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तू मेरी जिंदगी है

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KUSUM DHARA

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नंदिता की दुनिया एक पल में बदल गई ! जब वो बिन ब्याही पांच साल के बच्चे की मां बन गई ! पहले तो उसे कुछ समझ नहीं आया कि क्या करे क्या ना करे ! लेकिन उसने अपने दिल की सुनी और उसने वो बच्चे को अपना लिया ! लेकिन उसकी वो खुशी भी ज्यादा दिन नहीं टिकी ,जिस...

Total Chapters (60)

Page 1 of 3

  • 1. कृष्ण भक्ति - Chapter 1

    Words: 1438

    Estimated Reading Time: 9 min

    कृष्ण मंदिर में कृष्ण भक्तों का जमावड़ा लगा हुआ था। उसमें बहुत सारे लोग शामिल थे। बच्चे, आदमी, बूढ़े, औरतें, जवान, सभी थे। पंडित जी भी भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को सजा रहे थे। वहीं राधा रानी की मूर्ति को एक लड़की बहुत प्यार से सजा रही थी। वो अपनी बड़ी बड़ी आँखों से हर एक चीज़ को ध्यान से देखते हुए कर रही थी। राधा रानी को तैयार करने के बाद वो पूजा की थाली तैयार करने लगी और सबके साथ आ के बाहर की तरफ बैठ गई। थोड़ी देर में पंडित जी भी आए और वो लड़की से बोले, "नंदिता बेटा थाली सज गई?"

    तो नंदिता भी अपने चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान लिए बोली, "हां पंडित जी सब तैयार है।"

    तो पंडित जी हां में सर हिला के राधा मोहन की मूर्ति के आगे से पर्दा हटा दिए। परदे के हटते ही सबने हाथ जोड़कर नमस्कार किया। फिर उनमें से एक औरत बोली, "वाह नंदिता कितना सुंदर सजाया है तूने राधा मोहन को, ऐसा लग रहा है कि अभी बोल पड़ेंगे।"

    बाकी सब भी वो औरत की बात से सहमत थे। वही बगल में नंदिता की माँ भी बैठी थी। सबकी बातें सुनकर नंदिता की माँ फूली नहीं समा रही थी। इस वक्त उनके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान थी। वही नंदिता अपने हाथ जोड़कर बोली, "सुंदर क्यूँ नहीं लगेंगे मेरे राधा मोहन, वो है ही दुनिया में सबसे सुंदर, तो लगेंगे ना।"

    (ये है नंदिता, उम्र 28 साल, बड़ी बड़ी काली आंखें, लंबे काले घने बाल, ऊंचाई 5.6, गोरा रंग। अभी उसने मल्टी कलर की साड़ी पहनी हुई है, कोई श्रृंगार नही बस आंखो में काजल और होठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक, कान मे छोटे छोटे रिंग, और गरदन मे सिंपल सी चेन ज्यादा कुछ ना किए भी बाला की खुबसूरत लग रही थी।)

    इतनी ख़ूबसूरत और संस्कारी होने के बावजूद भी उसकी अभी तक शादी नहीं हुई थी। पंडित जी नंदिता को पूजा की थाली फिर से देते हुए बोले, "नंदिता बेटा ये लो, आज तुमने राधा मोहन का इतना अच्छा श्रृंगार किया है तो, अपनी मधुर आवाज से एक भजन भी सुना दो।"

    तो नंदिता हां में सर हिलाते हुए बोली, "जी पंडित जी।"

    और वो आरती की थाली लेकर राधा मोहन की आरती करते हुए गाने लगी।

    ओ कान्हा अब तो मुरली की
    मधुर सुना दो तान

    नंदिता की आवाज सुनकर सब मंत्र मुग्ध होकर भजन सुनने लगते हैं। वही नंदिता की मां मीना जी राधा मोहन से शिकायत करते हुए अपने मन में बोली, "माधव मेरी बेटी पुरे दिल से आपकी भक्ति करती है, आपकी इतनी सेवा करती है, उसको अपनी भक्ति का फल दो, मेरी इच्छा है कि मेरी आंखें बंद होने से पहले मेरी बेटी की शादी हो जाए, बस मेरी इतनी सी इच्छा पूरी कर दो गोपाल।" और वो भी अपनी आंखे बंद करके भजन सुनने लगती है।

    ओ कान्हा अब तो मुरली की
    ओ कान्हा अब तो मुरली की

    वहा पर लगभग सभी की आंखे बंद थी। नंदिता के भजन पूरा करते ही सब अपनी आंखें खोल के राधा कृष्ण को देखते हुए नमस्कार करने लगे। तभी एक औरत की नज़र नंदिता के बगल मे गई वो हैरान होते हुये नंदिता से बोली, "नंदिता देखो तो तुम्हारे बगल में क्या है।"

    उनकी बात सुनकर नंदिता ने जैसे हि अपनी नजर घुमाई। तो पाया कि उस्के बगल मे एक बच्चा जिसकी उम्र लगभग 5 साल होगी। वो नंदिता का आंचल पकड़ के सोया था। उसको ऐसे देख के नंदिता जल्दी से उसको अपनी गोद में उठा के उसको जगाने लगी। तो देखा कि वो बच्चा गहरी नींद में सोया था और उसका शरीर हल्का गर्म भी था। वो उस बच्चे को सीने से लगाये हुए, सबको देखते हुए बोली, "ये किसका बच्चा है, अरे इसे बुखार है, जिसका भी ये बच्चा है प्लीज इसे डॉक्टर के पास लेकर जाओ।"

    और वो सबको देखने लगी तो वहां सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे, और ना में सर हिला रहे थे। सबको ऐसे करते देख नंदिता परेशान हो गई वो अपनी मां को देखते हुये बोली, "मा देखो ना, पता नहीं किसका बच्चा है, और बीमार भी है।"

    तो मीना जी ने भी उसको चेक किया और बोली, "बेटा एक काम करते हैं, पूजा तो खत्म हो गई है, थोड़ी देर और रुक जाते हैं इसे लेने जरूर कोई ना कोई तो आ ही जाएगा।"

    तो नंदिता परेशान होते हुए हा मे सर हिला दी। काफी वक्त हो गया था। लगभग सारे भक्त चले गए थे, अब वहा नंदिता और उसकी मां मीना जी, पंडित जी और वो बच्चा ही रह गए थे। नंदिता वो बच्चे को अपने सीने से लगा के बैठी थी, और उसके लिए परेशान भी। वो बच्चे की हालत देख कर नंदिता से रहा नहीं गया। वो पंडित जी से बोली, "पंडित जी आप के पास पेन और पेपर है क्या?"

    तो पंडित जी हा मे सर हिलाते हुए अपने झोले मे से पेन और पेपर निकाल के नंदिता को दे दिए। नंदिता वो पेपर पर अपना पता लिखते हुए बोली, "पंडित जी अगर ये बच्चे को कोई पूछते हुए आया तो आप ये पता उसको दे दीजिएगा।"

    तो पंडित जी वो पेपर लेते हुए बोले, "ठीक है बेटा।"

    और नंदिता वो बच्चे को लेकर खड़ि हुई और राधा कृष्ण को प्रणाम करके वहा से चली गई। उसके जाते ही एक आदमी झड़ियों से बाहर आया और किसी को कॉल करके बोला, "जी सर बाबा मैम के पास पहुंच गए।"

    इतना बोल कर उसने कॉल काट कर दिया। नंदिता वो बच्चे को लेकर पहले पास के क्लिनिक मे गई। वहा डॉक्टर बच्चे को चेक करते हुए बोला, "आपको पता है ना मौसम कैसा चल रहा है, आपको अपने बच्चे का ख्याल रखना चाहिए वो तो अच्छा है की बस थोड़ा सा बुखार है आप लोग ऐसी लापरवाही कैसे कर सकते हैं।"

    डॉक्टर की बात सुनके दो मिनट के लिए नंदिता खामोश हो गई। वही मीना जी कुछ बोलने जा रही थी कि नंदिता उनका हाथ पकड़ते हुए ना में सर हिला दी। उस के ऐसा करते हि मीना जी चुप हो गई और नंदिता डॉक्टर से बोली, "जी डॉक्टर मै आगे ध्यान रखूंगी।"

    और दवा और बच्चे को लेकर नंदिता बाहर आ गई। बाहर आते ही मीना जी नंदिता पर गुस्सा करते हुए बोली, "तूने मुझे रोका क्यों?"

    तो नंदिता उनको समझते हुये बोली, "माँ अगर मैं ये बोलती हूँ कि ये मेरा बच्चा नहीं है, तो डॉक्टर ये ज़रूर पूछता कि, फिर ये किसका बच्चा है, तो हम क्या जवाब देते, इसकी हालत तो देखिये, मुझे जो सही लगा मैंने वही किया।"

    मीना जी भी एक माँ थी। वह समझ रही थी कि वो बच्चे को तकलीफ़ में देख कर अपने अंदर की ममता की वजह से वो चुप रही रही थी। वो नंदिता को समझाते हुए बोली, "जो भी हो, वो बच्चा तो किसी और का हि है ना, यही बात मै तुझे समझाने की कोशिश कर रही हू।"

    तभी नंदिता बोली, "मा मै आपकी बात समझ रही हूं, इसलिए हम आज रात ही इसे अपने पास रखेंगे और कल सुबह होते ही, मै एक बार पंडित जी से जा के पूछ लुंगी की कोई ये बच्चे के बारे में पूछने आया था या नहीं, अगर कोई नहीं आया होगा, तो मै कल पुलिस स्टेशन जा के रिपोर्ट लिखवा दूंगी।"

    नंदिता की बात सुन के मीना जी ने राहत की सास ली। ऐसे ही बातें करते हुये दोनों अपने घर पहुंच गए। घर पहुंच के दोनों अंदर गए, वो अपने कमरे तक जाते उसके पहले ही एक औरत आई और वो कुछ बोलती उसके पहले नंदिता के पास बच्चे को देख के वो अपना सर पिटते हुए बोली, "अरे ये क्या किया नंदिता तूने हा, किसका बच्चा उठा के ले आई तु हा, अरे तेरी शादी नहीं हो रही है तो क्या, क्या दूसरे का बच्चा ही उठा के लाएगी, हे भगवान।"

    वो औरत की बात सुनकर नंदिता उनके पास जाते हुए बोली, "चाची क्या बोल रही हो और पहले तो आवाज कम करो नहीं तो सब उठ जायेंगे, और ये बच्चा मैंने चोरी नहीं किया जो आप इतना चिल्ला रही हो।"

    नंदिता की बात सुनके उसकी चाची को गुस्सा आ गया। वो और जोर से बोली, "देख नंदिता मैंने कुछ गलत नहीं किया या बोला, और सब उठते हैं तो उठे, और सबसे पहले ये बता ये बच्चा किसका है, और तेरे पास कैसे आया?"

    वो नंदिता को अपनी कमर पर हाथ रख के घूरते हुए बोली। नंदिता अभी कुछ कहने जा हि रही थी। कि सारे घर वाले आ गए और नंदिता को बच्चे के साथ देख के उसको शक भरी नज़रों से देखने लगे।

    क्या जवाब देगी नंदिता अब सबको? और कौन है ये बच्चा क्या इसकी वजह से नंदिता की जिंदगी में मुसीबतें बढ़ने वाली है?

  • 2. उसकी सुनेंगे विश्वास करेंगे - Chapter 2

    Words: 1265

    Estimated Reading Time: 8 min

    चाची जी के शोर करने से बाकी के सारे घर वाले भी आ गए, और पूरे हॉल की लाइट्स ऑन हो गई!

    सबके आने से मीना जी परेशान हो गई! वो अपने सर पर हाथ रखते हुए बोली, "मेरी बच्ची क्या बोलेगी सबसे और क्या ये लोग उसकी सुनेंगे, विश्वास करेंगे उसकी बात पर?" वही नंदिता शायद पहले से ही ये सब के लिए तैयार थी! इसलिए वो बिना किसी डर के वहां वो बच्चे को अपनी गोद में लेकर खड़ी थी!

    नंदिता को ऐसे निडर देख कर मीना जी को भी थोड़ी हिम्मत मिली! वही नंदिता के हाथ में किसी बच्चे को देख कर उसके चाचा राजेंद्र जी उसके पास आते हुए बोले, "नंदिता ये किसका बच्चा है, और तुझे कहा मिला, और तू इसे घर क्यों लेकर आई?"

    तभी उसके दादाजी रामनाथ जी आगे आते हुए बोले, "हां बेटा इसके घर वाले इसको ढूंढ रहे होंगे, तुम क्यों लेकर आई अब उनको कैसे पता चलेगा कि उनका बच्चा कहां है?"

    अपने चाचा की बातों को इग्नोर करते हुये वो रामनाथ जी की तरफ देखते हुए बोली, "दादाजी ये बच्चा मुझे मंदिर में मिला, मैं भजन गा रही थी, तो पता नहीं कहां से ये आ के मेरा आंचल पकड़ के सो गया, और जब मैंने इसे हाथ लगाया तो देखा कि इसको तो बुखार था, मैं इसको ऐसे अकेला कैसे छोड़ सकती थी, इसलिये मै इसे घर ले आई!"

    नंदिता के कहते ही उस के दादा दादी ने मीना जी की तरफ देखा तो, उन्होने हां में सर हिला दिया! फिर दादी जी ने आ के बच्चे को देखा तो उसे सच में बुखार था!

    वो रामनाथ जी को देखते हुए बोली, "हा जी इसको तो सच में बुखार है!"

    तो रामनाथ जी नंदिता से बोले, "बेटा एक काम करो पहले ये बच्चे को अपने कमरे में सुला दो उसके बाद बात करते हैं!"

    तो नंदिता हा में सर हिलाते हुए अपने कमरे की तरफ चली गई! और उस बच्चे को बिस्तर पर सुलाते हुए उसके माथे पर किस कर ली! उसके ऐसा करते हि वो बच्चा नींद में ही स्माइल करने लगा!

    ये देख के नंदिता के चेहरे पर भी स्माइल आ गई! वो उसके आस पास तकिया रख दी! ताकि करवट लेते वक्त वो बच्चा नीचे ना गिरे और नंदिता वहां से आने लगी!

    तो वो बच्चे ने उसका हाथ पकड़ लिया और नींद में ही बोला, "मत जाओ ना मां!" ये सुनते ही नंदिता उसके पास आई और उसके सर को सहलाते हुए बोली, "नहीं जा रही हूं बेटा, मां आपके पास ही है!" ये सुनते ही नींद में भी वो बच्चे के चेहरे पर मुस्कान आ गई! वही नंदिता प्यार से उसको देखते हुए उसका सर सहलाने लगी!

    थोड़ी देर उसके पास रुक कर नंदिता बाहर आने लगी! लेकिन पता नहीं क्यों वो बच्चे को देख के नंदिता को एक अलग सा एहसास हो रहा था, जो वो खुद नहीं समझ पा रही थी!

    ना जाने क्यू उसको वो बच्चा अपना सा क्यों लग रहा था!

    अपनी सोच को साइड में रख कर नंदिता बाहर आई! उसके आते ही उसकी चाची (सुजाता जी ) उस पर चिल्लाते हुए बोली, "बाऊ जी ये झूठ बोल रही है, जरूर ये बच्चा चुरा के लाई है, पूछो इसको पूछो अगर इसको ये बच्चा मंदिर में मिला है तो ये उसको लेकर पुलिस स्टेशन क्यों नहीं लेकर गई, यहां, यहां हमारे घर क्यों लेकर आई, जरा पूछिए तो इसे!"

    सुजाता जी के मुंह में जो आ रहा था! वो बोलते जा रही थी! वही नंदिता उनके सामने चुपचाप खड़ी थी! नंदिता को ऐसे चुप देख के सुजाता जी फिर से बोली, "अरी बोलती क्यू नहीं!"

    तो नंदिता उनको देखते हुए बोली, "क्या बोलू चाची आप बोलने देंगी तब तो बोलूंगी ना, लेकिन नहीं आपको तो भड़ास निकालनी है, तो पहले आप अपनी भड़ास निकाल लीजिए, उसके बाद मै बोलूंगी!" नंदिता की बात सुनके चाची जी का मुंह बंद हो गया! और वो नंदिता को गुस्से से देखने लगी वही नंदिता भी गुस्से में उनको देख रही थी!

    वो आगे कुछ कहती उसके पहले ही राजेंद्र जी उनको हाथ दिखाते हुए बोले, "सुजाता तुम चुप रहोगी वो बता रही है!" तो चाची गुस्से से नंदिता को देखने लगी!

    वही नंदिता ने पहले अपनी मां को देखा तो उन्होने पलके झपका के हा मे सर हिलाया! तो नंदिता भी हा में सर हिलाते हुए वही कुर्सी पर बैठे अपने रामनाथ जी और जानकी जी के सामने घुटनो के बल बैठते हुए बोली, "दादा जी, दादी जी मै सच कह रही हूं ये बच्चा मुझे मंदिर में ही मिला और इसको लेकर मै पुलिस स्टेशन ही जाने वाली थी, फिर उसकी हालत को देखते हुए मैंने सोचा कि पुलिस स्टेशन जाने से पहले डॉक्टर को दिखाना ठीक रहेगा, इसलिए मैं उसको डॉक्टर के पास लेकर चली गई, अब ऐसी स्थिति में उसको पुलिस स्टेशन में छोड़ना तो ठीक नहीं होता ना, इसलिए मैं उसको लेकर घर आ गई!"

    फिर वो दोनों का हाथ पकड़ते हुये बोली, "लेकिन पक्का मैं कल सुबह ही पुलिस स्टेशन जाऊंगी और रिपोर्ट लिखवा दूंगी और मैंने पंडित जी के पास भी हमारे घर का पता भी दे दिया है "अगर कोई बच्चे को ढूंढते हुए आया तो पंडित उसको हमारे घर भेज देंगे!"

    अपनी बात पूरी करके नंदिता आस भरी नज़रो से उनको देखने लगी! रामनाथ जी तो चुप थे, वही जानकी जी नंदिता की पूरी बात सुनने के बाद रामनाथ जी से बोली, "देखिये बच्ची ठीक बोल रही है, वो बच्चे की तबीयत भी ठीक नहीं है, अभी रहने देते है, सुबह सोचेंगे कि क्या करना है!"

    तो रामनाथ जी भी हामी भरते हुए बोले, "ठीक है इस बारे में सुबह बात करेंगे" और वो उठकर अपने कमरे की तरफ जाने लगे!

    जानकी जी ने भी प्यार से नंदिता के गाल पर हाथ फेरा और अपने कमरे में चली गई!

    सबका तो ठीक था! लेकिन सुजाता जी को नंदिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था!

    वो नंदिता को खा जाने वाली नज़रों से देखते हुए जा रही थी! सबके जाने के बाद नंदिता अपनी मां के पास चली गई और उसके साथ अपने रूम में चली गई!

    रूम में जाते ही वो दोनों वो बच्चे के पास चले गए और दोनों उसके अगल बगल हो के सोने लगे! लेकिन नींद तो दोनों को नहीं आ रही थी!

    तभी नंदिता वो बच्चे को देखती हुई मुस्कुराइ और उसके ऊपर अपना हाथ रख के उसको थपथपाने लगी और वैसे ही ना जाने कब बच्चे को देखती हुई नंदिता कब सो गई!

    मीना जी भी काफी देर तक वो दोनों को देखती रही उसके बाद वो भी सो गई!

    सुबह मीना जी की आंख खुली तो वो हैरान हो गई! क्योंकि नंदिता सुबह सबसे पहले उठ जाती थी! लेकिन आज वो अभी तक सोयी थी! जब उसको उठाने के लिए मीना जी थोड़ी सी आगे आई तो सामने का नजारा देख के उनकी आंखें बड़ी हो गईं! उनकी तो जैसे सोचने समझने की शक्ति ही चली गई और वो प्रतिमा बनके वही खड़ी रह गई!

  • 3. सिड को मां चाहिए - Chapter 3

    Words: 1433

    Estimated Reading Time: 9 min

    मीना जी फ्रेश होकर घर के मंदिर में पूजा कर रही थीं! उनकी पूजा अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि सुजाता जी आईं और भगवान का आशीर्वाद लेने के बाद अपने आस पास देखीं! फिर मीना जी को देखीं तो मीना जी अपनी आंखे बंद करके भगवान का ध्यान कर रही थीं!

    उनको ऐसे देख के सुजाता जी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान आ गई और वो मीना जी को सुनाते हुये बोलीं, "अरे आज हमारी बिटिया नहीं दिख रही है, मैंने भी ना क्या बोल रही हूं, अरे वो दिखेगी भी कैसे अपने चोरी किये हुए बच्चे के साथ सुकून से सो रही होगी ना" और वो टेडी स्माइल करते हुए वहा जाने लगीं!

    सुजाता जी के उपशब्द बोलने के बाद भी ना जाने क्यों मीना जी चुप चाप वैसे ही बैठी रहीं, ना जाने वो क्या सोच रही थीं!

    वही सुजाता जी, मीना जी को देखते हुए हि जा रही थीं! जिस वजह से वो सामने से आती हुई नंदिता से टकरा गई! सुजाता जी का ध्यान ना होने की वजह से वो गिरने को हुईं तो नदिता उनको पकड़ते हुये बोलीं, "ओह्ह चाची जी, कहा ध्यान है आपका, देखो तो अभी आप मुंह के बल गिर जातीं!" नंदिता के मुँह से तानो भरी बात सुनकर सुजाता जी गुस्से में पैर पटकते हुये वहा चली गई!

    वही नंदिता की आवाज सुन के मीना जी ने अपनी आंखे खोलीं! सुजाता जी के जाने के बाद मीना जी नंदिता को अपने पास बुला के साथ में बिठाते हुये बोलीं, "नंदिता सब ठीक है ना!"

    तो नंदिता दिया जलाते हुए बस हम्म कर दी! मीना जी फिर से उसको देखते हुए बोलीं, "नंदिता कुछ है क्या जो तुझे मुझे बताना हो?" बोलकर वो नंदिता को देखने लगीं!

    मीना जी की बात सुनकर नंदिता जो कर रही थी उसके हाथ वैसे ही रुक गए, और वो अपनी माँ की तरफ देखती हुई बोली, "क्या बात है मा, आप ऐसे क्यों बोल रही हैं, अगर कुछ बात है तो साफ साफ बोलिए ना!"

    तो मीना जी आस पास देखते हुए बोलीं, "वो बच्चा कहा है?" मीना जी को समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे और क्या बोले नंदिता से!

    वही नंदिता फिर से अपना काम करते हुये बोली, "अभी तक सो रहा है!" बच्चे का जिक्र होते ही नंदिता के चेहरे पर बहुत हि प्यारी सी मुस्कान आ गई थी, और ये मीना जी देख पा रही थी!

    पूजा करने के बाद नंदिता और मीना जी दोनों बाहर आईं! नंदिता वही काम पर जाने के लिए निकल रही थी! तो मीना जी किचन में जा रही थी!

    तो नंदिता अपनी मां का हाथ पकड़ते हुये बोली, "मां आप प्लीज वो बच्चे का ध्यान रखना मैं आज हीं पुलिस स्टेशन जा के उसके परिवार वालो के बारे में पता लगा लूंगी!" तो मीना जी ने हा मे सर हिला दिया और नंदिता उनके पैर छुके बाहर की तरफ चली गई!

    और मीना जी किचन में! वो सबके लिए नास्ता बना रही थी लेकिन उनका ध्यान कहीं और था! और इसी चक्कर में चाय पुरी जल गई!

    लेकिन उनका ध्यान वहा गया हि नहीं! तभी गैस बंद करते हुए जानकी जी बोलीं, "बड़ी बहू कहा ध्यान है तुम्हारा, देखो तो सारी चाय जल गई, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना!" दादी जी की बात सुन के मीना जी अपने सेंस में आते हुए देखीं तो सच में पूरी चाय जल चुकी थी!

    वो जानकी जी से माफ़ी मांगते हुये बोलीं, "माफ कर दीजिए मा वो मेरा ध्यान थोड़ा सा भटक गया था, इसलिए ये सब!" तो जानकी जी उनके कंधे पर हाथ रख के बोलीं, "कोई बात नहीं कभी कभी हो जाता है" और जानकी जी वहा से चली गई!

    उनके जाते ही मीना जी ने फिर से चाय चढ़ाई! थोड़ी देर में सबका नास्ता भी बन गया! इसी बीच मीना जी ने कई बार जा के बच्चे को भी देख लिया था, लेकिन वो सो रहा था!

    सब अपने-अपने काम पर निकल गए थे और चाची जी का बेटा नाइट शिफ्ट करके आया था और वो अभी भी सो रहा था! वही घर की औरतें भी अपने-अपने काम में लगी थीं!

    तभी सबको वो बच्चे की रोने की आवाज़ आई, आवाज़ सुन के मीना जी के कमरे में जा के देखीं तो वो बच्चा बिस्तर पर बैठ के रोये जा रहा था!

    और "माँ माँ" बोले जा रहा था!

    मीना जी उसको गोद में उठाने लगीं तो वो उनकी गोद में भी नहीं आ रहा था! बस रोये जा रहा था, उसकी आवाज सुन के बाकी के घर वाले भी आ गये!

    वो बच्चे को रोता हुआ देख कर सुजाता जी अपने कान पर हाथ रख के बोलीं, "दीदी चुप कराओ ना इसे, कितना जोर जोर से रो रहा है!"

    तो मीना जी हार मानते हुए बोलीं, "मैंने कोशिश की सुजाता लेकिन ये मान हि नहीं रह रहा है, कुछ भी बोलने पर सिर्फ मा बोल रहा है!" मीना जी लगभग परेशान हो चुकी थी!

    तो जानकी जी दोनों पर गुस्सा करते हुए बोलीं, "खुद इतने बड़े-बड़े बच्चों की मां होकर एक छोटे से बच्चे को चुप नहीं करा पा रही हो, हटो मुझे देखने दो" और वो मीना जी को साइड करते हुए वो बच्चे के सामने बैठ गई!

    और वो बच्चे के सर को प्यार से सहलाते हुए बोलीं, "क्या हुआ बाबू को, क्यू रो रहा है?" पहले तो वो बच्चा कुछ नहीं बोला लेकिन चुप हो गया था!

    तो जानकी जी फ़िर से बोलीं, "क्या हुआ बाबू को दादी को नहीं बताएगा!"

    तो वो बच्चा हा मे सर हिलाते हुए बोला, "सिड को मां चाहिए, वो कहा है, सिड को भूख लगी है, मा फ़िर से सिड को छोड़ के चली गई क्या?" और वो बच्चा लगभग फ़िर से रोने लगा था!

    तो जानकी जी उसके आसु पोछ के स्माइल करते हुए बोलीं, "तुम अगर चुप हो जाओगे तो मैं तुम्हें तुम्हारी मां के पास ले चलूंगी!"

    तो सिड अपनी टीमटीमाती आंखों से जानकी जी को देखते हुए बोला, "आप ले चलेंगे सिड को मां के पास?" तो दादी जी ने मुस्कुराते हुये हा मे सर हिला दिया!

    वही वो बच्चे के बार बार सिड बोलने से सुजाता जी और मीना जी दोनों कंफ्यूज थी सुजाता जी सोचने के लहज़े से बोलीं, "ये सिड कौन है!"

    तो वो बच्चा खुद को प्वाइंट करते हुए बोला, "मैं हूं सिड!"

    और सिड खुशी से जानकी जी के गले लग गया!

    मीना जी अपनी परेशानी में भी वो बच्चे को खुश देख के खुश थी! वही चाची जी तो अपनी आँखे बड़ी करके दादी जी को देख रही थी और खुद से बोलीं, "ओह तो इसका नाम सिड है!"

    वही जानकी जी प्यार से सिड के सिर पर हाथ रख के बोलीं, "हम मां के पास चलेंगे, लेकिन उसके पहले आपको नास्ता करना होगा, अगर मां को पता चला कि आपने कुछ खाया नहीं, तो माँ को बुरा लगेगा ना" तो सिड जल्दी से हा मे सर हिलाने लगा

    और बोला, "हा दादी सिड खायेगा और फिर हम माँ के पास जायेंगे!"

    तो जानकी जी ने मीना जी को इशारा किया तो वो हा मे सर हिलाते हुए गई और थोड़ी देर में अपने हाथ में एक प्लेट लेकर आई!

    उसमें आलू का पराठा और दूध था! मीना जी वो प्लेट लेकर दादी जी के सामने खड़ि हो गई!

    जानकी जी थाली से निवाला तोड़ के खिलाने वाली थी कि सिड बोला, "अरे वाह आलू पराठा मा ने बनाया!" तो दादी जी ने हा मे सर हिलाते हुए वो निवाला सिड के मुंह में डाल दिया! और सिड ने वो खा लिया!

    जानकी जी सिड को खिला रही थी और उसको खुश देख कर खुश भी हो रही थी! सिड को खिलाते हुए वो अपने मन में बोलीं, "अगर नंदिता की शादी हुई होती तो उसका बच्चा भी इतना ही बड़ा होता!"

    ऐसे ही अपनी सोच में जानकी जी ने पूरा पराठा सिड को खिला दिया! लेकिन जब दूध पीने की बारी आई तो, सिड फ़िर से जिद करते हुए बोला, "नो अब सिड दूध तभी पिएगा, जब मा पिलाएगी" जानकी जी ने बहुत कोशिश की लेकिन सिड नहीं माना! और वो फिर जिद करने लगा! वही बाकी सब परेशान हो गए!

  • 4. mamma- Chapter 4

    Words: 1554

    Estimated Reading Time: 10 min

    आगे,

    जानकी जी के मनाने से सिड ने पराठा तो खा लिया था! लेकिन दूध पीने के लिए फिर से माँ की ज़िद करने लगा और ज़िद में वो रोने भी लगा, अब तो दादी जी भी परेशान होने लगी थीं!

