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mysterious reborn

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यह कहानी एक साधारण से, दुबले-पतले से दिखने वाले लड़के की है, जिसके मां-बाप का कुछ पता नहीं। सभी ने उसकी दिल खोलकर बेइज्जती की। कभी किसी ने उसे प्यार नहीं किया। लेकिन फिर अचानक, एक दिन हुआ कुछ ऐसा—उसका एक बहुत भयानक एक्सीडेंट हो गया। उसने भी जीने की इ...

Total Chapters (16)

Page 1 of 1

  • 1. mysterious reborn - Chapter 1

    Words: 2163

    Estimated Reading Time: 13 min

    बैंगलोर में रहने वाला अर्जुन वर्मा, जो एक साइंस का स्टूडेंट था और अपनी दुनिया में काफी ज्यादा टैलेंटेड था, अचानक एक अजीब-सी घटना का शिकार हो गया। जब उसे होश आया, तो उसने खुद को किसी और समय, किसी और शरीर में बंद पाया—एक अंधेरी जेल की सीलनभरी कोठरी में।
    अर्जुन के सामने की दीवारें गीली थीं, ऊपर से पानी टपक रहा था। सांसें भारी हो रही थीं, और शरीर... शरीर अपना नहीं लग रहा था।

    "ये... ये हाथ... ये आवाज़... ये... मैं कौन हूँ?"
    उसने कांपते हुए अपने चेहरे को छुआ। ये चेहरा अर्जुन का नहीं था।
    अब अर्जुन की सांस पूरी तरह उखड़ने लगी थी।
    शुरुआती झटके के बाद उसका दिमाग जैसे रुक गया। वह ज़मीन पर गिर पड़ा और गहराई से साँसें लेने लगा, जैसे कि खुद से लड़ रहा हो।
    जल्दी ही उसने सोचना शुरू कर दिया था कि कहीं वो कोई सपना तो नहीं देख रहा है।
    "ये सपना है... या उसके किसी प्रयोग का नतीजा? क्या मैं मर गया हूँ? या... ये पुनर्जन्म है?" अर्जुन का दिमाग इस वक्त जोरों से चल रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिरकार उसके साथ हो क्या रहा है क्योंकि उसके हाथ जरूरत से ज्यादा ही मजबूत और ताकतवर से महसूस हो रहे थे, हालांकि अपनी प्रेजेंट लाइफ में अर्जुन एकदम सीधा-साधारण सा दुबला-पतला लड़का था, जो हमेशा से दूसरों की उपेक्षा का शिकार होता रहता था। कोई भी उसे कुछ खास पसंद नहीं करता था, सब लोग उसे नीची नज़रों से देखते थे, लेकिन अब अर्जुन की हालत काफी ज्यादा अजीब हो रही थी। उसका शरीर अचानक से ही काफी ज्यादा चौड़ा और मजबूत और ताकतवर-सा महसूस हो रहा था। उसने आसपास अच्छी तरह से देखना शुरू कर दिया था। यह जगह उसे काफी ज्यादा अजीब लग रही थी। इतनी अजीब जगह उसने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखी थी और जल्दी ही उसकी नजर उस काल कोठरी में कुछ कांच के टुकड़ों पर पड़ी थी। अर्जुन जल्दी से वहां गया और जैसे ही उसने अपना शरीर और चेहरा देखा तो उसकी आंखें हैरानी के मारे फटी की फटी रह गई थीं। यह उसका शरीर तो किसी भी कीमत पर नहीं था। अब अर्जुन अपना दिमाग जोरों से चलाने लगा था और जल्दी ही एक मूवी रील की तरह उसकी पूरी जिंदगी उसकी आंखों के सामने आ गई थी। फिलहाल,

    धीरे-धीरे उसे समझ आया कि वो किसी और के शरीर में है—उस शरीर का नाम "युवान" था, जो एक शक्तिशाली सैनिक था, लेकिन इस समय एक चोरी के झूठे इल्ज़ाम में जेल में था। उसके खिलाफ 1,50,000 तांबे के सिक्कों की चोरी का आरोप था। युवान को मौत की सज़ा सुनाई गई थी। लेकिन ये सब अर्जुन को नहीं पता था

    अर्जुन—या अब युवान—के लिए ये सब किसी सपने से कम नहीं था।

    लेकिन अर्जुन आधुनिक ज़माने का आदमी था, उसका दिमाग काफी ज़्यादा तेज-तर्रार था। वेल, अब धीरे-धीरे उसने खुद को समझाया और आसपास के सिचुएशन को समझते हुए उसने खुद को इस बात का एहसास दिला लिया था कि भले ही मैं...

    "मैं अर्जुन हूँ, लेकिन मेरी आत्मा इस शरीर में है। इसका मतलब है, मैं जिंदा हूँ, लेकिन एक नए रूप में।"

    वेल, एक गहरी साँस लेते हुए, उसने अपनी आँखें बंद कीं और अपने भीतर झाँका—
    उसे अपने बीते जीवन की कुछ झलक दिखाई दी:
    दूसरों की गालियां, अपने जुनून में पढ़ी गई किताबें और कुछ एक्सपेरिमेंट—अपने मामा-मामी के ढेर सारे ताने, नकारा होने का ठप्पा!

    लेकिन आज?
    एक बेगुनाह सैनिक के शरीर में फंसा अर्जुन वर्मा, जो अब युवान बन चुका था।

    उसने खुद से कहा, "अगर मेरी आत्मा इस शरीर में आई है, तो इसके पीछे कोई मकसद है। मैं इसे ऐसे ही नहीं जाने दूँगा।"
    और वैसे भी मेरी पिछली आधुनिक जिंदगी से तो यह जिंदगी काफी ज्यादा अच्छी है, भले ही मुझे यह ना पता हो कि इस वक्त मैं कहां हूं या कहां नहीं, लेकिन मैं सबके बारे में पता लगा लूंगा। शायद ऊपर वाले को मुझ पर तरस आ गया है, इसीलिए उसने मुझे यह जिंदगी दी है। मैं कुछ ना कुछ करके ख़ुदको यहां से बाहर भी निकाल लूंगा और साथ ही साथ जिसके भी शरीर में मैं इस वक्त हूं उसको भी मैं न्याय जरूर दिलाऊंगा। कहीं ना कहीं अर्जुन के दिलो-दिमाग में इस वक्त एक अलग ही तरह की जंग छिड़ी हुई थी और वह हर हाल में जिस दुनिया में वह आया था, उस दुनिया के बारे में सारी बातें जानना चाहता था ताकि वह इस दुनिया में सरवाइव कर सके, हालांकि उसके पास उसके आधुनिक जिंदगी का तेज-तर्रार दिमाग था जिसकी बदौलत वह कुछ भी हासिल कर सकता था, लेकिन उसकी अपनी दुनिया की नजरों में तो वह सिर्फ और सिर्फ एक नाकारा और एक ऐसा इंसान था जिसकी उसे दुनिया को कोई जरूरत नहीं थी और शायद इसीलिए वह कई 100 साल पीछे एक अलग दुनिया में एक शक्तिशाली सैनिक के अंदर आया था। फिलहाल अर्जुन ने सोचा—
    वह इस दुनिया में खुद को साबित करेगा, अपनी पहचान बनाएगा और वॉइस जय कोठारी के अंदर क्यों है इसके बारे में भी पता लगाएगा , और जो भी उस पर इल्ज़ाम लगे है उनसे वह खुद को और इस इंसान को बचाएगा जिसके अंदर वो आया है।

    युवान के रूप में अर्जुन ने जेल की कोठरी में बैठे-बैठे सोचना शुरू किया—
    "अगर ये दुनिया अतीत की है, तो मुझे अपने आपको नए तरीक़े से साबित करना होगा।

    मेरी सोच, मेरी आत्मा साथ ही मेरा दिमाग तो मेरे साथ हैं।"
    कहीं ना कहीं यह सब सोचते हुए अर्जुन पूरी तरह से इमोशनल हो गया था, उसकी आंखों का किनारा तक भीग गया था, लेकिन अब उसकी आंखों में एक ठोस इरादा था।
    अर्जुन ने बेदर्दी से अपनी आंखों को रगड़ दिया था और इमोशनल होकर बोला था,
    "अगर ये मेरा नया जीवन है, तो इसे मैं ही अपनी शर्तों पर जियूँगा।"

    ---
    यह सोचते हुए अर्जुन पूरी रात काल कोठरी में इधर-उधर टहलने लगा था। अंधेरा ज्यादा अंधेरा होने की वजह से उसके आसपास क्या चीज है, कुछ भी उसे समझ में नहीं आ रहा था। उसने पूरी रात खुद को यह समझने में गुजार दी थी कि इस वक्त उसकी आत्मा किसी और के शरीर में है, लेकिन ऐसा उसके साथ क्यों हुआ है इसका उसके पास कोई जवाब नहीं था। फिलहाल तो उसने डिसीजन ले लिया था कि उसकी जिंदगी में यह जो कुछ भी हुआ है वह उसे एक्सेप्ट करेगा और इस शरीर के साथ किसी भी तरह की कोई ना इंसाफी नहीं होने देगा।

    सुबह की पहली किरण अब जैसे ही जेल की सलाखों से भीतर आई, तो युवान (यानी अर्जुन) अपनी कोठरी के कोने में बैठा हुआ था। रातभर वो सो नहीं सका था। पूरी रात उसका मन, शरीर और आत्मा—तीनों अलग-अलग रास्तों पर चल रहे थे।
    अगली सुबह होते ही जैसे ही थोड़ी-थोड़ी रोशनी पूरी की पूरी जेल की कोठरी के अंदर आई अचानक ही अर्जुन की आंखों में चमक आ गई थी और वह अपने आसपास की जगह को देखने लगा था। बड़े-बड़े उस जेल की कोठरी में पत्थर लगाए गए थे। इतने बड़े पत्थर अर्जुन ने कभी नहीं देखे थे और जैसे ही उसकी नजर जेल की लंबी-लंबी मोटी-मोटी लोहे के रोड पर पड़ी तो पूरी तरह से हैरान हो गया था क्योंकि उसने अपने प्रेजेंट लाइफ में उसे अच्छी तरह से पता था कि जेल के सलाखें लोहे की तो जरूर होती थी, लेकिन इतनी मोटी कभी भी नहीं होती थी जितनी की मोटी यहां दिखाई दे रही थी। अर्जुन अभी यह आसपास की जगह को अच्छी तरह से देख ही रहा था कि तभी अचानक
    जेल का दरवाज़ा ज़ोर से खुला और दो सैनिक भीतर आए। और तुरंत वह रोबदार आवाज में बोले थे,
    “राजसभा में ले चलने का आदेश है, कैदी युवान।”

    अब उन दोनों सैनिकों की आवाज सुनकर अर्जुन पूरी तरह से चौंक गया—"और उसने मन ही मन में दोहराया, राजसभा? क्या वह किसी महल की कोठरी में कैद है और यह राज्यसभा क्या है क्योंकि आधुनिक युग में तो अदालत, पुलिस, कोर्ट, वकील यह सब चीज हुआ करती है, है तो फिर यह राज्यसभा क्या है?"और कैदी युवान कौन है?अर्जुन कहीं ना कहीं अपने आसपास की स्थिति को समझने की पूरी तरह से कोशिश कर रहा था और साथ ही साथ अपना दिमाग जोरों से चला रहा था। अर्जुन को कुछ सोचते हुए देखकर दोनों सैनिकों ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर अर्जुन की जंजीरों को थोड़ा सा खींचते हुए बोला था, "क्या हुआ कैदी युवान, क्या तुम्हें सुनाई नहीं दे रहा है, तुम्हें अभी और इसी वक्त महाराज के समक्ष पेश होना है तो अभी और इसी वक्त हमारे साथ चलो।" अर्जुन की क्यूरियोसिटी अब काफी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि आखिरकार यह लोग उसे कहां लेकर जाना चाहते हैं और क्या वाकई राजा महाराजाओं की दुनिया में आ गया है। और यह बार-बार उसे कैदी युवान कहकर बुला रहे हैं यानी कि वह इस वक्त जिस शरीर में है उसे शरीर का नाम युवान है कहीं ना कहीं अर्जुन की आंखों में चमक भी आ रही थी और वह खुद को रोक नहीं पाया और तुरंत ही उन दोनों की और जिज्ञासा पूर्वक देखते हुए बोला था, "मैं राज्यसभा चलने के लिए तैयार हूं, लेकिन क्या आप दोनों मुझे बता सकते हो वहां पर क्या होने वाला है और यह कौन सी जगह है और मुझे क्यों इस काल कोठरी में कैद किया गया है?" अब जैसे ही अर्जुन जो कि अपनी जो कि खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाया था, जैसे उसने यह सवाल उनके सैनिकों से कीया, वह सैनिक एक दूसरे की शक्ल को देखने लगे थे और तभी एक सैनिक दूसरे के कानों में हल्के से सरगोशी करते हुए बोला था, "लगता है मौत की सजा सुनकर यह कैदी युवान पागल हो गया है इसीलिए इस तरह की उल्टी सीधी बातें कर रहा है।" अब जैसे ही अर्जुन के कानों में उनकी आवाज सुनाई दी तो वह पूरी तरह से हक्का-बक्का रह गया था, उसकी हैरानी को उसे वक्त कोई ठिकाना नहीं था। उसने तो सोचा था कि इस जिंदगी को पूरी तरह से अपनआएगा और अपनी शर्तों पर जियेगा, लेकिन यह क्या, यहां तो उसे मौत की सजा दी गई थी, लेकिन क्यों और शायद इसीलिए उसे राज्यसभा में लेकर जाया जा रहा है जहां पर उसकी उसका फैसला सुनाया जाएगा। ..."

    अभी अर्जुन की आंखों में ढेर सारे सवाल थे लेकिन तभी एक सैनिक थोड़ा सा आगे बढ़ा और उसने एक और मोटी सी लोहे की ज़ंजीरों में बाँधकर वो अर्जुन को लेकर जाने लगे थे। इस वक्त अर्जुन को किसी भी चीज का कोई डर या खौफ नहीं था, उसके दिमाग में तो सिर्फ और सिर्फ यह चल रहा था कि आखिरकार उसकी जिंदगी के साथ हो क्या रहा है और जैसे ही अब उसे काल कोठरी से बाहर लेकर जाया गया और धीरे से कुछ सीढ़ियां चलकर उसे तहखाना से ऊपर की ओर लेकर जाया गया तो वहां की खूबसूरती देखकर अर्जुन की आंखें चौंधिया गई थी। उसने इतनी खूबसूरत जगह अपनी पूरी जिंदगी में कहीं नहीं देखी थी। यह महल सोने चांदी से बना हुआ था। इतना खूबसूरत महल तो उसने कभी किस्से कहानियों में ही सुना था। अब यह देखकर तो पूरी तरह से हैरान हो चुका था और जल्दी ही उसके दिमाग में एकहाल ही में जो उसने एक कहानी पढ़ी थी राजवंश राज्य की, उसके कुछ सीन उभर आए थे कि राजवंश का राजमहल कुछ इसी तरह का खूबसूरत था। उस novel के सीन को याद करके अर्जुन अंदर ही अंदर खुश रहो गया था और सोचने लगा था कि क्या वाकई इतना खूबसूरत महल उसे अपनी आंखों से देखने को मिल रहा है। अभी भी उसे लग रहा था कि शायद वह कोई सपना देख रहा है, लेकिन आसपास की खूबसूरती और कहीं से आ रही थी में धीमे बज रही खूबसूरत सी आवाज अर्जुन को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। इस वक्त उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, लेकिन जैसे ही एक सैनिक ने बड़े से लोहे की जंजीर को खींचा अर्जुन को अपने हाथों में दर्द सा महसूस हुआ वह तुरंत ही सैनिक को घूर कर देख कर बोला था, "यह क्या कर रहे हो भाई साहब, मैं चल तो रहा हूं आप लोगों के साथ, फिर इस तरह का मिस बिहेव क्यों कर रहे हो?" अब जैसे ही अर्जुन ने मिस बिहेव शब्द का use किया वह सैनिक एक दूसरे की शक्ल को देखने लगे थे कि यह कौन सी भाषा में बात कर रहा है क्योंकि इंग्लिश का वह लोग नामोनिशान भी नहीं जानते थे। अर्जुन आधुनिक युग का व्यक्ति था तो उसे कितनी सारी लैंग्वेज आती थी और जैसे उसने इस तरह से बोला वह सैनिक हैरानी से एक दूसरे को देखने लगे तब अर्जुन उनकी ओर देखकर बोला था, "तुम लोगों को इस तरह से शर्मिंदा होने की कोई जरूरत नहीं है, तुम चाहो तो मुझे सॉरी भी बोल सकते हो।" अब अर्जुन किस तरह से बोलने पर वह सैनिक फिर से हैरान हो गए और साथ ही साथ एक दूसरे की ओर देखकर बोले थे, "लगता है यह पूरी तरह से पागल हो गया है जो यह इस तरह की हरकतें कर रहा है।"

  • 2. mysterious reborn - Chapter 2

    Words: 2280

    Estimated Reading Time: 14 min

    "फ़िलहाल, जल्दी ही एक बड़े ही खूबसूरत से गलियारे में से निकाल कर अर्जुन को राजसभा के बीचो-बीच लेकर जाया गया था, जहाँ पर मखमली कालीन बिछा हुआ था और वहाँ पर चारों तरफ़ बड़े-बड़े झूमर लगाए गए थे। अर्जुन ने देखा कि एक साथ लाइन से कितने ही सारे लोग, बड़े-बड़े कितने ही सारे हीरे-मोती के गहने पहने हुए बैठे हुए थे और उसके ठीक सामने एक बड़ा सा ताज सर पर लगाए एक प्रभावशाली व्यक्ति बैठा हुआ था। अब अर्जुन ने जैसे यह सब कुछ देखा, तो वह पूरी तरह से शॉक्ड हो गया था। इस वक़्त उसकी हैरानी की कोई सीमा नहीं थी। वह हैरानी से चारों ओर घूम-घूम कर आसपास की जगह को देख रहा था, वहीं उस राजसभा में बैठे हुए सभी दरबारी अर्जुन को अजीब सी नज़रों से देख रहे थे, क्योंकि वह अलग तरह का बर्ताव कर रहा था। ना तो उसने आज सभा में जाकर किसी को भी झुक कर प्रणाम किया और ना ही उसने उसके हाव-भाव में किसी भी तरह का अनुशासन दिखाई दिया, तो सभी लोग अर्जुन को यूँ देखकर हैरान हो रहे थे, एक दूसरे के कानों में बातें भी बना रहे थे, वहीं अर्जुन तो अभी पूरी तरह से इस बात को हज़म कर लेना चाहता था कि इस वक़्त वह वाक़ई एक बड़े से महल के महाराज के सामने मौजूद है और इस वक़्त सबके सब हीरे-मोती पहने हुए उसके सामने बैठे हुए हैं। अर्जुन काफ़ी हद तक शॉक्ड में था, फिर जल्दी ही अर्जुन की नज़र महाराज के ठीक बराबर में बैठी हुई है बहुत ही खूबसूरत औरत पर पड़ी थी, वह महाराज की महारानी थी और महारानी के ठीक बराबर में दो और बेहद खूबसूरत लड़कियाँ बैठी हुई थी, उन्होंने एकदम सफ़ेद रंग के कपड़े पहने हुए थे और उन्होंने भी बाक़ी सब की तरह हीरे-मोती के जेवर पहने हुए थे। अब यह देखकर अर्जुन की तो पूरी तरह से लार टपकने लगी थी, उसने इतनी खूबसूरत लड़कियाँ अपनी पूरी ज़िंदगी में कहीं नहीं देखी थी, वहीं वह राजकुमारी जिसका नाम राजकुमारी संयुक्त था, वह बड़े ही ध्यान से अर्जुन की ओर देख रही थी और अर्जुन भी उसे ही देख रहा था। अचानक ही अर्जुन को ऐसा लगा मानो कि उसका दिल उछल कर गिरने को तैयार है। वह राजकुमारी बड़ी ही खूबसूरत थी, उसकी बड़ी-बड़ी आँखें, दूध सा गोरा बदन और जो उसने कपड़े पहने हुए थे, उसमें उसका आधे से ज़्यादा शरीर दिखाई दे रहा था, जिसमें काफ़ी ज़्यादा -अट्रेक्टिव दिखाई दे रही थी। अचानक अर्जुन खुद को रोक नहीं पाया और राजकुमारी की ओर देखकर बोला था, 'हाय ब्यूटीफुल यू आर लुकिंग सो गॉर्जियस।' अब जैसे ही अर्जुन ने इंग्लिश में राजकुमारी की तारीफ़ की, राजकुमारी का मुँह हैरानी के मारे खुला का खुला रह गया था, लेकिन तभी एक सेनापति और दो से तीन सैनिक तुरंत अर्जुन के सामने आकर खड़े हो गए और अर्जुन पर तलवार तानते हुए बोले थे, 'अपनी हद में रहो युवान, तुम अब राजवंश के सैनिक नहीं रहे, तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ एक कैदी हो। तुमने राजवंश का भारी मात्रा में चाँदी के सिक्के चुराए हैं, तुम्हें उसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी और तुम अच्छी तरह से जानते हो, राजवंश में चोरी करने के सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही सज़ा होती है और वह होती है, मौत।' अब जैसे ही उस सेनापति जिसका नाम जयंत था, उसने आप ग़लत हुई नज़रों से अर्जुन की ओर देखकर यह कहा, अर्जुन की तो आँखें पूरी तरह से हैरानी से भर गई थी और उससे अब जल्दी ही समझ में आ चुका था कि इस वक़्त वह जिस इंसान के शरीर में है, उसे पर चोरी का इल्ज़ाम लगा हुआ है और साथ ही साथ यहाँ चोरी के इल्ज़ाम में उसे मौत की सज़ा दी गई है। अब तो अर्जुन ने तुरंत अपने सर पर हाथ मार लिया था और थोड़ी सी तेज़ आवाज़ में रोने की एक्टिंग करते हुए बोला था, 'ओह गॉड, यह सब क्या है मेरे तुमसे अब मैं अपनी पुरानी ज़िंदगी से परेशान था, तुमने यह मुझे कि ज़िंदगी मिलकर छोड़ दिया जहाँ पर ज़िंदगी इतनी कम है, जबकि आसपास इतना हरा-भरा माहौल है।' अर्जुन ने आसपास की लड़कियों को देखते हुए कहा, वहीं अब सेनापति और साथ ही साथ सभी दरबारी पूरी तरह से हैरान हो रहे थे, क्योंकि उनका शक्तिशाली सैनिक युवान, जो इतना ज़्यादा ताक़तवर था कि एक ही बार में 100 लोगों की जान लेने का वह दम रखता था, वह इस तरह की उटपटांग हरकतें कर रहा था, तो सब लोगों की हैरानी काफ़ी ज़्यादा बढ़ चुकी थी, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आख़िरकार यहाँ हो क्या रहा है, वहीं अर्जुन अभी पूरी तरह से शोक में था, लेकिन तभी महाराज की आवाज़ सुनाई दी थी, 'शांत हो जाओ, यह सब हो क्या रहा है यहाँ पर?"

    ---महाराज की आवाज़ सुनते ही

    दरबार में जो राजगुरु थे, जिनकी आँखों में चालाकी की परछाई साफ़ नज़र आ रही थी, वह तुरंत ही सीधे होकर बैठ गए थे, साथ ही साथ राजा के दाएँ हाथ, सेनापति विक्रम सिंह, जो अभी भी आग उगलती निगाह से युवान को देख रहे थे। वही राजा के पास बैठी हुई राजकुमारी संयुक्त जिसकी आंखों में युवान के लिए कुछ अलग सी फीलिंग दिखाई दे रही थी, लेकिन बार-बार अपने पिता की ओर देखकर वह अपना सर झुका रहे थी, सभी एकदम से खामोश होकर बैठकर महाराज की ओर देखने लगे थे। सब को इस तरह से शांत देखकर अर्जुन खुद को रोक नहीं पाया और महाराज की ओर देखकर बोला था, 'महाराज यह अन्याय है, मैंने कुछ नहीं किया है, मैंने कुछ नहीं चुराया है, आप इस तरह से मुझ पर चोरी का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।' जैसे ही अर्जुन ने भावेश में आकर इस तरह की बातें की, महाराज का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया था और तुरंत ही अपना हाथ खड़ा करके वह बोले थे, 'अपनी हद में रहो सैनिक युवान, हम ने तुम्हारी बहादुरी से और तुम्हारे कौशल से खुश होकर तुम्हें अपने तुम्हें हमने मान सम्मान दिया, अपने सैनिकों में सर्वोच्च सर्वश्रेष्ठ पद तुम्हें दिया, लेकिन तुमने उसके बदले में क्या किया? तुमने हमारे डेढ़ लाखचांदी के सिक्के ही चुरा लिए, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था सैनिक युवान।' जैसे ही महाराज ने यह कहा अर्जुन का चेहरा तुरंत ही पीला पड़ गया था, लेकिन जैसे ही उसके नजर राजगुरु और साथ ही साथ सेनापति विक्रम सिंह पर गई और दोनों आंख दोनों की आंखों में उसने मक्कारी देखी तो उसे समझते देर नहीं लगी कि इस वक्त अर्जुन जिसके भी शरीर के जिस इंसान के वास्ते शरीर के अंदर है जरूर इन दोनों ने ही मिलकर उसे फसाया है, फिलहाल अर्जुन ने गहरी सांस ले आसपास के माहौल को तो उसने एक्सेप्ट कर ही लिया था, लेकिन उसके नजरे बार-बार राजकुमारी संयुक्ता पर फिसल रही थी, उसने अपनी जिंदगी में इतनी खूबसूरत लड़की कभी नहीं देखी थी और वह मन ही मन में सोच रहा था कि अगर यह लड़की उसकी जिंदगी में आ जाती है और उसके बाद यह उसकी असली जिंदगी यानि की आधुनिक जिंदगी में भी जाती है, तो फिर उस टीना का क्या हो गया, टीना तो जल बुनकर ही राख हो जाएगी, वैसे भी उसने उसे धोखा दिया है, वह टीना को किसी भी कीमत पर माफ नहीं करेगा, कहीं ना कहीं यह अभी भी अर्जुन के दिमाग में राजकुमारी को देखकर अलग की तरह के ख्याल आ रहे थे। अब अर्जुन को चुप देखकर महाराज तुरंत बोल पड़े थे, 'सैनिक युवान कुछ हम तुमसे पूछ रहे हैं, अभी भी हम तुम्हें मृत्युदंड से आजाद कर सकते हैं, अगर तुम हमें हमारे चांदी के सिक्के तुमने कहां छुपाए हैं उनके बारे में बताओ दो तो।' अब जैसे ही महाराज की आवाज़ एक बार फिर उसके कानों में सुनाई दी अर्जुन एक बार फिर अपने खूबसूरत हसीन ख्वाब से बाहर आया और तुरंत अपने सर पर टकली मारते हुए सोचने लगा था कि यह क्या उल्टी सीधी बातें सोच रहा है फिलहाल तुझे इस इंसान को बचाना होगा जिस इंसान के शरीर में इस वक्त मौजूद है, अगर इसी तरह से राजकुमारी के सपने देखता रहा तो बहुत जल्द यह महाराज तुझे सूली पर चढ़ा देंगे और जो तू सपना देख रहा है वह सपना तेरा सपना ही रह जाएगा। फिलहाल अर्जुन ने गहरी सांस ली और खुद के इमोशन पर कंट्रोल करके महाराज की ओर देखकर बोला था, 'महाराज मैं बेगुनाह हूं और अपनी बेगुनाही का सबूत जुटाना के लिए मुझे आपसे तीन दिन का समय चाहिए।' अब जैसे ही अर्जुन ने यह कहा सेनापति और राजगुरु दोनों का ही चेहरे का रंग उतर गया था और तुरंत ही राजगुरु उठ खड़े हुए और बोले थे, 'नहीं-नहीं महाराज, हम पहले से ही सारी खोज करवा चुके हैं और सारे सारे सबूत सैनिक युवान की ओर इशारा कर रहे हैं कि उसी ने चोरी की है, मुझे नहीं लगता कि एक चोर को हमें इस तरह से छोड़ना चाहिए।' जल्दी ही सेनापति भी राजगुरु की बात सुनकर उसके हां में हां मिलाते हुए बोला था, 'हां हम महाराज राजगुरु जी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, हमें इस उद्दंड सैनिक को अभी और इसी वक्त मृत्यु दंड दे देना चाहिए।' उन दोनों की यह बात सुनकर अर्जुन कौ उन पर काफी गुस्सा आया था और बिना किसी की परवाह किया अर्जुन उनकी और देखकर बोला था, 'राजगुरु जी और मिस्टर सैनिक जी, आप तो इस तरह का बर्ताव कर रहे हैं मानो कि अगर इन तीन दिनों अगर इन तीन दिनों में मैंने असली चोर को ढूंढ लिया तो कहीं आप लोगों के किसी तरह की कोई पोल खुल जाएगी, कहीं आप लोगों को कोई डर तो नहीं लग रहा?' अब जैसे ही अर्जुन ने बेबाक अंदाज से वहां इस तरह से बोल राजगुरु और सैनिक दोनों का ही मुंह पूरी तरह से उतर गया था और वह तुरंत ही अर्जुन को घुर कर देखने लगे थे, वही जैसे ही बेबाक अंदाज में अर्जुन ने यह बात बोली राजकुमारी की आंखों में चमक आ गई थी और उसके होंठ हल्के से हल्की सी मुस्कुराहट से हिल गए थे। वही अर्जुन को इस तरह से बोलते हुए देखकर सभी राज को दरबारी का मुंह खुला का खुला रह गया था, क्योंकि जितना वह लोग सैनिक युवान के बारे में जानते थे सैनिक युवान सबके सामने सर झुका कर खड़े रहता था और हमेशा अनुशासन पर चलने वाला व्यक्ति था, कभी भी तेज आवाज में बात तक नहीं करता था, लेकिन यहां यहां तो आज सैनिक युवान के रूप रंग चाल ढाल सब कुछ बदले हुए थे वह एक अलग ही दुनिया का प्राणी लग रहा था, लेकिन अपने सामने मौजूद इंसान को वह लोग झुठला भी नहीं सकते थे, वही महाराज को भी अब काफी ज्यादा हैरानी हुई और वह तुरंत ही अर्जुन की ओर देखकर बोले थे, 'अगर तुम्हें लगता है कि तुम तुम निर्दोष हो तो खुद को निर्दोष साबित करो, हम तुम्हें तीन दिनों का समय देते हैं, तीन दिनों तक तुम अपने घर रह सकते हो, तीन दिनों तक के लिए तुम आजाद और याद रखना यहां से भागने की कोशिश मत करना, क्योंकि तुम यह बात अच्छी तरह से जानते हो कि राजवंश से निकलना तुम्हारे लिए किसी भी लिए तरह मुमकिन नहीं होगा।' जैसे ही महाराज ने यह कहा अर्जुन तुरंत मुस्कुरा कर बोला था, 'आपका बहुत थैंक यू थैंक यू सो मच मिस्टर महाराज।' अब जैसे ही अर्जुन एक बार फिर इंग्लिश वर्ड का use किया, महाराज आंखों में हैरानी लाकर अर्जुन की ओर देखने लगे थे, वही सब लोग भी हैरान हो चुके थे कि आखिरकार अर्जुन को हो क्या गया है और यह किस तरह की बातें बोल रहा है , तब सेनापति विक्रम खुद को रोक नहीं पाया और तुरंत महाराज के सामने खड़ा होकर सर झुका कर बोला था, 'महाराज देखा आपने इस कैदी युवान को या आप ही के सामने खड़ा होकर आपको उल्टी सीधी बातें बोल रहा है, आपको गालियां दे रहा है अपनी अलग भाषा में, आपको गालियां दे रहा है आपको इसके खिलाफ सख्त अभी और इसी वक्त एक्शन अभी इसी वक्त आपको ऐसे सख्त से सख्त सजा देनी चाहिए।' अब जैसे ही उसने एक बार फिर आज में घी डालने का काम किया अब जल्दी से अर्जुन बोला था, 'नहीं नहीं महाराज, यह गलत कह रहे हैं सेनापति जी, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया, मैंने तो सिर्फ और सिर्फ आपका शुक्रिया अदा किया है।' अब तुम महाराज पूरी तरह से हैरान हो गए थे कि आखिरकार अर्जुन सैनिक युवान ने कौन सी भाषा में उन्हें शुक्रिया अदा किया है। महाराज खुद को रोक नहीं पाए और बोले थे, 'क्या वाकई तुमने हमें शुक्रिया अदा किया है, लेकिन यह कौन सी भाषा है जिसके बारे में हमें नहीं पता?' तब जल्दी ही महाराज ने विद्वानों की ओर देखा था, उसे दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान वहां मौजूद थे और उनकी और देखकर महाराज बोले थे, 'हमें भी यह भाषा सीखनी है, पता लगाओ कि यह भाषा हमें कौन से खाएगी।' यह बोलकर महाराज वहां से उठ खड़े हुए और दरबार को बर्खास्त करके जाने लगे थे, वहीं अर्जुन की आंखें एक बार फिर राजकुमारी पर जाकर ठहर गई थी, जो की जाते हुए हल्का सा रुक रुक कर मुड़कर बार-बार अर्जुन की ओर ही देख रही थी, वही अर्जुन मुस्कुरा कर राजकुमारी की ओर देख रहा था। अब सेनापति ने जैसे यह देखा कि अर्जुन राजकुमारी को देख रहा है वह तुरंत ही अपना तलवार लेकर अर्जुन के करीब आया और उसकी गर्दन पर तलवार रख कर बोला था, 'अपनी आदतों से बाज आज सैनिक युवान, वरना भी तो तुम्हें सिर्फ चांदी के सिक्कों की चोरी में फसाया है अगली बार मैं तुम्हें जान से मार डालूंगा अगर तुमने राजकुमारी की और आंख उठा कर भी देखा तो।' अब जैसे ही सैनिक सेनापति ने यह बात बोली अर्जुन का दिमाग पूरी तरह से जल उठा था।

  • 3. mysterious reborn - Chapter 3

    Words: 2524

    Estimated Reading Time: 16 min

    और उसे समझ में आ चुका था कि यह सारा मामला लव ट्रायंगल का है, क्योंकि सेनापति की बातों से उसने इस बात का अंदाज़ा लगा लिया था कि ज़रूर युवान को राजकुमारी पसंद थी, और राजकुमारी भी सैनिक युवान को पसंद करती थी। और शायद यही बातचीत सेनापति को रास नहीं आ रही, इसीलिए इसने झूठे इल्ज़ाम में अर्जुन को फँसाया है—यानी युवान को फँसाया है।

    अब तो अर्जुन का दिल एक ही पल में हल्का-फुल्का हो गया था, और वह मन ही मन सोचने लगा था कि, "अगर यह बात सच है और राजकुमारी भी युवान को पसंद करती है, तो मेरी तो बल्ले-बल्ले हो जाएगी! इतनी खूबसूरत राजकुमारी मुझे कहाँ मिलेगी?"

    कहीं न कहीं, ऐसी सोच के साथ अर्जुन पूरी तरह से युवान के किरदार में घुस चुका था, और उसने सोच लिया था कि अब तो चाहे कुछ भी हो जाए, वह खुद को कुछ नहीं होने देगा और इस इल्ज़ाम से भी बाइज्ज़त बाहर होकर रहेगा। और तो और, राजकुमारी के साथ रासलीला भी करेगा!

