वो एक रात थी। बस एक रात। ना कोई नाम पूछा गया, ना कोई वादा किया गया। दो अजनबी... एक शहर, एक कमरा, एक पल। वो चली गई। जैसे आई थी ...ख़ामोशी से, बिना निशान छोड़े। पर कुछ था जो पीछे रह गया। एक खुशबू... एक छुअन... एक नज़र। और... वो एक रात थी। बस एक रात। ना कोई नाम पूछा गया, ना कोई वादा किया गया। दो अजनबी... एक शहर, एक कमरा, एक पल। वो चली गई। जैसे आई थी ...ख़ामोशी से, बिना निशान छोड़े। पर कुछ था जो पीछे रह गया। एक खुशबू... एक छुअन... एक नज़र। और फिर शुरू हुई विहान की जिद्। उसे ढूँढने की। ना मोहब्बत कह सका, ना दीवानगी। ये एक जिद् थी... उसकी आँखों में छिपे उस खालीपन को समझने की। उस मुस्कान के पीछे के सन्नाटे को छूने की। उस औरत को, जो जैसे हवा थी...पास आकर भी छूई नहीं जा सकती थी। उसने खुद को खो दिया... रास्तों में, सवालों में, चेहरों में। पर वो नहीं मिली। क्यों? क्या वो कभी थी ही नहीं? या क्या वो चाहती थी कि विहान उसे ढूँढता रहे? कभी-कभी एक रात की मुलाकात, पूरी ज़िंदगी की कहानी बन जाती है। ये कहानी उसी एक रात से शुरू होती है... और शायद कभी खत्म नहीं होती।
Page 1 of 1
कमरे की नर्म रौशनी अब और भी धुंधली हो चली थी। उसके बदन की ऊष्मा, उसकी त्वचा की सतह पर महसूस हो रही थी — गर्म, जीवित, सचमुच मौजूद। उसकी उंगलियाँ अब उसकी पीठ से नीचे की ओर खिसकती जा रही थीं, हर एक इंच पर ठहरती हुई, जैसे शरीर की ज़ुबान को पढ़ रही हों।
उसके शरीर में एक सिहरन दौड़ गई — हल्की, मगर थरथराती हुई। उसकी साँसें अब पहले से भारी हो चुकी थीं, और वो हर साँस के साथ उसके सीने से और ज़्यादा चिपकती चली गई। उनकी त्वचाएँ एक-दूसरे में लिपटी थीं, कहीं पर पसीने की महीन परत, कहीं पर त्वचा की कोमल गहराई।
उसके होंठ, अब गर्दन की रेखा से नीचे उतरते जा रहे थे — कंधे के जोड़ पर रुकते, वहाँ की गर्माहट को चूमते, फिर आगे बढ़ते। हर जगह जहाँ वो रुकता, वहाँ त्वचा में एक गहरा कम्पन भर जाता। उसके हाथ अब उसकी कमर से होकर उसकी जाँघों तक पहुँचे थे, उसकी पकड़ में एक संयमित ज़ोर था — जैसे वो जानता हो कितना और कहाँ छूना है।
बिस्तर की चादरें उनके नीचे सिलवटों में बँध गई थीं, कुछ निशान उनके शरीरों से, कुछ उनकी हरकतों से बने थे। उसकी जाँघें अब उसके चारों ओर कसती जा रही थीं, शरीर ने खुद को बिना शब्दों के समर्पित कर दिया था। हर हरकत में लय थी — धीमी, मगर बेतरतीब भी, जैसे एक पुरानी धुन दो जिस्मों के ज़रिए खुद को दोहरा रही हो।
उस पल, उनका कोई अलग वजूद नहीं था। वो एक-दूसरे के भीतर समा गए थे — स्पर्श के ज़रिए, त्वचा के ज़रिए, साँसों के ज़रिए।
और फिर...
