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💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत

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प्रशा प्रकाश

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नीमराना फ़ोर्ट ( राजस्थान, जयपुर ) लाल जोड़े मे ख़डी उस लड़की के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे,,,,। उस लडके ने गुस्से मे आकर उसके कंधो को पकडकर भींच लिया,,,,ये शादी शादी नहीं थी,,,,तुम्हारे और मेरे बिच ना कोई रिश्ता था ना कभी होगा,,,आज के बाद ग...

Total Chapters (38)

Page 1 of 2

  • 1. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 1

    Words: 839

    Estimated Reading Time: 6 min

    फिर उसने एक और जिंदगी बचा ली। आज फिर एक बड़ा हादसा होने से टल गया।

    "शुक्रिया मैडम, आप ना होतीं तो मेरी बेटी आज इस दुनिया में नहीं होती।" उस बच्ची की माँ ने हाथ जोड़ते हुए कहा।

    "अरे... कैसी बातें कर रही हैं आप... मैं भी तो आपकी बेटी जैसी ही हूँ।" उस लड़की ने औरत के हाथ पकड़ते हुए कहा। "ध्यान से जाइए... और बच्ची का ख्याल रखना।" वह उन दोनों को जाते हुए देख मुस्कुरा उठी।

    आख़िर उसके नाम से ही तो उसकी पहचान थी, उसके गुण थे, एक जिंदगी देने वाली, किसी के जीवन में सांसें डालने वाली।

    "इवा..." इस आवाज़ ने उसकी तंद्रा तोड़ी।

    उसने पीछे मुड़कर देखा, रिद्धि उसे पुकार रही थी।

    उसने रिद्धि की तरफ मुस्कान भरी और दौड़ पड़ी।

    "एक्स्ट्राऑर्डिनरी माइंडब्लोइंग इवा, क्या शॉट था तुम्हारा।" रिद्धि ने कहा।

    "इसलिए ही तो कहती हूँ, हेलमेट लगाकर आया कर, एक सेकंड का भी भरोसा नहीं है।" इवा ने उसे समझाते हुए कहा।

    "इवा, स्टॉप यार, कितने ताने देगी और..." रिद्धि झुंझलाई।

    इवा उसे देखकर शांत हो गई।

    दोनों कॉलेज के लिए लेट हो गई थीं, प्रोफेसर से डांट पड़ना स्वभाविक था, दोनों मन ही मन हँसती हुई क्लास में चली गईं।

    रति अभी तक घर नहीं आई, बाहर कितना खतरा है कौन समझाए, अनु बड़बड़ाई।

    "तो यह कौनसी बड़ी बात है।" हर्ष ने अपना कोट पहनते हुए कहा।

    "हाँ, जब कुछ हो जाये तो घड़ा मेरे ही सर फूटेगा।" अनु बोली।

    "कान्ता..." हर्ष ने आवाज़ दी।

    कान्ता दौड़ी सी अंदर आई, "जी साहब?" उसने कहा।

    "मैडम को एक गिलास जूस का लाकर दो, और रति के ड्राइवर से पता करो कितना टाइम लगेगा।" हर्ष ने कहा।

    कान्ता चली गई।

    "मैंने कोई जोक नहीं मारा था हर्ष।" अनु गुस्से से बोली।

    "रिलैक्स मॉम, कूल डाउन, व्हाट इस द मैटर?" रूम में एंटर करते हुए नीति बोली।

    "अनु, तुम्हारा स्वभाव बिगड़ता जा रहा है, अभी भी टाइम है, अनु सुधर जाओ।" हर्ष कहते हुए बाहर आ गया।

    "कूल डाउन मॉम, पापा को आपकी गलतियों के अलावा और कुछ भी दिखाई नहीं देता, लेकिन आप तो समझती हो ना।" नीति ने अनु को इम्प्रेस करते हुए कहा।

    अनु ने हुंकार भरी।

    "मॉम वो मुझे, कुछ फाइल्स के लिए फाइव थाउजेंड चाहिए।" नीति ने कहा।

    अनु ने मुस्कुराकर पैसे नीति के हाथ में रख दिए।

    "ऐसी कौनसी फाइल्स आ गईं नीति कि जिनमें 5 हज़ार रूपये लगेंगे, और उनको खरीदना बेहद ज़रूरी है।" अवि ने अचानक से आते हुए कहा, जो हर्ष के लिए आया था।

    "भाई... वो..." नीति आगे बोल नहीं पाई।

    "शटअप नीति, 5 हज़ार कोई छोटी रकम नहीं है।" अवि ने गुस्से से कहा।

    "हमारे पास पैसों की कोई कमी नहीं है अवि, फिर भी इस तरह बेवजह गुस्सा।" अनु ने बड़े ही एटिट्यूड से कहा।

    "नॉट विदाउट एनी रीज़न मिसेज सूर्या, पैसे है तो इसका यह मतलब कहीं से भी नहीं है कि हम उसे बर्बाद करें। यह बात आप भी अच्छी तरह से जानती है कि नीति का मंथली बिल कितने का होता है, यह आए दिन लाखों का खर्चा करती है, सारा दिन घर से बाहर रहती है। बजाज मेंशन में किसी भी मेंबर का इतना खर्चा नहीं होता जितना इस अकेली का होता है। कल प्रिंसिपल का कॉल आया था, क्लास में इसकी अटेंडेंस न के बराबर है, पूछो अपनी लाडली बेटी से कि क्लासेज बंक करके कहाँ जाती है ये..." अवि की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि नीति बोल पड़ी।

    "रियली भाई, आपको मुझ पर बिलकुल भी भरोसा नहीं है।"

    "इनफ नीति, भरोसे की बात तुम ना करो तो ही बेहतर है और जिस भरोसे की बात तुम आज कर रही हो ना, वो सालों पहले तोड़ चुकी हो तुम, तो बेहतर यही होगा कि तुम भरोसे की बात करो ही मत। सालों पहले तुमने हम सब से झूठा बताके हमारे ही दुश्मन राज रॉय से शादी की, बजाज मेंशन की नाक तो तुमने कटवा ही दी थी, बदले में तुम्हे भी कुछ नहीं मिला और आज उसी घर के सदस्यों ने तुम्हे झुकी गर्दन के साथ एक्सेप्ट किया था, उसके बाद भी तुम नहीं सुधरी और मैं भी ये कैसे भूल गया कि कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती।" अवि ने लम्बी सांस भरी।

    "रिलैक्स अवि।" रति ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

    अवि को पता ही नहीं चला वो कब आई।

    "बच्ची है वो अभी... जाने दो... लाडली है ना सबकी... तुम चलो और ब्रेकफास्ट करो, चलो।" रति कहते हुए उसे डायनिंग टेबल की तरफ ले गई।

    "ये जो कुछ भी करता है ना करने दो इसे, ये नहीं जनता कि अनुसूर्या किस तलवार का नाम है, जब तक म्यान में रहती है चुप रहती है, निकलने के बाद सबको चुप करवा देती है।" अनु ने गुस्से भरी नजर सीढ़िया उतरते अवि और रती पर डाली।

    "लेट्स गो, मुझे ज़रूरी असाइनमेंट्स चेक करना है और तुम्हे भी कॉलेज के लिए देर हो रही होंगी, चलो।" कहते हुए अनु ने अपने बालों को पीछे लिया।

    अवि ने नाश्ता किया और ऑफिस के लिए निकल गया।

  • 2. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 2

    Words: 1573

    Estimated Reading Time: 10 min

    अवि ने नाश्ता किया और ऑफिस के लिए निकल गया।

    यह है अविवेश बजाज... पिछले 7 वर्षों से नंबर वन टॉप बिजनेसमैन का खिताब अपने नाम करने वाले बिजनेस की दुनिया के बेताज बादशाह। बजाज ग्रुप ऑफ़ कंपनीज के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ। अपनी फैमिली के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार, लेकिन वह अपने ही परिवार के हाथों मजबूर था।

    हर्षवर्धन बजाज इस परिवार के मुखिया थे, अनुसूर्य बजाज हर्षवर्धन बजाज की दूसरी पत्नी थी और अवि की स्टेप मदर।

    रति बजाज, वह मिस्टर बजाज को एक हॉस्पिटल के सामने मिली थी, जो किसी हमले द्वारा ध्वस्त हो गया था। हर्ष ने उसे अपने खून और खानदान का नाम दिया था। उसे हर एक चीज की कदर थी - टाइम, सर्वेंट्स, फैमिली, सबकी।

    नीति, अनुसूया की पहली और हर्ष की तीसरी औलाद थी। कहते हैं कि अमीर बाप की औलाद बिगड़ी हुई होती है, एक गिरी हुई, बदतमीज, कैरेक्टर लेस होती है। यह सभी खूबियां थी मिस नीति सूर्या बजाज में।

    इन सबके बीच इस फैमिली में एक और मेंबर था, और शायद ना भी, सीता बजाज कपूर, हर्ष की बुआ और अवि की प्यारी बुआ माँ। आज तक इनकी बात कोई नहीं टाल पाया था। ना किसी में इतनी हिम्मत थी कि वो सीता की बात को काट सके।

    इवा एक बहुत ही मासूम लड़की थी, वो राम की इकलौती बच्ची थी। जब वह 2 साल की थी, एक एक्सीडेंट में उसकी माँ, रीमा जैन, मारी गई। इवा को केवल इतना ही पता था, जो कि उसके पापा ने उसे बताया था। अपने अतीत के बारे में वह कुछ नहीं जानती थी, लेकिन वह अपनी जिंदगी के हर एक पल को खुल कर जीना चाहती थी। उसे तो यह भी नहीं पता था कि हर एक कदम पर उसके लिए खतरा मंडरा रहा है। इसी खतरे से दूर राम उसे अपने गांव से दूर ले आया था।

    मुंबई जो अमीरों का शहर माना जाता है। उसी मुंबई में मासूम इवा एक मिडल क्लास लाइफ इंजॉय कर रही थी।

    "इवा लेट मत करना, जल्दी आ जाना यार डोनेशन देकर," रिद्धि चिल्लाई।

    इवा ने कोई जवाब नहीं दिया और अंदर जाकर अपना गुल्लक एक औरत के हाथों में सौंप दिया।

    "मुझे लगता है, इस बार शायद थोड़ा कम है, लेकिन अगली बार मैं पूरी कोशिश करूंगी," वह बोली।

    "अरे नहीं बेटी, तुमने इस ऑर्फनेज के लिए कितना कुछ किया है," औरत उसे दुआएं देते हुए बोली।

    "इवा जल्दी कर यार," रिद्धि चिल्लाई।

    "ओके, थैंक्स आंटी, मैं चलती हूं, मेरी दोस्त को युद्ध में जाना है इसलिए बार-बार घोषणा किए जा रही है," ईवा ने मुंह बनाते हुए कहा।

    औरत को उसकी बात पर हंसी आ गई और वह अंदर आ गई।

    इवा वहां से निकलकर रिद्धि के पास गई जो सड़क पर साइड में स्कूटी लगाकर उस पर बैठी हुई थी।

    "इतनी बातें तो तुम मुझसे कभी नहीं करती, तो फिर यह क्या था?" रिद्धि ने आंखें मटकाते हुए उससे पूछा।

    "अब तू यह तेरा ड्रामा बंद करेगी, जब देखो जब जलती रहती है हर किसी से, इतनी जेलेसी।"

    "बस कर, मुझे कोई जेलेसी नहीं हो रही है," इवा की बात बीच में ही काट कर वह बोली।

    "ओ रियली मैडम, तो फिर ठीक है मैं आंटी से अपनी बात पूरी करके आती हूं," इवा ने उसी की तरह नाटक करते हुए कहा।

    "हां हो रही है मुझे जेलेसी," उसने खींझते हुए कहा। "ये तो तुझे भी पता है, तू मेरी आखिरी और एकलौती दोस्त है," उसने मुँह लटकाते हुए कहा।

    "ये लो भईया, अंगूर ले पेड़ पर लंगूर लटक गया, रिदू मैं सोचती हूँ की, अगर मेरी शादी होंगी, अगर क्या, वो तो होंगी ही, फिर मैं तेरे साथ कहाँ से रहूगी, तब क्या होगा तेरा?" इवा सोचते हुए बोली।

    "तब की बात अलग है, एक काम कर तू मुझसे ही शादी कर लेना, फिर ना हमारी दोस्ती खत्म होंगी और ना ही पागलपन्ति," रिद्धि की इस बात पर दोनों हँस पड़ी।

    उनसे कुछ ही दुरी पर एक ब्लेक कलर की कार खड़ी थी। उसके अंदर एक शख्स था जिसने काले रंग का लिबास पहना था। उसका एक हाथ स्टेयरिंग पर था और दूसरा कान पर लगे फोन पर।

    "सर वो सामने ही है हमारे, एक और लड़की है साथ मे, शायद दोस्त है उनकी," उसने कहा।

    फोन के दूसरी और से आवाज़ आई, "नजर बनाये रखो, कुछ भी गड़बड़ हो तो फौरन इनफार्मेशन दें देना।"

    "ओके सर," कहते हुए उस शख्स ने फोन जेब मे डाला और इवा को हँसते हुए देखकर वहाँ से निकल गया।

    "चल, बहुत मस्ती हो गई, पीछे खिसक," इवा ने कहा।

    रिद्धि मुँह बनाते हुए पीछे खिसक गई, वो जानती थी, ज़ब वो जल्दी में होती थी तब स्कूटी चलती नहीं हवा में उड़ती थी, इवा ने स्कूटी स्टार्ट की और घर की और चल दी।

    राम किचन में खाना पका रहा था, उसे पता था कि इवा के आने का टाइम हो गया था। उसी वक्त डॉरबेल बजी तो वो समझ गया की कौन है।

    फटाफट उसने गैस बंद की और दरवाजे की और बढ़ गया।

    उसने दरवाजा खोला तो उसके आशा विपरीत कोई और ही था।

    "रीता?" राम के आगे के शब्द उसके गले में ही अटक गए। उसने खुद को संभाला।

    "रीता तुम यहाँ क्या कर रही हो? तुम्हे पता है ना की त्रिवेदीज़ मेरे पीछे है, और गलती से भी उन्हें भनक लग गई तो बहुत बड़ी गड़बड़ हो जाएगी, बहुत मुश्किल से वहां से बचकर निकला हूँ," कहते हुए राम ने रीता को अंदर खींच लिया और दरवाजे को जल्दी से बंद कर दिया।

    "राम, ठीक तो हो ना तुम? उस एक्सीडेंट के बाद लगा जैसे तुम लोगों में से कोई नहीं बचा, जब पिंकी से बात हुई थी तो उसने मुझे बताया कि तुम लोग मुंबई में हो, और मैं, दौड़ी चली आई, रीमा कहां है राम?" रीता ने पूछा।

    राम रीता की बात सुनकर जैसे खो गया, रीमा उसके पास ही खड़ी हो।

    "राम?" इस बार रीता जोर से बोली, तो उसे होश आया। वह अंदर से कांप गया था, उसकी आंखों में नमी उतर रही थी, "रीता, उस एक्सीडेंट में हम ने, रीमा, को खो दिया," फफक पड़ा राम।

    रीता ने उसे संभाला, "मुझे लगा, सॉरी राम," उसने अपने आंसू साफ करते हुए कहा।

    कुछ देर बाद, खामोशी तोड़ते हुए उसने फिर कहा, "विक्कू कहां है राम?"

    विक्कू का नाम सुनते ही वह होश में आया। "विक्कू, रीता तुम्हें जल्द से जल्द यहां से निकलना चाहिए, विक्कू के कॉलेज के लौटने का टाइम हो गया है, वो किसी भी वक्त यहां आती होगी, मैंने उसे इन सब से दूर रखा है, उसे कुछ नहीं बताया मैंने, मैं तुम्हें सितारा होटल में मिलता हूँ," उसने अपनी जेब जेब से कार्ड निकला, और रीता के हाथों में थमा दिया, "यह लो मेरा कार्ड वहां के मैनेजर को दे देना।"

    "ठीक है राम," कहते हुए वजह से दरवाजा खोलने को हुई, डॉरबेल वापस बजी। दोनों घबरा गए। उसने रीता को पर्दे के पीछे छुपाया और दरवाजा खोला। सामने टैक्सी ड्राइवर था।

    "जी कहिए," राम ने उससे पूछा और चैन की सांस ली।

    "सर मैडम ने रुकने के लिए कहा था, मुझे लेट हो रहा है," ड्राइवर ने कहा। ड्राइवर की आवाज सुनकर रीता बाहर आ गई, उसने एक नजर राम को देखा और फिर ड्राइवर के साथ हो ली।

    राम ने दरवाजा बंद करते हुए गहरी सांस खींची। अंदर आकर जैसे वह सोफे पर बैठने को हुआ, डॉरबेल फिर बजी। इस बार पक्का इवा होगी, उसने सोचा और आंसू साफ कीये, मुंह धो कर उसने दरवाजा खोला।

    "ओ हो पापा, कितनी देर लगा दी, ऐसा कौन सा इंपॉर्टेंट काम कर रहे थे जो मुझ से भी बढ़कर है?" इवा ने मूहं फुलाते हुए कहा।

    "तुझसे बढ़कर आज से पहले मेरे लिए कुछ था क्या?" राम ने उसे गले लगाते हुए कहा।

    "रिद्धि बेटा अंदर आओ," राम ने कहा।

    "नहीं अंकल वो मुझे ना... बस कर ड्रामा क्वीन चल अंदर, क्यों सड़े हुए आलू के जैसे मुंह बना रखा है, जिसके ना सब्जी बन सकती है ना पराठे," ईवा ने उसके बात को काटते हुए कहा।

    "अंकल यह कभी नहीं सुधरने वाली, मुझे मां को हॉस्पिटल लेकर जाना है आज सुबह से ही उन्हें चक्कर आ रहे हैं," रिद्धि ने परेशान होते हुए कहा।

    "ठीक है बेटा, ध्यान से जाना," राम ने उसे बड़े प्यार से कहा।

    रिद्धि ने सिर हिलाया और वहां से निकल गई।

    दोनों अंदर आए, इवा की नजर सामने की घड़ी पर गई, 5:10 हो रहे थे।

    "इवा बेटा मैंने डिनर बना दिया है, खा लेना, मुझे होटल के लिए निकलना होगा, लेट हो जाऊंगा तो मैं वहीं बाहर खा लूंगा और हाँ रात गए दरवाजा मत खोलना, मैं मिश्रा जी से कह दूंगा, वो मिसेज मिश्रा को भेज देंगे कोई गड़बड़ हुई तो लापरवाही मत करना, मिसेज मिश्रा को बोल देना, वह मुझे फोन कर देगी," राम ने चिंता भरे लहजे में कहा।

    "आप मेरी चिंता ना करें पापा, आराम से जाइएगा," इवा ने मुस्कुराते हुए कहा।

    राम ने उसके सिर पर हाथ फेरा और बाइक की चाबी लेकर घर से बाहर निकल गया। राम के जाते ही इवा ने दरवाजा बंद किया, रूम में जाकर बेड पर पसर गई।