    उनको ऐसे परेशान देख के सुजाता जी मुंह बनाते हुए अपने मन में बोलीं, "अब मनाओ, क्या बोल रही थी कि एक बच्चे को नहीं संभाल सकते, अब खुद संभाल के दिखाओ!"

    फिर सिड को देखते हुए बोलीं, "और ये बच्चा बिल्कुल नंदिता के जैसा है जिद्दी, किसी की बात नहीं सुनता ठीक उसकी ही तरह" और मुंह बना के सिड को देखने लगीं!

    वहीं सिड बहुत रोने लगा था! उसकी आवाज के कारण सुजाता जी का बेटा जो नाईट शिफ्ट करके आया था! वो अपने रूम से उठकर आया और अपनी माँ को आवाज देते हुए बोला, "माँ, माँ ये शोर कैसा है? Please मुझे जरा सोने दीजिए, ये शोर में मैं सो नहीं पाऊंगा तो please जो कोई भी रो रहा है उसे चुप कराओ!"

    जब उसको उसकी बात का कोई जवाब नहीं मिला! तो वो चिढ़ाते हुए बोला, "एक मिनट हमारे घर में बच्चा" और वो आवाज का पीछा करने लगा और उस रूम तक पहुंच गया!

    वो रूम को हैरानी से देखते हुए बोला, "ये तो नंदिता दी और बड़ी माँ का कमरा है, उनके कमरे में बच्चा?" कुछ देर रुक कर वो अंदर चला गया!

    उसके जाते ही सब उसको देखने लगे और वो सिड को!

    हैरानी से सिड को देखते हुए वो लड़का अपनी माँ से बोला, "मा ये कौन है, और ये बड़ी माँ के कमरे में कैसे?"

    वो लड़के के रूम में आने से सुजाता जी सारी बातों को नज़रअंदाज़ करके उसकी फिक्र करते हुए बोलीं, "सुधीर तू यहां क्यों आया, तू तो थोड़ी देर पहले ही आया है, जा अपने कमरे में जा और सो जा नहीं तो तेरी तबीयत खराब हो जाएगी!" सुजाता जी उसकी फ़िकर कर रही थीं, वहीं सुधीर मीना जी को सवालिया नज़रों से देख रहा था!

    (सुधीर सुजाता जी और राजेंद्र जी का बड़ा बेटा है और नंदिता से छोटा, ऊंचाई 6 फिट, गोरा रंग, हैंडसम! जितना सुजाता जी नंदिता से चिढ़ती हैं उतना सुधीर अपनी बहन से प्यार और उसकी इज्जत करता है!)

    सुधीर सवालिया नज़रो से मीना जी के पास आते हुए बोला, "बड़ी मा ये कौन है और हमारे घर में?" सुधीर के सवालो का मीना जी कोई जवाब नही दे रही थीं!

    वहीं सुधीर का ऐसे मीना जी के पास जाना, सुजाता जी को अच्छा नहीं लगा! वो हल्के गुस्से में बोलीं, "मै बताती हूं ना -सुधीर ये बच्चा नंदिता को मंदिर में मिला था और वो इसको यहां उठा के ले आई!" सुजाता जी जानती थी कि अगर उन्होंने उसके सामने नंदिता को कुछ बोला तो वो भड़क जाएगा, इसलिए सुजाता जी ने नंदिता के बारे में कुछ भी भला बुरा नहीं बोला!

    सुजाता जी से बच्चे के बारे में पता लगने के बाद सुधीर परेशान होते हुए बोला, "अरे लेकिन इसके मां बाप इसको मंदिर मे ढूंढ रहे होंगे, हमें इसके बारे में पुलिस को बताना चाहिए!"

    तो मीना जी सुधीर के कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं, "फिकर मत कर सुधीर, नंदिता गई है पुलिस स्टेशन ये बच्चे की रिपोट लिखवाने!"

    तो सुधीर राहत की साँस लेते हुए बोला, "Oh ये अच्छा किया दी ने!" वहीं सिड का रोना ही बंद नहीं हो रहा था!

    उसके गोरे गोरे गाल रोने की वजह से लाल हो गए थे, आंखें पूरी आंसुओं से भर गई थी नाक बहने लगी थी! वो सब तरफ देखते हुए रो रहा था!

    "मा चाहिए, मा चाहिए, मा चाहिए" तभी उसकी नजर सामने द्वार पर पड़ी, और उसकी आँखों में चमक आ गयी!

    सामने देखते हि सिड चुप हो गया! उसके चुप होते सब भगवान का शुक्रिया करने लगे! दादी जी अभी प्यार से सिड के सिर पर हाथ लगाने जा ही रही थी कि, वो उनकी गोद से उतरते हुए मा मा बोलकर भागने लगा! सब ने उस तरफ देखा, जहां सिड जा रहा था!

    सामने का नज़ारा देखते ही सबकी आँखे बड़ी हो गई! क्योंकि सामने सिड नंदिता के पैर से लिपटा हुआ था और नंदिता चुप चाप बदहवास सी खड़ी थी!

    सिड उसको पकड़ के बोला, "मा, मां कहा गई थी आप सिड को छोड़ कर, मा मा बताओ ना मा, कहा थी आप आपको पता है सिड रो रहा था!" नंदिता को देख के सिड खुश तो हो गया था! लेकिन रोने की वजह से उसे हिचकी आने लगी थी, लेकिन इसका नंदिता पर कोई असर नहीं पड़ रहा था!

    सिड का नंदिता को मा कहना उसके परिवार के लिए किसी सदमे से कम नहीं था!

    इस पर सुजाता जी को इसमें मसाला मिल गया वो मीना जी को देख कर सुनाते हुए बोलीं, "हाय दीदी ये बच्चा नंदिता को मा क्यू बुला रहा है, और ये इतना बड़ा तो है ही कि अपनी मां को पहचान सके, फिर ये नंदिता को मा क्यू बोल रहा है, कही नंदिता..."!

    वो इतनी ही बोली थी कि मीना जी सुजाता जी को हाथ दिखाते हुए गुस्से में बोलीं, "बस कर छोटी बहुत हुआ, जो मुंह में आ रहा है बोले जा रही है, बोलने से पहले सोच तो ले कि क्या बोलने जा रही है!"

    मीना जी को गुस्से में देख के सुजाता जी धीमी आवाज में बोलीं, "लेकिन दीदी जो देख रही हूं, वही तो बोल रही हूं!"

    वो आगे कुछ बोलती उसके पहले ही जानकी जी बोलीं, "बस भी करो दोनों ये मत भूलो कि नंदिता इसी घर की बेटी है!"

    फ़िर सुजाता जी को देखते हुए बोलीं, "अगर उसपर कीचड़ उड़ेगा तो असर सब हम पर भी होगा, इसलिए जो भी बोलना सोच समझ कर बोलना!" जानकी जी की बात सुनकर मीना जी ने एक नज़र सुजाता जी को देख के नंदिता के पास चली गई! वही सुजाता जी का मुंह गुस्से से छोटा हो गया!

    सबकी बातों से परेशान हो चुका सुधीर भी नंदिता के पास आया! नंदिता को ऐसे देख के मीना जी का तो दिल बैठा जा रहा था, वो कुछ नहीं बोल रही थी, उनको बस सुबह का मंजर याद आ रहा था!

    लेकिन सुधीर नंदिता की बाजू पकड़ के हिलाते हुए बोला, "दी क्या हुआ आपको, बड़ी मां बोल रही थी आप पुलिस स्टेशन गई थी, क्या हुआ वहा कुछ पता चला ये बच्चे के बारे में?"

    सुधीर की बात सुन के नंदिता अपने होश में आई और सुधीर को देखने लगी, वो बहुत परेशान थी और उसके माथे पर पसीना आ रहा था!

    उसको किसी की आवाज नहीं सुनाई दे रही थी! तभी सिड जोर से चिल्लाकर बोला, "मम्मा!" सिड के ऐसे बोलते ही नंदिता के दिल में एक दर्द सा उठा, वो सिड को अपनी गोद में लेकर वहां से बाहर चली गई! किसी को समझ नहीं आया, की आखिर बात क्या थी!

    सब वहा बस नंदिता को देखते रह गए! सब को ऐसे देख के मीना जी जल्दी से बोलीं, "मै देखती हूं" और वो भी नंदिता के पीछे चली गई!

    नंदिता और मीना जी के ऐसे जाने से सुजाता जी को एक और मौका मिल गया वो दादी जी पास जाके बोलीं, "देखा मा, नंदिता कैसे चली गई और उसके पीछे दीदी भी मै कह रही हूं, कुछ तो गड़बड़ जरूर है, अभी भी वक्त है, अगर आप दीदी से बात नहीं करेंगी तो, ये बच्चे के कारण बहुत बदनामी होगी!"

    फ़िर समझदारी वाले लहज़े में बोलीं, "मेरा फर्ज था, इसलिए आप से बोल रही हूं, बाद में ये मत कहना कि किसी ने कुछ कहा नहीं!" बोलकर वो जानकी जी को शातिर नजरों से देखने लगी!

    जानकी जी कुछ बोली नहीं बस चुप चाप सुजाता जी की बात सुन ली, लेकिन उनको सुजाता जी की बात सही भी लगी!

    सुधीर भी मीना जी और नंदिता के ऐसे जाने से परेशान हो गया था! वो उनके पीछे जाता था, उस के पहले ही सुजाता जी बोलीं, "सुधीर रुक जा तू, हम है घर में, हम देख लेंगे क्या करना है, तू जा आराम कर सुबह तो काम से आया है जा अपने कमरे में जा!" सुधीर के पास और कोई विकल्प नहीं था! वो अपना सर ना में हिलते हुए वहा से चला गया! लेकिन उसको नंदिता की फिक्र हो रही थी!

    काफ़ी देर हो गई थी नंदिता और मीना जी अभी तक नहीं आयी थी! सुजाता जी और जानकी जी हाल में बैठ के उनका इंतज़ार कर रही थीं!

    तभी रामनाथ जी आए और उनको ऐसे बैठे हुए देख कर बोले, "क्या बात है, तुम दोनों ऐसे क्यों बैठी हो, किसी का इंतजार कर रही हो?"

    तो चाची जी शातिर मुस्कान के साथ बोलीं, "जी पिता जी!" वो इतनी ही बोली थी कि, सामने से नंदिता आई और उसके साथ पुलिस भी! पुलिस को देखते हि सब अपनी जगह से खड़े हो गए!

    क्या हुआ था नंदिता को...? आखिर वो ऐसे क्यों चली गई...? और क्यों आई उसके साथ पुलिस...? जानने लिये बने रहिये मेरे साथ....!

    कृपया लाइक, कमेंट और शेयर करें...!

    So dear friends aage ke liye milte hai next chepter me.......

    Tc......

    Bye...

  • 5. घर में आई पुलिस - Chapter 5

    Words: 1644

    Estimated Reading Time: 10 min

    रामनाथ जी के पूछने पर सुजाता जी बोलीं, "जी पिताजी।"
    वो इतना ही बोली थी कि उनकी नजर दरवाजे पर गई जहाँ से पुलिस आ रही थी!

    और उनके साथ नंदिता भी सर झुकाए आ रही थी और उसके गोद में सिड सोया हुआ था! घर के सभी लोग पुलिस को देखते ही अपनी जगह से खड़े हो गए!

    पुलिस वाले को देखते ही सुजाता जी डर से अपने मन में बोलीं, "अरे बाप रे कहीं नंदिता ने पुलिस में मेरे खिलाफ शिकायत तो नहीं कर दी कि मैं इसको परेशान करती हूँ!"

    लेकिन उनकी सोच के उलट पुलिस वाला रामनाथ जी के सामने आते हुए बोला, "ये नंदिता शर्मा क्या यहीं रहती है?"

    तो रामनाथ जी परेशानी वाले भाव से बोले, "हाँ, वो यही रहती है, क्या बात है इंस्पेक्टर?"

    फिर नंदिता को देखते हुए बोले, "नंदिता क्या हुआ, तुम पुलिस के साथ क्यों आई हो?" रामनाथ जी के सवाल से सुजाता जी परेशान हो रही थीं, वहीं नंदिता सर झुकाए खड़ी थी!

    तभी इंस्पेक्टर बीच में बोला, "नहीं, आपको समझने में फेर हुआ है, ये मैडम हमें नहीं लाई हैं, हम इन्हें लेकर आए हैं!"

    पुलिस वाले की बात पर सब हैरानी से नंदिता को देखने लगे! वहीं चाची जी खुश होते हुए अपने मन में बोलीं, "बच गई मतलब ये पुलिस मेरे लिए नहीं आई है!"

    फिर मुँह टेढ़ा करके नंदिता को देखते हुए बोलीं, "मुझे पता था, जरूर ये बच्चा चोरी करके लाई थी और इसने हमसे झूठ बोला कि बच्चा मंदिर में मिला, अच्छा होगा की पुलिस इसको ही लेकर चली जाए, हमारे सर से भी मुसीबत चली जाएगी।" सुजाता जी नंदिता को कोसते हुए अपने ही ख्याली पुलाव बना रही थीं!

    और नंदिता अभी भी सिड को अपनी गोद में लेकर चुपचाप खड़ि थी!

    सब सुनने के बाद रामनाथ जी हैरान होते हुए पुलिस इंस्पेक्टर से बोले, "क्या मतलब आप लाए हैं? क्या बात है दरोगा जी, साफ-साफ बताइए!"

    रामनाथ जी की बात पर इंस्पेक्टर नंदिता को दिखाते हुए बोला, "ये मैडम अपने बच्चे को मंदिर में छोड़ के जा रही थी! वो तो अच्छा है कि हम राउंड पर थे और हमने देख लिया, नहीं तो ये अपने बच्चे को मंदिर में अकेला छोड़ के चली जाती!"

    इंस्पेक्टर लगभग चेतावनी देते हुए बोला, "आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए, अगर बच्चे को कुछ हो जाता तो आप लोग तो पुलिस वालों को ही बोलते, देखिए आगे से ऐसा कुछ न हो इसलिए ध्यान दीजिए!" पुलिस वाले की बात सुनकर सबको अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि नंदिता ऐसा कुछ भी कर सकती है!

    सबको ऐसा हैरान देख कर पुलिस वाला सॉफ्टवॉइस में बोला, "अगर आपके घर में कोई समस्या है, तो आपस में सुलझा लीजिए ऐसे बच्चे को कहीं भी मत छोड़िए, वैसे भी आजकल बच्चों की किडनैपिंग आम बात हो गई है, ध्यान रखिए!" और सबको चेतावनी भरा लुक देते हुए इंस्पेक्टर वहा से चला गया!

    नंदिता के घर से थोड़ा दूर आने पर पुलिस की गाड़ी एक कार के पास रुकी! वो कार की खिड़की से एक आदमी पुलिस वाले को पैसे देते हुए बोला, "अच्छा काम किया तुमने जो एक बच्चे को उसकी माँ से दूर नहीं होने दिया!"

    तो पुलिस वाला छोटी सी स्माइल करते हुए बोला, "अच्छा काम हमने नहीं बल्कि आपने किया है, जो हमें वक्त पर सूचित कर दिया!" और वो पुलिस वाला बिना पैसे लिए वहां से चला गया!

    पुलिस वाले के जाते ही गाड़ी वाले आदमी ने किसी को कॉल करके सब बताया और उसके बाद वहां से निकल गया!

    वही नंदिता के घर इंस्पेक्टर के जाते ही रामनाथ जी नंदिता के सामने जा के बोले, "ये क्या है नंदिता, ये इंस्पेक्टर क्या बोल कर गया, तुम ये बच्चे को ऐसे ही फिर से मंदिर में छोड़ने जा रही थी, क्या मैं जान सकता हूँ क्यूँ?" नंदिता वैसे ही अभी भी खड़ि थी और अब उसकी आँखों से आसु बहने लगे थे!

    नंदिता को ऐसे चुप देख के रामनाथ जी कड़क आवाज के बोले, "नंदिता मैं कुछ पूछ रहा हूँ तुमसे, जवाब दो, जवाब दो जिस बच्चे को तुम खुद मंदिर से ले आई थी फिर क्यों तुम उसको खुद मंदिर में छोड़ने गई, बोलो!"

    रामनाथ जी की गुस्से भरी आवाज़ सुनकर सबके अंदर एक डर की लहर दौड़ गई! तभी मीना जी भी आ गई थीं, वो रामनाथ जी को गुस्सा करते हुए देख कर हैरानी से बोलीं, "क्या बात है पिताजी आप ऐसे गुस्सा क्यों कर रहे हैं?"

    तो रामनाथ जी नंदिता की तरफ इशारा करते हुए बोले, "ये बात तुम नंदिता से पूछो, जिस बच्चे को ये मंदिर से खुद लेकर आई थी, उसी को आज ये फिर से मंदिर में छोड़ने चली गई और पुलिस ने उसे देख लिया, पुलिस ने हमें चेतावनी दी है कि आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए, जरा इससे पूछोगी कि इसने ऐसा क्यों किया?" रामनाथ जी की बात सुनके मीना जी नंदिता को हैरानी भरी नजरों से देखने लगीं!

    फ़िर एक नज़र सिड को देखा जो नंदिता के गले लगे सो रहा था! मीना जी ने सिड को अपनी गोद में लिया और कमरे में जाने लगीं! वो कुछ हि कदम आगे बढ़ी थी कि रुक गई और पीछे पलट के देखा तो सिड ने नंदिनी का आंचल पकड़ रखा था!

    तो जानकी जी ने सुजाता जी को इशारा किया तो वो जाकर नंदिता का आचल सिड के हाथों से छुड़ाया और मीना जी सिड को लेकर रूम में चली गई!

    मीना जी थोड़ी देर में सिड को सुला के वापस आई और नंदिता को देखती हुई बोलीं, "नदिता तुझे क्या पंडित जी का कोई फोन आया था जो तू सिड को लेकर मंदिर चली गई?"

    तो नंदिता ना मे सर हिलाने लगी! नंदिता को ना मेई सर हिलाते देख के मीना जी परेशान होते हुये बोलीं, "तो क्यों ले गई थी बता, अगर उसको कुछ हो जाता तो हम क्या करते, जब उसके घरवाले आते तो उनको क्या जवाब देते सोचा है तूने?" अब मीना जी को भी नंदिता पर गुस्सा आने लगा!

    नंदिता लगभग रोते हुये बोली, "तो क्या करती मां, बताओ ना क्या करती?" फिर सुबह का याद करते हुये बोली, "जब मैं सुबह पुलिस स्टेशन गई थी रिपोर्ट लिखाने के लिए तो (जब मैं वहां के हवलदार से पूछा तो उसने बताया कि उनके सीनियर को आने में अभी टाइम है, तो मै उनका वेट करु! इसलिए मैं उनका वेट करने लगी, काफ़ी देर हो चुकी थी इसलिए मैं जाके उनके डेस्क के पास देखने लगी! तभी मेरी नज़र डेस्क पर रखे फोटो पर गई, मैंने वो फोटो उठा के देखा तो, वो मेरी फोटो थी उस बच्चे के साथ, वो फोटो देखते ही मेरा तो दिमाग घूम गया और मै चुपचाप वहां से निकल आई) क्यूकी उस फोटो के साथ मिसिंग कंप्लेंट पेपर रखा हुआ था और उसमे लिखा था कि ये दोनों गायब है, और उसे बच्चे की माँ के जगह पर मेरा नाम था! "

    नंदिता की बात सुनकर सब मुंह खोले बस नंदिता को देखते रह गए!

    फिर नंदिता अपने बैग से वो फोटो निकाल के सबको दिखाते हुए बोली, "ये देखिये ये रही फोटो!"

    वो फोटो देख के किसी को अपनी आंखो पर यकीन ही नहीं हो रहा था!

    सब एक एक करके वो फोटो देखे लगे! जब फोटो सुजाता जी के पास गई! तो वो अपने मुंह पर हाथ रखते हुए बोलीं, "हाय नंदिता तूने शादी कब की और तेरा बच्चा भी हो गया और हमें पता भी नहीं चला!"

    सुजाता जी आगे कुछ कहती उसके पहले हि मीना जी गुस्से से चिल्लाकर बोलीं, "छोटी बस बहुत हुआ, सिर्फ एक फोटो के बल पर तुम मेरी बेटी को सवालो के कटघरे में नहीं खड़ि कर सकती है, ऐसे तो कोई भी आएगा और मेरी बेटी पर इल्जाम लगा कर चला जाएगा!" शायद पहली बार मीना जी ऊंची आवाज में बोली थी और उनका ऐसा बोलना चाची जी को पसंद नहीं आया!

    उनको अपनी बेइज्जति जैसी लगी और उनको अपनी बेजती कहा बर्दाश्त वो भी गुस्से से चिढ़ते हुए बोलीं, "देखिये दीदी आवाज मेरी भी ऊंची है, और आपके ऐसे गुस्सा करने से सच नहीं बदल सकता और!"

    सुजाता जी इसके आगे कुछ बोलती उसके पहले हि रामनाथ जी गुस्से में बोले, "बस करो दोनों बहुत हुआ!"

    तभी जानकी जी अपनी जगह से खड़े होते हुए बोलीं, "और नहीं तो क्या, कहा इस वक्त है हम सबको नंदिता का साथ देना चाहिए और तुम दोनों हो की!"

    फ़िर अपना सर ना मे झटके हुए बोलीं, "मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी तुमसे!"

    जानकी जी का यू नंदिता का साथ देना सुजाता जी को पसंद नहीं आया और वो पैर पटकते हुए अपने कमरे में चली गई!

    उनके जाते ही नंदिता भाग के आई और जानकी जी के गले लगते हुए बोली, "धन्यवाद दादी मुझ पर भरोसा करने के लिए!"

    तो जानकी जी नंदिता का सर सहलाते हुए बोलीं, "हम क्या तुम्हें जानते नहीं है क्या, हम जानते हैं कि तुम ऐसी कोई गलती नहीं करोगी, जिसकी वजह से हमारा सर झुके!"

    तो नंदिता वैसे हि रोते हुए हा मे सर हिला दी!

    ये सब देख कर मीना जी गुस्से में अपने कमरे में चली गई!

  • 6. नाराज़गी- Chapter 6

    Words: 1591

    Estimated Reading Time: 10 min

    आगे,

    मीना जी के गुस्से से जाते ही नंदिता अपनी दादी के सीने से लगी और जोर से रोने लगी! वो अपनी दादी के सीने से लगी रोती हुई बोली, "दादी, मां को भी मुझ पर भरोसा नहीं है, लेकिन दादी मैं सच कह रही हूं, मैंने कुछ गलत नहीं किया, मेरा विश्वास कीजिए!"
    नंदिता को रोता हुआ देख कर उनको भी बहुत बुरा लग रहा था!

    नंदिता की बात पर दादी जी हां में सर हिलाते हुए बोलीं, "हां मेरी बच्ची मुझे यकीन है कि तूने कुछ गलत नहीं किया होगा, और तेरी माँ को भी यकीन है, वो बस अभी थोड़ी परेशान है, और कुछ नहीं।"
    जानकी जी की बात पर नंदिता उनको देखने लगी तो जानकी जी ने उसको देखते हुए हां में सर हिला दिया!

    नंदिता उम्मीद भरी नज़रों से उनको देखते हुए बोली, "सच में ना दादी?"

    तो जानकी जी हां में सर हिलाते हुये बोलीं, "हां बिल्कुल!"

    फिर आगे नंदिता के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, "बेटा तू एक काम कर, तू यहीं रुक, मै तेरी मां से बात करके आती हूं," बोलकर उन्होंने एक नज़र दादा जी को देखा तो दादा जी ने पलकें झपकाते हुए हां में सर हिला दिया!

    वहीं नंदिता हां में सर हिलाते हुये बोली, "जी दादी" और जानकी जी उनके सर पर हाथ रखते हुए वहा से मीना जी के कमरे की तरफ चली गई!

    वहीं सुधीर अपने कमरे के दरवाजे से ये सब देख रहा था, वो समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर बात क्या है, वो अपनी ही उधेड़ बुन में बोला, "पहले वो बच्चा क्या नाम है उसका, हां सिड, वो दी को अपनी मां बुला रहा था, फिर ये पुलिस वाला, आख़िर बात क्या है, पता करना पड़ेगा!"

    वहीं अपने रूम में मीना जी चुपचाप सी बैठी वहा पर सोए हुए सिड को देख रही थी!
    जानकी जी उनके पास जाके उनके कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं, "मीना बहू क्या बात है, तुम इतना परेशान क्यों हो, क्या तुम्हें अपनी बेटी पर भरोसा नहीं?"

    तो मीना जी ना में सर हिलाते हुए बोलीं, "नहीं मां, ऐसी बात नहीं है, मुझे नंदिता पर पूरा भरोसा है, लेकिन!"

    मीना जी की परेशानी को देखते हुए जानकी जी बोलीं, "लेकिन क्या मीना बहू?"
    तो मीना जी उनका हाथ पकड़ के अपने पास बिठाते हुए बोलीं, "लेकिन ये मां, कि मुझे उसकी किस्मत पर भरोसा नहीं, उसकी किस्मत उसके साथ कब क्या कर जाए कोई भरोसा नहीं, और फिर मैंने जो देखा है उसके बाद तो!"

    उनकी आधी अधूरी बात सुनकर जानकी जी बोलीं, "मीना बहू आख़िर बात क्या है, साफ-साफ बताओ कि आखिर तुम कहना क्या चाहती हो?"

    तो मीना जी याद करते हुए बोलीं, "मां सुबह जब मै नंदिता को उठाने जा रही थी तो मैंने देखा कि वो बच्चा!"

    इतना बोलकर वो रुक गई फिर खुद को संभालते हुए बोलीं, "वो नंदिता के चेहरे को बहुत प्यार से देख रहा था, वो नंदिता के चेहरे को ऐसे देख और छू रहा था, जैसे सच में नंदिता उसकी माँ हो!"

    मीना जी की बात सुन जानकी जी भी शौक़ होते हुये बोलीं, "ये क्या बोल रही हो मीना बहू, ऐसा कैसे हो सकता है?"

    तो मीना जी हैरानी भरे शब्दो मे बोलीं, "यहीं तो मेरे समझ में ना ही आ रहा है मा, क्यूंकि इस उम्र के बच्चे अपनी माँ बहुत अच्छे से पहचानते है, और अगर वो अपनी माँ को छोड़ कर कही जाते भी हैं तो कुछ देर में वापस अपने माँ के पास ही आते हैं, और ये बच्चा नंदिता को पकड़ के लेटा था और उसके चेहरे को बार-बार चूम रहा था, उसको देख कर मुस्कुरा रहा था, और आपने देखा था ना की नंदिता जब बाहर से आई तो, वो कैसे जा कर उससे चिपक गया, ऐसा तो बच्चे सिर्फ अपनी मां के साथ हि करते हैं किसी अंजान के साथ नहीं और नंदिता तो उसे पहली बार मिली है फिर ये ऐसा क्यों कर रहा है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है!"

    मीना जी की सारी बात सुनने के बाद दादी जी भी हैंरान और परेशान हो गई! उनको तो जैसे अपने कानों पर यकीन हि नही हो रहा था!

    कुछ देर बाद वो मीना जी से बोलीं, "देखो मीना बहू अभी जो भी तुमने मुझे बताया वो किसी से मत कहना, हम पहले इसके बारे में पता लगाएंगे, उसके बाद सोचेंगे कि क्या करना है, तब तक के लिए जैसे चल रहा है चलने दो!"

    तो मीना जी भी हां में सर हिलाते हुए बोलीं, "जी मां!"

    वही नंदिता बाहर हॉल में खड़ि बार बार अपने कमरे की तरफ हि देख रही थी! वो बेसब्री से अपनी दादी जानकी जी और अपनी मां का इंतजार कर रही थी! तभी जानकी जी और मीना जी साथ में बाहर आए, उनको देखते हि नंदिता उनके पास जाते हुए बोली, "मां आप..." वो इतना हि बोल पाई थी!

    की मीना जी उदास मन से बोलीं, "मै किचन में जा रही हूं थोड़ा काम बाकी है वो पूरा कर लेती हू" और वो वहां से चली गई, उनके जाते ही नंदिता की आंखे एक बार फिर से नम हो गई!

    तभी जानकी जी उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं, "तू चिंता ना कर तेरी माँ तुझसे नाराज़ नहीं है, वो बस थोड़ी परेशान है, थोड़ा वक्त दे, सब ठीक हो जाएगा!"

    तभी सामने से सुजाता जी आते हुए बोलीं, "ठीक कैसे होगा मा, जिसके चलते आज पहली बार घर में पुलिस आई उसकी माँ ठीक कैसी हो सकती है!"
    उनकी बात पर नंदिता को बुरा तो लगा, लेकिन सुजाता जी के बोलने के तरीके से नंदिता और जानकी जी दोनों को गुस्सा आ गया!

    नंदिता कुछ बोलती उसके पहले ही जानकी जी बोलीं, "सुजाता जुबान को इतना कड़वा भी नहीं होना चाहिए कि उसपर शहद का भी कोई असर ना हो" और वो गुस्से से सुजाता जी को घूरते हुए चली गई!

    वही नंदिता ने भी एक नजर सुजाता जी को देखा और किचन की तरफ चली गई!

    नंदिता के कमरे में सिड की आंख खुली तो वो नंदिता को ढूंढने लगा!
    चारो तरफ देखने के बाद जब उसको नंदिता कहीं नहीं दिखी तो वो रोनी सूरत बनाते हुए बोला, "मा मा फिर से सिड को छोड़ के चली गई" और वो सिस्किया भरने लगा!

    बिस्तर की ऊंचाई थोड़ी ऊपर होने की वजह से वो बिस्तर से उतर नहीं पा रहा था! उसने एक बार झुक के देखा फिर डरते हुए बोला, "सिड को माँ चाहिए, मैं माँ के पास कैसे जाऊँगा ये तो बहुत ऊपर है गिर गया तो" और थोड़ा जोर से बोला, "माँ!" उसने अब धीरे-धीरे रोना चालू कर दिया था!

