हम आपसे बहुत प्यार करते है ,पर आपने बहुत देर करदी बीर, बहुत देर करदी" , रोती हुई लड़की जो के एक पहाड़ की चोटी पर खड़ी थी ।वो अपने सामने खड़े लड़के से बोल रही थी । "देखिये आप ये गलती मत करें ये गलत है", वो लड़का बोला। साथ ही कदम आगे बढ़ाये ।... हम आपसे बहुत प्यार करते है ,पर आपने बहुत देर करदी बीर, बहुत देर करदी" , रोती हुई लड़की जो के एक पहाड़ की चोटी पर खड़ी थी ।वो अपने सामने खड़े लड़के से बोल रही थी । "देखिये आप ये गलती मत करें ये गलत है", वो लड़का बोला। साथ ही कदम आगे बढ़ाये । "वहीं रूक जाए बीर, वही रूक जाये । अब आपके कदम हमारी तरफ बड़े तो हम अभी खुद को खत्म कर देंगे" , उस लड़की ने रोते हुए कहा । दोपहर का समय था चारों तरफ धूप की वजह से सफेदी छाई हुई थी । दूर दूर तक नजर घुमाने पर भी कोई नही दिख रहा था । और इतनी गर्मी में वो लड़की जो पहाड़ी की चोटी पर खड़ी थी उसके पैरों में चप्पल भी नही थी । "देखे आप मेरी बात सुने मैं आ गया, आप ये बचपना छोड़े और हमारे साथ चले । " "बचपना बीर आपको हमारी हर बात बचपना लगी है ना आज तक, तो यही सही । आपने हमारे प्यार को बचपना कह कर नकारा था ना। तो भगवान वैसा ही करे जैसा हमने आपसे आखरी बार मिलने के समय कहा था । जब आप तड़पे गए तब पता चले गा प्यार क्या होता है और बचपना क्या। और हम आपको नही मिलेगे", वो लड़की रोते हुए बोली और साथ ही पीछे की और कदम बड़ा लिए।
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"हम आपसे बहुत प्यार करते है, पर आपने बहुत देर करदी बीर, बहुत देर करदी", रोती हुई लड़की जो के एक पहाड़ की चोटी पर खड़ी थी, वो अपने सामने खड़े लड़के से बोल रही थी।
"देखिये आप ये गलती मत करें, ये गलत है", वो लड़का बोला। साथ ही कदम आगे बढ़ाये।
"वहीं रूक जाए बीर, वही रूक जाये। अब आपके कदम हमारी तरफ बढ़े तो हम अभी खुद को खत्म कर देंगे", उस लड़की ने रोते हुए कहा।
दोपहर का समय था, चारों तरफ धूप की वजह से सफेदी छाई हुई थी। दूर दूर तक नजर घुमाने पर भी कोई नही दिख रहा था। और इतनी गर्मी में वो लड़की जो पहाड़ी की चोटी पर खड़ी थी, उसके पैरों में चप्पल भी नही थी।
"देखे आप मेरी बात सुने, मैं आ गया, आप ये बचपना छोड़े और हमारे साथ चले।"
"बचपना बीर, आपको हमारी हर बात बचपना लगी है ना आज तक, तो यही सही। आपने हमारे प्यार को बचपना कह कर नकारा था ना, तो भगवान वैसा ही करे जैसा हमने आपसे आखरी बार मिलने के समय कहा था। जब आप तड़पेगे तब पता चलेगा प्यार क्या होता है और बचपना क्या, और हम आपको नही मिलेंगे", वो लड़की रोते हुए बोली और साथ ही पीछे की और कदम बड़ा लिए।
"नही आप एसा कुछ नही करेंगी, घर चले हम बात करते है।"
"कुछ नही रखा बात करने के लिए, और अब हम कभी बात नही करेंगे आपसे। हमे कभी याद मत कीजियेगा, आज हम यहां भी है आपकी वजह से है, आपके प्यार में पड़ने की वजह से है। हम नफरत करने लगे है आपसे, और आपसे नफरत कर हम जी भी नही पायेगे, नही जीना अब हमे", कहते हुए उसने आखरी कदम पीछे रखा।
"नही", एक लड़का झटके से उठ बैठा। कमरे में हल्की रोशनी थी जिससे उसका चेहरा साफ नही दिख रहा था। पर बाकी शरीर पर हलकी रोशनी पड़ रही थी, उसे देख ऐसा लग रहा था के पता नही ट्रेडमिल पर कितनी दौड़ लगा आया हो, पुरा चेहरा पसीने से भीगा हुआ था। और चेहरे से टपकता पसीना उसके साफ खुले चौड़े सीने से होकर एब्स से होते हुए नीचे जा रहा था।
"क्या हूआ खुराना, आज फिर वही सपना देखा क्या", दरवाजा खोल एक लड़का अंदर आया जो अभी भी नींद में ही आंखे मल रहा था।
तो वो लड़का चेहरा उपर कर उसे देखने लगा जिस पर अब हल्की रौशनी पड़ी, गोरा चेहरा जिसपर तीखे नैन नक्श सजे हुए थे। वो अपने बेड से उठा और चेयर पर पड़ी अपनी बनियान पहनते हुए रूम में एक तरफ लगे पर्दे हटा कर सामने देखने लगा। यहां मीलों दूर तक समुंदर ही समुंदर दिख रहा था। उसकी वो नीली आखें इस समय समुंदर के जैसी लग रही थी जो नजाने कितने गहरे राज अपने अंदर समाय हूए थी।
वो लड़का जो दरवाजा खोल अंदर आया था वो आकर बेड पर बैठते हूए, "खुराने अब तो तुम्हे आदत हो जानी चाहीए इन सब की, पांच साल हो गए है ये सपने आते हुए, और एक ही सपना आता है तुमको, तब भी तू रोज ऐसे चिल्लाता है जैसे आज ही देखा हो", वो बोला और वेसे ही पीछे की तरफ लेट गया पैर उसके बेड से नीचे लटक रहे थे।
वो लड़का जो सामने समुंदर को देख रहा था उसने मुड़ के पीछे देखे तो वो लड़का जो उसे खुराना बोल रहा था, वो नींद में चला गया था। तो खुराना उसके पास आया और उसे देखने लगा। और फिर एक तकिया उठा उसके सिर पर मारते हुए।
"वैसे पांच साल तो तुमको भी हो गय मेरे साथ रहते हुए, तो तुमको आदत क्यूं नही हूई", वो बोला। तो लड़का जो बेड पर लेटा था उसने करवट लेली और पीठ कर लेट गया।
"जरा रीढ़ की हड्डी के पास मारना आ हा मजा आ गया। बस रोज सुबह सुबह एसी मसाज मिस नही करना चाहता मैं", वो बोला। तो खुराना वैसे ही उसके पास लेट गया। तो वो लड़का उसे देख वापस से करवट लेकर लेट गया। दोनो छत को देख रहे थे।
"संधु तुम्हे पता है जब भी वो लड़की बोलती है ना तो एसा लगता है, जैसे मुझे कह रही हो", खुराना ने कहा। तो वो लड़का जो पास ही लेटा था और दिखने में वो भी कम नही था, वो खुराना को देखने लगा।
"मुझे पता है तू परेशान हो गया है इन सब से, पर क्या करे जो जो भी मुमकिन था वो कर के देख लिया ना, पर कोई फायदा नही हुआ। अब तो जब समय होगा तब ये सब सपने आने बंद हो जायेगे। तब तक तू आराम से रह", संधू ने कहा तो खुराना उसे देख मुस्कुरा कर, "चल ठीक है उठ जा अब। आज बहुत जरूरी मिटिंग है", वो बोला और खुद उठ कर चला गया वही संधू अच्छे से लेटते हुआ।
"पता नही किस हड्डी का बना है, नींद ही नही आती इसे। रात को भी 2 बजा दिए थे, काम करते करते और अब 7 ही बजे है और इसे काम की पड़ भी गई", कहते हुए उसने तकिया सिर पर ले लिया ता के खुराना की आवाज ना पहुंच सके उस के पास।
वही खुराना खुद जो बाथरूम में शावर के नीचे आंखे बंद कर खड़ा था। पानी की बूंदे उसके गोरे शरीर पर रेत की तरह फिसल रही थी और उन्ही फिसल ती बूँदों के बीच, उसके दिल वाली साइड पर त्रिशूल का नीले रंग का बना हूआ टैटू दिख रहा था।
कुछ पल बाद उसने शावर बंद करा और साइड पड़ा टावल उठा, खुद को पोछते हुए, शीशे में देखने लगा। एक बार उसने त्रिशूल को देखा फिर अपनी नीली आंखे शीशे पर टिका दी। और हल्का सा मुस्कुरा कर बाहर की और चल दिया।
"उठ जा संधू जाना है आज की मिटिंग जरूरी है, उसके बाद दादू के पास जाना है", खुराना ने कहा तो संधू जो तकिये को कान पर दबा रहा था, वो उठ कर बैठ गया और सामने खड़े खुराना को देखने लगा जो सफेद शर्ट के बटन बंद कर रहा था।
"खुराना मुझे एक बात समझ नही आती। तू पंजाबी है वो भी पक्का वाला तो फिर ये तुम्हारे सीने पर त्रिशूल का टैटू क्यूं।"
तो खुराना बटन बंद कर उसे देखते हुए, "बचपन से ही है, दादू ने बताया था के एक बार जिद्द कर बनवाया था मेने।" उसने कहा और वापस से शीशे में देख बाल सेट करने लगा।
"ठीक है जा रहा हूं दादू का नाम लेके बेबस कर देता है तू मुझे", वो बोला और उठ कर चला गया। खुराना मुस्कुरा कर सामने देखने लगा।
रब राखा
मुझे फालो करे और सटोरी को सटार रेटिंग देकर जाये ।
खुराना इंडस्ट्री जो के मुम्बई की पहली दस इंडस्ट्री में गिनी जाती है, उसका मालिक खुराना इस समय अपने लग्जरी ऑफिस रूम में बैठा हुआ लैपटॉप पर कुछ कर रहा था। वहीं उसके सामने खड़ा संधू, जो इस समय हाथ में पकड़े टैब पर कुछ कर रहा था।
"खुराने आज की मीटिंग के लिए हमें अपनी प्रतिद्वंद्वी (राइवल) कंपनी को मुँहतोड़ जवाब देना होगा", संधू ने हाथ में पकड़े टैब पर कुछ करते हुए कहा और फिर खुराना को देखने लगा, जो लैपटॉप पर कुछ करते हुए मुस्कुरा रहा था।
"बिल्कुल आज तो शमशेरा को जवाब मिलकर ही रहेगा।"
"क्या बात है, तू इतना खुश क्यूँ है", संधू ने खुराना को देख कहा जो खुश लग रहा था। तो वहीं खुराना लैपटॉप से नजरें हटाकर अपनी कुर्सी से पीठ लगा हाथ में एक सिक्का घुमाते हुए मुस्कुरा कर संधू को देखकर बोला,
"क्यूंकि अब हमे वो प्रोजेक्ट मिल चुका है जिसके लिए पिछले एक साल की मेहनत लगी थी। अब अगर सरकारी टेंडर में अपना नाम नहीं भी निकला तो भी कोई बात नहीं।"
संधू हैरान होते हुए बोला, "क्या! क्या कहा तूने, वो प्रोजेक्ट मिल गया। मतलब हमे इंडिया के अलग अलग शहरो में होटल चेन बनाने का प्रोजेक्ट मिल गया?"
"बिल्कुल", खुराना ने अपनी जगह से उठते हुए कहा और संधू को गले लगाकर बोला, "बिल्कुल मिल गया और इस प्रोजेक्ट को हासिल करने में जितनी मेहनत मैंने की उतनी ही तुमने भी।"
"बस कर अब ये सब कर मुझे इन सब का सेहरा मत सजा। वो तो तू ही था जो काम करता, मैं तो बस पास बैठा कॉफी के मग भरता रहता था", संधू ने कहा।
खुराना मुस्कुराते हुए बोला, "चलो वो मीटिंग भी तो अटेंड करनी है। आखिर देखते है वहां किसको टेंडर मिलता है और कौन-कौन जान गया हमारी खुशी के बारे में", खुराना ने अपना कोट उठाते हुए कहा और वो दोनों वहां से बाहर आ गए।
गोल्डन रोज होटल
मुम्बई का फेमस होटल। और उसी होटल का डाइनिंग एरिया, जो अभी बिल्कुल खाली था। वहां दो लड़कियां खड़ी थी जिन्होने जीन्स टॉप पहन रखे थे और उपर एप्रन पहना हुआ था और एक दूसरे को देख रही थी।
वहीं सामने टेबल पर बैठे दो आदमी जिनके आगे खाने की प्लेट पड़ी हुई थी, जो के दिखने में कमाल की लग रही थी।
"लेट्स स्टार्ट", एक आदमी ने दूसरे आदमी से कहा, और दोनों ने खाना शुरू करा। वहीं वो दोनों लड़कियों के दिल की धड़कन रूकी हुई थी।
उस शांत से वातावरण में उन आदमियों द्वारा खाने के लिए इस्तेमाल हो रहे छुरी कांटे की आवाज आ रही थी, तो वही उन दोनों लड़कियों को अपने दिल की बढ़ रही धड़कन की आवाज सुनाई दे रही थी।
सामने बैठे एक आदमी ने उस प्लेट को देखा जो अब खाली हो चुकी थी। "यू बौथ आर सिलेक्टेड", उस आदमी ने कहा जो खाली प्लेट देख रहा था, फिर उन दोनों लड़कियों को देखकर बोला, "कमाल कर दिया तुम दोनों ने"।
"बिल्कुल कमाल ही कर दिया", दूसरा आदमी बोला और खड़े होकर दोनों को देखकर बोला, "तो यहां पर काम करने को तैयार हो जाओ तुम दोनों, पर उससे पहले जैसा हमारा रूल है के तुम दोनों को यहां पर इंटर्नशिप करनी होगी सिक्स मंथ की। उसके बाद ऐस आ जूनियर शेफ के तौर पर तुम दोनों को ले लिया जायेगा। तुम दोनों को मंजूर हो तो बताओ।"
सामने खड़ी दोनों लड़कियां एक दूसरे को देखने लगी। "हमे मंजूर है सर", एक लड़की बोली जिसका का चेहरा गोल सा था और आंखे मानो गहरी काली थी, लेकिन ध्यान से देखने पर उन में भूरे रंग के रेशे से उड़ते नजर आते।
"तो मिस मेहर आप दोनों जानती हो यहां तक पहूँच ने के लिए तुम दोनों को कितनी कड़ी मेहनत करनी पड़ी है, कल से आज तक का सफर तुम दोनों ने बाखूबी निभाया है। तो आगे भी एसे ही हर चुनौती के लिए तैयार रहना। और हां वेलकम टू माई टीम", पहला आदमी बोला, जिसने दोनों को सिलेक्ट करा था। तो वही सामने खड़ी दोनों लड़कियों के चेहरे खिल गये जिनमें पहली मेहर थी।
"सुहानी हमने कर दिया", मेहर ने दूसरी लड़की के गले लग कहा तो सुहानी भी उसके गले लग खुश हो गई।
"हां मेहर हमने कर दिया, देख आज हम यहां पहुंच ही गए", वो बोली।
"हमारी मेहनत रंग लाई", मेहर ने कहा।
"ओके गर्ल्स अभी तो सफर शुरू हुआ है चलो मेरी टीम से मिल लो", पहला आदमी उनको देख बोला फिर अपने पास खड़े आदमी को देख कर।
"तो मिलते है आपसे और इस कंपटीशन को जज करने के लिए शुक्रिया आपका", तो वो आदमी पहले आदमी से साथ हाथ मिला चला गया।
"तो लड़कियों मेरा नाम तो जैसे तुम दोनों जानती ही हो, मेहरा सर कहते है मुझे सब, उम्र पैंतालीस की। और यहां का हेड शेफ", वो बोला।
मेहर सुहानी जो सामने खड़ी थी, दोनों ने सिर हिला दिया। "तो चलो अभी तो दिन शुरू हुआ है", वो बोले और आगे आगे चल दिए वही, मेहर सुहानी दोनों एक दूसरे की देख खुश होते हुए उनके पीछे चल दी।
"हेलो एवरीवन, देखो आज से ये दोनों हमारी टीम का हिस्सा है तो तुम सब इनका ध्यान रखना", मेहरा सर ने किचन एरिया में आकर कहा। वही मेहर सुहानी दोनों के मुंह खुले रह गए, वहां पर कुल मिलाकर दस इंसान थे। मेहरा सर को मिलाकर और वो दस के दस ही मेल थे, मतलब आदमी एक भी लड़की नहीं थी। अभी तक, मेहर सुहानी के आने पर अब उस टीम में दो लड़कियां हो गई थी।
वही मेहरा सर को छोड़ बाकी के नौ लड़के जो उम्र में तीस से ज्यादा के नहीं थे, वो एक टक मेहर सुहानी को देख रहे थे।
मेहरा सर हल्का सा मुस्कुरा दिए दोनों तरफ फैली हैरानी देख कर। "टीम अब से मेहर सुहानी हिस्सा है इस टीम का तो देखने का और बात करने का मौका मिलता ही रहेगा, आज पहला काम शाम 4 बजे यहां पर एक मीटिंग होने जा रही है कुछ बड़ी कंपनियों की और हमेशा की तरह इस होटल के बने खास मीटिंग हॉल, आज एक बार फिर भरने जा रहा है। तो उस मीटिंग के बाद होने वाला डिनर हम लोगो को ही सर्व करना है और उसके साथ ही अपने होटल में ठहरे गेस्ट्स की फर्माइश भी पूरी करना है। तो आज हमारी टीम के दो हिस्से होगे। एक टीम का पूरा फोकस रात के डिनर पर होगा तो दूसरी टीम का फोकस यहां ठहरे गेस्ट्स पर होगा", शेफ मेहरा ने कहा। तो सब ने सिर हिला दिया।
"मेहर तुम मीर की टीम में और सुहानी तुम शैलेंद्र की टीम में हो समझी", वो बोले तो दोनों ने सिर हिला दिया।
रब राखा
"मेहर तुम मीर की टीम में और सुहानी तुम शैलेंद्र की टीम में हो, समझी," वो बोले तो दोनों ने सिर हिला दिया।
"चलो तुम सब अपना अपना काम शुरू कर दो," मेहरा सर ने ताली बजाते हुए कहा तो दो लड़के उनके सामने आकर खड़े हो गए।
"मीर, शैलेंद्र, मेहर, सुहानी को सिखाने की रिस्पांसिबिलिटी तुम दोनों की," मेहरा सर ने कहा और दोनों को देख मुस्कुरा दिए। "मेरा नाम मीर," एक लड़के ने मेहर के आगे हाथ कर कहा तो मेहर ने भी उस से हाथ मिला दिया, वैसे ही सुहानी ने उस से हाथ मिलाया।
शैलेंद्र ने भी दोनों से हाथ मिलाया और दोनों उनकी टीम का हिस्सा बन गई और अपने अपने काम पर लग गई।
"मेहर, सुहानी तुम दोनों अपने एप्रन उतार दो और ये एप्रन पहन लो," मेहरा सर ने कहा और दोनों को सफेद रंग के प्लेन एप्रन दे दिए। दोनों ने जल्दी से वो एप्रन पहन लिए और फिर अपनी अपनी टीम में काम करने लगी।
पिछले 2 दिन से गोल्डन रोज होटल में फूड कंपटीशन चल रहा था, और आज मेहरा सर ने दोनों को ही सिलेक्ट करा था। वैसे तो एक का नंबर ही था, पर मेहर सुहानी के खाने में कोई भी ऐसी बात नजर नहीं आई, जो उन दोनों में से किसी एक को ही सिलेक्ट करते। इसीलिए मेहरा सर ने होटल के मालिक को ही बुलाया था, पर उनकी जगह पर उनका एक आदमी आया था और वो भी मेहर सुहानी के खाने में कोई कमी नहीं निकाल सका।
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मुम्बई शहर से जरा हटकर, बाहर बाहर एक खुबसूरत सा मॉडर्न पर उतना ही आलीशान घर, ना ना महल बना हुआ था, जिस के चारों तरफ हरी घास का मैदान था। और वो मैदान भी चारों तरफ से दीवार से घिरा हुआ था। तभी उस घर से कुछ पहले यहां से उस घर में दाखिल हुआ जाता है। उस जगह का वो बड़ा सा गेट खुला और एक आलीशान कार उस घर के अंदर दाखिल हुई, और अपनी पूरी स्पीड से वो कार उस घर की तरफ चल दी, जिस रास्ते पर वो कार चल रही थी उस रास्ते के दोनों तरफ फूलों से सजे गार्डन थे। कार आकर घर के सामने रूकी और उस में से खुराना और संधू निकले। अभी दोपहर का ही समय था और आज उनको दादू से मिलने आना था, अपने दादू से जिनकी जान खुराना में बस्ती थी।
"चल खुराना लगता है तेरे आने की खबर पहले ही लग गई," संधू ने कहा जो सामने की तरफ देख रहा था। यहां एक शांती सी छाई थी।
खुराना मुस्कुरा कर, "चल मेरे आने की खबर मिल गई है, इसीलिए तो इतनी शांती है," वो बोला और वो दोनों आगे बढ़े और जैसे ही दरवाजा खोलने को हाथ आगे बढ़ाया उसी समय दरवाजा खुल गया और खुराना ने हाथ वैसे ही पीछे खींच लिया।
"सुनो जी आ गया आपका लाडला," सामने खड़ी औरत ने पीछे देख जोर से कहा और फिर खुराना को देखा और साथ खड़े संधू को भी, दोनों मुस्कुरा रहे थे।
"दांत क्या फाड़ रहे हो तुम दोनों। एक तो हफ्ते बाद आये हो वो भी एक घंटे के लिए, काम काम काम बस करा लो इन से जितना पर ये नहीं के घर पर कोई है जो इनका इंतजार कर रहा होगा। हां अब वो नहीं है और 'वो' होगी भी कैसे, जब किसी लड़की को देखोगे तभी तो वो बनेगी ना," उस औरत ने खड़े खड़े ही दोनों को अच्छी खासी बातें सुना दी तो वही वो दोनों जो मुस्कुरा रहे थे अब बस खुल कर हसने से खुद को रोक रहे हैं।
"क्या हो गया प्रीतम क्यूं मेरे बच्चों पर अपना गुस्सा निकाल रही हो। तुम्हारी बात जोरावर नहीं मानता तो मेरे बच्चे का क्या कसूर इस में," पीछे से एक मर्दाना आवाज आई जिस में उस आदमी के उम्र का अंदाजा हो रहा था।
वही वो औरत प्रीतम जल्दी से अपने सिर पर दुपट्टा लेते है। "पापा जी आप भी बस इनकी ही साइड लेते है," वो औरत बोली। तो पीछे से चल कर आ रहा वो मर्दाना आवाज के मालिक ने प्रीतम के सिर पर हाथ रख, सामने खुराना को देखने लगा।
"कबीर मेरे बच्चे," वो बोले तो खुराना जो चुप सा खड़ा सब देख रहा था वो उस बुजुर्ग आदमी के गले से लग गया।
तो संधू ने उस औरत को गले से लगा लिआ। "आंटी बहुत मिस किया आपको," वो बोला। तो प्रीतम ने उसके कंधे थपथपा दिए। वही कबीर जो अपने दादू के गले लगा था वो उनसे अलग होकर उनको देखने लगा। "कैसे है आप दोनों," उसने कहा और प्रीतम अपनी मम्मी के गले लग गया। वही प्रीतम जी ने भी उसे बाहो में भरा।
"चलो तुम दोनों अंदर चलो," दादू ने कहा तो कबीर उनका हाथ पकड़कर चल दिया वही प्रीतम, संधू उनके साथ चल रहे थे।
"रौली पानी ले आ," प्रीतम जी ने आवाज लगा कर कहा तो रसोई से एक लड़की ट्रे में कांच के गिलास रख पानी भर ले आई और यहां सब बैठे हुए थे वही पर वो ट्रे रख चली गई। कबीर, संधू अभी भी दादू से ही बातें कर रहे थे।
"अच्छा मम्मी पापा कहां है," कबीर ने पानी का गिलास उठा कर कहा और पानी पीने लगा।
"यहीं है तेरे पापा बस वो अपने रूम में है," प्रीतम जी ने कहा।
"अच्छा मम्मी जल्दी से खाना खिला दो फिर हमे जाना है, आज बहुत खास मीटिंग है," कबीर ने उठते हुए कहा और एक तरफ को चल दिया। वही प्रीतम जी सिर हिला कर संधू को देख कर, "राज तू ही इसे समझा अब शादी कर ले कब तक ऐसे ही रहेगा," वो बोली।
"बहू किसे बोल रही हो जो खुद शादी के नाम पर भाग रहा है," पास बैठे दादू ने कहा तो प्रीतम जी ने मूंह बना लिया।
"हां पापा आप सही कह रहे है, मुझे तो लगता है इन दोनों की दोस्ती ही तोड़नी पड़ेगी तभी दोनों शादी के बारे में सोचेंगे," वो बोलते हुए उठी और सिर का दुपट्टा सही करते हुए रसोई की तरफ चली गई।
"ये क्या दादू, अब शादी वो नहीं कर रहा तो इस में हमारी दोस्ती कहां से आ गई," संधू जिस का नाम राज था वो बोला। तो दादू मुस्कुराते हुए, "कोई ना पुत्तर वो मां है ना ऐसे ही बोलती है, अभी उम्र ही क्या हुई है बस आगले जन्मदिन पर तुम दोनों अट्ठाइस छोड़ उनतीस में लग जाओगे," दादू ने कहा।
"बस दादू बहुत हुआ हमारी आजादी सही नहीं जाती आपसे, इस लिये ये सब बोलते हो आप लोग," वो बोला तो दादू मुस्कुरा दिए।
"बेटा जब कोई ऐसी लड़की सामने आई ना तो ये जो आजादी का राग जपे फिर रहे हो ना तुम दोनों, फिर खुद ब खुद उसकी कैद में पड़ जाओगे समझे," दादू ने कहा तो राज सिर हिला कर फोन देखने लगा।
"पापा क्या है, आप यहां हो मुझे मिलने भी नहीं आये," कबीर जो एक रूम के अंदर आया था वो सामने कुर्सी पर बैठे इंसान को देख बोला। वही वो इंसान कबीर को देख मुस्कुराया और उठते हुए, "क्या बात है लगता है बाहर आज शांती है तभी तो आवाज यहां तक नहीं पहुंची," बोलते हुए कबीर के गले लग गये।
वही कबीर ने भी मुस्कुरा कर उनको गले से लगा लिया। "शाबाश मेरे बेटे, आज तुमने मेरा सिर ऊंचा कर दिया," वो बोले।
"सब कुछ आपकी वजह से ही हुआ है पापा, आप ने जैसा जैसा समझाया वैसा ही मेने किया और देखे आज वो प्रोजेक्ट हमारा हो गया जिस के बारे में सोचना भी बहुत बड़ी बात होती है," कबीर ने उनको देख कहा।
कबीर के पापा ने उसे कंधो से पकड़कर एक नजर उपर से नीचे तक देखा और एक गहरी सांस छोड़ते हुए, "तुम नहीं जानते कबीर आज मुझे कैसा लग रहा है। कभी मै भी तुम्हारी तरह था और अपने काम को करने की लगन की वजह से और पापा के उस छोटे से लेबर बिजनेस को बढ़ाने के चक्कर में, ऐसे गुम हुआ था के कब वो छोटा सा काम खुराना इंडस्ट्रीज में बदल गया पता ही नही चला," वो बोले।
"पता है पापा आपने और दादू ने इस मुकाम तक आने के लिए बहुत मेहनत की है और अब मुझे इस मुकाम को आगे ले जाना है इसे और ऊंचा करना है," कबीर ने कहा।
रब राखा।
"पता है पापा आपने और दादू ने इस मुकाम तक आने के लिए बहुत मेहनत की है और अब मुझे इस मुकाम को आगे ले जाना है, इसे और ऊंचा करना है", कबीर ने कहा।
"बातें बाद में कर लेना, पहले आकर खाना खा लो आप दोनों", प्रीतम जी ने दरवाजे से कहा और चली गई।
"क्या हुआ मम्मी नाराज लग रही है, कोई बात है क्या", कबीर ने कहा।
जगजीत जी, कबीर के पापा ने हैरानी से उसे देखा, "क्या ऐसे क्या देख रहे हो आप", वो बोला।
"तू रोली से नहीं मिला क्या", वो बोले।
तो कबीर उनको देखने लगा।
"रोली दीपा की नन्द", जगजीत जी ने कहा तो कबीर के भोंये तन गई।
"नहीं पापा", उसने कहा।
"बेटा अच्छी लड़की है, मिल लो ना उस से, एक बार, दो दिन हो गये उसे आये हुए।"
"पर पापा मुझे अभी नहीं मिलना किसी से भी", उसने कहा और बाहर जाने लगा।
"कबीर मान जाओ बेटा अच्छी लड़की है", जगजीत जी ने पीछे से कहा तो कबीर के बढ़ते कदम रुक गए, और जगजीत जी को देखने लगा।
"और कितना इंतजार करेगा तू, किसी एक पर तो ठहरना ही है तो रोली सही है", वो बोले।
"पापा मुझे किसी पर ठहरना नहीं है, मुझे किसी के साथ जिन्दगी बितानी है, ये हक तो मेरा होना चाहीये ना।"
"सारे हक तुम्हारे, मिलने में क्या जाता है। मिल लो एक बार बस।" कबीर वापस उनके पास आया और उनको देखने लगा।"आप क्या चाहते है ये बता दे" वो बोला।
"मेरी बात मान तो एक बार मिल ले रोली से, समय बिता कोई जल्दी नहीं है", उन्होंने कबीर के कंधे पर हाथ रख कहा। कबीर ने सिर हिला दिया और दोनों रूम से बाहर आ गए।
यहां पर दादू, प्रीतम जी, राज और एक लड़की जो सूट पहने हुए थी, वो प्रीतम जी के पास बैठी थी। कबीर ने उसे देखा और हल्के से मुस्कुरा दिया।
"रोली से मिला", प्रीतम जी ने कहा।
"हां अभी देखा मुझे नहीं पता था ये आने वाली है", कबीर ने बैठते हुए कहा। तो वही रोली ने एक नजर उसे देखा, और वापस से ध्यान नीचे कर लिया, यहां राज को हंसी आ गई थी। तो रोली ने टेबल के नीचे से ही उसके पोर पर पैर मार दिया तो वो चुप सा रह गया।
जोरावर कबीर के दादू जो सब के सामने ही बड़ी कुर्सी पर बैठे हुए थे। उन्होंने एक नजर रोली और कबीर को देखा जो एक दूसरे के आमने सामने बैठे थे।
"अच्छा कबीर रोली आज से तुम्हारे साथ काम सीखेगी, दीपा ने खास तौर पर इसी लिये यहा भेजा है, वो चाहती है के काम के बहाने ही सही तुम दोनों एक दूसरे को जान लोगे।"
