ये कहानी हाॅट और ओपन रोमांस कि हैं, शगुन, नीली आंखों वाली बल की खूबसूरत नवविवाहिता, एक अधूरी जिंदगी जी रही है—जहां उसका पति माधवन उसकी भावनाओं और इच्छाओं को नज़रअंदाज़ करता है। एक दिन, शगुन की नजर पड़ती है अपने ही घर में रह रहे प्ले बॉय आदिल पर, ज... ये कहानी हाॅट और ओपन रोमांस कि हैं, शगुन, नीली आंखों वाली बल की खूबसूरत नवविवाहिता, एक अधूरी जिंदगी जी रही है—जहां उसका पति माधवन उसकी भावनाओं और इच्छाओं को नज़रअंदाज़ करता है। एक दिन, शगुन की नजर पड़ती है अपने ही घर में रह रहे प्ले बॉय आदिल पर, जो अपनी गर्लफ्रेंड के साथ ऐसा जुनूनी प्यार करता है, जैसा शगुन ने केवल किताबों में पढ़ा था। हर सीन में तड़प, ख्वाहिश, और वर्जनाएं टूटती हैं। क्या शगुन अपने भीतर की आग को बुझा पाएगी या सब कुछ और भी भड़क उठेगा? **एक डार्क, बोल्ड और इमोशन से भरी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की कहानी।**
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Chapter 1
इंदौर, रात 10 बजे , एक सेक्सी काले रंग की नाइटी में लिपटी एक लड़की ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी थी। उसकी नीली आंखें आईने में खुद को निहार रही थीं आज वो खुद को किसी फैंटेसी नॉवेल की हीरोइन से कम नहीं समझ रही थी। उसके लम्बे और घने बाल खुले हुए थे, होठों पर हल्की सी रेड वाइन लिपस्टिक, और आंखों में काजल की गहराई। बिस्तर पर गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखरी पड़ी थीं, जैसे आज की रात के लिए सजाया गया कोई ख्वाब।
तभी कमरे का दरवाज़ा खुलता है अंदर एक लंबा, अच्छी बॉडी वाला, हल्की दाढ़ी वाला आदमी दाखिल होता है, हल्की मुस्कान और गहरी नज़र के साथ। वो धीरे से पीछे से उस लड़की को पीछे से बांहों में भर कर मदहोश भरी आवाज़ में बोला, "शगुन डार्लिंग…आज रात मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं हूँ। आज तुम्हें बहुत सताने वाला हूं, "
शगुन की सांसें तेज हो गई। उसकी आंखें अपने आप बंद हो गई , जैसे यही पल उसकी चाहत का था। "तो किसने कहा तुम्हें छोड़ने को?" शगुन मुस्कुरा कर जवाब देती है, "मैं खुद चाहती हूँ, आज तुम मुझे तोड़ दो…" उस आदमी का एक हाथ शगुन के पेट से नीचे की ओर फिसल रहा था, शगुन उस आदमी के हाथ को अपनी लोअर बाॅडी पर महसूस करके गहरी सांसें लेने लगती हैं|
शगुन के चेहरे के एक्सप्रेशन देखकर वो आदमी को सफा पता चल रहा था, शगुन ये सब एंजॉय कर रही हैं, शगुन गहरी सांसें लेते हुए बोली,"म.... माधवन, अह्ह्ह्ह..." माधवन शगुन का पति, और इनकी शादी को छे महीने ही हुए थे|
माधवन शगुन की कमर को और कस कर पकड़ लेता है, और शगुन को गोद में उठा लेता है। माधवन ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "अब ज्यादा बोलना मत… सीधे बेड पर ले चलता हूँ," शगुन उसके सीने से सटी हुई थी। गुलाब की पंखुड़ियों के बीच माधवन उसे लेटाता है और उसकी गर्दन पर होठ रख देता है।
उसका स्पर्श गर्म था, होठ नर्म। शगुन के बदन में कंपकंपी सी दौड़ गई। माधवन शगुन के पैर पर किस करते हुए ऊपर की ओर बढ़ रहा था, शगुन अपनी मुट्ठी में गुलाब की पंखुड़ियों को भर कर मदहोश भरी आवाज़ में बोली," माधवन प्लीज़ ऐसे मत तड़पाओ," माधवन तिरछी मुस्कान मुस्कुराते हुए, उसके थाई पर किस करते हुए आता हैं, और ऊपर आ जाता हैं|
माधवन एक पल ठहर कर शगुन का खूबसूरत बदन देखता हैं , शगुन उस ब्लैक नाइटी में बहुत ही हाॅट एंड सेक्सी लग रही थी , माधवन का अब खुद पर कंट्रोल नहीं रहा, और उसने शगुन की नाइटी फाड़ कर उसके बदन से अलग कर दी, और शगुन की मीठी मदहोश भरी चीख कमरे में गूंज गई|
इस पल शगुन माधवन के सामने अपनी ब्लैक कलर की नेट वाली इनवायर में थी , जो पहना ना पहना, एक बराबर था, माधवन के होंठों पर तिरछी मुस्कान आ गई, उसने शगुन के कान में गर्म सांसें छोड़ते हुए बोला," शगुन डार्लिंग, you look ब्यूटीफुल," शगुन गहरी सांसें ले रही थी , जिसके कारण उसके उभार ऊपर नीचे हो रही थी , जो माधवन को अपनी ओर अट्रैक्ट कर रहे थे , माधवन शगुन को इंटेंस नज़रों से देखा रहा था, और अगले ही पल माधवन शगुन के कांपते होठों को दिवानों की तरह चूमने लगता हैं |
माधवन के हाथ लगातार शगुन की खूबसूरत बदन पर चल रहे थे , वही शगुन के हाथ माधवन के बालों में चल रहे थे , माधवन शगुन को डिप किस कर रहा था , वही 25 मिनट की लम्बी किस के बाद माधवन शगुन के होंठों को छोड़ कर,उसकी गर्दन पर किस और बाइट करने लगता हैं, वही शगुन लम्बी - लम्बी सांसे ले रही थी , तो दूसरी ओर माधवन उसके उभारो पर बाइट कर रहा था, शगुन सेक्सुअल वॉइस में माधवन से बोली "जानूं अह्ह्ह्ह..... प्लीज़ बाइट मत.... आईईईई....करो"
शगुन की बात सुनकर माधवन अपनी गर्म सांसें उसकी गर्दन पर छोड़ते हुए बोला ," डार्लिंग ,ये स्वीट टॉर्चर तो अब तुम्हें पुरी रात झेलना ही पड़ेगा " माधवन शगुन के कोलर बोन पर किस और बाइट करते हुए , उसके उभार की ओर बढ़ गया , माधवन शगुन के उभारों को प्रेस करता हैं , जिससे शगुन की लगातार अह्ह्ह्ह... निकल रही थी , फिर माधवन शगुन को पलट कर उसकी गोरी पीठ पर किस और बाइट करते हुए नीचे की और बढ़ रहा था , शगुन की सिसकियां पुरे कमरे में गूंज रही थी, माधवन शगुन को अच्छे ही पलटता हैं, शगुन आहे भरते हुए बोली," बस अब और मत तड़पाओ, मुझ में समा कर , मुझे तोड़ दो"
माधवन तिरछी नज़र से शगुन की लोअर बाॅडी को देखकर डेविड स्माइल करते हुए बोला, " तड़प के बाद ही तो प्यार का असली मज़ा हैं ," और उसके बाद माधवन जैसे ही शगुन की सॉफ्टनेस पर अपने होंठ रखता हैं| तभी…"ट्रिन ट्रिन… ट्रिन ट्रिन…"
तभी…"ट्रिन ट्रिन… ट्रिन ट्रिन…"
किसी घंटी की आवाज़ ने माहौल को चीर दिया।
शगुन की आंखें खुलीं। कमरा वही था। वही बेड। वही सब कुछ। लेकिन वहां शगुन का पति माधवन नहीं था। कोई गुनगुनी सांसें नहीं थीं। वो अकेली थी।
उसके पास सिर्फ एक किताब रखी थी, "प्रेम रस" नाम की ,वही बोल्ड रोमांस वाली किताब, जिसे उसने रात 2 बजे तक पढ़ा था। शगुन धीरे से उठकर बैठ गई, बाल बिखरे थे, होठ सूखे हुए, और आंखों में एक अधूरी तलब। उसने खुद से बुदबुदाया, “क्या मैं सपना देख रही थी?”
उसकी सांसें अब भी तेज थीं। होंठ कांप रहे थे। वो अपनी हथेलियों को देख रही थी, जैसे अभी किसी ने थामे हों। फिर एक लंबी सांस लेकर उसने तकिए के नीचे से नाइटी के ऊपर पहने के लिए श्रग निकाला और पहन लिया।
घर की घंटी फिर से बजी। शगुन बेड से उठी, पैर में चप्पल डाले और दरवाज़ा खोलने चली गई। शगुन ने दरवाजा खोला, बाहर दूधवाला खड़ा था। अधेड़ उम्र का, लेकिन नजरें आज भी जरा भटकी हुई थीं।
"मैडम जी, दूध लीजिए।" शगुन दूध का पातिल आगे करती हैं, दूध वाला पातिले में दूध डालते हुए, शगुन को ऊपर से नीचे तक देख कर, अपनी आंखों से उसकी खूबसूरती का रस पीते हुए बोला," वैसे मैडम जी आज तो आप बहुत सुंदर लग रही हैं। काले रंग में तो बिल्कुल... बिजली लग रही हो।"
शगुन उसकी बात सुनकर हल्का सा मुस्कराई लेकिन तुरंत नज़रें झुका लीं। "थैंक्यू " उसने सीधा जवाब दिया और दूध लेकर अंदर आ गई। दरवाज़ा बंद करके उसने अंदर की कुंडी लगाई। वही बाहर खड़ा दूध वाला खुद से बोला," माधवन बाबू की किस्मत सोने की कलम से लिख गई हैं, भगवान ने माधवन बाबू को बीवी नहीं, अप्सरा दी हैं," दूध वाला खुद से बड़बड़ाते हुए वहां से निकल जाता हैं|
वही शगुन किचन में जाकर दूध का भगोना गैस पर चढ़ाया और फिर मोबाइल उठाकर माधवन को कॉल किया। "The number you're trying to call is not reachable at the moment..." शगुन ने फोन स्क्रीन को कुछ पल देखा, जैसे मन ही मन बोल रही हो "तुम कभी मेरे लिए available क्यों नहीं होते, माधवन?" उसने फोन वापस टेबल पर रखा, और किचन की खिड़की से बाहर झांकने लगी।
सामने की बिल्डिंग की छत पर एक लड़की कपड़े सुखा रही थी। उसके पीछे से उसका पति आकर उसे हग कर रहा था। हँसी, शरारत और छेड़खानी दूर से भी महसूस हो रही थी। शगुन की आंखें ठहर गईं। उसने एक धीमी सांस ली और खुद से बोली, “हर किसी की ज़िंदगी में कोई न कोई होता है जो उसे छूता है, देखता है… और मैं?”
शगुन दूध गैस पर से उतारती है, ट्रे में कप-सुगर रखकर अपने पति के लिए चाय बनाने लगती है, जो इस वक्त ऑफिस में होगा… या शायद फिर से किसी मीटिंग में, या… कुछ और। चाय बनाते-बनाते उसका ध्यान फिर से किताब पर चला जाता है — वो किताब जो अभी तक उसके तकिए के पास रखी है। शगुन कमरे में जाकर फिर से किताब पढ़नी कंटिन्यू करती हैं ,“जब वो उसकी कमर पर हाथ रखता है, उसकी धड़कनें रुकने लगती हैं… और होश गुम हो जाते हैं…”
शगुन की आंखें फिर से नम होने लगती हैं।
“काश… कोई मुझे भी ऐसे चाहे,” उसने बुदबुदाकर कहा।
अचानक, उसकी नजर दीवार पर टंगी शादी की तस्वीर पर पड़ी। सफेद शेरवानी में माधवन… और लाल लहंगे में मुस्कुराती हुई वो। वो तस्वीर अब बस एक फ्रेम बन कर रह गई थी। शगुन ने खुद से ही कहा, " छे महीने के अंदर ही हमारे रिश्ते में कोई स्पार्क नहीं बचा था? क्या मैं खूबसूरत नहीं?"
रोज की वही रूटीन — ऑफिस, फोन पर बिजी रहना, और रात को बस हल्की सी बात, और बिस्तर के दो सिरों पर दो लोग। शगुन वापस किचन में गई , और चाय कप में करके ट्रे रखकर, ड्राइंग रूम की तरफ जाती है। खाली सोफा देखती है और फिर वहीं बैठ जाती है।
उसने माधवन के लिए बनाई गई चाय खुद उठा ली और घूंट-घूंट पीने लगी। फिर से अपने हाथ में मौजूद किताब खोली — वो Bold Love Stories वाली किताब।
उसने पन्ना खोला, वही जगह जहां से कल नींद आई थी।
“उसने धीरे से उसकी जांघ पर हाथ रखा… और कहा — तुम्हारे जिस्म में जन्नत बसती है…” शगुन की उंगलियां किताब के पन्ने पर रुक गईं। उसके गाल गर्म हो रहे थे, और सांसों की गति बढ़ती जा रही थी।
लेकिन तभी उसकी नज़र सामने लगी घड़ी पर पड़ी सुबह के 7:10 हो चुके थे। “अब और नहीं…” उसने खुद से कहा, किताब बंद की और चाय खत्म करके कमरे में चली गई, और बाथरूम में जाकर फ्रेश हुए, और अपना चेहरा धोया, शीशे में उसने अपनी आंखों को देखा , गीली सी, प्यास भरी नीली आंखें। जैसे कोई भूखी, प्यासी रूह हो।
वो खुद से सवाल कर रही थी — “क्या मैं बुरी हूं? या फिर बस अधूरी हूं?” सवाल बहुत थे, जवाब कहीं नहीं।
दरवाज़े पर फिर से कोई आया था — शायद काम वाली बाई। लेकिन शगुन अभी अंदर ही थी, खुद के सवालों में उलझी हुई। जब दरवाजा लगातार बजाता रहा, तो शगुन लिविंग हॉल में पहुंची, उसने दरवाज़ा खुला।
शगुन ने सिर उठा कर देखा — माधवन उसके सामने खड़ा था, चेहरे पर कोई भाव नहीं, वो घर में दाखिल हो रहा था। हल्की सी शिकनवाली शर्ट, गले में टेढ़ी पड़ी टाई, और थकान से भरा चेहरा। हाथ में उसका लैपटॉप बैग था और मोबाइल जेब में डाल चुका था।
शगुन गंभीर चेहरा के साथ पूछा, “ रातभर कहां थे तुम?”
