कभी कभी किसी खास वजह से हमारी ज़िंदगी के तार किसी ऐसे इंसान के साथ जुड़ जाते हैं, जिसका संबंध न तो हमारी दुनिया से होता है, और नाही हमारे समय से । यह कहानी है ऐसी ही एक लड़की काव्या की। जिसकी आत्मा पानी में डूबने के बाद पहुँच जाती है 15वी सदी की लड़क... कभी कभी किसी खास वजह से हमारी ज़िंदगी के तार किसी ऐसे इंसान के साथ जुड़ जाते हैं, जिसका संबंध न तो हमारी दुनिया से होता है, और नाही हमारे समय से । यह कहानी है ऐसी ही एक लड़की काव्या की। जिसकी आत्मा पानी में डूबने के बाद पहुँच जाती है 15वी सदी की लड़की अमृता के शरीर में । लेकिन किस्मत ऐसे ही किसी को जीने का दूसरा मौका नहीं देती है । काव्या का उस समय में पहुंचना नियति का फैसला था, या थी यह किसी के दर्द की पुकार जो उसे वहाँ ले गयी थी । नियति के खेल से अंजान काव्या क्या कभी अपनी दुनिया में वापस आ भी पायेगी ? या वहीं रहकर बदल देगी इतिहास ? लेकिन जब अतीत बदलता है तो वर्तमान और भविष्य भी बदल जाता है । जिंदगी किसी कहानी जैसी लगने लगे की। पर इस कहानी का अंत हैप्पी एंडिंग पर होगा या अभी भी जिंदगी के कुछ और पन्ने हैं जिनको पड़ना अभी बाकी है । जानने के लिए पड़ते रहिये मेरी यह बिल्कुल नई कहानी Reborn to change your destiny.
Prince Shourya
Hero
Kaavya
Heroine
Prince Adityaa
Hero
Prince Vikraant
Villain
Princess Mohini
Princess
Prince Harsh
Side Hero
The Queen
Queen
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कहानी की शुरुआत में हम एक लड़की को रात के अंधेरे में जंगल में भागते हुए देखते है। उस लड़की की उम्र 23-24 की होगी और वह लड़की बहुत डरी और घबराई हुई थी। भागते हुए वह बार-बार पीछे मुड़कर देख रही थी, वह ऐसे भाग रही थी, कि मानो जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो, और उसकी जान खतरे में हो। तभी हमे कुछ और लोगो की दौड़ने की आवाज़ आती है। यह वही लोग थे, जो उस लड़की का पीछा कर रहे थे। देखने में वह लोग गुंडे बदमाश लग रहे थे, और उनके पास बंदूक और हथियार भी थे।
भागते हुए वह लड़की एक चट्टान के आखिर में पहुँच जाती है। अब वहाँ से आगे कोई रास्ता नहीं था। सिर्फ नीचे पानी बह रहा था, जोकि पहाड़ के ऊपर के झरने से नीचे गिर रहा था।
वह लड़की घबरा कर नीचे पानी की ओर देखती है, और सोचती है, "अब मै क्या करूँ!" इतने में वहाँ पर वह गुंडे भी आ जाते है। उनमें से एक बदमाश लड़की की ओर बंदूक तान कर उस पर गोली चला देता है। गोली की आवाज़ से डरकर वह लड़की पीछे पानी में गिर जाती है। पानी में गिरने के बाद उस लड़की के कंधे के नीचे से खून भी निकलता हुआ दिखाई देता है। जिससे हमे यह पता चलता है, कि उस लड़की को गोली भी लगी है।
वह लड़की पानी में बेजान सी गहराई में नीचे की ओर डूबने लगती है और डूबते हुए वह सोचती है, "क्या मेरी जिंदगी का अंत ऐसे ही होना था? मेरे सपने, मेरी उम्मीदे...क्या इसी पानी में मेरे साथ डूब जायेंगी? मेरे दोस्त, मेरे अपने...क्या कभी मुझे देख भी पाएंगे?" इतना सब सोचते हुए वह पानी में और गहराई में डूबती जाती है।
इतने में पानी की काली अंधेरी गहराई में उसे एक रोशनी की चमक दिखाई देती है। वहाँ पानी की गहराई में कुछ तो था, जो अभी उसे धुँधला सा नज़र आ रहा था। इसलिए वह उस रोशनी की ओर बड़ती है, और उसे गौर से देखने की कोशिश करती है। तभी अचानक से उसकी आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती हैं, और वह बस हैरान होकर उस ओर देखती रहती है।
आखिर कौन है यह लड़की? वह किस से भाग रही थी और क्यों? कौन है वह लोग जो उसका पीछा कर रहे थे? और उसे मारना क्यो चाहते थे? क्या वह लड़की अपनी जान बचा पायेगी? और सबसे ज़रूरी बात कि आखिर पानी के अंदर उस लड़की ने ऐसा क्या देख लिया जिसे देख कर वह हैरान रह गई? इन सब सवालों का जवाब पाने के लिए हम समय में कुछ घंटे पहले चलते है।
कहानी की शुरुआत होती है एक बस से, जिसमें कुछ कॉलेज स्टूडेंट बैठे होते है। बस में कुछ लड़कियाँ गाना गा रही थी, तो कुछ उनके साथ गुनगुना रही थी, और तालियां बजा रही थी। कुछ लड़के उन लड़कियों को गाता देख कर मुस्कुरा रहे थे, और कुछ उनका हौसला बड़ा रहे थे। इन सब के बीच हमारी नज़र पड़ती है एक लड़की पर... जिसकी आँखों पर चश्मा लगा था, और हाथ में एक किताब थी, जिस पर लिखा था "इतिहास की खोज"। वह चुप-चाप अपनी किताब लिए विंडो सीट पर बैठी थी। किताब की वजह से अभी उसका चेहरा पूरी तरीक़े से दिखाई नहीं दे रहा था।
तभी वहाँ एक दूसरी लड़की आती है और उसके हाथ से किताब छीननकर कहती है, "क्या यार काव्या तू अब भी किताबी कीडा बनी हुई है, हम पिकनिक पर आये है यार। सबके साथ बाते कर गाने गा चिल कर। यह क्या बस अपनी किताब हाथ में लेकर कोने में बैठी हुई है।"
अब हमें उस लड़की का चेहरा नज़र आता है। उसकी बड़ी गहरी काली आँखे जिन पर वह सफेद रंग का चश्मा पहने हुए थी। नाक सीधी, लंबे बाल और उसकी मुस्कान ऐसी कि मानो जैसे फूलों की पंखुड़ियां खिल रही हो। सही पहचाना आपने यह है हमारी कहानी कि मेन कैरक्टर "काव्या"। वो मुस्कुराते हुए उस लड़की की तरफ देखती है और कहती है, "ठीक है अनु मैडम जैसा आप कहें।" इतना कहकर वह अपनी किताब को बैग में रखने लगती है।
कि तभी अनु उसके हाथ से किताब छीन कर उसे ऊपर कर देती है और कहती है, "अगर अभी यह किताब तूने अपने बैग में रख ली तो कुछ देर बाद तू फिर इसे निकाल कर पढ़ने लगेगी। इसलिए अब से ट्रिप खत्म होने तक यह किताब मेरे पास रहेगी।" इतना कहकर वह किताब उससे दूर करते हुए, पीछे की तरफ ऊपर कर देती है।
काव्या अनु से अपनी किताब छीनते हुए कहती है, "अनु यार मेरी किताब वापस कर तुझे पता है ना यह मेरे फेवरेट राइटर की बुक है।"
तभी वहाँ दो और लड़के आ जाते है। इनमें से एक का नाम है "निखिल" और दूसरे का नाम होता है "माधव" जिसे सब लोग "मैडी" कह कर पुकारते है। यहाँ मै आपको बता दू कि काव्या, अनु, निखिल और मैडी बचपन के दोस्त है। यह सभी एक ही स्कूल में पड़ते थे और अब कॉलेज में भी साथ ही पड़ते हैं।
मैडी अनु से कहता है, "व्हाट्सअप गर्ल्स! क्या बातें हो रही हैं।" तभी उसकी नज़र अनु के हाथ में पकड़ी हुई उस किताब पर पड़ती है। जिस पर वह बहुत उत्साह से कहता है, "अरे यह तो डॉ प्रभात कुमार की नई किताब है न जो उन्होंने अपनी नई रिसर्च पर लिखी है। जिसमें उन्होंने बताया है कि उन्हें 15वी शताब्दी के आस-पास के ऐतिहासिक अवशेष और कुछ महत्वपूर्ण चीज़े मिली है। जिस से हमें उस समय के बारे में कई नई बातें पता चलेंगी।"
काव्या उन तीनों की तरफ देखती है और कहती है, "बिल्कुल, सही कहा तुमने। इस से हमें इतिहास के बारे में काफी ज़रूरी बातें पता चलेंगी।"
अचानक बस में झटके से ब्रेक लगता है, सभी स्टूडेंट्स अपनी जगह से झटके से हिलते है, और उनके हाथो से कुछ चीज़ें भी नीचे गिरती है।
तभी एक लड़की चिल्ला कर कहती है, "अरे! बेवक़ूफ़ ड्राइवर आराम से बस नहीं चला सकते क्या? मेरा सारा सामान नीचे गिरा दिया।" उसके साथ उसके सुर में सुर मिलाती दो और लड़कियाँ चिल्लाती है, "नीचे गिरा दिया"। "नीचे गिरा दिया।"
सब लोग आगे की ओर उन लड़कियों को देखते हैं। यह है "सुमित्रा"। आई मीन "सुमी"। और इसके साथ जो दो लड़कियाँ इसके सुर में सुर मिला रही थी उनका नाम है-"टीना","मीना।"
सुमी एक बेहद घमंडी और मॉडर्न तरीक़े की लड़की है, जो अपने आप को बहुत अप टू डेट रखती है। या यूं कहिए कि अपनी नाक पर मक्खी भी बैठने नहीं देती। अपने इस एटीट्यूड और मॉडर्न होने की वजह से वह लड़को में काफी फेमस है। हर लड़का उससे दोस्ती करना चाहता है। और वह भी बहुत चालाक है सभी लड़को को अपनी उँगलियों पर नचाती है। वह होती है ना कुछ लड़कियाँ जो अपने आप को दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की समझती है, वैसी ही है सुमी। अगर देखा जाये तो उसकी यह खूबसूरती सिर्फ बाहरी और मेकअप की वजह से है। उसका मन तो कोयले से भी ज़्यादा काला है। और उसकी यह दो चमचियाँ आई मीन टीना-मीना जो उसकी हर बात पर हाँ में हाँ मिलाती है। वह भी उसी की तरह घमंडी और बेवक़ूफ़ हैं। सुमी जहाँ-जहाँ जाती है इसकी यह दोनों चमचियाँ इसके साथ ही जाती है। एक इसका बैग थामती है तो दूसरी इसकी वाटर बॉटल और दूसरा सामान।
"लो शुरु हो गया इसका ड्रामा। प्रोफेस्सर की भतीजी है तो इतना एटीट्यूड। अगर बेटी होती तो ना जाने क्या करती।" फुसफुसाते हुए अनु यह कहती है।
काव्या अनु को चुप कराते हुए कहती है, "छोड़ ना यार। तुझे पता तो है ना कि वह कैसी है। फिल्हाल यह देखो कि बस क्यों रोकी है।" इतना कह कर वह अपनी सीट से उठती है और आगे की ओर बड़ती है।
आगे से ड्राइवर की आवाज़ आती है, "बस का टायर पंचर हो गया है मैडम, सब बच्चो को कहिये थोड़ा वक़्त लगेगा। जब तक वह चाहें तो आगे ढाबे पर कुछ खा-पी ले।"
बस ड्राइवर की बात सुनकर सभी लोग बस से नीचे उतरते हैं। कुछ लोग ढाबे की तरफ चले जाते हैं, और कुछ इधर-उधर घूमने लगते हैं। सुमी और उसकी वह दोनों चमचियां भी बस से नीचे उतरती है।
"ओह गॉड कितनी गर्मी है, मेरा सारा मेकअप खराब हो जाएगा।" सुमी कहती है।
"खराब हो जाएगा! खराब हो जाएगा!" उसके सुर में सुर मिलाते हुए टीना-मीना भी कहती है।
निखिल काव्या और अनु की तरफ देखकर कहता है, "जब तक बस ठीक नहीं होती तब तक चलो चलकर कुछ खा लेते हैं, मुझे तो बहुत भूख लगी है। क्या कहती हो?"
उसकी यह बात सुनकर अनु मैडी की तरफ देखती है और उसका हाथ पकड़ कर बहुत एकसाइटमेंट से कहती है, "हां सही कहा मुझे भी बहुत भूख लगी है, चलो ना मैडी चलकर कुछ खा लेते हैं। है ना मैडी।"
अनु की बात सुनकर मैडी अनु की तरफ ऐसे देखता है कि मानो जैसे अनु ने उससे कोई खज़ाना छीन लिया हो।
मैडी को इतना सीरियस देख, अनु खामोश हो जाती है। काव्या अनु और मैडी की खामोशी को ब्रेक करते हुए कहती है, "हां सही कहा चलो चलकर कुछ खा लेते हैं। लेट्स गो।"
वह सब ढाबे के अंदर जाकर एक टेबल पर बैठ जाते हैं। निखिल वहां एक लड़के को हाथ के इशारे से बुलाते हुए कहता है, "सुनो हमारा ऑर्डर ले लो।"
सब अपनी-अपनी खाने की चीज़ें बताते हैं। अनु कहती है, "मेरे लिए एक समोसा और एक ऑरेंज जूस।"
मैडी कहता है, "भई मैं तो आलू का पराठा खाऊंगा।"
निखिल कहता है, "मेरे लिए भी एक आलू पराठा और गर्म चाय ले आओ। और काव्या तुम क्या खाओगी?" काव्या की तरफ देखते हुए निखिल पूछता है।
काव्या कहती है, "मुझे भूख नहीं है। मेरे लिए बस मैंगो जूस मंगा दो।"
निखिल उस लड़के को उनके लिए सब चीज़े लाने को कहता है।
उनके कुछ आगे ही एक दूसरी टेबल पर सुमी और टीना-मीना बैठी हुई थी। टीना-मीना सुमी से कहती है, "सुमी कुछ खा लेते हैं हमें तो बहुत भूख लगी है।"
सुमी बहुत एटिटयुड से कहती है, "ठीक है तुम लोग अपने लिए कुछ मंगवा लो मैं तो डाइट पर हूंँ।" उसकी बात सुनकर टीना-मीना अपना थोड़ा मुँह बिगाड़ कर सुमी की ओर देखती हैं।
अब सुमी की नज़र उनके सामने बैठी हुए काव्या और निखिल पर पड़ती है। वह अपने चेहरे पर एक शैतानी स्माइल लिए कहती है, "गर्ल्स जब तक तुम कुछ खाओ मैं ज़रा चिल् करके आती हूंँ।" इतना कहकर वह हल्के हल्के चलते हुए काव्या की टेबल के पास जाने लगती है और टेबल के पास जाकर अचानक रुक जाती है और झुक कर कहती है, "आउच! मेरा पैर मुड़ गया।"
सुमि की आवाज़ सुनकर मैडी अपनी सीट से उठकर खड़ा हो जाता है और उसकी तरफ बढ़कर अपनी प्यार भरी नज़रों से देखते हुए कहता है, "अरे-अरे सुमी संभल कर, आराम से यहां बैठ जाओ।" और अपनी सीट पर सुमी को बिठा देता है और खुद बराबर वाली सीट पर बैठ जाता है।
मैडी का सुमी के लिए इतना कंसर्न देखकर अनु गुस्से से लाल हो जाती है। वह अपने दाएं हाथ की मुट्ठी को कसकर बंद करती है और किसी तरह अपना गुस्सा अपने अंदर ही दबाती है।
सुमी फ्लर्टिंग अंदाज में निखिल की तरफ देख कर कहती है, "निखिल तुमने पूछा नहीं कि मैं कैसी हूं?"
यह सुनकर निखिल मुस्कुरा कर सुमी की ओर देखता है और उससे पूछता है, "कैसी हो तुम सुमी?"
यह सब देखकर तो अब काव्या को भी गुस्सा आने लगता है। इतने में एक लड़का उनका ऑर्डर लेकर आ जाता है और सब चीज़ एक-एक करके टेबल पर रखता है।
मैडी अपना एक हाथ को मेज़ पर टिकाकर, अपने गालों को थामे, अभी भी सुमि को वैसे ही अपनी प्यार भरी नज़रों से मुस्कुराते हुए निहारे जा रहा था। बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई छोटा बच्चा मिठाई की दुकान के बाहर से काँच के बॉक्स में लगी मिठाइयों को अपनी लल्चाई नज़रों से देखकर, अपने मन में ही उन्हें खाने के बारे में सोचता हुआ मुस्कुराता रहता है। वह ऐसे ही सुमी की तरफ देखते हुए...बिना अपने पराठे की प्लेट पर एक भी नज़र डाले...उस प्लेट को सुमि की ओर सरकाते हुए कहता है, "सुमी ये लो कुछ खा लो।"
सुमी पराठे की ओर अजीब सी नज़रों से देखते हुए कहती है, "अरे यह कितना ऑयली है, मैं यह नहीं खा सकती। इसमें कितनी कैलोरीज़ होंगी।" और इतना कहकर वह सामने की तरफ रखे काव्या के मैंगो जूस के गिलास को पीने के लिए उठा लेती है। और बड़े मज़े से पीने लगती है।
सुमि की इस हरकत को देखकर, काव्या गुस्से से कहती है, "इसे निखिल ने मेरे लिए मंगवाया है।"
निखिल माहौल की गर्मी को समझते हुए काव्या से कहता है, "अरे काव्या! जाने दो यार मैं तुम्हारे लिए दूसरा आर्डर कर देता हूँ।"
काव्या निखिल से कुछ कहना तो चाहती है, पर किसी तरह खुद को कंट्रोल कर लेती है।
सुमी एक शैतानी स्माइल लिए काव्या की तरफ देखते हुए जूस पीने लगती हैं। मैडी अभी भी सुमी को वैसे ही प्यार भरी नज़रों से निहार रहा था। यह सब देखकर तो अब अनु को सुमी पर और भी गुस्सा आता है और वह पास में रखे पानी से भरे गिलास को अपनी कोहनी से टक्कर मारकर सुमी की तरफ लुडका देती है, जिससे वह पानी सुमी की ड्रेस पर जाकर गिर जाता है।
सुमी हड़बड़ा कर चिल्लाते हुए उठती है और कहती है, "यह क्या किया तुमने बेवक़ूफ़, मेरी सारी ड्रेस खराब कर दी।"
अनु हँसते हुए सुमी से कहती है, "ओह सॉरी! वह गलती से मुझसे यह गिर गया, लाओ मैं साफ कर देती हूंँ।"
सुमी उसका हाथ दूर को हटा देती है। मैडी और निखिल सुमी को नैपकिंस देकर उसकी मदद करते हैं। यह सब देखकर तो अब अनु और काव्या को और भी गुस्सा आता है। काव्या गुस्से से उठकर खड़ी हो जाती है और कहती है, "मैं ज़रा वॉशरूम से होकर आती हूंँ।" और अपना बैग और जैकेट हाथ में लेकर वहां से चली जाती है। जाते हुए काव्या थोड़ा गुस्से में बड़बड़ाती है, "यह सुमी के नाटक निखिल क्यों नहीं समझता। वह यह सब सिर्फ सबका अटेंशन पाने के लिए करती है।"
काव्या यह सब बड़बड़ाती हुई चल रही थी, कि तभी उसकी टक्कर एक आदमी से होती है, और उसका बैग और जैकेट ज़मीन पर गिर जाता है। टक्कर की वजह से वह आदमी भी ज़मीन पर गिर जाता है और उसका सामान भी गिर कर इधर-उधर बिखर जाता है। काव्या सॉरी कह कर उठती है। काव्या उस आदमी को कहती है, "सॉरी सर, मैंने आपको देखा नहीं सॉरी।" और उसका समान उठाने में उसकी मदद करती है। वह आदमी काफी घबराया हुआ लग रहा था, जैसे वह किसी से भाग रहा हो। काव्या उसका चेहरा ठीक से नहीं देख पाती क्योंकि वह जल्दी-जल्दी ज़मीन पर पड़ा उस आदमी का सामान उठाने में लगी थी। वह आदमी काव्या की तरफ देखता है, फिर उसकी नज़र काव्या के बैग और जैकेट पर पड़ती है। वह कुछ सोचता है और उसके हाथ में जो एक छोटा सा पैकेट होता है, उसे वह काव्या के जैकेट की पॉकेट में रख देता है।
काव्या उस आदमी का सामान एडजस्ट करके उसे पकड़ाती है और कहती है, "सॉरी सर मैं अपने ही ख्यालों में थी। मैंने आपको देखा नहीं। सॉरी मेरी वजह से आपको चोट लग गई, आई एम सॉरी।"
वह आदमी "इट्स ओके बेटा! कोई बात नहीं। कोई बात नहीं।" कहकर खड़ा हो जाता है और अपना सामान लेकर तेज़ी से आगे की ओर बढ़ जाता है। काव्या भी अपना बैग और जैकेट उठाकर दूसरी तरफ चली जाती है।
आखिर कौन है यह आदमी? वह इतना घबराया हुआ क्यों था? और उसने काव्या के जैकेट में आखिर ऐसा क्या रख दिया? क्या काव्या किसी आने वाले खतरे से अनजान है? क्या इस अंचाही टक्कर की वजह से काव्या की ज़िंदगी बदलने वाली है?
काव्या वॉशरूम से बाहर आती है और देखती है कि सुमी अभी भी उनकी टेबल पर बैठी हुई है, और निखिल से फ्लर्ट करने की कोशिश कर रही है। यह सब देखकर वह गुस्से से आगे बढ़ती है और अनु से कहती है, "अनु चलो यहां से, इन्हें इनकी नई दोस्त मिल गई है, अब इन्हें हमारी क्या ज़रूरत।"
निखिल अपनी सीट से उठकर खड़ा होता है, और काव्या को रोकते हुए कहता है, "काव्या ऐसी कोई बात नहीं है।" और काव्या का हाथ पकड़ कर उसे वहीं रुकने के लिए कहता है।
इतने में बस ड्राइवर की आवाज़ आती है, "बस ठीक हो चुकी है, सब लोग आकर बैठ जाएं। बस 5 मिनट में यहाँ से चल देगी।"
यह सुनकर सभी लोग एक-एक करके बस में जाकर बैठने लगते हैं। निखिल काव्या के लिए अपने पास की सीट बचा कर रखता है, लेकिन उससे पहले वहाँ सुमी आकर बैठ जाती है। निखिल उसे वहाँ बैठने से रोक नहीं पाता।
यह देखकर काव्या गुस्से से पीछे की सीट पर जाकर चुपचाप बैठ जाती है। अनु भी उसके पास ही बैठती है।
अनु काव्या से कहती है, "यह सुमी की बच्ची तो निखिल के पीछे ही पड़ गई है।"
काव्या कहती है, "सारी गलती सुमी की तो नहीं है। निखिल चाहता तो उसे वहाँ बैठने से रोक सकता था, पर उसने ऐसा नहीं किया।" यह कहकर काव्या निखिल की ओर गुस्से से देखती है।
अब बस पिकनिक स्पॉट पर पहुँच जाती है और रुक जाती है। बस के रुकते ही पूजा मैडम सभी बच्चों को एक-एक करके बाहर निकलने को कहती है। सभी बच्चे बस के बाहर आते हैं और घूमने लगते हैं।
बस से उतरते ही निखिल सुमी को छोड़कर काव्या के पास जाता है और उससे कहता है, "चलो काव्या घूम कर आते हैं।"
काव्या उसकी बात काटते हुए थोड़ा सख़्त लहज़े में कहती है, "रहने दो, मैं खुद ही घूम लूंगी।" और वहाँ से दूसरी तरफ बढ़ जाती है। निखिल बेचारा अपना मुँह ताकता रह जाता है।
हर्षित सर कुछ लड़कों को टेंट लगाने का काम देते हैं। तो वहीं पूजा मैडम बस ड्राइवर से ज़रूरी सामान नीचे उतारने को कहती है और उसे चेक करने लगती है।
आज मौसम बहुत सुहाना है। कॉलेज पिकनिक के लिए यह एक बढ़िया दिन है। कुछ देर बाद वहाँ पर टेंट लग जाते हैं, और पूजा मैडम सारा सामान अरेंज कर देती है।
हर्षित सर सभी बच्चों को आवाज़ लगाकर वहां एक साथ इकट्ठा होने के लिए कहते हैं। काव्या और अनु भी हर्षित सर की बात सुनने के लिए वहाँ पर आ जाती है।
अब हर्षित सर और पूजा मैडम सबसे कहते हैं, "स्टूडेंट्स वैसे तो हम लोग यहाँ पिकनिक ट्रिप पर आए हैं, लेकिन फिर भी सभी को हमारी बात माननी होगी और सभी रूल्स भी फॉलो करने होंगे।"
पूजा मैडम हंसते हुए कहती हैं, "अरे इतना सीरियस होने की ज़रूरत नहीं है। अभी हम आपके टीचर्स की तरह नहीं बल्कि फ्रेंड्स की तरह हैं।"
यह बात सुनकर सभी बच्चे हंसने लगते हैं। पूजा मैडम आगे कहती है, "क्यों ना इस पिकनिक को और भी ज़्यादा मजेदार बनाया जाए।"
उनकी यह बात सुनकर सभी बच्चे हैरानी से उनकी तरफ देखने लगते हैं।
अब हर्षित सर कहते हैं, "चलिए एक गेम खेलते हैं। क्योंकि हम अभी शहर की भाग-दौड़ से दूर इस सुकून भरे हिल स्टेशन पर है तो क्यों ना गेम भी इसे ही एक्सप्लोर करते हुए खेलें, जिससे हमें नेचर की खूबसूरती को और भी करीब से जानने का मौका मिले।"
उनकी यह बात सुनकर सभी बच्चे हैरानी से उनकी तरफ देखने लगते हैं।
अब पूजा मैडम कहती हैं, "गेम बहुत सिंपल है हमने इस जंगल में एक ट्रेजर बॉक्स छुपाया है बस आप सबको उसे ढूंढना होगा। हम आप सबको दो-दो की जोड़ी बनाकर टीम्स में डिवाइड करेंगे। जो जोड़ी सबसे पहले उस ट्रेजर बॉक्स को ढूंढ लेगी वही हमारी विनर होगी।"
उनकी यह बात सुनकर एक लड़का उनसे पूछता है, "मैडम यह तो बताइए की जीतने वाली जोड़ी को प्राइस में क्या मिलेगा?"
