ज़्यादा ही बदल दिया है। यह घर तो अच्छा होगा ही ना, अपने दिन-रात मेहनत करके खून-पसीने की कमाई से जो इसे बनाया है, और आपको पता है महाराज ने आपको कितना बड़ा मान-सम्मान दिया था, पर पता नहीं यह चोरी का इल्ज़ाम कैसे आपकी ज़िंदगी में आ गया और आपकी ज़िंदगी क्या से क्या हो गई।" जैसे ही उस आदमी ने अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए यह कहा, तभी एक लड़की की आवाज़ अर्जुन और साथ ही साथ उस आदमी के कानों में आई थी। वह लड़की थोड़ा सा तेज़ आवाज़ में बोली थी, "देव भाई!" अब जैसे ही उस लड़की ने यह बोला, अर्जुन भी हैरानी से उसकी ओर देखने लगा था। एक बड़ी ही प्यारी, खूबसूरत सी लड़की वहाँ खड़ी हुई थी और उसने जाकर देव से, देव की ओर देखकर कहा था, "देव भाई अब आप अकेले आ गए और युवान भाई... युवान भाई कैसे हैं? कुछ पता चला, वह ठीक तो है ना?" अभी तक उस लड़की ने युवान को वहाँ नहीं देखा था, क्योंकि युवान का चेहरा दूसरी ओर था। अब उस लड़की के इस तरह से बोलने पर अर्जुन भी हैरान हो गया और तुरंत पलट कर उस लड़की को देखने लगा था। वहीं उस लड़की ने जैसे ही अपने सामने युवान को देखा, वह तुरंत खुद को रोक नहीं पाई, खुशी से चिल्ला कर उसने उसे गले से लगा लिया था और फूट-फूट कर रोने लगी थी। अब उस लड़की को इस तरह से रोता हुआ देखकर युवान को यानी अर्जुन को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था और वह उसे शांत करते हुए कहने लगा था, "हे रिलैक्स, कौन हो तुम और इस तरह से क्यों रो रही हो, प्लीज़ शांत हो जाओ।" अब जैसे ही अर्जुन ने अपनी आदत के मुताबिक इस तरह से बात की, अब तो वह लड़की भी चौंक गई और साथ ही साथ देव का भी हैरानी के मारे बुरा हाल था, लेकिन वह तुरंत ही उस लड़की के कानों में सरगोशी करते हुए बोला था, "मदिरा, तुम्हें ज़्यादा परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है, जब से अर्जुन काल कोठरी में... जब से युवान काल कोठरी में रहकर आया है, अजीब अजीब सी बातें कर रहा है, तो मुझे लगता है कि हमें उसे थोड़ी देर आराम करने के लिए उसके कक्ष में लेकर जाना चाहिए।" अब जैसे ही उसने उस लड़की से यह कहा, यशिका तुरंत ही अर्जुन से अलग हुई और उसका हाथ पकड़कर बोली थी, "आप नहीं जानते युवान भ्राता, जब से आप उस काल कोठरी में बंद हुए थे, हम लोगों का जीना पूरी तरह से दुश्वार हो गया था, सब लोग हमें नीची नज़रों से देखने लगे थे, कहाँ तो हम पूरे के पूरे राज्य में सम्मान की दृष्टि से देखे जाते थे, लेकिन जब से आप पर चोरी का इल्ज़ाम लगा, हमारी तो मानो पूरी तरह से दुनिया ही पलट गई, सब लोग हमें नीची नज़रों से देखने लगे युवान भ्राता, लेकिन आप लौट आए इसका मतलब साफ़ है कि आप पर चोरी का इल्ज़ाम साबित नहीं हुआ, अब देखना मैं सब लोगों को बताऊँगी कि मेरा भाई चोर नहीं था।" जैसे ही उस लड़की ने रोते हुए स्वर में यह कहा, अब तो अर्जुन समझ चुका था कि सामने खड़ी हुई लड़की कोई और नहीं बल्कि युवान की छोटी बहन है। तब अर्जुन ने आगे बढ़कर उसके सर पर हाथ रखकर कहा था, "तुम परेशान मत हो, बहुत जल्द तुम्हारा भाई सभी के सामने निर्दोष साबित हो जाएगा।" जैसे ही अर्जुन ने आत्मविश्वास के साथ यह कहा, यशिका भी उसका हाथ थाम कर मुस्कुरा दी थी और बोली थी, "अब चलिए जल्दी से, माँ आपकी कब से राह देख रही है, आइए ना, अंदर चलिए।" यह बोलकर जल्दी ही वह उसे घर... उसे घर के अंदर ले गई थी और जैसे ही अर्जुन अंदर गया, उसने सामने बैठी हुई औरत को देखा, तो उसकी आँखें पूरी तरह से बाहर निकलने को तैयार थीं। सामने बैठी हुई औरत उसे काफ़ी ज़्यादा जानी पहचानी सी लग रही थीं। अर्जुन पूरी तरह से हैरान और परेशान था कि यह औरत, यह कौन हो सकती है, क्योंकि इस औरत को उसने अपनी आधुनिक ज़िंदगी में कहीं देखा था, लेकिन उसने कितना ही दिमाग़ पर ज़ोर लगा लिया था, लेकिन वह समझ ही नहीं पा रहा था कि इस औरत को उसने कहाँ देखा था, लेकिन फ़िलहाल अब उसकी माँ ने उसके सामने... सामने खड़े हुए बेटे युवान को देखकर जल्दी से उसे गले से लगा लिया था और रोते हुए बोलने लगी थी, "मेरा बच्चा तू आ गया, तू नहीं जानता कि तेरे जाने के बाद इस माँ की ज़िंदगी में चारों तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा था, मेरा बच्चा रोशनी की किरण बनकर मेरी ज़िंदगी में वापस आ गया है।" यह बोलकर वह फूट-फूट कर रोने लगी थी, लेकिन तभी देव जो कि अर्जुन को काफ़ी देर से नोटिस कर रहा था, उसकी ऊटपटाँग बातें भी सुन रहा था, तब उसने उसकी माँ की ओर देखकर कहा था, "माँ, अभी अर्जुन काल कोठरी से निकलकर आया है, मुझे लगता है कि आपको उसे कुछ खिलाना पिलाना चाहिए, देखो ना कितना ज़्यादा दुबला पतला सा हो गया है और एक सैनिक का दुबला पतला होना किसी भी लिहाज़ से ठीक नहीं है।" देव के कहने पर उसकी माँ अपने आँसुओं को साफ़ करके तुरंत ही अपनी बेटी यशिका से बोली, "बेटी खड़ी-खड़ी मुँह क्या देख रही है, तेरा भैया आया है, जल्दी से जाकर खाना लगा उसके लिए, आज मैं अपने हाथों से अपने बेटे को खाना खिलाऊँगी।" कहीं ना कहीं अर्जुन मन ही मन अभी इमोशनल सा होने लगा था, क्योंकि उसे ज़िंदगी में कभी परिवार का प्यार ही नहीं मिला था, लेकिन जिस तरह से यहाँ पर एक बहन का प्यार उसे मिल रहा था, एक माँ का प्यार उसे मिल रहा था, तो उसके दिल में कुछ अजीब सी हलचल हो रहे थे और उसने मणिमान बैठा लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह उन लोगों पर किसी भी तरह की कोई आँच नहीं आने देगा। फ़िलहाल जल्दी है उसने भी युवान की माँ के हाथों से खाना खाया था और देव की ओर देखकर बोला था, "मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है, तुम मेरे साथ अंदर आओ।" अब जल्दी ही देव अर्जुन के ठीक पीछे-पीछे जाने लगा था। अर्जुन देव की ओर देखकर कहा था, "देखो मैं जानता हूँ कि तुम्हें मेरी हरकतें काफ़ी ज़्यादा अजीब लग रही होंगी, लेकिन तुम मेरी बात ध्यान से सुनो, मेरे पास सिर्फ़ और सिर्फ़ तीन दिन का समय है, तीन दिन के अंदर-अंदर मुझे हर हाल में अपने आपको निर्दोष साबित करना है। अगर पर तीन दिनों के अंदर खुद को निर्दोष साबित नहीं कर पाया तो मेरी मुझे सरेआम फाँसी पर लटका दिया जाएगा।" जैसे ही अर्जुन ने यह बात बोली, अब तो देव पूरी तरह से हक्का-बक्का रह गया था और वह बोला था, "लेकिन ऐसे कैसे हो सकता है, तुम्हें तो वैसे तो बरी कर दिया गया है ना, फिर तीन दिन की मुहलत... यह सब क्या... यह क्या कह रहे हो तुम?" तब अर्जुन ने गहरी साँस ली और वह बोला था, "देखो काल कोठरी में रहने के बाद काफ़ी सारी चीज़ें ऐसी हैं जो मैं भूल चुका हूँ, तो इसमें मुझे... मुझे इसीलिए तुम्हारी मदद की ज़रूरत है, तुम मेरे बारे में जो कुछ भी जानते हो, छोटे से छोटी, बड़ी से बड़ी चीज़ सारी बातें मुझे बताओ प्लीज़, क्योंकि मुझे लगता है कि तुम मेरे बारे में ज़रूर सब कुछ जानते हो।" जैसे ही अर्जुन ने बात बनाते हुए थोड़ा सा इस तरह से देव को फ्रेम किया, देव भी सोचने पर मजबूर हो गया और सोचने लगा की काल कोठरी तो अच्छे-अच्छों को बदल देती है, तो शायद इसीलिए युवान के दिमाग़ पर काफ़ी ज़्यादा बुरा असर पड़ा है, इसीलिए वह इस तरह की बातें कर रहा है। तब देव ने गहरी साँस लिया और बोला था, "हाँ हाँ क्यों नहीं, मैं जानता हूँ और मैं तेरी मदद करने के लिए हमेशा से तैयार हूँ, तो तू क्यों परेशान होता है, मैं हूँ तेरे साथ और मुझे पूरी उम्मीद है कि तू अपने आप को निर्दोष साबित भी ज़रूर कर ही देगा।"
देव की बात सुनकर, अर्जुन ने गहरी सांस ली और मन ही मन में सोचने लगा, " अगर उसे युवान के बारे में सब कुछ जानना है?" वह अर्जुन है। उसे यह बात पूरी तरह से भूलनी होगी, क्योंकि अगर भूलकर भी युवान के अर्जुन होने का सच किसी के भी सामने आ गया, तो ये लोग उसे मारने से पहले बिल्कुल भी नहीं सोचेंगे।"
इसी सोच के साथ, अब अर्जुन ने गहरी सांस ली और देव की ओर देखकर बोला, "देव, मेरे दोस्त, तुम्हें देखकर मुझे साफ पता चल रहा है कि तुम शुरू से ही मेरे सुख-दुख हर चीज में मेरे साथ रहे हो। लेकिन आज मुझे तुम्हारी वाकई बहुत ज्यादा जरूरत है, तो तुम्हें मेरी मदद करनी ही होगी।"
जैसे ही अर्जुन ने थोड़ा सा इमोशनल होकर यह बात बोली, देव का हैरानी के मारे बुरा हाल हो चुका था। उसने तुरंत ही युवान को गले से लगा लिया और बोला, "मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि पिछले 30 दिनों की काल कोठरी में रहने के बाद तुम इतना ज्यादा बदल जाओगे। तुम जानते हो, तुम्हारे मुंह से अपने लिए 'भाई' सुनने के बारे में मैं तरसता था। तुम कभी भी किसी से ज्यादा बात नहीं करते थे; तुम बहुत ही कम बोलने वाले, एकदम अनुशासन वाले व्यक्ति थे। हर काम तुम्हें अनुशासन से करना पसंद था—अनुशासन से उठना, नियम से खाना, नियम से पीना, नियम से सारे काम करना, राजा के लिए अपनी जान तक हाजिर रखना—ये सब तुमने किया है। तुम जानते हो, जब तुम पहली बार इस राजवंश राज्य में आए, तुमने आते ही महाराज की जान बचाई थी। महाराज को एक बहुत ही ज्यादा विषैले सर्प ने काट लिया था, और तुमने बिना अपनी जान की परवाह किए, अपनी खास विद्या का इस्तेमाल करके महाराज की जान बचाई। उस दिन के बाद से महाराज तुमसे इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने तुम्हें सीधा-सीधा अपने राज्य का उच्च, सर्वश्रेष्ठ सैनिक बना दिया था। लेकिन उसे सेवा का जो सेनापति विक्रम सिंह था, उसे तुम कभी भी पसंद नहीं आए। उसने तुम्हें नीचा दिखाने की बहुत ही ज्यादा कोशिश की, लेकिन कोई भी तुम्हें हरा नहीं सकता था, क्योंकि तुम्हारे अंदर इतनी , इतनी ताकत थी कि तुम्हारा एक साथ 100से ज्यादा सिपाही को युद्ध में हरा सकते थे। इसीलिए, सेनापति ने तुमसे उलझने की बजाय, तुम्हें चोरी के इल्जाम में फंसा दिया, और, सब कुछ इस तरह से किया कि किसी को भी शक नहीं हुआ; उसकी बात ही सबको सही लगने लगी। और उसने इस बात की भी परवाह नहीं की तुम्हें इस राज्य में महाराज की सेवा करते हुए 1 साल से भी ज्यादा का समय हो गया है।"
जैसे ही गहरी सांस लेते हुए देव ने अटक-अटक कर युवान के बारे में बातें अर्जुन को बतानी शुरू की, अर्जुन सांस थाम कर सारी बातें सुन रहा था, और उसकी बातों से वह इस बात का अंदाजा भी अच्छी तरह से लगा चुका था कि अगर इस राज्य में उसके कितने ही दुश्मन हैं, सेनापति तो सिर्फ और सिर्फ अभी एक चेहरा है, क्योंकि अगर राजा के दरबार में किसी सैनिक को ऊंचा स्थान मिल जाए, तो उसे इतनी आसानी से फसाया नहीं जा सकता; जरूर उसके साथ कोई और भी मिला हुआ है। कहीं ना कहीं, अर्जुन को राजनीति की कड़ी याद आ रही थी, और वह मन ही मन में सोचने लगा था, "मैंने तो सोचा था कि हमारे आधुनिक जीवन में ही ये राजनीति चलती है, लेकिन ये राजनीति तो कई हजार वर्षों से चलती हुई आ रही है।"
फिलहाल, अर्जुन ने गहरी सांस ली और वह बोला, "और राजकुमारी संयुक्ता? राजकुमारी संयुकता के बारे में कितना जानते हो तुम?"
तब राजकुमारी का नाम आने पर, देव तुरंत ही अर्जुन को धीमे स्वर में बोलने के लिए कहने लगा था और बोला, "राजकुमारी का गलती से भी नाम मत लेना। तुम्हें याद है, उस वक्त घोड़े की प्रतियोगिता वाले दिन जो स्पर्धा हुई थी, जिसमें तुम विजई हुए थे, तब राजकुमारी ने तुम्हें अपना व्यक्तिगत अंगरक्षक बना लिया था, और महाराज ने भी इसकी अनुमति दे दी थी। फिर, जब तुमने राजकुमारी को घुड़सवारी सीखाते वक्त उसे एक बार घोड़े से गिरने से बचाया, और राजकुमारी को तुमने छू लिया था, तो यह बात सेनापति को कुछ खास पसंद नहीं आई थी। सेनापति ने इस बात को रोड मरोड़ कर राजकुमार के सामने, महाराज के सामने पेश किया था। उस दिन के बाद से तुमने राजकुमारी को सवारी नहीं सिखाई। पर , युवान भाई, मुझे लगता है कि जरूर तुम्हारे जेल तुम्हें सलाखों के पीछे भेजने में सेनापति के साथ-साथ कोई और भी मिला हुआ है, लेकिन तुम जानते हो कि वो सब बड़े-बड़े लोग हैं, और हम लोग... हम लोग एक मामूली से लोग हैं; हमें रातों-रात वो लोग कहां गायब करवा देंगे, कोई हमारे बारे में जान भी नहीं पाएगा। इसीलिए, हम लोग उनका मुकाबला नहीं कर सकते हैं।" यह कहते हुए, देव थोड़ा सा इमोशनल हो गया था, और जल्दी ही उसने अपनी पीठ युवान को दिखा दी थी।
अब युवान—यानी अर्जुन—ने जैसे ही देव की पीठ देखी, तो उसकी आंखें से बड़ी-बड़ी हो गई थीं। देव के पूरे शरीर पर कोड़ों से मारने के निशान मौजूद थे। यह देखकर अर्जुन खुद को रोक नहीं पाया और बोला, "देव भाई, यह क्या हुआ तुम्हें? और कि तुम्हें किसने इतनी बुरी तरीके से मारा है?"
हां, तब देव हल्का सा मुस्कुरा कर, लेकिन आंखों में नमी लिए अर्जुन की ओर देखकर बोला था, "क्या आपको याद नहीं, जब आप पर चोरी का इल्जाम लगाकर आपको काल कोठरी में ले जाया जा रहा था, तब एक लौता मैं था जो वहां जिसने इस बात के खिलाफ आवाज उठाई थी, और बस मुझे भरी सभा में आवाज उठाना ही भारी पड़ गया था। तब सेनापति ने अपने कुछ सैनिकों से मुझे सो कोड़े लगवाए थे। इसीलिए, तो मैं 7 दिनों तक बिस्तर में पड़ा रहा था। 7 दिनों के बाद आज तुम्हारा फैसला होना था। मुझे लगा था कि तुम्हें आज शायद फांसी दे दी गई होगी, तो मैं तुम्हारी लाश को लेने के लिए ही महल आया था—महल में गया था, लेकिन तुम्हें सही सलामत देखकर तुम सोच भी नहीं सकते कि मैं कितना ज्यादा खुश हूं।"
जैसे ही कम शब्दों में देव ने युवान की जिंदगी का पहलू अर्जुन को दिखाया, अर्जुन की तो आंखें पूरी तरह से हैरानी से भर गई थीं, और वह मन ही मन में सोचने लगा था कि क्या इस जन्म में उसका कोई इतना अच्छा और पक्का दोस्त हो सकता है कि उसके लिए उसने 100 कोड़े तक खा लिए? वही अर्जुन की आंखों के सामने जल्दी ही एक दृश्य उभर आया था। आधुनिक जिंदगी में उसका कोई दोस्त नहीं था; जिस जिंदगी से वह आया था, उस जिंदगी में उसे केवल धोखे, तानों के अलावा कभी कुछ नहीं मिला था, और कभी किसी ने उससे प्यार से बात तक नहीं की थी। मन ही मन में वह एक लड़की को पसंद करता था, लेकिन उस लड़की ने भी कभी उसे कोई भाव नहीं दिया, और हद तो तब हो गई जब अर्जुन ने जिसे वह बचपन से प्यार करता था, उस लड़की को किसी और लड़के की बाहों में रंग रेलिया मनाते हुए देखा। वह भी कोई और नहीं, उसी के मां का लड़का था, और जब अर्जुन ने यह देखा, उसके मामा के बेटे वैभव ने उसे बड़ी बुरी तरह से मारा पीटा था। उस वक्त जोरदार झमाझम बारिश हो रही थी। अर्जुन ने सोच लिया था कि वह अपनी इस नर्क भरी जिंदगी को खत्म कर लेगा; ऐसी जिंदगी से तो अच्छा है कि वह अपनी जान ही दे दे। कहीं ना कहीं यह सोचते हुए वह अपनी जान देने के इरादे से घर से निकला था। उसके बाद उसके साथ क्या हुआ, उसे कुछ भी याद नहीं था। उसके बाद जब उसकी आंखें खुलीं, तो उसने खुद को सैनिक युवान के शरीर में पाया और खुद को एक काल कोठरी में बंद पाया।
अब अर्जुन को इस तरह से गहरी सोच में देख कर, देव ने तुरंत इसका कंधा पकड़ कर हिलाया था और बोला था, "क्या बात है युवान भ्राता? तुम इतना क्या सोच रहे हो? इतना परेशान क्यों हो?"
तब अर्जुन ने गहरी सांस ली। अपनी जिंदगी की कड़वी सच्चाई देखकर वह थोड़ा सा इमोशनल हो गया था। फिलहाल उसने गहरी सांस ली और मन मन में बोला था, "भले ही मेरी पुरानी जिंदगी सिर्फ और सिर्फ दुखों से भरी थी, लेकिन यह जिंदगी... यह जिंदगी तो मैं महाराजाओं की तरह ही जिऊंगा। इस जिंदगी को मैं अपने हिसाब से जिऊंगा। भले ही मुझे किसी और का शरीर मिला हो या किसी और की जिंदगी मिली हो, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं इस जिंदगी को ही अपना बनाऊंगा।" मन ही मन में यह संकल्प करता हुआ अर्जुन एक गहरी सोच में था। फिलहाल उसने देव का हाथ पकड़ कर कहा था, "यह बताओ, तुमने कोई दवाई ली? कोई पेन किलर वगैरह खाया? तुम्हें काफी ज्यादा गहरे घाव लगे हैं।"
जैसे ही अर्जुन ने यह बोला, अब देव हैरानी से अर्जुन की ओर देखकर बोला था, "पेन किलर? वो क्या होता है? और ये तुम किस भाषा में बात कर रहे हो?"
तब अर्जुन ने तुरंत ही अपने सर पर एक टकली मार ली थी। वह सोचने लगा था कि अगर वाकई उसे इस जिंदगी में जीना है, तो उन्हें यहां की भाषा अपनानी होगी; उन्हें बिल्कुल कोई भी अंग्रेजी का शब्द यहां इस्तेमाल नहीं करना होगा, वरना उसके लिए सिचुएशन संभालनी काफी ज्यादा मुश्किल हो जाएगी। इसीलिए, जल्दी से अर्जुन बात बनाते हुए बोला था, "वह तुम मेरी बातों का प्लीज बुरा मत मानना। जब से मैं कुछ दिनों तक बिल्कुल अंधेरी कोठरी में रहकर आया हूं, पता नहीं मुझे अजीब सा लग रहा है।"
तब जल्दी से देव फिक्र में धोकर बोला था, "हां हां, मैं जानता हूं कि किसी के लिए भी इस तरह से काल कोठरी में रहना कितना बड़ा नरक को झेलने के समान है, लेकिन तू फिकर मत कर। हम... मैं तेरी पूरी पूरी मदद करूंगा और हमेशा हमेशा के लिए तुझे इस इल्जाम से भी निर्दोष साबित करवाऊंगी। मुझसे जो बन पड़ेगा, मैं करूंगा। बस तू एक बार मुझे आवाज देकर देखना।"
जैसे ही देव ने अपनेपन से कहा, अर्जुन ने उसे गले से लगाया था और जल्दी ही उसके शर्ट को उतार कर उसे उल्टा लेटने के लिए कहा और बोला था, "मैं अभी आता हूं; तुम यहां पर लेटे रहो।"
अब देव थोड़ा सा हैरान भी हो गया, लेकिन फिलहाल अर्जुन की बात मानते हुए वह चुपचाप वहां लेट गया। तब अर्जुन जैसे ही बाहर गया, उसने देखा कि युवान की मां उसकी आंखों के सामने खड़ी हुई थी। तब अर्जुन ने अपनी आंखें चुराते हुए युवान की मां की ओर देखकर बोला था, "वह... आंटी जी..."
पहली बार जैसे उसने युवान की मां को आंटी बोला, अब तो युवान की मां यशस्वी जी की आंखों में कितने ही सारे सवाल आ गए थे, और वह तुरंत ही युवान के पास आकर उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली थी, "क्या बातें बेटा? यह क्या अजीब सा शब्द बोल रहा था? तू ठीक तो है ना? मुझे तेरी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही है।"
अब जल्दी से अर्जुन ने मन में खुद को कोसा और सोचने लगा कि उसे हो क्या गया है। अगर उसे यह जिंदगी जीनी है, तो युवान की जैसे ही बोलना होगा। वो अर्जुन है, यह बात उसे बिल्कुल पूरी तरह से बुलानी होगी। फिलहाल उसने गहरी सांस लिया, तुरंत ही यशस्वी जी की ओर देखकर बोला, "मां, मुझे थोड़ा सा हल्दी की जरूरत है।"
ये सुनकर युवान कि मां यशस्वी जी चौक गई और बोली थी "हल्दी की जरूरत है, आओ बेटा मैं तुम्हें अभी दे देती हूं" यह बोलकर वह उसे जल्दी ही रसोई घर में ले गई थी।
अब तो युवान की आंखें हैरानी से मार फटे की फटी रह गई थी, क्योंकि उसे रसोई घर में कुछ भी सामान पिसा हुआ नहीं था; हल्दी की मोती मोती गांठे मां रखी हुई थी। अब तो वह आश्चर्यचकित होकर यशस्वी जी की ओर देखकर बोला था, "मां क्या यहां पर पिसी हुई हल्दी नहीं मिलती?" जैसे उसने इस तरह की बात की, अब एक बार फिर उसकी मां पूरी तरह से चौंक गई, बोली थी, "क्या बात है बेटा? पिसी हुई हल्दी वह क्या होती है? तुम कहना क्या चाहते हो?"
तब उसने जल्दी से अपने सर पर थोड़ा सा हाथ रखा और बोला था, "वह... मुझे यह वाली हल्दी बिल्कुल बारीक बारीक पिसी हुई चाहिए।"
अब युवान की बात सुनकर, जल्दी ही यशस्वी जी ने एक बड़ा सा कुछ हल्दी कूटने का सामान लिया और फटाफट से कुछ ही मिनट के अंदर अंदर उन्होंने बड़ी ही बारिक हल्दी पीसकर युवान के हाथों में थमा दी थी। अब उनका इस तरह से इतनी फटाफट काम करते हुए देखकर अर्जुन की आंखें हैरत से फैल गई थी, और सोचने लगा था, "क्या पिछले जमाने में यानी कि इस जन्म में इस लेडिस के पास एक भी पिसा हुआ मसाला नहीं होगा? क्या ये घर का खाना इसी तरह से रोज पीसकर बनाती है?"
फिलहाल अर्जुन के पास यह सब सोचने का समय नहीं था, और उसने जल्दी से मुस्कुरा कर मां को शुक्रिया अदा किया और हल्दी में कुछ और केमिकल्स मिलकर वह सीधा देव के पास आ गया था। आखिरकार अर्जुन ने ऐसी कोई किताब नहीं थी जो ना पढ़ी हो, डॉक्टरी लाइन की साइंस लाइन की सामाजिक हर एक बुक्स उसके दिमाग में पूरी तरह से समाई हुई थी, क्योंकि आज तक उसका नॉर्मल आधुनिक दुनिया में तो कोई दोस्त बना नहीं था, तो उसने किताबों को ही अपना दोस्त बनाया था और जितना हो सकता था उसने उतना ज्ञान उनसे हासिल किया था। फिलहाल जल्दी ही एक बढ़िया सा पेस्ट बनाकर वह देव के सामने मौजूद था।।
और उसने उसकी पीठ पर वह पेस्ट लगाना शुरू कर दिया था। अब जल्दी यशस्वी जी भी वहां गई थी और अपने बेटे को इस तरह से देव की पीठ पर पेस्ट लगाते हुए देखकर हैरान भी हो रही थी, और मन ही मन में सोच रही थी कि उसने इस तरह का मरहम बनाना आखिरकार कहां सीखा? वह यह तो जानती थी कि उसके बेटे युवान को कीड़े मकोड़े, सांप बिच्छू, या किसी और जानवर के काटने की का इलाज करने की विधियां तो आती थी, लेकिन इस तरह से चोट पर लगाने वाला मरहम उसे आता हो, इस बात का उसे कोई आईडिया नहीं था।
फिलहाल, अर्जुन के लिए देव को पूरी तरह से ठीक करना बहुत ज्यादा जरूरी था, क्योंकि उसे तो यहां के बारे में ज्यादा कुछ नॉलेज नहीं थी, और एक देव ही था जो कि उसकी यहां ढेर सारी मदद कर सकता था। इसीलिए उसने उसे पहले ठीक किया, और पूरे कुछ ही घंटे के अंदर अंदर देव को काफी हद तक आराम भी मिल गया था और उसने अर्जुन को देखकर कहा था कि, "अब मैं तुम्हारे साथ राजमहल चलने के लिए पूरी तरह से तैयार हूं। मुझे लगता है कि हमें एक भी मिनट अब बर्बाद नहीं करनी चाहिए। वैसे भी केवल तीन दिन का समय हैं, और आज का दिन तो तुमने मुझे ठीक करने में ही बिता दिया, अब रात हो गई है।"
तब अर्जुन ने देव की ओर देखकर कहा था, "चाहे रात हो या दिन हो, लेकिन राजमहल तो मैं आज ही जाऊंगा—आज रात को ही जाऊंगा। तुम्हें मेरे साथ चलना होगा।"
यह सुनकर देव पूरी तरह से हड़बड़ा सा गया था और बोला था, "लेकिन इतने सारे सैनिकों के बीच में रात को राजमहल में जाना खतरे से खाली नहीं होगा? और अगर हमें सैनिकों ने पकड़ लिया, तो एक और इल्जाम वह हम पर लगा देंगे और हमेशा हमेशा के लिए काल कोठरी में बंद कर देंगे।"
तब अर्जुन ने देव के कानों में सरगोशी करते हुए कहा था, "तुम उस बात की बिल्कुल भी फिक्र मत करो। और वैसे भी जब से मैं राजकुमारी संयोगिता को देखा है, तब से मुझे कुछ अजीब सा हो रहा है, और मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं और मैं राजकुमारी से मिलना चाहता हूं, क्योंकि कहीं ना कहीं राजकुमारी के हाव-भाव देख कर अर्जुन समझ चुका था कि यह राजकुमारी इस चोरी के बारे में जरूर कुछ ना कुछ जानती है, और वह उसकी मदद जरूर कर सकती हैं। इसीलिए उसने राजकुमारी से मिलने का डिसीजन लिया था।
फिलहाल देव के पास कोई और रास्ता नहीं था। वैसे भी उसने युवान यानी अर्जुन को वादा किया था कि वह उसका पूरी तरह से साथ देगा और वो निर्दोष साबित जरूर होगा। तो इसीलिए वह भी डरते हुए, लेकिन अब पूरी तरह से राजमहल जाने के बारे में सोचने लगा था।
वही राजकुमारी संयोगिता इस वक्त पूरी तरह से बेचैन थी, और इधर-उधर अपने कक्ष में टहल रही थी। तभी उसकी एक सहायिका जिसका नाम नंदिनी था, वह जल्दी ही राजकुमारी संयोगिता के ठीक सामने आकर खड़ी हो गई, और सर झुका कर बोली थी, "राजकुमारी आपने जो कुछ काम दिया था मैंने वह काम करने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन सैनिक युवान जब अपने घर की ओर गया, तब मैंने उसका पीछा करवाया था। वह सीधा अपने घर गया; वह कहीं भी नहीं गया, और अभी तक वह अपने घर से बाहर नहीं निकला है, और हमें एक भी मौका नहीं मिला जिससे कि हम आपका संदेश उस तक पहुंचा सके।"
जैसे ही नंदिनी ने यह बोला, अब संयोगिता का खून पूरी तरह से खोलने लगा था और अचानक उसने अपनी तलवार निकाल कर नांदरी के गर्दन पर लगा दी थी और बोली थी, "मुझे ना नहीं सुनना है। मुझे हर हाल में सैनिक युवान मेरी आंखों के सामने चाहिए। तुम समझ क्यों नहीं रही हो ... मुझे उससे मिलना है।"
अब नंदिनी थर-थर कांपने लगी थी। उसे समझ नहीं आया कि वह राजकुमारी संयोगिता को किस तरह से समझाएं, लेकिन राजकुमारी का इस तरह का स्टेप देखकर तो वह यह बात अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि उसके राजकुमारी युवान के प्यार में पूरी तरह से पागल हो चुकी है, इसीलिए उसने बचपन से उसके साथ रह रही सेविका की भी कुछ खास परवाह नहीं की। हालांकि राजकुमारी संयोगिता का यह स्वभाव बिल्कुल भी ऐसा नहीं था, लेकिन जब से सैनिक युवान को काल कोठरी में सजा सुनाई गई थी और उसके बाद उसे मृत्यु दंड दिया गया था, तब से वह पूरी तरह से बेचैन हो उठी थी, और अब जल्दी ही उसने नंदनी की आंखों में डर देख कर कहा था, "कुछ भी करो, हमें आज रात किसी भी कीमत पर सैनिक युवान से मिलना ही है और हम उससे मिलकर रहेंगे।"
राजकुमारी ने अपनी आग उगलती हुई आंखों से नंदनी को देखते हुए कहा, तब नंदनी जल्दी ही आंखों में आंसू लाकर बोली थी, "हमें क्षमा कर दीजिए राजकुमारी बस हमें कुछ समय और दे दीजिए हम कुछ ना कुछ करके सैनिक युवान को यहां ले आएंगे और वैसे भी आज महाराज और महारानी राज्य में नहीं है। वह दूसरे राज्य में गए हैं जो दो दिनों के बाद ही आने वाले हैं, क्योंकि दूसरे राज्य में महारानी के भाई के यहां पर पुत्री का जन्म हुआ है तो उसी के उपलक्ष में महाराज और महारानी को आमंत्रित किया गया था। इसीलिए वह लोग वहां गए हैं।"
अब जैसे ही यह खबर राजकुमारी संयोगिता को लगी, वह पूरी तरह से हैरान हो गई थी। हालांकि महारानी ने इस बात के बारे में संयोगिता को पहले से ही सूचित कर दिया था कि उसे भी उनके साथ चलना है, लेकिन उस वक्त राजकुमारी संयोगिता पूरी तरह से युवान के कैदी होने पर दुखी थी। इसीलिए उसने साफ-साफ अपनी मां महारानी गायत्री को मना कर दिया था कि वह उनके साथ नहीं जाएगी; उसकी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। अब महारानी गायत्री के लिए अपनी बेटी की तबीयत सबसे ज्यादा जरूरी थी। आखिरकार पूरे के पूरे राजवंश की वह एक लोती उत्तराधिकारी थी; उसकी सेहत को लेकर या उसके किसी भी मामले को लेकर किसी भी तरह की कोई ढील नहीं बरती जाती थी। इसीलिए राजकुमारी को आराम करने का बोलकर वह लोग दूसरे राज्य की ओर प्रस्थान कर गए थे।
वहीं दूसरी ओर युवान यानी कि अर्जुन जल्दी ही देव के साथ एक प्लान बनाकर और महल के ही सैनिकों का रूप लेकर महल में एंट्री कर चुके थे। कहीं ना कहीं राजकुमारी की आंखों में उसने कितने ही सारे सवाल देखे थे। इसीलिए अर्जुन किसी तरह का कोई सबूत ना जुटाकर सीधा राजकुमारी से मिलना चाहता था, और इसीलिए उसने देव से पता भी लगवा लिया था की राजकुमारी का कक्षा कौन सा है। लेकिन वहां पर किसी भी पुरुष को जाने की इजाजत नहीं थी। इसीलिए अब अर्जुन अपना दिमाग जोरों से चलाने लगा था। वह हर हाल में राजकुमारी से मिलना चाहता था।
कहीं ना कहीं अर्जुन का दिल गवाही दे रहा था कि हो सकता है कि उसके बेगुनाही का सबूत राजकुमारी के पास हो या फिर राजकुमारी ही उसे कोई ना कोई तरीका बता दे। तो इसी उम्मीद के साथ वह अब राजमहल में घुस आया था। लेकिन जैसे उसने राजकुमारी के कक्ष के पास सैनिकों की बहुत ज्यादा भीड़ देखी तो अर्जुन पूरी तरह से चौंक हो गया था, और वह सोचने लगा था कि उसे किस तरह से अंदर जाना चाहिए? उसे हर हाल में आज के आज ही राजकुमारी से मिलना होगा। अगर वह राजकुमारी से नहीं मिला, तो दो दिन बाद यह लोग उसे इस जिंदगी से मुक्ति दे देंगे और पता नहीं उसके बाद उसकी आत्मा वापस से उसकी आधुनिक जिंदगी में जा पाएगी या नहीं या फिर हमेशा हमेशा के लिए वह यही कैद होकर रह जाएगी।
अभी तक अर्जुन को अपनी इस बारे में कोई एहसास नहीं था कि आखिरकार युवान की जिंदगी में वह क्यों आया है? इस जिंदगी में आने का उसका क्या कारण है? और वैसे भी अर्जुन को यह जिंदगी कुछ खास पसंद आ गई थी, क्योंकि उसकी आधुनिक यानी के मॉडर्न जिंदगी में तो शिवाय दुख तकलीफ और तानों के कुछ भी नहीं था। हालांकि अर्जुन बेहद ब्रिलिएंट स्टूडेंट था, लेकिन कभी किसी ने भी उसकी कोई कदर नहीं की। इसका एक प्रमुख कारण था अर्जुन का बेहद साधारण सा दिखना , दुबला दुबला पतला उसका शरीर साथ-साथ बड़ा सा उसके चेहरे पर चश्मा उसे सब लोगों से काफी ज्यादा अलग बनाता था, और जबकि उसके मुकाबले उसके क्लास में भी और आसपास भी कितने हैंडसम और डैशिंग लड़के रहा करते थे। तो अर्जुन को तो वह लोग केवल छछूंदर ही कह कर बुलाया करते थे। अर्जुन काफी ज्यादा इरिटेट हो जाया करता था। कितनी ही बार उसने अपनी जान देने की भी कोशिश की थी, क्योंकि उस जिंदगी से वह पूरी तरह से हार गया था। दोस्त के नाम पर भी उसका उस दिन उस दुनिया में कोई नहीं था, लेकिन यहां... यहां तो उसे सैनीक युवान बोल कर इज्जत दी जा रही थी। प्यार करने वाली मां थी, भाई जैसा दोस्त था, साथ ही साथ एक प्यारी सी छोटी बहन थी जो उससे काफी ज्यादा प्यार से पेश आ रही थी। तो यह सारी बातें उसे काफी ज्यादा अच्छी लग रही थी और वह... और सबसे बड़ी बात है उसे यहां की राजकुमारी पसंद आ गई थी। कहां तो उसकी आधुनिक जिंदगी में किसी नॉर्मल लड़की ने भी उसे किसी तरह का कोई भाव नहीं दिया, लेकिन यहां... यहां तो अप्सरा जैसी राजकुमारी उसकी और आकर्षित थी, यह बात उसने जल्दी ही महसूस कर ली थी।
फिलहाल अर्जुन ने गहरी साथ सांस ली और उसने सोचना शुरू कर दिया था कि वह इस तरह से हार नहीं मान सकता है। वैसे भी वह अर्जुन है। और यहां अर्जुन को एक बात पूरी अच्छी तरह से याद थी, की महाभारत में एक बार स्वयं धनुषधारी अर्जुन को भी एक अलग ही तरह का रूप लेना पड़ गया था। तो फिर आज यह बात अर्जुन के दिमाग में जैसे ही आई तो उसके दिमाग में एक आईडिया आ चुका था ।और उसने मुस्कुराकर देव से कहा था, "क्या तुम मेरे लिए एक जोड़ी लेडिस कपड़ों का इंतजाम कर सकते हो?" क्योंकि इस वक्त जो अर्जुन ने कपड़े पहने हुए थे, वह सैनिकों वाले कपड़े पहने हुए थे। और जो वहां की औरतें कपड़े पहना करती है, वह सिर्फ एक छोटी सी चोली और लहंगा यही कपड़े वहां की लेडिस पहना करती थी जिसमें वह बेहद अट्रैक्टिव दिखाई देती थी।
फिलहाल अर्जुन की बात सुनकर देव कन्फ्यूज्ड हो गए और बोला था, "यह आप कैसी बातें कर रहे हैं ? भला आप कन्याओं के कपड़ों का क्या करेंगे?"
