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अधूरा इश्क़

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तीन साल पहले, एक अनजानी रात में ध्रुव और तारा की ज़िंदगी एक ऐसी मोड़ से गुज़रती है, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। एक पल की नासमझी तारा की पूरी दुनिया बदल देती है — वो मां बन जाती है, पर ध्रुव को इसका कभी पता नहीं चलता। अब तीन साल बाद, जब तार...

Total Chapters (16)

Page 1 of 1

  • 1. welcome to Delhi

    Words: 1147

    Estimated Reading Time: 7 min

    फरवरी का महीना, दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट
    एक लड़की काफी देर से किसी का वेट कर रही थी!
    उसके हाथ में एक सुंदर सा फूलों का बुके था और साथ में एक छोटा सा चॉकलेट का बॉक्स! बहुत देर से इधर-उधर नजर घुमा रही थी फिर भी उसे कोई नजर नहीं आ रहा था तभी अनाउंसमेंट होती है – बेंगलुरु से दिल्ली आने वाली फ्लाइट रनवे पर आ चुकी है। वो लड़की काफी उत्सुकता से एग्जिट की तरफ अपनी नजर दौड़ाती है। 10 से 5 मिनट बाद वहां से बहुत सारे लोग निकलकर आते हैं। तभी उसको अपने सामने कुछ नजर आता है और वो जोर से हाथ हिलाकर चिल्लाती है – तारा! तारा पर नजर पड़ते ही वो लड़की जोर से चिल्लाती है – हेलो मैडम, इस तरफ! तभी कुछ लोगों का ध्यान उस तरफ जाता है।

    (तारा एक सिंपल सी सूट-सलवार में, बालों को खुला छोड़े हुए, एक हाथ में लगेज और एक हाथ में अपना फोन लेकर उस लड़की की तरफ हाथ हिलाकर ‘हाय’ का इशारा करती है।) तारा को देखकर आसपास के लोग उसकी तारीफ करने से पीछे नहीं हटते। तारा का रंग हल्का गेहुआ था पर उसकी पर्सनैलिटी को सूट करता था। दिखने में तारा एक सिंपल सी लड़की थी पर अपने स्वभाव की वजह से सब को अपनी तरफ आकर्षित कर लेती थी... तारा जोर से हाथ मिलाकर बोलती है – रूही!

    रूही और तारा एक-दूसरे के गले मिलती हैं।

    रूही: क्या मैडम, कितना टाइम लगा दिया आने में, पता है कब से वेट कर रही हूं।

    तारा: सॉरी यार, मैं क्या करती, तुझे तो मालूम ही है ना कि ट्रैवलिंग में मुझे कितनी प्रॉब्लम होती है। इसलिए मैं ट्रैवलिंग ज्यादा पसंद नहीं करती।

    रूही: हां हां, पता है तुझे ट्रैवलिंग जरा भी पसंद नहीं है, मुझे ना बता, देखा है मैंने।

    (रूही अपना साथ लाया बुके तारा को देती हुई)

    रूही: ये ले, तेरे लिए है।
    तारा बुके लेती है और रूही को थैंक यू कहती है।

    तारा उसके हाथ में लिए हुए चॉकलेट बॉक्स को देखकर कहती है –

    तारा: रूही मैडम, ये बॉक्स क्या दिखाने के लिए लाई हो? ये सारा चॉकलेट अकेले खाने का इरादा है?

    रूही (हंसते हुए): अरे नहीं यार, ये मेरे लिए नहीं है, और ज्यादा खुश मत होना – ये तेरे लिए भी नहीं है। ये तो मेरे स्वीट से बॉयफ्रेंड के लिए है।

    तारा (शॉक होते हुए): क्या? बॉयफ्रेंड? कौन बॉयफ्रेंड? और तूने मुझे बताया भी नहीं!

    रूही: वेट कर, बताऊंगी भी और मिलवा भी दूंगी। यहीं है।

    तारा: क्या? तेरा बॉयफ्रेंड यहां है? पर कहां?

    रूही: वो तेरे पीछे।

    (तारा पीछे देखती है और एकदम से उसकी हंसी निकल जाती है)

    तारा: अच्छा! तो ये तेरा बॉयफ्रेंड है! मुझे तो पता ही नहीं था कि मेरी पीठ पीछे ये खिचड़ी पक रही है!

    (तारा के लगेज का हैंडल पकड़े हुए एक छोटा सा 3 साल का बच्चा उसे ही देख रहा था! फिर उसने अपने दोनों हाथ उठाकर धीरे से तारा से बोला – मम्मा गोदी!)
    (तारा ने उसे अपनी गोदी में ले लिया और धीरे से बोली – आयु, मम्मा ने आपको बोला था ना हाथ छुड़ाकर इधर-उधर नहीं जाना... अभी खो जाते तो?)
    ये सुनकर छोटा सा आयु अपनी मां की गोदी में सिमट गया। तभी रूही ने कहा –

    रूही: हाय आयुष! कैसे हो आप?
    आयुष ने अपना सर ऊपर कर अपनी तोतली सी जबान में रूही से कहा – मैं ठीक ठीक हूं।
    तारा ने उसकी तरफ चॉकलेट का बॉक्स बढ़ाते हुए कहा – ये देखो, मैं आपके लिए चॉकलेट लेकर आई हूं। अगर आप मेरी गोदी में आओगे तो मैं आपको ये सारी चॉकलेट दे दूंगी।
    छोटे से आयुष ने कहा – नहीं, मैं मम्मा को छोड़कर नहीं जाऊंगा।
    इस पर रूही ने कहा – वो मां का भक्त है, और प्यार से उसके माथे पर एक किस कर लिया।

    रूही: चल, अब सारी बात नहीं करनी है।

    (वो दोनों एयरपोर्ट से बाहर आए। रूही ने एक कैब बुक करी और दोनों रूही के फ्लैट की तरफ रवाना हो गईं।)

    दोनों जब घर पहुंचीं तो काफी थक चुकी थीं, इसीलिए रूही ने खाना बाहर से ऑर्डर कर दिया। दोनों ने साथ में खाना खाया। फिर रूही ने तारा से कहा –

    रूही: तू काफी थक गई होगी, जा जाकर आराम कर ले। आयु भी आते ही सो गया, उसने तो कुछ खाया भी नहीं है।
    इस पर तारा ने कहा – डोंट वरी, मैं उसे बाद में खिला दूंगी।


    ---

    शाम का वक्त, रूही का फ्लैट...
    तारा बालकनी में बैठकर अपने लैपटॉप पर कुछ काम कर रही थी, तभी पीछे से रूही अपने हाथ में कॉफी लेते हुए आई और बोली –

    रूही: क्या हो गया? तेरा प्रेजेंटेशन रेडी?
    तारा रूही की तरफ देखते हुए – थोड़ा सा रह गया है, आई होप आज-कल में हो जाए।

    रूही (थोड़ी मजाकिया अंदाज में): चल यार, आज सैटरडे है, कल संडे है, मंडे को तेरा प्रेजेंटेशन है, सब कुछ अच्छा होगा। तू फिक्र मत कर। वैसे भी तेरे बॉस ने तुझे यहां पर परमानेंट ही भेजा है।

    तारा: हां पता है यार, बॉस को मुझ पर इतना ट्रस्ट है कि मैं उनके इस होटल की डील बहुत अच्छे से संभाल लूंगी। इसीलिए तो उन्होंने मुझे इतनी बड़ी अपॉर्चुनिटी दी है।

    रूही: तो तुझे किस बात की टेंशन है? तुझे तो बस उनके होटल की डील फाइनल करनी है, बात खत्म।

    तारा (थोड़ी टेंशन में): नहीं यार, बात सिर्फ इस होटल की नहीं है। इस होटल की डील पार्टनरशिप में है, और तू जानती है ना मुझे मेरे काम में किसी का भी इंटरफेरेंस पसंद नहीं।

    रूही: अरे, तू टेंशन क्यों ले रही है? तू अपने हिसाब से काम कर, तेरा पार्टनर अपने हिसाब से काम करेगा। और वैसे भी तू वहां पर अपने बॉस की रिप्रेजेंटेशन है, तो सामने वाला कैसे भी काम करे, उससे क्या फर्क पड़ता है? तू जो काम करेगी, उसकी रिपोर्ट तुझे तेरे बॉस को देनी है, ना कि सामने वाले पर्सन को।

    तारा: शायद तू ठीक कह रही है। मैं फालतू इतना सोच रही हूं। वैसे भी मुझे मेरे साथ किए गए हर काम की डिटेल मेरे बॉस को देनी है।

    (कुछ सोचते हुए तारा ने थोड़ी देर बाद कहा)
    तारा: तू टेंशन मत ले, मैं बहुत जल्दी रहने का कोई दूसरा अरेंजमेंट कर लूंगी।

    रूही (थोड़ी चिढ़ते हुए): हां हां मैडम, क्यों नहीं! तू कर लेना दूसरा अरेंजमेंट! नहीं रोकूंगी तुझे यहां पर! मैं लगती क्या हूं तेरी जो तू मेरे पास रहेगी!

    तारा (हैरानी से): अरे! ऐसे क्यों बोल रही है?

    रूही: ऐसे क्या बोल रही हूं मैं? तू ही तो कह रही है कि कहीं और रह लेगी! क्यों? मेरा घर, तेरा घर नहीं है क्या?

    तारा: ऐसी बात नहीं है यार... बस मैं अपनी वजह से तुझे परेशान नहीं करना चाहती।

    रूही: इतनी परेशानी वाली कोई बात नहीं है यार। मैं वैसे भी यहां अकेली रहती हूं। तू होगी, आयु होगा, तो प्लीज़! मुझे ऐसा लगेगा जैसे मेरी भी एक फैमिली है।

    तारा: मैं बस इतना ही बोल रही थी...

  • 2. जिंदगी की कड़वी सच्चाई।

    Words: 1488

    Estimated Reading Time: 9 min

    रूही ने कहा... इतनी परेशानी वाली कोई बात नहीं है यार, मैं वैसे भी यहां अकेली रहती हूं। तू होगी, आयु होगा, तो प्लीज मुझे ऐसा लगेगा कि मेरी भी एक फैमिली है।

    तारा ने बोला... लेकिन मैं बस इतना बोल रही हूं...

    तारा इतना ही बोल पाई थी कि इस पर रूही ने चिल्लाकर बोला — मैं कुछ नहीं सुनना चाहती। तू और आयु मेरे साथ ही रहेंगे और हां, आयु के स्कूल एडमिशन के लिए भी मैं बहुत अच्छे स्कूल सजेस्ट करूंगी। हमारी सोसाइटी के आसपास बहुत अच्छे-अच्छे स्कूल हैं, और एक्टिविटी क्लासेज भी। तुझे यहां कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। बस मैंने बोल दिया, तो बोल दिया।

    तारा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा — ओके मेरी मां।

    फिर तारा ने रूही का हाथ पकड़ कर कहा — थैंक्यू, अनजान शहर में मेरी मदद करने के लिए।

    इस पर रूही ने कहा — थैंक्यू तो मुझे तुझे कहना चाहिए था। जब बेंगलुरु में अपना कहने वाला कोई नहीं था, तब तूने मेरी कितनी हेल्प की थी। और वो सारा काम तूने ही तो मुझे सिखाया था। मैं तो बिल्कुल फ्रेशर थी वहां पर... तूने एक सच्चे दोस्त की तरह, एक बहन की तरह मेरी मदद की।

    दोनों सहेलियां ऐसी ही कुछ इधर-उधर की बातें कर रही थीं, इतने में पीछे से आयु की आवाज आई — मम्मा, मुझे भूख लगी है।

    तारा ने पीछे देखा और आयु को अपनी गोद में आने का इशारा किया। छोटा सा आयु उसकी गोद में आकर सिमट गया। तारा ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा — मेरे राजा बेटा को क्या खाना है?

    आयु ने बोला — पास्ता।

    इतना बोलकर तारा और रूही दोनों किचन की ओर चली गईं। तारा ने आयु को डाइनिंग टेबल पर बिठाया। रूही आयु के पास ही बैठी थी। तारा किचन में जाकर आयु के लिए पास्ता बनाने लगी। तभी आयु ने रूही से पूछा — मासी, आप जो मेरे लिए चॉकलेट लाई थीं, वो आप मुझे नहीं देंगी?

    इस पर रूही ने कहा — लाई तो मैं तुम्हें देने के लिए ही थी, पर मैंने कहा था ना, पहले मेरी गोदी आओ... पर तुम तो अपनी मम्मा की गोदी से उतरे ही नहीं। तो अब मैं क्यों दूं तुम्हें?

    इस पर छोटे से आयु ने अपनी आंखें मसलते हुए कहा — ओके, तो अब अगर मैं आपकी गोदी आऊंगा, तो क्या आप मुझे वो चॉकलेट दोगी?

    रूही ने कहा — ऑफर एक ही बार होती है, और अब मेरा मूड नहीं है...

    इस पर आयु का मुंह उतर गया और वो जानबूझकर अपने चेहरे पर उदासी के अजीब-अजीब एक्सप्रेशन बनाने लगा। उसका छोटा सा उदास चेहरा देखकर रूही ने कहा — ओ नौटंकी ज्यादा ना कर... रखी है तेरी चॉकलेट। चला जा मेरी गोदी में।

    इतना सुनते ही आयु झट से रूही की गोद में बैठ गया...

    रूही ने कहा — तेरी हरकतों से ना बिल्कुल नहीं लगता कि तू मेरी तारा का बेटा है... ऐसा लग रहा तेरा बाप कोई जरूर मास्टर आदमी रहा होगा।

    रूही को कुछ देर में अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसने क्या बोल दिया। उसने जैसे ही सर उठाकर तारा को देखा तो वो उसे ही देख रही थी...

    रूही सकपकाई और आवाज में कहा — सॉरी...

    तारा कुछ ना बोल पाई और चुपचाप अपना काम करने लगी... कुछ देर बाद वो आयु का पास्ता लेकर आई... उसने एक प्लेट पास्ता रूही को भी दिया... सबने मिलकर पास्ता खाया।

    रूही ने कहा — देना, मैं बाहर से ऑर्डर कर देती हूं।

    इस पर तारा ने कहा — इसकी जरूरत नहीं है, दोपहर में भी बाहर से ही खाना ऑर्डर किया था। मैं घर पर कुछ बना दूंगी।

    रूही: तुम्हीं ने कहा था यार, आज रहने देते हैं... कल से घर पर ही बना लेंगे। अभी मैं डिनर बाहर से ऑर्डर कर देती हूं... कम से कम दिल्ली में तेरा पहला दिन है, दिल्ली के स्वाद से तो हो।

    सबने डिनर किया। उसके बाद आयु एक वीडियो गेम खेलने लगा। तारा अपने लैपटॉप में कुछ कर रही थी। तभी वहां पर रूही आ गई... उसने तारा की तरफ कॉफी का मग बढ़ाते हुए कहा — तू नाराज़ है?

    तारा (अपना काम करते हुए, बिना रूही की तरफ देखे): नहीं, मैं किस बात पर नाराज़ रहूंगी...

    रूही: शाम को जब मैंने अचानक से आयु के फादर का जिक्र किया...

    तारा के हाथ जो अब तक लैपटॉप के कीबोर्ड पर चल रहे थे, वो अचानक से रुक गए...

    उसने अपने मन को शांत किया और फिर रूही से कहा — तू जानती है मुझे इस बारे में बात करना पसंद नहीं...

    रूही: सॉरी यार, वो गलती से मेरे मुंह से निकल गया। मैं सच में ऐसा कुछ नहीं बोलना चाहती थी जिससे तुझे तकलीफ हो...

    तारा: तू सॉरी क्यों बोल रही है यार... वो सवाल है जो सारी ज़िंदगी मेरा पीछा करता रहेगा... तू तो अपनी है, तुझे तो दो बातें सुना भी दूं... गैरों से क्या बोलूंगी...

    रूही: यार अगर बुरा ना माने तो एक सवाल पूछूं...

    तारा: हां पूछ...

    रूही: आयु के पापा कहां हैं?

    तारा (बहुत ही कैजुअली): पता नहीं।

    रूही: 'पता नहीं' का क्या मतलब?

    तारा: मुझे नहीं पता कि इसके पापा कहां हैं...

    वो वहां से खड़ी हुई और सबसे पहले बालकनी का गेट सटा दिया ताकि आवाज आयु को सुनाई ना दे।

    वो तारा के पास आई और बड़ी संजीदगी से पूछा — देख तारा, मैंने तुझसे कभी इस बारे में कोई सवाल नहीं पूछा... बेंगलुरु में भी जब तू बार-बार आयु को लेकर डॉक्टर के पास जाती थी, मैं थी तेरे साथ। तूने अकेले आयु को कैसे पाला है, ये मैंने देखा है... तेरी डिलीवरी से लेकर आयु की हर बात को मैंने नोटिस किया है। तूने कभी भी आयु के फादर का कोई जिक्र नहीं किया... इंसान जब भी आयु के फादर की बात करता है, तू एकदम खामोश हो जाती है... मैं जानती हूं ये तेरी पर्सनल लाइफ का सवाल है, पर यार कोई तो इंसान होगा... तू नहीं बताना चाहती, इट्स ओके... पर सवाल मेरी नहीं, बहुत लोग पूछेंगे। कल को जब आयु स्कूल जाएगा तब पूछेंगे, कॉलेज जाएगा तब पूछेंगे। इनफैक्ट एक वक्त के बाद तो आयु खुद पूछेगा कि उसके फादर कौन हैं। तब तू क्या जवाब देगी?

    इस पर तारा ने एक गहरी सांस ली...

    तारा: मैं... उसे क्या बताऊं... कि उसके फादर कौन हैं? मैं खुद नहीं जानती कि उसके फादर कौन हैं...

    जब तारा ने ये कहा कि उसे खुद नहीं पता कि आयु के फादर कौन हैं, तो एक पल के लिए जैसे रूही की सांस अटक गई... खुद को थोड़ा रिलैक्स करती हुई रूही ने दोबारा कहा —

    रूही: तू पागल है क्या? क्या बोले जा रही है? देख यार, दुनिया में सिर्फ औरत ही होती है जो ये बताती है कि उसके बच्चे का बाप कौन है... और तुझे यही नहीं पता कि तेरे बच्चे का बाप कौन है?

    तारा: हां यार, मुझे सच में नहीं पता कि आयु के फादर कौन हैं... पर यकीन मान, मैं जानना भी नहीं चाहती...

    तारा: मैं सच कह रही हूं यार, मैं नहीं जानती कि इसके फादर कौन हैं। मैं शायद दुनिया की ऐसी औरत हूं जिसे ये नहीं पता कि उसके बच्चे का बाप कौन है। और क्या फर्क पड़ता है किसके पापा कौन हैं? इतने महीने मैंने इसे अपने पेट में रखा है, ढेर सारी तकलीफें मैंने अकेले सही हैं। ये सिर्फ मेरा बेटा है, मेरे जीने का सहारा है... और अब मुझे किसी की कोई जरूरत नहीं है।

    तारा इतना बोलते-बोलते चुप हो गई।

    इस पर रूही ने पूछा — तेरी बातों से ऐसा लगता है कि कुछ तो बुरा हुआ है तेरे साथ... अगर तू मुझे अपनी दोस्त मानती है तो अपने दिल का दर्द मुझसे बयां कर सकती है... शायद इससे तेरी थोड़ी तकलीफ ही कम हो जाए।

    इस पर तारा ने कहा — क्यों कुरेद रही है मेरे उन जख्मों को, जिन्हें मैं भूलना चाहती हूं। मैं नहीं याद करना चाहती उन बीती बातों को... और ना ही उस दर्द को दोबारा जीना चाहती हूं। वो तूफान जो मेरी ज़िंदगी में आया और मेरा सब बर्बाद करके चला गया... उस तूफान के बारे में अभी सोचती हूं, तो मुझे ऐसा लगता है जैसे कल की ही तो बात है जब सब कुछ था मेरे पास... फिर अचानक से सारी चीजें एक-एक करके मेरे हाथ से ऐसे फिसल गईं जैसे मुट्ठी से रेत...

    तारा इतना कहते-कहते उसकी आंखें छलक आईं...

    रूही ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा — दर्द बांटने से कम होता है। मैं ये तो नहीं कहती कि मैं तेरा दर्द बांट सकती हूं, पर मुझे अपनी तकलीफ बताने से तेरा मन का बोझ थोड़ा हल्का होगा...

    तारा: तकलीफ तो बहुत बड़ी है यार... क्या बताऊं तुझे? मैंने उस समय क्या-क्या खोया... अपनी इज्जत, अपना स्वाभिमान, अपनी पहचान... और सबसे बड़ी चीज, मैंने अपने पापा को खोया।

    तारा अपने बीते दिनों को याद करके रोए जा रही थी। फिर उसने रूही को अपनी ज़िंदगी के उन दिनों के बारे में बताया, जिसके बारे में उसने आज तक किसी से बात नहीं की।

  • 3. तारा का रिश्ता

    Words: 1242

    Estimated Reading Time: 8 min

    फ्लैशबैक — साढ़े तीन साल पहले
    मुंबई शहर — सपनों की नगरी। मुंबई के मीरा रोड पर एक छोटी सी सोसाइटी में।
    सुबह का वक्त। एक बुजुर्ग आदमी अपने हाथ में न्यूज़पेपर लेकर किसी को आवाज़ दे रहा था —
    "आज मुझे चाय मिलेगी, या बिना चाय के ही मेरी मॉर्निंग की शुरुआत होगी?"
    तभी पीछे से आवाज़ आती है —
    "दो मिनट पापा, बना रही हूं। मॉर्निंग हुई नहीं कि आपकी चाय का सॉन्ग शुरू हो जाता है।"
    "अरे, मुझे भी मॉर्निंग में बहुत से काम होते हैं... वेट करो, बस दो मिनट।"

    मोहन जी: "अरे तारा बेटा, जब तक तेरे हाथ की चाय ना मिल जाए, मेरे दिन की शुरुआत ही नहीं होती।"

    (किचन में चाय बनाती वह लड़की कोई और नहीं बल्कि तारा थी। तारा के पिता मोहन शर्मा, एक रिटायर्ड मास्टर थे। उसकी मां का देहांत कई साल पहले हो गया था। मोहन जी ने तारा को अकेले ही मां और पिता दोनों का प्यार दिया था। तारा अपने पापा की लाडली थी। थोड़ी देर में तारा चाय की ट्रे लेकर आई।)

    मोहन जी: "तो बेटा, तुम्हारे फाइनल एग्जाम खत्म होने वाले हैं। आगे का क्या प्लान है?"

    तारा: "कुछ खास नहीं... किसी कंपनी में अच्छी सी जॉब करूंगी... और अब आपको सपोर्ट करूंगी।"

    मोहन जी (हँसते हुए): "हां हां, सपोर्ट कर लेना। फिलहाल जो मेरा सबसे बड़ा फर्ज है, उसके लिए भी तो मुझे सोचना होगा।"

    तारा (कंफ्यूज़): "कौन सा फर्ज?"

    मोहन जी: "तुम्हारी शादी का।"

    तारा (हैरानी से): "पापा, फिर आप वह बात लेकर बैठ गए? मैंने आपसे कहा ना, मुझे अभी शादी नहीं करनी। अगर मैं शादी कर लूंगी तो आपसे दूर चली जाऊंगी। फिर आपका ख्याल कौन रखेगा?"

