ये कहानी है राहत की जिसे ऐसी जानलेवा बीमारी थी कि वो कभी अपनी जिंदगी खुलकर नहीं जी पाई। पर मरने के बाद होता है उसका रिबोर्न महारानी वसुंधरा बनकर। जिसे उनके ही पति महाराज समरवीर ने मार डाला था क्योंकि वो प्रेम करते थे स्वर्णा से जो खुद एक रिबोर्न सोल... ये कहानी है राहत की जिसे ऐसी जानलेवा बीमारी थी कि वो कभी अपनी जिंदगी खुलकर नहीं जी पाई। पर मरने के बाद होता है उसका रिबोर्न महारानी वसुंधरा बनकर। जिसे उनके ही पति महाराज समरवीर ने मार डाला था क्योंकि वो प्रेम करते थे स्वर्णा से जो खुद एक रिबोर्न सोल थी जो मॉर्डन दुनिया से उस दुनिया में पहुंची थी। क्या राहत वसुंधरा का प्रतिशोध ले पाएगी? क्या वो स्वर्णा से टक्कर ले पाएगी जो खुद भी मॉर्डन दुनिया से आई है? क्या राहत छोटे से राजकुमार रूद्राक्ष को संभाल पाएगी जो सिर्फ पांच साल का है? क्या होगा इस कहानी में जानने के लिए पढ़िए reborn to beat the scums
Rahat
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राहत मर चुकी थी और इस बात की उसे खुशी थी। आप सोचेंगे मरने से कैसी खुशी? तो खुशी इस बात की थी कि राहत अपनी दर्दनाक बीमारी के दर्द से आजाद हो गई थी। ये दर्द मौत से बत्तर था। बचपन से आजतक उसने हॉस्पिटल बेड पर अठारह साल गुजारे थे। वो शुक्रगुजार थी अपने परिवार का जिनका प्यार उसके प्रति कम नहीं हुआ। पर वो उनपर सिर्फ बोझ थी, अच्छा हुआ उन्हें आजाद कर दिया। रोज रोज के रोने से अच्छा है एक बार का रोना।
राहत की आंखें बंद हो चुकी थीं। उसका शरीर प्राण त्याग चुका था। उसे जाते जाते सिर्फ एक बात का मलाल था कि वो अपनी जिंदगी नहीं जी पाई, बाहर की दुनिया नहीं देख पाई।
दूसरी दुनिया
एक खूबसूरत राजमहल था। राजमहल में भी बहुत सारे महल थे। उनमें से एक महल था महारानी का। महारानी मखमली बिस्तर पर बेहोश पड़ी थी। उनका चेहरा भी सफेद पड़ा हुआ था जैसे उनमें खून ही ना हो। एक दासी चिंता भरे चेहरे के साथ बिस्तर के पास खड़ी थी और एक 5 साल का छोटा सा बच्चा महारानी को पकड़कर बिलख रहा था, रोते रोते उसका चेहरा लाल पड़ गया था, "रानी मां, उठिए ना, रानी मां, हम पुनः ऐसी ग़लती नही करेंगे, रानी मां।"
उस मासूम बच्चे को देखकर किसी का दिल भी पसीज जाए। तभी महारानी की आंखें खुलती हैं जिसमें अब राहत की आत्मा घुस चुकी थी।
राहत की आंखें जैसे ही खुलीं उसके सामने सबकुछ बदला हुआ था। वो चौंक गई। "ये कौन सी जगह है? मैं तो मर चुकी हूं और ये बच्चा कौन है??"
"रानी मां? रानी मां आपको होश आ गया?" - उस प्यारे से बच्चे की आंखें जो रो रोकर सूज कर लाल हो गई थी, उनमें अब चमक आ गई, जिन्होंने राहत जैसी अनजान लड़की के दिल को पिघलने पर मजबूर कर दिया। उसी समय राहत का सिर चकराने लगा, ऐसा लगा जैसे उसके दिमाग में बाढ़ आ गई हो। वो यादों की बाढ़ थी।
तो महारानी की कहानी कुछ इस प्रकार थी,
एक बहुत ही विशाल राज्य सौरगढ़ राज्य था, जहां की प्रजा खुशी खुशी जीवन व्यतीत कर रही थी। इस राज्य के राजा समरवीर थे। उनकी बहत्तर रानियां थीं और महारानी थी वसुंधरा। राजा को औरतों में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। वो विवाह सिर्फ अपने मतलब के लिए करते थे, जिसमें उनकी ताकत बढ़े, उन्हें फायदा हो। महारानी वसुंधरा का परिवार भी बहुत ताकतवर था। सारी सैन्य ताकत उन्हीं के हाथ में थी इसलिए उन्होंने वसुंधरा को महारानी बनाया था। वसुंधरा से उनका एक बेटा भी था राजकुमार रूद्राक्ष। ये वहीं 5 साल का नन्हा बच्चा था। बाकी राजा के और कोई संतान नहीं थी। सबकुछ जैसा था वैसा चल रहा था, कहानी में ट्विस्ट तब आया जब एक बार महाराज शिकार पर गए थे और वहां से अपने साथ एक लोमड़ी को ले आए। वो लोमड़ी सुनहरे रंग की थी बेहद खूबसूरत मुलायम फर वाली और इतना ही नहीं वो बहुत होशियार भी थी, इंसानी बातें समझती थी। राजा को उससे इतना मोह हो गया जितना जन्म से आजतक किसी से ना हुआ। जो राजा कभी हंसते क्या मुस्कुराते भी नहीं थे, जिन्हें किसी चीज से लगाव नहीं था, जिन्होंने कभी अपने बेटे के सिर पर प्यार से हाथ नहीं फेरा था, वो उस लोमड़ी के दीवाने थे। उसके बिना कहीं नहीं जाते थे सिवाय दरबार के समय। उसे एक खरोंच आ जाए तो राजा पागल हो जातें थे। वो लोमड़ी पूरे महल में शैतानी करती थी। रानियों को खासकर परेशान करती थी कभी किसी के बाल नोंच लिए कभी किसी के नाखून मार देती। रानियां उस लोमड़ी से नफ़रत करने लगी थी और महारानी वसुंधरा भी। वसुंधरा जानती थी समरवीर ने उनसे अपने फायदे के लिए विवाह किया था लेकिन फिर भी वो उनपर अपना दिल हार बैठी। आखिर समरवीर बहुत ही आकर्षक लंबी चौड़ी कद काठी के रौबदार पर्सनेलिटी के मालिक थे। कोई भी उनके आकर्षक से बच नहीं सकता था।
लेकिन महारानी वसुंधरा को झटका तब लगा जब राजा ने उनके पूरे परिवार को मरवा दिया इस जुल्म में कि वो दुश्मन राज्य के जासूसी कर रहे हैं। पर महारानी वसुंधरा को यकीन था उनका परिवार ऐसा कभी नहीं कर सकता, सिर्फ उससे छुटकारा पाने के लिए उन्होंने उनका पूरा खानदान मिटा दिया। वसुंधरा पछतावे में डूब गई उनका रोम रोम पछतावे की आग में जल रहा था और दूसरी तरफ उनका बेटा रूद्राक्ष था जो उनसे ज्यादा उस लोमड़ी के करीब था। पछतावे की आग में महारानी वसुंधरा ने आत्महत्या कर ली। लेकिन उनकी आत्मा राजमहल में भटक रही थी। उन्होंने देखा कैसे वो लोमड़ी एक खूबसूरत लड़की में बदल गई। दरअसल सच्चाई ये थी कि लोमड़ी में एक मॉर्डन दुनिया की लड़की की आत्मा घुस गई थी। वो कहानी की फीमेल लीड थी। इसी वजह से राजा रानी (मेल लीड) उससे लोमड़ी के रूप में भी आकर्षित हो गए। महारानी के दहेज में उन्हें एक मरमेड पर्ल मिला था जिसे लोमड़ी ने धोखे से खा लिया और वो एक खूबसूरत लड़की में बदल गई। इसके बाद राजा ने बाकी की बहत्तर रानियों को भी मरवा दिया और अपनी लोमड़ी के साथ रहने लगे जो अब महारानी बन गई थी। उनके एक बेटा भी हुआ जो महाराज बन गया और राजा रानी रिटायर होकर दुनिया घूमने निकल गए और रूद्राक्ष उसे भी मरवा दिया गया था, उस लोमड़ी ने मरवाया, वो कैसे अपने बेटे का हक छीनने देती।
और इस खूबसूरत कहानी का अंत। राजा रानी हमेशा खुशी खुशी रहने लगे और विलेन महारानी मर गई।
राहत की बोलती बंद हो गई। "वाह क्या कहानी है? जो असली विलेन थे वो खुशी खुशी रहने लगे निर्दोष लोगों की हत्या करके? व्हाट द हेल?" राहत ने मासूम रूद्राक्ष को देखा और फैसला किया वो इस कहानी को बदलकर रहेगी।
"रानी मां आपको क्या हो गया?" छोटा रूद्र राहत को हिलाते हुए बोला। राहत ने उठने की कोशिश की लेकिन उसके शरीर में बहुत कमजोरी थी, उससे उठा भी नहीं जा रहा था। रूद्र ने राहत को उठाने के लिए पूरी ताकत लगा दी कि उसका गोल चेहरा लाल पड़ गया। ये देखकर राहत के दिल में ममता जाग गई और वो खुद भी शॉक रह गई। शायद ये इस शरीर की फीलिंग्स थी जो इस बच्चे से जुड़ी थी। "हे भगवान अगर कहीं भेजना ही था तो नोर्मल जिंदगी तो देते ये क्या हैं मैं अठारह साल अखंड सिंगल पवित्र आत्मा सीधे पांच साल के बच्चे की मां बन गई?" 🤣
दासी की मदद से राहत उठकर बैठी।
"रानी मां हम बहुत डर गए थे, हमें लगा आप हमें छोड़कर चली जाएंगी, हम वादा करते हैं हम पढ़ाई करेंगे और खेलने बिल्कुल नहीं जाएंगे," छोटा रूद्र सिसकते हुए बोला।
राहत ने उसके आंसू पोंछे, "अच्छा अब चुप हो जाओ हम आपको छोड़कर कभी नहीं जाएंगे, अभी आप जाकर हाथ मुंह धो लो।"
रूद्र को दासी ले गई। जाते जाते भी वो बार बार मुड़कर देख रहा था। फिर राहत ने अपनी दासी सुनैना को भी भेज दिया और कहानी के बारे में सोचने लगी। लोमड़ी अभी अभी महल में आई थी और रूद्र को उसके साथ खेलने में बड़ा मज़ा आता था। महारानी उससे पढ़ने के लिए कह कहकर तक चुकी थी लेकिन रूद्र पढ़ाई के नाम से ही चिढ़ता था।
"आप बहुत बुरी हैं, बहुत बुरी, जब देखो हमें बस पढ़ने के लिए कहती रहती हैं, हम आपसे कभी बात नहीं करेंगे," रूद्र ने गुस्से में कहा था जिससे महारानी गुस्से में बेहोश हो गई थी।
राहत ने अपना माथा रगड़ा। "सबसे पहले तो मुझे इस बॉडी को स्वस्थ बनाना होगा और वो मरमेड पर्ल उससे छुटकारा पाना बहुत जरूरी है इससे पहले कि वो मोती उस लोमड़ी के हाथ लगे।"
राहत ने पहले एक्सरसाइज की, फिर गर्म पानी से शॉवर लिया और खाना खाया। उसके बाद अपनी मेड सुनैना से वो मरमेड पर्ल ढूंढकर लाने के लिए कहा।
वो साधारण सा दिखने वाला मोती ही लग रहा था लेकिन कुछ तो ताकतें होंगी जिसने लोमड़ी को इंसान में बदल दिया। राहत ने उस मोती को बड़े से पत्थर से कुचल दिया जब तक कि उसका पाउडर नहीं बन गया और फिर उसे फूंक मारकर उड़ा दिया।
सुनैना हैरान रह गयी, "महारानी जी ये आपने क्या किया? हजार सालों में ये एक ही मोती होता है।"
"ये तो और भी अच्छी बात है," राहत मन ही मन हंसी, फिर सीरियस फेस बनाकर बोली, "हमे बोरियत हो रही थी इसलिए फोड़ दिया।"
सुनैना का मुंह खुला रह गया।
"महारानी जी आप राजकुमार पर क्रोध ना करें, वो अभी छोटे हैं धीरे धीरे सब समझ जाएंगे।"
राहत ने सुनैना की ओर नजरें उठाईं, सुनैना एकदम से घुटनों के बल गिर पड़ी, "माफ महारानी, माफ कर दीजिए हमने अपनी सीमा पार कर दी।"
राहत ने याद किया कहानी में उसके मरने के बाद सुनैना ने बदला लेना चाहा। उसने उस लोमड़ी को जहर देने की कोशिश की लेकिन राजा समरवीर को पता चल गया और उल्टा उन्होंने सुनैना को ही वो जहर पिला दिया।
"उठो सुनैना।"
सुनैना खड़ी हो गई।
"राजकुमार का जीवन साधारण बच्चों जैसा कैसे हो सकता है? राजकुमार को शाही कपड़े पहनने को मिलते हैं, शाही भोजन मिलता है, कड़ी सुरक्षा मिलती है लेकिन इसके बदले राजकुमार की भी जिम्मेदारियां होती है, वो इस राज्य के होने वाले महाराज हैं।"
"आप चिंता ना करें महारानी, एक दिन राजकुमार आपकी बातों को जरूर समझेंगे।"
अगले कुछ दिनों तक राहत अपने महल में रहकर ही अपनी सेहत सुधार रही थी। इस बीच वो किसी से नहीं मिली। जो रानियां उससे मिलने आती थी उन्हें भी निराश होकर वापस लौटना पड़ता था।
कुछ दिनों बाद राहत पूरी तरह स्वस्थ महसूस करने लगी, तब उसने राजकुमार रूद्राक्ष को बुलवाया।
छोटा सा रूद्र जब अंदर आया उसका चेहरा लाल था, बाल पसीने से भीगे हुए थे और शाही पोशाक पर सुनहरे बाल थे।
राहत की आंखें छोटी हो गई, "रूद्र आप फिर उस लोमड़ी के साथ खेल रहे थे?"
