एक लड़की तारा जिसे पिछले जन्म की कुछ बातें याद आई और उसकी पूरी जिंदगी ही बदल गयी। उसे एहसास हुआ की उसके जो अपने है वो सब धोखेबाज है। उसका प्यार प्रतीक जिसका इंतजार वो पिछले पांच सालों से कर रही है वो कभी पूरा नहीं होगा क्योंकि वो उससे नहीं बल्कि उसकी... एक लड़की तारा जिसे पिछले जन्म की कुछ बातें याद आई और उसकी पूरी जिंदगी ही बदल गयी। उसे एहसास हुआ की उसके जो अपने है वो सब धोखेबाज है। उसका प्यार प्रतीक जिसका इंतजार वो पिछले पांच सालों से कर रही है वो कभी पूरा नहीं होगा क्योंकि वो उससे नहीं बल्कि उसकी सौतेली बहन से प्यार करता है और उसकी बहन और सौतेली माँ उसके पिछले जन्म में उसकी मौत की जिम्मेदार है,,,। तो क्या एक बार फिर उसके साथ वही सब दोहराया जाएगा या फिर वो लेगी सबसे बदला और सबको बताएगी की प्यार कोई खेल नहीं,,,।
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मुंबई शहर,,,,
आज की सुबह हर सुबह से बेहद अलग थी, आज पक्षियों का चहचहाना किसी मधुर गाने की तरह सुनाई पड़ रहा था और कल रात जिस तरह से भारी बारिश हुई थी उसके बाद जो ताजा और ठंडी हवा चल रही थी उसने मौसम को और भी ज्यादा सुहावना बना दिया था,, और उस सब पर सोने पर सुहागा कर रहा था क्षितिज से उगता हुआ वह सूरज जिसकी लालिमा पूरी धरती पर फैल गई थी और अब उसकी सुनहरी किरणे अंधेरे को अपने अंदर समाने लगी थी,,,।
कुल मिलाकर सब कुछ काफी खूबसूरत था इतना कि आज लोग थोड़ा जल्दी उठकर इस प्राकृतिक सौंदर्य को अपनी आंखों में समा रहे थे लेकिन अब भी एक सामान्य से घर के सामान्य से कमरे में साधारण से बेड पर एक लड़की नींद की अवस्था में थी, वह अपनी जान से प्यारी नींद से उठना चाहती थी क्योंकि आज का दिन उसके लिए बहुत इंपॉर्टेंट होने वाला था लेकिन ये सुबह की मीठी मीठी नींद का मोह उससे छुड़ाए नहीं छूट रहा था,,,कुछ देर बाद घड़ी ने 6:30 बजाए और उसके साइड टेबल पर रखा हुआ अलार्म जोरों से बजने लगा और अब आखिरकार बेड पर लेटी हुई उस लड़की को अपनी जान से प्यारी नींद को छोड़ना ही पड़ा,,,।
उसने सबसे पहले उठकर अलार्म बंद किया और फिर बेड पर बैठकर एक भरपूर अंगड़ाई ली और अपनी नजर खिड़की से छनककर आती हुई सूरज की उन चंद किरणों पर टिका ली जो उसके अंधेरे कमरे में हल्का-हल्का उजाला कर रही थी,,। आज का दिन उसके लिए सबसे अच्छा और खास इसलिए था क्योंकि आज जो कुछ भी होने वाला था वह पिछले कुछ सालों में उसके साथ हुआ सबसे अच्छा होगा,, या यद कहे की आज जो होने वाला था उसका इंतजार उसे काफी वक्त से था, आज उसे उसकी जिंदगी की सारी खुशियां मिलने वाली थी,, आज उसे उसका प्यार मिलने वाला था, उनके रिश्ते पर मोहर लगने वाली ।
दरअसल आज उसका मंगेतर प्रतीक अहलावत विदेश से वापस आ रहा था और आज ही उन दोनों की सगाई होने वाली थी,,। जिसकी खुशी तो तारा को थी लेकिन उसके साथ वो थोड़ी सी घबराई हुई भी थी, क्योंकि वह नहीं जानती थी कि पिछले पांच वर्षों से उससे न मिलने के बाद वो उसका सामना कैसे करेगी,, इतने सालों के बाद उसे देखने पर वह कैसे रिएक्शन देगी,,,? और प्रतीक,,,वह कैसा रिएक्शन देगा उसे देखकर,,,?
यह सारे ख्याल तारा के मन में चल रहे थे लेकिन फिर उसने अपने सर पर हल्की सी चपत लगाई और बोली, " तू इतनी परेशान क्यों हो रही है तारा,,? जो भी होगा अच्छा ही होगा वैसे भी तू और प्रतीक एक साथ बड़े हुए हैं और यह इंगेजमेंट का फैसला भी सबने साथ मिलकर लिया है, इस फैसले में सब लोग शामिल है तो फिर कुछ भी गलत नहीं होगा, और तू और प्रतीक तो एक दूसरे को पसंद करते हैं, एक दूसरे से प्यार करते हैं,, माना कि तुम्हारा रिश्ता लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप रहा है,,वह 5 साल तुझसे दूर रहा है लेकिन फिर भी तुम दोनों का रिश्ता तो नहीं बदला है ना,,,? आज तो तुझे तेरी लाइफ की सारी खुशियां मिलने वाली है जो सपना तू बचपन से देखती आई है वह आज पूरा होने वाला है और तू है कि अपनी ओवरथिंकिंग से अपनी लाइफ के बेस्ट डे को खराब करने लगी है,,,!" कहते हुए उसने खुद को आईने में घूरा और फिर खुद को समझाते हुए बोली, " तू ओवरथिंकिंग मत कर और जो हो रहा है उसे एन्जॉय कर ,,,। "
तारा अभी खुद को समझा ही रही थी कि उसे अपने कमरे के दरवाजे के बाहर से अपनी मां के गुस्से भरी चिल्लाने की आवाज सुनाई दी, " हे भगवान मैं क्या करूं इस लड़की का,,? आज इतना बड़ा दिन है और यह है कि अभी तक उठी भी नहीं है,,,!" कहते हुए सुलक्षणा कमरे में आई और अपनी बेटी को घूरते हुए बोली, " तुम अभी भी इधर-उधर क्यों घूम रही हो तारा,,,? अब तक तो तुम्हें नहा धोकर तैयार हो जाना चाहिए था तुम्हें मालूम है ना कि आज प्रतीक वापस आ रहा है तो तुम्हें उसका अच्छे से वेलकम करना है और उसके बाद तुम दोनों की इंगेजमेंट भी होगी,,, तो क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें इसकी तैयारी शुरू कर देनी चाहिए थी,,,? "
यह सुनकर तारा मुस्कुराई जिससे सुलक्षणा जी को और भी ज्यादा गुस्सा आ गया पर तारा पर जैसे कोई असर नहीं हुआ। वह अपनी माँ के पास आई और उनके कंधे पर लगभग लटकते हुए बोली, "ओह्ह मेरी प्यारी माँ,,,आप इतना गुस्सा करके अपना बीपी मत बढ़ाइये,,,आप बाहर जाइए अपना काम कीजिए और मैं 5 मिनट में रेडी होकर बाहर आती हूं,,,।"
उसकी बात सुनकर पहले सुलक्षणा जी ने उसे घूरा और फिर उसके चेहरे पर प्यार से अपनी हथेली रखते हुए बोली, " ज्यादा देर मत करना,,, अब जाओ और जल्दी से नहा धोकर रेडी होकर नीचे आओ तब तक मैं नाश्ता लगाती हूं,,,।"
यह सुनकर तारा ने अपनी मां के गाल को चूमा और फिर अपने कपड़े लेकर जल्दी से बाथरूम में घुस गई,,, और उसे जाता देखकर सुलक्षणा जी पीछे से मुस्कुराई और बोली, " पता नहीं ये लड़की कब बड़ी होगी,,? अब तो इसकी सगाई भी होने वाली है,, जल्द ही मेरी बेटी अपने घर चली जाएगी और मैं अकेली रह जाऊंगी,,,। " यह सोचकर उनकी आंखें नमी से भरने लगी लेकिन फिर उन्होंने जल्दी अपने आंसुओं को पोंछा और काम करने के लिए उसके कमरे से बाहर निकल गई।
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दरअसल तारा का परिवार और प्रतीक का परिवार एक दूसरे को बहुत पहले से जानते थे। तारा प्रतीक के साथ ही बड़ी हुई थी और उन्हें बचपन का दोस्त या यूँ कहें कि प्रेमी-प्रेमिका कहा जा सकता था क्योंकि उन दोनों का रिश्ता दोस्ती से काफी ज्यादा आगे बढ़ गया था और यह उन दोनों के परिवार वालों को अच्छी तरह से नजर भी आता था और समझ भी,,,।
तारा की मां सुलक्षणा जी और प्रतीक की माँ शालिनी काफी सालों से बेस्ट फ्रेंड थी,, उनकी दोस्ती काफी पक्की थी और इत्तेफाक से वह दोनों एक ही टाइम पर प्रेग्नेंट हुई और प्रेगनेंसी के दौरान उन्होंने मजाक में कहा कि अगर उनमें से एक को लड़का और दूसरे को लड़की हुई तो वह दोनों अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल देगी, वह उन दोनों को शादी के बंधन में बांध देंगे और उनकी दोनों की पूरी फैमिली में किसी ने इस बात का विरोध नहीं किया क्योंकि हर किसी को यही लगता था कि ऐसा करने से दोनों परिवारों के रिश्ते और भी ज्यादा मजबूत हो जाएंगे,,,।