पूजा मैडम हंसते हुए हर्षित सर की तरफ़ अपने हाथ से इशारा करते हुए कहती हैं, "जीतने वाले को मिलेगी हर्षित सर की फ्री क्लास।" यह कहकर वह जोर से हंसने लगती है। सभी बच्चे एकदम खामोश हो जाते हैं। आगे अपनी हंसी रोकते हुए पूजा मैडम कहती हैं, "सॉरी-सॉरी मैं मजाक कर रही थी। जीतने वाली जोड़ी को मिलेगी एकदम रॉयल ट्रीटमेंट, मतलब वह इस ट्रिप पर राजा या रानी की तरह रहेंगे। उनसे कोई काम नहीं करवाया जाएगा और उनका सारा काम दूसरे लोग करेंगे, और उन्हें इस खूबसूरत टेंट में रुकने दिया जाएगा।" यह कहकर वह अपनी दाहिनी तरफ के टेंट की ओर इशारा करते हैं।
सभी बच्चे उस टेंट को उत्सुकता भरी नज़रों से देखते हैं। वह टेंट वाकई में बहुत खूबसूरत बना था, और उसमें ज़रूरत का बहुत सारा सामान था जैसे- बेड, पंखा और भी बहुत कुछ ऐसा जो कि एक नॉर्मल पिकनिक टेंट में नहीं होता है, जो कि उनके लिए इस ट्रिप को और भी आरामदायक बनाता।
टेंट को देखकर सुमी कहती है, "इस टेंट में तो मैं ही रहूँगी।"
उसकी यह बात सुनकर काव्या और अनु हंसने लगती है और हल्के से एक दूसरे की तरफ़ मुँह करके कहती है, "पहले कंपटीशन जीत तो जाओ।"
अब हर्षित सर कहते हैं, "मैं आप सभी को गेम्स के रूल बताता हूँ। हमने जंगल में आसपास ही एक बॉक्स छुपाया है। उसमें एक फ्लैग रखा हुआ है। आपको बस इतना करना है कि वह फ्लैग लाकर पूजा मैडम को देना है और बस आप यह कंपटीशन जीत जाएंगे। लेकिन ध्यान रहे कि हमने जंगल में और भी कुछ चीज़ें छुपाई है, और आप अगर वह भी ढूंढ लेंगे तो आपको प्वाइंट्स दिए जाएंगें जो आपको इस ट्रिप में काफी फायदेमंद होंगे।"
हर्षित सर सभी बच्चों को एक-एक एनवेलप देते है और कहते हैं, "इस एनवेलप में एक कार्ड है जिस पर एक नंबर लिखा है। ऐसे ही एक दूसरे एनवेलप पर सेम नंबर आपके जोड़ीदार के पास भी होगा। आप अपने-अपने एनवेलप खोलिए और कार्ड के सेम नंबर वाले जोड़ीदार को ढूँढ़िये।"
सभी लोग अपना-अपना एनवेलप खोलकर उसमें लिखा हुआ नंबर चेक करने लगते हैं। काव्या और अनु भी अपना अपना एनवेलप खोलती है। अनु की नज़र निखिल के कार्ड पर पड़ती है। उस पर नंबर 16 लिखा था। फिर वह काव्या का कार्ड देखती है, उस पर भी नंबर 16 लिखा था।
अनु मुस्कुराते हुए काव्या से कहती है, "अरे वाह काव्या! क्या बात है, तेरा और निखिल का कार्ड तो सेम नंबर का है। मतलब तुम दोनों पार्टनर हो।"
अनु की यह बात सुनकर काव्या थोड़ा गुस्से से जलबलाते हुए अनु के हाथ से उसका कार्ड लेकर, अपना कार्ड उसे पकड़ा देती है। यह देखकर अनु हैरानी से काव्या की ओर देखती है, और काव्या खामोशी से दूसरी तरफ देखने लगती है, जैसे मानो उसे इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता।
सभी बच्चे अपने-अपने टीममेट को ढूंढने लगते हैं। निखिल देखता है कि उसका और अनु का कार्ड नंबर सेम है, और वह अनु की तरफ कार्ड दिखाते हुए उससे कहता है, "अनु... अनु 16 नंबर।"
अनु भी उसकी तरफ़ कार्ड दिखाते हुए कहती है, "हाँ... हाँ 16 नंबर।"
मैडी को भी उसका टीममेट मिल जाता है। काव्या अभी भी अपने कार्ड के सेम नंबर वाले टीममेट को ढूंढ रही थी। काव्या के हाथ में नंबर 8 का कार्ड था। तभी काव्या की नज़र एक लड़की के हाथ में पकड़े कार्ड पर पड़ती है। उसके हाथ में भी नंबर 8 का कार्ड था। अब वह उस लड़की के पास जाने लगती है। उस लड़की के करीब जाने पर काव्या क्या देखती है, "अरे यह क्या! यह तो सुमी है।" काव्या हैरानी से कहती है, "सुमी क्या कार्ड नंबर 8 तुम्हारे पास है?"
सुमी भी काव्या के कार्ड की तरफ हैरानी से देखकर कहती है, "क्या तुम! तुम हो मेरी पार्टनर। मुझे तो लगा था की कोई हैंडसम लड़का मेरा पार्टनर होगा।"
काव्या गुस्से से अपने कार्ड घूरती है और मन ही मन बड़बड़ाती है "यह क्या... मैंने खुद ही अपने लिए मुसीबत मोल ले ली।"
पूजा मैडम आवाज़ लगाती हैं, "सभी बच्चों को अपने पार्टनर मिल गए हैं तो कंपटीशन शुरू करते हैं।" सभी बच्चे हाँ में सर हिलाते हैं।
पूजा मैडम कहती हैं, "ध्यान रखिए कि यह जंगल है इसलिए ज़्यादा दूर तक मत जाना। हमने बॉक्स आसपास ही छुपाया है। जब भी आप में से किसी को भी कोई खतरा लगे तो वह फ़ौरन कैंप की तरफ वापस लौट आए या फिर मदद के लिए आवाज़ लगाएं। कोई भी स्टूडेंट अपने जोड़ीदार को अकेला नहीं छोड़ेगा। सभी को अपने टीममेट के साथ ही रहना है। अंडरस्टैंड। ओके तो चलिए जाइए।" इतना कहकर वह सबको जाने का इशारा करती है। अनु और निखिल एक साथ जंगल की ओर बॉक्स ढूंढने के लिए चल पड़ते है।
काव्या सुमी से कहती है, "चलो सुमी अब हमें भी चलना चाहिए।"
सुमी एटीट्यूड से कहती है, "हाँ चलो! चले।"
जारी है...
चैप्टर की शुरुआत में हम देखते हैं कि सभी लोग बॉक्स ढूंढने के लिए जंगल में इधर-उधर जाने लगते हैं। मैडी एक दूसरे लड़के के साथ बॉक्स ढूंढ रहा था। तभी उसे अपने पीछे पड़े सूखे पत्तों पर किसी के कदमों की आहट सुनाई देती है। वह डरकर पीछे मुड़कर देखता है तो वहाँ कोई नहीं होता। मैडी डर कर एकदम से अपने पार्टनर के कन्धे से लगकर, उसका हाथ कसकर पकड़ लेता है, और कहता है,
"यार मैंने सुना है कि जंगल में बहुत सारे जंगली जानवर रहते हैं।"
मैडी की यह बेवकूफ़ी भरी बात सुनकर वह दूसरा लड़का बड़ी हैरानी से मैडी की तरफ देखता है और कहता है, "वाह! क्या बात है मैडी। यह बात तो मुझे आज ही पता चली।"
और मैडी का हाथ अपने कंधे पर से झटकते हुए, उसे दूर करके, चिल्लाते हुए कहता है, "जल्दी करो हमें बॉक्स ढूंढना है और यह गेम जीतना है।"
मैडी को भी अपनी बवक़ूफ़ी का एहसास हो जाता है, और वह अपने कन्धे झटककर इधर उधर देखते हुए कहता है, "हाँ-हाँ! चलो-चलो! बॉक्स ढूंढते हैं।"
अब निखिल और अनु को देखते हैं जो जंगल में बॉक्स ढूंढ रहे थे। निखिल अनु से पूछता है, "अनु क्या बात है? काव्या का मूड इतना खराब क्यों है? वह मुझसे ठीक से बात क्यों नहीं कर रही है?"
अनु थोड़ा गुस्से से निखिल की तरफ देखती है और बोलती है, "क्यों निखिल, तुम्हें नहीं पता कि काव्या का मूड क्यों खराब है?"
निखिल अपने दोनों कंधे उचकाकर ना में गर्दन हिलाता है और जवाब देता है, "नहीं, मुझे नहीं पता।"
अनु उसकी तरफ बेज़ारगी से देखकर अपना सर न में हिलाती है और कहती है, "तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता।"
दूसरी तरफ हमें काव्या और सुमी दिखाई देती है। काव्या और सुमी जंगल में सबसे बिल्कुल अलग बहुत पीछे चल रही थी क्योंकि सुमी बहुत हल्के-हल्के चल रही थी।
काव्या सुमी से कहती है, "सुमी थोड़ा जल्दी चलो। अगर इस स्पीड से हम चलते रहें तो अंधेरा हो जाएगा, और हम बॉक्स भी नहीं ढूंढ पाएंगे।"
सुमी बहुत ड्रामा करते हुए कहती है, "ओह गॉड! कितनी मिट्टी है यहाँ पर कितनी डस्ट है। मैं तो यहाँ पर ठीक से चल भी नहीं पा रही हूंँ। मेरी सारी सैंडल खराब हो गई। देखो ना।"
काव्या उसकी तरफ देखकर अपना मुंह ना के इशारे में हिलाती है और कहती है, "सुमी यह जंगल है। अगर यहाँ पर मिट्टी और डस्ट नहीं होगी तो फिर क्या होगा? तुम्हें आखिर पिकनिक ट्रिप पर पेंसिल हील की सैंडल पहनकर आने की जरूरत ही क्या थी? नॉर्मल शूज नहीं पहन सकती थी क्या?"
सुमी गुस्से से कहती है, "मुझे लेक्चर देना बंद करो। तुम्हारी जगह अगर कोई लड़का होता तो मुझे इतना चलना नहीं पड़ता वह खुद ही बॉक्स ढूंढ लेता।"
काव्या कहती है, "मुझे भी तुम्हारी पार्टनर बनने का कोई शौक नहीं है। वह तो अगर मैंने कार्ड नहीं बदला होता तो आज मैं तुम्हारे साथ....." वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाती इससे पहले ही सुमी अचानक लड़खड़ाकर गिर जाती है।
"आह! मेरा पैर, मेरा पैर मुड़ गया।" सुमी करहाते हुए कहती है।
काव्या सुमी के पास जाती है और उसके पैर को देखती है। वह देखती है कि सुमी की सैंडल टूट गई जिसकी वजह से उसका पैर लड़खड़ा गया और वह गिर गई।
सुमी करहाते हुए कहती है, "ओह गॉड! मेरा पैर, बहुत दर्द हो रहा है।"
काव्या उसके पैर को सीधा करके रखती है और कहती है, "कुछ नहीं हुआ है सुमी, बस हल्का सा मुड़ गया है। अभी ठीक हो जायेगा।"
सुमी उसके हाथ को झटकते हुए कहती है, "यह तुम्हें छोटी सी चोट लग रही है। मुझे इतना दर्द हो रहा है। मुझे तो लग रहा है कि मेरे पैर की हड्डी टूट गई है।"
काव्या कहती है, "इतना ओवर रिएक्ट मत करो सुमी। थोड़ी सी मोच है। यहाँ आराम से बैठो मैं किसी को मदद के लिए देखती हूँ।"
इतना कहकर वह सुमी को वहीं पेड़ की टेक से बिठाकर, किसी को मदद के लिए ढूंढने के लिए जाने लगती है।
सुमी उसे चिल्लाकर पीछे से आवाज़ देती है, "जल्दी आना! मैं ज़्यादा देर तक यहाँ पर नहीं बैठूँगी।"
उसकी बात सुनकर काव्या पीछे पलटती है, और फिर बिना कुछ बोले अपने मन में कहती है, "उफ़ यह और इसका एटीट्यूड!" और आगे बढ़ जाती है।
कुछ देर बाद वहाँ जंगली जानवरों के चिल्लाने की आवाज़ आने लगती है। जिससे डर कर सुमी अचानक से खड़ी होने की कोशिश करती है, और मदद के लिए चिल्लाती है, "हेल्प! हेल्प! कोई है कोई मेरी मदद करो।"
तभी वहां दो लड़के आते हैं और वह कहते हैं, "अरे सुमी क्या हुआ तुम्हें?"
सुमी उनके सामने ओवर एक्टिंग करके कहती है, "देखो ना मेरे पैर में मोच आ गई है। मैं चल भी नहीं पा रही हूंँ।" और उन लड़कों के कंधों पर हाथ रखकर सहारा लेकर उठती है।
वह लड़के उसे कहते हैं, "चलो सुमी हम तुम्हें कैंप में वापस छोड़ देते हैं।" और उसे लेकर कैंप की तरफ़ जाने लगते हैं।
तभी काव्या सुमी के चलने के लिए एक लकड़ी और कुछ जड़ी बूटियां लेकर वहाँ आती है जिसे वह उसके पैर पर लगा सके। लेकिन जब वह वहाँ आती है, तो वह देखती है कि सुमी उन लड़कों के साथ वापस कैंप की तरफ जा रही है।
यह देखकर काव्या कहती है, "चलो कोई नहीं अब मुझे अकेली ही बॉक्स ढूंढना होगा। वैसे भी मैं अभी बहुत पीछे चल रही हूंँ।"
इतना कहकर वह अपना बैग कंधे पर ठीक से डालकर आगे की ओर जंगल में बढ़ने लगती है।
काफी समय बीत चुका था। और अब अंधेरा भी होने वाला था सुमी की वजह से काव्या अपने क्लासमेट से काफी पीछे रह गई थी। जिस वजह से अब वह जंगल में रास्ता भटक जाती है।
वह सोचती है "अंधेरा होने वाला है। अब जंगल में मेरा यूं ही अकेले घूमना खतरनाक है।"
इसलिए वह कैंप की तरफ वापस जाने का सोचती है। पर क्योंकि वह सभी से अलग दिशा में चली गई थी इसलिए उसे समझ नहीं आ रहा था की कैंप जाने के लिए कौन सा रास्ता सही है। वहाँ सारे रास्ते लगभग एक ही जैसे दिख रहे थे। वह बार-बार इधर-उधर देखती है और एक दिशा में देखकर सोचती है, कि शायद इस तरफ से वह वापस जा सकती है। और फिर उस दिशा में जाने का सोच कर आगे बढ़ती है।
काव्या वापस जाने का रास्ता ढूंढ ही रही थी की तभी उसकी नज़र एक पेड़ के नीचे रखे हुए किसी अजीब से छोटे बक्से पर पड़ती है। वह पेड़ के पास जाती है। और वहाँ पर उस बक्से को उठाकर उस पर लगी मिट्टी को हाथ से साफ़ करती है। यह एक छोटा-सा बॉक्स था। इसके ऊपर प्राचीन भाषा में कुछ लिखा था। काव्या उसे पढ़ तो नहीं पाती, पर वह बॉक्स को उठाकर बड़ी उत्सुकता से देखती है और सोचती है, "यह कैसा बॉक्स है? और यह यहां ऐसे क्यों पड़ा है?"
वह बॉक्स को खोलने की कोशिश करती है। पर बॉक्स को देखकर लग रहा था कि मानो वह किसी विशेष तरीके की चाबी से ही खुलेगा। जब काव्या उस बॉक्स को खोल नहीं पाती तो वह उसे अपने बैग में रख लेती है। और सोचती है "कैंप में जाकर दोबारा इसे खोलने की कोशिश करूँगी।"
सूरज अब ढल चुका था। और अंधेरा हो गया था। लेकिन क्योंकि आज पूर्णिमा की रात थी इसलिए जंगल में अभी भी थोड़ी रोशनी बिखरी हुई थी। उस घने जंगल में एक अजीब सी खामोशी थी। बॉक्स को अपने बैग में रखकर काव्या आगे की ओर बढ़ रही थी। कुछ दूर जाने के बाद उसे किसी आदमी के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई देती है। वह दौड़कर उस ओर जाती है जहाँ से वह आवाज़ आ रही थी। और एक पेड़ के पीछे से छुपकर देखने लगती है। कुछ लोग जो के गुंडे बदमाश लग रहे थे वह एक आदमी को पकड़े हुए थे, और उसे मारते हुए किसी चीज के बारे पूछ रहे थे। वह आदमी बार-बार उन लोगों से यह कह रहा था कि उसे न मारे। उसे कुछ भी नहीं पता। उसे जाने दे।
काव्या पेड़ के पीछे से छुप कर खड़ी अभी भी यह सब देख रही थी। और उसे थोड़ा डर भी लग रहा था। कि तभी उनमें से एक गुंडा उस आदमी से कहता है, "अगर तुम उस खज़ाने के बारे में कुछ नहीं जानते तो तुम्हारा ज़िन्दा रहना भी बेकार है।"
इतना कहकर वह वह गुंडा उस आदमी पर एक नुकीले हथियार से वार करता है जिससे वह आदमी घायल होकर ज़मीन पर गिर जाता है।
यह सब देखकर काव्या इतनी डर जाती है, कि उसका पैर पीछे की तरफ लड़खड़ा जाता है और सूखे पत्तों पर पड़ता है। जिससे वहाँ उन लोगों को किसी और के होने की आहट महसूस होती है। वह लोग इधर-उधर देखते हैं। उनमें से एक गुंडा काव्या की ओर इशारा करते हुए कहता है, "वह देखो। वहाँ पर एक लड़की है। पकड़ो उसे।"
जैसे ही वह गुंडा काव्या की ओर इशारा करके भागता है काव्या भी अपनी जान बचाकर वहाँ से भागने लगती है। काव्या बहुत तेज़ दौड़ती है, लेकिन यह सब देखकर वह इतना घबरा गई थी कि उसके हाथ से उसका बैग रास्ते में ही गिर जाता है। काव्या पीछे मुड़कर बैग उठाने के लिए अपना एक कदम पीछे लेती है, कि तभी उसकी नज़र अपना पीछा कर रहे लोगों पर पड़ती है, जो उसके बहुत करीब थे, तो वह बैग को वहीं पर पड़ा छोड़कर आगे भागने लगती है।
अब हम कैंप में देखते हैं कि अनु और निखिल ने फ्लैग लाकर पूजा मैडम को दे दिया है, और गेम जीत ली है। सभी उन्हें इसके लिए कंग्रॅजुलेट करते हैं। तभी निखिल किसी लड़के से पूछता है, "काव्या कहाँ है?"
वहीं पास में खड़ा एक लड़का उससे कहता है, "सुमी के पैर में चोट लगी थी तो हम लोग उसे कैंप में वापस ले आए। लेकिन हमें वहां काव्या नहीं मिली थी।"
यह सुनकर निखिल को काव्या की फ़िक्र होती है, और वह भाग कर सुमी के पास जाता है और उससे पूछता है, "काव्या कहाँ है सुमी?"
सुमी दर्द से कराहते हुए कहती है, "मुझे नहीं पता।"
निखिल गुस्से से कहता है, "वह तुम्हारी पार्टनर थी और तुम कह रही हो कि तुम्हें नहीं पता की काव्या अभी कहाँ है?"
सुमी दर्द भरी आवाज़ में कराहते हुए कहती है, "मेरे पैर में इतनी चोट लगी है, कि मुझे कुछ और सोचने का वक्त ही नहीं मिला।"
निखिल उस पर गुस्सा करके पलटता है और हर्षित सर के पास जाकर उनसे कहता है, "सर अंधेरा हो चुका है। काव्या जंगल में अकेली है। हमें उसे जाकर ढूंढना होगा।"
हर्षित सर भी उसकी हाँ में हाँ मिलाकर कहते हैं, "हाँ चलो। मैं टॉर्च और कुछ ज़रूरी सामान ले लेता हूं। जंगल में इस वक्त काफ़ी सारे जंगली जानवर भी होंगे।"
यह सुनकर तो अनु और घबरा जाती है और मन ही मन कहती है, "काश हमने अपने कार्ड नहीं बदले होते।"
सब लोग काव्या को ढूंढने के लिए जंगल में चले जाते हैं।
भागते हुए काव्या अब चट्टान के आखिरी कॉर्नर पर पहुँच जाती है। अब यहाँ से आगे कोई रास्ता ना था। सिर्फ नीचे पानी बह रहा था जो पहाड़ी के ऊपर के झड़ने से नीचे गिर रहा था।
उस पानी की ओर देखकर काव्या सोचती है "अब मैं क्या करूं? कैसे अपनी जान बचाऊँ?" इतने में वह गुंडे वहाँ पर आ जाते हैं। काव्या उनकी तरफ देखती है, और अब उसकी आंखों में खौफ और घबराहट साफ नज़र आ रही थी।
उनमें से एक गुंडा काव्या की तरफ बंदूक तानकर उस पर गोली चला देता है। गोली के धमाके की आवाज़ से काव्या पीछे पानी में गिर जाती है। पानी में गिरते ही काव्या के कंधे के पास से खून बहता नज़र आता है। और हमें पता लगता है कि उसे गोली भी लगी है।
पानी में बेजान सी डूबती हुई काव्या मन ही मन सोचती है "क्या मेरी जिंदगी का अंत यही है? क्या मेरे सपने...मेरी उम्मीदें...मेरे साथ ही इस पानी में डूब जाएगी? क्या मेरे अपने...मेरे दोस्त... क्या कभी मुझे देख भी पाएंगे?"
वह यह सब सोच ही रही थी, कि अचानक हमें चाँद की तरफ दिखाया जाता है जिस पर अब ग्रहण लगना शुरू हो गया था।
आज केवल पूर्णिमा की ही रात नहीं थी बल्कि आज चंद्र ग्रहण भी था। ऐसा ग्रहण सदियों में सिर्फ एक ही बार लगता है। और आज सैकड़ों सालों के बाद यह ग्रहण की रात आई थी। जैसे-जैसे चाँद पर ग्रहण लग रहा था वैसे-वैसे आकाश में फैली हुई रोशनी भी कम होती जा रही थी, और उसकी जगह अंधेरा ले ले रहा था।
अब हम पानी के अंदर काव्या को देखते हैं जो अभी भी डूब रही थी। अचानक काव्या की जैकेट की पॉकेट में उस आदमी के द्वारा रखे गये, पैकेट में रखा पत्थर तेज़ी से चमकने लगता है। और उसकी रौशनी से पानी में उजाला हो जाता है। काव्या धीरे-धीरे अपनी आँखे खोलती है तो उसकी नज़र अपने सामने से आ रही किसी चीज़ पर पड़ती है। अभी उसे वह धुंधली दिखाई दे रही थी, इसलिए वह उसे गौर से देखने की कोशिश करती है। और सामने का नज़ारा देखकर तो उसकी आँखे हैरानी से खुली की खुली ही रह जाती है।
यह क्या! उसकी सामने हुबहू उसी की तरह दिखने वाली एक दूसरी लड़की भी पानी में डूब रही थी। उस लड़की का चेहरा बिल्कुल काव्या के जैसा था। वह लड़की देखने में बिल्कुल काव्या जैसी थी। लेकिन अभी उसकी आंखें बंद थी, मानो जैसे पानी की धारा उसकी सांसों को तोड़ चुकी हो। काव्या उस लड़की की ओर बढ़ती है और उसका हाथ पकड़ने की कोशिश करती है। तभी चांद पर पूरी तरीके से ग्रहण लग जाता है। काव्या जब उस लड़की का हाथ पकड़ने के लिए अपना हाथ आगे बड़ाती है, तभी उसके कंधे से निकलने वाले खून की कुछ बूंदे उसकी जैकेट के पॉकेट में रखे उस रहस्यमई पत्थर पर लगती हैं, जो उस आदमी ने टकराने के समय काव्या की जैकेट में रख दिया था। काव्या जैसे ही उस लड़की का हाथ पकड़ लेती है तभी पानी में एक ज़ोरदार रौशनी फैल जाती है। और काव्या को एक ज़ोरदार झटका लगता है, कि मानो जैसे उसकी आत्मा उसके शरीर से बाहर निकल गई हो। वह रौशनी एक सेकंड में ही खत्म हो जाती है। और अब वह दूसरी लड़की भी वहाँ से गायब हो जाती है।
अब चाँद की तरफ दिखाया जाता है। जिस पर से ग्रहण अब पूरी तरीके से हट चुका था। फिर नीचे पानी की तरफ दिखाया जाता है। जहाँ पानी में अब काव्या की आंखें बंद हो चुकी थी। और उसका शरीर बेजान सा पानी की गहराई में नीचे की तरफ खिंचा चला जा रहा था।
कौन थे वह लोग जिन्होंने काव्या को गोली मारी थी? आखिर पानी में काव्या की तरह हुबहू दिखने वाली लड़की कौन थी? काव्या के पास जो रहस्यमयी पत्थर था, असल में वह था क्या? और सबसे ज़रूरी बात क्या अब काव्या जिंदा बच पाएगी? जानने के लिए देखिए इस कहानी का नेक्स्ट चैप्टर में।
समय का चक्र अब तेज़ी से घूमता है, लेकिन आगे की ओर नहीं बल्कि पीछे की ओर और आ जाता है 600 साल पहले।
15वीं सदी
एक बड़ी सी महल नुमा हवेली में एक कमरे में बड़े से बिस्तर पर एक लड़की सो रही थी। उस लड़की का चेहरा बिल्कुल काव्या जैसा था। उसके सर पर सफेद रंग के कपड़े की पट्टी रखी हुई थी। उस लड़की को देखकर लग रहा था मानो जैसे वह बीमार हो। कमरे में एक ओर एक बर्तन में कुछ लकड़ियाँ और जड़ी बूटियां जल रही थी जिससे उस कमरे में थोड़ा धुंआ फैला था और एक अजीब सी महक थी। कमरे में खिड़कियां और रोशनदानों से छनकर सूरज की रौशनी उस लड़की के चेहरे पर पड़ती है जिससे अब उस लड़की को थोड़ा होश आ रहा था। वह धीरे-धीरे अपनी आँखों को खोलती है और उठकर बैठती है। वह अपने आस-पास की सभी चीज़ो को बड़ी हैरानी से देखते हुए धीरे से कहती है, "यह मै...यह मै कहाँ हूँ? और यह सब क्या है?"
फिर अचानक उसके सर में तेज़ दर्द होता है जिसकी वजह से वह आह! करके दोनों हाथों से अपना सर पकड़ लेती है।
अब उसे याद आता है कि उसे गोली लगी थी और वह पानी में डूब रही थी। वह जल्दी से अपने आपको चेक करने लगती है। पर यह क्या उसके शरीर पर तो गोली लगने का कोई निशान ही नहीं था।
"यह क्या मुझे तो गोली लगी थी न, फिर कोई निशान क्यों नहीं है?" वह अपने मन में सोचती है।
इतने में वहाँ एक लड़की खुशी से दौड़ती हुई उसके पास आकर कहती है, "छोटी मालकिन! छोटी मालकिन! भगवान का शुक्र है कि आपको होश आ गया। आपको पता है जब आप पानी में काफी देर तक नहीं मिल रही थी, तो मुझे लगा कि मै आपको दोबारा कभी देख नहीं पाऊँगी। मैं कितना डर गई थी।" इतना कहकर बच्चो की तरह ज़ोर-ज़ोर से रोना शुरु कर देती है।
उसकी यह बात सुनकर काव्या हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए कहती है, "क्या तुमने मुझे बचाया? क्या तुम मुझे यहाँ लेकर आई?"
यह सुनकर वह दूसरी लड़की अपनी रोती हुई आवाज़ में उससे कहती है, "नहीं-नहीं छोटी मालकिन, नहीं। आपको तो पता है ना मुझे तैरना नहीं आता। वह तो शुक्र है जब आप पानी में गिरी थी तो वहां आसपास कुछ सैनिक भी थे। उन्होंने ही पानी में कूद कर आपकी जान बचाई।" और फिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगती है।
यह सुनकर काव्या उसे चुपाते हुए कहती है, "अच्छा अब रोना बंद करो। देखो मैं बिल्कुल ठीक हूंँ। तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया कि तुमने मुझे बचाया। अब मुझे जाना होगा मेरे दोस्त मेरा इंतजार कर रहे होंगे।"
इतना कहकर काव्या पलंग से नीचे उतरती है। वह लड़की काव्या को रोकते हुए कहती है, "छोटी मालकिन! छोटी मालकिन! आप यह क्या कह रही हैं? कौन से दोस्त इंतजार कर रहे हैं?"
काव्या उसकी तरफ देखती है, और कहती है, "तुम बार-बार मुझे छोटी मालकिन, छोटी मालकिन क्यों कह रही हो। मेरा नाम काव्या है। नाकि छोटी मालकिन।"
वह लड़की काव्या की बात को काटते हुए उससे कहती है, "छोटी मालकिन! आप यह क्या कह रही हैं? आपका नाम तो अमृता है।"
काव्या गुस्से से अपनी आँखे बड़ी करके कहती है, "यह तुम क्या कह रही हो? अमृता....मैंने कहा ना मेरा नाम काव्या है।"
यह सुनकर अब वह लड़की हैरानी से काव्या को देखती है और अपनी हथेली को काव्या के सर पर रखकर कहती है, "छोटी मालकिन लगता है बुखार आपके सर पर चढ़ गया है। इसलिए तो आप ऐसी बहकी-बहकी बातें कर रही है।"
काव्या गुस्से से उसका हाथ अपने माथे से हटाते हुए कहती है, "मैने कहा न मै बिल्कुल ठीक हूँ। और तुमने यह बार बार मुझे छोटी मालकिन...छोटी मालकिन पुकारना क्यों लगा रखा है।"
काव्या यह सब कह ही रही थी, कि तभी उसे याद आता है, कि पानी में उसने अपने जैसे चेहरे वाली एक दूसरी लड़की को भी डूबते हुए देखा था। तो वह सोचती है, "शायद यह लोग मुझे वह दूसरी लड़की समझ रहे हैं। कहीं पानी में वह लड़की डूब तो नहीं गई? इससे पहले इन्हें मेरी सच्चाई पता चले...मुझे यहाँ से चले जाना चाहिए।"
यह सोचकर काव्या थोड़ी नर्मी दिखाते हुए धीमी आवाज़ में उससे कहती है, "देखो तुम लोगों ने मेरी जान बचाई है, इसके लिए तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया। लेकिन अब मुझे चलना होगा।"
इतना कहकर काव्या वहाँ से जाने के लिए तेज़ी से दरवाज़े की तरफ दौड़ती है। और जैसे ही दरवाज़ा खोलती है तो सामने का नज़ारा देखकर तो उसकी आँखे खुली की खुली रह जाती है। वह देखती है कि सामने तो सब कुछ पुराने ज़माने की तरह दिखाई दे रहा है और उसके कदम वहीं रुक जाते है।
तभी पीछे से भागती हुई वह लड़की भी छोटी मालकिन...छोटी मालकिन... पुकारते हुए काव्या के पास आ जाती है।
काव्या यह सब देखकर बड़ी हैरान थी। वह उस लड़की से पूछती है, "यह कौन सी जगह है?"
