सीज़न 1: जागृति और मित्रता "आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा" का पहला सीज़न दर्शकों को एक ऐसी दुनिया से परिचित कराता है जहाँ मानवता की शक्ति पाँच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और पौराणिक आकाश—से जुड़ी है। कहानी का केंद्र है आरव, शांतिवन गाँव का एक दयाल... सीज़न 1: जागृति और मित्रता "आकाश का वंशज: पंचतत्व गाथा" का पहला सीज़न दर्शकों को एक ऐसी दुनिया से परिचित कराता है जहाँ मानवता की शक्ति पाँच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और पौराणिक आकाश—से जुड़ी है। कहानी का केंद्र है आरव, शांतिवन गाँव का एक दयालु लड़का, जिसे "तत्वहीन" होने के कारण समाज से बहिष्कृत किया जाता है। उसका जीवन तब बदल जाता है जब एक तात्विक-जानवर के हमले के दौरान वह अनजाने में अपनी छिपी हुई, रहस्यमयी शक्ति का प्रदर्शन करता है। इस घटना को दिव्य ज्ञान पीठ अकादमी के रहस्यमयी गुरु वशिष्ठ महसूस कर लेते हैं और आरव को अपने साथ ले जाते हैं। अकादमी में, आरव की मुलाकात तीन प्रतिभाशाली छात्रों से होती है जो उसके भविष्य को हमेशा के लिए बदल देंगे: अग्नि गणराज्य की घमंडी और शक्तिशाली राजकुमारी रिया; वायु कुल का शांत और बुद्धिमान रणनीतिकार समीर; और पृथ्वी राज्य की दयालु और अटूट रक्षक भैरवी। अपनी तत्वहीनता के कारण संघर्ष करते हुए, आरव गुरु वशिष्ठ के विशेष प्रशिक्षण के तहत अपनी आंतरिक क्षमताओं को खोजना शुरू करता है। एक खतरनाक मिशन पर, यह अप्रत्याशित चौकड़ी आपसी मतभेदों को दूर कर एक-दूसरे पर भरोसा करना सीखती है और एक अटूट टीम बन जाती है। सीज़न का समापन भव्य पंचतत्व महासंग्राम में होता है, जहाँ आरव अपनी चतुराई से सबको आश्चर्यचकित करता है और रिया का सम्मान जीतता है। लेकिन जीत के जश्न के बीच, स्टेडियम पर "निर्-तत्व" नामक रहस्यमयी हमलावरों का आक्रमण होता है, जो तत्व-शक्ति को सोख लेते हैं। इस अराजकता के बीच, आरव अपने दोस्तों को बचाने के लिए अपनी शक्ति का एक और विनाशकारी प्रदर्शन करता है। सीज़न एक रोमांचक क्लिफहैंगर पर समाप्त होता है, जहाँ एक बड़े षड्यंत्र का पर्दाफाश होना बाकी है और नायकों की असली यात्रा अभी शुरू हुई है।
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दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज, 'इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज' का कैंपस सुबह की धूप में नहाया हुआ था। छात्रों के झुंड यहाँ-वहाँ बिखरे हुए थे, कोई हँस रहा था, कोई किताबों में डूबा था, तो कोई आने वाले लेक्चर्स के बारे में शिकायत कर रहा था। माहौल में एक ऊर्जा थी, एक बेचैनी थी, जो सिर्फ युवाओं में ही पाई जाती है। तभी, पार्किंग लॉट की तरफ से आती एक गहरी, दमदार गुर्राहट ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
बातचीत धीमी पड़ गई, सिर घूमने लगे। एक मैट ब्लैक मर्सिडीज-एएमजी जी 63, जिसकी कीमत किसी के पूरे कॉलेज की फीस से भी ज़्यादा थी, धीमी गति से पार्किंग की खाली जगह की तरफ बढ़ रही थी। वो कार नहीं, बल्कि पहियों पर चलता एक स्टेटस सिंबल थी, एक ऐसी घोषणा जो बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह रही थी।
कार रुकी और ड्राइवर साइड का दरवाज़ा एक धीमी सी हिस की आवाज़ के साथ खुला। उसमें से जो लड़का बाहर निकला, वो किसी फ़िल्मी हीरो से कम नहीं था। क़रीब छह फुट का क़द, चौड़े कंधे, और महंगे ब्रांड के कपड़े जो उसके सुडौल शरीर पर ऐसे फिट हो रहे थे, जैसे उसी के लिए बने हों। उसके बाल करीने से सँवारे हुए थे, और कलाई पर चमकती घड़ी की क़ीमत में शायद एक छोटी-मोटी गाड़ी आ जाती। लेकिन उसकी गहरी भूरी आँखों में एक अजीब सी ख़ामोशी थी, एक ख़ालीपन जो उसकी अमीरी के शोर में भी साफ़ दिखाई दे रहा था। उसका नाम आर्यवर्द था। आर्यवर्द सिंह राठौड़।
कैंपस की सबसे मशहूर लड़कियों में से एक, तृषा, अपनी सहेलियों के साथ कैंटीन की सीढ़ियों पर बैठी थी। उसकी नज़र जैसे ही उस गाड़ी पर पड़ी, उसकी आँखें किसी शिकारी की तरह चमक उठीं। उसने अपनी सहेली प्रिया को कोहनी मारते हुए फुसफुसाया, "देख... वो आ गया। सोने की खान।"
प्रिया ने सीटी बजाई। "यार, ये लड़का हर सेमेस्टर में एक नई गाड़ी लेकर आता है। इसके पापा क्या नोट छापते हैं?"
तृषा के होठों पर एक calculated मुस्कान तैर गई। उसने अपने बालों की लट को उँगली पर घुमाते हुए कहा, "छापते नहीं, प्रिया। उनकी तिजोरियाँ पहले से ही भरी हुई हैं। राठौड़ इंडस्ट्रीज का इकलौता वारिस है। बस... थोड़ा अकेला है।" उसकी आवाज़ में हमदर्दी कम और मौक़ापरस्ती ज़्यादा थी। उसने अपनी नज़रें आर्यवर्द पर टिका दीं, जो अब अपनी गाड़ी को लॉक करके अनमने ढंग से डिपार्टमेंट की तरफ बढ़ रहा था।
"तो मैडम का अगला टारगेट फिक्स है?" प्रिया ने छेड़ा।
तृषा हँसी, एक ऐसी हँसी जिसमें बनावट साफ़ झलक रही थी। "टारगेट नहीं, दोस्त। बेचारा लड़का... उसे एक दोस्त की ज़रूरत है। और मैं एक अच्छी दोस्त हूँ।" उसने उठते हुए कहा और अपने कपड़े ठीक किए। उसका इरादा साफ़ था।
वहीं, लाइब्रेरी की खिड़की के पास खड़ी एक और लड़की यह सब देख रही थी। अनाया। उसके बाल साधारण सी पोनीटेल में बँधे थे और उसने एक सादा सा कुर्ता पहना हुआ था। वो आर्यवर्द को तब से जानती थी जब वो दोनों बच्चे थे, जब राठौड़ इंडस्ट्रीज इतनी बड़ी नहीं हुई थी और आर्यवर्द की आँखों में ये ख़ालीपन नहीं था। उसने तृषा को आर्यवर्द की तरफ बढ़ते देखा और उसके दाँत भींच गए।
"फिर से शुरू हो गई ये गिद्ध," वो मन ही मन बुदबुदाई। उसकी नज़र आर्यवर्द के चेहरे पर थी, उस गाड़ी पर नहीं। वो उस चमक के पीछे का अँधेरा देख सकती थी, जिसे तृषा जैसी लड़कियाँ कभी नहीं देख पाती थीं।
आर्यवर्द अपने फ़ोन में कुछ देख रहा था, दुनिया से बेख़बर, जब तृषा 'ग़लती से' उससे टकरा गई। उसके हाथ से उसका महंगा स्मार्टफ़ोन छिटककर ज़मीन पर गिर गया।
"ओह माय गॉड! आई एम सो, सो सॉरी!" तृषा ने घबराने का नाटक करते हुए कहा। उसकी आवाज़ शहद की तरह मीठी थी।
आर्यवर्द ने चौंका, अपनी दुनिया से बाहर आकर। उसने नीचे गिरे फ़ोन को देखा और फिर तृषा को। "इट्स ओके," उसने धीरे से कहा और झुककर फ़ोन उठाने लगा।
"नहीं, नहीं, प्लीज़, मैं उठाती हूँ," तृषा ने जल्दी से कहा और उसके साथ ही नीचे झुकी। एक पल के लिए दोनों की उँगलियाँ फ़ोन पर एक-दूसरे को छू गईं। तृषा ने इस मौके का पूरा फ़ायदा उठाते हुए अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से आर्यवर्द को देखा। "मैंने आपको देखा ही नहीं। मैं बस... तुम्हारी गाड़ी देख रही थी। इट्स... वॉव!"
आर्यवर्द सीधा खड़ा हो गया, थोड़ा असहज। उसे तारीफ़ें सुनने की आदत थी, लेकिन अक्सर वो तारीफ़ें उसकी नहीं, उसके पैसे की होती थीं। "थैंक्स," उसने बस इतना ही कहा।
"आर्यवर्द, राइट?" तृषा ने मुस्कुराते हुए पूछा, जैसे वो उसे जानती न हो। पूरे कॉलेज में उसे कौन नहीं जानता था। "मैं तृषा हूँ। हम एक ही इकोनॉमिक्स क्लास में हैं।"
"हाँ, मुझे याद है," आर्यवर्द ने कहा, हालाँकि उसे बिल्कुल याद नहीं था। वो ज़्यादातर अपनी ही दुनिया में खोया रहता था।
"तुम कुछ परेशान लग रहे हो। सब ठीक है?" तृषा ने अपनी आवाज़ में चिंता घोलते हुए पूछा। यह उसका मास्टरस्ट्रोक था। अमीरी के साथ आने वाले अकेलेपन को निशाना बनाना।
आर्यवर्द एक पल के लिए चौंका। किसी ने उससे यह सवाल बहुत समय से नहीं पूछा था। उसके परिवार में किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ता था, और दोस्त उसके थे नहीं। एक पल के लिए, उसे लगा कि शायद यह लड़की सच में उसकी परवाह कर रही है। "नहीं, कुछ नहीं। बस... ऐसे ही।"
"चलो भी," तृषा ने उसके क़रीब आते हुए कहा, "एक कॉफ़ी पीते हैं? मेरा लेक्चर अभी एक घंटे बाद है। अगर तुम फ्री हो तो।"
आर्यवर्द हिचकिचाया। उसे लोगों पर भरोसा करना मुश्किल लगता था, लेकिन इस लड़की की बातों में कुछ ऐसा था कि वो मना नहीं कर पाया। शायद ये उसका अपना अकेलापन था जो उसे एक झूठी उम्मीद की तरफ धकेल रहा था। "ठीक है," उसने धीरे से सिर हिलाया।
तृषा की आँखों में जीत की चमक तैर गई, जिसे उसने बड़ी सफ़ाई से छिपा लिया। "ग्रेट! चलो कैंटीन चलते हैं।"
दूर खड़ी अनाया ने यह सब देखा। उसने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। "आर्य, तुम इतने भोले क्यों हो? तुम्हें क्यों नहीं दिखता कि वो सिर्फ़ तुम्हारे पैसे के पीछे है?" उसने अपनी साँस छोड़ी और लाइब्रेरी के अँधेरे में वापस चली गई। वो आर्यवर्द को बेइज़्ज़त नहीं करना चाहती थी, लेकिन वो उसे इस तरह इस्तेमाल होते हुए भी नहीं देख सकती थी।
कैंटीन में, तृषा लगातार बोल रही थी। वो उसे अपनी 'छोटी-छोटी' समस्याओं के बारे में बता रही थी - कैसे उसका लेटेस्ट डिज़ाइनर बैग आउट ऑफ स्टॉक हो गया है, कैसे उसे पेरिस जाने का मन कर रहा है। आर्यवर्द चुपचाप सुनता रहा, कभी-कभार हूँ-हाँ में जवाब देता रहा। उसे इस तरह की बातें दिलचस्प नहीं लगती थीं, लेकिन किसी का साथ होना ही उसे अच्छा लग रहा था।
"तुम्हें पता है, आर्य," तृषा ने कॉफ़ी का कप रखते हुए कहा, "लोग तुम्हारे बारे में बहुत कुछ सोचते हैं। उन्हें लगता है कि तुम बहुत घमंडी हो। लेकिन तुम तो बहुत स्वीट हो।"
आर्यवर्द के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई। "लोगों को जो सोचना है, वो सोचते हैं।"
"लेकिन ये ग़लत है," तृषा ने नाटकीय ढंग से कहा। "तुम्हें और ज़्यादा खुलना चाहिए। दोस्त बनाने चाहिए। जैसे... हम।"
तभी आर्यवर्द का फ़ोन वाइब्रेट हुआ। उसने स्क्रीन पर नाम देखा - 'विक्रम'। उसके सौतेले भाई का नाम। उसके चेहरे पर आई हल्की सी मुस्कान तुरंत गायब हो गई। उसने फ़ोन उठाया।
स्क्रीन पर सिर्फ़ एक लाइन का मैसेज था: "तुम्हारे इस महीने का अलाउंस ट्रांसफर कर दिया गया है। पापा को परेशान करने के लिए कॉल मत करना।"
न कोई 'हाय', न कोई 'कैसे हो'। सिर्फ़ एक ठंडा, बेजान, लेन-देन का संदेश। जैसे वो कोई ज़िम्मेदार नहीं, बल्कि एक बोझ हो। आर्यवर्द का चेहरा पत्थर का हो गया। उसके आस-पास की दुनिया का शोर अचानक बंद हो गया। कैंटीन की हँसी-मज़ाक, तृषा की बातें, सब कुछ धुँधला गया। उसे सिर्फ़ अपने कानों में अपने सौतेले पिता के शब्द गूँजते हुए सुनाई दे रहे थे, जो उन्होंने पिछली बार कहे थे जब उसने घर जाने की कोशिश की थी - "तुम्हारी माँ के साथ ही तुम्हारा रिश्ता भी इस घर से ख़त्म हो गया, आर्यवर्द। तुम्हें जो चाहिए, वो मिलेगा। बस हमारी ज़िंदगी से दूर रहो।"
"आर्य? सब ठीक है?" तृषा की आवाज़ उसे वापस हक़ीक़त में खींच लाई।
आर्यवर्द ने जल्दी से फ़ोन लॉक किया और उसे जेब में रख लिया। "हाँ... हाँ, सब ठीक है," उसने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में एक दरार आ गई थी। उसका मूड पूरी तरह से बदल चुका था।
"मुझे... मुझे जाना होगा। एक ज़रूरी काम है," उसने अचानक उठते हुए कहा।
तृषा थोड़ी निराश हुई, लेकिन उसने ज़ाहिर नहीं होने दिया। "ओह, ओके। कोई बात नहीं। हम बाद में मिलते हैं? शाम को?" उसने उम्मीद से पूछा।
"देखते हैं," आर्यवर्द ने बिना उसकी तरफ़ देखे कहा और तेज़ी से वहाँ से निकल गया।
तृषा उसे जाते हुए देखती रही। उसके चेहरे पर झुंझलाहट थी। "इसका मूड स्विंग भी इसके बैंक बैलेंस की तरह ऊपर-नीचे होता रहता है," वो बुदबुदाई। फिर उसने कंधे उचकाए। "कोई बात नहीं। मछली जाल में आ तो गई है, बस थोड़ा सब्र रखना होगा।"
आर्यवर्द लगभग भागता हुआ अपनी गाड़ी के पास पहुँचा। उसने दरवाज़ा खोला और अंदर बैठ गया। एक पल के लिए उसने स्टीयरिंग व्हील पर अपना सिर टिका दिया। गाड़ी के अंदर की ख़ामोशी उसे खा रही थी। बाहर से ये गाड़ी एक क़िला थी, लेकिन अंदर से ये एक क़ैदख़ाना था। एक महंगा, ख़ूबसूरत क़ैदख़ाना। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। वो इस दिखावे की ज़िंदगी से थक चुका था। वो बस एक पल के लिए चाहता था कि कोई उसे उसके नाम से जाने, उसके सरनेम से नहीं। कोई उसकी आँखों में देखे, उसकी घड़ी पर नहीं।
उस रात, आर्यवर्द अपने आलीशान पेंटहाउस अपार्टमेंट में अकेला बैठा था। शहर की रोशनियाँ बड़ी-बड़ी खिड़कियों से अंदर आ रही थीं, लेकिन कमरे में अँधेरा था। उसने लाइटें नहीं जलाई थीं। उसके सामने मेज़ पर मैकबुक, आईपैड, और दुनिया के सबसे महंगे गैजेट्स पड़े थे, लेकिन वो सब उसे ख़ुशी का एक पल भी नहीं दे पा रहे थे।
वो बस सोफे पर बैठा छत को घूर रहा था। उसका दिमाग़ आज की घटनाओं को दोहरा रहा था। तृषा का चेहरा, उसकी बनावटी हमदर्दी, और फिर विक्रम का वो ठंडा मैसेज। सब कुछ एक-दूसरे में उलझ रहा था। क्या इस दुनिया में सब कुछ लेन-देन ही है? क्या कोई भी रिश्ता बिना किसी मतलब के नहीं होता?