और फिर जैसा कि उन दोनों ने चाहा था वैसा ही हुआ, सुलक्षणा जी ने एक लड़की तारा को जन्म दिया और शालिनी जी ने प्रतीक को,,,उन दोनों के जन्म पर दोनों परिवार बहुत ज्यादा खुश हुए क्योंकि उन्हें लगा कि उनका सपना सच होगा,,, और जैसे-जैसे प्रतीक और तारा बड़े होने लगे सब लोग भी उनके रिश्ते को लेकर खुश थे, सब लोग उन्हें कपल के रूप में ही देखते थे।
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तारा ने नहा धोकर कैजुअल से कपड़े पहने और अपने अतीत के बारे में इन सारी बातों को याद करने लगी। यह सारी बातें उसकी जिंदगी के अनमोल यादे थी और यह सब याद आते ही उसके होठों पर बड़ी सी मुस्कुराहट बिखर गई,,।
तारा इस घर में अपनी मां सुलक्षणा के साथ अकेली रहती थी। ऐसा नहीं था कि उसके पिता इस दुनिया में नहीं थे बस उसके पिता उनके साथ नहीं रहते थे। उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी और उसकी मां से तलाक ले लिया था,,,। हालांकि उसके पिता निमेष सूर्यवंशी ने दूसरी शादी कर ली थी लेकिन तारा अब भी उनके कांटेक्ट में थी,,,,और डिवोर्स होने के बाद भी सुलक्षणा जी के प्रतीक के परिवार से रिश्ते खराब नहीं हुए थे और यही वजह थी कि आज प्रतीक और तारा की सगाई उनकी पहली की हुई प्लानिंग के अनुसार ही हो रही थी।
क्रमशः,,,,,,
मेरे प्रिय पाठकों,,,
नई कहानी नई उमंग के साथ शुरू कर रही हूं उम्मीद है की आपको ये कहानी पसंद आएगी,,,, मेरा ये पहली बार है तो अगर कोई गलती हो प्लीज माफ़ कर दीजियेगा,,,,और मेरा साथ बनाए रखिएगा और इस सफर में मेरे साथ चलिएगा,,,।
कहानी की शुरुआत आप लोगों को कैसी लगी कमेंट करके बताएं,,,अगर आप लोगों के कमेंट ज्यादा से ज्यादा आएंगे तो मुझे भी कहानी लिखने में मोटिवेशन मिलेगा और आपको कहानी के भाग जल्द से जल्द मिलते रहेंगे ,,,।
धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏
तारा जल्दी से तैयार होकर नीचे पहुंची और डाइनिंग टेबल के पास खड़ी हुई अपनी मां के गाल पर किस करते हुए बोली, "गुडमॉर्निंग माँ,,,।"
सुलक्षणा जी हल्की नाराजगी से बोली, " गुड मॉर्निंग तारा,,! लेकिन क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें अब अपनी आदतों को थोड़ा सा बदल लेना चाहिए,,? इतना आलस अच्छी बात नहीं है बेटा,,,! अब तुम सिर्फ एक बेटी नहीं रह गई हो,, अब तुम किसी के घर की बहू बनने वाली हो, किसी की पत्नी बनने वाली हो,, तुम्हारी जल्द ही सगाई होने वाली है इसीलिए तुम्हें खुद को बदलना होगा और जिम्मेदारियां उठानी होगी,,, तुम्हें खुद को जिम्मेदार बनना होगा ताकि लोग तुम्हें अप्रिशिएट करें,,। "
" आई नॉ माँ,,!", तारा डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर पसरते हुए बोली, " मां प्लीज अब आप मुझ पर नाराज होना बंद करो और आई प्रॉमिस कि मैं अबसे वही करूंगी जो आप कहेंगी,,,। मैंने पापा से बात कर ली है, उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे एयरपोर्ट जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि वह खुद प्रतीक को रिसीव करने जाएंगे,, मुझे बस रेडी होकर पार्टी वेन्यू पर पहुंचना है,,, वो भी टाइम पर,,,। "
"यह अच्छी बात है कि तुम्हारे बाप को अब भी याद है कि उनकी एक और बेटी है।", सुलक्षणा जी ने कड़वाहट भरे लहजे से कहा,, दरअसल जब उन्हें पता चला था कि उनके पति का किसी और औरत के साथ अफेयर है तब उन्हें बहुत बड़ा आघात पहुंचा था हालांकि उन्होंने बहुत कोशिश की अपने रिश्ते को संभालने की और अपने पति को उस दूसरी औरत से दूर करने की लेकिन आखिरकार सब कुछ बर्बाद हो गया और उनके पति ने उन्हें छोड़कर दूसरी औरत से शादी कर ली। यह इतना बड़ा घाव था कि वह आज तक इन सबको भूल नहीं पाई थी, जरा सा भी जिक्र होते ही उनके सारे घाव जैसे हरे हो जाते थे और उन्हें लगता था कि यह सारी बातें सालों पहले कि नहीं बल्कि कल की ही हो,,,।
सुलक्षणा जी का कड़वाहट भरा लहजा सुनकर तारा का चेहरा भी एक पल के लिए उतर गया लेकिन फिर वह खुद को संभालते हुए अपनी जगह से खड़ी हुई और अपनी मां को पीछे से गले लगा लिया,, तब जाकर सुलक्षणा जी को भी इस बात का एहसास हुआ कि उन्होंने शायद गलत मौके पर अपना दुख छेड़ दिया था तो वह भी फीका सा मुस्कुराते हुए बोली," आई एम सॉरी मेरा बच्चा,,, मैं अपनी तकलीफ में यह भी भूल गई कि आज का दिन तुम्हारे लिए कितना इंपॉर्टेंट है,,। "
" इट्स ओके माँ,,! आपको सॉरी कहने की जरूरत नहीं है, आई कैन अंडरस्टैंड,,,!", तारा ने बड़े ही अपनेपन से कहा तो उन्होंने हल्की सी अपनी गर्दन घुमाई और उसके चेहरे पर अपना हाथ लगाकर धीरे से बोली, " मुझे पता है कि तुम्हारे लिए मेरे और तुम्हारे बाप के बीच किसी एक को चूज़ करना मुश्किल था लेकिन मुझे खुशी है कि तुमने मुझे चुना,,,।"
" मैं आपसे और पापा से बहुत प्यार करती हूं माँ लेकिन पापा से ज्यादा प्यार मैं आपसे करती हूं,, आपके बिना तो मैं अपनी जिंदगी के बारे में सोच भी नहीं सकती,,। और मैं जानती हूं कि मुझे अकेले बड़ा करना आपके लिए आसान नहीं था, आपने बहुत स्ट्रगल किया है,,, और कहीं ना कहीं आपको इस बात की चिंता है कि मैं अपने रिश्ते में कोई धोखेबाजी ना कर दूँ,,कहीं मैं भी अपने पापा की तरह न निकलूं,,,। लेकिन आप चिंता मत करो मां क्योंकि मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी,,,मैं आपसे वादा करती हूं कि मैं प्रतीक के लिए एक बहुत अच्छी बीवी साबित होऊंगी,, मैं उसे हमेशा बहुत प्यार करूंगी और अपने रिश्ते के प्रति बेहद लॉयल रहूंगी,,,। ", कहते हुए तारा थोड़ी भावुक हो गई और साथ में सुलक्षणा जी भी,, वह सीधी हुई और उसे अपने गले से लगाते हुए बोली,"मुझे पता है कि मेरी बेटी बहुत अच्छी है और वह अपने हर रिश्ते के प्रति पूरी तरह से वफादार रहेगी और तुम चिंता मत करना बेटा मैं भी हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी,,, तुम्हें जब भी जरूरत होगी तुम अपनी मां को अपने साथ खड़ा पाओगी,,,।"
अपनी मां की बात सुनकर तारा और ज्यादा इमोशनल हो गई तो सुलक्षणा जी जल्दी से बात को बदलते हुए बोली, " अच्छा तुम जल्दी से ब्रेकफास्ट करो तुम्हें पार्लर भी जाना है,,। "
तारा भी समझ गई थी कि उसकी मां हाल को हल्का करने की कोशिश कर रही है इसीलिए वह भी उसी लहजे में बोली, " मां मैं पार्लर बुक नहीं किया है मैं अपना मेकअप खुद करूंगी,,। "
उसकी बात सुनकर सुलक्षणा जी चौक गई और थोड़ी उदासी भरे लहजे में बोली लेकिन इसकी जरूरत नहीं थी बेटा,,, मैं,,,,,मेरे पास पैसे थे तुम्हारे पार्लर के लिए,,,। "
" बात पैसे की नहीं है माँ,,। निशा की असिस्टेंट के रूप में काम करते हुए मुझे अच्छे खासे मेकअप करने की प्रैक्टिस हो गई है इसीलिए पार्लर से तैयार होना मुझे वेस्टेज ऑफ मनी लगी,,। ", तारा ने अपनी मां को बताया तो सुलक्षणा जी फिर से कुछ कहने लगी पर इस बार तारा अपना फैसला सुनाते हुए बोली,"मैंने डिसाइड कर लिया है मतलब मैं अपना मेकअप खुद ही करूंगी तो आप प्लीज टेंशन मत लीजिए,, जब मेरे मेकअप से निशा इतनी खूबसूरत दिख सकती है तो मैं नहीं दिखूंगी भला,,,?" कहते हुए उसने अपनी मां को देखा तो सुलक्षणा जी ने प्यार से उसके चेहरे पर अपनी हथेली लगाई और बोली, " मेरी बेटी को तो मेकअप की जरूरत ही नहीं है, वह तो ऐसे ही बहुत खूबसूरत है,,!"
