जब जूनून और तड़प हद से बढ़ जाता हैँ तब इंसान पागल हो जाता हैँ उसे किसी बात का होश नहीं होता ऐसा ही कुछ होता हैँ दुनिया के बेताज बादशा प्रलय राणा के साथ उसका जूनून और पागल पन ही उसकी बर्बादी की वज़ह बनता जाती हैँ।जिसके सामने दुनिया झुकती हैँ जो खड़े खड़े... जब जूनून और तड़प हद से बढ़ जाता हैँ तब इंसान पागल हो जाता हैँ उसे किसी बात का होश नहीं होता ऐसा ही कुछ होता हैँ दुनिया के बेताज बादशा प्रलय राणा के साथ उसका जूनून और पागल पन ही उसकी बर्बादी की वज़ह बनता जाती हैँ।जिसके सामने दुनिया झुकती हैँ जो खड़े खड़े किसी को भी खरीदने की ताकत रखता था एक दिन वो भी आता हैँ जब वो बादशाह खुद किसी के सामने झुक जाता हैँ. प्यार और नफरत की इस जंग मे कौन जीतता हैँ... क्या होगा इस कहानी का अंजाम कैसे बर्बाद होंगी प्रलय की जिंदगी जानने के लिए पढ़िए...दिल बावरा
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एक छोटा सा घर जो न ज्यादा बड़ा है और न ही छोटा, लेकिन देखने में काफी खूबसूरत लग रहा है। घर के गार्डन में काफ़ी सुन्दर-सुन्दर फूल लगे हुए हैं, साथ में एक छोटा सा झूला भी है। दो चेयर उसके साथ एक कॉफी टेबल भी है। गार्डन काफ़ी खूबसूरत तरीके से सजाया गया है, जो इस घर की सुंदरता में चार चांद लगा रहे हैं।
वहीँ, घर के अंदर से किसी बच्चे की खिलखिलाहट सुनाई दे रही है। अंदर का नज़ारा कुछ इस तरह है: एक छोटी सी बच्ची दौड़ते हुए हस रही है और अपनी मीठी-मीठी प्यारी सी आवाज में बोल रही है, "मम्मा..मम्मा...पकड़ो मुझे - मुझे पकड़ो...मम्मा..."
उसके पीछे से एक औरत उसे रोकने की कोशिश कर रही है। "आशी, बच्चा रुक जाओ। देखो मम्मा को डैडा के लिए ब्रेकफास्ट रेडी करना है। उन्हें लेट हो जायेगा।
आप को भी तो स्कूल जाना है। जल्दी से बाल बनवा लो, फिर मम्मा आप का लंच बॉक्स रेडी कर देगी। आप भी डैडा के साथ चले जाना, ऐसे लेट करोगे तो डैडा के साथ नहीं जा पाओगे, फिर आप ही उदास रहोगे।"
जैसे ही उस बच्ची ने ये सुना, उसके पैर अपनी जगह रुक गए। वो पीछे मुड़ी - छोटी सी नाक, पिंक होंठ, बड़ी-बड़ी गोल आँखे, दूध जैसा सफ़ेद रंग, लम्बे बाल - ऐसा लग रहा था, छू लो तो पिघल जाएगी।
बेइंतहा की खूबसूरती, मासूम सी जान, बहुत प्यारी लग रही थी। कोई देख ले तो नज़र ठहर जाए। उसने अपनी क्यूट सी आवाज़ से कहा, "मम्मा सच्ची में डैडा अपनी प्रिंसेस को छोड़ कर चले जायेंगे?"
जैसे ही उसने ये कहा, पीछे से आवाज़ आयी, "बिलकुल नहीं, मेरी प्रिंसेस डैडा ऐसा कभी नहीं कर सकते। हम लेट जायेंगे पर अपनी प्रिंसेस को साथ ले कर ही जायेंगे।"
इतना सुनते ही वो बच्ची उस तरफ देखने लगी जहा से ये आवाज़ आयी थी। पीछे सीढ़ियों से उतरते हुए आदमी को देख उसके फेस पर प्यारी सी स्माइल आ गयी। वो अब वहां से उस आदमी के पास जाते हुए बोली, "डैडा देखो आपकी वाइफ कैसे नन्ही सी जान को परेशान कर रही है।
हमने इनसे कहा की हमें बाल नहीं बनवाने, फिर भी ये पीछे ही पड़ी है। अब आप ही इन्हे बोलो, मेरी तो सुनती ही नहीं है।" ये बोलते हुए उसने अपने नन्हे-नन्हे हाथों को सर पर रख लिया।
उसकी नौटंकी देख सामने खड़ी औरत, जिसका नाम कीर्ति कुकरेजा है - ये है कर्तव्य कुकरेजा की वाइफ, अब तो आप भी समझ गए होंगे।
आशी के डैडा का नाम कर्तव्य कुकरेजा है। खैर, कीर्ति ने आशी की नौटंकी देखते हुए कहा, "देखो तो इस शैतान को कैसे नौटंकी कर रही है। सब आप का किया है। आप ने ही इसे सिर पर चढ़ा रखा है। इसे देख कर कौन कहेगा ये सिर्फ 5 साल की है। बाते तो इसकी दादी अम्मा वाली होती है। अब आप ही सम्भालो इसे मै जा रही हु अपना काम करने हूं..हूं.."
वो चली गयी। उसके जाते ही दोनों बाप-बेटी मुँह दबा कर हसने लगे। हस्ते हुए कर्तव्य ने कहा, "प्रिंसेस मम्मा बहुत परेशान करती है ना आप को?"
इस पर आशी स्माइल करते हुए क्यूटनेस के साथ कहा, "हां करती है। फिर बोलती है कोई बात नहीं डैडा आप के लिए मैं इतना कर ही सकती हूँ, अब आप को अपनी वाइफ से डांट थोड़ी खाने देख सकती हूं मैं।"
उसकी बात सुन कर कर्तव्य हस्ते हुए कहते है, "प्रिंसेस डैडा को ही टीज़ कर रहे हो। डैडा मम्मा से ित्तु सा भी नहीं डरते।" ये कहते टाइम उन्होंने अपने हाथो की उंगलियों से इशारा किया, जिसे देख कर आशी हसने लगती है।
कर्तव्य ने कहा, "अच्छा अच्छा अब आप चलो, हम आप के बाल बना देते है। उसके बाद हमें ऑफिस भी जाना है। और आप को भी तो अपने स्कूल जाना हैं न?"
थोड़ी देर बाद, सब रेडी हो गए थे। कीर्ति ने ब्रेकफास्ट टेबल पर लगा दिया और वो कर्त्तव्य और आशी को बुलाने जा ही रही थी, कि तभी डोर नॉक होता है, जिसे देखने वो डोर के पास जाती है। जैसे ही उसने डोर ओपन किया, उसके सामने दो आदमी अपने चेहरे पर ब्लैक मास्क पहने खड़े थे।
उन्हें देख कीर्ति को अजीब लगा, उसने पूछा, "जी आप लोग कौन है? किस्से मिलना है आप को...?? "
इस पर वो दोनों अंदर आते हुए कहते है, "पहले अंदर तो आने दो मैडम जी....." उसकी आवाज़ अजीब थी, जो कीर्ति को अंदर ही अंदर डरा रही थी। उसने उन्हें देखते हुए कर्तव्य को आवाज़ दी, "कर्तव्य..." जो के बाल बना वही आ रहे थे। वो बोले, "क्या हुआ कीर्ति जी कौन आया है?"
कीर्ति की आवाज सुनकर कर्तव्य आशी को छोड़कर नीचे आ गया। उसने आते ही देखा कि दो अनजान लोग उनके घर में खड़े हैं।
कर्तव्य ने पूछा, "कौन है आप लोग? और यहाँ क्या करने आए है?"
दोनों आदमियों ने अपने मास्क को ठीक करते है जिससे कोई उन्हें पहचान ना पाए और कहा, "जान पहचान तो होती रहेगी Mr. कर्तव्य कुकरेजा जी इतनी भी क्या जल्दी है। पहले बैठने तो दो हमें थक गए है। हम दोनों वो काफ़ी सरकास्टिली ये सब बोल रहे थे।"
कर्तव्य को अजीब लगा और उसने कहा, "मेरे घर में आ कर ये क्या गुंडा गर्दी है। आप लोगो को पता नहीं किसी के घर ऐसे नहीं जाते। आप जो भी है। जाइये यहाँ से नहीं तो प्रॉब्लम आप को ही होंगी।"
आशी जो कर्तव्य के साथ नीचे आई थी, वह इन अनजान लोगों से डर गई और कर्तव्य के पीछे छुप गई। कर्तव्य ने उसे कहा, "डरो नहीं प्रिंसेस, मैं हूँ ना।"
कीर्ति जो वही खड़ी थी, वो जल्दी से आसी के पास आयी और उसे अपनी गोद में ले लिया। आशी भी उससे चिपक गयी।
लेकिन आशी के चेहरे पर अभी भी डर साफ़ दिख रहा था। कर्तव्य ने कहा, "अब बताओ, तुम लोग क्या चाहते हो?"
दोनों आदमियों ने कहा, "हमें आप के साथ एक डील करनी है। उससे आप का ही फायदा होगा।"
उनकी बाते सुन कर्तव्य ने कहा, "देखिये पहली बात तो मुझे आप के साथ कोई डील नहीं करनी और कैसी डील, किस चीज की डील है? ये जिसके लिए आप खुद चल कर हमारे दहलीज तक आये।"
कर्तव्य ने कीर्ति और आसी को कहा, "तुम लोग जाओ, मैं इनसे बात करता हूँ।"
कीर्ति ने कहा, "लेकिन कर्तव्य, मुझे लगता है कि ये लोग ठीक नहीं हैं।"
कर्तव्य ने कहा, "कोई बात नहीं, मैं संभाल लूंगा। तुम लोग जाओ।"
कीर्ति और आशी ऊपर चली गईं। कर्तव्य ने कहा, "अब बताओ, क्या बात है? कौन सी डील है? तुम लोग हो कौन? क्या चाहते हो मुझसे?"
उसकी बाते सुन कर वो दोनों आदमी हसने लगे 😈 उन्हें ऐसे देख कर्तव्य को कुछ सही नहीं लग रहा था। उसके मन में अजीब सा डर था।
वही वो दोनों आदमी अपनी बाते आगे बढ़ाते हुए कहते है, "देखिए आप को हमारे लिए अपने डिपार्टमेंट से एक डाटा लाना होगा, जिसमे हमारे सर के खिलाफ एविडेन्स है। अगर आप ने ये काम कर दिया, तो आप की फैमिली में किसी को काम करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। इतना पैसा देंगे कि आपकी सात पीढ़ी भी बैठ कर खाएगी, आप जितना मांगों , मुँह मांगी कीमत आप को दी जाएगी।
सारी लाइफ आराम से बैठ कर ऐस करियेगा।" उनकी बाते सुनते ही कर्तव्य का गुस्सा कांट्रोल से बाहर हो गया।
उसने चिल्लाते हुए कहा, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर आ कर मुझे रिश्वत देने की? शर्म नहीं आती मुझे मेरी ही देश के खिलाफ काम करने का कहते हो। मै तुम लोगो की कोई डील नहीं मानने वाला, अब चलो निकलो यहाँ से, बस बहुत हो गया।"
वो दोनों आदमी एक दूसरे को देखने लगे। उनमे से एक आदमी ने कहा, "कुकरेजा बहुत पछताओगे। अभी भी टाइम है मान लो हमारी डील, क्यूँ अपनी और अपनी बीवी बच्चे की जान के दुश्मन बन रहे हो। हमारी बाते मानोगे फायदे में रहोगे, नहीं तो तुम समझदार हो।" उनकी बाते सुन कर्तव्य पर जैसे कोई असर ही ना पड़ रहा था। वो अब भी वैसे ही खड़ा था।
उसे ऐसे देख दोनों आदमी गुस्से मे एक दूसरे को देखने लगे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था आखिर ये कैसा इंसान है, जिसे अपनी फैमिली की भी कोई फ़िक्र नहीं।
"इंस्पेक्टर साहब, आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। सोचिए आपकी छोटी सी बच्ची है। कहीं उसे कुछ..." वो आगे कुछ कहता, उससे पहले ही कर्तव्य ने अपनी गन निकालते हुए कहा, "तुम लोग यहाँ से निकलते हो या मैं धक्के मारकर दुनिया से ही निकल दूं। तुम जैसे कुत्तों को तो धरती पर बोझ भी नहीं कह सकते।"
कर्तव्य की बातें सुनकर दोनों आदमी गुस्से में उबलने लगे और घर से निकलते हुए बोले, "याद रखना इंस्पेक्टर, ये गलती तुम्हें बहुत महंगी पड़ेगी। तुम्हें ऐसे हमारी डील ठुकरानी नहीं चाहिए थी। अब देखो क्या होता है। तुम्हारे और तुम्हारे इस परिवार का देखते है कैसे बचाओगे तुम इन्हें।" उनकी बातें सुनकर कर्तव्य ने उन्हें इग्नोर कर दिया।
पर वहीं सीढ़ियों पर खड़ी कीर्ति ने जैसे ही उनकी आशी को लेकर धमकी सुनी, उसे डर लगने लगा। वो आशी को रूम में छोड़कर खुद बाहर आई और सारी बातें सुनी। अब उसके मन में एक डर बैठ गया। वो कर्तव्य के पास आई और उससे पूछने लगी, "ये लोग कौन थे? और इन्हें आपसे कौन सी हेल्प चाहिए थी, जिसे आपने करने से मना कर दिया और यह धमकी देते हुए गए हैं?"
उसे परेशान देखकर कर्तव्य ने उसे समझाते हुए कहा, "तुम फिक्र मत करो, मैं देख लूंगा।" लेकिन कीर्ति ने बिना उसकी बात सुने कहा, "क्या आपको समझ भी आ रहा है? हमारी बच्ची को उनसे खतरा है। और आप कहते हैं कि मैं फिक्र ना करूं। ऐसे कैसे? वो लोग दिखने में ही कितने पावरफुल लग हैं। मैं ऐसे शांति से नहीं बैठ सकती। यहाँ बात हमारी बच्ची की है और उसके मामले में मैं कोई रिस्क नहीं ले सकती।"
उन्हें पैनिक करता देख कर्तव्य उसे संभालते हुए कहता है, "कीर्ति, कूल डाउन। मैं आशी को कुछ नहीं होने दूंगा। तुम उसके लिए परेशान मत हो।"
कीर्ति को समझाने की कोशिश करते हुए उसने कहा, "कीर्ति, मैं समझता हूँ तुम आशी के लिए परेशान हो। लेकिन मैं इन लोगों को नहीं जानता, और न ही मैं जानता हूँ कि वे क्या चाहते हैं। लेकिन मैं तुम्हें वादा करता हूँ कि अपनी बच्ची की सुरक्षा के लिए हर संभव कदम उठाऊँगा।"
कीर्ति ने कर्तव्य की बातें सुनकर कहा, "लेकिन आपने उनका ऑफर ठुकरा दिया है। अब वे हमें धमकी दे रहे हैं। मैं कहती हूँ हम यहाँ से दूर चलें।"
कर्तव्य ने कहा, "नहीं, हम यहाँ से नहीं जाएंगे। मैं इन लोगों से नहीं डरने वाला। अपनी बच्ची के लिए मैं अपने देश से गद्दारी तो नहीं कर सकता। मुझे दोनों की सुरक्षा करनी है।" अगर यह करते हुए मैं मर भी जाऊँ तो मुझे कोई चिंता नहीं है...
अचानक, कर्तव्य के फोन पर एक कॉल आया। उसने कॉल पिक किया और कहा, "हेलो।"
दूसरी तरफ से एक भरी रोबदार आवाज आई, "इंस्पेक्टर कर्तव्य, तुमने हमारे साथ दोस्ती का ऑफर ठुकरा कर अच्छा नहीं किया। अब तुम्हें इसका परिणाम भुगतना होगा।"
कर्तव्य ने कहा, "कौन हो तुम? और क्या चाहते हो?"
दूसरी तरफ से आवाज आई, "तुम्हें जल्द ही पता चल जाएगा। बस इतना कहूँगा कि तुम्हारी बेटी के लिए यह अच्छा नहीं होगा।"
कर्तव्य ने कहा, "तुम्हारे अंदर इतनी हिम्मत नहीं है कि तुम मेरी बच्ची को छूने की भी कोशिश कर सको। अगर तुमने ऐसा कुछ भी किया तो मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगा।"
दूसरी तरफ से आवाज आई, "देखते हैं कि तुम कैसे हमें रोकते हो।"
फोन कट गया, और कर्तव्य ने कीर्ति की ओर देखा। उसने कहा, "मैं चलता हूँ। मुझे लेट हो रहा है। तुम फिक्र मत करो, कुछ नहीं होगा।"
कीर्ति जो उससे पूछना चाहती थी कि आखिर कॉल पर कौन था, क्या कहा उसने जिसे सुनकर कर्तव्य को इतना गुस्सा आया, लेकिन वो वहीं खड़ी रह गई।
वहीं दूसरी तरफ आशी स्कूल पहुंच गई थी। ड्राइवर ने उसे अंदर छोड़ा और खुद बाहर आ गया।
जैसे ही वह बाहर आया, एक कार उसके सामने आ रुकी। उसने देखा कि सामने कर्तव्य खड़ा था। कर्तव्य उसके पास आया और बोला, "तुम कौन हो, यह किसी को पता नहीं चलना चाहिए। तुम्हें मेरी बच्ची पर नजर रखनी है। उसे किसी अनजान इंसान के पास जाने की परमिशन नहीं है। कोई उसके पास आने न पाए। मेरी बच्ची की जिम्मेदारी तुम्हारी है, राघव। उसे कुछ होने मत देना।"
राघव, जो एक अंडर कवर पुलिस इंस्पेक्टर था, चुपचाप कर्तव्य की बातें सुनकर अपना सिर हिला दिया। कर्तव्य वहां से पुलिस स्टेशन जाने के लिए निकल गया।
उसके जाने के बाद राघव वापस कार में बैठ गया और वहीं से चारों तरफ नजर रखने लगा। आशी अपनी क्लास में थी। कर्तव्य स्टेशन पहुंच गया था। कीर्ति घर में बैठी काम करते हुए अब भी वही सब सोच रही थी।
कुछ दिनों तक कर्तव्य घर देर रात आता, सुबह जल्दी चला जाता। उसके ऊपर काम का प्रेशर बहुत बढ़ गया। उस पर अपने परिवार की सेफ्टी, कर्तव्य काफ़ी परेशान रहने लगा। वो बाहर से खुद को भले ही शांत दिखा रहा था, लेकिन अंदर से तो उसका दिल भी बेचैन रहता।
एक-एक दिन जैसे बीत रहा था। उनके लिए जैसे कोई मुसीबत टल रही थी। कर्तव्य को इतना परेशान देख कीर्ति भी परेशान रहने लगी। आशी तो बच्ची है। उसे इन सब का क्या ही मालूम, वो कर्तव्य और कीर्ति को ऐसे देख एक दिन हॉल मे आ कर सोफे पे मुँह फुला कर बैठ गयी।
उसे ऐसे देख कर्तव्य जो वही बैठा कुछ काम कर रहा था, वो आशी के पास आता है और पूछता है, "प्रिंसेस क्या हुआ आप को? हमारी प्रिंसेस का चेहरा उतरा क्यूँ है? क्या आप को कुछ चाहिए?" उनके पूछने पर छोटी सी आशी अपना मुँह दूसरी तरफ कर बैठ गयी।
कर्तव्य को समझते देर नहीं लगी उनकी प्रिंसेस नाराज़ है। उसके फेस पर छोटी सी स्माइल आ गयी। उसने आशी को अपनी गोद मे उठाया और गोल गोल घुमाते हुए कहा, "मेरी प्रिंसेस डैडा से कितनी देर तक नाराज़ रह सकती है?"