सब कुछ शांत हो गया।
कमरे में सिर्फ़ दो साँसों की लय थी, और एक अजीब सी खामोशी — जैसी युद्ध के बाद आती है।
विहान की आँखें बंद थीं, उसका माथा उस लड़की कंधे में टिका हुआ। उसकी उंगलियाँ अब भी उसकी पीठ पर थीं, लेकिन बिना किसी हरकत के। मानो स्पर्श के उस चरम पर पहुँचने के बाद, शरीर ने खुद को थाम लिया हो।
वो कुछ नहीं बोला। और लड़कीने भी कोई शब्द नहीं कहा।
शब्द अब उनके बीच ज़रूरी नहीं थे। रात कह चुकी थी जो कहना था — स्पर्शों की भाषा में, साँसों के दरम्यान।
कुछ मिनट, या शायद घंटे बीते होंगे।
विहान को नींद नहीं आई — उसे आदत नहीं थी किसी के साथ सोने की।
पर इस बार… नींद नहीं आई क्योंकि वो उसके पास थी।
और वो नहीं चाहता था कि यह ख़त्म हो।
---
जब आँख खुली, तो हल्की रोशनी पर्दों के आरपार भीतर आ रही थी। कमरे में अब भी रात की महक थी — पसीने, परफ्यूम और बारिश के संगम से बनी कोई अद्भुत याद।
पर बिस्तर… खाली था।
वो जा चुकी थी।
विहान तुरंत उठ बैठा। उसका दिमाग़ सबसे पहले ये सोच रहा था कि कहीं ये सपना तो नहीं था। चादर अब भी गीली थी, तकिए की दूसरी तरफ हल्की सी खुशबू थी — वो थी यहाँ।
लेकिन अब नहीं थी।
कहीं कोई नोट नहीं, कोई निशान नहीं, कोई नंबर नहीं।
वो हमेशा जानता था कि लोग आते हैं, जाते हैं — और उसे इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए। लेकिन अब फर्क पड़ रहा था।
उसने शीशे के पार देखा — मुंबई की सड़कों पर सुबह की भीड़ चल पड़ी थी। टैक्सियाँ दौड़ रही थीं, सड़क किनारे चायवाले आग सुलगा रहे थे।
पर विहान मेहरा, जिसकी दुनिया तय समय पर चलती थी — उस सुबह रुक गया था।
उसने अपने अंदर कुछ फिसलता हुआ महसूस किया। जैसे कोई दरवाज़ा खुला हो — और कोई याद उसमें से बाहर निकल आई हो।
"अगर मैं सुबह चली जाऊँ... तो क्या तुम मुझे ढूँढोगे?"
उस लड़की वो लाइन उसी रात हँसकर टाल दी थी।
लेकिन अब वो सवाल बनकर उसकी सांसे रोक रही थी।
"हाँ," वो बड़बड़ाया। अब, जब बहुत देर हो चुकी थी।
"मैं तुम्हें ढूँढूँगा।"
उसने मोबाइल उठाया — कोई कॉल, कोई ट्रेस, कुछ भी?
नहीं।
वो इतनी समझदार थी कि कोई सुराग नहीं छोड़ा।
सालों में पहली बार विहान को लगा — कोई उसे हराकर जा चुका है।
उसकी दुनिया में सब कुछ नियंत्रित होता है — सौदे, रिश्ते, फैसले।
वो एक ऐसा आदमी था जो जब किसी चीज़ पर नज़र रखे, तो वो चीज़ उसकी हो जाती।
पर ये औरत…
वो एक रात…
उसने विहान की पकड़ से फिसलकर उसके मन में एक ज़िद बो दी थी।
अब ये तलाश बदन की नहीं थी।
अब ये आदत से अलग कुछ खो देने का गुस्सा था।
अब ये उसकी मर्दानगी पर लगा पहला धब्बा था।
और इस हार को विहान सह नहीं सकता था।
_
बस एक रात।
ना कोई नाम पूछा गया, ना कोई सवाल किया गया।
ना कोई वादा, ना कोई उम्मीद।
दो अजनबी — एक अजनबी शहर, एक बंद कमरा, और कुछ लम्हें जो जैसे वक़्त से चुराए गए थे।
कभी-कभी, एक रात की मुलाक़ात,
पूरी ज़िंदगी की कहानी बन जाती है।
ये कहानी भी उसी एक रात से शुरू होती है...
