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ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का

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Archana

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एक दहकता हुआ लावा तो दूसरी बर्फ सी ठंडी पानी एक के अंदर दुनिया भर के समझदारी, तो दूसरे के अंदर भरी हुई है सिर्फ नादानी! कैसे बनेगी इनकी कहानी? जानने के लिए पढ़े "जिंदगी!" प्रतापगढ़ के राजा साहिर सिंह राणा की जिंद...

Total Chapters (104)

Page 1 of 6

  • 1. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 1

    Words: 2442

    Estimated Reading Time: 15 min

    रात 12:00 बजे

    गर्ल्स हॉस्टल

    रात ने अंधेरे की चादर ओढ़ रखी थी। ऐसे तो हॉस्टल में 24 घंटे बिजली रहती थी, पर पता नहीं अचानक से क्या हुआ था कि पूरे गर्ल्स हॉस्टल में अंधेरा छा गया।

    "यह लाइट को क्या हुआ?" एक सिक्स क्लास की लड़की ने अपनी सहपाठी से पूछा।

    "पता नहीं... अचानक से लाइट कैसे कट गई?" दूसरी बोली।

    "क्या यहां लाइट की प्रॉब्लम रहती हैं?" एक ने पूछा।

    "ऐसा तो नहीं है.... पापा तो बोल रहे थे कि चौबीस घंटे लाइट रहती है.... तुम्हारे पास टॉर्च है?" एक ने पूछा।

    "हां, मेरे बैग में टॉर्च होगा.... मम्मी ने इमरजेंसी यूज़ के लिए डाल दिया था.... पर इस अंधेरे में कैसे ढूंढे?" एक दूसरी लड़की ने कहा।

    ये एक जूनियर लड़कियों का हॉस्टल था, जिसमें क्लास छह से बारह तक की लड़कियां रहती थी।

    छठी कक्षा में नई लड़कियों का एडमिशन हुआ था और वह करीब 2 दिन पहले ही हॉस्टल में रहने आई थी।

    "इस लाइट को भी अभी ही जानी थी।" अंधेरे में ही अपने बैग को टटोलती हुई एक लड़की ने कहा।

    "यार, कहीं ऐसा तो नहीं कि दीदी लोग सच कह रही थी... इस हॉस्टल में रात को भूत आता है।" एक जो डर से कांप रही थी, उस लड़की ने कहा। सुबह ही सीनियर लड़कियों ने उन्हें रात में कहीं भी अकेले जाने आने से मना किया था। पूछने पर गोल-गोल जवाब दिया था कि हॉस्टल में रात को भूत आता है। तुम लोग कहीं उनको देखकर डर ना जाओ, इसलिए अकेले जाने से अच्छा होगा कि कुछ लोग साथ में जाओ। तो कुछ लड़कियों की पहचान सीनियर लड़कियों से हो गई थी, तो उन लोगों ने आधी सच्ची, आधी झूठी कहानी भी सुनाई थी कि इस हॉस्टल की कुछ लड़कियां मर चुकी हैं, इसलिए उनकी आत्मा इस हॉस्टल में भटकती है। तो किसी ने बताया था कि ये हॉस्टल की जमीन पहले कब्रिस्तान थी, इस कारण यहां पर भूत दिखते हैं। जितने मुंह उतने ही किस्से सुनने को मिले थे। कुछ ने तो यहां तक कहा कि उन लोगों ने रात को भूत को घूमते हुए भी देखा है।

    अब रात को लाइट जाने के बाद सबको यह सारे किस्से याद आने लगे थे। वैसे भी लड़कियां थी भी छोटी बच्ची, मुश्किल से ग्यारह या बारह साल की। घर से पहली बार दूर, यहां हॉस्टल में रहने आई थी, डर लगना तो लाजमी था।

    "अरे यार... चुप रहो... खुद तो डरती हो.. दूसरों को भी डराओगी।" इन लड़कियों में कोई एक थोड़ी हिम्मत वाली थी तो उसने कहा। पर डर तो सबको लग रहा था। वह सब बिल्कुल अपने आप में सिकुड़ कर बैठ गई।

    "मैं यहां नहीं रहने वाली... पापा आएंगे तो मैं वापस घर चली जाऊंगी.... मुझे नहीं पढ़ना यहां..." इन लड़कियों में से किसी एक ने कहा।

    "पहले सुबह तो होने दो.... मुझे तो डर लग रहा है कि कहीं रात में ही आकर भूत हमें मार ना डालें।" एक ने कहा।

    "किसी को अगर हनुमान चालीसा याद है तो पढ़ना शुरू करो ना.... मैंने सुना है कि हनुमान चालीसा पढ़ने से भूत भाग जाते हैं।" एक बोली।

    "तुम ही शुरू करो...."

    "मुझे पूरा नहीं आता...."

    "अरे जितना याद है उतना ही पढ़ो ना...." एक ने मशवरा दिया।

    अभी इन लड़कियों की बातें शुरू ही थी कि अचानक से घड़ी में 12:00 का घंटा दिया। 12:00 बजे की घंटी की आवाज सुनकर लड़कियां कुछ सहम सी गई थी।

    तभी गर्ल्स हॉस्टल की सीढ़ियों पर एक साया सफेद रंग का गाउन पहने हुए, हाथ में मोमबत्ती लेकर उतरा। धीमी-धीमी आवाज में गाना गा रहा था। उसके बाल कमर तक लंबे थे और खुले हुए थे।

    "गुमनाम है कोई ...
    अनजान है कोई ...
    किसको खबर कौन है वह..
    अनजान है कोई...."

    पूरा हॉस्टल लग रहा था जैसे गहरी नींद में सोया हुआ है, इसलिए भूत के पैरों की आवाज खटखट सीढ़ियों से उतरती हुई सुनाई पड़ रही थी। यह लड़कियां जो कि नई-नई यहां आई थी और नई जगह पर इन्हें नींद नहीं आ रही थी तो शायद इस कारण से जागी हुई थी।

    और भी कुछ अपने कमरे में जागी होंगी, तो रजाई के अंदर छुपी हुई थी। अब डर से यह सारी लड़कियां लगभग एक ही बेड पर आकर बैठ गई थी।

    जो डबल डेकर बेड पर ऊपर सोई हुई थी, उन लोगों ने अपने आप को कंबल से पूरी तरह से कवर कर लिया था। मानो गहरी नींद में सो रही हो, पर वास्तविकता यह थी कि कंबल के अंदर भी वह इतनी जोर से कांप रही थी कि बेड भी अब हिलने लगा था।

    अचानक से उस भूतनी ने इन लड़कियों के कमरे का रुख किया। अब तो दरवाजे से हल्की-हल्की मोमबत्ती की रोशनी आने लगी।

    "मम्मी.... बचा लो वो भूतनी इधर ही आ रही है।"

    "तुमको कैसे पता कि वह भूतनी, लड़की भूतनी है... कोई भूत नहीं?" एक ने पूछा।

    "अरे चुप करो यार... यहां मौत दरवाजे पर खड़ी है और तुम को भूत नहीं भूतनी की पड़ी है। जाओ जाकर पूछो उससे कि वह भूत है की भूतनी?"

    सभी लड़कियों ने डर से आंखें बंद कर ली थी।

    तभी उन्हीं में से किसी एक की नज़र दरवाजे पर खड़ी भूतनी पर गई। उसने भूतनी के चेहरे को देखा। उसका चेहरा बिल्कुल सफेद था। होठों से लाल खून बह रहा था। दांत बड़े-बड़े बाहर की ओर थे और आंखें, आंखों की जगह सिर्फ काला गड्ढा दिखाई पड़ रहा था, पुतलियों की जगह केवल सफेद वाला हिस्सा। भूतनी का ऐसा रूप देखकर एक लड़की की आवाज तो गले में अटक गई। तभी उसकी सहेली ने उसे आंखें बंद किए हुए ही डर के कारण पकड़ लिया।

    उसे ऐसा लगा कि जैसे भूतनी ने उसे पकड़ लिया हो।

    वह जोर से चिल्ला पड़ी "मम्मी बचाओ।"

    फिर क्या था, सारी लड़कियां एक साथ चिल्ला पड़ी।

    "बचाओ ......"

    पूरे हॉस्टल में रात के अंधेरे में ही चीख-पुकार मच गई थी। इतनी सारी लड़कियों की एक साथ आवाज सुनकर भूतनी भी बेचारी डर से भाग गई। उसे इतना भी ध्यान नहीं रहा कि उसने जो मोमबत्ती अपने हाथों में पकड़ी थी, वह छूट कर वही दरवाजे पर ही नीचे गिर गई है। किसी तरह से अपने गाउन को संभालते हुए दौड़ती हुई वह अपने कमरे की तरफ आई। उसकी रूममेट ने पहले से ही दरवाजा खोल कर रखा था। इस कमरे में एक इमरजेंसी लाइट जल रही थी और 4 लड़कियों का एक झुंड, एक ही बेड पर बैठ कर पढ़ रहा था।

    "इससे पहले कि कोई देख ले जल्दी अंदर आ जाओ और अपना मेकअप भी साफ कर लेना।" जिस लड़की ने दरवाजा खोला था, उसने कहा।

    हां में सर हिलाती हुई भूतनी तेजी से वाशरूम की तरफ भागी। तभी एक लड़की जो कि सामने वाले बेड पर सो रही थी, इतनी तेज चीखों-पुकार की आवाज सुनकर उसकी नींद खुल गई थी, उसने अपना कंबल हटाया।

    "यार.... क्या मुसीबत है? इतनी जोर से इतनी रात को कौन हल्ला कर रहा है?"

    उसकी बात सुनकर बेड पर बैठी हुई लड़कियां खिलखिला कर हंस पड़ी।

    "उन लोगों ने आज भूतनी को देखा है, मेरा कहने का मतलब है कि उन लोगों को आज भूतनी ने डराया है, इसलिए डर से चिल्ला रही हैं।" एक ने कहा।

    "भूतनी?" सो रही लड़की झटके से उठ कर बैठ गई। उसके रिएक्शन को देखकर सब और जोर से हंसने लगी।

    "तू चुपचाप सो जा, वरना वह भूतनी तुझे उठा कर अपने साथ ले जाएगी क्योंकि वह अभी इसी कमरे के वॉशरूम में है।" नीति बोली।

    "क्या भूतनी और वॉशरूम में?" सोई हुई लड़की जिसका नाम रूही था, जोर से बोली।

    "अरे यार.... जोर से आवाज मत करो, पागल हो क्या? कोई भूत नहीं होता।" पूर्वी ने उसका कंबल खींचते हुए कहा।

    "मेरा कंबल छोड़ दे पूर्वी, मुझे डर लग रहा है।" रूही ने कसकर अपना कंबल पकड़ लिया।

    उसकी हालत देखकर सब खिलखिला कर हंस पड़ी। रूही आंखें फाड़े उनकी तरफ देख रही थी।

    "आधी रात को इतनी जोर से हंसो मत यार, वरना किसी को शक हो जाएगा कि यह सब हम ही लोगों का किया धरा है।" मीठी ने अपने होठों पर उंगली रख कर कहा।

    "मानना पड़ेगा, हिम्मत है इस लड़की के अंदर।" मोना बोली।

    "वही तो, काम पूरा करके आई है।" नीति ने मोना को हाई-फाई दिया।

    "इतनी रात को इसने अकेले ही पूरी लड़कियों को डरवा दिया। इतनी चीखों पुकार अब तक मची हुई है कि तुरंत वार्डन भी जाग कर दौड़ती हुई आ ही रही होगी।" नीति हंसते हुए बोली।

    "कहीं इस अंधेरे में वो मोटी वार्डन गिर गई तो फिर क्या होगा?" पूर्वी ने शरारत से पूछा।

    "होना क्या है? अभी तक तो तूफान आया है, कुछ देर में भूकंप भी आ जाएगा।" मीठी हंसते हुए बोली।

    रूही ने गौर से अपनी सहेलियों की तरफ देखा। यह उसकी सहेलियां थी, नीति, पूर्वी, मीठी और मोना, पर अभी भी एक गायब थी।

    "क्या करूं यार? ये क्रीम तो उतर ही नहीं रहा।" तभी वॉशरूम में से जिंदगी की आवाज आई।

    क्रीम के साथ पाउडर को मिलाकर चेहरे को सफेद रंग दिया गया था। लिपस्टिक के साथ क्लोजअप को मिलाकर होठों से गिर रहे लाल खून को बना दिया गया था। दांत नकली लगाए गए थे, जोकि प्लास्टिक के थे, मार्केट में 2 या 3 रुपए में मिलते हैं और आंखों का काला गड्ढा, काजल पोतकर बनाया गया था। अब ठंडी के दिन में क्रीम सूखकर चिपक गई थी, इसलिए उतारने में मुश्किल हो रही थी।

    रूही जो अभी आधी नींद में इन लोगों की बात समझने की कोशिश कर रही थी, जिंदगी की आवाज सुनकर सारी बात समझ गई।

    "जिंदगी.... तू कभी नहीं सुधरेगी...." रूही ने अफसोस से कहा।

    "जो सुधर जाए वह जिंदगी कहां? जिंदगी का असली मजा तो अपनी शर्तों के साथ जीने में है, हर पल जीने में है।" जिंदगी आराम से वॉशरूम से ही बोली।

    "पहले तुम लोग मेरे इस हुलिए को सुधारने का उपाय बताओ।" अपने चेहरे को साफ करने की कोशिश में लगी जिंदगी बोली।

    "गुलाब जल कॉटन के ऊपर रखकर धीरे-धीरे साफ कर, उतर जाएगा।" मीठी बोली।

    "तूने किसका क्रीम यूज़ किया है जिंदगी?" पूर्वी ने अपने खाली पड़े क्रीम के ट्यूब को देखकर पूछा।

    "ऑफकोर्स, तेरा ही था।" मीठी ने कहा, पूर्वी ने घूर कर मीठी की तरफ देखा।

    "ऐसे क्या उसे घूर रही है उसे, उसका बलिदान तेरे से भी बड़ा था, होठों पर लगी हुई लिपस्टिक उसी की थी।" मोना ने हंसते हुए बताया।

    "क्या मेरी लिपस्टिक तुमने तोड़ दी जिंदगी? मैं तुम्हें तोड़ दूंगी।" मीठी चिल्लाई।

    "वैसे ये आईडिया किसका था?" रूही ने पूछा।

    "उसी का था, जो इस खतरनाक मिशन को अंजाम देकर आई है, द ग्रेट जिंदगी राणा।" पूर्वी ने आराम से बताया।

    यह 6 लड़कियां बारहवीं कक्षा(मैथ्स) में पढ़ती थी।

    तभी लाइट आ गई और दरवाजे पर खटखट हुई।

    "वार्डन मैम....."

    पांचों ने एक दूसरे की तरफ देखा और जल्दी से अपनी-अपनी किताब खोल कर पढ़ने बैठ गई।

    "दरवाजा तो खोल दे......" मीठी ने पूर्वी को हिलाया।

    "हां, मैं तो भूल ही गई थी, पर अभी जिंदगी वॉशरूम में है...." पूर्वी को चिंता हुई।

    "उसकी चिंता मत कर, जल्दी से दरवाजा खोल, वरना यह वार्डन पीटते-पीटते ही तोड़ देगी।" मीठी बोली।

    पूर्वी ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला।

    "तुम लोग क्या कर रही थी इतनी देर तक ?" वार्डन ने कमरे में अंदर देखते हुए दरवाजे पर से ही पूछा।

    "मैडम.... पढ़ रहे हैं...." नीति बोली।

    "वह तो मुझे भी दिख रहा है, इतना शोर हुआ है, इतने शोर में तुम लोग कैसे पढ़ पा रही हो? सारी लड़कियां बाहर निकल आई हैं। सब चिल्ला रही हैं, पर तुम लोग आराम से पढ़ रही हो, कहीं यह सब तुम ही लोग का किया धरा तो नहीं?" वार्डन ने जांचती हुई नजरों से पूछा।

    "तुम लोगों को डर नहीं लगा? और जिंदगी कहां है?" वार्डन ने पूछा।

    "मैं यहां हूं मैम और हमें डर नहीं लगता क्योंकि हम जानते हैं कि दुनिया में भूत नाम की कोई चीज होती ही नहीं है।" वाशरूम से निकलकर तौलिए में अपना हाथ पोंछती हुई जिंदगी बोली।

    वार्डन ने घूर कर उसकी तरफ देखा।

    "तुम इतनी देर से वाशरूम में क्या कर रही थी?" वार्डन ने पूछा।

    "मैं सोई हुई थी, इस आवाज को सुनकर नींद खुल गई तो अच्छे से अपने नींद को भगाने का उपाय कर रही थी।" जिंदगी बोली।

    "ठीक है...." वार्डन ने अपना चश्मा ठीक करते हुए जिंदगी की तरफ देखा। " पर तुम्हें कैसे पता कि यह लड़कियां भूत के डर से चिल्ला रही हैं?" वार्डन ने पूछा।

    "क्योंकि यह सब चिल्ला ही रही है, भूत भूत।" जिंदगी ने आराम से जवाब दिया।

    "तुम्हें सच में भूत से डर नहीं लगता जिंदगी?" वार्डन ने हैरानी से जिंदगी से पूछा।

    "बिल्कुल नहीं मैम, क्योंकि मैं जानती हूं कि हमारे भगवान महादेव शिव सीधे शमशान में ही बैठे रहते हैं। तो भला भूत हमारा क्या बिगड़ेगा?" जिंदगी मुस्कुराते हुए बोली।

    "हमें तो बस आप के गुस्से से लगता है ...." मीठी बोली, लेकिन उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वह वार्डन की हालत के मजे ले रही थी।

    "अच्छी तरह से समझती हूं कि यह सब तुम लोगों का ही किया धरा है, बस एक बार कोई सबूत मेरे हाथ में लग जाए, देख लूंगी मैं तुम लोगों को, कल सुबह.." वार्डन गुस्से में बोलती हुई बाहर निकली।

    "पहले उन्हें तो देख लीजिए जो डर से चिल्ला रही हैं..." पूर्वी ने पीछे से कहा।

    "नहीं वो बड़ी है।" जिंदगी ने पूर्वी को आंखें दिखाई।

    पूर्वी हंस पड़ी।

    "वैसे मजा आ गया ना ?" जिंदगी ने पूछा।

    "हां, मजा तो आया, बस यह वार्डन इस मजा का सजा ना बना दे?" रूही ने डरते हुए कहा।

    "अरे! यह क्या मजा को सजा बनाएंगी? यह कह कर गई है ना कि यह हमें सुबह देख लेंगी, उससे पहले ही हम इन्हें खुद दिखा देंगे कि आखिर जिंदगी राणा कौन सी चीज है?" जिंदगी आराम से डबल डेकर बेड पर ऊपर अपने बेड पर चढ़ते हुए बोली।

    "वैसे जिंदगी, सच बताना, तुझे डर नहीं लगा? आधी रात को हमारे रूम से उधर जूनियर डॉरमेट्री तक जाते वक्त..." रूही ने पूछा।

    जिंदगी ने एक पल सोचा और फिर रूही की तरफ देखते हुए कहा, "अगर डर नहीं लगता तो मैं अपनी मोमबत्ती वहीं छोड़कर क्यों भागती?"

    "रूही, देख तेरे पीछे भूत......" मीठी बोली।

    "अरे मम्मी...." रूही ने डर के मारे कंबल सर से ओढ़ लिया।

    उसकी इस हरकत पर जिंदगी मुस्कुरा दी।

    "यही है भूत, इंसान भूत से नहीं, बल्कि अपने डर से डरता है और जो अपने डर को जीत जाता है, ये जिंदगी उसी की हो जाती है...." जिंदगी ने मुस्कुराते हुए कहा।

    क्रमश:

  • 2. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 2

    Words: 1405

    Estimated Reading Time: 9 min

    जिंदगी सिंह राणा, जिंदगी से भरपूर एक 16 साल की बारहवीं कक्षा की छात्रा है। करोड़पति मां-बाप, जितेंद्र सिंह राणा और जानवी सिंह राणा की इकलौती संतान, "जिंदगी।"

    जिंदगी के हर रंगों से भरपूर है जिंदगी।

    बचपन से लेकर आज तक जिंदगी ने जिस चीज पर हाथ रखा, वह चीज उसकी हो गई। मैडम खुद को दिखाती बहुत समझदार और बहादुर है, परंतु समझदारी और बहादुरी इनमें बस इतनी ही है जितनी कि कल रात आपने देखी। दूसरों को डराने गई और खुद भूतनी अपना कैंडल डर के मारे वही छोड़कर भाग आई।

    खूबसूरत तो इतनी है कि किसी की भी नजर एक पल के लिए उनके ऊपर रुक सकती है।

    जिंदगी मजे ले कर जीना चाहती है। पर आइए देखते हैं, इनकी जिंदगी ने इनके बारे में क्या सोच कर रखा है?

    एक कम उम्र की लड़की का प्यार और जिंदगी से खूबसूरत दृष्टिकोण तो आप पढ़ेंगे ही।

    उसके साथ जिंदगी और प्यार जो कि बहुत ही मेच्योर चीजें हैं, इनकी दृष्टिकोण से जिंदगी पर इनका क्या असर पड़ता है, वह भी पढ़ेंगे।

    16 साल की उम्र में दुनिया मुट्ठी में लगती है, 26 तक आते-आते समझ में आता है कि वक्त हाथ से निकल रहा है, और 36 की उम्र में वक्त जिंदगी के साथ 36 का आंकड़ा दिखा देती है।

    पर अब देखना है कि हमारी जिंदगी क्या करती है?

    16 साल में ही जिंदगी वक्त को अपनी मुट्ठी में कर लेती है या फिर होता है कोई धमाका?

    बहुत कुछ सिखाती और समझाती हुई, एक खूबसूरत सी लव स्टोरी।

    यह कहानी आपकी हर एक उम्मीदों पर खरी उतरेगी।

    "समझ में नहीं आता कि हम केमिस्ट्री पढ़ते ही क्यों हैं?" जिंदगी जो कि क्लास जाने के लिए अपना बैग तैयार कर रही थी, केमिस्ट्री की बुक को बैग में रखते हुए बोली।

    "अपनी केमिस्ट्री मैडम तो मैं हूं, ना कि सुष्मिता सेन जितनी स्मार्ट लगती हैं, मैं तो बस उनको देखने के लिए ही केमिस्ट्री की क्लास में बैठती हूं, मुझे तो बस उनके जैसा ही बनना है।" रूही आह भरती हुई बोली।

    "अरी ओ मरजानी, उनका राहुल अपने क्लास का वासु है, दिन में उनके सपने देखना छोड़ दे, यह काम तो तू रोज रात में रजाई में दुबक कर भी कर लेती है।" नीति ने रूही के सर पर एक बुक जमाते हुए कहा, जो कि बैग छोड़कर केमिस्ट्री मैडम की खूबसूरती अपने आंखों से इमेजिन कर रही थी।

    "हां हां पता है, वैसे भी मुझे उनकी उस खूबसूरती में इंटरेस्ट नहीं है, मैं तो बस उनके जैसा बनना चाहती हूं, काश मैं भी उनके जैसी सुंदर होती, तब लड़कों की लाइन मेरे पीछे लगी रहती।" रूही ने अपने पीछे देखते हुए कहा, जैसे कि सच में उसके पीछे लड़के हाथ में फूल लेकर उसको प्रपोज करने के लिए खड़े हो।

    "अरे ओ पागल, वो सुंदर है इसलिए केमिस्ट्री की टीचर नहीं है, बल्कि उन्होंने केमिस्ट्री में एमएससी की है, वह भी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से, गोल्ड मेडल लेकर, इसलिए अपनी क्लास की केमिस्ट्री टीचर है, और अगर तू सच में उनके जैसा बनना चाहती है, तो फिर ये चेहरे की लीपापोती छोड़कर पढ़ ले।" मोना ने हंसते हुए कहा।

    "वैसे जिंदगी तुझे केमिस्ट्री से क्यों प्रॉब्लम हो रही थी?" नीति ने अपने जूते का फीता बांधते हुए जिंदगी से पूछा, जो कि अब अपना बैग बंद कर रही थी।

    "वही तो मेरी समझ में भी नहीं आ रहा था, तू तो अपने क्लास की टॉपर है, और तुझे चेहरे पर लीपापोती करने की भी जरूरत नहीं, ऊपर वाले ने खुद तुझे फुर्सत से बनाया है, ये लीपापोती वाली तो हम जैसा की प्रॉब्लम है हाय रे अपनी रंगत.....!!!" रूही ने अफ़सोस से कहा। उसे अपने सांवली रंगत से बहुत प्रॉब्लम थी, जिसको निखारने के लिए वह कई तरह की कॉस्मेटिक्स यूज करती थी, जबकि उसके नैन-नक्श तराशे हुए थे जिससे कि वह खुद खूबसूरत लगती थी।

    "अरे यार, हसुवे की शादी में खुरपी के गीत गाना बंद करो। प्रॉब्लम पढ़ाई में फार्मूले चबाने को लेकर हो रही है, तो मैडम को चेहरे पर कॉस्मेटिक लपेटने की प्रॉब्लम याद आ रही है। मेरी प्रॉब्लम यह है कि जब हमें केमिस्ट्री के नाम पर हिस्ट्री पढ़नी है, क्या जरूरत थी साइंस क्लास में एडमिशन लेने की, जब यही कार्बन के फार्मूले का इतिहास और भूगोल पढ़ना हैं। किस सन में बना? किसने बनाया? और इसकी संरचना क्या है? इसके भौतिक और रासायनिक गुण क्या है? यह सब तो इतिहास और भूगोल में पढ़ते हैं ना हम। इस देश की खोज किसने की? किस सन में की? उस देश की भौगोलिक संरचना कैसी है? नाक को सीधा पकड़ो या घुमा कर, बात तो एक ही आनी है।" जिंदगी खड़ी होती हुई बोली।

    "जब तुझे ऐसा लगता है तो हम लोगों क्या लगना चाहिए जिंदगी?" नीति ने पूछा।

    "वही लगना चाहिए जो तुझे आज तक नहीं लगा।" जिंदगी की जगह पूर्वी ने जवाब दिया और एक हाथ उसके सर पर धीरे से दे भी दिया।

    "अच्छी तरह से जानते हैं हम, तूने साइंस क्लास में एडमिशन इसलिए लिया है क्योंकि जिंदगी ने लिया।" मोना खिलखिला कर हंसते हुए बोली।

    "वह तो है, जहां जिंदगी, वही मैं।" नीति ने खुले दिल से स्वीकार करते हुए कहा।

    "कभी अपनी जिंदगी भी जी लिया कर, या फिर जिंदगी भर मेरी ही जिंदगी पर बोझ बने रहने का इरादा है?" जिंदगी ने पूछा।

    "वह तो तू मेरी जिंदगी के बोझ उठा कर चलती है जिंदगी, वरना अपनी जिंदगी तो अब तक उस जिंदादिली के नायक, महान ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार के नाम हो गई रहती।" नीति आराम से बेड पर फैलती हुई बोली।

    "दिलीप कुमार परलोक सिधार गए....." मोना ने हंसते हुए कहा।

    "वही तो, मैं भी उनके पीछे जाने की तैयारी कर रही थी, बस जिंदगी ने रोक लिया कि अगर तू उधर चली गई तो बेचारे वरुण धवन का क्या होगा?" नीति हंसते हुए बोली।

    "कुछ नहीं हो सकता तेरा लड़की, कभी किसी एक और के बारे में भी सोच लिया कर, जो कि तेरे घर पर बेलन लिए तेरा इंतजार कर रही है, तेरी मम्मी, कम से कम उन्हीं के डर से पढ़ लिया कर।" जिंदगी ने गहरी सांस छोड़ी और जी भरकर लताड़ा भी। नीति की मम्मी पढ़ाई को लेकर बहुत स्ट्रिक थी, पर नीति उतनी ही लापरवाह।

    "जिंदगी तेरा असाइनमेंट कंप्लीट है, फिजिक्स का?" पूर्वी ने पूछा।

    "हां..." जिंदगी ने जवाब दिया।

    "मुझे अपनी कॉपी दे देना जरा, फर्स्ट पीरियड में लाइब्रेरी में बैठकर ही उतार लूंगी। सेकंड पीरियड फिजिक्स का है, बड़ा गुस्सा करेंगी।" पूर्वी ने जिंदगी के हाथों से फिजिक्स की कॉपी लेने के लिए बढ़ाते हुए कहा।

    "लड़की, तू कल सारी रात बैठकर फिजिक्स पढ़ रही थी ना? फिर भी तेरा असाइनमेंट कंप्लीट नहीं हुआ?" जिंदगी ने पूछा।

    "पढ़ तो रही थी, लेकिन दिमाग में कुछ जाना भी चाहिए ना? दिमाग तो तेरे शरारती भूतिया प्लान में था....." पूर्वी हंसते हुए बोली।

    "वैसे जिंदगी तूने कब कंप्लीट किया?" पूर्वी ने पूछा।

    "मैंने सब कुछ क्लास में कंप्लीट कर लिया था...." जिंदगी ने कॉपी बढ़ाते हुए कहा।

    "कुछ भी कहो यार, इस लड़की का दिमाग जितना शरारती में चलता है, उतना ही पढ़ाई में भी चलता है। ऑलराउंडर है यह लड़की।" रूही ने कहा।

    "हां, बस एक काम में नहीं चलता, तेरी तरह रजाई ओढ़ के सोने में। और साथ में चेहरे की लीपापोती करने में।" मीठी ने रूही के मजे लिए।

    "एक तो मेरे ₹300 के लक्मे की क्रीम का तुम लोगों ने कल सत्यानाश कर दिया, ऊपर से फेस पाउडर भी गायब, और ऊपर से मेरा ही मजाक बना रही हो...." रूही गुस्से में बोली।

    "अरे ले लेना यार, एक क्रीम ही तो था।" मीठी ने रूही को मनाते हुए कहा। पर इन सब बातों से अलग जिंदगी चुपचाप अपना बैग संभाले स्कूल जाने के लिए तैयार थी। लड़कियों ने एक दूसरे की तरफ देखा।

    "इसे क्या हुआ?" जवाब में पूर्वी ने कंधे उचका दिए।

    "बड़ी उदास है जिंदगी आजकल....." मीठी ने जिंदगी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

    "उदासी का कारण भी तो है, घर जाना है कल। हम सबको।" मोना बोली।

    "अरे यह उदासी का कारण है, ये तो खुशी का कारण है। तू भी ना....." रूही ने कहा।

    "हां, तुम्हारे लिए खुशी का कारण होगा, पर मेरे लिए नहीं..... कम से कम यहां चैन से जी तो लेती हूं मैं अपनी जिंदगी....." जिंदगी उदास उदास बोली।

    क्रमश:

    क्या है जिंदगी की उदासी का राज?