जिस पर आशी हस्ते हुए बोली, "ित्तु सा भी नहीं।" आज काफी दिनों बाद घर मे फिर से खिलखिलाहट गूंज रही थी।
कुछ दिन यूँ ही बीत गए। सब ठीक ही चल रहा था।
24 अप्रैल....।
क्या होने वाला है इस दिन, कुछ ऐसा जो बदल देंगे एक खुशहाल परिवार की पूरी जिंदगी......?
अब आगे...।
आज पूरा घर अच्छे से सजाया गया था, फूलों की महक से आशी के घर का आँगन महक उठा था लग रहा था आज यहाँ कुछ बहुत ही खास होने वाला है, क्योंकि आज हमारी प्यारी आशी का जन्मदिन था। कीर्ति और कर्तव्य सारी तैयारियाँ कर रहे थे। आशी सफेद फ्रॉक पहने इधर-उधर घूम रही थी। उसकी आँखें चमक रही थीं। कीर्ति जो टेबल सजा रही थी, उसने कर्तव्य से पूछा, "कर्तव्य, केक कहाँ है? आपको पता है ना आशी को आपके हाथ का बना केक पसंद है? क्या अभी तक आपने केक तैयार नहीं किया?"
कर्तव्य जो हमारी प्यारी आशी के लिए हर बार केक अपने हाथों से बनाता था, क्योंकि आशी को उसके हाथों से बनाया केक ही पसंद आता था, उसने कहा, "ओह नो, इस बार मैंने कोई केक नहीं बनाया।" उसकी बात सुनकर आशी जो खुशी से पूरे घर में घूम रही थी, उसका मुँह बन गया। वह कुछ बोली नहीं, बस सिर नीचे कर सोफे पर आ बैठ गई।
आशी का चेहरा देखकर कीर्ति ने कर्तव्य से कहा, "कर्तव्य, तुमने आशी के लिए केक क्यों नहीं बनाया? तुम्हें पता है कि वह तुम्हारे हाथों से बनाया केक ही पसंद करती है।" कर्तव्य ने कहा, "मुझे पता है, लेकिन इस बार मैं काम की वजह से स्ट्रेस में था। मैं भूल गया।" कीर्ति ने कहा, "भूल गए थे? आशी का जन्मदिन है और तुम भूल गए?"
आशी ने अभी तक कुछ नहीं कहा था, लेकिन उसके चेहरे पर उदासी साफ दिखाई दे रही थी। कर्तव्य ने उसकी ओर देखा और कहा, "प्रिंसेस, डैड को माफ कर दो बच्चा। मैं आपके लिए केक बनाऊंगा। अभी के लिए बाहर जाकर केक ले आता हूँ।" आशी ने सिर उठाकर कर्तव्य की ओर देखा और कहा, "नहीं, डैड। मुझे नहीं चाहिए केक।"
कर्तव्य ने कहा, "बच्चा प्लीज। मैं तुम्हारे लिए केक लाऊंगा। तुम्हारी पसंद का होगा।" आशी ने कहा, "नहीं डैड, कोई बात नहीं। प्रिंसेस को पता है। डैड बहुत बिजी हैं। अगर आपने नहीं बनाया तो कोई बात नहीं। हम अगली बार आपके हाथों का केक खाएंगे।"
कीर्ति ने कहा, "कर्तव्य, आप जाइए और केक बना कर ले आइए। आशी को तुम्हारे हाथों से बनाया केक ही पसंद है।" लेकिन कर्तव्य ने कहा, "ठीक है, मैं जाता हूँ।" कर्तव्य बाहर गया और आशी की पसंद का केक लेकर आया।
आशी का चेहरा देखकर कर्तव्य ने कहा, "प्रिंसेस, देखो आपके डैड आपके लिए केक ले आए। आप एक बार इसे टेस्ट करोगी ना तो आपको यह पसंद आएगा।" आशी ने केक देखा, उसकी आँखें एक बार फिर पहले की तरह चमकने लगीं। उसका उदास चेहरा खिल गया। उसने कहा, "नहीं डैड, यह बाहर का केक नहीं है। इसकी खुशबू राघव अंकल के बनाए हुए केक जैसी है। यह राघव अंकल ने बनाया है ना?"
उसकी बातें सुनकर कीर्ति जिसे कर्तव्य पर गुस्सा आ रहा था, वह घूरते हुए कर्तव्य को देखने लगी। कर्तव्य ने कहा, "इसमें मेरी कोई गलती नहीं। यह सब आपके भाई का किया-धरा है। उसने ही मुझे केक बनाने से रोका और खुद बना लाया। उसी ने आप दोनों को यह बातें बताने से भी मना किया था। तो अब आपको जो भी कहना है, उससे कहो।"
तभी पीछे से आवाज आई, "भाभी जी, ये सच कह रहे हैं। इन्हें मैंने ही आप दोनों को कुछ भी बताने से रोका था। मैं अपनी लाडो को सरप्राइज देना चाहता था। मुझे पता है बेबी को सिर्फ भाई साहब के हाथों से बना केक ही पसंद है। लेकिन वो मेरे बाद पहले मेरा बच्चा मेरे हाथ का बना केक ही पसंद करती है। तो आज मैंने ही बना दिया।"
आशी ने जल्दी से राघव के पास आकर उसे झुकने का इशारा किया। राघव ने उसे हल्की मुस्कुराहट के साथ देखा और झुक गया।
उसके झुकते ही आशी ने उसके गाल पर किस किया और हग कर लिया। जिससे राघव के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई।
यह देख कर्त्तव्य ने कहा सारा प्यार अंकल को ही देना है या डैडी को भी मिलेगा.......इस पर आशी ने अपनी मीठी सी आवाज में कहा पहले मेरा birthday gifts लाओ उसके बाद...यह उसने इतने अलग अंदाज में बोला कि सब हँस हँस कर पागल हो गए
पर इन्हें कहा पता था इस घर में यह इनकी आखरी हँसी है........
थोड़ी देर बाद सब टेबल के आसपास खड़े आशी के केक काटने का इंतजार कर रहे थे। आशी भी वहीं खड़ी विश मांग रही थी। सब खुश थे। लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ जो किसी ने सोचा तक नहीं होगा। बूम..💣💣 जोर की आवाज आई और पूरा घर ब्लास्ट हो गया।
वो कहते हैं ना ज्यादा खुशियों को नजर बहुत जल्दी लगती है। अपनी खुशी सबको दिखानी नहीं चाहिए। सब कुछ खत्म हो गया। कुछ नहीं बचा। छोटा सा खुशहाल परिवार आज उसके पास उनके लिए कोई रोने वाला भी नहीं था। पुलिस जब तक अपने साथ फायर वैन लेकर आई, सब जल चुका था। कुछ बचा तो वो सिर्फ राख और वहां की हवाओं में एक शिकायत बस और कुछ नहीं। सब खत्म हो गया। एक हंसता खेलता परिवार उजड़ गया।
14 साल बाद.....
एक तंग गली जहां आधी रात में भी लोगों का आना-जाना लगा हुआ था। ये कोई शरीफ आदमी तो नहीं लग रहे थे। सब शराब और शबाब के नशे में झूम रहे थे। कोई इधर तो कोई उधर, किसी को कुछ होश नहीं। वहीं वहां बने एक महल जैसे घर के छोटे से कमरे में एक लड़की किताबों में उलझी हुई थी। तभी किसी की दस्तक हुई जिससे वो लड़की दरवाजे की तरफ देखने लगी। उसके सामने इस वक्त एक औरत खड़ी थी।
जिसने लाल साड़ी, बड़ी सी बिंदी, गले में लटकता सोने का हार, हाथों में सोने की चूड़ियां, कमर में चाबियों का गुच्छा, मुंह में पान लिए वो अंदर आते हुए बोली, "क्या तुम इन्हीं में लगी रहोगी? अब तुम 18 की होने वाली हो, तुम्हें याद है ना तुमने मुझसे क्या वादा किया था?"
उस औरत की बात सुन वो लड़की जो चुपचाप बैठी कब से किताबें देख रही थी, उसने अपनी नजरे उठाई और उस औरत की तरफ देखने लगी। नीली आंखें, समंदर सी गहरी, मासूमियत से भरी, छोटी सी नाक, दूध जैसा गोरा रंग, छोटा सा मुंह, गुलाब की पंखुड़ियों जैसे फड़फड़ाते होंठ, ऐसा लग रहा था कोई छू ले तो बस ये मोम की गुड़िया वहीं पिघल जाए।
कुछ देर के लिए वो सामने खड़ी औरत भी उसे देखती रह गई। उसे होश में लाते हुए उस लड़की की प्यारी सी आवाज आई, "मां, मुझे याद है। मैं भूली नहीं, आपने मुझे 12th तक पढ़ने की इजाजत दी, उसके लिए शुक्रिया। अब आप जो कहेंगी हम मान लेंगे।"
उसकी मीठी सी आवाज और उसका यूँ 'माँ 'कहना उस औरत के दिल को पिघला गया। लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा, "सिद्दत, मेरी जान, तुम्हें पता है हमारा काम कैसा है। हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते।
तुम्हें महफिल सजानी होगी। बस दो दिन, उसके बाद तुम 18 की हो जाओगी। उस दिन हमारे इस तवायफ खाने में एक शानदार जश्न होगा और हमारी ये कोहिनूर उस रात महफिल में चार चांद लगाएगी। उस दिन सब हमारे कोहिनूर के पांव में होंगे और हमारी कोहिनूर उन सब के सिर पर सजेगी।"
इतना कह उसने सिद्दत के माथे को प्यार से चूमा और बाहर निकल गई। उसके जाने के बाद सिद्दत ने खिड़की से आती चांद की रोशनी को देखते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं।
क्या सजाया जाएगा महफिल और सिद्दत बनेगी उस महफिल की नूर .......?
आगे जानने के लिए पढ़िए....दिल बावरा
आज के लिए बस इतना ही मिलते है next chapter मे....।
लाइक कमेंट शेयर कर दीजियेगा.....। साथ मे रेव्यू भी..
कशिश ने आँखें बंद करके चाँद की रोशनी को अपने चेहरे पर महसूस किया और सोचने लगी कि उसकी जिंदगी कितनी अलग है, कितनी मुश्किल है। वह एक तवायफ खाने में रहती है, जहाँ उसे महफिल सजानी है। वह सोचती है कि क्या वह कभी इस जिंदगी में खुश रह पाएगी? कशिश के मन में कई सवाल उठ रहे थे।
वह सोचती है कि उसकी माँ ने उसे क्यों इस तवाएफ खाने में रखा? क्यों वह किसी आम इंसान की तरह अपनी जिंदगी नहीं जी सकती? क्या वह उसे प्यार नहीं करती? या वह उसे बस अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है? कशिश की आँखों में आंसू आ गए। वह सोचती है कि क्या वह कभी अपनी जिंदगी को खुशहाल बना पाएगी।
क्या वह कभी अपने सपनों को पूरा कर पाएगी? लेकिन फिर वह सोचती है कि उसने अपनी माँ से वादा किया है। वह अपना वादा निभाना जानती है। वह महफिल सजाने के लिए तैयार है। वह अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए तैयार है।
कशिश ने आँखें खोलीं और खिड़की से बाहर देखने लगी। वह सोचती है कि उसकी जिंदगी में क्या ही है। ना कोई खुशी, ना कोई दुख, बस इन सब में ही उसे अपनी पूरी जिंदगी इसी दलदल में बितानी होगी। क्या ऊपर वाले ने यही किस्मत लिखकर हमें इस जहाँ में भेज दिया? ऐसे ही उधेड़-बुन में पूरी रात बीत गई।
2 दिन बाद...
आज 24 अप्रैल एक बार फिर अपनी मनहूसियत फैलाने आया था। आज कशिश 18 साल की हो गई और अब उसे तैयार किया जा रहा था। आँखों में काजल, माथे पर लाल बिंदी, हाथों में लाल चूड़ियाँ, होठों पर डार्क रेड लिपस्टिक, सफेद लहंगा, पैरों में घुंघरू श्रृंगार किए वह बैठी थी।
इस रूप को देखते ही अप्सराएँ भी शर्मा जाएँ। कशिश का वह छोटा सा गोल चेहरा, जिसकी रंगत कहीं खो सी गई है, फिर भी कहर ढा रही थी। आँखों को काजल से सजाया गया था जिससे वो मासूम आँखे और भी खूबसूरत लग रही थी।
रात हो गई थी। शहर के नवाबजादे, जाने-माने रईस लोगों का आना-जाना लग गया। महफिल सजाई गई।
सब एक दूसरे से चर्चा कर रहे थे कि आज ताई ने कौन सी कली उतारी होगी।
तभी कोई बोला, "यह सिर्फ कली नहीं, अप्सरा है अप्सरा। सुना है कि इसके जैसा पूरे शहर में कोई और नहीं मिलेगी।"
"आज इसे जो भी खरीदेगा वो तो कंगाल ही हो जाएगा।"
तभी एक और बोल उठा, "मेरा तो नहीं पता अंसारी, पर तू जरूर पहले से ही कंगाल हो चुका है।" यह सुन वहां मौजूद लोग हँसने लगे।
तभी अंसारी बोलता है, "मैं तो कंगाल हो ही चुका हूँ, जानता हूँ इस कली के दीदार करने से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता, लेकिन तू भी सुन ले कहीं इसे खरीदते खरीदते तू खुद ही न बिक जाए धन्नासेठ।"
इसी तरह के हंसी मजाक का खेल चल ही रहा था कि ताई आती हैं और ऐलान करती है,
"सुनो सुनो! आज इस महफिल में आने वाले शहर के तमाम रईसों और शरीफों, आप सभी का इस छोटे से मीना ताई के कोठे पर स्वागत है।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि आज की महफिल किस लिए सजी है, आप सभी जानते हैं कि इससे पहले न तो दूसरी कोई इस शहर में कोई कली थी और न ही कभी होगी, इसलिए आप सभी अपने दिल के साथ तिजोरियों को भी खोल के रखो क्योंकि आज जो भी इसे खरीदेगा वो पूरे शहर में सबसे भाग्यशाली माना जाएगा।" यह कह कर मीना ताई चुप हो जाती है और अपने दोनों हाथों से ताली बजाती है और इसके साथ ही दो लड़किया कशिश को लेकर आती.....
कशिश को उतारा गया। चेहरे पर पर्दा किए, वह लोगों के बीच बैठी हुई थी। एक धीमी सी गजल चल रही थी, जो अब हल्की तेज हो गई। घुंघरुओं की आवाज के साथ शिद्दत के होंठ फड़फड़ाए।
म्यूजिक
इन आँखों की मस्ती के.... मस्ताने हज़ारो है.....
मस्ताने हजारों है..... 2
इन आँखों से वबस्ता... अफसाने हज़ारो है....
इन आँखों की मस्ती के....
एक तुम ही नहीं तन्हा....उल्फत मे मेरे रुसवा...
इस शहर मे तुम जैसे..... दीवाने हज़ारो है....
इन आँखों की मस्ती मे.... मस्ताने हज़ारो है....
एक सिर्फ हमी मै को.... आँखों से पिलाते है....
कहने को तो दुनिया मे..... मै खाने हज़ारो है....
इन आँखों की मस्ती के मस्ताँने हज़ारो है.....
इस सम्मे फरोजा को.... आंधी से डरते हो....
इस सम्मे फरोज़ा के.... परवाने हज़ारो है...
इन आँखों के मस्ती के मस्ताने हज़ारो है...
इन आँखों से वबस्ता.... मस्ताने हज़ारो है....
मस्ताने हज़ारो है....
म्यूजिक के रुकने तक उस नाजुक सी कली के पैरों ने थिरकना नहीं रोका। जैसे ही म्यूजिक बंद हुआ, वह वहीं फर्श पर गिर गई। उसका चेहरा अभी तक नहीं दिखा था जिससे वहां के लोगों में उत्साह बना हुआ था। वे बस इस फूल का दीदार करना चाहते थे। पैसे तो वहां के फर्श पर बिछ गए थे। वहां मौजूद सभी आदमी कशिश की एक झलक पाना चाहते थे।
उनमें बैठा एक आदमी उस कोठे की मालकिन, जो कोई और नहीं, वह औरत ही थी जिसे कशिश माँ कहती है, उसके पास आया और बोला, "मीनाक्षी ताई, क्या इस चाँद का दीदार नहीं होगा?"