और शायद, कभी खत्म नहीं होती।
*
*
*
*
कौन है वो लड़की?
क्या विहान उस लड़की को ढूंढ पाएगा?
_
कहानी का पहला पार्ट कैसा लगा बताइएगा जरूर ।
आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
कहानी के साथ जुड़े रहने के लिए मुझे फॉलो करना ना भूले❤️
रात गुजर चुकी थी, लेकिन उस कमरे की खामोशी अभी भी बरकरार थी।
होटल का स्टाफ कमरे में आवाजाही कर रहा था। कमरे की हालत देखकर हर कोई समझ गया था कि पिछली रात यहाँ क्या हुआ होगा। उनके बीच कानाफूसी और इशारे चल रहे थे। वे ऐसे कमरे साफ़ करने के आदी थे।
सब कुछ वापस अपनी जगह पर रख दिया गया था। पर्दे फिर से खिड़कियों पर टँग गए थे, अस्त-व्यस्त चादरें ठीक कर दी गई थीं, वाइन की बोतल खाली थी और ग्लास सिंक में पड़ा था।
सब कुछ वैसा ही था... बस वो नहीं थी।
विहान कांच की बड़ी खिड़की के पास खामोश खड़ा था, खिड़की से बाहर मुंबई शहर का विहंगम दृश्य देख रहा था। लेकिन वो खूबसूरत नज़ारा भी उसके अंदर की बेचैनी को शांत नहीं कर पा रहा था।
ऐसी कितनी ही रातें उसकी ज़िंदगी में आईं और चली गईं। एक से बढ़कर एक हसीनाएं उस पर सब कुछ लुटाकर चली गईं, लेकिन अगली सुबह उसे उनमें से किसी की भी याद नहीं रहती थी।
लेकिन यह लड़की...
वह उसके जिस्म और रूह में जैसे एक धमाका करके चली गई थी। काश, कल रात उसे नींद न आई होती तो वो लड़की ऐसे फिसलकर न जाती। वह खुद पर ही खीझ रहा था। उसकी नींद ने ही उसे धोखा दिया था।
उसकी आँखों में हल्की लाली थी। पिछली रात जो बोतल में उतरी थी, उसकी वजह से उसे एक पल के लिए भी नींद नहीं आई थी।
होटल मैनेजर ने एक बेहद खूबसूरत हसीना को कमरे में भेजा था, लेकिन जब उसे वह चेहरा नहीं दिखा जो उसे चाहिए था, तो उसने उसे वापस भेज दिया। फिर से उसने ग्लास उठा लिया था।
वह गैलरी में बैठा था। जब सारा स्टाफ चला गया, तो वह उठा और शर्ट पहनी। शर्ट के बटन लगाते हुए, मानो वह हर बटन के साथ खुद को फिर से जोड़ रहा हो। घड़ी बाँधी, बालों में हाथ फेरा, वॉलेट उठाया... सब कुछ तयशुदा और सधा हुआ था।
लेकिन उसकी जो चाल हमेशा दमदार और निडर हुआ करती थी, आज धीमी थी...
जैसे ही वह नीचे आया, मोबाइल पर टाइमपास कर रही रिसेप्शनिस्ट एकदम से चौकस हो गई। उसे देखकर उसने अपने बाल ठीक किए। अधेड़ उम्र का मैनेजर, डरी हुई मुस्कान के साथ सीधे उसके सामने खड़ा हो गया। उसे लगा कि विहान इस बात से नाराज़ होगा कि उसने भेजी हुई लड़की को पसंद नहीं किया। विहान मेहरा का गुस्सा उसे कतई बर्दाश्त नहीं था।
"गुड मॉर्निंग, मिस्टर मेहरा।" कमर से झुककर उसने विश किया।
पहले ध्यान न देने वाले विहान की गुस्से भरी नज़र अब उसकी तरफ मुड़ी।
"आज सुबह मेरे कमरे से एक लड़की बाहर निकली। उसका सीसीटीवी फुटेज चाहिए मुझे।" बर्फ की तरह ठंडी आवाज़ में वह बोला।
मैनेजर हड़बड़ा गया। "सर... लेकिन प्राइवेसी पॉलिसी..."