तब अर्जुन ने जल्दी से देव के कानों में कुछ कहना शुरू कर दिया था। वही देव का तो हैरानी के मारे बुरा हाल था और वह बोला था, "कैसी बातें कर रहे हो तुम? कन्या बनोगे वह भी सैनिक युवान जो की बहुत बड़ा शूरवीर है, वह कन्या बनने की बात कर रहा है। हे गुरुजी यह कैसा अनर्थ है? क्या आप वाकई युवान ही है ना?"
जैसे ही देव ये बोला अर्जुन ने तुरंत ही देव के सर पर टकली मारते हुए कहा था, "क्या यार कितने सारे क्वेश्चन करते हो तुम? तुम्हें जितना कहा जाए उतना करो ना। तुम नहीं जानते मेरा राजकुमारी से मिलना कितना ज्यादा जरूरी है और तुम क्या जानो इस वक्त तीन दिनों के अंदर अंदर मेरे सर पर मौत मंडरा रही है और जिस इंसान के सर पर मौत मंडरा रही हो उस वक्त क्या वह अपने रूल रेगुलेशन देखेगा?"
जैसे ही अर्जुन ने थोड़ा सा तेज आवाज में देव को डांटना शुरू किया, अब तो देव की सिटी पूरी तरह से गुम हो गई थी, क्योंकि रूल रेगुलेशन इस तरह के शब्द अर्जुन ने इंग्लिश में use किए थे। तो वह हैरानी से तुरंत ही आंखों में आंसू लाकर बोला था, "युवान भ्राता आप मुझे क्यों फटकार रहे हैं? मैं जानता हूं कि इस वक्त आप पर मौत का खतरा है, लेकिन तुम इस तरह की अगर हरकतें करोगे, तो मुझे तो ऐसा लगेगा ही ना कि तुम्हारे साथ जरूर कुछ ना कोई गड़बड़ हो गई है?"
तब देव मन ही मन में सोचने लगा था, "इस वक्त यह शूरवीर कन्या बनना चाहता है। तो मुझे इस कन्या बनने देना चाहिए। अगर मैं इनके बीच में रोड़ा बना, तो इनकी तो मौत तीन दिनों के बाद होगी, लेकिन यह मुझे सरेआम आज के आज फांसी दे देंगे।"
फिलहाल देव मन ही मन में बोला था कि उसे अगर उसे अपनी जान बचानी है, तो जैसा यह शूरवीर कहता है, उसे ऐसा ही करना चाहिए। और जल्दी ही अर्जुन ने देव की आंखों में आंसू देखे, उसे तुरंत ही उसे मन में पछतावा होने लगा था। वह सोचने लगा था कि उसे अपने आप पर कंट्रोल क्यों नहीं हो रहा है? उसे इस तरह की बातें नहीं बोलनी है कि जो कि यहां के लोगों को समझ में ना आए। उसे यहां के लोगों के अकॉर्डिंग ही बातें करनी है।
फिलहाल अर्जुन ने गहरी सांस ली और बड़े ही प्यार से देव के कंधों पर हाथ रखकर बोला था, "देखो मैं अच्छी तरह से जानता हूं देव भाई की तुम्हें मेरा बिहेव..." अर्जुन एक बार फिर इंग्लिश word बोलने वाला था , लेकिन तुरंत ही बिहेव ना बोलकर बोला था, "मेरा बर्ताव आपको शायद कुछ खास पसंद नहीं आ रहा है, लेकिन इस वक्त मेरे दिमाग में काफी ज्यादा..."
अब अर्जुन के दिल में आया कि वह टेंशन बोले, लेकिन वह सोचने लगा था कि अगर वह देव को टेंशन बोलेगा, तो देव फिर से उसकी बात नहीं समझ पाएगा और वह सोचने लगा था कि टेंशन को शुद्ध हिंदी हिंदी में क्या कहते हैं, "तुम्हें मेरी समस्या... समस्या समझनी होगी। दो दिनों के बाद मुझे फांसी होने वाली है, और मैं मरना नहीं चाहता। मैं अपनी मां और बहन के लिए और साथ-साथ..." मन में अर्जुन बोला था, "राजकुमारी के लिए जिंदा रहना चाहता हूं। तो उसके लिए मुझे जो रास्ता मुझे ठीक लगेगा, मैं वही करूंगा।"
अब अर्जुन के ने जैसे ही प्यार से यह बात देव को समझाई, देव तुरंत उसकी हां में हां मिलाकर बोला था, "तुम्र एक काम करो, मेरे साथ आओ । यहां पर एक दासी है..."
यहां एक दासी है,वह मेरी जानकार है, इसमें वह हमारी मदद कर सकती है। फिलहाल तो हम सैनिक के वेश में हैं, और महल इतना बड़ा है कि कोई हमें खोज नहीं पाएगा। "आप मेरे साथ चलिए।" यह बोलकर जल्दी ही देव, युवान को लेकर उस दासी के पास जाने लगा था।
और जैसे ही दासी ने देव को वहां देखा, वह बोली, "देव भ्राता आप यहां क्या कर रहे हैं? आप शायद भूल रहे हैं, इससे आगे की सरहद राजकुमारी के महल की शुरू होती है, और राजकुमारी के कक्ष की ओर किसी भी पुरुष का जाना मना है। अगर आपको किसी ने वहां देख लिया, तो उसी वक्त आपको जिंदा जला दिया जाएगा।"
अब दासी की बात सुनकर कुछ पल के लिए युवान और देव दोनों ही डर गए थे, लेकिन तभी युवान ने दासी को देखकर कहा, "हमें इस वक्त आपकी सहायता की बेहद जरूरत है, आप हमें नारी के वस्त्र लाकर दे दीजिए।" अब युवान के ये कहते ही दासी पूरी तरह से आश्चर्यचकित हो गई थी।
तभी दासी के उड़े हुए रंग को देख कर उसने देव को कोहनी मारी थी, और जल्दी ही देव ने आगे जाकर उस दासी को अपनी भाषा में कुछ समझाना शुरू कर दिया था, और वह दासी जल्दी ही युवान की मदद करने के लिए तैयार भी हो गई थी। क्योंकि युवान उस राज्य का सबसे ज्यादा दयालु और महान सैनिक था, लेकिन उसे झूठे केस में फंसाया गया था। यह बात महल का हर एक आदमी जानता था, लेकिन किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह राजगुरु और सेनापति के खिलाफ जा सके।
फिलहाल उस दासी ने जल्दी ही अपने कुछ कपड़े युवान को दे दिए थे, और फिर युवान ने आधुनिक दिमाग का इस्तेमाल करते हुए फटाफट से लड़की जैसा गेटअप लिया। एक पल को देव भी युवान को देखकर पहचान नहीं पाया था, और बोला था, युवान भ्राता, तूम तो पूरी तरह से अलग लग रहे हो।"
तब युवान ने उसकी ओर आंख मारी थी, और बिल्कुल लड़कियों जैसी आवाज निकाल कर बोला था, "अभी मुझे राजकुमारी के पास जाना है, मैं तुमसे बाद में मिलूँगी। तुम मेरा द्वारा के बाहर इंतजार करना।"
युवान की इस तरह की भाषा सुनकर दासी और देव की तो आंखें बाहर निकलने को तैयार थी। क्योंकि आज से पहले कभी भी उन्होंने युवान का ये अजीब रूप और व्यवहार नहीं देखा थे। फिलहाल
युवान कमर मटकाते- हुए जल्दी ही राजकुमारी के कक्ष की ओर जाने लगा था। दासी से उसने राजकुमारी के कक्ष के बारे में जान लिया था। वहीं दूसरी ओर राजकुमारी पूरी तरह से गुस्से में थी, और जल्दी ही उसने नंदिनी की ओर देखकर कहा था, "अभी के लिए हम तुम्हें जाने देते हैं, लेकिन तुम्हें कुछ भी करके कल तक हर हाल में युवान को हमारे सामने लेकर आना ही होगा।"
तब राजकुमारी संयोगिता की बात सुनकर नंदिनी हल्का सा कांपते हुए बोली थी, ", आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए राजकुमारी, हम आज कुछ ना कुछ करके आपका संदेश सैनिक युवान तक पहुंचा देंगे।"
यह बोलकर नंदिनी जैसे ही वहां से वापस जाने के लिए मुड़ी, अचानक से वह लड़की बनी युवान से टकरा गई थी, लेकिन उस वक्त राजकुमारी ने क्योंकि उसे काम दिया था तो वह फटाफट से बिना कुछ रुके वहां से चली गई थी, क्योंकि राजकुमारी के कक्ष में इस तरह से सेविकाओं का आना लगा रहता था। कभी कोई राजकुमारी के बालों में तेल लगाने के लिए आती थी, तो कभी कोई सेविका राजकुमारी के लिए किसी तरह का कोई वस्त्र या खाने के लिए कुछ लेकर आती रहती थी, तो इसीलिए नंदिनी ने भी युवान से कोई सवाल नहीं किया और सीधा वहां से चली गई।
वहीं राजकुमारी जो की नंदिनी को डराने के बाद दूसरी तरफ मुंह करके खड़ी हुई थी, लेकिन अब किसी की आहट महसूस होने पर उसने तुरंत ही बिना मुड़े देखकर कहा था, "इस वक्त हमारा कुछ भी खाने का या पीने का बिल्कुल भी दिल नहीं है, इसीलिए जो कुछ भी लेकर आए हो, चले जाओ यहां से।"
अब राजकुमारी ने जैसे यह कहा, युवान की निगाह तो उसवक्त राजकुमारी की पीठ पर थी। राजकुमारी के बेहद लंबे काले बाल थे, जो बेहद खूबसूरत लग रहे थे, उसकी अर्ध खुली पीठ उसे अपनी और आकर्षित कर रही थी। युवान यानी अर्जुन का दिल बेहद उथल-पुथल मचा रहा था। अर्जुन कभी भी किसी भी लड़की के करीब नहीं गया था, इतना ही नहीं अपनी आधुनिक जिंदगी में जब उसने किसी के करीब जाने की कोशिश की क्योंकि वह एक लड़की को बेहद पसंद करता था तब उस लड़की ने उसे बेहद खरी खोटी सुनाई थी, इतना ही नहीं अपने बॉयफ्रेंड के साथ मिलकर उसे बहुत मारा भी था तब से अर्जुन ने कसम खा ली थी कि वह कभी किसी लड़की की और आंख उठा कर नहीं दिखेगा, लेकिन अब राजकुमारी को देखकर अर्जुन खुद को रोक नहीं पा रहा था और जैसे जल्दी ही वह राजकुमारी के करीब जाने लगा था और अचानक उसने अपने हाथों से राजकुमारी की पीठ को छू लिया था।
वही राजकुमारी जो कि उसे वक्त काफी ज्यादा गुस्से में खड़ी हुई थी, जैसे उसे अपने पेट पर किसी के हाथ का एहसास हुआ वह पूरी तरह से चौंक गई और जैसी हो पलटी तो खुद का बैलेंस नहीं बना पाए, लेकिन अर्जुन ने तुरंत उसे गिरने से पहले संभाल लिया। वही राजकुमारी ने जैसे ही युवान को अपनी आंखों के सामने देखा तो अपने आप ही उसके होंठ पूरी तरह से मुस्कुरा उठे थे, क्योंकि एक कन्या के रूप में अर्जुन काफी ज्यादा फनी दिखाई दे रहा था, लेकिन अब कुछ देर तक एक दूसरे के करीब होने पर राजकुमारी और अर्जुन एक दूसरे की आंखों में देखते रहे । वेल जल्दी ही संयोगिता अपनी सेंस में वापस आई और सीधी खड़ी हो गई और तुरंत ही युवान के कंधों पर हाथ रखकर बोली थी युवान तुम आ गए , तुम जानते हो, हम तुम्हारा कब से इंतजार कर रहे हैं, हम तुमसे मिलने की कब से रहा देख रहे हैं। आखिरकार तुम समझते क्यों नहीं हो, तुम हमारा प्रेम क्यों स्वीकार नहीं कर लेते हो, आखिरकार किस बात का डर है तुम्हें, तुम अच्छी तरह से यह बात जानते हो कि हम तुमसे कितना ज्यादा प्रेम करते हैं। यह बोलकर राजकुमारी ने बिना सोचे समझे तुरंत ही युवान को गले से लगा लिया था।
वही अर्जुन के तो दिल में गिटार बजने लगी थी ल, उसे कुछ समझ में नहीं आया कि आखिरकार यह खूबसूरत लड़की अगर इस सैनिक युवान से प्यार करती है तो उसने उसके प्यार को accept क्यों नहीं किया, क्या यह युवान पागल है । जो इतनी खूबसूरत लड़की को उसने ठुकरा दिया। अब तो अर्जुन के दिमाग में इस वक्त कितने ही सारे सवाल चल रहे थे, लेकिन राजकुमारी ने जैसे यह देखा कि युवान ने उसे वापस गले से नहीं लगाया तो वह तुरंत ही पीछे हटकर खड़ी हो गई और युवान की ओर देखकर बोली थी, हम जानते हैं कि तुम हमारा प्रेम बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करोगे, अगर तुम्हें हमसे प्रेम नहीं है तो तुम इस वक्त यहां क्या करने के लिए आए हो।
जैसे ही राजकुमारी ने थोड़ी सी तेज आवाज में यह बोला अब युवान जल्दी ही अपने हसीन ख्वाब से बाहर आया था, वह तो इस वक्त राजकुमारी के द्वारा गले लगाए जाने पर पूरी तरह से खुश हो रहा था, लेकिन अब राजकुमारी के सवाल पर जल्दी ही उसे याद आया कि वह यहां क्या करने के लिए आया है। फिलहाल उसने राजकुमारी की ओर देख कर कहा था, "मैं आपकी सहायता लेने के लिए आया हु राजकुमारी, आप मेरी मदद कीजिए, और मुझे बताइए की जिन चांदी के सिक्कों के चुराने का इल्जाम मुझ पर लगा है वह सिक्के कहां हो सकते हैं, क्योंकि कहीं ना कहीं आपको देखकर मुझे ऐसा लग रहा है कि जरूर आप कुछ ना कुछ जानती है।"
जैसे ही युवान ने यह सवाल किया राजकुमारी की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था और वह एक टक अर्जुन को देखे गई थी और फिर अचानक राजकुमारी बोल पड़ी थी, "कौन हो तुम?"
जैसे ही राजकुमारी ने यह सवाल किया अर्जुन के चेहरे का रंग पूरी तरह से उड़ गया था और वह तुरंत ही अपने चेहरे पर हाथ फेरने लगा था और अपने हाथ और अपने शरीर की ओर देखने लगा था, वह सोचने लगा की कही उसका असली शरीर तो यहां वापस नहीं आ गया। क्या राजकुमारी उसे पहचान नहीं पा रही है, और उससे पूछ रही है कि कौन हो तुम। अब अर्जुन का इस तरह से अपने आप को देखते हुए देखकर राजकुमारी पूरी तरह से चौंक गई और बोली थी, "तुम सैनिक युवान नहीं हो, तुम सैनीक युवान कैसे हो सकते हो, तुम तो हमारी आंखों में आंखें डाल कर बातें कर रहे हो जबकि हमारे कितने बार कहने के बावजूद भी युवान ने कभी हमारी और आंख उठाकर नहीं देखा, और तुम तुम्हारी आंखों में आंखें डाल कर हमसे सवाल कर रहे हो।"
जैसे ही राजकुमारी ने यह बोला अब तो अर्जुन की सिटी पीटी गुम हो गई थी और वह सोचने लगा था कि क्या वाकई ऐसा भी कुछ था और जल्दी ही उसे याद आया कि दरबार में किस तरह से लोगों से देख रहे थे, क्योंकि उसने झुक कर किसी को भी प्रणाम नहीं किया था या किसी का आदर नहीं किया था तब उसे समझते देर नहीं लगी कि अगर उसे राजा महाराजाओं की दुनिया में रहना है तो हर किसी के सामने सर झुका कर रहना होगा। फिलहाल अब राजकुमारी की बात सुनकर अर्जुन जल्दी से बात बदलते हुए बोला था, "राजकुमारी इस वक्त मौत मेरे सर पर मंडरा रही है और आप चाहती है कि मैं सबके सामने झुक कर रहूं, वैसे भी जिसकी दो दिनों के बाद मौत होने वाली हो उसे किसी के सामने क्या झुकना।"
जैसे ही अर्जुन ने बात बनाते हुए अपने दिमाग का इस्तेमाल करके तुरंत यह जवाब दिया अब तो राजकुमारी भी सो सोच में पड़ गई और सोचने लगी थी कि यह सैनिक युवक काफी ज्यादा बदले बदले से लग रहे हैं, क्योंकि आज तक सैनिक युवान ने कभी किसी से इस तरह से बात नहीं की थी। उसे केवल जितना कहा जाए वह केवल उतना ही काम किया करता था और हमेशा अपना सर झुका कर रखता था एकदम अनुशासन वाला व्यक्ति था कभी किसी ने उसे ज्यादा बोलते हुए भी नहीं देखा था, लेकिन यहां तो अर्जुन लगातार चतर-पटर बोल ही जा रहा था।
फिलहाल अब अर्जुन के इस तरह से बोलने पर राजकुमारी थोड़ा संकोच करते हुए बोली, "तुमने बिलकुल ठीक समझा युवान जिस वक्त तुम्हे काल कोठरी में कैद किया गया उस वक्त हमें एहसास हो गया था कि जरूर कुछ ना कुछ गड़बड़ हुई है, क्योंकि शायद तुम भूल रहे हो हमने तो तुम्हें कितने ही सारे सोने के सिक्के उपहार के तौर पर देने की कोशिश की थी, लेकिन तुमने वह लेने से इनकार कर दिया था तो भला तुम चांदी के सिक्के क्यों चुराओगे। उस वक्त हमें शक हो गया था कि तुम्हें जरूर किसी ने फसाया है और फिर जब हमने अपनी सेविका नंदनी को इस बारे में पता लगाने के लिए कहा तो वह केवल इतना ही पता लगा पाए कि इस साजिश में जरूर सेनापति का हाथ है और सेनापति ने ही वह सिक्के चुरा कर कहीं छुपा दिए हैं और तुम पर इल्जाम लगा दिया है, क्योंकि आखिरी बार राजकोष में तुम ही गए थे।"
अब जैसे ही अर्जुन ने यह सुना वह कड़ी से कड़ी मिलने लगा था कि किस तरह से सेनापति ने उसे राजकुमारी से दूर रहने के लिए कहा था और अब जल्दी ही उसे समझ में आ गया और अर्जुन मन मन में सोचने लगा था कि काश यहां पर सीसीटीवी कैमरा होता अरे यहां पर करोड़ों के गहने जेवर रखे हुए हैं और लेकिन यहां पर सीसीटीवी के नाम पर सिर्फ दो सैनिक खड़े कर दिए जाते हैं। काश यहां पर सीसीटीवी कैमरा होता तो इस तरह उसे सिर्फ मौत की सजा नहीं सुनाई दी गई होती वह आसानी से अपने आपको निर्दोष साबित कर देता। फिलहाल अर्जुन मन में सोचने लगा था कि इस सेनापति को आखिरकार मुझसे दुश्मनी किया है, जरूर उसकी इस राजकुमारी पर नियत खराब है, लेकिन राजकुमारी तो अब सिर्फ और सिर्फ अर्जुन की है राजकुमारी अर्जुन के अलावा किसी और की हो ही नहीं सकती और राजकुमारी ने अभी-अभी कहा कि वह युवान से प्यार करती है, लेकिन युवान ने कभी भी उसके प्यार को कबूल नहीं किया तो इसका मतलब साफ है युवान के मन में राजकुमारी को लेकर कोई प्रेम नहीं था, लेकिन अर्जुन अर्जुन के दिल में तो राजकुमारी को लेकर प्रेम ही प्रेम है वह तो राजकुमारी को पहली नजर में देखते ही पागलों की तरह चाहने लगा है।
तब जल्दी ही अर्जुन के चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कुराहट आ गई थी और अचानक से उसने आगे बढ़कर राजकुमारी को जोरों से गले से लगा लिया। अब तो राजकुमारी संयोगिता पूरी तरह से चौंक गई थी। राजकुमारी संयोगिता तो शुरू से ही युवान को बेहद पसंद करती थी जिस वक्त युवान ने उसके पिता महाराज की जान बताई बचाई थी ,तभी उन्होंने उसे अपनी सेना का सर्वश्रेष्ठ सैनिक घोषित कर दिया था। और धीरे-धीरे जिस वक्त जब राजकुमारी ने घुड़सवारी सिखने की इच्छा जाहिर की तब महाराज ने सैनिक युवान को ही उसे घुड़सवारी सीखाने के लिए कहा था। और तब धीरे-धीरे राजकुमारी युवान के आकर्षित शरीर की ओर खिंची चली जा रही थी वह उसकी और काफी ज्यादा आकर्षित हो गई थी। और जिस वक्त पहली बार घुड़सवारी सीखते वक्त राजकुमारी घोड़े से नीचे गिर गई थी और युवान ने उसे अपनी मजबूत बाहों में उठाया था तब पहली बार राजकुमारी को अपने शरीर पर किसी पुरुष का स्पर्श महसूस हुआ था ,वह स्पर्श पाकर वह पूरी तरह से उसी दिन सैनिक युवान की हो गई थी।
लेकिन यह बात सेनापति को कुछ खास पसंद नहीं आई थी, क्योंकि कहीं ना कहीं सेनापति का मानना था इस राज्य की राजकुमारी अगर राजवंश की महारानी बनेगी, तो उसके लिए उसका विवाह किसी अच्छे और शूरवीर से होना चाहिए। कहीं ना कहीं सेनापति खुद वहां का महाराजा बनने का सपना देखा करता था, उसका इरादा सीधे-सीधे तरीके से राजकुमारी संयोगिता से शादी कर कर वहां का महाराजा बनने का था, लेकिन जब उसने यह देखा की राजकुमारी धीरे-धीरे सैनिक युवान की ओर आकर्षित हो रही है तब उसने उसे चोरी के इल्जाम में फंसा कर सजाए मौत की सजा दिलवाई थी।
फिलहाल राजकुमारी को गले से लगाने के बाद युवान ने अचानक से उसके माथे को चुमकर कहा था, "आपका बहुत-बहुत धन्यवाद राजकुमारी, आपने मुझे तरीका बता दिया कि मैं अपने आप को निर्दोष साबित कैसे करूंगा। अब मैं चलता हूं और हां, एक और बात, आपका प्यार भले ही सैनिक युवान ने स्वीकार न किया हो लेकिन मैं, मैं आपका प्यार स्वीकार करता हूं, और मैं आपको वचन देता हूं कि आज के बाद मैं पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ आपका ही रहूंगा।"
यह बोलकर युवान ने एक बार फिर राजकुमारी के माथे को चूम लिया और बिना , उसकी कोई भी बात सुने, तुरंत वहां से बाहर निकल गया था। वही राजकुमारी संयोगिता पूरी तरह से शोक हो गई थी, उसे समझ ही नहीं आया कि आखिरकार उसके साथ क्या हुआ। उसी की आंखों के सामने सैनिक युवान ने उसे गले से भी लगाया, उसका प्यार भी कबूल कर लिया, और उसे चुंबन देकर भी चला गया। अब तो राजकुमारी के गाल टमाटर की तरह एकदम लाल होने लगे थे, लेकिन जैसे ही उसके दिमाग में यह लाइन आई "भले ही युवान ने आपका प्यार स्वीकार न किया हो लेकिन मैं आपका प्यार स्वीकार करता हूं।" यह लाइन राजकुमारी को हैरान कर गई थी, लेकिन उस वक्त उनके लिए यही बहुत बड़ी बात थी कि सैनिक ने उसका प्यार कबूल कर लिया है, तो अचानक ही राजकुमारी बेहद खुश हो गई थी और खुशी से उसने गोल-गोल घूम कर जोरदार नृत्य करना शुरू कर दिया था।
वही सबके नजरों से बचकर अब एक बार फिर से युवान उस जगह आ गया था जहां पर उस दासी ने उसे कपड़े दिए थे, वहां आकर उसने एक बार फिर सैनिकों वाले कपड़े चेंज किया और उस दासी को ढेर सारा धन्यवाद देकर वह अब सीधा तरीके से वहां से बाहर जाने लगा था, लेकिन इससे पहले कि वह वहां से बाहर जा पाता तभी उसे कितने ही सारे सैनिकों ने घेर लिया था। अब तो युवान की सिट्टी पिट्टी पूरी तरह से गुम हो गई थी अचानक से इतने सारे सैनिक यहां कहां से आ गए और उसे क्यों घेर लिया गया, तब युवान ने खुद पर थोड़ा सा कंट्रोल करके उनकी और देखकर कहा था, "कौन हो तुम लोग और इस तरह से मुझे क्यों घेरकर खड़े हो गए हो।"
अब इससे पहले कि वह सैनीक युवान को कोई जवाब दे पाते तभी उसने देखा कि सामने से सेनापति अपनी चमचमाती हुई तलवार लेकर उसी की ओर बढ़ रहा था। अब ये देखकर तो युवान पूरी तरह से समझ चुका था कि जरूर इस सेनापति ने उसे देख लिया होगा और इसीलिए उसने उसे अब मौका मिल चुका है, उस पर हाथ डालने का। अब जैसे ही सेनापति वहां आया वह तुरंत ही युवान की गर्दन पर तलवार रख कर बोला था, "लगता है तुम्हें मौत की कुछ ज्यादा ही जल्दी है, इसीलिए तुम इस तरह से रात के इस पहर महल में चोरी छुपे घुस आए हो।"
जैसे ही सेनापति ने आग उगलते हुए यह कहा, युवान खुद को थोड़ा सा शांत करने लगा था, क्योंकि इस वक्त उसे अपने हाथों से नहीं दिमाग से जंग लड़ने थी, तब युवान पूरे कॉन्फिडेंस के साथ सेनापति की ओर देखकर बोला था, "सेनापति जी शायद आप भूल रहे हैं मुझे खुद महाराज ने इस बात की आज्ञा दी है कि मैं जब चाहे महल में आ सकता हू और मैं निर्दोष हूं इसके लिए मैं पर्याप्त साक्ष्य इकट्ठा कर सकूं।" कहीं ना कहीं युवान पूरी तरह से शुद्ध हिंदी बोलने की कोशिश कर रहा था ताकि उस पर किसी को भी कोई शक ना हो।
अब युवान की बात सुनकर सेनापति ने गुस्से से अपने हाथों के मुट्ठी को कसकर बंद कर लिया था और वह उसे घूरते हुए बोला था, "तुम चाहे कितनी भी कोशिश कर लो लेकिन तुम कभी कोई साक्षीय एकत्रित नहीं कर पाओगे, तुम्हें मृत्यु से कोई नहीं बचा सकता है, कैदी युवान और बहुत जल्द तुम मृत्यु की शय्या पर लेट चुके होंगे, और याद रखना युवान एक बार जैसे ही तुम मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे, मैं हमेशा हमेशा के लिए तुम्हारी बहन यशिका को अपनी दासी बना कर रखूंगा।" यह बोलकर सेनापति बड़ी बुरी तरह से हंसने लगा था।
अब यह सुनकर युवान के खून में आग लग गई थी और उसने तुरंत ही अपना सीधा हाथ सेनापति की गर्दन पर रख दिया था और उसकी आंखों में आंखें डाल कर बोला था, "खबरदार जो मेरी बहन के बारे में एक शब्द भी कहा था, मैं तुम्हें यही का यही जिंदा गाड़ दूंगा।" जैसे ही युवान ने कड़वे लहजे में यह कहा, अब तो सेनापति को सांस लेने में भी काफी ज्यादा कठिनाई होने लगी थी, क्योंकि युवान की भुजाए काफी ज्यादा ताकतवर थी। ऐसा लगने लगा था कि अगर कुछ पल और उसने सेनापति की गर्दन को इस तरह से पकड़े रखा तो किसी भी पाल सेनापति की जान जा सकती है तभी सभी सैनीक सेनापति को छुड़ाने के लिए कोशिश करने लगे थे, लेकिन युवान की आंखों से गुस्सा जा ही नहीं रहा था।
वही महल में शोर शराबा सुनकर देव तुरंत वहां आया था, और जैसे ही उसने देखा कि युवान ने सेनापति पर हमला कर दिया है, वह तुरंत दौड़कर युवान के पास चिंतित स्वर में बोला था क्या कर रहे हो तुम युवान, सेनापति की जान चली जाएगी, और भले ही चोरी के केस में तुम निर्दोष साबित हो जाओ, लेकिन इस तरह से सेनापति की जान लेने के जुल्म में तुम्हें कोई नहीं बचा सकता है।" जैसे ही देव ने वहां जाकर घबराए स्वर में यह कहा, युवान ने गहरी सांस ली और सेनापति को छोड़ दिया था और उसकी ओर देखकर बोला था, "अभी भले ही मेरे पास पर्याप्त साक्षय ना हो, लेकिन बहुत जल्द में खुद को निर्दोष साबित भी कर दूंगा और आप जो षडयंत्र कर रहे हैं उसके बारे में भी मैं महाराज को जरूर बताऊंगा।" यह बोलकर युवान बिना रुके वहां से जाने लगा था।
अब युवान को जाते हुए देख कर सेनापति को बहुत गुस्सा आया और उसने तुरंत अपने सैनिकों को हुक्म दिया कि जो जाकर उसे बंदी बना लो। अब सभी सैनिकों ने सेनापति विक्रम की बात मानकर फटाफट से जाकर युवान को बंदी बना लिया था, और बंदी बनाकर विक्रम ने उसे पूरे 50 कोड़े मारने का आदेश दिया था, क्योंकि इस तरह से किसी भी राज्य के सेनापति पर हाथ उठाना एक बहुत बड़ा जुल्म माना जाता था, तो उसी के लिए सेनापति ने 50 कोडे युवान को मारने का आदेश दिया और जल्दी ही युवान के हाथों को बांध दिया गया अब तो युवान का दिमाग उस वक्त पूरी तरह से जाम हो गया था उसे समझ में नहीं आया कि वह अपने आप को कैसे बचाएं। वही राजकुमारी को जैसे ही इस बात के बारे में पता चला कि सेनापति विक्रम ने युवान को कोड़े बरसाने का आदेश दिया है तो वह पूरी तरह स चिंतित हो उठी। और तुरंत दौड़कर वहां आ गई और इस से पहले की युवान को एक भी कोड़ा लगता तुरंत राजकुमारी ने वहां आकर कोड़े मारने वाले सैनिक को रोक दिया था और सेनापति की ओर देखकर बोली थी, "आपने किससे पूछ कर इस तरह से सैनिक युवान को कोड़े मारने का आदेश दिया है, भले ही मेरे पिताजी इस वक्त यहां मौजूद न हो लेकिन हम है अभी यहां पर और हमारा आदेश है कि अभी और इसी वक्त सैनिक युवान को रिहा कर दिया जाए।"