    मोहन जी (मजाकिया अंदाज़ में): "हां यह तो बात सही है कि अगर तू चली गई तो मेरा ख्याल कौन रखेगा। एक काम करते हैं, हम घर जमाई रख लेंगे।"
    (दोनों हँसने लगते हैं।)

    मोहन जी (थोड़ा रुकते हुए): "बेटा, मज़ाक अपनी जगह है, मैं फिर भी सीरियस हूं। शायद अब तुम्हारे लिए एक जीवनसाथी ढूंढने की जरूरत है। हां, अगर तुम्हें कोई पसंद हो तो बता देना, मैं मना नहीं करूंगा।"

    तारा: "पापा, मेरी ज़िंदगी में आपकी और मेरी पढ़ाई के अलावा और कोई नहीं है। और हां, मुझे आपकी पसंद पर पूरा भरोसा है। तो आप जैसे भी मेरे लिए ढूंढेंगे, वह एक सही इंसान ही होगा। पर पापा, मैं फिर भी कह रही हूं — बहुत जल्दी हो रहा है। कम से कम मुझे एक अच्छी सी जॉब तो मिलने दीजिए, उसके बाद सोचेंगे।"

    मोहन जी: "ठीक है। तो मैं एक ऐसा लड़का ढूंढ लूंगा, जो तुम्हें जॉब करने की भी परमिशन दे... अब ठीक है?"

    तारा: "हां पापा, आप जैसा ठीक समझें।"
    (कुछ देर बाद तारा कॉलेज के लिए निकल गई...)

    कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। तारा के फाइनल एग्जाम खत्म होने को आए थे। उसी बीच मोहन जी ने तारा के लिए एक रिश्ता ढूंढा। संडे को वो लोग तारा को देखने आने वाले थे।

    रविवार का दिन — तारा का घर:
    आज तारा ने एक सिंपल सी साड़ी पहनी थी और बहुत ही लाइट मेकअप किया था। अपने बालों को उसने पफ बनाकर आधा आगे कर लिया था। आंखों में काजल, माथे पर छोटी सी बिंदिया, एक हाथ में कुछ चूड़ियां और एक हाथ में घड़ी।
    तारा का मन काफी घबरा रहा था। इतने में बाहर डोर बेल बजी। मोहन जी ने दरवाज़ा खोला। सामने तीन लोग थे।

    मोहन जी (प्यार से): "अरे आइए आइए, अंदर आइए। घर ढूंढने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई Mr. राव?"

    Mr. राव: "अरे नहीं, घर तो बहुत आसानी से मिल गया।"

    मोहन जी सबको अंदर ले आए। Mr. राव के साथ उनकी पत्नी माधुरी राव और उनका बेटा सुमित राव थे।

    (सुमित वो लड़का था जो तारा को देखने आया था। सुमित एक फेयर रंग का, हैंडसम सा लड़का था — बालों को जेल लगाकर सेट किया हुआ, कसी हुई बॉडी पर फिटिंग की शर्ट, एक हाथ में वॉच और चेहरे पर एक सुकून भरी स्माइल। सुमित एक परफेक्ट हसबैंड मटेरियल था। उसने कुछ साल आईटी कंपनी में जॉब करने के बाद अपने पापा का बिज़नेस जॉइन कर लिया था।)

    मोहन जी ने सबको सोफे पर बैठा दिया। थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करने के बाद, मोहन जी ने तारा को आवाज़ लगाई —
    "अरे बेटा, मेहमानों के लिए कुछ चाय-नाश्ता लेकर आओ।"

    तारा अपने हाथ में चाय की ट्रे लेकर आई।
    सुमित तारा को देखकर देखता ही रह गया।
    तारा ने सबको नमस्ते कहा और चाय दी।
    मोहन जी ने तारा को अपने पास बैठा लिया।
    तारा लगातार ज़मीन को घूरे जा रही थी। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि नजर उठा कर उन लोगों को देखे। एक हाथ से साड़ी का आंचल मरोड़े जा रही थी।

    माधुरी जी: "बेटा, तुमने कहां तक पढ़ाई की है?"

    तारा: "एम.ए. फाइनल ईयर।"

    Mr. Rao: "तो फ्यूचर की क्या प्लानिंग है?"

    तारा: "एमबीए या होटल मैनेजमेंट।"

    Mr. Rao: "यह तो बहुत अच्छी प्लानिंग है।"

    इसके बाद थोड़ी देर शांति छा गई। सब एक-दूसरे को देख रहे थे।

    मोहन जी: "बेटा, तुम्हें कुछ पूछना है?"

    सुमित: "नहीं अंकल जी, ऐसी कोई बात नहीं है... आप लोग आपस में डिसाइड कर लीजिए।"

    माधुरी जी: "अरे हमें थोड़ी ना शादी करनी है, शादी तो तुम दोनों ने करनी है। तो बात तुम दोनों को करनी चाहिए। मुझे तो बहू चाहिए।"

    मोहन जी (सोचते हुए): "वैसे तारा पेंटिंग भी बहुत अच्छी करती है।"

    माधुरी जी: "सच? तुम पेंटिंग करती हो?"

    तारा: "वो बस शौकिया है, ऐसा कुछ खास नहीं।"

    मोहन जी: "बेटा, सुमित को ले जाकर अपनी पेंटिंग्स दिखाओ।"

    माधुरी जी: "हां, सुमित जाओ।"

    तारा और सुमित दोनों तारा के रूम में गए। तारा ने रूम में पहुंचकर सुमित को बैठने के लिए कहा। सुमित एक चेयर पर बैठ गया और तारा दीवार के पास जाकर खड़ी हो गई।

    सुमित (पेंटिंग्स देखकर): "आप तो काफी अच्छी पेंटिंग बनाती हैं। मुझे तो ब्रश पकड़ना भी नहीं आता।"

    तारा ने इस बात पर कोई जवाब नहीं दिया।

    सुमित: "आपकी कोई और हॉबीज़?"

    तारा ने ना में गर्दन हिला दी।

    सुमित: "आपको मुझसे कुछ पूछना है?"

    तारा (थोड़ा सोचते हुए): "मेरे अलावा मेरे पापा का दुनिया में कोई भी नहीं है। उन्होंने बचपन से मुझे अकेले ही पाला है। मैं चाहती हूं शादी के बाद भी मैं पापा को वैसे ही सपोर्ट करूं जैसे मैं अब करती हूं। पापा ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है, और अब जब मेरी बारी आई कुछ करने की, तो यह सब..."

    (तारा इतना कहकर चुप हो गई।)

    सुमित (थोड़ा इधर-उधर देखकर): "तारा जी, मैं आपकी फीलिंग्स की कद्र करता हूं। आप एक बहुत सुलझी हुई लड़की हैं। और मुझे आपकी यह बात बहुत पसंद आई कि आप शादी के बाद भी अपने पापा को सपोर्ट करना चाहती हैं।
    एक काम करते हैं ना — पापा को अपने साथ ही रख लेते हैं। आप उन्हें अपने साथ ले आइए।"

    तारा इतना सुनते ही हंस पड़ी।
    तारा को हंसता देख सुमित भी हंस पड़ा।

    सुमित (थोड़ा रुककर): "तारा, मेरी भी पेरेंट्स हैं और मैं अच्छे से जानता हूं कि हम बच्चे अपने पेरेंट्स को कितना प्यार करते हैं और उनके लिए क्या-क्या करना चाहते हैं। यकीन मानो, जब मैंने आपको देखा तो मुझे लगा शायद आप ही वो लड़की हो जो मेरे पेरेंट्स को भी संभाल सकती हो।
    अगर आप मेरे पेरेंट्स के लिए इतना कर सकती हैं, तो क्या मैं आपके पापा के लिए कुछ नहीं कर सकता?
    अगर हमारा रिश्ता आगे बढ़ा, तो आपके पापा भी तो मेरे ही पापा होंगे ना?"

    सुमित इतना बोल चुका था, तारा ने उसे नजरें उठाकर देखा...

  • 4. exam

    Words: 1241

    Estimated Reading Time: 8 min

    सुमित और तारा... थोड़ी देर बाद दोनों रूम से बाहर आ गए... सुमित माधुरी जी के पास बैठ गया और तारा मोहन जी के पास... कुछ सोचकर माधुरी जी ने सुमित की तरफ इशारा किया। इशारे में पूछ रही थीं कि क्या जवाब है... सुमित ने गर्दन हिला कर हाँ कर दी। मोहन जी ने तारा से पूछ लिया, "बेटा, तुम्हारा क्या फैसला है?"

    तारा ने कहा, "पापा, जैसा आपको ठीक लगे।"

    दोनों के हाँ होने के बाद सबने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई... इसके बाद मोहन जी ने कहा, "देखिए, अगर आपकी कोई इच्छा है तो आप अभी बता दीजिए।"

    इस पर मिस्टर राव ने कहा, "देखिए मोहन जी, ये सारी बातें समाज को खोखला करती हैं। हमें आपकी बेटी बहुत पसंद आई। हमारे घर के लिए इससे अच्छी बहू हमें मिल ही नहीं सकती। और आप दौलत के रूप में अपनी इकलौती बेटी हमें दे रहे हैं... इससे कीमती चीज हमारे लिए कुछ भी नहीं है।"

    मिस्टर राव के इतना कहने पर तारा के मन में भी जो हलचल थी वो शांत हो गई। वो मन में सोचने लगी – कितने अच्छे लोग हैं, बिना किसी लेन-देन के सिर्फ लड़की को ही दहेज मानते हैं... पापा मेरे लिए इससे अच्छा लड़का ढूंढ ही नहीं सकते थे।

    तारा अपने मन में ये सोच ही रही थी कि तभी माधुरी जी की आवाज आई... उन्होंने खासते हुए कहा, "मैं... मैं बहुत सख्त हूं, याद रखना... बहुत खडूस वाली सास बनूंगी मैं..."

    माधुरी जी के इतना बोलने पर पूरे कमरे में हंसी का माहौल गूंज गया...

    माधुरी जी ने कहा, "बेटा, मैं तो मजाक कर रही थी... डरना मत। मेरी कोई बेटी नहीं है ना... तुम आओगी तो मेरी ज़िंदगी में बेटी की कमी भी पूरी होगी। नालायक तो कभी मुझे टाइम देता नहीं... तुम आओगी तो तुम्हारे साथ बहुत सारी बातें करेंगे। हम सास-बहू मिलकर इसे ठीक कर देंगे।"

    सुमित चिढ़ते हुए बोला, "मा, क्या आप भी..."

    इस पर माधुरी जी ने कहा, "अरे मैं तुझे तेरी होने वाली बीवी के सामने ही नहीं... तेरे बच्चों के सामने भी तुझे डांट दूंगी। मेरी बहू आएगी तो तू दूसरे नंबर पर चला जाएगा। मेरी बहू फर्स्ट होगी।"

    माधुरी जी के इतना कहने पर रूम में एक बार फिर सब हंसने लगे...

    चाय पीते हुए मिस्टर राव ने कहा, "मोहन जी, मैं क्या सोच रहा था... कुछ दिनों में तारा के एग्ज़ाम भी खत्म होने वाले हैं... उसके बाद क्रिसमस और न्यू ईयर की छुट्टियाँ हैं... तो क्यों ना हम क्रिसमस के आसपास सगाई कर दें... और फरवरी में शादी।"

    मोहन जी ने कहा, "जैसा आपको ठीक लगे।"

    थोड़ी और देर बात करने के बाद मिस्टर राव और उनकी फैमिली वहाँ से चले गए।

    जब वो लोग वहाँ से जा रहे थे तो तारा दरवाज़े के पास पहुँचकर मिस्टर राव और माधुरी जी के पैर छूए... सुमित को देखकर एक स्माइल दे दी। सुमित ने जाते-जाते हल्के से तारा का हाथ पकड़ लिया... और एक पल में ही छोड़ दिया। तारा थोड़ी शर्मा गई। सुमित ने धीरे से कहा, "बाय... जल्दी आऊंगा 😊"

    मोहन जी बहुत खुश थे। तारा के मन में जो बेचैनी थी वो कहीं ना कहीं अब शांत हो गई थी। उसे लगा सुमित ने उसके पापा को अपने पापा का दर्जा दिया है... सुमित एक अच्छा इंसान है... और उसके पेरेंट्स भी काफी अच्छे हैं।

    देखते-देखते दोनों की सगाई की डेट फिक्स हो गई – 24 दिसंबर, रविवार...

    तारा की कॉलेज की एग्ज़ाम खत्म हो गई थीं। आज उसका लास्ट एग्ज़ाम था... तारा के कॉलेज में कुछ ज़्यादा दोस्त नहीं थे – विकी, रोशनी और रूबी... बस यही तीनों उसके दोस्त थे...

    लास्ट एग्ज़ाम वाले दिन सभी एग्ज़ामिनेशन रूम के बाहर एक-दूसरे से बात कर रहे थे...

    रोशनी बोली, "यार, ये एग्ज़ाम का झंझट खत्म हुआ... फुल ऑन मस्ती और सोना।"

    तभी रूबी ने कहा, "सही कहा यार... एग्ज़ाम के चक्कर में तो रात-रात भर जागकर पढ़ाई की है... नींद भी पूरी नहीं हुई है... कसम से, एक महीने तक तो कुंभकरण की नींद होगी मैं।"

    विकी ने कहा, "हाँ हाँ, क्यों नहीं... तुमने अकेले ही पढ़ाई की है ना... हमने थोड़ी ना की है... मैडम, तुमने तो सिर्फ पढ़ाई की है... मैं तुम दोनों को पिक करना, ड्रॉप करना – ये सारे काम भी किए हैं।"

    इस पर तारा ने सबको चुप कराते हुए कहा, "तो अब क्योंकि एग्ज़ाम खत्म हो गए हैं, क्यों ना एक छोटा सा फंक्शन अटेंड कर लो?"

    सबने उसकी तरफ हैरानी से देखते हुए कहा, "कौन सा छोटा सा फंक्शन?"

    तारा ने कहा, "इस संडे को... मेरे घर पर।"

    रोशनी ने चौंकते हुए कहा, "संडे को क्या है, संडे को?"

    तारा ने नज़रें नीचे करते हुए कहा, "मेरी सगाई।"

    तीनों चौंक गए और एक साथ बोले, "व्हाट!?"

    तीनों ने सवालों की बारिश तारा पर छोड़ दी – "ये कब हुआ? कैसे हुआ? हमें क्यों नहीं बताया? तू ऐसा कैसे कर सकती है यार? कुछ तो बताना चाहिए था ना! अभी क्यों बता रही है? शादी के बाद बताती?"

    सबके इतने सारे सवाल पूछने पर तारा ने सबको शांत कराते हुए कहा, "अरे शांत हो जाओ, शांत हो जाओ... सब बताती हूं... कुछ दिन पहले मेरा रिश्ता तय हुआ है... और कल ही पता चला है कि रविवार को सगाई है... मुझे लगा एक बार सब तय हो जाए तो तुम्हें बताऊं... एग्ज़ाम चल रहे थे, मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहती थी... अब तुम लोग बताओ, सगाई वाले दिन आ रहे हो?"

    रूबी ने चिढ़कर कहा, "नहीं मैडम, हम तो सीधे शादी पर आएंगे।"

    रोशनी ने थोड़े नखरे दिखाते हुए कहा, "शादी पर क्यों, सीधे तेरे बच्चों के नामकरण पर आते हैं ना... तब बता देती हमें!"

    विकी ने कहा, "तारा, तू अरेंज मैरिज कर रही है? मतलब आर यू श्योर? और ये लड़का सही है तेरे लिए?"

    तारा ने कहा, "हाँ यार, मैं मिली हूं उससे... और उसकी फैमिली से भी... बहुत अच्छे लोग हैं।"

    इस पर रोशनी ने कहा, "अच्छा, तो हमारा दूधवाला भी है... बोल तो बात चलाऊं?"

    तारा ने कहा, "ज़रूरत नहीं... तेरे दूधवाले को तो अपने पास ही रख... मेरे लिए मेरे पापा ने बहुत अच्छा रिश्ता ढूंढा है... और मैंने बात की है उन लोगों से... और सुमित जी तो मेरी फीलिंग को भी समझते हैं।"

    इस पर रूबी ने चिढ़ते हुए कहा, "वो हो सुमित जी... चल चल, फोटो दिखा।"

    उसके ऐसा कहने पर तारा ने अपने फोन से सुमित की फोटो सबको दिखाई। ये वही फोटो थी जो रिश्ते के लिए तारा के पास आई थी...

    सबने देख कर कहा, "वाह यार... काफी हैंडसम है, बहुत अच्छा है।"

    तारा ने कहा, "अब क्या कह रहे हो... आ रहे हो संडे को या सीधे शादी पर आओगे?"

    रोशनी ने कहा, "मैडम, अगर हम नहीं आएंगे तो तुम्हें रेडी कौन करेगा?"

    विकी ने कहा, "यार, मेरी तरफ से कोई हेल्प हो तो बता देना।"

    तारा ने कहा, "विकी, तुम बस पापा की हेल्प कर दो... मुझे नहीं पता वो शादी की तैयारियाँ कैसे कर रहे हैं।"

    विकी ने कहा, "कोई बात नहीं... मैं शाम को घर आता हूं और अंकल से बात कर लूंगा।"


    ---

    रविवार – सगाई का दिन

    रोशनी और रूबी तारा को उसके रूम में तैयार कर रही थीं। तारा ने हल्का ग्रीन-येलो कलर का लहंगा पहना था। बहुत ही सिंपल एम्ब्रॉयडरी थी उस लहंगे पर। रोशनी ने तारा के लॉन्ग हेयर को स्टाइलिश हेयर डिज़ाइन दिया था। माथे पर मांग टीका, कानों में झुमके, मैच करता हुआ हार और हाथों में भरी हुई चूड़ियाँ... तारा आज बहुत प्यारी लग रही थी। रूबी ने तारा के कान के पीछे काला टीका भी लगा दिया था।

  • 5. engagement

    Words: 1121

    Estimated Reading Time: 7 min

    तारा के पापा ने जब तारा को देखा तो उनकी आँखों से आँसू छलक गए। तारा ने अपने पापा को प्यार से गले लगाया और कहा, "पापा अगर आप ऐसा करेंगे तो मैं अभी के अभी शादी से मना कर दूंगी।"

    मोहन जी ने कहा, "अरे नहीं पागल, ये तो खुशी के आँसू हैं। आज तुम्हारी माँ की बहुत याद आ रही है। आज अगर वो होती तो अपनी बेटी को दुल्हन बनते देख कितनी खुश होती।"

    तारा और उसके पिता तारा की माँ की तस्वीर के सामने जाते हैं। तारा वहाँ दिया जलाती है और हाथ जोड़कर अपनी माँ का आशीर्वाद लेती है। तभी बाहर से आवाज़ आती है, "लड़के वाले आ गए।" तारा के पिता बाहर जाते हुए कहते हैं, "रोशनी, रूबी, तुम इसका ध्यान रखना।"

    आज रोशनी की फैमिली भी वहाँ आई हुई थी, क्योंकि रोशनी और तारा बचपन से सहेलियाँ थीं। रूबी उन्हें कॉलेज में मिली थी, फिर भी तीनों की अच्छी बॉन्डिंग हो गई थी।

    सुमित और उसकी फैमिली लिविंग रूम में बैठते हैं। इस सगाई में कुछ गिने-चुने लोग ही आए थे। मोहन जी की तरफ से – उनके रिटायर्ड कुछ दोस्त, सोसायटी के कुछ लोग और रिश्तेदार के नाम पर तारा के मामा जी। सुमित की तरफ से – उसके पेरेंट्स, उसके मामा-मामी और उसका कजन राज। फैमिली के लोगों के बीच वो सगाई हो रही थी।

    सब लोग आकर बैठ गए। सुमित ने आज एक बहुत ही अच्छा सूट पहना था। रॉयल लुक का वो सूट उसकी पर्सनैलिटी को सूट कर रहा था। तभी वहाँ पंडित जी आ गए। उन्होंने छोटी सी पूजा की और फिर मोहन जी से कहा, "यजमान, कन्या को बुलाइए, सगाई का मुहूर्त निकला जा रहा है।"

    मोहन जी ने रूबी की तरफ इशारा किया, "जाकर तारा को ले आओ।"

    रूबी रूम में गई। रूबी और रोशनी दोनों तारा को लेकर आ गईं। सुमित तारा को देखकर एकटक देखता ही रहा। रोशनी ने तारा को सुमित के बगल में बिठाया।

    पंडित जी ने अंगूठी पर मंत्र पढ़े और कहा, "अब आप दोनों एक-दूसरे को अंगूठी पहनाइए।"

    पहले सुमित ने तारा को अंगूठी पहनाई, फिर तारा ने सुमित को अंगूठी पहनाई। इसके बाद चारों तरफ तालियों की गूंज होने लगी।

    माधुरी जी ने तारा को शगुन दिया – उसमें साड़ियाँ, कुछ गहने और कैश था। तारा ने माधुरी जी के पैर छुए। मिस्टर राव ने भी आकर आशीर्वाद दिया। माधुरी जी ने तारा के सिर पर अपनी तरफ से लाई हुई ससुराल की चुन्नी रखी।

    मोहन जी ने भी सुमित का तिलक किया, उसे गोल्ड की चेन पहनाई और उसके हाथ में कुछ शगुन नारियल के साथ रखा। सगाई का फंक्शन बहुत अच्छे से हो गया।

    सब लोग एक-दूसरे में बिज़ी हो गए। रोशनी और रूबी ने कहा, "हमें तो मिलवा दे।" तारा ने सुमित से कहा, "वो दोनों मेरी सहेलियाँ हैं – रोशनी और रूबी।"

    सुमित ने दोनों को देखकर कहा, "हेलो।" फिर सुमित ने कहा, "वो मेरा कजन है – राज।"

    तारा ने राज को देखकर कहा, "हाय राज, कैसे हो?"

    राज ने कहा, "मैं ठीक हूँ, भाभी।"

    इतने में कोई पीछे से फूलों का बड़ा सा बुके लेकर आया और चिल्लाते हुए बोला, "सॉरी सॉरी सॉरी सॉरी सॉरी... मैं थोड़ा लेट हो गया।" ये विकी था।

    विकी ने फूलों का गुलदस्ता टेबल पर रखते हुए कहा, "सॉरी यार, मैं थोड़ा लेट हो गया।"

    इस पर रूबी ने कहा, "थोड़ा नहीं, बहुत लेट हो गए... सगाई हो चुकी।"

    विकी ने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा, "धत्त तेरी की।"

    रूबी ने कहा, "तू हर किसी के फंक्शन में इतना लेट पहुंचता है... अपनी शादी पर टाइम पर पहुंचेगा... वो भी लेट आएगा... शादी तक बात पहुंचेगी भी?"

