Novel Cover Image

Lawyer

User Avatar

Hayat Khan

Comments

0

Views

2

Ratings

0

Read Now

Description

एक बिजनेस टाइकून जो एरोगेंट पर्सनैलिटी का मालिक था... दिखने में इतना हैंडसम की लोग उसे देखते रह जाए.... जिसे लड़कियों से नफरत थी... उसे प्यार नाम का शब्द बेकार लगता था.... एक दिन उसके मां के कहने पर मजबूरन एक लड़की से शादी करली.... लेकिन उसे मालूम नह...

Characters

Character Image

Advik Morya

Hero

Character Image

Tanvi Varma

Hero

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. Hope Eternal - Chapter 1

    Words: 1

    Estimated Reading Time: 1 min

    मन्नत भगवान के लिए....”

    ड्रेसिंग टेबल का सामान बिखर गया... दीवाल अलमारी के शीशे छमा कै से टूट गए कांच का गुलदान जो नफरत और बदले की ख्वाइश से जमीन पर फेंका गया था... उसके टुकड़े यहां वहां बिखर गए थे....”

    मन्नत....! मन्नत ऐसा ना करो....! मन्नत नहीं....मन्नत मेरा बच्चा....मन्नत भगवान के लिए....!”

    एक तड़प.... एक पुकार....एक मिन्नत.....

    उसने एक पलके झपकाया.... मंजर एक लम्हे के लिए धुंधला हुआ था शायद आंखों की नामी बड़ी थी....

    आकाश....! आकाश....! मुझे बचाओ..."दिल दहला देने वाली चीख के साथ ही एक झटके से आंख खुल गई थी...."बेडक्राउन के साथ लगा अपना सर उठाते हुए वह हड़बड़ा कर सीधी बैठी हुई थी.... उसने अपना लेफ्ट हैंड अचानक अपने चेस्ट पर रख दिया था....।

    नाइट स्टैंड की येलो रोशनी में कामदार जोड़े पर नजर पढ़ते ही... अपने सपने से बाहर आ गई....अचानक सर उठा कर उसने डरो हुई आंखों से अपने साइड देखा....। व्हाइट और ब्लैक कलर की थीम में khubsurti से तरसा हुआ बेहद बड़ा और एलिसन रूम में एक बड़े साइज के बेड पर रेड कलर के लहंगा पहने बैठी थी....। यह घर उसका नहीं था.... यह कमरा भी उसका नहीं था....।

    सेकंड के हजार हिस्से में कुछ घंटे पहले शादी और तकलीफ का मंजर उसकी आंखों के सामने लहरा गए.... सूखे होंठ को हिलाते हुए लहंगे को अपने हाथों में सम्भल कर वो बेड से उतर गई.... चूड़ियां खनक उठी... लाखों का गले का हार गले पर लटक गया....जुड़े पर लगा गजरा उसकी गर्दन पर झूल रहा था...।

    वह इंसान होकर पथर थी....आंखों से दरवाजा खोलकर वह कुछ खौफ कुछ.... घबराहट के साथ बाहर आ गई...मास्टर बेडरूम के राइट साइड एक मिरर लगी हुई थी उसके पास एक टेबल पर गुदान रखा हुआ था.... उसके आगे जाने पर नीचे की तरफ जाती हुई सीढ़ियों पर वह उसे बैठा दिखाई दे गया था....मन्नत की धड़कने एक सेकंड के जैसे थम सी गई थी.... सर गिरा हुआ..,कंधे झुके हुए, और मूर्तियां जोर से भींचे हुए... जैसे वो तकलीफ की सबसे कष्ट पड़ाव से गुजर रहा हो.... अभी फिलहाल उसका मूड खुश गवार नहीं था...., वो जानती थी... शादी के टाइम भी उसके तेवर ठीक नहीं थे.... वो यह भी जानती थी...।