    वही नदीता अपनी मां के आगे पीछे घूमती हुई उनको किसी छोटे बच्चे की तरह मना रही थी! लेकिन मीना जी उसकी तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही थी!

    नंदिता उनको मनाती हुई बोली, "प्लीज ना मां एक बार मेरी बात तो सुन लो, एक बार सुनो तो मैं क्या कहना चाहती हूं, मां सुनो तो!" नंदिता की बातों को वो इग्नोर करते हुए मीना जी अपने काम में लगी रही!

    जब नंदिता ने देखा कि वो उसकी बात सुनने को तैयार नहीं है, तो वो उनके सामने जाके खड़ि हो गई और अपने कान पकड़ते हुए बोली, "आपको मेरी बात सुननी पड़ेगी नहीं तो मैं ऐसे ही आपके सामने खड़ि रहूंगी और आपको भी कुछ नहीं करने दूंगी!" नंदिता की बात पर मीना जी उसको देखती रह गई क्योंकि वो बिल्कुल बच्चे जैसी जिद कर रही थी!

    वही सिड रोते हुए बिस्तर से उतरने की कोशिश करने लगा! वो नंदिता के पास जाने के लिये उतर ही रहा था कि उसका हाथ छूट गया और वो निचे ज़मीन पर गिर गया!

    वही जानकी जी के कमरे में रामनाथ जी रॉकिंग चेयर पर बैठे हुए कुछ सोच रहे थे! उनको ऐसी गहरी सोच में देख कर जानकी जी उनके कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं, "क्या बात है जी आप इतना परेशान क्यों हैं, कहीं इसकी वजह नंदिता तो नहीं, अगर ऐसा है तो प्लीज आप टेंशन मत लीजिए!"

    वो इतना ही बोली थी कि दादा जी बोले, "हा मेरी परेशानी की वजह नंदिता है, लेकिन ये नहीं है कि मुझे उसपर भरोसा नहीं है, एक तो पहले ही उसकी शादी नहीं हो पा रही थी, फिर उसने खुद शादी ना करने का फैसला कर लिया, उसके बाद ये!"

    फ़िर अपने सिर पर हाथ रखते हुए बोले, "ना जाने ये बच्चा कौन है कहा से आया है, इसके माता पिता कौन है और वो फोटो जो नंदिता को पुलिस स्टेशन से मिली थी, बस यही सोच कर मै परेशान हो रहा हूं!"

    रामनाथ जी की परेशानी का कारण जान कर जानकी जी बोलीं, "देखिये मै आपकी बात समझ रही हूं, लेकिन हमारे बस में कुछ नहीं होता है, जो होता है सब भगवान की मर्जी से होता है, तो अच्छा यही रहेगा कि हम भी सब भगवान पर छोड़ दे तो!"

    रामनाथ जी भी हा में सर हिलाते हुए बोले "हा शायद तुम ठीक कह रही हो यही सही रहेगा!"

    वो अभी बात कर हि रहे थे की तभी किसी की जोर से चीखने की आवाज आई!

  • 7. माँ का प्यार दूंगी - Chapter 7

    Words: 1753

    Estimated Reading Time: 11 min

    रामनाथ जी और जानकी जी अभी बात ही कर रहे थे, तभी उनको जोर से चिल्लाने की आवाज आई!

    रामनाथ जी और जानकी जी के साथ बाकी सब भी आवाज सुनकर बाहर आए तो देखा कि नंदिता सिड को लिए डरी सहमी सी खड़ी थी! नंदिता की आँखों से आँसू आ रहे थे, और उसकी आंखे एकदम से लाल हो चुकी थी, माथे पर पसीने की बुंदे साफ झलक रही थी!

    और सिड के माथे से खून आ रहा था, जो उसकी साड़ी पर भी लग गया था! सिड को ऐसे देख कर सबके तो होश उड़ गए, तब तक सुधीर भी आ गया था और सिड को ऐसे देख कर वो जल्दी से नंदिता के पास आया और बोला, "दी आप ऐसे खड़े क्यों हो, जल्दी से इसे डॉक्टर के पास ले चलो, नहीं तो समस्या हो जाएगी, जल्दी चलो!" तो नंदिता अपने सेंस में आते हुए हां में सर हिला के सुधीर के साथ जल्दी से चली गई!

    उनके जाते ही रामनाथ जी वहीं कुर्सी पर बैठ गए! तभी सुजाता जी मौका देख कर जानकी जी से बोलीं, "देखा मा मैंने कहा था ना, और देखिये वही हुआ, अब क्या करेंगे हम और अगर वो बच्चे को कुछ हो गया तो!"

    वही मीना जी से कुछ बोलते नहीं बन रहा था! रामनाथ जी भी चुप थे और सुजाता जी की कड़वी बातें मीना जी के कान में सुई के जैसे चुभ रही थी!

    काफ़ी देर हो गई थी! नंदिता और सुधीर अभी तक नहीं आए थे! वही घर में सब परेशान हो रहे थे! तभी दादा जी थोड़े गुस्से में बोले, "अरे पता भी करो, कहा है वो दोनों, कितनी देर हो गई, अभी तक कुछ खबर नहीं आई!" और दादा जी अपने सर पर हाथ रख कर बैठ गए! लेकिन सच तो ये था की उनको सिड की बहुत चिंता हो रही थी!

    रामनाथ जी की बात पर मीना जी हां मे सर हिलाते हुए बोली, "जी बाऊ जी" और वो घर के लैंडलाइन से फोन करने लगी!

    वही जानकी जी भगवान से प्रार्थना कर रही थी, "हे माधव उस बच्चे की रक्षा करना!"

    मीना जी नंबर लगाने जा ही रही थी कि नंदिता और सुधीर दोनों आ गए! उनको देखते ही सब जल्दी से उनके पास आए, वही सुजाता जी को बहुत गुस्सा आ रहा था, क्योंकि इस वक्त सिड सोया था और सुधीर ने उसको गोद में लिया हुआ था! इस वक्त वो अपना गुस्सा निकाल नहीं सकती थी, इसलिए उन्होंने अपना गुस्सा अपने चेहरे पर जाहिर नहीं होने दिया!

    वही जानकी जी सिड के पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली, "कैसा है अब ये, क्या कहा डॉक्टर ने, कोई घबराने वाली बात तो नहीं है!"

    तभी रामनाथ जी सुधीर से बोले, "एक काम करो पहले इस बच्चे को आराम से सुला दो, उसके बाद बात करेंगे!"

    तो सुधीर हां में सर हिलाते हुए नंदिता के कमरे की तरफ बढ़ गया!
    मीना जी ने भी नंदिता को चेंज करने के लिए कहा क्योंकि उसकी साड़ी पर भी खून लग गया था!

    थोड़ी देर में नंदिता और सुधीर दोनों हॉल में बैठे थे और रामनाथ जी बड़ी सी कुर्सी पर वो दोनों को देखते हुए बोले, "हां तो अब बताओ क्या कहा डॉक्टर ने!"

    तो नंदिता बोली, "दादा जी डॉक्टर ने कहा है कि वो ठीक है और चोट ज्यादा गहरी नहीं है, तो घबराने वाली बात भी नहीं, बस कुछ दिन उसका खास ध्यान रखना पड़ेगा और कुछ नहीं!"

    नंदिता की बात सुनकर सबने राहत की सांस ली! वही जानकी जी थोड़ी कन्फ्यूज्ड होते हुये बोली, "लेकिन उसको चोट लगी कैसे और वो भी इतनी जयादा!"

    फिर नंदिता की तरफ देखती हुई बोली, "नंदिता तुझे कुछ पता है?" तो नंदिता ना में सर हिलाते हुए बोली, "नही दादी जब रूम में आई तो देखा की वो जमीन पड़ा हुआ था!"

    ये सबसे अलग सुजाता जी का दिमाग अलग ही चल रहा था! जैसे उनको कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता हो, वो बेपरवाही से बोली, "लेकिन अब करना क्या है?"

    उनके सवाल से सब उनको देखने लगे! सबको अपनी तरफ ऐसे घूरता हुआ पाकर सुजाता जी नरमी से बात को घुमाते हुए बोली, "मेरा मतलब था कि उसके माता पिता का तो कुछ पता नहीं है ना!"

    फिर नंदिता को देखती हुई बोली, "और जैसा की नंदिता ने बताया उस हिसाब से तो हम पुलिस के पास भी नहीं जा सकते, इसलिए मैं पूछ रही थी कि आगे क्या करना है!" ये बात उन्होंने बहुत ही नरमी के साथ बोली थी!

    उनकी बात पर रामनाथ जी भी हामी भरते हुए बोले, "बात तो सही है सुजाता बहू की!"

    वही जानकी जी और मीना जी एक दूसरे का मुंह देख रहे थे! लेकिन नंदिता वहा से उठ कर के चली गई!

    उसके जाते ही सुधीर भी चला गया! तो जानकी जी अपनी जगह से खड़े होते हुए बोली, "मीना बहु जरा मेरे साथ चलो तो मुझे तुमसे और नंदिता से मुझे बात करनी है" तो मीना जी ने हा मे सर हिलाया हुए उनके साथ जाने लगी!

    सुजाता जी ने भी उनके साथ जाने के लिए अपने कदम बढ़ाए ही थे कि जानकी जी उनको रोकते हुए बोली, "छोटी बहू शायद तुमने सुना नहीं, मुझे नंदिता और बड़ी बहू से बात करनी है तो तुम कहा चली!"

    जानकी जी की बात पर सुजाता जी गुस्से में मुंह बनाते हुए बोली, "जी माँ" और वो अपने आँचल के कोने को अपनी उंगली में पकड़ के घुमाने लगी!

    एक तरह से वो अपना गुस्सा कम करने की कोशिश कर रही थी!

    वही नंदिता अपने कमरे के बिस्तर पर बैठे हुए एक टक सोए हुए सिड को देख रही थी! सिड को देखते हुए कभी उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती तो कभी उसकी चोट को देखते हुये चिंता!

    वो सिड को देख ही रही थी कि जानकी जी उसके कंधे पर हाथ रखते हुये बोली, "क्या सोच रही है नंदिता!"

    तो वो अपनी नजरें चुराते हुए बोली, "कुछ नहीं दादी मै तो बस ऐसे ही" और उठकर जाने लगी!

    तो जानकी जी उसका हाथ पकड़के अपने पास बिठाते हुये बोली, "देख नंदिता मै ये नहीं कहूंगी कि जो हो रहा है वो सही, लेकिन जो हो रहा है उसको अपनाने के अलावा हमारे पास कोई रास्ता नहीं है, तो बेहतर होगा कि तू ये मान ले कि जब तक सिड हमारे पास हैं, हम उसका बिल्कुल अपने घर के बच्चे जैसा ख्याल रखेंगे!" जानकी जी की बात पर नंदिता की आंखें बड़ी हो गईं और मीना जी भी उनको देखने लगी!

    नंदिता उनको रुआसी भरी नज़रों से देखते हुए बोली, "लेकिन दादी इस से तो सबको चाची की बात सच लगेगी और फिर माँ और आप सबको बहुत सुनाना भी पड़ेगा!"

    तो जानकी जी उसके सर पर हाथ रखते हुए बोली, "उसकी चिंता तू मत कर उसके लिए हम हैं ना, और वैसे भी हमारे पास इसके अलावा कोई और रास्ता भी तो नहीं है, क्योंकि बच्चा खुद तुझे मां बोल रहा है!"

    तो नंदिता उनको अपनी सफाई में समझाते हुये बोली, "लेकिन दादी मै सच में ये बच्चे को नहीं जानती!"

    नंदिता की बात पर जानकी जी बोली, "मै जानती हूं और इसके लिए तुझे सफाई देने की जरूरत नहीं है समझी?" तो नंदिता ने नम आँखों से हा मे सर हिला दिया!

    वही ये देख कर कि उनके परिवार वाले नंदिता पर भरोसा करते हैं, मीना जी की भी आंखें छलक उठीं!

    फ़िर जानकी जी प्यार से नंदिता को समझाते हुये बोली, "नंदिता बेटा ये बच्चा वो बच्चा क्या होता है उसका नाम सिड है और क्या अब मुझे तुझे ये समझाने की जरूरत है कि ऐसे नहीं बोलते हैं" जानकी जी की बातों को समझते हुए नंदिता ने ना मे सर हिला दिया!

    फिर वो अपनी आँखों में आसु लिए एक बार सिड को देखी उसके बाद जानकी जी का हाथ पकड़के माफ़ी माँगते हुए बोली, "मुझे माफ़ कर दीजिये दादी, पता नहीं मुझे क्या हो गया था, ऐसा नहीं है कि मुझे सिड से नफ़रत है, लेकिन क्या करूँ, जब सिड ने मुझे मा कहा तो मैं अपने आप को संभाल नहीं पाई मैं और चाची कि बातों में उलझ कर ये गलती कर बैठी!

    फिर अपने आंसू पोछते हुए बोली, "लेकिन अब मुझे समझ आ गया है और मैं आप से वादा करती हूं कि जब तक सिड मेरे पास है, मै उसे मां का प्यार दूंगी, वो भी सच्चे मन से दिल से!"

    नंदिता की बात पर जानकी जी ख़ुशी से उसके सर पर हाथ रखते हुए बोली, "मेरा आशीर्वाद और मैं हमेशा तेरे साथ है" बोलकर वो चली गई! उनके जाते ही मीना जी नंदिता से कुछ बात करने लगी!

    वही सुधीर अपने कमरे में परेशान सा बैठा था! वो गुस्से में दांत पिसते हुए बोला, "नहीं मैं दी के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा, अब मैं खुद पता लगाऊंगा कि आखिर वो बच्चा है कौन, और वो मेरी दी की जिंदगी में क्यों आया है!"

    वही हाल में सुजाता जी, जानकी जी का आने का इंतजार कर रही थी! वो बार बार मीना जी के कमरे की तरफ देखते हुए अपने मन में बोली, "क्या बात कर रहे होंगे ये लोग" और अपनी सोच में उलझी चक्कर काटने लगी!

    थोड़ी देर बाद जानकी जी बाहर आई!

    जानकी जी को देखते ही सुजाता जी जल्दी से उनके सामने आईं! वही जानकी जी सुजाता जी को इग्नोर करते हुये बोली, "मैंने एक फैसला किया है!" ये सुनते ही सुजाता जी की आंखें छोटी हो गई!

    और वो कन्फ्यूज्ड होते हुए बोली, "कैसा फैसला माजी!"

    तो जानकी जी ने रामनाथ जी की तरफ देखा तो उन्होंने अपनी पलके झपका दी! अब तक राजेश जी भी आ गए थे और सुजाता जी ने उनको सब बता दिया था!

    रामनाथ जी की रजामंदी पा के जानकी जी मुस्कुराती हुई बोली, "मैं ये फैसला लिया है!"

    जैसे हि जानकी जी ने अपना फैसला सुनाया! सुजाता जी की आंखें बड़ी हो गईं!

    वही रामनाथ जी को तो पहल से हि पता था! वही अपनी मां के फैसले से राजेंद्र भी खुश थे!

    आख़िर क्या फ़ैसला लिया है दादी जी ने...!

    और क्यों हो गई सुजाता जी परेशान......!

    क्या सुधीर पता लगा पायेगा सिड के बारे में...! और कैसा रहेगा नंदिता का सफ़र...!

  • 8. बदला- Chapter 8

    Words: 1706

    Estimated Reading Time: 11 min

    मीना जी के कमरे से जाने के बाद नंदिता गौर से सिड को देखने लगी! उसके मासूम से फेस को देखते हुए नंदिता के चेहरे पर मुस्कान आ गई! वो धीरे से आगे गई और सिड के सर पर हाथ रखते हुए बोली, "सॉरी बच्चा, तुमने मुझे मां कहा लेकिन मैं..." इतना बोलकर रुक गई!

    फिर उसके माथे पर किस करते हुए बोली, "लेकिन अब मैं तुमसे वादा करती हूं, आज के बाद मैं तुम्हें बहुत प्यार दूंगी और एक अच्छी मां बनके दिखाऊंगी।" फिर उसको अपनी बाहों में भरके उसके बगल में लेट गई!

    नंदिता का एहसास पाकर सिड भी मुस्कुराते हुए नंदिता से चिपक गया! और उसके होठों पर किस करके बोला, "आई लव यू मां।" सिड की हरकत से नंदिता के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई!

    दिन बीतते गए और ऐसे ही 20 दिन से ऊपर हो गया! सिड के सर की चोट भी ठीक हो चुकी थी, नंदिता के घर में सिड के रहने से लगभग सब खुश थे, सिवाय सुजाता जी के, वो अभी भी सिड को लेकर नंदिता के सामने सवाल खड़े कर देती थी!

    लेकिन परिवार का साथ होने से नंदिता पर उनकी बातों का कोई खास फर्क नहीं पड़ता था और सिड होने से नंदिता के दादा, दादी का भी मन लगा रहता था!

    वो सबके साथ घुल मिल गया और जैसा नंदिता कहती थी सिड उसकी बात भी सुनता था! जैसे नंदिता सबको बुलाती थी वो भी उनको उसी नाम से बुलाता था जैसे दादा जी को दादू, दादी जी को दादी, सुजाता जी को चाची, राजेंद्र जी को चाचू, सुधीर को सुधीर, लेकिन मीना जी को बड़ी बुलाता था! क्योंकि वो नंदिता की माँ थी इसलिए उसकी बड़ी माँ! ऐसा सिड को लगता था और इसमें किसी को कोई समस्या भी नहीं थी!

    अभी नंदिता के साथ ही सिड भी उठ गया था और मीना जी को परेशान कर रहा था! सिड के साथ रहते हुए मीना जी को भी सिड से लगाव हो गया था, आखिर वो भी तो एक मां है कब तक एक छोटे से बच्चे से नाराज़ या गुस्सा रहती!

    सिड को फ्रेश करने के बाद मीना जी उसको कपड़े पहना रही थी! तो सिड उनके हाथ से कपडे लेकर पूरे घर में हँसते हुए भाग रहा था!

    और भागते हुए ही मीना जी से बोला, "पकड़ो पकड़ो सिड को पकड़ो!"

    तो मीना जी भी उसके पीछे भागते हुए बोली, "रुक जा सीड नहीं तो लग जाएगी, देख अगर तूने मेरी बात नहीं सुनी तो मै तेरी मां को बता दूंगी कि तू उसकी मां को परेशान कर रहा है, रुक जा अब।" मीना जी उसके पीछे भागते हुए थक गई थी वही सिड को ऐसा करने में मजा आ गया!

    वो कुर्सी पर बैठते हुए बोली, "जा अब नहीं आती मै तेरे पीछे, जब तेरी मां आएगी और तुझे डांटेगी तो तुझे पता चलेगा।" और वो हाफ़्ते हुए वही कुर्सी पर बैठ गई!

    तभी सिड उनके सामने आते हुए बड़ी मासूमियत से बोला, "बड़ी मा पिनाओ ना कपडे, मैं कब से आपके सामने खड़ा हू, और आप मुझे कपडे हि नहीं पिना रही हो!"

    सिड की बाते सुनकर मीना जी का मुँह खुला का खुला रह गया, उन्होंने नज़र घुमाई तो देखा की नंदिता कमरे से बाहर आ रही थी!

    नंदिता को देख कर मीना जी ने सिड को देखा तो वो अपने दांत दिखा के हसने लगा! तो मीना जी ना में सर हिलाते हुए उसको कपड़े पिनाने लगी!

    वही नंदिता मीना जी के पास आई और सिड के सामने आके घुटनो के बल बैठते हुए बोली, "अरे मेरा बच्चा अभी तक तैयार नहीं हुआ!"

    तो सिड भोली सी सूरत बनाते हुए बोला, "बड़ी मा ने देर कर दि, इसलिए सिड रेडी नहीं हो पाया!"

    सिड की बात सुनते ही मीना जी आंखे बड़ी किये हुए बोली, "अच्छा बेटा मैंने देर से किया हा और वो जो तुम मुझे अपने पीछे-पीछे भगा रहे थे उसका क्या!"

    वही मीना जी बात सुनकर नंदिता अपनी आँखे छोटी करते हुए बोली, "बड़ी मा क्या कह रही है बेटू, आप बड़ी माँ को परेशान कर रहे थे!"

    तो सीड जल्दी से ना मे सर हिलाते हुए बोला, "नहीं बिल्कुल नहीं!"

    फिर नंदिता के चेहरे को अपने नन्हे से हाथो में भरते हुए बड़ी मासूमियत से बोला, "नहीं, सिड ऐसा कर सकता है क्या, सिड तो बड़ी मां के साथ खेल रहा था।" उसके मासूम से चेहरे को देखते हि मीना जी और नंदिता दोनों का दिल भर आया!

    वही नंदिता उसके गाल पर किस करते हुए बोली, "नहीं मेरा सिड ऐसा नहीं कर सकता।" बोलकर उसने सिड को गले से लगा लिया!

    सिड की नौटंकी को देखते हुए मीना जी ना में सर हिलाते हुए मुस्कुराने लगी! वही नंदिता उसको गोद में उठाती हुई बोली, "अच्छा, चलो हम जल्दी से नमो नमो कर लेते है।" तो सीड जल्दी से हा मे सर हिलाने लगा! वही नंदिता उसको लेकर मंदिर की तरफ चली गई!

    वही मीना जी उनको जाते हुए देख रही थी और उनकी आंखे नम हो चली थी! तभी जानकी जी आते हुए बोली, "क्या बात है बड़ी बहू, अब क्यों तुम्हारी आंखे नम है, सब ठीक तो है!"

    तो मीना जी ना में सर हिलाते हुए बोली, "नहीं मा ये तो खुशी के आसु है, सिड के आने से ऐसा लगता है की मेरी नंदिता की ख़ुशी भी वापस आ गई है!"

    फिर उनकी नज़र उतारते हुए बोली, "कहीं किसी की नज़र ना लगे ये माँ बेटे को!"

    तभी सुजाता जी आते हुए बोली, "हा किसी और का बेटा, किसी और के बेटे की माँ ऐसे बोलिए दीदी!"

    तो मीना जी थोड़े गुस्से में बोली, "देख छोटी अब शुरू मत हो जा बस भी कर!"

    तो सुजाता जी आखे दिखाते हुए बोली, "इसमें गलत क्या कहा मैंने दीदी, क्या नंदिता सिड की अपनी मां है नहीं ना, तो फिर और वैसे भी कभी तो सिड के माता पिता आएंगे और सिड को अपने साथ ले जाायेंगे तब क्या होगा दीदी बताइये।" सुजाता जी की बातें उनके दिल में किसी तीर की तरह लग रही थी! वो चीज उनके चेहरे पर भी दिख कर आ रही थी!

    मीना जी के चेहरे को देखते हुए सुजाता जी के चेहरे पर शातिर मुस्कान आ गई वो अपनी बातें जारी रखते हुए बोली, "बोलिए ना दीदी क्या मै गलत बोल रही हूं, कभी सोचा है!"

    फिर हमदर्दी जताते हुए बोली, "देखो दीदी नंदिता मेरी भी बेटी है, और मै उसका बुरा नहीं चाहती, इसलिए कह रही हूं ये बच्चे को हमारी नंदिता से दूर रखिए, अभी भी वक्त है नंदिता संभल जाएगी नहीं तो!"

    तभी जानकी जी गुस्से भरी आवाज मे बोली, "नहीं तो क्या छोटी बहू, हा बोलो ना तो क्या!"

    फिर गुस्से में अपनी आंखें छोटी करते हुये बोली, "और तुम क्या कह रही थी हा, नंदिता तुम्हारी भी बेटी है, लेकिन मुझे ये बताओ तुमने उसे बेटी माना हि कब, उसके भले के बारे में सोचा हि कब, जो तुम हमें सलाह दे रही हो हा।" जानकी जी की बाते सुनकर सुजाता जी गुस्से से लाल होती जा रही थी! क्योंकि वो भी जानती थी कि जानकी जी सच बोल रही थी!

    जानकी जी अभी और बोलने ही जा रही थीं कि मीना जी उनका हाथ पकड़ के ना मे सर हिलाने लगी! तो जानकी जी उनको सवालिया नजरों से देखने लगी!

    तो मीना जी ने आंखों से इशारा किया और धीरे से बोली, "नंदिता!"

    तो जानकी जी सुजाता जी की बाजू पकड़ते हुये धीरे से बोली, "देखो छोटी बहू, तुमसे अगर नंदिता की खुशी नहीं देखी जाती तो तुम उसे दूर रहो, लेकिन अपनी जली कटी सुना के उसका या बड़ी बहू का दिल मत दुखाओ, समझी।" दादी जी ने बोल तो दिया था लेकिन सुजाता जी कुछ नहीं बोल पा रही थी वो बस गुस्से का घुट पीके रह गई!

    वो गुस्से में अपने मन में बोली, "नंदिता तेरी वजह से मुझे इतना सुनना पड़ा, याद रखना तेरी ये खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकेगी।" और वो गुस्से से वहा से चली गई!

    वही आती हुई नंदिता ने सुजाता जी को गुस्सा मे जाते हुए देखा तो वो मीना जी के पास आते हुए बोली, "क्या बात है मा, चाची इतने गुस्से में क्यों चली गई!"

    सुजाता जी की बातों से मीना जी के दिल में एक डर सा बैठ गया! उनको कुछ ना बोलता देख कर नंदिता उनको हैरानी से देखने लगी!

    तो जानकी जी बात को घुमाते हुए बोली, "कुछ नही नंदिता तुझे पता है ना वो छोटी छोटी बात पर गुस्सा हो जाती है, तु उसे जाने दे मुझे ये बता की सिड कहा है, मैंने उसे सुबह से नहीं देखा!"

    तब तक सिड भागते हुए आया और जानकी जी का हाथ पकड़ते हुए बोला, "मै यहीं हू दादी आपको पता है मा ने कहा है कि आज वो मुझे घुमाने ले जाएंगी!"

    सिड को देख कर मीना जी मुस्कुरा राही थी, वही घूमने जाने के नाम से हि सिड बहुत खुश था और उसको खुश देख के बाकी सब भी खुश थे!

    वही एक आदमी जिसकी उम्र 35 के आस पास होगी, देखने में सुंदर आकर्षक ऊंचाई 6.5 के आस पास होगी! वो अपनी गहरी नशीली आँखों से सामने दीवार पर लगी फोटो को देख रहा था!

    वो फोटो शायद किसी कपल की थी! वो फोटो को देखते हुए वो आदमी बोला, "तुम्हारे साथ कि गई नाइन्साफ़ी का बदला मै लेकर रहुंगा और जिसकी वजह से तुम इस दुनिया में नहीं रहे, उसको तो मै खून के आसु रूलाउंगा, मै अभिराज तुमसे वादा करता हूं, बहुत ही जल्द वो हमारे घर में होगी।" बोलते वक्त उसकी आंखो में बदले की आग दहक रही थी जो आने वाले वक्त में सब कुछ तबाह करने वाली थी!

    वो कुछ देर रुक कर वो फोटो को देख रहा, उसके बाद वहां से चला गया!

  • 9. होश में रहो- Chapter 9

    Words: 1897

    Estimated Reading Time: 12 min

    दोपहर हो चुकी थी! और नंदिता शाम में सिड को घुमाने लेकर जाने वाली थी! सिड भी अपनी ख़ुशी में नंदिता के आगे पीछे घूम रहा था! ऐसे ही हंसी मज़ाक में शाम हो गई!

    नंदिता सिड को तैयार कर रही थी और उसके बालों को कंघी करते हुये बोली, "अब जल्दी से मां और सिड घुमने चलेंगे!"

    तो सिड खुश होते हुए बोला, "हां और मां सिड को आइसक्रीम खिलायेगी और बलून भी दिलाएंगी!"

    उसकी फरमाइश सुनकर नंदिता के चेहरे पर मुस्कान आ गई! वो सिड के गाल पर किस करते हुए बोली, "हां क्यों नहीं, बेटू को चाहिए तो माँ ज़रूर देगी!"

    तो सिड खुशी से जोर जोर बोलने लगा, "ये ये माँ सिड को गुब्बारे दिलाएगी, सिड को आइसक्रीम खिलाएगी!" ऐसे ही वो बोलते हुए हॉल में आ गया! और नंदिता तैयार होने लगी!

    वही हॉल में रामनाथ जी, जानकी जी और मीना जी बैठे हुये थे, और सिड को ऐसे ख़ुशी से उछल कुद करते हुए देखकर जानकी जी बोलीं, "वाह सिड मां के साथ घूमने जा रहा है, वाह!"

    तो सिड खुशी से उनके पास आते हुए बोला, "हां दादी और आपको है पता मां सिड को आइसक्रीम भी खिलाएंगी!"

    तो जानकी जी भी बच्चों जैसा मुंह बनातेे हुये बोलीं, "अच्छा सिड आइसक्रीम खायेगा?" तो सीड जल्दी से हां में सर हिलाने लगा!

    वही जानकी जी (दादी) झूठ मुठ रोने का नाटक करते हुए बोलीं, "लेकिन दादी को तो कुछ नहीं मिलेगा!"

    तो सिड उनको चुप कराते हुए बोला, "नहीं दादी, आप रोइये मत सिड आपके लिए भी लाएगा!"

    फिर रामनाथ जी को देखते हुए बोला, "दादू के लिए भी!"

    फिर मीना जी को दिखाते हुए, "बड़ी मां के लिए भी!"

    सिड का सबके लिए प्यार और उसकी प्यारी प्यारी बातें सुनकर वहा पर सभी को उसके ऊपर बहुत प्यार आने लगा! जानकी जी उसे अपनी गोद में बिठाते हुए बोलीं, "अच्छा तो सिड सबके लिए आइसक्रीम लेकर आएगा?" तो सिड मुस्कुराते हुये जल्दी जल्दी अपना सर हा मे हिलाने लगा!