कबीर ने एक नजर रोली को देखा और सिर हां में हिला दिया।"ठीक है फिर, रोली खाना खाकर जल्दी से अपना सामान पैक कर लो, और कबीर राज के साथ ही चली जाओ, यहां पर भी अकेली क्या करोगी, बोर ही होगी", दादू ने कहा।
वही प्रीतम जी ने पास बैठे जगजीत को देखा, "देख लो ऐसे करते है बात और आप हो जो अपने ही बेटे से बात करने से घबरा रहे थे। आखिर रोली की बात कैसे करूंगा, कबीर क्या कहेगा", वो धीरे से बोली। तो जगजीत जी मुस्कुरा दिए।
2 बजे के आस पास कबीर, राज और रोली तीनो ने ही घर से तीनो को बाय कर निकल गये क्यूंकि 4 बजे उनकी मिटिंग थी। वो बहुत जरूरी थी और उस में समय भी आराम से लगने वाला था। इसलिए वो जल्दी ही निकल गये थे के वहां आराम से पहूँच जाये।
"ले कबीर ऑर्गेनाइजेशन टीम का मैसेज आया है के मीटिंग 1 घंटा लेट हो गई है, क्यूंकि शमशेरा यहां पर नही है उसे पहुंचने में समय लग जायेगा", संधू मतलब राज संधू ने कहा। तो कबीर जो ड्राइव कर रहा था उसने स्माइल कर दी।
"वैसे शमशेरा को मुबारकबाद देनी होगी, क्यूंकि ये टेंडर उसे ही मिलेगा", कबीर बोला तो राज उसे देखने लगा।
"तुम्हे कैसे पता है", राज ने उसे देखते हुए कहा। तो कबीर जो मीरर से पीछे बैठी रोली को देख रहा था, उसने सिर हिला दिया।"क्यूंकि शमशेरा ही ये काम कर सकता है", वो बोला। फिर रोली को देख कर
"वैसे रोली मैडम अगर तुम्हारा ये, घरेलू सीधी साधी नारी बनने का रोल पूरा हो गया हो तो अपने असली अवतार में आ जाओ", कबीर ने कहा।
तो पीछे बैठी रोली ने जल्दी से अपने सूट की कमर पर लगी चेन को खोलना शुरू कर दिया। "अबे ये पागल हो गई है", राज ने आंखे बड़ी बड़ी करते हुए कहा तो कबीर ने जल्दी से गाड़ी की ब्रेक लगा दी और अगले ही पल दोनों उस कार से बाहर निकल गये।
"पागल लड़की कहीं की", राज ने कहा।
कबीर जो सामने खुले मैदान को देख रहा था उसे एक सुकून सा आया। और फिर राज को देख कर, "प्यार करती है तुमसे तो पागल होगी ही ना", वो बोला।
राज ने कबीर को देखा, "बस कबीर घर वाले उसे तुम्हारे लिए पसंद करी बैठे है।"
"और वो तुमको", कबीर ने कुछ कदम आगे बढ़ कहा। तो राज उसे देखने लगा।
तभी कार का दरवाजा खुला और उस में से एक लड़की बाहर निकली। चेहरे से तो ये रोली ही लग रही थी। पर पहले वाली नही, टाइट जीन्स, ट्यूब टॉप जिस पर उसने जैकेट पहनी हुई थी पर सामने से खुली थी। बाल जो अभी तक बंधे थे अब वो खुले थे जो एकदम स्ट्रेट थे। पैरो में हाइ हील बूट थे उसके, कुल मिला कर वो इस समय किसी मॉडल से कम नही लग रही थी।
"क्या कबीर माना के हम कभी अच्छे दोस्त नही बने पर आज मेने पानी पिलाया था कम से कम देख तो लेता", रोली ने उसके सामने आते हुए कहा। तो कबीर उसे देख दोनों हाथ जेब के हवाले करते हुए,
"अब ये नही पता था ना के तू मुझे इस अवतार मैं मिलेगी घर पर, वर्ना देख ही लेता", वो बोला। तो रोली मुस्कुरा के आगे बढ़ी और कबीर के गले लग गई। पर कबीर के हाथ जेब से बाहर नही निकला।
"उस दिन के इंतजार में हूं जिस दिन तू मुझे गले लगाए गा। फिलहाल तो जिसे गले लगाना चाहिए वो दो फूट की दूरी पर है", उसने राज को देख कहा।
"तो तू लगा ले जैसे मेरे गले लग जाती है, वैसे लगा ले", कबीर ने कहा।
"तू देखेगा हम दोनों को", रोली ने उसे पुछा। तो कबीर मुस्कुरा कर, "रोली एक बात याद रख मेरी जिन्दगी में कोई भी हो पर वो तू नही।"
"तो अपनी बहन को समझा ना जो पुरा दिन मेरा सिर खाती रहती है।"
"तो तू अपने भाई को मना ना के तेरी भाभी को समझाए", कबीर ने कहा।
रोली मुस्कुरा कर, "तेरी बहन ने मेरे भाई को अपने पीछे पीछे लगा रखा है, वो दिन कहे तो भाई के लिए दिन है, वो रात कहे तो भाई के लिए रात है।"
कबीर अब हँस दिया। "तो तु अपनी नन्द वाली नाक लेकर घुस जाया कर उनके बीच, दिन रात होने ही मत दिया कर", वो बोला।
"तुमसे बातों से कोई जीत नही सकता", बोलते हुए वो राज की तरफ चल दी तो कबीर ने सिर हिला दिया। और सामने वाले उस खुले मैदान को देखने लगा।
"क्या है क्यूं बात नही करनी ना तो ठीक है मत कर, एक बात याद रखना शादी तुमसे ही होगी समझा", रोली ने राज से कहा और वापस कार में बैठ गई। कबीर ने उसे बैठते हुए देखा तो राज को देख कर, "चल चले, जाना तो है ही", वो बोला और कार की तरफ चल दिया।
पर ड्राइविंग सीट पर रोली को बैठे देख कबीर ने पीछे बैठना ही सही समझा, तो राज ना चाहते हुए भी आगे उसकी बगल में बैठ गया। रोली ने भी दोनों को देखा और अपनी आंखो पर पराडा चढ़ाते हुए उसने गाड़ी आगे बड़ा दी।
4 बज चुके थे, और मेहर जो मीर की टीम में थी वी इस समय उस हॉल को देख रही थी मीर के साथ। यहां पर कुछ 1 घंटे के बाद सब लोगो का आना शुरू होने वाला था।
मेहर तो बस उस हॉल को देखती ही रह गई थी। कितना बड़ा और कितने सलीके से सजा हुआ था वो हॉल, लगभग 10 टेबल लगे हुए थे और उन पर 4-4 कुर्सीया लगी हुई थी।
तभी मीर के फोन पर एक मैसेज आया। तो उसने जल्दी से अपने साथ आये 2 लड़कों को यहां पर 4 टेबल और लगाने का कहा तो वो दोनों जल्दी से उसी हॉल के साइड बने रूम में से सारा सामान निकालने लगे।
मीर भी उनके साथ ही लग गया। तो मेहर भी आगे बढ़ उसके साथ लग गई और दोनों ने एक टेबल उठा लिया और बाहर आने लगे।
"ये सब काम हमारा होता है क्या सर?", मेहर ने पुछा।
"हां भी और ना भी", मीर ने कहा। तो मेहर हैरान सी उसे देखने लगी। मीर वापस से अंदर जाने लगा तो मेहर भी उसके पीछे पीछे चल दी।
"मुझे समझ नही आया सर", वो बोली।
"मेहर यहां पर खास कर इस जगह पर होने वाली सब पार्टी को मेहरा सर ही देखते है, और अगर वो खुद देखते है तो समझ लो के यहां पर हमे ही सब सर्व भी करना होता है। क्यूंकि हमे ही पता होता है के हमने क्या क्या बनाया है। और आज भी हम लोगो को ही यहां पर सब देखना है", मीर ने दूसरे टेबल को हाथ लगाते हुए कहा तो। मेहर ने भी उस टेबल को दूसरी तरफ से उठा लिया और बाहर की तरफ चल दिए।
"वैसे एक बात है मेहर यहां पर आज तक दो लोगो की सेलेक्शन एक साथ नही हुई, पर तुम दोनों एक साथ सिलेक्ट हो गई", मीर ने कहा और एक तरफ खड़े होकर देखने लगा।
"जी सर सुहानी और मैं बचपन की दोस्त है ना, तो हमारे शोंक भी एक जैसे ही है, और हमने सोचा लिया था के ऐक ही जगह पर काम करेंगे", वो बोली।
"और अगर आज एक का ही सेलेक्शन होता तो", मीर ने मेहर को देखते हुए कहा।
"तो दूसरी भी उसके साथ ही चली जाती", मेहर ने सामने देखते हुए कहा।
मेहरा सर जो उसी समय अंदर आये थे और सब देखने लगे उन्होने मीर मेहर को देखा। "मीर तुमको पता है ना क्या कैसे करना है", वो बोले तो मीर ने सिर हिला दिया।
"गुड और मेहर तुम सब ध्यान से देखो।" मेहरा सर ने कहा तो मेहर ने भी सिर हिला दिया।"तो अब से ठीक डेढ़ घंटे घंटे बाद हमारी पहली सर्विस शुरू होगी तो पता है ना हम लोग भारतीय है और पहली सर्विस क्या हो सकती है", मेहरा सर ने मेहर से पुछा।
मेहर ने मुस्कुरा कर उनको देखा, "सर चाय", वो बोली।
" तुम्हे चाय पसंद है", सर ने पुछा तो मेहर ने हा में सिर हिला दिया।
"तो मीर मेहर को साथ ले लो और बाकी की टीम मेंबर्स स्नेक्स की तैयारी में लग जाओ सब कुछ फ्रेश होना चाहीये समझे", सर ने कहा तो उन चारों ने सिर हिला दिया।
"चलो फिर किचन एरिया में चले", सर ने कहा और वो सब वहां से चल दिए। ये हॉल पांचवे फ्लोर पर था और किचन एरिया दूसरे फ्लोर पर थी। ज्यादातर किचन स्टाफ के उपर आने जाने के लिये अलग ही लिफ्ट थी और इस समय वो सब उसी तरफ चल दिए थे।
दूसरी तरस शैलेंद्र भी सुहानी के साथ अपनी टीम को देख रहा था और इस समय यहां पर बहुत ही टेंशन वाला माहोल चल रहा था। क्यूंकि उनकी टीम के एक बंदे ने गलती से गर्म तेल खुद पर गिरा लिया था और उसका इल्जाम सुहानी पर लगा दिया के सब इस की वजह से हुआ है।
शैलेंद्र ने पहले तो उसे मेडीकल सुविधा दी और उसके बाद सुहानी और उस लड़के को अलग कर दिया। और खुद इस समय लॉपटाप देख रहा था। और पास ही कुछ और लड़के खड़े थे।
शैलेंद्र ने वो स्क्रीन सुहानी और उस लड़के की तरफ कर दी जो एक तरफ खड़े थे। उस स्क्रीन से साफ साफ पता चल रहा था के सारी गलती उस लड़के की थी, वो ही बार बार सुहानी की देख रहा था जो उसके पास से गुजर रही थी, और इसी के चलते वो लड़का जो गर्म तेल के सेक्शन पास खड़ा सुहानी को ही देख रहा था उसने जेसे ही स्नेक्स तलने को उस में डाले तेल एक तेज आवाज के साथ उसी के हाथ पर आ गिरा।
वो लड़का चुप सा रह गया। "तुम आराम करो, इस बात को कल ही सॉल्व करा जायेगा। मेहरा सर खुद एक्शन लेंगे इस पर। फिलहाल तुम जा सकते हो", शैलेंद्र ने कहा। और वो लॉपटाप उठा कर पास खड़े दोनों लड़को को दिया।"थैंक्यू मदद के लिए", वो बोला और वो दोनों लड़के वहां से चले गए।
"सुहानी काम करो", शैलेंद्र ने कहा और खुद भी अपने काम पर लग गया और वो लड़का जिसका हाथ जल गया था वो बाहर आकर बैठ गया। यहां पर आराम करने का मतलब था, बाहर आके बैठना जो सब से ज्यादा बुरा था। सब को पता था बाहर बैठने का मतलब था के कुछ दिन वो किचन में नही जा सकता था।
रब राखा
सबको पता था बाहर बैठने का मतलब था के कुछ दिन वो किचन में नहीं जा सकता था।
"मैं तुम दोनों के साथ नहीं रहने वाली", रोली ने फ़्लैट में कदम रखते हुए कहा। वो तीनों अभी-अभी पहुँचे थे कि रोली बोल पड़ी।
"रह ले, चार रूम हैं। एक मेरा, एक तुम्हारा और एक इसका", कबीर ने राज की तरफ़ इशारा कर कहा।
"देखो जो भी हो, मुझे इस जैसे इंसान के साथ नहीं रहना, जो मुझे देखता तक नहीं और मैं हूँ के इसे दिल दिए बैठी हूँ", रोली ने बैठते हुए कहा।
"मैंने कहा था मुझे दिल देने को, देखो मेरे साथ मत उलझो", राज ने कहा और उठ कर अपने रूम में चला गया।
रोली ने कबीर को देखा तो कबीर उठते हुए बोला, "बाहर निकल घर से और आगे जा कर टर्न ले, जो पहला फ़्लैट है वो तेरा, निकल यहां से अब", कहते हुए वो भी चला गया। तो रोली उठ कर जाने लगी।
"सुन अगर चाहे तो आधे घंटे में तैयार होकर आ जाना, हमें जाना है", कबीर ने रोली से कहा।
"नहीं जा रही, कल से काम देखूँगी समझा", कहते हुए रोली चली गई तो कबीर अपने रूम की और चल दिया। अब उनको अपनी मीटिंग के लिए जाना था।
गोल्डन रोज होटल
"सर एक मुसीबत आ गई है", मीर ने आकर मेहरा सर से कहा जो आधे घंटे बाद होने वाली सर्विस को देख रहे थे। मीटिंग हॉल में भी लगभग सब पहुंच ही गए थे, कुछ एक-दो लोगों को छोड़कर।
"हां बोलो मीर", उन्होंने कहा।
"सर लिफ्ट चल नहीं रही है", मीर ने धीरे से कहा तो मेहरा सर उसे देखने लगे।
"क्या बोल रहे हो", कहते हुए वो किचन एरिया के उस तरफ आए जहां पर लिफ्ट थी और उन्होंने लिफ्ट का बटन प्रेस करा पर वहां कुछ शो ही नहीं हो रहा था।
"वर्क को बुलाओ, कैसे भी करके हमें इसे ठीक करवाना होगा वरना सब प्लानिंग बेकार चली जाएगी", सर ने कहा।
"सर पहले ही बोल दिया है अभी आते ही होंगे", मीर ने कहा, तब तक दो वर्क भी वहां पहुंच चुके थे।
"जल्दी से देखो", मेहरा सर ने उनको कहा और खुद एक तरफ खड़े हो गए।
कुछ देर देखने के बाद, "सर अभी इसे सही होने में समय लग जाएगा", वर्क ने कहा और वो लोग वहां से बेसमेंट की तरफ चले गए। मेहरा सर बस देखते ही रह गए।
"सर अब हम क्या करें", मीर ने कहा।
"कुछ नहीं, पहले के जैसे ही सब होगा, दूसरी लिफ्ट का इस्तेमाल होगा अब", मेहरा सर ने कहा और वहां से किचन एरिया में आकर सबको देखने लगे।
"ओके तो बात ऐसी है के हमारी लिफ्ट खराब हो चुकी है, जो के अभी चल नहीं रही तो हमें सारी सर्विस अब दूसरी लिफ्ट से ही करनी होगी, जो सब के लिए यूज में आती है। तो फिर सब तैयार है ना क्यूंकि बस कुछ ही मिनट में हमारी पहली सर्विस शुरू होने वाली है", सब ने सिर हिला दिया।
"तो ठीक है मीर, तुम सब सामान ट्रॉली में रखने की तैयारी करो और कोई एक को उस ट्रॉली को उपर लेकर जाने की ड्यूटी पर लगा दो, समझ गए ना?", सर ने कहा तो मीर ने सिर हिला दिया।
मेहर जो मीर के साथ ही सब तैयारी कर रही थी, मीर उसे अपने साथ चलने का बोला और वो दोनों उस तरफ चल दिए।
किचन से निकल कर उस बड़े से गलियारे से होते हुए वो लोग लिफ्ट तक पहुँचे और लिफ्ट में जाकर पांचवें फ्लोर का बटन दबा दिया। इस समय दोनों के साथ तीन ट्रॉली थी।
मेहर मीर के साथ खड़ी थी। "घबराहट हो रही है?", मीर ने पूछा तो मेहर ने ना में सिर हिला दिया।
"होता है, आज तो पहला ही दिन है", वो बोला तब तक वो लोग पांचवें फ्लोर पर पहुंच गये थे। लिफ्ट खुली और वो दोनों चल दिए हॉल की और।
"सही किया आज सर ने एक्स्ट्रा स्टाफ को बुला लिया, वर्ना हमारी हालत खराब हो जाती", मीर ने कहा। मेहर जो उसके साथ जा रही थी उसने भी सिर हिला दिया, आज सीखने-सीखने के चक्कर में वो अच्छी खासी थक गई थी। वो दोनों हॉल के पास पहुंचे तो वहां के स्टाफ ने आगे बढ़ कर उनसे सामान ले लिया।
मेहर मीर वहीं से वापस नीचे की और चल दिए। वो दोनों वापस अपने फ्लोर पर पहुंचे ही थे कि मेहरा सर ने मीर को वहीं रहने का कहा और इस बार मेहर को ही दो ट्रॉली के साथ भेजा था। मेहर जो के लिफ्ट के पास आकर खड़ी लिफ्ट के खुलने का इंतजार कर रही थी और लिफ्ट के खुलते ही उसने पहली ट्रॉली अंदर की और दूसरी को करने लगी।
पर उस ट्रॉली का व्हील कहीं फस गया था जो अंदर की तरफ नहीं जा रहा था। मेहर नीचे बैठ कर उसे देखने लगी और कुछ पल की मेहनत के बाद उसने ट्रॉली अंदर की और खड़ी होकर सामने देखा तो देखती ही रह गई। सामने ही एक अच्छे कद काठी का मालिक, गोरा रंग, सूट बूट में तैयार, हाथ में फोन पकड़े उसे ही देख रहा था। तो वही मेहर जिस का ध्यान उस पर गया था उसने अपनी नजरें फेर ली। तो वही वो लड़का जो मेहर को देख रहा था वो तो जैसे खो ही गया था।
उसे कोई होश नहीं था के वो अपनी नजरें फेर ले। मेहर की नजर उस स्क्रीन पर थी जिस पर दिख रहा था के अगला फ्लोर उसी का आने वाला है और जैसे ही लिफ्ट रूकी तो मेहर जो इस बात से जानू थी के वो लड़का उसे ही देख रहा है, उसने बिना उस तरफ देखे जल्दी से पहली ट्रॉली को बाहर निकाला और दूसरी को निकालने लगी तो इस बार फिर उसका व्हील फस गया, पर किस्मत से इस समय हॉल के स्टाफ से एक वहीं खड़ा था। तो उसने मेहर की मदद की और वो दोनों ट्राली लेकर और खाली ट्रॉली लिफ्ट के अंदर कर चला गया।
मेहर जो लिफ्ट के अंदर आने लगी थी के तभी अंदर खड़े लड़के ने बाहर कदम रखा तो मेहर का ध्यान उस की तरफ उठा। मेहर उसकी उन नीली आंखो में देखती ही रह गई।
लेकिन जल्दी ही वो लिफ्ट के अंदर चली गई और लिफ्ट बंद हो गई।
"क्या खुराना तु बोल नहीं सकता था के लेट हो रहा है तुम्हे", राज जो वहीं एक तरफ खड़ा था उसने मेहर को देख कहा जो कबीर के बाहर निकलने से पहले बाहर निकली थी। वही कबीर का ध्यान अभी भी लिफ्ट की तरफ था जो कब की बंद हो चुकी थी।
"मैंने तुझ से कुछ कहा?", राज ने उसके कंधे पर हाथ रख कहा तो कबीर उसे देखने लगा।
"क्या इधर जाना है?", कहते हुए राज एक तरफ को चल दिया तो कबीर भी उसके पीछे पीछे चल दिया पर ध्यान तो लिफ्ट वाली में ही अटक गया था।
कबीर जिसका फोन आया था वो वहीं नीचे ही रूक कर बातें करना लगा था। उसे पता था उपर जाके तो बात होने से रही। फोन भी दीपा दी का था जो रोली के बारे में बात कर रही थी। तो राज उपर आ गया था, साथ ही वहां पहुंचे त्यागी के साथ।
कबीर तो अपने ही ध्यान फोन देख रहा था जब उसे एहसास हुआ के लिफ्ट एक ही जगह पर रूकी हुई है। तो उसने फोन से नजरे उठा कर दरवाजे की तरफ देखा तो पाया एक लड़की बैठी हुई, उस ट्रॉली को अंदर करने की कोशिश कर रही है, कबीर ने आगे बढ़ मदद करने का सोचा ही था के वो लड़की खड़ी हो गई और ट्रॉली अंदर करते हुए उसने कबीर को देखा तो उसे देखती ही रही।
वही कबीर तो बस ऐसे ही उसे देख रहा था उसकी नजरे तो मानो उस लड़की के चेहरे पर ठहर ही गई थी, के तभी लिफ्ट खुली और वो लड़की बाहर आने को हुई।
"कहां खोया हुआ है कबीर, वो देख सामने कैसे शमशेरा आ रहा है", राज ने कहा जब कबीर अपनी ही सीट पर बैठा लिफ्ट वाली लड़की के बारे में ही सोच रहा था। तो कबीर उसे देखने लगा।
"अरे मुझे नहीं उसे देख", राज ने एक तरफ इशारा कर कहा तो सामने से धीर गंभीर सा कबीर की ही उम्र का लड़का चला आ रहा था, जो के अकेला ही था पर उसका वो अकेले आना भी अलग ही था। उसकी वो नशीली सी आंखे, चेहरे पर हल्की हल्की शेव हल्का गहरा रंग अलग ही था। (प्रोफाइल पर रवी दूबे की फोटो देख लो)
कबीर ने मुस्कुरा कर उसे देखा और खड़ा हो कर उसके आगे आ गया। शमशेरा भी कबीर को देख मुस्कुराया बिना ना रह सका।
"खुराना साहब आपकी यही अदा हमे कायल कर देती है के आप अपने दुश्मन के लिए भी हमेशा मुस्कुराते ही नजर आते है", शमशेरा ने कबीर के सामने खड़े होकर उसके बढ़े हुए हाथ में हाथ मिलाते हुए कहा तो कबीर भी मुस्कुरा दिया।
"दुश्मनी अपनी जगह और तुम्हारी दिवानगी अपनी जगह। दिवाना हूं तुम्हारा इतना तो तुम जानते ही हो", कबीर ने भी उसके हाथ पर अपना हाथ कसते हुए कहा।
"खुराना साहब जरा संभल कर यहां पर चारों तरफ हुस्न बहुत है और आप मेरे दीवाने हुए फिरते है। सब ठीक तो है", शमशेरा ने कहा तो कबीर चारों तरफ देख मुस्कुराते हुए, "ये हुस्न उस हुस्न के सामने कुछ भी नहीं जिसे अभी अभी मैं देख कर आया हूं", कबीर ने खोय हुए अंदाज में कहा तो शमशेरा उसे देखते हुए।
"हम्म लगता है आज आपके दिल को धड़काने वाली मिल ही गई।" तो कबीर ने उसे देख, "बताना मत किसी को तुम्हे ही बताया है", कबीर ने कहा और शमशेरा के कंधे पर हाथ रख दिया।
"बच कर रहना साहब आज मैंने भी यहां पर एक हुस्न की मल्लिका देखी है, कहीं दोनों एक ना हो", कहते हुए शमशेरा आगे निकल गया तो कबीर उसे देखने लगा।
"देखते है अब तो", वो बोला और अपनी कुर्सी पर बैठ गया।
" ये क्या बाते कर रहा था तू उससे", राज ने कहा।
"राज हम दोनों बहुत पहले से जानते है एकदूसरे को तो तू फिक्र मत करा कर", कबीर ने कहा तो राज ने कबीर को देखा और पीछे के टेबल पर बैठे शमशेरा को तो शमशेरा ने उसे देख स्माईल पास की तो राज सामने देखने लगा।
मेहर जो वापस आ गई थी वो अपने काम में लग गई और लिफ्ट में हुए वाक्य को भूल ही गई थी।
"तो आज का टेंडर जाता है दो कंपनियों को", हॉल में बैठे सब लोग जो कब से इस पल का इंतजार कर रहे थे आखिर वो पल आ ही गया। वही कबीर ने अपनी चाय की चुस्की लेते हुए शमशेरा को देखा और कप उपर की तरफ करा तो शमशेरा ने भी अदा से सिर हिलाया।
"और वो दो कंपनी है, शमशेरा इंड खुराना", अनाउंसर ने कहा तो कबीर सामने देखने लगा वही शमशेरा मुस्कुरा दिया। राज तो हैरान सा देखने लगा। उस पुरे हाल में तालियों की आवाज गूंज ने लगी थी।
कबीर शमशेरा दोनों उठ कर सामने बनी छोटी सी स्टेज पर गये तो वहां पर मौजूद सरकारी ऑफिसर ने दोनों को मुबारक बाद दी और साथ ही कुछ पेपर पर साइन भी कराए।
"यहा तक मुझे पता था, टेंडर किसी एक को जाना था, पर दो पार्टनर बनेंगे मुझे नहीं पता था", कबीर ने सामने खड़े ऑफिसर से कहा तो वो दोनों को देखने लगे।
"बात ऐसी थी की इस टेंडर को लेने के लिए बहुत सारे आवेदन आये थे पर आप दोनों की ही जगह हैसियत और काबलियत अलग थी बाकी सब से। तो बस इस बार किसी एक को ना चुन कर दोनों को चुन लिया गया। हमे उम्मीद है के आप दोनों इस काम को पुरा जरूर करेंगे", ऑफिसर ने कहा तो कबीर शमशेरा ने सिर हिला दिया। फिर सब के सामने ही खड़े होकर एक दूसरे से हाथ मिलाया और एक फाइल पकड़कर सब के सामने करी। तालियों की आवाज एक बार फिर से गूंज गई थी उस जगह पर और उसके बाद वहां पर शूरू हुई पार्टी जिस में पहले वाइन सर्व की गई थी और सब लोग एक दूसरे के साथ बातें करने लगे।
कुछ बिजनेस की तो कुछ अपनी बाते कर रहे थे। तो वही कबीर राज के पास खड़ा था। उसके हाथ में भी वाइन का गिलास था और वो सब को मुस्कुरा कर जवाब दे रहा था, जो उसे मुबारक बात देने आ रहे थे।
राज कबीर को देख कर, "देख यार वो त्यागी की बेटी है ना, कब से तुमको देख रही है जा बात कर ले", राज ने कहा तो कबीर उसे देखने लगा।
"छोड़ यार इसे क्या देखना मन तो उस लिफ्ट वाली को देखने का कर रहा है", कबीर ने वैसे ही अपने में मस्त होते हुए कहा। तो राज उसे देखने लगा, "क्या कहा लिफ्ट वाली कोन थी वो और मुझे क्यूं नहीं बताया", वो बोला।
"बस यार हवा के झोंके की तरह ही आई और छूह कर चली गई पता ही नहीं चला", कबीर ने कहा।
राज हैरान सा उसे देखने लगा। "तु तो गया खुराना तु तो गया रे बाबा गया खुराना।" वो बोला और साथ ही वाइन का गिलास मूंह को लगा लिया। इस समय इस हॉल में लाइट सा म्यूजिक बज रहा था जो उस ढली हुई शाम को और भी रंगीन बना रहा था।
शमशेरा जो एक तरफ खड़ा था वो भी उसे मुबारक बाद दे रहे सब का शुक्रिया कर राहा था और फिर एक कोने में खड़ा होकर कबीर को देखने लगा। कुछ पल देखते रहने के बाद वो उसी तरफ चल दिया।
"मुबारक हो खुराना साहब आखिर आपके एक साल की मेहनत रंग लाई", शमशेरा ने उसके पास आते हुए कहा तो कबीर भी उसे देखने लगा।
"मुझे पता ही था और किसी को पता हो जा ना हो पर तुमको जरूर पता चल ही जायेगा।"
"आखिर सच्चा दुश्मन जो हूं और सामने वाले की हर बात को जानना एक दुश्मन का काम होता है", शमशेरा ने भी मुस्कुरा कर कहा।
"भई सच में आज तो दिल लूट लिया तुमने।" कबीर ने कहा और हल्के से उसके गले लग गया।
रब राखा।
"भई सच में आज तो दिल लूट लिया तुमने।" कबीर ने कहा और हल्के से उसके गले लग गया। शमशेरा भी मुस्कुरा दिया और सब लोग उस हॉल में एक दूसरे से बात करने लगे।
मीर अपनी टीम के साथ लगा हुआ था। अब डिनर सर्विस देने के लिए सब तैयार थे और पहली ट्राली मेहर के हाथ से भिजवा दी गई थी। और बाकी सब स्टाफ फिर से अपने काम में लग गया था और साथ ही मीर ने दूसरी ट्रॉली को ले जाने के लिए कदम बढ़ा दिए थे।
तो वहीं ऊपर इस समय सब लोग एक तरफ देख रहे थे। यहां पर किसी बिज़नेस मैन के साथ आए बेटे ने एक वेटरस के साथ छेड़ छाड़ कर दी थी। और वो बात काफी बढ़ भी गई थी। इतनी के उस लड़के ने अपनी अमीरी और पापा के रौब के चलते उस वेटरस की ड्रेस कंधे से पकड़कर बाजू की तरफ को फाड़ दी थी।
यहां कबीर, शमशेरा इन से दूर बाल्कनी के पास आकर खड़े अपने अपने ख्यालों में गुम थे, उनको कुछ पता ही नहीं था के अंदर क्या हो रहा है।
तभी राज भाग कर कबीर के पास आया और उसे कंधे पर हाथ रख हिलाते हुए, "कबीर देख यार अंदर क्या हो रहा है, कोई कुछ बोल भी नहीं रहा", उसने कहा।
शमशेरा जो वहीं पर खड़ा था उसने भी राज की बात सुनी और अंदर की तरफ देखा तो वो लंबे लंबे डग भरता चल दिया। कबीर ने भी राज की बात को सुना तो अंदर की तरफ चल दिया। तो सामने का नजारा देख वो दोनो हैरान हो गये।
यहां एक लड़की अपनी कंधे को पकड़कर खड़ी थी तो वही एक लड़के ने अपने गाल पर हाथ रखा हुआ था और गुस्से से अपने सामने देख रहा था। यहां पर एक लड़की की पीठ कबीर शमशेरा की तरफ थी।
"यू बीच", कहते हुए वो लड़का आगे बढ़ सामने खड़ी लड़की पर हाथ उठाने ही वाला था के तभी उसका हाथ हवा में रुक गया। सब उस तरफ देखने लगे।
उस लड़के ने अपने हाथ की तरफ देखा और फिर उसे पकड़ने वाले को। तो वहां एक लड़की खड़ी थी जिसने मजबूती से उसका हाथ पकड़ रखा था।
"अरपना छोड़ो मुझे वो", लड़का गुर्राया।
"चिल्ल ब्रो गलती तुम्हारी है", वो लड़की जिसका नाम अरपना था वो बोली।