तारा मुस्कुरा दी और बोली, " मैं भी तो यही कह रही हूं ना,,,।"
सुलक्षणा जी अपनी बेटी की समझदारी पर वारी-वारी जा रही थी। दरअसल उनकी फाइनेंसियल कंडीशन कोई बहुत अच्छी नहीं थी ऐसे में अपनी बेटी को एक-एक पैसे के लिए अपनी ख्वाहिशों को मारते देखना उन्हें अच्छा तो नहीं लगता था लेकिन वह क्या कर सकती थी वह भी मजबूर थी,,,।
शहर के एक पोश इलाके के एक बड़े से विला में,,,,
डाइनिंग रूम में डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगाया जा चुका था और पूरा टेबल तरह-तरह के लग्जरी नाश्ते से सजा हुआ था,, टेबल के चारों तरफ इस परिवार के सदस्य बैठे हुए उस शानदार नाश्ते का लुत्फ़ उठा रहे थे और इस परिवार के सदस्य थे तारा की सौतेली बहन निशा सूर्यवंशी, तारा का सौतेला भाई राहुल सूर्यवंशी और तारा की सौतेली मां माधुरी सूर्यवंशी साथ में उसके पिता निमेष सूर्यवंशी,,,,।
इन चारों को देखने से एक संपूर्ण परिवार नजर आ रहा था। वह लोग खाना खाने के साथ-साथ किसी जरूरी टॉपिक पर बात कर रहे थे जो कुछ इस तरह से थी,,,।
" डैड क्या अभी भी प्लानिंग वही है जो हम लोगों ने डिस्कस की थी,,,? ", निशा ने अपना फेवरेट गार्लिक ब्रेड खाते हुए निमेष से पूछा।
राहुल भी अपनी बहन के पीछे निमेष जी से बोला, " येस डैड,,,! मैं भी आपसे यही पूछने वाला था कि फाइनली आज वही सब होगा ना जो हमने डिसाइड किया है,,। आज प्रतीक वापस आ रहा है और जैसा कि हम सब जानते हैं कि उसकी सगाई वैसे तो उस तारा से होने वाली है लेकिन वह नहीं जानती कि यह सब उसे बेवकूफ बनाने का एक तरीका है क्योंकि आज प्रतीक की सगाई उसके साथ नहीं होगी बल्कि मेरी बहन निशा के साथ होगी,,। उसे लगता है की प्रतीक उससे प्यार करता है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है,,हम सब जानते हैं की प्रतीक और निशा काफी लंबे टाइम से रिलेशनशिप में है और फाइनली आज उनका रिलेशनशिप ऑफिशियल होने वाला है,,,। "
निमेष सूर्यवंशी ने अपना सर हां में हिलाया और अपनी चाय पीते हुए बोले, " हां सब कुछ वैसा ही होगा जैसा हमने डिसाइड किया है, प्लानिंग में कोई भी बदलाव नहीं है,,। अहलावत परिवार बहुत पहले से ही तारा और उसकी मां से तंग आ चुका है और वह जल्द से जल्द उन दोनों से छुटकारा पाना चाहते हैं,, मैं प्रतीक को लेने के लिए एयरपोर्ट बाद में जाऊंगा पहले हम लोग होटल चलेंगे,,,। "
निमेष ने यह सारी बात बेहद लापरवाही के साथ कही,,उसके नजरिये से इसमें कुछ भी गलत नहीं था और ना ही वह खुद की बेटी के साथ इतना बड़ा धोखा करने के लिए जरा भी गिल्ट में था,, बल्कि उसके मुताबिक तो तारा और उसकी मां दोनों इसी के लायक थी,,,।
क्रमशः,,,,,
अगला भाग जल्द ही,,,
प्लीज समीक्षाओं में कमी ना करें 🙏🙏🙏its a request
"क्या आपने तारा और उसकी माँ को इन्फॉर्म कर दिया है की आज सगाई है,,,,?", माधुरी ने बड़ी अदा के साथ अपने बालों को लहराते हुए पूछा।
"हां, बिल्कुल, अहलावत फैमिली के साथ हमने यही प्लानिंग की थी,, हमने उसे बता दिया है कि आज वहां इंगेजमेंट होगी और उसे वहां आना होगा,,, बस हमने उसे यह नहीं बताया कि यहां इंगेजमेंट आज उसकी नहीं बल्कि निशा की होगी क्योंकि अगर हम उसे यह बताते तो वह वहां कभी नहीं आती और अगर वह वहां नहीं आती तो फिर वह सब कैसे होता जो वहां होना है,,,। वक्त आ गया है कि वह सारी सच्चाई जान ले और फ्यूचर में होने वाली परेशानियों से हमें निजात मिल जाए,,,।", प्रतीक ने अपने चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट लाते हुए कहा।
" देट्स गुड,,,। मजा आएगा जब उसे पता चलेगा कि जो उसका हक था वह उससे उसकी आंखों के सामने छीना जा रहा है और वह इस सबमें कुछ भी नहीं कर सकती,,कितनी बेबस लगेगी वह,, कैसा चेहरा होगा उसका उस वक्त,,,मैं उस बिच का चेहरा देखने के लिए और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती,,,,। साथ ही उसकी माँ,,, उसे भी जिंदगी का एक बहुत अच्छा सबक मिलेगा,,,। वह हमेशा ऐसे पेश आती है जैसे कि वह पूरी दुनिया की मालकिन है,,, देखती हूं अपनी बेटी के साथ यह सब होता देख वो कैसे रिएक्ट करेगी,,,। हंसेगी या रोएगी,,? मुझे यकीन है कि जो कुछ भी होगा बेहद एंटरटेनिंग होगा,,,। ",माधुरी जो निमेष के सामने सदैव शांत और अच्छा व्यवहार करती थी आज निमेष की परवाह किए बिना अपने जहर बुझे शब्दों को उगलते हुए तिरस्कार के साथ हँसी।
उसकी नजरों में सुलक्षणा एक बहुत ही बुरी और घमंडी औरत थी,,,। सुलक्षणा हमेशा उसके सामने खुद को श्रेष्ठ मानती थी,, जबकि माधुरी सुलक्षणा के बजाय बहुत अधिक सुंदर थी लेकिन इसके बावजूद भी जब भी माधुरी सुलक्षणा के साथ खड़ी होती थी तो माधुरी को उससे बहुत ज्यादा कंपलेक्सिटी फील होती थी,,,।
"मॉम प्लीज ,,,, ऐसा मत कहिये,,,। आखिरकार तारा अभी भी मेरी बहन और सुलक्षणा आंटी मेरी दूसरी माँ है। वे अभी भी हमारे परिवार का हिस्सा हैं, आखिरकार उनकी रगों में भी सूर्यवंशियों का खून बह रहा है।", निशा,,एक अच्छी और आज्ञाकारी बेटी होने के लिहाज से अपनी माँ को विनम्र और अच्छे तरीके से शांत रहने के लिए मनाती है।
और यह देखकर निमेष और माधुरी दोनों ही फूले नहीं समा रहे थे, वह दोनों अपनी बेटी के इतने अच्छे व्यवहार पर बहुत ज्यादा खुश थे,,, लेकिन उन दोनों में से किसी ने भी निशा की आंखों में नजर आने वाली शातिर और खतरनाक चमक को नहीं देखा।
निशा हल्का सा मुस्कुराई और अपना नाश्ता करने लगी लेकिन साथ ही वह अपने दांत पीसते हुए मन ही मन बोली," आखिरकार वह दिन आ ही गया जिसका मुझे बरसों से इंतजार था,,,आज वह दिन है जब मैं तुम्हें बिना हाथ लगाए मौत के घाट उतार दूंगी डिअर सिस,,,। मैंने तुमसे वह सब कुछ छीन लिया जो तुम्हें बहुत प्यारा है और ताज्जुब की बात तो यह है कि तुम्हें इसकी खबर तक नहीं है और जब तुम्हें इसकी खबर होगी तब भी तुम कुछ नहीं कर पाओगी,,,,। "
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जैसा कि निमेष जी ने तारा को समय दिया था वह ठीक 6:00 बजे अपनी पसंद की हुई सबसे खूबसूरत ड्रेस में अच्छे से तैयार होकर अपनी मां के साथ उस होटल के लिए निकल गई जहां पर सगाई होनी थी,,,। जैसा कि तारा ने अपनी मां से सुबह कहा था कि वह अपना मेकअप खुद करेगी वैसा ही हुआ था,, वह खुद से पूरी तरह से रेडी हुई थी और वाकई में काफी खूबसूरत लग रही थी दरअसल वह निशा की असिस्टेंट थी और जब निशा अपनी एक्टिंग करने के लिए जाती थी तो तारा मेकअप आर्टिस्ट को उसका मेकअप करते हुए देखती थी और कई बार तो उसे उसका मेकअप भी करना पड़ता था जिससे वह अच्छी तरह से तो नहीं लेकिन हां काम चलाउ इस काम में पारंगत हो गई थी,,,। आज सुलक्षणा जी ने भी काफी अच्छी साड़ी पहनी हुई थी और वह भी अच्छे से तैयार हुई थी आखिरकार उनकी इकलौती बेटी की जिंदगी का इतना बड़ा दिन जो था।
होटल पहुंचने पर तारा को वहां मौजूद लोगों में काफी अपरिचित चेहरे नजर आए लेकिन फिर उसने सोचा कि हो सकता है कि वह प्रतीक के पारिवारिक मित्र हो या फिर उसके पिता के बिजनेस फ्रेंड भी हो,,,। लेकिन जो कुछ भी था तारा को कुछ अजीब तो लग रहा था और जैसे ही वह एंट्रेंस गेट पर पहुंची लोगों की नजरे उसकी तरफ उठ गई पर उन नजरों में कुछ अजीब सा था, हालांकि वो उनकी नजरों के इशारे को समझ नहीं पाई थी लेकिन डर जरूर गई थी,, वो थोड़ी सी घबराई लेकिन फिर भी उसने बाहर से अपना संयम बनाए रखा,,, और फिर उसने कुछ गलत नहीं किया था जो उसे डरने की जरूरत नहीं थी,, तो वो सिर ऊंचा करके और चेहरे पर एक चमकदार और मासूम मुस्कान के साथ प्रतीक के परिवार की ओर चली गई,,,।
अहलावत परिवार के लोगों के पास पहुंचते ही तारा ने मुस्कुराते हुए बड़ी ही विनम्रता से हाथ जोड़कर उन सबका अभिवादन किया जिनमें प्रतीक के दादाजी, दादी,चाचा, चाची शामिल थे और फिर वो प्रतीक के दादाजी और दादी के पैर छूते हुए बोली, "नमस्ते दादाजी,,नमस्ते दादी,,,।"
उसके अभिवादन पर परिवार के सभी सदस्यों ने सिर हिलाया और उसकी ओर देखकर मुस्कुराये, लेकिन उनकी मुस्कुराहट न जाने क्यों पर ऊपरी तौर पर महसूस हुई,,, ऐसा नहीं लगा कि वह वाकई में उसे वहां देखकर खुश थे केवल प्रतीक की दादी के अलावा,,, प्रतीक की दादी निर्मला अहलावत में बड़े ही उत्साह से उसका हाथ थाम लिया,,।
प्रतीक की दादी शुरू से ही तारा को बहुत ज्यादा पसंद करती थी और हमेशा उसे अपने परिवार का सदस्य और अपनी पोती की तरह मानती थी। तारा से उनकी अधिक नजदीकी की वजह से की प्रतीक के पूरे परिवार ने उन्हें अब तक निशा और प्रतीक की सगाई के बारे में कुछ भी नहीं बताया था और उन्हें तारा और उसकी मां की तरह यही लग रहा था कि आज सगाई प्रतीक और तारा की होनी है।
निर्मला जी तारा का हाथ थामें हुए उसे देखते हुए बड़े ही प्यार से बोली, " ओह्ह मेरी जान, मेरी बच्ची,, जानती हो तारा तुम हर गुजरते दिन के साथ और भी ज्यादा खूबसूरत होती जा रही हो,, तुम देखना प्रतीक जैसे ही इतने सालों बाद तुम्हें देखेगा एक बार को तो अपने होश ही खो बैठेगा,,,। "
निर्मला जी की यह सारी बातें सुनकर तारा शर्माने पर मजबूर हो गई, उसके गाल शर्म से लाल हो गए और वह झूठी नाराजगी से निर्मला जी को देखते हुए बोली, " प्लीज़ दादी,, आप मुझसे इस तरह की बातें मत कीजिए,,,आप जानती है ना कि आपके मुंह से ऐसी बातें सुनकर मैं शर्मा जाती हूं,,,!"