माधवन ने जूते उतारे, बैग टेबल पर रखा और सीधे सोफे पर बैठ गया,“ऑफिस में ओवरटाइम था,” उसका जवाब ठंडा और रटा-रटाया सा था। शगुन ने दांत भींचते हुए खुद को काबू में रखा, फिर एक कदम आगे बढ़कर बोली, “कम से कम एक फोन तो कर सकते थे, माधवन… मैं पूरी रात परेशान रही। न फोन उठाया, न कोई मैसेज।”
माधवन ने अपनी कलाई से रिस्ट वाॅच खोलते हुए सख्त
आवाज़ करते हुए बोला,“हर छोटी चीज़ के लिए इतना ड्रामा करना ज़रूरी है क्या? मैं काम पर था, ना कि किसी पार्टी में।” शगुन की आंखें भर आईं। आवाज़ धीमी पर कांपती हुई निकली,“मैं तो बस तुम्हारा हाल जानना चाहती थी… तुम्हारी बीवी हूं, कोई गैर नहीं। कल रात मैंने कितना कुछ सोचा था, ”
माधवन ने झुंझलाते हुए कहा,“तो अब मैं हर रात तुम्हें रिपोर्ट दूं क्या? ज़िम्मेदारियों के नीचे दबा हुआ हूं, और तुम्हें रोमांस की पड़ी है।” शगुन चुप हो गई। आंखों से एक बूंद खामोशी से गिरी और सीधे गाल पर फिसल गई।
कुछ बोलना चाहा लेकिन गला भर गया। वो बिना कुछ कहे मुड़ी और तेज़ क़दमों से किचन की ओर चली गई।
स्टील की थाली से टकराकर चम्मच गिरा, लेकिन शगुन ने नहीं उठाया। स्लीप के पास खड़ी होकर वो धीरे-धीरे सिसक रही थी। दोनों हाथ सिंक के पास रखकर उसने खुद को संभालने की कोशिश की, पर अंदर का टूटना कुछ ज्यादा ही तेज़ था। उधर माधवन ड्रॉइंग रूम में बैठ रहा। कुछ पल सोचता रहा, फिर लंबी सांस लेकर किचन की तरफ बढ़ा।
किचन के दरवाज़े पर आकर उसे कुछ सेकंड शगुन को देखता रहा , झुके हुए कंधे, कांपती हुई पीठ, और आंखों से बहता पानी। फिर उसने पास आकर पीछे से हल्के से उसे गले लगा लिया। “शगुन…” उसकी आवाज़ अब शांत और मुलायम थी, “ऐसा रोया मत करो यार… अच्छा नहीं लगता।”
शगुन उसकी पकड़ में जकड़ी तो रही, लेकिन पलटी नहीं। धीरे से बोली,“तुम्हें परवाह होती तो एक कॉल कर देते। मैं सारी रात सो नहीं पाई…” माधवन ने उसकी कमर को और कसते हुए उसके कान के पास बोला,
“देखो… मैं अब बहस नहीं करना चाहता। थक गया हूं। लेकिन हां, एक बात कहूं?” शगुन ने हल्का सा सिर हिलाया।
“मैं तुम्हारा बाथरूम में वेट कर रहा हूं,” माधवन ने धीमे और ठहरे हुए अंदाज़ में कहा, और फिर उसकी पकड़ छोड़कर सीधे कमरे की तरफ चला गया। शगुन वहीं खड़ी रह गई। पलभर को उसकी आंखें बंद हुईं। शरीर में एक अजीब सी बेचैनी उठी, पर फिर उसी बेचैनी में एक उदासी भी थी।
किचन की लाइट बंद करते हुए वो बड़बड़ाई,
“तुम्हारी ये प्यार जैसी बात भी अब… बस तुम्हारी मजबूरी सी लगती है।” वो बाथरूम की ओर चली तो सही, लेकिन हर कदम जैसे पत्थर सा भारी था।
कमरे में आते ही माधवन की आवाज़ — “जल्दी आओ शगुन, तुम्हें बांहों में लेने की तलब है।”
शगुन दरवाज़े के पास रुकी… आंखें बंद कीं… और फिर धीमे से बोली,“काश ये तलब सिर्फ जिस्म की ना होती, थोड़ा मेरा मन भी पढ़ लेते…” फिर वो चुपचाप अंदर चली गई।
*Chapter 3**
शगुन बाथरूम का दरवाज़ा खोलती हैं, बाथरूम से हल्की-हल्की भांप उठ रही थी। गर्म पानी की फुहारों के बीच, माधवन बिना कपड़ों के शावर के नीचे खड़ा था, शगुन माधवन को ऐसे देखकर शर्माती है, और उसकी धीमी आवाज़ माधवन के कानों में पड़ती हैं, " माधवन...." माधवन शगुन की तरफ मुड़ कर गुस्से में दांत भींच कर बोला," तुम अब तक यूं ही खड़ी, फटफट कपड़े उतार "
शगुन माधवन की बात सुनकर बोली," आप ही उतार दिजिए," माधवन बेमन से शगुन की नाइटी फाड़ कर बाथरूम के कोने में फेंक कर बोला," तुम कुछ ज्यादा ही फिल्में देखने लगी हो," फिर माधवन शगुन की ब्रा और पैंटी भी उतार कर दीवार से सटा देता, और वो शर्म कर मुड़ जाती हैं, शगुन दीवार से टेक लगाए खड़ी थी। माधवन पीछे से आया, उसने बिना कुछ कहे उसकी कमर थामी, और होंठ उसकी गर्दन पर रख दिए।
शगुन ने अपनी आंखें बंद कर लीं। ये वही पल था जिसका सपना वो किताबों में हर रात देखती थी। उसका बदन सिहर गया, उसने धीमे से अपने हाथ माधवन के सीने पर रख दिए। “अब तो वक्त मिला तुम्हें…” शगुन ने हौले से कहा, आवाज़ में शिकायत घुली हुई थी।
माधवन ने कोई जवाब नहीं दिया। उसके हाथ फिसलते हुए उसके पेट से नीचे सरका गए गुप्त अंग पर। बदन से गर्म पानी की बूंदें फिसल रही थीं, लेकिन शगुन की आंखें अब भी बंद थीं — शायद वो उस एहसास को पकड़ना चाहती थी, जो अब तक हर बार अधूरा रह जाता था। माधवन ने उसे मोड़ा, और अगले ही पल उसको अपने आगोश में भर लिया, शगुन कांप उठी, माधवन हमेशा ऐसी ही बेरूखी से उसको अपने आगोश में भर लेता था, कोई फोरप्ले नहीं, बस सीधे फिजिकल रिलेशन| कभी उसके उभार को काटता तो कभी उसे किसी छोटे बच्चे जैसे चूस ने लगता | फिर वो अपने हार्डनेस को शगुन कि सोफ्टनेस पर रख , अंदर धकेल देता है शगुन कि चिख निकली और पुरे। बाथरूम में गुज गई ,
माधवन शगुन की कमर पकड़ कर अपनी कमर मूव कर रहा था, ना कोई प्यार ना कोई नर्मी, शगुन माधवन के कंधे पकड़ कर सिसकियां ले रही थी, शगुन की सिसकियों से बाथरूम भर चुका था, कुछ पल…
सिर्फ दो नग्न जिस्मों की टकराहट। कोई बात नहीं… कोई इमोशन नहीं।
कुछ ही मिनटों में सब खत्म हो गया। माधवन ने शावर बंद किया, टॉवेल लपेटा और बाहर निकलने लगा।
शगुन वहीं खड़ी रह गई। उसकी आंखें खुलीं — वो गीली ज़मीन पर अब भी अकेली थी। एक दम नेक्ड,उसने धीरे-धीरे एक तौलिया लिया और खुद को लपेटते हुए बाहर आई।
माधवन बाल सुखा रहा था। शगुन लड़खड़ाते हुए उसके पास आई, और पीछे से उसे गले लगा लिया।
"थोड़ी देर और पास रहो ना, अभी मेरा मन नहीं भर" उसकी आवाज़ बहुत नरम थी, जैसे किसी टूटते सपने से बाहर आने की कोशिश कर रही हो। माधवन ने आईने में उसकी परछाईं को देखा, फिर सीधे हो कर उसके हाथ अलग किए और दो कदम पीछे हुआ। "और कितना रोमांस करोगी ?" उसकी आवाज़ में झुंझलाहट थी।
शगुन ठिठक गई।"मतलब?" उसने धीमे से पूछा।
"हर बार तुम्हें नजदीकियां चाहिए… प्यार, स्पर्श, फीलिंग्स… ये सब कोई फिल्मी कहानी नहीं है।"
शगुन की आंखें भर आईं। "मैं सिर्फ तुम्हारा साथ चाहती हूं… कुछ लम्हे, जो सिर्फ हमारे हों।" माधवन ने गहरी सांस ली और तौलिया रखकर कुर्सी पर बैठ गया। वो इस वक्त भी बिन कपड़े था और शगुन भी ,
"मैं पूरी रात ऑफिस में था… सर फट रहा है। और तुम यहां अपनी अधूरी फैंटेसी लिए मुझे बहस कर रही हो… सोचो ज़रा, तुम्हें क्या चाहिए हर वक्त?" शगुन चुप रही। उसके पैरों के नीचे जैसे ज़मीन ही नहीं बची थी।
"तुम्हें क्या लगता है, ये सब आसान होता है? काम, प्रेशर, लाइफ… और ऊपर से ये रोमांस की भूख," माधवन अब सीधे उसकी आंखों में देख रहा था।
"और मेरी जिस्म कि भूख का क्या?" शगुन की आवाज़ टूटने लगी थी, "तुम तो ऑफिस में थक जाते हो… मैं क्या करूं? पूरी रात किताबों के साथ, अकेली?" माधवन उठ खड़ा हुआ। "तो छोड़ दो वो किताबें… उन्हीं में डूबी रहती हो। असली ज़िंदगी में थोड़ा रियलिटी देखो।"
शगुन की सांसें उखड़ गईं। उसने एक पल को कुछ कहने के लिए मुंह खोला, पर फिर होंठ बंद कर लिए। माधवन ने शर्ट उठाई, पहनते हुए बोला,"मैं बाहर जा रहा हूं, कुछ काम है। ब्रेकफास्ट मत बनाना, बाहर खा लूंगा।" माधवन रेड होकर निकल गया, बिना शगुन की चाहतो की चाहतो की परवाह करें बिना|
शगुन वहीं खड़ी रही, भीगे बाल, खाली आंखें… और एक गले में अटका सवाल ,"क्या मैं सिर्फ किसी की थकान मिटाने का ज़रिया हूं… प्यार नहीं?" शगुन बेड पर बैठ कर रोने लगती हैं, छे महीने में ही उसका पति उससे दूर हो गया, या उसका पति कभी उसके करीब ही नहीं आया|
Chapter 4
घंटों रोने के बाद शगुन ने घर का काम खत्म किया, और अपने लिए ब्रेकफास्ट बनाया, शगुन लिविंग हाॅल में अकेली बैठी थी। टेबल पर ब्रेड, आमलेट और एक प्याली चाय रखी थी। उसने खुद ही सब कुछ बनाया था बिना किसी उत्साह के, बस यूं ही, जैसे किसी मशीन ने काम निपटाया हो।
रेड कलर की हल्की, शिफॉन की साड़ी में लिपटी शगुन बेहद खूबसूरत लग रही थी। बालों को ढीले जूड़े में बांधा था, माथे पर एक छोटी सी स्टोन की बिंदी, और आंखों के नीचे हलका-सा थकावट का साया — जैसे रात की नींद और दिल का सुकून दोनों गायब हों। वो चाय का घूंट लेते हुए खिड़की से बाहर देख ही रही थी कि दरवाज़े की घंटी बज उठी। "ट्रिन-ट्रिन..."
उसने चौंक कर दरवाज़े की तरफ देखा। फिर धीरे-धीरे जाकर दरवाज़ा खोला। सामने उसकी सहेली रूपाली खड़ी थी , चेहरे पर वही पुरानी चमक, गले में लंबा दुपट्टा, और हाथ में एक छोटा सा गिफ्ट बॉक्स। “अरे रूपाली! तू?” शगुन की आंखें चमक उठीं।
रूपाली ने झट से उसे गले लगाया, “सरप्राइज! सोचा तुझसे मिले बहुत दिन हो गए… और फिर तेरे लिए कुछ लायी भी हूं।” शगुन मुस्कुराई, “चल अंदर… मैं अभी अकेली ही खा रही थी, साथ बैठ।” रूपाली ने गिफ्ट उसे पकड़ाते हुए कहा, “पहले ये खोल, फिर खाऊंगी।”
शगुन ने मुस्कुरा कर डब्बा खोला। अंदर से एक बेहद खूबसूरत, लेस से बनी नाइट ड्रेस निकली — गहरे वाइन कलर की, सॉफ्ट फैब्रिक की। “ओ माय गॉड! ये तो बहुत ही... हॉट है!” शगुन ने हल्का सा खिलखिलाते हुए कहा।
“तुझे देखकर ही चुनी थी,” रूपाली ने आंख मारी, “मधुर को तो अब तक दस बार पागल कर चुकी हूं इसी जैसी ड्रेसों में।” शगुन ने कुर्सी खींचते हुए पूछा, “तो तेरा हनीमून कैसा रहा?” रूपाली ने शरमाते हुए कहा, “उफ्फ… इतना अच्छा कि अब भी याद आते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।” शगुन ने चाय का कप उसकी ओर बढ़ाया, “डिटेल में बता, बिना चीनी वाली कहानी मत सुनाना।”
“अभी तो ब्रेकफास्ट कर लेने दे, फिर बताती हूं,” रूपाली ने प्लेट उठाई और दोनों खाने में जुट गईं। कुछ मिनटों तक दोनों सिर्फ खा रही थीं , लेकिन रूपाली की आंखों की शरारत साफ बता रही थी कि उसके मन में ढेर सारी बातें थीं। ब्रेकफास्ट खत्म होते ही शगुन ने उसकी कलाई पकड़ी, “चल अब कमरे में, मैं जानना चाहती हूं, तू कैसे इतनी खुश लग रही है।”
रूपाली खिलखिलाती हुई उठी, “आ जा फिर… सुन सब कुछ।” दोनों सहेलियां शगुन के बेडरूम में आकर बैठीं। खिड़की से आती रोशनी ने कमरे को हल्का सुनहरा बना दिया था। रूपाली ने तकिए के सहारे बैठते हुए गहरी सांस ली।
“तो बात ऐसी है,” उसने शुरू किया, “पहली रात जैसे ही होटल पहुंचे, मधुर ने बाथरूम के बाथटब में रेड रोज़ की पंखुड़ियां बिखेर रखी थीं। फिर उसने मुझे आंखों पर पट्टी बांधकर बेडरूम में लाया…” शगुन ने उत्सुकता से पूछा, “फिर?”
“फिर क्या… उसने बाथरूम में कैंडल लाइट करी, बबल बाथ तैयार था। और जब पट्टी खोली… तो खुद शर्ट के बिना खड़ा था, एकदम मूड में।” शगुन की आंखें चमकने लगीं, होंठों पर हौले से मुस्कान तैर गई।
“मधुर बहुत सेंसिटिव है… मुझे देखते ही धीरे से मेरी बूबस पर हाथ फिराने लगा, फिर हल्की किस की… और फिर बस, पूरा कमरा प्यार में भीग गया था।”
शगुन चुपचाप सुनती रही, उसके चेहरे पर एक अधूरी हंसी, और आंखों में भरा अधूरा सपना झलक रहा था।
“और वो बबल बाथ?” शगुन ने धीरे से पूछा। “हम दोनों उसमें बैठे थे… और वो मेरे जांघों पर हाथ फेरते हुए गुनगुना रहा था, ‘तेरे होने से ही मेरी दुनिया हैं " शगुन हल्का सा हंसते हुए बोली, “और फिर क्या हुआ," रूपाली शर्माते हुए बोली," उन्होंने एक -एक करके मेरे कपड़े उतार दिए, और फिर मुझे अपनी गोद में बैठ कर मेरे चूचियों के साथ मनमानी करने लगे,"
रूपाली शर्माते हुए आगे बोली, “दूसरी रात तो जैसे सपना थी। होटल का कमरा पूरी तरह सजाया गया था
बेड पर गुलाब की पंखुड़ियां, धीमी-धीमी खुशबू और मोमबत्तियां। और फिर जब वो… जब मधुर कमरे में आया ना…” रूपाली की आंखें चमक उठीं।
“उसने धीरे से पहले मेरी कमर फिर बूब्स पर हाथ रखा और आंखों में देखकर बोला — ‘आज रात ये सिर्फ मेरे हैं ।’ मेरी सांसें रुक सी गईं यार… वो इतना धीरे से मुझे अपने पास खींच रहा था कि मेरा पूरा शरीर कांप रहा था। साथ ही नीचे से गिली भी हो रही थी” शगुन सुन रही थी, चुपचाप, आंखें झुकी हुईं।
“उसने पहले मेरे पेट पर चूमा फिर मुझे गोद में उठाया, और बेड पर लेटा कर बहुत धीरे-धीरे मेरी साड़ी के पल्लू से खेलते हुए मेरे कानों पर किस किया। मैं बस आंखें बंद किए पड़ी थी… बदन में अजीब सी गर्मी फैल गई थी।” शगुन ने गले से निगलते हुए पूछा, “फिर?”