तभी उसका फ़ोन, जो साइलेंट मोड पर था, स्क्रीन की रोशनी से चमक उठा। एक अनजान नंबर से मैसेज आया था। आमतौर पर वो ऐसे मैसेज नज़रअंदाज़ कर देता था। शायद किसी फैन का होगा, या किसी कंपनी का स्पैम। लेकिन आज, न जाने क्यों, उसने फ़ोन उठा लिया।
उसने मैसेज खोला।
सिर्फ़ सात शब्द लिखे थे।
"चमकने वाली हर चीज़ सोना नहीं होती।"
आर्यवर्द ने उस मैसेज को घूरा। उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। ये क्या बकवास थी? ज़रूर कॉलेज में किसी ने मज़ाक किया होगा। शायद कोई उससे जलता है। उसने एक गहरी साँस ली और मैसेज को डिलीट करने के लिए उँगली बढ़ाई।
उसे लगा कि ये कोई चेतावनी है, लेकिन किसकी तरफ़ से? और किसलिए? तृषा के लिए? वो तो बस एक दोस्त बनना चाहती है। या शायद... ये किसी और चीज़ के लिए है। एक पल के लिए उसके दिल में एक अजीब सी ठंडक दौड़ी, एक अनजाना सा डर।
लेकिन फिर उसने ख़ुद को झिड़का। "क्या सोच रहा हूँ मैं? सिर्फ़ एक मज़ाक है।" उसने डिलीट का बटन दबा दिया।
फिर उसने अपनी फ़ोन गैलरी खोली। आज दोपहर उसने तृषा की एक तस्वीर खींची थी, जब वो हँस रही थी। तस्वीर में वो ख़ूबसूरत लग रही थी, बेफ़िक्र। आर्यवर्द ने उस तस्वीर को देखा और उसके होठों पर एक हल्की, उदास मुस्कान आ गई।
शायद... शायद इस बार सब कुछ अलग हो। शायद तृषा वही इंसान है जो उसकी ज़िंदगी में कुछ रोशनी ला सकती है।
उसने फ़ोन को मेज़ पर रख दिया, उस अनजान चेतावनी को अपने दिमाग़ से पूरी तरह निकालते हुए। वो नहीं जानता था कि जिसे वो सोना समझ रहा था, वो सिर्फ़ पीतल का एक टुकड़ा था जो उसे एक ऐसे अँधेरे की तरफ़ ले जाने वाला था, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। और वो चेतावनी मज़ाक नहीं, बल्कि एक भविष्य की गूँज थी, जो दरगुमर्ग की पहाड़ियों से उस तक पहुँची थी।
इंपीरियल यूनिवर्सिटी के विशाल, हरे-भरे कैंपस में, जहाँ पुरानी पत्थर की इमारतें और नई शीशे की दीवारें एक साथ खड़ी थीं, एक खामोशी थी जिसे सिर्फ पत्तों की सरसराहट और दूर से आती छात्रों की हल्की-फुल्की बातचीत ही तोड़ रही थी। लेकिन उस दोपहर, एक और आवाज़ ने इस शांति को चीर दिया। एक गहरी, घुमड़ती हुई गड़गड़ाहट, जो किसी जानवर के गुर्राने जैसी थी।
सारे सिर एक साथ उस आवाज़ की तरफ घूमे। पार्किंग लॉट में एक मैट ब्लैक मासेराती घूमी और एक खाली जगह पर आकर रुक गई। उसका इंजन एक आखिरी बार गुर्राया और फिर खामोश हो गया। कुछ पल के लिए, सब कुछ थम सा गया। वो कार उस कॉलेज के माहौल में ऐसी लग रही थी, जैसे किसी शाही दावत में कोई जंगली शिकारी आ गया हो। वो सिर्फ एक गाड़ी नहीं थी, वो एक बयान थी—ताकत का, पैसे का, और एक ऐसी दुनिया का, जिससे यहाँ के ज़्यादातर छात्र सिर्फ सपनों में ही मिल सकते थे।
ड्राइवर साइड का दरवाज़ा धीरे से खुला और एक लंबा, दुबला-पतला लड़का बाहर निकला। उसने एक साधारण सी काली हुडी और फटी हुई जींस पहनी थी, लेकिन उसके पैरों में जो स्नीकर्स थे, उनकी कीमत किसी के पूरे सेमेस्टर की फीस से भी ज़्यादा थी। उसके बाल बिखरे हुए थे, जैसे वो अभी-अभी सोकर उठा हो, और उसकी आँखों में एक अजीब सी उदासी थी, एक खालीपन जो उसके आसपास की हर महंगी चीज़ के बिल्कुल उलट था। वो आर्यवर्द था।
कैंटीन के बाहर बैठी लड़कियों के एक झुंड में, एक जोड़ी आँखें उसे ऐसे देख रही थीं, जैसे किसी शिकारी ने अपना शिकार देख लिया हो। तृषा। उसके होंठों पर एक धीमी, सोची-समझी मुस्कान उभरी।
"देखो तो ज़रा," उसकी दोस्त, रिया ने फुसफुसाते हुए कहा। "नया पैसा आया है शहर में। और लगता है, इस बार लॉटरी लगी है।"
तृषा ने अपनी आँखों को छोटा किया, आर्यवर्द को ऊपर से नीचे तक तौलते हुए। उसने उसकी महंगी घड़ी, उसके जूते, और सबसे बढ़कर, उसकी आँखों में छिपे अकेलेपन को नोटिस किया। ये उसका पसंदीदा खेल था। अमीर, अकेले लड़के सोने की खान होते थे—उन्हें बस थोड़ी सी हमदर्दी और झूठे प्यार की ज़रूरत होती थी, और वो तुम्हारे कदमों में अपनी पूरी दुनिया रख देते थे।
"वो नया नहीं है, रिया," तृषा ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ शहद की तरह मीठी थी, लेकिन इरादे ज़हरीले। "वो फर्स्ट ईयर से यहीं है। आर्यवर्द। उसके डैड देश के सबसे बड़े बिल्डरों में से एक हैं। लेकिन वो किसी से बात नहीं करता। एक जीता-जागता रहस्य है।"
"तो फिर तुम क्या सोच रही हो?" एक और दोस्त ने पूछा, उसकी आँखों में शरारत थी।
तृषा ने अपने बालों को झटकते हुए कहा, "मैं सोच रही हूँ कि हर रहस्य को सुलझाने में एक अलग ही मज़ा है।" वो उठी, उसकी चाल में एक बनावटी मासूमियत थी। उसने अपनी किताबों का ढेर उठाया और जानबूझकर लड़खड़ाने का नाटक किया, ठीक उसी रास्ते पर, जहाँ से आर्यवर्द गुज़र रहा था।
किताबें ज़मीन पर बिखर गईं। "ओह, शिट!" तृषा ने ऐसी आवाज़ निकाली, जैसे उसे सच में चोट लगी हो।
आर्यवर्द, जो अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था, अचानक रुका। उसने नीचे देखा। एक खूबसूरत लड़की, ज़मीन पर बिखरी किताबों के बीच बैठी थी, उसके चेहरे पर परेशानी के भाव थे। एक पल के लिए, आर्यवर्द हिचकिचाया। लोग उससे बात नहीं करते थे, वो उनसे बात नहीं करता था। यही नियम था। लेकिन लड़की सच में परेशान लग रही थी।
वो नीचे झुका और किताबें उठाने में उसकी मदद करने लगा। "तुम ठीक हो?" उसकी आवाज़ थोड़ी भारी थी, जैसे उसने बहुत दिनों से किसी से बात न की हो।
तृषा ने ऊपर देखा, अपनी बड़ी-बड़ी भूरी आँखों में हैरानी का भाव लाते हुए। "ओह, हाँ... हाँ, मैं ठीक हूँ। बस थोड़ी लापरवाह हूँ।" उसने एक प्यारी सी मुस्कान दी। "तुम आर्यवर्द हो, है ना? हम साइकोलॉजी 201 की क्लास में साथ हैं।"
आर्यवर्द हैरान था। "तुम्हें मेरा नाम पता है?"
"क्यों नहीं?" तृषा ने खिलखिलाते हुए कहा। "तुम क्लास के सबसे शांत लड़के हो। तुम्हें नोटिस न करना मुश्किल है।" उसने झूठ कहा था। उसने उसे सिर्फ आज, उस कार के साथ नोटिस किया था।
आर्यवर्द के अंदर कुछ पिघला। पहली बार, किसी ने उसे उसकी दौलत के लिए नहीं, बल्कि उसके शांत स्वभाव के लिए नोटिस किया था। उसे ये एहसास अच्छा लगा। उसने बाकी की किताबें उठाईं और उसके हाथ में थमा दीं। "ध्यान से," उसने बस इतना कहा और आगे बढ़ गया।
तृषा उसे जाते हुए देखती रही, उसके होंठों पर जीत की मुस्कान थी। कांटा फेंक दिया गया था। अब बस मछली के फँसने का इंतज़ार था।
लाइब्रेरी की दूसरी मंजिल की खिड़की से, एक और लड़की यह सब देख रही थी। अनाया। उसके हाथ में एक मोटी सी किताब थी, लेकिन उसकी नज़रें उस किताब पर नहीं, बल्कि पार्किंग लॉट में चल रहे इस नाटक पर थीं। उसने एक गहरी साँस ली। वो आर्यवर्द को तब से जानती थी, जब वो दोनों बच्चे थे। जब उसके पिता की दौलत इतनी नहीं थी, और उसकी आँखों में इतना खालीपन नहीं था। वो जानती थी कि वो कितना अकेला है।
और वो तृषा को भी जानती थी। वो जानती थी कि तृषा की मुस्कान कितनी खोखली है और उसके इरादे कितने खतरनाक।
"यहाँ फिर से शुरू हो गया," अनाया ने खुद से कहा। "बेचारा आर्यवर्द। उसे अंदाज़ा भी नहीं है कि वो किस मकड़ी के जाले की तरफ बढ़ रहा है।" उसने अपनी किताब बंद की और अपना सिर खिड़की के शीशे से टिका लिया। वो कुछ करना चाहती थी, उसे चेतावनी देना चाहती थी, लेकिन वो जानती थी कि आर्यवर्द उसकी नहीं सुनेगा। जब कोई प्यार और अपनेपन के लिए इतना भूखा हो, तो वो ज़हर को भी अमृत समझकर पी जाता है।
उस शाम, आर्यवर्द अपने दोस्तों के साथ, जो असल में उसके दोस्त नहीं थे, बस उसके पैसों के साथी थे, एक महंगे कैफे में बैठा था। तृषा भी वहाँ थी। उसने बड़ी चालाकी से खुद को उस ग्रुप में शामिल कर लिया था। वो आर्यवर्द के बगल में बैठी थी, उसकी हर बात पर हँस रही थी, उसके हर मज़ाक पर तालियाँ बजा रही थी, चाहे वो कितना भी फीका क्यों न हो।
आर्यवर्द को अच्छा लग रहा था। बहुत अच्छा। सालों बाद, उसे लग रहा था कि वो किसी ग्रुप का हिस्सा है। कि वो किसी को पसंद है। तृषा की मौजूदगी एक गर्मजोशी की तरह थी, जो उसके अंदर के बर्फीले अकेलेपन को पिघला रही थी।
"तुम्हें पता है, आर्यवर्द," तृषा ने अपना हाथ उसके हाथ पर रखते हुए कहा, "तुम बाहर से जितने सख्त दिखते हो, अंदर से उतने ही नरम हो।"
उसके छूने से आर्यवर्द के पूरे शरीर में एक सिहरन दौड़ गई। उसने तृषा की आँखों में देखा। उसे वहाँ एक चमक दिखाई दी, जिसे उसने सच मान लिया।
तभी उसका फोन वाइब्रेट हुआ। स्क्रीन पर उसके सौतेले भाई, कबीर का नाम चमक रहा था। आर्यवर्द का चेहरा तुरंत उतर गया। वो गर्मजोशी, वो खुशी, सब एक पल में गायब हो गई। उसने गहरी साँस ली और मैसेज खोला।
"डैड पूछ रहे हैं कि उनका नया क्रेडिट कार्ड कहाँ है। उम्मीद है, तुम उसे अपनी नई 'दोस्त' पर बर्बाद नहीं कर रहे होगे। अपनी जगह मत भूलना, *भाई*।"
आखिरी शब्द, 'भाई', एक ताने की तरह चुभा। वो हमेशा उसे यही याद दिलाते थे—कि वो इस परिवार का हिस्सा नहीं है। वो बस एक ज़िम्मेदारी है, उसकी माँ की मौत के बाद उसके पिता पर थोपी गई एक ज़िम्मेदारी। उसकी सौतेली माँ और उसके बच्चे उसे कभी स्वीकार नहीं कर पाए थे।
आर्यवर्द का चेहरा पत्थर का हो गया। उसके अंदर का सारा रंग जैसे किसी ने खींच लिया हो।
तृषा ने यह बदलाव तुरंत महसूस किया। यह एक मौका था। उसने अपना चेहरा चिंता से भर लिया। "क्या हुआ, आर्यवर्द? सब ठीक है?" उसकी आवाज़ में शहद से भी ज़्यादा मिठास थी।
आर्यवर्द ने फोन लॉक कर दिया। "कुछ नहीं। बस... घर से मैसेज था।"
"कोई ज़रूरी बात है क्या?" तृषा ने ज़ोर दिया, अपना हाथ अब भी उसके हाथ पर रखे हुए। "तुम मुझे बता सकते हो। कभी-कभी किसी से बात करने से मन हल्का हो जाता है।"
आर्यवर्द ने एक पल के लिए सोचा। वो किसी को बताना चाहता था। वो चीखकर दुनिया को बताना चाहता था कि वो कितना अकेला है, कि उसके अपने ही घर में उसे एक बाहरी व्यक्ति की तरह महसूस कराया जाता है। उसने तृषा की आँखों में देखा। उसे वहाँ सिर्फ हमदर्दी दिखाई दी।
"मेरा परिवार..." उसने कहना शुरू किया, लेकिन फिर रुक गया। यह बहुत निजी था।
तृषा समझ गई। उसने उसे और नहीं कुरेदा। "कोई बात नहीं," उसने धीरे से कहा। "जब भी तुम्हें सही लगे। बस इतना याद रखना कि अब तुम अकेले नहीं हो।"
ये शब्द... "अब तुम अकेले नहीं हो"... ये वही शब्द थे जो आर्यवर्द सालों से सुनना चाहता था। उसने एक कमज़ोर सी मुस्कान दी। "शुक्रिया, तृषा।"
"अरे, इसमें शुक्रिया कैसा?" तृषा ने खिलखिलाते हुए कहा, और माहौल को हल्का करने के लिए एक और मज़ाक सुनाया।
लेकिन उस एक पल के लिए, जब आर्यवर्द का कवच उतरा था, तृषा ने उसके अंदर की गहरी खाई को देख लिया था। और उसे पता चल गया था कि इस खाई को भरना नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल करना है। वो उसे अपने झूठे प्यार और हमदर्दी से इतना भर देगी कि वो पूरी तरह से उस पर निर्भर हो जाएगा।
उस रात, जब आर्यवर्द अपने विशाल, ठंडे और खाली हॉस्टल के कमरे में लौटा, तो उसका दिल पहले से कहीं ज़्यादा हल्का महसूस कर रहा था। उसके कमरे में दुनिया की हर महंगी चीज़ थी, लेकिन आज पहली बार उसे लगा कि उसके पास कुछ कीमती है—एक दोस्त, या शायद दोस्त से कुछ ज़्यादा।
वो अपने बिस्तर पर लेटा हुआ छत को घूर रहा था, तृषा की हँसी उसके कानों में गूँज रही थी। वो मुस्कुराया। शायद, बस शायद, चीज़ें अब बदल रही थीं।
तभी उसका फोन एक बार फिर बजा। इस बार कोई नाम नहीं था। एक अननोन नंबर। उसने उत्सुकता से मैसेज खोला।
सिर्फ एक लाइन लिखी थी।
"चमकने वाली हर चीज सोना नहीं होती।"
आर्यवर्द ने उस मैसेज को घूरकर देखा। उसका दिमाग एक पल के लिए खाली हो गया। यह क्या था? किसका मैसेज था? कोई मज़ाक कर रहा था?
उसे लगा कि शायद उसके किसी दोस्त ने शरारत की है, उसे चिढ़ाने के लिए। तृषा के बारे में? नहीं, वो ऐसा क्यों करेंगे?
उसने उस नंबर पर वापस कॉल करने की कोशिश की, लेकिन वो बंद था। एक अजीब सी बेचैनी ने उसे घेर लिया। एक पल के लिए, उसे लगा जैसे कोई उसे देख रहा है, कोई है जो उसके बारे में सब कुछ जानता है।
लेकिन फिर उसने इस ख्याल को झटक दिया। वो ज़्यादा सोच रहा था। आज का दिन बहुत अच्छा था, और वो किसी बेवकूफी भरे प्रैंक से इसे बर्बाद नहीं करना चाहता था।
"एक मज़ाक ही तो था," उसने खुद को यकीन दिलाया, और स्क्रीन को बंद कर दिया। उसने फोन को बेडसाइड टेबल पर फेंक दिया और आँखें बंद कर लीं, तृषा के चेहरे को याद करने की कोशिश करते हुए।
लेकिन उस अंधेरे, खाली कमरे में, वो शब्द हवा में किसी अनकही चेतावनी की तरह तैरते रहे, एक ऐसे आने वाले तूफान का संकेत दे रहे थे, जिसका आर्यवर्द को कोई अंदाज़ा नहीं था।
अगली सुबह कॉलेज का माहौल कुछ बदला हुआ था। आर्यवर्द और तृषा का साथ में घूमना हॉट टॉपिक बन चुका था। जहाँ भी वे जाते, लोगों की फुसफुसाहटें उनका पीछा करतीं। आर्यवर्द को इन सब की आदत थी, लेकिन पहली बार उसे ये सब बुरा नहीं लग रहा था। तृषा के साथ होने से उसे एक अजीब सा सुकून मिल रहा था, भले ही वो झूठा ही क्यों न हो।
अनाया ने लाइब्रेरी के बाहर उन्हें एक साथ हँसते हुए देखा। उसका दिल डूब गया। वह जानती थी कि उसे कुछ करना होगा। उसने हिम्मत जुटाई और आर्यवर्द के पास गई, जब तृषा अपनी सहेलियों से बात करने के लिए कुछ दूर हटी थी।
"आर्य, क्या मैं तुमसे दो मिनट बात कर सकती हूँ?" अनाया की आवाज़ में एक झिझक थी।
आर्यवर्द ने उसे देखकर हल्की सी मुस्कान दी। "अनाया, तुम? बहुत दिनों बाद। सब ठीक है?"
"मैं ठीक हूँ। मैं तुम्हारे बारे में पूछ रही थी," उसने सीधे मुद्दे पर आते हुए कहा। उसकी नज़रें तृषा की तरफ गईं। "देखो, मैं जानती हूँ मैं तुम्हारे मामलों में बोलने वाली कोई नहीं होती, लेकिन... प्लीज़ थोड़ा सावधान रहना।"
आर्यवर्द की मुस्कान फीकी पड़ गई। "सावधान? किससे?"
"तृषा से," अनाया ने धीरे से कहा। "वो वैसी नहीं है जैसी दिखती है। उसकी दोस्ती का मतलब सिर्फ़ तुम्हारे पैसे और स्टेटस से है।"
आर्यवर्द का चेहरा सख्त हो गया। उसे लगा जैसे अनाया भी बाकी सब की तरह ही सोच रही है—कि कोई उससे बिना किसी मतलब के दोस्ती कर ही नहीं सकता। "तुम्हें ऐसा क्यों लगता है? क्योंकि मेरे पास पैसे हैं? क्या मैं एक अच्छा दोस्त डिज़र्व नहीं करता?" उसकी आवाज़ में दर्द और गुस्सा दोनों था।
"नहीं, आर्य, मेरा वो मतलब नहीं था!" अनाया ने समझाने की कोशिश की। "मैं बस इतना कह रही हूँ कि..."
"रहने दो, अनाया," आर्यवर्द ने उसे बीच में ही टोक दिया। "मुझे लगा था कि कम से कम तुम मुझे समझोगी। लेकिन तुम भी बाकी सब की तरह हो। शायद तृषा ही सही है। शायद मैं ही लोगों को मौका नहीं देता।" वह मुड़ा और वापस तृषा के पास चला गया, अनाया को अकेला और निराश छोड़कर।
अनाया की आँखों में आँसू आ गए। वह उसे चोट नहीं पहुँचाना चाहती थी, बस बचाना चाहती थी। उसने फैसला कर लिया। अगर आर्यवर्द उसकी बात नहीं सुनेगा, तो उसे सबूत ढूंढना होगा।
उसी दोपहर, तृषा ने आर्यवर्द को एक महंगे ज्वेलरी स्टोर पर ले जाने के लिए मना लिया। "आर्य, प्लीज़... मेरी बेस्ट फ्रेंड का बर्थडे आ रहा है और मुझे उसे कुछ स्पेशल देना है। तुम प्लीज़ मेरी हेल्प करोगे सेलेक्ट करने में? तुम्हारी चॉइस बहुत अच्छी है।"
प्यार में अंधा आर्यवर्द तुरंत मान गया। स्टोर में, तृषा ने सबसे महंगे सेक्शन की तरफ इशारा किया। उसने एक हीरे का ब्रेसलेट चुना, जिसकी कीमत सुनकर आर्यवर्द की आँखें भी एक पल के लिए चौड़ी हो गईं।
"तृषा, यह... यह बहुत ज़्यादा है," उसने धीरे से कहा।
"आई नो, बेबी," तृषा ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा। "लेकिन वो मेरी बेस्ट फ्रेंड है। मैं उसके लिए कुछ भी कर सकती हूँ। प्लीज़, आर्य... मैं तुम्हें बाद में पैसे दे दूँगी, प्रॉमिस।" उसकी आँखों में एक ऐसी मासूमियत थी जिस पर कोई भी पिघल जाए।
आर्यवर्द का दिल पिघल गया। उसने बिना कुछ सोचे-समझे अपना ब्लैक कार्ड निकाल कर काउंटर पर रख दिया। तृषा ने उसे कसकर गले लगा लिया। "तुम दुनिया के सबसे अच्छे इंसान हो!"
स्टोर से बाहर निकलकर, तृषा ने कहा कि उसे एक ज़रूरी काम से कहीं और जाना है। आर्यवर्द ने उसे अपनी कार ऑफर की, लेकिन उसने मना कर दिया और एक टैक्सी लेकर चली गई।
लेकिन अनाया, जो दूर से उन पर नज़र रखे हुए थी, ने अपनी स्कूटी स्टार्ट की और उस टैक्सी का पीछा करने लगी। वह यह देखकर हैरान रह गई कि टैक्सी किसी घर या ऑफिस के बजाय कॉलेज के पीछे वाले सुनसान कैफे के पास जाकर रुकी।
कैफे के अंदर, कॉलेज का एक और अमीर, बिगड़ा हुआ लड़का, रोहन, पहले से ही इंतज़ार कर रहा था। रोहन अपनी अय्याशियों और दिखावे के लिए बदनाम था। जैसे ही तृषा अंदर गई, रोहन ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और उसके होठों पर एक गहरा चुंबन दिया।
"लाई हो?" रोहन ने उसे छोड़ते हुए पूछा।
तृषा ने मुस्कुराते हुए अपने पर्स से ब्रेसलेट का डिब्बा निकाला और उसके हाथ में थमा दिया। "ऑफ कोर्स, बेबी। तुम्हारे लिए कुछ भी।"
रोहन ने ब्रेसलेट को देखते हुए सीटी बजाई। "वॉव! तुमने उस बेवकूफ को कैसे मना लिया?"
"अरे, वो तो एक इमोशनल फूल है," तृषा ने हँसते हुए कहा, उसकी आवाज़ में ज़हर था। "दो मीठी बातें कर दो, थोड़ी सी झूठी हमदर्दी दिखा दो, और वो पिघल जाता है। उसे लगता है मैं उससे प्यार करती हूँ। बेचारा... एक उबाऊ सोने की खान से ज़्यादा कुछ नहीं है।"
अनाया, जो कैफे की खिड़की के बाहर खड़ी यह सब सुन रही थी, का खून खौल उठा। उसने कांपते हाथों से अपना फोन निकाला और चुपके से उनकी एक तस्वीर ले ली, जिसमें रोहन तृषा को गले लगाए हुए था और ब्रेसलेट उसके हाथ में था। फिर उसने उनकी बातचीत को रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया।
उसका दिल आर्यवर्द के लिए दर्द से भर गया। उसे यह सच कैसे बताएगी? यह सच उसे तोड़ कर रख देगा।
उस रात, अनाया सो नहीं पाई। वह बस उस तस्वीर और रिकॉर्डिंग को देखती रही। उसे लगा कि वह आर्यवर्द को यह दिखाकर उसका दिल तोड़ देगी। क्या कोई और रास्ता नहीं है? वह इंटरनेट पर कुछ भी रैंडम सर्च करने लगी, बस अपना ध्यान भटकाने के लिए। उसने "गुमशुदा स्थान," "पौराणिक कथाएं," जैसे कीवर्ड्स डाले।
सर्च करते-करते वह एक पुराने, स्थानीय लोककथाओं के ब्लॉग पर जा पहुँची। ब्लॉग का डिज़ाइन बहुत पुराना था, लेकिन उसमें लिखी कहानियाँ दिलचस्प थीं। एक पोस्ट ने उसका ध्यान खींचा।
हेडिंग थी: "दरगुमर्ग की पहाड़ियां और शरद पूर्णिमा का गायब होने वाला महल।"
अनाया ने उत्सुकता से पढ़ना शुरू किया। ब्लॉग में लिखा था कि दिल्ली से कुछ घंटों की दूरी पर स्थित दरगुमर्ग की पहाड़ियों में एक रहस्यमयी महल है। किंवदंती के अनुसार, यह महल केवल साल में एक बार, शरद पूर्णिमा की रात को उन लोगों को दिखाई देता है जिनका दिल टूटा हुआ हो और जो दुनिया से निराश हो चुके हों। कहानी में कहा गया था कि महल उन टूटे हुए दिलों को अपनी ओर खींच लेता है, और जो एक बार अंदर चला जाता है, वह कभी वापस नहीं आता।
"क्या बकवास है," अनाया ने सोचा और लैपटॉप बंद करने ही वाली थी। लेकिन फिर उसने नीचे लिखे कमेंट्स पढ़े। कई लोगों ने दावा किया था कि उनके परिवार में किसी ने इस महल को देखा है। एक बूढ़े व्यक्ति ने लिखा था, "यह कोई कहानी नहीं है। पहाड़ रात में उन लोगों को ले जाते हैं जो प्यार में धोखा खाते हैं। यह एक श्राप है।"
अनाया को यह सब अंधविश्वास लगा, लेकिन उसके दिमाग के एक कोने में यह बात अटक गई। दरगुमर्ग की पहाड़ियाँ। गायब होने वाला महल। टूटे हुए दिल।
उसे एक भयानक विचार आया। शरद पूर्णिमा आने ही वाली थी। अगर उसने आर्यवर्द को तृषा की सच्चाई बताई, तो उसका दिल टूट जाएगा। और अगर यह किंवदंती सच हुई... तो? नहीं, यह पागलपन है। वह खुद को झिड़कने लगी।
लेकिन डर का एक बीज उसके मन में बोया जा चुका था। उसने फैसला किया। वह आर्यवर्द को सबूत दिखाएगी, लेकिन उसे अकेला नहीं छोड़ेगी। वह उसके साथ रहेगी, चाहे कुछ भी हो जाए। वह उसे किसी काल्पनिक महल में खोने नहीं दे सकती थी।
उसने अपने फोन में तृषा और रोहन की तस्वीर को फिर से देखा। उसकी आँखों में एक दृढ़ संकल्प था। खेल अब शुरू हो चुका था, और वह यह सुनिश्चित करेगी कि इस खेल में जीत सच्चाई की हो, धोखे की नहीं। वह नहीं जानती थी कि यह खेल उसे और आर्यवर्द को एक ऐसी हकीकत की तरफ ले जाएगा जो किसी भी लोककथा से कहीं ज़्यादा अजीब और खतरनाक थी।
कॉलेज की सेमेस्टर छुट्टियां शुरू होने में बस एक हफ्ता बाकी था। कैंपस में एक अलग ही माहौल था। कोई घर जाने की तैयारी कर रहा था, तो कोई दोस्तों के साथ घूमने की प्लानिंग बना रहा था। आर्यवर्द, हमेशा की तरह, इन सब से कटा हुआ था। उसके लिए छुट्टियों का मतलब था अपने खाली पेंटहाउस में और ज़्यादा अकेलापन।
इसी मौके का फायदा उठाते हुए, तृषा ने अपना अगला दाँव चला। वो आर्यवर्द के साथ कॉलेज लॉन में बैठी थी, उसका सिर आर्यवर्द के कंधे पर टिका हुआ था।
"आर्य, छुट्टियां आ रही हैं," उसने एक गहरी साँस लेते हुए कहा। "सब लोग कहीं न कहीं जा रहे हैं। मेरा भी बहुत मन है कहीं घूमने का।"
आर्यवर्द ने उसकी तरफ देखा। "तो चली जाओ। तुम्हें किसने रोका है?"
"अकेले जाने में क्या मज़ा है?" तृषा ने अपना चेहरा उसकी तरफ घुमाते हुए कहा, उसकी आँखों में एक बनावटी उदासी थी। "मैं चाहती हूँ कि हम साथ चलें। सिर्फ तुम और मैं... और हमारे दोस्त। एक पिकनिक पर। कहीं शांत, खूबसूरत जगह पर।"
आर्यवर्द को यह आइडिया अच्छा लगा। घर के तनावपूर्ण माहौल से दूर जाने का कोई भी मौका उसके लिए किसी نعمت से कम नहीं था। "कहाँ?" उसने पूछा।
तृषा के दिमाग में पहले से ही सब कुछ तय था। उसने लापरवाही से कहा, "मैंने सुना है दरगुमर्ग की पहाड़ियाँ बहुत खूबसूरत हैं। शहर से दूर, बिल्कुल शांत। हम वहाँ एक लक्ज़री कैंपिंग ट्रिप प्लान कर सकते हैं। टेंट, बॉनफायर, म्यूजिक... कितना मज़ा आएगा, है ना?"
दरगुमर्ग का नाम सुनकर आर्यवर्द को कुछ अजीब नहीं लगा। उसके लिए यह बस एक और खूबसूरत जगह थी। "ठीक है, जैसा तुम कहो," उसने सहमति दे दी। "मैं सब इंतज़ाम कर दूँगा।"
"सच में?" तृषा खुशी से उछल पड़ी और उसके गाल पर एक किस कर दिया। "तुम बेस्ट हो! मैं अभी प्रिया और बाकी लोगों को बताती हूँ। और हाँ, रोहन भी आएगा। वो मेरा... कज़िन है। तुम्हें कोई प्रॉब्लम तो नहीं?" उसने बड़ी सफाई से झूठ बोला।
आर्यवर्द ने सिर हिला दिया। "नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं। जितने ज़्यादा लोग होंगे, उतना अच्छा रहेगा।" वह इस बात से अनजान था कि यह पिकनिक उसके लिए नहीं, बल्कि रोहन को इम्प्रेस करने के लिए प्लान की जा रही थी, और इसका सारा खर्चा आर्यवर्द की जेब से होने वाला था।
जब अनाया को इस पिकनिक के बारे में पता चला, तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। दरगुमर्ग! वही जगह जिसके बारे में उसने उस ब्लॉग में पढ़ा था। और उनकी यात्रा का दिन शरद पूर्णिमा के ठीक एक दिन पहले का था। यह महज़ एक इत्तेफाक नहीं हो सकता था।
"मैं भी चलूँगी," अनाया ने सीधे जाकर प्रिया से कहा, जो लिस्ट बना रही थी।
प्रिया ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। "तुम? तुम और पिकनिक? तुम तो हमेशा किताबों में घुसी रहती हो।"
"बस मन कर रहा है," अनाया ने दृढ़ता से कहा। "अगर कोई प्रॉब्लम है तो मैं आर्यवर्द से बात कर सकती हूँ।"
प्रिया जानती थी कि आर्यवर्द उसे मना नहीं करेगा। उसने बेमन से उसका नाम लिस्ट में लिख दिया। तृषा को जब यह पता चला तो उसने नाक-भौं सिकोड़ी, लेकिन कुछ कहा नहीं। उसे लगा कि अनाया जैसी 'बेचारी' लड़की से उसे कोई खतरा नहीं है।
पिकनिक वाले दिन, दो बड़ी-बड़ी SUVs कॉलेज के गेट पर खड़ी थीं। एक में आर्यवर्द और तृषा थे, और दूसरी में बाकी सब। अनाया जानबूझकर दूसरी गाड़ी में बैठी, ताकि वह सब पर नज़र रख सके।
जैसे ही वे शहर से बाहर निकले और पहाड़ी रास्ता शुरू हुआ, मौसम बदलने लगा। आसमान में हल्के बादल छा गए थे और हवा में एक अजीब सी ठंडक थी। गूगल मैप्स उन्हें एक सँकरे, सुनसान रास्ते पर ले आया। दोनों तरफ घने जंगल थे, इतने घने कि दिन में भी अँधेरा लग रहा था।
"यार, ये कैसा रास्ता है?" रोहन ने चिढ़कर कहा। "यहाँ तो नेटवर्क भी नहीं है।"
तभी, अचानक उनकी SUV के ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक लगाए। गाड़ी एक झटके के साथ रुक गई, और टायर चीख उठे।
"क्या हुआ?" सब एक साथ चिल्लाए।
ड्राइवर की आँखें फैली हुई थीं। उसने कांपते हुए हाथ से सामने की तरफ इशारा किया। "वो... वो क्या था?"
सड़क के बीचों-बीच एक जानवर खड़ा था, लेकिन ऐसा जानवर किसी ने पहले कभी नहीं देखा था। वह एक बड़े काले हिरण जैसा था, लेकिन उसके सींग चाँदी की तरह चमक रहे थे और उसकी आँखें... उसकी आँखें रात में जलने वाले दो अंगारों की तरह लाल थीं। उसने एक पल के लिए गाड़ी को घूरा, और फिर एक ही छलाँग में जंगल के अँधेरे में गायब हो गया।
सबकी साँसें अटकी हुई थीं।
"शायद... शायद कोई नीलगाय होगी," ड्राइवर ने खुद को दिलासा देते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज़ काँप रही थी।
अनाया का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। उसने ऐसा जानवर किसी किताब में नहीं देखा था। यह जगह... यह जगह सही नहीं थी।
लगभग एक घंटे बाद, वे अपनी पिकनिक स्पॉट पर पहुँचे। यह एक खूबसूरत, हरी-भरी घाटी थी, जिसके एक तरफ नदी बह रही थी और दूसरी तरफ ऊंची पहाड़ियाँ थीं। आर्यवर्द की टीम ने पहले से ही वहाँ लक्ज़री टेंट लगा दिए थे और खाने-पीने का पूरा इंतज़ाम कर दिया था।
जैसे ही वे गाड़ियों से उतरे, पास की एक छोटी सी झोपड़ी से एक बूढ़ा आदमी लाठी टेकता हुआ उनकी तरफ आया। उसके चेहरे पर गहरी झुर्रियाँ थीं और आँखों में एक अजीब सी समझदारी। उसने फटे-पुराने, पारंपरिक पहाड़ी कपड़े पहने हुए थे।
"शहर के बच्चों," उसने अपनी खुरदरी आवाज़ में कहा। "यहाँ क्या करने आए हो?"
रोहन ने हँसते हुए कहा, "पार्टी करने आए हैं, बाबा। आप भी करोगे?"
बूढ़े आदमी ने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया। उसकी नज़रें आर्यवर्द पर टिकी थीं, जैसे वो उसके आर-पार देख रहा हो। "आज रात यहाँ मत रुको," उसने चेतावनी दी।
"क्यों? कोई जंगली जानवर है क्या?" तृषा ने मज़ाक उड़ाते हुए पूछा।
"जानवरों से ज़्यादा खतरनाक चीज़ें हैं यहाँ," बूढ़े आदमी ने गंभीरता से कहा। उसकी नज़रें आसमान की तरफ उठीं, जहाँ चाँद की एक पतली सी रेखा दिखने लगी थी। "कल शरद पूर्णिमा है। यह रात पहाड़ों की होती है। ये उन लोगों को अपने पास बुला लेते हैं जिनका दिल टूटा हुआ हो। सूरज ढलने से पहले यहाँ से चले जाना। बाद में... बाद में ये पहाड़ किसी को जाने नहीं देते।"
यह कहकर बूढ़ा आदमी मुड़ा और जैसे आया था, वैसे ही अपनी झोपड़ी की तरफ चला गया।
उसके जाने के बाद सब हँसने लगे। "क्या एक्टिंग कर रहा था बुड्ढा," रोहन ने कहा। "लगता है कोई हॉरर फिल्म देखकर आया है।"
सब उसकी बात पर हँस रहे थे, सिवाय दो लोगों के। आर्यवर्द, जिसे बूढ़े आदमी की आँखों में एक अजीब सी सच्चाई दिखी थी। और अनाया, जिसके लिए यह चेतावनी उस ब्लॉग पोस्ट का जीता-जागता सबूत थी।
उसका डर अब यकीन में बदल रहा था। उसने फैसला कर लिया। आज रात, इसी पिकनिक पर, वो आर्यवर्द के सामने तृषा का पर्दाफाश करेगी। इससे पहले कि पहाड़ उसे बुलाएँ, उसे इस धोखे के दलदल से बाहर निकालना ही होगा। चाहे इसके लिए उसे आर्यवर्द का दिल ही क्यों न तोड़ना पड़े। टूटा हुआ दिल एक काल्पनिक महल में खो जाने से बेहतर था।
पिकनिक पूरे ज़ोरों पर थी। तेज़ म्यूज़िक बज रहा था, महँगी शराब की बोतलें खुल रही थीं, और सब लोग हँस-गा रहे थे। आर्यवर्द ने हर चीज़ का बेहतरीन इंतज़ाम किया था। एक कोने में बारबेक्यू चल रहा था, और उसकी टीम के लोग सबको सर्व कर रहे थे। लेकिन इस पूरी भीड़ में, आर्यवर्द की आँखें सिर्फ तृषा को ढूँढ़ रही थीं, जो हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचने में लगी थी।
अनाया एक पेड़ के नीचे चुपचाप बैठी, सब पर नज़र रखे हुए थी। उसकी आँखें बाज़ की तरह तृषा और रोहन की हरकतों को देख रही थीं। वे दोनों दिखावे के लिए एक दूसरे से दूरी बनाए हुए थे, लेकिन उनके बीच चोरी-छिपे इशारे और संदेशों का आदान-प्रदान चल रहा था। अनाया ने देखा कि कैसे तृषा ने हँसते-हँसते रोहन की पीठ पर हाथ फेरा, और कैसे रोहन ने बहाने से अपना फोन निकालकर उसे कुछ दिखाया।
अनाया को पता था कि उसे मौके का इंतज़ार करना होगा। और वह मौका उसे जल्द ही मिल गया।
खेलों का दौर शुरू हुआ। किसी ने 'ट्रुथ एंड डेयर' का सुझाव दिया। जब तृषा की बारी आई, तो उसे डेयर मिला कि वह नदी के ठंडे पानी में डुबकी लगाए। वह ख़ुशी-ख़ुशी तैयार हो गई, अपना फोन और पर्स पास ही एक चट्टान पर रखकर। सब लोग उसे चीयर करने के लिए नदी किनारे चले गए।
यही मौका था।
अनाया तेज़ी से उस चट्टान के पास गई। उसने आसपास देखा, कोई उसे नहीं देख रहा था। उसने कांपते हाथों से तृषा का फोन उठाया। शुक्र है, कोई पासवर्ड नहीं था। उसने जल्दी से मैसेजिंग ऐप खोला। रोहन का चैट सबसे ऊपर था, दिल वाले इमोजी के साथ। उसने चैट खोला और उनके बीच के गंदे संदेशों को पढ़कर उसका खून खौल उठा। वे आर्यवर्द का मज़ाक उड़ा रहे थे, उसे "गोल्डन गूज़" और "इमोशनल एटीएम" जैसे नामों से बुला रहे थे।
अनाया ने गहरी साँस ली और अपनी योजना को अंजाम दिया। उसने तृषा के फोन से रोहन को एक मैसेज टाइप किया: "नदी के पीछे वाले पुराने पीपल के पेड़ के पास आओ। एक सरप्राइज़ है। जल्दी आना, अकेले।"
मैसेज भेजकर उसने फोन वापस वहीं रख दिया और अपनी जगह पर आकर बैठ गई, जैसे कुछ हुआ ही न हो। कुछ ही देर में रोहन का फोन बजा। उसने मैसेज पढ़ा और उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई। उसने सबसे नज़र बचाकर चुपके से उस पीपल के पेड़ की तरफ खिसकना शुरू कर दिया।
अब दूसरे मोहरे को हिलाने की बारी थी।
अनाया उठकर आर्यवर्द के पास गई, जो अकेले ही आग के पास बैठा कुछ सोच रहा था।
"आर्य," उसने धीरे से कहा।
आर्यवर्द ने उसे देखकर एक फीकी सी मुस्कान दी। "तुम ठीक हो? तुमने कुछ खाया नहीं।"
"मैं ठीक हूँ," अनाया ने कहा। "मैं बस यह कहने आई थी कि... तृषा तुम्हें बुला रही है। वो तुम्हें कोई सरप्राइज़ देना चाहती है।"
आर्यवर्द की आँखों में चमक आ गई। "सरप्राइज़? कहाँ है वो?"
"नदी के पीछे, उस पुराने पीपल के पेड़ के पास," अनाया ने उस दिशा में इशारा करते हुए कहा। "उसने कहा कि तुम अकेले आना।"
आर्यवर्द का चेहरा खुशी से खिल गया। वह बिना एक पल सोचे उस तरफ चल दिया। अनाया उसके पीछे-पीछे, कुछ दूरी बनाकर चलने
एक पल के लिए, आर्यवर्द को लगा कि उसके कानों ने धोखा दिया है। वह वहीं जम गया, पीपल के मोटे तने के पीछे छिपा हुआ, उसका दिल किसी हथौड़े की तरह उसकी पसलियों पर चोट कर रहा था। जो आवाज़ें उस तक पहुँच रही थीं, वे किसी ज़हर की तरह उसकी नसों में घुल रही थीं।
"ओह रोहन, मैं इस बोरिंग लड़के से तंग आ चुकी हूँ," तृषा की आवाज़ आई, जिसमें ज़रा भी प्यार नहीं था, सिर्फ ऊब थी। "वो तो बस... एक चलता-फिरता एटीएम है। कोई इमोशन नहीं, कोई पैशन नहीं। बस पैसा, पैसा, पैसा।"
रोहन हँसा, एक घिनौनी हँसी। "तो फिर क्यों चिपकी रहती हो उससे, बेबी? जब तक उसका पैसा है, तब तक? वैसे, यह पिकनिक तो शानदार है। खर्चा अच्छा किया है लड़के ने।"
"बेशक," तृषा ने जवाब दिया। "बस कुछ और दिन। एक बार जब मुझे वो डायमंड नेकलेस मिल जाए जो मैंने उसे दिखाया था, फिर मैं उसे कोई अच्छा सा बहाना बनाकर छोड़ दूँगी। वैसे भी, उससे सच्चा प्यार कौन कर सकता है? वो तो एक मशीन है।"
"एक उबाऊ सोने की खान से ज़्यादा कुछ नहीं," रोहन ने कहा, और फिर उनके हँसने की आवाज़ आई।
बस। आर्यवर्द और नहीं सुन सकता था। हर शब्द एक काँच के टुकड़े की तरह उसके दिल में चुभ रहा था। वह पेड़ के पीछे से बाहर निकला। उसकी आँखें लाल थीं, मुट्ठियाँ भिंची हुई थीं।
उसे देखकर तृषा और रोहन के चेहरे का रंग उड़ गया। वे एक-दूसरे से ऐसे अलग हुए जैसे उन्हें बिजली का झटका लगा हो।
"आर्य... तुम... तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" तृषा ने हकलाते हुए कहा। "यह वैसा नहीं है जैसा तुम सोच रहे हो।"
"नहीं?" आर्यवर्द की आवाज़ शांत थी, लेकिन उस शांति में एक तूफान छिपा था। "तो फिर यह कैसा है, तृषा? ज़रा समझाओ मुझे। मैं एक 'बोरिंग सोने की खान' हूँ, है ना?"
पकड़े जाने पर, तृषा का डर गुस्से में बदल गया। उसने अपना बचाव करने का सबसे आसान तरीका चुना - हमला। "हाँ! हो तुम! एक बोरिंग, इमोशनलेस इंसान! तुम्हें किसी की फीलिंग्स की कद्र ही नहीं है! तुम सिर्फ अपने पैसों से प्यार खरीद सकते हो, और कुछ नहीं! कोई भी, मैं कहती हूँ कोई भी तुमसे सच्चा प्यार नहीं कर सकता!"
तृषा का हर शब्द आर्यवर्द के सबसे गहरे घावों पर नमक छिड़क रहा था। वही शब्द जो उसके सौतेले भाई-बहन उसे कहते थे। वही एहसास जो उसे हमेशा अकेला महसूस कराता था। एक पल के लिए, उसके चेहरे पर दर्द की एक लहर दौड़ी।
फिर, अचानक, वो दर्द एक भयानक गुस्से में बदल गया। एक ऐसा गुस्सा जो उसने पहले कभी महसूस नहीं किया था। वह हँसा, एक खोखली, दर्द भरी हँसी।
"पैसा, है ना?" उसने अपनी आवाज़ में एक अजीब सी ठंडक के साथ कहा। "यही चाहिए तुम्हें?"
उसने अपनी जेब से अपनी महंगी स्पोर्ट्स कार की चाबियाँ निकालीं और उन्हें ज़मीन पर फेंक दिया। "ये लो।"
उसने अपनी कलाई से अपनी रोलेक्स घड़ी उतारी। "ये भी।"
उसने अपना लेटेस्ट आईफोन और अपना बटुआ निकाला, जिसमें कई क्रेडिट कार्ड्स थे। "यह सब ले लो! यही तो है मेरी कीमत, है ना?"
उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वे गुस्से की आग में जल रहे थे। वह मुड़ा और बिना एक शब्द कहे, तूफान की तरह वहाँ से चल दिया।
अनाया, जो कुछ दूरी पर खड़ी सब कुछ देख रही थी, उसके पीछे भागी। "आर्य, रुको!"
आर्यवर्द रुका और उसकी तरफ घूमा। उसका चेहरा गुस्से और दर्द से तमतमाया हुआ था। "क्यों? क्यों किया तुमने ये, अनाया?" वह चिल्लाया। "कम से कम मैं एक झूठी खुशी में तो जी रहा था! तुमने वो भी छीन ली! मुझे अकेला क्यों नहीं छोड़ देती तुम?"
अनाया के पास उसके सवालों का कोई जवाब नहीं था। वह बस उसे जाते हुए देखती रही, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
आर्यवर्द को नहीं पता था कि वह कहाँ जा रहा है। वह बस भाग रहा था - तृषा से, अपनी ज़िंदगी से, खुद से। वह पिकनिक स्पॉट से दूर, पहाड़ियों के और अंदर चला गया। उसके पैर काँटों और पत्थरों से छिल रहे थे, लेकिन उसे कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था। उसके दिल का दर्द उससे कहीं ज़्यादा था।
अकेला और पूरी तरह से टूटा हुआ, वह बिना किसी मंज़िल के पहाड़ों में भटकता रहा। उसने ऊपर देखा। दोपहर का सूरज कब का ढल चुका था। आसमान में गहरे, काले बादल घुमड़ने लगे थे, जैसे वे उसके दर्द को महसूस कर रहे हों। बूढ़े आदमी की चेतावनी उसके कानों में गूँज रही थी: "ये पहाड़ उन लोगों को अपने पास बुला लेते हैं जिनका दिल टूटा हुआ हो।" उसने इस ख्याल को झटक दिया। लेकिन कहीं न कहीं, उसके दिल के एक कोने में, एक अजीब सा डर घर करने लगा था।
एक गड़गड़ाहट के साथ आसमान फटा, और ठंडी, मोटी बूँदें आर्यवर्द के ऊपर गिरने लगीं। एक पल में ही, वे बूँदें एक मूसलाधार बारिश में बदल गईं। उसके कपड़े भीगकर उसके शरीर से चिपक गए, लेकिन उसे ठंड महसूस नहीं हो रही थी। उसके अंदर का तूफान बाहर की बारिश से कहीं ज़्यादा भयानक था। हर बूँद तृषा के कहे शब्दों की तरह चुभ रही थी - "बोरिंग... इमोशनलेस... कोई तुमसे प्यार नहीं कर सकता।"
वह एक चट्टान पर बैठ गया, सिर अपने घुटनों में छिपाकर। वह पूरी तरह से हार चुका था। दुनिया में ऐसा कोई नहीं था जिसे वह अपना कह सके। वह अकेला था, हमेशा की तरह।
तभी, बादलों के बीच एक ज़ोरदार बिजली कड़की। एक पल के लिए,
महल के अंदर की हवा भारी और बासी थी, जिसमें सदियों की धूल और उपेक्षा की गंध घुली हुई थी। दरवाज़े के बंद होने की गूंज दीवारों से टकराकर धीरे-धीरे शांत हुई, और उसकी जगह एक भयानक खामोशी ने ले ली। एक पल के लिए आर्यवर्द वहीं खड़ा रहा, उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। यह कोई मज़ाक नहीं था। वह सच में यहाँ फँस गया था।
"हैलो?" उसकी आवाज़ कांप रही थी, जो विशाल हॉल में खोखली लग रही थी। "कोई है?"
जैसे ही उसके शब्द खत्म हुए, दीवारों पर लगी पुरानी, जंग लगी मशालदानों में मोमबत्तियाँ अपने आप जल उठीं। एक के बाद एक, वे जलती चली गईं, जिससे एक लंबा, भयानक रास्ता रोशन हो गया, जो महल के और अंदर जा रहा था। पीली रोशनी ने लंबी-लंबी, नाचती हुई परछाइयाँ पैदा कीं, जो किसी दुःस्वप्न के दृश्यों की तरह लग रही थीं।
वह फिर से मदद के लिए चिल्लाया, लेकिन उसकी आवाज़ की केवल गूँज ही वापस आई। लेकिन इस बार, गूँज के साथ कुछ और भी था। एक हल्की सी फुसफुसाहट, जो हवा में तैरती हुई महसूस हुई, जैसे कोई बहुत दूर से बात कर रहा हो। क्या यह सिर्फ हवा थी जो टूटी हुई खिड़कियों से आ रही थी? या कुछ और? वह तय नहीं कर पा रहा था।
डर के बावजूद, वह रोशन रास्ते पर आगे बढ़ा। धूल से ढकी दीवारों पर बड़े-बड़े, फीके पड़ चुके चित्र टंगे थे। एक चित्र ने उसका ध्यान खींचा। यह एक नौजवान राजकुमार का था, जिसके चेहरे पर एक शाही शान थी, लेकिन उसकी गहरी, काली आँखों में एक अजीब सा, अथाह दुख भरा हुआ लग रहा था। आर्यवर्द को एक पल के लिए लगा जैसे वह उस राजकुमार के दर्द को महसूस कर सकता है।
अचानक, बाहर घने बादलों के बीच से शरद पूर्णिमा का पूरा चाँद निकला। उसकी चांदी जैसी रोशनी महल के एक बड़े से, टूटे हुए शीशे से अंदर आई और सीधे हॉल के बीच में पड़ी। जिस क्षण चाँदनी ने फर्श को छुआ, एक अविश्वसनीय घटना घटी।
एक पल के लिए, महल पूरी तरह से बदल गया। धूल और जाले गायब हो गए। फटे हुए पर्दे शानदार रेशम में बदल गए। टूटे हुए फर्नीचर की जगह चमकते हुए, नक्काशीदार सोफे और मेजें आ गईं। दीवारों पर लगे चित्र नए और चमकीले हो गए। महल अपनी पूरी भव्यता में जी उठा, एक क्षणभंगुर, लुभावने भ्रम की तरह। आर्यवर्द अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सका।
लेकिन जितनी जल्दी यह हुआ था, उतनी ही जल्दी खत्म भी हो गया। जैसे ही एक बादल का टुकड़ा चाँद के सामने आया, महल वापस अपने खंडहर रूप में लौट आया। वह जादू का पल जा चुका था, लेकिन उसने आर्यवर्द के मन में एक गहरा सवाल छोड़ दिया था। यह जगह क्या थी?
तभी, उसे एक आवाज़ सुनाई दी। तहखाने की ओर जाने वाली सीढ़ियों से एक धीमी, लयबद्ध धड़कन की आवाज़ आ रही थी। धम... धम... धम... जैसे कोई बड़ा सा दिल धीरे-धीरे धड़क रहा हो।
वह धीमी, लयबद्ध धड़कन की आवाज़ किसी चुंबक की तरह उसे अपनी ओर खींच रही थी। धम... धम... धम... यह सिर्फ एक आवाज़ नहीं थी; यह एक कंपन थी जिसे वह अपने पैरों के नीचे पत्थर के फर्श में महसूस कर सकता था, जो उसकी छाती में गूँज रही थी। डर अब भी उसके दिल में था, एक ठंडी, नुकीली चीज़ की तरह, लेकिन उस डर पर एक नई, शक्तिशाली भावना हावी हो रही थी—जिज्ञासा। एक ऐसी जिज्ञासा जो उसके अपने दर्द और अकेलेपन से पैदा हुई थी। बाहर की दुनिया ने उसे तोड़ दिया था, उसे ठुकरा दिया था। यहाँ, इस भयानक, रहस्यमयी जगह में, कम से कम कुछ ऐसा था जो वास्तविक लग रहा था, भले ही वह खतरनाक हो।
"अगर मरना ही है, तो कम से कम यह जानकर मरूँगा कि इस आवाज़ के पीछे क्या है," वह खुद से फुसफुसाया। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी शांति थी, जैसे उसने सब कुछ स्वीकार कर लिया हो। उसने गहरी साँस ली और उन अंधेरी, नीचे जाती हुई सीढ़ियों की ओर कदम बढ़ाया।
हर कदम के साथ हवा और ठंडी और नम होती जा रही थी। दीवारों से पानी रिस रहा था, और हवा में सड़ी हुई लकड़ी और गीली मिट्टी की गंध थी। जादुई मोमबत्तियों की रोशनी यहाँ भी उसका पीछा कर रही थी, सीढ़ियों की दीवारों पर लंबी, कांपती हुई परछाइयाँ बना रही थी। धड़कन की आवाज़ अब और भी साफ और तेज़ हो गई थी। यह अब सिर्फ एक आवाज़ नहीं थी, यह एक पुकार लग रही थी।
सीढ़ियाँ एक विशाल, गुंबददार कमरे में खत्म हुईं। यह कोई आम तहखाना नहीं था। यह एक मकबरा, एक पूजा स्थल या किसी तरह का अनुष्ठान कक्ष लग रहा था। कमरे के बीचों-बीच, एक ऊँचे चबूतरे पर, एक ताबूत रखा हुआ था। यह लकड़ी का नहीं था, बल्कि किसी काले, चमकदार पत्थर से बना था जो मोमबत्तियों की रोशनी को सोखता हुआ लग रहा था। वह इतना काला था कि वह लगभग एक छेद जैसा लग रहा था, वास्तविकता में एक दरार।
और उस ताबूत को जकड़ा हुआ था। मोटी, चाँदी जैसी दिखने वाली जंजीरों ने उसे चारों तरफ से लपेट रखा था। हर जंजीर पर अजीब, जंग लगे रंग के प्रतीक खुदे हुए थे जो हल्की, बीमार सी रोशनी में चमकते लग रहे थे। जंजीरों को पत्थर के चबूतरे में बड़ी-बड़ी, मोटी कीलों से गाड़ा गया था, और हर कील के ऊपर मंत्रों से लिखी हुई पीली पड़ चुकी कागज़ की पट्टियाँ चिपकी हुई थीं। यह साफ था कि जो भी या जो कुछ भी अंदर था, उसे बाहर आने से रोकने के लिए हर संभव कोशिश की गई थी। और वह धड़कन... वह उसी काले पत्थर के ताबूत के अंदर से आ रही थी।
आर्यवर्द धीरे-धीरे आगे बढ़ा, उसकी आँखें उस भयानक दृश्य पर टिकी थीं। वह सोच रहा था कि किस तरह के इंसान को ऐसी कैद दी जा सकती है। यह किसी को कैद करने से कहीं ज़्यादा था; यह किसी चीज़ को दबाने जैसा था।
तभी, एक आवाज़ गूँजी। यह एक बूढ़े आदमी की आवाज़ थी, थकी हुई और खुरदरी, जैसे उसने सदियों से बात न की हो। आवाज़ हर जगह से आ रही थी और कहीं से भी नहीं।
"यहाँ से चले जाओ," आवाज़ ने चेतावनी दी। "यह तुम्हारी जगह नहीं है।"
आर्यवर्द उछल पड़ा और चारों ओर देखने लगा, लेकिन उसे कोई नहीं दिखा। "कौन हो तुम?" उसने चिल्लाकर पूछा, उसकी आवाज़ में डर से ज़्यादा गुस्सा था। "यह क्या है? तुमने किसी को यहाँ कैद कर रखा है!"
उसने इसे एक जेलर की आवाज़ मान लिया था। उसके मन में एक ही विचार आया: कोई अंदर फँसा है, और यह आवाज़ उसे वहीं रखना चाहती है। तृषा के धोखे ने उसे सिखाया था कि चीज़ें वैसी नहीं होतीं जैसी दिखती हैं, लेकिन उसने इस सबक को गलत तरीके से लागू किया। उसे लगा कि वह एक नायक की भूमिका निभा रहा है, एक कैदी को मुक्त करा रहा है।
"तुम नहीं समझते, लड़के," आवाज़ ने फिर कहा, इस बार उसमें एक हताशा का भाव था। "तुम जिसे मुक्त करना चाहते हो, वह कोई कैदी नहीं है। वह एक श्राप है।"
लेकिन आर्यवर्द ने उसकी बात नहीं सुनी। उसने चारों ओर देखा और पास में पड़ी एक जंग लगी लोहे की छड़ उठाई। वह उसे एक लीवर की तरह इस्तेमाल करने की योजना बना रहा था। वह ताबूत के पास गया, उसके दिल में एक अजीब सी दृढ़ता थी। वह इस अनजान कैदी के लिए लड़ेगा।
"मैं तुम्हें यहाँ सड़ने नहीं दूँगा," उसने ताबूत से फुसफुसाकर कहा, जैसे अंदर कोई उसकी बात सुन सकता हो।
"रुक जाओ!" बूढ़ी आवाज़ चिल्लाई, अब उसमें गुस्सा और डर दोनों थे। "अगर तुमने एक भी कील हटाई, तो तुम ऐसी तबाही लाओगे जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते!"
आर्यवर्द ने चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर दिया। उसने लोहे की छड़ को सबसे मोटी कीलों में से एक के नीचे फँसाया और अपनी पूरी ताकत से उसे ऊपर उठाने की कोशिश की। धातु पर धातु के घिसने की एक तीखी, कानों को फाड़ने वाली आवाज़ हुई। कील सदियों से अपनी जगह पर जमी हुई थी। पसीना उसकी आँखों में जा रहा था, लेकिन उसने हार नहीं मानी।
उसने एक आखिरी बार अपनी पूरी ताकत लगाई। एक ज़ोरदार 'क्रैक' की आवाज़ के साथ, कील पत्थर से उखड़ गई। जंजीर का एक सिरा ढीला होकर ज़मीन पर गिरा।
जैसे ही कील ज़मीन से टकराई, पूरा महल हिंसक रूप से कांप उठा। एक भूकंप जैसी गड़गड़ाहट हुई, और छत से धूल और छोटे-छोटे पत्थर गिरने लगे। मोमबत्तियाँ एक पल के लिए बुझने को हुईं, और उनकी रोशनी बेतहाशा नाचने लगी। ताबूत के अंदर से आने वाली धड़कन एक पल के लिए एक दहाड़ में बदल गई, और फिर वापस अपनी धीमी, स्थिर लय में लौट आई।
आर्यवर्द झटके से पीछे हट गया, उसके हाथ में वह उखड़ी हुई कील थी। उसने कांपते हुए ताबूत को देखा, और पहली बार उसे अपने फैसले पर शक हुआ। बूढ़ी आवाज़ अब खामोश थी, जैसे उसने हार मान ली हो। और उस खामोशी में, आर्यवर्द को एहसास हुआ कि उसने एक ऐसी रेखा पार कर दी है, जहाँ से वापसी का कोई रास्ता नहीं था।
उस एक कील को हटाने का असर विनाशकारी था, जैसे किसी बांध में पहली दरार आ गई हो। पूरा महल अब एक जीवित प्राणी की तरह कराह रहा था, जो दर्द में था। दीवारों से पत्थरों के गिरने की आवाज़ें तेज़ हो गईं, और आर्यवर्द को लगा जैसे छत किसी भी पल उसके ऊपर गिर सकती है। लेकिन वह पीछे नहीं हट सकता था। उसने एक काम शुरू किया था, और उसका टूटा हुआ, ज़िद्दी दिल उसे पूरा करने के लिए मजबूर कर रहा था।
"अगर यह महल गिर भी जाए, तो मैं तुम्हें आज़ाद करके ही रहूँगा," उसने उस अनजाने कैदी से वादा किया। उसने लोहे की छड़ फिर से उठाई और अगली कील पर निशाना साधा।
हर कील हटाने के साथ, बाहर का तूफान और भी भयानक होता जा रहा था। बादलों की गड़गड़ाहट अब सिर्फ गड़गड़ाहट नहीं रही थी; यह एक क्रोधित जानवर की दहाड़ जैसी लग रही थी। बिजली की चमक इतनी तेज़ थी कि वह तहखाने की ऊँची खिड़कियों से भी अंदर आकर एक पल के लिए सब कुछ सफेद रोशनी में नहला देती थी, और हर चमक के साथ, ताबूत पर खुदे हुए अजीब प्रतीक एक भयानक, बैंगनी रंग में चमक उठते थे। महल का कांपना अब और भी हिंसक हो गया था, और आर्यवर्द को संतुलन बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था।
ताबूत के अंदर से एक बर्फीली ठंडक निकल रही थी। हर कील के हटने के साथ, वह ठंड और भी बढ़ रही थी, कमरे के तापमान को गिरा रही थी। आर्यवर्द के मुँह से भाप निकलने लगी थी, और उसके हाथ ठंड से सुन्न हो रहे थे। लेकिन वह रुका नहीं। उसे लग रहा था जैसे वह समय के खिलाफ दौड़ रहा है, हालाँकि उसे पता नहीं था कि वह किस चीज़ की ओर दौड़ रहा है।
एक कील, फिर दूसरी, फिर तीसरी। हर एक के निकलने पर, जंजीरें ढीली होकर ज़मीन पर गिरतीं, और एक ज़ोरदार, गूंजती हुई आवाज़ पैदा करतीं। मंत्रों से लिखी पीली पट्टियाँ हवा में उड़कर धूल में मिल जातीं। उस बूढ़े आदमी की आवाज़ अब पूरी तरह से खामोश थी, जैसे उसने अपनी किस्मत को स्वीकार कर लिया हो।
आखिरकार, सिर्फ एक आखिरी कील बची थी। यह सबसे बड़ी और सबसे मज़बूत थी, जो सीधे ताबूत के ढक्कन के बीच में लगी थी। आर्यवर्द काँप रहा था, थकान और ठंड से बेहाल। उसने एक पल के लिए रुककर ताबूत को देखा। अंदर की धड़कन अब लगभग शांत हो चुकी थी, एक धीमी, इंतज़ार करती हुई लय में।
"बस एक और," उसने खुद को हिम्मत देते हुए कहा। उसने लोहे की छड़ को आखिरी कील के नीचे फँसाया और अपनी बची हुई सारी ताकत लगा दी। उसकी मांसपेशियाँ दर्द से चीख उठीं। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और एक आखिरी धक्का दिया।
एक भयानक, गड़गड़ाहट जैसी आवाज़ हुई, और कील अपने खांचे से बाहर निकल आई। आखिरी जंजीर का बंधन टूट गया।
जैसे ही कील ज़मीन पर गिरी, ताबूत का भारी, पत्थर का ढक्कन एक ज़ोरदार 'धमाके' के साथ अपने आप खुल गया। वह इतनी तेज़ी से खुला कि हवा का एक शक्तिशाली झोंका पैदा हुआ, जिसने तहखाने की सभी मोमबत्तियों को एक साथ बुझा दिया।
एक पल के लिए, पूर्ण अँधेरा और खामोशी छा गई। महल का कांपना बंद हो गया था। बाहर का तूफान शांत हो गया था। यहाँ तक कि वह धड़कन भी रुक गई थी। आर्यवर्द अपनी साँस रोके खड़ा रहा, इंतज़ार करता रहा। उसे लगा कि शायद यह सब उसकी कल्पना थी। शायद ताबूत खाली था। शायद वह बूढ़ी आवाज़ सही थी और उसने कुछ भी नहीं बदला था।
उसने अपनी जेब से अपना फोन निकालने की कोशिश की, उसकी टॉर्च जलाने के लिए।
अचानक, एक काली छाया खुले ताबूत से निकली। वह किसी धुएँ या भाप की तरह नहीं थी; यह ठोस अंधकार का एक टुकड़ा था, इतना गहरा कि उसने अपने पीछे की हर रोशनी को सोख लिया। वह एक पल के लिए हवा में रुकी, और फिर बिजली की तेज़ी से ऊपर की ओर भागी और गुंबददार छत से चिपक गई।
जिस क्षण उस छाया ने छत को छुआ, महल में जो कुछ भी बचा-खुचा था, वह एक साथ बंद हो गया। मुख्य हॉल में जल रही मोमबत्तियाँ, बिजली की चमक, चाँद की रोशनी—सब कुछ एक साथ गायब हो गया, जैसे किसी ने ब्रह्मांड का स्विच बंद कर दिया हो। पूर्ण, अथाह, दम घुटने वाला अँधेरा। आर्यवर्द को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, वह अपने हाथ को भी नहीं देख पा रहा था। वह केवल अपनी धड़कन सुन सकता था, जो उसके कानों में ज़ोर-ज़ोर से बज रही थी। उसे एहसास हुआ कि उसने कोई श्राप नहीं तोड़ा था।
उसने श्राप को आज़ाद कर दिया था।
पूर्ण अंधकार। यह सिर्फ रोशनी की कमी नहीं थी; यह एक ठोस, भारी मौजूदगी थी जो उसे चारों तरफ से दबा रही थी, उसकी साँसों को खींच रही थी। आर्यवर्द ने अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर देखने की कोशिश की, लेकिन उसे एक भी किनारा, एक भी आकार दिखाई नहीं दिया। महल की आवाज़ें भी बंद हो चुकी थीं। अब न कोई कंपन था, न पत्थरों के गिरने की आवाज़। केवल एक भयानक, अप्राकृतिक खामोशी थी।
तभी, उस अथाह अंधकार के बीच, एक रोशनी जली। यह कोई गर्म, मोमबत्ती जैसी रोशनी नहीं थी। यह एक भयानक, नीले रंग की चमक थी, जैसे किसी सड़ती हुई चीज़ से निकल रही हो। यह रोशनी छत पर चिपकी उस काली छाया के केंद्र से निकल रही थी। धीरे-धीरे, वह नीली रोशनी तेज़ होती गई, जिससे छाया का आकार और स्पष्ट होने लगा।
आर्यवर्द को अब अपनी गलती का पूरा एहसास हो गया था। यह कोई कैदी नहीं था जिसे उसने आज़ाद किया था। यह कुछ और था। कुछ प्राचीन, कुछ शक्तिशाली, और कुछ बहुत ही गलत। "यह तुम्हारी जगह नहीं है।" बूढ़ी आवाज़ के शब्द उसके दिमाग में गूँज रहे थे। डर ने अब जिज्ञासा की जगह ले ली थी, एक बर्फीला, दिल को जकड़ लेने वाला डर। उसने भागने के लिए पीछे मुड़कर देखा, उन सीढ़ियों की ओर जहाँ से वह आया था।
लेकिन जैसे ही उसने पहला कदम बढ़ाया, तहखाने का भारी पत्थर का दरवाज़ा एक ज़ोरदार 'धड़ाम' की आवाज़ के साथ अपने आप बंद हो गया। उस आवाज़ की गूँज चारों तरफ फैल गई, और फिर से वही दम घुटने वाली खामोशी छा गई। वह फँस चुका था।
ऊपर, वह काली छाया धीरे-धीरे हिलने लगी। वह अब कोई बेतरतीब धब्बा नहीं थी। वह सिकुड़ रही थी, मुड़ रही थी, एक मानवीय आकार ले रही थी। पहले दो लंबे पैर बने, फिर एक धड़, फिर दो हाथ। और आखिर में, एक सिर। वह एक लंबा, सुंदर आदमी था, जिसकी कद-काठी किसी राजकुमार जैसी थी। उसके बाल लंबे और काले थे, और उसके कपड़े प्राचीन और कीमती लग रहे थे, भले ही वे अब फटे-पुराने थे।
लेकिन उसका चेहरा... उसका चेहरा भयानक था। उसकी त्वचा चाक जैसी सफेद थी, जैसे उसमें खून की एक बूँद भी न हो। और उसके चेहरे पर गहरे, बिना खून के घाव थे—जैसे किसी ने उसे तेज़ नाखूनों से खरोंचा हो। लेकिन सबसे डरावनी चीज़ उसकी आँखें थीं। वे नीली रोशनी से चमक रही थीं, लेकिन उनमें कोई भावना नहीं थी। वे खाली थीं, सदियों की पीड़ा और अकेलेपन से भरी हुई।
वह हवा में तैरता रहा, छत से धीरे-धीरे नीचे उतरते हुए, जैसे पानी में कोई चीज़ डूब रही हो। जब उसके पैर ज़मीन से कुछ इंच ऊपर थे, तो वह रुक गया। उसने आर्यवर्द की ओर देखा, और जब वह बोला, तो उसकी आवाज़ ठंडी और खुरदरी थी, जैसे किसी कब्र से आ रही हो।
"तुम्हारा बहुत इंतज़ार किया।"
ये शब्द किसी स्वागत की तरह नहीं लगे; वे एक सज़ा की तरह लगे। आर्यवर्द का दिल लगभग रुक गया। वह क्या मतलब था? इंतज़ार? किसका? मेरा?
इससे पहले कि आर्यवर्द कुछ कह पाता, कुछ और होने लगा। तहखाने की पत्थर की दीवारें पारभासी होने लगीं। उनके अंदर से, और भी आकृतियाँ निकलने लगीं। ये भी इंसानों जैसे थे—औरतें, आदमी, बच्चे—लेकिन वे धुंधले और पारदर्शी थे, जैसे धुएँ से बने हों। उन सभी के शरीर पर भयानक चोटें थीं—जले हुए निशान, तलवार के घाव, टूटी हुई हड्डियाँ। वे दीवारों, फर्श और यहाँ तक कि छत से भी बाहर निकल रहे थे, धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए, उनकी आँखें खाली और भूखी लग रही थीं।
वे चुपचाप आर्यवर्द की ओर बढ़ने लगे, उसे चारों तरफ से घेरते हुए। वे कुछ कह नहीं रहे थे, लेकिन आर्यवर्द उनकी हताशा को महसूस कर सकता था, एक ऐसी भूख जो सदियों से संतुष्ट नहीं हुई थी। वह अकेला था, एक अंधेरे तहखाने में फँसा हुआ, और उसके चारों ओर घायलों और मृतकों की एक सेना खड़ी थी, जिसका नेतृत्व एक ऐसा राजकुमार कर रहा था जिसे कभी मर जाना चाहिए था।
डर एक अजीब चीज़ है। एक हद के बाद, वह दिमाग को सुन्न कर देता है और शरीर को सिर्फ ज़िंदा रहने के लिए मजबूर करता है। आर्यवर्द का दिमाग सुन्न हो चुका था। उसके सामने अनगिनत पारभासी आत्माएँ थीं, और उन सबसे ज़्यादा भयानक वह राजकुमार था, जिसकी आँखें उसे ऐसे देख रही थीं जैसे वह कोई चीज़ हो, इंसान नहीं। लड़ने की एक आदिम प्रवृत्ति ने उसके शरीर पर कब्ज़ा कर लिया। उसकी आँखें अँधेरे में किसी हथियार की तलाश में दौड़ीं, और उसे ज़मीन पर पड़ा वही भारी, लोहे का मोमबत्ती स्टैंड दिखा, जिसे उसने कुछ देर पहले उठाया था।
एक झटके में, वह नीचे झुका और उसे उठा लिया। वह भारी था, और उसने उसे अपने दोनों हाथों से किसी ढाल की तरह अपने सामने पकड़ लिया। उसकी साँसें तेज़ी से चल रही थीं, और उसका दिल उसके सीने में एक जंगली जानवर की तरह फड़फड़ा रहा था। वह उन आत्माओं पर चिल्लाना चाहता था, उन्हें पीछे हटने के लिए कहना चाहता था, लेकिन उसकी आवाज़ उसके गले में ही फँस कर रह गई।
लेकिन आत्माओं ने हमला नहीं किया। वे बस उसे देखती रहीं, अपनी खाली आँखों से। वे धीरे-धीरे उसके और करीब आ गईं, एक घेरा बनाती हुईं, लेकिन कोई भी उसे छूने की कोशिश नहीं कर रहा था। आर्यवर्द ने गौर से देखा, और उसे उनकी आँखों में एक अजीब मिश्रण दिखाई दिया—आशा और भूख का। वे उसे नुकसान नहीं पहुँचाना चाहती थीं, कम से कम उस तरह से नहीं जैसे कोई दुश्मन पहुँचाता है। वे उससे कुछ *चाहती* थीं। और यह एहसास किसी भी हमले से ज़्यादा डरावना था।
तभी, वह राजकुमार, शौर्यक्षर्य, जो हवा में तैर रहा था, बोला। उसकी आवाज़ में एक प्राचीन अधिकार था, एक ऐसी शक्ति जो सदियों के आदेश देने से आती है। उसने आत्माओं की ओर देखा, आर्यवर्द को नहीं।
"पीछे हटो," उसने कहा, और उसकी आवाज़ तहखाने में गूँज उठी। "यह हमारी मुक्ति का रास्ता नहीं है।"
मुक्ति? आर्यवर्द ने सोचा। ये किस बारे में बात कर रहे हैं? उसका दिमाग घूम रहा था। लेकिन राजकुमार के शब्दों का आत्माओं पर असर हुआ। वे एक पल के लिए रुक गईं, जैसे उलझन में हों।
तभी, घेरे में से एक महिला की आत्मा आगे बढ़ी। उसके चेहरे पर जलने के भयानक निशान थे, और उसकी आवाज़ एक दर्दनाक फुसफुसाहट थी। "नहीं, मेरे राजकुमार," उसने विरोध किया। "यह वही है! भविष्यवाणी सच हो रही है! वह आ गया है!" उसकी पारभासी उंगली आर्यवर्द की ओर इशारा कर रही थी।
"भविष्यवाणी..." शौर्यक्षर्य ने दोहराया, और उसकी आवाज़ में एक अजीब कड़वाहट थी। "भविष्यवाणियाँ हमें यहाँ लाई हैं, वैदेही। मैं एक और निर्दोष को इस श्राप का हिस्सा नहीं बनने दूँगा।"
उनकी इस बहस ने आर्यवर्द को एक मौका दिया। वह उनके श्राप या भविष्यवाणियों की परवाह नहीं करता था। उसे बस यहाँ से निकलना था। भ्रम और डर से भरा हुआ, वह पीछे मुड़ा और उस भारी पत्थर के दरवाज़े की ओर भागा जो बंद हो चुका था। उसने मोमबत्ती स्टैंड फेंक दिया और अपने दोनों हाथों से दरवाज़े पर पीटना शुरू कर दिया।
"खोलो! कोई है! मदद करो!" वह अपनी पूरी ताकत से चिल्लाया, उसकी आवाज़ दहशत से कांप रही थी। लेकिन दरवाज़ा टस से मस नहीं हुआ। उसे लगा जैसे वह एक कब्र के अंदर से चिल्ला रहा हो।
आर्यवर्द की हताश चीखें पत्थर की दीवारों से टकराकर वापस लौट रही थीं, उसकी अपनी ही दहशत की एक भयानक गूँज पैदा कर रही थीं। उसने दरवाज़े पर और ज़ोर से पीटना शुरू कर दिया, उसके पोरों से खून निकलने लगा था, लेकिन उसे दर्द का एहसास नहीं हो रहा था। उसके पीछे, आत्माओं और उनके राजकुमार के बीच बहस तेज़ हो गई थी। उनकी फुसफुसाहटें एक सिम्फनी की तरह थीं—एक तरफ हताशा और आशा, दूसरी तरफ एक गहरा, थका हुआ पश्चाताप।
"हमें उसे जाने नहीं देना चाहिए, राजकुमार!" वैदेही नाम की आत्मा ने फिर से आग्रह किया। "वह हमारी एकमात्र उम्मीद है! 700 साल हो गए हैं!"