मीनाक्षी, जिसे सब मीना ताई कहते हैं, मुस्कुराते हुए बोली, "अरे, यह चाँद कोहिनूर है। इसके एक दीदार के लिए आपको अपनी पूरी तिजोरी खाली करनी पड़ सकती है।"
वह आदमी बोला, "इसके लिए तो मैं सब कुछ लुटा दूं। आप कीमत बोलिए।"
जहाँ एक तरफ उसे सिर्फ देखने के लिए अपना सब कुछ लुटाने को तैयार थे, वहीं वह मासूम यह सब देखते हुए आँखों में आंसुओं को रोके खड़ी थी। तभी उसे मीना की आवाज सुनाई दी, जो उसके पास आते हुए कह रही थी, "चलो मेरी जान, अब अपनी खूबसूरती से इन शरीफों का दिल जलाओ।"
अब तो कशिश की जान सूखने लगी। उसे अजीब सा डर महसूस हो रहा था।
उसने घूँघट के पीछे से ही अपना सिर हिला दिया। उसके ऐसा करने से मीना ताई को गुस्सा तो आया लेकिन उन्होंने अपने आप को सँभालते हुए बात बदलनी चाही।
क्या बोलेंगी अब मीना ताई?
उसके दिमाग़ मे क्या चल रहा है?
जानने के लिए बने रहे हमारे साथ......
कशिश को देखते हुए वह आदमी बोला, "इसके लिए तो मैं खुद को नीलाम कर दूं, मीना ताई! तिजोरी क्या चीज है? आप बस कीमत बोलिए।"
उसकी बात सुनते हुए मीना बाई कशिश की तरफ बढ़ती है और कहती है, "अरे साहब, यह कोहिनूर किसी के बिस्तर पर सजने के लिए नहीं है। इसे तो हम सर का ताज बनाना चाहते हैं। ये मेरी जान सिर्फ महफिलें सजाने के लिए है, बिस्तर सजाने के लिए और मिल जाएंगी।"
मीना ताई की बात सुनते ही वह आदमी हल्के गुस्से में बोला, "ये क्या बात हुई मीनाताई, आप मुझे इस लड़की के लिए ना बोल रही हैं? मुझे तो यही कली चाहिए जो अभी तक फूल भी नहीं बनी।"
अभी उस आदमी ने कशिश का चेहरा नहीं देखा था, लेकिन जितना भी उसका अक्स दिख रहा था, उतने में ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि कशिश की खूबसूरती किस कद्र होगी। घूंघट ने उसे परदे में छिपाया हुआ था, लेकिन उसके वो होठों की झलक ही सबको अपनी तरफ रिझा रही थी।
वही मीना ताई ने उस आदमी को कशिश की कीमत लगाने को तो कह दिया, लेकिन साथ में यह भी बताया था कि कशिश कोई बिकाऊ सामान नहीं है, उसे तो सिर पर सजाया जाएगा, किसी के कदमों तले बिछाया नहीं जाएगा। कशिश वो कोहिनूर है जिसे चाहता तो हर कोई है, लेकिन पाने वाला कोई एक।
अब वह आदमी कुछ बोल नहीं सकता था, इसीलिए वह चुपचाप एक तरफ जाकर खड़ा हो गया। उसे देखकर उसके पास खड़े बाकी लोग हंसने लगे। उनकी हंसी उस आदमी को चिढ़ा रही थी, उसे अपना मजाक बनते देखना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन वह कर ही क्या सकता था? यह मीना ताई का कोठा था। यहां चलती सिर्फ मीना ताई की है, उनके सामने बोलने वाला आज तक कोई नहीं आया।
वही मीना ताई जो कब से कशिश को देख रही थी, उन्होंने वहीं पास में खड़ी एक दूसरी लड़की को इशारा किया। जिसका इशारा समझ वह लड़की कशिश को वहां से ले गई।
कशिश कमरे में आती है और अपने अक्स को सामने लगे शीशे में देख टूट कर रोने लगती है। उसका रोना साथ में आई लड़की से भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसने कशिश को अपने सीने से लगा लिया और उसे चुप करते हुए बोली, "कशिश बच्चा चुप हो जाओ, देखो अपनी मन्नत दी को तो देखो, वह भी तो यह सब कर रही है ना, उन्हें तो लोगों के बिस्तर तक जाना पड़ता है, तुम तो फिर भी अज़ीज़ हो मेरा बच्चा, तुम्हें सिर्फ महफिल सजानी है। एक न एक दिन ये होना था, हो गया मेरा बच्चा, अब जाने दो ना, चुप हो जाओ, ऐसे रोने से कुछ नहीं होता। तुम्हारे लिए तो पहले से कोई है, तुम्हें ज्यादा दिनों तक ये जिंदगी नहीं जीनी पड़ेगी, बस कुछ दिन, उसके बाद तुम यहां से आजाद हो जाओगी।"
मन्नत कशिश से 2 साल बड़ी है, वह नहीं चाहती थी कशिश कभी महफिल सजाए, लेकिन क्या करे वो भी तो मजबूर है, उसके पास भी कोई दूसरा रास्ता नहीं था। खूबसूरती में मन्नत कहीं से भी कशिश से कम नहीं है। लम्बे बाल, बड़ी बड़ी आँखे, गोरा रंग, अट्रेक्टिव होंठ, जब वो पहली बार इस दलदल में आयी थी, उसके लिए भी ऐसे ही महफिल सजाई गयी, बोलियां लगाई गयी, लेकिन उसे सँभालने वाला भी कोई नहीं था।
अपने बीते दिनों को याद कर मन्नत की आँखे भी भीग गयीं। उसने खुद को संभाला और कशिश को बेड के पास लाते हुए समझाने लगी, "देखो काशु, मीना ताई ने तुम्हें महफ़िल सजाने के लिए कहा है। बस तुम किसी रईस के बिस्तर पर नहीं जाओगी, उसकी फ़िक्र ना करो। मै हु ना बच्चा, तुम जितनी पवित्र पहले थी, उतनी ही आज भी हो और हमेशा रहोगी। तुम्हें हाथ लगाने की भी कोई कोशिश नहीं कर सकता, छूना तो दूर की बात, मेरे रहते मै तुम्हे किसी के बिस्तर तक नहीं जाने दूंगी। मुझ पर तो भरोसा है? मानो मेरी बात।"
उसके समझाने से कशिश थोड़ी शांत हुई। उसने अपने आंसू साफ किये और ऐसे ही मन्नत की गोद में अपना सिर रख सो गयी। उसकी मासूमियत देखते हुए मन्नत के चेहरे पे छोटी सी मुस्कुराहट आ गयी। सोते हुए भी कशिश का चेहरा मुरझाया हुआ था। मन्नत ने उसके सिर पे हाथ फेरा और माथे पर kiss कर वही बेड से लग आँखे बंद कर ली।
अगली सुबह
सड़कों पर गाड़ियों की कतार लगी हुई थी। सिग्नल रेड था, जिस वज़ह से कोई भी गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती थी। सब सिग्नल ग्रीन होने का इन्तजार कर रहे थे। तभी उन गाड़ियों के बीच से होते हुए एक लड़की ब्लैक BMW के पास आती है और उसकी खिड़की के पास आ कर नॉक करती है। दो तीन बार लगातार नॉक करने पर ड्राइविंग सीट पर बैठे आदमी ने विंडो डाउन कर दी।
जिस तरफ वो लड़की खड़ी थी, वो दूसरी साइड थी, जहा एक आदमी ब्लैक आउटफिट मे बैठा कॉल पर किसी से बात कर रहा था। ब्राउन आइस, काले सिल्की बाल जिन्हे जेल से सेट किया गया था। राइट हैण्ड की उंगलियों मे ring's, उन ring's मे एक ऐसी भी रिंग थी जो सबसे अलग लग रही थी। वो सिल्वर रिंग कुछ अजीब सी चमक मे थी। गले मे प्लैटिनम चेन, ब्रैंडेड वाच, एक कान मे सिल्वर इयररिंग जो उसके लुक को और भी अट्रेक्टिव बना रही थी। गोरा रंग, देखने मे हॉट, हैंडसम, डेसिंग, जितना भी बोल लो कम ही होगा। उसकी हॉटनेस के आगे उसके आस पास से एक अलग औरा झलक रहा था। कार मे एकदम शांति थी, जिस वज़ह से उस लड़की की पायल का शोर वहां गूंज गया, जिससे वो आदमी जो अपने काम मे मसरूफ था, उसका ध्यान भी बाहर खड़ी लड़की की तरफ चला गया और उसने नज़रे उठा उस लड़की की तरफ देखा। मासूम आँखे, बस इतना ही दिखाई दें रहा था उसे, क्युकी उस लड़की ने अपने चेहरे पर दुपट्टा डाल रखा था, जिससे बस उसकी वो दोनों नीली आँखे ही बाहर झाँक रही थी।
कुछ देर के लिए तो वो लड़का उसमे खो सा गया, उसे किसी बात का होश ही नहीं रहा हो जैसे। वो बस उसकी मासूम समंदर जैसी आँखों मे डूबता चला जा रहा था।
उस लड़के को ऐसे देख उसकी साइड में ड्राइविंग सीट पर बैठा लड़का उसे घूर कर देखते हुए बोला, "इसे क्या हो गया? स्टैचू क्यों बन गया? कहीं इस बेचारी मासूम पर ना भड़क जाए। चल अवि, इस सोते हुए शैतान को जगाने से पहले इस लड़की से पूछ क्या चाहिए इसे।" खुद में ही बड़बड़ाते हुए वो जो लड़का ड्राइविंग सीट पर बैठा है, जिसका नाम अविनाश अग्निहोत्री है, उसने बाहर खड़ी लड़की से पूछा, "क्या हुआ आपको? कोई प्रॉब्लम है?"
उसके पूछने पर उस लड़की ने अपने हाथ में लिए बॉक्स को आगे बढ़ा दिया, जिसे देख कर अवि ने कहा, "अच्छा आपको डोनेशन चाहिए।" इस पर उस लड़की ने धीरे से अपना सर हां में हिला दिया, जिसे देख अवि के चेहरे पर स्माइल आ गई और उसने कार के डैशबोर्ड से पैसे निकाले और दो हजार का एक नोट उस बॉक्स में डाल दिया।
उसके बाद वो लड़की वहां से दूसरी तरफ बढ़ गई। वो तो चली गई, लेकिन वो लड़का जो कब से उसे देखे जा रहा था, उसकी नज़रे अब भी उसी तरफ थीं जहां से वो लड़की गई थी। लड़के की उम्र लगभग 27, 28 की होगी। उसके साथ में बैठा हुआ लड़का भी इसी उम्र का था। दोनों हम उम्र ही थे।
वहीं जब ड्राइविंग सीट पर बैठे अवि ने देखा उसके बगल वाला लड़का अब भी उसी तरफ देख रहा है जहां से वो लड़की गई। उसके चेहरे पर शरारती मुस्कुराहट बिखर गई। उसने धीरे से उस लड़के की आँखों के सामने अपने हाथों को हिलाया जैसे उसे होश में ला रहा हो। उसके ऐसा करने से हुआ भी वही, वो लड़का अपने खयालों से बाहर आया और अवि की तरफ घूर कर देखने लगा। उसके ऐसे घूरने से अवि मुँह बनाते हुए बोला, "देख तो ऐसे रहा है जैसे अभी खा जाएगा।"
उसका बड़बड़ाना सुन दूसरे लड़के ने कहा, "चुपचाप गाड़ी आगे बढ़ाओ, दिखाई नहीं दे रहा सिग्नल ग्रीन हो गया है।"
उसकी बात का जवाब देते हुए अवि ने कहा, "मुझे तो दिख रहा है, लेकिन कोई है जिसे लगता है मैं देख नहीं सकता।" उसकी आँखें किसे निहार रही थीं।
अवि की बात सुन वो लड़का बोला, "कुछ ज्यादा नहीं दिख रहा तुम्हें? ऑस्ट्रेलिया का प्रोजेक्ट है, अभी सोच रहा हूं क्यों ना तुम्हें भेज दूं।"
बस इतना सुनने की देर थी कि बेचारे अवि का मुँह बन गया और उसने कार स्टार्ट करते हुए कहा, "नहीं मैं क्यों जाऊं? मैं नहीं जाऊंगा, तू ही जा अपनी शासा के पास, मुझे यहीं रहना है।"
अब उस लड़के का चेहरा डार्क हो गया। अवि को गर्मी सी महसूस होने लगी, जिससे उसने जल्दी से बात को बदलते हुए कहा, "अच्छा वो सब छोड़, ये बता कैसी लगी? वैसे आँखों से तो मासूम लग रही थी। तुझे क्या लगता है? इंफॉर्मेशन निकलवानी चाहिए? अगर तुझे चाहिए तो बता दे आज ही सारी डिटेल्स तेरे सामने होंगी।"
हां, उस लड़के का नाम प्रलय सिंह राणा है। प्रलय सिंह राणा, जिसके दोस्तों से ज्यादा दुश्मन हैं। दोस्त के नाम पर बस अविनाश अग्निहोत्री, जो प्रलय के एकदम उलट है। जहां प्रलय किसी से कोई मतलब नहीं रखता, बात करना तो जैसे उसे उम्र कैद की सजा लगती है। ना ज्यादा बोलना, बस दिन भर काम में रहना। उसके फेस पर एक अलग रौब रहता है।
वहीं अविनाश के चेहरे से स्माइल कभी जाती ही नहीं, वो खुद में ही मस्त रहने वाला इंसान है। इसके लिए प्रलय से पहले प्रलय के बाद कोई नहीं, दोनों एक दूसरे की जान हैं। प्रलय कभी जताता नहीं लेकिन अविनाश को पता है, वो उसके लिए क्या है। वैसे तो ये दोनों पार्टनर हैं, लेकिन अविनाश, प्रलय का पर्सनल असिस्टेंट भी है, उसका राइट हैंड। काली दुनिया के सारे काम अविनाश ही संभालता है।
अब आप लोगों को अविनाश अग्निहोत्री से मिलाते हैं। गोरा रंग, भूरे बाल जो हल्के लंबे थे, उम्र 28, ब्लू आइस, पिंक लिप्स, कान में सिल्वर इयररिंग, गले में सिल्वर चेन, एक हाथ में ब्रेसलेट जिसमें डायमंड लगे हुए थे। ये ब्रेसलेट प्रलय ने ही दिलाया था, जिस वजह से अविनाश कभी इसे नहीं निकालता। उसकी जान बसती है इस ब्रेसलेट में।
खैर, उनकी कार एक बड़े से मेंशन के सामने आकर रुकी, जिसके ऊपर बड़े बड़े अक्षरों में अनुप्रिया मेंशन लिखा हुआ था। बॉडीगार्ड पूरे मेंशन को प्रोटेक्शन देते हुए एक लाइन में खड़े हुए थे। ब्लैक ड्रेस में खड़े उन गार्ड्स के लेफ्ट आर्म पर Black Panther का टैटू बना था, जो यूनिक तरीके से बनाया गया था, जिसे देखकर ही नॉर्मल इंसान के अंदर एक डर की झलक देखी जा सकती थी।
पूरे मेंशन को कुछ इस तरह उन्होंने घेर रखा था कि एक परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उनमें से एक गार्ड ने जाकर कार का डोर ओपन किया, जिससे प्रलय रौब के साथ बाहर आया। उसके साथ ही अवि भी अपनी साइड से बाहर निकला। दोनों ही फुल स्टाइल से एक हाथ पेंट की पॉकेट में डाले मेंशन के अंदर आते हैं।
जहां हॉल में ही एक आदमी बैठा किसी से बात कर रहा था, लेकिन प्रलय बिना उसकी तरफ देखे वहां से सीधे स्टेयर्स की तरफ जाने लगा। वहीं अवि वो हॉल के दूसरे साइड चला गया। अभी प्रलय ऊपर जाता उससे पहले ही एक रौबदार आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
"ये क्या कर के आये हो तुम?"