“फिर उसने मेरा ब्लाउज एक-एक बटन खोलकर उतारा… और जब मेरी पीठ पर होंठ रखे ना… मैं तो बस पिघल ही गई। वो बहुत सलीके से, बहुत प्यार से मुझे छू रहा था। एक-एक अंग ऐसा जैसे उसने पहली बार देखा हो।”
शगुन की आंखों में अब हल्की नमी थी, लेकिन मुस्कान भी। जैसे किसी और की कहानी में वो खुद को तलाश रही हो। “फिर हम लोग पूरे हफ्ते कभी पूल में, कभी बाथटब में, कभी सोफे पर… बस प्यार ही करते रहे। इतना रोमांस मैंने कभी फिल्म में भी नहीं देखा था। वो मुझे हर बार नए तरीके से छूता, जैसे मैं कोई किताब हूं जिसे वो हर बार नए पन्ने से पढ़ता हो।”
शगुन के होंठ अब थरथरा रहे थे, “बहुत खुशकिस्मत है तू…” रूपाली मुस्कुराते हुए बोली," हां वो तो हूं," शगुन ने रूपाली का हाथ पकड़ कर पूछा," वैसे तुम्हें जो मैं हनीमून पर जाने से पहले ड्रेस थी, वो पहनी थी?" रूपाली शर्माते हुए धीमी आवाज में बोली," उस कमीने आदमी ने पुरे हनीमून पीरियड पर ड्रेस तो क्या, मुझे इनरवेयर तक पहने नहीं दिए, बस 24 घंटे रोमांस - रोमांस और रोमांस, वो भी अगल अगल स्टाइल में,"
शगुन रूपाली की बात सुनकर मुस्कुराते हुए बोली," तुम तो बहुत लकी निकली," रूपाली ने उसकी ओर देखा, “और तू? तेरी पहली रात कैसी थी?” शगुन की हंसी हल्की, मगर कड़वी थी। “मेरी पहली रात? वो तो बस… जैसे कोई ज़िम्मेदारी निभाई गई हो। माधवन ने बस हल्के से मुझे देखा, दो-तीन फॉर्मेलिटी वाली बातें कीं… फिर लाइट ऑफ की और… जो करना था, कर लिया। कोई प्यार भरा स्पर्श नहीं, कोई जुनून नहीं, आंखों में कोई चाहता नहीं।”
रूपाली चुप हो गई। शगुन ने आंखें पोंछ लीं, “उसने मुझे कभी वैसे नहीं देखा जैसे तू कह रही है… ना वैसे छुआ। वो तो बस थक कर आ जाता है, और मुझे याद भी तब करता है जब उसे खुद की थकान मिटानी हो।” रूपाली ने उसका हाथ थामा, “तू कभी उससे बात कर के देख… शायद वो समझे…” शगुन ने निगाहें फर्श पर गड़ा दीं।
“वो नहीं समझता, रूपू… उसके लिए शादी एक ड्यूटी है, और मैं… शायद सिर्फ एक टाइम पास…” कमरे में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। फिर शगुन उठी, खिड़की से बाहर देखा और खुद से बुदबुदाई ,“कभी-कभी दूसरों की बातें सुनकर अपनी अधूरी ज़िंदगी की आवाज़ और भी तेज़ सुनाई देती है।”
**Chapter 5**
*इंदौर – शाम ढल चुकी थी, आसमान हल्का नारंगी हो चला था*
“कभी-कभी दूसरों की कहानी सुनकर अपनी अधूरी ज़िंदगी की आवाज़ और भी तेज़ सुनाई देती है…”
शगुन की ये बात सुनकर रूपाली कुछ पल चुप रही थी। उसकी आंखें भी थोड़ी नम थीं। उसने शगुन का हाथ पकड़ कर धीरे से दबाया, फिर हल्की सी मुस्कान के साथ बोली,
“तू बहुत स्ट्रॉन्ग है शगुन, तू इस सूनापन से बाहर निकल सकती है… मैं जानती हूं।”
शगुन ने आंखें झुका लीं। उसके पास कहने को कुछ नहीं था। वो सिर्फ इतना चाहती थी कि कोई उसे समझे, उसे सुन ले… उसके अंदर की वो भूख, वो अधूरी तलब, जो सिर्फ जिस्म की नहीं, रूह की थी — कोई उसे महसूस कर सके।
रूपाली ने घड़ी की ओर देखा — रात के 8 बज रहे थे।
“मुझे निकलना चाहिए,” उसने धीमे से कहा।
“रुक जा ना… एक रात रुक जाती,” शगुन ने अधूरी सी आवाज़ में कहा।
“नहीं यार… मधुर आने वाला होगा। ऑफिस से आज लेट निकला है, और अगर मैं ना मिली तो सीधे भूखा शेर बन जाएगा,” रूपाली हंस पड़ी।
शगुन हल्की हंसी हँसी, लेकिन वो हंसी भी दिल से नहीं थी।
रूपाली ने उसे गले लगाया और कहा,
“कोई बात हो, तो मुझे बताना… मैं तेरे साथ हूं हमेशा।”
शगुन ने बस सिर हिला दिया।
रूपाली अपना पर्स उठाकर बाहर निकल गई।
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**रूपाली का फ्लैट – रात के 8:40**
जैसे ही दरवाज़ा खोला, हल्की सी ठंडी हवा का झोंका उसके बालों से टकराया। घर में मंद रोशनी थी, डिफ्यूज़र से लैवेंडर की महक आ रही थी। उसने पर्स रखा ही था कि दरवाज़े की घंटी बजी।
उसका दिल धड़क उठा।
उसने जाकर दरवाज़ा खोला — सामने खड़ा था मधुर।
ब्लैक शर्ट, रोल्ड-अप स्लीव्स, चेहरे पर थकान की हल्की परछाईं, और आंखों में शरारती मुस्कान।
“लेट हो गया थोड़ा… लेकिन भूख बहुत लगी है,” उसने धीमे से कहा।
रूपाली ने मुस्कुराकर पूछा,
“खाने की? या…”
मधुर एक कदम आगे बढ़ा, दरवाज़ा बंद किया, और उसे कमर से पकड़ते हुए कहा,
“जिस भूख की तू बात कर रही है…”
और अगले ही पल उसने उसे अपनी बाहों में भर लिया।
रूपाली उसकी गर्म सांसों के साथ बहती चली गई। मधुर ने उसे उठाया और सीधे ड्राइंग रूम के सफेद सोफे पर ले आया।
लाइट धीमी थी। बाहर सड़क की हल्की रौशनी पर्दों से छन कर आ रही थी।
मधुर ने उसके बाल पीछे किए और उसके कान पर होंठ रखकर फुसफुसाया,
“आज मैं तुझे ऐसे छुऊंगा, जैसे पहली बार छू रहा हूं…”
रूपाली ने आंखें बंद कर लीं, और उसकी उंगलियों ने मधुर की शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए।
कुछ ही पल में दो जिस्म सोफे पर लिपटे हुए थे — सांसों की गर्मी, उंगलियों की हलचल, और होंठों की तलाश… दोनों एक-दूसरे में पूरी तरह डूब चुके थे।
मधुर ने उसे पूरी तरह अपनी बाहों में भर लिया था, और रूपाली ने खुद को पूरी तरह खो दिया था।
कुछ देर बाद, जब सब शांत हुआ… दोनों वहीं एक दूसरे के पास लेटे हुए थे।
मधुर की छाती पर सिर रखकर रूपाली उसकी गर्दन में उंगलियां फिरा रही थी। मधुर की सांसें अब भी थोड़ी तेज़ थीं।
“आज फिर तू मुझे पागल कर गई,” उसने आंखें बंद करते हुए कहा।
रूपाली ने धीमी आवाज़ में कहा,
“जानती हूं…”
फिर अचानक उसने गहरी सांस लेकर कहा,
“मधुर, मुझे तुझसे एक बात करनी है।”
“हमेशा कर सकती है… बता।”
रूपाली कुछ सेकंड चुप रही, फिर बोली,
“तेरे दोस्त माधवन और मेरी दोस्त शगुन के बीच सब ठीक नहीं चल रहा।”
मधुर ने भौंहें चढ़ाईं,
“क्या हुआ?”
रूपाली ने एक-एक बात शगुन की बताई — कैसे माधवन उसे नज़रअंदाज़ करता है, कैसे शगुन खुद को अकेला महसूस करती है, और कैसे उसका रिश्ता सिर्फ ड्यूटी बनकर रह गया है।
मधुर उठकर बैठ गया, और बोला,
“मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि माधवन ऐसा होगा… वो तो कॉलेज में हमेशा बड़ा सुलझा हुआ लगता था।”
रूपाली ने उसकी पीठ पर हाथ रखा और बोली,
“देख, मैं नहीं चाहती कि तू झगड़ा करे… बस तू उससे बात कर, उसे समझा… वो शगुन को टाइम दे, उसके साथ बाहर जाए, बातें करे, जैसे पति-पत्नी करते हैं।”
मधुर कुछ पल सोचता रहा, फिर हल्के से मुस्कराया और उसके बालों को कान के पीछे कर के बोला,
“तू जो कहेगी, मैं करूंगा बेबी… कल ऑफिस में मिलते ही उससे बात करूंगा।”
रूपाली ने चैन की सांस ली, और फिर वापस उसकी बाहों में समा गई।
“थैंक यू…” उसने फुसफुसाकर कहा।
मधुर ने उसका माथा चूमा,
“बस तू मुस्कुराती रह… बाकी सब मैं संभाल लूंगा।”
कमरे में फिर सन्नाटा फैल गया — लेकिन वो सन्नाटा शांत नहीं, एक भरोसे वाला था।
वही दूसरी तरफ शगुन के घर में एक किरायेदार आया था , बेहद हाॅट एन सैक्सी,नाम था देव सिन्हा ,वो एक प्लैय बाॅय था ,
Chapter —
सुबह डाइनिंग टेबल पर चाय की भाप उठ रही थी, और कमरे में वही हर रोज़ वाला ठंडापन पसरा हुआ था। शगुन चुपचाप टोस्ट पलट रही थी, वही ब्राउन ब्रेड, वही बटर। माधवन अख़बार में डूबा बैठा था, फिर अचानक बोला,“आज से मेरे दोस्त का कज़िन कुछ महीनों के लिए हमारे यहां पेइंग गेस्ट बनकर रहेंगे।”
शगुन ने चौंककर उसकी तरफ देखा। टोस्ट नीचे रखते हुए बोली,“कम से कम मुझसे पूछ तो लेते एक बार?”
माधवन ने उसकी तरफ देखा तक नहीं। चाय की चुस्की लेते हुए अख़बार पलटता रहा।“इतनी बड़ी बात नहीं है… मैंने हां कह दी।”
शगुन का मुंह कुछ कहने के लिए खुला ही था कि तभी घर की घंटी बज उठी। वो चुपचाप दरवाज़े की ओर बढ़ी। जैसे ही दरवाज़ा खोला, सामने खड़ा था , लंबा, हैंडसम, नीली टीशर्ट में एक शख्स। मुस्कान शरारती और आंखें… बहुत ज्यादा गहरी। शगुन कुछ पल बस उसे देखती रह गई… जैसे किसी कहानी का हीरो सामने खड़ा हो।
“अरे आदिल! आओ भाई!” माधवन भी आकर बोला।
आदिल ने शगुन को देखते हुए धीमे से कहा,
“इनसे नहीं मिलवाओगे?”
“ये मेरी बीवी शगुन। और शगुन, ये आदिल… मेरे दोस्त का कज़िन।” शगुन ने मुस्कुराने की कोशिश की, पर उसकी आंखें अब भी आदिल की नज़रों से फंसी हुई थीं।
आदिल कि नजरे शगुन कि उभार पर एक ठहरी, शगुन ने महसूस किया फिर इग्नोर किया ,
उसी वक्त माधवन का फोन बजा। वो कॉल रिसीव करते हुए बोला,“शगुन, आदिल को ऊपर छत वाला कमरा दिखा देना… मुझे ऑफिस निकलना है।”
और वो जल्दी-जल्दी बाहर चला गया। अब दरवाज़े पर बस दो लोग खड़े थे — शगुन और आदिल। शगुन धीमे क़दमों से आदिल को लेकर सीढ़ियां चढ़ने लगी। उसकी चाल में एक अजीब सी झिझक थी, और दिल की धड़कन जैसे सीने से बाहर आने को तैयार।
पीछे से आदिल की आंखें उसकी खुली पीठ पर थीं साड़ी की झलक, बालों की लहर और चाल की लय।
शगुन ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा, “यही कमरा है… सारी ज़रूरी चीजें हैं… जरूरत पड़े तो नीचे बता देना।”
आदिल ने मुस्कुरा कर कहा,“कमरा तो अच्छा है… लेकिन आप जैसी गाइड मिल जाए, तो स्वागत और भी खास हो जाता है।” शगुन की मुस्कान झिझकी हुई थी।
“मैं नीचे हूं,” कहकर वो तुरंत पलट गई। नीचे आते ही उसने लंबी सांस ली। कुछ अजीब सा था आज… कोई ख्याल, कोई नज़ारा जो दिल में हलचल कर गया।
एक हफ्ता बीत गया था, रविवार की सुबह ब्रेकफास्ट की टेबल पर वही पुराना सन्नाटा पसरा था। तभी माधवन ने बिना नज़र उठाए कहा,“तुमने मेरी और अपनी पर्सनल बातें रूपाली और मधुर से क्यों की?” शगुन चौंकी। “मैंने कुछ भी ग़लत”
“चुप रहो!” माधवन की आवाज़ ऊंची हो गई।
“मधुर मुझे रिश्तों की क्लास दे रहा था! शर्म नहीं आई तुम्हें? तुम भूल गई? अगर मैंने तुम से शादी नहीं की होती, तो तुम्हारा शराबी चाचा तुम्हें उस बूढ़े मक्कार से ब्याह देता जो तुझसे तीस साल बड़ा था!”
शगुन की आंखों में आंसू भर आए। शरीर कांपने लगा।
माधवन आगे बोला,“अपनी औकात मत भूल शगुन!”
शगुन बिना कुछ बोले उठी, रोते हुए कमरे में भाग गई।
दरवाज़ा ज़ोर से बंद हुआ। बाहर माधवन गुस्से से पर्स उठाकर निकल गया।
शगुन कमरे में फर्श पर बैठी थी, आंखें सूज चुकी थीं और सांसें घुटी हुई-सी लग रही थीं। माधवन की कड़वी बातें अब भी उसके कानों में गूंज रही थीं ,"अपनी औकात मत भूल शगुन..."
उसका दम घुटने लगा। दीवारें जैसे उसके ऊपर गिर रही थीं, कमरे की हवा भी बोझिल हो चुकी थी। उसने झटपट दरवाज़ा खोला, नंगे पांव भागते हुए सीढ़ियां चढ़ीं और छत पर पहुंच गई। ठंडी हवा ने जैसे एक पल को ही सही, उसके गालों को चूमा कर थोड़ी राहत दी, मगर दिल अब भी भारी था, बहुत भारी।
वो छत की रेलिंग के पास जाकर खड़ी हो गई। आंखें बंद कर लीं और सिर झुका लिया। पर तभी… एक अजीब सी आवाज़ कानों तक आई। कोई लड़की आहे भर रही थी," अह्ह्ह्ह... आईईईई....आम्म्म्म्म्....ये आवाज़ आदिल के कमरे की तरफ से आ रही थी। शगुन चौक गई। उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। ‘ये आवाज़…?’