    तो विकी रौबदार आवाज़ में बोला, "सगाई का माहौल है, लोग भी मौजूद हैं... क्या बोलती हो, अंगूठी पहना दूँ तुम्हें? एक सगाई के साथ ही सगाई फ्री।"

    रोशनी इतना सुनते ही वहाँ से हँसते हुए चली गई, "हिम्मत तो है नहीं सबके सामने बोलने की, बस पीछे ही बोल सकते हो।"

    विकी उसके पीछे बोलता-बोलता चला गया। सुमित ने तारा को सवालिया नजरों से देखा। तारा ने मुस्कुराते हुए कहा, "विकी और रोशनी एक-दूसरे को डेट करते हैं।" इस पर सुमित ने मुस्कुरा दिया।

    कुछ देर बाद सभी मेहमानों के साथ बात करने में बिज़ी थे, तभी रूबी तारा के पास आई, जो उस वक्त माधुरी जी के साथ कुछ लोगों से बात कर रही थी। रूबी पीछे से आकर उसका हाथ पकड़कर उसे वहाँ से ले गई।

    तारा बोल पड़ी, "रूबी, क्या कर रही है, सब हैं यहाँ पर?"

    रूबी ने कहा, "तू बड़े-बुजुर्गों के बीच बैठकर क्या सत्संग करेगी... चल।" और वो सीधे तारा को लेकर टेरेस पर आ गई।

    वहाँ पर तो अलग ही पार्टी चल रही थी। सुमित, रोशनी, रूबी, विकी, राज – सब वहीं बैठे थे। टेबल पर बहुत सारे स्नैक्स, कूल ड्रिंक रखे हुए थे।

    रूबी सुमित के पास आकर बोली, "जीजू, आपकी मैडम को ले आई... इस पर तो ट्रीट मिलेगी ना?"

    सुमित ने कहा, "हाँ हाँ, मिल जाएगी।"

    सुमित जहाँ बैठा था, वहाँ थोड़ी स्पेस बनाकर तारा को वहाँ बैठने का इशारा करता है। तारा जैसे ही सुमित के बगल में आकर बैठती है, सभी लोग हूटिंग करने लगते हैं... इस पर तारा शर्मा जाती है।

    विकी ने कहा, "यार, तुम लोगों की शादी तो अरेंज मैरिज है, पर ऐसे सूखे-सूखे कैसे शादी हो जाएगी... एक अच्छी सी पार्टी तो होनी चाहिए ना।"

    सबने विकी का साथ दिया। रोशनी ने भी कहा, "हाँ यार, एक बैचलर पार्टी तो होनी चाहिए... तुम दोनों के नाम की।" राज ने भी सहमति जताई।

    सुमित ने कहा, "ओके, अगर सबका इतना ही मन है तो ठीक है... करते हैं छोटी सी पार्टी। बताओ, कहाँ चलना है?"

    राज ने कहा, "भाई, होटल ब्लू गार्डन में एक बहुत अच्छा क्लब है... चलो वहाँ चलते हैं। न्यू ईयर की पार्टी के लिए बहुत ज़ोर-शोर से तैयारी चल रही है।"

    विकी ने कहा, "क्या बात है ब्रो, क्या जगह चुनी है... और रीजन भी है – न्यू ईयर... पार्टी की पार्टी हो जाएगी और न्यू ईयर सेलिब्रेशन की न्यू ईयर सेलिब्रेशन... क्या बोलते हो?"

    सबने कहा, "ठीक है, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं।"

    इस पर तारा ने कहा, "लेकिन क्लब-वगैरह में क्यों जाना... कहीं नॉर्मल जगह चलते हैं ना।"

    रोशनी ने कहा, "मैडम, डोंट वरी, आपके हस्बैंड का ज़्यादा खर्चा नहीं करवाएंगे।"

    सुमित हँसते हुए बोला, "ऐसी कोई बात नहीं है... ट्रीट हमारी है, तो डोंट वरी।" सभी के चेहरे पर अलग ही खुशी थी।

    सुमित ने कहा, "डोंट वरी, मैं रहूँगा वहाँ तुम्हारे साथ।" तारा ने हाँ में सिर हिला दिया।

    विकी ने कहा, "डन – फर्स्ट न्यू ईयर की पार्टी।"

    कुछ देर इधर-उधर बात करने के बाद सब लोग नीचे आ गए। सबने खाना खाया, एक-दूसरे से हाथ मिलाए और शाम को अपने-अपने घर चले गए।

    सुमित और तारा के आज के फंक्शन की बहुत सारी फोटोज़ थीं।

  • 6. new year party

    Words: 1370

    Estimated Reading Time: 9 min

    एक हफ्ता ऐसे ही बीत गया। आज 31 दिसंबर था, साल का आखिरी दिन। कल का सूरज सबके लिए एक नया साल और नई उम्मीदों के साथ आने वाला था। कुछ की ज़िंदगियाँ बेहतर होने वाली थीं तो कुछ की ज़िंदगियों में तूफान आने वाला था। सब कल किसी और के, और आज में जी रहे थे...

    सुबह का वक़्त, तारा का घर
    तारा के घर की घंटी बजी। मोहन जी ने दरवाज़ा खोला तो एक कोरियर बॉय ने आगे उन्हें एक कोरियर दिया। उस पर "तारा शर्मा" नाम लिखा हुआ था। मोहन जी ने आवाज़ लगाई, "तारा बेटा, तुम्हारा कोरियर आया है।"

    तारा बाहर आई। उन्होंने देखा मोहन जी के हाथ में एक लिफाफा है। लिफाफा लेते हुए बोली, "वो क्या है?"
    उसने लिफाफा खोला तो उसके अंदर से एक पेपर निकला। तारा ने वो पेपर पढ़ा और खुशी के मारे मोहन जी से लिपटकर बोली, "पापा, मेरी जॉब लग गई!"

    मोहन जी हैरान हो गए, "क्या?"
    तारा ने कहा, "पापा, दो महीने पहले हमारे कॉलेज में एक जॉब चैंपियनशिप हुई थी। उसमें मैंने भी इंटरव्यू दिया था। इंडिया के बहुत अच्छे-अच्छे होटल्स ऑनर्स वहाँ आए थे। और मैंने वहाँ पर उनके सामने अपना इंटरव्यू दिया। देखो पापा, यह लेटर आया है बेंगलुरु से। वहाँ की एक बहुत अच्छी होटल कंपनी मुझे इंटर्न के साथ-साथ सैलरी भी प्रोवाइड कर रही है। मतलब काम भी सीख लूंगी और पैसे भी कमा लूंगी।"

    इस पर मोहन जी ने गंभीरता से कहा, "बेटा, बेंगलुरु? तुम बेंगलुरु कैसे जा सकती हो?"

    इस पर तारा ने कहा, "अरे बाबा, मुझे बेंगलुरु नहीं जाना है। उनकी कंपनी की ब्रांच यहाँ मुंबई में भी है। मुझे बस एक ऑनलाइन इंटरव्यू क्लियर करना है और फिर मैं उनसे मुंबई वाली ब्रांच के लिए बात कर लूंगी।"

    मोहन जी ने कहा, "बेटे, जैसा तुम्हें ठीक लगे, लेकिन एक बार सुमित से बात कर लेना।"

    "डोंट वरी पापा, मैं सुमित से बात कर लूंगी।"


    ---

    शाम का वक़्त – होटल ब्लू गार्डन
    तारा के सभी दोस्त होटल पहुँच चुके थे। राज भी वहाँ आया था। उसने आते ही सबसे पूछा, "भाभी का है?"
    रोशनी ने कहा, "अभी फोन किया था, ट्रैफिक में फँस गई है, पाँच-दस मिनट में आती होगी।"

    इतने में देखा, एक कैब होटल के बाहर आकर रुकी और उसमें से तारा उतरकर आई। आते ही बोली, "सॉरी, मैं लेट हो गई।"

    इस पर विकी ने बोला, "नहीं, हम तो अभी आए हैं।"
    राज ने कहा, "अंदर चलें।"
    तारा ने पूछा, "सुमित जी का है?"
    राज ने कहा, "भाभी, भाई का फोन आया था। उन्होंने कहा कि पार्टी इंजॉय करो, वो थोड़ा लेट आएँगे।"

    ये सुनकर सभी तारा को लेकर पार्टी हॉल में चले गए। वो क्लब था, लाउड म्यूजिक, बहुत सी जगमगाहट... रोशनी और अपनी मस्ती में नाचते लोग... तारा भी अपने ग्रुप के साथ एक जगह बैठकर इंजॉय कर रही थी।

    विकी ने हल्की ही ड्रिंक ली थी क्योंकि उसे रूबी और रोशनी को घर भी ड्रॉप करना था। राज ने भी लिमिट में ही पी थी। तीनों लड़कियों ने सिर्फ सॉफ्ट ड्रिंक ली थी।

    10:00 बजने को आए थे, सुमित अभी तक नहीं आया। तारा ने थोड़ा परेशान होकर राज से पूछा, "कहाँ रह गए हैं, अभी तक नहीं आए?"

    राज ने कहा, "मुझे नहीं पता, भाभी। बोल तो रहे थे कि दस-साढ़े दस तक आ जाऊँगा।"

    रोशनी ने बोला, "10:30 तक वेट कर ले।"
    सबने कुछ खाने के लिए मँगवा लिया। विकी और रोशनी फ्लोर पर जाकर डांस करने लगे। रूबी और तारा ने भी थोड़ा बहुत डांस किया।

    10:30 होने को आए थे... सुमित अभी तक नहीं आया। अब तारा परेशान हो गई। राज से पूछा, "अभी तक नहीं आए?"
    इस पर राज ने कहा, "भाभी, आप फोन कर लो ना।"
    रोशनी ने भी कहा, "हाँ, तू फोन कर ले।"

    तारा उठकर अपना फोन लेकर एग्जिट की तरफ जाने लगी। तभी उसने देखा कुछ दूरी पर एक लड़की ने एक वेट्रेस को जानबूझकर अपने पैर से टक्कर मार दी, और वो वेट्रेस जाकर दूसरी लड़की के ऊपर गिर गई। उसके हाथ में जो ड्रिंक था वो उस लड़की के कपड़े और हील्स पर गिर गया।

    लड़की उठी और उसने वेट्रेस को एक ज़ोरदार थप्पड़ मार दिया, और घमंडी आवाज़ में कहा, "हाउ डेयर यू? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे ऊपर ड्रिंक गिराने की? तुम्हें पता है यह ड्रेस और यह सैंडल कितनी महँगी हैं? तुम्हारी औकात नहीं है इतनी महँगी ड्रेस खराब करने की। अफ़ोर्ड नहीं कर पाओगी।"

    उस लड़की के इतने शोर-शराबे से क्लब का मैनेजर वहाँ आ गया। उसने वेट्रेस की तरफ से उस लड़की से माफ़ी माँगी। उस लड़की ने माफ़ ना करते हुए मैनेजर से कहा, "इसे जॉब से निकालो, अभी इसी वक़्त।"

    इस पर वो वेट्रेस रोनी सूरत बनाकर कहने लगी, "मैम प्लीज़, मुझे जॉब से मत निकालिए। मैं बहुत गरीब घर से हूँ, मुझे बहुत मुश्किल से ये नौकरी मिली है। प्लीज़ मैम, मुझे जॉब से मत निकालवाइए। मैं आपकी ड्रेस साफ करवा दूंगी।"

    मैनेजर ने कहा, "प्लीज़ मैडम, मैं आपसे माफ़ी माँगता हूँ। प्लीज़ आप इस लड़की को माफ कर दीजिए। आपका आज का जो भी ट्रीट है, वो हमारे क्लब की तरफ से है। आप लोग यहाँ पर आराम से इंजॉय कीजिए।"

    इतने में तारा वहाँ आ गई और उसने मैनेजर के सामने आकर कहा, "आपको माफ़ी माँगने की कोई ज़रूरत नहीं है। और न ही इस लड़की की नौकरी जाने की। माफ़ी तो इस मैडम को माँगनी चाहिए, जिसने जानबूझकर अपने ऊपर ड्रिंक गिरवाया। मैंने खुद देखा है। इसकी एक फ्रेंड ने ही जानबूझकर वेट्रेस को धक्का दिया था। इसने खुद अपनी ड्रेस खराब करवाई है।"

    इस पर वो लड़की झल्लाकर बोली, "हाउ डेयर यू! समझती क्या हो तुम अपने आपको? तुम्हें पता भी है तुम किससे बात कर रही हो?"

    तारा ने कहा, "मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं है तुम्हारी डिटेल जानने में। मैं जानना चाहती भी नहीं कि तुम कौन हो, पर किसी गरीब का मज़ाक उड़ाने का तुम्हें कोई हक नहीं है। तुम जैसी बदमाश लड़कियों से कोई ना ही बात करे तो बेहतर है। तुम्हें बस अपने पैसे का घमंड होता है। इंसान को इंसान नहीं, कीड़े-मकोड़े समझती हो। डोंट वरी, मुझे तुम जैसी को ठीक करना अच्छे से आता है।"

    तो उस लड़की ने अपने घमंडी आवाज़ में कहा, "तुम्हारी औकात नहीं है मेरे सामने खड़े रहने की।"

    तारा ने जवाब दिया, "औकात की बात मत करो तो बेहतर है। एक मामूली सी वेट्रेस से अपने ऊपर जानबूझकर ड्रिंक गिरवाया और फ्री में आज की पार्टी इंजॉय कर रही हो। क्लब से कॉम्प्लीमेंट्री मिला है ना तुम्हें? फ्री में पार्टी इंजॉय करने का अच्छा आइडिया निकाला है।"

    पर उस लड़की ने और तमतमाते हुए कहा, "मैं चाहूं तो खड़े-खड़े यह पूरा क्लब खरीद सकती हूँ।"

    तारा ने जवाब दिया, "हाँ तो खरीद लो, पर अकेले भूतों की तरह यहीं नाचते रहना। मुझे जानने में कोई इंटरेस्ट नहीं है कि तुम क्या खरीद सकती हो और क्या नहीं।"

    तारा ने कहा, "तुम जैसी दो कौड़ी की लड़की... तुम्हें पता भी है तुम किससे बात कर रही हो? मैं चाहूं तो खड़े-खड़े तुम्हें खरीद सकती हूँ।"

    तारा ने कहा, "मैं बिकने वाली चीज़ नहीं हूँ। I am priceless... हाँ, पर तुम्हारी कीमत ज़रूर लगा सकती हूँ। ब्रांडेड ड्रेस, ब्रांडेड शूज़, ब्रांडेड पर्स... तुम जैसे चलते-फिरते नमूना ही लगती हो।"

    अपने बारे में यह सुनकर उस लड़की ने तारा पर हाथ उठाने के लिए जैसे ही हाथ उठाया, तारा ने उसका हाथ पकड़कर उसकी पीठ से लगा दिया और एक ज़ोरदार धक्के के साथ उसे वहीं सोफे पर पटक दिया।

    तारा ने वॉर्निंग में कहा, "आइंदा से इस हाथ को सिर्फ ज़ुल्फें सँवारने और खाना खाने के अलावा कोई तकलीफ़ मत देना... वरना तोड़ के रख दूंगी।"

    सब खड़े होकर उन दोनों की बहस को देख रहे थे। और तारा वहाँ से चली गई।

    उसके जाने के बाद वह लड़की सोफे से उठी और यहाँ-वहाँ देखकर चिल्लाने लगी, "मेरा मुँह क्या देख रहे हो, जाओ अपना काम करो!"

    उसकी फ्रेंड उसके पास आई और उसने कहा, "नताशा, क्या था वो? इस लड़की ने तुम्हारी इतनी इंसल्ट की और तुमने उसे ऐसे ही जाने दिया?"

    नताशा ने कहा, "सिर्फ जाने दिया है... जवाब देना तो अभी बाकी है। क्या कहा था उसने? 'प्राइसलेस'? इसकी प्राइस को दो कौड़ी का ना कर दिया ना, तो मेरा भी नाम नताशा नहीं।"

    और फिर नताशा वहाँ से उस तरफ गई, जहाँ पर तारा जा रही थी...

  • 7. साजिश

    Words: 1019

    Estimated Reading Time: 7 min

    तारा बाहर आई। उसने अपना फोन निकाला और सुमित को कॉल लगा दी। तीन रिंग में सुमित ने फोन उठा लिया और तारा से कहा, "मुझे लगा ही था तुम फोन करोगी।"
    तारा ने थोड़ा अपसेट होते हुए कहा, "आप आए क्यों नहीं?"
    सुमित ने कहा, "बहुत ज़रूरी काम आ गया था... हमारी फॉरेन की क्लाइंट के साथ मुझे आज ही वीडियो कॉन्फ्रेंस करनी है, वरना बहुत बड़ी डील साइन होते-होते रह जाती।"
    तारा ने कहा, "लेकिन हम सब आपका वेट कर रहे हैं।"
    सुमित ने रिप्लाई किया, "सॉरी तारा, वह पार्टी मेरी तरफ से थी... अगर ज़रूरी नहीं होता तो मैं ज़रूर वहाँ आता..."
    तारा ने कहा, "अगर पहले बता देते तो मैं भी नहीं आती।"
    सुमित ने बोला, "अरे नहीं, मैं नहीं हूँ तो क्या हुआ, बाकी सब तो हैं ना वहाँ पर... प्लीज़ यार, तुम मेरी वजह से अपनी पार्टी खराब मत करो... तुम्हें मेरे हिस्से का भी तो इंजॉय करना है।"
    तारा ने बोला, "मुझे अच्छा नहीं लग रहा है।"
    इस पर सुमित ने जवाब दिया, "तारा प्लीज़ अपसेट मत हो। मैं यह सारा काम इसलिए जल्दी से खत्म कर रहा हूँ ताकि शादी तक मेरे पास ज़्यादा काम ना हो... और हमें हनीमून के लिए टाइम मिल जाए।"

    सुमित की यह बात सुनकर तारा थोड़ी सी शरमा गई।
    सुमित ने कहा, "कहाँ चलना है?"
    तारा ने कहा, "जहाँ आप कहें।"
    सुमित ने कहा, "शिमला?"
    तारा ने कहा, "ठीक है।"
    सुमित ने मुस्कुराते हुए "ओके" कहा।

    इतने में तारा को फोन पर किसी की आवाज़ आई — कोई लड़की सुमित से कह रही थी, "सर, हमारे फॉरेन क्लाइंट के साथ 10 मिनट में आपकी वीडियो कॉन्फ्रेंस है... सब लोग कॉन्फ्रेंस रूम में आपका वेट कर रहे हैं।"
    सुमित ने रिप्लाई किया, "ठीक है, तुम चलो, मैं आता हूँ।"
    तारा ने सुमित से कहा, "आप जाइए, अपना काम कीजिए।"
    सुमित ने कहा, "मन तो नहीं कर रहा तुमसे दूर जाने का, पर क्या करूँ, थोड़ा ज़रूरी काम है... सॉरी।"
    तारा ने कहा, "आपको सॉरी बोलने की ज़रूरत नहीं है... काम भी तो इंपॉर्टेंट है।"
    दो सेकंड तक दोनों ने फोन नहीं रखा।
    तारा ने कहा, "रखो।"
    सुमित ने बोला, "नहीं, तुम रखो।"
    तारा ने कहा, "सच्ची?"
    सुमित ने कहा, "hmm..."
    तारा फोन पर थोड़ा सा हँसी... उसकी हँसी की आवाज़ सुमित के कानों में गई।
    तारा ने कहा, "अच्छा, रखती हूँ।"
    सुमित ने कहा, "ठीक है।"
    और दोनों ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया...

    तारा वापस से अपने दोस्तों के पास आ गई। वो उधर की बातें कर रहे थे।
    इतने में राज ने कहा, "अभी मुझे जाना होगा।"
    तारा ने कहा, "लेकिन अभी? न्यू ईयर में टाइम है आधा घंटा।"
    राज ने कहा, "पता है लेकिन मेरी गर्लफ्रेंड मेरी जान खा रही है। बार-बार फोन कर रही है, कह रही है कि न्यू ईयर उसके साथ रहूँ।"
    तारा हँसी और बोली, "अरे, उसे भी साथ ले आते।"
    राज बोला, "अरे भाभी, वह आती तो सब पागल हो जाते। अभी मुझे पागल कर रही है।"
    तारा ने कहा, "चुप पागल, ऐसा नहीं कहते हैं।"

    तभी राज का फोन फिर से रिंग करने लगा।
    तारा ने हँसते हुए कहा, "तुम जाओ।"
    राज ने कहा, "ओके भाभी, पर प्लीज़ भैया को मत बताना कि मैं आपको ऐसे पार्टी में छोड़कर चला गया। भैया मेरी जान ले लेंगे।"
    तारा ने कहा, "कोई बात नहीं, मैं नहीं बताऊँगी।"

    जब राज वहाँ से उठकर जा रहा था, विकी ने कहा, "इंजॉय!"
    राज जाते हुए हँस दिया।

    थोड़ी देर और पार्टी इंजॉय करने के बाद अब न्यू ईयर को 20 मिनट रह गया था।
    तभी उनके पास एक वेटर आ गया। उसके हाथ में कोल्ड ड्रिंक की ट्रे थी।
    विकी ने कहा, "हमने ऑर्डर नहीं किया है।"
    वेटर ने कहा, "सर, यह क्लब की तरफ से है... न्यू ईयर के लिए... कॉम्प्लिमेंट्री।"

    सब ने अपनी-अपनी कोल्ड ड्रिंक उठा ली और पीने लगे।
    तारा ने भी उसमें से एक कोल्ड ड्रिंक उठाई और उसे धीरे-धीरे फिनिश करने लगी।

    जैसे ही उसकी कोल्ड ड्रिंक खत्म हुई, तारा के पास एक लड़की आई और उसके कान में कहा,
    "एक्सक्यूज़ मी मैम, क्या आप मेरी कुछ हेल्प कर सकती हैं?"

    तारा ने उसे सवालिया नज़रों से देखा।
    उस लड़की ने कहा, "मेरी ड्रेस की बैक साइड की ज़िप खुल गई है और वह लग नहीं रही है... क्या प्लीज़ आप मेरे साथ दो मिनट के लिए वॉशरूम चलेंगी?"

    तारा ने सोचा और फिर चलने को रेडी हो गई।
    तारा और वह लड़की वॉशरूम में पहुँचे। तारा ने उस लड़की की ड्रेस की ज़िप लगा दी।
    लड़की "थैंक यू" बोल कर वहाँ से चली गई।

    तारा ने अपना हैंड वॉश किया और जैसे ही जाने को मुड़ी, उसके सर में तीव्र चक्कर आया और अचानक से उसका सर घूमने लगा। वह अपने कंट्रोल में ही नहीं रह पा रही थी।
    तारा को ऐसा लग रहा था जैसे पूरी दुनिया घूम रही हो। तारा को किसी चीज़ का नशा हो रहा था। उसका सर चकरा रहा था।

    कुछ देर में उसकी आँखें लाल हो गईं।
    तारा खुद को सँभालना चाहती थी लेकिन उसके कदम साथ नहीं दे रहे थे।
    वह वॉशरूम में अकेली थी।
    वह किसी को हेल्प के लिए बुलाना चाह रही थी, पर किसी को आवाज़ देने की उसमें हिम्मत ही नहीं बची थी।

    तारा के सर में बहुत तेज़ झटका हो रहा था।
    उसने अपना सर पकड़ कर ज़मीन पर बैठ गई क्योंकि उसके पैर उसका साथ नहीं दे रहे थे।

    थोड़ा सोचकर उठी और बाहर जाने को हुई, पर यह पॉसिबल ना हो पाया।
    वह लड़खड़ाकर गिरने वाली थी... तभी एक कोमल सा हाथ ने उसे थाम लिया।
    तारा नहीं देख पाई कि वह हाथ किसका है, पर इतना महसूस कर पा रही थी कि वह बहुत ही नर्म और मुलायम हाथ हैं।

    तारा जैसे थोड़ी सँभलने को हुई, वह हाथ उसे ज़ोर से खींचकर वॉशरूम से बाहर ले गया।
    वॉशरूम से बाहर आते ही तारा ने अपना पूरा होश खो दिया।
    वह ज़मीन पर बिछ गई...

