यह कहानी है एक खूनी पिचाश ओम ठाकुर की, जो कोई आम इंसान नहीं बल्कि एक शाप से अभिषापित एक पिचाश है। हर अमावस्या को वह एक आम इंसान ना होकर, एक भयानक वैंपायर बन जाता है, जो किसी भी आम इंसान के लिए खतरा है। वही दूसरी ओर है सुरीली आवाज़ की मालकिन संगीता।... यह कहानी है एक खूनी पिचाश ओम ठाकुर की, जो कोई आम इंसान नहीं बल्कि एक शाप से अभिषापित एक पिचाश है। हर अमावस्या को वह एक आम इंसान ना होकर, एक भयानक वैंपायर बन जाता है, जो किसी भी आम इंसान के लिए खतरा है। वही दूसरी ओर है सुरीली आवाज़ की मालकिन संगीता। जिसके सुर में किसी के भी दुख दर्द दूर करने की शक्ति है। क्या होगा जब भोली भाली सी संगीता बन जायगी एक खूनी पिचाश का जुनून? क्या होगा जब आपस मे टकराएंगे ये आग और पानी? जानने के लिय पढ़िए " Obsessed of Vampire only on pocket maniya पर..........
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((ओम का वहशीपन)) रात का आखिरी पहर चल रहा था। इंग्लैंड के घने जंगल, शेरवुड फ़ॉरेस्ट (Sherwood Forest) के बीचों-बीच बने एक आउटहाउस के बाहर तीन लोग खड़े हुए थे, सिगरेट का कश ले रहे थे। उनमें से एक ने कहा, "आज ये ओम को हो क्या गया है? एक लड़की को मसलने में इतना टाइम क्यों लगा रहा है?" दूसरे ने कहा, "अरे यार, तू तो जानता है ना ये हमारा ओम एक नंबर का उसूल वाला है। वो लड़की की मर्ज़ी के बिना उसे हाथ नहीं लगाएगा।" तीसरे दोस्त ने कहा, "यार, अब बहुत देर हो गई है। मुझसे तो अब रुका नहीं जा रहा है। मैं जा रहा हूँ उसे देखने। आखिर प्रॉब्लम क्या है? उसे इतना टाइम क्यों लग रहा है?" "हाँ यार, ये सही कह रहा है। हमें जाकर देखना होगा। आखिर कारण क्या है? लड़की की हॉट वॉइस तक सुनाई क्यों नहीं दी?" अचानक आसमान काले बादलों से घिर गया और अजीब से जानवरों की आवाज़ सुनाई देने लगी। उन तीनों में से एक दोस्त ने कहा, "By the way, यार, आज कौन सी रात है?" दूसरा दोस्त अपने माथे पर हाथ मारते हुए बोला, "ओह शीट! मर गए! आज तो अमावस्या की काली रात है! और आज तो ओम, ओम न होकर..." उसने इतना ही कहा था कि तीनों दोस्तों ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा और भागकर अंदर बंगले की ओर दौड़े। वहाँ जाकर उन्होंने देखा, एक बड़ी ही खूबसूरत अर्ध-नग्न लड़की खून में लथपथ पड़ी हुई थी, और उसके पास ही अपनी चमक रही आँखें और नुकीले लंबे दांत लिए ओम ठाकुर बैठा हुआ था। ओम ठाकुर कोई आम इंसान नहीं था। वह एक शाप से अभिशापित था। हर अमावस्या को वह एक आम इंसान न होकर एक भयानक वैम्पायर बन जाता था, जो किसी भी आम इंसान के लिए खतरा था। उसने उस लड़की के कंधों पर दांत गाड़ दिए थे और उसके जिस्म की एक-एक बूँद पानी की तरह पी गया था। ओम का वहशीपन देखकर वह तीनों दोस्त बुरी तरह से काँप गए थे, लेकिन फिर... तीनों दोस्तों ने हिम्मत करके ओम को उठाया और उसे एक हरे रंग की दीवारों वाले कमरे में ले गए और उसे शांत कराने की कोशिश करने लगे। उसके बाद उन्होंने उस बेजान पड़ी लड़की की लाश को उठाया और घने जंगल में गाड़ने के लिए गड्ढा खोदने लगे थे। उस लड़की को गाड़ते वक्त एक दोस्त बोला, "यार, कितनी मुश्किलों से इस खूबसूरत बला को मैं यहाँ लेकर आया था। सोचा था चारों दोस्त यूनिवर्सिटी की इन तीन दिनों की छुट्टियों को और मज़ेदार बनाएँगे। लेकिन उस ओम ने एक बार फिर एक और लड़की की जान ले ली। ना तो वो खुद लड़कियों के साथ कुछ करता है और ना ही हमें करने देता है। पिछली सत्रह लड़कियों की तरह वो इसके जिस्म का भी खून पी गया। इससे अच्छा होता कम से कम हम तीनों इसके साथ कुछ मस्ती तो कर लेते। पूरे पचास हज़ार डॉलर में खरीदा था मैंने इसे!" ऐसा कहकर एक दोस्त झूठ-मूठ का रोना रोता हुआ उस लड़की को उस घने जंगल में गाड़ने लगा। वहीं दूसरी ओर, भारत के एक छोटे से गाँव में, स्कूल की घंटी बज गई थी। सभी बच्चे शोर मचाते हुए बाहर की ओर भागे। इतने में बूढ़े हो चुके मास्टर दीनानाथ जी फिसल कर गिर गए। कुछ बच्चों और अध्यापकों की नज़र उन पर पड़ी और वे मास्टर जी को उठाने के लिए आगे बढ़े और उनकी मदद करने लगे। मास्टर जी की पूरे गाँव भर में बहुत इज़्ज़त थी। हर कोई उन्हें सम्मान की नज़रों से देखता था। एक अकेले मास्टर जी ने दिन-रात मेहनत करके अपने गाँव में एक छोटा सा स्कूल, सड़कें, पानी और भी बहुत कुछ काम करवाए थे, और ना जाने कितने गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी थी। कुछ लोग उनसे शिक्षा पाकर शहर चले गए थे नौकरी करने के लिए। मास्टर जी के परिवार में उनकी पत्नी सारदा और उनकी बेटी संगीता थीं। संगीता को संगीत से बहुत प्यार था। सुरीली आवाज़ के साथ ही साथ उसे एक आशीर्वाद प्राप्त था। वो जब भी गाती थी, तब आस-पास के सभी पशु-पक्षी मोहित होकर नाचने लगते थे। जब वह छोटी थी, तब उनके यहाँ एक ऋषि-मुनि आए थे। तब संगीता और उसकी माँ ने उनकी बहुत सेवा की थी। हर रोज़ की तरह जब देवी माँ की पूजा करते वक्त छोटी सी संगीता ने अपनी मधुर आवाज़ में प्रार्थना की, तब मुनि जी उसके स्वर से बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने उसको आशीर्वाद दिया कि जब भी तुम अपने दिल से गाओगी, तब जो कोई भी तुम्हारा संगीत सुनेगा, उसके सारे दुख-दर्द, परेशानी सब खत्म हो जाएँगे, और पशु-पक्षी मोहित होकर तुम्हारे सामने नाचने लगेंगे। ऐसा कहकर वे चले गए, लेकिन उसने और उसकी माँ ने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था। समय के साथ-साथ संगीता बड़ी हो गई थी। संगीता अब बेहद खूबसूरत और आकर्षक युवती थी। वह हर काम दिल से करती थी। धीरे-धीरे संगीता को अपने स्वर की ताकत का अंदाज़ा हो गया था। जब भी वो दिल से गाती, हर सुनने वालों की तकलीफ़-परेशानी खत्म हो जाती और पशु-पक्षी झूमने लगते। धीरे-धीरे यह बात चारों ओर आग की तरह फैल गई थी। हर कोई संगीता से गाना सुनना चाहता था, लेकिन वह हर समय हर किसी के लिए नहीं गा सकती थी। सब लोग उसे जादुई आवाज़ वाली लड़की कहकर बुलाते थे। संगीता की प्रसिद्धि सुनकर एक बार पास के ज़मींदार साहब उनके घर आए, अपने बेटे का रिश्ता लेकर। लेकिन मास्टर जी उनके आने की मंशा अच्छी तरह से जानते थे। उन्होंने अभी के लिए रिश्ते की बात टाल दी थी, जिससे ज़मींदार को बहुत बुरा लगा था। ज़मींदार ने अगले दिन मास्टर जी को बुलाया और मास्टर जी को अच्छे से समझा दिया था कि उनकी बेटी उसी की बहू बनेगी, ये बात अच्छे से अपने दिलो-दिमाग में बैठा लो। ज़मींदार ने सीधे-सीधे धमकी दी थी। ज़मींदार का बेटा कोई और नहीं, बल्कि ओम ठाकुर था, जो इस वक्त इंग्लैंड की मशहूर यूनिवर्सिटी, ....xxxxxxx........में पढ़ने के लिए गया हुआ था। दोस्तों, अपने प्यारे-प्यारे कॉमेंट कीजिए। प्लीज़, आई एम वेटिंग।
ओम ठाकुर ने इस साल सत्रहवीं लड़की का खून पीकर उसकी जान ले ली थी। उस शहर से एक और लड़की गायब होकर वहाँ के न्यूज़पेपर और टीवी चैनल की सुर्खियाँ बन चुकी थीं।
ओम अपने बॉयज़ हॉस्टल रूम में आराम से सोया हुआ था। ओम को इतने आराम से सोया हुआ देखकर उसका एक दोस्त बोला, "देखा तूने? एक खूबसूरत लड़की का खून पीकर कितनी आराम से सोया हुआ है! और देखो इसके चेहरे की तरफ़! क्या इसके इतने स्मार्ट, चार्मिंग, डैशिंग और अट्रैक्टिव लुक को देखकर कोई कह सकता है कि इस हैंडसम से चेहरे के पीछे कितना बड़ा खूनी पिशाच छुपा हुआ है?"
तब दूसरा दोस्त उसे अपनी उंगली के इशारे से चुप रहने का इशारा किया, पर वह चुप होने के बजाय बोलता गया, "ये क्या? बार-बार मुँह पर उंगली रख रहे हो? मेरी बात मानो! इसकी ज़िन्दगी से निकल लो और इस खूनी पिशाच से अपनी जान छुड़ा लेते हैं!"
जैसे ही उसके उस दोस्त ने यह कहा, तुरंत उसे अपने कंधों पर कुछ भार सा महसूस हुआ। जैसे ही उसने अपनी बराबर में देखा, तो ओम ठाकुर खड़ा था। ओम को देखते ही उसके दोस्त की जुबान गले में अटक गई थी। और जहाँ वह शेर बना हुआ बोले जा रहा था, अब उसके मुँह से "मे...मे...मे..." की आवाज़ निकलने लगी थी। वह बकरे की तरह "मे...मे...मे..." करने लगा था।
उसकी हालत देखकर बाकी के दोस्त, ओम समेत, उस पर हँसने लगे थे। तब ओम हँसते-हँसते एकदम से चुप हुआ और अपने उस दोस्त के बिल्कुल करीब जाकर उंगली दिखाते हुए बोला, "मैं जानता हूँ तुम लोग मुझसे दूर जाना चाहते हो, मेरे साये से भागना चाहते हो, लेकिन ऐसा पॉसिबल नहीं है। तुम लोगों को दोस्ती के लिए ओम ठाकुर ने चुना है, तो जब तक ओम ठाकुर चाहेगा, तब तक तुम लोग मेरी ज़िन्दगी में रहोगे।"
अभी ओम कुछ और आगे कहने वाला ही था कि तभी उसका फ़ोन बज उठा। यह फ़ोन किसी और का नहीं, बल्कि ओम के पिता, ज़मींदार साहब का था।
ज़मींदार ने अपने बेटे ओम ठाकुर के कानों में यह बात डाली, "तेरी शादी उस मास्टर की बेटी से होगी, तो तू जल्द से जल्द गाँव लौट आ।" संगीता के बारे में जानकर वह जादुई आवाज़ वाली लड़की के पीछे की सच्चाई जानना चाहता था। ओम ठाकुर अपनी हालत से भली-भांति परिचित था, इसलिए वह किसी भी लड़की से शादी नहीं करना चाहता था। लेकिन उसके पिता ने उसे बताया था कि उसे इस शाप से बचाने के लिए एक विशेष नेकदिल वाली लड़की से उसकी शादी होनी चाहिए, क्योंकि कुछ महात्माओं ने उसकी कुंडली को लेकर यही भविष्यवाणी की थी। इसीलिए ज़मींदार साहब ने अपने बेटे की जान बचाने के लिए मास्टर जी की बेटी संगीता को अपनी बहू बनाने का फ़ैसला कर लिया था। उन्हें लगा था कि यह विशेष सुरीली आवाज़ वाली लड़की ही उसके बेटे को ठीक कर सकती थी।
लेकिन जब से ओम ने संगीता के बारे में सुना था, तब से वह उसके बारे में जानना चाहता था और उससे मिलना चाहता था। इसलिए उसने अपने गाँव वापस लौटने का फ़ैसला कर लिया था। जैसे ही उसके दोस्तों ने यह सुना कि ओम गाँव जा रहा है, तो उन तीनों में खुशी की लहर दौड़ गई थी। लेकिन उनकी वह खुशी ज़्यादा देर नहीं टिकी थी, क्योंकि ओम उन्हें भी अपने साथ लेकर अपने गाँव पहुँच गया था। वह ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी करके अपने दोस्तों समेत गाँव लौट गया था।
और घर आकर जब उसे यह पता चला कि गाँव के मास्टर ने अपनी बेटी की शादी उससे करने के लिए मना कर दिया है, तो वह अंदर ही अंदर तप गया था। अब संगीता से मिलने का उस पर जुनून सवार हो गया था। फिर एक दिन वह अपना वेश बदलकर उसके गाँव पहुँच गया था। संगीता और ओम के गाँव दोनों एक-दूसरे से मिले हुए थे, और वहाँ पहुँचकर उसे आसानी से मास्टर जी के घर का पता मिल गया था।
उसने उनके घर के बाहर दस्तक दी। लेकिन कितनी देर तक दरवाज़ा खटखटाने के बाद भी कोई जवाब ना मिलने पर उसे एहसास हो गया था कि घर पर कोई नहीं है। उसने आस-पास मास्टर जी और उनके परिवार के बारे में पता किया, लेकिन किसी को कुछ भी नहीं पता था।
धीरे-धीरे यह बात पूरे गाँव में फैल गई और सब लोग मास्टर जी और उनके परिवार को ढूँढने निकल पड़े। पर किसी को कोई भी सुराग नहीं मिला। सब बहुत दुखी थे और सबकी आँखों में आँसू थे। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनके दुख-दर्द बाँटने वाला परिवार अब वहाँ नहीं है।
आखिर रातों-रात मास्टर जी का परिवार कहाँ चला गया था? सबके मन में यही सवाल चल रहा था।
दूसरी ओर, मास्टर जी ज़मींदार साहब की धमकी से बेहद डर गए थे। वह अपनी बेटी की शादी उनके बेटे से नहीं करना चाहते थे, क्योंकि ओम ठाकुर आस-पास के गाँव वालों की नज़र में एक बिगड़ा हुआ अमीरज़ादा था। उसने कोई काम ऐसा नहीं किया था जिससे उसे कोई पसंद करे। यह बात चारों ओर फैली हुई थी। इसीलिए कोई भी शरीफ़ बाप उसे अपनी बेटी नहीं दे सकता था।
मास्टर जी की बेटी कोई आम लड़की नहीं थी। वह तो देवी सरस्वती का रूप थी। गाँव का हर आदमी उसे प्यार और सम्मान देता था। उसकी शादी ऐसे ही किसी के भी साथ नहीं हो सकती थी। मास्टर जी ने उसे बेहद लाड़-प्यार से पाला था। वह उसे कोई भी तकलीफ़ नहीं होने देना चाहते थे।
इसीलिए रात में सबके सो जाने के बाद मास्टर जी अपनी बेटी और पत्नी को लेकर शहर चले गए थे, हमेशा के लिए।
ओम ठाकुर यह बात बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। बचपन से लेकर आज तक उसने जो चाहा था, वह पाया था। अगर वह किसी चीज़ को अपना नहीं बना पाता था, तो वह उसे नष्ट कर देता था, किसी और के लायक भी नहीं छोड़ता था। पहले तो वह मास्टर जी की बेटी से शादी नहीं करना चाहता था, लेकिन उनके यूँ अचानक लापता हो जाने के बाद उसे अब संगीता को देखने और उसे अपना बनाने की जुनून और ज़िद चढ़ गई थी।
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ओम इंग्लैंड से लौट आया था। गाँव के मास्टर दीनानाथ जी ने अपनी बेटी संगीता की शादी उससे करने से मना कर दिया था। इससे ओम के अंदर गुस्से की आग भड़क उठी थी।
वह संगीता को प्यार नहीं करता था; उसने उसे देखा तक नहीं था, केवल सुना था उसके बारे में।
वह बिना देखे ही संगीता को अपनी जिद बना चुका था। ओम ठाकुर यह बात हजम नहीं कर पा रहा था कि कोई लड़की उसे रिजेक्ट करके कहीं जाकर छुप गई हो। अब ओम ने सोच लिया था कि वह जादूई आवाज वाली लड़की की सच्चाई पता लगाकर रहेगा।
ओम संगीता के गाँव से अपने घर लौट आया था। वहाँ आकर वह अपने कमरे में इधर-उधर बुरी तरह टहलने लगा। उसके तीनों दोस्त, गौरव, रोनित और मयंक, वहीं थे।
ओम को इस तरह बेचैन होकर टहलता देख, वे हल्के-हल्के डरने लगे थे।
उनके हाथों में जो खाने-पीने का सामान था, उन्होंने उसे एक-एक तरफ अलग-अलग रख दिया था। वे जानते थे कि अगर वे ओम के सामने इस तरह खाना खाएँगे, तो ओम उनका खून पी जाएगा।
उन्हें अच्छी तरह अंदाजा था कि गुस्से में ओम किस हद तक जा सकता था।
तब एक दोस्त ने हिम्मत करके ओम से पूछा, "क्या हुआ ओम? क्यों परेशान हो रहा है? अगर वह लड़की नहीं मिली, तो छोड़ दे। तेरे लिए लड़कियों की कोई कमी है क्या? हम वापस विदेश लौट जाते हैं। वहाँ मैं वादा करता हूँ, तेरे लिए हर रोज एक नई लड़की लेकर आऊँगा। जैसा तू कहेगा, वैसा करूँगा। तू उस मामूली लड़की के लिए परेशान मत हो।"
जैसे ही उसके दोस्त ने यह कहा, ओम का दिमाग खराब हो गया और वह तेजी से अपने माथे पर हाथ मारने लगा।
उसका वह दोस्त, जो उसे संगीता को भूलने के लिए कह रहा था, अब अपने कदम पीछे लेने लगा था।
क्योंकि वह जान चुका था कि ओम अब गुस्से से पागल हो चुका है। यह उसकी बचपन से ही आदत थी; जब भी ओम को हद से ज़्यादा गुस्सा आता था, तो वह अपना हाथ अपने माथे पर मारने लगता था।
उसका दोस्त डर के मारे काँपने लगा। तभी ओम एक झटके से उसके सामने आकर खड़ा हो गया।
और ओम ने एक झटके से उसका गला पकड़ लिया। ओम बहुत ही ज़्यादा गुस्से में था। तभी उसके बाकी के दो दोस्त ओम का हाथ पकड़कर उसे रोकने की कोशिश करने लगे।
और कहने लगे, "ओम, प्लीज़, उसे जाने दो। उससे गलती हो गई। और यह तुम्हारा बचपन का दोस्त है। छोड़ दो, छोड़ दो!"
लेकिन ओम कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं था। तब उनमें से एक दोस्त ने कहा, "वह गौरव को जाने दो। उस लड़की को ढूँढने के लिए हम तुम्हारी मदद करेंगे। मैं वादा करता हूँ। छोड़ दो इसे।" संगीता का ज़िक्र आने पर ओम कुछ हल्का पड़ा और उसने उसे छोड़ दिया। उसका दोस्त गौरव जोर-जोर से साँसें लेने लगा। उसे तो ऐसा लग रहा था कि आज उसका काम तमाम हो ही जाएगा।
तब मयंक ने गौरव को एक गिलास पानी दिया और उसकी पीठ सहलाने लगा ताकि उसे साँस लेने में आसानी हो।
ओम उन तीनों पर एक गहरी नज़र डालता हुआ वहाँ से निकल गया। ओम के जाने के बाद तीनों ने राहत की साँस ली। तब रोनित गौरव से बोला, "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। तुम जानते हो ना ओम को। बचपन से ही उसे किसी चीज़ को पाने की ज़िद लग जाती है, तो वह उसे पाकर ही रहता है।"
"आज थोड़ी भी देर हो जाती, तो तुम जानते हो क्या हो सकता था तुम्हारे साथ। अब मेरी बात ध्यान से सुनो। ओम उस लड़की को अपनी जिद बना चुका था। उसे अब हर हाल में केवल संगीता चाहिए थी, किसी भी कीमत पर।"
इसलिए ओम ने संगीता के गाँव में चारों ओर अपने आदमी फैला दिए थे।
लेकिन कोई कुछ भी पता नहीं लगा पाया था।
संगीता को उसके गाँव में केवल कुछ लोगों ने ही देखा था। सभी लोगों ने केवल उसकी आवाज़ ही सुनी थी।
केवल उसके पिता की उम्र वाले लोगों ने ही उसे आज तक देखा था।
वह परदे के पीछे से ही गाना गाती थी, जिसे घर के बाहर खड़े लोग सुनते थे।
और अब चारों ओर उसे जादूई आवाज़ वाली लड़की के नाम से बुलाया जाता था।
मास्टर जी का एक शिष्य मोहन शहर में काम करता था।
मास्टर जी की बदौलत ही वह एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले पाया था और साथ ही साथ अपने घर के खर्च के लिए पार्ट टाइम काम भी करता था।
उसने एक छोटा सा घर खरीद रखा था। मास्टर जी जब शहर गए, तब किस्मत से मोहन उनसे टकरा गया और वह मास्टर जी और उनके परिवार को अपने साथ अपने कमरे पर ले गया।
मोहन एक आम सी शक्ल-सूरत का लड़का था। वह बड़ा ही मेहनती और ईमानदार था; वह पढ़ाई में भी बेहद तेज था।
मास्टर जी उससे काफी प्रभावित थे।
मोहन ने संगीता को नहीं देखा था, क्योंकि वह हमेशा अपना चेहरा छुपाकर रखती थी।
मास्टर जी ने उसे सख्त हिदायत दे रखी थी कि किसी को भी अपना चेहरा नहीं दिखाना है।
मास्टर जी ने मोहन से संगीता की शादी और उसके गुणों की बात छुपा ली थी।
और अपनी बेटी की पढ़ाई का हवाला देते हुए मोहन से कहा,
"मोहन बेटा, तुम तो जानते हो गाँव में बड़े स्कूल नहीं हैं, और मेरी बेटी संगीता को पढ़ने का बेहद शौक है। इसीलिए मैं इसे लेकर शहर चला आया हूँ।"
"इसकी पढ़ाई के लिए शहर के तौर-तरीके हम लोग ज़्यादा नहीं जानते हैं,"
"इसलिए हम तुमसे सहयता चाहते हैं। तुम संगीता को कॉलेज में दाखिला दिला दो, और साथ ही साथ कोई छोटा सा घर भी हमें रहने के लिए दिला दो बेटा। तुम्हारी बहुत मेहरबानी होगी।"
"मास्टर जी, आप कैसी बातें कर रहे हैं?"
"मास्टर जी, आपने ही तो मुझे आज इस काबिल बनाया है। आपके काफी एहसान हैं मुझ पर। मैं हर तरह से आपकी सहयता करूँगा, और संगीता का दाखिला भी अपने ही कॉलेज में करवा दूँगा। मेरा कॉलेज शहर का सबसे बड़ा कॉलेज है।"
मास्टर जी के पास जो जमा पूँजी थी, वह सब अपने साथ ले आए थे और उन्होंने मोहन की मदद से एक छोटा सा घर खरीद लिया था।
और संगीता का एडमिशन भी शहर के बड़े कॉलेज में करा दिया।
दोस्तों, मुझे आप लोगों का सपोर्ट चाहिए। तो प्लीज़, प्लीज़, प्लीज़ ज़्यादा से ज़्यादा कहानी को शेयर करें और लाइक करें। और अपने अच्छे-अच्छे से बढ़िया कमेंट करें। और प्लीज़ अपना कीमती रिव्यू देना बिल्कुल ना भूलें।
मोहन ने शहर के सबसे बड़े कॉलेज में संगीता का एडमिशन कर दिया था।
मास्टर जी मोहन का जितना शुक्रिया अदा कर रहे थे, वह कम था।
तब मास्टर जी ने मोहन से एक और विनती करते हुए कहा, "मैं संगीता का कॉलेज देखना चाहता हूँ।"
मोहन ने उनसे कहा, "मास्टर जी, आपको जाने की कोई ज़रूरत नहीं है। यह शहर का सबसे बड़ा, बहुत ही अच्छा कॉलेज है।"
लेकिन फिर भी मास्टर जी वहाँ जाकर एक बार कॉलेज के प्रिंसिपल से मिलना चाहते थे। मोहन समझ गया था कि मास्टर जी नहीं मानने वाले हैं।
इसलिए मोहन ने उनकी मुलाक़ात वहाँ के प्रिंसिपल से फिक्स कर दी थी।
और अगले दिन,
मास्टर जी कॉलेज गए और सीधा प्रिंसिपल के केबिन में गए। उन्होंने देखा कि प्रिंसिपल की उम्र ज़्यादा नहीं थी; वह छब्बीस-सत्ताईस साल का नवयुवक था। जिम्मेदारी का भाव जिसके चेहरे से साफ़ झलक रहा था। मास्टर जी को प्रिंसिपल का चेहरा जाना-पहचाना सा लगा।
दूसरी ओर, प्रिंसिपल भी मास्टर जी को देखकर कुछ ऐसी ही कश्मकश में थे।
तब मास्टर जी ने उनसे पूछ ही लिया, "मुझे ऐसा लगता है मैंने आपको कहीं देखा है।"
दूसरी ओर, हाँ में सर हिलाते हुए प्रिंसिपल जी ने भी यही बात बोली।
तब मास्टर जी ने कहा, "कहीं आप राधा के बेटे मनोहर तो नहीं हैं?"
तब भागकर प्रिंसिपल जी मास्टर जी के पास आए और उनके चरण स्पर्श किए और बोला, "हाँ हाँ मास्टर जी! मैं मनोहर ही हूँ।"
"ओहो! बहुत लंबा समय बीत गया। आपको देखकर बेहद खुशी हुई मास्टर जी। आप खड़े क्यों हैं? प्लीज़ बैठिए ना।"
मनोहर फूला नहीं समा रहे थे। वह मास्टर जी को देखकर बेहद खुश हो गए थे।
मनोहर के पिता के मरने के बाद राधा ने बहुत मुश्किलों का सामना करके मनोहर को पाला था, और इसमें मास्टर जी ने उनकी बेहद मदद की थी। मास्टर जी के मुफ्त शिक्षा पाने वाले बच्चों में से मनोहर भी एक था। उसके बाद शहर आकर दिन-रात कड़ी मेहनत करते हुए वह आज शहर के बड़े कॉलेज का प्रिंसिपल बन गया था। सब कुछ मास्टर जी की आँखों के सामने उभर आया था। दूसरी ओर, मनोहर को भी मास्टर जी के अपने ऊपर किए गए एहसान सब याद आ गए थे।
मास्टर जी अपने शिष्य को देखकर बहुत खुश हुए थे।
"मनोहर, मास्टर जी आप यहाँ! मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था आपसे ऐसे भेंट होगी। कैसे हैं आप? और गाँव में सब कैसे हैं?"