    उसे मुंबई में आए 20 सालों से भी ज्यादा का वक्त हो गया था, उसे 20 सालों में कोई भी नहीं मिला था जिसे अपने दिल से जान से ज्यादा चाह सके, कई प्रपोजल भी आये, लेकिन इन सब में इवा को वो नहीं दिखा जो उसे चाहिए था, सोचते हुए इवा को जोर से हंसी आ गई, मिला ना, रिदु, उसने अपने आप से कहा और फिर जोर से हंस पड़ी।

    सितारा होटल, मुंबई
    रूम नं. 513

    वह सोफे पर बैठा था, उसके सामने ही रीता बैठी थी, उसकी आंखों में आंसू थे।

    क्रमशः

  • 3. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 3

    Words: 877

    Estimated Reading Time: 6 min

    सितारा होटल, मुंबई
    रूम नं. 513

    वह सोफे पर बैठा था, उसके सामने रीता बैठी थी, उसकी आँखों में आंसू थे।

    राम ने बोलना शुरू किया।

    "रीमा के परिवार ने तो हमें उसी दिन अपना लिया था, जिस दिन हमें साथ देखा था, लेकिन पिताजी नहीं माने, उनका फैसला सुनकर मैंने और रीमा ने अगले ही दिन कोर्ट मैरिज कर ली। पिताजी को जैसे ही पता चला कि मैंने शादी कर ली है, अपने आदमी हमारे पीछे लगवा दिए, क्योंकि उन्हें तो खानदानी बहु चाहिए थी, कोई सड़क छाप नहीं। त्रिवेदी और ठाकुरो में शुरुआत से ही नहीं बनी थी, और इसी वजह से तुम्हे भी हमसे दूर होना पड़ा, बिजनेस की दुश्मनी फैमिली दुश्मनी हो चली थी।"

    उस वक़्त रीमा और मैं MBA कर रहे थे, मैं उसका सीनियर था, शादी के बाद उन लोगो से बचाकर मैं रीमा को गांव से इंदौर ले आया।

    2 साल बाद न जाने हमारे बारे में पिताजी को कैसे पता चल गया, रात में उन्होंने मेरे छोटे से घर में आग लगा डाली, और हमें इस बात की भनक भी नहीं लगी, उस वक़्त रीमा किचन से पानी लेने गई थी, और उसी वक़्त सिलेंडर फट गया और रीमा..." कहते कहते राम का गला रुद्ध गया और आंखो से पानी लबालब बह निकला।

    "वो काली रात मेरे लिए काल बनकर आई थी, मैंने खुद को संभालकर इकरा को उठाया और निकल गया वहाँ से। पता नहीं पिछले जन्म में मैंने कोनसा पाप किया था जिसकी सजा रीमा को भुगतनी पड़ी। और भगवान ने मुझे इतना पापी बना दिया की मुझे उसकी अस्तियाँ तक नसीब नहीं हुई।"

    उन सबसे निकलकर मैं इकरा को मुंबई लेकर आ गया, सबको लगा हम में से कोई नहीं बचा।

    "यहाँ आकर पिंकी से मुलाक़ात हुई, उस दिन होटल के काउंटर पर पिंकी न जाने कैसे पहचान गई मुझे, और मैं, मैं न पहचान सका," राम ने आंसू पोछते हुए कहा।

    "पिंकी की बातो पर मुझे यकीन नहीं हुआ, और फिर तुम्हारी फोटो सेंड की, तो मैं दोस्त की शादी का बहाना देकर घर से निकल गई। पिंकी के साथ मैं इसी होटल में आई, यहाँ से तुम्हारा पता मिला, टाइम से घर नहीं पहुंची तो विनय परेशान हो जायेगे, मुझे अब निकलना चाहिए राम," रीता ने कहा और आंसूओ की नमी को साफ किया।

    "चलती हूँ, अपना और विकु का ध्यान रकना।"

    राम ने सिर हिलाया और रीता चली गई।

    राम होटल के काउंटर की और बढ़ गया, आज उसकी नाईट शिफ्टिंग थी, और उसे ये याद भी नहीं था, लेकिन इवा सब जानती थी।

    रीता, राम, पिंकी, और रीमा कॉलेज फ्रेंड थे, राम और रीमा की शादी के बाद सबका कॉन्टेक्ट टूट गया था, विनय रीता का पति था, ठाकुर खानदान की एकलौती बेटी थी रीता, रीता की भाभी लता की बहन रीमा जैन थी।

    घड़ी रात के 8 बजा रही थी, अवि ऑफिस से घर लौट चूका था।

    "अवि फ्रेश होकर डिनर के लिए आ जाओ," अनु ने बिना देखे बडे ही ऐटिटूड से सीढ़िया चढ़ते अवि से कहा।

    "थैंक्स मिसेज़ सूर्या, इतनी केयर के लिए, मुझे बहुत जरूरी मीटिंग अटेंड करनी है, सो आप लोग डिनर एन्जॉय कीजे, मंदा," अवि ने मेड की तरफ देखते हुए कहा।

    "जी सर," मंदा ने कहा।

    "मेरा डिनर रूम में लगा दो।
    और ध्यान रहे बीच में मुझे कोई डिस्टर्ब न करे, अडस्टेण्ड" अवि ने रमेश की तरफ देखते हुए कहा।

    रमेश ने गर्दन हिला दी।

    अनु ने हाथो में पकड़ा अख़बार गुस्से से टेबल पर पटक दिया, और गुस्से से जाते हुए अवि को घुरा।

    अवि फ्रेश होकर बेड पर बैठ गया, और सामने टेबल पर पड़ा लेपटॉप ऑन कर दिया, उसका फ़ोन रिंग हुआ तो उसकी नजर बगल में पड़े फ़ोन पर गई, उसने पिक किया।

    "सर बरेली वाला कॉन्ट्रेक्ट हमारे पास आ गया है, और त्रिवेदीज़ इससे बहुत गुस्सा है," उसके मैनेजर विशाल ने कहा।

    "गुड, ऐसा ही तो मैं चाहता था, नजर बनाये रखो, विजय और देवराज त्रिवेदी चुप नहीं बैठेंगे, वो कोई ना कोई गिरी हुई हरकत जरूर करेंगे," अवि ने कहा, और फ़ोन रख दिया, और डिनर करने में बिजी हो गया।

    आज सुबह नाश्ता अनु ने बनाया था, स्पेशली, अवि के अलावा सब आ गए थे, शायद वो सो रहा था।

    रति नाश्ते के बाद उठकर अवि के रूम की तरफ बढ़ गई।

    रूम में देखा तो, वो ब्लेंकेट ओढ़कर आराम से सो रहा था, शायद लेट नाईट मीटिंग के कारण।

    रति उसके सिरहाने बैठ गई, बालो में हाथ फेरते हुए उसने पुकारा, "अवि...नींद पूरी हो गई हो तो उठ जाओ।"

    "सुबह हो गई क्या," अवि ने अलसाई आँखे खोलते हुए कहा। उसने ऐसे पूछा जैसे उसे कुछ पता ना हो।

    "नो अवि, सुबह कहाँ हुई है अभी," फिर उसकी पीठ पर मुक्का जमाते हुए कहा, "नालायक दोपहर सिर चढ़ने को है और तुझे अभी भी सुबह की पड़ी है, उठ, जल्दी, 15 मिनिट में तू मुझे डायनिंग टेबल पर नहीं मिला तो सिधा लंच मिलेगा," कहते हुए वह बाहर आ गई।

    अवि ने जोरो से अंगड़ाई ली और टाइम देखा, 11 बजकर 5 मिनिट हो रहे थे।

    "रात को नींद नहीं आती, सुबह उठा नहीं जाता, ये क्या हो रहा है मेरे साथ, कहीं मुझे कुछ हो तो नहीं गया है, ओ गॉड जल्दी डॉक्टर को देखना होगा। चेकअप करवाए भी बहुत दिन हो गए है," उसने अपने सिर पर हाथ रखकर खुद से चेक करते हुए बड़बड़ाए जा रहा था।

    क्रमशः

  • 4. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 4

    Words: 741

    Estimated Reading Time: 5 min

    रात को नींद नहीं आती, सुबह उठा नहीं जाता, यह क्या हो रहा है मेरे साथ, कहीं मुझे कुछ हो तो नहीं गया, जल्दी से डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा, चेकअप करवाए भी बहुत दिन हो गए हैं," उसने अपने सिर पर हाथ रखकर खुद से चेक करते हुए बड़बड़ाया।

    "रियली अवि," रति ने रूम में एंटर करते हुए कहा, "तू जितना शातिर है उससे कहीं ज्यादा इडियट है। ये टिपिकल बीवियों वाली हरकतें बंद कर अब, मुझे तो ये सोच के अफसोस होता है कि तुझ जैसे इंसान को किसने टॉप बिज़नेस मैन बना दिया।"

    "ओह माय गॉड, तू अभी भी यहीं है, मुझे गए 5 मिनट से ज्यादा का वक़्त हो गया है और तू बिस्तर पर पड़ा उबासियाँ गिन रहा है, उठ," रति ने उसकी हालत देखते हुए कहा।

    अवि बिस्तर से नीचे आया और जोर से अंगड़ाई ली।

    यह देखकर रति का पारा हाई हो गया, "इसे अभी भी अंगड़ाइयाँ लेनी हैं," कहते हुए रति ने उसके पीछे जाकर धक्का मारा।

    "जा रहा हूँ दादादी अम्मा," कहते हुए अवि जल्दी से बाथरूम में घुस गया।

    आज उसने फॉर्मल ब्लैक पैंट, हाफ लेंथ ब्लैक टीशर्ट और ब्लैक ब्लेजर डाला था। विशाल ने उसे पहले इन्फॉर्मेशन दे दी थी, सो सुबह बिना नाश्ता किए निकल गया, शाम 4:00 बजे लौटा। उसे अर्जेंट मीटिंग के लिए राजस्थान जाना था, उसकी चाइल्डहुड फ्रेंड इशाना की शादी थी। वैसे तो उसकी मीटिंग जयपुर में ही थी, तो ज्यादा दूर नहीं था।

    आज इवा बहुत खुश थी, आज उसे भी तो नीमराना के लिए निकलना था। मंडप का डेकोरेशन उसे ही देखना था। रिद्धि की ममेरी बहन की शादी थी, और इवा की बड़ी अच्छी दोस्त भी, सो वह भी रिदू के साथ सुबह निकल गई थी, और राम भी शाम को आने वाला था।

    उसने इवा को बहुत समझाया था, "किसी पर ज्यादा भरोसा मत करना, अकेले कहीं मत जाना, सबके साथ रहना," वगैरह-वगैरह। इवा राम की परेशानी समझती थी, राम ने डरते हुए उसे भेजा था, रिदू को भी उसने बहुत समझाया था इवा को लेकर।

    लगभग पौने 2 घंटे की फ्लाइट के बाद एयर इंडिया 9 बजे जयपुर में लैंड हुई, और फाइनली एयरपोर्ट से 3 घंटे के सफर के बाद दोपहर के साढ़े 12 बजे नीमराना में थे।

    आते ही उसने तैयारियां करनी शुरू कर दी थीं, टाइम कम था, रात 8 बजे फेरों का मुहूर्त था, 7 बजे तक उसे मंडप पूरी तरह तैयार करना था। 20 साल की उम्र में कितना काम संभाल रही थी, सब इवा की तारीफ कर रहे थे।

    शाम होते-होते मेहमानों का जमावड़ा बढ़ गया था। राम भी आ चुका था। अवि भी इवा की फ्लाइट में था लेकिन वह फर्स्ट क्लास में था। अपनी मीटिंग पूरी कर वह भी 6 बजे पहुंच गया था। उसने व्हाइट शर्ट के साथ गहरे लाल रंग का सूट डाला हुआ था, हाथों में ब्रांडेड घड़ी थी, इसके साथ ही वह बहुत डैशिंग लग रहा था, लोगों की नजर उसी पर अटकी पड़ी थी।

    अंदर मेकअप आर्टिस्ट ने इशाना का मेकअप शुरू कर दिया था। इवा ने अपना काम कर रिदू में साथ मिलकर खुद को तैयार कर लिया था, इवा ने आज चटक लाल रंग का जोड़ा पहना था और रिदू ने महरूम रंग का। एक्चुअली इशाना की फैमिली में ये रस्म थी की पाँच कन्याएं शादी का जोड़ा पहने, और दुल्हन को मंडप तक पहुंचाए। इवा, रिदू और इशाना के अलावा, इशाना की दो बहनों समेत 5 लड़कियाँ हो चुकी थीं।

    इवा की खूबसूरती उसके चेहरे पर चार चाँद लगा रही थी।

    स्टेज पर इशाना ने वीर को माला पहनाई और वीर ने इशाना को। वीर ने माला पहनने के बाद एक प्यारा सा किस इशाना के गालों पर दे दिया, इशाना शर्म से पानी-पानी हो रही थी, वहीँ नीचे खड़े लोग हुटिंग कर रहे थे।

    उसी वक़्त न जाने कैसे, स्टेज के ऊपर बंधी गुलाब की बेल टूट कर अवि के गले में जाती हुई, उधर नीचे खड़ी एक लड़की के गले में जा पड़ी।

    अवि की नजर उस पर पड़ी लेकिन वो उसका चेहरा नहीं देख पाया क्यूंकि उसने उस बेल को निकलने की जद्दोजहद में अवि की तरफ पीठ कर ली थी।

    वो कोई और नहीं इवा ही थी।

    उन चारों ने इशाना को मंडप में लाकर वीर के साथ बैठा दिया था।

    रिदू ने इधर-उधर देखा, इशाना को मंडप में बैठने के बाद से ही उसने इवा को नहीं देखा था। वह सोच ही रही थी कि इशाना की बहन रावी उसे ड्रेस चेंज करने के लिए ले गई।

    क्रमशः

  • 5. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 5

    Words: 1062

    Estimated Reading Time: 7 min

    रिदू ने इधर-उधर देखा, ईशाना को मंडप में बैठाने के बाद से ही उसने इवा को नहीं देखा था। वह सोच रही थी कि ईशाना की बहन रावी उसे ड्रेस चेंज करने के लिए ले गई।

    अवि कुछ देर के लिए अकेला रहना चाहता था, इसलिए बाहर लोन में आ गया था। उसे थोड़ी बेचैनी भी हो रही थी।

    लोन में बैठे अवि की नजर अचानक ही एक कमरे पर जा टिकी, जिसमें से इशाना का भाई अहान निकला था और अपने बाल सेट कर रहा था। उसके जस्ट बाद ही वही लाल लहंगे वाली लड़की निकली, जिसको अवि ने स्टेज पर देखा था, जो अपने दुपट्टे को सही कर रही थी। वो अवि की तरफ पीठ करके खड़ी थी, अवि उसका चेहरा नहीं देख पाया फिर से। अवि को उन दोनों की बातें तो सुनाई नहीं दे रही थीं, लेकिन उसके सामने जो नजारा था, उसे देखकर अवि का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। अहान उसे पैसे दे रहा था। अवि ने गुस्से से नजरें फेर लीं।

    "कैसी दुनिया है?", जहाँ देखो सब पैसे के पीछे भागते रहते हैं। यहाँ तक अपना जिस्म भी........ बस कर अवि, कूल डाउन। तुझे क्यों गुस्सा आ रहा है? तुझे क्या करना है वैसे भी उस बत्तमीज औरत का? उसने तेरे साथ थोड़ी कुछ किया है?" बड़बड़ाते हुए उसने टहलना शुरू कर दिया।

    उसे लगभग आधा घंटा हो चुका था। उसकी बेचैनी कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। वो अपने बॉडीगार्ड जीत को भी साथ नहीं लाया था। उसने जीत को होटल में ही रुकने को कहा था।

    फिर से उसकी नजर घूमते हुए उसी लड़की पर जा टिकी। इस बार उसके साथ कोई बूढ़ा आदमी था, अँधेरे में उसका चेहरा अभी भी दिखाई नहीं दे रहा था, ना ही वो बूढ़ा। उनकी बातें भी वो सुन नहीं पा रहा था। और फिर से वो उस बूढ़े से पैसे ले रही थी।

    दोबारा वही सीन देखकर अवि के माथे की नसें तन गईं। उसका मन तो कर रहा था कि उस औरत को जाकर दो-तीन थप्पड़ एक साथ धर दे, लेकिन वो कुछ नहीं कर सकता था। अवि का तो उसने कुछ बिगाड़ा भी नहीं था।

    "इन जैसी औरतों को तो शादी में भी चैन नहीं है, बत्तमीज।" अवि बड़बड़ाया और उसने खुद को रिलेक्स किया और अंदर चला गया।

    वह कॉरिडोर में पहुंचा ही था कि उसकी बेचैनी दोबारा से शुरू हो गई, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ आखिर हो क्या रहा था। हार मानकर वो वापस से लॉन में आ गया। उसने अपनी टाई ढीली की और शर्ट का ऊपर का एक बटन खोल दिया। वह बेंच पर बैठे ही हुआ था कि एक जोरदार चीख उसके कानों में पड़ी।

    उसने इग्नोर किया और दोबारा बैठने को हुआ, दोबारा उसे चीख सुनाई दी। ये चीख पहले से ज्यादा तेज और दर्दनाक थी। अवि अब कंट्रोल नहीं कर पाया और वह उस तरफ दौड़ पड़ा जिधर से आवाज आई थी।

    दौड़ते हुए वह लॉन के पीछे की तरफ गया। कुछ गुंडे एक लड़की को घेरे खड़े थे, ध्यान से देखने पर अवि ने देखा की वह लड़की और कोई नहीं लाल जोड़े वाली ही थी। गुंडों ने उस पे गन तान रखी थी।

    "चीख और जोर से चीख, इंसान नहीं तो क्या पता भगवान ही तुझे बचाने आ जाये।" गन वाले गुंडे ने कहा।

    "प्लीज मुझे जाने दीजे, मैंने क्या बिगाड़ा है आप लोगों का, प्लीज छोड़ दीजे मुझे। प्लीज, मैं हाथ जोड़ती हूँ आपके आगे, प्लीज।" उस लड़की की मीठी सी आवाज़ अवि के कानों में पड़ी तो उसे जैसे सुकूँ मिल गया।

    "मरना तो तुझे पड़ेगा।" उनमें से एक ने कहा।

    "रुको........" जोर से चिल्लाया और दौड़ता हुआ उस औरत और गुंडों के बीच जा खड़ा हुआ।

    "अब तू कौन है? हमें तुझसे कोई मतलब नहीं है, हट जा लड़के, नहीं तो तू भी मारा जायेगा।" गन वाले गुंडे ने कहा।

    "ओके फ़ाइन, बट पहले मेरे सवालों का जवाब दो। तुम लोग इसे क्यों मारना चाहते हो? इसने ऐसा भी क्या कर दिया कि तुम लोग इसकी जान लेने पर उतारू हो गए?"