शौर्यक्षर्य ने आर्यवर्द की कांपती हुई पीठ को देखा, जो दरवाज़े से चिपका हुआ था, एक फँसे हुए जानवर की तरह। एक पल के लिए, उसके चेहरे पर एक संघर्ष दिखाई दिया—अपने लोगों को मुक्त करने की इच्छा और एक निर्दोष की ज़िंदगी बर्बाद न करने की उसकी नई प्रतिबद्धता के बीच एक लड़ाई। उसकी नीली आँखों में दर्द का एक सागर उमड़ आया, एक ऐसा दर्द जो किसी भी शारीरिक घाव से कहीं ज़्यादा गहरा था।
आखिरकार, उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे कोई मुश्किल फैसला ले रहा हो। जब उसने उन्हें फिर से खोला, तो उनमें एक शांत दृढ़ संकल्प था। उसने अपनी आवाज़ को दृढ़ करते हुए आत्माओं को आदेश दिया, "दरवाज़ा खोलो। उसे जाने दो।"
तहखाने में एक सामूहिक निराशा की आह भर गई। आत्माएँ पीछे हटने लगीं, उनकी आकृतियाँ धुँधली हो गईं, जैसे उनकी उम्मीद की लौ बुझ गई हो। वे अनिच्छा से पीछे हटीं, उनकी भूखी आँखें अब दुख और हार से भर गई थीं।
एक ज़ोरदार, गड़गड़ाहट की आवाज़ हुई। आर्यवर्द ने डरकर पीछे देखा। पत्थर का दरवाज़ा, जो इतना भारी और अभेद्य लग रहा था, अपने आप धीरे-धीरे पीछे की ओर खिसक रहा था। दरवाज़े के ताले एक-एक करके ज़ोर-ज़ोर से खुल रहे थे, जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उन्हें खोल दिया हो। ताज़ी, बारिश से भीगी हवा का एक झोंका अंदर आया, और आर्यवर्द ने कभी किसी चीज़ के लिए इतनी कृतज्ञता महसूस नहीं की थी।
वह एक पल भी नहीं रुका। जैसे ही दरवाज़े में इतना फासला बना कि वह निकल सके, वह बाहर की ओर भागा। वह लड़खड़ाता हुआ सीढ़ियों पर चढ़ा, अँधेरे से रोशनी की ओर, मौत से ज़िंदगी की ओर। जैसे ही वह महल के मुख्य हॉल में पहुँचा, उसने एक आखिरी बार पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत की।
तहखाने के मुहाने पर, शौर्यक्षर्य अकेला खड़ा था। बाकी आत्माएँ अँधेरे में गायब हो चुकी थीं। राजकुमार की आँखों में अब गुस्सा या अधिकार नहीं था। उनमें एक गहरी, दिल तोड़ने वाली निराशा थी। एक पल के लिए, उनकी आँखें मिलीं—एक डरा हुआ, ज़िंदा लड़का और एक शापित, मरा हुआ राजकुमार। आर्यवर्द को लगा जैसे उसने उस एक नज़र में 700 साल का दर्द देख लिया हो।
वह एहसास असहनीय था। डर, राहत, सदमा, और उस राजकुमार की आँखों में देखी गई अजीब उदासी—यह सब बहुत ज़्यादा था। जैसे ही आर्यवर्द महल के मुख्य दरवाज़े से बाहर बारिश में निकला, उसके पैर जवाब दे गए। दुनिया उसकी आँखों के सामने घूमने लगी, और उसके कानों में एक तेज़ सीटी बजने लगी। अत्यधिक तनाव और डर के कारण, उसका शरीर और दिमाग बंद हो गया। वह महल के बाहर भीगी हुई घास पर गिरकर बेहोश हो गया, जबकि उसके ऊपर आसमान में बिजली कड़क रही थी।
आँखों पर पड़ती तेज़ धूप ने उसे सबसे पहले जगाया। एक गर्म, चुभती हुई रोशनी जो पलकों के पार से भी महसूस हो रही थी। उसने करवट लेने की कोशिश की, लेकिन उसके पूरे शरीर में एक अजीब सी अकड़न थी, जैसे वह किसी पत्थर पर सोया हो। रात की ठंडक और भीगी ज़मीन की याद अब भी उसके ज़ेहन में ताज़ा थी, लेकिन अब उसे अपने गाल पर चट्टान की खुरदरी गर्माहट महसूस हो रही थी।
उसने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। नीला आसमान। साफ़, बिना एक भी बादल के। कुछ पंछी ऊपर उड़ रहे थे, उनकी चहचहाहट हवा में घुली हुई थी। उसने उठकर बैठने की कोशिश की, उसके सिर में एक तेज़ दर्द उठा। उसने अपने चारों ओर देखा।
वह एक चट्टानी पहाड़ी के किनारे पर था। उसके नीचे गहरी खाई थी, और दूर तक हरे-भरे पेड़ों का समंदर फैला हुआ था। हवा ताज़ी थी, जिसमें देवदार की महक और गीली मिट्टी की सोंधी खुशबू थी। तूफान का कोई नामोनिशान नहीं था।
और महल का भी कोई नामोनिशान नहीं था।
वह खड़ा हो गया, उसके पैर काँप रहे थे। उसने चारों ओर देखा। वही पहाड़, वही चट्टानें, वही देवदार के पेड़। लेकिन कोई महल नहीं था। कोई विशाल दरवाज़ा नहीं, कोई टूटी हुई मीनारें नहीं। बस... खालीपन। एक चट्टानी पहाड़ी, जो सदियों से वैसी ही खड़ी हो, जैसी आज दिख रही थी।
"यह... यह नहीं हो सकता," वह फुसफुसाया। वह उस जगह पर गया जहाँ उसे याद था कि महल का दरवाज़ा था। वहाँ अब बस एक बड़ी, काई लगी चट्टान थी। उसने उसे छुआ। वह ठोस थी, ठंडी और असली। उसने उस जगह को ढूँढ़ने की कोशिश की जहाँ वह बेहोश होकर गिरा था, लेकिन वहाँ सिर्फ जंगली घास और छोटे-छोटे पत्थर थे।
एक भयानक सपना था।
यह ख्याल उसके दिमाग में बिजली की तरह कौंधा और एक अजीब सी राहत लेकर आया। हाँ, यही हुआ होगा। तृषा का धोखा, उसका दिल टूटना, गुस्सा, और फिर उस बर्फीली बारिश में भीगना... उसके तनावग्रस्त दिमाग ने यह सब मिलाकर एक डरावनी कहानी बना ली होगी। आत्माएँ, वह शापित राजकुमार... यह सब उसके अपने दर्द और अकेलेपन का एक रूपक था।
"बेवकूफ," उसने खुद से कहा, और उसके होंठों पर एक कड़वी मुस्कान फैल गई। वह इतना कमज़ोर हो गया था कि उसका अपना दिमाग ही उसके साथ खेल खेलने लगा था। उसे खुद पर शर्मिंदगी महसूस हुई। वह कीचड़ में सना हुआ था, उसके कपड़े फटे हुए थे, और उसे यकीन था कि वह किसी जंगली जानवर जैसा दिख रहा होगा।
उसे अपने दोस्तों का ख्याल आया। अनाया। वे सब उसे ढूँढ़ रहे होंगे। वह पहाड़ी से नीचे उतरने लगा, सावधानी से अपने कदम रखता हुआ। अब उसका एकमात्र लक्ष्य उस पिकनिक स्थल पर पहुँचना था और इस पूरी रात को एक बुरे सपने की तरह भुलाना था।
जैसे ही वह पहाड़ी के ढलान से नीचे पहुँचा, उसे दूर से आवाज़ें सुनाई दीं। कोई उसका नाम पुकार रहा था।
"आर्यवर्द! ओए, आर्यवर्द!"
यह रोहन के दोस्तों में से एक की आवाज़ थी। उसे राहत मिली, लेकिन साथ ही एक चिंता भी हुई। वह अपनी हालत और अपनी पूरी रात की गैरमौजूदगी का क्या जवाब देगा?
वह पेड़ों के झुरमुट से बाहर निकला। पिकनिक स्थल पर, उसकी कार और बाकी लोगों की गाड़ियाँ अभी भी वहीं थीं। अनाया बेचैनी से टहल रही थी, बार-बार अपने फोन को देख रही थी। दो-तीन और लड़के इधर-उधर देख रहे थे।
जैसे ही अनाया ने उसे देखा, उसकी आँखों में एक पल के लिए राहत की चमक आई, जो तुरंत ही चिंता और गुस्से में बदल गई। वह लगभग दौड़ती हुई उसके पास आई।
"आर्यवर्द! भगवान का शुक्र है! तुम ठीक हो?" उसने उसके पास पहुँचकर उसके कंधे पकड़ लिए। उसकी नज़र आर्यवर्द के फटे कपड़ों, उसके चेहरे और हाथों पर लगी खरोंचों पर पड़ी। "यह क्या हाल बना रखा है? रात भर कहाँ थे तुम? हम सब तुम्हें फोन कर-करके पागल हो गए थे!"
आर्यवर्द ने उसकी आँखों में देखने से परहेज किया। वह झूठ बोलने में कभी अच्छा नहीं था, खासकर अनाया से। "मैं... मैं ठीक हूँ। बस..."
"बस क्या?" एक और लड़के, कबीर ने आकर पूछा। उसके लहजे में चिंता कम, झुंझलाहट ज़्यादा थी। "यार, हम सुबह से तुझे ढूँढ़ रहे हैं। हमें लगा कहीं खाई में गिर गया। हमें पुलिस को फोन करना पड़ने वाला था।"
आर्यवर्द ने एक गहरी साँस ली। उसने पहले से सोची हुई कहानी सुनाई। "मैं... जब मैं यहाँ से गया, तो बस थोड़ा टहलने निकल गया था। गुस्सा शांत करने के लिए। फिर अचानक बारिश बहुत तेज़ हो गई।"
अनाया ने उसे घूरकर देखा। "और?"
"मुझे पास में एक पुरानी सी, टूटी-फूटी झोपड़ी दिखी। चरवाहों वाली। मैं बारिश से बचने के लिए अंदर चला गया। शायद... शायद थकान की वजह से वहीं आँख लग गई।" यह झूठ उसके मुँह में रेत जैसा लग रहा था।
कबीर ने अपनी आँखें घुमाईं। "झोपड़ी? और तेरा फोन? वह भी सो गया था क्या?"
"बैटरी खत्म हो गई थी," आर्यवर्द ने सपाट आवाज़ में कहा।
अनाया चुप थी। वह बस उसे देख रही थी, उसकी आँखों में एक अजीब सा भाव था जिसे आर्यवर्द पढ़ नहीं पा रहा था। वह उसे बहुत अच्छी तरह जानती थी। वह जानती थी कि जब वह झूठ बोलता है तो उसकी आवाज़ कैसी हो जाती है।
"कोई झोपड़ी?" अनाया ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में शक साफ़ था। "यहाँ आस-पास? अजीब है, मैं बचपन से इस इलाके में आ रही हूँ, मैंने तो आज तक कोई झोपड़ी नहीं देखी।"
आर्यवर्द का दिल धक से रह गया। उसने नज़रें चुराते हुए कहा, "होगी कहीं अंदर की तरफ। बहुत पुरानी लग रही थी। शायद अब कोई इस्तेमाल नहीं करता।"
अनाया ने कुछ नहीं कहा, बस सिर हिला दिया। लेकिन आर्यवर्द जानता था कि उसे यकीन नहीं हुआ है। बाकी सब लोग शायद इस कहानी को मान लें, लेकिन अनाया नहीं।
"चलो, जो भी हो, तुम मिल गए। अब यहाँ से निकलते हैं," कबीर ने कहा और अपनी कार की तरफ बढ़ गया।
सब लोग अपनी-अपनी गाड़ियों में बैठने लगे। आर्यवर्द अपनी कार की तरफ बढ़ा, अनाया उसके साथ चुपचाप चल रही थी।
"तुम सच में ठीक हो?" उसने फिर से पूछा, इस बार उसकी आवाज़ में सिर्फ चिंता थी।
"हाँ, मैं ठीक हूँ," आर्यवर्द ने कहा, और इस बार यह झूठ से ज़्यादा एक उम्मीद थी। एक प्रार्थना थी कि वह सच में ठीक हो जाए।
जैसे ही वह अपनी कार में बैठा, उसने साइड मिरर में उस पहाड़ी की तरफ देखा। सूरज की रोशनी में वह बिल्कुल साधारण लग रही थी, एक पत्थर और मिट्टी का ढेर। कोई रहस्य नहीं, कोई जादू नहीं।
यह एक सपना ही था। उसे एक सपना ही होना होगा। उसने खुद को समझाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उसके दिल के किसी कोने में एक छोटी सी आवाज़ फुसफुसा रही थी—उस राजकुमार की आँखों की निराशा असली लग रही थी।
घर वापसी का रास्ता खामोशी में डूबा हुआ था। अनाया कार चला रही थी, उसकी नज़रें सड़क पर टिकी थीं, लेकिन आर्यवर्द महसूस कर सकता था कि उसका ध्यान कहीं और था। वह बार-बार साइड मिरर से उसे देख लेती, उसकी आँखों में अनकहे सवाल तैर रहे थे। आर्यवर्द खिड़की से बाहर देख रहा था, लेकिन उसकी आँखें कुछ देख नहीं रही थीं। उसका दिमाग बार-बार रात की घटनाओं को किसी फिल्म की तरह दोहरा रहा था—धूल भरी मोमबत्तियाँ, हवा में तैरती फुसफुसाहटें, और वो गहरी, नीली आँखें, जिनमें सदियों का दर्द कैद था।
जैसे ही उनकी कार दरगुमर्ग की पहाड़ियों के आखिरी मोड़ से गुज़री, आर्यवर्द ने खुद को रोक नहीं पाया। उसने गर्दन घुमाकर उस चोटी को देखा। दिन की तेज़ रोशनी में वह एक सामान्य पहाड़ी से ज़्यादा कुछ नहीं लग रही थी। कोई महल नहीं, कोई रहस्य नहीं। फिर भी, वह उस जगह को घूरता रहा, जैसे उसे उम्मीद हो कि शायद एक पल के लिए, पत्थर की दीवारें फिर से प्रकट हो जाएँगी।
"तुम उस पहाड़ी को ऐसे क्यों देख रहे हो?" अनाया की आवाज़ ने उसकी तंद्रा तोड़ी।
आर्यवर्द चौंका। "नहीं, कुछ नहीं। बस ऐसे ही।" उसने जल्दी से नज़रें हटा लीं।
अनाया ने एक गहरी साँस ली। "आर्य, मैं तुम्हें बचपन से जानती हूँ। जब से हम लौटे हैं, तुम यहाँ हो ही नहीं। तुम्हारी 'झोपड़ी वाली कहानी' पर किसी ने यकीन नहीं किया, खासकर मैंने।"
"तो तुम क्या सोचती हो? कि मैंने रात भर बारिश में जानबूझकर खुद को सताया?" आर्यवर्द की आवाज़ में हल्की झुंझलाहट थी। वह इस बारे में बात नहीं करना चाहता था, क्योंकि उसे खुद यकीन नहीं था कि क्या सच है और क्या उसका वहम।
"मैं बस इतना जानती हूँ कि तुम कुछ छिपा रहे हो," अनाया ने शांति से कहा। "और जो भी हुआ है, उसने तुम्हें अंदर तक हिला दिया है। तुम्हारी आँखों में वो भाव है... जो मैंने पहले कभी नहीं देखा।"
आर्यवर्द चुप रहा। वह क्या कहता? कि उसे लगता है कि वह एक शापित महल में गया था और एक 700 साल पुराने भूतिया राजकुमार से मिला था? वह उसे पागल समझती।
हॉस्टल पहुँचकर वे अलग हो गए। आर्यवर्द सीधा अपने कमरे में गया और दरवाज़ा बंद कर लिया। उसने शीशे में खुद को देखा। उसकी आँखें थकी हुई थीं, उसके चेहरे पर अब भी खरोंचें थीं, और उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी थी, जैसे कुछ अधूरा रह गया हो। उसने गर्म पानी से शावर लिया, यह उम्मीद करते हुए कि पानी की धार रात की यादों को भी धो ले जाएगी।
अगले कुछ दिन, उसने सामान्य जीवन जीने की पूरी कोशिश की। वह क्लास में गया, दोस्तों के साथ कैंटीन में बैठा, और हर उस बातचीत से बचता रहा जो उस पिकनिक की रात की तरफ जाती। लेकिन रातें सबसे मुश्किल थीं। जैसे ही वह सोने के लिए आँखें बंद करता, महल के दृश्य उसके सामने आ जाते। उसे राजकुमार का चेहरा याद आता—पहले गुस्से से भरा, फिर निराशा से। उसे वो फुसफुसाहटें सुनाई देतीं। वह पसीने में लथपथ जाग जाता, उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा होता।
एक सुबह, जब वह अपनी टी-शर्ट पहन रहा था, उसकी नज़र अपने दाहिने हाथ पर पड़ी। कलाई के ठीक ऊपर, एक हल्की सी खरोंच थी। यह एक सीधी, पतली रेखा थी, लगभग ऐसी जैसे किसी नुकीली चीज़ से लगी हो। उसे याद नहीं था कि यह उसे कैसे लगी। उसने पहाड़ी से गिरते समय लगी बाकी खरोंचों को देखा—वे सब बेतरतीब और टेढ़ी-मेढ़ी थीं। लेकिन यह वाली... यह अलग थी। यह लगभग वैसी ही थी जैसी ताबूत की कील निकालते समय लग सकती है।
उसका दिल धड़कना भूल गया। नहीं। यह सब एक सपना था। उसने खुद को याद दिलाया।
लेकिन शक का कीड़ा अब उसके दिमाग में रेंग चुका था। उस रात, वह लाइब्रेरी में नहीं गया। वह अपने कमरे में बैठा रहा और अपने लैपटॉप पर टाइप किया: "दरगुमर्ग पहाड़ियाँ।"
सैकड़ों टूरिस्ट ब्लॉग और ट्रैवल वेबसाइटें खुल गईं। तस्वीरें, होटल बुकिंग, ट्रेकिंग रूट्स। कुछ भी असामान्य नहीं था। वह निराश होकर स्क्रॉल करता रहा। फिर, खोज परिणामों के चौथे या पाँचवें पेज पर, उसे एक पुराना, लगभग भुला दिया गया लिंक मिला। यह एक स्थानीय लोककथाओं का ब्लॉग था, जिसे शायद सालों से अपडेट नहीं किया गया था।
उसने लिंक खोला। ब्लॉग का डिज़ाइन पुराना था, टेक्स्ट छोटा और पढ़ने में मुश्किल। लेकिन एक पोस्ट का शीर्षक पढ़कर उसकी साँसें अटक गईं: "दरगुमर्ग का खोया हुआ महल: एक किंवदंती।"
उसने काँपते हाथों से पोस्ट पर क्लिक किया।
लेख में एक अस्पष्ट किंवदंती का ज़िक्र था, जिसे स्थानीय लोग एक कहानी से ज़्यादा कुछ नहीं मानते थे। किंवदंती के अनुसार, दरगुमर्ग की सबसे ऊँची चोटी पर एक श्रापित राजकुमार का महल था। एक ऐसा राजकुमार जिसने काले जादू से शक्ति प्राप्त की थी, लेकिन एक श्राप के कारण वह और उसका पूरा दरबार हमेशा के लिए अपने महल में कैद हो गया था। लेख में लिखा था कि महल अब दिखाई नहीं देता, वह समय और स्थान के पर्दे के पीछे छिपा हुआ है। लेकिन...