    तारा की आँखों के आगे अंधेरा छा गया।
    अब उससे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
    कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
    वह ज़मीन पर निढाल पड़ी थी।

    पार्टी में न्यू ईयर शुरू होने वाला था।
    10 की काउंटिंग पर सब एक-दूसरे को हैप्पी न्यू ईयर बोलने लगे...

  • 8. सब कुछ बदल गया

    Words: 1148

    Estimated Reading Time: 7 min

    1 जनवरी। आज की सुबह कुछ नहीं थी। आज साल का ही नया दिन नहीं था... कुछ लोगों की ज़िंदगियों में भी आज एक नई ज़िंदगी जुड़ने वाली थी। वह साल बहुत से लोगों के लिए तूफान लेकर आया था।

    सुबह के 7:00 बजे।

    धीरे-धीरे नींद की दुनिया को छोड़, वास्तविक दुनिया में आने के लिए तारा ने अपने हाथ से अपनी आंखों को मलना शुरू किया। अपने मुंह से एक उबासी लेते हुए तारा ने अपनी आंखें मलीं।
    अभी भी नींद की दुनिया से पूरी तरह से बाहर न आने पर तारा ने ऊपर सीलिंग की तरफ देखा।
    आधी नींद में, आधे होश में तारा बार-बार अपनी पलकों को झपका रही थी।
    नींद की दुनिया को छोड़, थोड़ी सी हिम्मत कर तारा जैसे ही उठने को हुई, एक दर्द के कारण वापस बेड पर गिर गई।

    तारा को लग रहा था कि उसके सर में अभी भी थोड़ा सा दर्द है।
    अपने सर को पकड़, तारा ने फिर से हिम्मत की, और जैसे ही उठकर बैठी, उसके शरीर में एक तेज़ दर्द की बिजली दौड़ गई।
    उसकी कमर में बहुत तेज़ दर्द हो रहा था।

    तारा ने जैसे ही अपनी कमर को पकड़ा, वह चौक गई।
    थोड़ा सँभल कर उसने अपने आप को होश में लाया।
    और जैसे ही उसने ब्लैंकेट के अंदर झाँका, सन्न रह गई 😳।
    तारा ने ध्यान दिया कि उसके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं है 😳😳।

    उसी पल के लिए कुछ समझ में नहीं आया।
    और जब उसने नज़रें उठाकर ऊपर देखा... और ज़्यादा हैरान हो गई।
    वह उसका कमरा नहीं था।
    वह किसी और की जगह थी।
    आलीशान सा एक कमरा — सफेद और ब्लू कलर के कॉम्बिनेशन वाला।
    जिसमें काफ़ी महंगी पेंटिंग्स और एक्सेसरीज़ रखी थीं।

    तारा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह कहाँ है।
    इधर-उधर नज़र दौड़ाई, तो अपने कपड़े ज़मीन पर और साइड के सोफे पर पड़े हुए मिले।
    तारा के दिमाग ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया था,
    क्योंकि वहाँ उसके कपड़ों के साथ-साथ जेंट्स के कपड़े भी थे।

    तारा ने जैसे ही अपनी लेफ्ट साइड देखा — यह उसके लिए दूसरा झटका था।
    उसकी दूसरी तरफ बेड पर एक हैंडसम सा आदमी सो रहा था — गोरा चेहरा, हल्के गुलाबी होंठ, बड़ी-बड़ी पलकें, माथे पर आए बाल और मस्कुलर बॉडी।

    तारा को समझने में देर नहीं लगी कि कल रात क्या हुआ था...
    तारा ने जब उस शख़्स को सोते हुए देखा, तो उसकी नज़रें अपलक उसी को देख रही थीं।
    तारा इस समय ब्लैंक हो चुकी थी।
    उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।

    जब उसकी नज़र उस आदमी की बॉडी पर गई, तो नाखूनों के और काटने के निशान साफ़ नज़र आ रहे थे।
    कई जगह हल्के नीले और बैंगनी बाइट्स भी थे।

    तारा यह सब और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
    धीरे से बेड से उतरी।
    उसने अपने कपड़े लिए और वॉशरूम में भाग गई।

    तारा ने जाकर जब वॉशरूम में अपने कपड़े पहनने चाहे, तो उसने देखा — उसके गले के आसपास लव बाइट्स थे।
    उसके चेस्ट पर कई जगह नाखूनों और दांतों के निशान थे।
    उसके शोल्डर पर भी पकड़ के निशान थे।
    लिप के पास हल्का सा कट।

    तारा इस शॉक से और ज़्यादा परेशान हो गई।
    उसने जैसे-तैसे अपने कपड़े पहने और वॉशरूम से बाहर आई।
    उसके गले के निशान अभी भी नज़र आ रहे थे।
    उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।
    उसने अपने कुछ बाल आगे कर दिए।

    तारा जब रूम में पहुँची, वह आदमी अभी भी बेड पर सो रहा था।
    तारा ने एक नज़र देखा।
    अब वहाँ उसका रहना बर्दाश्त के बाहर था।
    जल्दी से उस रूम से बाहर निकली।

    जैसे ही वह रूम से बाहर निकल लॉबी में पहुँची, तो समझने में देर नहीं लगी कि वह होटल ब्लू गार्डन है।
    वह उस होटल से जल्दी से जल्दी भाग जाना चाहती थी।
    बेसुध तारा सीधा होटल से बाहर सड़क पर भागने लगी।

    होटल से बाहर जैसे ही वह सड़क पर पहुँची, एक गाड़ी बहुत स्पीड से उसके सामने आकर रुक गई।
    तारा डर के मारे सड़क पर बैठ गई और अपना मुंह अपने घुटनों में छुपा लिया।

    गाड़ी से एक लड़का बाहर आया।
    उसने आते ही चिल्लाया, "पागल हो क्या? अगर मैं ब्रेक नहीं लगाता तो अभी एक्सीडेंट हो जाता!"

    जब तारा ने अपना सर ऊपर कर उसे देखा, तो उस लड़के को कुछ ठीक नहीं लगा।

    रिस्पेक्ट के साथ पूछा, "हैलो मैडम, आप ठीक हो?"
    तारा खड़ी हुई और इधर-उधर देख कर बस अपना सर हिला दिया।

    लड़का अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ा और उसने एक पानी की बोतल लाकर उसे पकड़ा दी।

    तारा ने बोतल लेते हुए पानी पिया।
    वह काफी घबराई हुई थी।

    उस लड़के ने फिर से पूछा, "अब ठीक हो?"
    तारा ने उसकी तरफ देखे बिना ही हाँ में सर हिला दिया।

    लड़के को तारा अभी ठीक नहीं लग रही थी।
    उसने फिर से पूछा, "क्या मैं आपकी कोई हेल्प कर सकता हूँ?"
    तारा ने ना में सर हिला दिया।
    "ओके," बोलकर लड़का वहाँ से जाने लगा।

    तारा को रियलाइज़ हुआ — उसके पास ना उसका पर्स है ना फोन।
    लड़का अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ रहा था।
    अभी उसने अपनी गाड़ी का डोर ओपन किया ही था...

    तारा ने पीछे से आवाज़ दी, "एक्सक्यूज़ मी!"
    उस लड़के ने पलट कर देखा और कहा, "यस?"
    तारा ने उदासी भरी आवाज़ में कहा, "क्या आप मेरी एक हेल्प कर सकते हैं?"

    उस लड़के ने कहा, "जी, बताइए।"
    "क्या मैं एक फोन कर सकती हूँ?"
    लड़के ने कहा, "या शो..."
    उसने अपनी जेब से मोबाइल निकाला, उसे अनब्लॉक किया और तारा के सामने रख दिया।

    तारा ने फोन लिया और सीधा रोशनी को कॉल मिला दी।
    दो रिंग के बाद रोशनी ने फोन उठा लिया।

    उधर से आवाज़ आई, "हैलो? हू इज़ दिस?"

    तारा ने बहुत ही सेंटी आवाज़ में कहा, "रोशनी, मैं बोल रही हूँ।"
    तारा की आवाज़ सुनकर रोशनी ने घबराई आवाज़ में कहा, "तारा! तू कहाँ है? हम तुझे कल रात कितना ढूंढ़ रहे थे! तू कहाँ गायब हो गई? तुझे मालूम है, हम सब कितना परेशान हो गए थे!"

    तारा ने कहा, "रोशनी, क्या तुम मुझे लेने आ सकती हो?"
    रोशनी ने हैरान होकर पूछा, "तू है कहाँ?"
    तारा ने कहा, "मैं होटल ब्लू गार्डन से थोड़ा आगे जो कॉफी शॉप है, वहाँ तेरा वेट कर रही हूँ... प्लीज़ थोड़ा जल्दी आना।"
    रोशनी ने कहा, "तू वेट कर, मैं अभी आती हूँ।"
    और कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।

    तारा ने यह सारी बातें उस लड़के से थोड़ा दूर जाकर की थीं।
    कॉल डिस्कनेक्ट होने के बाद वह उसके पास आई, उसे उसका फोन दिया और "थैंक यू" बोला।
    लड़के ने बदले में "इट्स ओके" कहा।
    लड़के ने बहुत ही पोलाइटली बोला, "मैडम, मैं आपको कहीं छोड़ दूँ?"
    तारा ने मना कर दिया और वहाँ से चली गई।

    थोड़ी ही दूरी पर एक कॉफी शॉप थी।
    तारा टेबल पर अपना सर दोनों हाथों के बीच दबाकर बैठी थी।

    10 मिनट बाद
    रोशनी वहाँ आ गई...

  • 9. सदमा

    Words: 2056

    Estimated Reading Time: 13 min

    तारा कैफ़े में बैठी रोशनी का वेट कर रही थी.. उसने जानबूझकर सबसे कोने वाली टेबल पर बैठी थी... 10 से 15 मिनट बाद रोशनी उस कैफ़े में आई... उसने एक नज़र दौड़ाई. और जब उसे तारा एक टेबल पर बैठी दिखी, तो सीधी उसी के पास बैठ गई.. तारा ने घबराई आँखों से रोशनी को देखा.. रोशनी को देखते ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे.. रोशनी ने तारा की हालत देखी... उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.. रोशनी जो स्टोल लाकर आई थी, वो उसने तारा को पहना दी.. उसे तारा की हालत देखी नहीं जा रही थी, वह बार-बार उसे यही पूछ रही थी कि आखिर हो क्या गया... पर तारा कुछ बोल ही नहीं रही थी,

    उसकी आँखों से लगातार आँसू गिर रहे थे.. रोशनी ने समझदारी दिखाई और कैब बुक कराकर तारा को सीधे अपने घर लेकर आ गई। रोशनी के पेरेंट्स जॉब करते थे, तो इस वक्त उसके घर में कोई नहीं था। रोशनी सीधी तारा को अपने रूम में ले गई। तारा सीधे भाग के वॉशरूम में गई और शावर चला कर उसके नीचे बैठ गई। जल्दबाज़ी में तारा ने वॉशरूम का डोर भी लॉक नहीं किया था। रोशनी ने जब डोर पर खड़े होकर तारा की हालत देखी, तो वह और डर गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस सिचुएशन को कैसे हैंडल करे।

    रो-रो कर तारा जब निढाल हो गई, तो रोशनी ने शावर बंद कर दिया, उसे बाहर लेकर आ गई। रोशनी ने तारा को अपने कपड़े दिए। तारा ने थोड़ी हिम्मत दिखाकर रोशनी के कपड़े पहन लिए। तारा को रोशनी ने आराम से बेड पर बिठाया, उसके हाथ में एक कॉफी का मग पकड़ाया और पूछा –

    “तारा, आखिर बात क्या है?”

    तारा अभी भी ब्लैंक थी। रोशनी ने फिर से अपना सवाल दोहराया – “तारा प्लीज़ बताओ हुआ क्या है। देख, अगर तुम मुझे नहीं बताओगी तो मैं कैसे तेरी प्रॉब्लम का सलूशन बताऊंगी? कुछ तो बोल. तू कल पूरी रात भर नहीं आई। पार्टी से कहाँ ग़ायब हो गई थी। तुझे पता है हम सब ने तुझे कितना ढूंढा।”

    तारा ने बुझी नज़रों से रोशनी को देखा, और उसने कहा – “पापा...”

    रोशनी ने कहा – “जब तू नहीं मिली, तो हमें पता था अंकल परेशान हो जाएँगे। तो मैंने उन्हें कॉल करके कह दिया कि तुम मेरे साथ मेरे घर पर हो। यकीन मान, विकी तुझे फिर भी ढूंढ रहा था। उसने सुबह 4:00 बजे तक तुझे ढूंढा। तू नहीं मिली, तो सुबह होते ही पुलिस स्टेशन जाने वाला था। इससे पहले ही तेरा फ़ोन आ गया। मैंने उसे बता दिया है कि मैं तुझे लेकर घर आ गई हूँ। विकी बस आता ही होगा। अब तू मुझे बताएगी तू कहाँ थी सारी रात?”

    तारा ने थोड़ी सी हिम्मत बाँधी और अपनी रोती हुई आवाज़ में कहा – “एयरटेल ब्लू गार्डन...”

    रोशनी ने कहा – “तो होटल में थी? हमने तो तुझे पार्टी और होटल एरिया में देखा, तो कहीं नहीं दिखी..।”

    तारा ने कहा – “कि वो एक रूम में थी...”

    रोशनी ने पूछा – “रूम में? पर तू रूम में क्या कर रही थी?”

    तारा ने कहा – “मुझे नहीं पता मैं वहाँ कैसे गई... पर रोशनी मैं वहाँ अकेली नहीं थी... कोई था मेरे साथ...”

    इस पर रोशनी ने फ़िक्र जताते हुए कहा – “कौन था?”

    तारा ने कहा – “मुझे नहीं पता वो कौन है... पर रोशनी कल रात सब खत्म हो गया... मैंने खुद को जिस हालत में देखा... मुझे खुद से नफ़रत हो रही है... कल रात वो शख़्स और मैं उस रूम में और हम सर्जिकल...”

    तारा इतना ही बोल पाई थी और उसका गला भारी हो गया... मन की आँखों से आँसू झाझर बहने लगे... रोशनी ने जब यह सुना तो वह तो सन्न रह गई... उसने तारा को दोनों हाथों से पकड़ा और धैर्य से कहा –

    “तारा... तू पागल हो गई है? क्या बोल रही है?”

    तारा ने कहा – “यही सच है...”

    तारा ने अपना स्टोल हटाया और अपने गले के बाइट्स रोशनी के सामने कर दिए... रोशनी ने जब यह देखा, एक मिनट के लिए वह साँस लेना भी भूल गई। उसने फौरन उसके गले पर दोबारा से स्टोल रख दिया... रोशनी अपना सिर पकड़ कर बैठ गई... तारा की आँखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे... उसने कहा – “मैं पापा को क्या मुँह दिखाऊँगी? मैं कैसे सबको फेस करूँगी...”

    तारा यह बोलकर रोए जा रही थी...

    रोशनी ने बहुत गहरी साँस ली और एक लंबी शांति के बाद अपना सिर उठाया और तारा से कहा – “भूल जा... तारा सब भूल जा... जो कल रात हुआ वह सब भूल जा...”

    तारा ने हैरानी से पूछा – “क्या?”

    रोशनी ने कहा – “तारा जो हुआ वह भूल जा... कल रात कुछ भी नहीं हुआ... यह बात तेरे और मेरे अलावा और कोई नहीं जानता... तो इस बात को यहीं खत्म कर दे...”

    तारा ने कहा – “रोशनी, तू क्या बोल रही है? इतनी बड़ी बात कैसे खत्म हो जाएगी?”

    रोशनी ने तारा से कहा – “अरे पागल, अगर तू यह बात सबके सामने लाएगी तो उसमें तेरी ही बदनामी है... उस आदमी को जानती भी नहीं जिसके साथ कल रात तूने रात बिताई है... तारा बात समझ... तेरी सगाई हो गई है, कुछ समय बाद शादी है... तेरे पास एक अच्छी-खासी जॉब है... सुमित जी जैसे इंसान का साथ है... एक अच्छा फ्यूचर है... तू यह सब ऐसे नहीं छोड़ सकती...”

    इस पर तारा ने कहा – “तो क्या मैं सुमित जी को धोखा दूँ?”

    रोशनी ने कहा – “तारा, अपने लिए थोड़ी सी स्वार्थी बन... प्लीज़... अगर तूने आज सबको सब कुछ बता दिया, तो सब खत्म हो जाएगा... सुमित तुझसे कभी शादी नहीं करेगा... तुझसे कोई भी कभी शादी नहीं करेगा... और तू हमेशा के लिए अपने पापा की नजरों में गिर जाएगी... और शायद इसी वजह से अंकल को अगर कुछ हो गया तो...”

    तारा एकदम सन्न रह गई...

    रोशनी ने फिर कहा – “तारा तुझे नहीं पता वो आदमी कौन है और वो तुझे ढूँढता हुआ तो आ नहीं रहा... इस बात को यहीं खत्म कर... इट्स जस्ट अ वन नाइट स्टैंड... देख तारा, तूने जो किया वो जानबूझकर नहीं किया... वो एक गलती थी... देख, अगर तू अपना सत्यवादी वाला वचन निभाएगी... यह दुनिया, यह समाज, यह लोग तुझे जीने नहीं देंगे... तारा इस बात को यहीं भूल जा... और हाँ, जहाँ तक बात रही कल रात की, तो कल रात मेरे विकी और रूबी के अलावा कोई नहीं जानता कि तू हमारे साथ नहीं थी... और उन दोनों को कैसे हैंडल करना है वह मैं जानती हूँ... तारा, तू ठंडे दिमाग से सोच... सब भूलने में ही तेरी भलाई है...”

    रोशनी उठके कबर्ड की तरफ गई। वहाँ से तारा का पर्स निकाला और तारा को पकड़ा दिया। पर्स के अंदर ही तारा का फ़ोन भी रखा हुआ था।

    रोशनी ने कहा – “तेरा पर्स, फ़ोन... तू अंकल से बात कर ले... तेरी कॉफी ठंडी हो गई है, मैं दूसरी बनाकर लाती हूँ...”

    इतना बोलकर रोशनी रूम से बाहर चली गई। तारा बहुत देर तक वैसे ही ज़मीन को घूरती रही। उसे लगा शायद रोशनी सही कह रही है। अगर उसने इस बारे में किसी को भी बताया, उसके पापा की कितनी बदनामी होगी। उसके पापा जो अपने सिद्धांत और स्वाभिमान के लिए जाने जाते थे, अगर उन्हें इस बारे में पता चलेगा तो वह जीते जी मर जाएँगे। उन्होंने तारा को कभी किसी काम के लिए नहीं रोका... सिर्फ इसी भरोसे पर कि उनकी बेटी उनके विश्वास को नहीं तोड़ेगी। और अगर वह इतना बड़ा सदमा देगी, तो शायद...

    तारा इतना सोच ही पाई थी कि तभी रूम का डोर ओपन हुआ। अंदर विकी और रूबी आए। उन्होंने तारा को देखा। रूबी फौरन तारा के गले लग गई और घबराई आवाज़ में पूछा – “तारा तू कल रात कहाँ थी?” विकी ने भी वही सवाल पूछा – “यार, तू कल रात कहाँ थी?”

    इतने में रोशनी डोर पर आई और कहा – “हॉस्पिटल।”

    विकी और रूबी ने सवालिया नज़रों से रोशनी को देखा।

    रोशनी ने कहा – “वहाँ कल होटल के बाहर किसी का एक्सीडेंट हो गया था। तुम दोनों को तो हमारी तारा की नेचर का पता ही है, वो पागल सीधे उस इंसान को लेकर हॉस्पिटल चली गई। इसके पास ना इसका फ़ोन था, ना पर्स। सुबह जब इसने मुझे फ़ोन किया तो मैं इसे हॉस्पिटल से ही लेकर आई हूँ।”

    विकी ने कहा – “ऐसी बात थी तो मुझे फ़ोन कर देती।”

    इस पर रोशनी ने कहा – “अरे, वो किसी की मदद कर रही थी... उसे क्या पता था वह खुद इतनी बड़ी प्रॉब्लम में फँस जाएगी... एक्सीडेंट केस एंड पुलिस अट ऑल... बड़ी मुश्किल से वहाँ से निकाल कर लाई हूँ।”

    विकी ने फिर पूछा – “वैसे कोई प्रॉब्लम वाली बात तो नहीं है ना? मतलब मैं बात करूँ अपने पापा से?”

    रोशनी ने कहा – “नहीं, माने सब संभाल लिया है...”

    तारा अभी भी गुमसुम बैठी हुई थी। रोशनी को लगा कहीं ये दोनों उसकी हालत को ना पहचान लें। उसने तुरंत कहा – “अरे यार, वह पूरी रात हॉस्पिटल में जाकर आई है... उसे सोने दो... चलो बाहर चलो।”

    विकी और रूबी दोनों उसके रूम से बाहर आ गए। रोशनी ने तारा के कंधे पर हाथ रखा और उसे शांत रहने का इशारा किया। तारा ने भी सहमति में अपना सिर हिला दिया।

    थोड़ी देर बाद तारा ने अपना फ़ोन निकाला, स्विच ऑन किया और अपने पापा को फ़ोन मिलाया। 2 बैल के बाद उसके पापा ने फ़ोन उठाया...

    इधर से तारा ने बहुत ही धीरे से कहा – “पापा...”

    मोहन जी ने वहाँ से रिप्लाई किया – “अरे तारा बेटा, तुम ठीक हो ना?”

    (तारा अपने पापा की आवाज़ सुन, अपने मुँह को अपने एक हाथ से बंद करके रो रही थी...)

    मोहन जी ने फिर कहा – “रोशनी का फ़ोन आया था कि तुम कल रात उसके घर पर रुकने वाली हो। देखो बेटा, मैंने कल तो हाँ कर दिया है लेकिन अब ऐसे रात-बिरात कहीं रुकना अच्छी बात नहीं है। एक महीने बाद शादी है तुम्हारी। ऐसे ही बाहर कहीं अनजान जगह पर रुकना... तुम समझ सकती हो ना।”

    तारा ने खुद को कंट्रोल किया और अपनी आवाज़ को नार्मल करने की कोशिश में धीरे से कहा – “जी पापा... सॉरी... अब ऐसा नहीं होगा।”

    मोहन जी ने कहा – “कोई बात नहीं पर तुम जल्द से जल्द घर वापस आ जाओ।... अरे हाँ, तुम्हारे ससुराल वालों का फ़ोन आया था। वो कह रहे थे, अगले हफ्ते आ रहे हैं तुम्हारे साथ शादी की कुछ ज्वेलरी की शॉपिंग करनी है। माधुरी जी का कहना है कि तुम्हें तुम्हारी पसंद की ही ज्वेलरी दिलाएँगे। तो तुम जल्दी से घर आ जाओ।”

    तारा ने जवाब दिया – “जी पापा...” और फ़ोन काट दिया।

    रोशनी के ड्राइंग रूम में, रोशनी ने विकी और रूबी को कॉफी दी और उनसे कहा – “यार यह तारा के कल रात वाली बात... प्लीज़ यह बात किसी को बताना मत। मतलब हम लोग तो समझते हैं कि हेल्प क्या होती है। पर तुम जानते हो ना यह सोसाइटी वाले...?”