    तो रामनाथ जी उसके माथे पर किस करते हुए बोले, "ठीक है तुम जाओ और अपनी माँ के साथ अच्छे से घूम आओ!"

    सिड ने भी उनके गाल पर किस कर लिया और ताली बजाने लगा! तभी नंदिता आई और सिड को देखते हुये बोली, "तो चले बेटू!"

    तो सिड ने भी अपनी बाहे फ़ैला दी! तो नंदिता भी मुस्कुराते हुए उसे अपनी गोद में ले ली!

    फिर सबको देखते हुए बोली, "अच्छा तो हम आते हैं!"

    तो मीना जी अपनी फिक्र जाहिर करते हुए बोलीं, "संभल के जाना और अपना ख्याल रखना और जल्दी आना!"

    तो नंदिता मुस्कुराती हुई बोली, "जी मां!" और वो दोनों निकल गए!

    उनके जाते ही मीना जी घबराते हुए जानकी जी से बोलीं, "मां पता नहीं क्यों, मन नहीं कर रहा है वो दोनों को जाने देने के लिए, क्या करू रोक लू!"

    तो जानकी जी उनको समझाते हुए बोलीं, "सब ठीक है बड़ी बहू, तुम चिंता मत करो वो दोनों जल्दी हि आ जाएंगे!" उनके कहने पर मीना जी मान तो गई लेकिन उनको कहीं ना कहीं कुछ गलत लग रहा था!

    थोड़ी देर में नंदिता और सिड मार्केट में घूम रहे थे! और सिड खुशी खुशी सब देख रहा था! तभी उसे एक गुब्बारे वाला दिखा तो सिड खुश होते हुए बोला, "मा बलून वो देखो बलून!"

    तो नदिता उसके साथ बलून वाले के पास गई और सिड से पूछी, "सिड को कौन से रंग का बलून चाहिए?"

    तो सिड अपनी उंगली से दिखाते हुए बोला, "वो लाल, नीला, हरा और पीला!" तो बलून वाले ने भी उस सारे रंग के गुब्बारे निकाल के सिड को दे दीये! गुब्बारे पा के सिड खुश हो गया और सिड को खुश देख के नंदिता खुश!

    गुब्बारे वाले की पैसे देकर, फिर वो दोनों आगे बढ़ गये! बलून के साथ सिड उछलते कुदते हुए नंदिता के साथ चल रहा था! सिड के साथ चलते हुए नंदिता का ध्यान सिड पर हि था और वो उसे देख के मुस्कुरा रही थी!

    लेकिन कोई था जो उनका ना जाने कब से पिछा कर रहा था! हर पल उन पर नजर बनाए हुए था! वही सिड तो नंदिता के साथ बहोत खुश था! फिर वो दोनों आइसक्रीम खाने लगे! नंदिता ने सिड के लिए बहुत कुछ लिया था, कुछ सिड के कहने पर कुछ अपनी पसंद से!

    ऐसे हि घूमते हुए नंदिता सिड को गार्डन में ले गई! वहा जाकर सिड और खुश हो गया और वो जल्दी से स्लाइड के पास चला गया!

    वही नंदिता भी उसके पीछे जाते हुये बोली, "अरे बेटा संभल के लग जाएगी!" लेकिन सिड कहा सुनने वाला था, वो तो खिल खिला के हसते हुए यहां से वहा करने लगा!

    वही नंदिता सिड को ऐसे मस्ती करते देख स्माइल करते हुए ना मे सर हिलाने लगी! सिड खेल रहा था वही नंदिता सारा समान लेकर वही पास में रखे बेंच पर बैठ गई और वहां से सिड पर नजर रखने लगी! सिड को खुश देख कर नंदिता भी खुश थी!

    वही नंदिता के घर पर सभी हॉल में थे! मीना जी सब्जी काट रही थी, जानकी जी अपना कुछ कर रही थी, सुजाता जी भी किचन का काम कर रही थी! तभी राजेंद्र जी आये और सुधीर काम पर जाने के लिए निकल रहा था!

    सबको देख कर रामनाथ जी बोले, "मुझे आप सब से बात करनी तो थोड़ी देर के लिए तुम सब यहाँ एक साथ बैठ जाओ!"

    रामनाथ जी की बात सुनकर सब उनके के सामने आ गए!

    तो रामनाथ जी सबको देखते हुए बोले, "आज हमारे साथ रहते हुए सिड को 1 महीने के आस पास हो गया है और कोई उसके बारे में पूछने भी नहीं आया, तो मै चाहता हूं कि क्यों ना हम उसको हमेशा के लिए अपने परिवार का सदसय बना ले!" रामनाथ जी की बात पर सब हैरानी और कन्फ्यूजन के मिले जुले भाव से उनको देखने लगे!

    वही रामनाथ जी अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले, "मै चहता हु की क्यू ना हम सिड कानूनी तौर पर गोद ले ले, मेरा मतलब वो हमेशा नंदिता के पास उसका बेटा बनकर रहे, हमारे परिवार का सदसय बनकर रहे!" रामनाथ जी की बात पर सुजाता जी और सुधीर के अलावा सब खुश हो गए!

    और सुजाता जी और सुधीर बिना कुछ बोले वहा से निकल गए! सुजाता जी अपने कमरे में और सुधीर अपने काम पर!

    उनके जाते ही सबने ना में सर हिला दिया! वही राजेंद्र जी खुश होते हुए बोले, "ये अच्छा सोचा आपने बाऊ जी, जब नंदिता को पता चलेगा तो वो कितना खुश हो जाएगी!"

    तो रामनाथ जी ने हा मे सर हिला दिया! फिर जानकी जी मीना जी से बोली, "अब तो ठीक है ना बड़ी बहू, अब तो तुम्हारे मन का डर ख़तम हो गया होगा!"

    तो मीना जी ख़ुशी से हा में सर हिलाते हुए बोली, "हा माँ आप सही कह रही हैं!" यहाँ पर तो सभी सिड अपने घर का सदसय बनाने के लिए ख़ुशी मना रहे थे! इस बात से अंजान की आगे क्या होने वाला था!

    रात के 10 बजे हो चुके थे! अपना सारा काम निपटा के मीना जी नंदिता और सिड का इंतजार कर रही थी! वो हाल में चक्कर काटते हुये बोली, "ये बच्चे कहा रह गए, सिड तो बच्चा है, लेकिन नंदिता उसको तो समझना चाहिए, इतनी रात तक बच्चों को बाहर नहीं घुमना चाहिए कहा था मैंने जल्दी आ जाना, आने दो दोनों को बताती हूं उनको!"

    वो अभी बोल ही रही थी कि दरवाजे से नंदिता आई! मीना जी नंदिता को देख कर आगे बढि थी कि उनके कदम वही रुक गए और उनकी आंखें बड़ी हो गई और अचानक से उनके मन को एक अनजाने डर ने घेर लिया!

    क्योंकि नंदिता बदहवास सी चली आ रही थी! उसके हाथ में कुछ बैग और बलून थे! चेहरे पर परेशानी, और पूरा शरीर पसीने से लथपथ!

    नंदिता को ऐसे देख कर वो परेशान होते हुए उसके पास गई और उसको पकडते हुए बोली, "नंदिता क्या हुआ तुझे हा, तू ऐसे क्यों आ रही है!"

    फिर नदिता के पिछे देखते हुए बोली, "और सिड कहा है, उसको साथ में लाना चाहिए था ना, ऐसे बच्चों को अकेला नहीं छोड़ते है, कितनी बार समझाऊ तुझे हा!" मीना जी बोले जा रही थी, लेकिन नंदिता कुछ नहीं बोल रही थी!

    नंदिता के कुछ ना बोलने से मीना जी का डर बढ़ता जा रहा था! और अपने डर में वो नंदिता को जोर जोर से आवाज देने लगी! तभी भी नंदिता कुछ नहीं बोली तो मीना जी ने खिच के एक चाटा मारा और चिल्लाते हुए बोली, "नंदिता मैंने पूछा सिड कहा है सुन रही है!"

    सिड का नाम सुनते ही नंदिता जोर से चिल्लाई, "सिड मेरा बच्चा!" बोलते हुए वो वही जमीन पर बैठ गई और जोर जोर से रोने लगी!

    चाटे की आवाज और नंदिता की चीख से सब लोग हॉल में आ गए और नंदिता को ऐसे टूट के रोते हुए देख सब हैरान हो गए! सबको अंदाज़ा हो गया था कि बात कहीं ना कहीं सिड से जुड़ी हुई थी, लेकिन क्या!

    वही मीना जी भी नंदिता को एक टक देखे जा रही थी जैसे उनकी सोचने समझने की शक्ति चली गई हो! तभी जानकी जी अपनी नज़र घुमाते हुए बोली, "मीना बहू क्या हुआ नंदिता को और सिड ने कहा है क्या वो कमरे में है!"

    सिड का नाम सुनते हुए नंदिता उठते हुए बोली, "मेरा बच्चा, मेरा बच्चा मेरा इंतजार कर रहा होगा, कैसी मा हूं मैं अपने बच्चे को हि छोड़ के आ गई, मुझे जाना होगा!" बोलकर वो हड़बड़ी में जाने लगी!

    उसको ऐसे जाते हुए देख कर जानकी जी बोली, "अरे रोको उसे, ऐसे जाएगी तो खुद को नुक्सान पहुचा लेगी, रोको उसे!"

    जानकी जी की बात पर सुजाता जी गई और नंदिता का हाथ पकड़ते हुये बोली, "रुक नंदिता कहा जा रही है रुक!" और वो उसको खिचाते हुए अंदर लेके आने लगी!

    वही मीना जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था! नंदिता की हालत को देखते हुए जानकी जी मीना जी के कंधे को पकड़ के हिलाते हुए बोली, "बड़ी बहू कम से कम तुम तो होश में रहो, नंदिता को संभालना है!"

    जानकी जी की बात पर मीना जी ने एक बार उनको देखा फिर उठके नंदिता के पास जाने लगी! वही नंदिता बाहर जाने की कोशिश कर रही थी! इसलिए सुजाता जी ने उसके हाथ को टाइट पकड़ रखा था! जिससे वो जा ना पाए!

    नंदिता के गोरे गोरे हाथ पर सुजाता जी के उंगलियों के निशान पड़ गए, उसका चेहरा पूरा लाल हो गया था! आंखे आसुओ से भरी हुई थी और रोने की वजह से लाल भी हो गई थी!

    इसी में सिड की आवाज आई, "मा, मा, सिड तुमसे प्यार बहोत करता है मां!"

    क्या हुआ अचानक नंदिता को...? नंदिता की हालत देख कर क्या होगा शर्मा परिवार का...? और कहाँ से आयी सिड की आवाज़...?

  • 10. पहला कदम- Chapter 10

    Words: 1739

    Estimated Reading Time: 11 min

    आज जो नंदिता की हालत थी, वो किसी से देखी नहीं जा रही थी! यहां तक कि नंदिता के आंसू आज सुजाता जी की आंखों से भी छलक उठे थे!

    ऐसा नहीं था कि उनको नंदिता से कोई हमदर्दी थी, लेकिन उसको ऐसे सिड के लिए तड़पता देख सुजाता जी का दिल भी एक बार रो उठा!

    हट्टी-कट्टी सुजाता जी भी नंदिता को नहीं संभाल पा रही थी! वहीं जानकी जी के कहने पर मीना जी फिर से अपनी बेटी की ये हालत देख कर उनका दिल टूट कर बिखर रहा था! इसी में सुजाता जी के हाथ से नंदिता के लाए हुए बैग में से एक बैग गिर गया और उसमें से एक खिलौना निकल कर बाहर गिर गया!

    और वो बजने लगा - "मा मा मा सिड लव यू मां, आप सिड की मां और सिड आपका, आई लव यू मां" ये सुनते ही वहां पर मौजूद हर कोई शांत हो गया और वहां सिड की आवाज गूंजने लगी! सिड की आवाज सुनकर सबको एक पल के लिए लगा कि सिड आ गया! सब आंखों में चमक लिए दरवाजे की तरफ देखने लगे!

    लेकिन जैसे ही सबका ध्यान खिलौने पर गया फिर से सबके चेहरे पर उदासी छा गई!

    लेकिन जैसे ही वो आवाज बंद हुई! नंदिता एक उम्मीद से चारों तरफ देखते हुए आवाज लगाई, "मेरा बच्चा, मेरा बेटू, मां भी लव यू बेटू, आप कहां हो जल्दी आओ मां के पास, देखो मां को डर लग रहा है, आओ ना बेटू!" बोलते हुए वो चारों तरफ सिड को ढूंढने लगी!

    नंदिता का ऐसे खुद पर से काबू खोते देख मीना जी से रहा नहीं गया! वो नंदिता के पास गई और उसको पकड़ते हुए बोली, "नंदिता सिड घर पर नहीं है, नंदिता मेरी बात सुन, सिड घर पर नहीं है!"

    तभी नंदिता फिर से चिल्लाकर बोली, "घर पर नहीं है तो कहां गया मेरा बच्चा, हां, कहां गया?"

    फिर अपने दिमाग से जोर देते हुए बोली, "अरे हां मां, मैं तो भूल ही गई, वो घर पर कैसे होगा, वो तो बगीचे में झूला झूल रहा था, रुको मैं उसको लेकर आती हूं" और वो फिर से दरवाजे की तरफ जाने लगी!

    उसको फिर से बेकाबू होता देख मीना जी ने उसका हाथ पकड़ के अपनी तरफ खींचा और जोर से एक चांटा उसके गाल पर जड़ दिया! नंदिता की हालत तो सबने देख ली थी, लेकिन सवाल अभी भी वही था "क्या हुआ नंदिता को और सिड कहां है!" जिसका जवाब सिर्फ नंदिता दे सकती थी, लेकिन उसकी हालत को देख कर सब के मन को एक अनजाने डर ने घेर लिया था!

    मीना जी के थप्पड़ मारने पर बाकी सबने अपने मुंह पर हाथ रख लिया, नंदिता भी उनको देखने लगी! तभी मीना जी उसकी बाजू पकड़ के उसको हिलाते हुए बोली, "नंदिता होश में आ और बता सिड कहां है, सुन रही है, बता क्या हुआ, सिड कहां है?" वो अपने हाथ से चारो तरफ दिखाते हुए बोली!

    आंसू तो मीना जी के भी नहीं रुक रहे थे! लेकिन नंदिता की हालत देख कर उन्होंने खुद को संभाल रखा था!

    वहीं मीना जी का सवाल सुनकर नंदिता रोने लगी और रोते हुए बोलने लगी, "मार्केट में घूमने के बाद हम गार्डन में चले गए थे! सिड स्लाइड पर खेल रहा था और मैं उसके सामने वाली बेंच पर ही बैठी थी! मेरी नजर हर पल सिड पर थी, तभी मेरा फोन बजा, मैंने चेक किया तो कोई अनजान नंबर था, इसलिए मैंने कॉल कट कर दिया और फिर से सिड को देखने लगी! सिड भी खेल रहा था, बहुत खुश लग रहा था मेरा बच्चा!"

    तभी फिर से मेरा फोन रिंग किया तो मैंने इग्नोर कर दिया लेकिन बार-बार उस नंबर से कॉल आने लगा तो गुस्से में मैंने कॉल रिसीव कर लिया! लेकिन सामने से कोई नहीं बोल रहा था! मैं अभी सिड को देखते हुए कॉल पर बोल ही रही थी कि वहां कुछ औरतें झगड़ा करने लगी! और देखते देखते वहां भीड़ जमा हो गई!"

    बोलते बोलते नंदिता अब खांसने लगी तो सुजाता जी जल्दी से उसके लिए पानी लायी और मीना जी को देते हुए बोली, "दीदी उसको पानी पिला दीजिए कब से रो रही है गला सूख गया होगा" तो मीना जी हां में सर हिलाते हुए सुजाता जी से पानी का गिलास लेकर नंदिता को पिलाने लगी!

    नंदिता ने भी एक झटके में वो पूरा पानी पी लिया! नंदिता को पानी पिलाने के बाद मीना जी उसका सर सहलाते हुए बोली, "उसके बाद क्या हुआ नंदिता?"

    तो नंदिता फिर से रोते हुए बोली, "मां वहां अचानक से भीड़ देख कर मैंने तुरंत फोन बैग में रखा और सिड को ढूंढने लगी! लेकिन वो मुझे नहीं दिखा, मैंने पूरा गार्डन देख लिया लेकिन वो मुझे नहीं मिला, मुझे लगा शायद वो फिर से गुब्बारे वाले के पास तो नहीं चला गया, इसलिए मैंने वहां जाकर चेक किया, लेकिन मुझे मेरा बच्चा नहीं मिला!"

    फिर नंदिता मीना जी को जोर से पकड़ के बोली, "मां मेरा बच्चा कहां चला गया, वो मुझे कहीं नहीं मिला, उसने कहा था कि मैं उसकी मां हूं, तो वो मुझे छोड़ के कहां चला गया, मां मेरा बच्चा, मेरा बच्चा!" बोलते बोलते उसकी आवाज धीमी होती जा रही थी और देखते-देखते वो बेहोश हो गई!

    नंदिता को बेहोश देख कर मीना जी की सांस अटक गई! नंदिता की बात सुनकर सबके होश उड़ गए और नंदिता के बेहोश होने से सब और परेशान हो गए!

    मीना जी नंदिता के गाल को थपथपाते हुए बोली, "नंदिता, नंदिता क्या हुआ नंदिता उठ ना नंदिता!"

    तभी जानकी जी उनके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, "बड़ी बहू वो कब से रो रही है और ऊपर से सिड के बिछड़ने का गम, चिंता मत करो थोड़ी देर में होश में आ जाएगी!"

    तो मीना जी चिंता करते हुए बोली, "कैसे ना करु मा आपने देखा ना क्या हालत हो गई है इसकी, और पता नहीं सिड भी कहां है!"

    फिर उसके चेहरे को निहारते हुए बोली, "ये ठीक तो हो जाएगी ना मा, इसको अगर कुछ हो गया तो मैं क्या करुगी, मेरी तो दुनिया ही उजड़ जाएगी!" बोलते बोलते उनका गला रूंध गया था!

    तो जानकी जी, मीना जी को हल्के से डांटते हुए बोली, "तुम ऐसा क्यों सोच रही हो हां, ये ठीक हो जाएगी, और सिड भी मिल जाएगा, अभी चलो इसको कमरे मे ले चलते है!"

    वहीं सुजाता जी कुछ नहीं बोल रही थी! उनको नंदिता के लिए बुरा लग रहा था लेकिन उनका इस वक्त ना बोलना ही ठीक था, इसलिए वह चुप थी!

    जानकी जी के कहने पर मीना जी और सुजाता जी मिलकर नंदिता को कमरे में लेकर चले गए और उसको बिस्तर पर लिटा दिया! सुजाता जी तो रूम से चली आई! लेकिन मीना जी वही नंदिता के सिरहाने बैठ कर उसके सर को सहलाते हुए बोली, "मेरी बच्ची पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि माधव(कृष्ण) ने सारे दुख तेरे ही हिस्से में लिखे हैं, पता नहीं उनकी क्या मर्जी है" और वो वही बैठ के उसके सर को सहलाते हुए उसे देखने लगी!

    और हाल ही में सब परेशान थे, लेकिन किसी को समझ मे नहीं आ रहा था कि आखिर सिड गया कहां! तभी राजेंद्र जी अंदाज़ा लगाते हुए बोले, "ऐसा तो नहीं कि भीड़ की वजह से सिड भी नंदिता को ढूंढने लगा हो, हमें एक बार फिर से चलकर देखना चाहिए, शायद सीड वही होगा!"

    तो रामनाथ जी उनकी बातों से सहमति जताते हुए बोले, "हा तुम ठीक बोल रहे हो, ऐसा हो सकता है, चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं" और वो दोनों निकल गए, जाते-जाते राजेंद्र जी ने नंदिता का फोन अपने पास रख लिया!

    वही जानकी जी भी परेशान होती हुई बोली, "ये क्या हो रहा है मेरी बच्ची के साथ, क्या उसकी जिंदगी में परेशानी कम थी, जो भगवान उसे और दुख दे रहे हैं!"

    फिर भगवान जी से प्रार्थना करते हुए बोली, "हे गोपाल मेरी बच्ची को उसका बच्चा वापस दे दीजिए, वो नहीं रह पाएगी उसके बिना!"

    वही सुजाता जी भी अपने मन में बोली, "हा मै नहीं चाहती थी की सिड इस घर में रहे, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उसको कुछ हो जाए, भगवान करे वो ठीक रहे और जल्दी से मिल जाए!"

    वही अभिराज फिर से उसी कमरे में था! जहां वो कपल की फोटो लगी हुई थी, और वो फोटो को देखते हुए अभिराज बोला, "हमारे बदले की शुरुआत हो गई है ये तो बस पहला कदम था, और उसकी हालत खराब हो गई, आगे तो अभी बहुत कुछ है, उसने सोचा भी नहीं होगा की उसकी एक गलती की उसको कितनी बड़ी सजा मिलने वाली है!" बोलकर वो डेविल स्माइल करने लगा!

    और कुछ देर रुक कर वो वहां से चला गया! वो रूम से बाहर निकल कर अभिराज ने किसी को कॉल किया और कॉल कनेक्ट होते ही बोला, "पेपर्स तैयार है ना और बाकी की चीजे भी रेडी करो" बोलकर उसने कॉल कट कर दिया!

    फिर एक मिस्ट्रियस स्माइल करते हुए बोला, "कल से तुम्हारी जिंदगी बदले वाली है मिस नंदिता शर्मा, अभी तो शुरुआत है, आगे-आगे देखो मै क्या करता हूं तुम्हारे साथ!"

    लगभग 2 घंटे बाद रामनाथ जी और राजेंद्र जी घर वापस आये, उनको देखते ही जानकी जी जल्दी से उनके पास आते हुए बोली, "कहा है सिड, आप दोनों को मिल गया ना?"

    तो राजेंद्र जी ना में सर हिलाते हुए बोले, "नहीं मा हमने हर जगह देख लिया, लेकिन सिड का कुछ पता नहीं चला!"

    फिर रामनाथ जी को देखते हुए बोले, "बाऊ जी एक काम करता हूं पुलिस स्टेशन जाके मिसिंग कैम्पलेंट लिखवा देता हूं, बच्चा है तो पुलिस भी जल्दी से कार्रवाई करेगी" बोलकर वो निकल गए!

    वही जानकी जी की भी हिम्मत अब जवाब दे दी और वो रोते हुए बोली, "पता नहीं कहां होगा हमारा सिड, क्यू किस्मत हमेशा हमारे साथ ही ऐसा ही करती है ख़ुशी हमारे दरवाजे तक आकर भी उल्टे पाँव वापस चली जाती है!"

    आखिर गार्डन से सिड कहां चला गया....?

    क्या शर्मा परिवार सिड का पता लगा पायेगा...?

    आख़िर क्या करने वाला है अभिराज...?

  • 11. मिनियन लवर Chapter 11

    Words: 1641

    Estimated Reading Time: 10 min

    नंदिता बेहोश थी और मीना जी अभी भी नंदिता के सिरहाने बैठी हुई थीं और वो नंदिता को देखते हुए उसके सर पर हाथ फेर रही थीं!

    वो नंदिता को देखते हुए अपने मन में बोलीं, "अब तुझसे तेरी खुशियाँ मैं किसी को भी छीनने नहीं दूंगी चाहे, उसके लिए मुझे जो करना पड़े," बोलकर वो हॉल में आकर सीधे मंदिर में चली गईं!

    और भगवान से शिकायत करते हुए बोलीं, "क्यों किया आपने मेरी बेटी के साथ ऐसा, हां बताइए ना क्यूँ किया, क्या मैंने आपकी भक्ति नहीं की हां, बोलिए क्या मेरी बेटी ने आप की भक्ति नहीं की?"

    फिर अपना हाथ जोड़ते हुए बोलीं, "हमने तो सच्चे मन से आपकी भक्ति की फिर भी आपने ऐसा क्यों किया, उसको दो पल की खुशी देकर फिर से अंधेरे कोठरी में धकेल दिया, जब आपको मेरी बच्ची को खुशी देनी ही नहीं थी, तो क्यों लेकर आए आप सिड को उसकी जिंदगी में क्यों?"

    फिर प्रार्थना करते हुए बोलीं, "बस करिये माधव और परीक्षा मत लीजिये मेरी बेटी की, उसकी खुशियाँ लौटा दीजिये, सिड को सही सलामत हमारे पास वापस से भेज दीजिये," बोलकर वो रोने लगीं!

    वहीँ नंदिता को बेहोशी में कुछ धुंधला सा दिखा, फिर उसको धीरे-धीरे सिड का हस्ता हुआ चेहरा दिखने लगा!

    सिड को देखते ही उसकी आँखों में चमक आ गई और वो खुशी से उसको आवाज़ देते हुए बोलीं, "मेरा बच्चा, मेरा सिड आओ माँ के पास आओ, देखो माँ ने वही सब लिया है जो आपने कहा था," बोलकर वो बैग से खिलौना निकाल कर दिखाने लगी!

    और दिखाते हुए बोलीं, "ये देखो बलून, ये देखो खिलौना, ये देखो तुम्हारे कपड़े और ये देखो तुम्हारी पसंदीदा चॉकलेट," नंदिता खुशी से दिखा रही थी! वहीँ सिड भी खुशी-खुशी नंदिता के पास आ रहा था!

    वो नंदिता के पास आता उससे पहले ही उनके बीच एक आदमी आया जिसका चेहरा नहीं दिख रहा था! वो सिड को अपनी गोद में उठाया और नंदिता से दूर ले जाने लगा!

    वहीँ सिड को खुद से दूर जाता देख नंदिता चिल्लाते हुए बोलीं, "नहीं सिड, नहीं मत लेकर जाओ मेरे सिड को, मेरा बच्चा!" नंदिता सिड का नाम लेते हुए रो रही थी, सिड भी नंदिता को रोते हुए आवाज दे रहा था! वहीँ वो आदमी सिड को लेकर अँधेरे में कहीं गुम हो गया!

    सिड के अँधेरे में गुम होते ही नंदिता चीखते हुए उठी, "नहीं सिड मेरा बच्चा!"

    नंदिता की चीख सुनकर जानकी जी, सुजाता जी, मीना जी सब कमरे में आये तो देखा कि नंदिता एकटक सामने देख रही थी! डर उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था और वो डर से काँप भी रही थी!

    अचानक वो बिस्तर से उतर कर दरवाजे की तरफ भागने लगी! वो आगे जा पाती उससे पहले ही मीना जी उसका हाथ पकड़ते हुये बोलीं, "नंदिता रुक जा कहा जा रही है?"

    तो नंदिता दरवाज़े की तरफ दिखाते हुये डरी हुई आवाज में बोलीं, "मां वो देखो, वो सिड को लेकर जा रहा है, वो मुझ से मेरे सिड को छीन लेगा, मुझे जाने दो नहीं तो वो मेरे सिड को लेकर चला जाएगा," बोलकर वो रोने लगी!

    मीना जी नंदिता की हालत को समझ रही थीं! लेकिन नंदिता को शांत करने के लिए वो गुस्से में नंदिता को हिलाते हुए बोलीं, "नंदिता होश में आ वहा कोई नहीं है!"

    फिर प्यार से उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर बोलीं, "मेरी बात सुन बेटा, देख वहा कोई नहीं है!" मीना जी के ऐसे करने से नंदिता एक दम से शांत हो गई!

    फिर दरवाजे की तरफ देखने लगी और वहा देखते हुए अचानक से वही जमीन पर बैठ कर रोने लगी!

    इस वक्त सिड का कोई पता न लगने की वजह से सब परेशान थे! लेकिन नंदिता को देख कर सबका दिल बैठा सा जा रहा था! क्योंकि उसकी हालत खराब होती जा रही थी!

    वहीँ रामनाथ जी भी हाल में बैठे हुए थे! लेकिन उनको नंदिता की आवाज सुनाई दे रही थी और वो उनके कानों में तीर के जैसे लग रही थी!

    वो ऊपर की तरफ देखते हुए बोले, "कहा मै आज उसको उसकी खुशी देने वाला था, वही आपने उसकी झोली मे दुख डाल दिए!" उनकी आंखों से भी आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे और ऐसा होता भी क्यों नहीं, कुछ ही दिनों में सिड सबकी जान जो बन गया था!

    2 घंटे बाद राजेंद्र जी भी रिपोर्ट लिखा कर आ गए! वहीँ नंदिता ने रोना तो बंद कर दिया था! लेकिन सिड की सारी चीजों को लेकर बैठी थी, और उनको निहारे जा रही थी!

    नंदिता की हालत को देखते हुये जानकी जी भरे गले से बोलीं, "एक महीना ही हुआ था सिड को हमारे घर आ के लेकिन वो हम से ऐसे घुल मिल गया था जैसे इसी घर का बच्चा हो जब हमारी ये हालत हो रही है तो नंदिता वो तो उसकी माँ बन चुकी है तो दर्द तो उसे होगा ही!"

    मीना जी के मुंह से तो शब्द ही नहीं निकल रहे थे! सुजाता जी भी चुप थीं क्योंकि उनको कहीं ना कहीं पता था कि अगर उन्होंने कुछ गलत कहा तो उनपर ही भारी पड़ेगा इसलिए वो अभी के लिए चुप ही थी, राजेंद्र जी की भी आंखे नम थी!

    तभी सुजाता जी सबसे बोलीं, "देखिए मुझे पता है कि किसी का मन तो नहीं होगा लेकिन खाना तो पड़ेगा ना, इसलिए कृपया आप लोग थोड़ा कुछ खा लीजिए!"

    तो रामनाथ जी ना में सर हिलाते हुए बोले, "नहीं छोटी बहू मेरे गले से तो एक भी निवाला नहीं उतरेगा" और वो उठकर अपने कमरे की तरफ चले गए!