    इस सोच के साथ अर्जुन मुस्कुराता हुआ, सेनापति की ओर एक आँख मारकर वहाँ से जाने लगा था। सेनापति अब गुस्से से तिलमिला कर रह गया था, और उसने सोच लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह इस युवान को कभी भी बाइज्ज़त बरी नहीं होने देगा।

    ---

    (अर्जुन के वहाँ से जाने के बाद)
    सेनापति ने तुरंत ही अपने गुप्तचरों को आदेश दे दिया कि युवान की हर गतिविधि पर नज़र रखी जाए। उधर अर्जुन—जो अब युवान की पहचान में था—महल के गलियारों में घूमते हुए राजकुमारी से मिलने का कोई रास्ता तलाश रहा था।

    हालाँकि उसे महाराज ने कहा था कि वह तीन दिनों के लिए अपने घर पर रह सकता है, लेकिन अब अर्जुन को तो यह पता नहीं था कि युवान का घर कहाँ है और उसे साथ ही साथ सबूत भी इकट्ठा करने थे। हालाँकि महाराज ने उससे इस बात की भी इजाज़त ले ली थी कि वह सबूतों को इकट्ठा करने के लिए महल के किसी भी कक्ष में जा सकता है और किसी से भी पूछताछ कर सकता है। महाराज अभिमन्यु राजवंश, जो कि न्याय के पूरी तरह से पक्के और अपने वचन के बिल्कुल पक्के थे, उन्होंने युवान से कह दिया था कि वह जो चाहे तीन दिनों में कर सकता है, लेकिन अगर इन तीन दिनों के अंदर-अंदर उसने अपने खिलाफ लगे सभी निर्दोष होने के सबूत नहीं दिखाए, तो वह युवान को बहुत ही भयानक मौत देंगे। मौत का नाम सुनकर अर्जुन काफी हद तक डर भी गया था, लेकिन कहीं ना कहीं उसे अपने इंसानी दिमाग पर पूरी तरह से भरोसा था कि वह हर हाल में अपने आपको बचाकर ही रहेगा। भले ही उसकी आधुनिक ज़िंदगी हो। महल की खूबसूरती को देखता हुआ आगे ही बढ़ रहा था कि तभी अचानक वह किसी से टकरा गया। अब जैसे वह टकराया, उसे आदमी की आँखों में उस वक्त लंबे-लंबे आँसू थे। अब जैसे ही उस आदमी ने युवान को देखा, युवान ने उसे देखा, उसने तुरंत उसे सॉरी बोल दिया था कि वह गलती से उससे टकरा गया, लेकिन वह आदमी तुरंत ही युवान के गले से लिपट पड़ा था और रो पड़ा था। अब यह देखकर अर्जुन की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था, और वह उसे शांत करते हुए बोला था, "अरे भाई, क्या हुआ है तुझे, जो इतनी ज़ोरों से तो मैं तुझे टकरा भी नहीं मारा कि तू इतनी बुरी तरह से रो रहा है, क्या हुआ है, इतनी बुरी तरह से क्यों रो रहे हो भाई तुम?" जैसे ही अर्जुन ने अपनी चुलबुले अंदाज़ के मुताबिक़ उससे इस तरह से बातें की, वह आदमी रोता-रोता भी कंफ्यूजन से अर्जुन की ओर देखने लगा था और बोला था, "मैं आपके लिए तो रो रहा था, मुझे लगा कि शायद आज आपकी ज़िंदगी का आख़िरी दिन होगा और अभी तक आपको फाँसी दे दी गई होगी, लेकिन आपको सही सलामत देखकर आप सोच भी नहीं सकते कि इस वक्त मैं कितना ज़्यादा खुश हूँ।" अब यह सुनकर अर्जुन पूरी तरह से शकपका गया और जल्दी ही अपने दिमाग़ की बत्ती को जलाते हुए उसे यह समझ में आ चुका था कि यह इंसान ज़रूर इस शरीर का यानी युवान का जानने वाला है। तब अर्जुन ने गहरी साँस ली और उसकी ओर देखकर कहा था, "ओह माफ़ करना, मैं कुछ गहरी सोच में था तो इसीलिए मैं तुमसे टकरा गया। तुम... तुम मुझे जानते हो?" जैसे ही अर्जुन ने एक बार फिर इस तरह का सवाल किया, अब तो वह आदमी पूरी तरह से अपने माथे पर बल लाकर बोला था, "क्या हो गया आपको, भ्राता युवान, आप किस तरह की बातें कर रहे हैं?" अब जैसे ही उस आदमी ने यह कहा, जल्दी ही अर्जुन अपने आपको कंट्रोल करके भारी मन में बोला था, "शांत हो जा अर्जुन, शांत हो जा, अगर इस तरह से इतनी ज़्यादा जिज्ञासा इस आदमी के सामने दिखाएगा तो वह तुझे एक मिनट में पहचान लेगा, हो सकता है कि जो शरीर इस वक्त तेरे साथ है वह शरीर का कुछ ख़ास जानने वाला हो।" तभी अर्जुन झूठ-मूठ अपनी आँखों में नमी लाते हुए बोला था, "क्या करूँ मैं भाई, जब से काल कोठरी में बंद हुआ हूँ, तब से अपनी सोचने-समझने की शक्ति खो बैठा हूँ, मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मैं कहाँ जाऊँ, क्या करूँ, क्या ना करूँ।" अब जैसे ही अर्जुन ने थोड़ा सा मुँह बनाते हुए यह कहा, एक बार फिर सामने खड़े हुए इंसान ने अर्जुन को गले से लगा लिया था और बोला था, "तुम क्यों परेशान होते हो, मैं हूँ ना, मैं हूँ तुम्हारा ख़्याल रखूँगा। अब तुम चलो मेरे साथ, घर पर सब लोग बहुत ज़्यादा दुखी हैं और तुम्हारी माँ, तुम्हारी माँ का तो रो-रो कर बहुत बुरा हाल है, तुम चलो, तुम्हारा पूरा परिवार तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है, चलो मेरे साथ।" अभी तक अर्जुन को शादी का नाम पता कुछ भी नहीं पता चला था, लेकिन जिस तरह से वह उसे चलने के लिए कह रहा था, तो वह समझ चुका था कि ज़रूर यह युवान का कोई ना कोई ख़ास आदमी है। फ़िलहाल अर्जुन के पास उसके साथ चलने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था, इसीलिए अर्जुन उसके साथ चलने लगा था और अर्जुन ने अपने दिमाग़ का इस्तेमाल करते हुए चालाकी से युवान के बारे में जितनी हो सकती थी उतनी इनफ़ॉर्मेशन उससे निकाल वाली थी, जैसे कि युवान कब क्या करता था, उसके घर में कौन-कौन था और कब से कितने दिनों से वह काल कोठरी में था, यह सारी बातें उसने जल्दी ही पता लगा ली थीं और महल से बाहर निकालकर छोटी-छोटी गलियों को पार करके जल्दी ही अर्जुन उस आदमी के साथ एक जगह पर खड़ा हुआ था और उसका ठीक सामने बड़ा ही खूबसूरत सा घर था। यह घर देखकर अर्जुन हैरान हो गया और उस आदमी की ओर देखकर बोला था, "यह घर तो बहुत खूबसूरत है।" तब वह आदमी अपने चेहरे पर फिर से हैरानी लाते हुए बोला था, "क्या बात है आयुष्मान भाई, भ्राता आप काफ़ी कुछ बदले-बदले से लग रहे हैं, मैं समझता हूँ कि काल कोठरी अच्छे-अच्छों को बदल देती है, लेकिन आपको तो कुछ ज़्यादा ही बदल दिया है। यह घर तो अच्छा होगा ही ना, अपने दिन-रात मेहनत करके खून-पसीने की कमाई से जो इसे बनाया है, और आपको पता है महाराज ने आपको कितना बड़ा मान-सम्मान दिया था, पर पता नहीं यह चोरी का इल्ज़ाम कैसे आपकी ज़िंदगी में आ गया और आपकी ज़िंदगी क्या से क्या हो गई।" जैसे ही उस आदमी ने अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए यह कहा, तभी एक लड़की की आवाज़ अर्जुन और साथ ही साथ उस आदमी के कानों में आई थी। वह लड़की थोड़ा सा तेज़ आवाज़ में बोली थी, "देव भाई!" अब जैसे ही उस लड़की ने यह बोला, अर्जुन भी हैरानी से उसकी ओर देखने लगा था। एक बड़ी ही प्यारी, खूबसूरत सी लड़की वहाँ खड़ी हुई थी और उसने जाकर देव से, देव की ओर देखकर कहा था, "देव भाई अब आप अकेले आ गए और युवान भाई... युवान भाई कैसे हैं? कुछ पता चला, वह ठीक तो है ना?" अभी तक उस लड़की ने युवान को वहाँ नहीं देखा था, क्योंकि युवान का चेहरा दूसरी ओर था। अब उस लड़की के इस तरह से बोलने पर अर्जुन भी हैरान हो गया और तुरंत पलट कर उस लड़की को देखने लगा था। वहीं उस लड़की ने जैसे ही अपने सामने युवान को देखा, वह तुरंत खुद को रोक नहीं पाई, खुशी से चिल्ला कर उसने उसे गले से लगा लिया था और फूट-फूट कर रोने लगी थी। अब उस लड़की को इस तरह से रोता हुआ देखकर युवान को यानी अर्जुन को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था और वह उसे शांत करते हुए कहने लगा था, "हे रिलैक्स, कौन हो तुम और इस तरह से क्यों रो रही हो, प्लीज़ शांत हो जाओ।" अब जैसे ही अर्जुन ने अपनी आदत के मुताबिक इस तरह से बात की, अब तो वह लड़की भी चौंक गई और साथ ही साथ देव का भी हैरानी के मारे बुरा हाल था, लेकिन वह तुरंत ही उस लड़की के कानों में सरगोशी करते हुए बोला था, "मदिरा, तुम्हें ज़्यादा परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है, जब से अर्जुन काल कोठरी में... जब से युवान काल कोठरी में रहकर आया है, अजीब अजीब सी बातें कर रहा है, तो मुझे लगता है कि हमें उसे थोड़ी देर आराम करने के लिए उसके कक्ष में लेकर जाना चाहिए।" अब जैसे ही उसने उस लड़की से यह कहा, यशिका तुरंत ही अर्जुन से अलग हुई और उसका हाथ पकड़कर बोली थी, "आप नहीं जानते युवान भ्राता, जब से आप उस काल कोठरी में बंद हुए थे, हम लोगों का जीना पूरी तरह से दुश्वार हो गया था, सब लोग हमें नीची नज़रों से देखने लगे थे, कहाँ तो हम पूरे के पूरे राज्य में सम्मान की दृष्टि से देखे जाते थे, लेकिन जब से आप पर चोरी का इल्ज़ाम लगा, हमारी तो मानो पूरी तरह से दुनिया ही पलट गई, सब लोग हमें नीची नज़रों से देखने लगे युवान भ्राता, लेकिन आप लौट आए इसका मतलब साफ़ है कि आप पर चोरी का इल्ज़ाम साबित नहीं हुआ, अब देखना मैं सब लोगों को बताऊँगी कि मेरा भाई चोर नहीं था।" जैसे ही उस लड़की ने रोते हुए स्वर में यह कहा, अब तो अर्जुन समझ चुका था कि सामने खड़ी हुई लड़की कोई और नहीं बल्कि युवान की छोटी बहन है। तब अर्जुन ने आगे बढ़कर उसके सर पर हाथ रखकर कहा था, "तुम परेशान मत हो, बहुत जल्द तुम्हारा भाई सभी के सामने निर्दोष साबित हो जाएगा।" जैसे ही अर्जुन ने आत्मविश्वास के साथ यह कहा, यशिका भी उसका हाथ थाम कर मुस्कुरा दी थी और बोली थी, "अब चलिए जल्दी से, माँ आपकी कब से राह देख रही है, आइए ना, अंदर चलिए।" यह बोलकर जल्दी ही वह उसे घर... उसे घर के अंदर ले गई थी और जैसे ही अर्जुन अंदर गया, उसने सामने बैठी हुई औरत को देखा, तो उसकी आँखें पूरी तरह से बाहर निकलने को तैयार थीं। सामने बैठी हुई औरत उसे काफ़ी ज़्यादा जानी पहचानी सी लग रही थीं। अर्जुन पूरी तरह से हैरान और परेशान था कि यह औरत, यह कौन हो सकती है, क्योंकि इस औरत को उसने अपनी आधुनिक ज़िंदगी में कहीं देखा था, लेकिन उसने कितना ही दिमाग़ पर ज़ोर लगा लिया था, लेकिन वह समझ ही नहीं पा रहा था कि इस औरत को उसने कहाँ देखा था, लेकिन फ़िलहाल अब उसकी माँ ने उसके सामने... सामने खड़े हुए बेटे युवान को देखकर जल्दी से उसे गले से लगा लिया था और रोते हुए बोलने लगी थी, "मेरा बच्चा तू आ गया, तू नहीं जानता कि तेरे जाने के बाद इस माँ की ज़िंदगी में चारों तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा था, मेरा बच्चा रोशनी की किरण बनकर मेरी ज़िंदगी में वापस आ गया है।" यह बोलकर वह फूट-फूट कर रोने लगी थी, लेकिन तभी देव जो कि अर्जुन को काफ़ी देर से नोटिस कर रहा था, उसकी ऊटपटाँग बातें भी सुन रहा था, तब उसने उसकी माँ की ओर देखकर कहा था, "माँ, अभी अर्जुन काल कोठरी से निकलकर आया है, मुझे लगता है कि आपको उसे कुछ खिलाना पिलाना चाहिए, देखो ना कितना ज़्यादा दुबला पतला सा हो गया है और एक सैनिक का दुबला पतला होना किसी भी लिहाज़ से ठीक नहीं है।" देव के कहने पर उसकी माँ अपने आँसुओं को साफ़ करके तुरंत ही अपनी बेटी यशिका से बोली, "बेटी खड़ी-खड़ी मुँह क्या देख रही है, तेरा भैया आया है, जल्दी से जाकर खाना लगा उसके लिए, आज मैं अपने हाथों से अपने बेटे को खाना खिलाऊँगी।" कहीं ना कहीं अर्जुन मन ही मन अभी इमोशनल सा होने लगा था, क्योंकि उसे ज़िंदगी में कभी परिवार का प्यार ही नहीं मिला था, लेकिन जिस तरह से यहाँ पर एक बहन का प्यार उसे मिल रहा था, एक माँ का प्यार उसे मिल रहा था, तो उसके दिल में कुछ अजीब सी हलचल हो रहे थे और उसने मणिमान बैठा लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह उन लोगों पर किसी भी तरह की कोई आँच नहीं आने देगा। फ़िलहाल जल्दी है उसने भी युवान की माँ के हाथों से खाना खाया था और देव की ओर देखकर बोला था, "मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है, तुम मेरे साथ अंदर आओ।" अब जल्दी ही देव अर्जुन के ठीक पीछे-पीछे जाने लगा था। अर्जुन देव की ओर देखकर कहा था, "देखो मैं जानता हूँ कि तुम्हें मेरी हरकतें काफ़ी ज़्यादा अजीब लग रही होंगी, लेकिन तुम मेरी बात ध्यान से सुनो, मेरे पास सिर्फ़ और सिर्फ़ तीन दिन का समय है, तीन दिन के अंदर-अंदर मुझे हर हाल में अपने आपको निर्दोष साबित करना है। अगर पर तीन दिनों के अंदर खुद को निर्दोष साबित नहीं कर पाया तो मेरी मुझे सरेआम फाँसी पर लटका दिया जाएगा।" जैसे ही अर्जुन ने यह बात बोली, अब तो देव पूरी तरह से हक्का-बक्का रह गया था और वह बोला था, "लेकिन ऐसे कैसे हो सकता है, तुम्हें तो वैसे तो बरी कर दिया गया है ना, फिर तीन दिन की मुहलत... यह सब क्या... यह क्या कह रहे हो तुम?" तब अर्जुन ने गहरी साँस ली और वह बोला था, "देखो काल कोठरी में रहने के बाद काफ़ी सारी चीज़ें ऐसी हैं जो मैं भूल चुका हूँ, तो इसमें मुझे... मुझे इसीलिए तुम्हारी मदद की ज़रूरत है, तुम मेरे बारे में जो कुछ भी जानते हो, छोटे से छोटी, बड़ी से बड़ी चीज़ सारी बातें मुझे बताओ प्लीज़, क्योंकि मुझे लगता है कि तुम मेरे बारे में ज़रूर सब कुछ जानते हो।" जैसे ही अर्जुन ने बात बनाते हुए थोड़ा सा इस तरह से देव को फ्रेम किया, देव भी सोचने पर मजबूर हो गया और सोचने लगा की काल कोठरी तो अच्छे-अच्छों को बदल देती है, तो शायद इसीलिए युवान के दिमाग़ पर काफ़ी ज़्यादा बुरा असर पड़ा है, इसीलिए वह इस तरह की बातें कर रहा है। तब देव ने गहरी साँस लिया और बोला था, "हाँ हाँ क्यों नहीं, मैं जानता हूँ और मैं तेरी मदद करने के लिए हमेशा से तैयार हूँ, तो तू क्यों परेशान होता है, मैं हूँ तेरे साथ और मुझे पूरी उम्मीद है कि तू अपने आप को निर्दोष साबित भी ज़रूर कर ही देगा।"

  • 4. mysterious reborn - Chapter 4

    Words: 2272

    Estimated Reading Time: 14 min

    देव की बात सुनकर, अर्जुन ने गहरी सांस ली और मन ही मन में सोचने लगा, " अगर उसे युवान के बारे में सब कुछ जानना है?" वह अर्जुन है। उसे यह बात पूरी तरह से भूलनी होगी, क्योंकि अगर भूलकर भी युवान के अर्जुन होने का सच किसी के भी सामने आ गया, तो ये लोग उसे मारने से पहले बिल्कुल भी नहीं सोचेंगे।"



    इसी सोच के साथ, अब अर्जुन ने गहरी सांस ली और देव की ओर देखकर बोला, "देव, मेरे दोस्त, तुम्हें देखकर मुझे साफ पता चल रहा है कि तुम शुरू से ही मेरे सुख-दुख हर चीज में मेरे साथ रहे हो। लेकिन आज मुझे तुम्हारी वाकई बहुत ज्यादा जरूरत है, तो तुम्हें मेरी मदद करनी ही होगी।"



    जैसे ही अर्जुन ने थोड़ा सा इमोशनल होकर यह बात बोली, देव का हैरानी के मारे बुरा हाल हो चुका था। उसने तुरंत ही युवान को गले से लगा लिया और बोला, "मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि पिछले 30 दिनों की काल कोठरी में रहने के बाद तुम इतना ज्यादा बदल जाओगे। तुम जानते हो, तुम्हारे मुंह से अपने लिए 'भाई' सुनने के बारे में मैं तरसता था। तुम कभी भी किसी से ज्यादा बात नहीं करते थे; तुम बहुत ही कम बोलने वाले, एकदम अनुशासन वाले व्यक्ति थे। हर काम तुम्हें अनुशासन से करना पसंद था—अनुशासन से उठना, नियम से खाना, नियम से पीना, नियम से सारे काम करना, राजा के लिए अपनी जान तक हाजिर रखना—ये सब तुमने किया है। तुम जानते हो, जब तुम पहली बार इस राजवंश राज्य में आए, तुमने आते ही महाराज की जान बचाई थी। महाराज को एक बहुत ही ज्यादा विषैले सर्प ने काट लिया था, और तुमने बिना अपनी जान की परवाह किए, अपनी खास विद्या का इस्तेमाल करके महाराज की जान बचाई। उस दिन के बाद से महाराज तुमसे इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने तुम्हें सीधा-सीधा अपने राज्य का उच्च, सर्वश्रेष्ठ सैनिक बना दिया था। लेकिन उसे सेवा का जो सेनापति विक्रम सिंह था, उसे तुम कभी भी पसंद नहीं आए। उसने तुम्हें नीचा दिखाने की बहुत ही ज्यादा कोशिश की, लेकिन कोई भी तुम्हें हरा नहीं सकता था, क्योंकि तुम्हारे अंदर इतनी , इतनी ताकत थी कि तुम्हारा एक साथ 100से ज्यादा सिपाही को युद्ध में हरा सकते थे। इसीलिए, सेनापति ने तुमसे उलझने की बजाय, तुम्हें चोरी के इल्जाम में फंसा दिया, और, सब कुछ इस तरह से किया कि किसी को भी शक नहीं हुआ; उसकी बात ही सबको सही लगने लगी। और उसने इस बात की भी परवाह नहीं की तुम्हें इस राज्य में महाराज की सेवा करते हुए 1 साल से भी ज्यादा का समय हो गया है।"



    जैसे ही गहरी सांस लेते हुए देव ने अटक-अटक कर युवान के बारे में बातें अर्जुन को बतानी शुरू की, अर्जुन सांस थाम कर सारी बातें सुन रहा था, और उसकी बातों से वह इस बात का अंदाजा भी अच्छी तरह से लगा चुका था कि अगर इस राज्य में उसके कितने ही दुश्मन हैं, सेनापति तो सिर्फ और सिर्फ अभी एक चेहरा है, क्योंकि अगर राजा के दरबार में किसी सैनिक को ऊंचा स्थान मिल जाए, तो उसे इतनी आसानी से फसाया नहीं जा सकता; जरूर उसके साथ कोई और भी मिला हुआ है। कहीं ना कहीं, अर्जुन को राजनीति की कड़ी याद आ रही थी, और वह मन ही मन में सोचने लगा था, "मैंने तो सोचा था कि हमारे आधुनिक जीवन में ही ये राजनीति चलती है, लेकिन ये राजनीति तो कई हजार वर्षों से चलती हुई आ रही है।"



    फिलहाल, अर्जुन ने गहरी सांस ली और वह बोला, "और राजकुमारी संयुक्ता? राजकुमारी संयुकता के बारे में कितना जानते हो तुम?"



    तब राजकुमारी का नाम आने पर, देव तुरंत ही अर्जुन को धीमे स्वर में बोलने के लिए कहने लगा था और बोला, "राजकुमारी का गलती से भी नाम मत लेना। तुम्हें याद है, उस वक्त घोड़े की प्रतियोगिता वाले दिन जो स्पर्धा हुई थी, जिसमें तुम विजई हुए थे, तब राजकुमारी ने तुम्हें अपना व्यक्तिगत अंगरक्षक बना लिया था, और महाराज ने भी इसकी अनुमति दे दी थी। फिर, जब तुमने राजकुमारी को घुड़सवारी सीखाते वक्त उसे एक बार घोड़े से गिरने से बचाया, और राजकुमारी को तुमने छू लिया था, तो यह बात सेनापति को कुछ खास पसंद नहीं आई थी। सेनापति ने इस बात को रोड मरोड़ कर राजकुमार के सामने, महाराज के सामने पेश किया था। उस दिन के बाद से तुमने राजकुमारी को सवारी नहीं सिखाई। पर , युवान भाई, मुझे लगता है कि जरूर तुम्हारे जेल तुम्हें सलाखों के पीछे भेजने में सेनापति के साथ-साथ कोई और भी मिला हुआ है, लेकिन तुम जानते हो कि वो सब बड़े-बड़े लोग हैं, और हम लोग... हम लोग एक मामूली से लोग हैं; हमें रातों-रात वो लोग कहां गायब करवा देंगे, कोई हमारे बारे में जान भी नहीं पाएगा। इसीलिए, हम लोग उनका मुकाबला नहीं कर सकते हैं।" यह कहते हुए, देव थोड़ा सा इमोशनल हो गया था, और जल्दी ही उसने अपनी पीठ युवान को दिखा दी थी।



    अब युवान—यानी अर्जुन—ने जैसे ही देव की पीठ देखी, तो उसकी आंखें से बड़ी-बड़ी हो गई थीं। देव के पूरे शरीर पर कोड़ों से मारने के निशान मौजूद थे। यह देखकर अर्जुन खुद को रोक नहीं पाया और बोला, "देव भाई, यह क्या हुआ तुम्हें? और कि तुम्हें किसने इतनी बुरी तरीके से मारा है?"



    हां, तब देव हल्का सा मुस्कुरा कर, लेकिन आंखों में नमी लिए अर्जुन की ओर देखकर बोला था, "क्या आपको याद नहीं, जब आप पर चोरी का इल्जाम लगाकर आपको काल कोठरी में ले जाया जा रहा था, तब एक लौता मैं था जो वहां जिसने इस बात के खिलाफ आवाज उठाई थी, और बस मुझे भरी सभा में आवाज उठाना ही भारी पड़ गया था। तब सेनापति ने अपने कुछ सैनिकों से मुझे सो कोड़े लगवाए थे। इसीलिए, तो मैं 7 दिनों तक बिस्तर में पड़ा रहा था। 7 दिनों के बाद आज तुम्हारा फैसला होना था। मुझे लगा था कि तुम्हें आज शायद फांसी दे दी गई होगी, तो मैं तुम्हारी लाश को लेने के लिए ही महल आया था—महल में गया था, लेकिन तुम्हें सही सलामत देखकर तुम सोच भी नहीं सकते कि मैं कितना ज्यादा खुश हूं।"



    जैसे ही कम शब्दों में देव ने युवान की जिंदगी का पहलू अर्जुन को दिखाया, अर्जुन की तो आंखें पूरी तरह से हैरानी से भर गई थीं, और वह मन ही मन में सोचने लगा था कि क्या इस जन्म में उसका कोई इतना अच्छा और पक्का दोस्त हो सकता है कि उसके लिए उसने 100 कोड़े तक खा लिए? वही अर्जुन की आंखों के सामने जल्दी ही एक दृश्य उभर आया था। आधुनिक जिंदगी में उसका कोई दोस्त नहीं था; जिस जिंदगी से वह आया था, उस जिंदगी में उसे केवल धोखे, तानों के अलावा कभी कुछ नहीं मिला था, और कभी किसी ने उससे प्यार से बात तक नहीं की थी। मन ही मन में वह एक लड़की को पसंद करता था, लेकिन उस लड़की ने भी कभी उसे कोई भाव नहीं दिया, और हद तो तब हो गई जब अर्जुन ने जिसे वह बचपन से प्यार करता था, उस लड़की को किसी और लड़के की बाहों में रंग रेलिया मनाते हुए देखा। वह भी कोई और नहीं, उसी के मां का लड़का था, और जब अर्जुन ने यह देखा, उसके मामा के बेटे वैभव ने उसे बड़ी बुरी तरह से मारा पीटा था। उस वक्त जोरदार झमाझम बारिश हो रही थी। अर्जुन ने सोच लिया था कि वह अपनी इस नर्क भरी जिंदगी को खत्म कर लेगा; ऐसी जिंदगी से तो अच्छा है कि वह अपनी जान ही दे दे। कहीं ना कहीं यह सोचते हुए वह अपनी जान देने के इरादे से घर से निकला था। उसके बाद उसके साथ क्या हुआ, उसे कुछ भी याद नहीं था। उसके बाद जब उसकी आंखें खुलीं, तो उसने खुद को सैनिक युवान के शरीर में पाया और खुद को एक काल कोठरी में बंद पाया।



    अब अर्जुन को इस तरह से गहरी सोच में देख कर, देव ने तुरंत इसका कंधा पकड़ कर हिलाया था और बोला था, "क्या बात है युवान भ्राता? तुम इतना क्या सोच रहे हो? इतना परेशान क्यों हो?"



    तब अर्जुन ने गहरी सांस ली। अपनी जिंदगी की कड़वी सच्चाई देखकर वह थोड़ा सा इमोशनल हो गया था। फिलहाल उसने गहरी सांस ली और मन मन में बोला था, "भले ही मेरी पुरानी जिंदगी सिर्फ और सिर्फ दुखों से भरी थी, लेकिन यह जिंदगी... यह जिंदगी तो मैं महाराजाओं की तरह ही जिऊंगा। इस जिंदगी को मैं अपने हिसाब से जिऊंगा। भले ही मुझे किसी और का शरीर मिला हो या किसी और की जिंदगी मिली हो, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं इस जिंदगी को ही अपना बनाऊंगा।" मन ही मन में यह संकल्प करता हुआ अर्जुन एक गहरी सोच में था। फिलहाल उसने देव का हाथ पकड़ कर कहा था, "यह बताओ, तुमने कोई दवाई ली? कोई पेन किलर वगैरह खाया? तुम्हें काफी ज्यादा गहरे घाव लगे हैं।"



    जैसे ही अर्जुन ने यह बोला, अब देव हैरानी से अर्जुन की ओर देखकर बोला था, "पेन किलर? वो क्या होता है? और ये तुम किस भाषा में बात कर रहे हो?"



    तब अर्जुन ने तुरंत ही अपने सर पर एक टकली मार ली थी। वह सोचने लगा था कि अगर वाकई उसे इस जिंदगी में जीना है, तो उन्हें यहां की भाषा अपनानी होगी; उन्हें बिल्कुल कोई भी अंग्रेजी का शब्द यहां इस्तेमाल नहीं करना होगा, वरना उसके लिए सिचुएशन संभालनी काफी ज्यादा मुश्किल हो जाएगी। इसीलिए, जल्दी से अर्जुन बात बनाते हुए बोला था, "वह तुम मेरी बातों का प्लीज बुरा मत मानना। जब से मैं कुछ दिनों तक बिल्कुल अंधेरी कोठरी में रहकर आया हूं, पता नहीं मुझे अजीब सा लग रहा है।"



    तब जल्दी से देव फिक्र में धोकर बोला था, "हां हां, मैं जानता हूं कि किसी के लिए भी इस तरह से काल कोठरी में रहना कितना बड़ा नरक को झेलने के समान है, लेकिन तू फिकर मत कर। हम... मैं तेरी पूरी पूरी मदद करूंगा और हमेशा हमेशा के लिए तुझे इस इल्जाम से भी निर्दोष साबित करवाऊंगी। मुझसे जो बन पड़ेगा, मैं करूंगा। बस तू एक बार मुझे आवाज देकर देखना।"



    जैसे ही देव ने अपनेपन से कहा, अर्जुन ने उसे गले से लगाया था और जल्दी ही उसके शर्ट को उतार कर उसे उल्टा लेटने के लिए कहा और बोला था, "मैं अभी आता हूं; तुम यहां पर लेटे रहो।"



    अब देव थोड़ा सा हैरान भी हो गया, लेकिन फिलहाल अर्जुन की बात मानते हुए वह चुपचाप वहां लेट गया। तब अर्जुन जैसे ही बाहर गया, उसने देखा कि युवान की मां उसकी आंखों के सामने खड़ी हुई थी। तब अर्जुन ने अपनी आंखें चुराते हुए युवान की मां की ओर देखकर बोला था, "वह... आंटी जी..."



    पहली बार जैसे उसने युवान की मां को आंटी बोला, अब तो युवान की मां यशस्वी जी की आंखों में कितने ही सारे सवाल आ गए थे, और वह तुरंत ही युवान के पास आकर उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली थी, "क्या बातें बेटा? यह क्या अजीब सा शब्द बोल रहा था? तू ठीक तो है ना? मुझे तेरी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही है।"



    अब जल्दी से अर्जुन ने मन में खुद को कोसा और सोचने लगा कि उसे हो क्या गया है। अगर उसे यह जिंदगी जीनी है, तो युवान की जैसे ही बोलना होगा। वो अर्जुन है, यह बात उसे बिल्कुल पूरी तरह से बुलानी होगी। फिलहाल उसने गहरी सांस लिया, तुरंत ही यशस्वी जी की ओर देखकर बोला, "मां, मुझे थोड़ा सा हल्दी की जरूरत है।"


    ये सुनकर युवान कि मां यशस्वी जी चौक गई और बोली थी "हल्दी की जरूरत है, आओ बेटा मैं तुम्हें अभी दे देती हूं" यह बोलकर वह उसे जल्दी ही रसोई घर में ले गई थी।



    अब तो युवान की आंखें हैरानी से मार फटे की फटी रह गई थी, क्योंकि उसे रसोई घर में कुछ भी सामान पिसा हुआ नहीं था; हल्दी की मोती मोती गांठे मां रखी हुई थी। अब तो वह आश्चर्यचकित होकर यशस्वी जी की ओर देखकर बोला था, "मां क्या यहां पर पिसी हुई हल्दी नहीं मिलती?" जैसे उसने इस तरह की बात की, अब एक बार फिर उसकी मां पूरी तरह से चौंक गई, बोली थी, "क्या बात है बेटा? पिसी हुई हल्दी वह क्या होती है? तुम कहना क्या चाहते हो?"



    तब उसने जल्दी से अपने सर पर थोड़ा सा हाथ रखा और बोला था, "वह... मुझे यह वाली हल्दी बिल्कुल बारीक बारीक पिसी हुई चाहिए।"



    अब युवान की बात सुनकर, जल्दी ही यशस्वी जी ने एक बड़ा सा कुछ हल्दी कूटने का सामान लिया और फटाफट से कुछ ही मिनट के अंदर अंदर उन्होंने बड़ी ही बारिक हल्दी पीसकर युवान के हाथों में थमा दी थी। अब उनका इस तरह से इतनी फटाफट काम करते हुए देखकर अर्जुन की आंखें हैरत से फैल गई थी, और सोचने लगा था, "क्या पिछले जमाने में यानी कि इस जन्म में इस लेडिस के पास एक भी पिसा हुआ मसाला नहीं होगा? क्या ये घर का खाना इसी तरह से रोज पीसकर बनाती है?"