वह लड़की काव्या से कहती है, "यह हमारा राज्य है, मेहरानपुरा। क्या आपको यह भी याद नहीं है?"
यह सुनकर काव्या को कुछ याद आता है। वह उस लड़की की तरफ़ देखती है और कहती है, "मेहरानपुरा! यह कैसे हो सकता है? यह राज्य तो 15वीं सदी में हुआ करता था।"
वह लड़की काव्या को संभालते हुए कहती है, "हाँ! तो यह 15वीं सदी ही तो है।"
उसकी यह बात सुनकर काव्या हैरानी से आँखे बड़ी करके कहती है- "क्या? 15वीं सदी।" और लडखडा कर उसी के ऊपर बेहोश हो जाती है।
वह लड़की काव्या को पकड़ती है और मदद के लिए किसी को बुलाती है, जिससे वह काव्या को कमरे में ले जाए।
अब कमरे में काव्या को दोबारा होश आता है, और वह झटके से उठती है और खुदको बोलती है "सच में...कितना अजीब सपना था।" तभी वह अपने आसपास का माहौल देखती है, और खुद से कहती है, "यह क्या, यह सब तो बिल्कुल मेरे सपने जैसा लग रहा है। क्या मैं अभी भी सपने में ही हूँ?" इतना कहकर वह खुद को सपने से जगाने के लिए ज़ोर से एक चिमटी काटती है और उसके मुँह से आवाज़ निकलती है, "आउच! क्या...यह सपना नहीं है? तो फिर आखिर यह है क्या? क्या मैं मर गई हूंँ? और यह मौत के बाद की दुनिया है?"
काव्या के उठने की आवाज़ सुनकर वह लड़की दोबारा दौड़ती हुई काव्या के पास आती है, और कहती है, "छोटी मालकिन! अब आपकी तबीयत कैसी है?"
काव्या खुद को अपनी चादर में समेटे हुए उसे डरते हुए हैरानी से देखती है, और पूछती है, "मुझे सच-सच बताओ यह सब क्या है? क्या मैं मर गई हूँ? यह मृत्यु के बाद की दुनिया है?"
काव्या के मुँह से इतनी अजीब बातें सुनकर वह लड़की घबराते हुए कहती है, "छोटी मालकिन! आपको क्या हो गया है? आप यह कैसी बातें कर रही हैं? भगवान ना करें कि आपको कुछ हो। मेरी उम्र भी आपको ही लग जाए।"
काव्या उसकी बात सुनकर थोड़ा शांत होकर एक चैन की साँस लेकर कहती है, "इसका मतलब मै मरी नहीं हूंँ? अभी मैं जिंदा हूंँ। है ना।"
वह लड़की काव्या से कहती है, "हाँ, छोटी मालकिन! बिल्कुल। आप जिंदा है और सुरक्षित अपने घर में है।"
अब काव्या उस लड़की से कहती है, "अपना घर।"
वह लड़की काव्या से कहती है, "हाँ आपका घर।"
अब काव्या फिर से उस लड़की से पूछती है, "अच्छा तो बताओ यह कौन सी जगह है? और अभी कौन सी सदी चल रही है?"
वह लड़की काव्या से कहती है, "यह मेहरानगढ़ है। राजा सूर्य प्रताप की रियासत। और अभी 15वीं सदी चल रही है।"
उसके मुँह से मेहरानगढ़ और 15वीं सदी का नाम सुनकर काव्या कुछ सोच में पड़ जाती है और सोचती है, "यह कैसे हो सकता है? इसका मतलब क्या मै, क्या मै यहाँ समय यात्रा करके आ गई हूँ? पर ऐसा कैसे हो सकता है? मैं तो पानी में गिरी थी न? और मृत्यु के कितना करीब थी? कुछ समझ नहीं आ रहा है? क्या हो रहा है? क्या पता शायद ऊपर वाले ने मुझे यह दूसरा मौका दिया हो? दूसरा जीवन दान। लेकिन 15वीं सदी में। अब मुझे इस नई जिंदगी की कद्र करनी होगी। पर क्या मुझे यहाँ पर इस लड़की की पहचान के साथ ही अपना जीवन बिताना होगा? पर कैसे? ना तो मै इस लड़की के बारे में कुछ जानती हूं? और ना ही यहाँ के लोगों के बारे में?"
काव्या यह सब सोच कर खामोश थी, और अपने आप में ही खोई हुई थी। काव्या को इतना गंभीर देखकर वह लड़की फिर से ज़ोर-ज़ोर से रोने लगती है और कहती है, "छोटी मालकिन! आपको यह क्या हो गया है? आप ऐसी बातें क्यों कर रही है?"
उसके रोने की आवाज़ से काव्या का ध्यान अब उसकी तरफ आता है। काव्या उसे चुपाते हुए कहती है, "अरे चुप हो जाओ। चुप हो जाओ। मैने कहा ना मै बिल्कुल ठीक हूंँ। मै पानी में गिरी थी ना, तो शायद मेरे सर पर चोट लगी होगी। इसलिए मेरी याददाश्त चली गई है। तुम चुप हो जाओ और मेरी याददाश्त वापस लाने में मदद करो।"
इतना सुनकर वह लड़की अपने हाथों से बच्चों की तरह अपने आंसुओं को पोछती है और कहती है, "ठीक है। छोटी मालकिन ठीक है जैसा आप कहे। मै आपकी याददाश्त वापस लाने में आपकी मदद करूंगी।"
काव्या उसकी तरफ मुस्कुराकर कहती है, "अच्छा तो सबसे पहले मुझे यह बताओ कि तुम्हारा क्या नाम है? और तुम मेरी कौन हो?"
वह लड़की काव्या से कहती है, "मेरा नाम अनोखी है और मै आपकी सेविका हूंँ।"
काव्या मन में कहती है, "मेरी सेविका भी है। मतलब क्या मै कोई राजकुमारी हूंँ?"
फिर बड़ी उत्सुकता से पूछती है, "क्या मै इस राज्य की राजकुमारी हूंँ?"
वह लड़की मतलब अनोखी काव्या की बात काटते हुए कहती है- "नहीं-नहीं छोटी मालकिन! आपके पिता तो इस राज्य के सेनापति है, और महाराज के मुख्य सलाहकारों में से एक है।"
यह सुनकर काव्या अपने मन में कहती है, "मै भी ना कितनी स्टुपिड हूंँ। अरे ज़रूरी तो नहीं कि हर वह इंसान जिसके पास नौकर-चाकर हों, वह रानी या राजा ही हो। बड़े औद्धों पर बैठे लोगों के भी तो सेवक हो सकते हैं।"
काव्या आगे उससे पूछती है, "अच्छा तो मेरे पिता इस राज्य के सेनापति और महाराज के प्रमुख सलाहकार हैं।"
अनोखी हाँ में सर हिलाती है।
आगे काव्या पूछती है, "अच्छा तो और बताओ। मेरे परिवार में और कौन-कौन है। जैसे मेरी माँ, मेरे भाई-बहन के बारे में।"
काव्या के मुँह से माँ शब्द सुनकर अनोखी दुखी होकर कहती है- "छोटी मालकिन! माफ कीजिएगा। आपकी माँ तो आपके जन्म के समय ही....." इतना कहकर वह खामोश हो जाती है।
काव्या समझ जाती है कि अमृता की माँ अब इस दुनिया में नहीं है। उसे अमृता के लिए सोच कर बुरा लगता है। लेकिन वह खुद को कंट्रोल करके अनोखी से कहती है, "ठीक है और सब लोगों के बारे में बताओ।"
अनोखी आगे उससे कहती है, "आपकी माँ की मृत्यु के पश्चात आपके पिता ने भी आपको कभी एक बेटी की तरह प्यार नहीं किया। क्योंकि वह आपको ही आपकी माँ की मृत्यु का कारण समझते थे। और उनकी इस नफरत को समय के साथ बड़ी मालकिन और भी बढ़ाती गई।"
काव्या अनोखी को चुपाते हुए कहती है, "बड़ी मालकिन।"
अनोखी कहती है, "हाँ, छोटी मालकिन! बड़ी मालकिन! जोकि सेनापति जी की पहली पत्नी और आपकी सौतेली माँ है। शारदा देवी। जो कि आपको बिल्कुल भी पसंद नहीं करती हैं।"
काव्या कहती है, "अच्छा अब आगे। और कौन-कौन है?"
अनोखी कहती है, "बड़ी मालकिन की एक बेटी है जो कि आपकी सौतेली बड़ी बहन है। उनका नाम नूपुर है। नूपुर दीदी और बड़ी मालकिन को आप एक आँख नहीं भाती है। आपके पिता को तो उन्होंने पहले ही आपके विरुद्ध कर दिया है। इसके बाद भी उन्हें चैन नहीं मिला। वह आपको तरह-तरह के कष्ट और पीड़ा देती रहती थी।"
काव्या मन में सोचती है, "सो सैड, यह अमृता की लाइफ कितनी मुश्किल थी।"
इतने में कमरे में दो औरतों के आने की आवाज़ आती है। उनमें से एक की उम्र 45 से 50 वर्ष की लग रही थी, तो दूसरी लगभग काव्या की उम्र की ही लग रही थी। जैसे ही वह दोनों कमरे में आई अनोखी झट से अपनी जगह से खड़े होकर झुक कर उन्हें प्रणाम करने लगती है। अनोखी को ऐसा करता देख काव्या समझ जाती है कि यह पक्का नूपुर और उसकी सौतेली माँ है। वह भी उन्हें देखकर प्रणाम करती है।
अमृता को प्रणाम करता देख नूपुर अपनी माँ से कहती है, "देखो ना माँ, यह कितनी ढीट है। अब तक मरी नहीं।"
काव्या मन में सोचती है, "यह कैसी लड़की है मै इस को प्रणाम करके सम्मान दे रही हूं और यह मेरे मरने की बातें कर रही है।"
अब शारदा देवी नूपुर को चुप कराते हुए कहती है, "बेशर्म लोग इतनी जल्दी नहीं मरते बेटी।"
शारदा देवी के मुँह से अपने लिए ऐसी बातें सुनकर काव्या को गुस्सा आता है और वह गुस्से से उनसे कुछ कहने वाली ही होती है कि तभी एक 50 साल का बुजुर्ग इंसान कमरे में आता है। उसको देखकर अनोखी फिर से झुक कर प्रणाम करती है। यह है अमृता के पिता और सेनापति अधिराज।
सेनापति अधिराज काव्या की ओर बिना देखे शारदा देवी से पूछते है, "इसने कुछ बताया क्या, कि यह पानी में क्यों कूदी थी?"
उनकी यह बात सुनकर काव्या हैरानी से सोचती है, "क्या! पानी में कूदी थी।"
शारदा देवी उन्हें बताती है, "वैद्य ने कहा है कि अब यह बिल्कुल ठीक है, और जहाँ तक बात है इसके पानी में कूदने की तो वह तो इसी को पता होगा कि यह क्यों कूदी थी।"
अमृता के पिता अमृता की तरफ गुस्से से देखते हैं, और बिना कुछ बोले ही वहाँ से चले जाते हैं। शारदा देवी भी उनके पीछे-पीछे बाहर चली जाती है।
उन्हें वहाँ से ऐसे ही जाता देख काव्या को अमृता के लिए अब और भी बुरा लगता है। वह मन ही मन में सोचती है, "यह कैसे पिता है? इनकी बेटी मौत के मुँह से बाहर आई है, और इन्होंने एक बार भी उससे नहीं पूछा कि वह कैसी है? बल्कि इनकी दिलचस्पी तो सिर्फ यह जानने में है कि आखिर वह पानी में क्यों कूदी थी? हद होती है।"
उनके वहाँ से जाने के बाद नूपुर अमृता का हाथ ज़ोर से पकड़कर मोड़ते हुए कहती है, "मेरी प्यारी बहन। सोचना भी मत कि तुम उसे पालोगी। वह सिर्फ मेरा है। और अगर तुमने उसे मुझसे छीनने की कोशिश की तो मै तुम्हारी जान ले लूंगी।"
इतना कहकर नूपुर वहाँ से चली जाती है।
नूपुर के मुँह से यह धमकी सुनकर काव्या सन रह जाती है और अनोखी की तरफ हैरानी से देखकर पूछती है, "यह क्या कह रही थी? मै किसको इससे छीन लूंगी। और अभी यह मेरी जान लेने की बात कर रही थी ना।"
अनोखी कहती है, "यह राजकुमार अंशुमन की बात कर रही थी। जोकि महाराज के छोटे भाई के बेटे हैं और उनसे राजकुमारी नूपुर का विवाह हो गया है।"
अनोखी से नूपुर और राजकुमार अंशुमन के विवाह की बात सुनकर काव्या कहती है, "अनोखी अगर मेरी सौतेली बहन नूपुर और राजकुमार अंशुमन का विवाह पहले ही हो चुका है, तो नूपुर मुझे धमकी क्यों दे रही थी? मै भला उससे राजकुमार अंशुमन को क्यों छीनने लगी? क्या मेरा और राजकुमार अंशुमन का पहले से कोई रिश्ता है?"
अनोखी काव्या को इस बात का जवाब दे पाती, इससे पहले ही वहाँ पर एक लड़की भागते हुए आती है और फौरन काव्या के पास जाकर उसे प्यार से अपने गले से लगा लेती है। और प्यार से उसके चेहरे को सहलाते हुए कहती है, "भगवान का शुक्र है तुम बिल्कुल ठीक हो। अब कैसी हो तुम? कहीं दर्द तो नहीं हो रहा है?"
इतनी बात कहकर वह अपने मुँह को रुमाल से ढक्कर, ज़ोर-ज़ोर से खांसने लगती है। उसकी हालत देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि वह बीमार हो।
काव्या हैरानी से अनोखी की तरफ देखती है, जैसे मानो वह उससे पूछ रही है, "कि यह कौन है?"
अनोखी काव्या के उस की ओर हैरानी से देखने की वजह को समझ जाती है और पास आकर कहती है, "प्रणाम राजकुमारी संध्या। आप चिंता मत कीजिए। छोटी मालकिन अब बिल्कुल ठीक है।"
अनोखी के मुँह से राजकुमारी शब्द सुनकर काव्या सोचती है, "अब यह कौन सी राजकुमारी है? और यह मेरे लिए इतनी फिक्रमंद क्यों है? आखिर मैं इसकी लगती ही क्या हूँ?"
काव्या यह सब सोच ही रही थी कि तभी पीछे से एक आवाज़ आती है, "राजकुमारी संध्या संभलकर दौड़िए मत, आपको पता है ना आपकी तबीयत ठीक नहीं है।"
एक लड़का जिसकी उम्र 30 साल होगी और उसने शाही पोशाक पहनी थी, यह राजकुमारी संध्या से कहता है और काव्या के पलंग के पास आकर खड़ा हो जाता है।
अनोखी उसे देख कर झुक कर प्रणाम करती है। काव्या फिर से हैरानी से अनोखी की तरफ देखती है, जैसे वह अब दोबारा उससे पूछ रही हो, "अब यह बताओ कि आख़िर यह कौन है?"
अनोखी काव्या से कहती है, "देखिए ना छोटी मालकिन राजकुमार विराज भी आपसे मिलने आए हैं।"
काव्या मन में सोचती है "अरे एक और राजकुमार।"
राजकुमार विराज काव्या की तरफ चिंता भरी दृष्टि से देखते हुए पूछते हैं, "अब आप कैसी हैं अमृता? जब से राजकुमारी संध्या को आपके पानी में डूबने की खबर मिली है, तब से वह आपके कुशल स्वास्थ्य के लिए भगवान से प्रार्थना कर रही थी। अपनी प्रिय सखी के लिए मंगल कामना करते हुए वह यह भी भूल गई कि वह खुद भी अभी बीमार है।"
राजकुमारी संध्या राजकुमार विराज को चुप कराते हुए कहती हैं, "कैसे फिक्र ना करें इनकी। यह सिर्फ हमारी बचपन की सखी ही नहीं, बल्कि हमारे लिए तो यह हमारी सगी बहनों की तरह है। और जहाँ तक बात रही हमारी, तो हमें संभालने के लिए आप है ना राजकुमार विराज।" यह कहकर राजकुमारी संध्या प्यार से राजकुमार विराज का हाथ अपने हाथ पर रख लेती है।
यह सब देख कर काव्या समझ जाती है कि यह दोनों पति-पत्नी है। अब काव्या अपना सर हिला कर राजकुमारी संध्या से कहती है, "राजकुमारी संध्या अब मैं ठीक हूँ। आप अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखिए।"
राजकुमार विराज राजकुमारी संध्या को उठाते हुए कहते हैं, "चलिए राजकुमारी संध्या अब आपकी सखी बिल्कुल ठीक है। अब आप इनको आराम करने दीजिए और आप भी अपनी तबीयत पर ध्यान दीजिए। राज वैद्य ने आपको आराम करने के लिए कहा है न। चलिए अब हम यहाँ से वापस महल चलते हैं।" और वह दोनों वहाँ से चले जाते हैं।
उन दोनों के वहाँ से जाने के बाद काव्या अनोखी से पूछती है- "राजकुमार संध्या से मेरी दोस्ती कब हुई थी?"
अनोखी काव्या को बताती है, "छोटी मालकिन जब आप 5 वर्ष की थी, तब आप हमेशा अपनी माँ के लिए रोते हुए घर के बाहर चली जाती थी। तभी एक दिन राजकुमारी संध्या से आपकी मुलाकात हुई। राजकुमारी संध्या आपसे 5 वर्ष बड़ी है, और आपको अपनी छोटी बहनों की तरह मानती है। राजकुमारी संध्या राज्य वित्त मंत्री की पुत्री है, और उनका विवाह 3 वर्ष पूर्व ही राजकुमार विराज के साथ हुआ था। विवाह के पश्चात, राजकुमारी बनने के बाद भी वह आपको पहले की ही तरह अपनी बहनों के जैसे प्रिय मानती हैं।"
अनोखी से राजकुमारी संध्या के विषय में जानने के बाद काव्या मन में सोचती है, "चलो शुक्र है, इस बुरी दुनिया में कोई तो था, जिसे अमृता की फिक्र थी।"
तभी अनोखी देखती है कि सूरज ढलने वाला है, वह काव्या को औषधि उठा कर देती है और कहती है, "आज के लिए बस इतना ही। अब आप अपनी दवाई लीजिए और आराम कीजिए। वैद्य जी ने आपको ज़्यादा बोलने के लिए मना किया है।"
काव्या अपना मुँह बनाकर अनोखी की ओर देखती है, और कहती है, "नहीं मुझे नहीं लेनी है यह कड़वी दवाई। यह बहुत बेस्वाद होती है।"
अनोखी थोड़े सख्त अंदाज में काव्या से कहती है, "छोटी मालकिन दवाई तो आपको लेनी ही होगी। नहीं तो आप पूरी तरह ठीक कैसे होंगी। चलिए मुँह खोलिए।"
काव्या ना ना करते हुए भी दवाई का काढ़ा पीती है। वह इतना कड़वा होता है कि काव्या अपना मुँह उल्टी करने जैसा बना लेती है। अनोखी काव्या को बिस्तर पर ठीक से लिटा कर चली जाती है।
सूरज डूब चुका था। रात का समय हो गया। अब घर में मशाले और लालटेन जला दी जाती है। यह सब देखकर काव्या अपने मन में सोचती है, "यह 15वीं सदी है, यहाँ पर बिजली थोड़ी ना होगी।"
और चुपचाप ऊपर की तरफ एक टक देखते हुए सोचती है, "ओह गॉड! आपने जो यह मुझे दूसरी ज़िंदगी दी है, भले ही यह ज़िंदगी मेरी उस पहले वाली ज़िंदगी से बिल्कुल अलग हो, जुदा हो, मुश्किल हो, लेकिन फिर भी मै आज आपसे कोई शिकायत नहीं करूंगी। बल्कि आपने तो मुझे जीने का दूसरा मौका दिया है। इसके लिए मै आपकी बहुत-बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। और अब मै यहाँ रहकर ही अपनी ज़िंदगी अच्छे से जियूँगी। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आपने मुझे ज़िंदगी जीने का यह दूसरा मौका दिया।"
इतना कहकर वह अपनी आंखें बंद कर लेती है और सो जाती है।
अगली सुबह
राज्य के बाज़ारों में दिन आम दिनों जैसा लग रहा था। लेकिन फिर भी आज कुछ अलग था। लोग अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे। कहीं कुम्हार मिट्टी के बर्तन बना रहा था तो कहीं लक्कड़हारा लकड़ियाँ काट रहा था। कुछ लोग सब्जियां खरीद रहे थे, तो कुछ लोग अनाज के लिए राशन की दुकानों पर थे। ऐसे ही बाज़ार में कुछ छोटे बच्चे भी अपनी मस्ती में खेल रहे थे। सब कुछ आम दिनों जैसा ही सामान्य था, फिर भी आज कुछ तो अलग बात थी।
एक औरत अपनी ही उम्र की दूसरी औरत से कहती है, "क्या तुमने कुछ सुना है?"
वह दूसरी औरत पहले वाली से पूछती है, "क्या बात है? क्या सुना है तुमने?"
पहली औरत कहती है, "मेरा भाई महल में सेवक का काम करता है। उसने बताया है कि उत्सव के लिए वह भी आ रहा है।"
"वह कौन?"
"अरे वही.... वह मौत का सौदागर, श्रापित राजकुमार।"
श्रापित राजकुमार का नाम सुनकर वह दूसरी औरत एकदम डर जाती है, और चुप हो जाती है, मानो जैसे उसे सांप सूंघ गया हो।
आखिर कौन था यह श्रापित राजकुमार? और क्यों लोग इसके नाम से इतने खौफज़दा थे? यह जानने के लिए हमें समय में थोड़ा पीछे जाना होगा।
लगभग 25 साल पहले राज्य में एक बहुत भयानक महामारी फैल गई थी। तभी राजकुमार का जन्म हुआ। राजकुमार के शरीर पर जन्म के समय से ही एक निशान था। उस निशान को देखकर राज ज्योतिषी ने बताया कि यह चिन्ह अशुभ है और राजकुमार श्रापित है, और उसकी वजह से ही राज्य में यह महामारी फैली है। अगर राज्य को विनाश से बचाना है, तो राजकुमार को राज्य से कहीं दूर भेजना होगा और उनको सदैव ही राज्य से दूर ही रखना होगा। क्योंकि वह इस राज्य के लिए सिर्फ़ एक अभिशाप से ज़्यादा और कुछ भी नही है और इन सभी विपत्तियों और विनाश का कारण भी वही है।
राज ज्योतिषी की यह बातें सुनकर राजा को बहुत गुस्सा आता है, किंतु अपनी प्रजा के बारे में सोचकर राजा उनकी बात मान लेते हैं, और बचपन में ही राजकुमार को अपने एक दूर के रिश्तेदार को दे देते हैं। रानी भी उनके इस फैसले पर कोई ऐतराज़ नहीं जताती, क्योंकि अब वह राजकुमार राजा बनने योग्य तो था नहीं, इसलिए राजकुमार की माँ भी उससे प्यार नहीं करती थी। कहा जाता है कि राजा ने जिन रिश्तेदारों को अपने बेटे को पालने के लिए दिया था, वह भी राजकुमार के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करते थे। उसे श्रापित और राक्षस मानते थे, लेकिन क्योंकि वह राजा से डरते थे, इसलिए उन्हें राजकुमार को अपने पास रखना ही पड़ा।
बचपन में वह लोग कई दिनों तक राजकुमार को अंधेरी कोठरी में बंद कर देते और खाना भी नहीं देते थे। कई बार तो वह लोग राजकुमार को जंगल में यूं ही अकेला छोड़ आते, यह सोचकर कि या तो वहाँ उसे कोई जंगली जानवर खा जाए, या फिर लुटेरे-डाकू राजकुमार को मार दें और इस तरह से राजकुमार से उनका पीछा छूट जाए। लेकिन हर बार, मौत को मात देकर राजकुमार वापस आ जाता था।
जब राजकुमार थोड़ा बड़ा हुआ, तो तभी से उसे युद्ध वाले क्षेत्रों में युद्ध अभ्यास करने के लिए भेज दिया गया। इसलिए उसे- घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और दूसरी युद्ध कलाओं में महारत हासिल हो गई। वह कभी भी, कोई भी युद्ध नहीं हारता था। हर युद्ध में उसके द्वारा सैकड़ो लोगों को बेरहमी से मारे जाने के किस्से बहुत मशहूर थे, जिस वजह से ही अब लोगों में उसका नाम मौत के सौदागर के नाम से मशहूर हो गया। लोग उसे सिर्फ "श्रापित राजकुमार" और "मौत का सौदागर" इन्हीं नामों से कहकर बुलाते थे। कोई भी उसे, उसके असली नाम तक से नहीं बुलाता था।
आज कई सालों बाद वह महल वापस लौट रहा था। उसके आने की खबर से ही लोगों में एक दहशत का माहौल सा बन गया।
घोड़ो के दौड़ने की आवाज़ आती है, और एक सैनिक चिल्लाता हुआ कहता है, "पीछे हट जाओ! पीछे हट जाओ! राजकुमार आ रहें हैं.......!!"
तभी बाज़ार में भगदड़ मच जाती है, और लोग अपनी जान बचाकर इधर-उधर भागने लगते हैं और जल्दी-जल्दी अपनी दुकानों को बंद करने लगते हैं। वह बच्चे, जो अभी रास्ते में खेल रहे थे, वह भी डरकर एक लकड़ी की चारपाई के पीछे छुप जाते हैं। उनमें से एक बच्चा थोड़ा उचक्कर रास्ते की तरफ से आते हुए लोगों को देखने की कोशिश करता है और देखता है घोड़े पर बैठे सैनिकों का काफिला अब उस रास्ते से गुज़र रहा है, और उनके बीच वह "शापित राजकुमार" भी है।
अब हमें उस राजकुमार का चेहरा दिखाई देता है। यूं तो राजकुमार बहुत ही ज्यादा आकर्षण और मनमोहक था। कोई भी उसे देखे तो बस देखता ही रह जाए, लेकिन इस वक्त वह किसी खूंखार भेडिये जैसा लग रहा था। उसके चेहरे पर एक अलग सा, गंभीर भाव था, जो हर खुशी, हर गम से परे था। राजकुमार की आंखें काली, गहरी, बड़ी-बड़ी थी, जिन्हें अगर कोई देखे तो डर ही जाए, लेकिन उनमें उसके अस्तित्व को लेकर कई सवाल थे। घोड़े पर चलते हुए राजकुमार के लंबे काले बाल हवा में इस तरह से उड़ रहे थे, कि मानो जैसे कोई कलाकार हवा में ही अपनी कलाकृति बना रहा हो।
राजकुमार ने गहरे काले रंग के कपड़े पहने हुए थे। यह दूसरे राजकुमारों की शाही पोशाक से बिल्कुल अलग थे।
राजकुमार के उस रास्ते पर निकलने की वजह से सारे बाज़ार में सन्नाटा सा छा गया, मानो जैसे वहाँ उसके अलावा कोई और हो ही न। उस सन्नाटे में घोड़ो के चलने की आवाज़ भी साफ सुनाई दे रही थी।
राजकुमार को देखकर एक बच्चा अपनी धीमी सी आवाज़ में बोल पड़ता है, "मौत का सौदागर....शापित राजकुमार!!"