अनजाने में उसके कदम आदिल के कमरे की ओर बढ़ने लगे। छत पर बने उस गेस्ट रूम का दरवाज़ा तो बंद था, मगर एक खिड़की थी, जिसके पर्दे में एक छोटा सा छेद था। और उस छेद से हल्की रोशनी बाहर आ रही थी।
शगुन का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसे पता नहीं था वो क्या देखने जा रही है, लेकिन कोई अदृश्य ताकत जैसे उसे खींच रही थी।
धीरे से वो खिड़की की ओर झुकी। और उस पर्दे के छोटे से छेद से अंदर झांककर देखा। अंदर का नज़ारा देखकर उसकी आंखें फैल गईं, और रूह कांप उठी। टेबल पर सुबह आई आदिल की दोस्त ब्रा और पैंटी में लेटी थी , और आदिल भी बॉक्सर में था,
" ये दोनों इस तरह क्यों है आध नंगे ! चक्कर क्या है ?,"
वही आदिल धीरे से उस लड़की कि और बढ़ा पहले गाल को चूमा फिर उसके गले पर और फिर जैसे ही वो और नीचे बढ़ाता तो लड़की आहे भर रही थी आदिल लड़की के बूब्स को ब्रा के ऊपर से चूम रहा था , तो लड़की उसके सिर के बाल सहला रही थी ,
शाम ढल चुकी थी। घर में हल्की पीली रोशनी फैली हुई थी। रूपाली किचन में डिनर की तैयारी कर रही थी। उसने आज नेट की हल्की गुलाबी साड़ी पहनी थी, और उसके साथ डिप नेक ब्लाउज़, जिसमें उसके क्लीवेज और गोरी पीठ देख रही थी, उसके बाल खुले हुए थे, और आंखों में काजल और होंठों पर लाल रंग की लिपस्टिक चमक रही थी।
गैस पर सब्ज़ी सुलग रही थी, और रूपाली उसमें तड़का लगा रही थी। उसी वक्त दरवाज़ा खटाका और मधुर की आवाज़ आई, “रूपाली… कहां हो तुम?” “जानू किचन में हूं,” वो मुस्कुराकर बोली, लेकिन उसकी आंखें अब भी कढ़ाई पर थीं।
मधुर धीरे-धीरे चलता हुआ किचन में दाखिल हुआ, और जैसे ही उसकी नजर रूपाली पर पड़ी, वो कुछ पल के लिए वहीं ठहर गया। “ओह… आज तो कोई बहुत ख़ूबसूरत लग रही है,” उसने धीरे से कहा। रूपाली ने सिर घुमा कर उसकी तरफ देखा, “खाना बन रहा है… और तुम्हें रोमांस सूझ रहा है?”
मधुर मुस्कुराया, “जब बीवी ऐसी दिखे, तो भूख का मतलब ही बदल जाता है।” वो धीरे-धीरे उसके पास आया और गैस बंद करके रूपाली को स्लेप पर बैठ दिया, रूपाली मुस्कुराते हुए बोली," जानूं ये क्या कर रहे हो,"
मधुर ने रूपाली के होंठों पर होंठ रख दिए, और और उसके होंठों को चूसने लगा, और रूपाली भी उसका साथ दे रही थी, मधुर के हाथ रूपाली की साड़ी पर चल रहे थे, मधुर ने रूपाली की साड़ी उतार कर फेंक थी|
और फिर मधुर ने किस करते हुए रूपाली का ब्लाउज भी उतार कर फेंक दिया, और फिर रूपाली के चूचियों को अपने दोनों हाथों में भर कर दबाने लगा, रूपाली मधुर की इस हरकत से तड़प उठी, और मचलने लगी|
मधुर रूपाली के होंठों को छोड़कर उसके ब्रेस्ट पर चूमने लगा, रूपाली की सिसकियां पुरी किचन में गूंजने लगी, और उसके हाथ मधुर के बालों में चलने लगे, मधुर रूपाली को किस करते हुए उसके पेट पर पहुंच गया, और मधुर ने रूपाली का पेटीकोट को एक झटके में निकाल कर फेंक दिया, रूपाली इस वक्त मधुर के सामने लाल रंग की ब्रा और पैंटी में थी, जो नेट की थी, उसके अंदर से सब कुछ भर दिख रहा था|
मधुर रूपाली के खूबसूरत बदन को सहलाते हुए मदहोश भरी आवाज़ में बोला," डार्लिंग आज तो किचन में ही मैं अपनी भूख मिटाने वाला हूं," रूपाली अपनी दोनों टांगों को फैला कर मदहोश होते हुए बोली," जानू फिर वेट क्यों कर रहे हो, खाओ ना मुझे," मधुर के सामने रूपाली के टांगों के बीच का खूबसूरत नजारा था|
जिसको देखकर मधुर का कंट्रोल खो गया, और उसने रूपाली की ब्रा और पैंटी उतार कर फेंक दी, और उसके बाद मधुर ने रूपाली को स्लेप पर लेट कर उसके दोनों पैरों को फैला कर अपने चेहरे लेकर उसके पैरों के बीच में आ गया, और रूपाली की साॅफ्टनेस को चूमने और चाटने लगा|
रूपाली मदक सिसकियां में मधुर का नाम ले रही थी," अह्ह्ह्ह.... मधुर बस ऐसे ही मुझे चूमते रहो, आईईईईईईई....... ओ मधुर लव मी डिपर साइड ," मधुर और उत्तेजित हो कर , रूपाली के टांगों को अपने कंधे पर रख लेता हैं, और अपनी जेब रूपाली की साॅफ्टनेस में डाल कर, उसको महसूस करने लगता हैं|
मधुर के दोनों हाथ रूपाली की ब्रेस्ट को मसल रहे थे, और रूपाली सिसकियां भरते हुए मधुर के सिर को अपने पैरों के बीच दबा रही थी, कुछ देर ऐसे ही रोमांस करने के बाद मधुर रूपाली से दूर हो कर अपनी शर्ट पैंट उतार देता हैं, और रूपाली स्लेप पर बिना कपड़ों के बैठी थी और वो मधुर का बॉक्सर उतर देती हैं, और मधुर के उसको अपने हाथों से सहलाते हुए मदहोश भरी आवाज़ में बोली," ओ जानू अब और तुम तड़पाओ, मेरी इस प्यास को बूझाओ,"
मधुर मदहोशी भरी मुस्कान मुस्कुराते हुए रूपाली को स्लेप पर लेट कर उसके ऊपर आ जाता हैं, और उसके पैरों के बीच आकर, उसकी साॅफ्टनेस में अपना वो डाल देता हैं, और रूपाली के ऊपर कूदने लगता हैं, और रूपाली मधुर के बालों में हाथ चल रही थी, दोनों कि आवाजें किचन में गूंज रही थी, और उसके रोमांस की जानकारी दे रही थी, मधुर अपने दोनों हाथो में रूपाली के ब्रेस्ट पकड़ कर मसल रहा था, रूपाली यहां वहां होते हुए मचल रही थी|
कुछ घंटों बाद मधुर और रूपाली जो बिना कपड़ों के दे, स्लेव पर एक दूसरे की बाहों में उलझे हुए थे|
रात के ग्यारह बज चुके थे। शगुन ने डिनर की थाली आदिल और उसकी गर्लफ्रेंड के कमरे में दे दी थी।
डाइनिंग टेबल पर सजी दो थालियां अब भी untouched रखी थीं। शगुन हर थोड़ी देर में दरवाज़े की ओर देख लेती , माधवन का कोई अता-पता नहीं था।
सुबह की लड़ाई के बाद से वो कई बार कॉल कर चुकी थी, मगर हर बार “नॉट रिचेबल” ही सुनने को मिला।
और अब… जब वो उठकर थाली समेटने ही जा रही थी, दरवाज़ा खुला। शगुन पलटी। दरवाज़े पर माधवन था आंखें लाल, कपड़े बेतरतीब, और शराब की तेज़ महक।
वो लड़खड़ाते क़दमों से अंदर आया। शगुन ने फौरन उसके पास जाकर सहारा देना चाहा, “कहां थे तुम पूरे दिन? मैं परेशान हो गई थी…”
माधवन ने कुछ नहीं कहा। उसकी निगाह शगुन पर टिक गई ,वो रेड नाइटी में थी, बाल खुले हुए, चेहरा हल्की रौशनी में चमक रहा था। अगले ही पल, माधवन ने उसके होंठों को अचानक ही चूमना शुरू कर दिया , शगुन चौंक गई, पर कुछ कह नहीं पाई।
माधवन शगुन के होंठों को चूस रहा था, बाइट कर रहा था, और उसकी नाइटी के ऊपर से ही उसकी साॅफ्टनेस को अपने एक हाथ से सहला रहा था , शगुन के दिल में तितलियां सी उड़ने लगी, कुछ देर बाद माधवन ने शगुन को Bridal की तरह अपनी गोद में उठाया|
“माधवन…?” शगुन कुछ कहने लगी थी, मगर माधवन मदहोश भरी आवाज़ में बोला,“ बेबी अब कुछ मत बोलो…” वो उसे सीधे कमरे में ले गया। शगुन उसकी बाहों में थी — मगर उसकी आंखों में सवाल थे। ये प्यार था, या सिर्फ शराब में डूबी कोई भूख?
कमरे का दरवाज़ा धीरे से बंद हुआ… और अंदर एक बार फिर शगुन का दिल सवालों से घिर गया ,क्या सिर्फ जिस्म ही रिश्ता होता है? या इसके आगे भी कुछ होना चाहिए? माधवन ने शगुन को प्यार से बेड पर बैठ कर कहा," शगुन बेबी आज रात मुझे तुम्हारे साथ फिर से सुहागरात मनानी हैं ," शगुन शर्माते हुए हां में सिर हिलाती हैं, माधवन ने एक एक करके शगुन के सारे कपड़े उतार दिए|
शगुन माधवन के सामने n*ked बैठी हुई थी और माधवन को बड़ी intensity के साथ देख रही थी। माधवन कि नजरे उसके चेहरे से होते हुए नीचे जा रही थी और उसकी नजरें डार्क होती जा रही थी।
माधवन ने अपना एक घुटना शगुन के पैरों के बीच रखा और झुक कर उसके बालों को मुट्ठी में भर कर उसके होठ पर अपने होठ रख दिए ।
शगुन अपने हाथ माधवन की गर्दन से नीचे ले जाते हुए उसके शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिये। उसने उसके शर्ट को उतार कर जमीन में फेंक दिया। माधवन ने हल्का सा उसके होंठों को छोड़ा और फिर शगुन को प्यार से धक्का दे दिया जिससे वो बेड पर लेट गयी। उसके दोनों पैर already फैलें हुए थे।
वो दोनों गहरी सांसे ले रहें थे। माधवन ने अपना बेल्ट खोल कर शगुन के हाथों को उससे बांध दिया । शगुन ने कंफ्यूज से एक बार माधवन को देखा पर वो कुछ बोली नहीं। माधवन कि नजरें उसको बोलने ही नहीं दे रही थी।
शगुन अपनी नशीली नीली आंखों से माधवन की मस्कूलर चेस्ट को देखने लगी और माधवन ने जब देखा कि उसकी नजरें कहां है तो उसके फेस पर एक तिरछी मुस्कान आ गयी। उसने अपनी पेंट उतार कर फेंक दी और शगुन के दोनो थाई को पकड़ कर उससे अपनी Deep Husky Voice में बोला," you want my junior,"
इतना कह कर माधवन ने अपनी नशे में चूर आंखों से उसको देखा तो शगुन ने हां मे सर हिला दिया।
माधवन ने उसके Thigh पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए कहा " words बेबी words ," शगुन तो शर्म के मारे लाल हो गयी थी पर माधवन कि बात टाल ही नहीं पा रही थी। उसने अपने लोअर लिप को बाइट कर के कहा "yes i want your junior ,"
वही आहिल जो पानी पीने नीचे किचन में आया था, वो माधवन और शगुन के कमरे से आती शगुन की सिसकियों को सुनकर मुस्कुराते हुए पानी की बोतल फ्रिज से लेकर सीढ़ियों से होता हुआ ऊपर चला गया, वही माधवन और शगुन के कमरे में|
माधवन शगुन पर अपनी नजरें गड़ाए हुए ही अपनी उंगलियां उसके पैरो के बीच ले गया और his two fingers were inside her and she was feeling his fingers deep inside her शगुन ने मदहोशी में अपना सर तकिए पर जोर से दबा दिया और अब उसके मुंह से मादक सिसकियों में माधवन का नाम निकल रहा था|
माधवन शगुन के एक-एक expression को बड़े गौर से देख रहा था, शगुन की सिसकियां माधवन को एक्साइड हो रहा था, शुरुआत में माधवन कि उंगलियां धीरे-धीरे अपना काम कर रही थी पर वक्त के साथ उसने अपनी स्पीड बढ़ा दी और उसी के साथ शगुन कि आवाजें भी तेज हो गयी।
माधवन ने अपनी उंगलियों को बाहर निकाला और शगुन के आंखों में आंखे डाल कर अपनी उंगलियों को लिक करने लगा। शगुन के चेहरे पर पसीना आने लगा, और उसका चेहरा कश्मीरी सेब की तरह लाल हो गया था, शादी के बाद आज पहली बार माधवन शगुन के साथ इतना ज्यादा रोमांटिक हो रहा था|
माधवन शगुन के ऊपर आया और उसके कान के पास जा कर अपनी गर्म सांसें छोड़ते हुए बोला " how are you feeling baby" शगुन शर्माते हुए माधवन के होंठों पर किस करके बोली," I feel myself in paradise"
कुछ पल बाद he was deeply inside her and शगुन फूल एंजॉय, माधवन शगुन के नेकलाइन पर किस और बाइट करते हुए नीचे जा रहा था और शगुन वो अपने हाथों को छुड़ाने कि कोशिश कर रही थी पर माधवन का एक हाथ उसके दोनों हाथों को उसके सर के ऊपर लगा रखा था|
माधवन ने उसके एक निप्पल को सीधे अपने दांतों में बाइट कर लिया और शगुन आहे भरते हुए बोली," आह्ह ... माधवन धीरे करो।" पर Madhavan was thrusting very roughly, उसने अपनी स्पीड और बढ़ा दी।
शगुन माधवन का कंधा पकड़ कर धीरे होने को बोली, पर उसने एक बार फिर से अपनी स्पीड बढ़ा दी और अब शगुन सिसकियां लेते हुए माधवन की पीठ को अपने नाखूनों से नौच रही थी, उसके पीठ से खून निकल रहा था पर माधवन को कहां फर्क पड़ने वाला था, वो तो फूल नशे में जो था|
माधवन शगुन कि पूरी बाडी पर अपने निशान छोड़ रहा था। माधवन दो घंटे बाद शगुन की बगल में लेट गया और शगुन को देखते हुए बोला" मेरे ऊपर चढो जान ,"
शगुन शर्म जाती हैं, माधवन ने उसको खुद पकड़ कर अपने ऊपर बिठा लिया और शगुन के मुंह में एक हल्की सी चीख निकल गयी। उसकी कुछ करने कि हिम्मत ही नहीं बची थी इसलिए माधवन ने ही उसकी कमर पकड़ कर उसको मूव करना शुरू कर दिया और उस कमरे में शगुन कि करहने की आवाजें गूंजने लगी।
एक घंटे बाद शगुन थक कर माधवन के ऊपर ही लेट गई और गहरी सांसें लेते हुए बोली,"माधवन बेबी ,अब और नहीं," माधवन जो नशे में था, उसको बस इस वक्त शगुन चाहिए थी, हर हल में, माधवन ने शगुन को बेड पर लेट कर उसके दोनों पैर को अपने कंधों पर रख कर सेक्सी वाॅइस में कहा," शगुन बेबी आज की रात बहुत लम्बी होने वाली हैं," और माधवन फिर से शगुन में समा जाता हैं, और मूव होने लगता हैं, और शगुन जो थक गई थी, पर भी अपने पति के साथ आज पहली बार एंजॉय कर रही थी|
सुबह की धूप खिड़की से छनकर बेड पर पड़ रही थी। शगुन बिना कपड़ों के बेड पर लेटी थी, और मुस्काते हुए उठी, कमरे में माधवन नहीं था। शायद जल्दी निकल गया था, बिना कुछ कहे… हमेशा की तरह।
शगुन ने लंबी सांस ली और खुद को समेटते हुए जल्दी से शावर लिया , और किचन में लंच तैयार किया। दोपहर तक उसने सब पैक किया और माधवन के ऑफिस पहुंच गई। शायद यही एक तरीका था उसके दिल की दूरी कम करने का, थोड़ा सा ख्याल, थोड़ा सा अपनापन।
लेकिन ऑफिस पहुंचते ही शगुन को समझ नहीं आया कि कौन सा फ्लोर है। उसने रिसेप्शन पर किसी से पूछा नहीं और खुद ही लिफ्ट में चढ़ गई। गलती से वो तीसरे की जगह चौथे फ्लोर पर उतर गई। हॉलवे में सन्नाटा था। दरवाज़े बंद। बस एक दरवाज़ा थोड़ा सा खुला था , उस पर लिखा था “स्टाफ रेस्ट रूम ” शगुन ने धीरे से दरवाज़ा खोला।
अंदर का नज़ारा देखकर उसके कदम वहीं रुक गए।
रेस्ट रूम के कोने में टेबल पर बैठा था एक अधेड़ उम्र का आदमी और उसके सामने एक जवान लड़की , वो बॉस और सेक्रेटरी लग रहे थे। लेकिन उनकी हरकतें एकदम ऑफिशियल नहीं थीं। वो आदमी लड़की का हाथ थामे हुए अपने पैरों के बीच रखता हैं, वो लड़की शर्माते हुए उसकी आंखों में देख रही थी। “सर… कोई आ जाएगा…” लड़की ने धीरे से कहा।
“तो आने दो,” आदमी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया और उसके होंठों के पास झुक गया। शगुन की सांसें थम गईं। उसने दरवाज़े की ओट में खुद को छिपा लिया। पर आंखें… वो वहीं थीं। उस नज़ारे पर टिकी हुईं — जैसे किसी और दुनिया में चली गई हों।
वही वो आदमी उस लड़की से मदहोश भरी आवाज़ में बोला," लैल डार्लिंग, मेरी पैंट की चेन खोलो, मेरा वो तुम्हारे मुलायम हाथों में आना चाहिए," सेक्रेटरी शरमाकर बोली,"सर... आप ऑफिस में भी बाज़ नहीं आते, कोई देख लेगा तो?" बॉस तिरछी मुस्कान मुस्कुराते हुए बोला,"जो देखेगा, वो भी तड़प उठेगा।" वो आदमी अपनी बात बोल कर स्कर्ट के ऊपर से ही उस लड़की की साॅफ्टनेस सहलाने लगा, वो लड़की सिसकियां भरते हुए बोली,"आपकी बातें और हरकतें ना... दिल में गुदगुदी कर देती हैं।"
वो लड़की अपनी बात बोलते हुए उस आदमी की पैंट की बेल्ट खोल कर पेंट की चेन खोलती हैं , और उस आदमी का वो पकड़ कर बाहर निकल कर उसके ऊपर अपने होंठ रख देती हैं, वो आदमी कांपती आवाज़ में धीरे से उसके कान में बोला," लैल डार्लिंग,आज लंच से पहले... मीठा खा रही हो ?"