जैसे ही राजकुमारी ने वहां जाकर आदेश दिया अब तो सेनापति खून के घूंट पीकर रह गया था, वही युवान को जल्दी ही रिहा कर दिया गया और अब युवान ने राजकुमारी का धन्यवाद अदा करने के बाद वह देव के साथ वहां से अपने घर की ओर जाने लगा था, वही देव युवान के कानों में स्वर्गवासी करते हुए बोला था, "अच्छा हुआ राजकुमारी जी यहां गई और हम बाल बाल बच गए वरना ये देखो जो मेरा हाल हुआ था ऐसा तुम्हारा हाल भी हो जाता और तुम पूरे सात दिनों तक उठ नहीं पाते, और अगर 7 दिनों तक के लिए तुम बिस्तर में पड़ जाते हैं तो तुम अपने आप को निर्दोष साबित कैसे करते ।" वही राजकुमारी अपना ऑर्डर देकर सीधा वहां से अपने कक्ष में चली गई थी, लेकिन अब सेनापति उस और देखने लगा था जीस और राजकुमारी गई थी और मन मन में बोला था कि बस एक बार तुम मेरी पत्नी बन जाओ उसके बाद तुम्हें किस तरह से मेरी सेवा करनी है वह तो मैं तुम्हें बताऊंगा। यह सोचते हुए सेनापति बडा ही भयानक और गंदा सा लग रहा था।
फिलहाल जल्दी ही युवान देव के साथ अपने घर पर चला गया था ।और जैसे ही वह वहां गया उसका सामने सबसे पहले सीधे-सीधे यशिका से हुआ, यशिका ने जैसी अपने भाई को देखा वह तुरंत ही उसके पास गई और बोली थी, "आप कहां चले गए थे भाई इस वक्त रात को आपको बाहर जाने की क्या जरूरत थी, आप जानते हैं हमारा दिल कितना ज्यादा घबरा रहा था, अभी तक मां गहरी निंद्रा में सोई हुई है हमने मां को कुछ भी पता नहीं लगने दिया।" तब युवान ने उसका सर पर हाथ फेर कर कहा था, "तुम फिकर मत करो बिल्कुल भी परेशान मत हो, मैं बिल्कुल ठीक हूं।" अभी तक युवान मां या बहन को इस बारे में नहीं बताया था कि केवल तीन दिनों का ही समय उसके पास है फिलहाल वह जल्दी ही अपने कक्ष में चला गया था और मन मन में सोचने लगा था कि काश वह एक मेडिकल किट भी अपने साथ यहां इस दुनिया में लेकर आ पाता, पता नहीं उसे और कितने यहां पर कितनी चोटें खानी पड़ेंगी। वैसे भी उसे राजकुमारी से इश्क हो गया था तो अब उसे किसी भी चीज की कोई परवाह नहीं थी।
अब अपने कमरे में लेटने के बाद उसकी आंखों के सामने राजकुमारी को गले से लगाना और किस करना याद आ रहा था, यह सोचते हुए उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई थी, युवान सोचने लगा था की काश उसकी जिंदगी इसी तरह से चलती रहे, उसे आंखें बंद करके सोने से भी डर लग रहा था वह सोच रहा था कि अगर वह सो गया तो कहीं वह फिर से अपनी आधुनिक जिंदगी में ना उठे, इसीलिए वह पूरी रात नहीं सोया और इसी उद्येहड़बून में उसने रात गुजार दी थी कि चाहे कुछ भी हो जाए वह हर हाल में राजकुमारी को पा कर रहेगा और उसे खुद पर से वह चोरी का एग्जाम किस तरह से हटाना है उसके बारे में भी उसे ऑलरेडी आइडिया मिल चुका था, तो उसके चेहरे पर एक रहस्यमय शांति थी।
वहीं दूसरी और महाराज अभिमन्यु भले ही अपने अर्धांगिनी महारानी गायत्री के साथ उनके भ्राता के यहां गए थे लेकिन सेनापति ने अपनी चाल चलते हुए उनके पास जिस वक्त राजकुमारी ने युवान को कोड़े लगने से बचाया था उसी वक्त अपने एक पालतू जादुई बाज का इस्तेमाल करते हुए उसके हाथों तत्काल पत्र भिजवा दिया था, वह बाज पूरी तेजी से उड़ा था और कुछ पलों में मिलो का सफर तय करके वह महाराज के पास जा पहुंचा था। और यह उस पत्र में साफ लिख दिया था की सैनिक युवान ने एक बार फिर महल का अनुशासन तोड़ा है और राजकुमारी के कक्ष में वह जबरदस्ती घुसने की कोशिश कर रहा था और उसने राजकुमारी पर भी कोई काला जादू किया है जिससे राजकुमारी उसे बचाने के लिए आ गई। उस वक्त जादू टोना इन सब चीजों का काफी ज्यादा प्रचलन था इसलिए सेनापति ने अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए एक बार फिर युवान को फसाने की कोशिश की थी।
वही महाराज अभिमन्यु को जैसे खत मिला उन्होंने वहां से वापसी की योजना बना ली थी और जल्दी ही वापस से अगली सुबह अपने राजमहल में आ गए थे। राजमहल में आते ही महाराज अभिमन्यु ने तुरंत राजकुमारी को अपने सामने पेश होने के लिए कहा था। अब राजकुमारी को पता चल चुका था कि जरूर सेनापति ने उसके पिताजी के कान भरे हैं, लेकिन राजकुमारी अच्छे से जानती थी कि उसे कब क्या करना है उसे किसी तरह का कोई खौफ नहीं था वैसे भी उसकी परवरिश शेरों की तरह हुई थी, घुड़सवारी के साथ-साथ अच्छी खासी तलवारबाजी हर एक कला में राजकुमारी संयोगिता पूरी तरह निपुण थी।
फिलहाल जैसे ही राजकुमारी वहां प्रस्तुत हुई सेनापति के चेहरे पर एक रहस्यमय मुस्कुराहट आ गई थी और अब क्योंकि दिन का समय था साथ ही साथ महाराज ने सैनिक युवान को भी वहां बुलाने के आदेश दे दिए थे। अब युवान तो इसी तलाश में था कि कब वह सब के समक्ष पेश हो और जल्दी ही युवान अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट लिए सबके सामने मौजूद था कहीं ना कहीं सैनिक युवान को देखकर राजकुमारी संयोगिता के दिल में एक अलग की तरह की प्यार वाली फीलिंग जन्म लेने लगी थी । और जब से युवान ने उसे किस किया था तब से तो वह पूरी तरह से उसके सपनों में खोई हुई थी। फिलहाल अब जैसे ही युवान वहां आया और उसने राजकुमारी को मुस्कुरा कर देखा और राजकुमारी ने भी मुस्कुरा कर युवान की ओर देखा ।
तो ये देखकर सेनापति विक्रम का पारा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। और अचानक वह खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाया और अपनी तलवार निकाल कर महाराज के सामने ही उसने युवान की गर्दन पर रख दी थी।।
वहीं अब युवान, जो कि राजकुमारी को अपने सामने देखने के बाद एक बार फिर पूरी तरह से उसकी खूबसूरती में खो गया था, लेकिन अब अचानक जैसे ही सेनापति विक्रम सिंह ने इस तरह से उसे तलवार की नोक पर लिया तो पूरी तरह से चौंक गया और हैरानी से सेनापति की ओर देखने लगा था। तभी महाराज की आवाज़ वहाँ सुनाई देती है, "सेनापति ठहर जाओ, अभी हमने सैनिक युवान का पक्ष नहीं सुना है और तुम अच्छी तरह से जानते हो जब तक हम दोनों तरफ़ का पक्ष नहीं सुन लेते, तब तक हम किसी नतीजे पर नहीं पहुँचते हैं।" जैसे ही महाराज अभिमन्यु ने कड़क स्वर में यह कहा, ना चाहते हुए भी सेनापति ने अपनी तलवार को वापस म्यान में रख लिया था और तब महाराज अभिमन्यु अपनी बेटी संयोगिता की ओर देखकर बोले थे, "राजकुमारी संयोगिता, सेनापति ने आरोप लगाया है कि सैनिक युवान ने तुम्हें बहलाया-फुसलाया है और साथ ही साथ तुमने सैनिक युवान को कोड़ों की सज़ा से बचाया है जबकि सेनापति का आरोप है कि सैनिक युवान तुम्हारे कक्ष में चोरी छुपे घुसने की कोशिश कर रहा था।" अब जैसे ही राजकुमारी ने यह सुना, वह घूर कर सेनापति की ओर देखने लगी थी लेकिन तुरंत ही बिना किसी का जवाब सुने युवान बीच में बोल पड़ा था, "महाराज इसमैं राजकुमारी की का कोई दोष नहीं है, सारा दोष मेरा है और वैसे भी महाराज आपने मुझे वचन दिया था कि अगले तीन दिनों में मैं महल के किसी भी कोने में जा सकता हूँ और अपनी बेगुनाही का सबूत ढूँढ सकता हूँ। कल रात में सिर्फ और सिर्फ अपने निर्दोष होने का सबूत ढूँढने के लिए महल में आया था, लेकिन न जाने सेनापति विक्रम सिंह जी को मुझसे क्या समस्या है, उन्होंने मुझे ग़लत समझ लिया और मुझे कोडे मारने का आदेश दिया, राजकुमारी तो बड़ी ही दयालु स्वभाव की है, उन्होंने मुझ पर रहम किया और मुझे सज़ा से बचा लिया तो इसमें राजकुमारी पूरी तरह से निर्दोष है, अगर आपको लगता है कि मैंने कोई अपराध किया है तो आप सिर्फ़ मुझे सज़ा दीजिए राजकुमारी को नहीं।" अब जैसे ही सबके सामने अपनी समझदारी का सबूत देते हुए युवान ने इस तरह की बात की महाराज के साथ-साथ सभी एक दूसरे की शक्ल को देखने लगे थे। पूरा दरबार अचरज में लग रहा था, तभी वहीं बैठे हुए राजगुरु ने सेनापति की ओर देखा था अब सेनापति राजगुरु चिन्मय की आँखों का मतलब समझ कर तुरंत ही कठोर आवाज़ में बोला था, "लेकिन महाराज भले ही अपने कैदी युवान को तीन दिनों के लिए अपने ऊपर से दोष हटाने के लिए सबूत खोजने के लिए कहा था लेकिन वह सिर्फ़ दिन में था, चोरी छुपे इस तरह से चोरों की तरह महल में घुस आना, यह कहाँ का इंसाफ़ है? मैं तो कहता हूँ सैनिक युवान के मन में बहुत बड़ा चोर है महाराज, मैं तो कहता हूँ कि उसे अभी और इसी वक़्त कड़ी सज़ा देनी मिलनी चाहिए।" वही महाराज अब कुछ सोचते हुए बोले थे, "सैनिक युवान सेनापति जो कह रहे हैं शत प्रतिशत ठीक कह रहे हैं, भले ही हमने तुम्हें महल के किसी भी कोने में जाने की इजाजत दी थी लेकिन हमने तुम्हें यह कभी भी आज्ञा नहीं दी थी कि तुम राजकुमारी के कक्ष में जाने की कोशिश करो, यह तो तुमने अपराध किया है और तुम्हें इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी।" जैसे ही महाराज ने क्रोधित होते हुए यह कहा, राजकुमारी पूरी तरह से विचलित हो उठी और तुरंत ही बोली "नहीं पिता महाराज यह झूठ है, यह सरासर असत्य है सैनिक युवान हमारे कक्ष में नहीं आए, अगर आपको यक़ीन नहीं है तो आप हमारी दासी से भी पूछ सकते हैं।" जल्दी ही उसने नंदिनी की ओर इशारा कर दिया था अब तो नंदिनी तुरंत ही सर झुका कर सबके सामने मौजूद थी और बोली थी, "हाँ हाँ महाराज सैनिक युवान राजकुमारी के कक्ष में नहीं आए और ना ही हमने उन्हें देखा।" नंदिनी जो कह रही थी सच कह रही थी, क्योंकि उसे तो वाकई इस बारे में कोई एहसास नहीं था कि युवान वहाँ आया था और सबसे बड़ी बात यह थी कि नंदनी को हमेशा सच बोलने के लिए जाना जाता था, उससे सत्यवादी सेविका पूरे महल में कोई नहीं थे। अब नंदिनी की गवाही पर सब लोग एक दूसरे की शक्ल को देखने लगे थे और इस बात का सबको साबित हो चुकी थी कि कैदी युवान राजकुमारी के कक्ष में नहीं गया था, लेकिन महल में गया था यह बात उसने कबूल कर ली थी, तब महाराज युवान की ओर देखकर बोले थे, "अगर रात के उस वक़्त आप महल में आए थे तो ज़रूर कोई ना कोई अवश्य ही बड़ी बात होगी, बताइए क्या आपको आपकी बेगुनाही का सबूत मिल गया है जिससे कि आप निर्दोष साबित हो जाएंगे, बोलिए जवाब दीजिए सैनिक युवान।" इस बीच युवान जो पूरी तरह से राजकुमारी साथ ही साथ उसकी दासी की ओर देख रहा था और सोच रहा था कि उसे तो कुछ करने का मौका ही नहीं मिला, यह लोग अपने आप ही उसे सारी जगह से बचा रहे हैं, कहीं ना कहीं राजकुमारी का अपने लिए इस तरह का झुकाव देखकर युवान के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई और मन में सोचने लगा था, "यह कितनी अच्छी लड़की है, यह सीधा-सीधा मुझे बचाने के लिए अपने पिता के सामने खड़ी हो गई और झूठ भी कितनी सफाई से बोल रही है, किसी को इस पर शक भी नहीं हो रहा है जबकि कल रात तो मैंने इसको हग करने के साथ-साथ किस भी किया था।" वह याद आते ही अचानक युवान के चेहरे पर एक बहुत बड़ी मुस्कुराहट आ गई और उसे मुस्कुराते हुए पूरे के पूरे दरबार ने देख लिया। अब तो सेनापति का चेहरा गुस्से से तमतमआने लगा था और वह तुरंत ही महाराज की ओर देखकर बोला था, "देखा महाराज आपने सैनिक युवान को बिल्कुल भी इस बात का एहसास नहीं है कि इस वक़्त वह दरबार में मौजूद है, आप उससे सवाल कर रहे हैं लेकिन उसे लग रहा है कि आप उसे कोई ना कोई उपहास सुना रहे हैं, देखा आपने वह सबके सामने खड़े होकर आपका उपहास उड़ा रहे हैं।" अब जैसे ही एक बार फिर युवान की मुस्कुराहट को सेनापति ने तोड़ मरोड कर पेश किया, तुरंत ही युवान अपनी सेंस में वापस आया था और एक बार फिर महाराज की ओर देखकर बोला था, क्षमा चाहता हूँ महाराज इसमें मेरा कोई कसुर नहीं है, हां में मुस्कुरा रहा हूँ लेकिन मैं इसलिए मुस्कुरा रहा हूँ क्योंकि मुझे मेरे निर्दोष होने का साक्ष्य मिल चुका है।" अब जैसे ही युवान ने यह कहा, सेनापति के चेहरे का तो रंग ही उड़ गया था, वहीं राजगुरु अब तुरंत इधर-उधर देखने लगा था और साथ ही साथ अपने हाथों की मुट्ठियों को कसकर बंद करने लगा था, वही राजकुमारी संयोगिता ने जैसे ही यह सुना उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई थी, ठीक उसी वक़्त महाराज बोले थे, "अगर यह सच है कि तुम्हें साक्ष्य मिल चुका है तो साबित करो, अगर तुमने साबित नहीं किया तो आज के आज ही तुम्हें महल में चोरी छुपे घुसने साथ ही साथ भारी मात्रा में सिक्के चुराने के जुल्म में सरे आम फाँसी की सज़ा दी जाएगी।" जैसे ही महाराज ने कठोर स्वर में यह कहा तुरंत ही युवान बोल पड़ा था, "नहीं नहीं महाराज, उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी, बस मैं अपनी बेगुनाह ही साबित करने के लिए राजकोष की रखवानी करने वाले दोनों सैनिकों को बुलाना चाहता हूँ जिन्होंने मुझे चोरी करते हुए देखा था।" जैसे ही सैनिक युवान ने यह कहा अब तो सेनापति के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी और साथ ही साथ अब सेनापति को मन ही मन में घबराहट होने लगी थी कि अगर वाकई इसने अपने आप को निर्दोष साबित कर दिया तो महाराज उसे तक पहुँचने में एक पल नहीं लगाएंगे और इस युवान की जगह उसको ही फाँसी की सज़ा दी जाएगी तो यह सोचते ही उसका गला पूरी तरह से सूखने लगा था, लेकिन उसने अपने एक्सप्रेशन बिल्कुल भी चेंज नहीं होने दिए थे ताकि उस पर किसी को भी शक ना हो अब महाराज के आदेश पर जल्दी ही राजकोष की रखवाली करने वाले सैनिक जिन्होंने युवान के ख़िलाफ़ गवाही दी थी कि उन्होंने उसे चोरी करते हुए देखा है उसको बुलाया गया था अब जैसे ही दोनों के दोनों सैनिक वहाँ आए, उन्होंने झुक कर महाराज को प्रणाम किया और सर झुका कर एक तरफ़ खड़े हो गए थे हालाँकि दोनों अंदर ही अंदर पूरी तरह से डर रहे थे कि ना जाने अब उनसे क्या सवाल किया जाएगा वही महाराज ने उन दोनों की ओर कड़ी नज़रों से देखते हुए कहा था, " सैनिक युवान ने तुम दोनों को यहाँ बुलवाया है और सैनिक युवान तुमसे जो भी सवाल करेंगे तुम्हें उनका सही-सही सत्य रूप से जवाब देना होगा।" महाराज की बात सुनकर दोनों ही सैनिक बिना कुछ कहे सर झुका कर खड़े हो गए थे तब जल्दी ही युवान उन दोनों के सामने जाकर खड़ा हो गया था और उन दोनों के हाव भाव देखकर वह समझ चुका था उस वक़्त वह दोनों सैनिक कितने ज्यादा डरे हुए हैं लेकिन उसे सच तो साबित करना ही था इसीलिए वो उन दोनों सैनिकों की ओर देखकर बोला था, "हाँ तो सैनिको जहाँ तक मैं जानता हूँ आप दोनों काफ़ी सालों से राजकोष की रखवाली करते हुए आए हैं क्या यह बात सच है?" जैसे ही युवान ने यह सवाल क्या दोनों ही सैनिक एक दूसरे की शक्ल को देखने लगे थे और दोनों एक साथ बोले थे, "जी हाँ, यह शत प्रतिशत सत्य है, हम दोनों ईमानदारी के साथ पिछले 12 सालों से राजकोष की रखवाली करते हुए आए हैं और आज तक हमारे रहते राजकोष के धन का एक छोटा सा हिस्सा भी कहीं गायब नहीं हुआ।" दोनों ने जल्दी ही पूरी तरह से अपने आप को अच्छा साबित करने के लिए यह बात बोल दी थी अब युवान उन दोनों की बात सुनकर मुस्कुराए बिना ना रह सका कहीं ना कहीं जो कुछ वह सोच रहा था वह बिल्कुल सही जा रहा था उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके मुँह से सच उगलवाने की देर थी तब युवान ने थोड़ी सी कड़क आवाज़ में बोला था, "अगर 12 साल से आप लोगों के रहते हुए राजकोष का इतना सा भी धन चोरी नहीं हुआ तो फिर आपके रहते मैंने भारी मात्रा में चाँदी के ढेर सारे सिक्के कैसे चुरा लिए? आप दोनों उस वक़्त कहाँ थे?" जैसे ही युवान ने यह सवाल किया तब वह दोनों सैनिक थोड़ा सा सकपका गए थे लेकिन अपने आप पर धैर्य रखते हुए बोले थे, "शायद आप भूल रहे हैं सैनिक युवान, आप इस राज्य के भरोसेमंद और सर्वश्रेष्ठ सैनिक थे, जिस वक़्त आप राजकोष में आए भला हम आप पर सवाल कैसे कर सकते थे, आपने ही हमें वहाँ से यह कह कर भेज दिया था कि हमें सेनापति विक्रमहमें बुला रहे हैं इसीलिए हम सेनापति के पास चले गए थे।" अब जैसे ही जो कहानी उन्हें सेनापति ने सिखा रखी थी, वह कहानी जैसे ही उन दोनों सैनिकों ने बोली अब तो युवान के मन में जो सेनापति को लेकर थोड़ा बहुत शक था वह पूरा शत प्रतिशत यक़ीन में बदल चुका था तभी युवान हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला था, "अगर आप उस वक़्त श्री माननीय विक्रम सेनापति जी से मिलने के लिए चले गए थे, तो फिर जो सिक्के मैंने राजकोष से चुराए थे वह सिक्के आपके घर के बाहर खड़े पेड़ के नीचे क्या कर रहे थे?" अब जैसे ही सैनीक युवान ने स्पष्ट भाषा में यह बात बोली सब लोगों का चेहरा पूरी तरह से हैरानी से भर चुका था वही महाराज भी हैरानी से सैनिक युवान की ओर देखकर बोले थे, "क्या कह रहे हो सैनिक युवान, पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हो, जो भी बात है हमें सही तरीके से बताओ, आखिरकार तुम कहना क्या चाहते हो?" वही युवान की बात सुनकर उन दोनों सैनिकों की टांगे पूरी तरह से काँपने लगी थी तभी तेज आवाज़ में युवान ने कहना शुरू कर दिया था, "महाराज मै इतना कहना चाहता हूँ, वह चाँदी के सिक्के जो भारी मात्रा में राजकोष से गायब हुए हैं, वह सिक्के इन दोनों सैनिकों ने ही चुराए हैं, जो कि इन्हीं के घर के बाहर बरगद के पेड़ के नीचे दबे हुए हैं, अगर आपको यक़ीन नहीं आता तो आप अभी और इसी वक़्त अपने सैनिकों को भेजिए और वहाँ पर खुदाई करवाये आपको सब कुछ सच पता चल जाएगा।" अब यह सुनकर तो महाराज पूरी तरह से आश्चर्यचकित रह गए थे और देर ना करते हुए उन्होंने कुछ सैनिकों को उन दोनों सैनिकों के घर के बाहर भेज दिया था और खुदाई करने के बाद वहाँ से भारी मात्रा में चाँदी के सिक्के जैसे ही बरामद हुए और उन्हें भरी सभा में लाया गया। अब तो उन दोनों सैनिकों की पोल पूरी तरह से खुल चुकी थी और वह जल्दी ही घुटनों के बल बैठ गए थे और युवान के पैर पकड़कर माफ़ी मांगने लगे थे ।
फ़्लैशबैक, जिस वक़्त युवान राजकुमारी के पास से गया और राजकुमारी ने यह बताया कि दो सैनिकों की गवाही ने उसे चोर घोषित किया है और वह दोनों सैनिक सेनापति विक्रम सिंह के बहुत ही ज्यादा भरोसेमंद सिपाही है।तब उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सारा माजरा सेनापति का ही है और सेनापति ने हीं उसे फसाया है इसीलिए लड़की वाला गेटअप चेंज करने के बाद वह सैनिक के भेष में सीधा राजकोष के पास गया था और वहाँ जाकर देव के साथ वह दोनों सैनिकों के ठीक पीछे की तरफ़ खड़ा हो गया था, उसने इस तरह से दिखाया था मानो कि दोनों सैनिक उसे दिख ही ना रहे हो लेकिन जानबूझकर युवान अपनी बातें और उन सैनिकों को सुनाना चाहता था वहाँ जाकर उसने देव से कहा था तुम्हें पता है मुझे पूरे का पूरा यक़ीन है कि वह चाँदी के सिक्के राजकोष के के पहरेदारों ने ही चुराए हैं और मुझे पता चल चुका है कि उन्होंने वह सिक्के चुराकर कहाँ छुपाये है और मैं आज रात को ही वह सिक्के वहाँ से निकाल लूंगा यह बोलकर जानबूझकर तेज आवाज़ में युवान सीधा ख़ुशी-ख़ुशी वहाँ से बाहर निकल गया था वही युवान की बातें अब उन सैनिकों ने सुन ली थी और दोनों के ही चेहरे से पसीना निकलना शुरू हो चुका था और कहीं ना कहीं उन्हें लगने लगा था कि अगर युवान को वह सिक्के मिल गए तो महाराज उन्हें जिंदा ही सूली पर चढ़ा देंगे तब जल्दी से दूसरा सैनिक बोला था मैं जाकर सिक्के देखकर कर आता हूँ और उन्हें निकाल कर कहीं और गाढ़ देता हूँ यह बोलकर वह जल्दी ही वहाँ से निकल गया था और अपने प्लान के मुताबिक युवान ने उसका पीछा किया ,और जब राजकोष के सैनिक ने वह सिक्के निकाल कर दूसरे सैनिक के घर के पेड़ के नीचे दबा दिए, तब युवान मुस्कुराता हुआ अपने घर जाकर आराम से सुकून से सो गया था।।
क्योंकि उसे उसकी बेगुनाही का सबूत मिल चुका था, अब तो सेनापति के चेहरे का रंग ऐसा हो गया था कि अभी और इसी वक्त उसके चेहरे से खून निकल आया हो। वह युवान को ही देख रहा था और मन ही मन में सोच रहा था कि यह तो हमेशा से मेरे सामने सर झुका कर रहता था, जो मैं कहता था वही मेरी बात मानता था, फिर इस सैनिक की जुबान इतनी ज्यादा क्यों चलने लगी है और इतनी समझदारी इसमें कहां से आ गई कि इसने चोर का भेद निकाल लिया? कहीं ना कहीं यह सोचते हुए अब सेनापति के चेहरे से पसीना निकलना भी शुरू हो गया था, और वह सोचने लगा था कि अगर इन पहरेदारों ने अपना मुंह खोल दिया तो आज के आज ही उसका पत्ता हमेशा हमेशा के लिए कट जाएगा। कहीं ना कहीं यह सोचकर सेनापति अपने चेहरे पर आए पसीने को साफ करने लगा था। अर्जुन ने जैसे ही सेनापति को अपने चेहरे पर आए पसीने साफ करते हुए देखा, तो तुरंत ही उसके सामने जाकर खड़ा हो गया और सेनापति की ओर देखकर बोला था, "क्या बात है सेनापति जी, आप इतना ज्यादा क्यों घबरा रहे हैं? आपको देखकर ऐसा क्यों लग रहा है कि कहीं इस चोरी में आप भी तो शामिल नहीं हैं?"
अब जैसे ही युवान ने पूरी तरह से बेबाक होकर यह कहा, अब तो सेनापति के होंठ गुस्से से फड़फड़ाने लगे थे और तुरंत उसने अपनी तलवार निकाल कर उन दोनों सैनिकों की गर्दन भरी सभा में काट दी थी जो राजकोष के पहरेदार थे। अब यह देख कर कहीं ना कहीं युवान यानी अर्जुन की टांगे पूरी तरह से कांपने लगी थी, लेकिन उसने डर को अपने चेहरे पर आने नहीं दिया। वहीं महाराज तुरंत क्रोधित होकर बोले थे, "सेनापति, यह क्या किया तुमने? तुम्हें इस तरह से दोषी को दंड देने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार हमारा है। क्या तुम यह बात भूल गए और अभी हमने इन सैनिकों को मृत्युदंड नहीं दिया था? अभी हम उनसे जानना चाहते थे कि आखिरकार इन्होंने विश्वासघात खुद किया है या किसी के कहने पर क्या है? तो आपने उनकी जान क्यों ले ली?"
अब महाराज की कड़ी आवाज सुनकर सेनापति तुरंत अपना सर झुका कर बोला था, "क्षमा कीजिएगा महाराज, लेकिन यह दोनों सैनिक मेरे लिए काफी बरसों से कार्य कर रहे थे । मुझे नहीं पता था कि यह दोनों इस तरह से मेरे साथ विश्वासघात करेंगे और राजकोष का ही खजाना चुराएंगे, इसीलिए मैं यह उद्दंडता कर बैठा, मुझे क्षमा कीजिए महाराज।"
अब जैसे ही सेनापति ने तुरंत ही अपनी बात महाराज के सामने रखी, महाराज अभिमन्यु गहरी सोच में डूब गए थे और अगले ही पल तेज आवाज में बोले थे, "सेनापति, भले ही तुमने दोषियों को दंड दिया हो, लेकिन इस तरह से भरी सभा में उद्दंडता करना किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है। इसीलिए हम तुम्हें पूरे एक वर्ष के लिए इस राज्य से निष्कासित करते हैं और एक वर्ष के पश्चात जब तुम वापस आओगे तब तुम वापस से सिर्फ एक सामान्य सैनिक के रूप में ही काम करोगे और साथ ही साथ यह दरबार सैनिक युवान से क्षमा पार्थी है और सेनापति विक्रम की जगह अब हम सैनिक युवान को इस राज्य का नया सेनापति घोषित करते हैं।"
अब जैसे ही युवान ने यह सुना तो वह पूरी तरह से खुशी से फूल उठा था। क्योंकि कहीं ना कहीं जिस तरह से सेनापति विक्रम ने वहां खड़े होकर दोनों सैनिकों की गर्दन उड़ा दी थी तो उसे लगने लगा था कि शायद अगली बारी उसी की हो और अब तो वो सेनापति का कठोर दुश्मन बन गया है और सेनापति तो उसे अब किसी भी लिहाज से नहीं छोड़ेगा। तो इसीलिए उसे अब सेनापति से काफी ज्यादा डर लगने लगा था। लेकिन अब जिस तरह से महाराज ने उसे 1 साल के लिए राज्य से निष्कासित कर दिया और उसकी जगह अर्जुन को सेनापति बना दिया तो उसका दिल पूरी तरह से खुशी से उछलने लगा था। वहीं पूरे दरबार में एक आवाज गुजने लगी थी, "सेनापति युवान की जय, सेनापति ब, सेनापति युवान की जय!"