"नहीं, रानी मां," रूद्र की नजरें नीची हो गई।
"हम आपको खेलने से मना नहीं करेंगे।"
"क्या? सच में रानी मां? आप सबसे अच्छी हैं," रूद्र ने राहत के पैरों को पकड़ लिया और अपना सिर रगड़ने लगा।
राहत नीचे झुकी और रूद्र को अलग किया, "लेकिन हमारी एक शर्त है।"
"हमें आपकी हर शर्त स्वीकार है।"
"खेलने से पहले आप पढ़ाई करेंगे। ज्यादा नहीं, एक कविता याद करनी है और निबंध लिखना है।"
"ठीक है रानी मां, हम कर लेंगे।"
"याद रखना, हम आज शाम को होमवर्क देखेंगे, सच्चे मर्द कभी अपना वादा नहीं तोड़ते।"
रूद्र ने अपनी छाती ठोंकी, "हम कार्य करके ही खेलने जाएंगे।"
"ठीक है, जाओ अब।"
राहत ने सोच समझकर ये फैसला किया था। जितना रेत को मुठ्ठी में भींचने की कोशिश करोगे उतना ही वो हाथ से फिसलती जाएगी। रूद्र के साथ भी कुछ ऐसा ही था। धीरे-धीरे ही उसे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराना होगा।
जबसे वो लोमड़ी राजमहल में आई थी, महाराज समरवीर जो पहले महीने में एक बार किसी ना किसी रानी के कक्ष में रात को जाते थे, अब वो भी बंद कर दिया था। राहत तो खुश ही थी, उसे किसी के साथ सोने में कोई इंट्रेस्ट नहीं था।
रात को उसने सुनैना को आदेश दिया, "आजकल महल में मोटे-मोटे चूहे घूम रहे हैं, बड़ा सा चूहेदान लगा दो।"
"जी महारानी।"
शाम को रूद्र ने अपना होमवर्क दिखाया। सबकुछ देखने के बाद राहत ने सिर हिलाया, "बहुत अच्छे, लेकिन लोमड़ी के साथ खेलते समय सतर्क रहना, किसी भी खतरनाक जगह पर मत जाना।"
"जी रानी मां।"
"ठीक है, अब जाओ, शुभरात्रि।"
"शुभरात्रि रानी मां।"
"सुनैना हमारा बिस्तर तैयार कीजिए, हम सोना चाहते हैं।"
"परंतु महारानी आज महीने की पंद्रह तारीख है, महाराज आते ही होंगे।"
"वो नहीं आएंगे।"
सुनैना को अपनी महारानी के लिए बहुत लगा, शायद महाराज ज्यादा व्यस्त होंगे।
राहत मखमली बिस्तर पर आंखें बंद करके लेटी ही थी, तभी जोर की आवाज आई, "महाराज पधार रहे हैं।"
राहत एकदम से उठकर बैठ गई और अपने सिर पर चुनरी डाल ली।
महाराज समरवीर भारी कदमों के साथ अंदर आए। वो 25 साल के लग रहे थे। मॉर्डन दुनिया में भी वो किसी मॉडल से कम नहीं लगते। उनके आते ही जैसे तापमान में गिरावट आ गई।
"महारानी सो रही थी? आप भूल गईं आज पंद्रह तारीख है?" राजा समरवीर सर्द आवाज में बोले।
राहत ने मन ही मन समरवीर को हजार गालियां दे डाली, "गधा कही का, जब नहीं आना चाहता था तो क्यों आया और आकर उल्टा मुझे सुना रहा है? 😏"
दरअसल समरवीर को मजबूरी में आना पड़ा। आज दरबार में महारानी वसुंधरा के दादाजी ने कहा था कि वो अपनी पत्नी को समय नहीं दे रहे। जबतक उस बुड्ढे के पास सैना थी महाराज के पास उनकी बात मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
आते वक्त स्वर्णा (लोमड़ी जिसे महाराज स्वर्णा बुलाते थे) उनके पैरों से लिपटी हुई थी। उसकी गोल-गोल आंखों में आंसू थे। वही जानते थे कैसे वो दिल पर पत्थर रखकर आए थे और ये महारानी सो रही थी।
"हमारे कपड़े उतारिए," महाराज ने अपनी बाहें फैला दी। राहत का मन तो किया इस आदमी के कपड़े ही नहीं इसकी अकड़ भी निकाल दे।
उसने जैसे-तैसे समरवीर का रोब उतारा। समरवीर पीठ फेरकर सो गया। राहत ने जहां चैन की सांस ली कि इस आदमी का उसे छूने का इरादा नहीं है, वहीं उसकी आंखें गुस्से में लाल हो गई इस आदमी का ठंडा रवैया देखकर। पीठ फेरकर तो ऐसे लेटा है जैसे बच्चा आसमान से टपका था। हुंह, राहत भी उसकी तरफ पीठ करके लेट गई, लेकिन, आधे से ज्यादा बिस्तर पर तो इस सनकी राजा ने ही कब्जा कर लिया था। बहुत मुश्किल से राहत की आंख लगी और तभी रात में एक जानवर की जोरदार चींख से सबकी नींद खुल गई। ये चीख किसी जानवर के रोने जैसी भी थी और ऐसा भी लग रहा था जैसे कोई लड़की दर्द में चिलला रही हो।
समरवीर एकदम से उछल पड़ा, "स्वर्णा??" उसे राहत का भी ध्यान नहीं रहा और उसके पैर पर पैर रख दिया तो राहत ने दूसरे पैर से समरवीर की कमर पर लात मार दी, जिससे समरवीर सीधे फर्श पर। लेकिन इस समय तो उसे सिर्फ वो चीख सुनाई दे रही थी।
सुनैना के हाथ से लालटेन लेकर उसने सब जगह ढूंढा और खिड़की के नीचे स्वर्णा दिखी, जिसका आगे का पैर चूहेदान में फंस गया था और उसका कांटा उसके पैर में धंस गया था। उसका पूरा पैर लहूलूहान हो रखा था।
समरवीर, स्वर्णा को चूहेदान में फंसा देखकर बुरी तरह घबरा गए। वो महारानी वसुंधरा पर चिल्लाए, "देख क्या रही हो? तुरंत वैद्य जी को बुलाइए!"
राहत ने सुनैना को इशारा किया जो तुरन्त बाहर भाग गई।
महाराज को इतना चिंतित किसी ने कभी नहीं देखा था। स्वर्णा बहुत ही पिटीफुल लग रही थी, उसकी गोल-गोल काली आंखों में आंसू थे और वो समरवीर को देखकर आवाजें निकाल रही थी। समरवीर का दिल छलनी हो रहा था। वो आगे बढ़कर उसका पैर निकालना चाहता था, लेकिन डर था कहीं और चोट ना लग जाए।
राहत ने जब उस सुनहरी लोमड़ी को देखा तो यकीन कर पाना मुश्किल था कि इस लोमड़ी में लड़की की आत्मा है, जो मॉर्डन दुनिया से उसी की तरह यहां ट्रांसमाइग्रेट हुई है।
समरवीर गुस्से में महारानी पर चिल्लाने लगे, "इतनी खतरनाक चीज महल में क्यों लगा रखी है आपने?"
राहत ने मासूमियत से पलकें झपका दी, "कुछ दिनों से एक मोटा शैतान चूहा घूम रहा था, इसलिए हमने चूहेदान लगवा दिया, लेकिन हमें ये समझ नहीं आ रहा कि ये लोमड़ी यहां क्या करने आई थी, वो भी इतनी रात को?"
समरवीर की बोलती बंद हो गई। स्वर्णा उसे ही देखने आई थी ये वो कैसे कह सकते थे? समरवीर ने स्वर्णा का सिर सहलाया और बेहद प्यार से उसे तसल्ली देने लगे, "वैद्य जी बस आते ही होंगे।"
वहीं स्वर्णा इस राजा को कोस रही थी, "ना ये राजा यहां आता ना ही वो उसके पीछे-पीछे यहां तक आती और इस चीज में फंसती। आ!!!!! उसका पैर, हे भगवान मुझे दूसरी दुनिया में भेजा तो ठीक है, लेकिन इंसानी शरीर तो दे देते, लोमड़ी का ही शरीर बचा था क्या मेरे लिए।" 🤣
राहत को तो समरवीर के प्यार वाली नजरें देखकर गूजबंप आ रहे थे, कोई इंसान लोमड़ी को देखकर कैसे... कैसे उससे आकर्षित हो सकता है?
वैद्य जी ने आते ही अपना काम शुरू कर दिया, जब समरवीर ने देखा कैसे वो उसकी स्वर्णा के पूरे शरीर पर हाथ घुमा रहा है, उसका मन किया वैद्य के हाथ उखाड़ दे।
आखिरकार पट्टी हो गई और कुछ हिदायतें देकर वैद्य जी चले गए। समरवीर ने स्वर्णा को गोद में उठाया और बाहर निकल गए, "आप अकेली सो जाइये।"
"जाओ जाओ और वापस मत आना," राहत जश्न मनाते हुए पूरे मखमली बिस्तर पर खुद फैलकर सो गई। उसने जानबूझकर वो चूहेदान लगवाया था। कहानी के मुताबिक लोमड़ी की आदत थी रानियों के महलों में ताका-झांकी करने की, छिपकर उनकी बातें सुनने की और राहत उसे अपने महल से कोसों दूर रखना चाहती थी।
जहां राहत चैन की नींद सो रही थी, वहीं समरवीर अपने बड़े से महल में रखे राजशाही विशालकाय मखमली बिस्तर पर लेटी स्वर्णा को सहला रहा था और डांट भी रहा था, "हम भी देखते हैं आगे से कैसे आप बाहर जाती है, देखा कितनी चोट लग गई आपकी? क्या जरूरत थी महारानी के महल में जाने की?"
उनकी डांट में भी प्यार था। स्वर्णा कूदकर उनकी गोद में चढ़ गई और अपनी जीभ से उसकी हथेली चाटने लगी, जिससे समरवीर का गुस्सा तो छूमंतर हो गया, लेकिन एक अलग समस्या ने जन्म ले लिया। वो था उनका सेल्फ कंट्रोल जिसे वो खोते जा रहे थे। 25 सालों में किसी औरत के छूने से भी उन्हें ऐसा असर नहीं हुआ था, जो स्वर्णा के एक लिक से हो गया। उनके शरीर का तापमान बढ़ने लगा। उन्होंने स्वर्णा को अपनी गोद से उतारकर बिस्तर पर लिटा दिया, "सो जाओ अब।"
स्वर्णा और भी एक्साइटेड होकर उसकी उंगली चूसने लगी, जिससे समरवीर लगभग कंट्रोल से बाहर हो गया।
"बस करो अब, सो जाओ जल्दी से।"
स्वर्णा को नींद आ गई। समरवीर खुद को काबू नहीं कर पा रहा था, वो सीधे रानी सोनाली के महल में पहुंचे और उन्हें धर दबोचा। महारानी वसुंधरा की तो वो शक्ल नहीं देखना चाहते थे। वैसे समरवीर चाहे कितना ही सख्त और हृदयहीन था, लेकिन बिस्तर में बहुत डोमिनेटिंग था। रानी सोनाली जब तक बेहोश नहीं हो गई समरवीर ने उन्हें नहीं बख्शा। सब खत्म होते ही वो आत्मग्लानि से भर उठे। "ये क्या हो गया हमसे? स्वर्णा को अगर पता चला वो बहुत दुखी होगी।" रानी सोनाली को बिना ढके ही वो वापस अपने महल की ओर भागे। स्वर्णा को सोते देख उन्होंने चैन की सांस ली।
समरवीर ने जब स्वर्णा को गहरी नींद में सोते हुए देखा तो उसने राहत की सांस ली। वो खुद नहीं समझ पा रहा था कि एक जानवर के प्रति इतना आकर्षण कैसे मुमकिन है? लेकिन दिल के कोने में विश्वास भी था कि ये कोई साधारण लोमड़ी नहीं है, हो सकता है कोई जादुई परी हो, समरवीर पूरी शिद्दत से स्वर्णा को इंसानी रूप में देखना चाहता था।
यहां सुबह-सुबह रूद्र महारानी के महल में आ पहुंचा। उसकी गोद में सफेद रंग का झबरीला पपी था। ये पपी राहत का ही आइडिया था।
"शुक्रिया रानी मां।"
राहत ने कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और खुद भी उसके सामने बैठकर बोली, "स्वर्णा को चोट लग गई है इसलिए कुछ दिनों तक वो आपके साथ नहीं खेल पाएगी, आप इस पपी से खेल लेना। लेकिन एक बात को हमेशा ध्यान रखना, पढ़ाई के साथ-साथ ये पपी अब आपकी जिम्मेदारी है। आपको इसकी जरूरतों का और साफ सफाई का पूरा ध्यान रखना होगा।"
"स्वर्णा को चोट लगी है?"