    उनके पीछे जानकी जी भी और राजेंद्र जी भी ना मे सर हिलाते हुए निकल गए! अब बची मीना जी, सुजाता जी उन्हें कुछ कहतीं, उससे पहले ही वो गुस्से से उठकर अपने कमरे में चली गईं! और उनके गुस्से की वजह सुजाता जी अच्छे से समझ रही थीं!

    आज की रात किसी काली रात से कम नहीं थी शर्मा परिवार के लिए, आज की रात का एक-एक पल काटना सबके लिए पहाड़ काटने जैसा था!

    बड़े लंबे इंतजार के बाद आज की सुबह हुई!

    मीना जी नहाकर जब मंदिर में आई तो उन्होंने देखा कि नंदिता वही बैठी थी! लेकिन उसकी हालत ठीक नहीं थी, चेहरा मुर्झा गया था लेकिन आँखों में उम्मीद अभी भी थी! और इसी उम्मीद में वो आरती की तैय्यारी कर रही थी!

    नंदिता को ऐसे देख कर मीना जी का दिल सौ टुकडो में टूट रहा था! फिर भी वो हिम्मत करके आई और नंदिता के कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं, "आज तू रहने दे बेटा मै कर लूंगी!"

    तो नंदिता ना में सर हिलाते हुए बोलीं, "नहीं मां आरती तो मैं ही करूंगी" और सारी तैय्यारी करने के बाद वो गोपाल की मूर्ति को देखते हुए आरती करने लगी!

    वहीँ एक आलीशान घर के एक खुबसूरत से कमरे में बिस्तर पर एक बच्चा जिसकी उम्र लगभग पांच साल होगी वो सोया हुआ था! वो कमरा दिखने मे बहोत प्यारा लग रहा था! कमरे की दीवार का रंग नीला, पीले कलर के पर्दे, एक साइड कोने में छोटा सा टेंट जिसको बहुत हि खुबसुरती से सजाया गया था, एक साइड में स्कूल से संबंधित चीजे और डेस्क, फेयरी लाइट के साथ कुछ तस्वीरे लगी हुई थी! बिस्तर पर मिनियंस का बेडशीट और कंबल, बहुत सारे मिनियंस के खिलौने, देखने से ऐसा लग रहा था कि वो बच्चा मिनियन लवर है!

    उसी घर के दूसरे कमरे में अभिराज कहीं जाने के लिए तैयार हो रहा था! थोड़ी देर में वो तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आया और बाहर जाने लगा की तभी उसकी मां अंजना रॉय चौधरी उसे रोकते हुये बोलीं, "रुक जा अभी इतनी सुबह सुबह कहा जा रहा है, देख मेरी बात सुन अपने दिमाग को थोड़ा शांत रखा कर इतना गुस्सा सेहत के लिये ठीक नहीं है!"

    तो अभिराज रुक कर उनको समझाते हुए बोला, "मा अब तक जैसा आपने कहा मैंने सुना ना, तो अभी मै जो कर रहा हूं, कृपया मुझे करने दीजिए और मै अच्छी तरह से जानता हूं कि मै क्या कर रहा हूं" और वो वहां से निकला गया!

    अभीराज को इस तरह से जाते हुए देख कर अंजना जी परेशानियाँ भरे लहज़े में अपने आप से बोलीं, "ये गुस्से में कुछ ऐसा ना कर दे जिसके लिए इसको बाद में पछताना पड़े" और पता नहीं क्या सोचते हुए उनके माथे पर परेशानी की लकीरें आ गयीं! और वो कुछ देर तक वही देखती रहीं जहां से अभिराज गया था!

    नंदिता तैयार होकर कही जा रही थी! तो जानकी जी उसको आवाज देते हुए बोलीं, "नंदिता कहा जा रही है तू, तेरे दादा जी और चाचा गए हैं पुलिस स्टेशन तू चिंता मत कर सिड मिल जाएगा!"

    उसपर नंदिता बोली, "नहीं दादी वो लोग तो अपना काम करेंगे, लेकिन मै ऐसे हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठ सकती ना, अपनी तरफ कोशिश तो मुझे भी करनी होगी ना क्यूकी बेटा मेरा खोया है!"

    वो बोल ही रही थी कि उसका फोन बजा! नंदिता ने कॉल पिक किया और हड़बड़ी में निकलने लगी! उसको हड़बड़ी करते देख जानकी जी बोलीं, "क्या बात है नंदिता ऐसे हड़बड़ी में कहा जा रही है?" लेकिन नंदिता बिना कोई जवाब दिए निकल गई! वहीँ नंदिता के ऐसे जाने से दादी जी परेशान हो गईं!

    आखिर क्यों परेशान हो गई अभिराज की मां ......और नंदिता को ऐसा किसका फोन आया और वो कहां चली गई.....? जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ....

  • 12. चोरी का इल्जाम - Chapter 12

    Words: 1762

    Estimated Reading Time: 11 min

    आगे,

    सिड के न मिलने से नंदिता वैसे ही परेशान थी और अब ये फोन कॉल!

    वही जानकी जी को नंदिता का अकेले सिड को ढूंढ़ने जाना ठीक नहीं लग रहा था। उनके फोन कॉल के बारे में पूछने पर भी नंदिता कुछ नहीं बोली और जल्दी से निकल गई!

    वो जा ही रही थी कि सुधीर से टकरा गई जो काम पर से वापस आ रहा था। टकराने के बावजूद उसने सुधीर पर ध्यान नहीं दिया!

    वो कुछ नहीं बोली और वहां से चली गई! नंदिता को ऐसे हड़बड़ी में जाते देख सुधीर अंदर आया और जानकी जी को देखते ही बोला, "दादी ये दी को क्या हुआ, देखने से लग रहा था उनकी तबीयत ठीक नहीं है, कल तक तो ठीक थी और वो ऐसे हड़बड़ी में कहां जा रही है?"

    सुधीर की बातें सुनकर जानकी जी परेशान होते हुए वहीं कुर्सी पर बैठी और सुधीर को अपने बैठने का इशारा करते हुए बोलीं, "क्या बताऊं सुधीर पता नहीं उसकी जिंदगी भी उससे कैसे इम्तिहान ले रही, खुशी एक पल के लिए भी उसके पास नहीं रुकती।" सुधीर को जानकी जी की बात बिल्कुल समझ में नहीं आ रही थी!

    और आती भी कैसे, उसे कुछ पता ही नहीं था कि उसके काम पर जाने के बाद घर में क्या हो गया! लेकिन जानकी जी को परेशान देखकर वो समझ गया था कि जरूर कुछ बड़ा हुआ है!

    वो जानकी जी का हाथ पकड़ के उनके सामने बैठते हुए बोला, "दादी क्या बात है वह दी परेशान दिख रही थी और यहां आप भी, बताइए ना क्या बात है!"

    तो जानकी जी आंखों में आंसू लिए जो कुछ भी हुआ वो सब बता दिया! सब जानने के बाद सुधीर के होश उड़ गए और वो भी परेशान होते हुए बोला, "फिर दी अभी कहां गई और सिड का कुछ पता चला या नहीं?" अब उसको नंदिता के लिए बहुत चिंता होने लगी!

    जानकी जी ना में सर हिलाते हुए बोलीं, "ये तो मुझे भी नहीं पता कि वो कहां गई, वो बोल रही थी कि सिड को ढूंढने जाएगी, तभी उसे किसी का कॉल आया और वो हड़बड़ी में चली गई!"

    जानकी जी की बात पर सुधीर अपने सर पर हाथ रखते हुए बोला, "यार ये दी भी ना, कहां ढूंढेगी सिड को, अगर बता के जाती कि वो कहां जा रही है, तो मैं भी उनके पास चला जाता," और वही अपने सर पर हाथ रख कर कुछ सोचने लगा!

    वही नंदिता रिक्शा में थी वो कॉल के बारे में सोचते हुए ख़ुद से बोली, "ये पुलिस इंस्पेक्टर ने मुझे इतनी जल्दी क्यों बुलाया क्या बात होगी कहीं सिड का पता तो नहीं चल गया!"

    सिड का नाम आते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और ये सोच कर कि सिड के बारे में पता चल गया उसके दिल में ख़ुशी की लहर दौड़ गई!

    सुधीर अभी भी परेशान था कि तभी वो अपना सामान उठाया और अपने रूम में चला गया! और थोड़ी देर बाद वो वापस आ के जानकी जी से बोला, "दादी मै कुछ काम से बाहर जा रहा हूं थोड़ी देर में आ जाऊंगा," बोलकर वो जाने लगा!

    तभी सुजाता जी उसको आवाज देते हुये बोलीं, "रुक जा सुधीर!"

    सुजाता जी की आवाज सुनकर सुधीर अपनी आँखे बंद करके खुद को शांत करते हुए बोला, "नहीं मा अभी नहीं बाद में बात करते हैं!"

    तो सुजाता जी उसके सामने आते हुये बोलीं, "बाद में क्यों मुझे अभी बात करनी है, और मैं ये चाहती हूं कि तू इस मामले में मत पड़, तेरे दादा जी और तेरे पिता जी हैं वो देख लेंगे, इसलिए तु चुपचाप अंदर जा और अपने खुद के काम पर ध्यान दे समझा।" सुधीर को यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसे वक्त पर भी उसकी माँ नदिता से अपना गुस्सा निकालने पर लगी थी!

    जानकी जी भी सुजाता जी की बातों पर ना में सर हिलाते हुए बोलीं, "ये नहीं सुधरेगी!"

    सुधीर भी हैरान होते हुए बोला, "सच में मां आप अभी भी!"

    फिर अपने सर पर हाथ रखते हुए बोला, "मा मना की आपको नंदिता दी पसंद नहीं है, लेकिन ऐसी भी क्या नाराज़गी या गुस्सा कि ऐसे वक्त में भी आपको उनसे कोई हमदर्दी नहीं है।" सुधीर की बात सुनकर सुजाता जी की आंखें बड़ी हो गईं!

    वो गुस्से से सुधीर पर चिल्लाते हुए बोलीं, "बस कर सुधीर कुछ भी बोले जा रहा है हा, माना मुझे नंदिता पसंद नहीं और मै उससे नाराज हूं, लेकिन उसकी वजह भी सबको पता है, लेकिन जब मैने नंदिता को कल उस हाल में देखा तो एक पल के लिए मेरा दिल भी उसके दर्द में डूब गया और तू कह रहा है कि मुझे फ़र्क नहीं पड़ा!"

    सुजाता जी की बातों पर सुधीर उनको टोंट मारते हुए बोला, "सच में मां आपको नंदिता दी से दर्द हो रहा था!"

    तो सुजाता जी ने वैसे ही हा में सर हिला दिया! तो सुधीर हल्के गुस्से में बोला, "बस भी करिए मा, क्या मैं आपको नहीं जानता कि आपको कितना फर्क पड़ा होगा उनके दर्द से," बोलकर वो वहां से जाने लगा!

    वो कुछ कदम आगे जाकर रुक गया और पलटे बिना हि बोला, "और माँ दी की गलती ना तब थी ना अब," बोलकर वो वहा से निकला गया!

    वही सुजाता जी बस उसको देखते रह गई! वही मीना जी भगवान के सामने बैठी सिड की सलामती की दुआ मांग रही थी!

    वही जब अपनी आंखो में उम्मीद के लिए नंदिता पुलिस स्टेशन पहुंची तो उसको थोड़ा अजीब लगा! लेकिन सारे चिजो को साइड रखते हुए वो सिड को फिर से पाने की खुशी में वो जल्दी जल्दी पुलिस स्टेशन के अंदर जाने लगी!

    वो अंदर जाके सीधे इंस्पेक्टर के केबिन में जाते हुए बोली, "इंस्पेक्टर साहब, क्या मेरा बेटा मिल गया, प्लीज बताइएं ना वो कहां है, मुझे मेरे बेटे मिलना है, पता नहीं कैसा होगा वो कहीं रो रो के अपनी तबीयत ना खराब कर लिया हो," वो सिड की फ़िक्र में सिड के बारे में बोले जा रही थी!

    वही इंस्पेक्टर अपनी आंखें छोटी करके गौर से नंदिता की बाते सुने जा रहा था! तभी राजेंद्र जी की आवाज आई "नंदिता!"

    राजेंद्र जी की आवाज सुन के नंदिता नजर घूमा के देखि तो!

    एक तरफ राजेंद्र जी और रामनाथ जी को बिठा के रखा गया था और उनके बगल में 2 हवलदार खड़े थे! उनको ऐसे देखकर नंदिता कन्फ्यूज होते हुए उनके पास जाके पूछी, "आप लोग ऐसे यहां क्यु क्यों बैठे हैं!"

    फिर अपनी खुशी ज़ाहिर करते हुए बोली, "आपको पता है चाचा जी और दादा जी इंस्पेक्टर सर को ना सिड के बारे में पता चल गया है, अब ना सिड बहुत जल्दी ही हमारे पास होगा!"

    जहां नंदिता खुश हो रही थी! वही रामनाथ जी और राजेंद्र जी परेशान और उदास थे!

    इंस्पेक्टर नंदिता के सामने आते हुए बोला, "अच्छा तो आपको इनको जानती है!"

    तो नंदिनी बोली, "हां ये मेरे परिवार वाले हैं!"

    तो इंस्पेक्टर अपनी आइब्रो उचकाते हुए बोला, "अच्छा तो फिर आपको ये भी पता होगा कि ये यहां क्यू है!"

    तो नंदिता हा मे सर हिलाते हुए बोली, "हा इंस्पेक्टर मुझे पता है, ये यहां मेरे बच्चे की मिसिंग रिपोर्ट लिखवाने आये थे!"

    तो इंस्पेक्टर ऊंची आवाज में बोला, "जी नहीं ये यहा इस्लिए है कि इन्होने बच्चा चोरी किया है, इसके लिए हमने इनको यहां पकड़ रखा है!"

    इंस्पेक्टर की बात सुनकर नंदिता हैैरान हो गई! और एक बार रामनाथ जी और राजेंद्र जी को देखते हुए बोली, "क्या आप क्या बोल रहे हैं इंस्पेक्टर, ऐसे कैसे हो सकता है, और आपसे किसने कहा कि इन्होने बच्चा चोरी किया है!"

    तभी इंस्पेक्टर के पीछे से आवाज आई "क्योंकि मैंने कहा!" आवाज सुनकर नंदिता ने इंस्पेक्टर के पीछे देखा तो एक वकील खड़ा था!

    वो वकील आगे आते हुए बोला, "जी आपके परिवार वालो ने बच्चा चोरी किया है!"

    अब तो नंदिता का दिमाग घूम गया वो गुस्से में जोर से बोली, "आप ऐसे कैसे बोल सकते है हा ऐसे हि किसी पर भी बच्चा चोरी का इल्जाम कैसे लगा सकते है!"

    तभी वो वकील बोला, "देखिये मैडम मुझे सिर्फ ये पता है कि मेरे क्लाइंट ने इनपर बच्चा चोरी का इल्ज़ाम लगाया है, तो कृपया मुझे मेरा काम दीजिए!"

    बोलकर वो इंस्पेक्टर के साथ कुछ औपचारिकताएं पूरी करने जाने लगा! तभी नंदिता वकील के सामने जाते हुए बोली, "ठीक है, आप अपना काम कीजिए, लेकिन मुझे ये तो बता दीजिए की शिकायत करने वाले का नाम क्या है!"

    नंदिता को ऐसे अपने परिवार के लिए लड़ते हुए देख रामनाथ जी अपने मन में बोले, "किस मिट्टी की बनी है तू मेरी बच्ची, तू खुद अपने बेटे के लिए परेशान है, टूटी हुई है, लेकिन यहां हमारे लिए भी खड़ि है।" इस वक्त उनको नंदिता पर बहुत गर्व हो रहा था!

    नंदिता अभी वकील से बात कर हि रही थी कि एक रोबदार आवाज आई "मैंने लिखवाई है शिकायत!"

    तो नंदिता के साथ बाकी सबने उसकी तरफ देखा तो वहा अभिराज खड़ा था! अभिराज को देखते हि उसका वकील उसके पास जाते हुए बोला, "सर जैसा आपने कहा था वैसा हो गया है!"

    फिर वो रामनाथ और राजेंद्र जी को दिखाते हुए बोला, "सर यही वो लोग है जिन्होने बच्चा चोरी किया था!"

    ये सुनाते हि नदिता गुस्से में अभिराज के सामने जाते हुए बोली, "देखिए आपको कोई गलतफहमी हुई है, ये लोग ऐसा नहीं कर सकते इन्होने कोई बच्चा चोरी नहीं किया," नंदिता बोले जा रही थी वही अभिराज नंदिता को गुस्से में देखे जा रहा था!

    नंदिता अभी बोल रही थी थी कि अभिराज ने अपने वकील के कान में कुछ बोला तो उसने हा मे सर हिला दिया! फिर वो वकील इंस्पेक्टर से बोला "इंस्पेक्टर मेरे क्लाइंट इनसे कुछ बात करना चाहते हैं" तो इंस्पेक्टर ने हा मे सर हिलाते हुए सबको इशारा किया!

    तो सब वहां से चले गए! अब वहा रामनाथ जी, राजेंद्र जी अभिराज और नंदिता हि थे! तभी अभिराज ने कुछ ऐसा बोला जिसे सुनकर नंदिता की आंखें बड़ी हो गईं और रामनाथ जी और राजेंद्र जी हैरान हो गए!

    आख़िर क्यों सुजाता जी नंदिता से नाराज़ हैं? क्या सुधीर नंदिता को ढूंढ पायेगा? क्या नंदिता अपने परिवार को बचा पायेगी और ऐसा क्या कहा अभिराज ने जो नंदिता के होश उड़ गए?

  • 13. किडनैप किया है - Chapter 13

    Words: 1690

    Estimated Reading Time: 11 min

    अभिराज के कहने पर उसका वकील पुलिस वालों के साथ बाहर चला गया।

    पुलिस वालों के बाहर जाते ही अभिराज ने नंदिता की तरफ एक कदम आगे बढ़ाया, वहीं नंदिता अभिराज को देखते हुए अपने कदम पीछे ले ली!

    नंदिता अभिराज को देखते हुए अपने मन में बोली, "ये कौन है और मेरे परिवार ने इसका बच्चा कैसे चुराया?"

    फिर एक पल के लिए उसके दिल से आवाज आई, "कहीं ये सिड की बात तो नहीं कर रहा है?" फिर अपने ख्यालों को झटकते हुए बोली, "नहीं ऐसा नहीं हो सकता, भला सिड से इसका क्या लेना देना।" नंदिता अपने ख्यालों में थी, वहीं अभिराज अपनी आंखों में गुस्सा लिए नंदिता को देख रहा था!

    वही वो बच्चा उठ गया था और उठते ही उसने आवाज लगाई, "माँ आप कहा हो माँ, देखो सिड उठ गया है, आप कहा हो?" सिड के लगातार आवाज देने से जब उसको नंदिता नहीं दिखी और ना तो आवाज आई तो वो जोर से रोने लगा और गुस्से में सारी चीजें इधर से उधर फेंकने लगा!

    कुछ ही देर में उसने वो प्यारे से कमरे को तहस नहस कर दिया था! सारी चीजें बिखर गई थी, तभी वो कमरे के अंदर एक औरत आई और वह कमरे के अंदर का नजारा देख कर हैरान हो गई!

    वो औरत अपने सर पर हाथ रखते हुए बोली, "हे भगवान ये क्या हाल बना दिया है कमरे का!"

    वो औरत की आवाज सुनते ही सिड उनके ऊपर एक खिलौना फेंकते हुए बोला, "जाओ यहां से, मुझे यहां क्यूं लेकर आये, मुझे नहीं रहना है यहां, मुझे मेरी माँ चाहिए सिड को उसकी माँ चाहिए!"

    और सिड माँ चाहिए माँ चाहिए बोलकर वो औरत के ऊपर और खिलौने फेकने लगा! सिड के ऐसा करने से वो औरत परेशान होते हुए बोली, "बस करो सिड, ऐसा मत करो, देखो मेरी बात सुनो!"

    बोलकर वो जैसे ही सिड की तरफ बढ़ी तो सिड एक खिलौना कार उठा के उनकी तरफ फेंक दिया! जो जाकर सीधे उनके सर पर लगी और वो औरत अपने सर को सहलाते हुए गुस्से में बोली, "बस बहुत हुआ तुम्हें मां चाहिए ना, नहीं मिलेगी मां समझे, चुपचाप यहीं रहो, बड़े आए मां वाले" और वो गुस्से में बड़बड़ करते हुए वहां से चली गई!

    वो औरत के जाते ही सिड फ्लोर पर बैठते हुए बोला, "मा आप कहा चली गई, सिड को आपके पास आना है, सिड को दादू और दादी चाहिए सिड को मां चाहिए।" उसकी बड़ी-बड़ी आंखे आंसुओं से भर गई थी और रोने से उसका गोरा चेहरा पूरा लाल हो गया था!

    वही पुलिस स्टेशन में नंदिता समझने की कोशिश कर रही थी कि आखिर अभिराज को उस से चाहिए क्या! वो अपने मन की सारी बातों को साइड करते हुए अभिराज से बोली, "देखिये मुझे नहीं पता कि आप को क्या ग़लतफ़हमी हुई है लेकिन मेरा परिवार ऐसा नहीं, जैसा की आपने उनके ऊपर इल्ज़ाम लगाया है, तो कृपया मेरे परिवार को यहां से जाने दीजिए!"

    फिर अपने हाथ जोड़ते हुए बोली, "देखिये मै आपसे हाथ जोड़ के अनुरोध करती हूं की कृपया मेरे परिवार को छोड़ दीजिए!"

    नंदिता को ऐसे किसी के सामने हाथ जोड़ते देख रामनाथ जी और राजेंद्र जी को अच्छा नहीं लग रहा, लेकिन वो भी तो नहीं जानते थे कि आखिर अभिराज उसके साथ ऐसा क्यों कर रहा है!

    वही अभिराज गुस्से से नंदिता को देखे जा रहा था अभिराज के जवाब ना देने से नंदिता फिर से अनुरोध करते हुये बोली, "आप सुन रहे हैं, कृपया मेरे परिवार को छोड़ दीजिए अपनी शिकायत वापस ले लीजिए!"

    नंदिता के ऐसा बोलते हि अभिराज अपने गुस्से को शांत करते हुए बोला, "छोड़ दू लेकिन क्यूं, और इसमें मेरा क्या फ़ायदा?"

    अभिराज की बात सुनकर नंदिता कंफ्यूज्ड होती हुई बोली, "फ़ायदा मतलब?"

    तो अभिराज अपनी आइब्रो उठे हुए बोला, "हम्म्म फ़ायदा, अब मुझे ये तो बताने की ज़रूरत नहीं है न कि फ़ायदे का मतलब क्या होता है!"

    अभिराज की बात पर नंदिता हैरानी से बोली, "अरे लेकिन आपने तो मेरे परिवार पर बच्चा चोरी का इल्जाम लगाया है और अभी आप बोल रहे हैं कि आपका फ़ायदा, आप क्या कहना चाहते हैं, साफ-साफ बोलिये!"

    तो अभिराज टेडी स्माइल करते हुए बोला, "वही तो कह रहा हूं अगर मैं अपनी शिकायत वापस लेता हूं तो मेरा क्या फायदा, और रही बात बच्चा चोरी के शिकायत कि तो वो तो बनता है, क्यों सही कहा ना मिस नंदिता शर्मा!"

    तो नंदिता नासमझी में बोली, "मै समझी नहीं, क्या मतलब है आप का और आप मुझे कैसे जानते हैं!"

    तो अभिराज ने एक बार रामनाथ जी और राजेंद्र जी तरफ देखा फिर नंदिता की तरफ देखते हुए बोला, "मेरा मतलब ये है कि मै अपनी शिकायत वापस तो ले लूंगा लेकिन उसके बदले तुम्हें मुझसे शादी करनी पड़ेगी वो भी आज ही और रही बात तुम्हें जानने कि तो वो तुम्हें जल्द हि पता चल जाएगा कि मै तुम्हें कैसे जानता हूं!"

    अभिराज की बात सुनके नंदिता दंग रह गई! वही रामनाथ जी गुस्से से चिल्लाते हुए बोले, "ये लड़के क्या बकवास कर रहे हो हा, एक तो तुमने हमें झूठे इल्जाम में फंसाया है और ऊपर से हमारे सामने ही हमारी बेटी से शादी की बात कर रहे हो!"

    तभी राजेंद्र जी भी बोले, "हा नंदिता बेटा देखो इसकी बकवास सुनने की जरूरत नहीं है ये हमारा कुछ नहीं कर पायेगा ठीक है तुम इसकी बात मत सुनाना!" वो दोनों बोले जा रहे थे! लेकिन वही नंदिता को जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था!

    अभिराज को भी उनकी बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था! वो नंदिता से फिर बोला, " हा तो बोलो करोगी शादी और जल्दी बोलो तुम्हारे पास जायदा वक्त नहीं है सोचने का!"

    अब तो नंदिता का दिमाग़ ख़राब हो गया वो गुस्से में बोली, "और अगर मै ऐसा ना करु तो!"

    तो अभिराज अपनी जेब से अपना फोन निकाल के कुछ करने लगा वही नंदिता समझने की कोशिश कर रही थी कि अभिराज करना क्या चाहता है! थोड़ी देर में अभिराज अपना फोन नंदिता के आगे करते हुए बोला, "इसके लिए तो मानोगी ना मेरी बात!"

    अभिराज का फोन देखते ही नंदिता की आँखे बड़ी हो गई और उसकी आँखों से आसु बहाने लगे और उसके कापते हुए होठों से निकला, "सिड मेरा बच्चा, सिड!"

    सिड का नाम सुनते ही रामनाथ जी और राजेंद्र जी भी हैंरान हो गए! रामनाथ जी हैंरानी से बोले, "मतलब हमारा सिड तुम्हारे पास है!"

    तो अभिराज ने एक डेविल स्माइल पास कर दी! अभिराज की स्माइल से वो समझ गए कि वो जो सोच रहे हैं वही सच है!

    वही नंदिता अभिराज के फोन में सिड का वीडियो देखे जा रही थी जिसमे सिड नंदिता का नाम लेते हुए रो रहा था!

    सिड को रोते हुए देखकर उसका दिल बैठ जा रहा था! जैसे वो अपना हाथ आगे बढ़ा कर वीडियो में दिख रहे सिड को छूने जा रही थी वैसे हि अभिराज ने अपना फोन पीछे कर लिया!

    फिर वीडियो बंद करके फोन करके अपनी जेब में रख दिया! अभिराज के ऐसा करते हि नंदिता नम आंखो से अनुरोध करते हुए बोली, "प्लीज एक बार मेरे बच्चे को देख लेने दो, देखो वो कितना रो रहा था प्लीज मुझसे एक बार बात कर लेने दो!"

    तो अभिराज फिर से अपनी बात दोहराते हुए बोला, "वही तो कह रहा हूं मैं, शादी कर लो मुझसे और मिल लो अपने बच्चे से!"

    अभिराज की बात पर नंदिता की आँखों से आसु गिरने लगे! और वो रोते हुए सिड को याद करके गुस्से में अपने दांत पिसते हुए बोली, "कैसे हो तुम हा, तुम्हारे अंदर इंसानियत है या नहीं, वहा मेरा बच्चा रो रहा है मेरे लिए तड़प रहा है और तुम्हेे शादी की पड़ी है, छी!"

    तो अभिराज गुस्से से नंदिता को घूरते हुए बोला, "तुम्हारा बच्चा सच में, लेकिन कैसे तुम्हारा बच्चा, तुम्हारी तो शादी ही नहीं हुई है!"

    फिर तिरछी मुस्कान के साथ बोला, "कहीं ऐसा तो नहीं कि शादी से पहले ही..." इतना बोलकर वो अजीब तरह से नंदिता को देखने लगा! ये बात उसने ऐसे बोली कि सिर्फ नंदिता हि सुन पाए!

    अभिराज की घिनौनी बाते सुनकर नंदिता गुस्से से बोली, "सही कहते हैं लोग, जो जैसा होता है वैसा ही सोचता है, वैसे मुझे तुम्हारी सोच से कोई फर्क नहीं पड़ता, और क्या कहा था आपने, मेरे परिवार वालो ने बच्चा चुराया है ना!"

    फिर अपनी उंगली से अभिराज पर पॉइंट करते हुये बोली, "तो अब मैं आप के ऊपर केस करूंगी ,की आपने मेरा बच्चा किडनैप किया है, मैं आप पर किडनैपिंग का केस फाइल करूंगी, समझे!"

    नंदिता की बात पर अभिराज दो पल के लिए चुप हो गया! फिर अचानक से हंसते हुए बोला, "केस वो भी मेरे ऊपर कैसे, क्या कहोगी!"

    तो नंदिता अभिराज को टशन देते हुए बोली, "यही कि आपने मेरे बेटे को किडनैप किया है!"

    तो अभिराज फिर से हंसते हुए बोला, "तुम सच में पागल हो, अरे साबित कैसे करोगी कि वो तुम्हारा बच्चा है कोई सबूत है तुम्हारे पास, की वो तुम्हारा बच्चा है, लेकिन हां मेरे पास जरूर सबूत है कि मेरा उसके साथ रिश्ता है!"

    ये बात सुनते ही नंदिता की आंखे बड़ी हो गई! वही रामनाथ जी और राजेंद्र जी हैंरान हो गए! वही नंदिता अपनी लड़खड़ाती हुई आवाज में बोली, " रिश्ता कैसा रिश्ता?" फिर जोर से चिल्लाते हुए बोली, " मैंने पूछा कौन सा रिश्ता तुम्हारा सिड से?"

