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AALAM! THE UNSEEN MASTER

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वो एक मामूली लड़का लगता है — मस्तमौला, मज़ाकिया, हर किसी से हँसी-मज़ाक करने वाला… लेकिन उसकी आँखों में कुछ छुपा है। एक ऐसा रहस्य, जो दुनिया की सबसे ताक़तवर संस्थाओं को हिला सकता है। Aalam, एक इलेक्ट्रॉनिक्स शॉप में काम करने वाला नौजवान, जिसे क...

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The Aalam

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Page 1 of 1

  • 1. 🖋️ Chapter 1: एक अजनबी साया 

    Words: 890

    Estimated Reading Time: 6 min

    🖋️ Chapter 1: एक अजनबी साया 

    ये कहानी शुरू होती है एक शादी से... पर खत्म कहां होगी, कोई नहीं जानता।

    दिल्ली की रौनकदार शामों में, आज एक खास महफिल सजी थी — किसी नामी बिज़नेस फैमिली की बेटी की शादी। गाड़ियों की लाइनें बाहर तक लगी थीं, और गेट से अंदर घुसते ही ऐसा लगता था जैसे कोई फ़िल्म की शूटिंग चल रही हो।

    इसी भीड़ में, सबकी नज़रों का मरकज़ बनी थी — Ananya Singh।

    उसने हल्का गुलाबी लहंगा पहना था, जिसमें सुनहरे धागों की कढ़ाई थी। बाल उसके कमर तक लहराते हुए, खुले थे और हल्की सी ब्राउन शेड वाली लाइट पड़ने से और भी चमक रहे थे। वो धीमी चाल से, बिना ज़रा भी घबराहट के, गार्डन की तरफ जा रही थी।

    उसकी सुराहीदार गर्दन पर एक पतला सा हीरे का हार था, जो चांदनी की तरह चमकता था। लेकिन सबसे अलग थी उसकी आंखें — बड़ी, तेज़, और कुछ-कुछ सवाल करती हुई। वो अकेले नहीं आई थी, उसके साथ कुछ दोस्त और फैमिली के लोग भी थे, पर सबके बीच वो सबसे अलग नज़र आ रही थी।

    और फिर... वो आया।

    Aalam — काले जींस, सफेद शर्ट, रोल्ड स्लीव्स, और पैरों में सफेद स्नीकर्स। हल्की मुस्कान और आंखों में गहराई। किसी को नहीं पता था कि वो कौन है, बस इतना कि वो किसी दोस्त के साथ आया था, जिसे लड़की वालों की फैमिली जानती थी।

    उसका चेहरा मासूम था, लेकिन चाल में ऐसा भरोसा था जो आम लोगों में नहीं होता। शर्ट के नीचे से उसकी 8 पैक एब्स की हल्की छाया भी उसे बाकियों से अलग बना रही थी। कोई उसे "सिंपल लड़का" कह सकता था, लेकिन जो आंखों से देख पाते, वो जानते कि उसमें कुछ और भी था।

    Aalam बस चुपचाप फर्श की सफ़ाई का ध्यान रखते हुए चल रहा था, जब अचानक किसी ने पीछे से धक्का मारा — और वो सीधा जा टकराया Ananya से।

    पल भर को दोनों की आंखें मिलीं।

    कुछ सेकेंड… जो जैसे ठहर गए थे। आस-पास की सारी आवाज़ें धीमी हो गई थीं।

    “Sorry,” Aalam बोला, लेकिन उसकी आवाज़ में झिझक नहीं, सच्चाई थी।

    Ananya ने पहले तो गुस्से से देखा, लेकिन कुछ था उस लड़के की आंखों में... जिससे उसका गुस्सा छूमंतर हो गया।

    वो आगे बढ़ने ही लगी थी कि Aalam ने झुककर उसका दुपट्टा उठाया, जो टकराहट में ज़मीन पर गिर गया था।

    “ये गिर गया था,” उसने हल्की मुस्कान के साथ दिया।

    और जैसे ही Ananya ने दुपट्टा लिया, किसी फोटोग्राफर ने उस पल को कैमरे में कैद कर लिया — Ananya का झुका सिर, Aalam का मुस्कुराता चेहरा और वो एक सेकंड का “लगभग गले लगने” वाला पल।

    बस, अगले दिन वो फोटो वायरल हो गई।

    किसी ने बिना जाने-समझे कैप्शन लगा दिया — "दिल्ली की सबसे अमीर लड़की, और उसका सीक्रेट बॉयफ्रेंड?"

    रातों-रात इंटरनेट पर हलचल मच गई। लोगों ने फोटो को क्रॉप किया, मीम बनाए, गॉसिप उड़ाई।

    लेकिन असली तूफ़ान तब आया जब Ananya के घरवालों को ये फोटो दिखी।

    “ये लड़का कौन है?”

    “हमारी बेटी की इज़्ज़त दांव पर लग रही है।”

    “इसे अभी के अभी खोजो!”