क्योंकि बाज़ार में सन्नाटा बिखरा हुआ था, इसलिए उस बच्चे की हल्की सी आवाज़ भी राजकुमार के कानों तक पहुंच जाती है।
राजकुमार तुरंत ही अपनी घोड़े की लगाम खींच कर उसे रोकता है। राजकुमार को यूं बीच में रुकता देख बाकी सैनिक भी अपना घोड़ा रोक लेते हैं। राजकुमार अपनी नज़रे तिरछी करके माथे पर बल डालते हुए घोड़े से नीचे उतरता है। यह देखकर वह बच्चा डरकर नीचे झुक जाता है। राजकुमार बच्चे के पास जाता है। वह अपना एक पैर ज़मीन पर रखता है, तो दूसरे पैर को थोड़ा मोड़ कर घुटने के बल रखकर बैठता है और उस बच्चे की तरफ़ घूरते हुए देखता है।
वह बच्चा एक नज़र उठाकर राजकुमार को देखता है, और फिर अपनी नज़र नीचे ज़मीन की तरफ़ कर लेता है। राजकुमार को अपने इतना करीब बैठा देख वह बच्चा डर से कांपने लगता है। बच्चे के हाथ में एक गेंद होती है, जो हाथ कांपने की वजह से ज़मीन पर गिर जाती है और राजकुमार के पास चली जाती है।
राजकुमार उस गेंद को अपने हाथ में उठा लेता है। वह बच्चे की तरफ अभी भी वैसे ही देख रहा था।
बच्चा डर की वजह से बुरी तरह कांप रहा था। उस बच्चे की राजकुमार की तरफ अब दोबारा देखने की हिम्मत ही नहीं होती, इसलिए वह अपनी नज़रें नीचे ज़मीन की तरफ ही किए हुए था।
बच्चे की तरफ घूरते हुए देखकर, राजकुमार गेंद को 2-3 बार ज़मीन पर पटकता है, और पकड़ता है, जैसे वह अभी इस गेंद से खेल रहा हो।
फिर वह उस बच्चे से बिना कुछ कहे ही, गेंद हाथ में लिए खड़ा हो जाता है, घोड़े की तरफ बढ़ता है, और उसके ऊपर बैठकर, चुपचाप वहां से चला जाता है। राजकुमार के साथ ही बाकी सैनिकों का काफिला भी महल की तरफ आगे बढ़ जाता है।
राजकुमार के वहां से चले जाने के बाद अब उस बच्चे की जान में जान आती है। तभी एक आदमी उस बच्चे के पास आता है, और उसे डांटते हुए कहता है, "क्या तुम मृत्युदंड पाना चाहते हो लड़के? जो तुम ऐसे राजकुमार की आंखों में देख रहे थे?" वह बच्चा अभी भी डर से काँप रहा था।
अब महल के दरवाजे़ की तरफ दिखाया जाता है, जहां पर राजकुमार का काफिला पहुंच चुका था। एक सैनिक दरवाज़े पर खड़े पहरेदार से किले के दरवाजों को खोलने के लिए कहता है।
पहरेदार तुरंत ही महल के दरवाजे़ खोल देते है, और राजकुमार और उसके सैनिक महल के अंदर प्रवेश करते हैं।
सेना का एक उच्च अधिकारी, जो राजकुमार के साथ ही महल में आया था, राजकुमार से कहता है, "राजकुमार! महाराज का आदेश है कि आप जब तक महल में रहे, अच्छे से बर्ताव करें और उत्सव के बाद बिना कोई तमाशा किये यहां से वापस लौट जाए।"
उसकी यह बातें सुनकर राजकुमार तुरंत ही अपनी म्यान में से तलवार निकलता है, और एक झटके से उसकी गर्दन पर वार करने के लिए अपनी तलवार को उसकी गर्दन पर रख देता है, लेकिन उसे मारता नहीं है।
यह नज़ारा देख, महल के सभी सैनिक हक्के-बक्के रह जाते है।
अपनी मौत को इतना करीब से देख कर उस अधिकारी के तो पसीने ही छूट जाते हैं। राजकुमार अपनी गंभीर आवाज़ में उस अधिकारी से कहता है, "अगर मुझे महाराज की आज्ञा का पालन नहीं करना होता, तो आज तुम्हारी गर्दन तुम्हारे शरीर से अलग हो गई होती।"
वह अधिकारी अपनी कांपती हुई आवाज़ में राजकुमार से कहता है, "क्षमा कीजिए राजकुमार! क्षमा कीजिए!"
इतने में वहां महामंत्री जी आ जाते हैं और कहते हैं, "यहाँ यह सब क्या हो रहा है? " और चिल्लाकर कहते हैं "यह आप क्या कर रहे हैं "राजकुमार शौर्य"? क्या आप नहीं जानते कि यह यूद्धभूमि नहीं, महल है। यहां पर यूं ही किसी पर तलवार नहीं उठायी जाती है।"
महामंत्री की आवाज़ सुनकर शौर्य अपनी तलवार को उसकी गर्दन से हटा देता है। फिर घोड़े से उतरकर महामंत्री को प्रणाम करता है। महामंत्री शौर्य के अभिवादन को स्वीकार करते हैं, और उसे अपने साथ महल में चलने को कहते हैं।
यह है इस राज्य की महामंत्री महेंद्र प्रताप है। इनकी उम्र लगभग 40 वर्ष होगी। वैसे तो उनकी ज्यादा रुचि कविताएं लिखने और चिकित्सा में है लेकिन अपनी तेज़ दिमाग की वजह से ही आज यह राज्य के महामंत्री के पद पर विराजमान है।
औरों की तरह वह शौर्य को बुरा नहीं समझते हैं। उनकी बात सुनकर शौर्य के शांत हो जाने की वजह से हमें भी यह समझ में आ जाता है, कि शौर्य दिल से उनकी इज्ज़त करता है। इसलिए तो उनके एक बार कहने पर ही उसने अपनी तलवार वापस रख ली।
महामंत्री महल के राजनीतिक षड्यंत्र को बहुत अच्छे से समझते हैं। वह जानते हैं कि राज्य को बाहरी शत्रुओं से ज्यादा घर की अंदर के शत्रुओं से बचाना है। इसलिए ही उन्होंने महाराज को राजकुमार शौर्य को महल में वापस बुलाने के लिए कहा।
जारी है...
महल में पहुंचकर शौर्य सबसे पहले अपनी मां से मिलने उनके कक्ष की तरफ निकला। वैसे तो शौर्य बचपन से ही अपने परिवार से दूर था, लेकिन हमेशा ही उसे अपनी मां की कमी खलती थी। इसलिए तो महल पहुंचते ही वह सबसे पहले अपनी मां से मिलने के लिए उनके कमरे की तरफ़ जाता है और कमरे के बाहर के सेवक से अपनी मां के बारे में पूछता है।
सेवक शौर्य को सर झुकाकर प्रणाम करता है, और उसे अंदर जाने से रोकते हुए कहता है, "क्षमा कीजिए! राजकुमार शौर्य! महारानी ने कहा है कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है और वह विश्राम कर रही हैं। वह अभी किसी से मिलना नहीं चाहतीं।"
सेवक के मुंह से यह बात सुनकर शौर्य का तो दिल ही टूट जाता है। वह सोचता है, "मैं आज इतने सालों बाद महल वापस लौटा हूँ। मैं कितना खुश था, कि आज सालों बाद मैं अपनी मां से मिलूँगा, लेकिन वह तो मुझसे मिलना ही नहीं चाहतीं।"
उसका मन दर्द से भर जाता है, लेकिन शौर्य अपने इस भाव को अपने गंभीर चेहरे पर ज़रा सा भी आने नहीं देता और खामोशी से वहां से चला जाता है।
वही अब महारानी के कमरे के अंदर, एक झरोखे से पर्दा हटाते हुए एक दासी शौर्य को वहां से जाते हुए देखती है और महारानी से कहती है, "महारानी राजकुमार शौर्य वापस चले गए हैं।"
महारानी को देखकर बिल्कुल भी ऐसा नहीं लग रहा था, जैसे कि वह बीमार हैं, बल्कि वह तो बिल्कुल स्वस्थ दिखाई दे रही थीं और बिना किसी परेशानी के अपने आप को आईने में निहारते हुए अपने बाल सवार रही थीं।
दासी की बात सुनकर महारानी उसे इशारे से वहां से चले जाने को कहती हैं। दासी महारानी को प्रणाम करके कमरे से बाहर चली जाती है।
महारानी को देखकर ऐसा लग रहा था, के जैसे वह अपने बेटे से मिलना ही नहीं चाहती हैं, इसलिए तो उन्होंने सेवक से यह कहलवा दिया, कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है और वह विश्राम कर रही हैं।
कैसी मां है यार! इनका बेटा इतने सालों के बाद में महल लौटा और सबसे पहले इन्हीं से मिलने आया और यह है कि इन्होंने उसे एक बार देखना भी ज़रूरी नहीं समझा।
महल के अंदर, युद्ध अभ्यास स्थल में सभी राजकुमार कुश्ती और तलवारबाज़ी का अभ्यास कर रहे थे। बाकी सभी राजकुमार तो बहुत अच्छे से अभ्यास कर रहे थे, लेकिन राजकुमार हर्ष को देखकर लग रहा था कि उसे युद्ध अभ्यास करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए तो वह बार-बार गुरुजी से डांट खा रहा था।
गुरुजी विक्रांत को कहते हैं, "राजकुमार विक्रांत आप राजकुमार हर्ष के साथ तलवारबाज़ी का अभ्यास करें।"
गुरुजी की बात सुनकर विक्रांत तुरंत ही अपनी लकड़ी की तलवार लेकर हर्ष के पास जाता है और उसे अपने साथ अभ्यास करने को कहता है क्योंकि हर्ष पहले से ही थक चुका था और इसलिए अब वह वहाँ से निकलने की तरक़ीब लगाता है।
हर्ष अपना पेट पकड़ कर थोड़ा कराहते हुए कहता है, "आह! गुरुजी! मेरा पेट! मेरे पेट में बहुत तेज़ दर्द हो रहा है। आह! आह!"
गुरुजी उसकी तरफ़ गुस्से से देखते हैं और कहते हैं, "घबराइये मत राजकुमार। मै वैध को यहीं बुला लेता हूँ। वह आज अच्छे से जांच करके, आपका यह रोज़-रोज़ होने वाला पेट का दर्द बिल्कुल ठीक कर देगा।"
दरअसल गुरुजी हर्ष की इन नौटंकियों को बखूबी समझते थे। वह जानते थे कि यह सब हर्ष के युद्धाभ्यास से बचने के लिए किये जाने वाले नाटक है।
गुरुजी की बात सुनकर हर्ष अपना एक बेचारा सा चेहरा बना लेता है, और अपनी तलवार उठाकर फिर से अभ्यास करने लगता है। लेकिन क्योंकि बेचारे राजकुमार हर्ष को तो तलवारबाज़ी करनी आती ही नहीं थी, इसलिए वह विक्रांत के साथ एक नौसीखिए की तरह लड़ रहा था और लड़ते हुए बार-बार गिर भी रहा था। उसको इस तरह से अभ्यास करता देख, वहां मौजूद सभी लोग हंस रहे थे।
सभी लोगों को खुद पर यूं हंसते देख विक्रांत को उसपर गुस्सा आ जाता है, और वह गुस्से से हर्ष से कहता है, "राजकुमार हर्ष! ठीक से अपनी तलवार पकड़िये। देखिये आपकी वजह से सब हम पर हंस रहे हैं।"
हर्ष अपनी बेचारी सी आवाज़ में कहता है, "बड़े भाई मै क्या करूं? आपको तो पता है ना, मुझे तलवारबाज़ी नहीं सीखनी है। मुझे इससे डर लगता है, कहीं यह तलवार मुझे लग गई तो, और मै घायल हो गया तो।"
हर्ष के मुंह से यह बात सुनकर विक्रांत को अब और भी गुस्सा आ जाता है, और वह गुस्से से उससे कहता है, "आप यह कैसी बातें कर रहे हैं? जानते नहीं, आप एक राजकुमार है, और एक राजकुमार को तलवार से डरना नहीं, बल्कि डराना आना चाहिए।"
यह कहते हुए अब वह और तेज़ी से हर्ष पर वार करने लगता है। हर्ष अपने आप को बचाने के लिए जैसे-तैसे अपनी तलवार पकड़कर विक्रांत का सामना करता है। लेकिन एक समय पर विक्रांत की तलवार हर्ष की तलवार पर इतनी ज़ोर से पड़ती है, कि उसकी लकड़ी की तलवार दूर जाकर ज़मीन पर गिर जाती है। अब हर्ष के हाथ में अपना बचाव करने के लिए कोई चीज़ नहीं थी।
हर्ष को निहत्था देख, विक्रांत उस पर अपना गुस्सा निकालने की मंशा से अपनी तलवार से उसे मारने के लिए प्रहार करता है। क्योंकि हर्ष पहले से ही बहुत डरा हुआ था, और अब विक्रांत की तलवार को इस तरह से अपनी ओर आता देख वह झुककर अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा और आंखें बंद कर लेता है।
विक्रांत की तलवार हर्ष को बस छूने ही वाली होती है, कि तभी दूर से हवा में लेहरता हुआ एक लकड़ी का डंडा विक्रांत की तलवार पर पड़ता है, और वह तलवार दूसरी ओर दूर जाकर गिर पड़ती है।
वहाँ मौजूद सभी लोग और सभी राजकुमार हैरानी से खड़े होकर यह देखने लगते है, कि आखिर विक्रांत की तलवार पर प्रहार करने का साहस किसने किया।
तभी हम देखते है, कि विक्रांत की तलवार को रोकने वाला शख़्स, कोई और नहीं बल्कि शौर्य है।
हर्ष अभी भी अपना मुंह झुकाए आंखें बंद किए हुए था। खुदको यूँ शिखस्त पाते और अपनी तलवार को यूं गिरता देख विक्रांत का गुस्सा तो सातवें आसमान पर पहुंच जाता है और वह गुस्से से शौर्य से कहता है, "कौन हो तुम? तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुमने एक राजकुमार पर वार किया!"
शौर्य वहाँ चुपचाप खड़ा, सिर्फ सबको गौर से देख रहा था, जैसे मानो वह सभी राजकुमारों को पहचानने की कोशिश कर रहा हो।
अपने आप को सुरक्षित महसूस करके अब हर्ष अपनी आंखें खोलकर देखता है, और सीधा खड़ा होता है। अपने सामने एक अजनबी इंसान को, यानि कि शौर्य को देखकर हर्ष थोड़ा डर जाता है क्योंकि शौर्य की शख्सियत ही कुछ ऐसी है। उसे देखकर तो अच्छे खासे इंसान के पसीने छूट जाये। तो यह तो फिर हमारे छोटे से, मासूम से बेचारे राजकुमार हर्ष हैं।
अपने सवाल का जवाब न मिलने पर विक्रांत का गुस्सा अब और उरूज पर चढ़ जाता है, और वह गुस्से से पास में पड़ी हुई एक दूसरी असली तलवार उठाकर राजकुमार शौर्य की गर्दन पर रख देता है, और फिर से अपने सवाल को दोहराते हुए कहता है, "अगर तुम नहीं बताना चाहते कि तुम कौन हो? तो मत बताओ। लेकिन तुमने मेरे खेल में खलल डाला है, इसलिए इसकी सज़ा तो तुम्हें ज़रूर मिलेगी।"
इतना कहकर वह उस तलवार से शौर्य पर वार करने ही वाला होता है, कि वहां पर महामंत्री जी आ जाते हैं, और विक्रांत को रोकते हुए बोलते है, "रुकिए राजकुमार विक्रांत! अपनी आवाज़ और अपनी तलवार दोनों नीचे करिये। भूलिए मत, अभी आप जिससे बात कर रहे हैं, आखिर वह भी एक राजकुमार ही है।"
फिर वह शौर्य से कहते हैं, "माफ कीजिएगा राजकुमार शौर्य! महल में आते ही आपका स्वागत तलवारों से हो गया।"
महामंत्री के मुंह से शौर्य का नाम सुनकर विक्रांत अपनी तलवार नीचे करके बहुत हैरानी से शौर्य की तरफ देखने लगता है। बाकी सभी राजकुमार भी अपनी नज़रे शौर्य की तरफ ही करके उसे एकटक होकर देखते है।
अब महामंत्री जी सभी राजकुमारों को कहते हैं, "यह कोई और नहीं आपका भाई हैं।"
"राजकुमार शौर्य।"
महामंत्री जी शौर्य को एक-एक करके सभी राजकुमारों का नाम बताते हैं, और सभी राजकुमारों को शौर्य से मिलने के लिए कहते हैं। सबसे पहले विराज और आदित्य आगे आकर शौर्य से अच्छे से मिलते हैं। फिर बेमन से ही सही ध्रुव भी आकार शौर्य से मिलता है। अब डरते-डरते हर्ष शौर्य के पास आता है, और उससे हाथ मिलाकर झट से दूर भाग जाता है।
सभी राजकुमार तो शौर्य से मिल लिए थे, लेकिन विक्रांत अभी भी वैसे ही गुस्से से शौर्य को देख रहा था।
विक्रांत को देखकर लग रहा है कि जैसे इसे शौर्य से मिलकर कुछ खास खुशी नहीं हुई है। अरे खास तो छोड़िए मुझे तो लगता है बिल्कुल भी खुशी नहीं हुई है। मै कह रही हूं ना बिल्कुल भी खुशी नहीं हुई है।
महामंत्री जी विक्रांत को शौर्य से मिलने के लिए कहते हैं, लेकिन यह घमंडी राजकुमार विक्रांत, शौर्य से हाथ मिलाये बिना ही अकड़ कर वहां से चला जाता है।
कहने को तो विक्रांत और शौर्य सगे भाई हैं। लेकिन इन्हें देखकर ऐसा लग रहा है, कि मानो जैसे यह दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन हो।
जारी है...
सभी लोग वहाँ से चले जाते हैं। लेकिन शौर्य अभी भी वहीं खड़ा था। तभी एक सेवक दौड़ते हुए आता है, और महामंत्री को प्रणाम करके कहता है, "प्रणाम महामंत्री जी! महाराज ने आपको याद किया है।"
महामंत्री जी शौर्य को भी अपने साथ दरबार में चलने को कहते हैं।
एक विशालकाय दरबार में बेहद ही खूबसूरत से सिंहासन पर महाराज बैठे हुए थे। शौर्य, दरबार में पहुंचकर सबसे पहले झुक कर महाराज को प्रणाम करता है। महाराज शौर्य की तरफ अपनी स्नेह भरी नज़रों से देखते हैं। आज सालों बाद वह अपने बेटे से मिल रहे हैं, इस बात की उन्हें बहुत खुशी थी। और उसका अभिवादन स्वीकार करते हैं, और शौर्य को खड़े होने के लिए कहते हैं।
लेकिन जैसे ही शौर्य उठकर महाराज की तरफ़ देखता है, महाराज उससे अपनी नज़रें चुरा लेते है, जैसे मानो, मन ही मन वह अपने आप को उसका अपराधी मान रहे हों।
महामंत्री जी महाराज को प्रणाम करके उनसे कहते हैं, "महाराज उत्सव की सब तैयारी अच्छे से चल रही है, बस कुछ कार्य ही बाकी रह गया है। आपने जो जो काम करने को कहा था, वह काम मै खुद अपनी निगरानी में करवा रहा हूँ। सभी मेहमानों को उत्सव का निमंत्रण दे दिया गया है। आप चिंता मत कीजिए महाराज इस साल यह उत्सव इतना शानदार होगा कि लोग सालों तक इसे याद रखेंगे।"
महामंत्री की बात सुनकर महाराज सिर्फ अपना सर हिला कर बिना कुछ कहे अपनी स्वीकृति देते हैं। अब महाराज शौर्य की तरफ़ देखते हैं, और उससे पूछते हैं, "राजकुमार शौर्य, आप कैसे हैं? आपका सफ़र कैसा रहा? आपको यहाँ कोई तकलीफ़ तो नहीं हैं? अगर आपको किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो बिना किसी झिझक के बता दीजिएगा।"
"आप कई सालों के बाद महल वापस लौटे हैं। क्या आप अपने भाई बहनों से मिल लिए?"
शौर्य बहुत धैर्य से कहता है, "जी महाराज! जैसी आपकी आज्ञा। मै उन सब से मिल चुका हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि मुझसे मिलकर उन्हें कुछ खास खुशी नहीं हुई है।"
फ़िर वह अपने चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान लिए कहता है, "कितनी अजीब बात है न, कि अपने ही घर में मै मेहमानों जैसा महसूस कर रहा हूँ।"
इतना कहकर वह महाराज की आज्ञा लेकर दरबार से बाहर चला जाता है।
राजकुमार शौर्य के मुंह से यह सब बातें सुनकर अब महाराज खुद पर और भी शर्मिंदा हो जाते हैं। वह मन ही मन सोचते हैं, "इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है बेटा! अगर मैने तुम्हें खुद से दूर ना किया होता, तो आज हालात कुछ और होते। पर उस समय मै और कर भी क्या सकता था? एक राजा के लिए उसकी प्रजा भी उसकी संतान ही होती है। एक राजा को खुद से पहले अपनी प्रजा के लिए सोचना होता है। मै पुत्र मोह में अंधा होकर अपनी प्रजा को विपत्ति में कैसे डाल सकता था। हो सके तो मुझे माफ कर देना मेरे बच्चे।"
महाराज से मिलकर शौर्य दरबार से बाहर आ जाता है। महामंत्री भी शौर्य के साथ ही बाहर आते हैं। वैसे तो शौर्य इतने सालों के बाद अपने घर वापस लौटा था लेकिन अपने परिवार की बेरुखी देखकर उसके चेहरे पर एक अलग सी उदासी थी। उसकी यह उदासी महामंत्री जी समझ जाते हैं, और उसका मूड ठीक करने के लिए उससे कहते हैं, "राजकुमार शौर्य! चलिए मैं आपको पूरा महल दिखा देता हूंँ। फिर आपको आपका कमरे में भी छोड़ दूंगा। चलिए साथ ही चलते हैं।"
शौर्य हाँ में अपना सर हिलाकर उनके साथ चलना शुरू कर देता है। लेकिन वह अभी भी उदास और खामोश था।
चलते-चलते महामंत्री शौर्य से कहते हैं, "राजकुमार शौर्य! क्या आप जानते हैं कि इतने सालों के बाद आपको महल वापस क्यों बुलाया गया है?"
उनका सवाल सुनकर शौर्य के कदम यकायक रुक जाते हैं, और वह महामंत्री की तरफ देखता हैं, और थोड़ा ठहर कर धीमी आवाज़ में कहता है, "उत्सव में शामिल होने के लिए।"
फिर महामंत्री जी शौर्य से कहते हैं, "और उत्सव के बाद!! उसके बाद क्या आप यहाँ से युंही वापस चले जायेंगे।"
उनकी यह बात सुनकर शौर्य खामोश ही रहता है, क्योंकि उसे पता था, कि सच तो यही है कि उत्सव के बाद उसे यह महल छोड़कर वापस जाना ही होगा।
महामंत्री जी आगे कहते हैं, "राजकुमार शौर्य, क्या आप सच में इस महल में रुकना नहीं चाहते?"
महामंत्री की बात सुनकर शौर्य दुखी मन से उनसे कहता है, "मेरे चाहने या ना चाहने से क्या होगा। होगा तो वही जो महाराज चाहेंगे। वैसे भी, मुझे तो हमेशा से ही उस जुर्म की सज़ा मिली है, जो अपराध मैने कभी किया ही नहीं। कभी-कभी तो लगता है कि मेरा इस दुनिया में आना ही बेमक़सद है, व्यर्थ है।"
उसकी यह बात सुनकर महामंत्री जी उसे समझाते हुए कहते हैं, "राजकुमार, इस दुनिया में जन्म लेने वाले किसी भी जीव का जन्म व्यर्थ नहीं हुआ है, फिर चाहे वह कोई जानवर हो या कोई इंसान। विधाता ने हम सभी को एक मकसद के साथ ही इस दुनिया में भेजा है, और हम सभी को अपना वह मकसद पूरा भी करना होता है। आपके जीवन भी व्यर्थ नहीं है, इसका भी कोई न कोई मकसद ज़रूर होगा। बेहतर होगा कि आप, अपने जीवन से नाराज़ होने के बजाय, अपना लक्ष्य ढूंढे। ताकि आप इस महल के लोगों को अपने अस्तित्व का और अपनी मौजूदगी का एहसास दिला सके।"
महामंत्री की बात सुनकर शौर्य बहुत हैरानी से उनकी तरफ देखता है। महामंत्री की बातें सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे वह नहीं चाहते की शौर्य दोबारा महल से वापस जाए। और वह बातों ही बातों में शौर्य को महल में रुकने का कोई हिंट दे रहे है।
शौर्य और महामंत्री आपस में बात कर ही रहे थे, कि तभी दूसरी ओर से चलकर युवराज उनकी ओर आते हैं। युवराज को देखकर शौर्य और महामंत्री दोनों उनको प्रणाम करते हैं। युवराज भी उनके अभिवादन को स्वीकार करते है, और शौर्य से कहते है, "मै महल से बाहर गया था। बस अभी वापस लौटा हूँ। इसलिए मुझे अभी तुम्हारे आने की सूचना मिली।"
फिर वह शौर्य से बहुत उदारता से पूछते है, "कैसे हैं आप, राजकुमार शौर्य? आपको यहां देख कर मुझे बहुत खुशी हुई।"
शौर्य अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लेकर कहता है, "युवराज आप वह पहले इंसान है जो मुझसे यह कह रहे हैं कि मुझे यहाँ देखकर उसे खुशी हुई है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।"
इतना कहकर वह युवराज से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाता है। पर युवराज उससे हाथ नहीं मिलाते। यह देखकर शौर्य को कुछ अजीब लगता है, क्योंकि अभी तो युवराज शौर्य से अच्छे से बात कर रहे थे। फिर ऐसा क्या हो गया, कि उसके हाथ आगे करने पर युवराज ने उससे हाथ नहीं मिलाया।
तभी उसकी नज़र युवराज के दाएं हाथ की तरफ पड़ती है, जो थोड़ा काँप रहा था।
शौर्य को अपने हाथ की तरफ यूं देखता देख, युवराज अपने बाएँ हाथ से अपने दाएँ हाथ को पकड़ कर उसे अपने कपड़ों से छुपा देते हैं।
और फिर शौर्य से कहते हैं, "राजकुमार शौर्य, भोजन का वक्त हो गया है। चलिए आज साथ में ही भोजन करते हैं।"
इतना कहकर वह शौर्य को भोजन कक्ष की ओर ले जाते हैं। एक शानदार से हॉलनुमा इमारत में यह भोजन कक्ष था। महल के सेवक एक-एक करके खाने के सभी पकवान वहाँ पर लेकर आते हैं, और उन्हें सजाकर रख देते हैं। यह खाना वाक़ई में काफी अच्छा और स्वादिष्ट मालूम हो रहा था।
शौर्य इन सब चीज़ो को इतने गौर से देख रहा था, जैसे मानो आज से पहले उसने ऐसा खाना कभी नहीं देखा हो।
युवराज, शौर्य से कहते हैं, "राजकुमार शौर्य, आप क्या सोच रहे हैं? भोजन करना शुरू कीजिये।"
शौर्य युवराज से कहता है, "युवराज, आप तो जानते ही हैं, मै बचपन से ही राजमहल से दूर रहां हूँ। इस वजह से मुझे इस तरह के शाही पकवान खाने की आदत नहीं है। इसलिए मै सोच रहा हूँ कि खाना, खाना कहाँ से शुरू करूँ।"
शौर्य की यह बात सुनकर युवराज ज़ोर से हसने लगते हैं। और उसे अपने बाएं हाथ से एक पकवान का बर्तन उठा कर देते हुए कहते हैं, "आप पहले इसे खाईये राजकुमार शौर्य। यह बहुत अच्छा बना है।"
शौर्य, युवराज से उस बर्तन को लेता है और थोड़ा खाना अपनी प्लेट में निकाल कर खाना, खाना शुरू करता है।
भोजन करते समय शौर्य यह देखता है कि युवराज खाना खाने के लिए भी अपना दाहिना हाथ इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, और कोई भी सामान अपने बाएं हाथ से ही उठा रहे हैं। यह देखकर उसको थोड़ा अजीब लगता है लेकिन इस बारे में वह कुछ नहीं कहता और चुपचाप अपना भोजन करता है।
आखिर युवराज अपना सारा काम अपने बाएं हाथ से क्यों कर रहे थे। और सबसे ज़रूरी बात उनका दाहिना हाथ काँप क्यों रहा था। इन सवालों का जवाब हमें आगे चलकर पता लगेगा।
फिल्हाल इसी के साथ हमारा यह भाग भी यहीं पर खत्म होता है। मिलते हैं अगले भाग में।
चलिए, अब बात करते हैं अमृता यानी काव्या की।
काव्या अपने कमरे में थोड़ी परेशान सी अपने नाखून चबाते हुए इधर से उधर चक्कर लगा रही थी। उसे देखकर लग रहा था जैसे वह किसी गहरी सोच में डूबी हुई है।
वह अपने मन में खुद से ही बात करती है, "यह तो कंफर्म है कि मैं टाइम ट्रैवल करके वक़्त में कई सौ साल पीछे यहाँ 15वीं सदी में आ गई हूँ। पर आखिर मैं यहाँ आई तो आई कैसे? मतलब ऐसे थोड़ी न कोई टाइम ट्रैवल कर सकता है। मतलब यह तो सिर्फ किस्से कहानियों में ही होता है। माना कि जिस दुनिया से मैं यहाँ आई हूँ, वहाँ पर इंसान चाँद तक भी पहुँच गया है। अरे चाँद तो छोड़ो हम तो मंगल ग्रह पर भी बसने की तैयारी कर रहे हैं। मगर फिर भी टाइम ट्रैवल आज भी एक अनसुलझी पहेली ही बना हुआ है। इसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है। और फिर गोली का क्या? मुझे अच्छे से याद है कि मुझे गोली लगी थी। तो फिर मेरे शरीर पर उसका कोई ज़ख्म या निशान क्यों नहीं है? क्या टाइम ट्रैवल इंसान के शरीर के ज़ख्मों को भी भर देता है?"