यह आवाज सुनकर तो युवान का दिल खुशी से झूम कर नाचने का कर रहा था, लेकिन अपने आप पर कंट्रोल किए हुए वह वहां खड़ा रहा था और जल्दी ही महाराज के आदेश पर सेनापति विक्रम की तलवार जो की एक सेनापति को ही दी जाती थी वह युवान को दे दी गई थी और उसे राजगुरु के ठीक बराबर में सेनापति की जगह दे दी गई थी। अब वहां उस सीट पर बैठकर तो युवान मन में सोच रहा था, "ऐसा क्यों लग रहा है मानो कि मैं मुख्यमंत्री बन गया हूं?अपनी आधुनिक जिंदगी में अगर कहा जाए तो उसको ऐसा लग रहा है कि वो राजवंश राज्य का मुख्यमंत्री बन गया है और वो खुश होते हुए मन में बोला था वाह कितनी अच्छी फीलिंग आ रही है।"
कहीं ना कही मन में सोचते हुए अर्जुन मुस्कुराकर बार-बार राजकुमारी की ओर देख रहा था वही राजकुमारी का दिल पूरी तरह से खुशी से भर उठा था लेकिन फिलहाल वह सबके सामने अपनी खुशी भी जाहिर नहीं कर सकती थी लेकिन आंखों ही आंखों से वह युवान को कितने ही इशारे कर चुकी थी फिलहाल जल्दी ही अब इस सजा के बाद सेनापति को कुछ सैनिक लेने के लिए आए थे और उसे देश के बाहर निष्कासित कर दिया गया था। वही सेनापति देश से बाहर जाने से पहले राजगुरु से मिला था और राजगुरु ने विक्रम के कानों में सरगोशी करते हुए कहा था, "सिर्फ 1 साल के लिए निष्कासित किया गया है अगर तुम पर यह दंड साबित हो जाता तो यही तुम्हारी मृत्यु हो जाते। 1 साल की ही बात है, एक साल के बाद पूरी तैयारी के साथ आना, जाओ मिलते हैं।"
यह बोलकर राजगुरु अपनी भाषा में सेनापति को कुछ समझता हुआ वहां से चला गया था उन दोनों को उसे वक्त युवान ने एक साथ मिलते हुए देख लिया था लेकिन फिलहाल तो वह इसी बात से खुश था की कि उसे वहां का सेनापति बना दिया गया था जल्दी ही महाराज ने घोषणा कर दी थी कि युवान के नया सेनापति नियुक्त होने पर सभी लोगों को इस बात का मौका दिया जाएगा कि वह अपने नए सेनापति का भव्य स्वागत करें इतना ही नहीं सेनापति युवान की रैली पूरे राज्य भर में निकाली जाएगी। अब जैसे ही महाराज ने इतना मान सम्मान युवान को दिया की कहीं ना कहीं उसकी आंखें भर आई थी लेकिन वह इस वक्त पूरी तरह से खामोश बैठकर अपनी खुशी को अंदर ही अंदर समेटने की कोशिश कर रहा था और कहीं-कहीं उसे हल्का-हल्का डर भी लग रहा था कि कहीं ऐसा ना कि वह कोई सपना देख रहा हो और एक ही पल में उसका सारा सपना टूट कर चकनाचूर हो जाए लेकिन फिलहाल उसने सोच लिया था कि चाहे यह कोई सपना हो या हकीकत हो या वाकई यह कोई और दुनिया हो या कुछ भी हो वह बस इस पल को अच्छी तरह से एंजॉय कर लेना चाहता था। और तभी अचानक युवान की निगाह महाराज के ठीक राइट साइड में महारानी के ठीक बराबर में बैठी हुई राजकुमारी संयोगिता पर गई थी और राजकुमारी को देखकर अचानक युवान ने उसकी तरफ को आंखों से प्यार भरा इशारा कर दिया था ।
अब जैसे ही राजकुमारी जिसकी नजरे पूरी तरह से सैनिक युवान पर थी और अब जैसे ही युवान ने उसकी तरफ को अपनी आंखों से इशारा तो संयोगिता का मुंह हैरानी के मारे खुले का खुला रह गया था क्योंकि काल कोठरी में रहने के बाद से युवान का बर्ताव उसका बोलने का तरीका सब कुछ पूरी तरह से बदल चुका था तो यह बात उसे पूरी तरह से हैरान कर रही थी और मन में सोचने लगी थी कि क्या यह वाकई ये सैनिक युवान हीं है क्योंकि युवान कभी भी इस तरह से चंचल नहीं था फिलहाल राजकुमारी मुस्कुरा कर युवान की ओर ही देख रही थी और फिलहाल अब महाराज ने जल्दी वह सभा को बर्खास्त कर दिया था ।
जल्दी ही युवान को पता चल चुका था आपके जी महल में पूर्व सेनापति अपने पूरे राज्य से ठाठ बाट के साथ रहता था वह महल अब युवान यानी के नए सेनापति युवान को दे दिया गया था अब जल्दी ही यह खुशी की खबर को वह अपनी मां और बहन को सुनाना चाहता था युवान का दिल कहीं ना कहीं तभी पूरी तरह से खुश होता जब वह यह खुशखबरी अपनी मां और बहन को सुनाता क्योंकि आधुनिक जिंदगी में तो उसकी खुशी या गम में शामिल होने वाला कोई नहीं था। फिलहाल इसी उम्मीद के साथ जल्दी ही वह पूरे तामझाम के साथ युवान के घर पहुंच चुका था वहीं देव जिसको जब से इस बात के बारे में पता चला था कि न जाने सभा में आज क्या हो रहा होगा क्या वाकई युवान निर्दोष साबित कर दिया जाएगा तो इसीलिए वह बेसब्री से युवान के आने का इंतजार कर रहा था वही युवान की मां यशस्वी जी साथ ही साथ यशिका देव को इतना परेशान देखकर पूरी तरह से हैरान हो गई और बोलने लगी थी क्या बात है क्योंकि अभी तक उन दोनों मां बेटी को इस बारे में नहीं पता था कि असल में युवान को फांसी की सजा हुई है अगर 3 दिनों तक उसने अपनी निर्दोष साबित नहीं किया तो उसे फांसी हो सकती है लेकिन देव को परेशान देखकर यशस्वी जी ने जोर देकर उससे पूछना शुरू कर दिया था कि वह उसे सारा सच बताएं अब देव के पास कोई और रास्ता नहीं था इसीलिए उसने जल्दी है युवान की मां और बहन दोनों को बता दिया था कि अभी तक पूरी तरह से युवान का नाम चोरी के दोष से साफ नहीं हुआ है अब यह सुनकर दोनों मां बेटी की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था और उन्होंने बुरी तरह से रोना शुरू कर दिया था कहीं ना कहीं ना लग रहा था कि शायद आज उनके बेटे का आखिरी दिन भी हो सकता है क्योंकि जिस तरह से देव घबराया हुआ था तो उससे साफ पता चल रहा था कि युवान कितने बड़े संकट में है जल्दी यशस्वी जी अपने आराध्य के सामने हाथ जोड़कर बैठ गई थी और अपने बेटे के शकुशल होने की प्रार्थना करने लगी थी लेकिन जल्दी ही उनके कानों में शाही धुन सुनाई देने लगी थी और अब यशस्वी यशिका की ओर देखने लगी थी और देव भी अब जल्दी से बाहर आया और जैसे ही बाहर आकर उन्होंने यह देखा कि युवान राज बग्गी पर बैठकर वहां आया था और उसके सामने सामने सैनिकों की फौज चल रही थी क्योंकि वह सभी सैनिकों का सेनापति बन चुका था जो की काफी काफी पद होता था जिसे बेहद सम्मान के दृष्टि से देखा जाता था महाराज के बाद अगर किसी का राज चलता था तो सिर्फ सेनापति का ही चलता था।
अब अपने बेटे को इस तरह से राजसी बग्गी पर देख कर यशस्वी जी की तो आंखें खुशी से भर आई थी उन्होंने आगे बढ़कर अपने बेटे को गले से लगा लिया था वही देव ने भी खुशी से उसे गले से लगा कर बोला था, भ्राता यह सब कैसे हुआ? कैसे किया आपने यह सब कुछ?"
अब जल्दी ही युवान ने बहुत ही कम शब्दों में लेकिन सारी बातें देव और अपनी मां और बहन को बता दी थी और साथ ही साथ यह बता दिया है कि वह राजवंश राज्य का नया सेनापति है अब यह सुनकर तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था तब जल्दी अर्जुन ने अपनी मां के सामने झुक कर उन्हें कहा था कि अब आपको मेरे साथ महल में चलना होगा क्योंकि सेनापति के लिए अलग से महल सुनिश्चित किया गया है अब से हम लोग वही रहेंगे अब जैसे ही यशिका ने यह सुनो तो वह पूरी तरह से खुशी से उछल पड़ी थी और बोली थी, "क्या आप सच कह रहे है भ्राता क्या वाकई हम बड़े से महल में रहेंगे वह महल जिसमें सेनापति रहा करते थे?"
यह कहते हुए पूरी तरह से उसकी आवाज में खुशी नजर आ रही थी तभी युवान ने प्यार से उसके सर पर हाथ रखकर कहा था, "हमारी मेरी प्यारी बहन आज से हम उस महल में रहेंगे अब आप सब लोग वहां चलने की तैयारी कीजिए।" युवान ने बड़े ही आदर सत्कार के साथ कहा था क्योंकि वाकई वह यशिका और साथ ही साथ यशस्वी जी को अपनी मां और बहन के रूप में ही देखने लगा था और कहीं ना कहीं इससे वह काफी ज्यादा खुश भी था कि उसे एक परिवार मिला था और तब उसने देव की ओर देखकर कहा था, "देव मेरे भाई तू मेरे लिए भाई के जैसा है
तो आज से तुम भी हमारे साथ महल में ही रहोगे।"
अब जैसे ही देव ने यह सुना तो खुशी के मारे उसकी भी आंखों में आंसू आ गए थे और उसने तुरंत ही उसे गले से लगा लिया था और जल्दी ही सैनिकों की मदद से उन्होंने अपना जरूरी समान लिया और सब के सब महल में शिफ्ट हो गए थे।।
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वहीं अर्जुन की खुशी की इस वक्त कोई सीमा नहीं थी। इस वक्त बड़े ही खूबसूरत महल में खड़ा होकर वह खुद को वहां का महाराजा समझ रहा था, और साथ ही साथ उसे सबसे बड़ी खुशी इस बात की थी कि इतनी खूबसूरत लड़की उसके जीवन में आई थी — और वह भी कोई आम लड़की नहीं, बल्कि राजवंश की राजकुमारी! तो इस वक्त उसकी खुशी की कोई सीमा नहीं थी।
फिलहाल उसने ठान लिया था कि कल, जब उसे और साथ ही साथ उसकी एक और इच्छा पूरी हो गई थी — वह कहीं न कहीं राज्य में आकर राजवंश के राज्य को पूरी तरह से देखना चाहता था। और जब महाराज ने यह घोषणा की कि कल सभी को अपने सेनापति का स्वागत करने का अवसर मिलेगा, तो इसीलिए राजबग्गी पर बैठकर कल पूरा राज्य सेनापति को घुमाया जाना था। उसका आदर, सत्कार, मान-सम्मान — यह सब कुछ उसे मिलने वाला था।
अब उसने मन ही मन सोचा था कि उसे अब एक-एक कदम फूँक-फूँक कर रखना होगा। यहां का सेनापति तो वह बन गया है, लेकिन अभी तक अपनी आधुनिक बोल-चाल, भाषा, एटीट्यूड — वो कुछ भी नहीं बदल पा रहा था। उसके मुंह में जब जो आता, वह बोल पड़ता था। इसीलिए अब उसे युवान के बारे में जितना हो सके जानना होगा। जितना वो उसके बारे में जानता जाएगा, उतना ही उसके लिए इस महल में रहना आसान हो जाएगा।
इसी सोच के साथ युवान ने तय किया कि वह ज्यादा से ज्यादा समय युवान की मां और बहनों के साथ बिताएगा, क्योंकि वह नहीं चाहता कि उसकी ज़रा सी भी गलती उसे राजकुमारी से दूर कर दे। राजकुमारी से वह बड़ा ही गहरा लगाव कर बैठा था। फिलहाल, युवान को बेसब्री से अगली सुबह का इंतज़ार था।
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वहीं दूसरी ओर...
सेनापति, राज्य से निष्कासन के बाद पूरी तरह से गुस्से से आगबबूला हो उठा था। इस वक्त वह कहीं और नहीं, बल्कि चंडालिनी के पास जा पहुँचा था। चंडालिनी — जो कि काला जादू किया करती थी। शुरू से ही चंडालिनी के काले जादू से। सेनापति ने राजा को अपने वश में करके सेनापति का पद पाया था —
अब कहीं न कहीं उसे लग रहा था कि वह कुछ न कुछ करके राजकुमारी को भी अपने वश में कर लेगा और उससे विवाह करके वहां का महाराजा बन जाएगा। लेकिन अब जब कि युवान जैसे एक सामान्य सैनिक की वजह से उसे राज्य से निष्कासित कर दिया गया और सेनापति पद से भी हटा दिया गया — तो इस वक्त उसके गुस्से की कोई सीमा नहीं थी।
वह सीधा चंडालिनी के पास पहुंचा। चंडालिनी ही उसका एकमात्र सहारा थी जो उसे उसका पद फिर से दिला सकती थी, क्योंकि उसे उसके काले जादू पर पूरा भरोसा था।
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अब चंडालिनी...
जो उस वक्त काले भैंस के चमड़े जैसे वस्त्र पहनकर खंडहर में बैठी हुई थी — उस खंडहर में चारों ओर सिर्फ मानव की हड्डियाँ और कंकाल बिखरे पड़े थे। चंडालिनी आग जलाकर उसके सामने बैठी थी। सामने कई मानव खोपड़ियाँ रखी थीं, और वह काला जादू कर रही थी।
सेनापति विक्रम अब चुपचाप उसके सामने हाथ जोड़कर बैठ गया था। उसकी आंखों में खून के आँसू थे। न जाने कितने जतन के बाद वह महाराज के दिल में जगह बना पाया था, लेकिन अब सब कुछ हाथ से फिसलता नज़र आ रहा था।
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तभी चंडालिनी ने...
अपनी बड़ी-बड़ी लाल आंखों से विक्रम की ओर देखकर कहा — “जिसकी वजह से यह सब हुआ है, मैं कल ही... जब उसके सम्मान समारोह में पूरा राज्य इकट्ठा होगा, उसका अंत कर दूंगी। और उसके अंत के लिए मैं अपनी वर्षों से पाली हुई नागवंश की नागरानी को भेजूंगी।”
नागरानी का नाम सुनते ही विक्रम की आंखों के सामने एक विशाल नागिन छवि उभर आई — जिसकी कई भुजाएँ थीं और प्रत्येक मुख से विष उगलता था। उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान आ गई।
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चंडालिनी ने...
हवनकुंड में आहुति डालते ही भयानक काले सांप निकलने लगे। देखते ही देखते हजारों सांप एक-दूसरे से चिपकने लगे और एक विकराल रूप धारण करते हुए “नागरानी” वहां प्रकट हो गई। उसका चेहरा इंसानी था, लेकिन बाकी शरीर विषधर नागों से बना था — भयानक, विशाल, जहरीला।
सेनापति एक पल को कांप गया, लेकिन चंडालिनी का साथ देखकर वह शांत हुआ और बोला — “राज्य का सर्वनाश हो जाए, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन राजकुमारी संयोगिता को कुछ नहीं होना चाहिए! वह हमेशा मेरी सेविका बनकर रहेगी — जब मेरा मन होगा, मैं उसे भोगूंगा!”
चंडालिनी हँसी — डरावनी, बर्बर हँसी। फिर उसने नागरानी से कहा — “आज युवान का सम्मान समारोह है। आज ही तुम उसे मृत्यु की सजा दे दो, पूरे राज्य को खत्म कर दो — सिर्फ राजकुमारी संयोगिता को हमारे पास बंदी बनाकर लाना।”
नागरानी ने सिर झुकाकर कहा — “जैसी आपकी आज्ञा।” और फिर वह अंतरध्यान हो गई।
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वहीं दूसरी ओर...
राज्य में बड़े जोर-शोर से युवान के सम्मान समारोह की तैयारी हो रही थी। पूरा राज्य एक दुल्हन की तरह सजाया गया था। महाराज, महारानी और राजकुमारी स्वयं युवान के साथ राज्यभ्रमण करने वाले थे।
राजकुमारी संयोगिता ने डार्क रेड रंग का बेहद खूबसूरत लहंगा पहना था, जिससे वह अनुपम सुंदर लग रही थी। वहीं युवान को भी सेवकों ने खास सेनापति वस्त्र पहनाए थे।
तभी उसने आगे बढ़कर अपनी मां यशस्वी के माथे को चूमा और कहा — “चलिए मां, आपके बिना मेरा हर सम्मान अधूरा है।”
युवान की मां यशस्वी और बहन यशिका दोनों ही भावविभोर थीं। यशस्वी की आंखों में आंसू थे — “काश आज तुम्हारे पिता जीवित होते,” वो सोच रही थीं, “तो आज उनकी आंखें भी यह गर्व देख पातीं।”
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और इस वक्त युवान की मां यशस्वी, साथ-साथ बहन यशिका — दोनों ही के ही खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। दोनों एक-दूसरे को बड़े ही प्रेम और आंसू भरी नजरों से देख रही थीं। तब युवान जल्दी ही उनके पास गया और उन्हें गले से लगाकर बोला था, "क्या बात है मां? आज इतनी ज्यादा खुशी का दिन है, फिर आपकी आंखों में आंसू क्यों हैं? क्या आपको किसी बात को लेकर परेशानी है? बताइए मुझे, मैं आपकी सारी परेशानियां दूर कर दूंगा।"
जैसे ही युवान ने बड़े ही अदब से यह कहा, कुछ पल के लिए यशस्वी अपने बेटे के चेहरे को बड़े ही ध्यान से देखने लगी थीं।
अब जैसे ही बड़े ही ध्यान से उन्होंने उसे देखना शुरू किया, युवान मन ही मन में सोचने लगा था, "यह क्या हो रहा है? यह मुझे इतनी ध्यान से क्यों देख रही हैं? कहीं इन्हें मुझ पर कुछ शक तो नहीं हो गया? यहां पर तो मैंने कुछ अंग्रेज़ी शब्दों का भी इस्तेमाल नहीं किया... तो फिर यह मुझे इतनी रहस्यमय तरीके से क्यों देख रही हैं?"
फिलहाल यशस्वी जी अपने चेहरे पर एक छोटी-सी मुस्कराहट लाकर बोली थीं, "क्या तुम जानते हो, बेटा? तुम्हारे मुंह से 'मां' शब्द सुनने के लिए मैं तरस जाया करती थी। तुम हमेशा से ही कितने ही शांतप्रिय रहते थे, कितना कम बोलते थे। लेकिन जब से तुम कोठरी में रहकर आए हो, तुम अपनी मां से बातें करने लगे हो। इतना ही नहीं, तुम मुस्कुराने भी लगे हो। ऐसे लगने लगा है कि तुम्हारे आने से एक अलग ही तरह की जान मेरे शरीर में आ गई हो।
"तुम नहीं जानते, तुम्हारा इस तरह से हंसना, मुस्कुराना — मुझे कितना ज्यादा सुकून दे रहा है, मेरे बच्चे। बस तुम इसी तरह से अपनी मां से बातें करते रहना। तुम और कभी भी कुछ मत छुपाना।"
जैसे ही यशस्वी जी ने बड़े ही प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए यह कहा, अब युवान की आंखें पूरी तरह से भर आई थीं। और साथ ही साथ उसके मन में यह सवाल भी आया था कि आखिरकार युवान की पर्सनैलिटी थी क्या? और क्या वह अपनी मां, बहन, अपने दोस्तों से कभी भी ज्यादा बातें नहीं किया करता था?
तभी उसने गहरी सांस ली, और इस वक्त युवान के मन, यशस्वी, साथ-साथ बहन यशिका — दोनों ही के ही खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। दोनों एक-दूसरे को बड़े ही प्रेम से देख रही थीं। और आज कहीं ना कहीं यशस्वी जी की आंखों में आंसू थे, और वह सिर्फ और सिर्फ एक ही बात सोच रही थीं — कि काश आज युवान और ऋषिका के पिता जीवित होते, तो आज वह भी अपने बेटे की इतनी ज्यादा उन्नति अपनी आंखों से देख पाते। कहीं ना कहीं यह सोचते हुए बार-बार उनकी आंखें भर रही थीं।
तब युवान जल्दी ही उनके पास गया और उन्हें गले से लगाकर बोला था, "क्या बात है मां? आज इतनी ज्यादा खुशी का दिन है, फिर आपकी आंखों में आंसू क्यों हैं? क्या आपको किसी बात को लेकर परेशानी है? बताइए मुझे, मैं आपकी सारी परेशानियां दूर कर दूंगा।"
जैसे ही युवान ने बड़े ही अदब से यह कहा, कुछ पल के लिए यशस्वी अपने बेटे के चेहरे को बड़े ही ध्यान से देखने लगी थी।
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अब जैसे ही युवान की मां ने उसको बड़े ही ध्यान से देखना शुरू किया, युवान मन ही मन में सोचने लगा था — "यह क्या हो रहा है? यह मुझे इतनी ध्यान से क्यों देख रही हैं? कहीं इन्हें मुझ पर कुछ शक तो नहीं हो गया? यहां पर तो मैंने कुछ अंग्रेजी शब्दों का भी इस्तेमाल नहीं किया... तो फिर यह मुझे इतनी रहस्यमय तरीके से क्यों देख रही हैं?"
फिलहाल, उसने अपने चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कराहट लाकर कहा था,
"क्या हुआ मां, आप मुझे इस तरह से क्यों देख रही हैं?"
तब जल्दी ही यशस्वी जी बोली थीं —
"तुम जानते हो, बेटा? तुम्हारे मुंह से 'मां' शब्द सुनने के लिए मैं तरस जाया करती थी।
तुम हमेशा से ही कितने ही शांत रहते थे, कितना कम बोलते थे।
लेकिन जब से तुम काल कोठरी में रहकर आए हो, तुम अपनी मां से बातें करने लगे हो।
इतना ही नहीं, तुम मुस्कुराने भी लगे हो।
ऐसे लगने लगा है कि तुम्हारे आने से एक अलग ही तरह की जान मेरे शरीर में आ गई हो।
तुम नहीं जानते, तुम्हारा इस तरह से हंसना, मुस्कुराना — मुझे कितना ज्यादा सुकून दे रहा है, मेरे बच्चे।
बस तुम इसी तरह से अपनी मां से बातें करते रहना।
तुम कभी भी मुझसे कुछ मत छुपाना।"
जैसे ही यशस्वी जी ने बड़े ही प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए यह कहा, युवान की आंखें पूरी तरह से भर आई थीं।
और साथ ही साथ, उसके मन में यह सवाल भी उमड़ने लगा था —
"आखिरकार युवान की पर्सनैलिटी थी क्या?
और क्या वह अपनी मां, बहन, अपने दोस्तों से कभी भी ज्यादा बातें नहीं किया करता था?"
तभी उसने गहरी सांस ली और आंखें बंद करके सोचने लगा था।
शायद वह कुछ ज्यादा ही अनुशासन-प्रिय व्यक्ति था।
और इसी वजह से तो उसने राजकुमारी के प्यार को भी कबूल नहीं किया।
अभी फिलहाल...
"युवान भाई, तुम जो कोई भी थे,
पर तुम्हारी यह जिंदगी बहुत खूबसूरत है,
और मैं तुम्हारी जिंदगी में हमेशा रहना चाहूंगा..."
यह सोचते हुए अर्जुन — यानी युवान — की आंखें फिर से भर आई थीं।
फिलहाल, उसने अपनी मां के माथेको चूमा और बोला था —
"अब चलिए मां, आपके बिना मेरा हर एक सम्मान अधूरा है।"
यह बोलकर उसने यशस्वी जी को बेहद मान-सम्मान दिया,
और अपनी मां और बहन को लेकर बाहर आ गया था — जहां उसके लिए राजबग्गी पहले से ही तैयार थी
"
अब...
इतना शाही ट्रीटमेंट देखकर
राज महल के द्वार पर खड़ा होकर युवान मन ही मन सोच रहा था — “क्या बात है बेटा! युवान तेरी तो निकल पड़ी। अर्जुन की उजड़ी जिंदगी से, अब युवान की शाही जिंदगी तक!”
वह सोचने लगा — “अगर उसका राजकुमारी से विवाह हो गया, तो एक दिन महाराज भी बन जाऊंगा।”
लेकिन तभी उसने खुद को टोका — “नहीं, अर्जुन बेटा इतना भावनाओं में मत बहुत । यह जीवन एक छलावा है... एक झूठ। पता नहीं कब यह सपना टूट जाए।”
फिलहाल, वह इस पल को पूरी तरह जी लेना चाहता था।
फिलहाल अब जैसे ही वह राजबग्गी में सवार होकर महल के मुख्य द्वार पर पहुँचा, उसने देखा — महाराज, महारानी पहले से ही राजभ्रमण के लिए तैयार खड़े थे...
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और साथ ही साथ राजकुमारी के लिए भी एक बहुत ही खूबसूरत बग्गी तैयार थी। अब तो युवान बेसब्री से महाराज, महारानी के साथ- साथ राजकुमारी संयोगिता के आने का इंतजार करने लगा था। कहीं न कहीं वह राजकुमारी को अपनी आंखों में पूरी तरह से समा लेना चाहता था और उसे देखना चाहता था।
वहीं, जैसे ही महाराज, महारानी और राजकुमारी को इस बात के बारे में पता चला कि ऑलरेडी सेनापति' युवान की बग्गी राज महल के सामने आ गई है, तो वह लोग भी खुशी- खुशी बाहर आ गए थे। कितने ही सारे सैनिकों के बीच में से होते हुए, अब सब अपनी- अपनी बग्गियों पर आकर विराजमान हो गए थे।
वहीं, युवान ने जैसे ही राजकुमारी को खूबसूरत लाल रंग में देखा और उसकी बेहद पतली और खूबसूरत कमर को निहारा, तो वह पूरी तरह से लार टपकाने लगा था और मन- ही- मन में सोचने लगा था कि यह कोई राजकुमारी नहीं, बल्कि जरूर स्वर्ग से आई कोई अप्सरा है। कोई इतना खूबसूरत कैसे हो सकता है! कहीं न कहीं यह सोचते हुए उसकी आंखें पूरी तरह से राजकुमारी पर जाकर ठहर गई थीं।
वहीं, राजकुमारी को जल्दी ही इस बात का एहसास हो गया कि इस वक्त युवान उसे बडी ही गहरी नजरों से देख रहा है। और जो भी श्रृंगार उसने आज किया था, वह युवान के लिए ही किया था। तो इस वक्त उसकी आंखें भी पूरी तरह से युवान पर जाकर ठहर गई थीं, क्योंकि सेनापति के वस्त्र धारण करने के बाद उसका व्यक्तित्व पूरी तरह से निखर कर सामने आया था।
इस वक्त वह भी उसे उन्हीं नजरों से देख रही थी, जिन नजरों से युवान उसे देख रहा था।
फिलहाल तभी महाराज की आवाज सुनाई दी थी, प्रस्थान किया जाए और पूरे राज्य का भ्रमण किया जाए।
अब यह सुनते ही हजारों- लाखों सैनिक उस राज्य की बग्गियों के आगे- पीछे चलने लगे थे। और उन बग्गियों के ठीक बीच में सबसे आगे महाराज और महारानी की बग्गी थी। उसके बाद राजकुमारी की बग्गी थी। उसके पीछे सेनापति और राजकुमारी की बग्गी साथ- साथ चल रही थी। उसके ठीक पीछे युवान की मां यशस्वी यशिका और उसका दोस्त देव भी थे। उनकी बग्गी भी उनके ठीक पीछे- पीछे चल रही थी।
अब वहीं, जैसे- जैसे जिस गली या नुक्कड से राजा की सवारी निकल रही थी, वहां चारों तरफ से उनके ऊपर फूलों की बरसात होने लगी थी। चारों तरफ से उनके ऊपर फूल बरसाए जा रहे थे।
अब यह फूल जैसे- जैसे राजकुमारी और सेनापति युवान पर पड रहे थे, उनकी खुशी की चमक बढती जा रही थी। इस वक्त जिस जगह से वे निकल रहे थे, हर जगह सिर्फ और सिर्फ महाराज अभिमन्यु की जयजयकार के साथ- साथ सेनापति की जयकार लगाई जा रही थी। राज्य की गलियों में उत्सव की सी रौनक थी। घरों में दीप जलाए जा चुके थे, गलियों में पुष्पों की वर्षा हो रही थी, और पूरे महल के चारों ओर ढोल- नगाडों की मधुर ध्वनि गूंज रही थी। हर कोई सेनापति युवान का नाम गा रहा था —“ युवान सेनापति की जय हो!
इस वक्त युवान की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। और जल्दी ही उसकी आंखों के सामने वह समय आ गया था जब वह Collage में जाया करता था। तब कितने ही सारे लडके- लडकियां, जो कि वहीं मौजूद रहते थे, अर्जुन को देखकर चिढाया करते थे और कहते थे, वो देखो, लल्लूलाल जा रहा है! कोई बोलता था, ये कितना बुरा दिखता है, पता नहीं, ऐसे लोग कहां से आ जाते हैं!
इस तरह की हर जगह उसे यही बातें सुनने को मिलती थीं। लेकिन आज. आज तो चारों तरफ सिर्फ उसकी जय जयकार ही हो रही थी। भले ही उसका नाम न लिया जा रहा हो, लेकिन उसकी आत्मा यह सारी चीजें अच्छी तरह से महसूस कर रही थी। इस वक्त उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसकी खुशी किसी और ही स्तर पर पहुंच चुकी थी।
अर्जुन ने आंखें बंद कीं और सोचना शुरू कर दिया था कि अब चाहे कुछ भी हो जाए, वह अपने आधुनिक जीवन के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचेगा। और अर्जुन कौन था, कौन नहीं — वह सब कुछ भूल जाएगा। अगर वह कुछ याद रखेगा, तो सिर्फ और सिर्फ अर्जुन का ज्ञान। वरना वह अर्जुन का नाम भी अपनी जुबान पर नहीं लाएगा।
यह सोचते हुए उसने गहरी सांस ली और उस पल को जीने लगा। जब चारों तरफ उसकी जयजयकार हो रही थी।
इसी बीच वे राज्य के बीचों- बीच पहुंच चुके थे, और जैसे ही वे वहां पहुंचे, अचानक पूरे आसमान में काले बादल छा गए थे।
अब यह देखकर महाराज, महारानी, और साथ- साथ सभी सैनिक पूरी तरह से चौंक गए, क्योंकि इस तरह से वहां काले बादलों का घिर आना पूरी तरह से अपशगुन माना जाता था। वह बिल्कुल भी किसी अच्छी बात का संकेत नहीं था। तो सभी लोगों के चेहरे पर इस वक्त थोडा- थोडा डर भी दिखाई दे रहा था कि कहीं कोई अनहोनी ना हो जाए।
वही, युवान भी अब थोडा सा चौंक गया था और सोचने लगा था कि आखिरकार यह सब लोग इस तरह से क्यों रुक गए हैं? और जो अभी थोडी देर पहले उसकी जय- जयकार हो रही थी, वह जय- जयकार भी अचानक बंद क्यों हो गई है? तो यह बात उसे काफी हद तक हैरान कर रही थी।
उसे इस बारे में नहीं पता था कि, इस सदी में, काले बादलों के घिरने का मतलब है कि कोई न कोई बडी मुसीबत वहां आने वाली है। तभी महाराज की एकदम कठोर आवाज वहां सुनाई दी थी, सभी सैनिक पूरी तरह से चौकन्ने हो जाइए और जाकर राजकुमारी की रक्षा कीजिए!
आवाज में आदेश था। तभी युवान की आवाज आई, क्या हुआ है महाराज? सब ठीक तो है ना?
अब सब लोग आश्चर्यचकित होकर युवान की ओर देखने लगे। सोचने लगे कि इस वक्त सेनापति यह कैसा प्रश्न कर रहा है? क्या उन्हें नहीं पता कि काले बादल घिरे हैं, तो इसका मतलब है कोई बडी मुसीबत आने वाली है? इस तरह से वह यह कैसे पूछ सकते हैं कि क्या सब ठीक है या नहीं?