" आजकल के जमाने में इतना कौन शर्माता है तारा,,,? " कहकर वह जोर से हंसी और फिर उससे बोली, " वैसे अभी मेरे पोते के जिक्र से ही तुम्हारे गाल टमाटर की तरह लाल हुए जा रहे हैं, जब तुम उसे 5 साल बाद देखोगी तो कहीं ऐसा ना हो कि तुम पूरा का पूरा टमाटर का बगीचा ही बन जाओ,,,। " निर्मला जी ने एक बार फिर से बड़ी मुस्कान के साथ उसकी टांग खिंचाई की।
"दादी,, प्लीज,,,।", तारा अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती थी तो वो बोली और वहां से जाने लगी तो दादी मां ने उसे रोक लिया और उसे आशीर्वाद देते हुए बोली," अच्छा बाबा ठीक है अब मैं तुम्हें तंग नहीं करूंगी लेकिन मैं हमेशा यह चाहती हूं कि तुम और मेरा पोता एक साथ रहो और तुम हमेशा खुश रहो,,,।"
उनकी बातचीत देखकर प्रतीक की मां शालिनी ने सोचा कि पता नहीं जब उन्हें सच्चाई का पता चलेगा तब वह कैसे रिएक्ट करेंगे और वह उन्हें देखते हुए मन ही मन बोली, " आई एम सॉरी मां,, मैं जानती हूं कि आप इस लड़की से बहुत मोहब्बत करती है लेकिन मुझे इस लड़की की सच्चाई जानकर यह सब करना पड़ा,,, मैं अपने बेटे को इस तरह की घटिया लड़की से शादी नहीं करने दे सकती,,,। "
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क्रमशः,,,,
प्लीज अधिक से अधिक समीक्षाएं दें ताकि ये कहानी लोकप्रिय हो सकें।
इधर सुलक्षणा जी हमेशा से एक सुलझी हुई और समझदार महिला रही थी, वह काफी संबंध संवेदनशील भी थी और इसी नाते उन्हें अब तक यह एहसास हो गया था कि पार्टी में कुछ तो ठीक नहीं है,,, उन्होंने प्रतीक की मां और अपनी दोस्त शालिनी से कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन उन्हें आज यह महसूस हुआ कि वह उनसे बात करने में किसी तरह की कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रही थी बल्कि वह उन्हें बार-बार अवॉयड कर रही थी हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ था,,। सुलक्षणा जी ने पहले भी कई बार यह बात महसूस की थी कि जब उनका और उनके पति का तलाक हुआ था तब तो सब ठीक था पर उसके कुछ वक़्त बाद से शालिनी का व्यवहार उनके प्रति कुछ बदला था और उन दोनों के बीच की दूरियां भी बढ़ने लगी थी हालांकि उन्हें इसकी वजह नहीं मालूम थी पर अक्सर उन्हें यह महसूस होता था,,, और उन्होंने कई बार शालिनी जी से इस बारे में बात करने की सोची भी लेकिन अपनी बेटी के होने वाले ससुराल का सोचकर वह हमेशा खामोश ही रहीं,,,।
आज जब उन्होंने देखा कि शालिनी के हाव-भाव कुछ ठीक नहीं तो उन्होंने भी उनसे बात करने की कोशिश को करना बंद कर दिया पर उन्हें बार-बार शक हो रहा था,,,लेकिन उस शक को भी उन्होंने खुद तक ही सीमित रख लिया क्योंकि आज उनकी बेटी के जीवन का सबसे अच्छा दिन था और वह अपना या उसका मूड खराब नहीं करना चाहती थी।
और तभी उनकी नजर सामने से आती हुई माधुरी और उसके बेटे राहुल पर गई लेकिन उन दोनों के साथ निशा नहीं थी और यह काफी हैरान कर देने वाली बात थी खासकर सुलक्षणा जी और तारा के लिए,,,,।
सुलक्षणा जी ने उन दोनों को देखकर धीरे से तारा से कहा, " यह निशा हमेशा की तरह इनके साथ क्यों नहीं आई,,? "
तारा जो सारी दुनिया को खुद की तरह मासूम और अच्छा समझती थी वह अपना सिर झटककर बोली, " हो सकता है मां वह थोड़ी देर में आने वाली हो,,, वैसे भी आपको तो पता है ना की उसे तैयार होने में कितना वक्त लगता है,,। और फिर अभी सगाई होने में वक्त है, प्रतीक भी अब तक नहीं आया है,,,। आप चिंता मत कीजिए वो टाइम पर आ जाएगी,,,। "
" मुझे उसकी चिंता नहीं है बस मुझे कुछ,,,!" कहते कहते सुलक्षणा जी शांत हो गई और तारा ने उन्हें शक भरी नजरों से देखा तो वह मुस्कुराई और बोली, " कुछ नहीं,,,बस तुम जानती हो ना कि इन लोगों को देखकर मेरा दिल और दिमाग दोनों खराब हो जाता है,,!"
उनकी बात पर तारा भी सिर्फ फीका सा मुस्कुरा दी क्योंकि कहने के लिए उसके पास भी कुछ नहीं था।
माधुरी और राहुल आते के साथ बड़े ही उत्साह से सीधा अहलावत परिवार की ओर बढ़ गए,, पिछले कुछ वक्त से उन लोगों का आपस में मिलना जुलना थोड़ा ज्यादा हो रहा था इसीलिए अहलावत परिवार का हर सदस्य उन्हें देखकर खुश भी हुआ और मुस्कुराया भी,,। और यह सब देखकर सुलक्षणा जी को और भी ज्यादा हैरानी हुई क्योंकि आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ था और सबसे ज्यादा हैरानी की बात थी शालिनी जी और माधुरी जी का आपस में अच्छे दोस्तों की तरह खिलखिलाकर बात करना क्योंकि शालिनी जी तो हमेशा से ही माधुरी को नापसंद करती थी,,या एक तरह से कहे की नफरत करती थी क्योंकि उनकी नजरों में माधुरी एक अच्छी औरत नहीं थी उसने एक खुशहाल परिवार को तोड़ दिया था,,,। शालिनी जी को अपनी दोस्त से अधिक सहानुभूति थी और शायद यही वजह थी कि वह सुलक्षणा जी की देखभाल और चिंता ज्यादा करती थी और सुलक्षणा जी भी शालिनी जी के इस तरह के बर्ताव से बहुत प्रभावित थी और खुद को अकेला महसूस नहीं करती थी क्योंकि उन्हें लगता था कि शालिनी जी जैसे दोस्त के रूप में उसके पास कोई तो है जिससे वह अपने दर्द और बोझ दोनों को साझा कर सकते हैं लेकिन आज जो हालात नज़र आ रहे थे उससे तो ऐसा कुछ भी नहीं लग रहा था,,,।
उन दोनों के बीच में नफरत तो क्या नापसंदगी के भी भाव नजर नहीं आ रहे थे,,,।
माधुरी जी ने बड़े प्यार से शालिनी जी को अपने गले से लगाया और मुस्कुराते हुए बोली, "अरे शालिनी ,, क्या होता जा रहा है तुम्हें,,? तुम तो हर दिन के साथ खूबसूरत होती जा रही हो,,, जैसे-जैसे तुम्हारी उम्र बढ़ रही है वैसे-वैसे तुम्हारी खूबसूरती भी बढ़ती जा रही है,,, लगता है मुझे तुमसे खूबसूरत दिखने के टिप्स सीखने ही पड़ेंगे,,,। "
जिस पर शालिनी जी हँस पड़ी और अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए बोली, " तुम भी ना माधुरी,,,! और तुम्हें मुझसे टिप्स लेने की भला क्या जरूरत है,,,! देखा है तुमने खुद को,,, इस उम्र में भी तुम अपनी बेटी की उम्र की नजर आती हो,,, लगता है जैसे तुम्हारी जिंदगी के साल तो बढ़ते जा रहे हैं लेकिन तुम्हारी उम्र वहीं की वहीं ठहर गई है,,,! वैसे ऐसा होना भी चाहिए,, अब तुम खुद की केयर भी तो इतनी करती हो,,,। "
" हाँ,,, बिल्कुल ठीक कहा तुमने शालिनी,,, अब मैं उन लोगों की तरह थोड़ी ही हूँ जिन्हें पैसे कमाने के लिए कोई इज्जत का काम नहीं मिला और उन्होंने अपने जिस्म को बेचना शुरू कर दिया,,,। मैं तुमसे शर्त लगाकर कह सकती हूं शालिनी की उसकी बेटी भी बिल्कुल उसी के जैसी है और उसी के नक्शे कदम पर चल रही है ,,। ", माधुरी ने बेहद घृणा से कहा और साथ ही एक उड़ती सी नजर वहां उनके पास खड़ी हुई सुलक्षणा जी पर डाली।
हालांकि शालिनी जी को माधुरी जी के कहे हुए यह शब्द बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगे लेकिन उनके मन में जो सुलक्षणा जी और तारा की छवि बन चुकी थी वो जस की तस थी,,उसमें अब कुछ सुधार नहीं होने वाला था। दरअसल एक बार माधुरी जी ने उन्हें बताया था कि तलाक के बाद सुलक्षणा जी को निमेष जी की तरफ से किसी तरह की कोई एल्मनी नहीं दी गई और ना ही उन्हें कोई महीने का खर्चा दिया गया,, और किसी तरह की नौकरी वह करती नहीं थी तो ऐसे में भला अपना और अपनी बेटी का भरण पोषण वह कैसे करती तो उन्होंने किसी इज्जतदार काम को ना अपनाकर अपने जिस्म को बेचना शुरू कर दिया,,,। जब शालिनी जी ने यह सब सुना तो एक बार को उन्हें यकीन ना हुआ लेकिन माधुरी तो अपने साथ सारे सबूत लेकर बैठी थी उन्होंने अपनी बात को सच साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और आखिरकार शालिनी जी को उन सारी बातों पर भरोसा करना ही पड़ा,,,। अहलावत परिवार शहर के प्रतिष्ठित परिवारों में से एक था और वह अपने बेटे का नाम किसी भी ऐसे इंसान के साथ नहीं जोड़ना चाहती थी जो अपनी मोरल वैल्यूज को भी खो चुका हो इसीलिए उन्होंने सच्चाई की गहराई से जांच किए बिना ही सुलक्षणा जी से दूरियां बढ़ा ली और अपने बेटे का रिश्ता निशा के साथ करने के लिए मान गई,,,।