    ---

    शादी खत्म हो चुकी थी, पर Aalam के लिए अब एक नई शुरुआत होने वाली थी — वो जानता तक नहीं था कि एक पल की मुलाक़ात उसकी पूरी ज़िंदगी को झकझोर देगी।

    Ananya भी अपने आप को समझ नहीं पा रही थी। उसे Aalam के साथ वो पल याद आ रहा था — कुछ तो अलग था उसमें। न वो उसकी खूबसूरती से डरा, न नाम पूछने में घबराया, और न ही ज़्यादा बोलने की कोशिश की।

    शांति, सादगी, और... अजीब सा अपनापन था उस लड़के में।

    अगले कुछ दिनों में, Aalam और Ananya की बातचीत एक कॉमन दोस्त के ज़रिए शुरू हो गई। WhatsApp पे हल्की-फुल्की चैट, फिर कॉल्स, फिर मिलने के बहाने...

    Ananya जो हमेशा खुद को सबसे ऊपर समझती थी, पहली बार किसी के लिए इंतज़ार करने लगी थी।

    और उधर Aalam?

    वो जानता था कि वो इस रिश्ते में ज़्यादा उम्मीद नहीं कर सकता।

    वो "Alpha Paradise" का मास्टरमाइंड था — एक ऐसा हैकर जिसने दुनिया की सबसे सिक्योर वेबसाइट्स को हिला कर रख दिया था। लेकिन उसने ये सब कभी शो नहीं किया।

    Ananya को सिर्फ उसका सादापन और सोच पसंद आई थी। लेकिन Aalam… वो कुछ और ही सोच रहा था।

    लेकिन Ananya को क्या पता था...

    जिस लड़के की सादगी उसे भा गई थी,

    वही लड़का एक ऐसा रहस्य छुपा रहा था,

    जो उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल बन सकता था।

    "क्योंकि Aalam सिर्फ एक सीधा-सादा लड़का नहीं था... वो उस खेल का हिस्सा था, जिसकी शुरुआत Ananya की एक मुस्कान से नहीं, बल्कि एक पुरानी साज़िश से हुई थी..."

    क्या Ananya की ये मुलाक़ात इत्तेफाक थी... या कोई सोची-समझी चाल?

    🙏 इस अध्याय को पढ़ने के लिए दिल से धन्यवाद!

     

    🤔 आपको क्या लगता है, अब आगे क्या होगा? क्या आलम सच्चाई तक पहुंचेगा या और गहराई में डूब जाएगा?

     

    ❤️ अगर आपको ये हिस्सा पसंद आया हो तो *लाइक* ज़रूर करें — ये मेरी हिम्मत को बढ़ाता है!

     

    💬 और एक छोटा सा *कमेंट* जरूर लिखें — मैं हर एक टिप्पणी पढ़ता हूँ, और आपकी बातों से मुझे और लिखने की प्रेरणा मिलती है।

     

    📢 चलिए मिलकर इस कहानी को आगे बढ़ाते हैं — आपकी सोच और राय मेरे लिए बहुत मायने रखती है।

     

    - आपका अपना  

    **The Aalam** ✍️

     

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  • 2. 🖋️ Chapter 2: नज़दीकियाँ और दूरियाँ

    Words: 1397

    Estimated Reading Time: 9 min

    🖋️ Chapter 2: नज़दीकियाँ और दूरियाँ

    अगली सुबह की हवा में कुछ अलग था। जैसे शहर जागा हो, लेकिन कोई राज़ लेकर। सोशल मीडिया पर हर जगह एक ही वीडियो छाया हुआ था — अनन्या सिंह और एक अनजान लड़का, डांस फ्लोर पर एक-दूसरे की आंखों में डूबे हुए। उस वीडियो की हर फ्रेम में कुछ था — मासूमियत, केमिस्ट्री और एक रहस्य।

    लोगों ने नामों के कयास लगाए, अनन्या के फॉलोअर्स की संख्या रातों-रात बढ़ गई। लेकिन उसके घर का माहौल ठंडा नहीं, आग से भरा हुआ था।

    “ये कौन है? किसने बुलाया था इसे उस शादी में?”
    उसके पिता का चेहरा गुस्से से लाल था। एक नामी बिज़नेसमैन के लिए ये खबर किसी ताज़ा घाव जैसी थी।

    अनन्या चुप थी। वो जानती थी कि कोई जवाब उन्हें संतुष्ट नहीं करेगा। और सच कहें तो, उसके पास खुद भी कोई जवाब नहीं था — बस एक एहसास था जो पहली नज़र में दिल के दरवाज़े पर दस्तक दे गया था।

    वो वीडियो अनजाने में बना, लेकिन अब वो पूरे शहर में गूंज रहा था।

    उधर, आलम ने अपना फोन बंद कर दिया था।
    ना कॉल्स, ना मैसेज।
    वो जानता था, ये तूफ़ान अब कुछ देर का नहीं — ये उसकी ज़िंदगी बदलने वाला है।

    पर उसे फर्क नहीं पड़ा।

    क्योंकि वो उस रात सिर्फ़ डांस नहीं कर रहा था... वो किसी और की आंखों में अपना चेहरा देख रहा था — और वो चेहरा उसे अच्छा लग रहा था।