    मिलते हैं अगले भाग में...

  • 3. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 3

    Words: 1297

    Estimated Reading Time: 8 min

    "बड़ी उदास है जिंदगी आजकल ......" मीठी ने जिंदगी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
    "उदासी का कारण भी तो है ....घर जाना है कल। हम सबको।" मोना बोली।
    "अरे, यह उदासी का कारण है..... ये तो खुशी का कारण है। तू भी ना....." रूही ने कहा।
    "हां.... तुम्हारे लिए खुशी का कारण होगा.... पर मेरे लिए नहीं..... कम से कम यहां चैन से जी तो लेती हूं मैं अपनी जिंदगी....." जिंदगी उदास-उदास बोली।
    "पर क्यों जिंदगी???" पूर्वी ने पूछा।
    "वहां पर जो ड्रैकुला बैठा रहता है...." नीति ने जिंदगी की बात पूरी की।
    "पर तू उस ड्रैकुला से इतना डरती क्यों है?? मुझे तो बहुत हैंडसम लगता है .....सच कहती हूं.... अगर इतना हैंडसम लड़का अगर मेरे नसीब में होता.... तो अब तक मैं उससे प्यार कर लेती।" मीठी ने आह भरते हुए कहा।
    "अब यही बाकी रह गया था....." जिंदगी अपना सर पकड़ते हुए बोली।
    "डूबने को भी गई तो... चुल्लू भर पानी भी ना ढूंढा।" मीठी बात पर नीति हंस पड़ी।
    "अभी उस ड्रैकुला के लक्षण नहीं जानती ना ....इसलिए उससे प्यार के सपने देख रही हो..." जिंदगी बोली।

    ड्रैकुला का नाम सुनते ही जिंदगी परेशान हो गई थी। वह उससे नफरत करती थी, सख़्त नफ़रत। ऐसा नहीं था कि उसकी नफरत बेवजह थी। वजह थी और वह भी बहुत ठोस। जिंदगी स्वभाव से नर्म दिल और इस्सास (सेन्सिटिव) लड़की थी। किसी से भी नफ़रत करने का सोच नहीं सकती थी। मगर साहिर सिंह राणा से नफ़रत करने पर ......उसे खुद साहिर ने ही मजबूर किया था ...बेवजह के रोक लगा कर। जो जिंदगी की नजर में बेवजह होती थी.... पर होती बहुत जरूरी थी।
    "पर यह साहब हैं कौन तेरे?? और तेरे ही घर क्यों रहते हैं??" पूर्वी ने पूछा।
    "वह मेरे कोई नहीं है.... और मेरे घर पर भी नहीं रहते.... वह राजस्थान के प्रतापगढ़ रियासत के राजकुमार हैं और हमारा भी घर.... उन्हीं की रियासत में आता है..... बिजनेस को लेकर पापा की कुछ प्रॉब्लम है। साहिर सिंह राणा.... उसी के सिलसिले में ....जब भी दिल्ली आते हैं तो हमारे घर रहते हैं... वैसे अभी तो एमबीए फाइनल इस साल कर चुके हैं..... कहने को बिजनेस सीख रहे है.... पर बिजनेस में महागुरु है। पर कभी कभी मुझे ऐसा लगता है कि बिजनेस के साथ-साथ... मेरे घर के आधे से अधिक फैसले वही करते हैं.... और खासकर मेरे लिए .....मैं दिल्ली के डीपीएस से ही आगे की पढ़ाई करना चाहती थी। पर उनकी वजह से मुझे यहां से करना पड़ा।" जिंदगी ने मुंह बनाते हुए कहा।
    "और तुम चली आई??" रूही को खासी हैरानी थी..... क्योंकि बीते हुए 2 सालों में जितना.... उन लोगों ने जिंदगी को जाना था.... उसके अनुसार जिंदगी.... अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने वाली लड़की थी।
    "मेरे पास इसके अलावा कोई ऑप्शन नहीं था...." जिंदगी ने मायूसी से कहा।
    "आखिर तुम खामोशी से यह सब कैसे बर्दाश्त कर लेती हो? वह तुम्हारा घर है। तुम्हारे मम्मी, पापा हैं। फिर अन्दर ही अन्दर घुट कर जीने की क्या वजह?" मोना ने पूछा।
    "किसने कहा मैं घुट घुट कर जीती हूं .....वह अपनी जिंदगी जीते हैं.... मैं अपनी जिंदगी .... बस उनके आने से मुझे थोड़ा डर लगता है...." जिंदगी ने बताया।
    "पता नहीं क्यों, पर मुझे ऐसा लगता है कि साहिर भाई तुझसे प्यार करते हैं।" नीति ने कहा।
    "लो, जो बचा था.... वह भी पूरा कर लो...." जिंदगी सर पर हाथ मारते हुए बोली। उसकी इस बात पर बाकी लड़कियां हंस पड़ी।
    "नहीं... अपने नोबल्स में.... फिल्म्स में ....टीवी सीरियल्स में ऐसा ही होता है ना..... हीरो हीरोइन पर ढेर सारे बंदिशे लगाता है.... लेकिन वास्तविकता में वह हीरोइन से बहुत प्यार करता है।" रूही ने कहा।
    "बात में प्वाइंट हैं.... मैंने भी इस चीज को नोटिस किया है।" नीति भी रूही की हां में हां मिलाती हुई बोली। नीति की बात सुनकर जिंदगी ने घूर कर उसे देखा।
    "ऐसे मुझे क्या देख रही है?? इस तरह से तो वह ड्रैकुला तुझे देखते हैं ... अगर तूने इस तरह से मुझे देखना नहीं छोड़ा... तो उनका तो पता नहीं.... पर मैं जरूर तेरे इश्क में गिरफ्तार हो जाऊंगी..." नीति हंसते हुए बोली।
    "वही तो.... तू मान या ना मान..... मिस्टर साहिर सिंह राणा तेरे इश्क में गिरफ्तार हैं। और अगर तू उनके इश्क में गिरफ्तार नहीं है.... तो तुझ जैसा बोरिंग इस दुनिया में नहीं। अरे!! ये भी कोई जिंदगी है.... खाओ, पियो और सो जाओ। जिंदगी का असली मजा तो अपने हीरो के साथ डिनर डेट पर है।" नीति हंसते हुए बोली।
    "जिंदगी का असली मजा तो अपने हीरो के साथ किसी रोमांटिक प्लेस पर घूमने में है....." मीठी अपनी बाहों को फैलाकर एक रोमांटिक प्लेस की इमेजिनेशन करते हुए बोली। उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वह अपने उस हीरो के साथ..... उस प्लेस पर सपनों में ही पहुंच चुकी है... और हीरो भी ऐसा जिसे किसी और ने तो क्या ?? खुद उसने भी नहीं देखा था.... पर अपनी कल्पना की दुनिया में वह अपने हीरो के साथ घूम रही थी.. उसके फेशियल एक्सप्रेशन को देखकर जिंदगी को हंसी आ गई।
    "जिंदगी का असली मजा तो अपने हीरो के सपने देखने में है....." रूही आराम से तकिया पकड़ कर बंद आंखों के साथ सपने में खोती हुई बोली।
    "जिंदगी का असली मजा तो अपने हीरो के हाथों में हाथ डाल कर ....धीमी से रोमांटिक सॉन्ग पर डांस करने में है।" मोना ने अपना हाथ बढ़ा कर जिंदगी को डांस का ऑफर दिया। जिंदगी ने एक हाथ उसके हाथ पर मार कर उसका ऑफर ठुकरा दिया। मोना मुंह बनाती हुई पीछे हट गई ।
    "वही तो.... तुझ जैसी बोरिंग जिंदगी.... जिंदगी का असली मजा क्या जाने?? सिर्फ नाम जिंदगी होने से ....कोई जिंदगी नहीं हो जाता..…. जिंदगी का असली मजा तो लव, मोहब्बत, प्रीत, प्यार और इश्क के साहिर ने गिरफ्तार होने में ही है। जब तक जिंदगी में रोमांस का तड़का ना हो?? भला वह भी कोई जिंदगी .....जिंदगी है।" जिंदगी के कंधे पर हाथ रखते हुए पूर्वी ने कहा।
    "अरे ओ मैडम लोग... ....टीवी सीरियल और नोवेल्स की दुनिया से बाहर आओ ...... अरे खुली आंखों से सपने देखना बंद करो कि कोई सपनों का राजकुमार सफेद घोड़े में सवार होकर आएगा और तुम जैसी बेमिसाल खूबसूरत लड़कियों को अपने साथ बिठाकर अपने स्वप्नलोक में लेकर जाएगा..... यह जिंदगी है ....यहां पर प्यार होने पर .... बेमौसम के फूल नहीं खिलते.... और ना ही वह ....तुम्हारी केमिस्ट्री मैडम की तरह.... मैं हूं ना.... फिल्म के वायलिन बजना शुरू हो जाते हैं। यह रूही, मीठी और नीति तो पहले से ही आधे दिमाग वाली है... पर तुम पूर्वी ....जितना प्रेम के पर्यायवाची याद कर रखी हो.... उतना अगर हिंदी क्लास में और शब्दों के पर्यायवाची याद करके रखती ....तो सर तुम को बाहर नहीं निकालते और मिस मोना.... डांस आप का शौक है.... अपने आपको इसमें मजबूत करो.... ताकि सच में कोई आगे बढ़कर तुम्हें अपने साथ डांस करने का ऑफर दे..... पागल लड़कियां खुद भी पागल है और मुझे भी पागल बना रखा है..... अब चलो भी ....प्रेयर का टाइम हो रहा है।" जिंदगी बातचीत का टॉपिक क्लोज करते हुए बोली।
    "मिस जिंदगी सिंह राणा ....आपसे मिलने मिस्टर साहिर सिंह राणा आए हैं। आप मीटिंग रूम में जल्दी से आइए।" तभी रूम में लगे हुए स्पीकर पर आवाज आई।
    "लो आ गया.... जिंदगी के सपनों का राजकुमार.... जिंदगी को अपने इश्क के साहिर में गिरफ्तार करने वाला.... साहिर सिंह राणा।" नीति ने फर्जी माइक बना कर अनाउंस किया।

    जिंदगी ने झूठी नाराजगी के साथ नीति की तरफ देखा। लेकिन उसके दिल में एक मीठी सी गुदगुदी हुई थी। सच तो यह था कि अभी जिंदगी के दिल ने भी उसे याद किया था.... और तब तक वह जिंदगी से मिलने आ चुका था।
    "क्या सच में यही प्यार है?? एक दिल से दूसरे दिल का स्ट्रॉन्ग कनेक्शन...." जिंदगी आंखें बंद करते हुए सोचा।

    क्रमश:

  • 4. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 4

    Words: 2152

    Estimated Reading Time: 13 min

    साहिर सिंह राणा ...उम्र 24 साल
    कसरती गठीला बदन
    हाइट 6 फुट 2 इंच

    प्रतापगढ़ रियासत इकलौते राजकुमार.... या राणा। 9 वर्ष की उम्र में ही पूरे परिवार को एक हादसे में खो चुके हैं ....दुनिया इसे हादसा मानती है ...पर उनका दिल इस चीज को मानने को तैयार नहीं होता। वह इसे एक साजिश ही समझते हैं। परिवार के नाम पर सिर्फ एक वफादार प्रेम सिंह .. जो कि इनके साथ ही रहते हैं.. इनकी परछाई बनकर और दूसरे जितेंद्र सिंह राणा।
    जो इनके पिता के काफी वफादार और नजदीक छोटे भाई जैसे थे। (जिंदगी के पापा)
    जरूरी नहीं है कि सोने का चम्मच मुंह में पैदा लेने वालों की जिंदगी .....सुखों का ही सेज है । साहिर सिंह राणा इसके उदाहरण है । मात्र 9 साल की उम्र में ही पूरे परिवार का साया सर पर से हट जाने के कारण.... जिंदगी ने इन्हें बहुत अच्छे और बुरे रंग दिखाएं। इन्हें इंसान की पहचान करना सिखाया। समय की मार ने इन्हें समय से पहले ही समझदार बना दिया। मात्र 16 साल की उम्र में ...इन्होंने अपना वजूद बनाने के लिए.... इस बिजनेस की दुनिया में कदम रखा। अपनी मेहनत के बल पर... इन्होंने मिट्टी को छूकर सोना बना दिया.... जिस कारण आज राणा एंपायर दुनिया के टॉप टेन कंस्ट्रक्शन बिजनेस में आता है।
    जहां इनकी इस उम्र में अन्य राजवाड़ा और बिजनेसमैन के बच्चे ....लेट नाइट पार्टी करते हैं... वहां यह लेट नाईट तक अपने काम में डूबे रहते हैं।

    जिंदगी जब साहिर से मिलने के लिए मीटिंग रूम में आई तो वहां साहिर, अपने फोन पर शायद बिजनेस से रिलेटेड कोई न्यूज़ देख रहा था।
    "आ जाओ जिंदगी ... तुम्हारा ही इंतजार कर रहा हूं..." जिंदगी की आहट पाते ही साहिर ने अपना फोन स्विच ऑफ करके पॉकेट में डाल दिया।
    "हे भगवान यह आदमी है या जिन्न!!! इसकी आंखें पीछे भी है....पहले तो सिर्फ... अलादीन के चिराग के जिन्न की तरह कहीं भी प्रकट हो जाते थे और अब तो पीछे भी देखने लगे हैं।" साहिर की इस तरह की काबिलियत जिंदगी को हमेशा ही सोच में डाल देती थी। जिंदगी धीरे धीरे चलती हुई साहिर के सामने जाकर खड़ी हुई।
    "कैसी हो जिंदगी??" जिंदगी को देखते ही साहिर सोफे से उठ कर खड़ा हो गया।
    दोनों की आंखें एक पल के लिए मिली। साहिर के चेहरे पर नजर डालने की हिम्मत जिंदगी के अंदर नहीं थी। जिंदगी ने तुरंत अपना चेहरा झुका लिया। उसे साहिर की धीर गंभीर आवाज से ही डर लगता था। आज तो वह अपनी पूरी वजाहत के साथ मौजूद था।

    जिंदगी को इस तरह से आंखें झुकाते हुए देखकर साहिर के होठों पर मुस्कुराहट आ गई।
    "है!! क्या हुआ??" अगले ही पल साहिर ने पूछा।
    "मैं ठीक हूं।" जिंदगी ने छोटा सा जवाब दिया।
    "और कोई प्रॉब्लम ??" साहिर ने पूछा। जिंदगी ने ना में सिर हिलाया।
    "पर मैंने तो सुना है कि तुम्हें कुछ ऑनलाइन क्लासेस करने में प्रॉब्लम आ रही है ??... कुछ लेटेस्ट सर्चिंग वगैरह में?? क्या स्कूल का कंप्यूटर यूज करने में कोई प्रॉब्लम होती है??" साहिर ने पूछा।
    "हां.... वह..." जिंदगी को कुछ कहते नहीं बन पा रहा था। अब जिंदगी कैसे बताती की अधिकतर पढ़ाई वह रात को करती है ....और रात में अकेले कंप्यूटर रूम में तो जाकर बैठ नहीं सकती। बिचारी को डर ही इतना लगता था.... इसीलिए तो पर्सनल रूम होने के बाद भी.... हमेशा जिंदगी इन लड़कियों के रूम में ही ....अपने पूरे समान के साथ मौजूद पाई जाती थी। और वैसे भी घर में तो अकेलापन काटकर खाने को दौड़ता ही था.... यहां पर जब इतनी अच्छी सहेलियां हो .....तो कोई अकेले भला क्यों रहना चाहेगा?? वह तो भगवान का लाख-लाख शुक्र था कि साहिर ने अब तक ... इस चीज की जानकारी होने के बावजूद भी.... इस पर कोई ऐतराज नहीं जताया था..... वरना जिंदगी का यहां रहना भी मुश्किल हो जाता।

    जिंदगी को अपने ही सोच में डूबा हुआ देखकर साहिर ने अपने हाथों में लिया हुआ एक डब्बा जिंदगी की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "यह लो ....मैं तुम्हारे लिए लेकर आया था।"
    जिंदगी ने अपनी बड़ी-बड़ी पलके उठा कर साहिर के हाथों की तरफ देखा । वहां ब्रांडेड कंपनी का 4G मोबाइल फोन था। जिंदगी के आंखों में हैरत भर गई। उसने चमकदार आंखों के साथ साहिल की तरफ देखा। वहां सुकून भरी मुस्कुराहट फैली हुई थी। जिंदगी को याद था कि लास्ट टाइम पिछले साल जब उसने अपने पापा से अपने फोन की डिमांड की थी..... तो साहिर ने ही मना किया था कि जिंदगी अभी काफी छोटी है। हॉस्टल में सब चीजों की सुविधा है ....तो पर्सनल फोन का क्या करेंगी?? और आज खुद लेकर आया....
    "ले लो ....तुम्हारे लिए ही लाया हूं ....तुम्हें अब इसकी जरूरत है.... पता है मुझे कि तुम अपने एक कमरे में भी बहुत कम रहती हो .....तुम्हें अपनी सहेलियों के साथ रहना अच्छा लगता है....इसलिए वहां का कंप्यूटर भी यूज़ नहीं करती । यह अब हमेशा तुम्हारे हाथों में रहेगा.... तो तुम जब चाहो.... इसका यूज करके पढ़ सकती हो।" साहिर जैसे बिना कहे ही उसकी उलझन समझ गया था।
    जिंदगी ने हाथ बढ़ाकर साहिर के हाथों से डिब्बा ले लिया।
    "थैंक यू.... वह मुझे अकेले रहना अच्छा नहीं लगता । मैं उनके साथ रहती जरूर हूं... लेकिन पढ़ती भी हूं।" जिंदगी तेजी में बोली।
    "मुझे पता है ....तुम्हारी सहेलियां काफी अच्छी है.... तुम्हारे ही जैसी है.... तुम्हें इस तरह से सफाई देने की कोई जरूरत नहीं।" उसकी इस हरकत पर साहिर के होठ हल्के से मुस्कुराए।
    "तुम्हारे ही जैसी हैं....." इस बात को लेकर जिंदगी कुछ उलझ गई.... उसे समझ नहीं आया कि साहिर ने सच में उसकी सहेलियों की तारीफ की है या फिर कोई ताना मारा है क्योंकि जिंदगी जितना उसको जानती थी.... उसके मुताबिक साहिर सिंह राणा.... किसी की तारीफ कर दे .....यह तो पश्चिम से सूर्य उगने वाली बात हो जाती है।
    "आप खड़े क्यों हो ??" जिंदगी धीरे से बोली ।उसके सामने खड़े होने में भी जिंदगी के पैर कांपने लगते थे। पता नहीं कैसे उसकी सहेलियां कहती थी कि साहिर सिंह राणा.... जिंदगी के मुहब्बत के साहिर(प्यार का जादू) में गिरफ्तार है।
    "भाड़ में जाओ तुम सब....और तुम्हारे प्यार की फिलासिफी।" जिंदगी में मन ही मन अपनी सहेलियों को जी भर के लानत भेजी क्योंकि उन्होंने जिंदगी के दिमाग में बिठाया था कि यह सब प्यार के लक्षण है..... जबकि जिंदगी को ऐसा लग रहा था कि अगर वह थोड़ी देर और साहिर के सामने... अपने पैरों पर खड़ी रही तो यही लड़खड़ा कर गिर जाएगी.... जबकि वह बहुत आत्मविश्वास से भरी हुई लड़की थी।
    "आओ.... तुम भी बैठो ...." साहिर ने थ्री सीटर सोफे पर उसे अपने साथ बैठने का इशारा किया। छोटे छोटे कदम उठाती हुई जिंदगी चुपचाप सोफे के दूसरे साइड जाकर बैठ गई ।
    " यह यहां क्यों आए हैं ?? क्या सिर्फ एक फोन देने के लिए.... वह तो किसी के हाथों से भिजवा सकते थे।" मन ही मन सोचते हुए जिंदगी अपनी उंगलियां चटका रही थी। साहिल की मौजूदगी में वह हमेशा ही उलझी हुई महसूस करती थी... पता नहीं क्यों ?? साहिर की दिलफरेब पर्सनैलिटी के कारण.... जो कि किसी भी लड़की का होश उड़ाने के लिए काफी थे.... या फिर अपने दिमाग में पल रहे उल्टे सीधे ख्यालातों के कारण.... जो कि साहिर को देखते ही या तो बहुत तेजी से दिमाग में चलने लगते थे या फिर दिमाग पूरी तरह से ब्लॉक हो जाता था।

    "मैं अपनी बिजनेस मीटिंग के सिलसिले में शहर आया आया था.... यहां पर हमारी कंपनी एक शॉपिंग मॉल बना रही हैं.... उसे के जमीन की डील फाइनल करनी थी... तो जाते वक्त सोचा कि तुम से भी मिलता चलूं और तुम्हारा भी हाल चाल लेते हुए चलूं।" साहिर ने उसका मन पढ़ लिया। जिंदगी में अपनी बड़ी बड़ी आंखों के साथ हैरत में साहिल की तरफ देखा।
    "हे भगवान!!! यह तो मन भी पढ़ना जानते हैं...।" जिंदगी ने सोचा। "नहीं नहीं जिंदगी.... इनके बारे में कुछ नहीं सोचना है ...वरना इनको पता चल जाएगा.... किंतु इनके बारे में क्या क्या सोचती है??" जिंदगी ने एक गहरी सांस लेकर खुद को शांत किया। जिंदगी को इस तरह अपनी ओर देखते हुए पाकर... साहिर भी कुछ गड़बड़ा गया। अपने आप को संभालने के लिए उसने कुछ फॉर्मल बातें शुरू कि जैसे स्कूल कैसी जा रहा है??? कोई दिक्कत नहीं है ना??.
    जिंदगी धीरे-धीरे सारे सवालों का जवाब देते जा रही थी ।
    " जिंदगी पढ़ाई कैसी चल रही है?? कुछ दिनों में तुम्हारे पेपर शुरू हो जाएंगे... और फिर तुम कॉलेज में चली जाओगी... एग्जामिनेशन की तैयारी पूरी है ना??." साहिर ने जिंदगी के चेहरे पर नजर जमाते हुए पूछा।
    "हां, मेरी तैयारी पूरी है ....मैं रात को पढ़ती हूं।" जिंदगी बोली। अब तक जिंदगी बातें करते हुए साहिर के साथ कुछ सामान्य हो चुकी थी ।
    "रात को लाइट ना रहने के कारण ....तो पढ़ने में दिक्कत होती होगी ना....." साहिल ने कहा।
    " नहीं नहीं... लाइट तो प्रॉपर रहती है।" जिंदगी में बताया।
    " अच्छा!! तो फिर कल पावर हाउस का स्विच कैसे उड़ गया था??" साहिर ने पूछा।
    "उड़ा नहीं था.... उड़ाया गया था...."
    " अच्छा!! किसने उड़ाया??" साहिर ने दिलचस्पी दिखाई।
    " मीठी ने उड़ाया था.... जानते हैं कल रात को...." जिंदगी तेजी से बोलती हुई चुप हो गई। उसने अपनी जीभ को दांतों तले दबा लिया और आने वाले तूफान के आसार को देखकर.... अपनी आंखें कसकर बंद कर ली। "जिंदगी ....तू भी पूरी पागल है ....इन्होंने बातों में ही उलझा कर ....तुझसे सारी इनफार्मेशन निकालवा ली.... अब क्या होगा??"
    "क्या हुआ था कल रात को जिंदगी ??" साहिर ने अब कड़े शब्दों में पूछा। हालांकि इस तरह से जिंदगी की घबराने पर..... उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई थी ....लेकिन उसने उसे वहीं दबाते हुए.... कड़े लहजे में जिंदगी से पूछा। जो कि सर झुकाए हुए साहिर के अगले रिएक्शन का इंतजार कर रही थी।
    " पढ़ाई में मन लगाओ जिंदगी.... इस तरह की शैतानियां के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है.... 3-4 महीने के बाद कॉलेज में एडमिशन लेना है.... वहां पर तो तुम्हें और भी खुला वातावरण मिलेगा.... तब क्या करोगी?? मैंने तुम्हें यहां पर इसलिए भेजा था .. ताकि तुम अपना बेस मजबूत कर सको... लेकिन तुम तो..." साहिर ने जानबूझकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी उसके शब्दों में एक दुख और अफसोस था।
    "मैंने तो बस एक छोटा सा मजाक किया था..." जिंदगी ने धीरे से कहा।
    "मजाक !! मजाक होता है .... जिंदगी..... मजाक में भी कभी भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए.... ऐसा मजाक कभी नहीं करना चाहिए.... जिससे किसी की जिंदगी ही मजाक बनकर रह जाए ......तुमने एक बार भी नहीं सोचा कि तुम जिन लड़कियों को डराने जा रही हो..... वह छोटी बच्चियां है। जाकर देखो.... उनकी हालत ....कुछ तो पूरी रात सोई नहीं और अभी भी डर से कांप रही है और कुछ तो यहां अब रहने को ही तैयार नहीं।.. उम्मीद करता हूं कि अगला मौका नहीं मिलेगा... इस तरह से तुम्हें कुछ समझाने का।" साहिर ने कड़े शब्दों में कहा।