    अवि की बात सुनकर उनमें से एक ने कहा, "त्रिवेदी परिवार के लिए कलंक है ये लड़की।"

    त्रिवेदी शब्द सुनते ही अवि का गुस्सा आसमान पर चढ़ गया। विजय त्रिवेदी इतना नीचे गिर जायेगा उसने सोचा भी नहीं था। उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था, फिर भी शांत खड़ा था नहीं तो अभी तक वो उनके हाथ पैर तोड़ चुका होता। उनकी तादात 25 के लगभग थी और अवि कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था।

    "त्रिवेदी फैमली के लिए है, तुम लोगों के लिए थोड़ी हैं कलंक। और ये उस विजय ने कैसे डिसाइड कर लिया की ये उसके परिवार के लिए कलंक है, और तुम लोग किस हक से इसे मरने आ गए?" अवि ने खुद को शांत करते हुए कहा।

    "जिस हक से तू इसे बचाने आया है, उसी हक से हम मारने।" गन वाले लड़के ने कहा, "लगती तो तेरी भी कुछ नहीं ये।" गुंडे ने कहा।

    अवि ने मुड़कर उस औरत की तरफ देखा। जैसा उसने सोचा था, वो औरत नहीं थी, मासूम सी लड़की थी। उसकी गहरी नीली आँखो से झर-झर कर आंसू बह रहे थे। इवा के अलावा कोई और नहीं थी वह। अवि एक बार को उसकी खूबसूरती में खो गया।

    "मैं इनके बारे में कुछ नहीं जानती, प्लीज हेल्प मी।" इवा ने टूटते शब्दों के साथ कहा।

    इवा की मासूमियत भरी बातों से अवि को होश आया।

    "देख ज्यादा तीन पांच मत कर नहीं तो तुझे भी इसी के साथ ठोक डालूंगा, अभी भी वक्त है चला जा।" गन वाले गुंडे ने कहा।

    "अरे पुलिस...." अवि गुंडों की तरफ देखते हुए चिल्लाया।

    सकपकाकर सबने पीछे मुड़कर देखा।

    अवि को इसी मोके का इंतजार था, जैसे ही उन लोगों का ध्यान भटका अवि ने एक लात उसके हाथ पर मारी जिसके हाथ में गन थी और गन दूर जा गिरी। गुंडों को सम्भलने का मौका ना देकर उसने इवा का हाथ पकड़ा और वहाँ से दौड़ लगा दी। गुंडे दोनों के पीछे हो लिए।

    कॉरिडोर में फिर गुंडों ने उन्हें घेर लिया। अब उसके पास एक ही रास्ता था जो सीधा मंडप तक जाता था।

    और न चाहते हुए भी वह दौड़ते हुए मंडप एरिया में पहुंच गया।

    गोलियों की आवाज़ सुनकर मेहमानों में अफरा-तफरी मच गई और यही अवि नहीं चाहता था।

    इशाना और वीर भी उठकर एक और खड़े हो गए थे। अवि इवा को लेकर मंडप के बीचो बीच पहुंच गया, उसने अभी तक इवा का हाथ नहीं छोड़ा था।

    क्रमशः

  • 6. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 6

    Words: 638

    Estimated Reading Time: 4 min

    उसने अभी तक इवा का हाथ नहीं छोड़ा था।
    गुंडों ने मंडप को चारों तरफ से घेर लिया था। अवि भी अब लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार था। जैसे ही गुंडों ने उस पर वार किया, अवि ने ऐसा मारा कि दोबारा उठने लायक नहीं रहे। मंडप के चारों और घूमते हुए वह गुंडों का बैंड बजा रहा था।

    तभी पीछे से एक गुंडे ने इवा पर वार किया, अवि ने उसे आगे खींच लिया और उस गुंडे पर लात की बरसात कर दी, और वापस घूमते हुए उनकी पिटाई करनी शुरू कर दी। एक गुंडे ने अवि के हाथ पर चाकू से वार किया और उसी हथेली पर कट लग गया। अवि ने दर्द के मारे हाथ झटक दिया। वह संभल भी नहीं पाया था कि दूसरे गुंडे ने हॉकी बैट से उसकी पीठ पर वार किया। अवि संभल नहीं पाया और इवा के ऊपर जा गिरा, उसका खून से सना हाथ इवा के माथे पर जा लगा। अवि ने इवा पर कोई ध्यान न देकर उन दोनों गुंडों को इतना पिटा कि वे बेहोश हो गए।

    कुछ गुंडों ने उस पर वहाँ पर पड़े थालों की बरसात कर दी, एक के बाद एक थाल, आखिर में जिस थाल में मंगलसूत्र रखा था वो थाल उसने अवि की तरफ फेंका।

    अवि ने उस मंगलसूत्र को कैच कर लिया और उस गुंडे के पेट में लात दे मारी।

    "इशाना कैच," अवि ने इशाना की तरफ देखते हुए कहा।

    इशाना ने हाथ फैला दिए।

    अवि उसकी तरफ मंगलसूत्र फेंक पाता इससे पहले ही एक गुंडे ने उसे पीछे से धक्का दिया, अवि का संतुलन बिगड़ा और मंगलसूत्र उछलकर इवा के गले में जा गिरा। इवा तो जैसे उसी जगह जम गई।

    अवि उठा और उस गुंडे को मारने को हुआ, तभी आवाज़ कानों में पड़ी उसके, "मिस्टर बजाज, रुक जाइए।" जो की इंस्पेक्टर की थी।

    अवि ने एक घूंसा उसके मुँह पर जड़ दिया और कहा, "आइंदा किसी से झगड़ने से पहले उसके बारे में जान लेना।"

    कहते हुए वह मुड़ा, तो देखा मीडिया पिक्चर्स क्लिक करने में बिज़ी थी। वो कोई आम आदमी तो था नहीं, द ग्रेट अविवेश बजाज था।

    अवि की नजर जाकर इवा पर जा रुकी जो उसके बगल में खड़ी थी, उसका ये रूप देखकर उसकी आँखे फटी की फटी रह गई। उसे सब कुछ याद आते एक सेकंड भी नहीं लगा। उसकी नजर उसके दुपट्टे पर पड़ी जो की उसकी घड़ी में उलझा पड़ा था।

    "बेटा बहुत ही शुभ मुहूर्त पर तुमने बिटियां से शादी की है, ये मुहूर्त 5 सालों में एक बार होता है, और सबसे बढ़िया तुमने इसकी जान बचाई।" पंडित की इस बात पर अवि का ध्यान भंग हुआ और उसने पंडित की तरफ देखा जो उन दोनों को आशीर्वाद दे रहा था।

    उसने फिर इवा को देखा, उसकी नजरें झुकी हुई थी और आँखो से आंसू अभी तक भी नहीं रुके थे, मांग में उसके खून ने सिंदूर का रूप धारण किया हुआ था, गले में मंगलसूत्र पड़ा था।

    तभी राम दौड़ते हुए सबके बीच से निकलकर आया। शायद उसको भी गुंडों ने पकड़ लिया था, उसके मुँह से खून निकल रहा था। अपनी बेटी का ये रूप देखकर वह बेहोश होकर गिर पड़ा।

    राम को बेसुध हालत में देखकर इवा चिल्ला उठी।

    "पापा.................."

    राम को होश आ चूका था।

    राम ने जो भी कहा, अभी भी इवा के कानों में गूंज रहा था, उन्होंने उसे सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद दिया था।

    वह बेजान सी चली जा रही थी। उसने नजर उठाकर देखा, अवि अपने रूम में जा रहा था। इवा के बेजान शरीर में हरकत आ गई और वह थके कदमों से अवि के पीछे-पीछे रूम में चली गई।

    अवि रूम में आया और अपना बैग पैक करने लगा।

    "कहाँ जा रहे है आप?" इवा की मासूमियत से भरी आवाज उसके कानों में पड़ी, उसके हाथ वही रुक गए।

  • 7. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 7

    Words: 719

    Estimated Reading Time: 5 min

    कहाँ जा रहे हैं आप.......? इवा की मासूमियत भरी आवाज़ उसके कानों में पड़ी। उसके हाथ वहीँ रुक गए। अवि के सामने एक पल के लिए लॉन वाला सीन घूम गया।

    उसने अपने गुस्से को दबाते हुए कहा, "तुम यहाँ मेरे रूम में क्या कर रही हो?"

    "वो मैं आपको थैंक्यू कहने आई थी। आपने मेरी ही नहीं, मेरे पापा की भी जान बचाई है। थैंक्यू सो मच।" इवा ने हिम्मत रखते हुए कहा।

    उसने एक नज़र इवा की तरफ देखा और कहा, "ओके....... केन यू गो?"

    "कहाँ?" इवा तपाक से बोली।

    "वॉट यू मीन कहाँ.......?" अवि ने गुस्से से उबलते हुए कहा, "तुम्हें जहाँ जाना है जाओ, गुंडे चले गए हैं। तुम और तुम्हारे साथ जो कोई भी है, सेफ हो। तुम अपने रास्ते जाओ और मुझे अपने रास्ते जाने दो।" अवि ने उसे इग्नोर करते हुए कहा।

    "कैसी बातें कर रहे हैं आप.......?" इवा ने उसकी बातें सुनकर कहा, "अब हमारे रास्ते अलग कैसे हो सकते हैं......?"

    "क्या मतलब है तुम्हारा.......?" अवि कुछ समझा नहीं।

    "मतलब हमारी शादी........."
    एक मिनिट, अवि ने उसकी बात सुनकर बीच में ही टोका और उसके करीब जाकर उसने फिर से कहना शुरू किया, "तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है, लेट्स मी क्लियर, हमारी शादी नहीं हुई है।"

    इवा के कानों में अवि के शब्द गूंज उठे।

    "वो सिर्फ तुम्हें बचाने का तरीका था, और जो भी हुआ अनजाने में हुआ, एंड डेट्स इट।" अवि ने बात पूरी की।

    "तरीका,,,,,,,, लेकिन शादी तो असली थी ना,,,,,,?" इवा के आंसू उसके गालों पर ढुलक गए।

    "बिलकुल नहीं, शादी असली नहीं थी, ना मंडप में पंडित था और ना ही मंत्र। और अगर तुम्हें ये लगता है कि इस शादी के बहाने तुम मुझे फसाओगी, तो मैं ये होने नहीं दूंगा, स्टॉप..... इट।" अवि ने कहा।

    "पर ये सिंदूर....... ये मंगलसूत्र...... ये तो असली है?" उसने अपनी मांग को छूते हुए कहा।

    "तुम्हें समझ में कम आता है क्या.......? इस सिंदूर को पोंछ दो, तोड़कर फेंक दो इस मंगलसूत्र को, मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते ये, और तुम भी।" अवि ने उसे उंगली दिखाते हुए गुस्से से कहा।

    "कैसे फेंक दूं.....? ये सब सुहाग की निशानी है।" इवा ने हिम्मत बनाते हुए कहा।

    "विल यू शटअप...........?" अवि गुस्से से चिल्लाया।

    इवा घबराकर कुछ कदम पीछे हट गई।

    "अपनी बकवास बंद करोगी अब तुम,,,,,, अच्छा बहाना मिल गया है ना तुम्हें,,,, एक अमीर लड़के को फ़साने का,,,,। तुम्हारी जैसी लड़की से मैं शादी तो दूर,,,,, मैं तो तुम्हारी शक्ल तक नहीं देखना चाहता।" अवि के इतने कड़वे शब्द इवा के दिल को छलनी कर गए।

    फिर भी उसने बहते आंसुओं के साथ कहा, "लेकिन शादी तो हो गई।"

    "ये शादी अनजाने में हुई थी, उस वक़्त ना तुम्हें होश था ना मुझे, समझती क्यों नहीं हो तुम....?" अवि फिर से चिल्लाया।

    "हाँ लेकिन,,,,,,?" इवा की बात भी पूरी नहीं हो पाई थी कि अवि ने उसके कंधों को पकड़के उसे अपने बेहद करीब खींच लिया और कंधों पर अपनी पकड़ कस ली।

    "लास्ट बार कह रहा हूँ,,,,,,,, ये शादी, शादी नहीं थी, आई बात समझ में? तुम्हारे और मेरे बीच ना कोई रिश्ता था और ना ही कभी होगा, और ऐसा मैं कभी भी नहीं होने दूँगा। आज के बाद ना मैं तुम्हें जानता हूँ और ना ही तुम मुझे। मुझे तुम से,,,,,,तुम से जुड़ी हर चीज से,,,,,,यहाँ तक कि तुम्हारी शक्ल से भी नफ़रत है। और आज के बाद गलती से भी मेरे सामने मत आना, उसके बाद मैं क्या करूंगा, तुम सोच भी नहीं सकती,,,,,,,, समझी,,,,,, समझी,,,,,,?" अवि ने उसे झकझोर डाला।

    उसके हाथों से आजाद होते ही दर्द ने उसके कंधों को जकड़ लिया, वह बेबस सी खड़ी थी।
    "कैसी बातें कर रहे हैं आप.........?" इवा ने आंसू पोंछते हुए अवि का हाथ पकड़ लिया।

    अवि ने ज़ोर से उसका हाथ झटका दिया जिससे इवा संतुलन खोकर फर्श पर जा गिरी।
    "हाउ डेयर यू टच मी,,,,,,?" अवि ने गुस्से से लाल होते हुए कहा।

    अवि ने अपने बैग की चेन बंद की और बैग उठाकर जाते हुए कहा, "आई हेट यू,,,,,, मेरी जिंदगी की दूसरी और आखिरी औरत हो तुम,,,,,, जिससे मैं इतनी नफ़रत करूंगा।"

    जाते-जाते उसने दरवाजे को इतनी जोर से लात मारी कि इवा का दिल दहल उठा।

    अवि जा चुका था, उसके जूतों के निशान अभी भी फर्श पर थे।

    इवा ने उन निशानों को छुआ और अपनी मांग में सजा लिया।

    उसके कुछ सेकंड बाद ही वो एक तरफ लुढ़क गई।

  • 8. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 8

    Words: 889

    Estimated Reading Time: 6 min

    उसके कुछ ही सेकंड बाद वो एक तरफ लुढ़क गई।

    उसे होश आया तो वह मुंबई में अपने बेडरूम में थी, सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा था, जैसे कोई तूफान आया हो। उसने रेड कलर का लॉन्ग सूट पहना हुआ था, जो कि शायद इशाना का था। राम कुछ सामान लेने कमरे से बाहर गया था।

    अवि की बातें एक बार फिर उसके कानों में गूंज उठीं और एक बार वह सिसक पड़ी और रोते-रोते दीवार के सहारे से वहीं बैठ गई। रात गहरा चुकी थी। राम ने उसे संभाला और खाना, दवाई खिलाकर उसे सुला दिया। दवाइयों का नशा चढ़ते ही उसे नींद आ गई।

    उसे सुलाने के बाद राम ने कमरे को साफ किया। उसे रह-रह कर याद आ रहा था कि जब भी इवा को पैनिक अटैक्स आते थे तो वो इसी तरह रिएक्ट करती थी, सारा सामान इधर-उधर फेंक देती थी, खुद को घायल कर लेती थी।

    सुबह के 10 बज रहे थे, आज राम होटल नहीं गया था, इवा की हालत को देखते हुए वह घर पर ही था।

    रिदू भी इवा से मिलकर गई थी, उसने खुद को संभालने को कहा था।

    राम ने उसे नॉर्मल देख कर थोड़ी देर के लिए बाहर चला गया था।

    रिदू एक बार फिर उसके पास ही बैठी थी। वह बार-बार उसे समझाये जा रही थी, लेकिन इवा तो सुन्न होकर बैठी थी।

    "मुझे इशाना दी से बात करनी है रिदू," अचानक इवा ने धीरे से कहा।

    रिदू ने कोई सवाल नहीं किया और पॉकेट से अपना फोन निकालकर इशाना दी को कॉल लगाकर इवा को थमा दिया।

    इशाना ने कॉल पिक करते ही पूछा, "रिदू इवा ठीक है ना?"

    "हाँ दी... मैं बिलकुल ठीक हूँ... आप लोग चिंता मत कीजिए। मैं कुछ माँगना चाहती हूँ, प्लीज दी, मना मत करिएगा।" इवा ने अपने आंसू पोछते हुए कहा।

    "हाँ इवा बोलो क्या बात है? क्या चाहिए तुम्हें? मेरा सब कुछ तुम्हारा ही तो है।" इशाना ने उससे कहा।

    "दी... मुझे वो जोड़ा और ज्वेलरी चाहिए, उसके जितने भी पैसे बनते हैं मैं देने को तैयार हूँ।" इवा ने उससे रिक्वेस्ट करते हुए कहा।

    "इवा वो सब तुम्हारा है और तुम्हारा ही रहेगा। मैंने अहान के साथ सब कुछ भिजवा दिया है, आज शाम तक सब कुछ तुम्हारे पास होगा। 2 दिन बाद मेरी शादी है इवा प्लीज मना मत करना।" इशाना ने उसे कहा।

    "दी, अब मुझमें उस जगह का सामना करने की हिम्मत बची है अब... किस्मत मेरी... जिसमे दो पल भी ख़ुशी के नहीं लिखें थे।" इवा ने सहजता से कहा।

    "इवा निराश मत होना, और आशा बिलकुल मत छोड़ना, और मुड़कर जरूर तुम्हारे पास आएगा।" इशाना ने उसे दिलासा देते हुए कहा।

    "मैं उसी दिन का इंतजार करुँगी दी," इवा इतना बोलकर चुप हो गई और फोन रिदू की तरफ बढ़ा दिया।

    लगभग आधे घंटे बाद रिदू परेशान होकर बोल पड़ी, "देख इवा, छोड़ ये सब, ना तू उसे जानती थी और ना ही वो तुझे।"

    "रिश्ता तो बंध गया था ना, वो भी सात जन्मों का," इवा ने भावहीन होकर कहा।

    "शादी... इवा जो कुछ भी हुआ अनजाने में हुआ, वो तो बस तुम्हारी जान बचा रहा था, उसे थोड़ी पता था कि इस तरह उसकी तुझसे शादी हो जाएगी, देख इवा रात गई बात गई, क्यूँ उस रात में उलझी पड़ी है, ऐसे में तू खुद का ही नुकसान कर रही है।"

    "अनजाने में ही सही रिदू, पर इस शादी को कोई नहीं झुटला सकता, तू भी नहीं। पता तो किसी को भी नही था की इस तरह शादी हो जाएगी, जैसे भी हुई हो तो गई ना, और जिस रात की तू बात कर रही है, वो रात मेरे लिए सबसे मनहूस रात थी, कुछ पल के लिए मौत मेरे सर पर मंडरा रही थी, उसी के कुछ पल बाद ही मेरी शादी उस इंसान से हो गई जिसकी शक्ल मैंने पहली बार देखी थी, जिसका मैं नाम भी नहीं जानती थी, उसके कुछ व्यक्त बाद मेरा पति मुझे ये कहते हुए छोड़कर चला गया की उसके लिए मेरी मांग में डाला हुआ उसका सिंदूर और मंगलसूत्र कोई मायने नहीं रखता, मैं उसे जैसे अमीर लड़के को फसा रही हूँ, उसे तो मेरी शक्ल से भी नफ़रत है। और मेरे पापा, उन्होंने तो मुझे सुहागिन रहने का आशीर्वाद दें दिया, किसकी बात मानु, तेरी, पापा की या उस पंडित की।" इवा की आँखो से एक कतरा आंसू का भी नहीं निकला उसकी गहरी नीली आँखो में बस सुनापन नजर आ रहा था।

    "सोचना रिदू, की अगर ऐसा ही कुछ तेरे साथ हुआ होता तो, तू क्या फैसला लेती। अब तुझे जाना चाहिए।" इवा ने उठकर दरवाजा खोल दिया।

    "अपना ध्यान रखना," कहते हुए रिदू चली गई।

    रिदू के जाते ही उसने अपना संयम खो दिया और फ़फ़कती हुई दरवाजे से सटकर बैठ गई।

    अवि के शब्द एक बार फिर उसके कानों में गूंज उठे।

    "तुम्हारी जैसी लड़की से में शादी तो दूर, मैं तो तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहता।"

    वह फिर से बेहोश होकर गिरने वाली थी कि राम ने उसे संभाल लिया।

    मुंबई, अलीबाग
    बजाज मेंशन

    शाम के 7 बज रहे थे।

    "अवि................." किसी औरत ने लगभग चीखते हुए दरवाजे को जोर से धक्का मारा।

    "अवि................." वह फिर से चिल्लाई।

    अवि अपने रूम में बडे ही बेहूदे ढंग से सो रहा था।

    औरत की आवाज़ सुनकर, सब लोग हॉल में इकट्ठा हो गए।

    सबके मुँह पर एक ही शब्द था, हैरानी भरा शब्द।

    क्रमशः

  • 9. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 9

    Words: 1577

    Estimated Reading Time: 10 min

    सबके मुँह पर एक ही शब्द था, हैरानी भरा शब्द...