फिलहाल सब कुछ अचानक शांत हो गया, और युवान को कुछ समझ नहीं आया कि आखिरकार यहां हो क्या रहा है। तभी उसने देव को इशारा किया, और देव बेहद तेजी से युवान के पास आया। तब जल्दी युवान ने उसके कान में उससे पूछा, क्या हुआ है? अचानक यह भाग- दौड क्यों रुक गई? और सब लोग इतना परेशान क्यों दिखाई दे रहे हैं?
तभी देव ने उसके कान में धीरे से, संयमित स्वर में कहा, क्या तुम्हें वाकई नहीं पता कि इस वक्त काले बादलों का घिर आना मतलब है कि कोई न कोई घोर संकट आने वाला है? क्या तुम इस बारे में नहीं जानते?
देखो युवान, यह बात मैं जानता हूं कि काल कोठरी में रहने के बाद तुम बहुत सारी चीजें भूल गए हो, काफी कुछ बदल गए हो. लेकिन यह बात भी तुम भूल जाओगे, यह तो मैंने कभी भी नहीं सोचा था।
देव की बात सुनकर युवान के माथे पर हैरानी के भाव आ गए थे। वह सोचने लगा था, क्या वाकई ऐसा भी कुछ हो सकता है? जबकि आधुनिक जिंदगी में अगर इस तरह से काले बादल आ जाएं या आंधी- तूफान आ जाए, तो इसका मतलब साफ होता है कि जोरदार बारिश होने वाली है। लेकिन यहां पर तो इन काले बादलों का कुछ और ही मतलब निकाला जा रहा था।
फिलहाल उसने गहरी सांस ली और जल्दी ही अपनी तलवार निकालकर, वह अपनी बग्गी से नीचे उतर गया और राजकुमारी की बग्गी के ठीक बराबर में जाकर खडा हो गया। और थोडी तेज आवाज में बोला, महाराज, आपको फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। राजकुमारी की रक्षा मैं अपनी जान देकर भी करूंगा।
अब युवान की यह बात सुनकर महाराज कहीं न कहीं उससे काफी हद तक प्रभावित हुए थे। वहीं राजकुमारी, जिसके चेहरे पर भी चिंता की लकीरें दिखाई दे रही थीं — अब युवान के इस तरह से उसके पास आकर खडे होने पर, ऐसा लग रहा था मानो उसकी सारी समस्याएँ एक पल में खत्म हो गई हों। और वह एक बार फिर मुस्कुराकर युवान को देखने लगी थी।
अब ठीक उसी वक्त, युवान मन ही मन सोचने लगा था, आज जैसे ही बारिश होगी, तो उन लोगों की यह गलतफहमी भी खत्म हो जाएगी कि इस तरह से कोई संकट आने वाला है।
फिलहाल वह बेपरवाही से जाकर खडा हो गया था। और तभी सभी सैनिक अपने- अपने आसपास अच्छी तरह से देखने लगे थे। लेकिन ठीक उसी वक्त, कहीं से" बचाओ! बचाओ! की बडी ही भयभीत करने वाली आवाजें सुनाई देने लगीं।
यह आवाज सुनकर युवान के माथे पर बल पड गए। वह मन ही मन सोचने लगा, क्या वाकई यहां काले बादलों का मतलब किसी समस्या का संकेत है?
फिलहाल वह भी देखना चाहता था कि आखिरकार ऐसी कौन- सी मुसीबत आई है, जो इस तरह से सब लोग इतनी बुरी तरह से चिल्ला रहे हैं.
इसीलिए उसने गहरी सांस ली थी और तुरंत ही दूसरी ओर देखना शुरू कर दिया था, जिस तरह से बडी ही भयानक सी आवाज आ रही थी।
तब सेनापति युवान ने थोडी तेज आवाज में सैनिकों से कहा था, तुम लोग जाकर देखो वहाँ पर क्या हो रहा है।
इसके बाद वह राजकुमारी के पास पहुँचा और राजकुमारी को बग्गी से उतरकर नीचे आने के लिए कहने लगा था।
वहीं महाराज भी अब तुरंत ही अपनी तलवार हाथ में लेकर खडे हो गए थे, और अपनी महारानी गायत्री को संरक्षण देते हुए बोले थे, महारानी, अगर इस बीच में आज कुछ हो जाता है, तो आपको पता है ना कि आपको क्या करना है।
अब महाराज की आवाज सुनकर महारानी की आँखों में आँसू आ गए थे। वह बोली थीं, आप कैसी बातें कर रहे हैं, स्वामी? आप इस तरह से नहीं बोल सकते। आपको कुछ भी नहीं होना चाहिए। आपको अपना ख्याल रखना ही होगा। वैसे भी सेनापति युवान हमारे साथ है। वह इतनी बडी शक्ति है हमारी। हमें लगता है कि वह हर एक खतरे से निपट सकता है।
महारानी गायत्री की इस तरह की बातें सुनकर कहीं ना कहीं महाराज काफी प्रभावित हुए, और तभी महारानी ने भी अपनी एक तलवार निकाल कर कहा था, शायद आप भूल रहे हैं कि मैं भी तलवारबाजी में आपसे कुछ कम नहीं हूँ। और अगर आप मेरी रक्षा करने के लिए यहाँ हैं, तो मैं भी आपकी रक्षा करने के लिए यहाँ मौजूद हूँ।
अब यह सुनकर महाराज अपनी पत्नी को बडी ही गर्व भरी नजरों से देखने लगे थे।
उसी समय अचानक एक भयावह कंपन हुआ। राज्य के द्वार पर अचानक सैकडों विषधर सर्प प्रकट हो गए — और उनके मध्य खडी थी... नागरानी!
उसकी लंबी काली जटाएं जमीन तक लहरा रही थीं। आधा शरीर एक सुंदर स्त्री का था — लेकिन उसके पीछे झूलती सात नागमस्तक,
उसके साँपों की आँखों से आग बरस रही थी, और जिस- जिस घर पर भी, जिस- जिस व्यक्ति पर भी वह पड रही थी — वे लोग तडप- तडपकर मर रहे थे।
नागरानी ने अपनी आंखों से आग बरसाई। एक ही पल में महल की बुर्ज ध्वस्त हो गई। राज्य के अनेक योद्धा जहर की बूंदों में झुलसने लगे। चारों ओर चीख- पुकार मच गई।
यह देखकर तो युवान की आँखें पूरी तरह से बाहर निकलने को तैयार थीं।
तभी युवान ने राजकुमारी को पीछे हटने का आदेश दिया और खुद उसकी ढाल बन खडा हो गया।
वहीं महाराज के चेहरे पर किसी भी तरह का डर का भाव दिखाई नहीं दिया था।
वहीं राजकुमारी संयोगिता ने भी अपनी तलवार निकाल ली थी और सेनापति युवान की ओर देखकर बोली थीं, सेनापति युवान, आप हमारी फिक्र बिल्कुल मत कीजिए। आप जाइए, जाकर राज्य की, राज्य के लोगों की रक्षा कीजिए। हम अपनी रक्षा स्वयं कर सकते हैं।
राजकुमारी संयोगिता की बात सुनकर युवान पूरी तरह से चौंक गया और मन ही मन में सोचने लगा था कि, अगर किसी इंसान के साथ झगडा या तलवारबाजी करनी हो तो समझ में आता है, लेकिन यहाँ तो इतनी खतरनाक इच्छाधारी नागिन मौजूद है।
क्योंकि जिस युग से युवान — यानी अर्जुन — आया था, उसे तो इच्छाधारी नागिनों के बारे में ही पता था। और यह सात मुँह वाली नागिन को देखकर तो उसकी. उसकी हवा पूरी तरह से टाइट हो चुकी थी। वह मन ही मन में बहुत ही ज्यादा डरा हुआ था।
वह सोचने लगा था कि, यह सब क्या है? मैं तो अभी राजा- महाराजाओं की जिंदगी इंजॉय कर रहा था, लेकिन इस तरह से इतनी बडी, खतरनाक' नागरानी' को देखकर तो मेरी तो हवा ही खराब हो चुकी है।
उसका दिल पूरी तरह से धडक- धडक कर रोने को कर रहा था। और वह सोचने लगा था, मैं भी कितना बडा बुद्धू हूँ! कितना बडा बेवकूफ हूँ! अरे, अगर आधुनिक जिंदगी में लोग मुझे बुरा- भला कहते हैं, छछूंदर कहते हैं — तो कहते रहें! अरे मैं हूं तो! दिखता भी तो लल्लूलाल हूँ! मुझे क्या जरूरत थी इस दुनिया में आने की? क्यों मैंने भगवान से बोला कि मुझे इस दुनिया से आजाद कर दो? क्यों? क्यों?
यह बोलते हुए वो अपना sir पटक- पटक कर फोड देने को तैयार था।
लेकिन तभी.
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लेकिन तभी
राजकुमारी की नजर सेनापति युवान पर पडी और उसकी ओर देखकर बोली थी, क्या बात है सेनापति युवान? क्या आपको मेरी आवाज सुनाई नहीं दे रही है? आप जाइए,जाकर राज्य के लोगों की रक्षा कीजिए। यहाँ अपनी रक्षा के लिए मैं स्वयं तत्पर हूँ, जाइए सेनापति युवान।
तभी युवान राजकुमारी की ओर देखने लगा और जल्दी ही एक बार फिर वो अपने सिर पर टपली मारते हुए बोला था, यह मुझे क्या हो गया है? मैं Kiss तरह की बातें सोच रहा हूँ? अरे, यह एक लडकी होकर इस तरह से इतनी खतरनाक इच्छाधारी नागिन से लडने के लिए तैयार है। मैं तो फिर भी एक लडका हूँ! मुझे इस तरह से कायरता नहीं दिखानी चाहिए। मुझे ब्रेव बनना चाहिए — हाँ, मैं एक आदमी हूँ, और मैं आराम से इन लोगों के साथ मिलकर इच्छाधारी नागिन का मुकाबला कर सकता हूँ!
तभी जल्दी ही अर्जुन ने अपने दिमाग का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था और सोचने लगा था, सोच सोच अर्जुन! सोच! कुछ तो ऐसा होगा जिससे तू इस इच्छाधारी नागिन को हरा सकता है। क्योंकि अभी तक इच्छाधारी नागिन कई राज्यों को बर्बाद कर चुकी थी, कितनों की जान जा चुकी थी — क्योंकि उसके साथ सर्प- मौत है, जिसके अंदर से भयानक आग की गोलियाँ निकल रही थीं, जो किसी भी पल महाराज- महारानी को भी अपनी चपेट में लेने के लिए तैयार थीं।
अब तो अर्जुन पूरी तरह से हैरान हो चुका था। नागरानी चाहती तो सबसे पहले सेनापति या महाराज- महारानी पर हमला करके राजकुमारी संयोगिता को अपने साथ ले जा सकती थी। लेकिन उसे आदेश मिला था कि उसे सबसे पहले राज्य को बर्बाद करना है और सबसे अंत में महाराज- महारानी की जान लेकर सेनापति की बडी ही निर्मम हत्या करनी है। उसके बाद ही वह संयोगिता को वापस ले जा सकती है।
इसलिए वह सबसे पहले राज्य के लोगों को बुरी तरह से अपनी विषैली आग से मार रही थी। अब जल्दी ही अर्जुन ने गहरी साँस ली, लेकिन तभी उसे महाराज की आवाज सुनाई दी, सेनापति युवान! खडे- खडे मुँह क्या देख रहे हो? जाओ! जाकर उस नागरानी का मुकाबला करो! जाओ, जल्दी करो!
महाराज की बात सुनकर अर्जुन एकदम से होश में आया। जल्दी ही उसने साँस ली और नागरानी की ओर बढने लगा। लेकिन तभी, उसकी माँ की दर्दभरी आवाज उसे सुनाई दी, युवान! बेटा युवान, कहाँ जा रहा है? बेटा हट जा, मत जा बेटा! मत जा! तू अच्छी तरह से जानता है कि तेरे अलावा हमारा दुनिया में कोई नहीं है। अगर तुझे कुछ हो गया तो. नहीं नहीं बेटा! तू मत जा, तू मत जा!
वहीं यशिका और देव की आँखों में आँसू थे। लेकिन तभी युवान अपनी माँ और बहन की ओर देखकर बोला था, नहीं माँ! मैं अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकता। वैसे भी मुझे आज इस राज्य का सेनापति बनाया गया है, और मेरा फर्ज है इस राज्य की रक्षा करना। और इस राज्य की रक्षा मैं अपनी जान देकर भी करूंगा।
यह बोलकर, अब जल्दी ही सेनापति युवान अपनी तलवार लेकर नागरानी की ओर बढने लगा। नागरानी इस वक्त अपने इंसानी रूप में खडी होकर आसपास देख रही थी और उसके साथ सात मुख सर्प- मौत विषैली आग उगल रहे थे। वे लगातार पूरे राज्य और वहाँ मौजूद लोगों पर हमला कर रहे थे। जिस किसी पर भी विषैली आग गिरती, वह लोग तडप- तडपकर दम तोड रहे थे। उनका पूरा शरीर नीला पड रहा था।
अब जैसे- जैसे युवान नागरानी की ओर बढ रहा था, वैसे- वैसे उसकी साँसें थम रही थीं। वह मन ही मन सोच रहा था, अभी अपनी माँ के सामने तो बडे- बडे डायलॉग मार आया हूँ, लेकिन अब आगे जाने की तो हिम्मत ही नहीं हो रही है।
लेकिन तभी नागरानी की नजर सेनापति युवान पर पडी और वह तुरंत ही उसकी ओर बढने लगी। अब नागरानी को अपनी ओर आता देखकर तो युवान की हालत और भी ज्यादा खराब हो चुकी थी। वह मन ही मन में बोला, इस नागरानी को क्या प्रॉब्लम है? क्या इसे इतनी भीड में मैं ही दिखाई दे रहा हूँ? क्यों यह मेरे इतने करीब आ रही है? मैं क्या करूँ? क्या करूँ मैं?
तभी उसने गहरी साँस ली और अचानक उसे एक अजीब सा सफेद धुआँ दिखाई दिया। उस धुएँ के अंदर उसे किसी और की नहीं, बल्कि युवान की आत्मा दिखाई दी थी। युवान की आत्मा को अपने सामने देखकर अर्जुन का दिल और दिमाग पूरी तरह से उड चुका था। वह तुरंत ही उसकी आत्मा की ओर देखकर बोला, यह. युवान? तुम? तुम क्या वापस अपने शरीर में आने वाले हो? और क्या तुम मुझे वापस मेरी आधुनिक जिंदगी में भेजने वाले हो? हाँ हाँ! यह ठीक रहेगा। वैसे भी तुम तो काफी ज्यादा ताकतवर हो। तुम आसानी से इस नागरानी का मुकाबला कर सकते हो। तुम मुझे मेरी आधुनिक जिंदगी में वापस भेज दो। मैं वापस वहीं चला जाऊँगा। भले ही मुझे लोगों के ताने खाने पडें, लेकिन कम से कम मैं जीवित तो रहूँगा। इस तरह से बिना अपनी पहचान जाने मैं मरना नहीं चाहता. बिल्कुल भी नहीं चाहता!
क्योंकि बचपन से लेकर आज तक सब लोगों ने मुझे सिर्फ और सिर्फ अनाथ, गरीब, और नकारा कहकर ही पुकारा है। और जब तक मैं अपनी कोई पहचान इकट्ठा नहीं कर लेता, तब तक मैं किसी भी कीमत पर मरना नहीं चाहता।
अब अर्जुन की बात सुनकर युवान की आत्मा उसकी ओर देखकर बोली थी, अर्जुन! तुम हर किसी का मुकाबला कर सकते हो। मैं वापस इस शरीर में नहीं आ रहा हूँ। और इसका कारण तुम्हें बहुत जल्द पता चल जाएगा। फिलहाल जाओ, जाकर नागरानी का मुकाबला करो। तुम्हारे पास महाशक्तिशाली युवान का शरीर है, उसका इस्तेमाल करो। और साथ ही साथ, तुम्हारे पास सातों युगों में सबसे बुद्धिमान इंसान का दिमाग है। उस मस्तिष्क के बल पर तुम किसी को भी हरा सकते हो. किसी को भी!
यह बोलकर युवान की आत्मा वहाँ से अंतरध्यान हो गई थी।
अब यह सुनकर अर्जुन — यानी युवान — की आँखें फटने को तैयार थीं और वह बोलने लगा था, यह सब क्या था? क्या वाकई मुझे युवान की आत्मा दिखाई दी थी?
यह सोचते हुए अर्जुन पूरी तरह से हैरान था, लेकिन तभी उसे नागरानी की आवाज सुनाई दी —
सेनापति युवान! तुम ही हो ना? आज तुम्हारी जिंदगी का आखिरी दिन है! आज मेरी विषैली आग तुम्हें और तुम्हारे राज्य को पूरी तरह से जला कर राख कर देगी!
यह बोलकर नागरानी जोर- जोर से हँसने लगी थी।
अब नागरानी जोर- जोर से हँस रही थी, उसकी हँसी में केवल घृणा नहीं, बल्कि विनाश का ऐलान भी था। उसके चारों ओर लहराती सात विषैले सर्प — उसकी सर्प- मौत की सेना — आग बरसा रही थी, जिससे पूरा आकाश भय और धुएं से भर गया था।
लेकिन ठीक उसी क्षण, अर्जुन ने खुद को कंधों से झटका दिया और पूरी ताकत से खुद से कहा —
अब नहीं। अब डर नहीं। अब मैं वो अर्जुन नहीं जो पहचान से भागता था, अब मैं सेनापति युवान हूँ — इस राज्य का रक्षक!
उसकी आँखों में अब डर नहीं था, बल्कि आग थी।
उसने अपने घोडे को पूरी ताकत से दौडाया और सीधे नागरानी की ओर बढा। वह जानता था कि सीधा हमला करना मूर्खता होगी, लेकिन उसे एक ऐसा भ्रम पैदा करना था जिससे नागरानी असावधान हो जाए।
जैसे ही वह नागरानी के करीब पहुँचा, वो अंग्रेजी में जोर से चिल्लाया —
Hey NagRani! You’re messing with the wrong kingdom, girl!
नागरानी ठिठक गई। उसकी आँखों में भ्रम तैर गया।
यह कौन सी भाषा बोल रहा है? — उसने सर्पों की ओर देखा।
यही अर्जुन चाहता था।
उसने उसी वक्त देव को इशारा किया। देव ने तुरंत एक चांदी की ढाल और सर्प- प्रतिकारक मंत्र से युक्त एक चंद्र- कवच युवान की ओर उछाला। अर्जुन ने फुर्ती से उसे पकड लिया और उसी समय अपनी तलवार को आकाश की ओर उठाते हुए बोला —
हे नागों के स्वामी शेषनाग! यदि मेरे भीतर न्याय और साहस है, तो इस तलवार में वह शक्ति भर दो जिससे मैं इस राक्षसी नागरानी का अंत कर सकूं!
आकाश में बिजली कौंधी। तलवार नीली चमक से भर उठी।
अब अर्जुन ने अपने पूरे शरीर का ध्यान हटा कर नागरानी के गले में पडे उस चमकते लॉकेट की ओर केंद्रित कर दिया। यही तो नागमणि थी — वही नागमणि, जिसके बिना नागरानी मात्र एक नागिन थी, और जिसके साथ वह अपराजेय बन जाती थी।
बस एक मौका. एक सही वार। — अर्जुन ने अपने मन में कहा।
और तभी देव, जो कि बडी ही खामोशी से नागरानी और उसके सर्पों से बचते हुए सीधा अर्जुन के ठीक पीछे आ गया था, धीरे से झुककर और इशारों से युवान की ओर देखकर बोला था, तुमने जो कहा था, मैं ले आया हूँ। अब क्या करना है?
अब यह सुनकर सैनिक युवान जोर से हँसने लगा था और नागरानी की ओर देखकर बोला था,
नागरानी! तुम्हें क्या लगता है? कि तुम इतनी आसानी से सेनापति युवान को हरा पाओगी? ऐसा कभी भी नहीं हो सकेगा। अभी मैं तुम्हें एक आखिरी मौका देता हूँ. अगर तुम अपनी जान की रक्षा करना चाहती हो, तो अभी और इसी वक्त यहाँ से चली जाओ।
अब यह सुनकर नागरानी पूरी तरह से हैरान हो गई थी। वहीं महाराज, महारानी और साथ ही साथ पूरे राज्य के सैनिक, युवान की माँ, बहन, और राजकुमारी संयोगिता — सभी युवान की इतनी तेज और कठोर आवाज सुनकर उसकी प्रशंसा करने लगे थे। और एक बार फिर, सैनिकों ने जोरदार आवाज में जयकारा लगाना शुरू कर दिया था:
सेनापति युवान की जय!
अब तो इस तरह से अपनी जयजयकार सुनकर युवान खुशी से खुद को रोक नहीं पा रहा था। वह मन ही मन सोचने लगा था —
अब तो चाहे कुछ भी हो जाए, अगर ओखली में सिर दे ही दिया है तो मूसल से क्या डरना?
इसी सोच के साथ, उसने नागरानी की ओर देखकर दृढ स्वर में कहा —
नागरानी! देखो. वहाँ, तुम्हारे पीछे. तुम्हारी मौत खडी है।
अब नागरानी, उसका इतना ज्यादा आत्मविश्वास देखकर पूरी तरह से आश्चर्यचकित रह गई थी। और जैसे ही उसने अपने साथ खडे विषैले मुखों को अर्जुन द्वारा दिखाए गए दिशा में देखने को कहा, उसने देखा कि वहाँ तो केवल मृत पडे लोगों के अलावा कुछ भी नहीं था। अब वह पूरी तरह से भ्रमित हो गई थी —
यह सेनापति मुझे आखिर क्या दिखाना चाहता है?
लेकिन ठीक उसी वक्त, देव जिस राजबग्गी को चुपचाप उसके पास ले आया था, अब अर्जुन मौके का फायदा उठाकर सीधा उस पर चढ गया और तेजी से उछलता हुआ नागरानी के गले तक पहुँच गया।
और उसने, बिना एक पल की देरी किए, उसके गले में लटका हुआ वह चमकता हुआ लॉकेट — नागमणि — अपने हाथों में थाम लिया था।
यह सब कुछ उसने इतनी जल्दी और फुर्ती से किया कि किसी को भी कुछ सोचने या समझने का मौका तक नहीं मिला।
वहीं, अब अर्जुन का यह साहसी और अचानक किया गया कार्य देखकर सभी लोगों ने अपने दाँतों तले उंगलियाँ दबा ली थीं। यह पूरी तरह से आत्मघाती कदम जैसा लग रहा था —
आज तो सेनापति युवान की मौत निश्चित है, अब कोई उसे नहीं बचा सकता.
लेकिन जैसे ही नागरानी ने एक बार फिर क्रोध में आकर युवान की ओर देखा — और यह देखा कि उसने उसके गले का लॉकेट, यानी नागमणि, छीन ली है — तो वह पूरी तरह से आपे से बाहर हो उठी।
जिस इंसानी रूप में वह अभी तक खडी थी, वह अचानक एक बेहद विकराल, दैत्याकार नागिन के रूप में बदल गई।
उसके सातों मुखों ने जो आग उगल रहे थे, वे अब और भी विकराल और घातक हो उठे थे। उसके जिस्म का हर भाग अब काँप रहा था, और उसकी ऊँचाई इतनी विशाल हो चुकी थी कि उसका फन आधे राज्य को ढँक चुका था।
अब उसका यह भयावह रूप देखकर वहाँ मौजूद हर व्यक्ति भय से काँपने लगा था।
यहाँ तक कि राजकुमारी संयोगिता भी पूरी तरह से घबरा गई थीं — क्योंकि इतना बडा, विषैला नाग किसी ने आज तक अपनी आँखों से नहीं देखा था।
अब अर्जुन ने जब नागरानी का विकराल रूप देखा, तो उसके मन में एक पल के लिए डर की लहर दौड गई।
यह सब क्या हो रहा है? क्या यह नागरानी का नॉर्मल से भी कहीं ज्यादा भयानक रूप है? कहीं ऐसा न हो कि मेरा यह दाँव उल्टा पड जाए. अब तो तू गया युवान बेटा!
लेकिन फिर उसने खुद से कहा —
अब अगर हीरो बनना है, तो डरने का नहीं, दिमाग चलाने का वक्त है।
वह तुरंत लॉकेट की ओर देखने लगा और बुदबुदाया —
अगर इसमें नागमणि नहीं हुई, तो सब खत्म. मुझे देखना पडेगा।
उसने जल्दी से लॉकेट को खोलना शुरू कर दिया। थोडी मेहनत के बाद जैसे ही उसने लॉकेट को खोला —
अचानक से नागमणि की तेज रोशनी चारों तरफ फैल गई।
चारों ओर फैले धुएँ और भय के बीच, यह एक चमत्कारी प्रकाश था — जैसे अंधकार को चीरता हुआ कोई दिव्य आभा उग आई हो।
एक दिव्य प्रकाश फैला और सारे विष को पलटकर नागरानी की ओर फेंक दिया। नागरानी चीख उठी। उसी वक्त अर्जुन बिजली की गति से कूदा और उसके पास जा पहुँचा।
13
अब नागमणि अचानक युवान के हाथों में देखते ही, नागरानी के शरीर पर जैसे नागमणि की रोशनी पडी, उसका शरीर, जो कि बहुत ही बडा और भयानक हो गया था, वह तुरंत ही छोटा होने लगा। और छोटा होते ही वह एक मनुष्य रूप में, सेनापति युवान के ठीक सामने हाथ जोडकर खडी हो गई।
यह देखकर तो युवान की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। वहीं अब यह सारा दृश्य देखकर सभी लोगों ने जोरदार तालियां बजाना शुरू कर दीं और एक बार फिर से सेनापति युवान की जय- जयकार होने लगी।
वहीं इस वक्त युवान खुशी से फूला नहीं समा रहा था। कहीं न कहीं उसका यह प्लान काम कर गया था और मन ही मन में उसने राहत की सांस ली थी। वह सोचने लगा था कि अगर आज यह प्लान पूरी तरह से फ्लॉप हो जाता, तो उसकी जान कोई नहीं बचा सकता था।
वहीं दूसरी ओर महाराज अब जल्दी ही युवान के पास आकर खडे हो गए थे। तब नागरानी अपने हाथ जोडकर सेनापति की ओर देखकर बोली, हमें क्षमा कर दीजिए सेनापति युवान, हमसे बहुत बडी गलती हो गई है। इस नागमणि को कुछ मत कीजिएगा। अगर आपने आज इस नागमणि को नष्ट कर दिया, तो हमारी पूरी नाग जाति हमेशा- हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएगी और सभी नाग मर जाएंगे। सभी नागों की शक्ति इस नागमणि में है।
अब जैसे ही उसने इस तरह से गिडगिडाते हुए यह कहा, युवान और अधिक गंभीर हो गया। नागरानी की ओर देखकर उसने आदेश देते हुए कहा, तुम्हारे पास बचने का सिर्फ और सिर्फ एक ही मौका है। जितनी भी तुमने इस राज्य में तबाही मचाई है, और जितने भी लोगों की जान ली है, उन सबको तुम्हें जीवित करना होगा। और अपने विषैले जहर को, जो तुमने लोगों के शरीर में भरा है, उसे वापस लेना होगा।
नागरानी यह सुनकर तुरंत ही हाथ जोडकर बोली, मुझे माफ कर दीजिए सेनापति। लेकिन इस तरह से अगर मैं अपने द्वारा फैलाए जहर को वापस लूंगी, तो मेरे साथ जो शक्तिशाली सर्पमुख हैं, वे हमेशा के लिए नष्ट हो जाएंगे। जिससे मेरी ताकत पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी।
यह सुनकर सेनापति युवान नागरानी की ओर देखकर बोला, अगर किसी की जान बचाने के लिए अपनी ताकत और शक्तियां खोनी पडे, तो यह कोई बडी बात नहीं है, नागरानी। और वैसे भी, तुमने इतने सारे निर्दोष लोगों की जान ली है। तुम्हें ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था।
कहीं न कहीं, सब लोगों को लग रहा था कि यह नागरानी इस राज्य पर आक्रमण करने आई थी, लेकिन किसी के भी मन में यह बात नहीं आई थी कि इस नागरानी को जरूर किसी ने भेजा होगा। वहीं, सेनापति युवान की बात सुनने के बाद नागरानी हाथ जोडकर बोली, ठीक है, मैं सब लोगों को जीवित करने के लिए तैयार हूँ। लेकिन उसके पश्चात आपको मुझसे वादा करना होगा कि आप मेरी नागमणि मुझे वापस लौटा देंगे। वचन लेकर मैं हमेशा- हमेशा के लिए यहाँ से चली जाऊँगी।
कहीं न कहीं, इस वक्त उसके चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कुराहट थी। उसके चेहरे की मुस्कुराहट देखकर अब युवान को समझ नहीं आ रहा था कि जब नागरानी अपने सर्पमुखों को नष्ट करने जा रही है, तो फिर भी वह मुस्कुरा क्यों रही है? उसने पूछा, आप मुस्कुरा क्यों रही हैं? क्या हुआ है? बताइए मुझे, क्या बात है जो आप मुझसे छुपा रही हैं?
युवान की बात सुनकर नागरानी तुरंत हाथ जोडकर बोली, आपने अनजाने में इस लॉकेट को मेरे गले से तोडकर मुझे एक बहुत बडे श्राप से मुक्ति दिला दी है। आप नहीं जानते, बरसों पहले मुझे एक काले जादू की मालकिन ने अपने वश में कर लिया था और आज इस राज्य में तबाही मचाने के लिए उसी ने मुझे यहाँ भेजा था। उसने अपनी कुछ काली शक्तियों की विधि बनाकर मेरी नागमणि को पूरी तरह अपने वश में कर लिया था, जिसकी वजह से मैं उसकी बात मानने के लिए विवश थी। लेकिन अब, आपने जिस तरह से मेरे गले से यह मायावी लॉकेट तोड दिया और नागमणि को बाहर निकाल दिया, तो उसका बंधन पूरी तरह से टूट चुका है और मैं श्रापमुक्त हो चुकी हूँ।
भले ही अब मेरे सर्पमुख मेरे पास न रहें, लेकिन अब मैं अपना जीवन अपने परिवार के साथ शांति से जी सकूँगी।
जैसे ही नागरानी ने यह कहा, सब लोग साँसें थामकर उसकी बातें सुन रहे थे। लेकिन तभी महाराज अभिमन्यु अपनी तलवार लेकर आगे बढे और बोले, कौन है वह? बताओ! जवाब दो हमें! और उसने क्यों भेजा है तुम्हें हमारे राज्य में तबाही मचाने के लिए?
महाराज की बात सुनकर नागरानी बोली, इसके बारे में मुझे अधिक ज्ञात नहीं है। मैं सिर्फ इतना जानती हूँ कि उस चांडालिनी के पास काली शक्तियों की अत्यधिक ताकत है, जिसके बल पर वह कुछ भी कर सकती है। और मैं तो उसकी काली शक्तियों का एक छोटा सा अंश मात्र हूँ।
यह सुनकर महाराज कहीं न कहीं आश्चर्यचकित हो गए थे और साथ ही चिंता में भी डूब गए थे कि आखिर वह कौन- सी चांडालिनी है, जो इतने भयानक नागराज को भी अपने वश में कर सकती है?
फिलहाल, अब सेनापति युवान ने नागरानी की ओर देखकर कहा, जब आप अपने सर्पमुखों का त्याग करने को तैयार हैं, तो फिर देर Kiss बात की? जल्दी से मेरे राज्य के सभी लोगों को ठीक कीजिए और जितनी भी तबाही मचाई है, उसे पूरी तरह व्यवस्थित कर दीजिए।
युवान की बात सुनकर नागरानी ने एक बार फिर उसके सामने सिर झुकाया और अचानक, देखते ही देखते, एक बार फिर वह अपने विकराल रूप में वहाँ मौजूद हो गई। तब तक राजकुमारी संयोगिता, युवान के बिल्कुल पास आकर खडी हो गई थी और बार- बार नजरें बचाकर युवान की ओर देख रही थी। लेकिन युवान का ध्यान उस वक्त पूरी तरह नागरानी पर था।
तभी, युवान के कानों में यशिका की घबराई हुई आवाज सुनाई दी, युवान भ्राता जल्दी चलो! माता श्री को क्या हो गया है?