    फिलहाल अर्जुन के पास यह सब सोचने का समय नहीं था, और उसने जल्दी से मुस्कुरा कर मां को शुक्रिया अदा किया और हल्दी में कुछ और केमिकल्स मिलकर वह सीधा देव के पास आ गया था। आखिरकार अर्जुन ने ऐसी कोई किताब नहीं थी जो ना पढ़ी हो, डॉक्टरी लाइन की साइंस लाइन की सामाजिक हर एक बुक्स उसके दिमाग में पूरी तरह से समाई हुई थी, क्योंकि आज तक उसका नॉर्मल आधुनिक दुनिया में तो कोई दोस्त बना नहीं था, तो उसने किताबों को ही अपना दोस्त बनाया था और जितना हो सकता था उसने उतना ज्ञान उनसे हासिल किया था। फिलहाल जल्दी ही एक बढ़िया सा पेस्ट बनाकर वह देव के सामने मौजूद था।।

  • 5. mysterious reborn - Chapter 5

    Words: 2354

    Estimated Reading Time: 15 min

    और उसने उसकी पीठ पर वह पेस्ट लगाना शुरू कर दिया था। अब जल्दी यशस्वी जी भी वहां गई थी और अपने बेटे को इस तरह से देव की पीठ पर पेस्ट लगाते हुए देखकर हैरान भी हो रही थी, और मन ही मन में सोच रही थी कि उसने इस तरह का मरहम बनाना आखिरकार कहां सीखा? वह यह तो जानती थी कि उसके बेटे युवान को कीड़े मकोड़े, सांप बिच्छू, या किसी और जानवर के काटने की का इलाज करने की विधियां तो आती थी, लेकिन इस तरह से चोट पर लगाने वाला मरहम उसे आता हो, इस बात का उसे कोई आईडिया नहीं था।

    फिलहाल, अर्जुन के लिए देव को पूरी तरह से ठीक करना बहुत ज्यादा जरूरी था, क्योंकि उसे तो यहां के बारे में ज्यादा कुछ नॉलेज नहीं थी, और एक देव ही था जो कि उसकी यहां ढेर सारी मदद कर सकता था। इसीलिए उसने उसे पहले ठीक किया, और पूरे कुछ ही घंटे के अंदर अंदर देव को काफी हद तक आराम भी मिल गया था और उसने अर्जुन को देखकर कहा था कि, "अब मैं तुम्हारे साथ राजमहल चलने के लिए पूरी तरह से तैयार हूं। मुझे लगता है कि हमें एक भी मिनट अब बर्बाद नहीं करनी चाहिए। वैसे भी केवल तीन दिन का समय हैं, और आज का दिन तो तुमने मुझे ठीक करने में ही बिता दिया, अब रात हो गई है।"

    तब अर्जुन ने देव की ओर देखकर कहा था, "चाहे रात हो या दिन हो, लेकिन राजमहल तो मैं आज ही जाऊंगा—आज रात को ही जाऊंगा। तुम्हें मेरे साथ चलना होगा।"

    यह सुनकर देव पूरी तरह से हड़बड़ा सा गया था और बोला था, "लेकिन इतने सारे सैनिकों के बीच में रात को राजमहल में जाना खतरे से खाली नहीं होगा? और अगर हमें सैनिकों ने पकड़ लिया, तो एक और इल्जाम वह हम पर लगा देंगे और हमेशा हमेशा के लिए काल कोठरी में बंद कर देंगे।"

    तब अर्जुन ने देव के कानों में सरगोशी करते हुए कहा था, "तुम उस बात की बिल्कुल भी फिक्र मत करो। और वैसे भी जब से मैं राजकुमारी संयोगिता को देखा है, तब से मुझे कुछ अजीब सा हो रहा है, और मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं और मैं राजकुमारी से मिलना चाहता हूं, क्योंकि कहीं ना कहीं राजकुमारी के हाव-भाव देख कर अर्जुन समझ चुका था कि यह राजकुमारी इस चोरी के बारे में जरूर कुछ ना कुछ जानती है, और वह उसकी मदद जरूर कर सकती हैं। इसीलिए उसने राजकुमारी से मिलने का डिसीजन लिया था।

    फिलहाल देव के पास कोई और रास्ता नहीं था। वैसे भी उसने युवान यानी अर्जुन को वादा किया था कि वह उसका पूरी तरह से साथ देगा और वो निर्दोष साबित जरूर होगा। तो इसीलिए वह भी डरते हुए, लेकिन अब पूरी तरह से राजमहल जाने के बारे में सोचने लगा था।

    वही राजकुमारी संयोगिता इस वक्त पूरी तरह से बेचैन थी, और इधर-उधर अपने कक्ष में टहल रही थी। तभी उसकी एक सहायिका जिसका नाम नंदिनी था, वह जल्दी ही राजकुमारी संयोगिता के ठीक सामने आकर खड़ी हो गई, और सर झुका कर बोली थी, "राजकुमारी आपने जो कुछ काम दिया था मैंने वह काम करने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन सैनिक युवान जब अपने घर की ओर गया, तब मैंने उसका पीछा करवाया था। वह सीधा अपने घर गया; वह कहीं भी नहीं गया, और अभी तक वह अपने घर से बाहर नहीं निकला है, और हमें एक भी मौका नहीं मिला जिससे कि हम आपका संदेश उस तक पहुंचा सके।"

    जैसे ही नंदिनी ने यह बोला, अब संयोगिता का खून पूरी तरह से खोलने लगा था और अचानक उसने अपनी तलवार निकाल कर नांदरी के गर्दन पर लगा दी थी और बोली थी, "मुझे ना नहीं सुनना है। मुझे हर हाल में सैनिक युवान मेरी आंखों के सामने चाहिए। तुम समझ क्यों नहीं रही हो ... मुझे उससे मिलना है।"

    अब नंदिनी थर-थर कांपने लगी थी। उसे समझ नहीं आया कि वह राजकुमारी संयोगिता को किस तरह से समझाएं, लेकिन राजकुमारी का इस तरह का स्टेप देखकर तो वह यह बात अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि उसके राजकुमारी युवान के प्यार में पूरी तरह से पागल हो चुकी है, इसीलिए उसने बचपन से उसके साथ रह रही सेविका की भी कुछ खास परवाह नहीं की। हालांकि राजकुमारी संयोगिता का यह स्वभाव बिल्कुल भी ऐसा नहीं था, लेकिन जब से सैनिक युवान को काल कोठरी में सजा सुनाई गई थी और उसके बाद उसे मृत्यु दंड दिया गया था, तब से वह पूरी तरह से बेचैन हो उठी थी, और अब जल्दी ही उसने नंदनी की आंखों में डर देख कर कहा था, "कुछ भी करो, हमें आज रात किसी भी कीमत पर सैनिक युवान से मिलना ही है और हम उससे मिलकर रहेंगे।"

    राजकुमारी ने अपनी आग उगलती हुई आंखों से नंदनी को देखते हुए कहा, तब नंदनी जल्दी ही आंखों में आंसू लाकर बोली थी, "हमें क्षमा कर दीजिए राजकुमारी बस हमें कुछ समय और दे दीजिए हम कुछ ना कुछ करके सैनिक युवान को यहां ले आएंगे और वैसे भी आज महाराज और महारानी राज्य में नहीं है। वह दूसरे राज्य में गए हैं जो दो दिनों के बाद ही आने वाले हैं, क्योंकि दूसरे राज्य में महारानी के भाई के यहां पर पुत्री का जन्म हुआ है तो उसी के उपलक्ष में महाराज और महारानी को आमंत्रित किया गया था। इसीलिए वह लोग वहां गए हैं।"

    अब जैसे ही यह खबर राजकुमारी संयोगिता को लगी, वह पूरी तरह से हैरान हो गई थी। हालांकि महारानी ने इस बात के बारे में संयोगिता को पहले से ही सूचित कर दिया था कि उसे भी उनके साथ चलना है, लेकिन उस वक्त राजकुमारी संयोगिता पूरी तरह से युवान के कैदी होने पर दुखी थी। इसीलिए उसने साफ-साफ अपनी मां महारानी गायत्री को मना कर दिया था कि वह उनके साथ नहीं जाएगी; उसकी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। अब महारानी गायत्री के लिए अपनी बेटी की तबीयत सबसे ज्यादा जरूरी थी। आखिरकार पूरे के पूरे राजवंश की वह एक लोती उत्तराधिकारी थी; उसकी सेहत को लेकर या उसके किसी भी मामले को लेकर किसी भी तरह की कोई ढील नहीं बरती जाती थी। इसीलिए राजकुमारी को आराम करने का बोलकर वह लोग दूसरे राज्य की ओर प्रस्थान कर गए थे।

    वहीं दूसरी ओर युवान यानी कि अर्जुन जल्दी ही देव के साथ एक प्लान बनाकर और महल के ही सैनिकों का रूप लेकर महल में एंट्री कर चुके थे। कहीं ना कहीं राजकुमारी की आंखों में उसने कितने ही सारे सवाल देखे थे। इसीलिए अर्जुन किसी तरह का कोई सबूत ना जुटाकर सीधा राजकुमारी से मिलना चाहता था, और इसीलिए उसने देव से पता भी लगवा लिया था की राजकुमारी का कक्षा कौन सा है। लेकिन वहां पर किसी भी पुरुष को जाने की इजाजत नहीं थी। इसीलिए अब अर्जुन अपना दिमाग जोरों से चलाने लगा था। वह हर हाल में राजकुमारी से मिलना चाहता था।

    कहीं ना कहीं अर्जुन का दिल गवाही दे रहा था कि हो सकता है कि उसके बेगुनाही का सबूत राजकुमारी के पास हो या फिर राजकुमारी ही उसे कोई ना कोई तरीका बता दे। तो इसी उम्मीद के साथ वह अब राजमहल में घुस आया था। लेकिन जैसे उसने राजकुमारी के कक्ष के पास सैनिकों की बहुत ज्यादा भीड़ देखी तो अर्जुन पूरी तरह से चौंक हो गया था, और वह सोचने लगा था कि उसे किस तरह से अंदर जाना चाहिए? उसे हर हाल में आज के आज ही राजकुमारी से मिलना होगा। अगर वह राजकुमारी से नहीं मिला, तो दो दिन बाद यह लोग उसे इस जिंदगी से मुक्ति दे देंगे और पता नहीं उसके बाद उसकी आत्मा वापस से उसकी आधुनिक जिंदगी में जा पाएगी या नहीं या फिर हमेशा हमेशा के लिए वह यही कैद होकर रह जाएगी।

    अभी तक अर्जुन को अपनी इस बारे में कोई एहसास नहीं था कि आखिरकार युवान की जिंदगी में वह क्यों आया है? इस जिंदगी में आने का उसका क्या कारण है? और वैसे भी अर्जुन को यह जिंदगी कुछ खास पसंद आ गई थी, क्योंकि उसकी आधुनिक यानी के मॉडर्न जिंदगी में तो शिवाय दुख तकलीफ और तानों के कुछ भी नहीं था। हालांकि अर्जुन बेहद ब्रिलिएंट स्टूडेंट था, लेकिन कभी किसी ने भी उसकी कोई कदर नहीं की। इसका एक प्रमुख कारण था अर्जुन का बेहद साधारण सा दिखना , दुबला दुबला पतला उसका शरीर साथ-साथ बड़ा सा उसके चेहरे पर चश्मा उसे सब लोगों से काफी ज्यादा अलग बनाता था, और जबकि उसके मुकाबले उसके क्लास में भी और आसपास भी कितने हैंडसम और डैशिंग लड़के रहा करते थे। तो अर्जुन को तो वह लोग केवल छछूंदर ही कह कर बुलाया करते थे। अर्जुन काफी ज्यादा इरिटेट हो जाया करता था। कितनी ही बार उसने अपनी जान देने की भी कोशिश की थी, क्योंकि उस जिंदगी से वह पूरी तरह से हार गया था। दोस्त के नाम पर भी उसका उस दिन उस दुनिया में कोई नहीं था, लेकिन यहां... यहां तो उसे सैनीक युवान बोल कर इज्जत दी जा रही थी। प्यार करने वाली मां थी, भाई जैसा दोस्त था, साथ ही साथ एक प्यारी सी छोटी बहन थी जो उससे काफी ज्यादा प्यार से पेश आ रही थी। तो यह सारी बातें उसे काफी ज्यादा अच्छी लग रही थी और वह... और सबसे बड़ी बात है उसे यहां की राजकुमारी पसंद आ गई थी। कहां तो उसकी आधुनिक जिंदगी में किसी नॉर्मल लड़की ने भी उसे किसी तरह का कोई भाव नहीं दिया, लेकिन यहां... यहां तो अप्सरा जैसी राजकुमारी उसकी और आकर्षित थी, यह बात उसने जल्दी ही महसूस कर ली थी।

    फिलहाल अर्जुन ने गहरी साथ सांस ली और उसने सोचना शुरू कर दिया था कि वह इस तरह से हार नहीं मान सकता है। वैसे भी वह अर्जुन है। और यहां अर्जुन को एक बात पूरी अच्छी तरह से याद थी, की महाभारत में एक बार स्वयं धनुषधारी अर्जुन को भी एक अलग ही तरह का रूप लेना पड़ गया था। तो फिर आज यह बात अर्जुन के दिमाग में जैसे ही आई तो उसके दिमाग में एक आईडिया आ चुका था ।और उसने मुस्कुराकर देव से कहा था, "क्या तुम मेरे लिए एक जोड़ी लेडिस कपड़ों का इंतजाम कर सकते हो?" क्योंकि इस वक्त जो अर्जुन ने कपड़े पहने हुए थे, वह सैनिकों वाले कपड़े पहने हुए थे। और जो वहां की औरतें कपड़े पहना करती है, वह सिर्फ एक छोटी सी चोली और लहंगा यही कपड़े वहां की लेडिस पहना करती थी जिसमें वह बेहद अट्रैक्टिव दिखाई देती थी।

    फिलहाल अर्जुन की बात सुनकर देव कन्फ्यूज्ड हो गए और बोला था, "यह आप कैसी बातें कर रहे हैं ? भला आप कन्याओं के कपड़ों का क्या करेंगे?"

    तब अर्जुन ने जल्दी से देव के कानों में कुछ कहना शुरू कर दिया था। वही देव का तो हैरानी के मारे बुरा हाल था और वह बोला था, "कैसी बातें कर रहे हो तुम? कन्या बनोगे वह भी सैनिक युवान जो की बहुत बड़ा शूरवीर है, वह कन्या बनने की बात कर रहा है। हे गुरुजी यह कैसा अनर्थ है? क्या आप वाकई युवान ही है ना?"

    जैसे ही देव ये बोला अर्जुन ने तुरंत ही देव के सर पर टकली मारते हुए कहा था, "क्या यार कितने सारे क्वेश्चन करते हो तुम? तुम्हें जितना कहा जाए उतना करो ना। तुम नहीं जानते मेरा राजकुमारी से मिलना कितना ज्यादा जरूरी है और तुम क्या जानो इस वक्त तीन दिनों के अंदर अंदर मेरे सर पर मौत मंडरा रही है और जिस इंसान के सर पर मौत मंडरा रही हो उस वक्त क्या वह अपने रूल रेगुलेशन देखेगा?"

    जैसे ही अर्जुन ने थोड़ा सा तेज आवाज में देव को डांटना शुरू किया, अब तो देव की सिटी पूरी तरह से गुम हो गई थी, क्योंकि रूल रेगुलेशन इस तरह के शब्द अर्जुन ने इंग्लिश में use किए थे। तो वह हैरानी से तुरंत ही आंखों में आंसू लाकर बोला था, "युवान भ्राता आप मुझे क्यों फटकार रहे हैं? मैं जानता हूं कि इस वक्त आप पर मौत का खतरा है, लेकिन तुम इस तरह की अगर हरकतें करोगे, तो मुझे तो ऐसा लगेगा ही ना कि तुम्हारे साथ जरूर कुछ ना कोई गड़बड़ हो गई है?"

    तब देव मन ही मन में सोचने लगा था, "इस वक्त यह शूरवीर कन्या बनना चाहता है। तो मुझे इस कन्या बनने देना चाहिए। अगर मैं इनके बीच में रोड़ा बना, तो इनकी तो मौत तीन दिनों के बाद होगी, लेकिन यह मुझे सरेआम आज के आज फांसी दे देंगे।"

    फिलहाल देव मन ही मन में बोला था कि उसे अगर उसे अपनी जान बचानी है, तो जैसा यह शूरवीर कहता है, उसे ऐसा ही करना चाहिए। और जल्दी ही अर्जुन ने देव की आंखों में आंसू देखे, उसे तुरंत ही उसे मन में पछतावा होने लगा था। वह सोचने लगा था कि उसे अपने आप पर कंट्रोल क्यों नहीं हो रहा है? उसे इस तरह की बातें नहीं बोलनी है कि जो कि यहां के लोगों को समझ में ना आए। उसे यहां के लोगों के अकॉर्डिंग ही बातें करनी है।

    फिलहाल अर्जुन ने गहरी सांस ली और बड़े ही प्यार से देव के कंधों पर हाथ रखकर बोला था, "देखो मैं अच्छी तरह से जानता हूं देव भाई की तुम्हें मेरा बिहेव..." अर्जुन एक बार फिर इंग्लिश word बोलने वाला था , लेकिन तुरंत ही बिहेव ना बोलकर बोला था, "मेरा बर्ताव आपको शायद कुछ खास पसंद नहीं आ रहा है, लेकिन इस वक्त मेरे दिमाग में काफी ज्यादा..."

    अब अर्जुन के दिल में आया कि वह टेंशन बोले, लेकिन वह सोचने लगा था कि अगर वह देव को टेंशन बोलेगा, तो देव फिर से उसकी बात नहीं समझ पाएगा और वह सोचने लगा था कि टेंशन को शुद्ध हिंदी हिंदी में क्या कहते हैं, "तुम्हें मेरी समस्या... समस्या समझनी होगी। दो दिनों के बाद मुझे फांसी होने वाली है, और मैं मरना नहीं चाहता। मैं अपनी मां और बहन के लिए और साथ-साथ..." मन में अर्जुन बोला था, "राजकुमारी के लिए जिंदा रहना चाहता हूं। तो उसके लिए मुझे जो रास्ता मुझे ठीक लगेगा, मैं वही करूंगा।"

    अब अर्जुन के ने जैसे ही प्यार से यह बात देव को समझाई, देव तुरंत उसकी हां में हां मिलाकर बोला था, "तुम्र एक काम करो, मेरे साथ आओ । यहां पर एक दासी है..."

  • 6. mysterious reborn - Chapter 6

    Words: 2185

    Estimated Reading Time: 14 min

    वो याद करने लगी...

    "किस तरह से रुखसाना, उस समय महारानी के वश में थीं...

    और कैसे पूरा वंश सिर्फ एक श्राप की आग में जल गया था..."

    यह सब सोचते ही,

    आयशा अपने इमोशन्स पर कंट्रोल नहीं कर पाई...

    और उसकी आँखें भरने के लिए तैयार थी।

    और उसने आगे बढ़कर उन्हें मजबूती से अपने सीने से लगा लिया था। एक अजीब सी बेचैनी उसके भीतर उमड़ रही थी, लेकिन आँखें सूनी थीं — मानो रोने की इजाज़त नहीं थी। दिल भीतर से चीख रहा था, पर चेहरा शांत था, जैसे उसने अपने दर्द पर पर्दा डाल रखा हो।

    कहीं न कहीं वह… बेहद इमोशनल हो चुकी थी, पर हालात उसे रोने भी नहीं दे रहे थे। वह जानती थी — अगर उसके आँसू बह निकले, तो सब डर जाएंगे… खून के आंसू देखकर।

    उसी वक्त, रुख़साना जी ने उसकी बेचैन हथेलियाँ अपने हाथों में भर लीं और सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए स्नेह भरे लहजे में बोलीं,

    "क्या हुआ बच्चा? जोया ठीक है, मैं जानती हूँ। तुम जोया के लिए परेशान हो रही हो, ना? लेकिन वो बिलकुल ठीक है। तुम्हें फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है… मैं हूँ ना, सब देख लूंगी।" अब रुखसाना जी बात सुनकर आयशा की आँखें थोड़ी और इमोशनल होने लगीं… पर उसने अपने आंसुओं को अंदर ही रोक लिया ओर चुपचाप सिर हिला दिया।

    तभी रुखसाना जी की नज़र कबीर पर पड़ी, जो थोड़ी दूर खड़े सब कुछ शांत भाव से देख रहे थे। वह अब भी थोड़ी उलझन में थी, इसलिए सवालों से भरी निगाहें उनकी ओर उठीं।

    कबीर ने मुस्कराकर उन्हें विनम्रता से अभिवादन किया।

    फिर आयशा ने हल्का सा मुस्कराते हुए उनका परिचय दिया,

    "ये हैं कबीर कर। हमारी कंपनी में मैनेजर हैं…head डिपार्टमेंट इन्हीं के अंडर है। ये सूर्यवंशी मेंशन में ही रहते हैं। मैंने इनसे कहा था कि मैं जोया से एक बार मिलना चाहती हूँ… तो ये मुझे यहाँ ले आए।"

    आयशा की आवाज़ में सच्चाई और सम्मान दोनों थे।

    रुख़साना जी ने कुछ पल कबीर को गौर से देखा… फिर उनके चेहरे पर एक आदर भरी मुस्कान फैल गई।

    और वो प्यार से कबीर से बोली बेटा… अंदर आइए। आपसे मिलकर अच्छा लगा," उन्होंने कहा और कबीर को स्नेहपूर्वक अंदर आने का इशारा किया।

    ---

    कबीर भी जल्दी ही अब हल्के से मुस्कुराहट के साथ आगे बढ़ गया था और रुखसाना जी के साथ अंदर आ गया । कबीर ने देखा कि यह वही अपार्टमेंट था जो कि अरमान सूर्यवंशी की कंपनी की तरफ से ही सभी लोगों को दिए गए थे, और सभी एम्पलाई को कबीर के सिग्नेचर होकर ही फ्लैट्स अलॉट किए जाते थे।

    फिलहाल, अंदर आते ही उसकी आंखें बेचैनी से सिर्फ जोया को देखने के लिए बेताब थीं। वही रुखसाना जी तुरंत आयशा को देखकर बोली थी, “बेटा, मैं आपके लिए कुछ खाने को लगा देती हूं। तुम्हें भूख लगी होगी न?” उन्होंने बड़े प्यार से आयशा के गाल को छूते हुए कहा।

    आयशा तो बस बार-बार रुखसाना की ओर देखे जा रही थी और फिर उसे अहमद जी कही दिखाई नहीं दिए तो वो बोल पड़ी थी, “वो अम्मी... अब्बू कहां हैं?”

    अब यह सुनकर रुखसाना ने बताया, “कि उनके घुटनों में कितने ज्यादा दर्द रहता है और आज तो उन्हें सिर में भी थोड़ा दर्द हो रहा है, तो वह अपने कमरे में हैं।”

    यह सुनकर आयशा थोड़ा बेचैन होकर बोली थी, “मैं उनसे मिलकर आती हूं। अंदर ही हैं न?”

    तब रुखसाना जी ने अपनी गर्दन हां में हिला दी थी, और कबीर की और देख कर बोली,

    “बेटा, क्या मैं आपके लिए कॉफी बना दूं?” तब कबीर ने कहा था, “जी, रहने दीजिए आंटी जी खामखा आपको परेशानी होगी... मैं तो सिर्फ यहां पर जोया को देखने के लिए आया था।”

    कबीर ने सम्मान भरी आवाज में इस तरह से बात की ताकि रुखसाना जी को उस पर किसी तरह का कोई शक न हो — कि वह यहां उनकी बेटी को ताड़ने के लिए आया है।

    फिलहाल, जल्दी ही रुखसाना जी बोल पड़ी थीं, “मैं अभी देख कर आती हूं। मैंने उसे आराम करने के लिए कहा था, पर मैं जानती हूं अपनी बेटी को — ज़रूर वह फिर से फोन में लग गई होगी।”

    यह बोलकर रुखसाना जी सीधा जोया के कमरे में चली गई और कबीर बेचैनी से देखने लगा था।

    वहीं, आयशा जैसे ही अहमद जी के कमरे में गई, उसने देखा कि अहमद जी आंखों पर हाथ रखे लेटे हुए थे। आयशा उन्हें बड़े ही ध्यान से देखने लगी थी।

    और उसे उनका महाराजा वाला स्वरूप याद आ गया था — किस तरह से महाराज वाले रूप में अहमद जी, आयशा को कितना ज्यादा लाड़ लडा रहे थे.. और. बार-बार उसकी बलाएं ले रहे थे।

    -

    फिलहाल, अहमद जी को इस तरह देखकर आयशा को काफी ज्यादा अजीब लगा और वह तुरंत ही उनके पास गई। उसने अपनी रंग-बिरंगी आंखों से लगातार देखा — उसकी आंखों से चिंगारियां सी निकलने लगी थीं, और देखते-देखते आयशा ने एक ही पल में अहमद जी के पूरे शरीर को स्कैन कर लिया था।

    जल्दी ही उसे एहसास हो गया कि इस वक्त अहमद जी कितने ज्यादा दर्द में हैं। तभी आयशा की आंखों से जल्दी ही रंग-बिरंगी रोशनियां निकलनी शुरू हो गई थीं।

    और जैसे-जैसे आयशा की आंखों से निकली हुई रोशनी, अहमद जी के घुटनों और सिर पर जा रही थी — अहमद जी का शरीर पूरी तरह से ठीक होता चला जा रहा था।

    इतना ही नहीं, उन्हें काफी समय से एक बड़ी बीमारी थी — दिल की बीमारी, जिसका इलाज जोया करवा रही थी — वह भी अब आयशा की निकली हुई रंग-बिरंगी रोशनी की वजह से पूरी तरह से ठीक हो गई थी।

    कुल मिलाकर, आयशा ने अपनी जादुई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अहमद जी को पूरी तरह से ठीक कर दिया था।

    अब अहमद जी को जैसे ही अपने शरीर में आराम महसूस हुआ, वह तुरंत उठकर बैठ गए और अपने सामने आयशा को देखकर बोल पड़े थे।

    आयशा ने तुरंत अपनी आंखें बंद कीं। तब तक उसकी आंखों से निकली हुई रंग-बिरंगी रोशनी भी तुरंत ही बंद हो गई थी।

    तब आयशा उनकी ओर देखकर बोली थी, "मैं आपसे मिलने के लिए आई हूं।"

    अब आयशा को अपने सामने देखकर अहमद जी तुरंत उठ खड़े हुए। आयशा को गले से लगाकर बोले थे, "अरे आयशा बेटा! आप कब आईं? आप कैसी हो? सच में बेटा, जब से आप सूर्यवंशी मेंशन में रहने गई हो, हमें बहुत खाली-खाली सा लगता है।

    अब आप वापस आ गई हैं न? अब तो आप नहीं जाएंगी!"

    अहमद जी की आवाज में आयशा को अपने लिए केवल प्यार ही प्यार नजर आ रहा था।

    आयशा ने आगे बढ़कर उन्हें गले से लगा लिया और अचानक भावावेश में बोली, "महाराज!"

    अब जैसे ही आयशा ने ये बोला, अहमद जी चौंक गए और तब बोले, "महाराज? ये कौन है बेटा? क्या बोल रही हो आप?"

    तब आयशा जल्दी से खुद को करेक्ट करते हुए बोली थी, "अबू, आप लोगों ने मुझ अनजान को अपने घर में रखा, मुझे अपने आपको मां-बाप कहने का हक दिया। मुझे लगता है आप जरूर किसी जन्म में बहुत बड़े दिल वाले राजा होंगे, बहुत बड़े राजा!"

    ये कहते हुए आयशा की आवाज में खुशी झलक रही थी।

    तभी, इससे पहले कि वो कुछ बोलते, रुखसाना जी की आवाज आई थी, "अरे आयशा बेटा, कहां हो? आ जाओ अब कुछ खा लो।"

    तब अहमद जी मुस्कुरा कर बोले थे, "मेरे बच्चे, जिनके पास आप जैसी शहजादी बेटी हो, तो उसका पिता तो राजा ही होगा न!"

    ये बोलकर वो हंस दिए। उनकी हंसी की आवाज सुनकर रुखसाना जी वहां आईं और उन्हें सही-सलामत खड़े हुए देखकर चौंक कर बोलीं, "आ... आप! आप ठीक हैं? अभी तो आपको काफी दर्द हो रहा था, तो फिर आप अचानक खड़े कैसे हो गए? और आपकी हंसी की आवाज अभी मुझे सुनाई दी?"

    कहीं न कहीं यह कहते हुए रुखसाना जी की आवाज में प्रसन्नता और खुशी साफ झलक रही थी।

    तब अहदम जी मुस्कुरा कर बोले जब एक बाप की बेटी "उसके पास आ गई हो, तो उसे क्या परेशानी हो सकती है? और आपको पता है, रुखसाना जी, हम तो अपने आप को काफी अच्छा और ठीक महसूस कर रहे हैं!"

    यह बोलकर अहमद जी मुस्कुरा दिए थे और बोले , "पता नहीं बेटा, जब से आप आई हो, सिर का दर्द, घुटनों का दर्द — तो ऐसा लग रहा है मानो कि कभी कुछ हुआ ही नहीं था।"

    यह कहते हुए वह मुस्कुरा दिए।

    तभी अहमद जी, रुखसाना जी की ओर देखकर बोले थे, "अच्छा, वह जोया की तबीयत कैसी है?"

    तब रुखसाना जी बोली थीं, "ओह! मैं भी ना कितनी बुद्धू हूं... कबीर जी को मैं जोया के रूम में उसके पास छोड़कर आई हूं! आप तो जानते हैं न, अभी थोड़ी देर पहले उसने आयशा बेटी से बात की थी, उसके बाद वह सो गई। और अब जब कबीर जी इतनी दूर से उसे मिलने आए है तो अच्छा नहीं लगता। इसीलिए मैंने कबीर जी को उसके रूम में भेज दिया है — वह वहीं उससे मिलने गए हैं।"

    अब यह सुनकर जोया मुस्कुराती हुई बोली , "मैं उससे बाद में मिलूंगी, पहले मैं आप दोनों से ढेर सारी बातें करना चाहती हूं।"

    जैसे ही आयशा ने थोड़े से चुटकुले अंदाज़ में कहा, अहमद जी रुखसाना जी एक-दूसरे को देखने लगे थे।

    और

    वह तुरंत आयशा का सर पर हाथ फेरते हुए बोले, "तुम जानती हो बेटे? तुम्हें पहली बार देखा है, कभी भी तुम्हें देखकर ऐसा नहीं लगा मानो तुम हमारी जिंदगी में अभी-अभी आई हो। ऐसा लगता है जैसे तुमसे हमारा बरसों का नाता है।

    हमें ऐसा लगने लगा है कि हम एक पल को जोया के बिना रह सकते हैं, पर हमें तुम्हारे बिना नहीं भी नहीं रह सकते हमे इतनी ज्यादा मोहब्बत तुम से हो गई है।

    यह सुनकर आयशा पूरी तरह से भावुक हो रही थी। वह भीतर से जानती थी यह इमोशन, यह फीलिंग क्यों थी।

    यह इमोशनली जन्म की बेटी थी... लेकिन जोया? जोया से उसका क्या रिश्ता था? अगर उसकी बहन है तो पिछले जन्म में उसे जोया दिखाई क्यों नहीं दी?

    इस वक्त कहीं न कहीं उसका दिमाग जोरो से चल रहा था। लेकिन उसने ठान लिया था कि आज रात को सबके सोने के बाद, एक बार फिर वह ब्लैकी के पास जाएगी — और एक बार फिर अपने पिछले जन्म के दृश्य जरूर देखेगी।

    और , तभी रुखसाना जी बोलीं, "अब क्या तुम बिटिया से खाली-पिली ऐसे ही बातें करते रहोगे? उसे कुछ खाने-पीने को तो ला दो!"

    तब रुखसाना जी अपने सर पर हाथ मारते हुए बोलीं, "आप लोग! भी ना आप लोगों की बातों ने मुझे कितना भुल्लकड़ कर दिया है! मैं जा रही हूं — मैं तो फटाफट गरमा-गरम रोटियां डालने जा रही हूं। सालन तो ऑलरेडी बना हुआ रखा है।

    और आयशा बेटा, तुम जाओ — तब तक कबीर जी और जोया को भी बाहर ले आओ। तुम तो जानती हो न, जोया को मैंने उठाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उठने का नाम ही नहीं ले रही थी। तब से तो जाग रही थी, और अब देखो — वो सो गई है।"

    वहीं कबीर, जोया को देखने के लिए आया था। और रुखसाना जी ने जब ये शेयर किया कि जोया तो सो रही है, लेकिन कबीर सिर्फ एक नज़र जोया को देखने के लिए बेचैन था,

    तो वह बोला था, "अगर आपको ठीक लगे, आंटी जी... क्या मैं उसे एक नज़र देख सकता हूं?"

    यह सुनकर रुखसाना जी थोड़ा चौंकी भी थीं, लेकिन फिर उन्होंने तुरंत कॉफी मगर को साइड में रखा और कहा , "हां बेटा, क्यों नहीं! तुम जाओ — अगर तुम्हारे जाने से वह जाग जाए तो और भी अच्छी बात है। वैसे मेरी बेटी को उठाना इतना आसान नहीं है, क्योंकि मैं उसे अच्छी तरह जानती हूं।"

    रुखसाना जी के इस जवाब से कबीर के चेहरे पर छोटी सी मुस्कुराहट आ गई थी।

    वह रुखसाना जी की ओर देखकर बोला था, "आप फ़िक्र मत कीजिएगा... मैं उसका बॉस हूं, मेरे कहने पर हो तुरंत ही उठ जाएंगी!"

    यह बोलकर वह जल्दी-से कमरे में जाने लगा ।

    वहीं जोया, अपने टेडी बियर को पूरी तरह से हग करके सोई हुई थी। उसके चेहरे पर बच्चों जैसी मासूमियत थी।

    अब कबीर जैसे ही अंदर आया, उसने जोया को इस तरह से सोते हुए देखा — तो उसके चेहरे पर अपने आप ही मुस्कुराहट आ गई।

    उसका दिल किया कि पूरी रात वो जोया को इसी तरह से देखते हुए गुजार दे। सोते हुए मासूम बच्चे की तरह वह बड़ी ही प्यारी और क्यूट लग रही थी।

    कबीर का दिल किया कि थोड़ा सा आगे बढ़कर जोया को चूम ले, लेकिन कुछ सोचकर वह सीधा खड़ा होकर उसकी ओर देखता रहा।

    तब तक रुखसाना जी ने खाना टेबल पर लगा दिया और आइसे को आवाज़ लगाई थी कि वह जाकर जोया के ले आए।

    यह सुनकर आयशा मुस्कुराते हुए कमरे में जाने लगी। उसने देखा कि कबीर तो अपने सीने पर हाथ बांधे आराम से जोया को देख रहा है।

    यह देखकर आयशा को हैरानी हुई। साथ ही उसने कबीर के चेहरे की ओर देखा — जहाँ पर प्यार- ही प्यार और नज़ाकत नजर आ रही थी।

    यह समझ में आते ही, अचानक ही आयशा के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई थी।

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  • 7. mysterious reborn - Chapter 7

    Words: 2292

    Estimated Reading Time: 14 min

    यह देखकर आयशा को हैरानी हुई। साथ ही उसने कबीर के चेहरे की ओर देखा — जहाँ पर प्यार- ही प्यार और नज़ाकत नजर आ रही थी।

    यह समझ में आते ही, अचानक ही आयशा के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई थी।


    फिलहाल, उसने आगे बढ़कर कबीर की ओर देखकर कहा था, कबीर"सर, आप चाहे कितना भी वेट कर लें, ये इस तरह से नहीं उठने वाली। क्योंकि अगर एक बार सो जाए, तो फिर नहीं जागेगी। इस लड़की ने अभी आधा घंटा पहले मुझे मैसेज किया कि में घर पर आ सकती हु, क्योंकि सारा दिन उसने आराम किया है। सारा दिन वह सोई है — अब वह बोर हो रही है, उसका दिल नहीं लग रहा। और देखो, आधे घंटे के अंदर-अंदर एक बार फिर वह गहरी नींद में सो गई है!"

    सोते हुए जोया को देखकर आयशा तुरंत उसके पास गई और उसका सर छूकर देखने लगी थी कि उसे कितना बुखार है। और जैसे ही उसे इस बात का एहसास हुआ कि अब जोया की कंडीशन पहले से बिल्कुल ठीक है,
    तो आयशा ने हल्का सा जोया के बालों को खींच दिया
    बालों में दर्द पाकर वह झल्लाते हुए अंदाज़ में उठकर बैठ गई । और जैसे उसने आयशा को अपने सामने देखा, तुरंत ही चादर को साइड में फेंककर उसने आयशा को गले से लगा लिया था और बोली थी,
    में आपको बहुत मिस कर रही थी आयशा अच्छा हुआ आप आ गई येबोलते हुए वो चहक उठी थी तब आयशा बोली थी,
    "अरे हा मैं तुम्हें खाने के लिए बुलाने आई हूं। तुम बिना खाए ही सो गई थी, तो इसीलिए अम्मी को तुम्हारी चिंता हो रही थी।"

    अब जैसे ही आयशा ने ये कहा, जोया बोली थी, "तुम जानती हो आज मैं घर क्या रह गई ? सारा दिन मैं खाती रही हूं अम्मी अब्बू ने मुझे बहुत खिलाया है,मुझसे कोई काम भी नहीं कराया। — अब मुझे कुछ नहीं खाना। मेरा पेट ऑलरेडी बहुत ज़्यादा भरा हुआ है।"

    यह बोलकर वह तुरंत ही उठ खड़ी हुई। और जैसे ही उसकी नज़र कबीर पर पड़ी, उसने तुरंत भावेश में आकर उसे गले से लगा लिया, "और excited होते हुए बोली क्या आप मुझसे मिलने के लिए आए हैं? आप जानते हैं, मैं घर पर रहकर कितना ज़्यादा बोर महसूस किया! क्या आप भी मुझसे मिलने के लिए आए? Thank you, thank you so much!"

    यह बोलकर उसने एक बार फिर कबीर को गले से लगा लिया।

    वहीं, कबीर को आज एक अलग-सी फीलिंग का एहसास हुआ था।

    आयशा अब जोया को बोल्ड होते हुए देखकर काफी हद तक हैरान हो रही थी और जल्दी ही उसने थोड़ा सा खांस दिया था।

    वहीं, जोया को जैसे ही एहसास हुआ कि उसने बचपने में कबीर को गले से लगा लिया है, तो वह भी थोड़ा-सा शर्मिंदा हो गई थी।

    तभी रुखसाना जी की आवाज सुनाई दी — "अरे बच्चों, कहां रह गए? आ जाओ जल्दी से!"

    तब अहमद जी बोले थे, "अरे, क्या कर रही हो? बच्चे हैं, बातें कर रहे होंगे, आ जाएंगे। क्यों शोर मचा रही हो?"