    नंदिता के चिल्लाने पर अभिराज बोला, "श्श्शश्श्श् चिल्लाने की जरूरत नहीं है, और ये जानने की भी नहीं, कि मेरा सिड के साथ क्या रिश्ता है, अगर तुम चाहती हो कि तुम्हारा परिवार जेल ना जाए तो शादी के लिए हा कर दो!"

    क्या करेगी नंदिता क्या वो शादी के लिए हा कर देगी ....? क्या होगा जब नंदिता के घर पर सबको ये पता चलेगा.....? आखिर क्या रिश्ता है अभिराज का सिड के साथ....? जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ .....!

  • 14. contract marriage - Chapter 14

    Words: 1819

    Estimated Reading Time: 11 min

    आगे,

    नंदिता के घर पर, मीना जी और जानकी जी परेशान थे! क्योंकि सब कहीं ना कहीं गए थे और उनको पता ही नहीं था कि कौन कहां गया है!

    वहीं सुजाता जी अपने कमरे में गुस्से से यहां से वहां चक्कर काट रही थीं! उनको सुधीर की बातें तीर की तरह चुभ रही थीं। वो गुस्से में बोलीं, "ये मेरा ही बेटा है या दीदी का! इसे समझ में क्यों नहीं आता कि मैं जो कुछ भी करती हूं या बोलती हूं उसके भले के लिए करती हूं, लेकिन ये है कि!"

    फिर कुछ याद करते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए। वो नंदिता को कोसती हुई बोलीं, "ये जो कुछ भी हुआ है ना नंदिता, वो सब तेरी वजह से ही हुआ है। वो कहते हैं ना जैसा करोगे वैसा भरोगे, ठीक वैसे ही, औरत होने के नाते मुझे तेरे दर्द से तकलीफ हो रही है, लेकिन एक मां होने के नाते मुझे सुकून भी मिला है!"

    वहीं हॉल में जानकी जी दरवाजे की तरफ देखते हुए मीना जी से बोलीं, "बड़ी बहू काफी वक्त हो गया है तुम्हारे बाऊ जी और राजेंद्र को पुलिस स्टेशन गए हुए, अभी तक आए क्यों नहीं?" मीना जी भी उनकी परेशानी समझ रही थीं!

    मीना जी भी उनकी हां में हां मिलाते हुए बोलीं, "हां मां, काफी देर तो हो गई है, और नंदिता भी कुछ बता के नहीं गई, एक तो उसकी तबीयत ठीक नहीं है और ऊपर से वो भी बिना बताए चली गई, ऊपर से सुधीर भी पता नहीं कहां गया है!"

    फिर अपनी किस्मत को कोसते हुए और सिड को याद करते हुए बोलीं, "मेरी तो कुछ में समझ नहीं आ रहा है मां, ये सब क्या हो रहा है, मेरी बच्ची की जिंदगी में सिड एक खुशी बनकर आया था, लेकिन भगवान से वो भी देखा नहीं गया, पता नहीं कहां होगा सिड, बस माधव कृपा करे कि वो ठीक हो!"

    जानकी जी भी उनकी बातों से सहमत होते हुए बोलीं, "सही कह रही हो बड़ी बहू, सिड के आने से खुशियां आ गई थीं, और अब देखो वो नहीं है तो खुशियां भी चली गई!"

    वहीं पुलिस स्टेशन में अभिराज नंदिता को लगभग धमकी देते हुए बोला, "अगर तुम नहीं चाहती कि तुम्हारे परिवार वाले अपनी बाकी की जिंदगी जेल में बिताएं तो शादी के लिए हां कर दो!"

    नंदिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, एक तरफ वो सिड के बारे में सोच रही थी फिर दूसरी तरफ अपने परिवार वालों के बारे में!

    वहीं रामनाथ जी और राजेंद्र जी भी बस यही सोच रहे थे कि नंदिता ना बोल दे! नंदिता को परेशान और कंफ्यूज देखते हुए अभिराज ने एक अजीब सी स्माइल की, फिर रामनाथ जी और राजेंद्र जी की तरफ देखते हुए बोला, "लगता है तुम्हें अपने परिवार वालों की या मुंह बोले बच्चे की कोई चिंता या प्यार नहीं है, नहीं तो तुम इतना सोचती नहीं, चलो कोई बात नहीं मैं!"

    वो इतना ही बोला था कि नंदिता बोली, "मैं तैयार हूं!"

    नंदिता की बात को कंफर्म करते हुए अभिराज बोला, "तुम श्योर हो ना, इसके बाद तुम अपनी बात से पलट नहीं सकती?"

    तो नंदिता भी अभिराज की आंखों में आंखें डाल के बोली, "हां, मुझे मंजूर है, लेकिन मेरी एक शर्त है!"

    शर्त सुनते ही अभिराज के कान खड़े हो गए। वो अपनी आंखें छोटी करते हुए बोला, "शर्त, कैसी शर्त?"

    तो नंदिता बोली, "मेरी ये शर्त है कि इसके बाद आप मेरे परिवार वालों को परेशान नहीं करेंगे और ये बच्चा चोरी का केस भी वापस ले लेंगे!"

    तो अभिराज उसकी बात मानते हुए बोला, "ठीक है!"

    नंदिता को ऐसे अभिराज की बात मानते देख रामनाथ जी और राजेंद्र जी परेशान हो गए!

    और दुखी होते हुए बोले, "मेरी बच्ची तूने ये क्या किया, अब तो भगवान ही जाने आगे क्या होगा!"

    वहीं नंदिता के हां बोलते ही अभिराज ने किसी को कॉल किया और कुछ बोल कर कॉल रख दिया! अभिराज के फोन रखते ही उसका वकील अंदर आया और उसके साथ पुलिस इंस्पेक्टर भी था!

    अंदर आते ही इंस्पेक्टर बोला, "तो बताइए क्या करना है मिस्टर चौधरी!"

    तो अभिराज ने अपने वकील से कुछ कहा, उसके बाद इंस्पेक्टर से बोला, "आप इनको छोड़ दीजिए, मैं अपना केस वापस लेता हूं!" बोलकर वो वहां से बाहर की तरफ चला गया! अभिराज के जाते ही उसका वकील औपचारिकताएं पूरी करने लगा!

    वहीं अभिराज पुलिस स्टेशन से बाहर आ के किसी को कॉल किया और सामने से कॉल रिसीव करें होते ही अभिराज गुस्से में धमकी देते हुए बोला, "तुमसे एक काम सही से नहीं होता है, तुम एक बच्चे को नहीं संभाल सकते, एक बात कान खोल के सुन लो, बच्चे को कुछ नहीं होना चाहिए, ध्यान रखो उसका!" बोलकर उसने कॉल कट कर दिया!

    तभी नंदिता भी अपने दादा जी और चाचा जी के साथ आईं!

    नंदिता को देखते ही अभिराज बोला, "तुम्हें पता है ना, यहां से सीधे हम कोर्ट जाएंगे!"

    तो नंदिता हां में सर हिलाते हुए बोली, "हां मुझे पता है!"

    तभी रामनाथ जी कुछ बोलने जा ही रहे थे कि नंदिता उनको रोकते हुए बोली, "नहीं दादा जी आप मुझे रोकेंगे नहीं!"

    फिर उनका हाथ पकड़ते हुए बोली, "आप लोग प्लीज मां को संभल लेना!" वो दोनों भी समझ रहे थे कि नंदिता के लिए भी ये आसान नहीं था!

    इसलिए रामनाथ जी उसको समझाते हुए बोले, "बेटा एक बार फिर सोच ले क्योंकि ऐसे जबरदस्ती शादी का कोई भविष्य नहीं होता!"

    नंदिता कुछ बोलती उससे पहले अभिराज बोला, "तुम ये अपना रोना धोना बाद में भी कर सकती हो, अभी चलो पूरा दिन नहीं है मेरे पास!" बोलकर वो नंदिता का हाथ पकड़ के अपने साथ अपनी कार में बिठाकर लेकर चला गया!

    और उसके पीछे अभिराज का वकील रामनाथ जी और राजेंद्र जी को अपने साथ! रामनाथ जी और राजेंद्र जी इस वक्त खुद को बहुत बेबस महसूस कर रहे थे, लेकिन वो चाह के भी कुछ नहीं कर पा रहे थे!

    थोड़ी देर में वो लोग कोर्ट में थे। अभिराज शादी के पेपर पर साइन करके नंदिता को पेन देते हुए बोला, "तुम्हारी बारी!" नंदिता ने भी पेपर पर साइन कर दिए और पेपर पर साइन करते ही नंदिता अपने मन में बोली, "मुझे माफ कर देना मां!" और उसके आंखों से आंसू निकल गए!

    नंदिता के साइन करने के बाद अभिराज नंदिता को कुछ पेपर देते हुए बोला, "ये रहे हमारी शादी के कॉन्ट्रैक्ट पेपर, इसमें जो शर्तें है वो साफ-साफ लिखी हुई है, तुम पढ़ सकती हो!"

    अभिराज के हाथ से पेपर लेते हुए नंदिता हैरानी से बोली, "शादी के कॉन्ट्रैक्ट पेपर, लेकिन इसके बारे में तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया!"

    तो अभिराज एटीट्यूड में बोला, "इसमें बताने जैसा कुछ नहीं था और रही बात कॉन्ट्रैक्ट की तो इसमें सिर्फ तुम्हारे लिए शर्तें है मेरे लिए नहीं!"

    अभिराज की बात पर नंदिता उसको गुस्से से देखते हुए वो पेपर पढ़ने लगी! वो जैसे जैसे पढ़ रही थी हैरानी से उसकी आंखें बड़ी होती जा रही थीं! आखिर का पेज पढ़ते हुए नंदिता बोली, "ये पेपर बनाने की तुम्हें जरूरत ही नहीं थी, तुम सीधा सीधा बोल देते कि तुम मुझे हमेशा के लिए कैदी बना रहे हो!"

    तो अभिराज डेविल स्माइल करते हुए बोला, "तुम्हें जो सोचना है, वो सोच सकती हो, अब यही है तुम्हारी जिंदगी है और हां अब तुम पीछे नहीं हट सकती!"

    नंदिता का तो दिल कर रहा था कि वो अभी के अभी उसकी जान ले ले लेकिन अपने परिवार और सिड के लिए वो चुप थी! शादी हो गई थी और नंदिता के कहने पर रामनाथ जी और राजेंद्र जी ने गवाह के रूप में साइन भी कर दिया था!

    नंदिता को देखते हुए रामनाथ जी बेबस होते हुए बोले, "क्या कहूंगा मैं बड़ी बहू से, नंदिता की शादी उसकी मर्जी के बिना हो गई और मैं कुछ नहीं कर पाया!"

    तो राजेंद्र जी उनको संभलते हुए बोले, "खुद को संभालिये बाऊ जी, अभी तो हमें भाभी को भी बताना है, ना जाने वो कैसे रिएक्ट करेगी!"

    रामनाथ जी और राजेंद्र जी को परेशान देख कर नंदिता उनके पास जाने लगी, तो अभिराज उसको रोकते हुए बोला, "रुको तुम नहीं जा सकती, आज ही नहीं है बल्कि मेरी मर्जी के बिना तुम उनसे कभी नहीं मिल सकती!"

    तो नंदिता उसको गुस्से से घूरते हुए बोली, "ठीक है क्या एक आखिरी बार मिल सकती हूं?" तो पता नहीं क्या सोच कर अभिराज ने हां में सर हिला दिया!

    नंदिता के उनके पास जाते ही अभिराज अजीब सी स्माइल करते हुए बोला, "मिल लो शायद ये आखिरी बार होगा जो तुम इन लोगों से मिलोगी, इसके बाद तुम भी वैसे ही तड़पोगी जैसे मैं तड़प रहा हूं, सब हो कर भी तुम्हारे पास कुछ नहीं होगा!" और वो बिना कोई भाव के नंदिता को देखने लगा!

    वहीं नंदिता रामनाथ जी और राजेंद्र जी के पास जाते हुए बोली, "दादा जी, चाचा जी हो सके तो मुझे माफ कर दीजिएगा और प्लीज मां को संभल लीजिएगा!"

    बोलकर नंदिता ने उनके पैर छू लिए! वो दोनों भी नंदिता को आशीर्वाद देते हुए बोले, "हमेशा खुश रह बेटा और अपना ध्यान रखना!"

    थोड़ी देर मे सब वहां से निकल गए!

    नंदिता अभिराज के साथ चली गई और रामनाथ जी और राजेंद्र अपने घर!

    उनके घर पहुंचते ही मीना जी और जानकी जी राहत की सांस लेते हुए बोलीं, "बड़ी देर कर दी आप दोनों ने आने में!" तो रामनाथ जी बिना कुछ बोले वहीं सोफे पर बैठ गए और उनके साथ राजेंद्र जी भी!

    वहीं मीना जी पानी देते हुए बोलीं, "कुछ पता चला सिड के बारे में, क्या कहा इंस्पेक्टर ने?" मीना जी के सवाल नहीं रुक रहे थे और रामनाथ जी और राजेंद्र जी के शब्द नहीं निकल रहे थे!

    वो दोनों को ऐसे खामोश और परेशान देख कर जानकी बोलीं, "क्या बात है सब ठीक है ना?" जानकी जी की बात पर गौर करते हुए मीना जी ने भी ध्यान दिया कि वो लोग परेशान से लग रहे थे!

    वहीं अभिराज की कार उसके विला के सामने आ के रुकी, कार से विला को देखते हुए नंदिता के आंखो में आसु आ गये! वहीं अभिराज नंदिता को एक बैग देते हुए बोला, "नरक में तुम्हारा स्वागत है!"

    आखिर क्यों किया अभिराज ने नंदिता से शादी और क्यों बनाया शादी के कॉन्ट्रैक्ट.....?

    क्या मीना जी जान पाएगी नंदिता की शादी के बारे में...,..?और क्या दिया अभिराज ने नंदिता को बैग में...? जानने के लिये बने रहिये मेरे साथ ...

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    तो आगे के लिए मिलते है अगले चैप्टर में.......

    ....tc........

  • 15. दर्द ही सहना है - Chapter 15

    Words: 1895

    Estimated Reading Time: 12 min

    आगे,

    रामनाथ जी और राजेंद्र जी को कुछ ना बोलता देख जानकी जी परेशान हो गई! वही उनको देखकर मीना जी भी अब परेशान हो गई थीं, क्योंकि उनके चेहरे के उड़े हुए रंग ही बता रहे थे कि जरूर कुछ गलत हुआ है!

    उनको ऐसे देख कर जानकी जी और मीना जी को घबराहट होने लगी! मीना जी अपने मन में डर लिए एक बार फिर से बोलीं, "बताईये ना बाऊ जी क्या बात है, सब ठीक है ना, सिड का कुछ पता चला वो ठीक है ना!"

    तो रामनाथ जी लड़खड़ाती हुई आवाज में बोले, "वो... वो बड़ी बहू बात ये है कि..." रामनाथ जी की आवाज और उनके चेहरे को देखते हुए मीना जी और जानकी जी के मन का डर बढ़ता जा रहा था!

    रामनाथ जी को ऐसे परेशान देख कर जानकी जी उनके कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं, "क्या बात है जी, आप ऐसे क्यों घबरा रहे हैं, कोई बात है क्या?"

    रामनाथ जी तो कुछ बोल नहीं पा रहे थे! वही राजेंद्र जी खुद को शांत करते हुए बोले, "मा, भाभी सिड मिल गया है और वो ठीक है!"

    ये सुनते ही जानकी जी बोलीं, "ये तो अच्छी बात है कि सिड मिल गया और वो ठीक है, तो आप लोग उसको साथ में लेकर क्यों नहीं आए, कहां है वो, और सिड घर आ रहा है तो खुश होइए ना, ऐसे मुंह क्यों लटकाए हैं, आप लोग भी ना!"

    सिड मिल गया है ये जानकर मीना जी स्माइल करते हुए बोलीं, "कैसी बात कर रही है मा, ये लोगो ने ना जरूर हमें सरप्राइज देने के लिए ऐसे मुंह बनाया होगा, और हो ना हो ये आइडिया सिड का ही होगा, बदमाश कहीं का, लेकिन है कहां वो?" सिड के आने की ख़ुशी उनके चेहरे पर साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी!

    मीना जी की बातों से सहमत होते हुए जानकी जी भी बोलीं, "सही कहा बड़ी बहू!"

    वही उनकी बातें सुनकर रामनाथ जी की परेशानी और बढ़ गई! उनकी आंखो मे आसू आ गये! वही जानकी जी की बात पर मीना जी खुश होते हुए बोलीं, "मा जरूर वो दरवाजे पर होगा, हमें और परेशान करने के लिए, रुकिये मै उसे लेकर आती हू, अब बस नंदिता का इंतजार है वो सिड को देख के खुश हो जाएगी!" ऐसे ही बोलते हुए वो दरवाजे की तरफ जाने लगी!

    मीना जी को खुशी मे दरवाजे की तरफ जाते हुए देख रामनाथ जी बोले, "रुक जाओ बड़ी बहू!"

    तो मीना जी वैसे ही जाते हुए बोलीं, "नहीं बाऊ जी अब मै नहीं रुक सकती, ऐसा लगता है कि सिड को देखे हुए मुझे कितने दिन हो गए हैं, अब तो मै उसकी नजर उतार के उसे अंदर लाऊंगी ताकि उसको किसी की नजर न लगे, और जो कुछ बुरा हो वो घर के बाहर ही रह जाए और मेरा सिड अपनी खुशियों के साथ घर में कदम रखे!"

    तो रामनाथ जी थोड़ी ऊंची आवाज में बोले, "मैने कहा ना रुक जाओ बड़ी बहू, सिड नहीं है बाहर!" रामनाथ जी की बात पर मीना जी के वही कदम रुक गए!

    जहां उनके चेहरे पर ख़ुशी थी, उसकी जगह परेशानी ने ले ली! उनकी बात पर जानकी जी भी हैंरान होते हुये अपनी जगह से खड़ी हो गई! सुजाता जी भी अब तक अपने कमरे से बाहर आ गई थी!

    वही मीना जी हैरानी से रामनाथ जी और राजेंद्र जी के सामने आते हुए बोलीं, "नहीं है मतलब, लेकिन अभी आपने ही तो कहा की सिड मिल गया, तो आप उसको अपने साथ क्यों नहीं लाए, नंदिता आएंगी तो उसको क्या जवाब देंगे हम!"

    तो रामनाथ जी बोले, "उसको जवाब देने की कोई जरूरत नहीं है!"

    उसपर मीना जी सवालिया नज़रो से देखते हुए बोलीं, "ऐसे कैसे जरूरत नहीं है बाउजी, आपने देखा था ना उसकी क्या हालत हो गई थी तब पर भी आप बोल रहे हैं कि उसे बताने की जरुरत नहीं है, क्यू बाऊ जी?" बोलते हुए वो हाइपर होने लगी थी!

    उनको हाइपर होता देख राजेंद्र जी उनसे बोले, "भाभी पहले आप शांति से बैठ जाइएं!"

    तो मीना जी ना मे सर हिलाते हुए बोलीं, "नहीं राजेंद्र मुझे नहीं बैठना पहले तुम बाऊ जी से बोलो कि मुझे बताये कि वो सिड को लेकर क्यों नहीं आए!"

    फिर उनकी तरफ देखते हुए गुस्से मे बोलीं, "सिर्फ बाऊ जी ही क्यों मुझे तुम बताओ कि तुम क्यों नहीं लेकर आए सिड को, अरे कम से कम नंदिता के बारे में तो सोचा होता!"

    मीना जी की बात पर राजेंद्र जी सर झुका के खड़े हो गए! अपने पति झुका हुआ सर देख कर सुजाता जी को भी गुस्सा आने लगा!

    वो मीना जी से बोलीं, "दीदी आप उनसे ऐसे बात नहीं कर सकती!" सुजाता जी इतना ही बोली थी कि राजेंद्र जी उनको रोकते हुए बोले, "तुम शांत रहो, भाभी को बोलने दो उनका हक है!"

    तो सुजाता जी गुस्से में बोलीं, "लेकिन..." तभी राजेंद्र जी उनको हाथ दिखाते हुए ना में सर हिला दिए! राजेंद्र जी के ऐसा करते ही सुजाता जी चुप हो गई और गुस्से का घुट पीके रह गई!

    मीना जी फिर से रामनाथ जी सामने जाते हुए बोलीं, "बोलिए ना बाऊ जी, क्यू नहीं लाए!"

    तो रामनाथ जी हिम्मत जूटाते हुए बोले, "बड़ी बहू आज के बाद सिड कभी नहीं आएगा!" ये सुनते ही सब हैरान हो गए, मीना जी को तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था, वो एक टक रामनाथ जी को देख जा रही थी!

    वही रामनाथ जी आगे बोले, "सिड कभी नहीं आएगा क्योंकि नंदिता नहीं आएगी और नंदिता इसलिए नहीं आएगी क्योंकि उसकी शादी हो गई, और सिड उसके पास है जिससे नंदिता की शादी हुई है!" रामनाथ जी ने बड़ी हिम्मत जूटा के एक सास में ही सब कह दिया!

    "नंदिता ने शादी कर ली?" मीना जी ने दोहराया और अचानक से उनकी आंखों के सामने सब धुंधला हो गया और वो वही जमीन पर गिर गई!

    नंदिता की शादी की खबर सुनके जहां सब शौक थे, वही मीना जी के बेहोश होने से सबकी सास अटक गई!

    जानकी जी और सुजाता जी उनके पास जाके उनको संभालते हुए बोलीं, "बड़ी बहू, बड़ी बहू..." सुजाता जी "दीदी, दीदी..." लेकिन तब तक वो बेहोश हो चुकी थी!

    रामनाथ जी मीना जी को बेहोश देख कर डर गये! वही राजेंद्र जी और सुजाता जी ने मिलकर उनको वही सोफ़े पर सुला दिया! उनको सुलाने के बाद जानकी जी हैरानी से बोलीं, "ये आप क्या बोल रहे थे, की नंदिता ने शादी कर ली, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है!"

    तभी राजेंद्र जी बोले, "हा मां, बाऊ जी ठीक बोल रहे हैं नंदिता की शादी हो गई और शायद हम कभी उससे मिल भी नही पाएगे!"

    नंदिता की शादी की खबर सुनके झटका तो सबको लगा लेकिन सुजाता जी को मसाला मिल गया! वो सबको भड़काने के अंदाज़ में बोलीं, "देखा आप सबने मैंने कहा था ना, लेकिन किसी ने मेरी बात ही नहीं सुनी, कर दिया ना उसने अपने मन की, अरे हमारे बारे मे तो नहीं कम से कम अपनी मां का ही ख्याल कर लिया होता उसने, लेकिन नहीं हम हैं ही कौन उसके!" आज जानकी जी भी सुने जा रही थीं और उनको नंदिता पर गुस्सा आने लगा था!

    रामनाथ जी खुद को कोसे जा रहे थे और सुधीर अभी तक वापस नहीं आया था!

    राजेंद्र जी जयादा देर तक सुजाता जी की बाते सुन नहीं पाए, और वो गुस्से में जोर से बोले, "कुछ नहीं किया उसने वो तो खुद नहीं करना चाहती थी ये शादी, लेकिन हमारी और सिड की वजह से उसको करनी पड़ी!" ये सुनके सबको एक और झटका लगा!

    जानकी जी बोलीं, "क्या मतलब है करनी पड़ी..." (फिर ऊंची आवाज में बोलीं) "क्या बात है राजेंद्र साफ साफ बता आखिर क्यों नंदिता ने शादी की?" तो राजेंद्र जी ने जो कुछ भी पुलिस स्टेशन में हुआ सब बता दिया!

    वो जैसे जैसे बोल रहे थे वैसे-वैसे सबकी आंखें बड़ी होती जा रही थी! सब जानने के बाद जानकी जी वही सर पकड़ के बैठ गई! वही सुजाता जी को अभी लग रहा था कि ये सब झूठ है!

    अभिराज का विला आते ही वो नंदिता को एक बैग देते हुए बोला, "नरक में तुम्हारा स्वागत है!"

    वही नंदिता अपनी आंखों में आसू लिए बोली, "तुमने जैसा कहा मैंने वैसा ही किया, तो प्लीज मुझे मेरे बच्चे से मिलने दो, बता दो वो कहा है!"

    तो अभिराज बिना कोई एक्सप्रेशन के बोला, "वक्त आने पर तुम उससे मिल पाओगी, अभी फ़िलहाल जैसा मै कहता हूँ वैसा करो!"

    अब नंदिता के बस के बाहर होने लगा! वो गुस्से में अभिराज को उंगली दिखाते हुए बोली, "लुक मिस्टर जैसा तुमने कहा मैंने वैसा ही किया ना, तो अब क्या समस्या है, मुझे कुछ नहीं पता मुझे बस अपने बच्चे से मिलना है समझे!"

    नंदिता की बात पर अभिराज हा मे सर हिलाते हुए बिना कोई एक्सप्रेसन के बोला, "तो तुम्हें अपने मुंह बोले बेटे से मिलना ठीक है, मिलवाता हु!" बोलकर वो कार से उतरा!

    और नंदिता की साइड आकर उसका दरवाजा खोलकर उसका हाथ पकड़ के जबरदस्ती उसको विला के अंदर ले जाते हुए बोला, "मै तुम्हारा गुलाम नहीं, बल्कि तुम मेरी गुलाम हो समझी, तो आइंदा से अपनी बात मनवाने कोशिश भी मत करना!" और नंदिता को विला के अंदर लाके हॉल के बीचो बीच जोर से उसका हाथ छोड़ दिया!

    अभिराज के ऐसा करने से नंदिता के हाथ में दर्द की एक लहर दौड़ गई और उसने अपने दूसरे हाथ से अपने दर्द वाले हाथ को पकड़ लिया!

    उसकी आंखे गुस्से और दर्द से लाल हो गई थी! एक बार अपने हाथ को देखने के बाद वो गुस्से मे अभिराज से बोली, "ये क्या हरकत है मिस्टर!"

    तो अभिराज नंदिता के पास आके उसके दर्द वाले हाथ को पकड़े अफ़सोस जताते हुए बोला, "ओह दर्द हुआ?" (फिर अचानक से गुस्से में घुरते हुए बोला) "तो आदत डाल लो आज के बाद तुम्हें दर्द ही सहना है!"

    फिर अपने हाथ से चारो तरफ़ दिखाते हुए बोला, "ध्यान से देखो ये तुम्हारा घर नहीं है जहा तुम शादी के बाद आयी हो, बल्की ये वो कैद है जिसमें से तुम कभी बाहर नहीं जा पाओगी!"

    फिर जोर से चिल्लाते हुए बोला, "अभिराज रॉय चौधरी की कैद है ये, और तुम्हारा सच भी!"

    अभिराज को देखते हुए नंदिता को ऐसा लग रहा था कि वो किसी राक्षस को देख रही थी!

    लेकिन वो भी कहा कम थी, वो गुस्से से बोली, "कैद, तुम होते कौन हो कैद करने वाले मुझे हा, मै यहां हूं क्योंकि मेरा बेटा तुम्हारे पास है, तो गलती से भी ये मत सोचना कि मैं कमजोर हूं समझे!"

    तो अभिराज डेविल स्माइल करते हुए बोला, "वो तो वक्त ही बताएगा नंदिता शर्मा!" बोलकर वो वहां से चला गया और नंदिता वही ज़मीन पर बैठ गयी!

    क्या होगा जब मीना जी को होश आएगा...? क्या नंदिता मिल पाएगी सिड से और क्यों किया अभिराज ने नंदिता को कैद...?

  • 16. मेरी गुलाम हो- Chapter 16

    Words: 1889

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात हो चली थी, और नंदिता अभी भी वही बैठी सोच रही थी कि आखिर अभिराज उससे इतनी नफ़रत क्यों करता है! फिर चारो तरफ़ नज़र घुमाते हुए बोली, "जब से आई हूँ तब कोई नहीं दिखा, लगता है ये राक्षस यहाँ अकेला ही रहता है!"

    फिर अपने सर पर हाथ रखते हुए बोली, "नंदिता तू भी ना कैसी बात कर रही है, भला ये राक्षस के साथ कोई भी कैसे रह सकता है।" बोलकर वो सोफ़े पर बैठ गई!

    और फिर से मीना जी और सिड को याद करते हुए बोली, "पता नहीं माँ का क्या हाल होगा, ये राक्षस के कारण आज मैंने अपनी माँ का दिल दुखाया, अगर इसके पास सिड नहीं होता ना तो चाहे जो हो जाए मै कभी इससे शादी नहीं करती।" और आज जो कुछ भी हुआ वो सोचते हुए नंदिता वही सोफ़े पर बैठ कर अपना सर सोफ़े से टीका ली!

    और मीना जी और सिड के साथ बिताये हुए पलों को याद करने लगी, उनको याद करते हुए फिर से उसकी आंखे भर आयी! और ना जाने कब सोचते हुए उसकी आँख लग गयी! जब से सिड नंदिता से दूर हुआ था, तब से ना तो नंदिता को चैन था ना तो सिड को! दोनों एक दूसरे को याद कर रहे थे!

    वही नंदिता के घर में कुछ भी ठीक नहीं था! मीना जी होश में आ गई थीं और जानकी जी ने उनको सब बता दिया था! वो अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई नंदिता को याद करते हुए बोली, "मैं चाहती थी कि तेरी शादी हो जाए, तू भी अपना परिवार संभाले, खुश रहे, लेकिन ऐसे नहीं, ना जाने मेरे कौन से बुरे कर्मों का फल मिला है तुझे मेरी बच्ची, हो सके तो मुझे माफ कर देना।" और उनकी आँखों से आसू फिर झरने की तरह बहने लगे!

    वही सुजाता जी सुधीर के कमरे में उसको समझा रही थी! राजेंद्र जी भी वही बैठे थे! क्यूंकी वो जानते थे की जितनी नफ़रत सुजाता जी नंदिता से करती है, उतना ही प्यार सुधीर उससे करता है! और अभी उसका प्यार ही था जो वो नंदिता के लिए परेशान हो रहा था और कहीं न कहीं उनको इस बात की ख़ुशी भी थी!