गाँव का नाम सुनते ही मास्टर जी की आँखें नम हो गईं थीं, जिसे मनोहर ने देख लिया था। और वह चिंता करते हुए मास्टर जी के पास पहुँचा और उनके हाथों को अपने हाथों में लेता हुआ बोला, "क्या बात है मास्टर जी? आप परेशान लग रहे हैं।"
किसी को ऐसे विनर्म भाव से पूछता देख मास्टर जी के सब्र का बाँध टूट गया और वह मनोहर का हाथ पकड़कर फफक-फफक कर रो पड़े।
मनोहर उनकी ऐसी हालत देखकर घबरा गया और बार-बार उनसे उनकी परेशानी पूछने लगा।
तब मास्टर जी ने अपनी सारी आपबीती मनोहर को बता दी।
मनोहर सब कुछ जानकर काफ़ी गंभीर हो गया, पर वह संगीता की जादुई आवाज़ की कहानी पर यकीन नहीं कर पाया। पर मास्टर जी ने कभी झूठ नहीं बोला था, वह यह भी जानता था।
इसलिए मनोहर जी ने मास्टर जी को आश्वासन दिया और बोला, "आप किसी भी तरह की कोई फ़िक्र मत कीजिए। मैं हूँ यहाँ। मैं आपकी और संगीता की पहचान छुपाकर रखूँगा, और संगीता के एडमिशन, पढ़ाई, रहने, खाने आदि सब चीज़ की ज़िम्मेदारी मेरी है। और संगीता अब कॉलेज हॉस्टल में रहेगी। आप चाहो तो आप गाँव वापस जा सकते हो। यहाँ संगीता का बाल भी बाँका नहीं होगा। मैं पूरी तरह से उसकी देखभाल करूँगा। मैं जानता हूँ आपने अपनी सारी ज़िंदगी गाँव में गुज़ारी है। आप यहाँ एक पल नहीं रह पाओगे। शहर की आबोहवा आपको रास नहीं आएगी।"
"मास्टर जी, लेकिन बेटा मैं कैसे अपनी बेटी को अकेला इतने बड़े शहर में छोड़कर जा सकता हूँ? वह ज़मींदार और उसका बेटा उसे हर जगह ढूँढ रहे हैं।"
मनोहर बीच में ही बोला, "मैंने ना कहा मास्टर जी, मैं हूँ यहाँ। मैं हर तरह से उसका ध्यान रखूँगा। आपको मुझ पर तो यकीन है ना? आपके कितने एहसान हैं मुझ पर। मुझे आज आपके लिए कुछ करने का मौक़ा मिला है। प्लीज़ यह मौक़ा मुझसे मत छीनिए। प्लीज़।"
मास्टर जी अब शहर में एक छोटा सा घर ले चुके थे। यह बात उन्होंने मनोहर को बता दी थी।
तब मनोहर ने उनको हर चीज़ से बेफ़िक्र रहने को बोल दिया और एक कॉल करके घर साथ ही साथ संगीता के नाम करवा दिया और गुरु-दक्षिणा के रूप में मास्टर जी को अच्छी-खासी रकम देनी चाही।
लेकिन मास्टर जी ने मना कर दिया, बस बदले में अपनी बेटी का ध्यान रखने को बोला।
उसके बाद मास्टर जी ने मोहन का धन्यवाद देकर उससे विदा ली और मोहन से बोल दिया कि वह अपनी बेटी-पत्नी को लेकर वापस गाँव जा रहे हैं।
क्योंकि मनोहर ने उनसे ऐसा कहने को बोला था ताकि संगीता को किसी भी तरह का कोई खतरा ना हो। मनोहर नहीं चाहता था कि मास्टर जी या उनकी बेटी उनके परिवार पर किसी भी तरह का कोई खतरा हो। इसीलिए उन्होंने मास्टर जी से मोहन को झूठ बोलने के लिए कह दिया था ताकि अगर कभी ओम ठाकुर मोहन तक पहुँच जाए तो मोहन उसे उतना ही बता पाए जितना उसे पता हो।
मोहन सीधा लड़का था; उसने यकीन कर लिया था।
उसके बाद मास्टर जी संगीता को हॉस्टल की ओर चल पड़े थे। मास्टर जी की आँखें रह-रह कर नम हो रही थीं। वह आज तक अपनी बेटी से अलग नहीं रहे थे, लेकिन आज मजबूरी में उन्हें अपनी बेटी से जुदा होना पड़ रहा था।
संगीता की आँखें भी भर आई थीं। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसकी ज़िंदगी अचानक से ऐसा मोड़ ले लेगी और उसकी ज़िंदगी में सब कुछ बदल जाएगा।
संगीता ने आज तक ओम को नहीं देखा था, लेकिन उनकी वजह से वह आज दर-बदर हो चुकी थी और अपने माँ-बाप से दूर उसे इस शहर में हॉस्टल में रहना पड़ रहा था। वह गाँव की सीधी-सादी, भोली-भाली लड़की थी। वह शहर में भला कैसे एडजस्ट कर पाएगी? यही सोच-सोच कर संगीता को और ज़्यादा रोना आ रहा था।
संगीता को ओम नाम से ही नफ़रत हो चुकी थी। उसने सोच लिया था कि वह ज़िंदगी में कभी भी ओम को माफ़ नहीं करेगी। आज उसकी वजह से उसके भगवान समान पिता की आँखों में आँसू थे।
जल्दी ही मास्टर जी संगीता से नम आँखों से विदा लेते हैं और संगीता को हॉस्टल रूम छोड़कर अपनी पत्नी को लेकर गाँव के लिए निकल जाते हैं।
दूसरी ओर, मास्टर जी गाँव चले जाते हैं। गाँव में उन्हें वापस आया देखकर गाँव में एक खुशी की लहर दौड़ जाती है। और जल्द ही यह खबर ज़मींदार और ओम ठाकुर को भी मिल जाती है।
और वह लोग मास्टर जी के घर रात को ही आ धमकते हैं। संगीता को ना पाकर वह लोग मास्टर जी से उसके बारे में पूछताछ करते हैं, लेकिन वह कुछ भी बताने को साफ़ मना कर देते हैं।
तब ओम ठाकुर की जानदार हँसी वहाँ गूंजती है। सभी चौंक जाते हैं। ओम ठाकुर शैतानी हँसी के साथ रौबदार आवाज़ में बोलता है, "मास्टर जी, आपको क्या लगता है आप अपनी बेटी को मुझसे छुपा लेंगे? तो यह आपकी गलतफ़हमी है। आपने उसे ज़मीन के जिस भी कोने में छुपाया होगा, मैं उसे हर हाल में ढूँढ निकालूँगा। और यह मेरा वादा है आपसे। बहुत जल्द आपकी बेटी मेरी पत्नी बनेगी। इनफ़ैक्ट, आज से, बल्कि अभी से ही मेरी पत्नी है वह।" ✍🏻✍🏻🤗🤗
संगीता का मनोहर के कॉलेज में एडमिशन कराकर, मास्टर जी अपनी पत्नी को लेकर गाँव लौट गए थे।
मनोहर ने मास्टर जी को संगीता की सुरक्षा का पूरा आश्वासन दे दिया था।
लेकिन अभी तक मनोहर संगीता से नहीं मिले थे; इसलिए उनका मन बार-बार संगीता से मिलने का कर रहा था।
वह देखना चाहता था कि क्या वाकई संगीता के पास कोई वरदान था। अगले ही पल मनोहर ने अपनी सोच को झटक दिया था।
क्योंकि ये जादू वगैरह में वह यकीन नहीं करते थे।
मास्टर जी की बात सुनने के बाद मनोहर जी के दिल और दिमाग में एक जंग छिड़ गई थी।
वह मनोहर जी रोज़ की तरह हॉस्टल के राउंड पर गए।
गर्ल्स हॉस्टल में भी मनोहर का एक छोटा सा ऑफिस बना हुआ था जहाँ वह गर्ल्स हॉस्टल के छोटे-मोटे काम एक-दो घंटे के लिए किया करता था।
चूँकि आज मनोहर जी हॉस्टल के राउंड पर थे,
तो उन्होंने संगीता को ऑफिस में मिलने बुलाया।
संगीता पहले तो थोड़ा हिचकिचाई, लेकिन फिर वह हिम्मत बांधकर मनोहर के ऑफिस की ओर चल पड़ी थी।
संगीता ने दरवाजे के बाहर जाकर हल्के से दरवाजा खटखटाया।
मनोहर ने अंदर से जवाब दिया, "अंदर आ जाओ।"
उसके बाद, थोड़ी डरी-सहमी सी संगीता मनोहर के केबिन में चली गई थी।
मनोहर ने जैसे ही संगीता को देखा,
वह देखता ही रह गया। वह बहुत ही खूबसूरत थी; उसे आसानी से कोई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता था।
उसने संगीता से बात करनी शुरू की और उसे बताया
कि उसने मास्टर जी को गाँव भेज दिया है।
उसकी सारी ज़िम्मेदारी अब मनोहर की है।
उसको किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो, तो वह उसे किसी भी समय कॉल कर सकती है।
और एक और बात, मैं आपको बता दूँ, मैंने आपको कॉलेज में संगीता नाम से नहीं, गीता नाम से एडमिशन दिया है।" मनोहर ने कहा।
इस पर संगीता चौंकी और बोली, "क्या? पर क्यों? मेरा नाम तो संगीता है, गीता नहीं।"
वह पहली बार कुछ बोली थी। उसका बोलना ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने कानों में शहद घोल दिया हो; बहुत ही प्यारी और मीठी आवाज़ थी उसकी।
मनोहर उसकी आवाज़ में कहीं खो सा गया था। मनोहर उससे और कुछ सुनना चाहता था,
लेकिन उसके सवाल पूछने पर वह उसके ऊपर खतरे की बात बता देते हैं। मनोहर संगीता से कहते हैं, "वैसे तो उसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, लेकिन फिर भी तुम्हारी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मैंने तुम्हारा नाम संगीता से गीता रख दिया है।"
और वह कहते हैं, "अगर कोई तुमसे तुम्हारा नाम पूछे, तो तुम संगीता की जगह गीता अपना नाम बताना, ओके।"
संगीता ने हाँ में सिर हिला दिया था। वह अच्छे से समझ गई थी कि मनोहर जी जो कुछ भी कर रहे थे, वह उसकी भलाई के लिए ही कर रहे थे। वह मनोहर से विदा लेकर हॉस्टल रूम चली जाती है।
संगीता ने मनोहर से बहुत ही कम बात की थी, लेकिन उसका वह थोड़ा-बहुत बोलना मनोहर को अंदर तक भा गया था। और संगीता के जाने के बाद, मनोहर कितनी देर तक उसकी बातों में खोया रहा था!
वहीं दूसरी ओर,
ओम ठाकुर मास्टर जी से बड़ी ही बदतमीज़ी के साथ उनकी बेटी संगीता का पता पूछता है
और उनसे कहता है, "ओम ठाकुर एक बार जिस चीज़ को पाना चाहता है, वह पाकर रहता है। और बिना देखे ही आपकी बेटी को मैं अपनी पत्नी मान चुका हूँ। वह आप ओम ठाकुर की अमानत है, और वह उसे किसी भी कीमत पर पाकर रहेगा, समझे आप?"
"मैं अभी के लिए तो जा रहा हूँ मास्टर जी, पर मैं बहुत जल्द वापस आऊँगा; यह वचन है मेरा आपसे। चलता हूँ।"
ऐसा कहकर ओम ठाकुर वहाँ से चला जाता है, लेकिन उसकी इस बात से मास्टर जी बहुत ही ज़्यादा डर जाते हैं।
मास्टर जी सोचने लगते हैं, "यह शैतान मेरी बेटी को इतनी आसानी से जाने नहीं देगा। मुझे कुछ करना होगा। मैं अपनी बेटी को शैतान के हाथों में कभी भी नहीं जाने दूँगा, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े।" और फिर मास्टर जी घबराहट में मनोहर को फ़ोन लगा देते हैं,
और ओम की कही हुई सारी बात मनोहर को बता देते हैं। मनोहर कुछ सोचते हुए कहता है, "मास्टर जी, आप फ़ोन मत कीजिए। अगर कभी कोई बात होगी, तो मैं खुद आपको कॉल कर लूँगा। हो सकता है आपकी बेटी के बारे में जानने के लिए कोई फ़ोन टैप कर रहा हो।" ऐसा सुनकर मास्टर जी फ़ोन काट देते हैं।
मनोहर की बात सच साबित हो चुकी थी; मास्टर जी का फ़ोन टैप किया जा रहा था। ओम ठाकुर ने मनोहर और मास्टर जी की एक-एक बात सुन ली थी।
ओम ने मास्टर जी के लास्ट नंबर की डिटेल निकालने के लिए गौरव को दे देता है और कहता है, "किसी भी तरह की कोई भी गलती नहीं होनी चाहिए। मुझे इस नंबर के पीछे जिस शख्स का चेहरा है, उसका नाम, पता, पूरी डिटेल्स 24 घंटे के अंदर-अंदर मेरे सामने चाहिए।"
गौरव ने हाँ सर हिला दिया था, और वह जल्दी ही साइबर कैफ़े उस नंबर की डिटेल्स निकलवाने के लिए पहुँच चुका था। गौरव जानता था कि कोई इतनी आसानी से इस नंबर की डिटेल्स नहीं देगा, लेकिन पैसे और ओम ठाकुर के नाम में बहुत दम था,
तो इसीलिए गौरव ने मनोहर की पूरी डिटेल निकलवा ली थी।
मनोहर की डिटेल्स देखने के बाद गौरव कुछ देर सोचने लगता है, और फिर उसे ओम का उसके साथ किया गया बुरा बर्ताव याद आता है, और गौरव का मन अचानक से ही ओम की ओर से नफ़रत से भर जाता है।
गौरव मनोहर के एड्रेस में कुछ गड़बड़ कर देता है, और इतना ही नहीं, वह उसकी जगह, रहने का स्थान, सब कुछ बदल देता है। न जाने क्यों, वह अब नहीं चाहता था कि ओम ठाकुर संगीता तक पहुँचे,
क्योंकि पहले भी उन लोगों के सामने 17-18 लड़कियों का खून हो चुका था। वह अब नहीं चाहता था कि किसी और मासूम की जान जाए, क्योंकि ओम ठाकुर कोई एक इंसान नहीं था; वह एक दरिंदा था।
गौरव एक झूठा एड्रेस ओम ठाकुर के हाथ में थमा देता है, लेकिन ओम ठाकुर भी कुछ कम नहीं था। वह समझ गया था कि यह एड्रेस सही नहीं है,
क्योंकि जिस साइबर कैफ़े वाले ने गौरव को जो एड्रेस दिया था, वह ओम ठाकुर को बहुत अच्छी तरह से जानता था, क्योंकि उसका बाप ओम की हवेली में ही चौकीदारी का काम किया करता था। तो उसने साइबर कैफ़े वाले ने ओम को पहले ही मनोहर का पूरा एड्रेस दे दिया था।
जैसे ही ओम ने गौरव का दिया हुआ एड्रेस पढ़ा, ओम के चेहरे पर कितने ही भाव आकर रह गए थे, और वह खा जाने वाली नज़रों से गौरव की ओर देखने लगा था। अचानक से उनकी आँखों का रंग गहरा नीला होने लगा था।
गौरव समझ चुका था कि उसका झूठ पकड़ा गया है। इसीलिए उसने ना आव देखा ना ताव, और वह तुरंत ओम ठाकुर के पैरों में गिर पड़ा और उससे माफ़ी माँगने लगा था,
और बोला था, "तुम मेरा दोस्त हो; मैं यह नहीं चाहता था कि तेरे हाथों से एक और लड़की का खून हो। मैं नहीं चाहता था कि तू किसी और लड़की की जान ले; इसीलिए मैंने तुझे गलत पता दिया।" गौरव की बात सुनकर ओम थोड़ा-थोड़ा गुस्से से बाहर आया था,
और वह गौरव के कॉलर को पकड़कर बोला था, "तुझे कितनी बार कहा है मेरे मैटर से दूर रहा कर! अगर आज मेरा मूड ठीक नहीं होता, तो आज मैं तुझे कच्चा चबा जाता, समझा तू?"
ऐसा कहकर वह गौरव को एक साइड धक्का देकर मनोहर का सही वाला एड्रेस लेकर शहर की ओर रवाना हो जाता है।
दूसरी ओर, संगीता का आज कॉलेज का पहला दिन था।
उसको सब कुछ काफ़ी अजनबी सा लग रहा था। वह सहमी-सहमी सी कॉलेज आई थी।
तभी एक रैगिंग लड़के-लड़कियों का ग्रुप उसकी ओर बढ़ा।
सब उसे बहुत ध्यान से देख रहे थे। कोई उसके करीने से सँवरे बालों को देख रहा था, क्योंकि उसके बाल चोटी में गूँथे हुए थे,
जिसे देखकर सब लड़कियाँ हँस रही थीं, क्योंकि वे लोग बेहद फैशनेबल, स्मार्ट एंड खुले, स्ट्रेट बाल और न्यू टाइप की कटिंग कराए हुए थे। कुछ ने तो अपने बाल रंग-बिरंगे कलर करा रखे थे,
जहाँ संगीता को वे सब अजीब लग रहे थे, और उनको संगीता अजीब लग रही थी। तभी अपने प्रिंसिपल को वहाँ आया देख, सब के सब संगीता को बिना कुछ बोले क्लास में चले जाते हैं।
और मनोहर संगीता के पास आकर उसको क्लास में ले जाते हैं और वहाँ जाकर उसको इंट्रोडक्शन कराते हुए कहते हैं,
"हेलो स्टूडेंट्स! इनसे मिलिए; ये हैं गीता। इन्होंने आज ही कॉलेज ज्वाइन किया है।
मैं चाहता हूँ आप लोग इनसे दोस्ती करें और इनका सिलेबस कंप्लीट कराने में मदद करें।"
मनोहर की बात सुनकर सभी स्टूडेंट्स एक-दूसरे को देखकर हँसने लगे, और आँखों ही आँखों में कुछ बात करते हैं।
संगीता रीमा के साथ बैठ जाती है।
रीमा एक सीधी-सादी लड़की थी। उसे संगीता काफ़ी पसंद आई थी। दोनों में अच्छी जान-पहचान हो गई थी। आज पहले दिन उसे कुछ ज़्यादा समझ नहीं आया था।
तभी क्लास का एक शरारती लड़का, अजय, संगीता के पास आया और उससे बोला, "हाय मिस गीता! यू आर सो ब्यूटीफुल!" उसने कुछ ऐसे मज़ाकिया अंदाज़ में कहा कि सब के सब संगीता पर हँसने लगे थे।
संगीता के कॉलेज का पहला दिन था। सभी लड़कियां उसे अजीब नजरों से देख रही थीं क्योंकि संगीता बहुत ही सिंपल सी थी और सादे कपड़ों में कॉलेज गई थी। उसने अपने बालों को चोटी में गूंथा हुआ था।
तभी, क्लास का एक शरारती लड़का, अजय, संगीता को तंग करने के चक्कर में उसके पास आया और बोला, "हाय मिस गीता! यू आर सो ब्यूटीफुल!" उसने यह कुछ ऐसे मजाकिया अंदाज में कहा कि सब संगीता पर हँसने लगे।
तभी रीमा बोली, "ओह अजय! प्लीज, तुम यहाँ से जाओ। क्यों परेशान कर रहे हो इस बिचारी को? अगर तुम यहाँ से नहीं गए, तो मैं सीधा प्रिंसिपल सर से तुम्हारी कंप्लेंट कर दूँगी।"
रीमा ने गुस्से से यह कहा।
जैसे ही अजय ने प्रिंसिपल का नाम सुना, वह डर गया और खिसिया कर वहाँ से चला गया।
दूसरी ओर, ओम ठाकुर मनोहर की तलाश में शहर आ पहुँचा था। ओम अपने दोस्तों, गौरव, रोनित और मयंक को भी साथ लेकर आया था। वह जानता था कि इन तीनों का साथ उसके लिए बहुत काम आ सकता है।
शहर आते ही उसने अपने दोस्तों को काम पर लगा दिया। मोहन का पता, उसकी पूरी जानकारी, कहाँ जाता है, सब कुछ निकालने की जिम्मेदारी गौरव, मयंक और रोहित को दे दी थी। वह खुद एक बड़े से फाइव स्टार होटल में आराम करने चला गया।
ओम के जाने के बाद, मयंक रोनित से बोला, "यार, यह सब क्या है? हर बार यह हमारी साथ ऐसे ही करता है। कहने को तो हमें अपना दोस्त मानता है, और जबरदस्ती इसने हमसे दोस्ती कर रखी है। और ना तो हम इसकी दोस्ती से अपना पीछा छुड़ा सकते हैं, और ना ही उसे छोड़कर जा सकते हैं। और आज देखा तुमने, खुद साहब जी एक बड़े से फाइव स्टार होटल में आराम करने गए हैं, और हमें काम पर लगा गए। यह भी नहीं सोचा कि हम भी तो उसके साथ गाँव से शहर आए हैं, हमें भी भूख लगी होगी, हमें भी आराम की जरूरत है।"
तब रोनित बोला, "श...श...श...चुप कर! तू अच्छे से जानता है कि वह हमारे पास रहे या ना रहे, लेकिन हम क्या कर रहे हैं, क्या बोल रहे हैं, क्या सोच रहे हैं, इसकी उसे पल-पल की खबर रहती है। तो कुछ भी बोलने से पहले सोच समझकर मुँह खोला कर। समझा तू?"
अभी वे लोग बात ही कर रहे थे कि एक बड़ी सी वैन उनके सामने आकर रुकी। उसमें से तीन आदमी, हाथों में खाने के बॉक्स लिए, खड़े हुए थे। तब एक-एक करके उन तीनों ने रोहित, गौरव और मयंक को वे बॉक्स दे दिए।
मयंक बोला, "मयंक! कौन हो तुम लोग? और इन बॉक्स में क्या है?" तब उन गाड़ी से आए हुए तीन आदमियों में से एक ने कहा, "जी, वह एक्चुअली आपके दोस्त, मिस्टर ओम ठाकुर ने आप लोगों के लिए खाना भेजा है। और कहा है कि आप इस वैन में कुछ देर के लिए आराम कर लें और खाना खा लें। उसके बाद आप अपना काम करें।"
जैसे ही ओम के तीनों दोस्तों ने यह सुना, उनकी आँखें हैरत से फटी रह गईं। फिर वे तीनों अंदर गए। उन्होंने वैन के अंदर देखा कि उन तीनों के नाम के कपड़े भी वहाँ रखे हुए थे।
बहुत ही अच्छा सा सेटअप था उस वैन का; किसी फाइव स्टार होटल से कम नहीं था।
जल्दी ही उन्होंने कपड़े बदले, खाना खाया और फिर आराम से रिलैक्स करने लगे।
तब रोनित बोला, "तूने देखा? यह है हमारा ओम ठाकुर! यार, मैं मानता हूँ, वह थोड़ा जिद्दी है, गुस्से वाला है, लेकिन वह हमसे प्यार भी बहुत करता है। तुझे पता है ना, बचपन से लेकर आज तक उसने हमारे लिए क्या कुछ नहीं किया है? और बदले में सिर्फ हमसे एक सच्ची दोस्ती तो माँगता है। तो अगर हम उसे वह भी नहीं दे पाएँगे, तो फिर हम दोस्त किस काम के?"
"अब जल्दी से ओम के दिए हुए काम पर जुट जाते हैं और पता लगाते हैं इस नंबर के पीछे के चेहरे को।"
जल्दी ही वे तीनों दोस्त उस नंबर की डिटेल पता करने के लिए उस नंबर की कंपनी में पहुँच गए और पैसे देकर उस नंबर की पूरी डिटेल निकलवा ली।
मनोहर जी का वह नंबर मनोहर जी के नाम पर रजिस्टर नहीं था; वहाँ के वॉचमैन के नाम पर रजिस्टर्ड था। दरअसल, मनोहर जी शुरू से ही बड़े दरियादिल किस्म के आदमी थे। उन्होंने वह फ़ोन अपने कॉलेज के वॉचमैन को दिया था।
लेकिन वह वॉचमैन कुछ ही दिन उस फ़ोन को चला पाया था। उसके बाद उसने हाथ खड़े कर दिए थे और बोला था, "बाबूजी, हम गाँव के अनपढ़ आदमी हैं। इतना महँगा फ़ोन हम नहीं चला सकते। इसे आप ही संभालिए। इसे लेकर हमें ऐसा लगता है कि हमने कोई बला अपने सर पर बाँध ली हो।"
मनोहर जी उनकी बात सुनकर मुस्कुरा दिए थे और उन्होंने वह फ़ोन अपने ऑफिस में रख लिया था, जिससे मनोहर जी कभी-कभार कॉल करने के लिए इस्तेमाल करते थे। इस तरह से उसके दोस्तों को वॉचमैन की डिटेल्स मिल गई थीं।
जल्दी ही उसके तीनों दोस्तों ने उस नंबर की पूरी डिटेल्स और काम करने वाले वॉचमैन की पूरी जानकारी निकालकर ओम को दे दी।
ओम को जैसे ही कॉलेज का एड्रेस मिला, उसे समझ में नहीं आया कि वह क्या करे, क्योंकि स्टूडेंट बनकर वह नहीं जा सकता था।
वह चाहता तो संगीता को एक ही बार में उठाकर ले जा सकता था, लेकिन उसने उसे देखा भी नहीं था।
वह नहीं जानता था संगीता कौन है और वह कैसी दिखती है; उसकी आवाज़ ही उसकी पहचान थी।
जब तक उसे संगीता नहीं मिल जाती, तब तक उसे किसी न किसी तरह से सब से छिपकर रहना था और गुप्त रूप से संगीता का पता लगाना था।
इसलिए उसने कॉलेज में प्रोफ़ेसर बनने का फैसला कर लिया था और उसने उसी कॉलेज में प्रोफ़ेसर की जॉब के लिए अप्लाई कर दिया था।
मनोहर जी के सामने जैसे ही ओम ठाकुर की फ़ाइल आई, तो वह कुछ सोच में पड़ गए और सोचने लगे कि इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के बाद यह एक मामूली से कॉलेज में जॉब क्यों करना चाहता है।
खैर, उन्होंने ज़्यादा न सोचते हुए उस एप्लीकेशन को मंज़ूर कर लिया था।
ओम से संगीता को कुछ खतरा हो सकता है, इस का ख्याल तो उनके दिमाग में दूर-दूर तक कहीं नहीं था।
सो, जैसा कि ओम ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की थी, उसकी डिग्री के बल पर उसे आसानी से कॉलेज में जॉब मिल गई थी।
संगीता का आज काफी लड़कियों ने मज़ाक उड़ाया था; साथ ही कुछ शरारती लड़कों ने उसके साथ फ़्लर्ट करने की कोशिश की थी। ये सब चीज़ें संगीता को बेहद मायूस कर गई थीं।
संगीता का बच्चों जैसा दिल था, और वह आज अपने आप को बहुत टूटा हुआ महसूस करने लगी थी। शहर की लड़कियों के लिए रैगिंग आम बात थी, लेकिन संगीता एक प्योर सोल (pure soul) थी, जिसने कभी ऐसी दुनिया देखी ही नहीं थी। उसे नहीं पता था कि बाहर यह सब भी हो सकता है।
कॉलेज खत्म होने के बाद वह सीधा अपने हॉस्टल रूम में चली गई।
संगीता अपने कमरे में जाते ही अपने बिस्तर पर औंधे मुँह लेट गई। संगीता को बहुत जोरों से भूख लगी थी क्योंकि उसने खाना नहीं खाया था।
उसे अपने गाँव और माता-पिता की याद आ रही थी। वह कभी उन लोगों से दूर नहीं रही थी। संगीता को अपनी माँ की बहुत याद आ रही थी। आज तक अपनी माँ के बगैर उसने एक निवाला नहीं तोड़ा था।
क्योंकि उसकी माँ हमेशा उसे बड़े प्यार से खाना खिलाया करती थी। संगीता सोच रही थी कि उसे इस तरह सबसे दूर रहना होगा, जबकि उसे पूरा गाँव कितना प्यार करता था।
संगीता बोली जा रही थी, "मुझे वापस जाना है। मुझे अपने माँ-बाबूजी के पास वापस जाना है। मुझे उन सब की बहुत याद आ रही है। मैं यहाँ नहीं रहना चाहती हूँ।"
यहाँ सब कुछ उल्टा-पुल्टा सा था। यहाँ हर कोई मेरा मज़ाक उड़ा रहा था।
वह बेहद दुखी थी, और बार-बार सबको याद करके उसकी आँखें भर रही थीं। वह कुछ और सोच ही रही थी कि तभी उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई।
संगीता उठकर दरवाज़ा नहीं खोलना चाहती थी, लेकिन मजबूरन उसे उठना पड़ा।
जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, तो उसने रीमा को प्रिंसिपल के साथ देखकर वह चौंक गई।
और उन दोनों की ओर देखते हुए बोली, "आप दोनों यहाँ क्या कर रहे हैं?"
तब मनोहर जी संगीता की ओर बड़े ध्यान से देखने लगे। उन्होंने देखा संगीता की नाक और आँखें एकदम लाल थीं।
मनोहर जी समझ गए थे कि संगीता अपने गाँव को याद करके रो रही होगी। तब मनोहर जी बोले,
"गीता, ये रीमा है, तुम्हारी क्लासमेट। इसे तो जानती हो न तुम?"
"जी सर, मैं जानती हूँ। ये मेरी दोस्त बन गई हैं।"
तब मनोहर जी बोले, "ओह, that's great! सो तुम्हें ये जानकर खुशी होगी कि रीमा आज से तुम्हारी रूममेट भी होगी।"
ये सुनकर संगीता को थोड़ा रिलैक्स मिला, और उसने मनोहर को धन्यवाद दिया।
मनोहर जी रीमा को संगीता के कमरे में छोड़कर वापस चले गए।
सब रीमा से संगीता के बारे में पूछने लगी। "क्या बात है गीता? क्या तुम प्रिंसिपल साहब को जानती हो? क्योंकि मैंने आज तक उन्हें किसी के लिए इतना परेशान करते हुए कभी नहीं देखा है।"
रीमा की बात सुनकर गीता सोच में पड़ गई, और फिर बहुत संभलकर उसने जवाब दिया, "नहीं-नहीं रीमा, ऐसी कोई बात नहीं है। वह क्या है ना, मेरे पापा प्रिंसिपल साहब को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं।"
"और उन्होंने मेरा ख़ास ख़्याल रखने के लिए कहा है, क्योंकि मैं आज तक अपने परिवार से दूर नहीं रही हूँ। शायद इसीलिए सर ने तुम्हें मेरे कमरे में शिफ्ट करवा दिया है।"
संगीता की बात सुनकर रीमा ने सिर हिलाया और बोली, "हाँ, हो सकता है तुम ठीक कह रही हो। और वैसे भी सर काफ़ी हेल्पफुल किस्म के आदमी हैं।"
उसके बाद रीमा गीता को खाना खिलाने ले गई।
मनोहर ने रीमा को ख़ास इंस्ट्रक्शन दिए थे कि वह गीता को लोगों के कमेंट्स फ़ेस करना सिखाए।
रीमा मनोहर के एक जिगरी दोस्त की बहन थी, और मनोहर रीमा को बचपन से जानता था।
इसीलिए संगीता की ज़िम्मेदारी मनोहर ने रीमा को सौंपी थी। एक बार तो रीमा को मनोहर पर संगीता की इतनी फ़िक्र करते हुए देखकर कुछ शक हुआ।
लेकिन फिर, वह काफ़ी सालों से मनोहर को जानती थी। वह अच्छी तरह से जानती थी कि मनोहर एक बहुत ही हेल्पफुल किस्म का आदमी था, जो हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहता था। यही सोचकर वह गीता की मदद करने के लिए तैयार हो गई थी।
मनोहर ने रीमा को साफ़-साफ़ कह दिया था, "गीता के परिवार वालों ने उसे काफ़ी भरोसा करके यहाँ छोड़ा है, तो तुम प्लीज़ उसका अच्छी तरह से ध्यान रखोगी और उसे शहर के तौर-तरीक़ों में ढलना सिखाओगी।"
रीमा को प्रिंसिपल की एक-एक बात याद आ रही थी। गीता को अच्छी तरह से भरपेट खाना खिलाने के बाद, रीमा गीता को थोड़ा गाइड करते हुए कहती है,
"गीता, देखो मैं जानती हूँ तुम एक गाँव से आई हो, लेकिन आज तुम्हें मुझसे प्रॉमिस करना होगा कि तुम एक गाँव से हो, ये बात किसी से नहीं बताओगी। ओके?"