    रूबी ने कहा – “ठीक कह रही हो। लड़की रात भर बाहर रहे तो ये लोग तो उल्टी-सीधी बातें करेंगे ही... फिर चाहे वह किसी भी कंडीशन में हो।”

    इसके बाद विकी ने कहा – “तो ठीक है, इस बारे में आज के बाद कोई बात नहीं होगी। सबके लिए कल रात और हमारे साथ थी।”

    इसके बाद रोशनी ने कहा – “विकी, तुम भी तारा को ढूंढ रहे थे... काफ़ी थक गए होगे। मैं एक काम करती हूँ, रूबी को घर ड्रॉप करते हुए तुम घर चले जाओ और आराम करो। मैं तुमसे कल मिलती हूँ।”

    विकी ने “ओके” कहा और रूबी और विकी दोनों वहाँ से चले गए।

    रोशनी अपने कमरे में आई। तारा अभी बेड पर बैठी हुई थी। रोशनी उसके पास आई और उसके हाथों को अपने हाथ में लिया और उससे कहा – “सब ठीक होगा। यह राज बस तेरे और मेरे बीच है... और इसे हम यहीं अभी खत्म कर देंगे। आज के बाद इस बारे में कोई बात नहीं होगी।”

    तारा ने हाँ में सिर हिलाया।

    रोशनी ने कहा – “तू आराम कर।”

    तारा ने जवाब दिया – “नहीं, मुझे घर जाना है।”

    रोशनी ने उसे रोकने की कोशिश की, पर तारा नहीं मानी। अंत में हारकर रोशनी ने कहा – “ठीक है, लेकिन मैं रोज़ तुझसे मिलने आऊँगी।”

    तारा ने कहा – “ओके।”

    रोशनी ने उसके लिए कैब बुलाई। तारा कैब में बैठकर अपने घर की तरफ़ चल दी।

  • 10. टूटा आत्मविश्वास

    Words: 1104

    Estimated Reading Time: 7 min

    तारा जब अपने घर पहुँची... उसके बाबा ब्रेकफ़ास्ट के लिए बैठे थे। जब उन्होंने तारा को दरवाज़े पर खड़ा देखा, तो तुरंत कुर्सी से उठकर उसके पास आ गए और कहा...

    "आ गई बेटा, चलो चल के नाश्ता कर लो।"

    तारा ने जब अपने बाबा को देखा, उसका मन बहुत ज़ोर से रोने का कर रहा था। तारा अपने पापा को फेस नहीं कर पा रही थी। उसने नज़रें चुराते हुए कहा...

    "पापा, मैंने रोशनी के घर में खा लिया है... प्लीज़ आप अपना नाश्ता ख़त्म करो... मैं बहुत थक गई हूँ, सोने जा रही हूँ।"

    मोहन जी ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया। तारा वहाँ से अपने रूम में चली गई। तारा आज पूरे दिन रूम से बाहर नहीं आई थी। वह तकिए में मुँह छुपा के ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी... उसकी आवाज़ बाहर ना जाए, इसीलिए उसने अपने मुँह को बंद कर रखा था।

    तारा जब पूरे दिन रूम से बाहर नहीं आई, तो शाम को मोहन जी ने उसके रूम के डोर पर नॉक किया... तारा ने अपने आँसू पोंछे। मोहन जी ने आवाज़ लगाई – "तारा बेटा, शाम हो गई है, बाहर आओ... आज तुम पूरे दिन बाहर नहीं आई... सब ठीक तो है ना?"

    तारा ने रूम से कहा – "पापा, मैं थोड़ी सी थक गई हूँ... मेरी तबीयत ठीक नहीं है... इसीलिए बस आराम करना चाहती हूँ।"

    मोहन जी ने परेशान होते हुए कहा – "तबीयत ठीक नहीं है? डॉक्टर को बुलाऊँ?"

    तारा ने जवाब दिया – "जी पापा, डॉक्टर की ज़रूरत नहीं है... थोड़ा रेस्ट करूँगी तो ठीक हो जाऊँगी।"

    मोहन जी ने कहा – "ठीक है बेटा... लेकिन तुमने सुबह से कुछ खाया भी नहीं है... कुछ खा तो लो।"

    तारा ने कहा – "पापा, मुझे भूख नहीं है... जब लगेगी तब खा लूँगी... प्लीज़ आप टेंशन मत लो।"

    मोहन जी आगे कुछ नहीं बोल पाए और अपने रूम में चले गए।

    रात का वक़्त था। तारा को अब सच में भूख लग रही थी। वह अपने रूम से निकली, किचन में अपने लिए खाना निकाला और वापस अपने रूम में आ गई। बहुत मुश्किल से एक रोटी ही खा पाई थी। अब उसकी हिम्मत जवाब दे गई थी। तारा ने अपने मन में सोचा – "अगर यह बात किसी को पता चली, तो मेरे पापा यह सदमा कभी बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे... रोशनी ठीक कह रही है... मुझे इस राज़ को राज़ ही रखना होगा... और कल से मुझे नॉर्मल बर्ताव करना होगा।"

    रात में तारा बहुत मुश्किल से सो पाई थी... उसे नए साल वाली रात याद आ रही थी... वह बहुत याद करने की कोशिश कर रही थी, पर उस शख़्स के अलावा उसे और कुछ याद नहीं आ रहा था... वह उस आदमी का चेहरा चाह कर भी नहीं भूल पा रही थी, जो उसके साथ उस बेड पर था... तारा बंद आँखों से बार-बार उसी चेहरे को याद कर रही थी... उसका पूरा चेहरा पसीने से भीग गया और वह घबराकर उठ गई...

    तारा बहुत ज़्यादा घबरा गई थी। उसने पास में रखे पानी के गिलास से एक गिलास पानी पिया... थोड़ा नॉर्मल होकर बोली –

    "मुझे उस चेहरे को भूलना होगा... मुझे वो चेहरा याद नहीं रहना चाहिए। मुझे क्यों वो इंसान बार-बार दिखाई दे रहा है?"

    तारा ने खुद से कहा – "तुमने मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी... मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूँगी... मैं नहीं जानती तुम कौन हो... और ना जानना चाहती हूँ... पर तुमने मुझसे एक रात में मेरा सब कुछ छीन लिया... मैं भगवान से दुआ करूँगी... जितनी तकलीफ़ मुझे हो रही है, उतनी ही तकलीफ़ तुम भी झेलो।"

    अपनी बुरी किस्मत को कोसते-कोसते तारा सो गई...

    अगली सुबह जब तारा उठी, तो वो पहले से ही सुबह के 11:00 बज चुके थे... तारा कभी इतनी देर तक नहीं सोती थी। मोहन जी को लगा शायद तारा की तबीयत ठीक नहीं है, इसीलिए वह इतनी देर तक सो रही है। उन्होंने भी उसे उठाना सही नहीं समझा और सोने दिया...

    तारा उठी और फ्रेश होकर रेडी हुई... तारा पूरी कोशिश कर रही थी खुद को नॉर्मल दिखाने की... पर वह पहले की तरह बिहेव नहीं कर पा रही थी... तारा की बातों में अब पहले जैसी मासूमियत नहीं रह गई थी... मोहन जी को लगा इतनी जल्दी सगाई, फिर शादी... शायद यह शादी की घबराहट की वजह से है... तो उन्होंने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया...

    रोशनी रोज़ तारा के घर आती थी... वो तारा का माइंड डाइवर्ट करने के लिए उसका ध्यान कहीं और लगाने की कोशिश करती थी। तारा थोड़ी-थोड़ी नॉर्मल होने लगी थी... पर अब उसकी बातों में बहुत ज़्यादा मैच्योरिटी आ गई थी... अब वह पहले की तरह चुलबुली नहीं रह गई थी। रोशनी इस बात को नोटिस कर चुकी थी।

    एक हफ़्ता बीत गया। आज माधुरी जी और सुमित घर आने वाले थे। तारा का दिल सुबह से ही घबरा रहा था... सुमित को कैसे फेस करेगी, उसे समझ में नहीं आ रहा था। तभी उनके घर की घंटी बजी। मोहन जी ने दरवाज़ा खोला तो सामने सुमित और माधुरी जी खड़े थे। मोहन जी उन्हें अंदर लेकर आए और सोफ़े पर बैठाते हुए कहा – “भाई साहब नहीं आए?”

    इस पर सुमित ने कहा – “पापा कुछ काम से शहर से बाहर गए हैं।”

    तारा किचन में थी। उसने एक बार भी नज़र उठाकर सुमित को नहीं देखा। और सुमित बार-बार तारा को ही देखे जा रहा था। तारा चाय लेकर आई। उसने चाय टेबल पर रखी। तारा ने माधुरी जी के पैर छुए, पर वो नज़रें उठाकर किसी को नहीं देख रही थी। उसकी नज़रें लगातार ज़मीन को ही देख रही थीं।

    माधुरी जी ने तारा को अपने पास बैठाया और मोहन जी से कहा – “भाई साहब, मैं चाहती हूँ कि शादी में तारा जो गहने पहने, वो हमारे दिए हुए हों। यह हमारे यहाँ की परंपरा है कि शादी के गहने ससुराल वालों की तरफ़ से आते हैं। अब मैं इसे अपने गहने दे देती, लेकिन मेरे गहने थोड़े ओल्ड फैशन डिज़ाइन के हैं। तो मैं चाहती हूँ कि तारा अपने लिए नए गहने बनवाए।”

    इस पर मोहन जी ने कहा – “जैसा आपको ठीक लगे बहन जी।”

    माधुरी जी ने फिर आगे कहा – “मोहन जी, अगर आपको बुरा ना लगे... तो क्या तारा और सुमित एक साथ ज्वैलर के पास जा सकते हैं? वैसे तो मैं भी चली जाती, पर आज मुझे डॉक्टर के पास जाना बहुत ज़रूरी है... इसलिए मैं चाहती हूँ कि दोनों बच्चे जाएँ और जाकर ज्वैलर के पास से डिज़ाइन फाइनल कर लें।”

    मोहन जी ने कहा – “मुझे कोई परेशानी नहीं है।” फिर उन्होंने तारा को देखकर कहा – “जाओ तारा, जाकर तैयार हो जाओ...”

    तारा चुपचाप वहाँ से उठकर अपने रूम में चली गई।


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  • 11. कन्फेक्शन

    Words: 1574

    Estimated Reading Time: 10 min

    तारा अपने रूम से रेडी होकर आई... सुमित सोफे से खड़ा हुआ। उसने मोहन जी के पैर छुए और कहा, “हम जल्दी आ जाएंगे।” सुमित तारा की तरफ बढ़ा... उसके पास जाकर कहा, “चले…” तारा बिना कुछ बोले उसके साथ चल दी। दोनों बिल्डिंग के बाहर पहुंचे। सुमित ने अपनी गाड़ी का डोर ओपन किया और तारा को बैठने का इशारा किया। तारा बिना किसी सवाल के बैठ गई। सुमित ने डोर लगाया, ड्राइविंग सीट पर जाकर बैठ गया।

    इस सफर के दौरान तारा एक भी बार सुमित को देख नहीं रही थी। गुमसुम सी बैठी थी। सुमित बार-बार तारा को देख रहा था... सोच ही रहा था कि तारा से बात शुरू करे। वो जैसे ही कुछ बोलने वाला था... तारा का फोन रिंग हुआ। तारा ने अपने पर्स से फोन निकाला। उसने देखा कि रोशनी का कॉल था। तारा ने कॉल रिसीव की और कहा, “हां बोल रोशनी।” रोशनी ने जब तारा के कॉल से गाड़ियों की आवाज सुनी, उसने तुरंत पूछा, “तू कहीं बाहर है?” तारा ने जवाब दिया, “हां, वो सुमित जी के साथ ज्वेलरी की शॉपिंग पर जा रही हूं। तुझे कुछ काम था?” रोशनी ने कहा, “ऐसा कुछ खास काम नहीं था।” कुछ सोचकर रोशनी ने कहा, “तू ठीक है ना?” रोशनी के ये बोलने पर तारा ने नजरें उठाई और सुमित को देखा। एक घृणा, एक गिल्ट, एक अफसोस ने कैसे उसे घेर लिया... वो कुछ नहीं बोल पाई और उसने फोन काट दिया। तारा का मन इस समय रोने का कर रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो सुमित को धोखा दे रही है। और वो दे भी रही थी...

    तारा के इस तरह से फोन रखने पर रोशनी को कुछ गड़बड़ लगी। उसने तुरंत मोहन जी को फोन किया और उनसे पूछा कि तारा सुमित के साथ कौन सी ज्वेलर्स के पास गई है। सुमित जी उस वक्त माधुरी जी के साथ ही बैठे थे। माधुरी जी से मोहन जी ने पूछा तो उन्होंने उसे ज्वेलर्स का नाम बता दिया।

    ज्वेलर्स की शॉप

    सुमित और तारा बैठकर ज्वेलरी देख रहे थे। या कहीं बस सुमित ही ज्वेलरी देख रहा था। सुमित कोई भी नेकलेस उठाकर तारा को दिखाता, तो तारा ओके बोलकर अपना सर हिला देती। सुमित को समझ नहीं आ रहा था कि तारा की पसंद किस तरह की होगी। उसने अपने हाथ में पड़ा नेकलेस वापस सेल्सगर्ल को दिया और तारा से कहा, “तुम्हें कहीं और जाना है? किसी और ज्वेलरी शॉप में? अगर तुम्हें यहां कुछ पसंद नहीं आ रहा है तो हम कहीं और भी चल सकते हैं।” तारा ने कहा, “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है... वो हमें गहनों का इतना शौक नहीं है, तो इसलिए हम थोड़े कंफ्यूज हो गए हैं।” सुमित थोड़ा रिलैक्स हुआ और उसने कहा, “भई इसमें कंफ्यूज वाली कौन सी बात है? तुम्हें जो हार पसंद आ रहा है, तुम रख सकती हो।” सुमित इतना बोलकर सेल्सगर्ल की तरफ मुड़ा और बोला, “दुल्हन के लिए तो सबसे बेस्ट ब्राइडल पीस आप मुझे दिखाइए।” सेल्सगर्ल, “ओके, प्लीज थोड़ा वेट कीजिए, मैं अभी लेकर आती हूं...” बोलकर चली गई।

    सुमित जब तारा को देख रहा था, वो देख रहा था कि तारा कुछ खोई खोई है। सुमित ने जैसे ही तारा के हाथ पर अपना हाथ रखा, तारा ने तुरंत अपना हाथ खींच लिया और घबराई नजरों से सुमित को देखा। सुमित ने हैरान होकर पूछा, “तुम ठीक हो? कोई प्रॉब्लम है? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?” तारा ने अपनी नजरें चुराते हुए कहा, “मैं ठीक हूं।”

    इतने में वो सेल्सगर्ल उनके लिए बहुत सुंदर नेकलेस पीस लेकर आई। सुमित ने तारा को वो पीस दिखाया और कहा, “बहुत अच्छा लगेगा तुम पर।” तारा ने वो पीस देखा। उसने कहा, “अच्छा है।” सुमित के चेहरे पर एक स्माइल आ गई। उसने कहा, “फाइनली तुम्हें कोई तो ज्वेलरी पसंद आई।” सुमित ने वो सेट सेल्सगर्ल को देते हुए कहा, “इसके साथ के इयररिंग्स और बैंगल्स रेडी हैं?” सेल्सगर्ल ने कहा, “जी सर, इसके साथ की सारी मैचिंग ज्वेलरी रेडी है... पर आपको थोड़ा वेट करना पड़ेगा, इसकी पॉलिशिंग में टाइम लगेगा।” सुमित ने कहा, “कितना टाइम लगेगा?” सेल्सगर्ल ने कहा, “30 मिनट।” उसने फिर कहा, “सर आप तब तक सामने कैफेटेरिया में बैठकर वेट कर लीजिए। जैसे ही पॉलिशिंग का काम खत्म होता है, मैं आपको खबर कर दूंगी।” सुमित ने कहा, “ओके, हम वहीं वेट कर रहे हैं।”

    सुमित और तारा दोनों वहां से उठकर उसी शॉप के सामने एक ओपन कैफेटेरिया में एक सीट पर बैठ गए। सुमित ने दो कॉफी का ऑर्डर दिया। सुमित ने तारा से कहा, “तुम ठीक हो?” तारा ने सर हां में हिलाया। सुमित को तारा का बिहेवियर कुछ अजीब लग रहा था। सुमित ने तारा से फिर पूछा, “मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम कुछ अजीब बर्ताव कर रही हो? कोई बात है? तुम कुछ परेशान लग रही हो?” सुमित की बात सुनकर तारा को अपना दिल भारी होता नजर आ रहा था।

    सुमित ने तारा से फिर कहा, “देखो तारा, हम दोनों लाइफ पार्टनर बनने वाले हैं। मैं अपनी लाइफ पार्टनर से उम्मीद करता हूं कि वो अपनी जिंदगी का हर छोटा-बड़ा दुख मेरे साथ शेयर करे। अगर मैं उसे उसकी जिंदगी में खुशियां ही नहीं दे पाऊंगा, तो मैं तुम्हें एक अच्छा जीवन साथी कैसे साबित होऊंगा? प्लीज तारा, अगर कोई ऐसी बात है जो तुम्हें परेशान कर रही है, तो प्लीज मुझे बताओ। अपना मंगेतर समझ के ना सही, अपना दोस्त समझ कर ही सही। अगर तुम मुझ पर इतना ट्रस्ट नहीं कर सकती, तो किस भरोसे मुझसे शादी कर रही हो?”

    तारा के मन में न जाने क्या आया। उसने सुमित की तरफ देखा और उससे कहा, “सुमित, मुझे आपसे बहुत जरूरी बात करनी है।”
    सुमित ने कहा, “हां बोलो, मैं तुम्हारी सारी बातें सुनने को तैयार हूं। सुमित ये बात सुनकर शायद आप मुझसे नाराज़ हो जाएं, या हो सकता है कि आप ये रिश्ता भी तोड़ दें।”
    सुमित अब थोड़ा परेशान हो गया। उसने तारा से कहा, “पागल हो क्या? क्या बकवास कर रही हो? ऐसी कौन सी बात है जो हमारे रिश्ते को खत्म कर सकती है?”
    तारा ने कहा, “ये बात इतनी बड़ी है कि ये सच में हमारे रिश्ते को खत्म कर सकती है।”
    सुमित ने आराम से कहा, “तारा, कोई बात इतनी बड़ी नहीं हो सकती जो हमारा रिश्ता तोड़ दे। तुम बेफिक्र होकर मुझे बताओ क्या बात है।”

    तारा ने आंखें बंद कर ली... एक गहरी सांस ली, और खुद के अंदर सुमित को सच बताने की हिम्मत जुटाई। उसने अपनी बंद आंखों को खोला और अपनी लड़खड़ाई आवाज में बोलना शुरू किया,
    “सुमित... न्यू ईयर की रात...”
    तारा इतना बोल कर चुप हो गई।
    सुमित ने फिर पूछा, “क्या हुआ था न्यू ईयर की रात?”
    तारा ने फिर से थोड़ी हिम्मत इकट्ठा की। तारा की जुबान लड़खड़ा रही थी... तारा ने बोलना शुरू किया,
    “सुमित, न्यू ईयर की रात होटल ब्लू गार्डन में... पार्टी में...”
    “इसने बहुत ज्यादा ड्रिंक कर ली थी।” आवाज पीछे से आई।

    तारा और सुमित ने जब पीछे देखा, तो वहां रोशनी खड़ी थी।
    रोशनी तेज कदमों से तारा और सुमित के टेबल पर आई और उनके साथ वाली चेयर पर बैठ गई।
    “सुमित जी, तारा इसीलिए आपसे घबरा रही थी। उसे लगा कि जब आपको उसके ड्रिंक करने की बात का पता चलेगा तो आप उससे नाराज़ होंगे। पर मेरा विश्वास कीजिए, इसने जानबूझकर नहीं पी थी। हम सारे दोस्तों ने इसे जबरदस्ती पिलाया था। हम चाहते थे कि हमारी आखिरी पार्टी में तारा भी थोड़ा इंजॉय करे। इसने तो साफ मना कर दिया था, पर हम लोगों की शैतानी की वजह से ये बेचारी फंस गई... और आप तो जानते हैं ना, मिडिल क्लास फैमिली के वैल्यू... लड़की ने थोड़ी सी ड्रिंक क्या कर ली तो उसे इतनी बुरी नजरों से देखते हैं। बस इसी बात से तारा घबरा रही थी, कि अगर आपको पता चल गया कि इसने ड्रिंक की है तो शायद आप इससे रिश्ता तोड़ देंगे।”

    सुमित ने 2 मिनट का पॉज लिया... और एकदम से हंसने लगा 😄😄। उसने तारा की तरफ देखा और कहा, “तुम इस बात से डर रही थी?”
    तारा ने हैरान नजरों से सुमित की तरफ देखा।
    सुमित ने फिर से कहा, “अरे इसमें कौन सी बड़ी बात है? पार्टी-वगैरह में तो ये सब चलता ही रहता है। तो क्या हुआ अगर एक बार दोस्तों ने पिला दिया तो... तुम इस बात को बिल्कुल माइंड मत करना कि मुझे बुरा लगा होगा। इतनी बड़ी बात नहीं थी कि मैं तुमसे रिश्ता तोड़ दूंगा।”
    इस पर रोशनी ने कहा, “वही तो मैं इसे कब से समझा रही हूं पर ये समझ ही नहीं रही है।”
    सुमित ने रोशनी की तरफ देखकर कहा, “लेकिन... गलती आप लोगों की भी है। अगर तारा ड्रिंक नहीं करना चाहती थी तो आपको उसे पिलाना नहीं चाहिए था।”
    रोशनी ने तुरंत कहा, “मैं इसके लिए आपसे सॉरी कहती हूं। आई प्रॉमिस आज के बाद कभी तारा के साथ ऐसी कोई मज़ाक नहीं करूंगी।”
    सुमित ने कहा, “चलो कोई बात नहीं, इस बात को यहीं खत्म करो।”

    सुमित ने तारा की तरफ देखा और कहा, “तारा प्लीज़ यार, इस छोटी सी बात को यहीं खत्म करो। प्लीज़ तुम उदास मत बैठो... तुमने सुबह से ऐसे देखा कि मेरा दिल बैठा जा रहा था।”

    फिर तारा ने रोशनी की तरफ देखा...
    तारा ने रोशनी से कहा, “तू यहां?”
    रोशनी ने कहा, “हां, मुझे कुछ काम था। तुम्हें यहां किसी काम से आई थी, तुम दोनों को यहां देखा तो मिलने चली आई। आई होप मैंने तुम्हें डिस्टर्ब नहीं किया।”
    इस पर सुमित ने कहा, “अरे नहीं नहीं, बिल्कुल नहीं।”

  • 12. शादी की तैयारी

    Words: 1005

    Estimated Reading Time: 7 min

    वो तीनों कैफे में बैठ कर बात ही कर रहे थे कि तभी उनके पास सेल्स गर्ल आई, उसने सुमित की तरफ देखते हुए कहा,

    “सर, आपका सेट रेडी है, प्लीज चलके एक बार चेक कर लीजिए।”

    सुमित इतना सुनकर वहां से उठ खड़ा हुआ और एक वेटर को आवाज़ लगाई। जैसे ही वह वेटर वहां आया, सुमित ने उसे रोशनी के लिए कॉफी ऑर्डर की, और रोशनी और तारा से कहा,

    “अब यहीं मेरा वेट कीजिए, मैं ज्वेलरी लेकर आता हूं।”

    सुमित सेल्स गर्ल के साथ वापस शोरूम में चला गया। उसके जाते ही रोशनी तारा की तरफ मुड़ी और एक गंभीर आवाज़ में बोली,

    “तारा... क्या करने जा रही थी? 😠 पागल हो गई थी क्या? अगर मैं सही समय पर नहीं आती तो तू अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर लेती... तारा, पागल हो गई थी क्या?”