"चिंता की बात नहीं है, उसके पैर में चोट है तो वो कुछ दिनों के लिए उछल कूद नहीं कर पाएगी, आप भी उसे परेशान नहीं करना वरना महाराज नाराज हो जाएंगे।"
"ठीक है रानी मां।"
"और हमने जो कहा उसे याद रखना, ये पपी भी नन्ही सी जान है, इसके अंदर भी भावनाएं हैं, अब इसकी हर जरूरत की जिम्मेदारी आपकी है।"
"जी रानी मां, हम इसे बहुत प्यार से रखेंगे और इसे कोई तकलीफ़ नहीं होने देंगे।"
"शाबाश।"
अपनी रानी मां के साथ नाश्ता करके रूद्र पपी को लिए चला गया। तभी सुनैना ने खबर दी,
"महारानी, सभी महलों की रानियां आपसे मिलना चाहती हैं।"
"बुलाइये उन्हें।"
"जी महारानी।"
राहत महारानी की शाही कुर्सी पर बैठ गई, जैसे ही सभी रानियां अंदर आई राहत की तो आंखें ही चुंधिया गईं। एक से बढ़कर एक खूबसूरती। कोई नाज़ुक कली जैसी, कोई हॉट ब्यूटी, तो कोई मासूम। हर एक रानी खूबसूरती की मिसाल थी।
"महारानी की जय हो" - सभी रानियां एक साथ सिर झुकाकर बोलीं।
"बोलिए कैसे आना हुआ?" - राहत ने अपनी आवाज में थोड़ा रोब लाने की कोशिश की जैसा असली वसुंधरा बोलती थी।
"महारानी जी, कल रात महाराज रानी सोनाली के साथ थे" - एक रानी बोली। उसकी आवाज में जलन साफ थी।
राहत के एक्सप्रेशन नोर्मल रहे लेकिन अंदर से वो हैरान थी। कल रात स्वर्णा को जख्मी हालत में छोड़कर वो राजा इलू इलू कर रहा था?
तभी पहरेदार की आवाज आई,
"रानी सोनाली पधार रही है।"
और इसी के साथ रानी सोनाली हल्के कदमों से अंदर आई। उनकी चाल आज ज्यादा ही धीमी थी लेकिन चेहरा गुलाबी हो रखा था। ये देखकर सभी रानियां आंखों से चाकू छूरे चलाने लगी।
"महारानी की जय हो, हम देर से आने के लिए क्षमा चाहते हैं।"
"ठीक है।"
"रानी सोनाली कल 15 तारीख थी, महारानी की रात, महाराज आपके महल में कैसे जा सकते हैं?" - एक रानी ने कुढ़ते हुए सोनाली और महारानी के बीच फूट डालने की कोशिश की।
रानी सोनाली ने घबराकर महारानी वसुंधरा को देखा, "महारानी जी हमें क्षमा कीजिए, हम नहीं जानते कैसे आधी रात को अचानक ही महाराज हमारे कक्ष में आ गए।"
"और उन्हें तरह तरह से सताने लगे।" कल रात की बात याद करके रानी सोनाली के गाल लाल हो गए। ये देखकर बाकी रानियों के सिर के ऊपर से भी काला धुआं निकलने लगा। राहत ने ये देखकर दुखी मन से सिर हिलाया, इतनी खूबसूरत जवान औरतें हैं और सभी एक आदमी के पीछे एक दूसरे से बिल्लियों की तरह लड़ने को तैयार हैं। उस एक आदमी ने इन सब मासूमों की जिंदगी बर्बाद कर रखी है। अगर प्यार नहीं था फिर इन सबसे विवाह क्यों किया?
राहत ने सभी रानियों के नाम जाने और फिर उन्हें वापस भेज दिया। एक दूसरे की शिकायतों के अलावा वो कोई काम की बात नहीं कर रही थी। इससे अच्छा वो एक्सरसाइज ही कर लें। राहत ने पूरी जिंदगी बिस्तर पर गुजारी थी, अब जब उसे ये स्वस्थ शरीर मिला था इसकी कद्र उसे सबसे ज्यादा थी। एक स्वस्थ शरीर ही हमारे जीवन का आधार है। शरीर स्वस्थ होगा तो कितनी भी बड़ी मुश्किल हो पार हो ही जाएगी।
राहत के दिमाग में एक खुराफाती आइडिया आया और वो महाराजा के महल की तरफ बढ़ गई।
जब वो अंदर आई तो देखा स्वर्णा विशालकाय मखमली शाही बिस्तर पर अकेली बैठी एक बॉल से खेल रही है। उसके एक पैर पर पट्टी बंधी हुई थी, बाकी इसके अलावा वो काफी तन्दरूस्त लग रही थी।
राहत को देखते ही स्वर्णा उसे दांत दिखाने लगी। उसे इस महारानी से सबसे ज्यादा नफरत थी क्योंकि ये समरवीर की मुख्य पत्नी थी। ऊपर से इस औरत की वजह से उस रात उसका ये हाल हुआ।
तभी महाराज वहां आए और महारानी को देखते ही उनकी भौंहें सिकुड़ गईं, "आप यहां क्या कर रही हैं?"
"महाराज की जय हो।"
"हम्म," समरवीर बिना राहत को देखे बिस्तर पर बैठकर स्वर्णा का सिर सहलाने लगे। बदले में स्वर्णा भी उनकी उंगली चूसने लगी।
राहत ने अपने हाथों पर आए गूजबंप्स को रगड़ा। "तुमने कुछ नहीं देखा राहत, कुछ नहीं देखा। मैं एकदम सीधी सादी पवित्र आत्मा हूं।"
"कुछ कहना है आपको?"
"हम ये औषधि देने आए थे, इससे जख्म जल्दी भर जाते हैं," राहत ने एक शीशी मेज पर रख दी।
"धन्यवाद," ऐसा कहकर भी समरवीर ने एक नजर महारानी को नहीं देखा, बल्कि स्वर्णा के मुलायम फरो में उंगलियां घुमाता रहा। इससे वो कभी नहीं थक सकता था।
"और कुछ कहना है?" महारानी को वहीं खड़ा देख समरवीर झल्ला गया था।
राहत ने एक सिसकी ली जैसे अपने आंसू आंखों में ही रोक रही हो और दर्द भरी आवाज में बोली, "महाराज, कल रात आप रानी सोनाली के महल में गए थे?"
समरवीर के भाव एकदम बदल गए। उन्होंने डरते हुए स्वर्णा को देखा जो उसे अपनी गोल गोल आंखों से घूरते हुए अपनी पीठ फेरकर बैठ गई थी और जोर जोर से अपनी पूंछ हिला रही थी, जिससे साफ था वो गुस्से में थी।
"तो अब हमें आपको बताकर जाना होगा कि हम किस रानी के महल में जा रहे हैं? यहीं कहना चाहती हैं आप?" समरवीर राहत पर चिल्लाया। उसे इस महारानी पर बड़ा ही क्रोध आ रहा था। स्वर्णा के सामने सारी पोल खोल दी।
"हम चलते हैं," राहत ने स्वर्णा की तरफ देखा जो उसे दांत दिखा रही थी जैसे उसकी हालत पर हंस रही हो।
समरवीर ने अपना हाथ हिलाया कि जल्दी निकलो यहां से।
राहत अभी दरवाजे तक ही आई थी कि जोर की आवाज सुनी। उसने देखा स्वर्णा ने दवाई की शीशी गिरा दी थी जो चकनाचूर हो गई थी। समरवीर ने उसे अपनी गोद में उठाया और हंसते हुए कहा, "अगर आपको महारानी की लाई हुई चीजें पसंद नहीं हैं तो हम आगे से नहीं लेंगे, ठीक है?"
ये सुनकर स्वर्णा एक पल को खुश हुई लेकिन फिर रानी सोनाली को याद करके गुस्सा हो गई और समरवीर की गर्दन पर काट लिया।
समरवीर दर्द में भी हंस रहा था, "कल रात हमारी ग़लती थी, हमें क्षमा कर दो। अब हम आपके अलावा किसी को नहीं छुएंगे, वैसे आपको जलन क्यों हो रही है?"
उन दोनों की फ्लर्टिंग देखकर राहत ने अपने मुंह पर हाथ रखा और वहां से चली गई। उसे तो उबकाई आ गई थी। ना जाने कैसे एक जानवर से ये आदमी बातें कर सकता है?
"महारानी जी, आपकी माता आपसे मिलने आई हैं," राहत जैसे ही आई, सुनैना ने बताया।
राहत अंदर आई तो एक रसूखदार महिला खड़ी थी। ये थीं चंद्रिका, महारानी वसुंधरा की मां।
"महारानी की जय हो।"
"बैठिए मां, आप हमें हमारे नाम से बुला सकती हैं, हमें अच्छा लगेगा।"
"ऐसा नहीं हो सकता, कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है।"
इसके बाद राहत ने कुछ नहीं कहा।
"आपकी तबीयत कैसी है अब?"
"हम ठीक हैं, पिताजी और दादाजी कैसे हैं?"
"वो सभी स्वस्थ हैं।"
"अच्छा मां, हमें आपसे आवश्यक बात करनी थी। हम आपको आगाह करना चाहते हैं, इस समय मार्शल रेसिडेंस के पास बहुत ताकत है और जहां ताकत होती है, वहां दुश्मन भी बहुत होते हैं। हम चाहते हैं आप ज्यादा सतर्क रहें, किसी पर भी आंख मूंदकर भरोसा ना करें।"
"हम आपके पिताजी से बात करेंगे।"
कुछ और बातें करके चंद्रिका चली गई। राहत गहरी सोच में थी। जब तक उसका परिवार स्वस्थ है और उनके हाथ में सैन्य ताकत है, समरवीर उसका चाहकर भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता, इसलिए वो उसके परिवार को निबटाने के लिए कोई ना कोई घटिया हरकत जरूर करेगा। इसलिए उसने ये चेतावनी दी थी।
शाम को रूद्राक्ष पपी को गोद में लिए अपना होमवर्क दिखाने आया।
"रानी मां, पिताजी हमारा कार्य क्यों नहीं देखते?" रूद्र निराश होकर बोला। वो भी अपने पिता का प्यार पाना चाहता था और आज तक उसके लिए तरसता आया था।
"रूद्र, यहां बैठो," राहत ने उसे बेड पर बिठाया और गंभीर रूप में समझाने लगी, "आप पढ़ाई महाराजा के लिए नहीं, हमारे लिए नहीं, आप अपने लिए कर रहे हैं। आपको एक काबिल, श्रेष्ठ इंसान बनना है।"
"जी रानी मां," रूद्र ने सिर झुका लिया, लेकिन उसके नन्हें मासूम चेहरे पर उदासी अभी भी थी। राहत कैसे समझाती उसके पिता ने उसे जन्म जरूर दिया है, लेकिन प्यार कभी नहीं दे सकते।
अगले दिन राहत ने अपने मायके से अपने बड़े भाई के बेटे तेज को महल में बुला लिया। तेज रूद्र से 2 साल बड़ा था। समरवीर ने जब उसके परिवार को मरवाया था तब इस 5 साल के बच्चे को भी नहीं छोड़ा था। पीढ़ियों से जो परिवार किसी के आगे नहीं झुका, समरवीर ने अपने स्वार्थ के लिए ना सिर्फ उनका मान सम्मान कुचल डाला बल्कि उनका नामोनिशान मिटा दिया। उनका वंश चलाने वाला भी नहीं छोड़ा।
तेज एक बलशाली दिखने वाला सख्त चेहरे वाला बच्चा था। राहत ने जब रूद्र को उससे मिलवाया रूद्र तो सातवें आसमान पर पहुंच गया। राहत ने चैन की सांस ली। उसे बच्चे पालने का कोई एक्सपीरियंस नहीं था लेकिन उसका आइडिया काम कर गया। रूद्र इतने विशाल महल में बहुत अकेला था इसलिए उस लोमड़ी के साथ समय व्यर्थ करता था। लेकिन अब उसके जीवन को नई दिशा मिल गई थी।
राहत ने रूद्र और तेज के लिए नियम बना रखे थे, कितने समय तक खेलना है, कितने समय तक पढ़ना है। शाम का खाना दोनों बच्चे राहत के साथ ही करते थे। धीरे धीरे रूद्र राहत के करीब आने लगा था। रानी मां की जगह अब उसे मां ही कहता था।
"रूद्र, तेज क्या आप दोनों स्वर्णा के साथ खेल रहे हो?"
"नहीं मां, स्वर्णा तो महाराज के कक्ष से बाहर ही नहीं निकलती।"
"उचित है, परंतु आगे भी स्वर्णा के साथ खेलते समय सावधान रहना।"
"आप चिंता मत करिए मां, हमारे लिए तेज भैया और हमारा पपी ही बहुत है।"
अगले दिन रोती बिलखती शिकायतों का अंबार लिए रानियों को देखकर राहत का सिर चकराने लगा। ये क्या मुसीबत है? सबसे ज्यादा रोना तो वसुंधरा को चाहिए ना, सिर्फ वो राजा की मुख्य पत्नी है लेकिन उसे इतनी सारी औरतों के साथ ना केवल अपने पति को बांटना है बल्कि अगर पति किसी रानी के पास नहीं गया तो भी उसे ही अपने पति को समझाना है कि "पति जी आपने इस रानी के साथ रात क्यों नहीं गुजारी? जाइये उसके साथ मस्ती कीजिए।" ये कैसी परंपरा है यहां की? महारानी तो केवल नाम की रह गई है, महारानी से ज्यादा बटलर के काम है वसुंधरा के। इतनी सारी रानियों को संभालो, इस महल को संभालो, बच्चे को भी अकेले संभालो।
राहत ने अपनी भौंहों पर उंगलियां घुमाई और फिर मुस्कुराकर बोली,
"आप सब यहां आने की जगह महाराज के पास क्यों नहीं जाती? उनके लिए अच्छा अच्छा भोजन बनाइये, उन्हें रिझाने का प्रयास कीजिए।"
ये सुनते ही सब रानियां ऐसे गायब हो गई जैसे गधे के सिर से सींग। राहत हंसने लगी, अब आएगा मजा जब वो लोमड़ी इतने सारे लव राइवल्स देखेगी 🤣🤣
स्वर्णा ने जब मटकती लहराती खूबसूरत रानियों का लाया हुआ खाना देखा, वो लगभग गुस्से में फट ही पड़ी। क्या जरूरत थी इस आदमी को इतनी सारी औरतों से शादी करने की?? ये तो मॉर्डन दुनिया में भी सभी प्लेब्वॉय को फ़ैल कर देता 😡! जितना स्वर्णा को गुस्सा आ रहा था, उससे कहीं ज्यादा जलन हो रही थी। "इतनी सारी खूबसूरत रानियों के सामने मैं कैसे टिक पाऊंगी? अगर वो इस लोमड़ी के शरीर में ना होती तो अब तक इस राजा को अपना बना चुकी होती।"
स्वर्णा ने सारा खाना कूद-कूदकर खराब कर दिया, नीचे गिरा दिया।
समरवीर हंसने लगा, "आप इतनी प्यारी कैसे हो सकती हैं?"
एक तो वो गुस्से में जल रही थी और ये पागल हंस रहा है? स्वर्णा ने समरवीर की उंगली पर दांत गड़ा दिए। वो गुस्से में थी और सच में जोर से काटा था। समरवीर की उंगली से खून बहने लगा।
समरवीर ने उंगली मुंह में रख ली। उसकी खुशबू का एहसास करके समरवीर का दिल तेजी से धड़कने लगा।
"महाराज के साथ इतना दुस्साहस? महाराज आप कहें तो हम अभी इसे दंड देते हैं," एक सेवक गुस्से में बोला।
समरवीर ने उसे ऐसे घूरा कि जिंदा जला देगा, "इसे बीस कोड़े लगाए जाए।"
"जो आज्ञा महाराज," दूसरा सेवक पहले वाले सेवक को घसीटते हुए ले गया।
समरवीर तो उन सबके जाने का ही इंतजार कर रहा था। उनके जाते ही समरवीर ने स्वर्णा को गोद में उठाया और प्यार भरी धमकी दी, "अब तो आपने हमें सजा भी दे दी, लेकिन दोबारा ऐसा किया तो हम भी सजा देंगे।"
स्वर्णा की आंखों में डर समा गया और उसकी आंखें आंसूओं से भर गईं।
ये देखकर समरवीर घबराकर बोला, "हम तो मजाक कर रहे थे, हम आपको कैसे सजा दे सकते हैं? आपने रोना बंद नहीं किया तो हम आपको किस कर लेंगे।"
ये शब्द खुद ब खुद समरवीर के मुंह से निकल गए। वो खुद भी शर्मिंदा हो गया।
स्वर्णा ने उसके गाल पर जीभ फिराई जिससे फिर समरवीर आपे से बाहर होने लगा। उसने स्वर्णा को नीचे रखा और काम का बहाना करके निकल गया।
"लेकिन हमने गलत क्या कहा?" वो सेवक असंतुष्टी से बोला।
"तुम जानते नहीं हो क्या, महाराज के लिए वो लोमड़ी महारानी से भी अधिक अज़ीज़ है। अपनी जान प्यारी है तो आगे सोच समझकर बोलना," दूसरा सेवक बोला।
बीस कोड़े खाकर वो सेवक बेहोश हो गया था।
"महारानी जी, हमें अभी-अभी खबर मिली है, महाराज ने अपने सेवक को बीस कोड़ो की सजा दी है," सुनैना कक्ष में आकर बोली।
"क्यों?"
"मैं अभी पता लगाती हूं।"
"रहने दो, आप अपना काम कीजिए।"
"जी महारानी।"
राहत के होंठों पर टेढ़ी मुस्कान खेल गई। वो आलरेडी समझ गई थी, बात जरूर स्वर्णा से ही जुड़ी होगी। समरवीर औरों को तकलीफ़ देकर अपने प्यार का सबूत देना चाहता है। "ठीक है, मैं भी देखती हूं ये प्यार कब-तक टिकता है। अगर समरवीर के पास ये राजमहल ना हो, उसकी ताकत ना हो, क्या तब भी स्वर्णा उसका साथ निभायेगी?"
"मां देखिए, हमने काम कर लिया, क्या अब हम खेलने जाए?" रूद्र पपी को गोद में लिए तेज के साथ उसके पास आया।
"ठीक है जाओ, संभलकर खेलना, अपना ध्यान रखना।"
"जी मां।"
अभी कुछ ही देर हुई थी कि रूद्र भागता हुआ आया, "रानी मां?? रानी मां, वो महाराजा तेज को मार डालेंगे, जल्दी चलिए।"
"कहां है वो?"
"बगीचे में।"
राहत ने रूद्र को गोद में उठाया और तेज कदमों से बगीचे की ओर बढ़ गई। सामने का दृश्य देखकर उसकी आंखों में खून उतर आया।
राहत ने देखा बगीचे के बीचोंबीच समरवीर स्वर्णा को गोद में लिए बैठा है और उसके सामने जमीन पर तेज गिरा पड़ा था और एक सैनिक उस पर कोड़ा मारने ही वाला था कि राहत जोर से बोली, "खबरदार अगर तेज को किसी ने हाथ लगाया, हम उसकी जान ले लेंगे, ये महारानी वसुंधरा का वचन है!"
सैनिक एकदम से रुक गया और समरवीर को देखने लगा।
राहत ने रूद्राक्ष को नीचे उतारा और आगे बढ़कर बोली, "महाराज, तेज से कोई ग़लती हुई है?"
समरवीर के चेहरे पर सर्द भाव थे, एक हाथ से वो स्वर्णा के ऊपर हाथ फेर रहा था।
"ये बत्तमीज बालक राजकुमार रूद्राक्ष के साथ मिलकर पूरे महल में शैतानी कर रहा था।"
"क्या महारानी को लगता है रूद्राक्ष ही राजा बनेगा? इसलिए पहले से ही उसके समर्थक जुटा रही हैं?"
"हमने ही तेज को बुलाया था, रूद्र यहाँ बहुत अकेले हो गए थे, उनके साथ खेलने वाला कोई नहीं था।"
समरवीर हंसा, "रूद्राक्ष राजकुमार है, वो खेलने कूदने के लिए नहीं बने, कुछ लोगों की किस्मत में अकेले रहना ही लिखा होता है। पहरेदारों इस पिल्ले को मृत्यु दंड दिया जाए!"
पहरेदारों ने तुरंत पपी को घेर लिया और उसे लाठी डंडे से मारने लगे, वो पपी जो सिर्फ 2 महीने का था तुरंत ही खून से लथपथ हो गया।
"मां, उसे बचाइये! मां, हमारे पपी को बचा लीजिए!" रूद्र जोर-जोर से रोने लगा। लेकिन राहत के पास पपी को बचाने का कोई उपाय नहीं था। वो पहले ही तेज की जान बचा चुकी थी, अब अगर समरवीर के खिलाफ गई तो वो सभी मारे जाएंगे।
पपी ने तड़प कर दम तोड़ दिया। रूद्र बुरी तरह कांप रहा था। राहत ने उसे गोद में उठा लिया।
स्वर्णा को कांपता महसूस करके समरवीर उसके फर सहलाते हुए धीरे से बोला, "आपको हमसे डरने की जरूरत नहीं है, वो सिर्फ एक जानवर था, लेकिन आप हमारी पूरी दुनिया है।"
फिर उसने सर्द नजरों से राहत को देखा, "महारानी वसुंधरा आपकी जिम्मेदारी केवल रानियों को संभालने की नहीं है, राजकुमार को अच्छी परवरिश देने की भी है।"
"जी महाराज," राहत की मुट्ठियां कसी हुई थीं।
समरवीर स्वर्णा को गोद में उठाए चला गया।
राहत, रूद्र और तेज के साथ अपने महल में आ गई। रूद्र ने अभी तक अपना मुंह उसके बालों में छिपा रखा था। वो आंखें भी नहीं खोल रहा था। उस पपी की मौत का रूद्र के मासूम दिल पर गहरा सदमा लगा था।
"बुआ जी, हमें क्षमा कर दीजिए, हम रूद्र की रक्षा नहीं कर पाए," तेज सिर झुकाए बोला।
"पहले हमें बताइए हुआ क्या था?"
तेज ने सबकुछ बता दिया।
तेज और रूद्र बगीचे में पपी के साथ खेल रहे थे कि तभी स्वर्णा वहां आ गई। उन्हें खेलते देख वो भी उनमें शामिल हो गई।
जब समरवीर उसे ढूंढते हुए आया और स्वर्णा को पिल्ले के साथ खेलते कूदते देखा उसका पारा चढ़ गया। वो जलन से भर गया। उसने पपी को लात मारी और स्वर्णा को गोद में उठा लिया।
रूद्र इतने दिनों बाद अपने पिता को देखकर बहुत खुश था लेकिन इससे पहले कि वो कुछ कहता समरवीर उस पर बरस पड़ा कि उसमें संस्कार नहीं है। वो जंगली आवारा बच्चों की तरह व्यवहार कर रहा है। उसमें राजकुमार होने के कोई गुण नहीं है। जब समरवीर को पता चला तेज महारानी वसुंधरा के बड़े भाई का बेटा है, वो कहने लगा कि तेज बड़ा है इसलिए रूद्र की गलतियों की जिम्मेदारी उसकी है। और इस तरह रूद्र भागता हुआ राहत के पास आया।
राहत समझ गई थी आज समरवीर ने उस पपी को नहीं मारा बल्कि उसे चेतावनी दी है, उसके मायके वालों को चेतावनी दी है। जितना सोचा था ये सनकी राजा उससे भी ज्यादा खतरनाक निकला। इतनी सारी पत्नियों को छोड़कर, अपने बच्चे को छोड़कर एक लोमड़ी पर वो अपनी जिंदगी की सारी भावनाएं उड़ेलने को तैयार है। ठीक है फिर राजा समरवीर अब तुम्हारा यहीं प्यार तुम्हारा अंत बनेगा और तब तुम पछताओगे बहुत पछताओगे लेकिन तुम्हें दोबारा पलटकर देखने का मौका भी नहीं मिलेगा।
रूद्र राहत की गोद में रोते-रोते ही थककर सो गया। तेज को राहत ने उसके कमरे में भेज दिया था। रात को रूद्र तेज बुखार में तपने लगा। राहत इसके लिए तैयार थी, लेकिन ठंडे पानी की पट्टी से भी बुखार नहीं उतर रहा था, इससे राहत भी घबरा गई। उसने वैद्य जी को बुलवाना ही ठीक समझा।
वैद्य जी ने आकर रूद्र को कोई औषधि खिलाई।
"महारानी, महाराज को बुलाएं क्या?" सुनैना घबराकर बोली।
"महाराज सो रहे होंगे, उन्हें परेशान करने की जरूरत नहीं है, ये सारा कांड तो उसी का किया धरा है," राहत ने मन ही मन सोचा।
जहां समरवीर का बेटा बुखार में तप रहा था, वहीं समरवीर स्वर्णा को देख रहा था, जो आज उसे डरी हुई नजरों से देख रही थी। समरवीर को लगा जैसे किसी ने उसका दिल मुट्ठी में भींच लिया हो।
स्वर्णा इतना तो जानती थी कि ये राजा उसके प्यार में पागल है, पर फिर भी आज जो उस पपी के साथ हुआ, वो डर गई थी। आखिर इस समय तो वो भी एक जानवर के शरीर में ही थी।
समरवीर उठकर स्वर्णा के पास आया तो स्वर्णा फुदककर पीछे हो गई।
"आपको हमसे डरने की जरूरत नहीं है। जब आप किसी और के साथ होती हैं, हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगता। आप सिर्फ हमारी हैं, सिर्फ हमारी।"
स्वर्णा का दिल जोरों से धड़कने लगा। जब समरवीर ने देखा कि वो शांत हो गई है, तो उसने स्वर्णा को गोद में उठा लिया और उसके फरों को सहलाकर बोला, "भले ही आप एक लोमड़ी हैं, लेकिन हमने कभी आपको लोमड़ी नहीं समझा। हमें हमेशा से ही लगता है आप हमारी सोलमेट हैं और सिर्फ हमारे लिए इस दुनिया में आई हैं। हम आपसे बहुत प्यार करते हैं।"
स्वर्णा को अहसास हुआ, उसे समरवीर से नहीं डरना चाहिए। आज जो हुआ वो सब समरवीर ने उसके लिए ही तो किया था। अगर समरवीर उस दिन जंगल में उसे ना खोज लेता तो जरूर वो अबतक किसी का शिकार हो गई होती। ऐसा सोचकर उसने समरवीर की उंगली चूसी और माफी मांगने वाली नज़रों से उसे देखने लगी।
"आप अब गुस्सा नहीं हैं?" समरवीर मुस्कुराकर बोला। हंसते हुए वो और भी ज्यादा हैंडसम लगता था। स्वर्णा उसे देखती रह गई। उसके कान लाल हो गए।
"क्या हम बहुत हैंडसम हैं?"
स्वर्णा ने हां में सिर हिलाया। "हैंडसम ही इज़ अ लेडी किलर, अगर वो इस लोमड़ी के शरीर में नहीं होती तो अब तक उसे अपना बना चुकी होती।"
समरवीर हंसते हुए स्वर्णा को पकड़कर सो गया।
यहां राहत पूरी रात रूद्र की देखभाल करती रही। सुबह जाकर उसका बुखार हल्का हुआ था। तेज को भी रूद्र की बहुत फ़िक्र हो रही थी, इसलिए वो भी वहीं रूका हुआ था।
रूद्र ने आंखें खोली और कुछ देर खाली आंखों से राहत को देखता रहा। राहत डर गई कि बुखार रूद्र के दिमाग पर तो नहीं चढ़ गया।
"रूद्र अब कैसा लग रहा है? आप ठीक है?" राहत ने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और पानी पिलाया।
"मां, हमारा पपी..." कहकर रूद्र की आंखों से फिर आंसू बहने लगे।
"तेज बेटा, आप भी जाकर नाश्ता कर लीजिए और सो जाइए। पूरी रात जागकर आपकी आंखें लाल हो गई हैं।"
तेज को सुनैना उसके कक्ष में ले गई। अब सिर्फ यहां रूद्र और राहत थे।
"रूद्र, आप यही सोच रहे हैं ना हमने आपके पपी को क्यों नहीं बचाया?"
रूद्र ने सिर झुका लिया।
"हम सिर्फ एक को ही बचा सकते थे। क्या आप चाहते हैं हम पपी को बचाने के लिए आपके भैया तेज को मरने देते?"
"नहीं मां, तेज भैया को कुछ नहीं होना चाहिए," रूद्र एकदम से बोला और फिर उदास हो गया, "पर हमारे पपी की क्या ग़लती थी? उसे तो कुछ नहीं पता था। महाराज ने उसे क्यों मार डाला? क्यों?"
"क्यों महाराज ने उस निर्दोष जीव को मार डाला? आखिर क्यों?" रूद्र बिलखते हुए बोला।
"आप सच में जानना चाहते हैं क्यों?"
"हां मां हमें जानना है क्यों महाराज अपने लिए पालतू जानवर रख सकते हैं लेकिन जब हमने रखा तो हम बत्तमीज और बिगड़ैल बन गए?"
"क्योंकि महाराज समरवीर इस राज्य के मालिक हैं, सारी सत्ता उनके हाथ में है। इस राज्य में रहने वाले हर इंसान, हर जीव जन्तु की किस्मत भी उनकी मुट्ठी में है। वो जब चाहे जैसे चाहे किसी को भी मार सकते हैं, हमें भी। उनके पास अपनी प्रिय वस्तु की रक्षा करने का सामर्थ्य है क्योंकि उनके खिलाफ जाने की इजाजत किसी को नहीं है।"
"क्या महाराज बनने से कोई ग़लत कार्य भी कर सकता है? क्या उनके लिए कोई सजा नहीं बनी? जब कोई ग़लत करता है तो सब महाराज से न्याय मांगते हैं लेकिन जब महाराज ही ग़लत करें तो न्याय कौन देगा?"
राहत ने हैरानी से रूद्र को देखा और मुस्कुरा उठी, "हमारे रूद्र बड़े हो गए हैं।" लोग सच ही कहते हैं, हालात इंसान को कम उम्र ही परिपक्व कर देते हैं।
"रूद्र हमारी एक बात हमेशा याद रखना, इस धरती पर जो भी जन्म लेता है उसे अपने कर्मों का फल जरूर मिलता है चाहे वो राजा हो या रंक। इसलिए हमें हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए, कभी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे किसी को कष्ट पहुंचे।"
"तो क्या महाराज को भी अपने ग़लत कर्मों की सजा मिलेगी?"
राहत ने रूद्र के सिर पर हाथ फेरा, "हम आपसे वादा करते हैं उन्हें सजा जरूर दिलवाएंगे।"
रूद्र राहत के गले लग गया।
"क्या महाराज हमें देखने आए थे?" उसने कुछ उम्मीद से पूछा।
राहत का दिल छलनी हो गया। जाने कोई कैसे इस प्यारे से बच्चे से दूर रह सकता है? वो जरूर पत्थर दिल ही होगा। लेकिन राहत रूद्र को झूठी उम्मीदें नहीं देना चाहती थी। उम्मीदें जब टूटती है तो दर्द बेइंतहा होता है, जैसे उसका होता था। हर सर्जरी से पहले डॉक्टर कहते थे जरूर सक्सेसफुल रहेगी, वो दर्द से आजाद हो जाएगी, लेकिन वो दिन कभी नहीं आया।
"रूद्र अपने पिता से उम्मीद लगाना छोड़ दीजिए, वो आपके लिए कभी नहीं आएंगे।"
रात को समरवीर गुस्से में भरा महल में आया, "महारानी वसुंधरा, रूद्र की तबियत खराब थी और आपने हमें बताया भी नहीं?" दरअसल समरवीर को अपने बेटे की कोई फ़िक्र नहीं थी बल्कि आज दरबार में जब महारानी वसुंधरा के पिता ने उन्हें रूद्र की तबियत के बारे में पूछा तो वो शर्मिंदा हो गए। मतलब महल में सबको पता है सिवाय उनके। उन्हें अपनी बेज्जती महसूस हुई और इसका गुस्सा वो महारानी पर निकाल रहे थे।
राहत को इतना गुस्सा आया कि उसने बहुत मुश्किल से अपना हाथ रोका जो समरवीर का गाल लाल करने के लिए उतावला था।
"हमें क्षमा करें महाराज, हम इतने घबरा गए थे कि आपको बताने का याद ही नहीं रहा।"
समरवीर ने गुस्से में हुंह किया, "इतनी सी बात पर इन्हें बुखार आ गया, हमें यकीन नहीं होता इनमें हमारा ही खून है।" ऐसे तो तीन ताने मारकर समरवीर जल्दी से चला गया कहीं उसकी प्यारी स्वर्णा गुस्सा ना हो जाए।
'सही कहा रूद्र में तुम्हारा खून नहीं है तभी तो वो तुम्हारे जैसा हृदयहीन नहीं है' राहत ने मन ही मन सोचा।
अगले 1 महीने तक रूद्र गुमसुम सा रहा। अब रूद्र खुद से पढ़ने लगा था, कम बोलता था सिवाय राहत के। राहत को ही अब उसे जबरदस्ती थोड़ा बहुत रेस्ट करने और खेलने के लिए तेज के साथ भेजना पड़ता था। इस 1 महीने में समरवीर फिर कभी रूद्र का हालचाल पूछने नहीं आया। ना रूद्र ने दोबारा अपने पिता के बारे में पूछा। राहत महसूस कर पा रही थी रूद्र बदल चुका है। समय और हालातों ने उसे उम्र से पहले बड़ा कर दिया था।
इन दिनों राहत रूद्र और तेज की देखभाल में लगी हुई थी। सुनैना ने उसे खबर दी थी कि स्वर्णा ने पूरे महल में आतंक मचा रखा है। वो भी रानियों के महल में। रानियां इस लोमड़ी से तंग आ चुकी है। वो सभी महाराज के पास गई लेकिन महाराज ने उल्टा उन्हें ही छोटी सोच वाला बताकर वापस भेज दिया।
रानियां बहुत बोर हो रही थी इसलिए वो डांस का प्रोगाम रखती है। रानी सोनाली आज महारानी वसुंधरा को इसके लिए बुलाने आई थी। राहत नहीं जाना चाहती थी लेकिन दोनों बच्चों का दिल बहलाने के लिए वो हां कर लेती है।
"महारानी क्या महाराज को कोई बिमारी है? मतलब उस तरह की,," रानी सोनाली हिचकिचाकर पूछने लगी।
"आपको तो सबसे अच्छे से पता होगा उन्हें कोई बिमारी है कि नहीं" राहत बोली
ये सुनकर रानी सोनाली के गाल गुलाबी हो गए फिर वो चिंता करते हुए बोली, "फिर क्या कारण है कि महाराज हमसे मिलने नहीं आते? पहले कम से कम महीने में एक या दो दिन तो आते थे पर अब वो भी नहीं कहीं उनकी जिंदगी में कोई और तो नहीं आ गई?"
'आ तो गई है और अब डेरा डालकर बैठी है' राहत ने मन ही मन कहा।
अगले दिन राहत रूद्र और तेज के साथ डांस प्रोगाम देखने के लिए पहुंच गई। वहां सभी रानियां आई हुई थी।
इधर समरवीर के महल में समरवीर राज्य की कुछ चिठ्ठियां पढ़ रहा था और स्वर्णा खाली बैठे बोर हो रही थी। बाहर से शोर सुनकर उसके कान खड़े हो गए और वो फुदककर समरवीर के पास आई और उसके हाथों से कागज छीनकर जोर जोर से पूंछ हिलाने लगी।
"आपको भी बाहर जाना है?"
स्वर्णा ने जोर जोर से हां में सिर हिलाया समरवीर ने मुस्कुराकर उसे गोद में उठाया और बाहर निकल गया।
महाराज पधार रहे हैं
सैनिक की आवाज सुनकर सभी रानियां खड़ी हो गई और अपने वस्त्र और आभूषण ठीक करने लगी। किसी को भी समरवीर के आने की उम्मीद नहीं थी। रानियां बहुत खुश थी और हर कोई खुद को सबसे ज्यादा सुंदर दिखाना चाहती थी। वहीं राहत तो यहां से गायब हो जाना चाहती थी। जहां भी ये फीमेल लीड आएगी तमाशा किए बिना इसका खाना हजम नहीं होगा।
महाराज की जय हो - राहत ने सिर झुकाकर कहा फिर बाकी रानियों ने भी समरवीर का अभिनंदन किया।
समरवीर ने एक सर्द नजर उन सबपर डाली और अपनी कुर्सी पर बैठ गया। स्वर्णा इतनी सुंदर सुंदर रानियों को देखकर ईर्ष्या से भर गई। और ये सब समरवीर की पत्नियां हैं ये सोचकर तो उसका दिमाग ही घूम गया और वो सब पर गुर्राने लगी।
अब क्योंकि महारानी वसुंधरा महारानी थी तो उसे समरवीर के बराबर में ही बैठना था और उसके बैठते ही स्वर्णा उसे आंखें दिखाने लगी। बदले में राहत ने भी उसे देखा 'तुम्हारे शांति भरे दिन जल्द ही खत्म होने वाले है' उसने मन ही मन सोचकर डेविल स्माइल दी और उसकी स्माइल देखकर स्वर्णा के शरीर में झुरझुरी दौड़ गई। मुझे पता ही था ये ऊपर से ही संस्कारी बड़े दिल वाली होने का नाटक करती है असलियत में तो सबकी नानी है बेचारा समर कहां फंसा हुआ है कोई भी उससे सच्चा प्यार नहीं करती सब उसके पैसे और पॉवर पर मरती है।
समरवीर ने दोबारा उन रानियों को देखा भी नहीं और रानियां उसकी नजर के लिए तरस रही थी। उनमें से एक रानी मुस्कुराकर बोली, "महाराज ये लोमड़ी बहुत खूबसूरत है हमारे पास अनेक प्रकार के खूबसूरत स्कार्फ है लेकिन इतने खूबसूरत फर वाला एक भी नहीं है" ऐसा बोलकर वो रानी शर्मा गई। ये थी रानी रूपलेखा उन्होंने सोचा महाराज उनकी इस अदा पर फिदा हो जाएंगे लेकिन,,
राहत ने तो अपने मुंह पर हाथ ही रख लिया हो गया बंटाधार 🫣
फर का स्कार्फ बनाने की बात सुनकर स्वर्णा के फर खड़े हो गए। समरवीर ने उसे प्यार से सहलाया, "हमारे रहते आपको कोई कुछ नहीं कर सकता।"
स्वर्णा ने ऐंठते हुए रानी रूपरेखा को देखा लेकिन तब भी उसे तसल्ली नहीं हुई और वो कूदकर रानी रूपरेखा पर झपट पड़ी। उनके बाल नोंच दिए।
रानी रूपरेखा चिल्लाने लगी। इससे भी स्वर्णा को चैन नहीं मिला तो उसने रानी रूपरेखा का खूबसूरत चेहरा अपने पंजों से बिगाड़ दिया।
रानी रूपरेखा दर्द से बिलखती हुई जमीन पर जा गिरी उन्होंने दोनों हाथों से अपना मुंह ढक लिया लेकिन जैसे ही अपनी उंगलियों के बीच से फूटती खून की धारा देखी वो जोर से चिल्ला उठी, "हमारा चेहरा,, हमारा चेहरा,,!"
"रानी रूपरेखा को कारावास में डाल दिया जाए इनके अंदर जीवों के प्रति दया भावना नहीं है," समरवीर ने सैनिकों को आदेश दिया।
स्वर्णा अकड़ती हुई चलकर समरवीर की गोद में बैठ गई। "अच्छा सबक सिखाया इस दुष्ट रानी को मैंने, देखा था कैसे ये अपनी दासियों पर चिल्लाती थी और यहां मेरे समर को फंसाने के लिए उसपर डोरे डाल रही है? बेशर्म!"
समरवीर भी प्यार से उसके फर सहलाने लगा, "बहुत नटखट हो गई है आप।"
"नहीं महाराज हमें क्षमा कर दीजिए,, हमें क्षमा कर दीजिए," रानी रूपरेखा चिल्लाती रही लेकिन उन्हें सैनिक घसीटते हुए ले गए।
जमीन पर खून की धारा देखकर सभी राशियों के रौंगटे खड़े हो गए। भले ही वो सभी एक दूसरे से जलती थी लेकिन इस तरह किसी का बुरा नहीं चाहती थी और ये सब एक जानवर के कारण?
तभी रानी सोनाली को ऊबकाई आने लगी उन्होंने अपने मुंह पर रूमाल रख लिया। राहत ने तुरंत सुनैना को आदेश दिया, "जल्दी से वैद्य जी को बुलाइए।"
"जी महारानी।"
यहां समरवीर की आंखें डार्क हो गई। उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा जैसे वसुंधरा ने उनके सामने आदेश दिया।
वैद्य जी आए रानी सोनाली की नब्ज देखी और समरवीर के सामने शीश झुकाकर बोले, "बधाई हो महाराज रानी दो महीने की गर्भवती है।"
समरवीर के पैरों तले जमीन खिसक गई।
वहीं राहत रानी सोनाली को बधाई देते हुए बोली, "बधाई हो रानी सोनाली अबसे आपको अपना और ध्यान रखना होगा हम चाहते हैं आप जल्दी से हमें हमारे रूद्र के लिए छोटा सा भाई दे।"
"जी महारानी," रानी सोनाली की खुशी का ठिकाना ना था। बचपन से ही उनकी सेहत कमजोर रही थी उन्हें डर भी था कि वो कभी मां बन पाएंगी या नहीं आज अचानक ये खुशी उनकी आंखों में ख़ुशी के आंसू आ गए थे। बाकी की रानियां भी रानी सोनाली को बधाई देने लगी।
वहीं स्वर्णा का मुंह खुला का खुला रह गया। ऐसा लगा किसी ने उसका दिल भींच लिया हो। रूद्र का फिर भी समझ में आता है तब वो समरवीर की जिंदगी में नहीं थी पर सोनाली ये तब प्रेगनेंट हुई जब वो यहां थी? स्वर्णा को लगने लगा समरवीर ने उसे धोखा दिया है वो उसकी फीलिंग्स के साथ बस खेल रहा है और वो भोली भाली उसके जाल में फंस गई।
स्वर्णा की आंखों में आंसू देखकर समरवीर घबरा गया। स्वर्णा गुस्से में नीचे कूद गई जब उसने मुस्कुराती हुई रानी सोनाली को देखा वो जलन में पागल हो गई यहां उसका दिल जल रहा है और ये औरत खुशी से झूम रही है? 😡
स्वर्णा गुस्से में भरकर रानी सोनाली पर कूद पड़ी जो अचानक हुए इस हमले से धड़ाम से गिर गई। स्वर्णा के पंजे उनके पेट पर लगे थे और अब उनके पेट में जोरदार दर्द हुआ। उनका लाइट पिंक कलर का लहंगा खून से भीगने लगा।
स्वर्णा ने जब समरवीर की आंखों में नाराजगी देखा वो और गुस्सा होकर भाग गई। समरवीर उसके पीछे जाना चाहता था लेकिन फिलहाल के हालातों ने उसके पैरों में बेड़ियां डाल दी थी।
रानी सोनाली का गुलाबी लहंगा खून से लथपथ हो गया। सबकुछ इतना जल्दी हुआ कि किसी को कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला।
राहत ने रानी सोनाली को उठाकर कुर्सी पर बैठाया और वैद्य जी को बुलाने का आदेश दिया।
रानी सोनाली ने समरवीर का हाथ पकड़ लिया जिससे समरवीर की आंखों में घृणा के भाव आ गए जिसे उसने अपनी आंखों में ही छिपाए रखा, "महाराज हमारे बच्चे को बचा लीजिए।"
समरवीर ने बस सिर हिला दिया।
वैद्य जी आए और कुछ देर बाद सिर हिलाकर बोले, "क्षमा करें महाराज, रानी सोनाली पहले से ही कमजोर थी, राजकुमार नहीं बच सके।"
ये खबर सुनते ही रानी सोनाली बेहोश हो गई। वहीं समरवीर के होंठों पर टेढ़ी हंसी आ गई जिसे उसने तुरंत छिपा लिया, "रानी का स्वस्थ होना सबसे अनिवार्य है, उन्हें अच्छी से अच्छी औषधियां दी जाएं।"
"जी महाराज।"
"महाराज रानी सोनाली को गोद में उठाकर उनके महल में छोड़ दीजिए," राहत ने कहा। तब बड़े ही ना चाहने वाले एक्सप्रेशन के साथ समरवीर ने सोनाली को गोद में उठाया ये देखकर राहत की मुट्ठियां कस गईं। उस लोमड़ी को पूरे दिन गोद में उठाने से परेशानी नहीं है लेकिन अपनी पत्नी को छूने में कांटे लग रहे हैं?
"रूद्र, तेज आप दोनों भी अपने अपने कक्ष में जाइए," राहत ने सुनैना को उन दोनों को ले जाने का इशारा किया।
लेकिन रूद्र ने राहत का हाथ पकड़ लिया,
"कुछ कहना चाहते हैं आप?"
"मां हमने महाराज को मुस्कुराते हुए देखा जब वैद्य जी ने कहा कि बच्चा मर गया, वो मुस्कुराए मां, हम सच कह रहे हैं, हमारा विश्वास कीजिए।"
"हमें आप पर पूरा विश्वास है, अभी आप जाइए हम्म?"
सुनैना दोनों बच्चों को लेकर चली गई। राहत की मुट्ठियां कस गईं, ये आदमी इंसान के शरीर में हैवान है, हैवान। अपने बच्चे को तो जानवर भी प्यार करता है पर ये जानवर कहलाने लायक भी नहीं है।
समरवीर ने रानी सोनाली को बिस्तर पर लेटाया लेकिन उसकी नजर बार-बार खिड़की से बाहर जा रही थी, आखिर में वो कह ही उठा, "महारानी वसुंधरा, हमें कुछ आवश्यक कार्य है, आप रानी सोनाली का ध्यान रखिए और कोई भी सूचना हो तो हमें तुरंत खबर कर देना।"
आज राहत समरवीर को यूंही छोड़ देने के मूड में बिल्कुल नहीं थी,
"रूकिए महाराज, रानी सुनैना का बच्चा किसी दुर्घटना में नहीं मरा है बल्कि स्वर्णा ने मारा है, हमें रानी सुनैना को इंसाफ दिलाना होगा, स्वर्णा ने इस राज्य के राजकुमार की हत्या की है।"
समरवीर का चेहरा काला पड़ गया वहीं सभी रानियां सांस थामें समरवीर के जवाब का इंतजार करने लगीं। वो सभी भी महारानी वसुंधरा के पक्ष में थीं।
समरवीर का चेहरा काला पड़ गया, उसने बात टालते हुए कहा, "इस बारे में हम बाद में बात करते हैं।"
"बाद में? महाराज वो रानी सुनैना के साथ आपकी भी संतान थी और आप इतनी लापरवाही दिखाई रहे हैं? बिल्कुल साफ है कि स्वर्णा ने इस राज्य के होने वाले राजकुमार की जान ली है, बदले में स्वर्णा की भी..."
"महारानी!!!" समरवीर चिल्लाया। सभी रानियों की हैरतअंगेज नजरें देखकर उसे एहसास हुआ वो अपने आपे से बाहर हो गया है, उसने लंबी सांस लेकर खुद को शांत किया और बोला, "हमें भी अपनी संतान के जाने का दुख है परंतु स्वर्णा एक निर्दोष जानवर है, अब वो जानबूझकर तो किसी को नहीं मार सकती ना? और उसे मारने से क्या मिल जाएगा? क्या हमारी संतान के प्राण वापस आ जाएंगे?" समरवीर ने ऐसे कहा जैसे वो सच्चाई का देवता हो।
"हमें भी अपनी संतान के जाने का दुख है, परंतु स्वर्णा एक निर्दोष जानवर है। अब वो जानबूझकर तो किसी को नहीं मार सकती ना? और उसे मारने से क्या मिल जाएगा? क्या हमारी संतान के प्राण वापस आ जाएंगे?" समरवीर ने ऐसे कहा जैसे वो सच्चाई का देवता हो।
'जानबूझकर किया या नहीं ये तो तुम मुझसे बेहतर जानते हो समरवीर, बस तुम्हें फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारे और स्वर्णा के प्यार के बीच अगर तुम्हारी औलाद भी आ जाए तो तुम उसे भी मारने को तैयार हो,' राहत मन ही मन बोली।
"ठीक है, अब आप अपने दिमाग पर ज्यादा जोर मत दीजिए और रानी सोनाली का ध्यान रखिए, हम चलते हैं" कहकर समरवीर वहां से निकल गया।
"महारानी, क्या ये बात यहीं खत्म हो गई?" एक रानी आगे बढ़कर बोली। वो सभी हैरान थी कि महाराज एक जानवर को इतनी महत्वत्ता कैसे दे सकते हैं?
"आप सभी भी जाइये और हां, जितना हो सके अपने महल में ही रहिए और उस लोमड़ी से दूर।"
"जी महारानी।" सभी रानियों के अंदर आज के हादसे से खौफ बैठ गया था।
रानी सोनाली का खूब खून बहा था। अभी वो होश में नहीं आई थी। उनका चेहरा जो कुछ समय पहले ताजे गुलाब की तरह खिल रहा था, अब बेजान सा मुर्झा गया था। वैद्य जी ने बताया था कि अब रानी सोनाली कभी मां नहीं बन पाएंगी।
राहत ने अपनी पूरी जिंदगी में ऐसा निर्दयी इंसान नहीं देखा था। माना समरवीर स्वर्णा से बेइंतहा प्यार करता है, पागलों वाला प्यार करता है, लेकिन उसे औरों की जिन्दगी से खेलने का लाइसेंस किसने दिया? क्यों इतनी सारी औरतों से शादी की? क्यों इन्हें यहां कठपुतली की तरह कैद कर रखा है? छोड़ दे ना इन सबको? कर दे आजाद फिर रहे अपनी स्वर्णा के साथ। ये महल नहीं, कालकोठरी बन चुका था जहां कभी भी किसी की भी बलि दी जा सकती है। मुझे जल्द ही कुछ करना होगा, मैं और निर्दोष लोगों को मरने नहीं दे सकती। राहत के दिमाग में कुछ प्लान बनने लगा था।
जब रानी सोनाली को होश आया, उनका हाथ अपने पेट पर चला गया और "बच्चा, बच्चा" कहकर चिल्लाने लगीं, राहत ने उन्हें शांत करने की कोशिश की तो वो उल्टा उस पर ही चिल्ला उठीं,
"अब तो आप बहुत खुश होंगी ना?"
"हम क्यों खुश होंगे?"