    "बुआ माँ।"

    ऊपर से नीचे तक सफ़ेद लिबास पहने और कोई नहीं सीता बजाज कपूर थी।

    किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी उनके सामने बोलने की।

    "अवि..." इस बार वह और जोर से चिल्लाई, और सबने अपनी गर्दन नीचे कर ली।

    सीता की आवाज़ जैसे ही अवि के कानों में पड़ी वह बेड से नीचे गिर पड़ा। "बुआ माँ इस वक़्त घर पर..." अवि बड़बड़ाता हुआ नीचे की तरफ भागा।

    उसने देखा सीता की आँखें गुस्से से लाल थीं।

    "कुछ शर्म हया है या बेच खाई," सीता ने गुस्से से उबलते हुए कहा।

    अवि कुछ नहीं बोला, उसकी नींद जाती रही।

    "कुछ अंदाजा भी है तूने क्या किया है?" सीता ने फिर कहा।

    इस बार हिम्मत करके हर्ष ने सीता से पूछा, "हुआ क्या है बुआ माँ?"

    सीता ने नजर उठाकर हर्ष को देखा, फिर अवि को।

    "क्या हो गया बुआ माँ? ऐसा भी क्या कर दिया है मैंने?" अवि ने सीता को शांत करते हुए कहा।

    सीता का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया, "ये तू मुझसे पूछ रहा है जो खुद कारनामे करके आराम फरमा रहा है। विद्या..." उसने अपनी केयर टेकर को आवाज़ दी।

    इशारा समझकर विद्या ने टी.वी. ऑन कर दिया।

    नीचे लटके सभी के हाथ मुँह पर आ गए।

    तभी किसी ने उसे पीछे घुमाया और सटाक से एक थप्पड़ अवि के गाल पर रख दिया।

    "पापा..." अवि ने हैरानी से हर्ष को देखते हुए कहा।

    "बस एक वर्ड और नहीं। गिरा हुआ तो तू पहले से ही था, इतना गिर जाएगा सोचा नहीं था। मैंने तुझसे कभी ये उम्मीद नहीं की थी। एक लड़की की जिंदगी से खेलकर आया है तू, और तुझे ये सब करने के बाद चैन की नींद आ रही है। शादी कोई मजाक नहीं है समझा तू..." हर्ष ने बिफरते हुए कहा।

    "कल इस घर की बहु, शाम तक इस घर में होनी चाहिए," सीता ने अवि को अनदेखा करते हुए कहा।

    "बुआ माँ..." अवि बोलने को हुआ ही था कि सीता ने बीच में ही रोक दिया, "बस..."

    "बुआ माँ, उसकी बात तो सुन लीजिये एक बार," रति ने कहा।

    "आज तक मेरी बात टालने की कोशिश किसी ने नहीं की थी। लेकिन आज जिन पर मुझे पूरा विश्वास था वही मेरे अगेन्स्ट खड़े है। अवि...रति तुम दोनों ने मेरा विश्वास तोड़ दिया," सीता बोलते हुए सोफे पर जा बैठी। फिर अवि की तरफ देखते हुए कहा, "मेरा विश्वास तोड़कर और ये गिरी हुई हरकत करके तूने अच्छा नहीं किया।"

    "आई एम सॉरी बुआ माँ, लेकिन ये बात में आपकी नहीं मान सकता। मेरे लिए आप लोग ही सबकुछ है, मैं दादाजी का सपना नहीं तोड़ सकता। बजाज खानदान की बेटी, कपूर खानदान की बहु बनेगी, कपूर खानदान की बेटी, ठाकुर परिवार की बहु बनेगी, और ठाकुर खानदान की बेटी, बजाज खानदान की बहु बनेगी। ये थी हमारी पूर्वजों की भविष्यवाणी, लेकिन दादाजी ऐसा बिलकुल नहीं चाहते थे, अगर बेटियां इन खानदानों की बहु अपनी इच्छा से बनना चाहे तो ठीक है, वरना इन पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं होंगी, जैसा की त्रिवेदी खानदान ने अपने ही बेटे और बहु के साथ किया। मैं इस शादी को नहीं मानता, अनजाने में जो गलती हुई मैं उसे शादी का नाम नहीं दे सकता। एक ही मुलाक़ात और वो भी उस लड़की की हरकते देखकर, मैं उसे कभी बजाज फैमिली का हिस्सा नहीं बनाऊगा," कहते हुए अवि ने गहरी सांस छोड़ी। "आपने मुझे थप्पड़ मारा मुझे जरा भी अफ़सोस नहीं है डेड, क्योंकि मैंने ऐसी कोई भी गिरी हरकत नहीं की है जिससे आपका सिर झुक जाये," हर्ष को कहते हुए अवि चुप हो गया।

    अनु खड़ी खड़ी बस तमाशा देख रही थी, वह जानती थी उसका बोलना आग में घी डालने के बराबर है, सीता उसे कभी पसंद नहीं करती थी।

    हॉल में सन्नाटा छाया हुआ था। उसी सन्नाटे को तोड़ते हुए अवि की स्लीपर मेन गेट की तरफ बढ़ गई।

    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

    सुबह के 10 बजे थे, सभी लोग चुपचाप नाश्ता कर चुके थे।
    अवि नहीं था।

    रति बाहर आई, उसने लॉन में पुल के पास अवि को इजी चेयर पर लेटे देखा, तो वह उसी और बढ़ गयी। आज संडे था तो सब घर पर ही थे।

    "उफ़ ये वीकेंड..." रति ने उसके करीब खड़े होते हुए कहा, "बजाज खानदान के तिकलौते वारिस ने आज एक नया भाषण अपलोड किया है, कैमरा मेन सडे हुए टिन्डे के साथ रिपोर्टर रति बजाज।"

    अवि आँखे खोलकर एक नजर रति को देखा और फिर से आँखे बंद कर ली।

    "तेरे ऐसे नजरअंदाज करने से असलियत नहीं बदल जाएगी अवि, चाहे तू माने या ना माने। माना की अनजाने में हुई लेकिन शादी तो हुई है, और शादी कोई मजाक नहीं है अवि। जहाँ तक मैं जानती हूँ तू किसी से प्यार नहीं करता, ना तुझे ठाकुर खानदान की बेटी से शादी भी नहीं करनी, मुझे ये समझ नहीं आ रहा की तेरी प्रॉब्लम क्या है, ऐसा भी क्या दिख गया उस लड़की में तुम्हें जो हम लोगो को नहीं दिखा। एक बात जरूर कहूँगी, देख अवि जो भगवान कृष्ण ने चाहा वो तो उन्हें है भी नहीं मिला तो तुझे कैसे मिलेगा, उन्होंने भी हर हालत में राधा को चाहा था, और शादी हो हो गई रुक्मणि लेकिन उन्हें तो मीरा भी चहती थी, सब किस्मत का खेल है अवि वो जहाँ हम तोड़ेगी, हमें टूटना होगा, वो हमें झुकायेगी हमें झुकना ही होगा," रति ने उसे समझते हुए कहा।

    अवि उसी पोजीशन में लेटा हुआ था, रति के इतना कुछ बोलने पर भी उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

    रति ने उसे बेअसर देखकर शादी का टॉपिक बंद करते हुए कहा, "द ग्रेट मिस्टर अविवेश वर्धन बजाज ने आज मोन व्रत धारण कर लिया क्या?"

    अवि ने फिर कोई रिएक्शन नहीं दिया।

    "क्यूँ पैरालाइज हुआ पड़ा है," रति ने फिर से उसके पैरों पर बैठते हुए कहा।

    "आ..... रति उठ यार क्या बचपना है ये..... आ....... उठ..... उठजा, दर्द हो रहा है यार....... उठ..." अवि एकदम से चिल्लाया।

    "लगता है पैरालाइज ठीक हो गया, मेरे 45 किलो की बॉडी में देख कितनी ताकत है, तेरा पैरालाइज कितनी जल्दी ठीक हो गया, अब ये सडे हुए आलू की यह रिएक्शन देना बंद कर ठीक है," रति ने उसकी टांगो पर से उठते हुए कहा और अपने हाथ बांध लिए। फिर हँसकर भागने लगी।

    "बंदरिया, बड़ी रानी की झांसी बनी फिर रही है तू। रुक..." अवि ने उसके पीछे दौड़ते हुए कहा।

    रति ने दौड़ते हुए कहा, "रियली अवि, अगर तुझे इडियम्स नहीं आते तो ट्राय भी मत मारा कर, वो रानी की झांसी नहीं, झांसी की रानी होता है, द क्वीन ऑफ़ झांसी, इंग्लिश बंदर।" कुछ ही देर बाद वह दौड़ते हुए सामने आ रही नीति से टकरा गई, "नीति मेरी प्यारी बहना," रति ने उसके कंधो पर हाथ रखते हुए कहा।

    "दी आज मुझ पर इतना प्यार..." नीति ने रति और अवि को देखते हुए कहा।

    "नहीं रे..." कहते हुए उसने नीति को अवि की तरफ धक्का दें दिया।

    नीति जाकर अवि से भीड़ गई, गिरने वाली थी की अवि ने उसे संभाल लिया। "आर यू ओके, नीतू?" अवि ने उसी तरह उसे बाहो में पकड़ते हुए कहा।

    "या, भाई," नीति ने खड़े होते हुए कहा।

    रति उन दोनों की पोजीशन देखकर चिल्लाई,

    "तुझे देखा तो ये जाना सनम...
    प्यार होता है दीवाना सनम..."

    "रति..." "दी..." अवि और नीति एक साथ चिल्लाये।

    रति हँसकर दौड़ते हुए घर के अंदर चली गई।

    सामने सीता थी, रति जल्दी से जाके उनके पीछे खड़ी हो गई, अवि और नीति को दौड़कर आते देख सीता समझ गई की माजरा क्या है।

    उन दोनों को देखकर रति ने सीता से कहा, "बुआ माँ आपके प्यारे भतीजा मिस्टर अविवेश बजाज पैरालाइज प्राणी मेरे ट्रीटमेंट से स्वस्थ होकर आपके सामने खड़ा है, और ये भाई की चमची मेरे पीछे चमचा लेकर पड़ी है, पता है बुआ माँ क्यूँ?"

    "क्यूँ?" सीता ने सारा रायता समझते हुए पूछा।

    "क्यूंकि..."

    "तुझे देखा तो ये जाना सनम...
    प्यार होता है दीवाना सनम..."

    रति के इतना कहते ही सीता का हँस हँस कर बुरा हाल हो गया।

    एक्चुअली, कुछ दिनों पहले नीति सीढ़ियों से गिरने वाली थी की अवि ने उसे बचा लिया था, और तभी कान्ता के फोन पर कॉल आया और यही गाना बजा, सिचुएशन और कंडीशन देखकर सब हँस पड़े थे।

    "देखा बुआ माँ, कितनी बेशर्म हो गई है," दोनों ने साथ कहा।

    "अच्छा सॉरी प्लीज हाँ," रति कहते हुए फिर से हँस पड़ी और फिर से मासूम सा फेस बना लिया।

    "ओके," दोनों ने साथ कहा।

    "अगली बार से ध्यान रखना रति, उसे लग जाती तो," अवि ने उसे डांटा।

    "आप/तुम थे ना," नीति रति ने एक साथ कहा।

    अवि ने मुस्कुराकर दोनों को गले लगा लिया।

    "नीति लंच का टाइम हो गया है," अनु ने उसे आवाज़ लगते हुए कहा, उसका पूरा ध्यान न्यूज़ पेपर में था।

    नीति किचन एरिया की तरफ बढ़ गई और अवी रति अपने रूम की तरफ।

    "रुको कहाँ जा रहे हो तुम लोगो को नहीं करना क्या लंच?" सीता ने पीछे से कहा।

    "आप करो बुआ माँ, हम पापा के साथ कर लेंगे," दोनों ने एक एक कर कहा और अपने रूम्स की तरफ बढ़ गए।

    "अनुसूर्या तूम कितनी ही महान क्यूँ ना बन लो, लेकिन इन दोनों की माँ कभी नहीं बन पाओगी, भगवान तुझ जैसी माँ किसी को ना दें, तेरी हरकतों ने नीति को बिगाड़ कर रख दिया है लेकिन, उसने अभी असर दिखाना शुरू नहीं किया है। तूने उन दोनों बच्चो से उनका बचपन छिना है, सब्र रख अनुसूर्या, तेरा बुढ़ापा भी नजदीक है, एक दिन तेरी यही बेटी तेरे सर चढ़कर ना बोली तो मेरा नाम सीता बजाज कपूर नहीं," सोचते हुए सीता मन ही मन दुखी हो रही थी।

    क्रमशः

  • 10. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 10

    Words: 927

    Estimated Reading Time: 6 min

    सब्र रख अनुसूर्या, तेरा बुढ़ापा भी दूर नहीं है। एक दिन तेरी यही बेटी तेरे सिर चढ़कर ना बोली तो मैं सीता बजाज कपूर नहीं। सोचते हुए सीता मन ही मन दुखी हो रही थी।

    नेक्स्ट मॉर्निंग
    बजाज मेंशन

    सीता मंदिर से पूजा करके घर लौटी तो घर में डेकोरेशन का काम चल रहा था। गुलाब के फूलों की खुशबू से घर महक उठा था। रति सबको ऑर्डर से काम समझा रही थी। "पुल साइड और हॉल में हाई लाइट्स के साथ रेड रोज फ्लावर डेकोरेशन एंड रुम्स में पिंक रोजेज विद रेड केन्डल्स का डेकोरेशन, सेकेण्ड एंड थर्ड फ्लोर रेलिंग पर व्हाइट लाइट्स के साथ रेड रोज डेकोरेशन... डेट्स क्लियर, ऑल वेसस में ब्लेक रोजेज होने चाहिए। ओके। आई विल अंडरस्टेण्ड द रेस्ट ऑफ़ द वर्क लेटर।"

    डेकोरेटर अपने आदमियों को इशारा करता है और सभी अपने काम में लग जाते हैं।

    "रतु..." पीछे से सीता की आवाज़ सुनकर उसने मुड़कर देखा।

    "मॉर्निंग बुआ माँ," उसने कहा।

    "वेरी गुड मॉर्निंग बेटा," सीता ने उसके सिर पर हाथ फेरा और पूछा, "ये डेकोरेशन?"

    "बुआ माँ, डे आफ्टर टूमारो इज करवा चौथ, द प्रपेरेशन फॉर द सम आर गोइंग ऑन," रति ने उन्हें समझाया।

    "क्या बात है तो तैया..." कहते कहते सीता रुक गई।

    "क्या हुआ बुआ माँ, आप खुश नहीं?" रति ने उनके उदास चेहरे को देखते हुए कहा।

    "कुछ नहीं, बहु के बारे में सोच रही थी। कितनी अच्छी और सुशील है फिर भी अवि के दिमाग में पता नहीं क्या चल रहा है। चाहता क्या है ये लड़का?" सीता ने सोचते हुए कहा।

    "बुआ माँ ज़ब अवि इस रिश्ते में नहीं रहना चाहता तो उसके साथ ज़बरदस्ती तो नहीं की जा सकती ना? और वैसे भी हम उसके ऊपर उस शादी को थोपेगे तो दबाव में आकर वो शादी को अक्सेप्ट तो कर लेगा, लेकिन ये रिश्ता हमेशा ले किये उस पर बोझ बनकर रह जायेगा। किसी भी रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए प्यार की जरूरत होती है, और अवि हमेशा इस रिश्ते को बोझ समझकर उसके नीचे दबकर रह जायेगा। इससे अच्छा है हम लोग उसे थोड़ा टाइम दें। आप इन सबको छोड़िये, परसो सब रेड रेड होगा, कितना अच्छा लगेगा ना," रति ने चारो और देखते हुए कहा।

    सीता ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई और किचन की और बढ़ गई।

    रति की आँखे आंसू से भीग गई। "सही तो कहा तूने रति, कोई भी रिश्ता बोझ के साथ आगे कभी नहीं बढ़ सकता, लेकिन जिस रिश्ते में विश्वास ही नहीं हो वो कितनी देर टिकेगा? और भरोसा एक ऐसी चीज है जिसके टूटने पर कोई भी आवाज़ नहीं होती और उसकी गूंज जीवन भर सुनाई देती है। भरोसा और धोखा एक ही रिश्ते में कभी नहीं रह सकते। और तुमने मेरे साथ वही किया, इसके लिए तो 5 साल क्या पूरी जिंदगी भी माफ नहीं करुँगी तुम्हें।" सोचते हुए रति ने फट से अपने आंसू पोंछ लिए और पार्किंग की तरफ बढ़ गई।

    घड़ी टिक टिक करती हुई 9 बजा रही थी।

    सभी डाइनिंग टेबल पर बैठे नाश्ता कर रहे थे।

    "मैं चाहती हूँ तू उस लड़की से डाइवोर्स ले ले ताकि मैं कोई और लड़की देख सकूँ तेरे लिए," सीता ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा।

    अवि कुछ सेकेण्ड तक चुप रहा और फिर बोला, "मैंने आपसे पहले ही कहा था बुआ माँ की मैं इस शादी को नहीं मानता, तो किस बात का डाइवोर्स लूँ? और फिलहाल मुझे शादी पर कोई डिसकस नहीं करना।"

    "तेरे मानने या ना मानने से कुछ नहीं होता, क़ानून इस बात को मानता है। सारी मिडिया उस दिन वहाँ मौजूद थी," सीता ने पानी पीते हुए कहा।

    "क़ानून को वश में करना मुझे अच्छी तरह से आता है बुआ माँ," कहते हुए अवि उठ खड़ा हुआ और अपने रूम की तरफ बढ़ गया।

    "तेरे इस तरह नजरें चुराकर निकल जाने से बात खत्म नहीं हो जाएगी अवि," रति ने प्लेट में चम्मच घुमाते हुए कहा।

    "और तेरे इस तरह चम्मच प्लेट में घूमाने से पेट नहीं भर जायेगा," अवि ने नजर उठाकर उसे देखते हुए कहा।