"छोड़ मुझे", वो लड़का फिर से चिल्लाया।
"बस भाई बहुत हो गया", उसने हाथ छोड़ते हुए कहा और सब को देखा फिर उस लड़की को जो सामने खड़ी थी।
"यू, गुड जॉब एंड यू, ये लो चैक अपने नुकसान की भरपाई कर लेना", अपरना ने उस वेटरस की तरफ चैक बढ़ा कर कहा जिस के साथ उसके भाई ने बदतमीजी की थी।
"मैम माना हम लोग आपके जैसे अमीर नहीं है, पर हम खुद की नजरों में बहुत अमीर है और आपका ये चैक हमे खरीद नहीं सकता", उस लड़की ने कहा और अपने पास खड़ी लड़की को देख कर थैंक्यू मेहर वो बोली।
तो मेहर ने उसे देख सिर हिला दिया। तब तक मेहरा सर और मीर भी पहुंच गये। मेहरा सर ने अपनी दोनो लड़कियों को देखा फिर सामने खड़े लड़के को जिसने ऐसी हरकत की थी, तब तक मीर ने अपना एप्रन उतार कर उस लड़की के कंधो पर रख दिया तो उसने धीरे से सिर हिला कर शुक्रिया करा।
"मिस्टर त्यागी यहां से जा सकते है", मेहरा सर ने कहा तो वो लड़का मेहरा सर को घुरते हुए, "तुम्हारी इतनी हिम्मत नहीं जो मुझे यहां से जाने का बोल सके", वो बोला।
तो मेहरा सर उसे देखने लगे, "फिलहाल आपकी इस हरकत पर मेने जाने के लिए ही कहा है, वर्ना आप जैसे लोगो के साथ क्या होता है वो आप अच्छे से जानते है", मेहरा सर ने भी अकड़ कर कहा।
"भाई चलो पापा यहां नहीं है", अपरना ने कहा और अपने भाई को साथ लेकर चली गई पर जाते जाते उसने मेहर को जरूर देखा। मिस्टर त्यागी पहले ही चले गये थे जब टेंडर का अनाउंस करा गया था, वो गुस्सा थे के इस बार भी उनको टेंडर नही मिला इसी लिए वो चले गये थे।
"सॉरी लेडिज एंड जेंटलमेनस, आप लोग इंजॉय करे कुछ ही पल में डिनर सर्व होगा", मेहरा सर ने सब को देख कहा।
मेहरा सर ने मीर को देखा तो वो सिर हिला उस लड़की को अपने साथ ही ले गया। तो मेहर भी सिर हिला कर जल्दी से नीचे टूटे पड़ने कांच के ग्लास को उठाने लगी तो उसके साथ ही दूसरे दो लड़के भी जल्दी से उठाने लगे।
वही बाकी सब इधर उधर हो गये सब को पता था के त्यागी का बेटा ऐसा ही है और वो जिस पार्टी में हो वहां हंगामा ना हो ऐसा हो ही नही सकता। शमशेरा भी एक तरफ चल दिया।
पर कबीर की नजर तो अभी भी उस की तरफ पीठ कर बैठी मेहर पर ही थी, और जैसे ही उठ कर उसने चेहरा घुमा कर देखा तो कबीर तो उसे देखता ही रह गया। मेहर अपने ध्यान इधर उधर कांच देख रही थी जो फर्श पर गिरा हो, और तभी उसकी नजर कबीर के पैरों के पास पड़े कांच के पीस पर गई। मेहर चल कर कबीर की तरफ आने लगी तो वही कबीर उसे देखता ही रह गया। जो उसके पास आ रही थी। उसके दिल की धड़कन एकदम ही तेज हो गई थी। मेहर जो उस कांच को ही देखते हुए जल्दी से आई और कबीर के सामने आते ही वो बैठ कर कांच का पीस उठाने लगी। तो कबीर जिस के दिल की धड़कन तेज थी उसने मानो धड़कना ही छोड़ दिया और एक टूंऊऊऊऊऊ की आवाज उसके कान में पड़ी। तभी मेहर खड़ी हुई और उसका ध्यान कबीर की तरफ गया जो उसे ही देख रहा था।
शमशेरा जो एक तरफ फोन पर बात कर रहा था बात करते करते उसने कबीर को देखा जिसके पास अभी अभी मेहर खड़ी हुई थी और उसे देखने लगी तो शमशेरा हैरान सा हो गया और फोन तो मानो गिरते गिरते बचा उसके हाथ से।
"बड़ी मालकिन", उसके होठो से दबे दबे से शब्द निकले और ध्यान सामने खड़े कबीर मेहर पर ही था।
पर इस समय उसे मेहर कबीर ही दिख रहे थे पर आस पास का माहोल एकदम ही अलग था। यहां कबीर के पहने कपड़े आम से थे, और मेहर ने एक भारी अनारकली सूट पहन रखा था चेहरे पर मेकअप हाथों में चुड़ीया कान में सोने के झुमके किसी राजकुमारी की तरह लग रही थी मेहर दिखने में। वही कबीर उसके सामने बस आम सा था दिखने में।
तभी शमशेरा के कान में आवाज आई तो वो उस तरफ देखने लगा यहां उसके पास ही एक आदमी खड़ा था, शमशेरा ने उसे देखा फिर सामने देखा यहां मेहर कबीर खड़े थे पर अब वो दोनो वहां पर नही थे।
उसने चारों तरफ देखा यहां उसे कबीर तो दिखा पर मेहर नही दिखी लेकिन कबीर की नजरों का पीछा करा तो मेहर उसे एक तरफ दिखी जो डिनर का सामान एक तरफ रख रही थी।
ऐक्सयूजमी, शमशेरा ने उस आदमी से कहा और आगे बढ़ कबीर से हट कर खड़ा हो गया और उन दोनो को देखने लगा। "क्या वो बोल सच हो गये है क्या?", शमशेरा खुद से ही बोला।
नीचे किचन एरिया में भी ये बात पहुंच चुकी थी के एक रईसजादे ने एक लड़की के साथ छेड़ खानी की है और वो इस समय रूम में थी। मीर भी अपने काम में लग गया था और सब उसे ही बार बार देख रहे थे क्यूंकि वो लड़की कोई और नही मीर की मंगेतर थी। जो यहां पर छः महीने की ट्रेनिंग पर थी। मीर चुप सा अपने काम में लगा हुआ था तो मेहरा सर खुद सब कुछ देख रहे थे।
ऊपर फ्लोर पर ही डिनर शूरू हो चुका था और मेहर को उस लड़की की जगह दी गई थी और वो अपना काम कर रही थी। लेकिन शमशेरा की नजर बहुत देर से मेहर कबीर पर ही थी।
रात के 10 बज चुके थे, वही मुम्बई के एक कॉलोनी के घर के दूसरे फ्लोर पर बने दो रूम के सेट में बैठा मीर अपने सामने बैठी उसी लड़की को देख रहा था।
"देखो किटू अगर मुझे तुम बताओगी नही के वहां पर क्या हुआ था तो मैं कुछ नही कर सकता।"
किटू उसे देखने लगी, "मीर कुछ नही हुआ था बस मैं तो अपना काम ही कर रही थी के अचानक ही वो लड़का मुझ से टकरा गया और मेरे हाथ में ट्रे मे वाइन की बोतल थी। वो गिर कर टूट गई, वाइन के छीटे उस लड़के पर गिर गये। उसने मुझे सॉरी करने को कहा और सब के सामने बूट साफ करने को भी कहा। सॉरी तो मेने कह दिया पर बूट साफ करने से मेने मना कर दिया, क्यूकि गलती उसकी थी। तो वो बोलने लग गया छोटे घर की लड़की हूं और साथ ही बहुत कुछ, जब मेने बात का जवाब दिया तो उसने मेरे साथ ऐसा करा और भी कुछ करता पर वो नई लड़की मेहर ने आके उसको एक थप्पड़ लगा दिया", किटू ने कहा।
मीर उसे देखता रहा। गुस्से से उसकी नसे फूल गई थी। "चलो सो जाओ उस त्यागी को तो मैं देख लूंगा", वो बोला।
"नही मीर प्लीज ऐसा कुछ मत करना पहले ही बहुत मुश्किल से घर वाले हमारी शादी को माने है, अब ऐसा कुछ मत करना प्लीज", उसने कहा। मीर ने सिर हिला दिया और उसे लेटा कर खुद बाहर चला गया।
शमशेरा अभी उसी होटेल में था और उनके सामने मेहरा सर खड़े थे।
"बैठे आप", शमशेरा ने कहा और लैपटॉप देखने लगा जिस पर उस समय हॉल में जो भी हो रहा था वो दिख रहा था।
"मेहरा आपने ने दो नई लड़कियां रखी है और बताया भी नही", शमशेरा ने लैपटॉप देख उसे एक तरफ कर कहा।
"सॉरी सर पर सुबह ही उनको रखा था आपके पी ए ने मंजुरी दी थी उनको रखने की, आप को बताया था ना कल के दो लडकियों मे फैसला करना बहुत मुश्किल हो रहा है", मेहरा सर ने कहा।
शमशेरा ने उनको देखा। "लेकिन सर सुबह ही मेहर को जाने का बोल देंगे आखिर आज उसने गलती की है", मेहरा सर ने कहा।
"रीयली एसा है क्या, आपको एसा लगता है", शमशेरा ने कहा तो मेहरा सर उसे देखने लगे।
"किसी को निकालने की जरूरत नही बड़ी मालकिन को तो बिल्कुल भी नही", शमशेरा ने कहा तो मेहरा सर हैरान से उसे देखने लगा।
"बड़ी मालकिन कोन सर", मेहरा ने कहा तो शेमशेरा उसे देखने लगा।
"मेरा मतलब किसी को भी बाहर निकालने की जरूरत नही", कहते हुए वो खड़ा हुआ और उस ऑफिस से लगी बाल्कनी से बाहर देखने लगा, यहां रात का अंधेरा था पर शरह रात की रोशनी से जगमगा रहा था। उसके चेहरे पर स्माईल थी।
"मतलब ये संबंध एक बार फिर बनेगा और इस बार इन दोनो को मिलने से कोई रोक नहो सकता कोई भी नही। पर इतना आसान नही होने वाला इस बार, क्यूंकि बड़ी मालकिन की दूआ सच साबित हो गई है। अब देखना है के दोनो कब एक दूसरे को जानेंगे", शमशेरा खुद के मन ही मन बोल रहा था और साथ ही सामने उस बड़े से शहर को देख रहा था।
"सर एक बात करनी थी", मेहरा सर की आवाज से शमशेरा ने पीछे देखा।
"हम्म कहो आप को पूछने की जरूरत नही", शमशेरा ने अंदर आकर कहा।
"सर आप बता सकते है गोलडी का क्या करना है", मेहरा सर ने कहा।
"गोलडी उसने क्या करा अब", शमशेरा ने कहा।
"सर आज जो दूसरी इंटरन रखी थी ना सुहानी, गोलडी ने उसपर झूठा इल्जाम लगाया था के उसके हाथ के जलने की वजह वो लड़की है जब कि गलती उसी की थी।"
"मेहरा जी अब ये सब भी मैं ही देखूं तो फिर आप क्यूं है यहां पर", शमशेरा ने मुस्कुरा कर कहा।
"सर बात ये है के गोलडी पुराना वर्कर है और सुहानी आज आई। स्टाफ में कोई धड़े बाजी ना बन जाये", मेहरा सर ने आगे की सोचते हुए कहा।
"क्या किया है अब इसने", शमशेरा ने वापस बैठते हुए कहा तो मेहरा सर ने सामने पड़े लैपटॉप पर दूसरी विडियो चला दी। जिस पर सुहानी और और वो लड़का गोलडी दिख रहे थे, पर शमशेरा की नजर तो सुहानी पर ही टिकी रह गई और साथ ही चेहरे पर स्माईल भी।
"गोलडी को एक हफ्ते के लिए बाहर बैठा दो आप", कहते हुए शमशेरा ने लैपटॉप बंद कर दिया और उठकर जाने को हुआ पर रूक कर मेहरा को देख कर, "चलो भाई अब घर चले के यहीं पर रात बितानी है", वो बोला तो मेहरा भी मुस्कुरा दिया। "चल छोटे कहते हुए वो दोनो ही बाहर आ गये।
रब राखा
कबीर राज के साथ अपने घर पहुँच गया था। और वो इस समय अपने रूम में था और एक पेपर पर पेन्सिल से कुछ बना रहा था। और वो जो ड्रा कर रहा था वो अब उभर कर सामने आ रहा था।
ये वही माहोल था जो शमशेरा को पार्टी में दिखा था, कबीर मेहर को एक साथ देख कर। वैसा ही कुछ कबीर ने उस पेपर पर ड्रा कर दिया था। और साथ ही 2 परछाई भी जो के उसी तरह से खड़ी थी जैसे शमशेरा ने देखा था मेहर कबीर को।
"ये वही लड़की है जो मेरे सपनो में आती है। मेहर, मेहर नाम है इसका क्या रिश्ता है हम दोनो का। और आज जब ये सामने थी तो दिल कर रहा था उसे बाहों में भर लूं। उसकी सारी नाराजगी दूर कर दू। पर क्यूं, हम तो आज पहली बार ही मिले। पर उसे देख ऐसा क्यूँ लगा के बहुत पहले से जानते है हम दोनो एक दूसरे को", कबीर ने उस पेपर को देख कहा।
फिर जैसे उसे कुछ याद आया और उस पेपर को पलट कर देखने लगा। यहाँ पर जंगल की ड्रा थी, वो भी वैसी ही जैसी कबीर को सपने में आती थी।
"और ये मेने क्या बनाया है हर बार तो वही जंगल का दृष बनता है और आज ये क्या बनाया है मेने", कबीर खुद उस पेपर को उल्ट पलट कर बोला। के तभी उसने उस पेपर को पकड़ा और हाथों से ही उसे तोड़-मरोड़ कर एक तरफ फैंक दिया और दोनो हाथों में अपना सिर झुकाये बैठ गया।
"आखिर क्या रिश्ता है हमारा, कोन हो तुम", वो खुद से बोला।
हाँ, लिफ्ट में मेहर को देखते ही कबीर को लगा जैसे उसके सपनो वाली लड़की उसके सामने खड़ी है और अभी उस से सवाल कलर देगी। पर उस से ज्यादा तो उसे ऐसा लग रहा था के सामने खड़ी लड़की की नाराजगी दूर करनी है और वो बस उसे देखता ही रह गया।
पर जब कबीर ने मेहर को उस जगह पर देखा यहाँ पर वो काम कर रही थी ना जाने क्यूँ उसे अजीब सा लगा। मेहर को काम करता देख उसे बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था। यहाँ तक उसका बस चलता तो मेहर को अपनी बगल की सीट पर बैठा कर खाने का बोल देता। पर वो कुछ बोल ही नही पाया। पहली बार ही तो मिले थे वो दोनो एक दूसरे से।
कबीर वैसे ही बैठा हुआ पीछे की तरफ लेट गया और आंखे बंद कर ली।
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एक रूम में बैठा एक लड़का शराब पर शराब पीए जा रहा था। आंखे लाल हो गई थी उसकी। ये वही था जिसे मेहर ने थप्पड़ मारा था, त्यागी का बेटा अरूण। अरूण गुस्से में पागल हुआ जा रहा था और बार बार हाथ से अपने गाल को मसल रहा था यहा मेहर ने मारा था। उसे बार बार मेहर का थप्पड़ मारना याद आ रहा था और वो गुस्से से बस मेहर के बारे में ही सोच रहा था।
"दो कोड़ी की लड़की और मुझ पर हाथ उठाया, बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी तुमको अब", उसने कहा और सामने पड़ी बोतल को ही मूंह लगा लिया।
अरपना जो उसे दरवाजे से देख रही थी, वो वही से बाहर चली गई और फोन पर मेहर के बारे में पता करने का बोल दिया।
"क्या हुआ अरूण को", मिस्टर त्यागी ने अरपना से पूछा।
"कुछ नही पापा बस हल्की सी झड़प हो गई ही भाई की, तो उसी का गुस्सा भरा पड़ा है अभी उनमें", अरपना ने कहा और उनके पास ही बैठ गई।
"इस बार फिर हमे टेंडर नही मिला", उन्होने गुस्से से कहा। अरपना उनको देखने लगी।
"और एक बात पता चली है खुरानास ने वो प्रोजेक्ट हासिल कर लिया है, और अब वो उस प्रोजेक्ट पर काम करेंगे। सोच रहा हूं उनसे एक बार बात कर लुं अब इतने बड़े प्रोजेक्ट को पुरा करने के लिए उनको पार्टनर की जरूरत तो होगी ही ना, रेत सीमेंट बजर ये सब हमारी फर्म से जायेगा तो फायदा हमारा ही होगा।"
अरपना जो उनको देख रही थी वो मुस्कुरा दी।
"ठीक है पापा मिस्टर खुराना से मिलने का समय आ ही गया है। पर आप इतना याद रखना गुस्सा नही करना बाकी तो सब देख लेंगे", वो बोली और मुस्कुराने लगी।
"मेहर उठ जा ना देख सुबह के 6 बज गए है और हमे जाना है", सुहानी ने मेहर को उठाते हुए कहा तो मेहर ने आंख खोल उसे देखा।
"नही यार मेरा तो पत्ता कल ही कट गया तू जा", मेहर ने कहा और चादर अपने सिर तक तान ली।
"पागल हो गई है क्या, गलती उसकी थी तु क्यू ऐसा बोल रही है और चल जल्दी से तैयार हो देख एक घंटा जाने में लग जायेगा 8 बजे तक पहुंचना है हमे", सुहानी ने कहा।
तो मेहर ने ना में सिर हिला दिया।
"देख मेहर उठ जा अब।"
"बस सुहानी वहां पर सच में मुझे कोई नही देखेगा। मेने उन लोगो की नजरों में गलती की है जो अपने सामने सब देख रहे थे केसे वो अमीरयादा उस लड़की को उल्टा सीधा बोल रहा था और जब उसने जवाब दिया तो उसके साथ बुरा सुलूक करा पर कोई कुछ नही बोला। तो फिर वो लोग मुझे कैसे रख लेगे तू जा", मेहर ने वैसे ही लेटे हुए कहा।
"तो ठीक है मुझे भी नही जाना आज से ही हम दोनो नई जगह काम ढूंढने चलते है।" सुहानी ने कहा और वो भी मेहर के बगल ही लेट गई।
••••••••••
"सर हमे ये उम्मीद नही थी के आप ऐसा करेंगे", मीर ने मेहरा सर से कहा जब सब लोग वहां पहुंच गये थे।
"मेने क्या किया मीर, तुम सब ऐसे क्यूं देख रहे है मुझे", मेहरा सर ने अपने सामने खड़े सब लड़को को देख कहा।
"सर गलती उस त्यागी की थी पर मेहर को क्यूं निकाला आपने", मीर ने सीधा सीधा कहा। तो मेहरा सर ने एक बार सब को देखा वहां सच में वो दोनो लड़कियां नही थी।
"मेने किसी को नही निकाला आती होगी वो दोनो", मेहरा सर ने कहा। मीर और बाकी सब खुश हो गये पर मेहरा सर ने ऐक बार सब को देखा और सब को काम करने का बोल खुद बाहर की और चल दिये।
"क्या हूआ भाई आप कहा चल दिए", शमशेरा ने कहा जो अभी अभी लिफ्ट से बाहर निकला ही था।
"छोटे यहां पर ऐसे नही बोलो तुम बॉस हो, मैं मुलाजिम हूं तुम्हारा", मेहरा सर ने कहा।
"चलो बताये मिस्टर मेहरा कहां चल दिये इतनी जल्द बाजी में।"
" कुछ नही सर कल जो दोनो लड़कियां रखी थी वो दोनो ही नही आई, बस उनके कॉन्टेक्ट नंबर लेने जा रहा हूं शायद उनको कोई गलत फहमी हो गई है।" मेहरा सर ने कहा।
"शहशेरा ने उस किचन के बंद दरवाजे को देखा फिर मेहरा को देख कर आप काम करो। ये काम मैं देखता हूं", उस ने कहा और अपने कैबिन की और चला गया यहां पर रात ही उसने मेहर और सुहानी के सीवी देखे थे और उनपर उनके फोन नंबर और एड्रेस शामिल थे।
शमशेरा अपने केबिन में आया और जल्दी से उसने ड्रा में से वो सीवी निकाले और फोन नंबर देखने लगा और फिर जल्दी से मेहर का नंबर डायल कर दिया, और उस रूम में ही घुमने लगा। अस्ल में वो किचन एरिया में मेहर से ही मिलने गया था पर वो आई ही नही थी इस लिए वो फोन करने लगा। पर ये क्या एक बार दो बार करने पर भी मेहर ने फोन नही उठाया, तो सुहानी को नंबर को डायल कर दिया पर वो भी नही उठा।
शमशेरा के दिमाग में अचानक ही त्यागी के बेटे का चेहरा घुमा और उसने अपने हाथ की मूठिआं कस ली। दोनो सीवी उठा वो कैबिन से बाहर निकला और पार्किंग एरिया के लिये लिफट में चला गया।
शमशेरा की कार एक गली के सामने आके रूकी उसके आगे जाने के लिए पैदल ही जाना था। क्यूंकि आगे कार नही जा सकती थी आगे का रास्ता संकरा था। शमशेरा ने जैसे ही उस गली में पैर रखा तो हैरान सा चारों तरफ देखने लगा लेकिन फिर जल्दी से कदम आगे बड़ा दिए और सीवी से एड्रेस को देखते हुए वो एक घर के सामने खड़ा हो गया। और उस दरवाजे पर दस्तक दे दी। कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो सामने एक बुजुर्ग महिला दिखी।
"जी आप कोन", उस बुजुर्ग महिला ने शमशेरा को उपर से नीचे तक देखते हुए कहा।
"क्या अम्मा क्या देख रही हो कोई हैंडसम चेहरा तो नही आ गया ना बाहर", शमशेरा जो कुछ बोलने ही वाला था उसके कान में ये आवाज गूंजी। शमशेरा चुप सा ही रह गया।
"पता नही सुहा कोन है ये, दिखने में तो हैंडसम ही लग रहा है", अम्मा ने भी अपना चश्मा उपर नीचे करते हुए कहा। ओर शमशेरा अम्मा को देखने लगा।
"अम्मा ऐसा है तो अंदर आने का बोलो ना देखे तो सही कोन है।" इसी आवाज के साथ एक चेहरा भी सामने आया जो अम्मा के पीछे ही खड़ा हो गया। तो शमशेरा के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
" सुहा तूम जानती हो क्या इस हैंडसम को"। अम्मा ने सुहानी से पूछा जो उनके पीछे खड़ी थी।
सुहानी भी शमशेरा को देखने लगी, "नही अम्मा हम तो नही जानते इनको।" उसने कहा पर ध्यान शमशेरा पर ही था।
"जी हैंडसम जी क्या बात है क्यूं इस तरह से देख रहे हो इधर", अम्मा ने अब शमशेरा को देख सख्त आवाज में कहा जो सुहानी को ही देख रहा था।
"ओ अ मे", शमशेरा ने अम्मा को देख कहा।
"क ख ग हमे आता है अगर यही सिखाने आये है आप तो जा सकते है", सुहानी ने उसकी नजर को खुद पर महसूस कर कहा।
"नही मैं गोल्डन रोज होटेल से आया हूं", शमशेरा ने कहा।
"तो क्या आप हमें ये बताने आये है हमे निकाल दिया है। अच्छा मेहर सही कह रही थी। अच्छा ही हूआ हम लोग नही गये खामखा बेज्जती हो जाती वहां पर हमारी", सुहानी ने कहा।
शमशेरा उसे देखता ही रह गया।
"नही नही वहां पर तो आप को बुला रहे है, मतलब आप दोनो को, किसी ने नही निकाला आपको", शमशेरा ने कहा। सुहानी की आंखे बड़ी बड़ी हो गई।
"क्या नही निकाला पर ऐसा कैसे हो सकता है, आपको कोई गलतफ़हमी हो गई होगी", सुहानी ने वहीं खड़े खड़े कहा।
"देखो तुम दोनो, मैं बुजूर्ग हो गई हूं पैर जवाब देते है इतनी देर खड़े होने पर, अगर तूम हैंडसम मुझे अपनी बाहों में उठा कर बाते कर सकते हो तो मैं तैयार हूं वर्ना अंदर कुर्सी लगी है बैठ कर बात कर लो", अम्मा ने कहा, शमशेरा तो अब अम्मा को देखता ही रह गया।
"अम्मा आप चाहे तो मैं उठा सकता हूं बाहों में", शमशेरा ने भी बीना किसी भाव के कहा तो अम्मा उसे देख मुस्कुरा दी।
"चलो अंदर बैठो फिर बात कर लो। यहां उठाओगे तो आस पड़ोस की सीती, गीता, ललिता मुझसे खार खाने लगेगी समझा", अम्मा ने कहा। सुहानी तो बस अम्मा को देखती ही रह गई।
"अम्मा कही भी शूरू हो जाती हो आप", सुहानी ने धीरे से कहा फिर शमशेरा को देख कर।
"सच में हमे नही निकाला", उसने कहा तो शमशेरा ने ना में सिर हिला दिया।
" तो ठीक है हम दोनो आ जायेगी आप जा सकते हो", वो बोली।
"पागल है क्या घर आये महमान को कोन दरवाजे से भगाता है", दादी ने सुहानी को देख कहा फिर शमशेरा को देख कर, "चलो अंदर चलो", वो बोली और आगे आगे चल दी।
"वैसे हैंडसम तुमने अपना नाम नही बताया", अम्मा ने शमशेरा को बैठने का कहते हुए अगला सवाला करा।
"जी मेरा नाम श,,,,,,," शमशेरा जो कुर्सी पर बैठते हूए बोलने ही वाला था के एक तरफ से आ रही मेहर को देख बीना बैठे ही खड़ा हो गया।
"नमस्ते बड़ी मालकिन", शमशेरा ने जल्दी से सिर झुकाते हुए कहा। तो वही मेहर सुहानी और अम्मा हैरान सी उसे देखने लगी।
रब राखा
"नमस्ते बड़ी मालकिन", शमशेरा ने जल्दी से सिर झुकाते हुए कहा। तभी मेहर, सुहानी और अम्मा हैरान सी उसे देखने लगीं।
मेहर ने सुहानी को देखा तो सुहानी ने भी मेहर को देखा। मेहर ने सिर ऊपर की तरफ हिला कर, "क्या हुआ पूछा?", तो सुहानी ने अपने हाथ की तर्जनी उंगली कनपटी पर रख धीरे से हिला दी। मतलब साफ था के ये इंसान पागल है। पर जल्दी से ही अपना हाथ नीचे कर शमशेरा को देखने लगी।
"वैसे ये बड़ी मालकिन कौन है?", अम्मा ने बैठते हुए पूछा तो शमशेरा अम्मा को देखने लगा। "बड़ी आप और इस घर की मालकिन, तो आप ही हुई", वो बोला।
अम्मा मुस्कुरा दी। "हां वो तो है", उन्होंने कहा। शमशेरा ने मेहर को देखा और गहरी सांस लेते हुए बैठ गया।
"मेहर ये गोल्डन रोज होटल से आए हैं, हमें लेने बोल रहे है के हमे निकाला नहीं गया।" सुहानी ने मेहर से कहा।
तो मेहर शमशेरा को देखने लगी। "सच में? मतलब कल हुए तमाशे के बाद आपके बॉस ने नहीं निकाला हमे?", उसने हैरानी से पूछा।
शमशेरा दोनों को देखने लगा उसने अभी तक तो बताया ही नहीं था के वो कौन है। इसलिए बात को दबाते हुए, "जी मैम सर ने आपको नहीं निकाला", वो बोला।
मेहर खुश होते हुए, "ठीक है फिर हम दोनों पहुंच जाएंगी", वो बोली।
"नहीं मैम सर ने मेरी ड्यूटी लगा रखी है आपको लाने और छोड़ने की।"
"पर क्यूं हम तो आ जा सकते है", सुहानी ने कहा। "सर की बातें सर ही जाने", वो बोला।
"तो ठीक है ना, जाओ जल्दी से तैयार हो जाओ और निकलो वैसे भी एक घंटे से तो ये कभी यहां गिरती है तो कभी वहां", अम्मा ने सुहानी को देख कहा जो अब अम्मा को देख घूर रही थी।
"ठीक है अम्मा बोल लो बोल लो जिस दिन शादी हो गई तो मुझे देखने को तरसती रह जाओगी", वो बोली और मेहर का हाथ पकड़कर रूम की तरफ चली गई।
शमशेरा शादी की बात सुन उसे देखता ही रह गया। मानो उसका दिल ही बैठ गया था इस बात से।
"अरे पहले लड़का तो ढूंढ ले शादी भी हो जायेगी पागल लड़की", अम्मा ने पीछे से कहा पर सुहानी को जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा वो मेहर के साथ अंदर चली गई।
"क्या खाओगे अभी? मेहर ने गरम गरम पोहा बनाया है, साथ चाय बैठे इधर आकर", अम्मा ने उठते हुए कहा और शमशेरा को भी छोटे से डाइनिंग टेबल की तरफ इशारा कर दिया। "बड़ी मालकिन और पोहा", वो मन ही मन बोला और उस तरफ चल दिया।
••••••••••••
हँसने की आवाज से बीर ने सिर ऊपर उठा कर देखा तो सामने ही उसके मेहर खड़ी थी जिसने सलवार सूट पहन रखा था और लंबे बालों को चोटी में बांध रखा था। और हँसती हुई वो लड़की यानी के मेहर अपने सामने खड़े बीर को देख रही थी।
के अचानक ही उसके चेहरे की हँसी एक गहरी निराशा में बदल गई।
"बीर रिश्ता आया है हमारे लिए", वो बोली।
"पहली बात हमारा नाम बीर नही कबीर है, और दूसरी बात रिश्ता आपके लिए आया है तो जश्न मनाये आप, हमे क्यूं बता रही है।" वो लड़का कबीर बोला।
मेहर ने अपनी बांह पर टंगे पर्स से काला चश्मा निकाला और आखों पर चढ़ाते हुए, गाड़ी का दरवाजा खोल, "ड्राइवर गाड़ी झील की तरफ ले चलो", वो बोलते हुए बैठ गई तो बीर जो बाहर खड़ा था वो ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और गाड़ी आगे बढ़ा दी।
ये एक बड़े से हवेली नुमा घर की पार्किंग लग रही थी यहां पर बहुत सारी गाड़ियां खड़ी थी जिनमें से एक में अभी अभी मेहर बाहर गई थी।
सड़के तो गांव की ही लग रही थी यहां पर गाड़ी के आगे बढ़ने के बाद धूल उड़ रही थी और उस कच्ची सड़क के दोनों तरफ खेत ही खेत दिख रहे थे। हां कुछ दूरी पर कुछ मिट्टी के पहाड़ थे यहां पर एक छोटा सा मंदिर बना हुआ था। और इस समय गाड़ी उसी तरफ जा रही थी। यहां पर छोटी सी झील थी।