    "बड़े अजीब हैं यह आहान भाई..." सिद्धि ने बहुत अच्छे से नोट किया था,"मंगलसूत्र ऐसे पहना रहे थे जैसे...." “कुछ कहते कहते वह अचानक चुप होगई थी ” "जैसे....?" उसने बिना पलके झपकाए उसे देखा था...”"जैसे.... कुछ नहीं " लबों पर मुस्कुराहट सजा कर उसने बात अधूरी छोड़ दी थी....। और वो अधूरी बाते जैसे अब मुकम्मल होने को थी....।

    डर उसकी बॉडी जकड़ ते हुए वो एक झटके से उठ कर उसकी तरफ मुड़ा था... उसकी की घूरती गहरी आंखों में गुस्सा वो ख़जब बढ़ता हुआ एहसास मन्नत आहूजा कि पीठ की हड्डी में जान जनाहट दौड़ गया....। "तुमने अभी तक चेंज नहीं किया....?" गहरी, भरी , सख्त लहजा.... लहंगे को संभाले मन्नत की हाथों की उंगलियों की मुट्ठी बन गई थी....उसने इतनी मजबूती से मुट्ठी विंची थी कि उसके नाखून उसके हथेलियों में दंश गए थे...." यह शादी सिर्फ नाम का है मन्नत आहूजा.....! इस शादी को सिर्फ नाम की शादी तक ही रखना.......” एक एक शब्द नफरत से अदा करते हुए उसके और अपने बीच कुछ कदमों के फासले को उसने एक ही लम्हे में बांट लिया था...."नाम की शादी....!”

    वह फटी फटी आंखों से उसे देखकर रह गई थी...."मम्मी को एक बहू चाहिए थी.... सिर्फ एक बहू.....! उसकी बाजू से पकड़ कर बहुत गुस्सैल अंदाज में उसे रास्ते से हटाया गया....यहां सिर्फ बहू बनकर रहो.... बीवी बनाकर मेरे सर पर नाचने की कोशिश भूल से भी मत करना....वरना बहुत बड़ा करूंगा मैं....आंखों में शक्ति से देखते हुए उसने उंगली उठाकर धमकी दी थी....फिर उसी सख्त अंदाज से वह रूम में चला गया था...."सदमे से गुम होते दिमाग के साथ मन्नत ने मुड़कर उसे बे यकीनी से देखा था....वह जो बहुत इज्जत और मन से उसे विदा करके अपने घर ले आया था....अब कुछ नफरत और घिन से बेड पर बिखरे गुलाब की पत्तों को हटा रहा था...फूलों को नोच घसीट कर फेंक रहा था.... ताज रोज के बोले को तो उसने जमीन पर दे मारे थे.... वह अपने गुस्से को काबू में करने की कोशिश कर रहा....था वरना उसका बस चलता तो... वह कमरे की एक-एक चीज तहस नहस कर दे आग लगा दे.... सब तबाह ओ बर्बाद कर दे....।

    मन्नत की भूरी आंखों में अरमानों का खून रिस् गया.... कब कब आते होठों पर चुप्पी ठहर गया... वह पत्थर की मूरत बनी आंखों में हैरत.... सदमा और बे यकीनी लिए उसे देख रह गई थी.... दीवार पर एक बड़ा आईना में उसकी नजर पड़ी जो उसकी परछाई खुद में समाई जा रही थी सच को उसके चेहरे के सामने ले आया थी...सच.... सच्चाई का रूप धरे एक बद्दुआ थी....जो उसके पीछे-पीछे यहां तक चली आई थी... यहां तक.... घर छोड़ने से....शहर बदलने से.....नए रास्ते बनाने से...उसकी किस्मत नहीं बदली थी...नफरतें और धुत्कार अब भी उसका नसीब रह गई थी...लानत..., गालियां अब फिर उसका नसीब ठहरी थी...."get lost.... dammit....अबकी बार वह जोर से चिल्लाया था...."भारी भरकम लहंगा....फैला हुआ दुपट्टा ओढ़े हुए वह अपने लहंगे को अपनी खून से राशि हुई हथेलियां में संभाले वह अचानक पीछे हट गई थी... दरवाजा उसके मुंह पर बंद हो गया था धड़ाम की आवाज के साथ....। एक एक करके उसके सारे सपने टूट गए थे....एक-एक करके सारी उम्मीदें बिखर गई थी..."हमेशा अच्छा सोचना...!.... सब अच्छा होगा...." उसने अच्छा सोचा था...., मगर अच्छा ना हुआ था.....।