यह सुनकर युवान पूरी तरह से घबरा गया, क्योंकि जब देव सेनापति वाली बग्गी लेकर आया और युवान उसमें चढा, तब नागरानी के गले से लॉकेट उसने खींच लिया था। यह दृश्य माता श्री बर्दाश्त नहीं कर पाईं और बेहोश हो गईं।
अब यह देखकर युवान तेजी से वहाँ से भागा, वहीं बाकी सब लोग बहुत ध्यान से नागरानी को सबको ठीक करते हुए देखने लगे। नागरानी अपने विकराल स्वरूप के साथ, जिन- जिन लोगों की उसने अपने जहर से जान ली थी, उन्हें वापस जीवन देने लगी। और जो राज्य उसकी जहरीली आग से जल रहा था, वहाँ धीरे- धीरे शांति स्थापित हो गई और सब कुछ पहले की तरह सुंदर हो गया।
जैसे- जैसे लोग जीवित हो रहे थे, वे आश्चर्यचकित होकर खुद को देख रहे थे। उन्हें सब कुछ याद आ गया था कि उनकी जान सेनापति युवान ने बचाई है। इसीलिए, सब लोग जोर- जोर से सेनापति युवान की प्रशंसा करने लगे।
वहीं अब युवान अपनी माँ के पास जा पहुँचा और देव से तेज आवाज में बोला, देव! अभी और इसी वक्त माँ को लेकर घर जाओ! वह मूर्छित हो गई हैं।
देव दौडकर वहाँ गया और बोला, तुम जाकर नागरानी का सामना करो, मै यशिका के साथ माता श्री को लेकर महल जा रहा हूँ। यह कहकर वह अपनी माँ को लेकर चल पडा।
उधर, नागरानी सब कुछ ठीक करने के बाद युवान के सामने खडी हुई और बोली, जैसा वचन दिया था, कृपया अब मुझे मेरी नागमणि लौटा दीजिए, ताकि मैं अपने राज्य जाकर अपने परिवार के साथ रह सकूँ।
तब युवान ने महाराज अभिमन्यु की ओर देखा। महाराज ने सिर हिलाकर अनुमति दी। लेकिन युवान के मन में एक पल के लिए लालच आ गया था—अगर वह नागमणि अपने पास रख ले, तो वह बहुत कुछ कर सकता है, शक्तिशाली बन सकता है।
वह कुछ कहने ही वाला था कि महाराज ने आकर युवान की और देखते हुए कहा, जैसा कि हमारे सेनापति युवान ने वचन दिया है, वह अवश्य पूरा करेंगे। एक सच्चा योद्धा कभी अपने वचन से पीछे नहीं हटता।
यह सुनकर युवान के मन का लालच समाप्त हो गया। उसने सोचा कि वह अब उस संसार में नहीं है जहाँ वादे तोडे जा सकते हैं। वह अब एक ऐसे युग में है जहाँ वचन सबसे बडा होता है।
युवान मुस्कराते हुए नागमणि नागरानी को दे देता है। नागरानी की आँखें भर आईं। अब वह नागमणि उसके पास थी, जो अब तक एक मायावी लॉकेट में बंद थी, जिसे वह देख भी नहीं सकती थी।
अब जादू टूट चुका था। नागरानी ने आँखों ही आँखों में युवान को धन्यवाद कहा और वहाँ से अदृश्य हो गई।
उसके जाने के बाद चारों ओर फिर से हर्षोल्लास छा गया। सब जगह सेनापति युवान की जय- जयकार होने लगी। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने महाराज से कहा कि वह तुरंत महल जाना चाहता है, क्योंकि उसकी माता मूर्छित हो गई थीं।
महाराज ने पीठ थपथपाते हुए कहा, हमें तुम पर गर्व है सेनापति युवान। तुमने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए पूरे राज्य को इस संकट से बचा लिया। हमारी सेना में तुम सबसे श्रेष्ठ हो। और रही बात तुम्हारी माता श्री की, तो चिंता मत करो, हमने सैनिकों को उनके पास भेज दिया है। वे राजवैद्य को लेकर वहाँ जा चुके हैं।
यह सुनकर युवान ने राहत की साँस ली। तभी उसे महसूस हुआ कि कोई उसे गहराई से देख रहा है। उसने मुडकर देखा तो पाया कि राजकुमारी संयोगिता, आँखों में ढेर सारा प्रेम लिए, उसके ठीक पीछे खडी थी।
युवान मन ही मन सोचने लगा—कितनी सुंदर है वह। लेकिन यह प्रेम वह खुलकर नहीं कर सकता। उसने तय कर लिया कि चाहे जो हो, आज रात वह राजकुमारी को Kiss तो करकर ही रहेगा।
भव्य सम्मान समारोह के बाद वे सब महल लौट आए। अब महाराज अभिमन्यु ने दरबार लगाया और एक से बढकर एक ज्ञानी एवं राजगुरु उसमें उपस्थित हुए।
वहीं राजगुरु, चिन्मय जो महाराज से ईर्ष्या रखता था, किसी भी हाल में महाराज की जान लेना चाहता था...
क्योंकि महाराज अभिमन्यु ने अपने समय में काफी युद्ध लडे थे और उन्होंने उसी समय राजगुरु चिन्मय के राज्य को भी अपना गुलाम बना लिया था। वहाँ के युवराज चिन्मय को उन्होंने अपने दरबार का राजगुरु घोषित कर दिया था, क्योंकि चिन्मय ने अपने प्राणों की भीख माँगी थी।
लेकिन अंदर ही अंदर उसकी नफरत आज तक खत्म नहीं हुई थी। भले ही वह कितने भी वर्षों से राजवंश के लिए कार्य कर रहा हो, लेकिन आज तक वह अपने भीतर की नफरत को समाप्त नहीं कर पाया था। इसका एक प्रमुख कारण यह भी था कि महारानी गायत्री, जिनका विवाह महाराज अभिमन्यु से हुआ, पहले कालवंश के युवराज चिन्मय के साथ तय हो चुका था। युवराज चिन्मय महारानी गायत्री का चित्र देख चुका था और मन ही मन उन्हें पसंद करने लगा था।
लेकिन जिस समय महाराज अभिमन्यु ने कालवंश पर आक्रमण कर वहाँ के लोगों को बंदी बना लिया, तब युवराज चिन्मय के पास अपनी जान बचाने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। उसने राजवंश में कार्य करने का प्रस्ताव महाराज अभिमन्यु के सामने रखा, जिसे महाराज ने स्वीकार कर लिया। क्योंकि युवराज चिन्मय न केवल वैभवशाली था, बल्कि एक बडा ज्ञानी भी था, इसीलिए महाराज को लगा कि उससे उनके राज्य को लाभ होगा।
उन्होंने यह सोचकर चिन्मय को अपने साथ रख लिया, लेकिन उन्हें इस बात का तनिक भी आभास नहीं था कि कालवंश पर आक्रमण से पहले महारानी गायत्री का विवाह कालवंश के युवराज के साथ तय हुआ था। यद्यपि गायत्री ने कभी भी कालवंश के युवराज को देखा नहीं था।
फिलहाल, तभी अचानक महाराज की एक खतरनाक आवाज वहाँ गूंजी, और वह सभी दरबारियों की ओर देखकर बोले, आज हमारे राज्य पर इतना बडा प्राणघातक हमला हुआ है। मैं पूछता हूँ कि आखिर आप लोगों को इस हमले की कोई सूचना पहले क्यों नहीं मिली? जब एक से बढकर एक विद्वान, ज्ञानी और योद्धा इस दरबार में उपस्थित हैं, तब यह हमला कैसे हो गया? अगर आज सेनापति युवान हमारे साथ न होते, तो हम में से कोई भी जीवित न बचता। पूरा राज्य उस राक्षसी के अधीन हो जाता।
यह कहते हुए महाराज की आँखें क्रोध से लाल हो गई थीं।
वहीं सेनापति युवान, बडे ही धैर्य के साथ बैठा हुआ, सारी बातों को ध्यान से सुन और समझ रहा था। वह आसपास के वातावरण, वहाँ की भाषा, लोगों की बोली, और वहाँ Kiss प्रकार के कार्य होते हैं—इन सब बातों को समझने की चेष्टा कर रहा था। इसीलिए वह शांत था।
हालाँकि बार- बार उसकी नजर राजकुमारी की ओर फिसल रही थी, लेकिन फिर भी स्वयं पर नियंत्रण रखे वह महाराज की बातों को ध्यान से सुनने लगा।
अभी ये सारी बातें चल ही रही थीं कि तभी महाराज ने कठोर स्वर में आदेश दिया.
14
अभी ये सारी बातें चल ही रही थीं कि तभी महाराज ने कठोर स्वर में आदेश दिया
आखिरकार आप लोग जवाब क्यों नहीं दे रहे हो?
हमें अपने प्रश्नों का उत्तर चाहिए!
इस तरह से आप मौन धारण नहीं कर सकते।
तब महाराज की बात सुनकर एक ज्ञानी, क्योंकि वे काफी बडे ज्ञानी थे, वहां से उठ खडे हुए और हाथ जोडकर महाराज की ओर देखकर बोले,
हमें क्षमा कीजिए महाराज। हमें वाकई इस अनहोनी के बारे में कोई भी अंदाजा नहीं था। हमें नहीं पता था कि पूरा का पूरा राज्य पर इतना बडा —— हमला हो जाएगा। और जिस तरह से वह नागरानी ने किसी ‘ चांडालनी’ का जिक्र किया है, उसके बारे में भी हम कुछ पता नहीं लगा पा रहे हैं। लेकिन. एक मनुष्य है, जो कि इसके बारे में हमें जरूर कुछ न कुछ बता सकता है।
अब जैसे ही उस दूर की सोच रखने वाले ज्ञानी ने यह कहा, सब लोग हैरानी से उनकी ओर देखने लगे। तभी महाराज जल्दी से बोले,
कौन है वह? जल्दी से नाम बताइए उनका! आप इस तरह से बातें क्यों घुमा रहे हैं?
महाराज की बात सुनकर, उसने अपने दोनों हाथों को जोडकर कहा,
आप अच्छी तरह से जानते हैं कि हम किसकी बात कर रहे हैं। हम किसी और की नहीं, बल्कि महागुरु ईश्वरआनंद की बात कर रहे हैं।
अब जैसे ही महागुरु ईश्वरआनंद का नाम लिया गया, सब लोग हैरानी से एक- दूसरे की शक्ल देखने लगे। वहीं सेनापति युवान के कान भी खडे हो गए, क्योंकि उसे यह नाम कुछ जाना- पहचाना सा लग रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिरकार यह महागुरु ईश्वरआनंद कौन हैं।
तभी अचानक महाराज की कठोर वाणी वहां सुनाई दी,
महामंत्री! आप हमारे साथ उपहास करना चाहते हैं? आपकी यह चेष्टा कैसे हुई हमारे साथ उपहास करने की? आप अच्छी तरह से जानते हैं कि महागुरु ईश्वरआनंद जी कभी भी दरबार में नहीं आएंगे। बरसों से वे समाधि लिए हुए हैं।
यह सुनकर तो सबके चेहरों से पसीना बहना शुरू हो गया। तभी वह महामंत्री तुरंत अपने दोनों हाथों को जोडकर बोला,
हम जानते हैं महाराज, लेकिन इस वक्त हमें महागुरु ईश्वरआनंद की दूरदर्शिता ही बचा सकती है। क्योंकि आज तो' चांद डालने' के नाम पर नागरानी के रूप में इतना बडा हमला राज्य पर हुआ है, और अगर धीरे- धीरे इसी तरह सब चलता रहा, तो वह दूसरा भी प्रहार कर सकती है। हमें उससे पहले तैयार रहना होगा। हमें महागुरु की दूरदर्शिता की आवश्यकता जरूर पडेगी। हमें कुछ भी करके उन्हें तपस्या से जागृत करना होगा।
अब महामंत्री की यह बात सुनकर राजा पूरी तरह से हैरान हो गया। वहीं सेनापति युवान भी यह सोचने लगा कि आखिरकार यह Kiss महागुरु की बात हो रही है? कौन हो सकते हैं यह इतने बडे महागुरु, जो इन लोगों की मदद कर सकते हैं?
इतना तो वह समझ चुका था कि इस राज्य में जादू- टोना, नाग- नागिन, यह सब सामान्य बात है। शायद इसीलिए इतना बडा हमला हुआ है। और वापस से कोई हमला न हो, इसी बात को लेकर महाराज अभिमन्यु काफी ज्यादा चिंतित थे।
फिलहाल महाराज अभिमन्यु को चिंता में देखकर राजकुमारी संयोगिता के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें उभर आईं। वह तुरंत खडी हुई और अपना हाथ ऊँचा करके बोली,
पिताजी महाराज, आप हमें आज्ञा दीजिए। हम महागुरु ईश्वरआनंद को लाने के लिए जाना चाहती हैं। कृपया हमें इजाजत दीजिए।
अब जैसे ही राजकुमारी संयोगिता ने यह कहा, सभी दरबारियों ने एक- दूसरे की ओर देखने लगे। दरबार में एक से बढकर एक योद्धा मौजूद थे, लेकिन अब इस तरह से राजकुमारी के कहने पर सबने अपना सिर झुका लिया।
वहीं सेनापति युवान के चेहरे पर हैरानी के भाव थे। पहले तो वह समझ नहीं पा रहा था कि यह महागुरु कौन हैं, लेकिन इतना तो जान गया था कि अगर राजकुमारी स्वयं उन्हें लाने के लिए तैयार हो रही है, तो वह निश्चय ही कोई विशेष व्यक्ति होंगे।
वह महाराज के सामने झुककर बोला,
महाराज, राजकुमारी संयोगिता अकेली नहीं जाएगी। हम भी उनके साथ जाएंगे।
अब जैसे ही उसने दरबार की भाषा और परंपरा के अनुरूप यह कहा, सभी लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। महाराज अभिमन्यु के चेहरे पर भी प्रसन्नता दिखी। वे तुरंत खडे होकर बोले,
हमें पूरा विश्वास था सेनापति युवान कि आपके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है। जब आप इतनी शक्तिशाली नागरानी से युद्ध करके उसे पराजित कर सकते हैं, तो आप महागुरु ईश्वरआनंद को भी लाकर रहेंगे। हमें पूरी उम्मीद है कि आप विजयी होंगे। आप और राजकुमारी संयोगिता आज ही शाम को जाने की तैयारी कीजिए।
यह कहकर उन्होंने तत्काल सभा को बर्खास्त कर दिया।
वहीं राजगुरु इस समय पूरी तरह गुस्से में सेनापति युवान की ओर देख रहा था। कहाँ तो उसने योजना बनाई थी कि वह सेनापति विक्रम से राजकुमारी का विवाह करवा देगा, और फिर राजनीति के माध्यम से महाराज की हत्या कर, स्वयं सिंहासन पर बैठ जाएगा!
क्योंकि कालवंश राज्य का युवराज, जो अब राजगुरु था, उसने अपनी पूरी उम्र राजवंश को भेंट की थी. लेकिन वह भेंट श्रद्धा नहीं, बल्कि नफरत से भरी थी। उसकी नफरत अब सीमा पार कर चुकी थी।
उसने तो यह सोचा था कि राजकुमारी का विवाह सेनापति विक्रम से करवाकर, फिर उसकी मां गायत्री से स्वयं विवाह करेगा, और महाराज का वध करके खुद राजा बनेगा। लेकिन अब उसका पूरा षड्यंत्र ध्वस्त हो गया था।
क्योंकि जिस तरह सेनापति युवान ने नागरानी से युद्ध कर पूरे राज्य की रक्षा की थी, उससे अब सब जान चुके थे कि सेनापति को हराना आसान नहीं होगा।
राजगुरु सोच रहा था कि यह सब कैसे हो गया? सेनापति युवान जब से राज्य में आया है, तब से ही उसने और सेनापति विक्रम ने उसे नीचा दिखाने की हरसंभव कोशिश की थी। लेकिन महाराज उसे काफी पसंद करने लगे थे, जो इन दोनों को रास नहीं आ रहा था।
फिर भी युवान ने हमेशा अपना सिर झुकाकर सबका आदर किया। किसी का अपमान नहीं किया, किसी की अवज्ञा नहीं की। लेकिन अब. अब उसके चेहरे पर सिर्फ और सिर्फ कर्तव्य की गंभीरता थी।
अब वह किसी के सामने सिर नहीं झुकाता था। उसका आत्मबल बढता जा रहा था।
यह देखकर सभा से उठते हुए राजगुरु ने अपने हाथ की मुठ्ठियाँ कस लीं। उसके नाखून उसकी हथेली में धँस गए, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पडा। अब वह तय कर चुका था कि वह कुछ ना कुछ करके आज रात को ही महाराज अभिमन्यु का वध कर देगा।
वहीं दूसरी ओर, राजकुमारी संयोगिता प्रसन्न थी कि उनके पिता ने उन्हें महागुरु को लाने का कार्य सौंपा। शायद इसका एक कारण यह भी था कि महाराज अभिमन्यु के बाद राज्य की जिम्मेदारी संयोगिता या उसके भावी जीवनसाथी को ही मिलनी थी।
इसीलिए उन्होंने संयोगिता को तलवारबाजी, घुडसवारी, राजनीति, तंत्र—सब कुछ सिखाया था।
महाराज ने उसे जाने की अनुमति दी थी, क्योंकि यह राज्य और प्रजा की भलाई के लिए था।
अब महाराज अपनी पत्नी गायत्री के साथ अपनी बेटी के कक्ष की ओर चल पडे। भले ही उन्होंने अनुमति दे दी थी, पर वे जानते थे कि महागुरु यदि क्रोधित हुए तो वे राजकुमारी को श्राप भी दे सकते हैं।
राजकुमारी तैयार हो रही थी। उसने योद्धा जैसे वस्त्र पहने, और आज एक भी आभूषण नहीं धारण किया।
वहीं दूसरी ओर, सेनापति युवान भी महल में अपनी तैयारी कर रहा था। उसकी मां, जो नागरानी को देखने के बाद बेहोश हो गई थीं, अभी भी पूरी तरह स्वस्थ नहीं थीं। राजवैद्य ने उन्हें कुछ दिन विश्राम की सलाह दी थी।
लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि उनका बेटा महागुरु ईश्वरआनंद को जगाने जा रहा है, वे पूरी तरह बेचैन हो उठीं.
क्योंकि वह महागुरु को अच्छी तरह से जानती थी। एक समय में वह उनकी सबसे प्रिय शिष्या थी। इस बात के बारे में आज तक किसी को भी नहीं पता था। लेकिन अब जैसे ही उन्हें इस बात के बारे में पता चला कि उनका बेटा उनके महागुरु के पास जा रहा है, तो वह पूरी तरह से व्याकुल हो उठीं और अपनी बेटी यशिका की सहायता से वह सीधा अपने बेटे के पास पहुँचीं।
अब जल्दी ही युवान ने आगे बढकर अपनी मां का हाथ थाम लिया था। वह बोला था, मां, आपको इस तरह से मेरे पास आने की क्या जरूरत थी? आप एक बार आदेश दे देतीं, मैं खुद आपके पास आ जाता। आपकी तबीयत अभी बिल्कुल भी ठीक नहीं है और वेद जी ने आपको आराम करने के लिए कहा है।
जैसे ही युवान ने यह कहा, तब जल्दी से मुस्कुराकर उन्होंने अपने बेटे के सिर पर हाथ रख दिया था और हल्की सी मुस्कुराहट के साथ बोली थीं, मेरे बच्चे, मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि तुम्हें हमारी कितनी ज्यादा चिंता है। लेकिन हमने सुना है कि तुम इस वक्त कहीं और नहीं, बल्कि. महागुरु. ईश्वरआनंद को तपस्या से जगाने के लिए जा रहे हो। क्या यह बात सत्य है?
यशिका ने यह बात अपनी मां को बताई थी, क्योंकि यह बात पूरे के पूरे राज्य में फैल चुकी थी कि अब अगर राज्य को बचाना है, तो उसके लिए महागुरु ईश्वरआनंद की दूरदर्शी दृष्टि की जरूरत पडेगी। महागुरु की आने वाले संकटों से राज्य को बचा सकते हैं और पहले से ही सूचित कर सकते हैं।
अब यह सुनकर कि उसकी मां को यह सब पता चल गया है, उसने हल्का सा झुककर अपनी मां को प्रणाम करते हुए कहा था, हां मां, लेकिन उसके लिए मुझे आपका ढेर सारा आशीर्वाद चाहिए, क्योंकि मैं अपने किसी भी Mission में फेल नहीं होना चाहता हूं।
अब जैसे ही बोलते- बोलते उसने एक बार फिर अपनी आधुनिक भाषा का प्रयोग कर दिया, अब तो यशिका और यशस्वी एक- दूसरे की शक्ल देखने लगी थीं। वहीं जल्दी ही जब युवान को इस बात का एहसास हुआ कि उसने फिर आधुनिक भाषा का इस्तेमाल कर दिया है, तो वह तुरंत अपने सिर पर हाथ रखकर बोला था, मां, मुझे क्षमा कर दीजिएगा। जब से कालकोठरी से बाहर आया हूं, मैं ठीक से अपने शब्दों को व्यक्त नहीं कर पा रहा हूं। मुझे पूरी उम्मीद है कि आप इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देंगी।
sir पर हाथ रखते हुए उन्होंने कहा था, मेरे बच्चे, हम अच्छी तरह से जानते हैं कि तुम हमारे लिए क्या हो। और तुम बिल्कुल भी परेशान मत हो। मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम जरूर कामयाब होकर आओगे। लेकिन महागुरु ईश्वरआनंद के पास जाने से पहले हम तुम्हें उनके बारे में कुछ बताना चाहते हैं।
जैसे ही यशस्वी जी ने यह कहा, अब युवान के चेहरे पर रहस्यमय भाव आ गए थे और वह सोचने लगा था — क्या युवान की मां महागुरु ईश्वरआनंद को पहले से जानती हैं? क्योंकि जिस आत्मविश्वास से वह बातें कर रही थीं, इसका मतलब साफ था कि वह उनके बारे में काफी कुछ अच्छी तरह से जानती हैं।
अब तो युवान को यह सोने पर सुहागा लगने लगा था, क्योंकि पहले ही वह यही सोच- सोच कर परेशान हो रहा था कि आखिर ऐसा कौन- से लोग हैं जिनके लिए इतना ज्यादा काम किया जा रहा है। और किसी बडे- बडे योद्धाओं ने भी वहाँ जाने के लिए हाँ नहीं कहा। सिर्फ राजकुमारी संयोगिता ने वहाँ जाने के लिए हाँ कहा।
तो फिर आखिरकार यह कौन हैं? क्योंकि भले ही राजकुमारी के चक्कर में युवान ने वहाँ जाने के लिए हाँ कह दिया था, लेकिन जिस जगह और जिस इंसान के बारे में वह कुछ नहीं जानता, उस इंसान के पास जाकर क्या बात करेगा? यही बात उसे परेशान कर रही थी।
फिलहाल युवान की मां के इस तरह से बोलने पर अब तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। वह आगे बढकर अपनी मां को गले से लगा लिया था, उनके माथे को चूम कर बोला था, अरे मां, मैं तो बडी उलझन में था! मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वहाँ जाकर मैं श्री महागुरु ईश्वरआनंद जी से Kiss तरह से बातें करूंगा, Kiss तरह से उन्हें अपना पॉइंट ऑफ व्यू समझाऊंगा। लेकिन आप. आप सच में ग्रेट निकलीं! प्लीज. प्लीज. आप मुझे सारी इन्फॉर्मेशन दे दीजिए कि आखिरकार वह कौन हैं, क्या करते हैं और उन्हें Kiss बात से गुस्सा आ जाता है?
क्योंकि राज्य में मैंने सुना है कि अगर उन्हें किसी बात पर गुस्सा आ जाए, तो वह किसी को भी बडा ही घातक श्राप तक दे देते हैं! तो प्लीज. प्लीज, आप मेरी मदद कर दीजिए!
अब एक बार फिर जैसे ही भावविभोर होकर सेनापति युवान ने आधुनिक भाषा का इस्तेमाल किया, अब तो यशस्वी और यशिका दोनों ही मां- बेटी एक- दूसरे की ओर शक की नजरों से देखने लगी थीं।
वहीं यशिका तुरंत ही अपनी मां के कानों में सरगोशी करते हुए बोली थी, मां, आपको ज्यादा कुछ सोचने की कोई जरूरत नहीं है। आप अच्छी तरह से जानती हैं कि भैया कितने ही दिनों तक एक कडी अंधेरी कालकोठरी में रहकर आए हैं, जिसकी वजह से शायद उनके मस्तिष्क पर इसका गहरा दुष्प्रभाव पडा है। इसीलिए वह अपने शब्दों को सही से व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन हमें इस वक्त उनके साथ रहना होगा। हमें बिल्कुल भी उनकी इस कमी को उनके सामने जाहिर नहीं करना है कि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं।
यशिका की बात सुनकर उसकी मां भी उसकी हाँ में हाँ मिलाने लगी थीं। कहीं ना कहीं दोनों मां- बेटी को लग रहा था कि उनका बेटा बार- बार बीच में इस तरह की उटपटांग बातें करता है, तो जरूर वह पागल हो गया है — और इसीलिए वह इस तरह की बातें करता है।
फिलहाल जल्दी ही यशस्वी जी ने आगे बढकर अपने बेटे के सिर पर हाथ रखा था और मुस्कुराकर कहा था, बेटा, तुम बिल्कुल भी परेशान न हो। मुझे पूरी उम्मीद है, बहुत जल्द तुम पूरी तरह से स्वस्थ हो जाओगे। और मानसिक आघात, जो कालकोठरी में रहने के पश्चात तुम्हें पहुँचा है — वह धीरे- धीरे तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
फिलहाल तुम मेरी बात ध्यान से सुनो। मैं तुम्हें महागुरु ईश्वरआनंद के बारे में कुछ बताना चाहती हूं।
यह बोलकर जल्दी ही उन्होंने यशिका को वहाँ से जाने का इशारा किया और युवान के कानों में इस तरह से बातें बताना शुरू कर दी थीं, ताकि कोई और उनकी बात न सुन ले।
15
फिलहाल अभी सारी बातें सुनकर, कहीं ना कहीं युवान के चेहरे पर एक छोटी- सी संतुष्टि वाली मुस्कुराहट थी कि चलो, थोडा बहुत तो उसे गुरु के बारे में पता चल गया। वरना बिल्कुल बिना गुरु को जाने, वह वहाँ जाता तो लेने के देने पड सकते थे।
फिलहाल तो अब वह इसी बात से खुश था कि राजकुमारी उसका इंतजार कर रही होगी, और वह राजकुमारी के साथ ही सफर पर जाने वाला था। इस बात की उसे सबसे ज्यादा खुशी थी। उसे ऐसा फील हो रहा था मानो कि वह किसी राजकुमारी को लेकर डेट पर जा रहा हो। हालांकि उसकी डेट उसे खुद नहीं पता कि जंगलों में होने वाली थी या फिर कहीं और होने वाली थी, इसलिए वह फटाफट से अपनी मां का आशीर्वाद लेकर और साथ ही साथ देव को अपनी मां–बहन की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंप कर महल की ओर जाने लगा था।
वहीं दूसरी ओर महारानी गायत्री और महाराज अभिमन्यु अपनी बेटी के समक्ष मौजूद थे। उन्होंने एक बार फिर अपनी बेटी से कहा था कि उस पर किसी भी तरह का जोर नहीं है, वह चाहे तो पीछे भी हट सकती है। वैसे भी वह इस राज्य की होने वाली महारानी है, तो वह जो भी फैसला लेगी, वह पूरी तरह से मान्य होगा।
तब जल्दी ही संयोगिता ने अपने पिता की ओर देखा था और बडे ही प्रेमपूर्वक बोली थी, क्या पिताजी, क्या आपको हम पर संदेह हो रहा है? या आपको हमारी योग्यता पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है? शायद आप भूल रहे हैं, आपने हमारा नाम ही संयोगिता रखा है, जिसके पास योग्यता की बिल्कुल भी कमी नहीं है। और हम आपको वादा करते हैं कि हम आपको बिल्कुल भी शर्मिंदा नहीं करेंगे और जितना हो सकेगा, हम पूरा प्रयास करेंगे महागुरु ईश्वरानंद को महल में वापस लेकर आने का। बस हमें आपका सिर्फ और सिर्फ विजय आशीर्वाद चाहिए — और हमें कुछ नहीं चाहिए।
यह बोलकर वह जल्दी ही अपने माता- पिता दोनों के सामने झुक गई थी, और महारानी गायत्री और अभिमन्यु ने जल्दी ही अपनी बेटी के सिर पर हाथ रख दिया था। अपनी बेटी की बहादुरी से, कहीं ना कहीं वे दोनों एक- दूसरे की ओर देखकर मुस्कुरा भी रहे थे।
फिलहाल, जल्दी ही संयोगिता की सेविका वहाँ आई थी और हल्का सा झुक कर महाराज–महारानी को प्रणाम करके बोली थी, सेनापति युवान बाहर राजकुमारी संयोगिता की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वह आज शाम को महागुरु ईश्वरानंद के प्रस्थान की ओर जाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
यह सुनकर संयोगिता के चेहरे पर एक छोटी- सी मुस्कान आ गई थी, जो कि महारानी ने देख ली थी। महारानी गायत्री के दिल में एक अजीब सी हलचल हो गई थी कि कहीं उनकी बेटी सेनापति युवान की ओर आकर्षित तो नहीं है। लेकिन बिना साक्ष्य, बिना सच्चाई जाने, वह इस तरह से अपनी बेटी से कोई सवाल भी नहीं कर सकती थीं। इसलिए उन्होंने सबसे पहले सच जानने का निर्णय लिया था।
फिलहाल, जल्दी ही अपने माता- पिता का आशीर्वाद लेकर संयोगिता सेनापति युवान के सामने मौजूद थी। जैसे ही सेनापति युवान ने योद्धा के रूप में संयोगिता को देखा, तो वह उसे देखता ही रह गया। कहीं ना कहीं, उसे जोधा अकबर की जोधा याद आ गई थी। वह सोचने लगा था कि वह अकबर बादशाह है और उसके सामने खडी हुई राजकुमारी संयोगिता उसकी जोधा है — जिनमें काफी हद तक बहुत ज्यादा प्रेम था।
और जोधा अकबर मूवी में सेनापति युवान, यानी आधुनिक युग के अर्जुन ने, अच्छी तरह से उनकी पूरी हिस्ट्री, मूवी वगैरह सब कुछ देखा था। तो कहीं ना कहीं, वह अजीब- सी फीलिंग लेने लगा था। वह सोचने लगा था कि ज्यादातर रिषि- मुनि जंगल में प्रवास करते हैं, तो जरूर अब वह भी जंगल के रास्ते से जाएगा और रास्ते में दोनों के बीच" जंगल में मंगल" भी हो सकता है।
इसीलिए सोच कर सेनापति युवान कुछ अलग ही तरह के प्लान बनाने लगा था। उसने सोचा कि वह और संयोगिता दोनों अकेले ही वहाँ जाने वाले हैं। लेकिन जैसे ही उसने देखा कि कम से कम सौ घुडसवार और सौ से, अधिक बडे- बडे योद्धा भी उन लोगों के साथ जाने वाले थे, अब तो सेनापति युवान का दिमाग पूरी तरह से चकरा गया था।
वह सोचने लगा था, यह सब क्या हो रहा है? इतने सारे लोगों को पहले से महागुरु को लेकर जाने की क्या जरूरत है? महागुरु के लिए भी अलग से एक बडा ही खूबसूरत सा घोडा तैयार किया गया था, क्योंकि महागुरु को केवल घोडे की सवारी करना ही बेहद पसंद था।
उनके लिए उन्हीं के अनुकूल बहुत ही अच्छे नस्ल का घोडा तैयार किया गया था, जो कि बेहद सुंदर था। घोडे का रंग पूरी तरह से सफेद था और उसकी पूँछ बडी- बडी और चमकदार थी। उस घोडे को देखकर तो अब सेनापति युवान को जो भी उसने नोवेल्स में घोडों के बारे में पढा था, सब कुछ याद आने लगा था — कि घोडा हवा से भी तेज दौड सकता है।
वह सोचने लगा कि क्या वाकई ये घोडा भी हवा से तेज दौड सकता है? लेकिन वह यह बात किसी से पूछ नहीं सकता था, क्योंकि अगर वह यह पूछता तो सब को उस पर शक हो सकता था। फिलहाल उसने इस सवाल को अपने मन में ही मार लिया था।
जैसे ही उसने देखा कि राजकुमारी दूसरे घोडे पर बैठकर जाने वाली है, तो उसे काफी बुरा लगा था। उसने तो सोचा था कि राजकुमारी को अपने साथ, अपने घोडे पर बैठाकर लेकर जाएगा। लेकिन यहाँ तो सब कुछ पूरी तरह से अलग था।
फिलहाल, जल्दी ही वह भी बाकी की सेना का अनुसरण करते हुए आगे बढने लगा था। लेकिन अब उसे समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि उसने तो जिंदगी में कभी घुडसवारी नहीं की थी। लेकिन जैसे ही वह घोडे के ऊपर बैठा, तो अपने आप ही उसके हाथ घोडे की लगाम तक पहुँच गए। और वह बहुत अच्छी तरह से घुडसवारी करने लगा था।
उसे इस बात की काफी हैरानी भी हुई थी। वह सोचने लगा था कि भले ही उसकी आत्मा घोडा चलाना नहीं जानती हो, लेकिन इस वक्त उसकी आत्मा जिस शरीर में है, वह अच्छी तरह से युद्धकला, घोडा चलाना, अच्छा सवार बनना और भी कई कलाओं में निपुण था।
तो इसका मतलब साफ था — यहाँ पर सेनापति युवान का शरीर उसकी पूरी तरह से सहायता कर रहा था।
फिलहाल, अब सेनापति युवान ने अच्छी तरह से उस शरीर का इस्तेमाल करते हुए घोडा चलाना शुरू कर दिया था। और जैसे ही घोडा तेजी से दौडने लगा, वह देखकर पूरी तरह से हैरान था। उसने सोचा था कि घोडा आराम से, टुकुर- टुकुर चलेगा, लेकिन यहाँ तो घोडा पूरी पाँचG की स्पीड से दौड रहा था!