वह यह सब सोच ही रही थी कि तभी वहाँ अनोखी काव्या के लिए खाना लेकर आ जाती है, और काव्या से कहती है, "छोटी मालकिन! चलिए खाना खा लीजिये। देखिये मैं आपकी पसंद की ही सारी चीजें बना कर लाई हूँ।"
यह कहकर वह खाना काव्या के पास रख देती है और काव्या को खाना प्लेट में निकाल कर देती है। "लीजिये छोटी मालकिन, और अच्छे से खाइये। देखिये ना आप कितनी कमज़ोर हो गयी हैं।"
उसकी अपने लिए इतनी परवाह देखकर काव्या को बहुत अच्छा लगता है, और वह उसकी तरफ प्यार से देखकर कहती है, "तुम मेरी इतनी फ़िक्र क्यों कर रही हो? देखो, अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ। और मेरी छोड़ो, ज़रा खुद को तो देखो। तुम खुद भी कितनी कमज़ोर और थकी हुई लग रही हो। तुम्हें देख कर लग रहा है, जैसे तुमने सुबह से कुछ नहीं खाया।"
फिर अपने हाथ से एक निवाला बना कर उसे खिलाने के लिए अपना हाथ आगे करती है, "चलो अपना मुँह खोलो।"
अनोखी हड़बड़ा कर कहती है, "नहीं... नहीं... छोटी मालकिन, मैं कैसे? आप यह क्या कर रही हैं? आप तो जानती है न, कि मैं आपकी नौकर हूँ। मैं भला आपके साथ खाना कैसे खा सकती हूँ?"
उसकी बात सुनकर काव्या उसे डांटते हुए कहती है, "तो क्या हुआ? क्या सेवकों को भूख नहीं लगती है? हाँ! एक बात और, तुम मेरी कोई नौकर नहीं हो, बल्कि मेरी सहेली की तरह हो। अब चलो चुपचाप अपना मुँह खोलो। आ....."
अनोखी अभी भी अपना मुँह बंद किए हुए थी, और दूर को हटकर कहती है, "आप बहुत अच्छी हैं छोटी मालकिन, लेकिन मैं अभी खाना नहीं खा सकती।"
अब काव्या कड़क आवाज़ में कहती है, "देखो, यह मेरा आदेश है कि तुम मेरे साथ खाना खाओ। मैं यह नौकर-मालिक वाले कायदे नहीं मानती। चलो अब जल्दी से आ.. करो।"
अनोखी कहती है, "छोटी मालकिन, वह बात नहीं है। मैंने आपकी सलामती के लिए मन्नत माँगी थी, कि जब आप ठीक हो जायेंगी, तो मैं निर्जल उपवास रखूँगी। और आज मेरा उपवास है, इसलिए मैं अभी आपके साथ खाना नहीं खा सकती।" यह कहकर अनोखी अमृता के कमरे में बिखरी हुई चीज़ों को समेटने लगती है और साफ सफाई में लग जाती है।
"क्या! तुमने उपवास रखा है, और वह भी मेरे लिए।" काव्या थोड़ा मुस्कुरा कर उससे कहती है।
फिर मन ही मन खुश होते हुए सोचती है, "यह सच में बहुत अच्छी है। मैं जब से यहाँ आई हूँ, यह मेरा कितना ख्याल रख रही है। और तो और इसने मेरे लिए मन्नत मानकर उपवास भी रख लिया।"
फिर एकदम से काव्या के चेहरे की खुशी गायब हो जाती है। "1 मिनट, इसने मन्नत मेरी सलामती के लिए नहीं, बल्कि अमृता की सलामती के लिए माँगी है।"
"अमृता..... ओह नो! मैं तो अपने आप में ही इतना उलझ गई, कि अमृता के बारे में तो भूल ही गई। आखिर अमृता है तो है कहाँ? वह अभी तक वापस क्यों नहीं आई? वह ठीक तो होगी न? कहीं वह पानी में डूब तो नहीं गई?"
फिर खुद को समझाते हुए कहती है, "नहीं, नहीं, नहीं, यह मैं क्या सोच रही हूँ? मुझे नेगेटिव नहीं सोचना चाहिए। वह बिल्कुल ही ठीक होगी। जिस तरह इन लोगों ने मुझे बचा लिया वैसे ही अमृता को भी ज़रूर किसी न किसी ने पानी में डूबने से बचा ही लिया होगा। लेकिन अगर अमृता जिंदा है, तो वह अभी तक लौटकर आई क्यों नहीं? कहीं वह किसी मुसीबत में तो नहीं फंस गई? मुझे इन लोगों को सब कुछ सच बताना होगा, ताकि यह अमृता को ढूंढ ले।"
इतना सोचकर वह अनोखी को अमृता के बारे में बताने ही वाली होती है कि तभी वह अपनी बात कहने से पहले ही ठहर जाती है, "रुक काव्या, तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया? आखिर तू इन्हें बताएगी क्या? कि तू अमृता नहीं काव्या है, और तू 21वीं सदी से यहां टाइम ट्रेवल करके आई है। और यह लोग तेरी बात मान लेंगे। तेरी इन बातों पर तो तेरी अपनी दुनिया में भी कोई यकीन नहीं करता, बल्कि तुझ पर हंसता कि तू कहानियां बना रही है। तो यह तो फिर 15वीं सदी है। यहां पर लोग इस बात पर कैसे भरोसा करेंगे। बल्कि उल्टा वह लोग यह सोचेंगे कि पानी में गिरने की वजह से तुझे सदमा लगा है, और तेरा दिमाग खराब हो गया है। या फिर तुझ पर किसी भूत का साया है। एक तो वैसे ही तू इस दुनिया से बिल्कुल अनजान है, और ऊपर से अगर तू इनसे यह सब बातें कहेगी, तो यहां तेरे लिए और मुश्किलें बढ़ जाएगी। इसलिए अभी चुप बैठ।"
लेकिन अगले ही पल खुद को खामोश करते हुए कहती है, "नहीं नहीं। मैं इतनी खुदगर्ज नहीं हो सकती। हो सकता है अमृता किसी मुश्किल में फंसी हो और उसे मदद की ज़रूरत हो। मैं खुद को बचाने के लिए किसी और की जान खतरे में नहीं डाल सकती। नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकती। मुझे इन्हें सब कुछ सच बताना ही होगा, फिर चाहे यह मुझे पागल समझे या कोई भूत-प्रेत।"
इतना सोच कर वह फिर से अनोखी को अपना सच बताने की कोशिश करती है, लेकिन उससे पहले ही उसकी नज़र अपने हाथ के बाज़ू पर पड़ती है। "यह क्या! यह तो जलने का निशान लगता है। और यह काफी पुराना भी लग रहा है। पर मुझे तो कभी ऐसी कोई चोट नहीं लगी। तो फिर यह निशान मेरे हाथ पर आया कहां से?"
काव्या उस निशान को बहुत गौर से देख रही थी, तभी अनोखी पीछे मुड़ती है, और देखती है कि काव्या अपने हाथ के जलने के निशान को देख रही है। फिर वह उसके पास आकर कहती है, "छोटी मालकिन, आप चिंता मत कीजिए मैंने सुना है पड़ोस के गांव में एक बहुत अच्छे वैध है। उनके पास जो जड़ी बूटी का लेप है उसे लगाने से आपके हाथ का यह निशान पूरी तरीके से गायब हो जाएगा।"
काव्या अनोखी की तरफ देखती है, और उससे कहती है, "जलने का निशान! पर मुझे तो कभी कोई ऐसी चोट नहीं लगी।"
अनोखी कहती है, "छोटी मालकिन आप भूल गई क्या? जब आप छोटी थी तो खेल-खेल में रसोई में जाकर छुप गई थी। वहीं पर आपके हाथ पर गर्म दूध गिर गया था, यह उसी के जलने का निशान है।"
काव्या कहती है, "अरे वह चोट तो अमृता को लगी होगी न, तो निशान मेरे शरीर पर.....", अपनी बात पूरी करने से पहले ही काव्या चौंककर अपनी आँखें बड़ी कर लेती है और अपना पैर ऊपर उठाकर उस पर कुछ देखने की कोशिश करती है। (दरअसल काव्या जब छोटी थी, तो वह एक बार साइकिल से गिर जाती है। जिसकी वजह से उसका पैर फ्रैक्चर हो गया था, और उसकी चोट पर कुछ टांके भी आये थे। इसकी वजह से उसके पैर पर उन टांको के निशान थे।)
"यह क्या.... मेरी चोट का निशान कहां गया? नहीं... कहीं मैं जो सोच रही हूं, वह सच तो नहीं है।"
उसकी यह सब हरकतें देखकर अनोखी बहुत परेशान हो रही थी, वह कहती है, "छोटी मालकिन, आप इतनी अजीब बातें और हरकतें क्यों कर रही है। अब मुझे डर लग रहा है।"
काव्या उसकी बात काटते हुए उससे पूछती है, "अच्छा एक बात बताओ, जब मुझे पानी से बाहर निकाला था, तो क्या मैं कुछ अलग सी दिख रही थी, और मैंने कुछ अलग से कपड़े पहने हुए थे? मतलब ऐसे कपड़े जो यहां पर कोई नहीं पहनता। क्या मेरे कपड़े सबसे अलग और अजीब लग रहे थे?"
अनोखी उससे कहती है, "नहीं छोटी मालकिन, आप तो अपने ही कपड़े पहने हुई थी। कोई अलग वेशभूषा नहीं थी आपकी।"
इतना कहकर वह काव्या को उसके वह कपड़े दिखाती है, जो पानी में गिरते वक्त उसने पहने थे। यह वह कपड़े नहीं थे जो काव्या ने पिकनिक ट्रिप पर पहने थे, बल्कि यह तो पुराने ज़माने के कपड़े थे, जोकि अमृता के थे।
यह सब चीजें देखकर काव्या हैरानी से खड़ी होती है, और आईने की तरफ जाकर खुद को उसमें गौर से देखते हुए अपने मन में कहती है, "मतलब मैं जो सोच रही हूं वह सही है। अमृता कहीं और नहीं है, वह तो यहीं है। मैं सोच रही थी, कि मैं टाइम ट्रैवल करके 15वीं सदी में आ पहुँची हूँ। लेकिन सच तो यह है कि सिर्फ मेरी आत्मा ही टाइम ट्रैवल करके यहाँ अमृता के शरीर में आई है, मेरा शरीर तो अभी भी मेरी दुनिया में ही है। इसका मतलब अब अमृता... और काव्या... दो अलग-अलग इंसान नहीं है, बल्कि अब हम दोनों एक हैं। यह शरीर भले ही अमृता का है, लेकिन आत्मा मेरी (काव्या) है।"
राजमहल के अंदर
महल के अंदर, किले की एक बाहरी दीवार पर सीढ़ी लगाकर, राजकुमार हर्ष उस पर छुप-छुप कर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे कि तभी राजकुमारी अनन्या वहाँ आ जाती हैं, और पीछे से हर्ष को आवाज़ लगाती हैं, "राजकुमार हर्ष।"
राजकुमारी अनन्या की यूँ अचानक पीछे से आवाज़ सुनकर हर्ष डर जाता है, और उसका पैर सीढ़ी से फिसल जाता है। वह धड़ाम से नीचे गिर जाता है। अनन्या मदद के लिए जल्दी से उसके पास जाती हैं, और उसको उठने में मदद करती हैं।
हर्ष दर्द से कराहते हुए कहता है, "आह.... क्या आप हमारी जान लेना चाहती हैं राजकुमारी अनन्या। आपने हमें डरा दिया। हमें लगा किसी ने हमें चोरी छुपे बाहर जाते हुए पकड़ लिया है। भला ऐसे कौन पीछे से आवाज़ लगाता है।"
हर्ष की यह बात सुनकर अनन्या घबड़ाकर उससे पूछती है, "क्या? आप महल से बाहर जा रहे थे? वह भी बिना किसी की आज्ञा लिए, चोरी छुपे? आपको पता है न, पिछली बार जब आप यूँहीं अकेले महल से बाहर चले गए थे, तो कितना तमाशा हुआ था। फिर महाराज ने आपको दंड भी दिया था, और आपके इस तरह अकेले महल से बाहर जाने पर पाबंदी भी लगा दी थी। आप भूल गए क्या?"
हर्ष अपना मासूम सा चेहरा बनाकर, अपनी नाज़ुक सी आवाज़ में कहता है, "हां मुझे याद है। लेकिन आप तो जानती हैं ना कि महल के अंदर मेरा मन बिल्कुल भी नहीं लगता। मै महल से बाहर जाना चाहता हूँ। बाहर की दुनिया देखना चाहता हूँ।"
अनन्या आगे कहती हैं, "हाँ मै जानती हूँ, कि आप महल से बाहर जाकर घूमना चाहते हैं। लेकिन क्या आप यह जानते हैं, कि अगर मेरी जगह किसी सैनिक ने आपको यूँ छुपा चोरी से महल के बाहर जाते हुए देख लिया होता, तो इस बारे में अब तक तो महाराज को भी पता चल जाता। और आपको सज़ा भी मिल गयी होती, वह भी पहले से दोगिनी।"
"तो मै क्या करूँ? मुझे महल के बाहर घूमने जाना है। मै बाहर की दुनिया देखना चाहता हूँ। बाहर करने के लिए कितनी मज़ेदार चीज़ें होती हैं। मुझे एक पंछी की तरह इस महल के अंदर कैद होकर नहीं रहना है।" फिर वह एकदम से अपने चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान लेकर राजकुमारी अनन्या की तरफ़ देखता है।
अनन्या उसके यह इरादे समझ जाती है, इसलिए उससे थोड़ा दूर को हटते हुए कहती हैं, "नहीं... नहीं... आप यह सोचना भी मत कि मै आपकी बाहर जाने में मदद करूँगी। आप महाराज के गुस्से को जानते नहीं है क्या? मुझे समय से पहले मृत्युलोक नहीं जाना है। नहीं... नहीं... बिल्कुल नहीं।"
हर्ष उसका हाथ पकड़ कर, उसको मक्खन लगाते हुए कहता है, "मेरी प्यारी बहन। तुम दुनिया की सबसे अच्छी बहन हो। मै तुमसे विनती करता हूँ। कृप्या मुझे बाहर जाने दो। तुम जो कहोगी, मै वह करूँगा। लेकिन अभी मुझे बाहर जाने दो।"
अनन्या हर्ष को घूरते हुए पूछती हैं, "क्या सच में, मै जो बोलूँगी आप वह करेंगे?"
"हाँ बिल्कुल आप कहकर तो देखे।" हर्ष कहता है।
अनन्या कहती है, "तो फिर ठीक है, मै भी आपके साथ ही बाहर चलूंगी।"
हर्ष हड़बड़ाते हुए कहता है, "नहीं... नहीं.... आप मेरे साथ बाहर कैसे चल सकती हैं। एक राजकुमारी को यूँ महल के बाहर जाने की इजाज़त नहीं है। नहीं... नहीं... आप मेरे साथ नहीं चल सकती।"
राजकुमारी कहती हैं, "जहाँ तक मुझे पता है, इजाज़त तो आपको भी नहीं हैं, महल के बाहर जाने की। अगर मंजूर हो तो बताइये, नहीं तो मै चली महाराज को बताने।" इतना कहकर अनन्या पलट कर वहां से जाने का नाटक करती है।
हर्ष एकदम से अनन्या का हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहता है, "अरे रुकिए...रुकिए... राजकुमारी आप कहां जा रही हैं? मुझे ज़रा सोचने तो दीजिए।" फिर बेमन से ही सही वह अनन्या की बात मान लेता है, और उससे कहता है, "ठीक है राजकुमारी अनन्या, आप मेरे साथ महल के बाहर घूमने चल सकती हैं। लेकिन ध्यान रहे किसी को भी इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए।"
अनन्या खुशी से उछलती है, और जवाब देती है, "नहीं आप बिल्कुल भी फ़िक्र मत करो। किसी को भी पता नहीं चलेगा।"
अब हर्ष राजकुमारी से कहता है, "पर हम सैनिकों को चकमा देकर महल के बाहर जाएंगे कैसे? अगर किसी ने हमें पकड़ लिया तो हमें बहुत बड़ी सज़ा मिलेगी।"
अनन्या मुस्कुराकर कहती हैं, "वह सब आप मुझ पर छोड़ दीजिये। यहां से बाहर जाने की तरकीब मै अच्छे से जानती हूंँ।"
कुछ देर बाद हम देखते हैं कि अनन्या और हर्ष सैनिकों को चकमा देकर महल के बाहर निकल जाते हैं। और अब वह राज्य के मुख्य बाज़ार में आ पहुंचे थे।
उधर काव्या भी अनोखी के साथ बाज़ार में आई हुई थी। क्योंकि अब तो काव्या को यहां पर ही रहना था, तो इसलिए उसे अपनी ज़रूरत का कुछ सामान चाहिए था, इसलिए वह अनोखी को लेकर शहर के मुख्य बाज़ार में आ जाती है। लेकिन वह जिन चीज़ों को ढूंढ रही थी, उनका आविष्कार तो इस समय में हुआ ही नहीं था। तो वह सामान उसे इस समय में भला मिलता तो मिलता कैसे? इसलिए वह अपनी उन चीज़ों के बारे में जिस दुकानदार से पूछती, वह बेचारा तो यह सोचकर अपना सर खुजलाने लगता, कि क्या भला इस तरीके का सामान भी कहीं पर बना है।
अनोखी भी काव्या के इन अतरंगी चीज़ों के नाम और काम जानकर हैरान होती है, और उससे पूछती है, "छोटी मालकिन आप जिन चीज़ों को ढूंढ रही है, उन चीज़ों के बारे में ना तो मैंने कभी सुना है, और ना ही ऐसी कोई चीज़ कभी देखी है। तो फ़िर आपको इन चीज़ों के बारे में कहां से पता चला?"
काव्या समझ जाती है कि वह जिन चीज़ों को ढूंढ रही है, यहां पर उनका मिलना तो नामुमकिन है, इसलिए अब वह उन चीज़ों के substitute यानी की विकल्प ढूँढने लगती है ताकि जुगाड़ लगाकर ही सही उसका काम तो चल जाए। लेकिन बहुत ढूँढने पर भी उसे कोई चीज़ नहीं मिलती।
तभी उसकी नज़र एक बड़ी सी दुकान पर पड़ती है, जिसमें उस समय के हिसाब से काफी बेहतरीन और नायाब चीज़ें रखी थी। काव्या यह देखकर चैन की साँस लेती है, कि फाइनली उसे इस दुकान से तो उसकी ज़रूरत का कुछ सामान तो मिल ही जायेगा। इसलिए वह अनोखी का हाथ थामती है और उस दुकान के अंदर चली जाती है। दुकान के अंदर जो सामान था वह वाक़ई में उस समय में मिलना बहुत मुश्किल था। लेकिन आज के समय के हिसाब से थोड़ा एंटिक था। काव्या वहाँ गौर से देखकर कुछ चीज़ें उठाती है और सोचती है, "चलो थोड़ा बहुत ही सही काम तो चल ही जायेगा मेरा।"
सामान उठा कर वह जैसे ही दुकानदार के पास उनके पैसे देने के लिए आती है, वह देखती है कि वह मोटा दुकानदार किसी लड़के को दिशा यंत्र यानी कि कम्पास के बारे में जादू की झूठी मूटी कहानियाँ बनाकर ठगने की कोशिश रहा है।
यह लड़का कोई और नहीं बल्कि राजकुमार हर्ष होता है, जो उस मोटे दुकानदार की बातों में आकर उस कम्पास को सच में ही कोई जादुई यंत्र समझ रहा था। और उस कम्पास की उस दुकानदार को मुँह माँगी कीमत देने के लिए भी तैयार था। यह सब देख कर काव्या को गुस्सा आ जाता है। और वह गुस्से से अपने आप से बोलती है, "अरे यह देखो... यह तरबूज़ की शकल जैसा मोटा, कैसे इस बेचारे लड़के को बेवक़ूफ़ बना कर ठग रहा है। इसे तो सबक सिखाना ही पड़ेगा।"
वह दुकानदार हर्ष को दिशा यंत्र दिखाते हुए कहता है, "यह कोई आम चीज़ नहीं है मान्यवर, यह परियों का जादुई यंत्र है। अगर आप चाहे तो मै इसे आप को चला कर दिखा सकता हूँ। आप जब इसमें परियों से दिशाओं के बारे में पूछेगे, तो वह आप को सभी दिशाओं का सही-सही रास्ता बताएंगी।"
"और एक झापड़ खाकर तुम्हारी अक्ल भी ठिकाने आ जायेगी।" पीछे से काव्या की आवाज़ आती है।
किसी लड़की के मुँह से यह मार धाड़ वाली बातें सुनकर वहाँ आस-पास खड़े लोग और हर्ष काव्या को बड़ी ही हैरानी से देखने लगते है।
झापड़ खाने वाली बात सुनकर वह तरबूज़ की शक्ल जैसा दुकानदार भी काव्या पर भड़कते हुए बोलता है, "ऐ लड़की, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न। तुम मुझे मारने की बात कर रही हो। जाती हो यहाँ से या बुलाऊँ अभी कोतवाल को।"
अनोखी काव्या का हाथ पीछे की ओर खींचते हुए उससे कहती है, "छोटी मालकिन आप यह क्या कर रही हैं। देखिये यहाँ सब हमें कैसे घूर-घूर कर देख रहे हैं। चलिए यहाँ से।"
काव्या अनोखी से अपना हाथ छुड़ा कर आगे बड़ती है और उस दुकानदार से कहती है, "हाँ सही कहा तुमने, कोतवाल को ही बुला लेते हैं। अब वोही यहाँ आकर तुम्हारे जैसे धोखेबाज़ की सारी धोखेबाज़ी ठीक करेगा।"
अब वह दुकानदार और ज़ोर से भड़क कर कहता है, "ऐ लड़की पागल तो नहीं हो गई हो? धोखेबाज़ किसे कह रही हो? मैने किसको धोख़ा दिया है?"
"तुम्हें कहा है!!! जो इस साधारण से दिशा यंत्र को परियों का जादुई यंत्र बता कर इस बेचारे को ठग रहे हो।" काव्या हर्ष के हाथ से कम्पास लेकर उसे दिखाते हुए कहती है।
आगे काव्या हर्ष से कहती है, "यह तुम्हें बेवकूफ बना रहा है। यह कोई परियों का जादूई यंत्र नहीं है, बल्कि एक कंपास यानी की दिशा यंत्र है। इसका इस्तेमाल नाविक समुद्री यात्रा के दौरान सही दिशा का पता लगाने के लिए करते हैं। यह विज्ञान के आधार पर बनाया गया है। इससे जादू जैसी कोई बात नहीं है।"
अब वह दुकानदार कहता है, "ए लड़की, मै कोई झूठी बात नहीं कह रहा हूँ, यह सच में ही परियों का जादुई यंत्र है। ज़रा देखो मेरी दुकान में, यहाँ तुम्हें ऐसी ही कई और जादुई और नायाब चीज़ें मिल जायेंगी। चाहे तो यहाँ किसी से भी पूछ लो।"
अब काव्या उस दुकानदार को ताना मारते हुए कहती है, " हाँ.. हाँ.. बिल्कुल...!!! मैं देख ही रही हूंँ, कि तुम्हारी दुकान में तो सारी चीज़ें जादूई ही तो है।" फ़िर वह वहाँ पास में ही रखे एक चिराग को उठाकर कहती है, "जैसे कि यह देखो यह चिराग। यह चिराग भी कोई मामूली चिराग नहीं है, बल्कि यह तो अलादीन का जादुई चिराग है न। इसे घिसेंगे तो इसमें से जिन्नी बाहर निकलेगा। और यह झाड़ू.... यह झाड़ू भी पक्का कोई मामूली झाड़ू तो होगी नहीं, बल्कि यह तो उड़ने वाली जादुई झाड़ू होगी। यह तो खुद हैरी पॉटर ने लाकर तुम्हें दी होगी। है ना।"
काव्या के मुंह से हैरी पॉटर का नाम सुनकर वह दुकानदार अपने नौकर से फुसफुसाते हुए पूछता है, "अबे सुन!!! अब यह हरि पुत्तर कौन है।"
नौकर कहता है मलिक उन्होंने हरि पुत्तर नहीं, हरी पॉटर कहा है। नाम से तो कोई विदेशी जादूगर मालूम पड़ता है।"
फिर वह दुकानदार हदबड़ाते हुए काव्या को ज़ोर से डांटते हुए कहता है, "ए लड़की तुम यहां से सीधे-सीधे जाती हो या नहीं। नहीं तो मैं तुम्हें यहां से मार कर भगाऊँ।" फिर वह काव्या को धक्का देते हुए अपनी दुकान से बाहर निकालते हुए कहता है, "चलो भागो यहां से।"
अनोखी काव्या को संभालती है और उससे कहती है, "चलिए छोटी मालकिन। इसकी पहचान महल के बड़े-बड़े अधिकारियों से है। आप खामुखा ही मुसीबत में पढ़ जाएगी। चलिए यहां से चलते हैं।"
उस तरबूज जैसी शकल वाले दुकानदार का अपने साथ ऐसा बर्ताव देखकर अब काव्या को उसपर और ज़्यादा गुस्सा आता है। और वह अनोखी से कहती है, "यह तरबूज जैसी शक्ल वाला मोटा अपने आप को समझता क्या है। एक तो चोरी ऊपर से सीना ज़ोरी। अब तो मै इसे अच्छे से सबक सिखा कर ही यहाँ से जाऊंगी।"
आगे काव्या अब ऐसा क्या करने वाली है, जिससे वह उस धोखेबाज दुकानदार को एक अच्छा सबक सिखा सके। और उसकी सच्चाई सबके सामने लाए।
वह दुकानदार काव्या को अपनी दुकान से धक्का देकर बाहर निकाल देता है। लेकिन काव्या अभी भी उसकी दुकान के बाहर ही खड़ी थी। यह देखकर अब वह दुकानदार बहुत गुस्से में आकर काव्या से कहता है, "ऐ लड़की!!! तुम अभी तक यहाँ पर खड़ी हो। सीधे-सीधे कहता हूंँ, चलती बनो यहां से, वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"
काव्या उस दुकानदार को बोलती है, "चली जाऊंगी, लेकिन उससे पहले मै तुम्हारी सच्चाई सबके सामने लाऊँगी कि तुम अपनी झूठी जादूई कहानियां बनाकर लोगों को ठगते हो।"
वह दुकानदार कहता है, "ऐ लड़की!!! बातें तो ऐसे कर रही हो जैसे कोई बहुत बड़ी जादूगर हो? तुम क्या जानो, जादू और जादुई चीज़ों के बारे में।"
अब काव्या के दिमाग में एक खुराफाती तरकीब आती है, और वह पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती है, "हाँ सही कहा तुमने। मै जादू करना जानती हूंँ। इसीलिए तो मैने तुम्हारी इन झूठी बातों को पकड़ लिया।"
उसकी बात सुनकर वह दुकानदार ज़ोरों से हंसाता है, और कहता है, "ए लड़की!!! तुम अच्छा मज़ाक कर लेती हो।"
काव्या कहती है, "मै मज़ाक नहीं कर रही हूंँ। मै सच में जादू करना जानती हूंँ। और अगर तुम्हें यकीन नहीं है, तो मै अभी इसी वक़्त यहीं पर तुम्हें जादू करके दिखा सकती हूंँ।"
दुकानदार कहता है, "लड़की हवा में बातें करना बंद करो। बहुत देखें हैं तुम्हारे जैसे। यह जादू-वादु तुम्हारे बस की बात नहीं है। मेरा वक्त बर्बाद करना बंद करो और यहां से चलती बनों। बहुत देखें है तुम्हारे जैसे, बड़ी आई जादू दिखाने वाली।"
काव्या कहती है, "अगर मै वाकई में जादू करके दिखा दूंगी, तो फिर तुम क्या करोगे?"