सुलक्षणा जी जो बड़े गौर से उन दोनों को ही देखे जा रही थी वह उन दोनों की बातों से और माधुरी जी की आंखों से यह समझ गई थी की बात उनके बारे में ही हो रही है हालांकि माधुरी और शालिनी दोनों ने अपनी बातों के दौरान सुलक्षणा जी का नाम एक बार भी नहीं लिया था,,,,।
क्रमशः,,,,,
अगला भाग जल्द ही,,,
प्लीज समीक्षाएं अवश्य दें,,,,।
यह सब सुनकर सुलक्षणा जी की माधुरी जी के लिए नफरत और भी ज्यादा बढ़ गई और वह अपने मन में बेहद घृणात्मक भाव से बोली, " तुमसे ज्यादा घटिया और शायद इस दुनिया में और कोई होगी माधुरी,,! किस हद तक गिरोगी तुम,,? मेरे पति को चुराने के बाद भी तुम्हें चैन नहीं मिला जो तुमने मेरे बारे में इतना बड़ा झूठ फैलाया,,,? एक औरत होकर दूसरी औरत पर इस तरह का इल्जाम लगाते हुए तुम्हें जरा शर्म नहीं आई,,? वैसे तुम्हें शर्म कहां से आती,, तुम तो एक नंबर की बेशर्म औरत हो अगर तुम्हें शर्म होती तो तुम एक शादीशुदा मर्द को अपने झूठे और लालची प्यार के जाल में फंसाती ही नहीं,,,। और चलो तुमने जो किया सो किया लेकिन क्या यह सब तुम्हारे लिए काफी नहीं था जो अब तुम मेरी बेटी की भी प्रतिष्ठा को खत्म कर देना चाहती हो,,,? "
इस वक्त उन्हें माधुरी जी पर बहुत गुस्सा आ रहा था और उनका मन कर रहा था कि वह उसका मुंह में नोच ले और जी भर कर उसे गालियां दे लेकिन सहनशीलता और अपनी भावनाओं को काबू में रखने में माहिर होने के कारण वह अपने गुस्से को जहर की तरह पी गई और खुद को शांत करने के लिए उन्होंने एक गहरी सांस ली।
वहीं पूरे अहलावत परिवार के साथ-साथ तारा ने भी सब कुछ सुना और उसने भी अजीब सी नजरों से माधुरी को देखा जिसने उससे उसका परिवार और उसकी पहचान सब छीन लिया था,,,।
माधुरी जी के आत्मसंतुष्ट चेहरे को देखकर तारा को लगा कि उनके मन में कुछ तो चल रहा है, लेकिन वह यह नहीं समझ सकी कि क्या चल रहा है,,, वो शक के बिनाह पर किसी को कुछ भी नहीं कह सकती थी इसीलिए सारी बातों को उसने अपने दिल में ही रख लिया और एक बार फिर निर्मला जी से बात करने में लग गयी,,,। इस मामले में वह अपनी मां की तरह थी किसी की भी बातों से आसानी से प्रभावित नहीं होती थी,,,,।
दादी मां निर्मला जी अपने किसी रिश्तेदार के साथ बातों में व्यस्त थी इसीलिए उन्होंने इन सारी बातों को सुना ही नहीं लेकिन प्रतीक के दादाजी परमानंद जी ने यह सारी बातें सुनी और उन बातों को सुनने के बाद उनके चेहरे पर राहत भरे भाव उभर आए थे,,,। वह पार्टी में आए लोगों को देखते हुए मन ही मन सोचने लगे, " ये सुनने के बाद भी इन दोनों मां बेटी की तरफ से किसी भी तरह के रिएक्शन के ना आने का साफ मतलब है कि माधुरी जो कुछ भी कह रही है वह बातें सच है और अगर ये सच है तो आज पार्टी में जो कुछ भी होने वाला है उसके बारे में मुझे खुद को दोषी महसूस करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि मैं किसी भी संदिग्ध चरित्र वाले इंसान को अपने परिवार में शामिल नहीं कर सकता। मैं अपने पोते की शादी किसी भी ऐसी लड़की से नहीं करवा सकता जिसका चरित्र ठीक ना हो,,, और अब मुझे खुशी है कि मैंने अपने पोते के भावी जीवनसाथी के रूप में तारा का नहीं बल्कि निशा का चुनाव किया है,,!" यह सोचते हुए उनकी नजर तारा और निर्मला जी पर गई जो बेहद खुश होकर एक दूसरे से बातें कर रही थी और वह एक बार फिर खुद से बोले, " मैं जानता हूं निर्मला जब तुम्हें सच का पता चलेगा तो तुम्हें बहुत ठेस पहुंचेगी और दुख भी होगा लेकिन मेरा यकीन मानो कि वह दुख उस दुख के आगे बहुत कम होगा जो तुम्हें इस लड़की के हमारे घर में शामिल हो जाने पर होता,,, तुम चिंता मत करो निर्मला मैं तुम्हें सब सच बता दूंगा और समझा दूंगा कि मैंने बाकी परिवार वालों का साथ क्यों दिया,,,। "
परमानंद जी अपने मन में यह सारी बातें सोच रहे थे लेकिन काश के उन्हें पता होता कि यहाँ आगे और क्या होने वाला है...।
कुछ देर बाद तारा को वॉशरूम जाना था तो उसने अपना हैंडबैग वहीं निर्मला जी के पास रखा और वॉशरूम की तरफ चली गई,,उसे अपने हैंडबैग की जरा भी चिंता नहीं थी क्योंकि एक तो वह वॉशरूम में ज्यादा देर लगाने वाली नहीं थी और दूसरा वहां पर सभी परिवार के लोग ही थे तो शक की कोई बात ही नहीं थी,,,।
उसे जाते देख माधुरी और उनके बेटे राहुल ने एक दूसरे को देखा,,,वो लोग पहले से प्लानिंग करके आए थे और जानते थे कि आगे उन्हें क्या करना है,, उनकी आँखें शैतानी चमक से भरी हुई थीं।
दरअसल निशा ने आज तारा को फसाने की एक बहुत बड़ी प्लानिंग की थी और उसके घरवाले पूरी तैयारी करके इस पार्टी में आये थे,,। निशा का मकसद तारा को सिर्फ बेइज्जत करना नहीं बल्कि उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाना था ताकि तारा से उसका पीछा हमेशा हमेशा के लिए छूट जाए,,,। निशा को आज पार्टी में जो हार पहनना था सेम उसी के जैसा एक डुप्लीकेट हार निशा ने बनवाया था और अब राहुल उस हार को लेकर पार्टी में आया था,,,। उसे सबसे पहले इस हार को तारा के बैग में रखना और फिर निशा के आने के बाद हार के खोने का ड्रामा करना था,,, और जब सबकी तलाशी होती तो तारा पकड़ी जाती और सबकी नजरों में चोर बन जाती,,।कुल मिलाकर आज निशा को जो मौका मिला था उसका वो पूरी तरह से फायदा उठाने वाली थी,,,,।
राहुल के पास हार था और वो हार उसे ही किसी भी तरह से तारा के बैग में रखना था,,, और वो जबसे आया था इसी मौके की तलाश में था,,,,और अब निर्मला जी के पास तारा का बैग रखा देखकर उसे वो मौका मिल गया था,,,, वो जल्दी से दादी की ओर बढ़ा क्योंकि तारा का हैंडबैग वहीं था,,,,।
पहले तो उसने दादी से बात करने का नाटक किया और फिर बहुत ही एहतियात के साथ बिना किसी की नजरों में आए हुए तारा के हैंडबैग की ओर अपना हाथ बढ़ाया,, और अगले ही लम्हे उसने अपने जेब से वह हार निकालकर उसके हैंडबैग में डाल दिया और फिर वहां से उठकर चला गया,, अब राहुल और उसकी माँ बस शो के शुरू होने का इंतजार करने लगे
हालांकि तारा ने वॉशरूम में बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगाया था लेकिन उसके साथ जो बड़ा होना था उसकी शुरुआत हो चुकी थी। वह जल्दी ही वापस आई और आकर वापस से अपनी जगह पर बैठ गई लेकिन तभी उसके कानों में शोर की आवाज आई जो बाहर की तरफ से आ रही थी और उसने अपनी नजरे उठाकर उस तरफ देखा तो उसकी आंखों में एक अलग ही चमक आ गई, चेहरे पर शर्म के भाव छाने लगे और साथ ही होठों की मुस्कुराहट गहरी होती चली गई,,,उसे अपने सामने वह आदमी दिखाई दे रहा था जो पिछले पांच सालों से लगभग हर रात उसके सपनों में आता था और जिससे वह बहुत प्यार करती थी।
तारा ने प्रतीक को देखा तो देखती ही रह गई। वह आज भी उतना ही हैंडसम था जितना 5 साल पहले था लेकिन हां इन पांच सालों ने उसके व्यक्तित्व को और भी ज्यादा आकर्षित बना दिया था, साथ ही उसके चेहरे पर अब काफी मैच्योरिटी भी नजर आ रही थी। तारा कुछ लम्हे तो होश खोए हुए उसे देखती रही लेकिन फिर वह उठी और उसकी तरफ तेज कदमों से जाने लगी लेकिन फिर अचानक ही उसके कदम रुक गए क्योंकि वह इस वक्त अकेला नहीं था बल्कि बहुत से लोगों से घिरा हुआ था,,।
वह उससे पांच साल बाद मिलने वाली थी और उन दोनों की मुलाकात खास होती पर वह उन खास लम्हों को आम नहीं बनना चाहती थी,,,इसलिए जब उसने देखा कि वह बहुत से लोगों से घिरा हुआ है तो उसने खुद को रोक लिया और फिर वह यह भी जानती थी कि उसे प्रतीक से बात करने का और एक दूसरे से मिलने का पूरा मौका मिलेगा,,,।