    "बुआ माँ की बात आजतक किसी ने नहीं टाली, सिवाय तेरे, वो जो भी कहती है इस घर के भले के लिए ही होता है। जैसे मेरे प्लेट में चम्मच घूमाने से पेट नहीं भरेगा वैसे ही तेरे ये बोलने से की मैं इस शादी को नहीं मानता, शादी झूठलाई नहीं जा सकती," रति ने उस पर नाराजगी जताते हुए कहा।

    "तो क्या चाहती है तू, की मैं उस कैरेक्टर लेस लड़की को इस घर की बहु होने का दर्जा दूँ?" अवि ने गुस्से से कहा।

    "बिलकुल नहीं, मैं ऐसा बिलकुल नहीं चाहती की तू उस लड़की को इस घर की बहु होने का दर्जा दे। मैं तो ये चाहती हूँ की तू उसे ये पॉजिशन नहीं दे सकता तो डाइवोर्स ले ले, ताकि कोई और ये पॉजिशन लेकर घर को संभाल सके। और तू किस हक से उसे कैरेक्टर लेस कह रहा है? द ग्रेट अविवेश बजाज ने फर्स्ट मिट में ये भी पता लगा लिया की वो लड़की कैरेक्टर लेस है, लेकिन ये नहीं जान पाया की उसका नाम क्या है? कोई लड़की अकेली कैरेक्टर लेस नहीं होती उस में दोष किसी और का भी होता है, वो भी किसी की बहन बेटी है, मेरे लिए या नीति के लिए ये सब कहा जाये तो तुझे कैसा लेगा अवि..." रति ने गुस्से से बिफरते हुए कहा।

    "रति..." अवि जोर से चिल्लाया।

    "चिल्लाओ मत," रति ने उससे भी तेज आवाज़ में कहा, "बहरी नहीं हूँ, सुन सकती हूँ मैं, और तेरे इस तरह चिलाने से हकीकत बदल नहीं जाएगी।"

    "और आप सब के इस तरह बोलने से मेरा फैसला नहीं बदलने वाला," कहते हुए अवि तेजी से अपने रूम में चला गया।

    क्रमशः

  • 11. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 11

    Words: 567

    Estimated Reading Time: 4 min

    और आप सब के इस तरह बोलने से मेरा फैसला नहीं बदलने वाला," कहते हुए अवि तेजी से अपने रूम में चला गया।

    आज करवा चौथ थी, सुबह 4 बजे ही सबने सरगी खा ली थी। घर के सभी मेंबर्स ने फ़ास्ट रखा था, अवि को छोड़कर, उससे भूखा नहीं रहा जाता था।

    सीता ने रेड ब्लू प्लाजो सूट पहना था, रति और नीति ने लॉन्ग घेरदार कुर्ती सूट पहना था जिसमे साइड कट लगा हुआ था। अनु ने रेड सिल्क साड़ी डाली थी जिसमे हेवी वर्क था।
    हर्ष ने लाल कुरता और व्हाइट पायजामा पहना था। अवि ने रेड थ्री पीस सूट डाला था जिसकी शर्ट व्हाइट थी।

    आज सुबह से ही उसका मन बार बार बेचैन हो रहा था, इसका कारण तो वो खुद भी नहीं जानता था। वह अपने केबिन में चेयर से पीछे की तरफ सिर टिकाये बैठा था। हर्ष ऑफिस नहीं आया था।

    रात के लगभग 8 बज रहे थे, ऑफिस खाली हो चुका था, और वह अपने केबिन में टेबल से सिर लगाए बैठा था।

    जयपुर, नीमराना रिसोर्ट....... इवा की खून से सनी मांग..... मंगलसूत्र......... इवा के साथ फेरे......... घड़ी में अटकी इवा की चुनरी............नहीं," अवि जोर से चिल्लाया, उसने आँखे खोली, उसके चेहरे पर पसीने की बुँदे जमा हो गई थी, और वह हाँफ रहा था। उसने पानी का गिलास उठाया और एक झटके में खाली कर दिया। केबिन लॉक किया और वह बाहर आ गया, उसकी नजर अनायास ही चाँद पर पड़ी, पूर्णमासी की तरह आज भी वह अपने पुरे यौवन में नजर आ रहा था।

    अवि ने गहरी सांस ली और अपनी कार की तरफ बढ़ गया।

    वो ऑफिस से घर का लगभग आधा रास्ता तय कर चुका था, उस वक्त हाइवे पर आवाजाही कम थी, शायद फेस्टिवल की वजह से।

    "मुझे आपसे जबरदस्ती कुछ नहीं चाहिए, ना रिश्ता और ना ही आपका नाम। मैं आपकी रिस्पेक्ट करुँगी, आपसे प्यार करुँगी, बदले में मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, प्यार भी नहीं," उसके बगल वाली सीट पर बैठी इवा ने कहा। और तभी अहान से पैसे लेती उसकी तस्वीर अवि की आँखो के सामने दौड़ गई। आगे से आती कार के हॉर्न ने उसका ध्यान तोड़ा, उसने वापस बगल में देखा वहाँ कोई नहीं था, उसके हाथ स्टेयरिंग से ढीले पड़ गए। उसका ध्यान अचानक से आगे की तरफ गया। सामने आती लड़की को टक़्कर मारने से पहले ही उसने तेज रफ्तार में चल रही अपनी कार को जोर से ब्रेक मारा।

    एक तेज आवाज़ के साथ ही कार उस लड़की के बेहद करीब आते हुए रुक गई। लड़की ने डर के मारे अपने हाथ चेहरे के आगे कर लिए, और बालो का बँधा जुड़ा खुलकर बिखर गया, और लम्बे बालो ने उसके चेहरे को ढक लिया।

    "शिट........... " अवि ने स्टेयरिंग पर हाथ मारते हुए कहा और बाहर आ गया। "आई एम सॉरी, वो मेरे ध्या,,,,,,, आर यू ओके?" अवि उसकी तरफ बढ़ा।

    उसने मुड़कर अवि की तरफ देखना चाहा इससे पहले ही वह निढाल हो गई, अवि ने दौड़ते हुए उसे अपनी बाहों में थाम लिया, उसके बाल उसके चेहरे से हट गए।

    चाँद की रौशनी में उसका दूध सा सफ़ेद चेहरा देखकर उसके मुँह से अनायास ही निकल गया, "तुम.......।"

    "इवा.................... " अचानक से किसी ने पीछे से आवाज़ लगाई।

    अवि ने पीछे मुड़कर देखा तो एक लड़की स्कूटी से पास से दौड़ी चली आ रही थी। अवि को उसे पहचानने में ज्यादा टाइम नहीं लगा, इस बात उसके मुँह से इतना ही निकला, "रिद्धि शुक्ला.................।"

  • 12. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 12

    Words: 1814

    Estimated Reading Time: 11 min

    अवि को उसे पहचानने में ज़रा भी टाइम नहीं लगा, इस बार उसके मुँह से बस इतना ही निकला, "रिद्धि शुक्ला।"

    वो शायद इशाना की बहन थी इसलिए अवि उसे पहचान गया था। बाकी उसे रिद्धि से कोई पर्सनल रिलेशन नहीं था।

    "क्या किया है तुमने इसके साथ? बोलो!" रिद्धि ने इवा का सिर अपनी गोद में रखते हुए अवि पर चिल्लाई।

    जिसके नाम से पूरी बिजनेस की दुनिया काँप जाती थी, आज एक मामूली मिडिल क्लास लड़की उस पर चिल्ला रही थी।

    जीत भी आज जल्दी ही चला गया था, और अवि भी अकेला रहना चाहता था, लेकिन ये सब हो जाएगा उसने सोचा भी नहीं था।

    "बोलते क्यूँ नहीं? मुँह में दही जमा रखा है क्या?" रिद्धि की आँखों से आंसू नीचे उतर आए। "इवा... इवा... आँखे खोलो... इवा..." उसने इवा के गाल थपथपाते हुए कहा।

    "डोंट शाउट, कुछ नहीं किया है मैंने," कहते हुए अवि ने सारी बात रिद्धि को बताई।

    रिद्धि को अवि की बातों पर ज़रा भी विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उसकी बात मानने के अलावा उसके पास और कोई चारा भी नहीं था।

    रात के 10 बज रहे थे, और हाइवे पर आवाजाही बंद हो चुकी थी, क्योंकि वो एरिया जंगल का था।

    अवि ने नजर उठाकर इवा को देखा और दौड़ते हुए कार से पानी लेकर आया, और इवा के मुँह पर पानी के छींटे मारे। इवा ने कुछ सेकंड बाद अपनी पलकें खोलीं।

    अवि को सामने देखकर उसके मुँह से निकल पड़ा, "आप..." अवि को सामने देखकर जैसे उसकी रूह को सुकून मिल गया था।

    अवि के जस्ट पीछे चाँद था। इवा को यूं लग रहा था जैसे आज अवि ने ही चाँद का रूप धारण कर लिया है।

    "पानी..." इवा ने अपनी मरियल सी आवाज में कहा।

    अवि ने बोतल से पानी पिलाया।

    "तुम ठीक हो?" कहते हुए रिद्धि ने उसकी तरफ देखा।

    इवा ने हाँ में सिर हिलाया।

    रिद्धि ने सहारा देकर उसे खड़ा किया।

    वह पूरी तरह खड़ी भी नहीं हो पाई थी कि फिर से बेहोशी ने उसे घेर लिया।

    अचानक हुई बेहोशी के कारण रिद्धि उसे संभाल नहीं पाई, और जोर से चिल्लाई, "सर..."

    अवि, जो कि अपनी कार की तरफ बढ़ रहा था, रिद्धि की आवाज़ सुनते ही उसने एक बार फिर दौड़कर इवा को अपनी बाहों का सहारा दिया, और अपनी कार की तरफ बढ़ चला।

    "चलो," उसने रिद्धि से कहा।

    "लेकिन मेरी स्कूटी..." रिद्धि ने कहा।

    "तुम्हें तुम्हारी दोस्त से ज्यादा जरूरी अपनी स्कूटी है?" अवि ने उसे गुस्से से देखते हुए कहा।

    "बैठो, तुम्हारी स्कूटी भी मिल जाएगी तुम्हें," अवि ने कहा।

    रिद्धि दौड़कर कार में बैठ गई, अवि ने इवा को उसकी गोद में लेटाया, और कार हॉस्पिटल की और मोड़ दी।

    ड्राइविंग करते हुए उसने कॉल लगाया। रिंग जाने के बाद कॉल कनेक्ट हुआ, "जी सर," उधर से आवाज़ आई।

    "मनोज, ऑफिस वाले हाइवे पर एक स्कूटी खड़ी है, 15 मिनट में मुझे वो विक्टोरिया हॉस्पिटल के सामने चाहिए।"

    "ओके सर," मनोज ने कहा और अवि ने कॉल डिसकनेक्ट कर दिया।

    रिद्धि विक्टोरिया हॉस्पिटल का नाम सुनते ही सकते में आ गई, और आती भी क्यूँ ना, दुनिया का सबसे बड़ा हॉस्पिटल जो था।

    "सर आप कौन हैं?" रिद्धि ने घबराते हुए कहा।

    "घबराने की जरूरत नहीं है, मैं भी इंसान ही हूँ," कहते हुए अवि ने अपना पासपोर्ट रिद्धि के हाथों में थमा दिया।

    रिद्धि ने जैसे ही पासपोर्ट खोलकर देखा तो उसका मुँह खुला का खुला रह गया, और उसके मुँह से निकल पड़ा, "बिजनेस टायकून अविवेश वर्धन बजाज..." इसके आगे उसकी बोलती बंद हो गई।

    अवि ने मिरर से इवा को देखा और उसके माथे पर चिंता की लकीर और ज्यादा गहरी हो गई।

    कार के ब्रेक लगते ही रिद्धि को होश आया। अवि की कार हॉस्पिटल के बाहर खड़ी थी।

    अवि जल्दी से बाहर निकला और इवा को अपनी बाहों में उठा लिया, और अंदर जाकर स्ट्रेचर पर लिटा दिया, और नर्स उसे इमरजेंसी में ले गई।

    "मि. बजाज..." डॉ. नीरा ने अपने केबिन से निकलते हुए कहा।

    "डॉ. जल्दी जाकर उसका चेकअप कीजिये," अवि ने परेशानी भरे लहजे में कहा।

    नीरा सिर हिलाकर इमरजेंसी में चली गई।

    अवि धम्म से पीछे दीवार से सटी चेयर पर बैठ गया, और घुटनों से कोहनियाँ लगाए हुए उसने सिर को अपने हाथों से पकड़ लिया।

    "सर, इवा को कुछ नहीं होगा, वो अब अकेली नहीं है, अब आप हैं उसके साथ, अब वो इवा त्रिवेदी नहीं, इवा अविवेश बजाज है," रिद्धि ने उसे परेशान देखकर दिलासा देते हुए कहा।

    इस बार उसे इवा के साथ जोड़े जाने पर बिलकुल भी बुरा नहीं लगा, उसने एक नजर रिद्धि को देखा और वापस उसी पोजीशन में बैठ गया।

    घंटे भर बाद नीरा इमरजेंसी से बाहर निकली और अवि के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "मि. बजाज..."

    अवि ने झटके से नीरा की तरफ देखा।

    "मुझे शायद बताना तो नहीं चाहिए लेकिन बताने के बाद कैसे रिएक्ट करोगे, आई डोंट नो, बट आई थिंक वो किसी चीज को लेकर डिप्रेस्ड है, ऐसा कोई हादसा जो वो भुला नहीं पा रही है, अंदर ही अंदर घुटे जा रही है, और अगर ऐसे ही चलता रहा तो वो कोमा में जा सकती है, उसका ब्लड प्रेशर बहुत लो हो गया है, कमजोरी ने उसे घेर लिया है। इमरजेंसी थ्री यूनिट O नेगेटिव ब्लड चाहिए, हमारे ब्लड बैंक में इस ग्रुप की सेविंग नहीं है, और ये रेयर कंडीशन में मिलता है, सो..." कहते हुए नीरा अपने केबिन की तरफ बढ़ गई।

    अवि के दिमाग में अभी भी नीरा की कहीं बातें घूम रही थीं।

    "सर, उस रात के बाद उसे जाने क्या हो गया था," रिद्धि की आवाज ने अवि की तंद्रा तोड़ी। "बोलना तक बंद कर दिया था, वो चुलबुली सी इवा पत्थर की मूर्ति बन गई थी, जबरदस्ती से खाना खाती, राम अंकल उसे समझते समझते थक गए हैं, लेकिन जाने क्या दिमाग में ठाने बैठी है। आज अचानक मुझे बोली, मुझे मंदिर ले चल, राम अंकल से परमिशन लेकर में उसे मंदिर ले आई, उन्हें भी शायद ये लगा कि उसका जी हल्का हो जाएगा। पूजा करवाते टाइम साथ थी, फिर न जाने अचानक से कहाँ गायब हो गई, मंदिर में ढूंढा, बाहर सड़क पर ढूंढा, पूछा तो पता चला कि वो हाइवे के जंगल एरिया की तरफ गई है, उसके बाद वो मुझे आपके पास मिली," उसने एक गहरी सांस छोड़ी और फिर कहना शुरू किया, "भोली है ना वो, जल्दी ही हर किसी पर भरोसा कर लेती है, बच्चा बच्चा आपका नाम जानता है और वो अपने ही पति का नाम नहीं जानती। सर ये मत सोचना की आप पैसे वाले हैं तो वो आपके पैसे के पीछे है, नहीं, आपकी जगह और कोई भी क्यूँ ना होता वो इसी तरह पूजती जैसे आपको पूजती, मुझे उसके साथ रहते 18 सालों से ज्यादा का व्यक्त हो गया है लेकिन मैं आजतक ये समझ नहीं पाई कि राम अंकल उसे किस्से बचाना चाहते है, बहुत मासूम है लेकिन अच्छे बुरे की समझ है उसमें, की क्या गलत है और क्या सही, सब कुछ आप पर न्योछावर कर दिया है उसने, वो..."

    "वेट अ मिनिट, मैं ब्लड का बंदोबस्त करता हूँ," रिद्धि को बीच में रोकते हुए अवि उठकर वहाँ से ऐसे चला गया जैसे रिद्धि कुछ और कहेगी तो उसका सिर फट जाएगा।

    रिसेप्शन पर जाकर उसने पहले तो बिल पे किया और फिर मनोज को कॉल लगा दिया।

    "सर, स्कूटी के साथ पिछले पौने घंटे से हॉस्पिटल के सामने खड़ा हूँ," कॉल पिक करते ही मनोज ने अपना बयान दिया।

    "शटअप मनोज, पहले मेरी बात सुना करो उसके बाद अपनी बकवास शुरू किया करो, 15 मिनिट में मुझे O नेगेटिव थ्री यूनिट ब्लड चाहिए, अरेंजमेंट कैसे करोगे आई डोंट नो, ओनली फिफ्टीन मिनिटस है तुम्हारे पास, गो फ़ास्ट," कहते हुए उसने बिना मनोज की बात सुने फोन अपनी जेब में रख लिया।

    "इंसान हूँ यार मशीन थोड़ी, 15 मिनिट, मेरा ही चूस लो खून, जब देखो ये वो, ये वो, बलि के बकरे की भी ऐसी हालत नहीं होती जैसी मेरी बना रखी है, 24 ओवर ड्यूटी, चल मनु लग जा काम पर, नहीं तो समझ ले ये नौकरी गई," बड़बड़ाते हुए मनोज कॉल लगाने में बिजी हो गया।

    कुछ देर बाद वह वापस लौट आया और वीआईपी वार्ड में शीशे के अंदर झाँक कर देख रहा था, मशीनों से घिरी इवा की आँखे बंद थीं, ऑक्सीजन मार्क्स लगा हुआ था, मांग में लाल सिंदूर चमक रहा था, गले में वही मंगलसूत्र पड़ा था, जो उसने पहनाया था। दोनों हाथों में एक-एक लाल रंग की चूड़ी थी, जिनके नगीने किसी का भी ध्यान भटका सकते थे। लाल बनारसी घेरदार लॉन्ग कुर्ती सूट पहन रखा था उसने। अवि ने उसकी कंडीशन देखकर आँखे बंद कर ली, और बाहर आकर चेयर पर बैठ गया।

    रिद्धि इवा के पास बैठी थी, अवि की हालत देखकर वह मुस्कुराते हुए बाहर आई।

    अवि उसे देखकर खड़ा हो गया। "देखो उस दिन जो भी हुआ अनजाने में हुआ और मैं इस बेमतलब की शादी को नहीं मानता, तो बेहतर यही होगा कि उसके होश में आने के बाद तुम उसे कुछ ना बताओ। मैंने इंसानियत के नाते उस दिन भी उसकी मदद की थी और आज भी वही किया। मुझे उसके होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता," अवि ने कहा।

    रिद्धि की मुस्कुराहट जाती रही, उसने ये बिलकुल भी नहीं सोचा था कि अवि कुछ ऐसा कह देगा।