उसकी आवाज़ को सुन प्रलय ने अपनी आँखें भींच लीं। वो अब भी पलटा नहीं था, अपनी जगह वैसे ही खड़ा था।
जिसे देख वो आदमी जिसकी उम्र लगभग 50 के आसपास होगी, लेकिन वो इस उम्र में भी काफी हैंडसम और अट्रेक्टिव लग रहा था। देखकर तो कोई नहीं कह सकता ये आदमी 50 का होगा। थोड़ा थोड़ा प्रलय की तरह लग रहा था। लगे भी क्यों ना, बाप बेटे जो हैं। हां, ये हैं दिग्विजय सिंह राणा, प्रलय सिंह राणा के एक लौते बाप। इनकी आपस में बिल्कुल नहीं बनती क्योंकि दोनों एक जैसे ही हैं। कोई किसी से कम नहीं होना चाहता।
दिग्विजय को अपने बेटे के काली दुनिया में कदम रखने से ही प्रॉब्लम थी। वो नहीं चाहते थे कि उनका बेटा उनके नक्शे कदम पर चले, लेकिन उनकी सोच के उलट उनके बेटे ने अपनी ही दुनिया बना ली जहां उसकी हुकूमत चलती है। बिना उसकी इजाजत एक पत्ता भी नहीं हिलता। वो किसी के आगे नहीं झुकता। अंडरवर्ल्ड के बड़े बड़े माफिया उसकी कदमों में झुकते हैं, जहां के लोग उसे ब्लैक पैंथर के नाम से जानते हैं।
ब्लैक पैंथर ये सिर्फ एक नाम नहीं, दहशत है जो दुनिया के हर इंसान के दिलों में बैठा है। इस नाम से ही लोग काँपते हैं। बस एक नाम और लोग आ गए घुटनों पर। प्रलय की आँखें अब भी बंद थीं, जैसे वो अपने पिता की बातों को सुनने से बचने की कोशिश कर रहा हो। दिग्विजय जी की आवाज़ में एक गहरी नाराजगी थी, जो प्रलय को भी समझ आ रहा था।
"तुम्हें समझ नहीं आता कि तुम्हारे ये काम तुम्हारी जान ले लेंगे?" आपको क्यों अपनी जान कि परवाह नहीं है। दिग्विजय की आवाज़ और भी सख्त हो गई।
प्रलय ने अभी भी अपनी आँखें नहीं खोलीं, लेकिन उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कराहट आ गई, जैसे वो अपने पिता की बातों को पहले से ही जानते हों और उसका जवाब पहले से ही तैयार हो।
"मैं जानता हूं डैड। लेकिन मैं अपने रास्ते पर चलूंगा। आपने अपना रास्ता चुना, मैंने अपना चुना है।" प्रलय की आवाज़ में एक ठहराव था, जैसे वो अपने पिता को समझाने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन दिग्विजय की आँखों में कुछ और ही दिख रहा था। उन्हें ये डर हर समय लगा रहता कि कहीं उनके बच्चे को कुछ हो ना जाए।
दिग्विजय जी की बातों को इग्नोर कर उनके सवाल का जवाब न देते हुए प्रलय वापस अपने रूम में जाने के लिए स्टेयर्स चढ़ने ही वाला था कि उसे एक बार फिर दिग्विजय सिंह राणा की आवाज सुनाई दी, जो इस बार पहले से ज्यादा सख्त थी। उन्होंने एक बार फिर वही सवाल किया,
"प्रलय, क्या हम इतना भी नहीं जान सकते कि हमारी कंपनी के साथ इतने सालों से काम करने वाले एस.के. के बेटे के साथ उलझने की क्या जरूरत थी? आपको किसी से कोई मतलब नहीं है, इसका मतलब ये तो नहीं कि आप हमारे सालों से बनाए गए रिश्तों को भी खत्म करा दें।
आपने ये ठीक नहीं किया।" इस वक्त दिग्विजय सिंह राणा के चेहरे से गुस्सा साफ झलक रहा था। अभी प्रलय कुछ बोलता, उससे पहले ही पीछे से एक नर्म मगर तेज आवाज आई, "ये क्या हो रहा है? आप दोनों बाप-बेटे फिर से शुरू हो गए। देखिए, ये हमारा घर है, कोई ऑफिस या कोर्ट नहीं जहाँ आप लोग जब देखो फैसले सुनाते रहते हो।"
इस पर दिग्विजय जी उस तरफ घूमे जहाँ से ये आवाज आई थी। किचन से एक औरत, जिसकी उम्र 47 लग रही थी, महरून साड़ी पहने, हाथों में डायमंड चूड़ियाँ और उँगलियों में रिंग्स पहने, गले में बड़ा सा मंगलसूत्र और छोटे-छोटे डायमंड इयररिंग्स पहने, बालों का जूड़ा जिसे गजरे से सजाया गया था, दिग्विजय सिंह राणा की तरफ ही आ रही थी।
उनके पीछे ही अविनाश भी आया। दिग्विजय सिंह राणा उस औरत को देखते हुए बोले, "आइए, आप भी सुनिए अपने लाडले का कारनामा। सब आप ही का किया-धरा है। आपने ही इन्हें सर पर चढ़ाया है।"
उनकी बात सुनकर उस औरत ने प्रलय की तरफ देखते हुए कहा, "लड्डू, ये क्या बोल रहे हैं आपके डैड? क्या किया है आपने ऐसा जो ये इतना सुना रहे हैं?"
अनुप्रिया सिंह राणा, जिन्हें घर में 'अन्नू जी' कहा जाता है, उन्होंने प्रलय से कहा, जैसा कि आप दोनों जानते हैं कि अनुप्रिया जी घर की होम मिनिस्टर हैं और प्रलय और दिग्विजय सिंह राणा दोनों ही उनके आगे किसी की नहीं चलती।
खैर, जैसे ही उन्होंने लड्डू कहा, पीछे खड़ा अविनाश अपनी हंसी कंट्रोल नहीं कर पाया और जोर-जोर से हंसने लगा। उसकी हंसी देखते ही प्रलय चिढ़ गया और उसकी भौहें तन गईं।
उसने अनु जी से कहा, "मॉम, प्लीज, कितनी बार कहा है कि मुझे लड्डू मत बुलाया करिए। अब मैं छोटा बच्चा नहीं हूँ।"
अब अन्नू जी ने मुँह बनाते हुए कहा, "लड्डू, आप कितने भी बड़े हो जाएं, मेरे लिए तो मेरे छोटे से प्यारे से लड्डू ही रहेंगे।"
एक बार फिर लड्डू सुन प्रलय जुँझला उठा। उसने अपना सर झटका और दिग्विजय जी की तरफ देखते हुए बोला, "डैड, मैंने क्या किया और क्यूँ किया ये आपको बताना मैं जरुरी नहीं समझता। अब मैं अपने रूम में जा रहा हूँ। प्लीज, don't disturb me।" अपनी बात कहते हुए वो ऊपर चला गया।
वहीं दिग्विजय जी अन्नू जी की तरफ घूर कर देखने लगे। उनके ऐसे देखने से अन्नू जी ने मुँह बनाते हुए कहा, "अब मुझे क्यूँ घूर रहे हैं आप? मैंने थोड़ी कुछ किया। और वैसे भी आपको तो पता है, वो जो भी करते हैं, बहुत सोच-समझ के करते हैं। आपको जानना ही है कि उन्होंने एस.के. भाई साहब के बेटे को क्यूँ वो कॉन्ट्रैक्ट नहीं दिया, तो आप अवि से पूछ लें, उसे तो सब पता होता है।"
उनकी बात जैसे ही अवि के कानों तक पहुंची, वो भी दबे पाँव वहां से रफूचक्कर होने लगा।
लेकिन तभी दिग्विजय जी ने उसे रोकते हुए कहा, "खबरदार जो तुमने एक कदम भी आगे बढ़ाया तो। चलो इधर आओ, मेरे पास बैठो और पूरी बात बताओ। क्या हुआ था? क्यूँ तुम दोनों ने मिलकर बिना मुझसे कोई बात किए एस.के. की कंपनी से हमारे सारे कॉन्ट्रैक्ट्स वापस ले लिए। और उसके बेटे को कहा रखा?" बेचारा अवि फंस गया। उसके पास कोई ऑप्शन नहीं था।
वो अन्नू जी को नाराजगी से देखते हुए जा कर दिग्विजय जी के पास बैठ गया। अन्नू जी उसे देख मुस्कुराते हुए वहां से दूसरी तरफ चली गईं।
उनके जाने के बाद दिग्विजय जी ने अवि से कहा, "अब आपके बोलने के लिए मुहूर्त निकलवाऊँ?" जिस पर अवि ने ना में सिर हिलाते हुए बोलना शुरू किया। वहां जो भी हुआ था, वो सब उसने दिग्विजय जी को बताया। "डैड, वो रित्विक कुछ ज्यादा ही उछल रहा था।
आपको नहीं पता, हमारे शेयर्स गिराने के फिराक में था। हमारे दुश्मनों के साथ मिलकर हमारे साथ डबल गेम खेलना चाहता था। बस फिर क्या, आपको तो पता ही है। प्रलय को धोखा और धोखेबाजों से कितनी नफरत है। वो सब कुछ बर्दाश्त कर लेगा, लेकिन चीटिंग बिल्कुल नहीं।
और रित्विक खुद को बहुत होशियार समझने लगा था। उसकी होशियारी उसे ही ले डूबी। प्रलय की नजरों में आ गया। और आज देखो, दुनिया में ही नजर नहीं आ रहा।"
उसकी बातें सुनने के बाद दिग्विजय जी ने उसे जाने का इशारा किया और खुद भी अपने कमरे की तरफ चले गए।
उधर प्रलय अपने कमरे में आकर ऐसे ही बेड पर लेट गया। एक बार फिर से उसकी आँखों में वो मासूम सी आँखें, दुपट्टे से छुपा हुआ चेहरा नजर आने लगा था, जिसे याद कर प्रलय की आँखें लाल हो गईं। उसे बेचैनी सी होने लगी। उसने कस कर अपनी आँखों को भींचा और खुद में ही बोला, "ब्लू आइस, don't खुद को मुझ पर हावी मत होने दो, क्योंकि एक बार तुम प्रलय सिंह राणा की कैद में आ गई, तो कभी आजाद नहीं हो पाओगी।
तेरी आँखों में वो नशा है...
जो किसी शराब में भी नहीं होगा। तेरी वो मासूम आँखें मुझे खुद में डुबोना चाहती हैं। अगर मैं डूबा तो सनम, तेरी कसम, तुझे भी ले डूबूंगा।"
"दूर रहो, लिटिल गर्ल, प्रलय सिंह राणा एक आग है। पास आओगी तो जल जाओगी। और तुम उस आग को झेल नहीं सकती, ये मुझे पता है। मैं तुम्हें ढूंढने की कोशिश नहीं करूँगा। अब तुम खुद को मुझसे बचा के रखना, क्योंकि अगर अब तुम मेरे सामने आई तो तुम क्या, मैं खुद भी तुम्हें खुद से बचा नहीं पाऊंगा।"
यही सब सोचते, खुद से बातें करते हुए, न जाने कब वो नींद की आगोश में चला गया। उसे भी अहसास नहीं हुआ इस बात का।
आगे जारी....
प्रलय अब तक उठ गया था और शावर ले कर एक मीटिंग के लिए रेडी हो रहा था। ब्लैक बिजनेस सूट में वो काफी हैंडसम लग रहा था। मिरर के सामने खड़ा होकर वो अपने बाल सेट कर रहा था कि तभी उसके रूम में अवि आता है। उसका यूँ आना प्रलय को अच्छा नहीं लगा और उसने कहा, "तुम्हें कितनी बार कहा है, मेरे रूम में बिना मेरी परमिशन मत आया करो।"
अवि मुँह बनाते हुए बोला, "सॉरी किंग, मैं ये बताने आया था कि हमारी मीटिंग लोकेशन बदल गई है। अब हमें दूसरी जगह मीटिंग अटेंड करनी होगी।"
प्रलय का चेहरा सर्द हो गया और उसने अवि से पूछा, "ये किसने और क्यों किया? बिना मेरी परमिशन के?"
अवि थोड़ा रुककर बोला, "किंग, हमारी लोकेशन ट्रैप की जा चुकी थी। इसीलिए अंतिम समय पर मैंने ये डिसीजन लिया। आपसे बात करने का समय नहीं मिला, मैं आया था लेकिन तब आप सो रहे थे। इसीलिए मैंने आपको डिस्टर्ब नहीं किया।"
प्रलय ने हाँ में सिर हिला दिया और रूम से बाहर जाते हुए अवि को पीछे आने का इशारा किया। कुछ देर बाद, एक ब्लैक मर्सडीज हवा से बातें करती हुई एक तंग गली के रास्ते में आ रुकी। उसमें बैठे लड़के ने बैक सीट वाले लड़के से कहा, "किंग्स, यहाँ से चलकर जाना होगा क्योंकि यहाँ से आगे हमारी कार नहीं जा सकती।"
बैक सीट पर बैठा लड़का कार से बाहर निकलते हुए उन तंग गलियों के अंदर चला गया। उसके पीछे उसके आदमी और वो लड़का भी आया। एक छोटी सी कोठी जहाँ सिर्फ एक टूटा सा कमरा दिख रहा था, जैसे कि पता नहीं कितने सालों से यहाँ कोई आया भी नहीं होगा। उसी के अंदर जाते हुए दो लड़के अपने पीछे आते बॉडीगार्ड को कुछ इशारा करते हैं और खुद अंदर चले जाते हैं।
कमरे के अंदर का नजारा कुछ ऐसा था - एक पुरानी सी मेज पर कुछ कागजात बिखरे पड़े थे, और दीवारों पर पुरानी तस्वीरें टंगी हुई थीं। लेकिन अंदर आते ही पूरा नज़ारा ही बदल गया। कमरे में डीम लाइट ऑन थी और एक बड़ा सा किंग साइज सोफा वही रखा था, जिस पर पैथर का लोगो बना था। अंदर से कमरा बिल्कुल सही था।
दो आदमी वहां लगी चेयर पर बैठे थे। उनके सामने टेबल पे दो बैग भी थे। उनके आते ही दोनों आदमी खड़े हो गये और सिर झुकाते हुए बोले, "आइये किंग, हम आपका ही वेट कर रहे थे।"
प्रलय ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और जा कर उसी किंग साइज सोफे पर किंग स्टाइल से बैठ गया। अवि भी बगल वाली चेयर पे बैठ गया और उन दोनों आदमियों को भी बैठने का इशारा किया।
उन दोनों आदमियों ने सामने रखा बैग ओपन कर प्रलय के सामने कर दिया, जिसमें ड्रक्स था। प्रलय ने उसे हाथ में लिया और चेक करके वही टेबल पे रख दिया। उसने अवि को इशारा किया तो अवि ने अपने पास रखा बैग उठा कर उन दोनों आदमियों को दिया, जो पैसों से भरा बैग था। दोनों आदमी उसे लेकर वहां से निकल गए।
उनके जाते ही बाहर गोलियां चलने लगीं। अवि ने प्रलय को प्रोटेक्ट करने के लिए अपनी गन निकाली और तुरंत हरकत में आ गया। प्रलय अभी भी कुछ नहीं कर रहा था, वो वैसे ही अपनी जगह बैठा था। अवि ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "किंग, आप मेरे साथ चलिए, अभी यहाँ रहना ठीक नहीं है।"
अवि ने किसी तरह प्रलय को वहां से निकाला और बाहर होते हुए एक बड़े से घर में घुस गया, जहाँ आधी रात में भी सुबह के जितनी रोशनी थी। दोनों अंदर गए, जहाँ हॉल में ही काफी लोग बैठे थे और उनके सामने एक लड़की नाच रही थी।
अवि ने प्रलय को एक रूम की तरफ जाने का इशारा किया। अभी सब लोग महफिल में मग्न थे, जिस वजह से किसी का ध्यान उन पर नहीं गया। म्यूजिक लाउड चल रहा था और सब उस लड़की की अदाओं में इतने खोए हुए थे कि उनके आसपास क्या हो रहा है इसकी भनक भी उन्हें नहीं थी।
जिसका फायदा उठाते हुए प्रलय एक कमरे मे चला गया।
उसने कमरे मे आ के चारो तरफ देखा तो वहां उसे किताबें और कुछ चिड़ियों कि तस्वीरें दिखाई दीं। जिन्हे देख कर उसने खुद से कहा, "ऐसी जगहों पर भी कोई पढ़ सकता है। नॉट बैड, अच्छा है।"
अभी वो कमरे को एक्सप्लोर कर ही रहा था कि उसे घूंगरुओ कि आवाज़ आने लगी, जिसका मतलब था कोई इस कमरे कि तरफ ही आ रहा है।
उसने जल्दी से खुद को खिड़की के पास लगे पर्दे के पीछे छुपा लिया। और तभी कमरे मे किसी कि दस्तक हुई।
प्रलय पर्दे के पीछे से ही देख रहा था। दरवाज़े से एक लड़की अंदर आयी और सिसकते हुए वही दरवाज़े से लग के ही बैठ गयी।
अब उसका शिसकना रोने मे बदल गया। कशिश रोते हुए अपने सिर से दुपट्टा उतार के फेक देती है, खुद को नोंचते हुए वो बस रो रही थी। उसकी आँखों से आंसू किसी बारिश कि तरह बरस रहे थे जिसे प्रलय देख तो नहीं पा रहा था, लेकिन महसूस कर सकता था।
कुछ देर ऐसे ही रोने और खुद की किस्मत को कोसने के बाद वो लड़की वहां से उठी और वॉशरूम में चली गई। उसके जाते ही प्रलय बाहर आया और वॉशरूम के बंद दरवाजे को देखते हुए सोचने लगा, "आखिर क्या प्रॉब्लम होगी इसे? क्यों अंदर से टूटकर बाहर सबको जोड़ने का काम कर रही है? ये लड़की...?"
आज पहली बार प्रलय सिंह राणा को किसी का दर्द महसूस हुआ था। आज पहली बार द किंग किसी के बारे में सोच रहा था।
उसकी आँखों मे एक बेताबी थी उस लड़की को देखने कि, उससे उसके दर्द ही वज़ह जानने कि। वो जानना चाहता था कि आखिर कौन सी ऐसी मजबूरी है जो खुद को दर्द दें कर भी इस जगह आने वाले लोगो को ख़ुशी देती है। "ये लड़किया क्यूँ अपना दर्द छुपा के मुस्कुराती है?"
प्रलय अपने रूम में जाते ही बेड पर लेट गया था और उस लड़की के बारे में सोचने लगा। सोचते-सोचते ही उसकी आँख लग गयी और वह सो गया।
शाम का वक्त.....
प्रलय अभी भी वहीं खड़ा बंद दरवाज़े को देखते हुए किसी सोच में गुम था कि तभी उसका फ़ोन बजने लगा जिसकी आवाज़ से वो अपने होश में आया और प्रलय से बाहर आ गया।
कशिश का रोना बाथरूम में अभी भी चालू था... तभी उसे फोन के रिंग की आवाज सुनाई दी जिसे सुन उसने रोना बंद कर दिया और अपने चेहरे को ठंडे पानी से धोना शुरू कर दिया....
कुछ देर बाद...