    तभी रुखसाना अहमद जी की ओर देखकर बोले थी, "आपको तो हमेशा यही लगता रहता है कि मैं शोर मचाती रहती हूं। आपको पता है, आयशा के साथ जो उनके बॉस आए हैं, अच्छा लगेगा क्या कि हमने उन्हें कुछ खिलाया-पिलाया ही नहीं? ऐसे ही भेज देंगे वहां से! इसीलिए बुला रही हूं, ताकि वह भी कुछ खा-पी लें।"

    अब जैसे ही रुखसाना जी ने धीमे स्वर में यह कहा, अहमद जी बोले थे, "हां-हां, फिर ठीक है, तुम खाना लगाओ, मैं बच्चों को लेकर आता हूं।"

    लेकिन उससे पहले ही जोया, आयशा और कबीर वहां आ गए थे।

    अब कबीर को देखकर अहमद जी बड़े ही सलीके से बैठ गए थे और उनकी ओर देखकर बोले थे, "सर, आप आए न! बैठिए।"

    अब कबीर ने जैसे ही अहमद जी के मुँह से अपने लिए 'सर' सुना, वह थोड़ा-सा शर्मिंदा-सा होकर बोला था, "आप कैसी बातें कर रहे हैं, अंकल! प्लीज़, आप मेरा नाम लीजिए। मेरा नाम कबीर है — कबीर आहूजा... आप मुझे कबीर कह सकते हैं। प्लीज़ सर।"

    अब जैसे कबीर ने पूरी तरह से अपनेपन में बिहेव किया, जोया मुस्कुराने लगी थी।

    तभी रुखसाना जी ने सभी को वहाँ बिठाया और सभी को खाना खिलाने लगी थीं।

    लेकिन ठीक उसी वक्त, आयशा को कुछ अजीब-सा लगने लगा था।

    उसे ऐसा लगा कि कुछ गलत हो रहा है। अचानक ही उसके दिल की धड़कन काफी ज्यादा तेज़ बढ़ चुकी थी।

    आयशा पूरी तरह से हैरान हो गई थी, और जल्दी से उसे अकेले कमरे में जाना था — ताकि वह पता लगा सके कि आखिर उसके साथ क्या हुआ है।

    उसे ऐसा लग रहा था कि कोई उसे अपनी ओर खींच रहा है, या फिर कोई उसे बुला रहा है।
    तब आयशा ने जल्दी ही बहाना बनाया, बोली वो अम्मी जोया के रूम में मेरा फोन रह गया है, में पहले वो लेकर आती हूं। ये बोलकर आयशा उठ खड़ी हुई
    "

    अब यह बोलकर आयशा जल्दी से जोया के कमरे की ओर भागी थी।

    हालाँकि रुखसाना जी ने कहा था कि पहले वह कुछ खा तो ले, लेकिन जोया तुरंत ही आयशा को रोक नहीं पाई।

    "वो बोली मैं बस अभी आती हूं," यह बोलकर आयशा वहां से चली गई थी।
    और जैसे ही वो अकेले कमरे में गई
    उसने देखा कि उसके अब्बा जिन्न महाराज वहां मौजूद थे।

    अपने अब्बा को देख कर आयशा हैरान हो गई क्योंकि उनका चेहरा मुरझाया हुआ था। वो जल्दी से बोली थी अब्बा जान
    "क्या हुआ है? सब ठीक है न? हमें कुछ अचानक से अच्छा नहीं लग रहा। ऐसा लग रहा है कहीं कुछ गलत हुआ है। प्लीज़ बताइए न, क्या हुआ है?"

    आयशा की आवाज़ में घबराहट साफ़ महसूस हो रही थी।

    तब उसके अब्बा ने आयशा की ओर देखा और बोले थे, "शांत हो जाओ, शहज़ादी। इस तरह से नॉर्मल इंसानों की तरह से तुम व्यवहार बिल्कुल नहीं कर सकती हो।

    हम जानते हैं, तुमने अपने पिछले जन्म की झलक देख ली है। और जब से तुमने अपने पिछले जन्म की झलक देखी है, जिन्नातों की दुनिया में तूफान-सा आ गया है।

    क्योंकि कोई है, जो नहीं चाहता कि तुम अपने पिछले जन्म का राज जानो। और इसीलिए एक काली शक्ति ने जिन्नातों की दुनिया पर हमला कर दिया है।"

    यह सुनकर तो आयशा की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं रहा।

    वह बोली थी, "लेकिन... ऐसा कैसे हो सकता है? भला कोई काली शक्ति जिन्नातों की दुनिया पर हमला कैसे कर सकती है? क्योंकि जिन्नातों के पास तो एक से बढ़कर एक सुपरपावर थी!"

    ---
    वो सब किसी भी शक्ति का मुकाबला कर सकते हैं। उसने अपने अब्बी को हमेशा से ही काली शक्तियों के साथ खेलते हुए देखा है। तो फिर इस तरह से भला, जिन्नातों की दुनिया में कोई कैसे हमला कर सकता है? आयशा की आवाज़ में घबराहट साफ़ महसूस हो रही थी।

    तभी जिन्नातों के जिन्न महाराज ने उसकी ओर देखकर कहा, "हम जानते हैं बेटी कि इस वक्त तुम्हारे दिमाग में कितने ही सारे सवाल चल रहे होंगे, लेकिन मेरी बात ध्यान से सुनो। हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है कि हम तुम्हें सारा सच बता सकें। हमें पता है कि तुमने गुलफाम को जिन्नातों की दुनिया में वापस भेज दिया है, लेकिन तुमने यह गलत किया। तुम्हें गुलफाम को वहाँ भेजने से पहले हमें बताना चाहिए था। अब गुलफाम जल्दी से वहाँ से वापस नहीं आ पाएगा। इतना ही नहीं, जो कोई भी जिन्नातों की दुनिया में गया है, वह वहाँ से वापस नहीं आ पाएगा जब तक कि काली शक्तियाँ हमारा रास्ता नहीं खोल देतीं।

    "तुम जानती हो, हम यहाँ तक कितनी सारी मुश्किलों का सामना करते हुए आए हैं। क्योंकि हम जिन्न महाराज हैं, हम पर कोई रोक-टोक नहीं कर सकता। लेकिन इस वक्त, जिन्नातों की दुनिया का कोई भी न तो जिन्नातों की दुनिया में आ सकता है और न ही कोई व्यक्ति वहाँ जा सकता है। क्योंकि काली शक्तियों ने तुम्हें पूरी तरह से अकेला कर दिया है। तुम्हारी मदद के लिए वहाँ से कोई नहीं आ सकता। वह तब तक नहीं आ सकता जब तक कि तुम अपना सारा सच नहीं जान लेतीं।

    "अगर तुमने एक बार अपना सच जान लिया और अपनी शक्तियों को पहचान लिया, तो तुम्हारे लिए सारी मुश्किलें हल हो जाएंगी। और एक और बात, बेटी — तुम्हें जल्द से जल्द अपनी सच्ची मोहब्बत से, निकाह करना होगा। जब तक तुम उससे शादी नहीं करोगी, तब तक काली शक्तियाँ पूरी तरह से हावी रहेंगी। याद रखना, काली शक्तियों को अभी तक यह नहीं पता है कि तुम्हारी सच्ची मोहब्बत कहाँ है। वह तो पिछले जन्म के तुम्हारे कुछ साथी हैं जो तुम्हारी इस जन्म-यात्रा में मदद कर रहे हैं, जिन्होंने अब तक तुम्हें काली शक्तियों से बचाकर रखा है। लेकिन वह किसी इंसान के वश में तुम्हारे आसपास है — तुम उसके बारे में सोच भी नहीं सकती हो।"

    आयशा बड़े ध्यान से अपने अब्बा, जिन महाराज की बातें सुन रही थी, उसकी हैरानी बढ़ती जा रही थी। वह बोली, "भला! ऐसे कैसे कौन हमला कर सकता है। उसे तो अपने पिछले जन्म के बारे में कुछ पता ही नहीं है!" इस वक्त उसका दिमाग ज़ोरों से चल रहा था। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसके साथ हो क्या रहा है। और अचानक से काली शक्तियाँ रास्ता कैसे रोक सकती हैं?
    वहीं दूसरी और जिन्नातों की दुनिया में मल्लिका
    इस वक्त वह अपने सर को झुकाकर बैठी हुई थी क्योंकि वो वहां इसलिए आई थी, ताकि यह पता चला सके कि आखिरकार जिन्नातों की दुनिया में क्या चल रहा है और वह अभी तक उस इंसान को क्यों नहीं पहचान पाई है। जिसके लिए आयशा धरती पर गई है लेकिन वहाँ जाने के बाद काली शक्तियों का आक्रमण होने की वजह से वह पूरी तरह से फँस चुकी थी।

    लेकिन जैसे ही वहीं जाकर अपनी अम्मी नूरजहां के द्वारा मल्लिका को ये पता चला कि आयशा की सच्ची मोहब्बत कोई और नहीं बल्कि अरमान सूर्यवंशी है — जिसके साथ आयशा इस वक्त रह रही है — तो उसकी आँखें हैरानी के मारे फटी की फटी रह गईं! उसे वहाँ जाते ही इस बात का पता चल चुका था कि आयशा इस वक्त अपने पिछले जन्म के साथी के साथ ही रह रही है, जो उसकी खूबसूरती उसे वापस दे सकता है।

    जबसे उसे यह पता चला था, उसके खून में आग लगने लगी थी। वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। उसे तो लगा था कि जिन्नातों की दुनिया में जाकर अपनी माँ से किसी न किसी तरीके से मिलने का रास्ता निकालेगी और यह पता करेगी कि आखिरकार वह अभी तक उस इंसान को क्यों नहीं ढूँढ़ पाई। लेकिन वहाँ जाकर तो उसे यह भी पता चल चुका था कि अरमान सूर्यवंशी वही इंसान है जिसके लिए आयशा पृथ्वी पर गई है।

    लेकिन अब वह पूरी तरह से फँस चुकी थी। वह जिन्नातों की दुनिया से नहीं निकल सकती थी, क्योंकि उस दुनिया पर एक ऐसी काली शक्ति ने हमला किया था जिसने सभी जिन्नातों को जिन्नातों की ही दुनिया में बंद कर दिया था। और उसका जाल तब तक नहीं टूटने वाला था, जब तक कि आयशा अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर लेती। लेकिन आयशा को तब तक अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं थी, जब तक उसकी मोहब्बत उसकी ज़िंदगी में वापस नहीं आ जाती।
    फिलहाल इंसानों की दुनिया में
    अब अचानक ही, आयशा के पिता — जिन महाराज, जो कि आयशा के सामने मौजूद थे — उनके शरीर से रंग-बिरंगी रोशनी निकलने लगी थी। वह कभी गायब हो रहे थे, तो कभी दिखाई दे रहे थे। अब आयशा पूरी तरह से चौंक गई और वह बोली, "आपको क्या हो रहा है? आपको क्या हो रहा है? आप हमें ऐसे दिखाई क्यों नहीं दे रहे?"

    तब आयशा की बात सुनकर उन्होंने कहा, "काली शक्ति के असर से हम भी नहीं बच पा रहे हैं, शहज़ादी। अब तुम्हें ही कुछ करना होगा। तुम्हें ही हम सबको बचाना होगा। और तुम्हें ही उस काले जादू को भी तोड़ना होगा, जिसने जिन्नातों के आने-जाने के सारे रास्ते पूरी तरह से बंद कर दिए हैं। और यह तुम अकेले नहीं कर पाओगी। तुम्हें इसके लिए अपनी सच्ची मोहब्बत की ज़रूरत पड़ेगी।"

    यह बोलकर जिन महाराज वहाँ से चले गए थे।



    और वही आयशा तो अपना सर पकड़ कर रह गई थी। और उसे याद आया दादी ने भी जिक्र किया था कि कोई बड़ा खतरा उसकी ओर आ रहा है। लेकिन वह खतरा कौन था, उसके बारे में तो आयशा को कहीं से, कहीं तक अंदाजा भी नहीं था।

    वहीं दूसरी ओर, एक बड़े से महल में एक लड़की — बेहद खूबसूरत लड़की — एकदम काले कपड़े पहने हुए, जलती हुई आग के ठीक सामने बैठी हुई थी। उसकी आँखों में अंगारे दिख रहे थे। अगर कोई भी सामान्य इंसान उस लड़की को देखता, तो पूरी तरह से हार्ट अटैक से मर जाता। क्योंकि वह लड़की, भले ही कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो, लेकिन उस वक्त वह बड़ी ही खतरनाक दिखाई दे रही थी।

    और लगातार उस आग में कुछ खोपड़ियों को डालते हुए, वह एक ही बात बोले जा रही थी — "मैं उन दोनों को कभी भी एक नहीं होने दूँगी, कभी भी नहीं! और जिन्नातों की दुनिया से आई हुई शहजादी! मैं तुम्हारा इंसानों की दुनिया में वह बुरा हाल करूँगी कि तुम्हें अफ़सोस होगा उस दिन पर, जब तुम इस दुनिया में आई थी!"

    यह बड़बड़ाते हुए अचानक वह हँसने लगी थी। और अचानक, उस हवन की आग जिसमें वह लगातार खोपड़ी और कंकाल तंत्र डाल रही थी। धीरे-धीरे, उस आग से निकली हुई डरावनी आकृति आसमानों में जाकर बस रही थी, और एक-एक लेयर जिन्नातों की दुनिया के चारों ओर फैलती जा रही थी।

    इसका मतलब साफ था — कि जिन्नातों की दुनिया पर हमला किसी और ने नहीं, बल्कि इसी लड़की ने किया था।

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  • 8. mysterious reborn - Chapter 8

    Words: 2209

    Estimated Reading Time: 14 min

    इसका मतलब साफ था — कि जिन्नातों की दुनिया पर हमला किसी और ने नहीं, बल्कि इस लड़की ने किया था।

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    जो इस वक्त इंसानों की दुनिया में एक बड़े से महल में, जलती हुई आग के ठीक सामने बैठी हुई थी — वही आयशा, जो जोया के कमरे में मौजूद थी। वह अपने, अब्बा महाराज की बातें सुनने के बाद पूरी तरह से बेचैन हो उठी थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस तरह से कोई ताकतवर शक्ति आ जाएगी और जिन्नों की दुनिया को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लेगी।

    कहाँ तो उसने गुलफाम को अपनी माँ के बारे में पता लगाने के लिए भेजा था, लेकिन उसके पिता ने अब भी उसकी माँ के बारे में उसे कुछ नहीं बताया था। यह बात उसे और भी बेचैन कर रही थी।

    फिलहाल उसने गहरी साँस ली और मन ही मन सोचा कि ‘चलो किसी से बात करके कुछ राहत मिले’, क्योंकि दादी ने उसे खुद बताया था कि कोई ना कोई काली शक्ति, कोई ना कोई बड़ा खतरा उसकी ओर आ रहा है। तो उसके बारे में उसे कोई आइडिया नहीं था। फिलहाल उसने सोचा कि जल्द से जल्द घर जाना चाहिए।

    ये सोचते हुए उसने फोन उठाया और बाहर आ गई। उस फोन को जादुई शक्ति के द्वारा ही आयशा ने जोया के कमरे में भिजवा दिया था। फिलहाल जैसे ही आयशा बाहर आई।तब रुखसाना ने उसे प्यार से देखते हुए कहा था, “अरे बच्ची, आओ ना। तूने तो कुछ खाया भी नहीं है, कुछ खा लो। और यह देखो ना, तुम्हारे बॉस यह भी कुछ खास नहीं खा पा रहा है यार, बस ऐसे ही नाम के लिए बैठे हुए हैं।”

    अब कबीर मुस्कुरा दिया था और बोला था, “आप क्या कह रही हैं आंटी जी? मैं तो ऑलरेडी काफी खाना खा चुका हूँ।”

    वहीं कबीर अपने सामने बिरयानी की भरी हुई प्लेट को देख रहा था, तो कभी पास में पड़े हुए बटर चिकन को देख रहा था, और साथ में जोया बैठी हुई थी। कबीर, जो कि होटल में पहले ही खाना खा चुका था, अब इस तरह से इतना सारा खाना देखकर उसके हालात खराब होने लगे थे। लेकिन रुखसाना बार-बार यह बात बोले जा रही थीं कि, “क्या तुम्हें हम गरीबों के घर का खाना पसंद नहीं आ रहा?”

    वहीं जोया भी यह सुनकर मुरझा सी गई थी। अब जोया के चेहरे पर सैडनेस देखकर जल्दी से कबीर ने अपने शर्ट की बाँहें मोड़ीं और तुरंत हाथों से बिरयानी खाने के लिए बैठ गया था।

    और एक-एक बाइट के साथ बोला था — “It’s yummy… it’s so yummy… It’s delicious! इतनी ज़्यादा टेस्टी बिरयानी मैंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं खाई। रियली आंटी, आपके हाथों में तो जादू है… सुपर!”

    यह बोलते हुए कबीर, जिसके पेट में एक निवाला तक खाने की जगह नहीं थी, वह अब बिरयानी की भरी प्लेट खाने लगा था।

    हालाँकि, उसका पूरा पेट उस वक्त उसे कह रहा था, “बस कर भाई, बस कर… खा-खा कर ही मारेगा क्या?”

    लेकिन उस वक्त कबीर के पास कोई और चारा नहीं था, क्योंकि अगर वह खाना नहीं खाता, तो जोया और उस की माँ दोनों ही बुरा मान जातीं, और कबीर कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था, क्योंकि वह स्वयं जोया को पसंद करने लगा था। तो दोनों से जुड़ी हर एक चीज़ उसके लिए मायने रखती थी।

    और जल्दी ही उसने एक प्लेट बिरयानी खा ली थी, लेकिन तभी रुखसाना जी ने प्लेट भर के बटर चिकन उसे परोस दिए थे और बोलीं, “बेटा, अपनी बिरयानी तो खा ली, बहुत अच्छा लगा मुझे तुम्हारी तारीफ सुनकर। प्लीज़-प्लीज़, यह भी खा कर बताइए ना — कैसे बने? और आपको पूरा खत्म करना है।”

    रुखसाना जी ने जैसे ही ज़ोर देते हुए कहा, कबीर की आँखों से आँसू बहने को तैयार थे। उसकी सिचुएशन ऐसी हो गई थी कि ना तो वह खाने से मना कर सकता था और ना ही उन्हें बता सकता था कि उसका पेट ऑलरेडी भरा हुआ है।

    फिलहाल उसने आयशा की ओर देखा, जो कि अपनी प्रॉब्लम्स को लेकर पहले से ही परेशान थी। अब कबीर की तरह देखने पर उसने उसकी ओर देखा, और जैसे ही उसने उसकी आँखों में झाँक कर देखना शुरू किया, तो जल्दी ही उसे कबीर होटल में अच्छी तरह से भरपेट खाना खाकर खाना खाते हुए दिखाई दिया था — और यहाँ भी वह बिरयानी की प्लेट खा चुका था।

    तब आयशा को कबीर के लिए बुरा लगा और जल्दी ही उसने कबीर की ओर देखकर कहा था, “कबीर सर, आप अम्मी के हाथ का बटर चिकन फिर कभी खा लीजिएगा। आपको पता है, दादी के मुझे कितने सारे कॉल आ चुके हैं। मुझे लगता है कि अभी हमें घर के लिए चलना चाहिए, कही मिस्टर सूर्यवंशी न यहां आ जाएँ… और आपको तो पता है, सूर्यवंशी का! पिछली बार उन्होंने क्या किया था? पिछली बार जब हम वहाँ नहीं गए तो अपनी पूरी सेना को लेकर वहाँ आ गए थे। इसीलिए, हमें किसी तरह का मौका नहीं देना है… और मुझे लगता है, कि अभी हमें घर चलना चाहिए।”

    अब जैसे ही आयशा ने कबीर की जानबूझकर मदद करते हुए यह कहा, कबीर को तो ऐसा लगा मानो कि उसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो। मन ही मन उसने आयशा को ढेर सारी दुआएँ दी थीं और जल्दी से उठ खड़ा हुआ।

    वहीं जोया, रुखसाना और अहमद जी — तीनों थोड़े से उदास से हो गए थे।

    “बेटी, क्या तुम सच में वापस जा रही हो?”

    तब आयशा, उन लोगों की फीलिंग्स को समझते हुए बोली थी, “बस कुछ दिनों की बात और है। मैंने पता किया है, दादी का इलाज अच्छी तरह से चल रहा है और बहुत जल्द दादी ठीक होने वाली हैं। और जैसे ही दादी ठीक हो जाएँगी, फिर मुझे उनके घर पर नहीं रहना पड़ेगा। और आप लोगों ने तो कहा है — कि अगर किसी की मदद करने से, और अगर मेरे होने से किसी को खुशी मिलती है, तो वह काम ज़रूर करना चाहिए।”

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    ---

    मतलब, मैं आप लोगों की बात कैसे टाल सकती हूँ? क्योंकि रुखसाना और अहमद दोनों ने ही आयशा को यह बात समझाई थी कि अगर मैसेज सूर्यवंशी को आयशा के होने से खुशी मिलती है, तो आयशा को उनकी मदद करने के लिए ज़रूर जाना चाहिए।

    फिलहाल, उन्होंने प्यार से आयशा के सर पर हाथ रखा था और बोले थे, “हम अच्छी तरह से जानते हैं बेटा, सूर्यवंशी पूरी तरह से ठीक हो जाए… हमारे घर, अपने घर वापस लौट आओ।”

    क्योंकि अगर आयशा अपनी दादी के लिए वहाँ नहीं गई, तो सकता है कि जिस तरह से उसने पिछली बार आधी रात को सभी लोगों को नींद से जगा दिया था, इस बार भी वह कुछ ऐसी ही हरकत कर सकता है। और वह इस तरह से किसी को अपनी वजह से परेशानी में नहीं डालना चाहती थी।

    फिलहाल, अब जल्दी आयशा उन सब से विदा लेकर निकल पड़ी।

    सूर्यवंशी का दिमाग इस वक्त पूरी तरह से खराब हुआ पड़ा था। वह फंक्शन से तो लौट आया था, लेकिन जिस तरह से, एक बार फिर सबक सिखाना चाहता था, क्योंकि जब तक वह आयशा को सबक नहीं सिखा देता, तब तक उसे नींद नहीं आने वाली थी।

    इसलिए, जैसे ही उसने अपने कमरे में देखा कि आयशा वहाँ नहीं है, अरमान के माथे पर बल पड़ गए और वह आह्वान के कमरे में गया। और जैसे ही वह वहाँ गया, वहाँ अलग-अलग नजरों से आज अरमान को देखने लगा था।

    राजा कर के आँखों के सामने अरमान का आयशा को किस करना याद आ रहा था, और उसी की उसने वीडियो रिकॉर्डिंग ले ली थी। अब वह उस वीडियो रिकॉर्डिंग को अच्छे से एडिट करके दादी को दिखाना चाहता था, ताकि दादी जल्द से जल्द अरमान और आयशा की शादी करवा दें। और हाँ, जल्दी से चाचू भी बन जाए — बस इसका इतना सा छोटा सपना था, जिसे वह हर हाल में पूरा करना चाहता था।

    फिलहाल, अब जैसे ही अरमान वहाँ आया, उसने आनंद फादर ने अपना लैपटॉप बंद कर दिया, क्योंकि अगर आज अरमान लैपटॉप में वह वीडियो देख लेता, तो आह्वान को यही तड़प-तड़प कर मार डालता।

    वह बोला था, “बताइए आपने क्यों तकलीफ की यहाँ आने की?”

    माथे पर बल लाकर अरमान बोला था, “शट अप! ये बताओ, कबीर कहाँ है? कबीर दिखाई क्यों नहीं दे रहा है? उसे तो मैंने कहा है कि जब तक वह लड़की यहाँ रहेगी, कबीर भी यहाँ रहेगा। तो फिर वह लड़की कहाँ है? वह दिखाई क्यों नहीं दे रही है? दादी ने अभी तक दवाई भी नहीं खाई है, उसे लड़की की वजह से। लड़की को फोन करो, उसको बुलाओ!”

    आह्वान के द्वारा आयशा या कबीर को कॉल करवाना चाहता था, ताकि उन्हें पता चल सके कि वे इस वक्त कहाँ हैं।

    “आएशा दीदी को घर पर अरमान भाई पूरी तरह से बेहाल हो रहे हैं। यह कहो कि एक आशिक बुरी तरह तड़प रहे हैं अपनी महबूबा से मिलने के लिए।”

    कुछ ही पलों में, आह्वान ने जितनी भी रोमांटिक मूवी देखी थीं, उन सब के सीन याद करने शुरू कर दिए — कि किस तरह से महबूब की जुदाई होने पर आशिक तड़पने लगता है।

    वह जल्दी ही मुस्कुराने लगा था और अपने हाथ की सीधी उंगली को मुँह में काटते हुए, दाँतों के बीच में दबाते हुए बोला था, “क्या बात है अरमान भाई… आपको आयशा दीदी की याद आ रही है?”

    अब जैसे ही थोड़ा सा मस्ती के अंदाज़ में, अलग तरीके से आह्वान ने बोला, अरमान उसे घूरते हुए बोला, “क्या बकवास कर रहा है तू? दिमाग कहाँ है तेरा? मैं देख रहा हूँ कि आजकल फालतू बातें ज़्यादा करता है…


    जल्दी ही बता।”

    जैसे ही अरमान की पढ़ाई पर भारी पड़ा, आह्वान तुरंत होश में आया। वह अपनी होली वापस से हाथ में निकालकर, अपने कपड़ों से पोंछते हुए बोला, “भाई, सॉरी-सॉरी! मेरे कहने का मतलब यह नहीं था। मैं तो सिर्फ इतना कहना चाहता था कि वह हैं ना, कबीर भाई… कबीर भाई आयशा दीदी के साथ हैं… और वह
    जोया के साथ हैं।”

    इस तरह, आह्वान पूरी बात सीधे अरमान को कह नहीं पा रहा था, क्योंकि अरमान के बिहेवियर और बातों से वह डर गया था।

    अरमान उसे आँखें दिखाते हुए बोला था, “अगर तूने साफ-साफ लफ़्ज़ों में मुझे पूरी बात नहीं बताई, तो मैं तेरा इंटरनेट बंद करवा दूँगा!”

    अब जैसे ही अरमान ने आह्वान की कमजोरी पर वार किया, आह्वान तुरंत ही रोते हुए बोला, “भाई, आप मुझे हमेशा डराते रहते हो। मेरा कहने का मतलब ये है कि आयशा दीदी और कबीर भाई… उनके घर गए हैं। वो बस आते ही होंगे। कबीर भाई का मुझे मैसेज आया था… सच!”

    ये सुनते ही अरमान ने गहरी साँस ली थी। वहीं, उसे बुरा लग रहा था कि आयशा कबीर के साथ क्यों है? उसके साथ क्या करने के लिए गई है?

    “ये लड़की अमीर लोगों को फँसाने का एक भी मौका नहीं छोड़ती। मेरे सामने तो बड़ी सती-सावित्री बनने का नाटक कर रही थी और अब कबीर के साथ घूम रही है! उसको तो मैं नहीं छोड़ूँगा!” — यह बोलते हुए अरमान खून पीने की तरह गुस्से में चला गया।

    वहीं अरमान के जाने के बाद, आह्वान ने राहत की साँस ली थी और बोलने लगा था, “वाह, अरमान भाई… क्या तूफानी एक्सप्रेस हैं यार! उनके सामने तो नॉर्मल इंसान भी नॉर्मल नहीं रह पाता! पता नहीं बेचारी आयशा दीदी उनके साथ पूरी ज़िंदगी कैसे रहेगी!”

    यह सोचते हुए, एक बार फिर चंचलता भरी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आ गई थी।

    वहीं आयशा इस वक्त काफी ज़्यादा घबराई हुई सी थी, क्योंकि उसकी माँ उससे मिलने के लिए नहीं आ पा रही थी। और ऐसी कौन सी शक्ति है, जो आयशा के जन्म का राज जानने के बदले गुस्से से पागल हो गई — कि उसने जिन्नातों की दुनिया पर ही आक्रमण कर दिया।

    ---



    और इतनी पावरफुल वह कैसे हो सकती है? हर्ष को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह बस जल्द से जल्द दादी के पास जाना चाहती थी, ताकि दादी से मिल सके।

    वहीं कबीर, जिसने आज कुछ ज़्यादा ही ओवरईटिंग कर ली थी, तो उसका इस वक्त काफी ज़्यादा बुरा हाल था। ना वह ठीक से बैठ पा रहा था, ना ही ठीक से साँस ले पा रहा था।

    फिलहाल, वह जल्दी ही ड्राइव करके घर पहुँचना चाहता था, ताकि वह कुछ ना कुछ घरेलू नुस्खे या डॉक्टर से बात करके अपनी ओवरईटिंग का इलाज कर सके।

    वहीं आयशा और अशोक काफी ज़्यादा कष्टभरे क्षणों का शिकार थे। कबीर को काफी ज़्यादा परेशानी हो रही थी, जिसकी वजह से वह गाड़ी भी ठीक से नहीं चला पा रहा था।

    “कुछ नहीं होगा उसे… बस सबसे पहले सूर्यवंशी पहुँचना होगा। वहाँ जाकर दादी ही उसकी प्रॉब्लम का इलाज कर सकती हैं।”

    इसलिए उसे शांत रहकर सोचना होगा कि उसे क्या करना चाहिए।

    फिलहाल, उसने कबीर की ओर देखा और बोली थी, “कबीर जी, मुझे लगता है कि आप कुछ परेशान से लग रहे हैं। क्या बात है? आपको कहीं अम्मी के आज का खाना… खाना आपको पसंद नहीं आया क्या?”

    जैसे ही आयशा ने यह कहा, कबीर तुरंत बोला, “नहीं-नहीं आयशा, खाना तो बहुत अच्छा था। लेकिन तुमसे क्या छुपाना… असल में मैंने होटल में भी खाना खा लिया था और उस वक्त मेरा पेट बहुत ज़्यादा भरा हुआ था। और ओवरईटिंग की वजह से मैं ठीक से साँस नहीं ले पा रहा हूँ।”

    ---

  • 9. mysterious reborn - Chapter 9

    Words: 2243

    Estimated Reading Time: 14 min

    जैसे ही आयशा ने यह कहा, कबीर तुरंत बोला, “नहीं-नहीं आयशा, खाना तो बहुत अच्छा था। लेकिन तुमसे क्या छुपाना… असल में मैंने होटल में भी खाना खा लिया था और उस वक्त मेरा पेट बहुत ज़्यादा भरा हुआ था। और ओवरईटिंग की वजह से मैं ठीक से साँस नहीं ले पा रहा हूँ।”

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    अब जैसे ही कबीर ने सिंपल तरीके से अपनी प्रॉब्लम आयशा को बताई, आयशा ने तुरंत अपनी आँखों से रंग-बिरंगी रोशनी निकलते हुए अपने बैग की तरफ देखा था। और फिर उसमें से तुरंत ही एक छोटी-सी पिंक कलर की गोली निकालकर कबीर की ओर देते हुए बोली थी,

    "अच्छ-अच्छा... अगर आपको ओवरईटिंग हो गई है, तो आप एक काम कीजिए — आप ये वाली दवाई खा लीजिए।"

    आयशा की बात सुनकर कबीर को ऐसा लगा, मानो कि डूबते को किसी ने तिनका दे दिया हो... किसी ने मरते हुए बचा लिया हो।

    उसने तुरंत ही आयशा के हाथों से गोली लपक ली थी और गाड़ी की विंडसाइड से पानी की बोतल लेकर गोली को निगल लिया।

    गोली लेते ही कबीर को तुरंत ही राहत मिल गई थी। अब यह देखकर, कबीर की हैरानी से बोल पड़ा,

    "तुम्हें पता है, इसे खाकर ऐसा लग रहा है कि जैसे मुझे कुछ हुआ ही नहीं था। अभी तो ओवरईटिंग की वजह से मेरी साँसे अटक रही थीं... मेरी साँसे धीमी हो रही थीं । मैं सही से साँस नहीं ले पा रहा था... लेकिन अब मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैंने कभी ओवरईटिंग की ही नहीं थी। ये... ये क्या था?! यह दवाई तुमने कहाँ से ली? मैं उसी डॉक्टर के पास जाया करूंगा... उसे अपना पर्सनल डॉक्टर बना लूंगा। प्लीज़-प्लीज़ बताओ ना!"

    अब कबीर के इस उत्साहित बोलने पर आयशा मन ही मन मुस्कुराते हुए बोली थी,

    "इंसानों की सबसे बड़ी प्रॉब्लम यही है... उन्हें अगर एक बार कुछ अच्छा मिल जाए, तो वे वापस से और पाने की चाहत करने लगते हैं।"

    तब आयशा ने गहरी साँस लेते हुए कहा था,

    "देखिए... ये तो मुझे नहीं पता। एक बार सड़क पर कुछ लोग इस तरह की गोलियाँ बेच रहे थे, तो मैंने रैंडमली खरीद ली थी।"

    यह सुनकर कबीर मायूस हो गया था, और बोला,

    "अच्छा... ठीक है, ..."

    ---

    वहीं दूसरी ओर, अरमान

    अपने कमरे की शानदार बालकनी में खड़ा था। उसकी नज़र जहाँ टिक गई थी... वो जगह थी — सूर्यवंशी मेंशन का मेन गेट, जहाँ से कबीर की गाड़ी अंदर आने वाली थी।

    वह बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।

    धीरे-धीरे रात गहराने लगी।

    घड़ी की सुइयाँ साढ़े ग्यारह पर रुक चुकी थीं।

    लेकिन अभी तक न तो कबीर लौटा था, न ही आयशा।

    ---
    अरमान के सामने कुछ अजीब सा डर मंडराने लगा था।

    उसने खुद से कहा,

    ".. क्या ऐसा हो सकता है?

    कबीर और आयशा एक साथ... कहीं घूम रहे हों?"

    ये सोचते ही उसका माथा फटने को हुआ।

    उसकी आँखें लाल हो उठीं।

    लेकिन इससे पहले कि वह कबीर को कॉल करता, उसने खुद को टोका—

    "नहीं... पहले खुद कॉल कर के पूछना चाहिए कि वह कहाँ हैं..."

    ---

    और जैसे ही वह कॉल करने ही वाला था,

    उसे सूर्यवंशी मेंशन के मेन गेट से कबीर की गाड़ी आती हुई दिखी।

    उसकी नज़रें वहीं ठहर गईं।

    वह ठीक उसी पल था,

    जब कबीर गाड़ी से उतरा...

    और आयशा के लिए खुद आगे बढ़कर दरवाज़ा खोला।

    "

    आयशा ने मुस्कराकर सिर्फ एक शब्द कहा —

    "थैंक यू।"

    ---

    लेकिन...

    कबीर की इस शालीनता को देख रही थीं एक और जलती हुई नज़रें — अरमान की।

    ऊपर बालकनी से सब कुछ देख रहा था वह...

    मगर फिर भी... उसने जानबूझकर बालकनी की ओर न देखने का नाटक किया।

    ---

    आयशा तेजी से अंदर गई।

    वह सीधे पहुँची — दादी के कमरे में।

    जैसे ही वह वहाँ पहुँची,

    दादी ने हल्की सी मुस्कान के साथ उसी को देखा।

    फिर वह बिना रुके, जल्दी से उनके पास गई और हाथ पकड़ कर बोली—

    "दादी... आपको पता है, क्या हुआ है?"

    ---

    आयशा उन्हें सब कुछ बताना चाहती थी —

    जो उसके पिताजी महाराज ने बताया था।

    लेकिन उससे पहले ही दादी ने हाथ के इशारे से रोकते हुए कहा—

    "शहज़ादी...

    आपको मुझे कुछ भी बताने की ज़रूरत नहीं है।

    मैं जानती हूँ...

    कि आपको सब पता चल चुका है —

    कि किसी काली शक्ति ने जिन्नातों पर आक्रमण किया है।

    और सभी जिन्नातों को उसने इस तरह क़ैद कर लिया है...

    कि उनकी जन्नत की दुनिया पर अब उसका अधिकार है।"

    ---

    यह सुनकर आयशा चौंक उठी।

    उसकी आँखों में सवाल थे, और लफ़्ज़ खुद-ब-खुद निकल आए—

    "दादी... आपको कैसे सब पता चला?

    आप मुझे क्यों नहीं बता देतीं कि आप असल में कौन हैं?

    कभी आप एक छोटी बच्ची बनकर मेरे सामने आती हैं...

    और कभी सब कुछ पहले से जानती हैं!"

    "आखिरकार... आपका रहस्य क्या है?

    वो एनाकोंडा — ब्लैक — वह कौन है?

    उसकी क्या कहानी है?"

    ---

    इन सवालों से आयशा का दिमाग़ चक्कर खाने लगा।

    ---

    उधर, अरमान आयशा को दादी के कमरे में जाता देख चुका था।

    और अब वह उसे वहीं से बाहर लाने की स्थिति में नहीं था।

    क्योंकि वह जानता था —

    दादी तब तक अपनी दवाइयाँ नहीं खातीं,

    जब तक आयशा को देख न लें।

    इसलिए... अरमान को इंतज़ार करना था।

    ---

    दादी के कमरे में...

    आयशा, गहरी नज़रों से दादी को देख रही थी।

    उसने अब तक एक शब्द भी नहीं कहा था।

    लेकिन उसकी आँखें कह रही थीं:

    ---

    "आख़िर कौन है वो काली शक्ति,

    जिसने जिन्नातों की दुनिया को चारों ओर से बंद कर दिया है?

    क्यों वह मुझे मेरा पिछला जन्म नहीं देखने देना चाहता है?

    और...

    आप...

    आप मुझे सारा सच क्यों नहीं बतातीं?"