लड़की अपना चेहरा ऊपर उठा कर सेक्सुअल स्माइल करते हुए बोली," तो बाॅस आप ही बताओ , मैं पहले मीठा खाऊ या मसालेदार?" बाॅस ने सेक्रेटरी को टेबल पर लेट गया , लैल अपने बाॅस को देखकर बोली, " बाॅस मेरी बुलबुल को भी लार वाली मसाज चाहिए ।"
बाॅस ने लैला के करीब आकर ,झट से उसके मुलायम लिपस्टिक वाले होंठो को अपने सख्त होंठो में दबा देता है और बेरहम तरीके से होंठो को चूसने लगता है, बाॅस लैला के होंठो को ऐसे चूस चाट रहा था जैसे को लॉलीपॉप को चूसता वा चाटता हैं।
धीरे धीरे बाॅस लैला की गर्दन पर अपने गरम गरम होंठो से अपने प्यार की बरसात करने लगा और गर्दन से लैला की बेस्ट पर आकर, उसके दोनों ब्रेस्ट को शर्ट की कैद से आज़ाद करते हुए मदहोश भरी आवाज में बोला,"क्या मस्त संतरे है , सच में क्या रसीले हैं आज तो मैं इन पूरा रस निचोड़कर पी जाऊंगा "
लैला पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी, वहां मदहोशी के आलम में शराबोर होते हुए बोलती है,"बाॅस इतना मत तड़पाओ पहले इन रसीले 🍊 का रस तो पी लो।"
बाॅस लैला की ब्रा को भी उतार कर बोला, "लैला डार्लिंग मैं तुम्हें ऐसा पेलूंगा कि तुम सोच भी नहीं सकती," लैला हल्की सिसकियों में हँसते हुए बोली,"आप बहुत बिगड़ गए हो बाॅस..."
लैला अपने बाॅस का वो देखकर अपनी बुलबुल को सहला रही थी, बाॅस मदहोश में एक हाथ से लैला के ब्रेस्ट को मसल रहा था , और अपने दूसरे हाथ से लैला की बुलबुल को सहला रहा था। बॉस ने लैला के सभी कपड़े उतार कर मदहोशी भरी आवाज़ में कहा,"लैला डार्लिंग रेडी," लैला अपने बाॅस की पैंट उतार कर हां में सिर हिलाती हैं|
बाॅस लैला को टेबल पर अच्छे से लेटा देता हैं और लैला अपने पैर खोल कर उंगली के इशारे से बाॅस को अपने करीब आने का इशारा करती हैं, और फिर बाॅस लैला के पैरों के बीच अपना चेहरा लेकर पहुंच गया, और उसने होंठों से लैला की बुलबुल को चूमना और चूसना शुरू कर दिया, कुछ देर तक ये सब चलता रहा, और लैला की सिसकियां पुरे रेस्ट रूम में गूंजती रही, कुछ देर बाद जब दोनों से रूका नहीं गया, तो बाॅस लैला में समा कर अपनी कमर जोर जोर से हिलने लगता हैं, और उसके दोनों हाथ लैला के 🍊 पर कस चुके थे, वो उनको मसल रहा था|
एक घंटे तक बाॅस और लैला का धुआंधार रोमांस चला, और बाॅस थक कर लैला के ऊपर ही गिर गया, दोनों बिना कपड़ों के टेबल पर पड़े थे, बाॅस का वो अब भी लैला की बुलबुल में था, दोनों हांफ रहे थे
शगुन सब चुपचाप देख रही थी, बस दिल की धड़कनों की आवाज़ थी। शगुन धीरे-से पीछे हटी और दरवाज़ा बंद कर दिया। वो अब भी अंदर से कांप रही थी… पर उसके अंदर की कोई और खिड़की खुल चुकी थी।
शगुन खुद से बोली,"क्या आफिस में ये सब भी चलता हैं," उसने खुद से ये सवाल पूछते हुए लिफ्ट की ओर कदम बढ़ा दिए|
सुबह की हवा में थोड़ी ठंडक थी, लेकिन शगुन के भीतर की बेचैनी ने उसे बेचैन कर रखा था। वो पिछले कुछ दिनों से खुद को एक उलझी हुई गुत्थी की तरह महसूस कर रही थी — जिसमें आदिल की नज़रें, उसकी बातें, और उस दिन का वो दृश्य — सब कुछ धीरे-धीरे लिपटते जा रहे थे।
माधवन ऑफिस जा चुका था। शगुन अकेली थी। उसने आदिल के लिए नाश्ते की ट्रे तैयार की और धीमे-धीमे सीढ़ियाँ चढ़ने लगी।
हर कदम पर उसका दिल थोड़ा तेज़ धड़क रहा था।
वो खुद को समझा रही थी, *"सिर्फ ट्रे रखनी है, बात नहीं करनी… ज्यादा सोचना भी नहीं है।"*
कमरे का दरवाज़ा आधा खुला था।
**“आदिल?”**
उसने आवाज़ दी, मगर कोई जवाब नहीं आया।
शगुन ने दरवाज़ा थोड़ा और खोला। कमरे में भाप-सी फैली थी — **गर्म पानी की हल्की महक और भीगे शरीर की सोंधी गंध** कमरे में तैर रही थी।
वॉशरूम का दरवाज़ा अधखुला था… और शावर की आवाज़ धीमी हो चुकी थी।
और फिर… एक हल्की सी चरमराहट के साथ, दरवाज़ा पूरी तरह खुल गया।
शगुन की आँखें अनायास ही उस ओर उठ गईं…
और समय जैसे एक पल के लिए थम गया।
**आदिल सामने खड़ा था — पूरी तरह नग्न।**
उसके शरीर से पानी अब भी बह रहा था, कंधों से होते हुए नीचे उसकी गां**ड की ओर।
हाथ में टॉवल था, लेकिन उसने उसे अभी तक लपेटा नहीं था।
वो शायद अभी सिर्फ बाल पोछ रहा था, निश्चिंत… बेपरवाह।
**शगुन ठिठक गई।**
उसके कदम वहीं रुक गए।
नज़रें हटाना चाहती थीं, मगर **वो दृश्य इतना अनायास, इतना असहज और साथ ही इतना सम्मोहक** था कि कुछ सेकेंड तक उसकी पलकें थमी रह गईं।
शगुन की नज़र पहले **आदिल की चौड़ी, भीगी हुई छाती** पर ठहरी…
फिर धीरे-धीरे **उसकी पेट की रेखाओं से होती हुई निचले हिस्से की ओर खिसक गई**, जहाँ पानी की बूँदें चमक रही थीं — और जहाँ **नग्नता अब पर्दा नहीं माँग रही थी।**
उसने तुरंत अपनी नज़रें फेर लीं, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।
चेहरा एकदम लाल हो गया।
साँसें एक पल को थम गई थीं — और उसके दिल की धड़कन बेकाबू थी।
उसी पल आदिल ने भी उसे देख लिया।
लेकिन वो **हड़बड़ाया नहीं।**
उसने खुद को ढँकने की कोई जल्दी नहीं दिखाई।
वो वहीं खड़ा रहा — **सीधा, शांत और आत्मविश्वास से भरा हुआ।**
आदिल की निगाहें अब शगुन पर टिकी थीं —
**उसकी आँखें शगुन की साड़ी की उस जगह पर ठहरी थीं**, जहाँ उसका पल्लू खिसककर एक ओर सरक गया था…
और **उसके उभार की झलक साफ दिखाई दे रही थी।**
शगुन को खुद भी यह एहसास हुआ…
उसने तुरंत पल्लू ठीक किया, पर **अंदर की गर्मी, शर्म और एक अनजानी हलचल** ने उसे और बेचैन कर दिया।
कमरे की हवा भारी हो गई थी।
दोनों कुछ नहीं बोले।
वो क्षण छोटा था, लेकिन **उसमें एक लम्बा सन्नाटा दर्ज हो गया था** —
एक ऐसा सन्नाटा, जो नज़रें चुराने से भी मिटता नहीं।
फिर, लगभग कांपती हुई आवाज़ में शगुन ने कहा —
**“मैं… मैं सिर्फ ट्रे रखने आई थी…”**
उसकी आवाज़ में घबराहट साफ थी, लेकिन साथ में **एक अनकही चाह** भी थी — जो उसने खुद से भी छिपा रखी थी।
वो मुड़ी, ट्रे मेज़ पर रखी और बिना पलटे बाहर जाने लगी।
लेकिन उसके पाँव भारी हो गए थे।
पीछे से आदिल अब भी वहीं खड़ा था —
शायद अब उसने टॉवल लपेट लिया था, या शायद नहीं…
लेकिन उसकी निगाहें अब भी **शगुन की पीठ पर थीं** —
उसकी खुली पीठ, उस पर गिरते बाल, और चलती चाल की नमी।
शगुन दरवाज़े तक पहुँची… मगर कुछ था जो उसे रोक रहा था।
उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा —
और आदिल की आँखों से नज़र मिली।
**एक पल को वहाँ कोई शब्द नहीं थे… बस दो आग से भरी नज़रें थीं — एक पूछ रही थी, एक जवाब दे रही थी।**
उसके बाद शगुन ने दरवाज़ा बंद किया।
नीचे उतरती सीढ़ियों पर उसका हर कदम काँप रहा था।
**उसका मन कुछ खो चुका था… और कुछ नया जाग चुका था।**
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### **नीचे रसोई में…**
शगुन ने अपने गाल पर हाथ रखा — अब भी गर्म थे।
उसने पानी पिया, लेकिन प्यास बुझी नहीं।
*“उसने मुझे पूरे होश में देखा… और मैंने भी उसे पूरे होश में देखा… ये क्या था?”*
वो खुद से डरने लगी थी।
पर साथ ही, **कहीं अंदर एक आवाज़ धीरे से फुसफुसा रही थी —
"कभी-कभी देखने से ज़्यादा सच्चा कुछ नहीं होता..."**
सुबह कुछ ज़्यादा ही हड़बड़ी भरी थी।
माधवन जल्दी-जल्दी तैयार होकर निकल गया था, और शगुन रसोई में सब कुछ समेट ही रही थी कि अचानक उसकी नज़र टेबल पर रखे **टिफिन बॉक्स** पर पड़ी।
*"उफ्फ, ये तो देना भूल गया..."* उसने बुदबुदाते हुए टिफिन उठाया।
थोड़ी देर तक वो सोचती रही — *"जाऊं या नहीं?"*
पर दिल ने कहा — *"जाना चाहिए। पति है, भूखा कैसे रहेगा?"*
वो साड़ी ठीक करके, टिफिन लेकर निकल पड़ी।
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### **ऑफिस का गलियारा**
शगुन को माधवन के ऑफिस की बिल्डिंग में आते हुए कई साल हो गए थे, लेकिन आज उसके कदमों में एक अनजानी घबराहट थी।
रिसेप्शन से बिना किसी को परेशान किए वो चुपचाप ऊपर के फ्लोर की ओर बढ़ गई — उसे पता था, **माधवन और उसकी सेक्रेटरी प्रियंका** अक्सर उसी कॉन्फ्रेंस रूम में काम करते थे।
दरवाज़ा थोड़ा अधखुला था…
अंदर से धीमी आवाजें आ रही थीं।
शगुन ने पहले टिफिन हाथ में कसकर थामा…
फिर साँस रोककर दरवाज़े की दरार से झाँका।
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### **अंदर का दृश्य — सन्नाटे से भरा सच**
कॉन्फ्रेंस टेबल के कोने पर प्रियंका बैठी थी — हल्का सा झुकी हुई, और **माधवन उसके बहुत क़रीब**।
उसका हाथ प्रियंका के **चूचियों से फिसलता हुआ उसकी टांगों के बीचोंबीच रुक गया था।**
प्रियंका की आँखें बंद थीं।
उसके चेहरे पर एक सुकून, एक संतोष भरा भाव था — जैसे वो **उस स्पर्श को चाहती थी, और जानती थी कि वो बार-बार दोहराया जाएगा।**
शगुन की आँखें फटी की फटी रह गईं।
**"तुम्हारी बीवी को तो अब तक कुछ पता भी नहीं होगा..."** प्रियंका ने धीरे से कहा।
**"उसे जानने की ज़रूरत भी क्या है?"** माधवन की आवाज़ में थकावट थी, लेकिन सच्चाई भी।
**"तो छोड़ क्यों नहीं देते उसे?"** प्रियंका ने उसकी शर्ट की कॉलर पकड़ते हुए कहा,
**"तुम्हें तो छूना तक पसंद नहीं, ये तुमने मुझसे खुद कहा था…"**
माधवन चुप रहा। फिर धीरे से बोला —
**"कुछ रिश्ते सिर्फ दिखावे के लिए निभाने पड़ते हैं, प्रियंका… मुझसे मत कहो कि मैं सब तोड़ दूँ… मैं नहीं तोड़ सकता…"**
प्रियंका कुछ देर उसे देखती रही — फिर धीरे से उसके कंधे पर झुक गई।
और अगले ही पल…
**उसके होठ माधवन की गर्दन के नीचे के हिस्से पर टिक गए…**
धीरे-धीरे, **बहुत नर्म लेकिन इरादों से भरा चुम्बन**…
और माधवन ने उसकी कमर कसकर थाम ली।
अब शगुन की आँखों से आंसू गिर चुके थे।
उसके हाथ काँप रहे थे।
वो बिना कुछ कहे, बिना अंदर गए… **टिफिन वहीं सामने की कुर्सी पर रखकर मुड़ गई।**
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### **सीढ़ियाँ… और टूटता भरोसा**
सीढ़ियाँ उतरते हुए उसकी रफ्तार बढ़ती जा रही थी।
**हर कदम उसके भीतर कुछ तोड़ रहा था।**
*"क्या मैं सिर्फ नाम की पत्नी थी?"*
*"क्या मेरी आँखों के पीछे ये सब चलता रहा?"*