कशिश वॉशरूम से बाहर आई तो इधर-उधर देखने लगी, उसे फोन की रिंग सुनाई दी थी। लेकिन बाहर आकर देखने के बाद उसे कोई नहीं दिखा। उसने ज्यादा ना सोचते हुए बेड के पास जाकर लेट गई। उसके पैरों में दर्द था, लेकिन उसने आंखें बंद की और थकान की वजह से नींद भी जल्दी आ गई।
उधर दूसरी तरफ प्रलय कार में बैठा अब भी उसी लड़की के बारे में सोच रहा था। वही अवि वो फोन पर आज हुए अटैक के बारे में बात कर रहा था। थोड़ी देर बात कर उसने कॉल कट किया और बोला, "किंग, ये सब उस एसके ने किया है। बेटे की मौत से सदमा लग गया है, उसे तमीज नहीं कि वह किसके साथ उलझ रहा है।"
उसकी बात सुनते हुए प्रलय के फेस पर एक तिरछी स्माइल आ गई। उसने कहा, "करने दो उसे, जो भी कर रहा है। बेटे के खोने के दर्द से निकला नहीं है अभी तक, उसे भी थोड़ी तसल्ली करने दो।" उसे ऐसे देख और उसकी बातें सुन अवि कंफ्यूज्ड एक्सप्रेशन के साथ देखने लगा। "क्या किंग पागल हो गए हैं? नहीं नहीं, ये कैसे हो सकता है? अगर सच में ऐसा हुआ तो मैं क्या करूंगा? ओह गॉड, प्लीज किंग को क्या हो गया है।"
अपने दुश्मनों को ऐसे ही छोड़कर उन्हें तसल्ली दिला रहे हैं। आज से पहले तो किंग ऐसे नहीं थे। जब से वो नीली आंखों वाली लड़की मिली है, पता नहीं इन्हें क्या हो गया है। अपने आप में ही खोए रहते हैं, दिन में सो रहे हैं, रात में ऐसी बातें कर रहे हैं। क्या होगा हमारी सल्तनत का? उसका दिमाग ऐसे ही दौड़ रहा था।
करीब 2 घंटे बाद उनकी कार वापस मेंशन आ गई और अवि प्रलय को देखते हुए ही गाड़ी से निकलकर अंदर चला गया। प्रलय भी बाहर आया और घर में चला गया।
अब प्रलय के दिमाग में कशिश की छवि बसी हुई थी। वह सोच रहा था कि आखिर उस लड़की के साथ क्या हुआ होगा, जो उसे इतना दुखी कर गया है। वह अपने कमरे में जाकर बेड पर लेट गया और कशिश के बारे में सोचने लगा। उसकी आंखें बंद हो गईं और वह सो गया।
अगली सुबह प्रलय उठा और अपने दिन की शुरुआत की। उसने अवि को बुलाया और कहा, "अवि, मुझे उस लड़की के बारे में पता करना है, जो कल कमरे में थी। उसकी कहानी जानना चाहता हूं।"
अवि ने कहा, "किंग, मैं पता करूंगा। लेकिन आपको बता दूं, वो लड़की शायद हमारे लिए मुसीबत बन सकती है।"
प्रलय ने कहा, "मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं बस उसकी कहानी जानना चाहता हूं।"
अब देखना ये है कि प्रलय की जिंदगी में कशिश की एंट्री कैसे होती है और क्या वाकई में वो प्रलय के लिए मुसीबत बन सकती है?
कुछ दिन बाद....
शिव मंदिर में आज महाशिवरात्रि सेलिब्रेट की जा रही थी, जिस वजह से वहां काफी भीड़ थी। लोग लाइन में खड़े शिव जी के दर्शन पाने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन अभी किसी को मंदिर के अंदर जाने की परमिशन नहीं थी। शायद कोई बड़ा आदमी आने वाला था, जिसका इंतजार सब कर रहे थे।
वहां खड़े लोग आपस में बात करते हुए उस तरफ देख रहे थे, जहां से कई सारी गाड़ियां आ रही थीं, जिनके पीछे बॉडीगार्ड की फ़ौज थी। वहां खड़ा हर आदमी आंखें फाड़े उन गाड़ियों के बीच से आती हुई फैमिली को देख रहा था। वैसे तो सबको पता ही था कि ये कौन हैं, लेकिन कुछ नए लोग भी आए थे, जिन्हें उनके बारे में नहीं पता था। वो भी उन लोगों के औरे को देखते हुए आश्चर्य हो रहे थे।
उनमें खड़ी एक औरत अपने पास वाली औरत से पूछती है, "कौन हैं ये लोग जिनके लिए हमें 4 घंटे से मंदिर के अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है?" उसकी बात सुनकर दूसरी औरत ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम इन्हें नहीं जानती? ये मुंबई के ही नहीं, पूरे देश के नंबर 1 बिजनेस टाइकून प्रलय सिंह राणा हैं। इनके चर्चे तो मुंबई के बच्चे-बच्चे के मुंह पर होते हैं। तुम अभी नई-नई आई हो ना? धीरे-धीरे तुम्हें भी पता चल जाएगा।"
वो लोग बातें कर रही थीं कि उनके पीछे एक 65-66 साल की दादी धूप में ज्यादा देर तक खड़े रहने की वजह से चक्कर खाकर गिरने को हुईं कि तभी उनके पीछे खड़ी एक लड़की ने उन्हें थाम लिया और अपने सहारे से खड़ा किया। वो परेशान होते हुए उन दादी से कहती है, "दादी जी, आप यहां इतनी धूप में मत रहिए, चलिए हमारे साथ आइए, आपको छांव में ले चलते हैं।"
लेकिन वो दादी वहां से जाना नहीं चाहती थीं। उन्होंने उस लड़की, जिसकी सिर्फ आंखें दिख रही थीं और पूरा चेहरा दुपट्टे में छुपा था, उसकी आंखों को देखते हुए कहा, "बेटा, अगर मैं यहां से चली गई तो मुझे शिव जी के दर्शन नहीं मिलेंगे। तुम देख रही हो कितनी लंबी लाइन है? सबको अपने-अपने काम पर वापस जाना है। मुझे भी मेरी पोती से मिलना है। वो आज ही हॉस्टल से आई है। मेरी आंखें तरस रही हैं उसे देखने के लिए। वो भी तुम्हारी तरह ही है, बहुत प्यारी।"
उनकी बातें सुनते हुए वो लड़की बोली, "नहीं नहीं दादी जी, ऐसे मत कहिए, शिव जी करें मेरी जैसी फिर किसी की किस्मत ना हो।" उसकी आवाज में एक दर्द था, जिसे वो आंटी समझ रही थीं। उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरा और आशीर्वाद देते हुए कहा, "बेटा, इतनी प्यारी बच्ची हो तुम, शिव जी तुम्हारे लिए राजकुमार जैसा लड़का भेजेंगे, जो तुम्हें दुनिया भर की खुशियां देगा।"
इस पर कशिश एक दर्द भरी मुस्कान अपने होठों पर सजाए मुस्कुराने लगी। उसका चेहरा नहीं दिख रहा था, लेकिन उसकी मुस्कुराहट आंटी ने देखी थी। खैर, जब कशिश ने देखा कि वो दादी उसकी बात नहीं सुनेंगी तो वो जल्दी से मंदिर के पुजारी जी के पास गई और उनसे उन दादी को दर्शन करने देने की परमिशन मांगने लगी।
लेकिन पुजारी जी नहीं माने, उन्होंने कहा, "बिटिया, बस कुछ समय और देखिए, राणा साहब आ ही गए हैं। एक बार वो शिव जी का अभिषेक कर लें, फिर हम आपको दर्शन करने की अनुमति दे सकते हैं। लेकिन उनसे पहले नहीं, ये मंदिर की बरसों से चलती परंपरा है, इसे तोड़ नहीं सकते।"
उनकी बात सुनकर कशिश उनके पास से प्रलय की तरफ भागी।
वो जल्दी से उसके पास आई, प्रलय जो अभी कार से निकल ही रहा था कि किसी के अचानक ऐसे सामने आने से रुक गया और अपने आंखों पर लगाए ग्लासेस निकालकर सामने खड़ी लड़की को देखने लगा। उसके सामने आज फिर वही नीली आंखों वाली लड़की थी, जिसे वो इतने दिनों से भूलने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन उसकी ये आंखे उसे भूलने नहीं दे रही थी, आज फिर उसे अपने सामने देख प्रलय की धड़कन बढ़ गई और वो एक तक उसे देखने लगा।
आगे जारी.....
प्रलय मंदिर आ गया था। आज शिवरात्रि थी, जिसके लिए राणा परिवार शिव जी का अभिषेक करने के लिए हर साल यहाँ आता था। वह कार से बाहर आ ही रहा था कि तभी उसके पास कशिश आ गई और उसका रास्ता रोक कर खड़ी हो गई। उसका चेहरा आज भी छुपा हुआ था, बस आँखें दिख रही थीं, जिसमें प्रलय देखते ही खो गया।
प्रलय की नजरें कशिश की आँखों पर टिकी हुई थीं। वह उसकी आँखों में खोया हुआ सा लग रहा था। कशिश ने प्रलय की ओर अपनी मासूम आँखों से देखा और कहा,
"सर, वहाँ एक बुड्ढी औरत कब से धूप में खड़ी है। उन्हें धूप की वजह से चक्कर आ रहे हैं। प्लीज पहले उन्हें शिव जी के दर्शन कर लेने दीजिये। उनकी तबियत खराब हो जाएगी। उन्हें भी जल्दी जाना है, अपनी पोती से मिलने।"
लेकिन प्रलय की नजरें अभी भी कशिश की आँखों पर ही थीं। वह कुछ बोल नहीं रहा था। कशिश ने प्रलय की ओर एक पल के लिए देखा और फिर से कहा, "क्या आप मेरी बात सुन रहे हैं?"
उसके इस एक शब्द ने जैसे प्रलय के कानों में कोई मीठी सी धुन बजा दी हो। अभी वह अपने होश में आता, उससे पहले ही एक गार्ड ने कशिश का हाथ पकड़ते हुए उसे प्रलय के रास्ते से हटा दिया। उसके ऐसे अचानक से छूने की वजह से कशिश डर गई और नज़रें झुका कर खड़ी हो गई।
लेकिन प्रलय की आँखें गुस्से से जलने लगीं। उसके हाथों की नसें उभर आईं। उसने अपनी जलती हुई नज़रों से उस बॉडीगार्ड को देखा, जिससे वह बॉडीगार्ड डर के मारे वहाँ से पीछे हट गया। प्रलय का गुस्सा शांत कहाँ होने वाला था। उसने पीछे खड़े बॉडीगार्ड को कुछ इशारा किया, तो वह आगे आया और उस पहले वाले बॉडीगार्ड को अपने साथ ले गया।
उधर प्रलय पुजारी जी के पास आया और उनसे मंदिर का गेट खोलने को कहा। पुजारी जी ने गेट खुलवा दिया। प्रलय ने पुजारी जी से कहा, "पुजारी जी, आप अब अभिषेक की तैयारी करें।"
पुजारी जी ने सिर हिलाते हुए कहा, "ठीक है, बेटा मैं सब कुछ तैयार कर लेता हूँ।"
उधर कशिश ने अपनी नज़रें उठाकर प्रलय को देखा, जो अब अभिषेक के लिए तैयार हो रहा था। उसे देखते हुए कशिश दूसरी तरफ जा कर खड़ी हो गई। प्रलय भी उसे देखते हुए मंदिर में चला गया। उसके जाते ही कशिश बाहर से ही वापस चली गई।
प्रलय ने अभिषेक किया और शिव जी की पूजा करते हुए महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगा... ॐ तरयम्बकम यजामहे... सुगन्धित पुष्टिवर्धनम... एक पैर पर खड़ा प्रलय मंत्र जाप कर रहा था। उसने इस वक्त वाइट कपड़े पहन रखे थे, जो भीगा हुआ था, जिसकी वजह से उसकी बॉडी क्लियर दिख रही थी। इस वक्त वह हद से ज्यादा अट्रेक्टिव लग रहा था।
मंदिर में एक अजीब सी शांति थी, बस प्रलय की आवाज़ सुनाई दे रही थी, जो मंत्र जाप कर रहा था। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी शक्ति थी, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। प्रलय की आँखें बंद थीं, और वह पूरी तरह से शिव जी की पूजा में डूबा हुआ था।
लेकिन कशिश के जाने के बाद भी प्रलय की आँखों में उसकी छवि बसी हुई थी। वह उसकी आँखों में खोया हुआ सा लग रहा था। प्रलय को नहीं पता था कि कशिश कौन है, लेकिन वह उसकी आँखों में कुछ ऐसा देख रहा था, जो उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहा था।
प्रलय ने शिव जी की आरती की और उन्हें प्रणाम किया। पुजारी जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, "बेटा, भगवान शिव की कृपा तुम पर हमेशा बनी रहे।"
प्रलय ने पुजारी जी को धन्यवाद दिया और मंदिर से बाहर निकल आया। वह अपनी कार में बैठने ही वाला था कि तभी उसे कशिश की याद आई। वह सोचने लगा कि कशिश कौन थी और वह उस बुजुर्ग महिला के बारे में इतनी चिंतित क्यों थी।
प्रलय ने अपने ड्राइवर को कार स्टार्ट करने का इशारा किया और वह घर की ओर चल पड़ा, लेकिन उसका मन कशिश के बारे में सोचने लगा। वह सोचने लगा कि वह उसे फिर से कैसे देख सकता है।
घर पहुंचने के बाद, प्रलय ने अपने आप को शांत करने की कोशिश की, लेकिन वह कशिश के बारे में सोचना बंद नहीं कर पा रहा था। वह सोचने लगा कि वह कौन थी और क्यूँ उसके सामने बार बार आ जाती है।
प्रलय के मन में कशिश के प्रति एक अजीब सी जिज्ञासा जाग उठी थी। वह उसे फिर से देखना चाहता था और उसके बारे में अधिक जानना चाहता था, लेकिन वह नहीं जानता था कि वह उसे फिर से कैसे देख सकता है।
अगले दिन, प्रलय ने अपने एक आदमी को कशिश के बारे में पता लगाने के लिए भेजा। वह आदमी कशिश के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए निकल पड़ा। प्रलय को उम्मीद थी कि वह जल्द ही कशिश के बारे में पता लगा लेगा और उसे फिर से देख पाएगा।
लेकिन प्रलय को नहीं पता था कि कशिश के बारे में पता लगाना इतना आसान नहीं होगा। कशिश एक रहस्यमयी लड़की थी, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते थे। प्रलय को उसके बारे में पता लगाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।
लेकिन प्रलय सिंह राणा के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। अगर वो चाहे तो कुछ भी कर सकता है। उसका एक इशारा बस पूरी मुंबई उसके कदमो मे होंगी। अब उसने सोच ही लिया है की कशिश के बारे मे जान कर ही रहेगा तो ये वो कर के ही मानेगा, चाहे कुछ भी क्यूँ ना करना पड़े।
एक हफ्ते से ज्यादा हो गए थे, लेकिन अब तक प्रलय को उस लड़की के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी। वो पागल हो गया था, उसे किसी भी कीमत पर वो लड़की चाहिए थी। लेकिन इतने दिनों से उसके हाथ कुछ नहीं लगा था। उसका गुस्सा पहले से भी ज्यादा होने लगा था, जिस पर वो कंट्रोल नहीं कर पा रहा था। उसे ऐसे बेचैन देख अवि को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था, लेकिन वो कर ही क्या सकता था। अपनी पूरी कोशिश कर ली थी उसने, लेकिन वो लड़की पता नहीं किसी जादू की तरह गायब हो गई थी।
कुछ दिन ऐसे देखते हुए अवि के दिमाग में कुछ आया। वो प्रलय को अपने साथ ले कर उसी तंग गली में आया जहाँ उन्हें वो लड़की मिली थी, जिसके दर्द ने प्रलय के दिल को भी एक दर्द का अहसास कराया था। प्रलय ने जब उस गली को देखा तो अवि से कहा, "मुझे यहाँ क्यों ले आया है?" वो बोल रहा था, लेकिन अवि को उससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। उसने कार रोकी और प्रलय को बाहर निकलने को कहा। प्रलय बिना कुछ कहे बस कार से बाहर आया और अवि के साथ अंदर की तरफ बढ़ गया।
दोनों ही अंदर गए। उन्हें देखते ही हॉल में बैठी मीना ताई अपनी कुर्सी से उठते हुए प्रलय के पास आई और हाथ जोड़ते हुए बोली, "सरकार, आप यहाँ हमारे गरीब खाने में पधारे हैं, हमारे तो किस्मत चमक गए। जो आपके कदम हमारे यहाँ पड़े। आइए, आइए बैठिए सरकार।" मीना ताई के चेहरे की चमक बता रही थी कि वो कितनी खुश है। प्रलय के वहाँ आने से कुर्सी को अपनी पहनी हुई साड़ी के पल्लू से साफ करते हुए बैठाती है। प्रलय बिना कुछ बोले बैठ भी जाता है। अवि तो चुपचाप खड़ा था। उसे देखकर मीना ताई ने पहले ही एक लड़की को बुला लिया। वो लड़की आकर सब के पास खड़ी हो जाती है।
उधर कशिश अपने कमरे में बैठी पढ़ रही थी, क्योंकि आज उसे महफिल नहीं सजाना था। इसीलिए वो अपने कमरे से बाहर नहीं आई। वो अपने कमरे में ही रहती। इधर बाहर मीना ताई प्रलय से कहती है, "सरकार, बताइए हम क्या सेवा कर सकते हैं।" इस पर अवि ने कहा, "मीना ताई, यहाँ की सबसे अच्छी लड़की चाहिए।" वो अभी आगे कुछ और बोलता, उससे पहले ही प्रलय ने एक कमरे की तरफ इशारा करते हुए कहा, "हमें उस कमरे में रहने वाली लड़की चाहिए।"
मीना ताई ने जब उस तरफ देखा जहाँ प्रलय देख रहा था, तो वो शॉक रह गई। उन्होंने कुछ सोचते हुए कहा, "सरकार, वो... वो आपके लिए ठीक नहीं है। यहाँ उससे खूबसूरत और नाजुक कलियाँ हैं, जिन्हें देखते ही आप खुद को संभाल नहीं पाएंगे। आप एक बार देखिए तो।" उसने अपने आदमी को इशारा किया, तो वो वहाँ कई सारी लड़कियों को ले आया। सब एक लाइन में खड़ी हो गईं। लेकिन प्रलय ने उनकी तरफ देखा भी नहीं, वो अब भी वैसे ही बिना किसी भाव के चेहरे पर कोल्ड एक्सप्रेशन लिए उसी कमरे की तरफ देख रहा था।
उसने अवि को दो उंगलियों से इशारा किया, तो उसने एक सूटकेस मीना ताई के आगे रख दिया। मीना ताई ने जब उसे खोला, तो उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं। पूरा सूटकेस नोटों से भरा हुआ था। दो हज़ार की गड्डियाँ चमक रही थीं, जिसे देखते ही उनके मन में लालच भर आता है, और वो वहाँ आई पहली लड़की, जो कोई और नहीं मन्नत थी, उसे कशिश को बाहर लाने के लिए कहती है।
मन्नत मीना ताई को हैरानी भरी नज़रों से देखती है। वो सोच रही थी, "क्या ये वही औरत है? कशू जिसे अपनी माँ कहती है? क्या ये वही औरत है? जिसने उस दिन भरी महफिल में कशिश की बोली लगाने से इंकार कर दिया था?"