    आयशा पूरी तरह से बेचैन थी और उसकी अगर कोई मदद कर सकता था, तो वह थी सिर्फ और सिर्फ दादी, जो कि सारा सच जानती थी। आयशा की ज़िंदगी पूरी तरह से रहस्यों में घिरी थी—कभी पिछले जन्म का रहस्य, कभी उसे बड़े से सांप एनाकोंडा ब्लैकी का रहस्य, कभी अरमान सूर्यवंशी का रहस्य। हालांकि जिन्नातों की दुनिया से उससे नफरत करने वाली मल्लिका भी इंसानों की दुनिया में जाकर उसके लिए प्रॉब्लम क्रिएट कर रही थी।

    लेकिन अब... अब तो यह प्रॉब्लम कुछ अलग ही तरह की सामने आई थी, जिसने आयशा का दिमाग पूरी तरह से खराब कर दिया था, क्योंकि उसने गुलफाम को भेज चुकी थी अपनी मां, जिन महारानी हुस्ना के बारे में पता लगाने के लिए। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि इस काली शक्ति ने, अनजाने में ही सही, आयशा की एक मदद कर दी है, क्योंकि उस वक्त मल्लिका भी जिन्नातों की दुनिया में गई हुई थी।

    और उसे वहाँ जाकर इस बात के बारे में पता चल चुका था कि आयशा इंसान के लिए धरती पर आई है। वह इंसान आयशा को मिल चुका है और वह कोई और नहीं बल्कि अरमान सूर्यवंशी है, क्योंकि जिन्नातों की दुनिया में सबसे अलग तरह का बवाल मचा हुआ था। जिन महारानी हुस्ना को अगवा कर लिया गया था और इसके बारे में केवल कुछ खास लोगों को ही पता था।

    वहीं जिन्नातों के महाराज इस बात का पता किसी को भी नहीं लगने देना चाहते थे। इसीलिए वह हर बार जिन महारानी हुस्ना की जगह आयशा से मिलने के लिए आ रहे थे और कदम-कदम पर जाकर उसे आगे का रास्ता दिखा रहे थे। लेकिन अब एक अनजानी काली शक्ति ने पूरे के पूरे जिन्नातों की दुनिया के सभी रास्तों को बंद कर दिया था।

    अब कोई भी, जब तक कि काली शक्ति का रहस्य — वह अदृश्य गोल चक्र — जिन्नातों की दुनिया से हट नहीं जाता, तब तक कोई भी जिन्नातों की दुनिया से इंसानों की दुनिया में नहीं आ सकता था और ना ही जा सकता था। और यह सब कुछ गुलफाम और मल्लिका के जाने के बाद हुआ था।

    वहीं मल्लिका, गुस्से से पूरी तरह से भभक रही थी। ना तो वह लावण्या को कोई संदेश पहुंचा सकती थी और ना ही वह जिन्नातों की दुनिया से बाहर निकल सकती थी। इस वक्त उसका गुस्से से बुरा हाल था।

    हालांकि उसकी मां ने उसे समझाने की भी कोशिश की थी कि वह बिल्कुल भी शहजादी के रास्ते में ना आए। भले ही वह जिन महारानी बनने का सपना देखती है, लेकिन उसका यह सपना बिल्कुल भी पूरा नहीं हो पाएगा। इसीलिए उसे आयशा के रास्ते से हट जाना चाहिए।

    क्योंकि जब से मल्लिका को यह पता चला था कि अरमान सूर्यवंशी ही वह इंसान है, जिसके लिए आयशा वहाँ गई है — तब से तो उसकी बेचैनी और ज़्यादा बढ़ चुकी थी। अरमान पर तो वह पहली नज़र में ही अट्रैक्ट हो गई थी, लेकिन उस वक्त उसने उसे एक नॉर्मल इंसान समझा था।

    लेकिन अब, जैसे-जैसे उसने जिन्नातों की दुनिया में जाने के बाद इस बात के बारे में अपनी मां की आँखों में देखकर पता लगाया, तो उसके होश उड़ चुके थे। और अपनी मां को घूरते हुए बोली थी — "अगर आपको पहले पता चल चुका था कि वह इंसान कोई और नहीं बल्कि अरमान सूर्यवंशी है, तो आपने मुझे यह बात क्यों नहीं बताई? आपने मुझे यह बात क्यों छुपाई? अगर आप ही मुझे बता देतीं, तो मुझे इस तरह से इंसानों और जिन्नातों की दुनिया में नहीं आना पड़ता और ना ही मैं इस तरह से यहाँ कैद होकर रह जाती।"

    इस वक्त वह गुस्से से पूरी तरह से भभक रही थी। तब उसकी मां उसकी ओर देखकर बोली थी — "मुझे भी पहले इस बात के बारे में नहीं पता था कि अरमान सूर्यवंशी ही वह इंसान है, जिसके लिए जिन शहजादी वहाँ गई है। और मेरा यकीन जानो बेटा, उस वक्त मैं सिर्फ और सिर्फ जिन्न महाराज और जिन्न महारानी हुस्ना की बातें सुन रही थी। तभी से मैं तुम्हें बताने की भी कोशिश कर रही थी, लेकिन फिर अचानक से जिन महारानी हुस्ना अगवा हो गईं और सभी जिन्नातों को उन्हें ढूंढने में लगा दिया गया — क्योंकि जिन महाराज का हुक्म था। और इसीलिए मैं तुम्हें कुछ भी नहीं बता पाई।"

    अब यह सुनकर मल्लिका का खून खौल रहा था। उसे महारानी हुस्ना के गायब होने से कोई लेना-देना नहीं था।

    वह तो बस सबवे सर्फर्स से वापस इंसानों की दुनिया में जाकर अरमान सूर्यवंशी को पूरी तरह से अपने क़ब्ज़े में लेना चाहती थी।

    वहीं आयशा, जो कि सभ्यता के पास बैठी हुई थी, लेकिन दादी उसे कोई भी जवाब नहीं दे रही थी। आयशा का दिमाग पूरी तरह से खराब हो रहा था, क्योंकि अपने पिता के चेहरे का कैंसर उसके दिमाग और आँखों के आगे से जा ही नहीं रहा था। वह बार-बार अपने अंबाजी महाराज की शक्ल को याद कर-करके उदास हो रही थी।

    और उसने तुरंत ही कहा था — "दादी, प्लीज़... क्यों आप मुझे कुछ नहीं बता पा रही हैं? प्लीज़ मेरी मदद कीजिए। मैं यहाँ आपकी मदद मांगने के लिए आई हूँ और आपने ही बोला था कि आप मेरी रक्षा कर रही हैं। तो फिर इस तरह से मुझ पर जिन्नातों की दुनिया से कोई आक्रमण कैसे कर सकता है? और जब मैं छोटी बच्ची के रूप में थी तो आप मेरी मदद भी करती थीं!"

    आयशा का दिमाग इन सब सवालों से घिरा हुआ था। तभी दादी ने आयशा को गहरी नजरों से देखते हुए कहा था —

    "शहजादी, इस वक्त सबसे ज़्यादा ज़रूरी अगर कुछ है, तो वह है सिर्फ और सिर्फ आपकी शादी। आपको कल के कल ही अरमान से शादी करनी होगी। उसके बाद ही आपको आगे के सवालों के जवाब मिलेंगे।"

    ---आपके द्वारा भेजे गए टेक्स्ट को बिना शब्द घटाए, पूरी तरह विराम चिह्नों के साथ सही ढंग से प्रस्तुत किया गया है:

    ---

    वह बोली थी, "आप क्या कह रही हैं? शादी? और भला इस तरह से अरमान सूर्यवंशी मुझसे शादी कैसे कर सकते हैं? क्या आप नहीं जानतीं, वह मुझसे नफरत करते हैं? वह मेरी शक्ल तक देखना नहीं चाहते! वह सिर्फ अट्रैक्शन की वजह से... उन्हें मुझसे प्यार नहीं हुआ है!"

    आशा की बात सुनकर दादी ने उसके सर पर हाथ रखकर कहा था, "इस बात की आप बिल्कुल फिक्र मत कीजिए। अरमान को शादी के लिए तैयार करना मेरी जिम्मेदारी है। अब, अब जाइए... जाकर अपने कमरे में आराम कीजिए। और हाँ, इस वक्त जितनी भी परेशानियाँ चल रही हैं, उन परेशानियों का सबसे बेहतर सॉल्यूशन सबसे पहले आपकी शादी है। और शादी के बाद आप किस तरह से वह प्रॉब्लम फेस करेंगी, उसके बारे में मैं आपको जल्दी ही बताऊंगी। अब आप जाइए... और मन आपका इंतज़ार कर रहा है।"

    अब यह सुनकर आशा और भी हैरान हो गई कि भला अरमान उसका क्यों इंतज़ार कर रहा है! लेकिन फिलहाल दादी ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं। इसका मतलब साफ़ था कि दादी अब और कोई बात नहीं करना चाहती थीं। इसीलिए, न चाहते हुए भी आशा कमरे से बाहर निकल गई।

    वहीं अरमान, जो कि बेसब्री से आशा को दादी के कमरे से बाहर निकलते देखने का इंतजार कर रहा था, उसके चेहरे पर तुरंत ही एक रहस्यमयी मुस्कुराहट आ गई थी। और वह गुस्से से भी भिनभिनाते हुए बोला था, "अब मैं इस लड़की को बताऊंगा कि अरमान सूर्यवंशी क्या चीज़ है! इसकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस तरह से बात करने की! बड़ी अपनी बनी फिरती है, जबकि खुद मुझे पहले दिन से अट्रैक्ट कर रही है! ऐसे ही? तो फिर आज नहीं छोड़ूंगा!"

    यह सोचते हुए उसने गहरी साँस ली। और जैसे ही आयशा अपने कमरे में गई, अचानक अरमान उसके कमरे में आ गया और पीछे से जाकर उसने दरवाज़े की कुंडी लगा दी थी।

    अब आयशा जैसे ही कुंडी लगने का एहसास हुआ, तुरंत चौंक उठी और पीछे मुड़कर अरमान की ओर सावलीया नज़रों से देखने लगी थी।

    ---

  • 10. mysterious reborn - Chapter 10

    Words: 2215

    Estimated Reading Time: 14 min

    अब आयशा जैसे ही कुंडी लगने का एहसास हुआ, तुरंत चौंक उठी और पीछे मुड़कर अरमान की ओर सावलीया नज़रों से देखने लगी थी।

    ---



    तब अरमान तुरंत दाँत भींचते हुए आगे बढ़ा और आयशा के बालों को कसकर पकड़कर बोला था, "क्या बोला था तुमने? तुम्हारा फायदा उठाने की कोशिश कर रहा हूँ? अपने आप को तुम इतनी बदसूरत हो कि तुम्हारे साथ कोई बात तक करना पसंद नहीं करता है... और यहाँ तुम अरमान सूर्यवंशी के साथ सोने के सपने देखती हो? क्या मैं नहीं जानता कि तुम जानबूझकर मुझे अपनी ओर अट्रैक्ट करती हो? कुछ तो है तुम्हारे पास ऐसा, जिसके द्वारा तुम उसका इस्तेमाल करके मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रही हो!

    "लेकिन मेरी एक बात सुन लो, बदसूरत लड़की... तुम मेरी ज़िंदगी में कभी भी नहीं आ सकती हो! अरमान सूर्यवंशी बहुत जल्द तुम्हें गलत साबित कर देगा, क्योंकि मैं कल के कल ही आलिया रंधावा से शादी करूंगा। और उसके बाद तुम्हें बताऊंगा कि अरमान सूर्यवंशी क्या चीज़ है!"

    अब यह सुनकर तो आयशा के दिमाग में एकदम से बम ब्लास्ट हो गया था—कि अरमान क्या कह रहा है? यह आलिया रंधावा से शादी करेगा? आलिया रंधावा का नाम सुनकर उसे इतना बुरा क्यों लग रहा है?

    फिलहाल, उसने कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि इस वक्त तो वह खुद इतनी ज़्यादा परेशानियों में घिरी हुई थी कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। उसने अपने बालों को उसके हाथों से छुड़ाया और उसकी ओर देखकर बोली थी,

    "मिस्टर सूर्यवंशी, मैं थक गई हूँ। I feel sleepy... मैं सोना चाहती हूँ। प्लीज़, आप चले जाइए।"

    यह बोलकर उसने जल्दी ही दरवाज़ा खोल दिया और अरमान को वहाँ से जाने के लिए कहा।

    अब तो अरमान के अंदर और ज़्यादा आग लग गई थी, क्योंकि वह तो सोच रहा था कि जैसे ही वह आयशा को अपनी शादी के बारे में बताएगा, वह ज़रूर रिएक्ट करेगी—उसे उल्टा-सीधा सुना देगी, कुछ तो भला-बुरा कहेगी।

    लेकिन यह क्या! यहाँ तो आयशा सीधे से कमरे से बाहर जाने के लिए कह रही थी! उसने अपने हाथों की मुट्ठी कसकर बंद कर ली थी। और आज, इस रिश्ते में उसका दिल किया कि वह एक बार फिर उसे अच्छा-खासा सबक सिखा दे। लेकिन न जाने क्यों, जितना गुस्सा उसे आयशा के पीछे आता था, आयशा को सामने देखने के बाद उसका गुस्सा अपने आप ही छूमंतर हो जाता था।

    अब उसे उस पर गुस्सा नहीं आ रहा था, बल्कि वह एक बार फिर उसके होठों की ओर आकर्षित हो रहा था। लेकिन चाहकर भी वह अब वहाँ उसे छू नहीं सकता था। वह तुरंत ही पैर पटकते हुए वापस अपने कमरे में आ गया और जोर से दरवाज़ा बंद कर दिया था।

    और एक बार फिर उसने रोहित को कॉल मिलाया था—रोहित, जिसे अरमान ने होटल रूम से भी फोन किया था। उसे कहा था कि "आलिया रंधावा के पास शादी के इन्विटेशन के लिए बोलो और वह कल के कल ही कोर्ट मैरिज से शादी करेगा।"

    और बाद में दादी-दादी और बाकी सबको प्रेस कांफ्रेंस के थ्रू अनाउंस करके यह बता देगा कि उसने आलिया रंधावा से शादी कर ली है।

    लेकिन अब, आयशा ने किसी तरह का कोई रिएक्शन नहीं दिया, तो यह बात उसे और ज़्यादा हर्ट कर गई थी। और वह मुंह में गुस्सा दबाकर रोहित से बोला था, "कल के कल ही सबसे पहले मैरिज रजिस्टार में मेरी शादी होगी। अगर तुमने सारी तैयारी नहीं किया, तो मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगा।"

    यह बोलकर उसने रोहित के मुँह पर फोन पटक दिया था।

    वहीं रोहित अब पूरी तरह से कंफ्यूज़न में फोन की ओर देख रहा था, क्योंकि होटल रूम से भी उसके बॉस ने उसे फोन किया था और बताया था कि उसे शादी करनी है, और जल्द से जल्द उसकी शादी की तैयारी की जाए।

    फिलहाल उसने आलिया को मैसेज कर दिया था कि कल अरमान सूर्यवंशी आपसे शादी करना चाहता है, और कल के कल ही उसकी आपसे शादी हो जाएगी।

    फिलहाल, आलिया रंधावा इस वक्त कहीं और नहीं, बल्कि एक बड़े से महल में, अग्नि के ठीक सामने बैठी हुई थी। जिस अग्नि में वह मानव कंकाल की खोपड़ियाँ डाल रही थी।

    जी हाँ, आलिया रंधावा कोई और नहीं, बल्कि वही काली शक्ति थी, जिसने जिन्नातों की दुनिया को पूरी तरह से अपने क़ब्जे में ले लिया था और सभी लोगों को जिन्नातों की दुनिया के अंदर ही बंद कर दिया था।

    उसकी मर्ज़ी के बिना अब कोई आ नहीं सकता था, और ना ही जा सकता था—क्योंकि आलिया रंधावा शुरू से ही अरमान पर नज़र रखे हुए थी।

    आयशा पर उसे कोई खास शक नहीं हुआ था, लेकिन उसे अगर किसी पर शक हुआ था, तो वह थी मल्लिका।

    मल्लिका को उसने देख लिया था कि वह कोई आम लड़की नहीं है, बल्कि जिन्नातों से आई हुई एक जिन्न है।

    और मल्लिका ने जिस तरह से अरमान के करीब जाने की कोशिश की थी और अरमान की कंपनी के साथ कोलैबोरेशन करने की बात चलाई थी, वह बात आलिया रंधावा की आँखों में खटक गई थी।

    और देर ना करते हुए, उसने मल्लिका के जिन्नातों की दुनिया में जाते ही पूरी की पूरी जिन्नातों की दुनिया को अपने क़ब्जे में ले लिया था।

    जिसकी बदौलत अब कोई भी उसकी मर्ज़ी के बिना वहाँ से ना आ सकता था और ना ही जा सकता था।

    अब आलिया रंधावा को जैसे ही रोहित का मैसेज मिला कि टाइम से उसे रजिस्ट्रार के ऑफिस पहुँचना है, तो उसके चेहरे की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

    और वह लगातार ज़ोर-ज़ोर से, बड़ी ही राक्षसी हँसी हँसने लगी थी।

    अचानक, उसने आँखों में मानव कंकाल की खोपड़ी डालना बंद कर दिया और सामने की ओर देखा।

    एक बड़ी सी दीवार पर एक राजसी वेशभूषा में एक लड़की की तस्वीर थी—जो बेहद खूबसूरत थी।

    और वह लड़की कोई और नहीं, बल्कि पिछले जन्म की शहज़ादी मीरा, यानी कि आयशा ही थी।

    अब शहज़ादी मीरा की फोटो की ओर देखकर आलिया बुरी तरह से हँसते हुए बोली थी...

    ---
    ---

    "देखा तुमने ना! पिछले जन्म में मैंने तुझे उसका होने नहीं दिया, और ना ही इस जन्म में तुझे उसका होने दूंगी। मुझे पता है कि इस बार तू जिन बनकर मेरे सामने आई है, लेकिन मैंने तुझे जिन्नातों की दुनिया में बंद कर दिया है। तू वहाँ से वापस नहीं आ पाएगी।"

    क्योंकि मल्लिका को... नहीं, आलिया को यह लगा था कि शहजादी मीरा मल्लिका के रूप में जन्म लेकर इंसानों की दुनिया में अरमान से शादी करने के लिए आई है। लेकिन उसे इस बात का दूर-दूर तक कोई एहसास नहीं था कि जिन्नातों की दुनिया से आई हुई लड़की कोई और नहीं, बल्कि शहजादी आयशा है।

    इसी गलतफहमी के चलते उसने जिन्नातों की दुनिया पर पूरी तरह से आक्रमण कर दिया था। और उसी ने शहजादी आयशा की मां हुस्ना को अगवा किया था।

    यह बोलते हुए आलिया बुरी तरह से हँस रही थी। उसे अब सवेरे से अगर किसी चीज़ का इंतजार था, तो सिर्फ और सिर्फ अरमान से शादी करने का। वह शादी, जिसके लिए वह सदियों से तड़प रही थी।

    ---

    दूसरी ओर, आयशा इस वक्त अपनी आँखें बंद करके अपने कमरे में लेटी हुई थी। उसने अरमान को भी वहाँ से जाने के लिए कह दिया था। अरमान की बातें अब भी उसके दिमाग में घूम रही थीं — कि वह कल आलिया से शादी करना चाहता है! यह बात उसे बहुत बुरी लग रही थी।

    वहीं, दादी ने भी उसे कहा था कि वह कल के कल ही आयशा की शादी अरमान से करवा देगी। लेकिन यह सब कुछ कैसे होगा? और पिछले जन्म का राज वह क्यों नहीं जान पा रही है?

    तब आयशा ने सोचा कि उसे एक बार फिर इस रात का फायदा उठाकर ब्लैकी के पास जाना चाहिए। क्योंकि आज का पूरा दिन यूँ ही बीत गया और वह ब्लैकी के पास नहीं जा पाई थी। लेकिन अब, उसे ब्लैकी के पास जाने का समय आ चुका था।

    उसने गहरी साँस ली, अच्छी तरह से अपने कमरे के दरवाज़े और खिड़कियाँ बंद कीं और जादुई शक्तियों से गायब होने का मंत्र पढ़ते हुए वह सीधा ब्लैकी के पास जा पहुँची थी।

    ब्लैकी, आयशा को देखते ही तुरंत इंसानी रूप में उसके सामने झुककर खड़ी हो गई थी। तब आयशा ने उसकी ओर देखकर कहा था:

    "मैं जानती हूँ, तुम मेरे बारे में सब जानती हो। तुम मुझे सब कुछ क्यों नहीं बता देती हो? तुम देख रही हो मेरी हालत... इस वक्त मैं कितनी ज़्यादा परेशानी में हूँ। दादी भी मुझे कुछ नहीं बता रही हैं। कोई मेरी मदद नहीं कर रहा। प्लीज़, मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ती हूँ — तुम्हें मेरी मदद करनी होगी!

    "एक तो जिन्नातों की दुनिया में किसी काली शक्ति ने आक्रमण किया है, पूरी जिन्नातों की दुनिया को बंदी बना लिया गया है। और मैं उसका पता भी नहीं लगा पा रही हूँ। दादी भी बार-बार किसी आने वाले खतरे के बारे में बता रही हैं। क्या है वह खतरा? और कल के कल दादी मेरी शादी अरमान से करने के लिए कह रही हैं, लेकिन अरमान तो आलिया रंधावा से शादी करना चाहता है!"

    अब जैसे ही आयशा ने बातों-बातों में ब्लैकी को यह सारी बातें बताईं, ब्लैकी की आँखें एकदम से हलचल करने लगीं और वह बोली:

    "अरमान की शादी आलिया रंधावा से कभी भी नहीं होगी। वह सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा है... और तुम्हारा ही रहेगा, शहजादी।"

    अब उसकी बातों में इतना आत्मविश्वास देखकर आयशा चौंक गई और बोली:

    "क्या तुम भी सारा सच जानती हो? क्या तुम मुझे एक बार सारा सच बता पाओगी या नहीं? कम से कम तुम तो मेरी मदद करो!"

    तब ब्लैकी गहरी साँस लेते हुए बोली:

    "आप आज फिर अपने पिछले जन्म की कुछ झलकियाँ देख सकती हैं, शहजादी। लेकिन पूरा जन्म आप नहीं देख सकतीं — यह बात आपको पता है ना?"

    तब आयशा ने गहरी साँस ली, क्योंकि वह बेसब्री से सबसे पहले अपना जन्म देखना चाहती थी। यह शादी, जिन्नातों की दुनिया . उसकी माँ का उससे मिलना या ना मिलना — इन सारी बातों के बारे में बाद में पता लगा लेगी।

    फिलहाल उसके लिए जानना ज़रूरी था... आखिरकार, वह मीरा थी या नहीं।

    ---उसकी ज़िंदगी के साथ जो कुछ हुआ... उसका असर इस दूसरी ज़िंदगी में भी पड़ रहा है।

    और सबसे बड़ा असर —

    उसे बदसूरती का श्राप मिला है।

    क्यों?

    यह श्राप उसका खत्म होने का नाम क्यों नहीं ले रहा?

    और क्यों... कोई भी उसके साथ नहीं,

    सिर्फ़ और सिर्फ़ अरमान सिंह सूर्यवंशी ही उसके हर सवाल का जवाब क्यों है

    क्या हुआ था उनके बीच?

    फिलहाल, उसने गहरी सांस ली...

    और तुरंत ब्लैकी की आँखों में झाँकते हुए, उसका हाथ पकड़कर देखने लगी।

    और देखते ही देखते, एक बार फिर...

    ...शहजादी आयशा कहीं और नहीं,

    बल्कि सैकड़ों साल पीछे — अपने पिछले जन्म में पहुँच चुकी थी।

    जहाँ पर...

    शहजादी मीरा अपने खून से सने हाथों को देखते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ रही थी।

    और आयशा... ठीक उसी वक्त, उनके पीछे जा पहुँची थी।

    अब, जैसे ही शहजादी मीरा अपने कमरे में पहुँची,

    उसने तुरंत सभी नौकरों को सख़्त आदेश दे दिए—

    "कोई भी मेरे कमरे में न आए!"

    नौकरों के जाने के बाद, मीरा ने अपने कक्ष के एक-एक कोने को देखा,

    और अचानक... वह पूरी तरह से फूट-फूट कर रोने लगी।

    ऐसा लग रहा था...

    जैसे शहजादी के साथ-साथ,

    उस कमरे की दीवारें भी रो रही हों।

    इतना भीषण दर्द...

    इतना गहरा आघात...

    आयशा खुद अपनी आँखों के सामने

    शहजादी मीरा को टूटा हुआ देख रही थी।

    क्योंकि..

    वह शहजादी मीरा कोई और नहीं,

    बल्कि आयशा का ही एक रूप थी।

    अब यह देख कर, वह खुद भी अंदर से टूटती जा रही थी।

    और तभी...

    जब मीरा रोते-रोते बेहाल हो चुकी थी,

    सेनापति राजवीर वहाँ आया।

    मीरा ने उसे देखते ही गुस्से से कहा—

    "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई! बिना इजाज़त मेरे कमरे में आने की?"

    राजवीर झुक गया।

    गंभीर आवाज में बोला—

    "शहजादी... यह वक्त आँसू बहाने का नहीं है...

    यह वक्त है — बदला लेने का!"

    मीरा, पूरी तरह हैरान होकर बोली—

    "क्या...? बदला? किससे?"

    आयशा, दिल थामकर सब सुन रही थी।

    अब मीरा, सीधे राजवीर की ओर देखकर गरजी—

    "साफ़-साफ़ बताओ!

    ऐसा क्या हुआ था

    किसने किया हमला...?

    हमारे माता-पिता को क्यों नहीं बचा पाए हम?

    क्या हमारा राज्य इतना कमज़ोर था?"

    राजवीर उठ खड़ा हुआ।

    गंभीरता से बोला—

    "इसका सीधा संबंध है — 'राजवंश राज्य' से।"

    मीरा की आँखें फट गईं।

    "राजवंश राज्य? कौन सा राज्य?

    कहाँ है ये...?

    आज तक उसने इसका नाम क्यों नहीं सुना?"

    राजवीर बोला—

    "शहजादी, वर्षों पुरानी दुश्मनी है।

    आपकी बुआ...

    राजवंश राज्य के राजकुमार कबीर से प्रेम करने लगी थीं।

    आपके दादा ने उनकी खुशी के लिए विवाह प्रस्ताव वहाँ भेजा.. लेकिन... वहाँ उनकी बेहद बेइज्जती हुई।

    तब आपके दादा ने क्रोध में आकर, उसी रात राजवंश राज्य पर हमला कर दिया।

    और उस युद्ध में, आपके दादा और राजवंश राज्य के महाराज यानी राजकुमार कबीर के दादा भी मारे गए।

    वहीं से ये दुश्मनी जड़ पकड़ गई...

    जो आज तक कायम है।"

    ये सुनकर

    मीरा की आँखें लाल हो चुकी थीं।

    और वो बोली थी

    "लेकिन... जब हमारे दादा नहीं रहे,

    तो इस तरह से हमारे माता-पिता की हत्या करके क्या साबित करना चाहते हैं वो?

    क्या यह बदले की आग है या कोई और वजह?"

    राजवीर थोड़ा झिझका, और फिर बोला—

    "इसके लिए... आपको उस कमरे में चलना होगा,

    जहाँ आज तक आपके माता-पिता ने आपको जाने नहीं दिया।"

    मीरा चौंक गई।

  • 11. mysterious reborn - Chapter 11

    Words: 2516

    Estimated Reading Time: 16 min

    मीरा की आँखें लाल हो चुकी थीं।

    और वो बोली थी

    "लेकिन... जब हमारे दादा नहीं रहे,

    तो इस तरह से हमारे अम्मी अब्बू की हत्या करके क्या साबित करना चाहते हैं वो?


    क्या यह बदले की आग है या कोई और वजह?"

    राजवीर थोड़ा झिझका, और फिर बोला—

    "इसके लिए... आपको उस कमरे में चलना होगा,

    जहाँ आज तक आपके माता-पिता ने आपको जाने नहीं दिया।"



    मीरा चौंक गई।

    आयशा भी अवाक् थी। भले ही आयशा अदृश्य रूप से वहां मौजूद थी, लेकिन सारी बातें वे अच्छी तरह से सुन रही थीं और महसूस भी कर रही थीं कि इस वक्त मीरा पर क्या बीत रही होगी। उसे आज एक अलग ही तरह का सच पता चल रहा था — उसके परिवार की वर्षों से एक राज्य के साथ दुश्मनी थी। और उसके अम्मी अब्बू ने... अब तक कभी इसकी भनक तक मीरा को नहीं लगने दी। और आज, उनकी मौत के बाद, उसे सारा सच पता लग रहा था।



    उसे यह भी पता चला कि उसकी कोई बुआ भी थी— ! — तो उसकी हैरानी काफी बढ़ गई थी। वह सेनापति की ओर देखकर बोली, "कौन-सा कमरा कहां है? हमें अभी वहां लेकर चलो।"



    तब राजवीर ने अपनी गर्दन 'हां' में हिलाई, और ...



    अब मीरा, सेनापति राजवीर के साथ उस रहस्यमय कक्ष की ओर बढ़े।



    दरवाज़ा खुला...

    और जैसे ही वे अंदर पहुँचे...



    मीरा की साँसें रुक सी गईं।.!



    राजवीर ने एक तस्वीर की ओर इशारा किया।

    "यह... आपकी बुआ शहजादी जोया हैं।"



    मीरा के चेहरे पर शांति थी।



    लेकिन...





    आयशा की आँखें फटी की फटी रह गईं।



    क्योंकि वह तस्वीर किसी और का नहीं...

    बल्कि ‘जोया’ का था —

    आधुनिक समय की ‘जोया’।



    अब आयशा पूरी तरह से समझ चुकी थी—

    उसका अतीत... आज भी ज़िंदा है।

    मीरा ने तस्वीर की ओर देखकर पूछा—
    "क्या हुआ था हमारी बुआ के साथ...?
    वो अब कहाँ हैं?"

    राजवीर ने सिर झुका लिया।



    "आपकी बुआ.. शायद. आज भी 'राजवंश राज्य' की कैद में हैं।"


    मीरा ये सुनकर पूरी तरह से चौंक कर रह गई।



    "तो इसका मतलब...

    अब्बा महाराज बार-बार हमला इसलिए कर रहे थे, मीरा को ये पता तो चल गया था उसके अब्बा अहमद जी बार बार एक राज्य पर हमला कर रहे है , ओर मीरा को आजतक इसकी कोई भनक उन्होंने नहीं लगने दी, लेकिन मीरा को आज पता चला कि वो सिर्फ अपनी बहन को छुड़ाना चाहते थे?

    क्योंकि जोया उसकी बुआ जो इस सुल्तान राज्य की इज़्ज़त थीं...?"



    वो सोच भी नहीं सकती थी कि...

    इतना गहरा रहस्य उसकी आँखों के सामने खुल जाएगा।



    और तभी...


    राजवीर ने एक और तस्वीर की ओर इशारा करते हुए कहा—


    "वहाँ देखिए..."


    मीरा की नज़र उस तस्वीर पर पड़ी।


    उस तस्वीर में एक और चेहरा था...


    एक पुरुष...

    तेजस्वी चेहरा, गंभीर आँखें, और माथे पर चंदन का टीका।



    मीरा कुछ पलों तक उसे अपलक देखती रही...


    फिर उसने हैरानी से पूछा
    "ये कौन है...?"



    राजवीर ने गहरी साँस लेकर कहा—



    "यही हैं... 'राजकुमार कबीर..

    राजवंश राज्य के युवराज...

    और..."


    "...आपके दादा, दादी के हत्यारे।"

    ---

    अब यह सुनकर आयशा पूरी तरह से चौंक गई थी, क्योंकि इस वक्त जो तस्वीर राजवीर ने दिखाई थी, वह तस्वीर किसी और की नहीं, बल्कि आधुनिक जिंदगी के कबीर आहूजा की थी।



    कबीर और जोया का पिछले जन्म का नाता था — यह सोचकर ही आयशा की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। लेकिन यह क्या था? कबीर ने जोया को धोखा दिया था, और धोखे से उसके माता-पिता की जान ले ली थी!



    कहीं ना कहीं इस वक्त आयशा का दिमाग पूरी तरह से सर दर्द कर रहा था, क्योंकि उसके लिए रहस्य खुलने के बजाय और ज्यादा मुश्किलें पैदा कर रहे थे। वह अब पूरी तरह से बेचैन और परेशान हो चुकी थी। उसे कोई भी रास्ता नजर नहीं आ रहा था कि आखिरकार यह सब कुछ हो क्या रहा है उसके जिंदगी के साथ।



    यहां पर उसे जोया भी मिली, कबीर भी मिला... लेकिन इतनी सारी दुश्मनी, इतनी सारी गलतफहमियों के बीच में यह सब कुछ मिल रहा था!



    वहीं, कबीर का चेहरा देखते ही मीरा की आंखें लाल हो गई थीं, और वह बोली थी —



    "इसकी हिम्मत कैसे हुई मेरे माता-पिता की जान लेने की!"






    मीरा की आँखों में खून उतर आया था।



    "यही है वो शख्स... जिसने मेरे जीवन की जड़ें उखाड़ दीं?

    मेरे अब्बा महाराज और अम्मी महारानी को मुझसे छीन लिया?

    और मेरी बुआ को सालों से कैद में रखा?"

    राजवीर ने झुककर कहा—

    "हाँ शहजादी... यही है वो अभिशप्त नाम —कबीर राजवंश।

    जिसने इस बदले की आग को फिर से भड़का दिया।"

    मीरा का चेहरा अब एक ज्वालामुखी की तरह तप रहा था।

    "अब बहुत हो चुका...

    अब ये आँसू नहीं बहेंगे,

    अब खून बहेगा!"

    आयशा एक कोने में खड़ी, कांपती हुई सब देख रही थी।

    उसे अब समझ में आने लगा था—

    कि उसकी वर्तमान ज़िंदगी सिर्फ़ एक कहानी नहीं,

    बल्कि एक अधूरी जंग है...
    जो फिर से शुरू होने जा रहा है।

    मीरा ने अपना चेहरा ऊपर उठाया... और आग उगलती आंखों से बोली

    "राजवीर... मेरी तलवार कहाँ है?"

    राजवीर थोड़ी देर चुप रहा... फिर गंभीर आवाज में बोला—

    "आपके हाथों से युद्ध की शुरुआत फिर से होगी, शहजादी।

    पर उससे पहले...

    आपको उस आख़िरी सच से मिलना होगा,

    जिसने इस सबकी जड़ को जन्म दिया था।"

    मीरा ने आँखें सिकोड़कर कहा—



    "क्या मतलब?"



    राजवीर धीरे से आगे बढ़ा...



    और उस तस्वीर के ठीक पीछे लगी एक दीवार पर हाथ रखा।



    और अचानक ही : पत्थर सरकने की धीमी आवाज सुनाई देने लगी थी



    और देखते ही देखते एक छिपा हुआ दरवाज़ा खुल गया तुरंत ही राजवीर बोला थे



    "आइए शहजादी...



    अब समय आ गया है,



    आपको उस सच को जानने का



    जिसे सालों तक छुपाया गया।"



    मीरा ने बिना एक शब्द कहे दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाए।



    आयशा का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था।



    कहीं न कहीं...



    वो जानती थी कि



    उस दरवाज़े के पीछे जो रहस्य है,



    वही तय करेगा इस जन्म और अगले हर जन्म की दिशा। आयशा दिल थाम कर इस वक्त राजवीर और मीरा के ठीक पीछे-पीछे जा रही थी

    वहीं, कबीर का चेहरा देखते ही मीरा की आँखें लाल हो गई थीं, और वह बोली थी, “इसकी हिम्मत कैसे हुई मेरे माता-पिता की जान लेने की?”





    आयशा भी पूरी तरह से शौक में थी अब उसके लिए भी सच जानना उतना ही ज़रूरी हो गया था, जितना कि मीरा के लिए। और साथ ही साथ वह यह भी सोच रही थी कि कबीर तो आधुनिक ज़िंदगी में काफ़ी ज़्यादा नॉर्मल और अच्छा इंसान है, तो वह भला इस ज़िंदगी में इतना बुरा कैसे हो सकता है कि उसने इस तरह से आयशा के दादा की जान ली हो और उसकी बुआ को अपने प्यार के जाल में फँसाया हो?