    वही सुधीर राजेंद्र जी से गुस्से में बोला, "कैसे पापा, आप के रहते कैसे हैं, आपने दी को क्यों नहीं रोका?"

    तो सुजाता जी उसको पकड़ के कुर्सी पर बिठाते हुए बोली, "देख मेरी बात सुन, तू शांत हो जा, तू क्यों अपनी तबीयत खराब कर रहा है, जो होना था वो तो हो गया ना और ऐसे खुद को या एक दूसरे को दोष दे के कोई मतलब है क्या?"

    तो सुधीर सुजाता जी को घुरते हुए बोला, "आप कब से ऐसे सोचने लगी मा, आपको तो खुशी हो रही होगी ना, कि आपके सर से परेशानी चली गई, मुसीबत जो थी दि आपके लिए, क्यू सही कहा ना मैंने।" सुधीर की बात पर सुजाता जी दो पल के लिए चुप हो गईं!

    फिर सुजाता जी हल्के गुस्से में बोली, "बस कर सुधीर तेरी समस्या क्या है हा, मै अगर तेरी दीदी की फिक्र करती हूं तो भी तुझे शक होता है, और नहीं करती हूं तो तुझे बुरा लगता है, एक काम कर तू हि बता दे मै क्या करु हा आज मुझे बता हि दे।" सुजाता जी का जवाब सुन के सुधीर ना मे सर हिलाते हुए अपने चेहरे को अपने हाथो में छुपा लिया!

    वही सुजाता खुश होते हुए अपने मन में बोली, "सही कहा बेटा मुझे उसकी कोई फिक्र नहीं है, अरे क्या पता हमें शायद उसने अपनी मर्जी से हि शादी की हो, जो भी एक बात तो अच्छी हुई मेरे सर से मुसिबत चली गई!"

    सुजाता जी अपनी सोच में थी! वही सुधीर कुर्सी से खड़े होते हुए बोला, "नहीं मैं दी को ऐसे नहीं छोड़ सकता क्या पता उस आदमी ने दी से शादी क्यों की कहीं वो दी को कोई नुक्सान ना पहुचा दे इसके पहले कुछ गलत हो मुझे उनको वापस लाना ही होगा!"

    फिर राजेंद्र जी से बोला, "पापा आपके पास उसका कोई एड्रेस वो कहा रहता है, कौन है, कुछ तो होगा!"

    तो राजेंद्र जी सर हिलाते हुए बोले, "नहीं बेटा मुझे नहीं पता, मुझे सिर्फ उसका नाम पता है, अभिराज रॉय चौधरी!"

    नाम सुनते हि सुधीर गुस्से में सर पकड़ते हुए बोला, "कुछ भी करके मैं दीदी को वापस ले आउंगा।" और वो वहां से चला गया!

    उसके जाते हि सुजाता जी चिढ़ते हुए बोली, "अच्छी खासी मुसीबत चली गई है, और ये है कि उसे वापस लाने पर तुला हुआ है ना जाने इसे अक्ल कब आएगी!"

    वही रामनाथ जी भी आज जो कुछ भी हुआ था उसके लिए खुद को जिमेदार मान रहे थे! और जानकी जी उनको समझ रही थी, "देखिये अब जो हो गया है, उसका क्या कर सकते हैं, अब तो हमें ये सोचना है कि आगे क्या करना है!"

    तो रामनाथ जी खुद को कोसते हुए बोले, "नहीं जानकी गलती मेरी ही है, घर का मुखिया होने के नाते मै कुछ नहीं कर पाया।" उनको ऐसे देख कर जानकी जी को उनकी चिंता होने लगी!

    वहा नंदिता को सोफ़े पर बैठे-बैठे उसकी आंख लग गई! वो वैसे ही बैठी थी, कि उसे अपने चेहरे पर किसी की सासे महसूस हुई और झट से उसकी आंख खुल गई!

    और जैसे हि उसकी आंख खुली! वो घबरा गई क्योंकि अभिराज एक दम से उसके नज़दिक था और उसको अजीब नज़रों से घूर रहा था!

    वो अभिराज को ऐसे देख के डर गई और अपने आप को पीछे करते हुए बोली, "ये आप क्या कर रहे हैं, देखिये आप पीछे रहिये!"

    फिर रुक कर अपने मुँह पर हाथ रखते हुए बोली, "आपने शराब पी है" और वो अभिराज को हैरानी से देखने लगी! वही अभिराज की आंखे लाल थी और वो डेविल स्माइल करते हुए नंदिता को अजीब नज़रों से घूर रहा था!

    उसके ऐसे देखने से नंदिता एक पल के लिए डर गई! तभी अभिराज डेविल स्माइल करते हुए नंदिता का हाथ पकड़ लिया! अभिराज के ऐसा करते ही नंदिता अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, "छोड़िए मुझे, देखिये आप नशे में है मुझे छोड़ दीजिये, आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते, छोड़िये मुझे।" नंदिता दर्द गुस्से और डर से बोले जा रही थी! क्योंकि अभिराज ने नंदिता का हाथ इतना टाइट पकड़ा था कि उसको दर्द हो रहा था और उसकी हरकतों से नंदिता को डर लग रहा था!

    लेकिन अभिराज बिना कुछ बोले नंदिता को अपने साथ खींचते हुए लेकर जा रहा था! वो सीढ़ियों से होते हुए एक कमरे में गया और नंदिता को बिस्तर पर ढकलते हुए दरवाजा बंद कर दिया!

    अभिराज के दरवाजा बंद करते हि नंदिता जल्दी से बेड से खड़ी हुई और डोर की तरफ आते हुये बोली, "नहीं, आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते, जाने दीजिए मुझे!"

    वही अभिराज फिर से नंदिता को पकड़ के बिस्तर पर ढकेलते हुए बोला, "कर सकता हूं, बिल्कुल कर सकता हूं, और भूलो मत तुम मेरी गुलाम हो!"

    फिर दरवाजे को लॉक करके नंदिता की तरफ बढ़ते हुए बोला, "तुम ऐसे रिएक्ट क्यु कर रही हो, अरे शादी हुई है हमारी, बीवी हो तुम मेरी और आज तो हमारी सुहागरात है, और तुम हो की ऐसे मुझसे दूर जाने की बात कर रही हो, this is not fair."

    बोलकर वो अपनी शर्ट की बटन खोलते हुए नंदिता की तरफ बढ़ने लगा! वही नंदिता हैरानी से उसे देखे जा रही थी और अभिराज उसकी तरफ बढ़ते जा रहा था!

    अभिराज को अपने करीब आते देख नंदिता डरते हुये बोली, "ये गलत है आप मेरी मर्जी के बिना मुझे नहीं छू सकते, समझे, नहीं तो मै..." नंदिता अपनी उंगली दिखाते हुये बोली!

    वही अभिराज नदिता के ऊपर आते हुए बोला, "मुझे जो करना है वो तो मै कर के रहूंगा, और मैं भी तुम्हें उतना हि दर्द दूंगा, जितना की तुमने मुझे दिया" बोलकर वो नंदिता के कंधे की तरफ बढ़ने लगा!

    वही अभिराज को अपने इतने करीब देख कर नंदिता बेडशीट को अपनी मुट्ठियों में कसते हुए अपनी आंखें बंद कर ली और अपने मन में बोली, "अब सब आपके हाथ में है गोपाल!"

    तभी उसे अपने ऊपर भारी सा मेहसूस हुआ, उसने आंखे खोल के देखा तो अभिराज उसके ऊपर पड़ा हुआ था वो उसको आवाज देते हुए बोली, "सुनिए, सुनिए!"

    अभिराज के कुछ ना बोलने पर नंदिता बोली, "लगता है शायद बेहोश हो गए हैं" और बड़ी मुश्किल से उसने अभिराज को पलट के अच्छे से सुलाया!

    फिर एक गहरी सास लेते हुए बोली, "बाप रे कितने भारी है ये।" फिर भगवान का शुक्रिया करके वो वहा से जाके सोफ़े पर बैठ गयी!

    और अभिराज को देख कर कन्फ्यूज्ड होते हुए बोली, "मैंने इनको कौन सा दर्द दिया है, जो ये मुझसे बदला ले रहे हैं मै तो खुद पहली बार मिल रही हूं इनसे फिर..." अभिराज के कहे शब्दों को याद करने लगी!

    वही सिड भी सुबह से कुछ नहीं खा रहा था और ज्यादा रोने की वजह से उसे बुखार भी आ गया था! वो नींद में भी नंदिता का नाम ले रहा था! वही उसके बगल में बैठी औरत परेशान होते हुए बोली, "बिचारा बच्चा ना तो कुछ खा रहा है और ना तो बात सुन रहा है क्या करु कुछ समझ मे नहीं आ रहा है, क्या करू!"

    फिर सिड को देखते हुए बोली, "अभी तो दवा के असर से सोया है लेकिन जब इसकी निंद खुलेगी तब क्या!"

    तब तक सीड निंद में बड़बड़ाया, "मा आप कहा हो, आप कहा हो।" यहा सिड बोला और वहा सिड का नाम लेते हुए नंदिता उठ गई!

    और बेचैनी मे अपने दिल पर हाथ रख कर परेशान होते हुए बोली, "मेरा बच्चा" फिर वो गोपाल से प्रार्थना करते हुए बोली, "गोपाल मेरे बच्चे को ठीक रखना!"

    वो कहते है ना बच्चा जब तकलीफ़ में हो तो माँ को पता चल जाता! माँ और बच्चे का रिश्ता हि ऐसा होता है! जब से सिड नंदिता से दूर हुआ है तब से ना तो नंदिता ने कुछ खाया ना हि एक पल आराम किया! यहां तक कि सिड के लिए एक अजनबी से शादी भी कर ली! वही सिड भी नंदिता से दूर हो के बीमार पड़ गया!

    नंदिता रूम मे चक्कर काटते हुए सिड के लिए बेचैन हो रही थी! तभी उसकी नजर कमरे में लगे घड़ी पर गई! वो एक बार अभिराज को देखी फिर घड़ी को देखते हुये बोली, "अभी तो 3 बज रहे हैं, ना जाने ये सुबह कब होगी और मैं इनसे अपने बच्चे के बारे में पूछूंगी, कुछ भी करके मुझे इनसे बात करनी होगी, 2 दिन हो गए हैं मुझे मेरे बच्चे को देखे हुए बस और अब नहीं, मुझे कैसे भी करके सुबह इनसे सिड के बारे में पूछना ही होगा!"

  • 17. पत्नी का हक - Chapter 17

    Words: 1792

    Estimated Reading Time: 11 min

    आगे,

    अचानक से सिड का नाम लेते हुए नंदिता की नींद खुल गई! और वो अपने दिल पर हाथ रखते हुए बोली, "हे गोपाल मेरे बच्चे की रक्षा करना।" अपनी आँखों में आँसू लिए नंदिता सिड को याद करते हुए वहीं सोफे पर बैठ गई और उसकी नज़र सामने बिस्तर पर सो रहे अभिराज पर गई!

    अभिराज को देखते ही नंदिता का गुस्सा बढ़ गया और उसको अभिराज की कही सारी बातें याद आने लगीं!

    वो गुस्से में अपने आँसू पोंछते हुए बोली, "बस बहुत हुआ, मुझे नहीं पता कि मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, लेकिन तुमने ये ठीक नहीं किया, पहले मेरे बच्चे को किडनैप किया, फिर मेरे परिवार को जेल भेजने का डर दिखा के मुझसे शादी कर ली।" वो जैसे-जैसे याद कर रही थी वैसे-वैसे उसके आँसू बहते जा रहे थे!

    एक बार उसने दीवार घड़ी पर नज़र घुमाई तो देखा कि रात के 3 बज रहे थे! समय देखने के बाद नंदिता अभिराज को देखती हुई बोली, "कैसे भी करके मैं पता लगा के रहूँगी कि मेरा बच्चा कहाँ है!"

    फिर वो अपने चेहरे के भाव बदलते हुए बोली, "अब देखो मिस्टर अभिराज चौधरी मैं क्या करती हूँ!" बोलकर वो अपने हाथों को देखने लगी जिसपर अभिराज के उंगलियों के निशान थे! ऐसे ही सोच-विचार में सुबह हो गई!

    नींद उसकी आँखों से उड़ चुकी थी! अब उसको कुछ भी करके बस सिड तक पहुँचना था! कुछ सोचते हुए उसने एक बार अभिराज को देखा जो नशे में अभी भी सो रहा था! उसको देखते हुए वो दबे पाँव रूम से बाहर आई और धीरे से दरवाजा लगा दिया!

    फिर अपने लेफ्ट राइट देखते हुए बोली, "एक बार ये पूरे घर में चेक कर लेती हूँ, हो सकता है कि सिड यहीं कहीं मिल जाए।" सिड के मिलने की उम्मीद में नंदिता विला के हर रूम को चेक करने लगी! वो हर एक कमरे को अच्छे से चेक कर रही थी!

    काफी वक़्त हो गया था! बड़ी मुश्किल से उसने लगभग सारे कमरों में देख लिया, लेकिन उसको सिड कहीं नहीं मिला! वो परेशान होते हुये बोली, "ये घर है या भूल भुलैया, सब एक जैसा ही दिख रहा है, अब ऐसे में मैं अपने बच्चे को कैसे ढूंढूँगी, कहाँ होगा मेरा बच्चा!"

    बोलते हुए वो एक कमरे के सामने खड़ी हो गई! वो दरवाजे को देखते हुए नंदिता परेशान होते हुये बोली, "इस घर में सारे दरवाजे एक जैसे क्यों है!"

    फिर खुद सोचते हुए बोली, "एक बार इसमें भी देख लेती हूँ शायद सीड मिल जाए!"

    इसी उम्मीद में नंदिता ने दरवाजा खोलने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया ही था कि किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया! उसके हाथ पकड़ते ही नंदिता आंखे मिचते हुए बोली, "हे भगवान इनको भी अभी जागना था क्या, थोड़ी देर और नहीं सो सकते थे क्या!"

    जी हाँ उसका हाथ पकड़ने वाला अभिराज ही था! जो उसको घूर के देख रहा था! नंदिता ने अपनी आँखें खोल के अभिराज की तरफ देखा और अभिराज को देखते ही नंदिता एक पल के लिए सहम गई! क्योंकि अभिराज उसे गुस्से से घूर रहा था! नंदिता कुछ कहती या कर पाती उसके पहले ही अभिराज नंदिता को खींचते हुए हॉल में ले आया और झटके से उसका हाथ छोड़ते हुए बोला, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कमरे से बाहर निकलने की, भूलो मत तुम मेरी गुलाम हो और जब तक कि मैं ना चाहूँ तुम कमरे से भी नहीं निकल सकती, समझी ना!"

    अभिराज की बात पर नंदिता को बहुत गुस्सा आ रहा था! लेकिन पता नहीं क्या सोच कर नंदिता मुस्कुराती रही! नंदिता को मुस्कुराता देख, अभिराज कन्फ्यूज्ड होकर उसको देखने लगा!

    वही नंदिता मुस्कुराती हुई अभिराज के सामने आई और थोड़ा शरमाते हुए बोली, "जी नहीं मैं बिल्कुल नहीं भूली हूँ कि मैं आपकी गुलाम हूँ, लेकिन शायद आपको याद नहीं कि आपने मुझे कल रात एक और हक दे दिया है!"

    नंदिता की बात सुनकर अभिराज की आंखे बड़ी हो गई वही नंदिता शरमाते हुई बोली, "आपने मुझे अपनी पत्नी होने का हक दे दिया!"

    फिर मासूम बनते हुये बोली, "आपको पता है मैंने आपको बहुत रोकने की कोशिश की है लेकिन आप रुके ही नहीं आपको तो सुहागरात मनानी थी, जो कि आपने मना ली!"

    नंदिनी की बात और उसको यूँ शर्मता देख अभिराज गुस्से से अपने दांत भींचते हुए बोला, "ये क्या बोल रही हो तुम, कहीं तुम्हारा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया है!"

    तो नंदिता शर्म से सर नीचे झुकाए ही ना में सर हिलाते हुए बोली, "जी, बिलकुल नहीं मैं सच कह रही हूँ, और वैसे भी कोर्ट मैरिज ही सही लेकिन शादी तो हुई है ना हमारी और आप मेरे पति हैं तो..."!

    इसके आगे नंदिता कुछ बोलती अभिराज गुस्से में वहां से चला गया! अभिराज के जाते ही नंदिता के चेहरे का एक्सप्रेशन बदल गया! वो अभिराज जहाँ से गया था, उस तरफ देखते हुए बोली, "सॉरी, मुझे आप से लड़ना नहीं था, और मैं नहीं चाहती थी कि मेरे मुँह से ऐसा कुछ निकले जिसकी वजह से मुझे सिड से मिलने मे और देरी हो, और मुझे यह भी तो नहीं पता कि तुम मुझसे बदला क्यों लेना चाहते हो, जिसके कारण मेरा बच्चा तकलीफ झेल रहा है, एक बार मुझे वो मिल जाए उसके बाद मैं सब ठीक कर दूंगी!"

    बोलकर वो उस तरफ बढ़ गई, जिस तरफ से अभिराज गया था! वही अभिराज रूम में चक्कर काटते हुए खुद पर गुस्सा हो रहा था! वो खुद पर गुस्सा करते हुए बोला, "नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता, मैं उसे जिंदगी भर तकलीफ में देखना चाहता हूँ, ऐसे में मैं उसे अपनी पत्नी का हक कैसे दे सकता हूँ!"

    अभिराज अपनी सोच में उलझा हुआ था और नंदिता उसको दरवाजे पर खड़ी होकर देख रही थी! अभिराज को परेशान देख कर नंदिता अपने मन में बोली, 'अभी मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम मेरे बारे में क्या सोचोगे! मुझे अभी सिर्फ अपने बेटे से मिलना है और उसके लिए मुझे जो करना पड़े, वो मैं करूंगी!'

    अभिराज अभी अपनी सोच में था कि उसका फोन रिंग हुआ! वो अपने सेंस में आते हुए फोन को चेक किया और फोन लेकर बालकनी की तरफ चला गया! उसके जाते ही नंदिता अंदर आई और वो चारो तरफ देख ही रही थी कि उसकी नज़र एक बैग पर पड़ी!

    वो बैग को देखते ही नंदिता को याद आया "कि ये वही बैग है जो अभिराज ने उसे दिया था!" उसने जल्दी से बैग उठाया और उसमे देखने लगी और जैसे उसने उसमे साड़ी देखी तो उसकी आंखो में चमक आ गई और वो जल्दी से बैग लेकर वॉशरूम में चली गई!

    कुछ देर बाद नंदिता बाहर आई और मिरर के सामने खड़ी होकर रेडी होने लगी! वो रेडी हो ही रही थी कि अभिराज आ गया! वही नंदिता अपनी साड़ी की प्लीट्स ठीक कर रही थी! लाल रंग की ऑर्गेन्ज़ा साड़ी में नंदिता बहुत खुबसूरत लग रही थी! अभिराज तो दो पल के लिए उसको देखते ही रह गया!

    एक सिंपल सी साड़ी में भी नंदिता की ख़ूबसूरती का कोई जवाब नहीं था! तभी उसके हाथ से ड्रेसिंग टेबल से कुछ गिर गया और अभिराज अपने सेंस में आते हुए अपने मन में बोला, "ये क्या कर रहा है अभिराज, भूल मत तूने इससे शादी क्यों की, तो उसपर फोकस कर ना कि कहीं और!"

    बोलकर वो नंदिता को बिना देखे ही बोला, "जल्दी करो हमें कहीं जाना है" और वो वॉशरूम मे चला गया, वही नंदिता ने भी एक बार उसको गुस्से से जाते हुए देखा और फिर से अपना काम करने लगी!

    थोड़ी देर में अभिराज भी वॉशरूम से बाहर आया! लेकिन वो लगभग तैयार था! वो अपनी घड़ी पहनते हुये सख्त आवाज में बोला, "मेरे पास फालतू टाइम नहीं है, तो जल्दी करो!"

    बोलकर उसने नंदिता को देखा जो तैयार तो थी लेकिन सिन्दूर की डिब्बी अपने हाथ में लेकर मिरर में देख रही थी! नंदिता को ऐसे देख कर अभीराज ने बेपरवाही से वो डिब्बी से एक चुटकी सिन्दूर निकाला और नंदिता की मांग में भरते हुये बोला, "हो गया पूरा, अब चलो!"

    वही नंदिता जो इसके लिए तैयार नहीं थी वो अभिराज के ऐसा करने से एकटक उसको दिखते रह गई!

    वही अभिराज नंदिता का हाथ पकड़ के खिचते हुए लेकर जाने लगा और नंदिता भी बेसुध सी उसके साथ चली जा रही थी! विला से बाहर आ के अभिराज ने जल्दी जल्दी नंदिता को पैसेंजर सीट पर बैठाया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ कर वहां से कार लेकर निकल गया!

    कुछ देर बाद फिर उनकी कार किसी विला के आगे आ के रुकी! ब्रेक लगने से नंदिता ने खिड़की के बाहर देखी, तो उसकी नजर दीवार पर लगे नेम प्लेट पर गई! जिसपर साफ साफ शब्दों में "चौधरी विला" लिखा हुआ था!

    वही अभिराज जल्दी से कार से उतरा और नंदिता को भी हाथ पकड़के उतारते हुए विला के अंदर जाने लगा! नंदिता उसके साथ जाना तो नहीं चाहती थी! लेकिन उसको यहां आकर कुछ अजीब सी बेचैनी हो रही थी! जैसे वो सिड के आस पास हो! जिस वजह से वो अभिराज के साथ चली जा रही थी! कुछ देर में वो दोनों विला के अंदर पहुंच गए! और अभिराज बिना किसी को कुछ बोले नंदिता को सीढ़ियों से ऊपर की तरफ ले जाने लगा! वही अभिराज जब आया था तो उसकी मां ने उसे देख लिया था और उसके साथ नंदिता को भी!

    और वो परेशान होते हुए उनके पीछे-पीछे चली गई! वही नंदिता के घर सुजाता जी परेशान थीं, अचानक से नंदिता की शादी होने से सब परेशान थे! लेकिन सुजाता जी के परेशानी का कारण नंदिता के साथ-साथ इस बार सुधीर भी था!

    वो अभी सुधीर के कमरे में बात करने जा ही रही थी कि, सुधीर कमरे से बाहर आया और सुजाता जी को अनदेखा करते हुये मीना जी से बोला, "बड़ी मा मैं कुछ काम से बाहर जा रहा हूं, शाम तक आ जाऊंगा!" मीना जी सुधीर से कुछ बोल पाती उसके पहले ही सुधीर जल्दी से वहा से निकल गया और सुजाता जी देखते रह गईं!

    आख़िर क्यों लाया है अभिराज नंदिता को चौधरी विला.....? क्या वो नंदिता को सिड से मिलवा देगा...? क्या नंदिता जान पायेगी अभिराज के गुस्से की वजह....? और क्यु है सुजाता जी सुधीर के लिए परेशान.....? जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ.......!

  • 18. अंजना जी का गुस्सा - Chapter 18

    Words: 1840

    Estimated Reading Time: 12 min

    नंदिता अपने मन में उठ रही बेचैनियों को संभालते हुए अभिराज के साथ चली जा रही थी! वहीं अभिराज बिना कुछ बोले नंदिता का हाथ पकड़े हुए सीढ़ियों से ऊपर की तरफ जा रहा था!

    अभिराज के साथ चलते हुए नंदिता को अजीब सी ख़ुशी महसूस हो रही थी! वो ख़ुशी को महसूस करते हुए नंदिता अपने मन में बोली, "ऐसा क्यों लग रहा है कि मेरा बच्चा, मेरा सिड यहीं कहीं आस-पास है? अगर ये सच है तो please गोपाल, मुझे मेरे बच्चे से मिलवा दीजिए, बस एक बार उसको देख लूँ, उसको छूकर तसल्ली कर लूँ, एक बार उसको गले से लगा लूँ, पता नहीं किस हाल में होगा मेरा बच्चा!"

    फिर अभिराज को देखते हुए बोली, "अगर आज तुमने कोई शर्त रखी ना मुझे मेरे बच्चे से मिलने के लिए, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, शायद आज के बाद तुम मुझसे और भी नफ़रत करने लगो, इसलिए उम्मीद करती हूँ कि आज तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे," और वो अभिराज को गुस्से में घूरते हुए उसके साथ जा रही थी! क्योंकि पिछले दिनों अभिराज ने जो कुछ भी उसके साथ किया था, उसकी वजह से नंदिता को उस पर रत्ती भर भरोसा नहीं था!

    वहीं नंदिता के घर,

    सुधीर का खुद को अनदेखा करना सुजाता जी को पसंद नहीं आया और उससे भी ज्यादा सुजाता जी को बुरा इस बात का लगा कि सुधीर मीना जी को बता के गया! सुधीर की हरकत से सुजाता जी गुस्से से एकदम तपने लगी!

    सुधीर के जाते ही सुजाता जी गुस्से से चिल्लाते हुए बोलीं, "हा हा, मेरी इस घर में जरूरत ही किसे है, एक बच्चा पहले ही मुझसे दूर हो गया है, और दूसरा भी मुझे कुछ नहीं समझता, मैं ही तो सबसे बुरी हूँ इस घर में!" बोलकर वो एक बार मीना जी की तरफ देखीं, फिर गुस्से से अपने कमरे में चली गईं!

    वहीं मीना जी, जो नंदिता की शादी और उससे ना मिल पाने की खबर से खुद को संभाले हुए थीं! वो सुजाता जी के मुंह से ताने सुनकर जानकी जी के गोद में सर रखकर रोने लगीं! मीना जी के ऐसा करते ही जानकी जी मीना जी के सर को सहलाते हुए बोलीं, "तुम ऐसे दिल छोटा मत करो बड़ी बहू, तुम्हें पता है ना छोटी बहू ऐसी ही है तो तुम क्यों उसकी बातों का बुरा मानती हो!"

    तो मीना जी वैसे ही बैठी हुई बोलीं, "नहीं मां, मुझे छोटी की बातों का बुरा नहीं लगा, मुझे तो नंदिता के लिए बुरा लग रहा है, पता नहीं मेरी बच्ची, मेरी कौन सी करनी की सजा भुगत रही है!" मीना जी की बात पर जानकी जी भी कुछ नहीं बोल पाईं! क्योंकि नंदिता के लिए उनका दिल भी तड़प रहा था!

    वहीं चौधरी विला में,

    सीढ़ियों से होते हुए अभिराज नंदिता को ऊपर की तरफ लेकर गया और एक कमरे के आगे जाकर खड़ा हो गया और नंदिता को आगे करते हुए बोला, "दरवाजा खोलो!"

    इस बार नंदिता ने भी इनकार नहीं किया और उसने जल्दी से जाकर दरवाजा खोल दिया! दरवाजा खोलते ही नंदिता की आँखें खुली की खुली रह गईं! उसकी आँखों में से आंसू झरने की तरह बहने लगे! वो जल्दी से अंदर गई और देखा कि एक बच्चा बिस्तर पर लेटा हुआ था, और एक औरत उसके बगल में बैठ कर उसके माथे पर पट्टी कर रही थी! देखने से ही लग रहा था कि उस बच्चे की तबीयत ख़राब है!

    नंदिता जल्दी से वो बच्चे के पास गई और अपने कांपते हुए हाथों से वो बच्चे को छूते हुये बोली, "सीड, मेरे बच्चे, मेरा बच्चा!" इस वक्त नंदिता के चेहरे पर खुशी और परेशानी के मिले जुले भाव नज़र आ रहे थे!

    सिड को बीमार देख कर परेशानी में और सिड से मिलकर ख़ुशी में! वहीं सिड को ऐसे बिस्तर पर लेटा हुआ देखकर नंदिता का दिल सौ टुकड़ों में टूट रहा था!

    वह सिड को प्यार भरी नज़रों से देखते हुए उसके माथे पर रखी पट्टी को हटाते हुए उसके माथे पर किस कर ली! नंदिता के किस करते ही सिड के मुंह से एक मुस्कान के साथ निकला, "मां, आप आ गईं!"

    जिसे सुन नंदिता के चेहरे पर बेशकीमती मुस्कान आ गई! वहीं सिड के बगल में बैठी औरत नंदिता के आते ही उठकर साइड में खड़ी हो गई थी!

    वहीं नंदिता का एहसास पाकर सिड ने धीरे-धीरे से अपनी आँखें खोली और अपने सामने नंदिता को देखते ही वो खुशी से बोला, "मां, आप आ गई, मां कहां चली गई थी, सिड को छोड़ के, सिड को मां की याद आ रही थी!" इतने दिन बाद सिड के मुँह से अपने लिए माँ सुनके नंदिता को एक राहत सी मिली, सुकून मिला!

    वो अपनी आँखों में आसू और चेहरे पर बेहिसाब ख़ुशी लिए हा में सर हिलाते हुए बोली, "हां बेटू, मां आपके पास वापस आ गई, लेकिन ये क्या आप ने तो अपनी तबियत खराब कर ली, क्यूं?"

    तो सिड खुशी से नंदिता के पास आने के लिए जैसे ही उठा वो फिर से बिस्तर पर गिर गया! ये देख कर नंदिता डरते हुए जोर से बोली, "बेटू!"

    वहीं अभिराज भी जल्दी से सिड के पास आ गया और अपना फोन निकाल के जल्दी से डॉक्टर को कॉल किया! उसके बाद वही खड़ी लेडी को इशारा किया, तो वो लेडी वहा से चली गई!

    वहीं नंदिता सिड को संभालते हुए बोली, "आप ठीक हो ना बेटू, आप को उठने की कोई जरुरत नहीं है, आप ऐसे ही लेटे रहो!"