आर्यवर्द ने आगे पढ़ा, उसकी आँखें स्क्रीन से चिपकी हुई थीं।
"...लेकिन किंवदंती कहती है कि शरद पूर्णिमा की रात को, या जब कोई टूटा हुआ दिल पहाड़ों में शरण लेता है, तो महल एक पल के लिए फिर से प्रकट हो जाता है। यह उन लोगों को अपनी ओर खींचता है जो दुनिया से निराश हैं, उन्हें एक झूठी पनाह का वादा करता है।"
"टूटे हुए दिल वाले लोग।"
ये शब्द उसके दिमाग में गूँजने लगे। तृषा का धोखा। उसका दर्द। क्या यह सब एक इत्तेफाक था?
इस बीच, समय और स्थान से परे, उस अदृश्य महल के अंधेरे तहखाने में, शौर्यक्षर्य टूटे हुए ताबूत को घूर रहा था। एक कील अब भी ढक्कन पर लटक रही थी, जहाँ से आर्यवर्द उसे पूरी तरह नहीं निकाल पाया था। हवा में अब भी उस ज़िंदा लड़के की गंध थी—डर और ज़िंदगी की महक।
"वह चला गया, राजकुमार," बूढ़े रसोइए की आत्मा ने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ में सदियों की निराशा थी। "हमारी उम्मीद भी चली गई।"
शौर्यक्षर्य ने कुछ नहीं कहा। वह बस उस ताबूत को देखता रहा। वह जानता था कि उसने सही काम किया है। उसने एक निर्दोष को उनके श्राप का हिस्सा बनने से बचा लिया था। लेकिन इस सही काम की कीमत उसके अपने अकेलेपन का एक और अनंत काल था।
तभी एक और आत्मा, जो कभी उसकी सलाहकार हुआ करती थी, अँधेरे से प्रकट हुई। उसकी आवाज़ शांत और दृढ़ थी। "वह वापस आएगा।"
बाकी आत्माएँ उसकी ओर मुड़ीं।
"तुमने उसका डर नहीं देखा?" रसोइए ने कहा। "कोई भी इतनी दहशत के बाद वापस नहीं आता।"
"उसने दरवाज़ा पार कर लिया था," सलाहकार ने कहा, उसकी आँखें चमक रही थीं। "श्राप का एक नियम है। एक बार जब कोई बाहरी व्यक्ति अपनी मर्जी से सीमा पार कर लेता है, तो भाग्य का एक धागा हमेशा के लिए महल से जुड़ जाता है। वह अब इस कहानी का हिस्सा है, चाहे वह इसे जाने या न जाने।"
उसने शौर्यक्षर्य की ओर देखा। "उसे डर लग सकता है, वह भाग सकता है। लेकिन भाग्य उसे वापस लाएगा। भविष्यवाणी को पूरा होना ही है।"
ब्लॉग पर लिखे शब्द आर्यवर्द के दिमाग में किसी हथौड़े की तरह बज रहे थे। "टूटे हुए दिल वाले लोग।" यह वाक्य उसे बार-बार चुभ रहा था। क्या यह महज़ एक संयोग था? या उसकी ज़िंदगी का सबसे बुरा दिन किसी अनजाने, प्राचीन श्राप से जुड़ा हुआ था? बेचैनी की एक लहर उसके शरीर से गुज़र गई, एक ऐसी ठंडक जो कमरे की गर्मी को भी भेद रही थी।
अगले कुछ दिनों में, यह बेचैनी और भी गहरी होती गई। उसे हर जगह फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं। क्लासरूम की खामोशी में, हॉस्टल के गलियारे के शोर में, यहाँ तक कि बहते पानी की आवाज़ में भी, उसे ऐसा लगता जैसे कोई धीमी, अस्पष्ट आवाज़ में कुछ कह रहा है। वह गर्दन घुमाकर देखता, लेकिन वहाँ कोई नहीं होता। उसके दोस्त उसे अजीब नज़रों से देखने लगे थे।
"यार, तू ठीक है?" कबीर ने एक दिन कैंटीन में पूछा। "तू आजकल बहुत खोया-खोया रहता है।"
"हाँ, बस पढ़ाई का थोड़ा स्ट्रेस है," आर्यवर्द ने एक कमज़ोर बहाना बनाया।
लेकिन वह जानता था कि यह स्ट्रेस नहीं था। यह कुछ और था। यह उस महल की गूँज थी, जो अब उसकी दुनिया में भी सुनाई देने लगी थी।
एक रात, वह कॉलेज की लाइब्रेरी में बैठा था, अपने एग्ज़ाम के लिए पढ़ने की नाकाम कोशिश कर रहा था। शब्द उसकी आँखों के सामने नाच रहे थे, लेकिन उसके दिमाग में कुछ भी नहीं जा रहा था। उसका ध्यान बार-बार भटक रहा था। तभी, अचानक एक ज़ोर की आवाज़ हुई। ऊपरी शेल्फ से एक भारी, पुरानी किताब अपने आप नीचे गिर पड़ी।
लाइब्रेरियन ने अपनी मेज़ से घूरकर देखा। आर्यवर्द ने शर्मिंदगी से सिर झुकाया और किताब उठाने के लिए नीचे झुका। यह एक मोटी, चमड़े की जिल्द वाली किताब थी, जिस पर धूल जमी हुई थी। किताब नीचे गिरने से बीच में कहीं खुल गई थी। उसका शीर्षक था: "दामनगढ़ का विस्मृत इतिहास।"
दामनगढ़। यह नाम उसे कुछ जाना-पहचाना लगा। उसने उस लोककथा वाले ब्लॉग के बारे में सोचा। शायद उसमें इसका ज़िक्र था। जिज्ञासावश, वह किताब लेकर एक कोने की मेज़ पर बैठ गया।
जिस पन्ने पर किताब खुली थी, वहाँ एक हाथ से बनाया हुआ चित्र था। एक राजकुमार का चित्र। वही चेहरा। वही गहरी, भेदती हुई आँखें। वही तराशे हुए होंठ और मज़बूत जबड़ा। लेकिन इस चित्र में, उसकी आँखें दुख से नहीं, बल्कि घमंड और महत्वाकांक्षा से चमक रही थीं। उसके चेहरे पर कोई भयानक घाव नहीं थे। वह... खूबसूरत था। बिल्कुल वैसा, जैसा किसी राजा को होना चाहिए।
चित्र के नीचे नाम लिखा था: "राजकुमार शौर्यक्षर्य।"
आर्यवर्द की साँसें तेज़ हो गईं। यह सच था। वह असली था। उसका 'सपना' कोई सपना नहीं था।
उसने काँपते हाथों से पन्ना पलटा और लेख पढ़ना शुरू किया। लेख में दामनगढ़ साम्राज्य के बारे में बताया गया था, जो सदियों पहले दरगुमर्ग की पहाड़ियों में फला-फूला था। इसमें राजा के तीन बेटों का ज़िक्र था, जिनमें शौर्यक्षर्य सबसे छोटा और सबसे महत्वाकांक्षी था। लेख में बताया गया था कि कैसे उसके दोनों बड़े भाइयों की रहस्यमय परिस्थितियों में एक के बाद एक मौत हो गई, जिससे शौर्यक्षर्य के राजा बनने का रास्ता साफ़ हो गया।
इतिहासकार ने इन मौतों पर संदेह जताया था, यह इशारा करते हुए कि शायद यह कोई साजिश थी, लेकिन कोई सबूत न होने की बात भी लिखी थी। शौर्यक्षर्य के छोटे से शासनकाल को क्रूर और निरंकुश बताया गया था। लेकिन लेख का अंत सबसे अजीब था।
"राजकुमार शौर्यक्षर्य के राज्याभिषेक के कुछ ही महीनों बाद, शरद पूर्णिमा की एक तूफानी रात को, दामनगढ़ का पूरा राज्य, उसके महल और उसके सभी निवासियों के साथ, रहस्यमय तरीके से गायब हो गया। सुबह होने पर, जहाँ कभी एक समृद्ध राज्य हुआ करता था, वहाँ केवल बंजर पहाड़ियाँ थीं। आज तक, इतिहासकार यह नहीं समझ पाए हैं कि एक पूरा साम्राज्य रातों-रात कैसे गायब हो सकता है।"
आर्यवर्द ने किताब बंद कर दी। उसके हाथ ठंडे पड़ गए थे। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। वह सपना नहीं था। वह सच था। हर एक पल। ताबूत, आत्माएँ, वह दर्द भरी चीख... सब कुछ सच था। उसने एक शापित राजकुमार को मुक्त करने में मदद की थी... या शायद उसने कुछ और भयानक कर दिया था। उसने ताबूत खोला था। उसने उसे बाहर निकाला था।
यह एहसास कि वह एक भयानक सच का हिस्सा बन चुका है, उसे डर और एक अजीब सी ज़िम्मेदारी की भावना से भर गया। उसे वहाँ वापस जाना होगा। उसे जवाब चाहिए थे।
इस बार, वह किसी को कुछ नहीं बताएगा। यह उसकी लड़ाई थी।
उधर महल में, शौर्यक्षर्य अपनी बालकनी पर खड़ा था, उस अदृश्य दुनिया से बाहर झाँक रहा था, जिसे कोई नहीं देख सकता था। उसके घाव पहले से ज़्यादा गहरे लग रहे थे, जैसे उसकी निराशा ने उन्हें और भी कुरेद दिया हो।
"उसने अभी तक सच्चाई का पता नहीं लगाया होगा," बूढ़ी आत्मा, लीला, ने उसके पीछे खड़े होकर कहा। उसकी आवाज़ में चिंता थी। "शायद सलाहकार गलत था। शायद वह कभी वापस नहीं आएगा।"
शौर्यक्षर्य ने अपनी आँखें बंद कर लीं। वह उस लड़के की आँखों में बसे डर को महसूस कर सकता था। "अगर वह नहीं आया... तो यह उसके लिए बेहतर है।" उसकी आवाज़ में एक थकी हुई स्वीकृति थी। "उसे हमारे इस श्राप का बोझ क्यों उठाना चाहिए?"
"क्योंकि भविष्यवाणी यही कहती है!" लीला ने ज़ोर देकर कहा। "क्योंकि वह अकेला है जो हमें मुक्त कर सकता है!"
शौर्यक्षर्य ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बस उस अनंत अँधेरे को देखता रहा। लेकिन फिर, उसे एक हल्की सी झनझनाहट महसूस हुई। एक बहुत ही हल्की सी ऊर्जा की लहर, जो महल की सीमाओं को छूकर गुज़री थी। यह बाहरी दुनिया से आई थी।
एक पल के लिए, उसकी आँखों में एक चमक उभरी। एक बहुत ही फीकी सी उम्मीद।
शायद... शायद सलाहकार सही था। भाग्य उसे वापस ला रहा था।
सच्चाई का पता लगाने का दृढ़ संकल्प अब आर्यवर्द के डर पर हावी हो चुका था। वह रात भर सो नहीं सका। दामनगढ़ के इतिहास की किताब उसके बिस्तर के पास खुली पड़ी थी, और राजकुमार शौर्यक्षर्य का चित्र उसे घूरता हुआ महसूस हो रहा था। अगली सुबह, उसने एक छोटा सा बैकपैक तैयार किया—पानी की बोतल, कुछ एनर्जी बार्स, एक टॉर्च, और सबसे ज़रूरी, वह पुरानी, भारी किताब।
उसने अनाया को एक मैसेज भेजा, "कुछ ज़रूरी काम से बाहर जा रहा हूँ। कल तक लौट आऊँगा। चिंता मत करना।" वह जानता था कि वह चिंता करेगी, लेकिन वह उसे और झूठ नहीं बोलना चाहता था, और सच बताने की हिम्मत उसमें नहीं थी।
अपनी कार स्टार्ट करते हुए, उसने एक पल के लिए सोचा कि क्या वह पागल हो गया है। वह एक किंवदंती का पीछा करने जा रहा था, एक ऐसे भूत का सामना करने, जिसे शायद उसने खुद ही आज़ाद किया था। लेकिन उसके अंदर की आवाज़ कह रही थी कि यह ज़रूरी है। उसकी ज़िंदगी अब पहले जैसी नहीं रह सकती थी। उस रात ने उसे बदल दिया था, और जब तक उसे जवाब नहीं मिल जाते, उसे शांति नहीं मिलेगी।
घंटों की ड्राइव के बाद, वह एक बार फिर दरगुमर्ग की घुमावदार सड़कों पर था। इस बार हवा में नमी नहीं थी; आसमान साफ़ था और सूरज चमक रहा था। पहाड़ियाँ शांत और ख़ूबसूरत लग रही थीं, जैसे वे कोई गहरा राज़ छिपा ही नहीं सकतीं।
उसने अपनी कार वहीं रोकी जहाँ पिछली बार पिकनिक के लिए रुकी थी। उसने ऊपर उस चोटी की ओर देखा। जैसा कि उसे उम्मीद थी, वहाँ कुछ भी नहीं था। सिर्फ़ चट्टानें, झाड़ियाँ और नीला आसमान। कोई महल नहीं।
"शायद यह पूर्णिमा की रात नहीं है," वह खुद से बुदबुदाया। लोककथा में यही लिखा था। या फिर... 'टूटे हुए दिल' की ज़रूरत थी। उसका दिल अब भी टूटा हुआ था, लेकिन शायद अब वह दर्द उतना कच्चा नहीं था। शायद अब वह महल के दरवाज़े खोलने के लिए काफ़ी नहीं था।
निराशा की एक लहर उस पर छा गई। क्या वह इतनी दूर सिर्फ़ चट्टानों को देखने आया था? वह अपनी कार में वापस बैठने ही वाला था, तभी उसकी नज़र एक चमक पर पड़ी। सूरज की रोशनी किसी चीज़ से टकराकर उसकी आँखों में चुभ रही थी। वह चट्टानों के बीच फँसी हुई कोई चीज़ थी, ठीक उसी जगह के पास जहाँ से वह पिछली बार नीचे लुढ़का था।
जिज्ञासावश, वह पहाड़ी पर चढ़ने लगा। वह सावधानी से कदम रख रहा था, उस चमकती हुई चीज़ की ओर बढ़ रहा था। जैसे-जैसे वह पास पहुँचा, उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
चट्टानों के बीच, धूल और सूखी पत्तियों में आधा दबा हुआ, एक पुराना, कांसे का मोमबत्ती स्टैंड पड़ा था। वही तीन शाखाओं वाला, भारी मोमबत्ती स्टैंड, जिसे उसने महल के अंदर अपनी रक्षा के लिए उठाया था। वही मोमबत्ती स्टैंड, जिसे उसने आत्माओं से डरकर वहीं फेंक दिया था।
वह वहाँ नहीं होना चाहिए था। अगर महल सिर्फ़ एक सपना या मतिभ्रम था, तो यह मोमबत्ती स्टैंड यहाँ कैसे हो सकता है? यह ठोस था। यह असली था।
आर्यवर्द ने काँपते हाथों से उसे उठाया। धातु ठंडी थी, और उस पर वही जटिल नक्काशी थी जो उसे धुंधली सी याद थी। जैसे ही उसकी उंगलियों ने उसे छुआ, एक अजीब सी सिहरन उसके शरीर में दौड़ गई।
उसे एहसास हुआ—सब कुछ सच था। महल असली है, और आत्माएँ भी। और वह मोमबत्ती स्टैंड इस बात का सबूत था।
महल के अंदर, शौर्यक्षर्य की आँखें खुल गईं। उसने उस ऊर्जा के धागे को फिर से महसूस किया, लेकिन इस बार वह और भी मज़बूत था। यह उस लड़के से आ रहा था।
"वह यहीं है," उसने फुसफुसाया। "पहाड़ी के ठीक नीचे।"
लीला और दूसरी आत्माएँ उसके चारों ओर इकट्ठा हो गईं। "क्या वह हमें देख सकता है?" एक ने पूछा।
"नहीं," शौर्यक्षर्य ने कहा। "महल अभी भी अदृश्य है। उसे अंदर आने के लिए दरवाज़ा खोजना होगा।"
सलाहकार की आत्मा ने कहा, "उसने हमारे संसार की एक चीज़ को छुआ है। अब एक जुड़ाव बन गया है। अगर उसका इरादा मज़बूत है, तो रास्ता खुद-ब-खुद प्रकट हो जाएगा।"
नीचे, आर्यवर्द मोमबत्ती स्टैंड को हाथ में लिए खड़ा था। उसके मन में डर और उत्साह का एक अजीब मिश्रण था। वह अकेला नहीं था जो इस दुनिया और उस दुनिया के बीच फँसा था; यह चीज़ भी फँसी हुई थी।
वह नहीं जानता था कि उसे क्या करना है, लेकिन एक आवेग में, उसने मोमबत्ती स्टैंड को ऐसे पकड़ा जैसे वह उसे रोशन करने जा रहा हो। उसने अपनी आँखें बंद कीं और पूरी शिद्दत से उस महल के बारे में सोचा। उसने उन दीवारों, उन गलियारों, और उस राजकुमार के चेहरे को याद किया।
"मुझे जवाब चाहिए," उसने ज़ोर से कहा, उसकी आवाज़ पहाड़ियों में गूँज उठी। "मुझे अंदर आने दो!"