"भाड़ में जाए तुम्हारी पॉलिसी। यह होटल किसके पैसे पर खड़ा है, भूल गए क्या? तुम्हारी पॉलिसी मैंने ही लिखी है। बीस मिनट में वह फुटेज मेरी स्क्रीन पर चाहिए।" उसकी आवाज़ की गरज़ सुनकर मैनेजर सुन्न पड़ गया था।
इतना कहकर विहान बाहर निकल गया। उसकी चाल में फिर से वही रोब आ गया था। मैनेजर उसे देखता रह गया। वह जानता था कि उसकी आज्ञा न मानने का अंजाम क्या होगा। वह फौरन काम पर लग गया।
गाड़ी में बैठते ही विहान ने नंबर मिलाया।
"यस बॉस?" अर्जुन, जो उसकी परछाई की तरह उसके साथ रहता था, उसका सिक्योरिटी हेड था। उसने फोन उठाया।
"अर्जुन, होटल ब्लू हेवन। कल रात साढ़े दस से दो के बीच बार के रूफटॉप पर जो कोई भी आया-गया, उनकी लिस्ट निकालो। चेहरों के स्कैन चाहिए। खासकर लड़कियों के।"
"ओके बॉस। कुछ खास चाहिए?" अर्जुन ने अपनी डायरी में कुछ लिखते हुए आगे पूछा। अगस्त्य शांत हो गया।
वह खिड़की से बाहर देख रहा था। बाहर बारिश हो रही थी और नज़ारा बेहद मनमोहक था, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी वही एक पल अटका हुआ था।
"हाँ... एक चेहरा... जिसने मेरी रातों की नींद उड़ा दी है।" वह बुदबुदाया।
अर्जुन धीमी हँसी हँसा। विहान के कॉलेज के दिनों से वे दोनों साथ थे। उनके बीच काम से ज़्यादा दोस्ती थी। अर्जुन को विहान के हर दिन की खबर होती थी। और विहान मेहरा की नींद किसी ने उड़ाई है, तो वह लड़की ज़रूर कुछ खास होगी।
"ओके" कहकर उसने फोन रख दिया और काम पर लग गया।
बंगले पर पहुँचकर वह फ्रेश होकर अपनी ऑफिस रूम में बैठ गया। उसके पहुँचने से पहले ही होटल से फुटेज उसके पास पहुँच चुकी थी।
प्ले...