    साहिर की बात सुनकर जिंदगी का झुका हुआ सर और झुक गया । उसकी आंखों से.... अब किसी भी समय आंसू निकल सकते थे।
    " जिंदगी ....इधर मेरी तरफ देखो...." जिंदगी को इस तरह सर झुकाए हुए देखकर साहिर को भी अच्छा नहीं लग रहा था।
    "जिंदगी.... जिंदादिली का ही दूसरा नाम है जिंदगी। मैं तुम्हें हमेशा हंसते मुस्कुराते देखना चाहता हूं । नहीं चाहता कि तुम्हारे ऊपर कोई भी प्रॉब्लम आए....और ना ही तुम किसी के लिए प्रॉब्लम बनो। खुद भी खुशी-खुशी जियो और दूसरों को भी चैन और सुकून से जीने दो....." साहिर अपनी जगह से उठ कर खड़ा होता हुआ बोला।
    " मैंने वार्डन से बात कर ली है..... और प्रिंसिपल से भी तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा.... लेकिन अगली बार जब ऐसा प्लान बनाना.... तो थोड़ा दिमाग यूज कर लेना... पावर हाउस का स्विच उड़ाने से पहले ....कुछ ऐसे इंतजाम कर लेना कि वहां के सीसीटीवी में तुम्हारी शक्ल ना आए। वरना लड़कियां तो केवल डरी ही थी... वह भी उस लीपे पुते हुए चेहरे को देखकर..... इस गोल मासूम शक्ल को देखकर तो सीसीटीवी फुटेज चेक करने वाले को भी हार्टअटैक आना पक्का तय था..... मिस भूतनी ।" साहिर अपनी मुस्कुराहट दबाता हुआ बोलकर निकलने लगा।

    जिंदगी चुपचाप उसकी बात सुन रही थी ....पर जैसे ही उसकी बात का मतलब समझ में आया.... तो बिल्कुल हैरान रह गई । उसने जाते हुए साहिर की पीठ की तरफ देखा। वह दरवाजे पर खड़ा होकर पीछे मुड़कर मुस्कुरा रहा था।
    "ऑल द बेस्ट फॉर योर एग्जाम.... नेक्स्ट मिशन मिस भूतनी...." साहिर ने कहा और अपने सनग्लास पहनकर बाहर निकल गया।
    "नो….. नहीं" अपने नए नाम को सुनकर जिंदगी ने गुस्से से पैर पटका और अगले ही पल अपना पैर पकड़ लिया.... क्योंकि ठंड के दिन में छोटी सी भी चोट बड़े जोर से लगती है और उसका पैर तो बड़ी जोर से सामने वाले सोफे से लगा था।
    "आउच..... डायनासोर....नहीं... प्रेत है आप।" जिंदगी पीछे से बोली लेकिन अफसोस.... उसकी बात को सुनने के लिए साहिर वहां पर मौजूद नहीं था।

    क्रमशः

  • 5. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 5

    Words: 1255

    Estimated Reading Time: 8 min

    "पता नहीं मम्मी लोग इतना शॉपिंग कैसे कर लेती हैं??" जिंदगी ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।
    "वही तो यार... मेरा तो घूमते-घूमते ही सर घूमने लगा है।" नीति अपने सर को थाम कर बोली।
    "हम लोग तो इतनी जल्दी सारा सामान खरीद कर चले भी आए... अगर मम्मी साथ में रहती तो.... दोपहर से रात हो जानी थी.... और फिर भी काफी कुछ बचा ही रह जाता..." रूही ने कहा।
    "वह तो अभी भी हो गई है..... यहां से बाहर निकलो... तब पता चलेगा" जिंदगी ने कहा और कैश काउंटर पर बिल बनवाने चली गई।

    घर जाने से पहले ये सारी लड़कियां आज मार्केट में घूम रही थीं। हॉस्टल के पास स्थानीय मार्केट था.... जबकि इन लोगों की पसंद ब्रांडेड थी.... इसी सिलसिले में इन लोगों का.... कुछ नया यूनिक खरीदने के चक्कर में... शहर के बाजार में आई थीं.... काफी देर भी हो गई थी और इनके हाथों में ढेर सारे शॉपिंग बैग्स भी थे...
    "मुझे भूख लग रही है...." मॉल से बाहर निकलते ही मीठी ने कहा।
    "सिर्फ तुम्हें ही नहीं.... सब को भूख लग रही है।" नीति ने कहा।
    "टाइम कितना हो रहा है??" मोना ने आसमान देखते हुए पूछा। आसमान अब सितारों की चादर ओढ़ने की तैयारी में था।
    "शाम के 7:00 बज रहे हैं...." नीति ने मोबाइल में टाइम देखते हुए बताया।
    "माय गॉड यानी कि हम पिछले 7 घंटे से शॉपिंग कर रहे थे??" मोना ने कहा।
    "वही तो ....हम दोपहर में मॉल के अंदर गए थे और निकलते-निकलते रात हो गई.... आज तो हम लोगों ने शॉपिंग के मामले में मम्मी को भी पीछे छोड़ दिया है...." रूही बोली।
    "अब समझ में आ रहा है कि पापा मॉल जाने के नाम पर इतना तहलका क्यों मचाते हैं??" जिंदगी मुस्कुराते हुए बोली।
    "जेब ढीली हो जाती है और साथ में कुलियों जैसी दुर्दशा....." पूर्वी ने अपने हाथों में पकड़े हुए शॉपिंग बैग्स को दिखाते हुए कहा।
    "वह भी हमने कितनी जल्दी बाजी की.... कितना कुछ तो ले भी नहीं पाए हैं ...." नीति अपने सामान को चेक करते हुए बोली।
    "यह मॉल वाले भी ना.... इसीलिए मॉल के अंदर घड़ी नहीं लगाते हैं ताकि ग्राहक को समय का पता ना चले..." मोना ने कहा।
    "स्मार्ट बिजनेस माइंड.... लाइक साहिर सिंह राणा....." पूर्वी ने जिंदगी की तरफ नजर डालते हुए कहा.... जो कि इन सारी शॉपिंग बैग का पेमेंट करके आई थी।
    "डूब मरो.... तुम सब ....जबसे देखी हो.... उसी के गुण गाए जा रही हो... इतना अगर भगवान का नाम ले लो तो जिंदगी सुधर जाए.... पर ले रही हो शैतान का नाम... कहीं टपक ना पड़े।" जिंदगी चिढ़ गई...
    "इसीलिए तो ...उसको देखते ही अपनी जिंदगी सुधर गई... अब कोई शरारत नहीं करेगी...." मोना ने जिंदगी के मजे लेते हुए कहा।
    उसकी आंखों के आगे सुबह हुई सारी बातें तैरने लगी...
    "यह साहिर भी ना ....एक मौका नहीं छोड़ते हैं ....मेरा मजाक बनाने का।" जिंदगी ने सर झटकते हुए कहा।
    "पर मैं अभी तक समझ नहीं पा रही हूं कि आखिर उन्हें इतनी जल्दी हमारे हॉस्टल में हुई बातों की खबर कैसे लग जाती है?? कहीं उन्होंने हमारे पीछे कोई जासूस तो नहीं लगाया...." नीति आसपास देखती हुई बोली।
    "ज्यादा इधर-उधर सर मत घुमा.... अगर उनके छिपे हुए बॉडीगार्ड कहीं होंगे तो सीधे तुझे गोली मार देंगे...." जिंदगी ने नीति का मजाक बनाते हुए उसे डराया।
    "अरे बाप रे!!" जिंदगी की बात सुनकर नीति ने तेजी से अपने सीने पर हाथ रखा। उसकी ऐसी हालत देखकर सारी लड़कियां खिलखिला कर हंस पड़ी।
    "पर मुझे यह समझ में नहीं आता कि अपना इतना लंबा चौड़ा बिजनेस छोड़कर मिस्टर राणा आखिर जिंदगी पर ही नजर क्यों रखते हैं??" पूर्वी ने जिंदगी को छेड़ते हुए कहा।
    "क्योंकि वह जिंदगी से प्यार करते हैं ..... यह दिल के मामले हैं साहिबा.... यहां लाभ और हानि नहीं देखी जाती ...." रूही आराम से बोली।
    "अब यह बता दे डार्लिंग.... यह लाइन तूने किस नोबल में पढ़ा था??" जिंदगी ने रूही से पूछा।
    "तेरी जिंदगी के नोबेल में ....." जवाब मोना की तरफ से आया।
    "तू मान या ना मान जिंदगी ...सच यही है.... वह होठों से कहते नहीं.... पर अपनी बातों से जता जाते हैं ....उन्हें तेरी फिक्र होती है और यह सब प्यार के ही लक्षण है।" पूर्वी अब संजीदा थी।
    "बिल्कुल सही.... आसार हैं प्यार की मैंने पढ़ा था कहीं...." रूही ने एक रोमांटिक लाइन कही।
    "फिर तुम लोग उसी स्टेशन पर चली आई...." जिंदगी ने अपना सर पकड़ लिया।
    "देख जिंदगी.... तू मान या ना मान ...पर साहिर भाई की सारी हरकतें इसी ओर इशारा करती है कि तू उनके लिए बहुत इंपॉर्टेंट है...." मोना ने जिंदगी को समझाते हुए कहा।
    "और अब तू भी उनकी इंपॉर्टेंट अपनी जिंदगी में बना ही ले...." नीति ने जिंदगी के हाथ में पड़े हुए शॉपिंग बैग्स को देखते हुए कहा।
    "कम से कम इस बोझ को ढोने से तो छुटकारा मिल जाएगा ...." रूही की बात पर सब हंस पड़ी।
    "अगर उनके साथ शॉपिंग करने जाओगी ना.... तो वह इन के साथ-साथ तुझे भी फेक आएंगे.... बड़ी आई बैग्स पकड़वाने वाली.... उनसे उनका पर्सनल लैपटॉप तो उनका पिए लेकर चलता है.... वह क्या हमारे बैग्स ढोएंगे??" जिंदगी ने मुंह बनाते हुए कहा।
    "बात तो तूने समझदारी वाली की है जिंदगी...." मोना ने समझदारी का परिचय देते हुए कहा।
    "तो क्या दुनिया में तू ही समझदार है?? अब जल्दी से चलो.... कुछ खा लेते हैं.... और वापस हॉस्टल चलते हैं ....वरना वार्डन एंट्री नहीं देगी....." जिंदगी ने सामने कैफिटेरिया की तरफ इशारा करते हुए कहा।
    "हां चलो...."
    "पहले पेट पूजा के कोई काम दूजा...."

    एक खाली टेबल देखकर सब लड़कियों ने एक चेयर पर अपना शॉपिंग बैग रखा और फिर खाने के लिए हल्का ही आर्डर कर दिया।
    "मैं वॉशरूम हो कर आती हूं...." जिंदगी खड़े होते हुए बोली।
    "ओके" रूही बोली।
    "हे भगवान !! शक्ल कैसी लग रही है?? सच में भूतनी जैसी...." जिंदगी ने पानी के छींटे चेहरे पर मारते हुए कहा।
    "ऑल द बेस्ट ... मिस भूतनी।" अचानक से साहिर का अक्स आईने में उभरा। जिंदगी का दिल धक धक से मुंह को आ गया।
    "आप !!! यहां कैसे ????" जिंदगी झटके से पीछे मुड़ी.... वहां कोई नहीं था।
    "हे भगवान!! इन लड़कियों ने तो मुझे बोल बोल कर पागल ही कर देना है....अब तो सच में मुझे हर जगह साहिर ही दिखाई पड़ने लगे हैं...." जिंदगी ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा और तेज़ी से निकलकर बाहर अपने टेबल की ओर जाने लगी।

    जिंदगी अपने आपने बड़बड़ाते हुए ही जा रही थी ....तभी उधर से एक सूट बूट पहने लड़का फोन पर बात करते हुए आ रहा था।
    अपने आप में मगन जिंदगी.... पूरी तरह से उस से टकराई।
    "हे भगवान!!" जिंदगी ने अपना सर पकड़ लिया उसके आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा एक पल के लिए जिंदगी को ऐसा लगा कि वह सीधे-सीधे दीवार से टकरा गई है।
    "मिस्टर साहिर.... आप के कारण .... मेरे साथ जो ना हो जाए।" जिंदगी ने अपना माथा सहलाते हुए धीरे से कहा।

    वही वह आदमी गुस्से में जिंदगी को घूर कर देखे जा रहा था। जो कि नीचे जमीन पर बैठी हुई थी। उसके बॉडीगार्ड ने आगे बढ़ कर जिंदगी को उठाना चाहा। लेकिन उस आदमी ने हाथ के इशारे से सब को रोककर.... पीछे हटने के लिए कहा.... अपना हाथ जिंदगी के लिए बढ़ा दिया।
    "थैंक यू...." जिंदगी खड़े होते हुए बोली। तभी उसकी नजर उस आदमी के सपाट चेहरे पर गई और नीचे जमीन पर पड़े हुए उसके टूटे-फूटे फोन पर..... जिंदगी ने डर से अपनी आंखें बंद कर ली।

    क्रमशः

  • 6. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 6

    Words: 1340

    Estimated Reading Time: 9 min

    साहिर के ख्यालों में उलझी... जिंदगी तेजी से अपनी टेबल की ओर जा रही थी। तभी अचानक उसे ऐसा लगा कि मानो वह सीधे-सीधे दीवार से टकरा गई है। अपने सर को थामे हुए वह जमीन पर गिर गई। उसकी आंखों के सामने एक मर्दाना हाथ दिखाई पड़ा। जिंदगी ने उस हाथ को पकड़ लिया।
    "थैंक यू...." जिंदगी खड़े होते हुए बोली। तभी उसकी नजर उस लड़के के सपाट चेहरे पर गई.... जिसकी आंखें खतरनाक एक्सप्रेशन के साथ.... जिंदगी को देख कम घूर ज्यादा रही थी। जिंदगी का दिल तो धक से रह गया.... "अब मैंने ऐसा क्या गलत कर दिया??" जिंदगी अभी सोच ही रही थी कि तभी उसकी नजर नीचे जमीन पर पड़े हुए उस आदमी के टूटे-फूटे फोन पर पड़ी.....
    "ओह नो...." जिंदगी ने डर से अपनी आंखें बंद कर ली।
    वह लड़का जिसकी उम्र मुश्किल से इक्कीस साल होगी, गुस्से में जिंदगी को कुछ बोलना चाह रहा था। लेकिन जब उसकी नजर कसकर आंखें बंद किए हुए.... मासूम जिंदगी के चेहरे पर पड़ी तो उसके शब्द.... उसके दिल में ही कहीं दफन होकर रह गए.... वह आसपास के सभी चीजों से बेजार हो गया। उसे सब भूल गया था कि अभी उसका इतना बड़ा नुकसान भी हुआ है.. वो भी इसी लड़की के कारण..... वह आराम से अपने चेहरे पर मुस्कुराहट सजाए .....जिंदगी के मासूम चेहरे को देखे गया।
    जिंदगी भी आंख बंद किए हुए ..... काफी देर तक उसके बोलने का इंतजार कर रही थी.... लेकिन जब कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ी.... तो उसे ऐसा लगा कि वह चला गया। जिंदगी गहरी सांस लेते हुए.... अपने सीने पर हाथ रखकर.... अपने बुलेट ट्रेन की रफ्तार से चल रही.... धड़कनों खुद सामान्य करने की कोशिश करते हुए.... पहले एक आंख खोल कर उस तरफ देखा....जिधर वह लड़का खड़ा था... जिंदगी के अनुसार अब वह जगह खाली होनी चाहिए थी ....लेकिन वह लड़का वहीं खड़ा था। पर अब उसके फेशियल एक्सप्रेशन चेंज हो गए थे.... वह अब मुस्कुराते हुए उसको देख रहा था.... लड़के को मुस्कुराते हुए देख...? जिंदगी ने अपनी दोनों आंखें खोल दी। जिंदगी को काफी आश्चर्य हो रहा था.... कहां वो एक जोरदार लेक्चर सुनने का इंतजार कर रही थी.... उसके उलट ये लड़का इस तरह से मुस्कुराते हुए.... उसे देख रहा था.... जैसे कि जाने कब से पहचानता है।
    लड़के को अपनी ओर इस तरह मुस्कुराते हुए देख कर जिंदगी को अजीब सा लगा।
    "क्या है??" आंखों ही आंखों में जिंदगी ने पूछा। जिंदगी की इस हरकत पर लड़का एक पल के लिए घबरा सा गया.... जैसे उसके चोरी पकड़ी गई हो.... लेकिन अगले ही पल उसने खुद को संभालते हुए ....खुल कर मुस्कुरा दिया। उसने अपने दोनों हाथ अपने सीने के आसपास लपेट दिया और आराम से खड़ा हो गया।
    "ऐसे क्या देख रहे हो?? कहीं फोन टूटने का असर दिमाग पर तो नहीं हो गया?? दिमाग तो नहीं टूट फूट गया??" जिंदगी ने पूछा। लेकिन जब अपने मुंह से निकले हुए शब्दों पर उसका ध्यान गया.... तो उसने कस कर अपनी जीभ दांतों तले दबा ली।
    "फोन के टूटने का तो पता नहीं और दिमाग कहां गायब हुआ?? ये भी पता नहीं.... लेकिन दिल जरूर बर्बाद हो गया है।" लड़के ने अपने होठों में ही कहा और फिर अपनी इस उल्टी सीधी बातों पर खुद से ही अपने सर पर मारा।
    जिंदगी अभी उसे सॉरी बोलना चाह रही थी.... कि उससे पहले ही उस लड़के ने कहा, "सॉरी... गलती मेरी थी... मैं उधर से बात करते हुए आ रहा था और मैंने आपको देखा नहीं.... आपको ज्यादा तो नहीं लगी??.. आई एम रिएली सॉरी.... मैं जयंत जिंदल।" लड़के ने जिंदगी की तरफ हाथ बढ़ा दिया।
    जिंदगी की तो जान बची लाखों पाए। उसने तुरंत फुल एटीट्यूड के साथ कहा, "ओके। आगे से ध्यान रखेगा।"
    जिंदगी धीरे से निकलने लगी। जिंदगी एटीट्यूड से भरी हुई बात सुनकर और उस को जाते हुए देख कर जयंत ट्रांस से निकला। उसने जिंदगी की बाजू पकड़ ली और खींचकर उसे सामने किया, "हेलो मैम!! मैं कुछ बोल नहीं रहा.... इसका मतलब यह नहीं कि आप इस तरह से मुझे इग्नोर करके चली जाएंगी.... मेरा नुकसान हुआ है....आपके हाथों।"
    "तो मैं क्या करूं?? नुकसान हुआ तो हुआ.... तुम्हारा जो भी नुकसान हुआ तो उसकी भरपाई भी तुम करोगे.... तुम्हारी गलती की वजह से मेरे सर में इतनी बुरी तरह से चोट लगी.... क्या मैंने तुम्हें कुछ कहा क्या??? नहीं ना। तो उसी तरह से तुम्हारे फोन को भी अगर चोट लगी है... तो तुम मुझे कुछ बोलने का हक नहीं रखते। अब अपने इस टूटे फूटे फोन को उठाओ और खुद भी अगर टूटना फुटना नहीं चाहते हो तो.... चुपचाप निकल लो। नहीं तो खुद भी अपने फोन की जगह टूटे फूटे कहीं जमीन पर पड़े होंगे।" जिंदगी आराम से बोली।
    "सच में तुम मुझे तोड़फोड़ सकती हो.... लगता तो नहीं।" जयंत को अब जिंदगी की बातों में इंटरेस्ट आने लगा था। "शायद तुमने मेरा नाम सुना नहीं..... मेरा नाम जयंत जिंदल है...." जयंत ने भी अपने सूट के कॉलर को ठीक करते हुए फुल एटीट्यूड के साथ कहा।
    "हां तो... मैं क्या करूं ?? तुम्हारा नाम जयंत जिंदल हो या फिर मयंक जिंदल....." जिंदल शब्द बोलते बोलते जिंदगी ने फिर से अपने दांतो तले जीभ दबा ली।
    "बोलो... बोलो... चुप क्यों हो गई ??" जयंत ने मुस्कुराते हुए पूछा।
    जवाब में जिंदगी ने दांत दिखा दिए।
    "कब आए इंडिया?? बताया भी नहीं...." जिंदगी खुश होकर जयंत के गले से लग गई।
    जयंत ने भी खुशी से जिंदगी के आसपास अपनी बाहें लपेट दी।
    "बस आज ही आया हूं और सबसे पहले तुझसे ही मिलना चाहता था... लेकिन पता चला कि तू हॉस्टल में रह रही है। तो तेरे हॉस्टल जाने से पहले तेरी मनपसंद कचौरियां लेने के लिए यहां रुक गया था। लेकिन मुझे क्या पता था?? तू इस तरह कैफेटेरिया में ही इमरजेंसी लैंडिंग करती हुई.... सीधे मेरे गले ही पड़ जाएगी।" जयंत जिंदगी को छेड़ते हुए बोला।
    "बहुत बुरे हो... बात मत करो.... पहले तो मुझसे बिना मिले.... बिना बताए.... पूरे परिवार के साथ इंडिया छोड़कर गायब हो गए और फिर आज इस तरह से दिखाई पड़ रहे हो?? कहां थे अब तक?? पता है तुमको मैंने तुम्हें कितना खोजा??" जिंदगी ने मुंह बनाते हुए कहा।
    "रियली?? तेरे चेहरे से तो लग नहीं रहा।" जयंत ने मुस्कुराते हुए कहा। "खैर, मेरी बात छोड़.... बड़ी लंबी कहानी है और अब इंडिया आ गया हूं.... तो मिलता रहूंगा.... बात भी होती रहेगी.... पर पहले मुझे यह बता तू हॉस्टल में क्यों रह रही है?? क्या राणा भवन तेरे लिए छोटा पड़ गया.... जहां यह हाथी नहीं रखा जा पा रहा।" जयंत ने समोसे की बाइट लेते हुए पूछा।
    जयंत के साथ जिंदगी कैफेटेरिया में ही एक टेबल पर आ चुकी थी। उसने अपनी सहेलियों को हाथ के इशारे से खुद के यहां होने की इंफॉर्मेशन दे दी थी और अब जयंत से बातें कर रही थी।
    "हाथी होगा तू.... मैं तो अभी पतली दुबली हूं....." जयंत के हाथ पर हल्के से मारते हुए जिंदगी ने कहा।
    "हां बिल्कुल.... तू अभी भी गीलहरी जैसी ही है... पर यह मेरे बात का जवाब नहीं...." जयंत ने संजीदगी से कहा।
    "तुम तो अच्छी तरह से जानते हो.... तुम्हारा परिवार पड़ोस के मकान से चला ही गया... तो फिर आस पास कोई दोस्त भी नहीं बचा.... डीपीएस से प्लस टू करना चाहती थी... लेकिन अपनी जिंदगी के राहु, केतु, शनि सब तो एक ही है.... उनकी कृपा दृष्टि से यहां इस अंजान शहर में भटक रही हूं।" जिंदगी ने मुंह बनाते हुए.... कचौरियों से पूरा इंसाफ करते हुए कहा।
    "साहिर सिंह राणा...." जयंत के हाथ एक पल के लिए रुक गए। नाम लेते हुए जयंत का हलक तक कड़वा हो चुका था.... जिसकी कड़वाहट उसके चेहरे से साफ साफ देखी जा सकती थी... लेकिन उसने तुरंत खुद को छुपा लिया।
    "हां... उनके अलावा बुरा नक्षत्र कौन है?? हमारी मासूम जिंदगी का।" जिंदगी अपने आप में मगन अपनी फेवरेट कचोरी से पूरा इंसाफ करती जा रही थी।
    "बिल्कुल नहीं.. बहुत भटक लिए हम.. अब तो वह भटकेगा... अब उसकी कुंडली में शनि राहु केतु का आगमन हुआ है।" जयंत ने मन ही मन कहा।

