"छाया महल – जहाँ आत्माएँ सोती नहीं..." उत्तर प्रदेश के बरहपुर गाँव के बाहर एक वीरान खंडहर खड़ा है — छाया महल। कहते हैं, वहाँ हर अमावस्या की रात कुछ ऐसा होता है जो इंसानी समझ से परे है। 300 साल पहले की एक रानी की आत्मा, जो जिंदा जलाई गई थी, आज भी उ... "छाया महल – जहाँ आत्माएँ सोती नहीं..." उत्तर प्रदेश के बरहपुर गाँव के बाहर एक वीरान खंडहर खड़ा है — छाया महल। कहते हैं, वहाँ हर अमावस्या की रात कुछ ऐसा होता है जो इंसानी समझ से परे है। 300 साल पहले की एक रानी की आत्मा, जो जिंदा जलाई गई थी, आज भी उस महल में भटक रही है। आरुषि मिश्रा, एक युवा रिसर्चर, लोककथाओं और अंधविश्वासों की खोज में इस महल तक पहुँचती है। लेकिन जैसे ही वो महल के पहले दरवाज़े तक पहुँचती है, कुछ ऐसा महसूस करती है जो विज्ञान भी नहीं समझा सकता। हर दीवार पर छिपा है एक रहस्य, हर कोना फुसफुसाता है एक कहानी — और हर साया बताता है कि वह अकेली नहीं है। राजवीर सिंह, एक रहस्यमयी गाइड, जो खुद कई सवालों से घिरा है... एक सपना, जो उसे सदियों पुरानी रानी में बदल देता है... और सात आत्माएँ, जो अब जाग रही हैं... यह सिर्फ एक महल की कहानी नहीं है। यह कहानी है उस अतीत की, जो कभी मिटा नहीं। यह कहानी है प्यार, धोखे, तंत्र, और एक अनसुलझे श्राप की...
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बरहपुर...
उत्तर प्रदेश का एक छोटा, शांत-सा गाँव, लेकिन उसकी खामोशी में भी कुछ ऐसा था जैसे हवाएँ भी कुछ कहने से डरती हों। चारों ओर फैले खेत, और दूर-दराज़ पर खड़े पीपल के सूखे पेड़... सब कुछ किसी रहस्य को चुपचाप जी रहा था।
जुलाई 2025, शाम 6:03 बजे
एक काली स्कॉर्पियो धीरे-धीरे बरहपुर की तंग पगडंडियों पर रेंग रही थी। अंदर बैठी थी — आरुषि मिश्रा, 27 साल की एक रिसर्च स्कॉलर, जो लखनऊ यूनिवर्सिटी से "भारतीय लोककथाओं में आत्माओं का प्रभाव" विषय पर रिसर्च कर रही थी।
"मैडम, आप सच में छाया महल जाना चाहती हैं?"
ड्राइवर रघुनाथ ने पीछे देखते हुए पूछा, उसकी आँखों में हल्का डर साफ़ था।
आरुषि ने चश्मा ठीक किया, और मुस्कुरा दी, "मैं आत्माओं पर रिसर्च कर रही हूँ, रघुनाथ जी, डर से नहीं, सच से वास्ता है मुझे।"
लेकिन रघुनाथ की मुस्कान गायब थी।
"यहाँ के लोग उस महल के पास भी नहीं जाते... कहते हैं कि अमावस्या की रात वहाँ दीवारें भी साँस लेती हैं।"
आरुषि कुछ नहीं बोली। उसने खिड़की से बाहर झाँका — दूर सामने, एक काले साये जैसा कोई ढाँचा दिख रहा था।
छाया महल।
6:39 PM
गाड़ी रुकी। महल तक अब सीधा रास्ता नहीं था, बस एक संकरी सीढ़ीनुमा पगडंडी और गहराते अंधेरे का आलम।
"मैडम, आगे आपको अकेले ही जाना पड़ेगा..."
रघुनाथ पीछे नहीं आया। उसकी आँखें किसी डर को बहुत पहले देख चुकी थीं।
आरुषि ने अपना रेकॉर्डर चालू किया, बैग उठाया, और अकेली आगे बढ़ी।
चारों ओर झींगुरों की आवाज़ें थीं, पर हवा में कुछ और भी था...
जैसे किसी ने उसका नाम धीमे से पुकारा हो।
"आरुषि..."
वो पलटी, कोई नहीं था।
"शायद वहम होगा," उसने खुद को समझाया, लेकिन मन तो जैसे पहले ही समझ चुका था कि यह कोई आम जगह नहीं।
छाया महल की पहली झलक
महल अब सामने था।
उँचा, काला, और पूरी तरह से वीरान। दीवारों पर समय ने अपने निशान छोड़ दिए थे, लेकिन खिड़कियाँ अब भी जिन्दा थीं — जैसे किसी ने पर्दे के पीछे से उसे आते हुए देखा हो।
अचानक—
"वहाँ मत जाओ!"
एक सात-आठ साल का बच्चा झाड़ियों के पीछे से निकला। उसके कपड़े मैले थे, और चेहरा धूल से भरा।
"क्यों?" आरुषि ने झुककर पूछा।
"क्योंकि वो जाग रही है..."
बच्चा कहकर भाग गया।
"वो? कौन?"
पर बच्चा कहीं गुम हो गया।
पहला दरवाज़ा
महल के मुख्य दरवाज़े तक पहुँचते ही आरुषि का शरीर काँप गया।
दरवाज़ा पुराना था, लोहे का, और उसके ऊपर लाल रंग से कुछ लिखा हुआ था:
"यहाँ वो आत्माएँ हैं जो कभी सोती नहीं..."
उसने धीरे से दरवाज़ा धक्का दिया — चूँ चूँ की आवाज़ और अँधेरे की ठंडी लहर बाहर निकली।
अंदर एक बड़ा हॉल था — टूटी मूर्तियाँ, बिखरी धूल, और दीवारों पर पेंटिंग्स जो अब बस परछाइयाँ बन चुकी थीं।
लेकिन जैसे ही उसने पहला कदम अंदर रखा — एक ज़ोर की सरसराहट हुई।
फिर...
दीवार पर टँगी एक पुरानी तस्वीर खुद-ब-खुद ज़मीन पर गिर पड़ी।
आरुषि ने झुककर उसे उठाया — यह एक रानी की तस्वीर थी, जिसके माथे पर सिंदूर था... और उसकी आँखें बिल्कुल वैसी ही थीं जैसे... उसके खुद की।
आरुषि घबरा गई।
"ये... मैं नहीं हो सकती।"
तभी—
उसके कानों में एक संगीत गूंजा, जैसे पुराने ज़माने का सितार। और फिर...
"रूपवती..."
किसी ने उसे नाम से नहीं, बल्कि किसी और की आत्मा के नाम से पुकारा।
सपना या सच?
आरुषि बेहोश हो गई।
लेकिन उसकी आँख खुली — 300 साल पहले के एक महल में।
वो राजसी लिबास में थी, शीशे के सामने खड़ी, और पीछे से एक गहरी आवाज़ आई:
"रूपवती, आज रात वो तुम्हें जला देंगे। भागो!"
"मैं आरुषि हूँ... मैं रानी नहीं..." वो चिल्लाई।
और तभी एक औरत की चीख़ गूंजी — वो जल रही थी।
Back to Reality
आरुषि की आँख खुली — पसीने से भीगी हुई थी, पर वो अब भी उसी महल में थी।
वो उठी, और देखा — दीवार पर खून से लिखा था:
"तुम लौट आईं..."
To Be Continued...