वह दुकानदार कहता है, "अगर सच में तुमने जादू करके दिखा दिया और तुम्हारे जादू से यहाँ पर खड़ा एक भी इंसान संतुष्ट हो गया, तो फिर तुम जैसा कहोगी मैं वैसा करूंगा। और मै अपने किये हुए बर्ताव के लिए तुमसे माफी भी मांग लूंगा। लेकिन अगर तुम झूठी साबित हुई तो तुम्हें सबके सामने यह कबूल करना होगा कि तुम मुझपर झूठे आरोप लगा रही हो और झुककर मुझसे माफी भी मांगनी होगी।"
काव्या कहती है, "शर्त मंजूर है।"
काव्या पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ती है। वह दुकान के सामने खड़े होकर लोगों को अपना जादू दिखाने के लिए बिल्कुल तैयार थी। वह मन में सोचती है, "फाइनली आज इंटरस्कूल मैजिकल कंपटीशन के लिए सीखी गई जादुई ट्रिक्स का इस्तेमाल करने का वक्त आ ही गया।"
काव्या वहाँ पर आस-पास खड़े लोगों का ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित करते हुए कहती है, "भाइयों और बहनों अभी मैं आपको जो जादू करके दिखाने वाली हूंँ, उसे देखकर आपको बहुत मज़ा आएगा। इसलिए इसे ज़रा गौर से देखिए।" वह बिल्कुल एक मंजे हुए जादूगर की तरह ही एक्ट कर रही थी। अब वह एक सिक्का निकालती है, और उसे अपने हाथ में रखती है, और कहती है, "अभी आपने देखा कि यह सिक्का मेरे हाथ में है। अब मै इसे आपको गायब करके दिखाउँगी।"
वह दुकानदार हंसता है, और कहता है, "नाटक करना बंद करो लड़की और थोड़ा जल्दी करो। मै यहाँ सारा दिन तुम्हारी नौटंकी देखने के लिए फालतू नहीं बैठा हूंँ।"
काव्या मुस्कुराती है, उसके बाद वह अपने हाथ की उँगलियों को हवा में घुमाते हुए एक मंत्र पढ़ती है, "समझो ना तुम मुझे किसी से कम, चीन टपाक डम डम।"
और फिर जब वह अपना हाथ खोल कर दिखाती है, तो वह सिक्का गायब हो चुका था और काव्या का हाथ बिल्कुल खाली था। यह देखकर अनोखी, हर्ष और वहाँ खड़े लोग बहुत हैरान और खुश होते हैं। लेकिन उस दुकानदार को तो अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था। इसलिए वह अपनी आंखें मलते हुए हैरानी से यह सब देखता है।
अब काव्या हाथ की सफाई वाली और छोटी-मोटी मैजिकल ट्रिक्स करके दिखाती है, जिन्हें देखकर राजकुमार हर्ष और वहां खड़े लोगों को तो बहुत मज़ा आ रहा था और वह खुश होकर तालियां बजाते हैं।
वह मोटा दुकानदार हैरान परेशान होकर यह सोचता है, "यह तो सचमुच ही एक जादूगरनी निकली। मैने बेकार ही इससे पंगा ले लिया।"
अब काव्या उस तरबूज की शकल वाले मोटे दुकानदार को अपने पास आने को कहती है। वह मोटा डरते हुए धीरे-धीरे काव्या के पास आकर खड़ा हो जाता है।
फिर काव्या वहां खड़े लोगों से कहती है, "दोस्तों अभी तक तो आपने मुझे सिर्फ हवा में ही चीज़ों को गायब करते हुए देखा है। लेकिन अब मै आपको अपना सबसे बड़ा जादू दिखाऊंगी। अब मै आपको, आपके सामने ही एक जीते जागते इंसान को गायब करके दिखाऊंगी। जी हां, सही सुना आपने एक जीते जागते इंसान को गायब करके दिखाऊंगी। और वह इंसान कोई और नहीं हमारे यह मोटे भाई साहब होंगे। तो इनके लिए ज़ोरदार तालियां हो जाय।"
काव्या की बात सुनकर वह दुकानदार एकदम से डर जाता है, लेकिन वहां खड़े लोग और हर्ष बहुत खुश होकर पूरे जोश के साथ तालियाँ बजाने लगते हैं।
फिर काव्या वहां पास में ही पड़ा एक चिराग उठाती है, और कहती है, "अरे-अरे दोस्तों घबराइए मत। मै इस चिराग को घिसकर इसमें से किसी जीन्न को बाहर नहीं निकालने वाली। बल्कि मै तो अपने जादू से इस चिराग के अंदर इन मोटे भाई साहब को डाल दूंगी।"
यह सुनकर तो वह मोटा दुकानदार एकदम से चौंक जाता है।
फिर वह उस दुकानदार से कहती है, "ओह मोटे भाई साहब, ज़रा सुनिए! इस चिराग के अंदर जाने का रास्ता न थोड़ा सा पतला है, इसलिए आपको अंदर जाने में ज़रा तकलीफ होगी। लेकिन फ़िक्र की कोई बात नहीं है, मै आपसे वादा करती हूंँ, कि मैं अपनी जादूई ताकत से आपको इसके अंदर पहुँचा कर ही रहूंगी। बिल्कुल भी घबराइयेगा नहीं। हाँ।"
फिर वह अपना मंत्र पढ़ना शुरू करने वाली ही होती है, कि उसके कुछ बोलने से पहले ही वह मोटा दुकानदार डरकर रोते हुए कहता है, "नहीं-नहीं देवी रुक जाइये! ऐसा अनर्थ मत कीजिए। मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं। भगवान के लिए मेरे साथ ऐसा मत कीजिए। अगर मै इसके अंदर चला गया तो मेरे बीवी बच्चों का क्या होगा। मै अपनी गलती मानता हूंँ। मैंने आपको एक मामूली लड़की समझा, लेकिन आप तो एक पहुंची हुई जादूगरनी निकली। मै अपनी गलती मानता हूंँ, और आपसे माफी मांगता हूंँ। कृपा करके मुझे माफ कर दीजिए।"
काव्या कहती है, "नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता। मैने आपसे वादा किया है, कि मै आपको जादू करके दिखाऊंगी। अब मै अपनी बात से पीछे नहीं हट सकती। अब तो मै आपको चिराग के अंदर भेजकर ही रहूंगी। आप ऐसे मुझे नहीं रोक सकते।"
वह दुकानदार कहता है, "देवी रहम करिए मुझ पर, मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं। मै आपसे कह तो रहा हूंँ, कि मैने मान लिया कि आप कोई मामूली इंसान नहीं है। और मै आपसे माफी भी मांग रहा हूंँ।"
काव्या कहती है, "नहीं!!! सिर्फ माफी मांगने से काम नहीं चलेगा, मै तुम्हें सिर्फ एक शर्त पर ही छोडूंगी।"
वह दुकानदार कहता है, "मुझे आपकी सारी शर्तें मंजूर है, बस मुझे छोड़ दीजिए।"
काव्या कहती है, "ठीक है तो सबके सामने अपनी गलती मानो, कि तुम जादू की झूठी-मूटी कहानीयां बनाकर इस दिशा यंत्र को परियों का जादूई यंत्र बता रहे थे और इस बेचारे लड़के को ठग रहे थे।"
वह दुकानदार कहता है, "हाँ मै अपनी सारी गलती मानता हूंँ, यह दिशा यंत्र कोई परियों का जादूई यंत्र नहीं है, बल्कि मैने इसे विदेश से मंगवाया था। और मै इसके बारे में झूठी जादुई कहानीयां बनाकर इस लड़के को ठग रहा था। अब मुझे माफ कर दो देवी और छोड़ दो।"
उस दुकानदार की यह बात सुनकर हर्ष को बहुत गुस्सा आता है। वहां खड़े लोग भी गुस्से में आ जाते हैं, और कहते हैं, "नहीं इस ठग को तो ऐसे जाने नहीं देना चाहिए। यह कितने समय से ऐसे ही झूठी बातें बोलकर हमें लूटता था। इसकी शिकायत तो कोतवाल से करनी चाहिए।"
सभी लोग एक सुर में कहते हैं- "हां, हां, इसे सज़ा मिलनी चाहिए। मारो इसे।"
वह दुकानदार चुपचाप खड़ा शर्मिंदगी से अपना सर झुकाए हुए था।
काव्या समझ जाती है कि लोगों को उस दुकानदार पर बहुत गुस्सा है, और अगर अभी उसने कुछ नहीं किया तो लोग गुस्से में उस दुकानदार को मार-मार के उसका भरता बना देंगे। इसलिए वह खुद आगे आकर लोगों को रोकते हुए कहती है, "मै मानती हूंँ कि यह धोखेबाज आप लोगों का अपराधी है। लेकिन ज़रा सोचिए कि सारी गलती सिर्फ इसी की तो नहीं है। हम लोग भी तो ऐसी बातों पर इतनी आसानी से विश्वास कर लेते हैं जिससे इन जैसे दुकानदारों को हमें ठगने का मौका मिलता है।"
फिर वह उस दुकानदार से कहती है, "मैने तुम्हारी दुकान के अंदर की चीज़ों को देखा है। आज के समय में ऐसी चीज़ों का यहाँ मिलना अपने आप में ही एक बहुत बड़ी बात है। अगर तुम पूरी ईमानदारी से सच बोलकर अपना सामान बेचोगे तो माना तुम्हें पैसे थोड़े कम ज़रुर मिलेंगे, लेकिन इससे तुम्हारी दुकान लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध होगी जिसका फायदा तुम्हें भविष्य में ज़रूर मिलेगा।"
काव्या की बातें सुनकर वह दुकानदार काव्या से कहता है, "मै समझ गया कि झूठ बोलकर कार्य करने से होने वाला फायदा सिर्फ थोड़े समय का ही होता है। अब से मै पूरी ईमानदारी के साथ लोगों को चीज़ों के बारे में सत्य बता कर ही उन्हें बेचूँगा।"
सभी लोग काव्या की अकल मंदी और होशियारी से खुश होकर पूरे जोश के साथ तालियां बजाते है। अनोखी और हर्ष भी उसके लिए खुशी से तालियां बजा रहे थे। यह सब देखकर तो मानो काव्या जैसे सातवें आसमान पर ही उड़ रही थी। वह सभी का शुक्रिया अदा करती है।
अनोखी काव्या के पास आकर कहती है, "छोटी मालकिन। आपने तो कमाल ही कर दिया।"
वह दुकानदार काव्या को वही दिशा यंत्र (कंपास) तोहफे के रूप में देता है।
काव्या उस दिशा यंत्र को लेकर हर्ष के पास जाती है, और उससे कहती है, "यह लो, इसे तुम रख लो, तुम्हें यह पसंद है न, इसलिए तुम इसे रख लो।" और फिर उसको थोड़ा डाँटते हुए कहती है, "ज़रा अपनी अक्ल से भी काम ले लिया करो। इतने मासूम भी मत बनो कि कोई भी तुम्हें यूँही बेवकूफ बनाकर ठग ले।"
राजकुमार हर्ष बहुत खुशी से काव्या से वह दिशा यंत्र ले लेता है और उसे इसके लिए धन्यवाद कहता है। फिर वह बहुत ही जिज्ञासा से काव्या से पूछता है, "लेकिन आप यह तो बताइए कि आपने वह सारे जादू किये कैसे? मै तो यह सब देख कर बहुत हैरान था।"
काव्या कहती है, "वह कोई जादू नहीं था, बल्कि एक छलावा था। इसे हाथ की सफाई कहते हैं जो मैने बहुत अभ्यास करके सीखी हैं।"
हर्ष उससे आगे कहता है, "तो फिर क्या आप मुझे भी यह छलावा सिखा सकती हैं। मैं इसे दिखाकर सबको हैरान कर दूंगा।"
काव्या उसकी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहती है, "हां क्यों नहीं। जब तुम चाहो। मैं तुम्हें यह सिखा दूंगी। लेकिन उससे पहले यह तो बताओ कि तुम्हारा नाम क्या है?"
हर्ष काव्या को अपना परिचय दे पाता, इससे पहले ही वहां पर राजकुमारी अनन्या आ जाती हैं। उसके हाथ में कुछ किताबें थी, जो उसने बाज़ार से खरीदी थी। वह हर्ष के पास आकर उससे कहती है, "राजकुमार हर्ष आप कहाँ चले गए थे? मै कब से आपको ढूंढ रही हूंँ। आप जानते हैं, मैं कितना परेशान हो गई थी।"
काव्या धीरे से अपने आप से कहती है, "क्या राजकुमार? क्या यह भी एक राजकुमार है।"
फिर अनन्या की नज़र काव्या पर पड़ती है, और वह काव्या को देखकर कहती हैं, "अरे अमृता दीदी आप। आप भी यहां पर खरीदारी करने आई है।"
उसकी बात सुनकर काव्या बस उसे हैरानी से एकटक देखती रहती है। क्योंकि सब की नज़रों में वह भले ही अमृता हो और सब उसे अमृता समझ कर ही बात कर रहें हो, लेकिन असल में तो वह काव्या है जो अभी इस वक़्त इन सबमें से किसी को नहीं जानती है।
अनन्या को काव्या से ऐसे बातें करता देख हर्ष पूछता है, "क्या आप इन्हें जानती है राजकुमारी अनन्या?"
राजकुमारी अनन्या कहती हैं, "हाँ बिल्कुल। यह सेनापति जी की बेटी है, और राजकुमारी संध्या की सहेली, अमृता हैं।"
काव्या अभी भी उन दोनों को वैसे ही देख रही थी। राजकुमारी अनन्या आगे कहती हैं, "अरे अमृता दीदी ऐसे क्यों देख रही हैं? क्या आपने मुझे पहचाना नहीं?"
काव्या अपने मन में सोचती है, "अरे मै भला तुम्हें कैसे पहचान सकती हूंँ। तुम्हें तो अमृता जानती होगी न।"
अनन्या कहती है, "अरे आप भूल गई क्या? मै राजकुमारी अनन्या हूंँ। आप जब संध्या भाभी से मिलने आई थी, तब मै भी वहाँ पर थी। हमने कितनी बातें की थी, और आप मेरी भी सखी बन गई थी।"
काव्या थोड़ा अटकते हुए कहती है, "हाँ बिल्कुल, मै आपको भला कैसे भूल सकती हूँ। आप मुझे याद है राजकुमारी अनन्या।"
इससे पहले अनन्या काव्या से आगे कुछ और पूछती, काव्या बात को घुमाने के लिए उसके हाथ में पकड़ी हुई किताबों को देखकर कहती है, "अरे वाह। इतनी सारी किताबें। क्या यह सब आपने अपने लिए खरीदी हैं।"
अनन्या कहती है, "हाँ अमृता दीदी, आप तो जानती है ना मुझे पढ़ने लिखने का कितना शौक है।"
काव्या थोड़ा अटकते हुए कहती है, "हाँ बिल्कुल, बिल्कुल, याद है।" और अपने मन में सोचती है, "काव्या थोड़ा संभल कर बात कर। यहाँ पर सब तुझे अमृता की पहचान से जानते हैं। अगर तूने कोई भी गड़बड़ की, तो सबको तेरा सच पता चल जाएगा।"
हर्ष बहुत ही खुशी से कहता हैं, "अरे वाह। यह तो बहुत अच्छा हुआ। आप तो हमारी परिचित ही निकली। अब आप जब भी संध्या भाभी से मिलने महल आयेंगी, तो आप मुझसे भी ज़रूर मिलना। और फिर आपको मुझे यह छलावे वाला जादू भी तो सिखाना है।"
काव्या थोड़ा अटकते हुए कहती है, "हाँ ज़रूर, क्यों नहीं।"
अब अनन्या हर्ष से कहती है, "राजकुमार हर्ष। अब हमें चलना चाहिए। हमें महल से बाहर आए हुए काफी देर हो गई है। इससे पहले कि किसी को हमारे महल में मौजूद न होने का पता लगे, हमें वापस महल पहुंचना होगा।"
हर्ष कहता है, "हाँ राजकुमारी अनन्या आप बिल्कुल सही कह रही हैं। हमें अब चलना चाहिए। चलिए वापस महल चलते हैं।" फिर वह दोनों काव्या को दोबारा मिलने का बोलकर वहां से चले जाते हैं।
अनोखी भी काव्या से कहती है, "छोटी मालकिन, हमें भी यहां आए हुए बहुत देर हो गई है। अब हमें भी अपने घर वापस चलना चाहिए।"
काव्या उसकी बात मानते हुए वापस चलने के लिए तैयार हो जाती है और वापस घर जाने लगती है। वापस जाते वक़्त काव्या एक तालाब के पास से गुज़रती है। तालाब का पानी देख कर काव्या को अपने पानी में गिरने वाला दृश्य याद आ जाता है जिससे कुछ पल के लिए उसके कदम जम जाते हैं। फ़िर काव्या किसी तरह से खुद को समझाते हुए संभालती है, और आगे बढ़ती है। लेकिन तभी अचानक वहाँ भगदड़ मच जाती है। लोग घबराते हुए भागो भागो बोलकर इधर-उधर अपनी जान बचाकर भागने लगते है।
आखिर वहाँ ऐसा क्या हो गया, कि अभी तक जहाँ सब कुछ बिल्कुल ठीक और शांत था, वहीं अब अचानक लोगों में भगदड़ मच गयी। यह जानने के लिए तो पढ़ना होगा आपको इसका अगला भाग।
दिन ढलने को था, शाम बस होने ही वाली थी। आस पास के माहौल में एक अलग सा सुकून था। दिन भर की गर्मी के बाद ठंडी हवाओं के झोंके लोगों को राहत महसूस करा रहे थे। चिड़ियों के चहकने की आवाज़ के साथ ढलते हुए सूरज का नज़ारा अपने आप में ही उस समां को बहुत खास बना रहा था। लोग अपने कामों में व्यस्त ज़रूर थे, लेकिन फिर भी वहां पर सब कुछ बिल्कुल ठीक, शांत और सामान्य था।
लेकिन तभी अचानक से घोड़े के तेज़ दौड़ने की आवाज़ आती है, और लोगों में अचानक से भगदड़ मच जाती है। लोग यहां वहां अपनी जान बचाकर भागने लगते हैं जैसे किसी दुश्मन ने उन पर हमला कर दिया हो। लोगों को इस तरीके से भागते देख काव्या को कुछ समझ में नहीं आता है, और इसी अफरा-तफरी में वह अनोखी से बिछड़ जाती है। लोगों के भागने की वजह जानने के लिए काव्या पीछे मुड़कर देखती है, तो वहाँ पर एक घुड़सवार बाज़ार में बहुत तेज़ी से घोड़ा दौड़ाए उसी की ओर चला आ रहा था।
यह घुड़सवार कोई और नहीं बल्कि राजकुमार शौर्य था। इसी वजह से लोगों में खौफ से भगदड़ मच गई, क्योंकि लोग तो वैसे ही उसे मौत का सौदागर समझते थे। इसलिए वह यहां वहां अपनी जान बचाकर भाग रहे थे।
शौर्य इस बात से बेपरवाह हवा की रफ़्तार से अपना घोड़ा दौड़ाए काव्या के बिल्कुल नज़दीक आ जाता है। इसी अफरा तफरी और जान बचाकर भागने की होड़ में एक आदमी काव्या से टकराता है। जिसकी वजह से काव्या का पैर लड़खड़ा जाता है। इसी वक़्त शौर्य का घोड़ा भी काव्या के बिल्कुल नज़दीक आ चुका था, और काव्या पीछे तालाब में बस गिरने ही वाली होती है, कि उससे पहले ही शौर्य काव्या को पानी में गिरने से बचाने के लिए उसका हाथ पकड़ उसे अपनी ओर खींचकर अपने घोड़े पर आगे की ओर ठीक अपने सामने बैठा लेता है।
शौर्य एक हाथ से काव्या को थामे हुए था, तो उसका दूसरा हाथ घोड़े की लगाम पर था। जिसकी वजह से वह घोड़ा अभी भी तेज़ी से दौड़ रहा था। गिरने के डर की वजह से काव्या ने अपनी दोनों आंखें कसकर बंद कर रखी थी, लेकिन राजकुमार शौर्य के उसे घोड़े पर बैठाने के बाद वह धीरे से अपनी आंखें खोलती है। अब उन दोनों का चेहरा एक दूसरे के बिल्कुल आमने-सामने था। अपने सामने इतने सुंदर लड़के को देखकर काव्या बस हैरानी से उसे एकटक देखती ही रह जाती है। ऐसा नहीं है कि काव्या ने इससे पहले कभी इतने खूबसूरत लड़के को नहीं देखा था, लेकिन शौर्य के चेहरे की कशिश और उसकी वह खामोेश गहरी आँखें जो अपने अंदर हज़ारों सवालों को समेटे हुए थी, जो काव्या को उससे नज़रे हटाने ही नहीं दे रही थी।
तभी शौर्य की नज़र भी काव्या की नज़रों से मिलती है, लेकिन उसके चेहरे पर अभी भी वैसे ही गंभीर भाव था। काव्या बस हैरानी भरी नज़रों से शौर्य को ही देखे जा रही थी। उसकी धड़कन बहुत तेज़ चल रही थी। क्योंकि आज से पहले कोई भी लड़का काव्या के इतने करीब नहीं आया था। उसके लिए तो वक्त मानो जैसे थम सा गया था।
लेकिन तभी आगे जाकर शौर्य अपने घोड़े की लगाम खींचकर एक जगह रुक जाता है, और काव्या को उसके ख्वाबों की दुनिया से बाहर लाने के लिए उसे ज़ोर से धक्का देकर अपने घोड़े पर से ज़मीन पर गिरा देता है।
ज़मीन पर गिरने की वजह से काव्या को थोड़ी चोट लगती है, और साथ ही वह अपने ख्यालों की दुनिया से भी बाहर आ जाती है।
"आह!!! मेरी कमर।"
काव्या थोड़ा गुस्से से बोलती है, "बदतमीज़ कहीं के, भला ऐसे भी कोई किसी को धक्का देकर नीचे गिराता है। घोड़ा रोककर आराम से नीचे नहीं उतार सकते थे।"
काव्या की बात सुनकर शौर्य इधर उधर देखता है, फिर काव्या से पूछता है, "क्या तुम यह सब मुझसे कह रही हो?"
काव्या अपने चेहरे पर गुस्से वाली मुस्कुराहट लिए ताना मारते हुए कहती है, "हाँ बिल्कुल। तुम्हीं से बोल रही हूँ। क्या तुम्हें यहाँ हम दोनों के अलावा कोई और भी नज़र आ रहा है?"
शौर्य कहता है, "तुम्हें मुझसे शिकायत नहीं बल्कि मेरा शुक्रगुजा़र होना चाहिए। शायद तुम भूल रही हो कि मैने तुम्हें पानी में गिरने से बचाया।"
काव्या कहती है, "नहीं मै कुछ नहीं भूली, लेकिन शायद तुम्हारी याददाश्त कमज़ोर हो गयी है, इसलिए तो तुम्हें यह याद नहीं कि मै तुम्हारी वजह से ही पानी में गिरने वाली थी।"
शौर्य अपनी गंभीर आवाज़ में कहता है, "क्या तुम जानती भी हो, कि तुम इस वक़्त किस से बात कर रही हो?"
काव्या कहती है, "बात तो ऐसे कर रहे हो जैसे कहीं के शहज़ादे हो। लेकिन अगर हो भी तो क्या? तुम्हारे अंदर अक्ल नाम की चीज़ नहीं है क्या? जो इतनी तंग गलियों में भीड़-भाड़ वाले इलाके में इस तरीके से हवा पे रवा अपना घोड़ा दौड़ा रहे थे? तुम्हारी वजह से लोगों में भगदड़ मच गई। कोई हादसा हो सकता था। किसी को चोट लग सकती थी। क्या तुम्हें इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं है? तुम्हारी वजह से ही मै पानी में गिरने वाली थी। और अब तुम उल्टा मुझसे यह कह रहे हो, कि मै तुम्हारा शुक्रिया अदा करूं। हद होती है बेशर्मी की। बल्कि तुम्हारी वजह से तो मुझे चोट लगी है, तुम्हें तो मुझसे माफी मांगनी चाहिए।"
अपने सामने किसी लड़की को इस तरह बेखौफ बात करते देख शौर्य को बहुत हैरानी होती है। लेकिन काव्या की बातें सुनकर शौर्य को उसपर गुस्सा नहीं आता, बल्कि उल्टा उसे तो इन सब में मज़ा आ रहा था। क्योंकि उसके सामने तो लोगों की ज़ुबान ही नहीं खुलती। लेकिन काव्या तो बेखौफ होकर उससे माफी मांगने के लिए कह रही थी।
शौर्य अपने घोड़े से नीचे उतरता है, और काव्या के नज़दीक आता है। उसके इस तरीके से अपने करीब आने की वजह से काव्या थोड़ी घबराकर धीरे-धीरे अपने कदम पीछे की ओर ले लेती है।
शौर्य अपने चेहरे पर एक शरारती मुस्कुराहट लिए अपने चेहरे को काव्या के नज़दीक झुकाकर कहता है, "अगर तुम वाकई चाहती हो कि मै तुमसे माफी मांगू, तो मै माफी माँग लेता हूँ। लेकिन सोच लो उसके बाद तुम जिंदा नहीं रह पाओगी, तुम्हें मरना होगा।"
काव्या थोड़ी सी घबरा कर अपने मन में सोचती है, "कितना बदतमीज इंसान है। एक तो इसकी वजह से मुझे चोट लगी है, और ऊपर से यह मुझसे माफी मांगने की बजाय पहली मुलाकात में ही मेरे मरने की बातें कर रहा है। कहीं यह कोई गुंडा बदमाश तो नहीं है। काव्या यार तू कहां फंस गई।"
काव्या थोड़ी लड़खड़ाती हुई आवाज़ में अटकते हुए कहती है, "तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हारी इन बातों से मै डर जाऊंगी। बिल्कुल भी नहीं!!! मै तुमसे नहीं डरती। मुझसे माफी मांगे बिना तुम यहां से कहीं नहीं जा सकते। तुम मुझसे माफी माँग रहे हो या नहीं। वरना मै अभी सिपाहियों को बुलाती हूंँ।"
शौर्य कहता है, "तुम्हारी मर्जी़। तुम जिसे चाहो बुला लो, पर जैसा कि मै तुमसे पहले भी कह चुका हूँ, कि मेरे तुमसे माफी मांगने के बाद तुम जिंदा नहीं रह पाओगी। तुम्हें मरना होगा।"
शौर्य की बातें सुनकर काव्या थोड़ी सी सहम जाती है। और अपने मन में सोचती है, "लगता है यह कोई बहुत बड़ा बदमाश है। इसलिए तो इसके आने पर ही लोगों में भगदड़ मच गई थी। काव्या क्यों अपने लिए मुसीबत खड़ी कर रही है। चुपचाप यहां से निकल ले।"
काव्या के यूं खामोश हो जाने पर शौर्य बहुत मज़ाकिया अंदाज़ में उससे कहता है, "लगता है तुम्हें अपनी ज़िंदगी कुछ खास प्यारी नहीं है। शायद तुम जीने से तंग आ चुकी हो। चलो... ठीक है मै तुमसे माफी मांग कर तुम्हारी यह मरने की ख़्वाहिश पूरी कर देता हूंँ।"
इतना कहकर वह काव्या से कुछ कहने ही वाला होता है, कि उससे पहले ही काव्या जल्दी से अपने दोनों हाथों से उसका मुंह कसकर बंद कर देती है। और जल्दी से कहती है, "रुको.... रुको... इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। जाओ मैंने तुम्हें माफ किया।"
आज तक किसी भी लड़की ने शौर्य को नहीं छुआ था। इसलिए अपने चेहरे पर काव्या के हाथ के स्पर्श के एहसास से शौर्य कुछ वक्त के लिए एकदम से फ्रीज़ हो जाता है। लेकिन अगले ही पल वह गुस्से में काव्या के हाथ को पड़कर उसे खुद से दूर करने के लिए ज़ोर से धक्का देता है। जिससे काव्या दोबारा ज़मीन पर गिर जाती है। और शौर्य काव्या से बिना कुछ कहे, यूंही जल्दी से अपने घोड़े पर चढ़कर वहाँ से चला जाता है।
अब वहाँ पर अनोखी भी काव्या के पास आ जाती है, और उसे संभालती है।
ज़मीन पर दोबारा गिराये जाने की वजह से काव्या का गुस्सा तो अब सातवे आसमान पर था। वह गुस्से से खड़ी होती है और चिल्लाते हुए शौर्य को कहती है, "बदतमीज़ कहीं का। खुद को समझता क्या है। मै इसे नहीं छोडूँगी। अरे देखो वह भाग रहा है कोई सिपाहियों को बुलाओ।" और फिर वह ज़ोर ज़ोर से सिपाहियों... सिपाहियों... कह कर चिल्लाने लगती है।
अनोखी काव्या को शांत कराते हुए कहती है, "छोटी मालकिन! छोटी मालकिन! शांत हो जाइये। आप यह क्या कर रही हैं।"
काव्या गुस्से से कहती है, "तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है क्या? वह बदतमीज़ लड़का मुझे गिराकर भाग गया। मै बोल रही हुँ न, कोई सिपाहियों को क्यों नहीं बुलाता? कोई सिपाहियों को बुलाओ उसे गिरफ्तार कराओ।"
अनोखी काव्या को चुप कराते हुए कहती है, "छोटी मालकिन! शांत हो जाइये। क्या आप नहीं जानती कि वह एक राजकुमार है। राजकुमार शौर्य।"
जो काव्या अभी तक इतने गुस्से में चिल्ला रही थी अनोखी की बात सुनकर तो उसकी सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो जाती है। और वह हैरान परेशान सी अपने मन में कहती है, "क्या... एक और राजकुमार। अरे इस राजा के आखिर और कितने बेटे हैं। मै जहाँ भी जाती हूँ, किसी एक से टकरा ही जाती हूँ। तू तो गयी काम से काव्या...।"
रात का समय, अमृता का घर।
काव्या अनोखी के साथ घर वापस तो आ गई थी, लेकिन आज शाम बाज़ार में उसके और शौर्य के बीच जो नोक-झोंक हुई थी, उसे लेकर वह बहुत परेशान थी। घबराहट की वजह से उसने खाना तो दूर, पानी तक नहीं पिया था। वह बस यहां से वहां अपने कमरे में चक्कर लगा रही थी, क्योंकि उसने एक राजकुमार के साथ बदसलूकी की थी, इसलिए उसे इस बात का डर था कि कहीं इस वजह से यहाँ उसके लिए कोई नई मुसीबत न खड़ी हो जाए। यही बात उसे अंदर ही अंदर परेशान कर रही थी। तभी अनोखी काव्या के पास दूध का गिलास लेकर आती है, और उससे पीने के लिए बोलती है। काव्या उसके हाथ से दूध का गिलास लेकर पीछे मेज़ पर रखती है, और उसे अपने पास बिठाकर डरते डरते पूछती है, "अनोखी एक बात बताओ, यह राजकुमार शौर्य असल में कैसे इंसान है? मतलब कि वह ज़्यादा गुस्से वाले तो नहीं है न?"