    ---

    कुछ दिन बीते। शादी का हंगामा तो थम गया, लेकिन अनन्या का दिमाग शांत नहीं हुआ। वो चाहती तो उस वीडियो को फेक बता सकती थी, माफ़ी मांग सकती थी, सब खत्म कर सकती थी।

    पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया।

    बल्कि, एक दोपहर वो चुपचाप गाड़ी लेकर उसी गली में पहुंच गई जहाँ वो छोटा सा मकान था — आलम का।

    “Hi,” उसने कहा।
    आलम दरवाज़े पर खड़ा था — वही पुरानी सफेद शर्ट, लेकिन मुस्कान में कुछ नया था।

    “तुम यहां?” उसने हल्का सा सिर झुकाया।

    “मुझे... तुमसे कुछ बातें करनी थीं।” अनन्या की आंखों में झिझक नहीं थी, पर सवाल ज़रूर थे।

    वो अंदर बैठी। पहली बार एक सादा, छोटा-सा कमरा किसी महल से ज़्यादा सुकून दे रहा था।

    बातें शुरू हुईं — और फिर चलती चली गईं।

    कॉलेज, किताबें, गाने, ज़िंदगी के इरादे… और फिर अनकही चीज़ें। वो जो दिल कहता है, पर जुबां नहीं कहती।


    ---

    अब मिलने का सिलसिला बढ़ने लगा। गुपचुप, चुपचाप, और बिना किसी नाम के।

    एक दिन वो दोनों पार्क में बैठे थे — ठंडी हवा थी, खामोशियाँ थी, और बीच में कभी-कभी अनन्या की हँसी।

    “तुम्हें देखता हूँ तो लगता है दुनिया इतनी खराब भी नहीं है,” अनन्या ने कहा।

    “और तुम्हें देखता हूँ तो लगता है इतनी भी परफेक्ट नहीं,” आलम मुस्कुरा पड़ा।

    वो हँसी, लेकिन उस हँसी के पीछे अब मासूमियत नहीं, अपनापन था।


    ---

    पर कहानी इतनी सीधी कहां होती है?

    जिस दिन सब कुछ सामान्य लगने लगा था, उसी शाम... फिर कुछ हुआ।

    एक नया वीडियो लीक हुआ।

    इस बार कोई डांस नहीं।

    इस बार — आलम और अनन्या एक लॉन में अकेले बैठे थे।
    पास बैठना, हँसना, एक-दूसरे को देखना... और फिर, एक पल — जिसमें अनन्या ने आलम का हाथ थाम लिया।

    वीडियो में कुछ भी अश्लील नहीं था, लेकिन समाज को कितनी देर लगती है एक इमेज बनाने में?


    ---

    टीवी चैनलों पर बहस शुरू हो गई।
    “क्या लड़की बिगड़ रही है?”
    “क्या ये रिश्ता स्वार्थ से भरा है?”
    “कौन है ये लड़का जो शहर की सबसे अमीर बेटी के इतने करीब है?”

    उधर, अनन्या का घर — फिर बवंडर का केंद्र बन गया।

    “तुम उस लड़के से मिल रही हो?” उसके पिता ने चीखते हुए पूछा।

    “हाँ,” उसने पहली बार सीधी नज़र से जवाब दिया।

    “तुम जानती हो, वो कौन है?”

    “नहीं… लेकिन मैं ये जानती हूँ कि मैं कौन हूँ।”

    आलम अकेले अपने कमरे में बैठा था, बाहर हल्की बारिश हो रही थी और खिड़की पर टपकती बूंदों की आवाज़ के साथ उसके भीतर भी कुछ गिर रहा था — शांति। लेकिन यह सन्नाटा स्थायी नहीं था। उसके फोन की स्क्रीन टिमटिमाई — अनन्या का मैसेज था: “मैं बात करना चाहती हूं… लेकिन इस बार किसी को बताए बिना।” अगली सुबह, वो बिना किसी को कुछ कहे सीधे आलम के घर पहुंच गई। दरवाज़ा खुला, दोनों की आंखें मिलीं, और अनन्या ने कहा, “चलो यहां से कहीं दूर… जहाँ हमें कोई पहचानने वाला न हो।” आलम ने एक पल बिना सोचे, बस हौले से सिर हिलाया और अपना बैग उठाया।

    दोपहर तक वे दिल्ली की एक लोकल कोर्ट में थे। कोई तामझाम नहीं, कोई शोर नहीं — सिर्फ दो नाम, दो दस्तखत और एक छोटा-सा वादा। उन्होंने शादी कर ली। कोर्ट मैरिज के बाद वे शहर के कोने में एक सस्ते-से, लेकिन शांत फ्लैट में शिफ्ट हो गए। वहाँ कोई उन्हें पहचानता नहीं था, ना कोई उन्हें जज करता था। ये घर छोटा ज़रूर था, लेकिन उन दोनों के लिए किसी महल से कम नहीं।