एक पल के लिए, मन्नत को कुछ समझ नहीं आया। उसे लगा कि ये लोग पैसे के आगे अंधे हो गए हैं। उन्हें किसी बात का होश नहीं रहा। कशु की बोली नहीं लग सकती। वह भूल गई थी। वह अपने विचारों में डूबी हुई थी, तभी एक गरजती हुई आवाज उसे सुनाई दी।
"मन्नत, क्या तुम्हें समझ नहीं आ रहा? जाओ, जाकर हमारी कोहिनूर को बुला लाओ। सरकार पहली बार हमारे गरीब खाने में आए हैं। उन्हें निराश नहीं कर सकते।" मन्नत ने हाँ में सिर हिला दिया और जल्दी से कशिश के कमरे की तरफ चली गई। थोड़ी देर में ही वह कशिश को अपने साथ तैयार करके ले आई।
वाइट अनारकली सूट, सिर पर चुन्नी जो उसके होठों तक आती थी, हाथों में चूड़ियाँ, पैरों में पायल जो उसके होने का अहसास करा रही थी। वह धीमे कदमों से वहाँ सबके बीच आई। उसके आते ही मीना ताई उसकी तरफ लपकी और किसी नाजुक सी गुड़िया की तरह उसे लाकर प्रलय के सामने खड़ा कर दिया।
प्रलय ने अब तक कशिश की तरफ देखा नहीं था। वह आँखें बंद किए अपने दिल में हो रहे सुकून को महसूस कर रहा था। उधर कशिश की आँखों से आंसू पानी की तरह बरस रहे थे। उसे मन्नत की कही हुई एक-एक बात याद आ रही थी। उसका बदन काँप रहा था। फिर भी खुद को संभालते हुए वह खड़ी थी।
तभी मीना ताई अपने चेहरे पर भद्दी मुस्कान लिए बोली, "महफिल में चार चाँद लगाओ जान, सरकार आज पहली बार हमारे इस छोटे से खाने में आए हैं। इन्हें जन्नत की सैर कराओ। अपनी अदाएं बिखेरो।" उसकी बात सुनकर कशिश ने पैर थिरकाना शुरू किया। म्यूजिक चलने लगा...
"देख के मेरा खिलता हुस्नो सवाब... बंद बोतल शराब की खोल दोगे... देख के मेरा खिलता हुस्नो सवाब..."
कशिश के नाजुक पैर थिरक रहे थे। वह गोल-गोल घूमते हुए प्रलय के आस-पास घूमने लगी। "जाम आँखों से ऐसे पिलाऊंगी मैं... तुम फिर खाने जाना छोड़ दोगे..."
मीना ताई भी हाथों में पैसे लिए खुशी से नाचने लगी। कशिश आँखों में आंसू, होठों पर मुस्कान सजाए नाच रही थी। "जाम पे जाम चले... सुबहो शाम चले... दौर महफिल का तेरी... अब मेरे नाम चले..."
"मैं हूँ सबनम की घाटा... मेरी मदहोश अदा... मेरी अंगड़ाइयों से कोई भी होगा फिदा... गोरे अंगों से आंचल झलकाऊंगी... ऐसी मस्ती लबों से छलकाऊंगी... तुम शराब से नाता तोड़ दोगे..."
इसी के साथ प्रलय की हाथों से शराब की ग्लास लेकर नीचे फेंक देती है और खुद उन टूटे हुए कांच के टुकड़ों पर थिरकने लगती है। पैरों से खून पानी की तरह बह रहा था, लेकिन जैसे उसे इस दर्द का अहसास ही नहीं हो रहा था। वह तब तक नहीं रुकी जब तक म्यूजिक बंद नहीं हुआ।
म्यूजिक के रुकते ही... धड़ाम... की आवाज के साथ कशिश भी वहीं गिर गई। उसके ऐसे गिरने से मन्नत डर गई और जल्दी से उसके पास जाने लगी, लेकिन मीना ताई ने उसे जाने से रोक लिया।
वहीं प्रलय अपनी जगह से उठा और सीधे बाहर की तरफ जाने लगा। उसने एक बार उस लड़की को देखना भी जरूरी नहीं समझा, जैसे उसे उसके दर्द से कोई फर्क ही नहीं पड़ा हो। उसके पीछे अवि भी आया और दोनों कार में बैठकर वहाँ से निकल गए।
आगे जारी....
आगे....
प्रलय के बाहर आते ही अवि उसके सह आयस सुरु दोजो ही कार मे बैठ कर वहां से निकल गये।उधर कशिश मीना ताई क्व सामने खड़ी थी। उसमे हिममत तो बिल्कुल नहीं बची थी। क्युकी पैरो से खून अब तक रुका नहीं था।फिर भी आँखों मे खाली पन लिए वो मीना ताई को देख रही थी।
उसकी आँखों मे जो एक उम्मीद थी। आज वो भी टूट गयी।कही ना कही उसे एक बात की तसल्ली थी। की उसकी क़ीमत तो नहीं लगाई जा रही। उसकी आबरू निलाम तो नहीं की जाएगी। लेकिन आज वो भी हो गया। आँखों मे आंसू लिए लड़खड़ाते कदमो से मीना ताई के पास आयी।
उसे देख मीना ताई उसकी नज़रे उतारते हुए कहती है।वाह रे मेरी नूर तेरे इस चाँद से चेहरे को देखे बिना ही लोग तेरे दीवाने हो रहे है। लाखों नहीं करोडो दें कर जा रहे है। सोच जब उन्हें इस चाँद का दीदार होगा तब क्या होगा। आज उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
वो नाच रही थी। झूम रही थी। ऐसे लग रहा था वो उड़ने वाली है। उसके पैर जमीन पर नहीं हवा मे थे। उसकी ख़ुशी देखते हुए कशिश बेबस हो टूट कर रोने लगी। मन्नत उसे देख रही थी। उसके दर्द का अहसास कही ना कही उसे भी हो रहा था।
लेकिन वो कुछ कर नहीं सकती। कशिश ने मीना ताई से सवाल किया। माँ आप ने तो कहा था ना मै बिकने वाली चीज नहीं हु। फिर आज क्या हो गया। आप भूल कैसे गयी मै सिर्फ माफिलो के लिए लाइ गयी थी। आप ने हमारी इजाजत के बिना हमें किसी के पैरो की धुल बना दी।
क्यूँ किया आप ने ऐसा मीना के पैर पकडे वो रोये जा रही थी। अब मन्नत से देखा नहीं गया वो कशिश के पास आई और उसे अपने सीने से लगा लिया। वही मीना ताई उन्हें जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। वो चेहरे पे ईविल स्माइल लिए कशिश से कहती है। इतने सालो से तुम्हे इसी लिए बचा के रखा था।
एक दिन तुम मेरी सोने की अंडे देने वाली मुर्गी बनोगी। लेकिन यहाँ तो तुम हीरो के अंडे देने लगी। तुम्हे पता है। तुम्हारे इस खूबसूरती मे चार चाँद लग चूका है। क्युकी अक्खि मुंबई जानती है। सरकार कभी किसी कोठे पर नहीं जाते। आज तक उन्होंने किसी की तरफ एक नज़र देखा तक नहीं है।
लेकिन आज उन्होंने तुम्हे ख़रीदा मतलब तुम्हारी अदाओ ने उन्हें इस हद तक अपने नशे मे घेरा की वो खुद चल कर यहा आये।और तुम पे अपनी मोहर लगा गये। आज से तुम उनकी हो। वो जो भी कहेँगे तुम्हे मानना पड़ेगा। अगर वो तुम्हे बिस्तर तक ले जाते है। तो भी जाना पड़ेगा।
तुम उनकी खातून और वो तुम्हारे मालिक है।वो जितना बोले सिर झुका कर हांमि भरना उनके खिलाफ जाने की सोचना भी मत।उसकी हिदायते सुनते हुए कशिश मन्नत के सीने से लगे रोये जा रही थी। अब उसकी जिंदगी पर उसका कोई हक़ नहीं रहा।
आज तक इन बदनाम गलियों की चार दीवारी मे कैद रही और आज से किसी रहिस के बँगले मे रहेगी। उसकी जरूरतों को पूरा करेंगी। वो किसी की महज एक जरुरत बन के रह गयी है। अपनी आने वाली जिंदगी जो शायद इस जिंदगी से भी गहरे अँधेरे मे गुमनाम होने वाली थी। उसके लिए सोचते हुए उसकी आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
मन्नत उसका रोना देखे हुए मीना ताई से बोलती है। ताई बस करिये अब कशु कुछ सुनने समझने की हालत मे नहीं है। भगवान के लिए इसे इसके हाल पर छोड़ दीजिये। उसकी बात पर मीना इतराते हुए वहां से पैसो का बैग ले कर चली गयी।
मन्नत किसी तरह कशिश को सँभालने की कोशिस की कर रही थी। लेकिन वो मासूम सी 18 साल की बच्ची कैसे ये सब एक झटके मे भूल जाती। कैसे इन सब को समझती। कैसे अपने डर को छुपाती इस कोठे पर रहने से कम से कम उसके पास मन्नत का तो साथ होता था।
लेकिन अब कही वो आदमी उसे अपने साथ ले गया तो वो किसके पास जा कर अपनी बाते बताएगी।वो रोते हुए मन्नत को कस के पकड़ लेती है। उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी। जैसे लग रहा था अगर हल्की सी भी उसने ठिली छोडी तो मन्नत उससे दूर चली जाएगी।
मन्नत उसके डर को महसूस कर रही थी। उसने भी कशिश को खुद मे छुपाते हुए कहा बच्चा मै हु आप डरो मत आप की मन्नू दी हमेशा आप के साथ रहेंगी। जब भी आप को जरूरत हो बस एक आवाज लगा देना दिल से मन्नू दी हाजिर हो जाएंगी अपनी काशु के लिए।
जहा एक तरह कशिश का हाल इतना बुरा था। तो वही दूसरी तरफ एक छोटे से कमरे मे जहा डीम लाइट चल रही थी। वही किसी की दर्द भरी आहे सुनाई दें रही थी। उसकी वो दर्द भरी चीखे किसी के भी अंदर एक सिंहरन पैदा कर सकती थी।हल्की सी रोशनी मे एक आदमी जिसे रस्सीयो से बांध कर उल्टा लटकाया गया था।
उसके मुँह से धिमि धीमी आवाज़ आ रही थी। अह्ह्ह्ह पानी पानी कोई पानी दें दो। मुझे पानी चाहिए।उसका गला सुख रहा था। लेकिन कोई एक बून्द पानी का देने वाला वहां नहीं था। अचानक दरवाजा खुला और एक लम्बी चौड़ी परछाई अंदर की तरफ आयी।
उसी के पीछे दो और आदमी आये और उस आदमी के पास जा उस पर ठंडे पानी से भरी बाल्टी उलट दी।उस आदमी को जैसे ही ठंड का अहसास हुआ वो आदमी बेहोशी से होश मे आया। और सामने खड़े आदमी को देख रोते हुए गिड़गिड़ाने लगा बॉस छोड़ दीजिये। माफ़ कर दीजिये। मुझसे गलती हो गयी।
उसके इस तरह रोने चिल्लाने और गिड़गिड़ाने से भी उस आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वो अब भी वैसे ही बिना किसी भाव के खड़ा था।अपना एक हाथ पॉकेट मे डाले धीमे कदमो से चलता हुआ वो उस दर्द से जूझते हुए आदमी के पास आया और उसके नीचे लटक रहे राइट हैण्ड को पकड़ मरोड़ते हुए अपनी क्रूअल आवाज़ मे बोला इसी हाथ से छुआ था ना उसे
जिसे आज तक मैंने नज़र भर के देखा भी नहीं तूने उसे हाथ लगा दिया। किसने कहा था मंदिर मे मेरी मून को छूने के लिए। प्रलय सिंह राणा की मून है। वो प्रलय जिसे दुनिया king कहती है। उसी king की क्वीन है वो और तूने उसे हाथ लगाया। अब गलती की है तो सजा भी मिलनी चाहिए ना।
उसके बोलने का तरीका इतना डरावना था की उस आदमी के साथ साथ वहां खड़े दोनों आदमी भी डर गये।उनके पसीने छूट रहे थे। क्युकी वो दूसरा आदमी उन्ही का साथी था। उसके लिए उन्हें बुरा भी लग रहा था। आज एक हफ्ते से ज्यादा दिनो से उस आदमी को यहाँ टॉचर किया जा रहा था।
वो मरने की भीख मानता लेकिन उसे तिल तिल कर मौत दी जा रही थी। उसका तड़पना देख उसके साथियो का दिल पसीझ रहा था। लेकिन king का आर्डर था जिसे मानना ही पड़ता है। कोई king से बगावत नहीं कर सकता।दहशत का दूसरा नाम ही king है।
दोनों आदमी उस आदमी को देख रहे थे। और वो चिल्ला रहा था। उसका हाथ टूट गया लेकिन king ने उसे छोड़ा नहीं। दर्द से तड़पते हुए आखिरकार उस आदमी ने दम तोड़ दिया। उसकी सांसे रुक गयी। अब जा के प्रलय ने उसे छोड़ा और अपने आदमियों से कहा ब्लेंकी के सामने फेक दो इसे वैसे भी वो काफ़ी time से भूखा है।
उसकी बात पर दोनों आदमियों ने अपना सिर हा मे हिला दिया। जिसके बाद प्रलय वहां से निकल गया।
अगली सुबह...
इस समय सुबह के 6 बज रहे होंगे। राणा मेंशन मे किसी की दस्तक हुई। हई हिल्स मे खट.. खट.. खट करती एक लड़की अंदर की तरफ आयी। पिंक शार्ट ड्रेस बालो का हई पॉनिटेल बनाये वो लड़की बला की खूबसूरत लग रही थी। छोटी सी नाक पतले पिंक होंठ बड़ी बड़ी आँखे जिनमे काजल भरा था।
हाल से होते हुए वो एक कमरे की तरफ जाने लगी। अभी वो कुछ कदम ही चली थी। की पीछे से आवाज़ आयी इशू बच्चा आप चुपके चुपके किधर जा रही है। जैसे ही ये आवाज़ उस लड़की जिसका नाम इशू है उसके कानो मे पडती है। वो अपने होठो को दातो तले दबाते हुए आँखे भींच लेती है।
आगे जारी....
अब तक,
एक लड़की राणा विला में आ गई थी।वो छुप के एक रूम की तरफ जाने लगी लेकिन तभी पीछे से आवाज आई इशू बच्चे किधर जा रहे ऐसे दबे पांव उस आवाज को सुनते ही लड़की रुक जाती है।
अब आगे,
इशू धीरे धीरे पीछे की तरफ घूमती है।सामने की अनु जी खड़ी थी।उन्हें देखते ही इशू उनके पास जाते हुए कान पकड़ कर किसी छोटी बच्ची की तरह कहती है।मोम I'm sorry sorry sorry sorry please भाई को मत बताना।आप को पता है न वो कितना गुस्सा करते है।
कल मेरी फ्रेंड ने फोर्स किया था।इसी लिए मुझे रुकना पड़ा।आप भाई को नहीं बताएंगी न इस पर अनु जी हां मे सिर हिलाते हुए मुस्कुराने लगती है। जिसके बाद इशू ख़ुशी से उछलते हुए उन्हें हक़ कर लेती हैँ।
उसकी नौटंकी देख अनु जी उसके कान खींचते हुए बोली शैतान तेरी सारी सैतानी समझती हु चल अब जा अपने कमरे मे वैसे भी लड्डू आता ही होगा वो जॉगिंग के लिए जाने मे लेट नहीं होता। और अब उसका time हो गया है।
वो जिम से वापस आते ही तुम्हारे बारे मे पूछेगा इसी लिए जाओ जल्दी फ्रेस हो कर बाहर आना।उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी। की इतने मे एक रौबदार आवाज़ आती हैँ। कहा से आ रही हो प्रिंसेस ये आवाज़ सुनते ही इशू की आँखे बाहर आने को हो गयी।
इशू ने अनु जी से दूर होते हुए उस तरफ देखा जहा प्रलय खड़ा था। उसके हाथ मे बॉटल था। जिसका मतलब वो जॉगिंग के लिए जा रहा था।,
प्रलयने इशू की ओर देखा और कहा, "डॉल आप कहा से आ रही है।क्या आप पूरी रात घर से बाहर थी। उसके ऐसे पूछने से इशू डर जाती हैँ। वो अनु जी के पीछे जा कर खड़ी हो जाती हैँ।
उसको ऐसे डरते देख अनु जी प्रलय से कहती हैँ। लड्डू जाने दो बच्ची हैँ। दोस्तों के साथ थी। कल इसकी फ़्रैंड की birthday पार्टी थी। उसी के लिए पार्टी इंजॉय कर रहे थे हमें बताया भी था।जाने दो लड्डू वैसे भी अमन था इसके साथ उनके इतना कहने पर प्रलय ने बस हम्म कहा और इशू को देख कहा डॉल हमारे पास आइये।
अब इशू क्या ही करती डरते हुए वो अन्नू जी के पीछे से प्रलय के सामने आ कर खड़ी हो गयी। उसका सिर झुका हुआ था। हाथो को आपस मे उलझाये वो खड़ी थी। प्रलय ने अपना हाथ उठाया और धीरे से उसके सिर पर फेरते हुए कहा डॉल आप रूम मे जाइये।
फ्रेस हो कर रेस्ट करिये okay इशू ने हां मे गर्दन हिलाई और वहां से ऐसे भागी जैसे उसके पीछे कोई भूत पड़ा हो। अन्नू जी हसने लगी। लेकिन मजाल हैँ इशू ने एक बार भी पलट के देखा हो। वो सीधे ऊपर अपने रूम की तरह चली गयी।
उसके जाते ही प्रलय अन्नू जी से बोलता हैँ मॉम आप को पता हैँ। डॉल को रात मे बाहर जाने के लिए क्यूँ रोकता हु मै इस पर वो बोलती हैँ बेटा हम समझते हैँ। लेकिन वो बच्ची हैँ उसके साथ इतने स्ट्रिक्टली बिहेव करना सही नहीं होगा। उसकी age ही क्या हैँ। अभी 18 की हुई हैँ।
बच्ची हैँ उसे इंजॉय करने देना चाहिए। वैसे भी अमन हर वक्त उसके आस पास ही होता हैँ। और आप तो जानते ही हैँ। अमन के लिए आप की बात क्या हैँ। आप ने उन्हें responsibility दी हैँ तो वो उसे निभाएंगे हमारी इशू को एक खरोच तक नहीं आने देंगे वो। आप फ़िक्र ना करें।
ऐसे ही थोड़ी देर मे प्रलय वहां से बाहर की तरफ चला गया। और अन्नू जी कुछ सोचते हुए मंदिर मे चली गयी।
उधर इशू रूम मे जा कर बेड पर फ़ैल के बैठ गयी। और एक लम्बी सांस लेते हुए बोली अह्ह्ह्ह oh god कौन कहेगा मै इस घर की एक लौती बेटी इशिका सिंह राणा हु। इतना तो मेरे पुरे खानदान मे कोई नहीं डरता होगा जितना मै भाई से डरती हु।
हां तो सही सुना आप लोगो ने ये हैँ इशिका सिंह राणा राणा परिवार की एक लौती बेटी ये अभी 17 year की हैँ। 11th क्लास मे पढ़ती हैँ। बेहद प्यारी और मासूम नखरे छोटे बच्चो जैसे भाई की जान हैँ। मॉम डैड की प्रिंसेस घर मे सब की लाड़ली हैँ। जितनी मासूम हैँ उतनी ही शरारती भी इनकी शरारतें प्रलय के सामने ही रूकती हैँ।
तब ये बिल्कुल किसी छोटी सी बच्ची की तरह बिहेव करती हैँ।नहीं तो उसके घर से जाते ही इनकी शरारते शुरू हो जाती हैँ। आज भी ये छुप कर दोस्तों के साथ पार्टी करने गयी थी। लेकिन बेचारी फस गयी। वो तो अन्नू जी ने बचा लिया। नहीं तो प्रलय इन्हे ले कर बहुत स्ट्रिक्ट हैँ। इनकी सेफ्टी सबसे पहले आती हैँ। उसके लिए फिर चाहे इनके साथ कितना भी rud क्यूँ ना होना पड़े। खैर इशू खुद से ही बाते करते हुए बेड पर लेट गयी। और थोड़ी ही देर मे उन्हें नींद आ गयी।
एक घंटे बाद...