अनोखी काव्या से कहती है, "छोटी मालकिन! राजकुमार शौर्य बहुत ही क्रूर, निर्दयी और गुस्से वाले हैं। वह अपने किसी भी दुश्मन को जीवित नहीं छोड़ते हैं। किसी की जान लेना तो जैसे उनके लिए बस एक खेल है। उनके गुस्से की वजह से ही वह लोगों में 'मौत के सौदागर' के नाम से मशहूर है। लोगों की तो उनसे नज़रे मिलाने की भी हिम्मत नहीं होती।"
फिर वह काव्या की तरफ़ उत्साह से देखते हुए हँसते हुए कहती है, "पर छोटी मालकिन! आपने तो कमाल ही कर दिया, आपकी हिम्मत की तो दाद देनी चाहिए। आप तो उनकी आँखों में आँखे डालकर सीधा उन्हें माफ़ी मांगने के लिए बोल आई। वाकई में छोटी मालकिन आप कितनी बहादुरी से उनके सामने खड़ी थी।"
काव्या अपनी बेचारी सी सूरत बनाए भीगी बिल्ली बनकर कहती है, "इसे बहादुरी नहीं खुदखुशी कहते हैं अनोखी। अगर मुझे पहले पता होता कि वह राजकुमार इतना ज़्यादा बेरहम है तो मैं कभी उससे नहीं उलझती। क्या यहाँ पर मेरे लिए पहले से कम परेशानियां थी जो मैंने खुद ही एक और खड़ी कर ली।" और वह अपना चेहरा बिल्कुल एक मासूम बच्चे की तरह बनाकर रोने जैसी शक्ल बना लेती है।
अनोखी कहती है, "छोटी मालकिन क्या हुआ? आप ऐसी बातें क्यों कर रही हैं? क्या आपको उनसे डर लग रहा है?"
काव्या अपना सर हाँ में हिलाती है, लेकिन वह मुँह से नहीं बोलती है।
अनोखी उसकी बात समझ नहीं पाती तो वह काव्या से पूछती है, "छोटी मालकिन! मैं समझ नहीं पा रही हूँ, कि आप हाँ कह रही हैं या न।"
काव्या बहुत हल्की आवाज़ में कहती है, "तुम्हें समझने की कोई ज़रूरत नहीं है अनोखी। क्योंकि अब मुझे समझ आ गया है, कि राजकुमार शौर्य मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे। मेरा अंत अब नज़दीक है।"
अनोखी रोते हुए काव्या से कहती है, "छोटी मालकिन! शुभ-शुभ कहिए। आप ऐसी बातें क्यों कर रही है? अगर आपको कुछ हो गया तो फिर मेरा क्या होगा?"
काव्या अनोखी का हाथ पकड़ते हुए बड़ी मासूमियत से उससे कहती है, "अनोखी मेरी बहन, तुम बहुत अच्छी हो। मैं जब से यहाँ आई हूँ, एक तुम ही तो हो जिसके ऊपर मैं आँख बंद करके भरोसा कर सकती हूँ। इसलिए अब मेरी बात बहुत ध्यान से सुनना। अगर मुझे कुछ हो जाए, तो तुम मेरे लिए परेशान मत होना। अपने परिवार के पास वापस चली जाना, और अच्छे से अपनी ज़िंदगी जीना।"
इतना कहकर वह पलट कर अपने पलंग पर पेट के बल लेट जाती है, और रोते हुए अपना चेहरा तकिये से ढक लेती है।
अनोखी कहती है, "ओ हो छोटी मालकिन! आप खामुखा ही इतनी परेशान हो रही है। आपको घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है। राजकुमार शौर्य केवल उत्सव तक के लिए ही यहां पर आए हैं। उत्सव के बाद तो वह इस राज्य से वापस चले जाएंगे।"
उसकी यह बात सुनकर काव्या एकदम से खुशी से उछलते हुए उठती है, और कहती है, "क्या सच में! अगर ऐसा है तो फिर सब कुछ बिल्कुल ठीक है। परेशानी की तो कोई बात ही नहीं है। मुझे बस इतना करना होगा कि जब तक राजकुमार शौर्य यहां पर है, मुझे उनके सामने नहीं आना है। जब मैं उनसे दोबारा मिलूँगी ही नहीं, तो वह मुझे पहचान कर सज़ा कैसे देंगे। यह हुई ना बात।"
फिर वह अनोखी से कहती है, "अनोखी जल्दी से मेरे लिए खाना लेकर आओ। इस वक़्त मेरे पेट में चूहे नहीं बल्कि हाथी कूद रहे हैं। इतनी देर से मैं इसी बात को लेकर इतनी परेशान थी कि खाना तो दूर मैंने पानी तक नहीं पिया। लेकिन जैसा कि तुमने बताया, अब सब कुछ बिल्कुल ठीक है। मुझे इस मसले का हल मिल गया है। मुझे डरना नहीं है, सिर्फ राजकुमार शौर्य से छुपना है।"
अनोखी कहती है, "छोटी मालकिन आपको समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। कुछ देर पहले तो आप इतनी डरी-सहमी हुई थी। और अब देखिए खुशी से उछल रही है। जब से आपको डूबने के बाद होश आया है, तब से आप बिल्कुल बदल गयी हैं। एक अलग ही इंसान बन गयी है। कभी-कभी तो लगता है कि आप मेरी छोटी मालकिन हैं ही नहीं, बल्कि कोई और ही लड़की है, जैसे कि आप किसी अलग ही दुनिया से आई हो।"
उसकी यह बात सुनकर काव्या थोड़ी सी हड़बड़ा सी जाती है और अनोखी से नज़रे चुराते हुए कहती है, "तुम यह कैसी बातें कर रही हो? मैं भला कोई और कैसे हो सकती हूँ। मैं तो तुम्हारी छोटी मालकिन हीं हूं।"
अनोखी अपनी बात सही करते हुए कहती है, "अरे नहीं... नहीं... छोटी मालकिन! आप मुझे गलत समझ रही है। मेरे कहने का यह मतलब नहीं था। मैं तो बस यह कह रही थी कि..." वह अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही काव्या उसकी बात बीच में काटते हुए कहती है, "अरे तुम अभी तक यहीं पर खड़ी हो। मैंने कहा ना मुझे बहुत भूख लग रही है। जाओ और जल्दी से खाना लेकर आओ।"
और उसे कमरे बाहर निकालते हुए कहती है, "मैंने कहा न जाओ यहाँ से जल्दी से, और मेरे लिए खाना लेकर आओ। जल्दी जाओ।"
अनोखी "अच्छा छोटी मालकिन जाती हूँ," कहकर वहां से चली जाती है।
फिर काव्या एक गहरी सांस लेती है और अपने बालों को बांधनी लगती है। तभी उसका हाथ उसके कान के पास जाता है, जिससे उसे पता लगता है कि उसके कान का एक झुमका गायब है।
"अरे यह क्या! मेरा झुमका कहाँ गिर गया।"
वह कमरे में सब जगह झुमके को ढूंढने लगती है, लेकिन वह उसे कहीं नहीं मिलता। फिर वह सोचती है शायद बाज़ार में कहीं गिर गया होगा। चलो छोड़ो जाने दो।
रात का समय, राजमहल के अंदर
महल के अंदर तालाब के पास एक मुंडेर पर शौर्य बैठा हुआ था। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि इस वक़्त वह बहुत ज़्यादा उदास है। और भला वह उदास हो भी क्यों ना। वह महारानी से मिलने के लिए दोबारा से उनके पास गया था, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी महारानी ने उससे मिलने से मना कर दिया था, जिसकी वजह से वह बहुत दुखी था। इस समय तालाब का पानी जितना शांत था, उसके अंदर अपने सवालों को लेकर उतना ही शोर था।
उसके हाथ में एक बहुत खूबसूरत सा ब्रोच था, जो उसने आज ही बाज़ार से खरीदा था। वह इसे अपनी माँ को उनसे मिलने पर तोहफ़े के तौर पर देना चाहता था। लेकिन उसकी माँ तो उससे मिलना ही नहीं चाहती थी। यही बात सोचकर उसके मन में उदासी थी। उसकी खामोश निगाहें सिर्फ चाँद को एकटक देखे जा रही थी, मानो जैसे वह चाँद से कह रही हो कि जिस तरह हज़ारों सितारों के बीच तुम बिल्कुल अकेले हो वैसे ही यहाँ पर सब के साथ होते हुए भी मैं भी एकदम तन्हा ही हूँ।
तभी वहाँ महामंत्री जी आ जाते हैं। शौर्य इस वक़्त इतना दुखी था और अपने ख्यालों में इतना खोया हुआ था कि उसे वहाँ पर महामंत्री के आने का एहसास तक नहीं होता है। महामंत्री जी शौर्य की उदासी को दूर से ही भाँप लेते हैं और उसके पास आकर उससे पूछते हैं, "राजकुमार शौर्य, आप ठीक तो हैं न? इतनी रात गए आप यहाँ पर क्या कर रहे हैं? आप अब तक सोए क्यों नहीं?"
महामंत्री की बात सुनकर शौर्य जल्दी से अपने हाथ में थामें हुए ब्रोच को अपनी मुट्ठी में बंद करके छुपा लेता है, ताकि किसी को भी उसके दर्द का एहसास न हो। फिर पलट कर उन्हें देखता है और कहता है, "बस यूँ ही, मुझे नींद नहीं आ रही थी, कमरे के अंदर मेरा दम घुट रहा था। इसलिए मैं यहाँ बाहर ठंडी हवा में टहलने आ गया।" और वह फिर से वैसे ही चाँद की ओर देखने लगता है।
महामंत्री जी उस उदासी भरे माहौल से शौर्य का ध्यान हटाने के लिए थोड़े से शरारती अंदाज़ में उससे पूछते हैं, "अक्सर लोग चाँद में उस इंसान का चेहरा ढूंढते हैं जिसे वह सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं। आप इस चाँद में किसका चेहरा ढूंढ रहे हैं राजकुमार? क्या आपके लिए भी कोई इस चाँद जितना ही खास है?"
शौर्य महामंत्री की ओर देखकर कहता है, "इस दुनिया में सिर्फ एक प्यार ही ऐसी चीज़ है जिसे मैं चाह कर भी नहीं पा सकता। बचपन से ही मैं अपने माता-पिता के प्यार के लिए तरसा हूँ और मेरा यह इंतज़ार आज तक खत्म नहीं हुआ। मेरे लिए किसी का प्यार पाना बिल्कुल ऐसा ही है जैसा कि पानी में इस चाँद के अक्स का होना जिसे देखकर हमें लगता है कि हम चाँद को छू सकते हैं, पर हकीकत में तो यह सिर्फ चाँद की परछाई ही होती है, असल चाँद नहीं। लेकिन मेरे हिस्से में तो किसी के प्यार की परछाई भी नहीं है।"
उसकी यह बात सुनकर महामंत्री को भी बहुत दुख होता है। लेकिन फिर भी वह शौर्य को हौंसला देते हुए कहते हैं, "राजकुमार नियति का खेल ही कुछ ऐसा है। इस दुनिया में सबको सब कुछ नहीं मिलता, किसी को ज़मीं, तो किसी को आसमां नहीं मिलता। खैर आप इन सब बातों को छोड़िए और यह बताइए कि अब अपने आगे क्या सोचा है?"
उनकी बात सुनकर शौर्य उन्हें हैरानी से देखकर कहता है, "मैं आपकी बात समझा नहीं महामंत्री जी। आप किस बारे में बात कर रहें हैं?"
महामंत्री कहते हैं, "मैंने दोपहर आपसे पूछा था कि आप इस महल में रुकना चाहते हैं या नहीं। अगर आप इस महल से वापस नहीं जाना चाहते हैं तो आपको यहाँ रुकने के लिए कोई ना कोई वजह ढूंढनी होगी।"
शौर्य कहता है, "आप तो जानते हैं महामंत्री जी मुझे यहाँ पर कोई भी पसंद नही करता है। मेरे यहाँ रुकने के फैसले में कोई मेरा साथ नहीं देगा। यहाँ तक कि मेरे अपने पिता यानी कि महाराज भी मुझे वापस भेजने का ही फैसला करेंगे।"
महामंत्री जी कहते हैं, "तो फिर आप कुछ ऐसा कीजिये जिससे महाराज भी अपना फैसला बदलने पर मजबूर हो जाए।"
फिर वह शौर्य के कान के पास जाकर उससे धीरे से कहते हैं, "राजकुमार सब कुछ आपकी आँखों के सामने ही है। बस जो चीज़ें लोगों को खुली आँखों से नहीं दिखाई देती हैं, आपको उन्हें अपनी बंद आँखों से देखना होगा।"
अब शौर्य को महामन्त्री की कुछ-कुछ बातें समझ आ रही थीं।
तभी महामंत्री की नज़र शौर्य के कपड़ों में अटके हुए काव्या के झुमके पर पड़ती है और वह उस झुमके को उसके कपड़ों से निकालते हुए उससे पूछते हैं, "राजकुमार शौर्य यह क्या? आपके कपड़ों पर यह स्त्रियों का आभूषण क्या कर रहा है?" और फिर वह शौर्य को छेड़ते हुए कहते हैं, "लगता है आपने यहाँ रुकने के लिए कोई खूबसूरत वजह ढूँढ ली है राजकुमार शौर्य?" इतना कहकर वह उस झुमके को शौर्य के हाथ में पकड़ा कर वहाँ से चले जाते हैं।
उनकी यह बातें सुनकर तो शौर्य थोड़ा सा असहज हो जाता है, क्योंकि किसी लड़की का झुमका उसके कपड़ों पर अटका था, तो लोग तो इस बात का कुछ और ही मतलब समझने लगेंगे न।
उस झुमके को देखकर शौर्य को याद आता है कि जब उसने उस लड़की को पानी में गिरने से बचाया था तभी वह झुमका उसके कपड़ों में अटक गया होगा। और फिर उसको काव्या की बातें याद आने लगती है कि कैसे काव्या शौर्य को खुद से माफ़ी माँगने के लिए कह रही थी। और वह गुस्से से अपने मन में सोचता है, "आखिर कौन थी वह लड़की, जो मुझसे इतने बेखौफ तरीके से बात कर रही थी? आखिर उस वक़्त मैंने उससे कुछ कहा क्यों नहीं? अगर अगली बार वह लड़की मेरे सामने आई तो मैं उसे ज़िंदा नहीं छोडूंगा। उसकी वजह से मुझे महामंत्री जी के सामने शर्मिंदा होना पड़ा।"
अब काव्या कैसे बचेगी शौर्य के गुस्से से। और आखिर वह कौन सी वजह है जिसके चलते महामंत्री शौर्य को महल में रुकने का बोल रहे है। यह सब जानने के लिए तो पढ़ना होगा आपको इसका अगला भाग। मिलते हैं अगले भाग में।
अगले दिन सुबह काव्या अपने कमरे के बाहर गलियारे में बैठी आराम से चाय की चुस्कियां का मज़ा ले रही थी, तभी अनोखी उसके पास कुछ कपड़े लेकर आती है और उससे पूछती है, "छोटी मालकिन यह देखिए, बताइए कि आज आप इनमें से कौन से कपड़े पहनेंगी?"
काव्या उन कपड़ों को देखकर कहती है, "अनोखी क्या हम कहीं शादी में जा रहे हैं? तुम्हें इससे ज़्यादा भारी कपड़े नहीं मिले थे, मुझे लाकर पहनने के लिए देने के लिए?"
अनोखी उन कपड़ों को देखकर काव्या से कहती है, "छोटी मालकिन! ठीक ही तो है यह कपड़े। आप तो ऐसे ही कपड़े पहनती थी ना।"
काव्या कहती है, "पहनती होंगी। लेकिन वह पुरानी बात थी। अब ऐसा नहीं है। एक तो वैसे ही यहां पर इतनी गर्मी है, ऊपर से तुम मेरे लिए घर में पहनने के लिए इतने भारी भरकम कपड़े लेकर आई हो। इन्हें पहनकर चलना तो दूर, मैं ठीक से खड़ी भी नहीं हो पाऊंगी। इन्हें वापस अलमारी में ही रख दो, और अगर कोई हल्के कपड़े हो तो मुझे पहनने के लिए ला कर दो।"
अनोखी कहती है, "माफ कीजिएगा छोटी मालकिन! पर आपके पास तो सिर्फ ऐसे ही कपड़े हैं।" इतना कहकर वह काव्या को दोबारा से उन कपड़ो में से कोई एक चुनने का इशारा करती है।
काव्या बेदिली से उन कपड़ों की तरफ देखती है, लेकिन तभी उसकी नज़र अनोखी के कपड़ों पर पड़ती है। उन्हें देखकर काव्या की आंखों में एक अलग ही चमक आ जाती है। और वह अनोखी से कहती है, "अरे देखो! यह है ना हल्के कपड़े, जो तुम पहने हो। एक काम करो मुझे तुम अपने ही कपड़े पहनने के लिए लाकर दे दो।"
अनोखी काव्या से कहती है, "छोटी मालकिन! आप यह कैसी बातें कर रहीं हैं। मैं आपकी नौकर हूँ, आप भला मेरे कपड़े कैसे पहन सकती हैं। ऐसे कपड़े केवल सेवकों के लिए होते हैं, आप ऐसे कपड़े नहीं पहन सकती।"
काव्या कहती है, "देखो मैं यह ऊँच-नीच जैसी चीज़ों को नहीं मानती। यह इस समाज के द्वारा अपनी सहूलियत के लिए बनाये हुए दकियानुसी नियम है। मेरी नज़र में सभी इंसान एक बराबर है। तो फिर वह एक दूसरे की चीज़ों को क्यों नहीं इस्तेमाल कर सकते।"
अनोखी दुखी मन से कहती है, "छोटी मालकिन, आपका मन बहुत साफ है, इसलिए सिर्फ़ आप ही ऐसा सोचती हैं। लेकिन जिस समाज में हम रहते हैं, हमें ना चाहते हुए भी उसके ही नियम मानने पड़ते है। फिर चाहे वह हमारे हक में 'बेहतर' हो या 'बद्तर'।"
अनोखी की बातें सुनकर काव्या को भी बहुत अफ़सोस होता है। वह अपने मन में सोचती है, "अनोखी पूरी तरीक़े से गलत तो नहीं है। हालांकि मैं खुद यहां जिस समय से आई हूँ, वहाँ पर हम खुद को मॉडर्न और सिविलाइज़ड कहते हैं। लेकिन सच तो येही है कि मेरे समय में भी समाज में फ़ैली हुई यह ऊँच-नीच की दीवार अभी तक पूरी तरीके से खत्म नहीं हुई है। तो यह समय तो मेरी दुनिया से काफी पीछे है। फ़िर भला मैं यहाँ पर इन सबसे इस बात की उम्मीद कैसे कर सकती हूँ कि यह इन दकीयानुसी विचार धारा को छोड़ दे।"
काव्या अनोखी का हाथ पकड़ कर उसे दिलासा देते हुए कहती है, "अनोखी देखना एक समय ऐसा भी आयेगा, जब यह समाज खुद ही अपने बनाए हुए इन बेकार नियमों को तोड़ देगा। वह एक ऐसी दुनिया होगी, जहां पर लोगों के बीच जाती, धर्म, अमीरी-गरीबी और यहां तक के स्त्री और पुरुषो के बीच भी कोई भेद भाव नहीं होगा। सब लोग एक समान होंगे।"
अनोखी कहती है, "हाँ-हाँ छोटी मालकिन, बिल्कुल! मुझे आप पर पूरा भरोसा है। लेकिन फिलहाल अभी आप जल्दी से तैयार हो जाइए। नहीं तो मेरी शामत आ जाएगी।"
इतना कहते हुए वह काव्या को उसके कमरे की ओर धकेलती हुई अंदर ले जाती है, और अपनी मर्जी़ से ही एक वस्त्र चुनकर उसके पहनने के लिए रख देती है और बाहर चली जाती है।
उन कपड़ों को देखकर काव्या कहती है, "क्या मुसीबत है? मुझे आज फिर से यह फैंसी ड्रेस कंपटीशन वाले कपड़े ही पहने पड़ेगे क्या?"
फिर वह उन्हें खोलकर देखती है और कहती है, "ओह नो यह लहंगा है या सर्कस का तंबू। इसमें तो मेरी जैसी 10 काव्या समा जाएगी। कुछ तो करना पड़ेगा। चाहे कुछ भी हो जाए, आज तो मैं यह कपड़े बिल्कुल भी नहीं पहनूँगी।"
फिर वह अपने कमरे की खिड़की के बाहर देखते हुए खुद से कहती है, "अगर मेरे पास घर में सिंपल कपड़े नहीं है तो क्या हुआ, बाहर बाज़ार में तो मिल ही जाएंगे।" और वह उन कपड़ों को वहीं पर छोड़कर खिड़की के रास्ते घर से बाहर निकल जाती है।
काव्या घर से बाहर निकल तो आई थी, लेकिन उसे इस बात का डर था के कहीं कोई उसे पहचान ना ले। इसलिए वह अपने चेहरे को एक कपड़े के नकाब से ढक लेती है, ताकि वह बाज़ार में अमृता की पहचान के किसी शख्स से ना टकरा जाए।
काव्या बाज़ार में कपड़े की दुकान पर अपने लिए कुछ कपड़े खरीदती है। तभी उसके कानों में बांसुरी की धुन पड़ती है। यह संगीत की धुन इतनी मधुर और सम्मोहक थी कि काव्या इसमें खो सी जाती है और उस आवाज़ का पीछा करते हुए वह पीछे जंगल में चली जाती है।
इस धुन को बजाने वाला इंसान कोई और नहीं बल्कि राजकुमार आदित्य था। जैसा कि मैंने आपको अपने पिछले भाग में बताया था कि आदित्य को संगीत से बेहद लगाव है और वह गाना भी बहुत अच्छा गाता है। लेकिन उसे अपने इस शौक को सबसे छुपा कर रखना पड़ता था, क्योंकि वह एक राजकुमार था, और उस समय की सोच के मुताबिक एक राजकुमार की संगीत में नहीं बल्कि राजकीय कार्यों में दिलचस्पी होनी चाहिए थी। इसी वजह से जब कभी उसका मन सुकून की तलाश में होता, तो वह यूं ही महल के बाहर किसी सुनसान जगह पर जाकर अपने संगीत का अभ्यास करता था।
अब काव्या उस आवाज़ का पीछा करते हुए, आदित्य के पास पहुंच जाती है। आदित्य भी अपने संगीत में इस कदर खोया हुआ था कि बाँसुरी बजाते हुए उसने अपनी आँखे बंद कर रखी थी।
उस संगीत की धुन इतनी मीठी और सम्मोहक थी कि काव्या कब उसमें इतना खो गयी कि उसके पाँव अपने आप ही थिरकने लगे उसे पता ही नहीं चला। काव्या बस उस धुन में खोई, अपनी आँखे बन्द किये उसकी ताल से ताल मिलाये मदहोश सी नृत्य करने लगती है।
अब उसके कदमों की आहट की आवाज़ से आदित्य अपनी आंखें खोलता है, तो अपने सामने किसी को युं इस तरह अपने संगीत में खोकर नाचते हुए देखकर उसको भी बहुत अच्छा लगता है और अब वह और भी खुशी से अपनी धुन बजाने लगता है।
नृत्य करते हुए अचानक से काव्या का पैर उसके कपड़ों में उलझता है, और वह बस गिरने ही वाली होती है, कि उससे पहले ही आदित्य उसके पास आकर, एकदम से उसका हाथ थाम लेता है, और उसे गिरने से बचा लेता है।
अब काव्या भी अपनी आँखे खोलती है। काव्या उस संगीत में इतना खोई हुई थी कि अभी तक उसने आदित्य का चेहरा भी नहीं देखा था। पहली बार उन दोनों की नज़रे एक दूसरे से मिलती हैं। किसी अंजान इंसान को अपने इतना करीब देखकर काव्या की साँसे थम सी जाती हैं। वह समझ नहीं पा रही थी कि वह यहाँ कैसे पहुँच गयी।
तभी हवा के एक तेज़ झोंके से काव्या के चेहरे पर लगा हुआ नक़ाब भी हट जाता है और अब आदित्य को भी काव्या का चेहरा नज़र आता है। वह जब उसे देखता है, तो बस देखते ही रह जाता है। आदित्य का दिल इतनी ज़ोर से धड़कने लगता है कि उसकी आवाज़ उसे साफ सुनाई दे रही थी। ऐसा नहीं है की आदित्य ने आज से पहले कभी इतनी खूबसूरत लड़की को नहीं देखा था, लेकिन काव्या की आंखों की चमक और उसकी चेहरे की मासूमियत उसे बस उसे ही देखे जाने के लिए मजबूर कर रही थी।
एक पल के लिए उन दोनों के लिए वक्त जैसे थम सा गया। समां में चारों ओर सिर्फ़ ख़ामोशी थी। जंगल के उस सन्नाटे में सिर्फ़ हवा के चलने की साय.. साय... की आवाज़ ही आ रही थी। तभी पेड़ों के ऊपर लगे हुए फूल बारिश की बूँदों की तरह उन दोनों पर गिरने लगते हैं, जैसे मानो वह भी उन दोंनों के इस पल के गवाह बन रहें हो और यह सब किसी रोमांटिक मूवी के सीन जैसा ही लग रहा था।
क्या इनकी यह मुलाकात है सिर्फ़ एक "इत्तेफाक", या है यह एक खूबसूरत सफ़र का "आगाज़"।
काव्या बस डरी, सहमी, घबराई हुई आदित्य की आँखों में ही देखे जा रही थी। फिर वह जल्दी से अपनी नज़रें नीचे झुका लेती है और अपना हाथ आदित्य से छुड़ाने के लिए पीछे की ओर खींचती है।
अब आदित्य को भी इस बात का एहसास होता है, कि उसका यूँ किसी लड़की के करीब आकर, उसका इस तरह से हाथ थाम लेना, उस लड़की को असहज महसूस कराता होगा। इसलिए वह जल्दी से काव्या का हाथ छोड़कर उससे दूर हट जाता है, और अपनी नज़रें चुराते हुए काव्या से कहता है, "माफ़ कीजिएगा। आप गिरने वाली थी, इसलिए आपको बचाने के लिए मुझे इस तरह से आपका हाथ थामना पड़ा।"
काव्या अपने बालों को समेटकर कान के पीछे करते हुए, थोड़ी सी शर्माते हुए कहती है, "नहीं आप माफ़ी मत माँगिए। इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। मैं ही आपके संगीत में इस कदर खो गई, कि कब मेरे पैर खुद ही थिरकने लगे, मुझे पता ही नहीं चला।"
"वाकई में आप बहुत अच्छी बांसुरी बजा लेते हैं। आपकी धुन में एक अलग सा ही सुकून था। जिसे सुनकर मैं तो क्या, कोई भी इंसान सम्मोहित हो सकता है। तो फिर देखा जाए तो इसमें पूरी तरीके से गलती मेरी भी तो नहीं है ना।"
इतना कहकर वह दोनों हँसने लगते हैं।
आदित्य काव्या से अपने संगीत की तारीफ सुनकर बहुत खुश होता है और मुस्कुराते हुए उससे कहता है, "तारीफ़ के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। वैसे आप भी बहुत सुंदर नृत्य कर लेती हैं।"
काव्या थोड़ा शर्माते हुए कहती है, "नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो बस एक नौसिखिया ही हूँ।"
फिर वह दोनों दोबारा से मुस्कुराते हुए एक दूसरे की तरफ देखते हैं।
आदित्य उससे पूछता है, "वैसे आप हैं कौन? क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ?"