ऑफिस की बड़ी स्क्रीन पर वह फुटेज शुरू हुई। उसकी आँखें उन अनगिनत चेहरों पर तेज़ी से घूम रही थीं।
वही बार, वही छत... वही धीमी लाइट्स।
और फिर... वह आई।
ब्लैक सैटिन ड्रेस में। हाथ में ग्लास था... बाल खुले थे। उसकी चाल धीमी थी, लेकिन आत्मविश्वास से भरपूर। जैसे वह किसी खुमारी में हो।
उसने बार की तरफ देखा, और एक कोने की टेबल पर बैठ गई।
स्क्रीन देख रहे विहान की साँस उस पल के लिए थम गई।
वह कोई फिल्मी अभिनेत्री नहीं थी... बहुत खूबसूरत भी नहीं थी... सुंदरता के पारंपरिक मापदंडों में फिट नहीं बैठती थी। उसने इससे कहीं ज़्यादा खूबसूरत लड़कियाँ देखी थीं।
लेकिन फिर भी... उसकी आँखें उसी पर अटक गईं।
हाथ में पकड़े ग्लास को होठों से लगाते हुए वह खुद से ही कुछ बोल रही थी। उसके होंठ हिल रहे थे, और उसे पिछली रात के आवेशपूर्ण चुंबन की याद दिला रहे थे।
और फिर... वह उठी।
उसी की टेबल की तरफ आई। इसके बाद क्या हुआ, विहान को हर मिनट याद था।
फोन बजा तो उसे वास्तविकता का भान हुआ। अर्जुन का फोन था।
"बोलो।"
"फुटेज मिल गई है, लेकिन सब कुछ धुँधला दिख रहा है।"
"मैंने उसके चेहरे और कपड़ों की हर एक डिटेल तुम्हें भेज दी है। उसके चेहरे को स्कैन करो। सारे क्लब, होटल, इवेंट्स... जहाँ-जहाँ हम जुड़े हुए हैं, हर जगह ढूँढो।"
"बॉस, लेकिन चेहरा पता चल भी गया तो... अगर वह किसी अलग पहचान के साथ अंदर आई होगी तो?"
"मुझे बहाने नहीं चाहिए अर्जुन। मुझे बस वो चाहिए।"
फोन कट गया।
सिर्फ़ वो तीन शब्द हवा में गूँज रहे थे - "मुझे बस वो चाहिए।"
______
शाम हो गई थी, लेकिन तलाश अभी भी वहीं अटकी हुई थी। उसका चेहरा अब शांत दिख रहा था, लेकिन अंदर कुछ उबल रहा था। उसने इतनी शिद्दत से कभी किसी चीज़ का इंतज़ार नहीं किया था। उसका सब्र जवाब दे रहा था।
यह एक चीज़ उसके हाथ में नहीं थी... और यह एहसास उसे बेचैन कर रहा था।
उसने इंटरकॉम उठाया।
"रिया, इस हफ़्ते की सारी मीटिंग्स कैंसिल कर दो। मीडिया इंटरव्यूज़... सब रोक दो।" उसने सेक्रेटरी को ऑर्डर दिया।
"सर, लेकिन..."
"मुझे बस एक चीज़ चाहिए अभी। बाकी सब एक तरफ़ रखो।" उसने आँखें बंद करके गुस्से में कहा और इंटरकॉम पटक दिया। डरी हुई रिया दो मिनट तक खुद को संभालती हुई बैठी रही।
रात...
वह फिर से उसी होटल में, उसी कमरे में आया था।
वापस उसी कमरे में। जहाँ वह थी।
जिस कमरे में उस दिन मादक साँसों और आहों की गूँज थी, वह अब शांत था। वाइन की बोतल में थोड़ी सी वाइन बची थी, लेकिन अब उसका स्वाद बदल गया था। उसे बस उसके होठों का स्वाद चाहिए था।
उसने ग्लास उठाया, उस पर अंगूठा फेरा... जैसे उस रात उसकी कमर पर फेरा था। लेकिन ग्लास में वो नरमी नहीं थी। ग्लास का स्पर्श उसे उतना पागल नहीं कर रहा था, जितना उसके स्पर्श ने किया था।
धीरे-धीरे, लेकिन अधिकार से...
"तुम ऐसा नहीं कर सकती... मुझे ऐसे तड़पता छोड़कर नहीं जा सकती तुम। कहीं भी छिपी हो, मैं तुम्हें खींचकर अपनी इस दुनिया में लाऊँगा, जहाँ से कोई वापसी नहीं। मेरी ज़िद बन गई हो तुम। मेरी तलब।"
वाइन का ग्लास धीरे-धीरे पीते हुए उसने खुद से कहा। उसकी आँखों में इस बार कुछ अलग ही भाव थे।
********
आखिर कितना और इंतजार करना होगा विहान को ?