जैसे ही उसने यह कहा, उसके हाथ में पकड़ा हुआ मोमबत्ती स्टैंड गर्म होने लगा। और फिर, एक अविश्वसनीय घटना घटी। मोमबत्ती स्टैंड की तीनों शाखाओं पर, जहाँ मोमबत्तियाँ होनी चाहिए थीं, अपने आप एक नीले रंग की लौ जल उठी। लौ असली आग की तरह नहीं थी; वह ठंडी और पारभासी थी, और उससे कोई धुआँ नहीं निकल रहा था।
वह हक्का-बक्का होकर उस अलौकिक रोशनी को देख रहा था, जिसने उसके चेहरे को एक भयानक नीली चमक से रंग दिया था। उसने उसे पकड़े रखा, और उसे महसूस हुआ कि जैसे वह उसे किसी दिशा में खींच रही है। उसने खुद को उस खिंचाव के हवाले कर दिया और आगे बढ़ने लगा।
नीली लौ की रहस्यमयी रोशनी में, आर्यवर्द धीरे-धीरे पहाड़ी पर चढ़ने लगा। मोमबत्ती स्टैंड उसके हाथ में एक ज़िंदा चीज़ की तरह महसूस हो रहा था, जो उसे एक अदृश्य रास्ते पर खींच रहा था। हवा ठंडी हो गई थी, और सूरज की चमक भी फीकी पड़ने लगी थी, जैसे कोई विशाल बादल उसके और आसमान के बीच आ गया हो।
वह उस चट्टानी समतल जगह पर पहुँचा जहाँ पिछली बार बारिश में भीगने के बाद वह जागा था। यहाँ पहुँचकर, नीली लौ और भी तेज़ हो गई। वह काँपने लगी, और उसकी रोशनी उस चट्टान पर पड़ी जिस पर वह सोया था।
जैसे ही लौ ने चट्टान को छुआ, एक अविश्वसनीय दृश्य उसकी आँखों के सामने प्रकट हुआ। चट्टान चमकने लगी। पहले हल्की, फिर तेज़, जैसे उसके अंदर कोई सूरज जाग रहा हो। हवा में एक अजीब सी गूँज फैल गई, और ज़मीन उसके पैरों के नीचे हल्के से काँपने लगी।
"यह क्या हो रहा है?" वह फुसफुसाया, लेकिन उसकी आवाज़ हवा में ही खो गई।
उसकी आँखों के सामने, चट्टान और हवा एक विशाल महल में बदल रही थी। यह कोई मतिभ्रम नहीं था। पत्थर और हवा के कण आपस में जुड़ रहे थे, आकार ले रहे थे, और एक शानदार, प्राचीन संरचना का निर्माण कर रहे थे। एक पल पहले जहाँ सिर्फ़ एक बंजर पहाड़ी थी, अब वहाँ एक विशाल, काले पत्थर का महल खड़ा था, जिसके बुर्ज आसमान को छू रहे थे। यह वही महल था, जिसे उसने उस तूफानी रात में देखा था, लेकिन इस बार वह धीरे-धीरे, शांति से प्रकट हो रहा था।
जब महल पूरी तरह से बन गया, तो उसके हाथ में पकड़े मोमबत्ती स्टैंड की नीली लौ बुझ गई। महल का विशाल, लकड़ी का दरवाज़ा उसके सामने था। उस पर वही जटिल नक्काशी थी, जो समय के साथ थोड़ी घिस गई थी। पिछली बार, उसने डर के मारे दरवाज़े को धक्का दिया था। इस बार, वह बस खड़ा होकर उसे देखता रहा।
महल के अंदर, शौर्यक्षर्य और आत्माएँ यह सब देख रही थीं। वे उसे देख सकते थे, लेकिन वह उन्हें नहीं।
"उसने दरवाज़ा खोल दिया," लीला ने कहा, उसकी आवाज़ में आश्चर्य और राहत थी। "वह वास्तव में वापस आ गया है।"
"इस बार हमें उसे डराना नहीं चाहिए," सलाहकार की आत्मा ने कहा। "वह जवाब चाहता है। अगर हमने उसे फिर से डराया, तो वह हमेशा के लिए चला जाएगा।"
शौर्यक्षर्य ने सिर हिलाया। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। वह लड़का लौट आया था। अपने डर के बावजूद। "तैयारी करो," उसने धीमी, मज़बूत आवाज़ में कहा। "इस बार... हम उसका स्वागत करेंगे।"
बाहर, आर्यवर्द ने एक गहरी साँस ली। वह अब भी आधा डरा हुआ था, लेकिन उसकी जिज्ञासा और सच्चाई जानने की इच्छा बहुत ज़्यादा थी। उसने मोमबत्ती स्टैंड को अपने बैकपैक में रखा और दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाए।
इस बार, उसे दरवाज़े को छूने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी। जैसे ही वह उसके पास पहुँचा, विशाल दरवाज़ा एक धीमी, चरमराती हुई आवाज़ के साथ अपने आप अंदर की ओर खुलने लगा। यह एक निमंत्रण था।
उसने अंदर झाँका। अँधेरा था, लेकिन इतना भी नहीं कि कुछ दिखाई न दे। उसे वही धूल और जालों की गंध आई, लेकिन इस बार उसमें कुछ और भी था... एक हल्की सी, पुरानी खुशबू, जैसे सूखे हुए फूलों की।
उसने एक पल के लिए हिचकिचाया, अपने दिल की धड़कन को शांत करने की कोशिश की। फिर, एक गहरी साँस लेकर, उसने दहलीज पार की और महल के अंदर कदम रखा।
इस बार कोई हवा का झोंका नहीं आया। दरवाज़ा उसके पीछे खुला रहा। वह पूरी तरह से अकेला खड़ा था, उस विशाल, ख़ामोश हॉल में, जिसकी ऊँची छत अँधेरे में खोई हुई थी। वह जानता था कि वह अकेला नहीं है। उसे महसूस हो रहा था कि कोई उसे देख रहा है। कई आँखें उसे देख रही हैं।
वह डर से नहीं, बल्कि जवाब की तलाश में आया था।
"हैलो?" उसने आवाज़ लगाई। उसकी आवाज़ हॉल में गूँज उठी, लेकिन इस बार कोई डरावनी फुसफुसाहट नहीं सुनाई दी। सिर्फ़ ख़ामोशी।
तभी, एक-एक करके, दीवारों पर लगी मशालें अपने आप जल उठीं। लेकिन इस बार की आग गर्म और सुनहरी थी, नीली और भयानक नहीं। उन्होंने हॉल को एक नरम, सुनहरी रोशनी से भर दिया।
आर्यवर्द ने चारों ओर देखा। उसे एहसास हुआ कि पिछली बार उसने डर के मारे ज़्यादा कुछ नहीं देखा था। दीवारें शानदार कालीनों और पुरानी तस्वीरों से ढकी थीं। फर्श पर जटिल पैटर्न बने हुए थे। यह जगह अब भी पुरानी और धूल भरी थी, लेकिन यह एक खंडहर नहीं लग रही थी। यह एक सोता हुआ महल लग रहा था, जो सदियों बाद जाग रहा था।
उसने सामने की भव्य सीढ़ियों की ओर देखा, जो ऊपर की मंज़िलों की ओर जा रही थीं। वह नहीं जानता था कि उसे कहाँ जाना है, या वह क्या खोज रहा है। वह बस जानता था कि उसे आगे बढ़ना है। उसने पहला कदम सीढ़ियों पर रखा, और उस महल की ख़ामोशी को तोड़ दिया जो 700 सालों से उसका इंतज़ार कर रहा था।
मोमबत्ती स्टैंड की नीली लौ एक अजनबी कम्पास की तरह काम कर रही थी, और आर्यवर्द किसी मंत्रमुग्ध व्यक्ति की तरह उसके पीछे चल रहा था। हवा में एक अजीब सी स्थिरता थी, जैसे समय थम गया हो। सूरज अभी भी चमक रहा था, लेकिन ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी गर्मी उस नीली रोशनी को भेद नहीं पा रही थी। लौ उसे उसी सपाट चट्टानी सतह की ओर ले जा रही थी जहाँ वह सुबह बेहोश मिला था।
जैसे ही उसने उस चट्टान पर कदम रखा, जहाँ वह सोया था, उसके पैरों के नीचे की ज़मीन काँपने लगी। एक गहरी, गड़गड़ाने वाली आवाज़ उठी, जो किसी प्राचीन जानवर के जागने जैसी लग रही थी। मोमबत्ती स्टैंड की नीली लौ और भी तेज़ हो गई, उसकी रोशनी चट्टान पर पड़ी और चट्टान... चमकने लगी। पहले हल्की, फिर तेज़, जब तक कि वह एक चमकदार नीले पोर्टल की तरह न दिखने लगी।
आर्यवर्द की आँखों के सामने, चट्टान और हवा पिघलने लगे, मुड़ने लगे, और एक साथ मिलकर एक आकार लेने लगे। हवा में पत्थर और लकड़ी की गंध भर गई। उसकी आँखों के सामने, सेकंडों में, वह बंजर चट्टानी सतह एक विशाल, प्राचीन महल में बदल गई। वही अँधेरी, गॉथिक मीनारें, वही पत्थर की दीवारें जिन पर काई जमी हुई थी, और वही विशाल, लकड़ी का दरवाज़ा।
इस बार, दरवाज़ा धीरे-धीरे अपने आप खुलने लगा, एक चरमराती हुई, खींचती हुई आवाज़ के साथ जो किसी निमंत्रण की तरह लग रही थी। अंदर से कोई रोशनी नहीं आ रही थी, सिर्फ़ एक गहरा, रहस्यमयी अँधेरा था जो उसे अपनी ओर बुला रहा था।
महल के अंदर, शौर्यक्षर्य और आत्माएँ दरवाज़े के ठीक पीछे इंतज़ार कर रहे थे, अदृश्य।
"वह आ गया," लीला ने फुसफुसाकर कहा। उसकी आवाज़ में उत्तेजना और घबराहट दोनों थी। "इस बार हमें उसे डराना नहीं चाहिए।"
"नहीं," शौर्यक्षर्य ने सहमति जताई। "इस बार... उसे रुकने के लिए एक वजह चाहिए।" उसने अपनी शक्तियों को महसूस किया, उन्हें एक अलग तरीके से इस्तेमाल करने की तैयारी की।
बाहर, आर्यवर्द खुले दरवाज़े पर खड़ा था। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, लेकिन इस बार डर के साथ एक और भावना भी थी—एक मज़बूत इरादा। पिछली बार वह यहाँ गलती से, टूटा हुआ और खोया हुआ आया था। इस बार, वह अपनी मर्ज़ी से आया था। इस बार, वह शिकार नहीं, बल्कि एक खोजकर्ता था।
उसने एक गहरी साँस ली, हवा में घुली सदियों पुरानी धूल और नमी की गंध को महसूस किया। उसने मोमबत्ती स्टैंड को मज़बूती से पकड़ा और अँधेरे में कदम रख दिया।
जैसे ही उसने दहलीज़ पार की, उसके पीछे का दरवाज़ा एक धीमी, गूंजती हुई आवाज़ के साथ बंद हो गया। एक पल के लिए, घना अँधेरा छा गया। लेकिन फिर, मोमबत्ती स्टैंड की नीली लौ और भी तेज़ हो गई, और उसके चारों ओर की चीज़ें रोशन होने लगीं।
और आर्यवर्द ने जो देखा, उसने उसे पूरी तरह से हैरान कर दिया।
यह वही महल नहीं था जिसे उसने अपने 'सपने' में देखा था। वह जगह धूल और जालों से भरी, एक खंडहर नहीं थी। इसके बजाय, वह एक शानदार, पूरी तरह से सजे हुए शाही निवास में खड़ा था।
मशालें दीवारों पर जल रही थीं, उनकी गर्म, नारंगी रोशनी पॉलिश किए हुए फर्श पर नाच रही थी। हवा में धूल की नहीं, बल्कि देवदार की लकड़ी और ताज़े फूलों की हल्की खुशबू थी। दीवारों पर लगे टेपेस्ट्री नए और जीवंत लग रहे थे, उन पर दामनगढ़ के इतिहास के दृश्य बुने हुए थे। हर कोने में रखे कवच के सूट चमक रहे थे, जैसे उन्हें अभी-अभी पॉलिश किया गया हो। सब कुछ... जीवित था। सब कुछ शानदार था।
यह एक भ्रम था, शौर्यक्षर्य द्वारा बनाया गया एक सुंदर भ्रम, जो उस जगह की असली, खंडहर हो चुकी हालत को छिपा रहा था। वह चाहता था कि आर्यवर्द डरे नहीं, बल्कि आकर्षित हो।
आर्यवर्द धीरे-धीरे आगे बढ़ा, उसकी आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो गईं। यह उसकी यादों से बिल्कुल अलग था। क्या उसका सपना गलत था? या यह महल... बदल गया था?
उसने उस रास्ते की ओर देखा जो तहखाने की ओर जाता था, जहाँ उसे वह ताबूत मिला था। लेकिन अब वहाँ कोई अंधेरी, पत्थर की सीढ़ियाँ नहीं थीं। उनकी जगह, एक ख़ूबसूरत, नक्काशीदार लकड़ी का दरवाज़ा था, जो बंद था।
उसने दरवाज़े का हैंडल घुमाया और उसे खोला। अंदर एक अंधेरा, नम तहखाना नहीं था। इसके बजाय, यह एक आलीशान बेडरूम था। एक बड़ा, चार-पोस्टर वाला बिस्तर, एक जलती हुई चिमनी, और दीवारों पर सजी किताबें। यह आरामदायक और आमंत्रित करने वाला लग रहा था।
आर्यवर्द का दिमाग चकरा गया। कुछ तो गड़बड़ थी। यह सब बहुत ज़्यादा... आदर्श लग रहा था। उसे लगा जैसे आत्माएँ उसे धोखा देने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन वह यह नहीं समझ पा रहा था कि क्यों। क्या वे उससे कुछ छिपा रही थीं? या क्या वे उसे यहीं रहने के लिए लुभा रही थीं?
तभी, हवा में एक और खुशबू तैरने लगी। भुने हुए मांस और ताज़ी पकी हुई रोटी की स्वादिष्ट खुशबू, जो उसे एक बड़े डाइनिंग हॉल की ओर खींच रही थी। उसका पेट भूख से गड़गड़ाया। उसने एहसास किया कि उसने सुबह से कुछ नहीं खाया था।
उसने उस खुशबू का पीछा किया, एक भव्य मेहराब से गुज़रते हुए वह एक विशाल डाइनिंग हॉल में पहुँचा। वहाँ, एक लंबी, अँधेरी लकड़ी की मेज़ पर, व्यंजनों का एक भोज फैला हुआ था, जैसे किसी राजा के स्वागत के लिए तैयार किया गया हो। सब कुछ भाप छोड़ रहा था, जैसे उसे अभी-अभी पकाया गया हो।
लेकिन हॉल खाली था। कोई रसोइया नहीं, कोई नौकर नहीं। बस वह अकेला, और यह रहस्यमयी, शानदार दावत।
सीढ़ियों पर चढ़ते हुए, आर्यवर्द ने अपने चारों ओर हो रहे बदलाव को महसूस किया। हर कदम के साथ, धूल और जाले गायब हो रहे थे। कालीनों के रंग चमकीले हो रहे थे, दीवारों पर लगी तस्वीरों में चेहरे साफ़ नज़र आने लगे थे। जैसे-जैसे वह ऊपर चढ़ रहा था, महल अपनी पुरानी भव्यता में लौट रहा था, जैसे उसकी मौजूदगी ही उसे जीवन दे रही हो।
ऊपर पहुँचकर वह एक लंबे गलियारे में आया। पिछली बार यह गलियारा अंधेरा और डरावना था, लेकिन अब यहाँ हर दरवाज़े के पास लगी मशालें जल रही थीं। हवा में अब धूल की जगह चंदन और गुलाब की हल्की खुशबू थी। नरम संगीत की एक धीमी धुन कहीं दूर से आ रही थी, जैसे कोई वीणा बजा रहा हो।
यह सब बहुत अजीब था। यह वही महल था, लेकिन इसका एहसास बिल्कुल अलग था। यह अब डरावना नहीं, बल्कि रहस्यमयी और आकर्षक लग रहा था। आत्माएँ उसे डराने की कोशिश नहीं कर रही थीं। वे उसे लुभाने की कोशिश कर रही थीं।
वह उस तहखाने की ओर बढ़ा जहाँ उसने ताबूत देखा था। उसे याद था कि सीढ़ियाँ गलियारे के अंत में थीं। लेकिन जब वह वहाँ पहुँचा, तो वहाँ कोई सीढ़ियाँ नहीं थीं। उनकी जगह, एक खूबसूरत नक्काशीदार लकड़ी का दरवाज़ा था, जो बंद था। दरवाज़े पर सोने की पत्तियों का काम किया हुआ था, और वह बिल्कुल नया लग रहा था।
"यह कैसे हो सकता है?" वह हैरान होकर बोला। "मैं जानता हूँ कि सीढ़ियाँ यहीं थीं।"
उसने दरवाज़े को धक्का दिया। वह आसानी से खुल गया। अंदर एक अंधेरा, सीलन भरा तहखाना नहीं था। यह एक शानदार बेडरूम था। कमरे के बीच में एक बड़ा, चार-पोस्टर वाला बिस्तर था, जिस पर रेशम की चादरें बिछी थीं। एक कोने में एक बड़ी चिमनी जल रही थी, जिससे कमरा गर्म और आरामदायक महसूस हो रहा था। कमरे में एक बड़ी बालकनी भी थी, जिसके दरवाज़े खुले थे, और बाहर से ताज़ी हवा और रात के फूलों की खुशबू आ रही थी।
आर्यवर्द को एहसास हुआ कि वे उसके साथ खेल रहे हैं। वे उसे यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे थे कि पिछली बार जो कुछ भी हुआ, वह सिर्फ़ एक बुरा सपना था। वे उसे धोखा देने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि क्यों।
"वे क्या चाहते हैं?" उसने धीरे से खुद से पूछा।
अदृश्य आत्माओं में से एक, जो उसे देख रही थी, फुसफुसाई, "वह होशियार है। वह हमारे भ्रम को समझ रहा है।"
"उसे भ्रमित रखो," लीला ने आदेश दिया। "जब तक वह हमारे इरादों को नहीं समझता, हमें उसे आराम महसूस कराना होगा। उसे यह महसूस कराना होगा कि यह जगह उसके लिए एक सुरक्षित पनाहगाह है।"
आर्यवर्द बेडरूम से बाहर निकला और गलियारे में आगे बढ़ा। संगीत की धुन अब और भी तेज़ हो गई थी। वह धुन का पीछा करते हुए एक बड़े हॉल में पहुँचा। यह एक डाइनिंग हॉल था। बीच में एक लंबी, पॉलिश की हुई लकड़ी की टेबल रखी थी, जिस पर तरह-तरह के व्यंजन सजे हुए थे। भुना हुआ मांस, ताज़ी रोटियाँ, फलों के कटोरे, और मिठाइयों की थालियाँ। भाप उठ रहे भोजन की खुशबू ने पूरे हॉल को भर दिया था।
उसने सुबह से कुछ नहीं खाया था। भूख से उसका पेट गुड़गुड़ा रहा था। खाना इतना आकर्षक लग रहा था कि वह खुद को रोक नहीं पाया। उसने सोचा कि अगर यह ज़हर भी हुआ, तो उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उसे जवाब चाहिए थे, और अगर खाना खाने से कोई सामने आता है, तो वह यह जोखिम उठाने को तैयार था।
वह कुर्सी पर बैठ गया और एक रोटी तोड़कर खाने लगा। यह उसकी ज़िंदगी की सबसे स्वादिष्ट रोटी थी। उसने भुना हुआ मांस खाया, फल चखे। हर चीज़ का स्वाद लाजवाब था, जैसे किसी शाही बावर्ची ने उसे बनाया हो।
जैसे ही उसने खाना शुरू किया, अदृश्य आत्माएँ प्रसन्न हो गईं।
"वह खा रहा है!" एक युवा आत्मा खुशी से फुसफुसाई। "इसका मतलब है कि वह हम पर भरोसा कर रहा है।"
शौर्यक्षर्य चुपचाप देखता रहा। उसे यह सब पसंद नहीं आ रहा था। यह धोखा था, और वह जानता था कि जब आर्यवर्द को सच्चाई पता चलेगी, तो उसका भरोसा हमेशा के लिए टूट जाएगा। लेकिन वह जानता था कि अभी उसके पास कोई और रास्ता नहीं है।
खाना खाने के बाद, आर्यवर्द को नींद आने लगी। दिन भर की यात्रा, तनाव और अब पेट भर भोजन ने उसे थका दिया था। वह जानता था कि उसे जागते रहना चाहिए, लेकिन उसकी आँखें बंद हो रही थीं। वह डाइनिंग हॉल से वापस उसी शानदार बेडरूम में गया। बिस्तर इतना आरामदायक लग रहा था कि वह खुद को रोक नहीं सका।
उसने सोचा, "सिर्फ़ कुछ देर के लिए।"
वह आलीशान बिस्तर पर चढ़ गया, जूते पहने हुए ही। जैसे ही उसका सिर तकिये पर लगा, वह गहरी नींद में सो गया। वह महल के जादू के तहत था, एक ऐसी नींद में जो उसे आराम देगी और उसके डर को कम कर देगी, उसे आने वाली चीज़ों के लिए तैयार करेगी।