    शुरू के कुछ महीने सपने जैसे बीते। अनन्या सुबह की चाय बनाना सीख गई, और आलम चुपचाप उसे देखकर मुस्कुराता। वो दोनों साथ में छोटे-छोटे काम करते — सब्ज़ी लाना, घर की सफाई, कभी-कभी सड़क किनारे गोलगप्पे खाना। अनन्या को धीरे-धीरे वो दुनिया पसंद आने लगी जिसे वो कभी "नीच तबके की" समझती थी। आलम की सादगी, उसकी मुस्कान और उसकी बातों की गहराई में वो खुद को खोती चली गई।

    एक रात छत पर लेटे हुए जब आसमान में बादल गरज रहे थे, अनन्या ने उसकी ओर मुड़कर कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि इतनी सादगी में इतनी शांति हो सकती है।” आलम ने उसकी ओर देखा और बोला, “मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि कोई मुझे इस तरह समझेगा।” दोनों की आंखें एक-दूसरे में डूब गईं। वक्त जैसे थम गया था।

    पर जैसे-जैसे महीने गुज़रे, जीवन की असलियत धीरे-धीरे सामने आने लगी। अब वो शादी सिर्फ़ चुपके से छुपाए गए इश्क की कहानी नहीं रही थी, अब उसमें जिम्मेदारियाँ भी शामिल थीं। आलम का स्वभाव पहले जैसा ही शांत रहा, लेकिन अनन्या के भीतर बेचैनी बढ़ने लगी। जिस लड़की की पूरी ज़िंदगी स्टेटस, महंगे कपड़े और हाई-सोसाइटी पार्टियों में बीती थी, अब वह एक साधारण घर में कैद सी महसूस करने लगी थी।

    एक दिन जब आलम लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था, अनन्या उसके पास आकर बैठ गई और हल्के अंदाज़ में पूछ बैठी, “तुम हर रात इतना लेट क्यों सोते हो? और तुम्हारा लैपटॉप हमेशा लॉक क्यों रहता है?” आलम ने बिना उसकी ओर देखे कहा, “कुछ क्लाइंट्स हैं जो सिक्योरिटी प्रोजेक्ट्स पर काम करवा रहे हैं।” अनन्या ने कोशिश की मुस्कुराने की, लेकिन उसके मन में सवालों के बीज बो दिए गए थे।

    धीरे-धीरे उसकी बातें बदलने लगीं। वो छोटे-छोटे तानों में अपने पुराने जीवन को याद करने लगी। “काश AC ठीक से चलता…”, “तुम्हारे पास कोई बड़ा प्लान भी है या ऐसे ही फ्रीलांसिंग चलती रहेगी?”, “मैंने सोचा था शादी के बाद हम कुछ बेहतर करेंगे…” आलम चुपचाप सुनता रहता, उसकी आंखों में कोई जवाब नहीं होता, बस वही पुराना सुकून — जिसे अनन्या अब ‘उदासीनता’ समझने लगी थी।

    कभी-कभी आलम देर रात तक कुछ कर रहा होता, तो अनन्या चुपचाप उसकी स्क्रीन की झलक लेने की कोशिश करती। पर हर बार स्क्रीन लॉक रहती। उसे अब शक होने लगा था — “क्या आलम कुछ छुपा रहा है?” उसे नहीं पता था कि उसका पति दुनिया का सबसे खतरनाक और रहस्यमय हैकर — The Alpha है।

    फ्लैट का वो सुकून अब बारीक़ दरारों में बिखरने लगा था। बातों का सिलसिला कम हो गया, हँसी के पल घटने लगे, और वो छत — जहाँ कभी दोनों साथ तारे गिनते थे — अब अकेली पड़ गई थी।

    एक शाम, जब आलम बाजार से लौट रहा था, दरवाज़ा खोलते ही उसे घर में सन्नाटा मिला। अनन्या कमरे में थी, लेकिन उसकी आंखों में नमी थी। उसके हाथ में फोन था — और उसपर एक पुराना वीडियो खुला था… वो वायरल वीडियो जिसमें वो और आलम पहली बार डांस कर रहे थे। उस वीडियो को देखकर उसकी आंखों में जैसे सवाल तैरने लगे थे — “कहाँ खो गया वो एहसास? क्या ये सब सिर्फ़ एक पल का जोश था, या कोई गहरा रिश्ता?”

    आलम कुछ कहना चाहता था, लेकिन उससे पहले ही अनन्या बोल पड़ी, “क्या हम वही लोग हैं जो उस रात थे?”

    कुछ पलों की खामोशी के बाद आलम ने धीमे से कहा, “हम वही हैं… पर दुनिया ने हमें वैसा नहीं रहने दिया।”

    और फिर… उस खामोशी में एक दरार और गहरी हो गई।

  • 3. 🖋️ Chapter 3: अनकही कसमे

    Words: 1025

    Estimated Reading Time: 7 min

    🖋️ Chapter 3: अनकही कसमे

    शहर की दोपहर अपनी रफ्तार में दौड़ रही थी, लेकिन एक तस्वीर ने मानो पूरे सोशल मीडिया की नब्ज थाम ली थी — एक साधारण-सी बालकनी, जिसमें दो लोग खड़े थे। तस्वीर में कोई खास पोज़ नहीं था, कोई चमक-दमक नहीं थी, फिर भी उसमें कुछ ऐसा था जिसने लोगों को रुककर देखने पर मजबूर कर दिया।



    बालकनी की रेलिंग पर झुके दो साये — एक लड़की जिसकी आँखों में पुरानी पहचान थी और एक लड़का, जिसकी मौजूदगी में सुकून और रहस्य दोनों थे। शहर के तेज़ इंटरनेट ने उन दोनों को पहचान लिया था। और जब चेहरे ज़रा पास से देखे गए, तो किसी ने कमेंट कर दिया — "ये तो अनन्या सिंह है!"