    अवि जाने को हुआ, तभी रिद्धि की आवाज सुनाई दी और उसके बढ़ते कदम रुक गए।

    "जानती हूँ सर, आपको कोई फर्क नहीं पड़ता, पर शायद यही बात आप अपने आपको समझा नहीं पाए, कोई फर्क नहीं पड़ता तभी तो आपने बिना किसी रिश्ते के नीमराना में उसकी जान बचाई, और आज जब वो बेहोश होकर गिर गई तो ये सब किया, रियली सर, समझ गई मैं, यू डोंट माइंड। मैं आपको बिलकुल भी नहीं रोकूंगी, जाइये सर, इतने दी संभाला है, आगे भी संभाल लूंगी मैं, आदत हो गई है अब तो उसे बात बात पर समझने की, जाइये सर, कुछ देर में इसके पापा आ जाएंगे, वो इसे मुझसे भी अच्छी तरह संभाल लेंगे।" कहते कहते उसकी आँखों से आंसू नीचे उतर आए।

    अवि बिना एक पल भी रुके वहाँ से चला गया, एक बार भी उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

    कुछ देर बाद उसकी कार स्पीड से सड़क पर दौड़ रही थी।

    ऊँची सी बिल्डिंग के सामने आते ही उसने कार को ब्रेक मारा, एक आवाज के साथ कार रुक गई और सीट बेल्ट न लगा होने के कारण उसका सिर स्टेयरिंग से जा टकराया।

    उसके मुँह से आह तक नहीं निकली, सिर पर लाल निशान हो गया। नीचे उतरा तो सामने मनोज खड़ा था।

    "किसी का बजी कॉल आये तो कह देना की मैं फ्लेट पर हूँ मेरी चिंता ना करे, और हाँ मैंने तुम्हें एक फोटो सेंड की है, कल सुबह तक मुझे उसकी सारी डिटेल्स चाहिए, फ़ाईन," मनोज से कहते हुए वह बिल्डिंग के अंदर चला गया।

    मनोज ने फोन चेक किया तो उसके चेहरे पर परेशानी के भाव आ गए।

    "सर को मिसेज बजाज की इनफार्मेशन क्यूँ चाहिए," उसने मन ही मन सोचा और अपने अगले काम में लग गया।

    क्रमशः

  • 13. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 13

    Words: 666

    Estimated Reading Time: 4 min

    मनोज ने मन ही मन सोचा, "सर को मिसेज बजाज की इनफार्मेशन क्यूँ चाहिए" और अपने अगले काम में लग गया।

    अंदर रूम में जाते ही अवि ने तोड़ फोड़ शुरू कर दी। ये गुस्सा उसे खुद पर आ रहा था या रिद्धि पर या फिर इवा पर, उसे समझ नहीं आ रहा था।

    कुछ पल बाद वह ड्रेसिंग मिरर के सामने खड़ा था। आज पहली बार किसी लड़की की वजह से उसकी आँख से एक बूँद आंसू की उतर कर गालों पर ढुलकती हुई नीचे जा गिरी। उसने अपने हाथों की मुट्ठियाँ कस ली और मिरर पर दे मारा। शीशे में दरार हो चली थी। एक बार और उसने मिरर पर बहुत तेज गुस्से में दे मारा।

    काँच के टुकड़े बड़े ही स्लो मोशन में टूटते हुए फर्श पर जा गिरे। उन गिरते हुए टुकड़ों में उसे इवा के कई रूप नजर आ रहे थे। कहीं वो अहान से पैसे ले रही थी, कहीं उसका मासूम चेहरा, कहीं वो उसकी दुल्हन बनी खड़ी थी तो कहीं वो उसे पति रूप में स्वीकार कर रही थी।

    एक काँच का टुकड़ा उसके गाल को चीरते हुए निकल गया, पर अफ़सोस वहाँ से एक कतरा खून भी नहीं निकला। उसने अपनी आँखें भींचकर बंद कर लीं। उसने अपनी मुट्ठियाँ खोल दीं। हाथों से बहते खून कि बूँदें चारों तरफ बिखर गईं।

    वह अपने कदम पीछे करते हुए दीवार से जा सट गया और नीचे बैठ गया। उसकी आँखें अंगारों की तरह लाल हो गई थीं।

    मनोज को कुछ इनफार्मेशन तो मिल गई थी, लेकिन उसमे अभी अवि के रूम में जाने की हिम्मत नहीं थी। ऊपर से काफ़ी तोड़ फोड़ की आवाज आ रही थी। वहाँ उपस्थित किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थी की उसे जाकर रोक सके, ना ही घर में इनफार्मेशन दे सकते थे।

    सीता ने कई बार फोन किया था लेकिन मनोज के पास एक जवाब के अलावा कुछ नहीं था।

    विक्टोरिया हॉस्पिटल,
    मुंबई

    इवा को अभी अभी होश आया था। डॉ नीरा उसका चेकअप कर रही थीं। नीरा के जाते ही रिद्धि उसके पास जाकर बैठ गई। रिदू को देखते ही इवा ने कहना शुरू किया, "मैंने उन्हें देखा रिदू! उन्होंने मेरा व्रत भी खोला था, तूने देखा था ना। भगवान ने मेरे विश्वास का मान रख लिया।"

    रिद्धि ने कहा, "इवा ऐसा कुछ नहीं है, तूने जरूर कोई सपना देखा होगा, तू मुझे मंदिर के बाहर बेहोश मिली, मैं और राम अंकल तुझे यहाँ ले आये..."

    रिदू अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी उससे पहले ही इवा की गर्दन एक और लुढ़क गई। रिद्धि ने नर्स की तरफ देखा जो ग्लूकोज की बोतल में इंजेक्शन लगा रही थी।

    नर्स ने खाली इंजेक्शन डस्टबिन में फेंक दिया और कहा, "रिलैक्स, मैंने ग्लूकोज में बेहोशी की दवाई मिलाई है।"

    राम ने भी नर्स की बातें सुनी और नर्स के जाने के बाद उसने रिद्धि से कहा, "बेटा अब तुम्हें भी घर जाना चाहिए। वीरेंद्र और लेखा परेशान हो रहे होंगे।"

    रिद्धि ने एक नजर इवा पर डाली और राम से कहा, "मैं सुबह आ जाऊँगी अंकल, कोई भी प्रॉब्लम हो तो बेहिचक कॉल कर दीजेगा।"

    राम ने सिर हिलाया और रिद्धि ने बाहर का रुख कर लिया।

    रिद्धि के कदम तो बढ़ रहे थे लेकिन उसके दिमाग़ में अवि की कहीं बातें घूमे जा रही थीं। लिफ्ट से वह कब नीचे आई, उसे कुछ पता नहीं चला। उसने रिसेप्शन पर जाकर अपनी स्कूटी की चाबी ली और बाहर आ गई। एक बार फिर उसने हॉस्पिटल को देखा, विक्टोरिया लेडीज हॉस्पिटल, लाल रंग के बडे बडे शब्द जगमगा रहे थे। उसने अपनी स्कूटी स्टार्ट की और चल दी।

    दवाइयों के नशे में सारी रात इवा सोती रही। राम ने रात भर पलक भी नहीं झपकाई थी।

    सुबह खिड़की से आती धूप अवि के चेहरे पर पड़ी। तंग आकर उसने अपनी अलसाई सी आँखें खोलीं। उसने देखा वो बैठे बैठे ही सो गया था। चारों तरफ नजर दौड़ाई तो सामान बिखरा पड़ा था, जगह जगह काँच के टुकड़े पड़े हुए थे। उसने अपनी आँखें एक बार फिर बंद की और वॉशरूम में चला गया।

    क्रमशः

  • 14. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 14

    Words: 1071

    Estimated Reading Time: 7 min

    जगह-जगह काँच के टुकड़े पड़े हुए थे। उसने अपनी आँखो को एक बार फिर बंद किया और वॉशरूम में चला गया।

    नीचे आया तो मनोज सामने ही खड़ा कुछ पेपर्स देख रहा था। मनोज को जैसे ही आभास हुआ उसने तुरंत से कहा, "गुड मॉर्निंग सर।"

    अवि ने कुछ नहीं कहा। मनोज को रात वाला अवि कहीं दिखाई नहीं पड़ा। अब वो काफ़ी हद तक शांत नजर आ रहा था। उसने ब्लैक सूट पहना हुआ था। उसके राइट हैंड पर पट्टी बंधी हुई थी और उसके गाल पर छोटे-छोटे 3 कट लगे हुए थे। वो उस लुक में और भी ज्यादा हैंडसम लग रहा था।

    "सर क्या आप ठीक है?" मनोज ने उसे देखते हुए कहा। "क्या हम हॉस्पिटल चले?"

    "मैं ठीक हूँ। मैंने कल तुम्हें कुछ काम दिया था। जब वो रात में ही पूरा हो गया था तो तुमने मुझे बताया क्यूँ नहीं?" अवि ने शांत स्वर में कहा।

    "सॉरी सर, लेकिन आपने रूम में आने से मना किया था तो मैं नहीं आया। सर, मि. राम त्रिवेदी की इकलौती बेटी है वो। उनका पूरा नाम इवा त्रिवेदी है। मि. त्रिवेदी मुंबई के हाई सोसाइटी होटल सितारा में कैशियर है। उनकी वाइफ मिसेज़ रीमा जैन त्रिवेदी का एक एक्सीडेंट में मौत हो गई। वे करीब 20 सालों से मुंबई में रह रहे है। वे लोग मिडिल क्लास है। मिस त्रिवेदी मुंबई के सबसे महगें कॉलेज आईआईसी में सेकेण्ड स्टेण्डर्ड की स्टूडेंट है। सर, इतनी ही इनफार्मेशन मिल पाई।" कहते हुए मनोज ने गहरी सांस खींची।

    "इशाना का उससे क्या कनेक्शन है?" अवि ने मनोज को बिना देखे ही कहा।

    "सर, मिस त्रिवेदी की बेस्ट फ्रेंड रिद्धि शुक्ला है जो की इशाना मेम की कजीन सिस्टर है, आई मीन ममेरी बहन।" मनोज ने बात पूरी की।

    बातों ही बातों में वे लोग बजाज मेंशन पहुंच चुके थे। अवी कार से उतरकर अंदर चला गया।

    दरवाजे पर उसे विशाल मिल गया।

    "आज का शेड्यूल?" उसने विशाल से पूछा।

    "सर, शाम 4 बजे मि. छाबड़ा के साथ आपकी मीटिंग है। हर्ष सर किसी काम से बाहर गए है, इसलिए 7 बजे कनाडा वाले क्लाइंट के साथ पेपर्स साइन करने है।" कहते हुए विशाल चुप हो गया।

    "दोपहर से पहले कोई मीटिंग नहीं है। इससे पहले मुझे डिस्टर्ब मत करना।" कहते हुए अवि चला गया।

    हॉल में सोफे पर सीता बैठी अख़बार पढ़ रही थी। "कहाँ थे रात भर?" पेपर को नीचे रखते हुए उन्होंने पूछा।

    "बुआ माँ, आप मेरी चिंता किया करे।" अवि ने कहा।

    "सुना ना बुआ माँ, आपको इसकी कोई चिंता नहीं करनी चाहिए, ये आज की ही नई बात थोड़ी है बुआ माँ। रियली अवि, घरवाले तेरी चिंता करना भी छोड़ दे। क्यूँ बिगड़ता जा रहा है? हालत देखि है अपनी? ड्रिंक करने के बाद खुद को कुछ होश नहीं होता। क्यूँ पिता है इतनी? मैं नहीं जानती कितनी पी है तूने, लेकिन तूने खुद को जो चोट दी है उससे भी कहीं ज्यादा उस दिल पर लगी है जो तेरी फ़िक्र करता है, जो हमारे पास है। अगर गलतियां सहन नहीं होती तो करता क्यूँ है? क्या जरूरत पड़ जाती है तुझे हर किसी के मामले में नाक घुसेड़ने की? और हाँ, हॉस्पिटल में क्या करने गया था तू?" रति ने सीधा उसके मुँह पर बोला।

    "हॉस्पिटल... वो हॉस्पिटल में अपने रूटीन चेकअप के लिए गया था।" उसने बहाना बनते हुए बड़ी ही सफाई से झूठ बोला।

    "रियली? मुझे नहीं पता था की जेंट्स का चेकअप अब लेडीज हॉस्पिटल में होने लगा है।" रति ने उसके झूठ को पकड़ते हुए कहा।

    "डॉ. आरव ने मुझे वही बुलाया था। उनको टाइम नहीं था और में चेकअप जरूरी था।" अवि ने बात को टालने की कोशिश की, लेकिन रति हार मानने वालों में से नहीं थी।

    "तो डॉ. आरव ने ये नहीं बताया की लिमिट की पीनी चाहिए, या फिर पीनी ही नहीं चाहिए?" रति ने बोहें ऊपर उठाते हुए कहा।

    "शटअप रति, स्टॉप! क्या नॉनसेन्स बाते किये जा रही हो? बुआ माँ, इसका दिमाग़ सटक गया है जब से आया हूँ तब से ऐसी बाते किये जा रही है जिनका कोई सेन्स ही नहीं है। अब और कुछ नहीं सुनना मुझे, सुना तुमने? अविवेश बजाज हूँ मैं। जानता हूँ मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं, ये तुम्हें मुझे सिखाने की जरूरत नहीं है। और हाँ, कुछ जरूरी फाइल्स पर साइन चाहिए तुम्हारे, फॉलो मी।" कहते हुए अवि अपने रूम की तरफ बढ़ गया।

    कुछ मिनिट बाद रति अवि के रूम में आई तो देखा वह कबर्ड से कपड़े निकल रहा है।

    "कहाँ है फाइल्स?" रति ने गुस्से से कहा।

    "कोई फाइल्स नहीं है।" अवि ने भी उसी लहजे में कहा, "मुझे पहले ही पता था की नीरा के मुँह में कभी बात नहीं टिकेगी तो उसे समझने से कोई फायदा नहीं था, लेकिन अब तुम कान खोल कर सुन लो, वो मेरा पर्सनल मैटर है कोई इलेक्शन में खड़ा नेता जिसका तुम दोनों मिलकर प्रचार कर रही हो। वो तेरी फ्रेंड है मुजगे उससे मतलब नहीं है, लेकिन अब अगर बुआ माँ या और किसी को इस बारे में पता चला तो मुझे अविवेश बजाज बनने में जरा भी वक्त नहीं लगेगा।"

    "तेरा पर्सनल मैटर... ग्रेट!" रति ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा, "तू ऐसा कब से हो गया अवि? जानती हूँ की किसी की तकलीफ तुझसे देखि नहीं जाती, पर तू अब इतना निर्दयी कबसे हो गया अवि? तू उससे अकेला छोड़कर आ गया जबकि तू जानता था की उससे कंडीशन कितनी क्रिटिकल है फिर भी... ये अवि नहीं है, तू बदल गया है। ये जो सामने खड़ा है वो अवि नहीं अविवेश बजाज है जो खुदगर्ज है, जिसको अपने सिवा कोई और दिखाई नहीं देता, तू..."

    "शटअप रति!" अवि उसकी बाय काटते हुए चिल्लाया।

    "यू शट अप!" रति ने उसके मुँह पर जवाब दिया, "अगर सहन नहीं होता है तो गलती करने से पहले सो बार सोच लिया कर। और अगर इतना भी दिमाग़ नहीं है तो बेच दे इसे ताकि किसी और के काम आ सके। मैंने हर बार तेरा साथ दिया है लेकिन अब और नहीं।" उसकी सांस फूलने लगी और उसे खासी आ गई।

    अवि ने दौड़कर उसे पानी का गिलास दिया।

    "मरी नहीं हूँ।" उसने गुस्से को क़ायम रखते हुए कहा, "भगवान ने दो हाथ और पैर दिए है और इस्तेमाल करने के लिए दिमाग़ भी।" कहते हुए वह जाने लगी और जाते-जाते अवि के रूम के दरवाजे को इतनी जोर से बंद किया की उसकी आवाज़ पुरे बजाज मेंशन में गूंज उठी। और अवि को नीमराना में अपना दरवाजा बंद करना याद आ गया।

  • 15. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 15

    Words: 862

    Estimated Reading Time: 6 min

    अवि को नीमराना में अपना दरवाजा बंद करना याद आ गया।

    अवि अपना सिर पकड़कर बैठ गया, "जब-जब मैं तुम्हें भूलने की कोशिश करता हूँ, क्यूँ तब-तब तुम मेरे सामने आ जाती हो? तुम्हारी मासूम सूरत और उसके पीछे इतना घिनौना काम... हर बार, बार-बार मुझे वो सब तुमसे नफ़रत करने पर मजबूर करता है। मेरा दिल कहता है कि तुम वो नहीं हो जो मैं देखता आया हूँ, लेकिन दिमाग़ में तुम्हारा निहायत गिरा हुआ किरदार बैठा है। तुम क्या चाहती हो? क्यूँ हो मेरी लाइफ में? जहाँ लोग मेरे नाम से काँपते हैं वहीं मिस शुक्ला कहती है कि तुम तो मेरा नाम तक नहीं जानती। कहीं तुम भी तो सभी की तरह मेरे साथ कोई गेम तो नहीं खेल रही? मुझे तुम्हारी शक्ल से भी नफ़रत है, वही तुम्हारी ही सूरत देखकर मेरे दिल की बेचैनी अचानक खत्म हो जाती है। इवा त्रिवेदी..." अवि सोचते हुए अचानक चिल्ला पड़ा।

    उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था। उसने टॉवल उठाया और बाथरूम में घुस गया। जाने कितनी देर शॉवर के नीचे खड़ा रहा और सोचता रहा।

    शाम के 9 बज रहे थे।
    कान्ता और मंदा डिनर की तैयारी कर रही थीं जो कि सगी बहनें थीं। 4 बजे घर से निकला अवि डिनर के टाइम भी घर नहीं पहुँचा था। हालाँकि वो सारी मीटिंग्स अटेंड कर चूका था और ऑफिस में कोई काम भी नहीं था।

    "मैं दीपावली बाद लौट जाऊँगी।" सीता ने डाइनिंग टेबल पर चुप्पी तोड़ते हुए कहा।

    अनु के चेहरे पर मुस्कान तैर गई।

    "कोई काम आ गया क्या बुआ माँ या फिर कोई प्रॉब्लम है?" हर्ष ने निवाला अपने मुँह में डालते हुए कहा।

    "औरत हूँ हर्ष, पीछे परिवार छोड़कर आई हूँ, उसे भी तो संभालना है। दोनों परिवार के लिए मेरा भी कुछ फर्ज बनता है। लेकिन अब लगता है कि इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। आज मेरे खिलाफ कई आवाजे हैं।"

    रति के हाथ से चम्मच नीचे गिर पड़ी और हाथ वहीं रुक गए।

    "परिवार बिखर रहा है हर्ष, व्यक्त रहते समेत लो, और व्यक्त निकल तो सब बिखर जायेगा। बिखरने के बाद समेटने में वो बात नहीं रहेगी। मेरे भाई सा की इकलौती निशानी हो तुम और तारा की निशानी अवि। मैं तुम दोनों को बिखरते हुए नहीं देख सकती। कल को रति के ससुराल जाने के बाद उस नालायक को कौन संभालेगा? एक यही है जो अवि को संभाल सकती है। लेकिन अब पानी सिर के ऊपर से जा रहा है हर्ष। वो फ्लेट नहीं शराब का अड्डा है जो अवि को ले डूबेगा। गुस्से में वो क्या करता है उसे खुद होश नहीं होता। शादी कोई मजाक नहीं है, एक पवित्र रिश्ता है जो सात जन्मों तक निभाना ही पड़ता है। मानती हूँ कि हालत ठीक नहीं थे। लेकिन क्या कमी है उस लड़की में? अवि की उस मैदे की थैली से तो लाख गुना अच्छी है, जो उसके पीछे बेबी की रट लगाए घूमती रहती है। अवि की परवरिश ठीक से नहीं कर पाई मैं, वो गलत संगत में चला गया, और मैं देखती रही।" कहते हुए सीता की आँखों से आंसू गिर पड़े।

    रति बुआ माँ की इमोशनल बातें और न सुन सकी और हाथ धोकर दौड़ते हुए अपने रूम में चली गई।

    नीति का इन सब बातों में कोई ध्यान नहीं था। उसे खुद से मतलब था और वो फोन में लगी पड़ी थी।

    अनु ने सबकी नजरें बचाकर कानों में जो रुई डाल रखी थी उसे बाहर निकली, राहत की सांस ली, और वहाँ से चली गई।

    "इसे मेरी बातें इमोशनल ब्लेकमेलिंग लगती है हर्ष। बजाज मेंशन का बंटवारा आज नहीं तो कल होकर ही रहेगा, जिसमे पूरा परिवार ही नहीं तुम भी बँटकर हर जाओगे।" सीता ने अनु को देखते हुए कहा और धीमे कदमों से उठकर चली गई। अकेला हर्ष वहीँ बैठा अपनी सोच में गुम था कि मंदा की आवाज़ उसके कानों से टकराई।

    "सर, और कुछ चाहिए आपको?"