क्रमशः,,,,
प्लीज मेरे प्रिय पाठकों,, मेरी इस कहानी को पढ़े भी और छोटी ही सही पर समीक्षा भी अवश्य दें,,,,।
और फिर तारा के रुकने की एक वजह यह भी थी कि अहलावत परिवार का भी कोई सदस्य प्रतीक का वेलकम करने के लिए आगे नहीं बढ़ा था तो अगर वह आगे जाती तो शायद किसी को भी अच्छा नहीं लगता तो उसने वहीं खड़े रहकर प्रतीक की प्रतीक्षा करना ही सही समझा,,,लेकिन तभी उसे उस भीड़ में एक जाना पहचाना चेहरा भी नजर आया और वह चेहरा और किसी का नहीं बल्कि उसकी सौतेली बहन निशा का था,,, हां उसकी सौतेली बहन निशा का जो उसे बहुत नीची नजरों से देखती थी और दिल से उससे नफरत करती थी,,।
इतनी भीड़ में प्रतीक के साथ निशा को देखकर तारा का दिल जैसे एक पल को धड़कना बंद हो गया साथ ही उसे इस बात पर काफी हैरानी भी हुई क्योंकि उसके अनुसार उसके साथ-साथ अहलावत परिवार के लोग भी जानते थे की प्रतीक निशा को पसंद नहीं करता। हालांकि कभी प्रतीक ने खुले तौर पर यह जताया नहीं था लेकिन तारा के सामने तो उसने कई बार दबे लफ्जों में यह कहा था कि वह निशा को पसंद नहीं करता है।
उन दोनों को साथ देखकर तारा को थोड़ी जलन भी महसूस हुई और बुरा भी लगा लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि जो अब आगे होगा वह तो उससे भी बुरा होगा,,,।
तारा की नजरे भरी भीड़ में भी उन दोनों पर ही टिकी हुई थी, उसकी पलकों ने जैसे झपकने से भी इंकार कर दिया था। उसने देखा कि निशा प्रतीक की ओर बढ़ रही थी और वो दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए जा रहे थे, उन दोनों की चेहरे की चमक और आंखों में नजर आती खुशी कुछ और ही बयां कर रही थी और तारा यह सब कुछ समझने की कोशिश करती हुई बस उन्हें घूरती रही वो भी तब तक जब तक कि वह एक दूसरे के करीब ना आ गए और आखिरकार एक दूसरे के गले भी लग गए,,, और फिर,,,,,,,
यह सब यहीं खत्म नहीं हुआ था, वह दोनों सिर्फ एक दूसरे के गले नहीं लगे थे बल्कि एक दूसरे को किस कर रहें थे वो भी सबके सामने,,, उन दोनों की इस हरकत ने यह जाहिर कर दिया था कि वह दोनों एक दूसरे से नफरत तो बिल्कुल नहीं करते हैं,,,।
इस दृश्य ने जहां काफी लोगों के होठों पर मुस्कुराहट ला दी थी वहीं कुछ लोगों के चेहरे की चमक और मुस्कुराहट दोनों छीन भी ली थी। तारा का दिमाग पूरी तरह से खाली हो चुका था, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके पैरों तले किसी ने जमीन ही खींच ली थी,, उसे आज ऐसा लग रहा था जैसे सरे बाजार वह बिना कपड़ों के खड़ी थी,,, आज वह सबके सामने खुद को बेइज्जत महसूस कर रही थी और निर्मला जी और सुलक्षणा जी दोनों की हालत तो तारा से भी ज्यादा बदतर थी।
उन दोनों को तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। वह कभी अपने सामने खड़ी तारा को देखते जिसके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थी और कभी एक दूसरे से लिपटकर एक दूसरे को चूमते प्रतीक और निशा को ,,,,।
अभी थोड़ी देर पहले सुलक्षणा जी ने जिस तरह से माधुरी और शालिनी को आपस में बात करते और व्यवहार करते देखा था उससे वह हैरान परेशान तो थी लेकिन उन्होंने अपनी परेशानी और संदेह को अपने तक ही सीमित रखा था लेकिन अब तो सब कुछ साफ हो गया था,,,वह समझ गई थी कि उनके साथ धोखा किया गया है और अब तक वह अंधेरे में थी,,,।
सूर्यवंशी फैमिली सिर्फ और सिर्फ तारा का अपमान करना चाहती थी और उसे यह बताना चाहती थी कि वह बिना अपने परिवार के कुछ भी नहीं है और जब तक उसके पीछे सॉलिड बैकग्राउंड ना हो तब तक वह किसी अच्छी फैमिली में शादी करने के बारे में सोच भी नहीं सकती,,, हालांकि तारा अपने नाम के पीछे सूर्यवंशी जरूर लगाती थी लेकिन उसकी मां का उसके पिता से तलाक हो गया था जिसकी सजा उसे इस तरीके से दी गई थी,,,।
तारा का चेहरा किसी कोरे कागज की तरह सफेद पड़ गया था, ऐसा लग रहा था जैसे उसके जिस्म से किसी ने खून का कतरा-कतरा तक निकाल लिया हो, उसके होंठ बुरी तरह से कांप रहे थे, आंखों से आंसू बह रहे थे हालांकि वह अपने आंसुओं को रोकने की पूरी कोशिश कर रही थी लेकिन आज जैसे सब कुछ उसके बस से बाहर हो गया था,,,।
कुछ देर बाद निशा और प्रतीक एक दूसरे से अलग हुए और अपने परिवार की ओर चल पड़े,,उनके पीछे निशा के पिता निमेष जी भी थे जो फिलहाल अपने दोस्तों के साथ बातचीत में व्यस्त नजर आ रहे थे और उनके चेहरे को देखकर साफ पता चल रहा था कि वह काफी खुश थे,,,।
"दादाजी, दादी , पापा, मम्मी, चाची... आप लोग कैसे हैं?, प्रतीक ने अपने परिवार के पास आते ही अपनी आकर्षक मुस्कान के साथ उन सबका अभिवादन किया,,,।
प्रतीक के होठों पर इस वक्त एक दिलकश मुस्कान सजी हुई थी यह वह मुस्कान थी जिसे देखने के लिए तारा ने 5 साल का लंबा इंतजार किया था लेकिन आज तारा को यह मुस्कान देखकर जरा भी खुशी महसूस नहीं हो रही थी बल्कि उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसकी आंखों में जलन हो रही हो,,,।
जब से प्रतीक वहाँ आया था उसने एक पल के लिए भी तारा की ओर नहीं देखा था , यहां तक कि उसने परिवार के बाकी सदस्यों का अभिवादन करते समय उसकी मां सुलक्षणा जी को भी नजरअंदाज कर दिया था,,,।
तारा और उसकी मां को इस वक्त पार्टी में मौजूद लोगों की नजरे खुद का मजाक उड़ाती लग रही थी। उनके साथ उनके खुद के परिवार ने परिवार जैसा व्यवहार नहीं किया था,,, और अब उनके दिल में यह सवाल था कि जब तारा और प्रतीक की सगाई होनी ही नहीं थी तो फिर तारा और उन्हें इस पार्टी में बुलाया ही क्यों गया था और अब जल्द ही उन दोनों को उनके इस सवाल का जवाब भी मिलने वाला था,,,।
जब प्रतीक ने तारा की मां को नजरअंदाज कर बाकी सबका अभिवादन किया तो तारा ने उसे घूरकर देखा,, उसे बहुत बुरा लगा,,,। उसे ऐसा लगा कि सामने जो इंसान है जैसे वह उसे जानती ही ना हो, हालांकि उसे काफी कुछ गलत लग रहा था लेकिन फिर भी उसके दिल के किसी कोने में यह उम्मीद थी कि नहीं कुछ गलत नहीं है और सब ठीक हो जाएगा। उसने खुद को शांत किया और खुद को यह दिलासा देने लगी कि यह सब एक मजाक है जो प्रतीक उसके साथ कर रहा है,,, लेकिन वो ये नहीं जानती थी की प्रतीक ने आज उसे ही मजाक बना दिया है।
कहा जाता है कि सच हमेशा कड़वा होता है और आज तारा को इसी कड़वाहट का एहसास होने वाला था,,,।
प्रतीक की मां शालिनी जी ने उसे आगे बढ़कर गले लगा लिया और बड़े ही प्यार और लाड से उसे डांटते हुए बोली, " तुम तो बहुत बुरे हो प्रतीक,, एक बार बाहर क्या गए तुम तो यह भूल ही गए कि तुम्हारा अपना एक घर भी है,,, कितनी बार तुमसे कहा कि तुम वापस आ जाओ लेकिन तुम्हें तो अपनी मां की याद ही नहीं आई,,, और अब अपनी और निशा की सगाई के लिए आने के लिए भी तुम कितनी मुश्किल से माने हो,,,तुम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो प्रतीक,,? "
कहने को वह उसे डांट रही थी लेकिन उनके लहजे में सिर्फ और सिर्फ प्यार झलक रहा था।
क्रमशः,,,,
अगला भाग जल्द ही,,,,
कहानी पढ़ते रहिए और अच्छे-अच्छे समीक्षा देते रहिए क्योंकि कहानी में अभी तो बहुत कुछ है,,,यह तो बस शुरुआत है,,,। तारा के साथ जितना बुरा होना है उसकी सिर्फ शुरुआत हुई है और आगे आप पढ़ेंगे कि कोई इंसान कैसे अपने स्वार्थ और नफरत के आगे क्रूरता की सारी हदें पार कर देता है,,।
प्रतीक के पापा भी उसकी मां का साथ देते हुए बोले, " हां बेटा तुम्हारी मां बिल्कुल सही कह रही है,, तुम हमेशा के लिए तो विदेश में जाकर नहीं बस सकते,,आखिर तुम हमारी आंखों के तारे हो,,। और फिर तुम्हारे दादा दादी भी दिन-ब-दिन बूढ़े होते जा रहे हैं और वह अपने पोते के साथ रहना चाहते हैं और तुम हो की,,,,!"