    उसके दिलो-दिमाग में सवाल चल रहे थे। फिलहाल, अब जल्दी ही शहज़ादी मीरा और आयशा उस रहस्यमयी कमरे में प्रवेश करती हैं…



    ---राजवीर ने जैसे ही दीवार के पीछे बने उस छुपे दरवाज़े को खोला,
    उसके भीतर से एक पुरानी, धूल-भरी हवा बाहर आई।
    मीरा कुछ पल के लिए ठिठकी...
    लेकिन उसकी आँखों में अब डर नहीं, सिर्फ़ सवाल थे।
    राजवीर ने कड़क आवाज में कहा

    "शहजादी... इस दरवाज़े के भीतर वो इतिहास दफ़न है


    जिसने इस पूरे राजवंश की किस्मत बदल दी।"





    "तो अब वक़्त आ गया है...



    हर झूठ का पर्दा फाड़ने का।"



    कमरा बिल्कुल अंधेरे से भरा था।



    राजवीर ने एक पुराना दिया जलाया,



    और दीवार पर टंगी एक पुरानी किताब की ओर इशारा किया।



    और कहा



    "यह वही सबूत है,



    जो आज तक सिर्फ़ राजा और सेनापति के बीच ही था।



    इसमें उस हमले, उस मुहब्बत और उस धोखे की पूरी कहानी दर्ज है



    जिसने सब कुछ बदल दिया।"



    मीरा आगे बढ़ी...



    उसने कांपते हाथों से वह किताब खोली।



    उस अंधेर कमरे में पन्नों के पलटने की आवाज़ सुनाई दी



    और जैसे ही उसकी नज़र उस पहले शब्द पर पड़ी. मीरा की आवाज़ काफी धीरे थी



    और वो



    मीरा चौंकी।



    सुल्तान" वंश...? ये तो हमारे वंश का पुराना नाम था!"



    राजवीर:



    "हाँ शहजादी...



    और इसी में दर्ज है —



    आपकी बुआ का नाम,



    राजकुमार सिद्धार्थ के साथ उनका रिश्ता,



    और वो आख़िरी साज़िश...



    जिसने आपके पिता को 'हत्यारा' बना दिया।"



    मीरा (साँस रोकते हुए):



    "तो बताओ राजवीर!



    क्या था उस प्रेम के पीछे...?



    क्या हमारी बुआ वाकई... दोषी थीं?"



    राजवीर ने गहरी सांस ली, और धीरे से बोला:



    "आपकी बुआ जोया'।



    उन्हें कबीर से सच्ची मोहब्बत थी,



    लेकिन कबीर ने उन्हें सिर्फ़ एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया।"



    मीरा आँखें नम करके बोली



    "क्या मतलब?"



    राजवीर: ने आगे कहा कबीर



    ने उनसे शादी का वादा किया, और उनके वादे के चलते शहजादी जोया अपना सब कुछ खो बैठी वह शादी से पहले ही गर्भवती हो गई थी मां बनने वाली थी और इस बात का फायदा उठाते हुए कबीर ने



    राज्य के अंदरूनी राज उगलवाए...



    और फिर एक दिन...



    जबजोया जी के हाथों से राज्य की मुहर उनके पास पहुँची—



    वहीं से शुरू हुआ धोखा"



    राजवीर: ने आगे बोला



    "आपके अब्बा महाराज ने तब हमला किया...



    क्योंकि उन्हें लगा,



    उनकी बहन ने परिवार से गद्दारी की है।"



    मीरा:



    "लेकिन क्या यह सच था...?



    या फिर कोई और खेल चल रहा था?"



    राजवीर ने धीरे से दूसरी किताब निकाली — उसमें कुछ तस्वीरें थे।



    एक तस्वीर में —



    शहजादी जोया खून से लथपथ एक बच्चे को गोद में उठाए खड़ी थी।



    अब ये देखकर



    आयशा की सांस थम गई।



    और मीरा भी हैरानी से बोलो"ये बच्चा...?"



    राजवीर ने जवाब दिया—



    "ये... शहजादी जोया और कबीर का बेटा है।



    जिसे आज तक दुनिया नहीं जानती।



    वह कहीं आज भी जिंदा है..."



    यहाँ आपके लंबे अनुच्छेद को बिना किसी शब्द को घटाए पूर्ण विराम, अल्पविराम, उद्धरण चिह्न आदि के साथ सुधार कर प्रस्तुत किया गया है:



    ---



    मीरा ये सुनकर पूरी तरह से चौंक गई और जल्दी ही उसे याद आया कि जब भी वह कभी अपने अब्बा, महाराज से, अपने दादा-दादी या अपने किसी और परिवार के बारे में बात करती थी, तो अब्बा बड़ी ही सावधानी से उसकी बातों को टाल दिया करते थे। उन्होंने आज तक उसे कुछ भी पता लगने नहीं दिया था। उन्होंने मीरा की परवरिश एकदम शहजादों की तरह की थी। उसे हर चीज़ में, हर कला में निपुण बनाया था। उसे सारी चीज़ें कुशलता से सिखाई गई थीं।



    क्योंकि जिस वक्त शहजादी जोया को पड़ोसी राज्य के राजकुमार कबीर से प्यार हुआ था, उसी वक्त मीरा का जन्म हुआ था। बचपन के पूरे दो साल शहजादी जोया ने मीरा को बहुत प्यार किया था। बहुत प्यार से उसके साथ खेला करती थी। वह उसे बहुत मोहब्बत करती थी। लेकिन जब उसकी ज़िंदगी में राजकुमार कबीर आया, तो वह सब कुछ भूल बैठी थी। वह पूरी तरह से उसे अपना बना लेना चाहती थी। लेकिन वह जानती थी कि उसकी शादी उसके साथ नहीं हो सकती, क्योंकि उनके बीच में सबसे बड़ी रुकावट अगर कुछ थी तो वह था धर्म।



    धर्म ही उन दोनों के बीच सबसे बड़ी दीवार था। राजकुमार कबीर राजवंश राज्य का राजकुमार था और शायद होने वाला राजा भी। और जया, शहजादी जोया, एक अलग मुस्लिम सल्तनत की बेटी थी — शहजादी थी। इस तरह से उसका राजकुमार के साथ विवाह होना किसी भी लिहाज़ से संभव नहीं था। फिर भी उसने हिम्मत करके अपने पिता, अपने अब्बा को इस बारे में बताया कि वह राजकुमार से प्यार करती है।



    उसके पिता अपनी बेटी से बहुत प्यार किया करते थे। इतना ही नहीं, मीरा के अब्बा अहमद — महाराज अहमद, बादशाह अहमद — भी अपनी बहन से बहुत मोहब्बत किया करते थे और हमेशा एक ही बात बोला करते थे कि अगर कभी उन्हें कोई संतान मिले, तो वह पूरी दुआ करेंगे कि उनकी बहन उनकी बेटी बनकर पैदा हो। वे उसे अपनी बेटी की तरह ही बहुत चाहते थे। और तो और, उसकी खुशी के लिए ही वे पड़ोसी राज्य में उसकी शादी का प्रस्ताव लेकर गए थे।



    लेकिन अब उनकी सबसे बड़ी मजबूरी यह हो गई थी कि शहजादी जया, राजकुमार कबीर के प्यार में काफ़ी आगे बढ़ चुकी थी और वह उसके बच्चे की मां बनने वाली थी। इसीलिए अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए मीरा के दादा और साथ ही महाराज अहमद जल्द से जल्द उसकी शादी राजकुमार कबीर से करना चाहते थे। क्योंकि जोया ने उन्हें यकीन दिलाया था कि राजकुमार कबीर भी उसे बेहद प्यार करता है।



    तो इसीलिए वे उसका रिश्ता लेकर वहां पहुंच गए थे। लेकिन जैसे ही वे दरबार में पहुंचे, तो दरबार की महारानी गायत्री ने उनकी बहुत ही ज़्यादा बेइज़्ज़ती की थी। गायत्री एक धर्म-कर्म को मानने वाली कट्टर औरत थी। उसके दो बेटे थे, और बड़े बेटे के बेटे — जो कि बड़ा राजकुमार था — को ही जोया से मोहब्बत हो गई थी। वह यह बात किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसने भरी सभा में जोया के परिवार की बहुत ही ज़्यादा बेइज़्ज़ती की। और उसी के पेट में पल रहे बच्चे को उसने निशाना बनाया और उस पर पूरी तरह से कालिख पोत दी थी।



    यह बात जोया के पिता बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाए। उस वक्त अहमद जी जैसे-तैसे समझा-बुझाकर उन्हें वापस राज्य में ले आए थे, लेकिन तब तक उनकी हालत बहुत ही ज्यादा खराब हो चुकी थी। और वह पल-पल बदलते ग़ुस्से से जलने लगे थे। उन्होंने जोया से पूरी तरह से बातें करना बंद कर दिया था।



    वहीं, कबीर को जब यह पता चला कि उसकी दादी ने इस तरह से जोया और उसके परिवार की बेइज़्ज़ती की है, तो वह बहुत ज़्यादा ग़ुस्से से भर गया था। और उसने अपनी दादी से साफ़-साफ़ कहा था, "मैं कुछ नहीं जानता। मैं जोया से मोहब्बत करता हूँ और हर हाल में उसे अपना बनाकर रहूँगा। और उसके पेट में पल रहा बच्चा किसी गंदगी की निशानी नहीं है। वह मेरा अंश है, वह मेरा खून है।"



    अब कबीर की बात सुनकर उसकी दादी को उस पर बहुत ही ज़्यादा तेज़ ग़ुस्सा आया था और उसने उसे कुछ दिनों के लिए सलाखों के पीछे डाल दिया था। वहीं, उस वक्त तीन साल का सिद्धार्थ — जो कि कबीर से बहुत ही ज़्यादा अटैच था क्योंकि कबीर उसका बड़ा भाई था, उसके ताऊ का बेटा था — तो वह उसे बहुत ही ज़्यादा क़रीब मानता था। और कबीर भी छोटे से सिद्धार्थ को बहुत ही ज़्यादा प्यार किया करता था।



    धीरे-धीरे उसकी दादी ने सिद्धार्थ का ब्रेनवॉश करना शुरू कर दिया कि इस तरह से कबीर को सलाखों के पीछे डालने का कारण कोई और नहीं, बल्कि सुल्तान राज्य के लोग हैं। दादी गायत्री अपनी इज़्ज़त के लिए कुछ भी कर सकती थी।



    हालाँकि कबीर के पिता ने उसे सपोर्ट करने की कोशिश की थी, लेकिन अपनी मां के सामने वे पूरी तरह से मजबूर थे और चाहकर भी अपने बेटे का साथ नहीं दे पाए थे। अब कबीर का उत्साह पूरी तरह से बिखर चुका था। क्योंकि उसने जोया को पाने के लिए क्या कुछ नहीं किया था। पहले तो उसकी दादी ने उसकी मोहब्बत को कबूल कर लिया था और फिर षड्यंत्र रचते हुए जोया के हाथों सुल्तान राज्य के ज़रूरी दस्तावेज़ मंगवा लिए थे। और उनकी मुहर तक अपने पास मंगवा ली थी। बदले में कबीर से वादा किया था कि वे जोया से उसकी शादी ज़रूर करवाएंगे।



    लेकिन अब दादी ने जैसे ही यह छल किया, कबीर की आंखें ग़ुस्से से जलने लगी थीं।



    ---

  • 12. mysterious reborn - Chapter 12

    Words: 2184

    Estimated Reading Time: 14 min

    जोया के हाथों सुल्तान राज्य के ज़रूरी दस्तावेज़ मंगवा लिए थे। और उनकी मुहर तक अपने पास मंगवा ली थी। बदले में कबीर से वादा किया था कि वे जोया से उसकी शादी ज़रूर करवाएंगे।

    लेकिन अब दादी ने जैसे ही यह छल किया, कबीर की आंखें ग़ुस्से से जलने लगी थीं।

    ---और उसने कहा था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह जोया को अपना बनाकर रहेगा। दादी उसके रास्ते में नहीं आ सकती हैं। कबीर ही उसे राज्य का होने वाला नया महाराज है। लेकिन कबीर अब जोया के प्यार में पड़ चुका था, जिसकी वजह से अब नन्हे सिद्धार्थ का ही रास्ता अलग कर दिया गया था। उसे युवराज घोषित कर दिया गया और कबीर को युवराज पद से हटा दिया गया था। सिद्धार्थ को ही आने वाला महाराज और उसके मालिक होने की घोषणा कर दी गई थी।

    लेकिन एक दिन मौका देखकर कबीर सलाखों के पीछे से भाग गया था और वह सीधा जोया से मिलने के लिए जा रहा था, क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि जोया के दिल में उसके लिए गलतफहमियां पैदा हो गई हैं, और वह उन गलतफहमियों को दूर करना चाहता था। लेकिन जिस वक्त कबीर उनके राज्य में आया, उसी वक्त जोया के अब्बा, जो कि मीरा के दादा थे, वे अपने बदले की आग में पूरी तरह से झुलस रहे थे। और कबीर को जैसे ही उन्होंने चोरी-छुपे सुल्तान महल में आते हुए देखा, तो उनका पारा पूरी तरह से हाई हो गया। उन्होंने कबीर पर हमला कर दिया था और इतना ही नहीं, उसे बहुत मारा-पीटा और बंदी बना लिया था।

    और जैसे ही यह खबर राजवंश के लोगों को पता चली, सभी पूरी तरह से आपस में उलझ गए — एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। सिद्धार्थ के पिता अपने भाई के बेटे को पूरी तरह से बचाना चाहते थे, वहीं अपने बेटे के इस तरह से अगवा होने के बाद कबीर के पिता पूरी तरह से टूट गए थे। उन्होंने खुद को आग के हवाले कर दिया था। यह तांडव सिद्धार्थ ने अपनी आंखों से देखा था। वह बचपन से ही सुल्तान राज्य के लोगों से नफरत करने लगा था।

    और दादी पूरी तरह से आपा खो बैठी थीं। उन्होंने तंत्र-मंत्र का सहारा लिया, क्योंकि दादी एक बहुत बड़ी साधिका थीं, जो जादू का प्रयोग करना अच्छी तरह से जानती थीं। और अब दादी ने धीरे-धीरे छल-कपट करके जादू-टोने का इस्तेमाल शुरू कर दिया था।

    किसी तरह एक रात दादी ने अपने पोते को बदले की आग में भड़काते हुए एक सुल्तान महल की दासी को अपने पास बुलाया और उसे खूब सारे आभूषणों और गहनों का लालच देकर, एक रहस्यमयी तेल जोया के सिर में लगाने को कहा। अब दासी कुछ वक्त के लिए गायत्री देवी की बातों में आ गई थी। वह वही दासी थी जो शहजादी जोया के बाल बनाया करती थी। जैसे ही दासी ने जोया के बालों में दादी का दिया हुआ रहस्यमयी तेल लगाया, अचानक आधी रात के बाद जोया सुल्तान महल से बाहर, जंगलों के बीच पहुंच गई थी।

    दादी को इसी पल का इंतज़ार था। मौका देखकर उन्होंने जोया को अगवा कर लिया था, क्योंकि उस वक्त जोया के पेट में कबीर का बच्चा पल रहा था। वह हर हाल में उस बच्चे को अपना बनाना चाहती थीं। हालांकि उन्होंने उसे पाप कहकर खुद से पीछा छुड़ा लिया था, लेकिन अब उनके बड़े बेटे के अंश के तौर पर, अगर उनके पास कुछ था — तो वह था जोया के पेट में पल रहा बच्चा। इसीलिए उन्होंने जोया को अगवा कर लिया था।

    उन्हें यह खबर मिल चुकी थी कि कबीर को मारा जा चुका है, लेकिन यह बात किसी को नहीं पता थी कि कबीर सुल्तान महल के लोगों के कब्जे में था। तुम्हारे अब्बा, महाराज ने यह बात किसी को भी नहीं जानने दी थी।

    अब जैसे-जैसे मीरा यह सारी बातें सुन रही थी, उसकी हैरानी बढ़ती जा रही थी। साथ ही साथ वह इस बात को लेकर सबसे ज़्यादा हैरान हुई थी कि सेनापति राजवीर को यह सारी बातें कैसे पता चलीं? और ये सेनापति राजवीर सर ऐसे कैसे जानते हैं? क्या रीजन है इसके पीछे? और इस सबके बारे में किसी को कुछ क्यों नहीं पता?

    तभी आयशा, जो उसके साथ थामकर सारी बातें सुन रही थी, अचानक उसकी आंखों के सामने दादी का चेहरा आने लगा। वह सोचने लगी — कहीं यह गायत्री राजवंश की जो राजमाता है, वही अरमान सूर्यवंशी की दादी तो नहीं? क्योंकि वही जन्म-जन्म में उसकी मदद कर रही है।

    अब तो आयशा को एक के बाद एक झटके लग रहे थे। वह सदमे पर सदमे में जा रही थी। उसे अब तक कुछ भी पूरी तरह से समझ नहीं आ रहा था…

    तभी अचानक —

    मीरा पीछे हटी...

    उसके पैरों के नीचे एक पत्थर हिला —

    और ज़मीन का एक हिस्सा नीचे की ओर धँस गया।

    राजवीर चिल्लाया—

    "शहजादी... संभलिए!"

    आयशा भी उसकी ओर आगे बढ़ी एक पल के लिए आयशा यह बिल्कुल ही भूल गई थी कि इस वक्त वह अदृश्य रूप में वहां मौजूद है वह मीरा को नहीं संभाल सकती है फिलहाल वह भी मीरा के साथ-साथ एक गुप्त

    " तहखाने में गिर चुकी थी। वहां एक और रहस्य उसका इंतज़ार कर रहा था...

    वह था —

    जोया का आख़िरी खत

    मीरा ने, दर्द से कराहते हुए… सामने देखा —

    एक छोटी-सी संगमरमर की चौकी…

    जिस पर रखी थी एक पुरानी डिब्बी,

    और उसके ऊपर सोने से जड़ा हुआ एक लाल मुहर वाला लिफ़ाफ़ा।

    मीरा ने कांपते हाथों से वह लिफाफा उठाया।

    उस पर लिखा था –

    "मेरी प्यारी मीरा के लिए... जब वह सच्चाई जानने को तैयार हो।"

    ---

    ---

    मीरा की आँखें छलक पड़ीं। वह अपनी बुआ जोया को याद करने लगी थी। भले ही उसे राय पूरी तरह से याद ना हो, लेकिन जैसे-जैसे वह जोया के बारे में सुन रही थी, उसे एक अलग ही तरह का उसके साथ अटैचमेंट महसूस हो रहा था। वहीं आयशा भी साथ में थाम कर सारी चीज़ें देख रही थी कि आगे क्या होने वाला है, और वह भी मीरा के साथ-साथ जोया का आख़िरी खत पढ़ने लगी थी।

    मीरा ने धीरे-धीरे लिफ़ाफा खोला...

    और उसने पढ़ना शुरू किया।

    ---" मेरी प्यारी मीरा...

    अगर यह खत तुम्हारे हाथों में है,

    तो समझो... मैं अब तुम्हारी जिंदगी में नहीं हूँ।

    पर मैं जानती थी — एक दिन,

    तुम ज़रूर उस अंधेरे कमरे तक पहुँचोगी,

    जहाँ मेरी अधूरी कहानी कैद है।

    मीरा... मैंने कबीर से सच्चा इश्क किया था।

    वो राजवंश का युवराज था,

    और मैं तुम्हारे दादा की सबसे प्यारी इकलौती बेटी और तुम्हारे अब्बा की इकलौती बहन थी

    जब मैंने अपने इश्क के बारे में सबको बताया,

    तुम्हारे दादा मेरे साथ खड़े रहे।

    उन्होंने हमारा रिश्ता मंजूर किया,

    और राजवंश राज्य में मेरा रिश्ता लेकर गए।

    पर...

    वहाँ मेरी रूह को चीर कर रख दिया गया।

    उन्होंने मेरे अब्बा यानी तुम्हारे दादा का अपमान किया —

    मेरे पेट में पल रहे बच्चे को “गंदा खून कहा...

    और कहा — मैं सिर्फ़ एक दासी के काबिल हूँ।

    उस बेइज्जती की आग में,

    तुम्हारे दादा ने हमला छेड़ा।

    और मुझे कबीर का असली चेहरा दिखाया उन्होंने मुझे बताया कबीर ने अपनी मुहब्बत में मुझसे

    राज्य के कुछ गुप्त रहस्य साझा किए...

    मेरे जरिए सुल्तान राज्य को भीतर से तोड़ना चाहता था।

    यह रहा आपका पूरा पैराग्राफ पूर्ण विराम, अल्पविराम और अन्य जरूरी विराम चिह्नों के साथ, बिना किसी शब्द को घटाए:

    ---

    पता नहीं, आज मेरा दिल बहुत ज़्यादा बेचैन है। यह मेरा… जोया ने यह ख़त उसी दिन लिखा था जिस दिन राजमाता गायत्री के कहने पर उसने दशहरे पर मीरा के सिर में वह करिश्मा यानी कि जादुई तेल लगाया था। उसी दिन जोया पूरी तरह से बेचैन थी। उसका दिल कहीं भी नहीं लग रहा था। उसका ज़हन अंदर से बेचैन हो उठा था। और उसी दिन, अंधेरे में, पिस्ता खाने में आकर उसने न जाने क्या सोचकर अपनी प्यारी, छोटी सी मीरा को अपनी ज़िंदगी की सारी सच्चाई लिख दी थी। वह मीरा को उस वक़्त बहुत प्यार किया करती थी। मीरा उस वक़्त केवल दो साल की बच्ची थी।

    और उसने मीरा को साफ़-साफ़ बताया था कि उसने सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत की थी। मोहब्बत में अगर उसे झूठ और धोखा मिला तो इसमें उसकी क्या गलती है? "मेरी मोहब्बत का ग़लत इस्तेमाल हुआ। कबीर ने मुझे धोखा दिया। मैं उसे अपने जीते जी कभी माफ़ नहीं करूंगी। मीरा, मुझे नहीं पता मेरी बच्ची, मैं तुम्हें यह सारा सच क्यों कह रही हूं, लेकिन मैं तुम्हें सिर्फ़ यह बताना चाहती हूं कि तुम्हारी बुआ ग़लत नहीं थी। तुम्हारे अब्बा अहमद — मेरा भाई, बड़ा भाई — जो मुझे बहुत प्यार करता था। और तुम जानती हो, हमेशा से वह यही कहता था कि अगर कोई भी जन्म होगा तो उसमें वह चाहेगा कि उसकी प्यारी बहन उसकी बेटी के रूप में जन्म ले। वह मुझे बहुत प्यार करता था। मेरे भाई ने मेरे लिए क्या कुछ नहीं किया।"

    "मीरा, मैं तुम्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिए सारी बातें बता रही हूं कि कभी भी तुम किसी के भी धोखे में मत आना। कभी भी किसी राजवंशी से मोहब्बत मत करना। कभी भी धोखा मत खाना। यह मोहब्बत सब कुछ झूठ है, फ़रेब है। इसमें सिवाय बदनामी के, सिवाय बेइज़्ज़ती के कुछ भी नहीं है। लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारा इस्तेमाल करना चाहेंगे। कभी भी इसमें सुख नहीं है।"

    जोया की बातें जैसे ही मीरा पढ़ रही थी, वैसे-वैसे उसके खून के अंदर आग लगती जा रही थी। और तभी उसे याद आया कि उसकी बुआ रहस्यमयी तरीक़े से जंगल में गायब हो गई थी। सभी लोगों ने उसे कितना ही खोजने की कोशिश की। राजवीर ने आगे उसे बताया कि उस दिन शहज़ादी जोया जंगल में कहीं गायब हो गई थी। सभी लोगों ने उसे काफ़ी खोजने की कोशिश की। सुल्तान राज्य के सैनिक हर दूर-दूर तक गए, लेकिन उसका कहीं कुछ पता नहीं लगा पाए।

    लेकिन किसी को भी दूर-दूर तक इस बात का एहसास नहीं था कि जोया गायब नहीं हुई थी, बल्कि उसे अगवा किया गया था ताकि वह राजवंश राज्य के युवराज कबीर के बच्चे को जन्म दे सके। और कबीर कहाँ था, कहाँ नहीं — इसके बारे में भी किसी को नहीं पता था।

    फिलहाल, आयशा साँसें थामकर सारा दृश्य अपनी आँखों से देख रही थी। आज उसकी आँखों के सामने एक बहुत बड़ा, भयानक सच आया था। जोया से उसका क्या रिश्ता था? और इस जन्म में उसे जोया क्यों मिली?

    वहीं दूसरी ओर, मीरा का खून पूरी तरह से खोलने लगा था। और राजवंश राज्य के दिल से, उसकी रग-रग में सिर्फ़ और सिर्फ़ नफ़रत भर चुकी थी। और जब से उसने यह सुना था कि अब राजवंश के नए युवराज — जो कि हाल ही में युवराज बना है और वहाँ का महाराज बन बैठा है — उसी ने उसके मम्मी-पापा यानी कि रुख़साना जी और महाराज अहमद की हत्या की है, तब से शहज़ादी मीरा पूरी तरह से ग़ुस्से में उबालने लगी थी।

    और वह राजवीर की ओर देखकर बोली थी, "हमसे अभी और इसी वक़्त दरबार में मिलो। आज और अभी इसी वक़्त, अपने अम्मी-अब्बू को दफ़नाने से पहले-पहले, हम राजवंश सुल्तान की गद्दी सँभालेंगे।"

    यह बोलकर मीरा बड़े ही पावरफुल ऑरा के साथ वहाँ से बाहर चली गई थी। वहीं मीरा के जाने के बाद, राजवीर बड़े ही ध्यान से एक बार फिर सारी तस्वीरें देखने लगा था, और अचानक रहस्यमयी ढंग से हँसने लगा था।

    अब आयशा, जो कि अदृश्य रूप में वहाँ मौजूद थी, उसे ज़रूर कुछ "दाल में काला" नज़र आने लगा था। उसे लगने लगा था कि कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है। क्योंकि हो सकता है, राजवीर ने जो कहानी मीरा को सुनाई हो, वह आधी-अधूरी हो… या फिर उसका सच कुछ और हो।

    फिलहाल तो राजवीर ने मीरा के दिलों-दिमाग़ में राजवंश राज्य के ख़िलाफ़ पूरी तरह से नफ़रत भर दी थी और उसे इतना उकसा दिया था कि अब मीरा नादानी में ग़लत फ़ैसला ले चुकी थी।

    वहीं आयशा भी यथार्थ रूप से दरबार में मौजूद थी और ध्यान से मीरा की ओर देख रही थी। मीरा इस वक़्त तक शहज़ादी नहीं, बल्कि महारानी मीरा बन चुकी थी। और वहाँ बैठकर वह सभी लोगों की ओर ध्यान से देख रही थी और बोली थी, "बड़े पैमाने पर एक से बढ़कर एक योद्धाओं, बहादुरों को इकट्ठा किया जाए। बहुत जल्द हम राजवंश राज्य पर हमला करेंगे।"

    मीरा का स्वर इस वक़्त पूरी तरह से खुला हुआ था। तभी उसके सभा में बैठे हुए एक बुज़ुर्ग आगे आए और मीरा से बोले थे, "बेटी, हम तुम्हारे जज़्बातों को अच्छी तरह से समझ रहे हैं, लेकिन सबसे पहले महाराज और महारानी को ज़मीन-दोष करना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।"

    अब यह सुनकर एक बार फिर मीरा की आँखों के सामने उसके अम्मी-अब्बू का खून से लथपथ चेहरा आ गया था। उसके बाद से उसने उन्हें देखने की हिम्मत नहीं की थी। लेकिन अब जब सभा में मौजूद बुज़ुर्ग के कहने पर उसने उन्हें कहा था कि वे सारे इंतज़ाम करें और आज रात को ही उन्हें ज़मीन-दोष करें।

    मीरा का हुक्म सुनने के बाद अब जल्दी ही महाराज और महारानी की आख़िरी विदाई का वक़्त आ चुका था। और मीरा ने उन्हें दफ़न किया था। इस वक़्त आयशा यह सारी चीज़ें अपनी आँखों से देख रही थी।

    ---

  • 13. mysterious reborn - Chapter 13

    Words: 2018

    Estimated Reading Time: 13 min

    मीरा का हुक्म सुनने के बाद अब जल्दी ही महाराज और महारानी की आख़िरी विदाई का वक़्त आ चुका था। और मीरा ने उन्हें दफ़न किया था। इस वक़्त आयशा यह सारी चीज़ें अपनी आँखों से देख रही थी।

    ---

    उसकी आंखें खून के आंसू रो रही थीं। यह सब दर्दनाक दृश्य काफी ज्यादा भावुक करने वाला था। वहीं मीरा ने बेदर्दी से अपने आंसुओं को पोंछ दिया था और बोली थी, "अब चाहे कुछ भी हो जाए, अब राजवंश राज्य को मुझसे कोई नहीं बचा सकता। और यह सिद्धार्थ… इससे तो वह मिलकर रहेगी, और उससे मिलकर उसे जवाब मांगेगी।"

    इस बात का पता लगाना ज़रूरी था कि अगर वह युवराज कबीर उनके राज्य में आया था, तो वह कहाँ गया? क्या हुआ था उसके साथ?

    फिलहाल, उसने गहरी सांस ली और जल्दी ही अपने कमरे में चली गई। वहीं आयशा भी अब उसके साथ, उसके कमरे में मौजूद थी। और जैसे ही उसने सामने देखा, तो उसकी आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं — मीरा ने एकदम साधारण सी नौकरानी के कपड़े पहने हुए थे और उसने अपनी खूबसूरती को भी कम कर लिया था। वह एकदम बदसूरत सी बन गई थी।

    इस वक्त आयशा को मीरा में अपना ही रूप दिखाई दे रहा था। बदसूरत होने के बाद आयशा ऐसी ही दिखाई देती थी, जो कि इस वक्त मीरा हो गई थी। उसने अपने आप को जानबूझकर बदसूरती में बनाया था, और अपनी ही एक सेविका — एक नौकरानी — से उसने खुद को इतना बदसूरत बनवाया।

    और फिर, अगले ही पल, आयशा ने देखा कि मीरा इस वक्त घोड़े पर सवार होकर राजवंश राज्य की सीमा पर पहुंच गई है, बिना किसी को बताए। और वहां जाकर उसने अपने घोड़े को जंगल में छोड़ दिया और खुद पैदल ही आगे की यात्रा करने लगी थी। और जल्दी ही वह राजवंश राज्य में पहुंच चुकी थी।

    जैसे ही वह वहाँ पहुँची, उसने देखा कि उस वक्त पूरे के पूरे राज्य को चारों तरफ से सजाया गया था, क्योंकि महाराज सिद्धार्थ ने अपने सबसे बड़े दुश्मनों — यानी के सुल्तान राज्य के महाराज और महारानी — का खून कर दिया था। इस बात का वहां जश्न मनाया जा रहा था।

    मीरा, जो कि अब एक रूप बदसूरत नौकरानी के रूप में वहां पहुंच चुकी थी, वह सारी चीज़ें अपनी आंखों से देख रही थी। वह यहाँ सिर्फ और सिर्फ सिद्धार्थ का खून करने के लिए आई थी। उसने कसम खा ली थी कि जब तक वह सिद्धार्थ को मौत की नींद नहीं सुला देती, तब तक वह चैन से नहीं बैठेगी।

    वहीं, आयशा भी हैरानी से सारी चीज़ें देख रही थी। जिस तरह से मीरा को गुस्सा आ रहा था, आयशा को भी उतना ही गुस्सा आ रहा था। और जब से उसे यह पता चला था कि यह सिद्धार्थ कोई और नहीं बल्कि अरमान सूर्यवंशी ही है — अब तो आयशा की उलझनें और भी बढ़ चुकी थीं।

    वह सोच रही थी कि जिस इंसान से मीरा पिछले जन्म में इतनी नफरत करती थी, वही इंसान उसकी किस्मत कैसे बन सकता है?

    साथ ही साथ, आयशा मीरा को भी सच से रूबरू करवाना चाहती थी। उसे उस इंसान को देखने का इंतज़ार था — जिस इंसान ने उसकी पूरी जिंदगी पलट कर रख दी थी। और जल्दी ही वह किसी न किसी बहाने से महाराज सिद्धार्थ के दरबार में जा पहुंची थी, जहाँ पर ऊँचे पैमाने पर जश्न मनाया जा रहा था।

    साथ ही साथ, एक तरफ वहाँ पर नृत्य कार्यक्रम हो रहा था। महाराज सिद्धार्थ अपने सिंहासन पर आसीन थे। नृत्य कार्यक्रम देखने के लिए राज्य में से भी कुछ लोग वहां मौजूद थे। इसी कारण, शहजादी मीरा भी एक बहाने से उन सब लोगों में शामिल हो गई थी।

    वह किसी को भी दिखाई नहीं दे रही थी। सब लोगों ने उसे आम प्रजा की तरह समझ लिया था, क्योंकि महाराज सिद्धार्थ ने अपने सबसे बड़े राक्षस, सबसे बड़े दुश्मनों को मृत्यु घाट उतारने की खुशी में यह आदेश दिया था कि सभी आम प्रजा दरबार में आ सकती है।

    यह दरबार कोई छोटा-मोटा दरबार नहीं था। वहाँ पर लाखों से भी ज़्यादा लोग आसानी से आ सकते थे।

    फिलहाल, महाराज सिद्धार्थ को अपनी आंखों के सामने देखने के बाद मीरा का खून पूरी तरह से खौल उठा था। बड़ा सा मुकुट पहने हुए सिद्धार्थ बेहद आकर्षक और गुड लुकिंग दिखाई दे रहा था, लेकिन मीरा को उसके शक्ल में सिर्फ और सिर्फ — अपने अम्मी-अब्बू — का हत्यारा ही नजर आ रहा था।

    फिलहाल, उसने एक गहरी सांस ली और अब उसे किसी न किसी तरीके से सिद्धार्थ की ओर जाना था। और वहाँ जाकर, जो वह एक विषैला जहर लेकर आई थी — उससे उसे हर हाल सिद्धार्थ तक पहुंचाना चाहती थी।

    क्योंकि मीरा ने एक ऐसे सांप का ज़हर अपने पास रखा हुआ था जिससे अगर वह एक बार सिद्धार्थ को छू ले, तो वह उसी समय तड़प-तड़प कर बड़ी ही भयानक और दर्दनाक मौत मरेगा। क्योंकि मीरा अपने अब्बू के कातिल को आसान सज़ा तो बिल्कुल भी नहीं देना चाहती थी। इसीलिए उसने उसके लिए बड़ी ही दर्दनाक सजा तय की थी।

    वह ज़हर किसी और चीज़ में नहीं बल्कि एक छोटे से बॉक्स में था — जो कि बेहद छोटा सा था, लेकिन उसमें बड़ा ही खतरनाक ज़हर भरा हुआ था।

    फिलहाल, धीरे-धीरे शहजादी मीरा ने देखा कि सब लोगों की नज़रें इस वक्त कहीं और नहीं, बल्कि नृत्य करने वाली सभी औरतों पर हैं। तो इसी बात का फ़ायदा उठाते हुए, मीरा धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी थी।

    और जैसे ही वह आगे बढ़ रही थी, उसे जो कोई देखकर आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं — वह कोई और नहीं बल्कि आयशा ही थी, जो अदृश्य रूप में वहां मौजूद थी।

    इस वक्त आयशा को भी सिद्धार्थ के लिए उतना ही गुस्सा था जितना कि मीरा को। और तभी जैसे ही आयशा की नज़र सिद्धार्थ के ठीक बराबर में बैठी हुई एक औरत पर पड़ी — तो आयशा की तो आंखें बाहर निकलने को तैयार थीं।

    क्योंकि वह औरत कोई और नहीं बल्कि दादी थी — अरमान सूर्यवंशी की दादी — जो कि वहां पर राजसी वेशभूषा में बैठी हुई थीं।

    ---

    अब यह देखकर आयशा की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था, और सबसे ज़्यादा हैरान वह यह देखकर हुई थी कि दादी के ही ठीक बराबर में ब्लैकी, जो कि एनाकोंडा के रूप में इंसानों की आधुनिक दुनिया में मौजूद थी, वह बैठी हुई थी। उसने एकदम राजकुमारी जैसा ही स्वरूप ले रखा था। यह देखकर तो आयशा हैरान पर हैरान हो रही थी, और उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी ज़िंदगी में जो आसपास के कैरेक्टर हैं, वह कुछ उसकी पिछली ज़िंदगी से जुड़े हुए हैं।

    आयशा बड़ी ही ध्यान से उन लोगों को देख रही थी। वहीं अब शहजादी मीरा ज़्यादा देर नहीं करना चाहती थी, और वह सीधा सिद्धार्थ के पास पहुँचकर उसे वह ज़हर देना चाहती थी। इसीलिए धीरे-धीरे वह सिद्धार्थ के करीब जा रही थी। हालाँकि वहाँ पर अंगरक्षकों का भंडार था, लेकिन सिद्धार्थ को उस दिन कुछ ज़्यादा ही खुशी मिल रही थी, तो इसीलिए उसने सभी आम लोगों को वहाँ आने की इजाज़त दे रखी थी।

    फिलहाल आयशा बड़ी गहरी नज़रों से मीरा को ही देख रही थी। वह भी बस इसी बात के इंतज़ार में थी कि अगर इस वक्त वह मीरा की जगह होती, तो खुद जाकर सिद्धार्थ को मौत के घाट उतार देती। सिद्धार्थ ने जिस तरह से मीरा, यानी कि आयशा के पिछले जन्म के अम्मी-अब्बू की जान ली थी — वह भयानक मौत वह उस वक्त सिद्धार्थ को देना चाहती थी।

    फिलहाल जैसे-जैसे समय गुज़र रहा था, उसका गुस्सा और भी ज़्यादा बढ़ता जा रहा था। वह बिल्कुल भी देर नहीं करना चाहती थी और जाकर सीधे-सीधे सिद्धार्थ को मौत की नींद सुलाना चाहती थी।

    और एक समय ऐसा भी आया कि बड़ी ही चालाकी से, एकदम बेचारी गरीब नौकरानी का अभिनय करते-करते मीरा कहीं और नहीं बल्कि सिद्धार्थ के ही सामने जा पहुँची थी। और जैसे ही उसने उस बॉक्स में से निकाल कर एक बड़ी ही छोटी सी नीम की लकड़ी निकाली, जिसमें उसने बारीक-सी चोंच बनाकर ज़हर भरा था — वह अपने हाथ में लेकर सिद्धार्थ के शरीर के किसी भी हिस्से में अगर गड़ा देती, तो सिद्धार्थ तड़प-तड़प कर उसी वक्त मर जाता।

    अब मीरा ने देखा कि सभी लोगों का ध्यान पूरी तरह से नित्य-कार्यक्रम पर है। तब देर न करते हुए उसने गहरी साँस ली, और अपने हाथ में ज़हर से भरी हुई उस लकड़ी को, जिसे उसने बिल्कुल इंजेक्शन जैसी बारीकी से बनाया था, ले आई। और जैसे ही वह सिद्धार्थ को मारने के लिए अपना हाथ उठाने वाली थी — सिद्धार्थ ने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया।

    अब यह देखकर तो आयशा की साँसें जैसे थम-सी गई थीं। और उसे ऐसा लगने लगा मानो कि वह खुद ही सिद्धार्थ को मारने की कोशिश में पकड़ी गई हो।

    वहीं सिद्धार्थ ने तुरंत अपनी गर्दन टेढ़ी की, और मीरा के बेहद बदसूरत चेहरे की ओर देखा। वहीं राजमाता, यानी कि दादी गायत्री — जो कि अरमान, यानी सिद्धार्थ के वंश की दादी थीं — उन्होंने भी अपनी आँखें और माथा सिकोड़ते हुए मीरा की ओर देखा।

    एक ही पल में पूरे दरबार में सनसनी दौड़ गई थी, क्योंकि जल्दी ही पूरी सभा में शोर हो गया था कि महाराज पर जानलेवा हमला हुआ है। वहीं अब जल्दी ही, कितने सारे सेवकों और अंगरक्षकों ने आकर मीरा को चारों ओर से घेर लिया था।

    लेकिन मीरा, सिद्धार्थ की ओर दहाड़ते हुए बोली — “मैं तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगी! यहीं गाड़ दूँगी तुझे! मैं तेरी जान लेने ही आई हूँ यहाँ!”