    "नहीं..." कहते हुए हर्ष उठकर रूम में जाने के बजाय बाहर आ गया।

    वह एक अँधेरे कमरे में बैठा था। चाँद की रौशनी छन-छन कर विंडो में लगे शीशे से अंदर आ रही थी। उसके एक हाथ में ब्रांडेड शराब की बोतल थी और दूसरे हाथ में फोन जिसकी स्क्रीन पर इवा की तस्वीर थी। वह दो-तीन घूंट पीता और फिर बोतल नीचे कर लेता। ये सिलसिला जाने कब से चले जा रहा था। वह लड़खड़ाते हुए खड़ा हुआ और फोन को इतनी जोर से फेंका कि वह खिड़की का काँच तोड़ते हुए 20 माले नीचे जा गिरा। एक कतरा आंसू का निकलकर बाहर आ गिरा।

    "मुझे तुम्हारी शक्ल, यहाँ तक की तुम्हारे नाम से भी नफ़रत है। तुम एक बत्तमीज और कैरेक्टरलेस लड़की हो, एक तरफ मासूम बनती हो और दूसरी तरफ... मैं तुम्हारे नाम से अपनी जबान गंदी नहीं करना चाहता, सुना तुमने..." वह जोर से चीखा, और बोतल को दिवार पर दे मारा, जो चकनाचूर होकर बिखर गई और बची शराब फर्श पर फैल गई।

    ये लगभग रोज होने लगा था। उसे शुरू से ही लड़कियों से एलर्जी थी, सिवाय दोनों बहनों के। जिसे देखो उससे चिपकने के बहाने ढूंढती रहती थी, इनमें एक थी राइमा। सीता उसे हमेशा ही मैदे की थैली बुलाया करती थी। उन्हें वो फूटी आँख नहीं सुहाती थी।

    क्रमशः

  • 16. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 16

    Words: 619

    Estimated Reading Time: 4 min

    राइमा
    सीता तो हमेशा ही उसे मैदे की थैली बुलाया करती थी। उन्हें वो फूटी टूटी आँख भी नहीं सुहाती थी।

    दिन बीतते जा रहे थे। इन दिनों अवि रति को इग्नोर कर रहा था। यही बात रति को अंदर ही अंदर तोड़े जा रही थी। जो इंसान उससे अपनी लाइफ की छोटी से छोटी चीज उसके साथ शेयर करता था वो अब उसे एक नजर देखता तक नहीं है।

    डाइनिंग टेबल पर बैठे सभी लोग सुबह का ब्रेकफास्ट कर रहे थे। अगले दिन दीपावली थी तो मेंशन में डेकोरेशन चल रहा था सो, ज्यादा नहीं पर थोड़ा बहुत शोर भी था।

    हर्ष के मना करने के बावजूद भी उसने स्टॉफ को ऑफिस बुलाया था और खुद भी ऑफिस के लिए निकलने वाला था।

    सीता के फोन की तेज घनघनाहट ने अचानक ही सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया। सबकी आँखें सीता पर ही स्थिर थीं। सीता ने सबको नजरअंदाज करके कॉल पिक की।

    अवि अपने बैग के साथ बाहर निकलने वाला ही था कि सीता की तेज आवाज उसके कानों से जा टकराई।

    "क्या... कैसे...! ठीक है बाद में कॉल करती हूँ।" कहते हुए सीता ने फोन अपने कुर्ते की जेब में डाल लिया।

    "क्या हुआ बुआ माँ, सब ठीक तो है?" हर्ष ने उन्हें देखकर पूछा।

    "विजय त्रिवेदी के बड़ा बेटा आज अलसुबह हार्ट अटैक से चल बसा।" सीता ने बिना कोई भाव के, बिना रुके एक ही लाइन में उत्तर दिया।

    "ये तो वही है ना जिन्होंने रीमा आंटी से लव मैरिज की थी, जो ठाकुर खानदान की इकलौती बहु लता आंटी की बहन है। शादी के बाद विजय त्रिवेदी ने इन्हे जान से मारने की कोशिश भी बहुत की है। राम त्रिवेदी..." अंत में नाम लेते हुए अवि ने हर्ष की तरफ देखते हुए कहा। इस बीच वह ये भी भूल गया था कि इवा के पापा का नाम भी राम त्रिवेदी ही है।

    हर्ष ने सिर हिलाकर उसे सहमति दी।

    "बाय द वे नाइट में मेरा वेट मत करना, इंदौर जा रहा हूँ। कल शाम तक लौटूंगा। आप भूल गए मि. बजाज लेकिन अविवेश बजाज अपना काम और फर्ज अच्छी तरह जानता है।" अवि ने बात को घुमाते हुए बड़े ही ऐटिटूड से कहा।

    "बुआ माँ, कुछ नया ट्राय करती तो अच्छा होता, पुराने बहाने अब ट्रेंड में नहीं है।" रति ने अवि पर कटाक्ष किया।

    अवि को जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था। उसने रति को देखा तक नहीं, जवाब देना तो दूर की बात थी। वहीं रति को ये बात चुभे जा रही थी कि कोई बंदा कुछ दिनों में इतना चेंज कैसे हो सकता है।

    रति ने सोचना बंद कर अपने रूम की तरफ रुख कर लिया। वहीं दूसरी और सीता का सोचना अभी तक जारी था कि उस 20 साल की बच्ची का क्या होगा।

    ________________________

    दीपावली का दिन था। बजाज मेंशन राम नगरी अयोध्या की तरह जगमगा रहा था।

    वहीं दूसरी ओर अपनी जन्म भूमि पर बैठी इवा इंदौर में अपने पापा के कमरे में लगातार रोये जा रही थी। ये वही घर था जिसमे 20 साल पहले रीमा ने अपना दम तोड़ा था। अब वह रेंट पर चढ़ा हुआ था, जिसका बिल पे करने हर महीने राम इवा के साथ इंदौर आता था। और हमेशा की तरह वे लोग परसो रात को यहाँ आ गए थे। यहां पर रीमा की कुछ यादें भी थीं जिन्हे देखकर राम को एक सुकून सा मिल जाता था। लेकिन इस बार ऐसा सुकून मिलेगा इवा ने कभी इमेजिन भी नहीं किया था।

    शाम ढलने को तैयारी थी। वह बाहर बैठी सिसकियाँ भर रही थी। आस पास के कुछ लोग जल्द ही इक्कठे हो गए। इवा ने भीगी आँखो से उनकी तरफ देखा। इवा को उनकी आँखो में संवेदना की जगह अत्यंत भारी गुस्सा देखने को मिला उसने फिर से अपनी आँखे झुका ली।

    क्रमशः

  • 17. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 17

    Words: 1079

    Estimated Reading Time: 7 min

    इवा को उनकी आँखों में संवेदना की जगह अत्यंत भारी गुस्सा देखने को मिला, उसने तुरंत अपनी नम पलकें झुका ली।

    "इस मनहूस को हम यहाँ कभी रहने नहीं देंगे, जन्म लेते ही माँ को खा गई और अब बाप को, सत्यानाश हो इसका, करमजली कहीं की।" लोगों ने उसके मुँह पर बोलना शुरू कर दिया।

    उनके कहे एक-एक शब्द को वो आंसुओ के घूंट पिए जा रही थी, उनकी गंदी और गलीच बातें सुनकर उसकी पलकें अपने आप बंद हो गई थी, उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था।

    "हम लोग इसे यहाँ नहीं रहने देंगे।" लोग मकान मालिक पर भड़क उठे।

    "देखिये, शांत हो जाइये, आप लोग किस हक से इसे बाहर निकलने की बात कर रहे है, इस घर का किराया आप लोग तो नहीं देने आते। ये अकेली बच्ची कहाँ जाएगी इस वक़्त। आप लोगों में इंसानियत बाकी है तो सोचिये जरा।" मकान मालिक ने संवेदना के साथ इवा का पक्ष लेते हुए अपनी बात रखने की कोशिश की।

    "औ साहब, हमें नहीं पता की ये बच्ची के नाम पर कलंक कहाँ जाएगी, और क्या प्रमाण है आपके पास की ये महीने पर आपका किराया देती रहेगी। लड़की है, कुछ काम ना मिला तो और भी रास्ते है इसके पास, और ऐसे गंदे माहौल में हम अपने बच्चो को नहीं रख सकते। बाप के जाने का दुख 2 दिन का होगा, बाकि 100 दिन अयाशीयों में बितेंगे, आज फैसला होकर रहेगा, या तो हम यहाँ रहेंगे, या फिर ये मनहूस कर्म जली।" भीड़ में से कुछ लोगों ने कहा।

    मकान मालिक सकते में आ गया, 200 से ज्यादा लोग उसके घर में रेंट पर रहते थे। एक की वजह से 200 हाथ से निकल गए तो, वो तो सड़क पर आ जायेगा।

    "मुझे माफ कर देना बेटी, मैं मजबूर हूँ।" मकान मालिक इवा के पास जाकर धीरे से बुदबुदाया और वहाँ से कल्टी मारकर निकल गया।

    कुछ औरतों ने उसके बाल पकड़ लिए, और घसीटने लगी। इवा लगातार हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाए जा रही थी, पर उन पर तो जैसे कोई असर ही नहीं हो रहा था उसकी चीखों का।

    औरतों ने उसे घसीटकर सड़क के किनारे ला पटका। "दोबारा वहाँ आने की कोशिश भी की तो, हमसे बुरा कोई नहीं होगा, समझ गई लड़की।"

    "प्लीज मुझे वहाँ रहने दीजिये, वो मेरे माँ पापा की आखिरी निशानी है। इस वक़्त मैं कहाँ जाऊगी, मैं भी आपकी बहन बेटी की तरह ही हूँ, प्लीज मुझे यहाँ मत छोड़िये, आपके पाँव पड़ती हूँ मैं, प्लीज।" इवा बोले जा रही थी।

    भीड़ में से किसी का भी दिल उसे देखकर पसीजा नहीं, उल्टा उसे दुत्कार कर और धमकी देकर उलटे पाँव लौट गए।

    उसके हाथ पाँव खून से सने हुए थे, लीलाट से खून निकलना बंद हो गया था।

    रात गहराने लगी थी, मौसम सर्दियों का था इसलिए, 7 बजे ही काफ़ी अंधेरा हो गया था। वह पेड़ से सिर टिकाये सड़क किनारे बैठी हुई थी। आवाजही कम हो चली थी, चूँकि गांव का एरिया था, तो रात गहराने के बाद कम लोग ही घर से बाहर निकलते थे।

    कुछ बाइक इवा से कुछ दुरी पर रुक गई।

    "अरे भाई क्या माल है।" उनमें से एक ने इवा को हवस भरी नज़रों से देखते हुए कहा।

    "अरे हाँ यार, आज तो भगवान ने लॉटरी लगा डाली है, क्या भिड़ु, सही कहा ना।"

    "आज दारू के साथ चकना भी तैयार है, लगता है माल नया है।"

    उनकी हवस को देखकर, इवा ये तो जान चुकी थी की उनके इरादे नेक नहीं थे। जैसे-जैसे वो लोग उसकी तरफ कदम बढ़ाते जा रहे थे, इवा की धडकने तेज दौड़ने लगी थी।

    उसने बची हुई हिम्मत समेटी और वहाँ से दौड़ लगा दी।

    "अरे ये तो भाग रही है, पकड़ो उसे, हाथ से निकलनी नहीं चाहिए।"

    वे उसके पीछे भागते हुए बड़ी ही गंदी लेंग्वेज का यूज़ कर रहे थे।

    "अरे कहाँ भागे जा रही हो जानेमन, जो तुम्हें चाहिए वो हमारे पास है और जो हमें चाहिए उसके लिए तुम भागे जा रही हो।" बड़ी ही वाहियात स्माइल के साथ वे हँसे जा रहे थे।

    हाईवे तक पहुंचते पहुँचते उसके पैर जवाब देने लगे थे। अचानक एक कार की टक्कर से वह ओंधे मुँह जा गिरी, सड़क पर। टक्कर लगते ही कार जोरदार ब्रेक के साथ आवाज करती हुई रुक गई।

    "ये क्या तरीका है किशोर कार चलाने का।" कार के अंदर बैठे शख्स ने ड्राइवर को डपटते हुए कहा।

    "सर मेरी कोई गलती नहीं है, वो लड़की खुद कार के सामने आ गई।" किशोर ने घबराहट के साथ कहा।

    "मैं देखता हूँ सर।" कार में बैठे, उस शख्स के बॉडीगार्ड ने कहा और बाहर निकल गया।

    इवा के इस तरह गिरते ही, लड़कों का काम और भी आसान हो गया। एक लडके ने बढ़कर इवा के बाल पकड़ने चाहे उससे पहले ही, उसके मुँह पर जोरदार तमाचा पड़ा जिससे वह घुमते हुए गिर पड़ा। ये अवि ही था जो किसी कॉन्ट्रेक्ट के सिलसिले में इंदौर आया था। लड़को की संख्या ज्यादा नहीं थी, वो 4 से 5 लोग थे। अवि ने देखा तो इवा सड़क पर पड़ी थी। उसकी हालत देखकर वह तड़प उठा, उसने जलती निगाहो से उन लफंगो को देखा। अवि का ये रूप देखकर वो लोग भागने लगे।

    "सागर...." अवि ने कहा।

    बॉडीगार्ड सागर ने पलभर में उन्हें दबोच किया और ऐसी पटाई की कि दोबारा उठने लायक नहीं रहे।

    अवि ने नीचे बैठकर इवा के सिर को अपनी गोद में रखा और चिल्लाया, "किशोर, पानी!"

    किशोर जल्दी से पानी की बोतल लेकर आया। अवि ने अपनी हेंकी से इवा के चेहरे को साफ किया, लीलाट से खून अभी भी निकल रहा था। उसने रुमाल को घाव के ऊपर रख दिया जिससे कि खून निकलना बंद हो जाये।

    किशोर से पानी लेकर उसने इवा के मुँह पर छिड़का, इवा ने बेहोशी ने आँखे खोली। नजर से नजर मिलने पर जैसे अवि को एक सुकूँ सा मिल गया।

    "आर यू ओके?" अवि ने बड़ी ही नरमी से पूछा।

    इवा ने गहरी सांस ली और कहा, "आपके होते हुए मुझे कभी कुछ हो सकता है क्या?" उसकी आँखो पर एक बार फिर पलकों का घना पहरा हो गया।

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    विक्टोरिया हॉस्पिटल,
    मुंबई

    "शी इस फ़ाईन, मि. बजाज। आप उसे सही वक़्त पर लेकर आ गए, ब्लड भी ज्यादा लॉस नहीं हुआ। एक बार रिपोर्टस आ जाये उसके बाद आप उन्हें ले जा सकते है।"

    अवि ने रिसेप्शन पर जाकर बिल पे किया और किशोर को मेडिकल से मेडिसिन लेने भेज दिया।

    उसने काँच से अंदर झांक कर देखा, वह मासूमियत से सो रही थी, उसके माथे पर पट्टी बंधी हुई थी, हाथ में फ्रैक्चर था। अवि ने नजरें फेर ली।

    क्रमशः

  • 18. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 18

    Words: 1001

    Estimated Reading Time: 7 min

    अवि ने नजरें फेर लीं।

    हर बार किस्मत तुम्हारे पास आने पर
    मुझे क्यूँ कर देती है मजबूर.......................
    कैसा जादू किया तूने मुझ पर
    मैं खुद में भी कहीं बाकि ना रहा हुजूर............

    कुछ देर बाद फिर से डॉ. नीरा केबिन से बाहर निकली और अवि के पास आई।

    "मि. बजाज, सारी रिपोर्ट्स नॉर्मल है। आप चाहे तो अभी उन्हें घर ले जा सकते हैं। आई नो, त्यौहार का दिन है, इसलिए कह रही हूँ, होश तो नहीं आया है बट, ओके।"
    कहते हुए नीरा दोबारा अपने केबिन में चली गई।

    सागर ने डिस्चार्ज के पेपर्स रेडी करवाए।

    अवि दरवाजा खोलकर उसके पास गया। इवा में कोई मूवमेंट नहीं था, वह उसी पोजीशन में लेटी हुई थी, जिस पोजीशन में कुछ देर पहले अवि छोड़कर गया था।

    उसने इवा को अपनी मजबूत बाहों में उठा लिया और बाहर आ गया। सागर ने कार का दरवाजा खोला, अवि ने सावधानी से इवा को लेटाया और खुद दूसरी तरफ जाकर बैठ गया। इवा का सिर अपनी गोद में रख लिया।

    किशोर ने कार स्टार्ट कि और चल पड़ा।

    "सर कहाँ चलना है?" किशोर ने पूछा।

    "बजाज मेंशन।" अवि ने सपाट लहजे में कहा।

    किशोर ने जवाब पाकर कार अलीबाग कि और मोड़ दी।

    इवा ने अपनी पलकें खोली तो अपने आपको अवि कि गोद मे सोता पाया। वह झटके से उठ कर बैठ गई।

    "रिलैक्स।" अवि ने बड़ी नरमी से कहा।

    "मैं..." इवा इतना ही बोल पाई कि उसका सिर चकराने लगा।

    "शांत हो जाओ।" कहते हुए अवि ने सीट कि तरफ इशारा किया।

    इवा घबराहट के साथ उसके बगल में बैठ गई।

    "आप मुझे कहाँ ले जा रहे है? जहाँ तक में जानती हूँ आप मुझमे जरा भी इंटरेस्टेड नहीं है, फिर ये सब क्यूँ कर रहे है? मैं आप पर कुछ भी थोपना जी चाहती, आप चाहे तो मुझसे डाइवोर्स भी..."