कुछ आधे घंटे बाद गाड़ी उस तरफ रुकी तो पीछे से निकल मेहर आगे बढ़ गई। तो वही बीर गाड़ी के पास खड़ा उसे देखता रहा।
मेहर ने पीछे मुड़ कर देखा तो बीर ने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। तो वही मेहर के चेहरे पर स्माइल आ गई।
इधर मंदिर में बैठे बाबा जो आंखे बंद कर अपना जाप कर रहे थे उन्होंने एक दम से आंखे खोली और आसमान को देखने लगे यहां एक तरफ से बादल आ रहे थे।
फिर उन्होंने दूसरी तरफ देखा यहां पर मेहर झील के किनारे बैठी थी और बीर गाड़ी के पास खड़ा था।
"अभी तुम दोनों के मिलन में बहुत समय है और उस से भी ज्यादा कठिनाइयां है, पर जिस दिन तुम दोनों एक हो गये उस दिन कुदरत खुद तूम दोनों के लिए खुश होगी", वो बोले। और हल्का सा मुस्कुरा कर वापस से अपना जाप करने लगे।
"बड़ी मालकिन चले बादल घिर रहे है", बीर ने आगे आकर कहा यहां मेहर बैठी पानी को देख रही थी।
"बस आज के लिए ये मालिक नौकर का रिश्ता छोड़ मेरे पास बैठ जाओ बीर", मेहर ने पानी को देखते हुए कहा।
तो बीर जो आसमान को देख रहा था यहां पर एकदम से ही बादल आ गये थे वो मेहर को देखने लगा। "आखरी मुलाकात है हमारी ये", मेहर ने कहा पर इस बार बीर को देख कर। तो बीर उसे देखता रह गया। और फिर कुछ दूरी पर बैठ गया।
"बीर पिछले 4 साल से आपके पीछे पीछे भागे है, कोई तो वजह होगी हमे नकारने की", मेहर ने पानी को देखते हुए कहा।
"प्लीज ये मत कहिये गा के हमारे बीच मालिक नौकर का रिश्ता है। उसे छोड़ कुछ तो कहे आप", मेहर ने कहा। आज उसकी आवाज बहुत बुझी बुझी सी लग रही थी।
"अभी आपमें बहुत बचपना है अभी समझेगी नहीं आप", बीर ने सामने देखते हुए कहा।
मेहर मुस्कुरा दी, "4 साल हमारा बचपना देखा आपने, प्यार नही। ठीक है अब हम भी आपके सामने बार बार खुद को शर्मिन्दा नही होने देंगे। पर आखरी बार मिल रहे है हम, और एक बात कहना चाहते है आपसे। काश आपने हमे समझा होता, माना हमने बहुत गलतियां की है। उनकी वजह जानी होती आपने, तो शायद हमारे प्यार को भी समझते। पर छोड़े उस बात को", मेहर ने बीर को देख कहा फिर सामने पानी को देख कर।
"एक बात कहना चाहेंगे आपसे अगर आपकी नजर में ये अमीरी गरीबी ही सब से बड़ी बात है तो अगले जन्म में भगवान जी मुझे आपकी जिन्दगी दे और आपको मेरी तरह अमीरी की। उस समय हम आपकी आंखो के सामने रहे पर कभी ये नही जता पाये सबको कि कितना चाहते है आप हमे, और हम कभी आपको स्वीकार ना करे। तब पता चलेगा आपको बचपना क्या होता है और प्यार क्या होता। और वो तकलीफ क्या होती है जिस से हम गुजर रहे है इस समय", मेहर ने बीना बीर को देखे कहा उसकी आंखे बहे जा रही थी। तो वही बीर हैरान बस उसे देख रहा था।
मेहर ने अपना चेहरा साफ करा और खड़ी होकर बीर को देखा। "ये दूआ है आपके लिए ऐसा ही हो, क्यूंकि इस प्यार ने हमे कहीं का नही छोड़ा", उसने कहा और गाड़ी की तरफ चल दी। पर बीर चुप सा उसे देखता ही रह गया।
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"कबीर, कबीर उठ जा देख 10 बज चुके है और तू है कि आज अभी तक सो रहा है क्या हो गया। उठ ना कबीर", इस आवाज से कबीर एकदम से आंखे खोल बैठ गया। वो अभी भी उसी तरह से लेटा हुआ था जैसे वो रात को ही लेटा था। पैर बेड से नीचे ही लटक रहे थे।
"क्या हुआ, आज वो लड़की तुम्हारे सपनो में नही आई क्या।" राज ने उसे देख कहा, तो कबीर हैरान सा उसे देखने लगा।
"ऐसे क्या देख रहा है, पहले तो तू चिल्ला के उठता था ना। पर आज मैने आकर उठाया है। इस लिए पूछा के वो लड़की नही आई आज सपने में", राज ने कहा।
कबीर अभी भी हैरान सा था। "नही ऐसा कुछ नही हुआ", वो बोला और उठ कर बाथरूम की तरफ चल दिया। वही राज उसे देखता ही रह गया। तभी उसकी नजर बेड पर पड़े उस पेपर पर गई जिसे रात को ही कबीर ने एक तरफ फेंका था। वो पेपर उठा राज ने उसे खोल कर देखा तो उस को देखने लगा।
कबीर बाथरूम में शीशे के सामने खड़ा खुद को देख रहा था। "कितना सच लग रहा था वो सब जैसे उस जगह पर मैं और मेहर ही थे। मेहर पर उस से तो कल ही मिला था मैं। और आज सपना ही उसी का था। और अगर ये सब मेने राज को बताया तो वो कहीं कुछ गलत ना समझे। पर सपना इतना सच्चा क्यूं लग रहा था मुझे। वो सब बातें जैसे पहले ही हो गई थी। मेने वो सब बाते सुनी है पहले भी", कबीर यही सोच रहा था।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, "कबीर ये क्या बनाया है तुने पेपर पर समझ नही आ रहा", राज ने कहा तो कबीर को रात की बातें याद आ गई उसने दरवाजा खोल बाहर देखा तो राज उस पेपर को देख रहा था, कबीर ने उसके हाथ से वो पेपर लिया और वापस बाथरूम के अंदर चला गया।
"कबीर क्या हुआ है तू ठीक तो है", राज ने उसे ऐसा करते देख पूछा ये पहली बार था जब वो ऐसा कर रहा था।
"हां सब ठीक है जा तू तैयार हो जा, हमे जाना है ऑफिस", कबीर ने अंदर से ही कहा, तो राज दरवाजे को घुरता हुआ चला गया।
शमशेरा मेहर सुहानी को लेकर चल दिया था। यहां पर वो दोनों पीछे बैठी हुई थी तो शमशेरा गाड़ी चला रहा था। कहां वो इतना बड़ा आदमी और आज वो इन दिनो का ड्राइवर बन गया था। पर उसके चेहरे पर इस बात का कोई मलाल नही था वो तो खुश था।
"वैसे आपका नाम क्या है मतलब सर ने आपको हमारे लिए कहा है और आप अब रोज हमे लेने और छोड़ने आया करेंगे तो नाम तो पता होना चाहीये ना हमे", मेहर ने पूछा। शमशेरा ने मिरर से पीछे देखा यहां मेहर उसे ही देख रही थी।
"शुक्र है कल आपने मुझे नही देखा उस पार्टी में। वर्ना आप इस तरह बात नही कर पाती वो", मन ही मन बोला।
"मेरा ना शेरा है, सर के सारे काम मैं ही करता हूं वो जो भी कहते है वो सब मैं करता हूं", शमशेरा ने कहा।
"शेरा अच्छा नाम है", सुहानी ने कहा और बाहर देखने लगी।
"अच्छा एक बात अगर आपके सर मान जाये तो वो ये है के हमे इतनी बड़ी गाड़ी की आदत नही है, तो ना हम कल से खुद ही आ जाया करेंगे", मेहर ने कहा तो शमशेरा उसे देखने लगा।
"जी सर को बता दूंगा", वो बोला और सामने ध्यान दे दिया।
कबीर, राज और रोली के साथ ऑफिस के लिए निकल गया था। पर दिमाग में बस वही बात घुम रही थी जो उसने सुबह सपने में देखी थी और साथ ही कुछ शब्द "दुआ है आपके लिए" ये क्या हो रहा है मेरे साथ। वो मन ही मन बोला।
"अरे तू कुछ सुन भी रहा है के नही", राज ने जोर से कहा जो कब से पास वाली सीट पर बैठा बोल रहा था पर कबीर है के वो कुछ सुन ही नही रहा था।
"हां क्या, कुछ कहा क्या तुमने", कबीर ने एकदम से पूछा तो राज हैरान सा उसे देखने लगा। वही रोली पीछे बैठी दोनो को देख हँस दी।
"तेरा दिमाग चल गया क्या। मेने तुमको बताया के आज त्यागी की बेटी ने मिलने के लिए अपॉइंटमेंट ली है। समझ रहा है, वो अपरना मिलना चाहती है वो भी तुमसे और तू है के पता नही कहां घुम रहा है", राज ने कहा।
"ठीक है फिक्स कर दो, 2 दिन बाद की अभी मेरा मूड नही है उस से मिलने का। आज मुझे शमशेरा के साथ कुछ बातें डिस्कस करनी है", कबीर ने कहा।
"कबीर वो हमारा दुश्मन ही है पर तू तो उसके साथ दोस्ती की सोच रहा है भुल गया उसके 2 सा पहले दिये धोखे को।" राज ने कहा।
"कबीर खुराना कुछ नही भूलता ना धोखा ना यारी इतना सोच ले। पर अभी हम काम कर रहे है। वो भी एक साथ तो ये सब करना ही होगा", कबीर ने कहा और सामने ध्यान लगा दिया वही रोली दोनो को देख रही थी।
रब राखा
कबीर, राज, रोली ऑफिस पहुंचे और अपने-अपने काम पर लग गए। यहाँ रोली, राज के अंडर काम सीख रही थी, तो वहीं कबीर लैपटॉप पर अपने काम को देख रहा था। यहाँ पर उसे कुछ मेल्स आये थे, पर ध्यान था कि वो काम को छोड़ मेहर में जा रहा था। जिसे सोचते ही उसे एक प्यारा सा एहसास हो रहा था, पर साथ ही कुछ अधूरा सा भी लग रहा था। सुबह के सपने और रोज आ रहे सपने में बहुत फर्क था, जिसे सोचते ही उसकी बेचैनी बढ़ रही थी।
"कबीर मिटिंग का समय हो रहा है, चलो चलें", राज ने आते हुए कहा तो कबीर उसे देखने लगा।
"चलो", वो बोला और उठ खड़ा हुआ, साथ ही रोली भी थी।
आज की मिटिंग उस प्रोजेक्ट के सिलसिले में थी, जिस पर कबीर ने पिछले 1 साल से काम करा था। एशिया की सबसे बड़ी और पावरफुल कंपनी के साथ जो इस समय इंडिया में अपने होटल चेन बनाना चाहती थी। पहले से ही मुम्बई में उनका एक होटल था, पर वो अब देश के हर बड़े छोटे शहर में अपने होटल बनाना चाह रही थी, जिसका नाम टवीलाइट (काल्पनिक नाम) था।
"वैसे मिटिंग कहां पर है, टवीलाइट में?", कबीर ने लिफ्ट में आते हुए कहा, तो राज उसे देखने लगा।
"गोल्डन रोज होटल में", वो बोला।
कबीर ने उसे देखा तो उसने कंधे उचका दिए। "अजीब है अपना होटल छोड़ यहाँ पर क्यूं?", वो बोला।
"उन्होंने होटल को 1 महीने के लिए बंद करा है, वहां पर रिनोवेशन चल रहा है", राज ने कहा, तब तक वो लोग पार्किंग में पहुंच चुके थे।
रोली के हाथ में कुछ फाइल्स थीं, जिनको लिए वो चल रही थी।
"संभाल कर बैठना, बहुत मेहनत का काम है ये।" राज ने उसे कहा और बैठ गया, रोली भी उसे देखते हुए बैठ गई। तो कबीर ने अपनी कार स्टार्ट कर दी और चल पड़े गोल्डन रोज होटल की ओर।
शमशेरा, मेहर, सुहानी के साथ होटल पहुंच चुका था और वो लोग अपने-अपने काम पर भी लग गये थे। यहां पर शमशेरा अपने केबिन में चला गया और वहां से अपने लैपटॉप पर किचन एरिया के वीडियो देखने लगा, जिसे उसने अपनी टीम को फोन कर बोला था।
शमशेरा, मेहर को देख रहा था जो इस समय मीर के साथ काम कर रही थी, जो उसे कुछ समझा रहा था, तो वहीं सुहानी की ड्यूटी सब काउंटर साफ करने की और सब्जी वगैरह काटने की थी, जो वो कर रही थी और अपने साथ काम कर रहे लड़कों के साथ बात भी कर रही थी, वही गोलडी बाहर बैठा था। उसे अपनी गलती का अफसोस भी था के क्यूं उसने झूठ बोला था।
तो मेहरा सर लिफ्ट के लिए देख रहे थे, यहां पर आज उसे ठीक करना ही था किसी भी हाल में।
शमशेरा ये सब देख ही रहा था कि तभी उसे फोन आया। फोन मेनेजर का था जो बता रहा था के खुरानास की मिटिंग उनके ही होटल में है, फस्ट फ्लोर के वी आई पी एरिया में। तो शमशेरा ने जल्दी से उस फ्लोर की विडियो चला दी, यहां पर कबीर, रोली और राज बैठे थे, पर अभी सामने वाले नहीं आये थे।
"कबीर", उसने कबीर की फोटो को यूम करते हुए कहा। "कब तक अपने अतीत से भुले रहोगे? जल्दी से याद करो सब कुछ। मुझे लग रहा है जैसे तुमको सब याद आ रहा है, पर इस बार भी कहीं देर ना हो जाये", वो बोला।
तो वही सामने बैठा कबीर जो इधर उधर देख रहा था कि एक दम से खड़ा हो गया, उसके सामने ही कुछ 2 आदमी थे जिनके साथ उसने हाथ मिलाया और आगे की बातें शुरू कर दी। तो शमशेरा ने भी वहां की वीडियो काट कर अपने काम में लग गया।
"राज बात तो सुनो ना, क्या अब बात भी नही करोगे मुझसे", रोली ने कहा। दोनों इस समय अकेले ही थे घर पर। कबीर कुछ देर बाद आने वाला था। तो राज, रोली दोनों आ गये थे। यहां राज रसोई से पानी ले रहा था तो रोली उसके पीछे पीछे ही आ गई थी।
"देखो रोली जैसा तुम सोच रही हो वैसा नही हो सकता, तुम एक बड़े परिवार की बेटी हो, और मैं एक आम से परिवार से हूं। ये तो कबीर ने मुझे अपने साथ रखा है, वर्ना मैं तो शायद अभी फुटपाथ पर ही होता। तो दूर रहो मुझसे", उसने कहा और रसोई से बाहर आने लगा तो रोली एकदम उसके सामने आ गई।
"सच बोल रही हूं तुम यहां रखोगे वही रह लूंगी, कभी कुछ नही कहूंगी तुम हां तो करो। एक्सेप्ट तो करो मुझे।"
राज उसे देखने लगा और मुस्कुरा कर, "तुम्हारी ये जीन्स पता है कितने की है, और ये जो बेल्ट पहनी है वो गुच्ची की है, उसकी प्राइस क्या है, वो बाहर जो हिल्स उतार कर आई हो उनका प्राइस क्या है पता है तुमको। तुम इन सब के बीना रह नही सकती और मैं ये सब दे नही सकता, जिस होटल में तुम खाना खाती हो वहां का तो बिल भी मेने कभी पे नही किया, क्यूं क्यूंकि मेरी इतनी हैसियत ही नही है के तुम्हारे शोक नखरे उठा सकूं। और फिर तुम्हारे भाई भाभी ने तो कबीर को पसंद करा है तुम्हारे लिए मुझे नही, और मैं उनकी नजरों में कही से भी फिट नही हूं तो दूर रहो हो सके तो भूल जाओ", राज ने कहा।
"ठीक है भूल जाऊंगी पर क्या तूम भूल जाओगे?", वो बोली तो राज उसे देखने लगा। तो वहीं रोली ने उसके आगे फोन कर दिया ये उसी का फोन था जिसकी वालपेपर पर रोली की फोटो थी।
"ये क्या है तुमने मेरा फोन क्यूं लिया?", वो बोला और फोन उसके हाथ से ले लिया।
"मुझे मेरा जवाब मिल गया समझे तुम, और अब शादी तो तुमसे ही होगी", वो बोली।
राज ने उसे गुस्से से देखा और कुछ कहता के आगे बढ़ रोली ने उसके होठो पर होठ रख दिये। यहां राज फ्रीज सा हो गया, तो वही रोली उसको देखते हुए किस कर रही थी कि तभी राज ने उसे कंधे से पकड़कर पीछे धकेला। "पागल मत बनो और मेरे साथ पंगे मत लो", वो बोला।
रोली हल्का सा मुस्कुराते हुए, "पंगे तो तुम्हारे साथ ही लूंगी अब तो", वो बोली और फिर से आगे बढ़ उसे किस करने लगी।
तभी एक तरफ कुछ गिरने की आवाज आई तो दोनों ने उस तरफ देखा। यहां दीपा दी खड़ी थी, पास ही दिनेश जिसकी गोद में 2 साल का बच्चा था जो हैरान से समाने देख रहे थे। तो उसी समय पीछे से कबीर अंदर आया जिसने बैग उठा रखे थे और वो उस माहोल को देख हैरान सा खड़ा रह गया।
"भ भभभ भाई भाभी", रोली ने कहा तो वही राज नजरे झुका गया क्यूंकि दीपा दी उसे ही घूर रही थी।
दीपा, दिनेश, कबीर हॉल में लगे सोफे पर बैठे हुए थे तो वही रोली और राज सामने खड़े थे। कबीर की गोद में वो छोटी सी बच्ची थी, जिसे वो खिला रहा था और साथ ही दोनों को देख रहा था जो सजा के लिए खड़े थे।
"रोली बच्चे आप से ये उम्मीद नही थी हमे", दिनेश ने कहा।
तो रोली का सिर झुक गया, "भाई पाप", उसने धीरे से कहा।
"भाई भी कहती हो और पापा भी फिर भी हमे बताना जरूरी नही समझा तुमने। नही जी हमे कहा हम तो अब पराये हो गए ना अब", दीपा ने कहा।
तो रोली उसे देखने, "नही भाभी मां एसा नही है आपको बताना चाहती थी पर डर गई थी", उसने कहा।
"अच्छा डर गई थी पर क्यूं डर गई थी सब बाते तो बताती रही हो, तो फिर इस बार क्यूं डर गई?", वो बोली।
"भाभी मां ये मान नही रहा था तो आपको क्या बताती। और फिर आप ने भी तो कबीर को पसंद करने को कहा था ना के उसके दोस्त को जो अभी तक माना भी नही", रोली ने दीपा के पास आकर कहा तो दीपा पास बैठे दिनेश को देखने लगी।
"ये लड़की इतना क्यूं बोल रही है मेने तो बस कहा था के देख लो मिल लो पर एसा तो नही कहा ना कभी के कबीर से ही शादी करो", उसने कहा फिर रोली को देख कर।
"मेने जब भी तुमसे पुछा के बेटा कोई पसंद है तो बता दे पर तूने हर बार ना कहा, बस इसलिए तुमको बोला के कबीर से मिल ले। और तुने भी बीना किसी बात के हां करदी तो मुझे लगा के तू कबीर को पसंद करती हो तो हमने शादी की बात रखी मम्मी पापा के आगे", दीपा ने कहा।
"भाभी मां मैं सच में डर गई थी मुझे लगा जैसे आपने शादी की बात की है सच में मेरी शादी कबीर से ही करा दोगे। इस लिए यहां आई थी के इसे मना लूं पर ये तो मान ही नही रहा।" रोली ना राज को देख कहा।
तो वहीं दीपा दिनेश भी राज को देखने लगा।
"और फिर मुझे नही पता था के आप इतनी जल्दी आ जाओगे, वर्ना ऐसा काम मैं नही करती", रोली ने सिर झुका कर कहा तो कबीर जो चुप सा बातें सुन रहा था वो सिर हिला कर मुस्कुरा दिय।
"दीपा कल मम्मी पापा से मिल लेते है और दादू से भी बात कर लेते है वो जैसा कहेंगे वैसा ही करेंगे", दिनेश ने कहा तो दीपा ने सिर हिला दिया।
"राज हमारे साथ कल चल रहे हो घर समझे ना", जीजू ने कहा और फिर कबीर को देखा, "कबीर मुझे कुछ बात करनी है तो चलो", वो बोले तो कबीर ने जल्दी से बच्ची को दीपा दी को दिया और जीजू के साथ चला गया।
"चल उठ अब रोना नही है", दीपा ने कहा और रोली को अपने पास बैठाया।
वही रोली दीपा की गोद में खेल रही बच्ची को उठा कर, "क्या बात है दीपू आप तो बुआ को भूल ही गई है", वो बोली। तो वहीं वो छोटी सी बच्ची रोली की गोद में आ गई। वही राज ये सब देख रहा था पर अपनी ही जगह पर खड़े होकर।
शमशेरा शाम को फिर मेहर सुहानी को छोड़ने आया था। पर इस समय जिस गाड़ी में था वो नोर्मल सी थी। वही मेहर तो चुप सी ही रह गई ये सब देख कर पर सुहानी को बुरा लगा।
"यार कितना कंजूस बॉस है ये नही था के कोई नही इसी कार में आना जाना है अरे उसने तो कार ही बदल दी", वो बोले जा रही थी वही शमशेरा उसकी बाते सुन कर सिर हिला देता।
"यार बस भी कर अब तू", मेहर ने उसका हाथ पकड़कर कहा तो सुहानी उसे देखने लगी।
"अच्छा शेरा एक बात बताना तुम्हारा बॉस तुम लोगो को तो सैलरी पुरी देता है ना, मतलब उसमें तो कोई कंजूसी नही है ना?", वो बोली तो शमशेरा ने ना में सिर हिला दिया।
"अच्छा है चलो कही पर तो वो कंजूस नही है", वो बोली।
"वैसे आप लोग यहीं की है जा बाहर से?", शमशेरा ने कहा तो मेहर उसे देखने लगी। "मतलब आप लोगो मुम्बई से ही है क्या", वो बोला।
"हम्म हम यहीं से है", मेहर ने धीरे से कहा।
"बिल्कुल हम यहीं से है, एक अनाथालय से", सुहानी ने कहा तो शमशेरा एक दम से उनको देखने लगा।
"आगे देखो मरना नही है हमे", सुहानी ने कहा तो शमशेरा सामने देखने लगा।
"बस भी कर यार क्यूं ऐसे बात कर रही है उनसे", मेहर ने सुहानी से कहा।
"अब मेने क्या किया अभी मुझे नही मरना मुझे शादी करनी है बच्चे पैदा करने है दूनिया देखनी उस से पहले तो भारत देखना है। पता भी है मेरे कितने सपने है जो पुरे करने है। और वो तभी हो सकते है जब मैं जिंदा रहूंगी और वो अगर शेरा जी गाड़ी सही से चलाएंगे तभी होगा", सुहानी ने कहा तो मेहर ने सिर हिला दिया। फिर शमशेरा को देख कर, "ये ऐसी ही है एसे ही बातें करती रहती है आप इस पर ध्यान ना दें", मेहर ने कहा।
"अरे ये क्या बात हो गई मुझपर ध्यान देना तूम अच्छी दिखती हूं मैं", सुहानी ने कहा तो शमशेरा मुस्कुरा दिया।
"पागल लड़की क्या बोले जा रही हो", मेहर ने उसका हाथ पकड़कर कहा तो सुहानी ने उसे देखने लगी।
रब राखा
शमशेरा ने दोनों को उस गली के सामने उतार दिया। "थैंक्यू," मेहर ने कहा।
"अब थैंक्यू क्यूं बोल रही है, शेरा का तो काम है हमें ले जाने का और छोड़ने का", सुहानी ने कहा।
"बिल्कुल आप मुझे थैंक्यू मत कहिए, ये काम है मेरा", शमशेरा ने कहा।
तो सुहानी उसे देखकर बोली, "शेरा ये ना ऐसी ही है, किसी को भी शुक्रिया थैंक्यू बोल देती है।"
शमशेरा ने मेहर को देखा जो उनको ही देख रही थी।
"बड़ी मालकिन आज भी वैसी ही है, बस किस्मत बदल गई है इनकी", वो मन ही मन बोला।
"बाय शेरा हम यहां से चले जाएंगे, तुम जाओ", सुहानी ने कहा तो शेरा भी उसे बाय कर चला गया। शेरा वहां से कार लेकर आगे आया और साथ ही फोन कर दिया, "चौबीस घंटे उनकी सेफ्टी चाहिए मुझे", वो बोला और फोन रख आगे बढ़ गया।
"अब सोच क्या रहा है, अब तो सब ठीक हो जाएगा ना", कबीर ने राज से कहा जो अपने रूम में था। वो भी वहीं आ गया था। दीपा दी, जीजू और दीपू रोली के साथ दूसरे फ्लेट में चले गए थे।
"तू समझ नहीं रहा कबीर, मैं ये सब कैसे करूंगा। ना कोई परिवार, ना ही अता पता, ऊपर से रोली की लाइफस्टाइल, ये सब मुझसे नहीं होगा।"
"प्यार है", कबीर ने कहा तो राज उसे देखने लगा। "प्यार है तो फिर किस बात की फिक्र, सब हो जाएगा। तू मेहनती है, रोली भी समझदार है, सब सही हो जाएगा", कबीर ने कहा।
"आज कल मेहनत से पेट नहीं भरते खुराना साहब, खाने से भरते हैं", राज बोला।
"ठीक है तो आज से मेरे प्रोजेक्ट को तू लीड कर, तेरे नाम से जैसे ही ये प्रोजेक्ट खत्म होगा उसके साथ ही तेरी अलग पहचान बन जाएगी", कबीर ने कहा।
"बस कर और कितना मुझे मेरी ही नजरों में गिराएगा तू", राज ने उठते हुए कहा और रूम से लगी बाल्कनी में चला गया।
"ऐसा मत बोल, मुझे लगा के तू समझेगा मुझे, पर तू तो कुछ और ही सोच कर बैठा है। मैंने प्यार किया है तो उसे निभा नहीं पाऊंगा, नहीं कबीर अब तो मेरी भी हां ही होगी और रोली को सब खुशियां दूंगा जो वो डिजर्व करती है", राज ने गुस्से से कहा।
"सच, तू करेगा ऐसा", कबीर ने उसे देख कहा।
"बिल्कुल सच", राज बोला।
"तो ठीक है फिर अब कल देखते है क्या होता है", कबीर ने कहा और उसे गुड नाइट बोल कर अपने रूम की और चला गया। वहीं राज बाल्कनी से बाहर देखने लगा, उसके चेहरे पर स्माइल थी।
कबीर ने अपने रूम में आके हाथ में पकड़े फोन को ओन करा तो उस पर कॉल चल रही थी। "जीजू अब तो आप मान गए ना राज अच्छा लड़का है", कबीर ने फोन कान से लगा कर कहा। वहीं दूसरी तरफ जीजू जिन्होने फोन स्पीकर पर लगा रखा था वो दीपा दी, रोली को देखने लगे।
"मुझे मंजूर है पर कल जाकर सब से बात करनी होगी", वो बोले तो रोली उनके गले लग गई। वही कबीर ने मुस्कुरा कर फोन कट कर दिया।
"चल अब सब हो जायेगा, तुमको तुम्हारा प्यार मिल जायेगा", दीपा दी ने रोली से कहा तो रोली उनके गले लग गई।
"आप सब से बेस्ट हो भाभी मां, यू आर दा बेस्ट", रोली ने कहा और उनके गले लग गई।
कबीर ने फोन बेड पर रखा और बाल्कनी में आ गया जो के उसके रूम से अटैच खुली हुई थी, बस पर्दो से ही दोनों को अलग-अलग कर रखा था।
उसने पहनी हुई टी शर्ट उतार के एक तरफ रख दी और रेलिंग पर हाथ रख सामने देखने लगा। उसके सीने पर बने त्रिशूल का टैटू साफ-साफ दिख रहा था। तो वही जहन में मेहर चल रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था के ये सब उसके साथ ही क्यूं हो रहा है, पर जो भी हो रहा था वो सब बहुत ही रियल लग रहा था।
कबीर ने अपने त्रिशूल पर हाथ लगाया। "कभी पता नहीं लगा के ये निशान मेरे शरीर पर कैसे बना", वो खुद से ही बोला।
मेहर जो इस समय नाइटी गाउन में थी, जो के शार्ट ही था उसकी थाई तक आ रहा था। उसके दोनों तरफ के गले डीप थे।
मेहर ने अपने बालों का जुड़ा बनाया और उसे हेयर बैंड से अच्छे से सेट कर लिया।
"मेहर एक बात बता, ये जो तुम्हारी गर्दन में बालो के पास त्रिशूल का टैटू है ये तुमने कब बनवाया? कितना प्यारा है छोटा सा", सुहानी ने मेहर को देख कहा जो उसकी तरफ पीठ कर बैठी थी।
"पता नही कब कराया मुझे नही पता", वो बोली।
"मेहर बचपन से तो हम अनाथालय में थी, बाहर भी एक ही साथ आई तो फिर कब कराया तुमने। हम साथ ही तो रहती थी यार, मुझे भी कराना है ऐसा टैटू बता ना", उसने मेहर को कंधो से पकड़कर कहा।
"सच में नहीं पता मुझे, तुमको पता तो है जब से होश संभाला है हम लोग साथ ही तो रहें है, पता नहीं कब कैसे बन गया टैटू", मेहर ने उसके हाथ पकड़कर उसे देख कहा।
"कही ऐसा तो नही के पिछले जन्म में तुमने किसी के लिए बनवाया हो", सुहानी ने उसे देख मुस्कुरा कर कहा।
"अच्छा ऐसा है क्या", मेहर ने हँसते हुए कहा, फिर अपनी तरफ लेटते हुए बोली, "मैडम जी ये पिछले जन्म जैसी कोई बात नहीं होती है।"
सुहानी उसे देखते हुए बोली, "होती है बिल्कुल होती है, पर उनकी जिनका पिछले जन्म में कुछ अधूरा छूट गया हो।"
"ठीक है मेरी मां सो जा अब कल को जाना भी है", मेहर ने कहा और चादर सिर तक तान कर वो करवट लेकर लेट गई।
सुहानी भी अपनी तरफ करवट लेकर लेट गई।
••••••••••••••••
"देख देख आ गई वो अमीर बाप की औलाद, देख कैसे बॉयज हॉस्टल में बेधड़क चली आ रही है", एक लड़के ने सामने देखते हुए कहा, वहीं दूसरा लड़का मुस्कुराते हुए बोला, "पहला पहला प्यार है ना कुछ भी कराता है।"