*"मैं क्यों हर दिन उसकी पसंद बनने की कोशिश करती रही, जब वो कभी मुझे देखता ही नहीं था?"*
उसका सारा शरीर काँप रहा था, लेकिन आँसू ज़िद्दी थे — लगातार बहते जा रहे थे।
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### **दूसरी तरफ — कॉन्फ्रेंस रूम का अंत**
प्रियंका अब **माधवन की गोद में बैठ चुकी थी**।
उसकी चुन्नी एक ओर सरक चुकी थी।
माधवन ने उसकी पीठ पर उँगलियाँ फिराईं — कपड़ों के ऊपर से महसूस करते हुए।
**"तुम इतनी मुलायम क्यों लगती हो..."** उसने धीमे से कहा।
प्रियंका ने हल्के से होंठ काटे और अपनी उँगलियाँ उसके बालों में फेरने लगी।
**उसके चू**त उसके सलवार के कपड़े के पार भी साफ उभर रही थी — चूचिया कुछ ज्यादा ही करीब था।**
माधवन ने उसके गले के पास झुककर एक **किस किया… बहुत धीमा, बहुत महीन**, लेकिन प्रियंका की साँसों को तेज़ कर देने वाला।
**"तुम्हें छुते ही कुछ और सोच नहीं पाता..."** उसने कहा।
प्रियंका ने उसकी शर्ट के बटन खोलने शुरू किए — एक-एक करके।
**उनके होंठ एक-दूसरे से टकराए नहीं, लेकिन पास बहुत आ चुके थे।**
प्रियंका ने उसकी उँगलियों को पकड़कर **अपने उभार के पास लाकर रोका**,
और बस इतना कहा —
**"यहाँ… मुझे ये पसंद है…"**
माधवन ने पहले उस पर हाथ फेरा — कपड़े के ऊपर से।
**बिलकुल धीरे, जैसे किसी की इज़्ज़त को महसूस कर रहा हो — लेकिन अंदर की वासना उस पर हावी थी।**
प्रियंका के बदन की हर हरकत बता रही थी कि वो ये सब पहली बार नहीं कर रहे।
**उसके नितंबों पर हाथ फिसलते ही प्रियंका की साँसें बढ़ गईं — वो उसके कंधे में मुँह छिपाकर खुद को थामे हुई थी।**
उनकी आँखें नहीं मिलीं, क्योंकि अब उनकी रफ्तार किसी सोच के बस में नहीं थी।
---
### **शगुन — टूटन की परछाईं में**
घर लौटकर शगुन ने खुद को आईने में देखा।
चेहरा सफेद था, आँखें सूजी हुईं, और होंठ कुछ कहने के कगार पर रुके हुए।
उसने अपनी साड़ी कसकर बाँधी — जैसे खुद को संभालना चाहती हो।
*"आदिल… क्या तू देख पाएगा वो जो मैं छिपा नहीं पा रही?"*
उसने गले से मंगलसूत्र उतार कर ड्रेसिंग टेबल पर रख दिया।
**कभी-कभी रिश्ते सिर्फ पहने जाते हैं… निभाए नहीं जाते।**
शगुन भारी मन से घर लौटी थी।
हर कदम पर उसके भीतर कुछ बुझ रहा था। माधवन की बातों ने उसे कहीं भीतर तक निचोड़ दिया था।
अब वो सिर्फ एक पत्नी नहीं थी — **एक सवाल बन गई थी**… खुद के लिए भी।
दरवाज़ा खोलते ही आदिल सामने ही सोफ़े पर बैठा दिखा — एक किताब हाथ में लिए, मगर ध्यान कहीं और।
उसने देखा कि शगुन का चेहरा बुझा हुआ है, उसकी चाल में थकावट नहीं — टूटा भरोसा था।
**“शगुन… एक कप चाय मिलेगी?”** आदिल ने धीरे से पूछा, बिना ज़्यादा सीधे देखे।
शगुन कुछ पल को चौंकी, फिर खुद को संयत किया और बस सिर हिला दिया।
**“आओ, साथ बना लेते हैं… मैं तुम्हें अपने हाथों की अदरक वाली चाय पिलाना चाहता हूँ।”**
उसके स्वर में वो नरमी थी, जो शगुन को हमेशा डांवाडोल कर देती थी।
---
शगुन ने साड़ी का पल्लू कसते हुए गैस ऑन की, और चायपत्ती डाली।
आदिल बगल में खड़ा हो गया — कुछ भी नहीं कर रहा था, बस वहीं मौजूद था।
उसकी आंखों में कोई जल्दबाज़ी नहीं थी।
वो शगुन को देख रहा था — उसकी हर हरकत को, हर सांस को… जैसे कुछ समझ रहा हो।
**“सब ठीक है?”** आदिल ने बहुत धीरे पूछा।
शगुन ने कुछ नहीं कहा।
पर उसकी पीठ… उसकी उँगलियाँ… उसकी आँखों में नमी सब बोल रहे थे।
**“तुम्हारे चुप रहने से भी सब पता चलता है शगुन…”**
शगुन ने जवाब नहीं दिया, लेकिन एक गहरी साँस छोड़ी — जो शायद बरसों से थमी थी।
---
चाय बन ही रही थी कि अचानक बाहर **बूँदों की तेज़ आवाज़** आने लगी।
शगुन ने खिड़की से देखा — बारिश अचानक ज़ोर पकड़ चुकी थी।
**“ओह, कपड़े! मैंने बाहर ही डाले हैं…”**
वो लगभग भागती हुई बाहर निकली — बालकनी की ओर।
आदिल वहीं खड़ा रह गया, पर उसकी निगाहें अब खिड़की से बाहर थीं…
---
शगुन ने जल्दी-जल्दी कपड़े समेटने शुरू किए, लेकिन बारिश इतनी तेज़ थी कि वो खुद **पूरी तरह भीग चुकी थी**।
उसकी साड़ी अब उसके बदन से चिपक चुकी थी —
**कमर, जांघें और उभार का हर उभार अब पानी में ढल चुका था**।
उसने एक हल्की सी गुलाबी ब्रा पहन रखी थी, जिसकी आकृति अब साफ़ दिख रही थी।
नीचे उसका हल्का ग्रे पैंटीलाइन भीगकर साड़ी के पार उभर आई थी —
**कोमल लेकिन पूरी तरह महसूस होती हुई।**
शगुन को खुद नहीं पता था कि वो कैसी दिख रही है —
पर आदिल की नज़रें अब **हर उस हिस्से को पढ़ रही थीं**, जिसे शब्द नहीं छू सकते।
**उसकी नज़रें सबसे पहले उसकी पीठ पर ठहरीं — गीले बाल, गर्दन का गीलापन, और साड़ी के भीतर पीठ का मुलायम वक्र।**
फिर वो **कमर पर फिसलीं… जहाँ कपड़ा पूरी तरह बदन से चिपका हुआ था…**
और फिर…
**उसकी नज़र उसके कूल्हों की रेखा से नीचे तक चली गई — वहाँ जहाँ कपड़े के पार वो उभार दिख रहा था, जिसे कोई नाम नहीं देता, बस महसूस करता है।**
वो नजरें फिसलती गईं —
**जाँघों के बीच … और उस स्थान तक जहाँ स्त्री की गरिमा होती है, लेकिन आज बारिश ने उसे सिर्फ "मन का सत्य" बना दिया था।**
आदिल ने गहरी साँस ली।
वो शगुन को उस नज़रिया से नहीं देख रहा था जिससे कोई ज़रूरत या हवस देखती है —
वो उसे **एक अधूरी स्त्री की तरह देख रहा था, जो आज पहली बार अपने आप से बेपर्दा थी।**
शगुन जब अंदर लौटी, उसके कपड़े अब भीगे हुए थे।
उसने सामने देखा — आदिल की आँखें कहीं और थीं… पर फिर भी वो देख चुका था।
**दोनों की निगाहें मिलीं…**
एक पल…
बहुत लंबा पल।
**“देखा तुमने?”** — ये सवाल शगुन की आँखों में तैर रहा था।
**“हाँ… पर बेशर्मी से नहीं।”** — ये जवाब आदिल की नज़रों में था।
चाय अब भी स्टोव पर थी…
पर उन दोनों के बीच अब एक और कड़क एहसास खौल रहा था।
---
शगुन ने खुद को जल्दी-जल्दी तौलिए से पोछा, पर कपड़े अब भी बदन से चिपके हुए थे।
**उसके होंठ नींबू की तरह सिकुड़े थे — लेकिन आँखें अब खुल रही थीं।**
**"तुमने देखा… और फिर भी कुछ नहीं कहा?"** — उसने बिना शब्दों के पूछा।
**"अगर मैं कुछ कहता, तो तुम्हें शर्म आती… लेकिन मेरी नज़रें झुकी नहीं, क्योंकि तुमने कुछ भी ग़लत नहीं किया…"**
शगुन ने खुद को थोड़ा और समेटा — लेकिन अब उसमें **संकोच कम, स्वीकार ज़्यादा था**।
**भीगना एक हादसा था… लेकिन उसमें देख लिया जाना एक जरूरत थी।**
---
आदिल ने धीरे से कहा —
**“शगुन…”**
वो कुछ कहने को मुड़ी, लेकिन आदिल सिर्फ उसकी ओर देखता रहा।
**“तुम आज खुद से ज़्यादा सुंदर लगीं…”**
शगुन की आँखों में नमी तैरने लगी — लेकिन इस बार दर्द की नहीं,
**किसी ने जो देखा… बिना तोड़े… बिना छुए… बस समझकर।**
घड़ी ने नौ बजाए ही थे कि माधवन का फ़ोन आया।
> **“आज देर तक फाइलें सँभालनी हैं, शायद रात यहीं हूँ… तुम इंतज़ार मत करना।”**
आवाज़ में वह चिर‑परिचित थकान नहीं, **किसी और दुनिया की हल्की‑सी मुस्कान** थी।
शगुन ने बस “ठीक है” कहा, मगर दिल में **कड़वा तल्ख़ा** घुल गया।
उसे याद आया—कॉन्फ़्रेंस‑रूम का वह दृश्य, प्रियंका के हाथ माधवन की शर्ट के नीचे, और वह आधी पड़ी टिफ़िन‑डिब्बी…
आज के “ओवर‑टाइम” का मतलब भी वही होगा।
---
डाइनिंग‑कैबिनेट में पड़ी **हाफ‑फिनिश्ड शराब** की बोतल उसने पहले कभी नहीं छुई थी; ये माधवन के तनाव की दवा थी।
आज वह खुद ढक्कन खोल बैठी।
पहला घूँट—गला जैसे जल उठा,
दूसरा—भीतर जमा बर्फ़ पिघलने लगा,
तीसरा—आँखों की कोरें भड़भड़ा उठीं।
*“क्यों सिर्फ़ निभाना पड़ता है, जीना क्यों नहीं?”*
सोच के साथ घूँट घुलते गए। कमरे की बत्तियाँ भी मद्धम लगीं, और उसे लगा जैसे पूरी दुनिया में एक ही शोर रह गया है—**उसके धड़कते कनपटी का**।
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करीब सवा दस पर आदिल ने दरवाज़ा खटखटाया।
ट्रे में हल्की‑सी ख़िचड़ी, दही, और नींबू पानी—वह जानता था, शगुन ने दिन भर कुछ नहीं खाया।
शगुन ने बेतरतीब बालों में उँगलियाँ फेरीं, बोतल को हलके‑से पर्दे की ओट में सरकाया और दरवाज़ा खोला।
> **“भूख नहीं है…”** आवाज़ भर्रा रही थी।
> **“थोड़ा‑सा तो खा लो, फिर चाहो तो मुझे डाँट देना।”**
वह मुस्कुराया, मगर आंखों में गंभीर चिंता थी।
शगुन आगे‑आगे चली, लड़खड़ा‑सी, और सोफ़े तक पहुँची ही थी कि पैरों ने साथ छोड़ दिया।
शराब, खाली पेट, और टूटे दिल का भार—उसने संतुलन छीना और वह फर्श पर ढेर हो गई।
---
आदिल ने ट्रे मेज़ पर जमा दी और झटपट घुटनों के बल नीचे आया।
उसने शगुन का सिर अपने हाथों में थामा।
नर्म‑सा गाल उसके कंधे से लगते ही शगुन की पलकें भर आईं।
> **“दर्द हो रहा है?”**
> **“यहाँ—”** उसने सीने की तरफ़ इशारा किया, *“जहाँ कोई पट्टी नहीं बँधती…”*
आदिल की उँगलियाँ उसके गाल से लटों को हटातीं, जैसे **हल्का‑सा मरहम** हों।
---
शगुन को सँभालते‑सँभालते, दोनों की साँसें बेहद क़रीब आ गईं।
शराब की भीनी‑सी गंध और नींबू‑पानी की तरावट साथ‑ही‑साथ पहुँची।
उनकी आँखें मिलीं—
एक में दर्द, दूसरे में दया नहीं… **साफ़‑साफ़ अपनापन**।
शगुन ने हौले से कहा,
> **“मुझसे क्यों इतना ख़याल रखते हो?”**
आदिल ने धीमे उत्तर दिया,
> **“क्योंकि तुम ख़ुद को भूलने लगी हो… और मैं तुम्हें टूटता नहीं देख सकता।”**
उसी पल शगुन की छलकी पलक झपकी—और **होठों का कंपन** सीधे आदिल की साँस से छू गया।
कोई योजना नहीं थी; बस… **आस पास था।**
आदिल ने चेहरा झुकाया—सिर्फ़ एक इंच—और उनके होठ एक‑दूसरे से मिले,
धीमे, नम, ठहर‑ठहर कर।
* कोई उतावलापन नहीं;
* जिह्वाएँ बस हल्की‑सी खोज, मानो हर घूँट में टूटी बात घुल रही हो;
* शगुन की ऊपरी होंठ पर आदिल की कोमल पकड़, फिर निचले होंठ पर नर्म दाँतों‑सा वादा;
* और बीच‑बीच में गहरी साँस, जो उनकी छाती आदिल सकत छाती और शगुन कि नरम चूचियां एक‑दूसरे से बस चंद मिलीमीटर दूर रखे हुए थी।
शगुन ने आँखें बंद कीं—*“क्या यही सच्चा स्पर्श होता है?”*
---
शगुन की साड़ी अब भीगने के बाद बदल नहीं पाई थी; भीगन सूख चुकी थी, मगर सिल्क अभी भी मुलायम लहर था।
जब आदिल ने उसे उठाने को बाहों में लिया, उसकी उँगलियाँ उसकी पीठ पर नीचे फिसलीं—
और वो चूंचियां **मुलायम ढलान** तक पहुँचीं, जहाँ साड़ी‑ब्लाउज़ का महीन कपड़ा दिल की धड़कन साथ‑साथ सुनाता है।
बैठक के सोफ़े पर हल्के से टिकाते हुए, आदिल ने उसकी तरफ़ झुककर
**ब्लाउज़ के ऊपर ही एक धीमा‑सा चुम्बन रखा**—बस एक पल।
कोई जल्दबाज़ी नहीं—
न कपड़े हटे, न सीमाएँ टूटीं।
फिर भी, उस एक किस में
* *सम्मान था,*
* *दहकता अपनापन,*
* और यह भरोसा कि **कोई उसे सम्पूर्ण होने देने वाला है**, बिना माँगे, बिना शर्त।
शगुन के होठों से सिसकारी निकली—आश्चर्य और राहत की मिली‑जुली।
आदिल ने उसी क्षण खुद को एक क़दम पीछे खींचा,
> **“डरो मत… बस इतना जानो: तुम अकेली नहीं हो।”**
शगुन ने झट हाँथ थामा—चूम नहीं, कस कर पकड़ा,
*“कभी‑कभी किसी का हाथ टूटे दिल के लिए सबसे सुरक्षित आशीर्वाद होता है।”*
---
अभी भी रात जवान थी।
बारिश खिड़की पर धीमी‑सी थपकियाँ दे रही थी;
किचन से नींबू‑पानी की खुशबू और राह निहारता खाना ठंडा हो रहा था।
शगुन ने सामने मेज़ पर पड़ी बोतल की ओर देखा—
फिर आदिल की आँखों में—
और हौले से बोली,
> **“मेरी बाकी की शाम… तुम्हारे साथ नींबू‑पानी भी मदिरा‑सा लग रहा है।”**
आदिल मुस्कुराया, बोतल को दूर स्लैब पर सरका दिया और गिलास में बस पानी भरा।
> **“कल सुबह का सिरदर्द मैं नहीं चाहता… हमारे पास पहले से काफ़ी बोझ है।”**
शगुन ने गिलास थामा—ठंडा, सादा पानी—पर होठों पर वही मीठा‑सा स्वाद अब भी तैर रहा था, जो **एक सच्चे स्पर्श का रहता है।**
---
कमरे के कोने की बत्ती अब भी हल्की थी।
शगुन ने एक लंबी साँस ली और अपना सिर आदिल के कंधे पर टिका दिया।
दोनों ने आँखें मूँद लीं।
शब्द ख़त्म थे, रात अब भी लंबी—
मगर भीतर पहली बार **एक बेहद शांत संगीत** उगा था।
*“कभी‑कभी सच्चा प्यार सिर्फ़ यह समझ लेने में है कि सामने वाले की टूटी किरचें भी चमक सकती हैं।”*
---
रात के करीब बारह बज रहे थे।
दरवाज़ा खुला…
माधवन घर आ चुका था।
चेहरे पर थकान नहीं थी, बल्कि एक अजीब-सा संतोष… जैसे दिन का काम पूरा हो गया हो।
शगुन सोने का नाटक कर रही थी।
पर उसकी साँसों की लय बता रही थी — नींद अब उससे कोसों दूर है।
**“शगुन?”**
माधवन की आवाज़ में कोई स्नेह नहीं था, न ही कोई शिक़ायत।
बस एक ज़रूरत थी, जो हर महीने कुछ रातों को लौटती थी।
शगुन ने धीरे से आँखें खोलीं, हल्के से ‘हूँ’ कहा और करवट बदल ली।
माधवन उसके पास आया — बिस्तर में चुपचाप उसकी तरफ़ लेट गया।
कुछ क्षण तक केवल सन्नाटा था।
फिर उसके हाथ ने शगुन की कमर को छुआ…
एक जानी-पहचानी, बेमन-सी छुअन।
शगुन की आँखें खुली रहीं।
पर उसने कुछ नहीं कहा।
न ‘ना’, न ‘हाँ’।
---
माधवन ने धीरे-धीरे उसकी साड़ी का पल्लू सरकाया —
जैसे एक नियम निभा रहा हो।
उसकी उँगलियाँ शगुन की पीठ पर फिसलीं,
फिर उसकी गर्दन के पास झुकीं और एक हल्का-सा चुम्बन छोड़ा।
शगुन की साँसों में कोई बदलाव नहीं आया।
**वो वहाँ थी… लेकिन मन कहीं और।**
जब उसके होंठ शगुन के होठों पर पहुँचे —
वो हल्की, बिना जोश की प्रतिक्रिया दे सकी।
एक फ्रेंच किस — लेकिन जिसमें स्वाद नहीं था,
बस होठों की आदत थी।
उसने शगुन की चूड़ियाँ उतार दीं, ब्लाउज़ की डोरी खोली…
और फिर धीरे-धीरे साड़ी की तहें।
अब शगुन के बूब्स उसके सामने थे —
उसने ऊपर से कपड़े को चूमा —
कंधे से लेकर बूब्स की ढलान तक।
शगुन ने आँखें मूँद लीं —
**न शर्म थी, न कोई उत्तेजना।**
बस एक नमी-सी थी आँखों के भीतर —
*“मैं यहाँ हूँ, मगर सिर्फ़ इसलिए कि मुझे होना चाहिए…”*
---
माधवन अब उसके निचले हिस्से तक पहुँच चुका था —
पेट के नीचे…
जहाँ उसकी उँगलियाँ, होंठ और साँसें
अब शगुन के शरीर को जगा रही थीं —
पर मन अब भी निष्प्रभावित था।
शगुन ने अपनी जांघें थोड़ा सरकाईं —
ना अनुरोध में, ना स्वागत में —
बल्कि बस… **समर्पण में।**
जब उसके कपड़े पूरी तरह हटे,
शगुन ने खुद को एक नग्न सच में पाया —
जहाँ शरीर तो शामिल था, लेकिन आत्मा दीवार से टिकी खड़ी थी।
---
माधवन ने जब उसे अपनी बाँहों में भरा,
जब उनके यौन मिलन का क्षण आया —
शगुन की आँखें तब भी छत पर थीं।
वो न तो रोई, न सिसकी, न मुस्कराई।
वो बस रही —
जैसे किसी ने कहा हो: *"ये भी जीवन का हिस्सा है।"*
माधवन के हर स्पर्श, हर धड़कन में एक ज़रूरत थी।
शगुन ने उस ज़रूरत को पूरा किया —
बिना विरोध के,
बिना उत्साह के।
---
जब सब समाप्त हुआ, माधवन करवट लेकर सो गया —
बिल्कुल वैसे जैसे वह हर बार करता था।
शगुन चुपचाप उठी, अपनी साड़ी समेटी…
और बाथरूम में जाकर खुद को ठंडे पानी से धोने लगी।
शरीर अब भी गर्म था —
पर मन एकदम ठंडा।
आईने में खुद को देखते हुए वह सोच रही थी —
**“पत्नी होना क्या सिर्फ़ देह होना है?”**
**“क्या कभी कोई ऐसा होगा, जो मुझे सिर्फ़ ज़रूरत नहीं, ‘इच्छा’ की तरह चाहे?”**
---
उसी पल आदिल की हल्की सी छवि आँखों में उभरी —
जिसने एक बार बिना छुए,
शगुन की आत्मा को स्पर्श किया था।
*“कभी-कभी कोई तुम्हें छूए बिना भी इतना कुछ दे जाता है,
जितना कोई और छूकर भी नहीं दे पाता…”*
---
सुबह का उजाला खिड़की की झिर्रियों से झाँक रहा था।
शगुन चाय का पानी चढ़ा चुकी थी, लेकिन उसके हाथ अभी तक उनींदे थे… जैसे रात की कोई परत अभी तक झड़ी नहीं हो।
रसोई में काम करते हुए उसकी आँखें कई बार धुंधली हो गईं। नींद की वजह से नहीं — मन के भार से।
वो गैस पर सब्ज़ी चढ़ा रही थी, पर अंदर कहीं कुछ पक ही नहीं रहा था।
माधवन आज जल्दी तैयार हो गया था।
सूट पहना, हेयर जेल लगाया और शगुन से बिना कुछ कहे ऑफिस के लिए निकल पड़ा।
बस जाते-जाते यही कहा —
**“देर से मत भेजना लंच। क्लाइंट मीटिंग है।”**
शगुन ने सिर हिलाया। न कहा “ठीक है”, न मुस्कराई।
बस वो सुन रही थी —
जैसे कोई रोज़ सुनता है, बिना सवाल किए।
---
माधवन के जाते ही घर में एक अजीब-सी ख़ामोशी घुल गई —
जैसे कमरे भी जान गए हों कि अब कुछ देर सुकून है।
शगुन ने कपड़े धोने का काम हाथ में लिया।
बाथरूम में बाल्टी भरी, कपड़े डाले और खुद भी वहीं ज़मीन पर बैठ गई।
साड़ी हल्की भीग गई, लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया।
उसके माथे पर पसीना था और पीठ में हल्का दर्द।
मन ने जैसे एक छोटी-सी फुसफुसाहट की —
**"किसी दिन, बस किसी एक दिन, कोई आकर कहे…
'तुम बैठो, मैं कर दूँ ये सब।'"**
---
कुछ ही देर में डोरबेल बजी।
दरवाज़ा खोला तो सामने आदिल खड़ा था।
हाथ में कैमरा, पीठ पर बैग।
**“गुड मॉर्निंग शगुन जी… आज तो आप पहले से ही फ्रेम में हैं, पसीने की बूंदों के साथ।”**
उसकी मुस्कराहट हल्की थी —
पर आँखों में हमेशा की तरह वही बात… **सम्मान।**
शगुन ने थकान में भी मुस्कराने की कोशिश की।
**“घर तो किसी दिन आपका ही बन जाएगा, आदिल जी। जितनी बार आ जाते हो।”**
**“क्यों नहीं? वीडियो शूट का बहाना चाहिए बस। आज आप पर एक ब्लॉग बनाते हैं — *‘Real Queens Don’t Wear Crowns, They Carry Buckets’*।”**
दोनों हँस दिए।
एक छोटा-सा पल — जिसमें कोई माँग नहीं थी, कोई अधिकार नहीं… बस एक मौजूदगी थी।
---
आदिल ने कैमरा ऑन किया, कुछ सीन शूट किए।
फिर खुद ही कपड़े धोने में मदद करने लगा।
**“अरे! छोड़िए आदिल जी! ये काम आपके बस का नहीं।”**
**“मैं व्लॉगर हूँ, लेकिन इंसान भी हूँ। और इंसानियत का पहला सबक है — जहाँ कोई थका हो, वहाँ साथ दो।”**
शगुन ने उसे एक पल देखा।
कभी-कभी कोई आपकी आत्मा को ऐसे छू लेता है कि शब्द बेमानी हो जाते हैं।
---
काम के बीच आदिल ने कहा,
**“शगुन जी, बाथरूम की सफाई वाले कुछ शॉट्स चाहिए थे। अगर आप नहा चुकी हैं तो मैं अंदर जाऊँ?”**
**“हाँ, नहा चुकी हूँ। अंदर सब साफ़ है, आप ले लीजिए शॉट्स।”**
शगुन फिर से काम में लग गई।
उधर आदिल कैमरा लिए बाथरूम के पास पहुँचा।
लेकिन तभी —
एक हल्की-सी आवाज़ आई — **“छप!”**
आदिल ने दरवाज़ा धकेला — वो पूरी तरह बंद नहीं था।
और उसके सामने था —
**शगुन… पूरी तरह नग्न।**
वो बाल्टी से पानी निकाल रही थी, सिर झुका हुआ था।
उसने आदिल को देखा — एक सेकंड के लिए दोनों की साँसें रुक गईं।
फिर शगुन ने एकदम पास रखी टॉवल उठाई —
उसे अपने सीने पर लपेटते हुए पीठ मोड़ ली।
**“सॉरी… आदिल…”** उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन हड़बड़ी नहीं थी।
बस एक थकी हुई गरिमा थी।
आदिल तुरंत दरवाज़े से पीछे हट गया।
**“माफ़ करिए… मुझे नहीं पता था कि…”**
उसकी आवाज़ में घबराहट नहीं थी, बल्कि सम्मान और संकोच था।
---
कुछ देर बाद शगुन कमरे से बाहर आई।
उसके बाल गीले थे, लेकिन चेहरा शांत।
टॉवल अब बदल चुकी थी, कपड़े पहन चुकी थी।
आदिल वहाँ अब भी बैठा था — नज़रे झुकी थीं।
**“आदिल जी…”** शगुन ने धीरे से कहा।
वो उठा, हल्के स्वर में बोला —
**“मैं चला जाऊँ?”**
**“नहीं…”**
शगुन ने उसकी ओर देखा — एक दृढ़, सधी हुई नज़र से।
**“जो हुआ… एक हादसा था।
लेकिन आपने जैसा व्यवहार किया —
उसके लिए शुक्रिया।”**
आदिल ने मुस्कराकर सिर झुकाया।
**“आप इंसान हैं, शरीर नहीं।
और मैं उस इंसान को देखता हूँ…
हर दिन, हर रूप में।”**
---
दोनों फिर आमने-सामने बैठे।
चाय का कप थामे — बिना दिखावे, बिना बनावट।
शगुन की आँखों में पहली बार आदिल के लिए एक गहरा, हल्का-सा स्नेह उभरा।
वो एहसास…
जब कोई तुम्हें देखे — बिना तुम्हें छुए भी,
और तुम्हारे भीतर के खाली हिस्सों को भर दे।
---
शाम ढलने लगी थी।
माधवन ऑफिस में बैठा किसी लड़की से चैट कर रहा था।
**“तुम्हारी हँसी आज भी वैसी ही है…
कभी रुकती ही नहीं…”**
उसने इमोजी के साथ लिखा।
दूसरी ओर — शगुन रसोई में काम कर रही थी,
और आदिल किचन में बर्तन जमा कर रहा था।
**दो जिंदगियाँ —
एक में ज़रूरतों की बेरुखी,
दूसरी में एहसासों की नर्मी।**
शगुन के मन में कोई तूफ़ान नहीं था —
बस एक धीमी-सी हवा थी,
जो किसी बंद खिड़की को धीरे-धीरे हिला रही थी।
---
क्या वह दरवाज़ा कभी खुलेगा?
क्या आदिल कभी वह नाम होगा,
जो शगुन की आत्मा को "अपना" कहेगा?