    तारा... “तू और मैं क्या करूं रोशनी... मुझसे नहीं संभाला जा रहा है... मैं तुझे बता नहीं सकती मैं अंदर से कितनी टूट चुकी हूं... पर उसके ऊपर से सुमित जी का इतना विश्वास... उनका वही विश्वास मेरे फैसले को कमजोर कर रहा है।”

    रोशनी... “तारा, मैं समझ सकती हूं तेरी हालत इस समय क्या है... प्लीज़ यार, तू सबको भूल और आगे बढ़ अपनी लाइफ में... और तू ही तो अभी कह रही थी ना कि सुमित तुझ पर विश्वास करता है... उसी विश्वास के साथ उसी से शादी कर ले... अपना बीता हुआ कल भूल जा और सुमित के साथ नई शुरुआत कर...”

    (तारा की आंखों में आंसू थे)

    रोशनी... “तारा, प्लीज़ कमजोर मत पड़, तेरी यही कमजोरी तुझे ले डूबेगी।”

    (तभी रोशनी ने देखा कि सुमित शोरूम से निकलकर उन्हीं की तरफ आ रहा है। उसके हाथ में एक कैरी बैग भी है)

    रोशनी ने तारा से कहा... “तारा शांत हो जा... सुमित आ रहे हैं...” तारा ने अपने आंसू पोंछे, और नॉर्मल होने लगी...

    सुमित आकर अपनी चेयर पर बैठ गया।

    सुमित... “तो क्या बातें हो रही हैं तुम दोनों में?”

    रोशनी... “कुछ खास नहीं... बस ऐसे ही।”

    सुमित ने तारा से कहा, “तुम्हें कुछ और चाहिए?”

    तारा ने ना में अपना सर हिला दिया...

    सुमित ने कहा, “चलो, मैं तुम्हें घर ड्रॉप कर देता हूं...”

    सुमित ने रोशनी की तरफ देखा, “मैं आपको भी घर ड्रॉप कर देता हूं।”

    रोशनी ने कहा, “नो नो इट्स ओके... मैंने कहा था ना मैं यहां किसी काम से आई हूं... आप तारा को घर ड्रॉप कर दीजिए... मैं कैब ले लूंगी...”

    तीनों अपनी सीट से उठे, सुमित ने बिल पे किया, रोशनी ने तारा को गले लगाया... और धीरे से उसके कान में कहा, “बी स्ट्रॉन्ग...” और एक स्माइल के साथ दोनों को बाय बोल कर वहां से चली गई।

    सुमित और तारा अपनी गाड़ी में बैठे, और घर की तरफ चल दिए। पूरे रास्ते सुमित ही तारा से बात कर रहा था... पर तारा उसे हां या ना में बहुत ही नपा-तुला जवाब दे रही थी।

    सुमित और तारा जब घर पहुंचे, माधुरी जी वहां से जा चुकी थीं... मोहन जी ने दरवाजा खोला, और दोनों को अंदर आने दिया। सुमित ने ज्वेलरी का पैकेट तारा को पकड़ा दिया, और थोड़ी देर बैठने के बाद वहां से चला गया।

    सुमित के जाने के बाद मोहन जी वापस सोफे पर बैठ गए।
    उन्होंने तारा को देखा और कहा,
    “बेटा, कितना कम टाइम रह गया है शादी के लिए... इतनी सारी तैयारियां करनी हैं... पता नहीं सब कैसे होगा।”
    तारा ने अपने पापा के हाथ पर हाथ रखा, और कहा,
    “पापा, सब ठीक होगा... प्लीज़ आप इतनी टेंशन मत लीजिए...”
    तारा वहां से उठकर अपने रूम में चली गई... उसने वह ज्वेलरी का पैकेट अलमारी के लॉकर में रख दिया। शादी में उसे वही गहने पहनने थे।

    (तारा की शादी की तैयारियां शुरू हो गई थीं... कार्ड छप चुके थे, और रिश्तेदारों तक पहुंच भी गए थे... कैटरिंग वाले से विकी ने बात कर ली थी... तारा की शादी में विकी एक बड़े भाई की तरह सारी ज़िम्मेदारियां निभा रहा था... रोशनी भी बीच-बीच में आकर तारा की हालत को सुधारने में मदद करती... रूबी भी आकर घर के कामों में हेल्प करवा देती... शादी वाले घर के काम जितने करो उतने कम पड़ते थे... रूबी की फैमिली बाहर रहती थी और वो मुंबई में हॉस्टल में रहती थी... तो उसे तारा के घर में रुकने पर कोई प्रॉब्लम नहीं थी... वह अपना कुछ ज़रूरी सामान लेकर तारा के घर में शादी होने तक के लिए शिफ्ट हो गई थी।)

    शादी में बस 3 दिन बचे थे... तारा के मन में बहुत से तूफान उमड़ रहे थे... पर रोशनी के बार-बार समझाने पर तारा अपने आप को शांत करने लगी... अब तारा के अंदर पहली वाली मासूमियत तो नहीं रह गई थी, लेकिन वो अपनों की खुशी के लिए खुश होती दिखाई दे रही थी... कहने के लिए तो उसकी शादी थी, पर उसके चेहरे पर दुल्हन वाली कोई खुशी नहीं दिख रही थी... उसकी मुस्कुराहट भी बनावटी लग रही थी।

    तारा की हल्दी की रस्म बहुत अच्छे से खत्म हुई... शाम को उसे मेहंदी लगनी थी... सब मेहंदी के फंक्शन को इंजॉय कर रहे थे... तारा के दोनों हाथों और पैरों में मेहंदी लग रही थी... सब लोग नाच-गा रहे थे... पर तारा किसी और ही दुनिया में खोई हुई थी... मेहंदी वाली ने उससे दूल्हे का नाम पूछा... पर तारा कुछ सुन ही नहीं पा रही थी... उसके दिमाग में उसी शख्स का चेहरा घूम रहा था... वह अपने दिमाग से उस चेहरे को निकाल ही नहीं पा रही थी।

    मेहंदी वाली ने तीन-चार बार दूल्हे का नाम पूछा, पर जब तारा ने कोई रिप्लाई नहीं दिया, तो मेहंदी वाली ने वह जगह खाली छोड़ दी।

    तारा को मेहंदी लग गई... और सबने मेहंदी लगाई। कल तारा की शादी थी। शादी में रोशनी और विकी की फैमिली भी आने वाले थे... उन दोनों के रिश्ते की बात को आगे बढ़ाने के लिए... उसने अपने घर पर बता रखा था रोशनी के बारे में, और रोशनी ने भी अपनी फैमिली से विकी को एक बार मिलवाया था... दोनों तारा की शादी में आकर विकी और रोशनी के रिश्ते के बारे में बात करना चाहते थे...

  • 13. तारा की बदनामी

    Words: 989

    Estimated Reading Time: 6 min

    (माधुरी जी इतना ही बोल पाई थीं कि सुमित ने आकर उन्हें पीछे से पकड़ा और बोला, "मां, आप वो क्या बोल रही हैं? एक बार तारा की हालत तो समझिए, बिना उसकी बात सुने बस उस पर इल्ज़ाम लगा रही हैं! मुझे लगता है इन सब के पीछे बहुत बड़ी बात होगी, हमें तारा को कुछ बोलने का मौका तो देना चाहिए।")

    सुमित के इतना बोलने पर माधुरी जी उस पर और ज़ोर से चिल्लाते हुए बोलीं, "तुझे अभी भी उस बदचलन लड़की की परवाह है? तू पागल हो गया है क्या? न जाने किसका बच्चा उसके पेट में है।"

    सुमित ने फिर अपनी मां को रोकते हुए कहा, "मां, आप सिक्के का एक पहलू देख रही हैं, दूसरा पहलू भी तो देखिए, हो सकता है तारा के साथ कुछ गलत हुआ हो। उसे कुछ बोलने का मौका तो दो।"
    इतने में मिस्टर राव सामने आए और सुमित को पकड़ कर गुस्से में बोले, "अब बोलने-सुनने को कुछ बाकी नहीं रह गया... मुझे नहीं लगता अब यहां रुकने का कोई फायदा है। माधुरी, सुमित चलो यहां से।"
    मिस्टर राव सभी रिश्तेदारों की तरफ देखते हुए बोले, "आप सब से माफ़ी चाहते हैं, अब शादी नहीं हो सकती... प्लीज़ आप सब अपने-अपने घर चले जाएं।"

    सुमित इससे पहले कुछ कहता, माधुरी जी ने उसका हाथ पकड़ लिया और खींचकर तारा के घर से बाहर ले जाने लगीं। मिस्टर राव भी सभी मेहमानों के साथ धीरे-धीरे करके वहां से निकलने लगे। अब तारा के घर से सारे मेहमान जा चुके थे।

    तारा बुत बनकर अभी भी वहीं खड़ी थी... वो एकटक ज़मीन को देखे जा रही थी और उसकी आंखों से आंसू झर-झर बहे जा रहे थे 😢😢

    अब तारा के घर में रोशनी और विकी की फैमिली, रूबी, रोशनी और विकी ही थे। मोहन जी ने तारा की तरफ देखा।

    बारात वापस लौट गई।

    रोशनी तारा के पास आई, उसे सहारा देते हुए कहा, "तारा, तुम अंदर जाओ।"
    इतने में विकी की मम्मी आगे आईं और रोशनी से कहा, "दूर हटो उस लड़की से।"
    विकी अपनी मां के पास आया और उनका हाथ पकड़ते हुए कहा, "मम्मा, वो कैसी बातें कर रही हैं आप?"

    विकी की मम्मी ने रोशनी की मम्मी की तरफ देखते हुए कहा, "बहन जी, अगर आपकी बेटी का उस लड़की से कोई भी लेना-देना हुआ तो हमें विकी के लिए सोचना होगा। जिसकी सहेली ही ऐसी हो, उसके कैरेक्टर पर क्या यकीन करें?"

    इस पर रोशनी की मम्मी तपाक से बोलीं, "क्या बोल रही हैं बहन जी? मेरी रोशनी ऐसी नहीं है।"

    विकी की मम्मी ने फिर कहा, "दिखने में तो तारा भी ऐसी नहीं लगती थी, पर देखो आज क्या गुल खिला कर बैठी है!"

    विकी ने उन दोनों को शांत कराते हुए कहा, "चुप हो जाइए आप दोनों... इस समय तारा को हमारे सपोर्ट की ज़रूरत है, और आप लोग ऐसी बातें करके उसके ज़ख्मों को और हरा कर रहे हैं।"
    विकी के पापा ने कहा, "बेटा, ज़ख्मों पर मरहम लगाने के लिए नहीं बैठे हैं हम यहां... आज एक लड़की कितनी बदनाम हुई है... कल को अगर लोगों को यह पता चला कि उस लड़की की सहेली से हमने तुम्हारी शादी करवा दी, तो हमारी भी सोसाइटी में क्या इज्जत रहेगी?"

    विकी ने अपने पापा को जवाब दिया, "सोसाइटी लोग इज्जत किसके लिए? अब तारा को क्यों ब्लेम कर रहे हैं? तारा मेरे लिए मेरी छोटी बहन जैसी है। आज मेरी बहन को मेरी ज़रूरत है। मैं आपकी इस झूठे सोसाइटी दिखावे के लिए अपनी बहन का साथ नहीं छोड़ सकता।"
    रोशनी ने भी विकी का साथ दिया और अपने परिवार और विकी के परिवार को देखते हुए कहा, "आप लोग प्लीज़ हमारी सिचुएशन समझिए... इस समय हमें आपकी मदद चाहिए... तारा के साथ जो कुछ भी हुआ, वह गलती से हुआ... पर प्लीज़ आप लोग तारा को ऐसे ब्लेम मत कीजिए।"

    इस पर विकी की मम्मी और गुस्से में बोलीं, "तुम जानती हो तारा के साथ क्या हुआ था?"

    रोशनी ने अपना सिर नीचे करके "जी" जवाब दिया।

    इस पर विकी की मम्मी का गुस्सा और बढ़ गया और उन्होंने रोशनी की मम्मी की तरफ देखते हुए कहा, "लो बहन जी, देख लो अपनी बेटी की करतूत... अब कहने-सुनने को कुछ बाकी रह गया है... माफ़ करना लेकिन अब तो हमें आपकी बेटी पर भी शक है।"

    अपने घर में इतनी बेइज़्ज़ती सुन मोहन जी वहीं सामने खड़े थे... उनका दिमाग इन्हीं सब में घूम रहा था... उनकी नज़रों के आगे उनके बीते हुए सारे पल घूम रहे थे।
    तारा अभी भी बेसुध वहीं खड़ी थी... इन सब के ताने उन्हें तीर की तरह चुभ रहे थे, पर वो फिर भी उन्हें चुपचाप सुन रही थी।
    इतने में मोहन जी ज़मीन पर गिर गए।
    सब उन्हें ऐसा गिरा देख बहुत परेशान हो गए।
    जब मोहन जी गिरे, तब तारा को होश आया।
    वो मोहन जी के पास जाकर उन्हें ज़ोर से उठाने लगी,
    "पापा... पापा... क्या हुआ पापा... पापा प्लीज़ उठिए... क्या हुआ आपको?"
    तारा ने कहा, "हॉस्पिटल! पापा को हॉस्पिटल ले चलिए।"

    विकी ने मोहन जी को जल्दी से उठाया और उन्हें घर से बाहर गाड़ी में लेकर बैठा दिया।
    तारा, रोशनी और रूबी भी गाड़ी में बैठीं।
    वो सब गाड़ी को हॉस्पिटल की तरफ ले गए।
    पीछे से रोशनी और विकी की फैमिली भी गाड़ी में बैठकर हॉस्पिटल की तरफ पहुंची।

    हॉस्पिटल पहुंचकर विकी ने उसके पापा को स्ट्रेचर पर लिटाया और इमरजेंसी वार्ड में जाकर डॉक्टर से कहा, "प्लीज़, इन्हें चेक कीजिए।"
    डॉक्टर उन्हें जल्दी से ऑब्ज़र्व करके वार्ड की तरफ ले गए।
    तारा और बाकी सब बाहर टेंशन में बैठे थे।

    आधे घंटे बाद डॉक्टर बाहर आए।
    तारा, विकी, रोशनी डॉक्टर के पास आए।
    उन्होंने तारा की तरफ देखकर बड़े उदास मन से कहा,
    “I’m sorry, हम उन्हें बचा नहीं पाए।” 😔
    "उन्हें मेजर हार्ट अटैक आया था... यहां तक लाते-लाते उनका हार्ट काम करना बंद कर चुका था।"

    इतना सुनते ही तारा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई...
    वह अपने पहले दुख से उबरी भी नहीं थी कि उसके पापा की मौत का सदमा सामने था।

  • 14. अधूरा इश्क़ - Chapter 14

    Words: 2001

    Estimated Reading Time: 13 min

    धैर्य जैसे ही अपनी बिल्डिंग से नीचे उतरता है और गाड़ी की तरफ बढ़ता है, वैसे ही उसकी नजर सामने पार्क पर जाती है और कशिश को देखता है, जो एक बेंच पर बैठी थी। उसकी आंखों में आंसू थे और वो बस रोए जा रही थी। कशिश को देखकर धैर्य ने एक राहत की सांस ली और उसकी तरफ बढ़ गया। वो कशिश के पास जाते हुए उसे देख रहा था। कशिश रोए जा रही थी लेकिन धैर्य को भी गुस्सा आ गया था। वो उस पर चिल्लाते हुए बोला —
    "पागल हो गई हो क्या? कहीं जाने से पहले मुझसे बात नहीं कर सकती थी? तुम्हें पता है ना कि शहर में तुम्हारे ऊपर कितना खतरा है, ऐसे में तुम मुझे बिना बताए बाहर क्यों निकल गई? अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो क्या जवाब देता मैं डिपार्टमेंट को?"

    कशिश ने एकदम से चौक कर ऊपर देखा तो सामने से धैर्य उसे पर नाराज़ होते हुए और चिल्लाते हुए डांट रहा था। यह देखकर कशिश और रोने लगती है। धैर्य डिसएप्वाइंटमेंट से अपनी आंखें बंद करते हुए बोला —
    "अब रो क्यों रही हो?"

    कशिश अपने आंसू पोंछते हुए कहती है —
    "मुझ पर चिल्लाओ मत, मुझे ऊंची आवाज से डर लगता है और मेरे आंसू अपने आप निकल जाते हैं।"

    धैर्य परेशान हो जाता है, पर तभी उसकी नजर कशिश के घुटनों पर जाती है। उसने एक नीली ड्रेस पहनी हुई थी और उसने देखा कि कशिश के घुटनों पर ज़ख्म बना है और वहा से खून भी निकल रहा है। यह देखकर धैर्य तुरंत उसके बगल में बैठ जाता है और उसके घुटनों पर लगे ज़ख्मों के पास अपनी उंगलियां रखते हुए कहता है —
    "यह क्या हुआ तुम्हें?"

    लेकिन कशिश ने तुरंत अपने घुटने को पीछे खींच लिया और वो अपने दोनों घुटनों को अपने हाथों से सहलाते हुए कहती है —
    "मुझे चोट लगी है, मैं सीढ़ियों से फिसल गई। हाथ मत लगाओ, मुझे दर्द हो रहा है।"

    वो बिलकुल बच्चों की तरह रो रही थी। उसे ऐसे देखकर धैर्य एकदम से हैरान हो जाता है। कभी-कभी तो कशिश इतनी स्ट्रॉन्ग नजर आती है कि उसे लगा यह कितना बड़ा दर्द अकेली ही झेल सकती है, लेकिन अब एक छोटी सी चोट पर उसके आंसू ऐसे निकल रहे हैं जैसे कि बहुत बड़ी बात हो गई हो। इतना तो धैर्य को किचन में काम करते हुए भी लग जाता है। उसने ना में सिर हिलाया और कशिश से कहा —
    "चुप करो... एकदम चुप करो। रोना बंद करो। और तुम्हारा फोन कहां है? तुम्हारा फोन क्यों ऑफ आ रहा है? घर से निकलने से पहले मुझे फोन नहीं कर सकती थी?"

    "मेरे पास तुम्हारा नंबर नहीं था और सीढ़ियों से फिसलने की वजह से मेरा फोन टूट गया। वो बंद हो गया है। मैंने लोगों से मदद मांगी लेकिन किसी ने भी मेरी मदद नहीं की। मैं अकेली बैठी हुई थी और मेरा फोन भी खराब हो गया है। मेरे पास वोी एक फोन था और अब वो टूट गया है। अब मेरे पास दूसरा फोन नहीं है…"

    कशिश रोते हुए कहती है।
    उसका रोना सुनकर तो धैर्य का सर दर्द होने लगा। उसने अपना सिर पीटते हुए कहा —
    "ठीक है, अब रोना बंद करो। मैं तुम्हें डॉक्टर के पास लेकर चलता हूं।"

    धैर्य खड़ा होता है और कशिश की तरफ अपने हाथ बढ़ाता है लेकिन कशिश ने तुरंत सपाट में अपना सिर हिलाया और कहा —
    "नहीं, मैं डॉक्टर के पास नहीं जाऊंगी। वो मेरे ज़ख्मों पर ऐसी दवाई लगाएंगे जिससे मुझे जलन होगी, और फिर इंजेक्शन... मुझे पक्का यकीन है वो मुझे इंजेक्शन देंगे। इसलिए मैं डॉक्टर के पास नहीं जाऊंगी।"

    उसके ऐसे बच्चों जैसे बर्ताव से धैर्य और ज्यादा परेशान हो जाता है। उसने झुंझलाते हुए कशिश का हाथ पकड़ा और अगले ही पल उसे खींचकर अपनी गोद में उठा लिया। वो गुस्से में उसे देखते हुए कहता है —
    "जब तक तुम मेरे साथ हो, तुम मेरी जिम्मेदारी हो। और तुम्हें कुछ नहीं होने देना ही मेरा काम है... इसलिए मुझे मेरा काम करने दो।"

    कशिश एकदम से उसकी आंखों में देखने लगती है। धैर्य के हर एक शब्द में उसे सच्चाई नजर आ रही थी और धैर्य उसे ऐसे कह रहा था जैसे कि सच में वो कशिश की कितनी फिक्र कर रहा है। इसके आगे कशिश कुछ नहीं बोल पाई और धैर्य उसे अपनी गोद में लेकर आगे बढ़ने लगा।

    सिंघानिया मेंशन...

    अर्णव सिंघानिया अभी-अभी अपनी गाड़ी ड्राइव करते हुए अपनी आलीशान मेंशन में पहुंचा था। उसने जैसे ही मेंशन के सामने गाड़ी रोकी, वैसे ही एक सर्वेंट जाकर गाड़ी का दरवाजा खोलता है। अर्णव सिंघानिया पूरे रौब और शान के साथ अपना कोट सही करते हुए गाड़ी से बाहर निकलता है। वो इतने बड़े मेंशन को, जो किसी महल से कम नहीं लग रहा था, अपनी आंखों से देखने लगता है और उस महल की लालच उसकी आंखों में साफ नजर आ रही थी।

    जैसे-जैसे वो अपने कदम आगे बढ़ाता है, रास्ते भर नौकर उसे सलाम करते हुए जाते हैं। नौकरों को अपने सामने झुकता हुआ देख, अर्णव सिंघानिया के चेहरे पर एक बेशर्मी भरी मुस्कान थी, जैसे कि यह सब उसके नौकर नहीं, उसके गुलाम हों। जैसे ही वो घर के अंदर पहुंचता है, उसकी बीवी नर्मदा सिंघानिया सोफे पर बैठी थी।

    अर्णव सोफे पर जाकर उसके सामने बैठ जाता है और रिलैक्स होते हुए उसने नर्मदा से पूछा —
    "शनाया कहां है?"