तब तक वो लड़की एक रूम के सामने खड़ी होकर दरवाजे को जोर जोर से पीटने लगी।
तो दरवाजा खुल गया सामने एक लड़का खड़ा था, जिसे देख मेहर ने उसे घुरा तो वो एक तरफ हट गया। मेहर उस रूम में अंदर चली गई और उस लड़के को बाहर कर दरवाजा बंद कर लिया।
"ये क्या हो रहा है, अगर बड़े मालिक को पता भी चला तो पता नहीं क्या होगा", वो लड़का बंद दरवाजे को देख बोला।
मेहर ने सामने बैठे बीर को देखा जो अपनी शर्ट के बटन बंद कर रहा था और वो गुस्से से मेहर को देख रहा था।
"ये क्या कर रही है आप, पता भी है ऐसे यहां आने से आपकी क्या इमेज रह जाएगी।"
"मेरी इमेज का इतना ध्यान है तो आए क्यूं नही आप, हमने बुलाया था आपको", मेहर ने उस की तरफ कदम बड़ाते हुए कहा।
"देखे आप बाहर जाए", बीर ने उसको खूद की तरफ बढ़ते हुए देख कहा, पर मेहर आगे बढ़ती रही।
"वो कौन थी जिसके पास गए थे? हमें पता नहीं है क्या? कहा कहा जा रहे हो आप", मेहर ने एक दम ही बीर के पास आते हुए कहा तो बीर ने अपनी आंखे छोटी छोटी कर ली।
"देखे आप यहां से जाए हमे कोई बात नही करनी आपसे और क्या आप मेरी जासूसी कर रही है के हम कहां जा रहे है कहां नहीं।"
"बिल्कुल करती हूं जासूसी, अगर मुझे छोड़ किसी और लड़की के पास गये तो।"
"प्यार है वो हमारा", बीर ने गुस्से से कहा जिसे सुनते ही मेहर की आंखे एक पल को गहरी हुई।
"और आप हमारा प्यार है, इतना जान ले आप", मेहर ने कहा।
"बस मेहर आखरी बार आपको बोल रहे है, अगर अब कोई भी गलती की ना तो हम से बुरा कोई नही होगा, एक महीने की बात है हमे यहां पर अपनी पड़ाई पुरी करने दे, वर्ना जो भी होगा उसकी जिम्मेदार आप होगी।"
मेहर जो उसकी बातें सुन रही थी वो एक दम से बीर की शर्ट को कॉलर खिंच कर उसे अपनी तरफ झुका कर उसकी आंखो में देखते हुए बोली, "मरने से पीछे नहीं होंगी पर इतना सोच लेना अगर मेरी जगह किसी और को दी तो मारने से भी पीछे नहीं हटूंगी।"
मेहर ने कहा और उस की खिंची कॉलर छोड़ दी।
कॉलर खिंचने से शर्ट के दो बटन टूट गये थे और बीर का सीना दिखने लगा था जिस पर मेहर ने त्रिशूल का निशान देखा था।
"याद रखना जिस भगवान को आप मानते हो उनमें मेरी भी आस्था है", मेहर ने कहा और बीना एक पल रूके उस रूम से बाहर निकल गई, बीर उसे देखता ही रह गया।
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तभी एकदम से कबीर उठ कर बैठ गया और गहरी गहरी सांस लेने लगा। कुछ सोचते हुए वो जल्दी सी बाथरूम की और गया और खुद को शीशे में देखने लगा। यहां उसे के सीने पर त्रिशूल का निशान था।
"ये तो बिल्कुल वैसा ही है", कबीर ने उस निशान पर हाथ रखते हुए कहा और खुद को देखने लगा। "मेहर बीर से हम दोनो बहुत मिलते है", कबीर ने खुद के चेहरे को देखते हुए कहा और वैसे ही खड़ा रह गया।
दोपहर को सब लोग खुरानास निवास पहुंच चुके थे। यहां पर दादू, जगजीत जी कबीर के पापा, प्रीतम कबीर की मम्मी सब बेठे हुए थे। दीपा, दिनेश, कबीर भी वहीं बैठे हुए थे, तो वही रोली राज एक तरफ थे।
"देखो बच्चो मुझे तो इतना ही समझ आता है के जिंदगी बच्चो ने काटनी है तो वो अगर एक दूसरे को पसंद करते है तो उनके फैसले को ही मान लेना चाहिए", दादू जी ने कहा जो दिनेश जीजू के पास बैठे थे।
जीजू ने उनको देखा और कहा, "दादू दस साल से आप मुझे जानते है और मैं आपको उस से भी पहले से, आप तो जानते ही है के हम दोनो के मम्मी पापा तो बचपन में ही हमे छोड़ चले गये थे, बस हम दोनो भाई बहन एक दूसरे का सहारा बने और फिर दीपा ने मुझे और रोली को संभाला। आप जैसा कहे वैसा ही होगा, रोली और राज की शादी होगी", दिनेश ने कहा तो रोली भाग कर अपने भाई के गले लग गई।
वही दीपा दी उनको देखने लगी। "ठीक है मुझे कबीर और राज में कोई फर्क नही है, दोनो मेरे लिए एक जैसे है, बहु तो रोली मेरे घर की ही बनेगी ना", प्रीतम जी ने कहा तो सब हस दिये।
"क्या सोच रहे हो", जगजीत जी ने कबीर के रूम में आकर कहा, जब वो बैठा हुआ एक ही तरफ देखे जा रहा था।
कबीर उनकी आवाज सुन उनको देखने लगा। "क्या हुआ कबीर तुम परेशान लग रहे हो", जगजीत जी बोले।
"पापा परेशान तो हूं सच में, पर अभी आपको कुछ बता नही सकता", उसने कहा।
"ऐसी भी क्या बात है जो बता नही सकता सब ठीक तो है ना", उन्होने फिक्र से पुछा।
"जी पापा सब ठीक है, बस कुछ बातें है जो परेशान कर रही है, लगता है उन बातों को अब सुलझाना ही होगा", कबीर ने कहा।
"ठीक है बेटा पहले उन बातों को सुलझा ले उसके बाद मुझे बताना। वैसे तुमको पता था के रोली राज को पसंद करती है", उन्होने पुछा।
"जी पापा मुझे पता है बहुत पहले से ही चार साल हो गये है इस बात को", कबीर ने कहा।
"अच्छा", वो हैरान से बोले।
"पापा आप तो राज को जानते ही है फिर क्या सोचना", कबीर ने कहा।
"जानता हूं परखा भी ही इस लिए तो हैरान हूं के उसने कभी जुबान पर ये बात आना ही नही दी।"
"वो इस लिए के उसे लग रहा था के वो रोली की लाइफस्टाइल उसे नही दे सकता", कबीर ने कहा।
"दिनेश ने भी तो अपनी दीपा को उसकी लाइफस्टाइल दी है ना, आठ साल हो गये है उनकी शादी को कभी देखा है अपनी दीपा को परेशानी में", जगजीत जी ने कहा।
"पापा जीजु बहुत अच्छे है इस लिए तो उनका बिजनेस चल पड़ा, वो बात अलग है के वो इस सब का श्रेय दी को देते है। वो कहते है के दी जब से उनकी जिन्दगी में आई है उनका छोटा सा काम बड़ गया है", कबीर ने कहा।
"तो बस कबीर तू भी ऐसी ही लड़की चुन्ना ये मत सोचना के हमे उसके घर परिवार से कोई मतलब होगा। हमे तो बस ऐसी लड़की चाहिए जो इस घर को अपना बना ले। वो रोली ना सही कोई और सही, लेकिन इतना याद रखना वो लड़की जो भी हो हमे उतना ही प्यार दे जितना अपने मम्मी पापा को देती आई है", उन्होने कहा।
कबीर ने सिर हिला दिया। जगजीत जी उसका कंधा थपथपाते हुए चले गये तो कबीर चुप सा हो गया। जगजीत जी की बात से जो पहला चेहरा उसकी आंखो के सामने से गुजरा वो मेहर का ही था जो उसने पार्टी में देखा था।
रब राखा
सब लोग सगाई की तैयारी में लग गए थे। सगाई 1 हफ्ते बाद की थी, तो वहीं घर पर सब खुश थे।
दिनेश का अपना काम था। वो कलकत्ता में रहता था, तो वहीं पर उसके जानने वाले बहुत थे जिनको वो बुलाना चाहता था। आखिर अपनी शादी उसने जिस सादगी से की थी, उसके तो खुरानास भी दीवाने हो गये थे। पर रोली को वो सब खुशियां देना चाहता था, आखिर भाई था वो और भाई के सारे फर्ज बाप बनकर निभाने थे उसे।
दिनेश के पापा मम्मी ने ही इस छोटे से बिजनेस की नीव रखी थी, जिसे आज दिनेश ने संभाला था, टेक्सटाइल का बिजनेस था उनका। पर कुछ समय बाद ही उनकी अकाल मृत्यु ने दिनेश को तोड़ दिया था। रोली से दस साल बड़ा था वो, उस समय रोली महज 1 साल की थी, जब उसके मम्मी पापा छोड़ चले गए थे। दादा दादी ने पाला था उनको और चाचा ने वो बिजनेस संभाला था। जितना उनको समझ थी उस के मुताबिक वो अच्छा कर रहे थे। पर फिर भी मम्मी पापा तो मम्मी पापा ही होते है। कुछ समय बाद दादा दादी भी एक-एक कर छोड़ चले गये तो चाचा ने भी बेइमानी कर ही दी। आखिर इंसानी फितरत थी ये भी।
महज अठारह की उम्र में दिनेश ने उस डूब रहे बिजनेस को संभाला था, जिस पर चाचा ने कर्जा चढ़ा दिया था और खुद बाहर चला गया। उन दिनों खुराना का बिजनेस कंस्ट्रक्शन का अपने शिखर पर था। तब खुरानास ने सरकारी प्रोजेक्ट में जाना शुरू नही करा था। उन दिनों जोरावर खुराना, कबीर के दादू, और जगजीत खुराना कबीर के पापा कलकत्ता किसी मीटिंग के चलते गये थे।
"जगजीत बेटा हम तो पुरे भीग गये और इस समय अपना सामान तो होटेल में है। वापस जायेगे तो इस बारिश की वजह से फंस ना जाए, क्या करे", कबीर के दादू ने जगजीत जी से कहा। वो लोग पिछले 1 घंटे से बारिश की वजह से ट्रेफिक में फंस गये थे और गाड़ी खराब हो जाने की वजह से वो दोनो बारिश रूकते ही मीटिंग की जगह के लिए चल दिये थे जो के सामने ही बस कुछ 200 मीटर की दूरी पर थी।
पर अभी वो आधे रास्ते ही गये थे के बारिश फिर से शुरू हो गई और वो भीगते हुए उस जगह पर पहुंचे थे। पर मीटिंग 1 घंटे के लिए आगे बढ़ा दी गई थी। सब मेंबर्स नही पहुंच पाये थे उस समय।
"पापा देखे वहां सामने ही एक दूकान है वहां पर देखते है, शायद कुछ मिल ही जाये", जगजीत जी ने कहा और उस तरफ चल दिये भीग तो वो लोग पहले ही गये थे।
दोनो जब उस दूकान के अंदर गये तो हैरान हो गये। यहां पर एक तरफ बने हुए सूट टंगे हुए थे, तो वही दूसरी तरफ दिवार पर कुछ कपड़ो के सेंपल लगे हुए थे जिन के साथ उनके बारे में सब बताया गया था।
जगजीत जी ने सब जगह देखते हुए काउंटर पर पड़ी बेल लगा दी, जिसकी आवाज सुनते ही एक लड़का बाहर आया।
"जी साहब", उस लड़के ने दोनो को देखते हुए कहा।
"बेटा वो हमे कुछ बिजनेस सूट चाहीये थे ये कपड़े तो भीग गये है", जोरावर जी ने कहा कबीर के दादू।
"जी अंदर आ जाये", उस लड़के ने कहा।
"हम भीगे है ये फर्श गीला हो जायेगा", जगजीत जी ने कहा।
"कोई बात नही मैं किस लिए हूं ये सब ठीक हो जायेगा", उस ने कहा और दोनो को अपने साथ अंदर ले गया।
" ये सब सूट है आप देख ले", उस लड़के ने एक रेक दोनो के आगे करते हुए कहा और खुद चला गया। दोनो बाप बेटा उन कपड़ो को देखने लगे, "ये वाला ये मेरे साइज का है", जोरावर जी ने कहा तो जगजीत जी को भी एक सेट पसंद आ गया। तब तक वो लड़का वापस आया उसके साथ दो और लड़के थे।
जिनके हाथ में कुछ बॉक्स थे। तो लड़के के हाथ में एक बेग था जिस को सामने रख उसने कुछ अंडरगारमेंट निकाल कर उनके सामने रख दिये। "साहब इन में से कुछ बूट है अगर आपको पसंद हो तो आप ले सकते है", उस लड़के ने कहा तो जोरावर उसे देखने लगे।
आधे घंटे बाद वो दोनो बाप बेटा तैयार होकर खड़े थे दोनो ही अच्छे लग रहे थे।
"बेटा कितना हूआ", जोरावर जी ने पुछा तो उस लड़के ने पेपर पर कुछ हिसाब किताब कर उनके आगे पेपर कर दिया।
"पांच हजार", उसने कहा।
"बस पांच हजार", जगजीत जी ने हैरानी से कहा। तो उसने सिर हां में हिला दिया। तभी एक दस साल की लड़की अंदर से भागती हुए आई और लड़के से लिपट कर, "देखो ना भाई पापा ये अंजली मुझे सता रही है", उसने कहा।
"रोली अभी काम है ना आप अंदर जाकर पढाई करो", उस लड़के ने कहा तो वो बच्ची चुप सी अंदर चली गई जोरावर उन दोनो को देखते ही रह गये।
तब तक जगजीत जी ने पैसे उस लड़के को दिये और बाहर का हाल चाल देखा यहां अब बादल हटने लगे थे।
"चले पापा", उन्होने कहा तो जोरावर भी उनके साथ बाहर आ गये।
वो पहली मुलाकात थी जोरावर जगजीत जी से दिनेश जीजू की जिसने उस रात दादू को सोने नही दिया था और अगले दिन ही वो सुबह सुबह उसी दूकान पर आ गये थे। यहां से उन्होने एक रोज पहले सूट लिये थे और आस पास से कुछ जानकारी लेकर उनको सब पता चल गया था दिनेश जीजू के बारे में और खुद आगे बड़ दादू ने दिनेश जीजू को अपना कार्ड दिया था ओर उनका कार्ड लेके वो वापस आये थे यह कहकर के उनको आगे से कोई भी कपड़ो का काम होगा तो वो संपर्क करेंगे और वैसा ही हुआ दो महीने बाद जगजीत जी और प्रीतम जी की शादी की सालगिरह थी। तो दादू ने दिनेश जीजू को फोन कर सब बता दिया था तो जीजू भी पहुंच गये थे वहां पर और फिर इसी तरह से उनका आपस में प्यार बढ़ गया था।
जब जीजू पहली बार घर आये थे तब वो कुछ बीस साल के होगे और दीपा दी उन्नीस की थी। तो वही कबीर बारह साल का और ये पहली मुलाकात कब दोस्ती में बदली और फिर प्यार में पता ही नही चला। दिनेश जीजू ने खुद आगे आकर दादू को सब सच बताया था अपने और दीपा दी के बारे में। और दादू ने भी इस रिश्ते को मंजुरी दी थी और उस के बाद उनके कारोबार में जो उछाल आया था जिसका श्रेय वो हमेशा दीपा दी को ही देते थे।
और आज दिनेश जीजू अपनी बहन को वो सब खुशियां देना चाहते थे जो वो दे सकते थे। आज उनका भी नाम था। रूतबा था जो हर दिन बड़ता ही जा रहा था।
"अच्छा रोली अब बता सगाई के लिए क्या लेना है", दीपा दी ने पुछा।
"भाभी मां आपको जो पसंद है वो ही ले दो ना आप, आपको पता है मुझे ये सब नही पसंद", रोली ने कहा।
"हां अब तुमको ये कटे फटे कपड़े पसंद है तो मैं क्या करूं", दीपा दी ने रोली की जीन्स को देख कहा जो घूटनो से फटी हूई थी नही नही आज का स्टाइल था।
"भाभी मां इसे फैशन कहते है", रोली ने भी इतरा कर कहा।
" ये कैसा फैशन है के फटी हूई जीन्स ही पांच हजार की है", दीपा दी ने भी उसे देख कहा।
"भाभी मां ये वाले कपड़े आपके पती देव की फेक्ट्री से ही निकलते है तो उनको कहे मुझे नही", कहते हुए रोली रूम से बाहर चली गई और दीपा दी सिर हिलाकर रह गई। और सच भी तो यही था।
कबीर जो दादू के पास बैठा उनसे कुछ काम की बातें कर रहा था, के तभी उनको एक तरफ से चीखने की आवाज आई। तो कबीर जल्दी से उठ कर उस तरफ भागा।
वहीं दिनेश जीजू, राज, रोली और दीपा दी सब लोग उसी तरफ भागे आ रहे थे। सब लोग किचन के पास आकर देखने लगे यहां से काले रंग का धुंआ निकालने लगा था।
कबीर जो आगे बड़ गया यहां पर जगजीत जी ने प्रीतम जी को पकड़कर रखा था तो वही रसोई में काम कर रहे शेफ भी एक तरफ बैठा अपने दोनो हाथ देख रहा था।
"पापा क्या हूआ", कबीर ने आगे बड़ कर पुछा।
"बेटा पता नही अभी चल पहले इनको बाहर लेकर चल", जगजीत जी ने कहा तो कबीर जो अंदर चला गया था वो जल्दी से अपनी मम्मी के हाथ पकड़कर उनको बाहर ले आया। तो वही शेफ भी पीछे पीछे बाहर आ गया।
सब हैरान से उनको देख रहे थे। यहां पर प्रीतम जी और शेफ के कपड़े भी हल्के हल्के जले हुए थे।
"ये सब कैसे हुआ", दीपा ने जल्दी से अपनी मम्मी को देख कहा।
"हम दोनो तो बस काम कर रहे थे पर पता नही कैसे कुकर फट गया", प्रीतम जी ने कहा। वही राज जो शेफ को लेकर आ रहा था, उसे एक तरफ बैठा दिया। जीजू ने तब तक डॉक्टर को फोन कर दिया था।
"अच्छा हुआ रोली बच्चे तू रसोई में नही आई", प्रीतम जी ने रोली को देख कहा वो आज कुछ बनाना सीखने वाली थी उनसे। तो वो भी सिर हिला कर रह गई।
रब राखा
कमेंट करते जाये ।
"अच्छा हुआ रोली बच्चे तू रसोई में नही आई", प्रीतम जी ने रोली को देख कहा, वो आज कुछ बनाना सीखने वाली थी उनसे। तो वो भी सिर हिला कर रह गई।
कुछ ही देर में डॉक्टर भी आ गये और उन्होंने प्रीतम जी और शेफ को ट्रीट करा। साथ ही दोनों को आराम करने का कहा।
रात हो चुकी थी, तो वहीं प्रीतम जी अपने कमरे में थी, जगजीत जी उनके पास ही थे, तो बाकी सब बाहर बैठे थे। शेफ भी अपने रूम में था। खुरानास निवास के पीछे ही दो मंजिला घर बना हुआ था, जिसमें वहां पर काम करने वाले रहते थे। वो दो मंजिला घर भी आम घरों से हटकर ही था।
"दीपा कुछ नहीं हुआ मम्मी जी को, वो ठीक है। कभी कभी हो जाता है ऐसा", दिनेश जीजू ने दीपा दी से कहा, जो कब से अपने रूम में बैठी हुई रो रही थी।
"अब बस करो मम्मी ठीक है, पर अगर कुछ हो जाता तो", उन्होंने कहा।
"कुछ हुआ तो नहीं ना, सब ठीक है चलो बाहर चलें", जीजू ने कहा और दी को लेकर बाहर आ गये। वही रोली ने दीपू को संभाला हुआ था। रसोई की तरफ तो कब से कोई गया ही नहीं था। वहां के हाल बहुत बुरे हो गये थे।
दादू अपने कमरे में बैठे हुए थे कि तभी उन्होंने अपने कान से फोन लगा लिया।
कुछ बेल पर फोन उठा लिया गया। "मेहरा कैसा है", दादू ने फोन उठाते हुए कहा, तो दूसरी तरफ से मेहरा खुशी से, "सब ठीक है दादू आप बताओ कैसे हो, और आज इस समय याद कैसे करा", मेहरा ने अपने हाथ में पहनी घड़ी को देख कहा जिस पर रात के 8 बज रहे थे।
"मेहरा बात ही ऐसी हो गई है। अच्छा आज ना घर में हादसा हो गया, जिसमें मेरी बहू और शेफ घायल हो गये। अब तुमसे क्या छुपाना मेरे पोते की सगाई है अगले हफ्ते। तो मुझे ट्रेंड शेफ चाहिये। ये काम तो मेनेजर भी कर सकता था, पर तुम पर भरोसा ही अलग है", दादू ने सब बात बताते हुए कहा।
"ये तो बहुत बुरा हुआ, आंटी ठीक है ना, आप फिक्र मत करो दादू कल ही दोपहर तक शेफ पहुंच जायेगा", मेहरा ने कहा।
"2 भेजना घर में फंक्शन है, और वैसे भी मेरी बहू को अब रसोई में तो जाने नहीं दूंगा", दादू ने कहा।
"ठीक है दादू जैसा आप कहें। कल पहुंच जायेंगे", मेहरा ने कहा तो दादू ने मुस्कुरा कर कुछ और बातें की और फोन रख दिया।
"क्या बात है भाई किस से बात कर खुश हो रहे हो आप", शमशेरा ने कहा जो वहीं बैठा हुआ था।
"कुछ नहीं छोटे वो खुरानास है ना जोरावर खुराना उनसे बात हो रही थी।"
"आप उनको जानते है?", शमशेर ने हैरानी से पूछा।
"बिल्कुल वो ही तो थे जिन्होंने उस समय मदद की थी हमारी, जब तुम बाहर थे और इस होटल पर झूठा केस हो गया था। सब से छुप कर मदद की थी उन्होंने हमारी, और जिनके बारे में तुमने पूछा भी था", मेहरा ने कहा।
शमशेरा उनको देखने लगा। "भाई एक बात बताओ आप ने आज तक सब के सामने मुझे अपना भाई क्यूं नहीं कहा। और इस होटल को भी संभालने का कहा और कभी सामने भी नहीं आने दिया। मेरे ही स्टाफ को नहीं पता मेरे बारे में", शमशेरा के सामने सुहानी का चेहरा आ गया था।
"छोटे कुछ बातें दबी रहे तो अच्छा है और वैसे भी तेरा अपना बिजनेस चल रहा है। उस में नाम भी है तो इस छोटे से होटल से नाम जोड़ कर क्या हो जायेगा", मेहरा सर ने कहा।
शमशेरा उनको देखने लगा फिर पीछे से उनको गले लगाते हुए, "अच्छा भाई अब क्या फाईल देखने लगे हो, चलो ना घर चलें", उसने कहा।
"बस जा रहे है दादू को 2 शेफ चाहीये जो उनके पोते की शादी तक उनके घर की रसोई संभाल ले", उन्होंने कहा तो शमशेरा हैरान सा रह गया।
"कबीर शादी कर रहा है, ये कैसे हो सकता है। बड़ी मालकिन, नहीं नहीं ये नहीं हो सकता", शमशेर ने मन ही मन कहा।
"इन दोनों को भेज देता हूं", मेहरा सर ने 2 रिजयूम निकाल कर कहा, तो शमशेरा जो अभी भी अपने भाई के गले लगा था उसने वो पेपर देख और फिर टेबल पर पड़े पेपर, "भाई ये जायेगी", शमशेर ने मेहर का रिजयूम उठा कर कहा।
"पर शेरा ये तो अभी अभी आई है", मेहरा सर ने हैरानी से कहा।
"अरे भाई रसोई ही तो देखनी है और वैसे भी लड़कियां रसोई के साथ साथ घर भी संभालती है", शमशेर ने मेहर की फोटो को देखते हुए कहा। तो मेहरा सर ने सिर हिला दिया।
कबीर राज ने सब को बाहर बुला लिया था और सब डाइनिंग टेबल के चारों तरफ बैठे हुए थे। "दीपा दी कुछ खा लो मम्मी ठीक है, और वो तो खाना खा रही है देखो तो सही, पापा खिला रहे है और बाकी सब भी खाना खा रहे है। बस आप ही हो जो वही सोचे जा रही हो", कबीर ने दीपा के पास बोठ कर कहा। तो वही दिनेश जीजू दीपू को खाना खिला रहे थे।
"कबीर मैं तो थक गया समझा कर पर ये पागल समझ ही नहीं रही", उन्होंने कहा।
"अच्छा दी सब ठीक है अब ना हम मम्मी को काम ही नहीं करने देगे। एक पक्की रसोई संभालने वाली रख लेंगे और मम्मी की छुट्टी", कबीर ने दीपा के हाथ पकड़ कर कहा तो दीपा उसे देखने लगी।
"ठीक है", उसने कहा और सब को देखा यहां सब उसे ही देख रहे थे।
"मम्मी पहले कभी कुकर नहीं फटा ना घर में तो मैं डर गई थी", दीपा ने कहा।
"लो जी अब दीपा का डर भगाने के लिये हफ्ते में 1 कुकर तो फटना ही चाहीये", जगजीत जी बोले तो सब हसने लगी। वही दीपा अपने पापा को देखने लगी जो उनके पास ही बैठे थे। तो जगजीत जी ने एक निवाला दीपा के मूंह में रख दिया।
"चल बच्चे देख प्रीतम ठीक है और तुम सब भी खाना खाओ", उन्होंने कहा।
"वैसे कल ही 2 शेफ आ जायेंगे, मेने अपने आदमी को बोल दिया है। बाकी वो देख लेंगे और राज 2 दिन में किचन पहले जैसी हो जाये ये काम तुम देखो", दादू ने सब को देख कहा। तो राज ने भी सिर हिला दिया।
कबीर जो के अपने सपने आने की वजह से परेशान हो गया था। वो आज अपने घर की छत पर था, और वहीं बैठा रहा, उसकी नजरें आसमान की तरफ थी और वहां पर तारे। कबीर उन तारों को देख रहा था।
"रात अच्छी लग रही है ना", कबीर के कान में आवाज पड़ी और वो उस तरफ देखने लगा।
मेहर पास बैठी आसमान को देख रही थी जो इस समय सफेद सूट में थी, बाल भी खुले थे। और उस गार्डन में बैठे हुए थे यहां पर और भी लोग घूम रहे थे।
बीर उठ कर चल दिया तो मेहर ने उसे देखा। "अच्छी है जिसे आपने चाहा, मेने कुछ ज्यादा ही बोल दिया आपको सुबह। उसके लिए माफी", मेहर ने कहा तो बीर जो आगे बढ़ रहा था वो रुक गया और पलट कर देखा।
"अरे आप रूक गये। चलो अच्छा है बस बताने आये थे कल जा रहे है हम अपने घर। वैसे शादी में बुलाएंगे ना अपनी, अरे ज्यादा नहीं खायेंगे बस उतना जितने से पेट भर जाये", मेहर ने रूके हुए बीर को देख कहा। जिसने अभी भी पलट कर नहीं देखा था उसे।
"बाय", इस शब्द के बाद आवाज आनी बंद हो गई। वही बीर जो वैसे ही खड़ा था वो खड़ा रह गया। उसने पलट कर देखा पर वहां पर कोई नहीं था, मेहर जा चुकी थी और बीर बस देखता रह गया।
कबीर जो वहीं बैठा था वो अपने चारों तरफ देखने लगा। अभी कुछ पल पहले उसे लगा के जैसे सब कुछ उसकी आंखो के सामने ही हुआ था, मेहर बीर अभी अभी उसके सामने खड़े थे और वो उनको देख रहा था।
"ये क्या हो रहा है, मैं पागल हो रहा हूं", कबीर ने अपने सिर दोनों हाथों में लेकर कहा और आसमान को देखा, यहां सब तारे ही दिख रहे थे।
"क्या है ये सब, सोचता हूं के एसा करने से ये सपने नहीं आये पर 3 दिन से लगातार जो सोचता हूं उसी पर सपना आ जाता है। वो भी इतना सच के समाने हो रहा हो", कबीर ने कहा और गहरी सांस लेकर वो उठ कर नीचे आ गया।
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"सो जा ना क्यूं परेशान कर रही है उसे", मेहर ने सुहानी से कहा जो फोन पर लगी हुई थी और हस भी रही थी।
"अरे शेरा से मेने नंबर लिया था उस का। और अब जब मैसेज करा तो पुछ रहा है कोन हो, यार मेरी डीपी लगी है बंदे से वो नही देखी गई", सुहानी ने हस्ते हुए कहा। तो मेहर उसे देख कर,
"पागल है क्या। क्या कर रही है वो लड़का है और तू उस से एसे क्यूं बात कर रही है वो कुछ गलत ना समझ ले", मेहर ने कहा।
"है! क्या मतलब ऐसे ही कोई गलत समझ लेगा। अब एक ही जगह जब हम जाते है तो हंसी मजाक तो बनता है और यार तू क्यूं इतना सोचती रहती है हर बात को कुछ नहीं होता", सुहानी ने कहा और वापस से कुछ टाइप कर सेंड दिया।
तो मेहर चादर लेकर लेट गई पर उसे अपने शरीर में अजीब सी सिहरन ही महसूस हुई। ना जाने क्यूं पर उसे एसा लगा जैसे कुछ गलत हुआ है उस के साथ, पर कभी समझ नहीं आया उसे। इस लिए वो काम पर भी साथ लड़कों से कम ही बात करती थी बस मीर को छोड़ कर।
शमशेरा जो अपने रूम में बैठा हुआ था वो भी मेसेज को देख रहा था और मुस्कुरा रहा था। पहला मैसेज आते ही उसने डीपी देखी थी के कोन कर रहा है तो सामने सुहानी की फोटो देख वो मुस्कुरा दिया।
अब वो सुहानी के लास्ट मेसेज को देख रहा था जिस में उसने लिखा था।
"अरे यार इतना भी क्या बीजी होना डीपी देखो मैं हूं सुहानी।"
तो शमशेरा उस मेसेज को देखता रहा। फिर मुस्कुरा कर, "अच्छा तुम हो मेने सोचा पता नहीं कोन सी बला पीछे पड़ गई।"
"ओये मैं बला नहीं हूं समझे ना, मैं सुहानी हूं मेहर के साथ जिसे लेने आते है, वो सुहानी आज ही तो तुमसे नंबर लिया था तुम ना बहुत बड़े वाले भूलकड़ हो", सुहानी ने लिखा।
तो शमशेरा हसने लगा, "हां हां समझ गया तूम बला नहीं सुहानी हो, अच्छा खाना खा लिया क्या।"
"हां खा लिया अब तो सोने की तैयारी है।"
"हम्म"
"तुमने खा लिया खाना", सुहानी ने लिखा।
"हा बस खाने ही वाला हूं।"
"अच्छा क्या बनाया आज तुमने।"