तो उसकी हैरानी की इस वक्त कोई सीमा नहीं थी। लेकिन जैसे ही उसकी नजर राजकुमारी पर पडी, जो कि बडी ही सज्जता के साथ घुडसवारी कर रही थी, और उस वक्त बडी खूबसूरत लग रही थी — तो वह पूरी तरह से राजकुमारी में डूब गया था।
इस वक्त उसके मन, उसकी आत्मा और उसके शरीर में एक तूफान- सा चल रहा था। लेकिन अब जैसे- जैसे वे लोग आगे बढ रहे थे, अचानक अजीब- सी आवाजें आनी शुरू हो गई थीं।
अब यह सुनकर तो उसकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। वह सोचने लगा था, ये अजीब सी आवाजें कैसी आ रही हैं? तभी उसने एक सैनिक की ओर देखकर पूछा था, सैनिक, ये आवाजें कैसी आ रही हैं?
अब वह सैनिक सेनापति युवान को इस तरह से देखने लगा, मानो कि उसने कोई अजूबा देख लिया हो।
वहीं सेनापति युवान सोचने लगा कि उसने तो सैनिक से बस एक सवाल किया है, ये उसे इस तरह क्यों देख रहा है, मानो उसने कोई बहुत ही अजीब सवाल पूछ लिया हो?
फिलहाल, जल्दी ही सैनिक ने अपना घोडा रोकते हुए कहा था, सेनापति y, हम इस वक्त भीमराज्य की सरहद को पार कर रहे हैं, और भीमराज्य में इस वक्त औरतों के साथ Kiss प्रकार का व्यवहार होता है — यह बात आप अच्छी तरह से जानते हैं।
सैनिक ने जैसे ही कम शब्दों में यह बताया, युवान का चेहरा इस रहस्य से काफी हद तक हैरान हो चुका था। वह सोचने लगा था कि यह भीमराज्य क्या चीज है, और यहाँ पर औरतों के साथ ऐसा क्या होता है कि इतनी भयानक आवाजें वहाँ से आ रही हैं?
तभी उसके साथ- साथ एक योद्धा करणवीर की आवाज वहाँ आई थी, और वह थोडी सी तेज आवाज में बोला था, सभी के सभी सतर्क हो जाओ, इस वक्त हम भीमराज्य को पार कर रहे हैं। और राजकुमारी को चारों तरफ से घेर लो, उनकी सुरक्षा में इतनी- सी भी चूक नहीं होनी चाहिए।
अब यह सुनकर तो युवान के माथे पर बल पड गए। वह सोचने लगा था, आखिरकार यह सब हो क्या रहा है? अगर भीमराज्य इतना ही खतरनाक है तो महाराज अभिमन्यु ने उसे अब तक समाप्त क्यों नहीं किया? और राजकुमारी पर उसका क्या खतरा हो सकता है?
फिलहाल, उसने गहरी सांस ली और सोचने लगा कि अगर उसने किसी से ज्यादा सवाल किया तो सब लोग उस पर संदेह कर सकते हैं। और इस वक्त वह किसी भी तरह के संदेह में नहीं आ सकता था। इसलिए वह भी तुरंत, अब उस योद्धा की हामी भरते हुए बोला था, हाँ, हाँ! जल्दी ही सबके सब राजकुमारी को अच्छी तरह से घेर लो और एक सुरक्षा चक्र राजकुमारी के आसपास बना दो।
तभी युवान खुद को रोक नहीं पाया और उसने उस सैनिक से एक बार फिर पूछा था, सैनिक, हमें इतना घबराने की क्या जरूरत है? और हमें राजकुमारी की सुरक्षा इतनी बढाने की क्या जरूरत है — जब हम जैसे वीर यहाँ मौजूद हैं?
तभी वह सैनिक हैरानी से एक बार फिर सेनापति युवान की ओर देखकर बोला था, सेनापति जी, शायद आप भूल रहे हैं कि भीमराज्य में कितने खतरनाक राक्षस रहते हैं। उनसे लडना किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है। शायद आपको याद नहीं कि महाराज अभिमन्यु ने एक बार उनसे लडने की कोशिश की थी और महागुरु ईश्वरानंद की ही दूरदर्शिता में उन्होंने भीमराज्य पर एक ऐसा जादू करवाया था, जिसके बदौलत वे कभी भी, राजवंश पर हमला नहीं कर सकते हैं।
वही भीमराज्य की सरहद पर खामोशी का एक डरावना साया पसरा हुआ था। सूखी हवाएं पेडों की शाखाओं से टकराकर सिसकियाँ भरती जान पडती थीं, मानो कोई अदृश्य प्रेत अपना विलाप गा रहा हो। यह वही भीमराज्य था जहाँ आज तक कोई बाहरी योद्धा बिना भय के नहीं टिका — और जहाँ की भूमि पर राक्षसों का शासन था।
युवान को सैनिकों की बातचीत से जब यह ज्ञात हुआ कि इन राक्षसों को आज तक कोई पराजित नहीं कर सका, तो वह ठिठक गया। उसने सुना था कि सिर्फ महापुरुष ईश्वरआनंद ने एक प्राचीन मूल मंत्र के बल पर इन राक्षसों को बाँध दिया था। तभी से वे अपनी सीमाओं के भीतर ही कैद हैं। परंतु भीमराज्य की एक क्रूर सच्चाई यह थी — वहाँ स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। यह बात सभी जानते थे, फिर भी कोई वहाँ जाकर उनका सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
यह जानकर युवान भीतर से कांप गया, पर बाहर से वह स्थिर बना रहा। वह समझ गया कि अभी बात बहुत गंभीर है। सरहद पर बढते हुए उसने गहरी सांस ली और आदेश दिया,
यहाँ से जितना जल्दी हो सके, हमें प्रस्थान करना चाहिए। हमें किसी भी रुकावट में नहीं फँसना चाहिए।
यह उसके भीतर के अर्जुन की पुकार थी — वह जानता था कि महाराज अभिमन्यु ने उसे एक लक्ष्य दिया है, और उसे उसी पथ पर अडिग रहना है। वह नहीं चाहता था कि अनावश्यक संकटों में पडकर अपनी और राजकुमारी की जान को खतरे में डाले।
सेनापति युवान के आदेश के बाद सबने गति बढा दी। सौभाग्य से, भीमराज्य के राक्षसों को उनकी उपस्थिति का आभास नहीं हो सका। परंतु जैसे ही राजकुमारी संयोगिता की सुंदर, दिव्य गंध सरहद को पार करती हुई लहराई — एक राक्षस ने उसे महसूस किया। उसने अपना सिर उठाया... पर तब तक सब बहुत देर हो चुकी थी। राजकुमारी का कारवां भीमराज्य की सीमा पार कर चुका था।
राक्षसों ने एक निर्णय लिया —
यदि यह मार्ग चुना गया है, तो वापसी भी इसी मार्ग से होगी।
वे वहीं छिपकर इंतजार करने लगे — जैसे कोई पिशाच चाँद की पहली किरण का इंतजार करता हो।
दूसरी ओर, राजकुमारी संयोगिता का चेहरा आशा और श्रद्धा से दमक रहा था। वे एक तपस्वी से मिलने जा रही थीं — कोई साधारण नहीं, बल्कि महापुरुष ईश्वरआनंद, जिनकी महिमा बचपन से उन्होंने केवल कहानियों में सुनी थी।
वे जानती थीं कि महागुरु ने राज्य की सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। किंतु राजकुमारी के जन्म से पहले ही उन्होंने एक विशेष समाधि ली थी — एक ऐसी ध्यानावस्था, जिससे बाहर लाना किसी सामान्य प्रयास का परिणाम नहीं हो सकता।
अब दो दिन की लगातार यात्रा के बाद, उनका कारवां एक वीरान, खंडहर जैसी भूमि में पहुँचा — जहाँ कहीं दूर पुराने काल की दीवारें सिर झुकाए खडी थीं, जैसे वे स्वयं महापुरुष की तपस्या का पहरेदार बनी हों।
सेनापति युवान की हालत भी इस पडाव पर कमजोर हो चली थी। शरीर थक कर टूटा नहीं था, लेकिन भूख और जल की कमी ने उसकी शक्ति को भीतर ही भीतर चूस लिया था। वह जानता था कि अगर वह अपने कष्ट जाहिर करता, तो अन्य योद्धा भी विचलित हो सकते हैं। इसलिए उसने मौन साध लिया।
वहीं राजकुमारी संयोगिता भी, तपस्विनी भाव में, केवल जल के सहारे अब तक की यात्रा कर चुकी थीं।
तभी सेनापति युवान ने अपने कर्तव्यों के प्रति सजगता दिखाते हुए कहा,
जो फल- फ्रूट हम साथ लेकर आए हैं, कृपया उन्हें सभी को दे दिए जाएं।
सेनापति की यह बात सुनकर समस्त सैनिक चकित हो उठे। सब उसकी ओर देखने लगे जैसे किसी अनुशासन के विरुद्ध कुछ सुन लिया हो। राजकुमारी भी आगे आईं। उनके मुख पर आदर्शों की गंभीर छाया थी। उन्होंने सीधे सेनापति के पास जाकर कहा:
यह आप कैसी बातें कर रहे हैं, सेनापति युवान? आप भलीभांति जानते हैं — किसी भी योद्धा को जब तक उसका कार्य पूर्ण न हो, तब तक उसे कुछ भी खाने का अधिकार नहीं।
हम सब यहाँ एक महान कार्य के लिए आए हैं — महागुरु ईश्वरआनंद को समाधि से जगाने के लिए।
जब तक यह काम पूरा नहीं हो जाता, हममें से कोई भी कुछ नहीं खा सकता।
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हम में से कोई कुछ भी नहीं खा सकता है, चाहे इस कार्य को करने के लिए हमें पूरे 7 दिन ही क्यों न लग जाए। अब तो सेनापति युवान की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। वह मन ही मन सोचने लगा था कि यह सब क्या हो रहा है? ये लोग इतने दिनों तक बिना कुछ खाए-पिए कैसे रह सकते हैं?
उसे भी कोई विशेष भूख नहीं लग रही थी, लेकिन उसने सोचा कि दो दिनों तक लगातार चलने के बाद, उसे कुछ खा-पी लेना चाहिए। अब सेनापति युवान ने मन ही मन अपने दिमाग की बत्ती जलाना शुरू कर दिया और सोचने लगा कि आखिरकार ये लोग हैं कौन, जो कितने ही दिनों तक बिना खाना-पानी के जीवित रह सकते हैं?
तभी उसने अपने आधुनिक दिमाग का इस्तेमाल करते हुए, अपनी किताबों को खंगालना शुरू कर दिया था कि ऐसी कौन-सी जाति या प्रजाति थी, जो लगातार 7 से 8 दिनों तक बिना कुछ खाए-पिए जीवित रह सकती थी? और क्या उन्हें बिल्कुल भी भूख नहीं लगती थी? यह बात उसे हैरान कर रही थी।
फिलहाल, उसकी नज़र जल्दी से एक पुरानी किताब पर जा पहुँची, जो उसने काफी पहले पढ़ी थी। वहाँ उसने पढ़ना शुरू किया था कि एक राजवंश था – "कलवंश", और उसमें कितने ही उपवंशों के नाम लिखे हुए थे। उस राज्य के लोगों के लिए प्रतिज्ञा होती थी कि जब तक वे लोग अपना मकसद पूरा नहीं कर लेते, तब तक वे कितने भी दिनों तक खाना नहीं खाते थे।
अब जल्दी ही सेनापति युवान ने अपने आधुनिक दिमाग का उपयोग करते हुए यह देखना शुरू कर दिया था कि यह किस सदी की बात है। लेकिन अभी तक वह यह नहीं जान पाया था कि आखिर वह कौन-सी सदी में आकर अटका है।
फिलहाल, युवान को यह सोचते हुए देखकर राजकुमारी ने तुरंत उसका हाथ पकड़ कर झंझोड़ा था और उसकी ओर देखकर बोली थीं, "क्या बात है सेनापति? आप क्या सोच रहे हैं?"
तभी सेनापति युवान ने राजकुमारी की ओर देखकर कहा था, "राजकुमारी, आप अच्छी तरह से जानती हैं कि काल कोठरी में रहने के बाद हमारे मस्तिष्क में कुछ न कुछ विपरीत प्रभाव हुआ है, जिसकी वजह से शायद हम कुछ बातें भूल गए हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि आप उस समय हमारी सहायता करेंगी।"
तब संयोगिता ने बड़े ही प्यार से उसका हाथ थाम कर कहा था, "हम तो उम्र भर आपका साथ देने के लिए तैयार हैं, सेनापति युवान। हम सिर्फ और सिर्फ आपके हैं, तो आपको बिल्कुल भी परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है।"
यह सुनकर तो सेनापति युवान का दिल उछल कर बाहर आने को तैयार था, और वह सोचने लगा था कि अब तो चाहे उसे एक महीने भर खाना न मिले, वह राजकुमारी के साथ इसी तरह से जिंदगी गुज़ार सकता है।
फिलहाल, राजकुमारी संयोगिता ने अपने सैनिकों की ओर देखकर कहा था कि, "यहाँ से आगे का सफर हम स्वयं पैदल जाकर जाँचेंगे। इसीलिए सभी लोग अपने घोड़ों से उतर जाएँ। कुछ लोग सभी घोड़ों और अश्वों की रक्षा हेतु यहीं रुकेंगे, और हम तब तक आगे प्रस्थान करेंगे।"
राजकुमारी ने कहा था कि और कोई भी सैनिक उनके साथ नहीं जाएगा। सिर्फ सेनापति युवान और राजकुमारी संयोगिता ही आगे का सफर तय करेंगे।
यह सुनकर सभी सैनिक एक-दूसरे की शक्लें देखने लगे थे, लेकिन क्योंकि यह राजकुमारी का आदेश था, किसी ने भी उनके आदेश की अवहेलना नहीं की और सभी वहीं रुक गए।
वहीं सेनापति युवान सोचने लगा था कि इन खंडहरों को देखकर तो साफ पता चल रहा है कि यहाँ पर बड़े-बड़े जानवर भी निकल सकते हैं, और राजकुमारी ने तो सबको आदेश दे दिया है कि कोई भी उनके साथ आगे नहीं जाएगा! पता नहीं आगे क्या होने वाला है? इस राजकुमारी को कम से कम 24 सैनिक तो साथ ले ही लेने चाहिए थे, लेकिन फिलहाल ये बातें वह केवल मन में ही बोल सकता था। उसने राजकुमारी को कुछ नहीं कहा।
फिलहाल, वे दोनों अब आगे बढ़ने लगे थे। अब राजकुमारी धीरे-धीरे, बड़े ही साहसी तरीके से आगे बढ़ रही थीं। उनके चेहरे पर डर का नामोनिशान तक नहीं था।
वहीं सेनापति युवान के भीतर की आत्मा पूरी तरह से डरी हुई थी, लेकिन उसने अपने शरीर को इस प्रकार से सँभाल रखा था कि डर उसके चेहरे पर दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था।
फिलहाल, राजकुमारी संयोगिता जल्दी ही उन खंडहरों को पार करते हुए एक अजीब से कक्ष में जा पहुँची थीं, जहाँ पर पूरी तरह से सन्नाटा पसरा हुआ था। लेकिन इस अजीब से कक्ष के बीचों-बीच बड़ी-बड़ी दीवारें थीं और उनके आसपास पूरी तरह से मकड़ियों का जाल था।
बड़ी-बड़ी मकड़ियों ने छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े उस कक्ष में पैदा कर दिए थे। लेकिन उसके बीचों-बीच, अपनी आँखें बंद किए, तपस्या एवं समाधि में लीन, श्री महागुरु ईश्वर आनंद बैठे हुए थे...
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उनकी दाढ़ी इतनी लंबी हो चुकी थी कि पूरे के पूरे कक्ष में फैली हुई थी। एक पल को सेनापति युवान को लगा कि शायद मकड़ियों ने इस तरह का सफेद जाल चारों ओर फैला रखा है, क्योंकि वह काफी गंदी और धूल से सनी हुई थी। लेकिन असल में वह उनकी दाढ़ी थी। इस बात का उसे दूर-दूर तक कोई एहसास नहीं था।
तभी अचानक सेनापति युवान के दिमाग में विचार आया और उसने तलवार निकाल ली। उसने सोचा — "क्यों न यह धूल-मिट्टी पहले साफ कर दी जाए और उसके बाद महाराज तक पहुँचा जाए, क्योंकि महाराज तो उन्हें बहुत दूर बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं?"
लेकिन आसपास उनकी दाढ़ी, जो कि बहुत ही घनी और लंबी थी, चारों ओर फैली हुई थी। इससे उसकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। वहीं, राजकुमारी संयोगिता समझ चुकी थीं कि वह दाढ़ी है। लेकिन सेनापति युवान को तो वह मकड़ी का घना जाला लग रहा था।
फिलहाल, जैसे ही उसने अपनी तलवार निकालकर आसपास की धूल-मिट्टी और जाले साफ करने शुरू किए, तो संयोगिता के चेहरे पर एक डर दिखाई देने लगा। उसने तुरंत सेनापति युवान का हाथ पकड़ लिया और उसकी ओर देखकर बोली,
"यह क्या कर रहे हैं, सेनापति?"
राजकुमारी संयोगिता की आवाज़ में एक विचित्र भय और गूंजता हुआ सम्मान, दोनों था। सेनापति युवान ने जैसे ही अपनी तलवार आगे बढ़ाई थी, सहसा उसकी कलाइयाँ राजकुमारी ने थाम लीं।
"यह क्या कर रहे हैं, सेनापति युवान?" उसकी आँखों में भय नहीं, बल्कि चेतावनी की चमक थी।
"क्या...? मैं तो बस..." युवान ने हड़बड़ाकर कहा, "मैं समझा यह जाले और गंदगी हैं... इनसे महाराज ईश्वर आनंद का दर्शन मुश्किल हो रहा है।"
"यह गंदगी नहीं है, युवान।" संयोगिता ने धीमे स्वर में कहा, लेकिन हर शब्द एक गंभीर चेतावनी की तरह गूंजा, "ये उनकी तपस्या की प्रतीक हैं। ये दाढ़ी नहीं, उनका कालवस्त्र है। यह समय और चेतना की गांठ है, जो उन्होंने वर्षों तक समाधि में बैठकर बाँधी है।"
सेनापति युवान अब तक तलवार नीचे कर चुका था। उसके मन में जो भ्रम था, वह अब हैरानी में बदल चुका था।
राजकुमारी आगे बढ़ीं। हर कदम पर उनकी आँखें उस कक्ष की गहराई को पढ़ने की कोशिश कर रही थीं। दीवारों पर लिखे प्राचीन मंत्र, जिनके अक्षर अब मिट चुके थे, हवा में कंपन पैदा कर रहे थे। हर दिशा से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे समय स्थिर हो गया हो।
फिर... अचानक ही...
श्री महागुरु ईश्वर आनंद की पलकें काँपीं।
सेनापति युवान की साँसें थम गईं। अब तो वह मन ही मन सोचने लगा — "यह मैंने क्या कर दिया!" पहले ही उसकी माँ यशस्वी जी ने उसे स्पष्ट रूप से चेताया था कि बिना आवश्यकता किसी भी वस्तु को स्पर्श मत करना। लेकिन यहाँ आकर तो उसे साफ-सफाई का भूत सवार हो गया। उसे क्या ज़रूरत थी सफाई अभियान चलाने की?
कहीं न कहीं यह सोचते हुए, अब युवान के भीतर की आत्मा काँपने लगी। और अचानक, उसके शरीर से पसीने की धार बह निकली। उस घड़ी, समय जैसे थम गया था।
तभी उसने देखा कि अचानक वहाँ पर एक अजीब-सा कंपन शुरू हो गया था।
गुरु की आँखें खुलीं... लेकिन वे किसी को नहीं देख रहे थे — वे अपने भीतर देख रहे थे।
उनकी आँखें शांत थीं, लेकिन जैसे कोई समुद्र अपने भीतर लहरें समेटे बैठा हो। उनकी गूंजती हुई आवाज़, बिना होंठ हिलाए, पूरे कक्ष में फैल गई —
"जो मेरी समाधि को तोड़ने चला है, वह तैयार हो जाए अपने कर्मों के फल के लिए..."
"आज उसकी ज़िंदगी का अंत हो जाएगा। और इतना ही नहीं, उसके बाद आने वाली सभी पुश्तों का भी हम यहीं अंत कर देंगे..."
यह कहते हुए, गुरु अब अत्यंत खतरनाक लगने लगे थे। अब तो युवान सूखे पत्ते की तरह काँपने लगा। लेकिन उसी समय राजकुमारी संयोगिता घुटनों के बल आ गईं, और झुक कर क्षमा माँगते हुए बोलीं,
"महाराज, क्षमा कीजिए। महाराज, हम यहाँ केवल आपकी सहायता लेने आए हैं। हम आपको क्रोधित करने नहीं आए हैं।"
यह कहते हुए, राजकुमारी पूरी तरह से महाराज के सामने झुक गईं थीं। हालाँकि अभी तक उनकी दाढ़ी की वजह से पूरा का पूरा कक्ष अजीब सा भरा हुआ लग रहा था, और युवान ठीक से गुरु महाराज को देख भी नहीं पा रहा था।
तभी गुरु महाराज की एक गूंजती हुई आवाज वहाँ पहुँची:
"तुम लोगों ने अपने जीवन की बहुत बड़ी भूल की है..."
यह आवाज किसी सामान्य मानव की नहीं थी — यह किसी ऐसे अस्तित्व की थी जो वर्षों से केवल मौन साधना में, चेतना से परे स्थित था।
यह सुनकर युवान काँप गया। "मुझे क्षमा करें, गुरुवर। मैं आपको पहचान नहीं पाया," और जल्दी ही राजकुमारी की तरह वह भी घुटनों के बल आ गया और माफी माँगने लगा।
और तभी...
जैसे ही महागुरु ईश्वर आनंद की दृष्टि सेनापति युवान पर पड़ी, उनकी आँखों में एक अजीब सी शांति उतर आई। और अचानक, महागुरु ईश्वर आनंद की दाढ़ी जैसे हिलने लगी। उसमें से छोटे-छोटे ध्यान-पुष्प निकलने लगे — हवा में तैरते हुए, धीरे-धीरे पूरे कक्ष को रौशन करते जा रहे थे।
फिर, उनकी आँखों ने पहली बार देखा — राजकुमारी संयोगिता और साथ ही साथ प्रेमपूर्वक युवान को।
युवान को देखते ही उनका गुस्सा एक ही पल में शांत हो गया।
महागुरु ने अब युवान की ओर देखा। बहुत देर तक उनकी दृष्टि सेनापति युवान पर टिकी रही।
और अचानक, उनके होंठ फड़फड़ाए:
"तो... यही है वह योद्धा... जिसमें अर्जुन की आत्मा वास कर रही है?"
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अचानक यह सोचते हुए उनके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान आ गई थी। वही कक्षा, जो कि चारों ओर बड़े-बड़े मकड़ी के जालों से ढकी हुई थी और जो फैली हुई थी, अब जल्दी ही एक बड़ा ही खूबसूरत कक्ष में बदल गई थी। और अचानक, देखते ही देखते महागुरु, जो कि बेहद गंदे वस्त्रों में वहाँ मौजूद थे, उनके वस्त्र भी पूरी तरह से बदल गए और उनके चेहरे पर एक शानदार चमक थी।
क्योंकि अब वे सेनापति युवान को देखकर मुस्कुरा रहे थे और जैसे ही उनके होंठ फड़फड़ाए — "अर्जुन!"
अब यह नाम सुनते ही युवान के चेहरे का रंग पूरी तरह से उड़ गया था और वह हैरानी से कभी राजकुमारी संयोगिता की ओर देख रहा था, तो कभी महाराज, महागुरु की ओर। और मन ही मन सोचने लगा था — "यह सब क्या है? इन्हें मेरा असली नाम कैसे पता चला? क्या ये मेरा नाम जानते हैं? इन्होंने मुझे यह अर्जुन कहकर कैसे पुकारा?"
वहीं, राजकुमारी संयोगिता तो अब थोड़ा-सा हैरान हो गईं और अपने हाथों को जोड़कर बहुत ही धर्मयुक्त स्वर में बोलीं, "महागुरु, मैं राजवंश की राजकुमारी संयोगिता हूं। सबसे पहले, पूरे राजवंश राज्य की ओर से मैं आपका नमन करती हूं। और जिस सज्जन की बात आप कर रहे हैं, वह मेरे साथ सेनापति युवान के रूप में आए हैं।"
तभी यह सुनकर महागुरु के चेहरे पर एक छोटी-सी मुस्कुराहट आ गई और वे खुद को संभाल नहीं पाए। अचानक से खड़े हो उठे और सीधे उन्होंने अर्जुन — यानी युवान — को गले से लगा लिया।
ईश्वर आनंद ने एक लंबी साँस खींची — जैसे उनके भीतर ब्रह्मांड ने एक करवट ली हो।
और वे मन ही मन सोचने लगे — "अभी तक अर्जुन की आत्मा का जो भार है, वह अभी तक समाप्त नहीं हुआ है। और यदि युवान के शरीर ने अर्जुन की आत्मा को स्वीकार नहीं किया..."
"यदि अर्जुन इसमें खरा उतरा... तभी उसे उसका सत्य रूप मिलेगा... वरना यह शरीर उसे भस्म कर देगा।"
अब जैसे ही महागुरु ईश्वर आनंद ने अर्जुन को गले लगाया, राजकुमारी संयोगिता की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। एक पल को सन्नाटा छा गया। वह सन्नाटा देखकर महागुरु थोड़ा-सा खुद को संभालने लगे थे और अर्जुन की ओर बड़े ही प्रेमपूर्वक देख रहे थे।
वहीं, युवान मन ही मन सोच रहा था — "इन गुरु को मेरा नाम कैसे पता चला? आखिरकार मेरे साथ हो क्या रहा है? और राजकुमारी के सामने अगर ये बार-बार अर्जुन का नाम लेंगे, तो वह मुझे कहीं गलत न समझ लें!"
इस भय से जल्दी से वह अपने हाथ जोड़कर बोला, "महाराज, आपको कोई न कोई गलतफहमी हुई है। मेरा नाम सेनापति युवान है, मैं अर्जुन नहीं हूं।"
तभी महागुरु ने तुरंत उसके सिर पर हाथ रख दिया और राजकुमारी संयोगिता की ओर देखकर बोले, "राजकुमारी, आपका यहाँ आगमन किस कारण से है, यह हम भलीभांति समझ गए हैं। हम आपके साथ चलने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।"
अब यह सुनकर राजकुमारी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। और वह खुशी से आगे बढ़कर तुरंत ही महाराज के चरणों में झुक गईं और उनसे आशीर्वाद ले लिया। फिर सेनापति युवान की ओर देखकर बोलीं, "सेनापति युवान, आप महाराज को आदर सत्कार के साथ बाहर लेकर आइए। तब तक हम उनके लिए सर्वश्रेष्ठ घोड़ा तैयार करवाते हैं।"
यह बोलकर राजकुमारी वहाँ से बाहर जाने लगीं।
अब राजकुमारी के जाते ही अर्जुन तुरंत अपने घुटनों के बल बैठ गया और महाराज की ओर देखकर बोला, "महाराज, आपको आखिरकार मेरा असली नाम कैसे पता चला? यहाँ तक कि कोई भी नहीं पहचान पाया कि मैं असल में कौन हूं! लेकिन आपने तो मुझे पहली ही नज़र में पहचान लिया। देखिए, कृपया यहाँ पर किसी को भी मत बताइए कि मैं कौन हूं। अगर आपने मेरा राज किसी को भी बताया, तो ये लोग मुझे ज़िंदा जला डालेंगे। और मैं मरना नहीं चाहता हूं। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मैं किस दुनिया में आ गया हूं... लेकिन आपको देखकर अब यह बात अच्छी तरह से समझ चुका हूं कि आपके पास सचमुच कोई विशेष शक्ति है। तभी तो आपने मुझे पहली नज़र में ही पहचान लिया!"
अब अर्जुन के इतना कहते ही, जल्दी ही महाराज ने उसके चेहरे पर हाथ रखा और ध्यान से उसकी ओर देखकर बोले, "शांत हो जाओ, सेनापति युवान, और हमें ध्यान से देखो। जैसे ही तुम हमें ध्यान से देखोगे, तुममें तुम्हारा ही प्रतिरूप दिखाई देगा।"
अब यह सुनकर युवान की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। और वह महागुरु की ओर देखकर बोला, "महागुरु, यह वक्त पहेलियाँ बुझाने का नहीं है। कृपया आप मुझे बता दीजिए — आप मुझे कैसे जानते हैं? और आपने मुझे पहली नज़र में कैसे पहचान लिया? और अगर आप यह भी जानते हैं कि मैं यहाँ क्यों आया हूं, तो कृपया वह भी बता दीजिए। क्योंकि मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा है!"
तभी महाराज ने थोड़ी कड़क आवाज़ में कहा, "ध्यान से देखो, अर्जुन... तुम मेरे ही वंशज हो।"
अब यह सुनकर तो अर्जुन की साँसें पूरी तरह से थम गईं — जैसे किसी ने उसके भीतर की सिटी पीटी ही गुम कर दी हो।
17,
अर्जुन के कानों में बार-बार महागुरु ईश्वरानंद की कही हुई बातें गूंजने लगी थीं। उसकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। और एक बार फिर उसने याद करने की कोशिश की थी कि उसने महागुरु का नाम कहाँ सुना था, लेकिन काफि जोर देने के बाद वह कुछ भी याद नहीं कर पाया था।
तभी महागुरु ने हल्के से उसके सिर पर हाथ रखा और बड़े ही प्रेम से उसकी ओर देखकर बोले थे, "हम अच्छी तरह से जानते हैं कि इस वक्त तुम काफी ज़्यादा दुविधा में हो। लेकिन तुम बिल्कुल भी फिक्र मत करो। तुम्हारी आधुनिक ज़िंदगी में भी तुम्हारे माता-पिता तुम्हें अवश्य मिलेंगे। लेकिन फिलहाल, इस ज़िंदगी में तुम्हारे आने का मक़सद अभी पूरा नहीं हुआ है। तुम्हें अभी काफी कुछ हासिल करना है। पूरे राज्य पर तुम्हें अपना वर्चस्व लहराना है।"
यह कहते हुए महागुरु काफी ज़्यादा रहस्यमय लग रहे थे, लेकिन अर्जुन उनकी बात पूरी तरह से समझ नहीं पा रहा था। फिलहाल, उसने गहरी सांस ली और दोनों हाथों को जोड़कर महागुरु की ओर देखकर बोला था, "महागुरु, क्या मेरे लिए कोई आदेश है? क्या आप मुझे कुछ बताना चाहते हैं? देखिए, अगर आप वाकई में मुझे कुछ बताना चाहते हैं, और मेरे बारे में आप सब कुछ जानते हैं, तो प्लीज़ मुझे बता दीजिए। आप नहीं जानते कि इस वक्त मैं कितनी ज़्यादा दुविधा में हूँ। मैं जानता हूँ कि मैं झूठ की ज़िंदगी जी रहा हूँ। यह मेरा सत्य नहीं है। लेकिन मैं झूठ की ज़िंदगी में बहुत खुश हूँ। आप नहीं जानते कि मेरे साथ क्या-क्या हुआ है..."
यह कहते हुए अचानक अर्जुन की आँखें भर आई थीं, लेकिन तभी महागुरु ने उसे आगे बोलने से रोक दिया था और खुद प्रेमपूर्वक बोले थे, "बस! तुम्हें हमें कुछ भी बताने की कोई ज़रूरत नहीं है। और रही बात तुम्हारी आधुनिक ज़िंदगी की और तुम्हारी इस असत्य ज़िंदगी की, तो इसका रहस्य भी तुम्हें बहुत जल्द पता चल जाएगा। फिलहाल, जिस कार्य के लिए तुम यहाँ आए हो, वह कार्य करो। तुम हमें लेने के लिए आए हो, तो हम तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हैं। और अभी इस ज़िंदगी में तुम्हें धैर्यपूर्वक कार्य करना होगा। यहाँ पर न केवल अस्त्र-शस्त्र से जंग लड़ी जाएगी, बल्कि मस्तिष्क से भी। तुम्हें यहाँ ज़िंदगी में आने का अपना उद्देश्य पूरा करना होगा।"
महागुरु की बातें इस वक्त अर्जुन के सिर के ऊपर से जा रही थीं। लेकिन फिलहाल, महागुरु की बात मानने के अलावा उसके पास और कोई रास्ता नहीं था। उसने गहरी सांस ली और जल्दी ही महागुरु को लेकर राजकुमारी की ओर चलने लगा था।
वहीं राजकुमारी के चेहरे पर तेज जैसे चमक रही थी। उसकी खुशी का इस वक्त कोई ठिकाना नहीं था। पहली बार उसने एक कार्य अपने हाथ में लिया था और जिसमें वह पूरी तरह से सफल साबित हुई थी। तो इस वक्त वह काफी ज़्यादा खुश थी।
फिलहाल, जल्दी ही महागुरु को उनके पसंदीदा घोड़े पर बैठाया गया और एक बार फिर महल की ओर सब रवाना हो चुके थे। रास्ते में राजकुमारी बार-बार युवान की ओर देख रही थी, वहीं युवान के दिमाग में तो इस वक्त कितने ही सारे सवाल चल रहे थे। सबसे बड़ा सवाल तो उसे यह चल रहा था कि यह महागुरु उसे कैसे जानते हैं? और वह उनका वंशज कैसे हो सकता है? क्या महागुरु उसके पूर्वज हैं?