    बस, वहीं से शुरू हो गया तूफान।



    अनन्या सिंह — वही, जो करोड़ों की इकलौती वारिस थी। वही, जिसे तीन महीने पहले मनाली के लिए रवाना होते देखा गया था। उसने खुद कहा था, “थोड़ा ब्रेक चाहिए... मैं अपनी दोस्तों के साथ मनाली जा रही हूं।” घर वालों ने भी मान लिया था — कि लड़की अपना दर्द भुलाने, अपने टूटे मन को समेटने गई है।



    पर ये तस्वीर...?



    कहाँ की थी ये तस्वीर? और किसके साथ थी?



    कमेंट्स की बाढ़ आ गई —

    "ये मनाली नहीं है यार, ये तो दिल्ली की पुरानी कॉलोनी लग रही है!"

    "जिसके साथ है, वो लड़का कौन है?"

    "क्या... ये शादी कर चुकी है?"



    और इस सबके बीच, वो तस्वीर वायरल हो चुकी थी — Ananya Singh spotted in Delhi balcony with unknown boy.



    उधर, सिंह मेंशन के ड्राइंग रूम में ये तस्वीर टीवी स्क्रीन पर उभर रही थी, और राजेन्द्र सिंह की आँखें जैसे जल रही थीं।



    “ये क्या मज़ाक है?” उन्होंने टेबल पर रखे ग्लास को फर्श पर दे मारा।



    “सर...” मैनेजर ने कांपते हुए कहा, “ये तस्वीर 2 घंटे पहले अपलोड हुई थी, और अब तक दो मिलियन व्यूज़ हैं...”



    “मनाली में है, बोल कर गई थी... और ये?” राजेन्द्र सिंह की आवाज़ गरज में बदल गई।



    उसी वक्त उनके बेटे, रोहन ने आकर फोन आगे किया। “ये लो पापा... लोकेशन ट्रैक करवा ली है। यही दिल्ली की पुरानी रिंग रोड वाली कॉलोनी है।”



    राजेन्द्र सिंह ने एक नजर फोन पर डाली और फिर बगैर कुछ बोले उठ खड़े हुए।



    “गाड़ी निकालो। अभी।”





    ---



    उधर, उसी कॉलोनी में एक छोटे-से कमरे में, अनन्या खिड़की से धूप देख रही थी। आलम अंदर लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। दोनों के बीच पिछले कुछ दिनों से थोड़ी दूरी थी — जैसे कोई बात जो ज़ुबान तक नहीं आ रही थी, लेकिन दिलों में घूम रही थी।



    “तुम्हारा मूड ठीक नहीं है आज?” आलम ने बिना देखे पूछा।



    अनन्या ने सिर झुका लिया। “नहीं... बस... कुछ सोच रही थी।”



    उसने मोबाइल उठाया और खुद को रोक न सकी। सोशल मीडिया खोला — और जैसे ही उस वायरल तस्वीर पर नजर पड़ी, उसके चेहरे का रंग उड़ गया।



    “आलम... ये फोटो कैसे...?”



    आलम ने लाकर स्क्रीन देखा और हल्की मुस्कान के साथ बोला, “तो अब सबको पता चल ही गया।”



    “अब्बा... पापा...” अनन्या की आवाज़ कांप रही थी। “अगर उन्हें पता चल गया तो वो...”



    तभी दरवाज़े पर ज़ोरदार दस्तक हुई।



    धक-धक।



    एक और दस्तक — अब और तेज़।



    अनन्या और आलम दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा।



    आलम ने धीमे से दरवाज़ा खोला।



    सामने चार गार्ड, और बीच में खड़े — राजेन्द्र सिंह।



    उनकी आँखों में आग थी। वो बिना अंदर आए बोले, “यही है वो जगह, जहाँ मेरी बेटी पिछले तीन महीने से छुपी बैठी है?”



    अनन्या डरते हुए पीछे आई। “पापा... मैं आपको बताने वाली थी...”



    “बिलकुल नहीं, चुप रहो। तुमने सिर्फ़ झूठ बोला है,” उन्होंने दहाड़ते हुए कहा। “मनाली का बहाना बना कर एक झोपड़ी में छुपी रही? और ये लड़का...” उन्होंने आलम की ओर देखा, “...इसी ने तुझे फँसाया है न?”