    "विल यू शट अप, लिसन, कीप साइलेंट।" अवि ने इवा कि पूरी बात सुने बिना ही उसे धमकाया।

    इवा बुरी तरह डर चुकी थी, वो अपने आप में हीं सिमट गई थी उस व्यक्त।

    झटके के साथ किशोर ने कार रोकी। सागर ने फटाफट उतर कर अवि के लिए दरवाजा खोला। अवि उतरा और दूसरी साइड आकर बोला, "उतरो।"

    "आप मुझे कहाँ ले आये है, प्लीज मुझे जाने दीजे।" इवा कि आँखो से आंसू नीचे उतर आये।

    "शटअप, नीचे उतरो।" अवि जोर से चिल्लाया और इवा को खींचकर कार से बाहर निकल दिया।

    "अपना ये ड्रामा बंद करो, समझी तुम।" अवि ने गुस्से से कहा और उसकी बाँह छोड़ दी।

    इवा दर्द से सिहर उठी और लड़खड़ाकर दो कदम पीछे हो गई और अपने आप को संभाला। उसकी आँखो में शायद आंसू खत्म हो गए थे। चहरे पर आंसूओ के निशान साफ तोर पर जाहिर हो रहे थे।

    अवि ने दबाव बनाते हुए उसका हाथ जोर से पकड़ लिया और उसे खींचते हुए मेंशन के अंदर दाखिल हो गया।

    मेन गेट पर आते आते वह झटके से रुक गया, सामने सीता मंदिर में आरती कि तैयारी कर रही थी।

    अवि के इस तरह अचानके रुक जाने से इवा उसी जा टकराई, गिरने वाली थी कि अवि ने संभालकर उसका हाथ खींच लिया, वह उसके सीने से जा लगी। उसके दोनों हाथ अवि के सीने पर थे।

    उसकी छुअन से अवि कि धड़कनो ने रफ्तार पकड़ ली, और इवा उसके इस रूप को देखकर सिहर उठी।

    अवि ने अपने आपको जल्द ही नॉर्मल किया और उसे साइड में करते हुए अंदर जाने को हुआ।

    "वही रुक जाओ..." एक कड़कड़ाती आवाज़ के साथ अवि के कदम वही रुक गए।

    "चौखट पार करने कि गलती भूल कर भी मत करना।" ये सीता थी जिसके मुँह पर गुस्सा साफ तोर पे झलक रहा था।

    वही इवा उस महल कि चकाचोंध देखकर होश खो बैठी थी।

    सीता कि किस आवाज़ से बजाज मेंशन गूंज उठा। अनु, नीति, रति, हर्ष, मंदा, कान्ता और बाकि स्टॉफ वही सीता के पीछे आकर खड़े हो गए।

    अवि ने अपने कदम पीछे खींच लिए।

    सबकी प्रश्नवाचक नजरें इवा, अवि और सीता पर टिकी हुई थी।

    उसने एक नजर इवा और अवि को देखा फिर बोली, "कान्ता, मंदा, किचन में कुछ सामान रखा है वो जल्दी यहाँ लेकर आओ, नीति तुम भी इनके साथ जाओ, रति, मेरे कमरे में थाल रखा है वह लेकर आओ।" सीता ने नीति को देखा।

    सीता ने हाथो में ले रखा आरती का थाल अनु को थमा दिया।

    इवा उन सब का यूँ अपनी तरफ देखना और रौबदार आवाज़ से काफ़ी हद तक डर गई थी, और अवि के पीछे ख़डी हो गई थी।

    कान्ता, मंदा और रति, नीति लोटी तो उनके हाथो में एक एक थाल था।

    कान्ता के थाल में चावलो से भरा कलश था।

    वही मंदा के थाल में लाल कुमकुम था जिसमे पानी और दूध मिला हुआ था।

    नीति के हाथो में भीगी हुई हल्दी का थाल था।

    और रति के थाल में खानदानी पुश्तेनी कंगन, और सिंदूर कि डिब्बीयाँ थी।

    ऐसा लग रहा था जैसे सीता ये सब पहले से हीं जानती थी।

    सीता ने रति के हाथो से थाल लिया और इशारा किया।

    रति ने आगे बढ़कर कंगन उठा लिए और इवा कि तरफ देखा, उसकी आँखो में रति को बस सुनापन हीं नजर आ रहा था, जो कभी उसे खुद कि निगाहो में भी नजर आया करता था।

    "डरो मत बच्चे, आगे आओ।" हर्ष ने बडे हीं प्यार से उसे पुकारा तो, इवा कि आँखो में आंसू झिलमिला उठे, जैसे वो इसलिए प्यार के लिए तरस गई थी।

    अवि ने उसे गुस्से से घुरा, वह एक बार फिर सहम गई और अवि के बगल में ख़डी हो गई।

    रति ने आगे बढ़कर कंगन इवा को पहना दिए, और सिंदूर कि डिब्बी आगे बढ़ा दी।

    अवि ने इवा कि तरफ देखा, देखा क्या घुरा।

    "एक सुहागन कि मांग कभी सुनी नहीं रहनी चाहिए, ये बात गांठ बांध लो, इसे देखने के लिए सारी उम्र पड़ी है।" सीता ने इवा कि सुनी मांग देखते हुए अवि कि तरफ नजर डाली।

    अवि कि आँखो के सामने एक बात फिर नीमराना रिसोर्ट का पल घूम गया, उसने गुस्से से अपने जबडे भींच लिए और एक पल के लिए आँखे बंद कर ली जैसे वो उस गुस्से को पी रहा था।

    क्रमशः

  • 19. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 19

    Words: 1112

    Estimated Reading Time: 7 min

    उसने गुस्से से अपने जबड़े भींच लिए और एक पल के लिए आँखे बंद कर लीं, जैसे वो उस गुस्से को पी रहा था।

    बिना बात का बतंगड़ बनाए, अवि ने एक पल झिझककर चुटकी भर सिंदूर उसकी मांग में सजा दिया। वह लगातार अवि के चेहरे के बदलते भावों को ध्यान से देख रही थी।

    इसी बीच रति ने थाल से चावलों का कलश उठाकर चौखट पर रख दिया।

    और मंदा ने कुमकुम का थाल कलश से थोड़ी दूरी पर रख दिया।

    अवि की नजर जैसे ही इवा से मिली, इवा ने अपनी नजरें झुका लीं और सामने हो रहा माजरा देखने लगी।

    रति ने अवि के पास जाकर उसके कंधे पर लाल रंग का दुपट्टा डाल दिया, और इवा के दुपट्टे से गठबंधन कर दिया। अवि ने उसे घूर कर देखा। रति उसे नजरअंदाज करते हुए बुआ माँ के पास आकर खड़ी हो गई, गुस्से से अवि की तरफ देखते हुए आँखे तरेर रही थी, मानो कह रही हो कि अब क्या कर लोगे।

    "बेटे अपने दाँये पैर से कलश को ठोकर मारकर अंदर आओ," सीता ने इवा की भोली सूरत देखते हुए कहा।

    इवा ने दोबारा अवि की तरफ देखा, अवि अभी भी गुस्से से उसे घूरे जा रहा था। इवा ने दोबारा अपनी पलकें झुका लीं।

    "आओ बेटा," सीता ने फिर से कहा।

    इवा अपने लिए इतना प्यार देखकर रुक नहीं पाई और अपने दाँये पैर को आगे बढ़ाकर कलश को अंदर की तरफ धकेल दिया और अंदर आ गई।

    अवि अभी भी अपनी जगह पर खड़ा था।

    "तुझे अलग से इनविटेशन देने कोई नहीं आएगा," सीता ने गुस्से से कहा।

    वह अभी भी शांत था, लेकिन चेहरे के भावों से पता लगाया जा सकता था कि वो काफ़ी गुस्से में है।

    वह अंदर आ गया।

    नीति ने हल्दी का थाल आगे कर दिया। इवा ने मासूमियत से सीता की तरफ देखा, जैसे पूछ रही हो कि अब क्या करुँ।

    "अपने हाथों में हल्दी लगाकर दरवाजे पर लगाओ," सीता अवि को देखते हुए इवा से बोली। इवा ने दरवाज़े की ओर देखा जहाँ लाल रंग का एक गोलाकार में कुछ लटका हुआ था।

    इवा ने फिर से सीता कि तरफ देखा।

    सीता ने हाँ में सिर हिलाया।

    इवा ने नीति के थाल में हाथों को डुबोकर हल्दी लगाई और फिर दरवाज़े पर हाथ रख दिए। इवा ने वहाँ से अपने हाथों को हटाया और देखा तो अपने हाथों की हथेलियों का एक अक्स उसे दरवाजे पर देखने को मिल रहा था।

    इवा ने नजरें झुका लीं, उसकी इसी अदा पर सबको उसका दीवाना होने में सेकंड भी नहीं लगा, सबके चेहरों पर हल्की लेकिन लम्बी मुस्कान थी।

    मंदा ने कुमकुम का थाल उसके पैरो के पास रख दिया। "बेटे, थाल में पैर रखो और चाप छोड़ते हुए अंदर आओ।"

    इवा ने नजर उठाकर देखा, तो उसके पैरो के पास थाल था उसके जस्ट बाद हीं एक सफ़ेद कपड़ा बिछा हुआ था।

    इसलिए बार उसने अवि को नहीं देखा। इवा का इसलिए तरह अपने आप को नज़रन्दाज करता देख, अवि का पारा और हाई हो गया।

    इवा ने थाल में अपने पैर रखे और अपनी छाप छोड़ते हुए हॉल में आ गई।

    अनु जो कब से चुपचाप खड़ी थी, आगे आई और पुरे मन से दोनों कि आरती उतारकर तिलक किया।

    अवि इन सबसे काफ़ी तंग आ गया था, उसने जाने के लिए कदम बढ़ाए हीं थे कि सीता ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    "पत्नी घर में प्रवेश करने के बाद पति से एक सवाल पूछती है, वो सवाल कुछ भी हो सकता है," सीता ने अवि का हाथ छोड़ा और इवा को देखा।

    इवा ने बिना नजरें मिलाये हीं गर्दन झुका ली।

    "ये एक रस्म होती है बेटा," उसकी मासूमियत देखकर अनु ने बडे प्यार से उसे कहा, तो सबकी नजरे उसकी तरफ उठ गई, जिस औरत ने घर में आने के बाद सिर्फ कड़वी बाते हीं कहीं हो उससे इसलिए तरह से देखना 8वाँ अजूबा था। लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं।

    "आपका नाम क्या है?" इवा ने बिना किसी झिझक के पुछ तो लिया था लेकिन अब उसकी नजरें नहीं उठ रही थी।

    सभी इवा को एक अलग नजर से देख रहे थे, ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई औरत अपने हीं पति का नाम ना जानती हो, ये अजूबा पहली बार देखा था। जो इंसान पूरी मिडिया और अखबारों में हर घंटे छाया रहता है भला उसका नाम कोई कैसे नहीं जान सकता, पर कुछ तो था जो सीता अपने अंदर दबाये बैठी थी, वो इवा का सवाल सुनकर ऐसे मुस्कुरा रही थी जैसे उसे सब पता हो।

    "जवाब दो अवि," सीता ने अवि के गुस्से को देखते हुए और अपने भावों को छुपाते हुए कहा।

    "अविवेश वर्धन बजाज," अवि ने बडे हीं एटीट्यूड से जवाब दिया, "हो गया ड्रामा खत्म? जब उसे बोलने का मौका मिला था तो वह उसे छोड़ना नहीं चाहता था।"

    "हो गई जिद आप लोगो कि पूरी, इसे घर लाने कि, लेकिन मेरी एक बात कानों को खोल कर सुन लेना, मुझसे अब किसी और चीज कि उम्मीद भी मत रखना, इस व्यक्त वह अविवेश बजाज था ना कि वो इनोसेंट अवि। ये आपकी बहु हो सकती है, इनकी भाभी हो सकती है लेकिन में इसे अपनी बीवी अभी एक्सेप्ट नहीं करुँगा। सुना आप लोगो ने कभी नहीं, नेवर। मुझे इसकी शक्ल से यहाँ तक कि इसके नाम से भी नफ़रत है, और मेरे प्यार से ज्यादा मेरी नफ़रत ज्यादा बेपनाह है। और तुम," उसने इवा को गुस्से से देखा, "मेरे आस पास भी नजर मत आना, नहीं तो तुम मेरा वो रूप देखोगी जो आज तक तुमने सपने में भी नहीं सोचा होगा। सुना तुमने," अवि कि आवाज़ मेंशन में गूंज उठी।

    इवा घबराकर दो कदम पीछे हट गई। उसने अवि से ये उम्मीद नहीं कि थी, कि वो उससे इतनी नफ़रत करेगा। आखिरी उसने ऐसा भी क्या कर दिया जिससे वो अवि कि नजरो में इतनी गिर चुकी है उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसकी सोच के आगे अवि सीढ़िया चढ़ते हुए जा चूका था।

    इवा जो अब तक सब्र बनाये हुए थी, उसके सब्र का बांध अब टूट चूका था, अवि गुस्से में क्या क्या बोल गया था उसे खुद कुछ मालूम नहीं था, और वो कहते है ना की, कभी कभी सामने वाले के शब्द तीर की भांति चुभते है, दिल की बात ना बोलकर, सीधा ना बोलकर वो इतना कटाक्ष कर जाते है जो दिल को आहात कर देता है। लेकिन एक इवा हीं ऐसी थी जिसने कोई प्रीतिक्रिया नहीं दी थी बल्कि चुपचाप सब सहन कर रही थी वो भी उस रिश्ते के लिए जिसका कोई वजूद नहीं था जो कभी भी पल भर में टूट सकता था। लेकिन अवि के जितने भी अपशब्द थे वो इवा के दिल को छलनी कर गए थे, उसने तरस भरी निगाहों से सबको देखा उसकी नीली झील सी आँखे झरना बनकर बह उठीं।

  • 20. 💫 इश्क से ज्यादा 💫 — बेपनाह नफ़रत / बेइम्तेहाँ मोहब्बत - Chapter 20

    Words: 673

    Estimated Reading Time: 5 min

    उसकी नीली झील सी आँखें झरना बनकर बह उठीं।

    रति ने आगे बढ़कर उसे संभाला।

    "अगर इसे सुधारकर गलत रास्ते से सही रास्ते पर ना ले आई, तो मेरा नाम भी रति वर्धन बजाज नहीं। बड़ा अविवेश बजाज बना फिरता है। चुप बैठे हैं इसका मतलब ये नहीं की जो मन में आये बोलकर चलता बनेगा। इसकी अक्ल ठिकाने लगाने में मुझे दो मिनिट तो क्या दो सेकंड भी नहीं लगेगी।"

    "चुप हो जाओ बेटे, तुम्हारे लिए स्ट्रेस लेना खतरे से खाली नहीं है," हर्ष ने उसकी कंडीशन देखते हुए कहा।

    वह काफ़ी कमजोर नजर आ रही थी। इवा ने गर्दन नीचे कर ली।

    "वो तुम्हारा पति है, उसकी हर एक चीज से वाकिफ हूँ मैं, और ये भी जानती हूँ की शादी एक ऐसा बंधन है जो सात जन्मों तक साथ रहता है। ऐसे आंसू बहाने से कुछ भी हाथ नहीं आएगा बेटा। उसे पता नहीं किस चीज की चीड़ है की वो इतनी नफ़रत करने लग गया। अगर तुम भी इस रिश्ते को दिल से निभाना चाहती हो तो मैं हर कदम पर तुम्हारा साथ दूंगी, चाहे वो गलत हो या सही। मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम दोनों के साथ है, सदा सुहागिन रहो। तुम्हें हीं उसे अपने स्नेह से उसे संभालना होगा, जानती हूँ मुश्किल होगा, लेकिन उन सबमें हम सब तुम्हारा साथ देंगे," सीता ने उसके सिर पर हाथ रख कर उसे प्यार से कहा।

    "जिस रिश्ते की नींव हीं नफ़रत पर टिकी हुई है, उसे कैसे सँभालु, एक पल में ये रिश्ता टूटकर बिखर सकता है, जिसका अंदाजा खुद मुझे भी नहीं है। मैं आप लोगो से उनकी शिकायत नहीं करुँगी, शायद वे शुरू से हीं ऐसे है। लाइफ हमें सिखाती है की, अगर घर और मन दोनों में शांति चाहिए तो किसी इंसान की शिकायत करने से बेहतर ये है की खुद को बदल लो, क्युँकि पूरी दुनिया में कारपेट बिछाने ये बेहतर तो यही है ना की खुद के पैरो में चप्पल डाल लो। मैं अपनी तरफ से उन्हें कोई सफाई नहीं दूँगी, मैं जानती हूँ की जो इमेज मेरी उनके मन में बन कर बैठ गई है वो कभी मेरे सफाई देने से भी नहीं मिटने वाली, उनका मुझे यूँ जलील करना कभी नहीं बदलने वाला, लेकिन आप लोगो से ये वादा जरूर करुँगी की ज़ब तक मैं इस घर में हूँ, इस परिवार को टूटने नहीं दूँगी," इवा ने मासूमियत भरे लफ्जो में अपना दर्द बयां कर दिया।

    "मुझे तुमसे इसी तरह की उम्मीद थी बेटे," उसकी समझधारी पूर्ण बाते सुनकर सीता ने उसके सिर पर एक बार और हाथ धर दिया, "सदा खुश रहो बेटे। नीति बेटा तुम इसे अपने कमरे में ले जाओ, आज लक्ष्मी घर आई है, उसका इस तरह अपमान नहीं करना चाहिए, ये तुम्हारे साथ रहेंगी," सीता ने कहा।

    "हो........ बुआ माँ, मैं गे नहीं हूँ, ना हीं मुझे अभी शादी करनी है, तो प्लीज, आप मुझे इस किस्म की इंसान समझती है, छी........... मैं नहीं, प्ली......"

    "चुप कर नकचड़ी," सीता ने नीति की बात बीच में हीं काटते हुए कहा, "ज़ब देखो अनाब शनाब कटर पटर बोलती हीं रहती है बिना सोचे समझे।"

    सब लोग ठहका मारकर हँस पड़े।

    "इट्स जोकिंग बुआ माँ, माहौल इमोशनल हो गया था तो मैंने सोच...." कहते हुए नीति ने अपनी जीभ काट ली।

    "अब जाओ नौटंकी," हर्ष ने मुस्कुराते हुए कहा।

    नीति इवा को लेकर अपने रूम की तरफ बढ़ गई।

    वही सीता ने सबको कुछ इशारा किया और चली गई।

    घड़ी रात के 10 बजा रही थी, डायनिंग टेबल पर बैठे सब लोग डिनर कर रहे थे, इवा नहीं थी वो सो रही थी, उस पर दवाइयों का नशा अभी तक बना हुआ था।

    अवि को जाने किस बात की जल्दी थी उसने कुछ खाया कुछ नहीं खाया और हेंडवॉश करके वह अपनी लाइब्रेरी में चला गया, सब लोग उसे हैरानी से देख रहे थे की इसको पता नहीं किस बात की जल्दी है।

    रोजाना की तुलना आज डिनर थोड़ा लेट हुआ था।

    नीति ने खाना खाया और रति को साथ ले वह इवा को खाना खिलाने अपने रूम में आ गई।

    इवा उठ चुकी थी वह एक कोने में बैठी सुबक रही थी।