कहना मुश्किल है…
लेकिन इतना ज़रूर था —
कि उस दिन, शगुन पहली बार आईने में खुद को देखते हुए मुस्कराई थी।
---
**सुबह की हल्की रौशनी** खिड़कियों से छनती हुई कमरे में फैल रही थी।
रूपाली रसोई से कॉफी का मग लिए बाहर निकली ही थी कि बाथरूम का दरवाज़ा हल्के से खुला। भाप से भरा कमरा और सामने मधुर — टॉवल में लिपटा, भीगे बालों के साथ।
**“तुम्हें देखे बिना कॉफी फीकी लगती है…”**
मधुर ने मुस्कराते हुए कहा, और कप उसके हाथ से लेकर टेबल पर रख दिया।
रूपाली कुछ कहने ही वाली थी कि उसने उसकी कलाई थामी —
धीरे-धीरे उसे अंदर बाथरूम की ओर खींच लाया।
---
बाथरूम अब भी हल्का गुनगुना था।
दीवारों पर पानी की बूंदें थीं, और हवा में एक धीमी-सी खुशबू तैर रही थी —
**उस स्पर्श की, जो सिर्फ़ प्रेम से आता है।**
मधुर ने उसके गाल को छुआ —
नरम, सधे हुए स्पर्श से… जैसे कोई पहली बार छू रहा हो।
फिर उसने धीरे से उसका चेहरा अपनी ओर किया और होंठों पर एक गहरा, ठहरा हुआ चुम्बन दिया।
**कोई हड़बड़ी नहीं थी —
बस दो आत्माएँ, जो उस क्षण में पूरी तरह उपस्थित थीं।**
रूपाली की पलकों पर उस चुम्बन की गर्मी थी…
उसने आँखें मूँद लीं, और खुद को पूरी तरह मधुर के पास बहने दिया।
---
मधुर ने उसके गीले बालों को कान के पीछे सरकाया,
और फिर उसकी नाइटी के ऊपर से उसकी बदन के बूब्स को जोर से छुआ।
न कोई जल्दबाज़ी थी, न कोई अधिकार जताने की कोशिश —
बल्कि हर स्पर्श में एक *पूछने की अनुमति* थी।
**"मैं हूँ, और तुम चाहो तो मैं तुम्हें महसूस करूँ..."**
रूपाली की साँसें अब गहरी हो रही थीं।
मधुर की उँगलियाँ अब नाइटी के भीतर सरक चुकी थीं —
जैसे वो *उसकी त्वचा की कहानी* पढ़ना चाहता हो।
उसके स्पर्श में गरमी थी, लेकिन साथ ही गहराई भी।
उसने उसकी पीठ पर उँगलियाँ चलाईं, फिर नीचे उतरते हुए उसके बूब्स की ओर पहुँचा।
रूपाली का शरीर उस एहसास में हल्का-सा सिहर गया,
पर उसने कुछ नहीं कहा —
बस हल्का-सा सिर पीछे झुका लिया, जैसे इज़ाज़त दे रही हो।
---
नाइटी अब मधुर के हाथों में थी —
धीरे-धीरे सरकती हुई, फर्श पर गिर गई।
अब रूपाली, अपनी सबसे सच्ची अवस्था में ,नग्न अवस्था में, उसके सामने खड़ी थी।
न उसमें कोई हिचक थी, न कोई बनावटी शर्म।
बस **प्रेम का स्वीकार**, और **विश्वास का नंगा सच**।
मधुर ने उसकी बाँहों को चूमा,
फिर कंधों से उतरते हुए — उसकी देह की हर उस जगह को महसूस किया,
जहाँ अब तक सिर्फ़ नज़रें ही पहुँची थीं।
रूपाली की साँसें अब धीमी-धीमी तेज़ हो रही थीं —
उसकी हथेलियाँ मधुर की पीठ पर थीं, और होंठ उसके कानों के पास।
**"तुम्हें इस तरह महसूस करना…
जैसे खुद को फिर से जीवित करना हो…"**
उसने फुसफुसाया।
---
उनका मिलन अब केवल देह का नहीं था,
वो *एक लंबा, लहराता हुआ एहसास* था —
जिसमें समय रुक गया था, और दुनिया धुँधली हो गई थी।
मधुर ने उसे अपनी बाँहों में लिया —
नरमी से, जैसे कोई पूजा का दीपक उठाता है।
उसने अपनी गर्म साँसें रूपाली की गर्दन पर छोड़ीं,
फिर उसके स्तनों पर चुम्बनों की लकीर बना दी।
रूपाली ने धीरे से उसकी गर्दन को थामा,
और एक लंबा, आत्मा से उठता हुआ चुम्बन उसके होंठों पर टिका दिया।
---
कुछ क्षणों बाद, जब वो दोनों एक-दूसरे की बाँहों में ठहरे थे —
रूपाली की आँखें चमक रही थीं,
और मधुर के चेहरे पर एक संतुलित सुकून था।
**"हम हर बार एक-दूसरे को यूँ क्यों खोजते हैं?"**
रूपाली ने पूछा।
**"क्योंकि हर बार कुछ नया पा लेते हैं…"**
मधुर ने उसकी नज़रों में देखते हुए कहा।
---
दिन अब शुरू हो रहा था।
बाहर की दुनिया जाग रही थी —
पर अंदर एक और ही दुनिया धीरे-धीरे अपने संगीत में बह रही थी।
रूपाली ने नज़रे झुकीं,
और खुद से एक हल्का-सा वादा किया —
**"प्रेम सिर्फ़ तब नहीं होता जब कोई छुए,
बल्कि तब होता है जब कोई समझे, थामे… और छोड़ना ना चाहे।"**
---
रूपाली अब उसकी बाँहों में थी —
भीगे बाल, खुला बदन, और आँखों में वो चमक जो किसी सुरक्षित स्पर्श से जन्म लेती है।
मधुर ने उसके चेहरे को थामा,
और धीरे-धीरे उसे नीचे की ओर ले आया —
जहाँ उसका सिर अब रूपाली की छाती पर टिका था।
वह पल…
सांसें धीमी थीं, लेकिन भीतर कुछ तेज़ी से धड़क रहा था।
---
रूपाली की त्वचा पर एक नमी थी —
न सिर्फ़ पानी की, बल्कि उस बेचैनी की भी
जो किसी बहुत गहरे चाहने वाले से मिलने पर महसूस होती है।
मधुर ने उसकी जांघ पर उंगलियाँ रखीं —
धीरे से, जैसे पूछ रहा हो — *"क्या मैं यहाँ भी पहुँच सकता हूँ?"*
रूपाली की आँखें बंद थीं —
उसने कुछ नहीं कहा, न ‘हाँ’, न ‘ना’।
बस अपनी जांघों को थोड़ा सा ढीला छोड़ दिया…
एक अनकहा इशारा था —
**"मैं तुम्हें अपने अंदर आने दे रही हूँ…"**
---
मधुर ने झुककर उसकी नाभि के पास होंठ रखे,
फिर नीचे उतरता चला गया…
जहाँ उस देह की सबसे नाज़ुक परत थी —
नमी से भीगी, इंतज़ार में थमी हुई।
उसने अपने होंठ उस जगह के पास रखे —
छुआ, बिना जल्दबाज़ी के।
जैसे कोई ग़ज़ल पढ़ रहा हो — एक अक्षर, एक तर्ज।
रूपाली की साँसें अब तेज़ होने लगी थीं।
उसे लगा, जैसे शरीर के भीतर कोई बिजली सी दौड़ गई हो।
---
फिर मधुर ने अपनी उंगलियाँ वहाँ रखीं —
नरम त्वचा पर, उस जगह जहाँ सारा ताप भरा था।
उसने एक उंगली से हल्का-सा दबाव दिया — रूपाली उस जगह में
ना ज़ोर से, ना झिझक से।
जैसे कोई घर के अंदर पहली बार प्रवेश करता है।
रूपाली की जांघें हल्की-सी कांपीं।
एक पल में उसकी साँस थमी —
फिर टूट कर बाहर आई।
**"मधुर..."** उसका नाम हवा में बिखरा…
ना पुकार थी, ना रुकावट —
बस एक अर्धनिद्रा जैसी आवाज़,
जैसे किसी ने बिना बोले बहुत कुछ कह दिया हो।
---
मधुर अब पूरी तरह उस स्पर्श में डूब चुका था।
उसने अपनी दो उंगलियों को धीरे-धीरे रूपाली के भीतर सरकाया —
रूपाली का बदन हल्का-सा तन गया,
और होंठ एक सिसकी से भीगे।
लेकिन वह सिसकी दर्द की नहीं थी —
वह एक स्वीकार की आहट थी,
जहाँ स्त्री अपनी सबसे निजी जगह में किसी को जगह देती है…
*"तुम यहाँ हो… और मैं पूरी तरह तुम्हारी हूँ।"*
---
रूपाली उस में उँगलियों की हर हरकत में एक लय थी —
ना जल्दी, ना रुकावट।
वो उसके भीतर उतर रहा था —
न सिर्फ़ शरीर में, बल्कि आत्मा में भी।
रूपाली अब उसके बालों में हाथ फेर रही थी —
उसका बदन भींग चुका था…
पर पसीने से नहीं —
उस एहसास से, जो तब आता है जब कोई आपको पूरी तरह पढ़ ले।
---
मधुर ने जब अपना चेहरा फिर से ऊपर उठाया —
उसकी आँखों में वही चमक थी जो समर्पण से मिलती है।
उसने रूपाली को देखा —
उसका चेहरा गुलाबी था, होंठ भीगे थे, और आँखें…
वो जैसे कोई पुराना सपना देख रही थी,
जो अब जाकर सच्चा हो रहा हो।
---
फिर दोनों एक-दूसरे के बहुत करीब आए।
अब शब्द नहीं थे,
ना ज़रूरत थी किसी और छुअन की।
बस दो साँसें थीं,
जो एक-दूसरे के भीतर गूँज रही थीं।
---
कमरे की रौशनी धीमी थी।
रूपाली की देह, हल्की थरथराहट के साथ मधुर की बाँहों में पिघल रही थी।
वो दोनों एक-दूसरे के बेहद करीब थे —
कपड़े, परतें, हिचकियाँ — सब पीछे छूट चुकी थीं।
अब जो था, वह बस **एक खुलापन था**,
जहाँ न झिझक बची थी, न कोई दूरी।
---
मधुर ने जब अपने होंठ रूपाली की गर्दन पर रखे,
तो उसकी साँसें टूटने लगीं —
हर चुम्बन जैसे कोई कविता बन जाता,
जिसे उसकी त्वचा पढ़ती जाती।
उसकी उँगलियाँ रूपाली के बूब्स पर रुकीं —
नरम, पूरी तरह समर्पित देह पर
अब सिर्फ़ विश्वास की छाप थी।
रूपाली की आँखें बंद थीं —
उसने खुद को उसकी बाँहों में ढीला छोड़ दिया,
जैसे कह रही हो —
**“ले चलो वहाँ, जहाँ सिर्फ़ हम हैं।”**
---
धीरे-धीरे मधुर ने उसका चेहरा थामा,
और उसे एक लंबा, गहराता हुआ चुम्बन दिया।
फिर उसने अपनी हथेलियों से उसकी कमर को थामा,
और दोनों की देहें अब एक लय में थी।
उनके बीच अब कुछ बचा नहीं था —
ना वस्त्र, ना वक़्त।
बस वो मिलन…
जिसे शब्द नहीं चाहिए होते —
बस दो धड़कनों का संगीत चाहिए।
---
रूपाली की जाँघें अब मधुर के इर्द-गिर्द थीं —
उसका शरीर पूरी तरह खुल चुका था,
और मधुर उसमें धीरे-धीरे समा गया।
कोई हड़बड़ी नहीं थी,
बल्कि **एक ठहराव**,
जिसमें हर हरकत
जैसे वक़्त को मंथर करती जा रही थी।
---
मधुर की साँसें अब गहरी थीं,
कमर की हर हरकत में
एक सहज गति थी —
जैसे कोई पुराने राग को धीरे-धीरे गा रहा हो।
रूपाली ने उसकी पीठ को थामा,
उँगलियाँ उसकी त्वचा में धँसने लगीं।
उसकी पलकों के नीचे
तेज़ होती भावनाओं की लहरें दौड़ रही थीं —
कभी शरारत, कभी प्यास,
कभी सिर्फ़… शांति।
---
उनकी देहों की टकराहट
अब ध्वनि बन चुकी थी —
धीमी, मगर स्पष्ट।
कमरे में और कुछ नहीं था
सिवाय साँसों की भाषा के,
और त्वचा पर फिसलते हुए मौन के।
---
कुछ देर बाद —
जब लहरें अपने किनारे से टकराकर शांत हो गईं,
तो मधुर उसके सीने पर सिर रखकर वहीं ठहर गया।
रूपाली ने उसके बालों में उँगलियाँ चलाईं,
जैसे किसी थके हुए बच्चे को थपक रही हो।
वो पल, जिसमें शब्दों की कोई ज़रूरत नहीं थी —
बस एक ‘होना’ था,
जो दोनों को पूरा कर रहा था।
---
**"कभी-कभी लगता है,"** मधुर ने धीमे से कहा,
**"कि तुम्हारे भीतर उतरना,
मेरे अपने ही भीतर लौटना है…"**
रूपाली ने उसकी ओर देखा —
थकी, मगर संतुष्ट मुस्कान के साथ।
**"और तुम्हारे पास आना,"** उसने फुसफुसाया,
**"जैसे दुनिया के सबसे सच्चे हिस्से को छू लेना हो…"**
---
बाहर अब उजाला हो चला था।
लेकिन भीतर —
उन दोनों के बीच रात अभी बाकी थी।
एक ऐसी रात —
जिसमें न सिर्फ़ शरीर मिले थे,
बल्कि उन स्पर्शों ने
उनके बीच का हर खालीपन भर दिया था।
---
कहानी कैसी लग रही है ज़रूर बताना , आपके विचार ही हमारी ताकत है फिल्हाल थोड़ा मोटीवेशन कम हो रहा है लिखने को मन नहीं हो रहा है पीलिज इसलिए कमेंट ज़रूर करे , 🥰
दोपहर का समय था।
ऑफिस की हलचल अपने चरम पर थी,
लेकिन एक कमरा था —
जहाँ घड़ी जैसे ठहर चुकी थी।
कमरा अंदर से बंद था।
एसी की ठंडी हवा और परफ्यूम की खुशबू मिलकर
एक अजीब-सी मदहोशी फैला रहे थे।
---
माधवन, कुर्सी से उठकर खिड़की के पास गया —
जहाँ उसकी सेक्रेटरी **पहले से खड़ी थी।
नीले रंग की शर्ट के नीचे उसका बदन हल्का-सा कांप रहा था,
जैसे कोई तूफ़ान आने से ठीक पहले का सन्नाटा।
**“तुम्हें पता है,”**
माधवन ने धीमे से कहा,
**“ऑफिस सिर्फ़ काम के लिए नहीं होते…
कभी-कभी यहाँ चाहतें भी पनप जाती हैं।”**
सेकेट्री ने उसकी ओर देखा —
न शर्म थी, न सवाल।
बस एक अजीब-सा आकर्षण,
जो दोनों के बीच एक महीन धागे की तरह तन चुका था।
---
माधवन ने उसके बालों को कान के पीछे सरकाया —
और फिर उसकी गर्दन पर एक हल्का-सा स्पर्श दिया।
ना जल्दी थी, ना हिचक —
बस एक धीमी-धीमी आग थी,
जो अब अपने पूरे ताप में आने को तैयार थी।
सेकेट्री की साँसें तेज़ होने लगीं —
उसने हल्के से आँखें मूँदीं और अपनी जगह जमी रही।
माधवन अब उसके और करीब आ गया था —
उसने अपने होंठ उसकी गर्दन पर रखे,
फिर नीचे उतरते हुए कॉलर की ओर बढ़ा।
---
उसकी उँगलियाँ अब सेकेट्री की शर्ट के बटन खोल रही थीं —
धीरे-धीरे, एक-एक करके…
जैसे हर बटन के पीछे कोई पुरानी चाह छिपी हो।
शर्ट खुलते ही, माधवन की नज़रें उस पर ठहर गईं।
उसके बूबस हल्के कंपन के साथ साँस ले रहे थे —
एक निमंत्रण-सा था,
जो सिर्फ़ आँखों से समझा जा सकता था।
---
माधवन ने अपने होंठ उसके बूबस पर रखे —
पहले हल्के, फिर गहराते हुए।
उसके चुंबन में कोई भूख नहीं थी,
बल्कि एक जान-बूझकर खिंचता हुआ स्पर्श था —
जो देह की परतों को अंदर तक महसूस करना चाहता था।
सेकेट्री की उँगलियाँ अब माधवन की कमीज़ के कॉलर से लिपटी थीं,
और उसके बदन में सिहरन की रेखाएँ उभर रही थीं।
---
माधवन ने उसके बूबस पर होंठ फिराए —
धीरे-धीरे, जैसे कोई वायलिन की तारों को छूता है।
उसके चुंबन में एक संगीत था —
और सेकेट्री की साँसें, उसी राग पर थिरक रही थीं।
शर्ट अब पूरी तरह फर्श पर थी,
और उसके नीचे का बदन —
जैसे बर्फ की परत पर कोई गर्म साँस रख दी गई हो।
---
उसके बूबस अब खुले थे —
और माधवन की हथेलियों ने उन्हें थामा…
नर्म, सधे हुए, वाइल्ड स्पर्श से।
उसने अपने होंठों से उनकी गोलाई पर एक परिक्रमा सी की —
कभी दाएँ, कभी बाएँ…
और हर बार सेकेट्री की साँसें लंबी होती चली गईं।
---
कमरे में अब कोई शब्द नहीं था —
बस स्पर्श की आवाज़ें थीं,
साँसों की लय थी,
और दो शरीर, जो एक-दूसरे को पढ़ रहे थे —
जैसे कोई अधूरी किताब मिल गई हो।
---
माधवन ने धीरे से सेकेट्री को सोफ़े पर लिटाया —
उसकी कमर को थामते हुए,
और उस देह को धीरे-धीरे अपने करीब खींचा,
जिसमें अब कोई बंधन नहीं बचा था।
**"तुम्हारी चू**त मारनी है,"**
माधवन ने फुसफुसाया,
**"जैसे किसी बंद कमरे में रोशनी भर देना…"**
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सेकेट्री ने उसकी आँखों में देखा —
एक पल को कुछ कहना चाहा,
फिर खुद को उसके आलिंगन में छोड़ दिया।
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वो लम्हा,
जिसमें देह से ज़्यादा भरोसे ने काम किया —
जिसमें किसी ने किसी को सिर्फ़ भोगा नहीं,
बल्कि *महसूस* किया।
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