शमशेरा हैरान सा रह गया इस मैसेज को पड़ कर। फिर सिर हिला कर, "दाल चावल", उसने लिखा।
"हमम टेस्टी होते है, चलो ठिक है तुम खा लो। सुबह मिलते है गुड नाइट", सुहानी ने लिखा तो शमशेरा ने भी गुड नाइट लिख दिया और उठ कर अपने रूम से बाहर आया तो सामने ही उसे दो बच्चे दिखे।
"चाचा चाचा देर करदी जल्दी आओ ना आज दाल चावल बनाये है मम्मी ने", वो बोले तो शमशेरा हैरान हो गया फिर मुस्कुरा कर।
"क्या भाभी आज ये सब किस खुशी में", उसने कहा।
"वो क्या है ना देवर जी बहुत दिनों से आप घर नहीं आये थे आज आये हो तो सोचा आपकी पसंद ही बना देते है। क्या पता यही पर रहने का सोच लो आप", सामने से आ रही औरत ने कहा। तो शभशेरा बैठ कर दोनों बच्चो को देखते हुए, "भाभी ये जुड़वा को कब से भेज रही हो हॉस्टल।"
"बस चाचा जा रहे हो परसो से, आप ना हमे भेज कर ही खुश हो", एक बेटे ने कहा। तो शमशेरा ने उसके सिर पर हाथ रख बाल बिगाड़ते हुए, "चैंम्प,,,,,,,"।
"शमशेरा कहा खो गये जल्दी से आओ खाना ठंडा हो रहा है", सामने से आवाज आई तो शेरा जो अभी भी वही खड़ा था वो सब जगह देखने लगा, वहां वहां बस वो और मेहरा ही थे और कोई नहीं।
रब राखा
"शमशेरा कहां खो गए जल्दी से आओ खाना ठंडा हो रहा है", सामने से आवाज आई तो शेरा जो अभी भी वहीं खड़ा था, वो सब जगह देखने लगा, वहां बस वो और मेहरा ही थे और कोई नहीं।
शमशेरा ने चारों तरफ देखा और आगे बढ़ गया। वहीं मेहरा भी बैठ गया।
"भाई भाभी को ले आओ, वो हादसा था," शमशेरा जो चम्मच प्लेट में घुमा रहा था और उसे ही देख रहा था, उसने कहा।
"तो मेहरा के हाथ खाते-खाते रुक गए।"
"4 साल हो गए हैं, अब हमारे बीच कुछ नहीं बचा", मेहरा ने बिना उसे देखे कहा।
शमशेरा उसे देखने लगा। "भाई मां थी भाभी, माना हमारे चैम्प अब कभी वापस नहीं आ सकते, पर उनका क्या दोष? क्या गारंटी है कि आप उस जगह पर होते और हमारे चैम्पस के साथ वैसा न होता?" शमशेरा ने उसे देख कहा।
तो मेहरा उसे देखने लगा। "आखिरी कोशिश तक लग जाता पर ऐसे हार मान कर नहीं देखता।"
"भाई आप समझ नहीं रहे, माना वो समय एक्शन का था, पर वो मां थी, नहीं रही उनको होश अपने बच्चों को वैसे देख कर। पर इसका मतलब ये तो नहीं के आप इस तरह से उनसे बेखबर ही हो जाएं।"
"देख शमशेर, मुझे कुछ नहीं सुनना। मेरे लिए मेरे बच्चों के हमे छोड़ जाने की वजह वही थी। वो चाहती तो बच्चों को हॉस्पिटल ले जाती। मेरे बेटे बच जाते। पर उसने कुछ करा ही नहीं, देखा था ना उस कैमरे में। कैसे वो वहीं बैठी रही बिना किसी रिस्पांस के और कार धूं-धूं कर जलती रही", मेहरा ने कहा।
"भाई भाभी बैठी नहीं थी, वो दीवार से लगी अपने बच्चों को देख बेहोश हो गई थी। आप को समझ क्यूं नहीं आ रहा।"
"नहीं समझना मुझे शेरा, नहीं समझना मुझे", मेहरा ने अपनी जगह से खड़े होते हुए कहा और जाने लगा।
"भाई उस समय भाभी प्रेगनेंट थी," शमशेरा ने कहा तो मेहरा के कदम रुक गए। उसने शमशेरा को देखा जो उसे ही देख रहा था।
"हां भाई सच है, उस समय भाभी प्रेगनेंट थी, और ये बात उन्होंने एक रात पहले मुझे बताई थी फोन पर। और आपको सरप्राइज देना चाहती थी इसलिए आपको बताया नहीं, पर ये नहीं पता था के कुछ घंटों बाद उनकी जिंदगी ऐसे बदल जाएगी", शमशेरा ने कहा।
मेहरा चुप सा देखता ही रह गया। शमशेरा अपने भाई के पास गया। "भाई वो उस समय किस दिमागी हालत में होगी ये आप समझ सकते हैं, उस सुनसान सड़क पर भाभी ने कार रोकी थी, उसकी वजह यही थी के उनको वोमेटि होने लगी थी। अगर उनको पता होता के एक्सीडेंट हो जाएगा तो वो कभी कार नहीं रोकती, नहीं रोकती वो कार, वो ऐसा कभी नहीं करती भाई, भाभी को ले आओ अपनी बेटी को ले आओ भाई प्लीज", शमशेरा ने कहा।
मेहरा के तो पैरों में जान ही नहीं रही, वो लड़खड़ा गया था पर शमशेरा ने उसे पकड़ लिया।
"तुम मिले सारिका से", मेहरा ने पूछा।
"बिल्कुल उनकी हर जरूरत का ध्यान है मुझे, भाभी है वो मेरी", शमशेरा ने कहा।
"ये मेने क्या कर दिया अपने दुख को देखा उसे देखा ही नहीं, कैसे वो रही होगी उसका तो कोई है भी नहीं मेरे सिवाय", मेहरा ने कहा।
"मैं हूं भाई मेने भाभी को नहीं छोड़ा था, चलो उनको घर लेकर आते है", शमशेरा ने कहा तो मेहरा उसे देखने लगा।
"चलो भाई", कहते हुए शमशेरा उसे लेकर चल दिया।
लगभग 2 घंटे की ड्राइव के बाद शमशेरा शहर से बाहर आ गया था। यहां सामने ही एक, दो मंजली घर बना हुआ था। "चलो भाई अंदर चलें", शमशेरा ने कहा और खुद बाहर आ गया। वही मेहरा चुप सा था जो एक तरफ खड़ा था।
शमशेरा ने आगे बढ़ कर उस घर की बेल लगा दी। वही मेहरा चुप सा था जो एक तरफ खड़ा था।
"शेरा आ गये तुम", दरवाजा खोल सामने खड़ी औरत ने कहा तो शमशेरा ने मुस्कुरा कर सिर हिला दिया। "चलो फिर अंदर, आज तुम्हारे मनपसंद के दाल चावल बनाए है", उस औरत ने कहा।
"भाभी", शमशेरा बोला। तो वो औरत उसे देखने लगी। तभी एक तरफ खड़ा मेहरा सामने आ गया जिसे देखते ही उस औरत के चेहरे पर हैरानी झलकी।
"सारिका", उसने कहा। सारिका शमशेरा की भाभी ने उसे देखा तो उसने सिर हां में हिला दिया। सारिका दरवाजे से एक तरफ हट गई तो वो दोनो आगे बढ़ गये।
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कबीर जो आज रात भर नहीं सोया था वो सुबह 6 बजे दादू के कमरे में आ गया तो देखा दादू जग गये थे।
"क्या हुआ आज नींद नहीं आई क्या", दादू ने कहा तो कबीर ने ना में सिर हिला दिया।
"आ जा फिर", उन्होंने कहा। वो अभी बेड पर ही बैठे हुए थे। कबीर भी उनके पास आकर उनकी गोद में सिर रख लेट गया।
"तैनू पता ए ना कबीर जदों तूं छोटा सी उस समय वी इसे तरां ही आजाया करदा सी जदों रात नूं नींद नहीं आउंदी सी। (तुमहे पता है ना कबीर जब तूम छोटे थे तब भी ऐसे ही आ जाया करते थे जब रात को नींद नही आती थी)", दादू ने कबीर के सिर में हाथ फेरते हुए कहा तो कबीर ने आंखे बंद कर ली।
"अज वी नी आ रही नींद दादू, (आज भी नींद नही आ रही दादू)", कबीर ने कहा।
"क्यूं, की सोच दा पया, कंम ते चंगा चल रिआ आ तेरा, फिर किस गल दी टेंशन (कयूं क्या सोच रहे हो काम तो अच्छा चल रहा है तुम्हारा फिर किस बात कि टेंशन)", दादू ने कहा।
कबीर ने आंखे खोल उनको देखे, फिर मुस्कुरा कर, "बस दादू कुछ बातें है जब वो समझ आ जायेंगी तब बताऊंगा आपको", उसने कहा।
"तो ठीक है फिर सो जा अब मेरे कोल", दादू ने कहा और उसके सिर पर हाथ फेरने लगे। वही कबीर भी सो गया।
"अरे शेरा आज लेट कैसे हो गए तूम देखो पुरे पांच मिनट लेट हो", सुहानी ने कहा।
वही शमशेरा उसके सामने आकर, "वो बस आज कुछ खास काम था जरूरी था, बैठो आप दोनो", उसने गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए कहा तो मेहर बैठ गई।
वहीं सुहानी ने दरवाजा बंद करा और आगे बैठते हुए, "मैं तो यहीं बैठूंगी अब तो हम दोस्त हो गये ना", उसने कहा तो शमशेरा सिर हिला कर ड्राइविंग सीट पर आ गया। वही मेहर ने सुहानी को देखे फिर शमशेरा को तो उसे स्माईल कर दी।
"अच्छा शेरा एक बात बताओ हम तो दोनो है, अम्मा के यहां पर रहती है, किरायेदार की तरह, वो बात अलग है वो हमसे पैसे नही लेती पर हम देते है, और तूमको हमारे बारे में पता भी चल ही गया है तुम बताओ अपने बारे में", सुहानी ने कहा। तो शेरा के चेहरे पर स्माईल आ गई।
"मैं हूं, भाई है, भाभी है और लगभग 3 साल की उनकी बेटी बस हम हैं", शेरा ने कहा तो सुहानी उसे देखने लगी।
"तो तुम्हारा अपना घर है यहां पर", उसने हैरानी से कहा तो शेरा ने सिर हिला दिया।
"अच्छा कितना बड़ा घर है, 2 बेड रूम का, अब इतना तो होगा ही ना, वैसे कितना खर्च आता है इतना बड़ा घर लेने में, मुझे भी अपना घर लेना है", सुहानी ने कहा। वही शमशेरा उसे देखने लगा तो मेहर ने पीछे से उसके सिर पर हाथ मार दिया।
"पागल हो गई है क्या कैसी बातें कर रही हो, चुप चाप बैठी रहो", मेहर ने कहा और शमशेरा को देखकर, "ये ना ऐसी ही है इसके मुंह में जो भी आता है वो ही बोल देती है", तो शेरा ने सिर हिला दिया।
उसके बाद तो जैसे कार में शांति हो गई थी। सुहानी गुस्सा कर बैठ गई तो मेहर भी चुप सी बाहर देखने लगी। शेरा ने एक नजर रूठी हुई सुहानी को देखा जिसके गाल फुले हुए थे।
कार रुकते ही सुहानी उतरी और जोर से दरवाजा बंद कर चलने लगी मेहर शमशेरा दोनो ने उसे देखा था।
"ये पागल है ऐसी ही है इस पर ध्यान मत देना", मेहर ने कहा।
"चुप बिल्कुल चुप, मुझ पर ध्यान देना शेरा मैं जैसी भी हूं अच्छी हूं बाते तो करती हूं, इसकी तरह चुप सी तो नही रहती ना", सुहानी ने पीछे आते हुए कहा और फिर मेहर को देख कर, "तू देखेगी अब मैं ना 4 बेडरूम वाला घर खरीदूंगी, और बहुत जल्द लूंगी तूम दोनो को दिखाऊंगी", सुहानी ने कहा और वापस चली गई।
शमशेरा तो उसे देखता ही रह गया। वही मेहर ने सिर हिला दिया, "इसे क्या हुआ", शमशेरा ने पूछा।
"वो बस मेने रात को इसे टोका था तुमसे बात करने को और फिर सुबह शूरू होने वाली थी फोन पर। तब भी टोक दिया और अब कार में भी टोका ना तो इसी चीज का गुस्सा है इसे।"
"पर इस ने तो घर की बात की", शमशेरा ने कहा।
"शेरा हम दोनो अनाथ है और ये जो सपने देख रही है ना पुरे करने के, उनको तो देखनी की हिम्मत भी नही करनी चाहीये हमे। बहुत बड़े सपने है इसके।"
"पर मैं इस से उल्ट हुं। बस उतना ही चाहती हूं जितना मैं कर सकूं क्यूंकि हमे खुद ही खुद को पालना है, कोई नहीं है हमारे लिए और शायद होगा भी नहीं। बस इसे समझाने की कोशिश करती हूं पर ये समझती ही नही है", मेहर ने कहा तो शमशेरा उसे देखता ही रह गया।
"मैं ऐसी ही हूं मेरी हैसियत जो है बस उतना ही सोचती हूं और सुहानी को भी यही कहती हूं तुम भी सोच समझकर बोला करो पर वो समझती ही नही।"
"पर फिर भी अगर कभी जिंदगी में आपको लगे के ये आपके दायरे से बड़ कर भगवान ने दिया है तब क्या।"
"तो जरूर उसके पीछे कोई वजह होगी बीना वजह तो पत्ता भी नही हिलता", मेहर ने कहा और आगे चल दी। शेरा चुप सा रह गया।
"बड़ी मालकिन आप के लिए अच्छा तो सोचा ही है भगवान ने वर्ना वो बोल कभी सच नही होते", शमशेरा ने जा रही मेहर को देख कहा और फिर वो भी चल दिया।
"पर सर मैं कैसे जा सकती हूं अभी तो 2 दिन ही हूए है मुझे आये हुए यहां पर", मेहर ने मीर से कहा।
"तो क्या हो गया यहां पर तूम अपनी काबलियत से ही आई हो तो बस उसी काबलियत पर तुमको आज मेरे साथ जाना है। हमे दोपहर तक पहुंचना है वहां पर तो तुम अभी के अभी घर जाओ पैकिंग कर लो और 2 घंटे बाद यानी के 10 बजे मैं तुमको लेने पहुंच जाऊंगा", मीर ने कहा तो मेहर उसे देखती ही रह गई।
"मेहर ये सब सर ने कहा है आज वो आ नही पाये पर हमे ये काम तो करना है ना।"
"जी सर क्या में सुहानी से मिल लूं उसे बता दूं", मेहर ने कहा तो मीर ने सिर हिला दिया।
मेहर ने देखा सुहानी दूसरी तरफ लगी हुई थी। वो उसके पास गई पर उसने मेहर से बात नही की।
"चल सॉरी पर अब मुझे कुछ दिनो के लिए जाना है तो अपना ध्यान रखना", मेहर ने कहा और वहां से चली गई। वही मीर जो उसका नीचे इंतजार कर रहा था उसने मेहर के बैठते ही अपनी बाइक आगे बड़ा दी, इस समय शमशेरा नही जा पाया था वो तो पहले ही अपने ऑफिस के लिए निकल गया था।
"सर आप मुझे बस स्टैंड छोड़ो दें वहीं से चली जाऊंगी।"
"मेरा घर उसी तरफ पड़ता है तो छोड़ देता हूं", मीर ने कहा तो मेहर ने सिर हिला दिया।
"अच्छा अम्मा जा रही हूं मैं अपना और उस पागल का ध्यान रखना, आज ना मुझसे रूठी है तो आप मना लेना उसे", मेहर ने अम्मा से कहा तो अम्मा ने मेहर के सिर पर हाथ रख दिया।
"ठीक है अपना ध्यान रखना" अम्मा ने कहा तो मेहर घर से बाहर निकल गई तो सामने ही मीर बाईक पर दिखा।
"मेहर ये हैंडसम है क्या", अम्मा ने मेहर का हाथ पकड़कर कहा तो मेहर अम्मा को देखने लगी।
"अरे अम्मा सगाई हो गई है, अब ये हैंडसम हो जा ना हो क्या करना", मेहर ने कहा तो अम्मा मेहर को देख कर, "दूर बैठना इस से देखने से तो चालू लग रहा है", उन्होंने कहा।
मेहर मुस्कुरा दी, "ठीक है आब आप अंदर जाओ, मैं दोपहर तक पहुंच कर फोन कर दूंगी", मेहर ने अम्मा के गले लगते हुए कहा और आगे बढ़ गई।
रब राखा
क्या होगा जब मेहर कबीर आमने सामने आयेंगे।
मीर और मेहर दोनों चल दिए थे। मीर ने मेहर को हेलमेट पहनने को दिया था और खुद किटू को बता दिया कि उसे जाना पड़ रहा है मेहर के साथ, तो किटू ने भी उसे सही से जाने को कहा था।
मेहर और मीर इस समय उसी रास्ते पर थे जिस रास्ते से कबीर भी आया जाया करता था। दोनों तरफ खुले मैदान जैसे खेत थे और दूर-दूर पहाड़ियाँ दिखाई दे रही थीं।
मेहर ये सब देखते हुए जा रही थी। वो पहली बार इस तरह से बाहर आई थी, ज्यादातर तो पढ़ाई और काम, इसी बीच वो दोनों रहती थीं। और पढ़ाई खत्म होते ही दोनों ने जॉब ढूंढ ली थी। 2 साल से वो दोनों शहर के एक रेस्ट्रां में काम कर रही थीं। वहाँ पर भी वो दोनों सीख ही रही थीं। और जब दोनों को यहाँ काम मिला तो वहाँ के स्टाफ ने दोनों को बहुत अच्छे से ट्रीट दी थी।
"वैसे अच्छी जगह है, तो कुछ देर रूकें," मेहर ने कहा तो मीर ने कुछ आगे एक पेड़ के नीचे बाइक रोक दी।
तो वहीं मेहर ने जल्दी से उतर कर हेलमेट उतारा और चारों तरफ देखने लगी। पीछे बैग उसने बाइक पर ही रख दिया था। "अच्छी जगह है ना," मीर ने कहा तो मेहर ने उसे देख सिर हाँ में हिला दिया।
और दोनों इधर-उधर देखने लगे। "चलें, बस कुछ ही दूरी पर है वो घर, जहाँ जाना है हमें," मीर ने बाइक की तरफ चलते हुए कहा तो मेहर जो सड़क के दूसरी तरफ खड़ी थी वो भी उसकी तरफ चल दी। लेकिन तभी सामने से आ रही तेज़ रफ़्तार कार जो सीधी चली आ रही थी, मेहर उसे देख पीछे ही रुक गई। लेकिन वो कार तो सीधा मेहर की तरफ ही बढ़ती चली जा रही थी।
"मेहर जंप," मीर की आवाज़ आई तो मेहर ने उसे देखा, तब तक मीर भाग कर आया और मेहर का हाथ पकड़ते हुए उसे पीछे खेत की तरफ जंप करवा दिया। साथ ही खुद भी। और वो कार उसी जगह से आगे बढ़ गई जहाँ पर मेहर खड़ी थी।
"मेहर आर यू ओके," मीर ने उस कार को देखते हुए कहा। तो मेहर जो उस खेत में उसके साथ गिरी थी, वो उसे देखने लगी।
"बस उतनी ही ठीक हूँ जितना आप," उसने कहा तो मीर ने उसे देखा। दोनों एक पल को एक-दूसरे को देखते ही रह गए, फिर अगले पल ज़ोर-ज़ोर से हँस दिए।
दोनों ही सिर से लेकर पैर तक मिट्टी से सन चुके थे। खेत में पानी लगा हुआ था और उसी वजह से वो दोनों अच्छे खासे गंदे हो गए थे।
"चलो उठो," मीर ने उसके आगे हाथ करते हुए कहा तो मेहर ने भी उसका हाथ पकड़ लिया और खड़ी हो गई। दोनों उस खेत से बाहर आए और इधर-उधर देखने लगे। उनको वहाँ पर कहीं भी पानी नहीं दिख रहा था, ट्यूबवेल थे पर बंद थे।
"लगता है ऐसे ही जाना पड़ेगा," मीर ने कहा तो मेहर ने सिर हिला दिया। बैग तो बच गए थे तो उनको मीर ने आगे रख लिया और चल दिए आगे के सफ़र पर। हेलमेट लगाने की भी अब ज़रूरत नहीं थी।
मीर और मेहर दोनों ही उस गेट के सामने खड़े थे। वहीं गार्ड ने उनको अंदर जाने से रोक दिया था। उसने अंदर फ़ोन कर दिया था के एक लड़का-लड़की आये है और खुद को यहाँ पर काम करने का बता रहे हैं। दादू ने कहा के उनको अंदर भेज दो तो वो गार्ड दोनों को देख कर, "दादू ये बहुत अजीब है, मिट्टी से भरे हुए।"
"अच्छा तुम रुको मैं अभी आता हूँ," दादू ने कहा और दिनेश को देखा जो उनके पास ही बैठा था। "चलो दिनेश हमें अभी जाना होगा, वो बाहर कुछ हो गया है," दादू ने कहा तो दिनेश जीजू उनके साथ चल दिए। जल्दी पहुँचने के लिए वो कार से ही वहाँ पर आए थे। तो वो भी दोनों को ऐसे देख हैरान थे।
उसी समय उनके पास एक पानी का टैंकर खड़ा था। वो अंदर पानी पहुँचाने के लिए क्यूंकि आज सुबह ही घर के पानी का सिस्टम कहीं से खराब हो गया था, जिसके लिए जगजीत जी ने फ़ोन रहा था। एक टैंकर पहले चला गया था अब दूसरा टैंकर आया था। और उसी बड़े से गेट से अंदर जाने की तैयारी में थे।
"देखे हम गोल्डन रोज होटल से आये है मेहरा सर ने भेजा है, मेरा नाम मीर है," मीर ने कहा। तो वहीं मेहर सिर झुकाये खड़ी थी।
"अच्छा तुम्हारे साथ तो लड़का आने वाला था मेहरा ने बताया था," दादू ने पूछा।
"जी सर पर सुबह उसकी तबीयत खराब हो गई थी तो मेरे साथ मेहर को भेजा है," मीर ने कहा। दादू ने दोनों को देखा उपर से नीचे तक।
"वैसे ये कबड्डी कहाँ खेल कर आए हो," दिनेश जीजू ने कहा। तो मेहर को अब गुस्सा आने लगा था। "कैसे लोग है, ये नहीं के अंदर ले जाये हमे फ्रेश होने को कहे। पर नहीं सवाल पर सवाल करे जा रहे है," उसने मन ही मन कहा।
"सर हम सभी बातों का जवाब दे देंगे अगर 15 मिनट दे दें, हम लोग साफ-सुथरे हो जाएँ," मीर ने कहा, वो भी अब मिट्टी की वजह से खीज गया था।
"चलो अंदर चलो फ्रेश हो जाओ पहले," दादू ने कहा तो मीर बाइक लेने लगा।
"इसे यहीं रहने दो साफ होकर अंदर आ जायेगी, तुम दोनों चलो," कहते हुए दादू आगे-आगे चल दिए तो वही मीर मेहर पीछे-पीछे।
तभी वो टैंकर जो उनके आगे-आगे जा रहा था वो रुक गया और उसकी पाइप अचानक ही खुल गई और उसमें से सफ़ेद तरल निकल कर एकदम से ही मेहर और मीर पर गिरने लगा। दिनेश जीजू ने दादू को पहले ही एक तरफ कर दिया था तो वो दोनों भी देखते ही रह गए। वही मेहर और मीर उस तरल में अच्छे खासे भीग गए। ड्राइवर और हेल्पर ने उस पाइप को बंद करने की कोशिश की पर वो बंद नहीं हुआ।
"माफ़ कीजिये सर इस टैंकर में दूध था, गलती से आ गया," पीछे से भागते हुए एक आदमी ने कहा।
"कोई बात नहीं," दादू ने कहा उनका ध्यान तो सामने खड़ी मेहर और मीर पर था यहाँ मेहर ने अपना चेहरा हाथो से ढका हुआ था।
तभी वो दूध बंद हुआ तो मेहर ने धीरे से चेहरा उपर कर अपने हाथ हटाये। जो चेहरा मिट्टी से सना था वो एकदम साफ बेदाग सा सब के सामने आ गया। दिनेश जीजू तो देखते ही रह गए वही दादू भी।
"अरे ये क्या हो गया अब यहाँ की सफाई कैसे होगी," दीपा दी बोली वो भी सामने ये सब देखते हुए उसी तरफ चल दी थी।
मेहर सब को देख रही थी फिर खुद को और पास खड़े मीर को देखा जो उसकी तरह ही पूरा भीग गया था, उनके बैग भी भीग गये थे पूरी तरह से, अब ये लाज़मी था के अंदर रखा सामान भी भीग ही गया होगा।
"अगर आपको पता था के ये पाइप लीक करने वाला है तो हमे भी हटने का बोल देते आप," मेहर ने आखिर कह ही दिया दिनेश को, तो दिनेश उसे देखने लगा।
"वैल ये अच्छी बात है देखा आप दोनों फ्रेश हो गये। मतलब अब कोई भी मैल नहीं रही आप दोनों पर," दिनेश जीजू ने कहा तो मेहर ने मीर को देखा जिसने सिर हिला दिया।
"चलो सब अंदर चलो। धीनू काका दोनों को पीछे ले जाओ," दिनेश जीजू ने कहा तो धीनू काका जो दादू की ही उम्र के थे वो उनके पास आ गये।
"वो पीछे के घर में कहा रखे। वहाँ पर तो जगह नहीं है," धीनू काका ने कहा।
"कोई बात नहीं काका हमारे साथ रह लेंगे चलो," कहते हुए दीपा मेहर को अपने साथ लेकर चल दी तो वही मीर भी चल दिया।
ग्राउंड फ्लोर पर ही पीछे की तरफ बने रूम कम ही इस्तेमाल में आते थे तो दीपा मेहर को एक में ले गई जो अच्छे से सजा हुआ था।
"वैसे तुम्हारा नाम क्या है," दीपा दी ने पूछा तो मेहर जो अपना पीठू बैग उतार रही थी उसने उनको देख कर "मेहर" उसने कहा और जिप खोल कर कपड़े देखने लगी।
"नही ये भी सब खराब हो गये," उसने कहा और फिर जल्दी से खड़ी होकर अपने जेब से फोन निकाल देखने लगी। जो बंद हो गया था। मेहर ने एक बार दीपा को देखा जो उसे ही देख रही थी। फिर वापस फोन को देखने लगी।
"बंद हो गया ना," दीपा दी ने कहा तो मेहर ने सिर हाँ में हिला दिया।
"कोई बात नहीं। मैं अभी आई," कहते हुए वो बाहर चली गई तो मेहर ने अपने फोन के सारे पार्ट खोलने की कोशिश की। पर बस सिम कार्ड ही वो बाहर निकाल पाई थी। बाकी फोन वैसा का वैसा ही था। मेहर ने धीरे धीरे से अपना बैग खाली करा और सब कपड़े देखे जो दूध का सनान कर चुके थे।
"अब मैं क्या पहनूँगी," वो खुद से ही बोली।
"ये पहन लो और ये सब कपड़े इनको दे दो शाम तक मिल जायेंगे," दीपा दी ने रूम में आते हुए कहा और साथ ही मेहर के आगे कुर्ते के सेट कर दिये। मेहर उनको देखने लगी।
"नही मैं ये सब नही ले सकती," उसने कहा।
"देखो मम्मी अभी ठीक नही है, और हम सब ने सुबह से कुछ ज्यादा खाया भी नही है। तुम्हारे पास बीस मिनट है जल्दी से चेंज कर लो, ये रहा सब सामान तुमको जो चाहिए वो इस्तेमाल करो यहाँ पर सब ऐसा ही है तो फॉरमेलटी की जरूरत नही है। बस इतना ध्यान रखना भूख बहुत लग रही है और साडे बारह हो गए है," दीपा दी ने कहा और वो कुर्ता सेट बेड पर रख चली गई वही उनके साथ आई दो लड़कियां जो मेहर को ही देख रही थी उनमें से एक ने आगे बड़ मेहर के गीले कपड़े उठा लिया तो दूसरी ने एक बास्केट उसके आगे रख दी। दोनों चली गई।
मेहर ने वो बास्केट देखी तो उसमे सब सामान था, मेहर ने जल्दी से जरूरत का सामान उठाया और शैम्पू लेती वो बाथरूम की तरफ की तरफ चली गई।
सब लोग हॉल में बैठे हुए थे, डाइनिंग टेबल की तरफ टिकटिकी लगाये थे। पर अभी तक वहा पर कोई भी डिश नही पहुँच थी।
वही घर के गैलरी यहा पर कम ही जाया जाता था उसे पुरी तरह से किचन में बदल दिया गया था। जरूरत का सारा सामान वही पर था। जिसे मेहर मीर जल्दी जल्दी बना रहे थे।
मेहर मीर जल्दी जल्दी से अपने काम में लगे हुए थे। यहाँ मेहर ने वही कुर्ता पहना था जिसके साथ प्लाजो था जो दीपा ने दिया। मेहर पर वो फिट आ रहा था। बाल गीले होने की वजह से उनको पीछे कल्चर में बांध रखे थे। समय भी अब डेड बजने वाला था।
"मम्मी बहुत भुख लगी है," दीपा दी ने कहा।
"दीपा तुम तो अब ऐसे कर रही हो जैसे तुमको कुछ करना ही नही आता। कुछ बना लेती ना," दिनेश जीजू ने कहा वो दीपू के साथ लगे हुए थे।
"देखो जी अपनी मम्मी के घर आकर कोई भी लड़की काम नही करती तो मैं क्यूँ करूँ और वैसे भी रोज रोज मैं ही तो खाना बनाती हूं आज तो ट्रेंड शेफ के हाथ का खाना खाएंगे," दीपा दी ने कहा।
वही जगजीत प्रीतम जी अपने बच्चो को देख खुश हो रहे थे। रोली भी जो अभी अभी अपने रूम से बाहर आई थी वो वहीं बैठी थी। और उनकी बातों को सुन रही थी।
"पापा आपको पता हो आज तो एक चमत्कार हुआ, मेने ना कहीं सुना था के जब घर की बहू घर में पहली बार कदम रखती है ना तब उसे दूध से नहलाया जाता है। और आज वैसा ही हुआ मेहर और मीर दोनो अच्छे से नहाए दूध से," दीपा ने बताया।
"अच्छा और ये कहा की रस्म है हमने तो अभी तक नही सुनी," दिनेश जीजू बोले।
"आपसे कोई मतलब अरे कहानी है जो दादू बचपन में हम दोनों भाई बहन को सुनाया करते थे," दीपा दी ने कहा।
"ओर उस कहानी को सुने बीना तुम दोनो को नींद भी नही आती थी," प्रीतम जी ने कहा।
"हां मम्मी पर अब तो हल्की सी कुछ बातें ही याद है, दादू अब भी आपको याद है क्या वो कहानी," दीपा ने कहा तो दादू उसे देखने लगे।
"बिल्कुल याद है ना," उन्होंने मुस्कुरा कर कहा। तो वही डाइनिंग टेबल पर एक के बाद एक डिशेज रखनी शूरू शगई थी।
रब राखा।
डाइनिंग टेबल पर अब सामान रखना शुरू हो गया था। वही बाकी सब उस तरफ देखने लगे।
"चलो चलो जल्दी चलो खाना लग गया," दीपा दी ने कहा तो सब उठ के उस तरफ चल दिए।
"क्या बात हे खुशबु तो बहुत ही अच्छी आ रही है," दादू ने कहा। तो वही सब खाना खाने लगे।
"राज और कबीर कहा है, वो भी खाना खा लेते, दोपहर हो गई है," प्रीतम जी ने कहा। तो जगजीत जी जो प्रीतम जी को खाना खिला रहे थे, "रात को लेट सोये थे दोनों, काम कर रहे थे अपना," उन्होंने कहा।