    क्रमशः

  • 7. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 7

    Words: 1403

    Estimated Reading Time: 9 min

    Enjoy reading 🥰
    Comment must 🙏






    "तब जिंदगी सुना.... कैसी बीत रही है तेरी जिंदगी??" मीठी ने मज़े से पूछा।
    " अरे!! इसकी जिंदगी कैसी बितनी है जब तक वह साहिर नाम का ग्रहण ....इसके जिंदगी पर लगा हुआ है।" नीति ने हंसते हुए कहा। जवाब में जिंदगी ने उसे घूर कर देखा।
    " ऐसा कुछ नहीं है.... जिंदगी की जिंदगी हमेशा मजे में ही होती है।"जिंदगी बोली।
    " अच्छा!!" नीति को हैरानी हुई।
    " तो फिर तू हम लोगों के साथ कंप्यूटर क्लास क्यों नहीं ज्वाइन कर रही??" पूर्वी ने पूछा।
    ' यार मेरा सारा दिन इधर उधर ही निकल जाता है और फिर दो-तीन महीने के बाद कॉलेज शुरू हो ही जाएंगे..... तो क्या बेकार में.... अभी से ही खुद को परेशान करूं?? अभी तो दो-तीन महीने मिले हैं... अपनी जिंदगी आराम से जी लेने के लिए।" जिंदगी आराम से सोफे फैलती हुई बोली।
    "सीधे क्यों नहीं कहती?? साहिर ने तुझे मना किया है।" मोना ने टुकड़ा जोड़ा।
    " ऐसा कुछ भी नहीं है....तुम लोगों की सारी बातें तो साहिर से ही शुरू होती है ... साहिर पर ही खत्म होती है। वह तो यहां है भी नहीं.... करीब एक सप्ताह से फॉरेन टूर पर गए हुए हैं।" जिंदगी ने सिरे से इनकार किया।
    " ओ हो!! तभी तो मैं सोच रही थी... आखिर हमारी जिंदगी को हमारी याद कैसे आ गई??" पूर्वी हंसते हुए बोली।
    " प्लीज तुम अपनी बकवास बंद करो...."जिंदगी छोड़ते हुए बोली वह जितना ही साहिर के नाम से दूर रहना चाहती थी.... उतना ही उसकी सहेलियां उसे घुमा फिरा कर साहिर के नाम से जोड़कर खुश होती थी।
    " तो फिर तू भी हम लोगों के साथ कंप्यूटर कोर्स ज्वाइन कर ले... अभी तो साहिर भी घर पर नहीं है तो... तुझे एडमिशन लेने से कौन रोकेगा?? और तू बोर होने से बच जाएगी...." पूर्वी ने समझाया।
    " ठीक है... मम्मी से बात करती हूं..."जिंदगी ने सोचते हुए कहा।
    " ओके बाय...."
    " टेक केयर...."
    ट्वेल्थ के पेपर होने के बाद यह सारी लड़कियां अपने अपने घर पर आईं थीं...अभी रिजल्ट आने में 3 महीने बाकी थे.... इसलिए सारी लड़कियां फ्री ही थी.... इसमें कुछ लड़कियों ने मिलकर कंप्यूटर क्लास ज्वाइन किया था.... और आज वीडियो कॉल के दौरान.... अब जिंदगी पर भी दबाव बना रही थी।
    पर जिंदगी का ऐसा कोई इरादा नहीं था... साहिर ने जो जिंदगी को नया 4जी स्मार्ट फोन दिया था.... उसके कारण जिंदगी को इस बार घर में अपना समय काटना मुश्किल नहीं हो रहा था। सहेलियों से लंबी बातचीत होती थी। अब तो इसमें एक और नाम जुड़ गया था.... जयंत जिंदल का ।
    जयंत जिंदल ने तो जिंदगी का सारा समय ही चुरा लिया था.... बातों ही बातों में उसने इंटरनेट से जुड़ी कई ऐसी जानकारी जिंदगी को दे दी थी.... जो काफी इंटरेस्टिंग थी। अब जिंदगी उन्हीं सब चीजों को सर्च करने में ... यूट्यूब पर उससे रिलेटेड वीडियो देखने में..... अपना सारा समय बिता देती थी। जयंत की दोस्ती ने.... जिंदगी की जिंदगी को आसान कर दिया था । फोन और चैट में डूबी हुई जिंदगी को.... बाहरी दुनिया तो दूर ....घर में भी क्या हो रहा है?? इस से कोई मतलब नहीं रहता था।
    जयंत से हो रही फेसबुक चैट पर लंबी बातचीत में जिंदगी को उसकी पर्सनालिटी बहुत अट्रैक्टिव लगने लगी थी.... जयंत के शब्दों की जादूगरी में जिंदगी खो जाती थी... वही साहिर नपा तुला बस जरूरत भर बात करता था... जिंदगी मन ही मन दोनों की तुलना करती.... पर फिर भी साहिर.... साहिर था। उसकी पूरी शख्सियत जादुई थी.... उसके सहर से निकलना जिंदगी के लिए इतना आसान नहीं था।
    पर धीरे-धीरे जयंत अपनी राह जिंदगी के दिल तक बना रहा था....जयंत ने अपना यह फेक प्रोफाइल बनाया था ....सिर्फ जिंदगी से बात करने के लिए और सिर्फ जिंदगी को इसके बारे में ही बताया था। एक दिन बातों की दौरान जयंत ने अपनी इच्छा जाहिर की... वह जिंदगी से मिलना चाहता था... इस कारण उसने पहले भी... एक दो बार जिंदगी को बुलाया भी था...और जिंदगी भी उससे मिलना चाहती थी..... पर जिंदगी का इस तरह से अकेले घर से बाहर निकलना संभव नहीं था....उसे कहीं भी जाना होता था ....तो ड्राइवर के साथ साथ.... बॉडीगार्ड की एक लंबी फौज लेकर जाना पड़ता और इस तरह का रिस्क जयंत लेने को तैयार नहीं था..... इसलिए जिंदगी में मन मसोस कर रह गई थी।
    इसी बीच उसे पता चला कि मीठी में कंप्यूटर कोर्स में एडमिशन लिया है।
    घर से बाहर निकलने की चाह में जिंदगी ने भी बैठे बैठे अपनी महान फरमाइश अपनी मम्मा जानवी सिंह से कर डाली। जो कि एक कुशल गृहणी थी.... राजस्थानी शाही परिवार में पली-बढ़ी जानवी सिंह... अपने संस्कारों और आदर्शों में बंधी हुई.... एक संभ्रांत महिला थी।
    " मम्मा मैं घर में बोर होती रहती हूं... क्यों ना एक कंप्यूटर का शॉट टर्म कोर्स कर लूं?? कंप्यूटर सेंटर हमारे घर के करीब ही तो पड़ता है...." जिंदगी ने जब जानवी जी को आराम से सोफे पर बैठे हुए देखा... तो उनके गले में बाहें डालते हुए कहा।
    " क्यों?? बोर क्यों होती हो?? घर के भी काम करो तो बोरियत नहीं होगी।" अचानक से साहिर की आवाज सुनाई दी।
    "हे भगवान!!" जिंदगी ने अपनी आंखें बंद कर ली। इस साहिर सिंह राणा ने तो मुझे पागल कर देना है.... अब तो मेरे कान भी बजने लगे हैं। आसपास अच्छी तरह से देखने के बाद ही उसने बात शुरू की थी। वह मीटिंग के सिलसिले में आउट ऑफ कंट्री गया था और कल तक उसके आने की संभावना थी .... यह बात उसने अपने पापा सा से... आज सुबह नाश्ते के टेबल पर ही कंफर्म की थी....फिर अचानक अभी कैसे टपक पड़ा??
    जिंदगी अभी अपने शक को एक आंख खोलकर कंफर्म ही कर रही थी कि तब तक उसकी आवाज फिर से सुनाई पड़ी।
    " ऐसा है छोटी मा सा... आप दिन-रात किचन में घुसी रहती हैं.... अब इन्हें भी कुछ बनाना खिलाना सिखाएं।ऑफिस जाने के नाम पर तो इन्हीं बुखार आ जाता.... तो कम से कम यही अच्छा होगा कि यह घर के कामों में मन लगाएं।" साहिर सोफे पर आराम से बैठते हुए बोला। कह तो वह जानवी सिंह जी से था... लेकिन जिंदगी उसके निगाहों के घेरे में थी.... जिस चीज को जिंदगी महसूस कर रही थी। साहिर उसे अपने साथ बिजनेस ट्रिप पर ले जाना चाहता था.... ताकि धीरे धीरे से जिंदगी के अंदर बिजनेस समझने की काबिलियत आ जाए.... लेकिन जिंदगी को तो इधर नए फोन का चस्का लगा था.... साहिर के साथ रहने पर वह आसानी से इसका इस्तेमाल नहीं कर सकती थी।इसलिए उसने "नो इंटरेस्ट..." करके अपना हाथ झाड़ लिया था।
    "वैसे छोटी मां सा... हम सोच रहे थे कि जब इनका और किसी चीज में इंटरेस्ट नहीं तो धीरे-धीरे इन्हे आप घरदारी ही सीखा दीजिए... और वैसे भी जब ये घर से बाहर पढ़ने के लिए जाएंगी... तो इन्हें कम से कम किसी भी इमरजेंसी हाल में... कुछ तो बनाना आना चाहिए...." साहिर ने जानवी जी से कहा ।
    "बात तो सही है कंवर सा आपकी। अपना खाना बनाना तो सबको आना चाहिए ।" जानवी जी ने साहिर के हाथों में पानी का गिलास थमाते हुए कहा।
    " तो फिर शुभ काम में देरी कैसी ? इसकी शुरुआत आज से ही कर लीजिए..."साहिर के होठों पर एक अर्थपूर्ण मुस्कुराहट थी ....जो कि सिर्फ जिंदगी को ही दिख रही थी।
    जिंदगी को कि अब यहां से उठने के लिए बहाने खोज रही थी। साहिर के इस नए यह ऑर्डर को सुनकर दिल ही दिल में उसने बेभाव की कई गालियां साहिर को दे डाली ।
    "अब तुम कहां जा रही हो?? चलो मेरे साथ... किचन में सबसे पहले ठाकुर जी के भोग लगाने के लिए कुछ मीठा बनाना सीख लो।" जानवी जी ने सोफे पर से उठकर दबे पांव अपने कमरे की तरफ जाती हुई जिंदगी को रोक कर कहा। जिंदगी ने बेबसी में अपनी मुठिया बंद कर ली। जिंदगी कभी अपनी मम्मा की शक्ल देखती तो कभी साहिर की। जिसके होठों पर अब विजय की मुस्कान थी। ऐसा कभी नहीं हो सकता कि साहिर कोई बात बोले.... और मम्मा को ऐतराज हो।
    वह अपनी दिल की बात होठों पर ला कर पछता रही थी।
    "छोटी मा सा... काफी दिनों के बाद आज दाल बाटी खाने का मन कर रहा है और मैं चाहता हूं कि जिंदगी यही बनाना सीख ले। क्यों आपका क्या ख्याल है??" साहिल गौर से जिंदगी के चेहरे को देखते हुए कहा ।
    उसकी अजीबोगरीब फरमाइश पर जिंदगी अपना सर पकड़ कर रह गई।
    "मिस्टर साहिर ....आई विल किल यू..."जिंदगी सुलग कर रह गई।

    क्रमशः

  • 8. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 8

    Words: 1188

    Estimated Reading Time: 8 min

    "उफ्फ.. क्या मुसीबत है??" जिंदगी ने एक पल के लिए अपने आटे में सने हुए हाथ को देखा और दूसरी नजर अपने लगातार बज रहे मोबाइल पर डाली। मोबाइल एक बार बजकर बंद हो चुका था फिर दूसरे बार भी लगातार बज रहा था। जिंदगी वैसे ही अपने फोन के पास आई। स्क्रीन पर जयंत कॉलिंग दिखा रहा था।
    जिंदगी ने तेजी से अपने आसपास देखा... कोई नहीं था। उसने अपने हाथ बेसिन में धोए और फिर जल्दी से फोन उठा लिया।
    "हेलो...."
    "क्या हुआ?? सोई हुई थी क्या??" उधर से धीमी मदहोश करने वाली जयंत की आवाज आई।
    "नहीं खुली आंखों से सपने देख रही हूं..." जिंदगी चिढ़ कर बोली।
    "मतलब??"
    "मतलब क्या??... कुछ नहीं.. तुम अपना बताओ किस लिए फोन किया है??"
    "क्यों?? मैं बिना किसी काम के तुम्हें फोन नहीं कर सकता??" जयंत ने नखरे से पूछा।
    "बिल्कुल कर सकते हो... पर अभी मैं बिज़ी हूं... तुमसे बाद में बात करती हूं।" जिंदगी ने फोन कट करके रखना चाहा।
    फोन के दूसरी तरफ जयंत उसकी हरकत समझ गया था।
    "अरे रुको !! रुको!! ऐसी भी क्या बिजी हो?? जो तुम्हारे पास बात करने का भी टाइम नहीं है...." जयंत को हैरानी थी।
    "बस कुछ काम ही कर रही हूं... फिलहाल टाइम बिल्कुल नहीं है.... काम खत्म होते ही तुमसे बात करती हूं...." जिंदगी अब उसे भला क्या बताती?? कि क्या कर रही है?? और ऊपर से अगर कोई इस समय रसोई घर में आ जाता तो बैठे-बिठाए उसकी शामत चली आनी थी।
    "ऐसा कौन सा काम कर रही हो?? जो तुम्हें मेरे से बात करने का टाइम नहीं है...." जयंत को अभी भी भरोसा नहीं हो रहा था कि जिंदगी के पास उससे बात करने के लिए समय नहीं है क्योंकि पिछले कुछ दिनों से उसकी और जिंदगी की फोन पर लंबी बातचीत होती थी।
    "प्लीज जयंत मैं सच में बहुत बिजी हूं.... अगर तुमने किसी जरूरी काम से फोन किया है तो जल्दी से बताओ और फोन रखो...." जिंदगी ने प्रेशर कुकर की तरफ नजर डालते हुए कहा जो कि किसी समय सिटी दे सकता था।
    जिंदगी फोन हाथ में लिए हुए ही तेजी से प्रेशर कुकर के पास आई.... जिंदगी अभी गैस का नॉब कम करती, उसके पहले ही प्रेशर कुकर अपनी तेज आवाज में सीटी दे चुका था।
    "अरे मम्मी !!" जिंदगी तेजी से चार कदम पीछे हुई। प्रेशर कुकर की सीटी के साथ.... गरम दाल के छींटे भी उसके हाथ पर पड़े।
    फोन पर जब जयंत के कानों में प्रेशर कुकर की तेज आवाज पड़ी तो उसने अपना फोन कानों से हटाकर हिलाकर देखा... सही में उसके कानों तक प्रेशर कुकर की आवाज आई थी ना??
    "एक मिनट, एक मिनट.... क्या तुम रसोई घर में हो??" जयंत ने अविश्वास से पूछा।
    "नहीं कॉन्फ्रेंस हॉल में हूं ....." जिंदगी चढ़कर बोली।
    "अरे यार.... तुम हर बात का उल्टा ही जवाब क्यों देती हो ??? बताओ ना... क्या बात है?? रसोई के दरवाजे पर भी ना जाने वाली जिंदगी ने... आज रसोई में अपने शुभ कदम रखे है!! घर में सब ठीक तो है ना!!" जयंत ने अपनी हंसी दबाते हुए पूछा।
    "घर में सब ठीक है ....बस मेरा ही दिमाग खराब हो गया था.... जिसकी सजा मुझे रसोई घर में धकेल कर मिली है।" जिंदगी हाथ पोछे का कपड़ा उठाते हुए बोली। कुकर से पानी आने के कारण सारा गैस स्टोव गंदा हो चुका था।
    "अब बोलते क्यों नहीं?? जल्दी से बोलो.... और फोन रखो ...मेरा दिमाग ऐसे ही खराब है और तुम ज्यादा मत खराब करो।" जिंदगी झल्लाते हुए बोली।
    "बात क्या है जिंदगी?? अगर तुम सारी बात मुझे बताओगी तो शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं।" जयंत ने कहा।
    "मेरी मदद कोई नहीं कर सकता.... उन्होंने मुझे किसी से भी मदद लेने से मना किया है.... मुझे जो भी कुछ करना है.... खुद करना है..." जिंदगी रूँआसी होकर बोली।
    "किसने मना किया है?? मदद लेने से??"
    "अरे वही.... जो मेरी जिंदगी में शनि राहु केतु बनकर पड़ा हुआ है...." जिंदगी ने नाक सिकोड़ी।
    जयंत समझ गया था कि जिंदगी साहिर की बात कर रही है ...इसलिए उसने अपनी गंभीर आवाज में कहा, "क्या बात है?? पूरी पूरी बात बताओ..."
    "मेरी ही मति मारी गई थी.... जो मैं उन लड़कियों के चक्कर में आकर कंप्यूटर क्लास में एडमिशन के लिए बोली और उसके एवज में मुझे आज सबका खाना बनाना पड़ेगा। वह भी दाल बाटी चूरमा तब कहीं जाकर ... मुझे कंप्यूटर क्लास में एडमिशन मिलेगा।"
    "एक काम करो... तुम अपने फोन का वीडियो ऑप्शन ऑन करो... मैं देखता हूं... घबराओ मत.... तुम्हें कंप्यूटर सेंटर में एडमिशन जरूर मिलेगा।" जयंत ने जिंदगी से कहा।
    "पर उसने मुझे किसी से भी मदद लेने से मना किया है...." जिंदगी के दिमाग में साहिर की बात घूम रही थी।
    "जिंदगी बेवकूफी मत करो.... यहां कोई तुम्हें देखने नहीं आ रहा है कि तुम किसकी मदद ले रही हो और किसकी नहीं?? वैसे भी तुमने मेड की मदद नहीं ली है । उसमें जरूर मेड के लिए ही कहा होगा।" जयंत ने समझाया।
    "हां यह बात तो ठीक कह रहे हो.... उन्हें मेड के हाथ का खाना नहीं पसंद...." जिंदगी सहमत होती हुई बोली।
    "मैं हमेशा बात ठीक ही कहता हूं.... पर तुम्हारे दिमाग में देरी से समझ आता है..."
    "क्या कहने का मतलब तुम्हारा?? मेरा दिमाग स्लो चलता है??" जिंदगी ने अपनी एक आंख ऊपर करके जयंत से पूछा।
    "नहीं-नहीं... बहुत फास्ट चलता है.... पर सिर्फ मेरे ही सामने.... वो भी लड़ने झगड़ने के लिए... उसके सामने तो भीगी बिल्ली बन जाती हो।" जयंत ने ताना मारा।
    "यह बात तो सही कह रहे हो...." जिंदगी ने मायूसी से मुंह बना लिया।
    "अब मुंह मत बनाओ.... जो बनाने को मिला है पहले वह बनाओ....."
    "पर तुम्हें कैसे पता चला कि मैं मुंह बना रही हूं??" जिंदगी ने आश्चर्य से भर कर पूछा।
    "क्योंकि मैं तुम्हें तुमसे बेहतर जानता हूं और अगर यह जानना समझना हो गया हो तो जल्दी से फिलहाल के लिए तुम झगड़ना बंद करो और पहले तुम किचन का दरवाजा बंद कर लो... ताकि कोई रसोई घर में आ ना सके। और फिर अपने फोन का वीडियो ऑप्शन ऑन करो।" जयंत ने उसे समझाया।
    "अगर तुम चाहती तो पहले ही यूट्यूब पर वीडियो देखकर बना सकती थी... खैर अब वीडियो ऑप्शन ऑन करो.... मुझे तुम्हें बनाते हुए देखना है ...."
    "मुझे बनाते हुए देखना है या मेरा मजाक उड़ाना है?? क्योंकि मुझे अच्छी तरह से पता है कि तुम्हें भी कुछ बनाना नहीं आता।" जिंदगी ने अपनी एक भौंह ऊपर की।
    "ठीक है.... तुम जाओ बनाओ.. भले ही मुझे कुछ बनाना नहीं आता लेकिन मैं अपनी बातों से तुम्हारा मन तो लगा सकता था ना... पर जब तुमको ही मंजूर नहीं तो." जयंत फोन काटने को हुआ।
    "नहीं नहीं रुको मैं ऑन करती हूं।" जिंदगी वीडियो का ऑप्शन ऑन करने जा रही थी कि तभी उसके कानों के पास साहिर के धीर गंभीर आवाज गूंजी।
    "यह क्या है??" साहिर की आवाज सुनकर जिंदगी तेजी से उछल पड़ी और उसके हाथों से उसका फोन छूट गया। जिंदगी ने डर के मारे अपनी आंखें बंद कर ली।

    क्रमश:

  • 9. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 9

    Words: 1172

    Estimated Reading Time: 8 min

    जयंत के साथ लड़ने में उलझी हुई जिंदगी को इतना भी याद नहीं रहा कि जयंत ने उसे दरवाजा बंद करने को कहा। वह आराम से किचन के स्लैब के पास खड़े होकर जयंत से बातें करने में मशगूल थी। तभी साहिर बेआवाज किचन में आया। दरवाजे पर खड़े होकर उसने एक नजर किचन में डाली।

    जिंदगी सामने कहीं नहीं दिख रही थी। तभी उसकी नजर फ्रिज के पास कोने में खड़ी हुई जिंदगी पर पीछे से पड़ी। वह नहीं समझ पाया था कि वह किसी से फोन पर बात कर रही थी। वह जिंदगी से वहां खड़े होने का कारण पूछता कि उससे पहले उसकी नजर परात में रखे हुए आटे पर गई। जिंदगी ने आटे में इतना अधिक पानी डाल दिया था कि बाटी बनाना तो दूर, वह आटा अब पकौड़ी बनाने के भी लायक नहीं रह गया था।

    "यह क्या है जिंदगी??" साहिर ने आटे के घोल को उंगली से उठाते हुए जिंदगी से पूछा, जो कि पानी की तरह उंगली में से टपक जा रहा था।

    इधर जिंदगी, जयंत से बातें करने में इतनी मशगूल थी कि उसे साहिर का आना भी नहीं पता चला। जब उसके कानों ने साहिर की धीर गंभीर आवाज सुनी, तो डर के कारण वह उछल पड़ी और उसके हाथों से उसका फोन छूट गया।

    साहिर जो अब जिंदगी के बोलने का इंतजार कर रहा था, उसने जब जिंदगी को इस तरह से डरते घबराते हुए देखा, तो तेजी से उसके पास आया। उसने जिंदगी का फोन नीचे गिरने से पहले ही पकड़ लिया।

    "कितनी लापरवाह हो तुम?? अभी तुरंत फोन गिरकर टूट जाना था।" साहिर ने जिंदगी का फोन उसे लौटाते हुए कहा।

    इधर जयंत ने जब साहिर की आवाज फोन पर सुनी, तो उसने जल्दी से फोन काट दिया।

    "ओह शीट....." जयंत ने अपना फोन सोफे पर उछालते हुए अपनी हथेली पर मुक्का मारा।

    "यह आदमी भी ना.... जिन्न की तरह कहीं भी हाजिर हो जाता है.... पहले मुझे इसी रास्ते से हटाना होगा।"

    जिंदगी ने डर से अपनी आंखें बंद कर ली थीं। साहिर कि नजर जब डरी सहमी हुई जिंदगी पर पड़ी, तो उसके होठों पर अनायास ही मुस्कुराहट आ गई।

    "क्या कर रही थी तुम फोन पर??" साहिर ने अपने लहजे को पूरी तरह से नार्मल रखने की कोशिश की।

    "वह मैं... मैं..." जिंदगी को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे।

    "तुम्हें दाल बाटी बनाने को कहा गया था ना?? और तुम अपने फोन पर लगी हुई पड़ी थी... यह आटे का क्या हाल बना रखा है तुमने?? क्या इसी तरह बाटी का आटा गुंथोगी??" साहिल ने आटे की परात की तरफ इशारा करते हुए जिंदगी से पूछा।

    जिंदगी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे?? एक तो आटे का हाल बिगड़ चुका था, ऊपर से साहिल की डांट।

    जिंदगी की बड़ी-बड़ी आंखों में आंसू भर आए। साहिल ने जब जिंदगी को इस तरह से देखा, तो उसके दिल को कुछ हुआ। वह बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन कुछ भी ना कह सका। वह अपनी भावनाएं जल्दी जाहिर नहीं कर पाता था। इस कारण उसने बेबसी में अपने होंठ कसकर बंद कर लिए।

    वही जिंदगी जो कि साहिर के अगले डांट का इंतजार कर रही थी, कोई आवाज ना सुन कर धीरे से अपना सर उठाया और जब उसकी नजर साहिल पर पड़ी, तो उसका चेहरा बिल्कुल सपाट था। जिंदगी का दिल और जोर से धड़क गया।

    "मैं कोशिश कर रही थी... और उसी लिए फोन पर..." जिंदगी ने किसी तरह से खुद को संभालते हुए कहना चाहा। उसे डर लग रहा था कि अगर साहिर ने उसकी बात जयंत के साथ सुन ली है, तब तो आज उसे कोई नहीं बचा सकता। वैसे भी साहिर के शांत चेहरे को देखकर कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह कौन से तूफान से अंदर ही अंदर लड़ रहा है??

    डर के कारण जिंदगी के आंखों से आंसू छलक पड़े।

    "इट्स ओके... ओके... तुम रो मत, मैं तुम्हारी मदद करता हूं और मेरे साथ आओ।" साहिर ने जिंदगी का हाथ पकड़ लिया।

    साहिर ने पहले वाला आटा फेंक का परात में नया आटा निकाला और जिंदगी को दिखाते हुए कहा, "देखो, इतने आटे में इतना घी पड़ेगा जिससे कि आटा कुछ बंध सा जाए।" साहिर ने अपने हाथ में घी से सने हुए आटे को मुट्ठी में बांध कर दिखाया।

    "इसमें घी की मात्रा नहीं बहुत अधिक होनी चाहिए और ना ही बहुत कम। अगर अधिक घी डालोगी तो बाटी ही नहीं चलेगी और कम डालोगी तो बाटी कड़ी हो जाएगी।"

    उसके बाद धीरे-धीरे पानी डालकर साहिर ने बाटी का आटा गूंथना शुरू किया। जिस तरह निपुणता से साहिर बाटी गूंथ रहा था, उसे देख कर जिंदगी की आंखें हैरत से बड़ी हो गई।

    "आपको खाना बनाना आता है??" जिंदगी ने साहिर को बाटी के लिए लोई काटते हुए देखकर पूछा।

    जिंदगी के सवाल पर साहिर मुस्कुरा दिया।

    "क्यों तुमने क्या सोचा था मुझे कुछ नहीं आता??"

    "नहीं नहीं... मेरा मतलब वह नहीं था... आपको बहुत कुछ आता है... आप इतना बड़ा इंपार संभालते हैं, पर खाना बनाना?? मेरा कहने का मतलब है कि लड़के खाना नहीं बना पाते..." जिंदगी ने अपने पापा को देखा था, उन्हें चाय तक बनानी नहीं आती थी।

    "क्यों लड़कों को भूख नहीं लगती क्या??" साहिर का अगला सवाल था।

    "नहीं लगती है, उन्हें तो और सबसे पहले जोरों की भूख लगती है। पर बनाना....." जिंदगी अपने पापा को सोच कर मुस्कुराई जिनसे एक टाइम भी भूखे नहीं रखा जा सकता था, पर खुद कुछ भी बनाना नहीं आता था।

    "मेरा मानना है कि लड़का हो या लड़की, जब खाने की जरूरत सभी को पड़ती है तो खाना बनाना भी सभी को आना चाहिए। क्योंकि भूखे सो कर उठा जा सकता है लेकिन भूखे पेट सोया नहीं जा सकता।" साहिर ने गैस ऑन करते हुए जिंदगी से गंभीर लहजे में कहा।

    "बात तो आपकी सही है, भूखे पेट नींद नहीं आती...." जिंदगी ने मुंह बनाते हुए कहा।

    "यह बात तो समझ गई, पर जो पहले बात समझाई थी, समझ में आई??" साहिर ने जिंदगी की छोटी सी नाक को पकड़ते हुए पूछा।

    "कौन सी बात??" जिंदगी ने अपनी बड़ी बड़ी आंखें उठाकर साहिर से पूछा।

    "वही बात, आटे में कितना घी पड़ेगा और कितना पानी??"

    "हां...." जिंदगी ने समझने वाले अंदाज में अपना सर हिलाया।

    "जानती हो जिंदगी, हमारी जिंदगी भी इस आटे के जैसी है। इसमें हर चीज की मात्रा सही होनी चाहिए, तभी हम अपनी जिंदगी का आनंद उठा सकेंगे या फिर अपनी जिंदगी को एक नया आकार या मुकाम दे सकेंगे। वरना अगर थोड़ी सी भी मस्ती हमने अपनी जिंदगी को सवारने में की, तो फिर इसे बिगड़ने से कोई नहीं रोक सकता।" साहिर आटे की लोई बनाते हुए जिंदगी को दिखाया। हल्के से दबाव पड़ने पर भी गूंथा हुआ आटा अपना आकार बदल रहा था। जिंदगी ने नासमझी में साहिल की तरफ देखा। वह समझ नहीं पा रही थी कि साहिर आखिर कहना क्या चाह रहा है??

  • 10. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 10

    Words: 1052

    Estimated Reading Time: 7 min

    "जानती हो जिंदगी.... हमारी जिंदगी भी इस आटे के जैसी है.... इसमें हर चीज की मात्रा सही होनी चाहिए... तभी हम अपनी जिंदगी का आनंद उठा सकेंगे.... या फिर अपनी जिंदगी को एक नया आकार या मुकाम दे सकेंगे। वरना अगर थोड़ी सी भी मस्ती हमने अपनी जिंदगी को सवारने में की.... तो फिर इसे बिगड़ने से कोई नहीं रोक सकता।" साहिर आटे की लोई बनाते हुए जिंदगी को दिखा रहा था। हल्के से दबाव पड़ने पर भी गूंथा हुआ आटा अपना आकार बदल रहा था। जिंदगी ने नासमझी में साहिर की तरफ देखा। वह समझ नहीं पा रही थी कि साहिर आखिर कहना क्या चाह रहा है?

    "जिस तरह इस लोई को गोल करना या चौकोर करना हमारे हाथ में है, उसी तरह अपनी जिंदगी को भी एक नई दिशा देना हमारे हाथ में होता है। देखो, यह चौकोर करने पर यह कैसा लग रहा?? और गोल करने पर कैसा?? अब यह हमारे हाथ में निर्भर है कि हम अपनी जिंदगी को कौन सी दिशा देना चाहते हैं? खेल और मस्ती में इस तरह से लोई बनाना बड़ा अच्छा लगता है... पर यह सोचो कि इस तरह क्या इनकी बाटी अच्छे से सेंक पाएंगे?? बिल्कुल नहीं.... कहीं ना कहीं से कच्ची ही रह जाएंगी और ऐसे में हम खाने का असली स्वाद नहीं उठा पाएंगे।

    उसी तरह हमारी जिंदगी में भी खेल और मस्ती जरूरी है.... परंतु एक हद तक। हम अपनी जिंदगी के साथ कोई मस्ती या बड़ा खिलवाड़ नहीं कर सकते.... वरना यह जिंदगी हमें फिर पछताने का भी मौका नहीं देगी।"

    साहिर की बात बहुत बड़ी थी, जिसे बहुत हद तक जिंदगी समझ भी रही थी।

    "मैं कोशिश कर रही थी...." जिंदगी अपने हाथों में लिए हुए लोई को देखकर धीरे से बोली। साहिर जहां गोल गोल बाटी बना रहा था और उन्हें बीच से काटता जा रहा था, वहीं जिंदगी को आटे के साथ खेलने में मजा आ रहा था। पर साहिर की तेज आंखों से कुछ भी छुपा हुआ नहीं था, और अपनी गलती पकड़ में आते हुए देखकर जिंदगी शर्मिंदा थी।

    "बिल्कुल कोशिश करनी चाहिए.... पर जहां समझ ना आए, वहां पूछ भी लेना चाहिए... आखिर घर में बड़े होते किस लिए हैं?? क्योंकि हर चीज में अगर एक्सपेरिमेंट करती चलोगी ना, तो भूखे पेट सोना भी पड़ सकता है..." साहिर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

    "चलो...प्याज लाओ। मैं तुम्हें दाल फ्राई करना बताता हूं।"

    "हां... आप मुझे बताइए... मैं वैसा करने की कोशिश करती हूं...." जिंदगी खुश होकर बोली।

    "गुड गर्ल...." इसके बाद साहिर बताता चला गया और जिंदगी बनाती चली गई।

    दोनों ने मिलकर दाल बाटी चूरमा और गट्टे की सब्जी बनाई।

    पर यह बना कैसा था? यह तो खाना खाने वाले खाने के बाद ही बताते!