    "...हर दर्द के साथ आसानी ही..." मुश्किल ही मुश्किल चुनौती ही चुनौती.....दुख ही दुख.... सजा ही सजा....और हर तरफ तकलीफ ही तकलीफ... वह उल्टे कम पीछे होती गई यहां तक की दीवारों से जा लगी.... कॉरिडोर के एक सिरे पर सीढ़ियां थी....तो दूसरे सिरे पर छोटा सा लांच.... जिसकी दीवार की खिड़कियों से पूरा चांद नजर आ रहा था.... तुमने मनीषा के साथ जो किया है मन्नत.... भगवान...! तुम्हें उसकी वह सजा देगा जो तुम सारी उम्र याद रखोगी....” siskiyan Sine mein dafan ho gai aansu palakon per Bah Gaye...."सारी जिंदगी तुमने मां को दुख दिया है सारी उमर तुम उनके लिए अजब बनी रही हो...."सीने में दर्द उठा.... गला भारी होने लगा...आंखें बंद दरवाजे पर ठहर गई....."ऐसी बेटियों को पैदा होते ही मर जाना चाहिए....शब्द सपाट थे रूह छलनी हुई थी...."बहुत मुश्किल से उसने कदम उठाते हुए लॉन्च की तरफ रूख मोडा....पूरा खाली आसमान वह चांद के सामने बे नूर चेहरा लिए सोफे पर बैठ गई... शोर अभी था....आवाज अब भी पूछ रही थी.... वह सर से दुपट्टा उतार कर अपने हेयर स्टाइल के बाल खोलने लगी..... हेयर स्प्रे से बोल आकड़े हुए थे....बहुत मुश्किल से सीधे हो पाए.... उसने फिर कानों के झुमके उतारे....गले को नेकलेस की बोझ से आजाद किया... बिंदिया उतार कर सोफे पर रखी..."उन्हें मत उतरो मन्नत..!

    अभी जी भर कर देखने दो मुझे...."गले से उभरती गिल्टी को बहुत मुश्किल से नीचे उतरते उसने फोन भेज कर ख्यालों को झटकना चाहा.... मगर नाकाम रही... आज की रात कुछ भी उसके दिमाग से ओझल होने वाला नहीं था... रह-रह कर एक-एक पल... एक एक लम्हा... एक एक वक्त.... याद आ रही थी....' भगवान तुम्हें वह सजा देगा जो तुम सारी उमर याद रखोगी...'palakon ki diwaron mein pehra dalte kuchh aansu uske galon per ludhak Gaye...."यह भी आकाश का एहसान है कि उसने तुम्हें कुछ नहीं किया....वरना सोचो वह क्या नहीं कर सकता था...."हां तुम सोचो....! अब तुम सोचो....!

    आज तुम सोचो...! रूम की हर एक चीज आवाज बन गई थी....दिलो जान को जो चीर गई थी...।"बद्दुआ....! baddua....! खिड़कियों से ठंडी हवाएं सर सर कर गुजर रही थी...। गले में उभरती गिल्टी को बड़ी मुश्किल से नीचे उतारते हुए मन्नत ने घुटनों पर अपना कर रखदिया....आज की रात एक मुश्किल रात थी उसके लिए....और उसके लिए भी जो बंद कमरे में अपना सर थमे खामोश बैठा था....।