पाठ कैसा लगा कमेंट्स में बताइएगा।
and don't forget to follow me❤️
कैफे की खिड़की से सूरज की एक हल्की सी किरण उसके चेहरे पर पड़ रही थी। सूरज अभी पूरी तरह से ऊपर नहीं आया था, लेकिन उसका अस्तित्व वैसे ही महसूस हो रहा था, बिल्कुल दृढ़। उस रोशनी में उसकी आँखों के नीचे की थकान साफ दिख रही थी, लेकिन उसकी नज़र कहीं खोई हुई थी। चेहरा ऊपर से शांत था, इसलिए अंदर चल रहे तूफान की किसी को खबर नहीं लग रही थी।
कैफे में चहल-पहल थी। लेकिन वह उस सफेद टेबल पर अकेली बैठी थी। जिस आदमी ने उसे यहाँ बुलाया था, उसी ने यह टेबल बुक करवाया था। उसे सिर्फ एक मैसेज आया था, और वह फौरन आ गई थी। दुपट्टे का कोना उसने अपने दाहिने हाथ में मरोड़ रखा था, मानो वही उसे अंदर से टूटने से बचा रहा हो।
यादों का कोई झरोखा, जहाँ से उस रात के सारे पल फिर से अंदर आने की कोशिश कर रहे थे।
उसकी आँखें खुली थीं, लेकिन सामने लोगों की भीड़ को नहीं देख रही थीं। मन कहीं दूर खोया हुआ था।
जब विहानके हाथ धीरे-धीरे उसकी पीठ पर सरके थे... उस स्पर्श में न वासना थी, न बेचैनी, बस एक शांति थी, एक स्वीकार। एक पल का टूटा हुआ संयम, जो धीरे-धीरे उसके भीतर कहीं उतर रहा था।
उसका मन उलटे-सीधे विचार कर रहा था। वह खुद को समझा रही थी कि यह एक काम था... बस एक काम। उससे ज्यादा कुछ नहीं।
लेकिन शरीर... शरीर सिर्फ स्पर्श की भावना को समझता है। उसका शरीर भी उस बेखौफ़ और जंगली स्पर्श की, उन मोहक पलों की यादों में उलझ गया था।
उसकी साँसें, उसके हाथों की गर्मी, उसके सीने की धड़कन... वह सब अभी भी उसकी त्वचा पर कहीं खुदा हुआ था। जो दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस होता है। कोमल, लेकिन गहरा।
एक रात में उसके अंदर कुछ बदल गया था... वह अब पहले जैसी नहीं रही थी।
वह रात वह दूसरों से छुपा सकती थी... बहुत कोशिश करने पर वह उस स्पर्श को भी भूल सकती थी... लेकिन उस स्पर्श ने उसके अंदर एक तूफान खड़ा कर दिया था, और वही अब उसे सबसे ज़्यादा परेशान कर रहा था।
वह रात सिर्फ एक 'वन-नाइट स्टैंड' नहीं था... कम से कम उसके लिए तो नहीं था। वह उसके करीब आने वाला पहला पुरुष था। जो चीज़ उसने खुद के पास सँभाल कर रखी थी, वह उसने पहली बार किसी को दी थी। पहले मजबूरी में और फिर अपनी खुशी से।
और यही विचार उसे सबसे ज़्यादा डरा रहा था।
क्योंकि उसने उसकी कोई भी याद मन में न रखने का फैसला किया था।
लेकिन...
वह अभी भी उसके अंदर कहीं "बाकी" था।
"मिस मीरा जोशी।" एक खुरदुरी, लेकिन बेवजह सभ्य लगने वाली आवाज़ उसके कानों में गूँजी। वह हल्के से चौंकी, लेकिन आवाज़ पहचान कर उसने सिर ऊपर नहीं उठाया।
आर्यन खुराना उसके सामने आकर बैठ गया था।
पूरी जगह पर अपनी ही सत्ता है, ऐसा आत्मविश्वास लिए हुए। शरीर पर कसा हुआ परफेक्ट सूट, कसरत किया हुआ शरीर, आँखों में चुभने वाली पर्सनैलिटी। हावभाव, बैठने का तरीका, माथे की शिकनें—सब कुछ बिज़नेस क्लास था। लेकिन नज़र...