    "क्या बात है हुकुम?? आज तो खाना आपने हमारी पसंद का बनाया है।" डाइनिंग टेबल पर अपनी चेयर के पास आते हुए जितेंद्र जी ने जानवी जी से कहा।

    "खाना मैंने नहीं... आपकी लाडो ने बनाया है...." जानवी जी ने पहले ही अपने हाथ खड़े कर लिए थे क्योंकि जितेंद्र जी को खाने में थोड़ा भी एक्सपेरिमेंट बर्दाश्त नहीं था। उनका साफ कहना था, "अगर बंदा खाएगा नहीं... तो काम कैसे करेगा?" इसलिए वह खाने-पीने के बहुत शौकीन थे और उसी तरह का लज़ीज़ खाना भी पसंद करते थे।

    "वही तो मैं भी सोच रहा हूं... यह स्वाद तो आपके हाथों का नहीं है। वैसे खाना बड़ा स्वादिष्ट है। हमें तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि हमारी लाडो ने इतना लजीज खाना बनाया है?? क्यों प्रेम सा?" जितेंद्र जी ने दाल बाटी खाते हुए प्रेम की तरफ देखकर कहा।

    जानवी जी ने अचरज भरी नजरों के साथ जिंदगी की तरफ देखा, जिसकी गर्दन फक्र से अकड़ी हुई थी।

    "यह खाना सच में जिंदगी ने बनाया है?" जानवी जी ने मुंह में पहला निवाला डालते हुए पूछा।

    "नहीं रेस्टोरेंट से आर्डर किया था।" जिंदगी अपनी गर्दन उठाते हुए बोली।

    "वही तो मैं सोचूं?? जैसे पापा वैसी पापा की लाडो... वह भला कहां ऐसी बाटी बना सकेगी?? यह जरूर किसी राजस्थानी रेस्टोरेंट से ही मंगवाया हुआ है..." जानवी जी आराम से बोलीं।

    "बिल्कुल नहीं... पूछ लीजिए कंवर सा से। हमने खुद अपने हाथों से बनाया है।" जिंदगी अपनी उंगलियां दिखाते हुए बोली।

    मां बेटी की बात सुनकर जितेंद्र जी को हंसी आ गई और उन्हें जोरों का झटका लग गया। वह तेजी से खांसने लगे। अभी कोई कुछ समझ पाता कि उसके पहले ही जिंदगी दौड़ते हुए उनके चेयर के पास आई और पानी का गिलास उठाकर उन्हें दिया।

    "आराम से पापा सा।" जिंदगी उनका पीठ सहलाने लगी।

    "इट्स ओके बेटा.... मैं ठीक हूं... पर आपकी मम्मा ने बात ही ऐसी की है कि!!!" जितेंद्र जी ने जानवी जी को देखते हुए कहा।

    "मैंने क्या गलत कह दिया... जो सच है वही कहा है.... ये खाना आपकी लाडो ने नहीं बनाया।" जानवी जी ने कहा।

    "नहीं छोटी मां सा। खाना आज जिंदगी ने ही बनाया है।" साहिर ने एक नजर जिंदगी की तरफ देखा जो कि सब के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर बहुत खुश हो रही थी। वह जिंदगी के होठों की खुशी नहीं कम करना चाहता था। साहिर के मुंह से यह बात सुनते ही जानवी जी की आंखें हैरत से बड़ी हो गईं। उन्होंने तुरंत अपने गले का हार उतार कर जिंदगी के गले में पहना दिया।

    "मुझे विश्वास नहीं हो रहा... पर जब कवर सा कह रहे हैं... तो बनाया ही होगा.... सच में ऐसा दाल बाटी चूरमा... तो मैं भी नहीं बना सकती।"

    "तो फिर मानती है ना आप?? हमारी बेटी आपसे भी अच्छी है।" जितेंद्र जी फक्र से बोले।

    वहीं प्रेम ने जब पहला निवाला मुंह में डाला, तभी वह समझ गया कि ये किसने बनाया है?? उसने साहिर की तरफ देखा, जो प्रेम की नजरों से आंखें चुराता हुआ अपने प्लेट में झुक गया था। साहिर को ऐसा करते हुए देखकर प्रेम के होठों पर मुस्कुराहट चली आई।

    उन्हें कुछ भी कहने और बताने की जरूरत नहीं पड़ी थी। खाने के जायके और साहिर की हरकत ने उनके सामने यह साफ जाहिर कर दिया था कि यह खाना बनाने वाला कौन है?

    पर क्या राणा साहब इतनी आसानी से इसे स्वीकार करेंगे?

    क्या करेंगे अपनी जिंदगी को बचाने के लिए या फिर जिंदगी खुद अपनी नादानी में सारे राज उगल देगी?

  • 11. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 11

    Words: 1032

    Estimated Reading Time: 7 min

    "जिस तरह इस लोई को गोल करना या चौकोर करना हमारे हाथ में है, उसी तरह अपनी जिंदगी को भी एक नई दिशा देना हमारे हाथ में होता है। देखो, यह चौकोर करने पर कैसा लग रहा है?? और गोल करने पर कैसा?? अब यह हमारे हाथ में निर्भर है कि हम अपनी जिंदगी को कौन सी दिशा देना चाहते हैं?? खेल और मस्ती में इस तरह से लोई बनाना बड़ा अच्छा लगता है... पर यह सोचो कि इस तरह क्या इनकी बाटी अच्छे से सेंक पाएंगे?? बिल्कुल नहीं.... कहीं ना कहीं से कच्ची ही रह जाएंगी और ऐसे में हम खाने का असली स्वाद नहीं उठा पाएंगे।
    उसी तरह हमारी जिंदगी में भी खेल और मस्ती जरूरी है.... परंतु एक हद तक। हम अपनी जिंदगी के साथ कोई मस्ती या बड़ा खिलवाड़ नहीं कर सकते.... वरना यह जिंदगी हमें फिर पछताने का भी मौका नहीं देगी।"

    साहिर की बात बहुत बड़ी थी, जिसे बहुत हद तक जिंदगी समझ भी रही थी।

    "मैं कोशिश कर रही थी...." जिंदगी अपने हाथों में लिए हुए लोई को देखकर धीरे से बोली। साहिर जहां गोल-गोल बाटी बना रहा था और उन्हें बीच से काटता जा रहा था, वहीं जिंदगी को आटे के साथ खेलने में मजा आ रहा था, पर साहिर की तेज आखों से कुछ भी छुपा हुआ नहीं था और अभी अपनी गलती पकड़ में आते हुए देखकर जिंदगी शर्मिंदा थी।

    "बिल्कुल कोशिश करनी चाहिए.... पर जहां समझ ना आए, वहां पूछ भी लेना चाहिए... आखिर घर में बड़े होते किस लिए हैं?? क्योंकि हर चीज में अगर एक्सपेरिमेंट करती चलोगी ना, तो भूखे पेट सोना भी पड़ सकता है..." साहिर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

    "चलो... प्याज लाओ, मैं तुम्हें दाल फ्राई करना बताता हूं।"

    "हां... आप मुझे बताइए... मैं वैसा करने की कोशिश करती हूं...." जिंदगी खुश होकर बोली।

    "गुड गर्ल...." इसके बाद साहिर बताता चला गया और जिंदगी बनाती चली गई।

    दोनों ने मिलकर दाल बाटी चूरमा और गट्टे की सब्जी बनाई।

    ********

    "क्या बात है हुकुम?? आज तो खाना आपने हमारी पसंद का बनाया है।" डाइनिंग टेबल पर अपनी चेयर के पास आते हुए जितेंद्र जी ने जानवी जी से कहा।

    "खाना मैंने नहीं, आपकी लाडो ने बनाया है...." जानवी जी ने पहले ही अपने हाथ खड़े कर लिए थे, क्योंकि जितेंद्र जी को खाने में थोड़ा भी एक्सपेरिमेंट बर्दाश्त नहीं था। उनका साफ कहना था, "अगर बंदा खाएगा नहीं, तो काम कैसे करेगा??" इसलिए वह खाने-पीने के बहुत शौकीन थे और उसी तरह का लज़ीज़ खाना भी पसंद करते थे।

    "वही तो मैं भी सोच रहा हूं... यह स्वाद तो आपके हाथों का नहीं है। वैसे खाना बड़ा स्वादिष्ट है। हमें तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि हमारी लाडो ने इतना लजीज खाना बनाया है?? क्यों प्रेम सा??" जितेंद्र जी ने दाल बाटी खाते हुए प्रेम की तरफ देखकर कहा।

    जानवी जी ने अचरज भरी नजरों के साथ जिंदगी की तरफ देखा, जिसकी गर्दन फक्र से अकड़ी हुई थी।

    "यह खाना सच में जिंदगी ने बनाया है??" जानवी जी ने मुंह में पहला निवाला डालते हुए पूछा।

    "नहीं रेस्टोरेंट से आर्डर किया था।" जिंदगी अपनी गर्दन उठाते हुए बोली।

    "वही तो मैं सोचूं?? जैसे पापा वैसी पापा की लाडो... वह भला कहां ऐसी बाटी बना सकेगी?? यह जरूर किसी राजस्थानी रेस्टोरेंट से ही मंगवाया हुआ है..." जानवी जी आराम से बोली।

    "बिल्कुल नहीं... पूछ लीजिए कंवर सा से। हमने खुद अपने हाथों से बनाया है।" जिंदगी अपनी उंगलियां दिखाते हुए बोली।

    मां बेटी की बात सुनकर जितेंद्र जी को हंसी आ गई और उन्हें जोरों का झटका लग गया। वह तेजी से खांसने लगे। अभी कोई कुछ समझ पाता कि उसके पहले ही जिंदगी दौड़ते हुए उनके चेयर के पास आई और पानी का गिलास उठाकर उन्हें दिया।

    "आराम से पापा सा।" जिंदगी उनका पीठ सहलाने लगी।

    "इट्स ओके बेटा, मैं ठीक हूं... पर आपकी मम्मा ने बात ही ऐसी की है कि!!!" जितेंद्र जी ने जानवी जी को देखते हुए कहा।

    "मैंने क्या गलत कह दिया... जो सच है वही कहा है.... ये खाना आपकी लाडो ने नहीं बनाया।" जानवी जी ने कहा।

    "नहीं छोटी मां सा। खाना आज जिंदगी ने ही बनाया है।" साहिर ने एक नजर जिंदगी की तरफ देखा जो कि सब के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर बहुत खुश हो रही थी। वह जिंदगी के होठों की खुशी नहीं कम करना चाहता था। साहिर के मुंह से यह बात सुनते ही जानवी जी की आंखें हैरत से बड़ी हो गई। उन्होंने तुरंत अपने गले का हार उतार कर जिंदगी के गले में पहना दिया।

    "मुझे विश्वास नहीं हो रहा... पर जब कंवर सा कह रहे हैं, तो बनाया ही होगा.... सच में ऐसा दाल बाटी चूरमा तो मैं भी नहीं बना सकती।"

    "तो फिर मानती है ना आप?? हमारी बेटी आपसे भी अच्छी है।" जितेंद्र जी फक्र से बोले।

    वहीं प्रेम ने जब पहला निवाला मुंह में डाला, तभी वह समझ गया कि ये किसने बनाया है?? उसने साहिर की तरफ देखा, जो प्रेम की नजरों से आंखें चुराता हुआ अपने प्लेट में झुक गया था। साहिर को ऐसा करते हुए देखकर प्रेम के होठों पर मुस्कुराहट चली आई।

    "मतलब तू यह कह रही है कि पहले साहिर सिंह राणा ने तुझसे दाल बाटी की फरमाइश की और उसके बाद जब तूने उनके फेवरेट डिश का कूड़ा निकाल दिया, तो तुझ पर गुस्सा भी नहीं किया...." मीठी ने हैरानी में जिंदगी की तरफ देखते हुए पूछा।

    जिंदगी ने सहमत होते हुए सर हिलाया।

    "...और फिर उसके बाद उसने तुझे दाल बाटी चूरमा बनाना भी सिखाया??" नीति पर तो हैरत के पहाड़ टूट रहे थे।

    जिंदगी ने हां में सिर हिलाया।

    "... और उसके बाद कोई क्रेडिट भी नहीं लिया?? सारा क्रेडिट तेरे खाते में डाल दिया।" पूर्वी ने खड़े होते हुए पूछा।

    "... और फिर तुझे कंप्यूटर क्लास ज्वाइन करने की परमिशन भी दे डाली।" मीठी ने पूछा।

    "अरे हां बाबा हां कितनी बार बताऊं??" अबकी बार जिंदगी थोड़ा जोर से बोली और अपना सर पकड़ लिया।

    तीनों लड़कियों ने एक दूसरे की तरफ देखा और अगले ही पल खुल कर हंस पड़ी। जिंदगी ने हैरानी से अपनी सहेलियों की तरफ देखा जो कि पागलों की तरह लगातार हंसती ही जा रही थी।

    जिंदगी सुलग गई थी "पागल हो गई हो तुम सब!"

  • 12. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 12

    Words: 1314

    Estimated Reading Time: 8 min

    जिंदगी अपनी सहेलियों के साथ अपनी आप बीती शेयर कर रही थी। इस समय ये चारों एक कैफेटेरिया में बैठी हुई बात कर रही थीं और साथ में सामने रखे हुए नाश्ते के साथ इंसाफ भी कर रही थीं।

    जिंदगी को कंप्यूटर क्लास ज्वाइन करने की परमिशन मिल गई थी। इसी खुशी में इन लोगों ने सेलिब्रेशन का प्रोग्राम बनाया था और जब यहाँ इन लोगों को ये शॉकिंग न्यूज़ सुनने को मिली तो पहले इन्हें इस चीज पर विश्वास ही नहीं हुआ और जब विश्वास हुआ तो पागलों की तरह हंसी जा रही थीं।

    "पागल हो गई हो क्या तुम लोग??" जिंदगी ने आसपास नजर दौड़ाते हुए कहा। इन तीनों लड़कियों की हंसी की आवाज इतनी तेज थी कि अगल-बगल के टेबल वाले भी इनकी तरफ देखने लगे थे।

    "क्या कर रही हो बेवकूफ लड़कियों?? सब हमारी तरफ देख रहे हैं।" जिंदगी ने भरसक अपनी आवाज़ धीमी रखने की कोशिश की वरना उसे गुस्सा बहुत तेज आ रहा था।

    "अरे यार !! तूने बात ही ऐसी की है।" अपनी हंसी रोकते हुए किसी तरह से पूर्वी ने कहा।

    "मैंने कौन सी बात ऐसी की है??" जिंदगी ने सोचते हुए पूछा।

    "और नहीं तो क्या?? तू कहती है कि साहिर तुझसे प्यार नहीं करता। अरे पागल!! अगर तुझसे प्यार नहीं करता तो तेरे लिए इतना क्यों करता है??" पूर्वी ने जिंदगी की आंखों में देखते हुए पूछा।

    "क्या करता है?? उसे दाल बाटी चूरमा खाना था तो उसने बनाया। इसमें उसने मेरे ऊपर कौन सा एहसान किया??" जिंदगी ने आराम से पूर्वी की आंखों में देखते हुए जवाब दिया।

    "ठीक है उन्हें खाना था तो उन्होंने बनाया लेकिन उन्होंने अपने हिस्से का क्रेडिट भी तेरे को दे दिया। यह क्या कम है??" अबकी बार नीति बोली।

    "वही तो इस बेवकूफ को समझ नहीं आ रहा है। यहां आजकल के जमाने में तो लोग एक कप चाय की भी क्रेडिट किसी को नहीं देते। उसने पूरे टेस्टी डिनर का क्रेडिट तुझे दे दिया।" पूर्वी बोली।

    "बात में दम है, आई एग्री।" मोना ने अपनी सहेलियों से सहमत होते हुए कहा।

    "क्रेडिट!!! क्रेडिट तो तुम लोग इस तरह से कह रही हो लग रहा है जैसे उन्होंने अपना क्रेडिट कार्ड ही निकाल कर मुझे दे दिया है, मनचाही शॉपिंग करने के लिए।" जिंदगी नाक सिकुड़ते हुए बोली।

    "एक बार मांग कर तो देखा होता।"

    "जिंदगी अगर तू उनसे उनकी जान भी मांग कर देखेगी ना तो वह भी निकाल कर वो सामने रख देते।" पूर्वी ने पूरे विश्वास के साथ कहा।

    "बड़ा आई निकालकर सामने रख देते।" जिंदगी ने सर झटकते हुए कहा।

    "क्या?? सच कहना जिंदगी, उन्होंने तेरे शॉपिंग पर रोक लगा रखी है??" नीति ने आंखें छोटी करते हुए हल्के गुस्से में जिंदगी से पूछा।

    "नहीं।" जिंदगी सोचते हुए बोली।

    "क्या उन्होंने कभी भी तेरी शॉपिंग का हिसाब तुझसे मांगा??" अगला सवाल पूर्वी की तरफ से आया।

    जिंदगी ने इनकार में सिर हिलाया।

    "क्या उन्होंने कभी भी तुझे पैसे खर्च करने से रोका??" यह मोना की तरफ से था।

    "नहीं।"

    जिंदगी अपनी पलके झुकाती हुई बोली।

    सच तो यह था कि साहिर सिंह राणा खुद उसे अपने साथ लेकर शॉपिंग मॉल में जाता था और बिना प्राइस टैग देखे हुए जिंदगी को जो चाहिए था चुपचाप दिलवा दिया करता था और इतना ही नहीं अगर वह आउट ऑफ कंट्री अपने बिजनेस के सिलसिले में जाता था तो वहां से जिंदगी के लिए कुछ ना कुछ खरीद कर लेकर आता ही था। कल भी वह जिंदगी के लिए एक खूबसूरत नाजुक सा ब्रेसलेट लेकर आया था जो इस वक्त जिंदगी के हाथों में था।

    "वही तो तू कब समझेगी जिंदगी ??? साहिर तुझसे मोहब्बत करते हैं पर यह बात अलग है कि वह इसे जताना या दिखाना नहीं चाहते।" पूर्वी ने कहा।

    "हां तो करते रहना मोहब्बत, किसने मना किया है?? मुझे तो बस कंप्यूटर क्लास ज्वाइन करने की परमिशन मांगनी थी तो मिल गई और उसके बाद उसे जो करना है करते रहे।" जिंदगी आराम से बोली।

    "तेरा कुछ नहीं हो सकता जिंदगी।" तीनों लड़कियों ने अपना सिर हिलाया।

    "कुछ होना भी नहीं चाहिए वरना वह शेर सिंह राणा मुझे फांसी पर लटका देगा।" जिंदगी ने जैसे राज आउट किया।

    "क्या?? और अब यह शेर सिंह राणा कौन है??" पूर्वी ने पूछा।

    "अरे वही!! जो दिन-रात मुझ पर गरजता रहता है और कौन??" जिंदगी ने हल्के गुस्से से कहा।

    "वह गुस्से से तेरे सामने नहीं गरजते बल्कि तू ही उन्हें देखकर भीगी बिल्ली बन जाती है। लेकिन वह तुम्हें फांसी पर क्यों लटकाएंगे??" लड़कियों ने आंखें छोटी की।

    "हां यह बात तो मैं तुम लोगों को बताना भूल ही गई थी। उन्होंने कहा है कि अच्छे से जाना और अच्छे से आना और कोई प्रॉब्लम हो तो सीधा उन्हें खबर करना। समझ में आ गई बात। उन्हें मेरे ऊपर अपनी पैनी नजर बनाए रखना है।" जिंदगी ने साहिर की नकल उतारते हुए बताया।

    "वह तेरे ऊपर अपनी पैनी नजर बनाकर तेरी चौकीदारी नहीं करता बल्कि उन्हें सच में तेरी चिंता होती है इसलिए तेरे हर पल की खबर रखते हैं वरना तू कितनी समझदार है!! यह हम सब जानते हैं।" मोना ने जिंदगी के सर पर मारते हुए कहा।

    "कोई भी बात हो इधर से उधर से पर बात तो वही हुई ना।" जिंदगी सब कुछ कर जान कर भी मानने को तैयार नहीं थी।

    "यह जयंत का क्या चक्कर है जिंदगी?" पूर्वी ने अबकी बार सीरियस होते हुए जिंदगी से पूछा।

    "मेरा कोई चक्कर नहीं है उसके साथ।" जिंदगी आराम से बोली।

    "तो फिर तू उससे इतना बात क्यों करती है?? क्या साहिर भाई को इस बारे में पता है??" मोना ने पूछा।

    जिंदगी ने इनकार में सिर हिलाया।

    "और तुम सब भी बताना मत।" जिंदगी ने लगे हाथ एक नया ऑर्डर दे दिया।

    "क्यों??" नीति ने हैरान होते हुए पूछा।

    "बस ऐसे ही, मुझे नहीं लगता कि वह इसे पसंद करते होंगे।" जिंदगी को कोई बहाना समझ नहीं आया।

    "पसंद करने लायक कोई बात भी तो होनी चाहिए ना बंदे में।" नीति ने कहा।

    "क्या मतलब तुम्हारा??" जिंदगी ने अपनी आंखें छोटी की।

    "वही मतलब जो कि तू समझ कर भी नहीं समझना चाहती। अच्छी चीज की कदर तुझे समझ में नहीं आती और शीशे की चमक देखकर दौड़ जाती है। देख जिंदगी पता नहीं क्यों?? मुझे उस लड़के के साथ कोई पॉजिटिव फीलिंग नहीं आती और तुझे एक बात यह भी बताना था कि मैंने कल उन्हें अपने कंप्यूटर सेंटर के चक्कर काटते हुए भी देखा है।"

    "हां वह बता रहा था, वह मुझे ढूंढने गया था। उसे मुझसे मिलना था।" जिंदगी आराम से बोली जैसे उसे इस बात का पहले से ही पता था।

    "तो अगर वह तुझसे इतना ही ज्यादा जरूरी मिलना चाहते थे तो तेरे घर क्यों नहीं गए??" पूर्वी ने जिंदगी को समझाना चाहा।

    "यार वह मुझसे मिलना चाहता था, मेरे घर वालों से नहीं और वैसे भी घर ना आने के उसके पास कई और भी कारण हैं।"

    "जैसे।" नीति ने जानना चाहा।

    "बहुत कुछ है अभी उसने मुझे भी नहीं बताया पर जल्दी बता देगा।" जिंदगी ने जैसे जयंत के मुद्दे पर कुछ भी सुनने से इनकार करते हुए कहा। आजकल उसकी और जयंत की फोन पर लंबी बातचीत हो रही थी। शायद यह उसी का नतीजा था। धीरे-धीरे जयंत की बातों ने उस पर असर करना शुरू कर दिया था।

    "तो फिर मैडम हम चलें।" अचानक से जिंदगी को अपने पीछे से आवाज सुनाई पड़ी।

    जिंदगी जो कि उस वक्त कोल्ड कॉफी पी रही थी, उसके हाथों से केन उछल गई और सीधे पीछे वाले इंसान के कपड़ों पर गिर गई।

    "ओह नो..." जिंदगी ने मुड़ कर सामने खड़े शख्स की तरफ देखा और फिर उसके कपड़ों की तरफ जो कि कोल्ड कॉफी के गिरने की वजह से बुरी तरह से खराब हो गए थे। अपनी बेवकूफी पर जिंदगी ने कस कर अपनी आंखें बंद कर ली।

    क्रमश:

  • 13. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 13

    Words: 2152

    Estimated Reading Time: 13 min

    आज जिंदगी का पहला दिन था....उसके कॉलेज में।
    जिंदगी, पूर्वी और मीठी ने दिल्ली के सबसे बड़े कॉलेज में एडमिशन लिया था। बाकी की सहेलियां दूसरे कॉलेज में थी।
    स्कूल से निकलने के बाद कॉलेज की रंग बिरंगी दुनिया... इन लोगों का बाहें फैलाकर इंतजार कर रही थी। जिसको लेकर यह तीनों बहुत एक्साइटिड भी थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी का ये टॉप कॉलेज.... जहां एडमिशन मिलना भी बहुत मुश्किल था। उसका एग्जाम इन तीनों ने क्लियर कर लिया था। बस प्रॉब्लम इतनी थी.... कि जहां जिंदगी को उसकी मनचाही स्ट्रीम में एडमिशन मिला था, उसकी बाकी की दो सहेलियां दूसरे स्ट्रीम में थी। बस एक ही सब्जेक्ट इन तीनों का कॉमन था।
    "कितना अच्छा लग रहा है ना यहां कर??" मीठी ने गेट से इंटर होते हुए जिंदगी से कहा।
    "हां यार.... और भी ज्यादा अच्छा लगता... अगर वह तीनों भी हमारे साथ होती।" जिंदगी नीति को बहुत मिस कर रही थी।
    "बात तो सही है तेरी.... हम 6 पीजी से एक साथ ही थे.... बस कॉलेज में आकर अलग हो गए।"
    "उन तीनों से तो एंट्रेस ही नहीं निकला... पता नहीं तीन महीनों में क्या कर रही थी?? घर पर बैठकर दाल बाटी चूरमा बनाना सीख रही थी... बन गया उनका चूरमा..." जिंदगी अभी भी नीति से गुस्सा थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे कि नीति ने अपनी लापरवाही में इतना अच्छा मौका हाथ से छोड़ दिया था।
    "वह तो तू सीख रही थी...अपने साहिर के साथ।" पूर्वी हंसते हुए बोली।
    "अपने साहिर" शब्द को सुनकर जिंदगी ने उसे हल्के नाराजगी से देखा।
    "छोड़ो ना यार !!तुम लोग भी क्या बात लेकर बैठ गई...." मीठी ने बीच बचाव करते हुए कहा।
    "उसके बारे में सोच कर अपना खून क्यों जला रही है??.... अब तक तो हम लोग गर्ल्स स्कूल में पढ़े और वहां के स्ट्रिक्ट कायदे कानून में रहे.... यहां आकर हमें आजादी का अनुभव हो रहा है। देख ना कितना अच्छा लग रहा है...." मीठी ने इन दोनों का ध्यान कॉलेज के बड़े से कैंपस की तरफ आकृष्ट करते हुए कहा, जहां रंग-बिरंगे कपड़ों में सब एक से बढ़कर एक फैशन के नायाब नमूने.... मॉडल ही लग रहे थे।
    "बात तो सही है तेरी.... उस बोर्डिंग स्कूल.. और बोरिंग ड्रेस से आजादी मिली...." जिंदगी खुली हवा में सांस लेते हुए बोली।
    "मुझे तो हैरानी इस बात की हो रही है कि साहिर ने तुम्हें इस कॉलेज में एडमिशन लेने की परमिशन कैसे दे दी ? वह भी बिना किसी बहस के.... एक बार में बात मान कर?" पूर्वी ने आश्चर्य से जिंदगी से पूछा।
    "वही तो मैं भी सोच रही थी...." मीठी ने जिंदगी की तरफ देखते हुए कहा।
    "यह तुम मुझे सच में नहीं पता... कि कड़वा करेला अचानक से कैसे मीठा आम बन गया.??.. मैंने जब इस कॉलेज में एडमिशन लेने की बात की.... तो उन्होंने बस इतना ही कहा... जो भी करो सोच समझ कर करो.... ऐसा ना हो कि तुम्हें बाद में अपने फैसले पर पछताना पड़े.... बस इतना याद रखना कि तुम कॉलेज सिर्फ पढ़ने के लिए जा रही हो और वहां पर क्या होता है?? इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए। कोई प्रॉब्लम हो तो सीधे उनको फोन करूंगी।" जिंदगी साहिर के स्टाइल में उसकी नकल उतारते हुए बोली।
    "बाकी पिक एंड ड्रॉप की जिम्मेदारी उन्होंने ड्राइवर को दे दी है... और अपने गार्ड भी लगा ही दिए होंगे... भला उस इंसान को मेरी आजादी कहां हजम होती है??" जिंदगी मुंह बनाते हुए बोली।