"और हाँ, एक और बात, तुम्हें किसी से ज़्यादा कुछ बात नहीं करनी है। और तुम्हें कुछ भी समस्या हो तो तुम मुझे बताओगी। और हाँ, तुम्हें अगर कोई कुछ बोले, तुम्हें उसे जवाब देना सीखना होगा। कोई तुम्हें तभी तक सुनाएगा जब तक तुम सुनोगी। जब तुम सुनाना शुरू कर दोगी, तब शायद तुम्हें कोई कभी कुछ ना कह पाए। समझी?"
"तुम्हें हालात से लड़ना सीखना होगा। ओके?"
"और हाँ, कल हमारा फ़र्स्ट संडे है और कल हमारा कॉलेज ऑफ़ है, तो हम कल शॉपिंग करने चलेंगे और तुम्हारे लिए कुछ अच्छे कपड़े खरीदेंगे।"
संगीता को रीमा की बात अच्छे से समझ आ गई।
और अब उसने निर्णय कर लिया था। वह मुश्किलों से घबराएगी नहीं, वह उनका सामना करेगी।
उसे अब कल का इंतज़ार था। वह शॉपिंग को लेकर काफ़ी उत्साहित थी, क्योंकि आज तक वह कभी शॉपिंग करने नहीं गई थी। हमेशा उसकी माँ उसके लिए कपड़े ला दिया करती थी, और वह बिना सवाल-जवाब के वह कपड़े पहन लिया करती थी।
और आज क्योंकि उसे खुद कपड़े खरीदने जाना है, तो उसके लिए यह एक नया अनुभव होने वाला था।
अगली सुबह वह नहा-धोकर तैयार हो गई थी। उसने रीमा को उठाया और जल्दी तैयार होने को कहा।
रीमा बेमन से उठते हुए बोली, "अरे वाह! तुम इतनी जल्दी तैयार भी हो गई? अरे मैडम, अभी तो पूरा दिन है हमारे पास!"
"नहीं, मुझे नहीं पता। मुझे जल्दी जाना है।" रीमा ने उसकी उत्सुकता साफ़ महसूस की थी।
रीमा भी उठ गई और तैयार हो गई। वे दोनों तैयार होकर बाहर रोड पर आ गईं। वे रिक्शा के लिए आवाज़ दे ही रही थीं कि तभी एक ब्लैक कलर की कार उनके पास आकर रुकी। तभी मनोहर जी उसमें से बाहर आए और बोले, "आप लोग कहीं जा रही हैं?"
तब रीमा ने कहा, "सर, हम शॉपिंग करने मॉल जा रहे हैं।" "ओह, अच्छा! तो आप लोग एक काम कीजिए, मेरे साथ चलिए। मैं भी उसी साइड जा रहा हूँ।"
वे दोनों अचरज से एक-दूसरे की ओर देखने लगीं।
तभी गीता ने कहा, "नहीं सर, हम चल जाएँगे। आप क्यों तकलीफ़ करते हैं?"
"नहीं-नहीं, तकलीफ़ की कोई बात नहीं है। आइए।" ऐसा कहकर उन्होंने गाड़ी का दरवाज़ा खोल दिया। फिर वे दोनों थोड़ी देर बाद बैठ गईं।
रीमा आगे बैठी थी, जबकि गीता पीछे बैठी थी।
मनोहर गीता की आवाज़ सुनना चाहता था, इसीलिए उसने यूँ ही बातें शुरू कर दीं। "हाँ, तो आज शॉपिंग का प्रोग्राम है आप दोनों का। तो मिस गीता, क्या-क्या खरीदेंगी आप आज?"
अचानक पूछे गए सवाल से गीता घबरा गई और थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली, "जी सर, हम कुछ कपड़े खरीदने जा रहे हैं।"
तब मनोहर बोले, "ओह, अच्छा! वेरी गुड!" इतने में जहाँ उन्हें जाना था, वह जगह आ गई थी।
वे दोनों मनोहर का धन्यवाद करके आगे बढ़ने लगीं, तभी मनोहर ने उन्हें रोकते हुए कहा, "अगर आप लोगों को बुरा ना लगे तो क्या मैं भी आप दोनों को ज्वाइन कर सकता हूँ?" सर के इस ऑफ़र पर दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
और रीमा बोली, "हाँ सर, आ जाइए। हमें कोई परेशानी नहीं है।" रीमा की बात सुनकर मनोहर मुस्कुरा दिया और संगीता पर एक गहरी नज़र डालता हुआ मनोहर भी उनके साथ चल दिया।
रीमा के थोड़े आगे जाने पर तभी मनोहर ने कुछ पैसे गीता की ओर बढ़ा दिए, लेकिन गीता ने लेने से इनकार कर दिया।
उसने कहा कि उसके पास पैसे हैं, उसके पिताजी उसे देकर गए हैं।
मनोहर ने कहा, "ये भी उसके पिताजी के ही पैसे हैं, तो वह ले सकती है। उसके पिताजी ने उसे देकर गए हैं। तुम आज कुछ खरीदोगी तो तुम्हारे काम आएंगे।"
उनके ज़िद करने पर वह पैसे ले लेती है।
गीता ने जैसे ही मॉल में एंट्री की, तो वह पलकें झपकना ही भूल गई।
अलग-अलग चीज़ों की दुकानें, वह भी खूबसूरती से सजी हुईं! उसने तो कभी अपने गाँव में छोटा-मोटा बाज़ार भी नहीं देखा था, लेकिन यहाँ सब कुछ काफ़ी बड़ा और सुंदर था।
संगीता पूरे मॉल की खूबसूरती को निहार रही थी। उसे सब कुछ बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत लग रहा था, ख़ासकर चलती-रुकती हुई सीढ़ियाँ। उसे देखकर संगीता चहक उठी थी। उसने कभी नहीं सोचा था कि वह अपनी पूरी ज़िंदगी में यह सब कुछ देख पाएगी।
तभी रीमा उसे कपड़ों के सेक्शन में ले गई, और उसके लिए उसने सात-आठ खूबसूरत कुर्ते ले लिए, और उन्हें ट्राई करने के लिए उसने उसे चेंजिंग रूम में भेज दिया।
संगीता को अंदाज़ा नहीं था कि लड़कियों का चेंजिंग रूम कहाँ है, क्योंकि उसके लिए तो सब कुछ वहाँ पर नया था। वह पहली बार ऐसी जगह पर आई थी।
इसीलिए संगीता गलती से लड़कों के चेंजिंग रूम में चली गई। वहाँ पर एक लड़का खाली पैंट पहने था और वह शर्ट ट्राई कर रहा था। अचानक से एक लड़की को अपने सामने देखकर वह घबरा गया।
दोस्तों, प्लीज़ आप सब ज़्यादा से ज़्यादा नॉवेल को प्यार कीजिए और अपना सपोर्ट दीजिए, क्योंकि मैं आप लोगों के साथ जुड़ना चाहती हूँ। अगर आपको कहीं भी कुछ भी मिस्टेक लगे, कुछ भी गड़बड़ लगे, कुछ भी आप कहानी में चेंज करना चाहते हो, तो प्लीज़ ज़रूर मुझे शेयर करें।
मैं बिल्कुल आपके रिव्यू पर, आपके कमेंट पर, आपके सजेशन पर ध्यान दूँगी। सो प्लीज़-प्लीज़-प्लीज़ आप सब अपना कीमती रिव्यू देना बिल्कुल ना भूलें। धन्यवाद। टेक केयर टू यू ऑल। लव यू!
रीमा ने संगीता को कुछ कुर्ते ट्राई करने के लिए दिए थे। लेकिन संगीता को जेंट्स और लेडीज चेंजिंग रूम में फर्क नहीं पता था। वह गलती से एक जेंट्स चेंजिंग रूम में घुस गई थी। वहाँ उसने देखा कि एक लड़के ने केवल पैंट पहनी हुई थी और वह उसके ऊपर शर्ट ट्राई कर रहा था। जैसे ही उस लड़के ने संगीता को देखा, और संगीता ने उस लड़के को देखा, तो वह कपड़े बदलने की जगह एक लड़के को देखकर बेहद डर गई और घबरा कर चिल्ला उठी। रीमा तथा आस-पास के लोग उनकी आवाज सुनकर चेंजिंग रूम के बाहर जमा हो गए। संगीता बाहर निकली और सीधी रीमा से गले लग गई। वह लड़का भी चिल्लाता हुआ बाहर निकल आया और आते ही संगीता पर चिल्लाने लगा।
"हे लड़की! तुम्हें क्या अक्ल नहीं है? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई जेंट्स चेंजिंग रूम में आने की? क्या तुम्हारे पास दिमाग नाम की कोई चीज नहीं है? क्या इस तरह से कोई जेंट्स चेंजिंग रूम में आता है? तुम पागल हो क्या?"
वह लड़का दांत पीसते हुए संगीता पर चिल्लाए जा रहा था। संगीता डरी सहमी सी रीमा के गले लगी हुई थी क्योंकि उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि वह लड़के की बातों का क्या जवाब दे।
मॉल में इस तरह का शोर-शराबा सुनकर मैनेजर भी वहाँ आ गया था। उसने उस लड़के की ओर देखते हुए कहा,
"क्या हुआ सर? एनी प्रॉब्लम?"
"यस मिस्टर मैनेजर। कैसे-कैसे लोग आते हैं यहाँ! तमीज ही नहीं है! ये मैडम जेंट्स चेंजिंग रूम में घुस आईं।"
उसे लड़के की बात सुनकर संगीता और ज़ोर से रोने लगी। रीमा उसे चुप करने की नाकाम कोशिश कर रही थी, लेकिन संगीता चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
रीमा ने संगीता से कहा, "तुझे चाहे तो मैं इसे मुँह तोड़ जवाब दूँ अभी?"
तभी संगीता को रीमा की बोली हुई बात याद आई – कोई आपको तब तक ही सुनता है जब तक आप सुनते हैं। रीमा की बात याद आते ही संगीता के अंदर एक जोश सा भर गया था। और इससे पहले कि रीमा उस लड़के को कुछ कहती, संगीता ने अपनी आँखों में आए आँसुओं को बड़े ही बेदर्दी से पूछ लिया था, और उस अनजान आदमी को चुप करते हुए कहा,
"हेलो मिस्टर! ये मेरी गलती है कि मैं गलती से बॉयज चेंजिंग रूम में आ गई थी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप मुझ पर इस तरह से चिल्लाएँ। किसने हक दिया आपको मुझ पर इस तरह से चिल्लाने का? और आप मुझे बदतमीज़ कह रहे हैं और बेअकल भी! तो क्या आपमें इतनी अकल नहीं है कि आप लॉक करके चेंज करते? बदतमीज़ आप हैं! आप में अकल नहीं है, इडियट! और गलती किसी से भी हो सकती है। इतना बड़ा मॉल है, कोई भी धोखा खा सकता है।"
संगीता गुस्से में तप कर बोली थी।
उसे लड़की की बात सुनकर ओम ठाकुर का चेहरा तप गया था। वह लड़का जो चेंजिंग रूम में चेंज कर रहा था, वह कोई और नहीं बल्कि ओम ठाकुर था। ओम ठाकुर को आज तक किसी ने ऐसे मुँह तोड़ जवाब नहीं दिया था। इस पर वह और तप गया था। मैनेजर ने भी संगीता की बात में हाँ मिलाई थी और बोला, "सर, कुछ गलती मैडम की है, तो कुछ गलती आपकी भी है। आपको लॉक करना चाहिए था। और मैडम को थोड़ा जेंट्स-गर्ल्स देखकर अंदर जाना चाहिए था।"
संगीता ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा, "जी हाँ, मैं ध्यान रखूँगी नेक्स्ट टाइम।"
उसके बाद मामला सुलझता देख धीरे-धीरे भीड़ भी कम हो जाती है। लेकिन ओम ठाकुर अभी भी गुस्से में संगीता को घूर रहा था। उसको इस तरह से घूरता देख संगीता को हँसी आ गई और वह ना चाहते हुए भी खिलखिला कर हँस पड़ी। उसको हँसता देख रीमा भी हँस पड़ी। संगीता की हँसी वहाँ चारों ओर गूंज रही थी। उसकी हँसी की आवाज सुनकर ओम कहीं खो सा गया था। और फिर ना जाने उसका गुस्सा भी कैसे मोम की तरह पिघल गया था। वह खुद हैरान था। उसे तो अभी बेहद गुस्सा आ रहा था; अचानक उसका गुस्सा कैसे खत्म हो गया था।
अभी वह और कुछ संगीता से कहने ही वाला था कि तब तक मैनेजर बीच में बोल पड़ा और ओम से माफी माँगने लगा। वैसे भी संगीता वहाँ से जा चुकी थीं, तो ओम का वहाँ रुकने का कोई मोटिव नहीं था। वैसे भी उसे कल से कॉलेज में प्रोफेसर ज्वाइन करना था, तो इसीलिए उसने उसी के अकॉर्डिंग सिंपल साधारण से कपड़े खरीदे थे ताकि वह प्रोफेसर के रोल में फिट बैठ सकें। लेकिन आज एक लड़की का बेबाकी से ओम ठाकुर को जवाब देना उसके अहम पर ठेस पहुँचा चुका था। इसीलिए उसने अपने दोस्तों को कॉल किया। उसके दोस्त उसके साथ मॉल में ही आए हुए थे, लेकिन उस वक्त ओम के साथ न होकर आइसक्रीम पार्लर में आइसक्रीम का मज़ा ले रहे थे। जैसे ही मयंक ने ओम का फोन देखा, उसने आइसक्रीम खाना बंद करके पहले ओम का कॉल उठाया। ओम गुस्से से दहाड़ा था, "कहाँ मर गए तुम सबके सब? फटाफट चेंजिंग सेक्शन में आओ!" जैसे ही उन्होंने ओम की आवाज सुनी, वे तीनों आइसक्रीम अधूरी छोड़कर चेंजिंग सेक्शन की ओर बढ़ने लगे थे।
तब तक मनोहर संगीता और रीमा को लेकर दूसरे सेक्शन में चला गया था। वह उनसे उलझने वाले का चेहरा नहीं देख पाया था। वे दोनों एक-दूसरे के करीब होकर भी मिल नहीं पाए थे।
ओम के तीनों दोस्त – मयंक, गौरव और रोनित – ओम के सामने हाथ बाँधे हुए खड़े हुए थे। वह उन तीनों की ओर गुस्से से दहाड़ रहा था। तभी ओम मयंक की ओर देखते हुए बोला,
"जब मैंने तुझे कहा था कि जब तक कि मैं चेंज ना कर लूँ, दरवाजे के बाहर खड़े रहना, तो कहाँ मर गया था तू जाकर? तू जानता भी है तेरी इस लापरवाही की वजह से एक मामूली सी लड़की ओम ठाकुर को सुनाकर गई है!"
जैसे ही उन तीनों ने यह सुना कि ओम ठाकुर को कोई लड़की बातें सुनकर गई है, उन तीनों का हैरानी के मारे बुरा हाल था। और शॉक्ड की वजह से उनका मुँह खुला का खुला रह गया था। उन्हें अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि ओम ठाकुर को कोई लड़की सुनकर चली गई, और ओम ने उसका गला भी नहीं दबाया। ऐसा कैसे हो सकता है?
ओम के तीनों दोस्त यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते थे कि ओम कभी भी लड़कियों को पसंद नहीं करता था। अगर उसके दोस्त किसी भी लड़की को ओम के पास ले आते थे, तो वह उसे लड़की का खून पी जाया करता था। लेकिन कभी भी वह किसी भी लड़की के साथ इंटीमेट नहीं हुआ था।
ओम संगीता के पीछे भी केवल इसीलिए पड़ा हुआ था ताकि वह उसकी आवाज के पीछे का सच पता कर सके। ओम को लगता था कि इस दुनिया में केवल वही एक श्राप से अभिशापित है। वह देखना चाहता था कि अगर उसे श्राप मिल सकता है, तो क्या किसी को वरदान भी मिल सकता है। और क्योंकि संगीता के पिता ने संगीता को कहीं छुपा दिया था, तो इसीलिए ओम उसे अपनी जिद बन चुका था।
और जब से उसके पिता ने यह बताया था कि उनके फैमिली के महागुरु ने यह भविष्यवाणी की है कि यह लड़की ही ओम का श्राप हटा सकती है, तब से वह और ज़्यादा चिड़चिड़ा हो गया था। क्योंकि उसने कभी नहीं सोचा था कि जिन लड़कियों से वह बचपन से लेकर आज तक केवल नफ़रत करता हुआ आया है, इस तरह से कोई लड़की उसका श्राप भी दूर कर सकती है और उससे ऊपर उठ सकती है। यही बात ओम के ईगो को ठेस पहुँचा रही थी, जिसके चलते वह आज एक छोटे से कॉलेज का प्रोफेसर बनने के लिए मजबूर हो गया था।
ओम तीनों दोस्तों का मुँह खुला हुआ देखकर बोला था, "एक बात कान खोलकर सुन लो तुम तीनों! आइंदा मेरे आस-पास ही रहना। अगर तुम में से किसी ने भी किसी भी लड़की को मेरे आस-पास फटकने दिया, तो मैं उसका खून पी जाऊँगा।"
ऐसा कहकर ओम तीनों को शॉक छोड़कर जा चुका था।
उसके बाद मनोहर उन्हें खाने के लिए ले गया। संगीता-रीमा के मना करने के बाद भी मनोहर ने खाना ऑर्डर कर दिया था। उन तीनों ने साथ खाना खाया और अपनी शॉपिंग कंप्लीट की। फिर मनोहर ने उन दोनों को गर्ल्स हॉस्टल छोड़ दिया। आज दोनों काफी ज़्यादा थक गई थीं। वे जल्दी ही चेंज करके सो गईं। अब उनकी आँख अगले दिन ही खुली।
आज संगीता ने नया कुर्ता-ट्राउज़र पहना और बालों को गुथने की जगह खाली रबर बैंड से बाँध लिया था। अब वह कहीं से भी गाँव की नहीं लग रही थी। रीमा ने उसे काफी हद तक बदल दिया था। जैसे ही उसने आज कॉलेज में एंट्री की, तो वह चौंक गई। उसने नोट किया कि आज किसी ने भी उसका मज़ाक नहीं उड़ाया था। वह बेहद सिंपल लुक में थी, फिर भी बहुत ज़्यादा अट्रैक्टिव लग रही थी।
संगीता गलती से मॉल में जेंट्स चेंजिंग रूम में चली गई और वहाँ उसकी मुलाकात ओम ठाकुर से हुई। पहली ही मुलाकात में उन दोनों का काफी झगड़ा हुआ। इससे ओम और संगीता ने एक-दूसरे के बारे में अपनी-अपनी राय बना ली।
अब आगे...
आज संगीता ने नया कुर्ता-पायजाम पहना था और बालों को गूंथने की जगह खाली रबर बैंड से बांध लिया था। अब वो कहीं से भी गांव की नहीं लग रही थी। रीमा ने उसे काफी हद तक बदल दिया था।
उसने आज जैसे ही कॉलेज में प्रवेश किया, वो चौंक गई। उसने नोट किया कि आज किसी ने भी उसका मज़ाक नहीं उड़ाया था। वो बेहद सिम्पल लुक में थी, फिर भी बहुत ज़्यादा आकर्षक लग रही थी। अगर कोई उसे एक बार देखता, तो वो दूसरी बार भी बिना देखे नहीं रह पाता। उसके चेहरे में एक अजीब सी कशिश थी जो किसी को भी आसानी से अपनी ओर आकर्षित कर सकती थी।
कॉलेज का पहला लेक्चर अच्छे से गुज़रा। थोड़ी देर में सेकंड लेक्चर शुरू होने वाला था, और क्लास में उड़ती-उड़ती खबर थी कि आज नए प्रोफ़ेसर, जो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पासआउट होकर आए हैं, वो सेकंड लेक्चर लेंगे। सभी स्टूडेंट्स उनको देखने के लिए उत्साहित थे।
संगीता और रीमा के कानों में भी यह बात पहुँच चुकी थी कि विदेश से कोई नया प्रोफ़ेसर आ रहा है, जो दिखने में बहुत ही ज़्यादा डैशिंग और स्मार्ट है। रीमा भी उसे जानने के लिए उत्सुक थी, लेकिन संगीता को प्रोफ़ेसर नया था, पुराना था, ऑक्सफ़ोर्ड से आया था या कहाँ से आया था, इससे कोई मतलब नहीं था। उसे तो बस अपने काम से मतलब था। वह अपने आस-पास की सरगोशियाँ सुन रही थी। धीरे-धीरे आवाज़ों का संगीता मज़ा लेने लगी थी। तब एक चपरासी वहाँ आया और बोला,
"मिस संगीता, आपको प्रिंसिपल साहब बुला रहे हैं। आपको प्रिंसिपल सर के कमरे में जाना होगा।"
चपरासी की बात सुनकर संगीता, ना चाहते हुए भी, रीमा को साथ लेकर उनके कमरे की ओर चल पड़ी। उसे जल्द से जल्द अपनी क्लास में लौटना भी था क्योंकि उनका सेकंड लेक्चर अभी शुरू होने वाला था।
रीमा और संगीता के निकलते ही, ओम ठाकुर अंदर आए। उनको देखते ही सभी लड़कियों में हलचल हो गई। ओम ठाकुर बहुत ही ज़्यादा हैंडसम और डैशिंग था। इतना हैंडसम प्रोफ़ेसर देखकर सारी लड़कियों में गपशप शुरू हो गई थी। कुछ लड़कियाँ तो बेखयाली से ओम को एकटक निहार ही रही थीं। किसी भी लड़की ने यह नहीं सोचा था कि इतनी खूबसूरत पर्सनालिटी का बंदा उनका प्रोफ़ेसर होगा। वह अपने लिए हो रही सरगोशियों की आवाज़ सुनकर, ओम ठाकुर ज़ोरदार आवाज़ में बोला,
"साइलेंट, प्लीज़!"
रीमा और संगीता जैसे ही मनोहर के पास गईं, मनोहर ने उन्हें बताया,
"आप दोनों को सारी क्लासेस खत्म होने के बाद मुझसे मिलकर ही हॉस्टल जाना होगा।"
संगीता और रीमा ने बिना सवाल किए हाँ में सर हिलाया और अपने क्लास की ओर बढ़ चलीं।
रीमा और संगीता अभी नहीं पहुँची थीं कि सेकंड लेक्चर की खबर उन्हें मिल गई। वो जल्दी से क्लास की ओर भागीं। दोनों भागते हुए क्लास में आईं और अंदर चली गईं। उन दोनों की नज़र एक साथ ओम ठाकुर पर पड़ी तो उनका हैरानी से बुरा हाल हो गया। वहीं ओम भी उन्हें पहचान गया था।
संगीता को देखते ही ओम के चेहरे पर एक खतरनाक सी मुस्कान आ गई थी। ओम को कल मॉल में जो कुछ भी हुआ था, वह सब कुछ याद आ गया था। ओम सोचने लगा, "मैंने नहीं सोचा था कि तुम ओम ठाकुर की बेइज़्ज़ती करने के बाद इतनी आसानी से हाथ लग जाओगी।" ओम मन ही मन सोचकर काफी खुश हो रहा था क्योंकि अब ओम को मौका मिल गया था अपनी बेइज़्ज़ती का बदला लेने का।
संगीता समझ चुकी थी कि यह घटिया इंसान उसे इतनी आसानी से अंदर नहीं आने देगा। तब संगीता ने थोड़ी हिम्मत की और बोली,
"मैं आई एम कम इन, सर।"
संगीता के मुँह से यह सुनकर ओम को काफी ज़्यादा संतुष्टि हुई, लेकिन तब ओम गुस्से से भरकर बोला,
ओम ने संगीता को डाँटते हुए क्लास से बाहर निकलने को कहा, "तुम दोनों देर से आई हो, क्लास के बाहर जाओ। मुझे डिसिप्लिन पसंद है। मुझे गैर-ज़िम्मेदार लोगों से सख्त नफ़रत है।"
ओम की बात सुनकर संगीता समझ चुकी थी कि ओम कुछ ऐसा ही कहने वाला है, क्योंकि जब से वह उसे मिली थी, वह उसके बारे में अपनी एक राय बना चुकी थी कि वह एक नंबर का बदतमीज़, घटिया और पागल इंसान था; एक नंबर का अकड़ू था, जिस लड़कियों से बात करने की तमीज़ तक नहीं थी। और आज पहले ही दिन इतना रूखा व्यवहार संगीता को अंदर तक जला गया था।
वो गुस्से में बड़बड़ा रही थी, "कितना बदतमीज़ है आदमी! इसको प्रोफ़ेसर किसने बना दिया? केवल दो मिनट ही तो लेट थे हम दोनों!"
"रीमा, मैं तुझे कह रही हूँ ना, उसने हमसे उस दिन मॉल में हुई झड़प का बदला लिया है।"
रीमा, संगीता को गुस्से में देखकर हँस पड़ी और बोली,
"रिलैक्स यार, रिलैक्स! इतना सोच रही हो। अगर उसने मॉल में हुई झड़प का बदला लिया है, जस्ट रिलैक्स फील कर यार। और वैसे भी, यह सोचकर हमें यह पीरियड फ़्री मिल गया है और हम इस पीरियड में कितनी मौज-मस्ती कर सकते हैं!"
ऐसा कहकर रीमा संगीता का हाथ पकड़कर कैंटीन की ओर चल पड़ी। लेकिन संगीता का मन नहीं माना। उसने रीमा से कहा,
"चाहे उस खड़ूस ने हमें क्लास में अंदर ना आने दिया हो, लेकिन हम बाहर रहकर तो लेक्चर अटेंड कर सकते हैं ना? तो मैं अपना टाइम वेस्ट नहीं कर सकती हूँ। मैं बाहर रहकर लेक्चर अटेंड करूँगी।"
ऐसा कहकर संगीता रीमा के साथ क्लास के बाहर खड़ी होकर लेक्चर अटेंड करने लगी।
वही जो स्टूडेंट्स ओम की पर्सनालिटी को देखकर उसका गुणगान कर रहे थे, खासकर लड़कियां जो ओम पर मर रही थीं, रीमा और संगीता को डाँट पड़ने के बाद वहाँ के बाकी स्टूडेंट्स बिलकुल शांत हो गए थे। कुछ स्टूडेंट्स तो यह सोच-सोचकर चुप हो गए थे कि कहीं अगली बारी उनकी ना हो। यह सोचकर सब चुप हो गए थे। लेकिन उन सब स्टूडेंट्स में दो आँखें ऐसी थीं, जिनकी नज़रें अभी भी ओम ठाकुर पर ही टिकी हुई थीं। वह कोई और नहीं, बल्कि क्लास की सबसे ज़्यादा स्टाइलिश और अमीर लड़की टीना की थीं।
टीना को अपनी खूबसूरती और अपनी अमीरी पर शुरू से ही बहुत ज़्यादा घमंड था। टीना को ओम पहली ही नज़र में भा गया था। वह कभी ओम की नीली गहरी आँखों को देखती, तो कभी ओम के सख्त, सुडौल जिस्म को देखती। टीना अपने बालों की लटकी हुई लटों में अपनी उंगलियाँ घुमाते हुए ओम ठाकुर की पर्सनालिटी का मुआयना करने लगी थी।
वहीं ओम लेक्चर देते हुए तिरछी नज़रों से बाहर खड़ी संगीता को देख रहा था। संगीता को यूँ खड़ा देख ओम को बहुत ही ज़्यादा अच्छा लग रहा था। उसे मन में संतुष्टि मिल रही थी।
ओम ने रीमा और संगीता को अंदर क्लास में आने की परमिशन नहीं दी थी। उस दिन का लेक्चर दोनों ने बाहर खड़े होकर अटेंड किया था। ओम मन ही मन अपनी छोटी सी जीत पर खुश था।
क्लास के बाद ओम ठाकुर संगीता पर तिरछी-तिरछी नज़र डालता हुआ बाहर निकल गया और वह सीधा लाइब्रेरी में पहुँचा। ओम ने लाइब्रेरी में काम करने वाले लड़के को अपने पास बुलाया। वह लड़का कोई और नहीं, बल्कि उसका खुद का दोस्त मयंक था। ओम ने अपने तीनों दोस्तों को इस कॉलेज में किसी न किसी काम पर रखवा लिया था: मयंक को लाइब्रेरी में, गौरव को कैंटीन में और रोहन को कॉलेज की लैब में। अपने तीनों दोस्तों को कॉलेज में काम पर रखवाने का ओम का केवल एक ही मकसद था: किसी न किसी तरह संगीता के बारे में पता लगाना।
तब ओम ठाकुर ने मयंक से पूछा,
"लाइब्रेरी के रिकॉर्ड से संगीता का नाम सामने आया? कुछ पता चला?"
तब मयंक ने नाइं में सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, हमें यहाँ कुछ भी पता नहीं चल पाया है।"
तब ओम ने सोचा, क्यों ना एक बार कॉलेज के प्रिंसिपल मनोहर से मिल लिया जाए और संगीता के बारे में इनडायरेक्टली पूछताछ की जाए। यह सोचकर ओम प्रिंसिपल के कमरे की ओर चल पड़ा।
जल्दी ही ओम प्रिंसिपल के सामने खड़ा हुआ और वह मनोहर से बड़ी ही गर्मजोशी के साथ मिला। तब मनोहर ने उनसे कहा,
"आई होप अभय प्रताप जी..."
((ओम ने कॉलेज में प्रोफ़ेसर के तौर पर अभय प्रताप नाम से ज्वाइन किया था। उसने अपना असली नाम नहीं बताया था क्योंकि वह जानता था कि संगीता उसका असली नाम जानती है। इसीलिए, किसी को शक न हो, ओम ने अपना नाम कॉलेज में अभय प्रताप रख लिया था।))
तब मनोहर जी ने कहा, "आपको यहाँ सब कुछ बेहतर लग रहा होगा। और मुझे तो यकीन ही नहीं आ रहा है कि इतने बड़े कॉलेज से पीएचडी करके आए हुए आप एक छोटे से कॉलेज में नौकरी करेंगे।"
मनोहर अपने मन की आई हुई बात को कहने से रोक नहीं पाया। तब ओम ने संभलते हुए उसे कहा,
"एक्चुअली प्रिंसिपल साहब, पैसों की मेरे पास कोई कमी नहीं है, और अभी मैं सिर्फ़ अपने शौक को पूरा करने के लिए टीचिंग कर रहा हूँ। बस इसीलिए मैं यहाँ हूँ।"
ओम की बात सुनकर मनोहर जी एक फीकी सी हँसी हँसे। न जाने क्यों, बार-बार ओम की पर्सनालिटी, उसका रूप देखकर मनोहर के मन में कुछ बुरे ख़यालात आने लगे थे।
ओम मनोहर से सीधा-सीधा संगीता के बारे में नहीं पूछ सकता था। उसने घुमा-फिरा कर पूछा,
"हाँ अच्छा तो सर, जैसे मैं नया प्रोफ़ेसर हूँ, आपके कॉलेज में क्या कोई स्टूडेंट भी नया है क्या?"
जैसे ही ओम ने यह बोला, मनोहर जी का मन आशंका से भर उठा और उन्हें जमींदार साहब के बेटे ओम ठाकुर का ख़्याल आने लगा। ओम की बात उन्हें काफी अजीब लगी। मनोहर ओम की बात से थोड़ा चौंके और बात घुमाते हुए बोले,
"अरे नहीं प्रोफ़ेसर साहब! आपको तो पता है, एक बार एडमिशन सेशन खत्म हो जाए, फिर कोई एडमिशन नहीं हो सकता।"
जैसे ही मनोहर ने यह कहा, ओम को अब मनोहर पर शक होने लगा। वह समझ चुका था कि ज़रूर संगीता को छिपाने में मनोहर का भी कुछ न कुछ हाथ है। उसके बाद मनोहर फिर बोले,
"प्रोफ़ेसर साहब, हमारे इस कॉलेज के कुछ रूल्स हैं, नियम हैं, जिनको मैं खुद भी फ़ॉलो करता हूँ और दूसरों से भी फ़ॉलो करवाता हूँ। तो इसीलिए इस कॉलेज में एक लिमिटेड ही टाइम होता है एडमिशन वगैरह का। सो सब एडमिशन कंप्लीट हो चुके हैं, इसीलिए कोई नया एडमिशन कॉलेज में नहीं है।"
मनोहर के चालाकी भरे जवाब सुनकर ओम मुस्कुराया और मन ही मन बोला, "जिसे तुम छिपा रहे हो, बहुत जल्द वो मेरे सामने होगी।"
ओम मन ही मन सोचकर मुस्कुराया और प्रिंसिपल से विदा लेकर उसके केबिन से बाहर निकलने लगा।
वहीं, संगीता को ओम का व्यवहार बहुत ही ज़्यादा बुरा लगा था। इसीलिए उसने सोच लिया था कि वह उसे इतनी आसानी से नहीं जाने देगी। इसीलिए वह ओम की शिकायत करने प्रिंसिपल के कमरे में जाती है, तभी ओम भी बाहर निकल रहा होता है और वो दोनों आपस में टकरा जाते हैं।
कॉलेज के पहले ही दिन ओम ने संगीता को क्लास से बाहर निकाल दिया। इससे संगीता को बहुत गुस्सा आया। वह प्रिंसिपल मनोहर से शिकायत करने उनके पास गई, लेकिन उसी वक्त ओम भी प्रिंसिपल के कमरे से बाहर निकल रहा था। अचानक वे दोनों टकरा गए। ओम ने संगीता को गिरने से बचा लिया।
ओम का एक हाथ संगीता की पतली कमर पर था। कुछ पल के लिए वे दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। ओम की आँखों में कुछ ऐसा था जिससे संगीता उसकी ओर खिंची चली जा रही थी। जैसे ही उन्हें अपनी स्थिति का एहसास हुआ, वे दोनों संभल गए।
ओम कुछ पल संगीता के चेहरे की ओर देखता रहा, फिर अपना सिर झटकते हुए जोर से चिल्लाया,
"तुम्हारी आँखें नहीं हैं क्या? देखकर नहीं चल सकती हो तुम?"
ओम की बात सुनकर संगीता का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वह तपाते हुए बोली,
"यही बात मैं आपसे भी कह सकती हूँ, मिस्टर प्रोफेसर! आप समझते क्या हैं अपने आप को? आप भी तो देखकर चल सकते थे ना! एक तो आपने बिना बात के हमें क्लास में नहीं घुसने दिया। उस वक्त भी गलती आपकी थी और अब भी गलती आपकी है! आप ही एक खुले सांड की तरह पूरे कॉलेज में घूम रहे हैं। क्या आप देखकर नहीं चल सकते थे?"
संगीता ने अपने माथे को मलते हुए कहा, "मैं अभी आपकी शिकायत प्रिंसिपल सर से करने जा रही हूँ।"
संगीता की बात सुनकर ओम का पारा चढ़ गया।
"तुम्हें पता है तुम कितनी बदतमीज लड़की हो? तुममें अकल नाम की चीज़ नहीं है। जानती भी हो तुम किससे बात कर रही हो?"
"हाँ, मैं बिल्कुल जानती हूँ किससे बात कर रही हूँ। मैं हमारे कॉलेज के सबसे बदतमीज, एरोगेंट और घमंडी प्रोफेसर से बात कर रही हूँ, जिसे स्टूडेंट से बात करने की तमीज़ तक नहीं है, और खासकर एक लड़की से, समझे!"
संगीता की बात सुनकर ओम का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वह संगीता को और गहरी नज़रों से देखते हुए बोला, "आखिर तुम समझती क्या हो अपने आप को? एक मामूली सी लड़की हो!"
प्रोफेसर की बात सुनकर संगीता ने गुस्से से अपने दाँत भींच लिए। वह दांत भींचते हुए बोली, "आप ठहरो! मैं अभी आपकी शिकायत प्रिंसिपल से करके आती हूँ।"
इस पर अभय प्रताप, यानी ओम ठाकुर ने संगीता का मज़ाक उड़ाते हुए कहा,
"ओह! आई सी! आपको लगता है ये आपके डैडी का कॉलेज है जहाँ आपको कुछ नहीं बोल पाएगा? और अगर किसी ने आपको कुछ बोला तो आप प्रिंसिपल-प्रिंसिपल करती फिरेंगी?"
ओम ने संगीता का मज़ाक उड़ाते हुए कहा और आगे बोलना जारी रखा,
"आप खुद तो कुछ हैंडल नहीं कर सकती, इसलिए बार-बार आपको किसी के सहारे की ज़रूरत पड़ती है, है ना मिस व्हाटेवर जो भी नाम है..."
उन दोनों की बहस चल ही रही थी कि दरवाज़े के बाहर की आवाज़ सुनकर मनोहर बाहर आ गए। जैसे ही मनोहर ने संगीता और ओम को एक साथ देखा, वह चौंक गया।
"आप दोनों यहाँ क्या कर रहे हैं? और गीता, आप यहाँ क्या कर रही हैं?" मनोहर ने जानबूझकर प्रोफेसर के सामने संगीता का नाम गीता लिया ताकि उसे एहसास हो कि उसका नाम गीता है, संगीता नहीं।
जैसे ही संगीता ने मनोहर को देखा, उसने बात बदलते हुए कहा,
"कुछ नहीं सर, मैं तो सर से आज के लेक्चर के बारे में पूछ रही थी।"
संगीता की बात सुनकर मनोहर ने कहा, "ओह, ओके।"
इतना कहकर वह वहाँ से चली गई और ओम मन ही मन मुस्कुराया। ओम को लगा कि लड़की अब उसका सामना नहीं कर पाएगी। शायद वह उससे डर गई थी, इसीलिए उसने इतनी आसानी से प्रिंसिपल साहब से झूठ बोल दिया था। ओम को अपनी छोटी सी जीत पर बड़ी खुशी हो रही थी। उसे लगा उसने बड़ी आसानी से इस लड़की का मन डायवर्ट कर दिया था।
पर वह यह भी सोच रहा था कि अगर वह इस तरह से प्रिंसिपल की नज़रों में आ गया तो यह उसके मकसद के लिए काफी बुरा हो सकता है। जब तक उसका मकसद पूरा नहीं हो जाता, तब तक उसकी कोई शिकायत प्रिंसिपल के पास नहीं जानी चाहिए। उसे बस जल्द से जल्द संगीता को ढूँढना था।
ओम इससे पूरी तरह अनजान था कि जिस लड़की को वह ढूँढने की कोशिश कर रहा था, वह लड़की उसके बेहद करीब थी। ओम ने डिसाइड कर लिया था कि इस अमावस्या की रात से पहले वह संगीता को ढूँढ लेगा। ओम संगीता की जादुई आवाज़ की सच्चाई जानना चाहता था। वह जानना चाहता था कि क्या वाकई किसी लड़की की आवाज़ इतनी खूबसूरत हो सकती है कि वह किसी के भी दुख-दर्द को दूर कर सकती है।
ओम ने सोचा था कि अगर वह अमावस्या की रात से पहले संगीता के साथ रिश्ता बना लेता है तो उसे पता चल जाएगा कि वह श्राप मुक्त हो चुका है या नहीं, क्योंकि उसकी हवेली के गुरुदेव ने यह बात साफ़-साफ़ कह दी थी कि संगीता ही वह विशेष गुणों वाली लड़की है जिसके साथ रिश्ता बनाने के बाद ओम के सारे श्राप पूरी तरह से मिट सकते थे।
ऐसा नहीं था कि अपने इस श्राप को दूर करने के लिए ओम ने किसी लड़की के करीब जाने की कोशिश नहीं की थी। उसके दोस्त हर दूसरे-तीसरे दिन लड़कियाँ लेकर आते थे, लेकिन जैसे ही ओम लड़की के करीब जाने की कोशिश करता था, एक अजीब सी ताकत उसे उनके करीब जाने से रोक देती थी। और ओम लड़कियों के साथ रिश्ता बनाने के बजाय उनका खून पी जाता था। ओम के तीनों दोस्त बचपन से ही ओम का वहशी रूप देखते आये थे। वे अच्छी तरह जानते थे कि ओम का श्राप किसी लड़की के पास जाने और उसके साथ रिश्ता बनाने से ही दूर हो सकता है। इसीलिए वे अपनी तरफ से जितनी भी खूबसूरत लड़की को देखते थे, उनके मन में ख्याल आता था कि शायद यह लड़की ओम के श्राप को खत्म कर सकती है। इसीलिए उस लड़की को ओम के पास ले जाने के बजाय, रिश्ता बनाने के बजाय उसकी जान ले लिया करता था। इस तरह से इंग्लैंड में 17 लड़कियों की जान ले चुका था, जो वहाँ की टॉप न्यूज़ हेडलाइन थी।
उसको इस श्राप से बचाने के लिए उस जादुई आवाज़ वाली लड़की की ज़रूरत थी। उसी रात जब वह राक्षस बनता, तभी उसे उस लड़की के साथ रिश्ता बनाना होगा, तभी उसका श्राप खत्म हो सकता था। अगर वह लड़की ओम के साथ रिश्ता बनाने के बाद भी ज़िंदा रहती, तो ओम का श्राप खत्म हो सकता था। लेकिन अगर ओम के साथ शारीरिक रिश्ता बनाने के बाद वह लड़की मर जाती, तो इसका मतलब साफ़ था कि वह विशेष गुणों वाली लड़की नहीं थी।
ओम ने अपने तीनों दोस्तों को टेक्स्ट मैसेज किए और कॉलेज के एक सुनसान जगह पर मिलने के लिए बुलाया।
अगले दिन रीमा और संगीता समय से पहले ही क्लास में बैठ चुकी थीं। वे इस बार कोई मौका नहीं देना चाहती थीं अपने नए प्रोफेसर को, और ना ही उनसे अब डाँट खाना चाहती थीं। क्लास का समय शुरू हो गया था, लेकिन आज सर खुद क्लास में नहीं आए। थोड़ी देर में ओम ठाकुर क्लास में आ गए। ओम पूरे दस मिनट क्लास में लेट आए थे। अब संगीता को मौका मिल गया था ओम पर ताना कसने का।
जानबूझकर गला साफ़ करते हुए थोड़ी तेज आवाज़ में, संगीता बोली, "अच्छा रीमा, काश ऐसा कुछ होता जैसे स्टूडेंट्स के लेट आने पर प्रोफेसर सज़ा दे सकते हैं। काश कोई ऐसा रूल भी होता जो प्रोफेसर के लेट आने पर स्टूडेंट्स उन्हें सज़ा देते!"
अगले दिन रीमा और संगीता समय से पहले ही क्लास में बैठ चुकी थीं। वे इस बार कोई मौका नहीं देना चाहती थीं अपने नए प्रोफेसर को, और ना ही उनसे अब डांट खाना चाहती थीं।
क्लास का समय शुरू हो गया था, लेकिन क्या हुआ? आज अभय प्रताप सिंह सर खुद क्लास में नहीं आए।
थोड़ी देर में ओम ठाकुर क्लास में आ गए। ओम पूरे दस मिनट क्लास में लेट आए थे। अब संगीता को मौका मिल गया था ओम पर ताना कसने का।
संगीता ने जानबूझकर गला ठीक करते हुए थोड़ी तेज आवाज में कहा, "अच्छा रीमा, काश ऐसा कुछ होता जैसे स्टूडेंट्स के लेट आने पर प्रोफेसर सजा दे सकते हैं। काश कोई ऐसा रूल भी होता जो प्रोफेसर के लेट आने पर स्टूडेंट्स उन्हें सजा देते।"
ओम संगीता की बातें सुन चुका था, और वह उस समय उसे नजरअंदाज करते हुए बोला, "हाँ तो, स्टूडेंट्स, मैंने आज आप लोगों की क्लास कहीं और रखी है। मैं उसी का सेटअप कर रहा था, इसीलिए मुझे क्लास आने में देरी हो गई। तो आप लोग अपने छोटे से दिमाग को ज्यादा तकलीफ मत दीजिये और मेरे साथ चलिए।"
ओम ने परोक्ष रूप से संगीता पर वार किया था। संगीता ओम का इशारा समझ चुकी थी और चुपचाप अपनी बुक्स लेकर सभी छात्रों के साथ चल पड़ी।
ओम सभी को लेकर ग्राउंड में गया और वहाँ पर उसने कुछ गिटार रख रखे थे। गिटार देखकर सब स्टूडेंट्स चौंक गए और सबने एक साथ पूछा, "ये सब क्या है सर?"
"धैर्य रखिए, बताता हूँ। वो एक्चुअली, आज मैंने ये डिसाइड किया है कि क्यों ना आज बोरिंग लेक्चर की जगह आज आप सबकी म्यूजिक स्किल देखी जाए।"
((Flashback))
मयंक, रोनित और गौरव तीनों ने मिलकर ओम ठाकुर को यह आईडिया दिया था कि क्यों ना हम संगीत को बाहर लाने के लिए उसी की म्यूजिक स्किल का इस्तेमाल करें। इसीलिए मयंक ने ओम ठाकुर से साफ़-साफ़ कह दिया था कि वह एक-एक दिन हर क्लास में सभी बच्चों की म्यूजिक क्लास रखें। और जैसा कि हमें पता है, म्यूजिक संगीता की कमजोरी है। जैसे ही वह म्यूजिक सुनेगी, वह अपने आप को रोक नहीं पाएगी और वह गाना शुरू कर देगी। बस हमें संगीता मिल जाएगी। मयंक की यह बात ओम ठाकुर को जैसे जम गई थी।
वह उसकी ओर कदम बढ़ाते हुए आगे बढ़ने लगा। मयंक को लगा कि शायद ओम को उसकी कोई बात बुरी लग गई है। इसीलिए डर के मारे वह पीछे होने लगा था। लेकिन ओम लगातार आगे बढ़ता जा रहा था और अचानक उसने अपने दोनों हाथ मयंक के कंधों पर रख दिए और फिर उसे जोर से गले लगा लिया।
ओम को इस तरह से मयंक को गले लगाता देख बाकी सब दोस्त भी टेंशन फ्री हो गए थे। वरना उन सबको भी डर लग रहा था कि शायद मयंक की बात सुनकर ओम गुस्सा हो गया हो। फिर वह तीनों दोस्त मुस्कुराने लगे। तब ओम ने कहा, "यह आइडिया तुमने मुझे पहले क्यों नहीं दिया? अब मैं यही करूँगा। सभी स्टूडेंट्स की म्यूजिक क्लासेस रखूँगा, क्योंकि मैं प्रोफेसर हूँ और प्रोफेसर किसी भी तरीके से अपने स्टूडेंट को पढ़ा सकता है।" ऐसा कह कर उसके चेहरे पर एक डेंजर वाली स्माइल आ गई थी और वह म्यूजिक क्लास का सेटअप करने के लिए चला गया था।
((Flashback End))
ओम ने जैसे ही सभी स्टूडेंट्स को म्यूजिक क्लास के बारे में बताया, सभी में एक खुशी की लहर दौड़ गई थी। और सभी स्टूडेंट्स में से एक लड़की बोली, जिसका नाम अवनी था,
"वाह सर! डेट्स ग्रेट आइडिया!"
सभी खुश हो जाते हैं और एक साथ तालियाँ बजाते हैं।
ओम ने सोच लिया था कि जब तक वह स्टूडेंट्स से दोस्ती नहीं करेगा, तब तक वह अपने प्लान में कामयाब नहीं हो सकता था। क्योंकि दोस्ती से ही वह स्टूडेंट्स के करीब हो सकता था। उसको हर हाल में संगीता को ढूंढना था, और वह जानता था म्यूजिक संगीता की कमजोरी है। म्यूजिक सुनकर वह खुद को गाने से नहीं रोक पाएगी और वह उसे पहचान लेगा।
मोंटी बीच में से उठा और गिटार हाथ में लेकर बोला, "पहले मैं गाऊँगा।" सब एक साथ चिल्लाए, "नहीं! तुम नहीं, प्लीज!" और सब हँस दिए।
ओम ने सबको चुप रहने का इशारा किया और कहा, "आप सब बारी-बारी से यहाँ आएंगे और कोई भी दो लाइन सबके सामने गाकर सुनाएंगे।"
संगीता के डर के मारे बहुत बुरा हाल हो रहा था, क्योंकि वह किसी भी कीमत पर वहाँ पर गाना नहीं गा सकती थी। और संगीता अच्छी तरह से जानती थी अगर सबने एक साथ उसके सामने गाना शुरू किया तो वह खुद को रोक नहीं पाएगी। गाने की बात सुनकर संगीता घबरा गई थी। अगर उसने सबके सामने गाना गा दिया तो उसकी पहचान उजागर हो जाएगी और उसके दुश्मन उसे आसानी से ढूँढ लेंगे।
और फिर ओम ठाकुर के इशारे पर एक लाइन से धीरे-धीरे सभी बच्चों ने गाना गाना शुरू कर दिया था। ओम हर किसी को बड़ी ही पैनी नज़र से देख रहा था, मानो आज तो वह संगीता का पता लगाकर ही रहेगा। और अब केवल कुछ ही स्टूडेंट बच्चे थे, करीब करीब दस से बारह स्टूडेंट्स की ओम ठाकुर ने म्यूजिक स्किल देख ली थी।
संगीता का सोच-सोच कर बुरा हाल था क्योंकि अब उसका भी नंबर आ सकता था। तब वह क्या करे? वह डर के मारे कांपने लगी थी। लेकिन तभी, हँसी-मजाक की आवाज सुनकर मनोहर जी ग्राउंड की तरफ आए।
और गिटार को रखा देखकर ओम से सवाल किया, "प्रोफेसर साहब, आप स्टूडेंट्स को पढ़ाने की जगह यह क्या करा रहे हैं?"
"कुछ नहीं सर, मैं तो बस सबका म्यूजिक टेस्ट ले रहा था कि किसी को कुछ आता भी है या नहीं।"
ओम ठाकुर की बात सुनकर मनोहर का मन अंदर से झँक गया था और फिर,
मनोहर ने कहा, "आप यह सब फिर कभी कर लेना। अभी तीन महीनों के अंदर एग्जाम है इन सबके। आप इनकी स्टडी कंटिन्यू कीजिए, प्लीज।"
मनोहर ने म्यूजिक क्लास बंद कराने के लिए जानबूझकर छात्रों की एग्जाम नजदीक होने का बहाना किया था ताकि उसी वक्त ओम ठाकुर उन्हें म्यूजिक दिखाना बंद करके उन सब की पढ़ाई कंटिन्यू करा सके।
उसके बाद मनोहर ने प्रिंसिपल वाली रोब आवाज में कहा, "यह सब बंद कीजिए और इन्हें क्लास में ले जाकर पढ़ाई कराइए। इट्स एन ऑर्डर।"
मनोहर की बात सुनकर ओम अंदर ही अंदर तप गया था और मन ही मन उसे बेहद खौफनाक मौत दे चुका था। ओम ठाकुर मन ही मन अपने नुकीले दांत ओम के कंधों पर खड़ा कर उसका सारा खून पी चुका था। उनके अंदर बहुत ही उस वक्त गुस्से का लावा फटने वाला था। लेकिन तभी रोहित वहाँ आ गया और उसने मनोहर से कहा, "सर, आपके केबिन में आपसे कोई मिलने के लिए आया है।" क्योंकि रोहित देख चुका था कि ओम अब गुस्से से पागल हो रहा था और किसी भी वक्त वह अपने असली रूप में आ सकता था।
कहीं ओम अपने असली रूप में ना आ जाए, इसीलिए रोहित वहाँ आ गया और उसने प्रिंसिपल को किसी के आने की खबर दी जिससे प्रिंसिपल वहाँ से चला जाए और उनका गुस्सा कुछ पल के लिए शांत हो जाए।
रोनित की बात सुनकर मनोहर ने कहा, "ठीक है, हम अभी आते हैं।" ऐसा कहकर उन्होंने रोनित को भेज दिया और रोनित धीमी चाल से वहाँ से जाने लगा। तभी मनोहर ने सभी स्टूडेंट्स से कहा, "आप सभी यहाँ पर खड़े-खड़े क्या कर रहे हैं? क्या आप लोगों को सुनाई नहीं दिया? सब के सब अपनी क्लासरूम में जाइए।"
वेल, मनोहर की बात मानने के अलावा ओम और स्टूडेंट्स के पास और कोई रास्ता नहीं था। तो सभी के सभी स्टूडेंट्स ओम के साथ क्लास में चले गए थे और कड़ी नज़रों से मनोहर को घूर रहा था। मनोहर भी ओम की अपने ऊपर तपिश महसूस कर चुका था।
ओम वापस सबको क्लास में ले गया और पढ़ाने लगा था। क्लास में आने के बाद संगीता ने एक बहुत ही गहरी साँस ली थी क्योंकि आज वह बहुत ही ज्यादा बाल-बाल बची थी। संगीता ने मन ही मन राहत की साँस लेकर मनोहर को धन्यवाद देने वाली नज़रों से देखा था।
मनोहर ने भी आँखों ही आँखों में संगीता को तसल्ली दे दी थी और उसके बाद वह अपने केबिन में चला गया था।
सबके क्लास में जाने के बाद मनोहर बेहद गहरी सोच में थे। यूँ अचानक म्यूजिक क्लास का प्रोग्राम बनाना...
मनोहर को धीरे-धीरे अब ओम पर शक होने लगा था कि आखिर अचानक से कोई म्यूजिक का प्रोग्राम कैसे बना सकता है और इस तरह से सबको गाना गाने को क्यों कह सकता है। ओम सोच रहा था, मनोहर को ओम पर कुछ शंका हो गई थी। वेल, वह अभी के लिए सब भूलकर कॉलेज राउंड पर चला गया था।
मनोहर ने सोचा कि उसे एक बार चारों ओर पूरी तहकीकात करनी चाहिए क्योंकि अगर ओम ठाकुर यहाँ आ पहुँचा है तो डेफिनेटली वह अकेला तो आया नहीं होगा। यही सोचकर मनोहर ने अपने कॉलेज में काम करने वाले एक-एक आदमी की डिटेल्स निकालने की सोची थी।
वहीं ओम की क्लास चल रही थी। तभी पढ़ाते-पढ़ाते ना जाने ओम को अचानक चक्कर आने लगे थे और वह वहीं लड़खड़ा कर गिरने ही वाला था। तब उसने टेबल का सहारा लिया।
सभी स्टूडेंट्स एक साथ चिल्लाए, "क्या हुआ सर? आप ठीक तो हो ना?" ऐसा कहते हुए बच्चे ओम की ओर बढ़ने लगे थे।
उसकी आँखें भारी-भारी होने लगी थीं, लेकिन उसने हाथ के इशारे से उन्हें रोक दिया और चुप रहने को कहा। उसने अपने माथे को जोर से पकड़ रखा था, जैसे कुछ जरूरी चीज सोच रहा हो।
तब अचानक ओम चिल्लाया, "सब के सब बाहर निकल जाओ! जल्दी-जल्दी करो, निकलो!" सब एक-दूसरे की ओर देखने लगे कि सर को हुआ क्या है और वह कहना क्या चाह रहे हैं। लेकिन ओम ने फिर से यही बात दोहराई, "सुनाई नहीं दिया तुम लोगों को? निकलो यहाँ से!"
ओम सभी स्टूडेंट्स को म्यूजिक सुनने के लिए बाहर ग्राउंड में ले गया, लेकिन मनोहर ने उसे डांटकर अंदर भेज दिया। उसे इस बात से बहुत गुस्सा आया और उसने मन ही मन में मनोहर के लिए एक भयानक मौत सोच ली थी।
अभी ओम ठाकुर अपनी क्लासेज ले ही रहा था कि अचानक उसे चक्कर आने लगे। सभी स्टूडेंट्स ओम की हालत देखकर परेशान हो गए। तब ओम जोर से चिल्लाया, "सब के सब यहां से बाहर निकलो!" लेकिन कोई भी उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था। वे हैरानी से ओम की ओर देखने लगे। वह फिर से बोला, "क्या तुम लोगों को सुनाई नहीं दिया? मैंने कहा ना, सब के सब यहां से बाहर निकलो!"
ओम यह सब बोल ही रहा था कि अचानक ऊपर का पंखा जोर-जोर से हिलने लगा। ऐसा लगा जैसे वह किसी भी पल नीचे गिर जाएगा।
अचानक से पंखे को इस तरह हिलता देख, सभी स्टूडेंट्स डर के मारे कांपने लगे। क्लास की छत का पत्थर नीचे गिरने लगा। सभी में अफरा-तफरी मच गई।
जल्दी ही सभी स्टूडेंट्स वहां से भागने लगे। सबको समझ आ गया था कि ओम उन्हें क्लास से क्यों निकालने के लिए कह रहा था।
क्योंकि वहां एक बहुत भयानक भूकंप आया था। जिसकी वजह से पंखे, दीवारें, कॉलेज की दीवारें सब जर्जर हो चुकी थीं और नीचे गिरने लगी थीं। सभी स्टूडेंट्स बेखयाली में बाहर की ओर अपनी जान बचाकर भागने लगे।
सभी बाहर भागे, लेकिन संगीता का पैर डेस्क में उलझ गया। वह अकेली क्लासरूम में बच गई। ओम ने यह देख लिया। तब ओम उसके पास गया और उसका पैर निकालने की कोशिश करने लगा।
ओम को अपनी मदद करता देख, संगीता कुछ पल के लिए चौंक गई और उसे हैरानी से देखने लगी। लेकिन ओम का पूरा ध्यान उस टेबल से संगीता का पैर निकालने पर था। वह पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन वह नहीं निकल पा रहा था। संगीता का दुपट्टा डेस्क के नीचे उलझा हुआ था, वह भी फट चुका था।
संगीता को बहुत डर लगने लगा क्योंकि एक-एक करके कई क्लासरूम की ईंटें वहां गिरने लगी थीं। एक ईंट बिल्कुल संगीता के सर पर गिरने वाली थी, लेकिन तभी ओम ठाकुर ने अपना मजबूत हाथ संगीता के सिर के ऊपर रख दिया। ईंट सीधा ओम ठाकुर के हाथ पर जा गिरी और उसे चोट आई।
उसके बाद ओम ने जोरदार घूंसा उस डेस्क में मारा और उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए।
संगीता काफी हैरानी से ओम को देख रही थी। संगीता की जान बचाने के लिए ओम ने एक पल के लिए भी अपनी परवाह नहीं की थी। एक बहुत मजबूत पत्थर उसके हाथ पर गिरा था, लेकिन संगीता को बचाने के लिए उसने उसे अपने ऊपर ले लिया था। अब उसने डेस्क में घूंसा मारकर संगीता का पैर वहां से निकाल दिया था। लेकिन डेस्क में उसका पैर बुरी तरह कुचल गया था, इसलिए संगीता चल-फिर नहीं पा रही थी। इसीलिए ओम ने तेजी से संगीता को गोद में उठाकर बाहर ले आया।
कॉलेज में इमरजेंसी अलर्ट जारी कर दिया गया था। कुछ स्टूडेंट्स को काफी चोटें आई थीं।
काफी खौफनाक भूकंप आया था।
बहुत नुकसान हुआ था। कॉलेज में किसी की जान नहीं गई, लेकिन कई स्टूडेंट्स को चोट आई थी। कुछ को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।
संगीता के पैर पर पट्टी बांधी गई थी क्योंकि उसके पैर में काफी चोट आई थी।
संगीता बुरी तरह डर गई थी। ओम उसे समझाने की कोशिश कर रहा था।
संगीता डर के मारे कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। केवल संगीता ही नहीं, बाकी सभी स्टूडेंट अचानक आए तूफान से बेहद शॉक में थे।
संगीता डरी-सहमी हॉस्टल रूम में थी। इतने तेज भूकंप के बाद सब कुछ एकदम खामोश हो गया था। संगीता अपने हॉस्टल रूम में बैठी अपने जख्मी पैर को देख रही थी। आज ओम ने जिस तरह से उसकी जान बचाई थी, वह बार-बार उसे याद आ रहा था।
लेकिन उसे कुछ और भी याद आया। आखिर अभय सर को कैसे पता चला कि भूकंप आने वाला है?
क्योंकि भूकंप आने से पहले ही उन्होंने सबको बाहर जाने को कह दिया था। उन्हें कैसे पता चला भूकंप आने वाला है?
आखिर ओम को अचानक से चक्कर क्यों आने लगे थे? और फिर उसने बाहर जाने के लिए क्यों कहा? और फिर अचानक भूकंप आ गया। संगीता सोच रही थी। वह अपनी सोच को कोई एक सिरा नहीं दे पा रही थी। काफी देर सोचने के बाद…
संगीता ने फिर खुद ही अपनी सोच को बेबुनियाद मान लिया।
और वह सोचने लगी कि उसे सर को धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि अभय सर ने अपनी जान जोखिम में डालकर उसकी जान बचाई थी।
संगीता ने सोच लिया था कि अगली सुबह सबसे पहले वह अभय सर को धन्यवाद देगी क्योंकि उन्होंने उसकी जान बचाई थी और उसे सही-सलामत क्लासरूम से बाहर ले आए थे। अगर वह वक्त पर उसे बाहर नहीं ले आते तो शायद आज वह जिंदा ना होती।
इन्हीं सब चीजों के बारे में सोचते हुए ना जाने वह कब सो गई।
वहीं ओम बेचैनी से अपने कमरे में इधर-उधर टहल रहा था। उसके तीनों दोस्त चुपचाप खड़े हुए थे। तब उनमें से गौरव ने थोड़ी हिम्मत करते हुए कहा, "लेकिन ओम, अगर किसी को यह पता चल गया कि तुम्हें भूकंप आने का एहसास कैसे हुआ, तो क्या जवाब दोगे?"
"सब ओम! मुझे इन सब चीजों की फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं सब देख लूँगा। अभी मुझे यह देखना होगा कि मनोहर ने मेरी म्यूज़िक की क्लास खत्म करवा दी थी और अब मुझे संगीता को बाहर निकलने का कोई और रास्ता खोजना होगा।"
ऐसा कहकर ओम कुछ सोचने लगा। और उसके तीनों दोस्त एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। वे अच्छी तरह जानते थे ओम से कुछ भी कहने का कोई मतलब नहीं है। वह वही करेगा जो उसका दिल चाहेगा क्योंकि ओम ठाकुर ने कभी किसी की बात सुनने के बारे में सोचा ही नहीं था। वह केवल अपनी बात दूसरों को सुनाना जानता था।
वहीं संगीता अगली सुबह जल्दी कॉलेज के लिए निकल गई।
और उसने देखा कॉलेज में मरम्मत का काम शुरू हो गया है क्योंकि भूकंप से कॉलेज को काफी नुकसान हुआ था।
तभी उसने ओम को आते देखा। आज वह कुछ अलग लग रहा था। आज ओम ने अपनी आँखों पर बड़ा सा चश्मा लगा रखा था, जिसमें वह शानदार लग रहा था।
पता नहीं आज संगीता को क्या हो गया था। वह ओम को देखे जा रही थी। तभी प्रिंसिपल उसके पास आकर बोलने से वह चौंक गई और पलटकर देखने लगी। मनोहर जी उससे पूछ रहे थे, "तुम तो ठीक हो ना? तुम्हें कहीं लगी तो नहीं?"
संगीता ने हाँ में सिर हिलाया, "सर, बस मेरे पैर में चोट लगी है जिससे मैं थोड़ा सही से नहीं चल पा रही हूँ, लेकिन कोई हड्डी नहीं टूटी है। एक-दो दिन में ठीक हो जाएगी।"
"ओह, आई सी। आराम करो।"
संगीता, अभी आने वाले तीन दिनों तक कॉलेज में कोई क्लासेस नहीं होगी क्योंकि अभी काफी सारा मरम्मत का काम बाकी है। इसलिए सारी क्लास ग्राउंड में होगी और केवल दो ही लेक्चर्स होंगे।
संगीता ने कहा, "पर सर, मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ।"
"कहिये।"
"मैं कल के हादसे के बाद बहुत डर गई हूँ। मेरे दिमाग से कल का हादसा नहीं निकल रहा है। मैंने बेहद करीब से मौत देखी थी कल… मैं अपने गाँव जाकर पिताजी से मिलना चाहती हूँ।"
संगीता के गाँव जाने की बात पर मनोहर उसे मना करते हुए बोले, "नहीं, तुम ऐसा सोचना भी मत। वो जमींदार और उसका बेटा तुम्हें चारों ओर ढूँढ रहे हैं। तुम्हारा गाँव जाना तुम्हारे माता-पिता को भी खतरे में डाल सकता है।"
जैसे ही संगीता ने यह सुना, उसकी आँखें नफ़रत से भर गईं। और उसे एक बार फिर ओम ठाकुर से नफ़रत होने लगी। उसने ओम को आज तक नहीं देखा था, लेकिन बिना देखे ही वह उससे नफ़रत करने लगी थी। अगर उसका बस चलता तो वह एक पल में उसकी जान ले लेती।
संगीता अपनी वजह से अपने माँ-बाप की जान खतरे में नहीं डाल सकती थी। इसीलिए संगीता ने गाँव जाने का प्लान छोड़ दिया।
तभी संगीता को अपने ऊपर किसी की गहरी नज़र महसूस हुई। उसने चारों ओर देखा, तब उसने देखा ओम उसे घूर रहा था।
दोनों ने एक-दूसरे को देखा, फिर एक साथ नज़रें झुका लीं।
उसके बाद जैसे-तैसे क्लासेस खत्म हुईं। तीन दिनों तक उन दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई।
क्योंकि ओम संगीता को ढूँढने में बिजी था। उसने रिकॉर्ड रूम में सभी छात्रों की डिटेल खंगाली, लेकिन उसे कुछ भी हाथ नहीं लगा।
ओम का गुस्सा अब बढ़ता जा रहा था। उसे जल्द से जल्द संगीता चाहिए थी। उसने सोचा अगर एक हफ़्ते के अंदर-अंदर संगीता उसे नहीं मिली तो वह सीधा मनोहर से जाकर उसके बारे में पूछेगा।
संगीता का मन अजीब सा हो रहा था। इसलिए वह थोड़ी देर लाइब्रेरी में जाकर बैठ गई और शांति से एक किताब में खो गई।
बहुत कम लोग वहाँ पढ़ने जाते थे।
संगीता को बस कुछ समय अकेले बिताना था ताकि आगे की सिचुएशन के लिए वह खुद को तैयार कर सके। संगीता ने खुद को बहुत बदल लिया था। वह अब कोई कमज़ोर बेसहारा लड़की नहीं थी। वह अब एक मज़बूत और हर प्रॉब्लम से लड़ने वाली लड़की थी।
संगीता कुछ और बुक्स लेने ऊपर सीढ़ियों पर चढ़ गई। वह बुक्स देखने में इतनी खो गई कि उसकी सीढ़ी गिरने ही वाली थी कि एकाएक एक मज़बूत बाहों ने उसे थाम लिया।
वह कोई और नहीं, बल्कि ओम ठाकुर था। ओम ठाकुर संगीता को कमर से पकड़ लेता है। उस वक्त ओम संगीता के बहुत करीब था। उसके होंठ उसके माथे को छू रहे थे और उसके बालों की खुशबू ओम को परेशान कर रही थी। आज तक ओम ठाकुर को ऐसी फीलिंग कभी नहीं आई थी। ओम कुछ देर तक संगीता को इसी तरह देखता रहा।
लेकिन उस सेक्शन की सारी किताबें नीचे गिर गईं।
ओम उस पर चिल्लाया, "हे लड़की! तुम्हारा ध्यान आखिर कहाँ रहता है? तुम्हें क्या खबर नहीं रहती तुम्हारे साथ क्या होने वाला होता है?"
संगीता ओम के इस व्यवहार से नाराज़ होकर बोली, "देखिए सर, मैं अगर गिर रही थी तो गिरने देते। मैंने बोला था क्या आपसे कि आप मुझे बचाएँ?"
"तुम कितनी बदतमीज़ हो! एक तो मैंने तुम्हें गिरने से बचाया, मेरे शुक्रिया अदा करने की जगह तुम मुझसे बहस कर रही हो!" ओम ने गुस्से से कहा।
संगीता बिना उसकी बात का जवाब दिए बिखरी हुई सारी किताबें उठाना शुरू कर देती है।
उसको शांत देख ओम भी उसकी मदद करने लग जाता है। थोड़ी देर में वे सब किताबें रख देते हैं।
उसका चुप रहना ओम को अच्छा नहीं लग रहा था। बीच-बीच में वह उसे कुछ ना कुछ सुनाए जा रहा था।
लेकिन संगीता चुप थी।
तभी अचानक संगीता बोली, "अच्छा, आप एक बात बताओ, आपको कैसे पता चला भूकंप आने वाला है?"
अचानक ओम का सिर चकराने लगा और उसे कुछ विजुअल अजीब लगे, मानो वहाँ भूकंप आने वाला हो। ओम ने कक्षा के सभी बच्चों को बताया, "तुम सब यहाँ से बाहर निकल जाओ।" उसके कहने के साथ ही वहाँ तेज़ी से भूकंप आना शुरू हो गया।
संगीता लाइब्रेरी में बैठकर किताबें पढ़ रही थी। ओम का व्यवहार बार-बार उसे याद आ रहा था। तभी, अचानक किताब निकालते समय वह गिरने वाली थी, लेकिन ओम ने उसे बचा लिया। कुछ पल के लिए उनकी आँखें एक-दूसरे से टकराईं।
फिर ओम उस पर चिल्लाया, "हे लड़की! तुम्हारा ध्यान आखिर कहाँ रहता है? तुम्हें क्या खबर नहीं रहती कि तुम्हारे साथ क्या होने वाला होता है?"
ओम संगीता की आँखों में देखते हुए बोला, "हर वक़्त अपने आप को मुसीबत में डालने की आदत है क्या तुम्हारी?"
ओम के कहने पर संगीता चुप रही। उसके दिमाग में यह चल रहा था कि आखिर ओम सर को कैसे पता चला कि भूकंप आने वाला है, और उन्होंने बच्चों को ठीक उसी वक़्त बाहर जाने के लिए क्यों कहा?
अपने मन में चल रहे सवाल को उसने दबाया नहीं। उसने ओम से पूछा, "सर, आपको कैसे पता चला कि भूकंप आने वाला है?"
ओम इस सवाल के लिए तैयार नहीं था। अचानक पूछे गए सवाल से वह हड़बड़ा गया और किसी बहाने से लाइब्रेरी से बाहर चला गया। जैसे ही संगीता ने सवाल किया, ओम उसे घूर कर देखने लगा और बिना जवाब दिए चला गया।
ओम सोच रहा था, "आखिर यह लड़की अपने आप को समझती क्या है? इसकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस तरह का सवाल पूछने की? यह सवाल किसी के मन में नहीं आया, तो आखिर इस लड़की के मन में क्यों आया?" ओम गुस्से से पागल हो रहा था और इधर-उधर टहलने लगा। वह सोच रहा था, "वह लड़की कौन होती है मुझसे सवाल करने वाली? मैंने क्यों उसकी मदद की? हाउ डेयर शी!"
ओम का सवाल का जवाब दिए बिना चले जाना देखकर संगीता बेहद चौंक गई। वह हैरानी से ओम को जाते हुए देखती रही और सोचने लगी कि आखिर उसने ऐसा क्या पूछ लिया था जिससे ओम सर इतने गुस्से में आ गए थे। अपने विचारों को नकारते हुए वह अपनी कक्षा की ओर चली गई।
उसके बाद संगीता क्लास में चली गई। एक पीरियड खत्म होने के बाद ओम का पीरियड शुरू होने वाला था। जैसे ही ओम क्लासरूम में आया, उसकी नज़र सबसे पहले संगीता पर पड़ी।
संगीता को देखते ही ओम के दिमाग में फिर से उसका सवाल घूमने लगा। ओम अपने गुस्से पर काबू करते हुए स्टूडेंट्स को लेक्चर देना शुरू कर दिया। ओम का पीरियड चल ही रहा था कि...
तभी, मनोहर के साथ तीन-चार बिज़नेसमैन जैसे लोग आये और सभी चौंक गए।
मनोहर आगे बढ़कर बोला, "गुड मॉर्निंग स्टूडेंट्स! इनसे मिलिए, ये हमारे कॉलेज के ट्रस्टी हैं। ये आप लोगों से कुछ बात करना चाहते हैं। आप सब उनकी बातें ध्यान से सुनिए, ओके?"
सभी ने मनोहर के साथ आए लोगों को खड़े होकर अभिवादन किया और मनोहर के कहने अनुसार उनकी बातें ध्यान से सुनीं। मनोहर संगीता पर गहरी नज़र डाल रहा था। संगीता ने कई बार मनोहर की ओर देखा, पर उसकी नज़रें बार-बार ओम ठाकुर पर जाकर ठहर रही थीं क्योंकि उसे अभी तक अपने सवालों के जवाब नहीं मिले थे।
तभी, मनोहर के साथ आए लोगों में से एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति आगे आया और बोला,
"डियर स्टूडेंट्स, मेरा नाम विक्रांत सिंह है और मैं आज यहाँ आप लोगों को एक ज़रूरी बात बताने आया हूँ। ठीक दो दिन बाद कॉलेज में एक बहुत बड़ा फंक्शन होने वाला है।"
"और उसमें हमारे स्टेट के मुख्यमंत्री चीफ गेस्ट के रूप में आयेंगे। आपके पास तैयारी करने का बहुत कम समय है। आपको बेस्ट से बेस्ट प्रोग्राम पेश करने होंगे जिससे वे इम्प्रेस हो सकें। जानता हूँ बेहद कम समय है, पर प्लीज़, कॉलेज की रेपुटेशन का सवाल है।"
"और हाँ, इस फंक्शन को ऑर्गेनाइज़ करने की पूरी ज़िम्मेदारी कविता मैडम और प्रोफ़ेसर श्याम को दी गई है। तो बस, आप लोगों को जैसा वे कहें, वैसा ही फॉलो करना है। ओके, थैंक यू। गॉड ब्लेस एंड बेस्ट ऑफ़ लक स्टूडेंट्स एंड टीचर्स।"
फंक्शन की अनाउंसमेंट सुनकर मनोहर कुछ परेशान से हो गए। वह परेशानी से संगीता की ओर देख रहे थे। अचानक इस फंक्शन के बारे में उन्हें दूर-दूर तक कोई खबर नहीं थी।
तभी मनोहर के साथ आए लोग जाने लगे और मनोहर उन्हें बाहर तक छोड़ने गया। उन सबके जाने के बाद ओम ठाकुर के चेहरे पर एक खतरनाक सी मुस्कान आ गई। संगीता ने ओम को इस तरह मुस्कुराते हुए देखा। लेकिन जैसे ही ओम की नज़र संगीता पर पड़ी, वह मुस्कुराना बंद कर दिया और उसे दिन की क्लास ख़त्म करके वहाँ से निकल गया।
देखते-ही-देखते पूरे कॉलेज में फंक्शन की तैयारी शुरू हो गई।
संगीता आज कुछ उदास सी थी। वह सीधे अपने हॉस्टल के कमरे में जाकर बेड पर ओंधे मुँह लेट गई। तभी रीमा उसके पास आई और पूछा, "तुम्हें आज क्या हुआ है? इतनी उदास क्यों हो?"
संगीता बैठ गई और बोली, "ऐसी कोई बात नहीं है, लेकिन न जाने क्यों मेरा मन बहुत बेचैन हो रहा है। ऐसा लग रहा है कि शायद कुछ होने वाला है।" रीमा ने संगीता की बात सुनकर कहा, "तुम जानती हो गीता, जब से तुम मुझे मिली हो, मेरी ज़िन्दगी में आई हो, पता नहीं क्यों तुमसे बात करके मुझे ऐसा लगता है कि मेरी सारी टेंशन, सारी फ़िक्र ख़त्म हो गई हो। अजीब सी कशिश है तुम्हारी आवाज़ में। ऐसा दिल करता है कि बस सारा दिन तुम्हारी आवाज़ सुनती रहूँ। और मुझे इस बात को लेकर परेशानी हो रही है कि तुम ही आज परेशान हो और इतनी उदास हो, तो मैं तो तुम्हें यही सलाह दूँगी कि तुम एक बार अपनी आवाज़ सुन लो, उसके बाद तुम खुद को बेहतर फील करोगी।"
रीमा की बात सुनकर संगीता चौंक गई और जल्दी से बात साफ़ करते हुए बोली, "अरे नहीं-नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है। बस आज दिल उदास है। मुझे मेरे पेरेंट्स की बहुत याद आ रही है। और ये क्या तुमने आवाज़ सुनकर अच्छा लगा रखा है? मैं कोई जादूगर थोड़ी ना हूँ?"
ऐसा कहकर संगीता ने रीमा से पीछा छुड़ाया और नहाने के बहाने से वॉशरूम में घुस गई। रीमा ने ज़्यादा न सोचते हुए कहा, "ठीक है, तुम नहाकर आओ, उसके बाद हम दोनों गरमा-गरम कॉफ़ी पीने बाहर चलेंगे। और हाँ, मेरी बातों का बुरा मत मानना, मैं तो सिर्फ़ मज़ाक कर रही थी।" ऐसा कहकर किसी को कॉल पर बात करते हुए रीमा कमरे से बाहर निकल गई।
वहीं ओम अपने तीनों दोस्तों के साथ एक कॉफ़ी शॉप में बैठा था। कॉलेज के बाद वह अपने तीनों दोस्तों से किसी न किसी जगह पर मिलता था ताकि पूरे दिन की अपडेट ले सके। उसके तीनों दोस्त भी संगीता को ढूँढने की कोशिश कर रहे थे। कोई लाइब्रेरी के रिकॉर्ड देख रहा था, तो कोई स्कूल के रिकॉर्ड्स। लेकिन किसी को कुछ पता नहीं चल पा रहा था क्योंकि मनोहर जी ने संगीता का कोई प्रूफ़ नहीं रखा था।
ओम ने रोहन से कहा, "आखिर तुम लोग क्या कर रहे हो? अभी तक हम इस छोटे से कॉलेज में एक मामूली सी लड़की को नहीं ढूँढ पा रहे हैं। कितनी बार कहा है, वह एक गाँव की लड़की है, उसे ढूँढना इतना मुश्किल क्यों हो रहा है तुम्हारे लिए?"
ओम की बात सुनकर मयंक खुद को रोक नहीं पाया और बोला, "लेकिन यह बात तू भी अच्छी तरह से जानता है कि हम लोग अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं। और तू भी तो उस कॉलेज का प्रोफ़ेसर है ना? तूने क्या किया? तूने अब तक उसे क्यों नहीं ढूँढा?"
अपने दोस्त की बात सुनकर ओम का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। उसने अपनी आँखें लाल कर ली थीं।
ओम की लाल आँखें देखकर उसके तीनों दोस्त डर गए और मयंक को घूरने लगे। वह बचपन से ओम को जानता था। ओम बचपन से ही किसी की सुनने की आदत नहीं था। अगर कोई उसे उल्टा जवाब देता था, तो उसे बहुत गुस्सा आ जाता था।
ओम को गुस्से में देखकर गौरव उसे संभालते हुए बोला, "ओम, प्लीज़ शांत हो जाओ। यहाँ बहुत भीड़-भाड़ वाला इलाका है। यहाँ पर अगर तुम अपने असली रूप में आ गए, तो तुम्हारी असलियत सबके सामने आ जाएगी। यह न तो तुम्हारे लिए अच्छा होगा और न ही हम लोगों के लिए। भलाई इसी में है कि तुम शांत हो जाओ। हम तुम्हारे दोस्त हैं, हम तुम्हें कुछ गलत नहीं कह रहे हैं। हम बचपन से तुम्हारे साथी हैं। आखिर कब तक तुम हमें इस तरह से डरा-धमका कर रखोगे? कम से कम अपने दोस्तों को इतना हक़ तो देना चाहिए कि वे सही-गलत तुमसे कह सकें।" गौरव ने जैसे ही बात ख़त्म की, आस-पास के माहौल को देखकर ओम थोड़ा शांत हुआ।
लेकिन उसका गुस्सा अभी ख़त्म नहीं हुआ था। गौरव ने कहा, "तुम फ़िक्र मत करो। अभी कॉलेज में जो फंक्शन होने वाला है, मुझे लगता है संगीता उसमें ज़रूर भाग लेगी क्योंकि उससे अच्छा कोई गाना नहीं गा सकता है। और जैसे ही वह गाना गाएगी, हम उसे पहचान लेंगे। तो हमें कॉलेज के फंक्शन का इंतज़ार करना चाहिए।" ओम को भी गौरव की बात ठीक लगी और उसने हाँ में सर हिला दिया।
तभी मयंक ने भी ओम के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, "ओम, हम तीनों बचपन से ही तुझे अपना दोस्त, अपना भाई मानते हैं। और हम यह कभी नहीं चाहते कि तुझे किसी भी तरह की कोई परेशानी हो। बदले में हम तुझसे भी तेरी दोस्ती चाहते हैं। हम जानते हैं तू हमारा बहुत ध्यान रखता है, हर चीज हमें प्रोवाइड करता है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है ना कि हम तुझसे अपने दिल की खुलकर बात भी नहीं कर सकते हैं।"
वहीं दूसरी ओर, पूरे कॉलेज में फंक्शन की तैयारी जोरों-शोरों से शुरू हो गई थी।
कविता मैडम ने कुछ लड़कियों को डांस करने के लिए तैयार किया, कुछ लड़कों को स्पीच और एक रोमांटिक ड्रामा, और कुछ को कॉमेडी शो के लिए। अलग-अलग तरह के प्रोग्राम सेट कर दिए गए थे और सभी अपनी-अपनी तैयारी में व्यस्त हो गए थे। गाना गाने के लिए कॉलेज के फंक्शन में पहले से ही गाती आ रही तीन लड़कियों को चुना गया था। सभी स्टूडेंट्स कड़ी मेहनत कर रहे थे। संगीता ने अपने आप को सभी प्रोग्राम से दूर रखा था।
वही दूसरी ओर, पूरे कॉलेज में फंक्शन की तैयारी जोरों-शोरों से शुरू हो गई थी।
कविता मैडम ने कुछ लड़कियों को डांस करने के लिए तैयार किया, कुछ लड़कों को स्पीच देने और एक रोमांटिक ड्रामा करने के लिए, और कुछ को एक छोटा कॉमेडी शो करने के लिए।
कुछ लोग वहाँ पर रोमियो-जूलियट का रोमांटिक ड्रामा कर रहे थे।
वहाँ रोमियो-जूलियट का नाटक चल रहा था। लड़का, हाथों में फूल लिए, जूलियट को प्रपोज़ कर रहा था। संगीता उन सबको देख रही थी और उसमें कहीं खो सी गई थी।
अलग-अलग तरह के कई कार्यक्रम तय कर दिए गए थे और सभी अपने-अपने किरदार की तैयारी में व्यस्त हो गए थे।
गाना गाने के लिए, तीन लड़कियों को चुना गया था, जो शुरू से ही कॉलेज के फंक्शन में गाती आ रही थीं।
सभी स्टूडेंट्स कड़ी मेहनत कर रहे थे। संगीता ने खुद को सभी कार्यक्रमों से दूर रखा था।
उसने किसी भी कार्यक्रम में भाग लेने से मना कर दिया था।
संगीता रीमा के साथ कॉलेज कैंटीन में बैठी थी; वह कहीं खोई सी हुई थी।
संगीता अपने हालातों से भागते हुए अब थक गई थी। वह सोच रही थी कि आखिर उसकी ज़िन्दगी सामान्य क्यों नहीं हो सकती है।
आखिर क्यों ओम ठाकुर ने उसकी पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी थी? आज केवल एक इंसान की वजह से वह अपने घर, अपने प्यारे गाँव, और सबसे बड़ी बात, अपने प्यारे संगीत से हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो गई थी।
संगीता ने कभी नहीं सोचा था कि उसकी ज़िन्दगी में ऐसा समय भी आएगा।
वह बिना देखे ही उस जमींदार के बेटे से नफ़रत करने लगी थी।
आज, एक शख्स की वजह से, वह अपने घर से दूर थी; अपने गाँव से, जहाँ उसे कितना मान-सम्मान और प्यार मिलता था।
और उसकी वजह से, उसका गाना—उसके गाने के सहारे ही तो वह जीती थी—और अब महीनों से उसने गाना भी नहीं गाया था, जिसे गाए बिना वह एक दिन भी नहीं रह सकती थी।
तभी ओम वहाँ से गुज़रा और संगीता को इतनी उदास देखकर, ना जाने क्यों उसका मन उदास हो गया।
वह, ना चाहते हुए भी, उसके पास चला गया और रौबदार आवाज़ में बोला,
"तुम दोनों यहाँ क्या कर रही हो? क्या तुम कॉलेज फंक्शन में पार्टिसिपेट नहीं कर रही हो?"
"या तुम लोगों को कुछ आता ही नहीं है?"
इतने में संगीता बोली, "सर, आप अपने काम से काम रखिए। हम फंक्शन में हिस्सा लें या ना लें, यह हमारा फ़ैसला है। हमें क्या आता है, क्या नहीं, यह हमें आपको बताने की ज़रूरत नहीं है।"
संगीता की बात सुनकर ओम तप गया।
और फिर कुछ सोचकर वह संगीता के पास गया और बोला, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे इतना रूडली बिहेव करने की? तुम आखिर समझती क्या हो अपने आप को? क्या तुम्हें पता नहीं मैं तुम्हारा प्रोफ़ेसर हूँ, और प्रोफ़ेसर से किस तरह बिहेव करना चाहिए? क्या तुम्हें कुछ नहीं आता है?"
संगीता का अपने प्रोफ़ेसर को देखकर मूड खराब हो चुका था। उसने कहा, "देखिए सर, मैंने आपसे कहा ना, मुझे आपसे बात करने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। सो प्लीज, आप अपने काम से काम रखिए। ठीक है? मेरा आपसे कुछ भी कहने या बोलने का बिल्कुल इरादा नहीं है।"
संगीता ने ओम को बुरी तरह से लताड़ दिया था, जिससे ओम को बहुत ज़्यादा गुस्सा आ गया था। वह अपने तीनों दोस्तों के साथ, संगीता पर गहरी नज़र डालते हुए, पैर पटकते हुए वहाँ से चला गया।
संगीता सारी क्लासेस छोड़कर सीधी हॉस्टल में चली गई।
वहीं ओम ठाकुर को संगीता की बात पर बहुत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था, और उसकी आँखों में नींद दूर-दूर तक कहीं नहीं थी।
क्योंकि कैंटीन में जब संगीता ओम ठाकुर पर चिल्ला रही थी, तब उसके तीनों दोस्त वहाँ मौजूद थे, और उन्होंने संगीता की एक-एक बात सुन ली थी। और वह तीनों ओम का मज़ाक उड़ाने लगे थे।
ओम गुस्से से उस वक़्त वहाँ से चला गया था, लेकिन अब रात के समय उसे संगीता का व्यवहार याद आ रहा था, और उसका गुस्से के मारे बुरा हाल था। क्योंकि उसे बिल्कुल भी नींद नहीं आ रही थी, और वह सोचने लगा था, आखिर क्यों वह लड़की मुझे इतना परेशान करती है?