    "मैं यहां हूं डैडी…" — सीढ़ियों की तरफ से एक आवाज आती है।

    वो दोनों सीढ़ियों की तरफ देखते हैं, जहां पर एक 21 साल की लड़की क्रॉप टॉप और डेनिम की जींस में नीचे उतर रही थी। उसके बाल उसके शोल्डर तक कटे हुए थे और उसके एक हाथ में इंजन का टैटू बना हुआ था। उसके दूसरे हाथ में एक ब्रांडेड पर्स था और उसी हाथ में उसने एक जैकेट भी कैरी कर रखा था जो डिज़ाइनर था। वो जाकर सीधे अपनी मम्मी-पापा के पास बैठते हुए कहती है —
    "डैडी, मैंने आपको हमारे कॉलेज में होने वाली पार्टी के बारे में बताया था ना? मुझे उस पार्टी में जाने के लिए डिज़ाइनर ड्रेस चाहिए।"

    अर्णव परेशान होते हुए कहते हैं —
    "हां हां बेटा, तुम्हें जो भी ड्रेस चाहिए, तुम ले सकती हो। एक बार मेरे मैनेजर को बता देना, वो सारा अरेंजमेंट कर देगा।"

    अपने डैडी की बात सुनकर शनाया के चेहरे पर तो खुशी की एकदम से चमक आ गई थी लेकिन नर्मदा जब अपने पति की बातें सुनती है, तो उनमें जो झिझक महसूस हो रही थी वो महसूस कर सकती थी। उन्होंने हैरानी से अर्णव से पूछा —
    "क्या बात है? आप इतने परेशान क्यों हैं... और आने के साथ ही आपने शनाया के बारे में क्यों पूछा?"

    अर्णव जी के चेहरे पर जो परेशानी थी, वो सब झलक रही थी। उन्होंने धीरे से कहा —
    "परेशान क्यों ना रहूं मैं नर्मदा, आखिर बात ही कुछ ऐसी है। मेरी परेशानी की सबसे बड़ी वजह है कशिश।"

    कशिश का नाम सुनते ही नर्मदा और शनाया दोनों के चेहरे पर जो मुस्कान थी, वो एकदम से गायब हो जाती है और जो चमक थी वो एकदम से मायूस हो जाती है। शनाया ने गुस्से में कहा —
    "कशिश? डैडी, आप उसका नाम क्यों ले रहे हैं... उस मनहूस का तो नाम लेने से भी काम खराब हो जाता है।"

    लेकिन नर्मदा जी ने दिमाग से काम लेते हुए कहा —
    "क्या बात है? आप अचानक से कशिश के बारे में क्यों बात कर रहे हैं... क्या कुछ हुआ है?"

    अर्णव ने सिर हिलाते हुए कहा —
    "कोई बात है जो मुझे कशिश के बारे में पता चली है और चाहता हूं कि मैं तुम दोनों को बताऊं। मुझे ऐसा लगता है कि कशिश का धैर्य ग्रेवाल से कोई रिश्ता है… शायद धैर्य उसका बॉयफ्रेंड है।"

    जैसे ही अर्णव जी ने यह कहा, उन दोनों मां-बेटी के चेहरे पर एकदम से मजाकिया मुस्कान आ जाती है और वो दोनों हंसने लगती हैं। शनाया ने मजाकिया ढंग से कशिश का मजाक उड़ाते हुए कहा —
    "क्या? वो और धैर्य ग्रेवाल की गर्लफ्रेंड? वो भिखारी कशिश, और उसका बॉयफ्रेंड धैर्य ग्रेवाल? कम ऑन डैडी, धैर्य ग्रेवाल एक बहुत अमीर इंसान है। उसे डेट करने के लिए वो सड़क छाप लड़की मिली है क्या?"

    "तुम दोनों को यह मजाक लग रहा है? तुम्हें मालूम नहीं मैं कितनी टेंशन में हूं। तुम जानती हो ना कि धैर्य ग्रेवाल सिर्फ एक बहुत अमीर बिजनेसमैन ही नहीं है बल्कि वो इस शहर का जाना-माना पुलिस ऑफिसर है, और ग्रेवाल ग्रुप इंडस्ट्री का चेयरमैन भी है। वो कंपनी भले ही उसका भाई संभालता है लेकिन उसमें उसका भी 50% शेयर है। और ऊपर से उसकी गवर्नमेंट जॉब तो अलग ही है। तुम दोनों बातों को एक साथ जोड़कर नहीं देख रही हो। धैर्य ग्रेवाल एक बहुत बड़ा बिजनेसमैन, अमीर खानदान का वारिस और एक पुलिसवाला है, जो कशिश से संबंध रखता है..."

    उन दोनों मां-बेटी ने जब उसकी बात ध्यान से सुनी तब जाकर उनके चेहरे एकदम से बदल जाते हैं और वो दोनों हैरान हो जाती हैं। शनाया ने गुस्से में कहा —
    "क्या बकवास है डैडी! ऐसे कैसे हो सकता है? वो कशिश फटीचर, सड़क छाप लड़की... इतना बड़ा हाथ कैसे मार सकती है?"

    अर्णव बोला —
    "वो तो मुझे भी नहीं पता। मैंने अपने आदमियों को काम पर लगाया है। वो पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरीके से कशिश का रिश्ता धैर्य ग्रेवाल और नक्ष मर्चेंट से है। आखिर वो लड़की इन दोनों को कैसे जानती है?"

    नक्ष का जिक्र होते ही नर्मदा का चेहरा एकदम से काला पड़ जाता है और उसने हैरानी से कहा —
    "क्या? नक्ष मर्चेंट...? आखिर नक्ष का इन सबसे क्या लेना-देना है?"

    नक्ष का नाम सुनकर तो शनाया के चेहरे से भी जैसे उड़ गए हों। लेकिन अर्णव ने कहा —
    "यह तो मुझे भी नहीं पता, इसलिए तो मैं इतना परेशान हूं क्योंकि कशिश के अकाउंट में नक्ष ने 50 लाख रुपए डाले हैं। और यही चीज मुझे सोचने पर मजबूर कर रही है कि उसका इन दोनों से क्या रिश्ता है। तुम समझ नहीं रही हो... धैर्य और नक्ष का कशिश से जुड़ना हमारे लिए मुसीबत हो सकती है।"

    नर्मदा ने गुस्से में कहा —
    "इसलिए तो मैं आपसे कहती थी कि उस लड़की को जिंदा छोड़ने की गलती मत करो। लेकिन देखा, आपने तो उसे जिंदा छोड़ दिया और अब वो हमें मारने की पूरी प्लानिंग कर रही है।"

    शनाया ने गुस्से में दांत पीसते हुए कहा —
    "मां, मुझे नक्ष चाहिए। तुम जानती हो ना हाउ मच आई लाइक हिम… और वो मेरा है!"

    लेकिन नर्मदा ने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा —
    "चुप करो पागल लड़की! यहां पर हम सारी प्रॉपर्टी खो सकते हैं और तुम एक आदमी के पीछे पागल हो रही हो!"

    शनाया चुप हो जाती है, लेकिन अर्णव के चेहरे पर परेशानी अब भी थी। वो सिर हिलाते हुए कहते हैं —
    "हां शनाया बेटा, तुम्हारी मां सही कह रही है। इस समय हमें जोस से नहीं, होश से काम लेना है। वैसे भी हम नक्ष मर्चेंट के बारे में पूरी तरह से कुछ भी नहीं जानते हैं।"

    नर्मदा ने अर्णव से कहा —
    "तो आप इस बारे में क्या करने की प्लानिंग कर रहे हो?"

    अर्णव ने तुरंत कहा —
    "मैंने नक्ष मर्चेंट की कंपनी में अपना एक बिज़नेस प्रपोजल भेजा है और बस चाहता हूं कि एक बार वो हमारे साथ बिज़नेस करने के लिए राज़ी हो जाए। एक बार मैं उसके साथ जुड़ जाऊं, उसके बाद मैं यह पता करके ही रहूंगा कि नक्ष का कशिश से क्या रिश्ता है।"

    अपने माता-पिता की बात सुनकर शनाया के दिमाग में कुछ आता है और उसने जल्दी से कहा —
    "नक्ष मर्चेंट कोई छोटा-मोटा नाम नहीं है। वो अपने आप में एक ब्रांड है और नक्ष के पास अकेले इतनी ताकत है कि वो हम सब का नामोनिशान इस पूरे शहर की हिस्ट्री से ऐसे मिटा सकता है जैसे कि हम कभी थे ही नहीं। नक्ष जैसे बड़े अमीर बिजनेसमैन ने कशिश के अकाउंट में इतनी बड़ी रकम दी है और कशिश इस समय एक दूसरे अमीर बिजनेसमैन के घर में रह रही है। कहीं कशिश हमारे खिलाफ कोई प्लानिंग तो नहीं कर रही?"

  • 15. अधूरा इश्क़ - Chapter 15

    Words: 3017

    Estimated Reading Time: 19 min

     घर चलो.. धैर्य के यह कहते ही कशिश एकदम से हैरान हो जाती है और उसे दिखाने लगती है उसने जल्दी से धैर्य के हाथों से अपने हाथों को अलग किया और भाग कर किचन में चली जाती है जहां पर पहले से ही बहुत सारा सामान बिखरा हुआ था कशिश भी उनमें से वेजिटेबल्स के पास जाकर खड़ी हो जाती है उसके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था और ऊपर से धैर्य की बातें सुनकर वह और ज्यादा हैरान हो गई थी


     उसका काम बस सर्विंग करना था लेकिन इस वक्त अपना मन डिस्ट्रक्ट करने के लिए उसने वेजिटेबल चॉप करना शुरू कर दिया.. वह एक-एक करके सारे वेजिटेबल्स को हाथ में लेती और उसे चाकू से ब्रह्म से कटने लगते.. अपने मन में नाराज होते हुए कशिश गुस्से में रहती है अब वह क्या चाहता है मुझे अकेला क्यों नहीं छोड़ देता बड़ी मुश्किल से तो मुझे यह नौकरी मिली है मैं इसे को नहीं सकती हूं पता नहीं आभारी को मुझे क्या चाहिए अपने घर से तो निकाल दिया है क्या इस शहर से निकाल के मानेगा..


     वह गुस्से में यह सब बोली जा रही थी उसका ध्यान ना तो सब्जी काटने में था और ना ही किसी और चीज में बल्कि धैर्य की बातें याद करते हुए वह गुस्से में वेजिटेबल कट कर रही थी और तभी उसके हाथ पर चाकू लग जाता है एक दर्द के साथ वह अपना हाथ हवा में उठा देती है और अपना हाथ झड़ने लगती है तभी वहां पर धैर्य आ जाता है और उसने कशिश की उंगली को थाम लिया वह 1 मिनट का समय भी नहीं लगता है और कशिश की जख्मी उंगली को अपने मुंह में डाल लेता है।

     कशिश एकदम से उसे हैरानी से देखते हुए कहती है. यहां क्या कर रहे हो गेस्ट का किचन में आना अलाउड नहीं है. जो यहां से मेरी नौकरी चली जाएगी 

     मुंह बंद रखो अपना. धरे उसे डांटे हुए उसे खींचकर सीधे सिंह के पास लेकर आता है और पानी चालू करके उसकी घायल उंगली को सिंक के नीचे रख देता है वहां खड़ी दो मीटर हैरानी से धैर्य को देख रही थी धारणी उन दोनों को देखते हुए का अपोजिट बॉक्स है.

     वह दोनों जल्दी से हमेशा हिलती है एक लड़की जल्दी से फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आती है. धैर्य कशिश को लेकर किचन के एक चेयर पर बैठ जाता है और उसका प्रोस्टेट करने लगता है कशिश उसे हैरानी से देखते हैं लेकिन वह कुछ कहती नहीं है जैसे ही कशिश के उंगलियों में बैंडेज लगती है धैर्य उसे देखते हुए कहता है काम करते हुए सावधानी नहीं बदल सकती थी. वह तो शुगर है छोटी चोट लगी है अगर कुछ बड़ा हो जाता तो 

     लेकिन कशिश ने कुछ कहने की जगह है उसे ही सवाल किया तुम यहां क्या कर रहे हो.. धैर्य एकदम से उसे देखने लगता है तो कशिश दोबारा उससे कहती है तुम क्या कर रहे हो यहां पर मेरे सवाल का जवाब दो क्यों आए हो यहां पर क्यों मेरा पीछा कर रहे हो क्यों मुझे सुकून से नहीं रहने दे रहे हैं हो

     मैं तुम्हें घर ले जाने के लिए आया हूं धैर्य ने सपाट लहजे में कहा तू कशिश तुरंत रहती है वह मेरा घर नहीं है। तुम्हारा घर है इसीलिए चले जाओ यहां से.. और प्लीज दोबारा कभी यहां वापस मत आना क्योंकि यह नौकरी मुझे बहुत मुश्किल से मिली है अभी मैनेजर नहीं है इसीलिए तुम यहां पर मौजूद हो वरना अब तक तुम्हें और मुझे दोनों को उठाकर इस क्लब से बाहर फेंक देते  

     कशिश मैं तुमसे धैर्य ने इतना ही कहा की कशिश ने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए उससे कहा प्लीज धैर्य मेरी जिंदगी में प्रॉब्लम वैसी ही है इसे और मत बढ़ाओ 

     धैर्य ने एक नजर कशिश को देखा और उसके बाद उसने किचन में हर तरफ देखा जहां पर बाकी का स्टाफ खड़ा था और उसे दोनों को देख रहा था धैर्य अपनी आंखें बंद करते हुए हमेशा हिलता है और उठकर चुपचाप वह किचन से बाहर चला जाता है कशिश उसे जाता हुआ देखते हैं और उसके बाद उसके चेहरे पर एक दर्द की लकीर आ जाती है उसने अपना मुंह छुपा लिया ताकि उसका दर्द कोई पहचान ना सके थोड़ी देर बाद जब कशिश किचन से बाहर आती है तो उसकी साथी वेट्रेस ने बताया किधर ने उसके लिए करीब 1000 की टिप छोड़ी है। कशिश के लिए यह चौंकाने वाली बात थी क्योंकि बिल से ज्यादा तो उसने टिप ही दे दिया था 

     नोमानी मेंशन 

     सिकंदर नॉमिनी अपने घर के पिछले हिस्से में बने मंदिर के सामने खड़े थे लेकिन मंदिर का दरवाजा बंद था यह दरवाजा पिछले 21 सालों से बंद है। मंदिर के अंदर मूर्तियां तो रखी गई है लेकिन ना तो कभी यह दरवाजा खुला और ना ही इस मंदिर में पूजा हुई है.. प्रियांशु ने कभी इस बारे में जानने की कोशिश नहीं की लेकिन उसे इतना ही बताया गया था कि उसकी मां भगवान में बहुत यकीन करती थी.. और उनके जाने के बाद सिकंदर जी ने कभी भी उसे मंदिर के दरवाजे नहीं खोले  

     आज सिकंदर जी का मन बहुत घबरा रहा था एक याद उनके जहां में थी जो वह चाह कर भी खुद से अलग नहीं कर पा रहे… दरवाजे के झरोखों से झांकते हुए जब वह अंदर भगवान को देखते हैं तो खुद का मजाक उड़ाते हुए वह भगवान को देखकर मन में रहते हैं इतना खुश क्यों हो रहे हैं भगवान आप.. सब कुछ देकर भी तो मुझे सब कुछ छीन रखा है फिर भी आपके चेहरे पर मुस्कान है.. गायत्री ( प्रियांशु की स्वर्गीय मां ) बहुत यकीन करती थी आप पर.. लेकिन आपने क्या किया.. उसे अपने पास बुला लिया.. अगर उसे वक्त हालात मेरे हाथ में होते ना तो मैं कभी भी गायत्री को खुद से दूर नहीं जाने देता और आपकी इज्जत कभी पूरी नहीं होने देता आपका और मेरा सामना हमेशा एक दूसरे के खिलाफ में ही रहेगा मुझे पता है कि मैं दुनिया बनाने वाले से लड़ नहीं सकता हूं लेकिन मेरी दुनिया उजाड़ने का हक आपको नहीं है.. कितने सालों से मैं रियांश से जो बात छुपा के रखी है वह कभी उसके सामने नहीं आएगी । और जो मेरे होते हुए भी मेरी नहीं है वह कभी भी दुनिया के सामने नहीं आएगी.. मैं आपको एक बार फिर से वह नहीं करने दूंगा जो सालों पहले करके आपने मुझे मेरी गायत्री कोचिंग लिया था  

     जी रहते वक्त सिकंदर जी की आंखों में आंसू थे वह अपनी आंखें बंद करते हैं और उनके सामने एक ऐसा दर्दनाक मंजर आ जाता है जो वह कभी याद नहीं करना चाहते हैं.. एक प्रेग्नेंट औरत बरसात की रात और सिकंदर जी बदहवासी की हालत में गाड़ी ड्राइव कर रहे थे

     इतनी जोर के तूफान चल रहा था कि आने-जाने की सारी व्यवस्थाएं बंद हो गई थी लेकिन बैक सीट पर बैठे गायत्री जी दर्द से तड़प रही थी.. सिकंदर जी ने गायत्री को देखते हुए कहा गायत्री बस थोड़ी हिम्मत रखो हम बस अस्पताल पहुंचने ही वाले हैं 

     पीछे की सीट पर बैठी गायत्री अपने लेबर पेन से तड़प रही थी और कुछ बुरा ना हो इसी की उम्मीद कर रही थी उनके हाथों में रुद्राक्ष थी जिसे उन्होंने कास्की अपने गले से लगा रखा था इस उम्मीद से की जी महादेव पर उन्होंने हमेशा से भरोसा किया है वह कभी उनके बच्चे के साथ कुछ गलत नहीं होने देगा..  

     गांधी जी गाड़ी ड्राइव कर रहे थे उन्हें आगे का कुछ नजर नहीं आ रहा था मौसम इतना ज्यादा खराब हो गया था लेकिन तभी उनका फोन बजने लगता है उन्होंने स्क्रीन पर जो नंबर अच्छी उसे देखकर थोड़ी राहत महसूस हुई जल्दी से फोन उठाकर उन्होंने फोन कान पर लगाया और कहां-कहां हो तुम लोग जल्दी से पूछो गायत्री को लेबर पेन शुरू हो गया है और आसपास मुझे कोई मदद भी नहीं मिल रही है।

     सामने से किसी ने कुछ कहा तो सिकंदर जी जल्दी से कहते हैं मैं पुरानी सड़क पर हूं चर्च के पास.. यहां पर इलेक्ट्रिसिटी भी नहीं है और मुझे सड़क ठीक से नजर भी नहीं आ रही है तुम लोग जहां भी हो जल्दी से आओ गायत्री बहुत ज्यादा परेशान हो रही है और मैं चीज सारी चीज हैंडल नहीं कर पाऊंगा..

     तभी एक झटके से गाड़ी रुक जाती है गायत्री जी एकदम अपने दर्द से तड़पते हुए सामने देखती है और सिकंदर जी जब अपने सामने देखते हैं तो उन दोनों की आंखें एकदम फटी की फटी रह जाती है सामने से कुछ लोग ने उन्हें गाड़ियों से घेर लिया था और जब गाड़ियों का दरवाजा खुलता है तो सबके हाथों में हथियार थे सिकंदर जी एकदम से घबरा गए थे क्योंकि जब गायत्री को लेबर पेन शुरू हुआ था तो सिकंदर जी बिना सिक्योरिटी और बिना किसी हथियार के ही गायत्री को लेकर अस्पताल के लिए निकल आए थे और अब यहां पर दुश्मनों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया है वह एकदम से पैनिक करते हुए गायत्री को देखने लगते हैं जो खुद अपने दर्द से तड़प रही थी लेकिन अब उनके सामने मौत खड़ी थी वह एकदम से सिकंदर जी को देखने लगती है

     सिकंदर जी गायत्री को देखते हुए कहते हैं चाहे कुछ भी हो जाए गाड़ी से बाहर मत निकालना.. गायत्री जी अपने लेबर पेन में तड़पते हुए कहती है सिकंदर मुझे नहीं होगा.. मेरा लेबर पेन बढ़ता जा रहा है डिलीवरी किसी भी टाइम हो सकती है प्लीज हॉस्पिटल चलो  

     सिकंदर जी को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें पर तभी अचानक से दुश्मनों ने उनके गाड़ी के बोनट पर जोर से मारा जिससे की पूरी गाड़ी एकदम से हिल जाती है 

     सिकंदर की सीट के नीचे झुक कर एक लोहे की रोड निकलते हैं.. और गाड़ी का दरवाजा खोलकर बाहर निकल जाते हैं उन्होंने गाड़ी को पूरी तरह से लॉक कर दिया था ताकि की कोई भी गायत्री तक ना पहुंच सके सामने दुश्मन थे और सबके हाथों में हथियार थे लेकिन सिकंदर जी सिर्फ एक लोहे की रोड के सहारे अपने दुश्मनों से लड़ रहे थे सारे दुश्मन एक-एक करके उनके सामने आ रहे थे इस वक्त उनके पास एक भी हथियार नहीं थे अगर कुछ था तो सिर्फ एक हिम्मत कि वह अपने बीवी बच्चे को कुछ नहीं होने देंगे..

     उनके कानों में गायत्री के चिल्लाने की आवाज आ रही थी गायत्री जी लेबर पेन में इतनी ज्यादा तड़प रही थी कि क्यों नहीं से संभाला नहीं जा रहा था

     तभी एकदम से सिकंदर जी के कानों में शीशा टूटने की आवाज आती है गायत्री जी यह देखकर एकदम से जाती है एक आदमी ने शीशा तोड़ दिया था और गाड़ी के अंदर हाथ डालकर उन्होंने दरवाजा खोल अगले ही पल गायत्री जी को बाजू से पड़कर वह आदमी बाहर की तरफ खींचना लगता है गायत्री जी ने एक हाथ से अपने पेट को उठा में हुए था और दूसरे हाथ से उसे आदमी को मारने की कोशिश कर रही थी सिकंदर जी ने जब यह देखा तो वह एकदम से हैरान हो गए वह जल्दी से उसे तरफ आते हैं लेकिन तभी किसी ने उनके पीठ पर वार किया और वह एकदम से जमीन पर गिर गए वह जोर से गायत्री का नाम चिल्लाने लगे

     लेकिन जैसे ही उसे आदमी ने जो गायत्री को खींचकर झाड़ियां पर लेकर गया उसने अपने हाथों में हॉकी स्टिक को कस के अपने हाथों में थाम लिया और अगले ही पल वह जोर से गायत्री जी के पेट पर वार करने ही वाला था कि गायत्री जी एकदम से पलट जाती है.. बार सीधे उनके पीठ पर होता है लेकिन यह कोई छोटा-मोटा वार नहीं था इतनी तेज प्रहार से उनकी पूरी कमर और रीड की हड्डी एकदम से चकनाचूर हो गई थी..

     लेकिन तभी उन लोगों को वहां पर एक गाड़ी की आवाज सुनाई देती है और एक साथ वहां पर फायरिंग होने लगती है वह लोग एक साथ देखते हैं तो कोई गाड़ी तेजी से उनकी तरफ चलती हुई आ रही थी.. और उसका शीशा खुला हुआ था जिसमें से एक हाथ बाहर की तरफ था और वह लोग फायरिंग कर रहे थे

     वहां खड़े सभी आदमी वहां से तुरंत निकल जाते हैं सिकंदर जी घायल हो गए थे और गायत्री जी लेबर पेन से पहले ही तड़प रही थी और अब अपने जख्मों की वजह से उनकी हालात और ज्यादा खराब हो गई थी गाड़ी बिल्कुल उनके पास आकर रूकती है और दरवाजा खुलता है जिसमें से दो शख्स बाहर निकलते हैं एक औरत और एक आदमी वह दोनों जल्दी से वहां आते हैं आदमी ने जल्दी से सिकंदर जी को संभाला और औरत निकाय 3 जी को संभाल 

     गायत्री जी ने जब उसे औरत को देखा तो वह भी लगाते हुए कहती है कविता कविता मेरा बच्चा मेरे बच्चे को बचा लो कविता 

     यह दोनों कोई और नहीं बल्कि गायत्री जी के कॉलेज के दोस्त हैं और यह दोनों वही है जिसे सिकंदर जी ने अभी थोड़ी देर पहले बात की थी.. यह दोनों सही वक्त पर नहीं आए होते तो शायद आज सिकंदर जी और गायत्री दोनों की जान जा चुकी होती।


     गायत्री और उनके पति अब मौके पर यहां पहुंच गए आरव की सिकंदर को संभाल रहे थे उन्होंने सिकंदर को संभाल कर गाड़ी से लगाते हुए बिताया लेकिन गायत्री जी की जो हालत हो रही थी वह कविता से अच्छी नहीं जा रही थी उन्होंने जल्दी से आरआरबीएचएआर सिकंदर की तरफ देखते हुए कहा.. गायत्री की हालत बहुत खराब है हॉस्पिटल जाने का टाइम नहीं है डिलीवरी यही करवानी होगी वरना मां और बच्चे दोनों की जान को खतरा हो सकता है

     गायत्री ने जल्दी से कविता का हाथ पकड़ते हुए कहा प्लीज कविता मेरे बच्चे को बचा लो.. कविता ने जल्दी से हमें सर हिलाया वह गायत्री को संभालते हुए झाड़ियां के पीछे लेकर जाती है और वहां पर उसने की डिलीवरी करवाती है दर्द तड़प और अपने बच्चों को जिंदा रखना के उद्देश्य के साथ गायत्री अपने सारे दर्द को बर्दाश्त कर जाती है लेकिन जैसे ही डिलीवरी होती है वैसे ही कविता ने अपने दुपट्टे में बच्चों को लपेट लिया.

     पुजारी से खड़ी होती है और. सिकंदर और अब को देखते हुए  कविता ने कहा बेटी हुई है

     सिकंदर जी दिल से तो खुश थे लेकिन इस समय अपनी खुशी जाहिर नहीं कर सकते थे. आरव जी ने जल्दी से सिकंदर कहा थमते हुए कहा मुबारक हो सिकंदर.. प्रियांशु की बहन आई है

     सिकंदर जी ने हमेशा हिलाया.. अब सिकंदर को किसी तरीके से वहां पर लेकर आते हैं जहां पर इस समय गायत्री थी गायत्री जी की हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी उनका पूरा चेहरा एकदम से पीला पड़ गया था और आंखें पलटने को हो रही थी उन्हें ऐसे देखकर सिकंदर एकदम घबरा जाते हैं और हैरानी से कविता की तरफ देखते हैं तो कविता ने अफसोस के साथ कहा.. मुझे नहीं लगता है कि गायत्री ज्यादा वक्त तक सरवाइव कर सकती है  

     सिकंदर जी ने जैसे ही यह सुना उनके पैरों तले जमीन थक गई और अभी बहुत सॉफ्ट हो जाते हैं लेकिन सिकंदर जी जल्दी से गायत्री के पास आते हुए उसके बगल में बैठ जाते हैं और उसका सर उठा कर अपने गोद में रखते हुए कहते हैं नहीं गायत्री तुम मुझे ऐसा छोड़कर नहीं जा सकती हो हमारे तो परिवार भी पूरा हो गया है ना रियांश ने एक बहन मांगी थी उसकी बहन भी आ गई है और मैं वादा करता हूं कि अब से मैं हमारे परिवार के ऊपर कोई मुसीबत नहीं आने दूंगा प्लीज मेरा यकीन करो हम थोड़ी सी हिम्मत रखो हम अभी हॉस्पिटल चलेंगे तुम्हें कुछ नहीं होगा उन्होंने इतना कहा ही था कि गायत्री जी ने सिकंदर कहा थमते हुए उन्हें अपनी फड़फड़ती हुई आंखों से देखते हुए कहा बस सिकंदर और कितनी बार वादा करेंगे और कितनी बार उसे वाले को टूटा हुआ अपनी आंखों से देखेंगे..

     प्रियांशु के समय भी यही हुआ था.. तभी आपने वादा किया था कि कभी भी आपके दुश्मन आपके परिवार तक नहीं पहुंच पाएंगे लेकिन बार-बार रियांश पर हमले होते रहे जिसकी वजह से मुझे अपने छोटे से बच्चे को अपने से दूर रखना पड़ा वह वहां पर विदेश में कैसे रह रहा है मुझे नहीं पता लेकिन मैंने आप पर भरोसा किया.. पर अब देखो अगर आज सही वक्त पर कविता और आरव नहीं आए होते तो शायद हम अपनी बच्ची को कभी देखी नहीं पाते.. आप भी जानते हैं सिकंदर की आपका काम कभी भी हमें सुकून से जीने नहीं देगा.. इसीलिए मैं मरते वक्त आपसे एक वादा चाहती हूं सिकंदर

     सिकंदर ने गायत्री जी की तरफ अफसोस से देखते हुए हां में सर हिलाया तो गायत्री जी अपना हाथ उठाकर सिकंदर के हाथ पर रखती है और उनसे कहती है वादा कीजिए आप हमारी बच्ची को कभी भी अपने काम में शामिल नहीं होने देंगे कभी भी आपकी गलत कामों का साया मेरी बेटी के ऊपर नहीं जाएगा.

     सिकंदर जी एकदम से हैरान हो जाते हैं लेकिन अगले ही पल गायत्री जी ने कविता को देखा और अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा कविता मेरी बेटी को ले जाओ और उसे कभी मत पता चलने देना कि उसका असली परिवार कौन है.. उसे अपनी बेटी बनकर का लो उसे इस दुनिया से दूर रखो जी दुनिया में सिर्फ मौत और दर्द ही मिलता है.. कभी भी उसके असली माता-पिता के बारे में पता नहीं चलना चाहिए उसका असली परिवार कौन है यह कभी उसे मालूम मत पढ़ने देना

     यह तुम क्या कह रही हो गायत्री वह मेरी बच्ची है मैं उसे कैसे सिकंदर जी ने इतना कहा ही था कि गायत्री ने उनका हाथ कस के थमते हुए कहा आपको मेरी कसम है मुझे मरते वक्त बस यही वादा चाहिए आप कभी भी मेरी बेटी को इस दुनिया का हिस्सा नहीं बनने देंगे.. जब तक की उसकी जिंदगी और मौत का सवाल ना हो. वादा कीजिए मुझ से..

     मैं वादा कैसे… सिकंदर जी ने इतना ही कहा था कि गायत्री जी की आंखें बंद हो जाती है और वह इस दुनिया को अलविदा कह जाती है।

    ( तो जिन लोगों ने अंदाजा लगा दिया है कि इस प्लॉट का मतलब क्या है तो कमेंट में आकर बोलने की जरूरत नहीं है अपने मन में रखो वरना जिन लोगों ने अंदाजा नहीं लगाया है उनका भी सस्पेंस खराब हो जाएगा😛)

  • 16. अधूरा इश्क़ - Chapter 16

    Words: 2044

    Estimated Reading Time: 13 min

    अगले दिन, धैर्य अपनी कार लेकर कशिश के कैफे के बाहर खड़ा था। वह उसका इंतज़ार कर रहा था क्योंकि आज शाम भी उसे कशिश के साथ बितानी थी। उसे कशिश के साथ वक्त बिताना अच्छा लग रहा था, इसीलिए वह उसका इंतज़ार कर रहा था। उसने घड़ी पर नज़र डाली तो देखा कि काफी समय हो चुका है और कशिश अभी तक अपने रेस्टोरेंट से बाहर नहीं आई थी।

    उसने अपनी जेब से फ़ोन निकाला और कशिश के नंबर पर डायल कर दिया। कशिश ने हाल ही में बांसुरी से पैसे लेकर एक सेकंड-हैंड फ़ोन खरीदा था और इस वक्त के लिए वह उसके लिए काफी था। बस उसे अपने काम के कॉल्स और दोस्तों के साथ कनेक्ट रहना था। ब्रांड न्यू फ़ोन पर पैसे खर्च करने से बेहतर है कि उसने सेकंड-हैंड फ़ोन के साथ इस वक्त एडजस्ट किया था। वैसे भी फ़ोन उसे सिर्फ बात करने के लिए चाहिए था।

    जैसे ही कशिश के फ़ोन पर रिंग बजी, कशिश ने तुरंत फ़ोन उठाते हुए कहा, "बोलो।"

    "सामने से धैर्य कहता है, 'कहाँ हो तुम? कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ मैं।'"

    कशिश ने कहा, "मैं इस वक्त अपना नया अपार्टमेंट देखने आई हूँ और तुम्हें किसने कहा था मेरा इंतज़ार करने के लिए? मैंने तो तुम्हें बुलाया भी नहीं।"

    कशिश के सवाल पर धैर्य नाराज़ होता है और गुस्से में कहता है, "पागल हो गई हो क्या? इतनी रात को तुम अपार्टमेंट देखने के लिए गई हो? कहाँ हो तुम? तुम्हें पता है ना मुंबई इतना सेफ नहीं है कि तुम अकेली कहीं भी चली जाओगी।"

    सामने से कशिश गंभीर आवाज़ के साथ बोली, "धैर्य, इतना परेशान मत हो। मैं आज कैफे जल्दी निकल आई थी क्योंकि मेरी एक फ्रेंड ने मुझे यहीं पास में एक अपार्टमेंट के बारे में बताया था और जहाँ तक बात रही सेफ्टी की, तो मुंबई बाकी शहरों से तो सेफ है, इतना तो मुझे पता है। और हाँ, मैं एक समझदार लड़की हूँ, खुद को संभाल सकती हूँ। मुझे पता है कि कहाँ पर क्या कहना है और कहाँ पर कैसे हालात हैं, तो तुम्हें फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है। सॉरी अगर तुम्हें मेरा वहाँ बहुत देर इंतज़ार किया हो तो। तुम घर जाओ, मैं यहाँ अपना अपार्टमेंट देख रही हूँ।"

    "अपनी लोकेशन मुझे भेजो, मैं अभी आ रहा हूँ।" धैर्य गुस्से में कहता है। तो कशिश ने तुरंत उसे अपनी लोकेशन भेज दी। उसे पता था कि धैर्य मानने वाला नहीं है, जब तक वह यहाँ आ नहीं जाता, तब तक के लिए वह बार-बार कशिश को फ़ोन करता ही रहेगा।

    अगले 10 मिनट में धैर्य लोकेशन पर पहुँच जाता है और जैसे ही वह उस अपार्टमेंट में कदम रखता है, उसकी नाक में सीलन की तेज़ गंध आती है। वह अपनी नाक बंद करते हुए कहता है, "तुम इस अपार्टमेंट में रहने वाली हो? सीरियसली कशिश, यहाँ कितनी बदबू आ रही है।"

    कशिश हंसते हुए कहती है, "यह उतना भी बुरा नहीं है।" कशिश ने उस सीलन लगे हुए पूरे घर को देखते हुए कहा। तो धैर्य उसे घूर कर देखता है। कशिश ने कहा, "धैर्य, क्या प्रॉब्लम है? देखो, मेरे बजट में बस यही घर है। अब मैं तुम्हारी तरह उस आलीशान अपार्टमेंट में तो रह नहीं सकती हूँ। तो मुझे अपने बजट के हिसाब से खुद को एडजस्ट करना होगा।"

    "लेकिन तुम यहाँ नहीं रह सकती हो। देखो कशिश, मैं पुलिस वाला हूँ, इसलिए मुझे अच्छी तरह से पता है कि इस एरिया में कौन सी जगह सेफ है और कौन सी नहीं, और यह जगह बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है। अभी कुछ दिन पहले एक लड़की का मर्डर हुआ था और यहाँ से तो आए दिन लड़कियां गायब होती रहती हैं। इसके अलावा, यहाँ पर चर्सी गैंग का आतंक बना हुआ है।"

    धैर्य उसे समझाते हुए कहता है। तो कशिश मुस्कुरा कर उसे देखकर बोली, "अगर यह जगह इतनी ही अनसेफ है, तो फिर तुम मेरा ख्याल रखना। तुम पुलिस ऑफिसर हो, मेरी सुरक्षा तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।"

    यह कहकर कशिश वहाँ से आगे बढ़ने ही वाली थी कि अचानक से धैर्य ने उसकी कलाई पकड़ ली। कशिश एकदम से उसे देखने लगती है, तो धैर्य उसके करीब आते हुए कहता है, "हाँ, पुलिस वालों का काम है लोगों की हिफ़ाज़त करना, लेकिन एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते तुम्हारा भी काम है पुलिस वाले की मदद करना।"

    कशिश उसे हैरानी से देखते हुए कहती है, "कैसे?"

    धैर्य मुस्कुराते हुए उसके करीब आकर कहता है, "बहुत आसान है। पुलिस वालों का काम मत बढ़ाओ, ख़तरे के दायरे से दूर रहो। पुलिसवालों पर और भी काम है, वह सब काम-धाम छोड़कर तुम्हारे आगे-पीछे थोड़ी ना घूमेंगे। इसलिए बेहतर यही है कि खुद को सुरक्षित रखो। क्राइम पेट्रोल में भी तो यही कहते हैं, सुना नहीं क्या, 'सावधान रहें, सतर्क रहें।'"

    कशिश उसकी बात सुनकर एकदम से मुस्कुरा जाती है, लेकिन तब उसे एहसास होता है कि धैर्य बात करते-करते उसके कितने करीब आ गया है। उसकी करीबी से कशिश को एकदम से बेचैनी होने लगी थी। वह अपनी नज़रें चुराने लगी थी, लेकिन धैर्य अचानक उसके करीब आकर अपना दूसरा हाथ उसकी कमर में डालकर उसे अपने करीब करने लगता है। कशिश की साँसें एकदम से तेज़ हो गई थीं और धीरे-धीरे वह उसके होंठों की तरफ झुक रहा था कि अचानक से...

    "दीदी तेरा देवर दीवाना, हाय राम कुड़ियों को डाले दाना।"

    कशिश जल्दी से अपना फ़ोन निकाल कर उसे बंद करती है और हैरानी से धैर्य को देखने लगती है। तो धैर्य अपनी बड़ी हुई आँखों से कशिश को देखते हुए बोला, "ऐसी रिंगटोन कौन रखता है?"

    कशिश घबराते हुए बोली, "मैं नहीं रखती। यह फ़ोन सेकंड-हैंड है और इसमें कुछ प्रॉब्लम है, तभी मुझे सस्ते में मिल गया था। इसमें रिंगटोन सेट होती ही नहीं है, अपने आप बदलकर कोई भी रिंगटोन अपने आप लग जाती है।"

    धैर्य हैरानी से कशिश को देख रहा था। हालाँकि वह कशिश से ज़्यादा दूर नहीं था, लेकिन कशिश की रिंगटोन वाली प्रॉब्लम ने धैर्य का रोमांस ख़राब कर दिया था। और तभी एकदम से दरवाज़ा खुल जाता है, जिससे कशिश धैर्य को धक्का देकर खुद से दूर कर देती है। धैर्य संभालते-संभालते खुद को संभालता है और दरवाज़े पर देखता है जहाँ पर मकान मालिक खड़ा था। वह अंदर आते हुए कशिश से कहता है, "तो मैडम, क्या आप यह अपार्टमेंट ले रही हैं?"

    "जी हाँ, मैं यह..."

    "नहीं, यह अपार्टमेंट बहुत गंदा है और बहुत अनसेफ भी है, इसलिए यह नहीं ले रही है। थैंक यू सो मच।" धैर्य उसकी बात बीच में काटता है और उसका हाथ पकड़ कर उसे खींचकर अपार्टमेंट से बाहर ले जाने लगता है।

    अपार्टमेंट से बाहर आने के साथ ही कशिश ने उसके हाथ को झटका और गुस्से में उससे कहा, "तुमने मना क्यों किया है? तुम्हें पता है ना यह अपार्टमेंट कितना सस्ता है।"

    धैर्य उसे गुस्से में फिर से पकड़ लेता है और उसे गाड़ी की तरफ खींचते हुए कहता है, "सस्ते में तो सड़े हुए फल भी मिलते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि इंसान खाकर बीमार पड़ जाए। ऐसे सीलन वाली अपार्टमेंट में रहोगी तो एक हफ्ते में अस्पताल में नज़र आओगी। इसलिए चुपचाप से कोई अच्छी जगह ढूंढ रही हो तो ठीक है, वरना मेरा घर ऑप्शन में अभी भी है तुम्हारे पास। और आज के लिए इतना काफी है, अब चुपचाप से गाड़ी में बैठो, मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ। रात काफी हो गई है, तुम्हारी वजह से मेरा डिनर भी छूट गया, तो आज का डिनर तुम मुझे करवाओगी।"

    धैर्य कशिश को लेकर उसके घर चला जाता है, जो कि स्लम एरिया में पास में एक छोटी सी बिल्डिंग है। हालाँकि वह ज़्यादा बड़ी नहीं थी, लेकिन धैर्य वहाँ पर एक सिंगल बेड पर बैठा हुआ था और कशिश किचन में खड़े होकर खाना बना रही थी। हालाँकि यह ज़्यादा बड़ा घर नहीं था, इसलिए किचन और बेडरूम आमने-सामने ही थे। धैर्य उसे मुस्कुराते हुए देख रहा था, लेकिन कशिश उसे खो जाने वाली नज़रों से देखकर कहती है, "अब देख क्या रहे हो?"

    धैर्य हंसते हुए कहता है, "कुछ भी नहीं, मैं तो बस यह देख रहा था कि तुम गुस्से में भी कितनी क्यूट लगती हो। हालाँकि मैं हमेशा तुम्हें खुशमिजाज और अपने-अपने हालातों के साथ एंजॉय करने वाले इंसान के रूप में देखा था, लेकिन आज तो लगता है कि तुम सच में बहुत गुस्से में हो। हम चाहें तो अभी भी खाना बाहर से आर्डर कर सकते हैं। मैं ही चाहता कि तुम मुझे कुछ ऐसा खिला दो जिसे खाकर मेरी तबीयत खराब हो जाए।"

    कशिश ने गुस्से में अपने एक हाथ में आलू उठाया और दूसरे हाथ में वह चाकू उठाकर सीधे धैर्य के पास आती है और उसके हाथ में वह दोनों सामान रखते हुए कहती है, "मेरा घर कोई होटल नहीं है जहाँ पर कोई भी आकर खाने की डिमांड कर लेगा। आकर खाना बनाने में हेल्प करो। एक काम तो पहले ही खराब कर दिया है, कम से कम इस काम को ढंग से करना।"

    धैर्य मुस्कुराता हुआ अपनी जगह से उठता है और किचन काउंटर के पास आता है। वह धीरे-धीरे करके सब्ज़ियाँ चॉक करने लगता है और कशिश बाकी का काम कर रही थी। लेकिन उसके चेहरे पर जो नाराज़गी थी, वह देखकर धैर्य को बहुत मज़ा आ रहा था। उसने हंसते हुए कहा, "क्या यार कशिश, तुम उस अपार्टमेंट के लिए मुझे लड़ाई कर रही हो? रहना ही है तो कोई ढंग की जगह पर रहो ना।"

    पर कशिश गुस्से में कहती है, "तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है? मैं जहाँ भी रहती हूँ, ठीक है ना? मेरे लिए यह जगह भी बुरी नहीं है और वह जगह भी बुरी नहीं थी। मेरे पास एक नौकरी है और मैं अपना खर्चा खुद उठा सकती हूँ। वह जगह मेरे काम से बहुत पास में थी, मुझे वहाँ से रेस्टोरेंट जाने के लिए बस का किराया भी नहीं देना पड़ता, लेकिन तुम्हारी वजह से वह जगह मेरे हाथ से चली गई। मुझे पता है तुम यह सब क्यों कर रहे हो, ताकि तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर चली जाऊँ, है ना।"

    "हाँ, मैं यह सब इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मैं चाहता हूँ कि तुम घर वापस आ जाओ। मैं सच कह रहा हूँ, मुझे तुम्हारी आदत सी हो गई है। मैं तुम्हें अपने घर के हर एक कोने में देखना चाहता हूँ, किचन में, लिविंग रूम में, बेडरूम में, बालकनी में, यहाँ तक कि चॉकलेट के साथ खेलता हुआ भी। चाहता हूँ कि तुम दोनों मेरे पूरे घर को तहस-नहस कर दो, लेकिन प्लीज़ घर वापस आ जाओ।"

    उसे समझाते हुए कहा। तो कशिश अपना चेहरा दूसरी तरफ़ करते हुए कहती है, "यह पॉसिबल नहीं है।"

    तुम्हारे तुरंत कहता है, "क्यों पॉसिबल नहीं है? क्या प्रॉब्लम है? मुझे बताओ, क्या परेशानी है कि तुम घर वापस नहीं आ सकती हो? देखो, मैं मानता हूँ कि पहली बार सिर्फ कैस के मामले में था, लेकिन अब वह बात नहीं है। मैं तुम्हारे सामने अपने दिल का हाल रखा है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूँ, क्या यह बात भी तुम्हारे लिए काफी नहीं है? सबसे बड़ी बात है चॉकलेट, चॉकलेट तो तुम्हारी आदत हो गई है, वह तुम्हारे बिना बिल्कुल उदास हो गया था और तुमने तो देखा ना, फिर तुम्हारे बिना क्या हालत हो गई कि उसे अस्पताल में एडमिट करवाना पड़ा।"

    कशिश एकदम से उसे देखने लगती है। तो उसके करीब आता है और उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहता है, "कशिश, मैं सच कह रहा हूँ, मुझे और चॉकलेट, हम दोनों को तुम्हारी आदत हो गई है और अब हम तुम्हारे बिना नहीं रह सकते हैं। घर वापस चले, मेरे लिए ना सही, चॉकलेट के लिए ही सही। और जहाँ तक बात रही मेरी फीलिंग्स की, तो मैं तुम्हें टाइम देता हूँ, मुझे एक्सेप्ट करने के लिए। पर वह तो तुम तब करोगी ना, जब तुम मेरे साथ रहोगी। इस तरीके से दूर रहकर तो तुम्हें यही लगेगा कि मैं तुम्हें परेशान कर रहा हूँ, जबकि तुम अच्छी तरह जानती हो, मैं पुलिस ऑफिसर हूँ, मेरे पास और भी काम है, लेकिन वह सारा काम छोड़कर मैं तुम्हारे आगे-पीछे एक आवारा मजनू की तरह घूम रहा हूँ। क्या इतनी बात काफी नहीं है यह प्रूफ करने के लिए कि हाउ मच आई लव यू।"

    कशिश एकदम से धैर्य को देखने लगती है, तो धैर्य की आँखों में उसे सच्चाई नज़र आ रही थी, लेकिन कशिश का दिल कुछ और ही सिचुएशन में गिरा हुआ था।