    आज कॉलेज का पहला दिन था। इसलिए जितेंद्र जी खुद इन तीनों को कॉलेज छोड़ने आए थे। कॉलेज के गेट पर.... इन लोगों को उतारकर... वह अपने ऑफिस चले गए और उसके बाद यह तीनों कॉलेज के गेट से... उसके बड़े से कैंपस को पार करते हुए.... यह तीनों आपस में मगन बातें करते हुए.... अपने क्लास की तरफ जा रही थी। तभी उन्होंने लड़के लड़कियों को झुंड में इकट्ठा देखा।
    "यह क्या हो रहा है यहां पर??" मीठी ने उधर देखते हुए पूछा।
    "कुछ भी नहीं चुपचाप किनारे से निकल ले। उधर रैगिंग हो रही है।" पूर्वी ने दूर से ही देखकर बताया।
    "पर हमारे कॉलेज में तो रैगिंग कानूनी जुर्म है ना??" जिंदगी ने अपना ज्ञान धरा।
    "रैगिंग पूरी तरह से कानूनी जुर्म ही है.... सिर्फ हमारे कॉलेज में नहीं.... बल्कि सारे कॉलेजों में। लेकिन यह सुपर सीनियर और सीनियर इस बात को समझे तब ना !! इन्हें तो बस जूनियर को परेशान करने का एक मौका मिलना चाहिए।" पूर्वी ने कहा।
    "अरे ओ स्वर्ग लोक से उतरी हुई अप्सराओं.....खूबसूरती की देवियों!! किधर निकली जा रही हो!!" एक सीनियर लड़के ने इन लोगों को रास्ता बदल कर जाते हुए देखा तो चिल्लाया।
    "अरे!! ये तो जले हुए पैर की बिल्लियों की तरह रास्ता बदल कर जा रही हैं.... आ जाओ देवियों.... बिना दरबार में हाजिरी लगाएं... कॉलेज में एंट्री नहीं मिलेगी..." एक वहीं से चिल्लाया।
    "तूने मारी एंट्री यार.... दिल में बजी घंटियां...." एक ने अपने सीने पर हाथ रखकर एक्टिंग करते हुए पीछे से जुमला उछाला। उसकी बात सुनकर सब ठहाका लगाकर हंस पड़े।
    "हमें पीछे मुड़कर नहीं देखना है... चुपचाप चलते जाओ... क्लास की ओर।" मीठी ने कहा। जिंदगी ने हां में सिर हिलाया। पूर्वी और मीठी का हाथ पकड़े हुए जिंदगी इन लोगों की बात को इग्नोर करते हुए निकल रही थी। तब तक उनमें से एक लड़का जो कि शायद इन सब का बॉस था, इन लोगों के सामने आकर खड़ा हो गया।
    "क्या हुआ मैडम जी?? कान लपेट रखे हैं या फिर सुनाई नहीं देता?? चलो ... उधर..."
    अपने दोनों बाहों को अपने सीने के पास लपेटे हुए लड़के ने जिंदगी को आर्डर दिया। बाकी दोनों लड़कियां पहले ही किनारे हो गई थी।
    जिंदगी ने अपना सर उठाकर उस लड़के की तरफ देखा। करीब 5 फुट 10 इंच हाइट वाला ये खूबसूरत सा मस्कुलर बॉडी वाला लड़का.... जिंदगी को खतरनाक तेवरों के साथ घूर रहा था।
    "हमारा रास्ता छोड़ो... हमें क्लास के लिए देर हो रही है...." जिंदगी ने भरसक अपनी आवाज को मजबूत बनाते हुए हल्के गुस्से से कहा।
    "छोड़ो!! क्या कहा तुमने ""छोड़ो""और कहा भी तो यह शब्द किससे कहा?? क्या तुम्हें इतना भी नहीं पता कि सीनियर से रिस्पेक्ट से बात की जाती है।" लड़के ने अपनी एक आईब्रो ऊपर उठाते हुए कहा।
    तभी उसका एक दूसरा दोस्त आया और उसने पहले वाले के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "अरे यार!! पहले ही दिन सारे लेसन सीखा देगा.... अभी नई आई है.... ना जाने किस ग्रह से उतर कर आई है... 2-4 दिन इनकी जमकर खातिरदारी होगी। बस तब हमारी पृथ्वी के सारे कायदे कानून यह सीख जाएंगी?? क्यों मैडम?? सही कहा ना हमने??" दूसरा लड़का हंसते हुए बोला।
    "दूसरे ग्रह से उतर कर आई है...." शब्द जिंदगी को बड़ा चुभ रहा था। और उसमें भी कायदे कानून सिखाना.... उसका तो मन कर रहा था कि अभी या दो चार गालियां देकर... इसे सारे कायदे कानून अच्छे से सिखा कर... इसका दिमाग साफ कर दे.... लेकिन अभी पलट कर जवाब देना सही नहीं था... वैसे भी घर से निकलते वक्त भी.... मम्मी ने उसे इन सब लफड़ो से दूर रहने के लिए ही कहा था। जिंदगी ने अपने आसपास देखा सब खड़े होकर तमाशा देख रहे थे।
    "चलो चुपचाप...." पहले वाले ने आर्डर दिया। मन मार कर जिंदगी और मीठी को उधर जाना ही पड़ा और ना चाहते हुए भी रैगिंग का हिस्सा बनना पड़ा।
    "तो तुम हो... जो हम लोगों को इग्नोर करके जा रही थी...." जिंदगी की बारी आने पर एक लड़का जिंदगी के सामने खड़े होकर बोला।
    "नाम क्या है तुम्हारा??" लड़के ने कड़क आवाज में पूछा।
    "जिंदगी...."
    "जिंदगी !!!" लड़के के होठों ने जिंदगी का नाम दोहराया।
    "नाम तो बहुत सुंदर है तुम्हारा.... बिल्कुल तुम्हारी तरह... पर हो किसकी जिंदगी?? तुम तो बहुत रंगीन हो.... पर वह क्या है ना कि आजकल अपनी जिंदगी बड़ी उदास उदास चल रही है।" लड़के ने जिंदगी के नाम का मजाक उड़ाते हुए कहा।
    "बड़ी उदास है जिंदगी आजकल...."
    सारे सुपर सीनियर और सीनियर एक स्वर में ठहाका लगाकर हंस पड़े।
    "चलो, अपने काम पर लग जाओ।" लड़के ने जिंदगी के हाथ में गुलाब का फूल देते हुए कहा।
    "चलो जिंदगी.... जिंदगी के सफर को सुहाना बना दो.... गाना तो सुना होगा ना... जिंदगी एक सफर है सुहाना... यहां कल क्या हो किसने जाना??" लड़के ने बड़े स्टाइल के साथ गाना गाते हुए... जिंदगी के कान के पास आकर कहा।
    "पर यहां हर एक कल को हम जानते हैं और तुम्हारा कल... इस बात पर निर्भर करता है कि तुम कितनी कुशलता से अपना टास्क पूरा करती हो?? और तुम्हारा टास्क ये है कि हम सब में से किसी एक को तुम्हें प्रपोज करना है।" लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा।
    "यहां पर मेरे से खूबसूरत बंदा तुम्हें कोई ना मिलेगा.... इसलिए अपने शुभ हाथों से यह काम हमारे लिए ही कर डालो..." एक बड़े स्टाइल से अपने बालों पर हाथ फेरता हुआ सामने आया।
    "मैं भी हूं लाइन में ....मुझे भी कर सकती हो...." दूसरे ने हाथ उठाया।
    "नहीं.... मुझे... जिंदगी आ रहा हूं मैं..." तीसरा बोला।
    "अबे चुप!! यहां क्या जिंदगी का स्वयंवर चल रहा है.... जो सब वरमाला के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हो। चलो जिंदगी.... इन सब को छोड़ो.... मुझे ही प्रपोज कर डालो... चलो .....मुझे प्रपोज करके दिखा दो..." पहले वाले ने सबको धड़कते हुए जिंदगी से कहा।
    जिंदगी का मन कर रहा था कि वह वहीं पर गुलाब का फूल फेंके.... उसे अपने पैरों से मसले और यहां से निकल जाए। लेकिन अफसोस!!! वो ऐसा कर भी नहीं सकती थी।
    क्योंकि ऐसा करने पर बात बढ़ जाती और जिंदगी को सेल्फ डिफेंस करना भी नहीं आता था। साहिर ने उसे कई बार मार्शल आर्ट क्लब में ज्वाइन करने को कहा था। लेकिन नाजुक धान पान की जिंदगी को मार्शल क्लब की कड़ी ट्रेनिंग में बड़ी बोरिंग लगती थी। उसे तो सुबह उठना ही बहुत बड़ा तकलीफ काम लगता था। आज उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था। क्यों नहीं उसने सेल्फ डिफेंस के लिए ही कुछ स्टेप सीखे??
    अगर आज जिंदगी के हाथों में ताकत होती तो वह बिना सोचे समझे.. इस लड़के का मुंह तोड़ कर रख देती और उसके बाद जो होता....
    वह तो साहिर संभाल ही लेता।
    "चलो ... शुरू हो जाओ। वह क्या है ना कि मुझे ज्यादा इंतजार करना पसंद नहीं।" लड़के ने जिंदगी की तरफ देखते हुए कहा।
    "मैं!! और तुम को प्रपोज करूंगी??? शक्ल देखी है अपनी??" ना चाहते हुए भी जिंदगी के होठों से फिसल ही गया।
    "क्या कहा तुमने?? मैंने अपनी शक्ल नहीं देखी !!अरे कोई आईना तो लाकर मैडम को इनकी शक्ल दिखा दो.... लगता है घर से आईना देख कर आना भूल गई हैं।" लड़के ने जिंदगी का मजाक उड़ाते हुए कहा। अबकी बार जो ठहाका गुंजा था.... उसमें जिंदगी को अपनी बड़ी बेइज्जती महसूस हुई थी। उसका गुस्सा सर पर लगा और तलवों पर बुझा था। वह गुस्से से उस लड़के की तरफ देख रही थी, जैसे की आंखों से ही उसे कच्चा चबा जाएगी। तभी अचानक उस लड़के का लहजा बदल चुका था।
    "जल्दी से शुरू हो जाओ... वरना फिर ये शक्ल देखने लायक नहीं बचेगी...." लड़के ने जिंदगी के चेहरे की तरफ अपनी उंगली पॉइंट करते हुए कहा।
    "शक्ल तो अब तुम्हारी देखने लायक नहीं बचेगी। मैंने तुम्हें अपना आधा ही नाम बताया था। मेरा पूरा नाम है.... जिंदगी सिंह राणा।" जिंदगी ने अपने हाथ में लिया हुआ.... फूल बुरी तरह से मसल कर उसके ऊपर फेंका।
    "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई??" अपनी बेज्जती होता हुआ देखकर लड़का चिल्लाया। लड़के के गुस्से को देख कर.... पूरा कैंपस बिल्कुल शांत हो गया था।
    "हिम्मत कभी तुमने मेरी देखी ही कहा है?? और क्या पूछा था तुमने.... किसकी जिंदगी?? तो फिर कान खोल कर सुन लो... राणा एंपायर.... का नाम तो सुना ही होगा।" जिंदगी आराम से लड़के के आंखों में झांकती हुई बोली।
    "साहिर सिंह राणा...." पीछे से किसी लड़के ने हल्की आवाज में कहा.... पर जिंदगी की इस हरकत से... वहां इतनी शांति हो चुकी थी... उसकी आवाज साफ-साफ सुनाई पड़ रही थी।
    जिंदगी ने हां में सिर हिलाया और लड़के के चेहरे की तरफ उंगली पॉइंट करते हुए कहा, "क्यों?? नाम सुनते ही.... बज गए शक्ल पर 12:00।" लहजा मजाक उड़ाने वाला था। इसके बाद जिंदगी वहां रुकी नहीं.... मीठी का हाथ पकड़कर क्लास रूम की तरफ चल दी।
    लड़का मुंह खोले हुए जिंदगी की इस हरकत को देखते रह गया। तभी अचानक उसके कानों में दबी दबी हंसी की आवाज सुनाई पड़ी। नजर उठा कर देखा तो कॉलेज के बाकी स्टूडेंट.... खुलेआम इस दबंग लड़के की बेज्जती देखकर.... अपना मुंह दबा कर हंस रहे थे।
    "नो.... इट्स इनफ....." लड़के ने गुस्से में अपनी मुठिया कसते हुए चिल्ला कर कहा। उसकी जोरदार आवाज सुनकर कॉलेज कैंपस में फिर से शांति हो गई।
    "बहुत गलत आदमी से पंगा लिया है तुमने जिंदगी। इसकी कीमत... बहुत भारी... तुम्हें जल्द ही चुकानी पड़ेगी....." लड़के ने गुस्से में कहा और फिर अपने दोस्तों को वहां से उठने का इशारा करते हुए.... कैंटीन की तरफ बढ़ गया।

    क्रमश:

  • 14. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 14

    Words: 1425

    Estimated Reading Time: 9 min

    "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया था जिंदगी?? पता भी है तुम किस लड़के से उलझी हो??" कैंटीन में पहुँचते ही मीठी ने जी भर कर जिंदगी को लताड़ा, पर जिंदगी को तो जैसे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था।
    अपने कॉलेज के पहले ही दिन जिंदगी अपने सुपर सीनियर रिकी अग्रवाल से पंगा ले चुकी थी, जो कि इस शहर के नामी बिल्डर का बेटा था और साथ में इस कॉलेज का डॉन भी।
    "अरे चिल्ला क्यों रही हो?? कान के सारे पर्दे हिल गए। मुझे धीरे-धीरे भी सब सुनाई पड़ता है।" जिंदगी ने अपने कान पर हाथ रखते हुए कहा, जैसे सच में मीठी की आवाज से उसके कान के पर्दे हिल रहे थे, जबकि मीठी की आवाज कम ही थी, पर उसमें गुस्से का पुट ज्यादा था।
    "दिखता है मुझे..... तुझे कितना सुनाई पड़ता है?? जब मैं कह रही थी, यहाँ से चुपचाप चल.... तब क्यों नहीं सुनाई पड़ा था??" मीठी ने गुस्से से पूछा।
    "अरे!! ऐसे कैसे चल देती?? बिना उसे सुनाए?? देखी नहीं, वह हमारे साथ बदतमीजी करने पर उतर आया था।" जिंदगी ने सफाई दी।
    ".... और तू इतना हाइपर क्यों हो रही है?? तुझे तो खुश होकर मुझे शाबाशी देनी चाहिए थी कि मैंने कितना बड़ा काम किया है, देखा नहीं क्लास में सारी लड़कियों का और लड़कों का क्या रिएक्शन था, सब मुझे तारीफ भरी नजरों से देख रहे थे और मुझसे दोस्ती भी करना चाह रहे थे।" जिंदगी फक्र से गर्दन उठाते हुए बोली।
    "वह तुझसे दोस्ती नहीं करना चाह रहे थे.... वह तेरे स्टेटस से दोस्ती करना चाहते चाह रहे थे.... जो कि तूने राणा अंपायर के नाम से दी है।" मीठी ने जिंदगी को सीधे अर्श से फर्श पर पटकते हुए कहा।
    "हां तो क्या हुआ?? बात एक ही है ना.... मैं और राणा अंपायर अलग-अलग थोड़े हैं?" जिंदगी अभी भी समझ नहीं पा रही थी कि मीठी इतनी परेशान क्यों है??
    "बात तो तूने सही कही है जिंदगी....आज नहीं तो कल तू राणा अंपायर की मालकिन बनने ही वाली है।" पूर्वी ने टेबल पर उन लोगों का आर्डर रखते हुए कहा। उसके चेहरे पर हंसी बिखरी हुई थी।
    "तुम्हारी तो मैं....." जिंदगी ने चढ़कर पूर्वी की तरफ देखा। पूर्वी का इशारा जिस बात पर था, उसको समझ कर जिंदगी सुलग चुकी थी।
    "क्यों अब नहीं बोलोगी?? साहिर सिंह राणा के नाम से सब पूरे कॉलेज को धमकी देकर चली आई हो.... और अब उसका नाम तुम्हारे साथ जोड़ा जा रहा है... तो तुम्हें बुरा लग रहा है??" मीठी ने अपनी दोनों बाहों को लपेटते हुए जिंदगी से पूछा।
    "वह बात नहीं है.... मैंने साहिर का नाम इसलिए लिया क्योंकि वह इस तरह के लफड़े आराम से संभाल लेंगे... सब खुश थे... जैसे कि मैंने कोई बड़ा काम किया है.... लेकिन तुम इस तरह से चिढी पड़ी हो.... जैसे कि मैंने तुम्हारी भैंस खोल दी हो।" जिंदगी आराम से नाक पर से मक्खी उड़ाने के स्टाइल में बोली।
    "भैंस खोल दी हो?? यह क्या होता है?" मीठी ने हैरानी से पूछा।
    "पर भैंस खोलने से कौन सा नुकसान हो जाएगा और यह भैंस क्या होता है???" पूर्वी का अगला सवाल था।
    "भैंस होता नहीं.... होती है। भैंस स्त्रीलिंग शब्द है।" जिंदगी ने पूर्वी से कहा।
    "जो भी हो.... लेकिन यह क्या होती है??" पूर्वी अभी भी नहीं समझ पा रही थी।
    "मुझे खुद नहीं पता.... मैंने बस सुना है।" जिंदगी आराम से कोल्ड ड्रिंक पीते हुए बोली।
    "तुम दोनों को सच में पता नहीं की भैंस क्या होती है??" मीठी का दिल अपना सर पीट लेने का हो रहा था।
    जिंदगी ने इनकार में सर हिलाया।
    "हे भगवान!! क्या होगा इस लड़की का?? भैंस बफेलो को बोलते हैं.... अब समझ में आया??" मीठी ने बताया।
    "अरे हां!! मैंने उसकी पिक्चर देख रखी है बुक में।" जिंदगी ने खुश होकर कहा।
    "पर एक बात बताओ.... भैंस खोलने के नाम पर लोग चिढ़ते क्यों है??" जिंदगी का अगला सवाल था मीठी के लिए। जिंदगी के इस सवाल पर मीठी कुछ और बोलती उसके पहले....
    "किसकी भैंस खुल गई और कौन खोल कर ले गया??" जयंत ने जिंदगी के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
    "इस मीठी की।" जिंदगी ने तपाक से उत्तर दिया। जिंदगी के इस जवाब पर मीठी गुस्से आते हुए जिंदगी की तरफ देखा लेकिन जिंदगी को अब कोई फिक्र नहीं थी। वही मीठी और पूर्वी, जयंत को इस तरह से सामने कॉलेज कैंटीन में देखकर एक पल के लिए सोच में पड़ गई थी।
    "यह नमूना यहां क्या कर रहा है??" पूर्वी धीरे से मीठी के कान में फुसफुसाई।
    "अब यह तो जिंदगी ही बता सकती है कि यहां क्या कर रहा है??" मीठी ने गुस्से में जिंदगी की तरफ देखते हुए धीरे से कहा। जयंत इन दोनों में से किसी को पसंद नहीं था और ना ही जयंत को मीठी कि यह दोनों सहेलियां पसंद थी, जिसको सामने से दिखाने में नहीं जयंत को दिक्कत होती थी.... और ना ही मीठी और पूर्वी को।
    पर जिंदगी... अब अपनी सहेलियों को इग्नोर करके पूरी तरह से जयंत से बात करने में जुट गई थी, जो कि उसके पास वाली सीट पर आकर बैठ चुका था।
    "तो तुम दोनों को भी जिंदगी के साथ इस कॉलेज में एडमिशन मिल ही गया??" जयंत ने मीठी और पूर्वी की तरफ देखते हुए कहा। जयंत का अंदाज ऐसा था जैसे कि वह इन दोनों का मजाक उड़ा रहा हो।
    "नहीं हम घूमने आए हैं...." पूर्वी ने मुंह बनाते हुए कहा।
    "वैसे तुम बताओ... तुम यहां क्या कर रहे हो??" जयंत अभी पूर्वी को कुछ जवाब देता.... उसके पहले ही मीठी ने अपना सवाल पूछ लिया।
    "मैं भी यही पढ़ता हूं...." जयंत आराम से बोला।
    "टेस्ट पास कर के आए हो या फिर बाप के दौलत की मेहरबानी है??" पूर्वी आराम से समोसे के साथ इंसाफ करते हुए बोली।
    "निश्चित ही जिंदल इंडस्ट्रीज की मेहरबानी होगी। आखिर इतना पैसा करेंगे क्या?? अब रोड पर तो फेंक नहीं सकते। इसी तरह से बांटते चलेंगे ना...." मीठी ने भी पूर्वी का साथ दिया।
    "देखो!! यह ज्यादा हो रहा है...." जयंत ने पूर्वी की तरफ उंगली दिखाते हुए कहा।
    "अभी कहां!!! अभी तो शुरुआत हुई है... ज्यादा तो जिंदगी मैडम करेंगी।" मीठी ने जिंदगी की तरफ इशारा किया।
    "मैं क्या करूंगी??" जिंदगी ने मासूमियत से पूछा।
    "क्यों??? अब नहीं बोलोगी?? यह भी हमारा मजाक ही उड़ा रहा है...." पूर्वी ने कहा।
    "तुम दोनों भी ना.... कहां की बात कहां लेकर चली जाती हो??" जिंदगी ने अपना सर हिलाया।
    "क्या बात है जिंदगी??" जिंदगी को इस तरह से परेशान होते देख जिंदगी से जयंत ने पूछा। जवाब में जिंदगी ने सारी बात उसे बता दी।
    "तुम परेशान मत हो... मैं देख लूंगा...." जयंत ने जिंदगी को आश्वस्त किया।
    "हां, फिलहाल में तो अपनी क्लास देख लो। तुम्हारे दोस्त में बुला रहे हैं।" पूर्वी ने जयंत का इशारा उसके दोस्तों की तरफ किया जो कि उसे बुलाने के लिए इधर ही आ रहे थे।
    "ओके.... जिंदगी! मैं तुमसे बाद में मिलता हूं।" जयंत उठकर खड़ा हुआ।
    "ओके बाय....." जिंदगी बोली।
    जयंत के जाने के बाद जिंदगी ने जब अपनी सहेलियों पर नजर डाली.... तो दोनों खतरनाक तेवरों के साथ उसे देख कम... घूर ज्यादा रही थीं।
    "क्या हुआ??" जिंदगी ने पूछा।
    "यह तो तू बता कि यह कब हुआ??" मीठी का सीधा इशारा जिंदगी और जयंत की दोस्ती पर था।
    "अरे यार!! हम बचपन से एक दूसरे को जानते हैं....."
    "हम भी एक दूसरे को बचपन से जानते हैं..... लेकिन जितना हम तुम्हें जानते हैं उतना तुम जयंत को नहीं जानती।" पूर्वी ने जिंदगी को समझाने की कोशिश की।
    "ऐसा कुछ नहीं है... वह अच्छा लड़का है..." जिंदगी जैसे कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी।
    "तो हम कब कह रहे हैं कि वह लड़का बुरा है?? बस उसकी नियत थोड़ी बुरी है और तुझे कुछ सावधान रहने की जरूरत है।" पूर्वी ने बिना लाग लपेट के जिंदगी को समझा दिया।
    "अच्छा चलो... क्लास का टाइम हो गया है... तुम दोनों अपने सेक्शन में जाओ। मैं भी अपने डिपार्टमेंट में जाती हूं।" जिंदगी अपना बैग संभालते हुए उठ कर खड़ी हो गई। मीठी और पूर्वी ने एक दूसरे की तरफ देखा.... वह दोनों समझ गई कि जिंदगी को उनकी बात बुरी लगी है लेकिन फिर भी उन्हें जिंदगी की चिंता हो रही थी।
    पर जिंदगी को इस बात की कोई परवाह नहीं थी कि जाने अनजाने में.... वह अपनी बर्बादी की तरफ कदम बढ़ा चुकी है।

    क्रमश:

    नेक्स्ट पार्ट से जिंदगी की जिंदगी के टेस्ट शुरू हो जाएंगे।

  • 15. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 15

    Words: 1243

    Estimated Reading Time: 8 min

    "यह दोनों कहां रह गई?? क्या इन लोगों की क्लास अभी तक खत्म नहीं हुई??" जिंदगी अपनी क्लास खत्म करके काफी देर से गेट पर खड़ी होकर अपनी दोनों सहेलियों के आने की राह देख रही थी, पर वह दोनों अभी तक नहीं आई थीं। जिंदगी ने अपने पैकेट में से अपना फोन निकाला और पूर्वी का नंबर ट्राई करने लगी, तभी उस फोन पर मीठी का मैसेज आया, "हम लोगों का इंतजार मत करना जिंदगी.... हम लोग क्लास खत्म होने के बाद एक कोचिंग के लिए जाएंगे... तुम घर चली जाना।"
    "ओह नो...." मीठी का मैसेज पढ़कर जिंदगी को बहुत तेज गुस्सा आया।
    "दुष्ट लड़कियां.... फोन करके नहीं बता सकती थीं। अब तक तो मैं घर पहुंच गई रहती।"
    जिंदगी ने ड्राइवर को कॉल कर दिया।
    "अब मैं क्या करूं?? अभी गाड़ी आने में 15 मिनट टाइम है। अब 15 मिनट मुझे यहीं पर खड़े रहकर इंतजार करना पड़ेगा।" जिंदगी थके-थके बोली। सुबह से एक भी पीरियड खाली नहीं था और गेट पर भी काफी समय तक खड़े रहने के कारण जिंदगी के पैर दुखने लगे थे, पर मजबूरी थी.... खड़ा ही रहना था।
    जिंदगी वहीं पर गेट के पास खड़े होकर गाड़ी के आने का इंतजार करने लगी।
    "क्या हीरोइन!! कोई लिफ्ट नहीं मिल रही है क्या??" रिकी अग्रवाल अपनी बाइक लेकर जिंदगी के सामने आकर खड़ा हो गया।
    "आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा...." गाना गाते हुए रिकी जिंदगी के चारों ओर चक्कर काटने लगा। उसके साथ उसके दो-चार साथी और थे, जो इस सारे तमाशे को देख कर बेहुदगी से हंस रहे थे।
    एक पल के लिए तो जिंदगी डर गई क्योंकि गेट के पास कोई नहीं था। अधिकतर स्टूडेंट जा चुके थे... और जो निकल रहे थे... वह मानो इधर देख कर भी देखना नहीं चाह रहे थे। जाहिर सी बात है कि कोई भी दूसरे के पचड़े में नहीं फंसना चाहता।
    वह यहां से भाग जाना चाहती थी.... लेकिन वह भी संभव नहीं था। उसने डर के मारे अपनी आंखें बंद कर लीं।
    "किसी भी चीज से तुम डरती क्यों हो?? डर होता क्या है?? डर सिर्फ हमारे मन का बहम है.....तुम जितना अपने मन के डर से डरोगी.... डर तुम्हें उतना ही डराएगा। इसलिए डर से भागना.... नहीं मजबूती से खड़े रहकर.... उसका सामना करना सीखो। फिर देखना, डर तुम्हारे सामने से.... अपने सर पर पैर रखकर भाग खड़ा होगा।" आंखें बंद करते ही जिंदगी के कानों में साहिर की बात सुनाई पड़ी।
    "मुझे इन लोगों से डरना नहीं चाहिए... सुबह फिर मैं डट कर इन के सामने खड़ी हो गई थी... तो यह भाग खड़े हुए थे। कुंवर सा की बात में दम तो है।" जिंदगी के दिमाग में तुरंत यह बात आई और उसने अपनी आंखें खोल दीं।
    "सच में! तुम्हारी इतनी औकात है कि तुम जिंदगी सिंह राणा को लिफ्ट दे सको!" जिंदगी ने अपने दोनों हाथ अपने सीने के पास लपेट लिया और पूरे एटीट्यूड में बोली।
    "अभी तुमने हमारी औकात देखी ही कहां है?? हमारी इतनी औकात है कि तुम्हें यहां से गायब कर दें...." रिकी ने अपनी बाइक लगा दी और जिंदगी के सामने आकर उसके बराबर खड़े होते हुए बोला।
    "तुम मुझे गायब करोगे?? वेरी फनी!! शायद तुम जानते नहीं.... तुम जो कर रहे हो... उसकी कीमत कितनी बड़ी हो जाएगी। अभी भी समय है.... मेरे रास्ते से हट जाओ, वरना रातो रात अपने परिवार के साथ गायब कर दिए जाओगे। इसलिए अच्छा है कि चुपचाप यहां से चले जाओ।" जिंदगी गुस्से में बोली।
    जिंदगी की बात सुनकर रीकी उसका मजाक उड़ाते हुए हंस दिया।
    "नहीं हटता तुम्हारे रास्ते से.... क्योंकि तुम्हारा और मेरा रास्ता ही नहीं मंजिल भी एक है। चलो!! क्या करोगी?? बोलो बेबी.... क्या करोगी??" रिकी जिंदगी की आंखों में झांकते हुए बोला।
    जिंदगी ने अपना फोन निकाल लिया। वह साहिर को फोन मिलाने वाली ही थी कि रिकी ने उसके हाथ से फोन छीन लिया।
    "तो मैडम कुंवर सा को फोन लगा रही हैं। वैसे ये कुंवर सा है कौन?? कहां के राजा महाराजा या राजकुमार??" जिंदगी के फोन पर डायलिंग लिस्ट को देखते हुए रिकी ने मजाक उड़ाने वाले लहजे में जिंदगी से पूछा।
    "चुपचाप मेरा फोन दो...." जिंदगी ने रिकी के हाथ से अपना फोन लेना चाहा।
    "नो नो बेबी... रिकी के हाथ में जो चीज एक बार चली आती है... वह उसकी हो जाती है। चाहे वह फोन हो... बाइक हो... या लड़की...." रिकी ने जिंदगी का फोन अपने पैकेट में डाल लिया और जिंदगी का हाथ पकड़कर जबरदस्ती अपनी बाइक की ओर ले जाने लगा।
    "छोड़ो मुझे।" जिंदगी चिल्लाई। रिकी ने अपने दोस्त को इशारा किया... गाड़ी लाने का और जबरदस्ती जिंदगी को खींच कर ले जाने लगा।
    "हेल्प मी...." जिंदगी चिल्ला रही थी।
    "क्या हुआ??? अभी तो तुम मुझे रातो रात गायब कर रही थी... और अभी अपनी मदद के लिए दूसरों को पुकारने लगी। बेबी!! यहां तुम्हारी मदद के लिए कोई नहीं आएगा। पूरा एरिया अपना है।" रिकी ने जिंदगी को जबरदस्ती गलत तरीके से छूने की कोशिश करते हुए कहा। रिकी की हरकत जिंदगी समझ गई थी इसलिए वह तेजी से घूमी और उसके पैर पर अपना पैर दे मारा।
    "वाओ!! खुदा हुस्न देता है... तो नजाकत खुद-ब-खुद चली आती है।" जिंदगी के इस एक्शन को देखकर रिकी हैरान रह गया, लेकिन वह भी एक नंबर का सड़ा हुआ इंसान था। इतनी आसानी से तो हार नहीं मान सकता था। जयंत ने जिंदगी को अपनी गोद में उठाना चाहा, तभी एक जोरदार हाथ रिकी के चेहरे पर पड़ा।
    "कहा था मैंने ना... कि हाथ मत लगाना..." जयंत अपने दोस्तों के साथ रिकी के सामने खड़ा था। जयंत को सामने देखकर जिंदगी ने राहत की सांस ली।
    "देख जयंत!! तेरा हमसे कोई झगड़ा नहीं है... इसलिए किनारे हट जा।" जयंत को सामने देखकर रिकी ने थोड़ी नरमी से कहा।
    "किसने कहा कि तेरा मेरा झगड़ा नहीं है?? तूने जिस लड़की को हाथ लगाया है.... वह मेरी जिंदगी है। यानी तूने सीधे-सीधे जयंत जिंदल की जिंदगी पर हाथ डाला है। अब तो यह हाथ तेरे हाथ में नहीं रहेगा।" जयंत ने रिकी का हाथ जिंदगी के हाथ से छुड़ाते हुए जोर से पकड़ लिया और झटके से मोड़ दिया। तड़-तड़ आवाज करके रिकी का हाथ दो जगह से टूट गया था।
    जिंदगी जयंत के मुंह से "जयंत की जिंदगी" सुनकर अपनी आंखें खोल कर जयंत की तरफ देख रही थी... लेकिन जब उसने रिकी के हाथ टूटने की आवाज सुनी तो खुश हो गई।
    "तुम सब देख क्या रहे हो??? मारो इसको।" दर्द में चिल्लाता हुआ रिकी बोला। इसके बाद तो फिर कॉलेज के बाहर.... अच्छा खासा घमासान मच गया। मारपीट में कुछ चोट जयंत को भी आई थी.... जिसको देखकर जिंदगी का मुंह बन गया था, लेकिन फिलहाल वह खड़े होकर तमाशा ही देख रही थी।
    तभी जिंदगी की गाड़ी आकर कॉलेज गेट के सामने रुकी।
    "तुम अभी यहां से जाओ.... जिंदगी और घर में किसी को भी इस हंगामे के बारे में मत बताना। मैं तुमसे बाद में बात करता हूं। पहले इससे निपट लूं।" जयंत ने जिंदगी को वहां से जाने का इशारा किया।
    "पर तुम...." जयंत के चोट से खून निकल रहा था.... इसलिए जिंदगी उसे छोड़कर जाना नहीं चाहती थी।
    "घबराओ मत.... यह मेरा कुछ नहीं कर सकेगा, पर तुम निकलो.... तुम्हारे यहां खड़े होने से बात ज्यादा बढ़ जाएगी। समझ रही हो ना !!" जयंत का इशारा जिंदगी के ड्राइवर की तरफ था। ना चाहते हुए भी जिंदगी, जयंत की बात मान कर अपनी गाड़ी में बैठ गई।

  • 16. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 16

    Words: 1148

    Estimated Reading Time: 7 min

    "काको सा मैने सारे डिटेल्स देख लिए हैं और चेक भी कर दिए हैं। इसी के अनुसार आगे का काम करें।" साहिर एक फाइल प्रेम की तरफ बढ़ाते हुए कहा।
    "जी, राणा सा...." प्रेम ने साहिर के हाथ से फाइल ले ली और वहीं पर देखने लगा। जैसे-जैसे पन्ने पलट रहा था, उसकी आंखें बड़ी होती जा रही थीं।
    "राणा सा, आप समझ भी रहे कि आप क्या कर रहे हैं?" प्रेम ने हैरानी में साहिर की तरफ देखते हुए कहा।
    "बहुत अच्छे से... काको सा। चूहे बिल्ली का खेल अब बंद करना ही होगा। अब समय आ गया है कि आमने-सामने की लड़ाई छेड़ दी जाए।" साहिर संजीदगी से बोला।
    "आप लाख सबूत सामने पेश कर दें... पर मेरा दिल कभी भी इस चीज को मानने को तैयार नहीं होता कि वह सिर्फ एक दुर्घटना थी। आखिर कब तक ये चूहे बिल में छिपे रहेंगे?? इन्हें बाहर निकलना ही होगा।" साहिर ने खतरनाक तेवरों के साथ कहा। प्रेम ने गौर से साहिर के चेहरे को देखा। इस समय उसके चेहरे के भाव एक खूंखार शेर से भी ज्यादा खतरनाक लग रहे थे।
    "बात तो सही है राणा सा.... लेकिन इस बात को भी समझने की कोशिश करिए.... अगर उन्होंने फिर से ऐसा कुछ खेला.... तो हम काफी नुकसान में चले जाएंगे।" प्रेम ने साहिर को समझाने की कोशिश की।
    "नुकसान की परवाह किसे है काकोसा?? हमारा जितना नुकसान होना था, हो चुका है। अब तो इस नुकसान की भरपाई लेने का समय आ गया है।" साहिर सीरियस था।
    "मैं पैसों के नुकसान की बात नहीं कर रहा...." प्रेम तेजी में बोला।
    "मैं भी पैसों के नुकसान की बात नहीं कर रहा काकोसा...." साहिर भी तुरंत बोला।
    "आप समझने की कोशिश क्यों नहीं करते राणा सा?? उस दुर्घटना में भले ही बड़े राणा सा सहित 9 लोगों की मृत्यु हो गई थी। परंतु फिर भी आप बचे थे। राणा खानदान का इकलौता वारिस बचा था। हम आपको इस तरह से आग से खेलने की इजाजत नहीं दे सकते।" प्रेम के शब्दों में उसकी चिंता साफ झलक रही थी।
    "हम जानते हैं काकोसा। हमारी जिंदगी... जिंदगी की अमानत है। अगर उस दिन जिंदगी नहीं रहती.... तो शायद हम भी जिंदा नहीं बच पाते। हम भी बाबा सा के साथ उसी गाड़ी में जा रहे थे... लेकिन जिंदगी के कारण हम रुक गए। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब हमें कोई नहीं रोक सकता। आप निश्चिंत रहें... काकोसा। अब ऐसा कुछ नहीं होगा। बस आप इस फाइल को क्लियर करके मार्केट में शो कर दें। बाकी सब मैं देख लूंगा।" साहिर अपने चेयर पर से उठते हुए बोला, जिसका इशारा साफ था कि अब वह इस मैटर में कुछ नहीं सुनने वाला।
    प्रेम ने बहुत दुख से साहिर को जाते हुए देखा, उसे साहिर की चिंता थी।
    "ठीक कहा आपने राणा सा.... आपकी जिंदगी... जिंदगी की अमानत है। समय आ गया है कि जिंदगी किसी की अमानत सौंप दी जाए। आपको हम नहीं रोक सकते। लेकिन जिंदगी तो रोक सकती है ना??? मैं आज ही जितेन्द्र सिंह से बात करूंगा।" प्रेम ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए सोचा।

    "जिंदगी... जिंदगी....." जितेंद्र जी ने ऑफिस से आते ही जिंदगी को आवाज लगाई।
    "वह तो अभी कॉलेज से ही नहीं आई है... आती ही होगी। लेकिन प्रेम सा आप से मिलने आए हैं।" जानवी जी ने जितेंद्र जी के हाथ से उनका बैग लेते हुए कहा।
    "कहां है प्रेम??"
    "वहां...." जानवी जी ने ड्राइंग रूम के सोफे की ओर इशारा किया।
    "सुनो!! तुम नाश्ते का प्रबंध करो, मैं हाथ मुंह धो कर आता हूं...." जितेंद्र ने एक नजर प्रेम पर डाली और भागते हुए अपने कमरे में गए और जितनी जल्दी हो सकता था.... उतनी जल्दी ही.... कपड़े बदलकर प्रेम के पास आकर बैठे। प्रेम ने जितेंद्र जी के लिए अपने बगल में जगह बनाई।
    "तुम अकेले ही आए हो?? साहिर सा कहां है??" जितेंद्र जी ने इधर-उधर देखते पहला सवाल किया।
    "क्यों?? तुम्हें उनसे कुछ काम था क्या??" प्रेम ने चौकते हुए पूछा।
    "हां, मुझे काम था... लेकिन है कहां राणा सा??" जितेंद्र जी कुछ बेचैन मालूम पड़ रहे थे।
    "पता नहीं यार... आज सुबह 10:00 बजे ऑफिस में हमारे साथ ही थे। फिर उसके बाद कुछ जरूरी काम है.... कह कर निकले। सिक्योरिटी की किसी भी गाड़ी को साथ नहीं लिया। बिना बताए कहां निकले?? कोई समझ नहीं पाया। उस टाइम में, मैं एक मीटिंग में था। मुझे बस मैसेज किया कि मैं उनकी चिंता ना करूं??? आज रात को नहीं... तो कल सुबह तक.... वह घर वापस आ जाएंगे। उसके बाद से अब तक उनका फोन स्विच ऑफ जा रहा है। मैं खुद ही परेशान हूं।" प्रेम ने चिंता भरे लहजे में जितेंद्र जी से कहा।
    "राणा सा... ऐसे कैसे बिना बताए कहीं निकल सकते हैं?? ये जानते हुए कि उनके लिए दुश्मन.... हर एक रास्ते पर घात लगाए बैठे हुए हैं। राणा सा से इतनी बड़ी बेवकूफी की कोई उम्मीद नहीं थी।" जितेंद्र जी बोले।
    "अरे यार कहीं गए होंगे.... दोस्तों के साथ। जरूरी है कि हर बात हमें बताते चलें। जवान है.... अपने दोस्तों के साथ कहीं पार्टी वार्टी करने निकले होंगे।" जितेंद्र जी को खुद से भी ज्यादा परेशान देखकर प्रेम ने जितेंद्र जी को समझाना चाहा।
    "सच में!! तुम्हें ऐसा लगता है कि हमारे राणा सा आजकल के इन नौजवान लड़कों जैसे हैं??" प्रेम की बात पर जितेंद्र जी ने घूर कर उनकी तरफ देखा। प्रेम ने समझते हुए हां में सर हिलाया।
    "अगर वह दोस्तों में निकले रहते... तो कोई बात नहीं रहती। तुम जान नहीं रहे.... इस समय राणा सा के दिमाग में क्या चल रहा है??? जिस तरह से इस समय त्वरित फैसले ले रहे हैं.... उसको देख कर मुझे डर लग रहा है।"
    "मतलब??" प्रेम ने जानना चाहा।
    "हमें राणा सा को रोकना होगा। इस तरह से अग्रवाल को सीधे टारगेट करने का मतलब क्या होगा?? तुम समझ रहे हो ना??" जितेंद्र जी ने बड़े फिक्रमंद लहजे में प्रेम से कहा।
    "वह तो बात तुम तक पहुंच ही गई, मैं भी तुमसे इसी मैटर पर बात करने आया था। मैं समझता हूं तुम्हारी बात.... पर क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि मैंने साहिर सा को रोकने की कोशिश नहीं की होगी।" प्रेम ने बेहद अफसोस से कहा।
    "पर आखिर राणा सा ऐसा कर क्यों रहे हैं?? अग्रवाल से तो हमारी कोई सीधी दुश्मनी है नहीं। वह सिसोदिया खानदान का वफादार है। या एक तरह से कहो कि सिसोदिया का मोहरा है और मोहरों को मारकर जंग नहीं जीती जाती।" जितेंद्र जी ने प्रेम से कहा।
    "मतलब कि तुम भी वही सोच रहे हो जो कि मैं सोच रहा हूं??" प्रेम ने जितेंद्र जी की बात पर उनके चेहरे पर नजर जमाते हुए कहा। जवाब में जितेंद्र जी ने एक गहरी सांस ली।
    "आज अग्रवाल आया था मेरे ऑफिस में... राणा सा से बात करने के लिए कह रहा था।" जितेंद्र जी ने गंभीर लहजे में सोचते हुए कहा।

  • 17. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 17

    Words: 1536

    Estimated Reading Time: 10 min

    साहिर ने उन सारी कंपनियों के पूरे शेयर खरीद लिए थे जो कि अग्रवाल की कंपनी को इकोनोमिक सपोर्ट करते थे। अब अग्रवाल को अपने किसी भी फैसले के लिए इन सारी कंपनियों की जगह राणा एंपायर को रिपोर्ट करना था। लेकिन साहिर ने अग्रवाल के साथ अपनी पहली ही मीटिंग कैंसिल कर दी थी। वह अग्रवाल से कोई बात ही नहीं करना चाहता था। ऐसे में किसी भी प्रोजेक्ट के लिए पैसा ना मिल पाने के कारण अग्रवाल बुरी तरह से झटपटाया था। वह कहीं भी जा रहा था तो सब हाथ खड़े कर रहे थे। अंत में हार कर वो जितेंद्र जी के पास आया था। जितेंद्र जी ने उसे साहिर से इस मैटर पर बात करने का आश्वासन दिया था और जल्दी मैटर ना सुलझने पर अच्छे से देख लेने की धमकी भी दी थी। उन्हें अब तक इस मैटर की कोई जानकारी नहीं थी इसलिए साहिर से बात करने से पहले उन्होंने प्रेम से बात करने की कोशिश की।

    "पर मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि मैं राणा सा से क्या बात करूं और इस मैटर में क्या बोलूं?? आखिर राणा सा ऐसा क्यों कर रहे हैं? यह बात जानते हुए कि अग्रवाल के पीठ पर सिसोदिया का हाथ है और इस तरह करने पर सिसोदिया से खुलकर दुश्मनी सामने आएगी? और जिसका नतीजा क्या होगा तुम अच्छे से समझते हो।" जितेंद्र जी ने कहा।

    "उनको ऐसा लगता है कि उस दुर्घटना में सिसोदिया का हाथ है..." प्रेम ने कहा।

    "पर अगर ऐसा होता तो कहीं ना कहीं कोई तो सबूत मिला रहता। इस दुर्घटना के बाद मैंने और तुमने पूरी तरह से जांच की थी। उस वक्त साहिर सा भले बच्चे थे पर हम तो नहीं थे। मैं तो जिंदगी, जानवी जी और साहिर सा के साथ पिछली गाड़ी में मौजूद था। कहीं से कोई भी हमला नहीं हुआ था हम पर। उस वक्त वह गाड़ी अनियंत्रित होकर खाई में गिर गई थी। सैकड़ों फीट नीचे खाई में गिरने के बाद गाड़ी के पुर्जे ना मिले थे, तो आदमी की बात कौन करता??? किसी को भी बचाया न जा सका। बाद में पता चला कि उसके ब्रेक फेल हो चुके थे। कहीं भी कुछ ऐसा नहीं मिला जिससे कि यह साबित हो सकता था कि यह दुर्घटना नहीं बल्कि हत्या है। फिर आखिर इतने साल के बाद साहिर सा क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं???" जितेंद्र जी ने सोचते हुए कहा।

    "वही तो मैं भी नहीं समझ पा रहा कि आखिर साहिर सा के दिमाग में क्या चल रहा है?? तुम्हें याद होगा उस वक्त वह जिंदल को देखकर खौल उठा था। जिसके कारण हमें जिंदल को यहां से हटाना पड़ा। सुनने में आया है कि जिंदल अपने परिवार के साथ फिर से इंडिया आया है।" प्रेम ने कहा।

    "हां, उस वक्त मुझे भी डर लग रहा था कि अगर जिंदल सामने रहा तो शायद साहिर उसको मार डालेगा। इस कारण मैंने जिंदल को यहां से हटाया था। पर मुझे यह नहीं समझ में आ रहा है कि जिंदल परिवार का तो हम लोगों से कुछ लेना-देना भी नहीं है तो फिर जिंदल की भूमिका उस दुर्घटना में कैसे हो सकती है?? और साहिर सा बार-बार जिंदल पर ही क्यों शक कर रहे हैं?? जैसा कि जिंदल को इस बारे में कुछ ना कुछ पता है पर हमने तो जिंदल से पूछताछ की थी ना??" जितेंद्र जी ने पूछा।

    "वही तो प्रॉब्लम है यार कि वह खुलकर कुछ बोलता नहीं। लेकिन जहां तक मैं देख रहा हूं उसने अपने सोर्स से बहुत कुछ पता किया है। अग्रवाल उसका पहला निशाना नहीं है। इसके पहले भी वह एक दो लोग को अपने निशाने पर लेकर पूछताछ कर चुका है और शायद इसमें उसको कुछ हाथ भी लगा है जिसके कारण वह बहुत कॉन्फिडेंट है। सुनने में आया है कि इसमें जिंदल को उसके कपड़े के व्यापार में बर्बाद कर दिया है। जिसके कारण वो तिलमिलाया हुआ है।" प्रेम ने कहा।

    "भाई अगर ऐसा कुछ होता भी है तो हमे साहिर सा को रोकना होगा। तू समझ नहीं रहा सिसोदिया, जिंदल और अग्रवाल अगर यह तीनों एक साथ मिले हुए हैं तो बहुत खतरनाक है। जो इंसान अपनी किसी दुश्मनी के चलते राणा सा के पूरे परिवार को खत्म करवा सकता है। वह भी इतनी सुरक्षा के बीच, तो क्या वह साहिर सा को छोड़ देगा??" जितेंद्र जी भी चिंतित थे।

    "यही तो मेरी भी चिंता है, हमें किसी भी तरह से साहिर सा का ध्यान इन सब चीजों से हटाना होगा। जब तक की कोई खुलकर हमारे सामने ना आए।" प्रेम ने कहा।

    "पर कैसे??" जितेंद्र जी ने पूछा।

    "अरे वाह काकोसा आए हैं?? घणी खम्मा। काकोसा।" जितेंद्र जी और प्रेम जी इस गंभीर विषय पर चर्चा कर ही रहे थे कि तभी जिंदगी कॉलेज से आई।

    "घणी खम्मा बेटा... कैसी हैं आप??" प्रेम ने जिंदगी की बात का जवाब दिया पर आंखों के इशारे से जितेंद्र जी से शांत रहने के लिए कहा लेकिन जितेंद्र जी बेईमानी से पहलू बदल रहे थे।

    "हम अच्छे हैं.... साहिर भी आए हैं क्या?? कहां है??" आते ही जिंदगी ने साहिर के बारे में पूछा।

    "जिंदगी.... तुम कब सुधरोगी??" जानवी जी ने आंखें दिखाई। उन्हें जिंदगी का साहिर को नाम लेकर पुकारना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था और इसके लिए कई बार जिंदगी को डांट चुकी थी। लेकिन वो जिंदगी ही क्या जो एक बार बात सुनकर सुधर जाए??
    वह जानवी जी के सामने साहिर को ना सिर्फ नाम लेकर पुकारती थी, बल्कि नए नए उपनाम से भी पुकारती थी। बस इतना ध्यान रखती थी कि प्रेम काकोसा या पापा सा के सामने साहिर का नाम मुंह से ना निकले। और साहिर के सामने तो जिंदगी के मुंह से शब्द के साथ साथ गले से आवाज भी गायब हो जाती थी। नाम लेकर पुकारना तो बहुत दूर की बात थी।

    इसलिए उसने अपनी जीभ दांतो तले दबाते हुए एक कान पकड़कर सॉरी किया। उसकी इस हरकत पर प्रेम और जितेंद्र जी मुस्कुरा दिए।

    "नहीं.... नाना सा हमारे साथ नहीं आए हैं। वह कुछ बिजनेस मीटिंग्स के चलते कहीं गए हुए है...." प्रेम ने बताया।

    साहिर के घर पर ना होने की बात सुनकर जिंदगी ने राहत की सांस ली। लेकिन अगले ही पल उसे साहिर की चिंता ने घेर लिया।

    "... और आप उनके साथ नहीं गए?? आपको उनके साथ जाना चाहिए था ना??" जिंदगी के शब्दों में उसकी चिंता और हैरानी दोनों थी जिसको प्रेम के साथ साथ जानवी जी और जितेंद्र जी ने भी महसूस किया था।

    "नहीं बेटा जी, वह हमें साथ लेकर नहीं गए बल्कि हमें बता कर भी नहीं गए..." प्रेम ने बेहद अफसोस दिखाते हुए कहा वह देखना चाहता था कि आखिर जिंदगी को साहिब की कितनी चिंता है और उसका तीर सही निशाने पर जाकर लगा था।

    "क्या साथ लेकर नहीं गए?? और ऊपर से बता कर भी नहीं गए?? ऐसा कैसे कर सकते हैं वो??" जिंदगी हल्के गुस्से में तेज आवाज में बोली। उसकी आवाज नॉर्मल से थोड़ी अधिक थी, जिसको साफ साफ महसूस किया जा सकता था।

    "अब आएंगे तो आप ही पूछ लीजिएगा.." जितेंद्र जी ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

    "वह तो हम पूछेंगे ही, हमारे ऊपर इतनी सिक्योरिटी बढ़ा देते हैं और खुद बिना सिक्योरिटी का घूमते हैं??" मुंह बनाती हुई जिंदगी बोली।

    जिंदगी को इस चीज की हैरानी हुई थी कि हमेशा रूल रेगुलेशन में चलने वाला साहिर खुद इतना बड़ा फॉल्ट कैसे कर सकता है?? लेकिन उसकी इस चिंता और हैरानी को इन लोगों ने दूसरे ही ढंग से लिया था। आंखों ही आंखों में प्रेम ने जितेंद्र जी से इस विषय पर सोचने का इशारा किया। जितेंद्र जी प्रेम की बात समझ रहे थे।

    "अच्छा-अच्छा, पहले जाकर हाथ मुंह धो कर आओ और तब खाना। समौसे यही रहेंगे। गायब नहीं होंगे.... जाओ जल्दी...." जानवी जी ने समोसे के प्लेट की तरफ जिंदगी के बढ़ते हुए हाथ को रोक दिया।

    "आपको तो उन्हीं की मम्मा होनी चाहिए था..." मुंह बनाती हुई जिंदगी अपना बैग संभाल कर अपने कमरे की तरफ जाने लगी।

    "किसकी??" प्रेम ने ना समझते हुए जिंदगी की तरफ देखा।

    "अरे!! काकोसा आपको पता नहीं है?? उसी रूल बुक की।" जिंदगी ने मुंह बनाते हुए जवाब दिया।

    "रूल बुक!!! यह कौन है???" जितेंद्र जी और प्रेम जी ने एक साथ जिंदगी की तरफ देखा।

    अपने कमरे की तरफ बढ़ती हुई जिंदगी के कदम दरवाजे पर ठिठक गए।

    "अरे वही रूलबुक.... जो हमारी मम्मा का लाडला है.... जिसने जिंदगी की जिंदगी को कायदे कानून की किताब बना दी है।" मुंह बनाते हुए जिंदगी बेचारगी से बोली।

    "अभी चुपचाप जाकर हाथ मुंह धोती हो कि सिखाओ मैं तुम्हें कायदे कानून?? भागो यहां से..." जानवी जी ने उसे डांट लगाई।

    "नाम तो बड़ा अच्छा रख रखा है .....हमारी बेटी ने राणा सा का।" प्रेम हंसते हुए बोला।

    "पर परेशानी की बात तो यह है कि आखिर इस कायदे कानून की किताब ने कायदा कानून तोड़ा क्यों है??" जानवी जी चिंता में बोली। उन्होंने प्रेम और जितेंद्र जी की बात सुन ली थी।

    "मेरा दिल बहुत घबरा रहा है, जाने कहां है मेरा बच्चा??" जानवी जी के शब्दों में चिंता थी।

    "आप चिंता मत करिए जानवी जी, हम पता लगाते हैं..." जितेंद्र जी उठकर खड़े हुए और उनके साथ साथ प्रेम भी दोनों एक साथ बाहर निकले।

    क्रमश:

  • 18. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 18

    Words: 1066

    Estimated Reading Time: 7 min

    "इंफॉर्मेशन पूरी पक्की है ना अर्जुन? ऐसा तो नहीं होगा कि इस बार भी हम पूरी तरह से फिर खाली हाथ रह जाएं," साहिर ने अपने साथ बैठे हुए अर्जुन पर नजर डालते हुए पूछा।
    "नहीं राणा सा.....इस बार इंफॉर्मेशन पूरी पक्की है.... वह आदमी हमें यहीं मिलेगा.... मैंने अपने आदमी को एक महीने पहले से ही उस के पीछे लगा रखा है। वह आज की रात यही आने वाला है।" अर्जुन ने कहा।
    "यह राणा सा किसे कहा??" साहिर ने घूरते हुए अर्जुन की तरफ देखा।
    अर्जुन जो कि गाड़ी चला रहा था, साहिर की नजरों का ताप अपने चेहरे पर महसूस करते हुए अपनी आंखों को बंद कर लिया। "सॉरी यार!! वह क्या है ना.... कभी-कभी जबान फिसल जाती है...." अर्जुन मुस्कुराते हुए बोला।
    "तो अपनी जबान को रोक कर रखो.... वरना अगर किसी दिन मेरा हाथ फिसला... तो बहुत बुरा होगा।" साहिर ने अपने फोन को अपने जेब के हवाले करते हुए कहा। साहिर की बात सुनकर अर्जुन खुलकर हंस पड़ा।
    "लो पहुंच गए... हम लोग अपनी मंजिल पर।" गाड़ी को एक साइड लगाते हुए अर्जुन ने कहा। साहिर ने गाड़ी में बैठे हुए ही एक नजर बाहर डाली। रात के करीब 10:00 बज रहे थे और जिस जगह पर उनकी गाड़ी लगी हुई थी, वह जगह शहर से काफी दूर एक सुनसान सी बस्ती थी, जहां कि गिने चुने मकान दिखाई पड़ रहे थे। बाहर पूरी तरह से अंधेरा हो गया था।
    पूरी बस्ती में ऐसा घुप अंधेरा फैला हुआ था, जैसे कि यहां पर कोई रहता ही नहीं था या फिर रात के 10:00 बजे ही सब गहरी नींद में सो चुके हैं। बस एक दुकान का आधा शटर खुला हुआ था और उसके बाहर एक पीली रोशनी वाला बल्ब बड़ा ही धीमा जल रहा था। उसकी रोशनी बस इतनी थी जिससे कि वह खुद अपनी शक्ल देख पा रहा था और दूसरों को अपने होने का एहसास दिला रहा था।
    "यह कैसी जगह है??" साहिर ने अर्जुन से पूछा, जो कि अब सीट बेल्ट खोलकर बाहर निकलने की तैयारी में था।
    "भानुमती का पिटारा है भाई साहब...." अर्जुन मुस्कुराते हुए बोला।
    "मतलब??" साहिर उसकी बात समझते हुए भी पूछ बैठा।
    "अंदर चल के देख लो, सब समझ में आ जाएगा।" अर्जुन ने दो अर्थी मुस्कुराहट के साथ कहा।
    "अंदर जाने की क्या जरूरत है? यहीं गाड़ी में हम उसका इंतजार नहीं कर सकते?" साहिर ने पूछा।
    अर्जुन ने ना में सिर हिलाया।
    "यह रास्ता उन लोगों के लिए है जो कि यहां पहली बार आते हैं, वरना यहां ग्राहकों के लिए आने के कई और रास्ते भी हैं। और उन ग्राहकों के लिए तो और भी कई स्पेशल रास्ते हैं, जो कि यहां के रेगुलर कस्टमर हैं। वैसे अगर आपका आदेश हो तो बंदा आपके लिए भी स्पेशल पास अरेंज करवा देगा....." अर्जुन साहिर की तरफ झुकते हुए बोला।
    "क्यों तू पहले भी यहां आ चुका है क्या??" साहिर में अपनी एक भौंह उठाते हुए अर्जुन से पूछा।
    "बिना आए हुए ही तुम्हें यहां लेकर आया हूं...." अर्जुन ने अपनी जेब से अपना स्पेशल पास साहिर के आंखों के आगे लहराते हुए कहा।
    "वैसे एक अंदर की बात बताऊं??" अर्जुन साहिर की तरफ हल्के से झुका।
    "हां बोल...."
    "एक बार जो इस स्पेशल जगह पर आता है ना.... वह यहीं का होकर रह जाता है। जस्ट लाइक मि." अर्जुन ने अपने ब्लेजर के कॉलर खड़े करते हुए कहा।
    "ऐसा क्या है इस जगह में?? मुझे तो कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है... सिवाय इस टूटी फूटी इमारत के अलावा....." साहिर ने ना समझने वाले अंदाज में कहा।
    "तुझे कुछ दिखाई भी नहीं पड़ेगा।" अर्जुन ने मुंह बनाया।
    "अरे यार!! देखने लायक चीज होगी तभी तो दिखाई पड़ेगा ना। एक तो यहां इतना अंधेरा है और ऊपर से यह सड़ी गली इमारत, इसके अलावा तो मुझे कुछ नहीं दिखाई पड़ रहा।" साहिर ने तेजी से कहा।
    "रहने दे.... बड़ा बोर बंदा हैं तू, तेरे काम की चीज नहीं है।" अर्जुन अगले ही पल सीधे होकर बैठ गया।
    "क्या मतलब तेरा??" साहिर ने अपनी आंखें छोटी की।
    "खूबसूरती देखने के लिए एक अलग खूबसूरत नजर होनी चाहिए।" अर्जुन होठों को गोल करते हुए बोला।
    "क्या मतलब तेरा!! मेरे पास आंखें नहीं है??" साहिर ने चिढ़ कर पूछा।
    "आंखें हैं.... लेकिन सिर्फ बिजनेस डील के पेपर देखने के लिए। इस जबरदस्त रंगीन खूबसूरती को देखने के लिए नहीं। अंदर बहुत रंगीन है। रात रंगीन करने का उपाय.." अर्जुन अंदाज़ में मुस्कुराया। उसकी बात का मतलब साहिर समझ गया।
    "सुधर जा..... अगर प्रेम काकोसा को तेरी हरकतों के बारे में पता चला ना.... तो तू सोच भी नहीं सकता तेरे साथ क्या होगा?? मारते मारते तेरे रात ही नहीं दिन भी रंगीन कर देंगे। दिन में ही तारे दिखाई पड़ने लगेंगे।" साहिर ने हल्के से अर्जुन के सर पर मारते हुए कहा।
    "वह तो उस दिन भी होगा जब उन्हें पता चलेगा..... पर तू अपना सोच ले उस दिन क्या होगा जब उन्हें यह पता चलेगा कि उनके राणा सा भी किन गलियों का रास्ता नाप रहे हैं?" अर्जुन ने पूछा।
    "तू मुझे ब्लैकमेल कर रहा है??"
    "ना... ना भाई... मेरी इतनी औकात कहां?? जो मैं प्रतापगढ़ के राजा को ब्लैकमेल कर सकूं.... चल अंदर चल कर देखते हैं।" अर्जुन ने साहिर को बाहर निकलने का इशारा किया।
    अर्जुन के साथ साहिर उस दुकान के सामने खड़ा हुआ। साहिर ने अंदर जाने से पहले बिल्डिंग को बहुत गौर से देखा। बाहर से यह बिल्डिंग बहुत ही खस्ता हालत में थी। इस दो मंजिला इमारत को देखने से ऐसा लग रहा था कि जैसे कि बरसों से रंगाई पुताई का काम नहीं हुआ है और कई जगह से प्लास्टर भी उभरा हुआ था। एक कमरे को बाहर से शटर लगाकर दुकान बनाया गया था। अब इसके अंदर क्या था?? यह तो अंदर जाने के बाद ही पता चलता।
    "काश !!आज मेरी तलाश पूरी हो जाए!!" साहिर ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए अपने जेब में पड़ी हुई रिवाल्वर को टटोला और अर्जुन के साथ झुकते हुए उस दुकान के शटर से अंदर चला गया।
    अर्जुन ने ठीक ही कहा था, जो चीजें से दिखती है वैसी होती नहीं.... ये बात तो साहिर भी समझता था। पर अंदर जो था, उसको देख कर साहिर की भी आंखें एक पल के लिए बड़ी हो गई।

    क्रमश;

  • 19. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 19

    Words: 1195

    Estimated Reading Time: 8 min

    "काश!! आज मेरी तलाश पूरी हो जाए!!" साहिर ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए अपनी जेब में पड़ी हुई रिवाल्वर को टटोला और अर्जुन के साथ झुकते हुए उस दुकान के शटर से अंदर चला गया।
    दुकान के अंदर बाहर से भी ज्यादा अंधेरा सा लग रहा था। पूरे कमरे में सिर्फ एक नाइट बल्ब जल रहा था। लाल रोशनी वाला। कमरा बीस बाय बीस का था... इसलिए उसे कमरा कम हॉल ज्यादा कहना उचित होगा। साहिर ने पूरे हॉल पर नजर दौड़ाई। यह जीरो वाट की लाल रोशनी वाला बल्ब.... पूरे हॉल में पर्याप्त रोशनी नहीं कर पा रहा था। पर फिर भी इतनी थी कि चीजों का पता आसानी से चल रहा था।

    उस हॉल में एक भी फर्नीचर नहीं था... सिर्फ दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र लगे हुए थे। नीचे फर्श पर एक साधारण सा फटा पुराना कार कार्पेट बिछाया हुआ था।

    साहिर ने अर्जुन की तरफ देखा... अर्जुन ने साहिर का हाथ पकड़ा और उसे एक कोने की तरफ ले आया। वहां पर दीवार में एक इलेक्ट्रिक मीटर लगा हुआ था। अर्जुन ने धीरे से उस इलेक्ट्रिक मीटर को हटाया.... अंदर एक ब्लैक बोर्ड था.... छोटा सा। शायद किसी चीज का स्केनर था। अर्जुन ने अपने पास को वहां लगा दिया।

    बिना किसी आवाज के कारपेट एक तरफ से हट गया और वहां से अंदर नीचे की ओर जाती हुई सीढ़ियां दिखाई पड़ने लगीं। साहिर का हाथ पकड़े हुए अर्जुन उस तरफ आया। साहिर ने वहीं ऊपर खड़े होकर.... एक बार नीचे सीढ़ियों की तरफ देखा... अंतिम सीढ़ियों के पास बहुत तेज रोशनी थी। इसके अलावा कुछ सुनाई भी पड़ रहा था... शायद अंदर कहीं बहुत तेज शोर हो रहा था या फिर डीजे जैसी चीज बज रही थी....

    साहिर और अर्जुन एक-एक करके सीढ़ी उतरने लगे क्योंकि सीढ़ियां इतनी संकरी थीं कि एक बार में सिर्फ एक ही आदमी नीचे उतर सकता था।

    "संभल के... इधर फिसलन भी है।" अर्जुन ने कहा।

    साहिर ने हां में सिर हिलाया।

    अंतिम सीढ़ी तक आते-आते अंदर के माहौल का अंदाजा करते ही साहिर के होंठ मुस्कुरा उठे। अर्जुन ने ठीक ही कहा था.... जो चीज जैसी दिखती है... वैसी होती नहीं। और यहां तो रात में भी दिन का माहौल था। अंदर का सीन बिल्कुल एक बीयर बार की तरह था। दरवाजे पर एक मोटा सा लंबा चौड़ा आदमी खड़ा था।

    अर्जुन ने आदमी की तरफ अपना पास बढ़ा दिया।

    "आओ आओ साहब... बड़े दिलदार हो... लगता है कि दिल लग गया है यहां।" आदमी अर्जुन की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर बोला। शायद वह अर्जुन को पहचान गया था।

    "बाहर की दुनिया से ज्यादा रंगीनी है यहां पर... तो भला दिल कैसे ना लगता??? यहां से बाहर निकलने के बाद तो ऐसा लगता है कि दिल यहीं छूट गया हो...." अर्जुन ने भी उसी लहजे में जवाब दिया। अर्जुन की बात सुनकर आदमी खुलकर मुस्कुरा दिया।

    "बात तो सही है तुम्हारी।" उस आदमी ने अपने हाथ में ली हुई छोटी सी मशीन में अर्जुन का कार्ड डाला और अपने सामने लगी बड़ी सी स्क्रीन पर देखने लगा।

    "इसी हफ्ते में चौथी बार... और वह भी दस लाख का बैलेंस!! पैसे वाले हो.... या फिर काले वाले...." आदमी ने अर्जुन से पूछा।

    "दोनों में से कोई नहीं.... तुम्हारी ही बिरादरी का हूं...." अर्जुन ने कहा।

    "यह कौन है?? नया बंदा है??" आदमी ने साहिर की तरफ इशारा करते पूछा।

    "अपना ही दोस्त है.... पास बना दो..." अर्जुन ने धीरे से उस आदमी के कान में कहा।

    "मोंटी आया है??" अर्जुन ने तुरंत अपनी जेब में से 2000 का नोट निकालकर उस आदमी के हाथ पर रखा और आदमी ने अपनी जेब में से एक नया पास निकालकर साहिर के हाथ में रखते हुए धीरे से अर्जुन के कान में कहा, "हां आया है।"

    अर्जुन ने तुरंत दूसरा 2000 का नोट उसके हाथ में रखा, "कहां है??"

    आदमी ने धीरे से कहा, "तीसरे फ्लोर पर... रूम नंबर 413।"

    अर्जुन और साहिर अंदर की तरफ बढ़ गए। दोनों ने अपने चेहरे पर मास्क लगाया हुआ था और दोनों के कपड़े भी आज अलग थे।

    मंकी वास जींस और एक चटकीली सी टीशर्ट।

    आमतौर पर इस तरह के कपड़े साहिर नहीं पहनता था और ना ही अर्जुन। पर शायद इस जगह को ध्यान में रखते हुए दोनों ने अपने कपड़े बदले थे। बाल भी स्टाइल में उठे हुए थे इसलिए अगर कोई इन्हें यहां देख भी लेता .....तो पहचाने जाने की संभावना नहीं के बराबर थी..... पर एतिहाद के रूप में दोनों ने अपनी आंखों पर भूरे रंग के लेंस लगाए थे।

    साहिर और अर्जुन बीयर बार से होते हुए डांस फ्लोर की तरफ बढ़ने लगे। डांस फ्लोर पर बहुत लाउड साउंड में म्यूजिक बज रहा था और बेसुध लड़के लड़कियां डांस कर रहे थे।

    "यहां तो पब से भी ज्यादा बोरिंग एनवायरमेंट है।" साहिर ने एक नफरत भरी नजर अपने आसपास डालते हुए धीरे से कहा।

    उसकी बात पर अर्जुन मुस्कुरा दिया।

    "कहा था ना... खूबसूरती देखने के लिए इंसान के पास खूबसूरत नजर होनी चाहिए.... पर अफसोस!! वो तेरे पास नहीं है।" कहते हुए अर्जुन ने आंखों के इशारे से साहिर को एक लड़की की तरफ देखने का इशारा किया जोकि इतना पी चुकी थी कि अब उसे किसी भी चीज का होश नहीं था।

    "बेकार लोग...." साहिर मुंह में ही बोला। चारों तरफ सिगरेट का स्मोक भरा हुआ था और साथ में ड्रग्स का भी धुंवा था।

    शायद दोनों के नाक पर अगर मास्क नहीं होता तो उन दोनों से बर्दाश्त भी नहीं हो सकता था। डांस फ्लोर से होकर अर्जुन और साहिर नीचे उतरने लगे। तभी एक लड़की बेसुध नाचते हुए तेजी से साहिर से टकराई। अर्जुन और साहिर का हाथ झटके से छूट गया। साहिर ने उस लड़की को अपनी मजबूत बाहों में अगर समय रहते थाम नहीं लिया होता.... तो अब तक वह डांस फ्लोर पर गिर गई रहती।

    "संभल के...." साहिर ने झटके से उस लड़की को सीधा करते हुए कहा।

    जवाब में लड़की ने अपनी नशीली आंखों से साहिर की तरफ देख कर मुस्कुराहट उछाली।

    "क्या कूल बंदा है.....!! आई लाइक यू...."

    साहिर को बड़ा अटपटा सा लगा। उसने गौर से लड़की की तरफ देखा और झटके से छोड़ दिया। अर्जुन डांस फ्लोर से नीचे उतर चुका था.... उसने साहिर को अपने पास आने का इशारा किया।

    "कहां जा रहे हो??" लड़की ने आगे बढ़कर साहिर का हाथ पकड़ना चाहा। लेकिन साहिर झटके से अपना हाथ छुड़ाते हुए.... अर्जुन की तरफ चल दिया। डांस फ्लोर से नीचे उतर कर साहिर ने..... और अंदर जाने से पहले एक बार मुड़ कर डांस फ्लोर की तरफ देखा। वह लड़की अब डांस की भीड़ में गुम हो चुकी थी। साहिर को अचानक से ऐसा लगा था कि उसने उस लड़की के हाथ में गोल्डन ब्रेसलेट देखा था .....जिस पर कि हीरो से 'J' लिखा हुआ था। ऐसा ब्रेसलेट उसने पहले भी कहीं देखा था।

    साहिर का दिमाग बहुत तेज था। एक बार देखी हुई चीज वह कभी नहीं भूल सकता था। उसे तुरंत याद आ गया। पर अगले ही पल उसने अपनी सोच को नकार दिया।

    "नहीं नहीं वह यहां नहीं हो सकती...." साहिर ने अपने मन में सोचा और फिर अर्जुन के साथ थर्ड फ्लोर की तरफ चल दिया।

    क्रमश:

  • 20. ज़िंदगी: सफर तकरार से प्यार तक का - Chapter 20

    Words: 1486

    Estimated Reading Time: 9 min

    "कहीं डांस फ्लोर पर झूम के नाचने का मूड तो नहीं हो रहा था," लॉबी में चलते हुए अर्जुन ने शरारती अंदाज में साहिर से पूछा।
    "नहीं, तुझे वही घसीट कर दो-चार हाथ देने का मूड हो रहा था। बोल तो वापस ले चलता हूं," साहिर ने भी उलट कर जवाब दिया।
    "वही तो.... मैं भी सोच रहा था कि अचानक से कड़वा करेला मीठा आम कैसे बन गया??" अर्जुन अपनी मुस्कुराहट दबाते हुए बोला।
    कड़वा करेला शब्द सुनकर साहिर को अचानक से जिंदगी का ख्याल आया। करेला का नाम सुनते ही ऐसा मुंह बनाती थी जैसे करेले की पूरी कड़वाहट उसके हलक तक उतर आई हो।
    साहिर के होंठ जिंदगी को याद करके ही मुस्कुरा दिए। भले ही साहिर ने मास्क लगाया था, पर फिर भी अर्जुन की नजरों से साहिर की ये दिलफरेब मुस्कुराहट छुपी हुई नहीं थी।
    "वैसे मैंने इस समय एक रूल बुक का भी नाम सुना है, कहो तो उसके बारे में भी तुझे कुछ बताऊं?" अर्जुन साहिर की तरफ झुकते हुए बोला।
    "रूल बुक??" साहिर को समझ नहीं आया।
    "हां, वही रूल बुक जिसने हमारी जिंदगी की जिंदगी को चलती फिरती कानून की किताब बना दी है और खुद गैरकानूनी गलियों में घूम रहा है," अर्जुन मुस्कुराते हुए बोला।
    जवाब में साहिर ने उसे घूर कर देखा।
    "सॉरी, सॉरी वह हमारी नहीं साहिर सिंह राणा की जिंदगी है और साहिल सिंह राणा हमारी जिंदगी है। तो बात घूम फिर कर वहीं आती है ना भाई," साहिर की नजरों को समझकर अर्जुन ने धीरे से अपने दाहिने हाथ से अपना दाहिना कान छूकर कहा।
    "वैसे डांस फ्लोर पर रुक क्यों गया था?" अर्जुन ने अंदर ही अंदर एक दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाते हुए कहा।
    "कुछ नहीं, बस ऐसा लगा कि देखा देखा हुआ है वहां पर मौजूद दो-तीन लोग," साहिर अभी भी उस लड़की के ब्रेसलेट में उलझा हुआ था।
    वह जिस रास्ते पर चलते जा रहे थे, वह बिल्कुल भूल भुलैया सुरंग जैसी थी। पता नहीं कहां उसको निकलना था? वही साहिर को यह सब अजीब सा लग रहा था, खासकर ये रास्ते...
    ऐसा लग रहा था कि अगर यहां से अचानक में निकलना हुआ तो वह शायद रास्ता भूल जाएगा क्योंकि हर एक लॉबी एक जैसी ही लग रही थी, और हर रास्ते से दो-तीन रास्ते जा रहे थे। वह रास्ता याद करने की कोशिश कर रहा था ताकि कुछ पहचान में आए और तेजी से निकला जा सके, पर अर्जुन के बार-बार बोलने पर उसका कंसंट्रेशन टूट रहा था।
    "देखा देखा लगेगा ही ना!! मिलेनियर बाप के बिगड़े हुए औलाद थे," अर्जुन ने कहा।
    "ऐसा मुझे भी लगा, पर जिधर से हम आए उधर से तो कोई नहीं था," साहिर ने कुछ ना समझने वाले अंदाज में कहा क्योंकि जिस रास्ते से ये दोनों आए थे वहां पर उनके अलावा किसी और की गाड़ी नहीं लगी थी।
    "बताया तो भाई, यहां पर एंट्री के कई रास्ते हैं और एग्जिट के भी। जो जैसा होता है उस हिसाब से पास बनता है और एंट्री मिलती है। मैंने जो पास बनवाया है उससे हमें वीवीआईपी एंट्री मिलेगी और यहां पर भी वीआईपी एंट्री का मतलब तो तू समझ ही रहा है ना!!!" अर्जुन दो अर्थी मुस्कुराहट दबाते हुए बोला। उसकी मुस्कुराहट समझकर साहिर ने सर झटका।
    "यह तो..." साहिर ने अचानक से एक लोगों देखा।
    "यह रॉयल स्टेज होटल का लोगो है," अर्जुन ने उसकी बात पूरी की।
    "हम वही जा रहे हैं, ये उसी का अंडरग्राउंड इलाका है," अर्जुन ने बताया।
    "क्या??" साहिर को जबरदस्त हैरानी हुई।
    "क्यों उड़ गए ना तोते??" अर्जुन मुस्कुराते हुए बोला। साहिर हैरानी से अर्जुन की तरफ देख रहा था।
    "जो आदमी ऊपर जितना सफेद होता है ना, अंदर से उतना ही काला होता है," अर्जुन एक अंडरग्राउंड लिफ्ट के अंदर एंट्री लेते हुए बोला। "अब हम जहां जा रहे हैं वह सीधा रॉयल स्टेज होटल के रेजिडेंस इलाके में खुलेगा।"
    साहिर को हैरानी भी हो रही थी और साथ में इस होटल के मालिक के दिमाग की दाद भी दे रहा था। रॉयल स्टेज होटल मेन मार्केट में था और ये लोग मेन टाउन से भी दूर आए थे। अंदर ही अंदर रॉयल स्टेज होटल ने काफी दूर तक अपना अंडरग्राउंड फैला लिया था।
    "हम तो फिर उधर से भी इंट्री कर सकते थे..." साहिर ने सोचते हुए कहा। अर्जुन ने इनकार में चलाया।
    "हम जिस काम के लिए आए हैं वहां हमें सीधे दरवाजे से एंट्री नहीं मिल सकती थी और मिल भी जाती तो पकड़े जाते," अर्जुन ने कहा।
    "सीधा क्यों नहीं कहता कि दरवाजे से इंट्री करने पर हम सिर्फ वही देखते जो कि वह हमें दिखाना चाहते हैं और पीछे के दरवाजे से हम वह देख रहे हैं जो कि हम देखना चाहते हैं," साहिर अब बहुत कुछ समझ गया था। सफेद होटल की आड़ में अंदर ही अंदर बहुत काला धंधा हो रहा था क्योंकि उसने अपनी नजर इधर-उधर भी घुमाई थी, हर कमरे में कोई ना कोई गैरकानूनी डील और कोई ना कोई गलत काम ही हो रहा था। अर्जुन ने हां में सिर हिलाया।
    "इसलिए हमें हुलिया बदलकर पीछे का रास्ता इस्तेमाल करना पड़ा, चलो चल कर देखते हैं क्या बताता है??" अर्जुन ने रूम नंबर 413 का दरवाजा अपना पास लगाकर झटके से खोल दिया, जैसे कि वह पास नहीं मास्टर की हो।

    *****

    "रात के 11:00 बज रहे हैं, लेकिन राणा सा का कहीं भी अता पता नहीं है। पता नहीं कहां गए हैं?? कहीं किसी मुसीबत में ना फंस गए हो??" प्रेम बहुत परेशान था।
    दोनों की गाड़ी इस समय शहर के बाहर वाले इलाके में थी। इन लोगों के अलावा इन लोगों के गिने-चुने आदमी साहिर की तलाश और भी घर इलाकों में कर रहे थे। प्रेम और जितेंद्र जी को काफी समय हो गया था साहिल की तलाश में इधर-उधर भटकते हुए।
    अब तक मिली इंफॉर्मेशन के अनुसार दोपहर 1:00 बजे के बाद किसी ने भी उन्हें नहीं देखा।
    "आखिर जा कहां सकते हैं??" जितेंद्र जी परेशान होते हुए बोले। उनका मन अब अपने हाई सिक्योरिटी को इनफॉर्म करने का हो रहा था या फिर पुलिस की मदद लेने का।
    "यही तो मेरी समझ में भी नहीं आ रहा है, भला कोई इस तरह से अपनी ही सिक्योरिटी ब्रेक करता है? यह बात समझते हुए कि उनके लिए हर तरफ खतरा है? आज अर्जुन भी आने वाला था, वह भी नहीं आया अब तक," प्रेम ने घड़ी देखते हुए कहा।
    "एक मिनट, अर्जुन आने वाला था। तो तू अर्जुन को फोन करके क्यों नहीं पता करता? शायद राणा सा और अर्जुन साथ में हो," जितेंद्र जी ने मशवरा दिया।
    "तुझे क्या लगता है मैंने किया नहीं होगा? उसका भी फोन स्विच ऑफ बता रहा है," प्रेम को साहिर की सिक्योरिटी की चिंता हो रही थी। दुश्मन रास्ते में हर एक कदम पर बिखरे पड़े थे। ऐसे में साहिर का इस तरह से बिना बताए हुए गायब होना बहुत परेशान करने वाला था। साहिर ऐसे भी ऐसे पहले भी तीन-चार दिनों के लिए गायब होता था लेकिन उस समय वह प्रेम को सॉलिड बहाना देकर निकलता था जिसका पता साहिर के लौटने पर प्रेम को होता था कि आखिर साहिर गया कहां है? और बाद में जब प्रेम उस पर गुस्सा करता था तो साहिर मुस्कुराते हुए कान पकड़ लेता था।
    पर आज शायद साहिर इतनी जल्दी बाजी में निकला था कि प्रेम को कोई सॉलिड बहाना बताने का उसे कोई समय नहीं मिल पाया था।
    "इसका मतलब है कि दोनों दोस्त कहीं निकले हैं और हम बेवजह अपना टाइम वेस्ट कर रहे हैं," जितेंद्र जी ने सोचते हुए कहा।
    "आज साहिर सा को आने दो, उसके बाद मैं उनसे पूछता हूं। आज उनका कोई भी बहाना नहीं चलेगा और अगर इन सब चीजों के पीछे अर्जुन हुआ ना!! तो उसकी तो खैर नहीं," प्रेम का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था।
    "चल ज्यादा परेशान मत हो, अर्जुन के होते हुए राणा सा को कुछ नहीं होगा," जितेंद्र जी ने प्रेम के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
    "अरे कैसे कुछ नहीं होगा!! वह अर्जुन तो खुद चलती फिरती मुसीबत की दुकान है," प्रेम गाड़ी चलाते हुए बोला।
    "तेरे लिए है, पर राणा सा के लिए नहीं। वह अपनी जिम्मेवारी समझता है। है तो तेरा ही बेटा ना!! राणा सा के लिए जान दे देगा लेकिन राणा साहब पर कोई आंच नहीं आने देगा। इतना भरोसा रख अपने बेटे पर। घर चल कर देखते हैं। क्या पता दोनों पहुंच गए हो??" जितेंद्र जी ने घड़ी में टाइम देखते हुए कहा।
    "यह भी सही है..." प्रेम ने गाड़ी घर तरफ मोड़ दी।
    "अर्जुन आ चुका है तो फिर यह दरवाजे से भी नहीं आए होंगे इस कारण अब तक जानवी जी का भी फोन नहीं आया, वह भी परेशान ही बैठी होंगी," जितेंद्र मुस्कुराते हुए बोले।
    पर असली परेशानी में तो साहिर और अर्जुन फंस चुके थे।

    क्रमश: