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तेरे संग यारा

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Archana

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पलक के साथ उसके पति ने किया धोखा और उसी पर लगा दिया बेवफाई का इल्जाम। क्या पलक इस सच्चाई को जान पाएगी? क्या है मुस्कान की जन्म की सच्चाई और कौन अपनाएगा मुस्कान को? जिंदगी आसान नहीं होती इसे आसान बनाना होता है, कुछ अंदाज से कुछ नजरअंदाज से।

Total Chapters (203)

Page 1 of 11

  • 1. तेरे संग यारा - Chapter 1

    Words: 1100

    Estimated Reading Time: 7 min

    जिंदगी आसान नहीं होती,

    इसे आसान बनाना पड़ता है।

    कुछ अंदाज़ से, कुछ नज़रअंदाज़ से!!


    पर पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि कितनी चीजों को वह नज़रअंदाज़ करते हुए आगे बढ़ती जाए।


    "बस कर ये जिंदगी,

    ना जाने कितना इम्तिहान अभी बाकी है?

    सब्र का पैमाना तो बस छलकने ही वाला है।"


    पलक ने अपनी डायरी के पन्नों पर दो लाइनें लिखते हुए कहा। काफी देर तक वह टैक्सी स्टैंड पर खड़ी टैक्सी का इंतज़ार करती रही, लेकिन आज तो लग रहा था जैसे टैक्सी वालों ने भी हड़ताल कर रखी हो। स्टैंड पर कोई टैक्सी खाली नहीं थी। उसे इंटरव्यू के लिए जाना था। पिछले एक महीने से वह लगातार इंटरव्यू के लिए हाथ-पांव मार रही थी, पर कहीं भी कोई उम्मीद नहीं थी।


    पर क्यों नहीं थी?


    यह बात भी वह जानती थी। जब अपने ही अपने दुश्मन बन जाते हैं, तो ऐसा ही कुछ होता है।


    लोग दुश्मनों से जीत जाते हैं, पर अपनों से कौन जीत सका है? अपने बीते दिनों पर नज़र डालकर पलक उदासी से मुस्कुरा दी।


    आज भी किस्मत को एक मौका देने के लिए वह अपनी राह पर चल पड़ी थी।

    बहुत मुश्किल से एक टैक्सी वाला दुगुने किराए पर जाने को तैयार हुआ।

    पर हाय रे किस्मत!!

    उसकी किस्मत इतनी खराब थी कि बीच रास्ते में ही उसकी टैक्सी खराब हो गई। टैक्सी वाला बाहर निकलकर बोनट में देखने लगा।

    इधर पलक बेचैनी से अपने हाथों में बंधी घड़ी देख रही थी।


    "भैया, कितना टाइम लगेगा?"


    "कुछ भी नहीं कह सकते मैडम!! कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है कि क्या हुआ है?" ड्राइवर बोला।


    "पर मुझे समझ में आ रहा है कि मेरी यह जॉब भी गई।" पलक अपने आप में मुंह बनाते हुए बोली। वह बहुत परेशान हो गई थी। उसकी टैक्सी जिस एरिया में रुकी थी, वह जगह काफी हद तक सुनसान थी।


    कुछ देर बाद पलक को वहाँ एक कार आती दिखी। उसे इंटरव्यू पर जाने के लिए देर हो रही थी, इसलिए उसने लिफ्ट लेने की सोची। उसकी नज़र उसकी तरफ आती गाड़ी पर पड़ी तो उसने हाथ दिखाकर गाड़ी रोकनी चाही, पर गाड़ी उसके बगल से होकर आगे निकल गई।


    "ओह!! जब ज़रूरत होती है तब तो यही होता है।" पलक ने अफ़सोस से अपना सर हिलाते हुए कहा। चेहरा ऐसा बना था जैसे अब रो पड़ेगी या फिर रो देगी।


    "क्या कान्हा जी? मुझ पर दया नहीं आती, तो कम से कम उस मासूम पर तो दया करो। सारे रास्ते मेरे लिए ही बंद करके रखे हो। तो कम से कम मेरी मुस्कान के लिए एक तो दरवाज़ा खोल दो।" पलक ने आसमान की तरफ देखते हुए भगवान से कहा। मुस्कान का नाम होठों पर आते ही चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान फैल गई थी, जिसने पलक के चेहरे को बेहद खूबसूरत बना दिया था।


    ऐसा लगा जैसे भगवान उसकी रिक्वेस्ट सुनने के लिए बैठे थे। गाड़ी कुछ दूर आगे जाकर रुक गई और यह देखकर पलक की आँखें चमक उठीं।


    "थैंक यू कान्हा जी! यह मुस्कान की तरफ़ से!!" उसने एक फ़्लाइंग किस ऊपर आसमान की तरफ़ भगवान के लिए उछाली और तेज़ी से गाड़ी के पास पहुँची।


    "भैया! मेरी टैक्सी खराब हो गई है। और मेरा आज एक ज़रूरी इंटरव्यू है। समझ लो तो यह जॉब मेरे लिए बहुत ज़रूरी है। क्या आप मुझे विनायक ग्रुप ऑफ़ कंपनी के ऑफ़िस तक छोड़ देंगे???"


    पलक की बात सुनते ही ड्राइवर ने पीछे मुड़कर बैठे हुए अपने मालिक की तरफ़ देखा, जो कि सर हिलाकर हाँ में इशारा करते हुए ड्राइवर और अपने बीच का पार्टीशन गिरा चुका था।


    फिर कुछ पल बाद ड्राइवर ने पलक को गाड़ी में बैठने के लिए कहा।


    "ओके मैडम! आप आ जाइए।"


    पलक जल्दी से ड्राइवर की बगल वाली खाली सीट पर बैठ गई। ड्राइवर ने भी तुरंत ही गाड़ी वहाँ से निकाल ली।


    कुछ समय बाद उनकी गाड़ी एक बड़ी और शानदार बिल्डिंग के सामने आकर रुकी। सामने ही विनायक ग्रुप ऑफ़ कंपनी का बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ था।

    पलक ने एक नज़र अपने हाथ में बंधी घड़ी पर डाली और दूसरी नज़र सामने बिल्डिंग पर। वह बिल्कुल समय से पहुँची थी। हाथ जोड़कर उसने पहले कान्हा जी का धन्यवाद किया और फिर मुस्कुराकर ड्राइवर से बोली।



    "थैंक्यू सो मच भैया।" कहकर पलक तेज़ी से बिल्डिंग के अंदर चली गई।


    गाड़ी के पीछे बैठे शख्स ने एक नज़र जाती हुई पलक की तरफ़ देखा, फिर उसने ड्राइवर को इशारा किया।


    ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा ली और कंपनी के पार्किंग की तरफ़ बढ़ गया। गाड़ी एक प्राइवेट लिफ़्ट के सामने आकर रुकी। तभी एक वर्दीधारी दरबान ने आकर गाड़ी का गेट खोला और गाड़ी की पिछली सीट से निकला।


    करीब सत्ताईस साल का एक लड़का! जिसने ब्लैक थ्री पीस सूट पहन रखा था। आँखों के ऊपर गहरे शेड का चश्मा था। हाइट करीब छह फीट से ऊपर और जिम में बनाई हुई मस्कुलर बॉडी। करीने से जेल लगाकर सेट किए हुए बाल और हाथ में कीमती राडो की घड़ी!! कुल मिलाकर पहली नज़र में ही किसी को भी अट्रैक्ट करने की खूबी रखते थे यह!! और यह है विनायक ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ के मालिक!! प्रणव सिंह!


    "मिस्टर मलिक! आज के जितने भी इंटरव्यूज़ हैं, उनके कैंडिडेट्स की सारी लिस्ट मुझे चाहिए। अभी के अभी, मेरे टेबल पर!!?" प्रणव ने मिस्टर मलिक से कहा।


    "ओके सर!" मिस्टर मलिक ने अपना सिर हल्का सा झुकाकर हाँ में उत्तर दिया।

    वहाँ से निकलकर प्रणव अपने पर्सनल लिफ़्ट में दाखिल हो गया। प्रणव की आँखों के आगे बार-बार पलक का चेहरा आ रहा था, ख़ासकर उसकी वह बिना काजल वाली गहरी काली आँखें!!


    प्रणव ने अपनी आँखें बंद कर लीं।


    बंद आँखों के आगे एक साया सा लहराया।


    "जिस लड़की की तलाश में मैंने ना जाने कितने शहरों की खाक छान ली, वह मुझे यहाँ इस तरह से मेरे ही ऑफ़िस के रास्ते में मिल जाएगी? यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था। पर क्या यह वही है?" दिमाग ने दिल से सवाल किया।


    "नहीं! मेरी आँखें धोखा नहीं खा सकतीं। यह वही लड़की है, लेकिन अगर यह वही है तो यहाँ क्या कर रही है???"


    "तुझे पाने की तमन्ना दिल से निकाल दी मैंने,

    मगर आँखों को तेरे इंतज़ार की आदत सी बन गई है!

    ना जाने यह तुम हो या फिर तुम्हारा कोई साया!!

    पर जो भी हो, अब तो जिंदगी है।

    तेरे संग यारा!!"



    जारी है.....

  • 2. तेरे संग यारा - Chapter 2

    Words: 1226

    Estimated Reading Time: 8 min

    समय पर ऑफिस पहुँचकर पलक ने राहत की साँस ली। अभी इंटरव्यू शुरू नहीं हुआ था। रिसेप्शन पर पता किया तो उसका इंटरव्यू तेरहवें नंबर पर था। पलक ने एक नज़र वहाँ मौजूद कैंडिडेट्स पर डाली।

    "एक वैकेंसी के लिए इतने सारे लोग!! क्या कान्हा जी? यह नौकरी भी नहीं मिलेगी?" पलक ने बेबसी से मन में सोचा और चुपचाप वहीं पर लगे हुए बेंच पर बैठ गई।

    पिछली जॉब से बिना किसी नोटिस के निकाल दिया गया था। क्यों निकाला गया था? यह तो पलक भी अच्छी तरह से जानती थी और अब कोई जॉब नहीं मिल रही थी। इसका कारण भी वह अच्छी तरह से समझती थी। पर इस कंपनी के बारे में उसने सुन रखा था कि यहाँ पर केवल टैलेंट को प्राथमिकता दी जाती है। किसी की भी सिफारिश यहाँ पर नहीं चलती; इसलिए कई जगह से धक्के खाने के बाद यहाँ पर आज लाइन में खड़ी थी।

    अपना तो किसी भी तरह से गुज़ार कर लेती, लेकिन अपनी छोटी सी बेटी मुस्कान का क्या करती? जिसके चेहरे की मुस्कुराहट को देखकर तो वह जीती थी।

    मुस्कान!! पलक की तीन साल की बेटी! जो कि ना केवल उसके चेहरे की मुस्कुराहट का कारण थी, बल्कि कुल मिलाकर उसके जीने का सहारा थी।

    पलक ने आँखें बंद करके मन में कान्हा जी को याद किया तो मुस्कान का मुस्कुराता हुआ चेहरा उसके सामने आया।

    "ऑल द बेस्ट मम्मा! तुम वर्ल्ड की बेस्ट मम्मा हो। देखना कान्हा जी तुम्हारी विश ज़रूर पूरी करेंगे।"

    "नहीं मेरी बेटी! तुम वर्ल्ड की बेस्ट बेटी हो; इसीलिए तो तुम्हारी मम्मा तुम्हें वर्ल्ड की बेस्ट माँ लगती है। वरना सभी लोगों को तो ऐसा लगता है कि मैं एक अच्छी बीबी तो क्या, एक अच्छी बेटी भी नहीं बन पाई।"


    कुछ देर बाद इंटरव्यू शुरू हो गए। पलक ने भी इंटरव्यू दिया और बाकी के सारे कैंडिडेट के साथ इंटरव्यू रूम के बाहर रिजल्ट का इंतज़ार करने लगी।

    लगभग एक घंटे बाद कंपनी का मैनेजर पलक के पास आया और उसने पलक को एक एनवेलप देते हुए कहा।

    "यू आर सिलेक्टेड मैम! आपकी जॉब कन्फ़र्म हो चुकी है! आप कल से समय पर कंपनी आ सकती हैं।"

    अन्धा क्या चाहे? दो आँखें!! पलक को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।

    "थैंक्यू सर...... थैंक्यू सो मच!"

    मैनेजर हल्के से मुस्कुरा दिया।

    सारी फ़ॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद पलक वहाँ से घर के लिए निकल गई, जहाँ मुस्कान उसका इंतज़ार कर रही थी।


    इधर बॉस के केबिन में,
    "सर, आपने जैसा कहा, मैंने कर दिया। मिस पलक कल से जॉब पर आ जाएँगी।" मैनेजर मिस्टर मलिक ने प्रणव से कहा।

    "ओके!" अपने लैपटॉप पर ही नज़र जमाए हुए प्रणव ने सिर हिलाते हुए कहा।
    "पर सर, मुझे एक बात समझ में नहीं आई। जॉब तो अकाउंटेंट की पोस्ट के लिए थी, तो आपने पर्सनल असिस्टेंट क्यों हायर की?" मिस्टर मलिक ने पूछा।

    यह बात उसको सच में हैरानी में डालने वाली थी। वह मिस्टर प्रणव सिंह के साथ पिछले चार सालों से काम कर रहा था, लेकिन अभी तक प्रणव ने अपने लिए एक पर्सनल असिस्टेंट नहीं रखा था और अचानक से पलक को अपनी पर्सनल असिस्टेंट की जॉब दे डाली थी।

    मिस्टर मलिक की बात सुनकर प्रणव ने अपना सर लैपटॉप से उठाकर मिस्टर मलिक की तरफ़ देखा। उसकी आँखें बिल्कुल लाल थीं। मिस्टर मलिक हल्के से डर गए।
    "सॉरी सर!" उन्होंने अपना सर झुका लिया।

    प्रणव ने हाथ के इशारे से मैनेजर को वहाँ से जाने का इशारा कर दिया, तो मैनेजर मिस्टर मलिक उल्टे पाँव तुरंत केबिन से बाहर चला गया।

    मैनेजर ने बाहर निकलते हुए मन ही मन कहा, "पहले तो सर को कभी भी पर्सनल असिस्टेंट की ज़रूरत नहीं पड़ी। सीनियर सिंह साहब तो कई लोगों को इनके असिस्टेंट के तौर पर लेकर भी आए, लेकिन सर ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया और आज खुद ही बिना वैकेंसी के पर्सनल असिस्टेंट हायर कर लिया??

    खैर!! मुझे क्या? सर की बातें वहीं जाने दें। मेरा तो काम ही हल्का हुआ। अब तो कम से कम पर्सनल मीटिंग का बोझ कम हुआ।" सोचते हुए मिस्टर मलिक वहाँ से चले गए।

    मैनेजर के वहाँ से जाते ही प्रणव ने अपना सिर पीछे चेयर पर टिका लिया और फिर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं।

    "हाल तो पूछती नहीं दुनिया ज़िन्दा लोगों का,
    चले आते हैं लोग जनाज़े पर बारात की तरह!!"

    प्रणव के होठों से निकला।

    उसने दोबारा अपने लैपटॉप पर पलक के इनफ़ॉर्मेशन को देखना शुरू किया।

    "इस लड़की का नाम पलक सिंह राजपूत है। एजुकेशन से लेकर हर चीज़ की डिटेल दी हुई है। पर जो मुझे जानना है, वह यहाँ पर नहीं है। खैर!! जब इतना कुछ पता चल गया और यह मेरे आँखों के सामने आ गई, तो फिर बाकी सारी चीज़ भी मैं पता कर ही लूँगा।"

    प्रणव ने एक गहरी साँस छोड़ते हुए अपने आप में कहा। उसकी आँखों के आगे चार साल पहले हुआ वह हादसा लहरा रहा था। उसने तुरंत अपना फ़ोन निकाला और उसकी गैलरी से ओपन करके एक तस्वीर निकाल ली।

    "मेरा शक बिल्कुल गलत नहीं था। यह वही लड़की है। अब इसमें कोई डाउट नहीं!!"
    लैपटॉप में जो तस्वीर लगी हुई थी, ठीक वही तस्वीर उसके फ़ोन की गैलरी में भी थी। बस अंतर इतना था कि गैलरी में जो तस्वीर थी, उस तस्वीर में उस लड़की के माँग में सिंदूर और चेहरे पर एक छोटी सी बिंदी थी। पर यहाँ बायोडाटा में बिल्कुल सादा सी तस्वीर लगी हुई थी।

    "अब मुझे पता करना है कि यह लड़की अगर वही है, तो फिर उसे रात वहाँ कैसे आई? जब तक मैं इसके बारे में पता नहीं कर लूँगा, मेरे अंदर का पछतावा मुझे जीने नहीं देगा। आखिर कौन है यह? और उस रात वहाँ उसे हालत में क्या कर रही थी??" अपने आप में सोचते हुए प्रणव ने अपने पर्सनल फ़ोन से किसी को कॉल किया।

    सामने से कॉल रिसीव होते हुए प्रणव ने पूछा।

    "मैंने जो तुम्हें तस्वीर भेजी थी, उसकी कोई खबर लगी?"

    "नो सर, सिर्फ़ एक तस्वीर से हम किसी को कहाँ ढूँढ़ें? होटल वालों का कहना है कि शायद वह कोई न्यूली मैरिड हनीमून कपल था। कितने सारे जोड़े न जाने हर साल वहाँ पर घूमने के लिए आते हैं? किस-किस का डिटेल मिलेगा?
    हमने पूरे मनाली में ढूँढ लिया। यह लड़की कहीं नहीं है।"

    "वह मनाली में है ही नहीं! तो तुम्हें मिलेगी कहाँ से? वह लड़की यहाँ दिल्ली में है। मैं तुम्हें उसका बायोडाटा सेंड कर रहा हूँ। अब मुझे उसकी पूरी पर्सनल इनफ़ॉर्मेशन चाहिए। डिटेल के साथ!!" प्रणव ने लगभग ऑर्डर देते हुए कहा।

    "ओके सर!!"

    "सिर्फ़ ओके से कम नहीं चलेगा। अगर तुमसे यह काम नहीं हो सकता, तो बता दो। मैं किसी दूसरे को हायर करता हूँ।" प्रणव ने पूछा।

    "नो सर! अगर बायोडाटा मिल जाएगा, तो हम उसकी जड़ें खोजकर निकाल लेंगे।" उधर से कॉन्फ़िडेंस के साथ कहा गया।

    "ठीक है! देखते हैं। कल सुबह तक मुझे पूरी डिटेल अपने टेबल पर चाहिए।" कहते हुए प्रणव ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।

    "मुझे बहुत प्यारी है तुम्हारी दी हुई हर एक निशानी,
    अब चाहे वो दिल का दर्द हो या आँखों का पानी!!"

    दिल का पछतावा!!
    प्रणव की आँखों से एक बूँद आँसू बनकर उसके गालों पर छलक पड़ा था।


    जारी है.....

  • 3. तेरे संग यारा - Chapter 3

    Words: 1314

    Estimated Reading Time: 8 min

    अगले दिन सुबह, पलक के घर में जल्दीबाजी मची हुई थी। सुबह के आठ बज रहे थे। सुबह जल्दी उठकर पलक ने नाश्ता बनाया और फिर नहा-धोकर घर में ही बने छोटे से मंदिर में कान्हा जी की छोटी सी प्रतिमा के आगे दीपक जलाकर हाथ जोड़कर खड़ी हो गई।

    "मैं जानती हूँ कान्हा जी! मैंने जो डिसीज़न लिया है, वह मुश्किल है, लेकिन गलत तो नहीं है!! यह बात तो आप भी जानते हो, तो फिर इस मुश्किल डिसीज़न की और मुश्किल क्यों बढ़ाते हो? प्लीज़, मेरी हेल्प किया करो ना।

    एक तुम्हारे ही भरोसे पर तो मैंने इतनी बड़ी जिम्मेदारी ली है। मेरे एक फैसले ने मुझे मेरे घर-परिवार, मेरे अपनों से दूर कर दिया। मैं सच कह रही हूँ, और तुम भी तो मेरे मन की बात जानते हो कि मुझे अपने फैसले पर कोई पछतावा नहीं है। अब मेरी सारी ज़िंदगी सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी बेटी मुस्कान है। जिसके चेहरे की मुस्कान के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ।

    प्लीज़ कान्हा जी, मुझे इतनी हिम्मत दो कि मैं यह अपने बल पर खुशी-खुशी कर सकूँ।"

    अपने लिए हिम्मत माँगकर पलक मुस्कान को जगाने चली गई, जिसके लिए सच में उसे बहुत हिम्मत चाहिए होती थी।

    जिसके दो कारण थे। पहले तो मुस्कान को नींद से जगाना कोई आसान काम नहीं था, और दूसरा, सोई हुई मुस्कान के मासूम चेहरे को देखकर उसे जगाने का मन भी नहीं होता था। लेकिन उसे प्ले स्कूल जाना था। तभी तो पलक अपने काम पर भी जा सकती थी! घर में एक पार्ट-टाइम मेड थी, लेकिन पलक उसके भरोसे मुस्कान को घर में नहीं छोड़कर जा सकती थी; इसलिए मजबूरी में पलक को उसे जगाना ही पड़ा।

    पलक ने धीरे से मुस्कान को अपनी गोद में लिया।

    "मेरा प्यारा बच्चा!! अभी तक सो रहा है! इतनी नींद आ रही है कि आज स्कूल जाने का भी मन नहीं हो रहा है। जबकि आज मेरी बेटी का अपने स्कूल में पहला दिन है, और पहले ही दिन भला कौन लेट होता है?" पलक ने मुस्कान को दुलार दिखाते हुए कहा।

    "मम्मा, यह कूल किसने बनाया?" मुस्कान ने हल्के से आँख खोलकर पलक की तरफ़ देखा। इस मासूम सवाल पर पलक मुस्कुरा दी।

    "यह तो मुझे भी नहीं पता कि यह स्कूल किसने बनाया? अब तुम स्कूल जाना ना! तो अपनी टीचर से पूछना।"

    "कूल जाना जरूरी है क्या?"

    "बिल्कुल जरूरी है। अगर स्कूल नहीं जाओगी, तो फिर अपनी टीचर से पूछोगी कैसे कि किसने स्कूल बनाया? इतने डिफिकल्ट सवाल का जवाब तो तुम्हारी मम्मा के पास भी नहीं है।" पलक ने मुस्कान के गाल पर प्यार करते हुए कहा।

    फिर जल्दी-जल्दी पलक ने मुस्कान को स्कूल के लिए तैयार किया और खुद उसका लंच बॉक्स तैयार करने चली गई।

    लेकिन वह मुस्कान ही क्या जो स्कूल के लिए तैयार होकर भी आराम से स्कूल चली जाए? उसने जैसे देखा कि पलक उसके स्कूल बैग में उसका लंच बॉक्स रख रही है, मुस्कान ने पूरे घर में दौड़ लगा दी।

    "मुझे स्कूल नहीं जाना! मुझे स्कूल नहीं जाना।"

    "अरे, ऐसे कैसे नहीं जाना?" मुस्कान का बैग लिए हुए पलक उसके पीछे दौड़ रही थी। मुस्कान ने पलक को सोफे के तीन-चार चक्कर लगवा दिए। अंत में हारकर पलक ने थमने का नाटक करते हुए मुस्कान की तरफ़ देखा और चुपचाप सोफे पर बैठ गई।

    मुस्कान ने जब देखा कि अब पलक पीछे नहीं आ रही है, तो उसने खुद पलक के पीछे से जाकर उसके गले में अपनी छोटी-छोटी बाहें डाल दीं।

    "मम्मा, नाराज़ हो गई क्या?"

    "नहीं, मैं कौन नाराज़ होने वाली हूँ? तुमको तो अपनी मम्मा की बात नहीं सुननी ना? तो जाओ जाकर मस्ती करो। मत जाओ स्कूल! अब मम्मा तुमसे कुछ नहीं कहेगी। तुम्हें नए-नए दोस्त नहीं चाहिए, तो कोई बात नहीं। अब मम्मा भी तुमसे बात नहीं करेगी।"

    "नहीं नहीं। ऐसा ग़ज़ब मत करना। मेरी तो सबसे बेस्ट फ़्रेंड आप हो!!" मुस्कान ने पलक के होठों पर अपना प्यार करते हुए कहा।

    "हाँ, बहुत अच्छी दोस्ती है। तुम्हारी एक बात भी अपने दोस्त की मानती नहीं हो!"

    "मैं अपनी दोस्त की सारी बात मानूँगी और दोस्त को ढेर सारा प्यार करूँगी, और आप भी मुझसे बात करना। मैंने आपके लिए कुछ बनाया था।" मुस्कान बोली।

    "क्या?" पलक ने पूछा।

    मुस्कान ने अपनी ड्राइंग बुक आगे कर दी।

    "यह तुमने बनाया?" पलक के लहजे में हैरानी थी। मुस्कान ने हाँ में सर हिलाया। मुस्कान ने हू-ब-हू पलक की स्केचिंग उतार दी थी, जिसको देखकर पलक बिल्कुल दंग रह गई थी।

    "भगवान जाने यह गुण इसने कहाँ से पाया है? मुझे तो एक फूल-पत्ता भी सही से नहीं बनते! लेकिन यह लड़की, जिस उम्र में बच्चे अच्छे से पेन नहीं पकड़ पाते, इस उम्र में इतनी अच्छी ड्राइंग करती है कि आँखें खुली की खुली रह जाती हैं।" पलक ने हैरानी से उसे स्केच को देखते हुए अपने मन में सोचा।

    "क्या हुआ मम्मा? पसंद नहीं आया क्या?" पलक को इस तरह से देखते हुए मुस्कान ने अपनी मीठी आवाज़ में पूछा।

    "नहीं, मेरा बच्चा! यह बहुत खूबसूरत है। इतना खूबसूरत है जितनी खूबसूरत तो आपकी मम्मा भी नहीं है।" पलक ने मुस्कान की हथेलियों पर अपने होंठ रखते हुए कहा। अचानक से पलक की नज़र मुस्कान के हाथ की हथेली पर बने हुए तिल पर गई। पलक की आँखों के आगे एक साया लहराया।

    कुछ धुंधली यादें!!

    "नहीं, मेरी मम्मा बहुत सुंदर है! वर्ल्ड की बेस्ट मम्मा है।" पलक अपनी सोच में कुछ आगे बढ़ती, उसके पहले ही उसे मुस्कान की आवाज़ सुनाई पड़ी। अपने सोचों को झटकते हुए पलक गहराई से मुस्कुरा दी।

    इसके बाद पलक मुस्कान को लेकर घर से निकल गई। पहले उसने मुस्कान को उसके प्ले स्कूल में छोड़ दिया। आज प्ले स्कूल में मुस्कान का पहला दिन था।

    पलक को वापस जाते हुए देखकर, मुस्कान कुछ उदास थी, लेकिन पलक ने उसे बहुत समझाया। उसकी टीचर से बात की। किसी तरह से भारी मन से उसे स्कूल में छोड़कर पलक अपने ऑफिस के लिए निकल गई।

    विनायक ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ के गेट पर!!

    पलक और प्रणव एक ही साथ ऑफिस के मेन गेट पर पहुँचे। पर पलक पैदल थी और प्रणव अपनी गाड़ी में था। लेकिन प्रणव की नज़र जैसे ही पलक पर पड़ी, उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान तैर गई।

    "गाड़ी रोको!" प्रणव ने अपनी गाड़ी रुकवा दी और पैदल ही ऑफिस के ग्राउंड एरिया में कदम रखा। सारे लोग हैरानी से प्रणव की तरफ़ देख रहे थे, क्योंकि जब से प्रणव ने "मिस्टर सिंह" (प्रणव के डैड) की जगह ली थी, यह पहली बार था जब प्रणव खुद से पैदल चलकर कंपनी के अंदर आया था।

    वरना तो हमेशा उसकी गाड़ी उसके पर्सनल लिफ़्ट के सामने ही रुकती और प्रणव बिना किसी पर गौर किए ही वहाँ से सीधे अपने केबिन में चला जाता! पर आज वह सारे एम्प्लॉयीज़ के सामने था।

    सभी की नज़रें प्रणव पर थीं, पर प्रणव की नज़रें पलक पर। हमेशा की तरह प्रणव ने आँखों पर काले शेड्स चढ़ाए हुए थे, जिससे उसकी नज़रें कहाँ हैं, यह देखा नहीं जा सकता था।

    प्रणव, पलक से कम से कम कदम मिलाकर चलने लगा। मुश्किल से दस कदम ही दोनों साथ चले होंगे कि पलक इन सब से अनजान ऑफिस के अंदर चली गई। पलक के अंदर जाते ही प्रणव ने अपना रास्ता बदल लिया और अपने प्राइवेट लिफ़्ट की तरफ़ बढ़ गया। लिफ़्ट का दरवाज़ा बंद होते-होते उसने पलक की तरफ़ देखा, जो कि ऑफिस के ग्लास डोर से इंटर हो रही थी।

    दो कदम चलने के लिए साथ माँगा,
    बस पल दो पल के लिए प्यार माँगा,
    होठों पर मुस्कान लिए
    यह एक एहसास है आशिकाना!
    जो भी है मिजाज़ शायराना!!
    बस सिर्फ़ है,
    तेरे संग यारा!!

    जारी है......

  • 4. तेरे संग यारा - Chapter 4

    Words: 1222

    Estimated Reading Time: 8 min

    पूरे दिन प्रणव ने पलक से बात करने की कोई कोशिश नहीं की। उसने मिस्टर मलिक से कहा था कि वह पलक को अच्छी तरह से काम सिखा दें। मिस्टर मलिक अपने काम में लगे हुए थे। जिसके कारण पलक को बिल्कुल फुर्सत नहीं मिली। पर प्रणव की पूरी निगाह सीसीटीवी के थ्रू पलक पर बनी हुई थी।

    दिल बार-बार कह रहा था कि पलक को अपने केबिन में बुलाकर खुद उसे उसके बारे में पूछे, लेकिन जाने कौन सा ऐसा मन में चोर छुपा बैठा था जो उसे पलक का सामना करने की इजाजत ही नहीं दे रहा था।

    पूरा दिन इसी तरह से काम में बीत गया। फिर ऐसा कहना सही होगा कि पलक का पूरा दिन काम सीखने में बीत गया और प्रणव का पूरा दिन पलक को देखते हुए ही बीत गया। शाम के समय प्रणव के केबिन में एक शख्स खड़ा था। उसने अपने हाथ में मौजूद फाइल प्रणव के सामने रखते हुए कहा,

    "सर, यह उस लड़की पलक सिंह राजपूत की डिटेल है। जो आपने मांगी थी।"

    प्रणव ने हाथ बढ़ाकर वह फाइल अपने हाथ में ले ली और उस शख्स को अपने सामने लगी हुई चेयर पर बैठने का इशारा किया।

    "थैंक यू!" कहते हुए वह वहीं पर बैठ गया।

    "सर, पलक सिंह राजपूत! अभिनव सिंह राजपूत की बेटी है। लेकिन उनके बारे में एक इंटरेस्टिंग बात पता चली है।"

    वह आदमी कुछ कहता कि प्रणव ने हाथ बढ़ाकर उसे रोक दिया।

    "अभिनव सिंह राजपूत!! यानी वह राजपूत इंडस्ट्रीज वाले??" प्रणव ने कुछ हैरानी में एक भौंह उठाते हुए पूछा। अभिनव सिंह राजपूत दिल्ली शहर का जाना पहचाना नाम थे। राजपूत इंडस्ट्रीज के नाम से इस शहर में उनकी अच्छी साख थी।
    उस आदमी ने हां में सर हिला दिया।

    "यस सर! मिस्टर अभिनव सिंह राजपूत के तीन बच्चे हैं। दो बेटे और यह बेटी पलक! जो कि सबसे छोटी और उनकी लाडली थी।"

    "थी का क्या मतलब है?" प्रणव ने तेजी से पूछा, लेकिन उस आदमी ने फिलहाल में कुछ नहीं कहा।

    "और कौन सी इंटरेस्टिंग बात पता चली है?" प्रणव ने आगे जानना चाहा।

    "सर, यह अपने पेरेंट्स से नहीं मिलती! मतलब कि इन्होंने अपना घर छोड़ रखा है या फिर घर परिवार वालों ने इन्हें निकाल रखा है। इसीलिए मैंने कहा कि अभिनव सिंह राजपूत की लाडली बेटी थी। फिलहाल में यह अपनी बेटी के साथ अकेले रहती हैं और जहां रहती हैं, वह घर इनकी चाइल्डहुड फ्रेंड का है।"

    "एक मिनट!! क्या कहा तुमने? पलक की एक बेटी भी है?" प्रणव को जैसे हैरत का झटका लगा था।

    "यस सर! उन्हें एक तीन साल की बेटी है। जिसका उन्होंने आज ही प्ले स्कूल में एडमिशन कराया है। जिसका आधिकारिक नाम प्रेरणा सिंह राजपूत है, पर प्यार से यह उसे मुस्कान बुलाती है। मेरी इन्वेस्टिगेशन में पता चला है कि इसी बेटी के कारण उनकी पूरी फैमिली उनसे नाराज है।

    फैमिली का कोई भी मेंबर उनकी बेटी के साथ उनको अपनाना नहीं चाहता और मिस पलक अपनी बेटी को छोड़ना नहीं चाहती। इसी कारण वह अपनी बेटी के साथ अलग रहती हैं।" आदमी ने आगे बताया।

    "अजीब इंसान हैं मिस्टर राजपूत!! अपनी ही बेटी को उसकी बेटी के साथ अपनाना नहीं चाहते??" प्रणव के शब्दों में गुस्सा, चिढ़ और हैरानी तीनों थी। उस आदमी ने हां में सर हिला दिया।

    "पिछले जॉब से मिस राजपूत को बिना किसी नोटिस के निकाल दिया गया था। पिछले 3 सालों में वह लगभग पाँच जॉब चेंज कर चुकी हैं और सभी जगह से उन्हें राजपूत इंडस्ट्रीज के कारण ही निकाल दिया गया है। इस शहर में मिस्टर राजपूत से पंगे लेने की हिम्मत भी तो अधिक लोगों के पास नहीं है।"

    प्रणव फाइल के पन्ने पलट रहा था और यह आदमी अपने पास से की डिटेल उसे दे रहा था।

    "इसका मतलब है कि मिस्टर राजपूत ही पलक के रास्ते में प्रॉब्लम क्रिएट कर रहे हैं!!" प्रणव ने बात को समझते हुए कहा।

    "लेकिन क्यों? आखिर मिस्टर राजपूत अपनी ही बेटी के रास्ते में इतनी मुश्किलें पैदा क्यों कर रहे हैं?" फाइल के पन्नों को पलटते हुए तेजी से प्रणव ने पूछा।

    "सर! इसका बस एक ही कारण है। उन्होंने मिस पलक को कई बार घर वापस आने का ऑफर दिया है, लेकिन मिस पलक अपनी बेटी को छोड़कर वापस नहीं आना चाहती हैं। इसी के कारण राजपूत हाउस का कोई भी इंसान मिस पलक से कोई संबंध नहीं रखता।

    मिस्टर राजपूत का कहना है कि वह पलक को किसी अच्छे अनाथ आश्रम में दे देंगे। जहां पर कि उसकी परवरिश अच्छे से हो जाएगी, पर मिस पलक को उसे छोड़ना होगा।"

    "व्हाट?" प्रणव को तो जैसे तेज बिजली का झटका लगा था।

    "यस सर!"

    "और मिस पलक के हस्बैंड कहाँ हैं? क्या वह अपनी बीवी और बच्चे की जिम्मेदारी नहीं उठा सकते?" प्रणव की आँखों के आगे वह रात लहराई। जिस दिन उसने पहली बार पलक को देखा था।

    मांग में सिंदूर, हाथों में लाल चूड़ियाँ!! साफ पता चल रहा था कि वह किसी की ब्याहता पत्नी है। चूड़ियों की याद आते ही प्रणव को अपने हथेली में कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ। प्रणव ने झटके से अपने हाथों को खोलकर देखा!!

    कुछ भी तो नहीं था आज यहां!! लेकिन टूटी हुई चूड़ी के टुकड़े जो उसकी हथेली में चुभे थे। उनकी चुभन अभी भी दिल तक महसूस हो रही थी।

    प्रणव की बात सुनकर इनफॉर्मर ने अपना सर झुका लिया।

    "सर, उनके हस्बैंड के बारे में लाख कोशिश करने के बाद भी कुछ पता नहीं चला। हम उनके बारे में कुछ नहीं कह सकते!! कहाँ हैं, कैसे हैं और किस हाल में हैं?"

    प्रणव ने अपनी आँखें छोटी करके अपने इनफॉर्मर की तरफ देखा।

    "सर, बात को समझने की कोशिश कीजिए। आपने आज शाम तक की डेटलाइन दी थी। राजपूत हाउस के अंदर की बात निकलना इतना आसान नहीं है। मुझे कुछ समय दीजिए। मैंने कुछ लोगों को भरोसे में लिया है।

    पर थोड़ी बहुत जो जानकारी मिली है। उसके हिसाब से शायद उनके हस्बैंड ने उन्हें छोड़ दिया है और उनके घर परिवार वाले ना इस बच्चे की जिम्मेदारी लेना चाहते हैं और ना ही राजपूत परिवार इस बच्ची के साथ मिस पलक को अपनाना चाहता है।" आदमी ने धीरे से बताया।

    उस आदमी की बात सुनकर प्रणव सोच में पड़ गया था।

    "मिस पलक की बेटी की कोई तस्वीर?" प्रणव ने सभी तस्वीरों को पलटते हुए देखा।

    "नो सर! वह अपनी बेटी को सोशल मीडिया तो दूर! अपने परिवार वालों से भी दूर रखती हैं। इसके अलावा जो कुछ भी है। मैं आपको एक-दो दिन में बता दूँगा और इसके अलावा उनके आसपास के लोगों की भी डिटेल दे दूँगा।" आदमी ने रिक्वेस्ट करते हुए प्रणव से कुछ दिनों की मोहलत मांगी।

    प्रणव ने हां में सिर हिलाते हुए उसे केबिन से बाहर जाने का इशारा किया और खुद फाइल में लगी हुई पलक की तस्वीरों को देखने लगा। एक तस्वीर शायद उसकी शादी के टाइम की थी। जिसमें दुल्हन बनी हुई पलक बैठी हुई थी।

    प्रणव की उंगलियां उस तस्वीर में पलक के चेहरे के ऊपर चलने लगीं।

    अपनी हर सांस में आबाद किया है तुम्हें,
    ऐ मेरी जाना बहुत याद किया है तुम्हें!!
    जिंदगी में तुम नहीं तो कुछ भी नहीं जाना!,
    जिंदगी तो बस है!! तेरे संग यारा!!!

    जारी है.....

  • 5. तेरे संग यारा - Chapter 5

    Words: 1091

    Estimated Reading Time: 7 min

    इधर, जब पलक घर आई, तो मुस्कान पहले ही आ चुकी थी। स्कूल से मुस्कान को पलक की एक दोस्त, रुचि, ले आई थी। फिलहाल पलक रुचि के घर में रहती थी। रुचि का यह घर खाली पड़ा था; रुचि अपने परिवार के साथ बगल वाले बंगले में रहती थी। पलक ने घर का काम करने के लिए एक मेड रखी थी, जो रुचि के बंगले में बने सर्वेंट क्वार्टर में रहती थी। वह रुचि का काम करती थी और फ्री होकर पलक का काम भी निपटा देती थी।

    पलक को घर आते देख मुस्कान बहुत खुश हुई और तुरंत उससे लिपट गई।

    "आपका ऑफिस का पहला दिन कैसा रहा?" मुस्कान ने मुस्कुराते हुए पूछा।

    "बहुत अच्छा रहा!" पलक ने भी मुस्कुराते हुए कहा। हालाँकि, आज का पूरा दिन उसके लिए काफी भारी था। काफी कुछ सीखना था और वह काफी थक चुकी थी, लेकिन मुस्कान की एक मुस्कान ने उसकी सारी थकावट दूर कर दी थी।

    "और अब तुम बताओ! तुम्हारा स्कूल में आज पहला दिन कैसा रहा?"

    "बहुत अच्छा रहा मम्मा! मैंने ढेर सारे दोस्त बनाए और उनमें से एक मेरा बेस्ट फ्रेंड बन गया है।" मुस्कान ने खुश होते हुए बताया।

    "अरे वाह, मेरा बच्चा!!" मुस्कान को गोद में लिए हुए पलक अपने कमरे में आई और मुस्कान को बेड पर बिठाकर अपने कपड़े बदलने लगी।

    उसने आते वक्त रास्ते में मुस्कान के लिए चॉकलेट लिया था। अपने पर्स से निकालकर उसने मुस्कान को चॉकलेट दे दिया और मुस्कान चॉकलेट खाने में व्यस्त हो गई। कपड़े बदलकर पलक मुस्कान के पास बेड पर आ गई। मुस्कान ने अपने चॉकलेट में से एक बाइट निकालकर पलक को दिया।

    कभी पलक भी अपनी मम्मी को इसी तरह अपनी हर चीज में शामिल करती थी और मम्मी प्यार से उसके सर को चूम लेती थी। अपने बीते दिनों को याद करते हुए पलक की आँखें भीग उठीं।

    "क्या हुआ मम्मा! किसी ने आपको डांटा है क्या? क्यों रो रही हो?" मुस्कान ने पलक की आँखों को अपने छोटे हाथों से पोंछते हुए पूछा।

    "कुछ नहीं बेटा!" पलक ने मुस्कान को अपनी गोद में बिठा लिया और प्यार से उसके बालों पर हाथ फेरने लगी।

    "तो फिर उदास क्यों हो गई? अगर तुम्हें चॉकलेट पसंद नहीं आई तो कोई बात नहीं। हम बाहर चलते हैं।" मुस्कान ने कहा।

    "नहीं बेटा! मेरा मन नहीं हो रहा।" पलक ने धीरे से टालते हुए कहा। घर-परिवार की याद आते ही पलक इसी तरह उदासी में डूब जाती थी।

    "चलो ना मम्मा। आज मेरा पहला दोस्त बना है। इसे सेलिब्रेट करते हैं।" मुस्कान ने पलक का हाथ पकड़कर उसे उठाते हुए कहा। "ओह, मेरा बच्चा सेलिब्रेशन मांग रहा है?" पलक ने प्यार से मुस्कान के गाल को छूते हुए कहा।

    कुछ देर बाद पलक मुस्कान को लेकर पास के पार्क में चली गई।

    पार्क में मुस्कान को उसके हमउम्र बच्चे मिल गए, तो मुस्कान खेलने में व्यस्त हो गई और पलक एक बेंच पर बैठ गई। उसकी एक नज़र मुस्कान पर बनी हुई थी। झूले पर झूलती मुस्कान के चेहरे पर सच्चे मोतियों जैसी मुस्कान फैली हुई थी। उसे देखकर पलक के होठों पर भी अनायास ही मुस्कान फैल गई।

    तभी एक जानी-पहचानी आवाज़ पलक के कानों में पड़ी।

    "क्या हुआ? अकेले आई हो?"

    आवाज़ सुनते ही पलक ने अपने बगल में देखा तो वहाँ एक लगभग 45 साल की औरत बैठी हुई थी। जिसे देखकर पलक हैरान रह गई।

    "मम्मी आप यहाँ पर!! व्हाट्स ए प्लेज़ेंट सरप्राइज़!!" पलक के होठों पर हैरानी के साथ खुशी भी थी, लेकिन श्रीमती सुप्रिया राजपूत का चेहरा बिल्कुल शांत था।

    "हाँ, तुम्हारे लिए प्लेज़ेंट सरप्राइज़ हो सकता है, लेकिन हमारे लिए नहीं। मैं तो बस यही देखने आई थी कि मेरी बेटी मुझे याद करती है या नहीं?" सुप्रिया जी ने कहा।

    "बहुत याद करती हूँ मम्मी आपको।" पलक ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा। दिल तो यही कह रहा था कि अपनी दोनों बाहें अपनी माँ के आसपास लपेट ले और उनके गोद में सिर छुपाकर अपनी सारी थकान उतार दे। आज न जाने कितने महीनों बाद उसने अपनी माँ को देखा था, लेकिन उनके बात करने के ढंग से पलक समझ गई थी कि वह यहाँ पर उसकी माँ बनकर नहीं, बल्कि राजपूत ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ की मालकिन श्रीमती सुप्रिया राजपूत बनकर आई है; इसलिए उसने खुद को रोका।

    वह चुपचाप सुप्रिया जी की तरफ देख रही थी और उनके आगे बोलने का इंतज़ार कर रही थी। सुप्रिया जी दूसरे ही मूड में आई थीं।

    "लगता तो नहीं है कि तुम हमें याद भी करती होगी। मुझे तो लगता है कि हमें उदासियों में धकेलकर तुमने अपने खुश रहने का अच्छा साधन ढूँढ लिया है।" सुप्रिया जी की नज़र मुस्कान पर जमी हुई थी। अचानक खेलते-खेलते मुस्कान की नज़र भी सुप्रिया जी पर पड़ी। वह झूले से उतरकर उछलती-कूदती हुई सुप्रिया जी तक आई और उनके हाथ पकड़ लिए।

    "नानी मां!!"

    नानी मां पुकारते हुए मुस्कान की आवाज़ में जितनी खुशी थी, उतना ही गुस्सा सुप्रिया जी को मुस्कान के मुँह से "नानी" शब्द सुनकर आया।

    "दूर हटो मुझसे! मैं तुम्हारी नानी नहीं हूँ।" सुप्रिया जी ने मुस्कान को लगभग धकेलते हुए कहा।

    "मम्मी!!" पलक झटके से आगे बढ़ी और मुस्कान को गिरने से बचाया, उसका हाथ पकड़कर वहीं खड़ी हो गई।

    "तुम्हें कहीं चोट तो नहीं लगी बेटा?" पलक ने मुस्कान से पूछा। मुस्कान ने इनकार में सिर हिलाया। वह मासूम, अपनी बड़ी आँखें झपकाते हुए सुप्रिया जी की तरफ देख रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर नानी मां उस पर इतना गुस्सा क्यों करती हैं। लेकिन सुप्रिया जी का गुस्सा यहीं नहीं रुका।

    "क्यों नहीं छोड़ देती इस लड़की का हाथ? क्यों अपने साथ-साथ हम सब की इज़्ज़त लेने पर तुली हुई है।" सुप्रिया जी ने ज़बरदस्ती पलक के हाथ से मुस्कान का हाथ अलग करते हुए कहा।

    उनकी हरकत पर पलक दंग रह गई और मुस्कान रोने लगी।

    जारी है.....

    Archana Verma ✍️

  • 6. तेरे संग यारा - Chapter 6

    Words: 1137

    Estimated Reading Time: 7 min

    "क्यों नहीं छोड़ देती इस लड़की का हाथ? क्यों अपने साथ-साथ हम सब की इज्जत लेने पर तुली हुई है?" सुप्रिया जी ने जबरदस्ती पलक के हाथ से मुस्कान के हाथ को अलग करते हुए कहा।

    "वह मेरी बेटी है, मम्मी!! जब आप मेरा हाथ छोड़ने को तैयार नहीं हो रही हैं, तो मैं क्यों अपनी बेटी का हाथ छोड़ूँ? और यह कौन सा तरीका है बच्चे से बात करने का!! आपने तो कभी भी हम तीनों भाई-बहन से भी इस तरह से बात नहीं की। ना ही कभी ऐसा व्यवहार किया। तो फिर मेरी बेटी के साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकती हैं आप?"

    पलक ने हैरान होते हुए सुप्रिया जी से पूछा। लेकिन इन दोनों की बातों को सुनकर मुस्कान को कुछ ज्यादा तो समझ में नहीं आया, पर उसे ऐसा लगा कि उसके कारण नानी मम्मी को डाँट रही हैं।

    मुस्कान को उस व्यवहार के लिए दुख नहीं लगा था जो सुप्रिया जी ने उसके साथ किया था। पर उसकी मम्मी को डाँट रही थीं। यह बात मुस्कान को चुभ गई थी। ऊपर से आज शाम को भी पलक की आँखों में आँसू आ गए थे। मुस्कान को लगा मम्मी इसी कारण रो रही थीं।

    शायद नानी माँ को मुस्कान का छूना पसंद नहीं आया था।
    "सॉरी नानी माँ!" मुस्कान ने अपने दोनों कान पकड़ते हुए कहा।

    "मैं आपको टच नहीं करूँगी। आप बात कर लो।" मुस्कान वहाँ से रोते हुए जाने लगी।
    "मुस्कान बेटा, रुको!" पलक मुस्कान के पीछे दौड़ने को हुई, लेकिन सुप्रिया जी ने तेजी से पलक की कलाई पकड़ ली।

    "तु उसे जाने क्यों नहीं देती?"

    "नहीं जाने दे सकती मैं उसे। वह मेरे जीने की वजह है। मैंने उसका केवल नाम मुस्कान नहीं रखा है, बल्कि वह मेरे मुस्कुराने की वजह है। उसका नाम केवल प्रेरणा नहीं है, बल्कि वह मेरे जीने की प्रेरणा है।

    नहीं जी सकती मैं उसके बगैर!! और नहीं रह सकती उसके बिना।

    पर आप लोग तो मेरे बगैर रह सकते हैं ना! इसलिए प्लीज मेरा पीछा छोड़ दीजिए।" पलक ने झटके से अपना हाथ छुड़वाते हुए कहा।

    "यह सब बकवास है, पलक! यह मतलबी, स्वार्थी दुनिया में!! यहाँ पर कोई किसी के बिना नहीं मरता।" सुप्रिया जी अभी गुस्से में पलक को कुछ और बोलतीं, उसके पहले ही पलक मुस्कान के पीछे निकल गई।

    "मेरी बेटी पागल हो गई है इस लड़की के पीछे!! पहले इसके बाप के पीछे पागल थी, और अब इस लड़की के पीछे पागल है।

    सब कुछ इस लड़की के कारण हो रहा है। जब यह बच्ची ही तुम्हारी ज़िंदगी में नहीं रहेगी, तब मैं देखती हूँ कि तुम कहाँ जाओगी? आखिर लौटकर तुम्हें हमारे पास ही आना होगा।" सुप्रिया जी ने गुस्से में अपने मन में सोचा और वहाँ से जाने के लिए मुड़ गईं, लेकिन फिर शायद उनका दिल नहीं माना था, इसलिए पलक के पीछे ही चली आईं।

    "पता नहीं! अब मेरी बेटी इस लड़की के पीछे कहाँ-कहाँ भटकेगी?" इधर पलक जब पार्क से बाहर आई, तो उसे मुस्कान कहीं नहीं दिखाई पड़ी।

    "आपने मुस्कान को देखा, बेटा?" पलक ने मुस्कान की सहेली से पूछा।
    "नहीं, आंटी!"

    पलक अब मुस्कान के दोस्तों से पूछ रही थी, लेकिन किसी को भी मुस्कान के बारे में कुछ पता नहीं था।
    "कहाँ चली गई मुस्कान?" अब तो पलक मुस्कान के लिए परेशान होने लगी।
    "कहाँ चली गई बेटा! मम्मा लव यू बेटा। प्लीज बेटा, चली आओ।" मुस्कान को ढूँढते-ढूँढते पलक की आँखें नम होने लगी थीं।

    पलक ने अपने फ़ोन पर मुस्कान की फ़ोटो ओपन कर ली थी और उसके बाद वह आसपास आने-जाने वाले लोगों से पूछने लगी।

    "क्या आपने इस बच्ची को कहीं देखा है? आज इसने व्हाइट और रेड कलर की कॉम्बिनेशन का कैपरी पहन रखा है।"

    तभी वॉचमैन ने कहा,
    "मैडम, वह बच्ची उस रास्ते की तरफ़ गई है! वह देखिए!!" वॉचमैन ने मुस्कान की तरफ़ इशारा करते हुए कहा। सीधे दूर सड़क पर मुस्कान बिल्कुल अंतिम छोर पर दिखाई पड़ रही थी। पलक मुस्कान के पीछे दौड़ पड़ी, लेकिन मुस्कान उससे भी तेज़ दौड़ रही थी। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। आज उसके कारण उसकी मम्मी को भी डाँट पड़ी थी, और यह चीज़ मुस्कान को दुखी कर चुकी थी।


    इधर प्रणव के सर पर हर रोज़ की तरह, ऑफिस से निकलते ही एक नई मुसीबत चढ़ी हुई थी। ना चाहते हुए भी उसे अपने पापा के कारण एक लड़की से मिलना पड़ा था। प्रणव ने अपनी गाड़ी एक आइसक्रीम पार्लर के पास लगा दी थी और अब उस लड़की के साथ ही वह वॉक करते हुए पार्क की तरफ़ आ रहा था।

    वह लड़की अपने आप में ना जाने क्या-क्या बोलती जा रही थी? अपने बारे में शायद बता रही थी, लेकिन प्रणव कान में ब्लूटूथ लगाए हुए शेयर मार्केट के न्यूज़ सुन रहा था।
    प्रणव और वह लड़की सड़क के किनारे चल ही रहे थे कि इतने में तेज़ी से आती हुई मुस्कान उस लड़की से टकरा गई। वह लगभग गिर ही जाती, कि प्रणव ने झटके से उसका हाथ पकड़कर उसे संभाल लिया, लेकिन उस लड़की के बातों का सिलसिला टूट गया था। उसने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा,

    "अंधी हो क्या? दिखाई नहीं पड़ता?"

    एक और डाँट सुनकर मुस्कान की आँखों के आँसुओं में बाढ़ आ गई थी। उसने अपना चेहरा उठाकर उस लड़की की तरफ़ देखा। उसका मासूम चेहरा दुख में भरा हुआ था, जिसको देखकर प्रणव का दिल कट गया।

    वह चुपचाप मुस्कान के मासूम चेहरे को देख रहा था। इधर वह लड़की मुस्कान पर चिल्ला रही थी, जिसको सुनकर प्रणव की आँखें बिल्कुल लाल हो गईं। उसने तुरंत मुस्कान को अपनी गोद में उठा लिया और अपने कंधे से लगाकर उसका सर सहलाने लगा। ना जाने एक कैसे एहसास ने प्रणव को छुआ था, जो प्रणव ने मुस्कान को अपने सीने से लगा लिया था। वरना बच्चे तो प्रणव को भी पसंद नहीं थे।

    "नहीं-नहीं बच्चा!! रोते नहीं है।" प्रणव मुस्कान को बहलाने की कोशिश कर रहा था।

    मुस्कान ने अपना चेहरा प्रणव के कंधे में छुपा लिया था। इतने लोगों से डाँट खाने के बाद शायद प्रणव की गोद उसे दुलारती हुई अच्छी लग रही थी। प्रणव के लंबे-चौड़े वजूद में मुस्कान बिल्कुल एक खरगोश के छोटे बच्चे जैसी लग रही थी।
    "एक तो गलती करती हो और ऊपर से रोती हो? कहाँ हैं तुम्हारे पेरेंट्स? पैदा करके बच्चे को सड़क पर छोड़ दिया है!" प्रणव की गोद में बच्चा देखकर लड़की और चिढ़ बैठी। लड़की ने चिल्लाते हुए अपना गुस्सा मासूम मुस्कान पर निकाला।

    "शट अप, मिस!!!" प्रणव एक हाथ से मुस्कान को संभालते हुए, दूसरे हाथ से लड़की को वार्निंग देने वाले लहजे में उंगली दिखाते हुए, लाल आँखों के साथ कहा।


    जारी है....
    Archana Verma ✍️

  • 7. तेरे संग यारा - Chapter 7

    Words: 1110

    Estimated Reading Time: 7 min

    "शट अप, मिस!!!" प्रणव ने एक हाथ से मुस्कान को संभालते हुए, दूसरे हाथ से लड़की को चेतावनी देते हुए उंगली दिखाई। लाल आँखों के साथ उसने कहा।

    "अगर अब एक शब्द भी अपने होठों से निकाला, तो मैं यह भूल जाऊँगा कि तुम एक लड़की हो।"

    "तुम्हें यह भी नहीं पता कि इतने छोटे बच्चे से कैसे बात की जाती है? और रही बात बच्चों के इस तरह से सड़क पर घूमने की, तो आगे एक चिल्ड्रन पार्क है। हो सकता है कि बच्ची अपने परिवार वालों से बिछड़कर इधर चली आई हो। किसी की भी मजबूरी और परेशानी जाने बिना, उसको जज करने का अधिकार किसी के पास नहीं है।" प्रणव ने नाराजगी से कहा।


    "आई एम सॉरी! मुझे समझ में नहीं आया था। जिस तरह से यह लड़की हमसे आकर टकराई, मुझे गुस्सा आ गया था।" लड़की ने प्रणव के गुस्से को देखते हुए तेजी से सफाई दी।


    "तुम गुस्से में हो!! यह तुम्हारी प्रॉब्लम है, ना कि इस बच्चे की। बच्चों को यह समझ में नहीं आता कि उनके माता-पिता गुस्से में हैं या फिर प्रॉब्लम में हैं, तो तुम्हें वह कैसे पहचाने? इस बच्ची ने तुम्हें गुस्सा करने पर मजबूर नहीं किया था। इसकी हालत साफ बता रही है कि यह अपने पेरेंट्स से बिछड़कर रोती हुई इधर निकल आई है। बजाय इसको संभालने के, तुम उल्टा इस पर अपना गुस्सा निकाल रही हो। हद होती है लापरवाही और गुस्से की!!" प्रणव ने गुस्से में लड़की पर चिल्लाते हुए कहा। लड़की प्रणव की तरफ हैरान होकर देख रही थी। आखिरकार वह प्रणव के साथ अपनी शादी के बारे में बात करने के लिए एक डेट पर आई थी, लेकिन प्रणव को इस चीज़ में कोई इंटरेस्ट नहीं था। वह प्रोफेशन से एक सुपर मॉडल थी, जिसकी ज़िंदगी केवल उसके कपड़े और बाहरी लुक तक ही सीमित थी। पहले ही उसने यह चीज़ कन्फर्म कर लिया था कि उनकी ज़िंदगी में बच्चों की कोई ज़रूरत नहीं!! और फिलहाल में तो वह अपने करियर को लेकर कोई रिस्क भी नहीं लेना चाहती थी। पर यहाँ प्रणव तो एक अनजाने राह चलते हुए बच्चे को सीने से लगाकर खड़ा था।


    प्रणव ने जब लड़की को इस तरह से अपनी ओर देखते हुए पाया, तो अपने दोनों भौंहें आपस में जोड़ लिए।


    "अगर मेरे साथ इस बच्चे के माँ-बाप को खोजने में मदद कर सकती हो, तो इधर-उधर बात करो, और नहीं तो चुपचाप यहाँ से चली जाओ! फिलहाल मैं गुस्से में हूँ। और मुझे जहाँ तक लगता है कि तुम्हें तो कम से कम गुस्से का मतलब समझ में आता होगा। गुस्सा मतलब गुस्सा!! और गुस्से में इंसान को और कुछ समझ में नहीं आता!!" प्रणव ने 'गुस्से' शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा।


    लड़की की आँखें हैरत से बड़ी हो गईं और मुँह खुल गया।


    "माय फुट!! भाड़ में जाएँ ये राह चलते भिखारी के बच्चे!! मैं इस राह चलती हुई लड़की के माता-पिता को खोजूँगी!! बस यही काम बच गया है?" लड़की ने चिढ़ते हुए अपने मन में सोचा। उसका बस चल नहीं रहा था, वरना वह प्रणव की गोद में से मुस्कान को खींचकर जमीन पर पटक देती।


    प्रणव ने जब लड़की को कोई जवाब देते हुए नहीं देखा, तो उसने तुरंत कहा,

    "आई होप कि तुम्हें मेरी बात समझ में आ गई होगी। इसलिए तुम्हारे हक में यही बेहतर होगा कि हम अब इस मैटर पर बिल्कुल बात ना करें, क्योंकि मेरे और तुम्हारे विचार कभी नहीं मिल सकते!!" अपनी बात दो टूक साफ़-साफ़ शब्दों में कहते हुए, प्रणव ने जैसे लड़की को जाने के लिए कह दिया था।


    लड़की को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह प्रणव को कुछ बोल नहीं सकती थी। उसे हाल फ़िलहाल में एक ऐड करना था, जिसको स्पॉन्सर विनायक ग्रुप ऑफ़ कंपनी कर रही थी। अगर यह शादी नहीं भी होती!, तो प्रणव के साथ अच्छे रिलेशन उसे एक अच्छा सपोर्ट दे सकते थे। इसलिए उसने बात को शांति से ही संभालते हुए कहा,
    "इस वक़्त आप अभी काफ़ी गुस्से में हैं। हम इस मैटर में कल बात करेंगे।"


    न जाने लड़की ने प्रणव को शांत रहने के लिए कहा था या फिर खुद को शांत करते हुए अपने आप को दिलासा दिया था, लेकिन जो भी हो!! वह वहाँ से चली गई। अब प्रणव ने धीरे से मुस्कान के चेहरे को अपने कंधे से दूर किया।


    "इधर देखो!! कौन हो बेटा आप?"


    "मुस्कान!" मुस्कान ने नाक सिकुड़ते हुए अपना नाम बताया।

    "अरे वाह!! तुम्हारा नाम तो बहुत खूबसूरत है। मुस्कान!" मुस्कान का नाम सुनते ही प्रणव के होठों पर भी एक हल्की सी मुस्कुराहट आ गई।


    "मुस्कान का मतलब समझती हो? जिसका मतलब है कि चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाए। तो फिर हमारी मुस्कान इस तरह से रो क्यों रही है?" प्रणव ने अपनी जेब में से रुमाल निकालकर मुस्कान के आँसुओं से भरे हुए चेहरे को साफ़ करते हुए पूछा।


    "मैं नहीं रो रही। मम्मी बोलती है कि गंदे बच्चे रोते हैं और मैं तो अच्छी बच्ची हूँ!" मुस्कान ने तुरंत चुप होते हुए कहा।


    "गुड गर्ल!!" प्रणव ने अपने आसपास देखते हुए कहा। वह आसपास किसी ऐसे को खोज रहा था जो कि अपने बच्चों की तलाश में परेशान हो! लेकिन फ़िलहाल में यहाँ पर कोई ऐसा दिखाई नहीं पड़ रहा था।


    "आइसक्रीम खाओगी बेटा?" प्रणव ने सामने आइसक्रीम पार्लर को देखते हुए मुस्कान से पूछा। वह मुस्कान को बहलाने के लिए उपाय ढूँढ रहा था। मुस्कान की आँखों से बेइंतेहा आँसू बह रहे थे, लेकिन वह उन्हें गालों तक आते ही अपने कपड़े में पोछ ले रही थी। कुछ समझ में नहीं आया तो उसने आइसक्रीम के लिए ही ऑफ़र कर दिया, कि शायद यही खाकर बच्ची खुश हो जाए। लेकिन मुस्कान ने मासूमियत से इनकार में सर हिला दिया।


    "मम्मी ने कहा था कि कोई कुछ भी दे तो नहीं खाना है!" मुस्कान ने धीरे से बताया।
    "क्यों?" प्रणव ने ना समझी में पूछा, लेकिन अगले पल ही समझ गया कि बच्चों को उसकी सुरक्षा के लिए यह चीज़ सिखाई गई है। उसके होठों पर मुस्कुराहट आ गई।
    "तो फिर यह लिटिल प्रिंसेस अपनी मम्मी की सारी बात मानती है?" प्रणव ने पूछा।
    मुस्कान ने हाँ में सर हिलाया।


    "आपकी मम्मी ने कोई भी खाना लेने से मना किया है, लेकिन साथ खाने से नहीं!! आ जाओ बेटा, हम दोनों ही आइसक्रीम खाते हैं और उसके बाद आपकी मम्मी के पास चलते हैं।" प्रणव बोला।


    "आइसक्रीम!" आइसक्रीम का नाम सुनकर तो मुस्कान की आँखों में चमक आ गई थी और मुँह में पानी भर आया था।

    जारी है.....

  • 8. तेरे संग यारा - Chapter 8

    Words: 1171

    Estimated Reading Time: 8 min

    "आपकी मम्मी ने कोई भी खाना लेने से मना किया है, लेकिन साथ खाने से तो नहीं! आ जाओ बेटा, हम दोनों आइसक्रीम खाते हैं, और उसके बाद आपकी मम्मी के पास चलते हैं।" प्रणव बोला।

    "आइसक्रीम!" आइसक्रीम का नाम सुनकर मुस्कान की आँखों में चमक आ गई थी, और मुँह में पानी भर आया था।

    "आपको पसंद है?"

    "हाँ!!"

    "तो फिर अब हम दोनों पहले आइसक्रीम खाते हैं, उसके बाद आपके पेरेंट्स को ढूँढते हैं।"

    प्रणव की बात सुनकर मुस्कान खुलकर मुस्कुरा दी। आखिर उसे आइसक्रीम तो बहुत अच्छी लगती थी। मुस्कान के चेहरे की मुस्कुराहट देखकर प्रणव का बुझा हुआ दिल बिल्कुल हल्का हो गया था। वरना, पहले पलक के अतीत को जानने के कारण, और उसके बाद इस लड़की के कारण, उसका सारा दिन बहुत खराब बीता था। अब जाकर कहीं उसे अच्छा महसूस हो रहा था।

    ऐसा लग रहा था कि उमस भरी शाम में अचानक से ठंडी-ठंडी हवाएँ बहनी शुरू हो गई हों। प्रणव ने मुस्कान के लिए आइसक्रीम ली, और उसी फ्लेवर की आइसक्रीम अपने लिए भी। उसने मुस्कान से फ्लेवर के बारे में पूछा, तो मुस्कान ने सर हिलाकर इनकार में कर दिया। आखिर तीन साल की छोटी बच्ची क्या बताती? तो प्रणव ने अपनी पसंद से चॉकलेट फ्लेवर खुद के लिए भी लिया, और उसके लिए भी। और अब मुस्कान के साथ आइसक्रीम खाते हुए उसके बारे में जानने की कोशिश कर रहा था।

    पर मुस्कान तो आइसक्रीम में इस तरह से व्यस्त हो गई थी कि पहले उसे अपनी आइसक्रीम खानी थी। उसके बाद ही कुछ बताना था। लेकिन इधर, पलक का मुस्कान को ढूँढते-ढूँढते हाल बेहाल हो गया था।

    मिसेज राजपूत साथ में ही थीं। उन्होंने जब मुस्कान के लिए पलक की दीवानगी देखी, तो उन्होंने पलक का हाथ पकड़कर खींचा।

    "क्या कर रही हो पलक? दिमाग तुम्हारा ठीक है ना?"

    "नहीं है मेरा दिमाग ठीक! कैसे वह माँ ठीक हो सकती है, जिसकी बेटी उसकी आँखों से ओझल हो गई है? ना जाने मेरी बेटी कहाँ चली गई। इस समय किस हालत में होगी?" पलक ने रोते हुए कहा।

    पलक की हालत देखकर मिसेज राजपूत का कलेजा कटने लगा था। आखिर पलक उनकी इकलौती, सबसे छोटी लाडली बेटी थी। माँ का दिल तो चाहा कि बेटी को अपने सीने से लगाकर उसे इस मुश्किल में संभाल ले, लेकिन अगले ही पल जाने क्या याद आया कि उन्होंने पलक को झकझोरते हुए कहा,

    "क्यों पागल बन रही हो उस लड़की के पीछे? चली गई तो जाने दो ना उसे! कम से कम उस मुसीबत से तुम्हें छुटकारा तो मिला ना! अब चुपचाप तुम मेरे साथ घर चलो। बाकी मेरे ऊपर छोड़ दो।"

    "मम्मी, प्लीज!" पलक ने रोते हुए कहा।

    "कोई प्लीज नहीं पलक! नहीं है वह तुम्हारी बेटी, वह एक नाजायज औलाद है! और इस तरह के बच्चों के लिए यही किस्मत होती है।"

    "मम्मी, यह बात आप कह रही हैं?" पलक ने हैरान होते हुए पूछा।

    "हाँ, मैं कह रही हूँ! और वही कह रही हूँ जो कि सच है।" मिसेज राजपूत ने दृढ़ता से कहा।

    "पर मम्मी, आप भी तो यह बात मानने को तैयार नहीं थीं? क्या आपको भी अब अपनी बेटी पर भरोसा नहीं है?" पलक को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सामने खड़ी वह औरत उसकी माँ है, जो कि उसकी बेटी के बारे में यह बोल रही है। और कहीं ना कहीं पलक के बारे में भी! अपनी खुद की बेटी के बारे में!

    "हाँ! क्योंकि अब इस बात को खाने का मेरे पास सॉलिड प्रूफ है। जब परीक्षित ने माँ के गर्भ में ही बच्चे का पैटरनिटी टेस्ट के लिए कहा, तब भी मैं तैयार नहीं थी। तुम्हारे पापा भी इस चीज के लिए तैयार नहीं थे। अगर तुम्हें याद हो तो उस वक्त हम लोगों ने तुम्हारा साथ दिया था। भला अपने ही बच्चे को कोई शक की नज़र से क्यों देखेगा? और अगर शक की नज़र से देखता है, तो वैसे इंसान के साथ रहने का क्या भरोसा बनता है? इसीलिए हमने तुम्हारा साथ दिया था, और सबसे जो बड़ी बात थी, वह यह थी कि हमें तुम पर भरोसा था। अपनी बेटी पर भरोसा था। अपने खून पर! अपनी परवरिश पर भरोसा था। लेकिन पलक, तुमने ही हमारा यह भरोसा तोड़कर रख दिया। हम किसी से आँखें मिलाने के काबिल भी नहीं रहे।" मिसेज राजपूत ने दुख से अपनी आँख बंद करते हुए कहा।

    मिसेज राजपूत की बात सुनकर पलक का चेहरा धुँआ-धुँआ हो गया था। कहीं ना कहीं उसके दिल में भी इस चीज का शक तो पहले से ही था कि उस रात वह अपने पति परीक्षित के साथ नहीं थी। पर फिर भी दिल इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होता था। पर आज मिसेज राजपूत खुद उससे कुछ बता रही थीं, जिसको सुनने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। यह एक ऐसा सच था, जिसे पलक उस अंधेरी रात की तरह भूल जाना चाहती थी।

    "जानती हो पलक! तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे पापा ने मुस्कान और परीक्षित के डीएनए टेस्ट करवाए, और उसमें साफ़ निकल आया कि मुस्कान का परीक्षित से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। हम परीक्षित को समझाने में हार गए पलक! उसकी कही हुई बात ही सच निकल गई। अब बोलो! तुम क्या कहोगी इस मामले में? क्या अभी भी तुम्हें परीक्षित गलत लगता है? अरे वह तो तुम्हें दीवानों की तरह चाहता था। इतना सब कुछ होने के बाद भी तुम्हें अपनाना चाहता था। उसने तो सिर्फ़ यही कहा था कि तुम इस बच्चे को छोड़ दो, लेकिन तुमने इस बच्चे को छोड़ना ज़रूरी नहीं समझा। बल्कि अपना घर-परिवार छोड़ दिया। इतना ही नहीं, तुमने हम लोगों को भी छोड़ दिया। क्या तुम्हारे लिए वह नाजायज लड़की इतनी इम्पॉर्टेंट है?" मिसेज राजपूत ने पलक से सवाल किया।

    "हाँ! वह लड़की मेरे लिए बहुत इम्पॉर्टेंट है, पर आप भी एक बात याद करके रख लीजिए। वह कोई नाजायज लड़की नहीं! बल्कि मेरी बेटी है। मैंने उसे जन्म दिया है, और दुनिया की कोई भी हकीकत इस चीज को झूठला नहीं सकती! भले ही उसके पिता का कोई अता-पता ना हो! परीक्षित ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया हो! पर उसकी माँ अभी ज़िंदा है, और मैं अपनी बेटी को ढूँढकर ही रहूँगी।" पलक ने अपने आँसू पोंछते हुए जवाब दिया।

    मिसेज राजपूत ने अफ़सोस से अपना सर हिला दिया।

    यह उनकी ही बेटी थी, जो गलती करके भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी। और जिसकी नज़र में उसके माता-पिता ही गलत साबित हो गए थे! अपना घर-परिवार, अपने भाई-बंधु, अपना पति, सब गलत साबित हो गए थे।

    पर गलती किसकी थी? जो कि आज मुस्कान के रूप में उन लोगों के सामने थी? कौन गलत था? कौन सही था? यह कहना तो मुश्किल था। पर फ़िलहाल में दोनों माँ अपनी-अपनी जगह पर सही थीं। दोनों को ही अपनी बेटी की फ़िक्र सता रही थी।

    जारी है।

  • 9. तेरे संग यारा - Chapter 9

    Words: 1335

    Estimated Reading Time: 9 min

    “कैसे समझाऊँ मैं तुमको पलक, कि तुम्हें इस तरह से अपनी बेटी के लिए परेशान होते हुए देखकर, एक माँ का दिल भी अपनी बेटी के लिए इसी तरह से रो रहा है। अपनी बेटी के लिए बेचैनी तुम्हें समझ में आ रही है, लेकिन अपनी माँ की बेचैनी तुम्हारे लिए, तुम्हें समझ में नहीं आ रही है।

    कितनी बदल गई हो तुम पलक? सिर्फ़ एक मुस्कान के कारण!! कि मुझे सोचना पड़ जाता है कि तुम मेरी वही एक बेटी हो ना, जो मुझे एक झींक आने पर पूरी रात मेरे सिरहाने बैठी रहती थी। कभी-कभी मुझे लगता था कि मैंने तुम्हें जन्म नहीं दिया, बल्कि तुम्हारे रूप में मुझे मेरी माँ वापस मिल गई है।” मिसेज़ राजपूत अपने मन में सोचते हुए पलक की तरफ देख रही थीं। लेकिन पलक मिसेज़ राजपूत को जवाब दिए बिना आगे बढ़ने लगी। तो मिसेज़ राजपूत ने पलक का हाथ फिर से पकड़ लिया।

    “अब क्या है? आपको मुझसे कोई रिश्ता नहीं रखना है तो मत रखिए। पर मेरा तो रिश्ता मेरी बेटी के साथ है!!” पलक हाथ छुड़ाकर बाहर रोड की तरफ़ भागना चाहती थी ताकि मुस्कान को खोज सके।

    “तुम प्लीज़ थोड़ा शांत हो जाओ। अगर तुमने मुस्कान को जन्म दिया है, तो मैंने भी तुम्हें जन्म दिया है। तुम अपनी बेटी को अकेले नहीं छोड़ सकती, तो मैं भी नहीं छोड़ सकती। मैंने तो बाकायदा 19 साल तक तुम्हें अपने कलेजे से लगाकर पाला है।

    और एक बात याद रखो पलक, रिश्ता रखा और बनाया नहीं जाता, बल्कि रिश्ते तो खुद से पैदा होते हैं, कुछ खून से, कुछ दिल से!!

    और इसी तरह से रिश्तों को पूरी तरह से तोड़ा भी नहीं जा सकता, क्योंकि खून के रिश्तों को तोड़ने के लिए इंसान को अपना ब्लड ग्रुप चेंज करना पड़ेगा! जो कि संभव नहीं है। और दिल के रिश्तों को तोड़ने से पहले उसे अपना खुद का दिल तोड़ना पड़ेगा। जो कि अपने हाथ से तो बिल्कुल संभव नहीं है, क्योंकि ऐसा करने की कोशिश में वह इंसान खुद मर जाएगा।” मिसेज़ राजपूत ने कम शब्दों में ही गहरी बात समझा दी।

    “तो फिर आप मेरी बेटी के साथ मेरा रिश्ता तोड़ने पर क्यों पड़ी हैं?” पलक ने बेबसी से पूछा।

    “क्योंकि उसकी वजह से हमारी बेटी हमसे रिश्ता तोड़कर चली गई है।” मिसेज़ राजपूत ने इधर-उधर देखते हुए कहा।

    उनके बॉडीगार्ड आसपास ही थे। उनके नज़रों के इशारे को समझकर उनमें से एक उनके पास आया।

    “यस मैडम!”

    “मुस्कान बेबी को ढूँढो। वह इसी एरिया में होगी। अभी ज़्यादा दूर तक नहीं जा सकती। जाओ, किसी तरह से भी मुस्कान को ढूँढकर पलक के घर पर लेकर आओ।” मिसेज़ राजपूत ने अपने बॉडीगार्ड को आर्डर देते हुए कहा।

    बॉडीगार्ड ने सर झुकाकर हाँ में सर हिलाया और अपने साथ वाले बॉडीगार्ड्स को भी इंस्ट्रक्शन दिया। देखते-देखते राजपूत ग्रुप के बॉडीगार्ड पूरे मार्केट में फैल गए और अब मुस्कान की खोज जोर-शोर से होने लगी। मिसेज़ राजपूत ने पलक का हाथ पकड़कर कहा,

    “चलो पलक! अब घर चलो। इस तरह से सड़क पर खड़े रहना सही नहीं है। अगर मीडिया ने देख लिया तो बेवजह का हेडलाइन बन जाएगा। वह तुम्हें तुम्हारी बेटी वहीं पर पहुँचा देगा।”

    “मैं अपनी बेटी को लिए हुए बिना यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगी।” पलक ने तेज़ी से कहा।

    “ज़िद मत करो पलक! भले ही मैं इस चीज को मानती हूँ कि मुस्कान से मेरा कोई रिश्ता नहीं, लेकिन तुमसे तो है ना!! जिस तरह से तुम्हारे लिए मुस्कान कीमती है, उसी तरह से तुम्हारे चेहरे की मुस्कान हमारे लिए भी बहुत कीमती है। तुम्हारी बेटी सही-सलामत, सुरक्षित तुम्हें मिल जाएगी।

    इतना तो तुम अपनी मम्मी पर भरोसा कर ही सकती हो। भले तुमने हमारा भरोसा तोड़ने में एक सेकंड का भी टाइम नहीं लिया था।” मिसेज़ राजपूत ने पलक को संभाला तो ज़रूर था, पर साथ में यह जताना भी ज़रूरी समझा कि पलक से कहाँ पर क्या गलती हुई है? इस बार पलक कुछ नहीं बोली, बल्कि कदमों के साथ अपने घर की तरफ़ चल पड़ी।

    इधर राजपूत ग्रुप के बॉडीगार्ड मुस्कान को खोजते-खोजते आइसक्रीम पार्लर के अंदर पहुँच गए। जहाँ मुस्कान अपनी आइसक्रीम फ़िनिश कर चुकी थी और प्रणव अपने रुमाल से उसके चेहरे पर लगी हुई आइसक्रीम साफ़ कर रहा था। मुस्कान अपनी बड़ी-बड़ी काली आँखों को टिमटिमाते हुए उसकी तरफ़ मुस्कुराते हुए देख रही थी।

    “चलो गुड गर्ल! अब बता दो तुम्हारे पापा का क्या नाम है?” प्रणव ने मुस्कान से पूछा।

    “पापा का नाम?” मुस्कान सोच में पड़ गई।

    “हाँ! पापा का नाम! तुम्हारे पापा का नाम मुझे पता होगा। तभी तो मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक पहुँचा सकूँगा।” प्रणव ने दिलचस्पी से मुस्कान के चेहरे की तरफ़ देखते हुए कहा।

    “ये तो मुस्कान को पता ही नहीं!” मुस्कान ने अपने दोनों हाथों को स्टाइल से कुछ पता नहीं का इशारा करते हुए कहा।

    जिस पर प्रणव को हँसी आ गई।

    “ये कैसी बात है कि इस छोटी सी नन्ही सी मुस्कान को दुनिया-जहाँ की बात पता है, लेकिन अपने पापा का नाम पता नहीं!!”

    “मुझे मेरे पापा का नाम पता नहीं, क्योंकि पापा तो हमारे साथ रहते नहीं!” मुस्कान ने मासूमियत से सोचते हुए बताया।

    “तो फिर तुम किसके साथ रहती हो?” प्रणव को उसकी बातों में दिलचस्पी हो रही थी।

    “मैं तो अपनी मम्मा के साथ रहती हूँ!”

    “तो फिर अपनी मम्मी का ही नाम बता दो!” प्रणव ने कहा।

    “मेरी मम्मी का नाम.....” मुस्कान अपनी मम्मी का नाम बताती, उसके पहले ही बॉडीगार्ड ने आकर मुस्कान से कहा,

    “मुस्कान बेबी, आप यहाँ पर हैं? उधर मैडम आपको ढूँढ कर परेशान हो रही हैं।”

    बॉडीगार्ड को देखकर मुस्कान मुस्कुरा दी।

    “नानी माँ मुझे ढूँढ रही है?” मुस्कान ने खुश होते हुए पूछा।

    वह इस आदमी को भी पहचानती थी और इस वर्दी को भी!! क्योंकि मिसेज़ राजपूत जब भी आती थीं, तो यह आदमी हमेशा उनके साथ होता था।

    “हाँ!” बॉडीगार्ड ने मुस्कान को गोद में लेने के लिए हाथ बढ़ाया, तो मुस्कान प्रणव को बाय करते हुए अपने बॉडीगार्ड के गोद में चली गई।

    “पता था नानी माँ सिर्फ़ गुस्सा है, लेकिन मुस्कान को बहुत-बहुत प्यार करती हैं!” मुस्कान ने प्रणव से बताया।

    “सॉरी सर और थैंक यू!” बॉडीगार्ड ने सर झुकाते हुए कहा।

    “इट्स ओके!” प्रणव ने धीरे से बॉडीगार्ड के गोद में मुस्कान के सर पर अपने होंठ रखते हुए कहा। प्रणव उससे मुस्कान के बारे में पूछना चाहता था, लेकिन इस समय उसके जेब का फ़ोन बज उठा। फ़ोन पर ‘डैड कॉलिंग’ दिखा रहा था।

    प्रणव कॉल रिसीव करने के लिए रुका, तो बॉडीगार्ड तेज़ी से मुस्कान को वहाँ से लेकर निकल गया। लेकिन तभी प्रणव की नज़र मुस्कान के हिलते हुए हाथ पर गई, जो कि उसे बाय करने के लिए उठी थी। मुस्कुराते हुए प्रणव ने भी अपना हाथ बाय करने के लिए उठाया था, लेकिन तभी उसकी नज़र मुस्कान के हिलते हुए हाथ पर और फिर अपने हाथ पर गई। दाहिने हाथ में ठीक उसी जगह एक बड़ा सा बर्थमार्क था, जहाँ प्रणव को भी था।

    “ओह गॉड! अब मैं कैसे पता करूँगा इस लड़की के बारे में? और क्यों इस लड़की को देखकर ऐसा एहसास हो रहा है, जैसे कि मुझे मेरा कोई अपना दूर जा रहा है।” जैसे-जैसे मुस्कान और प्रणव के बीच की दूरी बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे प्रणव के दिल की वह बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जो कि कुछ पल पहले उससे कहीं दूर जा चुकी थी।

    इस बेचैनी के आलम में उसे इतना भी एहसास नहीं रहा कि उसके हाथ में उसका फ़ोन लगातार बज रहा है और आँखों के किनारे से दो बूँद आँसू लुढ़क कर गालों तक पहुँच आ चुके हैं।


    कुछ आँसू ऐसे थे साहब,
    खुद ही बहे और खुद ही सुख गए,
    एहसास तो उनके बह जाने के बाद हुआ।
    जब तक वो साथ थे,
    जिंदगी थी, तेरे संग यारा!!


    जारी है.....


    कमेंट किया कीजिए!
    Archana Verma ✍️

  • 10. तेरे संग यारा - Chapter 10

    Words: 1095

    Estimated Reading Time: 7 min

    हमने जफा ना सीखी,
    फिर भी वफा ना आई।

    रात को सारा काम निपटाकर, बिस्तर पर आते ही पलक ने मुस्कान के चेहरे को देखा। अचानक उसके दिल में एक ख्याल आया; जो सच आंखों के आगे था, उसे किसी भी कीमत पर झुठलाया नहीं जा सकता था। मुस्कान की एक भी हरकत, एक भी नैन-नक्श परीक्षित से नहीं मिलते थे। न जाने किसकी छवि मुस्कान के अंदर बसती थी। इस चीज को उसने खुद महसूस किया था, और उसमें भी अंदर से अंदर चल रहा उसका अपराधबोध!

    लेकिन इन सब चीजों में मुस्कान की कहाँ गलती थी? गलती तो पलक से हुई थी।
    पर कैसे?? और कहाँ??
    पलक ने तो कभी परीक्षित के अलावा किसी के बारे में सोचा भी नहीं था, और आज तक किसी के बारे में सोचती भी नहीं थी।


    पलक वहीं मुस्कान के सिरहाने बैठ गई और धीरे-धीरे उसके सर पर अपने हाथ फेरने लगी। न जाने मुस्कान नींद में कौन सा सपना देख रही थी कि उसके चेहरे पर हल्की-हल्की मुस्कुराहट फैली हुई थी, लेकिन पलक का दिल बहुत भारी था।
    अगर आज मुस्कान खो जाती तो? पलक की ज़िंदगी का क्या होता? मुस्कान ही तो उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सहारा थी। पर आज मिसेज़ राजपूत जो कहकर गई थीं, वह कोई छोटी बात नहीं थी।


    उनके जाने से लेकर अभी तक पलक उनकी बातों को सोच रही थी। उनकी बातों में डूबी हुई पलक को इतना भी ध्यान नहीं रहा कि मुस्कान अपनी तोतली आवाज़ में उसे क्या-क्या बता रही थी। गार्ड ने तो बस उसे इतना बताया था कि वह किसी के साथ बैठकर आइसक्रीम खा रही थी। और मुस्कान अपनी तोतली आवाज़ में उन अंकल के बारे में न जाने कौन-कौन से कसीदे पढ़ रही थी।

    खैर!! मुस्कान मिल गई थी, और पलक के लिए यह सबसे बड़ी राहत की खबर थी, पर फिर भी दिल क्यों नहीं राहत महसूस कर रहा था??

    पलक ने अपनी आँखें बंद करके कुछ याद करने की कोशिश की। कुछ भी तो नहीं याद आता था।

    "कभी-कभी ज़िंदगी बिल्कुल सही रफ़्तार से चलते-चलते अचानक से कैसा झटका दे जाती है। जिसे संभालना मुश्किल नहीं, नामुमकिन लगने लगता है। यही तो जीवन है।"

    पलक ने बेबसी से अपने मन में सोचा।

    पलक के जीवन की भी तो यही कहानी थी। अच्छी, खुशी से चल रही ज़िंदगी ने अचानक से उसे ऐसा झटका दे दिया था कि न जाने किस मोड़ पर आकर वह खड़ी थी? जिसका उसे खुद पता नहीं था। अब तो कहीं जाकर उसने अपने दिल और दिमाग को मज़बूत करके रास्ते ढूँढने की कोशिश की थी। वह भी अपने लिए न सही, अपनी बेटी मुस्कान के लिए!! तब तक मिसेज़ राजपूत आकर फिर से उसे इसी तूफानी मोड़ पर छोड़ गई थीं।

    उन्होंने फिर से वही सवाल उठा लिया था, जिस सवाल से पलक बचना चाहती थी।
    मुस्कान के अस्तित्व पर सवाल!
    पलक के चरित्र पर सवाल!!
    आखिर कौन था मुस्कान का पिता?? और जब शादी पलक की परीक्षित के साथ हुई थी, तो परीक्षित क्यों नहीं है मुस्कान का पिता??

    पलक ने धीरे-धीरे मुस्कान के सर पर हाथ फेरना शुरू किया और खुद धीरे-धीरे अतीत में जाने लगी।


    परीक्षित से शादी उसकी और उसके परिवार की पसंद से, खूब धूमधाम से हुई थी। विदेश में पला-बड़ा परीक्षित, इंडिया के ही एक बिज़नेसमैन का बेटा था। परीक्षित के परिवारवाले चाहते थे, चट मंगनी पट शादी!!


    मि. राजपूत को चट मंगनी पट शादी से कोई ऐतराज़ नहीं था, लेकिन उनका कहना था कि यह शादी पलक के हाँ-ना पर टिकी है! अपनी इकलौती बेटी का हाथ वह इस तरह से किसी के हाथ में नहीं दे सकते, जिसे उनकी बेटी पसंद ही न करे!! आज तक तो उन्होंने एक खिलौना भी अपनी बेटी के हाथ में उसके बिना पसंद के नहीं थमाया था, तो जीवनसाथी कैसे थमाते??


    जबकि पलक अपने पापा के फ़ैसले पर अपना सर झुकाने के लिए तैयार थी, लेकिन मि. राजपूत नहीं माने। और इसी तरह से पलक और परीक्षित की पहली डेट परिवारवालों की निगरानी में ही फ़ाइनल हुई।


    पहली बार पलक और परीक्षित शादी से पहले एक-दूसरे से मिले। पहली नज़र में ही परीक्षित पलक को काफ़ी पसंद आया था। साधारण नैन-नक्शों वाला परीक्षित, अच्छा-खासा लंबा-चौड़ा इंसान था, जो कि पलक जैसी लड़की को डिज़र्व नहीं करता था। क्योंकि पलक परीक्षित के मुक़ाबले में तो बहुत ज़्यादा ख़ूबसूरत थी, लेकिन पलक को जो उसमें पसंद आया था, वह था-


    उसका व्यवहार!!


    ज़िंदादिल परीक्षित को देखकर ना कहने का सवाल तो हो ही नहीं सकता था। शादी से लेकर कपड़े-गहने, सब की शॉपिंग परीक्षित ने और उसके पेरेंट्स ने पलक की मर्ज़ी से की थी। परीक्षित का परिवार तो दोनों हाथों को खोले हुए, पलक के अपने घर आने की खुशी में एक-एक दिन रहा था। परीक्षित का तो कहना ही नहीं था। रात को सोने से पहले भी गुड नाइट के मैसेज आते थे, तो सुबह आँख खुलने से पहले ही पलक के पसंदीदा ख़ूबसूरत ट्यूलिप के फूलों के गुलदस्ते के साथ गुड मॉर्निंग का नोट उसे अपने कमरे में मिलता था।


    पलक तो जैसे हवाओं में उड़ रही थी, और उसमें भी जब परीक्षित ने उसे हनीमून पर जाने के लिए जगह के बारे में पूछा, तो पलक शर्मा गई।

    "मैं क्या बताऊँगी? आप कहिए।"

    "देखो पलक!! वैसे तो मैं शुरू से ही विदेश में रहा हूँ और कुछ समय के बाद फिर हम वहीं चले जाएँगे, लेकिन वहाँ पर लोग कहते हैं कि हमारा देश बड़ा सुंदर है। तो ऐसा करते हैं कि फ़र्स्ट हनीमून के लिए हम इंडिया में ही कोई जगह सेलेक्ट कर लेते हैं, और उसके बाद जब हम यहाँ से बाहर जाएँगे, तो तुम जहाँ कहोगी, वहाँ मैं ले चलूँगा। पर इस बार इंडिया में ही कहीं घूमने का प्लान कर लेते हैं।" परीक्षित ने जैसे रिक्वेस्ट करते हुए उसकी इजाज़त माँगी थी।

    पलक को इससे ज़्यादा क्या चाहिए था? उसका हमसफ़र ज़िंदगी के पहले सफ़र में एक क़दम बढ़ाने से पहले ही इसकी परमिशन माँग रहा था। उसने तुरंत हाँ कह दिया, और शादी के दूसरे दिन ही वह मनाली निकल गए।

    मनाली!!

    पर मनाली जाते वक़्त क्या हुआ था?? पलक अपने दिमाग पर ज़ोर डालकर याद करने लगी। तभी अचानक से उसे याद आया कि शादी की रात वाले दिन पूरी रात परीक्षित कमरे में नहीं आया था।

    क्यों??

    जब परीक्षित ने अपनी पसंद से शादी की थी, तो फिर शादी की पहली ही रात अपनी दुल्हन को छोड़कर वह कहाँ था??

    जारी है....

  • 11. तेरे संग यारा - Chapter 11

    Words: 1253

    Estimated Reading Time: 8 min

    जब परीक्षित ने अपनी पसंद से शादी की थी, तो शादी की पहली ही रात अपनी दुल्हन को छोड़कर वह कहाँ था?

    दुल्हन के वेश में सजी हुई पलक उसका इंतज़ार करते-करते सो गई थी। सुबह जब परीक्षित कमरे में आया, तो उसने एक नाराज़ नज़र परीक्षित पर डाली। जिस पर परीक्षित मुस्कुरा दिया।


    "सॉरी डिअर, कल रात को दोस्तों ने अपने पास बिठा लिया था! और उसके बाद..." परीक्षित ने अपने दाँतों के नीचे जीभ दबाकर अपनी आँखें बंद कर लीं।
    "मतलब??" पलक समझ नहीं पाई।


    "अरे यार!! कल रात पार्टी चली थी, और उसके बाद बंदा खुद से बेहोश हो गया। मैं कभी पीता नहीं!! पर कल शादी हुई थी, और इतने टाइम के बाद मैं इंडिया आया था। चाइल्डहुड के फ्रेंड्स थे। बस दोस्तों ने ज़िद करना शुरू किया। दोस्तों के दबाव के कारण क्वार्टर पैक लिया था, पर मैं झेल नहीं पाया, और ऐसी हालत में मैं तुम्हारे पास आने में अनकम्फ़रटेबल फील कर रहा था। मुझे लगा कि पता नहीं तुम क्या सोचोगी!!"


    "पर आप आकर यहाँ सो सकते थे। पूरी रात आप नहीं आए। आपको पता नहीं! आपके ना आने के कारण मेरे मन में कितना डर लग रहा था!!"


    पलक को बहुत बुरा लग रहा था। तब परीक्षित ने कान पकड़कर पलक से माफ़ी माँगी।
    "आई एम सॉरी पलक! मेरे कारण तुम इंतज़ार करना पड़ा। पर मैं वादा करता हूँ कि आज के बाद ऐसा नहीं होगा।"


    पलक ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उठाकर उसकी तरफ़ देखा। परीक्षित उसे देखकर अपने दिल पर हाथ रखकर बिस्तर पर लेट गया।


    पलक, जो पूरी रात यह सोच बैठी थी कि आज उससे बात नहीं करेगी, परीक्षित को इस तरह से बेड पर गिरते हुए देखकर घबरा उठी थी। उसे लगा कि कहानी सच में कल रात की ड्रिंक ने परीक्षित पर असर डाल दिया है।


    "क्या हुआ आपको?" पलक ने धीरे से उसके सर पर हाथ रखते हुए पूछा। जवाब में परीक्षित ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कराहट थी।


    "अरे यार!! कितनी जल्दी डर जाती हो? अब तो तुम्हें यह झटका खाने की आदत होनी चाहिए।" परीक्षित ने पलक के चेहरे पर आए हुए बालों को किनारे करते हुए कहा।
    "मतलब?" पलक ने ना-समझी से पूछा।


    "मतलब यह कि जिसकी बीवी इतनी खूबसूरत हो, उसे देखकर हार्ट अटैक आएगा ना! बस पहला झटका महसूस कर रहा हूँ।" परीक्षित मुस्कुराते हुए बोला।


    परीक्षित के जज़्बों को देखकर पलक शर्म से मुँह फेर लेती, लेकिन परीक्षित को ऐसा लगा कि पलक नाराज़ है। उसने तुरंत पलक पर अपनी पकड़ मज़बूत कर ली और उसे मनाने वाले अंदाज़ में कहा,


    "देखो पलक, मैं जानता हूँ कि मुझसे गलती हुई है। आई एम सॉरी!! मैं तुमसे माफ़ी माँग रहा हूँ ना। मैं तुम्हें मनाली में एक भी शिकायत का मौका नहीं दूँगा। वहाँ पर तो सिर्फ़ मैं और तुम होंगे। तीसरे को हमारे बीच आने की कोई गुंजाइश ही नहीं होगी। लेकिन पहले मेरी बात तो सुन लो।"


    परीक्षित बोल रहा था, और पलक अपना चेहरा छुपाए हुए अपने इमोशन्स पर काबू करने में जुटी हुई थी।


    इस इंसान से नाराज़ होने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था। जो कि सामने आते ही उसके सारे इमोशन्स पर कब्ज़ा करके बैठ जाता था। पलक इस तरह से परीक्षित के आकर्षण में डूबी बैठी हुई थी।


    "तुमको तो पता ही है कि शुरू से ही मेरी पढ़ाई बोर्डिंग में हुई, फिर उसके बाद डैड ने भी एब्रॉड भेज दिया। इंडिया आने का मेरे पास बहुत कम चांस होता था, लेकिन अब कल मेरी शादी थी, उसमें मेरे कज़िन थे और मेरे कुछ दोस्त थे, जो आते-जाते बन गए हैं। कल रात उन लोगों ने मुझे अपने साथ बिठा लिया था। और एक बात....." परीक्षित ने अपनी एक आँख दबाते हुए कहा।


    पलक ने धीरे से चेहरा परीक्षित की तरफ़ घुमाकर उसकी तरफ़ देखा।


    "एक ही बात की कितनी बार सफ़ाई देंगे?"
    "मैं सफ़ाई नहीं दे रहा, मैं बस सच्चाई बात बता रहा हूँ। वैसे भी मुझे किसी ने कहा था कि जहाँ प्यार होता है, वहाँ पर सफ़ाई नहीं, सच्चाई चलती है।" परीक्षित ने पलक की तरफ़ देखते हुए कहा।


    यह बात पलक ने अपनी पहली मुलाक़ात, यानी कि पहली डेट पर परीक्षित से कही थी।
    "देखो, नाराज़ मत होना! बस कल इन लोगों ने पार्टी की, और तुम तो जानती हो कि मुझे यह पार्टी-पार्टी सूट नहीं करती। मतलब तुम्हें पता कैसे होगा? मैं बता दे रहा हूँ!" परीक्षित ने पीछे वाली लाइन इस अंदाज़ में कही कि पलक के होठों पर हल्की सी मुस्कराहट आ गई।


    जिसको देखकर परीक्षित का मुँह बन गया।
    "तो मेरा मज़ाक उड़ा रही हो?"
    पलक ने मासूमियत से ना में सर हिलाया।


    "उड़ा लो, उड़ा लो मेरा मज़ाक!! जितना जी चाहे उतना उड़ा लो। कल मेरे दोस्त भी उड़ा रहे थे कि इससे तो एक गिलास नहीं संभालता। बस वही, मैं भी ना कुछ सोचा-समझा!! उठाकर एक की जगह दो गिलास अपने अंदर डाली, और उसके बाद मेरी जो कंडीशन हुई कि पूछो मत!!" परीक्षित एक-एक बात इस अंदाज़ में बोल रहा था कि पलक को उसकी बातों में इंटरेस्ट आ रहा था। वैसे भी यह बंदा जब बोलता था, तो पलक उसको सुनने के अलावा कुछ नहीं कर पाती थी।


    "पर इतने पर भी मुझे तुम्हारा ख़्याल था, और मुझे यहाँ आने की हिम्मत नहीं हुई!" परीक्षित ने पलक के हाथ पकड़ते हुए कहा।
    "प्लीज मुझे माफ़ कर दो!"
    "मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ। पर आइंदा से आप मुझे वादा कीजिए कि ऐसा कुछ भी होगा तो आप मुझे एक फ़ोन या मैसेज कर देंगे।" पलक ने परीक्षित के बंधे हुए हाथ खोलते हुए कहा।


    वह भला वैसे इंसान से क्या नाराज़ होती? जो कि ड्रिंक करने के बाद अपनी बीवी के सामने आने की हिम्मत भी नहीं रखता था। लेकिन फिर!!
    फिर ऐसा क्या हुआ कि सब कुछ बदल गया?
    पलक खुद कुछ समझ नहीं पाई थी।


    "मैं कुछ नहीं जानता पलक!! मैं अभी भी तुम्हें अपनाने को तैयार हूँ। यह बात जानते हुए कि तुमने मेरे विश्वास की धज्जियाँ उड़ा दी हैं। क्योंकि हम दोनों की भी सफ़ाई की नहीं, सच्चाई की ज़रूरत है!!

    अब तुम यह सोचो कि तुम्हें क्या चाहिए? मेरा साथ या फिर यह बच्चा??"
    परीक्षित के ये शब्द थे या फिर गरम पिघलता हुआ शीशा!!


    जो कि पलक के कानों तक गया था। पलक बिल्कुल घबरा उठी।
    तभी अचानक मुस्कान ने करवट बदलते हुए अपना हाथ पलक के पेट पर रख दिया। पलक ने एक नज़र मुस्कान के चेहरे पर डाली और धीरे से उसके सर पर हाथ फेरते हुए चूम लिया।


    "मेरे पास अपनी सफ़ाई में कल भी कुछ कहने को नहीं था परीक्षित!! और आज भी नहीं है।
    पर हाँ!! ज़िंदगी की यह सबसे बड़ी सच्चाई है, जिससे कि मैं मुँह नहीं मोड़ सकती। एक बीवी बेवफ़ा हो सकती है, पर एक माँ नहीं, और यह सबसे बड़ी सच्चाई है कि मुस्कान तुम्हारी हो या ना हो, मेरी बेटी है।"

    मंज़िलें भी उनकी थीं, रास्ता भी उनका था,
    एक हम अकेले थे, काफ़िला भी उनका था,
    साथ-साथ चलने की सोच भी उनकी थी,
    फिर रास्ता बदलने का फ़ैसला भी उनका था,
    आज क्यों अकेले हैं हम, दिल यह सवाल करता है,
    लोग तो उनके थे ही,
    पर क्या खुदा भी उनका था?




    जारी है....

  • 12. तेरे संग यारा - Chapter 12

    Words: 1031

    Estimated Reading Time: 7 min

    मुस्कान के जाने के बाद प्रणव का मन बहुत बेचैन हो गया था। आज ऑफिस से वह जल्दी निकल गया था, लेकिन घर जाने का मन बिल्कुल नहीं हो रहा था। वह बेमकसद सड़क पर अपनी गाड़ी दौड़ा रहा था। आंखों के आगे मसूरी ट्रिप के लम्हे दौड़ रहे थे। एमबीए करने के बाद वह लंदन से इंडिया आया था। उसके साथ उसके चार दोस्त और थे, जो अलग-अलग कंट्री से बिलॉन्ग करते थे। मिस्टर सिंह उसे जबरदस्त तरीके से लॉन्च करना चाह रहे थे, लेकिन इसी बीच उसके कुछ विदेशी दोस्तों ने इंडिया में घूमने का प्रोग्राम बनाया था।

    उसके एक फॉरेनर फ्रेंड की फाइव स्टार होटल की चेन इंडिया में भी मौजूद थी। जिसका एक नया होटल मसूरी में खुला था। अभी होटल के खुले हुए ज्यादा दिन नहीं हुए थे, लेकिन उसके चर्चे बहुत ज्यादा थे। सैलानियों को वह होटल बहुत पसंद आ रहा था। उसको अपने होटल में कुछ ऑफिशियल काम था। इसी बहाने उसने अपने सारे दोस्तों को वहाँ ले जाने का प्रोग्राम बनाया था। यह टूरिस्ट सीजन चल रहा था।

    ऐसे में उसे होटल में बुकिंग मिलना इंपॉसिबल था, लेकिन होटल का मालिक साथ होने के कारण इन लोगों को सीजन में ही वहाँ जाकर घूमने-फिरने और मस्ती करने का एक अच्छा चांस मिल रहा था। प्रणव का मन जाने का तो नहीं था, लेकिन दोस्त पीछा नहीं छोड़ रहे थे। यूनिवर्सिटी की लाइफ के बाद बस यही कुछ दिन इन लोगों को फ्री मिले थे। उसके बाद तो सबको अपने-अपने बिजनेस में डूबना था। इसलिए प्रणव ने भी अपने डैड से कुछ दिनों की परमिशन लेकर दोस्तों को ज्वाइन कर लिया।

    दो-तीन दिन तो खूब मस्ती में बीते थे। प्रणव के दोस्त ली मार्टिन ने अपने होटल की हर फैसिलिटी अपने दोस्तों को मुहैया कराई थी। लेकिन जिस सुबह इन लोगों को लौटना था, उसके पहले वाली रात को हुई मस्ती ने प्रणव की जिंदगी से मस्ती नाम के चैप्टर को ही हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिया था।

    "मानना पड़ेगा यार!! मसूरी शहर तो अपने आप में खूबसूरत है, लेकिन तुम्हारा होटल उससे भी ज्यादा खूबसूरत और तुम्हारी मेहमान नवाजी सबसे ज्यादा खूबसूरत है।"

    जिहान, जो कि सऊदी अरब का था, ने ली मार्टिन की तारीफ करते हुए कहा।

    "तो फिर मैं यह समझूँ कि तुम मुझे अगला होटल खोलने के लिए जल्दी सऊदी अरब बुलाओगे?"

    ली मार्टिन मुस्कुराते हुए बोला।

    "बिल्कुल! मुझे बस बिजनेस ज्वाइन करने दो। मैं तुम्हारे साथ कोलैबोरेट करके अपने आप को और मजबूत करना चाहूँगा।"

    जिहान ने कहा।
    यह दोनों होटल के बिजनेस में थे।

    "ठीक है! कंस्ट्रक्शन का काम मेरे को दे देना!"

    मैक ने अपना जाम आगे करते हुए कहा।

    "तुम्हारा भी ध्यान रखेंगे।"

    जिहान और मार्टिन मुस्कुराए।
    प्रणव इन लोगों की बातें सुन रहा था और धीरे-धीरे अपना ग्लास खाली कर रहा था।

    "और तू प्रणव! हम दोनों का ध्यान रखना।"

    मार्टिन और जिहान प्रणव के पास आकर बैठते हुए बोले।

    "वह कैसे?"

    प्रणव को हँसी आ गई थी। ये छुट्टियाँ मनाने आए थे और बिजनेस की बातें कर रहे थे।

    "यार तेरा फैशन इंडस्ट्रीज का इतना अच्छा बिजनेस है। तुम्हारी कंपनी देश-विदेश में बड़े-बड़े फैशन शो ऑर्गेनाइज करती है। कभी हमारे होटल की तरफ भी नज़र डाल लेना। अपना होटल और फेमस हो जाएगा। क्यों जिहान?"

    मार्टिन ने पूछा।

    "हाँ यार! लास्ट टाइम सऊदी अरब में जो फैशन वीक हुआ था, उसके सबसे बड़ी स्पॉन्सर तुम्हारी कंपनी थी और मैं खुद अपने बाबा जानी से सुना था कि हमारा होटल सिलेक्ट नहीं हुआ। इसका उन्हें बहुत अफ़सोस था। पर मुझे पता नहीं था कि वो तुम्हारे डैड हैं, वरना मैं यह मौका अपने हाथ से जाने नहीं देता!"

    जिहान ने बताया।

    "घबराओ मत! कोई भी मौका तुम दोनों के हाथ से नहीं निकलेगा। पहले मुझे बिजनेस तो ज्वाइन करने दो। पहले देख लूँ, समझ लूँ और उसके बाद ही तो कोई डिसीज़न ले सकूँगा।"

    प्रणव ने लापरवाही से कहा।

    "बिल्कुल!! तुझे दिखाने और समझाने के लिए तो मैं तुझे यहाँ लेकर आया हूँ।"

    "मतलब??"

    प्रणव समझा नहीं।

    लेकिन उसकी बात पर उसके बाकी तीनों दोस्त मुस्कुराए थे। चौथा, जो कि ली मार्टिन का ही बड़ा भाई सैम मार्टिन था, वह इस टाइम यहाँ पर नहीं था।

    "आज की रात मैंने तुम लोगों के लिए ऐसा इंतज़ाम किया है, जो कि तुम लोगों की लाइफ को और रंगीन कर देगी। जस्ट एन्जॉय ली।"

    मार्टिन ने अपना ग्लास चेयर्स के अंदाज़ में दोस्तों से टकराते हुए कहा।

    "ऐसा क्या इंतज़ाम किया है?"

    प्रणव ने पूछा।

    "वह तो तुम जब अपने सुइट के अंदर जाओगे, तब पता चलेगा। सैम उसी का प्रॉपर इंतज़ाम करने के लिए निकला है।"

    मैक ने अपनी एक आँख दबाते हुए कहा।

    मैक की बात प्रणव ने लापरवाही से अपने कंधे उचका कर सुनी। उसे क्या पता था कि रात रंगीन नहीं होने वाली थी, बल्कि उसकी बस इसी एक रात की रंगीनी! उसके आने वाले कई रातों को अंधेरे में ढकने वाली है। पछतावे के एक ऐसे अंधेरे में!! जहाँ से निकलना प्रणव के लिए मुश्किल नहीं बल्कि आज तक नामुमकिन हो रहा था।

    प्रणव कभी भी उस रात को याद नहीं करना चाहता था। अभी भी केवल उसे रात की याद आते ही बेचैन हो उठा था। उसने गुस्से में एक जोरदार मुक्का अपनी स्टीयरिंग पर मारा।

    "हाआआ!! सारी गलती मेरी है! मैं जानता था कि मेरे दोस्त कितने कमीने हैं, लेकिन फिर भी मैंने उनकी बात मानी।"

    प्रणव ने अपना सर पकड़ लिया और गाड़ी को एक साइड लगाकर ना जाने कब तक इसी पोजीशन में बैठा रहा।

    "दिल की ना सुन ये फ़कीर कर देगा,
    वो जो उदास बैठे हैं, नवाब थे कभी.."

    रात के करीब 10:00 बजे जब उसे भूख सी महसूस हुई, तब कहीं जाकर उसे समय का ध्यान आया कि वह यहाँ पर इस पोजीशन में 2 घंटे से बैठा है। वह अपनी गाड़ी किसी रेस्टोरेंट के आगे ले जाने वाला था कि जेब में रखा हुआ फ़ोन बजने लगा। दादी माँ कॉलिंग दिखा रहा था। इनका फ़ोन इग्नोर करने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता था। अनमने ढंग से प्रणव ने फ़ोन उठाकर कानों से लगा लिया।

    जारी है.....

  • 13. तेरे संग यारा - Chapter 13

    Words: 1078

    Estimated Reading Time: 7 min

    रात के करीब 10:00 बजे, भूख लगने पर उसे समय का ध्यान आया। वह दो घंटे से उस स्थिति में बैठा था। वह अपनी गाड़ी किसी रेस्टोरेंट के आगे ले जाने वाला था कि तभी रखा हुआ फोन बजने लगा।
    दादी मां कॉलिंग दिखा रहा था। अनमने ढंग से प्रणव ने फोन उठाकर कानों से लगा लिया।

    "हेलो!!"

    "तुम कहाँ हो?" फोन उठाते ही प्रणव की दादी मां मोहिनी जी ने पूछा।

    "कुछ नहीं दादी मां, बस ऐसे ही बाहर निकला हुआ हूँ! बस दस मिनट में घर पहुँचता हूँ!" प्रणव बोला।

    "उसकी कोई ज़रूरत नहीं है। अगर तुम बाहर हो तो अभी बाहर ही रहना, क्योंकि घर के अंदर तेरा बाप पूरे जलाली मूड में है। जो भी उसके सामने आएगा, तंदूर की तरह भुनकर खा जाएगा।" दादी मां ने राज़दारी से बात बताई।

    "उनका मूड तो हमेशा ही जलाली वाला रहता है, क्योंकि पूरे जल्लाद जो ठहरे!! पर आज क्यों बिना लाल कपड़ा देखे हुए ही भड़के हैं? क्योंकि जिसको देखकर वह भड़कते हैं, वह तो अभी फिलहाल घर से काफ़ी दूर है।" प्रणव ने भी उन्हीं के अंदाज़ में पूछा।

    "अब बेचारा कर भी क्या सकता है?? इस उम्र में आकर समझ में आ रहा है कि औलाद ना-फ़रमान होती है। अपनी उम्र में तो नाफ़रमानी करते वक़्त बड़े मज़े आते थे, और अब इसको इस तरह से चिल्लाते देखकर कान्हा जी की सौगंध, मुझे बड़ा मज़ा आता है।" दादी मां हल्के से हँसते हुए बोली, लेकिन साफ़ पता चल रहा था कि वह अपनी पूरी हँसी दबाने की कोशिश कर रही हैं।

    "आप भी ना दादी मां! पूरी सिंगल पीस हो!!" प्रणव को हँसी आ गई।

    "यह बात तुझे आज पता चली? तेरे दादाजी को तो पचास साल पहले ही पता चल गई थी!" मोहिनी जी ने फ़क्र से कहा। वहीं बैठे उनके पति राजीव जी ने मुस्कुराते हुए उनकी तरफ देखा।

    "पसंद-पसंद की बात होती है। मुझे हमेशा सिंगल पीस ही पसंद आता है।"

    "सो तो है! तभी तो आपका बेटा भी दुनिया का आठवाँ अजूबा, अपने नाम का एकलौता है।" मोहिनी जी ने सिर झटका।

    सारी बातचीत प्रणव को फोन के उस ओर से सुनाई दे रही थी। उसके होठों पर हल्की मुस्कुराहट थी, लेकिन दिल की बेचैनी के कारण वह सिर मसल रहा था।

    "अब उनकी औलाद ने नाफ़रमानी कर दी? सिंह मेंशन का दाना-पानी अच्छा नहीं लग रहा है क्या?? किसके दिन बोरिया-बिस्तर समेत बाहर जाने के आ गए?" प्रणव ने पूछा।

    "अरे वही है जो इस वक़्त रात के नौ बजे तक कहाँ घूम रहा है? सुनने में तो आया कि एक लड़की के साथ उसकी डेट फ़ाइनल करवाई गई थी, पर उस लड़की को आधे रास्ते में ही छोड़कर वह गाड़ी लेकर उड़ गया।" दादी मां अपने बिस्तर पर तकिया ठीक करते हुए बोली।

    "ओ हो!! यह तो बहुत बुरा हुआ। अब आगे क्या सोचा है उन्होंने?"

    "सोचना क्या है? गुस्से में सोचने-समझने की क्षमता कहाँ रहती है? बस अंगारे चबाते हुए, आग उगलते हुए ड्रैगन! अपने पूरे अवतार में नीचे ड्राइंग रूम में उसका इंतज़ार कर रहा है।"

    "तो ठीक है, करने दीजिए इंतज़ार!! आज रात को मैं घर ही नहीं आऊँगा।" प्रणव ने कहा।

    "अरे नहीं नहीं बेटा जी!! ऐसा ग़ज़ब ना करना। अगर ऐसा ग़ज़ब करोगे तो तुम्हारी इस बुढ़िया दादी को तो आज नींद ही नहीं आएगी।" दादी मां दादा जी की तरफ़ देखते हुए बोली।

    "तो आप क्या चाहती हैं मैं आज उनके गुस्से में शहीद हो जाऊँ?"

    "अरे नहीं नहीं भगवान ना करे! तुम्हारे लिए एक उपाय सूझा है। उसी को बताने के लिए तो फ़ोन किया है।" दादी मां अभी बोल ही रही थीं कि तभी दादी मां के हाथों से फ़ोन, राजीव जी ने अपने हाथों में ले लिया था।

    "मैंने तुम्हारे कमरे की बालकनी का दरवाज़ा खोल दिया है। गाड़ी को पीछे वाले दीवार से लगा देना और उसके छत पर चढ़कर इधर कूद जाना। बालकनी से हटकर सीधी रखी है। रात में स्टंट दिखाकर पाइप से चढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। चुपचाप कमरे में चले आना, क्योंकि तुम्हारे कमरे में बाहर से मास्टर ताला लगा हुआ है।" राजीव जी बोले।

    "और यह मास्टर ताला!!!" प्रणव ने पूछा।

    "तुम्हारे और तुम्हारे बाप के कर्मों की मेहरबानी है।" राजीव जी ने बताया।

    "तो फिर लगाए रहने दीजिए उन्हें मास्टर ताला! मैं आज घर ही नहीं आने वाला।" प्रणव ने मुँह बनाते हुए कहा।

    इधर से राजीव जी और मोहिनी जी "अरे सुनो तो! सुनो तो!" करते रह गए, लेकिन प्रणव ने फ़ोन काट दिया और अपनी गाड़ी अपने फ़्लैट की तरफ़ मोड़ ली।

    तीन कमरों का यह फ़्लैट उसने एक अपार्टमेंट में लिया था, जहाँ वह कभी-कभार आकर रहता था। यहाँ आकर चुपचाप उसने अपने लिए मैगी बनाई और खाकर बिस्तर पर लेट गया।

    "शादी कर लो, शादी कर लो। ऐसा लगता है जैसे ज़िन्दगी की सारी मुश्किलों की दवाई बस एक यही शादी है। क्यों नहीं कोई मुझे समझने की कोशिश करता। जब तक मैं उसे रात की सच्चाई के तहत नहीं पहुँच जाता, तब तक मैं कोई शादी नहीं करने वाला। मुझे जानना है कि आखिर उसे रात ऐसा क्यों हुआ था?"

    कुछ देर तक वह करवट बदलता रहा, लेकिन दिल के अंदर की बेचैनी इतनी थी कि नींद आने का नाम नहीं ले रही थी।

    आखिरकार उसने बाहर बालकनी में आकर सिगरेट सुलगा ली। तभी उसकी जेब में रखा हुआ उसका फ़ोन बजने लगा। अनमने ढंग से प्रणव ने फ़ोन बाहर निकाला। वह फ़ोन काटने वाला था कि अचानक से उसकी नज़र स्क्रीन पर पड़ी।

    "ली मार्टिन कॉलिंग!!"

    प्रणव की डूबती हुई आँखें किनारे को देखकर चमक गईं।

    "मैं इसे कैसे भूल गया? सारा कुछ तो इन्हीं लोगों के होटल में हुआ था।"

    लेकिन अगले ही पल उसका मुँह बन गया था, क्योंकि जब भी उसने ली से इस बारे में बात की थी, ली ने अज्ञानता ही ज़ाहिर की थी। उसके हिसाब से यह एस्कॉर्ट गर्ल्स थी।

    "सीधे रास्ते से नहीं बताते तो अब मुझे उंगली को कुछ टेढ़ा करना पड़ेगा।" प्रणव के होठों पर एक तीखी मुस्कुराहट फैली थी।

    उसने फ़ोन उठाकर कानों से लगा लिया और बिना ली की बात सुने ही कहा,

    "कल मीटिंग में मुझे मिलो। मैं तुम्हारे प्रपोज़ के लिए तैयार हूँ!" प्रणव ने कहा।

    जारी है.....

  • 14. तेरे संग यारा - Chapter 14

    Words: 1111

    Estimated Reading Time: 7 min

    पलक के घर पर सुबह-सुबह भगवान श्री कृष्ण की आरती गूंज रही थी। दोनों माँ-बेटी एक साथ कान्हा जी की आरती उतार रही थीं। आरती करने के बाद पलक ने मुस्कान के हाथ में प्रसाद रखा और मुस्कान ने झट से पलक के पैर छू लिए। उसकी इस हरकत को देखकर पलक की आँखें भर आईं। उसने मुस्कान को अपनी गोद में उठा लिया और धीरे से उसके चेहरे पर आए बालों को किनारे करते हुए उसके सर को चूमा।


    "मम्मी बोलती है कि संस्कार खून से आते हैं, तो फिर मेरी मुस्कान के संस्कार इतने अच्छे क्यों हैं?" रात बीत गई थी, पर कल रात की बातें अभी तक दिमाग से नहीं गई थीं। बस यह जिंदगी का सफ़र था, जो दिन-रात चलता ही जा रहा था और इसी के साथ-साथ सबको आगे चलना ही था।


    वह अपनी सोच में अभी और आगे बढ़ती, कि उससे पहले मुस्कान ने अपने प्रसाद में से किशमिश का एक दाना निकालकर पलक के आगे बढ़ा दिया।
    "मम्मा, तुम भी ले लो।"


    पलक ने मुस्कुराते हुए मुस्कान के हाथों से प्रसाद खा लिया।
    "अब तुम चुपचाप यहीं पर बैठना। मैं तुम्हारा नाश्ता लेकर आती हूँ। नाश्ता करके तुम्हें तैयार होना है, तुम्हें स्कूल जाना है और तुम्हें स्कूल छोड़कर मैं भी अपने ऑफिस जाऊँगी।" पलक मुस्कान को बताते हुए अपने आगे का शेड्यूल बना रही थी।


    "पर मम्मा!! रोज-रोज स्कूल जाना जरूरी है क्या?" मुस्कान ने सोचते हुए पूछा। मुस्कान की बात सुनकर पलक के होठों पर मुस्कराहट आ गई। कल रात पलक ने पूछा था,


    "रोज-रोज आइसक्रीम खाना जरूरी है क्या??" आज उसी का उल्टा सवाल पलक के सामने था।
    "बिल्कुल जरूरी होता है, अगर रोज-रोज स्कूल नहीं जाओगी, तो फिर रोज होने वाली पढ़ाई तुमसे छूट जाएगी। फिर अगले दिन तुम्हें और मेहनत करनी पड़ेगी।" मुस्कान को वहीं चेयर पर बिठाकर पलक किचन में तेजी से पराठे बनाने लगी।


    "हाँ! ये बात तो है। रोज होमवर्क मिलता है।" मुस्कान ने मुँह बनाया।


    "पर रोज स्कूल जाना कहाँ होता है? जो रोज होमवर्क मिलता है?" पलक पराठों की प्लेट लेकर पलक के सामने आई।


    "कैसे?"
    "मतलब यह कि हफ़्ते में तुम्हारी दो दिन छुट्टी होती है: सैटरडे, संडे। बाकी लोगों को तो सैटरडे को भी जाना होता है, फिर भी एक छुट्टी मिलती है संडे की।" पलक मुस्कान के सामने वाली चेयर पर बैठते हुए बोली।


    "अच्छा मम्मा! एक बात बताओ। क्या कान्हा जी भी पढ़ते थे? क्या उनको भी पढ़ने के लिए स्कूल जाना होता था?" मुस्कान का अगला सवाल हाजिर था।
    पलक ने मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिलाया और उसके लिए उसकी प्लेट में पराठा निकाला।


    "तो फिर मुझे भी उसी स्कूल में भेज दो। मैं उसी स्कूल में पढ़ूँगी। इस स्कूल में नहीं!" मुस्कान तेजी से बोली।
    "सोच लो मुस्कान! अगर मैंने तुम्हें उनके स्कूल में भेज दिया, तब तो यह जो सैटरडे-संडे की मस्ती है ना! वह भी गायब हो जाएगी।" पलक के होठों पर एक मीनिंगफुल मुस्कराहट थी।


    "वो कैसे?" मुस्कान नहीं समझी।


    "क्योंकि कान्हा जी गुरुकुल में पढ़ते थे, जैसे कि आज के बोर्डिंग स्कूल!! और अगर मैंने तुम्हें बोर्डिंग स्कूल में डाला, तो फिर वहाँ मम्मी भी नहीं मिलेगी। अब फैसला तुम्हारे हाथ में है। मम्मी के साथ रहकर इस स्कूल में पढ़ना है या फिर बोर्डिंग स्कूल में जाना है?"


    "नहीं-नहीं, मैं यहीं पर ठीक हूँ। कम से कम स्कूल से आने के बाद मम्मी तो मिलती है।" मुस्कान तेजी से बोली।


    "तो फिर अच्छे बच्चे की तरह रोज स्कूल जाओ। स्कूल में मन लगाकर पढ़ाई करो और घर आकर होमवर्क करो। वरना मैं तुम्हें बोर्डिंग स्कूल में भेजने में एक मिनट का भी समय नहीं लगाऊँगी।" पलक ने मुस्कान का टिफिन भी पैक कर दिया था।


    "हाँ! मैं पढ़ाई करूँगी। तुम मुझे बोर्डिंग स्कूल में मत भेजना मम्मा!" मुस्कान ने पलक के आसपास अपनी छोटी-छोटी बाहें लपेटते हुए कहा।
    पलक मुस्कुरा दी।


    "तुमको बोर्डिंग स्कूल में भेजकर क्या मैं अकेली रहूँगी? कभी नहीं बेटा! एक तुम ही तो हो, जो मेरा सहारा हो। वरना सबने तो मुझसे मुँह मोड़ लिया है।" पलक ने अपने मन में सोचा, लेकिन मुस्कान से कहा नहीं। पढ़ाई के लिए, मम्मी से दूर जाने का इतना डर काफ़ी था।


    "इस संडे को फिर हम घूमने चलेंगे।" पलक ने मुस्कान के सर पर हाथ रखते हुए कहा।
    मुस्कान खुश हो गई।


    इसके बाद पलक मुस्कान को लेकर अपनी स्कूटी से उसके स्कूल की तरफ़ निकल गई। पहले उसने मुस्कान को उसके स्कूल में छोड़ा और फिर अपने ऑफिस की तरफ़ चल दी।


    आज जब पलक अपने ऑफिस में पहुँची, तो सब कुछ बिल्कुल शांत था। सारी एम्पलाइज अपने-अपने डेस्क पर आते ही काम पर जुट चुकी थीं।


    "ऐसा क्यों लग रहा है जैसे कि मुझे आने में देर हो गई है? पहले ही दिन मैं अपने जॉब पर लेट तो नहीं हूँ??" पलक ने अपने हाथ में बंधी घड़ी देखी और फिर सेल फ़ोन चेक किया। उसने सामने लगी वॉल क्लॉक पर भी नज़र डाली; तीनों टाइम एक थे।


    अभी 10:00 बजने में भी पाँच मिनट कम थे, लेकिन ऑफिस का माहौल देखकर ऐसा लग रहा था कि काम शुरू हो गया है।


    "हो सकता है यहाँ काम 10:00 बजे से पहले शुरू होता हो! मैं आज कन्फर्म कर लूँगी!" पलक ने अपने कंधे उचका दिए।


    वह अपने डेस्क की तरफ़ जा ही रही थी कि अचानक रास्ते में उसे मिस्टर मलिक मिल गए।


    "थैंक यू, मिस पलक! आज आप समय से भी पाँच मिनट पहले आ गईं। मैं आपका ही इंतज़ार कर रहा था।"


    "जी, कहिए! आप मेरे साथ चलिए।" मिस्टर मलिक ने उसे अपने साथ आने का इशारा किया।
    पलक को कुछ अलग सा लगा, लेकिन वह अपना बैग संभाले मिस्टर मलिक के पीछे चल पड़ी।
    मिस्टर मलिक उसे अपने साथ लेकर लिफ़्ट के अंदर दाखिल हो गए। लिफ़्ट सीधा चौथे फ़्लोर पर जाकर रुकी।


    "आपको पता है ना कि आपने अकाउंटेंट के लिए अप्लाई किया था, लेकिन अकाउंटेंट की पोस्ट पहले ही फुलफिल हो जाने के कारण आपको सेक्रेटरी की पोस्ट के लिए अपॉइंट किया गया है?" मिस्टर मलिक ने पूछा।


    अब तो पलक इधर-उधर देखने लगी। जॉब मिलने की खुशी में उसने अपॉइंटमेंट लेटर भी नहीं देखा था और कल जब उसे उसके काम से जुड़ी चीज़ बताई जा रही थी, तो उसने समझा कि हो सकता है यहाँ अकाउंटेंट के पोस्ट पर काम ज़्यादा हो!
    पर सेक्रेटरी की बदनाम जॉब!!
    एक पल के लिए पलक का मुँह बन गया था।

    जारी है.....

  • 15. तेरे संग यारा - Chapter 15

    Words: 1049

    Estimated Reading Time: 7 min

    राजपूत हाउस
    दिल्ली


    "कल आप पलक से मिलने गई थीं ना?" नाश्ते के दौरान अभिनव सिंह राजपूत ने अपनी पत्नी सुप्रिया जी से पूछा।
    सुप्रिया जी ने अपना सर झुका लिया था, जैसे कि उनकी कोई चोरी पकड़ी गई हो।
    इस समय नाश्ते की टेबल पर केवल यही दो लोग थे। बड़ा बेटा अभिलाष ऑफिस के लिए निकल चुका था, और छोटा बेटा अभिमन्यु किसी दूसरे शहर गया था।

    "इस तरह से सर क्यों झुका रही हैं? मैंने आपको पलक से मिलने के लिए कभी मना नहीं किया है। आप पलक से मिलते रहिए। हो सके तो उसकी थोड़ी बहुत मदद भी कर दीजिए और साथ में उसे घर आने का दबाव भी बनाते रहिए।" अभिनव सिंह ने सुप्रिया जी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।


    "आपको क्या लगता है? यह सब इतना आसान है? वह बिल्कुल आपकी तरह है, एक नंबर की जिद्दी है। जो चीज एक बार ठान लेती है, बस उसे पूरा करके ही दम लेती है।" सुप्रिया जी बोलीं।


    "पर मैं किसी गलत काम के लिए हां नहीं करता।" अभिनव जी बोले।


    "क्या गलत है? क्या सही? यह फैसला कौन करेगा? आप अपनी जगह पर सही हैं। वह अपनी जगह पर सही है। आप अपनी बेटी नहीं छोड़ सकते, तो वह भी अपनी बेटी नहीं छोड़ सकती।" सुप्रिया जी ने पलक के शब्द दोहराए।


    "मैं उसकी परेशानी समझता हूँ, सुप्रिया जी! पर आप भी तो उसे समझाने की कोशिश कीजिए ना कि मुस्कान के साथ वह परीक्षित का हिस्सा नहीं बन सकती!! और एक शादीशुदा बेटी अगर अपने परिवार का हिस्सा ना हो तो फिर वह समाज का कभी हिस्सा नहीं होती।" अभिनव जी ने अपना नाश्ता रोककर अपनी आँखें बंद कर लीं और एक गहरी साँस ली।


    "समाज का हिस्सा वह बने चाहे ना बने! आपने तो उसे अपने परिवार का हिस्सा मानने से भी इनकार कर दिया है।" सुप्रिया जी अभिनव जी से अच्छी खासी नाराज़ लग रही थीं।


    "क्या आपको ऐसा लगता है कि मैं अपनी ही बेटी को अपने परिवार का हिस्सा मानने से इनकार कर सकता हूँ?" अभिनव जी ने सुप्रिया जी की तरफ देखते हुए पूछा।
    सुप्रिया जी चुप हो गईं।


    "अरे, वह केवल मेरे परिवार की नहीं, बल्कि मेरा हिस्सा है। कैसे यह बात मैं आपको समझाऊँ और अपनी बेटी को समझाऊँ? लेकिन वह जो कर रही है, सो गलत है।" अभिनव जी जाने किस उलझन में फँसे हुए थे।


    "बस, सारी चीज़ तो यहीं आकर खत्म हो जाती है कि गलत कौन है? ना आप अपनी जगह पर गलत हैं, ना आपकी बेटी अपनी जगह पर गलत है और परीक्षित तो इस मामले में कहीं है ही नहीं! तो वह गलत कैसे हो सकता है?" सुप्रिया जी टेबल पर से उठते हुए बोलीं। वे वापस अपने कमरे की तरफ जा रही थीं कि अभिनव जी ने उनका हाथ पकड़ लिया।

    "क्या कहा आपने? एक बार फिर से बोलिए।"
    सुप्रिया जी एक गहरी साँस छोड़ते हुए वापस चेयर पर बैठ गईं।


    "एक बार आप मेरे नज़रिए से समझने की कोशिश कीजिए। जब पलक और परीक्षित ही केवल हनीमून पर गए थे, उनके साथ कोई तीसरा नहीं था, तो फिर यह तीसरा आया कहाँ से? क्या आपको अपनी बेटी पर भरोसा नहीं?"


    "बात मेरी या आपके भरोसे की नहीं है, सुप्रिया जी।" अभिनव जी अभी बोल रहे थे कि सुप्रिया जी ने उनकी बात काट दी।


    "तो फिर किसके भरोसे की है? परीक्षित की!! परीक्षित के भरोसे ही तो हमने अपनी बेटी उसके साथ भेजी थी ना! और जब परीक्षित ही उसमें नाकाम रहा, तो इसमें हमारी पलक की क्या गलती? और उसमें भी परीक्षित की ऐसी शर्त!! दुनिया तो राह चलते बच्चों को अपना लेती है। जिनके बच्चे नहीं होते, वे अनाथ आश्रम से बच्चे को गोद ले लेते हैं, तो फिर मुस्कान को अपनाने में उसका कौन सा इगो हर्ट हो रहा है??" सुप्रिया जी के सवालों की लिस्ट लगातार जारी थी।
    अभिनव जी चुपचाप सुन रहे थे।


    "जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है कि हमने सारे मामले को समझने में गलती की है।" सुप्रिया जी बोलीं।
    "हाँ, यह बात हो सकती है। परीक्षित का फ़ोन आया था।" सुप्रिया जी की बात को समझते हुए उन्होंने एक नई बात बताई।


    "क्या कह रहा था वो?" सुप्रिया जी ने पूछा।


    "वर्ल्ड क्लास का जो फैशन एग्ज़िबिशन मनाली में होने वाला है, वह उसमें आ रहा है। मैं उससे बात करता हूँ। अगर वह मुस्कान को अपनाने के लिए तैयार नहीं होता, तो हमें दूसरा रास्ता देखना होगा। मैं अपनी बेटी को इस तरह से बीच रास्ते में ठोकर खाने के लिए नहीं छोड़ सकता, और एक बात भी मेरी समझ में आ रही है। मैं जानता हूँ कि मेरी बेटी बिल्कुल मेरी जैसी है और अगर मेरी बेटी गलत होती, तो अब तक अपने फैसले पर इस तरह से मज़बूती से अड़ी नहीं रहती। बात केवल परीक्षित और पलक के रिश्ते की नहीं है। इसके कारण मेरा पूरा घर बिखर रहा है, जो कि मैं अपने जीते जी नहीं होने दूँगा। आप निश्चिंत रहिए। इस बार मैं आपके और पलक के नज़रिए से ही छानबीन करवाता हूँ। कुछ नहीं तो कम से कम सच्चाई तो पता चलेगी ना!!" अभिनव जी ने मन ही मन एक ठोस निर्णय लेते हुए कहा।


    अपनी तरफ़ से उन्होंने पलक को समझाने के लिए हर संभव प्रयास कर लिए थे, ताकि पलक अपनी गलती मान ले, लेकिन पलक अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी। दूसरे, उनका छोटा बेटा! खुद उनके पलक को घर से बाहर निकालने वाले फैसले के खिलाफ़ खड़ा हो गया था। अब तो उन्हें भी अपने निर्णय पर पछतावा होने लगा था। इस कारण वे अब दूसरे एंगल से देखने के लिए मजबूर हो रहे थे।


    "वैसे यह बताइए, हमारी मुस्कान कैसी है?" अभिनव जी ने सुप्रिया जी की तरफ़ देखते हुए पूछा।
    सुप्रिया जी ने नाराज़गी दिखाते हुए मुँह फेर लिया।
    "अरे, बता भी दीजिए। भले वह परीक्षित की बेटी नहीं हो, पर हमारी पलक की बेटी है ना।"


    जवाब में सुप्रिया जी ने अपना फ़ोन खोलकर उनके आगे कर दिया, जिसमें हँसती मुस्कुराती मुस्कान की कई तस्वीरें थीं, जो शायद उन्होंने उसके पार्क में खेलते समय खींची थीं।


    जारी है....

  • 16. तेरे संग यारा - Chapter 16

    Words: 1073

    Estimated Reading Time: 7 min

    "क्या आपको पता है कि आपने अकाउंटेंट के लिए आवेदन किया था, लेकिन अकाउंटेंट की पोस्ट पहले ही भर चुकी थी? इसलिए आपको सेक्रेट्री की पोस्ट पर नियुक्त किया गया है?" मिस्टर मलिक ने पूछा।

    अब पलक इधर-उधर देखने लगी। जॉब मिलने की खुशी में उसने नियुक्ति पत्र भी नहीं देखा था। कल जब उसे उसके काम के बारे में बताया गया, तो उसने सोचा कि शायद यहाँ अकाउंटेंट का काम ज़्यादा होगा!

    लेकिन अब मिस्टर मलिक की बात सुनकर वह अलग सोच में पड़ गई। कॉरपोरेट सेक्टर में सेक्रेटरी की नौकरी कितनी बदनाम है, यह बात पलक से छुपी नहीं थी। क्या करे? क्या ना करे? जैसे झूले में पलक झूलने लगी। अपने नियुक्ति पत्र में उसने केवल वेतन देखा था। वेतन अच्छा था, पिछली नौकरी से दुगुना।

    एक तो उसे इतने बड़े शहर में नौकरी नहीं मिल पा रही थी। दूसरे, यहाँ बिना किसी सिफ़ारिश के नौकरी मिल गई थी, वह भी इतनी अच्छी तनख्वाह पर!! तो ना कहने का सवाल ही नहीं उठता था। बस बात यहीं फंस रही थी कि पोस्ट सेक्रेटरी की है। पलक ने सोचने में कुछ पल लिए और फिर बोली,

    "जी सर!"

    "ओके! कल जो आपको समझाया गया था, आज से आपको वही काम करना है।" मिस्टर मलिक पलक को अपने साथ लेकर अपने केबिन में आए।

    "हमारे सर ने आज से पहले कभी सेक्रेटरी नियुक्त नहीं किया। आपके इस पद पर आने से पहले सर का सारा काम मैं करता था, लेकिन अब आपको करना होगा। आपकी मदद के लिए मैंने पहले ही उनका शेड्यूल बना दिया है। आप इसे एक बार देख लीजिये और फिर सर को बता देना।

    सर को ब्लैक कॉफी पसंद है। उन्हें दूध पसंद नहीं! इसके अलावा, उन्हें अपनी सारी चीज़ें सही जगह पर पसंद हैं, लेकिन यह भी ध्यान रखना है कि वे कोई भी चीज़ सही जगह पर नहीं रखते। वे सब कुछ इधर-उधर रख देते हैं। उन्हें व्यवस्थित करना पड़ता है, वरना वे चिल्लाते भी हैं।" मिस्टर मलिक एक-एक करके कंपनी के मालिक के बारे में बता रहे थे।

    सब कुछ बताने के बाद उन्होंने पलक से पूछा, "मेरी सारी बात समझ गई आप?"

    "वैसे तो मैं बहुत कुछ समझ गई हूँ, लेकिन अगर बीच में कहीं गड़बड़ होगी तो मैं आपसे पूछ लूँगी।" पलक ने बिल्कुल सामान्य तरीके से कहा, लेकिन जिस मासूमियत से उसने अपना सिर हिलाया, उसे देखकर मिस्टर मलिक के होठों पर मुस्कराहट आ गई। मिस्टर मलिक 50 वर्ष के अनुभवी व्यक्ति थे। पलक को इस पद पर नियुक्त करना उन्हें समझ में नहीं आया था, लेकिन बॉस के आदेश से मजबूर थे। लेकिन अब पलक को देखकर वे अच्छे खासे सोच में पड़ गए थे।

    "आप अभी बिल्कुल बच्ची हैं, मिस पलक! न जाने क्यों ये इस दुनिया में आ गई?" मिस्टर मलिक ने बिल्कुल सच्चाई से कहा।

    पलक उदासी से मुस्कुरा दी। वह उन्हें क्या बताती कि वह न केवल इस दुनिया में आई है, बल्कि इस दुनिया की कड़वी सच्चाई भी देख चुकी है।

    "चलिए! आज से आपका काम शुरू होता है। ये लीजिये आज का शेड्यूल! सर अपने केबिन में आ चुके हैं। आप जाकर उनसे मिल लीजिये। वैसे तो हमारे सर स्वभाव से बहुत अच्छे हैं और उनका चरित्र भी बिल्कुल साफ़ है। इसलिए आप ज़्यादा चिंता मत कीजिए। ही विल कोऑपरेटिव फॉर यू। बस आप उनके गुस्से से परहेज कीजिएगा। गुस्से में उन्हें कुछ नहीं दिखाई पड़ता।" मिस्टर मलिक ने पलक के हाथ में पेपर थमाते हुए कहा। शेड्यूल का पेपर लेकर पलक उसे ध्यान से पढ़ने लगी।

    "और हाँ! यह आपकी स्पेशल नोटबुक।" अपने केबिनेट में से एक टैबलेट और पेन निकालकर टेबल पर रखते हुए मिस्टर मलिक ने कहा।

    "सर के जितने भी ज़रूरी काम हैं और जितने भी नोट वगैरह देते हैं, आप इसमें नोट कर सकती हैं। इसमें केवल ऑफिस से संबंधित चीज़ें होंगी और ऑफिस से संबंधित आर्टिकल्स ही हैं, जो मैंने पहले कर रखे हैं। एक बार जब आप फ्री टाइम में इसे देख लेंगी, तो आपको बहुत कुछ आईडिया मिल जाएगा।

    सर का केबिन पाँचवें फ्लोर पर है। चौथे फ्लोर से या फिर किसी भी फ्लोर से सीधे पाँचवें फ्लोर तक कोई लिफ्ट नहीं जाती। आपको यहाँ से वहाँ तक जाने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल करना पड़ेगा। वैसे एक स्पेशल लिफ्ट है जो केवल सर इस्तेमाल करते हैं और जब तक आपको परमिशन नहीं मिलेगी, आप उसे इस्तेमाल नहीं कर सकतीं। क्योंकि सर को अपनी पर्सनल चीज़ें किसी के साथ शेयर करना पसंद नहीं। आपका केबिन सर के बगल में है और आपके केबिन के दरवाज़े पर आपका नाम प्लेट लगा होगा।" मिस्टर मलिक ने कहा।

    पलक ने दोनों चीज़ें अपने हाथों में ले लीं।
    "थैंक यू सर!" पलक धीरे से मुस्कुराई।
    "ऑल द बेस्ट, मिस पलक सिंह राजपूत!" मिस्टर मलिक ने कहा।

    पलक धीरे-धीरे उनके केबिन से निकल गई और जाते-जाते उसने धीरे से ही केबिन का दरवाज़ा बंद किया।

    "हे भगवान! इतनी मासूम बच्ची है और इसकी ड्यूटी ड्रैकुला के पास है। बस किसी तरह से संभाल लेना कि वह इस मासूम बच्ची पर ना चिल्लाए!!" पलक को अपनी दुआओं में भेजकर मिस्टर मलिक ने अपनी कुर्सी संभाल ली। उन्हें क्या पता था कि पलक के आगे खुद प्रणव की आवाज़ नहीं निकलती।

    प्रणव कल रात को अपने फ़्लैट पर रुका था और सुबह 8:00 बजे ही वहाँ से निकलकर ऑफिस चला आया था। आज उसके ऑफिस में जल्दी आने के कारण ही यहाँ पर जल्दी-जल्दी काम शुरू हो गया था। पलक पाँचवें फ्लोर पर आकर लम्बे चौड़े गलियारे को देखने लगी। किधर जाए? समझ में नहीं आ रहा था। दोनों साइड केबिन बनाए हुए थे, पर सारे केबिन के दरवाज़े बंद थे। इसलिए सबके दरवाज़े पर नेम प्लेट पढ़ते हुए वह अपने केबिन तक आई।

    इधर प्रणव की निगाहें सीसीटीवी कैमरे पर ही लगी हुई थीं, जिसकी लाइव टेलीकास्ट उसके पीसी पर चल रही थी। पलक की हर एक हरकत पर उसकी नज़र थी। पलक के बढ़ते हुए हर एक कदम के साथ ही उसके दिल की धड़कन बढ़ रही थी।

    जलज़ला सा है दिल की गलियों में,
    शायद तेरे एहसास गुज़रे हैं इधर से ..
    अब तो देखना है जाने जाना!
    कितने एहसास बाकी हैं तेरे संग यारा!!

    जारी है....

  • 17. तेरे संग यारा - Chapter 17

    Words: 1057

    Estimated Reading Time: 7 min

    अपने केबिन पर आकर पलक ने अपने पर्स में से कान्हा जी की छोटी सी मूर्ति निकाली और टेबल पर रखी। उसने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया।
    "आपके भरोसे मैंने यह काम भी स्वीकार कर लिया है क्योंकि काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता। आगे आपकी मर्जी!"


    प्रणव का शेड्यूल और टैबलेट लेकर पलक उसके केबिन की ओर चल दी। दरवाजे पर खड़ी होकर उसने एक गहरी सांस ली।
    "चल पलक! आज से तेरा काम शुरू हुआ। हर दिन एक नया काम और एक नई परीक्षा!"


    इधर, प्रणव की नज़रें सीसीटीवी कैमरे पर लगी हुई थीं। कैमरे की लाइव टेलीकास्ट उसके पीसी पर चल रही थी। पलक की हर एक हरकत पर उसकी नज़र थी। पलक के बढ़ते हुए हर कदम के साथ उसके दिल की धड़कन बढ़ रही थी। जैसे ही उसने दरवाजे पर दस्तक सुनी, पीसी पर नज़र जमाए हुए उसने धीरे से कहा,
    "कम इन!!"


    पलक धीरे से कमरे में आई और उतने ही धीरे से दरवाजा लगाया। पर ऑटोमेटिक दरवाज़ा अपने आप लॉक हो चुका था। पलक ने एक पल के लिए पीछे मुड़कर देखा और झटके से काँप गई।
    प्रणव, जिसकी नज़र अपने पीसी पर ही लगी हुई थी, ने पलक को इस तरह काँपते हुए देखा।


    "क्या सच है क्या झूठ! कुछ समझ में क्यों नहीं आता है? तुम हर वक्त उस जगह पर मौजूद होती हो जहाँ तुम्हें होना नहीं चाहिए, और तुम्हारी हरकतें बता देती हैं कि तुम इस जगह पर असहज महसूस कर रही हो। तो फिर आई ही क्यों हो ऐसी जगह पर?" सीसीटीवी की फुटेज उसके पीसी पर चल रही थी, जिसमें पलक का चेहरा साफ दिखाई पड़ रहा था। पलक के चेहरे पर अपनी नज़र जमाए हुए प्रणव अपने मन में सोच रहा था।


    धीरे-धीरे पलक चलती हुई उसके सामने आई।
    "गुड मॉर्निंग सर!"
    प्रणव ने धीरे से सिर हिलाया और पीसी से सिर उठाते हुए पलक के चेहरे पर अपनी नज़र जमा दी। उसका चेहरा एक्सप्रेशनलेस था और उसकी आँखें पलक की आँखों में देख रही थीं; जैसे आँखों से उतरकर उसके दिल का हाल जानना चाहती हों।


    प्रणव को पूरी उम्मीद थी कि उसे यहाँ देखकर पलक चौंकेगी और उससे कुछ न कुछ सवाल ज़रूर करेगी। लेकिन पलक बिल्कुल नहीं चौंकी। उसके चेहरे पर एक सेकंड के लिए भी कोई ऐसा एक्सप्रेशन नहीं आया जैसे कि उसने पहले कभी प्रणव को देखा हो या उसे पहचानती हो! बस, उसे इस तरह देखते हुए पलक घबरा गई।


    "माय सेल्फ, पलक सिंह राजपूत। योर पर्सनल सेक्रेटरी।" अपनी फाइल में से अपना अपॉइंटमेंट लेटर निकालकर प्रणव के सामने रखते हुए पलक ने धीरे से कहा। प्रणव ने हल्के से अपना सिर हिलाया।


    उसने पलक के अपॉइंटमेंट लेटर पर अपनी निगाह डालना ज़रूरी नहीं समझा। उसकी नज़रें अभी भी पलक के चेहरे पर जमी हुई थीं, और उसके इस तरह देखने पर पलक घबरा रही थी।


    "सर, यह आज का आपका शेड्यूल है।" पलक एक-एक करके उसकी मीटिंग और काम की डिटेल उसे दे रही थी, और प्रणव ग़ायब दिमाग से उसकी बातें सुन रहा था।
    "उस रात जब तुम मेरे कमरे में आई थी, तो मुझे बस यही पता था कि तुम एक एस्कॉर्ट गर्ल हो!


    और आज जब तुम मेरे सामने खड़ी हो तो मेरी पर्सनल सेक्रेटरी बनकर!


    दोनों ही प्रोफेशन जिस कॉन्फिडेंस की मांग करते हैं, वह कॉन्फिडेंस तुम्हारे अंदर मुझे क्यों नहीं दिखता? मुझे ऐसा क्यों लगता है कि दोनों ही जगह तुम्हें जबरदस्ती धकेल कर पहुँचाया गया है, या फिर तुम्हारे चेहरे की मासूमियत तुम्हारे दिल के कालेपन को छुपा रही है?" प्रणव का दिल पलक के मासूम चेहरे को देखकर सवाल कर रहा था।
    "सर!" प्रणव को न सुनते देखकर पलक ने टोका।


    "मैं सुन रहा हूँ, आप बोलिए।" प्रणव ने कहा।
    पलक ने एक बार फिर से सब कुछ रिमाइंड कर दिया और शेड्यूल को वहीं पर उसके टेबल पर पेपरवेट से दबा दिया। प्रणव चुपचाप उसकी हर एक हरकत देख रहा था, और पलक उसके अगले ऑर्डर के लिए चुपचाप वहीं हाथ बाँधे खड़ी थी।


    "पिछले 4 साल से मैं इस पल का इंतज़ार कर रहा हूँ कि तुम कभी मेरे सामने आओ और मैं तुमसे यह पूछ सकूँ कि मेरे इतने करीब आने तक की तुम्हारी हकीकत क्या है?? और आज जब तुम मेरे इतने करीब हो, तो जाने क्यों मेरा मन उस हकीकत से नज़रें चुराकर सिर्फ़ इस हकीकत को जीना चाहता है जिसमें तुम मेरे पास हो!


    क्यों नहीं चाहता कि उस रात की परछाई मेरे इस रोशन दिन को बर्बाद कर दे? जबकि इतनी काली रातें मैंने केवल इसी रोशन दिन के इंतज़ार में गुज़ारी हैं कि तुम मेरे सामने आओ और मुझे मेरे सवालों का जवाब मिले!!" प्रणव के दिल के अंदर की बेचैनी तूफान पर थी।


    "यह सुपर मॉडल की फ़ाइल है। इसमें कुछ नई ड्रेस के पिक्चर हैं और कुछ मॉडल के पोर्टफ़ोलियो! इसको अरेंज कीजिए। आज की मीटिंग के लिए ज़रूरी है।" प्रणव ने एक फ़ाइल निकालकर पलक के आगे रखते हुए कहा। उसने जानबूझकर मार्टिन ग्रुप की फ़ाइल निकाली थी और फ़ाइल के ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में मार्टिन ग्रुप का नाम भी लिखा हुआ था; लेकिन पलक ने बिल्कुल नॉर्मली उसके हाथों से फ़ाइल ले ली और बाहर निकलने लगी।


    मुद्दत से हम इंतज़ार में थे उनके,
    वो आए और आकर चले गए,
    हमें क्या कुछ न कहना था उनसे,
    पर हम एक-टक खड़े उन्हें देखते ही रह गए!!


    "मैंने आपको जाने के लिए नहीं कहा मिस पलक! आप यहीं सोफ़े पर बैठकर अपना काम कर सकती हैं।" प्रणव ने कहा।


    पलक ने धीरे से हाँ में सिर हिलाया और फ़ाइल लेकर सोफ़े की ओर चली गई। उसने फ़ाइल खोली और उसे पढ़कर अपने हिसाब से अरेंज करने लगी। प्रणव एकटक पलक को काम करते हुए देख रहा था।


    प्रणव का दिल बेचैन होने लगा। उसे अपने सवालों के जवाब चाहिए थे, लेकिन यहाँ पर तो खुद पलक उसके सामने एक सवाल बनकर खड़ी हो गई थी। अब वह रुक नहीं पा रहा था। उसने अपनी चेयर पीछे की, अपनी जगह से उठा, और लंबे-लंबे साँस भरता हुआ पलक के सामने आकर खड़ा हो गया।


    जारी है...

  • 18. तेरे संग यारा - Chapter 18

    Words: 1098

    Estimated Reading Time: 7 min

    प्रणव का दिल बेचैन होने लगा। उसे अपने सवालों के जवाब चाहिए थे, लेकिन यहाँ पलक खुद उसके सामने एक सवाल बनकर खड़ी हो गई थी। अब प्रणव से रुका नहीं जा रहा था। उसने अपनी चेयर पीछे की, अपनी जगह से उठकर खड़ा हुआ और लंबे-लंबे क़दम बढ़ाते हुए पलक के सामने आकर खड़ा हो गया।

    अपने काम में डूबी हुई पलक ने जब अपना सिर उठाकर देखा, तो सामने प्रणव खड़ा था। वह झटके से पेपर और पेन छोड़कर खड़ी हो गई।

    लेकिन उसके पैर कांप रहे थे। वह प्रणव से पूछना चाहती थी, "सर, क्या कोई प्रॉब्लम है?" लेकिन आवाज गले में ही दम तोड़ रही थी। तभी दरवाजे पर नॉक हुआ।

    पलक की नज़र दरवाजे की तरफ घूम गई। वहीं प्रणव के चेहरे पर एक नागवारी सी दिखाई पड़ी। उसके केबिन में बिना बुलाए कोई नहीं आता था, तो फिर कौन था दरवाजे पर?

    "यस, कम इन!" प्रणव ने कहा।

    दरवाजा झटके से खुला और सामने मिस्टर प्रथम सिंह खड़े थे। इन्हें देखकर प्रणव के माथे की शिकन और गहरी हो गई।

    "पापा आप यहां पर?" अपने दोनों हाथ पेंट की जेब में फंसाए हुए, प्रणव ने उनसे पूछा। मिस्टर प्रथम सिंह तीखे मुस्कुरा दिए।

    "जब बेटा इतना काम में बिजी हो जाए कि उसे दो मिनट घर आने की फुर्सत न मिले, तो बाप को ऑफिस आना ही पड़ता है!"

    प्रणव अपना चेहरा इधर-उधर घुमाने लगा। वह समझ रहा था कि मिस्टर सिंह यहां पर किसलिए आए होंगे? लेकिन वह पलक के सामने ऐसी बातों से फिलहाल बचना चाहता था। जबकि मिस्टर सिंह की नज़र उसके ऊपर लगातार बनी हुई थी। उन्होंने अभी पलक को नहीं देखा था क्योंकि पलक प्रणव के लंबे-चौड़े वजूद में पूरी तरह से पीछे छिपी हुई थी।

    "मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। क्या हम बैठकर बात कर सकते हैं?" तुरंत ही मिस्टर सिंह के एक्सप्रेशन बदल गए थे।

    "बिना ज़रूरी बात के तो आप यहां तक आने वाले नहीं हैं। कहिए, क्या कहना है?" प्रणव ने भी बिल्कुल ठंडे एक्सप्रेशन के साथ कहा।

    मिस्टर प्रथम सिंह ने उसकी इस बदतमीजी को नज़रअंदाज़ करते हुए उसे उसकी चेयर तक चलने के लिए इशारा किया।

    प्रणव के हटते ही मिस्टर सिंह की नज़र पलक पर गई।
    "तुम यहां पर?" मिस्टर सिंह ने पलक को तुरंत पहचान लिया था और पलक ने भी उनके सामने हाथ जोड़ दिए।
    "खुश रहो बेटा। कैसी हो?"
    "मैं अच्छी हूँ!" पलक हल्के से बोली।

    मिस्टर सिंह ने आँखों ही आँखों में प्रणव से पलक की यहां मौजूदगी का कारण जानना चाहा, लेकिन इसे इग्नोर करते हुए प्रणव अपनी चेयर की तरफ बढ़ गया था।

    "आप अपना काम कीजिए, मिस पलक!" जाते-जाते प्रणव ने उसे बैठकर अपना काम करने के लिए कहा। पलक चुपचाप अपनी जगह पर बैठ गई।

    "नहीं, इनको जाने के लिए बोलो। मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।"

    "आपकी जो भी बात करनी है, आप इनके सामने भी कह सकते हैं।" प्रणव ने दो टूक कहते हुए अपनी नज़र अपने पीसी पर जमा ली थी।

    मिस्टर सिंह समझ गए कि अब इस पर कुछ असर नहीं होगा, इसलिए उन्होंने अपनी बात शुरू कर दी।

    "मैंने जिस चीज़ को सोचकर तुम्हारे हाथों में सिंह फैशन की बागडोर सौंपी थी, मुझे गर्व है कि तुमने मेरी हर एक उम्मीद पूरी की है। फैशन इंडस्ट्री में तुमने अपना एक अलग मुकाम बनाया है। इसके अलावा, जो तुम होटल बिज़नेस में जाना चाहते हो, वह भी सही है!

    लेकिन आज जो मीटिंग होने वाली है, वह वर्ल्ड क्लास फैशन शो को लेकर होने वाली है। मुझे लगता है कि इस मामले पर तुम्हारे ऊपर दोहरी ज़िम्मेदारी पड़ने वाली है क्योंकि इस बार हम केवल फैशन शो ऑर्गेनाइज़ नहीं कर रहे हैं, साथ ही होटल का भी मैनेजमेंट हमें देखना है।"

    "कहना क्या चाहते हैं आप? साफ़-साफ़ कहिए ना! मुझे मेरा काम समझ आता है।" प्रणव ने अपना लैपटॉप बंद करते हुए कहा।

    "मैं तुम्हारी इस सिलसिले में मदद करना चाहता हूँ।" मिस्टर सिंह बोले।

    "वह कैसे?"

    "तुमने होटल बिज़नेस में नया-नया क़दम रखा है और वह कुछ ज़्यादा ही ध्यान माँग रहा है। ऐसे में मैं चाहता हूँ कि तुम अपने काम पर ध्यान दो और फैशन डिपार्टमेंट अपनी सेक्रेटरी के ज़िम्मे छोड़ दो।" मिस्टर सिंह बोले।

    "यह चीज़ मुझे भी समझ में आती है।" प्रणव ने मुँह बनाया।

    "तो अगर समझ में आती है, तो अब तक कोई सेक्रेटरी क्यों नहीं अपॉइंट की?" मिस्टर सिंह ने पूछा। जवाब में प्रणव ने एक गहरी साँस छोड़ी।

    "खैर छोड़ो! इस बात को। मिस्टर मलिक से यह नहीं होने वाला। मैं तुम्हारे लिए एक नई सेक्रेटरी अपॉइंट की है। मिल लो उससे! उसका फैशन इंडस्ट्री में अच्छा-ख़ासा छह साल का एक्सपीरियंस है। वह तुम्हें शो ऑर्गेनाइज़ेशन में मदद कर सकती है। मिस परिधि, प्लीज़ कम!!" मिस्टर सिंह ने आवाज़ लगाई।

    तभी एक चौबीस साल की लड़की, पेंसिल हील की सैंडल पहने हुए और ब्लैक वन-पीस शॉर्ट ड्रेस में, दरवाजे पर आकर खड़ी हुई। जिसे देखकर ही प्रणव की आँखें छोटी हो गईं।

    यह वही सुपर मॉडल थी जिसको कल प्रणव के साथ डेट के लिए मिस्टर सिंह ने चुना था।

    "मैंने आपसे कहा था क्या कि मुझे सेक्रेटरी की ज़रूरत है?" प्रणव ने मिस्टर सिंह से पूछा। मिस्टर सिंह ने इनकार में सिर हिला दिया।

    "तो फिर इन्हें लेकर वापस घर चले जाइए, मुझे इनकी कोई ज़रूरत नहीं है।" प्रणव ने बिल्कुल दो टूक कहते हुए बात को ख़त्म किया।

    "प्रणव, बात को समझने की कोशिश करो। फैशन इंडस्ट्रीज़ में केवल हार्ड वर्किंग नहीं, बल्कि प्रेजेंटेशन भी चलता है और मिस परिधि की प्रेजेंटेशन हमेशा ही अच्छी रहती है। तुम्हें इससे बहुत ज़्यादा मदद मिलेगी।" मिस्टर सिंह प्रणव को समझाने की कोशिश कर रहे थे। तभी परिधि अपनी हाई हील की सैंडल खटखटाते हुए केबिन के अंदर आई। उसने एक नज़र सोफ़े पर बैठकर काम करती हुई पलक पर डाली, जो कि अपने काम में इस तरह मशगूल थी कि जैसे यहाँ होकर भी नहीं थी।

    पर परिधि उसकी ड्रेस सेंस को देखकर कुटिलता से मुस्कुरा दी। पलक ने इस समय चिकन का व्हाइट कुर्ता और जींस पहन रखा था। अपने इस रूप में भी पलक बिल्कुल डिसेंट लग रही थी, लेकिन परिधि की नज़रें उसके ऊपर इस तरह जमी थीं जैसे कि वह पलक का मज़ाक उड़ा रही हो। उसकी इस मुस्कुराहट ने तो प्रणव के तन-बदन में जैसे आग लगा दी थी।

    जारी है....

  • 19. तेरे संग यारा - Chapter 19

    Words: 1164

    Estimated Reading Time: 7 min

    प्रणव ने परिधि को ध्यान से देखा। उसकी नज़रें पलकों पर टिकी हुई थीं।

    "तो इसका नाम परिधि है!" प्रणव ने मन ही मन सोचा। यह वही लड़की थी जिसकी डेट मिस्टर प्रथम सिंह ने कल प्रणव के लिए तय की थी। कल परिधि का व्यवहार, उसकी मुस्कान—याद आते ही प्रणव की आँखें छोटी हो गईं। और फिर, जिस तरह से वह कुटिल मुस्कान के साथ पलक की ओर देख रही थी, उसे देखकर तो जैसे उसके तन-बदन में आग लग गई थी।


    "सॉरी डैड! मुझे आपकी पसंद बिल्कुल नहीं पसंद।" प्रणव ने कहा।
    "क्यों?" मिस्टर प्रथम सिंह हैरान थे।


    "क्योंकि मेरे पास पहले से ही एक परफेक्ट सेक्रेटरी है। जो फैशन शो के साथ-साथ कंस्ट्रक्शन का भी ज्ञान रखती है। साथ ही, उसे यह भी पता है कि दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। लेकिन मिस परिधि को देखकर लग रहा है कि उनका सामान्य ज्ञान भी कम है।

    बेहतर होगा कि मिस परिधि अपने सामान्य ज्ञान में सुधार करें और इस फैशन शो इवेंट पर ध्यान केंद्रित करें। वरना, तेज रफ्तार गाड़ी में अचानक ब्रेक लगने पर सिर्फ़ आवाज़ ही नहीं, बल्कि ब्लास्ट का खतरा भी होता है।"


    यह पहला पैराग्राफ अपने पिता से कहकर, दूसरा पैराग्राफ उसने परिधि के चेहरे की ओर देखते हुए कहा। उसने क्या कहा था? सीधे-सीधे बेइज़्ज़ती कर डाली थी, और साथ में चेतावनी भी दे दी थी कि अगर परिधि ने अपने व्यवहार में सुधार नहीं किया, तो प्रणव उसके करियर को समाप्त करने में एक पल भी नहीं सोचेगा।


    अपनी यह खड़ी-खड़ी बेइज़्ज़ती सुनकर परिधि चिढ़ गई। एक सुपरमॉडल, जिसे दिन-रात अपनी तारीफ़ सुनने की आदत थी! वह इतना कुछ बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। वैसे भी, कल शाम की बेइज़्ज़ती वह भूली नहीं थी। जख्म पर एक और जख्म लग गया था। परिधि कुछ बोलने ही वाली थी कि मिस्टर सिंह ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया।


    "क्या मैं जान सकता हूँ कि तुम्हारी परफेक्ट सेक्रेटरी कौन है?" मिस्टर सिंह ने पूछा।
    प्रणव ने हाथ से पलक की ओर इशारा किया।
    "मिस पलक सिंह राजपूत!"

    अपना नाम सुनकर पलक ने धीरे से अपना चेहरा ऊपर उठाया। मिस्टर सिंह उसकी ओर देख रहे थे। पलक को देखकर उनके मन में संतोष सा उतर आया। उन्होंने अपनी आँखें झपकाईं। पलक हल्के से मुस्कुराई।



    "कुछ नहीं बेटा! तुम अपना काम करो।" मिस्टर सिंह ने कहा।


    "हर बार की तरह, तुम्हारे फैसले ने इस बार भी मुझे हैरान कर दिया है। तुम बिल्कुल सही कह रहे हो। इतने बड़े इवेंट को लेकर हम रिस्क नहीं ले सकते। परिधि को भले ही फैशन इवेंट में भाग लेने का ज्ञान ज़्यादा हो, लेकिन इन इवेंट्स को कैसे आयोजित किया जाता है, इसके बारे में पलक को ज़्यादा अनुभव है, और कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में तो उससे ज़्यादा ही।


    मैं पलक को पहले से ही अच्छी तरह जानता हूँ। उसके फैसले अद्भुत होते हैं।
    चलो, कोई बात नहीं! तुम आज की मीटिंग देख लो। उसके बाद आगे की बात करते हैं।" मिस्टर सिंह अपनी जगह से उठकर बाहर निकलने लगे और जाते-जाते परिधि को अपने साथ आने का इशारा किया। परिधि पलक पर एक घूरती नज़र डाल ही रही थी कि उसके कानों में प्रणव की आवाज़ पड़ी।


    "मिस परिधि, आप अपनी ड्रेस लिस्ट और मॉडल की लिस्ट रिसेप्शन से ले लीजिये। उसके बाद हमें आज मीटिंग में भी चलना है। मैं काम में लापरवाही पसंद नहीं करता हूँ।"


    "ओके सर!" मुँह बनाते हुए परिधि निकल गई।
    "मिस पलक, आपको जो मैंने शॉर्टलिस्ट करने के लिए दिया था, हो गया?" कुछ देर बाद प्रणव ने पलक से पूछा।
    "यस सर!" फ़ाइल के पन्ने समेटते हुए पलक उठकर खड़ी हुई।


    "That's good! मीटिंग का समय भी हो चुका है, चलिए।" प्रणव ने पलक को अपने साथ चलने का इशारा किया। पलक एक पल के लिए सोच में पड़ गई। इससे पहले भी जहाँ उसने काम किया था, केवल ऑफिस जॉब था! इस तरह बाहर आना-जाना उसकी ड्यूटी में शामिल नहीं था। पर अब उसे मीटिंग के लिए बाहर भी जाना पड़ रहा था और उसमें भी सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात यह थी कि शेड्यूल अरेंज करते समय उसने मीटिंग का स्थान देखा था।


    पलक वहाँ बिल्कुल भी जाना नहीं चाहती थी।
    "क्या हुआ? क्या सोच रही हो? मैं इंतज़ार नहीं करूँगा। जल्दी करो।" दरवाज़े पर खड़े होकर प्रणव ने कहा।


    "ओके सर!" मन मारकर पलक प्रणव के पीछे चल दी।
    पाँचवें फ्लोर से चौथे फ्लोर पर आने के लिए उसने सीढ़ियों की ओर अपने पैर बढ़ाए थे कि प्रणव ने उसका हाथ पकड़ लिया।


    "उधर किधर जा रही हो?" 'आप' से 'तुम' तक का सफ़र मिनटों में तय हो चुका था।
    यह बात नोटिस करते ही पलक के प्राण सूखने लगे। उसने सर झुकाए हुए ही जवाब दिया, "सर, नीचे!"


    "इस फ्लोर पर लिफ़्ट भी आती है!" पलक का हाथ पकड़े हुए प्रणव अपनी पर्सनल लिफ़्ट में दाखिल हो गया। पर्सनल लिफ़्ट सीधे नीचे आई। दरवाज़े के खुलते ही सामने परिधि और दो सिक्योरिटी गार्ड मौजूद थे।


    प्रणव को अपने सामने देखकर परिधि ने मुस्कुराते हुए उसे अभिवादन किया। अब वह अपनी छवि प्रणव के सामने और खराब नहीं करना चाहती थी। उसे लगा था कि प्रणव अकेला ही आया है, लेकिन जब उसकी नज़र प्रणव के पीछे छुपी पलक पर पड़ी तो उसकी आँखें फिर से छोटी हो गईं।


    "यह दो कौड़ी की लड़की, तो भूतनी की तरह सर से चिपकी पड़ी है!"
    पलक की नज़र जब परिधि पर पड़ी तो उसने देखा कि परिधि की नज़र उसी पर जमी हुई है, और जब उसने उसके नज़रों के कोण को देखा तो पाया कि प्रणव ने अभी तक उसका हाथ पकड़ रखा है। पलक ने हल्के से अपना हाथ प्रणव के हाथ से निकाला।



    "मिस पलक, आप मेरे साथ आईये और मिस परिधि, आप पीछे वाली गाड़ी में!" अपने दोनों हाथ पेंट की जेब में डालकर प्रणव आगे अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गया।
    "यस सर!" पलक और परिधि के मुँह से एक साथ निकला। वरना, इसके पहले परिधि घूरती और जलती हुई नज़रों से पलक की ओर देख रही थी और पलक अपने आप में सिमट रही थी। यह जंग प्रणव की आँखों से छुपी हुई नहीं थी।


    दोनों एक साथ ही आगे बढ़ीं, लेकिन पीछे वाली गाड़ी का नाम सुनते ही परिधि का गुस्सा और बढ़ गया। उसने जानबूझकर अपने कंधे से पलक को ऐसा धक्का दिया कि पलक के बाल मुँह पर गिर गए। पलक की आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया।


    तभी अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसकी आँखों के आगे हथेली का वही काला तिल लहराया हो!!!



    जारी है.....

  • 20. तेरे संग यारा - Chapter 20

    Words: 1104

    Estimated Reading Time: 7 min

    पलक और परिधि दोनों एक साथ आगे बढ़ीं, लेकिन पीछे वाली गाड़ी का नाम सुनते ही परिधि का गुस्सा और बढ़ गया था। उसने जानबूझकर अपने कंधे से पलक को इतना जोरदार झटका दिया कि पलक के मुंह के बाल गिरने लगे। पलक की आंखों के आगे अंधेरा छा गया था।

    तभी अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसकी आंखों के आगे हथेली का वही काला तिल लहरा रहा हो।

    पलक का दिमाग सुन हो गया। कैसे भूल सकती थी वह यह तिल?

    यही तो उसे बहुत कुछ याद दिलाता था और सबसे बड़ी बात यह थी कि मुस्कान की बाएँ हाथ की हथेली पर भी ठीक इसी जगह यह तिल था।

    अभी वह कुछ कह पाती या सुन पाती, उसके पहले उसके कानों में प्रणव की आवाज सुनाई पड़ी।

    "मिस पलक, आर यू ओके?" प्रणव ने उसे अपने दोनों हाथों से पकड़कर सीधा खड़ा कर दिया था।

    पलक ने धीरे से हाँ में सिर हिलाया।

    "तुम अंदर चलकर गाड़ी में बैठो। मैं अभी आता हूँ।" लंबे-लंबे डाँट भरता हुआ प्रणव सीधे परिधि के सामने खड़ा हुआ।

    "फाइल दो!" गुस्से में प्रणव सारे लिहाज भूल गया था। प्रणव को इतने गुस्से में देखकर परिधि एक पल के लिए शॉक्ड हो गई। फिर उसने धीरे से कहा,
    "मैंने कुछ नहीं किया।"

    "मैं यह नहीं पूछ रहा हूँ कि तुमने क्या किया? मैंने देखा है कि तुमने क्या किया है। चुपचाप फाइल दो।" प्रणव ने हाथ बढ़ाकर परिधि के हाथों से लगभग फाइल छीन ली थी।

    "अब तुम हमारे साथ मीटिंग में नहीं जाओगी। जाओ ऑफिस में बैठकर जो डिजाइन तुमने फाइनल किए हैं, उनकी फिटिंग देखो।" प्रणव फाइल लेकर पीछे पलट गया।

    "पर सर!" परिधि पीछे से चिल्लाई।

    "मिस परिधि! तुम्हें एक बार में सुनाई नहीं पड़ता। मैंने कहा ना कि अब तुम हमारे साथ नहीं जा रही हो। इसके पहले कि मैं तुम्हारी मॉडलिंग एजेंसी के साथ अपने सारे कांटेक्ट खत्म कर दूँ और तुम मेरी नज़रों से ओझल हो जाओ, आउट!!" प्रणव ने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा।

    उसके गुस्से से परिधि सहम गई थी। वह जानती थी कि गुस्से में प्रणव ऐसा कर सकता था, लेकिन अगर उसने मॉडलिंग एजेंसी के साथ कांटेक्ट खत्म किया तो मॉडलिंग एजेंसी परिधि पर अच्छा-खासा जुर्माना भी लगा सकती थी। मजबूरी में, अपने मन में पलक को कोसते हुए, वह पीछे मुड़ गई।

    कुछ देर बाद पलक और प्रणव राजपूत ग्रुप ऑफ़ होटल के एक फाइव स्टार होटल में पहुँचे। गाड़ी जैसे ही होटल के दरवाजे पर रुकी, पलक ने अपने हाथों में ली हुई फ़ाइल को मज़बूती से पकड़ लिया, जैसे नीचे उतरने की हिम्मत जुटा रही हो। जहाँ नहीं आना चाहती थी, वहाँ आ चुकी थी और अब यहाँ मौजूद लोगों का सामना करने से कतरा रही थी।

    तब तक प्रणव अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल चुका था।

    "मिस पलक, गाड़ी में ही रहने का इरादा है या बाहर भी आओगी?" प्रणव ने पलक के साइड से बाहर ही गाड़ी के शीशे की तरफ़ झुकते हुए पूछा।

    "यस सर!" पलक तेज़ी से गाड़ी से उतरी। पलक को देखते ही ड्यूटी पर मौजूद सिक्योरिटी गार्ड ने एक जोरदार सैल्यूट मारा, जिसको देखकर प्रणव के होठों पर एक तीखी मुस्कराहट फैल गई थी। प्रणव के साथ पलक रिसेप्शन पार करते हुए ऊपर मीटिंग हॉल की तरफ़ जा रही थी। जितने लोगों ने पलक को वहाँ पर देखा, सब एक खुशगवार हैरत से भर गए थे।

    कुछ सर झुकाते हुए उसे विश भी कर रहे थे, जबकि पलक का सर बिल्कुल नीचे झुका हुआ था। प्रणव जानता था कि पलक इस होटल के मालिक की बेटी है, लेकिन जानबूझकर उसने पलक को सताने के लिए उसकी तरफ़ झुकते हुए पूछा,
    "लगता है कि यहाँ पर तुम्हारा आना-जाना काफी है! लगभग हर एक स्टाफ़ तुमको पहचानता है।"

    पलक ने धीरे से सिर उठाया, लेकिन जवाब में कुछ नहीं कहा।

    "समझ सकता हूँ। तुम्हारा काम ही ऐसा है कि हर तरह की मीटिंग के लिए इस होटल में आना होता ही होगा।" कहते हुए प्रणव ने मीटिंग रूम का दरवाज़ा खोल दिया।

    पलक उसके शब्दों को लेकर सोच में पड़ गई थी। किस तरह की मीटिंग के लिए?

    दोनों मीटिंग रूम में पहुँच चुके थे। वहाँ और बहुत से जाने-माने बिज़नेसमैन थे, और उनमें अभिलाष सिंह राजपूत के साथ उनके पिता अभिनव सिंह राजपूत भी मौजूद थे। प्रणव के साथ उन्होंने पलक को देखकर एक-दूसरे की तरफ़ देखा और फिर पलक की तरफ़ देखने लगे। दोनों के चेहरे इस समय एक्सप्रेशनलेस थे, लेकिन आँखों से साफ़ पता चल रहा था कि शायद उन्हें भी इस चीज़ की जानकारी नहीं थी कि पलक ने सिंह ग्रुप ज्वाइन कर लिया है।

    प्रणव अपनी चेयर पर बैठ गया और पलक उसके पास ही खड़ी हो गई। अभी मीटिंग शुरू होने में करीब तीन मिनट का समय था, इसलिए सारे बिज़नेसमैन आपस में बात कर रहे थे और कुछ और के आने का इंतज़ार कर रहे थे। बीच-बीच में पलक अभिलाष की तरफ़ देख रही थी, लेकिन अभिनव जी की तरफ़ वह जानबूझकर अपनी नज़र नहीं डाल रही थी।

    उसकी ऐसी हरकत देखकर अभिनव जी के चेहरे पर एक हल्की मुस्कराहट आ गई। बेटी नाराज़ थी और अपनी नाराज़गी इसी तरह से जता रही थी, लेकिन बिना किसी की नज़रों में आए हुए उन्होंने अपनी मुस्कराहट अपने होठों में ही दबा ली।

    तभी अचानक से मीटिंग रूम का दरवाज़ा खुला और सैम मार्टिन, ली मार्टिन और जिहान अफरीदी दाखिल हुए।

    प्रणव को यहाँ पर मौजूद देखकर इन तीनों दोस्तों के होठों पर एक जानी-पहचानी मुस्कराहट खेल गई थी। मीटिंग के प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए चारों एक-दूसरे के साथ काफी गर्मजोशी से गले मिले, लेकिन अपने दोस्तों से हाथ मिलाते वक़्त प्रणव की नज़र पलक के चेहरे पर ही बनी हुई थी।

    वह पलक के चेहरे पर कुछ जाने-पहचाने एक्सप्रेशन ढूँढना चाहता था। उसे पूरी उम्मीद नहीं, बल्कि पूरा विश्वास था कि पलक इन तीनों में से किसी न किसी को तो जानती ही होगी, लेकिन पलक चुपचाप निर्विकार भाव से वहीं पर खड़ी थी, जैसे इन तीनों को पहचानती भी न हो! और वहीँ मार्टिन ब्रदर्स के साथ-साथ जिहान ने भी कुछ ऐसा शो नहीं किया, जैसे वह पलक को पहले से जानता हो।

    प्रणव सोच में पड़ गया। आखिर पलक के इस मासूम चेहरे के पीछे की हकीकत क्या है? दिल जो कहता था, उसे दिमाग मानने से इनकार कर देता था, और दिमाग की किसी भी दलील पर दिल बिल्कुल भरोसा नहीं करना चाहता था।


    बेकसूर कोई नहीं इस ज़माने में,
    बस सबके गुनाह उजागर नहीं होते..||

    जारी है....