    अब सिद्धार्थ, जिसने कभी हार नहीं मानी थी, जिसने कभी किसी की ऊँची आवाज़ तक नहीं सुनी थी — अब इस तरह से एक लड़की को खुद पर चीखते और चिल्लाते हुए देखकर चौंक गया था। और कहीं न कहीं, वह बड़ी ही दिलचस्पी से मीरा को देखने लगा था।

    वहीं आयशा पूरी तरह से डर गई थी। उसे ऐसा लग रहा था कि मीरा का यही अंत हो जाएगा। तो फिर उसकी ज़िंदगी कैसे आगे बढ़ेगी?

    फिलहाल आयशा ने एक गहरी साँस लेते हुए मीरा की ओर देखा। लेकिन अचानक आयशा की आँखें बंद होने लगीं, और एक बार फिर वह वापस अपने पिछले जन्म से लौटकर, अपनी पुरानी दुनिया में — यानी कि आधुनिक दुनिया में — वापस आ गई थी।

    और अब वह घूरकर ब्लैकी को देखने लगी थी। ब्लैकी से उसे आज एक अलग तरह की नफरत महसूस हो रही थी, क्योंकि ब्लैकी कोई और नहीं, बल्कि सिद्धार्थ की बहन थी — यानी कि अरमान की भी बहन पिछले जन्म में।

    तब उसने उसे घूरते हुए कहा था — “तुमने मुझे जल्दी क्यों बुला लिया? क्या हुआ था मेरे साथ? मुझे आगे जानना था!”

    आयशा को इस वक्त बहुत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था। पिछले जन्म का असर था जो उसे इस तरह दहाड़ने पर मजबूर कर रहा था।

    अब आयशा को इस तरह से दहाड़ते हुए देखकर, ब्लैकी को यह समझ में आ चुका था कि आयशा ने उसे पहचान लिया है। तभी तो आज उसकी आँखों में सिर्फ और सिर्फ नफरत ही दिख रही थी।

    लेकिन ब्लैकी बड़े ही सम्मान से झुकते हुए बोली — “शहज़ादी, हम आपको ज़्यादा देर वहाँ नहीं रोक सकते थे। आपका समय खत्म हो चुका है। अब सुबह होने वाली है, और सुबह होने से पहले आपको वापस सूर्यवंशी मेंशन जाना होगा। अगर किसी को शक हो गया कि आप वहाँ नहीं थीं, तो सबको आप पर शक हो सकता है।”

    अब यह सुनकर आयशा ने अपनी आँखें बंद कर लीं। इस वक्त वह ब्लैकी से ढेरों सवाल करना चाहती थी, लेकिन अब क्योंकि सुबह हो चुकी थी — तो इसीलिए उसने गहरी साँस ली, और जल्द ही ‘गायब होने का जादू’ — का प्रयोग करके — वह सीधा वापस सूर्यवंशी मेंशन में आ चुकी थी।

    लेकिन उसका दिल इस वक्त यह जानने के लिए पूरी तरह से बेचैन था कि आखिरकार उसके साथ हुआ क्या था? और अगर दादी — यानी राजमाता — सारा सच जानती हैं, तो उन्होंने उसे बताया क्यों नहीं?

    कुछ तो इस वक्त ऐसा था, जो फटने के लिए तैयार था।

    फिलहाल, तभी जल्दी ही उसके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई...

    --दरवाजे पर कोई और ही बल्कि कबीर आहान थे।

  • 14. mysterious reborn - Chapter 14

    Words: 1636

    Estimated Reading Time: 10 min

    नहीं

    यह बोलकर उसने झटपट राजकुमारी को अपनी बाहों में भर लिया था और बोला था —

    "मैं आपको बहुत याद करूंगा... राजकुमारी को याद करूंगा।"

    राजकुमारी के माथे पर बल पड़ गए। वह बोली थी —

    "यह आप कैसी बातें कर रहे हैं, युवान?"

    तब युवान ने गहरी सांस ली और राजकुमारी के होठों की ओर थोड़ा झुकते हुए बोला था —

    "मुझे राज्य के जरूरी काम से पास के राज्य में जाना होगा, राजकुमारी। और पता नहीं यह सफर कितने दिन का होने वाला है... लेकिन मैं वादा करता हूं — मैं जल्दी लौटकर आऊंगा।"

    अब यह सुनकर तुरंत ही संयोगिता का चेहरा मुरझा गया था और वह बोली थी —

    "नहीं! आप मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। हमें छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। वैसे भी, मैं आपके बिना नहीं रह सकती हूं युवान। आपको कोई अधिकार नहीं है कि आप इस तरह से हमें छोड़कर जाएं।"

    वह बोला था —

    "आपके बगैर तो मेरा भी कहीं दिल नहीं लगेगा, लेकिन मेरी मजबूरी है... मुझे जाना ही होगा। अगर राज्य पर युद्ध का खतरा नहीं होता, तो इस तरह से मैं आपको छोड़कर कभी भी नहीं जाता।"

    "लेकिन अब मेरे सामने समस्या यह खड़ी हुई है एक माह के बाद अगले माह, एक बड़ा ही भयानक युद्ध राज्य पर टूट पड़ने वाला है। और मैं उस युद्ध से पूरे राज्य को बचाना चाहता हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि किसी भी निर्दोष का खून बहाया जाए।"

    "आप कहना क्या चाहते हैं? पश्चिमी और उत्तरी राज्य को तो युद्ध निश्चित है। हमें पिताजी ने बताया था कि वे लोग युद्ध चाहते हैं। अब हम पीछे नहीं हट सकते। क्या आपको नहीं पता कि अगर इस तरह से हम पीछे हटेंगे, तो वे लोग हमें कमजोर और निर्बल समझेंगे।"

    "तो आप कैसे युद्ध जाकर रोक सकते हैं? हमें समझ नहीं आता..."

    तभी युवान ने अपने शब्दों में राजकुमारी को कुछ कहना शुरू किया था। ये सुनकर, राजकुमारी हैरानी से बोली थी —

    "क्या... ऐसा भी कुछ हो सकता है?"

    "अगर ऐसा है तो... मैं आपके पास रहूंगी। और मैं भी आपके साथ ही चलूंगी!"

    "युवान राजकुमारी को मना करते हुए बोला था, उन राज्य में खतरा भी हो सकता है। अब हमें यह नहीं पता कि दुश्मन ने कितने गुप्तचर हमारे राज्य में छोड़े हुए हैं। और अगर आपको कोई खतरा हुआ, तो... नहीं! नहीं! मैं आपको किसी खतरे में नहीं डाल सकता हूं, राजकुमारी। मुझे जाने दीजिए... आपको अपना ध्यान यहीं रखना होगा," — यह कहते हुए वह थोड़ा कांपा था।

    तब राजकुमारी संयोगिता निडर होकर बोली थी"अगर आपके साथ हमारी मृत्यु भी लिखी हुई है, तो हमें कोई ग़म नहीं है। हम आपके साथ चलेंगे — यह बात निश्चित है। और शायद आप भूल रहे हैं... आप महाराज को बिना बताए इस राज्य से जाना चाहते हैं।"

    "और अगर पिताजी को पता चला, तो वो कभी भी आपको बिना बताए कहीं नहीं जाने देंगे। लेकिन अगर हम आपके साथ होंगे, तो हम पिताजी से कह सकते हैं कि हम भ्रमण के लिए जाना चाहते हैं... वह भी अपने पति के साथ।"

    "हमें पूरी उम्मीद है कि पिताजी हमें कभी भी मना नहीं करेंगे।"

    ---

    संयोगिता की बात सुनकर युवान सोचने लगा था कि संयोगिता शायद जो कुछ कह रही है, बिल्कुल ठीक कह रही है। और वैसे भी, वह क्या बहाना बनाकर यहाँ से जाएगा? क्योंकि महागुरु, साथ-साथ शंकर आर्य — जो कि महान जादूगर हैं — उन्होंने तो पूरी तरह से हाथ खड़े कर दिए हैं। वह तो महाकाल से लड़ने के लिए कुछ अलग तरह के यज्ञ कर रहे हैं ताकि वह ज़्यादा से ज़्यादा अपनी शक्तियाँ अर्जित कर सकें।

    कहीं ना कहीं पहले ही महागुरु और शंकर आर्य जी उन्हें बता चुके थे कि तब तक पूरे राज्य को देखने का काम आपको ही करना होगा। और इसमें अगर कोई मदद करेगा तो वह आपकी आधुनिक बुद्धि, आपका आधुनिक दिमाग होगा। यह बोलकर वे महल के ही एक अज्ञात कक्ष में कड़े तप के लिए बैठ गए थे, क्योंकि महाकाल का सामना करना बहुत ही ज़्यादा मुश्किल होने वाला था।

    फिलहाल अर्जुन ने गहरी साँस ली और राजकुमारी के माथे को चूमते हुए बोला था, "ठीक है, आपने तो मेरी काफ़ी बड़ी मुश्किल हल कर दी। पर आप जानती हैं, जब से मैंने यह डिसीजन लिया था कि मुझे दूसरे राज्य में आपके बिना जाना होगा, मुझे अंदर से कुछ टूटता हुआ सा लग रहा था, क्योंकि आपके बिना रहने के बारे में मैं एक दिन भी सोच नहीं सकता। लेकिन अब आपने मुझे रास्ता दिखा दिया है कि किस तरह से हम राजवंश राज्य से बाहर निकल सकते हैं।"

    "और वैसे भी, अभी किसी काली शक्ति का ख़तरा यहाँ नहीं है, क्योंकि महागुरु और महान तांत्रिक शंकर आर्य ने कहा है कि जब तक चंडालिनी ने अपना कठोर तप नहीं कर लेती, तब तक वह अपनी जादुई शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकती है।"

    "लेकिन साथ ही साथ, महागुरु ने युवान को यह भी बता दिया था कि उसके काली शक्ति से युक्त गुप्तचर तुम्हारे आसपास ज़रूर रहेंगे। वे तुम्हें डराने की और तुम्हारे रास्ते से भटकाने की पूरी कोशिश करेंगे, लेकिन याद रखना, वे तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते — क्योंकि चंडालिनी के बिना वे कुछ नहीं हैं। वह चंडालिनी की जादुई शक्ति तब तक काम नहीं करेगी जब तक कि वह अपने हिसाब से पूर्ण जागृति में नहीं आ जाती है।"

    क्योंकि महागुरु को यह तो पता चल चुका था कि चंडालिनी भले ही यहाँ मौजूद न हो, लेकिन काली शक्ति ज़रूर आसपास है — जो कि विक्रम के साथ-साथ, एक काली छाया के रूप में — एक बच्चे के मन और बेटे के रूप में युवान को दिखाई दी थी। वह मौजूद है। और यह आगे चलकर क्या भय मचाने वाले थे — इसके बारे में तो युवान को भी कोई आइडिया नहीं था।

    फिलहाल, युवान ने गहरी साँस ली और संयोगिता की ओर देखकर कहा था, "आप चलने की तैयारी कीजिए, मैं तब तक माँ और बहन से मिलकर आता हूँ। साथ-साथ देव को माँ और बहन की ज़िम्मेदारी सौंप कर आता हूँ। और तब तक आप अपने पिताजी महाराज और महारानी के समक्ष जाइए, और उन्हें कहिए कि हम भ्रमण के लिए कहीं जाना चाहते हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि वह आपकी बातों पर यक़ीन अवश्य कर लेंगे।"

    यह सुनकर संयोगिता खिल उठी थी और उसने आगे बढ़कर युवान को कसकर गले से लगा लिया था। उनके बीच इतनी-सी भी दूरी नहीं थी कि हवा पास हो सके। अब राजकुमारी के इस तरह से गले से लगाने पर ही युवान थोड़ा सा बहक गया था और तुरंत ही अपने होठों को राजकुमारी की गर्दन पर रखते हुए बोला था, "वैसे अगर आप थोड़ी देर बाद भी महाराज को बताने के लिए जाएँगी, तो चलेगा ना?"

    अब युवान की यह अदाओं को पाकर राजकुमारी शर्मा उठी थी, लेकिन तब तक युवान ने जल्दी ही अपने होठों का इस्तेमाल करते हुए राजकुमारी के पूरे शरीर को प्यार करना शुरू कर दिया था। और जल्दी ही राजकुमारी की मोहक आवाजें वहाँ गूंजने लगी थीं।

    फिलहाल, वहीं दूसरी ओर, सुनील जी — जो कि उस वक़्त काफ़ी ज़्यादा गुस्से में थे, क्योंकि अर्जुन ने आज पहली बार बहुत बुरी तरह से उनके प्यारे बेटे राहुल को मारा था — तो वह जाकर अर्जुन को अच्छा-खासा सबक सिखाना चाहते थे। लेकिन जैसे ही वह उसके कमरे में गए और उसके कमरे को देखा, उनकी आँखें हैरानी से फटी की फटी रह गई थीं।

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    क्योंकि अर्जुन ने अपने कमरे को ही एक जिम के रूप में बदल दिया था। वहाँ पर एक्सरसाइज से लेकर हर चीज़ का सामान मौजूद था। जानबूझकर उन्होंने अर्जुन को एक स्टोर रूम दिया था, जहाँ पर वह अपना वेस्ट और पुराना सामान रखा करते थे। लेकिन अब अर्जुन को इस तरह से देखकर तो उनकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गई थीं।

    वह स्टोर रूम उन्होंने छोटे से मासूम अर्जुन से शुरू में ही साफ़ करवाया था, ताकि अर्जुन ही वहाँ की साफ़-सफ़ाई करे। लेकिन अब अर्जुन का कमरा देखने के बाद उनके बोल पूरी तरह से बंद हो चुके थे। अभी थोड़ी देर पहले वह बहुत गुस्से होकर वहाँ आए थे, लेकिन अब तो उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह कुछ बोल सकें।

    वहीं अर्जुन सुनील जी को देख चुका था, और साथ ही साथ उनके माथे पर आए पसीने को भी देख चुका था। सुनील जी को एक अजीब सी घबराहट होने लगी थी और वह तुरंत ही फिर भी दाँत भींचकर अर्जुन के पास गए। उसे घूरकर बोले थे, “एक बात बता कि तूने कमरे का क्या हाल कर रखा है?”

    हालाँकि सुनील जी काफी गुस्से में थे और अर्जुन को बेटा समझकर मारना भी चाहते थे, लेकिन खुद को रोकते हुए वह अब सिर्फ अपनी ज़ुबान से बात करने लगे थे।

    तब अर्जुन नरमी से बोला था, “शुरुआत उन्होंने की थी। मैंने तो सिर्फ और सिर्फ उनकी हेल्प की है। और वैसे भी मामाजी, मैंने सोचा है कि अब मैं ज़्यादा दिन आप लोगों को परेशान नहीं करूंगा और अपना सामान लेकर यहाँ से चला जाऊँगा। मैं बहुत दिन से आपसे एक बात पूछने की कोशिश कर रहा था — क्या आप मुझे लास्ट वक़्त जब मेरे माँ-बाप ने या जिसने भी आपको मुझे सौंपा था, उन्होंने आपसे क्या कहा था? और मेरे माँ-पापा कहाँ हो सकते हैं, क्या इस बारे में उन्होंने आपको कुछ बताया था?”

    अर्जुन के अंदर जो युवान था, वह ज़्यादा देर नहीं करना चाहता था। इसीलिए उसने सीधे-सीधे अपने मन में कितने दिनों से चल रहे सवाल का जवाब सुनील जी से माँग लिया था।

    वहीं सुनील जी की तो आँखें फटने को पूरी तरह से तैयार थीं, क्योंकि उन्होंने बचपन से जब अर्जुन को पाला था, लेकिन अब जिस तरह से अर्जुन बिहेव कर रहा है, सवाल कर रहा है — तो उन्हें काफ़ी हद तक हैरानी हुई।

    और वह अर्जुन को घूरते हुए बोले थे, “तू क्या कहने की कोशिश कर रहा है, हाँ? क्या कहना चाहता है?”

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  • 15. mysterious reborn - Chapter 15

    Words: 1831

    Estimated Reading Time: 11 min

    कहीं ना कहीं मोनिका और टीना का दिमाग पूरी तरह से खराब हो चुका था और दोनों ही आपस में पूरी तरह से जलती हुई, अर्जुन के खिलाफ प्लान बनाने लगी थीं — ताकि अर्जुन अविका से बिल्कुल भी ना मिल पाए। क्योंकि अर्जुन का अविका से मिलना उन्हें काफ़ी ज़्यादा बुरा लग रहा था

    "उनका स्टैंडर्ड जो जा रहा था।" वही अविका हैरानी से अर्जुन की ओर देखकर बोली, "यह तुम किस तरह की बातें कर रहे हो? हाँ? क्या कहना चाहते हो तुम? क्या बोल रहे थे तुम? में कुछ नहीं समझ नहीं पा रही हर तुम। हो क्या? कुछ तो ऐसा है तुमने, जो मैं पूरी तरह से तुम्हारी ओर खींची चली जा रही हूँ। बोलो, जवाब दो।" अविका की इस तरह की बातें सुनकर अर्जुन के कान पूरी तरह से लाल होने लगे थे। कुछ उसे कुछ अजीब सा लगने लगा था। उसके दिल में अजीब से गुदगुदी सी भी हुई थी। लेकिन उसने अपने आप पर संयम रखते हुए अविका की ओर देखकर कहा, "देखिए देवी जी, इस तरह की भाषा आप पर बिल्कुल भी उचित नहीं लग रही है। आप प्लीज़ इस तरह के भाषा का प्रयोग ना करें। हमें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है।" अब तो यह सुनकर अविका का दिमाग और ज्यादा हिल गया था और वह लगातार अर्जुन को घूरते हुए बोली, "जस्ट शट अप। अपने फालतू की बकवास बंद करो और मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम्हें ज्यादा खुश होने की कोई जरूरत नहीं है। तुम मैं जानते हो में तुम्हारी तरफ अट्रेक्ट... मैं तुमसे बात क्यों करना चाहती हूं? मैं सिर्फ और सिर्फ तुमसे इसलिए बात करना चाहती हूं क्योंकि मैंने सुना है कि तुम हर साल कॉलेज में टॉप करते हो तो मुझे सिर्फ तूमसे कुछ टिप्स चाहिए क्योंकि मैंने नया-नया स्कूल में वहां लिया है और मैं यहां पर टॉप करना चाहती हूं तो उसके रिकॉर्डिंग ही मैं तुमसे बात करना चाहती हूं।" अब अविका की बात सुनकर मोनिका उन लोगों की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था और एक ही पल में उनका दिल पूरी तरह से हल्का-फुल्का हो गया था। कहां तो वह क्या-क्या सोच रही थी। लेकिन फिर भी अर्जुन का इतना एटीट्यूड देखकर उन्होंने सोच लिया था कि अर्जुन को कुछ ना कुछ सबक जरूर सिखाएंगे। फिलहाल वहीं दूसरी और युवान जल्दी ही राजकुमारी संयोगिता ओर अपने साथ कुछ भरोसेमंद सैनिकों को लेकर पश्चिमी राज्य की ओर रवाना हो चुका था। क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि कोई है जो उसका यह सफर पूरी तरह से पूरा नहीं होने देगा। क्योंकि पहले ही विक्रम जिंदा लाश काली शक्ति महल के आसपास घूम रही थी। हो सकता है वह उसे रास्ते में भी परेशान करने की कोशिश करें या फिर राजगुरु या किसी को भी कुछ भनक लग जाए। इसीलिए इससे पहले की महागुरु ईश्वर आनंद साथ-साथ महान तांत्रिक शंकराचार्य अपने यज्ञ से यज्ञ को पूरा करते हैं, उससे पहले ही उसे जल्द से जल्द पश्चिमी उत्तरी राज्य है कि जो यह समस्या उत्पन्न हुई है, इसे पूरी तरह से खत्म करना होगा। वह जानता ताकि अगर वह पश्चिमी राज्य में एक बार चला जाता है तो उत्तरी राज्य के राजा से भी उसके आराम से बात हो सकती है। क्योंकि उसने आदित्य से बात करके इस बात के बारे में पता लगा लिया था कि पश्चिम में उत्तरी राज्य है आपस में संबंध है और उत्तरी राज्य है कि जो महाराज है वह आदित्य के मामा जी है। तो कहीं ना कहीं अब इसीलिए उसने सीधे-सीधे आदित्य से रिश्ता जोड़ने का फैसला कर लिया था। अगर राजनीति से रिश्ता जुड़ जाता है तो अपने आप यह युद्ध टल जाएगा। हालांकि युवान को इस बात के बारे में दूर-दूर तक कोई एहसास नहीं था कि उत्तरी और पश्चिमी राज्य में तो अभी तक किसी तरह का कोई युद्ध का पता ही नहीं है। पर हालांकि आदित्य को पता भी चल चुका था लेकिन युवान ने उसे सख्त मना कर दिया था कि वह अपने राज्य में जाकर किसी से भी किसी भी तरह का कोई भी जिक्र ना करें। फिलहाल और राजकुमारी संयोगिता और सेनापति युवान भले ही राजवंश राज्य से अलग-अलग घोड़े पर निकले थे। लेकिन बीच रास्ते में जाते ही युवान ने राजकुमारी संयोगिता को अपने ही घोड़े पर आगे बैठा लिया था और खुद उसके ठीक पीछे बैठकर उसे कर बाहों में भर कर बैठा हुआ था। और राजकुमारी ने घोड़े की लगाम अपने हाथों में थाम ली थी। कहीं ना कहीं युवान की इस तरह की शरारत से वह अंदर तक शर्मा गई थी। उसका रोम रोम खिल उठा था। क्योंकि सेनापति युवान के जिस्म के अंदर आधुनिक व्यक्ति की आत्मा थी जो अच्छी तरह से अपनी बीवी को खुश करना जानता था कि मोमेंट पर किस जगह उसकी बीवी खुश हो सकती थी यह सारी बातें अच्छी तरह से जानता था। भले ही राजकुमारी ने शुरू से ही अपने माता-पिता को एक दूसरे के प्रेम में देखा था। लेकिन कभी भी अभिमन्यु महाराज उसकी मां गायत्री के लिए कुछ भी स्पेशल नहीं कर पाए थे। जो स्पेशल फील हमेशा युवान संयोगिता को कराया करता था तो इस वक्त संयोगिता के पूरे शरीर पर इश्क का एक अलग ही रंग आया था। वह बेहद खूबसूरत होती जा रही थी। फिलहाल युवान ने जानबूझकर अपने साथ आए सैनिकों को थोड़ा आगे भेज दिया था और खुद वह अकेले में बड़े ही उसे हसीन सफर का हसीन सफर का इंजॉय मजा लेते हुए आगे बढ़ रहा था। इस पल उसे ना तो किसी काली शक्ति का खौफ था और ना ही उसे किसी का भी डर था। वहीं दूसरी ओर अगली सुबह जैसे ही सब लोग उठे एक बार फिर से दरबार सज चुका था। हालांकि महाराज अभिमन्यु थोड़ा सा चिंतित भी थे कि इस तरह से युद्ध के वक्त सेनापति युवान का राज्य से कहीं जाना किसी तरह से ठीक नहीं है। लेकिन अपनी बेटी के प्रेम के आगे वह पूरी तरह से बेटी के प्रेम के आगे वह मौन हो गए थे। क्योंकि केवल उनकी बेटी में ही हिम्मत थी कि वह अपने पिता के हर फैसले को बदलने का साहस रखते थी। फिलहाल संयोगिता ने बातें में महाराज से यह वचन भी ले लिया था कि युवान और संयोगिता राज्य में इस वक्त मौजूद नहीं है तो इसके बारे में उसके पिता किसी को भी बताएं। यह इस सोच के साथ अब महाराजा अभिमन्यु दरबार लगना शुरू कर दिया था।

    लेकिन इस बार दरबार में सेनापति युवान को न पाकर दरबार में एक तरह की हलचल मच चुकी थी। क्योंकि सेनापति युवान राजवंश का एक ऐसा चेहरा बन चुके थे, जो सबकी हिम्मत था, ताकत था, जो सबको काफ़ी ज़्यादा हिम्मत देता था।

    इसीलिए, तभी उसी वक्त राजगुरु चिन्मय, जो कि अपने शरीर दिमाग के साथ वहाँ मौजूद था, सेनापति युवान को दरबार में न पाकर तुरंत ही महाराज की ओर देखकर बोला था,
    "महाराज, मुझे समझ नहीं आ रहा है कि संकट की घड़ी में इस तरह से सेनापति युवान का सभा से नज़रें चुराने का क्या कारण है? आखिरकार सेनापति युवान ऐसा कैसे कर सकते हैं? वह इस तरह से सभा से नदारद कैसे हो सकते हैं?"

    अब राजगुरु की बात सुनकर महाराज अभिमन्यु एक पल के लिए शांत हो गए थे और फिर राजगुरु की ओर देखकर बोले थे,
    "राजगुरु, हम समझ रहे हैं, लेकिन आप बिल्कुल भी कष्ट और बिल्कुल भी परेशान मत होइए। हमने ही सेनापति युवान को किसी जरूरी कार्य के लिए कहीं भेजा हुआ है। वह केवल दो से तीन सप्ताह के अंदर-अंदर वापस आ जाएंगे।"

    अब यह सुनकर तो राजगुरु की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। उसकी आँखें हैरानी से फटी रह गई थीं, क्योंकि उसे पूरी तरह से युवान और संयोगिता पर नज़र रखनी थी।

    इस तरह से संयोगिता का गायब होना उसे अलग ही तरह की चिंता में डाल गया था। इस वक्त वह पूरी तरह से सन पड़ चुका था। उसे लगने लगा था कि अगर इस बार उसका प्लान खराब हो गया, तो वह कभी भी महारानी गायत्री को पा नहीं पाएगा। और गायत्री को पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था।

    इसलिए राजगुरु ने निर्णय ले लिया था कि जैसे ही वह अपने कक्ष में जाएगा, सीधे-सीधे जादुई मन्त्रों का प्रयोग करके विक्रम की ज़िंदा आत्मा को बुलाएगा और उससे पता लगाने की कोशिश करेगा कि आखिरकार इस तरह से युवान और संयोगिता कहाँ जा सकते हैं।

    फिलहाल, राजगुरु ने गहरी सांस ली और दरबार की ओर ध्यान देने लगा।

    अभी महाराज अभिमन्यु सैनिकों के बारे में ही बातें कर रहे थे — कि किस तरह से कितने सैनिक युद्ध के लिए जाएँगे, और कौन किस टुकड़ी का नेतृत्व करेगा, और कोर्ट कब-कब कैसे जाएगा।

    वहीं दूसरी ओर, महल के ही अंधेरे कक्ष में महागुरु शिवानंद, साथ-साथ महान तांत्रिक जादूगर शंकर आर्य यज्ञ कर रहे थे। और इसकी खबर पर्वतों के मध्य तप करने वाली चंडालिनी को लग गई थी।

    अब चंडालिनी को जैसे ही यह पता चला, और इस बात का एहसास हुआ कि इस वक्त महागुरु और तांत्रिक शंकर आर्य उसे और ज़्यादा शक्तियाँ अर्जित करने के लिए इस तरह का यज्ञ कर रहे हैं — तो इस वक्त उसकी हैरानी की कोई सीमा नहीं रही।

    लेकिन वह स्वयं भी उसी अनुष्ठान में बैठी हुई थी। जब तक अनुष्ठान पूरा नहीं हो जाता, तब तक वह वहाँ से नहीं उठने वाली थी, क्योंकि उसने अपनी सारी शक्तियों को दाँव पर लगाया था।
    अब चंडालिनी चाहकर भी उस अनुष्ठान को बीच में नहीं छोड़ सकती थी।

    लेकिन तभी चंडालिनी ने अपनी एक दिव्य दृष्टि का इस्तेमाल करते हुए निर्णय लिया था कि उसे कुछ न कुछ ऐसा करना होगा, जिससे महागुरु शिवानंद का अनुष्ठान किसी भी कीमत पर पूरा न हो पाए — वरना वे शक्तियाँ अर्जित कर लेंगे और साथ ही साथ, उसे गुप्त शक्ति तक पहुँचने का रहस्य भी खोज निकालेंगे।

    जिस रास्ते पर चलकर सेनापति युवान को असीमित शक्तियाँ मिलने वाली थीं — इसी सोच के साथ चंडालिनी ने गहरी सांस ली और योजना बनाते हुए, अपने बालों की जटा का एक गुच्छा खोलने लगी थी। और धीरे-धीरे, देखते ही देखते, चंडालिनी के बालों से एकदम बड़ी सी आकृति वाली मोह-माया प्रकट हुई थी।

    मोह-माया इतनी खूबसूरत थी कि अगर कोई भी सामान्य इंसान उसे एक बार देख ले, तो तुरंत उस पर मोहित हो जाए और उसके साथ अपनी हर सीमा पार कर दे। वह मोहिनी का ही एक रूप थी।

    अब मोह-माया के आने पर, चंडालिनी — जो कि तप में मौजूद थी — उसने अंदर ही अंदर, अपनी अंतरात्मा के द्वारा उसे बता दिया था कि अब मोह-माया को किस तरीके से जाकर शंकर आर्य और महागुरु शिवानंद का ध्यान भटकाना होगा।

    क्योंकि कोई भी विश्व-सुंदरी लड़की महाराजों और ऋषियों का सिंहासन डगमगाने की शक्ति रखती थी — जैसे उर्वशी और रंभा।

    इसीलिए उसने अपनी सबसे खूबसूरत काली शक्ति का इस्तेमाल किया था, ताकि वह महापुरुष — या फिर शंकर आर्य — दोनों में से किसी एक को अपने मोह में फँसा ले।
    अगर उसने किसी एक को भी अपने हुस्न के जाल में फँसा लिया, तो उनका अनुष्ठान पूरी तरह से बाधित हो जाएगा — और उन्हें शक्तियाँ नहीं मिल पाएँगी।