फिलहाल, उसने सब कुछ वक़्त पर छोड़ दिया था और वह सोचने लगा था—जब वक़्त ने उसे यहाँ, इस ज़िंदगी में लाकर खड़ा किया है, तो उसे अब सब कुछ वक़्त पर ही छोड़ देना चाहिए। वक़्त उसे ज़रूर बता देगा कि आख़िरकार उसकी ज़िंदगी में क्या-क्या हुआ है।
इस सोच के साथ वह भी अब मुस्कुराकर राजकुमारी की ओर देखने लगा था। लेकिन जैसे ही वे लोग लगातार आगे बढ़ रहे थे, तभी भीम राज्य के उन राक्षसों ने उन पर हमला कर दिया था। राजकुमारी को बंदी बनाने के लिए ,
क्योंकि राज्य के शैतानों को इस बात की खबर लग चुकी थी कि राजवंश राज्य की राजकुमारी इसी रास्ते से वापस आने वाली है, क्योंकि महागुरु की समाधि तक आने जाने का रास्ता भीम राज्य से होकर ही गुजरता है। और अपनी सीमा सरहद को वे कभी कम नहीं आँकते थे।
लेकिन जैसे ही राजकुमारी और उसके सैनिक उनकी सरहद पर आए, तो उन्होंने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए उन पर जानलेवा हमला कर दिया था। क्योंकि हर हाल में राजकुमारी को वे बंदी बनाकर अपने साथ लेकर जाना चाहते थे। और जिस तरह से उन्होंने अपने राज्य की सभी औरतों की दुर्दशा कर रखी थी, उसी तरह से वे राजकुमारी के साथ भी बर्ताव करना चाहते थे।
वहीं जैसे ही महागुरु ईश्वरानंद जी के सामने वे राक्षस आए, अचानक ही वे अपने घुटनों पर आ गए थे। लेकिन तब तक उन्होंने राजकुमारी को अपने कब्ज़े में ले लिया था। इतने बड़े-बड़े विशाल शरीर वाले राक्षसों को देखकर अर्जुन की तो हालत पूरी तरह से खराब हो चुकी थी। वह समझ नहीं पा रहा था कि वह इन राक्षसों से कैसे लड़े।
भले ही युवान का शरीर उसके पास था और अर्जुन की आत्मा का दिमाग, लेकिन दिमाग और शरीर का इस्तेमाल करके इतने बड़े-बड़े राक्षसों से वह भला कैसे लड़ सकता था? और जबकि यह भीम राज्य के राक्षसों की एक सीमा महागुरु ने ही तय की थी, तो महागुरु के सामने वे राजकुमारी को अगवा कैसे कर सकते थे?
ऑलरेडी उन राक्षसो ने राजवंश राज्य के सैनिकों को मार गिराया था और राजकुमारी को अपने कब्ज़े में ले लिया था। राजकुमारी ने भी अपनी तलवार निकालकर उनसे लड़ने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन इतने बड़े-बड़े राक्षसों का भला एक नाजुक सी राजकुमारी कहाँ से मुकाबला कर सकती थी?
वहीं अर्जुन भी तलवार लेकर उनसे लड़ने की पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन हर बार उसे मुँह की खानी पड़ रही थी। साथ ही साथ को मैंने मन में सोच रहा था कि आखिरकार इतने बड़े राक्षस से अचानक से कहां से आ टपके ,पहली बार जिंदगी में उसने इतने बड़े राक्षस देखे थे, आज तक उन सब के बारे में उसने किताबों में ही पढ़ा था ।
"साथ-साथ वह उम्मीद भरी नज़रों से बार-बार महागुरु ईश्वरआनंद की ओर देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था — 'इन महागुरु जी को लाने के लिए कितने सारे उन्होंने जतन किए! बल्कि राजकुमारी संयोगिता स्वयं यहाँ आईं, लेकिन यह महागुरु इतनी आसानी से कैसे बैठे हुए हैं? क्या इन्हें बिल्कुल भी हमारी मदद नहीं करनी चाहिए? अगर उनके पास कोई शक्ति है, तो क्या जिस तरह से जादू किताबों में होता है — एक फूँक मारकर सब राक्षसों को उड़ा दें! क्या ये ऐसा कुछ नहीं कर सकते है ' कहीं न कहीं अर्जुन के दिमाग में कितनी ही सारी बातें चल रही थीं। वह सोच रहा था कि न महाराज उन्हें महागुरु को लाने के लिए भेजता और न ही इस तरह की मुसीबत में पड़ते।"
फिलहाल, राक्षसों में से एक ने जैसे ही महागुरु ईश्वरानंद जी को देखा, तुरंत ही वह उनके पास झुककर उन्हें प्रणाम करने लगा था और बोला था, "जैसा कि आपने हमारी हद सीमित की थी, हमने अपनी वह हद पार नहीं की है। लेकिन अब यदि यह राजवंश राज्य की राजकुमारी हमारी सरहद पर आई है, तो हम इसे इस तरह से यूं जाने नहीं देंगे। हमें पूरी उम्मीद है कि आप इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे।"
यह बोलते हुए वह राक्षस बेहद ही क्रूर लग रहा था...
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महागुरु ईश्वरानंद के सामने जब वह राक्षस सिर झुकाकर खड़ा हुआ, तब उसकी आँखों में डर कम और क्रूरता ज़्यादा थी। वह अपने भारी भरकम शरीर को महागुरु के सामने झुका तो रहा था, लेकिन उसका मन छल और द्वेष से भरा हुआ था।
"हमें पूरी उम्मीद है," राक्षस ने फिर से दोहराया, "कि आप इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे। यह हमारे क्षेत्र की बात है, और अब यह राजकुमारी हमारी बंदी है।"
इतना कहकर राक्षस ने जैसे ही राजकुमारी की बांह पकड़ने की कोशिश की, अचानक महागुरु की आँखें एक पल को बंद हो गईं और उनके मस्तक से तेज़ प्रकाश निकलने लगा। चारों ओर की हवा जैसे थम गई थी। पक्षियों की चहचहाहट, पत्तों की सरसराहट – सब एकदम शांत। उस पल जैसे समय रुक गया था।
"यह राजकुमारी इस ब्रह्मांड के संतुलन का हिस्सा है," महागुरु ने आँखें खोलते हुए गूंजती आवाज़ में कहा, "इसका अपमान करना उस संतुलन को तोड़ना होगा, जिसकी कीमत तुम्हारे पूरे कुल को चुकानी पड़ेगी।"
राक्षस एक पल को कांप गया, लेकिन फिर भी साहस दिखाकर बोला, "हमने किसी सीमा का उल्लंघन नहीं किया है, और यह स्त्री स्वयं हमारे क्षेत्र में आई है।"
"स्त्री नहीं," महागुरु की आवाज़ अब प्रचंड हो चुकी थी, "वह शक्ति है। वह संरचना है। और तुमने उसके अस्तित्व को छूकर ब्रह्मांड की लय को बिगाड़ा है।"
इतना कहकर महागुरु ने अपनी छड़ी को ज़मीन पर टिकाया। ज़मीन हिलने लगी। पेड़ों की जड़ें कंपन करने लगीं और आसमान काले बादलों से भर गया।
युवान जो अब तक एकदम असहाय खड़ा था, अचानक जैसे भीतर से कुछ महसूस करने लगा। उसके शरीर में जैसे एक तूफ़ान उमड़ने लगा। उसने आँखें बंद कीं और अचानक ही युवान को ऐसा लगा मानो तो उसके शरीर में कुछ अलग की तरह की शक्ति आ गई हो और तभी उसने कहना शुरू कर दिया था
"मुझे डर नहीं है," उसने मन ही मन कहा, "भले ही यह शरीर मेरा न हो... लेकिन इस आत्मा की पहचान अर्जुन है, और अर्जुन कभी अन्याय के सामने नहीं झुकेगा!"
वैसे भी आधुनिक जिंदगी में अर्जुन ने काफी ज्यादा दर्द सहा था और जब वह पूरी तरह से टूट गया था तब उसे यह नई जिंदगी मिली थी और इस नई जिंदगी में वो बिल्कुल भी नहीं टूटना चाहता था वह अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर और एक राजाओं की तरह जीना चाहता था।
अब उसने तलवार को मज़बूती से पकड़ा और पहली बार उसके हाथों की पकड़ नहीं काँपी। वह तेज़ी से आगे बढ़ा और एक राक्षस पर वार कर दिया। तलवार सीधे राक्षस के कंधे में जा धँसी। उस राक्षस की चीख़ की आवाज़ गूँजी, लेकिन अर्जुन रुका नहीं।
अब तक राजकुमारी भी संभल चुकी थी। उसने युवान की आँखों में एक अलग ज्वाला देखी। वह भी फिर से उठ खड़ी हुई।
"राजकुमारी!" युवान ने गरजते हुए कहा, "आज हम इन राक्षसों को दिखा देंगे कि औरतों को कमज़ोर समझने वालों का अंत तय है।"
इतना कहते ही युवान ने दूसरे राक्षस की ओर छलांग लगाई। तभी महागुरु की छड़ी से निकलती रोशनी ने चारों राक्षसों को रोक दिया।
"बस!" महागुरु की आवाज़ में अब आग और शांति एक साथ थी। "आज इन्हें छोड़ रहा हूँ क्योंकि इन्हें अभी अपने कर्मों की पूरी कीमत समझनी बाक़ी है। लेकिन ध्यान रहे— अगली बार यदि तुमने सीमाओं को लांघा, तो तुम्हारी आत्माएँ भी मोक्ष की पात्र नहीं रहेंगी।"
राक्षस एक क्षण के लिए सब कुछ भूलकर घबरा गए। राजकुमारी को छोड़, वे एक-एक करके वहाँ से भागने लगे। लेकिन अर्जुन तुरंत ही अपनी तलवार के साथ उन राक्षसों के सामने जाकर खड़ा हो गया और गुर्राते हुए उनकी ओर देखकर बोला, "एक और बात जाते-जाते मेरी ध्यान से सुनते जाना, अगर तुम्हारे राज्य से अब एक भी औरत की चीखने की आवाज़ सुनाई दे तो मैं तुम्हारे पूरे राज्य को ध्वस्त कर दूँगा।"
यह कहते हुए अर्जुन भयानक लग रहा था। तभी राक्षसों ने एक-दूसरे की ओर देखा और फिर युवान को वचन देते हुए बोले कि आज के बाद वे कभी भी किसी नारी पर किसी भी तरह का अत्याचार नहीं करेंगे और आज के बाद उनके राज्य में से किसी भी नारी के चीखने की आवाज़ नहीं आएगी।
अब जैसे ही उन्होंने इस बात का आश्वासन दिया, अर्जुन यानी युवान समझ चुका था कि इस ज़िंदगी में वचन देने का महत्व कितना ज़्यादा है और अपने वचन को लोग मरकर भी निभाते हैं। इसी उम्मीद के साथ अर्जुन ने उन्हें वहाँ से जाने का इशारा कर दिया था।
चारों तरफ़ फिर से शांति छा गई थी।
युवान अब भी गुस्से से काँप रहा था, लेकिन उसकी आँखों में आत्मविश्वास था। महागुरु और राजकुमारी ने उसकी ओर गर्व भरी नजरों से देखा , "कहीं ना कहीं राजकुमारी को अर्जुन को देखकर बड़ा ही प्यार आ रहा था। और जिस तरह से आज अर्जुन ने औरतों के हक के लिए लड़ाई लड़ी थी तो उसे यह बात कही ज्यादा प्रभावित कर गई थी।
राजकुमारी धीरे से युवान के पास आई, उसकी तलवार थामी और बोली, "आज जो देखा, वह सिर्फ़ एक शुरुआत है सेनापति युवान। मुझे पूरी उम्मीद है सेनापति युवान कि आगे चलकर भी आप इसी तरह से अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ते रहेंगे और अपनी विजय का वर्चस्व हर तरफ़ लहराते रहेंगे।"
जैसे ही राजकुमारी ने युवान की तारीफ़ की, युवान का दिल बहुत ही ज़्यादा ख़ुश हो गया था। वह ख़ुशी से हँसते हुए सोच रहा था कि वह आगे बढ़कर राजकुमारी को ज़ोर से गले लगा ले और एक छोटा सा चुंबन कर दे, लेकिन फ़िलहाल महागुरु पर जैसे ही उसकी नज़रें पड़ीं, तुरंत उसने अपनी नज़रें झुका लीं और वह मन ही मन में सोचने लगा कि कहीं इस old man ने मेरे अंदर के उमड़ते जज्बात न समझ लिए हों। अगर ऐसा हो गया तो मुझे लेने के देने पड़ सकते हैं।
युवान ने धीरे से कहा, "और ये अंत नहीं, बल्कि मेरी सच्चाई की पहली जीत की शुरुआत थी।"
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वेल उन राक्षसों के जाने के बाद चारों ओर सन्नाटा पसर गया। जंगल की पगडंडी पर अब केवल शांति की साँसें थीं, लेकिन युवान और राजकुमारी के दिलों में एक तूफ़ान उठ चुका था। वह था प्रेम का तूफान। फिलहाल महागुरु ईश्वरानंद, राजकुमारी संयोगिता और युवान— तीनों ने अब एक दूसरे की ओर देखा था तब महागुरु के आशीर्वाद से एक बार फिर वह लोग आगे बढ़ने लगे थे।
महल की ओर लौटते समय राजकुमारी की आँखों में गर्व की चमक थी। युवान अब केवल एक रक्षक नहीं, एक योद्धा के रूप में उभरा था। उनके घोड़े के साथ-साथ चलती हवा भी अब अलग भाषा में बातें कर रही थी—
जैसे ही महल के द्वार खुले, सैकड़ों सैनिकों और महल के सेवकों ने महागुरु और राजकुमारी का स्वागत किया। महागुरु ईश्वरानंद के महल में प्रवेश करने के बाद, पूरे राज्य में जैसे उत्सव का माहौल बन गया था। महल की दीवारें दीपों की रोशनी से जगमगाने लगी थीं। नगाड़ों की गूंज और शंखनाद से आकाश गूंज रहा था। सब लोगों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वर्षों बाद राज्य के सबसे पवित्र और तेजस्वी संत का आगमन हुआ था, और वह भी तब, जब राज्य एक गहरे संकट की ओर बढ़ रहा था।
महाराज अभिमन्यु और महारानी गायत्री के चेहरों पर गर्व की झलक थी। वे अपनी बेटी संयोगिता पर गर्व महसूस कर रहे थे, जिसने ना केवल अपने साहस से संकट का सामना किया, बल्कि एक अद्भुत योद्धा को भी राज्य में लेकर आई थी—सेनापति युवान। उन्होंने दिल से उसका धन्यवाद किया, राजकुमारी संयोगिता ने कुछ सैनिकों को आदेश दिया था कि वह जाकर महल में उनके पिता अभिमन्यु महाराज को सारी बातें बता दे की जंगल में क्या-क्या हुआ था। और साथ ही साथ वह महागुरु ईश्वर आनंद को भी साथ लेकर आ रही है तो उनके स्वागत की भी तैयारी कर ली जाए इसीलिए उन्होंने कुछ सिपाही आगे भेज दिए थे ।
इसीलिए महाराज अभिमन्यु को सारी बातें पता चल चुकी थी कि किस तरह से सेनापति युवान ने भीमराज्य के राक्षसों का सामना किया और साथ-साथ राजकुमारी संयोगिता महापुरुष ईश्वरानन्द को अपने साथ लेकर आ रही है,तो इस वक्त उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
महाराज ने युवान के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “तुम्हारा यह साहस, यह त्याग — हमारा राज्य सदियों तक याद रखेगा सेनापति। तुमने केवल राजकुमारी की नहीं, इस राज्य की अस्मिता (इज्जत)की भी रक्षा की है।”
18
महाराज ने युवान के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, तुम्हारा यह साहस, यह त्याग — हमारा राज्य सदियों तक याद रखेगा सेनापति। तुमने केवल राजकुमारी की नहीं, इस राज्य की अस्मिता( इज्जत) की भी रक्षा की है।
महाराज की बात सुनकर, युवान ने विनम्र होकर सिर झुकाया और कहा, मैंने जो किया, वह मेरा धर्म था, महाराज। मेरी जिंदगी का हर श्वास इस मिट्टी की रक्षा के लिए है। और मेरी आँखों के सामने कोई हमारे राज्य की राजकुमारी की अस्मिता पर हाथ डाले, यह मैं किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकता था। और मैं आपको आज भरी सभा में वचन देता हूँ कि मैं अपनी पूरी जिंदगी राजकुमारी और इस राज्य की रक्षा करूँगा। यह बोलकर युवान ने प्रेम भरी दृष्टि से राजकुमारी की ओर देखा।
लेकिन, वहीं दूसरी ओर, कुछ ऐसा था जो किसी की नजरों से छुप नहीं पाया था.
वह थी महारानी गायत्री की दृष्टि, जो उसी वक्त अपनी बेटी संयोगिता की ओर गई, जिसकी आँखों में अब केवल श्रद्धा नहीं, प्रेम भी था। जब उसकी आंखें युवान से मिली, तो उस एक पल में पूरी सभा जैसे स्टेच्यू हो गई थी। दो आत्माएँ जैसे एक ही भावना की गहराई में डूब गई थीं।
संयोगिता धीरे से चली, युवान के पास आकर कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन शब्द जैसे गले में ही अटक गए। बस उसकी आँखों ने कहा, तुम होते हो, तो मुझे डर नहीं लगता। और युवान की दृष्टि ने उत्तर दिया, तुम हो, तभी मेरी तलवार में धार है।
महारानी ने सब समझ लिया था, लेकिन अभी कुछ था जो उन्हें रोक रहा था — शायद राज्य की मर्यादा, या फिर कुछ और!
इसी बीच, सभा का ध्यान महागुरु ईश्वरानंद की ओर गया। उनका तेजस्वी चेहरा अब गहराई से सोच में डूबा हुआ था। जब महाराज अभिमन्यु ने अपने दोनों हाथ जोडकर उनसे निवेदन किया, तो उनकी आवाज में डर की झलक साफ दिखाई दे रही थी।
महागुरु, अभिमन्यु बोले, हमें आपकी रक्षा की आवश्यकता है। काली शक्तियों की मालकिन चण्डालनी ने नागरानी को हमारे राज्य पर छोड दिया था। यह वही नागरानी है जो विष से भरे नागों की रानी है। वह हमारे पूरे राज्य को मिट्टी में मिलाने आई थी, लेकिन समय रहते सेनापति युवान ने अपनी बुद्धि और साहस से हमें बचा लिया। फिर भी, हमें ज्ञात है कि चांडालनी इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं है। वह जरूर फिर आएगी और इस बार और घातक वार करेगी। जाते वक्त नागरानी ने हमें चेतावनी दी थी!
महाराज की आँखें विनम्र थीं, लेकिन उनकी आवाज में भय की छाया थी। उन्होंने कहा, केवल आप ही हैं जो दूरदर्शिता से देख सकते हैं। आप ही हमें बचा सकते हैं। कृपया मार्गदर्शन कीजिए, महागुरु।
महाराज ने गिडगिडाते हुए कहा कि वह किसी भी कीमत पर अपने राज्य का सर्वनाश होते हुए नहीं देख सकते थे।
तभी महागुरु ने गहरी साँस ली। उनकी आँखें बंद हो गईं, और पूरा दरबार जैसे सिहर उठा। उनके माथे पर बिंदी जैसे तेज से जलने लगी। उन्होंने धीरे से आँखें खोलीं और गंभीर स्वर में बोले—
महाराज अभिमन्यु!
राज्य अब दो राहों के बीच खडा है। एक राह आशा की है, दूसरी विध्वंस की। चांडालनी केवल बाहरी संकट नहीं है, वह भीतर की कमजोरी को ढाल बनाकर हमला करती है। और वह अकेली नहीं है; उसके पास राज्य का पूरा भेद देने वाला कोई साथी है, और अनेक काले जादू से बंधे मायावी राक्षस हैं, जो किसी भी राज्य को एक ही पल में ध्वस्त करने की ताकत और हिम्मत दोनों ही रखते हैं। अब यह राज्य तभी बचेगा, जब इसके सैनिक केवल तलवार से नहीं, आत्मा से लडेंगे। यह बोलकर महागुरु ने युवान की ओर देखा।
वहीं उस वक्त युवान और राजकुमारी संयोगिता एक- दूसरे की ओर प्रेम भरी दृष्टि से देख रहे थे, अब महागुरु के इस तरह से बोलते ही उन दोनों की आँखें एक- दूसरे से हट गईं।
अब महागुरु की बात सुनने के बाद सभा में हलचल मच गई थी।
और सभी लोग आपस में खुशर पुसर करने लगे थे क्योंकी
कहीं ना कहीं सभी को अपनी मौत का डर सताने लगा था, और वह सोचने लगे थे कि अगर इसी तरह से चांडालनी उन पर अत्याचार करती रहीऔर लगातार खतरनाक दानव या राक्षसों को भेजती रही, तो किसी पल सब लोगों की जान जा सकती है। एक ही पल में पूरे के पूरे दरबार में त्राहि सी मच चुकी थी तभी महाराज थोडा सा तेज आवाज में बोले थे शांत हो जाओ सबके सब अभी हम मौजूद हैं और जब तक अभिमन्यु राजवंश जिंदा है तब तक हमारे राज्य की प्रजा के साथ कुछ भी गलत नहीं होगा यह कहते हुए अभिमन्यु बडा ही खूंखार लग रहा था ठीक उसी वक्त महागुरु ईश्वर आनंद जी ने गहरी सांस ली और थोडा से तेज आवाज में बोले थे सभी हमारी बात ध्यान से सुनिए भले ही इस समय राज्य संकट में हो लेकिन राज्य को संकट से बचाने के लिए हमारे पास सेनापति युवान जैसा योद्धा मौजूद है और हमें इस बात का शत प्रतिशत यकीन है कि युवान इस राज्य पर आने वाले सभी बुरी शक्ति से लडने में सक्षम है जैसे ही थोडी तेज आवाज में महागुरु ने यह कहा पूरी सभा में एकदम शांति छा गई थी और अचानक एक बार फिर से सेनापति युवान की जयकार होने लगी थी।
वही इस बीच बीच राजगुरु चिन्मय का दिमाग पूरी तरह से खराब हो चुका था उसने कभी भी नहीं सोचा था कि इस तरह से एक मामूली सा सैनिक सब लोगों का इतना ज्यादा चाहिता बन जाएगा।
और कहीं ना कहीं वह अब सोचने लगे थे कि सेनापति युवान एक तरह से पूरे के पूरे राज्य की ढाल बन चुका है राजगुरु चिन्मय ने निश्चय किया कि चाहे कुछ भी उसे करना पडे लेकिन वह इस सेनापति सबसे पहले अंत करेगा उसके बाद वह आगे का कार्य पूरा करेगा इसके लिए उसने आज रात को ही पूर्व सेनापति विक्रम और चांडालनी से मिलने का फैसला कर लिया था।
क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि नागरानी का आक्रमण विक्रम के कहने पर ही हुआ है आखिरकार वह अच्छी तरह यह बात जानता था क्योंकि चांडालनी और विक्रम को मिलाने वाला कोई और नहीं बल्कि राजगुरु चिन्मय ही था लेकिन अब यह सब देखकर की उस मामूली से सैनिक युवान जो कि अब सेनापति बन बैठा था और राज्य का सबसे लोकप्रिय इंसान बन बैठा था उसको देखकर अब चिन्मय का जलन के मारे बुरा हाल हो चुका था इसीलिए उसने सोच लिया था कि उसे अब जो करना होगा बहुत जल्दी करना होगा
ये सोचकर मन ही मन में वो कुढने लगा था।
वही आम लोगों को भेजने के बाद कुछ खास लोगों के साथ जिसमें महागुरु भी मौजूद थे अभिमन्यु ने दोनों हाथों को जोडकर उनसे निवेदन किया था, हे दूरदर्शी महागुरु आपको क्या लगता है कि केवल सेनापति युवान ही काफी होंगे चांडालनी के कहर से पूरे राज्य को बचाने के लिए, तब महागुरु ईश्वरानंद जी ने एक गहरी सांस ली थी और कहना शुरू कर दिया था कि, अगर तुम्हें' चंडालिनी के प्रहार से' बचना है, तो तुम्हें भी अपने राज्य में एक जादूगर को बुलाना होगा। भले ही हमारे पास सेनापति युवान का साहस है, लेकिन इस जादूगर की भी बहुत ही आवश्यकता है। अगर एक जादूगर इस राज्य में रहेगा, तो वह हमारे काफी काम आ सकता है।
और मैं यहाँ पर किसी और की नहीं, बल्कि सबसे बडे, जाने- माने जादूगर शंकर आर्य की बातें कर रहा हूँ।
अब यह सुनकर खास सभा में कुछ क्षणों के लिए कोलाहल फैल गया था। हर कोई समझ चुका था कि बात किसकी हो रही है। शंकर आर्य के बारे में कौन नहीं जानता?
वे वही इंसान थे जिन्होंने बडे- बडे जादू किए थे। इतना ही नहीं एक बार तो एक इंसान के गले को उन्होंने सिर से अलग कर दिया था और फिर उसे जीवनदान भी दे दिया था। कोई भी इस बात का पता नहीं लगा पाया था कि वह उनका जादू था या आँखों का धोखा, लेकिन उनके पास कई सारी जादुई शक्तियाँ थीं।
पार्वती जैसी शक्तियाँ उनके पास थीं। बिजली जैसी तरंगें उनके शरीर से निकला करती थीं। उनकी आँखें अंगारे बरसाया करती थीं। इतना ही नहीं, उनके हाथ इतनी तेजी से कार्य किया करते थे कि सामने वाला केवल देखता ही रह जाता था।
शंकर आर्य का नाम सुनने के बाद अब सब लोग आपस में ही उत्साहित होकर बातें करने लगे थे। वहीं युवान भी अब हैरान हो चुका था, और वह सोचने लगा था कि यह शंकर आर्य कौन है? क्यों ऐसा लग रहा है कि वह उन्हें पहले से जानता है?
कहीं न कहीं युवान के दिमाग में, उसके आधुनिक विचारों की बत्ती जलने लगी थी, क्योंकि युवान की आत्मा ने सिर्फ बल ही नहीं, ज्ञान भी हासिल किया था। अर्जुन के पास में अद्भुत ज्ञान और बुद्धिमत्ता थी, जिसकी आधुनिक जीवन के लोगों ने कभी कदर नहीं की।
लेकिन अब शंकर आर्य का नाम आते ही उसने सोचना शुरू कर दिया था कि आखिरकार यह महान जादूगर कौन थे? और तभी उसकी आँखों के सामने शंकर आर्य का पूरा जीवन- परिचय जैसे चलचित्र की तरह आ गया था — कि शंकर आर्य कौन थे, और वह कब, क्या किया करते थे।
युवान को याद आया जब वह मात्र दस वर्ष के थे, तब उन्होंने एक भयानक नाग से पूरे गाँव को बचाया था — और तब पहली बार देखा गया था उनका" वज्रदृष्टि" — जिससे उनकी आँखों से निकली अग्निशिखा उस नाग को भस्म कर गई थी।
किन्तु यह शक्ति उन्हें यूँ ही नहीं मिली थी। उन्होंने हिमालय की गुफाओं में वर्षों तक साधना की थी। कहते हैं, उन्होंने' कालगर्भ मंत्र' को सिद्ध किया था — एक ऐसा मंत्र जिससे समय को मोडा जा सकता था, भविष्य में झांका जा सकता था। शंकर आर्य ने इस मंत्र से एक बार अपने ही मृत्यु का दृश्य देखा था — और उस दिन के बाद, उन्होंने काले जादू के खिलाफ प्रण लिया था।
वे जहाँ भी जाते, वहाँ अंधकार भाग खडा होता। उन्होंने अपने जीवन में केवल एक ही नियम को माना —" जादू, जब तक सत्य के लिए हो, तभी दिव्यता है। अन्यथा वह श्राप है।
एक बार, उन्होंने मृत्युशय्या पर पडी एक बच्ची को, जिसका शरीर जल चुका था, केवल अपनी हथेलियों से पुनर्जीवित कर दिया था। न उसकी त्वचा में जलन रही, न पीडा। पर स्वयं शंकर के हाथ जलकर राख हो गए थे। लेकिन जब लोगों ने यह दृश्य देखा तो सबने दाँतों तले उँगली दबा ली थी। और सब उनके सामने झुकने लगे थे।
लेकिन. फिर एक दिन वह अचानक लुप्त हो गए। कुछ कहते हैं, उन्होंने स्वयं को एक रहस्यमयी द्वार में बंद कर लिया ताकि दुनिया उन्हें तभी याद करे जब अत्यंत आवश्यकता हो। कुछ कहते हैं कि वह अब भी जीवित हैं — समय के परे, एक ऐसी स्थिति में जहाँ न भूख है, न नींद, केवल प्रतीक्षा।
अब जैसे ही अर्जुन यानी के युवान को यह सब कुछ याद आया, तो वह पूरी तरह से हैरान हो चुका था! उसका दिल किया कि वह सभी को शंकर आर्य जी के बारे में बता दे कि वह तो पूरी तरह से विलुप्त हो चुके हैं, उनके बारे में कहीं कुछ भी नहीं पता है कि वह कहां चले गए हैं? लेकिन तभी महागुरु ईश्वर आनंद की आवाज वहां आई थी, और वह महाराज अभिमन्यु की ओर देखकर बोले थे, जादूगर शंकर आर्य को तो यहां आना ही होगा। तब महाराजा अभिमन्यु उनके सामने हाथ जोडकर बोले थे, अब आप ही हमारी सहायता कीजिए महाराज मार्ग दिखाइए कि हम उन्हें Kiss तरह से यहां लेकर आ सकते हैं आप अच्छी तरह से जानते हैं कि उन्हें इस तरह से राज्य में लाना बिल्कुल भी आसान नहीं है।
महाराज अभिमन्यु की बातों में चिंता साफ झलक रही थी
क्योंकि शक्कर आर्य को इस तरह से राज वंश राज्य में लेकर आना कोई बाएं हाथ का खेल नहीं था।
तभी महागुरु हल्का सा मुस्कुराए, और अर्जुन की ओर देखने लगे थे! और अगले ही पल बोले थे,
कुछ शक्तियां लौटती नहीं. जागती हैं। अब जैसे ही महागुरु ने यह बोला सब लोग हैरान हो गए थे उनकी बातों का मतलब कोई नहीं समझ पाया था!
तभी ईश्वर आनंद जी युवान की ओर देखकर बोले सेनापति युवान आप ही महा शक्तिशाली गुरु जादूगर शंकर आर्य को लेकर आएंगे।
अब यह सुनकर सब हैरानी से एक दूसरे की शक्ल देखने लगे थे।
वही युवान की तो हालत खराब हो चुकी थी। क्योंकि अभी थोडी देर पहले वह जादूगर शंकराआर्य के बारे में ही सोच रहा था और जब से उसे बात का पता चला कि वो कितने शक्तिशाली थे उनकी आंखों से भी रोशनी निकल सकती थी। और वह अपने जादू के द्वारा एक कुछ बच्चों को भी जीवित कर चुके थे, तो वह सोचने लगा था कि भला ने बडे जादूगर को वह कहां ढूंढेगा।
और वह कैसे उन्हें मना कर लेकर आ सकता है।
और यह महागुरु ईश्वर आनंद जी आखिरकार उनकी प्रॉब्लम क्या है ज़यह मुझसे कौनसी दुश्मनी का बदला निकाल रहे हैं।
भाई अरे अगर यह वाकई मुझे अपना कोई वंशज मानते हैं जबकि उन्होंने बोला कि मैं इनको कोई वंशज हूं तो क्या इन्हें मेरी हेल्प नहीं करनी चाहिए।
अरे इन्हें तो मुझे खतरों से दूर करना चाहिए दूर रखना चाहिए, लेकिन यहां यहां तो मुझे यह पूरी तरह से खतरे में डालना चाहते हैं।
वहां जंगल में भी मेरा कोई इरादा नहीं था उन राक्षसों से लड के लिए पता नहीं इन्होंने ही मुझ पर कोई जादू किया था जिसकी वजह से मैं इतने बडे- बडे खतरनाक राक्षसों से लड बैठा।
जब मुझे इस बात का रिलाइजेशन हुआ कि मैंने कितने बडे- बडे खतरनाक राक्षसों को हराया है।
तुम मेरे दिल की धडकन बाप रे बाप कितनी ज्यादा तेज थी। इस वक्त अर्जुन की आत्मा के दिल का दिमाग जोरों से चल रहा था।
और रह कर वह अब वो घूर कर खा जाने वाली नजरों से महागुरु ईश्वर आनंद की और ही देख रहा था।