क्यों? उसकी उदासी देखकर मेरा दिल बेचैन हो उठा था। ऐसा क्यों? आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई है ओम ठाकुर के सामने सर उठाने की भी, लेकिन यह लड़की, यह लड़की मुझसे बदतमीज़ी कर बैठी, और मैं उसे कुछ भी नहीं कह पाया।
आखिर क्या हो गया था मुझे? क्या मैं पागल हो गया हूँ? अब जब तक उस लड़की को मैं सबक नहीं सिखा लेता, तब तक मुझे नींद नहीं आएगी।
यह सोचकर ओम ठाकुर जल्दी ही गर्ल्स हॉस्टल की ओर रवाना हो चुका था। वहीं संगीता रीमा के साथ बातें कर रही थी।
लेकिन ठीक उसी वक़्त रीमा के पास एक कॉल आया, जिसमें उसे बताया गया कि उसका कोई परिवार का सदस्य उससे मिलना चाहता है।
तो उसे हॉस्टल के वेटिंग रूम में जाना होगा। रीमा चौंक गई थी, क्योंकि इस वक़्त किसी का उससे मिलने आना काफ़ी ज़्यादा अजीब था।
क्योंकि रात का समय था। तब संगीता ने उसे कहा, "हो सकता है कुछ इमरजेंसी हो। मुझे लगता है तुम्हें जाना चाहिए।"
संगीता की बात मानकर रीमा वेटिंग रूम की ओर चली गई।
लेकिन जैसे ही वह वेटिंग रूम में गई, किसी ने उसका दरवाज़ा बाहर से लॉक कर दिया।
और संगीता अकेली खिड़की पर खड़ी होकर बाहर की ओर देख रही थी, और तभी अचानक उसे अपने पीछे किसी का एहसास हुआ। वह कोई और नहीं, बल्कि ओम ठाकुर था।
जिसने रीमा को धोखे से बुलाकर उसे वेटिंग रूम में बंद कर दिया था और खुद उसके कमरे में आ पहुँचा था।
ओम संगीता के बिल्कुल पीछे खड़ा हुआ था। यहाँ तक कि संगीता के उड़ते हुए बाल उसके चेहरे पर पड़ रहे थे, लेकिन संगीता बेख़याली से बाहर की ओर देख रही थी।
वह खोई हुई थी कि तभी अचानक ओम ने अपना सर संगीता के कंधे पर रख दिया, और संगीता डर के मारे एकदम से पीछे पलट गई। ओम को अपने सामने देखकर वह बहुत ज़्यादा चौंक गई।
और फिर टूटी-फूटी जुबान में बोली, "आप...आप क्या कर रहे हैं? और आपकी हिम्मत कैसे हुई इस तरह से लेडीज़ हॉस्टल में आने की?" संगीता ने एक बार फिर ओम से रूडली लहजे में बात की।
ओम ने गुस्से से संगीता के बालों को कसकर पकड़ लिया, और उसकी कमर पर हाथ लगाकर उसे अपने सीने से लगाते हुए बोला, "और तुम हो कौन? क्यों मुझे इतना परेशान करती हो?"
"तुम जानती हो, आज तक किसी ने भी मुझे इस तरह से बदतमीज़ी से बात नहीं की है, और अगर किसी ने करने की कोशिश भी की है, तो वह ज़िंदा नहीं बचा है। मेरी एक बात तुम कान खोलकर सुन लो, आगे से ओम ठाकुर के सामने आने की सोचना भी मत।"
भावेश में ओम ठाकुर संगीता को अपना असली नाम बता बैठा था। ओम ठाकुर का नाम सुनकर संगीता चौंक गई और बोली, "ओम ठाकुर? आप क्या कह रहे हैं?" तभी ओम ने बात बदलते हुए कहा,
"मेरा मतलब है, अभय प्रताप सिंह के सामने आने के बारे में सोचना भी मत। मानना, मैं तुम्हारी जान लेने में एक पल भी नहीं लगाऊँगा। समझी तुम?"
संगीता ओम की बदलती हुई बात को देखकर चौंक गई और हैरानी से ओम की ओर देखने लगी, कि तभी ओम को एहसास हो गया कि वह गलती से अपना असली नाम संगीता को बता बैठा था।
तब उसने संगीता के हाथों को पकड़कर दीवार पर लगा दिया, और खुद उसके करीब जाकर बोला, "तुम मेरा असली नाम जान चुकी हो, तो मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो, किसी को भी मेरा असली नाम बताने की कोशिश मत करना।"
"इस कॉलेज में मैं एक मकसद से आया हूँ। जैसे ही मेरा वह मकसद पूरा हो जाएगा, मैं यहाँ से चला जाऊँगा। लेकिन तुम तब तक किसी को भी मेरे बारे में..."
"अगर तुमने बताने की कोशिश की, या मेरा असली नाम किसी को बताने की कोशिश की, तो मैं तुम्हारी जान ले लूँगा। याद रखना।"
ओम संगीता को धमकी देने में इतना उसके करीब हो गया था कि उनके शरीर आपस में टकराने लगे। ओम संगीता को इतने करीब पाकर अपने होश खो बैठा था।
और उसके होंठ संगीता के होंठों से टकराने ही वाले थे कि अचानक संगीता और ओम दोनों की आँखें बंद होती चली गईं।
लेकिन तभी, इससे पहले कि उनके होंठ आपस में टकरा पाते, दरवाज़े पर रीमा की दस्तक होने लगी।
क्योंकि वेटिंग रूम में बंद होने के बाद उसने चिल्लाना शुरू कर दिया था, और उसे एक लड़की ने खोला था। फिर वह दौड़कर वापस अपने कमरे की ओर आ गई थी।
रीमा को दरवाज़े पर देखकर ओम अपने हसीन ख़्वाब से बाहर निकल आया, और वह खिड़की के रास्ते से पलक झपकते ही गायब हो गया। संगीता अपना मुँह खोले हुए उसे देखती रह गई।
एक बार फिर दरवाज़े पर दस्तक हुई। संगीता अपने ख़्यालों से बाहर निकली और दरवाज़ा खोलने गई।
उसने देखा रीमा गुस्से से पागल हो रही थी।
रीमा की हालत देखकर संगीता ओम ठाकुर को भूलकर उसे देखने लगी,
और उसे शांत कराने की कोशिश करने लगी। और जब वह थोड़ी शांत हुई, तब संगीता ने उससे पूछा कि आखिर हुआ क्या है।
तब रीमा ने उसे बताया कि हॉस्टल में किसी ने उसके साथ भद्दा मज़ाक किया है। उसे किसी ने वेटिंग रूम में बंद कर दिया था। "तू देखना, अगर मुझे पता चल गया कि मुझे किसने बंद किया था, तो मैं उसका ख़ून पी जाऊँगी!" रीमा बहुत गुस्से में थी और जो मन में आ रहा था, वह अपनी भड़ास निकाल रही थी।
और बोली, "तू जानती है गीता, मैं कितनी ज़्यादा डर गई थी!" ऐसा कहकर वह संगीता के गले लग गई।
और संगीता समझ गई कि रीमा के साथ यह हरकत किसने की थी।
तब संगीता ने रीमा को समझा-बुझाकर सुला दिया और उसे कहा कि कल कॉलेज में फंक्शन है, अगर वह सही से आराम नहीं करेगी तो फंक्शन कैसे अटेंड करेगी।
रीमा को सुलाने के बाद संगीता ओम ठाकुर के बारे में सोचने लगी, और उसे पता चल चुका था कि यह ओम ठाकुर जिस मकसद से वहाँ आया था, वह मकसद कोई और नहीं, बल्कि संगीता ही थी।
ओम के बारे में सोचकर संगीता का दिल नफ़रत से भर गया।
और वह मन ही मन बोली, "अब तुम देखो प्रोफ़ेसर ओम ठाकुर, मैं तुम्हें कैसे हराती हूँ।"
"तुम यहाँ मेरे लिए आए हो ना? अब देखो मैं तुम्हारे कितने करीब रहूँगी और तुम मुझे पहचान नहीं पाओगे।" कुछ सोचकर संगीता के चेहरे पर एक जहरीली मुस्कान आ गई।
वैल, आखिरकार फंक्शन का दिन आ गया था। आज संगीता ने फंक्शन के लिए कुछ अलग हटकर तैयार हुआ था।
संगीता ने ब्लू कलर की, हल्के वर्क वाली साड़ी पहनी थी। आज पहली बार उसने बाल खुले किए थे। हल्के मेकअप के साथ, वह बहुत ही सुंदर लग रही थी।
रीमा ने जैसे ही उसे देखा, उसने सीटी बजाई और कहा, “अगर मैं लड़का होता, तो तुझे भागकर ले जाता!” उसकी बात सुनकर वह बहुत हंसी।
रीमा और संगीता साथ में कॉलेज फंक्शन में गईं। उस दिन कॉलेज का हॉल बेहद खूबसूरत सजा हुआ था। सभी ने काफी मेहनत की थी।
संगीता ने जैसे ही हॉल में एंट्री की, सबकी नज़र उस पर पड़ी। सभी उसे देखने लगे थे। जितनी लड़कियाँ शुरू-शुरू में उसका मज़ाक उड़ाती थीं, वे सब आज उसे देखकर जल-भुन गई थीं।
और जैसे ही ओम की नज़र संगीता पर पड़ी, वह उसे देखने लगा। ना जाने ओम को क्या हो गया था। उसे बार-बार संगीता को देखना अच्छा लग रहा था। उसका दिल बार-बार संगीता की ओर खिंचा चला जा रहा था। हालाँकि वह वहाँ आया भी संगीता के लिए ही था, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि जिस ओर वह खिंचा चला जा रहा है, वही है जिसके लिए वह वहाँ आया था। उसने संगीता पर एक नज़र डालकर अपनी नज़रें फेर लीं। उसे बस संगीता को ढूँढना था, जो उसके सामने होकर भी सामने नहीं थी।
संगीता की नज़रें भी ओम पर पड़ चुकी थीं। वह ओम को अपनी ओर देखते हुए भी देख चुकी थी और उसे नज़रें चुराते हुए भी देख चुकी थी। जल्दी ही संगीता को कल रात जो कुछ भी हुआ था, वह सब कुछ याद आ गया था। वह समझ गई थी कि उसके सामने कोई अभय प्रताप सिंह नहीं, बल्कि ओम ठाकुर खड़ा हुआ था—उस जमींदार का बेटा, जिससे बचकर उसके पिता उसे इस शहर में लाए थे।
संगीता का दिल एकदम से ही ओम को देखते ही नफ़रत से भर गया था। लेकिन वह अपना सपाट चेहरा लिए, ओम के बराबर में से गुज़र गई थी। उसने एक बार भी ओम की ओर पलट कर नहीं देखा था। ओम को ना जाने क्यों संगीता का इस तरह से जाना बहुत ही ज़्यादा बुरा लगा था।
खैर, उसने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उसका ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ संगीता को ढूँढने पर था। जिसके लिए उसने आज अपना एक परफेक्ट प्लान भी तैयार किया था। कुछ सोचकर वह अपने तीनों दोस्तों को कॉल करने लगा था। क्योंकि उसने अपने दोस्तों को एक काम दिया था, और वह काम हुआ है या नहीं हुआ है, यही जानने के लिए उसने अपने दोस्तों को एक सीक्रेट जगह पर मीटिंग करने के लिए बुला लिया था।
इस बीच, संगीता की पूरी नज़रें ओम पर ही थीं, लेकिन उसने उन्हें इस बात का एहसास नहीं होने दिया था कि वह संगीता की नज़रों के घेरे में है।
संगीता को जैसे एहसास हुआ कि ओम सीक्रेटली कहीं जा रहा है, तो वह भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ी। वह इस तरह से चल पड़ी थी कि कोई भी उसे देख नहीं पा रहा था। क्योंकि आज सभी के सभी फंक्शन में बिजी थे, तो पूरा का पूरा कॉलेज खाली था। सभी लोग कॉलेज के बड़े से हॉल में जमा थे। लेकिन संगीता ने देखा कि ओम ऊपर की ओर जा रहा था। संगीता धीरे-धीरे ओम का पीछा करते हुए ऊपर जाने लगी थी। वह यह देखना चाहती थी कि आखिर संगीता को ढूँढने के लिए ओम क्या प्लान बनाता है। उसी का पता करने के लिए वह उसके पीछे-पीछे चल पड़ी थी।
संगीता बड़ी ही सावधानी से ऊपर की ओर जा रही थी। लेकिन वह भूल गई थी कि जिसका वह पीछा कर रही थी, वह कोई आम आदमी नहीं था। वह एक खूनी पिछास था, जो आधा इंसान तो आधा वैम्पायर था। ओम ठाकुर को एहसास हो चुका था कि ज़रूर उसके पीछे कोई न कोई था। और यह देखने के लिए वह एक तरफ छिप गया था। वहीं संगीता जैसे ही आगे बढ़ रही थी, तभी उसका पैर मुड़ गया और उसके पैर में मोच आ गई थी। तो वह वहीं एक ही जगह बैठ गई थी। जब ओम को काफी देर छिपे हुए हो गई थी, तब उसे लगा कि शायद उसकी वहम थी, कोई उसके पीछे नहीं था।
लेकिन संगीता अभी वहीं बैठी हुई थी, क्योंकि उसको काफी ज़्यादा दर्द हो रहा था। तो वह चल नहीं पा रही थी। लेकिन इस वक्त उसका ओम के पीछे जाना ज़्यादा ज़रूरी था, ताकि वह जान सके कि ओम करना क्या चाहता है।
फिर संगीता धीरे-धीरे दीवार का सहारा लेकर ऊपर की ओर बढ़ने लगी थी। और जल्दी ही उसके कानों में कुछ आवाज़ पड़ने लगी थी।
ओम ठाकुर अपने दोस्तों से कह रहा था, “आज का काम हुआ है या नहीं हुआ है? मैंने तुम लोगों से कहा है, मुझे हर हाल में संगीता चाहिए। मुझे फ़र्क नहीं पड़ता, चाहे किसी की भी जान लेनी पड़े, तो ले लो। लेकिन संगीता हर हाल में चाहिए। उनकी ड्रिंक में दो डोज़ और बढ़ा दो। किसी भी तरह की लापरवाही नहीं होनी चाहिए।” ओम ना जाने अपने दोस्तों को क्या इंस्ट्रक्शन दे रहा था। संगीता ने जैसे ही यह सुना, वह कांप गई थी। क्योंकि ओम बहुत ही ज़्यादा खूंखार लग रहा था बोलते हुए।
संगीता सोचने लगी थी, आखिर यह लोग किसकी डोज़ बढ़ाने की बात कर रहे थे? आखिरकार यह लोग करना क्या चाह रहे थे? संगीता को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। लेकिन वह इतना तो समझ गई थी कि ज़रूर ओम ने कुछ बड़ा प्लान किया है। यह सोचकर संगीता जैसे ही वापस जाने के लिए मुड़ी, अचानक से उसके पैर में फिर से तेज दर्द हो गया। उसकी एक चीख निकल गई। हालाँकि उसकी चीख बहुत हल्की थी, लेकिन वह ओम के कानों तक पहुँच गई थी। क्योंकि ओम में कुछ ज़्यादा ही तेज सुनने की शक्ति थी।
अब ओम ने अपने दोस्तों को चुप रहने का इशारा किया और वहाँ से जाने के लिए कह दिया। लेकिन तब तक संगीता धीरे-धीरे चलते हुए नीचे सेकंड फ़्लोर पर आ गई थी। लेकिन ओम उसे हर जगह ढूँढ रहा था। क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि ज़रूर कोई न कोई उसकी बात सुन रहा था। संगीता की हल्की सी चीख उसके कानों में गूंजने लगी थी।
और तभी अचानक ओम एक झटके से संगीता के सामने जाकर खड़ा हो गया था। अचानक से ओम को अपने सामने देखकर संगीता पूरी तरह से काँप कर रह गई थी। लेकिन फिर वह खुद को संभालते हुए बोली थी, “आप… आप अभय सर… आप यहाँ क्या कर रहे हैं?”
संगीता की बात सुनकर ओम उसे गहरी नज़रों से देखने लगा था। मानो वह अपनी ही आँखों ही आँखों में उसका सच जानना चाहता था। लेकिन संगीता ने किसी भी तरह का कोई भी भाव अपने मुँह पर आने नहीं दिया था। तब ओम ने एक कड़क आवाज़ में पूछा था, “तुम यहाँ क्या कर रही हो? तुम्हें तो हॉल में होना चाहिए था ना? क्या तुम मेरा पीछा कर रही थी?” ओम ने अनायास ही संगीता से यह पूछ लिया था।
ओम की बात सुनकर संगीता घबरा गई थी और बोली थी, “क्या कह रहे हैं आप? मैं आपके पीछे क्यों करूँगी? भला आपको अपने आप को लेकर कुछ ज़्यादा ही खुशफ़हमी नहीं है सर! मेरे पास और भी बहुत काम है। मैं आपका पीछा क्यों करूँगी? मुझे आपसे कोई लेना-देना नहीं है।” संगीता ने भी थोड़ा रूडली लहजे में बात की थी।
संगीता की बात सुनकर ओम तप गया था। तब संगीता वहाँ से आगे बढ़ने लगी थी। लेकिन जैसे ही उसने एक कदम रखा, उसकी फिर से चीख निकल गई। क्योंकि उसके पैर में अभी भी तेज दर्द हो रहा था। ओम ने तुरंत संगीता को आगे बढ़कर थाम लिया था और उसे एक कुर्सी पर बिठाते हुए बोला था, “क्या हुआ है? तुम्हें इस तरह से क्यों चिल्ला रही हो?”
ओम की बात सुनकर संगीता उसे हैरानी से देखने लगी थी और बोली थी, “मुझे कुछ नहीं हुआ है। मैं किसी काम से क्लास रूम में जा रही थी कि अचानक मेरा पैर मुड़ गया था। और आपको ज़्यादा सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है। आप आपके काम से काम रखिए। मुझे आपकी मदद की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं अपना काम खुद कर सकती हूँ।” संगीता ने दो-टूक शब्दों में बात खत्म की थी।
तभी ओम को संगीता का पैर सूजा हुआ दिखाई देने लगा था और वह समझ गया था कि संगीता को मोच आई है। ओम घुटनों के बल संगीता के पास बैठ गया था और उसने संगीता की आँखों में देखते हुए बोला, “सच बताओ, तुम क्या कर रही थी यहाँ? तुम मेरा पीछा कर रही थी ना?” ओम की बात सुनकर अब संगीता को गुस्सा आने लगा था। उसने कहा था, “मुझे आपका पीछा करने का कोई शौक नहीं है। मेरा आपसे कोई लेना-देना नहीं है, समझे आप?”
तभी ओम ने एक झटके से संगीता का पैर मोड़ दिया था। उसकी जो मोच आई हुई थी, वह एकदम से बिल्कुल ठीक हो चुकी थी। संगीता दर्द के मारे करहा उठी थी और उसने ओम के कंधे को कसकर पकड़ लिया था। इतनी कसकर कि उसके कुछ नाखूनों के निशान उसके कंधों पर गड़ गए थे। ओम ने बेरहमी से संगीता का हाथ झटक दिया था और बोला था, “तुम अब ठीक हो। अब और जाओ यहाँ से। दूसरी बार मेरे आस-पास भी नज़र मत आना। शायद कल रात मैंने तुम्हें क्या समझाया था, तुम अच्छी तरह से नहीं समझी हो क्या? एक बार और समझाऊँ तुम्हें?” ओम ने संगीता की आँखों में झाँकते हुए कहा था।
और अगले ही पल संगीता के सामने कल की सारी बातें घूमने लगी थीं कि किस तरह से वह एक-दूसरे के करीब आ गए थे। संगीता ने जल्दी से अपनी सोच को झटका और बोली, “मुझे आपके सामने आने का या आपसे बात करने का कोई शौक नहीं है, समझे आप? और आप भी मुझसे दूर रहिएगा।” ऐसा कहकर संगीता एक झटके से उठी और नीचे हॉल की ओर जाने लगी थी। वह उसे जाते हुए देख रहा था।
तभी ढोल की आवाज़ से सब चौंक जाते हैं। ओम भी ढोल की आवाज़ सुनकर नीचे हॉल में चला जाता है। और संगीता रीमा के पास जाकर खड़ी हो जाती है और फंक्शन देखने लगती है। उसकी नज़र ओम ठाकुर पर थी कि आखिर क्या प्लान किया है ओम ने।
वैल, सभी ढोल-नगाड़ों की ओर देखने लगे थे। सी.एम. साहब का स्वागत हो रहा था। और भी बड़े-बड़े कुछ लोग आए थे। बहुत ही शानदार फंक्शन था।
धीरे-धीरे सब आ जाते हैं और फंक्शन शुरू हो जाता है। एक के बाद एक परफ़ॉर्मेंस होती है। सभी एक से बढ़कर एक एक्ट करते हैं। हर कोई एन्जॉय कर रहा था।
कुछ देर बाद तीन लड़कियाँ गाना गाने के लिए आईं। लेकिन ये क्या? वे गाना गा ही नहीं पा रही थीं। एक साथ तीनों की आवाज़ खराब हो गई थीं। कोई नहीं जानता था अचानक तीनों लड़कियों को हुआ क्या है।
पर ओम मन ही मन मुस्कुरा रहा था, क्योंकि इसके पीछे उसी का हाथ था। संगीता ओम को मुस्कुराते हुए देख चुकी थी और वह समझ गई थी कि यह ओम का ही किया धरा था।
जादुई आवाज़ वाली लड़की को सामने लाने के लिए उसने पाँसा फेंका था। संगीता ओम के इस प्लान के बारे में जानकार मुस्कुराने लगी थी और उसने सोच लिया था कि उसे अब क्या करना है।
सबने जोरदार प्रदर्शन किया था। लेकिन अब अचानक गाने वाले परफ़ॉर्मेंस ने सब कुछ खराब सा कर दिया था, जिससे मनोहर जी काफ़ी मायूस हो गए थे। जितने भी लोग थे, सब बतियाने लगे थे। और सी.एम. साहब को इसमें अपनी बेइज़्ज़ती लग रही थी। और उन्होंने कॉलेज बंद कराने की धमकी दे दी थी। तभी अचानक गाने की आवाज़ आने लगी थी।
संगीता ओम ठाकुर की चाल समझ चुकी थी। वह समझ गई थी कि ओम ठाकुर ने उसे सामने लाने के लिए उन लड़कियों की आवाज अपने दोस्तों के द्वारा खराब करवाई थी ताकि कॉलेज की प्रतिष्ठा धूमिल हो जाए और मनोहर संगीता के सामने आकर उसे गाना गाने के लिए कहे। मनोहर जी काफी परेशान हो गए थे।
एक ओर उनके पूरे कॉलेज की प्रतिष्ठा थी, दूसरी ओर संगीता। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें।
लेकिन उन्होंने अपने गुरु जी, मास्टर जी को वादा कर रखा था कि वे संगीता को किसी भी कीमत पर किसी भी खतरे में नहीं डालेंगे। इसीलिए मनोहर जी ने कॉलेज की प्रतिष्ठा को खतरे में डालने का निर्णय ले लिया था, लेकिन उन्होंने संगीता को एक बार भी नहीं कहा था कि तुम गाना गाओ।
ओम बेसब्री से खड़ा हुआ संगीता की आवाज का इंतजार कर रहा था। जब संगीता ने देखा कि सभी लोग मनोहर जी पर गुस्सा करने लगे थे, उन पर भड़कने लगे थे, तो यह बात संगीता को बहुत बुरी लगी। और इसीलिए अचानक संगीता ने माइक लेकर पर्दे के पीछे से गाना गाना शुरू कर दिया।
जैसे ही संगीता की मधुर आवाज वहाँ गूँजी, सभी लोग जो कॉलेज को लेकर उल्टी-सीधी बातें कर रहे थे, मनोहर को उल्टा-सीधा सुन रहे थे, उनकी आँखें अपने आप बंद होती चली गईं।
संगीता का मधुर स्वर वहाँ गूंजने लगा। जितने भी लोग उस वक्त वहाँ बैठे थे, उनकी आँखें आनंद के मारे बंद होती चली गईं। सबको ऐसा लगने लगा कि वे किसी और ही दुनिया में आ गए हों। उनकी सारी परेशानी, सारी समस्याएँ, सारी चिंताएँ, सब कुछ उन्हें दूर होता हुआ नज़र आने लगा।
मनोहर भी संगीत की उस आवाज में डूब चुका था। ओम ठाकुर ने अपनी आँखें बंद करके वह भी संगीता की आवाज में कहीं खो गया था। ओम ठाकुर को लगा था कि जैसे ही संगीता गाना गाएगी, वह जाकर उसे ढूँढ़ेगा, उसे पकड़ लेगा। लेकिन अब यहाँ सब कुछ उलट-पुलट हो चुका था, क्योंकि ओम ठाकुर खुद संगीत के मधुर स्वर में खो चुका था। वह उस खूबसूरत सपने से बाहर नहीं आना चाहता था।
संगीता सभी को देख रही थी। कोई भी ऐसा व्यक्ति वहाँ नहीं था जिसकी आँखें बंद न हों। सभी लोग आँखें बंद करके संगीत के खूबसूरत स्वर का आनंद ले रहे थे और सभी दूसरी दुनिया में पहुँच चुके थे। किसी को एहसास ही नहीं था कि वे कहाँ बैठे हुए थे। संगीता ने लगभग पाँच मिनट तक गाना गाया। उसके बाद वह सबके बीच आकर खड़ी हो गई। जैसे ही संगीता की आवाज बंद हुई, सब ने अपनी आँखें खोलीं और सबको एहसास हुआ कि वे कहाँ हैं।
और सभी हैरानी से एक-दूसरे की ओर देखने लगे। जैसे ही ओम ठाकुर ने अपनी आँखें खोलीं और उसे एहसास हुआ कि यह सब क्या हुआ है, ओम का पारा बहुत ज़्यादा गरम हो गया। उसने कभी नहीं सोचा था कि संगीता की आवाज उसे भी पागल कर देगी, वह उसकी आवाज में इतना खो जाएगा कि उसे एहसास ही नहीं रहेगा कि उसे संगीता को पकड़ना था।
ओम जल्दी से उस स्टेज की ओर भागा जहाँ से संगीता की आवाज आ रही थी। लेकिन जब उसने वहाँ जाकर देखा तो वहाँ उसे अब कोई भी नज़र नहीं आ रहा था।
ओम गुस्से से चिल्ला उठा और भागकर पूरे कॉलेज में, पूरे हॉल में, हर जगह देखने लगा। लेकिन कहीं भी उस जादुई आवाज वाली लड़की का नामोनिशान तक नहीं था। ओम का गुस्से से बुरा हाल हो गया था। उसने कभी नहीं सोचा था कि संगीता का जादू उस पर भी चलेगा। उसे तो लगा था कि वह एक पिशाच है, वह किसी श्राप से शापित है, तो कोई भी, कैसी भी आवाज उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। लेकिन अब बड़ी मुसीबत उसके हाथ से निकल चुकी थी; संगीता को पाकर भी वह खो चुका था।
ओम की नज़र अपने तीनों दोस्तों मयंक, रोनित और गौरव पर पड़ी। उसने देखा कि तीनों के तीनों दोस्त अभी भी आँखें बंद किए हुए खड़े थे। उन्हें देखकर ओम को बहुत गुस्सा आया और वह गुस्से से उनके पास जाकर उसने उन तीनों को चिकोटी काट ली। तीनों एकदम से चिल्लाकर आँखें खोल लीं।
ओम ने अपने तीनों दोस्तों को बुरी तरह से डाँटा। तब मयंक ने उससे कहा, "भाई, इसमें हमारी कोई गलती नहीं है। आप भी तो उस लड़की की जादुई आवाज में खो गए थे। जब आप, जिसके पास इतनी सारी शक्तियाँ हैं, वह उस लड़की की आवाज में खो सकते हैं, तो हम लोग क्या? हम लोग तो वैसे ही मामूली इंसान हैं।"
मयंक की बात काफी हद तक सही थी।
लेकिन ओम का गुस्सा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था, क्योंकि उसका बना-बनाया पूरा प्लान खराब हो चुका था। ओम ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस लड़की को पकड़ने के लिए उसने जाल बिछाया था, वह लड़की सामने आकर भी इतनी आसानी से चली जाएगी और किसी को कुछ पता ही नहीं चलेगा। पूरे हॉल में अफरा-तफरी मची हुई थी।
वहीं मनोहर जी ने भी अपनी आँखें खोलकर चारों ओर संगीता को देखा। और जैसे ही उनकी नज़र संगीता पर पड़ी और संगीता की नज़र मनोहर जी पर पड़ी, उन दोनों की आँखें आपस में मिल गईं। संगीता ने अपनी आँखें नीचे कर लीं। मनोहर जी समझ गए थे कि संगीता के पास वाकई कोई जादुई आवाज है जिसकी वजह से वह अपना सारा दुख-दर्द सब कुछ भूल गए थे।
कुछ समय के लिए संगीता बाल-बाल बच गई थी। संगीता अपनी इस जीत के बाद ओम की शक्ल देखना चाहती थी। वह देखना चाहती थी कि हारने के बाद ओम कैसा लगता है। यही सोचकर वह ओम को ढूँढ़ती हुई कॉलेज के हॉल से बाहर आ गई।
और तब उसे एहसास हुआ कि ओम कहीं और नहीं, बल्कि लाइब्रेरी में है, क्योंकि उसके दोस्त रोनित की नौकरी लाइब्रेरी में ही थी और वे तीनों उस समय वहीं मीटिंग कर रहे थे।
तब संगीता हाथ में दो किताबें लेकर, उन्हें रिटर्न करने के बहाने से लाइब्रेरी की ओर चली गई। संगीता जैसे ही अंदर गई, उसके कानों में ओम की खूंखार आवाज पड़ी, "आज तुम लोगों की बेवकूफी की वजह से वह लड़की हाथ से निकल गई। अब समझ में नहीं आ रहा है कि कहाँ ढूँढ़ूँ उसे। मेरा दिमाग खराब हो रहा है!"
ऐसा कहकर उसने एक जोरदार मुक्का एक डेस्क पर मारा। ओम के मुक्के से डेस्क के दो टुकड़े हो गए। संगीता ओम का ऐसा रिएक्शन देखकर थोड़ी काँप उठी, लेकिन वह ओम के सामने नहीं गई।
लेकिन डर की वजह से उसके हाथों में जो किताबें थीं, वे छूट गईं। जैसे ही संगीता के हाथों से किताबें गिरीं, उसकी आवाज सुनकर वे चारों चौंक गए।
और लाइब्रेरी के गेट की ओर देखने लगे जहाँ से कुछ आवाज तो आई थी, लेकिन अभी तक कोई अंदर नहीं आया था। फिर संगीता ने वे किताबें उठाईं और हिम्मत करके लाइब्रेरी में कदम रखा। संगीता को देखते ही वे चारों हैरत में रह गए।
और जल्दी-जल्दी अलग-अलग दिशाओं में चले गए। ओम जानबूझकर किताबों के ढेर में कुछ करने लगा और उसके तीनों दोस्त अलग-अलग कुछ न कुछ काम करने लगे। रोनित, जो लाइब्रेरी में काम करता था, वह जाकर लाइब्रेरी की कुर्सी पर बैठ गया।
संगीता रोनित के पास गई और उसने कहा कि उसने कल ये किताबें इश्यू कराई थीं, तो उसे दो और किताबें चाहिएँ, तो क्या वह ले सकती है? संगीता की बात सुनकर रोनित ने कहा, "ठीक है। आप अपना सिग्नेचर कर दीजिए। क्या नाम था आपका?" संगीता ने कहा, "मेरा नाम गीता है।"
रोनित ने उसके सिग्नेचर कर लिए। सिग्नेचर करने के बाद संगीता बुकशेल्फ़ की ओर चल पड़ी। जैसे ही उसने एक किताब हटाई, उसे ओम का चेहरा दिखाई देने लगा। ओम संगीता की नज़रों से बचने के लिए एक्टिंग कर रहा था, लेकिन किताब के छोटे से छेद से उसे ओम का चेहरा साफ़ दिखाई दे रहा था।
संगीता वहाँ ओम का चेहरा देखने के लिए ही आई थी और ओम के चेहरे पर हताशा साफ़ दिख रही थी। उसे देखकर संगीता को बहुत मज़ा आ रहा था।
संगीता ने सोचा, क्यों न उसके जख्मों पर और मरहम लगाया जाए। यह सोचकर संगीता जानबूझकर ओम से टकरा गई। ओम ने जैसे ही संगीता को देखा, वह उसे देखता रहा। कुछ पल उसकी आँखों में देखने के बाद उसने गुस्से से कहा, "क्या तुम आँधी हो? तुम्हें क्या दिखाई नहीं देता? जब देखो कुछ न कुछ तोड़ती-फोड़ती रहती हो या किसी न किसी से टकराती फिरती रहती हो!"
ओम की बात सुनकर संगीता को भी गुस्सा आ गया।
और उसने कहा, "आखिर आप अपने आप को क्या समझते हैं? क्या आपको लड़की से बात करने की तमीज़ नहीं है? आप प्रोफेसर हैं, आप हमारे गुरु हैं, और आपको हमसे इस तरह से बात करने का कोई हक नहीं है। अगर आपने आइंदा मुझे इस लहजे में बात की, तो मैं आपकी शिकायत सीधे प्रिंसिपल साहब से कर दूँगी, समझे आप?"
संगीता की बात सुनकर ओम थोड़ा नरम पड़ा, क्योंकि वह किसी भी कीमत पर अपना नाम मनोहर के सामने नहीं जाने देना चाहता था, क्योंकि अभी तक उसका मकसद पूरा नहीं हुआ था। तब उसने संगीता से कहा, "कहीं जाने की तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं है। लगता है तुम्हारे दिमाग में बात नहीं बैठती। मैंने तुमसे कहा था मुझसे दूर रहना, तो फिर क्यों मेरे आस-पास से भटकती रहती हो? तुम्हारे अंदर दिमाग है या नहीं, या उसमें भूसा भरा हुआ है?"
ओम की बात सुनकर संगीता का मुँह खुला का खुला रह गया और उसे बहुत गुस्सा आया ओम पर।
और तब संगीता ने ओम को धक्का दे दिया, जिससे ओम के ऊपर पूरी की पूरी किताबें गिर गईं। साथ ही किताबों की रैक में रखा हुआ रंग भी ओम ठाकुर के ऊपर गिर गया।
ओम गुस्से से संगीता की ओर देखने लगा। ओम की आँखें अचानक लाल होने लगीं। गौरव, मयंक और रोनित ओम की आँखें देख चुके थे। किसी भी पल ओम अपने पिशाच रूप में बाहर आ सकता था।
जल्दी से रोनित उसके बचाव में आया और उसने संगीता को वहाँ से जाने के लिए कहा। गौरव और मयंक भी तब तक ओम को ले गए और उसे शांत करने की कोशिश करने लगे।
ओम का गुस्सा शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक तो उसे संगीता नहीं मिल पाई थी और ऊपर से इस लड़की ने ओम को धक्का दिया था, ओम ठाकुर को चोट पहुँचाने की कोशिश की थी। ओम के ऊपर सारी किताबें गिर गई थीं,
जिसकी वजह से किताबों के बीच रखा हुआ रंग भी उसके ऊपर गिर गया था। ओम के सारे कपड़े खराब हो गए थे। ओम का गुस्से से बुरा हाल था। संगीता ओम की आँखें देखकर डर गई और वह जल्दी से वहाँ से
भाग गई। संगीता सीधा हॉस्टल रूम में पहुँच गई और उसने अपने आपको अंदर से बंद कर लिया।
ओम का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। उसे संगीत नहीं मिल पाई थी, और ऊपर से उस लड़की ने उसे धक्का दिया था, चोट पहुँचाने की कोशिश की थी। ओम पर सारी किताबें गिर गई थीं, जिससे किताबों के बीच रखा कलर भी उस पर गिर गया था। ओम के सारे कपड़े खराब हो गए थे; वह गुस्से से बुरा हाल था। संगीता ओम की आँखें देखकर डर गई और वहाँ से भाग गई।
वह सीधा हॉस्टल रूम पहुँची और उसने अपने आपको लॉक कर लिया।
संगीता ने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा, "क्या मैं पागल हो गई हूँ? क्यों शेर के मुँह में हाथ डाला? मेरा दिमाग ही गया था क्या? क्या जरूरत थी उसे छेड़ने की? अगर मैं उसे जीत गई थी, तो क्या जरूरी था उसका चेहरा देखना?" उसे खुद पर गुस्सा आने लगा। उसे लगा कि ओम को छेड़कर उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती की है।
ओम की भयानक लाल आँखें उसे अंदर तक डरा गई थीं। संगीता सोचती रही, "मुझे क्या हो गया? मैंने उसे जानवर क्यों देखा? उसकी आँखें आज एकदम लाल हो गई थीं, जैसे कोई इच्छाधारी जानवर।" वह ओम को उल्टा-सीधा बोल रही थी, अपनी भड़ास निकाल रही थी। अब उसे ओम से वशवट सी होने लगी थी क्योंकि उसने अनजाने में ही सही, उस पर कलर गिरा दिया था, जिससे उसके कपड़े खराब हो गए थे और उस पर किताबें गिर गई थीं। हो सकता था उसे चोट भी आई हो।
संगीता ने तय कर लिया कि वह कल सुबह ओम से माफी माँगेगी। उसे उसके रास्ते में नहीं आना चाहिए था। अगर वह ओम ठाकुर की नजरों में आ गई, तो उन्हें ज्यादा समय नहीं लगेगा यह जानने में कि वह वही लड़की है जिसे ढूँढने के लिए वह कॉलेज आया है।
आज फंक्शन का दिन था। रीमा, उसकी रूममेट, अपने घर चली गई थी क्योंकि कॉलेज के फंक्शन के बाद अगले दो दिन छुट्टी थी। संगीता को आज कुछ ज्यादा ही डर लग रहा था। उसने अच्छे से अपनी कमरे की खिड़की बंद कर ली और अपने आप को कवर करके सोने की कोशिश करने लगी।
दूसरी ओर, ओम गुस्से से भँभूर रहा था और उसने अपने कमरे की सारी चीजें तोड़ डाली थीं। मयंक, रोहित और गौरव उसे देख रहे थे, पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी उसे रोकने की। ओम का गुस्सा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। उसने अभी तक कपड़े भी नहीं बदले थे।
वह बोला जा रहा था, "हाउ डेयर शी? उस लड़की की हिम्मत कैसे हुई ओम ठाकुर पर हाथ उठाने की? आज तक मुझे इतना एम्बैरेस्ड फील नहीं हुआ जितना आज हुआ है।"
ओम गुस्से से बुरा हाल था और चिल्लाने लगा। उसके मुँह से दो बड़े-बड़े दांत निकल आए थे; उसकी आँखें लाल हो गई थीं। यह देखकर उसके तीनों दोस्तों की हवा खराब हो गई थी। गौरव की पैंट भी गीली हो चुकी थी। वह बहुत खूंखार और भयानक लग रहा था। मयंक सोच रहा था, "लगता है आज उस लड़की की जिंदगी की आखिरी रात है।" ओम उस भयानक रूप के साथ वहाँ से गायब हो गया।
ओम बिजली की तेजी से अपने घर से निकलकर सीधा गर्ल्स हॉस्टल के सामने खड़ा हुआ। वह बड़े गुस्से से हॉस्टल की ओर देख रहा था।
हॉस्टल के कमरे में, संगीता काफी देर से सोने की कोशिश कर रही थी, पर उसकी आँखों में नींद कोसों दूर थी। डर की वजह से उसे नींद नहीं आ रही थी। बार-बार उसकी आँखों के सामने ओम की गुस्से से लाल आँखें आ रही थीं।
तब संगीता ने सोचा, क्यों न एक बार नहा लिया जाए? नहाने के बाद शायद ठंड में उसे नींद आएगी। यह सोचकर वह बाथरूम में गई।
ओम एक झटके से ऊपर उछलकर हॉस्टल की छत पर पहुँच गया और बंदरों की तरह दीवारों पर से लटकता हुआ, खिड़की को जोर से खोलकर संगीता के कमरे में घुस गया। संगीता कमरे में नहीं थी; वह बाथरूम में थी, इसलिए उसे खिड़की खुलने की आवाज नहीं आई।
बाथरूम में पानी गिरने की आवाज से ओम को एहसास हुआ कि संगीता बाथरूम में है। वह उसके बाहर आने का इंतजार करने लगा। उसने सोच लिया था कि आज वह इस लड़की को सबक सिखाएगा। वह 17-18 लड़कियों की जान ले चुका था, तो एक और जान लेना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी।
वह नहीं चाहता था कि संगीता बाथरूम से निकलकर उसे सीधा देखे, इसलिए वह कमरे के दरवाजे के पास लगे पर्दे के पीछे छिप गया और उसके बाहर निकलने का इंतजार करने लगा। उसने सोच लिया था कि आज वह संगीता का काम तमाम कर देगा।
पाँच मिनट बाद संगीता बाथरूम से बाहर आई। उसने एक बाथरोब पहना हुआ था, जो रीमा उसे मॉल से दिला लाई थी। उसके घुटनों से नीचे तक की टाँगें साफ दिखाई दे रही थीं। उसके गीले बाल टॉवल में लिपटे हुए थे।
संगीता को पता था कि वह कमरे में अकेली है, इसलिए उसने कपड़े पहनने में जल्दबाजी नहीं की। बाथरोब से उसका पूरा शरीर ढका हुआ था, केवल घुटनों के नीचे का हिस्सा दिखाई दे रहा था। जैसे ही उसने अपने बाल टॉवल से हटाए, वे उसके पूरे कमर पर फैल गए। ओम पीछे से उसे घूर रहा था; उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस स्थिति में क्या करे, क्योंकि उस वक्त संगीता बहुत खूबसूरत लग रही थी।
संगीता आईने के पास खड़ी होकर अपने बाल सुखाने लगी और फिर बेड पर पड़े कपड़े उठाने लगी। जैसे ही उसने एक छोटा कपड़ा पहनने के लिए उठाया, ओम ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसने 17-18 से ज्यादा लड़कियों की जान ली थी, लेकिन किसी भी लड़की के साथ उसने आज तक कोई ऐसी हरकत नहीं की थी। न जाने ऐसी कौन सी शक्ति थी जो हर बार उसे लड़कियों के करीब जाने से रोक देती थी, और फिर वह गुस्से में आकर उनका खून कर देता था।
जैसे ही संगीता ने अपना बाथरोब खोलकर छोटा कपड़ा पहनने की कोशिश की, ओम ने आकर उसके दोनों हाथ पकड़ लिए। ओम को देखकर संगीता जोर से चीख मारना चाहती थी, पर ओम ने अपना एक हाथ उसके मुँह पर रख दिया। संगीता डर से बुरा हाल थी। ओम ने उसे पीछे से पकड़ लिया था; एक हाथ उसके मुँह पर और एक हाथ कमर के पीछे।
संगीता ओम को शीशे में साफ देख पा रही थी; उसकी आँखें अभी भी लाल थीं। ओम ने तय कर लिया था कि वह आज संगीता का खून पीएगा। उसने संगीता के बालों को हटाकर जैसे ही अपना मुँह उसके कंधे पर रखा, वह उसके बालों की खुशबू में ऐसा खो गया कि वह एकदम नॉर्मल बन गया। उसके वैम्पायर के दांत अंदर चले गए और उसकी आँखों का रंग फिर से नीला हो गया।
ओम को अपने करीब देखकर संगीता की धड़कनें बहुत तेज हो गईं। ओम उसकी हर धड़कन सुन सकता था, क्योंकि वह अब नॉर्मल हो चुका था। उसने अपना हाथ संगीता के मुँह से हटा दिया। संगीता ने उसे धक्का दे दिया, जिससे वह बेड पर गिर गया। ओम गुस्से से उठा, पर इस बार उसकी आँखें लाल नहीं थीं। उसने संगीता का हाथ पकड़ा, उसे अपनी ओर खींचा और बेहद करीब जाकर बोला,
"मैंने तुम्हें मना किया था ना, मेरे रास्ते में मत आना। तुम्हें क्या मेरी बात सुनाई नहीं देती? आज तुमने जो कुछ भी मेरे साथ किया, उसकी कीमत तुम्हें चुकानी होगी। तुम जानती हो, मैं तुम्हारी इसी वक्त जान ले सकता हूँ और किसी को कानों-कान खबर भी नहीं होगी।"
ओम की बातें सुनकर संगीता की आँखों में आँसू आ गए। वह हाथ जोड़कर बोली, "प्लीज़, प्लीज़, मुझे कुछ मत कीजिएगा। अगर मुझे कुछ हो गया, तो मेरे माँ-बाप का क्या होगा?"
संगीता की आँखों में आँसू देखकर न जाने ओम को क्या हुआ, उसके दिल में कुछ चुभ सा गया।
संगीता बोली, "मैं वादा करती हूँ, मैं आपकी ओर देखूँगी भी नहीं, आपके सामने भी नहीं आऊँगी। जिस रास्ते से आप आयेंगे, मैं वह रास्ता बदल दूँगी। मैं वादा करती हूँ, प्लीज़, प्लीज़, आप मुझे माफ़ कर दीजिए। वैसे भी, मैं डर की वजह से सो भी नहीं पा रही हूँ, क्योंकि मैं समझ गई हूँ, आप इंसान नहीं हैं, आप पक्का कोई जानवर हैं।"
ओम भावुक हो गया। उसने उसके बालों को कसकर पकड़ लिया और बोला, "क्या कहा तुमने? जानवर? मैं हूँ जानवर, खून पीने वाला जानवर, जो कभी भी किसी का भी खून पी सकता है और उसकी जान ले सकता है। समझी तुम? और अब तुम मेरा राज जान चुकी हो। अगर तुमने यह किसी को भी बताया, तो मैं तुम्हारा खून पीने में एक मिनट भी नहीं लगाऊँगा।" यह कहकर ओम जोर-जोर से हँसा। संगीता उसे बड़ी आँखों से देख रही थी।
संगीता को इस तरह देखकर ओम ने फिर कहा, "आगे से मेरी बात ध्यान रखना। दो दिन बाद कॉलेज खुलेगा, तब तक अपने आप को तैयार कर लेना। अगर तुमने इस बार ओम ठाकुर से टकराने की कोशिश की, तो ओम ठाकुर तुम्हारा खून पीने से पहले एक बार भी नहीं सोचेगा।" संगीता के मुँह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा था। वह केवल हाँ और ना में गर्दन हिला रही थी। जल्दी ही ओम ने उसके बालों को छोड़ दिया, क्योंकि ज्यादा देर संगीता के करीब रहना उसे मदहोश कर रहा था; संगीता के जिस्म से आई भीनी-भीनी खुशबू उसे पागल सा कर रही थी।
दोस्तो, यह पार्ट समझने के लिए पिछला पार्ट ज़रूर पढ़ें।
जल्दी ही ओम ने उसके बालों को छोड़ दिया। ज़्यादा देर संगीता के करीब रहना उसे मदहोश कर रहा था। संगीता के शरीर से आती हुई भीनी-भीनी खुशबू उसे पागल कर रही थी।
उसके गरम साँसें, जो उसके मुँह पर पड़ रही थीं, उसे बेचैन कर रही थीं। ओम, खुद पर काबू पाते हुए, संगीता को छोड़कर बेड पर धक्का देते हुए खिड़की से निकल गया।
संगीता हैरत से ओम को देख रही थी। वह सोच रही थी क्या कोई आम इंसान इस तरह से खिड़की के रास्ते से अंदर आ सकता है? क्या इस तरह से उसकी आँखें चमक सकती हैं? क्या उसे भूकंप आने का पता चल सकता है? क्या यह वाकई सच था? क्या यह वाकई कोई खून पीने वाला जानवर या कोई दरिंदा, यह भयानक पिशाच था?
तब संगीता ने सोचकर कमरे में रखा हुआ सिस्टम ऑन किया और गूगल पर सर्च करना शुरू कर दिया। सारे संकेत एक ही ओर इशारा कर रहे थे। जल्दी ही इन सब चीजों की एक फाइल खुलकर सामने आ गई।
संगीता ओम के बारे में पता करना चाहती थी; आखिर यह इंसान है या वाकई कोई जानवर? जिस तरह संगीता के पास जादुई आवाज़ का वरदान था, तो हो सकता है इस दुनिया में इस तरह की और शक्तियाँ भी हों। संगीता पहले तो इन बातों पर यकीन नहीं करती थी। क्योंकि उसके पास वरदान था, तो किसी के पास अभिशाप भी हो सकता था।
यह सोचकर संगीता ने गूगल पर सर्च करना शुरू कर दिया। उसने जो-जो संकेत ओम ठाकुर में देखे थे, जैसे-जैसे उसने वे सारे शब्द गूगल पर सर्च किए, उसके सामने वैम्पायर की डिटेल्स आ गईं।
और संगीता को लगने लगा कि हो ना हो, यह ओम कोई आम इंसान नहीं, बल्कि एक वैम्पायर था। तब संगीता ने मन ही मन सोच लिया कि वह कुछ भी हो जाए, ओम ठाकुर से दूरी बनाकर रखेगी। और वैसे भी, अगर उसके पिता को पता चल गया कि ओम ठाकुर उसे ढूँढता हुआ उसके कॉलेज तक आ पहुँचा है, ना जाने क्या करेंगे! और हो सकता है वह अपनी जान भी दे दें। क्योंकि उसके पिता के लिए इज़्ज़त से बढ़कर कुछ भी नहीं था। और उनकी इज़्ज़त, उनका प्यार, उनका सम्मान, सब कुछ उनकी बेटी संगीता ही तो थी।
संगीता ने अपने कान पकड़ लिए। उसने सोच लिया था कि वह ओम के रास्ते में किसी भी कीमत पर नहीं आएगी और जल्द से जल्द इस कॉलेज से कहीं और चली जाएगी।
क्योंकि ओम के अंदर कितनी सारी शक्तियाँ थीं, यह संगीता देख चुकी थी। संगीता को अब डर लगने लगा था। उसे लगने लगा था कि ओम ज़रूर उसे ढूँढ लेगा; इसीलिए उसे यहाँ से जाना होगा।
इसीलिए संगीता ने अगली सुबह मनोहर से सारी बात करने का फ़ैसला किया और सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन संगीता की आँखों में नींद दूर-दूर तक नहीं आ रही थी। बार-बार ओम का डरावना चेहरा उसके सामने आ रहा था। वह इतना डर गई थी कि उसे डर के मारे ठंड लगने लगी थी।
और उसे बहुत तेज बुखार हो गया। संगीता बुखार में बुरी तरह तपने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इस स्थिति में क्या करे, लेकिन उसका बुखार बढ़ता ही जा रहा था। और उसमें इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वह किसी को अपनी मदद के लिए बुला सके। बुखार की हालत में वह बेहोश हो गई।
वहीं दूसरी ओर, ओम ठाकुर अपने घर पहुँच चुका था। उसके तीनों दोस्तों में हिम्मत नहीं थी कि वे उसे लड़की के बारे में पूछ सकें। लेकिन ओम ने उन्हें कह दिया कि वह लड़की ज़िंदा है। तब उन तीनों ने राहत की साँस ली। क्योंकि उन्हें तो लगा था कि शायद यहाँ पर भी पुलिस वगैरा शुरू हो जाएगी, जैसे इंग्लैंड में हो चुका था।
ओम ठाकुर बाथरूम में गया नहाने के लिए। शॉवर के नीचे खड़ा हुआ वह केवल एक ही बात सोच रहा था: उसे लड़की के करीब जाने से ऐसा क्या हो गया था कि वह एकदम से वैम्पायर से एक सामान्य इंसान बन गया था? आखिर क्या था उसे लड़की में जो उसके अंदर के जानवर को एकदम शांत कर गया था? आखिर क्यों उसने लड़की की जान नहीं ली? क्यों उसने लड़की का खून नहीं पिया? जबकि उसे लड़की ने इतना गुस्सा दिलाया था? आखिर क्यों? यह क्या हो गया था? ओम ठाकुर को खुद पर ही गुस्सा आ रहा था।
उसने कभी नहीं सोचा था कि एक लड़की के सामने वह इतना कमज़ोर बन जाएगा। ओम ने सोच लिया था कि वह उस लड़की से दूरी बनाकर रखेगा, क्योंकि उसका मकसद सिर्फ़ संगीता थी। संगीता के अलावा वह किसी और के बारे में नहीं सोचेगा।
जल्दी ही ओम नहाकर बाहर निकल गया और उसने अपने तीनों दोस्तों को अपने सामने जमा किया। "तुमने जो फ़ंक्शन में रिकॉर्डिंग लगाई थीं, उनमें ज़रूर संगीता कैद हुई होगी। एक काम करो, कॉलेज के फ़ंक्शन की सारी फ़ुटेज अभी के अभी लेकर आओ।" ओम की बात सुनकर गौरव ने कहा, "लेकिन ओम, इस वक़्त फ़ुटेज लाना क्या सही रहेगा? क्योंकि पूरा कॉलेज वीरान पड़ा हुआ होगा। और फिर कॉलेज के पास ही वह गर्ल्स हॉस्टल भी है। अगर किसी ने हमें कॉलेज के अंदर जाते हुए देख लिया, तो हम पकड़े जा सकते हैं।"
क्योंकि सारा डाटा कॉलेज के स्टोर रूम में रखा हुआ है। गौरव की बात सुनकर ओम ठाकुर गुस्से से उसे घूरने लगा और बोला, "मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई है। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बात को बीच में काटने की?" ओम की बात सुनकर गौरव एक झटके से चुप हो गया और बोला, "सॉरी, सॉरी भाई। मैंने ध्यान नहीं दिया। आप बताओ क्या करना है।" तब ओम ठाकुर ने कहा, "मैं तुम्हें अकेले जाने के लिए नहीं कह रहा हूँ। मैं भी तुम लोगों के साथ चलूँगा।" तीनों ने राहत की साँस ली। तब वे तीनों कॉलेज जाने की तैयारी करने लगे।
जल्दी ही वे तीनों कॉलेज पहुँच चुके थे। उन दोनों ने मास्क पहने हुए थे ताकि कोई उन्हें पहचान ना पाए, लेकिन ओम ठाकुर बिना मास्क के था। वह बिजली की तेज़ी से कॉलेज के गेट को फाँदता हुआ अंदर पहुँच चुका था।
और उसने अपने तीनों दोस्तों के लिए भी कॉलेज का गेट खोल दिया था। जल्दी ही वे लोग कॉलेज के अंदर प्रवेश कर चुके थे।
तब कॉलेज के अंदर पहुँचकर उन्होंने अपने आस-पास अच्छी तरह से देखा कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा है। तब अनायास ही मयंक की नज़र सामने गर्ल्स हॉस्टल पर गई। मयंक ने नोटिस किया कि पूरा गर्ल्स हॉस्टल अंधेरे में डूबा हुआ था।
लेकिन एक कमरे की लाइट अभी भी जल रही थी। मयंक को यह बात थोड़ी अजीब लगी और उसने ओम ठाकुर से कह दिया, "ओम, ज़रूर कुछ गड़बड़ है। क्योंकि इस वक़्त हॉस्टल में सभी सोए हुए हैं, सिवाय एक के, जिसके कमरे की लाइट अभी भी जली हुई है।"
मयंक की बात सुनकर ओम ठाकुर का ध्यान भी उस कमरे की ओर गया। और वह यह देखकर हैरान हो गया क्योंकि यह कमरा किसी और का नहीं, बल्कि संगीता का ही था।
ओम सोचने लगा, शायद उसकी धमकी की वजह से वह सही से सो नहीं पा रही होगी, इसीलिए अभी तक जाग रही है। क्योंकि वे लोग आधी रात के बाद वहाँ आए थे, लेकिन इतनी रात तक किसी का जागा रहना नामुमकिन था। हॉस्टल का रूल था दस बजे तक सो जाने का।
तो यह बात थोड़ी सी ओम को और बाकी उसके तीनों दोस्तों को अटपटी लगी। खैर, ओम ने कहा, "हमें इससे कोई मतलब नहीं है। हमें अपने काम से काम रखना चाहिए। तुम लोग चलो फ़टाफ़ट स्टोर रूम में सीसीटीवी फ़ंक्शन की रिकॉर्डिंग कॉपी ढूँढने में मदद करो।"
जल्दी ही वे तीनों दोस्त, ओम समेत, स्टोर रूम में पहुँच चुके थे और सीसीटीवी और फ़ंक्शन की रिकॉर्डिंग ढूँढने लगे थे।
लेकिन उन्हें कहीं दूर-दूर तक फ़ंक्शन की रिकॉर्डिंग नहीं मिली। क्योंकि मनोहर ने फ़ंक्शन की रिकॉर्डिंग को एक बहुत ही सुरक्षित जगह पर रखा था, जिस पर लॉकर का कोड लगा हुआ था। उन चारों ने मिलकर पूरा स्टोर रूम छान मारा, लेकिन उन्हें फ़ंक्शन की रिकॉर्डिंग नहीं मिली। तब ओम का ध्यान उस लॉकर की ओर गया।
क्योंकि केवल एक वह लॉकर था जो रह गया था ढूँढने के बिना। तो ओम ठाकुर उस लॉकर के पास गया। लेकिन उस लॉकर को देखकर यह अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल था कि उसका क्या लॉक हो सकता है। क्योंकि अगर उन्होंने एक बार भी गलत पासवर्ड टाइप कर दिया, तो वहाँ अलार्म बजने के चांसेस काफ़ी ज़्यादा थे।
ओम ने कुछ सोचते हुए उस लॉकर पर हाथ रख दिया और अपनी आँखें बंद करके कुछ सोचने लगा। और जल्दी ही दो-तीन मिनट के बाद उसके सामने कुछ विज़ुअल्स आने लगे। और उसने अचानक अपनी आँखें खोल लीं। और जल्दी ही उसने एक पासवर्ड वहाँ टाइप कर दिया। और देखते ही देखते वह लॉकर खुल चुका था।
उसके तीनों दोस्त मुस्कुराने लगे। तब मयंक बोला, "यार, अगर ओम को लेकर हम लोग किसी बैंक में जाएँ, तो ओम तो आसानी से वहाँ के सारे लॉकर खोल सकता है।
और हम कितने मालामाल बन सकते हैं!" मयंक की बात सुनकर बाकी दो हँसने लगे। और ओम उसे गहरी नज़रों से देखने लगा।
वे लोग समझ गए थे कि उनका यह दोस्त वाकई कुछ भी कर सकता है। जल्दी ही उन्होंने उसके अंदर से फ़ुटेज ले ली और कॉलेज के बाहर निकल गए। लेकिन अपने घर जाने से पहले मयंक का ध्यान एक बार फिर उस हॉस्टल में जलती हुई लाइट पर गया।
तब मयंक ने ओम ठाकुर से कहा, "ओम, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि वहाँ कुछ गड़बड़ है। तुम प्लीज़ एक बार जाकर वहाँ देखकर आओ ना, क्या हुआ है?" मयंक की बात सुनकर ओम उसे खा जाने वाली नज़रों से देखने लगा।
और उसने कहा, "मेरे पास क्या और कोई काम नहीं है जो मैं हॉस्टल में जाकर यह सब देखूँगा कि कौन जाग रहा है या सो रहा है?" तब मयंक ने कहा, "ओम, तुम एक मिनट में उस हॉस्टल के कमरे तक जा सकता है और वापस भी आ सकता है, तो इतना क्यों सोच रहा है? एक मिनट की तो बात है। क्या पता कोई वहाँ मुसीबत में हो।"
मयंक की बात सुनकर ओम एक पल के लिए कुछ सोचने लगा और बोला, "ठीक है, मैं देखकर आता हूँ। तुम लोग मेरा यहीं इंतज़ार करो।" ऐसा कहकर ओम ठाकुर बिजली की तेज़ी से हॉस्टल के अंदर पहुँच चुका था और जल्दी ही खिड़की के रास्ते से उस कमरे में पहुँच चुका था।
और उसने देखा: संगीता सिकुड़ी हुई एक तरफ़ पड़ी हुई थी। उसके साँसें भी नहीं चल रही थीं। उसे देखकर ओम हैरान हो गया। और जैसे ही उसने उसके करीब जाकर उसके माथे को छुआ, एकदम से ओम का हाथ जल गया।
क्योंकि उसका सिर बहुत ज़्यादा गरम था। संगीता तेज बुखार की वजह से बेहोश हो चुकी थी। ओम सोचने लगा, "इसे तो मैं मारना ही चाहता था। अच्छा है यह ऐसे ही मर जाए।" यह सोचकर ओम वापस खिड़की से बाहर जाने लगा।
लेकिन तब संगीता की बेहोशी में कुछ आवाज़ उसके कानों में पड़ी। संगीता बेहोशी में कह रही थी, "बाबा, मुझसे दूर मत जाओ। मैं आपके बिना नहीं रह सकती हूँ। बाबा, बाबा..." ऐसा कहते हुए वह एक बार फिर बेहोश हो गई।
क्या ओम संगीता की मदद करेगा?
ओम ठाकुर संगीत के बुखार को देखकर सोचने लगा था कि मैं तो इसकी जान वैसे ही लेना चाहता था; अच्छा हो यह इस बुखार से ही मर जाए। यह सोचकर वह वहाँ से वापस जाने लगा था। लेकिन, जैसे ही बेहोशी की हालत में उसे संगीता की आवाज सुनाई दी, "बाबा, मुझे छोड़कर मत जाओ। मैं आपके बिना नहीं रह सकती हूँ।" ना जाने क्या-क्या संगीता अपने माता-पिता को लेकर कह रही थी। ओम कुछ पल के लिए रुका और उसकी बातें सुनने लगा।
वाकई, संगीता की हालत उस वक्त काफी नाजुक थी। अगर उसे उस वक्त इलाज नहीं मिला होता, तो उसकी जान किसी भी पल जा सकती थी।
तभी ओम ने सोचा, "वैसे भी मुझे तो इस लड़की से कोई लेना-देना नहीं है, और यह मुझसे दूर भी रहेगी क्योंकि मैंने इसे अच्छी तरह समझा दिया है। तो इसकी जान जाए या रहे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन, अभी मैं इसे देख ही चुका हूँ, तो मुझे इसकी मदद करनी चाहिए।"
यह सोचकर ओम ने संगीता को गोद में उठा लिया और दरवाजा खोलकर उसे हॉस्टल के वार्डन के कमरे के बाहर ले गया। उसने जोरों से वार्डन के कमरे पर दो-तीन बार खटखटाया। इससे वार्डन की नींद खुल गई। जैसे ही वार्डन दरवाजा खोलकर सामने आई, उसने देखा कि संगीता उसके दरवाजे के ठीक सामने गिरी हुई थी।
जल्दी से वार्डन ने संगीता को उठाया और देखा कि वाकई संगीता को बहुत तेज बुखार था। तुरंत वार्डन ने अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में कॉल किया। जल्दी ही एक एम्बुलेंस वहाँ आ गई, और वार्डन संगीता को हॉस्पिटल की ओर ले गई। नियमों के मुताबिक, उसने मनोहर को भी सूचित कर दिया।
वहीँ मनोहर जी, जो सो चुके थे, अचानक आए इमरजेंसी कॉल से चौंक गए। उन्होंने फटाफट वार्डन को वापस कॉल किया और पता चला कि संगीता को अस्पताल में एडमिट कराया गया है। वह तुरंत अस्पताल के लिए निकल गए।
वहीं ओम, संगीता को वार्डन के गेट पर छोड़कर, वापस अपने दोस्तों के साथ अपने कमरे पर आ गया। तब उनमें से एक दोस्त बोला, "अगर उस लड़की की तबीयत इतनी खराब थी, तो तू उसे खुद हॉस्पिटल क्यों नहीं ले गया? तूने उस वार्डन का दरवाजा क्यों खटखटाया?" अपने दोस्त की बात सुनकर ओम उसे कड़ी नज़रों से देखने लगा और बोला, "तू पागल हो गया है! मैंने उस लड़की की इतनी मदद कर दी, तो क्या वह काफी नहीं है? और वैसे भी, मेरे पास और भी बहुत सारे काम हैं, समझे? तुम तो चुपचाप अब यह फ़ुटेज लगाओ और इसमें चेक करो कि उस पर्दे के पीछे से गाना किस लड़की ने गाया था, और उसका चेहरा इसमें दिखाई दे रहा है या नहीं। देखो फ़टाफ़ट, जल्दी!" ओम ने अपने तीनों दोस्तों को वह फ़ुटेज देखने में लगा दिया और खुद खिड़की के पास खड़ा होकर चाँद की ओर देखने लगा। ओम अपनी आँखें बंद करके सोचने लगा, "आखिर वह दिन कब आएगा जब मैं भी एक नॉर्मल इंसान की तरह जी पाऊँगा?" क्योंकि बचपन से ही अपनी शक्तियों के कारण ओम को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था।
बचपन से ही, जब भी ओम स्कूल जाता था, वह सबसे पहले सारे सवालों के जवाब दे दिया करता था। इससे सभी स्कूल के शिक्षक ओम को लेकर बातें करने लगे थे। ओम को वे नॉर्मल बच्चों की तरह नहीं लेते थे क्योंकि ओम बड़ी-बड़ी कक्षाओं के जवाब छोटी उम्र में ही दे दिया करता था। इसीलिए वे लोग ओम के अंदर विशेष शक्ति है, ऐसा कहकर पूरे स्कूल में फैला दिया करते थे।
इन सब चक्करों में ओम का दिल, जो बहुत नर्म था, बहुत कठोर बन चुका था क्योंकि ओम ने बचपन से ही पक्षपात झेला था।
यह सब बातें जमींदार साहब को भी पता चल चुकी थीं। जमींदार साहब अच्छी तरह जानते थे, क्योंकि उनकी हवेली में सौ से ज़्यादा नौकर काम किया करते थे। लेकिन, एक-एक करके जब उनके नौकर गायब होने लगे, तब जमींदार साहब को शक हुआ। फिर एक रात, जब उन्होंने एक नौकरानी का खून पीते हुए ओम को देख लिया, तब उनकी रूह काँप गई।
और जैसे ही उन्होंने अपने गुरु से इस बारे में बात की, उनके गुरु ने बताया कि ओम अब एक श्राप से अभिशप्त है, और इस श्राप से उसे मुक्ति तभी मिल सकती है जब एक विशेष गुणों वाली लड़की से ओम का विवाह होगा, और ओम उसके साथ रिश्ता बनाएगा तो इसका श्राप खत्म हो जाएगा।
जमींदार साहब को समझ में नहीं आया कि वह क्या करें। इसीलिए उन्होंने ओम को अपने गाँव से दूर, दूसरे देश में पढ़ने के लिए भेज दिया। लेकिन वहाँ जाकर भी ओम उस विशेष गुणों वाली लड़की को ढूँढ़ना नहीं भूला।
उसने अपने दोस्तों की मदद से कितनी ही लड़कियों को अपने पास बुलाया, लेकिन जब-जब ओम उनके करीब जाने की कोशिश करता, वह उनके करीब नहीं जा पाता था। वह उन्हें एक किस तक नहीं कर पाता था और गुस्से में वैम्पायर बनकर उनका खून पी जाता था। एक विशेष गुणों वाली लड़की के चक्कर में ओम ने अब तक सत्रह-अठारह लड़कियों का खून पीकर उनकी जान ले ली थी।
जब से ओम को पता चला कि उनके कुल गुरु ने बताया है कि विशेष गुणों वाली लड़की संगीता हो सकती है, तब से ओम संगीता के पीछे पड़ गया था। उसने सोचा था कि शायद संगीता ही वह लड़की है जो उसे श्राप से मुक्त कर दे। इसीलिए वह संगीता को ढूँढ़ने के लिए उसके पीछे-पीछे शहर तक पहुँचा था।
ओम खिड़की में खड़ा हुआ अपने बारे में सोच ही रहा था कि तभी उसका दोस्त मयंक चिल्लाया, "ओम! ओम! इधर आओ, देखो मुझे क्या मिला है!" ओम जैसे ही वहाँ गया, उसने देखा कि पर्दे के पीछे से किसी लड़की की परछाई दिखाई दे रही थी, लेकिन वह लड़की नज़र नहीं आ रही थी।
रिकॉर्डिंग में सभी आदमियों की आँखें बंद थीं। कोई भी वहाँ ऐसा आदमी नहीं था जिसकी आँखें खुली हों। और उस लड़की की केवल परछाई से यह अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल था कि वह लड़की दिखती कैसी होगी। तभी ओम ने बड़े ध्यान से सारी फ़ुटेज देखना शुरू कर दिया।
लेकिन उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह लड़की कैसी हो सकती है। तभी ओम ने पर्दे के पीछे देखा कि उसे लड़की का एक हल्का सा हाथ दिखाई दे रहा था, और उसके दाहिने हाथ पर कुछ निशान बना हुआ था, जो एक स्टार का निशान था। ओम ने बड़े ध्यान से उस निशान को देखा, क्योंकि संगीता जब भी गाना गाती थी, वह अपने हाथों का भी प्रयोग करती थी।
और उसे इस बात का अंदाज़ा ही नहीं था कि रिकॉर्डिंग में उसका हाथ आ सकता है। ओम वह स्टार देखकर बहुत खुश हुआ और अपने तीनों दोस्तों को उसकी इमेज लेने को कहा, "अब हमारे लिए जादुई आवाज़ वाली लड़की को ढूँढ़ना ज़्यादा मुश्किल नहीं होगा, क्योंकि यह हाथ का स्टार जिस भी लड़की के हाथ पर होगा, समझ लेना कि वही जादुई आवाज़ वाली लड़की संगीता है।" ऐसा कहकर ओम अपने कमरे में चला गया। उसके तीनों दोस्त एक-दूसरे को देखने लगे और सोचने लगे कि हो सकता है कि उनका दोस्त अब बिल्कुल ठीक हो जाए अगर यह लड़की ओम ठाकुर को मिल जाए।
यह सोचकर वे तीनों दोस्त अगले दो दिन (तब तक कॉलेज बंद था) उसे ढूँढ़ने की पूरी कोशिश करने के चक्कर में लग गए, और अपना प्लान बनाने लगे।
वहीं दूसरी ओर, संगीता को इमरजेंसी वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया था क्योंकि उसकी हालत काफी गंभीर थी। उसे 104 डिग्री बुखार था, जो डर की वजह से हुआ था। मनोहर भी तब तक अस्पताल पहुँच चुके थे।
और संगीता की यह हालत सुनकर वह बहुत परेशान हो गए। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि इस स्थिति में क्या करें। वह मास्टर जी को भी फ़ोन नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्हें पता था कि उनके सारे फ़ोन टैप किए जा रहे हैं। अगर मास्टर जी को वह फ़ोन करके बता देते कि उनकी बेटी ऐसी हालत में अस्पताल में एडमिट है, तो वे अपने आप को रोक नहीं पाएँगे और तुरंत ही अस्पताल की ओर रवाना हो जाएँगे।
तब मनोहर ने मास्टर जी को कुछ भी नहीं बताने का फ़ैसला लिया और खुद संगीता को देखने लगे। जैसे ही डॉक्टर ने बताया कि उसे इतना ज़्यादा बुखार है, मनोहर और भी ज़्यादा परेशान हो गए। तभी एक डॉक्टर ने मनोहर से कहा, "सर, यह लड़की किसी चीज़ से बहुत डरी हुई है। इसी वजह से उसे यह बुखार हुआ है। क्योंकि वह घबराहट में, नींद में भी कुछ ना कुछ बड़बड़ा रही है। वह कह रही है, 'चमक आँखें! चमक आँखें!'"
डॉक्टर की बात सुनकर मनोहर कुछ देर सोचने लगा और बोला, "उसे कब तक होश आएगा?" तब डॉक्टर ने बताया, "अभी हम कुछ नहीं कर पाएँगे। अगली सुबह ही उसे होश आ सकता है। जब तक उसका बुखार कम नहीं होगा, तब तक हम सही से कुछ नहीं बता पाएँगे।" ऐसा कहकर डॉक्टर वहाँ से चले गए।
जबकि मनोहर हैरानी से संगीता के कहे शब्दों के बारे में सोचने लगा कि आखिर संगीता चमकदार आँखें किसके लिए बोल रही थी? आखिर उसने ऐसा क्या देख लिया था जिसकी वजह से वह डर गई और उसे बहुत तेज बुखार चढ़ गया?
मनोहर के दिल में संगीता के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर पैदा हो चुका था, इसीलिए वह संगीता का बीमार होना उसे बहुत परेशान कर रहा था। बस वह सोच रहा था कि किसी तरह संगीता को होश आ जाए और वह उससे पूछे कि आखिर क्या हुआ है।
लेकिन पूरी रात संगीता को होश नहीं आया। अगली सुबह, लगभग नौ बजे, संगीता को थोड़ा-थोड़ा होश आना शुरू हुआ और उसका बुखार भी काफी हद तक कम हो गया था।
तब तक पूरी रात वार्डन और मनोहर जी अस्पताल में ही रहे थे। वे लोग वापस अपने घर आराम करने के लिए भी नहीं गए थे। मनोहर ने वार्डन को जानबूझकर अपने साथ रोका था क्योंकि संगीता एक लड़की थी, तो वह किसी भी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि कॉलेज में इस बात को लेकर किसी तरह की कोई बात बने, कि प्रिंसिपल एक स्टूडेंट के लिए सारी रात अस्पताल में रहा।
वेल, संगीता की हालत अब काफी ठीक थी। जैसे ही उसे होश आया और उसने अपने आप को अस्पताल में पाया, तो वह हैरानी से चारों ओर देखने लगी। उसका सर अभी भी बहुत भारी हो रहा था।
तभी, संगीता के होश में आने पर, सिस्टर ने मनोहर और वार्डन को बताया कि लड़की को होश आ गया है। तब मनोहर और वार्डन दोनों अंदर आ गए। संगीता उन्हें देखकर चौंक गई और बोली, "आप लोगों को कैसे पता चला कि मैं यहाँ इस अस्पताल में हूँ? मैं यहाँ कैसे आई? और मुझे किसने एडमिट करवाया था? मैं तो अपने कमरे में थी, और मेरी हालत ऐसी नहीं थी कि मैं किसी से मदद माँग सकूँ।"
संगीता की बात सुनकर वार्डन उसे हैरानी से देखने लगी।
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दोस्तों, लाइक शेयर करें प्लीज।।।।
संगीता को जैसे ही होश आया, उसने अपने सामने मनोहर जी और अपनी हॉस्टल की वार्डन को देखा। वह चौंक गई और कहने लगी, "आप लोग यहां कैसे आए? और मैं यहां इस अस्पताल में कैसे आई? जबकि मेरी हालत इतनी खराब थी कि मैं उठकर किसी से अपनी मदद भी नहीं मांग सकती थी।"
संगीता की बात सुनकर वार्डन उसे चौंक कर देखने लगी और बोली, "यह क्या कह रही हो तुम? तुम ही तो मेरे पास आई थी। तुमने मेरा दरवाजा जोरों से तीन-चार बार खटखटाया था।"
"और तब, जैसे ही मैंने दरवाजा खोला, मैं तुम्हें अपने दरवाजे के सामने बेहोश पाई। फिर मैं तुम्हें आनन-फानन में हॉस्पिटल लेकर आ गई। और साथ ही साथ प्रिंसिपल साहब को भी मैंने फोन कर दिया था।"
वार्डन की बात सुनकर संगीता सोच में पड़ गई। वह सोचने लगी कि क्या वार्डन जो कह रही है, वह सही है? क्योंकि जहाँ तक उसे याद था, वह बेड से उठ तक नहीं पा रही थी। और वार्डन कह रही थी कि वह उसके दरवाजे के सामने आकर दरवाजा खटखटाया था और वहाँ बेहोश हो गई थी।
मनोहर जी संगीता को देखते हुए बोले, "अब आप कैसा फील कर रही हैं? क्या आप अब ठीक हैं?" मनोहर ने हल्की सी स्माइल के साथ पूछा। संगीता ने हाँ में सर हिला दिया और बोली, "सर, मैं अब काफी बेहतर फील कर रही हूँ। मैं ठीक हूँ।" उसके बाद वार्डन संगीता की कुछ दवाइयाँ लेने बाहर चली गई।
तब मनोहर जी संगीता से कहने लगे, "संगीता, अगर कोई बात हो तो आप मुझे बता सकती हैं। कहीं कुछ ऐसा तो नहीं है जो आपको परेशान कर रहा हो?"
"देखो, आपके दुश्मनों की कमी नहीं है। और चारों ओर आपके और आपके पिताजी के दुश्मन फैले हुए हैं। तो मैं यह बिल्कुल नहीं चाहूँगा कि मेरी निगरानी में रहते हुए भी आप पर किसी भी तरह की कोई मुसीबत आए।"
मनोहर जी की बात सुनकर संगीता का दिल किया कि वह उनको सारी बात बता दे, लेकिन कुछ सोचकर संगीता चुप हो गई। फिर धीरे से मनोहर जी की ओर देखते हुए बोली, "सर, क्या कुछ ऐसा हो सकता है कि मैं हॉस्टल में न रहकर, कहीं और रह सकूँ? क्या आप मेरा कहीं और रहने का इंतज़ाम कर सकते हैं?" संगीता ने थोड़ा डरते हुए कहा।
संगीता ने मनोहर को पूरी बात नहीं बताई थी, लेकिन उसने सोच लिया था कि वह किसी अनजान जगह पर रहेगी जहाँ ओम उस तक नहीं पहुँच पाएगा। वह केवल कॉलेज आया-जाया करेगी। और वैसे भी ओम ने तो उसे खुद उससे दूर रहने के लिए कहा है। तो संगीता को इस बात का कोई खतरा नहीं था। क्योंकि संगीता जानती थी कि ओम नहीं जानता है कि वह कोई और नहीं, बल्कि संगीता ही है जिसके लिए ओम ठाकुर यहां आया है। इसीलिए संगीता ने कहीं अलग रहने का डिसीज़न ले लिया था।
संगीता की बात सुनकर मनोहर जी कुछ समय के लिए सोचने लगे। फिर संगीता की ओर देखते हुए बोले, "तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। अभी तुम आराम करो। तब तक मैं कल तक तुम्हारे लिए कोई अच्छी सी सुरक्षित जगह देखता हूँ।" ऐसा कहकर मनोहर जी कमरे से बाहर आ गए और सोचने लगे कि ऐसा क्या कारण है कि संगीता अचानक से हॉस्टल छोड़ने की बात कर रही थी। मनोहर जी को लगने लगा कि मुझे लगता है संगीता को मुझे कहीं और ही रखना चाहिए, कोई ऐसी जगह जहाँ पर कोई सोच भी ना सके। तब मनोहर जी के दिमाग में एक आईडिया आया और कुछ सोचकर वह अपने घर की ओर रवाना हो गए।
मनोहर जी अपने शानदार घर में गए। मनोहर जी का पाँच कमरों का छोटा, लेकिन बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत घर था। कुछ सोचकर मनोहर जी मुस्कुरा दिए और अपनी माँ से बात करने लगे।
मनोहर जी केवल अपनी माँ के साथ रहा करते थे। इसीलिए मनोहर जी ने डिसाइड किया था कि संगीता को वह अपने घर में अपने साथ रखेंगे, लेकिन किसी रिश्ते से यह सोचकर वह अपनी माँ के पास पहुँच गए थे और उन्होंने एक-एक करके सारी बात अपनी माँ को बता दी थी। जैसे ही मनोहर की माँ ने यह सुना कि संगीता मास्टर जी की बेटी है, तो उनकी आँखें भर आई थीं।
क्योंकि वह अच्छे से जानती थी कि आज उनकी जो भी यह हालत है, जिस मकान पर वे पहुँचे हैं, उसके पीछे सिर्फ़ और सिर्फ़ मास्टर जी का हाथ है। मास्टर जी ने मनोहर को निःशुल्क शिक्षा देकर पढ़ाया था, जिसके बदौलत मनोहर में आगे पढ़ने की इच्छा जागृत हुई थी। और वह शहर आकर पढ़ने लगा था और आज इतनी कम उम्र में वह एक बहुत ही बड़े कॉलेज का प्रिंसिपल बन गया था। मनोहर की माँ, गायत्री जी ने एक पल की देरी न करते हुए मनोहर से कह दिया, "बेटा, अगर संगीता बेटी यहाँ आई हुई है, तो तुम्हें उसे हॉस्टल रूम में रखने की क्या ज़रूरत थी? तुम उसे सीधा घर में क्यों नहीं लेकर आए? तुम जानते भी हो मास्टर जी के कितने एहसान हैं हम पर। और अगर आज उन पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है, तो हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम उनकी थोड़ी बहुत, अपने सिरे से जो भी हमसे हो सकता है, वह मदद करें। और जब उनकी बेटी की जान और इज़्ज़त दोनों ही खतरे में हों, तो उसे इस तरह से हॉस्टल में छोड़ना ठीक नहीं है। तुम आज ही संगीता बेटी को घर ले आओ। मैं उसके लिए कमरा तैयार करवाती हूँ।"
जैसे ही मनोहर जी ने अपनी माँ की बात सुनी, वह खुश हो गए। पहले वह संगीता को अपने पास इसलिए नहीं ले आए थे क्योंकि उन्हें लग रहा था कहीं उनकी माँ कुछ गलत ना सोचने लगे। लेकिन अपनी माँ के मुँह से ऐसी बातें सुनकर मनोहर जी को काफी अच्छा लग रहा था। और वह खुशी-खुशी अस्पताल की ओर रवाना हो गए ताकि यह गुड न्यूज़ वह खुद संगीता को दे सकें। और कुछ लोगों को भेजकर संगीता के कमरे से उन्होंने संगीता का सारा सामान अपने घर में शिफ़्ट करवा दिया था। उन्होंने डिसाइड कर लिया था कि संगीता को सीधे अस्पताल से वह अपने घर ही लेकर जाएँगे। लेकिन यह बात किसी को भी कानों-कान नहीं पता चलेगी, क्योंकि यह संगीता की सेफ़्टी के लिए बहुत ही ज़्यादा ज़रूरी था।
जल्दी ही मनोहर जी संगीता के सामने खड़े हुए। संगीता मनोहर जी को देखकर चौंक गई। उसे तो लगा था कि शायद प्रिंसिपल साहब अपनी औपचारिकताएँ निपटाकर वापस जा चुके हैं, अपने स्टूडेंट के हाल-चाल पूछकर। लेकिन दोबारा से मनोहर को आया हुआ देखकर संगीता ने पूछा, "क्या हुआ सर? सब ठीक है ना? और जो मैंने आपसे कहा था, उसके बारे में आपने कुछ सोचा?"
संगीता की बात सुनकर मनोहर मुस्कुराया और बोला, "तुम फ़िक्र मत करो। सारा इंतज़ाम हो गया है। और हाँ, तुम भूलकर भी किसी को इस बारे में नहीं बताओगी कि तुम कहाँ रह रही हो। यह तुम्हारी सेफ़्टी के लिए बहुत ही ज़्यादा ज़रूरी है।"
संगीता ने मनोहर जी की बात सुनकर हाँ में सर हिला दिया। और मनोहर ने अस्पताल की सारी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद संगीता को डिस्चार्ज कर के वह अपने घर की ओर रवाना हो चुका था।
संगीता ने एक-दो बार रास्ते में पूछा भी था कि, "सर, हम कहाँ जा रहे हैं?" लेकिन मनोहर ने उसे चुप रहने का इशारा किया। मनोहर ने उसे कहा, "तुम खुद जाकर देख लो।" ऐसा कहकर जल्दी ही मनोहर संगीता को अपने घर ले आया।
मनोहर जी का घर देखकर संगीता चौंक गई। लेकिन जैसे ही मनोहर जी की माँ, गायत्री ने संगीता को देखा, तो वह उसे देखती हुई रह गई। संगीता बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। प्यारी सी संगीता उन्हें बहुत ही ज़्यादा पसंद आई।
जल्दी ही संगीता ने गायत्री जी के पाँव छू लिए और उनका आशीर्वाद लिया। क्योंकि गायत्री संगीता के गाँव की थीं, तो संगीता उन्हें काकी कहकर बुला रही थी। संगीता कितने दिनों बाद अपने गाँव से किसी से मिलकर बहुत ही ज़्यादा खुश हो रही थी। तब गायत्री जी ने संगीता से कहा, "तुम आज से मेरे पास ही रहोगी, ठीक है?" संगीता ने एक नज़र मनोहर जी की ओर देखा। मनोहर भी संगीता को ही देख रहा था, इस आशा से कि संगीता क्या कहेगी।
लेकिन संगीता ने गायत्री जी के प्यार को देखते हुए कहा, "ठीक है, जैसा आपको ठीक लगे।" जैसे ही गायत्री जी ने यह सुना, उन्होंने उसके सर पर हाथ रख दिया और संगीता भी मुस्कुरा उठी। जल्दी ही गायत्री जी ने संगीता को उसके कमरे में शिफ़्ट कर दिया और उसे आराम करने के लिए कहा। क्योंकि अभी दो दिनों के लिए कॉलेज की छुट्टियाँ थीं, तो संगीता दो दिन में बिलकुल ठीक हो सकती थी।
वहीं दूसरी ओर, ओम ठाकुर बार-बार उस स्टार के निशान को देख रहा था। और उसे बार-बार वह निशान कुछ जाना-पहचाना सा लग रहा था। लेकिन वह यह नहीं समझ पा रहा था कि उसने वह निशान कहाँ देखा था। उसने सोच लिया था कि बस दो दिन और। दो दिन बाद जैसे ही कॉलेज खुलेंगे, वह इस निशान की खोजबीन शुरू कर देगा और पता करेगा कि आखिर यह निशान किस लड़की के हाथों पर है। ओम ठाकुर को बिलकुल यकीन हो चुका था कि जिसके हाथ पर भी यह निशान होगा, वही लड़की संगीता होगी। क्योंकि परदे के पीछे से केवल उस लड़की का हाथ ही और परछाई दिखाई दी थी। लेकिन उसके हाथ में जो स्टार के मार्क्स बने हुए थे, यह पहचान ओम के लिए काफी थी। उसने सोच लिया था कि जल्दी ही वह स्टार वाली लड़की मिल जाएगी जिसके पास वह अनोखी आवाज़ है।
ओम ने अपने तीनों दोस्तों को अपनी आँखें खुली रखने के लिए कह दिया था क्योंकि ज़्यादा से ज़्यादा लड़कियाँ कैंटीन में और लाइब्रेरी में आया करती थीं। उसके तीनों दोस्त जहाँ-जहाँ काम किया करते थे, ओम ठाकुर ने उनको अच्छी तरह से समझा दिया था कि वे किसी भी तरह की कोई लापरवाही ना बरतें।
ओम के तीनों दोस्तों ने हाँ में सर हिला दिया था क्योंकि वे अच्छी तरह से जानते थे कि संगीता ओम के लिए क्या थी। क्योंकि संगीता का मिलना बहुत ही ज़्यादा ज़रूरी था ओम को। अब ओम को पूरा यकीन होने लगा था कि संगीता ही वह लड़की थी जो उसका श्राप पूरी तरह से ख़त्म कर सकती थी।
वेल मयंक ने गौरव से कहा, "तुझे क्या लगता है? क्या वह लड़की वाकई ओम का श्राप ख़त्म कर पाएगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि बाकी की अट्ठारह लड़कियों की तरह वह भी बची-खुची उन्नीसवीं लड़की बनकर रह जाए और ओम उसका भी खून पीकर उसकी जान ले ले?"
मयंक की बात सुनकर गौरव ने कहा, "यार, मुझे नहीं पता क्या होगा क्या नहीं होगा। मैं तो पहले भी उसे बेचारी लड़की को बचाने की कोशिश की थी। लेकिन अब हम कुछ नहीं कर सकते हैं क्योंकि ओम ठाकुर खुद उसे लड़की को ढूँढने के लिए यहाँ तक आ पहुँचा है। तो इसका मतलब तो साफ़ है कि वह लड़की कुछ ना कुछ तो है उसमें, जिसके लिए ओम ठाकुर खुद यहाँ तक आ पहुँचा है। अब जो भी हो, कल कॉलेज खुलने वाली है। कल से हमारी ड्यूटी शुरू हो जाएगी और कल हम हर हाल में उसे लड़की को ढूँढ कर रहेंगे। लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि हर लड़की के हाथ पर निशान कैसे चेक करेंगे? क्योंकि अगर हमने लड़की को सामने से कहा कि, 'एक्सक्यूज़ मी, हमें आपका हाथ देखना है,' तो क्या लड़की हमें हाथ दिखाएगी? उल्टा वह हमारे गाल पर चाँटा मार के आगे बढ़ जाएगी।" गौरव ने यह कहकर सोचते हुए अपने गाल पर हाथ रखते हुए कहा।
गौरव की बात सुनकर मयंक हँसने लगा और बोला, "अगर तुमने इस तरह से लड़की का हाथ माँगा, तो पक्का तुम्हारे गालों पर पड़ने वाले हैं।"
तब गौरव ने मयंक से कहा, "तो तुम्हारे पास कोई और रास्ता है? कोई और आईडिया है तो बताओ। किस तरह से हम लड़कियों का हाथ चेक करेंगे?" गौरव की बात सुनकर मयंक कुछ सोचने लगा। तब...
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