नज़र साँप जैसी थी। धीरे, लेकिन घातक।
उसकी आँखों में अहंकार भरा हुआ था।
वह कौन है, क्या करती है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसका अस्तित्व उसके गंदे खेल का एक मोहरा था, बस।
"मुझे यकीन है कि तुमने मेरा काम कर दिया होगा," उसने हाथ में सिगरेट के पैकेट पर उँगलियाँ फिराते हुए पूछा। शब्द शांत थे, लेकिन उनके पीछे एक धमकी छुपी हुई थी।
उसने अभी भी उसकी तरफ न देखकर सिर्फ सिर हिलाया।
"मतलब, उस रात तुम उसके पास गई थी।"
"हूँ।"
उसके हाँ कहने पर आर्यन ने मुस्कुराते हुए सिगरेट जलाई। वह उसे एकटक देख रहा था।
"गई तो थी, लेकिन वापस वहाँ से आ गई हो, ऐसा नहीं लगता।" सिगरेट का धुआँ उसकी तरफ छोड़ते हुए वह बोला।
उसके होंठ कस गए। आँखें एक पल के लिए बंद हो गईं। वह याद फिर से मन में उमड़ आई। वह खुद पर जैसे-तैसे काबू रख रही थी।
आर्यन आगे झुका। टेबल पर रखे ग्लास पर उसकी कर्कश आवाज़ गूँजी।
"उसने तुमसे क्या पूछा?"
वह अभी भी चुप थी।
"उस रात तुमने किन फाइल्स पर ध्यान दिया? फोन इस्तेमाल किया था क्या? किससे बात की उसने? तुम्हारी कितनी बात हुई?"
उसकी आवाज़ अब बर्फ़ जैसी ठंडी थी... और आँखों में आग।
उसकी साँस थोड़ी तेज़ हो गई। होंठ काँपने लगे। उसकी आवाज़ एकदम चली गई थी। उसे आर्यन से डर लग रहा था। वह पछता रही थी कि वह इस काम के लिए क्यों तैयार हुई।
"कुछ... ज़्यादा नहीं हुआ..." वह आखिर में बोली।
लेकिन वह 'नहीं' आर्यन को कम और खुद को ज़्यादा समझाने की कोशिश कर रही थी।
"ज़्यादा नहीं?" आर्यन की आवाज़ हथौड़े की तरह गूँजी। "मतलब थोड़ा कुछ हुआ।"
उसका सिर नीचे झुक गया। उसे शब्द नहीं सूझ रहे थे।
वह अपने मन में चल रहे द्वंद्व के बारे में इस आदमी को नहीं बता सकती थी। ऐसा कोई रिश्ता नहीं था। वह बस उसकी भावनाएँ थीं... और उसे उन्हें अपने तक ही रखना था।
लेकिन आर्यन ने जो काम कहा था, वह? उसे सच बताने का मन नहीं कर रहा था, और झूठ बताने में डर लग रहा था।
"अपनी पहचान तो नहीं बताई न उसे?" उसका अगला सवाल आया।
"वह... बहुत पूछ रहा था..." वह आखिर में बोली। "लेकिन मैंने ज़्यादा कुछ नहीं बताया।"
आर्यन हँसा। लेकिन वह हँसी सिर्फ होंठों पर थी। आँखों में वही ज़हर था। वह हँसी उसे ज़हर जैसी लगी।
"और मैंने जो सामान बताया था?"
वह अब नज़र टेबल पर टिकाकर बैठी थी। उसका दिमाग उलझ गया था। उसे तब काम-वाम कुछ याद नहीं था... उसे याद था तो उस रात का उसका स्पर्श, उसका विश्वास, उसका शांति से सुनना, और उसमें बोले गए उसके अपने शब्द...