"क्योंकि आपका पुत्र रूद्राक्ष ही राजा बनेगा, अब उसका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं होगा।"
राहत के चेहरे पर कठोर भाव आ गए, "रानी सोनाली भूलिए मत, हम महारानी वसुंधरा है और हमारा पुत्र हमेशा ज्येष्ठ ही रहेगा, राजगद्दी पर भी सबसे पहला अधिकार उसका ही रहेगा चाहे फिर कितने ही राजकुमार पैदा हो जाए और हम आपके बच्चे के मरने से खुश होंगे? अगर आप हमारे बारे में यहीं सोचती है तो आपकी सोच बहुत ही तुच्छ है।"
रानी सोनाली सन्न रह गई।
"रानी, जबसे आप बेहोश है महारानी वसुंधरा आपके पास ही है, उन्होंने महाराज से आपके लिए इंसाफ भी मांगा था," रानी सोनाली की दासी सर झुकाए बोली।
रानी सोनाली पछतावे से भरकर बोलीं, "हमें क्षमा कर दीजिए महारानी।"
"उसकी जरूरत नहीं है, हम आपकी भावनाओं को समझते हैं।"
"हमें उस लोमड़ी की लाश देखनी है, जैसे उसने हमारे बच्चे को मार डाला हम भी उसे तड़पता हुआ देखना चाहते हैं, हमने इस बच्चे की कितने सालों से प्रतीक्षा की थी और अभी हमने उसे जी भरकर महसूस भी नहीं किया था कि, हमारा बच्चा हमसे छीन लिया," रानी सोनाली बिलख उठीं।
"आपकी इच्छा जरूर पूरी होगी, लेकिन उसके लिए आपको स्वस्थ होना होगा। अगर आप मर भी गई तो इस महल में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, इसलिए सबसे पहले अपनी सेहत का ध्यान रखिए।"
तभी बाहर से सुनैना एक खबर लिए आई, "महारानी जी, दोपहर से वो लोमड़ी लापता हैं, महाराज ने उसे ढूंढने के लिए पूरी सेना लगा दी है।"
राहत ने सोनाली की ओर देखा जो गुस्से में कांप रही थी,
"हमपर भरोसा रखिए जो आप देखना चाहती है वो जल्द होने वाला है," राहत ने उनका कंधा थपथपाया और सुनैना के साथ बाहर निकल गई।
महल के चप्पे-चप्पे पर पहरेदार थे और लालटेन लिए खोज जारी थी। उनके चेहरे पसीने से भीगे हुए थे क्योंकि अगर वो लोमड़ी नहीं मिली तो महाराज उनकी खाल उधेड़ देंगे।
आखिरकार स्वर्णा मिल ही गई। उसके धूल मिट्टी से गंदे हुए फर देखकर समरवीर को बहुत बुरा लगा। उसने स्वर्णा को साफ़ किया और गोद में उठा लिया। स्वर्णा छूटने के लिए झटपटाने लगी लेकिन जब आज़ाद नहीं हो पाई तो समरवीर को गुस्से में घूरने लगी।
"आपने तो हमारी जान ही निकाल दी थी, आप इतना बड़ा कांड करके भाग गई जानती है रानी सोनाली का बच्चा गिर गया और हमें कितना सुनना पड़ा? कैसे संभाला हमने सबकुछ?" समरवीर की आवाज़ थकी हुई थी लेकिन वो स्वर्णा को दोष नहीं दे रहा था।
स्वर्णा की आँखें हैरानी से फ़ैल गई, 'मिसकैरिज? लेकिन उसने तो हल्की सी टक्कर मारी थी? औरत थी या कांच की गुड़िया जो एक झटके में बच्चा गिर गया।'
"हम सच कह रहे हैं, बच्चा गिर गया रानी सोनाली की सेहत पहले से ही कमजोर थी।"
स्वर्णा घबरा गई, आखिर उसने किसी की जान ली थी।
"आपको घबराने की ज़रूरत नहीं है, इसमें आपकी ग़लती नहीं थी जो भाग्य में लिखा होता है वहीं होकर रहता है," समरवीर ने प्यार से उसके सिर पर हाथ घुमाया।
ये सुनकर स्वर्णा को थोड़ी तसल्ली हुई और अब समरवीर पर गुस्सा भी खत्म हो गया। 'ये आदमी उसके लिए सबसे लड़ता है, मुझे ग़लत नहीं समझना चाहिए था।' समरवीर के चेहरे पर थकान देखकर स्वर्णा ने उसके गाल पर किस कर लिया।
"अब आप अगर हमें छोड़कर भागी तो हम आपको कैद कर लेंगे," समरवीर की मीठी धमकी के बावजूद भी स्वर्णा को बुरा नहीं लगा बल्कि उसके दिल में शहद जैसी मिठास घुल गई।
लोगों का मुंह बंद करने के लिए समरवीर ने रानी सोनाली के परिवार को और ऊंचा पद दे दिया, साथ ही रानी का महल हीरे जवाहरात से भर दिया। फोरमेलिटी के लिए वो एक बार रानी सोनाली का हालचाल पूछने भी गया। स्वर्णा को भी कोई परेशानी नहीं थी, आखिर इस हालत में वो रानी समरवीर के साथ कुछ नहीं कर पाएगी। लेकिन जब उसने सुना कि रानी को इतना धन मिला है कि पूरा महल भर गया वो गुस्से और जलन में सोचने लगी, 'ज़रूर ये इसकी चाल होगी। उसे पता था बच्चा कमजोर है बचेगा तो है नहीं इसलिए मिसकैरेज होने का नाटक करके सारा इल्जाम मुझपर डाल दिया और इतना सारा पैसा लूटकर ले गई। चालाक औरत। और वो महारानी वो भी एक नंबर की चंट है, नहीं तो क्यों सिर्फ उसके ही औलाद है जरूर बाकी की रानियों को कुछ खिला पिला देती होगी जिससे उनके बच्चे ना हो।'
आज जब समरवीर रानी सोनाली के महल में आया रानी सोनाली का व्यवहार एकदम ठंडा था। ना अपने पति को देखकर कोई ख़ुशी थी ना आँखों में चमक। समरवीर को स्वर्णा के पास जाने की इतनी जल्दी थी कि वो कुछ भी नहीं महसूस कर पाया जो आगे जाकर उसके अंत का कारण बनने वाला था।
स्वर्णा को अपने लिए इंतजार करते देखते ही समरवीर के दिल पर बारिश की पहली बौछार जैसी हो गई। वो स्वर्णा को गोद में उठाकर आह भरते हुए बोला, "काश आप इंसान बन पाती, हमारी बेरंग जिंदगी में बस आप ही का रंग है।"
स्वर्णा ने भी उसके गाल से अपना गाल रगड़ा, वो भी तो यहीं चाहती थी कि वो इंसान बन जाए। 'कौन इतने हैंडसम आदमी को देखकर कंट्रोल कर सकता है?'
"परंतु आप चिंता ना करें, हम आपको इंसान बनाकर ही रहेंगे चाहे हमें कुछ भी करना पड़े," समरवीर जबड़ा भींचकर बोला। वो स्वर्णा के साथ वो सबकुछ करना चाहता था जो वो कितनी ही बार सोच चुका था लेकिन उसे हर बार कंट्रोल करना पड़ता था और अब तो सहन करना उसके बस के बाहर होने लगा था। उसे यकीन था स्वर्णा का इंसानी रूप बिल्कुल किसी परी की तरह होगा।
शाम को जब राहत रूद्र से मिलने उसके कक्ष में पहुंची, वहां स्वर्णा को देखकर उसकी आंखें छोटी हो गईं, "रूद्र इतना सब होने के बाद भी इस लोमड़ी के साथ खेल रहा है?"
राहत को देखते ही रूद्र उससे आकर लिपट गया। राहत ने उसका सिर थपथपाया और स्वर्णा को देखा जिसकी आंखों में जलन साफ दिख रही थी। नाक चढ़ाते हुए वो भाग गई। दरअसल, उसे रूद्र के साथ खेलने में मज़ा आता था इसलिए ही वो यहां आई थी, लेकिन रूद्र बिल्कुल बदल चुका था। जबसे वो आई थी रूद्र उसे घूरे जा रहा था। स्वर्णा को यकीन था, ज़रूर इस महारानी ने ही रूद्र के कान भरे होंगे।
"मां हमें वो लोमड़ी बिल्कुल पसंद नहीं है, उसकी वजह से हमारा पपी मर गया। वही उस दिन हमारे साथ खेलने आई थी, लेकिन जब हमारा पपी मारा जा रहा था तब वो चुपचाप महाराज की गोद में बैठी रही। वो बहुत बुरी है, बहुत बुरी, महाराज हमसे ज्यादा उससे प्यार क्यों करते हैं मां? उसने हमारे पिता को हमसे छीन लिया," रूद्र की आंखें गुस्से में लाल हो गईं।
'हम कैसे बताएं कि आपको आपके पिता इसलिए प्यार नहीं करते क्योंकि आपकी मां से ही वो प्यार नहीं करते?' राहत ने मन ही मन सोचा। कहानी के मुताबिक स्वर्णा के साथ जो समरवीर का बेटा हुआ था उससे तो वो बहुत प्यार करता था, उसपर एक खरोंच भी बर्दाश्त नहीं कर सकता था। और रूद्र क्योंकि वो महारानी वसुंधरा की निशानी है इसलिए उसे मरवा दिया।
राहत रूद्र का हाथ पकड़कर अंदर ले गई और उसे अपने सामने बिठाया, "रूद्र हमने आपसे पहले भी कहा था, अपने पिता से प्यार की उम्मीद कभी मत करना।"
रूद्र ने सिर झुका लिया।
"अच्छा हमें एक बात बताइए, एक राजा के लिए सबसे जरूरी क्या होता है?"
"उसकी प्रजा," रूद्र एकदम से बोला।
"बिल्कुल सही कहा आपने, राजा के लिए सबसे जरूरी है उसकी प्रजा। क्या आप राजा बनना चाहते हैं रूद्र?"
"हां मैं बनूंगा राजा और आपकी रक्षा करूंगा।"
"सिर्फ हमारी नहीं इस पूरे राज्य की रक्षा करना और रही बात स्वर्णा की तो अपना दिमाग लगाइये और उसे ऐसे तंग करिए कि आपका नाम भी ना आए।"
"समझ गया मां।"
राहत रूद्र को राजा बनाना चाहती थी और इसके लिए उसे शूरवीर राजाओं की कहानियां भी सुनाती थी। तभी उसे एक दिन खबर मिली कि उसके मायके में संदिग्ध चीजें मिली थीं जिन्हें उसके पिता ने जला दिया। बिना किसी को बताए उन्होंने उसे भी सावधान रहने के लिए कहा था। राहत समझ गई, यहीं वो झूठा पत्र होगा जो समरवीर ने रखवाया होगा, उसके पिता पर देशद्रोह का इल्ज़ाम लगाकर उन्हें मरवाने के लिए। और दूसरी चौंकाने वाली खबर थी कि समरवीर जोरों शोरों से किसी महान तांत्रिक की तलाश कर रहा था। उसके मंत्री उसे समझा समझाकर थक गए थे कि तांत्रिक बहुत खतरनाक होते हैं, लेकिन समरवीर किसी की नहीं सुन रहा था।
राहत समझ गई, समरवीर तांत्रिक की मदद से स्वर्णा को इंसान बनाना चाहता है। कहानी की टाइमलाइन के हिसाब से अबतक स्वर्णा इंसान बन गई थी, लेकिन क्योंकि उसने वो मरमेड पर्ल नष्ट कर दिया था स्वर्णा लोमड़ी के शरीर में ही थी। पर कहानी फिर भी अपनी दिशा में बढ़ रही थी। राहत को यकीन था स्वर्णा इंसान बन ही जाएगी, आखिर जबतक हीरो हीरोइन में इलू इलू ना हो तब-तक उनकी लव स्टोरी आगे कैसे बढ़ेगी? पर राहत घबराई नहीं क्योंकि उसका टारगेट स्वर्णा नहीं समरवीर था, स्वर्णा समरवीर के दम पर ही उछलती है अगर समरवीर ही उसकी रक्षा ना कर पाए तब स्वर्णा कुछ नहीं कर पाएगी।
स्वर्णा को नहीं पता था समरवीर उसके लिए कितना कुछ कर रहा है। समरवीर ने उसे नहीं बताया था क्योंकि वो उसे सरप्राइज देना चाहता था। स्वर्णा रोज मजे से महल में शैतानी करती रहती थी, लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसके साथ सबकुछ उल्टा सीधा हो रहा था। जैसे आज जब वो बगीचे में उछल कूद कर रही थी तभी गोबर से भरी बाल्टी उसके ऊपर गिर गई। सिर्फ इतना ही नहीं, वो बाल्टी के अंदर ही फंस गई, बड़ी मुश्किल से वो बाहर निकली। देखा तो आसपास कोई भी नहीं था।
स्वर्णा पर गोबर गिर गया था लेकिन आसपास देखा तो कोई नहीं था। स्वर्णा मुंह बनाते हुए समरवीर के कक्ष में गई और उसके ऊपर कूद गई। समरवीर गोबर की बदबू बर्दाश्त करते हुए उसे लेकर नहाने चला गया। लेकिन एक बार तक तो ठीक था अब रोज उसके साथ ऐसा होने लगा। समरवीर को गुस्सा आ गया, उसने सैनिकों को पता लगाने का आदेश दिया कि कौन ऐसी जुर्रत कर रहा है?
जब राहत को ये बात पता चली उसने तुरंत रूद्र और तेज को रोक दिया, "अगर वो दोनों ऐसे ही करते रहे समरवीर उन्हें जिंदा नहीं छोड़ेगा।"
और एक दिन पता नहीं कैसे रानी रूपरेखा जो कारावास में थी वो वहां से निकल गई और उनके हाथ स्वर्णा लग गई और उन्होंने स्वर्णा का पेट चाकू से गोद डाला। जैसे ही समरवीर को खबर मिली वो पगलाया हुआ सा वहां आया। रूपरेखा अभी भी स्वर्णा के पेट पर चाकू मार रही थी। समरवीर की आंखों में खून उतर आया, उसने बिना सोचे समझे पास खड़े पहरेदार की तलवार खींची और रूपरेखा का सिर उड़ा दिया। फिर स्वर्णा को उठाकर अपने महल की ओर भागा।
स्वर्णा खून से लथपथ हो गई थी। वैद्य जी ने कह दिया कि वो अब नहीं बच सकती, अपनी अंतिम सांसें गिन रही है। ये सुनते ही समरवीर जैसे होश खो बैठा। उसके मुंह से भी खून निकल आया और उसने उस वैद्य को भी मरवा दिया। उसका आदेश था कैसे भी करके उसकी स्वर्णा को बचाना है नहीं तो सब जान से जाएंगे। पहले वाले वैद्य का हाल देखकर बाकी के वैद्य बिना कुछ कहे स्वर्णा की मलहम पट्टी करने में लग गए।
तभी तांत्रिक महल में आया और उसने कहा कि यही सही समय है स्वर्णा को इंसान बनाने का। समरवीर तांत्रिक के साथ अपने महल में बंद हो गया। किसी को खबर नहीं थी आखिर अंदर चल क्या रहा है? सिवाय राहत के जो समझ गई थी स्वर्णा इंसान बनने वाली हैं।
समरवीर को 1 महीना हो गया था अपने महल में बंद हुए। ना वो दरबार में जाता था ना प्रजा की समस्याओं का हल हो रहा था। सारे मंत्री परेशान हो चुके थे लेकिन समरवीर राजा था तो कुछ कह भी नहीं सकते थे।
"मां महाराज इतने गैरजिम्मेदार कैसे हो सकते है? प्रजा में हाहाकार मचा है पर महाराज है कि गायब हो गए हैं उन्हें प्रजा की कोई फ़िक्र नहीं है," रूद्र राहत के पास आकर शिकायत करते हुए बोला।
राहत मुस्कुरा उठी, "हमारे बेटे को प्रजा की चिंता हो रही है?"
"मां हम गंभीर है।"
"अच्छा बाबा ठीक है आप चिंता ना करें सब ठीक हो जाएगा।"
उस रात समरवीर का मुख्य सेवक महारानी वसुंधरा के लिए संदेश लाया, "महारानी आपके लिए जरूरी खबर है।"
राहत ने सेवक को सोने के सिक्कों का थैला दिया और वो सिर झुकाकर चला गया।
"सुनैना रानी सोनाली को बुलाकर लाओ।"
"जी महारानी।"
"महारानी आपने हमें बुलाया था?" रानी सोनाली अंदर आते हुए बोली। वो पहले से बहुत कमजोर हो गई थी। ये देखकर राहत ने हल्की नाराजगी जताई, "आप अपना ध्यान क्यों नहीं रखती? कितनी कमजोर हो गई है आप?"
"हमें तो आज नहीं तो कल मरना ही है हम तो सिर्फ बदले के लिए जी रहे हैं।"
"एक आदमी के लिए आप अपनी जिंदगी खत्म करने को तैयार हैं?"
"आदमी के लिए नहीं हमारे बच्चे के लिए।"
राहत ने फिर कुछ नहीं कहा और उन्हें अपने साथ समरवीर के महल की ओर ले गई।
दोनों खिड़की के बाहर खड़ी थी और अंदर से समरवीर और एक लड़की की आवाजें आ रही थी।
"स्वर्णा आपको पाकर हमे पूरी दुनिया मिल गई है।"
"क्या मैं सच में इंसान बन गई? मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा।"
"हां स्वर्णा आप इंसान बन गई है और अब हम..."
"तुमने मुझे किस क्यों किया?"
"आप अभी भी नहीं समझी हम आपसे कितना प्रेम करते हैं..."
इसके बाद समरवीर की प्यार से भरी मीठी मीठी बातें और स्वर्णा की सिसकियों की आवाजें आने लगी। जो राहत को जानना था वो जान चुकी थी इसलिए वो सोनाली का हाथ पकड़कर बाहर निकल गई। रानी सोनाली तो गहरे सदमे में थी उनका पीला चेहरा और सफेद पड़ गया था।
"तो राजा की जिंदगी में सच में कोई दूसरी औरत है? लेकिन कौन है ये और कहां से आई?"
"हमेशा से हमारे सामने ही थी," राहत ने कहा तो रानी सोनाली के दिमाग में जैसे भुकंप आ गया पैरों के तले जमीन खिसक गई, "नहीं,, ये संभव नहीं है,, वो लोमड़ी, ये लड़की,, नहीं.."
"सबकुछ संभव है 1 महीने से वो तांत्रिक यहीं तो कर रहा था," राहत ने शांत आवाज में कहा।
रानी सोनाली की आंखें नफरत से लाल हो गई।
स्वर्णा इंसान बन चुकी थी लेकिन अभी तक समरवीर ने उसे अपने कक्ष से बाहर नहीं निकलने दिया था, जिससे राहत कंफ्यूज हो गई। क्या समरवीर जिंदगी भर स्वर्णा को अपने महल में कैद करके रखना चाहता है? लेकिन स्वर्णा ये बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकती, फिर चल क्या रहा है?
और इसका जवाब उसे कुछ ही दिनों में मिल गया जब बगीचे की झाड़ियों में एक लोमड़ी की लाश मिली।
समरवीर बदहवास सा भागता हुआ आया और लोमड़ी की लाश देखकर गुस्से में चिल्लाने लगा, "किसने हमारी स्वर्णा को मारा? कौन है वो??"
राहत ने आंखें घुमाई। अगर ये वाकई स्वर्णा होती तो तुम यहां ये ड्रामा करने की हालत में नहीं होते। क्योंकि स्वर्णा के फर बहुत खूबसूरत सुनहरे रंग के थे, ऐसी सेम लोमड़ी मिलना बहुत मुश्किल था, इसलिए इस लोमड़ी की खाल निकाल दी गई थी। समरवीर वाकई बहुत ही क्रूर है, स्वर्णा को नई पहचान देने के लिए उसने लोमड़ी के मरने का इतना बड़ा नाटक भी रच डाला।
समरवीर ने 'स्वर्णा' के लिए सोने और हीरे मोती का ताबूत बनवाया और उसे दफना दिया। समरवीर के रोम रोम से खुशी फूट रही थी, लेकिन फिर भी वो रोने का, दुखी होने का नाटक कर रहा था, जिसे देखकर राहत को घिन्न आ रही थी।
"महारानी वसुंधरा आप हमारी स्वर्णा के हत्यारे का पता लगाइए, हम उसे मृत्यु दंड देंगे," समरवीर जबड़े भींच कर बोला।
"जी महाराज, हम उस अपराधी को खोजकर रहेंगे।"
महल की सभी रानियां लोमड़ी के मरने की खबर से इतनी खुश थी कि बस पटाखे फोड़ने की कमी थी। वहीं रानी सोनाली गुस्से में कांप रही थी, "महाराज करना क्या चाहते हैं?"
"आप अच्छे से जानती है, हमसे क्यों पूछ रही है?" राहत ने बेपरवाही से कहा, फिर सीरियस होकर बोली, "अभी भी समय है, हमारे साथ हाथ मिला लीजिए।"
"पर वो हमारे पति है," रानी सोनाली सहमते हुए बोली। उनकी ग़लती भी नहीं थी, क्योंकि इस ज़माने में बिना पति के औरत का कोई अस्तित्व नहीं था।
"पति?" राहत हंसने लगी, "कैसा पति? जो हम सबको अपनी पत्नी नहीं मानता वो कैसे हमारा पति हो सकता है? कब तक हम उस पुरानी सोच में जीते रहेंगे और इस जहरीले रिश्ते को ढोते रहेंगे जो एक दिन हमें ही निगल जाएगा? अगर आपको हमारा साथ नहीं देना तो मत दीजिए और इंतजार कीजिए अपने साथ साथ इस महल की सभी औरतों की मौत का, बहुत जल्द स्वर्णा रानी बनकर इस पूरे राजमहल में कब्जा कर लेगी, तब हमारी लाश दफनाने के लिए भी यहां जगह नहीं होगी।"
रानी सोनाली की मुट्ठियां कस गई, राहत ने उन्हें कंधों से पकड़कर झंकझोर दिया, "जागिए रानी सोनाली जागिए, एक औरत क्या नहीं कर सकती? अपनी ताकत को पहचानिए, क्योंकि अभी नहीं तो कभी नहीं।"
"ठीक है महारानी, हम आपके साथ है, आप जैसा कहेंगी हम करेंगे, हम अभी अपने पिताजी को पत्र भेजते हैं।"
राहत ने सिर हिलाया। रानी सोनाली के परिवार के पास बहुत ताकत थी, अगर उसके पिता के साथ रानी सोनाली के पिता भी मिल जाए तो दरबार के सभी मंत्रियों को अपनी साइड कर लेंगे और फिर होगा समरवीर पर पहला और अंतिम प्रहार जिससे उसे संभलने का मौका तक नहीं मिलेगा।
अगले कुछ दिनों बाद एक दिन समरवीर महारानी वसुंधरा के महल में आया, "महारानी वसुंधरा हम कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं, हम अपनी प्रजा की जीवनशैली देखना चाहते हैं कि उन्हें किसी प्रकार का कष्ट तो नहीं हो रहा।"
राहत मन ही मन मुस्कुराई, 'प्रजा के नाम पर भी झूठ, जरूर ये स्वर्णा के साथ हनीमून पर जा रहा होगा।'
"हम भी आपके साथ चलें महाराज?"
"नहीं नहीं, हमारा तात्पर्य है हम शीघ्र ही लौट आएंगे, आप महल का ध्यान रखिए।"
"जी महाराज।"
अगले ही दिन समरवीर सेना के साथ निकल गया। राहत ने देखा एक सैनिक और सभी सैनिकों से छोटा नाज़ुक सा था। उसके नैन नक्श भी तीखे थे। आँखों में चमक थी। समरवीर एकदम से उस सैनिक के सामने खड़ा हो गया, "हम चलते हैं, महल का ध्यान रखिएगा।"
"जी महाराज आप निश्चिंत होकर जाइए।" अंदर से राहत इस बेशर्म राजा को कोस रही थी, 'महारानी को तो इसने अपने राजमहल की नौकरानी समझ रखा है, मतलब तुम जाओ अपनी मिस्ट्रेस के साथ हनीमून मनाने और पत्नी घर की देखभाल करे, भक्क!'
रथ को जाता देख रानी सोनाली धीरे से बोली, "वो सैनिक के वेष में स्वर्णा थी ना? चालाक लोमड़ी, हमें तो अभी तक यकीन नहीं हो रहा कि ये लोमड़ी से इंसान बन गई।"
अगले एक महीने तक समरवीर हनीमून पर था। अपनी पत्नी, बच्चा, राज्य हर जिम्मेदारी से कोसों दूर। राहत ने भी इस समय का भरपूर इस्तेमाल किया, उसने रूद्र के लिए एक गुरूजी को बुलाया जो उसे राजा बनने की शिक्षा दे सके। समरवीर के रहते तो ये नामुमकिन था। अब वो समय दूर नहीं था जब समरवीर का खेल खत्म होने वाला था। इसलिए राहत रूद्र को हर परिस्थिति के लिए तैयार कर रही थी।
एक महीने बाद आखिरकार समरवीर आया और वो अकेला नहीं था, उसके साथ एक खूबसूरत लड़की थी। गोल गोल बड़ी बड़ी आंखें जो ऐसा लगता था बोलती है, लाल होंठ, छोटी सी नाक, चेहरे पर चंचलता। बिना कोई मेकअप के ही उसके चेहरे पर गुलाबी रंगत छाई हुई थी।
"ये कौन है महाराज?" राहत ने सवाल किया।
"ये नंदनी है, हमें एक गांव में मिली और हमें इनसे प्रेम हो गया।" समरवीर ने प्यार से स्वर्णा उफ़ नंदनी को देखते हुए कहा।
राहत अब समरवीर का प्लान समझी। समरवीर ने जानबूझकर लोमड़ी की पहचान खत्म कर दी स्वर्णा को नंदनी की पहचान देने के लिए। 'स्वर्णा को पाने के लिए काफी मेहनत की है तुमने समरवीर लेकिन देखना दिलचस्प होगा क्या तुम्हारी स्वर्णा भी तुमसे हमेशा इतना प्यार कर पाएगी?'
"हम अभी नंदनी के लिए रहने का इंतजाम करवा देते हैं।"
"कोई जरूरत नहीं है, मैं समर के साथ ही रहूंगी।" नंदनी एरोगेंट तरीके से राहत को देखकर बोली और फिर गुस्से और शिकायती लहजे में समरवीर को घूरने लगी। 'इससे अच्छा तो वो बाहर ही थी, इस आदमी की इतनी सारी पत्नियां हैं इन्हें देखकर ही मेरा दिमाग गर्म हो रहा है? पता नहीं ये सब औरतें कैसे एक दूसरे को झेलती है? सब नाटक है इनका, असलियत में तो हर कोई प्यार में स्वार्थी होता है, मैं कम से कम इन सबकी तरह दोगली तो नहीं हूं।'
क्योंकि स्वर्णा अब इंसान बन चुकी थी वो समरवीर को लेकर और ज्यादा पोसेसिव हो गई थी। उसने अपना दिल और जिस्म दोनों इस आदमी को सौंप दिया था और वो भी समरवीर पर अपना एकमात्र अधिकार चाहती थी।
स्वर्णा को गुस्से में देख समरवीर घबराकर मासूम चेहरा बनाकर उसे देखने लगा।
और राहत उन दोनों को कोसने लगी, 'अगर हनीमून से जी नहीं भरा तो अपने बेडरूम में जाओ ना, यहां रहकर मेरा टाइम वेस्ट क्यों कर रहे हो इडियट्स!'