सब लोग ब्रेकफस्ट के लिए आ चुके थे। इन्तजार था तो बस प्रलय का क्युकी उसके बिना कभी ब्रेकफास्ट शुरू नहीं होता। दिंगविजय जी अन्नू जी की तरफ देखते हैँ। तो वो उनके बोलने से पहले ही बोलती हैँ। आज उन्हें लेट हमारी वज़ह से हुआ हैँ। अब आप उन्हें सुनाने की सोचना भी मत इस पर अवि और इशू हसने लगी। तो वही दिंगविजय जी अन्नू जी को घूरने लगे। जिसका उन पर कोई असर नहीं पड़ा।
वो चुप चाप ऊपर स्टेयर्स की तरफ देखने लगी जहा से प्रलय अपने हाथ ने ओवर कोट लिए उनकी तरफ ही आ रहा था। अन्नू जी उसे देखते हुए दिग्विजय जी से कहती हैँ। लीजिये आ गये हमारे लड्डू चलिए सुरु करिये आप को बहुत लेट हो रहा था।
प्रलय भी वहां आ हेड चेयर पर बैठ गया। सर्वेट ने ब्रेकफस्ट सर्व किया। तो सब ने अपने अपने डाइट के हिसाब से नास्ता कर लिया। सब अपने मे थे। लेकिन अवि का ध्यान प्रलय की और ही था। वो देख रहा था। प्रलय ने सिर्फ कॉफी पी हैँ। आज उसने कोई जूस या कुछ और नहीं लिया। जिसे देखते हुए वो प्रलय को समझने की कोशिस कर रहा था। आखिर क्या हैँ उस लड़की मे जिसके लिए the king इतना बेचैन हो रहा हैँ।
आगे जारी....
सब ने नाश्ता कर लिया था। अवि प्रलय के साथ ऑफिस के लिए निकल गया और दिनगविजय जी अपनी पार्टी के काम से। दरअसल, दिग्विजय जी पॉलिटिक्स से जुड़े हैं। उन्होंने कुछ समय पहले ही इसमें अपने कदम रखे और सफलता भी हासिल कर ली, लेकिन वो कहते हैं न, "जितने ऊपर जाओगे उतने गिरने वाले मिलेंगे।"
बस वहीं इनके साथ भी हुआ, इनके दुश्मनों की तादात बढ़ती गई। जिसकी वजह से आज इशू या किसी को भी बिना सिक्योरिटी बाहर जाने की परमिशन नहीं है। वैसे तो प्रलय का नाम ही काफी है दुश्मनों की पेंट गीली करने के लिए, लेकिन इशू के लिए सब बहुत पजेसिव हैं। उनकी जान हमारी नटखट इशू है।
खैर, सब अपने अपने काम लग़ गए थे। प्रलय भी अवि के साथ कार में बैठा उसी नीली आंखों वाली लड़की के बारे में ही सोच रहा था। उसकी आंखों के सामने सिर्फ वही नीली आंखें ही नजर आ रही थीं। उसकी बेचैनी कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। वो पागल होता जा रहा था। जहां वो अपनी दुनिया ने उस नीली आंखों वाली को ढूंढने में बिजी था, तो वहीं अवि रियल दुनिया में।
दोनों ही अपनी पूरी कोशिश कर रहे थे, लेकिन अब तक उसकी कोई खबर हाथ नहीं लगी।
राणा एंटरप्राइज,
उनकी कार एक बड़े से बिल्डिंग के पास आ कर रुकी जिस पर राणा एंटरप्राइज लिखा हुआ था। दोनों ऑफिस में आते हैं जहां ऐसे शांति थी जैसे कोई हो ही न। सब अपने काम को इस तरह कर रहे थे कि किसी की एक आहट तक नहीं हो रही थी। प्रलय को देखते ही सारे एंप्लॉई अपनी अपनी जगह खड़े हो जाते हैं।
लड़कियां तो उसे देखते हुए आहे भर रही थीं। कोई उसकी वाइफ बनने के ख्वाब देख रही थी, तो कोई उसके साथ वन नाइट स्टैंड के। किसी को उसकी गर्लफ्रेंड बनने का नशा था। सारी लड़कियां उस हॉट हैंडसम लड़के को देख बस आहे ही भर सकती थीं क्योंकि वो तो किसी की तरफ एक नजर तक नहीं देखता। बस सीधे लिफ्ट से होते हुए अपने कैबिन में चला जाता है।
वहां खड़ी हर एक लड़की ने भर भर के मेकअप थोप रखा था। किसी ने तो इतनी शॉर्ट ड्रेस पहन रखी थी कि डीप गले से ऊपर बॉडी पूरी तरह विजिबल हो रही थी। उन्हें देख कर कोई भी कहेगा ये ऑफिस में काम करने के लिए आई हैं। वो तो बस अपने बॉस को सड्यूस करने आई थीं। बस एक चांस के लिए यहां ताक में बैठी हैं।
खैर, प्रलय अपने कैबिन में आ कर अवि को बुलाता है। उसके बुलाने से अवि, जिसका कैबिन वही प्रलय के सामने ही था, वो आता है और एक फाइल हाथ में लिए बोलता है, "किंग अब तक सिर्फ इतना ही पता चला है कि वो हर मंडे शिव जी के मंदिर आती है। और हां, एक अनाथ आश्रम है जिसके लिए वो डोनेशन इकठ्ठा करती है। वहां के बच्चों के साथ अक्सर सिर को ढके एक लड़की को देखा गया है।"
"वो हमेशा उस आश्रम में जाती है और सब से इंपॉर्टेंट बात आपको पता है वो आश्रम किसका है।" प्रलय ने उसे इब्रोस उचकाते हुए देखा तो अवि ने आगे कहा, "वो आश्रम मॉम चलाती है, अनुप्रिया राणा।" उसकी इस बात पर प्रलय अपनी जगह से उठते हुए बोला, "फिर देर किस बात की चलो अभी हम आश्रम जाएंगे।"
उसको यूं देख अवि ने कहा, "रुक जा अभी, कहा पूरी बात तो सुन।" प्रलय उसे घूरने लगता है तो वो कंधे उचकाते हुए कहता है, "मुझे क्यूं घूर रहा है तुझे ही इतनी जल्दी है कि बिना मेरी पूरी बात सुने जाने के लिए रेडी हो गया। वो आती थी, लेकिन कुछ दिनों से आई नहीं है। क्या हुआ है क्यों नहीं आ रही इस बात की कोई खबर नहीं, ऐसा लग रहा है जैसे वो कोई मिस्ट्री है जिसके बारे में जितना जानो कम पड़ता जा रहा है।"
"मैने अपने आदमी लगाए है पर फिर भी कोई इंफॉर्मेशन नहीं मिल पा रही। वो जादू की तरह छू मंतर हो गई है। आज तक उसे किसी ने नहीं देखा बस उसका चेहरा ढकना ही एक रास्ता है कि हमें इतना पता चल सका है कि हां कोई लड़की है। जिस किसी ने भी उसे देखा है उसके पर्दे के साथ ही देखा है।"
"किसी को उसका चेहरा नहीं दिखाई दिया। वो दिन की रोशनी में बाहर आती है और शाम ढलने से पहले गायब हो जाती है। आखिर कौन हैँ ये? एक पहेली जैसे उलझती जा रही हैँ।" अवि कुछ सोचने लगता हैँ और प्रलय वहां से विंडो के पास चला जाता हैँ, जहा से पूरा मुंबई शहर दिखाई दें रहा था। सामने ही समुद्र की लहरे उसके मन मे भी एक तूफान ला रही थी।
वो उन लहरों को अपनी आँखों मे बसाते हुए उसी लड़की के बारे मे सोच रहा था। बार बार उसकी आँखों के सामने वही नीली आँखे आ रही थी। उन आँखों की वी अजीब सी शांति जो पता नहीं कितने राज बया कर रही थी। पता नहीं उनमे ऐसा क्या था जो प्रलय राणा उसके लिए इतना पागल हो रहा हैँ।
कुछ देर यूँ ही समंदर मे उठते उफानो को देखते हुए वो वही खड़ा रहा। अचानक उसके दिमाग़ मे क्या आया वो केबिन से बाहर चला गया। अवि उसे ऐसे जाते देख खुद भी उसके पीछे आया। ऑफिस से निकल कर प्रलय सीधे कार मे जाता हैँ। अवि भी जल्दी से आ फ्रंट सीट पर बैठता हैँ। उनके बैठते ही ड्राइवर कार स्टार्ट कर देता हैँ।
कुछ ही देर मे उनकी कार एक कोटेज के सामने आ कर रूकती हैँ। अवि उसे देखते ही शॉक हो जाता हैँ। वो प्रलय से बोलता हैँ, "तू यहाँ क्यूँ आया हैँ? तुझे पता हैँ ना..." अभी वो आगे कुछ और कहता उससे पहले ही प्रलय ने उसे आँखे दिखाते हुए कहा, "तुम यही रुको और अगर नहीं रुकना तो ड्राइवर लो और यहाँ निकलो।" उसका ऐसा जवाब सुन कर भी अवि को कोई फर्क नहीं पड़ा, वो वापस कार मे बैठा और वहां से निकल गया।
प्रलय भी उस कोटेज जैसे दिखने वाला छोटा से घर के अंदर चला गया।
शाम का वक़्त....
अवि और प्रलय दोनों ही मीटिंग के लिए एक हॉटेल मे आये थे। माहौल बिल्कुल सिरियस था। ये कोई नॉर्मल मीटिंग नहीं थी। बड़े बड़े माफिया अंडरवर्ल्ड डॉन यहाँ बैठे थे। सब को बस किंग के आने का इन्तजार था।
आगे जारी...।
जहां सब बैठे सिर्फ किंग के आने का इंतजार कर रहे थे, वहीं दरवाजा खुलता है, एक लंबी पर्सनालिटी वाला इंसान अंदर की तरफ आता है। उसे देखते ही सब अपनी-अपनी जगह से खड़े हो जाते हैं। यह कोई और नहीं, किंग है, जिसके रिस्पेक्ट में सब लोग खड़े हो गए, लेकिन सिर्फ नाम नहीं, ब्रांड है। जिसके नाम से पूरी दुनिया कांपती है। किसी की हिम्मत भी नहीं होती कि वह एक नजर किंग की तरफ देख भी ले। किंग अंदर आता है और जाकर अपनी किंग साइज चेयर पर बैठ जाता है। उसी के पीछे उसका राइट हैंड अवि भी आता है। उसके बैठते ही बाकी लोग भी अपनी-अपनी जगह बैठ जाते हैं और मीटिंग स्टार्ट होती है। सामने बैठे 2 आदमी, उनमें से एक बोला, "किंग, हमारे दुश्मन बढ़ते जा रहे हैं। जब से ग्रोवर खानदान से बात बिगड़ी है, उनकी वजह से हम सब पीस रहे हैं। हमें लगता है, हमें उनसे दूरी बनानी चाहिए। खबर मिली है, हमारे खिलाफ साजिश रची जा रही है। राघवेंद्र ग्रोवर पुलिस के साथ मिल चुका है और अब वह लोग मिलकर हमें बर्बाद करना चाहते हैं।"
उसकी बात सुनते हुए प्रलय, क्योंकि किंग है, वह बोला, "ऐसे आते जाते लोगों से किंग नहीं डरता। किंग की साथ तक पहुंचाने के लिए उसे 14 जन्म लेने होंगे। इस जन्म में तो वह कभी भी किंग को हरा नहीं सकता।" किंग का एटीट्यूड, उसका रुतबा ही अलग है। उसका और इतना भयानक है कि वहां बैठे लोगों के पसीने छूट रहे हैं। एक रूम में भी यह हालत है, अगर कहीं किंग ने अपनी असली औकात दिखा दी तो सोचो तुम सब का क्या होगा। जो भी किंग से उलझना चाहेगा, किंग उसे बर्बाद कर देगा। ऐसी बात बोलते हुए वह अभी की तरफ कुछ इशारा करता है, जिसे समझ कर अवी अपने हाथों में लिया हुआ सूटकेस खोलकर उसे टेबल पर रख देता है। सूटकेस के खुलते ही सबकी आंखें बाहर आने को हो जाती है। सूटकेस पूरा सोने से भरा पड़ा था।
"ऐसे देखने की जरूरत नहीं है, इसे कल तक बैंकॉक पहुंचाना है," अवी कहता है।
"अभी आप सब डिसाइड करिए कौन यह काम करेगा?" उसके पास सुनाने के बाद सब लोग आपस में बात करने लगते हैं, फिर उनमें से एक आदमी अपने हाथों पर करते हुए बोलता है, "यह काम मैं करूंगा। बैंकॉक से मेरा पुराना रिश्ता है, वहां मेरे आदमी हैं जो हमारी मदद कर सकते हैं। इसकी फिक्र करने की जरूरत नहीं है किंग, यह काम बहुत अच्छे से होगा।" उसकी बात पर किंग सर हिला देता है। बस कुछ देर तक ऐसे ही मीटिंग चलती है उसके बाद सब लोग किंग की आवाज सुनकर वहां से उठकर चले जाते हैं जो बोलता है "मीटिंग इस ओवर।" इसके बाद किसी के पास वहां रुकने की वजह नहीं थी। अपनी-अपनी जगह से उठते हैं और बाहर चले जाते हैं।
किंग भी आंखों पर सेड्स चढ़ाते हुए बाहर आता है। उसके पीछे-पीछे अभी भी था। दोनों आकर अपनी कार में बैठते हैं और उनकी कट तेज रफ्तार के साथ उस जगह से निकल जाती है। सड़क पर गाड़ियों का सिलसिला चल रहा था, तभी अचानक ड्राइवर ब्रेक लगा देता है, जिस वजह से पीछे बैक सीट पर बैठा प्रलय काम करते हुए डिस्टर्ब हो जाता है।
और चिल्लाते हुए बोलता है, "यह क्या बदतमीजी है, दिखाई नहीं देता? आंखें खराब हो गई है तो बता दो निकाल देता हूं, फिर कोई टेंशन नहीं होगी।" उसकी गुस्से भरी आवाज सुनकर आगे बैठा अभी कहता है, "चुप हो जा मेरे भाई, ड्राइवर की कोई गलती नहीं है, आगे कोई लड़की आ गई है, अगर ब्रेक नहीं लगता तो वह ऊपर पहुंच जाती। मेरा क्या जाता है, पहुंचा दो ऊपर, आधी रात में भी इन लोगों को सुकून नहीं है। मरने के लिए सिर्फ मेरी ही गाड़ी मिली है।" उसकी बातें सुनकर अभी ना में अपना सर हिला देता है जैसे कह रहा हो इसका कुछ नहीं हो सकता यह पत्थर दिल ही रहेगा। वह खुद ही कार से उतरता है और आगे जाकर देखा है जहां एक लड़की अपने पैर पकडे बैठी हुई थी। रात में भी चेहरे को दुपट्टे में छुपाए आंखों में मासूमियत के लिए वह अपने पैर को सहला रही थी, उसे देखते हुए अभी पूछता है, "क्या ओके आपको आप ठीक तो है?" उसके पूछने पर वह बैठी हुई लड़की आंखें उठाकर उसे देखती हैं और कहती है, "जी हम ठीक हैं," कहकर वह कहां से उठकर जाने लगती है कि तभी प्रलय बाहर आता है और उस लड़की को रोकते हुए कहता है, "तुम्हें समझ नहीं आता इतनी रात में इतना बड़ा घूंघट क्यों करके चल रही हो? रात में कौन तुम्हारा चेहरा देख लेगा?" उसकी आवाज में कोई नर्मता नहीं थी।
लड़की एक पल को ठिठक जाती है, उसकी आंखों में हलकी सी चमक उभरती है, जैसे उसकी आत्म-सुरक्षा जाग गई हो। वो धीमे स्वर में मगर मजबूती से कहती है, "आपका लहजा आपकी हैसियत दिखाता है, लेकिन मेरी चुप्पी मेरी मजबूरी नहीं, मेरा सब्र है।"
प्रलय थोड़ी देर उसके चेहरे को घूरता है, जैसे कुछ सोचने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन फिर अपने घमंड में डूबा हुआ बोलता है, "सबर की कीमत सिर्फ वहां होती है जहां वक्त देने वाले होते हैं। किंग की दुनिया में वक्त बिकता नहीं, खरीदा जाता है।"
अभी इस माहौल को शांत करने के लिए आगे आता है और लड़की से कहता है, "देखिए, अगर आपको कोई मदद चाहिए तो हमें बताइए, हम आपको कहीं छोड़ सकते हैं।"
लड़की अब थोड़ी सहज हो जाती है और कहती है, "हमें कहीं नहीं जाना, हम यहां अपने काम से आए हैं। आप चिंता न करें।"
इतने में उसके दुपट्टे से उसका चेहरा थोड़ा हटता है और उसकी आंखें सीधे प्रलय से टकराती हैं। कुछ ऐसा था उस नज़र में जो पहली बार प्रलय को चुप कर देता है। वो नजरें जैसे कह रही हों – “मैं वो तूफान हूं जो आपकी आंखों के सन्नाटे तोड़ सकता हूं।”
अभी महसूस करता है कि प्रलय कुछ सोच में पड़ गया है। वो जल्दी से कहता है, "ठीक है, आप ध्यान रखिएगा। अगर कुछ ज़रूरत हो तो यह मेरा नंबर है।" वो एक कार्ड लड़की की तरफ बढ़ाता है।
लड़की बिना कुछ बोले कार्ड लेती है और वहां से धीरे-धीरे चल देती है। गाड़ी में लौटते वक्त प्रलय की आंखें बार-बार उसी रास्ते की तरफ जाती हैं, जहां से वह लड़की जा रही थी। अब तक जिसे कभी किसी की परवाह नहीं थी, उसके चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी उभर आई थी।
अभी मुस्कुराता है और कहता है, "क्या बात है भाई, कोई तो है जो पत्थर में भी दरार डाल सकती है?"