उसकी आवाज़ फुसफुसाते हुए निकली, "माफ करना... मैंने कोशिश की... लेकिन-"
"लेकिन क्या? भावनाएँ आड़े आ गईं?" आर्यन की ठंडी निगाह से उसे सिहरन हुई। उसने कोई जवाब नहीं दिया।
"मोहब्बत वगैरह हो गई क्या उससे?" यह सवाल कटार की तरह उसके मन में गहराई तक उतर गया। वह हल्के से काँप उठी। आर्यन ने वह कंपन देखा और फिर हँसा।
"एक रात का खेल था वह। लेकिन तुम उलझ गई। कच्ची खिलाड़ी निकली तुम।" उसने चिमटी में पकड़ी हुई आधी बुझी सिगरेट एशट्रे में डाली और कुर्सी पर पीछे झुक गया।
"नहीं... जैसा आप सोच रहे हैं, वैसा कुछ नहीं है। मुझे सही मौका नहीं मिला। बस यही।"
"हम्म। वैसे भी लड़कियाँ उसके पीछे पड़ी रहती हैं। क्या है उस साले में इतना, पता नहीं।" आर्यन गुस्से में बुदबुदाया।
"मेरा काम अधूरा है। और मुझे अधूरी चीज़ें पसंद नहीं हैं। तुम्हें भी पैसे आधे ही मिलेंगे।"
"अरे लेकिन..."
"मुँह मत चलाओ मेरे सामने।" उसने उसे बोलने ही नहीं दिया।
उसकी आँखों में आँसू भरने लगे। लेकिन वह उन्हें बहने नहीं दे रही थी।
"मैं... मैं वापस जाऊँगी उसके पास," उसने हिम्मत बटोर कर कहा। उसे पैसों की बहुत ज़रूरत थी। यह इम्तिहान उसे देना ही पड़ेगा।
"वापस जाएगी? मुँह पर पट्टी बाँध कर थी क्या उसके साथ? पहली नज़र में पहचान लेगा तुझे वह।" वह झुँझलाया।
"न... नहीं। आपने जो गोली दी थी... मैंने उसके ड्रिंक में डाल दी थी। उसे मेरा चेहरा याद नहीं होगा।" उसने कहा।
आर्यन का चेहरा एक बार फिर से शून्य हो गया।
"ठीक है... एक और मौका देता हूँ तुम्हें। दुगने पैसे मिलेंगे। इस बार, भावनाओं को अंदर रखो, और काम पूरा करो... वरना, तुम्हारा भाई... और तुम्हारा खूबसूरत, छोटा सा परिवार—"
"नहींSSS" वह ज़ोर से बोली। उसने उसका वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
"मैं करती हूँ। जो कहोगे, वह करती हूँ। लेकिन उन्हें हाथ मत लगाना।"
वह कुटिलता से हँसा और उठ गया। एक पैकेट उसके सामने फेंका। फिर वहाँ खामोशी छा गई। वह बाहर निकल गया। उसके जूतों की आवाज़ वहाँ गूँजती रही।
वह कुर्सी पर सुन्न बैठी रही। आँखों से आँसू बहने लगे। उसने कुर्सी के नीचे रखा बैग खोला और देखा। उस रात विहान के नशे में होने पर उसने उसकी बैग से चुपके से निकाले गए वे पेपर्स थे। आर्यन ने यही काम करने को कहा था, और उसने वह पूरा करके भी उसे नहीं बताया था।
एक रात में उसे उससे प्यार हो गया था, और उसके लिए आज उसने इतना बड़ा खतरा उठाया था। सिर्फ़ उसके लिए...
अगर आर्यन को यह पता चल गया, तो वह उसकी जान लेने से भी पीछे नहीं हटेगा... लेकिन उसकी यही जान और दिल अब विहान पर आ गया था। उसे बाकी किसी की परवाह नहीं थी।
*
*
*
*
कहानी जारी है।
पाठ कैसा लगा बताइएगा और मुझे follow भी कर लीजिएगा।