प्रतीक मुस्कुराया और उनकी बात को बीच में ही रोकते हुए बोला, " आप चिंता मत कीजिए पापा मम्मी अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा। मैं अबसे इंडिया में ही रहूंगा आखिरकार अब मेरी शादी होने वाली है और मैं अपनी वाइफ को अकेला यहां तो नहीं छोड़ सकता ना और ना ही विदेश जाकर आपको यहां अकेला छोड़ सकता हूं,,,। "
तारा को वहाँ घुटन महसूस हो रही थी लेकिन अब भी एक उम्मीद की किरण उसके दिल में बाकी थी। उसकी आवाज कांप पर रही थी लेकिन फिर भी उसने अपने बचपन के प्यार को धीरे से आवाज लगाई, " पप्प्प,,,, रररऱ,,,,प्रतीक,,,!"
प्रतीक ने तारा की कांपती आवाज सुनी और एक लम्हे के लिए अपनी आंखों को बंद कर लिया लेकिन फिर भी उसने इस तरह से दिखावा किया जैसे उसने उसकी आवाज सुनी ही नहीं और वह अपने परिवार के साथ बातचीत करता रहा,,।
" प्रतीक,,। "
एक बार फिर से प्रतीक को किसी ने पुकारा और इस बार वह उस आवाज को अनसुना नहीं कर सका और पलटकर उसकी और देखने लगा लेकिन यह आवाज तारा की नहीं बल्कि उसकी दादी की थी,,, और पलटते ही उसकी नजर तारा पर भी पड़ी क्योंकि वह उसकी दादी के बिल्कुल बगल में खड़ी थी। उसने सिर्फ एक बार उसे देखा और अगले ही लम्हे अपनी नज़रें उस पर से हटा ली,,,,। एक लम्हे के लिए सही उन दोनों की आंखें एक दूसरे से मिली जरूर लेकिन तारा को उन नजरों में अपने लिए सिवाय ठंडेपन और परायेपन के और कुछ नजर नहीं आया।
तारा के लिए बहुत ही तनाव भरा माहौल हो गया था, उसे आज अपनी खुशियों का घरौंदा टूटता हुआ सा महसूस हुआ। वह इतनी बड़ी और बहादुर नहीं थी कि इन सारी चीजों को इतनी आसानी से हैंडल कर लेती, उसे अपना सिर घूमता सा महसूस हुआ और लगा कि वह पल में बेहोश हो जाएगी,, वह लड़खड़ाने लगी लेकिन सुलक्षणा जी ने आगे बढ़कर उसे संभाल लिया और उसे सहारा दिया,,,।
"प्रतीक,, मेरे बच्चे,,! ये सब क्या है,,,? जो तुमने अभी किया इसका क्या मतलब है,,,? क्या तुम्हें तारा से सगाई नहीं करनी,,? तुम सबके सामने उसकी बहन को किस क्यों रहे थे,,,?", निर्मला जी ने उससे पूछा, जिनका चेहरा पीला पड़ गया था और दिल जोरो से धड़क रहा था लेकिन फिर भी वह अपने पोते से बहुत ही शांत तरीके से बात कर रही थी।
" दादी मैं जानता हूं कि आपको यह सब अच्छा नहीं लग रहा होगा,,, और लग रहा होगा कि मैंने आपको निराश किया है आपकी उम्मीदों को तोड़ दिया है,,,। इसके लिए मैं आपसे माफी मांगता हूं दादी,,,पर जो आप चाहती हैं वह नहीं हो सकता क्योंकि अब बहुत कुछ बदल गया है,,,। मैं अब निशा से प्यार करता हूं और जब मैं 5 साल पहले विदेश गया था तबसे उसके साथ हूं,, आप नहीं जानती कि वह मेरे लिए कितनी इंपॉर्टेंट हो गई है। वह लड़की मेरी बहुत परवाह करती है इतनी ज्यादा कि मैं भी अब उसके अलावा अपनी जिंदगी में किसी को नहीं सोच सकता। मैं बहुत पहले ही आपको यह सब बता देना चाहता था लेकिन मुझे इस बात का डर था कि आप इस बात पर कैसे रिएक्ट करेंगे और फिर आपका दिल दुखाने की मुझमें हिम्मत भी नहीं थी लेकिन अब बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी इसलिए मुझे यह सब करना ही पड़ा,,,। ", प्रतीक ने बेहद ईमानदारी और विनम्रता से अपनी दादी मां को जवाब दिया।
" लेकिन तुमने मेरा दिल तो दुखा दिया ना प्रतीक,,? ", उन्होंने नाराजगी और शिकायत भरे भाव से कहा,,,जिस पर वो कुछ कहने को हुआ तो पर कुछ कहा नहीं और निर्मला जी आगे बोली," तुम जानते भी हो प्रतीक की तुम यह सब क्या कह रहे हो,,,? तुम उसके साथ पाँच साल से अधिक समय से रह रहे हो और मुझे इस बारे में पता भी नहीं चला,,,?", निर्मला जी ने पहले नाराजगी भरे लहजे में प्रतीक से कहा और फिर एक ठंडी निगाह अपने परिवार पर डाली और बोली," या फिर मुझे किसी ने इस बात का पता चलने नहीं दिया,,,? तुम लोगों के चेहरे को देखकर तो लग रहा है कि तुम सब सब कुछ पहले से जानते थे क्योंकि प्रतीक को निशा के साथ देखकर ना तो तुम लोगों के चेहरे पर किसी तरह की हैरानी है और ना ही किसी तरह का अपराध बोध,,,।"
प्रतीक की चाची ने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन निर्मला जी ने अपना हाथ दिखाकर उन्हें रोक दिया और निर्मला जी का घर में इतना रोब था कि उनके एक इशारे पर ही जैसे उस घर की सुबह और शाम होती थी,,, उनके मना करने के बाद कोई कुछ कह सके यह तो किसी में हिम्मत नहीं थी।
उन्होंने बेहद गुस्से से प्रतीक की चाची को देखा और फिर पूरे परिवार को एक लाइन में खड़ा करते हुए बोली, " तुम लोगों की खामोशी का सिर्फ एक ही मतलब है कि तुम लोगों को सब पता था और तुम लोगों ने जानबूझकर मुझे छुपाया ताकि मैं तारा को कुछ भी बता ना सकूं,,,। क्या तुम्हारे दिलों में जरा भी इंसानियत बाकी है या फिर इंसान के भेष में जानवर हो गए हो,,? कैसे मुझे नहीं पता चला कि मेरे घर में इतने काले दिल के लोग रहते हैं जिनके लिए किसी लड़की की भावनाएं और उसकी इज्जत सब सिर्फ एक खिलवाड़ है,,,? " कहकर उन्होंने एक ठंडी नजर अपने पति पर डाली और उन्हें भी कटघरे में खड़ा करते हुए बोली, " आप लोगों ने तारा को यहां सिर्फ इसलिए बुलाया है ना ताकि उसे अपमानित किया जा सके,,? कैसे आप लोग इतने निर्दय हो सकते हैं,,? तारा ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसके लिए उसे ऐसा अपमान सहना पड़े,,,समझे आप लोग,,,? "
इधर तारा एक तरफ बिल्कुल शांत खड़ी थी, वह बाहर से जितनी शांत नजर आ रही थी अंदर से उतना ही तलातुम उसके अंदर मचा हुआ था, वह सारी बातों को रिकॉल करने की कोशिश कर रही थी।
जब निशा और माधुरी सूर्यवंशी परिवार का हिस्सा बने तब तारा और प्रतीक पहले से ही एक दूसरे के साथ थे वह भी ऑफिशियल तौर पर क्योंकि पूरे परिवार को उनका रिश्ता मंजूर था,,, उस वक्त तारा 17 साल की और निशा 15 साल की थी यानी की उम्र में वो दोनों लगभग एक जैसे ही थे,,,।
माधुरी जी सुलक्षणा जी के दूर की रिश्तेदार थी जो अचानक इस शहर में उनसे बहुत बुरी हालत में मिल गई थी, तब जाकर सुलक्षणा जी को मालूम चला कि माधुरी जी के पहले पति की मौत हो गई है और उनके ससुराल वाले उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करते हैं, ऐसे में सुलक्षणा जी, माधुरी जी का पीछा उनके ससुराल से छुड़वाकर उन्हें और उनकी बेटी निशा को अपने घर में ले आई,,,। शुरू शुरू में तारा को निशा बिल्कुल पसंद नहीं आई थी क्योंकि वह अचानक से अपने घर में किसी अजनबी का आना बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी लेकिन फिर जैसे-जैसे समय बीतता गया तारा निशा को पसंद करने लगी और उसे अपनी छोटी बहन की तरह मानने लगी,, माधुरी जी और निशा दोनों जब इस सूर्यवंशी फैमिली में शामिल हुई तब उनके पास कुछ भी नहीं था सिर्फ अपने तन पर पहने हुए कपड़ों के अलावा,,,। इस घर में आने के बाद सुलक्षणा जी और तारा ने उन्हें सब कुछ दिया, अच्छा पहनने के लिए दिया, अच्छा खाने के लिए दिया और तारा तो अपने खिलौने तक निशा को देने लगी,,,। लेकिन उस वक्त सुलक्षणा जी को यह मालूम नहीं था कि जिसको वह अपने घर में पनाह दे रही है एक दिन वही लोग उनसे उनका घर छीन लेंगे,,,।
क्रमशः,,,,,
अगला भाग जल्द ही,,,,