प्रलय उसे घूरकर देखता है लेकिन इस बार जवाब नहीं देता, बस खामोश गाड़ी की खिड़की से बाहर देखने लगता है।
कार एक बार फिर रफ्तार पकड़ती है, लेकिन इस बार गाड़ी में एक अजीब सी खामोशी और हल्का सा उलझाव था। किंग की दुनिया में यह पहली दरार थी, जिसे एक अनजान लड़की की मासूम आंखों ने खींचा था। जब जब वो आँखे उसके सामने आती उसका यही हाल होता।
आगे जारी...।
उस लड़की के आँखों मे देखते ही प्रलय एक बार फिर उन नीली आँखों मे खो गया, वो देखता ही रह गया और वो लड़की वहां से जल्दी जल्दी अपना दुप्पटा सँभालते हुए वहां से चली गयी। वो तो चली गयी लेकिन प्रलय अब भी वही खड़ा उस तरफ देख रहा था जहाँ से वो लड़की गयी थी। उसे ऐसे एक तरफ देखता पा कर अवि बोला, "अब तुझे क्या हो गया जाने दें, वह चली गई है, वह चली गई है अब क्या उसकी जान लेकर ही रहेगा? हो गई गलती से आ गई हमारी कर के सामने, क्या हो गया हाल-चाल अब जल्दी से हमें भी घर पहुंचना है, अगर किसी को पता चल गया कि हम घर पर नहीं है तो समझ ले क्या होगा, वैसे भी अंकल तो पहले से ही गुस्सा है, अब उन्हें हमारे किए गए कारनामों के बारे में पता चला तो पक्का तेरा तो नहीं पता पर मुझे दुनिया से उठा देंगे अभी मैं मरने के कोई विचार नहीं रखता, मुझे जीने दे भाई और चल जल्दी से घर पहुंच।"
फिर कहते हुए वह प्रलय को अपने साथ लेकर कार में बैठ जाता है, उनकी कर वापस से सड़कों पर दौड़ने लगती है। क़रीब घंटे बाद सारी गाड़ियां राणा मेंशन आकर रूकती है, जिसमें से प्रलय बाहर आता है और अंदर चला जाता है, अवीभी उसके पीछे-पीछे आया था और वह भी चुपके चुपके अपने कमरे में पहुंच गया। कमरे में आकर उसने अपनी जैकेट निकाल उसे बेड पर फेंक दिया, उसके बाद खुद वॉशरूम में चला गया। क़रीब 15 मिनट बाद वो वॉशरूम से बाहर आया और बेड पर आकर लेट गया, उसके दिमाग़ में पता नहीं क्या आया, वो साइट अपनी साइट वॉलेट ड्रॉवर्स से एक तस्वीर निकलता है और उसे देखने लगता है, ये तस्वीर किसी और की नहीं मन्नत की थी।
उसे देखते हुए अवि बोला, "काश तुम उस जगह से ना होती तो आज मेरी बाहो में होती, लेकिन तुम जैसी लड़किया इज्जत के काबिल नहीं हो। तुम्हे पैरो में रहना अच्छा लगता है, अगर सिर पर सजाना चाहो तो तुम अपनी औकात भूल जाती हो।" ये सब कहते हुए उसकी आँखों में कुछ अजीब सा दिख रहा था, दिमाग़ ये सब बोले जा रहा था लेकिन दिल वो तो मानना ही नहीं चाह रहा था।
वही दूसरी तरफ प्रलय का कमरा, वो अपने कमरे की बालकनी में खड़ा उस चाँद को देखते हुए कहता है, "ये चाँद भी उन आँखों के सामने फीका है, इसकी चमक उसकी आँखों में उत्तरी है, आज तक उस चाँद का दीदार नहीं हुआ लेकिन उन आँखों में उतर कर उसे पढ़ना चाहता हूँ, पहली बार प्रलय राणा किसी में डूबना चाहता है। एक बार बस एक बार उसका दीदार हो जाए महादेव की सौगंध कभी उस चाँद पर कोई नज़र नहीं फेर पायेगा, कभी उसे खुद से दूर नहीं करूँगा काश वो मुझे मिल जाए।" ये सब सोचते हुए वो ऊपर आसमान में चमक रहे चाँद को देख रहा था।
प्रलय की आँखें चाँद पर टिकी थीं, लेकिन उसका दिल उन नीली आँखों की गहराई में डूबा हुआ था। बालकनी की ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी, मगर उसे उसका एहसास तक नहीं था। उसकी साँसें जैसे उन यादों में उलझी थीं, जो कुछ पल पहले की थीं—वो दुपट्टा सँभालती हुई लड़की, वो जल्दी-जल्दी कदम, और वो नीली आँखें जो एक पल के लिए उसकी नजरों से टकराई थीं। प्रलय ने एक गहरी साँस ली और आँखें बंद कर लीं, जैसे उस चेहरे को फिर से अपने सामने उकेरना चाहता हो।
"प्रलय! अभी तक जाग रहा है? भाई, सो जा, सुबह अंकल की क्लास लगेगी," अवि की आवाज ने उसे ख्यालों से बाहर खींचा। अवि अपने कमरे की बालकनी से झाँक रहा था, बालों में हाथ फेरते हुए।
प्रलय ने हल्का सा मुस्कुराया, लेकिन कुछ बोला नहीं। उसने बस एक नजर अवि की तरफ फेंकी और फिर चाँद की ओर देखने लगा। अवि ने सिर हिलाया, जैसे कह रहा हो, "इसका कुछ नहीं हो सकता," और बालकनी की डोर बंद करके अपने बिस्तर की ओर चला गया।
उधर, कशिश छोटे से कमरे में बैठी थी। कमरे में एक पुराना बल्ब टिमटिमा रहा था, और मेज पर रखा रोटी-सब्जी का थाल अब ठंडा हो चुका था। तभी वहां मन्नत का आना हुआ
मन्नत ने एक हल्की सी मुस्कान दी, "और कहा क्या हुआ काशु तुम ऐसे बैठी क्यूँ हो खाना ठंढा हो गया बच्चा तबियत तो ठीक है तुम्हारी?"
कशिश मन्नत को अपनी फ़िक्र करते देख बोली, "कुछ नहीं दी बस थोड़ा थक गई हूँ।" लेकिन उसकी आँखें कुछ और कह रही थीं। वो उस अनजान लड़के की नजरों को भूल नहीं पा रही थी—वो नजरें जो उसे देख रही थीं, जैसे उसे पढ़ना चाहती हों। उसने अपने दुपट्टे को कसकर पकड़ा और खिड़की की ओर देखा, जहाँ चाँद की रोशनी हल्के से कमरे में दाखिल हो रही थी।
"दी, आज चाँद कितना सुंदर लग रहा है ना?" उसने बात बदलते हुए कहा।
मन्नत ने उसकी ओर देखा, फिर मुस्कुराकर बोलीं, "हाँ, बच्चा चाँद तो हमेशा सुंदर होता है, पर आज तेरी आँखों में कुछ और ही चमक है।" कशिश ने नजरें झुका लीं, लेकिन उसका दिल तेजी से धड़क रहा था।
अगली सुबह,
राणा मेंशन में हलचल थी। प्रलय के डैड, अपने सख्त स्वभाव के लिए जाने जाते थे। नाश्ते की मेज पर उनकी भारी आवाज गूँज रही थी। "प्रलय, अवि, ये रात-रात भर बाहर घूमने की आदत छोड़ दो। ये राणा मेंशन है, कोई सैर-सपाटे का अड्डा नहीं।"
प्रलय और अवि चुपचाप नाश्ता कर रहे थे, नजरें नीचे। लेकिन प्रलय का दिमाग कहीं और था। वो उस लड़की के बारे में सोच रहा था। "पता नहीं उसका नाम क्या है," उसने मन ही मन सोचा। "क्या वो फिर मिलेगी?"
वो अपने ही दुनिया में गुम मिस्टर राणा की बातो को नज़रअंदाज कर गया। उसे ऐसे देख मिस्टर राणा अपनी वाइफ की तरफ देखते हैँ जो अपना सिर झुकाये प्लेट की तरफ देख रही थी, उन्हें देख मिस्टर राना मुँह बनाते हुए अपना नास्ता करने लगे। सब अपना अपना नाश्ता कर के वहां से चले जाते हैँ, प्रलय भी अपना फ़ोन उठा बाहर की तरफ चला गया।
आगे जारी...।
सब अपना ब्रेकफास्ट करके अपने-अपने काम के लिए निकल गए। दिग्विजय अनुप्रिया जी के साथ एनजीओ के काम से चले गए और इशू पहले ही कॉलेज चली गयी थी। प्रलय भी अवि के साथ ऑफिस के लिए निकल गया।
उनकी कार एक मॉल के सामने आकर रुकती है। कार रुकते ही गार्ड्स जल्दी से डोर ओपन करते हैं जिसके बाद बॉस प्रलय अपने ऐटिटूड के साथ उसमें से बाहर आता है। आँखों पे सेड्स चढ़ाए वो अपने सूट का बटन लगाते हुए अंदर की तरफ बढ़ता है। उसके आस-पास काफ़ी बाउन्सर चल रहे थे। अवि भी उन्ही के बीच से होते हुए प्रलय के पीछे चल रहा था। वो लोग यहां मीटिंग के लिए आए थे, ये मॉल भी प्रलय का ही था जो इशू के नाम से चल रहा था।
प्रलय के कदम मॉल के शीशे के दरवाजों की ओर बढ़े, जहां रोशनी और चमक चारों तरफ बिखरी हुई थी। मॉल का इंटीरियर शानदार था—मखमली कालीन, चमचमाते झाड़-फानूस, और दीवारों पर इशू के नाम का लोगो बड़े गर्व से उकेरा हुआ। हर कोई प्रलय को देखकर रुक जाता, कुछ एम्प्लोयी जल्दी से सिर झुकाकर उसका सम्मान करते, तो कुछ कस्टमर उत्सुकता से उसकी तरफ देखते। उसका रुतबा साफ झलकता था। अवि, जो प्रलय के पीछे-पीछे चल रहा था, अपने टैब पर कुछ नोट्स चेक करते हुए।
वे लोग लिफ्ट की ओर बढ़े, जो सीधे मॉल के टॉप फ्लोर पर बने प्रलय के पर्सनल ऑफिस की ओर जाती थी। लिफ्ट के दरवाजे खुलते ही प्रलय ने अपने सनग्लासेस उतारे और एक गहरी सांस ली।
"अवि, सब कुछ तैयार है न?" उसने बिना पलटे पूछा, उसकी आवाज में एक ठंडक थी।
"हां, बॉस," अवि ने तुरंत जवाब दिया, "मीटिंग रूम में सारे डॉक्यूमेंट्स और प्रेजेंटेशन सेट हैं। क्लाइंट्स भी बस आधे घंटे में पहुंचने वाले हैं।"
प्रलय ने हल्की-सी मुस्कान के साथ सिर हिलाया और लिफ्ट में दाखिल हुआ। जैसे ही लिफ्ट ऊपर की ओर बढ़ी, उसका दिमाग तेजी से चल रहा था। ये मीटिंग सिर्फ एक बिजनेस डील नहीं थी; ये एक नया गेम था, जिसे वो अपने तरीके से खेलने वाला था। मॉल का नाम इशू के नाम पर रखना सिर्फ एक भावनात्मक फैसला नहीं था—ये उसकी बहन के लिए एक तोहफा था, और साथ ही शहर में अपनी ताकत का एक प्रतीक भी।
लिफ्ट रुकते ही वे ऑफिस के उस हिस्से में पहुंचे, जहां विशाल कांच की खिड़कियों से शहर का नजारा साफ दिखता था। प्रलय ने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए मेज पर रखे एक फोटो फ्रेम की ओर देखा, जिसमें इशू की हंसी भरी तस्वीर थी। उसने एक पल के लिए रुककर उसे देखा, फिर अपनी नजरें मॉनिटर पर टिका दीं।
"अवि," प्रलय ने धीमे स्वर में कहा, "इस डील में कोई गलती नहीं होनी चाहिए। ये सिर्फ पैसे की बात नहीं है। ये मेरे वादे की बात है।"
अवि ने सिर हिलाया, समझते हुए कि प्रलय का हर कदम, हर फैसला सिर्फ बिजनेस नहीं, बल्कि उसकी जिंदगी के उसूलों से जुड़ा होता था। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। मीटिंग शुरू होने वाली थी।
2 आदमी ब्लैक सूट में अंदर दाखिल हुए। उन्हें देख कर अविनाश ने उन्हें बैठने का इशारा किया जिसके बाद वो दोनों प्रलय के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गए। मीटिंग शुरू हुई। कुछ देर की बातचीत के बाद वो दोनों आदमी अपनी जगह से उठे और बोले, "फिर मिलते हैं मिस्टर राणा।"
इसके बाद प्रलय ने उनसे हाथ मिलाते हुए उन्हें बाय बोला तो वो दोनों ही केबिन से निकल बाहर चले गए।
उनके जाते ही अवि ने कहा, "मुझे ये मित्तल कुछ गड़बड़ लग रहा है, इसके इरादे सिर्फ बिज़नेस से जुड़ने के नहीं कुछ और भी लग रहे है, तुझे क्या लगता है?"
उसकी बात सुनकर प्रलय अपनी कुर्सी पर लीन होते हुए कहता है, "इसका एक बेटा है जिसके लिए ही ये रास्ता बना रहा है। इसे लगता है अगर हमारे साथ इसके रिश्ते अच्छे हुए तो हम इसके बेटे की हेल्प कर सकते हैं, बिज़नेस की दुनिया का बादशाह बनने में।"
उसकी बात सुनने के बाद अवि हंसते हुए कहता है, "ओह्ह तो ये बात है तभी तो मै सोचु इस कुत्ते की दुम सीधी कैसे हो गयी।"
प्रलय और अवि दोनों ही डिस्कशन करते हुए बाहर आते हैं और प्रलय अपने लिफ्ट की तरफ जाने लगता है लेकिन तभी एक आदमी उसके पास आते हुए बोला, "सर वो आपकी लिफ्ट में अभी-अभी कुछ प्रॉब्लम हो गयी, वो जाम हो चुकी है। आपको पब्लिक लिफ्ट ही use करना पड़ेगा।"
ये कहते-कहते वो अपना सिर झुका लेता है क्यूंकि गलती उसकी थी उसने ही लिफ्ट की देख रेख सही से नहीं करी। जबकि ये उसी की जॉब थी वो बेचारा डरते हुए अपनी बात कह कर पीछे हट जाता है।
उसके चुप होते ही प्रलय की कर्कश आवाज़ आती है, "तुम्हे यहाँ किस लिए रखा गया है जब तुम अपना काम ही नहीं कर सकते तो तुम्हे फ्री की सैलरी देने का मेरा कोई मन नहीं, कल से जॉब पर मत आना।" अपनी बात बोल वो आगे बढ़ गया। वही वो आदमी हाथ जोड़ते हुए अपनी जॉब बचाने की गुहार लगता रहा। लेकिन उसकी सुनने वाला कोई नहीं था, प्रलय लिफ्ट में चला गया था।
लिफ्ट सेकंड फ्लोर पर आती है तो उसमे एक लड़की इंटर करती है, सिर पर दुपट्टा रखे उसे सँभालते हुए वो अंदर जा कर खड़ी हो जाती है। उसके अंदर आते ही लिफ्ट वापस से शुरू हो गयी। लेकिन दो मिनट बाद ही वो लिफ्ट भी रुक जाती है, उसके अचानक ऐसे रुकने से वो लड़की डर जाती है और इधर-उधर देखने लगती है।
इस वक्त वहां सिर्फ 2 लोग ही थे, वो लड़की और एक प्रलय। देखते ही देखते लिफ्ट का टेम्प्रेचर बढ़ने लगा। वहां की बढ़ती गर्मी को महसूस कर वो लड़की अपनी साँसे काबू करने की कोशिश करते हुए आगे पीछे देखने लगी और तभी उसकी नज़र अपने पीछे खड़े आदमी की आँखों से मिलती है और इसी के साथ वो जल्दी से अपनी नज़रे उस पर से हटा लेती है। नज़रो की तरकरार अभी ठीक से हुई भी नहीं थी लेकिन प्रलय को फिर से बेचैनी होने लगी उसे वही नीली आँखे याद आने लगी।
आगे जारी....