काव्या मुस्कुरा कर कहती है, "मेरा नाम काव्या है।"
और फिर वह आदित्य से पूछती है, "और आप? आपका नाम क्या है?"
काव्या की बात सुनकर आदित्य को थोड़ी सी हैरानी होती है, क्योंकि पूरे राज्य में वह बहुत प्रसिद्ध था। तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है, कि काव्या उसके बारे में नहीं जानती हो। उसके इस तरह खामोश रहने पर काव्या दोबारा उससे पूछती है, "क्या हुआ? आप ख़ामोश क्यों हो गए?"
आदित्य काव्या को अपने बारे में कुछ बताता, इससे पहले ही काव्या एकदम से उससे कहती है, "ओह! अच्छा मैं समझ गयी। कहीं आप वोही तो नहीं हैं।"
आदित्य हैरानी से काव्या से कहता है, "जी वह कौन...?"
काव्या कहती है, "अरे वही!!! मुझे आज ही अनोखी ने बताया था, कि उत्सव के लिए पड़ोसी राज्य से एक बहुत बड़े संगीतकार यहाँ आए हैं। तो कहीं आप वही संगीतकार तो नहीं हैं। सच में आपका संगीत इतना अच्छा है, कि देखियेगा उत्सव के दिन आपका संगीत सुनकर सब सिर्फ आपके ही गुणगान गाएंगे।"
काव्या की बात सुनकर आदित्य बस उसे एकटक देखे ही जा रहा था, लेकिन वह अभी भी ख़ामोश ही रहता है। वह अपने मन में सोचता है, "लगता है यह सच में नहीं जानती कि मैं एक राजकुमार हूँ। इसलिए तो मुझसे इतना खुलकर बातें कर रही है। क्या करूँ? क्या मैं अभी इसे अपनी सच्चाई बता दूँ? नहीं.. नहीं.. अगर मैंने अभी इसे सच बता दिया कि मैं एक राजकुमार हूं, तो शायद कहीं यह घबराकर यहां से चली न जाए। न जाने क्यों इसके साथ मुझे कुछ अलग सा महसूस हो रहा है, जो आज से पहले मैंने कभी किसी लड़की के लिए महसूस नहीं किया।"
इसलिए वह अभी काव्या को अपने बारे में सच नहीं बताने का फैसला करता है, और अपने बारे में काव्या की इस गलतफहमी को दूर नहीं करता है।
अब काव्या कहती है, "अच्छा मुझे अब देर हो रही है। ठीक है तो फिर उत्सव के लिए मेरी तरफ़ से आपको ढेर सारी शुभकामनाएं। फिलहाल काफी देर हो चुकी है। मुझे अब चलना चाहिए।"
इतना कहकर वह वहाँ से जाने के लिए पीछे मुड़ती है, तभी अचानक से जंगल में जंगली जानवरों की गुर्राने की आवाज़ें आने लगती है। उन्हें सुनकर तो डर के मारे काव्या के चेहरे का रंग ही उड़ जाता है।
काव्या की ऐसी हालत देखकर आदित्य उससे पूछता है, "क्या हुआ? आप ठीक तो है न?"
हालांकि काव्या इस समय डरी हुई थी, लेकिन क्योंकि वह अपने इस डर को किसी के सामने ज़ाहिर नहीं करना चाहती थी, इसलिए वह उसके सामने नॉर्मल होने की एक्टिंग करती है और हँसते हुए कहती है, "नहीं...नहीं... कुछ नहीं। कुछ भी तो नहीं हुआ। सब कुछ बिल्कुल ठीक है।"
तभी दोबारा से जानवरों के चीखने की आवाज़ आती है, जिससे काव्या की यह बनावटी हंसी एकदम से गायब हो जाती है। इस समय काव्या के अल्फ़ाज़ उसके हालात का बिल्कुल भी साथ नहीं दे रहे थे, क्योंकि अंदर से तो वह डरी सहमी सिर्फ़ यही सोच रही थी, कि आखिर वह यहाँ से अकेले बाहर कैसे जायेगी।
आदित्य समझ जाता है, कि काव्या को जंगल से अकेले वापस जाने में डर लग रहा है, लेकिन वह यह बात उसके सामने ज़ाहिर नहीं करना चाहती। इसलिए तो वह अपनी मुस्कुराहट के पीछे अपना डर छुपा रही है।
वह काव्या को इसके लिए शर्मिंदा नहीं करना चाहता था, इसलिए वह खुद मुस्कुराकर उसके पास आता है और उससे कहता है, "आप तो जानती हैं न, कि मैं अभी-अभी इस राज्य में आया हूंँ। इसलिए अगर मैं अकेले यहाँ से वापस महल जाऊंगा, तो कहीं जंगल में भटक न जाऊँ। तो फिर क्या आप मुझे भी यहाँ से अपने साथ लेकर चल सकती हैं।"
अब काव्या की जान में जान आती है और वह खुशी से कहती है, "हाँ... हाँ... क्यों नहीं। एक से भले दो। चलिए साथ ही चलते हैं।"
आदित्य काव्या के साथ चलने लगता है और वह पीछे मुड़कर अपने अंगरक्षक को इशारे से उनसे थोड़ा पीछे रहकर चलने के लिए कहता है, ताकि काव्या को उसकी सच्चाई का पता ना चले।
रास्ते में चलते हुए काव्या आदित्य से बहुत सारी बातें करती है और उसे एक परदेसी समझ कर बड़े ही एक्साइटमेंट से अपने राज्य की कुछ चीज़ों के बारे में भी बताने लगती है, जिनके बारे में उसे वहाँ अनोखी से पता चला था, जैसे कि अक्सर लोग करते हैं। काव्या की बातें आदित्य को बहुत अच्छी लग रही थी, इसलिए वह सिर्फ़ एकटक उसको ही देखे जा रहा था। काव्या की बातें और उसकी मुस्कुराहट आदित्य को उससे एक अलग सा जुड़ाव महसूस करा रही थी, जैसे उनके बीच कोई गहरा नाता हो।
कुछ देर बाद वह दोनों जंगल के बाहर मुख्य मार्ग पर पहुँच जाते हैं। काव्या उससे कहती है, "लीजिए आपकी मंजिल तो आ गई। अब यहां से आप सीधे जाएंगे, तो आसानी से महल पहुँच जाएंगे। मुझे बाजार में थोड़ा काम है, इसलिए मैं अभी चलती हूंँ।"
आदित्य अभी काव्या को जाने नहीं देना चाहता था। वह उसके साथ अभी कुछ और वक़्त बिताना चाहता था, उसे और समझना चाहता था। लेकिन आखिर वह उसे रोके तो रोके कैसे।
आदित्य अभी काव्या के साथ थोड़ा और वक़्त बिताना चाहता था। इसलिए वह उससे कहता है, "अरे कितना अजीब इत्तेफाक है, मुझे भी बाज़ार से कुछ ज़रूरी सामान लेना था। तो क्या मैं भी आपके साथ बाज़ार चल सकता हूँ? इससे आपको कोई ऐतराज़ तो नहीं होगा?"
काव्या कहती है, "हाँ क्यों नहीं। इसमें भला ऐतराज़ करने जैसी क्या बात है।" फिर वह आदित्य को थोड़ा डराते हुए कहती है, "वैसे भी आपका मेरे साथ ही बाज़ार चलना ज़्यादा ठीक रहेगा। आपको पता है इस राज्य के बाज़ारों में बहुत सारे ठग हैं। वह तो आपको परदेसी समझ कर लूट ही लेंगे।"
काव्या की यह ठग वाली बात सुनकर आदित्य हैरानी से उससे कहता है, "आप यह क्या कह रही हैं? ठग और यहाँ इस राज्य में। मैंने तो सुना है यहाँ पर लोग बहुत ईमानदारी से अपना व्यापार करते हैं।"
काव्या थोड़ा बेज़ारी से कहती है, "हाँ हाँ बिल्कुल! यहाँ के दुकानदार तो इतने ईमानदार हैं, कि न जाने कब वह परियों की जादुई कहानी सुनाकर आपको ठग लेंगे, और आपको पता भी नहीं चलेगा।"
उसकी बात सुनकर आदित्य हँसने लगता है।
आदित्य को इस तरह से हंसते हुए देख काव्या अपनी आँखें बड़ी करके कहती है, "आपको लगता है मैं झूठ बोल रही हूँ? अरे एक ठग की तो मैंने ही अच्छे से खबर लेकर उसे बिल्कुल सीधा कर दिया था।"
आदित्य हँसते हुए कहता है, "नहीं वह बात नहीं है, मैं तो बस..."
उसके बात पूरी करने से पहले ही काव्या एकदम से कहती है, "आपको मुझ पर यक़ीन नहीं है न, तो फिर आप खुद ही मेरे साथ बाज़ार चलकर अपनी आँखों से ही देख लीजिये, कि कैसे वह टेड़ा दुकानदार एकदम सीधा हो गया।" और वह आदित्य का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ बाज़ार में ले जाने लगती है। आदित्य भी अपनी सुध बुद् खोये, उसका हाथ थामे उसके साथ-साथ ही चलने लगता है।
बाज़ार में पहुँच कर काव्या उसका हाथ छोड़कर उस दुकानदार की दुकान ढूँढने लगती है। इसी बीच आदित्य भी लोगों से अपनी पहचान छुपाने के लिए पास में रखी हुई एक पगड़ी पहन लेता है और कपड़े से अपना चेहरा थोड़ा सा ढक लेता है, जिससे वह लोगों की नज़रों में न आये।
काव्या को वह मोटा दुकानदार दिखाई देता है और अब काव्या फिर से आदित्य का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ उस मोटे दुकानदार की दुकान में ले जाती है।
उस मोटे दुकानदार की दुकान में पहुँच कर काव्या मुस्कुराते हुए उससे पूछती है, "ओह मोटे भाई साहब कैसे हैं आप?"
काव्या को दोबारा अपनी दुकान में देखकर उस मोटे दुकानदार के तो पसीने ही छूट जाते हैं और वह अपनी डरी हुई आवाज़ में कहता है, "अरे जादूगरनी साहिबा, आप.... आप फिर से यहाँ क्यों आ गयी? जिस दिन से आपने मुझे समझाया है कि अपना काम झूठ बोलकर नहीं बल्कि ईमानदारी से करूँ, उस दिन से मैने कोई धोकेबाज़ी वाला काम नहीं किया है। आप चाहे तो यहाँ पर किसी से भी पूछ लीजिये।"
काव्या अपने चेहरे पर जीत की मुस्कान लिए आदित्य की तरफ़ ऐसे देखती है, जैसे मानो वह अपनी आँखों से ही उससे यह कह रही हो, "कि देखा मैने कहा था न।"
आदित्य भी सिर्फ़ अपनी आँखो से ही काव्या को इशारा करते हुए कहता है, "सच में, मान गए आपको तो।"
अब काव्या उस दुकानदार से कहती है, "आप घबराइये नहीं। मैं तो बस यूं ही यहां से गुज़र रही थी, तो सोचा आपका हाल-चाल पूँछ लूं। मुझे आप पर पूरा भरोसा है, कि अब आप दोबारा परियों की कहानी सुना कर लोगों को बेवकूफ नहीं बनाएंगे।"
फिर वह वहीं पास में पड़े हुए एक चिराग को अपने हाथ में उठाकर, उस दुकानदार को दिखाकर उसे धमकाते हुए कहती है, "लेकिन अगर मुझे पता चला कि आप फिर से वही हेरा-फेरी वाला काम कर रहे हो तो फिर, आप तो जानते ही हो ना कि मै इंसानों को गायब करके चिराग में बंद कर देती हूं।"
वह दुकानदार डरते हुए कहता है, "हाँ- हाँ बिल्कुल, जादूगरनी साहिबा। मैं आपकी बात अच्छे से समझ गया। आप फिक्र मत कीजिए। आपको शिकायत का बिल्कुल भी मौका नहीं मिलेगा।"
काव्या चिराग को साइड में रखकर उस दुकानदार से कहती है, "अच्छी बात है। ऐसा ही होना चाहिए।" फिर वह मुस्कुराती हुई आदित्य के साथ वहां से चली जाती है।
काव्या के वहाँ से जाने के बाद अब वह दुकानदार चैन की सांस लेता है और उस चिराग की ओर देखते हुए, अपने नौकर को बुलाकर उसे डांटते हुए कहता है, "अबे सुन! मैने तुझसे कहा था ना कि दुकान में से सारे चिराग निकालकर कहीं दूर फेंक आ। तो फिर यह वाला चिराग यहां पर कैसे रह गया। क्या तू यह चाहता है कि मैं चिराग का जिन्न बन जाऊं और तुझे मुझसे छुटकारा मिल जाए। अभी के अभी इसे उठा और यहां से कहीं दूर फेंक कर आ। चल जल्दी जा।"
काव्या आदित्य के साथ बाहर आकर बहुत ज़्यादा हंसती है और उससे कहती है, "आपने देखा ना वह मोटा दुकानदार कैसे डर रहा था।"
आदित्य काव्या से कहता है, "मान गए आपको तो। मैं तो आपको बहुत सीधी सादी लड़की समझ रहा था, पर आप तो बहुत ज़्यादा ही खतरनाक निकली। अब तो मुझे भी आपसे डर लग रहा है।" फिर वह बहुत ही जिज्ञासा से काव्या से पूछता है, "वैसे वह दुकानदार आपको जादूगरनी क्यों कह रहा था? क्या आप सचमुच की कोई जादूगरनी है? आपसे तो बच के रहना पड़ेगा।"
काव्या हंसते हुए कहती है, "नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मैं कोई जादूगरनी नहीं हूँ। वह तो बस मैने उस दुकानदार को सबक सिखाने के लिए एक छोटा सा नाटक किया था, जिसकी वजह से ही तो वह धोखेबाज़ इंसान ईमानदार बन गया है।"
आदित्य काव्या से पूछता है, "पर आपने आखिर ऐसा किया क्या था? जिससे वह दुकानदार आपको देखते ही इतना घबरा गया।"
काव्या कहती है, "वह एक लंबी कहानी है, फिर कभी और फुर्सत में बताऊंगी। फिलहाल आपको मुझसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। बस इतना समझ लीजिये, कि मै अच्छो के साथ अच्छी हूं और बुरो के साथ भी.....अच्छी ही हूं।"
आदित्य कहता है, "आप शायद कुछ गलत बोल गई। आपका मतलब है, अच्छो के साथ अच्छी और बुरो के साथ बुरी।"
काव्या कहती है नहीं, "आपने बिल्कुल सही सुना! मैने यही कहा है, 'कि मै अच्छो के साथ अच्छी हूं और बुरो के साथ भी अच्छी ही हूँ।"
काव्या की बात सुनकर आदित्य उसे हैरानी से देखने लगता है। इसलिए काव्या अपनी कही हुई बात के पीछे की वजह बताते हुए उससे कहती है, "अगर मै बुरे लोगों के साथ खुद भी बुरी बन जाऊंगी, तो भला मुझ में और उन लोगों में क्या फर्क रह जाएगा। बुराई को बुराई से नहीं बल्कि अच्छाई से ही जीता जाता है और नफरत को मोहब्बत से।"
"वैसे भी लोग बुरे नहीं होते हैं, सिर्फ उनके काम बुरे होते हैं। अगर हम उन लोगों से उनके बुरे कामों को अलग कर दें तो वह भी अच्छे ही इंसान बन जाएंगे।"
काव्या की सोच और उसकी बातों को सुनकर आदित्य एकदम मन्त्र मुग्ध हो गया था और वह एकटक बस उसे ही देखे जा रहा था। फिर वह एकदम से उससे कहता है, "सच में! आप बातें तो बहुत अच्छी कर लेती है।"
काव्या कहती है, "मै तो सिर्फ सच कहती हूं, अच्छी अपने आप ही लग जाती है।"
यह सुनकर आदित्य फिर से उसकी ओर वैसे ही देखने लगता है। काव्या भी उसकी ओर देखती है। आदित्य को अपनी ओर इस तरह से देखता देख काव्या थोड़ी अनकंफरटेबल हो जाती है इसलिए वह उसका ध्यान हटाने के लिए उससे पूछती है, "अच्छा वह सब छोड़िए। आप यह तो बताइए कि आपको यहाँ पर खरीदना क्या था। चलिए मै आपकी मदद करती हूं।"
अब आदित्य को याद आता है, कि वह तो काव्या के साथ यहाँ पर यही बोलकर आया था कि उसे बाज़ार से कुछ खरीदना है, पर असल में तो उसे कुछ चाहिए ही नहीं था। उसने यह बहाना तो सिर्फ़ काव्या के साथ थोड़ा वक़्त बिताने के लिए किया था। इसलिए वह थोड़ा सा हड़बड़ा जाता है। उसे तो बाज़ार से कुछ खरीदना ही नहीं था, तो वह काव्या को इसके बारे में बताता भी तो क्या?
जारी है, कृप्या अगला भाग पड़े........
आदित्य काव्या के सामने झूठा नहीं बनना चाहता था, इसलिए हड़बड़ाहट में वह ऐसे ही एक दुकान की तरफ इशारा करते हुए कहता है, "हाँ याद आया, मुझे इस दुकान से कुछ सामान लेना है।"
काव्या कहती है, "अच्छा तो फिर चलिए, साथ ही चलते हैं।"
अब वे दोनों उस दुकान पर आकर खड़े होते हैं। लेकिन यह क्या? यह दुकान तो रसोई के बर्तनों की दुकान थी।
उस दुकान के सामान को देखकर काव्या उससे पूछती है, "पक्का आपको इसी दुकान से कुछ लेना है? क्योंकि यह तो रसोई के बर्तनों की दुकान है।"
यह सब देखकर अब आदित्य को भी अपनी गलती का एहसास होता है, कि जल्दबाज़ी में उसने बिना देखे ही उस दुकान की तरफ़ इशारा कर दिया है। लेकिन क्योंकि उसने काव्या से एक झूठ बोला था, इसलिए अब उसे अपने इस झूठ को छुपाने के लिए दस और झूठ बोलने पड़ते हैं। वह जल्दी से पास में पड़ा हुआ एक बेलन उठाता है और कहता है, "हाँ, मुझे यह चाहिए था।"
काव्या उसकी ओर बहुत हैरानी से देखते हुए पूछती है, "क्या सच में आपको यह बेलन चाहिए? मुझे तो लगा था कि उत्सव की तैयारी के लिए आपको या तो कपड़े चाहिए होंगे या फिर अपने संगीत यंत्रों का कुछ सामान, पर यहाँ तो मामला ही कुछ और निकला। क्या आपको संगीत के साथ-साथ खाना बनाने का शौक भी है?" यह कहकर वह उसकी तरफ़ थोड़ी शक भरी निगाहों से देखती है।
आदित्य को लगता है, कि कहीं उसकी चोरी पकड़ी न जाए इसलिए वह अपने चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान लिए कहता है, "नहीं आप गलत समझ रही हैं। मुझे यह बेलन एक संगीत वाद्य यंत्र के तौर पर ही चाहिए है। देखिए ना इसकी मार से एक अलग ही तरह की ध्वनि निकलती है, जिससे मैं एक अनोखी धुन बना सकता हूँ।" फिर वह अपनी बात साबित करने के लिए उस बेलन को पास में ही पड़ी एक थाली पर मारता है, जिससे मधुर तो नहीं बल्कि बहुत अजीब सी धमाकेदार तेज़ आवाज़ निकलती है। उस आवाज़ को सुनकर काव्या एकदम से अपने दोनों कान बंद कर लेती है। और अब आदित्य भी समझ जाता है, कि उसने हड़बड़ाहट में एक और गलती कर दी है।
लेकिन खैर क्योंकि अब आदित्य ने उस बेलन के बारे में इतनी कहानियां बना ली थीं, कि अब ना चाहते हुए भी उसे उस बेलन को खरीदना ही पड़ता है।
वह दुकानदार से उस बेलन का दाम पूछता है, और उसे इस बेलन को एक थैले में रखने के लिए कहता है। फिर वह उस बेलन के पैसे देने के लिए अपनी जेब में हाथ डालकर, ऐसा ज़ाहिर करने लगता है, कि जैसे वह अपने पैसे साथ लाना भूल गया है। फिर वह काव्या से कहता है, "लगता है जल्दी में मैं अपने सिक्कों की पोटली लाना भूल गया हूँ।"
काव्या उसकी बात पर यक़ीन कर लेती है और उससे कहती है, "कोई बात नहीं! कभी-कभी ऐसा हो जाता है। वैसे सच कहूँ तो मेरे साथ तो ऐसा अक्सर ही होता रहता है। खैर आप फ़िक्र मत कीजिए, इसके पैसे मैं दे देती हूँ।" और वह अपनी सिक्कों की पोटली में से उस बेलन की कीमत दुकानदार को देने लगती है।
लेकिन आदित्य काव्या को रोकते हुए, उससे थोड़ा अकड़ कर कहता है, "नहीं आप यह क्या कर रही हैं? मैं आपसे ऐसे ही कैसे पैसे ले सकता हूँ? क्या ऐसा करके, आप मुझ पर कोई एहसान कर रही हैं?"
काव्या उसकी बात को सुधारते हुए कहती है, "नहीं नहीं आप मुझे गलत समझ रहे हैं। भला ऐसा करके मैं आप पर कोई एहसान क्यों करने लगी। आखिर इंसान ही इंसान के काम आता है। आप कोई जानबूझकर थोड़ी ना अपनी सिक्कों की पोटली भूले हैं। यह तो सिर्फ एक मामूली सी गलती है जो किसी से भी हो सकती है।"
आदित्य अपने चेहरे पर एक गम्भीर सा भाव रखकर अपनी गुस्से सी आवाज़ में कहता है, "लेकिन फिर भी मैं ऐसे ही आपसे पैसे नहीं ले सकता हूँ। यह बात मेरे आत्मसम्मान के खिलाफ़ है, कि मैं यूँही किसी से पैसे ले लूँ।"
काव्या को समझ नहीं आ रहा था, कि वह आदित्य को इस बात के लिए समझाए तो आखिर समझाए कैसे? इसलिए वह उससे कहती है, "ठीक है आप इसे एहसान नहीं, उधार समझ कर रख लीजिए। अगली बार जब हम मिलेंगे तो आप लौटा देना।"
अब एकदम से आदित्य का यह बनावटी गुस्सा खुशी में बदल जाता है। लेकिन वह काव्या के सामने अभी भी अपना वही गुस्से वाला चेहरा ही बनाकर अपनी कठोर आवाज़ में उससे कहता है, "मतलब कि सिर्फ़ आपके पैसे लौटाने के लिए मुझे आपसे दोबारा मिलना पड़ेगा। क्या अब मुझे बस यही काम रह गया है यहाँ।"
आदित्य की बातों और उसके हाव भाव से काव्या को लगता है कि वह यह सब उससे गुस्से में कह रहा है। इसलिये काव्या भी थोड़ी सी घबरा जाती है, और अपनी घबराई हुई आवाज़ में ही उससे कहती है, "नहीं आप परेशान मत होइये। आप मेरे पास मत आना। मैं खुद ही आ जाऊंगी, अपने पैसे लेने के लिए, आपसे मिलने।"
आदित्य ऊपर से तो गुस्सा दिखा रहा था, पर अंदर ही अंदर मन में वह यह सोचकर बहुत खुश हो रहा था, कि आखिरकार उसको काव्या से दोबारा मिलने का बहाना मिल ही गया।
इसलिए अब वह अपने लहजे में थोड़ी सी नर्मी लाकर काव्या के हाथ से उन पैसों को लेकर कहता है, "ठीक है। वैसे तो मैं ऐसे किसी से भी पैसे नहीं लेता, लेकिन आप इतना कह रही हैं तो ले लेता हूँ। लेकिन भूलियेगा नहीं यह पैसे मुझ पर उधार रहेंगे। मैं जल्द से जल्द आपको यह पैसे वापस लौटा दूंगा। आप मुझसे दोबारा मिलकर जल्द से जल्द से अपने पैसे ले जाना।"
काव्या हलके से कहती है, "ठीक है! जैसी आपकी मर्ज़ी। लेकिन आप पहले मेरा हाथ तो छोड़िये।" काव्या अपने हाथ की ओर इशारा करते हुए कहती है। आदित्य ने पैसों के साथ साथ काव्या का हाथ भी पकड़ रखा था। काव्या उससे वही छोड़ने की बात कर रही थी। काव्या की बात सुनकर आदित्य भी उसके हाथ की तरफ़ देखता है, जिसे उसने अंजाने में पकड़ रखा था। लेकिन अब इस बात का एहसास होने के बाद वह एकदम से काव्या का हाथ छोड़ देता है।
काव्या कुछ हैरान परेशान हुई, उस दुकान से बाहर चली जाती है।
काव्या के वहाँ से बाहर चले जाने के बाद, आदित्य उस बेलन को हल्के से अपने सर पर मारता है, जैसे इस वक्त वह खुद से यह कह रहा हो, कि "तुम कितने बड़े गधे हो। यहाँ तुम्हें खरीदने के लिए आख़िर मिला भी तो क्या... एक 'बेलन'।"
फिर वह अपने पास रखी हुई सिक्को की पोटली निकालता है, और मुस्कुराते हुए उसे हवा में दो-तीन बार उछालता है। इसका मतलब उसके पास पैसे थे, लेकिन उसने जानबूझकर काव्या से झूठ कहा, कि उसके पास पैसे नहीं है। और ऐसा करने के पीछे उसका क्या मकसद था, यह तो आप सब समझ ही गए होंगे। और अगर नहीं समझे तो ज़रा रुकिए, थोड़ी ध्यान से सोचिये आपको सबकुछ समझ आ जाएगा।