    आलम कुछ कहने वाला ही था, कि राजेन्द्र सिंह ने इशारा किया। दो गार्डों ने बढ़कर आलम को ज़बरदस्ती बाहर धकेल दिया।



    “अब देखता हूँ, कहाँ छुपता है तू।”





    ---



    वो दोपहर जैसे किसी दुःस्वप्न की तरह थी।



    कुछ ही देर में आलम का सामान बाहर फेंका गया — एक छोटा सा ट्रॉली बैग, एक टूटा मोबाइल, कुछ किताबें और एक पुराना लैपटॉप।



    अनन्या कुछ नहीं कर सकी।



    वो कुछ बोलना चाहती थी, पर एक झूठ जो उसने अपने पापा को बताया था — वही उसकी ज़ुबान को अब जकड़े हुए था।



    उसे याद था जब उसने पहली बार कहा था — “मैं मनाली जा रही हूँ... थोड़ा घूमने, थोड़ा खुद को ढूंढने...”

    और अब जब सच्चाई सामने आ गई थी, वो किसी को देख भी नहीं पा रही थी।





    ---



    आलम पूरे दिन इधर-उधर घूमता रहा। दिल्ली की गलियों में उसके पास अब कोई घर नहीं था। शाम को जब सूरज ढलने लगा, वो एक बेंच पर बैठा — सोचता रहा।



    “तो यही था नतीजा?” उसने खुद से पूछा।



    वो मुस्कुरा पड़ा, लेकिन उस मुस्कान में कोई रंग नहीं था।



    जैसे ही अंधेरा घिरा, उसकी नजर एक पोस्टर पर पड़ी — “ Electronics: Technician Needed, Full Time Work, Food & Stay Available”



    वो धीमे कदमों से वहाँ गया।



    दुकान के मालिक ने देखा — उसकी हालत अच्छी नहीं थी, लेकिन आँखों में चमक थी।



    “काम आता है?” उन्होंने पूछा।



    “थोड़ा-बहुत... सब आता है,” आलम ने धीमे से कहा।



    मालिक ने गर्दन हिलाई, “तो ठीक है, कल से आ जाना। और सुनो, मेहनती रहना।”



    आलम ने सिर झुकाकर “धन्यवाद” कहा और बाहर निकल गया।





    ---



    उस रात उसने किसी को फोन नहीं किया, किसी से शिकायत नहीं की।



    बस आसमान की ओर देखा और बुदबुदाया — “शायद यही वो मोड़ है... जहाँ से मेरी असल कहानी शुरू होती है।”





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    🙏 इस अध्याय को पढ़ने के लिए दिल से धन्यवाद!



    🤔 आपको क्या लगता है, अब आगे क्या होगा? क्या आलम सच्चाई तक पहुंचेगा या और गहराई में डूब जाएगा?



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    📢 चलिए मिलकर इस कहानी को आगे बढ़ाते हैं — आपकी सोच और राय मेरे लिए बहुत मायने रखती है।

  • 4. 4- छुपे हुए चेहरे

    Words: 1512

    Estimated Reading Time: 10 min

    कुछ महीने पहले तक Aalam एक ऐसे तूफान के बीच था, जिसने उसकी ज़िंदगी के हर कोने को बिखेर दिया था। शादी... वो भी इतनी जल्दी, बिना किसी प्लानिंग के, और फिर अगले ही दिन घर से निकाला जाना — ऐसा लगा जैसे ज़िंदगी ने उसके चेहरे पर बिना चेतावनी के तमाचा मार दिया हो। दिल्ली की वीआईपी गलियों से दूर अब उसका ठिकाना था एक पुरानी सी इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान, जहाँ टूटे-फूटे गैजेट्स के बीच वो दिनभर उलझा रहता, और शाम को बस खामोशी ओढ़कर वापस अपने किराए के छोटे से कमरे में चला जाता।

    शुरुआत में सब कुछ भारी लग रहा था। लेकिन वक्त ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा, “चल आगे बढ़,” और Aalam भी वही करने लगा। धीरे-धीरे दुकान के मालिक को उस पर इतना भरोसा हो गया कि वो शहर से बाहर जाते हुए दुकान की पूरी जिम्मेदारी उसी के हाथों में सौंपने लगा। Aalam अब काम में इतना माहिर हो गया था कि ग्राहक आते ही वो बिना देखे बता देता, "आपको चार्जिंग पोर्ट नहीं, मदरबोर्ड रिप्लेसमेंट की ज़रूरत है।"

    एक साल इसी दिनचर्या में बीत गया। न कोई पुराने रिश्तों की परछाई, न ही किसी नई शुरुआत का ख्वाब। बस सुबह दुकान, शाम सन्नाटा और बीच में थोड़ी-सी मज़ाक-मस्ती, कभी-कभी आस-पड़ोस की लड़कियों से थोड़ी छेड़खानी — लेकिन सब हद में।

    फिर एक दिन, जैसे वक्त ने उसकी दुकान पर दस्तक दी — Ira।

    दोपहर का समय था। बाहर हल्की धूप और हवा में कुछ नमी सी थी। दुकान के दरवाजे से एक लड़की ने झांकते हुए पूछा, "हाय, आपके पास Type-C कार्ड रीडर है?"

    Aalam ने सर उठाकर देखा — उसके सामने खड़ी थी एक लड़की, नीले रंग की कुर्त्ती, बाल हल्के गीले, आंखों में गहराई, और चेहरे पर एक आत्मविश्वास भरी सी मुस्कान।

    “Type-C?” Aalam ने मुस्कराते हुए कहा, “आपके जैसे स्मार्ट लोग तो Type-C नहीं, सीधा Cloud से डेटा ट्रांसफर करते हैं न?”

    Ira हल्का मुस्कराई, “Cloud भी एक दिन धोखा दे जाता है, इसलिए Backup तो ज़रूरी है।”

    “और Backup के लिए मैं ही काफी हूँ,” Aalam ने आंख मारते हुए जवाब दिया।

    Ira हँस दी, लेकिन उस हँसी में न शर्म थी, न इन्कार — बस एक अजनबी के लिए थोड़ी सी ताज़गी।

    Aalam ने उसे कार्ड रीडर पकड़ा दिया, और जाते-जाते बोला, “दूसरी बार आईं तो पेन ड्राइव पर डिस्काउंट मिलेगा, और तीसरी बार आईं तो… चाय भी पिलाऊँगा।”

    Ira ने मुड़ते हुए कहा, “तीसरी बार के लिए पहले दूसरी बार तो आने दो।”

    अगले कुछ दिनों में Ira फिर-फिर आने लगी। कभी हार्ड डिस्क लेने, कभी बैटरी बदलवाने, कभी बस "पास से जा रही थी तो सोचा देख लूं..." कहकर। Aalam ने भी अब हर बार के लिए नए मजाक, नए बहाने और कुछ फ्लर्टी लाइनें जमा कर ली थीं।

    एक बार तो उसने पूछा ही दिया, “वैसे आप आती बहुत हैं… कहीं मेरे लिए तो नहीं?”

    Ira ने मुस्कुराते हुए कहा, “इतने सारे सवाल पूछते हो… कहीं पत्रकार तो नहीं हो?”

    Aalam ने जवाब दिया, “नहीं, पर आप पर एक सीरीज़ बन सकती है — ‘The Girl Who Bought Every USB.’”

    Ira हँसी, लेकिन इस बार उसकी मुस्कान थोड़ी ठहरी हुई थी। जैसे उसके अंदर कुछ चल रहा हो, कुछ ऐसा जिसे वो दिखाना नहीं चाहती।

    एक शाम, दुकान बंद होने में बस दस मिनट बचे थे। Aalam काउंटर साफ कर रहा था जब Ira फिर आ गई। इस बार उसके चेहरे पर थोड़ी थकावट और आँखों में हल्की घबराहट थी।

    “कुछ चाहिए?” Aalam ने पूछा।

    Ira ने कहा, “कोई ऐसा पुराना कंप्यूटर, जिसमें कुछ भी प्री-इंस्टॉल न हो।”

    Aalam ने चौंकते हुए कहा, “इतना क्लीन सिस्टम तो मेरे दिल जैसा मिलेगा... मतलब आपको सॉफ्टवेयर टेस्ट करना है या... कुछ हटके चल रहा है?”

    Ira ने बस इतना कहा, “कुछ पर्सनल प्रोजेक्ट्स हैं, और कुछ डिलीकेट चीजें हैं जिनके लिए बिना-छुए सिस्टम चाहिए।”

    Aalam ने उसकी आँखों में झांका — एक पल के लिए दोनों चुप। फिर उसने कहा, “ठीक है, कल आना… कुछ जुगाड़ हो सकता है।”

    Ira ने जाते-जाते पूछा, “वैसे… आप इतने भरोसे के क्यों लगते हैं?”

    Aalam ने आंखों में चमक के साथ जवाब दिया, “क्योंकि मैंने बहुत कुछ खोया है… और अब खोने को कुछ नहीं बचा।”

    Ira कुछ कहना चाहती थी, पर कुछ कहा नहीं। वो बस बाहर निकल गई, और Aalam... वो वहीं बैठा रह गया, दुकान की बत्ती बुझाकर।

    उसी रात उसने अपनी जेब से Ira द्वारा दी गई पुरानी पर्ची निकाली — उस पर कुछ कोड्स और टाइमस्टैम्प्स थे, जो उसने पहले ध्यान से नहीं देखे थे। लेकिन आज... आज उसकी दिलचस्पी बढ़ गई थी।

    लेकिन क्या Ira सच में सिर्फ़ सामान लेने आती थी? या वो भी किसी सवाल का जवाब ढूंढ रही थी?

