नही आज नही" , असीस ने कहा । "शादी हूई है हमारी और तमु मेरे पास आने से डरती हो ,छः महीने ही तो हूय है अभी शादी को ", आशू ने कहा । "पर आज नही ", असीस की फिर से धीमी सी आवाज आई। " मेने पहले भी कहा है के मुझे न... नही आज नही" , असीस ने कहा । "शादी हूई है हमारी और तमु मेरे पास आने से डरती हो ,छः महीने ही तो हूय है अभी शादी को ", आशू ने कहा । "पर आज नही ", असीस की फिर से धीमी सी आवाज आई। " मेने पहले भी कहा है के मुझे ना पसंद नही ", कहते हुए आशू बीना असीस की कोई बात सुने उस पर हावी हो गया। एक तो नशा उपर से असीस की ना का गुस्सा ये सब असीस के हिस्से का ही दर्द था । रात तो अपनी ही चाल में बीत रही थी पर आज फिर से ये रात असीस के लिए लंबी हो गई थी रोज की तरह। आज पहली बार नही था ये सब । जिस दिन से असीस बियाह कर आई थी उसी दिन से ये सब शूरू था । असीस जिस की आखों में आसूं थे वो चुप सी उस रात के बीतने का इंतजार करने लगी ।
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"नही मम्मी मुझे अभी शादी नही करनी है। आप भाई को समझाये ना। उनको इतनी भी क्या जल्दी है मेरी शादी की।" लड़की जो अपनी मम्मी के सामने बैठी रो रही थी, वो उनको देख बार बार यही शब्द बोल रही थी, पर उसकी मम्मी भी चुप सी थी, वो भी आंसू बहा रही थी।
दूसरी तरफ
एक लड़का जो अपनी बाइक पर जा रहा था, वो एकदम से बाइक रोक कर हेलमेट उतार के उसे बाइक के हैंडल पर रख गहरी गहरी सांस लेने लगता है। उसका चेहरा मास्क से ढका हुआ था। "ये आज इतनी घबराहट क्यूं हो रही है मुझे?", उसने खुद से ही कहा और अपने पर्स से एक फोटो निकाल कर उसे देखने लगा, जो के उसी लड़की की थी जो अपनी मम्मी के सामने बैठी रो रही थी।
बर्तन साफ करने वाली सिंक में नल से अभी भी पानी की पतली सी धार गिर रही थी और वही एक तरफ मक्खी जो उस सिंक से बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी। गिली होने की वजह से वो धीरे धीरे चल रही थी।
उसी सिंक के पास खड़ी कुछ 22 साल की लड़की जिस ने कॉटन की नाइटी पहन रखी थी, माथे पर सिंदूर आंखो में सूनापन, एक टक उस मक्खी को ही देखे जा रही थी, जो खुद को इस सिंक से बाहर निकालने की कोशिश कर रही थी, तभी वो लड़की हरकत में आई और उस धीरे से चल रहे नल को खोल दिया, और हाथ में पानी भर उस मक्खी के उपर फेंक दिया जिस से वो मक्खी उस पानी के साथ ही होल में जा गिरी।
औरत चुप सी उस होल को देखती रही फिर एक दम से उस की आंखो से पानी बहने लगा। और वो नल को बंद कर वही दिवार से लग बैठ कर रोने लगी पर रोने की आवाज बस मूंह तक ही सीमित थी, वो बाहर नही आ रही थी।
तभी उसे किसी के आने की आहट हुई तो जल्दी से खड़ी होकर वो रसोई के काम करने लगी।
"जल्दी से हाथ चला रात का खाना अभी तक नही बना, अभी मेरा आशू आता होगा। और ये रोना सा चेहरा उसके आगे लेकर मत लाना समझी।"
एक औरत की आवाज आई तो रसोई में खड़ी औरत ने सिर हिला दिया और जल्दी से अपने आंसूं साफ कर काम करने लगी।
10 बजे घर की बेल लगी तो वो औरत जल्दी से दरवाजा खोलने गई। तभी दूसरी औरत की आवाजा आ गई।
"असीस कहां मर गई जल्दी आ।" 22 साल की असीस कभी दरवाजा देखती तो कभी आवाज की तरफ देखती।
"कहां रह गई", बोलते हुए वो औरत बाहर आई और असीस को देखा जो उसे ही देख रही थी।
"अब मेरा मुंह ही देखती रहेगी क्या जा दरवाजा खोल", कहते हूए वो औरत उस छोटे से हॉल में लगे सोफे पर बैठ गई।
तभी दरवाजे पर फिर से बेल लगी ये शायद इतने समय में 5वीं बार बेल लगी थी, तो असीस भागते हुए उस तरफ गई।
दरवाजा खुलते ही सामने कुछ अट्ठाइस साल का आदमी खड़ा था दिखने में ठीक सा रंग एक दम गोरा पर इस समय चेहरा गुस्से की वजह हे लाल हो रखा था।
"कहा थी कब से बेल लगा रहा हूं, सुनाई नही देता क्या।" उस आदमी ने सामने खड़ी असीस को देख कहा वही असीस कुछ बोलने को हूई तो वो आदमी दरवाजा जोरे बंद कर अंदर आया और साथ ही असीस के चेहरे पर एक थप्पड़ जड़ दिया।
असीस दीवार से जा लगी आंसूं लगातार बहे जा रहे थे।
"फ्री का खाती हो तो कुछ काम कर लिया करो समझी। आगे से अगर एक पल के लिए भी देर की तो समझ जाना क्या हाल करूंगा", उस आदमी ने कहा और अंदर चला गया वही असीस आपना चेहरा साफ कर जल्दी से रसोई की तरफ चली गई।
"आ गया मेरा आशू", हॉल में बैठी उस औरत ने कहा तो वो आदमी जो अंदर आया उस औरत के पास बैठ गया।
"हां मां आ गया, बहुत थक गया हूं मैं", उसने कहा। तभी असीस पानी का गिलास लेकर उस के पास आ गई तो आशू ने पानी लेकर पी लिया और गिलास असीस की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "2 ऑमलेट बना दो मै रूम में जा रहा हूं।" असीस चुप सी चली गई।
वही औरत आशू को देख कर, "आज कैसा दिन रहा तुम्हारा ऑफिस में।"
"कुछ नही मां बस काम ही रहता है। जब से ये कोरोना काल खत्म हूआ है नौकरी की ज्यादा टेंशन हो रही है", आशू ने कहा।
"सब ठीक हो गा तु इतना गुस्सा मत करा कर समझा ना", उस की मां आशू के सिर पर हाथ रखते हुए कहा।
"बस कर मां बहुत हो गया अब में अपने रूम में जा रहा हूं वही खाना खा लूंगा", आशू हाथ हटाते हुए बोला।
"हां खा ले मेने खा लिया, मैं भी सोने जा रही हूं", उस औरत ने कहा और उठ कर एक तरफ बने अपने छोटे से कमरे में चली गई।
असीस ने जल्दी से रसोई में जाकर ऑमलेट बना दिये और एक प्लेट में रख अपने कमरे में चली गई यहां पर आशू पहले से ही अपनी शर्ट के कफ के बटन खोल रहा था।
असीस ने अलमारी से उस के कपड़े निकाल कर बेड पर रख दिए और वापस से रसोई में आ गई।
आधा घंटा हो गया था असीस रसोई में ही खड़ी थी। उसकी आज अंदर जाने की हिम्मत नही थी। कयूकि आशू आज रूम मे बैठ कर ड्रिंक कर रहा था। ये पहली बार नही था। रोज का ही था पर बाहर से कर आता था वो पर आज घर पर कर रहा था ड्रिंक। तभी उसे रूम से आवाज आई तो असीस ने जल्दी से खाना गर्म करा और प्लेट में निकाल कर रूम की तरफ चल दी।
आशू ने अपनी शराब की बोतल खत्म कर दी थी, जो वो अपने साथ लेकर आया था। असीस ने टेबल पर खाने की प्लेट रखी और बाकी का सामान हटाने लगी।
वहीं आशू उसे ही देख रहा था जिस की गाल पर उस के थप्पड़ के निशान पढ़ गये थे। असीस ने जल्दी से वो जगह साफ कर दी वही आशू अपने खाने में लग गया।
असीस ने भी रसोई में आकर अपना खाना खाया और बाकी का काम करने लगी। रूम में जैसे ही दरवाजा बंद होने की आवाज आई तो असीस रूम की तरफ चल दी। यहां पर आशू नही था तो वो झूठे बर्तन उठा कर वापस आ गई और धोकर रख दिए।
पर उस के अंदर रूम में जाने की हिम्मत नही हो रही थी। इसी सोच में उसने समय देखा तो घड़ी साढे ग्यारह बजा रही थी।
असीस ने अपने रूम का रूख करा तो पाया आशू बेड पर सो रहा था। असीस भी धीरे से आकर बेड पर लेट गई बीना कोई आहट करे।
तभी आशू ने करवट ली और असीस को देखने लगा। असीस तो उसे हिलता देख ही डर गई। तभी आशू ने उसे पकड़कर अपने करीब कर उसे चुमने लगा।
"नही आज नही", असीस ने कहा।
"शादी हूई है हमारी और तमु मेरे पास आने से डरती हो, 6 महीने ही तो हूय है अभी शादी को", आशू ने कहा।
"पर आज नही", असीस की फिर से धीमी सी आवाज आई।
"मेने पहले भी कहा है के मुझे ना पसंद नही", कहते हुए आशू बीना असीस की कोई बात सुने उस पर हावी हो गया। एक तो नशा उपर से असीस की ना का गुस्सा ये सब असीस के हिस्से का ही दर्द था।
रात तो अपनी ही चाल में बीत रही थी पर आज फिर से ये रात असीस के लिए लंबी हो गई थी रोज की तरह।
आज पहली बार नही था ये सब। जिस दिन से असीस बियाह कर आई थी उसी दिन से ये सब शूरू था। असीस जिस की आखों में आसूं थे वो चुप सी उस रात के बीतने का इंतजार करने लगी।
असीस दिखने में आम सी कद काठी वाली लड़की लेकिन कोई देखे तो एक बार देखने पर मजबूर हो जाये आंखे एकदम ब्राउन थी उसकी, जिसकी शादी अभी कुछ समय पहले ही आशू के साथ हुई थी। पर शादी के बाद की जिंदगी किसी सदमे के जैसे थी।
रब राखा
सब लड़कियों की तरह उसके भी अपनी आने वाली जिंदगी के कुछ सपने थे। वो बी एस सी नर्सिंग के सेकेंड इयर में थी और उसकी शादी कर दी गई, उसकी मर्जी तो नहीं थी इस शादी के लिए पर घर परिवार और मां की बेबसी ने उसे कुछ करने भी नहीं दिया सिवाय अपने सपने को टूटता देख सकने के।
कितना रोई थी वो जब भाई भाभी ने उसकी फाइनल पेपर से पहले ही उसकी शादी तय कर दी थी।
गाँव से थी असीस तो पास के लगते कॉलेज में ही पढ़ने जाती थी, अपने ही काम से काम रखने से मतलब था उसे, पढ़ने में भी अच्छी थी। गाँव के पास ही एक बड़ा सा मेडिकल कॉलेज था जिसमें असीस पढ़ा करती थी।
घर में मां, भाई, भाभी थे। भाई भाभी भी साथ ही रहते थे। लेकिन एक दिन अचानक ही भाई ने घर आकर बताया के "असीस तेरी शादी तैयार कर दी है", ये बात असीस के सिर पर किसी हथोड़े की तरह लगी थी।
"पर भाई मेरे फाइनल आने वाले है आप ऐसा कैसे कर सकते है", असीस ने कहा।
"देख असीस सीधी बात बता रहे है तेरे भाई को बाहर देश नौकरी लग गई है अब हमे वही पर रहने की अनुमति भी मिल गई है", भाभी ने बीच में बात करते हुए कहा।
हथोड़े की वो दूसरी चोट लगी असीस को, वो हैरान सी अपने भाई को देख रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था के वो भाई को मुबारकबाद दे या ये पूछे के वो भी इस घर का हिस्सा है के नहीं। क्यूंकि उसे तो भनक तक नहीं लगी थी इस बात की।
"बहुत मुबारक हो भाई के आपकी नौकरी लगी है आप जाओ मैं और मम्मी यही पर रह लेंगे और में तो बच्चो को ट्यूशन देकर अपना खर्चा चला लूंगी", असीस ने कहा।
"असीस मां हमारे साथ जा रही है और ये घर भी हमने बेच दिया है, क्यूँकि हमारे पैसे पुरे नही हो रहे थे, अगले हफ्ते ही हमे जाना है", भाई ने आगे की बात कही तो असीस अपनी मां को देखने लगी जो चुप सी एक तरफ बैठी थी।
"कोई बात नही भाई मैं हॉस्टल में रह लूंगी आप जाओ मेरी टेंशन ना लो", असीस ने कहा। शायद उसे उम्मीद भी नहीं थी अपने भाई से।
"देख असीस लड़का हमने देख लिया है, अच्छा है दिल्ली जेसे शहर में उनका अपना घर है शादी के बाद जितना चाहे पड़ लेना वो मना नही करेगे अच्छा कमाता है वो और चार दिन में ही शादी मांगी है हमने हां करदी है", भाभी ने कहा।
"माँ कुछ तो समझाओ आप, मेने बस 2 साल ही तो मांगे है, आप समझाओ ना भाई को ऐसे ना करें, मैं कोन सा साथ जाने की जिद्द कर रही हूं", असीस ने अपनी मम्मी के हाथ पकड़कर कहा तो वो कुछ नही बोली। बोलती भी क्या, उस एक्सीडेंट में उनकी आवाज चली गई थी जिसमें असीस के पापा चले गये थे।
"देख असीस हम तुम्हारे भले की ही बात कर रहे है और अब तमाशा मत कर। वैसे भी हम दोनो ये बात नही सुन सकते के अपनी बहन को ऐसे अकेले छोड़ कर चले गये", भाई ने कहा। असीस तो बस अपनी मम्मी को ही देख रही थी जिस ने असीस के हाथ कस के पकड़ रखे थे।
"मां 2 साल भी नही है क्या मेरे लिए मेने कुछ ज्यादा तो मांगा नही ना, नर्स बन जाऊंगी आज ही सर ने बताया के मैं बहुत अच्छी हूं पड़ने में", असीस ने भरी हुई आखों से अपनी मां को देखते हुए कहा।
वहीं मां की आंखो में बस एक चुपी नजर आ रही थी।
नियत दिन पर असीस दुल्हन बनी मंडप में पहुंच गई थी शादी भी चुप चाप ही कर दी थी लड़के के परिवार के कुछ मुख्य सदस्य थे, तो असीस के भी भाई भाभी और जान पहचान के लोग ही थे।
तभी अलार्म बजने की आवाज आई तो असीस एक दम से उठ गई। सुबह के 6 बज गये थे। अलार्म बंद कर असीस ने एक बार नजर घुमा कर देखा तो आशू सो रहा था जिसका हाथ असीस पर था। उस के हाथ को हटाकर असीस धीरे से उठ कर बैठ गई। बेड से नीचे कदम रखते ही उस के पेट के नीचे के हिस्से में तेज दर्द की लहर उठी जिसे सहन करते हुए वो बाथरूम की तरफ चल दी।
शादी की रात से आज तक बहुत कुछ बदल गया था पर जो नही बदला था आशू का गुस्सा और ये रातें जो आज भी वही दर्द देती थी।
रोज की तरह ही आशू 8 बजे उठा, तो सीधा बाहर आ गया यहां पर असीस रसोई में लगी थी और मां का पता नही। शायद वो भी अभी रूम में ही थी। तो रसोई से आती आवाज सुन आशू उस तरफ चल दिया। असीस सलवार सूट पहने गले में एप्रन पहने हुए काम कर रही थी, उस का दुपट्टा एक तरफ रसोई के दरवाजे पर टंगा हूआ था।
"चाय ले आओ मुझे ऑफिस जाना है", इतना कह कर वो चला गया तो असीस ने मुड़ कर पीछे देखा और जल्दी से एक चुलह पर चाय का पानी चढ़ा दिया।
"उठ गया", रूम से बाहर आती हुई मां ने कहा।
"हां मां उठ गया। बस आज जल्दी जाना है ऑफिस", आशू ने कहा और सोफे पर बैठ कर न्यूज देखने लगा।
कुछ ही देर में असीस ने आके दोनो को चाय दी, "साफ सफाई हो गई क्या", मां ने असीस से कहा।
"हां मां हो गई है सब साफ सफाई, उस के बाद नहा धो कर रसोई में आई थी", असीस ने कहा।
"ठीक है जल्दी से आशू के लिए खाना बना दे", मां ने कहा। असीस वापस से रसोई में आ कर अपने काम पर लग गई।
"ठीक है जल्दी से आशू के लिए खाना बना दे," मां ने कहा। असीस वापस से रसोई में आकर अपने काम पर लग गई।
अभी कुछ ही देर हुई थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई तो असीस जल्दी से एप्रन उतार चुन्नी को अपने कंधो पर टिकाते हुए रसोई से बाहर की तरफ चल दी।
"अरे असीस तू, बहुत प्यारी लग रही है," दरवाजा खोलते ही बाहर खड़ी औरत ने असीस को देख कहा तो असीस के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
"जानकी कहा है?", उस औरत ने कहा।
"आईये ना आप अंदर", असीस ने कहा और एक तरफ हट गई। वो औरत अंदर आ गई तो असीस दरवाजा बंद कर वापस अंदर आ गई।
"अरे सरला तू आज इतनी सुबह सुबह", जानकी आशू की मां ने उस औरत को आते देख कहा और खड़ी होकर उस के गले लग गई।
"जानकी तु भूल गई क्या आज मंदिर जाना था", सरला ने कहा।
"अरे हां मै तो भूल ही गई आज तो तुम लोगो ने मंदिर में भंडारा करा है", जानकी ने सरला को बैठाते हुए कहा।
"तो अब जल्दी कर तैयार हो जा गाड़ी खड़ी है नीचे दोपहर तक वापस आना है", सरला ने कहा।
"तु बैठ मैं अभी आई, असीस तब तक अपनी आंटी के लिये चाय ले आ", जानकी ने असीस से कहा और सरला को दो मिनट का बोल कर रूम की तरफ चल दी।
"और बेटा कैसा चल रहा है काम", सरला ने आशू से पूछा जो पास बैठा टीवी देख रहा था।
"बस अंटी सब अच्छा चल रहा है", आशू ने कहा।
"अच्छा तो तुम को फिर से बोल रही हूं आज रात मेरे बेटे के आने की पार्टी है और कल से उसकी शादी की सारी रस्में शुरू हो जायेंगी तो तुम और असीस को आना है", सरला ने कहा।
"जी अंटी जरूर आयेगे", आशू ने कहा।
तब तक असीस भी चाय का कप ले आई और सरला अंटी को दे दिया।
"बहुत प्यारी लग रही हो आज", सरला अंटी ने फिर से असीस के गाल को छू कर कहा तो आशू का ध्यान एक बार फिर से असीस पर चला गया। जिस के चेहरे पर अब थप्पड़ का निशान नही था।
असीस मुस्कुरा दी और वही अंटी के पास बैठ गई।
"अच्छा असीस घर का ध्यान रखना, फोन तो है ना तुम्हारे पास कोई बात हो तो फोन कर लेना", जानकी ने जाते हुए कहा तो असीस ने सिर हिला दिया। जानकी सरला दोनो ही सामने खड़ी गाड़ी में बैठ कर चली गई तो असीस भी दरवाजा बंद कर अंदर की तरफ चल दी। आशू अभी भी वैसे ही बैठा था तो वो रसोई की तरफ चल दी।
"मेरे कपड़े निकाल दो", आशू की आवाज आई तो असीस के कदम अपने कमरे की तरफ हो गये।
"ब्लेक शर्ट निकाल दो", आशू की आवाज फिर से आई तो असीस ने मुड़ कर उसे देखा जो उसी के पास खड़ा था।
"जी अभी निकालती हूं", कहते हुए असीस के हाथ तेज चलने लगे। तभी आशू ने उस को अपनी तरफ घुमा लिया।
"साॅरी असीस रात को मेने तुम पर हाथ उठा दिया। बहुत गुस्से में था, ऑफिस में बॉस बहुत सुनाता है तो वो गुस्सा भी तुम पर ही निकाल दिया", आशू ने कहा तो असीस ने सिर हिला दिया ।
"वैसे आज बहुत प्यारी लग रही हो", आशू ने आसीस के गाल को अंगूठे से सहला कर कहा।
"वो सब्जी गेस पर है में देखती हूं", असीस जल्दी से बोली।
"मै बंद कर आया हूं", आशू ने असीस को रोकते हुए कहा।
"वो आपको लेट हो रहा है ना", असीस ने फिर से कहा। उस में अब आशू को झेलने की हिम्मत नही थी, वो बस आशू से फिलहाल दूरी बनाना चाहती थी।
"देखो ना कोई भी नही है घर पर", आशू ने फिर से कहा और झटके से असीस को बेड की तरफ ले गया। असीस की ना में भी कोई असर नही था आशू के सामने। आशू को जो करना होता वो वही करता।
चाहे आशू नशे में हो जा बीना नशे के, पर असीस का दर्द हर बार ज्यादा ही होता।
दस बजे के करीब आशू ऑफिस के लिए निकल गया तो असीस दरवाजा बंद कर रूम में आकर लेट गई। कुछ आसूं फिर से आखों से बह निकले। पास पड़े टेबल से फोन उठा कर देखा तो कल शाम को आये भाई के कॉल का नाम शो हो रहा था। असीस वैसे ही उस स्क्रीन को देखने लगी।
कल शाम को हो तो भाई का फोन आया था। शादी के छः महीने बाद ये दूसरी बार था जो उसकी तरफ से फोन आया।
हाल चाल तो जानना था वो जाना ही साथ भाई ने ये भी कह दिया के इतना फोन ना करा करे। काम पर होता है और घर पर भी मां आजकल ठीक नही रहती।
असीस के क्या हाल इस बारे में तो बस फाॅरमेलटी सी पुरी कर ली थी भाभी ने पुछ कर। मां से क्या बात होती, तो बस वो चुप सी रह गई।
बात तो ये थी के असीस को बस आधी बात ही पता थी। उसे बस ये बताया गया था के लड़का दिल्ली में रहता है और उसका अपना घर है और ये बात सही भी थी। पर ये नही बताया था के लड़का शराब भी पीता है, रोज पीता है और गुस्सा तो वो हर पल रहता है।
असीस को शादी के बाद ही इस सब का पता चला था जब उस की सास ने रस्में पुरी की थी। साथ ही आस पड़ोस की कुछ औरते बैठी हूई बाते कर रही थी उस समय असीस सब के बीच घूंघट औढ़े बैठी थी।
"जानकी को तो बहू मिल गई असीस जैसी। लड़के को तो चांद मिल गया है जिस का गुस्से पर काबू नही रहता और शराब छोड़ नही सकता। उस लड़के को भी लड़की मिल ही गई, उम्र की अभी हल्की है, पर जो भी है जानकी के घर बहु तो आ ही गई।"
एक औरत दूसरी औरत से बोल रही थी वही असीस जो चुप सी इन सब बातों को सुन रही थी उसे तो मानो झटका लगा था। ऐसा तो कुछ नही बताया था उसे। और इस झटके को अमली रूप तब मिला जब बेड पर बैठी असीस के सामने ही आशू बैठा था जो शराब के नशे में चुर उसे ही देख रहा था।
उस रात भी असीस ने कितना मना करा पर कोई फायदा ना हुआ था। और वो सिलसिला आज तक चल रहा था।
शादी तो असीस की हो चुकी थी पर इस शादी में वो प्यार नही था जो एक मीया बीवी के बीच होता है, बस जो था वो थी आशू की मर्जी जो वो हर तरीके से और हर बार पुरी करता था।
इन सब बातो को सोचते हुए कब बारह बज गये असीस को पता ही नही चला उस का ध्यान तो फोन के बजने से टूटा जिस पर मम्मी नाम शो हो रहा था। असीस की सास का फोन आया था जानकी का।
असीस ने जल्दी से फोन उठा लिए, "जी मम्मी"।
उसने फोन कान से लगा कर कहा।
"तू ठीक है ना घर तो अंदर से बंद है ना", जानकी ने पूछा तो असीस ने हां में जवाब दिया।
"ठीक है सब काम खत्म कर लेना", उसने कहा। तो असीस ने एक बार फिर से हा में सर हिला दिया।
"तो गेंहूं धो लिए क्या, तुम्हे बताया था वो भी धोने है", जानकी ने कहा तो असीस को ध्यान आया के कल दोपहर को ही मम्मी ने उसे कहा था गेंहूं धोने है।
"नही धोये क्या", दूसरी तरफ से आवाज आई।
"नही मम्मी वो बस अभी जा ही रही थी धोने", असीस ने बेड से उठते हुए कहा।
"बारह बज रहे है जल्दी कर ले", जानकी ने कुछ उखड़े हुए स्वर में कहा और फोन काट दिया।
असीस जलदी से अपना दुपट्टा लेकर घर से बाहर निकली दरवाजे बंद कर वो सीढ़ियां चढ़ने लगी।
अस्ल में घर जो कुछ सात सो सकेयरफीट मे बना हूआ था उस के दोनो तरफ गली लगती थी। आज से कुछ साल पहले दिल्ली के बाहर बाहर कॉलोनी कटी थी तब जानकी के ससुर ने ये जमीन लेकर यही पर घर बना लिया था। जो बाद में आशू के पापा के हिस्से आया था। नीचे के दो कमरे रसोई बाथरूम का पुरा सेट बना हूआ था। जिस में एक छोटा सा हॉल भी था। उपर भी एसा ही पोरशन बना था। जिसे किराये पर दिया हूआ था। फिलहाल वहा पर मीया बीवी रहते थे जो दोनो ही सुबह काम पर चले जाते और शाम को आते।
सब से उपर एक छोटा सा रूम था जिस में ही गेहूं की टंकी रखी थी वही से ही असीस गेहूं निकाल कर छत पर ही बनी टंकी से पानी लेकर, धोया करती थी। आज भी असीस उपर आई और जल्दी से अपने काम में लग गई।
सुबह के धोकर डाले हुए कपड़े भी सुख चुके थे, असीस ने जल्दी से कपड़े उतार कर एक तरफ रखे और गेंहू धोने लगी।
वो चुप रहती, जा ऐसी हो गई थी किसी को नही पता था। पर साथ की छत पर कपड़े सुखा रही मिश्राईन की लड़की उसे देखती रहती थी।
असीस घर पर ही रहती थी। उम्र में उस से भी छोटी थी वो। कभी कभी वो सोचती भी के ऐसी भी कया जल्दी थी असीस के परिवार को के आशू भाई से शादी कर दी और असीस मान भी गई।
वो लोग बचपन से ही आशू और उसके परिवार को देखते आये थे। तो सब को कुछ ना कुछ बुरा ही लगता था। आशू की बहन सुरभि जो के एक सटाफ नरस थी उसकी शादी हो चुकी थी और वो अपने परिवार के साथ रह रही थी। सब जानते थे इनके बारे में पर मूंह पर कहने की हिम्मत किसी में ना थी।
जानकी बातों की बहुत तेज थी तो बेटी भी उसी पर गई थी मोहल्ले में कम ही बनती थी उनकी। सब उसे बस ठीक ठीक ही बात करते। पर सरला से उसकी अच्छी बनती थी वो एक ही गांव से जो थी।
मिश्राइन की बेटी कुछ कहती के तभी उसे नीचे से आवाज आ गई तो वो नीचे चली गई। असीस अपने काम में लग गई। धूप अब तेज होने लगी थी। तो वो जल्दी जल्दी हाथ चला रही थी।
शाम घिर आई थी पर जानकी अभी भी नही आई थी। असीस खिड़की के साथ खड़ी बाहर की तरफ देख रही थी यहां गली में कुछ बच्चे खेल रहे थे।
असीस उनको देख खुश हो रही थी। तभी घर की बेल बजी। तो असीस जल्दी से दरवाजा खोलने चल दी। तो सामने आशू को देख हैरान होगई। उसके साथ ही जानकी भी खड़ी थी।
"क्या कर रही थी", आशू ने अंदर आते ही पुछा।
"कुछ नही बस फ्री थी", असीस ने जवाब दिया और दरवाजा बंद कर रसोई की तरफ बढ़ गई।
आशू जानकी दोनो ही सॉफे पर बैठ गये।
"आज बहुत जल्दी आ गया", जानकी ने आशू से पुछा।
"हा मां वो आज अंटी ने कहा था पार्टी के लिये तो आ गया", आशू ने जवाब दिया तब तक असीस भी पानी ले आई और दोनो को दिया।
"चाय बना दे बहुत थक गई हूं", जानकी ने गिलास वापस ट्रे में रखते हुए असीस से कहा तो असीस सिर हिलाते हूए जल्दी से चली गई।
"एसा कर पार्टी के लिए अच्छे से कपड़े पहन लेना समझी और गेंहूं तो उठा लिए थे ना उपर से", जानकी ने कहा जब तीनो ने चाय पी ली थी, असीस ने भी हां कहा।
"और हां मेरे कपड़े ही प्रेस कर दे", कहते हुए वो रूम की तरफ चली गई। असीस ने भी सब सामान उठाया और रसोई की तरफ चल दी।
"असीस मेरी ब्लू शर्ट प्रेस कर देना", आशू ने असीस को देख कहा जो अपना ब्लू कलर का सुट प्रेस कर रही थी। असीस ने आशू की बात सून अलमारी से ब्लू कलर का शर्ट निकाल ली। और प्रेस करने लगी। वही आशू ने असीस को बहुत ध्यान से देखा।
और फिर बाहर की तरफ चला गया। वही आसीस ने उसे जाता देख मानो गहरी सांस ली थी। नजाने क्यूं पर असीस जब भी आशू के साथ होती तो उसे एक अजीब ही बेचैनी होती। रिश्ता पति पत्नि का था पर इस रिश्ते में वैसी बात नही थी।
असीस, असीस के भी कुछ सपने थे जो अपने जीवन साथी के लिये थे। लेकिन उन सपनो में आशू कही भी नही फिट बैठता था। वही आशू ने भी असीस से कभी ज्यादा बात नही की थी। सुबह काम पर जाता और शाम को वापस आ जाता। कभी कभी काम ज्यादा होने की वजह से जितना गुस्सा होता वो पहले ही असीस पर निकाल देता उसके बाद बैठ कर पीता।
पहले पहले असीस के लिए ये सब झेलना बहुत मुश्किल था, पर जैसे जैसे समय बीता उसे आदत हो गई थी। पर आशू के पास आते ही आज भी वो डर जाती थी।
सात बजे के करीब असीस तैयार हो कर बाहर आई तो जानकी एक पल के लिए उसे देखती ही रह गई। "आशू बाहर है चलो", जानकी ने कहा तो असीस चल दी।
बाहर ही आशू खड़ा फोन पर बात कर रहा था तो असीस को देख वो भी चुप सा रह गया। उस ब्लू कलर के सूट में असीस बहुत प्यारी लग रही थी हल्के से मेकअप के साथ।
"चलो चले", जानकी ने घर को ताला लगाते हुए कहा। और तीनो ही चल दिए पार्टी एक गली छोड़कर ही थी, सरला के घर के सामने ही पार्क था। तो पार्टी का टेंट वही पर लगा हूआ था। असीस आशू के साथ कम ही बाहर आती थी। पर आज वो आशू के साथ बाहर आई थी तो बहुत से लोगो की नजर उस पर थी, असीस बहुत प्यारी लग रही थी। जानकी तो दोनो को देख कर ही फुली नही समा रही थी।
"देख रे कैसे जानकी की खुशी संभाली नही जा रही। मुझे तो लगता है अभी असीस को आशू की पुरी सच्चाई पता ना है, तभी तो वो इस के साथ रह रही है। जैसे आशू के हालात है ना इसके साथ तो कोई बस ही ना पाये।" एक औरत ने दूसरी से कहा दोनो ने ही आशू असीस को जाते देखा था तो वही एक घर के सामने खड़ी होकर बातें करने लगी। ये मिश्राईन, और जाटनी थी।
रब राखा
ये मिश्राईन और जाटनी थीं। मिश्राइन का घर तो जानकी के घर के बगल ही था, तो वहीं जाटनी का घर सामने लगता था। जैसे जानकी का घर 2 गली से लगता वैसे ही सामने वाला घर जाटनी का दोनों गली से लगता था पर उनकी जगह ज्यादा थी।
जाटनी असीस को ही देख रही थी जो अपनी सास, पति के साथ आगे निकल गई थी।
"पता नहीं क्या है आशू का दिमाग।
कल रात आया था गुस्से में, मैंने देखा था कैसे बाइक को लगाकर उसे पैर मारा था। इतना गुस्सा था इसे, पर एक आवाज घर से नहीं आई इनके। वरना पहले तो पूरा मुहल्ला परेशान हो जाता था तीनो माँ बेटे बेटी की लड़ाई से। पर शादी के बाद कुछ तो बदला है आशू", जाटनी ने कहा।
मिश्राइन जाटनी को देख कर, "बदला नहीं है कुछ भी, बस गुस्सा अब असीस पर उतारता है पिछले हफ्ते। मैं सुबह सुबह छत पर थी तब देखा था असीस को। गाल पर पांचो ऊंगलीयां छपी हुई थी, नीला ही पड़ गया था गाल उसका", मिश्राइन ने दबी सी आवाज से कहा। तो उसी समय दरवाजे पर आ रही उसकी बेटी रीना ने ये बात सुन ली जिसने आज ही असीस को देखा था।
"मम्मी आप भी तैयार हो जाओ पार्टी में बुलाया है हमें भी", उसने बाहर आते हुए कहा तो मिश्राइन उसे देखने लगी।
"ठीक है आती हूं", वो बोली और जाटनी को देख कर। "देख जाटनी कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं हो सकती। तो उसी प्रकार ये शर्मा की फैमिली भी नहीं सुधर सकती।
सुनने में तो आया है सुरभि की भी अपने पति के साथ नहीं बनती है। आए दिन तो यहीं दिखती है।"
"बस करो मम्मा अब", रीना ने कहा। तो मिश्राइन उसे देख कर, "ठीक है अभी आती हूं दस मिनट दे", कहते हुए वो अंदर चली गई। तो रीना ने जाटनी को देखा।
"आंटी आप नहीं चल रही", वो बोली।
"नहीं वो घर पर भी कोई नहीं है ना, सब तैयार होकर चले गए। मैं रुक कर आऊंगी तब तक बाकी सब आ जाए गे", वो बोली।
रीना ने इधर उधर देखा। "आंटी आपको नहीं लगता के असीस को पता होना चाहिए के आशू भाई को 6 महीने तक नशा छोड़ने की जगह रखा गया था?"
"बस कर रीना, अगर ये बात शरमाईन (जानकी) को पता चली ना तो पता नहीं वो क्या करेगी। और देख कुछ समय में तुम्हारी भी शादी होनी है तो तू खुद में रह। आजकल के जमाने में दूसरों के बारे में नहीं खुदके बारे में सोचते है। खास कर जब सामने वाले इन लोगों के जैसा हो", जाटनी ने कहा। तो रीना ने सिर हिला दिया।
तभी रीना का फोन बजने लगा तो रीना ने फोन उठा लिया और जाटनी अपने घर की और चल दी।
असीस, आशू, जानकी तीनों ही पहले घर गए थे। यहां पर सरला और उसके परिवार ने जानकी, असीस और आशू को सब से मिलाया खास कर रोनी से जिस के आने की पार्टी थी और कल से शादी की रस्में शूरू थी।
असीस अपनी सास के इशारे से बड़ों के पैर छू रही थी तो आशू को भी वैसा ही करना पड़ा।
"अरे भाभी ये फाॅरमेलटी क्यूं कर रही है, चलो यहां बैठो बात करते है", रोनी ने आसीस को देख कहा और साथ ही उसे अपने पास सॉफे पर बैठने का इशारा करा। असीस उसे देखने लगी, "अरे बैठ जा असीस", कहते हुए सरला ने असीस को बैठाया और साथ ही आशू को भी बैठा दिया। जानकी को एक तरफ बैठाया।
"अरे भाभी जब आपकी शादी थी तब मैं यहां पर नहीं था। तो चलो जान पहचान ही कर लेते है वैसे मेरा नाम रोनी है।" रोनी ने कहा तो असीस ने सिर हिला दिया।
"बाते तो होती ही रहेंगी चलो अब पार्टी में चलें।" जानकी ने जल्दी से कहा वही आशू जो असीस को ही देख रहा था जो रोनी की बातों पर मुस्कुरा रही थी। वो जल्दी से उठ गया। "हां मुझे भी लगता है के हमे बाहर चलना चाहीए", आशू ने कहा।
"ओके मम्मी आप सब बाहर चलो भाभी आप मेरे साथ चलो कुछ काम है", सरला की बेटी ने कहा तो सरला रोनी भी खड़े हो गये।
जानकी असीस को देख रही थी, "जा करदे मदद और बाहर आ जाना", उस ने कहा और आशू के साथ वो भी बाहर चल दी।
बाहर भी सब लोग आने लगे थे। तो सरला रोनी उन सब से मिलने में बिजी हो गये तो वही जानकी आशू को लेकर एक तरफ बैठ गई।
"पागल हो गय है क्या। क्या कर रहा था अंदर", उसने कहा।
"कुछ भी करूं आपको क्या", आशू ने गुस्से से कहा और आगे बड़ गया। जानकी बस उसे देखती ही रह गई।
"अरे भाभी आप तो बोलती ही नही हो", नैना ने कहा सरला की बेटी ने। इस समय वो अपने रूम में शीशे के सामने खड़ी थी और असीस उसके लहंगे के दुपट्टे को सही कर रही थी।
"नहीं तो बस ऐसे ही", असीस ने कहा और शीशे में देख कर, "हो गया", तो नैना ने भी सिर हिला दिया। "चलो हम भी चलते है", नैना ने कहा और असीस को अपने साथ लेकर चल दी।
असीस नैना के साथ हल्की फुल्की बातें करती हुई जा रही थी, दोनो अभी सीडियां उतर के सब से नीचे पहुंची ही थी के तभी असीस का पैर किसी चीज में फंस गया और पहनी हुई सेंडल उस में फंस गई। असीस जो गिरने ही वाली थी उसने आंखे बंद कर ली, क्यूकि अभी उसे बहुत जोर से चोट लगती। वही नैना भी हैरान सी रह गई।
"आर यू ओके", इस आवाज से असीस ने आखें खोल कर देखा तो वो सामने देखती ही रह गई।
"भाभी आप ठीक हो", नैना ने कहा। तो असीस जल्दी से खड़ी हो गई।
तो वही लड़का जो नीचे लेटा था वो उठते हुए खुद को साफ करने लगा। "माफ कीजियेगा वो पता नही चला"। असीस ने कहा
तो उस लड़के ने सिर हिला दिया पर चेहरे पर लगा मास्क नही हटाया। असीस उसका सिर हिलाया देख आगे बढ़ गई। तो नैना उस लड़के को देखने लगी
"अरे तू यहां है और ये मास्क क्यूं लगा रखा है", रोनी ने वही आते हुए कहा और साथ ही उस लड़के के कंधे पर बाह रख दी।
तो नैना अपने भाई को देखने लगी फिर वहां से चली गई।
"मास्क उतार ना", रोनी ने फिर से कहा।
"देख आ गया इतना ही बहुत है पर ये मास्क नही उतरेगा", वो लड़का बोला।
"पर क्यूं?"
"बस आज हाथापाई हो गई थी तो होठो के पास जख्म हो गया है", उस लड़के ने कहा।
"तू नही सुधरे गा चल आजा पार्टी में चले", कहते हुए रोनी उसे अपने साथ ले गया।
असीस पार्टी में आई और जानकी को एक तरफ खड़ा देख वही उसके पास आकर खड़ी हो गई।
"क्या हूआ तेरे चेहरे पर पसीने क्यूं है", जानकी ने कहा।
"बस मम्मी जी वो गर्मी है ना इस लिय", असीस बोली।
"चलो खाना खा लो और चलो यहां पर तो ऐसा ही रहेगा। आशू को कल जाना भी है ऑफिस", जानकी ने कहा और असीस को अपने साथ लेकर चल दी।
आशू भी वही था जो के एक तरफ खड़ा हो कर पीये जा रहा था और सब को देख रहा था।
जानकी असीस सब की तरह खाना लेने लग गई तो वही रीना ने असीस को देखा जो ब्लू कलर के सूट मे बहुत सुंदर लग रही थी।
उस का मन करा के वो एक बार असीस से बात कर ले पर अपनी मम्मी के साथ रहते वो चुप ही रही और खाना लेकर अपनी मम्मी के साथ एक तरफ खड़ी हो गई।
असीस जानकी के साथ एक तरफ बैठी खाना खा रही थी के तभी आशू भी वही आ गया। जो बस असीस को ही देख रहा था।
"चले मम्मी के अभी और भी है कुछ करना है", वो बोला।
"हां बस खाना तो खा लें", जानकी ने कहा तो आशू कुर्सी लेकर असीस के पास बैठ गया और उसकी ही प्लेट से खाना खाने लगा। असीस एक पल को उसे देखने लगी लेकिन फिर अपना ध्यान खाने पर लगा लिया।
"अच्छा फंक्शन था ना", जानकी ने कहा जब वो लोग घर आकर सोफे पर बैठे।
वही असीस जल्दी से अपने रूम की तरफ बड़ गई उनको आने में देर हो गई थी। आशू ने अपनी मां की बात पर सिर हिला दिया।
खाना तो कब का खा लिया था, और चल भी दिए घर को पर तभी सरला ने उनको रोक लिया और एक तरफ बज रहे डीजे पर असीस को लेकर चली गई वही नैना भी असीस के साथ ही थी।
आशू को भी बहुत कहा था आने का पर वो जानकी के पास खड़ा रहा और सामने नाच रही असीस को देखने लगा जो नैना के साथ डान्स कर रही थी। खुश लग रही थी वो, शायद उसे ये सब पसंद था। बाकी के लोग भी वही थे जो उन बच्चो को देख रहे थे इसी बहाने रीना भी आ गई थी वहां पर और असीस नैना के साथ ही ग्रूप बना कर नाच रही थी।
कुछ देर बाद असीस वहा से निकल कर जानकी के पास आकर खड़ी हो गई और सामने डान्स कर रहे लोगो को देखने लगी। इस हंसी खुशी के माहौल में पता ही नही लगा के कब इतना समय हो गया।
"बहुत खुश लग रही थी", आशू ने कहा जब वो रूम में आया। असीस वही कॉटन की नाइटी पहने हुए अपने बाल सही कर रही थी के अचानक आशू की आवाज सुन वो उसे देखने लगी।
"हम्म", उसने इतना ही कहा और वापस से अपने बाल सही करने लगी।
आशू अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा तो असीस जो बाल सही कर चुकी थी उनको खुला ही छोड़ कर वो उसके कपड़े निकालने लगी।
तभी उसे अपने बालो पर एक कसाव महसूस हूआ और अगले ही पल एक तेज दर्द के साथ वो आशू को देखने लगी।
आशू ने ही उसके बाल पकड़कर उस का चेहरा अपनी तरफ करा था और गुस्से से उसे देख रहा था वही असीस का एक हाथ अपने बालों पर और दूसरा हाथ आशू की बाह पर था।
"कौन था वो जिसके साथ उपर नीचे हो रही थी", वो गंदे तरीके से बोला जिसे सून हैरान सी असीस मूंह खोले उसे देखने लगी।
"कौन मुझे नही पता, मुजे दर्द हो रहा है", उसने आशू के हाथ को हटाने की कोशिश करते हुए कहा। तो आशू ने अपनी पकड़ कस दी।
"नही पता", वो बोलते हुए आगे बड़ा जिसके साथ ही असीस पीछे की तरफ हो गई और खुली अलमारी के दोनो दरवाजे के बीच वो सट गई। आशू की पकड़ और भी कस गई जिस वजह से असीस की एड़ियां उपर की तरफ उठ गई वो अब पंजो पर थी और चेहरा आशू के चेहरे के सामने था।
"क्या सोच रही हो मुजे कुछ पता नही चलेगा। तुम वहां जाकर आजाद हो गई वहां पर आराम से देख रहे थे एक दूसरे को और फिर नाचने के समय करीब करीब जा रही थी। चल क्या रहा है कोन था वो।"
असीस तो मानो स्तंभ सी रह गई थी उसकी बात सुन कर। तभी उसे फिर से बालों में तेज दर्द हूआ और साथ ही आंखो में रूके आंसू भी अपने बांध तोड़ कर गालों पर आ गय।
"मुझे सच में नही पता आप क्या कह रहे है नही पता। किस के बारे में बात क,,,,,,,,,,,,,"
वो अभी आगे कुछ कहती के आशू ने उसकी कमर पर हाथ रख खुद के करीब करते हुए, "एसे ही हाथ रखा था ना उसने, कोन था वो", ग़ुस्से में वो फटा था। वही असीस उसके इस रूप को देख कर डर गई। लाल आंखे कुछ नशे से तो कुछ गुस्से से बस उसे ही घुर रही थी।
रब राखा
असीस जो उसके गुस्से को देख डर गई थी। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था के आशू किस बारे में बात कर रहा है, ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ था।
"देखे मुझे दर्द हो रहा है," वो फिर से बोली।
"दर्द, तुमको दर्द हो रहा है, तुम तो वहाँ पर मस्ती कर आई हो ना तो दर्द कैसा," आशू तो मानो पागल सा हो गया था जो बिना बात के असीस पर गुस्सा कर रहा था।
"मेरे पास आते ही तू ना ना करती है और आज सब के सामने वहाँ पर उस के साथ, सच सच बता कौन था वो," आशू ने वैसे ही असीस के बालों को पीछे की तरफ खिंचते हुए पूछा। जिस से असीस का चेहरा उपर की तरफ उठ गया।
आंसू बहे जा रहे थे उसके। "न,ही प,ता आप क,,,,,,,"
असीस की आवाज जो आधी अधूरी आ रही थी वो मुंह में ही रह गई। और आसू पागलों की तरह उसे चुमने लगा।
वो आज पागल ही हो गया था जो असीस के साथ ये सब कर रहा था। असीस जो उसे दूर करती पर फिर से उसकी कैद में आ जाती।
आशू जो उसे किस कर रहा था वो बार बार असीस के धक्का देने से परेशान हो गया और एक थप्पड़ असीस के गाल पर जड़ दिया। और खिंचते हुए उसे बेड पर धक्का दे दिया। असीस उसे इस तरह देख कर डर गई थी जो उस की तरफ बढ़ते हुए पैंट की बैल्ट खोल रहा था।
असीस ने रूम से बाहर जाने की कोशिश की पर सब नाकाम रहा। पागलों की तरह उस पर झपटा था वो। और फिर अपनी सारी हद्दे पार की। पति पत्नी के रिश्ते को आज उसने शक की भेंट चढ़ा दिया था। और वो शक बिना बात का ही था।
असीस जो बेड की टेक से पीठ लगाये पास लेटे आशू को ही देख रही थी आंखे रोने की वजह से सुज चुकी थी। और लालगी भी उनमें हमेशा से ज्यादा थी।
खुद के वजूद को वो खुद के हाथो में भरे हुए बस रोये जा रही थी। ये राते ऐसी ही थी पर बीती रात सब कुछ बदल गया था। आशू का वो रूप किसी भयानक सपने जैसा ही था। जो उसे जानवर की तरह नोच रहा था। ये भी ख्याल नही करा के वो उसकी ही पत्नी है।
असीस को अभी भी समझ नहीं आई थी के उसे किस गलती की सजा मिली है। नाइटी जो बेड के नीचे पड़ी थी असीस ने उसे उठाया तो उसका एक तरफ का कंधा भी फटा हुआ था। असीस बेबस ही रह गई और उसे पहन कर वो बाथरूम की तरफ होले होले चल दी।
दीवार के सहारे से खड़ी होकर सामने लगे शीशे को देख रही थी। जिसमें उसका अक्स दिख रहा था।
उसकी गाल पर ऊंगलीयां छपी थी जो के नया नहीं था, पर आज उसके चेहरे पर पड़े नीले निशान रात में हुई ज़्यादती के बारे में बता रहे थे। होठो के पास से रिस रहा खून बता रहा था के क्या हुआ था यहां पर। नाइटी के फटे कंधे से झांकते असीस कंधा पर पड़े काटने के निशान चिल्ला कर बता रहा थे के क्या हुआ था।
नल खोल आसीस ने चेहरे पर पानी डाला और साथ ही एक बार फिर खुद को शीशे में देखा और वही नीचे बैठ रोने लगी। और पता नही कितनी देर तक वो बाल्टी से पानी के मग भर भर कर सिर पर ढालती रही।
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सब काम अपने समय पर हो गय थे जानकी ने असीस को देखा था चेहरे पर छपी ऊंगलीयां और नीले पड़े निशान रात को हुए वाक्य के बारे में बता रहे थे। पर जानकी ने खुद से एक बार भी पुछना सही नही समझा। पता तो रात को ही चल गया था उसे जब वो पानी लेने अपने रूम से बाहर आई थी और असीस की सिसकिया उसे सुनाई दी थी पर तब भी वो बीना कुछ कहे चली गई थी और सुबह से ही वो असीस को देख रही थी।
"गेहूं डाल आई क्या छत पर," जानकी ने कहा जब असीस ने उसके आगे से खाने की प्लेट उठाई। असीस ने उसे देख ना में सर हिला दिया।
"जा ढाल कर आ और नीचे आकर आशू को उठा दे माना आज ऐतबार है तो वो उठे गा नही क्या, दस बज गये," जानकी ने कहा। असीस रसोई की तरफ चली गई और वापस बाहर आ कर दरवाजे की तरफ चल दी तो जानकी ने आवाज दे कर रोक लिया।
"ऐसे कैसे जा रही है चेहरा ढक कर जा अपना उपर वीना भी होगी तो ज्यादा बोलने की जरूरत नही है," वो बोली।
असीस ने अपने दुपट्टे से अपना चेहरा ढक लिया और बाहर निकल गई।
तो जानकी उठ कर आशू के रूम की तरफ चल दी। यहां आशू मुंह बल लेटा हुआ था। जानकी ने एक बार उस रूम को देखा फिर आशू को, और उसके तरफ बड़ गई।
"उठ आशू उठ", जानकी ने कहा तो आशू करवट लेकर देखने लगा। फिर वैसे ही नींद में आंखे मलते हुए, "क्या है मां सोने दे ना", वो बोला।
"सो जा आराम से सो कब मना करा है पर ये सब क्या किया तुमने", जानकी ने उसको देख कहा।
आशू अपनी मां की बात सुन हैरान सा उनको देखने लगा। "क्या किया मैने", वो बोला।
"आशू रात को तुमने जो किया उसके साथ", वो फिर से बोली।
तो आशू को अब याद आने लगा फिर गुस्से से, "कहां है वो मुझे पूछना है उस से के कौन था वो", आशू ने बैठ से उठते हुए कहा तो जानकी उसे वापस बैठाते हुए।
"देख जो भी बात है बैठ कर सुलझा तुमको पता भी है उसकी हालत।"
"देख मां पत्नी है वो मेरी तो ये सब चलता है", वो बीना अपनी मां को देखे बोला।
"पत्नी है तो बात दोनो के बीच रखो समझे बाहर गई तो बढ़ेगी और तूमको पहले ही पता है के तुम्हारी शादी के लिए क्या क्या नही किया हमने। तो ये सब हरकते करनी बंद कर दे समझा", वो बोली और चली गई।
आशू उनको देखता रहा पर आंखो के सामने असीस को एक लड़के के उपर होना उसे बे हिसाब चुभ रहा था।
असल में जब असीस गिरी थी तब वो लड़का जो पास से गुजर रहा था उसके कंधे पर हाथ रख पकड़ने की कोशिश की और वो लड़का भी जो अपने ध्यान जा रहा था अचानक एक हाथ खुद पर महसूस कर चेहरा उपर कर देख पाता के उस से पहले ही एक चेहरा उसपर झुकता चला गया। और वो उस बेहद नाज़ुक सी दिखने वाली लड़की को पकडने की कोशिश में उसके दोनो हाथ असीस की कमर पर आ गए।
उसी समय आशू भी उसी तरफ आया था तो असीस को उस लड़के पर देख कर आग बबूला हो गया था। पर सब के बीच चुप ही रहा वो।
और फिर डान्स फ्लोर पर भी वो लड़का डान्स करता दिखा असीस इन सब से बेखबर थी के उसके पीछे ही डान्स कर रहा वो लड़का अपने ग्रूप में मस्त था। पर आशू को ये सब बहुत बुरी तरह से चुभा था। और बिना कुछ जाने उसने रात को असीस से गलत तरीके से बिहेव करा था।
"अरे असीस चेहरे को क्यूं ढका है", एक आवाज से असीस रूक कर देखने लगी। ये उनकी किरायेदार थी वीना, जो असीस से हल्की फुल्की बातें करती थी।
"भाभी वो उपर धूप है ना तो बस इस लिए", असीस ने कहा।
"हां धूप तो है और तुम ठीक हो", वो फिर से बोली तो असीस ने सिर हिला दिया। "चल ठीक है। हम दोनो भी मार्किट जा रहे थे", वीना ने कहा और तब तक उसका पती भी बाहर आकर दरवाजे को ताला लगाने लगा। असीस ने उसे नमस्ते करा और छत की तरफ चल दी।
गेहूं को धूप में डाल कर वो कुछ पल वही एक तरफ छांव में बैठ गई। और अपने दुपट्टे में छुपा कर लाये फोन को बाहर निकाला। और जल्दी से उसमें से अपने भाई का नंबर निकाल डायल कर दिया। आखिर एक वो ही था जो उसे यहां से ले जा सकता था। और तो कोई नजर ना आ रहा था। जो रिश्ते मां बाप के होते कुछ नही थे अब उनसे कैसी आस।
तो बस भाई पर आस थी जिस के चलते उसने फोन मिला दिया कुछ बेल के बाद दूसरी तरफ से फोन ठिक लिया गय।
"ह,ह हैलो भाई"। उसकी जुबान लड़खड़ा गई थी और आखें फिर से भर गई थी।
"हां बोल मैं बोल रही हूं", दूसरी तरफ से भाभी की आवाज आई जिसे सुन एक पल को असीस चुप रह गई।
"बोलो असीस देख बहुत काम है जल्दी बता कैसी है और यहां पर भी सब ठीक है", भाभी ने कहा।
"भाभी", असीस की आवाज की रुलाई फूट ही गई थी।
"क्या हूआ रो क्यूं रही है", वो बोली।
"भाभी मुझे यहां से ले जाओ मुझे यहां नही रहना", असीस ने बिना कोई गोलमोल के बात की तो मानो भाभी के सिर पर पहाड़ टूटा था।
"क्या बकवास कर रही हो तुम", दूसरी तरफ से आवाज आई।
"भाभी मुझे यहां नही रहना आशू शराब पीते है और आपने जैसा कहा था के मुझे पड़ने देंगे वैसा कुछ नही है, बस घर में ही रहती हूं उपर से रात को", बोलते हुए असीस फिर से रो पड़ी थी।
"क्या रात को क्या", भाभी बोली।
तो असीस ने सब बता दिया जो भी रात को आशू ने करा था।
"देख असीस मीया बीवी में तो ये सब चलता ही है, अगर उसे कोई बात पसंद नही तो ना कर। अगर वो नही चाहता तू पड़े तो जरूरी नही घर बाहर संभाल। और रही बात तुमको वहां से लेकर जाने की तो देख तेरे भाई के पास ना तो समय है और ना ही इतने पैसे के वो वहां आये और तूमको ले जाया, और वो आशू तुमको जाने भी देगा। पागल मत बन घर गृहस्थी संभाल और ये जो रात को हूई बात किसी और से मत कहना सब तुमको ही गलत बोलेंगे समझी" भाभी ने दो-टूक जवाब दिया।
असीस बस चुप सी रह गई उनकी बात सुन कर, "पर भाभी" वो कुछ बोलने लगी तो दूसरी तरफ से आवाज आई।
"देख असीस अभी हम बहुत बिजी है समझी उपर से मां की हालत सही नही है और तू चाहती है के मां को ये सब बता कर मार दे वो क्या सोचेंगी। हां अब घर बाहर है। आशू तेरा पति है और उसे कैसै हैंडल करना है तूमको अच्छे से पता होना चाहीये। महीने हो गए शादी को बच्ची तो अब तुम हो नही, अच्छा अब मैं फोन रख रही हूं तेरे भाई को जाना है", कहते हूए दूसरी तरफ से फोन रखा गया।
तो असीस अपने फोन को देखती ही रह गई। और आंसू जो अपनी भाभी की बातें को सुन रूक गय थे वो एक बार फिर तेज हो गये। कुछ पल वही बैठे रहने के बाद वो उठी और कपड़े उतार के नीचे की तरफ चल दी। अब यही रहना था उसे। ये तो वो तभी जान गई थी जब भाई भाभी के पास इतना समय नही था के आखिर पग फेरे की रस्म ही कर लें। पर फिर भी मन में था के भाई जरूर उसके दर्द को समझेंगे। आखिर एक ही घर में प्ले बड़े थे। एक साथ खाना पीना लड़ना सब एक साथ था। कभी अपने भाई की जान थी असीस पर आज वो भाई बात भी नही करता था।
यही सब सोचते हूए वो नीचे आई और कपड़ों को एक तरफ रख दिया। तब तक उसके कान में आशू की आवाज पड़ी जो रूम में बैठा उसे ही बुला रहा था। असीस ने एक बार पुरे हाल को देखा यहां पर उसे जानकी नजर नही आ रही थी। तो असीस के कदम अपने रूम की तरफ बड़ गय जो आगे नही चल रहे थे असीस उनको घसीटते हुए ले जा रही थी।
"जी", असीस ने दरवाजे के पास खड़े होकर ही कहा। तो आशू जो बेड पर ही बैठा था वो उसे देखने लगा। जो अपना चेहरा ढके खड़ी थी।
रब राखा
आशू जो बेड पर ही बैठा था, वो उसे देखने लगा जो अपना चेहरा ढके खड़ी थी।
"कहां थी, कब से आवाज लगा रहा हूं?" वो बोला।
"बस बाहर थी, छत पर," वो धीरे से बोली।
"कपड़े निकाल दो मेरे," वो बोला पर अभी भी वैसे ही बैठा था।
असीस के कदम धीरे-धीरे अंदर की तरफ बढ़े, पर रात की बातें अभी भी वैसी ही थीं, जो आंखों के सामने घूम रही थीं। उसने अलमारी खोली और उसमें से एक लोअर टीशर्ट निकाल कर मुड़ी तो सामने आशू को देख धक से रह गई, जो उसे ही देख रहा था।
आशू ने कदम आगे बढ़ाया तो असीस के कदम खुद-ब-खुद पीछे की तरफ उठ गए।
"पहली और आखरी बार माफ कर रहा हूं, समझी? फिर से किसी के साथ देखा तो जान से मार दूंगा," वो असीस के चेहरे पर बंधा दुपट्टा हटाते हुए बोला और उसके चेहरे पर पड़े निशान देखने लगा जो पहले से हल्के हो गए थे। असीस तो बस सांस थामे उसे देखती ही रह गई और वो उसके हाथ में पकड़े कपड़े खींचते हुए ले गया।
उसके जाते ही असीस ने गहरी सांस ली और जल्दी से अलमारी बंद कर वो रूम से बाहर आ गई और रसोई में जाकर खाना देखने लगी।
शाम हो चुकी थी। असीस जो चुप सी अपने काम में लगी हुई थी, उसने सब कपड़े प्रेस कर अलमारी में रखे और जानकी के कपड़े उसके रूम में रख आई। जानकी आशू दोनों ही सरला के घर गए हुए थे। यहां पर उसके बेटे रोनी की शादी की रस्में शुरू हो चुकी थीं। जानकी तो सुबह ही चली गई थी, पर आशू दोपहर को गया था और बाहर जाते समय उसने दरवाजा बाहर से बंद कर दिया था। असीस बस उसे देखती ही रह गई, फिर वो अपने काम में लग गई।
और अब शाम हो गई थी। वो सब काम कर फ्री थी और अब अपने रूम में बेड पर लेटी थी। फोन हाथ में ही था और उस पर भाई का नंबर शो हो रहा था। पर उस नंबर को हटा फोन साइड रख दिया, क्योंकि कुछ देर पहले ही रिचार्ज खत्म का मैसेज आया था फोन पर। तो अब ना किसी से बात हो सकती थी और ना ही वो करना चाहती थी और ना जाने कब उसे नींद आ गई और वो वैसे ही सो गई।
असीस की आंख जानकी की तीखी आवाज से खुली जो उस के पास खड़ी उसे आवाज लगा रही थी।
असीस जल्दी से उठ कर बैठ गई।
"उठ जा पता है के जब खाना खाना है रात का तो मजे से सोने की क्या जरूरत थी, रात को नींद पूरी नही होती क्या?" वो बोली।
असीस अपना दुपट्टा संभालते हुए जल्दी से खड़ी हो गई।
"बस मम्मी जी वो पता ही नही चला कब आंख लग गई, अभी खाना बनाती हुं," वो बोली और चप्पल पहनते हुए जल्दी-जल्दी रूम से बाहर निकल गई।
जानकी भी उसके पीछे-पीछे ही चली आई और रसोई में देखा यहां असीस खड़ी सब देख रही थी। फिर जल्दी से खाना बनाने लगी। जानकी आकर बैठ गई और टीवी देखने लगी।
असीस ने जल्दी-जल्दी खाना बनाया और जानकी को परोस कर दिया। आशू अभी सरला के यहां ही था, वो नही आया था।
"तू खा ले खाना, आशू अभी नही आएगा," जानकी ने असीस को देख कहा तो असीस ने सिर हिला दिया।
रात के कुछ 12 बजे थे, जब असीस को लगा के कोई उसे बाहों में कस रहा है। असीस जो सो चुकी थी वो एकदम से डर गई थी इस एहसास से। तभी उस के कान में आशू की आवाज पड़ी तो उसका डर कुछ हद्द तक कम हुआ, पर खत्म नही। वो चुप सी दम साधे आंखे बंद कर लेटी रही। कुछ पल तक तो आशू उसे बाहों में कसे रहा, पर थोड़ी देर में ही वो पकड़ ढीली हो गई।
असीस जो चुप सी लेटी थी, वो धीरे से उसका हाथ हटा कर एक तरफ को हो गई, पर उसने आशू को देखा भी नहीं। वो इतना समझ गई थी के आज भी आशू पी कर ही आया है, उसके बदन से आ रही शराब की स्मेल बता रही थी।
सुबह असीस की आंख खुली तो पाया के आशू उसे पकड़कर सो रहा है। ना जाने कब नींद में आशू ने वापस से असीस को पकड़कर खुद से लगा लिया था।
असीस धीरे से उसकी बाहों की कैद से निकल कर तैयार होने चली गई। रोज मर्रा के काम वैसे ही चल रहे थे जैसे चलते थे, तो वही आशू अपने ऑफिस चला गया था। जानकी को भी सरला का फोन आ गया तो वो उस तरफ चल दी, पर असीस को अच्छी बातें सुना कर, क्यूंकि कल रात को गेंहू उपर छत पर ही रह गए थे जिस लिए जानकी ने असीस को सुनाया था। असीस चुप सी सब बातें सुनती रही और उसके जाने के बाद असीस छत की तरफ चल दी।
गेहूं जो वैसे ही पड़े थे, उनमें हाथ फेर कर एक तरफ छांव में बैठ गई।
यही वो जगह थी यहां असीस को अच्छा लगता था। छत पर सब नही आते थे असीस को छोड़ जा वीना जो हफ्ते के आखिर में कपड़े धोकर सुखाती थी। ज्यादातर असीस की बात भी तब ही उसी से होती, वर्ना वो भी सुबह निकल जाती काम पर और शाम को ही आती।
असीस छांव में बैठी उपर आसमान में उड़ रहे पंछियों को देख रही थी, जो कितने आजाद थे, खुद के मन की करते। ना कोई बंदिश ना ही कोई बेड़ी। मां बाप भाई बहन किसी के लिए कोई इच्छा ही नही। बस खुद के लिये जीने वाले। हां वो पंछी आजाद थे और असीस जो उनको देख रही थी, उसकी आंखो के कोने फिर से भीग गये।
उसके भी सपने थे, वो पढ़ लिख कर कुछ बने और बन भी जाती अगर उसके पापा की मोत 4 साल पहले ना हुई होती। जिन्होने असीस की सारी फर्माइश पूरी की थी, पर कहते है होनी को जो मंजूर। पर भाई तो अपना ही था। माना भाभी ने शुरू से प्यार ना किया हो पर भाई तो सब जानता था, फिर भी वो नही समझ पाया और शादी ऐसे इंसान से कर दी जो कही से भी असीस के लायक नही था।
यही सब सोचते हुए असीस वही बैठी रही, के तभी उसे कुछ गिरने की आवाज आई और वो जल्दी से उठ कर उस तरफ देखने लगी। यहां पर कुछ पंछी मिट्टी के बने छोटे से कटोरे के आस पास इकठ्ठा हुए थे और उस कटोरे को देख रहे थे।
असीस अपनी जगह से उठी और उस तरफ चल दी तो पाया उस कटोरे में पानी खत्म हो गया था। असीस ने उस कटोरे को उठाया और उसको साफ कर पानी भर वापस उसी जगह पर रख दिआ तो पंछी जल्दी जल्दी से पानी पीने लगे।
असीस के चेहरे पर उनको देख हल्की सी स्माईल आई और वो एक और मग पानी का डाल नीचे की तरफ चल दी।
हाथ में पकड़े कपड़े बेड पर रख उनको जोड़ कर रखने लगी।
यही काम वो रोज करती थी जिस में अब वो परफैक्ट हो गई थी। सब काम वो जल्दी ही निपटा कर बस ऐसे ही खाली रहती और आज भी वही था। टीवी चला कर देखने लगी और दोपहर वही कट गई, नींद आई तो वही सोफे पर सो गई।
दिन बीतने लगे थे और असीस बस घर की चारदिवारी का ही हिस्सा बन गई थी। शादी में भी वो नही गई थी, आशू ने साफ साफ मना कर दिया था तो जानकी खुद चली गई थी। आशू भी शादी में नही गया था, वो ऑफिस चला गया था।
बारात जिस जगह गई थी, उसी जगह जानकी के भाई भाभी रहते थे। जानकी की मौसी का बेटा था। वो दोनो ही अकेले थे यहां पर। बच्चे तो बाहर सेटल हो गए थे। जानकी ने पहले ही बोल दिया था के वो अपने भाई भाभी के यहां कुछ दिन रह कर आयेगी तो आशू ने भी सहमती दे दी थी।
आज पुरे 2 दिन हो गये थे जानकी को गय हुए, तो वही असीस सुबह ही दो रोटी ज्यादा उतार लेती थी अपने लिए के दोपहर को अकेले उसका मन नही करता था खाना बनाने को।
असीस टीवी के सामने बैठी खाना खा रही थी, वो कुछ खुश लग रही थी। शायद आज वो मलाई चीनी के साथ रोटी खा रही थी। उसे पसंद थी मालाई चिनी के साथ रोटी खानी, वो खुश लग रही थी और सामने चल रहे टीवी को देख रही थी जिस में उसने कार्टून लगा रखे थे।
असीस ने जल्दी से खाना खाया और बर्तन साफ कर वही आकर बैठ गई और टीवी देखने लगी। फोन भी टेबल पर ही पड़ा था जो अभी भी रिचार्ज नही हुआ था और ना ही असीस ने बताया ही था क्यूंकि उसे तो किसी के पास फोन करना ना होता था पर, हां किसी का आ ना जाये तो बस इस लिए ही फोन रखा हुआ था।
तभी बैल लगी तो असीस ने समय देखा अभी तो दोपहर ही हुई थी तो अशू इतनी जल्दी आने वाला नाही था, तो फिर इस समय कोन आया होगा, वो यही सोच रही थी के बेल फिर से लगी। तो असीस जल्दी से उठ कर चल दी दरवाजा खोलने।
"क्या बात है असीस इतनी देर लगती है दरवाजा खोलने में?" सामने से कुछ पैंतीस की एज की औरत बोली और साथ ही चेहरे पर लपेट रखा दुपट्टा हटा दिए।
"नही दी वो बस टीवी देख रही थी," असीस ने कहा और जल्दी से झुक कर पैर छू लिए।
वो औरत अंदर चली आई तो असीस भी दरवाजा बंद कर अंदर आ गई।
"ठंडा पानी लना, बाहर बहुत गर्मी हो रखी है," वो बोली और वही बैठ गई यहा असीस बैठी थी।
असीस भी रसोई की तरफ चल दी पानी लाने।
"लो दी पानी," असीस ने गिलास आगे करते हुए कहा तो उस औरत ने पानी पी लिया।
"बैठ जा खड़ी क्यूं है?" वो बोली तो असीस उसी के पास बैठ गई।
"मम्मी से बात हुई थी, पता चला के वो बाहर है तो बस तूमको मिलने आ गई, अभी हॉस्पिटल से ही आ रही हूं," वो बोली। ये सूरभी थी, आशू की बड़ी बहन।
"अच्छा किय दी," असीस ने कहा।
"किसी से बात कर रही थी क्या, फोन यही पड़ा है," सूरभी असीस का फोन उठाते हुए बोली, तो असीस ना में सिर हिला कर,"नही दी बैलेंस नही है ना फोन में वो तो बस इस लिए रखा था किसी का आ ना जाये।"
"अच्छा," सृरभी ने फोन देखते हुए कहा और फिर फोन टेबल पर रख,"क्या बनाया है जल्दी कर भूख लगी है।"
असीस के चेहरे के रंग ही उड़ गए। "दी बनाया तो कुछ नही है," वो धरे से बोली।
"तुमने खाना नही खाई क्या।"
"मेने खा लिआ दी।"
"किस के साथ?" सृरभी की आवाज में गुस्सा था।
"वो दी मलाई के साथ, आप दो मिनट रूको में अभी दाल चावल बनाती हुं," वो जल्दी से बोली।
"नही रहने दे मैं जा ही रही हूं," वो बोली और उठ गई।
"अरे दी 15 मिनट ही लगेगे जल्दी ही बन जायेगा खाना।"
"नही असीस मुझे जाना है वापस हॉस्पिटल," वो बोली और चेहरे पर दुपट्टा बांधते हुए। "अच्छा सुन आज शाम को मैं तेरे जीजा और अनाया आने वाले है तो कुछ बना लेना वर्ना अभी बता दे हम नही आयेंगे।"
"अरे दी कैसी बातें कर रहे हो सब बन जायागा," असीस जल्दी से बोली।
"ठीक है फिर आते है शाम को तैयारी कर रखना समझी," कहते हूऐ वो बाहर की तरफ चल दी तो असीस भी उसके पीछे पीछे दरवाजे तक आई। सूरभी जो अपनी स्कूटी से आई थी वो उस पर सवार होकर चली गई और असीस अंदर आकर सोफे पर बैठ गई।
रब राखा।
असीस को अब समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बनाए। राजमा चावल अनाया को पसंद थे, पर प्रवीन जीजा के लिए क्या बनाए। वह यही सोच रही थी कि कुछ समय बाद उसका फोन बजने लगा। उसने फोन उठाकर देखा तो आशू का नाम आ रहा था।
"हैलो", उसने फोन उठाते हुए कहा।
"असीस, वो मम्मी का फोन आया था। रात को शायद दी जीजू आए तो उनके लिए खाना बना लेना", दूसरी तरफ से आवाज आई।
"जी, वो पता है दी आई थी अभी, पर क्या बनाऊं रात को?", वो बोली।
"जो बनाना है बना ले, मैं बाहर से कुछ नॉनवेज बना बनाया लेकर आ जाऊंगा", वो बोला। तो असीस ने सिर हिला दिया।
"सुनिये", वो फिर से बोली।
"हम्म, बोलो।"
"मेरे फोन में रीचार्ज खत्म है, आप करा दोगे?", उसने बेहद धीरे से कहा।
"देखता हूं", वो बोला और फोन कट कर दिया। असीस फोन देखती रह गई। तभी कुछ पलों बाद फोन पर मैसेज आया, फोन रिचार्ज होने का। वो हैरान सी रह गई, साथ ही आशू का भी मैसेज आया था, "फोन रिचार्ज कर दिया है।" उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये सब इतनी जल्दी और आसानी से कैसे हो गया।
क्योंकि जब पहली बार उसने फोन रिचार्ज करने के लिए आशू को कहा था तो उसने क्या क्या नहीं कहा था। यहां तक के हाथ भी उठाया था, "बस सारा दिन फोन दिखा लो इस से।" गुस्से में वो बड़बड़ाया था।
पर आज आशू ने इतनी जल्दी फोन रिचार्ज कर दिया, उसे समझ नहीं आ रहा था।
शाम बाद आशू आया तो अपने साथ नॉनवेज भी ले आया। असीस ने भी घर पर तैयारी कर रखी थी- एक सब्जी, राजमा, चावल, दही तो था ही उसमें बूंदी डाल ली, साथ ही उसी समय गर्मा गर्म रोटियां सेक लेगी वो।
आशू का आज का रवैया भी बाकी दिनों के हिसाब से अलग था। आते ही उसने ना तो असीस पर गुस्सा किया और ना ही कुछ बोला। खुद ही सब्जी को रसोई में रख आया और रूम में जाकर चेंज करने लगा।
असीस बस उसे देखती ही रह गई, उसने कहा भी "मैं कर देती हूं", पर आशू माना ही नहीं और खुद ही सब्जी को बाऊल में निकला रख दिया। असीस बस चुप सी रह गई।
"अच्छा सुनो, ये साड़ी पहन लो आज", आशू ने एक साड़ी निकाल असीस के सामने करते हुए कहा। तो वो उसे देखने लगी।
"पर ये सूट सही है ना, शाम को ही पहना था।"
"ये साड़ी पहन लो और हां, वो सोने के सेट से कान के पहन लेना", आशू ने कहा।
"साड़ी पहन लेती हूं, पर वो सैट मम्मी जी ने रखा है", वो धीरे से बोली और साड़ी लेते हुए बाथरूम की और चल दी।
बाथरूम में जाकर उसने दरवाजा बंद करा और उसी के साथ पीठ लगा कर खड़ी हो गई। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि इन महीनों में जिस आदमी ने उसे अच्छे से देखा तक नहीं होगा, अचानक एक ही दिन में ऐसा क्या हो गया।
वर्ना उसे तो बस शाम को आना, पीना खाना खाना और अपनी मर्जी कर सोने से ही मतलब था। असीस की तो उसने कभी सुनी ही नहीं थी।
पर आज वही आदमी साड़ी निकाल कर दे रहा था, जिसने कुछ दिन पहले ना जाने किस बात का गुस्सा इतने गंदे तरीके से निकाला था कि असीस को खुद से ही घिन होने लगी थी।
"असीस जल्दी करो, दी जीजू आने वाले है", बाहर से आवाज आई। तो असीस जो अभी भी वैसे ही खड़ी थी वो, "जी आई", बोल कर जल्दी से चेंज करने लगी।
असीस बाहर आई तो आशू भी रूम में ही था। असीस ने रानी कलर की साड़ी पहन रखी थी जो आशू ने उसे निकाल कर दी थी।
असीस जल्दी से ड्रेसिंग टेबल की तरफ चल दी और बाल बनाने लगी। उसके बाद उसने साड़ी से मैच करती दोनो हाथ में 6-6 चूड़ियां डाली। माथे पर रानी कलर की बंदी लगाई, होठो को भी हल्की लिपस्टिक लगा कर सजा, वो खुद को देखने लगी- तैयार थी वो।
"अच्छी लग रही हो", आशू ने पीछे से आके उसे बाहों में भर कहा तो असीस इस बार उसे देखती ही रह गई।
आखिर आज क्या बात थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था। ये वही आशू था जिसने कुछ दिन पहले सब हद्दे पार की थी बीना बात के और आज इस तरह से प्यार जता रहा था। मानो ये वो आशू था ही नहीं जिसे वो पिछले कई महीने से देख रही थी।
"क्या हुआ, एसे क्या देख रही हो?", आशू ने हैरान सी खड़ी असीस के अक्स को शीशे में देख कहा, जो उस की बाहों के दरमियान कुछ सिमटी सी कुछ उलझी सी खड़ी थी।
"नही नही कुछ नही हुआ वो दी आने वाली है ना तो बाहर चले", वो बोली। उसकी वो भूरी आंखे इस समय एक टक शीशे में ही देख रही थी, मानो वो इस पल पर यकीन नहीं कर पा रही थी।
आशू ने वैसे ही चेहरा झुका कर असीस के गाल को चुम्म लिया तो असीस के पुरे जिस्म में एक हैरानगी सी दौड़ी और साथ ही घबराहट ने उसके जहन में घर कर लिया।
"सुंदर लग रही हो, अच्छा तुम्हे पता है ना जीजू तुमसे मिलने पहली बार आ रहे है तो कुछ ज्यादा बातें मत करना", आशू ने कहा और उसे देखने लगा, तो वही असीस ने जल्दी से सिर हां में हिला दिया।
"चलो चलते है", कहते हुए वो उसे अपने साथ बाहर ले आया। तो वही असीस उसके पीछे पीछे चली आ रही थी।
"लगता है दी जीजू आ गये", आशू ने दरवाजे पर हो रही बेल को सुन कहा। तो वही असीस ने भी सिर हिला दिया।
और दोनो ही दरवाजे की तरफ चल दिए। आशू ने दरवाजा खोला तो सामने ही सूरभी, अनाया और गौतम खड़े थे।
"नमस्ते जीजू", आशू ने कहा और झुक कर उनके पोर छू लिये। वैसे ही असीस ने भी किया। गौतम सूरभी के पती वो आज असीस आशू की शादी के बाद पहली बार यहां आये थे।
तो वही सूरभी भी असीस को देख रही थी जो इस साड़ी में सूंदर लग रही थी।
"दी जीजू अंदर आओ", असीस ने कहा तो सूरभी गौतम के साथ अंदर आई। पीछे से अनाया ने असीस को गले से लगा लिया। अनाया यही कोई बाहर साल की लड़की थी जो बहुत ही खुबसूरत थी।
"मामी देखो मैं आ गई", वो बोली तो असीस उसे देख मुस्कुरा दी।
"चलो अंदर चले आज मेने आपके फेवरिट राजमा बनाये है", असीस ने कहा। तो अनाया खुशी से उछलते हूए, "मामी आप ना बेस्ट हो आपको सब पता होता है", वो बोली और साथ ही, असीस के गाल पर किस कर दी।
"चलो अंदर चलें, आज मैंने आपके फेवरेट राजमा बनाए हैं", असीस ने कहा। तो अनाया खुशी से उछलते हुए बोली, "मामी आप ना बेस्ट हो, आपको सब पता होता है," और साथ ही असीस के गाल पर किस कर दी।
असीस खुशी-खुशी उसे देखने लगी। "चलो अंदर चलते हैं", वो बोली और दोनों अंदर की ओर चल दी।
अंदर पहले ही सुरभी, गौतम और आशू आकर बैठ गए थे तो असीस ने अनाया को भी वहीं बैठने को कहा और खुद पानी लेने चली गई।
"और बताओ आशू, कैसी चल रही है लाइफ?", गौतम ने आशू से पूछा।
"बस जीजू जी, सब सही चल रहा है।"
"और बताओ तुमने अपनी आदत को सुधारा के नहीं?", गौतम बोले तभी असीस भी सब के लिए पानी ले आई थी। तो वो गौतम को देखने लगी। वहीँ गौतम की नजर भी असीस पर पड़ी, तो वो मुस्कुरा दिया।
"कैसी बातें कर रहे हो जीजू, सब आदतें सुधार ली हैं। यकीन नहीं तो असीस से पूछो आप, है ना असीस?", वो असीस को देख बोला, तो असीस उसे देखने लगी फिर सिर हाँ में हिला दिया।
गौतम का ध्यान असीस पर ही था। "लो जीजू पानी पीयो आप", असीस ने जल्दी से ट्रे आगे कर कहा तो गौतम ने पानी का गिलास उठा मुंह को लगा लिया। वहीँ सुरभी ने आशू को देख इशारा करा। आशू ने भी उस तरफ देखा तो असीस की बांह पर कुछ जलने का निशान था।
आशू ने जल्दी से असीस के हाथ से ट्रे लेकर टेबल पर रखी और असीस का हाथ पकड़कर अपनी बगल में ही बैठा लिया। तो असीस जो अभी अनाया को देख रही थी, वो आशू के ऐसा करने पर हैरान सी उसे देखने लगी।
"बस जीजू असीस सारा दिन लगी रहती है, मैंने बहुत बार कहा के हम लोग किसी काम वाली को लगा लेते हैं पर ये मानी ही नहीं। कहती है के अपने घर के काम करने में कैसी शर्म", आशू ने मुस्कुरा कर कहा और फिर असीस को देखा जिसके चेहरे पर अजीब से भाव थे। तो आशू ने अपने हाथ में पकड़े असीस के हाथ को दबा दिया जिस से असीस होश में आई।
"मैंने सही कहा ना असीस?", आशू मुस्कुरा कर बोला तो असीस सामने गौतम, सुरभी को देखने लगी।
"जी आपने सही कहा", वो बोली और हौले से मुस्कुरा दी।
गौतम गिलास टेबल पर रख असीस को देखते हुए, "असीस वैसे अगर आशू बोल रहा है तो एक काम वाली लगा लो। वैसे भी तुम बी एस सी की फाइनल में थी ना, तो शुरू कर दो। छः महीने का गैप है वो कॉलेज में बात कर कवर हो जायेगा", गौतम ने कहा।
असीस के चेहरे पर एक हल्की सी स्माइल आई थी, इस बात को सुन पर साथ ही उसे अपनी बांह पर पड़ रहे दबाव का एहसास होते ही उसने आशू को देखा, तो उसकी आंखो में कुछ और ही था।
"क्या सोच रही हो असीस?", गौतम बोले।
"जीजू अभी सोचा नहीं इस सब के बारे में, फिर मेरा कॉलेज बहुत दूर है। चार घंटे का रास्ता एक तरफ का ही है कैसे करूंगी।"
"हॉस्टल है वहा पर असीस, वहां रह लेना और वीकेंड पर तो आना ही होता है घर।"
"क्या बातें लेकर बैठ गये आप भी, देखो तो सही दोनों में कितना प्यार है और वैसे ही तो आशू सब कर ही रहा है, और असीस वहां जा कर पड़ेगी तो आशू का ध्यान भी वहीं लगा रहेगा ना, कोई जरूरत नहीं है बाहर जाने की", सुरभी ने असीस के कुछ कहने से पहले कहा।
गौतम सुरभी को देख कर, "अगर असीस अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगी तो उसे आसानी से नौकरी मिल जायेगी, आज कल अगर हसबैंड वाइफ दोनों काम कर तो सब के लिए अच्छा है। और वैसे सुरभी काम करने की जरूरत तो तुमको भी नहीं, अच्छा खासा कमाता हूं मैं, पर फिर भी तुम नर्स हो ना", गौतम ने कहा। तो सुरभी चुप सी रह गई पर नजर में गुस्सा जरूर आया था।
"अरे दी, जीजू खाना खाते है मुझे लगता है अनाया को बहुत भूख लगी है, है ना अनाया", असीस ने कहा क्यूंकि वहां का माहौल कभी भी गर्म हो सकता था और वहीँ आशू की पकड़ उसकी बांह पर थी जहां से पहले ही वो जली हुए थी।
"हां मामी मुझे तो बहुत भूख लगी है और आपने तो मेरे पसंद का बनाया है तो जल्दी करो मुझे खाना है", अनाया असीस के पास आकर उसका हाथ खिंचते हुए बोली। तो असीस उठ गई तब तक आशू ने उसका हाथ छोड़ दिया था।
"असीस चलो खाना खाते है मुझे भी भूख लगी है", गौतम ने उठते हुए कहा, और वो तीनों एक तरफ लगे छोटे से डाइनिंग टेबल की और चल दिए। वहीँ सुरभी ने एक बार आशू को घूर कर देखा, तो आशू भी उठ कर चला गया।
"हर जगह मुझे बीच में ले ही आते है। मैंने कौन सा कुछ बिगाड़ा है इनका। पर नहीं मुझे छोड़ सब अच्छे लगते है इनको, खास कर ये असीस", सुरभी मन ही मन गुस्साई थी। पर अनाया की आवाज से वो उठ कर उस तरफ चल दी।
असीस ने सब को खाना परोसा तो गौतम ने सब से पहले राजमा चावल ही खाये अपनी बेटी के साथ मिल कर। "सच में असीस बहुत अच्छा खाना बनाया है तुमने", वो बोले। वहीँ असीस गर्म गर्म रोटी रख वापस रसोई की तरफ चली गई।
"आशू आपके लिए नॉनवेज लेकर आया है", सुरभी ने कहा तो गौतम उसे देख कर, "पता है और अगर यहां आके बाहर का ही खाना है, तो बाहर ही खा लेते ना", वो बोला। फिर असीस को देखा जो कुछ पल बाद वापस आई थी।
"असीस एक बार सोचना अगर तुमको सही लगे तो, बताना मैं खुद सब इंतजाम कर दूंगा, अब राजनीती में कदम रखा है तो इतनी तो चलती ही है", वो बोले।
असीस ने सिर हिला दिया और सब के साथ खाना खाने लगी।
खाना खाकर गौतम के कहने पर आशू और असीस भी उनके साथ ही बाहर चले गये थे आइसक्रीम खाने को। आज असीस बाहर आई थी लेकिन मन में एक अजीब सा डर था। वो पिछली बार का बाहर आना भूल नहीं पाई थी, और आज तो वो बाजार में थी यहां पर बहुत सारे लोग आस पास ही थे। कुछ लड़कों के ग्रुप बने हुए थे।
गौतम ने सब को आइसक्रीम दी और एक तरफ खड़े होकर खाने लगे। असीस भी अनाया के साथ बातें करती आइसक्रीम खा रही थी। और फिर गौतम खुद ही दोनों को घर छोड़ कर चला गया था। यहां असीस ने आते ही रसोई में सब सामान समेटा, और रूम की तरफ चल दी रात के बारह बज गये थे जब वो चेंज कर बेड पर आई। आशू पहले ही सो चुका था तो वो उस से कुछ दूरी पर लेट गई।
लेकिन आशू को करवट लेता देख उसने आंखे बंद कर ली वो जानती थी के उसकी ना जा हां का कोई मतलब नही रहता, तो वो कुछ नही बोली। वहीँ आशू ने उसे बाहों मे कसा और उस पर शाता चला गया ।
रब राखा
आशू ने उसे बाहों में कसा और खुद की तरफ उसे घुमा लिया।
असीस चुप सी आंखे बंद कर लेटी रही।
वहीं आशू उसे देख रहा था, जो कुछ बोल ही नहीं रही थी।
"असीस", उसने एक बार आवाज दी तो असीस ने आंखे खोल उसे देखा।
"बाहर जाने की कोई जरूरत नहीं, जीजू कह रहे है तो भी हां मत करना, समझी?", आशू ने उसे चेताया था, तो असीस उसी तरह सिर हिला गई।
"वैसे आज बहुत खूबसूरत लग रही थी तुम", कहते हुए आशू उसके होठो पर हावी हो गया।
असीस जो कुछ कह ही नहीं पाई, वो अपने अंदर उठ रही घबराहट को रोक रही थी, पर जब उसे आशू का इस तरह उसे प्यार जताना सहा नहीं गया तो उसके कंधे पर हाथ रख धकेलने लगी, पर ये गलती वो कर चुकी थी।
वहीं आशू उसके इस रवैए से खासा नाराज हो गया और प्यार जताते हुए उसे काटने लगा।
"बहुत बार कहा है पर तुम समझती ही नहीं हो", वो बोला।
"आज नहीं प्लीज", असीस ने कहा, तो आशू उसे देखने लगा।
"वो मुझे पीरियड आये है", असीस ने धीरे से कहा, तो आशू उस से एकदम पीछे हुआ।
वहीं असीस ने जल्दी से अपनी नाइटी के गले को सही करा जो आशू ने खीच कर कंधे से नीचे कर दिया था।
"पहले नहीं बता सकती थी, पूरा मूड खराब कर दिया", कहते हुए उसने करवट ले ली तो वही असीस ने गहरी सांस ली।
ना जाने क्यूं, पर आज उसे आशू का खुद के करीब आना जरा भी भाया नहीं था।
उसका वो प्यार जताना, साड़ी देना, बाहों में भरना पहले ही दिल में एक आशंका पैदा कर रहा था, पर अब जो उसने कहा के सोचना भी नहीं जो जीजू ने कहा, उस सब बातों पर पक्की मोहर थी के, आशू कभी उसे घर से बाहर नहीं जाने देगा और वो उस दिन सब भूल कर भाई को फोन कर बैठी थी के वो उसे ले जाये।
आशू कभी भी उसे ऐसा करने नहीं देगा, ये वो समझ गई थी।
असीस चुप सी छत को देखती रही।
उसे दर्द होने लगे थे, पीरियड के, जिस वजह से वो बिना हिले डुले चुप सी रही, अगर हल्का सा भी शोर होता तो आशू को गुस्सा आ जाता।
और इन दिनों में वो वैसे ही दर्द को सहन करती थी और उसपर से आशू का गुस्सा वो नहीं सह सकती थी।
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"क्या जरूरत थी आपको असीस को ये सब कहने की के पढ़ लिख ले", सुरभी ने गौतम से कहा, जब वो बेड से टेक लगा कर बैठा फोन देख रहा था।
वो अभी अभी अनाया को सुला कर और अपने मम्मी पापा का हाल चाल जान कर रूम में आकर ऐसे ही बैठा था के तभी सूरभी ने कहा।
गौतम ने उसे देखा, फिर से फोन में लग गया।
उसने पूरी तरह से उसे इग्नोर कर था।
"ये गलत है गौतम, तुम गलत कर रहे हो", वो बोली।
"तो तुम सही कर रही हो हां।
उस लड़की को देखा है, असीस को देखा है तुमने, साफ पता चल रहा था उसे देख कर वो इस रिश्ते में जरा सी भी खुश नहीं है, और हो भी कैसे, कोन सी लड़की बर्दाश्त करेगी के उसका पति शराबी हो और शक्की भी", गौतम ने गुस्से से कहा।
"असीस को कुछ नहीं पता है इस बारे में", सुरभी ने कहा।
"तुमको बहुत पता है उसे पता है के नहीं।
जो लड़की आशू के साथ रहती है उसे नहीं पता होगा।
किस दुनिया में रहती हो तुम", गौतम ने अफसोस से कहा।
सूरभी उसे देखने लगी।
"मुझे समझ नहीं आता के आपको वो सही क्यूं लगती है और मैं गलत क्यूं।"
तो गौतम उसे देख घूरते हुए, "तुम अच्छे से जानती हो, जैसे झूठ बोल कर मेरी शादी तुमसे कराई वैसे ही झूठ बोल असीस को अपने भाई के पल्ले बांधा होगा।
वैसे भी पुरे इलाके को पता है कैसे है तुम्हारा भाई, अरे शादी के महज 1 दिन पहले ही तो नशा छुड़ाऊं केंद्र से बाहर आया था, और अगले ही दिन उसकी शादी कर दी गई।
ऐसी भी क्या आफत थी अगर असीस मान गई थी तो कुछ समय रुक जाते तुम लोग, पर नहीं क्योंकि खोट थी तुम लोगो के मन में।
इसलिए तो उस लड़की को अपने भाई के साथ बांध दिया जिसे ये भी नहीं पता के अपनी पत्नी के साथ कैसे पेश आते है, उसका हाथ इतना कस कर पकड़ा था जैसे वो भाग जाएगी", गौतम ने कहा तो सूरभी उसे देखने लगी।
"मुझे पता है मेरे परिवार से पहले ही चिढ़ है आपको, और अब असीस के लिए इतनी फिक्र है, आशू पति है उसका जैसा चाहे वैस रखे", वो बोली।
"तो फिर तुम कल से घर से बाहर नहीं जाओगी, सब काम करोगी घर के, समझी", गौतम ने कहा तो सूरभी उसे घूरते हुए, "बिल्कुल भी नहीं, मैं घर पर नहीं रह सकती, पढ़ी लिखी हूं, खुद का कमाती हूं खाती हूं", वो बोली।
"मेने तो अभी बस कहा के तुम घर रहोगी तब तुम्हारा ये हाल है, और असीस को तो चारदीवारी में कैद कर रखा है, तब समझ नहीं आती तुमको", वो बोला।
"बस बहुत हो गया, मेरी सहेली अपनी नन्द की शादी करना चाहती थी तो कर दी मेरे भाई से।
सब बताया था उसे के आशू शराब पीता है, सब बताया था, और उन लोगो ने आपस में क्या बात की क्या सोचा मुझे नहीं पता समझे ना आप।
गलत कहना है तो उसके भाई भाभी को कहे जो शादी कर चले गए।
आज तक मुड़ कर नहीं देखा, ना कोई नेग, ना ही कोई गिफ्ट, 6 महीने हो गए उसे देखे हुए। तो गलत वो हुए, मैं नहीं", सूरभी ने कहा।
"सूरभी मुझे तो बिल्कुल भी अपनी बातों में मत लाया करो।
तुम समझती नहीं हो पर तुमको पता हो, शादी असीस की हुई आशू के साथ, उसके भाई भाभी की नहीं जो तुम लोग उसके घर से आने वाले सामान का इंतजार कर रहे हो।
असीस के बारे में सोचा है?
वो कितना अपने मायके को मिस कर रही होगी, तुम तो चली जाती हो ना भाग कर और वहां जाकर चार बाते भी सुना आती हो, पर उसके दिल के हाल देखे है कभी।"
"बस सूरभी और नहीं, मेरे साथ जितना उलझोगी उतना सुनो गी, तो तुम्हारी भलाई इसी में है के तुम सो जाओ, अनाया को सुला आया हूं, और मम्मी पा को भी देख आया हूं जो काम तुमको करने चाहीए वो मैं करके आया हूं।
खुद पर ही नहीं, घर पर भी ध्यान दे लिया करी।
खुद के बारे मे छोड़ कुछ घर और दूसरो कि बारे में सोचो समझो", उसने कहा और वैसे ही फोन एक तरफ रख लेट गया।
सूरभी जो कुछ कहने ही जा रही थी वो गौतम की बात सुन गुस्से को पी कर रह गई और चुप सी लेट गई।
••••••••••••
वो पूरी रात असीस के लिए लंबी हो गई थी।
दर्द की वजह से उसे नींद ही नहीं आ रही थी और सुबह वो अपने समय पर ही उठ कर सब काम समेटने लगी थी।
आशू अपने समय पर उठा और हमेशा की तरह उसने असीस से कुछ ज्यादा बात नहीं की, तैयार हुआ और खाना खा कर ऑफिस के लिए निकल गया।
असीस ने दरवाजा बंद करा और अंदर आकर लेट गई, पर दर्द था के जा ही नहीं रहा था तो उसने हिम्मत की और अपने पास रखे कुछ पैसे लिए और घर का दरवाजा खोल बाहर निकली।
मेडीकल स्टोर पास ही था तो वो उसी तरफ चल थी।
वहा पर भी दीदी ही बैठी हुई थी, असीस ने जल्दी जल्दी से सब बताया तो दीदी ने उसी हिसाब से दवाई दे दी और असीस दवाई और सेनेटरी पैड लेकर घर आ गई।
दवाई ली और वो लेट गई, कुछ देर बाद उसे आराम मिला तो नींद भी आ गई।
सूरभी गौतम से रात की हुई बहस से अच्छी खासी चिड़ी हुई थी तो वो सुबह घर से बिना किसी से बात कर निकल गई थी।
गौतम का अपना बिजनेस था तो उनको भी किसी चीज की कमी नहीं थी, घर में लगे नौकर सब काम कर देते।
तो वही अनाया अब खुद से तैयार होकर स्कूल चली जाती।
वो भी अपने मम्मी पापा की रोज रोज की बहस को देख खुद ही सब काम कर लेती थी, पर गौतम खास तौर पर उसका ध्यान रखता।
आज भी गौतम ने खुद से उसे खाना खिलाया था और स्कूल के लिए खुद ही छोड़ आया था।
गौतम के मम्मी पापा ने भी अब सूरभी से कुछ कहना छोड़ दिया था, आखिर वो भी घर में शांती चाहते थे।
"मम्मी मुझे आने में देर हो सकती है तो अनाया को बस स्टॉप से ले आना", गौतम अपने काम पर जाते जाते अपनी मां से कह कर गया तो उन्होंने भी सिर हिला दिया।
सुरभी जो इस समय लंच टाइम के लिए बैठी थी वो खासी गुस्से में थी तो उसने सीमा को फोन लगा दिया।
सीमा असीस की भाभी, दोनो ही स्कुल टाइम ची सहेली या थी, "सीमा तू आशू के बारे में सब जानती थी पहले से ही।
देख सीमा मेने पहले ही जब आशू के बारे में सब बताया था के वो अपनी कुछ आदते नहीं छोड़ सकता तो तुने असीस को क्यूं नहीं बताया", सूरभी ने दूसरी तरफ से फोन उठाते ही कहा।
"अरे रूक तो जा बात क्या है", सीमा बोली।
"बात क्या है, मेने आज तक ज्यादा नहीं पूछा पर आज लग रहा है पूछ लूं, तुने असीस को बताया नहीं था ना के आशू कैसा है", सुरभी ने कहा।
सीमा मुसकुरा कर, "देख सूरभी तुमको अपने भाई की शादी किसी भी हाल में करनी थी और मुझे असीस से पीछा छुड़ाना था।
हां घर पर नहीं पता के आशू कैसा है, पर अब क्या फर्क पड़ता है।
मुझे पता है असीस कुछ नहीं बोलेगी", सीमा ने कहा।
"तुम्हे कैसे पता असीस कुछ नहीं बोलेगी", सूरभी की आवाज में हैरानी थी।
"अगर उसे कुछ करना होता तो उसी दिन करती जिस दिन उसने मुझे फोन कर आशू की सब बाते कही थी और ये भी के वो उस घर में नहीं रहना चाहती, मेने उसे समझा दिया था के अब वही घर उसका है और वैसे भी उसका भाई क्या क्या संभाले", सीमा ने कहा।
सूरभी हैरान सी, "क्या कहा असीस घर छोड़ जाना चाहती है", वो बोली।
"हां उस रात आशू ने नशे के चलते उसके साथ अच्छा नहीं किया था", सीमा ने कहा, तो सुरभी के चेहरे पर स्माईल आ गई।
"तो मतलब असीस जान चुकी है आशू के बारे में फिर ठीक है, हां वो जा नहीं सकती कही भी, कहां जायेगी यहां पर उसका और कोई है भी तो नहीं", सूरभी ने कहा।
"अच्छा चल ठीक है मुझे अभी सब देखना है, बाद में बात करती हूं", सीमा ने कहा और फोन कट कर दिया।
सूरभी खुश हो कर, "मतलब सब ठीक चल रहा है।
आशू सुधर रहा है, चलो शादी करने का फायदा तो हुआ", वो खुद से ही बोली और वापस से अपने काम पर लग गई।
शाम को आशू घर आया तो असीस को देखने लगा जो रसोई में लगी हुई थी।
"तुम बाहर क्या करने गई थी", वो रसोई में ही आते हुए बोला तो असीस उसके रसोई में अचानक आने से घबरा गई और उसे देखने लगी।
"बाहर क्या करने गई थी, जब बाहर जाने से मना करा है", वो फिर से बोला।
"वो वो मुझे बहुत दर्द हो रहा था और पैड भी खत्म हो गये थे तो बस दवाई लेने गई थी", असीस ने कहा तो आशू ने एक गहरी नजर उस पर डाली।
"पैसे कहा से आये तुम्हारे पास", वो बोला।
"वो रात जीजू आये थे ना उन्होने दिए थे।"
"ठीक है लेकिन अगर आज के बाद देखा तुमको बाहर जाते तो फिर सोच लेना", वो अच्छे खासे धमकाने वाले लहजे में बोल कर गया था।
तो वही आसीस अपनी सांस थामे खड़ी रही थी।
रात का खाना खा वो सो गया, असीस भी लेट गई, पर वो समझ नहीं पा रही थी के आशू को पता कैसे चला मैं बाहर गई थी।
बस 15 मिनट ही लगे होगे उसे बाहर आने जाने में, इतने में आशू को कैसे पता चल गया।
इन्हीं सब सोच में कब उसे नींद आई पता ही नहीं चला।
रब राखा।
कुछ दिन ऐसे ही बीते और इन दिनों में जानकी भी वापस आ गई थी। और असीस जो दोपहर को फ्री रहने लगी थी, अब फिर से वो इस समय खाना बनाने लग जाती। वहीं, जानकी का कब्ज़ा टीवी पर हो गया था। वो वहीं बैठी सारा दिन टीवी देखती रहती।
"मम्मी जी खाना," असीस ने खाने की प्लेट उसके आगे रख कहा, तो जानकी ने असीस को देखा, फिर खाना खाने लगी।
"असीस सुन, ऊपर वीना रहती है ना, तो वो आज सुबह बोल गई थी के उसका भाई आने वाला है। चाबी देकर गई है अपने घर की। तो अगर अब कोई आए और कहे के वो वीना का भाई है तो चाबी दे देना," जानकी ने कहा तो असीस ने उसे देख सिर हिला दिया। वहीं, जानकी टीवी देखते हुए खाना खाने लगी।
खाना खा वो अपने रूम में चली गई, तो असीस ने भी अपना खाना प्लेट में लिया और सोफे पर बैठ खाने लगी, साथ ही फोन पर रील्स देखने लगी।
तभी बाहर दरवाजे पर बेल लगी तो असीस ने उस तरफ देखा, फिर जल्दी से उठ हाथ साफ कर दरवाजा खोलने चल दी।
तो सामने ही एक लड़का मास्क पहने खड़ा दूसरी तरफ देख रहा था, जिसने दरवाजा खुलते ही असीस को देखा। असीस भी उसे ही देख रही थी। "जी," असीस ने उसे कुछ ना बोलते देख कहा।
"वो मैं वीना का भाई, उन्होंने कहा था चाबी आपके पास है," वो बोला। तो असीस सिर हिला कर, "रुकिए अभी लाई चाबी," कह वो अंदर की तरफ आ गई, तो वो लड़का वैसे ही खड़ा देखता रहा।
असीस ने चाबी लाकर दी तो उस लड़के ने जल्दी से चाबी ली और सीढ़ियां चढ़ने लगा। असीस भी दरवाजा बंद कर अंदर आ कर खाना खाने लगी। तभी उसका फोन बजने लगा और फोन पर भाई का नंबर देख एक पल को वो हैरान हुई, फिर जल्दी से फोन उठा लिया के कहीं कट गया तो भाई वापस करे ही ना फोन।
"हैलो भाई कोसे है आप," असीस ने मुस्कुरा कर कहा क्यूंकि आज बहुत दिनों बाद भाई का फोन आया था।
लेकिन अगले ही पल उसकी वो सारी हंसी कहीं गुम हो गई, जब उसकी भाभी ने कहा के मां नहीं रही, असीस तो जैसे बुत सी बन गई थी वो कुछ बोली ही नही। वही जानकी जो फोन की आवाज सुन बाहर आई थी, वो असीस को ऐसे गुमसुम सा देख उसके पास आ गई और उसे देखने लगी जिसके हाथ से फोन छुट कर सोफे पर गिरा हुआ था।
जानकी ने फोन उठा कान से लगा लिया तो दूसरी तरफ से सीमा की आवाज आई जो हैलो हैलो कर रही थी।
"क्या बात है सीमा," जानकी ने असीस को देखते हुए कहा।
तो सीमा ने सब बता दिया, जानकी जो असीस को ही देख रही थी वो चुप सी रह गई। वही असीस तो जैसे रोना ही भूल गई थी।
"असीस असीस," जानकी ने उसे हिलाते हुए कहा तो असीस उनको देखने लगी।
"जिनको जाना था वो चले गए," जानकी ने कहा तो असीस जो चुप सी बैठी थी वो उनके गले लग रोने लगी वही जानकी ने भी उसे अपने गले से लगा लिया।
"चुप चुप होजा असीस," वो उसके सिर पर हाथ रख बोली। पर असीस को होश ही कहां था। मां ही तो थी कहने को अब वो भी नही रही थी। वो फूट फूट कर रो रही थी। तो वही जानकी ने उसे संभाला था। हां माना वो बोलने की तेज थी पर मां का जाना उनको भी पता था के कैसा होता है आखिर उन्होंने ने भी तो अपनी मां को खोया था।
असीस का खाना जैसा था वैसा ही रह गया। दोपहर से शाम हो गई थी और वो अपने रूम में नीचे बैठी सुबक रही थी। बाहर वो जा नही सकती थी और भाई भाभी यहां आने से रहे थे। शाम को एक बार उसकी भाभी का फोन आया जो जानकी ने ही उठाया था, जिस में बताया गया के मां का संस्कार कर दिया गया है। और एक आखरी फोटो असीस को भेज दी थी उनकी तरफ से।
जानकी ने वैसे ही सब बातें असीस को बता दी थी, तो असीस उसी समय से गुमसुम सी हो गई थी।
रात के 9 बज रहे थे जब आशू घर आया। जानकी ने दरवाजा खोला तो वो सामने ही खड़ा था और जानकी को देख वो हैरान सा हुआ।
"आज पीकर आया है," जानकी ने उसकी लाल आंखे देख कहा तो वो अंदर आते हुए, "असीस कहां है," उसने कहा।
"वो अपने रूम में है," जानकी ने कहा और दरवाजा बंद कर दिया।
"उसे पता नही के मैं आने वाला हूं," आशू हॉल में आते हुए बोला।
"तेरी सास नहीं रही," जानकी ने कहा और रसोई की तरफ चली गई। आशू ने जानकी को देखा फिर बैठते हुए, "कोई बड़ी बात तो नही है वो पहले ह मरने वाली थी।"
"आशू," वो पानी लाते हुए बोली, तो आशू उनको देखने लगा।
"मुझे खाना दो भूख लगी है," वो बोला तो जानकी ने उसके आगे खाना ला रख दिया। आशू ने थोड़ा बहुत खाया और कमरे में चला गया। वही जानकी ने बर्तन समेटे और वो भी अपने रूम में चली गई।
आशू रूम में आया तो चारों तरफ अंधेरा ही था। उसने लाईट जगाई तो देखा असीस वही दिवार से लग कर नीचे बैठी हुई थी सिर घुटनों मैं देकर। आशू ने उसे देखा और उसी तरफ चल दिया और उसके पास ही बैठ गया।
"असीस बेड पर जा कर लेटो," वो बोला पर असीस ने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया। तो आशू ने उसके कंधे पर हाथ रख हिलाया तो असीस एकदम सिर उपर कर उसे देखने लगी।
आंखे रोने की वजह से लाल हो गई थी और सूज भी चुकी थी। आशू एक पल के लिए हैरान हो गया था। "असीस," उसने कहा तो असीस एक बार फिर से रो पड़ी। आशू ने आगे बड़ उसे सीने से लगा लिया, तो असीस का रोना और ही बड़ गया।
"चुप चुप रोते नही है," वो बोला।
"मम्मी नही रही," उसने रोते हुए कहा तो आशू उसके सिर पर हाथ रख सहलाते हुए, "बस कर जिनको जाना था वो चले गए," असीस उसके सीने से लगी सिसकती रही तो आशू ने भी आज उसे अपनी बाहों के दरमियान कर लिया था।
असीस जो इस समय एक ऐसे सहारे की तलाश में थी वो उसे उस आदमी के रूप में मिला जो उसका पती था, और शायद आज ही आशू ने एक पती की तरह उसे संभालने की कोशिश की थी।
असीस वैसे ही रोते हुए सो गई। आशू को जानकी से पता चला था के वो दोपहर से ही रोये जा रह है ना कुछ खाया ना पीया गुमसुम सी बैठी थी। वही आशू जो नशे में था पर असीस की उन लाल और सुजी हुई आंखो को देख उसका भी नशा उतर चुका था।
आशू को एहसास हुआ के वो सो गई है तो उसने उसे उठा कर बेड पर लेटा दिया वैसे भी असीस उसके सामने थी ही क्या, कंधे तक आती थी उसके।
आशू ने उसे अच्छे से ढका और खुद चेंज करने चला गया और आके वही उसके पास ही लेट गया।
अगले दो तीन दिन भी ऐसे ही बीते थे, यहां असीस चुप सी हो गई थी तो आशू जानकी ने उसे संभाला था, आखिर परिवार वही था उसका। अब भाई तो पराया हो गया था। सुरभी गौतम को जैसे ही पता चला वो दोनो वैसे ही आ गया थे, गौतम ने असीस को समझाया के जो चले गये उनके लिए रोकर क्या करना। पर वो मां थी असीस की ऐसे कैसे भूल जाये वो ये सब।
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आज असीस हफ्ते बाद सुबह जल्दी उठी थी तो उसे पास लेटा आशू दिखा जो दूसरी तरफ करवट लेकर लेटा हुआ था।
असीस ने भी उठ कर रोज की तरह सब काम करने शूरू कर दिये जो पीछले एक हफ्ते से उस ने नही करे थे, और जानकी के रसोई में आने से पहले वो सुबह का नाश्ता बना चुकी थी। जानकी उसे देख खुश हूई थी। आखिर अब असीस उसकी बहू थी। हां कहते है दो अलग अलग जगह से आये लोगो को मिलने में समय लगता है और यही कुछ यहां हुआ था जानकी जो असीस को बच्ची समझती रहती थी वो आज उसे बड़ी बड़ी लग रही थी।
"मम्मी जी चाय," असीस ने उनके आगे चाय का कप करते हुए कहा तो वो असीस को देख कर, "ठीक है ना असीस तू," तो असीस ने सिर हिला दिया।
आशू भी कुछ ही देर में बाहर आ गया तो असीस ने उसे भी चाय दी और खुद वही एक तरफ बैठ कर चाय पीने लगी।
"असीस आज शाम को तैयार रहना, मेरे कलीग के यहां पार्टी है एक साथ चलेंगे," आशू ने कहा तो असीस हैरान सी उसे देखने लगी। "तैयार रहना साड़ी पहन लेना," वो बोला तो असीस सिर हिला कर रह गई।
वही जानकी ने दोनो को देखा तो वो भी मुस्कुरा दी। "जानकी ओ जानकी," दरवाजे से आवाज आई तो असीस उठ कर चल दी दरवाजा खोलने। सरला खड़ी थी सामने जो असीस को देख मुस्कुरा दी "कैसी है अब तू," वो बोली तो असीस ने सिर हिला दिया।
"चलो अंदर चलो," सरला ने कहा और असीस के साथ अंदर आ गई।
"जानकी लगता है तू भूल गई आज हमे जाना था ना पीहर," सरला ने कहा तो जानकी हैरान होते हुए, "हां जाना तो था पर मैं भूल गई, और लगता है अभी जाना नही होगा," वो बोली।
"पर क्यूं," सरला ने कहा।
"असीस अभी अभी तो सही हुई है ऐसे में उसे अकेला छोड़ जाना सही नही होगा," वो बोली।
"कुछ नही होगा आशू यहीं है और हम कोन सा वहीं रहने वाले है। आज जायेंगे और कल जा परसों वापस आ जायेंगे," सरला ने कहा।
"आप जाओ मम्मी मैं ठीक हूं," असीस ने कहा तो जानकी उसे देखने लगी। "चल ठीक है अभी आठ बजे है दस बजे निकलते है," जानकी ने सरला से कहा।
असीस जल्दी जल्दी हाथ चलाने लगी थी क्यूंकि रास्ता लंबा था और साथ लेजाने के लिए वो सुखी सब्ज़ी और पुरी बना रही थी। आशू ऑफिस के लिए चला गया था, तो असीस ने अपनी सास की सब तैयारी कर दी थी और वो अपने समय पर चली गई।
असीस का रूख अब छत की तरफ था यहां पर उसने सुबह सुबह ही कपड़े धोकर कर डाले थे। सीढ़ियां चढ़ते हुए उसे वीना के रूम से कुछ आवाज आई पर उन आवाजों को अनसुना कर वो उपर चली गई।
कपड़े उतार वो नीचे आई और अपने काम में लग गई। इन एक हफ्ते में भाई का फोन आया ही नही था। जब भी बात होती तो भाभी करती भाई ने तो जैसे बात करनी ही छोड़ दी थी। तो असीस ने भी अब उस तरफ फोन करना छोड़ दिया था।
वो कितना रोई थी इस एक हफ्ते में। तरस गई थी भाई से बात करने को पर मजाल है के भाई ने बात की थी उस से, पर इस एक हफ्ते में आशू का रूख बदला बदला सा लग रहा था। वो अब असीस पर ध्यान दे रहा था, और साथ ही इस एक हफ्ते में वो असीस के करीब तक नही आया था।
और यही बाते असीस को दिल में घर सी कर गई थी। यही सब सोचते हुए वो नीचे आ गई और आकर अपने काम करने लगी गई। रात का खाना तो आशू के कहने पर बाहर ही था तो वो टीवी चला कर बैठ गई, खाली बैठने पर दिमाग फिर से उसी तरफ जा रहा था।
शाम को असीस आशू के कहने पर साड़ी पहने तैयार थी। मेहरून कलर की साड़ी में वो सूंदर लग रही थी और उसकी वो भूरी आंखे काजल लगाने से बड़ी बड़ी लग रही थी।
आशू भी तैयार था और दोनो बाइक से चल दिए थे अपनी मंजिल की और।
रब राखा।
आशू भी तैयार था और दोनों बाइक से चल दिए थे अपनी मंज़िल की ओर।
पार्टी, आशू के साथ काम करने वाले विकास की शादी की सालगिरह की थी।
यहाँ पर उसने अपने ग्रुप के कुछ 5 लड़कों को बुलाया था और वो सब अपनी-अपनी वाइफ़ के साथ ही आये थे। ये पार्टी विकास ने अपने घर पर ही रखी थी।
आशू असीस के साथ पहुँचा तो वहाँ पर पहले ही सब पहुँचे हुए थे।
और लगभग सब ही असीस को देखते ही रह गए थे। वो आशू के सामने उम्र से तो कम थी ही, शारीरिक रूप से भी कुछ ज्यादा तंदुरुस्त नहीं थी।
"सालगिरह की मुबारक हो तुम दोनों को", आशू ने विकास से हाथ मिलाते हुए कहा और असीस को देखा जो चुप सी खड़ी थी।
"माई वाइफ", वो बोला तो विकास ने आसीस के आगे हाथ कर हैलो भाभी जी कहा, तो असीस उसे देखने लगी। वही आशू उसके हाथ को देख रहा था।
"नमस्ते भाभी जी", फिर विकास ने दोनों हाथ जोड़ कहा तो असीस ने भी हाथ जोड़ नमस्ते करा।
"ये रही पारो मेरी पत्नी", विकास ने अपनी पत्नी को पास बुलाते हुए कहा, तो आशू असीस दोनों ने उसे विश करा।
विकास ने सब से असीस को मिलाया तो सब असीस को ही देख रहे थे।
"क्या यार आशू कभी बताया ही नहीं भाभी के बारे में तूने तो। अगर कल तेरा फ़ोन स्पीकर पर ना रहता और आंटी नहीं बताती की असीस की हालत कैसी है तो हमे पता ही नहीं चलता", एक लड़का बोला तो असीस आशू को देखनी लगी, वही आशू उस लड़के को देख रहा था।
विकास दोनों को देखते हुए, "बस बस चलो पहले कुछ नाच गाना तो करो तुम लोग, ऐसे खाना नहीं मिलेगा", वो बोला और सब का ध्यान नाच गाने पर लगाया। यहाँ सब अपनी अपनी वाली के साथ नाचने लगे थे।
असीस को ये अच्छा लग रहा था, वही आशू भी उसका हाथ पकड़ कर सब के पास ले गया और डांस करने लगा। असीस जो अभी अभी उस बात को सोच ही रही थी के आशू ने किसी को नहीं बताया था अपनी शादी के बारे में, वो आशू के साथ डांस करते हुए वो बात भी भूल गई।
और ऐसे ही हँसी मजाक के बीच वो समय बीता, यहाँ पर असीस को आशू का नया ही चेहरा दिखा, जो के उसके प्रति बहुत ही नरमी वाला था। असीस समझ ही नहीं पा रही थी आशू को।
बाइक पर उसके पीछे बैठी असीस के चेहरे पर ख़ुशी थी। सब जगह देख रही थी वो।
असीस दिल्ली पहली बार शादी के बाद ही आई थी। पर यहाँ आते ही वो घर की चार दीवारी का हिस्सा बन गई थी। और फिर वो तो जैसे उसी की आदी ही हो गई थी, जा उसे बना दिया था। लेकिन पिछले दिनों से आशू को देख वो हैरान भी थी और खुश भी के चलो अब वो उस से सही से बात करने लगा है, उसके बारे में सोचने लगा है।
इसी सब सोच में वो लोग घर पहुँचे। "असीस चाय मिलेगी क्या", आशू ने अंदर आते हुए कहा तो असीस ने सिर हिला दिया और रसोई की तरफ चली गई, वही आशू रूम की तरफ बढ़ गया और अपने कपड़े बदलने लगा।
कुछ समय बाद असीस चाय लेकर आई और टेबल पर रख चेंज करने चली गई।
आशू वो कप उठा बेड पर बैठ गया।
"कैसा लगा बाहर जाकर", आशू ने पूछा जब असीस चेंज कर आई और वही एक तरफ बैठ गई।
"अच्छा लगा", उसने धीरे से कहा।
आशू उसे देखने लगा जिसका चेहरा धोने के बाद भी हल्का सा काजल आँखों में रह गया था।
और वो चेहरा हल्का गुलाबी सा लग रहा था, जा ऐसा कहो के उसने आज पहली बार ही असीस को देखा था इस तरह से। वरना बीते महीनो में उस का रुख अलग ही था।
"असीस तुम बहुत सुंदर हो", आशू ने असीस के गाल पर हाथ रख कहा तो असीस जो उसे ही देख रही थी वो बस चुप सी ही रह गई।
आशू जो उसे ही देख रही था, आगे बढ़ उसने असीस को होठो को हल्के से चुम्म लिया और उसके चेहरे को देखने लगा।
वही असीस भी हैरान ही थी, आज पहली बार वो बीना नशे के उसके करीब आया था, और बदला सा उसका अंदाज भी था।
आशू जो उसे ही देख रहा था उसने एक एक कर असीस के चेहरे को चुम्म लिया और फिर होठो को दबाते हुए वो उस पर झुकता चला गया।
सुबह हर रोज की तरह वो उठी तो देखा आशू सो रहा था। वही असीस के चेहरे पर स्माईल थी और पहले के दिनों के मुकाबले चेहरे पर नूर भी अलग ही था। असीस उठी और रोज की तरह अपने काम में लग गई। कपड़े धोने के साथ ही वो नहा धो कर बाहर आई और छत की तरफ बाल्टी उठा चल दी। जो के वो रोज ही करती थी।
असीस ने सलवार सूट पहन रखा था और बाल गीले होने की वजह से खुले हुए थे। माथे पर बिंदी और मांग में भरे सिंदूर से उसका चेहरा भरा भरा सा लग रहा था।
उसने छत पर आकर बाल्टी रखी और तार पर कपड़े डालने लगी। तभी उस की नजर छत के एक तरफ चली गई, यहां पर एक आदमी पीठ करे खड़ा था, उसने लोअर के साथ बनियान पहनी हुई थी। असीस ने उस तरफ बहुत ध्यान से देखा, पर उसे समझ नहीं आया कौन होगा।
वैसे भी वीना के भाई के बारे में सोच कर उसका ध्यान अपने काम पर चला गया और वो कपड़े ढाल कर उनको पिन लगा कर नीचे चली गई।
एसे ही दिन बीतने लगे थे। आशू अब बदल रहा था और उसके बदलने का कारन जो भी था पर असीस खुश रहने लगी थी, वही रीना ने भी असीस को इन दिनों छत से देखा था। उसका वो चमकता चेहरा रीना की आंखो में ख़ुशी बिखेर देता था।
चाहे उनकी बात नहीं होती ही पर रीना भी रोज उसी समय छत पर आती जिस समय असीस, तो बस वो उसे देखती रहती।
आज जानकी ने आना था, जो 2 दिन का कह कर गई थी पर उसे वहाँ पर हफ़्ता लग गया। सरला और वो वहाँ से बनारस चली गई थी घुमने को। तो बस इसी सब में उनको दिन लग गये थे।
तो सुरभी भी अनाया के साथ आ गई थी घर, क्यूंकि अनाया को छुट्टीयाँ पड़ गई थी और आज सुरभी और गौतम के माता पिता के बीच कुछ कहा सुनी भी हो गई थी तो वो अनाया को लेके दोपहर को ही आ गई थी। गौतम काम की वजह हे शहर से बाहर गया था तो उसे कुछ पता नहीं था।
अनाया मामी से मिल कर खुश थी और टीवी देख रही थी तो वही सूरभी पास बैठी फ़ोन देख रही थी।
शाम हो गई थी, तभी डोर बेल बजी असीस जल्दी से दरवाजा खोलने गई तो देखा सामने ही जानकी और आशू खड़े थे, आशू जानकी को रास्ते से लेकर आया था।
असीस ने जानकी के पैर छुऐ और अंदर आ गए। वही जानकी सुरभी को देख खुश हो गई थी। आशू ने अपना सामान असीस को दिया और वही सब के पास आकर बैठ गया।
"तुम दोनों कब आई", जानकी ने पूछा तो सुरभी नाराजगी दिखाते हुए, "क्या मैं अपने घर नहीं आ सकती", वो बोली।
तो जानकी उसके सिर पर हाथ रख, "क्यूं नहीं, आ सकती बस ऐसे ही पूछा के सब ठीक तो है ना।"
"हाँ सब ठीक है", वो बोली तो वही आशू उसे देख रहा था।
"क्या आज भी कहा सूनी हो गई", वो बोला तो सुरभी ने उसे देखा।
"हाँ हो गई वो दोनों की जुबान बहुत चलती है। बोल रहे थे के कहीं जाना नहीं है आज घर पर मेहमान आने वाले है तो काम करो, मेने भी मना कर दिया, वो दोनों बोलने लगे तो बस मैं आ गई उनको छोड़ कर।"
"तो जीजू", आशू ने पूछा और असीस जो पानी ले आई थी ट्रे से गिलास उठाते हुए उसे देखा।
"वो तो बाहर गया है, कल तक आ जायेगा", सुरभी ने कहा। असीस ने एक बार आशू को देखा और फिर अपने काम पर लग गई। वही जानकी ने अपने साथ लाए सामान को खोल कर दिखाने लगी, जिस में अनाया के लिये कुछ सामान था और साथ ही असीस सुरभी के लिए सुट भी थे।
सुरभी को अपना सुट पसंद नही आया तो उसने असीस का सुट ले लिया और असीस को अपना सुट देते हुए, "ये तुम पर जचेगा नही मुझे पर ही अच्छा लगेगा, मेरा रंग साफ है ना", वो बोली। तो सुरभी चुप सी ने सिर हिला दिया, तो वही आशू ने अपनी बहन को देखा। जानकी भी चुप ही रही वो भी कुछ नही बोली।
रात का खाना कर सब अपने अपने रूम में थे। यहां सुरभी अनाया के साथ जानकी के रूम में लेटी हुई थी। समय भी रात के 10 बज गये थे और अनाया सो चुकी थी।
"मम्मी एक बात समझ नहीं आई", सुरभी जो लेटी हुई छत को देख रही थी वो बोली तो जानकी जिसके बांह पर अनाया सिर रख सो रही थी उसने सुरभी को देखा।
"कौन सी बात", उसने अनाया का सिर तकिये पर रखते हुए कहा।
"आशू बदला सा लग रहा था, वो पीकर भी नहीं आया जो अक्सर पी कर आता था और असीस का चेहरा भी खिला खिला लग रहा था", वो बोली।
जानकी खुश होते हुए, "ये तो अच्छी बात है ना अपना आशू सही हो रहा है और वो दोनों मिया बीवी है, अब सब सही है तो अच्छी बात है", वो बोली।
तो सुरभी उनको देखने लगी। "ठीक है अगर सब सही है तो यही सही", वो बोली। पर ना जाने क्यूं उसे कुछ अजीब लग रहा था।
सुबह 8 बजे जब सुरभी उठ कर बाहर आई तो सामने ही अनाया बैठी हुई थी जानकी के पास। तो वही असीस जो रसोई में लगी हुई थी वो पकोड़े प्लेट में डाल कर बाहर ला रही थी और टेबल पर रख चली गई। अनाया खुशी खुशी खाने लगी।
"वाह मामी बहुत यम्मी है ये तो", उसने खाते हुए कहा तो असीस के चेहरे पर स्माईल आ गई। वही जानकी ने अनाया को खुशी से देखा।
"लो मम्मी जी आपकी चाय", असीस ने वापस आते हुए कहा और जानकी के आगे चाय का कप रख दिया। सुरभी ये सब देख रही थी। असीस के चेहरे पर आई खुशी उसे कुछ जम नहीं रही थी।
के तभी टेबल पर एक तरफ पड़ा असीस का फोन बजने लगा, सुरभी का ध्यान उस फोन पर चला गया जिस पर गौतम का नाम आ रहा था।
सुरभी की आंखे बड़ी बड़ी हो गई और उसने जल्दी से फोन उठाना चाहा तब तक फोन कट गया।
उसी समय असीस सुरभी के लिए भी चाहे नाश्ता ले आई थी। "तुम्हारे फोन पर गौतम का फोन क्यूं आ रहा है", सुरभी एकदम से बोली तो असीस उसे देखने लगी।
"दी मुझे नहीं पता", उसने कहा।
"अच्छा तो तु बता रही होगी ना गौतम को मेरी सारी बातें", सुरभी बीना उसकी बात जाने जोर से बोली, तो वही अनाया जानकी उसे देखने लगी।
असीस जो उसकी आवाज से ही सहम गई थी वो नहीं बोली।
"तभी तो सोचूँ के क्यूं गौतम को तुम्ही अच्छी लगती हो हर समय तुम्हारी ही बातें करता है वो", सुरभी ने गुस्से से कहा।
"सूरभी", जानकी ने उसे रोका, तो सुरभी उनको देख कर।
"मम्मी कल मेरे यहां आने की वजह भी यही थी", सुरभी ने असीस की तरफ हाथ से इशारा कर कहा। तो जानकी असीस को देखने लगी।
वहीं हैरान ही असीस कुछ बोल ही नहीं पाई। "ये देखो मम्मी कल रात भी इसने फोन करा था गौतम को", सुरभी असीस के फोन की कॉल डिटेल देखते हुए बोली।
"बता क्या बताया है गौतम को तूने", सुरभी ने असीस का हाथ पकड़कर गुस्से से कहा। तो अनाया अपनी मम्मी को देखने लगी।
"बस दी क्या बोले जा रही हो आप", आशू ने आगे बढ़ असीस का हाथ सुरभी के हाथ से हटाते हुए कहा तो वही असीस उसकी पीछे हो गई।
"तू, तू कब से मुझसे जुबान लड़ाने लगा हाँ", सुरभी ने हैरानी से कहा जो उसके और असीस के बीच खड़ा था।
"दी जब बात पता ना हो ना तो बोलना नही चाहीये, मेने गौतम जीजु को फोन करा था। मेरे फोन से लग नहीं रहा था तो असीस के फोन से लगा दिया समझी आप", आशू ने कहा। तो मानो सुरभी उसे हैरानगी से देखने लगी थी। उसे यकीन ही नही हो रहा था।
"क्यू किया फ़ोन तूने, मेरे यहां आने से परेशानी हो रही थी तो मुझ से बात करता ना। फोन करने की क्या जरूरत थी तुमको।" सुरभी ने कहा।
"बस दी बैठ जाओ चुप चाप", आशू ने कहा और मुड़ कर असीस को देखा जो अभी भी सिर झुकाये खड़ी थी।
"जाओ चाय लेकर आओ", वो असीस से बोला तो असीस चली गई।
"दी बैठ जाओ और खुद अनाया के पास बैठते हुए चलो अनाया आज हम दोनो पकोड़े कंपटीशन करते है", वो बोला तो अनाया ने सिर हिला दिया। जानकी भी चुप बैठ गई पर सुरभी को ये सब जरा सा ना भाया था। उसे लगा के असीस के सामने उसकी बेज्जती हो गई है और वो बस इसी बात की खार खाये बैठ गई थी उस से।
रब राखा।
उसे लगा कि असीस के सामने उसकी बेइज्जती हो गई है, और वो बस इसी बात की खार खाये बैठी थी उससे।
आशू अनाया के साथ बैठकर पकोड़े खाने लगा। तो वही जानकी उन दोनो को देख रही थी कि तभी असीस का फोन एक बार फिर से बजा तो इस बार भी गौतम का ही फोन था। और फोन सुरभी के हाथ में होने के कारण उसने जल्दी से फोन उठा लिया, आशू उसे देखता ही रह गया।
"सुरभी घर चलो मम्मी पापा तुम्हारा इंतजार कर रहे है", गौतम ने सुरभी की आवाज सुन कहा। तो सुरभी ने आशू को देखा, "नही जा रही मैं समझे तुम, अगर हमे ले जाना है तो खुद आ जाओ। नही तो रहो वही अपने मम्मी पापा के साथ", वो बोली।
"सुरभी पागलों जैसी बातें मत करो, घर चलो और ऐसा भी कुछ नही कहा था मम्मी ने के तू घर छोड़ कर आ जाये। बस इतना ही कहा ना के आज मेरी दी आने वाली है तो रूक जाओ। और तुम हो के घर से निकल गई। नन्द है वो तेरी साल में एक बार तो वो आती है, तो चलो घर मैं भी पहुंचने वाला हूं", गौतम बोला।
"नही जा रही समझे", कहते हुए उसने फोन काट दिया और वही बैठ गई।
असीस ने तब तक आशू और बाकी सब के लिए नाश्ता वहीं लगा दिया था। संडे होने की वजह से आशू भी घर पर ही था तो वो वही बैठा रहा।
सब के खाने के बाद असीस ने भी खाना खाया और सब सामान समेटते हुए वो बाहर आई तो देखा आशू वहां नही था, अनाया और सुरभी जानकी भी रूम में चली गई थी।
तो असीस अपने रूम की तरफ चल दी तो पाया आशू अपनी शर्ट के बटन बंद कर रहा था। असीस चुप सी उसे देखने लगी।
"आओ ये बटन बंद कर दो", आशू ने असीस को देख कहा।
"मैं आप क्यू, खुद ही कर लो", वो झिझकते हुए बोली तो आशू उसे देखने लगा जो उस से नजरें चुरा रही थी।
"अच्छा इधर तो आओ", वो बोला तो असीस उसकी तरफ चल दी। "सॉरी वो दीदी ऐसी ही है। तुमको पता तो है उनके बारे में, बात हो गई है मेरी जीजू से वो बस पहुंचते ही होगे", आशू ने असीस को बाहों में भरते हुए कहा। तो वही असीस उसे देखने लगी।
"क्या देख रही हो", वो बोला तो असीस ने ना में सिर हिला दिया।
"वैसे तुम अब पहले से सुंदर लगने लगी हो", आशू ने कहा तो असीस के होठो पर हल्की सी मुस्कान तैर गई। तो वही आशू असीस की तरफ झुकने लगा।
"मामी मामी वो मेरी ड्रेस आपने धो दी क्या मुझे वही पहननी थी", कहते हुए अनाया भागी भागी आई तो असीस एक झटके से आशू की गिरफ्त से आजाद हुई वही आशू भी शीशे में देखने लगा।
"हां अनाया वो धो दी थी, कल रात आपने सब्जी गीरा दी थी ना", असीस ने कहा।
"पर मुझे चाहीये।"
"ठीक है मैं ले आती हूं, वैसे भी कपड़े सुख ही गये होगें", कहते हुए असीस बाहर की तरफ चल दी तो अनाया आशू के पास आकर उसे देखते हुए, "मामू वो ना इस बार आप घर आना मुझे आपको अपनी बहुत सारी चीजें दिखानी है। मामी के साथ आना।"
"ओके, और कोई फर्माइश", आशू अनाया को देखते हुए बोला।
"और कुछ नही बस आप ना अब अच्छे वाले मामा बन कर रहना जैसे अब रहते हो", वो बोली तो आशू उसे देखने लगा।
"ठीक है अनाया ने कहा है तो ऐसा ही होगी", वो बोला, अनाया खुशी खुशी बाहर चली गई। वही आशू ने खुद को शीशे में देखा और उसके साथ ही उसके होठो पर टेढ़ी मुस्कान तैर गई।
असीस छत पर आई तो धूप तेज ही थी वो जल्दी जल्दी से कपड़े उतारने लगी के तभी उसे लगा के उसके पीछे कोई है। उसने मुड़ कर देखा तो देखती ही रह गई, एक लड़का लडकी एक साथ उपर बने रूम की दीवार के साथ लग कर खड़े थे। यहां लड़की दीवार के साथ लगी हुई थी तो वही वो लड़का अपना चेहरा उस लड़की की गर्दन में छुपाय खड़ा था, असीस ने नही देखा वो कौन था। और वो वैसे ही जल्दी से कपड़े लेकर नीचे की तरफ बड़ गई, पर उसके कान में उस लड़की के हसने की आवाज अभी भी पड़ रही थी।
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"बस कर नूर वो चली गई", उस लड़की ने लड़के से कहा जो उसकी गर्दन में चेहरा दबाय खड़ा था। "तू पागल है नूर", उस लडकी ने कहा तो वही उस लड़के ने चेहरा दूसरी तरफ कर लिया।
"हां हूं पागल मास्क भूल गया था नीचे। तो समझ नही आया तो ये सब करा सॉरी", वो दूसरी तरफ देखते हूए बोला।
"तो मुझे ही पकड़ाना था दीवार पकड़ लेता। पता नही क्या सोच रही होगी मेरे बारे में।"
"कुछ नही सोचेंगी इतना सोचने वाली होती ना, तो अच्छी जिन्दगी जी रही होती। कोई फर्क नही पडेगा उसे", उसने कहा।
वो लड़की उसे देखते हुए, "क्या मिल रहा है ये सब करके। वो जानती भी नही है तुमको और तु उसकी कुंडली निकाले बैठे हो, दी को पता चला ना तो बहुत गुस्सा करेंगी।"
"कर लेने दे जिसे जो करना है। मैं अपनी मर्जी का मालिक हूं मुझे जो करना है वही करूंगा", वो बोला।
"मुझे तो चेहरा दिख दे।"
"तू तो एसे बोल रही है जैसे पहले देखा नही और सुन अपने उस पती से बोल देना के मेरे रास्ते में ना आये, किसी दिन वो पिट जायेगा मेरे हाथो।"
"बस तूम दोनो से मरने मारने की बातें सुन लो और करा लो। ना वो मेरी मानता है और ना तूम सुनते हो, वैसे एक बात कहूं भाड़ में जाओ तूम दोनो", कहते हुए वो लड़की नीचे की तरफ चल दी तो वही वो लड़का नूर शत पर खड़ा रहा लेकिन उसके अपना चेहरा नही घुमाया।
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असीस नीचे आई तो घबराई सी कपड़े वही सॉफे पर रख रसोई की तरफ चल दी और पानी का गिलास पी लिया। उसे समझ नही आ रहा था के वो किस से कहे इस बात को, मम्मी से या आशू से, वैसे ही आशू कुछ दिनो से सही हूआ था तो वो नही चाहती थी के कुछ ऐसी वैसी बात करे उसने चुप्पी ही साध ली।
और बाहर आकर अनाया को उसकी ड्रेस दी और बाकी कपड़े तै करने लगी।
"असीस आज ना दोपहर के लिए अच्छा सा बना ले गौतम आने वाला है। तेरी दीदी को लेने और हां घर का ही बनाना उसे बाहर का पसंद नही है", जानकी ने वही बैठते हुए कहा तो असीस सिर हिला कर जल्दी जल्दी हाथ चलाने लगी। ग्यारह तो बज ही गए थे।
असीस जो रसोई में लगी हूई थी उसने बाहर दरवाजे की बेल सुनी तो बाहर आने लगी। "मामी आप काम कर लो मैं देखती हूं", अनाया ने कह जो बाहर बैठी टीवी देख रही थी। तो असीस मुस्कुरा कर अपने काम पर लग गई।
"पापा आ गए", कहते हुए अनाया गौतम के गले लग गई तो वही गौतम ने भी अनाया को गले से लगा लिया।
"चलो अंदर चले", गौतम ने कहा उसके हाथ में कुछ बैग्स थे शॉपिंग के।
तो अनाया उस के साथ अंदर आ गई। वही जानकी सूरभी और आशू भी बाहर आ गये जो जानकी के कमरे में बैठे हूए बातें कर रहे थे।
सुरभी ने तो उसे बुलाया नही पर जानकी आशू ने आगे आके गौतम को बुलाया और साथ ही असीस को अवाज लगा कर पानी लाने का कहा।
असीस जल्दी से बाहर पानी ले आई गौतम उसे देख मुस्कुराया और पानी का गिलास ले लिया। "कैसी हो", गौतम ने कहा तो असीस ने सिर हिला दिया।
कुछ देर उस जगह पर चुप्पी सी बनी रही।
"असीस ये तुम दोनो के लिए है और ये मम्मी आपके लिए", गौतम ने पास रखे बैग्स को असीस और जानकी की तरफ बढ़ाते हुए कहा। तो असीस आशू को देखनी लगी।
"अरे ले लो", गौतम ने कहा तो असीस ने उस बैग्स को पकड़ लिया।
" पापा मामी ने खाना बनाया है, हम ना खाना खाकर ही घर चलेंगे", अनाया ने कहा तो गौतम ने मुस्कुरा कर सिर हिला दिया। तो वही असीस जल्द से रसोई की तरफ चल दी।
"चलो सूरभी एसे गुस्सा करने से कुछ नही होगा छोटी छोटी बाते लेकर नही बैठते", गौतम ने खाने के बाद कहा तो सूरभी चुप सी उसके साथ जाने को तैयार हो गई। अनाया बहुत खुश थी अपने पापा के साथ जाने के लिए।
गौतम सुरभी और अनाया को अपने साथ गाड़ी से ले गया था और उसकी स्कूटी आशू छोड आता कल।
गौतम सूरभी को लेकर घर गया तो वहां पर पहले से ही गौतम की बहन जीजा बैठे थे जो के उम्र में उस से बड़ी ही थी।
"सुरभी ये क्या हम आये और तुम चली गई। तू भी ना", कहते हुए उसने सुरभी को गले से लगा लिया। तो वही अनाया अपनी बूआ के गले लगते हुए, "आपको बहुत मिस किया बूआ, दीदी नही आई क्या", वो बोली।
"नही इस बार तेरी दीदी नही आई फाइनल चल रहे है उसके तो वो पड़ रही है", उन्होने कहा।
वही नौकर जो पहले से ही रसोई में लगा हुआ था, वो सूरभी गौतम के लिए पानी ले आया।
"तुमने बताया नही दीदी को मैं नाराज थी", सूरभी ने कहा जब रात को वो दोनो रूम मैं थे।
"नई बात कहो ये बात सब को पता है", उसने तंजीय लहजे में कहा तो सूरभी उसे देखने लगी।
"गौतम मुझे तंज कसने से पहले खुद को देख लो। जो हर महीने बाहर जाता हो मुझे नही पता क्यूं जाते हो बाहर तुम हां।"
"तो इसकी जिम्मेदार भी तुम खुद हो, तुमने कभी खुद के आगे मुझे देखा ही नही, मेरा भी मन करता है के कोई हो जिसके साथ अपने दूख सुख सांझा करूं, पर तुमने कभी मुझे समझा ही नही बस पैसा देखा तुमने मुझे नही।"
"गलत बोल रहे हो तुम अगर तुमको समझा नही होता ता अनाया हमारी जिन्दगी में नही आती वो भी शादी के दो साल बाद", सूरभी ने कहा।
गौतम की आंखो में खून आगया था उसकी बात सुन कर तो सूरभी भी उसे देखने लगी।
गौतम उठा और अलमारी से एक फाईल निकल कर सूरभी के आगे रख दी। "पड़ लो इसे, अच्छे से पड़ना इसको", वो बोला। तो सूरभी ने उस फाईल को उठाया और पन्ने पलटने लगी साथ ही उसके चेहरे पर डर साफ साफ दिख रहा था।
"मैं बाप नही बन सकता, कभी नही, पर तुम मां बन गई ये कैसे हूआ", वो बोला।
"ये गलत है एसे कैसे हो सकता है", सूरभी ने उसे देख कहा।
"सुरभी मेने एक बार नही चार चार बर खुद के टेस्ट करवाये थे। और जब ये बात तुमको बताने घर आया ना तब तुमने मुझे खुशखबरी सुनाई के मैं बाप बने वाला हूं, तूम जानती हो उस समय मुझे कैसा लगा था। नही जानती मैं बताऊं तुमको", गौतम ने गुस्से से पर धीमी आवाज में कहा तो सूरभी चुप सी रह गई।
"वो तुम्हारा एक्स बॉयफ्रेंड वो ही था ना। तुमने आजतक ये नही जाना के वो कहां गया, हम्म", गौतम ने कहा और साथ ही सूरभी के बाल पकड़ चेहरा उपर की तरफ करते हुए।
"जानना नही चाहा ना मैं बताऊं क्यूं, क्यूंकि तुमको अपनी मनमानी को नाम मिल गया था। इस लिए तुमने उस की तरफ दूबारा देखा नही। और मैं बस दूनिया के डर से इस बात को छुपा गया के मैं बाप नही बन सकता लोग क्या कहेंगे मुझे। ये धोख नही था क्या मेरे साथ। पर मैं चुप रहा यही सोच करके तुम बदल जाओगी अभी नादान हो। पर नही तुम नही बदली। आज भी नही बदली। तो फिर मुझे क्या पड़ी है तुम्हारी। में अपनी जिन्दगी जीता हूं", गौतम ने उसके बाल छोड़ते हुए कहा और उस फाईल को उठा वापस रखते हुए।
"और एक बात जान लो। अगर तुमने सोचा के अनाया को दूर ले जाओगी मुझ से तो इतना जान लेना जो हश्र तुम्हारे उस बॉयफ्रेंड का हूआ था। उस से भी बततर जिन्दगी कर दूंगा तुम्हारी। बहुत खतरनाक हूं मैं समझी ना, अब अगर इस घर से बाहर कदम भी रखा तो जान लो क्या होगा तुम्हारा। बहुत देख ली तुम्हारी मनमानी अब और नही, जैसे तुम्हारे परिवार की इज्जत करता हूं। वैसी ही इज्जत मेरे मां बाप को दो, वर्ना जो भी होगा तुम देख नही पाओगी", गौतम ने एक एक शब्द पर जोर डालते हुए कहा तो सूरभी अंदर तक कांपी थी।
आज उसने शादी के इतने साल बाद गौतम का ये चेहरा दिखा था। उसे तो यही लग रहा था के ये आदमी चुप चाप सा रहने वाला है और आज उसने ऐसे ही कहा था के वो बाहर जाकर क्या करता है। पर ऐसी सच्चाई सामने आयेगी उसके, ये उसने सोचा भी नही था।
वो डरी सी उसे देख रही थी जो उसकी बगल में लेटा हुआ था। "लेट जाओ चुप चाप", उसने कहा तो सूरभी चुप सी लेट गई।
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एसे ही दिन बीतने लगे थे, यहां पर असीस आशू के साथ खुश थी। जानकी भी अब असीस को कुछ नही कहती थी।
और इस बीच अब आशू भी कंपनी के काम से बाहर जाने लगा था। उसे हर दो महीने के बाद चार पांच दिन के लिए जाना होता था, हां उसके साथ कंपनी के और भी वर्कर जाते थे ये आशू ही बताता था। तो उन दिनो असीस जानकी के साथ ही रहती थी, हां बाहर वो अब भी ना के बराबर ही जाती थी पर अब उसको ये सब खलता नही था।
क्यूंकि जानकी और आशू का रवैया उसके लिए बदल गया था। और असीस बस इसी सब मे खुश थी। इस दौरान सूरभी का आना भी कम हूआ था। वो जब भी आती गौतम के साथ ही आती थी। और दो तीन घंटे में ही निकल जाती थी। हां गौतम ने उसे काम करने की आजादी अभी भी दे रखी थी तो वो काम पर जाती और सीधा घर ही आती थी। गौतम के माता पीता भी इस बात से हैरान थे के सूरभी अब उनको कुछ कहती नही। तो वो भी अब उसे कुछ नही कहते थे। और इसी तरह दिन बीतने लगे थे।
रब राखा
"मम्मी आज तो इनको आ जाना चाहिये था ना, पर अभी तक नहीं आये ये," असीस ने जानकी से कहा जो बार-बार खिड़की से बाहर देख रही थी। तो वहीं जानकी भी फोन लगा रही थी, पर आशू फोन ही नहीं उठा रहा था। रात के 12 बज गये थे, और असीस के दिल में एक हलचल सी मची हुई थी।
"पता नहीं आशू कहां रह गया, तू ऐसा कर जा आराम कर ले, आता ही होगा," जानकी ने फोन देखते हुए असीस से कहा।
पर असीस को कहां चैन था। वो अंदर हॉल में इधर-उधर घूमने लगी, के शायद आशू आ ही जाये अभी। कल ही तो बात हुई थी उस से तो उसने कहा था के रात 10 बजे तक पहुंच जायेगा। पर अब तो 10 बजे को भी 2 घंटे हो गये थे पर आशू का कोई पता नहीं था।
असीस का दिल बैठा जा रहा था, के तभी घर की बैल लगी और असीस जो बस इसी की आवाज सुनने को बेताब थी, वो जल्दी से दरवाजे की तरफ भागी और दरवाजा खोल बाहर देखा तो उसके चेहरे पर आई मुस्कराहट गायब हुई थी।
सामने ही आशू की हालत खराब थी। चोटों से भरा चेहरा, कपड़े भी फटे हुए थे। वो जो लड़खड़ा रहा था असीस ने जल्दी से उसे आगे बढ़ थामा।
"ये ये क्या हुआ है आपको," वो बोली पर आशू ने कुछ नहीं कहा, वो बस असीस को देखे जा रहा था।
असीस की आवाज सुन जानकी भी बाहर को चल दी थी, के सामने ही आशू की ऐसी हालत देख वो भी घबरा गई और आगे बढ़ दूसरी तरफ से आशू को थामा।
"आशू आशू ये क्या हुआ तुमको," जानकी ने कहा तो आशू बस उनको देखने लगा। दोनों सास बहू मिल कर आशू को अंदर लेकर आई तो वही असीस जल्दी से आशू के लिए पानी ले आई। आशू ने पानी पिया और चुप सा बैठ गया।
"क्या हुआ आशू ये सब क्या है, कैसे इतनी चोट आई तुमको," जानकी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"बस मम्मी क्या कहूं मैं तो शाम को ही ऑफिस पहुंच गया था और अपने काम पर लग गया था, लेकिन मेरे साथ में काम करने वाला जो मुझ से खार खाये बैठा था, के मैं ही कंपनी से बाहर जाता हूं वो मेरे से बहस करने लगा, और बहस बहस में हम दोनों की हाथापाई हो गई। वो मुझ से तगड़ा था और मेरे पर हावी हो गया। मैं कुछ कर ही नहीं पाया था," आशू ने कहा।
वो बोला तो असीस, जानकी दोनों उसकी बात सुन हैरान हो गई थी। "बस इतनी सी बात पर ही लड़ाई हो गई थी तुम दोनों की। कोई बात नहीं सुबह जाकर तुम दोनों बात कर अपनी लड़ाई को खत्म कर लेना," जानकी ने कहा, तो आशू उनको देखने लगा।
"मम्मी अभी बॉस ने छुट्टी दी है कुछ दिन की। उसकी गलती थी ना तो वो अभी पुलिस स्टेशन में है। मुझे उन लोगों ने छोड़ दिया तो मैं बस गिरते-पड़ते आ गया घर," आशू ने कहा।
असीस जो उसे देख रही थी वो आशू के पास आकर, "आपको तो भूख लगी होगी ना, कुछ खाया भी नहीं होगा," वो बोली।
"नहीं असीस भूख नहीं है मुझे," वो बोला।
"जा असीस आशू को ले जा और जख्म साफ कर इन पर मलहम लगा देना," जानकी ने कहा तो असीस ने सिर हिला कर आशू को सहारा दिया और रूम की तरफ ले गई। उसने आशू को बैठाया और खुद उसके सामने खड़ी होकर उसकी शर्ट के बटन खोलने लगी जो के पहले ही फटी हुई थी।
आशू उसे ही देख रहा था, जो उसकी शर्ट उतारते हुए पलके झुकाये हुए थी।
"सॉरी असीस मुझे नहीं पता था ऐसा होगा मेने तो तुमको कहा था ना, कल हम बाहर जायेगें," वो बोला।
"आप लड़े क्यूं, देखे ना कितनी चोट लगा ली आपने, ऐसा कौन करता है, आप ना उससे बात ही मत करना हो सके तो दूर ही रहना उस से," वो बोली और साथ ही पलकों की नमी गाल पर आ गई।
"ठीक है ऐसा ही करूंगा जैसा तुम कह रही हो," आशू ने उसके हाथ पकड़कर कहा।
असीस ने उसके चेहरे को पहले साफ करा फिर क्रीम लगा दी। "अब आप लेट जाओ," असीस ने कहा और दूसरी तरफ जाने लगी।
"कहां जा रही हो," आशू ने उसका हाथ पकड़कर कहा।
"बस नीचे बिस्तर लगा लेती हूं वो आपको परेशानी नहीं होगी सोने में," असीस ने कहा।
"यही लेटो," आशू ने उसे अपने पास ही लेटने का कहा तो असीस सिर हिला कर लेट गई। तो आशू की बाहों का जाल उस पर कस गया।
•••••••••••••
आशू को चोट की वजह से कुछ दिनों की छुट्टी थी तो वो घर पर ही था, तो वही असीस अपने रोज के काम करती और फिर आशू की देख रेख में लग जाती। इस दौरान उसे वो मास्क पहने लड़का वीना का भाई छत पर जा उपर नीचे आते जाते दिख ही जाता, पर असीस ने कभी उस पर ध्यान ही नहीं दिया था, पर वो इतना देखती थी के वो हमेशा मास्क पहने रखाता था।
आज पूरे 10 दिन बीत गये थे, आशू भी ठीक हो गया था तो वो काम के लिए चला गया था। वही घर पर जानकी और असीस खुश थी इस बात से, के आशू काम पर गया है।
अभी दोपहर ही हुई थी के घर की बेल लगी। असीस दरवाजा खोलने गई तो सामने देख हैरान हो गई। सामने आशू था वो भी नशे में धूत। असीस उसे इस हालत में देख सहम गई थी। उसकी वो आंखे जो गुस्से से भरी थी, वो चेहरा जिसे उसने पिछले 6 महीनों से नहीं देखा था, आज वो और भी भयानक लग रहा था।
"अअअअप, आप इस तरह से," लड़खड़ाती जुबान से उसने कहा तो आशू जो नशे में सवार था वो आगे बढ़ा और असीस को एक तरफ धक्का देते हुए वो अंदर आ गया। वही असीस जो उसके लगने से एक तरफ को गिरती गिरती बची थी, वो चारों तरफ देखने लगी यहां उसे जाटनी दिखी जो अपने घर के गेट पर खड़ी हो कर ये सब देख रही थी।
तो वही उसे कुछ और नजरें खुद पर ही दिखी जिनको ना सहते हुए वो जल्दी से अंदर आ गई तो उन नजरों की अब बातें भी सुनने लगी थी असीस को।
आज पहली बार था आशू ने उसे सब के सामने इस तरह से उसे धक्का दिया था। वो तो पहले ही उसके पी कर आने को देख कर ही घबरा गई थी, और आशू का धक्का देना उसे बुरी तरह से चुभा था।
रब राखा
आशू का धक्का देना उसे बुरी तरह से चुभा था। असीस जो बाहर देख रही थी, वो जल्दी से अंदर की तरफ गई और दरवाजा बंद कर आगे बढ़ी। यहाँ आशू जानकी को ही देख रहा था।
तो वही जानकी भी हैरान सी उसे ही देख रही थी।
"ये क्या है आशू, तू पी कर आया है? वो भी सुबह सुबह?", जानकी ने कहा।
"सुबह सुबह क्या लगाई है माँ? अभी सुबह कहाँ है, दोपहर हो गई है अब तो", वो बोला।
"आशू!", जानकी ने गुस्से से भर कर कहा।
"बस बहुत हो गया तुम दोनों को, बहुत देख लिया मैंने। चार बातें हँस कर क्या कर ली, तुम दोनों तो सिर पर ही चढ़ कर बैठ गई हो", आशू ने कहा तो असीस की हैरानी और भी बढ़ गई।
"दिमाग ठिकाने पर है तेरा? क्या बोले जा रहा है तू?", जानकी ने कहा तो आशू जो गुस्से से भर लाल आँखें लिए दोनों को देख रहा था, वो अपने रूम की तरफ बढ़ गया। असीस बस उसे देखती ही रह गई।
"मुझे लगता है अब इसे फिर से नशा छुड़ाओ केंद्र भेजना ही पड़ेगा", जानकी ने फोन देखते हुए कहा तो असीस की आँखें फटी की फटी ही रह गई, और वो जानकी को देखने लगी। तभी जानकी ने असीस को देखा और अपने फोन पर बात करने लगी।
असीस की तो मानो जिंदगी ही लुट गई थी। आज ही तो उसकी शादी को 1 साल पूरा हुआ था और वो खुश भी थी के चलो देर से ही सही पर आशू सही हो गया है। पर उसका ये वहम इतनी जल्दी टूटने वाला था, उसे पता ही नहीं था। वो तो पागल अपने आने वाली जिंदगी के बारे में सोच रही थी और यहाँ तो उसके सब सपने ही टूट गये जो उसने देखे थे। वो सपने जो वो आशू को बताना चाहती थी, वो पलकों पर ही रह आंसुओं की धार बन बह गये थे जो लगातार बहे जा रहे थे।
"हाँ जी सर, जी सर, नहीं सर, जी सर। नहीं आज ही तो आया है वो इस तरह से, ठीक है कुछ दिन देख लेते है, फिर आपसे बात करूंगी", जानकी ने कहा और फोन रख असीस को देखने लगी जो गुमसुम सी दीवार से लगी हुई थी।
"असीस जा उसे देख, रात को गौतम सुरभि आने वाले है तो जा देख उसे। ये लड़का भी पागल हो गया है, बिना बात के पीकर आ गया। आज शादी की सालगिरह थी इसकी और इसने ये दिन दिखाया है", जानकी खुद से ही बड़बड़ाते हुए रसोई की तरफ चल दी तो असीस जो चुप सी रह गई थी, वो भी अपना चेहरा साफ कर आगे बढ़ गई।
वो रूम में आई तो आशू बेड पर लेटा सो गया था। असीस वही एक तरफ बेड पर बैठ उसे देखने लगी।
"भरोसा फिर से टूटा है मेरा आज", बेहद कमजोर सी आवाज उसके मुँह से निकली, और चुप सी वो आशू के चेहरे को देखने लगी जो दिखने में कितना गोरा था और पढ़ाई भी कम नहीं थी। अच्छी पढ़ाई थी उसकी, पहली नजर में देख कोई कह ही नहीं सकता के आशू ऐसा है।
असीस ने अपने पहले दिन तो भुला ही दिये थे ये सोच कर के अब तो आशू ठीक हो गया है। उसके प्रति खुद के प्रति, शराब ना पीना, काम पर जाना और घर आ जाना, बिना बात के गुस्सा तो करना ही छोड़ दिया था उसने। और असीस तो उसके ऐसे बदले हुए देख कर ही खुश थी। पर उसकी खुशी चंद दिनों की थी उसे नहीं पता था।
असीस अभी ये सब सोच ही रही थी के तभी बाहर बैल बजी और असीस चौंक कर दरवाजे की तरफ देखने लगी, फिर आशू को देखा जो बेसुध सा था और उठ कर बाहर चली गई।
बाहर आई तो सामने ही सुरभि और अनाया थी, "मामी", अनाया ने असीस को पकड़कर कहा तो असीस भी उसे देख मुस्कुरा दी, और फिर आगे बढ़ उसने सुरभि के पैर छू लिए।
"कैसी है आप दी आप", असीस ने कहा तो सुरभि ने कोई जवाब ना दिया। वो तब से ही भूमि से खार खाय बैठी थी जब से उसका भाई भूमि की तरफ की बात करने लगा था।
भूमि को भी पता था के ऐसा ही जवाब मिलेगा तो वो भी मुस्कुरा कर रसोई की तरफ चल दी।
"अच्छा मम्मी आशू कहा है, घर नहीं आया अभी तक?", सुरभि ने जानकी से पूछा।
"आ गया है, आराम कर रहा है वो", जानकी ने कहा तो असीस जो पानी लेकर आई थी वो जानकी को देखने लगी, लेकिन फिर चुप ही रही।
सुरभि ने पानी का गिलास उठाया और असीस को देख कर, "वैसे आज आशू ने तोहफे में क्या दिया है? कुछ दिनों से तुम्हारा ही दीवाना हुआ फिर रहा था ना वो", सुरभि ने कहा तो असीस उसे देखने लगी।
जानकी जो असीस को ही देख रही थी वो जल्दी से बीच में पड़ते हुए, "तोहफे ही तोहफे है और क्या चाहिए इसे", वो बोली तो असीस सिर हिला कर रह गई।
वही सुरभि हल्का सा मुस्कुरा दी, और पानी का गिलास मुँह से लगा लिया। असल में उसे पता चल गया था के आशू आज पी कर आया है। वो भी उसी डॉक्टर से जिसे से कुछ देर पहले जानकी ने बात की थी। उस समय सुरभि रास्ते में ही रूकी हुई थी तो फोन उठा लिया।
"असीस चाय मत बनाना, खाने का समय हो गया है। ऐसा कर छत पर जो कपड़े पड़े है ना वो सब ले आ, उसके बाद खाना खाते है। क्यूंकि बाद में समय नही मिलेगा", जानकी ने कहा तो असीस सिर हिला कर चली गई।
वही अनाया अपनी मामी के मुरझाए चेहरे को देख रही थी पर अपनी नानी और मम्मी के सामने कुछ कहना नही चाहती थी। तो वो चुप सी ही रह गई।
असीस के कदम तो आगे की और बढ़ ही नही रहे थे पर फिर भी वो सीढ़िया चढ़ रही थी। थके हारे कदमो के साथ। वो अपने ही ख्यालों में चली जा रही थी। उसने ये भी ध्यान नही दिया के उपर आते समय आज वीना दी का भाई सीढ़ियों पर ही बैठा था, और उसने असीस को ऐसे गुमसुम सा आता देख उसे बहुत ध्यान से देखा था पर मास्क आज भी था उसके चेहरे पर।
असीस उपर आई और कपड़े उतारने लगी, मौसम ठंडा होने लगा था तो इस लिए इस समय कपड़े लेने आती थी वर्ना सुबह के धोय कपड़े नौ बजे तक ही सुख जाते थे। पर अब कपड़े सूखने में समय लगता था। वो अपने ही ख्यालों में थी, उसे आज सूरभि की बातें चुभी थी, तोहफा क्या मिला आशू से यही बाते उसके दिमाग में घूम रही थी। "तोहफा", तो वो मिला था आज उसे, जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नही था।
असीस कपड़े उतार कर वापस नीचे आ रही थी। वो अपनी ही सोच में गुम थी के उसका पैर सीढियों से फिसल गया और एक जोर की चीखने की आवाज आई।
असीस ने आंखे खोल कर देखा तो उसके सामने वो मास्क लगा चेहरा था जिसकी आंखो में भी उतनी ही हैरानी थी जितनी असीस की आंखो में थी इस समय।
तभी वहां पर आवाज आई, असीस ने उस तरफ देखा तो सूरभि खड़ी थी। असीस जल्दी से उस लड़के से पीछे हटी और सुरभि को देखने लगी।
"क्या चल रहा है यहां पर?", सूरभि ने कहा तो असीस उसे देख, "नहीं दी ऐसा कुछ भी नहीं, वो तो बस मेरा पैर फिसल गया था और इन्होंने मुझे गिरने से बचाया मैं तो जानती भी नही हूं इनको", वो जल्दी से बोली।
सूरभि ने पीछे खड़े लड़के को देखा, तो उसने भी असीस की ही बात में हामी भरी। सुरभि ने दोनों को देखा और वापस नीचे को चल दी। "थैंक्यू", असीस ने बिना देखे ही उस लड़के को थैंक्यू कहा और नीचे की तरफ चल दी तो वहीं वो लड़का सिर हिला कर रह गया। सूरभि जो सीढ़ियों से उतर रही थी उसने अपने फोन को देखा और मुस्कुरा दी। उसके फोन पर असीस और उस लड़के की फोटो थी जो उसने खिंच ली थी।
रब राखा।
उसके फ़ोन पर असीस और उस लड़के की फ़ोटो थी जो उसने खींच ली थी। असीस आई और कपड़े रख वो रसोई में लग गई।
सालगिरह जिसकी खुशी के खुमार में वो पिछले 1 हफ्ते से थी। वो पल भर में टूटा था और टूटा भी ऐसा के असीस रो नहीं पाई थी, क्योंकि उसे रोने के लिए खालीपन चाहिए था। यहां उसकी आवाज़ कोई ना सुन सके। आखिर जब से वो यहां आई थी वो अपने उस खालीपन में ही रोई थी, पर आज उसे वो भी नहीं मिल रहा था। जिस खालीपन से वो भागती थी आज उसे वही खालीपन चाहिए था, और वो उसे नहीं मिल रहा था।
असीस ने खाना सुरभि, जानकी और अनाया को दिया और वापस रसोई की और चली गई।
"मामी आपका खाना", अनाया की आवाज से वो बाहर आई।
"मैं रोटी सेक दूं आप सब खाओ", उसने कहा।
"मामी आप भी ले आओ एक साथ खाते है", अनाया ने फिर से कहा।
"जा जल्दी से दो रोटी सेक ले और आ जा अपना खाना लेकर", जानकी ने कहा तो असीस चुप सी चली गई और जब वापस आई तो अपनी प्लेट और रोटी लेकर ही आई।
"क्या बात है आज तो सालगिरह है और तुम्हारा मुंह उतरा हुआ है। क्या आशू ने सच में कोई तोहफा नहीं दिया जा कोई और बात है", सुरभि ने कहा।
असीस जो उसे ही देख रही थी वो कुछ नहीं बोली।
"बस कर सुरभि दोनो मियां बीवी के बीच की बात है, कुछ भी हो खुद देख लेंगे तू अपने खाने पर ध्यान दे", जानकी ने कहा और असीस को देख कर, "मीठा तो लेकर नहीं आई।"
"मम्मी जी खीर अभी बन रही है", असीस ने कहा तो जानकी ने सिर हिला दिया और सब खाना खाने लगे।
शाम हो चुकी थी तो वही गौतम भी आ चुका था। जानकी अपने दामाद की आवभगत में लग चुकी थी अंदर असीस उनके सब ऑर्डर मान रही थी।
"बस कर असीस अपनी इस ननद से भी कुछ करा ले, जब से आई है तब से बैठी ही होगी। ये जरा हिला ले इसका वजन कम हो जायेगा", गौतम ने हँसते हुए कहा, पर सुरभि का पारा चढ़ गया।
"अच्छी हूं कोई कमी नहीं है मुझ में समझे आप", वो बोली।
"हां कोई कमी नहीं है तुम में बस ये गिठ लंबी जुबान के", गौतम ने कहा और अनाया को देखा जो उसे ही देख रही थी।
"अच्छा बच्चे आप बताओ क्या हुआ आपको", गौतम ने कहा।
"कुछ नहीं पापा बस मामी तो बैठ ही नहीं रही मेने भी कहा था पर वो मानी ही नहीं। उपर से मामा अंदर सो रहे है बाहर ही नहीं आए", अनाया ने कहा।
जानकी, सुरभि उसे देखने लगी। तो वही असीस गौतम की नजर खुद पर पाकर सिर झुका गई।
"अरे जाओ उसे उठा लो माना वो काम पर जाता है थक गया होगा पर आज तो हम सब के बीच बैठ जाये।"
तो असीस ने जानकी को देखा, "जा बुला ला उसे उठ गया होगा वो", जानकी ने कहा तो असीस अपने रूम की तरफ चली गई।
यहां आशू सामने पहले की तरह ही लेटा हुआ था। असीस ने उसके कंधे पर हाथ रखा और हिलाया पर वो वैसे ही लेटा रहा पेट बल।
"आप उठ जाओ बाहर सब आ गये है, आशू आप सुन रहे है ना", असीस ने कहा।
"जाओ मुझे सोने दो", आशू ने उसके हाथ को हटाते हुए कहा।
असीस उसे देखने लगी और फिर एक बार हाथ रख उसे हिलाते हुए, "आशू बाहर जीजू भी आ गये है। आज शादी को 1 साल पुरा हो गया है। आप उठो जीजू बुला रहे है।"
गौतम का नाम सुनते ही आशू ने आंखे खोल उसे देखा जो उसके पास ही खड़ी थी।
और जल्दी से बैठते हुए, "जीजू आये है पहले क्यूं नहीं बताया पीछे हटो", कहते हुए उसने असीस के हाथ को पकड़कर एक तरफ झटका और बाथरूम की और चला गया।
असीस उसके पीछे पीछे आई पर आशू ने दरवाजा बंद कर लिया।
"कुछ हुआ है क्या", असीस ने बाहर से ही पूछा, पर अंदर से कोई जवाब नहीं आया।
कुछ देर बाद असीस और आशू दोनो ही बाहर आये यहां आशू ने आगे आकर सुरभि, गौतम के पैर छू लिए।
"क्या बात है साले साहब, आप तो आराम फर्मा रहे है और असीस सब देख रही है इतना थक गये क्या", गौतम ने हँसते हुए कहा तो आशू चुप सा ही रह गया और जानकी को देखा तो जानकी ने आंखे झपका दी।
"बस जीजू आब काम का लोड हो रहा है तो बस", उसने कहा।
"चलो पहले तुम दोनो केक कट करो बाकी बातें बाद में 7 बज गये है", गौतम ने कहा।
"केक, पर केक हमने नहीं मंगाया", असीस ने सब को देख कहा।
"तो हम कब काम आयेंगे। मुझे लगा ही था आशू भूल जायेगा चलो अभी आता ही होगी ऑर्डर कर आया था मैं", गौतम ने कहा तब तक दरवाजे पर बैल लगी गौतम मुस्कुरा दिया जाओ देखो गौतम ने असीस को देख कहा तो असीस उस तरफ चल दी।
जब वापस आई तो हाथ में केक का बॉक्स था।
"चलो लाओ मैं बॉक्स खोलता हूं और तुम सब सामान ले आओ", कहते हुए गौतम केक के बॉक्स को खोलने लगा तो वही सूरभि गौतम को खा जाने वाली नजर से देख रही थी।
कुछ ही पलों में सब की हाजरी में असीस आशू ने केक कट करा। आशू ने केक का पहला पीस असीस को खिलाया तो असीस उसे देखने लगी।
"चलो असीस तुम भी खिलाओ", गौतम ने कहा तो असीस ने भी उसे केक का पीस खिला दिया।
"लो तूम दोनो के लिए हम दोनो की तरफ से गिफ्ट", गौतम ने एक छोटा सा बॉक्स असीस की तरफ कर कहा तो असीस ने वो बॉक्स ले लिया।
"मामी खोल कर दिखाए ना मुझे", अनाया ने कहा तो असीस उस बॉक्स को खोलने लग गई।
"जीजू ये बहुत ज्यादा है, हम नहीं ले सकते", असीस ने उस बॉक्स में सोने की दो रिंग देख कहा।
"कुछ ज्यादा नहीं है। पहली सालगिरह है तूम दोनो की, इतना तो बनता है", जीजू ने कहा और सूरभि को देखा जो हैरान सी उस बॉक्स को देख रही थी जो असीस के हाथ में था।
"क्यूं मेने सही कहा ना सूरभि", गौतम ने कहा तो सूरभि उसे देखने लगी।
"बिल्कुल सही कहा आपने", उसने कहा।
"चलो असीस कुछ खिला ही दो बहुत भूख लग गई है", जीजू ने कहा तो असीस ने वो बॉक्स जानकी को दे दिया और खुद खाना लगाने लगी।
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"गौतम जीजू ने बहुत ज्यादा कर दिया ना, है ना", आशू ने कहा जब असीस रूम में आई। गौतम, सुरभि, अनाया के साथ चले गये थे। तो जानकी भी अपने रूम में थी वही असीस ने सब सामान समेटा और वो अभी रूम में आई थी। तो आशू बेड पर बैठा उसे ही देख रहा था। वो बीना आशू को देखे अलमारी की तरफ चल दी और कपड़े निकालने लगी तभी आशू ने कहा था गौतम के बारे में।
रब राखा
"मैंने कुछ कहा है असीस?", आशू फिर से बोला।
"हां, बहुत महंगा तोहफा दे गए हैं जीजू, तो क्या करूं अब?", असीस ने कहा और साथ ही बाथरूम की तरफ चली गई।
वो वापस आई तो देखा आशू अभी भी वैसे ही बैठा था। असीस ने उसे देखा, उसकी आंखों में कुछ तो बदला था जो इन छः महीनों में उसे समझ नहीं आया था। पर आज वही चमक उसे कुछ खटक रही थी।
असीस आके अपनी तरफ लेट गई तो आशू ने अगले ही पल उसे अपनी तरफ घुमाया और उसे देखने लगा।
असीस उसे वैसे ही देखती रही। "क्या हुआ, तुम खुश नहीं हो क्या? आज तो हमारी शादी की सालगिरह है", वो बोला।
"नहीं, मैं खुश नहीं हूं, बिल्कुल नहीं", वो बोली। आशू उसे देखने लगा। "क्यूं, क्या हुआ?", उसने कहा।
"आप नशा छुड़ाने वाली जगह पर थे क्या?" असीस ने पूछा, यही बात उसे दोपहर से अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। तो आशू जो उसे ही देख रहा था, वो उसे छोड़ वापस बेड से टेक लगाकर बैठ गया। असीस उसे देखती ही रह गई।
पर उसे अपने सवाल के जवाब चाहिए थे तो वो भी उसके सामने बैठते हुए बोली, "आशू, क्या ये बात सच है, आप उस जगह पर थे कभी?", उसने पूछा पर मन ही मन वो चाह रही थी के आशू ना कर दे।
"हां, था मैं वहां पर और कुछ?", उसने कहा और असीस की तरफ करवट कर लेट गया। असीस उसे देखती ही रह गई। वो तो कुछ कहने की हालत में ही नहीं थी।
आंसू जो तब से ही उसने रोक रखे थे, वो अब बांध तोड़ बह ही निकले और वो अपनी तरफ करवट लेकर लेट गई। उसे कुछ आवाज कान में पड़ने लगी थी।
"असीस चल तू बता के तुमको कैसा पति चाहिए?", एक लड़की की आवाज थी। और कुछ पलों में वो याद जैसे असीस के दिमाग पर हावी सी हो गई।
कॉलेज आते हुए अभी कुछ ही समय हुआ था उसे और उसके साथ की ही लड़कियां जो खूब हंसी ठिठोली कर रही थी। क्लास के खाली समय में, तभी एक लड़की ने असीस से पूछा जो चुप सी सब की बातें सुन रही थी।
"बोल ना कैसा पति चाहिए?", दूसरी ने उसके कंधे पर थपथपाते हुए कहा। तो असीस ने उसे देखा।
"देख असीस अब ये मत कहना के तुमने एसा कुछ सोचा नहीं, सब ने सोचा होता है बस किसी का सपनो का राजकुमार होता है, तो किसी को सच में राजकुमार मिल जाता है", तीसरी लड़की ने कहा।
"नहीं नहीं एसा कुछ पही है। सोचा है मेने भी, पर हां आम सा कुछ ज्यादा नहीं, जो मुझे समझे मेरी फीलिंग्स को समझे, और मेरे परिवार का भी उतना ही मान समान करे जितना वो मुझसे चाहता हो", असीस ने कहा तो सब उसे देखने लगी।
"वैसे असीस ध्यान रखना एसा लड़का खुद ही ढूंढना, क्यूंकि आजकल के जमाने में ये सब मिलना मुश्किल है। बाकी सब आसानी से मिल जाता है, पर पति ऐसा नहीं मिलता जैसे हमने सोचा होता है", ग्रुप में बैठी एक और लड़की ने कहा।
"नही भाई भाभी है वो देखेंगे ये सब मुझे तो पड़ना है", असीस ने जल्दी से जवाब दिया।
"ध्यान रखना भाभी अक्सर सपने तोड़ ही देती है, और तुम्हारे तो सपने भी सिंदूरी है जिनके टूटने की आवाज भी दूसरे के कान तक नहीं पहुँचेगी तो दिल तक कहा से पहुंच पायेगी", पहली लड़की ने ही कहा जिसने असीस से बात करनी शुरू की थी।
असीस उस लड़की की देखती ही रह गई। "नहीं बिल्कुल भी नही मेरी भाभी एसा नही कर सकती मेरे साथ, वो प्यार करती है मुझे। भाई भी तो है ना वो देखेंगे मेरे लिए सब सब से अच्छा लड़का", असीस ने कहा। तभी क्लास में सर आ गये और वो सब अपने में लग गए।
असीस उस दिन को सोच रही थी, काश उसने भी भाई भाभी पर ध्यान दिया होता तो उसे कुछ पता तो चलता पर उसे तो बस पड़ना था, और उसी में ध्यान लगा रखा। जरा सा भी नही सोचा के उसके भाई भाभी एसा कुछ करेंगे उसके साथ। यहां तक के एक शराबी के पल्ले बांध देंगे और खुद चैन से रहेगे, यही सब सोचते हुए उसके आसू तकिया को भिगो रहे थे और वो बस मुंह पर अपना हाथ रख धीरे धीरे सिसक रही थी के तभी उसे खुद पर आशू का स्पर्श महसूस हुआ और उसने जल्दी से आंखे बंद कर ली। पर आशू अपनी करने वाला और वो अपनी करके ही माना।
"इतने पैसे खर्च करने की क्या जरूरत थी। वो कोन सा हमारे लिए कुछ लाई थी अपने घर से", सूरभि ने कहा जब वो दोनों अपने रूम में आए।
"पहली बात तो कितनी बार कहा है के ये लो क्लास जैसी बातें करना छोड़ दो समझी। और वो गोल्ड तुम्हारे भाई के पास ही गया है फिर भी इतना गुस्सा", गौतम ने तंज से कहा।
"दिया तो उस असीस को ना देख रही हूं आज कल उस पर कुछ ज्यादा ही नही देखा जा रहा", सूरभि ने कहा।
गौतम जोर जोर से हँस दिया। "पागल औरत अब तू जैसी है तुमको सब वैसे ही नजर आते है। तो इसमें मेरा क्या कसूर", गौतम ने कहा और लेट गया, वही सुरभि उसे घूरती ही रह गई।
"मुझे घूरने से तुम्हारी हरकते सुधर नही जायेंगी समझी चुप चाप लेट जाओ", गौतम ने उसे देख कहा। तो सूरभि उसे देख लेटते हुए बोली, "पता नही क्या रखा है उस असीस में जो सब उसी की बातें करते है। आशू भी उसकी ही बात करता है और ये भी"।
"ज्यादा सोचो मत उसके बारे में समझ लो के वो तुम्हारी सोच से भी उपर है। और हां ये जो तुमने आज वहां जाकर असीस को बातें सुनाई है मुझे सब पता है। एक बात बताऊं तुमको उन दोनों की जिंदगी में पड़ने की क्या जरूरत। अपनी जिंदगी देखो ना", गौतम ने उसे देख कहा।
तो सूरभी ने उसकी तरफ से करवट ले ली और आंखे बंद कर लेट गई। लेकिन फिर उसके चेहरे पर स्माईल आ गई और उसने अपने फोन को देखा जो साइड टेबल पर पड़ा था।
रब राखा
अगली सुबह आशू चला गया था काम पर, तो असीस अपने काम में लगी रही। पर आज वो पहले की तरह खुश नहीं थी और ना ही जानकी से कुछ ज्यादा बात हो रही थी उसकी। अगर जानकी आवाज़ लगा देती, तो उस तरफ चली जाती और बात सुनकर वापस आ जाती।
दोपहर हो गई थी और वो वैसी ही थी।
"क्या बात है, कल तो तू खुश थी पर आज क्या हो गया, ये मुंह क्यों फुला रखा है?"
"अच्छा, तो क्या भाई-भाभी का फोन नहीं आया क्या अभी तक? भूल गए होंगे, तू ही याद दिला देती," जानकी ने खाना खाते हुए कहा, जब असीस उसे रोटी देने बाहर आई थी।
असीस का दिमाग जैसे फटने पर आया था, तो वो जानकी को देखने लगी।
"वो तो मुझे उसी समय भूल गए थे जिस समय मेरी शादी आपके बेटे से कर दी थी। तो कल को याद रखना ना रखने वाली तो कोई बात ही नहीं है," असीस ने कहा और जाने लगी।
"क्या कमी है मेरे बेटे में और आज ये कैसी बातें कर रही हो? भूल गई क्या मुझसे कैसी बात करनी है? लगता है आशू अब रोज तुमको दवाई नहीं देता ना," जानकी ने भी गुस्से से कहा। उसे असीस का लहजा आज चुभ गया था।
असीस उसे देख वापस रसोई में चली गई और जो आंसू आंखों में थे, वो गाल पर आ गए। वो सिंक के पास खड़ी होकर खुद को ही शांत कर रही थी, पर वो भी नहीं हो रहा था कि तभी दरवाजे की बेल लगी। असीस ने अपने चेहरे पर पानी डाला और बाहर आई तो देखा जानकी ने अपना खाना छोड़ दिया था। वो गुस्से से भरी बैठी थी।
असीस ने उसे देखा और आगे बढ़ गई। दरवाजा खोला तो सामने लड़का खड़ा था जिसने मास्क लगा रखा था। असीस उसे देखती ही रह गई, वही वो मास्क वाला लड़का भी उसे ही देख रहा था।
असीस इतना तो समझ गई थी कि ये वीना दी का भाई है।
"वो ये चाबी दी को दे देना और बता देना मैं दोस्तों के साथ गया हूं," उसने चाबी आगे करते हुए कहा तो असीस ने उस चाबी को ले लिया और सिर हां में हिला दिया।
वो लड़का जाने के लिए मुड़ा तो असीस ने दरवाजा बंद कर दिया। कि तभी उस लड़के ने पलट कर दरवाजे को देखा।
"आज फिर आंखों में आंसू," वो बोला और चला गया।
वही असीस अंदर आई तो जानकी उसे घूरती हुई ही मिली। असीस ने चाबी एक जगह रखी और आगे बढ़ गई।
"ये खाना ले जा, आज तो खा लिया मैंने," कहते हुए वो उठी और अपने कमरे में चली गई। असीस ने उस खाने की प्लेट को देखा और उठा कर रसोई में चली गई।
खुद उसका जरा सा भी मन नहीं हुआ खाने का। कल से ही उसने ना के बराबर ही खाया था।
शाम हो चुकी थी, आशू अभी तक घर नहीं आया था तो वही जानकी भी सोफे पर बैठी टीवी देख रही थी। पर दोपहर के मुकाबले अभी वो खुश थी। देखते ही देखते रात के 9 बज गए थे और जानकी ने रात का खाना भी खा लिया था और अपने कमरे में चली गई थी। तो वही असीस चुप सी बैठ गई, तभी दरवाजे की बैल लगी और असीस दरवाजा खोलने चली गई। लेकिन सामने खड़े आशू की हालत देखे वो डर गई। आज फिर वो नशे में धुत हो कर आया था।
असीस एक तरफ हो गई तो आशू उसे देखता अंदर की तरफ आ गया। असीस भी दरवाजा बंद कर अंदर आ गई तो आशू को रूम की तरफ जाता देख वो रसोई की तरफ चली गई। जल्दी से उसका खाना गर्म कर प्लेट में लेकर वो रूम में आई तो आशू उसे कपड़े बदल कर बैठा हुआ दिखा।
असीस ने खाना उसके सामने रख दिया और खुद बाहर आ गई। आज वो जितना सोच कर बैठी थी अपने सवालों के जवाब के लिए वो सब हिम्मत टूट गई थी। आशू को पहले की तरह देख वो वही असीस बन गई थी जो वो थी- चुप सी सब सहने वाली।
सही कहते है लोगो के आचरण बदलने में माहौल और आस-पास के लोगो का बहुत बड़ा हिस्सा होता है। वही असीस के साथ हो रहा था। कहां वो आशू के प्यार भरे एहसास में नई सी असीस बन गई थी पर बस चंद घंटो में वो वही आ कर खड़ी हो गई थी जहां वो पहले थी।
असीस फिर से अंदर गई तो पाया आशू सो चुका था। तो असीस ने बर्तन उठाए और बाहर आकर उनको साफ कर वापस रूम में आई और अपनी तरफ लेट गई।
"मां से जुबान लड़ाई तूने आज?" आशू की आवाज कान में पड़ते ही असीस सहम गई। इस आवाज में गुस्सा ही गुस्सा था। वो कुछ नहीं बोली।
तो अगले ही पल उसे खुद पर चल रहा आशू का हाथ महसूस हुआ, जो उसकी पीठ से होते हुए बालों तक पहुंचा और बाल को कस के पकड़ के खिंच कर आसीस का चेहरा अपनी तरफ करा जो करवट लेकर लेटी थी।
असीस की आंखों में आंसू थे, उसे दर्द हो रहा था, पर आशू तो उसे देखे ही जा रहा था।
"मैंने कुछ पूछा," वो बोला तो असीस ने हां में सिर हिला दिया।
"क्यों कहा मम्मी को कुछ भी?", आशू ने जलती सी नजर उस पर डालते हुए कहा।
वही असीस जो अभी भी लेटी ही थी और उसके बालों पर आशू की पकड़ होने के कारण चेहरा ऊपर की उठा हुए था।
"मैंने पूछा क्यों कहा मम्मी को कुछ भी?", वो फिर से बोला।
"वो, वो मुझे पता चला के आपको डी-एडिक्शन सेंटर में रखा गया था ना तो बस उसी के चले कहा था।"
"क्यों कहा था, क्या कर लेती तुम हां?" वो बोला।
"नहीं मुझे नहीं पता था, कल अचानक पता चला तो गुस्सा था मन में," उसने कहा।
"तो फिर मेरा गुस्सा भी सहने को तैयार हो जाओ," वो बोला। वही असीस उसके इरादे भांपते हुए उसके सीने पर हाथ रख पीछे को धक्का देने लगी। पर आशू की पकड़ उस पर बहुत कसी थी। असीस के आंसू फिर से बहने लगे थे और एक बार फिर से उसके लिए वही रातों का दौर शुरू हो गया था जो उसने भुला दी थी।
रब राखा।
अगले कुछ दिन ऐसे ही बीते थे, यहाँ असीस बिल्कुल ही पहले के जैसी हो गई और आशू अब रोज ही पीकर आने लगा था। जानकी की तबीयत भी सही नहीं चल रही थी, आती हुई सर्दी उसे लग गई थी और वो खाँसी-जुकाम से बेहाल हो गई थी।
"आशू, इस बार तेरी सैलरी नहीं आई क्या? पाँच दिन ऊपर हो गए हैं", जानकी ने कहा। आज रविवार था और आशू अपनी नींद पूरी कर बाहर आकर बैठा ही था कि जानकी ने पूछ लिया, जो खाँस-खाँस कर बेहाल हो रही थी। तभी असीस ने अभी-अभी उसे गर्म पानी लाकर दिया था।
"नहीं मम्मी, अभी नहीं मिली, कोरोना की वजह से। ये जो उसकी दूसरी लहर ने फिर से सब कुछ खत्म करने का सोचा है, उसी के चलते सैलरी अभी नहीं आई", आशू ने टीवी देखते हुए कहा।
"अच्छा, पर मेरा तो खाँस-खाँस कर बुरा हाल हो रहा है। सोचा डॉक्टर को ही दिखा लाती", वो बोली।
"कुछ दिन रुक जाओ मम्मी", आशू ने बिना जानकी को देखे कहा। वहीं असीस ने दोनों को खाना खिलाया और अपने काम में लग गई।
"आज राजमा बना ले", जानकी ने बाहर से कहा तो असीस वही करने लगी। राजमा का डब्बा खोल कर देखा तो वो खत्म हो चुके थे।
"मम्मी, राजमा तो खत्म हो गए हैं", असीस ने खाली डब्बा दिखाते हुए कहा, तो जानकी चुप कर गई। शाम होते-होते आशू बाहर निकल गया था, तो वहीं असीस जो बैठी फोन देख रही थी, उसका रिचार्ज भी खत्म होने का मैसेज आ गया था, तो उसने फोन वहीं रख दिया। बिना रिचार्ज के तो फोन बस खाली डब्बा ही था।
तभी उसे जानकी के खाँसने की आवाज आई। असीस जल्दी से उसके लिए गर्म पानी लेकर चल दी, पर जानकी की खाँसी इतनी बढ़ गई कि उसे साँस लेने में भी तकलीफ होने लगी थी। तो वहीं असीस ने उसकी पीठ पर हाथ फेरना शुरू करा और गर्म पानी जो वो लाई थी, वो जानकी को पीने को कहा।
पर जानकी की खाँसी सही होने का नाम ही नहीं ले रही थी, कितनी देर तक वैसे ही करते रहने के बाद आखिरकार असीस ने जानकी के फोन से ही आशू को फोन करा, पर वो बंदा फोन ही नहीं उठा रहा था, लगभग पाँच बार फोन करने के बाद असीस ने जानकी को देखा तो उसके चेहरे का रंग ही बदलने लगा था।
असीस भाग-भागी ऊपर गई, यहाँ वीना खाना बना रही थी, तो उसका पति लखी अपने लैपटॉप पर लगा हुआ था। दरवाजे पर जोर-जोर की दस्तक होने पर वीना ने ही दरवाजा खोला, तो सामने असीस को देख मुस्कुरा दी, "क्या बात है असीस, आज इस समय? चलो अंदर आओ", वो बोली।
"दी, मम्मी की तबीयत एकदम से खराब हो गई है, भईया घर पर हैं क्या, हमारे साथ चलें? आशू नहीं है घर पर।" असीस ने एक ही साँस में कहा तो वीना हैरान सी उसे देखने लगी।
"रुको एक मिनट, अभी आए", कहते हुए वीना अंदर चली गई, तो वहीं असीस दरवाजे पर खड़ी हो गई।
"क्या हुआ असीस, आंटी को?", कहते हुए लखी अपनी टीशर्ट पहने हुए नीचे की तरफ चल दिया, तो असीस भी उसके पीछे-पीछे चल दी।
"भईया, खाँसी हो रही थी और अब तो साँस भी नहीं आ रहा उनको", असीस ने कहा, तब तक वो लोग अंदर आ चुके थे, यहाँ पर जानकी खाँस रही थी।
"उठो अम्मा, चलो अभी चलें", कहते हुए लखी ने एक तरफ से जानकी को सहारा दिया तो असीस ने दूसरी तरफ से और घर के बाहर ले आए। यहाँ वीना भी आ चुकी थी और कुछ ही पलों में एक कार भी सामने ही आकर रुक गई। वीना ने ही फोन कर मंगा ली थी कार, जो कि उसके किसी जानने वालों की थी।
कोरोना की दूसरी लहर की शुरूआत हो चुकी थी, पर फिर भी जानकी को हॉस्पिटल में बेड मिल गया था और उसे चौबीस घंटों के लिए वहीं रहने को बोल भी दिया था डॉक्टर ने।
"दी, आप लोग जाओ, मेरी वजह से आप भी परेशान हुए", असीस ने वीना को देख कहा। दो घंटे हो चुके थे उनको बैठे हुए, रात के 10 बज गये थे। वहीं वीना और लखी दोनों ने ही आशू को फोन लगाया था, पर उसने फोन उठाया ही नहीं।
तो असीस ने आखिर में दोनों को जाने को बोल दिया और साथ ही गौतम को फोन करवा दिया लखी से, तो वो दोनों भी पहुँचने ही वाले थे।
"पागल है क्या, अकेली कैसे रहेगी? तेरी दी को आने दे, फिर हम लोग चले जाएँगे", वीना ने असीस से कहा, जो चुप सी थी। वहीं लखी ने अफसोस से सिर हिला दिया, आखिर वो भी जानते थे आशू के बारे में।
वो लोग फिर से चुप बैठ गये।
"असीस, कुछ खाया क्या तुमने?", लखी ने पूछा तो असीस ने सिर हिला दिया। वीना ने लखी को देखा तो लखी उठ कर कैंटीन की तरफ चला।
वो कुछ देर में वापस आया तो सामने का नजारा ही और था। सामने ही असीस अपना हाथ गाल पर रखे खड़ी थी और उसके सामने सुरभि खड़ी थी। वीना ने असीस को दोनों कंधों से पकड़ा था, जो नजरें झुकाये खड़ी थी।
"देखिए आप सब ये तमाशा बाहर जाकर करें, समझे ना", एक नर्स ने सुरभि को देख कहा तो वो उसे देखने लगी।
"क्या हुआ?", लखी ने वीना के पास आकर पूछा। वीना ने उसे चुप रहने को कहा।
"असीस, तुम चलोगी घर?", वीना ने पूछा तो असीस ने ना में सिर हिला दिया।
"आप दोनों चलो दी, मैं बाद में आ जाऊँगी", असीस ने कहा तो वीना ने लखी को जाने का इशारा करा और खुद भी चल दी। वहीं लखी ने जो चाय के कप पकड़ रखे थे, वो बस देखता ही रह गया और फिर वो कप एक तरफ चेयर पर रख असीस को अपना ध्यान रखना बोल, सुरभि को एक नजर देखता हुआ आगे बढ़ गया।
तभी गौतम अंदर आया तो जा रहे लखी को देख उसे बुला लिया।
"थैंक यू असीस की मदद करने के लिए", वो बोला तो लखी मुस्कुरा कर चला गया।
"यहाँ पर क्या हुआ है?", गौतम ने आगे बढ़ कहा, यहाँ सुरभि अभी भी असीस को ही देख रही थी तो असीस एक तरफ बैठ गई।
"देखिये सर, ये हॉस्पिटल है और ये लेडी यहाँ पर आकर बोल रही है और इन्होंने इन पर हाथ भी उठाया है", नर्स ने असीस की तरफ इशारा कर कहा जो बैठी थी।
"आप इनको समझा लें वरना हमें समझाना आता है", नर्स ने कहा और चली गई, वहीं गौतम ने सुरभि को गुस्से से देखा और फिर असीस को, जो सिर झुकाए बैठी थी।
गौतम ने सूरभी को गुस्से से देखा और फिर असीस को, जो सिर झुकाए बैठी थी। "सूरभि, तुम बदल नहीं सकती क्या? तमाशा किए बिना सब्र नहीं है ना तुमको," वो सूरभि के पास आकर बोला और असीस को देख उसके पास लगी चेयर पर बैठ गया।
"क्या हुआ मम्मी को, असीस?" गौतम ने पूछा तो असीस उसे देखने लगी। गाल पर उंगलियों के निशान उभर आए थे। और ये सुरभि के हाथ की छाप थी उसके गाल पर।
"वो जीजू, मम्मी की तबीयत कुछ दिनों से खराब थी और आज तो ज्यादा ही खराब हो गई, सांस ही नहीं आ रहा था उनको। आशू भी नहीं थे घर पर तो बस इसलिए वीना दी को बोल कर मम्मी को लेकर आ गई," असीस ने कहा।
"आशू अपने काम पर है, पता भी है तुमको, तुम्हारे बार-बार फ़ोन करने से वो परेशान हो रहा है वहां पर। वीना को बुला लिया, मुझे फोन नहीं करा गया, जबकि मैं इस से भी अच्छे हॉस्पिटल में काम कर रही हूं," सूरभि ने आगे आकर कहा तो असीस हैरान सी उसे देखने लगी, वही गौतम भी उसको देख रहा था।
"पर दी, मुझे नहीं बताया उन्होंने के वो काम पर गए है। वो तो ऐसे ही निकल गए थे घर से," हैरान सी असीस ने कहा।
"अच्छा, यही बात सुनी के वो काम पर है, ये नहीं सुना के मैं यहां से अच्छे हॉस्पिटल में इलाज कराती। और क्या आशू अब तुमको सारी बातें बता कर जाया करे घर से बाहर," सूरभि ने गुस्से से कहा।
"बस सुरभि, बहुत हो गया," गौतम बोला। तो सूरभि जो असीस को ही देख रही थी, वो आगे बढ़ गई जहां पर जानकी दाखिल थी।
"जीजू, मुझे नहीं पता था वो काम पर है, ऐसी तो कोई बात भी नहीं हुई थी। और उस समय मुझे कुछ समझ ही नहीं आया के क्या करूं। बस वीना दी को बताया तो लखी भैया जल्दी से ले आए हमें," असीस ने कहा।
गौतम ने सिर हिला दिया। असीस गौतम वही बाहर ही बैठे रहे, तो सुरभि अंदर जानकी के पास थी। यहां जानकी इस समय नींद में थी।
"मम्मी आप ठीक हो जाओ जल्दी से," सूरभि ने कहा और उनका हाथ पकड़कर बैठ गई।
"क्या हो गया, तुम इतनी गुस्से में क्यूं हो?" लखी ने कहा, वो गाड़ी चला रहा था तो वहीं वीना उसके पास बैठी थी।
"क्या हुआ, पता भी है उस सुरभि ने आते ही असीस के गाल पर थप्पड़ मार दिया, कैसी औरत है वो, मुझे तो उसे देख कर ही घिन आ रही है," वीना ने कहा तो लखी सामने ही देखता रहा।
"वो उनका जाती मामला है और हमे उनके घर के मामले में नहीं पड़ना, समझी ना," लखी ने कहा तो वीना ने भी सिर हिला दिया।
और एक तरह से ये उनकी बात भी सही थी। जब आजकल के जमाने में घरवालों की बातों में नहीं पड़ सकते तो असीस तो फिर भी बाहर वाली थी, वो तो उनके किरायेदार ही थे।
सुबह हो गई थी तो वही जानकी को भी होश आ गया था। तो सामने सुरभि को देख वो उसे देखने लगी। पर खांसी में अभी ज्यादा सुधार नहीं, "मम्मी कैसी तबीयत है?" सुरभि ने पूछा। तब तक असीस भी अंदर आ गई थी और जानकी को देख वो उसी तरफ चली आई।
"असीस, तू ठीक है?" जानकी ने कहा तो सुरभि इस बार भी जल भुन गई, क्यूंकि जानकी ने उसकी बात का जवाब ना देकर असीस का हाल पूछा था।
"मैं ठीक हूं मम्मी जी पर आपकी तबीयत ठीक नहीं है, रात को बहुत खराब हो गई थी आपकी तबीयत," असीस ने कहा तो जानकी हल्का सा मुस्कुरा दी। कुछ समय बाद डॉक्टर देखने आए।
"देखिए, हम आपको ज्यादा देर हॉस्पिटल में नहीं रख सकते है। इसलिए आप को अपनी दवाई का खास ध्यान रखना होगा," डॉक्टर ने कहा तो जानकी ने सिर हिला दिया। गौतम, सुरभि, असीस भी वहीं पर थे।
"अच्छा आपके डिस्चार्ज पेपर बन गए है, आप एक बार फॉरमेलटी पूरी कर दें," डॉक्टर ने एक तरफ खड़े तीनो से कहा तो असीस के चेहरे के रंग ही उड़ गए, वो कैसे करेगी उसे समझ ही नहीं आ रहा था।
"जी डॉक्टर, अभी सब फॉरमेलटी पूरी हो जाएगी।" गौतम ने कहा तो डाक्टर वहां से चले गए।
गौतम ने असीस को देखा, "असीस ये लो पैसे और नीचे ही फार्मेसी है, वहां से सब दवाई ले आना और हां ज्यादा लाना," गौतम ने पर्स से पैसे निकाल असीस के हाथ पर रखते हुए कहा तो असीस उसे देखने लगी।
"जाओ जल्दी करो, हम जल्दी से घर चलते है," वो बोला तो असीस सिर हिला कर चली गई। और गौतम भी चला गया। सुरभि वही खड़ी जानकी को देख रही थी जिन्होने उस से बात भी नहीं की थी एक घंटे से।
"मम्मी आप मुझ से बात क्यूं नहीं कर रही हो?" सुरभि ने कहा तो जानकी उसे देखने लगी।
"क्या बात करूं सुरभि, तू ही बता। कल शाम को ही फोन करा था तुमको के तू ही मुझे ले चल अपने हस्पताल पर तूने भी साफ मना कर दिया था। पर असीस वो मुझे लेकर आई, वो चाहती तो मुझे मरने देती, पर नहीं वो मुझे कैसे भी करके ले ही आई। पर तूने मेरी बात नहीं मानी। जरूरी नहीं बेटी ही सुख दुख में काम आती है। बहू भी सुख दुख की साथी होती है और ये बात असीस ने साबित कर दी," जानकी ने कहा तो सूरभि चुप सी रह गई। पर दिल में असीस के प्रती नफरत और बड़ी गई जिस के आगे उसे अपनी गलती तो दिखी ही नहीं।
बारह बजे तक वो लोग घर पहुंच गए थे और असीस ने जल्दी से सब के लिए चाय बनाई और जानकी के लिए हल्का खाना बना कर उसे खिला कर दवाई दी और साथ गौतम सुरभि को भी खाना खिलाया।
"अच्छा असीस, कोई भी जरूरत हो तो मुझे फोन कर लेना और ये कुछ पैसे रख लो काम आएंगे," वो बोला।
"नहीं जीजू, आशू आते ही होंगे आप पैसे रख लें," असीस ने उसे देख कहा तो गौतम पेसे टेबल पर रखते हुए बोला, "रख लो काम आएंगे और हां फोन कर लेना।" गौतम ने कहा और जानकी को मिल वो दोनो चले गये।
असीस जानकी को देखने लगी। और वो पैसे उठा जानकी के हाथ में रख दिये, "मम्मी आप रख लो," वो बोली।
जानकी मुस्कुरा दी और पैसे लेते हुए, "मेने दवाई लेली है और अब नींद आ जायेगी तू जा आराम कर ले। और हां ये ले और आपना फ़ोन रीचार्ज करा ले। जरूरत पड़ जायेगी," जानकी ने कहा तो असीस उसे देखने लगी।
"ये ले तेरा फ़ोन सुरभि के पास था तभी पता चला," जानकी ने फ़ोन असीस के सामने करते हुए कहा। तो असीस फ़ोन लेकर बाहर आ गई और अपने रूम की तरफ चल दी और हाथ में पकड़े 2000 के नोट को देखने लगी, जो उसने अपनी शादी के बाद पहली बार देखा था। और फिर वो पैसे फ़ोन के नीचे रख खुद कपड़े निकाल बाथरूम की और चली गई।
रब राखा।
"सुरभि, असीस पर हाथ उठाने की क्या जरूरत थी? उसने क्या गलत करा हाँ?", गौतम ने कहा। वो दोनों अभी-अभी घर पहुंचे थे।
"तो क्या करती? पता तो है आशू काम पर है तो वो क्यूँ फोन कर रही थी और मुझे क्यूँ नही बताया उसने?", वो गुस्से से बोली।
"आशू ने उसे बताया के उसने क्या कांड कर रखे है और वो जो काम का बोल कर बाहर जाता है, जॉब तो बीस दिन पहले ही उस से छीन ली गई थी। बताया तेरे भाई ने असीस को, अरे अपनी मम्मी को बताया तुम दोनों ने। ये बात क्यूँ बताओगे, तुम को तो बस दूसरों में ही कमियाँ निकालनी आती है, कभी खुद को देखा है तुमने?", गौतम भी गुस्से से बोला तो सुरभि उसे देखने लगी।
"गलती तेरे भाई की है वो किसी काम का नही, वर्ना यहां पर उसे काम मिला था ना, लोग वही से बन जाते है", गौतम बोला और कपड़े निकालने लगा।
"हो गया जो होना था, हो गई गलती उस से, अब आपने काम दिया है ना तो अच्छे से ही करेगा और हाँ अब आप उसे ज्यादा बिजी रखना तो उसका ध्यान कहीं और जायेगा ही नही।"
गौतम उसे देख हल्का सा मुस्कुराया। "सुरभि एक बात बताओ, तुम सच में बेवकूफ हो जा कुछ ज्यादा ही चालाक? आशू एक नंबर का झूठा, शराबी और शक्की आदमी है, वो क्या-कुछ करेगा। देख लूंगा एक महीने उसे काम पर रख कर अगर उसने कुछ भी उल्टा सीधा करा तो मुझे एक मिनट नही लगेगा उसे बाहर निकालने में और तुम्हारे घर से सारे रिश्ते तोड़ने में। अब तुम खुद सोच लो कहां रहना है, मेरे साथ इस ऐश भरी जिंदगी में जा उस दो कमरे के घर में, यहां पर तो तुम्हारा दम घुटता है", गौतम ने कहा तो सुरभि चुप सी ही रह गई।
वहीं गौतम अपनी बात कह जाने लगा तो एक बार सूरभि को देखा, "और एक बात, अगर मुझे पता चला तुम्हारे भाई ने उस मासूम को कुछ कहा जा उसके उपर हाथ उठाया, तो फिर तुम सोच भी नही सकती झूठी हो तुम और वैसा ही तुम्हारा भाई", कह कर वो बाथरूम में चला गया तो, सूरभि हैरान सी बैठ गई।
"आशू तो ना जाने कितनी बार हाथ उठा चुका उस पर, अगर गलती से भी इनको पता चला तो सब खत्म हो जायेगा", वो खुद से ही बोली।
असीस नहा धो कर बाहर आई, अब उसे अच्छा लग रहा था, उसने अपना फोन देखा और फिर समय देखा, यहां 2 बज गये थे। असीस जल्दी से फोन और पैसे लेकर बाहर निकली और जानकी को देखा जो सो रही थी। फिर वो धीरे से घर से बाहर निकल गई। हल्का सा स्वेटर पहन रखा था उसने और उस स्वेटर की जेब में फोन और पैसे रख लिये।
पहले उसने अपना फोन रीचार्ज कराया, वहीं दूकान पर खड़ी होकर आशू को फोन करा, पर उसने फोन नही उठाया। तो फिर असीस ने गौतम को फोन लगा दिया जो के दो बेल पर ही उठा लिया गया।
"हां असीस, क्या हुआ सब ठीक तो है?", गौतम दूसरी तरफ से बोला।
"जीजू दी ने बताया था के आशू काम पर है, आपकी बात हुई क्या उनसे, अस्ल में मेरा फोन लग नही रहा।" असीस ने कहा तो गौतम ने सुरभि को देखा, उसका फोन स्पीकर पर था।
"हां असीस हो गई बात शाम तक आ जायेगा घर तुम फिक्र मत करो और मम्मी का ध्यान रखना।"
"जी जीजू वो सो रही है, अच्छा मै बाद में बात करूंगी", वो बोली तो गौतम ने भी फोन कट कर दिया और सुरभि को देखने लगा।
"एक बात कहूं, इसका नाम ही असीस नही, खुद असीस बनकर तुम्हारे घर आई है, पर ना जाने क्यूं तुम लोग उसकी कदर नही कर पाये", उसने कहा और उठ कर रूम से बाहर चला गया। तो वहीं सुरभि जहर का घूंट पी गई।
असीस ने इधर-उधर देखा फिर आगे बड़ दूकान से सामान लेने लगी, रसोई का सामान जो के अब खत्म ही होने को था। उसने चीनी, चाय पत्ती, कुछ दाल और नमक वगैरा लिया और घर के लिए वापस चल दी।
"असीस", उसे आवाज पड़ी जब वो अपने घर के सामने पहुंच गई थी। असीस ने मुड़ कर देखा यहां पर जाटनी खड़ी थी अपने घर के दरवाजे पर। वो चल कर आगे आई और असीस को देखने लगी, उसकी वो ब्राउन आंखे कितनी प्यारी लग रही थी पर चेहरे पर एक अजीब सी चुपी थी।
असीस चुप सी उनको देख रही थी। "कैसी है तुम्हारी मम्मी?", जाटनी ने पूछा, तो असीस हैरान रह गई। वो जब से यहां आई थी कभी भी उसने नही देखा था के जानकी ने जाटनी से बात की हो, सिवाय सरला के।
"मम्मी ठीक है अब", असीस ने कहा।
"रात को देखा था मेने तुमको भागते हुए और लखी वीना के साथ जाते हुए पर जब तक मैं बाहर आई तुम लोग निकल गए थे। वीना से ही पूछा तो उसने बताया के तबीयत खराब हो गई थी जानकी की।"
"जी वो बस उनको सर्दी लग गई, अब ठीक है, बस घर जा रही हूं मम्मी उठने वाली होंगी", असीस ने कहा।
जाटनी उसे देखती रही, तो असीस ने नजरे झुका ली।
"मैं मिल सकती हूं क्या तुम्हारी मम्मी से?", वो बोली।
"बिल्कुल मिल सकती है वो खुश हो जायेगी", असीस ने मुस्कुरा कर कहा तो वो दोनो घर के लिए चल दी। असीस ने दरवाजा खोल और जाटनी के साथ अंदर आई, सामान वही बाहर सॉफे पर रख वो जाटनी के साथ जानकी के रूम की तरफ चल दी। यहां जानकी उठ चुकी थी और शायद वो असीस का ही इंतजार कर रही थी।
के सामने जाटनी को देख वो भी हैरान हो गई। "मम्मी जी अंटी आपसे मिलने आई है। अंटी आप बैठ कर बातें करो मैं चाय बना लाती हूं", असीस ने कहा तो वो बाहर आ गई और आकर रसोई का सामना उठा रसोई की तरफ चल दी।
रब राखा