माधुरी जी सुलक्षणा जी के सामने हमेशा अच्छी बनती रही और पीठ पीछे उन्होंने निमेष जी को अपने काबू में करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और निमेष जी भी जल्द ही उनकी मीठी मीठी बातों और उनके प्यार के जाल में फंसते चले गए,,, और आखिरकार वह दिन भी आया जब सुलक्षणा जी और तारा को उन्हीं के घर और परिवार से धक्के देकर निकाल दिया गया,,, उनसे उनका सब कुछ छीन लिया गया यहां तक की तारा से उसका वह पिता भी छीन लिया गया जो उसे बहुत प्यार करता था और उस पर भरोसा करता था,,, बल्कि अब तो उसके पिता के दिल में उन दोनों के लिए इतनी नफरत हो गई थी कि वह उन दोनों को घर से निकालकर बहुत खुश थे। जिस दिन निमेष जी ने सुलक्षणा जी के मुंह पर तलाक के कागज मारे उस दिन तारा को एहसास हो गया कि निशा और उसकी मां का असली स्वभाव क्या है और फिर कैसे उन दोनों मां बेटी की जोड़ी ने उनका मजाक उड़ाया और उनकी जगह ले ली,,,। तारा और उसकी मां के लिए नहीं जिंदगी शुरू करना आसान नहीं था लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और खुद को स्टैंड किया,,,।
जब तारा और निशा एक साथ सूर्यवंशी हवेली में रहते थे तब अक्सर प्रतीक तारा से मिलने आया करता था और निशा अक्सर छुप-छुपकर उसे देखती थी। वह तारा के साथ हमेशा अच्छा व्यवहार करती थी और तारा से कहती कि वह कितनी खुशनसीब है जो उसे प्रतीक जैसा इंसान मिला है और उसे भी अपनी जिंदगी में प्रतीक जैसा इंसान चाहिए लेकिन तारा उसकी बातों को मजाक में उड़ा देती थी और ना ही उस पर निशा की किसी बात का कोई फर्क पड़ता था क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी की प्रतीक निशा को बिल्कुल पसंद नहीं करता, वह उससे नफरत करता है,,,। उसे लगता था कि अगर निशा कभी प्रतीक को अप्रोच करने की कोशिश भी करेगी तो भी प्रतीक उसके प्रति लॉयल रहेगा और निशा के साथ कभी नहीं जाएगा लेकिन आज उन दोनों को एक साथ देखकर उसे अपनी सोच पर अफसोस हो रहा था,,,।
और सुलक्षणा जी वह भी इस बात को नहीं जानती थी कि जो औरत उनकी खुशियों को खा गई उसी औरत की बेटी कभी उनकी बेटी की भी खुशियों को इसी तरह से खा जाएगी।
तारा ने एक कहर बरसाती नजर प्रतीक और निशा पर डाली और खुद से बोली, " क्या प्रतीक ने शुरू से मुझे बेवकूफ बनाया,,, क्या प्रतीक की नफरत सिर्फ एक दिखावा थी ताकि वह मुझे छलावे में रख सके,,,? वह मेरे सामने हमेशा यह दिखाता रहा कि वो निशा से नफरत करता है जबकि सच तो यह था कि वह निशा से इस कदर प्यार करता था कि आज उनका रिश्ता सगाई के मुकाम तक पहुंच गया है,,। पर प्रतीक तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया,,,आखिर मैंने ऐसा क्या किया था जो तुमने मुझ पर इस तरह का कलंक लगाया,,? मुझे इस तरह से अपमानित किया,,मुझे इस तरह से बेवकूफ बनाया,, मुझे इस तरह से छला,,,पर क्यों,,? "
वह यह सब सोच ही रही थी कि उसकी आंखों से एक बार फ़िर आंसू बहकर उसके गालों पर लुढ़क गया, उसने एक बार फिर से नजर भरकर उस आदमी को देखा जिसे वह आज तक प्यार करती आई थी और उसे लाखों की भीड़ में भी पहचान सकती थी पर आज वह उसे किसी अजनबी की तरह नजर आ रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह उसे जानती ही नहीं है, ऐसा लग रहा था जैसे वह लोग पहली बार मिल रहे हैं,,, उसने तो कभी सोचा ही नहीं था कि जो लोग एक दूसरे के इतने विपरीत थे, वह एक दूसरे के साथ भी हो सकते हैं,,।
अब तक तारा मूक बनी सब कुछ देख रही थी और अब सब कुछ उसके सर के ऊपर से निकल रहा था। उसने अपना मुंह खोला और हल्की तेज आवाज में प्रतीक से बोली, " क्या वह तुम नहीं थे प्रतीक जिसने अब्रॉड जाने के एक हफ्ते बाद मुझे मैसेज करके यह कहा कि मुझे तुमसे कांटेक्ट करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि तुम अपनी पढ़ाई पर पूरी तरह से कंसंट्रेट करना चाहते हो और जब तुम अपनी पढ़ाई पूरी करके वापस इंडिया आओगे तब खुद मुझसे कांटेक्ट करोगे,,,? " यह सुनकर प्रतीक के चेहरे के भाव अलग तरह के हुए और उसने अपनी आंखों को छोटा कर तारा को देखा तो तारा उसके भावों को समझते हुए बोली, " अब यह मत कहना कि तुमने मुझे वह मैसेज नहीं भेजा है क्योंकि मेरे पास वह मैसेज आज भी है। मैंने उस मैसेज को कभी डिलीट किया ही नहीं क्योंकि एक मात्र यही तो चीज थी जो मुझे इन 5 सालों में मोटिवेट करती रही,,, और मैंने इतनी आसानी से 5 साल तुम्हारे इंतजार में गुजार दिए,,,। अरे अगर कोई और होता ना तो तुम्हें उस मैसेज के बदले ना जाने कितने कॉल करता लेकिन मैंने तो तुम्हारी बात को समझा, तुम्हें अंडरस्टैंड किया, मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहती थी और ना ही तुम्हारा ध्यान डिस्ट्रेक्ट करना चाहती थी लेकिन मुझे क्या पता था कि तुम मेरे 5 सालों के इंतजार का सिला इस तरीके से दोगे,,? "
उसके लहजे में नाराजगी जरूर थी लेकिन अजीब सा ठहराव भी था,, वह बेहद शांत नजर आ रही थी लेकिन सुलक्षणा जी बहुत अच्छी तरह से जानती थी कि वह अपनी फिलिंग्स को दबाने की कोशिश कर रही है,, अंदर से वह पूरी तरह से टूट चुकी है,,,।
प्रतीक ने अपने कंधे उचकाये और अपना बचाव करते हुए बोला, " तुम कौन से मैसेज की बात कर रही हो,,? मैं तो तुम्हें कोई मैसेज नहीं भेजा,,,। "
दरअसल वह अकेला विदेश नहीं गया था, निशा उसके साथ विदेश गई थी और शुरू में 3 महीने तक वह लोग एक साथ ही रहे थे और उसके बाद निशा विदेश आती जाती रही और साथ में बिताए प्रत्येक दिन के साथ उनकी भावनाएं और भी प्रबल होती जा रही थीं,,,लेकिन इन 5 सालों में उसने एक दिन भी तारा से कांटेक्ट नहीं किया,,,
प्रतीक के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे लेकिन जब तारा ने उस मैसेज की बात की निशा के चेहरे पर थोड़ा सा बदलाव आया हालांकि यह बदलाव काफी क्षणिक था जिस पर किसी का कोई ध्यान नहीं गया लेकिन तारा जो उसे बहुत अच्छी तरह से जानती थी और उसे ही देख रही थी वह उसके बदलाव को नोटिस कर चुकी थी और समझ भी गई थी कि अब इस सवाल का जवाब जानने की जरूरत नहीं है क्योंकि वह मैसेज उसे और किसी ने नहीं बल्कि निशा ने ही भेजा था वह भी प्रतीक बनकर,,,।
तारा ने एक गहरी सांस ली क्योंकि उसके सामने जो शख्स खड़े थे उन्होंने उसे बहुत बड़ा धोखा दिया था। नाजाने वह कितने सालों से एक दूसरे के साथ थे और उसे इसकी खबर तक नहीं लगने दी,,,फिर उसने अपने पिता की और देखा लेकिन उनकी आंखों में उसे अपने लिए कोई प्यार, कोई गर्माहट नजर नहीं आई,,उनकी नजरों में था तो सिर्फ एक अजीब सा ठंडापन और घृणा,,,।
और आज पहली बार तारा को यह महसूस हुआ कि वह पूरी तरह से अकेली रह गई है, यहां पर जितने भी लोग खड़े हैं वह उसके हैं ही नहीं और वो उन्हें नहीं जानती,, आज हर कोई उसके लिए अजनबी हो गया था,,,।
सगाई का वक्त हो रहा था इसीलिए निमेश जी ने तारा की परवाह किए बिना निशा से कहा, " निशा सगाई का वक्त होने वाला है और मेहमान भी आने वाले हैं जाओ जाकर जल्दी से तैयार हो जाओ, ,,। "
यह सुनकर निशा ने अपना सर हां में हिलाया और फिर मुस्कुराई लेकिन साथ ही उसने तारा को बेहद घमंड भरी नजरों से देखा और फिर अपना मेकअप फाइनलाइज करने के लिए वहां से जाने लगी।
क्रमशः,,,,,
अगला भाग जल्द ही,,,
नई कहानी आप लोगों को कैसी लग रही है प्लीज बताइए,,, और यकीन मानिए इस कहानी में कुछ ऐसा धमाकेदार होगा जिसकी आप लोगों ने उम्मीद नहीं की होगी,, वो भी जल्द ही,,,।