"दीपा क्या सोच रही हो, खाना खाओ भूख लगी थी ना," जीजू ने कहा तो दी उनको देख कर, "वो देखो वो लड़की मेहर दिख रही है ना," दी ने कहा। तो जीजू भी उस तरफ देखने लगे। यहां मेहर कुछ सामान लेकर चली आ रही थी।
"हां देख रहा हु, सुंदर है," उन्होंने कहा तो दी ने उनको घूर कर देखा।
"क्या अब तुमने ही तो कहा था देखो तो देख लीआ," जीजू ने कहा।
"बस बातें करालो आपसे जितनी मर्जी। में तो ये कह रही थी के मेने जो सूट दिया है, उस में कितनी प्यारी लग रहे है," दी ने कहा तो जीजू ने फिर से मेहर को देखा जो दादू को खाना सर्वे कर रही थी।
"बिलकुल सूट तो बहुत प्यारा है," जीजू ने कहा और खाना खाने लगे। वही दीपा दी मेहर को देखने लगी जो वही पर सब को खाना सर्व कर रही थी।
"भाभी दीपू तो कुछ खा ही नहीं रही है क्या करू," रोली ने कहा तो दीपा दी उसे देखने लग गयी।
"क्या हुआ मरे बच्चे को नीनी आ रही है क्या, चलो पहले आपको सुला दू फिर खाना खाती हूँ," दी ने दीपू को गोद में लेते हुए कहा और उठ कर चल दी।
"वाह बच्चे आपने तो खाना बहुत ही टेस्टी बनाया है, पेट भर गया पर दिल नहीं भरा," दादू ने कहा तो मेहर मुस्कुरा दी और सब को देखा, सब ने खाना खा लिए था।
"अब तुम दोनो भी खाना खा लो फिर आराम कर लेना, थक गए हो गे तुम दोनों भी," प्रीतम जी ने कहा तो मेहर ने सिर हिला दिया।
सब अपने अपने रूम्स में चले गए तो वही मेहर रसोई में आ गई और मीर को देख कर, "चलो हम भी खाना खा लेते है," उस ने कहा तो मीर भी मेहर के साथ बाहर आ कर बैठ गया। "वाह मेहर सच में खाना तो बहुत टेस्टी बना है," मीर ने खाते हुए कहा।
"बस करो सर अपने ही तो बनाया है, दादू भी मुझे ही बोल गए," मेहर ने कहा तो मीर जो खाना खा रहा था मेहर को देख कर, "पागल सब्जी को झोंक तो तुमने ही लगाया था ना," मीर ने कहा तो मेहर उसे देखने लगी।
"हाँ वैसे बोल तो सही रहे हो आप," उसने कहा और दोनों मुस्कुरा दिए। "वैसे घर बहुत बड़ा है," मेहर ने घर को देखते हुए कहा। "उसका ध्यान अभी इस तरफ गया था।"
"बिलकुल इस बात में कोई शक नहीं," मीर ने कहा, वो भी घर को ही देख रहा था।
"अच्छा है ना घर," एक आवाज आई तो दोनों उस तरफ देखने लगे। ये दीपा दी थी जो कुर्सी पीछे करती हुई बैठ गई और खुद के लिए खाना निकालने लगी।
"जी आपका घर बहुत सूंदर है," मेहर ने कहा तो दीपा उसे देखने लगी। "मेहर बहुत अच्छा नाम है," दी ने कहा तो मेहर ने सिर हिला दिया। दीपा अपने खाने में लग गयी तो वही मेहर मीर दोनों अपनी अपनी प्लेट उठा कर जाने लगे।
"कहां जा रहे हो, खाना तो खा लो," दी ने दोनों को देख कहा। "आप खाना खाओ हम दोनों अंदर किचन में खा लेंगे," मीर ने कहा।
"कमाल कर रहे हो तुम दोनों मै अकेली खाना खाउं," दी ने कहा। मेहर मीर एकदूसरे को देखने लगे।
"अरे बैठ जाओ न, मुझे भी कुछ टिप्स मिल जाये गी खान बनाने की तुम लोगो से," दी ने कहा तो वो दोनों बैठ गये और खान खाने लगे।
कबीर को नींद तो आ नहीं रही थी। वो कब से ऐसे ही आँखे बंद कर लेटा हुआ था। उस के दिल की धड़कन वैसे ही बड़ रखी थी। वो उठ कर बैठ गया, समय देखा तो दोपहर के 2 बज रहे थे। बालों में हाथ फेरते हुए वो बाहर आया और सामने देखने लगा यहाँ पर कोई भी नहीं था।
कबीर वैसे ही बालों में हाथ फेरते हुए रसोई की तरफ चल दिया। जिस रसोई के हाल खरब थे, वही एक तरह लड़की कुछ ढूंढ रही थी जिस की पीठ कबीर की तरफ थी और उस के बाल पीठ पर लहरा रहे थे। कबीर उसे देखने लग गया। पता नहीं कियु पुर कबीर को अच्छा लग रहा था उस लड़की को देखना। और वो वैसे ही पीछे की तरफ दीवार से लग कर देखने लगा।
वो लकड़ी जो निचे झुक कर कुछ देख रही थी वो खड़ी हो गयी और ऊपर के केबनेट खोल कर देखने लगी। "ये डिब्बा तो यह पर है और में कहा कहा देख रही थी," कहते हुए वो लड़की डिब्बे को उतरने लगी पर उस का हाथ वहां तक नहीं जा रहा था, तो वो लड़की बिना इधर उधर देखे स्लैब पर चढ़ गयी।
कबीर उसे देखता ही रह गया और वो लड़की उस डिब्बे को लेकर नीच उतर गयी और जैसे हे पलट कर देखा तो अपने सामने एक लड़के को देख वो हैरान सी हो गयी।
वही कबीर जो अभी तक तो बस चुप सा था, जो कुछ समय के लिए अपनी बैचेनी से बेखबर हो गया था, वो अपने सामने मेहर को देख कर हैरान हो गया।
"सो सॉरी सर," मेहर ने कहा और वो वहां से बाहर चली गयी, तो कबीर भी उसके पीछे पीछे चल दिआ।
मेहर जो टम्पररी रसोई में जा रही थी, कबीर भी उस के पीछे पीछे चला जा रहा था, तो सामने ही उसे रोली दिखी जो वहां पर थी। "अरे कबीर तुम यहां," रोली ने कहा तो मेहर जो अपने ध्यान चली आ रही थी, उस ने हैरानी से पीछे देखा यहां कबीर खड़ा था।
"मेहर ये कबीर है," रोली ने कहा तो मेहर ने सिर हिला दिआ।
"तू यहां क्या कर रही है और ये कौन है," कबीर ने वहां पर लगी कुर्सी पर बैठते हुए कहा और मेहर की तरफ देख इशारा कर दिआ।
"औ ये मेहर है शेफ, दादू ने बुलाया है," रोली ने कहा तो कबीर मेहर को देखने लगा जो रसोई से लाये डिब्बे से बेसन निकाल बॉउल में ढाल रही थी। कबीर के चेहरे पर स्माईल आ गई और वो मेहर को देखने लग गया।
वही मेहर अपने काम में लगी हूई थी। "क्या यहां पर क्यूं, जाओ तुमको काम होगा ना," रोली ने कहा तो कबीर उसे देखने लगा।
"अभी उठ कर आया हूं। खाना तो पुछ ले बस काम काम हर समय काम की पड़ी रहती है तुमको," चल मुझे खाना दे, कबीर वहीं कुर्सी के सामने लगे टेबल पर हाथ रख बोला।
"खाना और मैं, आज तक तो पानी का गिलास नही उठाया और खाना दूं तुमको।" रोली ने कहा तो मेहर हैरान सी उसे देखने लगी।
"तो फिर तू यहां पर क्या कर रही है, जब पानी का गिलास भी नही उठाती। जा भाग जा यहां से," कबीर ने कहा।
फिर हैरान सी मेहर को देखा जो रोली को देख रही थी और रोली कबीर को घुर रही थी।
"और आप मुझे खाना देंगी," कबीर ने मेहर से कहा तो मेहर उसे देखने लगी, फिर सिर हां में हिला दिया।
"पहले मुझे पकोड़े बनाना सीखाओ ना," रोली ने मेहर से कहा तो मेहर ने सिर हिला दिया।
"पर आप तो मुझे खाना देने वाली थी ना," कबीर बोला।
"पहले पकोड़े," रोली ने कहा।
"खाना"
"पकोड़े"
"खाना"
"पकोड़े"
वो दोनो लड़ ही पढ़े थे और मेहर उन दोनो को मूंह खोले देख रही थी।
"मेहर तो मुझे खाना ही देगी समझी ना," कहते हुए कबीर उठा और मेहर के पीछे खड़ा हो गया। "अब चलो मुझे खाना दो आप," उसने कहा तो मेहर जो कबीर के एसा करने से सहम गई थी, वो एक तरफ को जाने लगी तो कबीर उसके पीछे पीछे चल दिया।
तो मेहर वापस अपने काम पर लग गई। मेहर प्लेट लेने के लिए एक तरफ को गयी तो कबीर भी उस के पीछे चल दिआ।
"सर आप वहां बैठ जाओ में आपको खाना देती हूँ," मेहर ने कहा तो कबीर ने उसे देखे जो उस के कंधे तक आ रही थी।
"पहले मुझे खाना फिर इस नकचड़री के पकोड़े बनाना," कबीर ने कहा तो मेहर ने सिर हिला दिआ। कबीर रोली को देखते हुए वही कुर्सी पर बैठ गया, तो रोली उसे देखने लगी।
"वैसे एक बात बता के तू आज रसोई में क्या कर रही है," कबीर ने रोली को देख कहा।
"तुम को क्या तू अपनखाना खा समझा ना," रोली ने कहा।
उसी समय मेहर ने खाने की प्लेट कबीर के आगे कर दी तो कबीर ने मेहर को देखा जो प्लेट रख वापस अपने काम पर लग गयी। "आजा बेजा रौटी खा ले," कबीर ने कहा तो रोली उस के पास ही बैठ गयी।
"अच्छा चल दस राज नू पकोड़े पसंद ने इस लिए सिख रही आ," कबीर ने खाते हुए कहा तो रोली ने अपना माथा पकड़ लिआ।
"पहली बात तू ना पंजाबी मत बोला कर मेरे साथ समझा ना। और दूसरी बात हाँ राज को पुनंद है इस लिए सीख रही हूँ," रोले ने मुस्कुरा कर कहा।
वही कबीर का ध्यान मेहर में था जी पकोड़े का बैटर बना रही थी। तभी कबीर को खांसी होने लगी तो मेहर ने जल्दी से पानी का गिलास कबीर के सामने करा। तो वही कबीर ने भी गिलास पकड़ लिआ पर कबीर का हाथ मेहर के हाथ पर आ गया, जिस से कबीर को एक झटका सा लगा, पर वो कबीर तक ही सीमत था। कबीर हैरान सा मेहर को देखने लगा, जो वापस से अपने काम पर लग गयी थी।
••••••••••
"क्या हुआ बीर ऐसे हैरान क्यू हो आप, हाथ ही तो पकड़ा है आपका।" उस के सामने खड़ी मेहर ने कहा तो बीर ने आपना हाथ उस के हाथ से खींच लिआ।
"अपनी हद्द में रहिए आप, बार बार मेरे सामने आ कर अपनी ही बेज्जती करवा रही है आप," बीर ने कहा।
"आपके दुआरा की गयी बेज्जती भी हमे तारीफ की तरह ही लगती है। आप इजाजत दें तो सारी उम्र ऐसे ही आपके मुंह से आपनी तारीफ सुनती रहूं," मेहर ने कहा तो बीर गुस्से से उसे देखने लगा।
"हाये आपकी ये नीली आँखे दिल करता है इनमे ही डूब जाऊं," मेहर ने अपने दोनों बाहों की सामने पड़े टेबल पर कोहनी टिका कर हाथों में अपना चेरा भर कहा।
तो बीर मेहर को गुस्से में देख कर, "आपको पता भी है के ये सब जो कर रही है आप उस से अपनी ही इमेज खराब कर रही है।"
"आपको फिकर है हमारी इमेज की," मेहर ने हैरानी से पूछा।
बीर कुर्सी से उठते हुए, "मुझे अपनी इज्जत की फिकर है," वो कहते हुए चल दिआ।
"हमारी फिकर कब से करनी शुरू करेंगें, ये तो बताते जाएँ आप," मेहर ने वही बैठे हुए जोर से कहा, पर बीर ने एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा वो चला गया, तो मेहर मुस्कुरा दी।
"कबीर कहाँ खो गये खाना तो खा ले देख ठंडा हो गया," रोली ने कहा तो कबीर अपने होश में आ गया। उस ने सामने देखा तो वहां पर रोली मेहर के साथ लगी थी। कबीर बस उसे देखता ही रह गया।
"सर कुछ और बना दूं, खाना पसंद नही आया तो।" मेहर ने कबीर की प्लेट देख कहा जो वैसे ही थी।
"नही नही बहुत टेस्टी है," कबीर ने खाते हुए कहा तो मेहर भी रोली के साथ लग गई।
रब राखा
मेहर रोली के साथ फिर से पकोड़े बनाने लगी। "ऐसे धीरे से तेल में एक-एक कर सब बैटर को ढालते हैं", मेहर ने बेसन लगे आलू गर्म तेल में ढालते हुए कहा तो रोली अपने हाथ देखने लगी, वहीं मेहर के हाथ पर बेसन लगा हुआ था।
"शेफ जिसे समझा रही हो ना वो इन सब से कोसों दूर रहती है। और इसे पकोड़े बनाना सीखना ही है तो बैटर बनाना पहले सीखाती ना के सीधा पकोड़े बनाना", कबीर ने खाना खाते हुए कहा तो मेहर ने कबीर को देखा और फिर रोली को।
वहीं रोली कबीर को देख कर, "चुप रह समझा ना। वर्ना अभी भाभी को बोल कर तेरे फेरे करवा दूंगी", उसने कहा तो कबीर उसे देखने लगा।
"पहले अपने फेरे करवा ले, मेरे फेरे जब होने होंगे तब हो जायेंगे", उसने कहा और मेहर को देखे जो पकोड़े तेल से बाहर निकाल रही थी।
"वैसे खाना अच्छा बनाया है आपने शेफ", कबीर ने उठते हुए कहा और चला गया तो मेहर हल्का सा मुस्कुरा दी।
कबीर अपने रूम में आ गया पर उसे एक अजीब सी बैचेनी होने लगी थी। ना जाने क्यूं पर जैसे उसे सपने आते थे के वो मेहर से दूर जाने की कोशिश करता था। पर अस्ल में वो तो इस मेहर के पास खिंचा चला जा रहा था। और जब तक वहां पर बैठा रहा उसे वो शांती भी रही। लेकिन अब उस से कुछ दूरी पर आते ही कबीर को अजीब सी बैचेनी होने लगी थी।
"अजी मेने कहा था के किसी वेडिंग प्लैनर से बात कर लो पर आप नही माने। देखो अब कितनी सारी शॉपिंग करनी है। रोली को तो कुछ पता नही और मैं कैसे करूं", दीपा दी ने दिनेश जीजू से कहा तो जीजू दी को देखने लगे।
"यार किसी को ले लो साथ, वैसे भी अभी सगाई ही तो है, शादी महीने बाद है। तब तक प्लानर भी आ जायेगा वो अभी अपने एक प्रोजेक्ट पर लगी हूई है", जीजू ने कहा।
तभी उनके दरवाजे पर दस्तक हूई, तो दी जीजू ने उस तरफ देखा। सामने मेहर खड़ी थी। उसने देखा था दीपा को इस तरफ आते हुए तो वो इसी तरफ आ गई।
"आओ मेहर", दी ने कहा।
"दी वो मुझे ना अम्मा से बात करनी थी। मेरा फोन चल नही रहा, क्या आप अपना फोन देख सकती है", मेहर ने कहा तो दीपा जीजू उसे देखने लगे।
"वो मीर सर का फोन भी नही चल रहा", उसने दोनो की नजरें खूद पर महसूस कर कहा।
"अरे कोई बात नही तुम लो मेरे फोन से बात कर लो", दी ने जल्दी से अपना फोन उसे देते हुये कहा तो मेहर उनको देखने लगी। "दी लॉक खोल दो", मेहर ने कहा।
तो दी ने फोन का लॉक खोल कर उसे दे दिया।
"मैं बात करके आती हूं", कहते हुए वो बाहर चली गई तो दी जीजू को देखने लगी।
" वो चली गई है", दी ने कहा तो जीजू दी की देख कर ।
"यार रोली की उम्र की भी नही है छोटी लग रही है फिर भी काम करने लगी।"
"हां आज कल के बच्चे जल्दी ही समझदार हो जाते है", दी ने कहा और दीपू को देखा जो एक तरफ बैठी खिलोनो से खेल रही थी।
"नही भाभी मां, वो मेहर अनाथ है और उसकी एक फ्रेंड है सुहानी ये दोनो ही बचपन से अनाथालय में पली है। और फिर काम करते हुए पढ़ाई पुरी की और अब अच्छे होटेल में दोनो काम कर रही हैं", रोली ने वहीं आते हुए कहा। उस के हाथ में हलवे की प्लेट थी जो वो खा रही थी।
जीजू दी रोली को देखने लगे।
"तूम को कैसे पता", जीजू ने अपना लॉपटाप एक तरफ कर कहा जो उस पर काम कर रहे थे।
"वो बस भाई पापा मैं ना दोपहर से उसके साथ थी। पहले पकोड़े खाये फिर चाय बनाई वो पी और अब शाम को हलवा बनाया उसने बहुत टेस्टी है, बस तभी बातों बातों में पता चला था", रोली ने खाते हुए कहा। तो दी उसे देखती ही रह गई।
"जब तूम मेहर के साथ थी तो फिर उसे बात करने को फोन क्यूं नही दिया।"
"उसने मांगा था और मेने कहा भी के देती हूं फिर मेरा फोन आ गया और बात करते करते मैं चली गई, मुझे भी याद नही रहा", उसने कहा।
जीजू रोली को देख कर, "पागल हो बच्चे तूम, एक तो उससे इतना खाना बनवाया है और बात भी नही करने दी उसे", जीजू ने कहा और बैड के ड्रा से एक फोन का पैक निकालते हुए दी को दे दिया।
"दीपा जाओ दे आओ आप, मीर के लिये भी देखता हूं शायद कबीर जा राज के पास हो, बात तो करनी ही होती है उनको घर पर", जीजू ने कहा तो दी उठ कर फोन लेते हुए रोली के सिर पर एक चपत लगा कर "पागल हो तूम", कहते हुए वो चली गई तो रोली अपने भाई को देख कर।
"क्या भाई पापा देख लो भाभी मां मार कर गई है", उसने चम्मच भर हलवा मूंह में रखते हुए कहा तो दिनेश जीजू रोली को देख कर, " गलती आपकी है, पता है ना रोली हम दोनो भी एसे ही बड़े हूए है। वो बात अलग है के हमारे पास दादू थे जिन्होने कुछ समय संभाला था हमे। वादा करो आगे से किसी भी जरूरत मंद की मदद जरूर करोगी चाहे वो छोटी हो जां बड़ी।" दिनेश जीजू ने कहा तो रोली ने सिर हिला दिया। "सॉरी भाई आगे से ऐसा नही होगा", उसने कहा।
"मेरा अच्छा बच्चा तो चलो बताओ क्या सीखा आज फिर तुमने", जीजू ने वापस से लॉपटाप देखते हुए कहा तो रोली उनको देखने लगी। "वो आज तो बस देखा ही है कल से सीख लूंगी", उसने कहा तो जीजू ने उसा देखा और फिर सिर हिला दिया। वही रोली ने उनके मूंह में चम्मच भर हलवा रख दिया जो बहुत ही टेस्टी लगा उनको तो वो जल्दी से उठे और बाहर की तरफ चल दिए रोली उनको देखती ही रह गई। "कहां चले आप", उसने कहा।
"हलवा होगा तो कबीर राज और तेरी भाभी मां से पहले मैं ले लूं ये लोग तो मेरे लिए कुछ छोड़ेंगे ही नही जानता हूं उनको मैं", कहते हुए वो बाहर चले गए तो रोली ने दीपू को देखा जो मजे से खेल रही थी।
मेहर जो सुहानी से बात करने की कोशिश कर रही थी उसने फोन ही नही उठाया मेहर का। वैसे भी नया नंबर देख वो इग्नोर कर रही थी। शाम के 6 बज रहे थे सूहानी इस समय अम्मा के साथ ही होतो पर उसके फोन ना उठाने की वजह मेहर चुप सी वापस अंदर की तरफ चल दी।
पर कुछ शोर सा सुन कर वो उस तरफ को चल दी, तो सामने देख वो हैरान हो गई। सामने ही टैमपरेरी रसोई में दी जीजू जगजीत कबीर और राज सब एक साथ खड़े थे। तो वही मीर सब को ऐसे देख हैरान सा एक तरफ को खड़ा हो गया।
"मीर मेरे लिए कटोरी भर हलवा इसी तरफ ले आ", दादू ने दूर से ही कहा तो मीर ने सिर हिला दिया। वही मेहर ये सब देख हैरान थी।
"मेहर ये क्या करा तुमने", मीर ने मेहर से कहा जो चलते हूए उसके पास ही पहूँच गई थी। तो मेहर ने कंधे उचका दिये। प्रीतम जी तो पहले ही एक तरफ बैठी थी तो वही जगजीत जी भी उनके पास ही आ गये। वही राज जीजू दी ने भी अपनी अपनी कटोरी ली और चल दिये तो कबीर देखता ही रह गया। क्यूकि हलवा खत्म हो गया था ।
रब राखा
"मेहर ये क्या करा तुमने", मीर ने मेहर से कहा जो चलते हुए उसके पास ही पहुँच गई थी। तो मेहर ने कंधे उचका दिए। प्रीतम जी तो पहले ही एक तरफ बैठी थी तो वही जगजीत जी भी उनके पास ही आ गए। वही राज जीजू दी ने भी अपनी अपनी कटोरी ली और चल दिए तो कबीर देखता ही रह गया क्यूंकि हलवा खत्म हो गया था।
"अरे मेरे कटोरी कहां है", दादू ने कहा तो कबीर उनको देख कर, "दादू सब खत्म कर दिया इन लोगो ने, कुछ नही बचा अब", कबीर ने कहा और चलते हुए वहीं आ गया यहां बाकी सब थे।
"ऐसे कैसे हम दादा पोता रह गए और ये सब कोसे खा सकते है", दादू ने कहा तो सब उनको देखने लगे।
"दादू ऐसे खा सकते है", दीपा दी ने चम्मच अपने मुंह में रखते हुए कहा तो कबीर ने दादू को देखा। तो दादू ने मीर को देखा।
"चल बेटा जैसा हलवा अभी अभी बनाया है वैसा ही बनाना", उन्होने कहा।
"अरे ये तो मेहर ने बनाया है", जीजू खाते हुए बोले और साथ ही अपने लिए बनाने का भी बोल दिया। तो मेहर ने सिर हिला दिया।
पर मेहर नाम सुन कबीर उस तरफ देखने लगा यहां मेहर खड़ी थी। उसके चेहरे पर स्माईल आ गई थी उसको देख कर। तो मेहर ने जल्दी से अपने हाथ में पकड़े फोन को आगे बड़ दीपा के पास रख दिया। और वापस रसोई की तरफ चल दी।
"प्रीतम तुमने भी कभी एसा हलवा नही बनाया बहुत टेस्टी है ना", जगजीत जी ने खाते हुए कहा और जो साथ उनको भी खिलाये जा रहे थे।
"बिल्कुल जी आप ने सही कहा मुझ से भी कभी ऐसा हलवा नही बना", उन्होने कहा।
राज जो अभी हलवा खा रहा था उसका ध्यान मेहर पर नही गया था, तो वो कुछ नही बोला।
"अच्छा दादू कल से रसोई का काम शुरू हो जायेगा। आज जाकर सब कुछ देख लिया आपने कहा था ना के खुद सब करना तो बस कल से देखो आप सब काम कितने अच्छे से होगा", राज ने हलवा खाते हुए कहा। तो दादू ने सिर हिला दिया।
मेहर ने भी जल्दी से कड़ाही चढ़ा दि थी, और सूजी के भूनने की खुशबु उस पूरी जगह में फैल गई।
कबीर जो सब को देख रहा था वो उठा और रसोई की तरफ चला गया। यहां मेहर हलवा देख रही थी तो मीर बाकी सब काम कर रहा था।
"शेफ बन गया क्या", कबीर ने मेहर के पास खड़े होकर कहा और साथ ही प्लेट में काटे हुए रखे डराइफरूटस खाने लगा। मेहर ने हैरानी से उसे देखा जो गैस की तरफ देख रहा था।
"जी सर बस हो ही गया।" उसने कहा तो मीर जो कबीर को ही देख रहा था जो मेहर के कुछ ज्यादा ही करीब खड़ा था वो उस तरफ आ गया।
"सर आप बाहर जाकर बैठे", उसने कहा तो कबीर उसे देखने लगा।
"क्यूं", उसने कहा।
"क्यूंकि आप कुछ ज्यादा ही नजदीक आ रहे हो", मीर ने साथ साफ कहा तो कबीर दो कदम पीछे हट गया।
"अब ठीक है", उसने कहा तो मीर उसे देखता ही रह गया।
"सॉरी", कबीर बोला और चला गया पर मेहर ने एक बार भी उसे नही देखा।
"थैंक्यू सर", मेहर ने मीर से कहा तो मीर ने सिर हिला दिया। कुछ देर बाद उसने फिर से हलवा कटोरी में लिया तो सब कटोरी ट्रे में रख वो बाहर की तरफ चल दी यहां पर सब बैठे हुए थे कबीर भी वहीं बैठा था जो फोन पर कुछ कर रहा था।
मेहर ने सब के आगे एक एक कटोरी रख दी।
"मेहर सच में हलवा बहुत ही टेस्टी बनाया है", जीजू ने कहा तो राज ने एकदम से सिर उपर कर देखा जो अभी अपने फोन को ही देख रहा था।
"तुम", उसने कहा तो मेहर उसे देखने लगी। बाकी सब भी राज मेहर को ही देख रहे थे।
"तुम जानते हो क्या मेहर को", रोली ने राज से कहा। तो राज रोली को देखने लगा।
"नही तो हम नही जानते बस उस दिन जब हम मिटिंग में गये थे ना तब वहां पर देखा था इनको।" राज ने कहा तो मेहर की नजर कबीर पर चली गई, क्यूंकि उसे कबीर का चेहरा याद था जो उसने लिफ्ट में देखा था। और साथ ही मेहर ने कटोरी कबीर के आगे रख दी।
"आपको पता है वो त्यागी के बेटे को थप्पड़ लगा था, वो मेहर ने ही मारा था।" राज ने कहा तो दादू जीजे और जगजीत जी उसे देखने लगे।
"सच में तुमने मारा था", जीजू ने कहा तो मेहर जो चुप सी थी उसने सिर हां में हिला दिया।
"वाह बेटा अच्छा किया। उस आरव ने भी ना बहुत ही आतंक मचा रखा है। ऐसे लोगो को तो घर से बाहर भी नही निकलने देना चाहीये", दादू ने कहा। तो मेहर सिर हिला कर चली गई।
"देखने में तो शूईमूई सी है पर आरव को मारा, बहुत ब्रेव है", जीजू ने कहा। तो रोली मेहर को देखने लगी।
"लो दी फोन की सारी सेटिंग कर दी है और मेने तो अपना नंबर भी सेव कर दिया है जो सब से उपर ही रहेगा आप को ढूँढ ने की भी जरूरत नही पड़ेगी", कबीर ने दीपा दी से कहा। तो दीपा दी ने फोन ले लिया।
"मेहर इधर आना", दी ने कहा तो मेहर उनके पास आ गई।
"ये लो तुम्हारा फोन", उन्होने फोन मेहर के आगे कर दिया।
"नही दी मुझे ये फोन नही चाहीये मार्केट जा कर नया ले लूंगी", उस ने कहा।
"अरे रख लो तुम्हारा फोन खराब हो गया था ना इस से बात कर लेना मेरी तरफ से गिफ्ट समझ कर रख लो", दी ने कहा तो मेहर ने सब को देखा।
"अरे रख लो बेटा", प्रीतम जी ने कहा तो मेहर ने फोन ले लिया। और वापस चली गई।
"क्या हूआ सब ठीक तो है", मीर ने मेहर को देख कहा।
"सर वो दी है ना उन्होने फोन दिया मुझे, मेरा फोन बंद हो गया चल नही रहा था ना", मेहर ने फोन मीर को दिखाते हुए कहा।
"रख लो अच्छे लोग है, खुराना ग्रूप के बारे में सुना है ना, इनका ही है। दादू जोरावर खुराना उन्होंने ही उस बिजनेस की नीव रखी थी", मीर ने कहा। तो मेहर उसे देखने लगी।
"वो खुराना जो आये दिना सुर्खियों में रहते है, पर कभी किसी ने फोटो नही देखी", मेहर ने कहा। तो मीर ने सिर हां में हिला दिया।
"हां वही खुराना जो सब जरूरत मंद की मदद करने को आगे रहते है।" मीर ने कहा।
मेहर भाग कर बाहर आई और जोरावर खुराना को देखने लगी। वही जोरावर दादू जो सब से बातें कर रहे थे वो मेहर के एकदम उनके पास आने की वजह से उसे देखने लगे।
"दादू आपने पहचाना हमे", उसने कहा तो जोरावर उसको देखने लगे। बाकी सब भी उसे ही देख रहे थे। तो मेहर उनके पास नीचे घुटने मोड़ कर बैठ गई और अपना सिर उनकी गोद में रख दिया। दादू हैरान से रह गए, मेहर के ऐसा करने से।
"मेहर", दादू ने हैरानी से कहा तो मेहर उनको देखने लगी, उसने सिर हां में हिला दिया।
"अरे बच्चे तुम तो कितनी बड़ी हो गई", दादू ने कहा।
तो मेहर दादू के चेहरे को छु कर, "आप भी बुढ़े हो गये दादू", उसने कहा। दादू मुस्कुरा दिए तो वहीं सब लोग उनको हैरान से देखने लगे।
रब राखा
"अरे बच्चे तुम तो कितनी बड़ी हो गई", दादू ने कहा।
तो मेहर दादू के चेहरे को छू कर बोली, "आप भी बूढ़े हो गये दादू।"
दादू मुस्कुरा दिए तो वहीं सब लोग उनको हैरान से देखने लगे।
"मेहर बहुत बड़ी हो गई और शेफ भी बन गई, तुमने कहा था ना के शैफ बन कर दिखाऊंगी", दादू ने मेहर के सिर पर हाथ रख कर कहा तो मेहर ने उनका हाथ पकड़ लिया।
"आप कहां चले गये थे। आपको पता भी है आपके जाने के बाद क्या हुआ था। वो सब छोड़ो सुहानी ने तो कसम खा ली थी के वो आपसे कभी बात नही करेगी जब आप आयेगे, पर आप तो आये ही नही।"
दादू हैरानी से मेहर को देखने लगे, "अभी भी तुम दोनो दोस्त हो", उन्होंने कहा तो मेहर ने सिर हां में हिला दिया।
बाकी सब जो उनको हैरान से देख रहे थे, तो जगजीत जी बोल ही पड़े, "पापा आप जानते हो मेहर को?"