    Aalam के लिए वो अब सिर्फ एक कस्टमर नहीं थी… शायद उससे कहीं ज़्यादा।

    दूसरे दिन शाम ढलने को थी। दुकान के बाहर नीम के पेड़ की छांव में बैठा Aalam अपने मोबाइल में कुछ स्क्रॉल कर रहा था। आस-पास की चहल-पहल से बेखबर, वो हर आने-जाने वाले चेहरे को बिना देखे भी पहचान चुका था। लेकिन आज, कुछ अलग-सा था। एक बेचैनी… या कहो कोई अधूरी सी उम्मीद जो उसके मन के कोने में बैठी थी।

    और फिर वो आई।

    Ira — वही हल्की मुस्कान, लेकिन आज उसकी चाल में थोड़ी जल्दी थी, और आंखों में वही हल्का डर, जो पिछले दिन दिखा था।

    “तुम्हारा क्लीन सिस्टम तैयार है,” Aalam ने कहा।

    Ira ने सिर हिलाया और चुपचाप दुकान के अंदर चली गई। उसने इधर-उधर देखा, जैसे कोई पीछा कर रहा हो। Aalam ने नोटिस किया, लेकिन कुछ कहा नहीं।

    “क्या तुमने किसी को देखा बाहर?” Ira ने अचानक पूछा।

    Aalam थोड़ा मुस्कराया, “तुम्हें देखकर सब देखता हूँ… लेकिन बताओ, कोई खास बात है?”

    Ira ने जवाब देने की बजाय बस सिर झुका लिया, और फिर धीमे से पूछा, “तुम इतने शांत कैसे रहते हो?”

    Aalam ने कुर्सी पीछे खिसकाई और कहा, “मैंने ज़िंदगी से सीखा है — जब लोग बहुत कुछ जानना चाहें, तब सिर्फ़ मुस्कुरा दो। सब कुछ कहना जरूरी नहीं होता।”

    Ira कुछ कहने ही वाली थी कि तभी दुकान के बाहर एक तेज़ बाइक की आवाज़ आई — वही तेज़ इंजन, जो पहले कभी सुनाई नहीं दी थी। Ira एकदम चौक गई। उसने Aalam की तरफ देखा और धीमे स्वर में बोली, “क्या यहाँ कोई और आता है... इस वक़्त?”

    Aalam ने लापरवाही से कहा, “शायद कोई नया ग्राहक हो... या कोई पुराना पीछा।”

    Ira की आंखों में डर था, लेकिन उसने खुद को सम्भाला। “अगर कुछ हो, तो क्या तुम मदद करोगे?”

    Aalam ने हँसते हुए कहा, “मुझे तो तुम्हारी कंपनी मिल रही है… बदले में कुछ तो देना पड़ेगा न।”

    Ira ने कुछ पल उसे देखा, जैसे सवाल और भरोसे के बीच झूल रही हो। फिर उसने बैग से एक पुरानी USB निकाली और कहा, “इसे रख लो… अगर कभी लगे कि मैं कुछ छुपा रही हूँ, तो खोल लेना।”

    Aalam ने USB ली, लेकिन ज़्यादा कुछ बोले बिना। उसने सिर्फ़ हल्के से सिर हिलाया, और एक मुस्कुराहट के साथ कहा, “इस पर कुछ मूवीज भी हैं या सिर्फ़ राज़?”

    Ira ने जवाब दिया, “तुम खुद देख लेना… लेकिन शायद तुम्हें खोलने की हिम्मत न हो।”

    इस बार Aalam हँसा — और पहली बार थोड़ा लंबा।

    फिर उसने उसी USB को अपनी जेब में डालते हुए कहा, “ठीक है, पर वादा करो — अगली बार कुछ ऐसा लाना जिससे सिर्फ़ हँसी आए, डर नहीं।”

    Ira ने कुछ जवाब नहीं दिया। बस दरवाजे की ओर देखा, जैसे किसी के आने की आहट सुन रही हो।

    “चलो, अब मैं निकलती हूँ,” वो बोली।

    “इतनी जल्दी?” Aalam ने पूछा, “मैं तो सोच रहा था कि आज दुकान बंद करके तुम्हें चाय पिलाऊँगा — वैसे भी शाम का मौसम बड़ा शानदार है।”

    Ira ने मुस्कराकर कहा, “शायद अगली बार…”

    वो जैसे ही बाहर निकली, Aalam उसके पीछे आया। दोनों दरवाजे पर खड़े थे, और तभी Ira पलटी और बोली, “तुम्हें ये USB वैसे ही नहीं मिली है, ध्यान रखना…”

    Aalam ने उसकी आँखों में देखा और धीमे से कहा, “और तुम... हर बार कुछ अधूरा छोड़ जाती हो।”

    Ira ने कुछ पल कुछ नहीं कहा — बस सिर झुकाया और सीढ़ियों से उतर गई। Aalam उसे जाते हुए देखता रहा… और फिर दुकान के अंदर लौट आया।

    अंदर पहुँचकर उसने जेब से USB निकाली — उस पर लिखा था सिर्फ़ एक शब्द: “Blue.”

    Aalam कुछ देर उसे घूरता रहा, फिर USB को टेबल पर रखा और गहरी साँस ली।

    "हूँ..." उसने सोचा, "तो खेल शुरू हो चुका है, बस पता नहीं... खिलाड़ी कौन है, और शिकार कौन?"

    बाहर मौसम बदलने लगा था, और एक नई चाल चलने वाली थी।

    🙏 इस अध्याय को पढ़ने के लिए दिल से धन्यवाद!

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    - आपका अपना  

    **The Aalam** ✍️