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  • 16. झलक- Chapter 16

    Words: 5432

    Estimated Reading Time: 33 min

    वहीं दूसरी और अब पहाड़ी पर सिद्धार्थ खुराना मायरा रायचंद् के साथ जा पहुंचा था लेकिन उसे झलक कहीं भी दिखाई नहीं दिए और 15 20 मिनट इंतजार करने के बाद वहां से वह वापस उतर गया था वही झलक सिद्धार्थ के शासन सेट देखने का मौका मेरा को मिल चुका था तो वह काफी ज्यादा खुश थे और जैसी वह नीचे आए उन्होंने देखा वह अपने-अपने काम में लग गए सिद्धार्थ उसे वक्त गांव के लोगों में कुछ सामान कंट्रीब्यूट कर रहा था तो झलक का उसे ध्यान नहीं आया लेकिन जब झलक को गया वह दो से तीन घंटे से ज्यादा हो गया तब मेरा थोड़ा चिंता में डूब गए और सीधा-सिधार के पास जा पहुंचे और बोली थी मिस्टर खुराना से झलक का कुछ पता नहीं चल रहा है प्लीज अब जैसी अचानक से दर्द नहीं है सुनो उसे ऐसा लगा मानो कि उसकी सांसे थम गई हो और फटाफट से उसने धोनी तोर गांव वालों के साथ मिलकर झलक को खोजना शुरू कर दिया था क्योंकि लास्ट टाइम झलक पहाड़ी पर ही गई थी अब गांव वालों के साथ मिलकर मुझे लोग को ढूंढने लगा था लेकिन जिला का कहीं ना परेशान नहीं मिला लेकिन तभी लेकिन एक छोटे से 12 साल के बच्चे को झलक दूसरी साइड की पहाड़ी पर नीचे की तरफ दिखाई दी थी और फटाफट उसे उसके गांव वालों को बता दिया था सिद्धार्थ ने जैसे झलक को देखा उसके हाथ पर सांप के डसने का निशान और झलक का पीला पड़ा हुआ चेहरा देखा तो सिद्धार्थ का दिल बैठ सा गया था फटाफट सुबह उठकर मुखिया के घर में ले आया और जहां पर उसका इलाज किया जाने लगा था अभी झलक की हालत काफी खराब थी.
    वेल गांव के वीर जी ने झलक का ट्रीटमेंट करने के बाद उसे आराम करने के लिए कह दिया था साथ ही साथ उसके हाथ पर जो बड़ा सा घाव लगा था उसे पर ड्रेसिंग कर देते चालक का अगले दिन काफी देर तक सोते रहे और अगले दिन उसके आंख तकरीबन सुबह के 11:00 बजे खुले आप झलक जैसे ही उठी उसने देखा कि उसके सामने इस वक्त मेरा और सिद्धार्थ खुराना दोनों ही बैठे हुए थे दोनों दोनों ने बड़ी-बड़ी से रात भर उसका ध्यान रखा था वह तभी मेरा की नजर झलक पर पड़ी थी और वह तुरंत उसके पास गई और बोली थी झलक आई हो तुम ठीक हो कोई प्रॉब्लम तो नहीं आना अब तुम कैसा फील कर रही हो तभी झलक अपना सर पकड़ कर बैठे की कोशिश करते हुए बोली थी कि हां वह ठीक है और तभी सिद्धार्थ उसके पास आया और बोला था कि आखिरकार हुआ क्या था और तुम्हारे हाथ पर जख्म कहां से आया है क्या सांप ने तुम्हें कैसे काटा तभी झलक को धुंधला धुंधला यादव की उसे नकाबपोश आदमी था उसे बचाने के लिए उसने वह सांप का जहर अपने शरीर पर लिया था उसके बाद उसने सिद्धार्थ से हैरानी से पूछा था मैं यहां कैसे आई कॉल लेकर आया तभी मेरा ने सारी बातें तुरंत आगे बढ़कर बता दी थी कि सिद्धार्थ खुराना ही उसे यहां लेकर आए थे क्योंकि पहाड़ी के पास वह उसे बेहोश मिले थे और शायद उसे सांप ने काटा था तब जल्दी से सिद्धार्थ बोला था तुम्हारे हाथ पर गांव कैसे आया और तुम्हारा सांप के काटने का इलाज किसने किया तब झलक बोली थी वह तो मैं खुद ही अपने हाथ पर घाव दिया था चाकू से कटकर मैं जहर निकालने की कोशिश की थी तब मनी मन में सिद्धार्थ कहीं ना कहीं झलक की तारीफ किए बिना खुद को रोक नहीं पाया था कि वाकई यह कितने ज्यादा कितने ज्यादा हिम्मत वाली लड़कियां बने सिचुएशन में अगर किसी लड़का और लड़की को कोई सांप काट लेता तो पूरा का पूरा घर अपने सर पर उठा लेते लेकिन झलक रहे फिर भी हिम्मत से उसे वक्त सिचुएशन से और समझदारी से कम लिया था फिलहाल यह बातें वह सिर्फ मन में ही सोच सकता था ऐसे झलक के सामने वह उसके साथ नहीं कर सकता था विल झलक अब एक बार फिर अपनी आंखें बंद करने लगे थे तब सिद्धार्थ ने उसे आराम करने के लिए कहा कि उसे आप गांव के किसी भी काम में पार्टिसिपेट करने की कोई जरूरत नहीं है जो जरूरी गरीबों को खाना अपने बच्चों को किताबें बांटने होगी वह लोग खुद बांट लेंगे यह बोलकर वह उसे आराम करने के लिए कहने लगा था और फिर झलक ने पूरे 2 दिनों तक आराम किया था और आप उसकी हालत काफी ज्यादा बेहतर हो गए थे हालांकि उसके हाथ का गांव अभी तक पूरी तरह से नहीं भरा था लेकिन काफी हद तक 80% हुआ था उसका ठीक हो चुका था फिलहाल झलक अब धीरे-धीरे उठे आपके कैसे डांट दिनों से बाहर जाने से मना कर दिया था तो इसीलिए उसने जो तालाब था उसी के पास उसे उसी के पास उसने मछली पकड़ने के बारे में सोचा गांव के लोगों ने इस वक्त झलक के काफी ज्यादा देखभाल किए थे उसे समय-समय पर सूप पिलाया था किसके शरीर में कुछ ताकत आए उसके बाद उसे फिश फ्राई करके भी खिलाए जिससे उसे काफी ज्यादा ताकत मिली थी अब धीरे-धीरे झलक काफी हद तक रिकवर हो गई थी और मछली पकड़ने लगे थे अब जिस गांव में जो मछली पकड़ रहे थे तभी उसकी नजर उसने काम पोस्ट आदमी पर पड़े वह आदमी को वादे कर झलक हैरान हो गई और तुरंत बोल पड़े थे कि इस आदमी ने उसे करने के लिए यहां छोड़ दिया था जबकि जरा के लिए सांप काटने से उसकी जान बचाई थी तो यह आदमी इतना ज्यादा स्वार्थी कैसे हो सकता है तभी झलक उसे आदमी के पास गए और उसे घूरते हुए बोली थी आखिरकार तुम इतनी ज्यादा स्वार्थी कैसे हो सकते हो जब मैं वहां मर गई थी बेहोश हो गई थी तो क्या तुम मेरी मदद नहीं कर सकते थे चलो कोई इस वक्त उसका काम पोशाक आदमी पर बहुत गुस्सा आ रहा था तभी वाला का आपको शायद में अपने उसका सवालों का जवाब देने के बजाय अपने शर्ट के बाजू को ऊपर करते हुए दिखने लगा था और बोला था कि मैं तुम्हारी मदद के लिए गांव में किसी को बुलाने के लिए जा रहा था लेकिन इस वक्त पहाड़ी के ढलान से नीचे गिर गया जिससे मुझे काफी चोट है आई अब यह सुनकर झलक को बड़ी बार हैरानी हुई और वह थोड़ी देर पहले इस बात के लिए लेकर कोर्स रही थी कि उसने उसकी मदद नहीं कि उसे अब कहीं ना कहीं झलक के मन में भी इस तरह का कोई बात नहीं रही थी कि चलो कम से कम उसे आदमी ने उसकी मदद करने की कोशिश तो की थी फिलहाल झलक उसे बोले थे अच्छा ठीक है अब तुमने मेरे लिए इतनी मेहनत की और तो मेरी वजह से पार्टी से भी गिर गए तो मैं तुम्हारे लिए फटाफट से मछली बनाती हूं मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम्हें पसंद आएगी यह बोलकर झलक मछली पकड़ने लगे थे और मेरा के साथ झलक मछली पकड़ते हुए काफी मस्ती कर रही थी वही वह नकाबपोश आदमी अपने मास्क के पीछे के चेहरे से चमकती आंखों से झलक को देख रहा था और उसका इरादा था कि इस वक्त वह चाकू और खंजर से घूम कर झलक के जान ले ले क्योंकि झलक ने अब उसे सांप काटने से बचाया था तो इसीलिए उसने उसकी कोई मदद नहीं कि अब क्योंकि झलक ने उसे सांप काटने से बचाया था तो इसीलिए उसने उसकी कोई खास मदद नहीं की और उसे वहीं छोड़कर इस इधर वापस नीचे उतर गया था वह लैब दूसरी और उसे नकाबपोश आदमी वहां से उठकर चला गया था वहीं सिद्धार्थ अब झलक के साथ था और उसे पूछ रहा था कि उसकी तबीयत अब कैसी है झलक रहे हो अपना सर हमें हिलाते हुए कहा था कि वह काफी हद तक ठीक है और तब झलक और सिद्धार्थ जब बरसती हुई बारिश को देख रहे थे पहाड़ इलाकों पर बहुत ज्यादा बरसात हो रही थी इसके जैसे हर जगह कीचड़ और नदी नाले काफी ज्यादा भर चुके थे तब झलक फिकर बंद होते हुए बोले थे पता नहीं गांव के जो स्कूल है बच्चों का वहां पर क्या हो रहा होगा गांव के बच्चे किस तरह से पढ़ रहे होंगे तब वह झलक सिद्धार्थ की ओर देखकर चलो ना सिद्धार्थ एक बार जलकर स्कूल में देखकर आते हैं बच्चे वगैरह सब ठीक है या नहीं यार ज्यादा नुकसान तो नहीं हुआ है और अगर ज्यादा स्कूल में कुछ प्रॉब्लम होगी तो उसे जरूर ठीक करवा देना अब झलक की यह बात सुनकर सिद्धार्थ वाकई इंप्रेस हुआ था लेकिन उसने उसे कुछ नहीं बोला था और फिलहाल को लोग जल्दी ही अब स्कूल की तरफ चल दिए थे तभी सिद्धार्थ झलक को एक जगह रोकते हुए बोला था रुको मैं तो मेरा कुछ सामान रह गया है मैं उसे लेकर आता हूं अब झलक सिद्धार्थ के आने का इंतजार करने लगे थे जैसे ही सिद्धार्थ आया उसने देखा कि सिद्धार्थ के हाथों में इस वक्त दवाई का बॉक्स था उसे बॉक्स में कुछ ऐसी दवाई आती है जो किसी भी घाव पर लगा दे पर उसे गांव के निशान को मिटा दिया करते थे अब वह दवाइयां लेकर झलक को देते हुए कहाँ लगता है यह दवाइयां को यह तुम्हारे गांव को भरने में मदद करेंगे और साथ ही साथ इसका निशान भी चला जाएगा क्योंकि मुझे पता है की लड़की अपनी स्किन को लेकर कितनी ज्यादा है सेंसिटिव होती है ताकि उनकी स्क्रीन पर किसी तरह का कोई दाग धब्बा ना आए अभी सुनकर झलक को हैरानी हुई और वह सिद्धार्थ को घूरते हुए बोले थे आखिरकार तुम मुझसे क्या चाहते हो सिद्धार्थ खुराना का तो यह नेचर ही नहीं है कि वह किसी की मदद करें और तो मेरे लिए दवाई लेकर आए हो मैं समझ गई हो जरूर तुम्हारे बारे में कुछ तो कुछ मेरे खिलाफ प्लान बना है सिद्धार्थ खुराना बता दो क्या चाहते हो तुम मुझसे मैं अच्छी तरह से जानते हो कि तुम मुझसे कितनी नफरत करते हो तो यह मेरे लिए इतना बार-बार होने का दिखावा क्यों कर रहे हो अब जैसे झलक रही है बोल सिद्धार्थ केवल मुस्कुरा सका उसने उसकी किसी बात का कोई जवाब नहीं दिया और फिलहाल को दोनों जल्दी ही अभी स्कूल की तरफ चलने लगे थे आप क्योंकि बारिश की वजह से जगह-जगह कीचड़ भर चुकी थी तो उन्हें स्कूल की बिल्डिंग स्कूल तक पहुंचने में काम से कम एक घंटा लग गया और दोनों जैसे वहां पहुंचे तो वह पूरी तरह से चौंक गए थे स्कूल के पूरी छत वगैरह सब पानी से टपक रहे थे पूरी जगह की चली कि चलो पानी भरा हुआ था यह देखकर झलक को अपना बचपन याद आ गया था क्योंकि उसका बचपन भी खुशी कुछ इसी तरह के स्कूल में गुजरा था हालांकि सिद्धार्थ के लिए सब कुछ नया था क्योंकि उसने ऐसा स्थिति कभी भी नहीं देखी थी तब झलक जल्दी से जाकर वहां के बच्चों की मदद करने लगे थे और जितने भी वहां पर जितने भी वहां पर जितने भी वहां पर बुक्स वगैरह भीग गए थे उन सब को एक जगह लाइन पर लगाने लगे थे वही सिद्धार्थ खुराना हैरानी से झलक को देख रहा था क्योंकि झलक को पता चल चुका था कि यह स्कूल गांव के ही एक बुजुर्ग दंपत्ति चलते हैं वह फ्री में बच्चों को पढ़ाई पढ़ते हैं और इसके लिए ज्यादा बड़ा नहीं था सिर्फ एक घर से बना हुआ था उसी के उसी में वह 40 से 50 बच्चे पढ़ते थे इससे ज्यादा वहां बच्चे नहीं पढ़ते थे अब झलक को कहीं ना कहीं मिस्टर शुक्ला के लिए काफी हद तक जो दंपति द स्कूल के उनका नाम मिस्टर एंड मिसेज शुक्ला था तो झलक उनके पास गए मिस्टर शुक्ला को ₹40000 देते हुए बोले थे मिस्टर शुक्ला मैं जानती हूं कि मेरी कंपनी ने आज तक आपको कुछ डोनेशन दिया है कंपनी बुक भेजिए खाना वगैरा भेजा है कंपनी की तरफ से था लेकिन ₹40000 में आपको देना चाहती हूं ताकि आप अपनी बीवी के लिए कुछ अच्छा से गिफ्ट खरीद ले अभी सूट देखकर सिद्धार्थ की हैरानी काफी ज्यादा बढ़ गई थी क्योंकि अभी तक सिद्धार्थ झलक को सिर्फ और सिर्फ एक पैसों के पीछे भागने वाली लड़कियों लालची लड़की समझा करता था उसके सपने में भी नहीं सोचा था की झलक अपने पास से इस तरह से बिना किसी बात के पैसे मिस्टर शुक्ला को दे देगी वह कहीं ना कहीं मिस्टर शुक्ला को थोड़ी सी तारीफ करना चाहते थे जिससे मुझे शुक्ला बच्चों का अच्छी खादर ऐसे ख्याल रख सके फिलहाल यह देखकर सिद्धार्थ को हैरानी हुई फिलहाल मिस्टर शुक्ला पैसे लेने से मना करने लगे लेकिन झलक ने जबरदस्ती उसके पैंट कीजिए मैं पैसे ठोस दिए थे और फिर सिद्धार्थ का पकड़ कर जल्दी वह वहां से बाहर निकल गए थे अब जैसी वह लोग वहां से बाहर निकले तब क्योंकि बारिश अब रख चुकी थी लेकिन सामने का मौसम बड़ा ही खूबसूरत हो चुका था चारों तरफ इंद्रधनुष बना हुआ था आसमान में जो कि बाद ही जो बड़ा ही प्यार और खूबसूरत लग रहा था अभी इंद्रधनुष को देखकर जल्दी से झलक सिद्धार्थ का हाथ पकड़ कर बोली थी प्लीज मुझे उसके साथ फोटो ले लेंगे उसके कितना खूबसूरत है चलो ना चलो दोनों सेल्फी लेते हैं अब सिद्धार्थ उसे मना नहीं कर पाया और जल्दी ही वह थोड़ी छोटी सी पहाड़ी पर चढ़ गए थे वह पूरा बाद ही खूबसूरत नजर लग रहा था तब जल्दी से झलक में अपना लंबा सा हाथ करके सेल्फी ली थी और लेकिन जैसे सेल्फी वाली फोटो उसने चेक क्यों उसने देखा कि सिद्धार्थ खुराना तो उसे उसने देखा कि सिद्धार्थ खुराना का तो सिर्फ गर्दन गर्दन तक की फोटो आया था क्योंकि सिद्धार्थ खुराना इतना लंबा था और झलक छोटी थे तब झलक मुंह बनाते हुए बोलते मिस्टर पुराना आपको इतनी तो सेंस होनी चाहिए जब कोई सेल्फी लेता है तो सेल्फी वाले की साइज का हो जाना चाहिए थोड़ा सा झुकी है और थोड़ा इधर लिए सिद्धार्थ उसे घूमते हुए बोला था इसमें मेरी क्या गलती है कि तुम्हारी हाइट छोटी है मैसेज तो कुछ नहीं कर सकता ना सिद्धार्थ की बात सुनकर झलक मनी मन में बुध कर रह गई थी और उसे दांत पीसते हुए लेकिन बड़े छोटी सी मुस्कुराहट अपने मुंह पर लाकर बोले थे मिस्टर खुराना आप प्लीज थोड़ा सा झुक जाइए तभी तो हम फोटो ले पाएंगे ना साथ में आपसे झक के चेहरे पर सिद्धार्थ थोड़ा सा घुटनों के बाल झुक गया था और तब जल्दी से झलक ने अपना हाथ से दर्द की धात के कंधे पर रख दिया था और फोटो लेने लगे थे लेकिन जैसे ही सब झलक रहे वह फोटो देखी तो उसकी आंखें फेरारी से बड़ी हो गई थी उसने देखा कि इधर-उधर और झलक तो बड़ी प्यारी उसे मार रहे थे लेकिन सिद्धार्थ खुराना उसे वक्त फोटो लेते हुए भी झलक को देख रहा था एकदम किसी रोमांटिक कपल के जैसी वह फोटो लग रही थी अब झलक जल्दी से अपने सर पर हाथ बढ़ाते हुए बोले थे यह सब क्या है मुझे तुम्हारे साथ इस तरह की कोई फोटो लिया लेनी है जिसमें हम दूर के ही सही लेकिन भाई बहन लगे लेकिन यह क्या ऐसा लग रहा है कि किसी रोमांटिक कपल की हमने फोटो ले लिया मुझे फोटो काटनी होगी वापस से अपनी फोटो लेनी होगी लेकिन सिद्धार्थ ने फोटो काटने से पहले उसके हाथ से फोन चल लिया और झलक की ओर देखकर बोला था तुम्हें फोटो काटने की कोई जरूरत नहीं है इधर-उधर उसके साथ मैं तुम्हारी फोटो ले लेता हूं झलक के कुछ फोटोस ले ली थी और उसके बाद वह दोनों जल्दी ही वहां से घर वापस आ गए थे आप क्योंकि झलक काफी ज्यादा थक चुकी थी तो आकर वह गहरी नींद में सो गई थी वहीं सिद्धार्थ खुराना नजारे की आवाज हल्का-हल्का मुस्कुराया जा रहा था उसके मुस्कुराहट का क्या कारण था कोई समझ नहीं पा रहा था आप क्योंकि बाहर का मौसम काफी खराब था और बारिश जोरों से हो रहे थे झक क्योंकि पैदल चलकर ही पूरा गांव उसे स्कूल के पास तक गए थे तो अरे बेबी उसे इतना ही टाइम लगा इसके जैसे उसे काफी ज्यादा थकावट महसूस है और वह गहरी नींद में सो गई अगले दिन सुबह के 7:00 बजे 7:00 बजे मेरा ने झलक को जूझ जाते हुए उठाया और बोली थी जगत में पता है क्या हुआ पूरे के पूरे गांव में पहाड़ी काफी ज्यादा जगह से धरती खिसक गई है पहाड़ के कुछ हिस्सा सड़क गया है जिसकी वजह से चारों तरफ रास्ते बंद हो गया और इतना ही नहीं पूरी जगह नदी का पानी काफी ज्यादा लगातार बारिश की वजह से बढ़ चुका है और अभिषेक नदी किनारे जो गांव बसे हुए उनमें खतरा है की बारिश का पानी से पूरे घर बह जाएंगे बहुत बड़ी इमरजेंसी आ गई है सब लोगों को बचाने के लिए गया और घर खाली करने के लिए कह रहे हैं जिसके भी घर नदी के आसपास है तुम भी चलो फटाफट से हमें उनकी मदद करनी होगी यह सुनकर झलक के फटाफट से अपने मुझे जूते पहनकर वह मेडा के साथ वहां से जाने लगे लेकिन मिस्टर रायचंद ने तुरंत मेरा का हाथ पकड़ लिया तुम्हें इस तरह से मैं खतरे में नहीं जाने दे सकता हूं तब झलक को भी उनकी बात कहीं ना कहीं सो रहे थे अगर मेरा उसके साथ चलती है तो मेरा तो काफी नाजुक से लड़की है और उसे भी पहुंचने में देर हो जाएगी इसलिए झलकक ने भी मिस्टर रायचंद की बात का समर्थन करते हुए कहा था हा मिस्टर raychand बिल्कुल ठीक कह रहे है,
    मेरा मुझे लगता है कि तुम्हें यही रहना चाहिए तो मैं अब वहां नहीं चलना चाहिए यह बोलकर झलक बिना मेरा की कोई बात सुन वहां से चली गई थी अब मेरा अपने पिता मिस्टर रायसेन पर गुस्सा करते हुए बोले थे पिताजी आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था मैं वहां झलक की और बाकी लोगों की मदद करना चाहती थी तब मिस्टर रायचंद मेरा को घूरते हुए बोले थे मैंने तुम एक राजकुमारी जैसे पाला है मैं तुम्हारी जान के साथ कोई रिस्क नहीं ले सकता हूं समझे तुम यह बोलकर वह जबरदस्ती उसे अंदर ले गए थे वहीं दूसरी ओर झलक अब जल्दी-जल्दी इसे तेजी से आगे बढ़ रही थी तभी उसे एक आवाज सुनाई थी मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा अब झलक मुड़कर देखने लगी वह हैरान हो गई वह कोई और नहीं बल्कि वही नकाबपोश आदमी था अब जरा उसे घूमते हुए बोली थी तुम मेरे साथ चलोगे लेकिन शायद तुम्हें पता नहीं है कि तुम्हारा तबीयत बिल्कुल ठीक रही है और तुम काफी ज्यादा कमजोर हो तुम सही से चल भी नहीं पाते हो वैसे भी झलक इस तरह से देर नहीं करना चाहती थी क्योंकि वह झुक कर चलता था ऊपर से भी काफी ज्यादा कमजोर दिखाई दे रहा था तो जरा उसे अपने साथ ले जाकर उसके या अपने लिए कोई मुसीबत खड़ी नहीं करना चाहती थी लेकिन वह आदमी बोला था तुम फिकर मत करो मेरे से तुम्हें कोई प्रॉब्लम नहीं होगी लेकिन मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा क्योंकि काफी सारे घर है वहां पर काफी सारे लोग हैं और अकेले तुम कैसे सब से घर खाली करवा पाओगे मैं भी साथ चलता हूं अब यह सुनकर झलक को कहीं ना कहीं उसकी बात कुछ ठीक भी लगी और फिर वह कहना चाहते हुए भी साथ लेकर चलने लगे थी वैसे झलक काफी तेजी से चला आगे बढ़ रही थी लेकिन वह यह देखकर पूरी तरह से हैरान हो गई कि वह आदमी जो की झुक कर चलता था वह धीरे-धीरे चलता था वह भी झलक को पूरी तरह से कंपटीशन दे रहा था वह भी झलक के कम से कदम मिलाकर चल रहा था अब झलक को कुछ गड़बड़ाहट से नजर आने लगे थे उसे आदमी पर शक होने लगा था कि कुछ ना कुछ तो गड़बड़ जरूर है याद में तो काफी ज्यादा कमजोर था सही से सीधा खड़ा भी नहीं हो पता था और वह झलक के कम से कदम मिलाकर चल रहा था फिलहाल झलक ने इस बात पर ज्यादा जोर न देते हुए सीधा गांव वालों की मदद के लिए वह आगे बढ़ने लगे थे अब उन्हें एक बड़ी सी नदी पार करके दूसरी साइड जाना था वहां पर एक छोटा सा पुल बना हुआ था दो लोग एक साथ जाते तो जरूर वह उसे नदी में गिर सकते थे तो इसलिए झलक ने सेफ्टी का ध्यान रखते हुए उसे आदमी की ओर देखकर कहा एक कम कीजिए पहले आप यह पल पर कीजिए उसके बाद में यह पल पर करूंगी तब उसे आदमी ने बिना किसी नानू को रखे हैं हमेशा हिला दिया था और वह लोग उसे पॉल को पार करने लगे थे नीचे से पानी काफी तेजी से बह रहा था तब झलक ने देखा कि वह आदमी बड़ी आसानी से वह पल पर कर रहा था लेकिन जैसे ही वह अपना आखिरी कम दूसरी साइड रखने वाला था तुरंत उसका बैलेंस बिगड़ गया और वह नीचे अगर गिर गया और पानी में के सहारे लटक गए पानी में गिर गया और कुछ पकड़ लिया उसने तब जल वह आदमी जोरों से सीखने चिल्लाने लगा था मदद क्यों को हर लगने लगा था तब झलक जल्दी से आगे बड़े और उसने जैसे तैसे मेहनत करके अपना हाथ उसे आदमी को दिया और उसे आदमी को पर खींच लिया था थोड़ी देर तक दोनों सांस लेते रहे तब झलक रहे उसे आदमी की ओर देखकर कहा था तुम ठीक हो ना तब वह आदमी ने हां में सर हिलाया और जैसी हो थोड़ा आगे बढ़ने लगे अचानक कुछ आदमी ने जो की नकाबपोश था झलक को पीछे से धक्का दे दिया और झलक सीधा कुछ पानी में जा गिरी थी अब तो झलक की हैरानी कॉफी बाजार पर ज्यादा बढ़ चुकी थी लेकिन झलक ने उसे आदमी का पर नहीं छोड़ा था जिसकी वजह से वह आदमी भी झलक के साथ उसे पानी में गिर पड़ा था तब वह आदमी लाख कोशिश झलक से अपना हाथ छुड़ाने के कर रहा था लेकिन झलक उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे झक ने सोच लिया था अगर वह आज पानी में मरती है तो इस आदमी को भी साथ लेकर मारेगी तब थोड़ी देर मशक्कत करने के बाद वह आगे पानी के काफी तेज बाहों में आगे बढ़ते रहे थे लेकिन झलक 1 मिनट के लिए भी आदमी को नहीं छोड़ते भी झलक ने देखा कि पीछे की सेटिंग बड़ा सा टाइप का कुछ बेहतर हुआ पानी में आ रहा था अब झलक ने जल्दी से उसे आदमी कहा छोड़ दिया था के साथ कहां छोड़कर वह खंबे को पकड़ सके लेकिन जैसे झलक ने उसे खंबे से को पकड़ा तुरंत उसे आदमी ने झलक की टांग को पकड़ लिया था अब तो झलक उससे बचने के नाकाम कोशिश कर रही थी उसे आदमी के क्षेत्र से यह बात तो साफ हो गई थी कि वह आदमी वहां पर झलक की जान लेने के लिए आया था फिलहाल जैसे तैसे अब उन दोनों को वहां से बाहर निकलना था पानी का प्रवाह काफी ज्यादा तेज था जैसे-जैसे झलक करूं आदमी किनारे पर थोड़ा आगे बहते हुए आपके नर पर लेकर आए थे तब झलक उसे छोड़ते हुए बोली थी कौन हो तुम लेकिन पानी की तेज आवाज के कारण वह आदमी झलक की कोई बात नहीं सुन पा रहा था अभी भी उसके मुंह पर वह नकब लगा हुआ था तब उसे आदमी ने झलक की ओर देखते हुए कहा हम दोनों या फस गए हैं अगर हम अभी यहां से निकलना है तो तुम्हें मेरी मदद करनी होगी तब झलक को उसके फोटो के फड़फड़ाने से समझ में आ गया था कि वह मदद कह रहा है लेकिन जल कब उसे पर भरोसा नहीं कर सकती थी लेकिन उसे पर भरोसा करने के अलावा उसके पास कोई और रास्ता नहीं था क्योंकि वह इस जगह पर गुम हो चुकी थी पानी में बहने की वजह से वह काफी दूर निकल आई थी उसे नहीं पता था कि यह कौन सी जगह है और वह आदमी ही उसको कर सकता था तब जैसे तैसे उसे आदमी ने अपने बैंक से एक रास्ते निकली थी और वह रस्सी उसने अपनी कमर पर बांध दिया और झलक को भी और रस्सी बांधने को कहर की रस्सी के सारे वह तो एक साथ यहां से बाहर निकल सके अब झलक रहना चाहते हुए भी वो रस्सी बांध ली थी,
    वह थोड़ी देर तक स्ट्रगल करने के बाद आखिरकार बस पानी से बाहर निकल आए थे अब वह इस वक्त एक सुनसान जंगल में थे क्योंकि वह घर पहाड़ियों के इलाकों पर छोटे-छोटे गांव बने हुए थे वहीं के लोगों की मदद करने के लिए वह लोग वहां आए थे लेकिन अब झलक यहां पूरी तरह से फंस चुकी थी उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था ऊपर से वह नकाबपोश आदमी लगातार झलक को घर रहा था साथ ही साथ झलक कोर्ट से डर भी लग रहा था क्योंकि उसने उसे पर उसे पर जानलेवा हमला एक नहीं बल्कि अनगिनत बार किए थे लेकिन फिलहाल उसे आदमी पर भरोसा करने के अलावा झलक के पास कोई और रास्ता भी तो नहीं था क्योंकि अगर वही जंगल में भटक जाती तो हो सकता है की भूखी प्यास से वह यही की यही मर जाते और झलक अभी बिल्कुल भी नहीं मारना चाहती थी उसमें जीने की इच्छा कुछ ज्यादा ही थी वह झलक ने देखा कि बाहर निकालने के बाद वह नकाबपोश आदमी अब तेजी से कदम बढ़ाते हुए वहां से जाने लगा था झलक को लगाकर शायद वह उसे एक और मौका दे रहा है कि क्या वह जिंदगी को जी पाते हैं या नहीं इसीलिए झलक पीछे-पीछे उसके साथ चलने लगे थे अपना काम फोर्स आदमी हैरान हो गया की झलक को तो पीछे छोड़ कर आया था और वह उसके कम से मेरे कदम मिलाकर चल रही थी वाकई एक पल के लिए वह नकाबपोश आदमी झलक से काफी हद तक इंप्रेस हुआ था लेकिन अगले ही पल वह झलक को घर कर बोला था तुम्हारे पास सिर्फ और सिर्फ एक ही रास्ता है तुम मेरे साथ नहीं आ सकती हो तुम इस जंगल में खुद स्ट्रगल करो अगर तुम जिंदा रहे तो मैं तुम्हें जंगल से बाहर निकलते ही मार डालूंगा तुम जानती हो तुम्हें मैं यहां जंगल में जिंदा छोड़कर क्यों जा रहा हूं सिर्फ और सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम उसने उसे दिन पहाड़ी पर उसे सांप से मुझे बचाया था यह बोलकर उनका पोशाक में झलक के ऊपर चाकू और अपना लाइटर पैक कर वहां से कदम बढ़ाता हुआ जा चुका था वही झलक जिसका घाव पानी में काफी देर तक डूबे रहने की वजह से सांप वाला गाव पिया भरा हो गया था उसमें भी उसे काफी ज्यादा था तो महसूस होने लगा वहां का हिस्सा पूरा नीला पड़ चुका था और अब जंगल में भटक रहे की वजह से उसे काफी ज्यादा घबराहट महसूस होने लगी थी और साथ ही साथ उसे बहुत जोरों से भूख भी लग रहे थे वेल अब क्योंकि काफी रात भी हो चुकी थी झलक को कोई कहीं जाने का रास्ता नजर नहीं आ रहा था उनका शादी में काफी ज्यादा देर पीछा नहीं कर पाए क्योंकि वह आज भी पल भर में ही वहां से गायब हो चुका था इसलिए आप झलक एक बड़े से पत्थर के पास बैठ गई थी उसे नहीं पता था कि वह आज के रात जिंदा बचेगी या नहीं उसे पत्थर से उसने खुद को अच्छी तरह से चिपका लिया था और बस यही दुआ कर रहे थे की पूरी रात बारिश उठा हो अगर बारिश हो जाती है तब झलक अपनी जिंदगी के साथ स्ट्रगल नहीं कर पाएंगे फिलहाल जैसे तैसे वह काली रात गुजारी थी और अगली सुबह झलक के आंख खुली उसने देखा उसके पास लाइट है और चाकू पड़ा हुआ है और अब क्योंकि घर गहरा जंगल था तो हल्की-हल्की दिन की रोशनी उसे जंगल में आ रही थी पेड़ों से वह रोशनी छिपी हुई थी लेकिन काफी हद तक साफ-साफ दिखाई दे रहा था इसीलिए झलक उठे और फटाफट से वहां से बाहर निकालने के बारे में सोचने लगे उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि किसी और जाया जाए लेकिन तभी झलक की नजर एक ऊंचे से पेड़ पर पड़ी थी बजाने क्यों झलक को ऐसा लग रहा था कि वह जंगल से बाहर निकालने के बजाय जंगल में और फास्ट चले जा रही है फिलहाल जैसे ही वह उसे पेड़ के पास गई उसने आसपास अच्छी तरह से देखना शुरू कर दिया था अब जहां उसने एक रात पत्थर के पास गुजरे थे वहां पर किसी भी जंगली जानवर किसी चीज का कोई खतरा नहीं था लेकिन इस वक्त झलक जिस पेड़ के पास थे इस पेड़ के आसपास उसे अजीब सी आवाज़ आनी शुरू हो गई थी अब झलक रहना आव देखा ना तो वह तुरंत जाकर उसे पेड़ पर चढ़ गई क्योंकि उसे एहसास हुआ बालों कितने सारे जंगली जानवर उसके करीब आ रहे हो और झलक कसक सही दिख रहा है उसने देखा कितने सारे वीडियो का झुंड इस पेड़ के पास आया था शायद उन्होंने झलक के इंसानों की महक को सूंघ लिया था और वह झलक को अपना खाना बताना चाहते थे आप जनकपुरी तरह से उसे पेड़ पर चिपके रहे वह वहां से निकलने का साहस नहीं कर सकती तो उसके पास सिर्फ और सिर्फ एक ही हथियार यानी कि एक ही चाकू था उसे चाकू के द्वारा इतने सारे वीडियो का वह मुकाबला नहीं कर सकते थे फिलहाल पेड़ पर तीसरा पहर हो गया और एक बार फिर शाम होने वाले थे अब झलक को समझ नहीं आया कि वह करें तो करें क्या क्योंकि अगर एक बार फिर रात हो जाती है तो दूसरी रातों से इस जंगल में गुजारने पड़ जाते और दूसरी रात उसे जंगल में गुजारने का मतलब था सरासर मौत को अपने गले लगाना इसीलिए झलक ने थोड़ी सी खुद में हिम्मत बटोर ली थी और उसने उसे पेड़ की सूखी तहरियों को काटकर उसे लाइटर की जो लाइटों सड़क आपको शादी वीडियो उसके पास छोड़ा था उस आग लगा दी थी और देखते ही देखे उसे पेड़ से सफेद धुआं निकलने लगा था अब उसे सुबह को देखकर कुछ भेड़िया तो डर कर वहां से भाग गए थे लेकिन दो भेड़िया एक भेड़िया वहीं बैठ रहा अब झलक जिसकी शक्तियां बहुत ज्यादा कमजोर पड़ चुके थे वह अब पूरी तरह से निहाल हो चुके थे और अचानक वह अपना बैलेंस को बैठे और वह सीधा पेड़ से नीचे जा गिरे थे लाइटर और चाकू अभी भी उसके हाथ में थे अब जैसे वह नीचे गए तुरंत उसे होश आया था लेकिन तब तक देर हो चुकी थी उसे भेड़िया जो के नीचे बैठा हुआ था उसने झलक पर अटैक कर दिया था अब झलक उसे वीडियो से पूरी कोशिश कर रही थी लड़के तो झलक ने कुछ खाया पिया नहीं था उसे खाए और मोस्ट दो से तीन दिन होने वाले थे और अब ऊपर से उसका हाथ का घाव भी काफी हद तक नीला पड़ चुका था तो इस वक्त वह बहुत तकलीफ में थे अब झलक ने खुद को बचाने का काफी प्रयास करना शुरू कर दिया था और जो चाकू ले रही थी वह चाकू से उसे भेड़िया पर वार कर दिया अब भेड़िया चेक को जैसे ही चाकू लगा भेड़िया और भी ज्यादा जख्मी हो गया और खतरनाक हो गया था अब खतरनाक जख्मी भेड़िया और ज्यादा खतरनाक दिखाई दे रहा था वह अपने बड़े-बड़े दांतों के साथ झलक की तरफ बढ़ने लगा तभी अचानक झलक रहे अपनी आंखें बंद कर ली थी झलक को लगने लगा था कि शायद आज उसकी जिंदगी का आखिरी ही दिल है इसीलिए झलक ने आंखें बंद कर ली और आंखें बंद करते ही जैसी वह अपनी बहुत का इंतजार करने लगी ठीक उसी वक्त झलक के कानों में बंदूक चलने की आवाज सुनाई दी थी यह जैसे ही बंदूक चलने की आवाज आई झलक रहे हो सूट देखा था उसने देखा वह कोई और नहीं बल्कि सिद्धार्थ खुराना खड़ा हुआ था सिद्धार्थ को वहां देखकर झलक के सारे मुश्किल सारे परेशानी उसका एड्रेस सब कुछ पलक झपकते ही गायब हो गया था अब सिद्धार्थ जल्दी से दौड़कर झलक की ओर गया था अब क्योंकि भेड़िया से झपेट के कारण झलक के हाथों पर पैरों पर उसके शरीर पर वीडियो के पंजों के निशान आ गए थे एक तो आप झलक पर खूबसूरत थी तो हल्का परेशान भी उसके शरीर पर दूर से ही दिखाई दे जाया करता था फिर हाल अब झलक को देखकर जल्दी से उसकी ओर गया था और झलक रहे या अपने आप को पूरी तरह से सिद्धार्थ को सौंप दिया था