तो दादू उनको देख कर बोले, "बिल्कुल जानते है।"
"मेहर सुहानी दोनो हमे दिल्ली अनाथालय में मिली थी। जब हम वहां कुछ काम से एक महीने के लिए गये थे। तब दोनो 6-7 साल की होगी। तब रोज मिलते थे इन दोनो से, क्यूंकि यहां ठहरे थे वहां पास ही इनका अनाथालय था। तो रोज शाम को मिलने जाते थे वहां पर", दादू ने कहा।
सब उनको ही देख रहे थे। तो मेहर को एहसास हुआ के वो जल्दबाजी में क्या कर गई वो जल्दी से खड़ी हो गई, "सॉरी सर वो मैं कुछ ज्यादा ही भावुक हो गई थी", मेहर ने धीरे से कहा तो सब उसे देखने लगे।
वहीं दादू उसे देखने लगे और फिर सब हँस दिये।
"अरे बच्चे तू भी ना, चल बैठ वैसे हलवा बहुत टेस्टी बनाया है", उन्होंने कहा तो मेहर सब को देखने लगी।
"अरे बैठ जा", प्रीतम जी ने कहा तो मेहर ने सिर हिला दिया।
"वो अभी रसोई में देख लूं फिर बैठ कर बाते कर लूंगी दादू से", उसने कहा तो सब उसे देखने लगे।
"चल ठीक है फिर बातें करते है", दादू ने कहा तो मेहर चली गई।
"दादू आपने कभी बताया ही नही इस बारे में", कबीर जो कब से दादू मेहर को देख रहा था वो बोला।
"क्या बताता उन दिनो तूम सब यहां थे तो मुझे तुम्हारी याद आती थी। तो इसी लिए अनाथालय चला जाता था। ये सोच कर के बच्चो के साथ मन बहल जायेगा। पर वहां पर मेहर सुहानी मिल गई। दोनो दोस्त और सब से अलग ही थी। तो बस इनसे बातें होने लगी। बहुत प्यारी प्यारी बातें करती थी दोनो। मेहर शांत तो सुहानी उतनी ही चंचल सी। बस वो दिन कैसै बीते पता ही नही चला और फिर मैं वापस आ गया। तुम सब के साथ मैं इतना रंम्म गया के सब भुल ही गया था वहां का", दादू ने कहा तो सब उनको देखने लगे।
"अरे वाह तुम तो दादू को जानती हो", मीर ने मेहर से कहा जो वापस रसोई में आ गई थी।
तो मेहर ने सिर हिला दिया और जल्दी से फोन से सुहानी का नंबर लगा दिया उसे बताने के लिए पर उसने फोन नही उठाया।
•••••••••••••
"शेरा कहां हो, आज सुबह ही आये थे शाम को नही आये,,,,,"
"पता है तुमने जिसे भेजा था वो अजीब सा था मुझे बोल रहा था सर ने भेजा है,,,,,"
"मैं उसे देखने लगी के कोन से सर ने भेजा भाई मुझे भी बता दो ,,,,,,"
"तो वो बोला के शेरा सर ने,,,,,, "
"मैं तो हैरान हो गई! तुमको वो सर बोल रहा था।,,,,,,,"
"फिर मुझे खुशी भी हुई के तुम इन सब बे सीनीयर हो ,,,,,,"
"अब कहां हो बताओ पता है आज मेहर भी नही है वो उसे किसी के घर में शेफ रखा गया है। अरे बोलो भी कहां हो तुम ,,,,"
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सुहानी जो नॉनसटाप मेसेज पर मेसेज भेजे जा रही थी, उसने लास्ट में ढेर सारा क्वेश्चन मार्क भेजे। वो छत पर बैठी हुई थी और बार बार आ रहे अननौन नंबर से फोन को काटे जा रही थी।
वहीं दूसरी तरफ शमशेरा जो अपने काम में लगा हुआ था, वो अभी भी अपने ऑफिस में ही था। शाम के 7 बजने को आ गये थे। वो अपने फोन पर लगातार आ रहे मेसेज की बीप से परेशान हो गया और उसने बीना देखे अपने पास खड़े पीए को फोन पर बीना मतलब के आ रहे मेसेज को ब्लॉक करने का कह दिया। तो उसके पी ए ने वैसा ही करा। शमशेरा को अपने काम में किसी भी तरह की कोई भी डिस्टर्बेंस पसंद नही थी।
सुहानी वैसे ही कुछ देर छत पर बैठी रही और फोन को देखती रही। पर दूसरी तरफ से कोई रिप्लाई नही आ रहा था तो वो अपना फोन ही बंद कर नीचे आ गई और फोन को एक तरफ चार्जिंग पर लगा कर खुद अम्मा के साथ बैठ कर टीवी देखने लगी।
"क्या अम्मा यही देखती रहती हो कभी तो कुछ नया देख लिया करो", सुहानी ने कहा।
"तेरा मुह क्यूं लटक रखा है मेहर से बात हो गई क्या", उन्होंने पुछा।
"मुझे नही करनी किसी से भी बात, हर बार टोका टोकी करती है मुझे, अब से कोई बात नही होगी हमारी। बस काम होगा, अब मुझे काम करना है बड़ा घर लेना है। उसे बताना है मै ये काम कर सकती हूं", सूहानी ने कहा तो अम्मा उसे देखने लगी।
"पागल है तू भी अरे काम करने से अच्छा काम करते लड़के को पटा ले दोनो काम करोगे तो घर भी ले ही लोगे", अम्मा ने कहा।
"अरे अम्मा आज कल अकेली लड़की से शादी तक कोई नही जाता। बस सब अपने मतलब पुरा करते है, इस लिए इस तरफ तो जाना ही नही है मुझे", सुहानी ने रिमोट से चैनल बदलते हुए कहा तो अम्मा उसे देखने लगी।
"ठीक है चल बना खाना मेहर नही है तो तू ही हिल ले। बस आ जाती है मेरे टीवी की दुश्मन। कितना अच्छा सीरियल आ रहा था सास बहू वाला", अम्मा ने रिमोट उसके हाथ से लेते हुए कहा तो सुहानी उनको देखने लगी।
फिर उठ कर रसोई की तरफ चली गई।
•••••••
रात के खाने के बाद मेहर दादू के रूम की तरफ चल दी, पर वो आधे रास्ते ही रुक गई और पीछे की तरफ चल दी। लेकिन फिर से वो आगे बढ़ गई और दरवाजे तक पहुंच गई। लेकिन दरवाजे पर उसकी नॉक करने की हिम्मत नही थी तो वो फिर से वापस चल दी। वहीं दूर खड़े दादू और कबीर उसे ही देख रहे थे। दोनो बाहर थे गार्डन में मेहर को ये नही पता था। तो मेहर अपना काम खत्म कर चल दी थी फोन मीर को देकर उसे घर पर बात करनी थी।
रब राखा
रात के खाने के बाद मेहर दादू के रूम की तरफ चल दी, पर वो आधे रास्ते ही रुक गई और पीछे की तरफ चल दी। लेकिन फिर से वो आगे बढ़ गई और दरवाजे तक पहुँच गई। लेकिन दरवाजे पर उसकी नॉक करने की हिम्मत नहीं थी, तो वो फिर से वापस चल दी। वहीँ दूर खड़े दादू और कबीर उसे ही देख रहे थे। दोनों बाहर गार्डन में थे, मेहर को ये नहीं पता था। तो मेहर अपना काम ख़त्म कर चल दी थी, फ़ोन मीर को देकर उसे घर पर बात करनी थी।
"दादू ये कर क्या रही है, कन्फ्यूज लग रही है, आप तो बचपन से ही जानते हो, तो क्या ये पहले से ही ऐसी है?", कबीर ने कहा तो दादू मेहर को देखते हुए जो दरवाजे पर खड़ी थी।
"हाँ ऐसी ही है, मेरी गोद में सिर रखने के लिए इसने पांच दिन लिए थे पूछने को, सुहानी ने बताया था मुझे।" दादू मुस्कुरा कर बोले तो कबीर हैरान रह गया।
"इतना समय एक बात करने में लगाती है, तो मुझसे बात करने में तो सालों लगा लेगी", वो मन ही मन मेहर को देख बोला, जिसने अब हिम्मत कर दरवाजे पर दस्तक देने के लिए हाथ उठा ही लिया था कि तभी दादू ने आगे बढ़ते हुए उसे आवाज लगा दी।
"क्या बात है मेहर इतनी झिझक किस बात की?" उन्होंने कहा तो मेहर हैरान सी पीछे देखने लगी। यहाँ दादू और कबीर खड़े थे। कबीर भी उसे ही देखे जा रहा था। उसके चेहरे पर हल्की सी स्माइल थी।
"दादू आप बाहर थे, मुझे लगा आप अंदर होंगे, बात करने आई थी आपसे।" मेहर ने कहा, उसने कबीर को देखा पर बस एक नजर ही और वहीं कबीर उसे देखने में ही मग्न था।
"चलो आओ अंदर बैठ कर बातें करते हैं", दादू ने कहा और अंदर की तरफ चल दिए, वहीँ कबीर भी उनके साथ-साथ था, तो मेहर उनके पीछे-पीछे चल दी, लेकिन रुक गई।
"दादू आप बात कर लो मैं कल कर लूंगी आपसे बात", उसने कहा तो दादू उसे देखने लगे।
"चलो मेरा पोता है ये कबीर नाम है इसका", दादू ने मेहर को देखते हुए कहा तो मेहर ने सिर हिला दिया वहीँ कबीर के चेहरे पर स्माइल आ गई।
दादू कबीर बेड पर बैठे हुए थे तो वहीँ मेहर पास पड़े सोफे पर।
"अच्छा मेहर ये बताओ सुहानी कैसी है? अब बदल गई या अभी भी वैसी ही है, जो दिल में वही मुँह पर", दादू ने कबीर मेहर को देख कर कहा तो मेहर उनको देखने लगी।
"वैसी ही है दादू सुबह मैंने उसे टोक दिया था, तो बस अभी तक मुझसे बात ही नहीं की है। उसने फ़ोन भी लगाया मैंने उठाया ही नहीं अभी तक। अब तो फ़ोन भी बंद आ रहा है उसका", मेहर ने कहा।
"अच्छा बिल्कुल वैसी ही है, चलो कोई ना तुम बताओ कैसी हो।" दादू ने कहा तो मेहर उनको देखने लगी।
"मैं तो ठीक हूँ दादू, बस आपको याद करती रहती थी हम दोनों। पर आप कभी आए ही नहीं वापस, आपको पता है दादू वो जो बंदर जैसी शक्ल वाला लड़का था ना उसने हमें मारा था आपके जाने के बाद, सुहानी को बहुत चोट आई थी, मुझे लगा के आप आओगे हमें मिलने, पर आप आए ही नहीं, दो दिन तक वो बुखार में रही थी।" मेहर ने कहा, तो दादू हैरान से उसे देखने लगे। "मेरा फ़ोन नंबर तो था ना तुम्हारे पास।"
"हाँ था, पर उस बंदर ने हम दोनों का सामान रूम से बाहर फेंक दिया था और जिस कॉपी में वो नंबर लिखा था, उसको फाड़ दिया था, उस बंदर ने। पता है मेरे सिर में चोट आई थी और सुहानी को पैर पर, ऊपर से उसे बुखार हो गया। आंटी ने भी हम दोनों को अच्छे से नहीं देखा था।"
मेहर ऐसे बातें बता रही थी जैसे वो आज की ही बात हो। तो वहीँ दादू और कबीर उसे ही देख रहे थे। कबीर तो मेहर के चेहरे पर आ रहे भावों को ही देख रहा था, जो हर पल बदल रहे थे, दर्द की बात पर दर्द झलकता तो बंदर कहने पर गुस्सा, सुहानी का नाम आते ही अजीब सा दर्द, कबीर तो अपलक उसे ही देखे जा रहा था जो दादू को सब बता रही थी।
"अच्छा उस वाडरन के बेटे ने ये सब करा! सच में वो मोटा बंदर अगर अब मेरे हाथ लग जाए ना तो उसे बुरी तरह से अपनी लाठ से मारूँगा। मैंने उनको कहा था के तुम दोनों बच्चियों का खास ध्यान रखे पर नहीं, उनको तो मैं देखता हूँ, कल ही फ़ोन लगा कर उनकी सारी अकड़ निकालता हूँ", दादू ने भी गुस्से से भर कर कहा।
तो कबीर उनको देखने लगा। आज पहली बार उसने दादू को ऐसे गुस्से में देखा था।
"दादू अब छोड़ दो हम दोनों थी ना वहां पर सब ठीक हो गया", मेहर ने कहा।
"क्या करा तुम दोनों ने, उस बंदर को कुछ करा क्या", दादू ने शक की तोर पर मेहर को देखते हुए कहा, तो मेहर ने एक बार कबीर को देखा फिर दादू को देख स्माइल कर दी।
"क्या करा तुम दोनों ने?", दादू का शक यकीन में बदल गया।
"वो दादू मैंने कुछ नहीं करा था। वो तो सब सुहानी ने करा था।" मेहर ने धीरे से कहा।
"और वो क्या करा था सुहानी ने?", दादू ने कहा। वहीं कबीर को मजा आ रहा था दोनों की बातें सुनने में तो वो पुरे मजे से सुन रहा था।
"वो कुछ नहीं दादू वो हमने ना उसे डराया था।" मेहर ने कहा और दादू को देखा जो उसके आगे बोलने का इंतजार कर रहे थे।
"वो सुहानी ने उस मोटे बंदर को आधी रात को बाल खुले छोड़ कर, चेहरे पर पाउडर लगा कर आधी रात को भूतनी बन कर डराया था", मेहर ने एक ही साँस में कहा तो कबीर जो उसकी बात सुन रहा था उसका मुँह खुला रह गया।
वहीँ दादू भी मेहर को ही देख रहे थे और फिर हँसने लगे तो मेहर भी हँसने लगी, "अच्छा तो फिर वो मोटा बंदर डर गया क्या?", दादू ने कहा।
"बिल्कुल दादू वो तो इतना डर गया था के उसकी पेंट गीली हो गई थी।" मेहर ने हँसते हुए कहा तो कबीर के मुँह के साथ-साथ आंखे भी खुल गई और साथ ही जिस हाथ पर चेहरा टिका था वो लगातार मेहर को देख रहा था उसका हाथ ही स्लिप कर गया।
मेहर जो दादू के साथ हँस रही थी उसका ध्यान एकदम कबीर पर गया, तो वो चुप कर गई। "अच्छा दादू अब मैं चलती हूँ आप भी आराम करो, सुबह मिलते है", उसने कहा और गुड नाईट बोल कर चली गई।
तो दादू ने भी गुड नाईट कहा। वहीँ कबीर उसे देखता ही रह गया। "क्या देख रहे हो", दादू ने कहा तो कबीर जो बाहर की तरफ देख रहा था, उसके मुँह से मेहर निकला।
दादू उसे देखते ही रह गये। तभी कबीर को अपने शब्दों पर ध्यान गया और वो दादू को देख कर, "वो मेहर जैसी दिखती है वैसी लग नहीं रही।" उसने कहा और वो भी चला गया। दादू उसे देखते ही रह गए।
"आखिर बड़ी मालकिन मिल ही गई", उन्होंने कहा।
और साथ ही बेड के पास पड़े टेबल के ड्रा से एक पोटली सी निकाली, वो पोटली कपड़े की थी। दादू ने कपड़े की गांठ खोली तो अंदर से एक छोटी सी एल्बम निकली। दादू ने उस एल्बम को निकाला और खोला तो उस पर मेहर की फोटो थी जो के अब की मेहर से कुछ अलग थी जिसके कपड़े बहुत कीमती थे और पुरा हार शृंगार भी था। दादू उस फोटो को देखने लगे।
रब राखा
दादू ने उस पोटली से एक छोटी सी एल्बम निकाली थी, जिसमें बहुत सारी फोटो थीं। तभी दादू एक जगह पर आकर रुक गए और उस फोटो को देखने लगे, जिसमें मेहर ही थी पर वो अब की मेहर से बहुत अलग थी। उस फोटो में मेहर के साथ 2 लोग और भी थे।
उस फोटो में मेहर बेड पर बैठी थी तो वहीं उसके पास एक दस-बारह साल के आसपास का बच्चा बैठा था। तो वहीं उस बेड के पास लगी कुर्सी पर एक लड़का बैठा था और वो बीर था। दादू ने उस फोटो पर हाथ लगाया और मुस्कुरा दिए। "आज भी वैसा ही था, जैसे उस समय हम बैठे थे। बस फर्क इतना है, के वो बच्चा अब बड़ा हो गया है और बड़ी मालकिन की जगह कबीर बैठा था और बड़ी मालकिन दूर सोफे पर।" दादू ने उस फोटो में बैठे बच्चे की फोटो पर हाथ लगाते हुए कहा। कुछ देर वो उस एल्बम को देखते रहे और फिर उसे वापस से बंद कर लेट गए।
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शमशेरा जब वापस घर आया तो आज उस घर में एक अलग ही रौनक थी और वो उस रौनक को देख सब भूल ही गया था। यहां पर उसकी भाभी, भाई थे और वो छोटी सी कुछ 3 साल के आसपास की लड़की खेल रही थी, जिसके पीछे-पीछे मेहरा थी। तो शमशेरा भी उसके पीछे-पीछे खेलने लगा तो उसकी भाभी सारिका अपने काम में लग गई। सारिका ने मेहरा को माफ कर दिया था। उस हादसे में दोनों ने ही अपने बच्चे खो दिए थे। तो नाराज़गी कैसी, इसलिए वो दोनों एक साथ वापस से हो गए थे।
"अच्छा भाभी मैं तो परी से खेल रहा हूं, आप खाना लगा दो, फिर खा कर मुझे और भी काम देखना है", शमशेरा ने कहा तो सारिका ने वैसा ही करा, खाना पीना खा कर परी के साथ खेल कर वो अपने कमरे में आकर कुछ काम करने लगा और बिना फोन देखे सो भी गया।
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मेहर का फोन मीर ने दे दिया था तो वो वापस रूम में आकर सुहानी को फोन करने लगी। पर वैसे ही उसने फोन नहीं उठाया तो मेहर ने अम्मा को फोन लगा दिया। उनसे बात कर पता चला के सुहानी सो गई है तो मेहर ने भी ज्यादा बात नहीं की और अम्मा को ध्यान रखना बोल कर लेट गई।
अगली सुबह कबीर उठ गया था और हैरानी की बात ये थी के आज उसे कोई सपना भी नहीं आया था। वो बाहर आया तो उसने समय देखा, यहां सुबह के 6 ही बज रहे थे के तभी उसका ध्यान वहां से जा रही मेहर पर गया, जिसके हाथ में कुछ था उसे नहीं पता था, क्यूंकि मेहर की पीठ थी कबीर की तरफ तो कबीर भी उसके पीछे-पीछे चल दिया। वही मेहर दादू के रूम के सामने खड़ी हो गई और फिर 2 बार दरवाजे पर दस्तक दी तो अंदर से आवाज आने पर वो अंदर चली गई। वही कबीर रसोई की तरफ चल दिया। वो समझ गया था के मेहर दादू के लिए ही कुछ लेकर गई होगी।
कबीर रसोई में आया तो पाया वहां पर मीर नहीं था तो उसने इधर-उधर देखा और फिर पानी के जग से पानी गिलास में लिया और पीने लगा।
लेकिन अभी तक ना तो मीर ही आया और ना ही मेहर तो वो वहीं लगी कुर्सी पर बैठ गया।
तभी मेहर वहां आई, उसके हाथ में ट्रे थी। वो कबीर को वहां देख कर हैरान हो गई। "गुड मॉर्निंग", कबीर ने उसे देख कहा तो मेहर जो उसे यहां देख हैरान थी उसने "गुड मॉर्निंग सर" कहा।
"और रात को नींद आ गई थी?", कबीर ने पूछा तो मेहर जो ट्रे रख रही थी उसने कबीर को देखा जो मुस्कुरा रहा था।
"हां, आ गई थी नींद", उसने कहा। कबीर अभी भी उसे ही देखे जा रहा था, के तभी उसकी आंखों के सामने जैसे कुछ साया सा निकला।
"कितनी बार कहा है के आप मुझे इस तरह से ना देखे पर, आप समझती नही है", बीर ने गुस्से से कहा तो मेहर जो मुस्कुरा रही थी वो उसे देखते हुए।
"हम तो ऐसे ही देखेंगे जब तक आप हमें देख कर हां नहीं कर देंगे, हमारे लव को स्वीकार नहीं कर लेंगे", मेहर ने कहा।
"तो फिर देखती रहे आंखे खराब हो जायेंगी और ये जुबान भी घिस जायेगी पर हम कभी भी ये स्वीकार नही करेंगे के आप जैसे लड़की को हम पसंद करते है और ये मेरी आखरी वार्निंग है समझी आप। इसके बाद अगर आपने हमारा हाथ पकड़ने की कोशिश की तो हम इस हाथ को काट फेंके गें, समझ गई ना आप बड़ी मालकिन", बीर ने कहा तो मेहर ने बीर का हाथ छोड़ दिया।
"बिल्कुल भी नही आप मुझे जैसी लड़की के लिए अपना ये कीमती हाथ मत काटे", मेहर ने कहा तो बीर जाने लगा।
"हमे अच्छा लगा के आप हमारे हाल चाल जानने आये शुक्रिया", मेहर ने कहा तो बीर उसे देख कर "हम बस यहां आपकी दवाई देने आये थे और कुछ नही" कहते हुए वो चला गया तो मेहर उसे देखती ही रह गई।
"सर आप चाय पियेंगे", ये आवाज जो 2-3 बार आ चुकी थी, कबीर को उसके होश में लाने वाली यहीं आवाज तो थी। कबीर हैरान सा अपने सामने खड़ी मेहर को देखने लगा जो उसे ही देख रही थी। के तभी वो फिर से बोली, "सर चाय बना दूं।"
तो कबीर ने हां में सिर हिला दिया और उठ कर चला गया। "मेरे रूम में ले आना", वो बिना मेहर को देखे बोल गया तो मेहर उसे देखती ही रह गई।
"रूम में चाय", उसने हैरानी से कहा और फिर अपने काम में लग गई। उसने जल्दी से चाय बनाई और कप में ढाल वो खड़ी हो गई। उसे समझ नहीं आ रहा था के अब वो किस तरफ जाए किस रूम में। के तभी उसे एक नौकर दिखा जो साफ सफाई कर रहा था तो मेहर ने उस से पूछा तो उसने बताया के उपर के फ्लोर पर बड़ा सा कमरा साहब का ही है।
मेहर ने सिर हिला दिया और चल पड़ी साड़ियों से होते हुए उस रूम की और जो उपर की तरफ था। पर ना जाने क्यूं मेहर के दिल में एक अजीब सा डर बैठा हुआ था। दरवाजे के सामने खड़े हो कर मेहर ने कुछ पल उस दरवाजे को देखा और फिर दरवाजे पर दस्तक दे दी तो वो दरवाजा खुल गया सामने ही कबीर खड़ा था जिसे देखते ही मेहर ने नजरे झुका ली।
"सर आपकी चाय", उसने कहा तो कबीर उसे देखता ही रह गया और हाथ आगे कर मेहर के हाथ से कप ले लिया तो मेहर बिना एक पल गवाए वहां से चली गई और कबीर उसे देखता ही रह गया।
उसने चाय का कप होठो से लगा लिया और वैसे ही अंदर चला गया।
मेहर नीचे आई तो उसे याद आया के मीर तो रात को ही चला गया था, उसकी मंगेतर का फोन आया था के वो बहुत बीमार है तो उसकी मम्मी ने भी उसे जाने के लिए ही कहा था और वो रात को 12 बजे के आस-पास चला गया था मेहर को बता कर। तो अब उसे ये सब काम अकेले ही देखना था तो वो जल्दी से अपने काम में लग गई।
रब राखा।