    तभी सिड अपना हाथ आगे बढ़ते हुए धीमी आवाज में बोला, "मा सिड को भूख लगी है!"

    तो नंदिता जल्दी से हा मे सर हिलाते हुए अपने आस पास देखने लगी!

    नंदिता को ऐसे करते देख अभिराज उसको शांत कराते हुए बोला, "दो मिनट रुको, सरवेंट खाना लाने ही गई है!"

    तब वो सरवेंट अपने हाथों में खाने की प्लेट लेकर आई! उसको देखते ही नंदिता जल्दी से उसके पास जाकर उसके हाथ से प्लेट लेकर सिड के पास बैठते हुये, प्लेट साइड टेबल पर रखी!

    और सिड को अपनी बाहो में लेकर जूस पिलाने लगी! सिड को भूख तो बहुत लगी थी क्योंकि उसने भी अभी तक कुछ नहीं खाया था! इसलिए नंदिता के जूस पिलाने पर सिड ने चुप चाप से पी लिया और उसे चाहिए ही क्या था, बस उसकी माँ उसके सामने रहे और नंदिता उसके सामने थी तो वो भी खुश था!

    वहीं सिड को ठीक देख कर अभिराज को भी अब सुकून मिल रहा था! नंदिता सिड के साथ बात करते हुए नंदिता उसे धीरे-धीरे खिला रही थी और अभिराज दोनों को देख रहा था!

    तभी कमरे में अभिराज की माँ अंजना जी आई! वो अभिराज से कुछ बोलतीं, उससे पहले उनकी नज़र नंदिता और सिड पर गई!

    सिड को ठीक देख कर उनको भी राहत मिली! लेकिन जैसे ही उनकी नज़र नंदिता की मांग पर गई उनकी आंखे बड़ी हो गई! वो धीरे से अभिराज को आवाज़ देते हुए बोलीं, "तू मेरे साथ चल, मुझे कुछ बात करनी है!"

    तो अभिराज ने हा मे सर हिला दिया और एक बार सिड और नंदिता को देख कर वहां से अंजना जी के साथ चला गया!

    रूम से बाहर आ के अंजना जी गुस्से से उसका हाथ पकड़ते हुए अपने कमरे ले गईं और रूम में पहुँच कर अभिराज का हाथ छोड़ते हुए बोलीं, "ये क्या है, तूने तो कहा था कि वो कुंवारी है, उसकी शादी नहीं हुई है, लेकिन उसकी मांग में तो सिन्दूर था, देख अभी तू किसी और की पत्नी को जबर्दस्ती यहाँ तो नहीं लाया ना, देख ये गलत है, पाप है, तू अभी के अभी जा उसको उसके घर छोड़ के आ समझा!"

    अंजना जी बोल रही थीं और अभिराज अपनी आँखे छोटी करके सुने जा रहा था, कि वो अचानक से बीच मे बोला, "वो किसी और की पत्नी नहीं है, वो मेरी ही पत्नी है!" उसकी माँ को शांत करने के लिए अभिराज का इतना कहना काफी था!

    अभिराज की बात सुनकर अंजना जी चुप हो गई और अपने लड़खड़ाते हुए शब्दों में बोलीं, "क्या तेरी पत्नी, लेकिन तू तो..." इतना बोलकर वो चुप हो गई!

    फिर गुस्से से अभिराज पर चिल्लाते हुए बोलीं, "कब की तूने शादी और क्यूं?"

    तो अभिराज अपनी नज़रे चुराते हुए बोला, "कल ही की कोर्ट मैरिज!"

    ये सुनते ही वो चौंकते हुए बोलीं, "क्या कल की और आज उसे लेकर आ रहा है, तुझे पता था ना, सिड की हालत के बारे में तो कल ही क्यों नहीं लाया घर उसे, बता मुझे!"

    फिर थोड़ा रुक कर कुछ सोचते हुए बोलीं, "तो अभी तक कहा रखा था उसे, कहीं विला पर तो नहीं लेकर गया था ना!"

    ये सुनते ही अभिराज को नंदिता की वो बात याद आ गई, "आपको मनानी थी सुहागरात, तो आपने मना ली और दे दिया मुझे पत्नी का हक!"

    अभिराज को खोया देख अंजना जी उसको झकझोरते हुए बोलीं, "बोल ना अभी कही उसको सब पता तो नहीं चल गया, अगर ऐसा हुआ है तो आगे क्या होगा, वो सिड को हमसे दूर लेकर चली जाएगी, नहीं ऐसा नहीं हो सकता!"

    उनको परेशान देख कर अभिराज उनको शांत कराते हुए बोला, "नहीं ऐसा नहीं है, उसे कुछ पता नहीं चला, लेकिन आपको ऐसे पैनिक करता देख, उसको शक जरूर हो जाएगा, इसलिए please आप खुद को संभालिए!"

    तो अंजना जी बिस्तर पर बैठते हुये बोलीं, "खुद को संभालू लेकिन कैसे, मैंने कहा था ना कि, अपने गुस्से में ऐसा कुछ नहीं करना जिसके कारण बाद में हमे पछताना पड़े तो फिर ऐसा क्यों किया, क्यू कि शादी!"

    तो अभिराज भी थोड़ा जोर से बोला, "तो मैंने भी कहा था ना आप सबको जो करना है कर लीजिए लेकिन उसके बाद जो भी मैं करूंगा कोई मुझे रोकेगा नहीं, और मुझे पता है की मैंने क्या किया है!" बोलकर अभिराज अंजना जी के कमरे से बाहर आ गया और अंजना जी वही सर पकड़ के बैठ गई!

    वहीं उन्हें पता नहीं था कि उनकी सारी बातें किसी ने दरवाजे से सुन ली थीं!

    अभिराज अभी सिड के रूम की तरफ जा ही रहा था कि उसको डॉक्टर आते हुए दिखे गए! वो वही रुक गया और डॉक्टर के आते ही उनके साथ रूम में आया और सामने का नजारा देख कर अभिराज और डॉक्टर दोनों चौक गए!

  • 19. मेरा सिड ठीक है- Chapter 19

    Words: 1850

    Estimated Reading Time: 12 min

    अंजना जी के कमरे से निकल कर अभीराज उस तरफ जाने लगा जहाँ सिड और नंदिता थे! वो जा ही रहा था कि उसकी नजर सीढ़ियों से आते हुए डॉक्टर पर गई! डॉक्टर को देख कर अभीराज वहीं रुक गया और उनके साथ रूम के पास आया और जैसे ही उसने दरवाजा खोला, उसकी आँखें बड़ी हो गई!

    वही डॉक्टर भी हैरानी से देख रहा था! क्योंकि अब तक जो बच्चा बीमारी के कारण उठ भी नहीं पा रहा था, वो अंदर जोर-जोर से हँसते हुए बात कर रहा था!

    नंदिता और सिड एक दूसरे से बात कर रहे थे और बीच-बीच में सिड खिलखिला कर हँस रहा था, नंदिता भी अपने फेस पर बेशुमार प्यार और खुशी लिए सिड से बात कर रही थी! जहाँ वह दोनों को देख कर अभीराज हैरान था! वही डॉक्टर उनको देखते हुए बोला- "मिस्टर चौधरी आप मेरे साथ चलिए।"

    और डॉक्टर बाहर की तरफ चला गया और डॉक्टर के पीछे अभिराज भी डोर हल्के से बंद करके बाहर आ गया!

    अभिराज को देखते ही डॉक्टर स्माइल करते हुए बोला- "मिस्टर चौधरी, अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है!"

    तो अभिराज कन्फ्यूज होते हुये बोला- "क्या मतलब है कि चिंता करने की जरूरत नहीं है?"

    तो डॉक्टर अभिराज को समझाते हुए बोला- "देखिए मिस्टर चौधरी मेरे कहने का मतलब है कि सिड को अब डॉक्टर की जरूरत नहीं है, उसको जो चाहिए था उसे वो मिल गया है, अब वो पूरी तरह से ठीक है!"

    अंजना जी भी अब तक वहाँ आ गई थी और डॉक्टर को देख कर वही अभिराज के साथ डॉक्टर की बात सुन ली थी और डॉक्टर के मुँह से ये सुनकर कि "सिड पूरी तरह से ठीक है!" उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा!

    अभिराज कुछ बोलता उसके पहले ही अंजना जी खुशी से बोली- "क्या कहा आपने, मेरा सिड ठीक है?"

    तो डॉक्टर स्माइल करते हुए बोला- "हाँ वो अब पूरी तरह से ठीक है, लेकिन तब तक जब तक उसकी माँ उसके साथ है!"

    ये सुनते ही अंजना जी और अभिराज के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई! वही डॉक्टर आगे बोला- "तो आप लोग कोशिश कीजिएगा की वो हर वक़्त ख़ुश रहे, ठीक है मैं अभी चलता हूँ।"

    बोलकर डॉक्टर चला गया वही अभिराज और अंजना जी एक दूसरे को देखने लगे!

    वही नंदिता सिड को पा के जैसे सब भूल गई थी! वो सिड की नाक को पिंच करते हुए बोली- "अपने बेटू से माँ बहुत प्यार करती है!"

    तो सिड भी नंदिता की नाक को छूते हुए बोला- "सिड भी माँ से बहुत प्यार करता है!"

    तो नंदिता खुशी से अपनी आंखे बड़ी करते हुए बोली- "अच्छा, तो क्या सिड माँ को बताइयेगा कि वो माँ से कितना प्यार करता है?"

    नंदिता की बात पर सिड सोचने के अंदाज़ में अपने सर पर हाथ रखा फिर खुश होते हुए अपने हाथों के इशारे से बोला- "इतना!"

    फिर ना में सर हिला के अपने हाथों को और आगे करते हुए बोला- "इतना!"

    फिर ना में सर हिला के अपने हाथों को और बड़ा करते हुए बोला- "इतना!"

    जब उससे भी सिड का मन नहीं भरा तो सिड नंदिता के गले से लगते हुए बोला- "इतना जितना कोई नहीं करता!"

    सिड की बातें और उसके गले लगने से नंदिता ने भी उसको अपनी बाहों में भर लिया और उसके माथे पर किस करते हुए बोली- "माँ भी आपको बहुत प्यार करती है इस दुनिया में सबसे ज्यादा!"

    यहाँ तो नंदिता और सिड एक दूसरे के साथ खुश थे! वही अंजना जी अभिराज से नाराज़ थी!

    अंजना जी को खुद से नाराज़ देख अभिराज बोला- "माँ देखो अब आप प्लीज शुरू मत हो जाना कि मैंने क्यूँ और क्या किया, आपने डॉक्टर की बात सुना ना, सिड को हमेशा के लिए उसकी माँ चाहिए, तो बस एक यही विकल्प था उसकी माँ को लाने का और अपना हिसाब चुकाने का!"

    बोलते हुए उसके एक्सप्रेशन एक दम से बदल गए थे! वही अंजना जी गुस्से में बोली- "ठीक है, तुझे जो करना था तूने कर लिया, अब सबको जवाब भी तू ही देना!"

    बोलकर वो चली गई!

    उनके जाते ही अभिराज सिड के रूम की तरफ बढ़ गया! रूम में जाकर उसने देखा की नंदिता और सिड एक दूसरे की बाहों में बाहे डाले सो रहे थे! सिड को सुकून से सोता देख अभिराज के चेहरे पर छोटी मुस्कान आ गई! वही उसकी मुस्कान गायब भी हो गई जब उसने नंदिता को सुकून से सोते देखा!

    वो नंदिता को देखते हुए बोला- "सो लो जितना सोना है सुकून से, सो लो शायद इसके बाद तुम्हें इसका मौका ना मिले!"

    तभी उसकी नजर नंदिता के हाथों पर गई जहाँ पर उसकी उंगली के निशान थे! वो निशान को देखते ही उसको नंदिता की बातें याद आने लगी!

    एक पल के लिए उसका चेहरा गिल्ट से भर गया! लेकिन अगले ही पल ना जाने क्या सोच कर वो गुस्से मे कमरे से बाहर चला गया!

    वही सुधीर एक कैफे में बैठा किसी का इंतजार कर रहा था! उसको इंतजार करते हुए काफी वक्त हो गया था! वो इरिटेट होते हुए बोला- "कब से इंतजार कर रहा हूं, लेकिन इसका तो कोई पता ही नहीं है! एक काम कर करता हूं एक बार फ़िर से कॉल करके पूछ लेता हूं, कहा है!"

    बोलकर उसने अपना फोन निकाला, लेकिन वो जैसे ही कॉल लगाने वाला था की वैसे ही किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा!

    तो सुधीर पलट के उस इंसान को देखते हुए बोला- "क्या नैना, मै कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हू और तुम हो कि अब आ रही हो!"

    नैना सुधीर की दोस्त, उम्र 23 साल, गोरा रंग, बड़ी बड़ी आँखे छोटे बाल जो उसके कंधे तक आ रहे थे, उसने इस वक्त नीली जींस और उसके ऊपर लाल रंग की टॉप पहननी थी! हाथ में ब्रेस्लेट, खुबसूरत एक दम से गुड़िया जैसी लेकिन थोड़ी बड़बोली!

    नैना सुधीर के सामने आ के बैठते हुए बोली- "अरे बाबा थोड़ा काम मे फंस गई थी, इसलिए देर हो गई!"

    तो सुधीर नैना से बोला- "चलो कोई बात नहीं, वैसे मैंने जो कहा था क्या तुमने वो कर दिया?"

    तो नैना थोड़ा मुंह बनाते हुए बोली- "वो क्या है ना, मैंने तो वो..."

    वो इतना ही बोली थी कि सुधीर निराश होते हुए बोला- "ठीक है जाने दो कोई बात नहीं मै कुछ करता हूं!"

    सुधीर को निराश देखकर नैना ठहाके मार के हंसते हुए बोली- "तुम्हारी शक्ल तो देखो!"

    नैना को ऐसे ठहाके मार के हंसते हुए देख सुधीर कन्फ्यूज होते हुए बोला- "तू ऐसे क्यों हस रही है?"

    तो नैना सुधीर के आगे एक पेपर देते हुए बोली- "तुम्हारा काम हो गया है, हंसी तो मुझे तुम्हारी शकल देखकर आने लगी थी, कैसे मुँह बनाया था तुमने!"

    बोलकर वो फिर से एक बार और हसने लगी!

    नैना अपने मे थी! वही सुधीर वो पेपर को देखते हुए अपने मन में बोला- "दी बस कुछ दिन और उसके बाद आप हमेशा के लिए अपने घर आ जाओगी, इस जबरदस्ती के रिश्ते से आपको आजादी भी मिल जाएगी!"

    शाम हो चली थी, और नंदिता और सिड अभी भी सुकून से सो रहे थे! तभी सिड हिला और उसके हिलने से नंदिता की नींद कच्ची हो गई वो और वो उठ गई! उठते ही अपने आंखो के सामने सिड को देखकर नंदिता के चेहरे पर मुस्कान आ गई! नंदिता उसके माथे पर किस करके उसको बिस्तर पर अच्छे सुलायी! फिर उसने अपनी नजर कमरे में चारो तरफ घुमाई, कमरे को देखते ही नंदिता को समझने में देर नहीं लगी कि वह कमरा सिड का ही था! क्यूकी चारो तरफ सिड की तस्वीरें लगी थी!

    जिसमें से कुछ उसकी और छोटी उम्र की भी थी! चारो तरफ मिनियंस के खिलौने और नंदिता को अच्छे से पता था कि सिड को मिनियन्स बहुत पसंद है, ये सब देख कर नंदिता थोड़ी हैरानी होते हुये बोली- "इसमें कोई शक नहीं कि ये रूम सिड का हि है, लेकिन यहां तो सारि की सारि तस्वीरें सिड की हि है! इसके माता पिता के साथ में इसकी कोई भी तस्वीर क्यों नहीं है, कौन है सिड के माता पिता, अगर सिड इस घर का बच्चा है तो इसके माता पिता भी यहीं होंगे!"

    फिर कुछ याद आते ही वो बोली- "लेकिन जब उसकी तबियत इतनी ख़राब थी, तो उसके पास सरवेंट क्यूँ बैठी थी, सिड की माँ कहा है!"

    अपने मन में उठे सवालो के जवाब ढूंढने के लिए नंदिता वो रूम चेक करने लगी! लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं लगा! तब भी उसकी नज़र सिड के स्कूल बैग पर गई!

    बैग को देखते हुए नंदिता की आँखों में चमक आ गई और वो बैग लेने के लिए आगे बड़ी ही थी कि कमरे का दरवाज़ा खुला!

    डोर खुलते हि नंदिता ने पलट के देखा तो उसके सामने पचपन साल के आस-पास एक औरत खड़ी थी! उन्होंने प्लाज़ो सेट पहना हुआ था, चेहरे पर ममता और आँखों में प्यार लिए जो उसे हि देख रही थी! उनको देखते हि नंदिता बोली- "आप!"

    नंदिता ने इतना ही बोला था कि वो औरत नंदिता के पास आते हुए बोली- "मै अभिराज की माँ और सिड की दादी अंजना रॉय चौधरी और तुम नंदिता सही कहा ना मैने!"

    तो नंदिता कन्फ्यूज्ड होते हुये बोली- "आप मुझे जानती हैं?"

    तो अंजना जी हा मे सर हिलाते हुये बोली- "हा जानती हूं मेरे बेटे ने तुमसे शादी की है, तो क्या मैं तुम्हें जानूगी नहीं!"

    उनकी बात पर नंदिता को गुस्सा आ गया और वो उनको सुनाते हुए बोली- "वाह आप बोल तो ऐसे रही है जैसे कि आप के बेटे ने कोई जंग जीती हो, अरे ब्लैकमेल करके उन्होंने मुझसे शादी की और आप इतने शान से बोल रही है कि आप के बेटे ने शादी की है, आपको तो उन पर गुस्सा होना चाहिए, कि वो ऐसा कैसे कर सकते हैं, वो भी एक बच्चे का सहारा लेकर!"

    नंदिता की बातें उनको किसी तीर से कम नहीं लग रही थी! फिर वो सब बातों को इग्नोर करते हुए बोली- "क्या हुआ कैसे हुआ अब कोई फर्क नहीं पड़ता, जो होना था वो हो चुका है, तो अच्छा रहेगा कि तुम भी इस बात को मान लो जितनी जल्दी तुम इस बात को मानोगी उतना तुम्हारे लिए हि अच्छा रहेगा!"

    बोलकर वो एक बार सिड की तरफ देखी और वहां से चली गई! उनके जाते हि नंदिता हैरानी से बोली- "यहां पर सब ऐसे ही है क्या?"

    बोलकर वो भी दरवाजे की तरफ बढ़ गई! वो बाहर जा पाती उसके पहले हि वो किसी से टकरा गई!

    आख़िर क्या करने वाला है सुधीर...? क्या अंजना जी नंदिता के लिए कुछ करेंगी...? और क्या चाहता हैं अभिराज ..?

  • 20. कब तक बचूंगी - Chapter 20

    Words: 1596

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    पूरे कमरे में अच्छे से ढूंढने के बाद भी नंदिता को सिड के माता-पिता के बारे में पता नहीं चला!

    आख़िर में वो परेशान होते हुए बोली, "ऐसा कैसे हो सकता है कि सिड के माता-पिता की एक भी तस्वीर नहीं है?" और फिर से पूरे रूम में उसने अपनी नजर घुमाई!

    जब कुछ उसके काम का नज़र नहीं आया तो वो परेशानी में अपने सर पर हाथ रख के खड़ी हो गई। वो सोच ही रही थी कि अंजना जी रूम में आई!

    और नंदिता ने अभिराज का गुस्सा उन पर निकाल दिया और गुस्से में भला बुरा बोल दिया! अंजना जी भी समझ सकती थी नंदिता की नाराजगी का कारण, इसलिए वो बिना कुछ बोले वहां से चली गई!

    उनके जाते ही नंदिता अपने सर पर हाथ रखते हुए बोली, "हे गोपाल ये मैंने क्या कर दिया, किसी और का गुस्सा आंटी जी पर निकाल दिया, ये मैंने क्या कर दिया!" बोलते हुए उसके चेहरे पर गिल्ट भर आया!

    और वो अंजना जी से माफ़ी मांगने के लिए उनके पीछे रूम से बाहर जाने लगी! वो जा ही रही थी कि अंदर आते हुए अभिराज से टकरा गई! वो गिरती, उससे पहले ही अभिराज ने उसे कमर से पकड़ लिया!

    नंदिता ने तो डर से अभिराज के कंधे को ही जोर से पकड़ते हुए अपनी आंखे बंद कर ली थी! वहीं नंदिता को होश में अपने इतने करीब देख कर अभिराज उसमें कहीं खो सा गया!

    वो एक टक नंदिता के चेहरे को निहार रहा था! तभी नंदिता को कुछ ना महसूस होने पर उसने अपनी आंखे खोली और अभिराज को अपने इतने करीब देख कर उसको फिर से कल रात का मंजर याद आ गया कि किस तरह अभिराज उसको जबरदस्त सुहागरात मनाने के लिए लेकर गया था!

    वो याद आते ही नंदिता जल्दी से खड़ी हुई और अभिराज से दूर होते हुये बोली, "वो सॉरी गलती से हो गया!" बोलकर वो अभिराज से नज़रे चुराने लगी!

    नंदिता को ऐसे खुद से दूर होते देख अभिराज सोच में पड़ गया! वो नंदिता की तरफ देख कर सोचते हुए अपने मन में बोला, "ये मुझसे ऐसे दूर क्यों जा रही है, जबकि इसने कहा था कि मैंने इसे पत्नी के सारे अधिकार दे दिए हैं, तो ये ऐसे क्यों कर रही है, कहीं इसने मुझसे झूठ तो नहीं कहा!"

    अपने शक को यकीन में बदलने के लिए अभिराज मुस्कुराते हुए नंदिता की तरफ बढ़ते हुए बोला, "क्या हुआ पत्नी जी तुम ऐसे मुझसे दूर क्यों जा रही हो?"

    अभिराज के ऐसे पास आने से नंदिता परेशान होने लगी! वो परेशानी से अपने कदम पीछे लेते हुए अपने मन में बोली, "इन्हें क्या हुआ, कहीं इनको शक तो नहीं हो गया ना कि कल मैंने इनसे झूठ बोला था!" नंदिता सोच ही रही थी, वही अभिराज नंदिता की तरफ बढ़ रहा था!

    नंदिता की तरफ बढ़ते हुए अभिराज उसको ऊपर से नीचे तक घूर रहा था और उसका ऐसे घूरना नंदिता को बर्दाश्त नहीं हो रहा था! देखते-देखते अभिराज नंदिता के एकदम से करीब आ गया, वही नंदिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, तभी उसकी नज़र सोते हुए सिड पर गई जो नींद में हिल रहा था!

    सिड को नींद में हिलते हुए देख कर नंदिता को आइडिया आया और वो अभिराज के सीने पर हाथ रख के शरमाते हुए बोली, "क्या पति देव, आप से सबर नहीं होता ना, जरा ये तो देख लीजिए कि आप कहा हैं?" बोलकर उसने सिड की तरफ इशारा किया तो अभिराज उस तरफ देखा तो सिड सच में उठ रहा था! सिड को उठते हुए देख कर अभिराज नंदिता से दूर हुआ और गुस्से से उसको घूरने लगा!

    सिड अभिराज को देख पाता उससे पहले ही अभिराज गुस्से में कमरे से चल गया! अभिराज के जाते ही नंदिता राहत की सांस लेते हुए बोली, "कब तक बचूंगी इनसे, और क्या होगा जब इनको सच पता चलेगा!"

    वो अपनी परेशानी में सोच ही रही थी कि उसको सिड की आवाज आई, "मां, मां कहा हो?" सिड की आवाज सुनते ही नंदिता जल्दी से सिड के पास गई और और उसके सर को सहलाते हुए बोली, "हां बेटा मां यहीं है!" नंदिता का एहसास पाकर सिड फिर से प्यारी सी स्माइल करते हुए सो गया और वही नंदिता उसके सिरहाने बैठ के कुछ सोचने लगी!

    वही सुधीर भी घर पहुंच गया, लेकिन जैसे ही सुधीर ने घर में कदम रखा वैसे ही सुजाता जी उस पर बरसते हुए बोली, "सुधीर ये क्या है, तू दिन भर कहा रहता है और ये क्या है तू कल भी नौकरी पर नहीं गया था और आज भी नहीं, आखिर तेरे मन में चल क्या रहा है?" बाकी सब भी वही बैठे थे, और कहीं ना कहीं सुजाता जी की बातों से सहमत थे और उसके लिए परेशान भी!

    वही सुधीर सुजाता जी को बिना कुछ कहे अपने कमरे में जाने लगा! सुधीर के व्यवहार से सुजाता जी का गुस्सा और बढ़ गया, वो सुधीर के पास गई और उसका हाथ पकड़ के अपनी तरफ करते हुए बोली, "अब बताएगा भी क्या चल रहा है तेरे दिमाग में?" सुजाता को गुस्सा में देख कर भी सुधीर बिना कुछ बोले अपने कमरे में चला गया!

    अब तो सुजाता जी के बरदाश्त के बाहर चला गया! और वो अपना सारा गुस्सा नंदिता पर निकालते हुए बोली, "ये सब ना नंदिता की वजह से हो रहा है, उसकी वजह से ही मेरे दोनों बच्चे मुझसे दूर हो गए, उसको तो मैं!"

    वो इतना ही बोली थी कि जानकी जी सुजाता जी से गुस्से में बोली, "बस छोटी बहू अगर इसके आगे कुछ कहा ना, तो आज मुझे भी बोलने से कोई नहीं रोक पाएगा!" वही मीना जी की आंखो में आंसू आ गए थे!

    लेकिन जानकी जी भी इतने गुस्से में बोली थी कि उनको तकलीफ होने लगी और वो खासने लगी, उनकी तबियत को बिगाड़ते हुये देख कर सुजाता जी के साथ सब डर गए और मीना जी उनकी पीठ सहलाके उनको शांत कराते हुए बोली, "मा आप चुप हो जाए ना, देखिए आप की तबीयत खराब हो रही है, आप please शांत हो जाइए!"

    वही राजेंद्र जी उनको पानी देते हुए बोले, "मां ये पानी पी लीजिए!" और उन्होंने जानकी जी को पानी पिला दिया! जानकी जी की तबीयत को देखते हुए सब शांत हो गए, लेकिन रामनाथ जी ये सब के लिए कहीं ना कहीं खुद को कसूरवार मान रहे थे!

    वही सुधीर अपने कमरे से बाहर आया और जानकी जी की बिगड़ती तबियत से अंजान सुजाता जी से बोला, "देखिये मा आप की सोच को तो मैं कभी नहीं बदल सकता और ना कभी आपके मन से दी के लिए जो नफ़रत है वो निकल सकता हू, तो इसलिए please आप भी मेरे मन में जो दी के लिए प्यार और इज्जत है उसको निकलने की कोशिश मत कीजिए, और रही बात जॉब की तो मै दूसरी जॉब ढूंढ़ रहा हू, तो आप उसकी चिंता मत कीजिए!" और वो बिना किसी को देखे वहां से निकल गया!

    सुधीर की बात पर सुजाता जी गुस्से से मीना जी की तरफ देखी फिर जानकी जी की तरफ और बिना कुछ बोले अपने कमरे में चली गई!

    सुजाता जी के जाते हि मीना जी परेशानी वाले भाव से राजेंद्र जी की तरफ देखी तो उन्होंने आंखों से हि इशारा कर दिया, "जैसे कह रहे हो वो संभल लेंगे!"

    वही अभिराज अपने बार में बैठा ड्रिंक कर रहा था, उसने फिर से ड्रिंक करने के लिए गिलास उठाया ही था कि उसके सामने बैठा इंसान उसका हाथ पकड़ते हुए बोला, "बस कर अभी कितना पिएगा और भूल मत कल नशे में होने के कारण हि तुझसे गलती हुई थी!"

    तो अभिराज उस इंसान के हाथ से ग्लास लेते हुए बोला, "वही तो नहीं पता, क्योंकि जहां तक ​​मुझे याद है मैं उसके करीब गया जरूर था, लेकिन कुछ किया नहीं था, मै तो सिर्फ उसे डराना चाहता था, फिर कैसे वो सब!"

    फिर उस इंसान को देखते हुए बोला, " तुझे पता है ना विहान मै कितना भी पी लू, मुझे याद रहता है कि मैंने क्या किया है और क्या नहीं, तो कल क्या हुआ मुझे क्यों याद नहीं!"

    तो विहान अभिराज को समझाते हुए बोला, "देख अभी तू टेंशन मत ले, हो जाता है कभी कभी!"

    और उसके हाथ से ग्लास लेकर टेबल पर रखते हुए बोला, "चल अब बहुत हो गया अब और मत पी अब घर जा देख जो भी हो अब तेरी शादी हो गई है!"

    शादी सुनते हि अभिराज गुस्से में बोला, "शादी my foot, क्या तुझे नहीं पता कि ये शादी क्यों हुई है जो तू मुझे याद दिला रहा है!"

    तो विहान अभिराज को संभालते हुए बोला, "हा मुझे पता है लेकिन फिल्हाल घर जाना चाहिए!" बोलकर विहान अभिराज को संभालते हुए बार से बाहर लेकर आया और अभिराज को पैसेंजर सीट पर बैठा के खुद कार ड्राइव करने लगा!

    कुछ देर में दोनों चौधरी विला पहुंच गए! अभिराज और विहान दोनों विला के अंदर आए और अभिराज चुपचाप अपने कमरे में चला गया और विहान अपने!

    वही कॉरिडोर से नंदिता ने सब देख लिया था, विहान को देखते ही नंदिता हैरानी से बोली, "ये यहां?"

    क्या जानकी जी की तबीयत और ख़राब हो जायेगी? और क्यू विहान को देखते हि नंदिता हैरानी हो गयी? जानने के लिए बन रहिये कहानी के साथ!